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मालगुडी () अंग्रेजी साहित्य के सुप्रसिद्ध भारतीय लेखक आर के नारायण की अनेक रचनाओं में केंद्रीय महत्व प्राप्त एक काल्पनिक शहर (कस्बा) का नाम है। उन्होंने इस काल्पनिक शहर को आधार बनाकर अपनी अनेक रचनाएँ की हैं। मालगुडी को प्रायः दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा माना जाता है। नाम का पुस्तक रूप में प्रथम प्रयोग आर के नारायण ने इस काल्पनिक शहर 'मालगुडी' का रचनात्मक प्रयोग अपनी कई पुस्तकों में किया है, परन्तु इसी नाम पर आधारित पहली पुस्तक थी 1942 ईस्वी में प्रकाशित उनकी कहानियों का सुप्रसिद्ध संग्रह मालगुडी की कहानियाँ (मालगुडी डेज़)। इस काल्पनिक स्थान के संदर्भ में स्वयं लेखक की टिप्पणी इस प्रकार है:- "मैंने इस संकलन का नाम मालगुडी कस्बे पर दिया है, क्योंकि इससे इसे एक भौगोलिक व्यक्तित्व मिल जाता है। लोग अक्सर पूछते हैं : 'लेकिन यह मालगुडी है कहाँ?' जवाब में मैं यही कहता हूँ कि यह काल्पनिक नाम है और दुनिया के किसी भी नक्शे में इसे ढूंढा नहीं जा सकता (यद्यपि शिकागो विश्वविद्यालय ने एक साहित्यिक एटलस प्रकाशित किया है जिसमें भारत का नक्शा बनाकर उसमें मालगुडी को भी दिखा दिया गया है)। अगर मैं कहूँ कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएँगे।" सन्दर्भ
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तख़्त श्री पटना साहिब या श्री हरमंदिर जी, पटना साहिब पटना शहर के पास पटना सिटी में स्थित सिख आस्था से जुड़ा यह एक ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल है। यहाँ सिखों के दसवें गुरु श्री गोबिन्द सिंह का जन्मस्थान है। गुरु गोविन्द सिंह का जन्म 22 दिसम्बर 1666 शनिवार को माता गुजरी के गर्भ से हुआ था। उनका बचपन का नाम गोबिंद राय था। यहाँ महाराजा रंजीत सिंह द्वारा बनवाया गया गुरुद्वारा है जो स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना है। इतिहास यह स्थान सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के जन्म स्थान तथा गुरु नानक देव के साथ ही गुरु तेग बहादुर सिंह की पवित्र यात्राओं से जुड़ा है। आनंदपुर जाने से पूर्व गुरु गोबिंद सिंह के प्रारंभिक वर्ष यहीं व्यतीत हुये। यह गुरुद्वारा सिखों के पाँच पवित्र तख्त में से एक है।भारत और पाकिस्तान में कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे की तरह, इस गुरुद्वारा को महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनाया गया था। गुरुद्वारा श्री हरिमंदर जी पटना साहिब बिहार के पटना शहर के पास पटना सिटी में स्थित है। श्री गुरु तेग बहादुर सिंह साहिब जी यहां बंगाल व असम की फ़ेरी के दौरान आए। गुरू साहिब यहां सासाराम ओर गया होते हुए आए। गुरू साहिब के साथ माता गुजरी जी ओर मामा किर्पाल दास जी भी थे। अपने परिवार को यहां छोड़ कर गुरू साहिब आगे चले गए। यह जगह श्री सलिसराय जौहरी का घर था। श्री सलिसराय जौहरी श्री गुरू नानक देव जी का भक्त था। श्री गुरु नानक देव जी भी यहां श्री सलिसराय जौहरी के घर आए थे। जब गुरू साहिब यहाँ पहुँचे तो जो डेउहरी लांघ कर अंदर आए वो अब तक मौजूद है। श्री गुरु तेग़ बहादुर सिंह साहिब जी के असम फ़ेरी पर चले जाने के बाद बाल गोबिंद राय जी का जन्म माता गुजरी जी की कोख से हुआ। जब गुरु साहिब को यह खबर मिली तब गुरू साहिब असम में थे। बाल गोबिंद राय जी यहां छ्ह साल की आयु तक रहे। बहुत संगत बाल गोबिंद राय जी के दर्शनॊं के लिए यहां आती थी। माता गुजरी जी का कुआं आज भी यहां मौजूद है। बौद्धिक संपदा गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर सन् 1666 ई. को पटना, बिहार में हुआ था। इनका मूल नाम 'गोविंद राय' था। गोविंद सिंह को सैन्य जीवन के प्रति लगाव अपने दादा गुरु हरगोविंद सिंह से मिला था और उन्हें महान बौद्धिक संपदा भी उत्तराधिकार में मिली थी। वह बहुभाषाविद थे, जिन्हें फ़ारसी अरबी, संस्कृत और अपनी मातृभाषा पंजाबी का ज्ञान था। उन्होंने सिक्ख क़ानून को सूत्रबद्ध किया, काव्य रचना की और सिक्ख ग्रंथ 'दसम ग्रंथ' (दसवां खंड) लिखकर प्रसिद्धि पाई। उन्होंने देश, धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सिक्खों को संगठित कर सैनिक परिवेश में ढाला। दसवें गुरु गोविंद सिंह जी स्वयं एक ऐसे ही महापुरुष थे, जो उस युग की आतंकवादी शक्तियों का नाश करने तथा धर्म एवं न्याय की प्रतिष्ठा के लिए गुरु तेग बहादुर सिंह जी के यहाँ अवतरित हुए। इसी उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा था। मुझे परमेश्वर ने दुष्टों का नाश करने और धर्म की स्थापना करने के लिए भेजा है। पर्यटकीय महत्व यह स्‍थान सिख धर्मावलंबियों के लिए बहुत पवित्र है। सिखों के लिए हरमंदिर साहब पाँच प्रमुख तख्तों में से एक है। यह स्‍थान दुनिया भर में फैले सिख धर्मावलंबियों के लिए बहुत पवित्र है। गुरु नानक देव की वाणी से अतिप्रभावित पटना के श्री सलिसराय जौहरी ने अपने महल को धर्मशाला बनवा दिया। भवन के इस हिस्से को मिलाकर गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है। यहाँ गुरु गोविंद सिंह से संबंधित अनेक प्रमाणिक वस्‍तुएँ रखी हुई है। इसकी बनावट गुंबदनुमा है। बालक गोबिंदराय के बचपन का पंगुरा (पालना), लोहे के चार तीर, तलवार, पादुका तथा 'हुकुमनामा' गुरुद्वारे में सुरक्षित है। प्रकाशोत्‍सव के अवसर पर पर्यटकों की यहाँ भारी भीड़ उमड़ती है। इन्हें भी देखें गुरुद्वारा हांडी साहिब पटना के पर्यटन स्थल सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट :- तख्त श्री पटना साहिब जी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी - ६ गुरुओं, ३० संतों एवं ३ गुरुघर के श्रद्धालुओ की बाणी का संग्रह संत सिपाही थे गुरु गोबिन्द सिंह बिहार में पर्यटन आकर्षण सिख तीर्थ
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बूरुगुल (कर्नूलु) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कर्नूलु जिले का एक गाँव है। बाहरी कड़ियाँ आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग NIC की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट आन्ध्र प्रदेश कर्नूलु जिला
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मगरूखाल, सल्ट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर कुमाऊँ मण्डल गढ़वाल मण्डल बाहरी कड़ियाँ उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा मगरूखाल, सल्ट तहसील मगरूखाल, सल्ट तहसील
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मोंटी पनेसर एक अंग्रेजी क्रिकेट खिलाड़ी हैं। व्यक्तिगत जीवन प्रारंभिक खिलाड़ी जीवन घरेलू खिलाड़ी जीवन अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी जीवन खेल का तरीका पुरस्कार बाहरी कड़ियाँ स्रोत क्रिकेट खिलाड़ी इंग्लैंड के क्रिकेट खिलाड़ी
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भाव मिश्र को प्राचीन भारतीय औषधि-शास्त्र का अन्तिम आचार्य माना जाता है। उनकी जन्मतिथि और स्थान आदि के बारे में कुछ भी पता नहीं है किन्तु इतना ज्ञात है कि सम्वत १५५० में वे वाराणसी में आचार्य थे और अपनी कीर्ति के शिखर पर विराजमान थे। उन्होने भावप्रकाश नामक आयुर्वेद ग्रन्थ की रचना की है। उनके पिता का नाम लटकन मिश्र था। आचार्य भाव प्रकाश का समय सोलहवीं सदी के आसपास है। आचार्य भाव मिश्र अपने पूर्व आचार्यो के ग्रन्थों से सार भाग ग्रहण कर अत्यन्त सरल भाषा में इस ग्रन्थ का निर्माण किया है। उन्होने ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही यह बता दिया कि यह शरीर, धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष इन पुरुषार्थ चतुष्टक की प्राप्ति का मूल है। और जब यह शरीर निरोग रहेगा, तभी कुछ प्राप्त कर सकता है। इसलिए शरीर को निरोग रखना प्रत्येक व्यक्ति का पहला कर्तव्य है। इस संस्करण में विमर्श का अधोन्त परिष्कार, विभिन्न वन औषधियों का अनुसंधान, साहित्य का अंतर भाव एवं प्रत्येक वनस्पति का यथास्थिति, असंदिग्ध परिचय देने की चेष्टा की गई है। तथा उन औषधियों का आभ्यांतर प्रयोग यथास्थल किया गया है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें भावप्रकाश आयुर्वेदाचार्य
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प्रेमा नारायण (जन्म: ४ अप्रैल १९५५) एक मॉडल और बॉलीवुड अभिनेत्री-नर्तकी है। उसने हिंदी और बंगाली सिनेमा में अभिनय किया है। वह मिस इंडिया वर्ल्ड १९७१ थी।. प्रारंभिक जीवन प्रेमा नारायण का जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ था।यह प्रसिद्ध अभिनेत्री अनिता गुहा की भतीजी है। जीवन प्रेमा नारायण कोन्वेन्ट विद्यालय में एक अंग्रेजी अध्यापिका थी।बाद में इन्होंने मॉडलिंग की शुरुआत की तथा १९७१ में इन्होंने फैमिना मिस इंडिया प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लिया और उन्हें फैमिना मिस इंडिया का ताज पहनाया गया।इन्होंने बाॅलीवुड व बंगाली की कई फिल्मों में काम किया। सन्दर्भ अभिनेत्री 1955 में जन्मे लोग भारतीय अभिनेत्री जीवित लोग
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शुभ शगुन राहुल प्रॉडक्शन एंड मीडिया एल एल पी द्वारा निर्मित एक भारतीय हिंदी ड्रामा टेलीविजन श्रृंखला है, जिसका प्रीमियर २ मई २०२२ को दंगल टीवी पर हुआ था। श्रृंखला में कृष्णा मुखर्जी , शहजादा धामी,मुख्य किरदार में हैं। भारतीय टेलीविजन धारावाहिक दंगल टीवी के धारावाहिक दंगल टीवी मूल धारावाहिक सारांश शुभ शगुन” धारावाहिक की कहानी मे शुभ और शगुन की ईद गिर्द ही घूमती है । यह धारावाहिक में शुभ एक अमीर परिवार से आता है जबकि शगुन एक मध्यवर्गीय परिवार से आती है। शुभ अपनी बहन नव्या से बहुत प्यार करता है और बहन के लिए कुछ भी कर सकता है। और इस तरफ से शगुन अपनी भाई युग से बहुत प्यार करती है। पर बृजेश शुभ की दौलत हड़पना चाहता है इसीलिए वो शुभ को हराने के लिए बहुत नाकाम कोशिश करता है।शुभ और शगुन एक दूसरे से गलती से मिलते रहते है। शुभ को शगुन से नफरत हो जाता है। उसी तरफ शुभ के बहन नव्या को शगुन की भाई से प्यार हो जाता है और वो शुभ से कहती है कि वो युग से प्यार करती है और उससे शादी करना चाहती है। पर शगुन को ये मंजूर नहीं थी। क्यों की शुभ पैसे से परिवार बनाना चाहता है। और वो उसकी बहन की शादी युग से करवाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था| इसीलिए शगुन अपनी और अपनी भाई युग की शादी अशोक और रिया से जल्द से जल्द करवाना चाहती थी। इसलिए शुभ उसकी बहन बहुत गुस्सा हो गई और धमकी दिया की अगर उसकी शादी युग से नही करवाया तो वो अपनी जान लेलेगी। पर शुभ वादा करता है की उसकी शादी युग से ही होगी। शगुन और युग के शादी के दिन शुभ , शगुन के घर आता है। शगुन अशोक से शादी करके जीवन में एक नया अध्याय शुरू करने वाली थी । शगुन की शादी अशोक से और युग का रिया से होने वाली थी। पर शुभ चालाकी से रिया की अपहरण करके उसकी जगह अपनी बहन नव्या को लाकर बैठा देता है। ये खबर अशोक को पता चला तो वो शगुन को बताने वाला था तब शुभ अशोक का भी अपहरण कर देता है और अशोक की जगह शुभ आकर शादी के मंडप में बैठता है। शुभ – शगुन और युग नव्या के शादी हो जाता है।शगुन को ये देख कर बहुत गुस्सा आता है। और अशोक रिया बहुत दुख दे अपनी घर चले जाते है| शुभ के घर में शगुन और युग चले जाते हैं। हालांकि, शगुन ने शुभ को 30 दिन की चुनौती दी है की वो युग और नव्या से अलग करके रहेगी।आखिर में शुभ को शगुन से प्यार हो जाता है और शगुन शुभ को हर मुसीबत से बचाती है। कलाकार कृष्णा मुखर्जी – शगुन(युग के बहन)(शुभ के पत्नी) शहजादा धामी – शुभ जैसवाल(नव्या की। भाई)(शगुन की पति) मोहित जोशी। – युग (शगुन की भाई)(नव्या के पति) काजोल श्रीवास्तव – नव्या जैसवाल(शुभ के बहन)(युग के पत्नी) विवाना सिंह – बिंदिया (वनराज की पत्नी) वंदना विठलानी – अर्चना स्मीत डोंगरे – राधा चेतना हंसराज – बृजेश त्यागी (कनिका की पति) पपिया सेनगुप्त – कनिका त्यागी(बृजेश की पत्नी) जयदीप सिंह – वनराज(बिंदिया के पति) गुरवेश पंडित – पीतांबर शिंदे (शगुन के काका) पवन महेंद्रू –दादाजी इशिता गांगुली - नैना सय्यद जफर अली (२०२२) प्रीति सिंघानिया - माही जायसवाल, बिंदिया और विराज की बेटी के रूप में; शुभ की चचेरी बहन; युग की प्रेमिका (2022) संदर्भ भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
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उम्म हकीम बिन्त अल-हारिस: इस्लामी पैगंबर मुहम्मद की एक महिला साथी सहाबा थी। प्रमुख प्रतिद्वंद्वी से साथी बने इक्रिमा बिन अबू जहल की पत्नि थी उनके शहीद (इस्लाम) होने के बाद में इस्लाम के दूसरे खलीफा उमर की पत्नी थीं।जिनसे उन्हें फातिमा नाम की एक बेटी हुई। जीवन कई इस्लाम के युद्धों में शरीक हुईं। उहुद की लड़ाई उहुद की लड़ाई: में वह इकरीमा और मक्का के अन्य कुरैशों के साथ थीं जो मुसलमानों के खिलाफ लड़े थे। युद्ध के मैदान में कुरैश महिलाओं के समूह का नेतृत्व करते समय उन्होंने अन्य महिलाओं के साथ मिलकर ड्रम बजाया। मक्का की विजय मक्का पर विजय :630 ई. में, जब मुसलमानों ने मक्का पर कब्ज़ा कर लिया, तो उम्म हकीम अन्य कुरैशों के साथ इस्लाम में परिवर्तित हो गए। इसके बाद, उम्म हकीम ने अपने पति इकरीमा को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मना लिया। मक्का विजय के बड़े मुजरिम होते हुए भी पत्नी उम्मे हकीम के अनुरोध पर माफ़ किये गए। ज़ईफ़ हदीस के मुताबिक इनका नया निकाह नहीं कराया गया पहले धर्म के निकाह (विवाह) को ही जारी माना गया। मरज अल-सफ़र की लड़ाई मार्ज अल-सफ़र की लड़ाई: अबू सईद के मारे जाने के बाद, उम्म हकीम ने अकेले ही 634 में मार्ज अल-सफ़र की लड़ाई के दौरान एक पुल के पास एक तम्बू के खंभे से सात बीजान्टिन सैनिकों को मार डाला, जिसे अब दमिश्क के पास उम्म हकीम के पुल के रूप में जाना जाता है। इन्हें भी देखें मुहम्मद की सैन्य उपलब्धियाँ मुहम्मद के अभियानों की सूची गुलामी पर इस्लाम के विचार अर्रहीकुल मख़तूम पैगंबर मुहम्मद की जीवनी पर विश्वव्यापी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित पुस्तक सन्दर्भ सहाबा अरब बाहरी कड़ियाँ हयातुस्सहाबा हिंदी 3 खंडों में सहाबियात एनसाइक्लोपीडिया-उर्दू में सहाबिया अरब इतिहास
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आदित्य १ विजयालय का पुत्र था। यह ई.८७१ को गद्दी पर बैठा और ई.९०७ तक शासन किया। आदित्य १ ने पल्लवो को परास्त कर राज्य को पल्लवो से स्वतंत्र घोषित कराया। आगे चलकर आदित्य १ ने कोदण्ड़राम की उपाधी धारण करी।
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अचित्रागढ़ किला राजस्थान के नागौर में स्थित है। इस किले का निर्माण चौथी शताब्दी में हुआ था। इस किले में तीन दरवाजे हैं। पहले दरवाजे को सिरहे, दूसरे को बीच का पोल और तीसरे को कचेहरी पोल कहा जाता है। इस किले में कुछ प्रमुख महल जैसे- हादी रानी महल, दीपक महल, भक्त सिंह महल, अमर सिंह महल, अकबरी महल और रानी महल के अलावा दो मंदिर कृष्णा मंदिर एवं गणेश मंदिर तथा शाह जहानी का स्मारक भी है नागौर राजस्थान में दुर्ग
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तालिन आर्मेनिया का एक समुदाय है। यह अरागातसोत्न मर्ज़ (प्रांत) में आता है। इसकी स्थापना 1995 में हुई थी। यहाँ की जनसंख्या 5,371 है। आर्मेनिया
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स्टेरॉयड हार्मोन एक स्टेरॉयड है जो एक हार्मोन के रूप में कार्य करता है। स्टेरॉयड हार्मोन को दो वर्गों में बांटा जा सकता है: कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स (आमतौर पर एड्रेनल कॉर्टेक्स में बने होते हैं, इसलिए कॉर्टिको-) और सेक्स स्टेरॉयड (आमतौर पर गोनाड या प्लेसेंटा में बने होते हैं)। उन दो वर्गों के भीतर रिसेप्टर्स के अनुसार पांच प्रकार होते हैं जिनसे वे बांधते हैं: ग्लूकोकार्टिकोइड्स और मिनरलोकोर्टिकोइड्स (दोनों कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स) और एण्ड्रोजन, एस्ट्रोजेन, और प्रोजेस्टोजेन (सेक्स स्टेरॉयड)। विटामिन डी डेरिवेटिव, समजात रिसेप्टर्स के साथ छठी निकटता से संबंधित हार्मोन प्रणाली है। उनके पास रिसेप्टर लिगैंड के रूप में वास्तविक स्टेरॉयड की कुछ विशेषताएं हैं। स्टेरॉयड हार्मोन चयापचय, सूजन, प्रतिरक्षा कार्यों, नमक और पानी के संतुलन, यौन विशेषताओं के विकास और चोट और बीमारी का सामना करने की क्षमता को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। स्टेरॉयड शब्द शरीर द्वारा उत्पादित हार्मोन और कृत्रिम रूप से उत्पादित दवाओं दोनों का वर्णन करता है जो स्वाभाविक रूप से होने वाले स्टेरॉयड के लिए कार्रवाई की नकल करते हैं। संश्लेषण प्राकृतिक स्टेरॉयड हार्मोन आमतौर पर गोनाड और अधिवृक्क ग्रंथियों में कोलेस्ट्रॉल से संश्लेषित होते हैं। हार्मोन के ये रूप लिपिड हैं। वे कोशिका झिल्ली से गुजर सकते हैं क्योंकि वे वसा में घुलनशील होते हैं, और फिर कोशिका के भीतर परिवर्तन लाने के लिए स्टेरॉयड हार्मोन रिसेप्टर्स (जो स्टेरॉयड हार्मोन के आधार पर परमाणु या साइटोसोलिक हो सकते हैं) से जुड़ सकते हैं। स्टेरॉयड हार्मोन आमतौर पर रक्त में होते हैं, जो विशिष्ट वाहक प्रोटीन जैसे सेक्स हार्मोन-बाइंडिंग ग्लोब्युलिन या कॉर्टिकोस्टेरॉइड-बाइंडिंग ग्लोब्युलिन से बंधे होते हैं। आगे के रूपांतरण और अपचय यकृत में, अन्य "परिधीय" ऊतकों में और लक्ष्य ऊतकों में होते हैं। उत्पादन दर, स्राव दर, निकासी दर, और प्रमुख सेक्स हार्मोन के रक्त स्तर दिखाते हैं सिंथेटिक स्टेरॉयड और स्टेरोल्स विभिन्न प्रकार के सिंथेटिक स्टेरॉयड और स्टेरोल भी विकसित किए गए हैं। अधिकांश स्टेरॉयड हैं, लेकिन कुछ गैर-स्टेरायडल अणु आकार की समानता के कारण स्टेरॉयड रिसेप्टर्स के साथ बातचीत कर सकते हैं। कुछ सिंथेटिक स्टेरॉयड प्राकृतिक स्टेरॉयड से कमजोर या मजबूत होते हैं जिनके रिसेप्टर्स वे सक्रिय करते हैं। सिंथेटिक स्टेरॉयड हार्मोन के कुछ उदाहरण: ग्लूकोकार्टिकोइड्स: एल्क्लोमेटासोन, प्रेडनिसोन, डेक्सामेथासोन, ट्राईमिसिनोलोन, कोर्टिसोन मिनरलोकॉर्टिकॉइड: फ्लूड्रोकार्टिसोन विटामिन डी: डायहाइड्रोटैचिस्टेरॉल एण्ड्रोजन: ऑक्सेंड्रोलोन, ऑक्साबोलोन, नैंड्रोलोन (जिसे एनाबॉलिक-एंड्रोजेनिक स्टेरॉयड या केवल एनाबॉलिक स्टेरॉयड के रूप में भी जाना जाता है) एस्ट्रोजेन: डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल (डीईएस) और एथिनिल एस्ट्राडियोल (ईई) प्रोजेस्टिन: नोरेथिस्टरोन, मेड्रोक्सीप्रोजेस्टेरोन एसीटेट, हाइड्रोक्सीप्रोजेस्टेरोन कैप्रोएट। कुछ स्टेरॉयड विरोधी: एंड्रोजन: साइप्रोटेरोन एसीटेट प्रोजेस्टिन: मिफेप्रिस्टोन, गेस्ट्रिनोन यातायात स्टेरॉयड हार्मोन रक्त के माध्यम से वाहक प्रोटीन-सीरम प्रोटीन से बंधे होते हैं जो उन्हें बांधते हैं और पानी में हार्मोन की घुलनशीलता को बढ़ाते हैं। कुछ उदाहरण हैं सेक्स हार्मोन-बाइंडिंग ग्लोब्युलिन (SHBG), कॉर्टिकोस्टेरॉइड-बाइंडिंग ग्लोब्युलिन और एल्ब्यूमिन। अधिकांश अध्ययनों का कहना है कि हार्मोन केवल कोशिकाओं को प्रभावित कर सकते हैं जब वे सीरम प्रोटीन से बंधे नहीं होते हैं। सक्रिय होने के लिए, स्टेरॉयड हार्मोन को अपने रक्त-घुलनशील प्रोटीन से खुद को मुक्त करना चाहिए और या तो बाह्य कोशिकीय रिसेप्टर्स से बांधना चाहिए, या निष्क्रिय रूप से कोशिका झिल्ली को पार करना चाहिए और परमाणु रिसेप्टर्स से जुड़ना चाहिए। इस विचार को मुक्त हार्मोन परिकल्पना के रूप में जाना जाता है। यह विचार चित्र 1 में दाईं ओर दिखाया गया है। एक अध्ययन में पाया गया है कि ये स्टेरॉयड-वाहक कॉम्प्लेक्स मेगालिन, एक झिल्ली रिसेप्टर से बंधे होते हैं, और फिर