diff --git "a/hi/shard-60.txt" "b/hi/shard-60.txt"
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+[[अटल बिहारी वाजपेयी अरविन्द केजरीवाल इंदिरा गाँधी किरण बेदी जवाहरलाल नेहरु नरेन्द्र मोदी राहुल गांधी सुभाष चन्द्र बोस]]
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+बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँह चढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है।
+लोकोक्तियाँ आम जनमानस द्वारा स्थानीय बोलियों में हर दिन की परिस्थितियों एवं संदर्भों से उपजे वैसे पद एवं वाक्य होते हैं जो किसी खास समूह, उम्र वर्ग या क्षेत्रीय दायरे में प्रयोग किया जाता है। इसमें स्थान विशेष के भूगोल, संस्कृति, भाषाओं का मिश्रण इत्यादि की झलक मिलती है।
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+पर्याप्त रूप से विकसित किसी भी तकनीकी और जादू में अन्तर नहीं किया जा सकता ।
+सभ्यता की कहानी सार रूप में इंजिनीयरिंग की कहानी है वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया ।
+इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है ।
+वैज्ञानिक इस संसार का जैसे है उसी रूप में अध्ययन करते हैं । इंजिनीयर वह संसार बनाते हैं जो कभी था ही नहीं ।
+मशीनीकरण करने के लिये यह जरूरी है कि लोग भी मशीन की तरह सोचें ।
+इंजिनीररिंग संख्याओं मे की जाती है । संख्याओं के बिना विश्लेषण मात्र राय है ।
+जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आप का ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक है ।
+आवश्यकता डिजाइन का आधार है । किसी चीज को जरूरत से अल्पमात्र भी बेहतर डिजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है ।
+तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है । हम तकनीकी रूप से विकास नही कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है ।
+भाषा हमारे सोचने के तरीके को स्वरूप प्रदान करती है और निर्धारित करती है कि हम क्या-क्या सोच सकते हैं ।
+आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना ।
+लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है ।
+साहित���य समाज् का दर्पण होता है ।
+( साहित्य संगीत और कला से हीन पुरूष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं । )
+हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है समान लोगों के साथ रहनए से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है ।
+को लाभो गुणिसंगमः लाभ क्या है गुणियों का साथ )
+सत्संगतिः स्वर्गवास सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है )
+संहतिः कार्यसाधिका । एकता से कार्य सिद्ध होते हैं )
+दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं बाकी सब काम की तलाश करते हैं ।
+मानसिक शक्ति का सबसे बडा स्रोत है दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान करना ।
+दुनिया की सबसे बडी खोज इन्नोवेशन का नाम है संस्था ।
+आधुनिक समाज के विकास का इतिहास ही विशेष लक्ष्य वाली संस्थाओं के विकास का इतिहास भी है ।
+कोई समाज उतना ही स्वस्थ होता है जितनी उसकी संस्थाएँ यदि संस्थायें विकास कर रही हैं तो समाज भी विकास करता है, यदि वे क्षीण हो रही हैं तो समाज भी क्षीण होता है ।
+उन्नीसवीं शताब्दी की औद्योगिक-क्रान्ति संस्थाओं की क्रान्ति थी ।
+बाँटो और राज करो एक अच्छी कहावत है लेकिन एक होकर आगे बढो इससे भी अच्छी कहावत है ।
+व्यक्तियों से राष्ट्र नही बनता संस्थाओं से राष्ट्र बनता है ।
+साहसे खलु श्री वसति । साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं )
+इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही बदला है ।
+जरूरी नही है कि कोई साहस लेकर जन्मा हो लेकिन हरेक शक्ति लेकर जन्मता है ।
+बिना साहस के हम कोई दूसरा गुण भी अनवरत धारण नहीं कर सकते । हम कृपालु, दयालु सत्यवादी उदार या इमानदार नहीं बन सकते ।
+बिना निराश हुए ही हार को सह लेना पृथ्वी पर साहस की सबसे बडी परीक्षा है ।
+जिस काम को करने में डर लगता है उसको करने का नाम ही साहस है ।
+मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।
+किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो।
+वस्तुतः अच्छा समाज वह नहीं है जिसके अधिका���श सदस्य अच्छे हैं बल्कि वह है जो अपने बुरे सदस्यों को प्रेम के साथ अच्छा बनाने में सतत् प्रयत्नशील है।
+शोक मनाने के लिये नैतिक साहस चाहिए और आनंद मनाने के लिए धार्मिक साहस। अनिष्ट की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में आकाश-पाताल का अंतर है। पहला गर्वीला साहस है, दूसरा विनीत साहस।
+जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते।
+‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं।
+‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की।
+गलती करने में कोई गलती नहीं है ।
+गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है ।
+गलती करने का सीधा सा मतलब है कि आप तेजी से सीख रहे हैं ।
+सीधे तौर पर अपनी गलतियों को ही हम अनुभव का नाम दे देते हैं ।
+अपनी गलती स्वीकार कर लेने में लज्जा की कोई बात नहीं है । इससे दूसरे शब्दों में यही प्रमाणित होता है कि कल की अपेक्षा आज आप अधिक समझदार हैं ।
+दोष निकालना सुगम है उसे ठीक करना कठिन ।
+जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है ।
+असफलता आपको महान कार्यों के लिये तैयार करने की प्रकृति की योजना है ।
+सफलता की सभी कथायें बडी-बडी असफलताओं की कहानी हैं ।
+असफलता फिर से अधिक सूझ-बूझ के साथ कार्य आरम्भ करने का एक मौका मात्र है ।
+दो ही प्रकार के व्यक्ति वस्तुतः जीवन में असफल होते है एक तो वे जो सोचते हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर देते हैं पर सोचते कभी नहीं।
+दूसरों को असफल करने के प्रयत्न ही में हमें असफल बनाते हैं।
+संसार में सब से अधिक दुःखी प्राणी कौन है बेचारी मछलियां क्योंकि दुःख के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण मात्र दुःख भी पर्वत हो जाता है।
+संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के शुभेच्छु हुआ करते हैं। विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं।
+व्याधि शत्रु से भी अधिक हानिकारक होती है।
+विपत्ति में पड़े हुए का साथ बिरला ही कोई देता है।
+मनुष्य के जीवन में दो तरह के दुःख होते हैं एक यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी नहीं हुई और दूसरा यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी हो गई।
+मानवजीवन में दो और दो चार का नियम सदा लागू होता है। उसमें कभी दो और दो पांच हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर टूट जाती है।
+तपाया और जलाया जाता हुआ लौहपिण्ड दूसरे से जुड़ जाता है, वैसे ही दुख से तपते मन आपस में निकट आकर जुड़ जाते हैं।
+चाहे राजा हो या किसान वह सबसे ज्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है ।
+मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है ।
+आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है ।
+मानव प्रकृति में सबसे गहरा नियम प्रशंसा प्राप्त करने की लालसा है ।
+अगर किसी युवती के दोष जानने हों तो उसकी सखियों में उसकी प्रसंसा करो ।
+चापलूसी करना सरल है प्रशंसा करना कठिन ।
+इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त होता है।
+दान भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं । जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति नाश होती है ।
+सर्वे गुणाः कांचनं आश्रयन्ते । सभी गुण सोने का ही सहारा लेते हैं )
+संसार के व्यवहारों के लिये धन ही सार-वस्तु है । अत: मनुष्य को उसकी प्राप्ति के लिये युक्ति एवं साहस के साथ यत्न करना चाहिये ।
+मनुष्य मनुष्य का दास नही होता हे राजा वह् तो धन का दास् होता है ।
+गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं ।
+तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी ।
+राष्ट्रों का कल्याण जितना मुक्त व्यापार पर निर्भर है उतना ही मैत्री इमानदारी और बराबरी पर ।
+व्यापारिक युद्ध विश्व युद्ध शीत युद्ध इस बात की लडाई कि “गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये ।
+इससे कोई फ़र्क नहीं पडता कि कौन शाशन करता है क्योंकि सदा व्यापारी ही शाशन चलाते हैं ।
+आज का व्यापार सायकिल चलाने जैसा है या तो आप चलाते रहिये या गिर जाइये ।
+कार्पोरेशन व्यक्तिगत उत्तर्दायित्व के बिना ही लाभ कमाने की एक चालाकी से भरी युक्ति ।
+अपराधी, दस्यु प्रवृति वाला एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास कारपोरेशन शुरू करने के लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है ।
+निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मंत्र प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र योजना परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है प्रभाव राजोचित शक्ति तेज से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह उद्यम से कार्य सिद्ध होता है ।
+यथार्थ को स्वीकार न करनें में ही व्यावहारिक राजनीति निहित है ।
+विपत्तियों को खोजने उसे सर्वत्र प्राप्त करने गलत निदान करने और अनुपयुक्त चिकित्सा करने की कला ही राजनीति है ।
+मानव स्वभाव का ज्ञान ही राजनीति-शिक्षा का आदि और अन्त है ।
+लोकतन्त्र जनता की जनता द्वारा जनता के लिये सरकार होती है ।
+लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है ।
+शान्तिपूर्वक सरकार बदल देने की शक्ति प्रजातंत्र की आवश्यक शर्त है । प्रजातन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है बल्कि नेताओं को बिना उनकी हत्या किये बदल देने में है ।
+अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है।
+बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन।
+( कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो )
+अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता ।
+थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी महान कार्य नहीं किया जा सकता ।
+लोकतंत्र जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर ।
+सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं । अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें ।
+( न राज्य था और ना राजा था न दण्ड था और न दण्ड देने वाला ।
+स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी । )
+मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है।
+करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता ।
+वह क्षण जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है ऐसे नर-पशु को नमस्कार ।
+समय को व्यर्थ नष्ट मत करो क्योंकि यही वह चीज है जिससे जीवन का निर्माण हुआ है ।
+किसी भी काम के लिये आपको कभी भी समय नहीं मिलेगा । यदि आप समय पाना चाहते हैं तो आपको इसे बनाना पडेगा ।
+( क्षण-क्षण का उपयोग करके विद्या का और कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये )
+हमें यह विचार त्याग देना चाहिये कि हमें नियमित रहना चाहिये । यह विचार आपके असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है ।
+दीर्घसूत्री विनश्यति । काम को बहुत समय तक खीचने वाले का नाश हो जाता है )
+बाजार में आपाधापी मतलब अवसर ।
+संकट के समय ही नायक बनाये जाते हैं ।
+आशावादी को हर खतरे में अवसर दीखता है और निराशावादी को हर अवसर मे खतरा ।
+अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है ।
+हमारा सामना हरदम बडे-बडे अवसरों से होता रहता है जो चालाकी पूर्वक असाध्य समस्याओं के वेष में (छिपे) रहते हैं ।
+उचित रूप से देंखे तो कुछ भी इतिहास नही है सब कुछ) मात्र आत्मकथा है ।
+इतिहास, शक्तिशाली लोगों द्वारा, उनके धन और बल की रक्षा के लिये लिखा जाता है ।
+जो इतिहास को याद नहीं रखते उनको इतिहास को दुहराने का दण्ड मिलता है ।
+ज्ञानी लोगों का कहना है कि जो भी भविष्य को देखने की इच्छा हो भूत (इतिहास) से सीख ले ।
+— मकियावेली ” द प्रिन्स ” में
+इतिहास स्वयं को दोहराता है इतिहास के बारे में यही एक बुरी बात है ।
+संक्षेप में मानव इतिहास सुविचारों का इतिहास है ।
+सभ्यता की कहानी सार रूप में इंजिनीयरिंग की कहानी है वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया ।
+इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है ।
+( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है )
+जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है?
+विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ?
+खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले ।
+( पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो दुख सह लेता है (लेकिन पराक्रम नह�� दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता )
+(जंगल के जानवर सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार । पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है )
+जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है।
+आत्म-वृक्ष के फूल और फल शक्ति को ही समझना चाहिए।
+अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते।
+आत्मविस्वास वीरता का सार है ।
+आत्मविश्वास सफलता का मुख्य रहस्य है ।
+आत्मविश्वा बढाने की यह रीति है कि वह का करो जिसको करते हुए डरते हो ।
+हास्यवृति आत्मविश्वास (आने) से आती है ।
+मुस्कराओ क्योकि हर किसी में आत्म्विश्वास की कमी होती है और किसी दूसरी चीज की अपेक्षा मुस्कान उनको ज्यादा आश्वस्त करती है ।
+वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नही देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है ।
+भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी । उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है । जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी । प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है ।
+प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है ।
+सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है ।
+संचार गणना कम्प्यूटिंग और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं ।
+ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है । जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं उतना ही अधिक यह बढता है । इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग ।
+एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक नहीं और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं ।
+आर्थिक समस्याएँ सदा ही केवल परिवर्तन के परिणाम स्वरूप पैदा होती हैं ।
+परिवर्तन विज्ञानसम्मत है । परिवर्तन को अस्वीकार नहीं किया जा सकता जबकि प्रगति राय और विवाद का विषय है ।
+परिवर्तन का मानव के मस्तिष्क पर अच्छा-खासा मानसिक प्रभाव पडता है । डरपोक लोगों के लिये यह धमकी भरा होता है क्योंकि उनको लगता है कि स्थिति और बिगड सकती है आशावान लोगों के लिये ��ह उत्साहपूर्ण होता है क्योंकि स्थिति और बेहतर हो सकती है और विश्वास-सम्पन्न लोगों के लिये यह प्रेरणादायक होता है क्योंकि स्थिति को बेहतर बनाने की चुनौती विद्यमान होती है ।
+नयी व्यवस्था लागू करने के लिये नेतृत्व करने से अधिक कठिन कार्य नहीं है ।
+कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो कोई ऐसा मूल (जड़) नही है जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।
+जीवन में हमारी सबसे बडी जरूरत कोई ऐसा व्यक्ति है जो हमें वह कार्य करने के योग्य बना दे जिसे हम कर सकते हैं ।
+नेताओं का मुख्य काम अपने आस-पास नेता तैयार करना है ।
+अपने अन्दर योग्यता का होना अच्छी बात है लेकिन दूसरों में योग्यता खोज पाना नेता की असली परीक्षा है ।
+अपर्याप्त तथ्यों के आधार पर ही अर्थपूर्ण सामान्यीकरण करने की कला प्रबन्धन की कला है ।
+किसी बालक की क्षमताओं को नष्ट करना हो तो उसे रटने में लगा दो ।
+केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं ।
+व्यावहारिक जीवन की उलझनों का समाधा किन्हीं नयी कल्पनाओं में मिलेगा उन्हें ढूढो ।
+कल्पना ही इस संसार पर शासन करती है ।
+कल्पना ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है । ज्ञान तो सीमित है कल्पना संसार को घेर लेती है ।
+मौन निद्रा के सदृश है । यह ज्ञान में नयी स्फूर्ति पैदा करता है ।
+मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक वाक-शक्ति होती है ।
+( किसी बात पर मौन रह जाना उसे स्वीकार कर लेने का लक्षण है । )
+उपाय सुविचार सुविचारों की शक्ति मंत्र उपाय-महिमा आइडिया
+( जो कार्य उपाय से किया जा सकता है वह पराक्रम से नही किया जा सकता । )
+विचारों की शक्ति अकूत है । विचार ही संसार पर शाशन करते है मनुष्य नहीं ।
+लोगों के बारे मे कम जिज्ञासु रहिये और विचारों के सम्बन्ध में ज्यादा ।
+आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है ।
+कार्य उद्यम से ही सिद्ध होते हैं, मनोरथ मात्र से नहीं।
+जीवन की सबसे बडी क्षति मृत्यु नही है । सबसे बडी क्षति तो वह है जो हमारे अन्दर ही मर जाती है ।
+आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है ।
+जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये । निर्भीकता के अन्दर मेधा बुद्धि शक्ति और जादू होते हैं ।
+पराक्रम दिखाने का समय आने पर जो पीछे हट जाता है उस तेजहीन का पुरुषार्थ ��िद्ध नही होता ।
+हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है ।
+सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है । जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है ।
+सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप चौबीस घण्टे मे कितने प्रयोग कर पाते है ।
+यदि सारी आपत्तियों का निस्तारण करने लगें तो कोई काम कभी भी आरम्भ ही नही हो सकता ।
+एक समय मे केवल एक काम करना बहुत सारे काम करने का सबसे सरल तरीका है ।
+उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं ।
+मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है ।
+जिस काम को बिल्कुल किया ही नहीं जाना चाहिये उस काम को बहुत दक्षता के साथ करने के समान कोई दूसरा ब्यर्थ काम नहीं है ।
+स्वतंत्र चिन्तन चिन्तन की स्वतंत्रता
+मानवी चेतना का परावलंबन अन्तःस्फुरणा का मूर्छाग्रस्त होना आज की सबसे बडी समस्या है । लोग स्वतन्त्र चिन्तन करके परमार्थ का प्रकाशन नहीं करते बल्कि दूसरों का उटपटांग अनुकरण करके ही रुक जाते हैं ।
+बिना वैचारिक-स्वतन्त्रता के बुद्धि जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती और बोलने की स्वतन्त्रता के बिना जनता की स्वतन्त्रता नहीं हो सकती।
+प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं ।
+जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है ।
+(राजा अपने देश में पूजा जाता है विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है )
+( विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं कौवे जैसी दृष्टि बकुले जैसा ध्यान कुत्ते जैसी निद्रा अल्पहारी और गृह्त्यागी । )
+( बिना अभ्यास के विद्या बहुत कठिन काम है )
+ज्ञान प्राप्ति से अधिक महत्वपूर्ण है अलग तरह से बूझना या सोचना ।
+प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं ।
+खाली दिमाग को खुला दिमाग बना देना ही शिक्षा का उद्देश्य है ।
+अट्ठारह वर्ष की उम्र तक इकट्ठा किये गये पूर्वाग्रहों का नाम ही सामान्य बुद्धि है ।
+कोई भी चीज जो सोचने की शक्ति को बढाती है शिक्षा है ।
+संसार जितना ही तेजी से बदलता है अनुभव उतना ही कम प्रासंगिक होता जाता है । वो जमाना गया जब आप अनुभव से सीखते थे अब आपको भविष्य से सीखना पडेगा ।
+गिने-चुने लोग ही वर्ष मे दो या तीन से अधिक बार सोचते हैं मैने हप्ते में एक या दो बार सोचकर अन्तर्राष्ट्रीय छवि बना ली है ।
+पठन तो मस्तिष्क को केवल ज्ञान की सामग्री उपलब्ध कराता है ये तो चिन्तन है जो पठित चीज को अपना बना देती है ।
+एक���ग्र-चिन्तन वांछित फल देता है ।
+शब्द विचारों के वाहक हैं ।
+दिमाग पैराशूट के समान है वह तभी कार्य करता है जब खुला हो ।
+अगर हमारी सभ्यता को जीवित रखना है तो हमे महान लोगों के विचारों के आगे झुकने की आदत छोडनी पडेगी । बडे लोग बडी गलतियाँ करते हैं ।
+शिक्षा प्राप्त करने के तीन आधार-स्तंभ हैं अधिक निरीक्षण करना अधिक अनुभव करना और अधिक अध्ययन करना ।
+शिक्षा राष्ट्र की सस्ती सुरक्षा है ।
+अपनी अज्ञानता का अहसास होना ज्ञान की दिशा में एक बहुत बडा कदम है ।
+विवेक बुद्धि की पूर्णता है । जीवन के सभी कर्तव्यों में वह हमारा पथ-प्रदर्शक है ।
+विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान सतत प्रसन्नता है ।
+चिन्ता एक प्रकार की कायरता है और वह जीवन को विषमय बना देती है ।
+जो आत्म-शक्ति का अनुसरण करके संघर्ष करता है उसे महान् विजय अवश्य मिलती है।
+भारत हमारी संपूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है अरबॊं के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है । अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है ।
+हम भारतीयों के बहुत ऋणी हैं जिन्होने हमे गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई भी मूल्यवान वैज्ञानिक खोज सम्भव नही होती ।
+भारत मानव जाति का पलना है मानव-भाषा की जन्मस्थली है इतिहास की जननी है पौराणिक कथाओं की दादी है और प्रथाओं की परदादी है । मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है ।
+यदि इस धरातल पर कोई स्थान है जहाँ पर जीवित मानव के सभी स्वप्नों को तब से घर मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था तो वह भारत ही है ।
+भारत अपनी सीमा के पार एक भी सैनिक भेजे बिना चीन को जीत लिया और लगभग बीस शताब्दियों तक उस पर सांस्कृतिक रूप से राज किया ।
+— हू शिह अमेरिका में चीन के भूतपूर्व राजदूत
+( भारत की प्रतिष्ठा दो चीजों में निहित है संस्कृति और संस्कृत । )
+इसकी पुरातनता जो भी हो संस्कृत भाषा एक आश्चर्यजनक संरचना वाली भाषा है । यह ग्रीक से अधिक परिपूर्ण है और लैटिन से अधिक शब्दबहुल है तथा दोनों से अधिक सूक्ष्मता पूर्वक दोषरहित की हुई है ।
+सभ्यता के इतिहास में पुनर्जागरण के बाद अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में संस्कृत साहित्य की खोज से बढकर कोई विश्वव्यापी महत्व की दूसरी घटना नहीं घटी है ।
+कम्प्यूटर को प्रोग्राम करने के लिये संस्कृत सबसे सुविधाजनक भाषा है ।
+यह लेख इस बात को प्रतिपादित करता है कि एक प्राकृतिक भाषा संस्कृत एक कृत्रिम भाषा के रूप में भी कार्य कर सकती है और कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में किया गया अधिकाश काम हजारों वर्ष पुराने पहिये संस्कृत को खोजने जैसा ही रहा है ।
+— रिक् ब्रिग्स नासा वैज्ञानिक १९८५ में )
+हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है ।
+देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है ।
+मनव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है ।
+उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी ।
+आने वाली पीढियों को विश्वास करने में कठिनाई होगी कि उनके जैसा कोई हाड-मांस से बना मनुष्य इस धरा पर चला था ।
+मैं और दूसरे लोग क्रान्तिकारी होंगे, लेकिन हम सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से महात्मा गाँधी के शिष्य हैं इससे न कम न ज्यादा ।
+उनके अधिकांश सिद्धान्त सार्वत्रिक-उपयोग वाले और शाश्वत-सत्यता वाले हैं ।
+और फिर गाँधी नामक नक्षत्र का उदय हुआ । उसने दिखाया कि अहिंसा का सिद्धान्त सम्भव है ।
+जब तक स्वतंत्र लोग तथा स्वतंत्रता और न्याय के चाहने वाले रहेंगे, तब तक महात्मा गाँधी को सदा याद किया जायेगा ।
+मेरे हृदय मैं महात्मा गाँधी के लिये अपार प्रशंसा और सम्मान है । वह एक महान व्यक्ति थे और उनको मानव-प्रकृति का गहन ज्ञान था ।
+धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है ।
+लक्ष्मी कमल पर रहती हैं शिव हिमालय पर रहते हैं ।
+विष्णु क्षीरसागर में रहते हैं माना जाता है कि खटमल के डर से ॥
+उदाहरण वह पाठ है जिसे हर कोई पढ सकता है ।
+हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु ।
+हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है ।
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+विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है ।
+संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति ।
+सही मायने में बुद्धिपूर्ण ��िचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं । लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें ।
+किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा।
+बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है।
+— मैं अक्सर खुद को उदृत करता हुँ। इससे मेरे भाषण मसालेदार हो जाते हैं।
+सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती।
+( जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है । )
+( बहुत प्रलाप करने से क्या लभ है इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता )
+ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में हम वे अक्षर सीखते हैं जिनसे यह संसार रूपी महान पुस्तक लिखी गयी है ।
+गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी ।
+काफी हद तक गणित का संबन्ध (केवल) सूत्रों और समीकरणों से ही नहीं है । इसका सम्बन्ध सी.डी से कैट-स्कैन से पार्किंग-मीटरों से राष्ट्रपति-चुनावों से और कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है । गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिये है ताकि हम उन समस्याओं को हल कर सकें जो अर्थपूर्ण हैं ।
+गणित एक भाषा है ।
+यह असंभव है कि गति के गणितीय सिद्धान्त के बिना हम वृहस्पति पर राकेट भेज पाते ।
+विज्ञान की तीन विधियाँ हैं सिद्धान्त प्रयोग और सिमुलेशन ।
+विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ गलत हैं यह पूरी तरह ठीक है । ये गलत परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं ।
+हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते । अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं ।
+पर्याप्त रूप से विकसित किसी भी तकनीकी और जादू में अन्तर नहीं किया जा सकता ।
+सभ्यता की कहानी सार रूप में इंजिनीयरिंग की कहानी है वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया ।
+इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है ।
+वैज्ञानिक इस संसार का जैसे है उसी रूप में अध्ययन करते हैं । इंजिनीयर वह संसार बनाते है�� जो कभी था ही नहीं ।
+मशीनीकरण करने के लिये यह जरूरी है कि लोग भी मशीन की तरह सोचें ।
+इंजिनीररिंग संख्याओं मे की जाती है । संख्याओं के बिना विश्लेषण मात्र राय है ।
+जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आप का ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक है ।
+आवश्यकता डिजाइन का आधार है । किसी चीज को जरूरत से अल्पमात्र भी बेहतर डिजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है ।
+तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है । हम तकनीकी रूप से विकास नही कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है ।
+इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता है।
+-– टिम बर्नर्स ली (इंटरनेट के सृजक)
+कम्प्यूटर कभी भी कमेटियों का विकल्प नहीं बन सकते. चूंकि कमेटियाँ ही कम्प्यूटर खरीदने का प्रस्ताव स्वीकृत करती हैं.
+कोई शाम वर्ल्ड वाइड वेब पर बिताना ऐसा ही है जैसा कि आप दो घंटे से कुरकुरे खा रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु आपको पोषण तो मिला ही नहीं.
+कला एक प्रकार का एक नशा है,जिससे जीवन की कठोरताओं से विश्राम मिलता है।
+भाषा हमारे सोचने के तरीके को स्वरूप प्रदान करती है और निर्धारित करती है कि हम क्या-क्या सोच सकते हैं ।
+आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना ।
+लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है ।
+शिकायत करने की अपनी गहरी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य ने भाषा ईजाद की है।
+साहित्य समाज् का दर्पण होता है ।
+( साहित्य संगीत और कला से हीन पुरूष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं । )
+हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है समान लोगों के साथ रहनए से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है ।
+को लाभो गुणिसंगमः लाभ क्या है गुणियों का साथ )
+संहतिः कार्यसाधिका । एकता से कार्य सिद्ध होते हैं )
+दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं बाकी सब काम की तलाश करते हैं ।
+मानसिक शक्ति का सबसे बडा स्रोत है दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान करना ।
+अच्छे मित्रों को पाना कठिन वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है।
+दुनिया की सबसे बडी खोज इन्नोवेशन का नाम है संस्था ।
+आधुनिक समाज के विकास का इतिहास ही विशेष लक्ष्य वाली संस्थाओं के विकास का इतिहास भी है ।
+कोई समाज उतना ही स्वस्थ होता है जितनी उसकी संस्थाएँ यदि संस्थायें विकास कर रही हैं तो समाज भी विकास करता है, यदि वे क्षीण हो रही हैं तो समाज भी क्षीण होता है ।
+उन्नीसवीं शताब्दी की औद्योगिक-क्रान्ति संस्थाओं की क्रान्ति थी ।
+बाँटो और राज करो एक अच्छी कहावत है लेकिन एक होकर आगे बढो इससे भी अच्छी कहावत है ।
+व्यक्तियों से राष्ट्र नही बनता संस्थाओं से राष्ट्र बनता है ।
+साहसे खलु श्री वसति । साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं )
+इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही बदला है ।
+जरूरी नही है कि कोई साहस लेकर जन्मा हो लेकिन हरेक शक्ति लेकर जन्मता है ।
+बिना साहस के हम कोई दूसरा गुण भी अनवरत धारण नहीं कर सकते । हम कृपालु, दयालु, सत्यवादी, उदार या इमानदार नहीं बन सकते ।
+बिना निराश हुए ही हार को सह लेना पृथ्वी पर साहस की सबसे बडी परीक्षा है ।
+जिस काम को करने में डर लगता है उसको करने का नाम ही साहस है ।
+मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।
+किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो।
+वस्तुतः अच्छा समाज वह नहीं है जिसके अधिकांश सदस्य अच्छे हैं बल्कि वह है जो अपने बुरे सदस्यों को प्रेम के साथ अच्छा बनाने में सतत् प्रयत्नशील है।
+शोक मनाने के लिये नैतिक साहस चाहिए और आनंद मनाने के लिए धार्मिक साहस। अनिष्ट की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में आकाश-पाताल का अंत�� है। पहला गर्वीला साहस है, दूसरा विनीत साहस।
+किसी दूसरे को अपना स्वप्न बताने के लिए लोहे का ज़िगर चाहिए होता है |
+हर व्यक्ति में प्रतिभा होती है। दरअसल उस प्रतिभा को निखारने के लिए गहरे अंधेरे रास्ते में जाने का साहस कम लोगों में ही होता है।
+जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते।
+‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं।
+‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की।
+डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है |
+गलती करने में कोई गलती नहीं है ।
+गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है ।
+गलती करने का सीधा सा मतलब है कि आप तेजी से सीख रहे हैं ।
+सीधे तौर पर अपनी गलतियों को ही हम अनुभव का नाम दे देते हैं ।
+अपनी गलती स्वीकार कर लेने में लज्जा की कोई बात नहीं है । इससे दूसरे शब्दों में यही प्रमाणित होता है कि कल की अपेक्षा आज आप अधिक समझदार हैं ।
+दोष निकालना सुगम है उसे ठीक करना कठिन ।
+त्रुटियों के बीच में से ही सम्पूर्ण सत्य को ढूंढा जा सकता है |
+असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया
+जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है ।
+असफलता आपको महान कार्यों के लिये तैयार करने की प्रकृति की योजना है ।
+सफलता की सभी कथायें बडी-बडी असफलताओं की कहानी हैं ।
+असफलता फिर से अधिक सूझ-बूझ के साथ कार्य आरम्भ करने का एक मौका मात्र है ।
+दो ही प्रकार के व्यक्ति वस्तुतः जीवन में असफल होते है एक तो वे जो सोचते हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर देते हैं पर सोचते कभी नहीं।
+दूसरों को असफल करने के प्रयत्न ही में हमें असफल बनाते हैं।
+किसी दूसरे द्वारा रचित सफलता की परिभाषा को अपना मत समझो ।
+जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं ��� पहले वे जो सोचते हैं पर करते नहीं दूसरे वे जो करते हैं पर सोचते नहीं ।
+प्रत्येक व्यक्ति को सफलता प्रिय है लेकिन सफल व्यक्तियों से सभी लोग घृणा करते हैं ।
+असफल होने पर, आप को निराशा का सामना करना पड़ सकता है। परन्तु प्रयास छोड़ देने पर आप की असफलता सुनिश्चित है।
+मैं सफलता के लिए इंतजार नहीं कर सकता था, अतएव उसके बगैर ही मैं आगे बढ़ चला.
+संसार में सब से अधिक दुःखी प्राणी कौन है बेचारी मछलियां क्योंकि दुःख के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण मात्र दुःख भी पर्वत हो जाता है।
+संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के शुभेच्छु हुआ करते हैं। विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं।
+व्याधि शत्रु से भी अधिक हानिकारक होती है।
+विपत्ति में पड़े हुए का साथ बिरला ही कोई देता है।
+मनुष्य के जीवन में दो तरह के दुःख होते हैं एक यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी नहीं हुई और दूसरा यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी हो गई।
+मानवजीवन में दो और दो चार का नियम सदा लागू होता है। उसमें कभी दो और दो पांच हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर टूट जाती है।
+तपाया और जलाया जाता हुआ लौहपिण्ड दूसरे से जुड़ जाता है, वैसे ही दुख से तपते मन आपस में निकट आकर जुड़ जाते हैं।
+चाहे राजा हो या किसान वह सबसे ज्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है ।
+मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है ।
+आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है ।
+मानव प्रकृति में सबसे गहरा नियम प्रशंसा प्राप्त करने की लालसा है ।
+अगर किसी युवती के दोष जानने हों तो उसकी सखियों में उसकी प्रसंसा करो ।
+चापलूसी करना सरल है प्रशंसा करना कठिन ।
+हमारे साथ प्रायः समस्या यही होती है कि हम झूठी प्रशंसा के द्वारा बरबाद हो जाना तो पसंद करते हैं, परंतु वास्तविक आलोचना के द्वारा संभल जाना नहीं |
+इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त होता है��
+अपमानपूर्वक अमृत पीने से तो अच्छा है सम्मानपूर्वक विषपान |
+दान भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं । जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति नाश होती है ।
+सर्वे गुणाः कांचनं आश्रयन्ते । सभी गुण सोने का ही सहारा लेते हैं )
+संसार के व्यवहारों के लिये धन ही सार-वस्तु है । अत: मनुष्य को उसकी प्राप्ति के लिये युक्ति एवं साहस के साथ यत्न करना चाहिये ।
+मनुष्य मनुष्य का दास नही होता हे राजा वह् तो धन का दास् होता है ।
+( क्षण-ख्षण करके विद्या और कण-कण करके धन का अर्जन करना चाहिये ।
+गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं ।
+गरीबों के बहुत से बच्चे होते हैं अमीरों के सम्बन्धी.
+पैसे की कमी समस्त बुराईयों की जड़ है।
+तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी ।
+राष्ट्रों का कल्याण जितना मुक्त व्यापार पर निर्भर है उतना ही मैत्री इमानदारी और बराबरी पर ।
+व्यापारिक युद्ध विश्व युद्ध शीत युद्ध इस बात की लडाई कि “गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये ।
+इससे कोई फ़र्क नहीं पडता कि कौन शाशन करता है क्योंकि सदा व्यापारी ही शाशन चलाते हैं ।
+आज का व्यापार सायकिल चलाने जैसा है या तो आप चलाते रहिये या गिर जाइये ।
+कार्पोरेशन व्यक्तिगत उत्तर्दायित्व के बिना ही लाभ कमाने की एक चालाकी से भरी युक्ति ।
+अपराधी, दस्यु प्रवृति वाला एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास कारपोरेशन शुरू करने के लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है ।
+बीज आधारभूत कारण है पेड उसका प्रगति परिणाम । विचारों की प्रगतिशीलता और उमंग भरी साहसिकता उस बीज के समान हैं ।
+विकास की कोई सीमा नही होती, क्योंकि मनुष्य की मेधा, कल्पनाशीलता और कौतूहूल की भी कोई सीमा नही है।
+निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मंत्र प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र योजना परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है प्रभाव राजोचित शक्ति तेज से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह उद्यम से कार्य सिद्ध होता है ।
+यथार्थ को स्वीकार न करनें में ही व्यावहारिक राजनीति निहित है ।
+विपत्तियों को खोजने उसे सर्वत्र प्राप्त करने गलत निदान करने और अनुपयुक्त चिकित्सा करने की कला ही राजनीति है ।
+मानव स्वभाव का ज्ञान ही राजनीति-शिक्षा का आदि और अन्त है ��
+राजनीति में किसी भी बात का तब तक विश्वास मत कीजिए जब तक कि उसका खंडन आधिकारिक रूप से न कर दिया गया हो.
+सफल क्रांतिकारी राजनीतिज्ञ होता है असफल अपराधी.
+लोकतन्त्र जनता की जनता द्वारा जनता के लिये सरकार होती है ।
+लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है ।
+शान्तिपूर्वक सरकार बदल देने की शक्ति प्रजातंत्र की आवश्यक शर्त है । प्रजातन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है बल्कि नेताओं को बिना उनकी हत्या किये बदल देने में है ।
+अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है।
+बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन।
+अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है।
+बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन।
+( कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो )
+अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता ।
+थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी महान कार्य नहीं किया जा सकता ।
+लोकतंत्र जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर ।
+सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं । अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें ।
+( न राज्य था और ना राजा था न दण्ड था और न दण्ड देने वाला ।
+स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी । )
+मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है।
+करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता ।
+वह क्षण जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है ऐसे नर-पशु को नमस्कार ।
+समय को व्यर्थ नष्ट मत करो क्योंकि यही वह चीज है जिससे जीवन का निर्माण हुआ है ।
+किसी भी काम के लिये आपको कभी भी समय नहीं मिलेगा । यदि आप समय पाना चाहते हैं तो आपको इसे बनाना पडेगा ।
+( क्षण-क्षण का उपयोग कर���े विद्या का और कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये )
+हमें यह विचार त्याग देना चाहिये कि हमें नियमित रहना चाहिये । यह विचार आपके असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है ।
+दीर्घसूत्री विनश्यति । काम को बहुत समय तक खीचने वाले का नाश हो जाता है )
+समयनिष्ठ होने पर समस्या यह हो जाती है कि इसका आनंद अकसर आपको अकेले लेना पड़ता है।
+बाजार में आपाधापी मतलब अवसर ।
+संकट के समय ही नायक बनाये जाते हैं ।
+आशावादी को हर खतरे में अवसर दीखता है और निराशावादी को हर अवसर मे खतरा ।
+अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है ।
+हमारा सामना हरदम बडे-बडे अवसरों से होता रहता है जो चालाकी पूर्वक असाध्य समस्याओं के वेष में (छिपे) रहते हैं ।
+कभी कोयल की कूक भी नहीं भाती और कभी (वर्षा ऋतु में) मेंढक की टर्र टर्र भी भली प्रतीत होती है |
+उचित रूप से देंखे तो कुछ भी इतिहास नही है सब कुछ) मात्र आत्मकथा है ।
+इतिहास, शक्तिशाली लोगों द्वारा, उनके धन और बल की रक्षा के लिये लिखा जाता है ।
+इतिहास असत्यों पर एकत्र की गयी सहमति है।
+जो इतिहास को याद नहीं रखते उनको इतिहास को दुहराने का दण्ड मिलता है ।
+ज्ञानी लोगों का कहना है कि जो भी भविष्य को देखने की इच्छा हो भूत (इतिहास) से सीख ले ।
+— मकियावेली ” द प्रिन्स ” में
+इतिहास स्वयं को दोहराता है इतिहास के बारे में यही एक बुरी बात है ।
+संक्षेप में मानव इतिहास सुविचारों का इतिहास है ।
+सभ्यता की कहानी सार रूप में इंजिनीयरिंग की कहानी है वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया ।
+इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है ।
+( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है
+जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है?
+विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है
+खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले ।
+( पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो दुख सह लेता है (लेकिन पराक्रम नही दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता
+(जंगल के जानवर सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार । पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है
+जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है।
+आत्म-वृक्ष के फूल और फल शक्ति को ही समझना चाहिए।
+अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते।
+सर्वविनाश ही सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है।
+( हे कृष्ण बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी जमीन नहीं दूँगा ।
+पहले ही बिना साम, दान दण्ड का सहारा लिये ही युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है ।
+यदि शांति पाना चाहते हो तो लोकप्रियता से बचो।
+शांति प्रगति के लिये आवश्यक है।
+आत्मविश्वास वीरता का सार है ।
+आत्मविश्वास सफलता का मुख्य रहस्य है ।
+आत्मविश्वा बढाने की यह रीति है कि वह काम करो जिसको करते हुए डरते हो ।
+हास्यवृति आत्मविश्वास (आने) से आती है ।
+मुस्कराओ क्योकि हर किसी में आत्म्विश्वास की कमी होती है और किसी दूसरी चीज की अपेक्षा मुस्कान उनको ज्यादा आश्वस्त करती है ।
+वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नही देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है ।
+भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी । उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है । जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी । प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है ।
+प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है ।
+सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है ।
+संचार गणना कम्प्यूटिंग और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं ।
+ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है । जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं उतना ही अधिक यह बढता है । इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग ।
+एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक नहीं और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं ।
+आर्थिक समस्याएँ सदा ही केवल परिवर्तन के परिणाम स्वरूप पैदा होती हैं ।
+परिवर्तन विज्ञानसम्मत है । परिवर्तन को अस्वीकार नहीं किया जा सकता जबकि प्रगति राय और विवाद का विषय है ।
+परिवर्तन का मानव के मस्तिष्क पर अच्छा-खासा मानसिक प्रभाव पडता है । डरपोक लोगों के लिये यह धमकी भरा होता है क्योंकि उनको लगता है कि स्थिति और बिगड सकती है आशावान लोग��ं के लिये यह उत्साहपूर्ण होता है क्योंकि स्थिति और बेहतर हो सकती है और विश्वास-सम्पन्न लोगों के लिये यह प्रेरणादायक होता है क्योंकि स्थिति को बेहतर बनाने की चुनौती विद्यमान होती है ।
+नयी व्यवस्था लागू करने के लिये नेतृत्व करने से अधिक कठिन कार्य नहीं है ।
+यदि किसी चीज को अच्छी तरह समझना चाहते हो तो इसे बदलने की कोशिश करो ।
+आप परिवर्तन का प्रबन्ध नहीं कर सकते केवल उसके आगे रह सकते हैं ।
+कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो कोई ऐसा मूल (जड़) नही है जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।
+जीवन में हमारी सबसे बडी जरूरत कोई ऐसा व्यक्ति है जो हमें वह कार्य करने के योग्य बना दे जिसे हम कर सकते हैं ।
+नेताओं का मुख्य काम अपने आस-पास नेता तैयार करना है ।
+अपने अन्दर योग्यता का होना अच्छी बात है लेकिन दूसरों में योग्यता खोज पाना नेता की असली परीक्षा है ।
+अपर्याप्त तथ्यों के आधार पर ही अर्थपूर्ण सामान्यीकरण करने की कला प्रबन्धन की कला है ।
+किसी बालक की क्षमताओं को नष्ट करना हो तो उसे रटने में लगा दो ।
+केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं ।
+व्यावहारिक जीवन की उलझनों का समाधा किन्हीं नयी कल्पनाओं में मिलेगा उन्हें ढूढो ।
+कल्पना ही इस संसार पर शासन करती है ।
+कल्पना ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है । ज्ञान तो सीमित है कल्पना संसार को घेर लेती है ।
+( ध्यान ज्ञान से बढकर है )
+ज्ञान प्राप्ति का एक ही मार्ग है जिसका नाम है एकाग्रता । शिक्षा का सार है मन को एकाग्र करना तथ्यों का संग्रह करना नहीं ।
+तर्क आप को किसी एक बिन्दु “क” से दूसरे बिन्दु “ख” तक पहुँचा सकते हैं। लेकिन कल्पना आप को सर्वत्र ले जा सकती है।
+मौन निद्रा के सदृश है । यह ज्ञान में नयी स्फूर्ति पैदा करता है ।
+मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक वाक-शक्ति होती है ।
+( किसी बात पर मौन रह जाना उसे स्वीकार कर लेने का लक्षण है । )
+कभी आंसू भी सम्पूर्ण वक्तव्य होते हैं |
+उपाय सुविचार सुविचारों की शक्ति मंत्र उपाय-महिमा समस्या-समाधान आइडिया
+मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं विचार हैं ।
+( जो कार्य उपाय से किया जा सकता है वह पराक्रम से नही किया जा सकता । )
+विचारों की शक्ति अकूत है । विचार ही संसार पर शाशन करते है मनुष्य नहीं ।
+लोगों के बारे मे कम जिज्ञासु रहिये और विचारों के सम्बन्ध में ज्यादा ।
+गलतीयों से ही मनुष्य परिपक्व बनता है। उपमन्यु पंडित गिरीशनन्द शास्त्री(कुमाऊँ)
+आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है ।
+कार्य उद्यम से ही सिद्ध होते हैं मनोरथ मात्र से नहीं। सोये हुए शेर के मुख में मृग प्रवेश नहीं करते ।
+जीवन की सबसे बडी क्षति मृत्यु नही है । सबसे बडी क्षति तो वह है जो हमारे अन्दर ही मर जाती है ।
+आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है ।
+जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये । निर्भीकता के अन्दर मेधा बुद्धि शक्ति और जादू होते हैं ।
+पराक्रम दिखाने का समय आने पर जो पीछे हट जाता है उस तेजहीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता ।
+हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है ।
+सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है । जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है ।
+सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप चौबीस घण्टे मे कितने प्रयोग कर पाते है ।
+यदि सारी आपत्तियों का निस्तारण करने लगें तो कोई काम कभी भी आरम्भ ही नही हो सकता ।
+एक समय मे केवल एक काम करना बहुत सारे काम करने का सबसे सरल तरीका है ।
+उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं ।
+मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है ।
+जिस काम को बिल्कुल किया ही नहीं जाना चाहिये उस काम को बहुत दक्षता के साथ करने के समान कोई दूसरा ब्यर्थ काम नहीं है ।
+अंतर्दृष्टि के बिना ही काम करने से अधिक भयानक दूसरी चीज नहीं है ।
+संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया ।
+मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था – “भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी जिंदगी चैम्पियन की तरह जिओ” – मुहम्मद अली
+कठिन परिश्रम से भविष्य सुधरता है। आलस्य से वर्तमान |
+चींटी से परिश्रम करना सीखें |
+खोजना प्रयोग करना विकास करना खतरा उठाना नियम तोडना गलती करना और मजे करना श्रृजन है ।
+वही असम्भव को करने में सक्षम है जो व्यक्ति बे-सिर-पैर की चीजें (एब्सर्ड) करने की कोशिश करता है ।
+रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा ।
+यदि आप नृत्य कर रहे हों तो आप को ऐसा लगना चाहिए कि आप को देखने वाला कोई भी आस-पास मौजूद नहीं है। यदि आप किसी संगीत की प्रस्तुति कर रहे हों तो आप को ऐसा प्रतीत होना चाहिये कि आप की प्रस्तुत�� पर आप के सिवा अन्य किसी का भी ध्यान नहीं है । और यदि आप सचमुच में किसी से प्रेम कर बैठें हों तो आप में ऐसी अनुभूति होनी चाहिए कि आप पहले कभी भी भावनात्मक तौर पर आहत नहीं हुए हैं।
+विद्या सीखना शिक्षा ज्ञान बुद्धि प्रज्ञा विवेक प्रतिभा
+जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है ।
+(राजा अपने देश में पूजा जाता है विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है
+( विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं कौवे जैसी दृष्टि बकुले जैसा ध्यान कुत्ते जैसी निद्रा अल्पहारी और गृह्त्यागी ।
+( बिना अभ्यास के विद्या बहुत कठिन काम है )
+ज्ञान प्राप्ति से अधिक महत्वपूर्ण है अलग तरह से बूझना या सोचना ।
+प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं ।
+खाली दिमाग को खुला दिमाग बना देना ही शिक्षा का उद्देश्य है ।
+अट्ठारह वर्ष की उम्र तक इकट्ठा किये गये पूर्वाग्रहों का नाम ही सामान्य बुद्धि है ।
+कोई भी चीज जो सोचने की शक्ति को बढाती है शिक्षा है ।
+संसार जितना ही तेजी से बदलता है अनुभव उतना ही कम प्रासंगिक होता जाता है । वो जमाना गया जब आप अनुभव से सीखते थे अब आपको भविष्य से सीखना पडेगा ।
+गिने-चुने लोग ही वर्ष मे दो या तीन से अधिक बार सोचते हैं मैने हप्ते में एक या दो बार सोचकर अन्तर्राष्ट्रीय छवि बना ली है ।
+पठन तो मस्तिष्क को केवल ज्ञान की सामग्री उपलब्ध कराता है ये तो चिन्तन है जो पठित चीज को अपना बना देती है ।
+एकाग्र-चिन्तन वांछित फल देता है ।
+शब्द विचारों के वाहक हैं ।
+दिमाग पैराशूट के समान है वह तभी कार्य करता है जब खुला हो ।
+अगर हमारी सभ्यता को जीवित रखना है तो हमे महान लोगों के विचारों के आगे झुकने की आदत छोडनी पडेगी । बडे लोग बडी गलतियाँ करते हैं ।
+शिक्षा प्राप्त करने के तीन आधार-स्तंभ हैं अधिक निरीक्षण करना अधिक अनुभव करना और अधिक अध्ययन करना ।
+शिक्षा राष्ट्र की सस्ती सुरक्षा है ।
+अपनी अज्ञानता का अहसास होना ज्ञान की दिशा में एक बहुत बडा कदम है ।
+ज्ञान एक खजाना है लेकिन अभ्यास इसकी चाभी है।
+स्कूल को बन्द कर दो ।
+प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे समझदारी इमानदारी जिम्मेदारी और बहादुरी ।
+(जो सीखता है,सिखाने वाला और जो कोई शास्त्रों को पढ़ाता है, उन सभी को शास्त्रों का पाठक मात्र माना जाना चाहिए। जो अपने ज्ञान को क्रिया (कर्म) में लगाता है, वही सच्चे विद्वान हैं।
+बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बन्द करना ही अच्छा है।
+(खल मनुष्य की विद्या विवाद के लिये, धन अहंकार के लिये और शक्ति दूसरों को पीडा देने के लिये होती है। पर साधु (सज्जन व्यक्ति) का सभी विरुद्ध होता है। उनकी विद्या ज्ञान के लिये, धन दान के लिये और शक्ति दूसरों के रक्षण के लिये होती है।)
+विवेक बुद्धि की पूर्णता है । जीवन के सभी कर्तव्यों में वह हमारा पथ-प्रदर्शक है ।
+विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान सतत प्रसन्नता है ।
+ज्ञान भूत है विवेक भविष्य ।
+भविष्य का निर्माण करने वाला और प्रत्युत्पन्नमति हाजिर जबाब ये दोनो सुख भोगते हैं । “जैसा होना होगा होगा” ऐसा सोचने वाले का विनाश हो जाता है ।
+भविष्य के बारे में पूर्वकथन का सबसे अच्छा तरीका भविष्य का निर्माण करना है ।
+किसी भी व्यक्ति का अतीत जैसा भी हो भविष्य सदैव बेदाग होता है।
+अरूणोदय के पूर्व सदैव घनघोर अंधकार होता है।
+खुदा एक दरवाजा बन्द करने से पहले दूसरा खोल देता है, उसे प्रयत्न कर देखो |
+हर अच्छा काम पहले असंभव नजर आता है।
+चिन्ता एक प्रकार की कायरता है और वह जीवन को विषमय बना देती है ।
+जो आत्म-शक्ति का अनुसरण करके संघर्ष करता है उसे महान विजय अवश्य मिलती है।
+(वन के जीवों द्वारा सिंह का ना तो अभिषेक किया जाता है ना ही संस्कार तथापि अपने पराक्रम से अर्जित राज्य का स्वयं ही राजा बन जाता है)
+भारत हमारी संपूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है अरबॊं के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है । अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है ।
+हम भारतीयों के बहुत ऋणी हैं जिन्होने हमे गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई भी मूल्यवान वैज्ञानिक खोज सम्भव नही होती ।
+भारत मानव जाति का पलना है मानव-भाषा की जन्मस्थली है इतिहास की जननी है पौराणिक कथाओं की दादी है और प्रथाओं की परदादी है । मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है ।
+यदि इस धरातल पर कोई स्थान है जहाँ पर जीवित मानव के सभी स्वप्नों को तब से घर मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था तो वह भारत ही है ।
+भारत अपनी ���ीमा के पार एक भी सैनिक भेजे बिना चीन को जीत लिया और लगभग बीस शताब्दियों तक उस पर सांस्कृतिक रूप से राज किया ।
+— हू शिह अमेरिका में चीन के भूतपूर्व राजदूत
+भारतीयता हीनता से नहीं, गौरव के आनंद से प्रकट होगी और ये गौरव हमें भारत की संपूर्ण धरा पर लाना है ।
+जब तक भारत स्वयं और भारतीय स्वयं खुद को खुद होने का आंदोलन न पैदा कर दें हमारी वैचारिक स्वतंत्रता से हम बहुत दूर होंगे ।
+( भारत की प्रतिष्ठा दो चीजों में निहित है संस्कृति और संस्कृत । )
+इसकी पुरातनता जो भी हो संस्कृत भाषा एक आश्चर्यजनक संरचना वाली भाषा है । यह ग्रीक से अधिक परिपूर्ण है और लैटिन से अधिक शब्दबहुल है तथा दोनों से अधिक सूक्ष्मता पूर्वक दोषरहित की हुई है ।
+सभ्यता के इतिहास में पुनर्जागरण के बाद अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में संस्कृत साहित्य की खोज से बढकर कोई विश्वव्यापी महत्व की दूसरी घटना नहीं घटी है ।
+कम्प्यूटर को प्रोग्राम करने के लिये संस्कृत सबसे सुविधाजनक भाषा है ।
+यह लेख इस बात को प्रतिपादित करता है कि एक प्राकृतिक भाषा संस्कृत एक कृत्रिम भाषा के रूप में भी कार्य कर सकती है और कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में किया गया अधिकाश काम हजारों वर्ष पुराने पहिये संस्कृत को खोजने जैसा ही रहा है ।
+— रिक् ब्रिग्स नासा वैज्ञानिक १९८५ में )
+हिन्दी भाषा के गौरव का वर्णन अकल्पनीय है।जिस प्रकार महासागर में अनेक नदियाँ मिलती हैं और उसमें समाहित हो जाती हैं उसी प्रकार हिन्दी भाषा ने अनेक भाषाओं को अपने में आत्मसात कर लिया साथ ही उन्हें संरक्षण भी प्रदान किया।इस भाषा ने विश्व को श्रेष्ठतम व्यक्तित्व दिए। राजगोपाल सिंह बघेल
+हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है ।
+देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है ।
+मनव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है ।
+उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी ।
+आने वाली पीढियों को विश्वास करने में कठिनाई होगी कि उनके जैसा कोई हाड-मांस से बना मनुष्य इस धरा पर चला था ।
+मैं और दूसरे लोग क्रान्तिकारी होंगे, लेकिन हम सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से महात्मा गाँधी के शिष्य हैं इससे न कम न ज्यादा ।
+उनके अधिकांश सिद्धान्त सार्वत्रिक-उपयोग वाले और शाश्वत-सत्यता वाले हैं ।
+और फिर गाँधी नामक नक्षत्र का उदय हुआ । उसने दिखाया कि अहिंसा का सिद्धान्त सम्भव है ।
+जब तक स्वतंत्र लोग तथा स्वतंत्रता और न्याय के चाहने वाले रहेंगे, तब तक महात्मा गाँधी को सदा याद किया जायेगा ।
+मेरे हृदय मैं महात्मा गाँधी के लिये अपार प्रशंसा और सम्मान है । वह एक महान व्यक्ति थे और उनको मानव-प्रकृति का गहन ज्ञान था ।
+क्रोध यमराज है तॄष्णा (इच्छा) वैतरणी नदी के समान है । विद्या कामधेनु है और सन्तोष नन्दन वन है । )
+चिन्ता चिता के पास ले जाती है ।
+हमे सीमित मात्रा में निराशा को स्वीकार करना चाहिये लेकिन असीमित आशा को नहीं छोडना चाहिये ।
+हँसते हुए जो समय आप व्यतीत करते हैं, वह ईश्वर के साथ व्यतीत किया समय है।
+सम्पूर्णता (परफ़ेक्शन) के नाम पर घबराइए नहीं आप उसे कभी भी नहीं पा सकते |
+सम्पूर्णता की आकांक्षा एक पागल्पन है ।
+जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने वश में कर लेता है, वह दूसरों के क्रोध से (फलस्वरूप) स्वयमेव बच जाता है |
+जब क्रोध में हों तो दस बार सोच कर बोलिए ज्यादा क्रोध में हों तो हजार बार सोचकर.