एंडोसाइटोसिस के माध्यम से कोशिकाओं में ले जाया जाता है। एक संभावित मार्ग यह है कि एक बार कोशिका के अंदर इन परिसरों को लाइसोसोम में ले जाया जाता है, जहां वाहक प्रोटीन का क्षरण होता है और स्टेरॉयड हार्मोन को लक्ष्य कोशिका के कोशिका द्रव्य में छोड़ा जाता है। हार्मोन तब क्रिया के जीनोमिक मार्ग का अनुसरण करता है। यह प्रक्रिया चित्र 2 में दाईं ओर दिखाई गई है। स्टेरॉयड हार्मोन परिवहन में एंडोसाइटोसिस की भूमिका को अच्छी तरह से समझा नहीं गया है और आगे की जांच की जा रही है। स्टेरॉयड हार्मोन के लिए कोशिकाओं के लिपिड बाईलेयर को पार करने के लिए, उन्हें ऊर्जावान बाधाओं को दूर करना होगा जो झिल्ली में प्रवेश करने या बाहर निकलने से रोकेंगे। गिब्स मुक्त ऊर्जा यहां एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। ये हार्मोन, जो सभी कोलेस्ट्रॉल से प्राप्त होते हैं, के दोनों छोर पर हाइड्रोफिलिक कार्यात्मक समूह और हाइड्रोफोबिक कार्बन बैकबोन होते हैं। जब स्टेरॉयड हार्मोन झिल्ली में प्रवेश कर रहे होते हैं, तब मुक्त ऊर्जा अवरोध मौजूद होते हैं जब कार्यात्मक समूह झिल्ली के हाइड्रोफोबिक इंटीरियर में प्रवेश कर रहे होते हैं, लेकिन इन हार्मोनों के हाइड्रोफोबिक कोर के लिए लिपिड बाइलेयर में प्रवेश करना ऊर्जावान रूप से अनुकूल होता है। झिल्ली से बाहर निकलने वाले हार्मोन के लिए ये ऊर्जा अवरोध और कुएं उलट जाते हैं। शारीरिक स्थितियों में स्टेरॉयड हार्मोन आसानी से झिल्ली में प्रवेश करते हैं और बाहर निकलते हैं। उन्हें हार्मोन के आधार पर, 20 माइक्रोन/सेकेंड की दर से झिल्लियों को पार करने के लिए प्रयोगात्मक रूप से दिखाया गया है। हालांकि ईसीएफ या आईसीएफ की तुलना में झिल्ली में हार्मोन के लिए ऊर्जावान रूप से अधिक अनुकूल है, वे वास्तव में झिल्ली में प्रवेश करने के बाद छोड़ देते हैं। यह एक महत्वपूर्ण विचार है क्योंकि कोलेस्ट्रॉल - सभी स्टेरॉयड हार्मोन का अग्रदूत - एक बार झिल्ली को अंदर से अंदर जाने के बाद नहीं छोड़ता है। कोलेस्ट्रॉल और इन हार्मोन के बीच का अंतर यह है कि इन हार्मोन की तुलना में कोलेस्ट्रॉल झिल्ली के अंदर एक बार बहुत अधिक नकारात्मक गिब की मुक्त ऊर्जा में होता है। इसका कारण यह है कि कोलेस्ट्रॉल पर स्निग्ध पूंछ का लिपिड बाइलेयर के आंतरिक भाग के साथ बहुत अनुकूल संपर्क होता है। क्रिया और प्रभाव के तंत्र कई अलग-अलग तंत्र हैं जिनके माध्यम से स्टेरॉयड हार्मोन उनके लक्षित कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं। इन सभी विभिन्न मार्गों को या तो जीनोमिक प्रभाव या गैर-जीनोमिक प्रभाव वाले के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। जीनोमिक मार्ग धीमे होते हैं और इसके परिणामस्वरूप कोशिका में कुछ प्रोटीनों के प्रतिलेखन स्तर में परिवर्तन होता है; गैर-जीनोमिक मार्ग बहुत तेज हैं। जीनोमिक रास्ते स्टेरॉयड हार्मोन क्रिया के पहले पहचाने गए तंत्र जीनोमिक प्रभाव थे। इस मार्ग में, मुक्त हार्मोन पहले कोशिका झिल्ली से गुजरते हैं क्योंकि वे वसा में घुलनशील होते हैं। साइटोप्लाज्म में, स्टेरॉयड एंजाइम-मध्यस्थता परिवर्तन जैसे कि कमी, हाइड्रॉक्सिलेशन, या एरोमेटाइजेशन से गुजर सकता है या नहीं भी हो सकता है। फिर स्टेरॉयड एक विशिष्ट स्टेरॉयड हार्मोन रिसेप्टर से जुड़ जाता है, जिसे परमाणु रिसेप्टर के रूप में भी जाना जाता है, जो एक बड़ा मेटालोप्रोटीन होता है। स्टेरॉयड बाइंडिंग पर, कई प्रकार के स्टेरॉयड रिसेप्टर्स मंद हो जाते हैं: दो रिसेप्टर सबयूनिट एक साथ मिलकर एक कार्यात्मक डीएनए-बाइंडिंग यूनिट बनाते हैं जो सेल न्यूक्लियस में प्रवेश कर सकते हैं। एक बार नाभिक में, स्टेरॉयड-रिसेप्टर लिगैंड कॉम्प्लेक्स विशिष्ट डीएनए अनुक्रमों से जुड़ जाता है और इसके लक्ष्य जीन के प्रतिलेखन को प्रेरित करता है। गैर-जीनोमिक रास्ते चूंकि गैर-जीनोमिक मार्गों में कोई भी तंत्र शामिल होता है जो जीनोमिक प्रभाव नहीं होता है, इसलिए विभिन्न गैर-जीनोमिक मार्ग होते हैं। हालांकि, इन सभी मार्गों की मध्यस्थता प्लाज्मा झिल्ली में पाए जाने वाले किसी न किसी प्रकार के स्टेरॉयड हार्मोन रिसेप्टर द्वारा की जाती है। आयन चैनल, ट्रांसपोर्टर, जी-प्रोटीन युग्मित रिसेप्टर्स (जीपीसीआर), और झिल्ली तरलता सभी को स्टेरॉयड हार्मोन से प्रभावित दिखाया गया है। इनमें से GPCR से जुड़े प्रोटीन सबसे आम हैं। सन्दर्भ हार्मोन
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नरसंडा (Narsanda) भारत के गुजरात राज्य के खेड़ा ज़िले में स्थित एक गाँव है। इन्हें भी देखें खेड़ा ज़िला सन्दर्भ गुजरात के गाँव खेड़ा ज़िला खेड़ा ज़िले के गाँव
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केला गणतंत्र, जिसे अंग्रज़ी में मूल रूप से बनाना रिपब्लिक (banana republic) कहा जाता है, राजनैतिक रूप से अस्थिर देश होता है जिसकी अर्थव्यवस्था किसी ऐसे विशेष कृषि, खनिज या अन्य उत्पादन के निर्यात पर निर्भर हो जिसकी विश्व में भारी माँग है। ऐसे देशों में अक्सर एक छोटा सम्भ्रांत वर्ग राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था पर नियंत्रण कर लेता है। वह फिर अपना कब्ज़ा बनाए रखने के लिए विदेश से हथियार खरीदता है और स्वयं को वफादार एक सेना खड़ी कर लेता है। देश की बाकी जनता को राजनीतिक अधिकारों से वंछित रखा जाता है। अक्सर यह सम्भ्रांत वर्ग विदेशी कम्पनियों से साठ-गाठ कर लेता है, जो देश के विशेष उत्पादन को कम कीमत देकर बाहरी विश्व में आपूर्ति करने पर नियंत्रण करना चाहते हैं, और सम्भ्रांत वर्ग को व्यक्तिगत पैसा देकर धनवान बना देते हैं। इस से देश से किसी मूल्यवान उत्पादन का भारी मात्रा में निर्यात होते हुए भी देश की जनता निर्धन ही रहती है। कई ऐसे देशों में यदि देश के सम्भ्रांत वर्ग से चुना गया शासक अपने देश की भलाई करने की चेष्टा में आर्थिक या राजनीतिक सुधार करने का प्रयास करता है तो यह विदेशी कम्पनियाँ अपना लाभ-स्रोत बचाने के लिए तख्ता-पलटकर शासक के शत्रुओं को सत्ता में लाने की कोशिश करती हैं। नामोत्पत्ति बीसवी शताब्दि के आरम्भिक भाग में कई अमेरिकी कम्पनियों ने मध्य अमेरिका में हौण्डुरस और उसके पड़ोसी देशों में केला उगाने के बड़े बागान चलाए, क्योंकि वहाँ की जलवायु और भूमि इसके अनुकूल थी और उस फल की संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य विकसित देशों में भारी माँग थी। यूनाइटिड फ्रूट कम्पनी ऐसी एक प्रमुख कम्पनी थी। इन कम्पनियों ने फिर इन देशों में भारी हस्तक्षेप करा और समय-समय पर उनमें सत्ता बदलवाई। ऐसे देशों में सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन और राजनीतिक उत्पीड़न सामान्य स्थिति बन गया। ऐसे देशों को सन् 1901 में अमेरिकी लेखक, ओ हेन्री, ने व्यंग्य कसते हुए इन्हें "बनाना रिपब्लिक" का ह्रासकारी नाम दिया, जिस से तात्पर्य था कि जिस देश पर फल बेचने वाले व्यापारियों ने कब्ज़ा करा हुआ हो उसका क्या अस्तित्व है। इन्हें भी देखें ह्रासकारी हौण्डुरस सन्दर्भ ह्रासकारी राजनैतिक भ्रष्टाचार राजनीतिक शब्दावली आर्थिक विकास शक्ति अवस्था के अनुसार देश जिन्स लोकप्रिय संस्कृति में केले
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भारतीय इतिहास में प्राचीन नगरों का बहुत महत्व है। इनमें से कई नगरीय क्षेत्र अब खोजें जा चुके हैं और उनकी खुदाई से अनेक पुरातत्विक साक्ष्य मिलते हैं जो हमें हमारे अतीत के बारे में बताते हैं। इन प्राचीन शहरों में से एक है हड़प्पा। हड़प्पा सिंधु घाटी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण शहर था और इसकी खोज ने प्राचीन भारतीय सभ्यता की समृद्धि और उन्नति के बारे में कई विस्मयकारी तथ्य हमारे सामने रखे हैं। हड़प्पा में प्राप्त स्थापत्य उत्खननों से पता चलता है कि वहां के निवासी काफी उन्नत और व्यवस्थित थे। उन्होंने नगर नियोजन, जल निकासी प्रणाली, और व्यापारिक संस्थाएं जैसे आधुनिक सुविधाओं का इस्तेमाल किया था। हड़प्पा की संरचनात्मक डिज़ाइन में बड़े बड़े आवासीय भवन, बाजार और गोदाम मौजूद थे, और सड़कें ग्रिड पैटर्न में बनी थीं। हड़प्पा के निवासियों को कृषि, पशुपालन, और वस्त्र उत्पादन में भी महारत हासिल थी। उनकी कला का नमूना मूर्तियों, गहनों, और मिट्टी के बर्तनों पर पाए गए अलंकरणों में देखा जा सकता है। उन्होंने लोहा, सोना, चांदी, और कांसा जैसी धातुओं का भी इस्तेमाल किया था। सिंधु घाटी सभ्यता के अन्य प्राचीन शहर मोहेंजो-दारो, कालीबंगन और लोथल भी हैं, जिनकी खोज ने प्राचीन भारतीय इतिहास में नई रोशनी डाली है। इन सभी स्थलों का अपना-अपना महत्व है और यह सभी सभ्यता के विकास में अपना योगदान देते हैं। पुरातत्विक खोजें आज भी जारी हैं, और वैज्ञानिक इस बात का प्रयास कर रहे हैं कि इतनी महान सभ्यता का पतन कैसे हुआ। आज भी, हड़प्पा और मोहेंजो-दारो जैसे स्थलों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया है और यह हमें प्राचीन मानव सभ्यताओं की जीवनशैली, संस्कृति और विज्ञान की समझ प्रदान करते हैं। प्राचीन नगरीय क्षेत्रों की खोज और उत्खनन से हमें आज भी कई ऐसे सुराग मिले हैं जो हमारे अतीत के प्रति हमारी जिज्ञासा को बढ़ाते हैं। यह जानकारी हमारे लिए बेशकीमती है क्योंकि यह हमें न केवल हमारे इतिहास की जानकारी देती है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी संदेश छोड़ जाती है।
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प्रोफेसर सर जॉन एम्ब्रोस फ्लेमिंग रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स के महान पुरुषों में से एक हे और भौतिकविद् थे| थर्मिओनिक वाल्व या वैक्यूम ट्यूब के फ्लेमिंग के आविष्कार आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स की शुरुआत होने के लिए कहा जा सकता है। यह वायरलेस और बाद में इलेक्ट्रॉनिक्स प्रौद्योगिकी सक्षम आगे बढ़ने के लिए, एक उचित प्रदर्शन के साथ पहला वायरलेस सेट को सक्षम करने के लिए निर्मित किया जाना है। इस योगदान का एक परिणाम के रूप में, कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स के पिता के रूप में एम्ब्रोस फ्लेमिंग को देखें। हालांकि थर्मिओनिक वाल्व या वैक्यूम ट्यूब के आविष्कार प्रसिद्धि के लिए फ्लेमिंग के प्रमुख का दावा है, वह भी विद्युत मशीनरी के क्षेत्र में कई अन्य महत्वपूर्ण योगदान दिया है, उनके काम कर जीवन के दौरान माप। फ्लेमिंग के संन्यास के दौरान उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स जो टेलीविजन के नए क्षेत्र शामिल साथ जुड़े अन्य विषयों की एक विशाल संख्या में गहरी रुचि ले लिया। प्रारंभिक जीवन एम्ब्रोस फ्लेमिंग लैंकेस्टर में पैदा हुए और विश्वविद्यालय में स्कूल कॉलेज, लंदन , और यूनिवर्सिटी कॉलेज, लन्दन में शिक्षित किया गया था। उन्होंने सेंट जॉन्स कॉलेज, कैम्ब्रिज में प्रवेश 1877 में, उनकी बीए पाने 1881 में और 1883 में सेंट जॉन के एक साथी बनने [5] उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, नॉटिंघम विश्वविद्यालय, और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, जहां वह इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के पहले प्रोफेसर थे सहित कई विश्वविद्यालयों में व्याख्यान करने के लिए पर चला गया। उन्होंने यह भी मारकोनी वायरलेस टेलीग्राफ कंपनी, हंस कंपनी, फेरांती, एडीसन टेलीफोन, और बाद में एडीसन इलेक्ट्रिक लाइट कंपनी के लिए सलाहकार था। 1892 में, फ्लेमिंग लंदन में विद्युत इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स के लिए बिजली के ट्रांसफार्मर के सिद्धांत पर एक महत्वपूर्ण पत्र प्रस्तुत किया। आविष्कारों और उपलब्धियों 1885 में, वह यूनिवर्सिटी कॉलेज, जहां वह चालीस के एक साल के लिए बने रहे पर विद्युत प्रौद्योगिकी के प्रोफेसर नियुक्त किया गया था। वहां उन्होंने "दाएँ हाथ के नियम" जो एक आसान तरीका है एक चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के बीच के रिश्ते, कंडक्टर की गति, और जिसके परिणामस्वरूप इलेक्ट्रोमोटिव बल को याद करने के लिए बन गया तैयार की। यूनिवर्सिटी कॉलेज में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान फ्लेमिंग वायरलेस टेलीग्राफी के साथ एक बड़ा सौदा प्रयोग किया। थॉमस अल्वा एडीसन के साथ काम कर चुके हैं, फ्लेमिंग एक खोज की है कि 1884 में बनाया गया था उसका प्रकाश बल्ब का अध्ययन करने की प्रक्रिया में ठगा सा बन गया है, एडीसन रेशा के पास एक धातु की थाली डाला। उन्होंने पाया कि बिजली की थाली के लिए प्रवाह होता है, जब यह बल्ब के सकारात्मक टर्मिनल के लिए चौंक गई, लेकिन नकारात्मक टर्मिनल के लिए नहीं। यह "एडीसन प्रभाव" एक जिज्ञासा है जिसके लिए वह कोई स्पष्टीकरण नहीं था; वास्तविकता में वह अनजाने पहले वैक्यूम ट्यूब, जो अंततः डायोड कहा जाने लगा आविष्कार किया था। इसका मौजूदा प्रत्यक्ष करने के लिए वर्तमान बारी परिवर्तित करने की क्षमता एडीसन, जो बजाय बिजली जनरेटर को नियंत्रित करने में उपयोग के लिए डिवाइस पेटेंट द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया था। इस बीच, फ्लेमिंग मारकोनी वायरलेस टेलीग्राफ कंपनी को सलाहकार बन जाते हैं, और ट्रांसमीटर कि गुग्लिमो मार्कोणी 1901 में उनकी ट्रांस अटलांटिक प्रसारण में इस्तेमाल किया डिजाइन करने में मदद की थी। बाद में मारकोनी रेडियो संकेतों आम्प्लिफिन्ह् के लिए एक अधिक कुशल विधि तैयार करने में रुचि दिखाई। कार्ल फर्डिनेंड ब्राउन 1874 कि कुछ क्रिस्टल अन्य की तुलना में एक ही दिशा में बेहतर बिजली संचारित करने की क्षमता थी में पता चला। ये क्रिस्टल रेकटिफयेर्स् प्रवर्धन के लिए प्रत्यक्ष वर्तमान में रेडियो तरंगों से उत्पन्न बारी वर्तमान में परिवर्तित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन क्रिस्टल उच्च आवृत्तियों पर अक्षम थे। 1896 के द्वारा अंग्रेजी भौतिक विज्ञानी जोसेफ जे थॉमसन 1896 में इलेक्ट्रॉन की खोज (1856-1940) के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि धातु की थाली एक निर्वात में गर्म इलेक्ट्रॉनों को अवशोषित करने की क्षमता थी। फ्लेमिंग ने देखा कि इस ट्यूब और अधिक कुशलता क्या है ब्रौन् सही करनेवाला किया कर सकता है। 1904 में, फ्लेमिंग मारकोनी के लिए एक रिसीवर बनाया गया है। सबसे पहले वे अनिवार्य रूप से एडीसन पेटेंट डिवाइस का इस्तेमाल किया है, लेकिन फ्लेमिंग के सर्किट एक पूरी तरह से अलग उद्देश्य था। फ्लेमिंग 16 नवंबर को अपने स्वयं के पेटेंट के लिए आवेदन किया है, 1904 फ्लेमिंग, अपने आविष्कार थर्मिओनिक वाल्व, सभी इलेक्ट्रॉनिक ट्यूबों के पूर्वज का नाम दिया है क्योंकि यह बिजली के प्रवाह को एक वाल्व पानी के प्रवाह को नियंत्रित करता है बस के रूप में नियंत्रित किया। संयुक्त राज्य अमेरिका में आविष्कार एक वैक्यूम ट्यूब, जो बेहतर इसके निर्माण में वर्णित बुलाया गया था। 1906 में, अमेरिकी वैज्ञानिक ली डी वन फ्लेमिंग के आविष्कार पर सुधार। फ्लेमिंग की पुस्तकें बिजली के लैंप और इलेक्ट्रिक प्रकाश: ग्रेट ब्रिटेन के रॉयल इंस्टीट्यूशन में वितरित विद्युत रोशनी पर चार व्याख्यानों का एक कोर्स '(1894) 228 पृष्ठों, । वैकल्पिक वर्तमान सिद्धांत में ट्रांसफार्मर और अभ्यास "इलेक्ट्रीशियन" मुद्रण और प्रकाशन कंपनी (1896) मैग्नेट और बिजली की धाराओं ई और एफ एन प्रायोजित। (1898) "इलेक्ट्रीशियन" मुद्रण 'ए विद्युत प्रयोगशाला और परीक्षण के कमरे के लिए हैंडबुक' और प्रकाशन कंपनी (1901) लहरें और जल, वायु में लहर, और Aether मैकमिलन (1902)। चीजों के सबूत नहीं देखा ईसाई ज्ञान समाज: लंदन (1904) उल्लेखनीय पुरस्कार ह्यूजेस पदक (1910) अल्बर्ट पदक (1921) पदक (1928) दुदेल्ल पदक (1930) साहब का गुस्सा पदक (1933) फ्रेंकलिन पदक (1935) रॉयल सोसाइटी के फैलो सन्दर्भ
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स्थिरक्वाथी मिश्रण (Azeotrope) ऐसे दो तरल (अथवा अधिक) पदार्थों का मिश्रण अथवा विलयन होता है जिनको सामान्य आसवन विधि द्वारा पृथक करना संभव नहीं होता है। ऐसे मिश्रण के आसवज की वाष्प में सभी मिश्रणी अवयवों का वही अनुपात होता है जो मूल मिश्रण में था। ऊष्मागतिकी
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स्नेर्सब्रुक (अंग्रेज़ी: Snaresbrook) एक उत्तरपूर्व लंदन में रेडब्रिज बरो का जिला है।
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टुमॉरो नेवर डाइस () 1997 में बनी बनी जेम्स बॉन्ड फ़िल्म श्रंखला की अठ्ठारहवीं फ़िल्म है जिसमें पियर्स ब्रॉसनन ने जेम्स बॉन्ड कि भुमिका निभाई है। पात्र पियर्स ब्रॉसनन - जेम्स बॉन्ड। जॉनाथन प्राइस - इलिओट कार्वर। मिशेल योह - कर्नल वाई लिन। टेरी हैचर - पैरिस कार्वर ज्यूडी डेंच - एम। समैंथा बॉन्ड - मिस मोनिपेनी। गोट्ज़ ओट्टो - रोचर्ड स्टैम्पर। रिकी जे - हेनरी गुप्ता। जेरार्ड बटलर - जुलियन हिंड-टुट्ट। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ जेम्स बॉन्ड फ़िल्में
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भारतीय रेल का एक अन्य महत्वपूर्ण ट्रेन है राजधानी एक्स्प्रेस, जो देश के विभिन्न महानगरों को जोड़ती है। इस ट्रेन की खासियत इसकी गति और सुविधा है, जिससे यात्री आरामदायक यात्रा कर सकते हैं। राजधानी एक्स्प्रेस अपने निर्धारित समय पर प्रस्थान और आगमन के लिए जानी जाती है, और यात्री जानकारी पैनलों पर समय का सटीक पालन देख सकते हैं। यह ट्रेन कई स्टेशनों पर रूकती है, जहाँ यात्री भोजन और अन्य सुविधाएँ पा सकते हैं। इसकी सुविधाओं में वातानुकूलित डिब्बे, तत्काल भोजन सेवा, और साफ-सफाई का विशेष ध्यान होता है। इस ट्रेन का टिकेट आरक्षण सिस्टम के माध्यम से किया जा सकता है, जिसमें ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा भी शामिल है। राजधानी एक्स्प्रेस का सफर हमेशा यादगार रहता है, और यात्री अपने गंतव्य तक बिना किसी परेशानी के पहुँचते हैं। इस ट्रेन के प्रस्थान के समय और यात्रा की अवधि की जानकारी रेलवे स्टेशनों और ऑनलाइन पोर्टलों पर उपलब्ध होती है, ताकि यात्री अपनी योजना उसी के अनुसार बना सकें।
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धनुरासन (=धनुः + आसन = धनुष जैसा आसन) में शरीर की आकृति सामान्य तौर पर खिंचे हुए धनुष के समान हो जाती है, इसीलिए इसको धनुरासन कहते हैं। यह आसन करने के लिए सबसे पहले चटाई पर पेट के बल लेट जांय। अब अपने पैरों को घुटनों से मोड़कर हाथों से पैरों को पकड़ लें और सांस लेते हुए सिर, छाती और जांघ को उपर उठायें। शरीर के साथ कोई भी जोर जबरदस्ती ना करें। अब इसी अवस्था में कुछ देर बने रहें, इस दौरान सांस धीरे धीरे लेते और छोड़ते रहें। यह आसन प्रतिदिन 2 से 3 बार करें। सावधानी जिन लोगों को रीढ़ की हड्डी का अथवा डिस्क का अत्यधिक कष्ट हो, उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए। पेट संबंधी कोई गंभीर रोग हो तो भी यह आसन न करें। लाभ धनुरासन से पेट की चरबी कम होती है। इससे सभी आंतरिक अंगों, माँसपेशियों और जोड़ों का व्यायाम हो जाता है। गले के तमाम रोग नष्ट होते हैं। पाचनशक्ति बढ़ती है। श्वास की क्रिया व्यवस्थित चलती है। मेरुदंड को लचीला एवं स्वस्थ बनाता है। सर्वाइकल, स्पोंडोलाइटिस, कमर दर्द एवं उदर रोगों में लाभकारी आसन है। स्त्रियों की मासिक धर्म सम्बधी विकृतियाँ दूर करता है। मूत्र-विकारों को दूर कर गुर्दों को पुष्ट बनाता है। 1) रोज नियमित धनुरासन करने से पेट मांसपेशियो में अच्छा खिंचाव आता है जिससे पेट की चर्बी कम होती है। 2) धनुरासन करते समय पीठ को अच्छा स्ट्रेच मिलता है, जिससे वह मजबूत बनती है और इससे रीठ की हड्डी भी मजबूत व लचीली बनती है। 3) इसके नियमित अभ्यास से चिन्ता और अवसाद को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 4) रोज नियमित धनुरासन करने से शरीर का पाचनतंत्र मजबूत बनता है और एसिडिटी, अजीर्ण, खट्टी डकार में भी राहत मिलती है। 5) हाथ और पेट के स्नायु को पुष्ट करता है। 6) वृक्क (किडनी) के संक्रमण से निजात मिलती है। बाहरी कड़ियाँ Yoga योगासन योग