+यदि आप जानना चाहते हैं कि ईश्वर रुपए-पैसे के बारे में क्या सोचता होगा, तो बस आप ऐसे लोगों को देखें, जिन्हें ईश्वर ने खूब दिया है।
+जो भी प्रतिभा आपके पास है उसका इस्तेमाल करें. जंगल में नीरवता होती यदि सबसे अच्छा गीत सुनाने वाली चिड़िया को ही चहचहाने की अनुमति होती.
+जन्म के बाद मृत्यु, उत्थान के बाद पतन, संयोग के बाद वियोग, संचय के बाद क्षय निश्चित है। ज्ञानी इन बातों का ज्ञान कर हर्ष और शोक के
+*धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है। डिजरायली
+*जिसके पास धैर्य है उसको उसका फल अवश्य मिलता है। फ्रैंकलिन
+*धीर गंभीर कभी उबाल नहीं खाते। चाणक्य
+*नीति निपुण निंदा करें या प्रशंसा करें, लक्ष्मी आए चाहे चली जाय, मृत्यु चाहे आज ही हो या एक युग के बाद परन्तु धीर मनुष्य न्यायमार्ग से एक पग भी विचलित नहीं होते। भर्तृहरि
+*वास्तव में वे ही मनुष्य धीर हैं जिनका मन विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में भी विकृत नहीं होता। कालिदास
+*धीरज सारे आनंदों और शक्तियों का मूल है। जॉन रस्किन
+(लक्ष्मी कमल पर रहती हैं शिव हिमालय पर रहते हैं । विष्णु क्षीरसागर में रहते हैं माना जाता है कि खटमल के डर से ॥)
+(हे वैद्यराज, यमराज के भाई, तुम्हे ��ेरा प्रणाम। यम सिर्फ प्राणों का हरण करता है पर आप तो प्राण और पैसा, दोनों का हरण करते हो।)(फर्जी डॉक्टर के लिए)
+(मनुष्य मटका फोडे,कपड़े फाड दे और गधे पर बैठ के सैर करे। किसी भी प्रकार से वह प्रसिद्ध हो जाए। अर्थात् लोग अपनी हसी उडाकर, मूर्खो की तरह पेश आकर प्रसिद्ध होने का प्रयास करते है।)
+चूंकि एक राजनीतिज्ञ कभी भी अपने कहे पर विश्वास नहीं करता, उसे आश्चर्य होता है जब दूसरे उस पर विश्वास करते हैं |
+जालिम का नामोनिशां मिट जाता है, पर जुल्म रह जाता है।
+पुरुष से नारी अधिक बुद्धिमती होती है, क्योंकि वह जानती कम है पर समझती अधिक है।
+इस संसार में दो तरह के लोग हैं – अच्छे और बुरे. अच्छे लोग अच्छी नींद लेते हैं और जो बुरे हैं वे जागते रह कर मज़े करते रहते हैं |
+अच्छा ही होगा यदि आप हमेशा सत्य बोलें, सिवाय इसके कि तब जब आप उच्च कोटि के झूठे हों |
+किसी व्यक्ति को एक मछली दे दो तो उसका पेट दिन भर के लिए भर जाएगा. उसे इंटरनेट चलाना सिखा दो तो वह हफ़्तों आपको परेशान नहीं करेगा.
+यदि आप को 100 रूपए बैंक का ऋण चुकाना है तो यह आपका सिरदर्द है। और यदि आप को 10 करोड़ रुपए चुकाना है तो यह बैंक का सिरदर्द है।
+विकल्पों की अनुपस्थिति मस्तिष्क को बड़ा राहत देती है |
+मुझे मनुष्यों पर पूरा भरोसा है – जहां तक उनकी बुद्धिमत्ता का प्रश्न है – कोका कोला बहुत बिकता है बनिस्वत् शैम्पेन के.
+यदि वोटों से परिवर्तन होता, तो वे उसे कब का अवैध करार दे चुके होते.
+यदि आप थोड़ी देर के लिए खुश होना चाहते हैं तो दारू पी लें. लंबे समय के लिए खुश होना चाहते हैं तो प्यार में पड़ जाएँ. और अगर हमेशा के लिए खुश रहना चाहते हैं तो बागवानी में लग जाएँ.
+बिल्ली का व्यवहार तब तक ही सम्मानित रह पाता है जब तक कि कुत्ते का प्रवेश नहीं हो जाता.
+ऐसा क्यों होता है कि कोई औरत शादी करके दस सालों तक अपने पति को सुधारने का प्रयास करती है और अंत में शिकायत करती है कि यह वह आदमी नहीं है जिससे उसने शादी की थी.
+बेचारगी महसूस करने से बचने का सबसे बेहतरीन तरीका है कि खुद को इतना व्यस्त रखो कि कभी यह सोचने का समय न मिले कि तुम खुश क्यों नही हो ?
+जो अच्छा करना चाहता है द्वार खटखटाता है, जो प्रेम करता है द्वार खुला पाता है।
+( धैर्य क्षमा संयम चोरी न करना शौच स्वच्छता इन्द्रियों को वश मे रखना बुद्धि विद्या सत्य और क्रोध न करना ये दस धर्म के लक्षण हैं । )
+( धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये । )
+( धर्म रक्षा करता है यदि उसकी रक्षा की जाय । )
+धर्म का उद्देश्य मानव को पथभ्रष्ट होने से बचाना है ।
+धर्म व्यक्ति एवं समाज दोनों के लिये आवश्यक है।
+धर्म की उपलब्धि की जा सकती है किन्तु प्रश्न यह है कि क्या तुम उसके अधिकारी हो?क्या तुम्हें धर्म की आवश्यकता वास्तव में है?यदि तुम ठीक ठीक प्रयत्न करो,तभी तुम्हें प्रत्यक्ष उपलब्धि होगी,और तभी तुम वास्तव में धार्मिक होगे। स्वामी विवेकानन्द जी
+जीवन का मर्म धर्म है, जीवन के आधार में समस्त के प्रति मार्मिकता का नाम धर्म है
+जब तक लोग जन्म से ही किसी पंथ के मार्गी होंगे तब तक धर्म का आगमन नहीं हो सकता। धार्मिक होना हमारी उपलब्धि है, कोई जन्म अधिकार नहीं
+सदाचार शिष्टाचार से अधिक महत्वपूर्ण है ।
+याद रखिए कि जब कभी आप युद्धरत हों, पादरी, पुजारियों, स्त्रियों, बच्चों और निर्धन नागरिकों से आपकी कोई शत्रुता नहीं है।
+सच्ची शांति का अर्थ सिर्फ तनाव की समाप्ति नहीं है, न्याय की मौजूदगी भी है।
+- मार्टिन सूथर किंग जूनियर
+सबसे उत्तम बदला क्षमा करना है।
+दुष्टो का बल हिन्सा है, शासको का बल शक्ती है,स्त्रीयों का बल सेवा है और गुणवानो का बल क्षमा है ।
+मछली एवं अतिथि तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं ।
+सच्ची मित्रता का नियम है कि जाने वाले मेहमान को जल्दी बिदा करो और आने वाले का स्वागत करो ।
+अट्ठारह पुराणों में व्यास जी ने केवल दो बात कही है दूसरे का उपकार करने से पुण्य मिलता है और दूसरे को पीडा देने से पाप ।
+( सज्जनों का धन परोपकार के लिये होता है । )
+समाज के हित में अपना हित है ।
+आकाश-मंडल में दिवाकर के उदित होने पर सारे फूल खिल जाते हैं, इस में आश्चर्य ही क्या? प्रशंसनीय है तो वह हारसिंगार फूल (शेफाली) जो घनी आधी रात में भी फूलता है।
+आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता।
+कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे।
+कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए।
+गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है।
+घमंड करना जाहिलों का काम है।
+मैं कोयल हूं और आप कौआ हैं-हम दोनों में कालापन तो समान ही है किंतु हम दोनों में जो भेद है, उसे वे ही जानते हैं जो कि ‘काकली’ (स्वर-माधुरी) की पहचान रखते हैं।
+यदि राजा किसी अवगुण को पसंद करने लगे तो वह गुण हो जाता है |
+सत्य बोलना श्रेष्ठ है लेकिन सत्य क्या है यही जानाना कठिन है ।
+सही या गलत कुछ भी नहीं है – यह तो सिर्फ सोच का खेल है।
+जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है न ज्ञान है न शील है न गुण है और न धर्म है वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं ।
+मानव तभी तक श्रेष्ठ है जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है । बतौर पशु मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है।
+आदर्श के दीपक को पीछे रखने वाले अपनी ही छाया के कारण अपने पथ को अंधकारमय बना लेते हैं।
+क्लोज़-अप में जीवन एक त्रासदी (ट्रेजेडी) है, तो लंबे शॉट में प्रहसन (कॉमेडी
+आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है |
+हमेशा बत्तख की तरह व्यवहार रखो. सतह पर एकदम शांत परंतु सतह के नीचे दीवानों की तरह पैडल मारते हुए |
+अव्यवस्था से जीवन का प्रादुर्भाव होता है तो अनुक्रम और व्यवस्थाओं से आदत |
+दुनिया में सिर्फ दो सम्पूर्ण व्यक्ति हैं – एक मर चुका है, दूसरा अभी पैदा नहीं हुआ है।
+प्रसिद्धि व धन उस समुद्री जल के समान है, जितना ज्यादा हम पीते हैं, उतने ही प्यासे होते जाते हैं.
+यदि आपको रास्ते का पता नहीं है, तो जरा धीरे चलें |
+पूत सपूत त का धन संचय पूत कपूत त का धन संचय ।
+जिसने बालक को नहीं पढाया वह माता शत्रु है और पिता बैरी है ।
+(क्योंकि) सभा में वह (बालक) ऐसे ही शोभा नहीं पाता जैसे हंसों के बीच बगुला ।
+दो बच्चों से खिलता उपवन ।
+आजादी मतलब जिम्मेदारी। तभी लोग उससे घबराते हैं।
+स्वतंत्र चिन्तन चिन्तन की स्वतंत्रता
+मानवी चेतना का परावलंबन अन्तःस्फुरणा का मूर्छाग्रस्त होना आज की सबसे बडी समस्या है । लोग स्वतन्त्र चिन्तन करके परमार्थ का प्रकाशन नहीं करते बल्कि दूसरों का उटपटांग अनुकरण करके ही रुक जाते हैं ।
+बिना वैचारिक-स्वतन्त्रता के बुद्धि जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती और बोलने की स्वतन्त्रता के बिना जनता की स्वतन्त्रता नहीं हो सकती।
+प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं ।
+शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है ।
+ग्रन्थ पन्थ हो अथवा व्यक्ति नहीं किसी की अंधी भक्ति ।
+सर्वोत्तम मानव मस्तिष्क की पहचान है किन्हीं दो पूर्णतः विपरीत विचार धाराऒं को साथ- साथ ध्यान में रखते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का होना ।
+चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें इन्सानों की तरह ज़मीन पर चलना सीखना है।
+हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता। वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है। हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल। योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है।
+भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं।
+पत्रकारिता में पच्चीस साल के अनुभव के बाद मैं एक बात निश्चित रूप से जानती हूं कि सत्य को दफ़नाया जा सकता है, उसकी हत्या नहीं की जा सकती। सत्य कब्र से भी उठकर सामने आ जाता है और उनके पीछे भूत की तरह लग जाता है जिन्होंने उसे दफ़न करने की साज़िश की थी।
+बकरियों की लड़ाई, मुनि के श्राद्ध, प्रातःकाल की घनघटा तथा पति-पत्नी के बीच कलह में प्रदर्शन अधिक और वास्तविकता कम होती है।
+जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते |
+पुस्तक एक बग़ीचा है जिसे जेब में रखा जा सकता है।
+किताबों को नहीं पढ़ना किताबों को जलाने से बढ़कर अपराध है |
+पुस्तक प्रेमी सबसे धनवान व सुखी होता है।
+अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अलंकृत भी करता है और योग्य भी बनाता है।
+अनेक लोग वह धन व्यय करते हैं जो उनके द्वारा उपार्जित नहीं होता, वे चीज़ें खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते।
+मुक्त बाजार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, ��ो उन्हें खरीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है।
+व्यक्तिगत चरित्र समाज की सबसे बडी आशा है ।
+प्रत्येक मनुष्य में तीन चरित्र होता है। एक जो वह दिखाता है, दूसरा जो उसके पास होता है, तीसरी जो वह सोचता है कि उसके पास है |
+( स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता मनुष्य कहाँ लगता है । )
+ईश प्राप्ति (शांति) के लिए अंतःकरण शुद्ध होना चाहिए |
+( प्रिय वाणी बोलने से सभी जन्तु खुश हो जाते है । इसलिये मीठी वाणी ही बोलनी चाहिये वाणी में क्या दरिद्रता
+नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के सच्चे आभूषण होते हैं |
+(सत्य बोलना चाहिए प्रिय बोलना चाहिए किन्तु अप्रिय सत्य नही कहना चाहिए।)
+यह् अपना है और यह पराया है ऐसी गणना छोटे दिल वाले लोग करते हैं ।
+उदार हृदय वाले लोगों का तो पृथ्वी ही परिवार है ।
+सत्यमेव जयते । सत्य ही विजयी होता है )
+सभी सुखी हों सभी निरोग हों ।
+यदि आप इस बात की चिंता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं
+श्रेष्ठ आचरण का जनक परिपूर्ण उदासीनता ही हो सकती है |
+भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं घूमता है। क्या बिना अग्नि के धुएं की शिखा कभी दिखाई देती है?
+जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए।
+जहां गति नहीं है वहां सुमति उत्पन्न नहीं होती है। शूकर से घिरी हुई तलइया में सुगंध कहां फैल सकती है?
+अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है।
+जब कोई व्यक्ति ठीक काम करता है, तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है।
+यह ठीक है कि आशा जीवन की पतवार है। उसका सहारा छोड़ने पर मनुष्य भवसागर में बह जाता है पर यदि आप हाथ-पैर नहीं चलायेंगे तो केवल पतवार की उपस्थिति से गंतव्य तट पर थोड़े ही पहुंच जायेंगे।
+सूरज और चांद को आप अपने जन्म के समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह नहीं जान पाये कि काम कैसे करने चाहिए ?
+श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्दऔर अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं।
+कामा���क्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है।
+-चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिये,धन तो आता और चला जाता है किन्तु चरित्र के नष्ट हो जाने पर व्यक्ति मृतक के समान हो जाता है।
+पूरी इमानदारी से जो व्यक्ति अपना जीविकोपार्जन करता है, उससे बढ़कर दूसरा कोई महात्मा नहीं है।
+मेरी समझ में मनुष्य का व्यक्तिगत अस्तित्व एक नदी की तरह का होना चाहिए। नदी प्रारंभ में बहुत पतली होती है। पत्थरों, चट्टानों, झरनों को पार करके मैदान में आती है, एक क्रम से उसका विस्तार होता है, फिर भी बड़ी मन्थर गति से बहती है और बिना क्रम भंग किये अंत में समुद्र में विलीन हो जाती है। समुद्र में अपने अस्तित्व को समाप्त करते समय वह किसी भी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं करती जो वृद्ध परुष जीवन को इस रूप में देखता है, मृत्यु के भय से मुक्त रहता है।
+हर साल मेरे लिये महत्वपूर्ण है। आज भी मुझ में पूरा जोश है। मुझे महसूस होता है कि अब भी मैं २५ वर्ष की हूं। मेरे विचार आज भी एक युवा की तरह हैं। मैं आज भी चीज़ों को जानने के प्रति मेरी उत्सुक्ता बनी रहती है। इसलिये मैं यही कहूंगी कि जवां महसूस करना अच्छा लगता है।
+बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है।
+आक्रामकता सिर्फ एक मुखौटा है जिसके पीछे मनुष्य अपनी कमजोरियों को, अपने से और संसार से छिपाकर चलता है। असली और स्थाई शक्ति सहनशीलता में है। त्वरित और कठोर प्रतिक्रिया सिर्फ कमजोर लोग करते हैं और इसमें वे अपनी मनुष्यता को खो देते हैं।
+अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होती हैं, मुंह में रखकर चूसते रहने के लिए नहीं।
+चींटी से अच्छा उपदेशक कोई और नहीं है। वह काम करते हुए खामोश रहती है।
+जो कोई गुस्से को प्रकट करने की ताकत रखते हुए भी उसे दबाता है, उसे अल्लाह सभी प्राणियों के सामने कयामत के दिन बुलाएगा और बहुत नेमतें देगा।
+दो-चार निंदकों को एक जगह बैठकर निंदा में निमग्न देखिए और तुलना कीजिए दो-चार ईश्वर-भक्तों से, जो रामधुन लगा रहें हैं। निंदकों की सी एकाग्रता, परस्पर आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है। इसीलिए संतों ने निंदकों को ‘आंगन कुटि छवाय’ पास रखने की सलाह दी है।
+बारह फकीर एक फटे कंबल में आराम से रात क��ट सकते हैं मगर सारी धरती पर यदि केवल दो ही बादशाह रहें तो भी वे एक क्षण भी आराम से नहीं रह सकते।
+सभी लोगों के स्वभाव की ही परिक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरिहै)।
+शहीद के खून से ज्यादा पवित्र विद्वान आदमी के रक्त की स्याही होती है।
+मनुष्य के लिए निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है। इसलिए मनुष्य को पापरूपिणी निराशा को समूल हटाकर आशावादी बनना चाहिए।
+मनुष्य की इच्छाओं का पेट आज तक कोई नहीं भर सका है |
+जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी देती है।
+पुरुष के लिए प्रेम उसके जीवन का एक अलग अंग है पर स्त्री के लिए उसका संपूर्ण अस्तित्व है।
+सात सागरों के जल की अपेक्षा मानव-नेत्रों से कहीं अधिक आंसू बह चुके हैं।
+सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो?
+दुःखी होने पर प्रायः लोग आंसू बहाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते लेकिन जब वे क्रोधित होते हैं तो परिवर्तन ला देते हैं।
+पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
+जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते।
+‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं।
+‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की।
+इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त होता है।
+जीवन एक रहस्य है, जिसे जिया न जा सकता है, जी कर जाना भी जा सकता है लेकिन गणित के प��रश्नों की भांति उसे हल नहीं किया जा सकता। वह सवाल नहीं एक चुनौती है, एक अभियान है।
+मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है।
+कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं।
+जो व्यक्ति विवेक के नियम को तो सीख लेता है पर उन्हें अपने जीवन में नहीं उतारता वह ठीक उस किसान की तरह है, जिसने अपने खेत में मेहनत तो की पर बीज बोये ही नहीं।
+ज्ञानी आदमी के खोखले ज्ञान से सावधान, वह अज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक है।
+निराशा मूर्खता का परिणाम है।
+यह कैसा समय है? मेरे कौन मित्र हैं? यह कैसा स्थान है। इससे क्या लाभ है और क्या हानि? मैं कैसा हूं। ये बातें बार-बार सोचें (जब कोई काम हाथ में लें)।
+सभी प्राचीन महान नहीं है और न नया, नया होने मात्र से निंदनीय है। विवेकवान लोग स्वयं परीक्षा करके प्राचीन और नवीन के गुण-दोषों का विवेचन करते हैं लेकिन जो मूढ़ होते हैं, वे दूसरों का मत जानकर अपनी राय बनाते हैं।
+जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है।
+आत्म-वृक्ष के फूल और फल शक्ति को ही समझना चाहिए।
+अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते। जोनाथन स्विफ्ट
+संपूर्ण रूप से त्रुटिहीन पुस्तक कभी पढ़ने लायक नहीं होती।
+भोग और त्याग की शिक्षा बाज़ से लेनी चाहिए। बाज़ पक्षी से जब कोई उसके हक का मांस छीन लेता है तो मरणांतक दुख का अनुभव करता है किंतु जब वह अपनी इच्छा से ही अन्य पक्षियों के लिए अपने हिस्से का मांस, जैसाकि उसका स्वभाव होता है, त्याग देता है तो वह पर सुख का अनुभव करता है। यानि सारा खेल इच्छा आसक्ति अथवा अपने मन का है।
+बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग-शिक्षा इस मार्ग पर बच्चे को ले जाने में सहायक है।
+चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं।
+स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है ।
+शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम । यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं )
+आहार स्वप्न नींद और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ पिलर हैं ।
+मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय ।
+जिसका यह दावा है कि वह आध्यात्मिक चेतना के शिखर पर है मगर उसका स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता है तो इसका अर्थ है कि मामला कहीं गड़बड़ है।
+स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है ।
+शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम । यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं )
+आहार स्वप्न नींद और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ पिलर हैं ।
+( कौन स्वस्थ है कौन स्वस्थ है कौन स्वस्थ है ?
+हितकर भोजन करने वाला कम खाने वाला इमानदारी का अन्न खाने वाला )
+स्वास्थ्य के संबंध में पुस्तकों पर भरोसा न करें। छपाई की एक गलती जानलेवा भी हो सकती है।
+वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम है।
+नीति लोकनीति नय व्यवहार कौशल
+हथौड़ा कांच को तो तोड़ देता है, परंतु लोहे को रूप देता है।
+तलवारों तथा बंदूकों की आँखें नहीं होती हैं.
+कांटों को मुरझाने का डर नहीं सताता.
+१२. अगर आप अपने जीवन साथी से तंग आ चुके हैं तथा उससे निपटने का कोई उपाय आपको समझ में नहीं आ रहा तो आप तुरंत ब्लाग लिखना शुरु कर दीजिये।
+१४.’कामा-फुलस्टाप’,’शीन-काफ’ तक का लिहाज रखकर लिखने वाला ‘परफेक्शनिस्ट ब्लागर’ गूगल की शरण में पहुंचा वह ब्लागर होता हैं जिसने अपना लिखना तबतक के लिये स्थगित कर रखा होता है जब तक कि ‘कामा-फुलस्टाप’ ,’शीन-काफ’ को ‘यूनीकोड’ में बदलने वाला कोई ‘साफ्टवेयर’ नहीं मिल जाता।
+१६. अगर आप अपने ब्लाग पर हिट बढ़ाने के लिये बहुत ही ज्यादा परेशान हैं तो तमाम लटके-झटकों का सहारा छोड़कर किसी चैट रूम में जाकर उम्र,लिंग,स्थान की बजाय अपने ब्लाग का लिंक देना शुरु कर दें।
+१८. अच्छा ल���खने वाले की तारीफ करते रहना आपकी सेहत के लिये भी जरूरी है। तारीफ के अभाव में वह अपना ब्लाग बंद करके अलग पत्रिका निकालने लगता है। तब आप उसकी न तारीफ कर सकते हैं न बुराई।
+२०. बहुत लिखने वाले ‘ब्लागलती’ को जब कुछ समझ में नहीं आता तो वह एक नया ब्लाग बना लेता है,जब कुछ-कुछ समझ में आता है तो टेम्पलेट बदल लेता है तथा जब सबकुछ समझ में आ जाता है तो पोस्ट लिख देता है। यह बात दीगर है कि पाठक यह समझ नहीं पाता कि इसने यह किसलिये लिखा!
+२१. जब आपका कोई नियमित प्रशंसक,पाठक आपकी पोस्ट पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता तो निश्चित मानिये कि वो आपकी तारीफ में दो लाइन लिखने की बजाय बीस लाइन की पोस्ट लिखने में जुटा है। उन बीस लाइनों में आपकी तारीफ में केवल लिंक दिया जाता है जो कि अक्सर गलती संख्या ४०४(HTML ERROR-404) का संकेत देता है।
+उदाहरण वह पाठ है जिसे हर कोई पढ सकता है ।
+हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु ।
+हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है ।
+स्पष्टीकरण से बचें । मित्रों को इसकी आवश्यकता नहीं शत्रु इस पर विश्वास नहीं करेंगे ।
+अपने उसूलों के लिये मैं स्वंय मरने तक को भी तैयार हूँ लेकिन किसी को मारने के लिये बिल्कुल नहीं।
+विजयी व्यक्ति स्वभाव से बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।
+परमार्थ उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है । परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता ।
+बुराई के अवसर दिन में सौ बार आते हैं तो भलाई के साल में एकाध बार.
+एक शेर को भी मक्खियों से अपनी रक्षा करनी पड़ती है।
+अपनी आंखों को सितारों पर टिकाने से पहले अपने पैर जमीन में गड़ा लो |
+आमतौर पर आदमी उन चीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है जिनका उससे कोई लेना देना नहीं होता |
+ईश्वर एक ही समय में सर्वत्र उपस्थित नहीं हो सकता था अतः उसने ‘मां’ बनाया.
+तालाब शांत है इसका अर्थ यह नहीं कि इसमें मगरमच्छ नहीं हैं
+खेल के अंत में राजा और पिद्दा एक ही बक्से में रखे जाते हैं |
+यदि आप गर्मी सहन नहीं कर सकते तो रसोई के बाहर निकल जाईये ।
+अगर आपके पास जेब में सिर्फ दो पैसे हों तो एक पैसे से रोटी खरीदें तथा दूसरे से गुलाब की एक कली.
+कभी भी ���फाई नहीं दें. आपके दोस्तों को इसकी आवश्यकता नहीं है और आपके दुश्मनों को विश्वास ही नहीं होगा |
+कविता में कोई पैसा नहीं है। परंतु पैसा में भी तो कविता नहीं है।
+बातचीत का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह होता है कि ध्यानपूर्वक यह सुना जाए कि कहा क्या जा रहा है।
+श्री आशीष श्रीवास्तव द्वारा संकलित सूक्तियाँ
+१८. जिसके पास बुद्धि है, उसके पास बल है। बुद्धिहीन के पास बल कहां चाणक्य
+मुसीबतें सिकुड़ जाती हैं। -सुधांशु महाराज
+रहीमन, मुलही सिंचीबो, फुले फले अगाय । -रहीम
+श्री लक्ष्मी नारायण गुप्ता द्वारा संकलित हिन्दी सुभाषित
+(सुख की शोभा दुःख के अनुभव के बाद होती है जैसे घने अंधकार में दीपक की। जो मनुष्य सुख से दुःख में जाता है वह जीवित भी मृत के समान जीता है।)
+८। का बरखा जब कृखी सुखाने। समय चूकि पुनि का पछिताने।।
+आलसी, असंयत करें अत्यधिक भोजन।
+मार करता है इन निर्बलों की तवाही
+( अपने को जन्म देनेवाली जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है)
+१८। काजर की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय
+१९। होनवार बिरवान के होत चीकने पात।
+(नदियाँ स्वयं अपना पानी नहीं पीती हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। बादल अपने लिये वर्षा नहीं करते हैं। सन्तों का अस्तित्व केवल परोपकार के लिये होता है।)
+३१। नेकी कर और दरिया में डाल।
+—-घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर जिले के निवासी)
+३४। अरहर की दाल औ जड़हन का भात
+श्री जितेन्द्र चौधरी द्वारा संकलित सूक्तियाँ
+सारा जगत स्वतंत्रताके लिये लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। श्री अरविंद
+सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है । एक जुल्मों के खिलाफ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध। सरदार पटेल
+कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढाती है। सावरकर
+तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। वाल्मीकि
+संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास। काका कालेलकर
+जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। -सत्यार्थप्रकाश
+सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है। कथा सरित्सागर
+चाहे गुरू पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य ररवनी चाहिए। क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। -समर्थ रामदास
+यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाये तो वह खतरनाक भी हो सकती है। इंदिरा गांधी
+प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाआें के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिये। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाआें की प्रियता में ही राजा का हित है। चाणक्य
+द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प््रोम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। विनोबा
+साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है-परंतु एक नया वातावरण देना भी है। डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन
+लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। जयप्रकाश नारायण
+बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिये, मंद नहीं पड़ना चाहिये। यशपाल
+सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिये उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना। डा शंकर दयाल शर्मा
+जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है। नारदभक्ति
+धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं। महाभारत
+दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिये लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिये। रामायण
+शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति। -स्वामी ज्ञानानन्द
+धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। -डा शंकरदयाल शर्मा
+त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। -बस्र्आ
+अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। -जयशंकर प्रसाद
+अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं -महर्षि अरविन्द
+जैसे अंधे के लिये जगत अंधकारमय है और आंखों वाले के लिये प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिये जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिये आनंदमय। -सम्पूर्णानंद
+नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। -संत तिरूवल्लुर
+वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। -स्वामी रामतीर्थ
+अपने विषय में कुछ कहना प्राय:बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को। -महादेवी वर्मा
+कस्र्णा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। -सुदर्शन
+हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है। -वाल्मीकि
+मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खण्डित करना है। -राम प्रताप त्रिपाठी
+नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। -संत तिस्र्वल्लुवर
+जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य सम्पन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती। जवाहरलाल नेहरू
+कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। डा रामकुमार वर्मा
+जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिये समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो। -इंदिरा गांधी
+तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। -गुरू गोविन्द सिंह
+मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है। -गौतम बुद्ध
+कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं। श्री हर्ष
+अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। -हरिऔध
+जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं। गौतम बुद्ध
+अधिक अनुभव, अधिक सहनशीलता और अधिक अध्ययन यही विद्वत्ता के तीन महास्तंभ हैं। -अज्ञात
+जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं। -रवीन्द्र
+जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता। माघ्र
+मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर
+प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर
+हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है। वाल्मीकि
+अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है। प्रेमचंद
+जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिये वेदव्यास
+फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, सम्पत्ति के समय सज्जन भी नम्र होते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा है। तुलसीदास
+प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं। अज्ञात
+कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं। -लोकमान्य तिलक
+कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। रामधारी सिंह दिनकर
+विद्वत्ता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक और बुढ़ापे में संचित धन है। हितोपदेश
+खातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास जरूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। -शरतचन्द्र
+पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है। -गौतम बुद्ध
+कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी। -रवीन्द्रनाथ ठाकुर
+रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है -मुक्ता
+जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। -डा विक्रम साराभाई
+मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। -विनोबा
+लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है। -मुक्ता
+मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है पर देने वाला दरिद्र नहीं होता। अज्ञात
+आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता। भर्तृहरि
+क्रोध ऐसी आंधी है जो विवेक को नष्ट कर देती है। -अज्ञात
+चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। -रवीन्द्र
+आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। -पं रामप्रताप त्रिपाठी
+मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता -चाणक्य
+जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश ��ा संगीत सबकुछ है। -रवीन्द्रनाथ ठाकुर
+कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। -रामधारी सिंह दिनकर
+चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। -सत्यसांई बाबा
+भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर भाग्य सोया रहता है पर हिम्मत बांध कर खड़े होने पर भाग्य भी उठ खड़ा होता है। -अज्ञात
+गरीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार गऱीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। सादी
+जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता। रामकृष्ण परमहंस]]
+मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो। अज्ञात
+जैसे छोटा सा तिनका हवा का स्र्ख़ बताता है वैसे ही मामूली घटनाएं मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। महात्मा गांधी
+सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूंछ में किन्तु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। -कबीर
+देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। -बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’
+सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। -स्वामी विवेकानंद
+दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएं चाहता है, विलासी बहुत सी और लालची सभी वस्तुएं चाहता है। -अज्ञात
+भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं। -विवेकानंद
+विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय वस्तुओं को चित्रित करती है। अज्ञात
+नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिये, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिये। रामकृष्ण परमहंस
+जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती। विनोबा
+उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। -चीनी कहावत
+वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। -अज्ञात
+जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है। -दीनानाथ दिनेश!
+उड़ने की अपेक्षा जब ��म झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। अज्ञात!
+विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास। एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है। -अज्ञात
+आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। -महात्मा गांधी
+एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। -अज्ञात
+किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं। -अज्ञात
+ऐसे देश को छोड़ देना चाहिये जहां न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। -विनोबा
+विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है। -रवींद्रनाथ ठाकुर
+कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और स्र्आब दिखाने से नहीं। -प्रेमचंद
+अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। -अज्ञात
+अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं। -जवाहरलाल नेहरू
+सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है -पं मोतीलाल नेहरू
+स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है। -विनोबा
+जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। -मुक्ता
+दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। -डा रामकुमार वर्मा
+डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। -अज्ञात
+सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। -अज्ञात
+अनुभव-प्राप्ति के लिए काफी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती। -अज्ञात
+अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। कहावत
+श्री रवि श्रीवास्तव द्वारा संकलित सूक्तियाँ
+1. जिसने ज्ञान को आचरण में उतार लिया, उसने ईश्वर को मूर्तिमान कर लिया – विनोबा
+2. अकर्मण्यता का दूसरा नाम मृत्यु है – मुसोलिनी
+3. पालने से लेकर कब्र तक ज्ञान प्राप्त करते रहो – पवित्र कुरान
+5. मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान है – चाणक्य
+6. आपका आज का पुरुषार्थ आपका कल का भाग्य है – पालशिरू
+7. क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है – महात्मा गांधी
+8. ठोकर लगती है और दर्द होता है तभी मनुष्य सीख पाता है – महात्मा गांधी
+10. नरम शब्दों से सख्त दिलों को जीता जा सकता है – सुकरात
+13. जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है – कबीर
+14. जो आपको कल कर देना चाहिए था, वही संसार का सबसे कठिन कार्य है – कन्फ्यूशियस
+15. ज्ञानी पुरुषों का क्रोध भीतर ही, शांति से निवास करता है, बाहर नहीं – खलील जिब्रान
+16. कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है – चाणक्य
+18. ईश्वर के हाथ देने के लिए खुले हैं. लेने के लिए तुम्हें प्रयत्न करना होगा – गुरु नानक देव
+20. जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
+24. स्व परिवर्तन से दूसरों का परिवर्तन करो.
+26. महान पुरुष की पहली पहचान उसकी विनम्रता है।
+27. बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है।
+28. क्रोध सदैव मूर्खता से प्रारंभ होता है और पश्चाताप पर समाप्त.
+29. नारी की उन्नति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्धारित है।
+33. बुद्धिमान किसी का उपहास नहीं करते हैं.
+
+
+अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे
+का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर
+क्या लभ है  इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है
+उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता P>
+सम्बन्ध सी.डी से कैट-स्कैन से पार्किंग-मीटरों से राष्ट्रपति-चुनावों से और
+कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है । गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिये है
+परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं ।
+की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार
+संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया
+व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं  लेकिन यदि
+करने का कोई औचित्य नहीं है ।
+यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है ।
+हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता
+रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु
+खरीदना पसंद करूंगा। पेट खाली रखकर भी यदि कला-दृष्टि को सींचने का अवसर हाथ लगता
+तरीका है उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी
+राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को
+को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ । P>
+इतिहास भी है । P>
+विकास कर रही हैं तो समाज भी विकास करता है, यदि वे क्षीण हो रही हैं तो समाज भी
+सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही
+सत्यवादी उदार या इमानदार नहीं बन सकते ।
+रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की
+की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में
+अंधेरे रास्ते में जाने का साहस कम लोगों में ही होता है।
+लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं
+कुछ किया ही नही गया।
+विद्या विष के समान है nbsp P>
+हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर
+के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं।
+अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण
+हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर
+सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त
+धन का अर्जन करना चाहिये ।
+उतना मनुष्य द्वारा स्थापित किसी दूसरी संस्था से नहीं ।
+काम पूरा किया जा सकता है ।
+निस्तेज मनुष्य का समाज तिरस्कार करता है । तिरष्कृत मनुष्य में वैराग्य भाव
+उत्पन्न हो जाते हैं और तब मनुष्य को शोक होने लगता है । जब मनुष्य शोकातुर होता है
+तो उसकी बुद्धि क्षीण होने लगती है और बुद्धिहीन मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है
+“गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये ।
+लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है ।
+है न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है । P>
+हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं ।
+मंत्र योजना परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है प्रभाव राजोचित
+शक्ति तेज से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह उद्यम से कार्य सिद्ध होता
+चाहिये । आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का
+प्रजातन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है बल्कि ��ेताओं को
+हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा
+हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा
+देश की सुरक्षा है । जो सम्बन्ध धरन बीम का घर से है या हड्डी का शरीर से है
+साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर
+( क्षण जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है ऐसे नर-पशु को नमस्कार ।
+तो आपको इसे बनाना पडेगा ।
+कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये P>
+कामयाब व्यक्ति बना दिया है ।
+असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है ।
+संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया
+नही दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता P>
+द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है P>
+दिये जा सकते हैं पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है । जब आदमी ने सबसे पहले
+प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी । प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक
+प्रौद्योगिकी सूचना-साक्षरता सूचना प्रवीण सूचना की सतंत्रता
+उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं उतना ही अधिक यह बढता है । इसको आसानी से
+बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग ।
+नहीं  और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं ।
+उन्हें स्वयं को उन शक्तियों से सुसज्जित करना चाहिये जो ज्ञान से प्राप्त होती हैं
+से बडी याददास्त से भी बडी होती है ।
+लोगों के लिये यह धमकी भरा होता है क्योंकि उनको लगता है कि स्थिति और बिगड सकती है
+शुरु होता हो कोई ऐसा मूल (जड़) नही है जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी
+प्रतिशत के लिये अधिक विश्लेषण की जरूरत होती है ।
+लगती है कि क्या करना चाहिये ।
+से चलाये जाते हैं ।
+देता है जो उससे पूछे जाते हैं ।
+समस्या है । लोग स्वतन्त्र चिन्तन करके परमार्थ का प्रकाशन नहीं करते बल्कि दूसरों
+को साथ- साथ ध्यान में रखते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का होना
+स्वयं परीक्षा करके प्राचीन और नवीन के गुण-दोषों का विवेचन करते हैं लेकिन जो मूढ़
+पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत
+जाता है पर यदि आप हाथ-पैर नहीं चलायेंगे तो केवल पतवार की उपस्थिति से गंतव्य तट
+करने की कोशिश करता है । P>
+भी आस-पास मौजूद नहीं है। यदि आप किसी संगीत की प्रस्तुति कर रहे हों तो आप को
+ऐसा प्रतीत होना चाहिये कि आप की प्रस्तुति पर आप के सिवा अन्य किसी का भी
+ध्यान नहीं है । और यदि आप सचमुच में किसी से प्रेम कर बैठें हों तो आप में
+ऐसी अनुभूति होनी चाहिए कि आप पहले कभी भी भावनात्मक तौर पर आहत नहीं हुए
+जाता है विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है P>
+ध्यान कुत्ते जैसी निद्रा अल्पहारी और गृहत्यागी । P>
+वो जमाना गया जब आप अनुभव से सीखते थे अब आपको भविष्य से सीखना पडेगा ।
+है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार
+की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह
+सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम
+, बहुत सारी विद्याएँ हैं समय अल्प है और बहुत सी बाधायें है । ऐसे में जो
+सारभूत है सरलीकृत है वही करने योग्य है जैसे हंस पानी से दूध को अलग करक पी
+हाजिर जबाब ये दोनो सुख भोगते हैं । “जैसा होना होगा होगा” ऐसा सोचने वाले का
+विनाश हो जाता है ।
+अधिकांश गणित की जननी है बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है
+ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है । अनेक प्रकार से भारत
+पौराणिक कथाओं की दादी है और प्रथाओं की परदादी है । मानव इतिहास की हमारी सबसे
+मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था तो वह भारत ही है
+रहकर पृथ्वी के सब लोगों ने अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ली । P>
+चीजों में निहित है संस्कृति और संस्कृत । P>
+ग्रीक से अधिक परिपूर्ण है और लैटिन से अधिक शब्दबहुल है तथा दोनों से अधिक
+में संस्कृत साहित्य की खोज से बढकर कोई विश्वव्यापी महत्व की दूसरी घटना नहीं घटी
+कृत्रिम भाषा के रूप में भी कार्य कर सकती है और कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में
+किया गया अधिकाश काम हजारों वर्ष पुराने पहिये संस्कृत को खोजने जैसा ही रहा है
+हैं और जिनको पैसे से नहीं खरीदा जा सकता ।
+संसार से छिपाकर चलता है। असली और स्थाई शक्ति सहनशीलता में है। त्वरित और कठोर
+प्रतिक्रिया सिर्फ कमजोर लोग करते हैं और इसमें वे अपनी मनुष्यता को खो देते
+से दुःख में जाता है वह जीवित भी मृत के समान जीता है। P>
+रहते हैं माना जाता है कि खटमल के डर से ॥
+विष्णु क्षीरसागर में सोते हैं और शिव हिमालय पर । P>
+खुश होना चाहते हैं तो प्यार में पड़ जाएँ. और अगर हमेशा के लिए खुश रहना चाहते हैं
+प्रयास करती है और अंत में शिकायत करती है कि यह वह आदमी नहीं है जिससे उसने शादी
+साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर
+आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है। इसीलिए संतों ने निंदकों को ‘आंगन कुटि
+छवाय’ पास रखने की सलाह दी है। P>
+करना  ये दस धर्म के लक्षण हैं । P>
+पर चलो  अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये ।
+कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी
+ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के
+क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक
+में जो भेद है, उसे वे ही जानते हैं जो कि ‘काकली’ (स्वर-माधुरी) की पहचान रखते
+अन्य पक्षियों के लिए अपने हिस्से का मांस, जैसाकि उसका स्वभाव होता है, त्याग देता
+है तो वह पर सुख का अनुभव करता है। यानि सारा खेल इच्छा आसक्ति अथवा अपने मन का
+से पुण्य मिलता है और दूसरे को पीडा देने से पाप ।
+पानी नहीं पीती हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। बादल अपने लिये वर्षा नहीं
+करते हैं। सन्तों का का धन परोपकार के लिये होता है । P>
+गुणवानो का बल क्षमा है ।
+और न धर्म है  वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर
+चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है। और जब सारी चीज़ें आपके पास
+प्यासे होते जाते हैं P>
+के प्रश्नों की भांति उसे हल नहीं किया जा सकता। वह सवाल नहीं एक चुनौती है, एक
+प्रारंभ में बहुत पतली होती है। पत्थरों, चट्टानों, झरनों को पार करके मैदान में
+आती है, एक क्रम से उसका विस्तार होता है, फिर भी बड़ी मन्थर गति से बहती है और
+बिना क्रम भंग किये अंत में समुद्र में विलीन हो जाती है। समुद्र में अपने अस्तित्व
+को समाप्त करते समय वह किसी भी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं करती जो वृद्ध परुष
+से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न
+होता है। क्रोध से मूढ़ता और बुद्धि भ्रष्टता उत्पन्न होती है। बुद्धि के भ्रष्ट
+होने से स्मरण-शक्ति विलुप्त हो जाती है, यानी ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है। और
+विष खाने से लाभ होत�� है लेकिन अकेले खाने से मरण ।
+होने पर मनुष्य को बेंत की रीति-नीति का अनुपालन करना चाहिये, अर्थात नम्र हो जाना
+तीन तरह के पुत्रों मे से अजात और मृत पुत्र अधिक श्रेष्ठ हैं क्योंकि अजात और
+वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही
+कद्र करता है। हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो
+अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी,
+राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज
+कि सत्य को दफ़नाया जा सकता है, उसकी हत्या नहीं की जा सकती। सत्य कब्र से भी उठकर
+सामने आ जाता है और उनके पीछे भूत की तरह लग जाता है जिन्होंने उसे दफ़न करने की
+के द्वारा पुरुष जान लेता है कि अधिक उपयुक्त क्या है P>
+खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे
+हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो
+उन्हें खरीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने
+को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता मनुष्य कहाँ लगता है । P>
+वाणी ही बोलनी चाहिये वाणी में क्या दरिद्रता  P>
+वाले लोगों का तो पृथ्वी ही परिवार है ।
+अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं P>
+अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं P>
+खाने वाला इमानदारी का अन्न खाने वाला P>
+वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का
+त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने
+माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है P>
+कानपुर जिले के निवासी P>
+लाए जा सकते हैं। ईसा मसीह
+अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। -वेद
+अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । रामकृष्ण परमहंस P>
+हृदय की वृत्ति को बताती हैं। महात्मा गांधी P>
+यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। -बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’ P>
+पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है। -रवीन्द्रनाथ
+जीत सकता है । गौतम बुद्ध P>
+आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। -बस्र्आ P>
+खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण ��क्तियां बनाते हैं
+और मर्यादित चेतना । डा शंकर दयाल शर्मा P>
+प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। श्री
+स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध । सरदार पटेल
+है बल प्रयोग नहीं P>
+होता उसमें बहुत जल भरा होता है । P>
+किया जता है । P>
+के चरती है । P>
+गदही भी अप्सरा बन जाती है । P>
+प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P>
+विचार को परखने की कसौटी P>
+
+
+सुभाषित का अर्थ है 'अच्छी तरह से कहा हुआ सु भाषित) । इसे सूक्ति सु उक्ति) भी कहते हैं। संस्कृत साहित्य में सूक्तियों और सुभाषितों की भरमार है।
+सुभाषितों के बारे में सुभाषित
+: भावार्थ सुभाषित कथन रूपी संंपदा का जो संग्रह नहीं करता वह प्रसंगविशेष की चर्चा के यज्ञ में भला क्या दक्षिणा देगा? समुचित वार्तालाप में भाग लेना एक यज्ञ है और उस यज्ञ में हम दूसरों के प्रति सुभाषित शब्दों की आहुति दे सकते हैं। ऐसे अवसर पर एक व्यक्ति से मीठे बोलों की अपेक्षा की जाती है, किंतु जिसने सुभाषण की संपदा न अर्जित की हो यानी अपना स्वभाव तदनुरूप न ढाला हो वह ऐसे अवसरों पर औरों को क्या दे सकता है ?