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जागते रहो 1956 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। संक्षेप चरित्र मुख्य कलाकार राज कपूर प्रदीप कुमार सुमित्रा देवी पहाड़ी सानयाल सुलोचना चटर्जी डेज़ी ईरानी मोतीलाल नाना पालसिकर - डॉक्टर इफ़्तेख़ार विक्रम कपूर मोनी चटर्जी कृष्णकांत दल संगीत रोचक तथ्य परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ नामांकन और पुरस्कार बाहरी कड़ियाँ 1956 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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उड़ानपट्टी, धावनपट्टी या विमान तल (RWY या रनवे) विमानक्षेत्र में एक भूमी की पट्टी होती है, जिस पर विमान उड़ान भर (टेक ऑफ) और अवतरण (लैंडिंग) कर सकते हैं। इसके अलावा अनेकों युद्धाभ्यास भी करते हैं। रनवे मानव निर्मित भी हो सकती है और प्राकृतिक भी। मानव निर्मित रनवे की सतह प्रायः अस्फाल्ट या कांक्रीट से या दोनो के मिश्रण से बनी होती है। प्राकृतिक रनवे की सतह घास, पक्की मिट्टी इत्यादि की हो सकती है। उड़ान पट्टी के भाग उड़ानपट्टी के चिह्न चित्र दीर्घा टिप्पणी सन्दर्भ United States Aeronautical Information Manual - Federal Aviation Administration - published yearly United States Airport Facility Directory - Federal Aviation Administration - published every 56 days. विमानन शब्दावली विमानक्षेत्र अवसंरचना विमानक्षेत्र शब्दावली विमानन
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मगरलोड भारत देश के छत्तीसगढ़ राज्य में धर्म की नगरी कहे जाने वाले धमतरी जिले का ब्लॉक है । यह एक नगर है। जहां कई प्रकार की दुकानें हैं। यह तहसील है,जनपद,थाना, पैट्रोलपंप आदि है । साथ ही अस्पताल स्कूल आईटीआई की सुविधा भी है। यह महानदी की दो सहायक नदी महानदी और पैरी नदी के बीच में स्थित है।
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थेवेनिन का प्रमेय, परिपथ सिद्धान्त का एक महत्वपूर्ण प्रमेय है। इसे फ्रांस के टेलेग्राफ इंजीनीयर लियों चार्ल्स थेवेनिन (Léon Charles Thévenin (1857–1926)) ने प्रतिपादित किया था। इसके अनुसार, वोल्टता स्रोत, धारा स्रोत एवं प्रतिरोधकों से निर्मित किसी भी रैखिक परिपथ का इसके किन्हीं दो सिरों (टर्मिनल्स) के बीच व्यवहार एक तुल्य वोल्तता स्रोत Vth एवं तुल्य प्रतिरोधक Rth के श्रेणीक्रम के द्वारा निरूपित किया जा सकता है। यह केवल रैखिक डीसी परिपथ में ही लागू नहीं होता बल्कि किसी एकल आवृत्ति वाले प्रत्यावर्ती धारा के स्रोत एवं सामान्यीकृत प्रतिबाधा से युक्त परिपथों के लिये भी लागू होता है। इस सिद्धान्त की खोज सबसे पहले जर्मनी के वैज्ञानिक हर्मन वॉन हेल्मोल्ट्ज (Hermann von Helmholtz) ने सन् १८५३ में की थी, किन्तु बाद में थेवेनिन ने सन् १८८३ में इसे 'पुन: खोजा'। उदाहरण तुल्य वोल्तता की गणना (calculating the equivalent voltage) (notice that R1 is not taken into consideration, as above calculations are done in an open circuit condition between A and B, therefore no current flows through this part which means there is no current through R1 and therefore no voltage drop along this part) तुल्य प्रतिरोध की गणना (Calculating equivalent resistance) नॉर्टन तुल्य में परिवर्तन किन्हीं दो आसंधि (नोड) के बीच, किसी रैखिक परिपथ को नॉर्टन तुल्य परिपथ के रूप में भी निरूपित किया जा सकता है। नॉर्टन तुल्य परिपथ एक धारा स्रोत और उसके समानन्तर जुड़ा एक प्रतिरोध होता है। थेवनिन तुल्य परिपथ तथा नॉर्टन तुल्य परिपथ के अवयवों के मान के बीच निम्नलिखित सम्बन्ध होता है- व्यावहारिक सीमाएँ यह केवल रैखिक परिपथों के लिए लागू होता है, अरैखिक परिपथ के लिए नहीं। बहुत से परिपथ, स्रोतों की वोल्टता या धारा की किसी एक सीमा के भीतर ही रैखिक परिपथ जैसा व्यवहार करते हैं, अतः थेवनिन तुल्य भी केवल उस रैखिक सीमा के लिए वैध होता है, सीमा के बाहर नहीं। चूंकि शक्ति, वोल्टता या धारा के साथ रैखिक रूप से नहीं बदलती (P=V2/R) अतः थेवनिन तुल्य परिपथ में होने वाला शक्ति-क्षय, मूल परिपथ के अवयवों में होने वाले कुल शक्ति-क्षय से अलग होता है। अर्थात थेवनिन तुल्य परिपथ, शक्ति क्षय की दृष्टि से 'तुल्य' नहीं होता। टिपणी इन्हें भी देखें नॉर्टन का प्रमेय (Norton's theorem) विद्युत प्रतिबाधा (Electrical impedance) अध्यारोपण प्रमेय (Superposition theorem) Extra element theorem Nodal analysis Mesh analysis स्टार-डेल्टा परिवर्तन (Y-Δ transform या Star-Delta transformation) Source transformation Léon Charles Thévenin Edward Lawry Norton बाहरी कड़ियाँ Origins of the equivalent circuit concept Thevenin's theorem at allaboutcircuits.com ECE 209: Review of Circuits as LTI Systems — At end, shows application of Thévenin's theorem that turns complicated circuit into a simple first-order low-pass filter voltage divider with obvious time constant and gain. विद्युत परिपथ
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डेमियन विलियम फ्लेमिंग (जन्म 24 अप्रैल 1970) एक ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट कमेंटेटर और पूर्व क्रिकेटर हैं जिन्होंने ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय क्रिकेट टीम और विक्टोरिया के लिए घरेलू क्रिकेट खेला। उन्होंने 1994 से 2001 तक 20 टेस्ट और 88 एकदिवसीय मैच खेले और स्टीव वॉ और मार्क टेलर के नेतृत्व में सभी विजेता ऑस्ट्रेलियाई टीमों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। हाल के वर्षों में फ्लेमिंग ने गेंदबाजों के अपने सिद्धांत को परिष्कृत करने में समय बिताया है, जो विकासशील गेंदबाजों की मदद करने के लिए वैज्ञानिक कोचिंग सिद्धांतों का एक समूह है। चोट की समस्याओं ने उनके करियर को छोटा कर दिया, साथ ही साथ गेंदबाज़ी एक्शन से जो उनके स्विंग को उत्पन्न करता है, उनके शरीर पर और अधिक दबाव डालता है। सन्दर्भ ऑस्ट्रेलियाई वनडे क्रिकेट खिलाड़ी ऑस्ट्रेलियाई टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ी जीवित लोग 1970 में जन्मे लोग
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में एक प्रमुख घटनाओं की बारी है, सत्तारूढ़ कांग्रेस का नियंत्रण खो दिया के लिए भारत में पहली बार स्वतंत्र भारत में भारतीय आम चुनाव, 1977. जल्दबाजी में गठित जनता गठबंधन की पार्टियों का विरोध करने के लिए सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी, होंगे 298 सीटें हैं । मोरारजी देसाई के रूप में चुना गया था गठबंधन के नेता में नवगठित संसद और इस प्रकार बन गया भारत की पहली गैर-कांग्रेस प्रधानमंत्री पर 24 मार्च है । कांग्रेस को खो दिया है लगभग 200 सीटें हैं । प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उसे शक्तिशाली बेटे संजय गांधी दोनों को खो दिया है, उनकी सीटें हैं । परिणाम राज्य द्वारा (वहाँ है केवल आंशिक डेटा में इस अनुभाग के साथ शुरू करने के लिए. यह पूरा हो जाएगा .) आंध्र प्रदेश: कुल: 42. कांग्रेस: 40 या 41 में से 42, जनता पार्टी: 1 बिहार: जनता पार्टी + सहयोगी: 54 में से 54. कांग्रेस: शून्य दिल्ली. जनता पार्टी: 7 में से 7 है । गुजरात. कुल: 26. जनता पार्टी: 20, कांग्रेस: 6 मध्य प्रदेश. कुल: 40. जनता: 37, RPK: 1-कांग्रेस-1 (छिंदवाड़ा), Ind: 1 (Madhavrao सिंधिया गुना से) महाराष्ट्र. कुल: 48. जनता पार्टी + के सहयोगी दलों (सीपीएम, PWP, एट अल।): 28/48, कांग्रेस: 20 उड़ीसा. कुल: 21. जनता पार्टी + सीपीएम: 15+1, कांग्रेस: 4 पंजाब: अकाली दल + कुमार + एलायंस: 13 में से 13 राजस्थान है । जनता: 24/25, कांग्रेस: 1. उत्तर प्रदेश: जनता पार्टी + सहयोगी: 85 85 में से है । कांग्रेस: शून्य पश्चिम बंगाल. जनता गठबंधन: 38/42 (जनता: 15, सीपीएम: 17, फॉरवर्ड ब्लॉक: 3, आरएसपी: 3), कांग्रेस: 3, Ind: 1 यह भी देखें भारत के निर्वाचन आयोग भारतीय राष्ट्रपति चुनाव, 1974 संदर्भ
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गार्ड ब्रिगेड भारतीय सेना की एक रेजीमेंट है। यह पहली "ऑल इंडिया" मिश्रित रचना वाली इन्फैंट्री है जहां भारत के सभी भागों से सैनिक, रेजिमेंट की विभिन्न बटालियनों में एक साथ सेवा देते हैं। कम प्रतिनिधित्व वाले वर्गों और क्षेत्रों को सेना में भर्ती के लिए प्रोत्साहित करने की सरकार की नीति को लागू करने के लिए इसे बनाया गया था। भारत के राष्ट्रपति इसके कर्नल-इन-चीफ होते हैं। गार्ड्स का रेजिमेंटल सेंटर महाराष्ट्र में है। वीरता पुरस्कार 2 परमवीर चक्र, 2 अशोक चक्र, 1 पद्म भूषण, 8 परम विशिष्ट सेवा पदक, 6 महावीर चक्र, 4 कीर्ति चक्र, 46 वीर चक्र, 18 शौर्य चक्र, 77 सेना पदक, 10 अति विशिष्ट सेवा पदक, 3 युद्ध सेवा पदक 16 विशिष्ट सेवा पदक, 45 मेंशन इन डिस्पैचिज़, 151 थलसेनाध्यक्ष के प्रशंसा पत्र और 79 जीओसी-इन-सी प्रशस्ति कार्ड। वर्तमान शक्ति इस रेजिमेंट में वर्तमान में 21 बटालियन हैं। इनमें से अधिकांश, यंत्रीकृत पैदल सेना के रूप में संचालित हैं टोही और टैंक रोधी निर्देशित मिसाइल (एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल) से सुसज्जित दस्ते भी हैं। 1 बटालियन (यंत्रीकृत/मैकेनाइज़्ड) (2 पूर्व पंजाब) 2 बटालियन (यंत्रीकृत) (पूर्व 1 ग्रेनेडियर्स) 3 बटालियन (यंत्रीकृत) (पूर्व 1 राजपूताना राइफल्स) 4 बटालियन (यंत्रीकृत) (पूर्व 1 राजपूत) 5 वीं बटालियन (यंत्रीकृत) 6 बटालियन (यंत्रीकृत) 7 वीं बटालियन (यंत्रीकृत) 8 बटालियन (यंत्रीकृत) 9 वीं बटालियन (यंत्रीकृत) 10 वीं बटालियन (यंत्रीकृत) 11 वीं बटालियन (यंत्रीकृत) 12 वीं बटालियन (Recce और Sp) 13 वीं बटालियन (यंत्रीकृत) 14 वीं बटालियन (यंत्रीकृत) 15 वीं बटालियन (Recce और Sp) 16 वीं बटालियन (यंत्रीकृत) 17 वीं ... सन्दर्भ भारतीय सेना भारतीय सेना के सैन्य-दल भारतीय सेना की रेजिमेंट
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राष्ट्रीय राजमार्ग १०८ए (National Highway 108A) भारत का एक राष्ट्रीय राजमार्ग है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग ८ का एक शाखा मार्ग है। यह पूरी तरह त्रिपुरा राज्य में है और पूर्व में जोलाइबाड़ी से पश्चिम में बेलोनिया तक जाता है। इन्हें भी देखें राष्ट्रीय राजमार्ग (भारत) राष्ट्रीय राजमार्ग ८ (भारत) सन्दर्भ रारा 108ए रारा 108ए
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रॉबर्ट कॉख सूक्ष्मजैविकी के क्षेत्र में युगपुरूष माने जाते हैं। इन्होंने हैजा, ऐन्थ्रेक्स तथा क्षय रोगों पर गहन अध्ययन किया और अंततः यह सिद्ध कर दिया कि कई रोग सूक्ष्मजीवों के कारण होते हैं। इसके लिए सन 1905 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कोच ने रोगों एवं उनके कारक जीवों का पता लगाने के लिए कुछ परिकल्पनाएं की थी जो आज भी इस्तेमाल होती हैं। दस दिसम्बर, २०१७ के दिन गूगल के डूडल पर जर्मन वैज्ञानिक डॉ. रॉबर्ट कॉख को जगह दी गई थी। उनके जन्म दिन सम्मान में उनका डूडल बनाया गया है. सन्दर्भ सूक्ष्मजैविकी जीवाणु
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चारचाला बंगाल के मन्दिर स्थापत्य की एक शैली है जिसमें चार त्रिकोणाकार अंशों से छत का निर्माण होता है। इन्हें भी देखें दोचाला जोड़वांला आटचाला सन्दर्भ बंगाल का मन्दिर स्थापत्य हिन्दु मन्दिर
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चीनी राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन या चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिसट्रेशन (सी एन एस ए) चीन की सरकारी अंतरिक्ष संस्था है जो की देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों का संचालन एवं विकास करती है। इसके वर्तमान स्वरूप का गठन सन १९९३ में हुआ था। इस संस्था की सबसे बड़ी उपलब्धि मानव को अंतरिक्ष में भेजना है। अक्टूबर 2003 में शेनजोऊ 5 स्पेसफ्लाइट द्वारा पहली बार चीनी अंतरिक्ष यात्री यांग लिवेई को अंतरिक्ष में भेजा गया इसी के साथ सोवियत संघ और अमेरिका के बाद अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला चीन तीसरा राष्ट्र बना। अंतरिक्ष यात्री 2013 के अनुसार, दस चीनी अंतरिश में जा चुके हैं: इन्हें भी देखें सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ विश्व के प्रमुख अंतरिक्ष संगठन चीन चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम
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कांगार्पूर, बेल मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। बाहरी कड़ियाँ आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग NIC की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट सन्दर्भ कांगार्पूर, बेल मण्डल कांगार्पूर, बेल मण्डल
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इराक़ गणराज्य और भारत गणराज्य के बीच द्विपक्षीय संबंध पारंपरिक रूप से मित्रवत रहे हैं और दोनों देशों में परस्पर सहयोग रहा है। सिंधु घाटी और मेसोपोटामिया के बीच 1800 ई.पू में भी सांस्कृतिक संपर्क और आर्थिक व्यापार होता था। 1952 की मित्रता की संधि ने भारत और इराक के बीच संबंधों को स्थापित और मजबूत किया। 1970 के दशक में, इराक को मध्य पूर्व में भारत के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक माना जाता था। ईरान-इराक युद्ध, 1991 के खाड़ी युद्ध और 2003 के इराक युद्ध के दौरान भारत और इराक के बीच संबंधों में बाधा पड़ी। हालांकि, इराक में लोकतांत्रिक सरकार की पुनर्स्थापना के बाद द्विपक्षीय संबंध फिर से सामान्य हो गए। इतिहास इराक में शियाओं और भारत में शियाओं के बीच संबंध पुस्तक: ईरान और इराक में उत्तर भारतीय शियावाद की जड़ें: अवध में धर्म और राज्य, जेआरआई कोल द्वारा 1722-1859 (Roots of North Indian Shi'ism in Iran and Iraq: Religion and State in Awadh, 1722–1859 by J.R.I. Cole. ) मीर जाफ़र नजफ़ से ताल्लुक़ रखने वाला एक इराकी शिया अरब था जो बाद में भारत चला गया और बंगाल का नवाब बना। इराकी शिया लेखक और कवि मुजफ्फर अल-नवाब भारतीय मूल के हैं। भारत की स्वतंत्रता के बाद इराक मध्य पूर्व के उन चुनिंदा देशों में से एक था, जिसके साथ भारत ने 1947 में अपनी स्वतंत्रता के तुरंत बाद दूतावास स्तर पर राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। दोनों देशों ने 1952 में "सतत शांति और मित्रता की संधि" पर हस्ताक्षर किए और 1954 में सांस्कृतिक मामलों पर सहयोग का एक समझौता किया। भारत इराक़ की बाथ पार्टी-आधारित सरकार को मान्यता देने वाले पहले देशों में से था, और इसके चलते 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान इराक तटस्थ रहा। किंतु इराक ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत के खिलाफ पाकिस्तान का समर्थन करने में अन्य खाड़ी राज्यों का साथ दिया। बहरहाल, इराक और भारत ने मजबूत परस्पर आर्थिक और सैन्य संबंध बनाए रखे। 1980 के दशक की शुरुआत में, भारतीय वायु सेना 120 से अधिक इराकी मिग -21 पायलटों को प्रशिक्षित कर रही थी। 1975 में सुरक्षा संबंध का विस्तार किया गया, जब भारतीय सेना ने प्रशिक्षण दल भेजे और भारतीय नौसेना ने बसरा में एक नौसेना अकादमी की स्थापना की। भारत ईरान-इराक युद्ध के दौरान इराक को काफी सैन्य सहायता देता रहा। प्रशिक्षण के अलावा, भारत ने (फ़्रान्स की सहायता से) एक जटिल त्रिपक्षीय व्यवस्था के माध्यम से इराकी वायु सेना को तकनीकी सहायता प्रदान की। आठ साल लम्बा ईरान-इराक युद्ध दोनों देशों के बीच व्यापार और वाणिज्य में भारी गिरावट का कारण बना। 1991 के फारस के खाड़ी युद्ध के दौरान, भारत इराक के खिलाफ बल के इस्तेमाल का विरोध कर रहा था। भारत ने 1991 में युद्ध के दूसरे सप्ताह के बाद सैन्य विमानों की ईंधन भरने को रोक दिया। 1991 के युद्ध से पहले इराक भारत के सबसे बड़े निर्यात बाजारों में से एक था। भारत ने इराक पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों का विरोध किया, लेकिन युद्ध की अवधि और इराक के अलगाव के चलते वाणिज्यिक और राजनयिक संबंधों में गिरावट आई। इराक ने 11 मई और 13 मई 1998 को भारत के पांच परमाणु हथियारों के परीक्षण के बाद परमाणु परीक्षण करने के अधिकार का समर्थन किया था। 2000 में, इराक के तत्कालीन उपराष्ट्रपति ताहा यासीन रमज़ान ने भारत का दौरा किया और 6 अगस्त, 2002 को राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने पाकिस्तान के साथ कश्मीर विवाद को लेकर भारत को इराक के "अटूट समर्थन" से अवगत कराया। भारत और इराक ने व्यापक द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त मंत्रिस्तरीय समितियों और व्यापार प्रतिनिधिमंडलों की स्थापना की। आर्थिक संबंध और तेल के लिए खाद्य कार्यक्रम इराक पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के कारण इराक के साथ भारत के संबंध खराब हो गए, लेकिन भारत ने जल्द ही तेल के लिए खाद्य कार्यक्रम के भीतर व्यापार विकसित किया, जिससे भारत ने इराक को आवश्यक वस्तुओं के आयात के बदले में तेल निर्यात करने की अनुमति दी। हालाँकि, 2005 के एक कार्यक्रम की जाँच से पता चला कि तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह और कांग्रेस पार्टी को संभवतः इराक़ी सरकार से रिश्वत मिली थी, जिस कारण मनमोहन सिंह ने उनसे इस्तीफ़ा देने का अनुरोध किया। 2003 के पश्चात् इराक भारत के कच्चे तेल के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में से एक है। यह प्रति दिन 220,000 बैरल तेल का निर्यात इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन को करता है । जून 2013 में, भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री, श्री सलमान खुर्शीद ने सुरक्षा और व्यापार के मुद्दों पर ज़ोर देने के लिए में इराक का दौरा किया, जो कि 1990 के बाद किसी भारतीय मंत्री द्वारा इराक़ का पहला ऐसा दौरा था। इराकी कुर्दिस्तान भारत और इराकी कुर्दिस्तान के बीच सीमित राजनयिक संबंध रहे हैं। भारत तुर्की कंपनियों के माध्यम से बेचे जाने वाले कुर्द कच्चे तेल की खरीदता है। इराकी कुर्दिस्तान में कई भारतीय नागरिक काम करते हैं। कई कुर्द लोग शैक्षिक या चिकित्सा उद्देश्य से भारत भी आते हैं। जुलाई 2014 में, कुर्दिस्तान डेमोक्रेटिक पार्टी के अंतर्राष्ट्रीय संबंध विंग के प्रमुख हेमिन हौरानी ने द हिंदू को बताया कि उन्हें भारत के साथ गहरे राजनीतिक और आर्थिक संबंधों की इच्छा थी, और भारत को अपने देश का "एक महत्वपूर्ण भागीदार" बताया। हौरानी ने भारत सरकार से अर्बिल (कुर्दिस्तान की राजधानी) में वाणिज्य दूतावास खोलने का भी आग्रह किया, और भारतीय कंपनियों को कुर्दिस्तान में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया। नवंबर 2014 में, भारत सरकार ने विशेष दूत सुरेश के॰ रेड्डी को कुर्दिस्तान की यात्रा करने और कुर्द सरकारी अधिकारियों से मिलने के लिए भेजा गया। रेड्डी ने कहा कि भारत "इस कठिन समय के दौरान कुर्दिस्तान क्षेत्र का पूरी तरह से समर्थन करता है"। साथ ही उन्होंने क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए कुर्द सरकार और पेशमर्गा सेनाओं पर विश्वास व्यक्त किया। राजदूत ने ISIS से लड़ने में पेशमर्गा सेना की भूमिका की भी प्रशंसा की, और घोषणा की कि भारत सरकार कुर्दिस्तान में अपना वाणिज्य दूतावास खोलेगी। यह भी देखें सद्दाम बीच, भारत के केरल में एक गाँव है, जिसका नाम पूर्व इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के नाम पर रखा गया है। संदर्भ भारत के द्विपक्षीय संबंध इराक़