+: संसार रूपी कड़वे पेड़ से अमृत तुल्य दो ही फल उपलब्ध हो सकते हैं, एक है मीठे बोलों का रसास्वादन और दूसरा है सज्जनों की संगति।
+: भाषाओं में मुख्य, मधुर और दिव्य भाषा संस्कृत है। उसमें भी काव्य मधुर है, और काव्य में भी सुभाषित।
+: सुभाषितरस के आगे द्राक्षा (अंगूर) का मुख म्लान (खट्टा) हो गया, शर्करा खड़ी हो गयी और अमृत डरकर स्वर्ग चली गयी।
+* सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं । लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड़ न जमा लें। गोथे
+* किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। विंस्टन चर्चिल
+* बुद्धिमानों की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है। आईजक दिसराली
+* सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती। राबर्ट हेमिल्टन
+* विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है। मैथ्यू अर्नाल्ड
+* मैं अक्सर खुद को उद्धृत करता हूँ। इससे मेरे भाषण मसालेदार हो जाते हैं। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
+* सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती। राबर्ट हेमिल्टन
+
+
+अपना बनाने के लिये ह���को ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे
+का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर
+क्या लभ है  इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है
+उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता P>
+सम्बन्ध सी.डी से कैट-स्कैन से पार्किंग-मीटरों से राष्ट्रपति-चुनावों से और
+कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है । गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिये है
+परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं ।
+की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार
+संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया
+व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं  लेकिन यदि
+करने का कोई औचित्य नहीं है ।
+यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है ।
+हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता
+रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु
+खरीदना पसंद करूंगा। पेट खाली रखकर भी यदि कला-दृष्टि को सींचने का अवसर हाथ लगता
+तरीका है उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी
+राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को
+को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ । P>
+इतिहास भी है । P>
+विकास कर रही हैं तो समाज भी विकास करता है, यदि वे क्षीण हो रही हैं तो समाज भी
+सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही
+सत्यवादी उदार या इमानदार नहीं बन सकते ।
+रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की
+की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में
+अंधेरे रास्ते में जाने का साहस कम लोगों में ही होता है।
+लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं
+कुछ किया ही नही गया।
+विद्या विष के समान है nbsp P>
+हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर
+के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं।
+अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण
+हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर
+सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त
+धन का अर्जन करना चाहिये ।
+उतना मनुष्य द्वारा स्थापित किसी दूसरी संस्था से नहीं ।
+काम पूरा किया जा सकता है ।
+निस्तेज मनुष्य का समाज तिरस्कार करता है । तिरष्कृत मनुष्य में वैराग्य भाव
+उत्पन्न हो जाते हैं और तब मनुष्य को शोक होने लगता है । जब मनुष्य शोकातुर होता है
+तो उसकी बुद्धि क्षीण होने लगती है और बुद्धिहीन मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है
+“गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये ।
+लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है ।
+है न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है । P>
+हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं ।
+मंत्र योजना परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है प्रभाव राजोचित
+शक्ति तेज से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह उद्यम से कार्य सिद्ध होता
+चाहिये । आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का
+प्रजातन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है बल्कि नेताओं को
+हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा
+हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा
+देश की सुरक्षा है । जो सम्बन्ध धरन बीम का घर से है या हड्डी का शरीर से है
+साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर
+( क्षण जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है ऐसे नर-पशु को नमस्कार ।
+तो आपको इसे बनाना पडेगा ।
+कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये P>
+कामयाब व्यक्ति बना दिया है ।
+असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है ।
+संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया
+नही दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता P>
+द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है P>
+दिये जा सकते हैं पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है । जब आदमी ने सबसे पहले
+प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी । प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक
+प्रौद्योगिकी सूचना-साक्षरता सूचना प्���वीण सूचना की सतंत्रता
+उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं उतना ही अधिक यह बढता है । इसको आसानी से
+बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग ।
+नहीं  और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं ।
+उन्हें स्वयं को उन शक्तियों से सुसज्जित करना चाहिये जो ज्ञान से प्राप्त होती हैं
+से बडी याददास्त से भी बडी होती है ।
+लोगों के लिये यह धमकी भरा होता है क्योंकि उनको लगता है कि स्थिति और बिगड सकती है
+शुरु होता हो कोई ऐसा मूल (जड़) नही है जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी
+प्रतिशत के लिये अधिक विश्लेषण की जरूरत होती है ।
+लगती है कि क्या करना चाहिये ।
+से चलाये जाते हैं ।
+देता है जो उससे पूछे जाते हैं ।
+समस्या है । लोग स्वतन्त्र चिन्तन करके परमार्थ का प्रकाशन नहीं करते बल्कि दूसरों
+को साथ- साथ ध्यान में रखते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का होना
+स्वयं परीक्षा करके प्राचीन और नवीन के गुण-दोषों का विवेचन करते हैं लेकिन जो मूढ़
+पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत
+जाता है पर यदि आप हाथ-पैर नहीं चलायेंगे तो केवल पतवार की उपस्थिति से गंतव्य तट
+करने की कोशिश करता है । P>
+भी आस-पास मौजूद नहीं है। यदि आप किसी संगीत की प्रस्तुति कर रहे हों तो आप को
+ऐसा प्रतीत होना चाहिये कि आप की प्रस्तुति पर आप के सिवा अन्य किसी का भी
+ध्यान नहीं है । और यदि आप सचमुच में किसी से प्रेम कर बैठें हों तो आप में
+ऐसी अनुभूति होनी चाहिए कि आप पहले कभी भी भावनात्मक तौर पर आहत नहीं हुए
+जाता है विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है P>
+ध्यान कुत्ते जैसी निद्रा अल्पहारी और गृहत्यागी । P>
+वो जमाना गया जब आप अनुभव से सीखते थे अब आपको भविष्य से सीखना पडेगा ।
+है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार
+की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह
+सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम
+, बहुत सारी विद्याएँ हैं समय अल्प है और बहुत सी बाधायें है । ऐसे में जो
+सारभूत है सरलीकृत है वही करने योग्य है जैसे हंस पानी से दूध को अलग करक पी
+हाजिर जबाब ये दोनो सुख भोगते हैं । “जैसा होना होगा होगा” ऐसा सोचने वाले का
+विनाश हो जाता है ।
+अधिकांश गणित की जन���ी है बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है
+ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शासन और लोकतंत्र की जननी है । अनेक प्रकार से भारत
+पौराणिक कथाओं की दादी है और प्रथाओं की परदादी है । मानव इतिहास की हमारी सबसे
+मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था तो वह भारत ही है
+रहकर पृथ्वी के सब लोगों ने अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ली । P>
+चीजों में निहित है संस्कृति और संस्कृत । P>
+ग्रीक से अधिक परिपूर्ण है और लैटिन से अधिक शब्दबहुल है तथा दोनों से अधिक
+में संस्कृत साहित्य की खोज से बढकर कोई विश्वव्यापी महत्व की दूसरी घटना नहीं घटी
+कृत्रिम भाषा के रूप में भी कार्य कर सकती है और कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में
+किया गया अधिकाश काम हजारों वर्ष पुराने पहिये संस्कृत को खोजने जैसा ही रहा है
+हैं और जिनको पैसे से नहीं खरीदा जा सकता ।
+संसार से छिपाकर चलता है। असली और स्थाई शक्ति सहनशीलता में है। त्वरित और कठोर
+प्रतिक्रिया सिर्फ कमजोर लोग करते हैं और इसमें वे अपनी मनुष्यता को खो देते
+से दुःख में जाता है वह जीवित भी मृत के समान जीता है। P>
+रहते हैं माना जाता है कि खटमल के डर से ॥
+विष्णु क्षीरसागर में सोते हैं और शिव हिमालय पर । P>
+खुश होना चाहते हैं तो प्यार में पड़ जाएँ. और अगर हमेशा के लिए खुश रहना चाहते हैं
+प्रयास करती है और अंत में शिकायत करती है कि यह वह आदमी नहीं है जिससे उसने शादी
+साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर
+आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है। इसीलिए संतों ने निंदकों को ‘आंगन कुटि
+छवाय’ पास रखने की सलाह दी है। P>
+करना  ये दस धर्म के लक्षण हैं । P>
+पर चलो  अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये ।
+कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी
+ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के
+क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक
+में जो भेद है, उसे वे ही जानते हैं जो कि ‘काकली’ (स्वर-माधुरी) की पहचान रखते
+अन्य पक्षियों के लिए अपने हिस्से का मांस, जैसाकि उसका स्वभाव होता है, त्याग देता
+है तो वह पर सुख का अनुभव करता है। यानि सारा खेल इच्छा आसक्ति अथवा अपने मन का
+से पुण्य मिलता है और दूसरे को पीडा देने से पाप ।
+पानी नहीं पीती हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। बादल अपने लिये वर्षा नहीं
+करते हैं। सन्तों का का धन परोपकार के लिये होता है । P>
+गुणवानो का बल क्षमा है ।
+और न धर्म है  वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर
+चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है। और जब सारी चीज़ें आपके पास
+प्यासे होते जाते हैं P>
+के प्रश्नों की भांति उसे हल नहीं किया जा सकता। वह सवाल नहीं एक चुनौती है, एक
+प्रारंभ में बहुत पतली होती है। पत्थरों, चट्टानों, झरनों को पार करके मैदान में
+आती है, एक क्रम से उसका विस्तार होता है, फिर भी बड़ी मन्थर गति से बहती है और
+बिना क्रम भंग किये अंत में समुद्र में विलीन हो जाती है। समुद्र में अपने अस्तित्व
+को समाप्त करते समय वह किसी भी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं करती जो वृद्ध परुष
+से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न
+होता है। क्रोध से मूढ़ता और बुद्धि भ्रष्टता उत्पन्न होती है। बुद्धि के भ्रष्ट
+होने से स्मरण-शक्ति विलुप्त हो जाती है, यानी ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है। और
+विष खाने से लाभ होता है लेकिन अकेले खाने से मरण ।
+होने पर मनुष्य को बेंत की रीति-नीति का अनुपालन करना चाहिये, अर्थात नम्र हो जाना
+तीन तरह के पुत्रों मे से अजात और मृत पुत्र अधिक श्रेष्ठ हैं क्योंकि अजात और
+वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही
+कद्र करता है। हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो
+अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी,
+राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज
+कि सत्य को दफ़नाया जा सकता है, उसकी हत्या नहीं की जा सकती। सत्य कब्र से भी उठकर
+सामने आ जाता है और उनके पीछे भूत की तरह लग जाता है जिन्होंने उसे दफ़न करने की
+के द्वारा पुरुष जान लेता है कि अधिक उपयुक्त क्या है P>
+खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे
+हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो
+उन्हें खरीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने
+को और पुरुष के भाग��य को भगवान् भी नहीं जानता मनुष्य कहाँ लगता है । P>
+वाणी ही बोलनी चाहिये वाणी में क्या दरिद्रता  P>
+वाले लोगों का तो पृथ्वी ही परिवार है ।
+अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं P>
+अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं P>
+खाने वाला इमानदारी का अन्न खाने वाला P>
+वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का
+त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने
+माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है P>
+कानपुर जिले के निवासी P>
+लाए जा सकते हैं। ईसा मसीह
+अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। -वेद
+अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । रामकृष्ण परमहंस P>
+हृदय की वृत्ति को बताती हैं। महात्मा गांधी P>
+यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। -बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’ P>
+पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है। -रवीन्द्रनाथ
+जीत सकता है । -गौतम बुद्ध P>
+आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। -बस्र्आ P>
+खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं
+और मर्यादित चेतना । डा शंकर दयाल शर्मा P>
+प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। श्री
+स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध । सरदार पटेल P>
+है बल प्रयोग नहीं P>
+होता उसमें बहुत जल भरा होता है । P>
+किया जता है । P>
+के चरती है । P>
+गदही भी अप्सरा बन जाती है । P>
+प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P>
+विचार को परखने की कसौटी P>
+प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P>
+विचार को परखने की कसौटी P>
+प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P>
+विचार को परखने की कसौटी P>
+प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P>
+विचार को परखने की कसौटी P>
+प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P>
+विचार को परखने की कसौटी P>
+प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P>
+विचार को परखने की कसौटी P>
+प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P>
+विचार को परखने की कसौटी P>
+प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P>
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+प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P>
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+* हम अंग्रेर्जों के जमाने के जेलर है! ह हा।
+* ऐसे कैसे पैसे मांग रिये हो।
+गब्बर सूना? पूरे पचास हज़ार और ये इनाम इसलिए है कि यहाँ से पचास पचास कोस दूर गाँवों में जब बच्चा रात को रोता है तो माँ कहती है बेटा सो जा सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा।" और ये तीन हराम ज़ादे ये गब्बर सिंह का नाम पूरा मिट्टी में मिलाये दिये इसकी सज़ा मिलेगी बराबर मिलेगी
+:(एक आदमी से पिस्तौल लेता है और उससे पूछता है) कितनी गोली है इसके अंदर?
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+* जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा है।
+* ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्थि कर सकता है। सभी जीवंत ईश्वर हैं–इस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवन्त काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो।
+* ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
+* मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतय बाहर हो सकते हैं–निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।
+*जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंग��े ही आगे बढ़ सकते हैं।
+* जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।
+* आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।
+* मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुँचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।
+* हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।
+* मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।
+* पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।
+* सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र- सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।
+* संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत��या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।
+* श्रेयांसि बहुविघ्नानि अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं। प्रलय मचाना ही होगा, इससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता। कुछ परवाह नहीं। दुनीया भर में प्रलय मच जायेगा, वाह! गुरु की फतह! अरे भाई श्रेयांसि बहुविघ्नानि, उन्ही विघ्नों की रेल पेल में आदमी तैयार होता है। मिशनरी फिशनरी का काम थोडे ही है जो यह धक्का सम्हाले!।।।। बडे-बडे बह गये, अब गडरिये का काम है जो थाह ले? यह सब नहीं चलने का भैया, कोई चिन्ता न करना। सभी कामों में एक दल शत्रुता ठानता है; अपना काम करते जाओ किसी की बात का जवाब देने से क्या काम? सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येनैव पन्था विततो देवयानः (सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं; सत्य के ही बल से देवयानमार्ग की गति मिलती है।)।।। धीरे-धीरे सब होगा।
+* वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं।
+* इस तरह का दिन क्या कभी होगा कि परोपकार के लिए जान जायेगी? दुनिया बच्चों का खिलवाड नहीं है बडे आदमी वे हैं जो अपने हृदय-रुधिर से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं- यही सदा से होता आया है एक आदमी अपना शरीर-पात करके सेतु निर्माण करता है, और हज़ारों आदमी उसके ऊपर से नदी पार करते हैं। एवमस्तु एवमस्तु, शिवोsहम् शिवोsहम् (ऐसा ही हो, ऐसा ही हो- मैं ही शिव हूँ, मैं ही शिव हूँ। )
+* मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे सौगुना उन्न्त बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा- मैं कहता हूँ, अवश्य बनना होगा। आज्ञा-पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता।
+* अन्त में प्रेम की ही विजय होती है। हैरान होने से काम नहीं चलेगा- ठहरो- धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है- तुमसे कहता हूँ देखना- कोई बाहरी अनुष्ठा���पध्दति आवश्यक न हो- बहुत्व में एकत्व सार्वजनिन भाव में किसी तरह की बाधा न हो। यदि आवश्यक हो तो "सार्वजनीनता" के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोड़ना होगा। मैं मरूँ चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ, तुम लोग अच्छी तरह याद रखना कि, सार्वजनीनता- हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते कि दुसरों के धर्म का द्वेष न करना नहीं, हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उनका ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं सावधान रहना, दूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना इसी भँवर में बडे-बडे जहाज डूब जाते हैं पुरी भक्ति, परन्तु कट्टरता छोडकर, दिखानी होगी, याद रखना उन्की कृपा से सब ठीक हो जायेगा।
+* नीतिपरायण तथा साहसी बनो, अन्त: करण पूर्णतया शुद्ध रहना चाहिए। पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी बनो प्रणों के लिए भी कभी न डरो। कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीर पुरूष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते यहाँ तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार नहीं लाते। प्राणिमात्र से प्रेम करने का प्रयास करो। बच्चो, तुम्हारे लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोडकर और कोई दूसरा धर्म नहीं। इसके सिवाय और कोई धार्मिक मत-मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है। कायरता, पाप्, असदाचरण तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिए, बाक़ी आवश्यकीय वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी।
+* शक्तिमान, उठो तथा सामर्थ्यशाली बनो। कर्म, निरन्तर कर्म; संघर्ष निरन्तर संघर्ष! अलमिति। पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो सारा धर्म इसी में है।
+* क्या संस्कृत पढ रहे हो? कितनी प्रगति होई है? आशा है कि प्रथम भाग तो अवश्य ही समाप्त कर चुके होंगे। विशेष परिश्रम के साथ संस्कृत सीखो।
+* शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है। इसलिए अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो।
+* बच्चों, धर्म का रहस्य आचरण से जाना जा सकता है, व्यर्थ के मतवादों से नहीं। सच्चा बनना तथा सच्चा बर्ताव करना, इसमें ही समग्र धर्म निहित है। जो केवल प्रभु-प्रभु की रट लगाता है, वह नहीं, किन्तु जो उस परम पिता के इच्छानुसार कार्य करता है वही धार्मिक है। यदि कभी कभी तुमको संसार का थोड़ा-बहुत धक्का भी खाना पडे, तो उससे विचलित न होना, मुहूर्त भर में वह दूर हो जायगा तथा सारी स्थिति पुनः ठीक हो जायगी।
+* जब तक जीना, तब तक सीखना अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।
+* भाग्य बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है। पीछे मुडकर मत देखो आगे, अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमित साहस और निस्सीम धैर्य की आवश्यकता है- और तभी महत कार्य निष्पन्न किये जा सकते हैं। हमें पूरे विश्व को उद्दीप्त करना है।
+* पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं।
+* बच्चों, जब तक तुम लोगों को भगवान तथा गुरू में, भक्ति तथा सत्य में विश्वास रहेगा, तब तक कोई भी तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकता। किन्तु इनमें से एक के भी नष्ट हो जाने पर परिणाम विपत्तिजनक है।
+* महाशक्ति का तुम में संचार होगा कदापि भयभीत मत होना। पवित्र होओ, विश्वासी होओ, और आज्ञापालक होओ।
+* धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वासपात्र रहो। आपस में न लडो! रुपये पैसे के व्यवहार में शुद्ध भाव रखो। हम अभी महान कार्य करेंगे। जब तक तुम में ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हे सफलता मिलेगी।
+* ईर्ष्या तथा अंहकार को दूर कर दो संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो।
+* पूर्णतः निःस्वार्थ रहो, स्थिर रहो, और काम करो। एक बात और है। सबके सेवक बनो और दूसरों पर शासन करने का तनिक भी यत्न न करो, क्योंकि इससे ईर्ष्या उत्पन्न होगी और इससे हर चीज़ बर्बाद हो जायेगी। आगे बढो तुमने बहुत अच्छा काम किया है। हम अपने भीतर से ही सहायता लेंगे अन्य सहायता के लिए हम प्रतीक्षा नहीं करते। मेरे बच्चे, आत्मविश्वास रखो, सच्चे और सहनशील बनो।
+* यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हें सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढ़ेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो।
+* पक्षपात ही सब अनर्थों का मूल है, यह न भूलना। अर्थात् यदि तुम किसी के प्रति अन्य की अपेक्षा अधिक प्रीति-प्रदर्शन करते हो, तो याद रखो उसी से भविष्य में कलह का बीजारोपण होगा।
+* गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। सबके साथ मेल से रहो। अहंकार के सब भाव छोड़ दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। व्यर्थ विवाद महापाप है।
+* बच्चे, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास- ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति ��े विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो।
+* किसी को उसकी योजनाओं में हतोत्साह नहीं करना चाहिए। आलोचना की प्रवृत्ति का पूर्णतः परित्याग कर दो। जब तक वे सही मार्ग पर अग्रेसर हो रहे हैं; तब तक उनके कार्य में सहायता करो; और जब कभी तुमको उनके कार्य में कोई ग़लती नज़र आये, तो नम्रतापूर्वक ग़लती के प्रति उनको सजग कर दो। एक दूसरे की आलोचना ही सब दोषों की जड है। किसी भी संगठन को विनष्ट करने में इसका बहुत बड़ा हाथ है।
+* क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमान् व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खडा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।
+* बच्चे, जब तक हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो।
+* आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें। काम, क्रोध एवं लोभ इस त्रिविध बन्धन से हम मुक्त हो जायें और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा।
+* शक्ति और विश्वास के साथ लगे रहो। सत्य निष्ठा, पवित्र और निर्मल रहो, तथा आपस में न लडो। हमारी जाति का रोग ईर्ष्या ही है।
+* मेरा आदर्श अवश्य ही थोड़े से शब्दों में कहा जा सकता है मनुष्य जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना, तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना।
+* हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता है उपहास, विरोध और स्वीकृति। जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते है। इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं; परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और भगवान् में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे।
+* प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पडती हैं। इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो। ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तरकाल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त भण्डार है। जब तक हम उस अन्तराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है। एक बार उस शान्ति-मण्डल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आँधी और तूफान के जितने तुमुल झकोरे आयें, वह मकान, जो सदियों की पुरानि चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता।
+* न संख्या-शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक चातुर्य, कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुध्द जीवन, एक शब्द में अनुभूति, आत्म-साक्षात्कार को विजय मिलेगी! प्रत्येक देश में सिंह जैसी शक्तिमान दस-बारह आत्माएँ होने दो, जिन्होने अपने बन्धन तोड डाले हैं, जिन्होंने अनन्त का स्पर्श कर लिया है, जिनका चित्र ब्रह्मनुसन्धान में लीन है, जो न धन की चिन्ता करते हैं, न बल की, न नाम की और ये व्यक्ति ही संसार को हिला डालने के लिए पर्याप्त होंगे।
+* यही रहस्य है। योग प्रवर्तक पतंजलि कहते हैं जब मनुष्य समस्त अलौकेक दैवी शक्तियों के लोभ का त्याग करता है, तभी उसे धर्म मेघ नामक समाधि प्राप्त होती है। वह प्रमात्मा का दर्शन करता है, वह परमात्मा बन जाता है और दूसरों को तदरूप बनने में सहायता करता है। मुझे इसीका प्रचार करना है। जगत् में अनेक मतवादों का प्रचार हो चुका है। लाखों पुस्तकें हैं, परन्तु हाय! कोई भी किंचित् अंश में प्रत्य्क्ष आचरण नहीं करता।
+* एक महान रहस्य का मैंने पता लगा लिया है वह यह कि केवल धर्म की बातें करने वालों से मुझे कुछ भय नहीं है। और जो सत्यद्र्ष्ट महात्मा हैं, वे कभी किसी से बैर नहीं करते। वाचालों को वाचाल होने दो! वे इससे अधिक और कुछ नहीं जानते! उन्हे नाम, यश, धन, स्त्री से सन्तोष प्राप्त करने दो। और हम धर्मोपलब्धि, ब्रह्मलाभ एवं ब्रह्म होने के लिए ही दृढ़व्रत होंगे। हम आमरण एवं जन्म-जन्मान्त में सत्य का ही अनुसरण करेंगें। दूसरों के कहने पर हम तनिक भी ध्यान न दें और यदि आजन्म यत्न के बाद एक, देवल एक ही आत्मा संसार के बन्धनों को तोड़कर मुक्त हो सके तो हमने अपना काम कर लिया।
+* वत्स, धीरज रखो, काम तुम्हारी आशा से बहुत ज्यादा बढ जाएगा। हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैकड़ों कठिनाइयों का सामना करना पडता है। जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल सफलता को देखेंगे। परिश्रम करना है वत्स, कठिन परिश्रम्! काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे में शिष्य न ढल जाय निश्चय ही कठिन काम है। जो प्रतिक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं। अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो।
+* मेरी दृढ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है। तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे धीरे और भी अन्य लोग आयेंगे। 'साहसी' शब्द और उससे अधिक 'साहसी' कर्मों की हमें आवश्यकता है। उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है। क्या तुम सो सकते हो? हम बार बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। जीवन में और क्या है? इससे महान कर्म क्या है?
+* एक समस्या आती है, तब मनुष्य अनुभव करता है की थोड़ी-सी मनुष्य की सेवा करना लाखो जप-ध्यान से कही बढ़ाकर है।
+* किसी की निंदा ना करें।अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं।अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
+* एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो।
+* उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
+* हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
+* बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
+* एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है।
+* जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
+* कुछ सच्चे, इमानदार और उर्जावान पुरुष और महिलाएं; जितना कोई भीड़ एक सदी में कर सकती है उससे अधिक एक वर्ष में कर सकते हैं.
+* जिस दिन आपके सामने कोई समस्या न आये – आप यकीन कर सकते है की आप गलत रस्ते पर सफर कर रहे है।
+* मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं–निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।
+* धन्य हैं वो लोग जिनके शरीर दूसरों की सेवा करने में नष्ट हो जाते हैं।
+* वेदान्त दर्शन भारत के प्राचीन दर्शनों में से सबसे महत्त्वपूर्ण दर्शन है, जिसका विश्वास है कि केवल परमात्मा ही सत्य है। और दृष्टिगोचर विश्व असत्य है तथा व्यक्ति की आत्मा का सर्वोच्य आत्मा अर्थात् परमात्मा में लीन होना ही प्रत्येक मानव का लक्ष्य है। इसे मुक्ति कहा गया और सत्य ज्ञान से ही प्राप्त की जा सकती है।
+* हमें जो कुछ चाहिए वह यह श्रद्धा ही है। दुर्भाग्यवश भारत से इसका प्रायः लोप ही हो गया है, और हमारी वर्तमान दुर्दशा का कारण भी यही है। एकमात्र इस श्रद्धा के भेद से ही मनुष्य-मनुष्य में अन्तर पाया जाता है। इसका और दूसरा कारण नहीं। यह श्रद्धा ही है, जो एक मनुष्य को बड़ा और दूसरे को दुर्बल और छोटा बना देती है। कलकत्ता-अभिनन्दन का उत्तर)
+* हमारे जातीय शोणित में एक प्रकार के भयानक रोग का बीज समा रहा है और वह है प्रत्येक विषय को हँसकर उड़ा देना – गाम्भीर्य का अभाव। इस दोष का सम्पूर्ण रूप से त्याग करो। वीर होओ, श्रद्धा-सम्पन्न होओ, दूसरी बातें उनके पीछे आप ही आयेंगी – उन्हें उनका अनुसरण करना ही होगा। कोलम्बो से अल्मोड़ा तक)
+* अपने से निम्न श्रेणिवालों के प्रति हमारा एकमात्र कर्तव्य है – उनको शिक्षा देना, उनके खोये हुए व्यक्तित्व के विकास के लिए सहायता करना। उनमें विचार पैदा कर दो – बस, उन्हें उसी एक सहायता का प्रयोजन है, और शेष सब काल इसके फलस्वरूप आप ही आ जायगा। हमें केवल रासायनिक सामग्रियों को इकट्ठा भर कर देना है, उनका निर्दिष्ट आकार प्राप्त करना – रवा बँध जाना तो प्राकृतिक नियमों से ही साधित होगा। … अच्छा, यदि पहाड़ मुहम्मद के पास न आये, तो महम्मद ही पहाड़ के पास क्यों न जायँ? यदि ग़रीब लड़का शिक्षा के मन्दिर तक न जा सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए। स्वामी विवेकानंद की पत्रावली १, १३४-३५)
+* शिक्षा क्या वह है जिसने निरन्तर इच्छाशक्ति को बल-पूर्वक पीढ़ी-दर-पीढ़ी रोक कर प्रायः नष्ट कर दिया है, जिसके प्रभाव से नये विचारों की तो बात ही जाने दीजिये, पुराने विचार भी एक एक करके लोप होते चले जा रहे हैं, क्या वह शिक्षा है। जो मनुष्य को धीरे धीरे यन्त्र बना रही है? जो स्वयं-चालित यन्त्र के समान सुकर्म करता है, उसकी अपेक्षा अपनी स्वतन्त्र इच्छाशक्ति और बुद्धि के बल से अनुचित कर्म करनेवाला मेरे विचार से धन्य है। स्वामी विवेकानंद की पत्रावली २, २९१)
+* आज हमें आवश्यकता है वेदान्तयुक्त पाश्चात्य विज्ञान की, ब्रह्मचर्य के आदर्श और श्रद्धा तथा आत्मविश्वास की। … वेदान्त का सिद्ध���न्त है कि मनुष्य के अन्तर में–एक अबोध शिशु में भी–ज्ञान का समस्त भण्डार निहित है, केवल उसके जागृत होने की आवश्यकता है, और यही आचार्य का काम है। … पर इस सब का मूल है धर्म – वही मुख्य है। धर्म तो भात के समान है, शेष सब वस्तुएँ तरकारी और चटनी जैसी हैं। केवल तरकारी और चटनी खाने से अपथ्य हो जाता है, और केवल भात खाने से भी। विवेकानन्द जी के सान्निध्य में, ४)
+* देखो, एकमात्र ब्रह्मचर्य का ठीक ठीक पालन कर सकने पर सभी विद्याएँ बहुत ही कम समय में हस्तगत हो जाती हैं – मनुष्य श्रुतिधर, स्मृतिधर बन जाता है। ब्रह्मचर्य के अभाव से ही हमारे देश का सब कुछ नष्ट हो गया। विवेकानन्द जी के सान्निध्य में, ३२७)
+* मेरा विश्वास है कि गुरु के साक्षात् सम्पर्क रखते हुए, गुरु-गृह में निवास करने से ही यथार्थ शिक्षा की प्राप्ति होती है। गुरु से साक्षात् सम्पर्क हुए बिना किसी प्रकार की शिक्षा नहीं हो सकती। हमारे वर्तमान विश्वविद्यालयों की ही बात लीजिए। उनका आरम्भ हुए पचास वर्ष हो गये (यह १८९७ में मद्रास में कहा गया था) फल क्या मिला है? वे एक भी मौलिक-भाव-संपन्न व्यक्ति उत्पन्न नहीं कर सके। परीक्षा लेने वाली संस्थाएँ मात्र हैं! साधारण जनता की जागृति और उसके कल्याण के लिए स्वार्थ-त्याग की मनोवृत्ति का हममें थोड़ा भी विकास नहीं हुआ है। स्वामी विवेकानन्द जी से वार्तालाप, ७६)
+* सत्य, प्राचीन अथवा आधुनिक किसी समाज का सम्मान नहीं करता। समय को ही सत्य का सम्मान करना पड़ेगा, अन्यथा समाज ध्वंस हो जाय, कोई हानि नहीं सत्य ही हमारे सारे प्राणियों और समाजों का मूल आधार है, अतः सत्य कभी भी समाज के अनुसार अपना गठन नहीं करेगा। … वही समाज सब से श्रेष्ठ है, जहाँ सर्वोच्च सत्यों को कार्य में परिणत किया जा सकता है – यही मेरा मत है। और यदि समाज इस समय उच्चतम सत्यों को स्थान देने में समर्थ नहीं है, तो उसे इस योग्य बनाओ। और जितना शीघ्र तुम ऐसा कर सको, उतना ही अच्छा। ज्ञान योग ६१-६३)
+* प्रत्येक मनुष्य एवं प्रत्येक राष्ट्र को बड़ा बनाने के लिए तीन बातें आवश्यक हैं– १. सौजन्य की शक्ति में दृढ़ विश्वास ,२. ईर्ष्या और सन्देह का अभाव, ३. जो सन्मार्ग पर चलने में और सत्कर्म करने में संलग्न हों, उनकी सहायता करना। स्वामी विवेकानंद की पत्रावली १, १०८)
+* यदि आपका आदर्श जड़ है, तो आप भी जड़ हो जायेंगे। स्मरण रहे हमारा आदर्श है, परमा��्मा। एकमात्र वे ही अविनाशी हैं – अन्य किसी का अस्तित्व नहीं है, और उन परमात्मा की भाँति हम भी सदा विनाशहीन हैं। भारतीय नारी, २२)
+* हिन्दू का खाना धार्मिक, उसका पीना धार्मिक, उसकी नींद धार्मिक उसकी चाल-ढाल धार्मिक, उसके विवाहादि धार्मिक, यहाँ तक कि उसकी डकैती करने की प्रेरणा भी धार्मिक है। … हरएक राष्ट्र का विश्व के लिए एक विशिष्ट कार्य होता है और जब तक वह आक्रान्त नहीं होता, तब तक वह राष्ट्र जीवित रहता है – चाहे कोई भी संकट क्यों न आये। पर ज्यों ही कार्य नष्ट हुआ कि राष्ट्र भी ढह जाता है। मेरा जीवन तथा ध्येय, ५-६)
+* क्या तुमने इतिहास में नहीं पढ़ा है कि देश के मृत्यु का चिह्न अपवित्रता या चरित्रहीनता के भीतर से होकर आया है – जब यह किसी जाति में प्रवेश कर जाती है, तो समझना कि उसका विनाश निकट आ गया है। ज्ञान योग ३२)
+* इस समय हम पशुओं की अपेक्षा कोई अधिक नीतिपरायण नहीं हैं। केवल समाज के अनुशासन के भय से हम कुछ गड़बड़ नहीं करते। यदि समाज आज कह दे कि चोरी करने से अब दण्ड नहीं मिलेगा, तो हम इसी समय दूसरे की सम्पत्ति लूटने को छूट पड़ेंगे। पुलिस ही हमें सच्चरित्र बनाती है। सामाजिक प्रतिष्ठा के लोप की आशंका ही हमें नीतिपरायण बनाती है, और वस्तुस्थिती तो यह है कि हम पशुओं से कुछ ही अधिक उन्नत हैं। ज्ञान योग २७५)
+* अधिकांश सम्प्रदाय अल्पजीवी और पानी के बुदबुदे के समान क्षणभंगुर होते हैं, क्योंकि बहुधा उनके प्रणेताओं में चरित्र-बल नहीं होता। पूर्ण प्रेम और प्रतिक्रिया न करनेवाले हृदय से चरित्र का निर्माण होता है। जब नेता में चरित्र नहीं होता, तब उसमें निष्ठा की सम्भावना नहीं होती। चरित्र की पूर्ण पवित्रता से स्थायी विश्वास और निष्ठा अवश्य उत्पन्न होती है। कोई विचार लो, उसमें अनुरक्त हो जाओ, धैर्य-पूर्वक प्रयत्न करते रहो, तो तुम्हारे लिए सूर्योदय अवश्य होगा। भगवान बुद्ध का संसार को संदेश एवं अन्य व्याख्यान और प्रवचन, १५५)
+* हमसे पूछा जाता है कि ‘आपके धर्म से समाज का क्या लाभ है?’ समाज को सत्य की कसौटी बनाया गया है। यह तो बड़ी तर्कहीनता है। समाज केवल विकास की एक अवस्था है, जिसमें होकर हम गुज़र रहे हैं। … यदि सामाजिक अवस्था स्थायी होती है, तो वह शिशु ही बनी रहने जैसी बात होती। पूर्ण मनुष्य शिशु नहीं हो सकता; यह शब्द – ‘मनुष्य-शिशु’ – ही विरोधाभासी है – इसलिए कोई समाज पूर्ण ��हीं हो सकता। मनुष्य को ऐसी आरम्भिक अवस्थाओं से आगे बढ़ना होगा और वह बढ़ेगा। … मेरे गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे, “तुम स्वयं अपने कमल के फूल को खिलने में सहायता क्यों नहीं देते? भौरे तब अपने आप आयेंगे। नारद-भक्ति-सूत्र एवं भक्ति-विषयक प्रवचन और आख्यान, २१)
+* दूसरों में बुराई न देखो। बुराई अज्ञान है, दुर्बलता है। लोगों को यह बताने से क्या लाभ कि वे दुर्बल हैं। आलोचना और खण्डन से कोई लाभ नहीं होता। हमें उन्हें कुछ ऊँची वस्तु देनी चाहिए; उन्हें उनके गरिमामयी स्वरूप की, उनके जन्मसिद्ध अधिकार की बात बताओ। नारद-भक्ति-सूत्र एवं भक्ति-विषयक प्रवचन और आख्यान, १७)
+* मैं ‘सुधार’ नहीं कहता, अपितु कहता हूँ – ‘बढ़े चलो।’ कोई वस्तु इतनी बुरी नहीं है कि उसका सुधार या पुनर्निर्माण करना पड़े। अनुकूलनक्षमता (Adaptability) ही जीवन का एकमात्र रहस्य है – उसे विकसित करनेवाला अन्तर्निहित तत्त्व है। बाह्य शक्तियों द्वारा आत्मा को दमित करने की चेष्टा के विरुद्ध आत्मा के प्रयास का परिणाम ही अनुकूलन या समायोजन है। जो अपना सर्वोत्तम अनुकूलन कर लेता है, वह सर्वाधिक दीर्घजीवी होता है। यदि मैं उपदेश न भी दूँ, तो भी समाज परिवर्तित हो रहा है, वह परिवर्तित अवश्य होगा। स्वामी विवेकानंद के विविध प्रसंग, ११६)
+* और किसी बात की आवश्यकता नहीं, आवश्यकता है केवल प्रेम, अकपटता एवं धैर्य की। जीवन का अर्थ ही वृद्धि, अर्थात् विस्तार, यानी प्रेम है। इसलिए प्रेम ही जीवन है, यही जीवन का एकमात्र गतिनियामक है और स्वार्थपरता ही मृत्यु है। इहलोक एवं परलोक में यही बात सत्य है। यदि कोई कहे कि देह के विनाश के पीछे और कुछ नहीं रहता तो भी उसे यह मानना ही पड़ेगा कि स्वार्थपरता ही यथार्थ मृत्यु है। परोपकार ही जीवन है, परोपकार न करना ही मृत्यु है। जितने नर-पशु तुम देखते हो उनमें नब्बे प्रतिशत मृत हैं, वे प्रेत हैं क्योंकि, ऐ बच्चो, जिसमें प्रेम नहीं है वह तो मृतक है। स्वामी विवेकानंद की पत्रावली १, २०९-१०)
+* एक ओर नवीन भारत कहता है कि “पाश्चात्य जातियाँ जो कुछ करें वही अच्छा है। अच्छा न होता तो वे ऐसी बलवान हुई कैसे?” दूसरी ओर प्राचीन भारत कहता है कि “बिजली की चमक तो खूब होती है, पर क्षणिक होती है। रुको! तुम्हारी आँखें चौंधिया रही हैं, सावधान वर्तमान भारत, ४३)
+* उपनिषद्युगीन सुदूर अतीत में, हमने इस संसार को एक चुनौती दी थी – न प्रजया धनेन त्यागेनैके अमृतत्वमानशुः – “न तो सन्तति द्वारा और न सम्पत्ति द्वारा, वरन केवल त्याग द्वारा ही अमृतत्व की उपलब्धि होती है।” एक के बाद दूसरी जाति ने इस चुनौती को स्वीकार किया और अपनी शक्ति भर संसार की इस पहेली को कामनाओं के स्तर पर सुलझाने का प्रयत्न किया। वे सब की सब अतीत में तो असफल रही हैं – पुरानी जातियाँ तो शक्ति और स्वर्ण की लोलुपता से उद्भूत पापाचार और दैन्य के बोझ से दबकर पिस-मिट गयीं और नयी जातियाँ गर्त में गिरने को डगमगा रही हैं। इस प्रश्न का तो हल करने के लिए अभी शेष ही है कि शान्ति की जय होगी या युद्ध की, सहिष्णुता की विजय होगी या असहिष्णुता की, शुभ की विजय होगी या अशुभ की, शारीरिक शक्ति की विजय होगी या बुद्धि की, सांसारिकता की विजय होगी या आध्यात्मिकता की। हमने तो युगों पहले इस प्रश्न का अपना हल ढूँढ लिया था। … हमारा समाधान है असांसारिकता – त्याग। भारत का ऐतिहासिक क्रमविकास एवं अन्य प्रबन्ध, ६२)
+* मुझे एक ऐसा उदाहरण बताओ, जहाँ बाहर से इन प्रार्थनाओं का उत्तर मिला हो। जो भी उत्तर पाते हो, वह अपने हृदय से ही। तुम जानते हो कि भूत नहीं होते, किन्तु अन्धकार में जाते ही शरीर कुछ काँप सा जाता है। इसका कारण यह है कि बिल्कुल बचपन से ही हम लोगों के सिर में यह भय घुसा दिया गया है। किन्तु समाज के भय से, संसार के कहने सुनने के भय से, बन्धु-बान्धवों की घृणा के भय से, अथवा अपने प्रिय कुसंस्कार के नष्ट होने के भय से, यह सब हम दूसरों को न सिखायें। इन सबको जीत लो। धर्म के विषय में विश्व-ब्रह्माण्ड के एकत्व और आत्मविश्वास के अतिरिक्त और क्या शिक्षा आवश्यक है? शिक्षा केवल इतनी ही देनी है। व्यावहारिक जीवन में वेदांत – प्रथम भाग)
+* हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जिससे चरित्र-निर्माण हो, मानसिक शक्ति बढ़े, बुद्धि विकसित हो, और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा होना सीखे। विवेकानंद जी के सान्निध्य में, ४९-५०)
+* जिस अभ्यास से मनुष्य की इच्छाशक्ति, और प्रकाश संयमित होकर फलदाई बने उसी का नाम है शिक्षा।
+* समस्त ज्ञान चाहे वो लोकिक हो या आध्यात्मिक, मनुष्य के मन में है परन्तु प्रकाशित ना होकर वह ढका रहता है । अध्ययन से वह धीरे धीरे उजागर होता है।
+* विद्यार्थी की आवश्यकता के अनुसार शिक्षा में परिवर्तन होना चाहिए ।
+* ज्ञान की प्राप्ति के लिए केवल एक ही मार्ग है औ��� वह है ‘एकाग्रता’ ।
+* एकाग्रता की शक्ति ही ज्ञान के खजाने की एकमात्र कुंजी है
+* ज्ञान का दान मुक्तहस्ट होकर, बिना कोई दाम लिए करना चाहिए ।
+* गुरु के प्रति विश्वास, नम्रता, विनय, और श्रद्धा के बिना हममें धर्म का भाव पनप नहीं सकता ।
+* अधिकांश महापुरुषों को सुख की अपेक्षा दुख और संपत्ति की अपेक्षा दरिद्रता ने अधिक शिक्षा दी है।
+* हम स्वयं अपने भाग्य का निर्माण करते हैं।
+* जब मन को एकाग्र करके अपने ऊपर लगाया जाता है तो हमारे भीतर के सभी हमारे नोकर बन जाते हैं।
+* आत्मविश्वास मानवता का एक शक्तिशाली अंग है।
+* शिक्षक अर्थात गुरु के व्यक्तिगत जीवन के बिना कोई शिक्षा नहीं हो सकती।
+* शिष्य के लिए आवश्यकता है शुद्धता, ज्ञान की सच्ची लगन के साथ परिश्रम की।
+* मस्तिष्क में अनेक तरह का ज्ञान भर लेना, उससे कुछ काम न लेना और जन्म भर वाद विवाद करते रहने का नाम शिक्षा नहीं है।
+* शिक्षा और मेहनत एक सुनहरी चाबी होती है जो बंद भाग्य के दरवाजों को आसानी से खोल देती है
+* यदि गरीब लड़का शिक्षा के लिए नहीं आ सकता है, तो शिक्षा उसके पास जानी चाहिए।
+* ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है ।
+* जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है ।
+* तब तक आपको कोई शिक्षित नहीं कर पायेगा जब तक आप स्वयं प्रयास नहीं करते।
+* महिलाओ को ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए की वे आत्मनिर्भर बन सके और अपनी समस्या खुद हल करने में समर्थ बन सके। उनमे एक आदर्श चरित्र का विकास हो सके।
+* किसी धर्म को विशेष शिक्षा से जोड़ना उचित नहीं है। सभी धर्मो की आवश्यक सामग्री को शिक्षा से जोड़ना चाहिए।
+* शिक्षा का अर्थ है उस पूर्णता को व्यक्त करना जो सब मनुष्यों में पहले से विद्यमान है। स्वामी विवेकानन्द की पत्रावली १, ११४)
+* शिक्षा क्या है? क्या वह पुस्तक-विद्या है? नहीं! क्या वह नाना प्रकार का ज्ञान है? नहीं, यह भी नहीं। जिस संयम के द्वारा इच्छाशक्ति का प्रवाह और विकास वश में लाया जाता है और वह फलदायक होता है, वह शिक्षा कहलाती है। स्वामी विवेकानन्द की पत्रावली २, २९०-९१)
+* मेरे विचार से तो शिक्षा का सार मन की एकाग्रता प्राप्त करना है, तथ्यों का संकलन नहीं। यदि मुझे फिर से अपनी शिक्षा आरम्भ करनी हो और इसमें मेरा वश चले, तो मैं तथ्यों का अध्ययन कदापि न करूँ। मैं मन की एकाग्रता और अनासक्ति का सामर्थ्य बढ़ाता और उपकरण के पूर्णतया तैयार होने पर उससे इच्छानुसार तथ्यों का संकलन करता। भगवान बुद्ध का संसार को संदेश एवं अन्य व्याख्यान और प्रवचन, ७१)
+* जो शिक्षा साधारण व्यक्ति को जीवन-संग्राम में समर्थ नहीं बना सकती, जो मनुष्य में चरित्र-बल, परहित-भावना तथा सिंह के समान साहस नहीं ला सकती, वह भी कोई शिक्षा है? जिस शिक्षा के द्वारा जीवन में अपने पैरों पर खड़ा हुआ जाता है, वही है शिक्षा। विवेकानन्द जी के संग में, १७५)
+* हरएक व्यक्ति हुकूमत जताना चाहता है, पर आज्ञा पालन करने के लिए कोई भी तैयार नहीं है। और यह सब इसलिए है कि प्राचीन काल के उस अद्भुत ब्रह्मचर्य आश्रम का अब पालन नहीं किया जाता। पहले आदेश पालन करना सीखो, आदेश देना फिर स्वयं आ जायगा। पहले सर्वदा दास होना सीखो, तभी तुम प्रभु हो सकोगे। वेदान्त जाफना में दिया भाषण)
+स्वामी विवेकनन्द के बारे में महापुरुषों के विचार
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+*आज़ादी की रक्षा केवल सैनिकों का काम नही है, पूरे देश को मजबूत होना होगा.
+*हम अपने देश के लिए आज़ादी चाहते हैं, पर दूसरों का शोषण कर के नहीं, ना ही दूसरे देशों को नीचा दिखाकर, मैं अपने देश की आजादी ऐसे चाहता हूँ कि अन्य देश मेरे आजाद देश से कुछ सीख सकें, और मेरे देश के संसाधन मानवता के लाभ के लिए प्रयोग हो सकें.
+*जो शासन करते हैं उन्हें देखना चाहिए कि लोग प्रशासन पर किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं. अंततः जनता ही मुखिया होती है।
+*यदि मैं एक तानाशाह होता तो धर्म और राष्ट्र अलग-अलग होते. मैं धर्म के लिए जान तक दे दूंगा. लेकिन यह मेरा नीजी मामला है। राज्य का इससे कुछ लेना देना नहीं है। राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष कल्याण, स्वास्थ्य, संचार, विदेशी संबंधो, मुद्रा इत्यादि का ध्यान रखेगा, लेकिन मेरे या आपके धर्म का नहीं. वो सबका निजी मामला है।
+*भ्रष्टाचार को पकड़ना बहुत कठिन काम है, लेकिन मैं पूरे जोर के साथ कहता हूँ कि यदि हम इस समस्या से गंभीरता और दृढ संकल्प के साथ नहीं निपटते तो हम अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में असफल होंगे.
+*हम सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए शांति और शांतिपूर्ण विकास में विश्वास रखते हैं।
+| location नई दिल्ली में उद्धृत किया गया।
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+मोहनदास करमचन्द गांधी 2 अक्टूबर 1869 30 जनवरी 1948) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व��यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया।
+==महात्मा गांधी पर महापुरुषों के विचार==
+* भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था। अल्बर्ट आइंस्टीन
+* ईसा मसीह ने हमें लक्ष्य दिए और महात्मा गांधी ने हमें उन्हें प्राप्त करने के तरीके बताए। मार्टिन लूथर किंग जूनियर
+* अनुशासन केवल सैनिक के लिए नहीं होता है बल्कि जीवन के हर क्षेत्र के लिए होता है।
+* अनुशासन के बिना न तो राष्ट्र, न ही कोई संस्था और न ही कोई परिवार चल सकता है। अनुशासन इन सबको बांधे रखता है और इनके प्रगति की सीढ़ी है।
+* बाहरी दुनिया की तरह अपने मन और शरीर को भी अनुशासन में रखना चाहिए।
+* किसी भी राष्ट्र का परिचय वहां के अनुशासित लोगो से पता चलता है।
+* अनुशासन शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के होते है। ये दोनों ही किसी भी व्यक्ति के प्रशिक्षण के लिए ज़रूरी होता है।
+* अगर आत्मा और इस्वर एक है तो फिर अछूत और अस्पृश्य कोई हो ही नहीं सकता है।
+* हिन्दुस्तान सबसे पहले अपनी पोशाक और भाषा को अपनाये।
+* गांव की जरुरत की हर चीज़ गांव में ही बननी चाहिए। खादी इसकी पहली सीढ़ी है।
+* खादी का मतलब है देश के सभी लोगो की आर्थिक समानता और स्वतन्त्रा का आरंभ है।
+* जब यह शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है तो भय किसका और किसलिए।
+* अभय रहने से मनुष्य का कोई भी, कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है।
+* बल तो निडरता में है, आपके शरीर से इसका कोई मतलब नहीं है।
+* जो भगवान पर विश्वास रखते है वे अभय हो जाते है।
+* संसार में आधे से अधिक लोग इस लिए सफल नहीं हो पाते है। क्योकि उनमें साहस का संचार नहीं हो पता है और वे भयभीत हो जाते है।
+* ग़लती मान लेना, झाड़ू लगाने के समान है। यह गंदगी को बहारकर, सतह को साफ़ कर देता है।
+* अपनी गलती से इन्सान बहुत कुछ सीख सकता है, बशर्ते वह इसके लिए तैयार हो।
+* गाय जैसे निरीह और उपयोगी पशु का वध करना राष्ट्र के लिए आत्मधात के समान है।
+* गो-सेवा करना अपने आप की सेवा करने के समान है।
+* गाय हिन्दू-जीवन की अहिंसकता और सादगी का प्रतीक है।
+* असहयोग एक बड���ा अस्त्र है। असहयोग का पालन तलवार की धार पर चलने के समान है।
+* असहयोग कोई निष्क्रिय (आलसी) की स्थिति नहीं है बल्कि एक सक्रिय स्थिति है। यह हिंसा से कही अधिक क्रियाशील है।
+* मैं काम करने के तरीकों, पद्धतियों और प्रणालियो से असहयोग करता हु, न की मनुष्य से।
+* असहयोग में तो इतनी शक्ति है की छोटी से छोटी इकाइयो (परिवार) को भी भंग कर सकता है।
+* चिंता एक डायन है जो शरीर को खा जाती है।
+* चिंता मुक्ति पूर्ण समपर्ण से संभव है।
+* चिंता मनुष्य की शक्तियो को शून्य कर देती है, इसलिए इसे त्याग देना चाहिए।
+* तप से संसार बड़ी से बड़ी सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
+* तप से मनुष्य मन के उच्च स्तर तक पहुंच सकता है।
+* उस जीवन को नष्ट करने का हमें कोई अधिकार नहीं है जिसके बनाने की शक्ति हम में न हो।
+* अहिंसा का नियम है कि मर्यादा पर कायम रहना चाहिए। कभी भी अभिमान नहीं करनी चाहिए और हमेशा नर्म रहना चाहिए।
+* जहां अहिंसा है, वहां धीरज, भीतरी शांति, भले बुरे का ज्ञान और जानकारी भी है।
+* अहिंसा निर्बल और डरपोक का नहीं, वीर का धर्म है।
+* किसी को कभी भी नहीं मारना और किसी को कभी नहीं सताना ही अहिंसा है।
+* अहिंसा में इतनी ताकत है कि यह आपके विरोधियों को भी मित्र बना लेती है।
+* अहिंसा और कायरता परस्पर विरोधी शब्द है।
+* जहां दया नहीं वहां अहिंसा नहीं हो सकती है। जितना ज्यादा दया होगी उतनी ज्यादा अहिंसा होगा।
+* जो अहिंसा पर अंत तक डटा रहेगा, उसकी विजय निश्चित है।
+* हिंसा का परिणाम जल्दी आता है जबकि अहिंसा का परिणाम देर से आता है।
+* उपवास का धमकी के रूप में उपयोग करना बुरा है।
+* उपवास तो आखरी हथियार है वह अपनी या दूसरों की तलवार की जगह लेता है।
+* उपवास शारीरिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आवश्यक सहयोग है।
+* अगर भारत को शांतिपूर्ण सच्ची प्रगति करनी है तो पैसे वाले यह समझ ले कि किसानों में ही भारत की आत्मा बसती है।
+* किसानों का शहर की ओर भागना उसकी असफलता का ढिंढोरा है। ऐसा करके वह न तो घर का रहेगा न घाट का।
+* आहार संतुलित और विवेकपूर्ण हो तो शरीर में कोई रोग हो ही नहीं सकता है।
+* आहार शरीर के लिए है न कि शरीर आहार के लिए।
+* पशु-पक्षी स्वाद के लिए भोजन नहीं करते है, न ही वे इतना खाते कि पेट फटने लगे। वे भोजन को स्वयं नहीं पकाते है । प्रकृति जैसा देती है वैसे ग्रहण कर लेते है।
+* संसार में जितने लोग भूख से नहीं मरते उससे ज्यादा लोग अधिक भोजन करने से मरते है।
+* इंसान की शारीरिक बनावट देखने से यह पता चलता है प्रकृति ने मनुष्य को शाकाहारी बनाया है।
+* अगर हम आहार विवेकपूर्ण नहीं करेंगे तो हममें और पशु में कोई अंतर नहीं है।
+* जब तक आहार में स्वाद की प्रधानता रहेगी तब तक उसमे सात्विकता आ ही नहीं सकता है।
+* मै उच्च शिक्षा उसी को कहूंगा जिसे पाकर इन्सान विनम्र, परोपकारी, सेवाभावी और कार्यतत्पर बन जाय।
+* क्रांति तो युगों के बाद आती है और वह मनुष्य को सजग कराने और सुधारने के लिए आती है।
+* मनुष्य को प्रयत्न करना चाहिए और ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए।
+* जो ईश्वर में विश्वास रखता है, वह बीमारी का भी सद्पयोग कर लेता है। वह बीमारी से कभी नहीं हारता है।
+* मै मानवता की सेवा के माध्यम से ही ईश्वर का साक्षात्कार का प्रयास कर रहा हु। क्योकि मै जानता हुं कि ईश्वर न तो स्वर्ग में है और न ही पाताल में है, वह हर किसी के दिल में मौजूद है।
+* मन पर निंयत्रण करना सबसे कठिन काम है। इसके लिए उत्तम उपाय गीता का अध्ययन करना है।
+* देशभक्ति मनुष्य का पहला गुण है। इसके बिना वह दुनियाँ में सिर उठाकर नहीं चल सकता।
+* दुनिया में देशभक्तो ने आज़ादी का मार्ग प्रशस्त किया है।
+* क्रोध से बदले की भावना बढ़ती है और उसके भयंकर परिणाम होते है।
+* क्रोध पाप का मूल कारण है।
+* क्रोध ख़ुद को तो जलाता ही है आसपास के संबद्ध लोगो भी पीड़ित कर देता है।
+* क्रोध एक प्रकार का रोग है जिसे क्षणिक पागलपन भी कह सकते है।
+* क्रोध के बिना मनुष्य देवता के सामान है।
+* देश के युवक अगर चाहें तो वे बड़े से बड़े सत्कार्य आसानी से सम्पन्न कर सकते है।
+* युवकों को अपने जोश का उपयोग होश के साथ करना चाहिए।
+* अगर कोई मनुष्य अपना काम नियमित रूप से नहीं करता है, तो उसे सफ़लता नहीं मिल सकती।
+* नियमितता सफलता की जननी है।
+* नियमितता जीवन की एक कसौटी है।
+* बूंद-बूंद से तालाब इसलिए भरता है क्योकि यह काम नियमित रूप से होता है।
+* नियमितता के द्वारा मनुष्य बड़े से बड़ा सम्पन्न कर सकता है।
+* चरखा भारत की आर्थिक आज़ादी का प्रतीक है।
+* चरखे के बिना दूसरे उद्योग नहीं चल सकते है, वैसे ही जैसे यदि सूरज डूब जाए तो दूसरे ग्रह भी डूब जायेगे।
+* चरखा तो लंगड़े की लाठी है।
+* खेती किसान का धड़ है और चरखा हाथ-पैर।
+* चरित्र की संपत्ति दुनिया की सारी दौलत से बढ़कर है।
+* चरित्र की रक्षा किसी भी मूल्य पर ह��नी चाहिए।
+* चरित्र की सीढ़ी है सदाचरण।
+* चरित्र जीवन की सबसे मूल्यवान वस्तु है।
+* वयक्ति के चरित्र से ही राष्ट्र का अंदाजा लगाया जा सकता है।
+* शिक्षा का उद्देश्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। शिक्षा वही है जिसके द्वारा साहस का विकास हो, गुणों में वृद्धि हो और ऊंचे उदेश्यों के प्रति लगन जागे।
+* धर्म की परीक्षा दुःख में ही होती है।
+* जो धर्म सत्य और अहिंसा का विरोधी है, वह धर्म नहीं है।
+* धर्म तो उत्कृठ श्रद्धा का नाम है।
+* संकट के समय धर्म ही मनुष्य को उबार सकता है।
+* धर्म भगवान तक पहुँचने का सेतु है।
+* धर्महीन मनुष्य बिना पतवार की नाव के समान है।
+* प्रार्थना जीभ से नहीं होता है, ह्रदय से होता है। जो गूंगे और मूढ़ है, वे भी प्रार्थना कर सकते है।
+* प्रार्थना धर्म का प्राण और सार है।
+* प्रार्थना के बिना भीतरी शांति नहीं मिल सकती है।
+* प्रार्थना अपनी योग्यता और दुर्बलता को स्वीकार करना है।
+* प्रार्थना में असीम शक्ति है।
+* प्रार्थना तभी प्रार्थना है, जब वह अपने आप से निकलती है।
+* प्रार्थना पश्चाताप का एक चिन्ह है।
+* प्रार्थना आत्मशुद्धि का सहज और सरल साधन है।
+* मुझे शांति और सफलता प्रार्थना के द्वारा ही मिली है।
+* प्रार्थना में तल्लीन हो जाना ही असली उपासना है।
+* नम्रता से मनुष्य के ऐसे बहुत से काम बन सकते है, जो कठोरता से नहीं होते है।
+* नम्रता मनुष्य का आभूषण है।
+* नम्रता अहिंसा का ही हिस्सा है।
+* पुस्तकों का मूल्य रत्नो से भी अधिक है। क्योकि बाहरी चमक-दमक दिखाते है जबकि पुस्तकें अंतकरण को प्रकाशित है।
+* गीता का मेर ऊपर काफी प्रभाव रहा है।
+* मेरे लिए तुलसी दास की रामायण भक्तिरस का बेस्ट ग्रन्थ है।
+* जहां प्रेम है, वहां डर का स्थान कहां ?
+* प्रेम बारे में मेरा मानना यह है कि प्रेम फूल से भी कोमल और व्रज से ज्यादा कठोर होता है।
+* ब्रह्मचर्य का ठीक मतलब ब्रह्म की खोज है और यह खोज इंद्रियों के सम्पूर्ण संयम के बिना असंभव है।
+* ब्रह्मचर्य भी अन्य व्रतों के समान ही सत्य से निकलता है।
+* अहिंसा का पूरा पालन ब्रह्मचर्य के बिना नामुमकिन है।
+* ब्रह्मचर्य का पालन मन, वचन और कर्म से करना चाहिए।
+* ब्रह्मचारी को जीने के लिए ही खाना चाहिए।
+* ब्रह्मचर्य जीवन की पहली सीढ़ी है। इसके बिना आदमी शिखर तक नहीं पहुंच सकता है।
+* माता-पिता कभी संतान का बुरा नहीं चाहते है इसलिए उनके बातो की कद्र करना च���हिए।
+* माता-पिता की सेवा पुत्र का प्रथम कर्तव्य है।
+* माता-पिता का ऋण संतान जिंदगी भर चूका नहीं सकता है।
+* संतान के लिए तो माता-पिता ही प्रथम गुरु और पूजनीय है।
+* बुद्धि के बिना मनुष्य अपंग के समान है।
+* पहला ह्रदय है उसके बाद बुद्धि है।
+* जिसमे शुद्ध श्रद्धा है उसकी बुद्धि तेजस्वी होगी।
+* बुद्धि का दुरुपयोग हुआ तो दुनियाँ में बहुत सारे अनर्थ हो सकते हैं।
+* मौन से कलह का नाश होता है।
+* बोलना एक सुन्दर कला है लेकिन मौन उससे भी ऊंची कला है।
+* मौन के द्वारा इन्द्रियों पर नियंत्रण आसान हो जाता है।
+* लड़ाई विनाश की जड़ है।
+* लड़ाई चाहें दो व्यक्तियो के बीच हो या दो राष्ट्रों के बीच में हो, उसकी तह में बर्बादी ही छिपा रहता है।
+* लड़ाई ने बड़े-बड़े राष्ट्रों के नामोनिशान मिटा देता है।
+* लड़ाई सभी उपद्रवों की जननी है।
+* लड़ाई मनुष्य की सबसे बरी शत्रु है।
+* जिंदगी और मौत एक ही सिक्के के दो पहलु है। बिना उथल-पुथल के जीवन किस काम का।
+* मनुष्य के विकास के लिए जीवन जितनी ही मृत्यु का होना आवश्यक है।
+* मौत ईश्वर की अमर देंन है।
+* मौत कभी टाली नहीं जा सकती है, वह तो हमारा मित्र है।
+* मृत्यु जीवन की जननी है।
+* मृत्यु केवल निद्रा और विस्मृति है।
+* विद्यार्थी को आलस्य से दूर रहना चाहिए।
+* विद्यार्थी भविष्य की आशा है।
+* विद्यार्थी-जीवन में पान, सिगरेट या शराब की आदत डालना आत्मघात के सामान है।
+* विद्यार्थी खादी पहने और स्वदेशी वस्तु का ही उपयोग करे।
+* विद्यार्थी को किसी न किसी महान व्यक्ति को अपने जीवन का आदर्श बनाए।
+* विश्वास से पहाड़ भी हिल सकता है।
+* विश्वास के बिना मनुष्य उस बूंद के समान है जो समुद्र से अलग हो चुका है, जिसका नष्ट होना निश्चित है।
+* विश्वास के बिना कोई भी भी व्यवहार और व्यापार नही चल सकता है।
+* जिस शिक्षा से आर्थिक, समाजिक और आध्यत्मिक मुक्ति मिलती है, वही वास्तविक शिक्षा है।
+* शिक्षा एक योग है।
+* शिक्षा का उदेश्य आत्मोन्नती होनी चाहिए।
+* संगीत के बिना शिक्षा अधूरी है।
+* शिक्षा का विषय चरित्र का निर्माण करना है।
+* शिक्षा के बिना मानव मस्तिष्क का विकास नहीं सकता है।
+* शिक्षा ऊंचा गुण है, लेकिन चरित्र उससे ऊपर है।
+* कोई भी प्रतिज्ञा करना या व्रत करना बलवान का काम है, निर्बल का नहीं।
+* संयम के बिना व्रत असंभव है। संयम से व्रत पूरा करने बल मिलता है।
+* जो मनुष्य मन से दुर्बल होता है वह संयम का पालन नहीं कर पाता है लेकिन जिसके मन में लगन हो, वह अभ्यास से संयम-पालन सीख लेता है।
+* विवाह दो वयक्तियों का आधात्मिक और शारीरिक मिलन है।
+* विवाह की उपेछा नहीं करनी चाहिए, उसे जीवन में उचित स्थान देना चाहिए।
+* विवाह की जिम्मेदारियों से भागना कायर का काम है।
+* पृथ्वी सत्य पर टिकी हुई है।
+* अगर सम्पूर्ण सत्य का पालन किया जाय, तो क्या नहीं हो सकता है।
+* अगर हमारे जीवन में सच्चाई है, तो यह लोगों को प्रभावित करेगा।
+* सत्य एक विशाल वृक्ष है। जिसकी जैसे-जैसे सेवा की जाती है वैसे-वैसे उसमें अनेक फल आते हुए दिखाई देते है।
+* सत्य के पालन में ही शांति है।
+* अपने आप को जान लेना सत्य को पहचानना है।
+* व्यायाम, शरीर के लिए उतना ही आवश्यक है जितना हवा, पानी और भोजन।
+* व्यायाम शारीरिक स्वास्थ की कुंजी है।
+* व्यायाम के बिना दिमाग वैसे ही कमजोर पड़ जाता हैं, शरीर।
+* तंदुरुस्त दिमाग का तंदुरुस्त शरीर में होना ही निरोगता है।
+* शारीरिक और मानसिक व्यायाम एक सीमा के अंदर करना चाहिए।
+* शाकाहार से हमारे अंदर हिंसात्मक विचार नहीं आते।
+* शाकाहार मनुष्य को निरोग और दीर्धजीवी बनाता है।
+* शाकाहार एक स्वाभाविक वृति है।
+* सत्याग्रह बल-प्रयोग के बिलकुल विपरीत है। हिंसा के पूर्ण त्याग से ही सत्याग्रह की कल्पना की जा सकती है।
+* सत्याग्रह करने से पहले मनुष्य को बहुत-सी तैयारियां करनी पडती है जिन्हे समझकर ही आगे बढ़ना चाहिए।
+* मैंने बहुत सारे प्रयोग के बाद जिन दो अस्त्रों को पाया है, वह है सत्याग्रह और असहयोग।
+* शांति बाहर की किसी चीज़ से नहीं मिलती। वह आंतरिक है।
+* शांति तभी मिल सकती है, जब मनुष्य का वृतियों पर नियंत्रण हो।
+* अपनी आवश्यकताए कम करके आप वास्तविक शांति प्राप्त कर सकते है।
+* संसार की उथल-पुथल में रहते हुए भी जो मनुष्य अपनी मानसिक शांति को क़ायम रख सके, वही सच्चा पुरुष है।
+* जिसके पास श्रद्धा है उनके कंधों से सारी चिंताएं मिट जाती है।
+* जहां श्रद्धा नहीं, वहां धर्म नहीं। धर्म के मूल में श्रद्धा ही है।
+* श्रद्धा का अर्थ है आत्म्विश्वास, और आत्म्विश्वास का अर्थ है ईश्वर पर विश्वास।
+* श्रद्धा की कसौटी यह है कि अपना फर्ज अदा करने के बाद जो भी भला या बुरा होता है, उसे इन्सान स्वीकार कर ले।
+* श्रद्धा के बिना ज्ञान अधूरा है।
+* श्रद्धावान वही है जो कठिन परिस्तितियों में भी डिगे नहीं।
+* किसी भी भारतीय को स्वदेशी वस्तु के उपयोग के लिए उपदेश देना पड़े तो यह उसके लिए शर्म की बात है।
+* स्वदेशी-व्रत निर्वाह तभी हो सकता है। जब विदेशी चीज़ का इस्तमाल न किया जाय।
+* स्वदेशी की भावना संसार के सभी स्वतंत्र देशों में है।
+* अपना शरीर, भोजन और पानी के साथ-साथ अपने आसपास के स्थानों को भी साफ़ रखें।
+* भगवान के बाद सफाई ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।
+* सेवा तो मूक होना चाहिए, उसका ढ़िढोरा पीटना चाहिए।
+* जो सेवा करेंगे उनका पतन नहीं हो सकता है।
+* सेवा का भी मोह हो सकता है। मोह भाव छोड़कर ही सच्ची सेवा की जा सकती है।
+* संसार में सेवा से बढ़कर मनुष्य को द्रवित करने वाली कोई और चीज़ नहीं है।
+* स्त्री को अबला कहना उसका अपमान है।
+* स्त्री पुरुष की ग़ुलाम नहीं बल्कि सहधर्मणि, अर्धनगिनी और मित्र है।
+* स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक है।
+* किसी भी पुरुष का पर स्त्री से सम्बन्ध जोड़ना पाप है।
+* भारत के धर्म और संस्कृति को स्त्रीयों ने टिका रखा है।
+* स्त्री चाहें तो संसार को आनंदमय बना सकती है।
+* अगर स्वास्थ्य ठीक रखना है तो नियमित और सादा आहार ले और नशीली चीजों से दूर रहे।
+* शरीर संसार का एक छोटा सा नमूना है।
+* शरीर का निरोग और दीर्घायु होना विषय-रहित परिणाम है।
+* स्वस्थ वही है जो बिना थकान के दिन-भर शारीरिक और मानसिक मेहनत कर सके।
+* शरीर के स्वस्थ होने का मतलब यह है कि मनुष्य की इंद्रिया और मन भी स्वस्थ हो।
+* अच्छे स्वास्थ्य के लिए ब्रम्हचर्य का पालन बहुत जरुरी है।
+* हमें यह शरीर इसलिए मिला है कि हम इसे भगवान की सेवा में लगाएं। हमारा यह फर्ज़ है कि हम इसे शुद्ध और स्वस्थ रखें। जब समय आये इसे उसी भांति शुद्ध रूप में लौटा सके।
+* इसे मै अच्छा संकेत मानता हु कि हरिजन खुद जाग गये है।
+* केवल जन्म के कारण किसी मनुष्य अछूत नहीं माना जा सकता है।
+* हरिजनों को खूब जोश के साथ अपने अंदर सुधार करना चाहिए जिससे किसी को यह कहने का हक़ न रहे कि उसके अंदर यह बुराई है।
+* ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती।
+* ज्ञान ही प्रकाश है। उसके बिना हम एक कदम भी नहीं चल सकते है।
+* जो ज्ञान केवल दिमाग में ही रह जाता है और हृदय में प्रवेश नहीं नहीं कर पाता है। वह जीवन के अनुभव में व्यर्थ सिद्ध होता है।
+* वे ईसाई हैं, इससे क्या हिन्दुस्तानी नहीं रह और परदेशी बन गये ?
+* कितने ही नवयुवक शुरु में निर्दोष होते हुए भी झूठी शरम के कारण बुराई में फँस जाते होगे ।
+* अहिंसा एक विज्ञान है। विज्ञान के शब्दकोश में 'असफलता' का कोई स्थान नहीं। महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ ८१)
+* सार्थक कला रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५६)
+* एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १५९)
+* मनुष्य अक्सर सत्य का सौंदर्य देखने में असफल रहता है, सामान्य व्यक्ति इससे दूर भागता है और इसमें निहित सौंदर्य के प्रति अंधा बना रहता है। महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०)
+* चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो मातापिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७)
+* विश्व के सारे महान धर्म मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २५७)
+* अधिकारों की प्राप्ति का मूल स्रोत कर्तव्य है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७)
+* सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। 'अहिंसा' ही वह एकमात्र शक्ति है जिससे हम शत्रु को अपना मित्र बना सकते हैं और उसके प्रेमपात्र बन सकते हैं महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २४३)
+* नि:शस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ २५२)
+* आत्मरक्षा हेतु मारने की शक्ति से बढ़कर मरने की हिम्मत होनी चाहिए। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३)
+* वीरतापूर्वक सम्मान के साथ मरने की कला के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए परमात्मा में जीवंत श्रद्धा काफी है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२)
+* क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३९९)
+* एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और गलत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है। महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ १५८)
+* आपकी समस्त विद्वत्ता, आपका शेक्सपियर और वड्सवर्थ का संपूर्ण अध्ययन निरर्थक है यदि आप अपने चरित्र का निर्माण व विचारों क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७६)
+* वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब 'भाषा' है। एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, १९५८ पृष्ठ १८)
+* स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३५६)
+* निर्मल चरित्र एवं आत्मिक पवित्रता वाला व्यक्तित्व सहजता से लोगों का विश्वास अर्जित करता है और स्वत अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ५७)
+* जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन भक्ति है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ४३)
+* अधिकार-प्राप्ति का उचित माध्यम कर्तव्यों का निर्वाह है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १७९)
+* उफनते तूफान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढना होगा। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २८६)
+* रोम का पतन उसका विनाश होने से बहुत पहले ही हो चुका था। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३४९)
+* जहां तक मेरी दृष्टि जाती है मैं देखता हूं कि परमाणु शक्ति ने सदियों से मानवता को संजोये रखने वाली कोमल भावना को नष्ट कर दिया है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ १)
+* मेरे विचारानुसार गीता का उद्देश्य आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताना है। द मैसेज ऑफ द गीता, १९५९, पृष्ठ ४)
+* गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २७८)
+* मैं यह अनुभव करता हूं कि गीता हमें यह सिखाती है कि हम जिसका पालन अपने दैनिक जीवन में नहीं करते हैं, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३११)
+* हजारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २५२)
+* साहस कोई शारीरिक विशेषता न होकर आत्मिक विशेषता है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ६१)
+* संपूर्ण विश्व का इतिहास उन व्यक्तियों के उदाहरणों से भरा पडा है जो अपने आत्म-विश्वास, साहस तथा दृढता की शक्ति से नेतृत्व के शिखर पर पहुंचे हैं। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३)
+* सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २४८)
+* शांति का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। शांति की अपेक्षा सत्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १५३)
+* हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६१)
+* यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए। महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ ३७)
+* आत्मा की शक्ति संपूर्ण विश्व के हथियारों को परास्त करने की क्षमता रखती है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १२१)
+* किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेडियों में होती है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३१३)
+* ईश्वर इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३४)
+* नारी को अबला कहना अपमानजनक है। यह पुरुषों का नारी के प्रति अन्याय है। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३३)
+* गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अथों में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७)
+* यदि अंधकार से प्रकाश उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७)
+* प्रेम और एकाधिकार एक साथ नहीं हो सकता है। महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ११)
+* प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २६४)
+* यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २०६)
+* मनुष्य अपनी तुच्छ वाणी से केवल ईश्वर का वर्णन कर सकता है। ट्रुथ इज गॉड, १९९९ पृष्ठ ४५)
+* यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२)
+* युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २)
+* जिम्मेदारी युवाओं को मृदु व संयमी बनाती है ताकि वे अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने के लिए तैयार हो सकें। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७१)
+* बुद्ध ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २९५)
+* हम धर्म के नाम पर गौ-रक्षा की दुहाई देते हैं किन्तु बाल-विधवा के रूप में मौजूद उस मानवीय गाय की सुरक्षा से इंकार कर देते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७)
+* अपने कर्तव्यों को जानने व उनका निर्वाह करने वाली स्त्री ही अपनी गौरवपूर्ण मर्यादा को पहचान सकती है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९४)
+* स्त्री का अंतर्ज्ञान पुरुष के श्रेष्ठ ज्ञानी होने की घमंडपूर्ण धारणा से अधिक यथार्थ है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५१)
+* जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता। महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १६)
+* समुद्र जलराशियों का समूह है। प्रत्येक बूंद का अपना अस्तित्व है तथापि वे अनेकता में एकता के द्योतक हैं। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ १४७)
+* पीडा द्वारा तर्क मजबूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंतर्दृष्टि खोल देती है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२)
+* किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के खजाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है। महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ १६५)
+* विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नींव ठोस हो। एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ पृष्ठ २७)
+* मेरे विचारानुसार मैं निरंतर विकास कर रहा हूं। मुझे बदलती परिस्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना आ गया है तथापि मैं भीतर से अपरिवर्तित ही हूं। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४)
+* प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४)
+* सत्याग्रह और चरखे का घनिष्ठ संबंध है तथा इस अवधारणा को जितनी अधिक चुनौतियां दी जा रही हैं इससे मेरा विश्वास और अधिक दृढ होता जा रहा है। महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २६४)
+* हमें बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे वे श्रम का तिरस्कार करें। एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ २०)
+* अंतत अत्याचार का परिणाम और कुछ नहीं केवल अव्यवस्था ही होती है। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ १०२)
+* हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर ���धारित होना चाहिए जिसमें मालिक मजदूर एवं जमींदार किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २५५)
+* किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद न हो। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ६७)
+* यदि शक्ति का तात्पर्य नैतिक दृढता से है तो स्त्री पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ है। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३)
+* स्त्री पुरुष की सहचारिणी है जिसे समान मानसिक सामथ्र्य प्राप्त है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२)
+* जब कोई युवक विवाह के लिए दहेज की शर्त रखता है तब वह न केवल अपनी शिक्षा और अपने देश को बदनाम करता है बल्कि स्त्री जाति का भी अपमान करता है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९८)
+* धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७)
+* स्त्री जीवन के समस्त पवित्र एवं धार्मिक धरोहर की मुख्य संरक्षिका है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९३)
+* महाभारत के रचयिता ने भौतिक युद्ध की अनिवार्यता का नहीं वरन् उसकी निरर्थकता का प्रतिपादन किया है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ९७)
+* स्वामी की आज्ञा का अनिवार्य रूप से पालन करना परतंत्रता है परंतु पिता की आज्ञा का स्वेच्छा से पालन करना पुत्रत्व का गौरव प्रदान करती है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७)
+* भारतीयों के एक वर्ग को दूसरेे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनानेे में ही उपयुक्त होगी। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३५२)
+* स्वतंत्रता एक जन्म की भांति है। जब तक हम पूर्णत स्वतंत्र नहीं हो जाते तब तक हम परतंत्र ही रहेंगे। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३११)
+* आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और सुनहरी खामोशी को पीतल के कोलाहल और शोरगुल में परिवर्तित करना सिखाया है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६०)
+* मनुष्य तभी विजयी होगा जब वह जीवन-संघर्ष के बजाय परस्पर-सेवा हेतु संघर्ष करेगा। महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ३६)
+* अयोग्य व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी दूसरे अयोग्य व्यक्ति के विषय में निर्णय दे। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३)
+* धर्म के बिना व्यक्ति ���तवार बिना नाव के समान है। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३)
+* अहिंसा पर आधारित स्वराज्य में, व्यक्ति को अपने अधिकारों को जानना उतना आवश्यक नहीं है जितना कि अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२)
+* मजदूर के दो हाथ जो अर्जित कर सकते हैं वह मालिक अपनी पूरी संपत्ति द्वारा भी प्राप्त नहीं कर सकता। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३३)
+* अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४)
+* पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंत सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४)
+* थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है।
+* पूर्ण धारणा के साथ बोला गया "नहीं" सिर्फ दूसरों को खुश करने या समस्या से छुटकारा पाने के लिए बोले गए “हाँ” से बेहतर है।
+* पूंजी अपने-आप में बुरी नहीं है, उसके गलत उपयोग में ही बुराई है। किसी ना किसी रूप में पूंजी की आवश्यकता हमेशा रहेगी।
+* मैं मरने के लिए तैयार हूँ, पर ऐसी कोई वज़ह नहीं है जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ।
+* जब मैं निराश होता हूँ, मैं याद कर लेता हूँ कि समस्त इतिहास के दौरान सत्य और प्रेम के मार्ग की ही हमेशा विजय होती है। कितने ही तानाशाह और हत्यारे हुए हैं, और कुछ समय के लिए वो अजेय लग सकते हैं, लेकिन अंत में उनका पतन होता है। इसके बारे में सोचो- हमेशा।
+* उपदेश करने से पहले खुद के गुण देखने चाहिए।
+* जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है।
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+* डॉन को तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस ढूँढ रही है, पर डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।
+डॉन डॉन के दुश्मन की सबसे बड़ी गलती यह है, की वह डॉन का दुश्मन है।
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+नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है:
+कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें।
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+आचार्य रामचन्द्र शुक्ल वाल्मीकीय रामायण को आर्य काव्य का आदर्श मानते हैं। ’मानस‘ में तुलसीदास धर्मोपदेष्टा और नीतिकार के रूप में सामने आते हैं। वह ग्रंथ एक धर्मग्रंथ के रूप में भी लिखा गया है।
+वास्तव में ’रामायण‘ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का अमृतमय रूप है तो ’रामचरितमानस‘ रामभक्ति की श्रद्धा की सरयू एवं भक्ति की भागीरथी है।
+’रामचरितमानस‘ शाश्वत जीवन मूल्यों का आकाशदीप है। प्रत्येक संस्कृति के कुछ ऐसे शाश्वत नियम, उपनियम एवं परंपराएँ होती हैं, जो इसकी आधारशिला होती है। व्यक्ति के निजी जीवन, समाज एवं राष्ट्र को निर्मल, समुन्नत एवं आदर्शलक्षी बनाने के लिए ऐसे नियम विवेकपूर्ण जीवनरीति-नीति के मार्गदर्शक होते हैं। ऐसे मानदंड निर्धारित करने में धर्मग्रंथों, शास्त्रग्रंथों एवं जीवनमूल्यनिष्ठ साहित्यिक रचनाएँ सहायक होती हैं।
+तुलसीकृत रामचरितमानस उनकी विराट् प्रतिभा का साधनाजन्य वह पुरस्कार है, जो व्यक्ति के इहलोक एवं परलोक सुधारने की अद्वितीय क्षमता रखता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ’अग्निपुराण‘ के वचन का उल्लेख करते हुए कहा है, ’’नरत्वं दुलर्भं लोके विद्या सुदुर्लभा, कवित्वं दुलर्भं तत्र, शक्तिस्तत्र दुलर्भा।‘‘ महाकवि तुलसीदास को उक्त चारों विभूतियाँ परिप्राप्त थीं और इन का सदुपयोग उन्होंने ’सर्वजनहिताय‘ ही किया।
+रामचरित मानस में शाश्वत मूल्यचेतना==
+तुलसी का साहित्यिक दृष्टिकोण कलालक्षी नहीं, जीवनलक्षी था। उन्होंने उस भक्ति को आदर्श स्वरूप माना, जिसमें श्रेय एवं प्रेय का समन्वय हो। तुलसी कभी किसी वाद के चौखटे में परिबद्ध नहीं रहे, क्योंकि वे सत्यग्रहणलक्षी साधक थे। इसलिए वे मनुष्य की केन्द्रीय स्थिति एवं जीवन की सार्थकता विषयक एक समन्वित दृष्टिकोण ’रामचरितमानस‘ में प्रस्तुत कर सके। विविध आदर्शों एवं समन्वयतात्मक दृष्टि के कारण ही तुलसी का लोकनायकत्व स्वयं सिद्ध होता है। वास्तव में गोस्वामी तुलसीदास जी ने हिन्दू धर्म में निरन्तर उत्पन्न हो रहे मत-मतान्तरों, सम्प्रदायों और सामाजिक वैषम्य को दूर करके एक आदर्श समाज की कल्पना रामचरित मानस में की हैं । वे शुभ को ही जीवन का ’मूल्य‘ मानते हैं इसलिए उनका साहित्य मानवमूल्यों के जय जयकार के प्रति समर्पित है।
+पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन के मधुर आदर्श तथा उत्सर्ग की भावना ’रामचरितमानस‘ में सर्वत्र बिखरी पडी है। तुलसी की काव्य चेतना में जीवन मूल्यों एवं मानव मूल्यों का समन्वय है और यह मूल्य निरूपण भारतीय संस्कृति के उदात्त मूल्यों एवं नैतिकता के आदर्शों से अनुप्राणित है। कर्त्तव्य परायणता, शिष्टाचार, सदाचरण, कर्मण्यता, निष्कपटता, कृतज्ञता, सच्चाई, न्यायप्रियता, उत्सर्ग ���ी भावना समदृष्टि, क्षमा आदि नैतिक मूल्यों का इसलिए भक्ति काव्य में अग्रस्थान प्राप्त किए हुए दिखाया गया है, ताकि समाज, राजनीति एवं लोकजीवन उन्नत बने।‘
+’रामचरितमानस‘ में जीवन मूल्यों का क्षेत्र सीमित नहीं है। उनमें वैश्विक दृष्टि है। मानव मात्र के कल्याण की कामना है। जीवन मूल्य स्थान, काल के बंधनों से मुक्त स्वस्थ समाज एवं कल्याणकारी राजनीति की स्थापना में सहायक एवं मार्गदर्शक सिद्ध हो सकते हैं।
+’रामचरितमानस‘ में धार्मिक-दार्शनिक, सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन मूल्यों का निरूपण सुंदर ढंग से हुआ है।
+धर्म का उद्देश्य है मनुष्य को शुभत्व एवं शिवत्व की राह दिखा कर आत्मोन्नति की ओर अग्रसर कराना। इसके लिए तप और त्याग आवश्यक है। तप की महत्ता बतानेवाली अनेक उक्तियाँ ’रामचरितमानस‘ में मिलती हैं जैसे
+तुलसीदास जी ने तप का महत्त्व निरूपित करने के लिए ही वाल्मीकि, अत्रि, भरद्वाज, नारद आदि को तपस्यालीन चित्रित किया है।
+त्याग का मूर्तिमंत उदाहरण यह है बंधुत्रय राम, लक्ष्मण एवं भरत। चक्रवर्ती होने वाले राम वनवासी हो जाते हैं। लक्ष्मण अपने दाम्पत्य सुख की बलि देकर भ्रातृसेवा का त्यागदीप्त जीवनमार्ग अपनाता है और भरत महल में प्राप्त राज्य में लक्ष्मी को तृणवत् मानकर भाई को ढूँढने निकल पडता है। तुलसीदास ने भरत के इस त्यागपूर्ण व्यक्तित्व को प्रशंसित करते हुए कहा है -
+सामान्य धर्म के दस अंग माने गये हैं। ’रामचरित मानस‘ में तुलसीदास जी ने धर्म के इन सभी अंगों को भली-भाँति प्रतिपादित किया है। परधन हडप लेने की वृत्ति चौर्य कार्य है। तुलसीदास जी कहते हैं -
+संयम के लिए इन्दि्रय-निग्रह आवश्यक है। पंचेन्दि्रयों को मनमाना न करने देना ही संयम है। इसलिए संत पुरुष काम-क्रोधादि का परित्याग करते हैं -
+सत्य को धर्म का पर्याय मानकर तुलसीदास कहते हैं- ’धरमु न दूसर सत्य समाना।‘ इसी प्रकार परहित और अहिंसा की भावना का निरूपण करते हुए वे कहते हैं -
+विश्व का व्यवहार धर्मपालन पर अवलम्बित है। तुलसीदास के मतानुसार धर्म का पालन करने से ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति होती है और सुख-संतोष की अनुभूति होती है -
+ऐसी धार्मिकता कष्टसाध्य है। जिसमें
+गोस्वामी तुलसीदास ने धर्मरथ के रूपक के माध्यम से धर्म के विभिन्न अंगों का विस्तार से प्रतिपादन किया है। (७/१०३) ’ज्ञानदीपक‘ (लंकाकां��� ८०/३-६) के प्रसंग में भी उन्होंने धर्म के विविध अंगों का परिचय दिया है। जीवन मनुष्य की कडी कसौटी लेता है। रामचरितमानस में वर्णधर्म, आश्रमधर्म, पुत्रधर्म, स्त्रीधर्म, युगधर्म का भी निरूपण किया है। जैसे :
+तत्पश्चात् उन्होंने युगविशेष में मनुष्य के हृदय में कौन-सी भावनाएँ धर्म प्रेरक हो सकती हैं, इसका वर्णन किया है। ’रामचरितमानस‘ समानाचरण मूल्यों की दृष्टि से भी एक समन्वय ग्रंथ है। समाज में संत का कार्य संसारियों का मार्गदर्शन बनता है। अतः समाज को शिक्षा देने हेतु तुलसी ने सन्त के लक्षण एवं आचरणों को विस्तार से उल्लेख किया है। जैसे -
+तुलसी का संत, शील का सर्वोच्च आदर्श प्रस्तुत करता है। ऐसे संतत्व के लिए संन्यास ग्रहण करना आवश्यक नहीं। तुलसीदास ने भरत, विभीषण, हनुमान आदि में इसी संतत्व के महान् गुणों का निरूपण किया है। संत समाज का उन्नायक होता है और असंत अर्थात् खल प्रगतिपथ में रोडा। असंत के अवगुणों का भी उन्होंने वर्णन किया है। रावण के बारे में तुलसीदास जी ने कहा है -
+तुलसीदास जी गुरुशिष्य सम्बन्ध को पावनतम संबंध मानते हैं। गुरु के गरिमामय व्यक्तित्व का उन्होंने प्रभावशाली शब्दों में वर्णन किया है।
+कहकर धोखेबाज गुरुओं को उन्होंने आडे हाथों लिया है। गुरु की तरह मैत्री में वफादारी का मूल्य भी सुंदर ढंग से निरूपित किया है।
+’रामचरितमानस‘ में राजनीतिपरक मूल्यों का भी तुलसीदास जी ने विशद् निरूपण किया है। ’रामचरितमानस‘ में तुलसी ने तत्कालीन मुगलप्रशासन तंत्र का चित्रण कलियुग के वर्णन के रूप में उत्तरकांड में किया है। उन्होंने नृपतंत्र के रूप में दशरथ के शासनतंत्र की मर्यादाएँ बताई हैं तो दूसरी ओर जनक जैसे दार्शनिक तथा त्यागी सम्राट के राज्य संचालन को भी वर्णित किया है। किन्तु तुलसीदास को राम के शासनतंत्र के समर्थक और रावण के शासनतंत्र के विरोधी हैं। तुलसी ने राजा को प्रजा का प्रतिनिधि माना है। राजा की सर्वोपरि सत्ता को स्वीकार करते हुए भी उन्होंने उसकी निरंकुशता को सह्य नहीं माना है। उन्होंने उसी शासक को सच्चा शासक माना है जो पद को प्रजा की सेवा का निमित्त मानता है।
+’राजा‘ को मुख समान होकर सब विधि प्रजा का पोषण करना चाहिए इस बात पर जोर देते हुए कहा है कि -
+तुलसीदास ने इसके लिए ’राम-राज्य‘ अथवा कल्याण-राज्य का आदर्श प्रस्तुत किया है।
+यह कल्याणकारी राज्य धर्म का राज्य होता है, न्याय का राज्य होता है, कर्त्तव्य-पालन का राज्य होता है। वह सत्ता का नहीं, सेवा का राज्य होता है। इस कल्याणकारी राज्य की झोली में है क्षमा, समानता, सत्य, त्याग, बैर का अभाव, बलिदान एवं प्रजा का सर्वांगीण उत्कर्ष। इस कल्याणकारी राज्य की कल्पना की परिधि में व्यक्ति, परिवार, समाज, राज्य और विश्व का कल्याण समाविष्ट है। इसके केन्द्र में है धर्म जिसे हम वर्तमान के संदर्भ में ’कर्त्तव्य पालन‘ के स्वरूप में भी ले सकते हैं। जहाँ धर्म होगा, वहाँ सत्य होगा, शिवत्व होगा, सौंदर्य होगा, सुख होगा, शान्ति होगी, कल्याण होगा।
+तुलसीदास ने देखा कि अपने युग में जनता पारस्परिक कलह, ईर्ष्या, द्वेष और अधर्म में फँसी हुई है। पति-पत्नी, भाई-भाई, राजा-प्रजा, परिवार-कुटुम्ब में छोटी-मोटी बातों पर कलह-विवाद ओर संघर्ष हो रहे हैं।
+जहाँ समाज मानस-रोगों से विमुक्त होकर विमलता, शुभ्रता, नीति और धर्म का चरण करे, उसी का नाम कल्याणकारी राज्य। यह कल्याणकारी राज्य अशत्रुत्व और समता का राज्य है। इसके अभाव में राज्य कल्याण राज्य न रहकर अनेक दूषणों से दूषित हो जाता है, जिसकी झाँकी तुलसी ने हमें ’कलि-काल‘ वर्णन में कराई है।
+’रामचरित-मानस‘ उन आदर्शों की उर्वर भूमि है, जिसको अपनाने से किसी युग की प्रजा अपने कल्याण की साधना कर सकती है। वैसे तो रामराज्य का वर्णन रामचरितमानसेतर अन्य ग्रंथों में भी मिलता है जैसे भागवत, महापुराण, पद्मपुराण इत्यादि में। किन्तु ’रामचरितमानस‘ के ’उत्तर-कांड‘ में तुलसी ने राम-राज्य अथवा कल्याण-राज्य की परिकल्पना की है पारस्परिक स्नेह, स्वधर्म पालन, धर्माचरण और आत्मिक उत्कर्ष का संदेश, प्रजा एवं प्रजेश की आत्मीयता और आदरभाव, प्रीति एवं नीतिपूर्ण दाम्पत्य जीवन, उदारता एवं परोपकार, प्रजा-कल्याण एवं सुराज्य का संतोषप्रद वातावरण- ये हैं उस धर्मयुक्त कल्याणमय राज्य की विशेषताएँ। रामराज्य के इस चित्रण के साथ तुलसी के आदर्श अथवा कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना सन्निहित है।
+रामराज्य का विस्तृत वर्णन हमें ’रामचरितमानस‘ के ’उत्तरकांड‘ में मिलता है। तुलसीदास कहते हैं -
+अर्थात् रघुनाथ जी को जिस समय राज्य-तिलक दिया, उस समय त्रिलोक आनंदित हुए और सारे शोक मिट गये। कोई किसी से बैर नहीं रखता और राम के प्रभाव से सब की कुटिलता जाती रही। चारों वर्ण, चारों आश्रम सब अपने वैदिक धर्म के अनुसार चलते हैं। सुख प्राप्त करते हैं, किसी को भय, शोक और रोग नहीं हैं दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्त होकर सब लोग परस्पर स्नेह करने लगे और अपने कुल धर्मानुसार जीवन जीने लगे।
+मनुष्यों के नीति पूर्ण जीवन से प्रसन्न प्रकृति ने भी पूर्ण उदारता से फल, फूल इत्यादि देने में कोई कसर नहीं रखी थी। तुलसी कहते हैं -
+पर्वतों में से अनेक तरह की मणियों की खानें जगत्-प्राण राम को देखकर प्रकट हो गईं। सब नदियों में सुन्दर जल प्रवाहित होने लगा, जो शीतल, निर्मल और मजेदार था। सागर अपनी सीमा का अनुल्लंघन करते हुए किनारों पर रत्न फेंकते थे। सरोवरों में पंकज खिले थे। पूरा वायुमंडल मनोहर था।
+इस प्रकार राम के राज्य में शशि की अमृतमयी किरणों से अवनि परिपूर्ण थी और बादल माँगने पर जलधारा बरसाते थे।
+धर्मयुक्त कल्याणकारी राज्य का मूल है प्रजा-कल्याण एवं शासकों की नीतिमता। राम के राजतंत्र में हमें प्रजा-सत्ता के कल्याणमय स्वरूप का दर्शन होता है। राम हमारे सामने कल्याणकारी शासक का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। आदर्श शासक अथवा सरकार वही है, जो प्रजा को सुख प्रदान करे। इसलिए तुलसीदासजी इस बात पर जोर देते हैं कि
+जिसमें प्रजा सुखी है, वही कल्याणकारी राज्य है, वही सुराज्य है ’’सुखी प्रजा जनु पाई सुराजु‘‘ पंक्ति में वही भाव ध्वनित है कल्याणकारी राज्य के राजा का प्रधान धर्म है वचन-पालन, सत्यनिष्ठा एवं स्वावलंबन। राम का राजा के रूप में वर्णन करते हुए तुलसीदास ने कहा हैं:
+कल्याणकारी राज्य में व्यक्तिगत स्वातंत्र्य का बहुत बडा महत्त्व है। राम-राज्य एक तरह से प्रजा-तंत्रात्मक राज्य था। उसकी प्रजा को संपूर्ण स्वातंत्र्य था। अतः लोग निर्भीक होकर रानी कैकेयी के कलुषित कार्यों की आलोचना कर सकते थे। यहाँ तक कि राम के व्यक्तिगत जीवन की भी। प्रजा की भावना का आदर करते हुए राम ने सीता का परित्याग किया, इससे बढकर शायद ही कोई सबूत किसी राजा की प्रजा-प्रियता एवं महानता का मिल सके। कल्याणकारी राज्य में सत्ता प्रजा की धरोहर मानी जाती है। राम के राज्य में प्रजा अथवा पंचों के परामर्श को महत्त्व मिलता था। राम-राज्य सत्य, दया, नीति और धर्म का राज्य था। किसी भी राज्य के उत्कर्ष के लिए ये चार वस्तुएँ आधार-शिलाएँ हैं।
+जहाँ मानव मात्र को समान समझा जाय, वही कल्याकारी राज्य। ’रामचरितमानस‘ में इसका भी चित्र मिलता है। वनगमन के सिलसिले में राम चित्रकूट में डेरा लगाते हैं। उनके आगमन की खबर सुनकर गुह-किरात-शबर इत्यादि वनवासी लोग उनके दर्शनार्थ दौड आते हैं। उस समय राम का स्नेहासिक्त व्यवहार दर्शनीय है -
+राज्य बनता है व्यक्तियों से, परिवारों से और समाजों से। रामराज्य अथवा कल्याणकारी राज्य तभी संभव होता है, जब पारिवारिक जीवन शुद्ध और मर्यादायुक्त हो। पिता-पुत्र, पति-पत्नी, सास-बहू इत्यादि का पारस्परिक संबंध एवं व्यवहार यदि मर्यादापूर्ण एवं विवेकयुक्त होगा तो सामाजिक जीवन स्वस्थ रहेगा। भाई-भाई के बीच स्नेह, विश्वास और प्रेम होना चाहिए। राम भरत से कहते हैं -
+तुलसी ने स्वराज्य का स्वरूप, सुराज्य का आदर्श, राजा का आचरण, प्रजा का व्यवहार, मंत्री का कर्त्तव्य एवं दूत का धर्म कैसा होना चाहिए आदि के बारे में अपने विचार अनेक स्थलों पर प्रकट किये हैं, जो प्रजा-कल्याण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। राजा-राजा के बीच, सेवक-स्वामी के बीच कैसा व्यवहार अपेक्षित है, उसकी चर्चा तुलसी ने ’रामचरित मानस‘ में स्पष्टतः की है।
+इस तरह हम देखते हैं कि तुलसीकृत राम-राज्य के वर्णन में हमें धर्मयुक्त कल्याणलक्षी आदर्श राज्य का दर्शन होता है। राम का राज्य एकतंत्रात्मक था, किन्तु वही सही अर्थ में लोक-तंत्रात्मक था। क्योंकि सत्ता नहीं सेवा, सेवा नहीं जनकल्याण ही राम का आदर्श था। अतः धर्म अथवा कर्त्तव्यपरायणता ही उनका जीवन-मंत्र था।
+’तुलसीदासः आज के संदर्भ में‘ पुस्तक में युगेश्वर जी ने उचित ही कहा है कि राष्ट्र की भावात्मक एकता के लिए जिस उदात्त चरित्र की आवश्यकता है, वह रामकथा में है। मानस एक ऐसा वाग्द्वार है जहाँ समस्त भारतीय साधना और ज्ञान परम्परा प्रत्यक्ष दीख पडती है। दूसरी ओर देशकाल से परेशान, दुःखी और टूटे मनों का सहारा तथा संदेश देने की अद्भुत क्षमता है। आज भी करोडों मनों का यह सहारा है।
+’रामचरितमानस‘ के संदेश को केवल भारत तक सीमित स्वीकृत करना इस महान् ग्रंथ के साथ अन्याय होगा। ’रामचरितमानस‘ युगवाणी है। विश्व का एक ऐसा विशिष्ट महाकाव्य जो आधुनिक काल में भी ऊर्ध्वगामी जीवनदृष्टि एवं व्यवहारधर्म तथा विश्वधर्म का पैगाम देता है। ’रामचरितमानस‘ अनुभवजन्य ज्ञान का ’अमरकोश‘ है।
+’तुलसी के हिय हेरि‘ में तुलसी-साहित्य के मर्मज्ञ आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री जी ने ’आधुनिकता की चुनौती और तुलसीदास‘ शीर्षक अध्याय में कहा है कि तुलसीदास की विचारधारा का विपुलांश आज भी वरणीय है। श्रीराम सगुण या निर्गुण ब्रह्म, अवतार, विश्वरूप, चराचर व्यक्त जगत् या चाम मूल्यों की समष्टि और स्रोत-उन का जो भी रूप आप को ग्राह्य हो) के प्रति समर्पित, सेवाप्रधान, परहित निरत, आधि-व्याधि-उपाधि रहित जीवन, मन, वाणी और कर्म की एकता, उदार, परमत सहिष्णु, सत्यनिष्ठ, समन्वयी दृष्टि, अन्याय के प्रतिरोध के लिए वज्र कठोर, प्रेम-करुणा के लिए कुसुम कोमल चित्त, गिरे हुए को उठाने और आगे बढने की प्रेरणा और आश्वासन, भोग की तुलना में तप को प्रधानता देने वाला विवेकपूर्ण संयत आचरण, दारिद्रय मुक्त, सुखी, सुशिक्षित, समृद्ध समतायुक्त समाज, साधुमत और लोकमत का समादर करनेवाला प्रजाहितैषी शासन-संक्षेप में यही आदर्श प्रस्तुत किया है, तुलसी की ’मंगल करनि, कलिमल हरनि‘-वाणी ने। क्या आधुनिकता इस को खारिज कर सकती है ?