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हरि नारायण आपटे (१८६४-१९१९ ई.) मराठी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कवि, नाटककार थे। परिचय हरिभाऊ आपटे का जन्म खानदेश में हुआ। पूना में पढ़ते समय इनके भावुक हृदय पर निबंधमालाकार चिपलूणकर और उग्र सुधारक आगरकर का अत्यधिक प्रभाव पड़ा। इसी अवस्था में इन्होंने कई अंग्रेजी कहानियों का मराठी में सरस अनुवाद किया। विद्यार्थी जीवन में ही इन्होंने संस्कृत के नाटकों का तथा स्कॉट, डिकसन्, थैकरे, रेनाल्ड्स इत्यादि के उपन्यासों का गहरा अध्ययन किया और लोकमंगल की दृष्टि से उपन्यासरचना की आकांक्षा इनमें अंकुरित हुई। सन् १८८५ में इनका 'मघली स्थिति' नामक पहला सामाजिक उपन्यास एक समाचारपत्र में क्रमश: प्रकाशित होने लगा। बी. ए. की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर इन्होंने 'करमणूक' नामक पत्रिका का संपादन करना आरंभ किया। यह कार्य ये अट्ठाईस वर्षों तक सफलता से करते रहे। इस पत्रिका में इनके लगभग इक्कीस उपन्यास प्रकाशित हुए जिनमें दस सामाजिक और ग्यारह ऐतिहासिक है। मराठी उपन्यास के क्षेत्र में क्रांति का संदेश लेकर ये अवर्तीण हुए। इनकी रचनाओं से मराठी उपन्याससाहित्य की सर्वांगीण समृद्धि हुई। इनकी सामाजिक कृतियों में समाजसुधार का प्रबल संदेश है। मुख्य सामाजिक उपन्यासों में मछली स्थिति', 'गणपतराव', 'पण लक्षांत कोण वेतों', 'मो' और 'यशवंतराव खरे' उत्कृष्ट हैं। ये चरित्रचित्रण करने में सिद्धहस्त थे। इनकी रचनाओं में यथार्थवाद और ध्येयवाद (आदर्शवाद) का मनोहर संगम है। साथ ही मिल और स्पेंसर के बुद्धिवाद का रोचक विवेचन भी है। इन्होंने मध्यमवर्गीय महिलाओं की समस्याओं का भावपूर्ण एवं कलात्मक चित्रण किया। ऐतिहासिक उपन्यासों में चंद्रगुप्त, उष:काल, गड आला पण सिंह गेला और वज्राघात आपटे की उत्कृष्ट कृतियाँ है। इनकी ऐतिहासिक दृष्टि व्यापक और विशाल थी। गुप्तकाल से मराठों की स्वराज्य स्थापना तक के काल पर इन्होंने कलापूर्ण उपन्यास लिखे। 'वज्राघात' इनकी अंतिम कृति है जिसमें दक्षिण के विजयनगरम् राज्य के नाश का प्रभावकारी चित्रण है। इसकी भाषा काव्यपूर्ण और सरस है। इनके सामाजिक उपन्यास ऐतिहासिक उपन्यास जैसे सजीव चरित्रचित्रण से ओतप्रोत है। ये 'सत्यं, शिवं, सुंदरम्' के अनन्य उपासक थे। इनकी कहानियाँ 'स्फुट गोष्ठी' नामक चार पुस्तकों में संगृहीत हैं। इनमें चरित्रचित्रण तथा घटनाचित्रण का मनोहर संगम है। कला तथा सौंदर्य की अभिव्यक्ति करते हुए जनजागरण का उदात्त कार्य करते में ये सफल रहे। कृतियाँ सामाजिक उपन्यास मधली स्थिति (1885) गणपतराव (1886) पण लक्षात कोण घेतो? (1890) मी (1895) जग हे असे आहे (1899) यशवंतराव खरे आजच भयंकर दिव्य कर्मयोग मायेचा बाजार ऐतिहासिक उपन्यास म्हैसूरचा वाघ (1890) उषःकाल (1896) गड आला पण सिंह गेला सूर्योदय सूर्यग्रहण केवळ स्वराज्यासाठी मध्याह्न चंद्रगुप्त वज्राघात कालकूट मराठी उपन्यासकार १९१९ में निधन
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पैगहा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद जिले के हंडिया प्रखण्ड में स्थित एक गाँव है। भूगोल लगभग २००० की जनसंख्या जिसमे ५०० ब्राह्मण और बाकी पिछड़ा वर्ग पूर्व मे बिंद बस्ती और आगे सीता समाहित स्थल सीतामढ़ी भदोही जिला प्रारंभ गांव मे नहर बिजली उपलब्ध आदर्श जलाशय मत्सयपालन हेतु आदर्श स्थल शिक्षा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इलाहाबाद जिला के गाँव
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क्रेग अलेक्जेंडर यंग (जन्म 4 अप्रैल 1990) एक आयरिश क्रिकेटर है। यंग दाएं हाथ का बल्लेबाज है जो दाएं हाथ की मध्यम गति की गेंदबाजी करता है। 26 मई 2013 को, यंग ने स्कॉटलैंड के खिलाफ आयरलैंड के लिए प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया। उन्होंने सितंबर 2014 में स्कॉटलैंड के खिलाफ अपना एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय पदार्पण किया, जिसमें 45 रन देकर 5 विकेट लिए। उन्होंने 18 जून 2015 को स्कॉटलैंड के खिलाफ अपने ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय मैच की शुरुआत की। दिसंबर 2018 में, वह 2019 सीज़न के लिए क्रिकेट आयरलैंड द्वारा केंद्रीय अनुबंध से सम्मानित किए जाने वाले उन्नीस खिलाड़ियों में से एक था। जनवरी 2020 में, वह क्रिकेट आयरलैंड से एक केंद्रीय अनुबंध से सम्मानित होने वाले उन्नीस खिलाड़ियों में से एक था, पहले वर्ष जिसमें सभी अनुबंध पूर्णकालिक आधार पर सम्मानित किए गए थे। सन्दर्भ खेल खिलाड़ी क्रिकेट
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राष्ट्रीय त्यौहार या राष्ट्रीय पर्व उस त्यौहार या पर्व को कहते हैं जो किसी जाति या धर्म विशेष का नहीं बल्कि संपूर्ण राष्ट्र का होता है। अंबेडकर जयंती। अंबेडकर जयंती ]] । 14 अप्रैल ये राष्ट्रीय पर्व होने के साथ ही राष्ट्रीय अवकाश (नेशनल हॉलिडे) भी हैं। सन्दर्भ भारत
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एकौना पुनपुन, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। भूगोल जनसांख्यिकी यातायात आदर्श स्थल शिक्षा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ पटना जिला के गाँव
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हिरेन वारिया कीनिया के राष्ट्रिय क्रिकेट दल का एक सदस्य है। कीनिया
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9 अप्रैल ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 99वॉ (लीप वर्ष में 100 वॉ) दिन है। साल में अभी और 266 दिन बाकी है। प्रमुख घटनाएँ १६६९- मुगल बादशाह औरंगजेब ने सभी हिन्दू स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया। १७५६- बंगाल के नवाब अली वर्दी खान का 80 वर्ष की आयु में निधन। 1860 पहली बार मनुष्य की आवाज का अंकन किया गया। १९५३- वार्नर ब्रदर्स ने ‘हाउस ऑफ वैक्स’ शीर्षक से पहली 3 डी फिल्म प्रदर्शित की। 1965 कच्छ के रन में भारत पाक में युद्ध छिड़ा १९७२- सोवियत संघ और इराक ने मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए। १९८८- अमेरिका ने पनामा पर आर्थिक प्रतिबंध लगाये। 1989 एशिया की पहली सम्पूर्ण भूमिगत संजय जलविद्युत परियोजना शुरु की गयी। २००२- बहरीन में निगम चुनाव में महिलाओं को हिस्सा लेने की अनुमति मिली। २००८- नेपाल में संविधान सभा के लिए मतदान हुआ। 2010- श्रिलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम एलायंय (यूपीएफए) 225 सीटों वाली संसद में 117 सीटें हासिल करने में सफल रही। जम्मू-कश्मीर की विधान सभा ने अंतर जिला भर्तियों पर पाबंदी लगाए जाने सबंधी विवादित विधेयक पारित हो गया। 2011 - भारत सरकार द्वारा लोक पाल कानून को निश्चित समयसीमा में बनाने और इस प्रक्रिया में सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल करने की मांग मान लेने के बाद अन्ना हजारे ने 95 घंटे से जारी आमरण अनशन समाप्त कर दिया। सीरिया के दक्षिणी शहर डेरा में राष्ट्रपति बशर अल साद के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षा बलों की पिछले 24 घंटो के दौरान हुई गोलीबारी में 50 लोगों की मृत्यु हो गई। अन्ना हजारे को भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के लिए एक करोड़ रूपए के आईआईपीएम रवीन्द्रनाथ टैगोर अन्तरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई। २०१३- फ्रांसिसी सीनेट ने समलैंगिक विवाह संबंधी एक विधेयक को मंजूरी दी। 2020- भयानक कोरोना नामक बिमारी असर का 100 दिन पूर्ण। जन्म 1948 - जया बच्चन - भारतीय अभिनेत्री 1965-स्वामी सत्येंद्र-सत्यास्मि मिशन संस्थापक धर्म गुरु, निधन 2010- बिशप एबेल मुजोरेवा, स्वतंत्रता पूर्व जिम्बाब्वे के प्रधानमंत्री बाहरी कडियाँ बीबीसी पे यह दिन अप्रैल
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7 रेखांश पश्चिम (7th meridian west) पृथ्वी की प्रधान मध्याह्न रेखा से पश्चिम में 7 रेखांश पर स्थित उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक चलने वाली रेखांश है। यह काल्पनिक रेखा आर्कटिक महासागर, अटलांटिक महासागर, यूरोप, अफ़्रीका, दक्षिणी महासागर और अंटार्कटिका से गुज़रती है। यह 173 रेखांश पूर्व से मिलकर एक महावृत्त बनाती है। इन्हें भी देखें रेखांश 8 रेखांश पश्चिम 6 रेखांश पश्चिम 173 रेखांश पूर्व महावृत्त सन्दर्भ प
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राशिद अली गाजीपुरी एक भारतीय कवि और लेखक हैं जो अपने गहरे काव्यात्मक कामों के लिए प्रसिद्ध हैं, जो जीवन के अनुभवों और आध्यात्मिक मूल्यों अच्छी तरह समझते हैं। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के बारा गाँव में जन्मे राशिद अली गाजीपुरी ने साहित्य जगत में अपनी पहचान बना ली है। शिक्षा और प्रारंभिक जीवन राशिद अली गाजीपुरी की बचपन से ही कविता के प्रति प्रेम की प्रेरणा दिखाई देती थी। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया हमदर्द में पूरी की, जहां उनके कविताओं की कला और विकसित हुई। कैरियर वर्तमान में, गाजीपुरी ऑनलाइन मीडिया और विज्ञापन के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। उनका कविता में जुनून और समर्पण उन्हें एक हमदर्द लेखक बनाता है, जिनकी रचनाएं जीवन की वास्तविकताओं को दर्शाती हैं और पाठकों के साथ गहरी जुड़ाव बनाती हैं। प्रभाव और शैली गाजीपुरी को जानकार कवि और विद्वान 'रूमी' का विशेष आदर है, जो प्रसिद्ध पार्सी विद्वान और कवि हैं। उनकी कविताएँ आत्मिकता के गहराई को छूने की क्षमता रखती हैं और वे जीवन की अद्वितीयता को प्रतिबिंबित करती हैं। प्रमुख रचनाएँ उनकी प्रमुख साहित्यिक योगदानों में कई महत्वपूर्ण पुस्तकें शामिल हैं, जैसे: "पोएट्री ऑफ़ सोल" "लाइफ एंड फिलॉसफी" "लव अवे" "फॉरगॉटन मी" हर पुस्तक गाजीपुरी की आत्मज्ञानी खोज और अनुभवों को दर्शाती है, पाठकों को मानवीय अनुभव की गहराई में ले जाती है। साहित्यिक प्रभाव गाजीपुरी की कविताएँ अपनी कठोर ईमानदारी और गहरी भावनाओं के लिए मशहूर हैं, विशेष रूप से उन व्यक्तियों के बीच जो जीवन की विभिन्न पहलुओं से गुजर चुके हैं। उनका आगामी संस्करण उनके शोध और अनुभवों को और भी विस्तारित करने का वादा करता है।
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मानरे संयुक्त राज्य अमेरिका के महान चित्रकार माने जाते हैं। जन्म sona gachi प्रमुख चित्र मृत्यु बाहरी कडियां संयुक्त राज्य अमेरिका के चित्रकार
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सर्वायिपेट , कोटपल्लि मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। बाहरी कड़ियाँ आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग NIC की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट आन्ध्र प्रदेश अदिलाबादु जिला
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ऑक्सीजन चिकित्सा (Oxygen therapy) या पूरक आक्सीजन (supplemental oxygen) से आशय ऑक्सीजन का उपयोग करके किसी रोग या विकार की चिकित्सा करना है। उदाहरण के लिए ऑक्सीजन चिकित्सा का प्रयोग रक्त में आक्सीजन की कमी होने पर, कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता होने पर, क्लस्टर सिरदर्द होने पर किया जाता है। नाक से ली जाने वाले बेहोशी की दवाओं के साथ भी पूरक ऑक्सीजन दी जाती है। ऑक्सीजन देने के लिए अनेक तरीके अपनाए जाते हैं, जैसे नासा प्रवेशिनी (nasal cannula), ऑक्सीजन मास्क, या रोगी को अतिदाबी ऑक्सीजन कक्ष में रखकर आवश्यक आक्सीजन की मात्रा एक व्यस्क व्यक्ति जब भी काम कर रहा होता है तो उसे सांस लेने के लिए प्रत्येक मिनट में 6 से 7 लीटर हवा की जरूरत होती है। दिन में 11 हजार लीटर हवा की जरूरी होती है, सांस के जरिये फैफडो़ में जाने वाली हवा में 21% ऑक्सीजन होती है जबकि छोड़ी जानी वाली सांस में 15% ऑक्सीजन होती है। यानि की सांस के जरिये अंदर जाने वाली हवा मात्र 5% का इस्तेमाल होता है और यही 5% वो ऑक्सीजन है जो बाद में कार्बन डाइऑक्साइड में बदलता है इसका मतलब यह हुआ कि 24 घण्टे में 550 लीटर शुद्ध ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। मेहनत के काम करने या फिर व्यायाम करने में ओर ज्यादा ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। स्वास्थ्य व्यस्क व्यक्ति एक मिनट में मात्र 12 से 20 बार सांस लेता है। यदि हर मिनट में 12 से कम या 20 से ज्यादा बार सांस लेना किसी परेशानी की निशानी है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें ऑक्सीजन मास्क ऑक्सीजन सांद्रित्र चिकित्सा
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() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या 9.962 लोग थी। सन्दर्भ ब्राज़ील के शहर
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यथार्थमूलक नियम (Positive laws) उन मानवनिर्मित कानूनों को कहते हैं जिनमें एक कार्वाई (action) अवश्य उल्लिखित हो। यथार्थमूलक नियम, व्यक्ति और समूहों के लिए विशिष्ट अधिकारों की व्यवस्था भी करते हैं। यथार्थमूलक नियम की संकल्पना प्राकृतिक नियम की संकल्पना से अलग है। प्राकृतिक नियम में सभी व्यक्तियों को कुछ जन्मजात अधिकार मिलते हैं जो किसी कानून से नहीं बल्कि "भगवान", 'प्रकृति' या 'तर्क' से द्वारा दिए गए होते हैं। सन्दर्भ इन्हें भी देखें प्राकृतिक कानून विधि
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बोलचाल की भाषा में कोई भी टेढ़ी-मेढ़ी रेखा वक्र (Curve) कहलाती है। किन्तु गणित में, सामान्यतः, वक्र ऐसी रेखा है जिसके प्रत्येक बिंदु पर उसकी दिशा में किसी विशेष नियम से ही परिवर्तन होता हो। यह ऐसे बिंदु का पथ है जो किसी विशेष नियम से ही विचरण करता हो। उदाहरण के लिए, यदि किसी बिंदु की दूरी एक नियत बिंदु से सदा समान रहती हो, तो बिंदुपथ एक वक्र होता है जिसे वृत्त कहते हैं। नियत बिंदु इस वृत्त का केंद्र होता है। यदि वक्र के समस्त बिंदु एक समतल में हो तो उसे समतल वक्र (Plane curve) कहते हैं, अन्यथा उसे विषमतलीय (Skew) या आकाशीय (Space) वक्र कहा जाता है। परिचय प्रत्येक समतल वक्र दो चरों के केवल एक समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। यदि किस वक्र के कार्तीय (Cartesian), या प्रक्षेपीय निर्देशांकों का केवल एक स्वतंत्र चर, या प्राचल (parameter), के बीजीय फलनों के रूप में लिखा जा सके, तो वक्र को बीजीय वक्र (Algebraic curve) कहते हैं। इस वक्र के समीकरण में केवल बीजीय फलन ही आते हैं। यदि समीकरण में अबीजीय (transcendental) फलन आते हैं, तो वक्र अबीजीय वक्र कहलाता है। विभिन्न शांकव बीजीय वक्रों के और चक्रज (cycloid), कैटिनरी (catenary) आदि, अबीजीय वक्रों के उदाहरण हैं। वक्र प्रथम, द्वितीय, तृतीय, कोटि के कहे जाते हैं, यदि उनके समीकरणों में x, या y के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, घात आते हों। वृत्त, दीर्घवृत्त (ellipse), परवलय (parabola), अतिपरवलय (hyperbola) द्वितीय कोटि के वक्रों के उदाहरण हैं। वक्र किसी बिंदु पर असंतत (Discontineous) भी हो सकता है। संतत वक्रों पर विचार करते समय उन्हें बिंदुओं की एक एकल अनंती के रूप में भी लिया जा सकता है। बीजीय वक्र कोई बीजीय वक्र कहीं पर टूट नहीं सकता, या असंतत नहीं हो सकता। उसकी स्पर्श रेखाओं (tangents) की दिशाओं में अचानक ही परिवर्तन नहीं हो सकता। उसका कोई भी भाग एक सीधी रेखा नहीं हो सकता। इस प्रकार किसी बीजीय वक्र का यह एक सामान्य लक्षण है कि उसको बनानेवाले बिंदु की विभिन्न स्थितियाँ क्रमिक और संतत होती हैं और इन बिंदुओं पर खींची गई स्पर्श रेखाओं की दिशा में परिवर्तन भी क्रमिक और संतत होता है। परिभाषाएँ गणित में वक्र को निम्नलिखित तरह से परिभाषित किया जाता है : माना वास्तविक संखाओं का कोई दिया हुआ अन्तराल (interval) है। अर्थात यह का एक अशून्य (non-empty) तथा संयुक्त (connected) उपसमुच्चय है; तो सतत प्रतिचित्रण (mapping) को वक्र कहते हैं। यहाँ टोपोलॉजिकल स्पेस है। इन्हें भी देखें वक्रों की सूची
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अहीर-गुप्त राजवंश या अभीर-गुप्त राजवंश एक राजवंश था जो आधुनिक नेपाल में काठमांडू घाटी में अस्तित्व में था। ये अहीर-गुप्त प्रशासन में लिच्छवी राजाओं पर भारी पड़ गये थे। अहीर-गुप्त परिवार के रविगुप्त, भौमगुप्त, जिष्णुगुप्त और विष्णुगुप्त ने कई लिच्छवी राजाओं के दौरान काठमांडू (नेपाल) को वास्तविक शासक के रूप में नियंत्रित किया। उत्पत्ति अहीर-गुप्त स्वयं को चन्द्रवंशी क्षत्रिय मानते थे। वे महाकाव्यों और पुराणों में वर्णित आभीर जनजाति की एक शाखा थे। संदर्भ
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कैम्प नोऊ का नाम अक्सर फुटबॉल प्रेमियों के बीच सुनाई देता है, लेकिन ऐसे कई अन्य स्टेडियम भी हैं जिनकी अपनी एक अलग पहचान है। मैड्रिड का सैंटियागो बर्नब्यू स्टेडियम, मैनचेस्टर का ओल्ड ट्रैफोर्ड और म्यूनिख का एलियांज एरिना यह उनमे से कुछ के नाम हैं। ये स्टेडियम अपने-अपने क्लब के घर के रूप में जाने जाते हैं, और साथ ही, इन्होंने कई यादगार मैचों और ऐतिहासिक क्षणों की मेजबानी भी की है। फुटबॉल विश्व कप संग्रहालय और हॉल ऑफ फेम जैसे आकर्षण भी फुटबॉल संस्कृति का हिस्सा हैं, जहाँ प्रशंसक खेल के इतिहास और उनके पसंदीदा खिलाड़ियों के बारे में सीख सकते हैं। परंतु, कैम्प नोऊ की तरह इन स्थानों का अपना एक विशिष्ट आकर्षण है जो उन्हें बाकी से अलग बनाता है। इसके अतिरिक्त, शहरों में फुटबॉल अकादमियां और युवा विकास कार्यक्रम भी बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये अकादमियां युवा प्रतिभा को निखारने का काम करती हैं, और इनसे निकले खिलाड़ियों ने अक्सर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने देश का प्रतिनिधित्व किया है। फुटबॉल शिक्षा में तकनीकी प्रगति भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वीडियो विश्लेषण सॉफ्टवेयर और डेटा एनालिटिक्स, प्रशिक्षकों और खिलाड़ियों को खेल के हर पहलू में बेहतर बनने में मदद करते हैं। फुटबॉल संस्कृति में प्रशंसकों का भी अपना एक खास स्थान होता है। वे न केवल मैचों में उपस्थित होकर अपनी टीम का समर्थन करते हैं बल्कि नगरों और देशों की पहचान भी बनाते हैं। टीम के जर्सी, बैनर, और चीयर्स जैसे तत्व मैच के अनुभव को और भी रोमांचक बना देते हैं। फुटबॉल विश्व में प्रमाणिकता और दीर्घकालिक विरासत का महत्व भी कम नहीं होता। परंपरा और इतिहास के महत्व को समझने वाले प्रशंसक, तकनीकी उत्कृष्टता और आधुनिक तकनीकों की सराहना भी करते हैं। खेल से जुड़े महान खिलाड़ियों और उनकी उपलब्धियां हर नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत होती हैं। इस तरह, फुटबॉल की दुनिया कई पहलुओं से भरी है और हर टीम का अपना विशिष्ट इतिहास, स्टेडियम, प्रशंसकों का समर्थन, और खुद की एक पहचान बनाने की कहानी होती है। यह खेल के प्रेमियों को जोड़े रखने का काम करती है और इसकी जड़ें समाज के हर स्तर तक फैली हुई हैं।
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उद्घाटन 1896 खेलों में हंगरी ने पहली बार ओलंपिक खेलों में भाग लिया, और तब से एथलीट्स ने ज्यादातर ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों और हर शीतकालीन ओलंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धा करने के लिए भेजा है। 1920 के प्रथम विश्वयुद्ध के बाद के राष्ट्रों के लिए राष्ट्र को आमंत्रित नहीं किया गया था और यह 1984 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के सोवियत नेतृत्व के बहिष्कार में शामिल हुआ था। ग्रीष्मकालीन खेलों में हज़ारों एथलीटों ने कुल 491 पदक और शीतकालीन खेलों में 6 पदक जीते हैं, शीर्ष पदक बनाने वाले खेल के रूप में बाड़ लगाने के साथ। हंगरी ने किसी भी अन्य राष्ट्र की तुलना में अधिक ओलंपिक पदक जीते हैं जो कभी भी खेलों की मेजबानी नहीं कर पाई हैं और केवल फिनलैंड के पीछे किसी भी देश की प्रति व्यक्ति संख्या में स्वर्ण पदक की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है। हंगरी के लिए राष्ट्रीय ओलंपिक समिति हंगरीय ओलंपिक समिति है, और इसे 1895 में बनाया और मान्यता प्राप्त थी। पदक तालिकाएं ओलंपिक खेलों द्वारा पदक ग्रीष्मकालीन खेलों द्वारा पदक शीतकालीन खेलों द्वारा पदक खेल के द्वारा पदक गर्मियों के खेल से पदक 2016 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के बाद अद्यतन सर्दियों के खेल से पदक 2014 शीतकालीन ओलंपिक के बाद अपडेट किया गया सन्दर्भ
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संयुक्त राज्य वर्जिन द्वीपसमूह ने पहले 1968 में ओलंपिक खेलों में भाग लिया, और 1980 के अलावा हर ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धा करने के लिए एथलीट भेजे, जब उन्होंने मास्को खेलों के बहिष्कार में भाग लिया। उन्होंने 1988 के बाद से सात ओलंपिक शीतकालीन खेलों में भी भाग लिया है, जो 2010 के शीतकालीन ओलंपिक को केवल याद करते हैं। वर्जिन आईलैंडर द्वारा जीती हुई एकमात्र ओलंपिक पदक, 1988 में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में नौकायन में पीटर हॉल्म्बर द्वारा एक रजत था। वर्जिन द्वीपसमूह ओलंपिक समिति 1967 में बनाई गई थी और उसी वर्ष अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा मान्यता प्राप्त थी। पदक तालिकाएं ग्रीष्मकालीन खेलों द्वारा पदक शीतकालीन खेलों द्वारा पदक खेल के द्वारा पदक सन्दर्भ ओलम्पिक खेल
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गहना, नैनीताल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर कुमाऊँ मण्डल गढ़वाल मण्डल बाहरी कड़ियाँ उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा गहना, नैनीताल तहसील गहना, नैनीताल तहसील
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स्वामी वीरेश्वरानन्द (३१ अक्टूबर १८९२ - १३ मार्च १९८५) रामकृष्ण मठ तथा रामकृष्ण मिशन के दसवें अध्यक्ष थे। उनका मूल नाम 'पाण्डुरंग प्रभु' था। पाण्डुरंग प्रभु का जन्म ३१ अक्टूबर १८९२ को मंगलुरु के निकट गुरुपुर में हुआ था। जब ये छोटे थे तभी इनके पिता जी का देहान्त हो गया, इसलिए इनकी माता जी सभी बच्चों के साथ अपने मायके (मंगलुरु) आ गयीं। उनकी शिक्षा चेन्नै के 'मद्रास लॉ कॉलेज' में हुई जहाँ उन्हें स्वामी विवेकानन्द का सम्पूर्ण साहित्य पढ़ने का अवसर मिला। सन १९१६ में उन्होने बेलूड़ मठ में प्रवेश लिया। शारदा माँ ने उन्हें जून १९१६ में प्रवेश दिया। १२ जनवरी १०२० को उन्होने स्वामी ब्रह्मानन्द से दीक्षा ली। सन्यास की दीक्षा लेने के पश्चात वे वाराणसी में रहे। सन १९२१ में मायावती के अद्वैत आश्रम में भेजा गया। १९२७ में उन्हें अद्वैत आश्रम के अध्यक्ष, १९२९ में रामकृष्ण मठ के ट्रस्टी, १९३८ में रामकृष्ण मठ के सह-सचिव बनाये गये। उन्हें वाराणसी, ओड़ीसा, मद्रास प्रेसिडेन्सी, सिलोन (श्रीलंका) और अन्य स्थानों पर भी भेजा गया। १९४२ में वे पुनः बेलूढ़ मठ में आ गए। जब स्वामी माधवानन्द ने अस्वस्थता के कारण कार्य से छुट्टी ले ली तब स्वामी वीरेश्वरानन्द ने उनके नाम से १९४९ से १९५१ तक मठ का संचालन भार संभाला। १९६१ में वे महासचिव बनाए गए। २२ फरवरी १९६२ को जब स्वामी माधवानन्द का देहान्त हुआ, तब वे रामकृष्ण मठ एवं रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष बनाए गए। १३ मार्च १९८५ को आपका देहान्त हो गया। बाहरी कड़ियाँ Biography at Ramakrishna Mission website - Swami Vireshwarananda Bhagavad Gita: With the gloss of Sridhara Swami - Swami Vireshwarananda Brahma Sutras: According to Sri Sankara (html e-book) - Swami Vireswarananda Brahma Sutras: According To Ramanuja - Swami Vireswarananda Brahma Sutras: According To Shankara - Swami Vireswarananda Spiritual Ideal for the Present Age - Swami Vireshwarananda On Holy Mother Sri Sarada Devi Subhasis Chattopadhyay, Review of Swami Vireswarananda: A Biography and Pictures, Prabuddha Bharata or Awakened India,121 (4) (April 2016): 427–9 रामकृष्ण मिशन के अध्यक्ष
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पीयूष ग्रन्थि या पीयूषिका, एक अंत:स्रावी ग्रंथि है जिसका आकार एक मटर के दाने जैसा होता है और वजन 0.6 ग्राम (0.02 आउन्स) होता है। यह मस्तिष्क के तल पर हाइपोथैलेमस (अध;श्चेतक) के निचले हिस्से से निकला हुआ उभार है और यह एक छोटे अस्थिमय गुहा (पर्याणिका) में दृढ़तानिका-रज्जु (diaphragma sellae) से ढंका हुआ होता है। पीयूषिका खात, जिसमें पीयूषिका ग्रंथि रहता है, वह मस्तिष्क के आधार में कपालीय खात में जतुकास्थी में स्थित रहता है। इसे एक मास्टर ग्रंथि माना जाता है। पीयूषिका ग्रंथि हार्मोन का स्राव करने वाले समस्थिति का विनियमन करता है, जिसमें अन्य अंत:स्रावी ग्रंथियों को उत्तेजित करने वाले ट्रॉपिक हार्मोन शामिल होते हैं। कार्यात्मक रूप से यह हाइपोथैलेमस से माध्यिक उभार द्वारा जुड़ा हुआ होता है। खंड मस्तिष्क के तल पर स्थित पीयूषिका (पिट्यूटरी) दो ललाट खण्डों (lobes) से मिलकर बनी होती है: अग्रस्थ पीयूषिका (adenohypophysis) और पश्च पीयूषिका (neurohypophysis). पीयूषिका कार्यात्मक रूप से हाइपोथैलेमस से पीयूषिका डांठ द्वारा जुड़ा हुआ होता है, जिससे हाइपोथैलेमस (अध्:श्चेतक) संबंधी स्रावित होने वाले कारक स्रावित होते हैं और, बदले में, पीयूषिका हार्मोनों के स्राव को उत्तेजित करते हैं। हालांकि पीयूषिका ग्रंथि को मास्टर अंत:स्रावी ग्रंथि के रूप में जाना जाता है, इसके दोनों ललाट खंड हाइपोथैलेमस के नियंत्रण के अधीन होते हैं। अग्रस्थ पीयूषिका (Adenohypophysis) अग्रस्थ पीयूषिका महत्वपूर्ण अंत:स्रावी हार्मोन जैसे कि ACTH, TSH, PRL, GTH, इंडोर्फिन, FSH और LH को संश्लेषित एवं स्रावित करता है। ये हार्मोन हाइपोथैलेमस के प्रभाव के अधीन अग्रस्थ पीयूषिका से स्रावित होते हैं। हाइपोथैलेमस (अध्:श्चेतक) संबंधी हार्मोन अग्रस्थ ललाट खंड में एक विशेष केशिका प्रणाली के माध्यम से स्रावित होते हैं, जिन्हें हाइपोथैलेमस-पीयूषिका संबंधी पोर्टल प्रणाली भी कहा जाता है। अग्रस्थ पीयूषिका शरीर-रचना संबंधी प्रदेशों में विभाजित होता है जिन्हें पार्स ट्यूबेरैलिस, पार्स इंटरमीडिया और पार्स डिस्टैलिस कहा जाता है। यह ग्रसनी (स्टोमोडियल भाग) के पृष्ठीय दीवार में उत्पन्न खात के कारण विकसित होता है जिसे राथके (Rathke) की थैली के रूप में जाना जाता है। पश्च पीयूषिका (Neurohypophysis) पश्च पीयूषिका संग्रह एवं स्रावित करता है: ऑक्सीटॉसिन (Oxytocin), जिसका अधिकांश हिस्सा हाइपोथैलेमस में स्थित परानिलयी (paraventricular) नाभिक से स्रावित होता है। मूत्रवर्द्धक रोधी हार्मोन (ADH, जो वैज़ोप्रेसिन और AVP, जो आर्जिनिन वैज़ोप्रेसिन के रूप में भी जाना जाता है), जिसका अधिकांश हिस्सा हाइपोथैलेमस में नेत्र नली के ऊपर स्थित नाभिक से स्रावित होता है। ऑक्सीटॉसिन उन हार्मोनों में से एक है जो अनुकूल फीडबैक वाले पाश का निर्माण करते हैं। उदाहरण के लिए, गर्भाशय का संकुचन पश्च पीयूषिका से ऑक्सीटॉसिन के स्राव को उत्तेजित करता है, जो बदले में, गर्भाशय के संकुचन को बढाता है। यह अनुकूल फीडबैक पाश सम्पूर्ण प्रसव के दौरान जारी रहता है। मध्यवर्ती ललाट खंड कई पशुओं में एक मध्यवर्ती ललाट खंड भी होता है। यह शारीरिक रंग के परिवर्तन पर नियंत्रण करने वाला माना जाता है। वयस्क मानवों में, यह अग्रस्थ और पश्च पीयूषिका के बीच कोशिकाओं की सिर्फ एक पतली परत है। मध्यवर्ती ललाट खंड मेलेनिन कोशिका को उत्तेजित करने वाला हार्मोन (MSH) उत्पन्न करता है, हालांकि इस कार्य का श्रेय अक्सर (गलत ढंग से) अग्रस्थ पीयूषिका को दिया जाता है। कशेरुकी जंतुओं में भिन्नताएं पीयूषिका ग्रंथि सभी कशेरुकी जंतुओं में पाई जाती है, लेकिन इसकी संरचना विभिन्न समूहों के बीच अलग-अलग होती है। उपर्युक्त वर्णित पीयूषिका का विभाजन स्तनधारी जंतुओं की ख़ास विशेषता होती है और, भिन्न-भिन्न मात्राओं में यह सभी चौपायों के लिए भी सही है। हालांकि, सिर्फ स्तनधारियों में ही पश्च पीयूषिका का एक ठोस आकार होता है। लंगफिश में यह अग्रस्थ पीयूषिका के ऊपर स्थित ऊतकका अपेक्षाकृत रूप से एक सपाट विस्तार है और उभयचरों, सरीसृपों और पक्षियों में, यह उत्तरोत्तर सुविकसित हो जाता है। आम तौर पर चौपायों में मध्यवर्ती कपाल खंड सुविकसित नहीं होता है और पक्षियों में यह पूरी तरह से अनुपस्थित रहता है। लंगफिशों (Lungfishes) के अलावा, मछली में पीयूषिका की बनावट आम तौर पर चौपायों से भिन्न होती हैं। सामान्य रूप से, मध्यवर्ती कपाल खंड में सुविकसित होने की प्रवृत्ति होती है और आकार की दृष्टि से यह अग्रस्थ पीयूषिका के शेष हिस्से के बराबर होता है। पश्च कपाल खंड पीयूषिका के डांठ के तल पर ऊतक का एक विस्तार उत्पन्न करता है और अधिकांश स्थितियों में अग्रस्थ पीयूषिका के ऊतक में अनियमित अंगुली के जैसा उभार भेजता है। अग्रस्थ पीयूषिका विशिष्ट रूप से दो प्रदेशों में विभाजित रहती है, एक अधिक अग्रस्थ चंचु संबंधी और एक पश्च समीपस्थ हिस्सा, लेकिन दोनों के बीच सीमा अक्सर स्पष्ट रूप से चिह्नित नहीं रहती है। इलैज़्मोब्रैंक (Elasmobranch) में ठीक अग्रस्थ पीयूषिका के नीचे एक अतिरिक्त अग्रस्थ (अभ्युदरीय) कपाल खंड होता है। लैम्प्रे, जो सर्वाधिक आदिम मछलियों में से एक हैं, में इस व्यवस्था से यह सूचना मिल सकती है कि पूर्वज कशेरुकी जंतुओं में किस प्रकार मूल रूप से पीयूषिका विकसित हुई. यहाँ, पश्च पीयूषिका मस्तिष्क के तल पर ऊत्तक का एक सामान्य सपाट विस्तार है और इसमें कोई पीयूषिका डांठ नहीं होती है। राथके की थैली (Rathke's pouch) नासिका छिद्रों के नजदीक बाहर की तरफ खुली बनी रहती है। मध्यवर्ती कपाल खंड के संगत, ग्रंथिनुमा ऊत्तक के तीन विशिष्ट समूह, अग्रस्थ पीयूषिका के चंचु संबंधी तथा समीपस्थ हिस्से थैली से पास-पास संबंधित रहते हैं। ये विभिन्न भाग मस्तिश्कावरण संबंधी झिल्लियों द्वारा अलग-अलग किये जाते हैं, जिससे यह सुझाव मिलता है कि अन्य कशेरुकी जंतुओं की पीयूषिका ने अनेक अलग-अलग, लेकिन पास-पास संबंधित, ग्रंथियों का निर्माण किया होगा. अधिकांश मछली में एक यूरोफीजिस भी होता है, जो एक तंत्रिका संबंधी श्रावक ग्रंथि होती है जो आकार में बहुत कुछ पश्च पीयूषिका के सामान होती है, लेकिन यह पूंछ में स्थित होती है और मेरु रज्जु से जुडी हुई होती है। परासरण दाब के नियंत्रण में इसका कोई कार्य हो सकता है। कार्य पीयूषिका हार्मोन कुछ निम्नलिखित शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने में मदद करते हैं: वृद्धि रक्तचाप गर्भावस्था और प्रसव के कुछ पहलू जिसमें प्रसव के दौरान गर्भाशय के संकुचन का उत्तेजन शामिल हैं स्तन दूध का उत्पादन पुरुषों और महिलाओं दोनों में यौन अंगों के कार्य अवतु ग्रंथि (थाइराइड ग्रंथि) का कार्य भोजन का ऊर्जा के रूप में परिवर्तन (metabolism) शरीर में जल एवं परासरण दाब का नियंत्रण गुर्दों में जल के अवशोषण को नियंत्रित करने के लिए ADH (मूत्र वर्द्धन रोधी हार्मोन) को स्रावित करता है तापमान का नियंत्रण अतिरिक्त तस्वीरें इन्हें भी देखें पीयूषिका रोग सिर और गर्दन की रचना का विज्ञान दंतियन सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ UMM अंतःस्त्राविका स्वास्थ्य गाइड से पीयूषिका ग्रन्थि ओक्लाहोमा राज्य, अंतःस्त्रावी प्रणाली पीयूषिका रक्ताघात बहुरुपिया पीयूषिका फोड़ा ग्रंथियों अंतःस्त्रावी प्रणाली सिर और गर्दन पश्च पीयूषिका श्रेष्ठ लेख योग्य लेख गूगल परियोजना
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कचिन राज्य (बर्मी: ကချင်ပြည်နယ်) बर्मा का उत्तरतम राज्य है। इसके पूर्वी और उत्तरी सरहदें चीन से मिलती हैं, और इसके पश्चिमोत्तर में भारत स्थित है। प्रान्तीय राजधानी म्यित्चीना के अलावा भामो और पुताओ यहाँ के मुख्य शहर हैं। कचिन राज्य का ५८८९ मीटर ऊँचा खाकाबो राज़ी पर्वत भारत-बर्मा की सीमा पर स्थित है और बर्मा का सबसे ऊँचा पर्वत है। दक्षिणपूर्वी एशिया की सबसे बड़ी झीलों में से एक, इन्दौजी झील, भी इसी प्रान्त में पड़ती है। लोग कचिन राज्य के अधिकतर निवासी जिन्गपो समुदाय के हैं और जिन्गपो भाषा बोलते हैं। यह अधिकतर ईसाई धर्म के अनुयाई हैं, हालांकि इनमें से बहुत बौद्ध धर्म व सर्वात्मवाद में भी मान्यता रखते हैं। विवरण बर्मा के संविधानानुसार २४ सितंबर १९४७ ई. को म्यित्चीना एवं भामो ज़िलों को मिलाकर कचिन राज्य का निर्माण किया गया। काचीन का क्षेत्रफल लगभग १५,५०० वर्गमील है। यह राज्य उत्तरी बर्मा में नागा एवं पटकाई पहाड़ियों के पूर्व तथा सालविन नदी के पश्चिम में स्थित है। ईरावती तथा इसकी सहायक चाडविन नदियाँ इस राज्य के उत्तरी भाग से निकलकर दक्षिण की ओर बहती हैं। इस छिन्न-भिन्न पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्र में घने जंगल हैं। पूर्वी भाग में कोचनी पहाड़ियाँ (६,००० से ७,००० फुट) उत्तर-दक्षिणी फैली हुई हैं। भामों तथा म्यित्चीना इस राज्य के प्रमुख नगर हैं। भामों चीनी सीमा से २० मील की दूरी पर स्थित बर्मा-चीन व्यापार का मुख्य केंद्र है। म्यित्चीना रेल द्वारा मांडले और रंगून से संबद्ध है। यहाँ से 'लेडो मार्ग' आसाम को जाता है। धान एवं मक्का इस राज्य की मुख्य उपज है। इसके अतिरिक्त कपास, तंबाकु, अफीम, मटर, तिहहन एवं सब्जियाँ भी उगाई जाती हैं। यह क्षेत्र निर्माण काष्ठ के लिए प्रसिद्ध है जो नदियों द्वारा बहाकर मांडले एवं रगून के कारखानों में पहुँचाया जाता है। ईरावती तथा अन्य नदियों की घाटियों में सोना पाया जाता है। इन्हें भी देखें बर्मा खाकाबो राज़ी बाहरी कड़ियाँ द कचिन पोस्ट (अंग्रेज़ी समाचार पत्र) सन्दर्भ कचिन राज्य बर्मा के राज्य म्यान्मार
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रोशनी नादर मल्होत्रा ​​एचसीएल एंटरप्राइज की कार्यकारी निर्देशिका और सीईओ हैं। वह एचसीएल के संस्थापक शिव नाडार की एकमात्र संतान हैं। 2020 में, वह फोर्ब्स वर्ल्ड की 100 सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में 55 वें स्थान पर हैं। IIFL Wealth Hurun India Rich List (2019) के अनुसार, रोशनी नादर भारत की सबसे अमीर महिला हैं। 2020 मे रोशनी नाडर मल्होत्रा ​​ने अपने पिता शिव नाडर की जगह ले ली है, अब वह HCL कंपनी की नई चेयरपर्सन है | शुरुआती ज़िंदगी और पेशा रोशनी नादर दिल्ली में पली बढ़ी, वसंत वैली स्कूल में पढ़ीं और रेडियो / टीवी / फिल्म पर ध्यान देने के साथ नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी से कम्युनिकेशन में ग्रेजुएशन किया। उन्होंने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जो कि केलॉग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से सोशल एंटरप्राइज मैनेजमेंट और स्ट्रेटजी पर केंद्रित है। उन्होंने HCL में शामिल होने से पहले एक निर्माता के रूप में विभिन्न कंपनियों में काम किया। HCL में शामिल होने के एक वर्ष के भीतर, उन्हें HCL Corporation के कार्यकारी निदेशक और सीईओ के रूप में पदोन्नत किया गया। एचसीएल कॉरपोरेशन के सीईओ बनने से पहले, रोशनी नादर शिव नाडार फाउंडेशन के ट्रस्टी के रूप में कार्य कर रही थी, जो चेन्नई के श्री शिवसुब्रमण्य नादर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग को लाभ के लिए चलता है। वह एचसीएल समूह में ब्रांड निर्माण में भी शामिल थीं। नादर आर्थिक रूप से वंचितों के लिए एक नेतृत्व अकादमी, विद्याज्ञान लीडरशिप अकादमी के अध्यक्षा भी हैं। व्यक्तिगत जीवन रोशनी नादर एक प्रशिक्षित शास्त्रीय संगीतकार हैं। उन्होंने 2010 में शिखर मल्होत्रा ​​से शादी की जो एचसीएल हेल्थकेयर के वाइस चेयरमैन हैं और उनके दो बेटे अरमान (जन्म 2013) और जहान (जन्म 2017) हैं। सम्मान 2014: एनडीटीवी यंग परोपकारी वर्ष का। 2017: वोग इंडिया फिलैंथ्रोपिस्ट ऑफ द ईयर 2015: द वर्ल्ड समिट ऑन इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप (WSIE) द्वारा फिलैंथ्रोपिक इनोवेशन के लिए "द वर्ल्ड्स मोस्ट इनोवेटिव पीपल अवार्ड" से सम्मानित किया गया यह सभी देखें शिव नादर किरण नादर संदर्भ ''Roshni Nadar is CEO of HCL Corporation". Sify. 2 July 2009. Retrieved 2 July 2009. HCL gen-next Roshni Nadar appointed vice-chairman of HCL Tech. World's Most Powerful Women. Forbes. Retrieved 13 December 2019. Nair Anand, Shilpa (25 September 2019). "Mukesh Ambani is richest Indian; Roshni Nadar tops list for women: Report". Business Standard''. Roshni Nadar made CEO of HCL Corp". The Hindu. 2 July 2009. Retrieved 2 July2009. Singh, S. Ronendra. "The rise of an heiress: Roshni Nadar". @businessline. Retrieved 3 January 2019. ''5 young guns who will take over top indian companies". Rediff. HCL heiress roshni nadar philanthropy priority. Roshni Nadar, Kiran Mazumdar among Forbes' 100 most powerful women of the world". www.businesstoday.in. Retrieved 8 August 2019. Admin, India Education Diary Bureau (22 July 2017). "VidyaGyan Hosts its 2nd Graduation Ceremony". India Education Diary. Retrieved 8 August 2019. Sil, Sreerupa. "Successfully Juggling Roles, Roshni Nadar Malhotra Is A True Woman". BW Businessworld. Retrieved 8 August 2019. ''Roshni Nadar Takes Over As CEO Of HCL Corp". EFYtimes.com. 2 July 2009. Archived from the original on 20 August 2009. Retrieved 2 July 2009. Sil, Sreerupa. "Successfully Juggling Roles, Roshni Nadar Malhotra Is A True Woman". BW Businessworld. Retrieved 2 November 2017. ''Roshni Nadar honored with NDTV Young philanthropist of the Year Award". IANS. news.biharprabha.com. Retrieved 29 April 2014. ''BW Most Influential Woman Of India: Roshni Nadar Malhotra, CEO, HCL". Businessworld. 7 March 2019. बाहरी कड़ियाँ Roshni Nadar Malhotra on Forbes
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बुडगड, बागेश्वर (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर कुमाऊँ मण्डल गढ़वाल मण्डल बाहरी कड़ियाँ उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा बुडगड, बागेश्वर (सदर) तहसील बुडगड, बागेश्वर (सदर) तहसील