+विष्णुकान्त शास्त्री जी एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न हमारे सामने रखते हुए पूछते है ’’और फिर आधुनिकता को यह आदर्श चुनौती नहीं दे सकता क्या यह उस से नहीं पूछ सकता कि आधुनिक प्राचुर्ययुक्त समाज बाहर से जितना भरा-भरा लगता है, भीतर से उतना ही खोखला नहीं है भौतिक समृद्धि के साथ-ही-साथ मनुष्य की बेचैनी, छटपटाहट, हताशा, क्यों बढती जा रही है आज की उद्धत बौद्धिकता परंपरागत मूल्यों के खंडन में सफल होने का दावा करती है, वैसा दावा हृदय को अवलम्ब दे पाने वाले किसी विश्वास के निर्माण के लिए क्यों नहीं कर पाती
+अर्थ स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है ।
+अर्थ जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं । दरअसल ,उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता ।
+तुलसीदास के बारे में उक्तियाँ
+* भारतीय भक्ति मार्ग सरलता और स्पष्टता का पक्षधर है क्योंकि उसके अनुसार भक्ति का संबंध भावना से है, कठिन योग साधना से नहीं।
+* भक्ति रस का पूर्ण परिपाक जैसा विनयपत्रिका में देखा जा सकता है, वैसा अन्यत्र नहीं। भक्ति में प्रेम के अतिरिक्त आलंबन के महत्त्व और अपने दैन्य का अनुभव परमावश्यक अंग है। त���लसी के हृदय से इन दोनों अनुभवों के ऐसे निर्मल शब्द स्रोत निकले हैं, जिसमें अवगाहन करने से मन की मैल करती है और अत्यंत पवित्र प्रफुल्लता आती है। रामचंद्र शुक्ल
+* हम निःसंकोच कह सकते हैं कि यह एक कवि ही हिन्दी की एक प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।
+* तुलसीदास जी अपने ही तक दृष्टि रखने वाले भक्त न थे, संसार को भी दृष्टि फैलाकर देखने वाले भक्त थे। जिस व्यक्त जगत के बीच उन्हें भगवान के रामरुप की कला का दर्शन कराना था, पहले चारों ओर दृष्टि दौङाकर उसके अनेक रूपात्मक स्वरूप को उन्होंने सामने रखा है।
+* शील और शील का, स्नेह और स्नेह का, नीति और नीति का मिलन है। (राम-भरत मिलन)
+* यदि कहीं सौन्दर्य है तो प्रफुल्लता, शक्ति है तो प्रणति, शील है तो हर्ष पुलक, गुण है तो आदर, पाप है तो घृणा, अत्याचार है तो क्रोध, अलौकिकता है तो विस्मय, पाखंड है तो कुढ़न, शोक है तो करुणा, आनंदोत्सव है तो उल्लास, उपकार है तो कृतज्ञता, महत्त्व है तो दीनता, तुलसीदास के हृदय में बिम्ब-प्रतिबिंब भाव से विद्यमान है।
+* अनुप्रास के तो वह बादशाह थे। अनुप्रास किस ढंग से लाना चाहिए, उनसे यह सीखकर यदि बहुत से पिछले फुटकर कवियों ने अपने कवित सवैये लिखे होते तो उनमें भद्दापन और अर्थन्यूनता न आने पाती।
+* तुलसीदास को जो अभूतपूर्व सफलता मिली उसका कारण यह था कि वे समन्वय की विशाल बुद्धि लेकर उत्पन्न हुए थे। भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर सामने आया हो।
+* तुलसीदास जी की कविता में लोकजीवन को बहुत दूर तक प्रभावित किया है। उत्तर भारत में जन्म से लेकर मरण काल तक के सभी अनुष्ठानों और उत्सवों में तुलसीदास की रामभक्ति का कुछ न कुछ असर जरुर है।
+रामनरेश त्रिपाठी – महात्मा गाँधी का आत्मशुद्धि का उपदेश और तुलसीदास का रामचरितमानस दोनों एक ही वस्तु है।
+उदयभानु सिंह – विनयपत्रिका उत्तम प्रगीत काव्य का उत्कृष्ट नमूना है।
+उदयभानु सिंह – मानस भक्तिजल से लबालब भरा है। पहले ही सोपान के आरंभ से भक्तिरस मिलने लगता है। पाठक ज्यों-ज्यों गहराई में उतरता जाता है त्यों-त्यों भक्तिजल में प्रवेश करता जाता है और सातवें सोपान पर पहुँचकर वह भक्ति रस में पूर्णतः मग्न हो जाता है।
+रामविलास शर्मा – भक्ति आंदोलन और तुलसी काव्य का राष्ट्रीय महत्त्व यह है कि उनसे भारतीय जनता की भावात्मक एकता दृढ़ हुई।
+रामविलास शर्मा – भक्ति आंदोलन और तुलसी काव्य का अन्यतम सामाजिक महत्त्व यह है कि इनमें देश की कोटि-कोटि जनता की व्यथा, प्रतिरोध-भावना और सुखी जीवन की आकांक्षा व्यक्त हुई है। भारत के नए जागरण का कोई महान कवि भक्ति आंदोलन और तुलसीदास से पराङ मुख नहीं रह सकता।
+ग्राउस – महलों और झोपङियों में समान रुप से लोग इसमें रस लेते हैं। वस्तुतः भारतवर्ष के इतिहास में गोस्वामी जी का जो महत्त्वपूर्ण स्थान है, उसकी समानता में कोई आता ही नहीं, उसकी ऊँचाई को कोई छू नहीं पाता।
+लल्लन सिंह – तुलसी ने काव्य के संबंध में अपने लिए जो प्रतिमान निर्धारित किए थे, उनमें समाजनिष्ठता सर्वोपरि है।
+विश्वनाथ त्रिपाठी – तुलसी की पंक्तियाँ लोगों को बहुत याद है। वे उत्तरी भारत के गाँवों, पुरबों, खेतों, खलिहानों, चरागाहों, चौपालों में दूब, जल, धूल, फसल की भाँति बिखरी हैं।
+रामकिंकर उपाध्याय – रामचरितमानस के राम ज्ञानियों के परब्रह्म परमात्मा हैं। भक्तों के सगुण साकार ईश्वर हैं। कर्म मार्ग के अनुयायियों के लिए महान मार्ग दर्शक और दीनों के लिए दीनबंधु हैं। चार बाटों के माध्यम से रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने सारे समाज के व्यक्तियों को आमंत्रण दिया कि वे श्रीराम के चरित्र से अपनी अभीष्ट वस्तु प्राप्त कर लें।
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+मुहावरे भाषा को सुदृढ़, गतिशील और रुचिकर बनाते हैं,उनके प्रयोग से भाषा में चित्रमयता आती है।
+बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँह चढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है।
+भव्य भवन आज तक रुका हुआ है और मुहावरे ही
+उसकी टूट-फूट को ठीक करते हुए गर्मी, सर्दी और बरसात के
+भाषा को सुदृढ़, गतिशील और रुचिकर बनाते हैं। उनके
+'मुहावरा' अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बातचीत
+करना या उत्तर देना। कुछ लोग मुहावरे को 'रोज़मर्रा',
+'बोलचाल तर्ज़ेकलाम' या 'इस्तलाह' कहते हैं। यूनानी
+भाषा में 'मुहावरे' को 'ईडियोमा फ्रेंच में 'इडियाटिस्मी' और
+अँगरेजी में 'इडिअम' कहते हैं।
+मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि जिस सुगठित शब्द-समूह से
+लक्षणाजन्य और कभी-कभी व्यंजनाजन्य कुछ विशिष्ट अर्थ
+निकलता है उसे 'मुहावरा' कहते हैं। कई बार यह व्यंग्यात्मक
+शब्दों की तीन शक्तियाँ होती हैं अभिधा, लक्षणा, व्यंजना
+अभिधा जब किसी शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग होता है
+का अर्थ किसी चीज को किसी स्थान से उठाकर सिर पर रखना
+लक्षणा जब शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग न करते हुए
+किसी विशेष प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है, यह
+जिस शक्ति के द्वारा होता है उसे लक्षणा कहते हैं। लक्षणा से
+'सिर पर चढ़ने' का अर्थ आदर देना होगा। उदाहरण के लिए
+'आग से खेलना खून चूसना ठहाका लगाना शेर
+बनना' आदि में लक्षणा शक्ति का प्रयोग हुआ है, इसीलिए वे
+व्यंजना जब अभिधा और लक्षणा अपना काम खत्मकर लेती
+हैं, तब जिस शक्ति से शब्द-समूहों या वाक्यों के किसी अर्थ की
+सूचना मिलती है उसे 'व्यंजना' कहते हैं। व्यंजना से निकले
+अधिकांश अर्थों को व्यंग्यार्थ कहते हैं। 'सिर पर चढ़ाना' मुहावरे का
+मुहावरे का अर्थ होता है उच्छृंखल, अनुशासनहीन अथवा ढीठ
+आधारित होते हैं, उनमें इस्तेमाल शब्दों की जगह दूसरे शब्दों का
+प्रयोग किया जाए तो उनका अर्थ ही बदल जाता है जैसे पानी-पानी
+होना' की जगह 'जल-जल होना' नहीं कहा जा सकता। ऐसे ही 'गधे
+को बाप बनाना' की जगह पर 'बैल को बाप बनाना' और
+'मटरगश्ती करना' की जगह पर 'गेहूँगश्ती' या 'चनागश्ती' नहीं
+अंग टूटना शरीर में दर्द होना -शरीर में दर्द होने के कारण आज मेरा अंग-अंग टूट रहा है।
+अक्ल ठिकाने लगना होश ठीक होना -फिर देखो कैसे चार दिन में होश ठीक।होने पर सबकी अक्ल ठिकाने लगती है।
+अपनी खिचड़ी अलग पकाना सबसे अलग रहना -आप लोग किसी के साथ मिलकर काम करना नहींजानते, सबसे रहकर अपनी खिचड़ी अलग पकाते हैं।
+नीचे दी गयीं कड़ियों में हिन्दी के प्रमुख मुहावरों के अर्थ तथा उनका वाक्यों में सम्यक प्रयोग दिये गये हैं।
+
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+बाल गंगाधर तिलक, एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुए। ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें "भारतीय अशान्ति के पिता" कहते थे। उन्हें लोकमान्य" का आदरणीय उपाधि प्राप्त हुई, जिसका अर्थ हैं लोगों द्वारा स्वीकृत (उनके नायक के रूप में)। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है।
+* स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा !
+* हो सकता है ये भगवान की मर्जी हो कि मैं जिस वजह का प्रतिनिधित्व करता हूँ उसे मेरे आजाद रहने से ज्यादा मेरे पीड़ा में होने से अधिक लाभ मिले।
+* भूविज्ञानी पृथ्वी का इतिहास वहां ���े उठाते हैं जहाँ से पुरातत्वविद् इसे छोड़ देते हैं, और उसे और भी पुरातनता में ले जाते हैं।
+* धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं हैं। सन्यास लेना जीवन का परित्याग करना नहीं है। असली भावना सिर्फ अपने लिए काम करने की बजाये देश को अपना परिवार बना मिलजुल कर काम करना है। इसके बाद का कदम मानवता की सेवा करना है और अगला कदम ईश्वर की सेवा करना है।
+* भारत की गरीबी पूरी तरह से वर्तमान शासन की वजह से है।
+* अगर आप नहीं दोड़ सकते तो ना दौडें, लेकिन जो दोड़ सकते हैं, उनकी टांग क्यों खींचते हैं ?
+* अपने हितों की रक्षा के लिए यदि हम स्वयं जागरूक नहीं होंगे तो दूसरा कोन होगा? हमे इस समय सोना नहीं चाहिये ,हमे अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिये।
+* आप कठिनाइयों, खतरों और असफलताओं के भय से बचने का प्रयत्न मत कीजिये। वे तो निश्चित रूप से आपके मार्ग मे आनी ही हैं।
+* आप मुश्किल समय में खतरों और असफलताओं के डर से बचने का प्रयास मत कीजिए, वे तो निश्चित रूप से आपके मार्ग में आयेंगे ही।
+* आपका दोष क्षमता की कमी या साधनों की कमी की दृष्टि से नहीं है, वरन दोष इस बात मे है की आपमें संकल्प का अभाव है। आपने उस संकल्प को अपने मे उत्पन्न नहीं किया है जो आपको पहले ही उत्पन्न कर लेना था। संकल्प ही सब कुछ है। आपको संकल्प शक्ति इतना साहस दे सकती है की आपको लक्ष्य पाने से कोई नहीं रोक सकता।
+* आपका लक्ष्य किसी जादू से नहीं पूरा होगा, बल्कि आपको ही अपना लक्ष्य प्राप्त करना पड़ेगा।
+* आपके लक्ष्य की पूर्ती स्वर्ग से आये किसी जादू से नहीं हो सकेगी। आपको ही अपना लक्ष्य प्राप्त करना है। कार्य करने और कढोर श्रम करने के दिन यही हैं।
+* आपके विचार सही हों ,आपके लक्ष्य ईमानदार हों ,और आपके प्रयास संवेधानिक हों तो मुझे पूर्ण विश्वास है की आपको अपने प्रयत्नों मे सफलता मिलेगी।
+* आपको ये नहीं मानना चाहिये की आप जो श्रम करेंगे उससे उत्पन्न फसल को आप ही काटेंगे। सदेव ऐसा नहीं होता। हमे अपनी पूर्ण शक्ति से श्रम करना चाहिये और उसका परिणाम आने वाली पीढ़ी के भोगने के लिए छोड़ देना चाहिये। याद रखिये ,आप जो आम आज खा रहे हैं उनके पेड़ आपने नहीं लगाये थे।
+* आलसी व्यक्तियों के लिए भगवान अवतार नहीं लेते, वह मेहनती व्यक्तियों के लिए ही अवतरित होते हैं, इसलिए कार्य करना आरम्भ करें।
+* एक अच्छे अखबार के शब्द अपने आप बोल देते ह���ं।
+* एक बहुत पुरानी कहावत है की भगवान उन्ही की सहायता करता है, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं।
+* एक बहुत प्राचीन सिद्धांत है की ईश्वर उनकी ही सहायता करता है ,जो अपनी सहायता आप करते हैं। आलसी व्यक्तियों के लिए ईश्वर अवतार नहीं लेता। वह उद्योगशील व्यक्तियों के लिए ही अवतरित होता है। इसलिए कार्य करना शुरु कीजिये।
+* कमजोर ना बनें, शक्तिशाली बनें और यह विश्वास रखें की भगवान हमेशा आपके साथ है।
+* कायर ना बनें, शक्तिशाली बनें और विशवास रखें की ईश्वर आपके साथ है।
+* जनमत जैसी एक चीज होती है जिससे स्वेच्छाचारी और तानाशाह भय खाते हैं।
+* जब लोहा गरम हो तभी उस पर चोट कीजिये और आपको निश्चय ही सफलता का यश प्राप्त होगा।
+* जीवन एक ताश के खेल की तरह है, सही पत्तों का चयन हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन हमारी सफलता निर्धारित करने वाले पत्ते खेलना हमारे हाथ में है।
+* दूसरे के मुह से पानी नहीं पिया जा सकता ,हमे पानी स्वयं पीना होगा। वर्तमान व्यवस्था (अंग्रेजी हुकूमत हमे दुसरे के मुह से पानी पीने के लिए मजबूर करती है। हमे अपने कुवें से अपना पानी खीचना और पानी पीना चाहिये।
+* प्रगति स्वतंत्रता में निहित है। बिना स्वशासन के न औद्योगिक विकास संभव है न ही राष्ट्र के लिए शैक्षिक योजनाओं की कोई उपयोगिता है।। देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करना सामाजिक सुधारों से अधिक महत्वपूर्ण है।
+* भारत का तब तक खून बहाया जा रहा है जब तक की बस कंकाल ना शेष रह जाये।
+* मनुष्य का प्रमुख लक्ष्य भोजन प्राप्त करना ही नहीं है! एक कौवा भी जीवित रहता है और जूठन पर पलता है।
+* महान उपलब्धियाँ कभी भी आसानी से नहीं मिलतीं और आसानी से मिली उपलब्धियाँ महान नहीं होतीं।
+* मानव स्वभाव ही ऐसा है कि हम बिना उत्सवों के नहीं रह सकते। उत्सव प्रिय होना मानव स्वभाव है। हमारे त्यौहार होने ही चाहियें।
+* यदि हम किसी भी देश के इतिहास को अतीत में जाएं, तो हम अंत में मिथकों और परम्पराओं के काल में पहुंच जाते हैं जो आखिरकार अभेद्य अन्धकार में खो जाता है।
+* ये सच है कि बारिश की कमी के कारण अकाल पड़ता है लेकिन ये भी सच है कि भारत के लोगों में इस बुराई से लड़ने की शक्ति नहीं है।
+* हम हमारे सामने सही रास्ते के प्रकट होने के इंतजार में अपने दिन खर्च करते हैं, लेकिन हम भूल जाते हैं कि रास्ते इंतजार करने के लिए नहीं, बल्कि चलने के लिए बने हैं।
+लो���मान्य तिलक के विषय में उक्तियाँ
+* भारत का प्रेम लोकमान्य तिलक के जीवन का श्वासोच्छ्वास था। उनका धैर्य कभी कम न हुआ और निराशा उनको छू तक नहीं गई। उनके अलौकिक गुणों को धारण करना ही उनका स्मारक है। महात्मा गाँधी]]
+* उन्होंने देश के लिए असीम विपदाएँ झेलीं, क्योंकि भारत का प्रेम ही उनके हृदय की प्रधान भावना थी। मरते दम तक ‘ स्वराज्य ‘ ही उनका ध्येय रहा। मदन मोहन मालवीय]]
+* तिलक की मृत्यु के कारण भारत का प्रथम श्रेणी का देशभक्त और अर्वाचीन हिन्दुस्तान का एक स्फूर्तिदाता चल बसा। लाला लाजपत राय]]
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+: अपनी आयु वित्त, गृह के दोष, मंत्र, मैथुन, औषधि, दान, मान, अपमान इन नौ को छुपाकर रखना चाहिए (अन्यथा नुकसान उठाना पड़ सकता है)।
+: धर्म का तत्व समझो और उसे गुनो! जो अपने लिये प्रतिकूल हो, वैसा आचरण या व्यवहार दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये।
+: यह मेरा है, यह दूसरे का है, ऐसा छोटी बुद्धि वाले सोचते हैं; उदार चरित्र वालों के लिये तो धरती ही परिवार है ।
+: विद्या विवाद के लिये, धन मद के लिये, शक्ति दूसरों को सताने के लिये, ये चीजें सज्जन लोगों में दुष्टों से उल्टी होती हैं, क्रमशः ज्ञान, दान और रक्षा के लिये ।
+: न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न भाई बांट सकते हैं और न यह भारी है। खर्च करने पर रोज बढती है, विद्या धन सभी धनों में प्रधान है ।
+: चन्द्रमा तारों का आभूषण है, नारी का भूषण पति है । पृथ्वी का अभूषण राजा है और विद्या सभी का आभूषण है ।
+: जो उत्साह से भरा है, आलसी नहीं है, क्रिया कुशल है और अच्छे कामों में रत है, वीर, कृतज्ञ और अच्छी मित्रता रखने वाला है, लक्ष्मी उस के साथ रहने अपने आप आती है ।
+: व्यवहार परम धर्म है, व्यवहार ही परम तप है, व्यवहार ही परम ज्ञान है, व्यवहार से क्या नहीं मिल सकता ।
+: किताब में रखा ज्ञान और दूसरे को दिया धन, काम पडने पर न वह विद्या काम आती है और न वह धन ।
+: जिसके कर्म को शर्दी, गर्मी, भय, भावुकता, समपन्नता अथवा विपन्नता बाधा नहीं डालता है, उसे ही पंडित कहा गया है।
+: सभी जीवों के आत्मा के रहस्य को जानने वाले, सभी कर्म के योग को जानने वाले और मनुष्यों में उपाय जानने वाले व्यक्ति को पंडित कहा जाता है।
+: जो व्यक्ति बिना बुलाए किसी के यहाँ जाता है, बिना पूछे बोलता है और अविश्वासीयों पर विश्वास कर लेता है, उसे मुर्ख कहा गया है।
+: एक ही धर्म सबसे श्रेष्ठ है। क्षमा शांति का ���तम उपाय है। विद्या से संतुष्टि प्राप्त होती है और अहिंसा से सुख प्राप्त होती है।
+: एश्वर्य चाहने वाले व्यक्ति को निद्रा (अधिक सोना तन्द्रा (उंघना डर, क्रोध, आलस्य और किसी काम को देर तक करना। इन छः दोषों को त्याग देना चाहिए।
+: सत्य से धर्म की रक्षा होती है। अभ्यास से विद्या की रक्षा होती है। श्रृंगार से रूप की रक्षा होती है। अच्छे आचरण से कुल ;परिवारद्ध की रक्षा होती है।
+: हे राजन! सदैव प्रिय बोलने वाले और सुनने वाले पुरूष आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन अप्रिय ही सही उचित बोलने वाले कठिन है।
+: स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी होती हैं। इन्ही से परिवार की प्रतिष्ठा बढ़ती है। यह महापुरूषों को जन्म देनेवाली होती है। इसलिए स्त्रियाँ विशेष रूप से रक्षा करने योग्य होती है।
+: विनम्रता बदनामी को दुर करती है, पौरूष या पराक्रम अनर्थ को दुर करता है, क्षमा क्रोध को दुर करता है और अच्छा आचरण बुरी आदतों को दुर करता है।
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+अब्दुल रहीम खान-ए-खाना (1556-1627) जो कि रहीम के नाम से भी जाने जाते थे, अकबर के विश्वासपात्र बैरम खान के पुत्र थे और भारतवर्ष के महानतम कवियों में से एक थे। रहीम के दोहों में नीति की बातें बहुत ही सरल ढ़ंग से अभिव्यक्त हुई हैं।
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+हिन्दी भाषा विश्व की तीसरी और भारत में यह सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है। इसके मातृ भाषा के रूप में बोलने वालों की संख्या 50 करोड़ से भी अधिक है। यह भारत में 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है।
+* हिन्दी को इसका नाम फ़ारसी भाषा के हिन्द शब्द से मिला है।
+* इसमें अंग्रेज़ी की तरह (आर्टिकल) a, an और the नहीं है, जो इसे और भी सरल बना देता है।
+* हिन्दी भाषा में बड़े और छोटे अक्षर नहीं होते और स्वर व व्यंजन भी पहले से अलग अलग होते हैं।
+* हिंदी को देवनागरी वर्णमाला में लिखा जाता है और इसमें संस्कृत से शब्द आते है।
+* लेकिन, हिंदी भारत कि राष्ट्रीय भाषा नहीं हैं। (संविधान में, हिंदी को आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था, न कि राष्ट्रीय भाषा।)
+
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+* गायत्री मंत्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने और आत्माओं की उन्नति के लिए उपयोगी है। गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त हृदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है। महात्मा गाँधी]]
+* सचमुच गायत्री ऐसी ही महाशक्ति है जिसको हमें भी श्रद्धापूर्वक हृदयंगम करना चाहिए। महात्मा गाँधी]]
+* ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमको दिऐ हैं, उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है। मदन मोहन मालवीय]]
+* भारतवर्ष को जगाने वाला जो मंत्र है, वह इतना सरल है कि ऐक ही श्वास में उसका उच्चारण किया जा सकता है। वह मंत्र है गायत्री मंत्र। रबीन्द्रनाथ टैगोर]]
+* मैं लोगों से कहता हूँ कि लम्बे लम्बे साधन करने की उतनी जरूरत नहीं है। इस छोटी सी गायत्री की साधना को करके देखो। गायत्री का जप करने से बड़ी बड़ी सिद्धियाँ मिल जाती हैं। यह मंत्र छोटा है पर इसकी शक्ति बड़ी भारी है। अरविन्द घोष]]
+* गायत्री में ऐसी शक्ति सन्निहित है, जो महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है। अरविन्द घोष]]
+* गायत्री का जप करने से बडी-बडी सिद्धियां मिल जाती हैं। यह मंत्र छोटा है, पर इसकी शक्ति भारी है। रामकृष्ण परमहंस]]
+* गायत्री सदबुद्धि का मंत्र है, इसलिऐ उसे मंत्रो का मुकुटमणि कहा गया है। स्वामी विवेकानंद]]
+* गायत्री के मंत्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने के लिए इसका प्रयोग, प्रार्थना की परिभाषा -आत्मा एक उन्नत अवस्था से दूसरी उन्नत अवस्था को पहुँचने के लिए आतुर हो रही है-सर्वथा चरितार्थ करता है। यदि इसी गायत्री मंत्र का जप अनवरत चित्त और शान्त हृदय से राष्ट्रीय आपत्ति काल में किया जाता है तो उन संकटों को मिटाने के लिए प्रभाव और पराक्रम दिखलाता है। जिन लोगों का यह विश्वास है कि ‘मंदिरों में जाकर गायत्री का जप करना, नमाज या प्रेयर करना मूर्खता या विडम्बना है’ वे भ्रम में फंसे हुए हैं। मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ कि ऐसी मान्यता से बड़ी भूल मनुष्य से ओर कोई नहीं हो सकती।
+* गायत्री की महिमा का वर्णन करना मनुष्य की सामर्थ्य से बाहर है। बुद्धि का शुद्ध होना इतना बड़ा कार्य है जिसकी समता संसार के और किसी काम से नहीं हो सकती। आभा प्राप्ति करने की दिव्य दृष्टि जिस शुद्ध बुद्धि से प्राप्त होती है उसकी प्रेरणा गायत्री द्वारा होती है। गायत्री आदि मंत्र है। उसका अवतार दुरितों को नष्ट करने और ऋत के अभिवर्धन के लिए हुआ है। महर्षि रमण]]
+* गायत्री मंत्र ऐसा मंत्र है जिससे आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार के लाभ मिलते हैं। मदन मोहन मालवीय]]
+* ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमें दिये हैं उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री है। गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है। ईश्वर का प्रकाश आत्मा में आता है। इस प्रकाश में असंख्य��ं आत्माओं को भव बन्धन से त्राण मिला है। गायत्री में ईश्वर परायणता के भाव उत्पन्न करने की शक्ति है, साथ ही वह भौतिक अभावों को दूर रह करती। लोकमान्य तिलक]]
+* भारतीय जनता आज अन्धकार में भटक रही है। उसका कल्याण केवल अन्न धन वृद्धि से ही न हो जायगा। आर्थिक दशा सुधर जाने पर भी मनुष्य सुखी नहीं हो सकता उसे आज ऐसे प्रकाश की आवश्यकता है जो उसकी आत्मा को प्रकाशित कर दे। जिस बहुमुखी दासता के बन्धनों में आज प्रजा जकड़ी हुई है उनका अन्त राजनैतिक संघर्ष करने मात्र से नहीं हो जायगा। उसके लिए तो आत्मा के अन्दर प्रकाश उत्पन्न होना चाहिए जिससे सत् और असत् का विवेक हो। कुमार्ग को छोड़ कर श्रेष्ठ मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले। गायत्री मंत्र में वह भावना विद्यमान है। उसमें प्रकाश की कामना की गई है। अन्तः करण में प्रज्वलित ज्ञान ज्योति ही हमारा पथ प्रदर्शन कर सकती है और उसी के पीछे अनुगमन करने से आज की विपन्न दशा से छुटकारा पाया जा सकता है।
+* प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्त में उठकर, नित्य कर्म से निवृत्त होकर गायत्री का जप करना चाहिए। ब्राह्ममुहूर्त में गायत्री का जप करने से चित्त शुद्ध होता है और हृदय में निर्मलता आती है। शरीर निरोग रहता है और स्वभाव में नम्रता आती है। बुद्धि सूक्ष्म होने से दूर दर्शिता बढ़ती है और स्मरण शक्ति का विकास होता है। कठिन प्रसंगों में गायत्री द्वारा दैवी सहायता मिलती है। उसके द्वारा आत्म दर्शन हो सकता है। स्वामी रामतीर्थ]]
+* राम को प्राप्त करना सब से बड़ा काम है। गायत्री अभिप्राय बुद्धि को काम रुचि से हटाकर राम रुचि में लगा देना है। जिसकी बुद्धि पवित्र होगी वही राम को प्राप्त करने का काम कर सकेगा। गायत्री पुकारती है कि-बुद्धि में इतनी पवित्रता होनी चाहिए कि वह काम को राम से बढ़ कर न समझे। रामकृष्ण परमहंस]]
+* परमात्मा से क्या माँगना चाहिए? क्या वह वस्तुएं माँगें जिन्हें अपने बाहुबल से आसानी के साथ कमाया जा सकता? नहीं, ऐसा उचित न होगा। बुहारी की आवश्यकता पड़ने पर उसे दो चार पैसे में बाजार से खरीद लिया जाता है। उसे कौन बुद्धिमान कहेगा जो बुहारी माँगने राजदरबार में जावे। राजा ऐसे माँगने पर हँसेगा और उसकी इस तुच्छ बुद्धि पर हँसेगा। राजा से वही वस्तु माँगी जानी चाहिए जो उसके गौरव के अनुकूल हो। परमात्मा से माँगने योग्य वस्तु सद्बुद्धि है। जिस पर परमात्मा प्रसन्न होते हैं उसे सद्बुद्धि प्रदान करते हैं। सद्बुद्धि से सत् मार्ग पर प्रगति होती है और सत्कर्म से सब प्रकार के सुख मिलते हैं। जो सत् की ओर बढ़ रहा है उसको किसी प्रकार के सुख की कमी नहीं रहती। गायत्री सद्बुद्धि का मंत्र है। इसलिए उसे मन्त्रों का मुकुटमणि कहा गया है। स्वामी करपात्री]]
+* मनुष्य शरीर में बुद्धि का प्रमुख स्थान है। गायत्री बुद्धि को पवित्र करती है। जब बुद्धि पवित्र हो गई तो सब कुछ पवित्र हो गया समझना चाहिए। जिसकी बुद्धि पवित्र है उसके लिए संसार में कुछ भी अप्राप्य नहीं है। गायत्री ब्राह्मणों का तो प्रधान आधार है। काली कमली वाले बाबा विश्रद्धानन्द
+* गायत्री ने बहुतों को सुमार्ग पर लगाया है। कुमार्ग गामी पुरुष की पहले तो गायत्री की ओर रुचि ही नहीं होती। यदि ईश्वर कृपा से हो जाए तो वह कुमार्ग गामी नहीं रहता। गायत्री जिसके हृदय में बास करती है उसका मन ईश्वर की ओर जाता है। विषय विकारों की व्यर्थता उसे भली प्रकार अनुभव होने लगती है।
+* कई महात्मा गायत्री का जप करके परम सिद्ध हुए हैं। परमात्मा की शक्ति ही गायत्री है। जो गायत्री के निकट जाता है वह शुद्ध होकर रहता है। आत्मकल्याण के लिए मन की शुद्धि आवश्यक है। मन की शुद्धि के लिए गायत्री मन्त्र अदभुत है। ईश्वर प्राप्ति के लिए गायत्री जप को प्रथम सीढ़ी समझना चाहिए। प्रसिद्ध आर्यसमाजी महात्मा सर्वदानन्द
+* गायत्री मन्त्र द्वारा प्रभु का पूजन सदा से आर्यों की रीति रही है। ऋषि दयानंद ने भी उसी शैली का अनुसरण करके सन्ध्या का विधान, यथाशक्ति सार्थक व्याख्यान तथा वेदों के स्वाध्याय में प्रयत्न करना बतलाया है। ऐसा करने से अन्तःकरण की शुद्धि तथा निर्मल बुद्धि होकर मनुष्य जीवन अपने और दूसरों के लिए हितकर हो जाता है। जितनी भी इस शुभ कर्म में श्रद्धा और विश्वास हो, उतना ही अविद्या आदि क्लेशों का ह्रास होता है। फिर विद्या के प्रकाश में उपासना, प्रभु के आस पास हो जाता है।
+* जो जिज्ञासु अर्थ पूर्वक इस मन्त्र का सप्रेम नियमपूर्वक उच्चारण करता है उसके लिए गायत्री संसार सागर संस्तरण की तरणि (नाव) और आत्म प्रसाद प्राप्ति की सरणि (सड़क) है। टी0 सुब्बाराव]]
+
+
+ये सुविचार अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा के हैं।
+1) इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं-ए�� दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहींं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।
+2) ज्ञान का अर्थ है-जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक् करने वाली जो विवेक बुद्धि है-उसी का नाम ज्ञान है।
+3) अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मजबूती से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है।
+4) आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कत्र्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है।
+5) कुचक्र, छद्म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं। बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा।
+6) जो दूसरों को धोखा देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है।
+7) समर्पण का अर्थ है-पूर्णरूपेण प्रभु को हृदय में स्वीकार करना, उनकी इच्छा, प्रेरणाओं के प्रति सदैव जागरूक रहना और जीवन के प्रतयेक क्षण में उसे परिणत करते रहना।
+8) मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं।
+11) जिनका प्रत्येक कर्म भगवान् को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है।
+13) सत्संग और प्रवचनों का-स्वाध्याय और सुदपदेशों का तभी कुछ मूल्य है, जब उनके अनुसार कार्य करने की प्रेरणा
+14) सब ने सही जाग्रत् आत्माओं में से जो जीवन्त हों, वे आपत्तिकालीन समय को समझें और
+व्यामोह के दायरे से निकलकर बाहर आएँ। उन्हीं के बिना प्रगति का रथ रुका पड़ा है।
+15) साधना एक पराक्रम है, संघर्ष है, जो अपनी ही दुष्प्रवृत्तियों से करना होता है।
+16) आत्मा को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम
+17) जैसे कोरे कागज पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही
+योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है।
+18) योग के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो वह नहीं, बल्कि तुम कैसे करते हो, वह बहुत अधिक महत्त्पूर्ण है।
+19) यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति धर्म का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख
+देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है।
+21) प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता वह है, जिसमें अपने ���पका निर्माण दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के
+अनुकरण से नहीं, वरन् स्वतंत्र विवेक के आधार पर कर सकना संभव हो सके।
+22) बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है।
+23) जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह
+24) भगवान जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं।
+25) हम अपनी कमियों को पहचानें और इन्हें हटाने और उनके स्थान पर सत्प्रवृत्तियाँ स्थापित करने का उपाय
+सोचें इसी में अपना व मानव मात्र का कल्याण है।
+26) प्रगति के लिए संघर्ष करो। अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों
+27) धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके अनुयायियों का कत्र्तव्य है। इसमें
+28) अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म
+निबाहने के लिए बाधित करते हैं।
+29) शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा
+एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है?
+30) जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है।
+31) आचारनिष्ठ उपदेशक ही परिवर्तन लाने में सफल हो सकते हैं। अनधिकारी ध्र्मोपदेशक खोटे सिक्के की
+तरह मात्र विक्षोभ और अविश्वास ही भड़काते हैं।
+32) इन दिनों जाग्रत् आत्मा मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए
+आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें।
+33) जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े
+अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमेंं महान् परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है-प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ।
+34) दैवी शक्तियों के अवतरण के लिए पहली शर्त है- साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता।
+35) आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है, पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाइयाँ ही खोजता है।
+37) व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए करने की परम्परा जब तक प्रचलित न होगी, तब
+तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों मेंं सामथ्र्यवान् नहीं बन सकता है।-वाङ्गमय
+39) भुजार्ए साक्षात् हनुमान हैं और मस्तिष्क गणेश, इनके निरन्तर साथ रहते हुए किसी को दरिद्र रहने की आवश्यकता
+41) मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से
+अपरिचित होने का ही यह परिणाम है।-वाङ्गमय
+42) धर्म अंत:करण को प्रभावित और प्रशासित करता है, उसमें उत्कृष्टता अपनाने, आदर्शों को कार्यान्वित
+करने की उमंग उत्पन्न करता है।-वाङ्गमय
+43) जीवन साधना का अर्थ है- अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये
+44) निकृष्ट चिंतन एवं घृणित कर्तृत्व हमारी गौरव गरिमा पर लगा हुआ कलंक है।-वाङ्गमय
+45) आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है।-वाङ्गमय
+47) अपनी दुCताएँ दूसरों से छिपाकर रखी जा सकती हैं, पर अपने आप से कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता।
+48) किसी महान् उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय
+49) महानता का गुण न तो किसी के लिए सुरक्षित है और न प्रतिबंधित। जो चाहे अपनी शुभेच्छाओं से उसे
+50) सच्ची लगन तथा निर्मल उद्देश्य से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहींं जाता।
+51) खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा।
+53) साधना का अर्थ है-कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए भी सत्प्रयास जारी रखना।
+54) सज्जनों की कोई भी साधना कठिनाइयों में से होकर निकलने पर ही पूर्ण होती है।
+55) असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही
+56) किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है।
+57) अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो।
+58) उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है-दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना।
+60) चरित्र का अर्थ है- अपने महान् मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर
+62) अपने अज्ञान को दूर करके मन-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान् की सच्ची पूजा है।
+65) वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक; किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं।
+66) वे माता-पिता धन्य हैं, जो अपनी संतान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं।
+67) मनोविकारों से परेशान, दु:खी, चिंतित मनुष्य के लिए उनके दु:ख-दर्द के समय श्रेष्ठ पुस्तकें ही सहारा
+68) अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बढ़कर प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
+69) विषयों, व्यसनों और विलासों मेंं सुख खोज���ा और पाने की आशा करना एक भयानक दुराशा है।
+70) कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्यांकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता।
+71) गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
+72) परमात्मा की सृष्टि का हर व्यक्ति समान है। चाहे उसका रंग वर्ण, कुल और गोत्र कुछ भी क्यों न हो।
+73) ज्ञान अक्षय है, उसकी प्राप्ति शैय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।
+74) वास्तविक सौन्दर्य के आधर हैं-स्वस्थ शरीर, निर्विकार मन और पवित्र आचरण।
+75) ज्ञानदान से बढ़कर आज की परिस्थितियों मेंं और कोई दान नहीं।
+77) इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्विचार है।
+78) उत्तम पुस्तकें जाग्रत् देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान
+80) शांन्किुञ्ज एक क्रान्तिकारी विश्वविद्यालय है। अनौचित्य की नींव हिला देने वाली यह संस्था प्रभाव पर्त
+की एक नवोदित किरण है।
+गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है।
+की अवधारणा, आत्मदेव की साधना की दिव्य संगम स्थली है-शांतिकुञ्ज गायत्री तीर्थ।
+83) धर्म का मार्ग फूलों सेज नहीं, इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं।
+84) मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है; परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं।
+86) हम क्या करते हैं, इसका महत्त्व कम है; किन्तु उसे हम किस भाव से करते हैं इसका बहुत महत्त्व है।
+87) संसार में सच्चा सुख ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखते हुए पूर्ण परिश्रम के साथ अपना कत्र्तव्य पालन करने
+88) किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है।
+89) दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है।
+90) निरभिमानी धन्य है; क्योंकि उन्हीं के हृदय में ईश्वर का निवास होता है।
+91) दुनिया में भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है।
+92) सज्जनता ऐसी विधा है जो वचन से तो कम; किन्तु व्यवहार से अधिक परखी जाती है।
+94 अखण्ड ज्योति' हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं।
+95) चरित्रवान् व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद् भक्त हैं।
+97) जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है।
+98) परमात्मा जिसे जीवन मेंं कोई विशेष अभ्यु��य-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है।
+99) देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और सुविधा की ललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी राह पर एकाकी चल पड़ते हैं।
+100) अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हल्का झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है।
+
+
+201) अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठों। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।
+202) दो याद रखने योग्य हैं-एक कत्र्तव्य और दूसरा मरण।
+203) कर्म ही पूजा है और कत्र्तव्यपालन भक्ति है।
+204) र्हमान और भगवान् ही मनुष्य के सच्चे मित्र है।
+205) सम्मान पद में नहीं, मनुष्यता में है।
+206) महापुरुषों का ग्रंथ सबसे बड़ा सत्संग है।
+207) चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है।
+208) बहुमूल्य समय का सदुपयोग करने की कला जिसे आ गई उसने सफलता का रहस्य समझ लिया।
+209) सबकी मंगल कामना करो, इससे आपका भी मंगल होगा।
+210) स्वाध्याय एक अनिवार्य दैनिक धर्म कत्र्तव्य है।
+211) स्वाध्याय को साधना का एक अनिवार्य अंग मानकर अपने आवश्यक नित्य कर्मों में स्थान दें।
+213) प्रतिकूल परिस्थितियों करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है।
+217) कत्र्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है।
+218) इस संसार में कमजोर रहना सबसे बड़ा अपराध है।
+221) परिश्रम ही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है।
+223) संसार में रहने का सच्चा तत्त्वज्ञान यही है कि प्रतिदिन एक बार खिलखिलाकर जरूर हँसना चाहिए।
+224) विवेक और पुरुषार्थ जिसके साथी हैं, वही प्रकाश प्राप्त करेंगे।
+225) अज्ञानी वे हैं, जो कुमार्ग पर चलकर सुख की आशा करते हैं।
+227) अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है।
+228) किसी को गलत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो।
+229) जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है।
+231) जिसके पास कुछ भी कर्ज नहीं, वह बड़ा मालदार है।
+232) नैतिकता, प्रतिष्ठाओं में सबसे अधिक मूल्यवान् है।
+234) वे प्रत्यक्ष देवता हैं, जो कत्र्तव्य पालन के लिए मर मिटते हैं।
+239) आत्म निर्माण ही युग निर्माण है।
+241) युग निर्माण योजना का आरम्भ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन् अपने मन को समझाने से शुरू होगा।
+242) भगवान् की सच्ची पूजा सत्कर्मों में ही हो सकती है।
+243) सेवा से बढ़कर पुण्य-परमार्थ इस संसार में और कुछ नहीं हो सकता।
+244) स्वयं उत्कृष्ट बनने और दूसरों को उत्कृष्ट बनाने का कार्य आत्म कल्याण का एकमात्र उपाय है।
+245) अपने आपको सुधार लेने पर संसार की हर बुराई सुधर सकती है।
+246) अपने आपको जान लेने पर मनुष्य सब कुछ पा सकता है।
+249) सत्कर्म ही मनुष्य का कत्र्तव्य है।
+250) जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान् कार्य करने के लिए है।
+251) राष्ट्र को बुराइयों से बचाये रखने का उत्तरदायित्व पुरोहितों का है।
+252) इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो।
+253) सतोगुणी भोजन से ही मन की सात्विकता स्थिर रहती है।
+254) जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ।
+255) श्रम और तितिक्षा से शरीर मजबूत बनता है।
+256) दूसरे के लिए पाप की बात सोचने में पहले स्वयं को ही पाप का भागी बनना पड़ता है।
+257) पराये धन के प्रति लोभ पैदा करना अपनी हानि करना है।
+258) ईष्र्या और द्वेष की आग में जलने वाले अपने लिए सबसे बड़े शत्रु हैं।
+260) पेट और मस्तिष्क स्वास्थ्य की गाड़ी को ठीक प्रकार चलाने वाले दो पहिए हैं। इनमेंं से एक बिगड़ गया
+261) आराम की जिन्गदी एक तरह से मौत का निमंत्रण है।
+262) आलस्य से आराम मिल सकता है, पर यह आराम बड़ा महँगा पड़ता है।
+263) ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें।
+264) मन का नियन्त्रण मनुष्य का एक आवश्यक कत्र्तव्य है।
+266) शिक्षा का स्थान स्कूल हो सकते हैं, पर दीक्षा का स्थान तो घर ही है।
+267) वाणी नहीं, आचरण एवं व्यक्तित्व ही प्रभावशाली उपदेश है
+268) आत्म निर्माण का अर्थ है-भाग्य निर्माण।
+269) ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही है।
+270) बच्चे की प्रथम पाठशाला उसकी माता की गोद में होती है।
+271) शिक्षक राष्ट्र मंदिर के कुशल शिल्पी हैं।
+272) शिक्षक नई पीढ़ी के निर्माता होत हैं।
+273) समाज सुधार सुशिक्षितों का अनिवार्य धर्म-कत्र्तव्य है।
+274) ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं।
+275) अब भगवानÔ गंगाजल, गुलाबजल और पंचामृत से स्नान करके संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनकी माँग श्रम बिन्दुओं
+की है। भगवान् का सच्चा भक्त वह माना जाएगा जो पसीने की बूँदों से उन्हें स्नान कराये।
+276) जो हमारे पास है, वह हमारे उपयोग, उपभोग के लिए है यही असुर भावना है।
+277) स्वार्थपरता की कलंक कालिमा से जिन्होंने अपना चेहरा पोत लिया है, वे असुर है।
+278) मात्र हवन, धूपबत्ती और जप ��ी संख्या के नाम पर प्रसन्न होकर आदमी की मनोकामना पूरी कर दिया करे, ऐसी
+279) दुनिया में सफलता एक चीज के बदले में मिलती है और वह है आदमी की उत्कृष्ट व्यक्तित्व।
+समझते नहीं कि उन्हें यह बहुमूल्य जीवन क्यों मिला ?
+282) दरिद्रता पैसे की कमी का नाम नहीं है, वरन् मनुष्य की कृपणता का नाम दरिद्रता है।
+284) कामना करने वाले कभी भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान् की इच्छा पूरी करने की बात
+285) भगवान् आदर्शों, श्रेष्ठताओं के समूच्चय का नाम है। सिद्धान्तों के प्रति मनुष्य के जो त्याग और बलिदान है,
+286) आस्तिकता का अर्थ है-ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के
+अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है।
+288) अपनी दिनचर्या में परमार्थ को स्थान दिये बिना आत्मा का निर्मल और निष्कलंक रहना संभव नहीं।
+289) जो मन की शक्ति के बादशाह होते हैं, उनके चरणों पर संसार नतमस्तक होता है।
+290) एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता
+का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए।
+291) आदर्शवाद की लम्बी-चौड़ी बातें बखानना किसी के लिए भी सरल है, पर जो उसे अपने जीवनक्रम में
+उतार सके, सच्चाई और हिम्मत का धनी वही है।
+292) किसी से ईष्र्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और
+293) ईष्र्या की आग में अपनी शक्तियाँ जलाने की अपेक्षा कहीं अच्छा और कल्याणकारी है कि दूसरे के गुणों
+और सत्प्रयत्नों को देखें जिसके आधार पर उनने अच्छी स्थिति प्राप्त की है।
+चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है।
+295) किसी महान् उद्द्ेश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद
+कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना।
+296) सहानुभूति मनुष्य के हृदय में निवास करने वाली वह कोमलता है, जिसका निर्माण संवेदना, दया, प्रेम
+तथा करुणा के सम्मिश्रण से होता है।
+297) असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशील की परख होती है। जो इसी
+कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा पुरुषार्थी है।
+298 स्वर्ग' शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्वप्रमुख है।
+सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयो���नों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं।
+300) जाग्रत् अत्माएँ कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये
+बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता।
+
+
+1) यह संसार कर्म की कसौटी है। यहाँ मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है।
+4) जीवनोद्देश्य की खोज ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। उसे और कहीं ढूँढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय में ढूँढ़ना चाहिए।
+6) बुद्धिमान् बनने का तरीका यह है कि आज हम जितना जानते हैं भविष्य में उससे अधिक जानने के लिए प्रयत्नशील
+7) जीवन उसी का धन्य है जो अनेकों को प्रकाश दे। प्रभाव उसी का धन्य है जिसके द्वारा अनेकों में आशा जाग्रत हो।
+जैसे साफ शीशे के द्वारा सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होता है।
+9) मनुष्य जीवन का पूरा विकास गलत स्थानों, गलत विचारों और गलत दृष्टिकोणों से मन और शरीर को बचाकर
+उचित मार्ग पर आरूढ़ कराने से होता है।
+10) जीवन एक परख और कसौटी है जिसमें अपनी सामथ्र्य का परिचय देने पर ही कुछ पा सकना संभव होता है।
+11) सेवा का मार्ग ज्ञान, तप, योग आदि के मार्ग से भी ऊँचा है।
+12) अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं।
+13) मस्तिष्क में जिस प्रकार के विचार भरे रहते हैं वस्तुत: उसका संग्रह ही सच्ची परिस्थिति है। उसी के प्रभाव से
+जीवन की दिशाएँ बनती और मुड़ती रहती हैं।
+14) संघर्ष ही जीवन है। संघर्ष से बचे रह सकना किसी के लिए भी संभव नहीं।
+15) अपने हित की अपेक्षा जब परहित को अधिक महत्त्व मिलेगा तभी सच्चा सतयुग प्रकट होगा।
+16) सत्य, प्रेम और न्याय को आचरण में प्रमुख स्थान देने वाला नर ही नारायण को अति प्रिय है।
+17) ज्ञान और आचरण में बोध और विवेक में जो सामञ्जस्य पैदा कर सके उसे ही विद्या कहते हैं।
+18) संसार में हर वस्तु में अच्छे और बुरे दो पहलू हैं, जो अच्छा पहलू देखते हैं वे अच्छाई और जिन्हें केवल बुरा पहलू
+देखना आता है वह बुराई संग्रह करते हैं।
+20) फल के लिए प्रयत्न करो, परन्तु दुविधा में खड़े न रह जाओ। कोई भी कार्य ऐसा नहीं जिसे खोज और प्रयत्न से पूर्ण
+21) अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई नहीं हो सकता।
+22) वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है।
+23) स्वार्थ, अहंकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है।
+24) अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठो। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।
+25) पाप अपने साथ रोग, शोक, पतन और संकट भी लेकर आता है।
+26) ईमानदार होने का अर्थ है-हजार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा।
+27) वही जीवित है, जिसका मस्तिष्क ठंडा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है।
+28) सद्गुणों के विकास में किया हुआ कोई भी त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता।
+31) सत्कर्म की प्रेरणा देने से बढ़कर और कोई पुण्य हो ही नहीं सकता।
+33) सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों से जिनका जीवन जितना ओतप्रोत है, वह ईश्वर के उतना ही निकट है।
+34) असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की ओर तथा विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना
+35) सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।
+36) किसी आदर्श के लिए हँसते-हँसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बड़ी बहादुरी है।
+37) उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है।
+38) गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है।
+41) अपने गुण, कर्म, स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है।
+43) समाज का मार्गदर्शन करना एक गुरुतर दायित्व है, जिसका निर्वाह कर कोई नहीं कर सकता।
+44) नेतृत्व पहले विशुद्ध रूप से सेवा का मार्ग था। एक कष्ट साध्य कार्य जिसे थोड़े से सक्षम व्यक्ति ही कर पाते थे।
+45) सारी शक्तियाँ लोभ, मोह और अहंता के लिए वासना, तृष्णा और प्रदर्शन के लिए नहीं खपनी चाहिए।
+46) निश्चित रूप से ध्वंस सरल होता है और निर्माण कठिन है।
+47) अपने देश का यह दुर्भाग्य है कि आजादी के बाद देश और समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से खपने वाले सृजेताओं
+48) उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर
+49) शक्ति उनमें होती है, जिनकी कथनी और करनी एक हो, जो प्रतिपादन करें, उनके पीछे मन, वचन और कर्म का
+50) व्यक्ति का चिंतन और चरित्र इतना ढीला हो गया है कि स्वार्थ के लिए अनर्थ करने में व्यक्ति चूकता नहीं।
+51) संसार का सबसे बड़ानेता है-सूर्य। वह आजीवन व्रतशील तपस्वी की तरह निरंतर नियमित रूप से अपने सेवा
+कार्य में संलग्न रहता है।
+52) नेतृत्व ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है, क्योंकि वह प्रामाणिकता, उदारता और साहसिकता के बदले खरीदा जाता
+53) किसी का अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है।
+54) महात्मा वह है, जिसके सामान्य शरीर में असामान्य आत्मा निवास करती है।
+56) स्वर्ग और मुक्ति का द्वार मनुष्य का हृदय ही है।
+57) यथार्थ को समझना ही सत्य है। इसी को विवेक कहते हैं।
+58) अहंकार के स्थान पर आत्मबल बढ़ाने में लगें, तो समझना चाहिए कि ज्ञान की उपलब्धि हो गयी।
+59) समय को नियमितता के बंधनों में बाँधा जाना चाहिए।
+61) चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को 'योग' कहते हैं।
+62) कुकर्मी से बढ़कर अभागा कोई नहीं, क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं रहता।
+64) अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि उसमें सफल हो गये, तो हर काम में सफलता मिलेगी।
+67) बुराई मनुष्य के बुरे कर्मों की नहीं, वरन् बुरे विचारों की देन होती है।
+68) सब कुछ होने पर भी यदि मनुष्य के पास स्वास्थ्य नहीं, तो समझो उसके पास कुछ है ही नहीं।
+69) अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं।
+70) सत्य एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति है, जो देश, काल, पात्र अथवा परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होती।
+71) सत्य ही वह सार्वकालिक और सार्वदेशिक तथ्य है, जो सूर्य के समान हर स्थान पर समान रूप से चमकता रहता
+75) ज्ञान अक्षय है। उसकी प्राप्ति मनुष्य शय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से न जाने देना चाहिए।
+76) अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर गरीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं
+78) मनुष्यता सबसे अधिक मूल्यवान् है। उसकी रक्षा करना प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का परम कत्र्तव्य है।
+79) ज्ञान ही धन और ज्ञान ही जीवन है। उसके लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहींं जाता।
+80) असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ।
+81) गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
+82) असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता।
+83) शालीनता बिना मूल्य मिलती है, पर उससे सब कुछ खरीदा जा सकता है।
+84) मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं, वह उनका निर्माता, नियंत्रणकत्र्ता और स्वामी है।
+86) कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है।
+87) आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते हैं।
+88) दु:ख का मूल है पाप। पाप का परिणाम है-पतन, दु:ख, कष्ट, कलह और विषाद। ���ह सब अनीति के अवश्यंभावी
+89) अस्वस्थ मन से उत्पन्न कार्य भी अस्वस्थ होंगे।
+90) आसक्ति संकुचित वृत्ति है।
+91) समान भाव से आत्मीयता पूर्वक कत्र्तव्य-कर्मों का पालन किया जाना मनुष्य का धर्म है।
+92) पाप की एक शाखा है-असावधानी।
+93) जब तक मनुष्य का लक्ष्य भोग रहेगा, तब तक पाप की जड़ें भी विकसित होती रहेंगी।
+94) मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-विज्ञान की जानकारी हुए बिना यह संभव नहीं है कि मनुष्य दुष्कर्मों का
+95) ईश्वर अर्थात् मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था।
+96) मनुष्य बुद्धिमानी का गर्व करता है, पर किस काम की वह बुद्धिमानी-जिससे जीवन की साधारण कला हँस-खेल
+97) जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं।
+99) पग-पग पर शिक्षक मौजूद हैं, पर आज सीखना कौन चाहता है?
+101) पादरी, मौलवी और महंत भी जब तक एक तरह की बात नहीं कहते, तो दो व्यक्तियों में एकमत की आशा की ही
+102) जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें।
+103) विवेकशील व्यक्ति उचित अनुचित पर विचार करता है और अनुचित को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करता।
+104) धर्मवान् बनने का विशुद्ध अर्थ बुद्धिमान, दूरदर्शी, विवेकशील एवं सुरुचि सम्पन्न बनना ही है।
+105) मानव जीवन की सफलता का श्रेय जिस महानता पर निर्भर है, उसे एक शब्द में धार्मिकता कह सकते हैं।
+106) मांसाहार मानवता को त्यागकर ही किया जा सकता है।
+109) अश£ील, अभद्र अथवा भोगप्रदधान मनोरंजन पतनकारी होते हैं।
+110) परोपकार से बढ़कर और निरापत दूसरा कोई ध्धर्म नहीं।
+111) परावलम्बी जीवित तो रहते हैं, पर मृत तुल्य ही।
+113) एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता।
+114) सबसे बड़ा दीन दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रण नहीं।
+116) भगवान् की दण्ड संहिता में असामाजिक प्रवृत्ति भी अपराध है।
+119) मानवता की सेवा से बढ़कर और कोई बड़ा काम नहीं हो सकता।
+120) प्रकृतित: हर मनुष्य अपने आप में सुयोग्य एवं समर्थ है।
+121) व्यक्तित्व की अपनी वाणी है, जो जीभ या कलम का इस्तेमाल किये बिना भी लोगों के अंतराल को छूती है।
+122) प्रस्तुत उलझनें और दुष्प्रवृत्तियाँ कहीं आसमान से नहीं टपकीं। वे मनुष्य की अपनी बोयी, उगाई और बढ़ाई हुई हैं।
+123) दीनता वस्तुत: मानसिक हीनता का ही प्रतिफल है।
+125) सत्कर्मों का आत्मसात होना ही उपासना, साधना और आराधना का सारभूत तत्व है।
+126) जनसंख्या की अभिवृद्धि हजार समस्याओं की जन्मदात्री है।
+127) अंतरंग बदलते ही बहिरंग के उलटने में देर नहीं लगती है।
+128) सद्विचार तब तक मधुर कल्पना भर बने रहते हैं, जब तक उन्हें कार्य रूप में परिणत नहीं किया जाय।
+129) नेतृत्व का अर्थ है वह वर्चस्व जिसके सहारे परिचितों और अपरिचितों को अंकुश में रखा जा सके, अनुशासन में
+130) आत्मानुभूति यह भी होनी चाहिए कि सबसे बड़ी पदवी इस संसार में मार्गदर्शक की है।
+131) नेता शिक्षित और सुयोग्य ही नहीं, प्रखर संकल्प वाला भी होना चाहिए, जो अपनी कथनी और करनी को एकरूप
+132) सफल नेता की शिवत्व भावना-सबका भला 'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' से प्रेरित होती है।
+134) विपरीत प्रतिकूलताएँ नेता के आत्म विश्वास को चमका देती हैं।
+135) सच्चे नेता आध्यात्मिक सिद्धियों द्वारा आत्म विश्वास फैलाते हैं। वही फैलकर अपना प्रभाव मुहल्ला, ग्राम, शहर, प्रांत और देश भर में व्याप्त हो जाता है।
+136) सफल नेतृत्व के लिए मिलनसारी, सहानुभूति और कृतज्ञता जैसे दिव्य गुणों की अतीव आवश्यकता है।
+137) हर व्यक्ति जाने या अनजाने में अपनी परिस्थितियों का निर्माण आप करता है।
+138) अनीति अपनाने से बढ़कर जीवन का तिरस्कार और कुछ हो ही नहीं सकता।
+139) काम छोटा हो या बड़ा, उसकी उत्कृष्टता ही करने वाले का गौरव है।
+140) निरंकुश स्वतंत्रता जहाँ बच्चों के विकास में बाधा बनती है, वहीं कठोर अनुशासन भी उनकी प्रतिभा को कुंठित
+141) दिल खोलकर हँसना और मुस्कराते रहना चित्त को प्रफुल्लित रखने की एक अचूक औषधि है।
+142) नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नहीं, आदर्शों की अवहेलना को कहते हैं।
+143) श्रेष्ठ मार्ग पर कदम बढ़ाने के लिए ईश्वर विश्वास एक सुयोग्य साथी की तरह सहायक सिद्ध होता है।
+144) मरते वे हैं, जो शरीर के सुख और इन्दि्रय वासनाओं की तृप्ति के लिए रात-दिन खपते रहते हैं।
+145) राष्ट्र के उत्थान हेतु मनीषी आगे आयें।
+146) राष्ट्र निर्माण जागरूक बुद्धिजीवियों से ही संभव है।
+147) राष्ट्रोत्कर्ष हेतु संत समाज का योगदान अपेक्षित है।
+148) राष्ट्र का विकास, बिना आत्म बलिदान के नहीं हो सकता।
+149) राष्ट्र को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए आदर्शवाद, नैतिकता, मानवता, परमार्थ, देश भक्ति एवं समाज निष्ठा की भावना की जागृति नितान्त आवश्यक है।
+150) सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों मे�� जो विकृतियाँ, विपन्नताएँ दृष्टिगोचर हो रही हैं, वे कहीं आकाश से नहीं
+टपकी हैं, वरन् हमारे अग्रणी, बुद्धिजीवी एवं प्रतिभा सम्पन्न लोगों की भावनात्मक विकृतियों ने उन्हें उत्पन्न किया
+151) राष्ट्रीय स्तर की व्यापक समस्याएँ नैतिक दृष्टि धूमिल होने और निकृष्टता की मात्रा बढ़ जाने के कारण ही उत्पन्न
+152) राष्ट्र के नव निर्माण में अनेकों घटकों का योगदान होता है। प्रगति एवं उत्कर्ष के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास चलते और उसके अनुरूप सफलता-असफलताएँ भी मिलती हैं।
+153) राष्ट्रों, राज्यों और जातियों के जीवन में आदिकाल से उल्लेखनीय धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक
+क्रान्तियाँ हुई हैं। उन परिस्थितियों में श्रेय भले ही एक व्यक्ति या वर्ग को मार्गदर्शन को मिला हो, सच्ची बात यह रही
+है कि बुद्धिजीवियों, विचारवान् व्यक्तियों ने उन क्रान्तियों को पैदा किया, जन-जन तक फैलाया और सफल
+154) धर्म का मार्ग फूलों की सेज नहीं है। इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं।
+158) किसी का मनोबल बढ़ाने से बढ़कर और अनुदान इस संसार में नहीं है।
+159) बड़प्पन सुविधा संवर्धन का नहीं, सद्गुण संवर्धन का नाम है।
+161) मनुष्य की संकल्प शक्ति संसार का सबसे बड़ा चमत्कार है।
+164) उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की।
+165) जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं।
+166) ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है-अध्यात्म।
+168) प्रतिभावान् व्यक्तित्व अर्जित कर लेना, धनाध्यक्ष बनने की तुलना में कहीं अधिक श्रेष्ठ और श्रेयस्कर है।
+169) दरिद्रता कोई दैवी प्रकोप नहीं, उसे आलस्य, प्रमाद, अपव्यय एवं दुर्गुणों के एकत्रीकरण का प्रतिफल ही करना
+170) शत्रु की घात विफल हो सकती है, किन्तु आस्तीन के साँप बने मित्र की घात विफल नहीं होती।
+171) अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं।
+174) दूसरों की सबसे बड़ी सहायता यही की जा सकती है कि उनके सोचने में जो त्रुटि है, उसे सुधार दिया जाए।
+175) ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है।
+176) प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह अंदर से जागती है और उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना
+177) संकल्प जीवन की उत्कृष्टता का मंत्र है, उसका प्रयोग मनुष्य जीवन के गुण विकास के लिए होना चाहिए।
+178) पुण्य की जय-पाप की भी जय ऐसा समदर्शन तो व्यक्ति को दार्शनिक भूल-भुलैयों में उलझा कर संसार का
+179) अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
+180) अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो दरिद्रता की वृद्धि कर देता है।
+काम को कल के लिए टालते रहना और आज का दिन आलस्य में बिताना एक बहुत बड़ी भूल है।
+आरामतलबी और निष्कि्रयता से बढ़कर अनैतिक बात और दूसरी कोई नहीं हो सकती।
+181) किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है।
+183) कत्र्तव्य पालन करते हुए मौत मिलना मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी सफलता और सार्थकता है।
+184) बड़प्पन बड़े आदमियों के संपर्क से नहीं, अपने गुण, कर्म और स्वभाव की निर्मलता से मिला करता है।
+
+
+खिचड़ी के मुहावरे, कहावतें या लोकोक्तियाँ
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+* सुनो सुनो दुनिया के लोगों सबसे बड़ा है मिस्टर गोगो
+* तेजा मैं हूं मार्क इधर है
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+* आर्थिक युद्ध में किसी राष्ट्र को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी मुद्रा को खोटा कर देना और किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना ।
+* इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को छोटे से समूह ने ही बदला है ।
+* अगर किसी को अपना मित्र बनाना चाहते हो, तो उसके दोषों, गुणों और विचारों को अच्छी तरह परख लेना चाहिए।
+* हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है और यदि मुझसे भारत के लिए एक मात्र भाषा का नाम लेने को कहा जाए तो वह निश्चित रूप से हिंदी ही है। — कामराज
+* कोई भी राष्ट्र अपनी भाषा को छोड़कर राष्ट्र नहीं कहला सकता। — थोमस डेविस
+* अत्यंत साधारण छात्र भी दृढ संकल्प करें और सही दिशा में निरन्तर परिश्रम करते रहे तो उनका लक्ष्य दूर नहीं रह सकता।
+* नियमित रुप से परिश्रम किया जाय तो मंद बुद्वि वाला भी जीवन में बहुत आगे निकल सकता है।
+:अर्थ- किसी भी व्यक्ति का मूल स्वभाव कभी नहीं बदलता है, चाहे आप उसे कितनी भी सलाह दे दो। ठीक उसी तरह जैसे पानी तभी गर्म होता है, जब उसे उबाला जाता है। लेकिन कुछ देर के बाद वह फिर ठंडा हो जाता है।
+
+
+आप लोग किसी के साथ मिलकर काम करना नहीं जानते, ���पनी खिचड़ी अलग पकाते हैं।
+शाम को घर पहुंचते पहुंचते अंग-अंग ढीले हो चुके होते हैं।
+लक्ष्य प्राप्ति पर उसके अंग – अंग मुस्काने लगे।
+ऋत के अनुसार वस्त्र अंग धरने चाहिए।
+रोज रोज के पकवान उसके अंग लग गये हैं।
+दिनों बाद मिले मित्र को उसने अंग लगा लिया।
+कर्महीन व्यक्ति के सिर पर अंगार रहते है।
+जरूरतमंद हर किसी के आगे अंचल पसारता है।
+दस किलोमिटर चलते ही उसके तो अंजर पंजर ढीले हो गए।
+सावधान रहना, वह अंटीबाज है।
+सत्य कभी अंटी में नहीं रखा रहता।
+आसन डोलना लुब्ध या विचलित होना
+अब-तब होना परेशान करना या मरने के करीब होना
+अपने मुंह मियां मिट्ठू होना अपनी बड़ाई आप करना
+ईंट का जवाब पत्थर से देना अहिंसा सिद्धान्त के विरुद्ध है।
+पुलिस का डंडा पड़ते ही उसने सारा भेद उगल दिया।
+खाँ साहेब सदैव इसी उधेड़बुन में रहते थे कि इस शैतान को कैसे पंजे में लाऊँ।
+उम्र ढलने के साथ बहुत से व्यक्ति गंभीर होने लगते हैं।
+प्रयागराज में अगर मुंडन कराना है तो संगम तक जाने की जरूरत नहीं है, स्टेशन पर ही पंडे और मुस्तण्डे पुलिस वाले गरीब गाँव वालों को उलटे उस्तरे से मूंड देते हैं।
+आपको कोई ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए जिससे असहाय अबला की ओर उंगली उठे।
+उंगली पकड़कर पौंहचा पकड़ना थोड़ा-सा सहारा पाकर विशेष की प्राप्ति के लिए प्रयास करना।
+अब उनके नामलेवा उंगलियों पर गिने जा सकते हैं।
+मैं इन दोनों को उंगलियों पर नचाऊंगा।
+एक लड्डू का तो मुझे कुछ पता ही नहीं चला। अच्छा लगने की वजह से वह बिल्कुल वैसे ही लगा जैसे ऊँच के मुँह में जीरा।
+उन्होंने परिश्रम करके कोई 250 रुपए ऊपर से कमाये थे।
+उगल देना गुप्त बात प्रकट करना
+उल्टी गंगा बहाना प्रतिकूल कार्य
+उन्नीस-बीस होना एक का दूसरे से कुछ अच्छा होना
+एक आंख से देखना बराबर मानना
+एक लाठी से सबको हांकना उचित-अनुचित का बिना विचार किए व्यवहार
+कलेजा ठंडा होना संतोष होना
+कागजी घोड़े दौड़ना केवल लिखा-पढ़ी करना, पर कुछ काम की बात न होना
+किताब का कीड़ा होना पढ़ने के सिवा कुछ न करना
+किस खेत की मूली अधिकारहीन, शक्तिहीन
+कुआं खोदना हानि पहुंचाने का यत्न करना
+खेत रहना या आना वीरगति पाना
+खून-पसीना एक करना कठिन परिश्रम करना
+खटाई में पड़ना झमेले में पड़ना, रूक जाना
+
+
+और ज्ञानी माना जाता है।
+अक्ल बड़ी या भैंस शारीरिक बल से बुद्धि बड़ी है।
+अपनी करना पार उतरनी अपने ही कर्मों का फल मिलता है।
+पर पछताने का क्या लाभ.
+आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए जो दूसरों पर निर्भर रहता है वह जीवित रहते हुए भी मृतप्राय होता है। नहीं.
+वह बहुत सन्तोषी आदमी है। लाभ और हानि दोनों होने पर वह प्रसन्न रहता है। उसके ही जैसे लोगों के लिए कहा जाता है कि 'आये की खुशी गम.'
+आंख का अंधा नाम नयनसुख गुण के विरूध्द नाम होना
+आम के आम गुठलियों के दाम दोहरा लाभ
+अभी तो कार्य का आरंभ है, इसे ही देखकर घबरा गए, आगे देखो क्या होता है।
+जो मनुष्य दीन-दुखियों को दान देता है, वह सदैव सम्पन्न रहता है, उसे कभी किसी वस्तु का अभाव नहीं होता. इसीलिए कहा गया है कि इस हाथ दे, उस हाथ ले.
+आज के जमाने में सीधा होना भी एक अभिशाप है। सीधे आदमी को लोग अनेक विशेषणों से विभूषित करते हैं, जैसे भोंदू, घोंघा बसन्त आदि, किन्तु जो व्यक्ति ईंट की लेनी पत्थर की देनी कहावत चरितार्थ करता है उससे लोग डरते रहते हैं.
+उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे अपराधी अपने अपराध को स्वीकार करता नहीं, उल्टा पूछे वाले को धमकाता है।
+खेती सबसे श्रेष्ठ व्यवसाय है, व्यापार मध्यम है, नौकरी करना निकृष्ट है और भीख माँगना सबसे बुरा है। यह बुद्धिमानों का महानुभूत सिद्धांत है कि 'उत्तम खेती निदान' पर आज कल कृषिजीवी लोग ही अधिक दरिद्री पाए जाते हैं
+जब लोगों ने मुझे बिरादरी से खारिज कर ही दिया है तो अब मैं खुले आम अंग्रेजी होटल में खाना खाऊँगा
+आज एक ग्राहक ने मेज पर से किताब उठा ली. उससे पूछा तो लगा शरीफ बनने और धौंस जमाने कि तुम मुझे चोरी लगाते हो
+यहाँ से बाँस दूसरी जगह को भेजा जाता है। दूसरे स्थानों से वहाँ बाँस भेजना मूर्खता है। इसलिए इस कहावत का अर्थ है कि स्थिति के विपरीत काम करना, जहाँ जिस वस्तु की आवश्यकता न हो उसे वहाँ ले जाना।
+दो-एक बार धोखा खा के धोखेबाजों की हिकमतें सीख लो और कुछ अपनी ओर से जोड़कर 'उसी की जूती उसी का सिर' कर दिखाओ
+ऊधो का लेना न माधो का देना जो अपने काम से काम
+रखता है, किसी के झगड़े में नहीं पड़ता उसके विषय में
+एक पंथ दो काज आम के आम गुठलियों के दाम. एक कार्य से बहुत से कार्य सिद्ध होना.
+एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है एक बुरा व्यक्ति सारे कुटुम्ब, समाज या साथियों को बुरा बनाता है।
+जितने लोग हैं उनके उतनी तरह के काम हैं और एक
+बेचारी गाँधी टोपी है जिसे सबको पार लगाना है।
+है उससे हजार बोलने वाले हार मान लेते हैं
+मनुष्यों में या एक पदार्थ के कभी भागों में बहुत कम
+एक तो करेला (कडुवा) दूसरे नीम चढ़ा कटु या कुटिल
+स्वभाव वाले मनुष्य कुसंगति में पड़कर और बिगड़ जाते हैं.
+एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है यदि किसी घर या समूह
+में एक व्यक्ति दुष्चरित्र होता है तो सारा घर या समूह बुरा या
+अत्यंत ऐश्वर्यशाली व्यक्ति के पूर्ण विनाश हो जाने पर इस
+लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है।
+कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा महल के अंदर नहीं जा सकता था।
+कमाते-धमाते तो कुछ हैं नहीं, केवल खाने और बच्चों को डांटने-फटकारने से मतलब है।..ऐसे बूढ़े
+ओखली में सिर दिया तो मूसली से क्या डर जब कठिन काम के लिए कमर कस ली तो कठिनाइयों से क्या डरना.
+लोगों का प्रेम अस्थायी होता है।
+चूक जाता है, उसका काम बिगड़ जाता है और केवल
+कपड़े फटे गरीबी आई फटे कपड़े देखने से मालूम होता है
+कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर समय पर एक-दूसरे
+की सहायता की आवश्यकता पड़ती है।
+कर लेना चाहिए, उसमें आलस्य नहीं करना चाहिए।
+जाते समय रेल में संदूक रह गया। इस बार मेरे साथ
+छोटे लोग काम करते हैं परन्तु नाम उनके सरदार का
+न करे पर लड़ने-झगड़ने में तेज हो।
+कहां राजा भोज कहां गांगू तेरी उच्च और साधारण की तुलना कैसी
+जो मनुष्य जिस स्थान या समाज में रहता है उसको उसी जगह या समाज के लोगों की बात समझ में आती है।
+खरादी का काठ काटे ही से कटता है :
+काम करने ही से समाप्त होता है या ऋण देने से ही चुकता है।
+नगद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है।
+खल की दवा पीठ की पूजा :
+दुष्ट लोग पीटने से ही ठीक रहते हैं.
+खलक का हलक किसने बंद किया है संसार के लोगों का मुँह कौन बंद कर सकता है?
+अपने को अच्छा लगे वह खाना खाना चाहिए और जो दूसरों को अच्छा लगे वह कपड़ा पहनना चाहिए.
+अनधिकारी को कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए.
+किसी अन्य व्यक्ति, मालिक या मित्र के बल पर शेखी बघारना.
+जब एक प्रकृति या रुचि के दो मनुष्य मिल जाते हैं तब उनका समय बड़े आनंद से व्यतीत होता है।
+दो मूर्खों का साथ, एक ही प्रकार के दो मनुष्यों का साथ.
+जब अपराध एक व्यक्ति करे और दंड दूसरा पावे.
+खेती या व्यापार में लाभ तभी होता है जब मालिक स्वयं उसकी देखरेख करे.
+सुखपूर्वक काम समाप्त हो जाने पर ऐसा कहते हैं.
+खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का :
+काम कर्मचारी करते हैं और नाम अफसर का होता है।
+बहुत परिश्रम करने पर थोड़ा लाभ होना.
+गंजी कबूतरी और महल में डेरा :
+किसी अयोग्य व्यक्ति के उच्च पद प्राप्त करने पर ऐसा कहते हैं.
+स्वार्थी मनुष्य किसी के साथ नहीं होते, अपना मतलब सिद्ध होते ही वे चल देते हैं.
+जब कोई आदमी किसी ऐसे काम में पड़ता है जिससे उसका कोई संबंध नहीं तब ऐसा कहा जाता है।
+कृतघ्न के साथ नेकी करना व्यर्थ है।
+यदि कोई व्यक्ति कोई छोटा कष्ट दूर करने की चेष्टा करता है और उससे बड़े कष्ट में फंस जाता है तब कहते हैं.
+गरीब और सीधे आदमी को लोग प्राय: दबाया करते हैं.
+यदि कोई व्यक्ति कोई छोटा कष्ट दूर करने की चेष्टा करता है और उससे बड़े कष्ट में फंस जाता है तब कहते हैं.
+गरीब और सीधे आदमी को लोग प्राय: दबाया करते हैं.
+कंगाली में गीला आटा धन की कमी के समय जब पास से कुछ और
+गाँव के जोगी जोगना आन गाँव के सिद्ध अपनी जन्मभूमि में किसी
+विद्वान या वीर की उतनी प्रतिष्ठा नहीं होती जितनी दूसरे स्थानों में होती है।
+माता-पिता का प्रभाव थोड़ा-बहुत अवश्य पड़ता है।
+सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं.
+गीदड़ की शामत आए तो गाँव की तरफ भागे जब विपत्ति आने को
+होती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है।
+गुड़ खाय गुलगुले से परहेज कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से
+गुड़ होगा तो मक्खियाँ भी आएँगी यदि पास में धन होगा तो साथी
+या खाने वाले भी पास आएँगे.
+गुरु गुड़ ही रहा चेला शक्कर हो गया जब शिष्य गुरु से बढ़ जाता
+है तब ऐसा कहते हैं.
+गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी गुरु से कपट
+नहीं करना चाहिए और मित्र से चोरी नहीं करना चाहिए, जो
+मनुष्य ऐसा करता है उसकी बड़ी दुर्गति होती है।
+गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है अपराधियों के साथ निरपराध व्यक्ति
+गैर का सिर कद्दू बराबर दूसरे की विपत्ति को कोई नहीं समझता.
+बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है।
+बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा पास में रहने पर भी किसी
+वस्तु या व्यक्ति का दूर-दूर ढूँढ़ा जाना.
+नौकर अपनी स्वाधीनता प्रकट करने के लिए ऐसा कहता है।
+ग्वालिन अपने दही को खट्टा नहीं कहती कोई भी व्यक्ति
+घड़ीभर की बेशरमी और दिनभर का आराम संकोच करने
+की अपेक्षा साफ-साफ कहना अच्छा होता है।
+जरा-सी बात पर नाराज हो जाय ऐसे अस्थिर चित्त व्यक्ति के कहा जाता है।
+घर आई लक्ष्मी को लात नहीं मारते मिलते हुए धन या वृत्ति
+का त्याग नहीं करना चाहिए.
+घर कर सत्तर बला सिर कर ब्याह करने और घर बनबाने में
+बहुत-से झंझटों का सामना करना पड़ता है।
+घर का भेदी लंका ढाये आपसी फूट से सर्वनाश हो जाता है।
+घर की मुर्गी दाल बराबर घर की वस्तु या व्यक्ति का उचित
+हैं, सब लोगों को कुछ न कुछ कष्ट होता है।
+घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ दूसरों की कीर्ति पर डींग
+चीज का दाम मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए
+घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिध्द निकट का गुणी व्यक्ति कम सम्मान पाता है, पर दूर का ज्यादा
+चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे पहले कुछ रुपया पैसा खर्च
+करोगे या पहले कुछ खिलाओगे तभी काम हो सकेगा.
+जल्दी से अपना काम पूरा कर देने पर उक्ति.
+चाह है तो राह भी जब किसी काम के करने की इच्छा होती है तो
+की आशा हो वहाँ पर यदि कुविचार, अन्याय या अयोग्यता पाई जाए.
+करता है तब उसके लिए ऐसा कहते हैं.
+चूल्हे में जाय नष्ट हो जाय। उपेक्षा और तिरस्कारसूचक शाप
+जिसका प्रयोग स्त्रियाँ करती हैं.
+के हाथ में अधिकार होता है।
+चोर की दाढ़ी में तिनका यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई हो और
+कोई उसके सामने उस बुराई की निंदा करे, तो वह यह समझेगा कि मेरी ही बुराई कर रहा है, वास्तविक अपराधी
+जरा-जरा-सी बात पर अपने ऊपर संदेह करके दूसरों से उसका प्रतिवाद करता है।
+चोर-चोर मौसेरे भाई एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्द मेल-जोल हो जाता है।
+चोरी और सीनाजोरी अपराध करना और जबरदस्ती
+दिखाना, अपराधी का अपने को निरपराध सिद्ध करना और अपराध को दूसरे के सिर मढ़ना.
+चौबे गए छब्बे होने दुबे रह गए यदि लाभ के लिए कोई काम
+किया जाय परन्तु उल्टे उसमें हानि हो.
+थोथा चना बाजे घना दिखावा बहुत करना परन्तु सार न होना.
+नदी में रहकर मगरमच्छ से बैर अपने को आश्रय देने वाले से ही
+नाच न जाने आंगन टेढ़ काम न जानना और बहाना बनाना
+न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी न कारण होगा, न कार्य होगा
+रस्सी जल गई पर बल नहीं गया बरबाद हो गया, पर घमंड अभी
+होनहार बिरवान के होत चीकने पात होनहार के लक्षण पहले से ही दिखाई पड़ने लगते हैं।
+गाँव के जोगी जोगना आन गाँव के सिद्ध अपनी जन्मभूमि में किसी
+विद्वान या वीर की उतनी प्रतिष्ठा नहीं होती जितनी दूसरे स्थानों में होती है।
+माता-पिता का प्रभाव थोड़ा-बहुत अवश्य पड़ता है।
+सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं.
+गीदड़ की शामत आए तो गाँव की तरफ भागे जब विपत्ति आने को
+होती है तब मनुष्य की बुद्धि विप��ीत हो जाती है।
+गुड़ खाय गुलगुले से परहेज कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से
+गुड़ होगा तो मक्खियाँ भी आएँगी यदि पास में धन होगा तो साथी
+या खाने वाले भी पास आएँगे.
+गुरु गुड़ ही रहा चेला शक्कर हो गया जब शिष्य गुरु से बढ़ जाता
+है तब ऐसा कहते हैं.
+गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी गुरु से कपट
+नहीं करना चाहिए और मित्र से चोरी नहीं करना चाहिए, जो
+मनुष्य ऐसा करता है उसकी बड़ी दुर्गति होती है।
+गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है अपराधियों के साथ निरपराध व्यक्ति
+गैर का सिर कद्दू बराबर दूसरे की विपत्ति को कोई नहीं समझता.
+बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है।
+बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा पास में रहने पर भी किसी
+वस्तु या व्यक्ति का दूर-दूर ढूँढ़ा जाना.
+नौकर अपनी स्वाधीनता प्रकट करने के लिए ऐसा कहता है।
+ग्वालिन अपने दही को खट्टा नहीं कहती कोई भी व्यक्ति
+घड़ीभर की बेशरमी और दिनभर का आराम संकोच करने
+की अपेक्षा साफ-साफ कहना अच्छा होता है।
+जरा-सी बात पर नाराज हो जाय ऐसे अस्थिर चित्त व्यक्ति के कहा जाता है।
+घर आई लक्ष्मी को लात नहीं मारते मिलते हुए धन या वृत्ति
+का त्याग नहीं करना चाहिए.
+घर कर सत्तर बला सिर कर ब्याह करने और घर बनबाने में
+बहुत-से झंझटों का सामना करना पड़ता है।
+घर का भेदी लंका ढाये आपसी फूट से सर्वनाश हो जाता है।
+घर की मुर्गी दाल बराबर घर की वस्तु या व्यक्ति का उचित
+हैं, सब लोगों को कुछ न कुछ कष्ट होता है।
+घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ दूसरों की कीर्ति पर डींग
+चीज का दाम मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए
+चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे पहले कुछ रुपया पैसा खर्च
+करोगे या पहले कुछ खिलाओगे तभी काम हो सकेगा.
+जल्दी से अपना काम पूरा कर देने पर उक्ति.
+चाह है तो राह भी जब किसी काम के करने की इच्छा होती है तो
+की आशा हो वहाँ पर यदि कुविचार, अन्याय या अयोग्यता पाई जाए.
+करता है तब उसके लिए ऐसा कहते हैं.
+चूल्हे में जाय नष्ट हो जाय। उपेक्षा और तिरस्कारसूचक शाप
+जिसका प्रयोग स्त्रियाँ करती हैं.
+के हाथ में अधिकार होता है।
+चोर की दाढ़ी में तिनका यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई हो और
+कोई उसके सामने उस बुराई की निंदा करे, तो वह यह समझेगा कि मेरी ही बुराई कर रहा है, वास्तविक अपराधी
+जरा-जरा-सी बात पर अपने ऊपर संदेह करके दूसरों से उसका प्रतिवाद करता है।
+च���र-चोर मौसेरे भाई एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्द मेल-जोल हो जाता है।
+चोरी और सीनाजोरी अपराध करना और जबरदस्ती
+दिखाना, अपराधी का अपने को निरपराध सिद्ध करना और अपराध को दूसरे के सिर मढ़ना.
+चौबे गए छब्बे होने दुबे रह गए यदि लाभ के लिए कोई काम
+किया जाय परन्तु उल्टे उसमें हानि हो.
+भेद की बात हर एक व्यक्ति से नहीं कहनी चाहिए.
+दुर्जन सभी को मरना पड़ता है।
+है तब तक उसे कुछ न कुछ करना ही पड़ता है।
+अत्याचार को चुपचाप सहना होता है।
+जल की मछली जल ही में भली जो जहाँ का होता है उसे वहीं
+
+
+गरदन दबाना कुछ करने, देने, हानि सहने आदि के लिए विवश करना।
+ऐसे आदमियों से हम मिल जाते हैं और उनकी मदद से दूसरे आदमियों की गरदन दबाते हैं।
+गले पड़ना किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध उसके पास किसी का रहना, उसके पीछे पड़े रहना।
+गृहस्थी का सारा काम भाइयों ने मेरे गले मढ़ दिया है।
+गाँठ खोलना समस्या का निराकरण करना, कठिनाई अड़चन दूर करना।
+गागर में सागर थोड़े-से शब्दों में बहुत अधिक भाव-विचार व्यक्त करना, थोड़े-से शब्दों में बड़ी महत्वपूर्ण बात कहना।
+गाल बजाना डींग मारना, बढ़-चढ़कर बातें करना।
+कई दिन हुए वे गुजर गए।
+गुस्सा उतारना क्रोध की शांति के लिए किसी पर बिगड़ना, मारना।
+क्रोध एक व्यक्ति पर हो और दूसरे को डांट-फटकार कर या दण्ड देकर अपने दिल को शांत करना।
+गूंगे का गुड़ वह आनंदानुभूति, सुख का अनुभव जिसका वर्णन न किया जा सके।
+भक्त को भगवान के चिंतन में जो आनंद मिलता है वह कहा नहीं जा सकता। वह तो गूंगे का गुड़ ही रहेगा।
+गूलर का कीड़ा कूपमंडूक, अल्पज्ञ व्यक्ति।
+गिन-गिनकर पैर रखना सुस्त चलना, हद से ज्यादा सावधानी बरतना
+गिरगिट की तरह रंग बदलना एक रंग-ढंग पर न रहना
+गूलर का फूल होना लापता होना
+गांठ में बांधना खूब याद रखना
+गुदड़ी का लाल गरीब के घर में गुणवान का उत्पन्न होना
+घंटा दिखाना आवेदक या याचक को कोई वस्तु न देना, उसे निराश कर देना।
+घड़ों पानी पड़ना दूसरों के सामने हीन सिद्ध होने पर अत्यंत लज्जित होना।
+घपले में पड़ना किसी काम का खटाई में पड़ना।
+घमंड में चूर होना अत्यधिक अभिमान होना।
+घर में भूंजी भाँग न होना घर में कुछ धन-दौलत न होना, अकिंचन होना, अत्यंत निर्धन होना।
+घाट-घाट का पानी पीना अनेक स्थलों का अनुभव प्राप्त करना। देश-देशान्तर के लोगों की जीवनचर्या की जानकारी प्��ाप्त करना।
+घात में रहना किसी को हानि पहुँचाने के लिए अनुकूल अवसर ढूँढते फिरना।
+घाव पर नमक छिड़कना दुख पर दुख देना, दुखी व्यक्ति को और यंत्रणा देना।
+घाव पर मरहम रखना सांत्वना देना, तसल्ली बंधाना।
+घिग्घी बँध जाना भय, क्षोभ या अन्य किसी संवेग के कारण मुंह से बोली न निकलना, कण्ठावरोध होना।
+घी का चिराग जलाना कार्य सिद्ध होने पर आनंद मनाना, प्रसन्न होना।
+घी-खिचड़ी होना आपस में अत्यधिक मेल होना।
+घुन लगना शरीर का अंदर-अंदर क्षीण होना, चिंता होना।
+घूंघट का पट खोलना अज्ञान का परदा दूर करना।
+घड़ों पानी पड़ जाना अत्यंत लज्जित होना
+घी के दीये जलाना अप्रत्याशित लाभ पर प्रसन्नता
+चंडाल चौकड़ी दुष्टों का समुदाय, समूह।
+चंद्रमा बलवान होना भाग्य अनुकूल होना।
+चट कर जाना सबका सब का जाना। दूसरे की वस्तु हड़प कर
+चपेट में आना चंगुल में फँसना।
+चरणों की धूल किसी की तुलना में अत्यन्त नगण्य व्यक्ति।
+चरणामृत लेना देवमूर्ति, महात्मा आदि के चरण धोकर पीना।
+चरबी चढ़ना बहुत मोटा होना। मदांध होना।
+किसी प्रकार इस मामले को चलता करो।
+कुछ दिनों से कमलाचरण को जुए का चस्का पड़ चला था।
+चहल-पहल रहना रौनक होना, बहुत-से लोगों का आना-जाना, एकत्र होना।
+चाँद का टुकड़ा अत्यंत सुंदर व्यक्ति/पदार्थ।
+जिसके कारण स्वयं अपमानित होना पड़े।
+उसने चाँदी के टुकड़ों के लिए अपना ईमान बेच दिया है।
+शक्ति के अनुसार काम करना।
+चाम के दाम चलाना अन्याय करना, अपनी जबरदस्ती के
+चार आँखें होना देखा-देखी होना, किसी से नजरें मिलाना।
+चार चाँद लगना शोभा, सौंदर्य की अत्यधिक वृद्धि करना।
+उनका बस चलता तो दाननाथ चार पैसे के आदमी हो गए होते।
+चिकनी चुपड़ी बातें मीठी बातें जो किसी को प्रसन्न करने, बहकाने या धोखा देने के लिए कही जाएँ।
+चिड़िया का दूध अप्राप्य वस्तु, ऐसी वस्तु जिसका अस्तित्व न हो।
+मिर्जा जी बड़ी जवांमर्दी दिखाने चले थे। पचास कदम में ही चीं बोल गए।
+चींटी की पर निकलना मृत्यु के निकट आना।
+चुटिया हाथ में होना किसी के अधीन या पूर्णतः नियंत्रण में
+चुपड़ी और दो-दो दोनों ओर से लाभ, दोहरा लाभ, बढ़िया भी और मात्रा में भी अधिक।
+इन्होंने पहले यह बताया ही नहीं था कि चचिया ससुर को चूना लगाने के लिए बनारस चलना है।
+माधवी कल्पित प्रेम के उल्लास में चूर रहती थी।
+चूलें ढीली होना अधिक परिश्रम के कारण बहुत थकावट
+अह���ते के फाटक में फिटन के प्रवेश करते ही शेख जी का चेहरा खिल उठा।
+चेहरा तमतमाना तेज गर्मी, अत्यधिक क्रोध या तीव्र ज्वर के कारण चेहरे का लाल हो जाना।
+लाला धनीराम और उनके सहयोगियों को मैं चैन की नींद न सोने दूंगा।
+यह पहला अवसर था कि उन्हें चोटी के आदमियों से इतना सम्मान मिले।
+चोटी हाथ में होना किसी के वश में होना, लाचार होना।
+उनकी चोटी मेरे हाथ में है। अगर रुपये न दिए तो ऐसी खबर लूंगा कि याद करेंगे।
+चोली-दामन का साथ घनिष्ठ सम्बन्ध, साथ-साथ चलने वाली वस्तुएँ।
+पन्ना रूपवती स्त्री थी और रूप तथा गर्व में चोली-दामन का नाता है।
+चौक पूरना पूजा आदि पवित्र कार्य के लिए आटे और अबीर-हल्दी से चौखटा बनाकर उसके भीतर तरह-तरह की आकृतियाँ बनाना।
+चौका-बरतन करना बरतन माँजने और रसोईघर लीपने-पोतने या धोने का काम करना।
+चौखट पर माथा टेकना अनुनय-विनय करना, विनीत प्रार्थना करना।
+चींटी के पर लगना या जमना विनाश के लक्षण प्रकट होना
+चंडूखाने की गप बहकी या बेतुकी बातें करना
+चादर से बाहर पैर पसारना आय से अधिक व्यय करना
+चांद पर थूकना व्यर्थ निंदा या सम्माननीय का अनादर करना
+चूड़ियां पहनना स्त्री की सी असमर्थता प्रकट करना
+छप्पर फाड़कर देना अचानक या बिना परिश्रम के संपन्न करना
+जीती मक्खी निगलना जानबूझकर कुछ अशोभन या अभद्र करना
+जमीन पर पैर न पड़ना अधिक घमंड करना
+जान पर खेलना साहसिक कार्य करना
+टका-सा मुंह लेकर रहना शार्मिंदा होना
+टट्टी की ओट में शिकार खेलना छिपे तौर पर किसी के विरूध्द कुछ करना
+दूध के दांत न टूटना ज्ञानहीन या अनुभवहीन
+धज्जियां उड़ना किसी के दोषों को चुन-चुनकर गिनाना
+निनानवे का फेर धन जोड़ने का बुरा लालच
+नौ-दो ग्यारह होना चंपत होना
+पेट में चूहे कूदना जोर की भूख लगना
+पट्टी पढ़ाना बुरी राय देना
+पौ बारह होना खूब लाभ होना
+फूलना-फलना धनवान या कुलवान होना
+बाजार गर्म होना बोलबाला, काम में तेजी
+मैदान मारना बाजी या लड़ाई जीतना
+रंग लाना प्रभाव उत्पन्न करना
+रोंगटें खड़े होना चकित होना, भयभीत होना
+लकीर का फकीर होना पुरानी प्रथा पर ही चलना
+लेने के देन पड़ना लाभ के बदले हानि
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+हाथ के तोते उड़ना स्तब्ध होना
+
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+* ३ जून – ११ जून – मतदान अवधि
+* १५ जून – चुनाव परिणामों की घोषणा के लिए संभावित तारीख
+मोबाइल वेब रीडर के लिए नया पीडीएफ प्रिंट के लिए सुविधा
+कभी कभार विकिपाठ न्तर पर महत्वपूर्ण अन्तरों को देख पाना कठिन हो जाता है। विकिपाठ अन्तर के इस स्क्रीनशॉट (बड़ा करने को क्लिक करें) में अनुच्छेदों की पुनर्व्यवस्था दिखाई देती है, किन्तु इसमें किसी शब्द को हटाना या किसी नये वाक्य का जुड़्ना नहीं उभर कर दिखाई देता।
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+वो मंगलवार, १ सितम्बर २०२० को पूरा यातायात द्वितीयक आँकड़ा केन्द्र पर बदल देंगे।
+कम्युनिटी टेक टीम (Community Tech team) अनुभवी विकिमीडिया संपादकों के लिए साधनों पर केंद्रित है। आप किसी भी भाषा में प्रस्ताव लिख सकते हैं, और हम उन्हें आपके लिए अनुवाद करेंगे। आपका धन्यवाद! हम आपके प्रस्तावों को देखने के लिए उत्सुक हैं!
+सर्वेक्षण में, अनुभवी संपादकों के लिए नए और बेहतर उपकरणों की इच्छा एकत्र की जाती है। मतदान के बाद, हम आपकी इच्छाओं को पूरा करने की पूरी कोशिश करेंगे। हम सबसे लोकप्रिय विषयों के साथ शुरुआत करेंगे।
+हम आपके वोटों का इंतजार कर रहे हैं। धन्यवाद!