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गोपामऊ (Gopamau) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के हरदोई ज़िले में स्थित एक नगर है। विवरण गोपामऊ जिले के पूर्वी भाग में स्थित है। यहाँ की स्थानीय प्रशासन नगर पंचायत के अधिकार क्षेत्र में है। जिला मुख्यालय हरदोई यहाँ से 24 किलोमीटर है। इसकी पूर्वी सीमा सीतापुर जिले की सीमा से मिलती है जो गोमती नदी से विभाजित होती है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कस्बे की कुल जनसंख्या 18078 है जिसमे पुरुष 8248, महिलायें 7285 तथा 0 से 6 वर्ष तक के बच्चो की संख्या, बालक 1283 तथा बालिकायें 1260 हैं। इसी प्रकार साक्ष्ररता के अनुसार साक्षर पुरुष 4166 तथा साक्षर महिलायें 2924 हैं यानी 47% साक्षर लोग हैं। यहाँ कुल 12 वार्ड हैं, विधान सभा लिस्ट 2014 के अनुसार यहाँ कुल 6676 वोटर हैं जिनमें पुरुष 3771 तथा महिलायें 2905 हैं। गोपामऊ नगर पंचायत की स्थापना 1972 में तथा पहले बोर्ड का गठन 1989 में हुआ तब से आज तक चेयरमैनी की यह पांचवी पंचवर्षी चल रही है| गोपामऊ के इतिहास और प्रशाशन की विस्तृत जानकारी के लिये प्रशाशन पेज देखें| निकटतम रेलवे स्टेशन हरदोई रेलवे स्टेशन है यहां निकटतम पोस्ट ऑफिस गोपमाऊ में ही है और अमौसी हवाई अड्डा लखनऊ निकट्तम हवाई अड्डा है| यह समुद्र तल से 143 मीटर (469 फीट) की एक औसत ऊंचाई पर 27.55Â डिग्री उत्तरी अक्षांश और 80.28Â डिग्री पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। इतिहास यहाँ के प्रशिद्ध स्थल निम्न हैं- माँ सीतला देवी मंदिर, लाल मस्जिद ,लालपीर मस्जिद आदि हैं सैय्यद सालार मसूद ने पहला आक्रमण ईस्वी सन १०२८ ईस्वी मे बावन पर किया शेख घोषणा करते हैं कि उन्होंने सन १०१३ में बिलग्राम को जीत लिया पर इम्पीरियल गजेटियर का मानना है कि १२१७ से पहले स्थाई मुस्लिम कब्जा नहीं हो पाया था। अवध के गजेटियर के पेज ५५ पर बताया गया है कि१०२८ ईस्वी में सैयद सल्लर ने बावन पर कब्जा कर लिया l इसी के आस पास गोपामऊ को भी जीत लिया गया सैयद मखदूम -उद- उल- अजीज- शेख उर्फ़ लाल पीर कनौज की और से गंगा पार भेजा गया जो गोपामऊ की लडाई में मारा गया किन्तु सैयद सल्लर ने दो नुमाइन्दो को यहाँ छोड़ दिया जिन्होंने यहाँ अपना कब्जा बनाने में सफलता प्राप्त की इनका नाम था -नुसरत खान और जफ़र खान l और शेखों के मुताबिक़ १० १३ ईस्वी में बिलग्राम को जीत लियाl इसके बावजूद १२१७ ईसवी तक नियमित रूप से मुस्लिम नियन्त्रण न हो सका इसका अर्थ है कि लगभा २०० वर्षों तक वे यहाँ के निवासियों से लगातार विरोध पाते रहे। सैय्य्द शाकिर ने सबसे पहली जीत गोपामऊ पर हासिल की इसौली पर सैय्यद सालेह ने विजय प्राप्त की। किन्तु साण्डी और सण्डीला पर लम्बे समय तक जीत हासिल न कर पाए सण्डीला पासी साम्राज्य की राजधानी थी। इन्हें भी देखें हरदोई ज़िला सन्दर्भ हरदोई ज़िला उत्तर प्रदेश के नगर हरदोई ज़िले के नगर
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शीतपसंदी (Psychrophiles, सायक्रोफ़ाइल; cryophiles, क्रायोफ़ाइल) ऐसे चरमपसंदी जीव होते हैं जो -१५ °सेंटीग्रेड या उस से भी ठन्डे वातावरणों में लम्बे अरसों तक रह कर फल-फूल सकते हैं और प्रजनन कर सकते हैं। अन्य परिभाषाओं में -२०° से +१०° सेंटीग्रेड के बीच पनपने वाले जीवों को इस वर्ग में डाला जाता है। आर्थरोबैक्टर (Arthrobacter) नामक बैक्टीरिया इसका उदाहरण है। इन्हें भी देखें चरमपसंदी सन्दर्भ शीतजैविकी सूक्ष्मजीवी वृद्धि और पोषण
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जापान में खेल जापानी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। सुमो और मार्शल आर्ट्स जैसे पारंपरिक खेल और बेसबॉल और एसोसिएशन फुटबॉल जैसे पश्चिमी आयात दोनों प्रतिभागियों और दर्शकों के साथ लोकप्रिय हैं। सुमो कुश्ती को जापान का राष्ट्रीय खेल माना जाता है। 19वीं शताब्दी में अमेरिकियों का दौरा करके बेसबॉल को देश में पेश किया गया था | स्कूल और खेल कोशीन स्टेडियम में नेशनल हाई स्कूल बेसबॉल चैम्पियनशिप सभी उम्र के लिए विभिन्न खेल खेलने के अवसर हैं, और स्कूल समुदाय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किंडरगार्टन और निचले प्राथमिक विद्यालय के छात्र एक निजी खेल क्लब में खेल सकते हैं जिसे मध्यम शुल्क के लिए जोड़ा जा सकता है। अधिकांश मार्शल आर्ट्स को 5 से 6 साल तक कम से कम शुरू किया जा सकता है। जब कोई छात्र 5 वीं कक्षा से शुरू होता है, तो स्कूल अपने छात्रों के भाग लेने के लिए मुफ्त स्कूल की गतिविधियों की पेशकश करता है। मध्य और उच्च विद्यालय भी अपने छात्रों को स्कूल खेल क्लबों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता 2006 ओलंपिक चैंपियन शिज़ुका अराकावा 2009 जापान ओपन में स्केट्स। अक्टूबर का दूसरा सोमवार जापान, स्वास्थ्य और खेल दिवस की राष्ट्रीय अवकाश है। मूल रूप से 10 अक्टूबर, यह तारीख टोक्यो में आयोजित 1964 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के शुरुआती दिन का जश्न मनाती है। समारोह को फिल्म निर्माता, कोन इचिकावा द्वारा टोक्यो ओलंपियाड में दस्तावेज किया गया था। जापान ने सैप्पोरो में 1972 शीतकालीन ओलंपिक, 1998 के शीतकालीन ओलंपिक, नागानो में 2002 फीफा विश्व कप और 2006 और 2009 विश्व बेसबॉल क्लासिक सहित कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की मेजबानी की है। टोक्यो 2020 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की मेजबानी करेगा| बेसबॉल बेसबॉल ऐतिहासिक रूप से जापान में सबसे लोकप्रिय खेल है। यह 1872 में होरेस विल्सन द्वारा जापान में पेश किया गया था, जो टोक्यो में काइसी स्कूल में पढ़ाया जाता था। पहली बेसबॉल टीम को शिम्बाशी एथलेटिक क्लब कहा जाता था और 1878 में स्थापित किया गया था। बेसबॉल तब से एक लोकप्रिय खेल रहा है। क्रिकेट क्रिकेट जमीनी स्तर पर देश में सबसे तेज़ी से बढ़ रहे खेलों में से एक है। वर्तमान में जापान क्रिकेट एसोसिएशन बेसबॉल की लोकप्रियता की मदद से खेल को लोकप्रिय बना रहा है, जिसमें क्रिकेट के लिए महत्वपूर्ण समानताएं हैं। यह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद का एक सहयोगी सदस्य है कुश्ती जापानी पेशेवर कुश्ती, जिसे प्योरोसू के नाम से जाना जाता है, शुरुआत में अमेरिकी शैली से विकसित हुआ, लेकिन यह अपने अनूठे रूप में विकसित हुआ है। हालांकि यह अपने अमेरिकी समकक्ष के समान है कि मैचों के परिणाम पूर्वनिर्धारित हैं, इसकी मनोविज्ञान और प्रस्तुति काफी अलग हैं। जापान में मैच एक लड़ाकू की भावना और दृढ़ता के आधार पर कहानियों के साथ वैध झगड़े के रूप में माना जाता है। इसके अलावा, क्योंकि कई जापानी पहलवानों में एक या अधिक मार्शल आर्ट विषयों में वैध पृष्ठभूमि होती है, इसलिए पूर्ण संपर्क स्ट्राइकिंग और शूट सबमिशन धारण आम हैं। नए खेल जापान बैंडी फेडरेशन 2011 में स्थापित किया गया था और उसी वर्ष फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल बैंडी में प्रवेश किया था। जेबीएफ ने 2012 बैंडी वर्ल्ड चैंपियनशिप में एक टीम भेजी और तब से इसमें भाग लिया है। 2012 में पहले से ही उन्होंने मेडीयू के समान पूर्ण आकार के बैंडी क्षेत्र बनाने की योजना शुरू कर दी थी। 2017 में होक्काइडो पर शिंटोकू के साथ एक सफल सौदा हुआ, जहां नया स्थान दिसंबर 2017 में खुल जाएगा। कई शहरों में टीमों की मेजबानी करने में रुचि है। लाइसेंस प्राप्त एथलीटों के मामले में, बैंडी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शीतकालीन खेल है| संदर्भ जापानी समाज जापान में खेलकूद
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सुबोध केरकर (जन्म 26 अगस्त, 1959) गोवा के एक चित्रकार, मूर्तिकार और स्थापना कलाकार और गोवा के निजी "आर्ट गैलरी संग्रहालय" के संस्थापक हैं। वह अपने कलाकृतियों और प्रतिष्ठानों, जो इस तरह के रूप गोवा के समुद्र तटों पर दोनों प्रदर्शित किया गया है और विदेशों में, कला प्रदर्शनियों में शामिल करने के लिए जाना जाता है सागर से मूर्तिकला 2011 में और रॉयल अकादमी ग्रीष्मकालीन प्रदर्शनी 2018 में उनकी हालिया स्थापनाओं में से एक कारपेट ऑफ़ 2017 जॉय है। एक और, मछुआरों पर एक 2018 फोटो प्रदर्शनी (रॉयल अकादमी प्रदर्शनी के लिए चुना गया), फिल्म निर्माता भारत बाला द्वारा एक वृत्तचित्र के विषय के लिए चुना गया था। उन्हें विश्व-भारती विश्वविद्यालय और वान गाग संग्रहालय जैसी जगहों पर बात करने के लिए आमंत्रित किया गया है। प्रारंभिक जीवन सुबोध केरकर का जन्म 26 अगस्त, 1959 को पेरनेम , गोवा में हुआ था । एक कला शिक्षक का बेटा, वह हमेशा कला में रुचि लेता था। बड़े होने पर, वह एक छात्र नेता बन गए, जिसमें उनके क्रेडिट के लिए कई कार्टून थे। वह गोवा मेडिकल कॉलेज में शामिल हो गए और पेशे से डॉक्टर बन गए। इसके बाद, उन्होंने कैलंगुट में कुछ वर्षों के लिए एक अस्पताल और निजी अभ्यास चलाया, जब तक उन्होंने छोड़ दिया और एक कलाकार बनने का फैसला नहीं किया। व्यवसाय केर्कर ने कला में अपने करियर की शुरुआत एक जल-विज्ञानी के रूप में की थी। वह जल्द ही गोवा में एक प्रख्यात जल-विज्ञानी के रूप में उभरा, और बाद में शेष भारत में। उन्होंने दुनिया भर से कला की खोज की, और जल्द ही प्रतिष्ठानों और भूमि कला के लिए आकर्षित हुए। 1987 में, उन्होंने गोवा के कैलंगुटे में अपनी खुद की आर्ट गैलरी शुरू की। इसे "केरकर आर्ट कॉम्प्लेक्स" का नाम दिया गया था, और इसमें एक ओपन-एयर ऑडिटोरियम था। उन्होंने देश भर की कला दीर्घाओं में प्रदर्शन करना भी शुरू कर दिया। 2000 के दशक में, केर्कर ने "भूमि कला" के क्षेत्र में अपनी शुरुआत की। उन्होंने स्क्रैप और कचरे से मूर्तियां बनाकर शुरुआत की। 2002 में, उन्होंने दसवें ग्रह नामक एक स्थापना कलाकृति बनाई। 2005 में, उन्होंने सी एनीमोन के साथ पीछा किया । 2004 में गोवा के पहले IFFI के दौरान, केरकर को मिरामार समुद्र तट के साथ 500 मीटर की स्थापना के लिए चुना गया था। इसके बाद, उन्हें सार्वजनिक मूर्तियां बनाने के लिए कुछ अंतरराष्ट्रीय द्विवार्षिक और कला परियोजनाओं द्वारा आमंत्रित किया गया था। उन्होंने दुबई के समुद्र तट पर द सी रिमेम्बर्स शीर्षक से एक काम बनाया। उन्होंने तब से गोअन समुद्र तटों और स्विट्जरलैंड , दक्षिण कोरिया , मकाऊ , नीदरलैंड , जर्मनी , नॉर्वे , पुर्तगाल और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपने काम का प्रदर्शन किया है। 2009 में, केर्कर ने 2008 के मुंबई हमलों की सालगिरह को चिह्नित करने के लिए मुंबई में एक कला प्रदर्शनी शुरू की। 2011 में, उन्हें एक कार्यशाला आयोजित करने के लिए शांतिनिकेतन में विश्व-भारती विश्वविद्यालय के डीन द्वारा आमंत्रित किया गया था। उसी वर्ष, उन्होंने एक रोबोट का एक ग्लास ग्लास मूर्तिकला बनाया जिसमें गधे का सिर था। उनकी कुछ कलाओं में पेप्पर क्रॉस और लंगर युक्त महासागर शामिल हैं। 2013 में, ऑस्ट्रेलिया में सागर प्रदर्शनी और प्रतियोगिता द्वारा मूर्तिकला के लिए चिकन कैफ्रियल ( उसी नाम के पकवान के बाद) नाम से उनकी मूर्तिकला का चयन किया गया। 2012 में द चिल्ली (एक विशाल लाल शीसे रेशा मिर्च) के बाद यह उनका तीसरी बार वहाँ चयन हो रहा था। 2014 में इंडिया आर्ट फेयर में, उन्होंने गोवा में अपने बचपन की याद ताजा करते हुए पाम लीव्स नामक एक कलाकृति का प्रदर्शन किया, जहां खजूर के पेड़ आमतौर पर पाए जाते हैं। 2015 में, उन्होंने अपनी कला गैलरी बेची और गोवा के संग्रहालय नामक एक नए की स्थापना की । संग्रहालय में कई प्रकार की कलाकृति हैं, जिसमें महासागर पर आधारित कार्य शामिल हैं। एक कलाकृति गोवा में अत्यधिक कचरा विरोध करने के लिए, की 100 वीं वर्षगांठ पर - 2017 में, वह खुशी के कालीन बनाया गांधी के पहले प्रयोग के सत्याग्रह (जो गांधी में शुरू हुआ चंपारण अप्रैल 10, 1917 को)। यह एक कालीन बुनाई के लिए गोवा में समुद्र तटों और होटलों से एकत्रित 1,50,000 प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग करता है। सालगिरह का जश्न मनाने के लिए, केरकर ने सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की एक टीम के साथ काम किया और Dmytro Dokunov, यूक्रेन के एक डिजिटल कलाकार, "गांधी एआर" नामक एक संवर्धित वास्तविकता स्मार्टफोन ऐप बनाने के लिए, जो कि भारतीय मुद्रा में इंगित होने पर गांधी की एक प्रति प्रदर्शित करेगा। (इस पर गांधी की विशेषताएं हैं)। 2018 में, केरकर की मछुआरों की फोटो प्रदर्शनी को रॉयल अकादमी ग्रीष्मकालीन प्रदर्शनी के लिए चुना गया था। बाद में, इसने फिल्म निर्माता भारत बाला को इस पर एक वृत्तचित्र बनाने के लिए प्रेरित किया। केर्कर एम्स्टर्डम के वान गॉग संग्रहालय और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन जैसे भारत और विदेशों में व्याख्यान देते हैं। उन्होंने विभिन्न TEDx घटनाओं और INKtalks में भी बात की है । विवाद 2009 में, केर्कर ने भगवान गणेश के रेखाचित्रों की प्रदर्शनी शुरू की। सनातन संस्था जैसे संगठनों ने विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया, जबकि हिंदू जनजागृति समिति और श्री समर्थ रामदास सेवा भक्ति मंडल जैसे अन्य लोगों ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 149 के तहत पुलिस शिकायत दर्ज करने का विकल्प चुना। केरकर ने आरोप लगाया कि उन्हें अपने काम के लिए जान से मारने की धमकी मिली है। 2013 में, उन्होंने मनोहर पर्रिकर द्वारा एक सरकारी संस्था के लिए एक मूर्तिकला के लिए एक अनुबंध जीतने के लिए भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना किया। पुरस्कार बुसान बिएनलेले पुरस्कार (2006) कला अकादमी शो, गोवा (2000) में प्रथम पुरस्कार संदर्भ बाहरी कड़ियाँ सुबोध केरकर: कट्टरता के खिलाफ भोजन (INKtalks) कला के माध्यम से इतिहास की खोज: सुबोध केरकर द्वारा बात 1959 में जन्मे लोग जीवित लोग Pages with unreviewed translations
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ओली प्रिंगल (जन्म 27 मई 1992) न्यूजीलैंड के एक क्रिकेटर हैं। 2020-21 सीज़न से आगे, प्रिंगल को ऑकलैंड क्रिकेट टीम के साथ अनुबंध से सम्मानित किया गया। उन्होंने 20 अक्टूबर 2020 को ऑकलैंड के लिए प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया 2020-21 प्लंकेट शील्ड सीज़न में। उन्होंने अपनी लिस्ट ए की शुरुआत 29 नवंबर 2020 को, ऑकलैंड के लिए 2020-21 फोर्ड ट्रॉफी में की। उन्होंने अपने ट्वेंटी 20 की शुरुआत 24 दिसंबर 2020 को ऑकलैंड के लिए, 2020-21 सुपर स्मैश में की। प्रिंगल के पिता मार्टिन ने ऑकलैंड के लिए प्रथम श्रेणी और लिस्ट ए क्रिकेट भी खेला और उनके चाचा पीटर वेब ने न्यूजीलैंड के लिए टेस्ट क्रिकेट खेला। सन्दर्भ न्यूज़ीलैंड के क्रिकेट खिलाड़ी 1992 में जन्मे लोग जीवित लोग
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उद्धव भराली असम के लखिमपुर जिले के एक विज्ञानी और अभियन्ता है। सन २०१२ के जुलाई महीने के ५ तारीख को भराली को उनके द्वारा आविष्कृत अनार के बीज निकालने वाले यंत्र के लिए नासा द्वारा अयोजित क्रियेट द फ्यूचर डिज़ाइन प्रतियोगिता में दूसरे स्थान के लिये निर्वाचित किया गया। उद्धव के पास ३९ आविष्कारो का पेटेन्ट है। उन्होने लगभग ९८ यन्त्र उद्भावन किए हैं। सन १९८८ में उन्होने कम खर्चे में पोलिथिन निर्मान करने की मशीन बनाई। वे वार्ल्ड तेक्नोलोजी एवार्द के लिए भी मनोनित हुए था। प्रारम्भिक जीवन उद्धव भराली का जन्म एक साधारण व्यवसायी के घर लखिमपुर जिले के उत्तर लखीमपुर नगर में हुआ था। उन्होने लखिमपुर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से स्कूली शिक्षा समाप्त की। स्कूल में उनको दो बार डबल प्रमोशन मिला था। उन्होने जोरहाट अभियान्त्रिक महाविद्यालय से यान्त्रिक अभियान्त्रिक विद्या क अध्ययन किया। पर पैसो के कमी के कारण उन्हे बीच में ही छोड़ना परा। फिर वे चेन्नई के इन्स्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियर्स गए, लेकिन पिता के मृत्यु के कारण उन्हे वो भी आधे में छोड़ना पड़ा। अवदान घर की आर्थिक दुरवस्था और बैंक का ऋण दूर करने के लिए भराली ने १९८८ में कम खर्चे में एक पोलिथिन बनाने वाली मशीन बनाई। उसके बाद ही उद्धव ने एक के बाद एक कई अन्वेषण किए। उनके अन्वेषण ग्राम्य जीवन और व्यवसाय के लिए बहुत लाभदायक थे, लेकिन इन्हे आगे बढाने वाला कोई ना था। २००५ में अहमदाबाद के नेशनल इनोवेशन फाउन्डेशन की नज़र उद्धव पर पड़ी। २००६ में यह बात सिद्ध हो गई कि उनका अनार के बीज़ निकालने वाला यन्त्र विश्व में अनोखा है और अमरीका की संस्था नासा के क्रियेट द फ्यूचर डिज़ाइन प्रतियोगिता में उनको द्वितीय स्थान मिला। उनके नाम ३९ पेटेन्ट है और आज तक उन्होने ९८ अन्वेषण किए हैं। उनके अन्य कुछ उल्लेखनीय यन्त्र है सुपारी व अदरक के छिल्के निकालने वाला यंत्र, चाय के पत्तो को निकालने वाला यंत्र आदि। पुरस्कार और सम्मान उन्हें मिले कई पुरस्कारो में कुछ उल्लेखनीय है, राष्ट्रीय अन्वेषण संस्था का सृष्टि सम्मान (२००७) अन्वेषण के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार (२००९) विज्ञान प्रयुक्ति विद्या मन्त्रालय से मेरिटोरियस इनोवेशन पुरस्कार (२०११) नासा का क्रियेट द फ्यूचर डिज़ाइन का द्वितीय पुरस्कार आदि बाहरी कड़ियाँ ফিউচাৰ ডিজাইন কন্টেষ্টৰ নম্বৰ তালিকা तथ्य सूत्र असम के लोग जीवित लोग 1962 में जन्मे लोग
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क़व्वाली (उर्दू: قوٌالی,) भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ीवाद और सूफ़ी परंपरा के अंतर्गत भक्ति संगीत की एक धारा के रूप में उभर कर आई। इसका इतिहास 700 साल से भी ज्यादा पुराना है। वर्तमान में यह भारत, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश सहित बहुत से अन्य देशों में संगीत की एक लोकप्रिय विधा है। क़व्वाली का अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप नुसरत फतेह अली खान और के गायन से सामने आया। उदभव पर्शियन सूफ़ी तत्व और परंपरा मे समा या समाख्वानी (سماخوانی) [का रिवाज एक आम बात है। इस समाख्वानी में अक्सर निम्न गीत गाये जाते थे और हैं भी। क़सीदा - किसी की तारीफ़ में कहा / लिखा / गाये जाने वाला पद्य रूप हम्द - अल्लाह की तारीफ़ या स्रोत में गाये जाने वाले गीत या कविता। नात ए शरीफ़ (नात) - हज़रत मुहम्मद की शान में कविता या गाये जाने वाले गीत। मन्क़बत (मनक़बत) - वलियों की शान में कविता या गाये जाने वाले गीत। मरसिया - शहीदों की शान में गीत, या गाये जाने वाले गीत। ग़ज़ल - प्रेम गीत। चाहे आप अपने ईश्वर से बात करो, या प्रकृती से या प्रेमिका से या अपने आप से। मुनाजात - यह एक प्रार्थना है, जिस को दुआ या मुनाजात भी कहा जाता है। कव्वाली की विषय सामग्री कव्वाली का स्वरुप चिश्तिया समुदाय में गायन क्रम पुराने मशहूर कव्वाल अज़ीज़ मियाँ कव्वाल बहाउद्दीन कुतुबुद्दीन हबीब पेइंटर अज़ीज़ वारसी ज़फ़र हुसैन खान बदायुनी मोहम्मद सईद चिश्ती मुंशी रज़ीउद्दीन नुसरत फतह अली खान साबरी बंधु आज के मशहूर कव्वाल बद्र अली खान (उर्फ़ बद्र मियाँ) छोटे अज़ीज़ नाजां फ़रीद अय्याज़ मेहर अली शेर अली राहत नुसरत फतह अली खान रिज़वान मुअज़्ज़म अमजद साबरी चांद कादरी अफजल चिश्ती अजीम नाज़ा इन्हें भी देखें पाकिस्तानी संगीत भारतीय संगीत फिल्मी क़व्वाली सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ कव्वाली का उदभव और विकास, ऐडम नैय्यर, लोक विरसा शोध संस्थान, इस्लामाबाद. 1988. वृत्तचित्र: म्यूज़िक ऑफ पाकिस्तान (52 मिनट) BBC Radio 3 Audio (45 minutes): The Nizamuddin shrine in Delhi. Accessed November 25, 2010. BBC Radio 3 Audio (45 minutes): A mahfil Sufi gathering in Karachi. Accessed November 25, 2010. Origin and History of the Qawwali, Adam Nayyar, Lok Virsa Research Centre, Islamabad. 1988. QAWWALI PAGE Islamic Devotional Music by David Courtney, Ph.D. कव्वाली कव्वाली कव्वाली
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पसलूरु (अनंतपुर) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अनंतपुर जिले का एक गाँव है। बाहरी कड़ियाँ आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग NIC की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट आन्ध्र प्रदेश अनंतपुर जिला