+समुदाय २८ जनवरी और ११ फ़रवरी के बीच प्रस्तावों पर मतदान करेंगे।
+सभी विकिज़ लघु समय के लिए पढ पायेगे लेकिन इसे संपादित नही कर सकते
+*यदि आप इस समय के दौरान सम्पादन अथवा सहेजने का प्रयास करेंगे तो आपको एक त्रुटि सन्देश दिखाई देगा। हम आशा करते हैं कि इस समय के दौरान कोई सम्पादन लुप्त नहीं होगा लेकिन हम इसकी प्रत्याभूति नहीं करते। यदि आपको कोई त्रुटि सन्देश दिखाई देता है तो कृपया सब कुछ सामान्य होने तक प्रतीक्षा करें। तब आपको अपने सम्पादन सहेजने चाहिए। लेकिन, हम अनुशंसा करते हैं कि आप अपने परिवर्तनों की एक प्रति पहले ही बना लें,जिसकी शायद जरूरत पड़े।
+*पृष्ठभूमि की नौकरियां धीमी होंगी और कुछ को स्खलित किया जा सकता है। लाल कड़ियाँ सामान्य गति से अद्यतन नहीं हो सकती हैं। यदि आपने कोई लेख निर्मित किया है जो पहले से कहीं जुड़ा हुआ है, तो कड़ी सामान्य से अधिक समय तक लाल रहेगी। कुछ लम्बे समय तक चलने वाली लिपि रुकी रहेंगी।
+* हम अपेक्षा करते हैं कि कोड परिनियोजन अन्य कि��ी सप्ताह की तरह ही होगा। यद्यपि, कुछ विषयानुसार कोड यथासमय बन्द रह सकेगा यदि सम्बंधित संक्रिया की तदुपरांत आवश्यकता होगी।
+विकिमेनिया २०२३ स्वागत कार्यक्रम प्रस्तुतियाँ
+सभी विकिज़ लघु समय के लिए पढ पायेगे लेकिन इसे संपादित नही कर सकते
+*यदि आप इस समय के दौरान सम्पादन अथवा सहेजने का प्रयास करेंगे तो आपको एक त्रुटि सन्देश दिखाई देगा। हम आशा करते हैं कि इस समय के दौरान कोई सम्पादन लुप्त नहीं होगा लेकिन हम इसकी प्रत्याभूति नहीं करते। यदि आपको कोई त्रुटि सन्देश दिखाई देता है तो कृपया सब कुछ सामान्य होने तक प्रतीक्षा करें। तब आपको अपने सम्पादन सहेजने चाहिए। लेकिन, हम अनुशंसा करते हैं कि आप अपने परिवर्तनों की एक प्रति पहले ही बना लें,जिसकी शायद जरूरत पड़े।
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+* हम अपेक्षा करते हैं कि कोड परिनियोजन अन्य किसी सप्ताह की तरह ही होगा। यद्यपि, कुछ विषयानुसार कोड यथासमय बन्द रह सकेगा यदि सम्बंधित संक्रिया की तदुपरांत आवश्यकता होगी।
+नई चुनाव समिति के सदस्यों की घोषणा
+उन सभी समुदाय सदस्यों को धन्यवाद जिन्होंने विचार के लिए अपने नाम प्रस्तुत किए। हम निकट भविष्य में चुनाव समिति के साथ काम करने के लिए उत्सुक हैं।
+
+
+गुरु नानक देव जिन्हें गुरु नानक और नानक शाह (१४६९-१५३९) के नाम से भी जाना जाता है सिख धर्म के प्रवर्तक हैं, और सिखों के पहले गुरु हैं।
+* मन की अशुद्धता है लालच, और जीभ की अशुद्धता है झूठ। आँखों की अशुद्धता है किसी अन्य पुरुष की पत्नी की सुन्दरता और उसके धन को ताड़ना। कानों की अशुद्धता है दूसरों के बारे में कुवचन सुनना। हे नानक, यह मर्त्य जीवात्मा, मृत्यु की नगरी में जाने के लिए विवश है। सारी अशुद्धता संशय और द्विपेक्षता से मोह के कारण होती है। जन्म और मृत्यु ईश्वर की इच्छा पर निर्भर हैं; उन्हीं की इच्छा से हम आते और जाते हैं।[
+* करुणा को रुई, सन्तोष को धागा, नम्रता को गाँठ और सत्यता को मरोड़ बनाओ। यह आत्मा का पवित्र धागा है, तब आगे बढ़ो और इसे मुझपर डाल दो।][
+* परमेश्वर एक है। ओंकार स्वरूप है। उसी का नाम सत्य है। वही कर्ता पुरुष है, वह निर्भय है, निर्वैर है, समय से परे है अयोनि है, स्वयंभू है, गुरु के प्रसाद से प्राप्त होता है। ।][
+* उसकी चमक से सबकुछ प्रकाशमान हैं।
+* भगवान एक है, लेकिन उसके कई रूप हैं. वो सभी का निर्माणकर्ता है और वो खुद मनुष्य का रूप लेता है।
+दुनिया में किसी भी व्यक्ति को भ्रम में नहीं रहना चाहिए. बिना गुरु के कोई भी दुसरे किनारे तक नहीं जा सकता है।
+* धन-समृद्धि से युक्त बड़े बड़े राज्यों के राजा-महाराजों की तुलना भी उस चींटी से नहीं की जा सकती है जिसमे में ईश्वर का प्रेम भरा हो।
+* ईश्वर एक है लेकिन उसके कई रूप हैं. वो सभी का निर्माणकर्ता है और वो खुद मनुष्य का रूप लेता है।
+* परमात्मा एक है और उसके लिए सब एक समान है।
+* औरत का सम्मान करना चाहिए क्योंकि इस संसार की जन्मदाता ही औरत है।
+* दुनिया को जीतने के लिए सबसे पहले अपने मन के विकारों को खत्म करना जरूरी होता है।
+* अपने समय का कुछ हिस्सा प्रभु के चरणों के अंदर सम्र्पित कर देना चाहिए ।
+* मैं जन्मा नहीं हूं मेरे लिए कोई भी कैसे मर सकता है या कैसे जन्म ले सकता है।
+* संसार को जलादें और अपनी राख को घीस कर उसे स्याही बनाएं अपने दिल को कलम बनाएं और वह लिखें जिसका कोई अंत नहीं हो जिसकी कोई सीमा भी नहीं हो ।
+
+
+जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे जिसका जो काम होता है वही उसे कर सकता है।
+जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे जब किसी के द्वारा पाला हुआ व्यक्ति उसी से गुर्राता है।
+जिसकी लाठी उसकी भैंस शक्ति अनधिकारी को भी अधिकारी बना देती है, शक्तिशाली की ही विजय होती है।
+जिसके राम धनी, उसे कौन कमी जो भगवान के भरोसे रहता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती।
+जिसे पिया चाहे वही सुहागिन जिस पर मालिक की कृपा होती है उसी की उन्नति होती है और उसी का सम्मान होता है।
+जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है कम बोलने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है।
+जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया यदि किसी को बहुत थोड़ी-सी चीज खाने को दी जाये।
+जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध कुपात्र पुत्रों के लिए कहते हैं जो अपने पिता के जीवित रहने पर उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीं करते, पर मर जाने पर श्राद्ध करते हैं।
+जी ही से जहान है यदि जीवन है तो सब कुछ है। इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए।
+जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती साधारण कष्ट या हानि के डर से कोई व्यक्ति काम नहीं छोड़ देता।
+जेठ के भरोसे पेट जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है और उसकी स्त्री का पालन-पोषण उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं।
+जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार संसार में मनुष्यों की प्रकृति-प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है।
+जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे जैसा वेश हो उसी के अनुकूल काम करना चाहिए।
+जैसा देश वैसा वेश जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए।
+जैसा मुँह वैसा तमाचा जैसा आदमी होता है वैसा ही उसके साथ व्यवहार किया जाता है।
+जैसी औढ़ी कामली वैसा ओढ़ा खेश जैसा समय आ पड़े उसी के अनुसार अपना रहन-सहन बना लेना चाहिए।
+जैसी चले बयार, तब तैसी दीजे ओट समय और परिस्थिति के अनुसार काम करना चाहिए।
+जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे विदेश निकम्मे आदमी के घर रहने से न तो कोई लाभ होता है और न बाहर रहने से कोई हानि होती है।
+जैसे को तैसा मिले, मिले डोम को डोम, दाता को दाता मिले, मिले सूम को सूम जो व्यक्ति जैसा होता है उसे जीवन में वैसे ही लोगों से पाला पड़ता है।
+जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार जैसे बाबास्वयं झूठे हैं वैसे ही उनके परिवार वाले भी हैं।
+जो करे लिखने में गलती, उसकी थैली होगी हल्की रोकड़ लिखने में गलती करने से सम्पत्ति का नाश हो जाता है।
+जो गुड़ देने से मरे उसे विषय क्यों दिया जाए जो मीठी-मीठी बातों या सुखद प्रलोभनों से नष्ट हो जाय उससे लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए।
+जो दूसरों के लिए गड्ढ़ा खोदता है उसके लिए कुआँ तैयार रहता है जो दूसरे लोगों को हानि पहुँचाता है उसकी हानि अपने आप हो जाती है।
+जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट यदि वस्तु के नष्ट हो जाने की आशंका हो तो उसका कुछ भाग खर्च करके शेष भाग बचा लेना चाहिए।
+जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए जो लोग दरबारी या परदेसी होते हैं उनका धर्म नष्ट हो जाता है और वे संसार के कर्तव्यों का भी समुचित पालन नहीं कर सकते।
+जो बोले सो कुंडा खोले यदि कोई मनुष्य कोई काम करने का उपाय बतावे और उसी को वह काम करने का भार सौपाजाये।
+जोगी काके मीत, कलंदर किसके भाई जोगी किसी के मित्र नहीं होते और फकीर किसी के भाई नहीं होते, क्योंकि वे नित्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं।
+ज���गी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ गैरिक वस्त्र पहनने से ही कोई जोगी नहीं हो जाता।
+जोगी जोगी लड़ पड़े, खप्पड़ का नुकसान बड़ों की लड़ाई मेंगरीबों की हानि होती है।
+ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय जितना ही अधिक ऋण लिया जाएगा उतना ही बोझ बढ़ता जाएगा।
+ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध जब कोई व्यक्तिकिसी दोषी पुरुष के दोष को बतलाता है तो उसे बहुत बुरा लगता है।
+झगड़े की तीन जड़, जन, जमीन, जर स्त्री, पृथ्वी और धन इन्हीं तीनों के कारण संसार में लड़ाई-झगड़े हुआ करते हैं।
+झट मँगनी पट ब्याह किसी काम के जल्दी से हो जाने पर उक्ति।
+झटपट की धानी, आधा तेल आधा पानी जल्दी का काम अच्छा नहीं होता।
+झड़बेरी के जंगल में बिल्ली शेर छोटी जगह में छोटे आदमी बड़े समझे जाते हैं।
+टंटा विष की बेल है झगड़ा करने से बहुत हानि होती है।
+टका सर्वत्र पूज्यन्ते, बिन टका टकटकायते संसार में सभी कर्म धन से होते हैं,बिना धन के कोई काम नहीं होता।
+टका हो जिसके हाथ में, वह है बड़ा जात में धनी लोगों का आदर- सत्कार सब जगह होता है।
+टाट का लंगोटा नवाब से यारी निर्धन व्यक्ति का धनी-मानी व्यक्तियों के साथ मित्रता करने का प्रयास।
+टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए ऐसा काम करना जिसमें केवल भरपेट भोजन मिले, कोई लाभ न हो।
+टेर-टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे जो अपनी हानि की बात सबसे कहा करता है उसकी साख जाती रहती है।
+डरें लोमड़ी से नाम शेर खाँ नाम के विपरीत गुण होने पर।
+डूबते को तिनके का सहारा विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों को थोड़ा सहारा भी काफी होता है।
+ढाक के वही तीन पात सदा से समान रूप से निर्धन रहने पर उक्त, परिणाम कुछ नहीं, बात वहीं की वहीं।
+ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़ जिसके पास धन नहीं होता वह गुणहीन और धनी व्यक्ति गुणवान् माना जाता है।
+ढेले ऊपर चील जो बोलै, गली-गली में पानी डोलै यदि चील ढेले पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि बहुत अधिक वर्षा होगी।
+
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+''गणितसारसंग्रहः के 'संज्ञाधिकारः' में मंगलाचरण के पश्चात महावीराचार्य ने बड़े ही मार्मिक ढंग से गणित की प्रशंशा की है।
+यथा राजा तथा प्रजा ।
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+*अपने बारे में लेख मत बनाएँ। अपने बारे में कुछ सीमित जानकारी आप सदस्य BASEPAGENAME अपने सदस्य पृष्ठ पर दे सकते हैं। अपने सदस्य पृष्ठ पर आप अपना चित्र भी लगा सकते हैं।
+*सम्पादन या किसी सदस्य से वार्ता करते समय अपनी भाषा शिष्ट बनाए रखें। इस ज्ञानवर्धक परियोजना में सक्रिय सदस्य अपना बहुमूल्य समय लगा रहे हैं जिसके लिये समस्त पाठक इस परियोजना के सभी रचनात्मक योगदानकर्ताओं के ऋणी हैं। ऐसे सदस्यों के प्रति अशिष्ट भाषा का प्रयोग दंडनीय है।
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+--यह स्थान मेरे प्रयोगों के लिए है--
+आचार्य श्रीराम शर्मा की सूक्तियाँ]]
+भारत देश के बारे में विभिन्न महापुरुषों के वचन
+हिन्दी के बारे में विभिन्न महापुरुषों के वचन
+सुविचार सागर विभिन्न माअपुरुषों के सुविचारों का संकलन
+गायत्री मंत्र पर महापुरुषों के विचार]]
+धार्मिक मान्यताओं पर आधारित कथन]]
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+व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है जन्म से नहीं।"
+किसी को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए। सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं।"
+भय को समीप न आने दो। यदि यह समीप आए, इस पर आक्रमण करो, यानी भय से भागो मत इसका सामना करो।"
+सुगंध का प्रसार वायु की दिशा पर आधारित होता है पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है।"
+शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है। शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य दोनों ही दुर्बल हैं।"
+अज्ञानी के लिए पुस्तकें और अंधे के लिए दर्पण एक समान उपयोगी है।"
+बहादुर और बुद्धिमान व्यक्ति अपना रास्ता खुद बनाते हैं। असंभव शब्द का इस्तेमाल बुजदिल करते हैं।"
+अपनी कमाई में से धन का कुछ प्रतिशत हिस्सा संकट काल के लिए हमेशा बचाकर रखें।"
+* जब तक तुम स्वंय पर विश्वास नहीं करते,परमात्मा में विश्वास कर ही नहीं सकते.
+हर व्यक्ति को भगवान की तरह देखो आप किसी की मदद नहीं कर सकते. बस उसकी सेवा कर सकते हैं
+* स��वामी विवेकानंद कहते है कि जब पड़ोसी भूखा मरता हो,तब मंदिर में भोग चढना पुण्य नहीं,बल्कि पाप है|
+जब तक जीना,तब तक सीखना'-अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है
+हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है.इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते है.शब्द गौण है.विचार रहते है,वे दूर तक यात्रा करते हैं.
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+* ईंट से ईंट बजाना (युद्धात्मक विनाश लाना)
+* ईंट का जवाब पत्थर से देना (किसी की दुष्टता का करारा जवाब देना)
+* ईंद का चाँद होना (बहुत दिनों पर दीखना)
+* कमला नारी कूपजल,और बरगद की छांय।गरमी में शीतल रहें शीतल में गरमाय।
+* कोदन की रोटी, और कल्लू लुगाई।पानी के मइरे में, राम की का थराई
+* किस खेत की मूली अधिकारहीन, शक्तिहीन)
+* कुआं खोदना हानि पहुंचाने का यत्न करना)
+* खेत रहना या आना (वीरगति पाना)
+* खून-पसीना एक करना (कठिन परिश्रम करना)
+* खटाई में पड़ना (झमेले में पड़ना, रूक जाना)
+* खेल खेलाना (परेशान करना)
+* जैसे उदई, तैसेई भान, न उनके चुटिया, न उनके कान। (इसका अर्थ इस रूप में लगाया जाता है जब किसी भी काम को करने के लिए एक जैसे स्वभाव के लोग मिल जायें और काम उनके कारण बिगड़ जाये।)
+* थोथा चना बाजे घना। (कम योग्यता वाले लोग ज्यादा शोर मचाते हैं)
+* नाकों चने चाबाना दाँत खटटे कर देना
+* पानी को धन पानी में,नाक कटे बेईमानी में।
+
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+मुहावरे भाषा को सुदृढ़, गतिशील और रुचिकर बनाते हैं, उनके प्रयोग से भाषा में चित्रमयता आती है। बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँहचढ़े वाक्य की नींव के पत्थर हैं, जिस पर उसका भव्य भवन आज तक रुका हुआ है और मुहावरे ही उसकी टूट-फूट को ठीक करते हुए गर्मी, सर्दी और बरसात के प्रकोप से अब तक उसकी रक्षा करते चले आ रहे हैं। मुहावरे भाषा को सुदृढ़, गतिशील और रुचिकर बनाते हैं। उनके प्रयोग से भाषा में चित्रमयता आती है, जैसे- अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना, दाँतों तले उँगली दबाना, रंगा सियार होना। 'मुहावरा' अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बातचीत करना या उत्तर देना। कुछ लोग मुहावरे को 'रोज़मर्रा बोलचाल तर्ज़ेकलाम' या 'इस्तलाह' कहते हैं। यूनानी भाषा में 'मुहावरे' को 'ईडियोमा फ्रेंच में 'इडियाटिस्मी' और अँगरेजी में 'इडिअम' कहते हैं।
+मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि जिस सुगठित शब्द-समूह से लक्षणाजन्य और कभी-कभी व्यंजनाजन्य कुछ विशिष्ट अर्थ निकलता है उसे 'मुहावरा' कहते हैं। कई बा��� यह व्यंग्यात्मक भी होते हैं। शब्दों की तीन शक्तियाँ होती हैं अभिधा, लक्षणा, व्यंजना
+अभिधा जब किसी शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग होता है तब वहाँ उसकी अभिधा शक्ति होती है, जैसे 'सिर पर चढ़ाना' का अर्थ किसी चीज को किसी स्थान से उठाकर सिर पर रखना होगा।
+लक्षणा जब शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग न करते हुए किसी विशेष प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है, यह जिस शक्ति के द्वारा होता है उसे लक्षणा कहते हैं। लक्षणा से 'सिर पर चढ़ने' का अर्थ आदर देना होगा। उदाहरण के लिए 'अँगारों पर लोटना आँख मारना आँखों में रात काटना आग से खेलना खून चूसना ठहाका लगाना शेर बनना' आदि में लक्षणा शक्ति का प्रयोग हुआ है, इसीलिए वे मुहावरे हैं।
+व्यंजना जब अभिधा और लक्षणा अपना काम खत्मकर लेती हैं, तब जिस शक्ति से शब्द-समूहों या वाक्यों के किसी अर्थ की सूचना मिलती है उसे 'व्यंजना' कहते हैं। व्यंजना से निकले अधिकांश अर्थों को व्यंग्यार्थ कहते हैं। 'सिर पर चढ़ाना' मुहावरे का व्यंग्यार्थ न तो 'सिर' पर निर्भर करता है न 'चढ़ाने' पर वरन् पूरे मुहावरे का अर्थ होता है उच्छृंखल, अनुशासनहीन अथवा ढीठ बनाना।
+मुहावरे के शब्द मुहावरे किसी न किसी व्यक्ति के अनुभव पर आधारित होते हैं, उनमें इस्तेमाल शब्दों की जगह दूसरे शब्दों का प्रयोग किया जाए तो उनका अर्थ ही बदल जाता है जैसे पानी-पानी होना' की जगह 'जल-जल होना' नहीं कहा जा सकता। ऐसे ही 'गधे को बाप बनाना' की जगह पर 'बैल को बाप बनाना' और 'मटरगश्ती करना' की जगह पर 'गेहूँगश्ती' या 'चनागश्ती' नहीं कहा जा सकता है।
+अंग टूटना शरीर में दर्द होना -आज मेरा अंग-अंग टूट रहा है।
+अपनी खिचड़ी अलग पकाना सबसे अलग रहना -आप लोग किसी के साथ मिलकर काम करना नहींजानते, अपनी खिचड़ी अलग पकाते हैं।
+नीचे दी गयीं कड़ियों में हिन्दी के प्रमुख मुहावरों के अर्थ तथा उनका वाक्यों में सम्यक प्रयोग दिये गये हैं।
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+बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँह चढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है।
+लोकोक्तियाँ आम जनमानस द्वारा स्थानीय बोलियों में हर दिन की परिस्थितियों एवं संदर्भों से उपजे वैसे पद एवं वाक्य होते हैं जो किसी खास समूह, उम्र वर्ग या क्षेत्रीय दायरे में प्रयोग किया जाता है। इसमें स्थान विशेष के भूगोल, संस्कृति, भाषाओं क�� मिश्रण इत्यादि की झलक मिलती है।
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+आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान किसान कवि घाघ व भड्डरी की कहावतें खेतिहर समाज का पीढि़यों से पथप्रदर्शन करते आयी हैं। बिहार व उत्तरप्रदेश के गांवों में ये कहावतें आज भी काफी लोकप्रिय हैं। जहां वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान भी गलत हो जाते हैं, ग्रामीणों की धारणा है कि घाघ की कहावतें प्राय: सत्य साबित होती हैं।
+अर्थ यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
+अर्थ यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
+अर्थ यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।
+अर्थ यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
+अर्थ यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।
+अर्थ यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
+अर्थ यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी।
+अर्थ यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।
+अर्थ यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
+यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेवती नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।
+यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
+उत्तर नक्षत्र ने जवाब दे दिया और हस्त भी मुंह मोड़कर चला गया। चित्रा नक्षत्र ही अच्छा है कि प्रजा को बसा लेता है। अर्थात् उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज अच्छी होती है।
+ऊंख की जड़ से खोदकर काटने और खूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है। तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है।
+हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं।
+यदि इस नक्षत्र में थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है।
+चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है।
+पुनर्वसु और स्वाती नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है कि उन्हें और तांत चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती।
+यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे।
+यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं तो तीनों अन्न (जौ, गेहूं, और चना) अच्छा होगा।
+गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है।
+गेहूं पैदावार अच्छी कैसे होती है आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ बार हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से।
+गेहूं की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान का बीज बोने के अगले दिन जोतवा देने से,यदि धान के पौधों की रोपाई की जाती है तो विदाहने का काम नहीं करते, यह काम तभी किया जाता है जब आप खेत में सीधे धान का बीज बोते हैं) से अच्छी होती है।
+गेहूं और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है।
+जौ-गेहूं कई बांह करने से धान बिदाहने से और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है।
+खूब बांह करने से गेहूं, खोंटने से चना, बार-बार पानी मिलने से धान, निराने से मक्का और पानी में छोड़कर बाद में बोने से उसकी फसल अच्छी होती है।
+पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा पैया (छूछ) पैदा होता है।
+एक धान में सोलह पैया।।
+पूर्वा नक्षत्र में धान न रोपो नहीं तो धान के एक पेड़ में सोलह पैया पैदा होगा।
+कन्या की संक्रान्ति होने पर धान (कुमारी) और मीन की संक्रान्ति होने पर जौ की फसल काटनी चाहिए।
+कुलिहर (पूस-माघ में जोते हुए) खेत में भादों में पकने वाला धान बोने से चिउड़े का आनन्द आता है-अर्थात् वह धान उपजता है।
+यदि मदार खूब फूलता है तो कोदो की फसल अच्छी है। नीम के पेड़ में अधिक फूल-फल लगते है तो जौ की फसल, यदि गाड़र (एक घास जिसे खस ���ी कहते हैं) की वृद्धि होती है तो गेहूं बेर और चने की फसल अच्छी होती है।
+जो किसान आद्रा में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।
+यदि आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा हो और पुनर्वसु नक्षत्र में पानी न बरसे तो ऐसी फसल होगी कि कोई दिया हुआ अन्न भी नहीं खाएगा।
+नोन-मिर्च डाल के, खा गया हरीफ।।
+खरीफ की फसल के बीच में रबी की फसल अच्छी नहीं होती।
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+जब देश आजाद हुआ तो गांधीजी ने सभी से सहायता मांगी क्योंकि देश की आजादी का प्रश्न सभी के लिए था |
+इसी तरह धरती पर स्वर्ग लाना सबका प्रश्न है इससे सभी को स्वर्ग मिलेगा अतः सबसे सहयोग माँगा जा रहा है|
+आज परम्परा चालाकी की होती जा रही है ईमानदारी मे चालाकी नही होती आज आदमी बुद्धि का प्रयोग कर रहा है आज संवेदना समाप्त हो गयी यह परम्परा क्या समाज के हित मे है इसके दूरगामी परिणाम देखे तो यह हमारे हित मे नही है |
+जिस समाज मे इस चालाकी की परम्परा हो जायेगी वहां चालाक आदमियों की संख्या समाज मे ९९ प्रतिशत हो जायेगी और सज्जनों की संख्या १ प्रतिशत होगी तो आप सोचिये की आप १ जगह धोखा दोगे और ९९ जगह धोखा खाओगे यह फायदे का सोदा नही है इससे सभी का नुकसान होता है |
+प्राचीन काल मे संत समाज वाणी द्वारा ही जनमानस को दिशा एवम प्रेरणा देने का कार्य बड़ी सफलता के साथ करता रहा है इसी श्रेष्ट परम्परा को लक्ष्य करके एक मंच की स्थापना की गयी है इस मंच का नाम
+इस मंच के माध्यम से ई पत्र द्वारा प्रतिदिन आपको हिन्दी भाषा में एक विचार प्राप्त होगा उस विचार पर आप दो मिनिट के लिए सोच विचार करे |
+आपको क्या करना है ?
+आप email द्वारा प्राप्त उस विचार को email द्वारा ही अपने परिजनों को प्रेषित (Forward) कर दे इस कार्य मे आपका दो मिनिट का समय लगेगा जिंहे यह विचार प्राप्त होगा वे परिजन भी ऐसा ही करते रहेंगे इस तरह एक अनमोल विचार अनेक तक पहुँचता रहेगा |
+आप भी प्रतिदिन प्राप्त होने वाले इस मेल को परिजनों को forward कर इस पुण्य प्रक्रिया मे भागीदार बने |
+मंच की आगामी योजना मे परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री राम जी शर्मा के विचारो को ब्लॉग मे संकलित किया जा रहा है।
+निःसंदेह यह प्रयास हम सभी के लिए प्रेरक व मार्गदर्शक होगा |
+नवयुग यदि आएगा तो विचार शोधन द्वारा ही, क्रान्ति होगी तो वह लहू और लोहे से नही, विचारो की विचारो से काट द्वारा होगी, समाज का नवनिर्माण होगा तो वह सद् विचारो की स्थापना द्वारा ही संभव होगा |
+इसलिए आपको यह सहयोग करना ही होगा |
+यह सम्पूर्ण योजना परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री राम जी शर्मा के सुक्ष्म सानिध्य मे संपन्न हो रही है इस कार्य के बदले हमें इस सुक्ष्म सत्ता शांतिकुंज हरिद्वार का संरक्षण प्राप्त होता रहेगा यह हमारी सुक्ष्म सत्ता का वादा है |
+समय के साथ योजना को विस्तृत किया जाता रहेगा |
+विचार क्रांति की यह योजना आप सभी के सहयोग से ही संपन्न होगी |
+आप भी अपना अपना अमूल्य सहयोग कर युग निर्माण योजना को सफल बनायें |
+आपके अनमोल सुझाव आमंत्रित है |
+स्थापना दिवस १८ जुलाई २००८ गुरुपूर्णिमा
+राजेंद्र-सुरेन्द्र-हिमांशु-अवधेश (पुत्र) तथा समस्त परिवार
+
+
+विभिन्न भावों से सम्बन्धित कुछ सूक्तियाँ नीचे प्रस्तुत हैं -
+पवन के साथ मिलकर धूल आँधी बनकर आकाश तक छू जाती है और वही धूल नीचे की ओर बहने वाले जल के साथ कीचड़ में मिल जाती है। साधु के घर के तोता-मैना परमात्मा का नाम जपते हैं और असाधु के घर के तोता-मैना गिन-गिन कर गालियाँ देते हैं।
+किन्तु दैवयोग से यदि कभी सज्जन कुसंगति में पड़ जाते हैं, तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों का ही अनुसरण करते हैं। (अर्थात् जिस प्रकार साँप का संसर्ग पाकर भी मणि उसके विष को ग्रहण नहीं करती तथा अपने सहज गुण प्रकाश को नहीं छोड़ती, उसी प्रकार साधु पुरुष दुष्टों के संग में रहकर भी दूसरों को प्रकाश ही देते हैं, दुष्टों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।)॥5॥
+भावार्थ साधु पुरुष की संगत से हमारे अनंत कोटि जन्मों के अपराध नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद सिर्फ प्रारब्ध भोगना ही शेष रह जाता है। व्यक्ति पूर्व जन्म के पापकर्मों के फल से यानी संचित कर्मों से मुक्त हो जाता है। अब करने को क्रियमाण कर्म (वह कर्म जो तुम अब कर रहे हो जिन्हें आगामी कर्म भी कहा जाता है क्योंकि इनका फल आगे के जन्मों में मिलता है और प्रारब्श कर्मफल ही शेष रह जाता है।
+मणि, माणिक और मोती की जैसी सुंदर छबि है, वह साँप, पर्वत और हाथी के मस्तक पर वैसी शोभा नहीं पाती। राजा के मुकुट और नवयुवती स्त्री के शरीर को पाकर ही ये सब अधिक शोभा को प्राप्त होते हैं।
+मैं श्री रघुनाथजी के गुणों का वर्णन करना चाहता हूँ, परन्तु मेरी बुद्धि छोटी है और श्री रामजी का चरित्र अथाह है। इसके लिए मुझे उपाय का एक भी अंग अर्थात् कुछ (लेशमात्र) भी उपाय नही�� सूझता। मेरे मन और बुद्धि कंगाल हैं, किन्तु मनोरथ राजा हैं।
+उस मनोहर जोड़ी का वर्णन नहीं किया जा सकता, क्योंकि शोभा बहुत अधिक है और मेरी बुद्धि थोड़ी है। श्री राम, लक्ष्मण और सीताजी की सुंदरता को सब लोग मन, चित्त और बुद्धि तीनों को लगाकर देख रहे हैं।
+देने-लेने में मन में शंका न रखे। अपने बल के अनुसार सदा हित ही करता रहे। विपत्ति के समय तो सदा सौगुना स्नेह करे। वेद कहते हैं कि संत (श्रेष्ठ) मित्र के गुण (लक्षण) ये हैं॥3॥
+जो सामने तो बना-बनाकर कोमल वचन कहता है और पीठ-पीछे बुराई करता है तथा मन में कुटिलता रखता है- हे भाई इस तरह) जिसका मन साँप की चाल के समान टेढ़ा है, ऐसे कुमित्र को तो त्यागने में ही भलाई है॥4॥
+: जिस राजा के राज्य में प्यारी जनता दुखी रहती है, वह राजा नरकगामी होता है।
+: मुखिया (घर का मालिक, राजा आदि) मुख के समान होना चाहिए। खाना-पानी केवल मुख में प्रवेश करता है, लेकिन वह अकेले उसे पचा नहीं जाता। उसे आगे बढ़ा देता है जिससे विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण होता है।
+तुलसीदास ने यद्यपि भक्ति तथा ज्ञान का समन्वय किया है, परन्तु उन्होंने भक्ति की श्रेष्ठता को प्रतिपादित की है। "साधन सिद्धि राम पद नेहूँ कहकर उन्होंने मोक्ष का साधन राम के चरण कमलों में प्रेम का होना स्वीकारा है।
+: मोक्ष भक्ति रहित हो नहीं सकता दोनों एक-दूसरे पर आधारित हैं।
+ज्ञान का रास्ता दुधारी तलवार की धार के जैसा है । इस रास्ते में भटकते देर नही लगती । जो ब्यक्ति बिना विघ्न बाधा के इस मार्ग का निर्वाह कर लेता है वह मोक्ष के परम पद को प्राप्त करता है ।
+सच्चा ज्ञान कहने समझने में मुश्किल एवं उसे साधने में भी कठिन है । यदि संयोग से कभी ज्ञान हो भी जाता है तो उसे बचाकर रखने में अनेकों बाधायें हैं ।
+राम मच्छर को भी ब्रह्मा बना सकते हैं और ब्रह्मा को मच्छर से भी छोटा बना सकते हैं । ऐसा जानकर बुद्धिमान लोग सारे संदेहों को त्यागकर राम को ही भजते हैं।
+; बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय ।
+तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है । ठीक वैसे हीं जैसे, जब राख की आग बुझ जाती है, तो उसे हर कोई छूने लगता है ।
+तुलसीदास जी कहते हैं कि विपत्ति में अर्थात मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती है । ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, आपका सत्य और राम (भगवान) का नाम ।
+हे उमा, सुनो वह कुल धन्य है, दुनिया के लिए पूज्य है और बहुत पावन (पवित्र) है, जिसमें श्री राम (रघुवीर) की मन से भक्ति करने वाले विनम्र लोग जन्म लेते हैं।
+बुरे लोगों की संगती में रहने से अच्छे लोग भी बदनाम हो जाते हैं। वे अपनी प्रतिष्ठा गँवाकर छोटे हो जाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे, किसी व्यक्ति का नाम भले हीं देवी-देवता के नाम पर रखा जाए, लेकिन बुरी संगती के कारण उन्हें मान-सम्मान नहीं मिलता है। जब कोई व्यक्ति बुरी संगती में रहने के बावजूद अपनी काम में सफलता पाना चाहता है और मान-सम्मान पाने की इच्छा करता है, तो उसकी इच्छा कभी पूरी नहीं होती है । ठीक वैसे हीं जैसे मगध के पास होने के कारण विष्णुपद तीर्थ का नाम “गया” पड़ गया ।
+जो लोग मनुष्य का शरीर पाकर भी राम का भजन नहीं करते हैं और बुरे विषयों में खोए रहते हैं । वे लोग उसी व्यक्ति की तरह मूर्खतापूर्ण आचरण करते हैं, जो पारस मणि को हाथ से फेंक देता है और काँच के टुकड़े हाथ में उठा लेता है ।
+परिवार के मुखिया को मुँह के जैसा होना चाहिए, जो खाता-पीता मुख से है और शरीर के सभी अंगों का अपनी बुद्धि से पालन-पोषण करता है ।
+जो लोग दूसरों की निन्दा करके खुद सम्मान पाना चाहते हैं । ऐसे लोगों के मुँह पर ऐसी कालिख लग जाती है, जो लाखों बार धोने से भी नहीं हटती है ।
+किसी की मीठी बातों और किसी के सुंदर कपड़ों से, किसी पुरुष या स्त्री के मन की भावना कैसी है यह नहीं जाना जा सकता है । क्योंकि मन से मैले सूर्पनखा, मारीच, पूतना और रावण के कपड़े बहुत सुन्दर थे ।
+मंत्री सलाहकार चिकित्सक और शिक्षक यदि ये तीनों किसी डर या लालच से झूठ बोलते हैं, तो राज्य,शरीर और धर्म का जल्दी हीं नाश हो जाता है ।
+भगवान एक हैं, उन्हें कोई इच्छा नहीं है । उनका कोई रूप या नाम नहीं है । वे अजन्मा औेर परमानंद के परमधाम हैं । वे सर्वव्यापी विश्वरूप हैं । उन्होंने अनेक रूप, अनेक शरीर धारण कर अनेक लीलायें की हैं ।
+प्रभु भक्तों के लिये हीं सब लीला करते हैं । वे परम कृपालु और भक्त के प्रेमी हैं । भक्त पर उनकी ममता रहती है । वे केवल करूणा करते हैं । वे किसी पर क्रोध नही करते हैं ।
+संकट में पड़े भक्त नाम जपते हैं तो उनके समस्त संकट दूर हो जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं । संसार में चार तरह के अर्थाथ; आर्त; जिज्ञासु और ज्ञानी भक्त हैं और वे सभी भक्त पुण्��� के भागी होते हैं ।
+जो सभी इच्छाओं को छोड़कर राम भक्ति के रस में लीन होकर राम नाम प्रेम के सरोवर में अपने मन को मछली के रूप में रहते हैं और एक क्षण भी अलग नही रहना चाहते वही सच्चा भक्त है ।
+अनेक तरह से भक्ति करना एवं क्षमा, दया, इन्द्रियों का नियंत्रण, लताओं के मंडप समान हैं । मन का नियमन अहिंसा, सत्य, अस्तेय ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्राणधन, भक्ति के फूल और ज्ञान फल है । भगवान के चरणों में प्रेम भक्ति का रस है । वेदों ने इसका वर्णन किया है ।
+ईश्वर को नही जानने से झूठ सत्य प्रतीत होता है । बिना पहचाने रस्सी से सांप का भ्रम होता है । लेकिन ईश्वर को जान लेने पर संसार का उसी प्रकार लोप हो जाता है जैसे जागने पर स्वप्न का भ्रम मिट जाता है ।
+तुलसीदास जी कहते हैं – उसका हृदय बज्र की तरह कठोर और निश्ठुर है जो ईश्वर का चरित्र सुनकर प्रसन्न नही होता है ।
+तुलसीदास जी कहते हैं – सगुण और निर्गुण में कोई अंतर नही है । मुनि पुराण पन्डित बेद सब ऐसा कहते । जेा निर्गुण निराकार अलख और अजन्मा है वही भक्तों के प्रेम के कारण सगुण हो जाता है ।
+भगवान अनन्त है, उनकी कथा भी अनन्त है । संत लोग उसे अनेक प्रकार से वर्णन करते हैं । श्रीराम के सुन्दर चरित्र करोड़ों युगों मे भी नही गाये जा सकते हैं ।
+तुलसीदास जी कहते हैं – प्रभु तो बिना बताये हीं सब जानते हैं । अतः संसार को प्रसन्न करने से कभी भी सिद्धि प्राप्त नही हो सकती ।
+– तपस्या से कुछ भी प्राप्ति दुर्लभ नही है । इसमें शंका आश्चर्य करने की कोई जरूरत नही है । तपस्या की शक्ति से हीं ब्रह्मा ने संसार की रचना की है और तपस्या की शक्ति से ही विष्णु इस संसार का पालन करते हैं । तपस्या द्वारा हीं शिव संसार का संहार करते हैं । दुनिया में ऐसी कोई चीज नही जो तपस्या द्वारा प्राप्त नही किया जा सकता है ।
+तुलसीदास जी कहते हैं – भगवान सब जगह हमेशा समान रूप से रहते हैं और प्रेम से बुलाने पर प्रगट हो जाते हैं । वे सभी देश विदेश एव दिशाओं में ब्याप्त हैं । कहा नही जा सकता कि प्रभु कहाँ नही है ।
+तुलसीदास जी कहते हैं – प्रभु पूर्णकाम सज्जनों के शिरोमणि और प्रेम के प्यारे हैं । प्रभु भक्तों के गुणग्राहक बुराईयों का नाश करने वाले और दया के धाम हैं ।
+योगी जिस प्रभु के लिये क्रोध मोह ममता और अहंकार को त्यागकर योग साधना करते हैं – वे सर्वव्य��पक ब्रह्म अब्यक्त अविनासी चिदानंद निर्गुण और गुणों के खान हैं ।
+जिन्हें पूरे मन से शब्दों द्वारा ब्यक्त नहीं किया जा सकता-जिनके बारे में कोई अनुमान नही लगा सकता – जिनकी महिमा बेदों में नेति कहकर वर्णित है और जो हमेशा एकरस निर्विकार रहते हैं ।
+तुलसीदास जी कहते हैं – जो मित्र के दुख से दुखी नहीं होता है उसे देखने से भी भारी पाप लगता है । अपने पहाड़ समान दुख को धूल के बराबर और मित्र के साधारण धूल समान दुख को सुमेरू पर्वत के समान समझना चाहिए ।
+मित्र से लेन देन करने में शंका न करे । अपनी शक्ति अनुसार हमेशा मित्र की भलाई करे । वेद के अनुसार संकट के समय वह सौ गुणा स्नेह-प्रेम करता है । अच्छे मित्र के यही गुण हैं ।
+जो सामने बना-बनाकर मीठा बोलता है और पीछे मन में बुरी भावना रखता है तथा जिसका मन सांप की चाल के जैसा टेढा है ऐसे खराब मित्र को त्यागने में हीं भलाई है ।
+इस संसार में सभी शत्रु और मित्र तथा सुख और दुख, माया झूठे हैं और वस्तुतः वे सब बिलकुल नहीं हैं ।
+खराब संगति अत्यंत बुरा रास्ता है । उन कुसंगियों के बोल बाघ, सिंह और सांप की भांति हैं । घर के कामकाज में अनेक झंझट ही बड़े बीहड़ विशाल पहाड़ की तरह हैं ।
+तुलसीदास जी कहते हैं – गंगा में पवित्र और अपवित्र सब प्रकार का जल बहता है परन्तु कोई भी गंगाजी को अपवित्र नही कहता । सूर्य, आग और गंगा की तरह समर्थ व्यक्ति को कोई दोष नही लगाता है ।
+तुलसीदास जी कहते हैं – बडे लोग छोटों पर प्रेम करते हैं । पहाड के सिर में हमेशा घास रहता है । अथाह समुद्र में फेन जमा रहता है एवं धरती के मस्तक पर हमेशा धूल रहता है ।
+यदि गरूड का हिस्सा कौआ और सिंह का हिस्सा खरगोश चाहे – अकारण क्रोध करने वाला अपनी कुशलता और शिव से विरोध करने वाला सब तरह की संपत्ति चाहे – लोभी अच्छी कीर्ति और कामी पुरूष बदनामी और कलंक नही चाहे तो उन सभी की इच्छाएं व्यर्थ हैं ।
+ग्रह दवाई पानी हवा वस्त्र -ये सब कुसंगति और सुसंगति पाकर संसार में बुरे और अच्छे वस्तु हो जाते हैं । ज्ञानी और समझदार लोग ही इसे जान पाते हैं ।
+यदि तराजू के एक पलड़े पर स्वर्ग के सभी सुखों को रखा जाये तब भी वह एक क्षण के सतसंग से मिलने बाले सुख के बराबर नहीं हो सकता ।
+अब असंतों का गुण सुनें । कभी भूलवश भी उनका साथ न करें । उनकी संगति हमेशा कश्टकारक होता है । खराब जाति की गाय अच्छी दुधारू गाय को अपने साथ रखकर खराब कर देती है ।
+दुर्जन के हृदय में अत्यधिक संताप रहता है । वे दुसरों को सुखी देखकर जलन अनुभव करते हैं । दुसरों की बुराई सुनकर खुश होते हैं जैसे कि रास्ते में गिरा खजाना उन्हें मिल गया हो ।
+; काम क्रोध मद लोभ परायन । निर्दय कपटी कुटिल मलायन ।
+वे काम, क्रोध, अहंकार, लोभ के अधीन होते हैं । वे निर्दयी, छली, कपटी एवं पापों के भंडार होते हैं । वे बिना कारण सबसे दुशमनी रखते हैं । जो भलाई करता है वे उसके साथ भी बुराई ही करते हैं ।
+दुष्ट का लेनादेना सब झूठा होता है । उसका नाश्ता भोजन सब झूठ ही होता है जैसे मोर बहुत मीठा बोलता है । पर उसका दिल इतना कठोर होता है कि वह बहुत विषधर सांप को भी खा जाता है । इसी तरह उपर से मीठा बोलने बाले अधिक निर्दयी होते हैं ।
+; पर द्रोही पर दार पर धन पर अपवाद
+वे दुसरों के द्रोही परायी स्त्री और पराये धन तथा पर निंदा में लीन रहते हैं । वे पामर और पापयुक्त मनुष्य शरीर में राक्षस होते हैं ।
+; स्वारथ रत परिवार विरोधी । लंपट काम लोभ अति क्रोधी ।
+वे माता पिता गुरू ब्राम्हण किसी को नही मानते । खुद तो नष्ट रहते ही हैं । दूसरों को भी अपनी संगति से बर्बाद करते हैं । मोह में दूसरों से द्रोह करते हैं । उन्हें संत की संगति और ईश्वर की कथा अच्छी नहीं लगती है ।
+; विप्र द्रोह पर द्रोह बिसेसा । दंभ कपट जिए धरें सुवेसा ।
+वे दुर्गुणों के सागर, मंदबुद्धि, कामवासना में रत वेदों की निंदा करने बाला जबरदस्ती दूसरों का धन लूटने वाला, द्रोही विशेषत: ब्राह्मनों के शत्रु होते हैं । उनके दिल में घमंड और छल भरा रहता है पर उनका लिबास बहुत सुन्दर रहता है ।
+भक्ति स्वतंत्र रूप से समस्त सुखों की खान है । लेकिन बिना संतों की संगति के भक्ति नही मिल सकती है । पुनः बिना पुण्य अर्जित किये संतों की संगति नहीं मिलती है । संतों की संगति हीं जन्म मरण के चक्र से छुटकारा देता है ।
+नीच आदमी जिससे बड़प्पन पाता है वह सबसे पहले उसी को मारकर नाश करता है । आग से पैदा धुंआ मेघ बनकर सबसे पहले आग को बुझा देता है ।
+धूल रास्ते पर निरादर पड़ी रहती है और सभी के पैर की चोट सहती रहती है । लेकिन हवा के उड़ाने पर वह पहले उसी हवा को धूल से भर देती है । बाद में वह राजाओं के आँखों और मुकुटों पर पड़ती है ।
+बुद्धिमान शत्रु अकेला रहने पर भी उसे छोटा नही मानना चाहिये । राहु का केवल सिर बच गया था परन्तु वह आजतक सूर्य ��वं चन्द्रमा को ग्रसित कर दुख देता है ।
+जब ईश्वर विपरीत हो जाते हैं तब उसके लिये धूल पर्वत के समान पिता काल के समान और रस्सी सांप के समान हो जाती है ।
+अच्छे स्वामी का यह सहज स्वभाव है कि पहले दण्ड देकर पुनः बाद में सेवक पर कृपा करते हैं ।
+सुख, धन, संपत्ति, संतान, सेना, मददगार, विजय, प्रताप, बुद्धि, शक्ति और प्रशंसा जैसे जैसे नित्य बढते हैं, वैसे वैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढता हैै ।
+ऐसे वीर जो रणक्षेत्र से कभी नहीं भागते, दूसरों की स्त्रियों पर जिनका मन और दृष्टि कभी नहीं जाता और भिखारी कभी जिनके यहाँ से खाली हाथ नहीं लौटते । ऐसे उत्तम लोग संसार में बहुत कम हैं ।
+टेढा जानकर लोग किसी भी व्यक्ति की बंदना प्रार्थना करते हैं । टेढे चन्द्रमा को राहु भी नहीं ग्रसता है ।
+सेवक के घर स्वामी का आगमन सभी मंगलों की जड और अमंगलों का नाश करने वाला होता है ।
+भरत की मां हंसकर कहती है – कानों, लंगरों और कुवरों को कुटिल और खराब चालचलन वाला जानना चाहिये ।
+जैसी भावी होनहार होती है – वैसी हीं बुद्धि भी फिर बदल जाती है ।
+पहले वाली बात बीत चुकी है । समय बदलने पर मित्र भी शत्रु हो जाते हैं ।
+ईश्वर जिसे शत्रु के अधीन रखकर जिन्दा रखें, उसके लिये जीने की अपेक्षा मरना अच्छा है ।
+जो व्यक्ति त्रिशूल, बज्र और तलवार आदि की मार अपने अंगों पर सह लेते हैं वे भी कामदेव के पुष्प बाण से मारे जाते हैं ।
+किस मौके पर क्या हो जाये-स्त्री पर विश्वास करके कोई उसी प्रकार मारा जा सकता है जैसे योग की सिद्धि का फल मिलने के समय योगी को अविद्या नष्ट कर देती है ।
+ठहाका मारकर हँसना और क्रोध से गाल फुलाना एक साथ एक ही समय में सम्भव नहीं है । दानी और कृपण बनना तथा युद्ध में बहादुरी और चोट भी नहीं लगना कदापि सम्भव नही है ।
+स्त्री का स्वभाव समझ से परे, अथाह और रहस्यपूर्ण होता है । कोई अपनी परछाई भले पकड ले पर वह नारी की चाल नहीं जान सकता है ।
+अग्नि किसे नही जला सकती है? समुद्र में क्या नही समा सकता है? अबला नारी बहुत प्रबल होती है और वह कुछ भी कर सकने में समर्थ होती है । संसार में काल किसे नही खा सकता है?