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कमलपुर (Kamalpur) भारत के असम राज्य के कामरुप ज़िले में स्थित एक गाँव है। राष्ट्रीय राजमार्ग 27 यहाँ से गुज़रता है। इन्हें भी देखें कामरूप ज़िला सन्दर्भ कामरूप ज़िला असम के गाँव कामरूप ज़िले के गाँव
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530 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। घटनाएँ जनवरी-मार्च अप्रैल-जून जुलाई-सितंबर अक्टूबर-दिसंबर अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ हुना राजा मिहिर्कुला की हार यसोधारमण के हाथ जनवरी-मार्च rohit8445886 अप्रैल-जून जुलाई-सितंबर अक्टूबर-दिसंबर निधन जनवरी-मार्च अप्रैल-जून जुलाई-सितंबर अक्टूबर-दिसंबर 530 वर्ष
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लूनर फ्लैशलाइट (Lunar Flashlight) कम लागत वाली क्यूबसैट चन्द्र आर्बिटर मिशन है। इसे जेट प्रोपल्सन प्रयोगशाला, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और मार्शल स्पेस फ्लाइट सेंटर की एक टीम द्वारा विकसित किया जा रहा है। यह नवंबर 2018 में प्रक्षेपण के लिए नासा उन्नत एक्सप्लोरेशन सिस्टम्स (एईएस) द्वारा 2015 में चुना गया था। इन्हें भी देखें चंद्रमा के मिशन की सूची सेलिन-2 स्काईफायर चांग ई-5 सन्दर्भ
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सुरखालपाठक, गंगोलीहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर कुमाऊँ मण्डल गढ़वाल मण्डल बाहरी कड़ियाँ उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा सुरखालपाठक, गंगोलीहाट तहसील सुरखालपाठक, गंगोलीहाट तहसील
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अहमद शाह बहादुर (१७२५-१७७५) मुहम्मद शाह (मुगल) का पुत्र था और अपने पिता के बाद १७४८ में २३ वर्ष की आयु में १५वां मुगल सम्राट बना। इसकी माता उधमबाई थी, जो कुदसिया बेगम के नाम से प्रसिद्ध थीं।अहमद शाह बहादुर बचपन से ही काफी लाड प्यार में बड़े हुए। 1725 में उनका जन्म हुआ उनके बड़े होते होते मुगल साम्राज्य अपने आप में कमजोर होता जा रहा था जब 14 साल के थे तब नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण कर दिल्ली में भयानक लूटपाट मचाई थी 1748 में अपने पिता मोहम्मद शाह की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठे और उन्होंने अपनी सेना का संचालन अपने ढंग से करना शुरू किया उनके शासन में कम नेतृत्व क्षमता साफ तौर पर नज़र आती है जिसके कारण फिरोज जंग तृतीय नामक एक वजीर का उदय हुआ और बाद में 1754 इसी में उसने अहमद शाह बहादुर को अपनी ताकत के दम पर कैद कर लिया और आलमगीर को सम्राट बनाया अहमदशाह बचपन से ही आलसी थे उनको तलवारबाजी चलाना नहीं आता था अपनी माता कोदिया बेगम के और अपने पिता मोहम्मदशाह के बलबूते के दम पर उन्हें सम्राट की प्राप्त हुई थी सम्राट बनने के बाद ये हमेशा हरम में लिप्त रहते थे जिसके कारण उनका ध्यान शासन की ओर नहीं जाता था उन्होंने सफदरजंग को अवध का नवाब घोषित किया और अपनी सारी शक्तियां अपने वजीर के हाथ में दे दी जिसके कारण बाद में फिरोजजंग ने सदाशिव राव भाऊ जो कि मराठा सरदार थे उनकी सहायता से अहमद शाह बहादुर को कैद कर लिया और वहां उनको और उनकी माता कुदसिया बेगम को अंधा कर दिया गया जहां जनवरी 1775 में सामान्य तौर पर उनकी मृत्यु हो गई।{cn}} मुग़ल सम्राटों का कालक्रम सन्दर्भ बहादुर, अहमद शाह बहादुर, अहमद शाह बहादुर, अहमद शाह
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बोदरवार उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में एक गाँव है। बोदरवार, गोरखपुर-कप्तानगंज रोड पर स्थित है। यह पहले चावल के व्यावसाय के लिए विश्वप्रसिद्ध था, लेकिन कालान्तर में यह व्यावसाय हो गया । यहाँ कभी बनारस के राजा का शासन चलता था। यहाँ राजा का दरबार लगता था, इसी कारण पहले ये ओ दरबार कहा जाता था कालान्तर में इसे 'बोदरवार' कहा जाने लगा। यहाँ बहुत बड़ा बाजार लगता है। यहाँ रेलवे लाइन भी गुजरती है और यहाँ एक रेलवे स्टेशन भी है। यहाँ चार राष्ट्रीयकृत बैंक तथा बीस से अधिक स्कूल मौजूद हैं। यहाँ 5 बड़ी चावल की मिलें हैं। बोदरवार के दक्षिण में प्राचीन मंदिर भगवान शिव (बगहावीर बाबा) के नाम से क्षेत्र में प्रसिद्ध है। सन्दर्भ कुशीनगर ज़िले के गाँव
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कपोथका (Kapothaka) टोह लेने के लिए एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक मिनी यूएवी था। विशेष विवरण इन्हें भी देखें रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन डीआरडीओ निशान्त डीआरडीओ रुस्तम डीआरडीओ लक्ष्य सन्दर्भ मानव रहित विमान
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सानिया मिर्ज़ा टेनिस अकादमी भारतीय टेनिस खिलाड़ियों के लिए विश्व स्तर की टेनिस प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से मार्च 2013 में हैदराबाद में शुरू किया गया था। इसकी स्थापना भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्ज़ा के द्वारा भारत के भविष्य को रोशन करने वाली उपयोगी ग्रामीण प्रतिभाओं को पहचानकर चयनित करते हुये स्वयं के खर्च पर प्रशिक्षित करने हेतु की गयी थी। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ सानिया मिर्जा खोलेंगी टेनिस अकादमी वेबदुनिया हिन्दी संस्था टेनिस
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टिटवाला (Titwala) भारत के महाराष्ट्र राज्य के ठाणे ज़िले में स्थित एक नगर है। यह कल्याण-डोम्बिवली में स्थित है। टिटवाला सिद्धिविनायक महागणपति मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ गणेश चतुर्थी और अंगारिका चतुर्थी पर लाखों श्रद्धालु आते हैं। इन्हें भी देखें सिद्धिविनायक महागणपति मन्दिर कल्याण-डोम्बिवली ठाणे ज़िला सन्दर्भ महाराष्ट्र के शहर ठाणे ज़िला ठाणे ज़िले के नगर कल्याण-डोम्बिवली
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ब्रिटिश ओलंपिक संघ (बीओए) द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया ग्रेट ब्रिटेन 7 से 23 फरवरी 2014 तक सोचि, रूस में 2014 शीतकालीन ओलंपिक में भाग लिया। ब्रिटिश टीम उत्तरी आयरलैंड सहित पूरे यूनाइटेड किंगडम के एथलीटों से बना थी, जिनके एथलीटों ने आयरलैंड की नागरिकता रखने के लिए चुना हो सकता था, जिससे उन्हें ग्रेट ब्रिटेन या आयरलैंड का प्रतिनिधित्व करने की इजाजत मिल सके। इसके अतिरिक्त, कुछ ब्रिटिश विदेशी प्रदेश ब्रिटेन से ओलंपिक प्रतियोगिता में अलग-अलग प्रतिस्पर्धा करते थे। कुल 56 एथलीटों ने 11 खेलों में भाग लिया, यह सबसे बड़ा दल है जो ग्रेट ब्रिटेन ने 26 साल के लिए शीतकालीन ओलंपिक खेलों में भेजा था। 9 फरवरी 2014 को, जेनी जोन्स ने महिलाओं की स्लोप्लेस्टाइल में तीसरा स्थान हासिल करने के बाद अपने शीतकालीन ओलंपिक इतिहास में बर्फ पर ग्रेट ब्रिटेन का पहला पदक जीता। 14 फरवरी 2014 को, लिजी योनाल्ड ने कंकाल में स्वर्ण पदक जीता। वह इस प्रतियोगिता में स्वर्ण जीतने वाली दूसरी ब्रिटान बन गई, जिसने पिछले ग्रेट ब्रिटेन चैंपियन एमी विलियम्स से खिताब जीता, वह समापन समारोह के लिए ध्वजवाहक बनने के लिए चुने गए। 20 फरवरी 2014 को, महिलाओं की कर्लिंग टीम ने स्विट्जरलैंड के खिलाफ 6-5 से कांस्य पदक जीता। ऐसा करने से, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि ग्रेट ब्रिटेन ने खेलों से तीन पदक के अपने ब्रिटेन के खेल पदक लक्ष्य से मुलाकात की। पर 19 फरवरी 2014, पुरुषों की कर्लिंग टीम स्वीडन को 6-5 के खिलाफ और 21 फरवरी 2014 को अपनी सेमीफाइनल जीता है, वे स्वर्ण पदक मैच 9-3 में कनाडा से हार जाने के बाद रजत पदक जीता, लेकिन परिणाम अभी भी ग्रेट ब्रिटेन के सबसे पुष्टि की 1924 के शीतकालीन ओलंपिक की पदक संख्या के बराबर नब्बे साल के लिए सफल ओलंपिक। पदक विजेता सन्दर्भ देश अनुसार शीतकालीन ओलंपिक २०१४
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दौलतपुर-१ फतुहा, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। भूगोल जनसांख्यिकी यातायात आदर्श स्थल शिक्षा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ पटना जिला के गाँव
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ज्वार भाटा १९४४ में बनी हिन्दी भाषा की एक फिल्म है। इसमें अन्य साथी कलाकारो के साथ हिंदी नायक दिलीप कुमार ने भुमिका निभायी थी। बाहरी स्रोत हिन्दी फ़िल्में
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अनोखा मिलन १९७२ में बनी हिन्दी भाषा की एक फिल्म है। इसमें अन्य साथी कलाकारो के साथ हिंदी नायक दिलीप कुमार ने भुमिका निभायी थी। बाहरी स्रोत मिलन, अनोखा
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बिस्तारिया में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत पुर्णिया मण्डल के अररिया जिले का एक गाँव है। बाहरी कड़ियाँ बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव अरारिया गाँव
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बोर्लकुंट, दहेगाव‌ मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। बाहरी कड़ियाँ आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग NIC की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट आन्ध्र प्रदेश अदिलाबादु जिला
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प्रशा एक जर्मन राज्य था जिसका बहुत महत्वपूर्ण इतिहास रहा है। यह मूलतः यूरोप के केंद्रीय क्षेत्र में स्थित था और इसने जर्मनी के एकीकरण में मुख्य भूमिका निभाई थी। 18वीं और 19वीं सदी में प्रशा की सैन्य और आर्थिक शक्ति का बहुत वृद्धि हुई और इसने यूरोपीय राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला। बिस्मार्क के नेतृत्व में प्रशा ने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की और अंतत: जर्मन साम्राज्य की स्थापना की। प्रशा की संस्कृति और समाज में सैन्यवाद और अनुशासन के मूल्यों का गहरा प्रभाव था। प्रशियन शिक्षा प्रणाली अपने सख्त नियमों और शैक्षिक मानकों के लिए जानी जाती थी। यहाँ की सरकार एक प्रकार की संवैधानिक राजशाही थी जहां राजा की शक्तियों में सीमा थी परंतु उसके पास फिर भी काफी अधिकरण थे। प्रशा और उसकी आर्थिक नीतियों का यूरोप के औद्योगिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका थी। कोयला और लोहा जैसे संसाधनों के बड़े भंडारों को प्रशा ने कुशलतापूर्वक उपयोग किया, जिससे उसके औद्योगिक और सैन्य क्षमता में बढ़ोतरी हुई। इसने रेल परिवहन और चैनलों के निर्माण में भी निवेश किया, जिससे व्यापार और उद्योग को बल मिला। इन्होंने न सिर्फ प्रशा की आर्थिक प्रगति में, बल्कि जर्मनी की एकीकरण प्रक्रिया में भी योगदान दिया। ऐतिहासिक रूप से, प्रशा का क्षेत्रीय विस्तार बहुत अस्थिर रहा। युद्धों के फलस्वरुप इसकी सीमाएँ बदलती रहीं और इसका प्रभाव यूरोप की मानचित्र पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। प्रशा ने अपनी नीतियों के जरिये उत्तरी जर्मनी में प्रभाव को बढ़ाया और धीरे-धीरे अन्य जर्मन राज्योंपर अपनी सत्ता स्थापित की। प्रशा के अंतिम सरकारी दृष्टिकोण और उसके उत्तराधिकार में जर्मन राज्यों का एकीकरण पूरा होते देखा गया। यह यूरोपीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था जिसने यूरोप की राजनीतिक सरंचना को परिवर्तित कर दिया।
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जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। जैन ग्रथों के अनुसार महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को चर्तुदशी के प्रत्युष काल में मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। चर्तुदशी का अन्तिम पहर होता है इसलिए जैन लोग दीपावली अमावस्या को मनाते है। संध्या काल में तीर्थंकर महावीर के प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है। दीपावली दीपावली शब्द से संबंधित शब्द, "दीपलिक" का सबसे पुराना संदर्भ आचार्य जिनसेन द्वारा लिखित हरिवंश-पुराण में मिलता है: ततस्तुः लोकः प्रतिवर्षमादरत् प्रसिद्धदीपलिकयात्र भारते | समुद्यतः पूजयितुं जिनेश्वरं जिनेन्द्र-निर्वाण विभूति-भक्तिभाक् |२० | हिंदी अनुवाद: देवताओं ने इस अवसर पर दीपक द्वारा पावानगरी (पावापुरी) को प्रबुद्ध किया। उस समय के बाद से, भारत के लोग जिनेन्द्र (यानी भगवान महावीर) के निर्वाणोत्सव पर उनकी की पूजा करने के लिए प्रसिद्ध त्यौहार "दीपलिक" मनाते हैं। निर्वाण लड्डू इस दिन, कई जैन मंदिरों में निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है। लड्डू गोल होता है, जिसका अर्थ होता है जिसका न आरंभ है न अंत है। अखंड लड्डू की तरह आत्मा होती है, जिसका न आरंभ होता है और न ही अंत। लड्डू बनाते समय बूँदी को कड़ाही में तपना पड़ता है और तपने के बाद उन्हें चाशनी में डाला जाता है। उसी प्रकार अखंड आत्मा को भी तपश्चरण की आग में तपना पड़ता है तभी मोक्षरूपी चाशनी की मधुरता मिलती है। मोक्ष लक्ष्मी जैन धर्म में लक्ष्मी का अर्थ होता है निर्वाण और सरस्वती का अर्थ होता है केवलज्ञान, इसलिए प्रातःकाल जैन मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण उत्सव मनाते समय भगवान की पूजा में लड्डू चढ़ाए जाते हैं। भगवान महावीर को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति हुई और गणधर गौतम स्वामीजी को केवलज्ञान रूपी सरस्वती प्राप्त हुई, इसलिए लक्ष्मी-सरस्वती का पूजन दीपावली के दिन किया जाता है। लक्ष्मी पूजा के नाम पर रुपए-पैसों की पूजा जैन धर्म में स्वीकृत नहीं है। इन्हें भी देखें जैन नववर्ष सन्दर्भ दीपावली
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सौभाग्यवती भव: * नियम और शर्ते लागू बॉम्बे शो स्टूडियोज एलएलपी द्वारा निर्मित एक भारतीय हिंदी भाषा की टेलीविजन श्रृंखला है। यह इसी नाम की 2011 श्रृंखला की अगली कड़ी है और इसमें करणवीर बोहरा, धीरज धूपर और अमनदीप सिद्धू हैं। इस सीरीज़ का प्रीमियर 26 सितंबर 2023 को स्टार भारत पर हुआ। कथानक पहले ओपस की घटनाओं के बाद, विराज डोबरियाल, जिसे 14 साल की जेल की सजा काटनी थी, को अच्छे व्यवहार के लिए 12 साल की सजा के बाद रिहा कर दिया गया है। वह एक सामाजिक कार्यकर्ता होने का अभिनय करता है और बताता है कि उसने जान्हवी संगठन खोला है, इस पद का उपयोग करके वह युवती की सुरक्षा करता है क्योंकि शहर में हर कोई उद्यमी राघव जिंदल से डरता है। कलाकार मुख्य सिया जिंदल के रूप में अमनदीप सिधू : श्रीमती शर्मा की बेटी, तुषार और रश्मी की सबसे बड़ी बहन, राघव की विधवा (2023-2024) धीरज धूपर राघव जिंदल के रूप में : श्रीमती जिंदल का बेटा, सिया का पति (2023) (मृत) विराज डोबरियाल के रूप में करणवीर बोहरा : ख़ुशी के पिता, राघव के प्रतिद्वंद्वी (2023-2024) पुनरावर्ती डीसीपी अविनाश सक्सेना के रूप में रोहित रॉय (2023) श्रीमती शर्मा के रूप में स्नेहा रायकर : सिया, तुषार और रश्मी की माँ (2023-2024) तुषार शर्मा के रूप में जतिन सूरी : श्रीमती शर्मा का छोटा बेटा, सिया और रश्मी का भाई (2023 - 2024) रश्मी शर्मा के रूप में शीर्षा तिवारी : श्रीमती शर्मा की सबसे छोटी बेटी, सिया और तुषार की सबसे छोटी बहन (2023-2024) नीलम्मा शर्मा के रूप में फरीदा दादी : सिया, तुषार और रश्मी की दादी (2023-2024) जान्हवी उर्फ सिया के रूप में सृति झा (घोस्ट कैमियो) (2023) राम मेहर जांगड़ा उन्नियाल के रूप में : विराज का कर्मचारी प्रतिद्वंद्वी बन गया (2023 - 2024) श्रीमती जिंदल के रूप में अर्चना मोरे :राघव की माँ (2023-2024) ख़ुशी डोबरियाल के रूप में एंजेल शेट्टी : विराज की बेटी (2023-2024) उत्पादन स्टार भारत पर बॉम्बे शो स्टूडियोज एलएलपी द्वारा श्रृंखला की घोषणा की गई थी। करणवीर बोहरा ने पिछले सीज़न से विराज डोबरियाल के रूप में अपनी भूमिका दोहराई, और धीरज धूपर और अमनदीप सिद्धू क्रमशः राघव और सिया के रूप में मुख्य भूमिकाओं में शामिल हुए। मुख्य फोटोग्राफी अगस्त 2023 में शुरू हुई और मुख्य रूप से फिल्म सिटी, मुंबई में शूट की गई। राघव की भूमिका निभा रहे धीरज धूपर ने पिछली पेशेवर प्रतिबद्धताओं का हवाला देते हुए नवंबर 2023 में श्रृंखला छोड़ दी। यह भी देखें स्टार भारत द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों की सूची संदर्भ बाहरी कड़ियाँ डिज़्नी+हॉटस्टार पर सौभाग्यवती भव: * नियम और शर्ते लागू स्टार भारत के धारावाहिक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
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बीना जंक्शन रेलवे स्टेशन भारतीय राज्य मध्य प्रदेश में स्थित एक रेलवे स्टेशन है एवं मध्य-पश्चिम रेलवे मंडल का भाग है। बीना जंक्शन बीना नगर में स्थित है और बुंदेलखण्ड एवं मालवा के आसपास के क्षेत्रों को जोड़ता है। यहाँ पर छः प्लेटफॉर्म हैं। सन्दर्भ मध्य प्रदेश में रेलवे स्टेशन
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वृक्ष सूर्यानुवर्त (Tree Heliotrope), जिसे ऑक्टोपस झाड़ (Octopus Bush) भी कहते हैं, बोराजिनासीए (Boraginaceae) जीववैज्ञानिक कुल का एक फूलदार पौधा है। यह मूलतः एशिया के गरम क्षेत्रों (जैसे कि दक्षिणी चीन), हिंद महासागर में माडागास्कर​ और उसके इर्द-गिर्द के द्वीपों, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महासागर में माइक्रोनीशिया और पोलिनिशिया के एटोलों (मूँगे द्वारा बनाए गए नन्हे द्वीप) और बड़े द्वीपों पर उगता है। यह झाड़ी या छोटे पेड़ का रूप रखता है जो लगभग ६ मीटर (२० फ़ुट) ऊँचा उग जाता है और लगभग उतने ही क्षेत्र में इसकी टहनियाँ भी फैल जाती हैं। वैज्ञानिक नाम इसका सबसे पहला वैज्ञानिक नाम 'टूर्नेफ़ोर्टिया आर्जेन्टिया' (Tournefortia argentea) हुआ करता था, जो बाद में बदलकर 'आर्गूसिया आर्जेन्टिया' (Argusia argentea) कर दिया गया। जब जीववैज्ञानिकों में इसके जीववैज्ञानिक वर्गीकरण का मत और विकसित हुआ तो इसे पहले तो वापस 'टूर्नेफ़ोर्टिया आर्जेन्टिया' में और फिर सन् २००३ में 'हीलियोट्रोपियम फ़ोर्थेरियेनम​' (Heliotropium foertherianum) में परिवर्तित कर दिया गया। प्रयोग लकड़ी वृक्ष सूर्यानुवर्त की काठ का इस्तेमाल औज़ार और हस्तशिल्प वस्तुएँ बनाने में होता है। कुछ जगहों पर इसे जलाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। पोलिनिशिया में इसकी लकड़ी से तैराकी के चश्मों के सांचे बनाए जाते हैं (जिनमें शीशा लगाया जाता है)। दवा व चिकित्सा प्रशांत महासागर के कुछ रीफ़ों में मछलियों में एक गैम्बियरडिस्कस​ (Gambierdiscus) नामक विशेष प्रकार की शैवाल (ऐल्गी) खाने से कभी-कभी सिगुआतेरा (ciguatera) नाम एक ज़हरीला पदार्थ इकठ्ठा हो जाता है। इस से प्रभावित मछली खाने से मनुष्यों को भी यह ज़हर चढ़ सकता है। बहुत से द्वीपों की पारम्परिक चिकित्सा में वृक्ष सूर्यानुवर्त का उपयोग इस विष के उपचार के लिए सदियों से होता आया है। नया कैलेडोनिया पर स्थित पैस्त्यर संसथान (Pasteur Institute) और फ़्रांसिसी पोलिनिशिया के लूई मालार्द संस्थान (Louis Malard Institute) के विज्ञानिकों ने ऑक्टोपस झाड़ पर अनुसन्धान करते हुए इसमें रोज़मैरिनिक​ अम्ल (rosmarinic acid) से मिलता हुआ एक अणु होने की सम्भावना पाई है, जिसमें इस विष को शरीर के भिन्न भागों से हटाने की क्षमता हो सकती है और साथ-साथ प्रदाह (इन्फ़्लामेशन) कम करने के भी गुण हैं। इन्हें भी देखें सूर्यानुवर्त सन्दर्भ ​बोराजिनासीए सूर्यानुवर्त प्रशांत महासागर द्वीपों के वनस्पति हिन्द महासागर द्वीपों के वनस्पति ऑस्ट्रेलिया के वनस्पति
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एक पेय-पदार्थ या पेय, कोई द्रव होता है, जो विशिष्ट रूप से मनुष्य के द्वारा ग्रहण किये जाने के लिये तैयार किया जाता है। मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता की पूर्ति करने के अलावा, पेय मानव समाज की संस्कृति के एक भाग का निर्माण भी करते हैं। जल इस तथ्य के बावजूद कि सभी पेय-पदार्थों में जल मौजूद होता है, स्वयं जल को पेय के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है। पारंपरिक रूप से, पेय शब्द को जल को संदर्भित न करने वाले शब्द के रूप में परिभाषित किया जाता रहा है। मादक पेय एक मादक पेय-पदार्थ कोई ऐसा पेय होता है, जिसमें एथेनॉल, जिसे सामान्यतः अल्कोहल के नाम से जाना जाता है (यद्यपि रसायन शास्त्र में "अल्कोहल" की परिभाषा में अनेक अन्य घटक भी शामिल होते हैं). पिछले 8,000 वर्षों से बीयर मानव संस्कृति का एक भाग रही है। जर्मनी, आयरलैंड, यूनाइटेड किंग्डम और अनेक अन्य यूरोपीय देशों में, किसी स्थानीय बार या पब में बीयर (और अन्य मादक पेय-पदार्थ) पीना एक सांस्कृतिक परम्परा रही है। एशियाई देश (उदा., श्रीलंका और भारत) अनेक प्रकार के मादक पेय-पदार्थों का उत्पादन करते हैं (उदा., ताड़ी). गैर-मादक पेय-पदार्थ एक गैर-मादक पेय-पदार्थ वह होता है, जिसमें अल्कोहल की मात्रा बहुत कम या शून्य हो। इस श्रेणी में निम्न-अल्कोहल वाली बीयर, गैर-मादक वाइन और सेब की मदिरा शामिल होते हैं, यदि उनमें अल्कोहल की मात्रा 0.05% से कम हो। शीतल पेय "हार्ड ड्रिंक" या "ड्रिंक" के विपरीत "सॉफ्ट-ड्रिंक" शब्द अल्कोहल की अनुपस्थिति को सूचित करता है। "ड्रिंक" नाममात्र के लिए तटस्थ होता है, लेकिन अक्सर यह अल्कोहल की उपस्थिति की ओर संकेत करता है। सोडा पॉप, स्पार्कलिंग वॉटर, आइस्ड टी, नींबू पानी, स्क्वैश और फ्रुट पंच सबसे आम सॉफ्ट ड्रिंक्स हैं। दूध, हॉट चॉकलेट, चाय, कॉफी, मिल्कशेक और नल के पानी को सॉफ्ट ड्रिंक्स नहीं माना जाता. कुछ कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक्स के ऐसे संस्करण भी उपलब्ध हैं, जिनमें मिठास के लिये चीनी के स्थान पर किसी अन्य पदार्थ का प्रयोग किया जाता है। फलों का रस फलों का रस एक प्राकृतिक उत्पाद है, जिसमें बहुत कम पदार्थ मिलाये जाते हैं या कुछ भी नहीं मिलाया जाता. नींबू वंश के उत्पाद, जैसे संतरे का रस और नारंगी का रस नाश्ते के समय लिये जाने वाले अत्यंत परिचित पेय-पदार्थ हैं। मौसमी का रस, अनानास, सेब, अंगूर, लाइम और नींबू का रस भी परिचित उत्पाद हैं। नारियल पानी एक अत्यधिक पौष्टिक और स्फूर्तिदायक रस है। अनेक प्रकार के छोटे फलों को निचोड़ा जाता है और उनके रस में पानी मिलाया जाता है तथा कभी-कभी उन्हें मीठा भी बनाया जाता है। रास्पबेरी, ब्लैकबेरी और करंट्स आम तौर पर लोकप्रिय पेय-पदार्थ हैं लेकिन जल का प्रतिशत भी उनके पोषण मूल्य का निर्धारण करता है। जल के अलावा फलों के रस संभवतः मनुष्य के सबसे शुरुआती पेय-पदार्थ थे। अंगूर के रस में जब खमीर उठने दिया गया, तो इससे मादक पेय पदार्थ वाइन का निर्माण हुआ। फल बहुत जल्दी खराब हो जाने वाले पदार्थ होते हैं और इसलिये रस निकालने और उन्हें संरक्षित रखने की क्षमता अत्यधिक मूल्यवान थी। कुछ फल बहुत अधिक अम्लीय होते हैं और अक्सर उनमें अतिरिक्त पानी और चीनी या शहद मिलाना आवश्यक होता है, ताकि उन्हें रुचिकर बनाया जा सके। प्रारंभ में फलों के रस का संग्रहण करना श्रम-साध्य था, जिसमें फलों को निचोड़ना और परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाले रस में चीनी मिलाकर उसे बोतल में बंद करना आवश्यक होता था। संतरे का रस और नारियल पानी अभी भी बाज़ार में सबसे ज्यादा लिये जाने वाले रस बने हुए हैं और उनकी लोकप्रियता का कारण उनमें मौजूद मूल्यवान पोषक पदार्थ व जलयोजन क्षमताएं हैं। गर्म पेय-पदार्थ एक गर्म-पेय पदार्थ कोई भी ऐसा पेय-पदार्थ होता है, जिसे आम तौर पर गर्म परोसा जाता है। ऐसा किसी गर्म द्रव, जैसे पानी या दूध, को मिलाकर अथवा स्वतः पेय-पदार्थ को ही गर्म करके किया जा सकता है। गर्म पेय पदार्थों के कुछ उदाहरण हैं: कॉफी-आधारित पेय-पदार्थ कैफे ऑ ले (Café au lait) कैपुचीनो (Cappuccino) कॉफ़ी (Coffee) एस्प्रेसो (Espresso) फ्रैपे (Frappé) सुगंधित कॉफी (मोचा आदि) (Flavored coffees (mocha etc.)) लैटे (Latte) हॉट चॉकलेट हॉर्लिक्स हॉट साइडर म्युल्ड साइडर ग्लुवीन (Glühwein) चाय-आधारित पेय-पदार्थ फ्लेवर्ड टी (चाय आदि) ग्रीन टी पर्ल मिल्क टी चाय हर्बल टी येर्बा मेट (yerba mate) भुने हुए अन्न से बने पेय-पदार्थ सांका (Sanka) अन्य कुछ पदार्थों को भोज्य या पेय-पदार्थ दोनों कहा जा सकता है और इसी के अनुसार उन्हें चम्मच से खाया अथवा पिया जा सकता है, जो कि उनके गाढ़ेपन और विलेयों पर निर्भर होता है। छाछ सूप दही मापन इन्हें भी देखें कॉकटेल पीना पीने का पानी भोजन केफिर सॉफ्ट ड्रिंक जल सन्दर्भ खानपान
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वाइसरॉय एक शाही अधिकारी होता है, जो एक देश या प्रांत पर शासन करता है। यह शासन किसी मुख्य शासक के नाम पर होता है। यह शब्द बना है: वाइस अंग्रेज़ी से, अर्थात - उप, + फ्रेंछ शब्द रॉय, अर्थात राजा। वाइस का अर्थ लैटिन में " के नाम पर" भी होता है। तो पूर्ण अर्थ हुआ " राजा के नाम पर"। इनकी पत्नी को वाइसराइन कहा जाता था। स्पैनिश साम्राज्य शीर्षक का उपयोग मूल रूप से क्राउन ऑफ एरागॉन द्वारा किया गया था, जहां, 14 वीं शताब्दी में शुरू हुआ, इसने सार्डिनिया और कोर्सिका के स्पेनिश राज्यपालों को संदर्भित किया। एकीकरण के बाद, 15 वीं शताब्दी के अंत में, बाद में स्पेन के राजाओं ने यूरोप, अमेरिका और विदेशों में तेजी से बढ़ते विशाल स्पेनिश साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों पर शासन करने के लिए कई वायसराय नियुक्त किए। ब्रिटिश साम्राज्य और राष्ट्रमंडल पुर्तगाली साम्राज्य भारत 1896 में अंतिम वायसराय अफोंसो, पुर्तगाल का राजकुमार रॉयल तक वायसराय की उपाधि, कुलीन वर्ग के सदस्यों, गवर्नर-जनरल और गवर्निंग कमीशनों को कई बार मिलाई गई। 1505 से 1896 तक पुर्तगाली भारत "भारत" नाम और आधिकारिक नाम "एस्टाडो दा इंडिया" ( भारत का राज्य ) जिसमें हिंद महासागर में सभी पुर्तगाली संपत्ति शामिल हैं, दक्षिणी अफ्रीका से दक्षिण पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया, 1752 तक- या तो एक वायसराय (पुर्तगाली वाइस-री ) या उसके मुख्यालय के गवर्नर द्वारा शासित था, गोवा में 1510 के बाद से। सरकार ने भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज के छह साल बाद शुरू किया वास्को डी गामा, 1505 में, पहले वायसराय फ्रांसिस्को डी अल्मेडा (b.1450 – d.1510) के तहत। प्रारंभ में, राजा पुर्तगाल के मैनुएल 1 ने अधिकार क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों में तीन राज्यपालों के साथ एक शक्ति वितरण की कोशिश की: पूर्वी अफ्रीका में क्षेत्र और संपत्ति को कवर करने वाली सरकार, अरब प्रायद्वीप और फारस की खाड़ी की देखरेख कैम्बे स्टेट (गुजरात); भारत (हिंदुस्तान) और सीलोन, और [पूर्व] मलक्का से सुदूर पूर्व तक एक तिहाई के पास एक सत्तारूढ़ शासन है। हालाँकि यह पद गवर्नर अफोंसो डी अल्बुकर्क (१५० ९ -१५१५) द्वारा केन्द्रित किया गया था, जो बहुपक्षीय हो गए, और बने रहे। कार्यालय में अवधि आमतौर पर तीन साल थी, संभवतः अब तक, शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हुए: 16 वीं शताब्दी में भारत के चौंतीस राज्यपालों में से केवल छह में लंबे समय तक जनादेश था। पुर्तगाल इबेरियन यूनियन के कुछ समय के दौरान, १५ 16० और १६४० के बीच, स्पेन का राजा, जो पुर्तगाल का राजा भी नियुक्त था, क्योंकि राजा के पास पूरे यूरोप में कई क्षेत्र थे और उन्होंने अपनी शक्तियों को विभिन्न वाइसराय को सौंप दिया था। ब्राजील अमेरिका का पुर्तगाली उपनिवेश 1640 में आइबेरियन यूनियन के अंत के बाद, औपनिवेशिक ब्राजील | ब्राजील के गवर्नर जो पुर्तगाली उच्च कुलीन वर्ग के सदस्य थे, ने वायसराय की उपाधि का उपयोग करना शुरू कर दिया। ब्राजील 1763 में एक स्थायी वायसराय्टी बन गया, जब ब्राजील राज्य एस्टाडो डो ब्रासिल को सल्वाडोर, बाहिया रियो डी जनेरियो में स्थानांतरित कर दिया गया था। अन्य औपनिवेशिक वाइसरायटी कथा में गैर-पश्चिमी समकक्ष तुर्क साम्राज्य चीन श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशियाई परंपरा इन्हें भी देखें भारत के वाइसरॉय सन्दर्भ इतिहास सरकार
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सिमतोली, काफलीगैर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर कुमाऊँ मण्डल गढ़वाल मण्डल बाहरी कड़ियाँ उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा सिमतोली, काफलीगैर तहसील
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कैलाश चौरसिया,भारत के उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। 2012 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की मिर्जापुर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन संख्या-396)से चुनाव जीता। उत्तर प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री रहे श्री कैलाश चौरसिया जी के सानिध्य में, श्री शिवेंद्र नंदन जी और डॉक्टर श्री अरविंद श्रीवास्तव जी के निर्देशन में समाजवादी प्रहरी के गठन की औपचारिक घोषणा की और और इसी क्रम में जनता की बात को रखने के लिए समाजवादी संवाद को प्रस्तुत किया गया उन्होंने सभी जातियों के लिए समान अधिकारों के लिए लड़ाई को और युवाओं से संबंधित मामलों में असमानता से संबंधित मुद्दों को कथित तौर मुख्य मुद्दा बताया सन्दर्भ उत्तर प्रदेश 16वीं विधान सभा के सदस्य जीवित लोग मिर्जापुर के विधायक
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सौनगांव नैनीचक, कोश्याँकुटोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर कुमाऊँ मण्डल गढ़वाल मण्डल बाहरी कड़ियाँ उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा नैनीचक, सौनगांव, कोश्याँकुटोली तहसील नैनीचक, सौनगांव, कोश्याँकुटोली तहसील
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रोहिना मिर्जापुर गाँव भारत देश में उत्तर प्रदेश प्रान्त में स्थित एटा जिले की जलेसर तहसील के ब्लाक अवागढ़ का महत्वपूर्ण गाँव है। यह गाँव 12 गाँव की ग्राम पंचायत का केन्द्र हैँ। इस पंचायत के अंर्तगत आने बाले गाँव टोढरपुर, नगला खड़ी, आनंदपुर, कुबेरपुर, मिर्जापुर, रोहिना, नगला जमुनियाँ, नगला अतिया, जगतपुर, भरखना, नगला काना, और लिक्षपुरा हैँ। यहां के ग्राम पंचायत प्रधान वर्तमान में श्रीमती हेमलता सिंह पत्नी श्री लाखन सिंह राणा ग्राम मिर्जापुर है यह बहुत ही लोकप्रिय ग्राम पंचायत प्रधान है यातायात यहाँ बस और रेलमार्ग द्वारा पहुचा जा सकता हैँ। बस द्वारा दिल्ली आनंद विहार बस अड्डा से 200 किलोमीटर एटा बस अड्डा पर उतर कर 23 किलोमीटर आगे आगरा रोड पर अवागढ़ की बस पकड़ कर अवागढ़ पहुचते हैँ। फिर यहाँ से ताँगा, जुगाड़ (एक प्रकार का लोकल वाहन) पकड़ कर रोहिना मिर्जापुर पहुचाँ जा सकता हैँ। रेलमार्ग द्वारा दिल्ली कलकत्ता रेलमार्ग पर दिल्ली से 208 किलोमीटर आगे टूण्डला जंक्शन पर उतरना हैँ। फिर यहाँ से एटा रोड पर अवागढ़ बाली बस से अवागढ़ पहुचकर फिर उपरोक्त तरीके से पहुँचा जा सकता हैँ। ग्राम पंचायत प्रधान की सूची मुन्नी देवी बघेल पत्नी श्री रमेशचंद्र बघेल 1995-2000 सुमन यादव पत्नी श्री अशोक यादव 2000-2005 प्रेमा देवी पत्नी श्री शमशेर सिंह नेताजी 2005-2010 सुमन यादव पत्नी श्री अशोक यादव 2010-2015 हेमलता सिंह पत्नी श्री लाखन सिंह राणा 2015-2021 श्रीमती बिरमादेवी पत्नी श्री बाबूलाल (प्रधानाचार्य सेवानिवृत्त) 2021- वर्तमान जातीय समुदाय ग्राम पंचायत में विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं हिंदू मुस्लिम है खासकर हिंदुओं की जातियों में ब्राह्मण, ठाकुर, नाई, जाटव, कुम्हार, बघेल धनगर, यादव, दिवाकर, जोशी, अगरिया, अहेरिया, लोधी राजपूत आदि। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ अधिकारीक जालस्थल उत्तर प्रदेश के गाँव एटा ज़िले के गाँव
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वैदेही कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह क्रौंच पक्षिगळु के लिये उन्हें सन् 2009 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वैदेही जिनका वास्तविक नाम जानकी श्रीनिवास मूर्ति () (12 फरवरी 1945 को वासंती के रूप में जन्म), जो अपने उपनाम वैदेही () के नाम से लोकप्रिय हैं। एक भारतीय लेखिका और आधुनिक कन्नड़ भाषा के प्रसिद्ध लेखिकाओं मे उनकी गिनती होती हैं। वैदेही कन्नड़ भाषा की सबसे सफल महिला लेखकों में से एक हैं और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय साहित्यिक पुरस्कारों की प्राप्तकर्ता हैं। जीवनी प्रारंभिक जीवन वैदेही का जन्म 12 फरवरी 1945 को कर्नाटक के उडुपी जिले के कुंडापुरा तालुक में ए वी एन हेब्बर (पिता) और महालक्ष्मी (माता) के घर हुई थी। वह एक बड़े पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में पली-बढ़ी। उन्होंने कुंडपुरा के भंडारकर कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उनके पिता एक वकील थे और उनकी माँ एक गृहिणी थी। उनके घर पर, कुंडापुर कन्नड़, कन्नड़ की एक स्थानीय बोली बोली जाती थी और वह इस बोली का उपयोग अपने कामों में भी करती है। वैदेही एक असामान्य परिस्थितियों में उसका छद्म-नाम बन गई। अपने लेखन करियर की शुरुआत में, उन्होंने प्रकाशन के लिए कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका सुधा को एक कहानी भेजी थी, लेकिन बाद में प्रकाशक से अनुरोध किया कि वे उसे प्रिंट न करे क्योंकि कहानी गैर-काल्पनिक थी और इसमें एक वास्तविक जीवन की कहानी शामिल थी। हालाँकि, संपादक ने लेखक का नाम बदलकर 'वैदेही' कर दिया और यह नाम उनकी बाद के लेखन में चलता रहा और साथ ही उसने लोकप्रियता हासिल की। विवाहित जीवन वैदेही ने 23 साल की उम्र में के एल श्रीनिवास मूर्ति से शादी की। इस दंपति की दो बेटियां हैं, जिनके नाम नयना कश्यप (नयना मूर्ति) और पल्लवी राव (पल्लवी मूर्ति) हैं। शादी के बाद वैदेही ने अपना कानूनी नाम जानकी श्रीनिवास मूर्ति में बदल दिया और शिवमोग्गा चली गईं। बाद में परिवार उडुपी और फिर मणिपाल चला गया जहां वह वर्तमान में रहती है। वैदेही की बेटी नयना कश्यप एक अनुवादक, कन्नड़ लेखक और अंग्रेजी शिक्षक हैं। उन्होंने वैदेही की कुछ रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया है जिसमें पाँच उपन्यास शामिल हैं। साहित्यिक रचनायें लघुकथा का संग्रह मारा गिदा बल्ली जो (1979) में प्रकाशित हुआ,अंतरांगदा पुतगालु जो (1984) में प्रकाशित हुआ,गोला जो (1986) में प्रकाशित हुआ,समजा शस्त्रजनीया तिप्पेनिगे जो (1994) में प्रकाशित हुआ,अम्माची येम्बा नेनापु जो (2000) में प्रकाशित हुआ,हगालु जीछिदा नेंटा और क्रौंच पक्शिगलु निबंध मल्लीनाथना ध्यान (1996) मेजू मट्टू बदगी जतरे उपन्यास अस्पृश्यरु (1994) कविताओं का संग्रह टोटिलु तुगुवा हदु बिंदू बिंदिग (1990) पारिजात (1999) होवा कटुवा हाडु (2011) बच्चों के नाटक धाम धूम सुनतरगली मूकना मक्कलु गोम्बे मैकबेथ दनदंगुरा नयमारी नाटका कोतु गुम्मा झूम झम आणे मथु पूता सूर्य बंदा अर्धचंद्र मित्राय हक्की हडू सोमारी ओल्या जीवनी नेनापिनांगलदल्ली मुसंजहेथु (कोटा लक्ष्मीनारायण कारंत का जीवन) सेदियापु नेनपुगालु - (सेडियापु कृष्ण भट्ट का जीवन) इललीलारे ऑलगे हॉगलारे - ( बी.वी. कारंथ का जीवन) अनुवाद भारथिया महलीरा स्वानतंत्र होरता (कमलादेवी चट्टोपाध्याय के "भारतीय महिला स्वतंत्रता संग्राम" से) बेलिया संकोलगालु (मैत्री मुखोपाध्याय के "सिल्वर शक्लस") से सूर्य किन्नारायु (स्वप्न दत्ता की "सन फैरिएस" से) संगीता सामवदा ( भास्कर चंदावरकर के "लेक्चर ऑन म्यूजिक") पुरस्कार वैदेही ने कन्नड़ में अपने लेखन के लिए कई पुरस्कार जीते हैं। जिनमे से कुछ निम्नलिखित हे 2009 में क्रौंच पच्चीगालु के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार , कर्नाटक लखकियारा संघ द्वारा अंतरांगदा पुतगालु और बिंदू बिंदगे के लिए गीता देसाई दत्ती निधि (1985, 1992), (1992) में गोला के लिए वर्धमान प्रशस्ति पीठ द्वारा वर्धमान उदयनामुख पुरस्कार, (1992, 1997) कथ संगठन, नई दिल्ली द्वारा हागालु गीकिदा नेंटा और अम्मचचिम्बा नेनपु के लिए कथा अवार्ड , सामज शास्त्रिस्ता टीप्पनज के लिए अनुपमा अवार्ड (1993),कर्नाटक राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार (1993, 1998) उनके पांच बच्चों के नाटक और मल्लीनाथना ध्यान के लिए, अम्माची येम्बा नेनापु को साहित्य कामा पुरस्कार, शाश्वती ट्रस्ट द्वारा सदोदिता पुरस्कार (2001), सुधा वीकली अवार्ड एशप्रयारू के लिए, कर्नाटक सरकार द्वारा दाना चिंतामणि अत्तिम्बे पुरस्कार, अत्तिमाबे पुरस्कार अत्तिम्बे प्रतिष्ठान द्वारा सन्दर्भ साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत कन्नड़ भाषा के साहित्यकार कन्नड़ लोग जीवित लोग 1945 में जन्मे लोग
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टेकापत्थर, सांरगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। बाहरी कड़ियाँ छत्तीसगढ़ सांस्कृतिक छत्तीसगढ जनजातियां कला खेल गोठ सतनाम पंथ छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
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गोविन्द नामदेव हिन्दी फ़िल्मों और टेलिविजन के एक अभिनेता हैं। प्रमुख फिल्में सन्दर्भ बॉलीवुड अभिनेता हिन्दी अभिनेता 1950 में जन्मे लोग जीवित लोग मध्य प्रदेश के लोग
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बोरॉन यौगिक ऐसे यौगिक होते हैं जिनमें बोरॉन तत्व होता है। सबसे परिचित यौगिकों में, बोरॉन का औपचारिक ऑक्सीकरण अवस्था +3 है। इनमें ऑक्साइड, सल्फाइड, नाइट्राइड और हैलाइड शामिल हैं। सन्दर्भ बोरॉन यौगिक तत्वानुसार रासायनिक यौगिक
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टूण्डला (Tundla) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के फ़िरोज़ाबाद ज़िले में स्थित एक नगर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 19 यहाँ से गुज़रता है। विवरण टूण्डला आगरा से २४ किमी दूर है। टूंडला एक प्रमुख रेलवे जंक्शन भी है। यहाँ पर अभिनेता राजबब्बर का मकान है। यह जगह फ़िरोज़ाबाद से 18 कि०मी० की दूरी पर स्थित है । यहां पर ज्यादातर लोग चूड़ियों का काम भी करते है। अगर आपको आगरा, कानपुर, लखनऊ, हावड़ा, दिल्ली जाना है तो यहां से हर 6 घंटे में कोई ना कोई ट्रेन मिल जाती है। यह दिल्ली और कानपुर से लगभग 200 किलोमीटर दूर है। जन्माष्टमी को यहां पर शिखर आश्रम के पास में एक भव्य मेला लगता है यहां की रामलीला स्थानी लोगों के द्वारा की जाती है जोकि टूंडला की संस्कृति को बरकरार रखती है टूंडला में दुर्गा महोत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है माना जाता है कि बंगाल के बाद उत्तर प्रदेश में टूंडला कस्बे के अंदर बहुत बड़ी तादात में दुर्गा पंडाल व मां दुर्गा के पूजन महोत्सव की विभिन्न झांकियां और कार्यक्रम होते हैं। इन्हें भी देखें फ़िरोज़ाबाद ज़िला हिरनगाँव सन्दर्भ फ़िरोज़ाबाद ज़िला उत्तर प्रदेश के नगर फ़िरोज़ाबाद ज़िले के नगर
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धूसर पण्डुक या धूसर कपोत (Laughing dove, Little brown dove), जिसका वैज्ञानिक नाम स्पिलोपेलिया सेनेगालेनसिस (Spilopelia senegalensis) है, भारतीय उपमहाद्वीप, अफ्रीका, मध्य पूर्व और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में मिलने वाली एक पण्डुकों (पक्षियों) की जाति है। इन्हें भी देखें चितरोख पण्डुक (पक्षी) स्पिलोपेलिया सन्दर्भ स्पिलोपेलिया एशिया के पक्षी अफ़्रीका के पक्षी भारत के पक्षी ऑस्ट्रेलिया के पक्षी