+पति बिना लोगों का स्नेह और नाते रिश्ते सभी स्त्री को सूर्य से भी अधिक ताप देने बाले होते हैं । शरीर धन घर धरती नगर और राज्य यह सब स्त्री के लिये पति के बिना शोक दुख के कारण होते हैं ।
+ईश्वर शुभ और अशुभ कर्मों के मुताबिक हृदय में विचार कर फल देता है । ऐसा ही वेद नीति और सब लोग कहते हैं ।
+कोई भी किसी को दुख-सुख नही दे सकता है । सभी को अपने हीं कर्मों का फल भेागना पड़ता है ।
+ईश्वर ने इस संसार में कर्म को महत्ता दी है अर्थात जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भी भोगना पड़ेगा।
+मिलाप और बिछुड़न, अच्छे बुरे भोग ,शत्रु मित्र और तटस्थ -ये सभी भ्रम के फांस हैं । जन्म, मृत्यु संपत्ति, विपत्ति कर्म और काल- ये सभी इसी संसार के जंजाल हैं ।
+स्त्री के हृदय की चाल ईश्वर भी नहीं जान सकते हैं । वह छल, कपट, पाप और अवगुणों की खान है ।
+मुनिनाथ ने अत्यंत दुख से भरत से कहा कि जीवन में लाभ नुकसान जिंदगी मौत प्रतिष्ठा या अपयश सभी ईश्वर के हाथों में है ।
+मूर्ख सांसारिक जीव प्रभुता पा कर मोह में पड़कर अपने असली स्वभाव को प्रकट कर देते हैं ।
+शत्रु और ऋण को कभी भी शेष नही रखना चाहिये । अल्प मात्रा में भी छोड़ना नही चाहिये ।
+किसी भी काम में उचित अनुचित विचार कर किया जाये तो सब लोग उसे अच्छा कहते हैं । बेद और विद्वान कहते हैं कि जो काम बिना विचारे जल्दी में करके पछताते हैं – वे बुद्धिमान नहीं हैं ।
+; विशई साधक सिद्ध सयाने । त्रिविध जीव जग बेद बखाने ।
+संसारी, साधक और ज्ञानी सिद्ध पुरुष – इस दुनिया में इसी तीन प्रकार के लोग बेदों ने बताये हैं ।
+ईश्वर की चाल अत्यंत विपरीत एवं विचित्र है । वह संसार की सृश्टि उत्पन्न करता और पालन और फिर संहार भी कर देता है । ईश्वर की बुद्धि बच्चों जैसी भोली विवेक रहित है ।
+सोना कसौटी पर कसने और रत्न जौहरी के द्वारा ही पहचाना जाता है । पुरूष की परीक्षा समय आने पर उसके स्वभाव और चरित्र से होती है ।
+बिना कारण हीं दूसरों की भलाई करने बाले बुद्धिमान और श्रेष्ठ मालिक से बहुत कहना गलत होता है ।
+; बृद्ध रोगबश जड़ धनहीना । अंध बधिर क्रोधी अतिदीना ।
+धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री की परीक्षा आपद या दुख के समय होती हैै । बूढ़ा, रोगी, मूर्ख, गरीब, अन्धा, बहरा, क्रोधी और अत्यधिक गरीब सभी की परीक्षा इसी समय होती है ।
+कलियुग अनेक कठिन पापों का भंडार है जिसमें धर्म ज्ञान योग जप तपस्या आदि कुछ भी नहीं है ।
+में और मेरा तू और तेरा-यही माया है जिाने सम्पूर्ण जीवों को बस में कर रखा है ।
+शत्रु रोग अग्नि पाप स्वामी एवं साँप को कभी भी छोटा मानकर नहीं समझना चाहिये ।
+बादलों के कारण कभी दिन में घोर अंधकार छा जाता है और कभी सूर्य ��्रगट हो जाते हैं । जैसे कुसंग पाकर ज्ञान नष्ट हो जाता है और सुसंग पाकर उत्पन्न हो जाता है ।
+संत की यही महानता है कि वे बुराई करने वाले पर भी उसकी भलाई ही करते हैं ।
+; साधु संतों का अपमान तुरंत संपूर्ण भलाई का अंत नाश कर देता है ।
+; आलसी लोग ही भगवान भगवान पुकारा करते हैं ।
+दूसरों को उपदेश शिक्षा देने में बहुत लोग निपुण कुशल होते हैं परन्तु उस शिक्षा का आचरण पालन करने बाले बहुत कम हीं होते हैं ।
+संसार में तीन तरह के लोग होते हैं-गुलाब आम और कटहल के जैसा । एक फूल देता है-एक फूल और फल दोनों देता है और एक केवल फल देता है । लोगों मे एक केवल कहते हैं-करते नहीं । दूसरे जो कहते हैं वे करते भी हैं और तीसरे कहते नही केवल करते हैं ।
+जब किसी को आंखों में दोष होता है तो उसे चन्द्रमा पीले रंग का दिखाई पड़ता है । जब पक्षी के राजा (गरुड़) को दिशाभ्रम होता है तो उसे सूर्य पश्चिम में उदय दिखाई पड़ता है ।
+नाव पर चढ़ा हुआ आदमी दुनिया को चलता दिखाई देता है लेकिन वह अपने को स्थिर अचल समझता है । बच्चे गोलगोल घूमते है लेकिन घर वगैरह नहीं घूमते । लेकिन वे आपस में परस्पर एक दूसरे को झूठा कहते हैं ।
+एक पिता के अनेकों पुत्रों में उनके गुण और आचरण भिन्न भिन्न होते हैं । कोई पंडित कोई तपस्वी कोई ज्ञानी कोई धनी कोई बीर और कोई दानी होता है ।
+किसी की प्रभुता जाने बिना उस पर विश्वास नहीं ठहरता और विश्वास की कमी से प्रेम नहीं होता । प्रेम बिना भक्ति दृढ़ नही हो सकती जैसे पानी की चिकनाई नही ठहरती है ।
+संसार में दरिद्रता के समान दुख एवं संतों के साथ मिलन समान सुख नहीं है । मन बचन और शरीर से दूसरों का उपकार करना यह संत का सहज स्वभाव है ।
+अज्ञान सभी रोगों की जड़ है । इससे बहुत प्रकार के कष्ट उत्पन्न होते हैं । काम वात और लोभ बढ़ा हुआ कफ है । क्रोध पित्त है जो हमेशा हृदय जलाता रहता है ।
+महीने के दोनों पखवाड़ों में उजियाला और अँधेरा समान ही रहता है, परन्तु विधाता ने इनके नाम में भेद कर दिया है (एक का नाम शुक्ल और दूसरे का नाम कृष्ण रख दिया)। एक को चन्द्रमा का बढ़ाने वाला और दूसरे को उसका घटाने वाला समझकर जगत ने एक को सुयश और दूसरे को अपयश दे दिया।
+:जगत में ऐसा कौन है, जिसे काम ने नचाया न हो उत्तरकांड]
+चिंता रूपी सांपिन ने किसे नहीं डंसा [उत्तरकांड]
+संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं जो तप से न मिल सके [बालकांड]
+: तृष्णा ने ���िसको बावला नहीं किया [उत्तरकांड]
+: परोपकार के समान दूसरा धर्म नहीं है [उत्तरकांड]
+: दूसरों को पीडित करने जैसा कोई पाप नहीं है [उत्तरकांड]
+: जैसा देवता हो, वैसी उसकी पूजा होनी चाहिए [अयोध्याकांड]
+: प्रीति और बैर बराबरी में करना चाहिए [लंकाकांड]
+: सभी मानस रोगों की जड़ मोह अज्ञान है [उत्तरकांड]
+: कीर्ति, कविता और सम्पत्ति वही उत्तम है, जो गंगाजी की भांति सबका हित करती है [बालकांड]
+: मंत्री, बैद्य और गुरु ये तीन यदि अप्रसन्नता के भय या लाभ की आशा से ठकुरसुहाती कहते हैं तो समझिए कि राजधर्म का इन्होने तिनका-तिनका कर दिया है, जिससे इसका (राजधर्म का) शीघ्र ही नाश हो जाएगा। [सुन्दरकांड]
+: लोक में प्रतिष्ठा आग के समान है जो तपस्या रूपी बन को भस्म कर डालती है [बालकांड]
+मुखिया मुख सों चाहिए खान पान को एक।
+: परिवार के मुखिया को मुख के सामान होना चाहिए, जो खाता तो अकेले है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगो का पालन-पोषण करता हैं।
+: मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं। किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं। इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे॥
+: सी विपत्ति यानि किसी बड़ी परेशानी के समय आपको ये सात गुण बचायेंगे: आपका ज्ञान या शिक्षा, आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि, आपके भीतर का साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और ईश्वर में विश्वास।
+
+
+नए गति घोषणापत्र प्रारूपण समिति के सदस्यों से मिलें
+गति घोषणापत्र प्रारूपण समिति की चुनाव और चयन प्रक्रियाएँ पूरी हो गई हैं।
+समिति जल्द ही अपना काम शुरू करेगी। समिति विविधता और विशेषज्ञता अंतराल को कम करने के लिए तीन और सदस्यों को नियुक्त कर सकती है।
+संदेश को मेटा-विकी पर अतिरिक्त भाषाओं में अनुवादित किया गया है।''
+न्यासी मंडल आगामी बोर्ड चुनावों के बारे में कॉल फॉर फीडबैक तैयार कर रहा है। यह ७ जनवरी १० फरवरी २०२२ के बीच होगा।
+भले ही कॉल फॉर फीडबैक का विवरण एक सप्ताह पहले दिया जाएगा, हमने दो प्रश्नों की पुष्टि की है जो कॉल फॉर फीडबैक के दौरान प्रतिक्रिया के लिए पूछे जाएंगे:
+* न्यासी मंडल के बीच उभरते समुदायों का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
+* चुनाव के दौरान उम्मीदवारों की भागीदारी कैसी होनी चाहिए?
+भले ही अतिरिक्त प्रश्न जोड़े जा सकते हैं, लेकिन आंदोलन रणनीति और शासन टीम समुदा�� के सदस्यों और सहयोगियों को विचार विमर्श के लिए समय प्रदान करना चाहती हैं। प्रश्नों की पूरी सूची नहीं होने के लिए हम माफी माँगते हैं। प्रश्नों की सूची केवल एक या दो प्रश्नों से बढ़नी चाहिए। हमारा इरादा अनुरोधों के साथ समुदाय को अभिभूत करना नहीं है।
+क्या आप स्थानीय बातचीत को व्यवस्थित करने में मदद करना चाहते हैं
+यदि आपके कोई प्रश्न हैं तो हमसे संपर्क करें। आंदोलन रणनीति और शासन टीम में ३ जनवरी तक कर्मचारियों की कमी होगी। कृपया विलंबित प्रतिक्रिया को क्षमा करें; यदि हमारा संदेश आपकी छुट्टियों के दौरान आपके पास पहुँचा है तो हम क्षमा चाहते हैं।
+न्यासी बोर्ड चुनाव के लिए प्रतिक्रिया आह्वान शूरु हो गए है
+प्रतिक्रिया आह्वान:न्यासी मंडल चुनाव शूरु हो गए है और ७ फरवरी २०२२ को बंद हो जाएंगे।
+इस प्रतिक्रिया आह्वान पहल में, हमारा दृष्टिकोण २०२१ की प्रक्रिया से सामुदायिक प्रतिक्रिया को शामिल करना होगा। चर्चा प्रमुख प्रश्नों पर केंद्रित होगी। इरादा सामूहिक बातचीत और सहयोगी प्रस्ताव विकास को प्रेरित करना है।
+प्रतिक्रिया आह्वान के दौरान दो पुष्ट प्रश्न पूछे जाएंगे:
+# निर्वाचित उम्मीदवारों के बीच उभरते समुदायों का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है न्यासी मंडल समझता है कि उम्मीदवारों का चयन विकिमीडिया आंदोलन की पूर्ण विविधता का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। वर्तमान प्रक्रियाओं ने उत्तरी अमेरिका और यूरोप के स्वयंसेवकों का पक्ष लिया है।''
+# चुनाव के दौरान उम्मीदवारों की भागीदारी कैसी होनी चाहिए परंपरागत रूप से, न्यासी मंडल के उम्मीदवारों ने आवेदन पूरे किए और सामुदायिक सवालों के जवाब दिए। एक चुनाव स्वयंसेवकों के रूप में उम्मीदवारों की स्थिति की सराहना करते हुए उम्मीदवारों में उचित अंतर्दृष्टि कैसे प्रदान कर सकता है
+प्रतिक्रिया आह्वान के दौरान एक अतिरिक्त प्रश्न पूछा जा सकता है।
+टीम टास्क फोर्स की जिम्मेदारियां क्या हो सकती है, इस पर सामुदायिक प्रतिक्रिया चाहती है। इसके अलावा, यदि कोई भी समुदाय सदस्य इस १२-सदस्यीय टास्क फोर्स का हिस्सा बनना चाहता है, तो कृपया तो कृपया हमसे संपर्क करें। प्रतिक्रिया अवधि २५ फरवरी २०२२ तक है।
+२ इच्छुक समुदाय के सदस्य Google Meet के माध्यम से 18 फरवरी, शुक्रवार को एक क्षेत्रीय ���र्चा में शामिल हो सकते हैं।
+सार्वभौमिक आचार संहिता (UCoC) प्रवर्तन दिशानिर्देश और अनुसमर्थन वोट
+यह जानकारी न्यासी बोर्ड और चुनाव समिति के साथ साझा की जाएगी ताकि वे आगामी न्यासी बोर्ड के चुनाव के बारे में सूचित निर्णय ले सकें। न्यासी बोर्ड आंतरिक चर्चा के बाद एक घोषणा करेगा।
+चुनाव प्रक्रियाओं में सुधार के लिए भाग लेने और मदद करने के लिए धन्यवाद।
+UCoC प्रवर्तन दिशानिर्देशों के लिए अनुसमर्थन मतदान शुरू हो गए है (७ २१ मार्च २०२२
+मरियाना इस्कंदर के साथ दक्षिण एशिया ESEAP सम्बंधित वार्षिक योजना की बैठक
+बातचीत इन सवालों के बारे में है:
+* विकिमीडिया फाउंडेशन क्षेत्रीय स्तर पर काम करने के बेहतर तरीके तलाश रहा है। हमने अनुदान, नई सुविधाओं और सामुदायिक बातचीत में अपना ध्यान बढ़ाया है। हम और कैसे सुधार कर सकते हैं?
+* कोई भी आंदोलन रणनीति प्रक्रिया में योगदान कर सकता है। हम आपकी गतिविधियों, विचारों और अनुरोधों के बारे में अधिक जानना चाहते हैं। विकिमीडिया फाउंडेशन आंदोलन रणनीति गतिविधियों में काम कर रहे स्वयंसेवकों और एफिलिएटस के लिए अपने समर्थन में सुधार कैसे कर सकता है?
+==उम्मीदवारों के लिए आह्वान: २०२२ ट्रस्टी बोर्ड चुनाव==
+ट्रस्टी बोर्ड विकिमीडिया फाउंडेशन के संचालन की देखरेख करता है। समुदाय और एफिलिएट चयनित ट्रस्टी और बोर्ड द्वारा नियुक्त ट्रस्टी, ट्रस्टी बोर्ड बनाते हैं। प्रत्येक ट्रस्टी तीन साल का कार्यकाल पूरा करता है। विकिमीडिया समुदाय के पास समुदाय और एफिलिएट चयनित न्यासियों के लिए मतदान करने का अवसर है।
+विकिमीडिया समुदाय २०२२ में ट्रस्टी बोर्ड में दो सीटों का चुनाव करने के लिए मतदान करेगा। यह ट्रस्टी बोर्ड के प्रतिनिधित्व, विविधता और विशेषज्ञता में सुधार करने का एक अवसर है।
+आंदोलन रणनीति और शासन टीम आगामी न्यासी बोर्ड के चुनाव में चुनाव स्वयंसेवकों के रूप में सहयोग करने के लिए समुदाय सदस्यों की तलाश कर रहा है।
+२०१७ में भाग नहीं लेने वाले कुल ७४ विकियों ने २०२१ के चुनाव में मतदान किया। क्या आप भागीदारी को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं?
+चुनाव स्वयंसेवक निम्नलिखित क्षेत्रों में मदद करेंगे:
+* छोटे संदेशों का अनुवाद करना, और सामुदायिक स्थानों में चल रही चुनाव प्रक्रिया की घोषणा करना।
+वैकल्पिक टिप्पणियों और प्रश्नों के लिए सामुदायिक स्थानों की निगरानी करना।
+स्वयंसेवकों को चाहिए की वह:
+* बातचीत और कार्यक्रमों के दौरान फ्रेंडली स्पेस नीति बनाए रखें।
+* निष्पक्ष तरीके से समुदाय के लिए चुनाव दिशानिर्देश और मतदान की जानकारी प्रस्तुत करें।
+२०२२ चुनाव कम्पास के लिए प्रस्तावित वक्तव्य
+चुनाव कम्पास एक ऐसा उपकरण है जो मतदाताओं को उन उम्मीदवारों का चयन करने में मदद करता है जो उनके विश्वासों और विचारों के साथ सर्वोत्तम रूप से संरेखित होते हैं। समुदाय के सदस्य वक्तव्यों का प्रस्ताव रखेंगे और उम्मीदवार लिकर्ट स्केल (सहमत/निष्पक्ष/असहमत) का उपयोग करके जवाब देंगे। वक्तव्यों के जवाब चुनाव कंपास उपकरण पर अपलोड किए जाएंगे। मतदाता इस टूल का उपयोग वक्तव्यों पर उत्तर (सहमत/निष्पक्ष/असहमत) साझा करके करेंगे। परिणाम उन उम्मीदवारों की पहचान करेंगे जो मतदाता के विश्वासों और विचारों के साथ सबसे अच्छी तरह मेल खाते हैं।
+* ८ २० जुलाई: चुनाव कंपास के लिए स्वयंसेवक अपने वक्तव्यों को प्रस्तावित करते हैं।
+* २१ २२ जुलाई: चुनाव समिति स्पष्टता के लिए वक्तव्यों की समीक्षा करती है और विषय से परे वक्तव्यों को हटा देती है।
+* २३ जुलाई १ अगस्त: स्वयंसेवक वक्तव्यों पर मतदान करते हैं।
+* २ ४ अगस्त: चुनाव समिति शीर्ष १५ वक्तव्यों का चयन करती है।
+* ५ १२ अगस्त: उम्मीदवार खुद को वक्तव्यों के साथ संरेखित करते हैं।
+चुनाव समिति अगस्त की शुरुआत में शीर्ष १५ वक्तव्यों का चयन करेगी। चुनाव समिति, आंदोलन रणनीति और अनुशासन टीम के समर्थन के साथ, प्रक्रिया की देखरेख करेगी। आंदोलन रणनीति और अनुशासन टीम प्रश्नों की स्पष्टता, दोहराव, गलतियों आदि की जांच करेगी।
+''यह संदेश बोर्ड चयन कार्य बल और चुनाव समिति की ओर से भेजा गया है।''
+२०२२ न्यासी बोर्ड चुनाव के लिए सामुदायिक मतदान ख़त्म होने वाली है
+आपको निर्णय लेने में सहायता स्वरुप कुछ संसाधन दिए गए हैं:
+
+
+* मिट्टी से मुक्त हो जाना पेड़ के लिए आजादी नही होती।
+* यदि आप गलतियों के लिए अपने दरवाजे बंद करते है तो सत्य अपने आप बाहर आ जायेगा।
+* फूल को तोड़कर आप उनकी खूबसूरती को इक्कठा नही कर सकते।
+* जो दूसरो की भलाई के लिए हमेसा व्यस्त रहते है वे अक्सर अपने लिए समय नही निकाल पाते हैं।
+* उच्च शिक्षा के जरिये सिर्फ जानकारी ही नही प्राप्त कर सकते है बल्कि जीवन कैसे आसान हो और कैसे स��ल बने इसका मार्ग प्रशस्त्र करती है।
+* कर्म करते हुए हमेसा आगे बढ़ते रहिये और फल के लिए व्यर्थ चिंता नही करिए और किया हुआ परिश्रम कभी व्यर्थ नही जाता है।
+* हमें आजादी तभी मिलती है जब हम इसकी कीमत चुका देते हैं।
+* प्रसन्न रहना सरल है लेकिन सरल रहना यह बहुत ही कठिन है।
+* खड़े होकर सिर्फ समुद्र के पानी को देखने से आप समुद्र पार नही करते हैं। इसके लिए हमे खुद को आगे बढ़ाना है।
+* मनुष्य की सेवा भी ईश्वर की सेवा है।
+* तथ्य अनेक हो सकते है लेकिन सच्चाई हमेसा एक ही होती है।
+* कला के जरिये व्यक्ति खुद की पहचान उजागर करता है वस्तुओं की नहीं।
+* प्रत्येक शिशु जन्म लेकर यही संदेश लेकर आता है की ईश्वर अभी भी मनुष्यों से निराश नही हुआ है।
+* मित्रता की गहराई सिर्फ उसके परिचय पर निर्भर नही करती है।
+* मूर्ति का टूटकर धूल में मिल जाना यह दिखलाता है ईश्वर के धूल की कीमत आपके मूर्ति से कही अधिक है।
+* यदि आप कठिनाई से मुह मोडकर भागते हैं तो यही स्वप्न बनकर आपके नीद में बाधा डालती है।
+* किसी बच्चे की शिक्षा सिर्फ अपने समय तक मत रखिये क्योंकि उसका जन्मकाल और आपका जन्मकाल दोनों में बहुत अन्तर है।
+* पृथ्वी द्वारा स्वर्ग से बातचीत करने का माध्यम होते हैं ये पेड़।
+* तितली महीने नही बल्कि प्रति क्षण की गिनती करती है जिसके कारण उसके पास पर्याप्त समय होता है।
+* हम महानता के सबसे नजदीक तब होते है जब हम विनम्र होते है।
+* मौत प्रकाश को खत्म नही करता बल्कि यह दिखलाता है सुबह हो गयी है अब दीपक बुझाना है।
+* जो पत्तियों से वृक्ष लदा होता है उसमे फल मुश्किल से ही आते है
+* प्रेम कभी भी अधिकार नही जताता है बल्कि यह जीने की स्वतंत्रता देता है
+* संगीत दो आत्माओ के बीच की दुरी को खत्म कर देता है।
+* उपदेश देना तो बहुत आसान है लेकिन उपाय बताना बहुत ही कठिन।
+* जो कुछ भी हमारा होता है वह हमारे पास जरुर आता है क्युकी हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते है।
+* जो मन की पीड़ा को दुसरो से नही बता पाते उन्हें ही गुस्सा सबसे अधिक आता है।
+* विद्यालय वह कारखाने है जिनमे महापुरुषों का निर्माण होता है जिनमे अध्यापक कारीगर होते है।
+* बर्तन में रखा पानी चमकता है जबकि समुद्र का पानी अस्पष्ट होता है यानी छोटे सत्य तो आसानी से बताये जा सकते है जबकि महान सदैव मौन ही रहता है।
+* ईश्वर भले ही बड़े बड़े साम्राज्य से उब जाता है लेकिन छोटे छोटे फूलो से कभी रुष्ट नही होता है।
+* धूल अपना अपमान सहने की क्षमता रखती है और बदले में फूलो का उपहार देती है।
+मिटटी के बंधन से मुक्ति पेड़ के लिए आज़ादी नहीं है
+जो कुछ हमारा है वो हम तक आता है; यदि हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं।
+मंदिर की गंभीर उदासी से बाहर भागकर बच्चे धूल में बैठते हैं, भगवान् उन्हें खेलता देखते हैं और पुजारी को भूल जाते हैं।
+मौत प्रकाश को ख़त्म करना नहीं है; ये सिर्फ दीपक को बुझाना है क्योंकि सुबह हो गयी है।
+हर बच्चा इसी सन्देश के साथ आता है कि भगवान अभी तक मनुष्यों से हतोत्साहित नहीं हुआ है
+* मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती।
+* वे लोग जो अच्छाई करने में बहुत ज्यादा व्यस्त होते है, स्वयं अच्छा होने के लिए समय नहीं निकाल पाते।
+* मौत प्रकाश को ख़त्म करना नहीं है; ये सिर्फ दीपक को बुझाना है क्योंकि सुबह हो गयी है।
+* मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती।
+
+
+हाल की घटनाएँ में उन घटनाओं को रखा जाता है। जिससे इसके विकास का इतिहास पता चले। इसमें लेखों, संपादनों, सदस्यों आदि की संख्या जब 100, 200, 500, 1000 आदि होने पर उसे यहाँ लिखा जाता है।
+| 1 मार्च 2016 विकि सूक्ति में कुल संपादनों की संख्या 10,000 हुई।
+| 11 फरवरी 2016 इस का छवि और नाम हिन्दी में हुआ।
+| 7 फरवरी 2016 विकि सूक्ति में लेखों की संख्या करणवीर बोहरा लेख के निर्माण के साथ 100 पहुँची।
+
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+भारतीय पंचांग में हम प्राय काल गणना से संबंधित लेख पाते हैं, जिसमें बताया गया होता है की सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलीयुग का काल कितना है।
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+नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है:
+कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें।
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+*परिनिर्वाण से पूर्व आनंद ने पूछा भगवान हम तथागत के अवशेषों का क्या करेंगे?इस पर बुद्ध ने कहा “तथागत के अवशेषों को विशेष आदर देकर खुद को मत रोको।धर्मोत्साही बनो,अपनी भलाई के लिए प्रयास करो।”
+*स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है,संतोष सबसे बड़ा धन है,वफ़ादारी सबसे बड़ा सम्बन्ध है।
+* जब महात्मा बुद्व से उनके एक शिष्य ने प्रश्न किया कि उनके प्रति सकारात्मक दृष्टि किस प्रकार हो,जो हमारे प्रति दर्भावना रखते हैं,तब बुद्वदेव ने जो उत्तर दिया था,वह स्मरणीय हैं- यदि तुम उस दुर्भावना को स्वीकार नहीं करोगे,जो अन्य व्यक्ति तुम्हारे प्रति भेजता हैं,तो वह दुर्भावना उसी व्यक्ति के पास बनी रहती है और तुम अप्रभावित बने रहे हो
+*कोई अन्य नहीं बल्कि हम स्वयं को बचाते हैं, कोई भी हमें बचा नहीं सकता और चाहिए भी नहीं। हमें पथ पर स्वयं चलना चाहिए और बुद्ध हमें मार्ग दिखाते हैं।
+*शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है। शक लोगों को अलग करता है। यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़तम करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है।
+*हर इंसान अपने स्वास्थ्य या बीमारी का लेखक है।
+*कोई भी व्यक्ति सिर मुंडवाने से, या फिर उसके परिवार से, या फिर एक जाति में जनम लेने से संत नहीं बन जाता; जिस व्यक्ति में सच्चाई और विवेक होता है, वही धन्य है। वही संत है।
+*स्वास्थ्य सबसे महान उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन तथा विश्वसनीयता सबसे अच्छा संबंध है।
+*पैर तभी पैर महसूस करता है जब यह जमीन को छूता है।
+*अपने बराबर या फिर अपने से समझदार व्यक्तियों के साथ सफ़र कीजिये, मूर्खो के साथ सफ़र करने से अच्छा है अकेले सफ़र करना।
+* अतीत में ध्यान केन्द्रित नहीं करना, ना ही भविष्य के लिए सपना देखना, बल्कि अपने दिमाग को वर्तमान क्षण में केंद्रित करना।
+* एक पल एक दिन को बदल सकता है, एक दिन एक जीवन को बदल सकता है, और एक जीवन इस दुनिया को बदल सकता है।
+* क्रोध को प्यार से, बुराई को अच्छाई से, स्वार्थी को उदारता से और झूठे व्यक्ति को सच्चाई से जीता जा सकता है।
+* जिस व्यक्ति का मन शांत होता है, जो व्यक्ति बोलते और अपना काम करते समय शांत रहता है, वह वही व्यक्ति होता है जिसने सच को हासिल कर लिया है और जो दुःख-तकलीफों से मुक्त हो चुका है।
+* जो व्यक्ति अपना जीवन को समझदारी से जीता है उसे मृत्यु से भी डर नहीं लगता।
+* अज्ञानी आदमी एक बैल के समान है। वह ज्ञान में नहीं, आकार में बढ़ता है।
+* क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकडे रहने के सामान है, इसमें आप ही जलते हैं।
+* एक जागे हुए व्यक्ति को रात बड़ी लम्बी लगती है, एक थके हुए व्यक्ति को मंजिल बड़ी दूर नजर आती है। इसी तरह सच्चे धर्म से बेखबर मूर्खों के लिए जीवन-मृत्यु का सिलसिला भी उतना ही लंबा होता है।
+* निश्चित रूप से जो नाराजगी युक्त विचारों से मुक्त रहते हैं, वही जीवन में शांति पाते हैं।
+* जिस प्रकार लापरवाह रहने पर घास जैसी नरम चीज की धार भी ��ाथ को घायल कर देती है, उसी तरह से धर्म के वास्तविक स्वरूप को पहचानने में हुई गलती आपको नर्क के दरवाजे पर पहुंचा सकती है।
+* बुराई अवश्य रहना चाहिए, तभी तो अच्छाई इसके ऊपर अपनी पवित्रता साबित कर सकती है।
+* माता-पिता बनना अत्यंत सुखद अनुभव है। उत्साह से जीवन जीना और स्वयं पर महारत हासिल करना खुशी देता है।
+* बुराइयों से दूर रहने के लिए, अच्छाई का विकास कीजिए और अपने मन को अच्छे विचारों से भर लीजिए।
+* अच्छे स्वास्थ्य में शरीर रखना एक कर्तव्य है, अन्यथा हम अपने मन को मजबूत और साफ रखने में सक्षम नहीं हो पाएंगे।
+* हमेशा याद रखें कि बुरा कार्य अपने मन में बोझ रखने के समान है।
+* वह व्यक्ति जो 50 लोगों से प्यार करता है उसके पास खुश होने के लिए 50 कारण होते हैं। जो किसी से प्यार नहीं करता उसके पास खुश रहने का कोई कारण नहीं होता।
+* झरना बहुत शोर मचाता है, लेकिन सागर गहरा और शांत होता है।
+* जिस काम को करने में वर्तमान में तो दर्द हो लेकिन भविष्य में खुशी, उसे करने के लिए काफी अभ्यास की जरूरत होती है।
+* ज्ञान ध्यान से पैदा होता है और ध्यान के बिना ज्ञान खो जाता है। इसलिए ज्ञान की प्राप्ति और हानि के इस दुगुने मार्ग को जानकर, व्यक्ति को खुद को इस तरह से साधना चाहिए ताकि ज्ञान में वृद्धि हो।
+* दूसरे लोगों के दोषों को ना देखें ना ही उनकी गलतियों को, इसके बजाय अपने खुद के कर्मों को देखें कि आप क्या कर चुके हैं और क्या करना अभी बाकी है।
+* अकेलापन ऐसे व्यक्ति को खुशी देता है जो कि संतोषी है जिसने धर्म के बारे में सुना है और उसे साफ तौर पर देखा है।
+* ईर्ष्या और नफरत की आग में जलते हुए इस संसार में खुशी और हंसी कैसे स्थाई हो सकती है? अगर आप अँधेरे में डूबे हुए हैं, तो रौशनी की तलाश क्यों नहीं करते?
+* कोई भी व्यक्ति बहुत ज्यादा बोलने से कुछ नहीं सीख पाता। समझदार व्यक्ति वही कहलाता है, जो धीरज रखने वाला, क्रोधित न होने वाला और निडर होता है।
+* उदार हृदय, दयालु वाणी, और सेवा व करुणा का जीवन वे बातें हैं जो मानवता का नवीनीकरण करती हैं।
+* शक की आदत सबसे खतरनाक है। शक लोगों को अलग कर देता है। यह दो अच्छे दोस्तों को और किसी भी अच्छे रिश्ते को बरबाद कर देता है।
+* मन सभी मानसिक अवस्थाओं से ऊपर होता है।
+* अगर आपको अच्छा साथी ना मिले तो अकेले चलें, उस हाथी की तरह जोकि अकेले ही जंगल में घूमता है। अकेले रहना कहीं अच्छा ��ै बजाय उन लोगों के साथ के जोकि आप की प्रगति में बाधा बनते हैं।
+* तीन चीजें लंबे समय तक छिप नहीं सकतीं: सूर्य, चंद्रमा और सत्य।
+* जीवन में एक दिन भी समझदारी से जीना कहीं अच्छा है, बजाय एक हजार साल तक बिना ध्यान के साधना करने के।
+* शब्दों के भीतर नष्ट करने और स्वस्थ करने दोनों ही शक्तियां होती हैं। जब शब्द सच्चे और दयालु होते हैं तो वे हमारे जीवन को बदल सकते हैं।
+* आप अपने गुस्से के लिए दंडित नहीं हुए, आप अपने गुस्से के द्वारा दंडित हुए हो।
+* जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती, वैसे ही मनुष्य भी बिना आध्यात्मिक जीवन के नहीं जी सकता।
+* किसी बात पर हम जैसे ही क्रोधित होते हैं, हम सच का मार्ग छोड़कर अपने लिए प्रयास करने लग जाते है।
+* हर इंसान अपने स्वास्थ्य या बीमारी का लेखक है।
+* सदैव अपने से समझदार व्यक्तियों के साथ सफर करिये, मूर्खों के साथ सफर करने से अच्छा है अकेले सफर करना।
+* आकाश में पूरब और पश्चिम का कोई भेद नहीं है, लोग अपने मन में भेदभाव को जन्म देते हैं और फिर यह सच है ऐसा विश्वास करने लगते हैं।
+* आपका शरीर अनमोल है। यह जाग्रत होने के लिए हमारा वाहन है। इसका ध्यान रखें।
+* विचलित मन वाले व्यक्ति को मौत उसी तरह से बहा कर ले जाती है, जिस तरह से अचानक आई बाढ़ में गांव के सोते हुए लोग बह जाते हैं।
+* हर दिन नया दिन होता है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बीता हुआ कल कितना मुश्किल था। आप हमेशा एक नई शुरुआत कर सकते हैं।
+* एक विचारहीन मनुष्य की प्यास अमर बेल की तरह बढ़ती है। वह एक जीवन से दुसरे जीवन की तरफ उसी तरह से भागता है जैसे जंगल में एक बंदर फलों के लिए एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर भागता रहता है।
+* अगर आपका चित्त् शांत है, तभी आप इस ब्रह्मांड के प्रवाह को सुन पाएंगे, इसकी लय ताल को महसूस कर पाएंगे। खुशी इसके आगे रहती है और ध्यान इसकी चाबी है।
+* अगर आप उन चीजों की कद्र नहीं करते जो आपके पास हैं, तो फिर आपको खुशी कभी भी नहीं मिलेगी।
+* एक अनुशासनहीन मन जितना अवज्ञाकारी कुछ भी नहीं होता और एक अनुशासित मन जितना आज्ञाकारी भी कुछ भी नहीं है।सच्चाई को अपनी जमीन बनाएं, सच्चाई को अपना घर बनाएं। क्योंकि दुनिया में इससे बड़ा कोई घर नहीं है।
+* सभी व्यक्तियों को सजा से डर लगता है, सभी मौत से डरते हैं। बाकी लोगों को भी अपने जैसा ही समझिए, खुद किसी जीव को ना मारें और दूसरों को भी ऐसा करने से मना करें���
+* आपका काम है अपनी पसंद के काम को खोजना। उसे खोजें और फिर उस काम में खुद को पूरी तरह से लगा दें। यही सफलता का मार्ग है।
+* स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ी संपत्ति और वफादारी सबसे अच्छा रिश्ता है।
+* अगर आप किसी दूसरे के लिए दिया जलाते हैं तो यह आपके रास्ते को भी रौशन कर देता है।
+* आपका बड़े से बड़ा दुश्मन भी आपको उतना नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जितना नुकसान आपके अनियंत्रित विचार आपको पहुंचाते हैं।
+* आप खुद अपने प्यार और स्नेह के उतने ही हकदार हैं जितना इस दुनिया में कोई भी अन्य व्यक्ति है।
+* सभी बुरे कार्य मन के कारण उत्पन्न होते हैं। अगर मन परिवर्तित हो जाये तो क्या अनैतिक कार्य रह सकते हैं?
+* सभी बुराइयों से दूर रहने के लिए, अच्छाई का विकास कीजिए और अपने मन में अच्छे विचार रखिये-बुद्ध आपसे सिर्फ यही कहता है।
+* आज हम जो करते हैं जीवन में वही सबसे ज्यादा मायने रखता है।
+* जो व्यक्ति थोड़े में ही खुश रहता है सबसे अधिक खुशी उसी के पास होती है।
+* सत्य के मार्ग पर चलते हुए कोई व्यक्ति दो गलतियां कर सकता है। एक, पूरा रास्ता तय न करना और दूसरा, इसकी शुरुआत भी न करना।
+* जब तक आपके मन में नाराजगी के विचार पोषित होते रहेंगे तब तक आपका क्रोध भी बना रहेगा। लेकिन जैसे ही आप नाराजगी के विचररों को भुला देंगे वैसे ही आपका क्रोध भी गायब हो जाएगा।
+* जो व्यक्ति विचलित करने वाले विचारों से मुक्त होते हैं, उन्हें शांति अवश्य प्राप्त होती है।
+* चाहे आप जितने पवित्र शब्द पढ़ लें या बोल लें, वो आपका क्या भला करेंगे जब तक आप उन्हें उपयोग में नहीं लाते?
+* जिस व्यक्ति का मन शांत होता है, जो व्यक्ति बोलते और अपना काम करते समय शांत रहता है, वह वही व्यक्ति होता है जिसने सच को हासिल कर लिया है और जो दुःख-तकलीफों से मुक्त हो चुका है।
+* जिस तरह एक ठोस चट्टान तूफान में भी स्थिर रहती है, वैसे ही बुद्धिमान व्यक्ति भी प्रशंसा या दोष से प्रभावित नहीं होते हैं।
+* इच्छाओं का कभी अंत नहीं होता। अगर आपकी एक इच्छा पूरी होती है, तो दूसरी इच्छा तुरंत जन्म ले लेती है।
+* एक समझदार व्यक्ति अपने अंदर की कमियों को उसी तरह से दूर कर लेता है, जिस तरह से एक स्वर्णकार चांदी की अशुद्धियों को चुन-चुन कर, थोडा-थोडा करके और इस प्रक्रिया को बार-बार दोहरा कर दूर कर लेता है।
+* अगर थोड़े से आराम को छोड़ने से व्यक्ति एक बड़ी खुशी को देख पाता है, तो एक समझदार व्यक्ति को चाहिए कि वह थोड़े से आराम को छोड़कर बड़ी खुशी को हासिल करे।
+* यदि आप समस्या का हल निकाल सकते, तो फिर चिंता क्यों? और यदि समस्या का कोई समाधान नहीं है, तो फिर चिंता करने का भी कोई फायदा ही नहीं।
+* बुरे कार्य करने वाला व्यक्ति इस संसार में तो शोक मनाता ही है, वह अगले जनम में भी शोक मनाता है। वह दोनों में शोक मनाता है। जब वह अपने काम की बुराई देखता है तो वह दुःख में डूब जाता है।
+* दुनिया नहीं जानती कि हम सभी का अंत यहीं पर होना है। लेकिन जो लोग इस सत्य को जानते हैं, उनके सारे झगड़े एक ही बार में खत्म हो जाते हैं।
+* विश्वास के बिना आप कहीं भी नहीं पहुँच सकते, इसलिए अगर आप धर्म को पाना चाहते हैं तो विश्वास बहुत जरूरी है।
+* अस्तित्व का पूरा रहस्य है डर से मुक्त हो जाना। कभी भी इस बात से ना डरें कि आपका क्या होगा। किसी पर भी निर्भर ना रहें। जिस वक्त आप सभी तरह की मदद को इनकार कर देते हैं, आप आजाद हो जाते हैं।
+* सच्चाई के रास्ते पर चलते हुए इंसान दो ही तरह की गलतियां कर सकता है, एक यह कि रास्ते पर आखिर तक ना चलना और दूसरा यह कि शुरुआत ही ना करना।
+* जो व्यक्ति जीवन में केवल सुखों की तलाश करता है, जिसकी इंद्रियां अनियंत्रित हैं, जो खाने के लिए जीता है, वह आलसी है और कमजोर है। लालच उसको उसी प्रकार से गिराता है, जैसे कि तूफान एक कमजोर पेड़ को गिरा देता है।
+* खुशी, अच्छे स्वास्थ्य और बीती बातों को भुला देने से ज्यादा कुछ नहीं है।
+* जो व्यक्ति, क्रोधित होने पर अपने गुस्से को संभाल सकता है वह उस कुशल ड्राईवर की तरह है जोकि एक तेजी से भागती हुई गाडी को संभाल लेता है और जो ऐसा नहीं कर पाते, वे केवल अपनी सीट पर बैठे हुए दुर्घटना की प्रतीक्षा करते रहते हैं।
+* सारे बुरे कार्य मन के कारण ही होते हैं। अगर मन ही बदल जाए तो क्या बुरा कार्य हो सकता है?
+* अगर व्यक्ति से कोई गलती हो जाती है, तो कोशिश करें कि उसे दोहराएं नहीं। उसमें आनन्द ढूंढने की कोशिश न करें, क्योंकि बुराई में डूबे रहना दुःख को न्योता देता है।
+* जीभ एक तेज चाकू की तरह होती है, यह बिना खून निकाले ही मारती है।
+* जिसका मन एकाग्र होता है वही चीजों को उनके सही स्वरूप में देख पाता है।
+* हमें अपने द्वारा की गयी गल्तियों की सजा तुरंत भले न मिले, पर समय के साथ कभी न कभी अवश्य मिलती है।
+* व्यक्ति खुद ही अपना सबसे बड़�� रक्षक हो सकता है; और कौन उसकी रक्षा कर सकता है? अगर आपका खुद पर पूरा नियंत्रण है, तो आपको वह क्षमता हासिल होगी, जिसे बहुत ही कम लोग हासिल कर पाते हैं।
+* शांतिप्रिय लोग आनंद का जीवन जीते हैं। उन पर हार या जीत का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
+* नफरत को नफरत से नहीं मिटाया जा सकता, नफरत को केवल प्यार ही मिटा सकता है।
+* आपके पास जो कुछ भी है है उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए, और ना ही दूसरों से इर्श्या कीजिये। जो दूसरों से इर्श्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती।
+* शांति भीतर से आती है, बाहर इसकी तलाश करन व्यर्थ है।
+* स्वयं को जीतना दूसरों को जीतने से ज्यादा मुश्किल काम है।
+* अपने शरीर को स्वस्थ रखना आपका कर्तव्य है वर्ना आप अपने मन को मजबूत और स्पष्ट नहीं रख पाएंगे।
+* अगर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए आपको कोई साथी नहीं मिलता है, तो अकेले ही चलिए।
+* अपना मन अच्छे कार्यों को करने में लगाएं, इसे बार-बार करें। और आप देखेंगे कि आप खुशी से भर जाएंगे।
+* एक समझदार व्यक्ति अपने भहतर की कमियों को उसी प्रकार से दूर कर लेता है, जिस तरह से एक सुनार चांदी की अशुद्धियों को, चुन-चुन कर, थोड़ा-थोड़ा करके और इस प्रक्रिया को बार-बार दोहरा कर दूर करता है।
+* यह सोचना अत्यंत हास्यास्पद है कि कोई दूसरा व्यक्ति आपको खुश या दु:खी कर सकता है।
+* गुस्से को अपने भीतर रखना ऐसा ही है जैसे आप जहर तो खुद पियें और किसी दूसरे आदमी के मरने की उम्मीद करें।
+* जिस व्यक्ति के विचार मैले हैं जो लापरवाह है और धोखे से भरा हुआ है, वह गेरुआ वस्त्र कैसे पहन सकता है? वह व्यक्ति जिसने खुद पर नियंत्रण हासिल कर लिया है, ओजस्वी है, स्पष्ट है, सच्चा है, वही गेरुआ वस्त्र पहनने के लायक है।
+* हम जो शब्द बोलते हैं उनका चुनाव हमें बड़ी सावधानी से करना चाहिए, क्योंकि उन शब्दों को सुनने वाले व्यक्तियों पर उनका प्रभाव पड़ता है फिर चाहे वह प्रभाव अच्छा हो अथवा बुरा।
+* कोई भी व्यक्ति बहुत ज्यादा बोलते रहने से कुछ नहीं सीख पाता, समझदार व्यक्ति वही कहलाता है जोकि धीरज रखने वाला, क्रोधित न होने वाला और निडर होता है।
+* आप सिर्फ उसे ही खोते हैं जिससे आप चिपके रहते हैं।
+* एक मोमबत्ती हजारों मोमबत्तियों को रौशन कर सकती है, और फिर भी उस मोमबत्ती की उम्र कम नहीं होती। उसी तरह से खुशियां भी बांटने से भी कम नहीं होती हैं।
+* जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है।
+* बीत�� हुए कल को जाने दीजिये, भविष्य को जाने दीजिये, वर्तमान को भी जाने दीजिये, और अपने अस्तित्व की सीमाओं से बाहर झाँक कर देखिये। जब आपका मन पूरी तरह आजाद होता है, तो आप जीवन-मृत्यु को उसके सही स्वरूप में देख पाते हैं।
+* शांतिप्रिय लोग आनंद से जीवन जीते हैं और उन पर हार या जीत का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
+* अपने बराबर या फिर अपने से समझदार व्यक्तियों के साथ सफ़र कीजिये, मूर्खो के साथ सफ़र करने से अच्छा है अकेले सफ़र करना।
+* जो व्यक्ति स्वयं से सच्चा प्यार करता है, वह कभी दूसरे व्यक्ति को चोट नहीं पहुंचाता है।
+* कोई भी व्यक्ति सिर मुंडवाने से, या फिर उसके परिवार से, या फिर एक जाति में जनम लेने से संत नहीं बन जाता; जिस व्यक्ति में सच्चाई और विवेक होता है, वही धन्य है, वही संत है।
+* बीता हुआ समय बीत चुका है, भविष्य अभी दूर है, वर्तमान पल ही वह समय है जिसमें आप जी सकते हैं।
+* दुनिया हमेशा से प्रशंसा करने और दोष निकालने का रास्ता ढूंढती आई है यही होता आया है और यही होता रहेगा।
+* अगर आपको मेरी तरह बांटने की शक्ति के बारे में पता होता तो आप कभी भी बिना बांटे हुए भोजन नहीं करते।
+* अगर कोई काम करने लायक है, तो उसे पूरे मन से करो। तभी उसमें सफलता प्राप्त होगी।
+* असली समस्या यह है कि आपको लगता है कि फलां काम को करने के लिए अभी आपके पास बहुत समय है।
+* अराजकता सभी जटिल बातों में निहित है. परिश्रम के साथ प्रयास करते रहो।
+* ज्ञानी व्यक्ति कभी नहीं मरते और जो नासमझ हैं, वे तो पहले से ही मरे हुए हैं।
+* अगर आपकी दिशा सही है, तो फिर चिंता की बात नहीं। आपको बस इतना करना है कि आप चलते रहें।
+* एक वफादार, गुणी, प्रतिष्ठित और धनी व्यक्ति जो भी जगह चुनता है, वहां उसका सम्मान किया जाता है।
+* दर्द तो तय है, यह आपके हाथ में नहीं है। हां, दुखी होना या न होना आपके हाथ में अवश्य है।
+* एक जागे हुए व्यक्ति को रात बड़ी लम्बी लगती है, एक थके हुए व्यक्ति को मंजिल बड़ी दूर नजर आती है, सच्चे धर्म से बेखबर मूर्खों के लिए जीवन-मृत्यु का सिलसिला भी उतना ही लंबा प्रतीत होता है।
+* अंत में यही चीज सबसे ज्यादा मायने रखती है कि आपने कितनी अच्छी तरह से प्रेम किया, अपने जीवन को कितना भरपूर जिया और आपने कितनी गहराई से लोगों की त्रुटियों को माफ किया।
+* संसार में कोई भी चीज कभी भी अकेले मौजूद नहीं होती, हर एक चीज का संबंध तमाम दूसरी चीजों से होता है।
+* जीवन की यात्रा में विश्वास आपको पोषण देता है, अच्छे काम एक घर की तरह हैं, ज्ञान दिन की रोशनी की तरह है और सजगता आपको सुरक्षा देती है। यदि मनुष्य शुद्ध जीवन जीता है, तो कोई चीज उसे नष्ट नहीं कर सकती है।
+* सभी व्यक्तियों को मौत से डर लगता है, सभी सजा से डरते हैं। इसलिए बाकी लोगों को भी अपने जैसा ही समझिए, खुद किसी जीव को ना मारें और दूसरों को भी ऐसा करने से मना करें।
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+:बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दिया बताय॥
+कबीर दास के बारे में उक्तियाँ
+* कबीर की आध्यात्मिक क्षुधा और आकांक्षा विश्वग्रासी है। वह कुछ भी नहीं छोड़ना चाहती, इसलिये वह ग्रहणशील है; वर्जनशील नहीं, इसलिये उन्होंने हिन्दु, मुसलमान, सूफी, वैष्णव, योगी प्रभृति सब साधनाओं को जोर से पकड़ रखा है। आचार्य क्षितिमोहन सेन
+* हिन्दी साहित्य के हजारों साल के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तिव लेकर कोई उत्पन्न नहीं हुआ। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कबीर' में
+* कबीरदास बहुत-कुछ को अस्वीकार करने का अपार साहस लेकर अवतीर्ण हुए थे। उन्होंने तत्काल प्रचलित नाना साधन-मार्गों पर उग्र आक्रमण किया है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
+* तिस पर कबीरदास जी स्वयं पढ़े-लिखे न थे। उन्होंने जो कुछ कहा है वह अपनी प्रतिभा और भावुकता के वशीभूत होकर कहा है। उनमें कवित्व उतना नहीं जितना भक्ति और भावुकता थी। उनकी वणी हृदय में चुभने वाली है। बाबू श्यामसुन्दर दास
+* मनुष्यत्व की भावना को आगे करके निम्न श्रेणी की जनता में उन्होंने आत्मगौरव का भाव जगाया। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
+* हिन्दी भक्ति काव्य का प्रथम क्रान्तिकारी पुरस्कर्ता कबीर हैं। डाॅ. बच्चन सिंह
+* कबीर की वचनावली की सबसे प्राचीन प्रति सन् 1512 ई. की लिखी है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
+* इसमें कोई सन्देह नहीं कि कबीर ने ठीक मौके पर जनता के उस बड़े भाग को सँभाला जो नाथपंथियों के प्रभाव से प्रेमभाव और भक्ति रस से शून्य शुष्क पड़ता जा रहा था। रामचन्द्र शुक्ल
+* उन्होंने भारतीय ब्रह्मवाद के साथ सूफियों के भावात्मक रहस्यवाद, हठयोगियों के साधनात्मक रहस्यवाद और वैष्णवों के अहिंसावाद तथा प्रपत्तिवाद का मेल करके अपना पंथ खड़ा किया। रामचन्द्र शुक्ल
+* भाषा बहुत परिष्कृत और परिमार्जित न होने पर भी कबीर की उक्तियों में कहीं-कहीं विलक्षण प्रभाव और चमत्कार है। प्रतिभा उनमें बड़ी प्रखर थी इसमें सन्देह नहीं है। रामचन्द्र शुक्ल
+* कबीर की रचनाओं में भारतीय निर्गुण ब्रह्मवाद, सूफियों का रहस्यवाद, योगियों की साधना, अहिंसा आदि की बातें होते हुए भी स्वामी की दृष्टि से सगुण ब्रह्म का उल्लेख हो गया है। लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय
+* जहाँ कबीर की राख को समाधिस्थ किया गया था वह स्थान बनारस में अब तक कबीर चौरा के नाम से प्रसिद्ध है। डाॅ. श्यामसुन्दर दास
+* हिन्दी साहित्य के हजार वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ। महिमा में यह व्यक्तित्व केवल एक ही प्रतिद्वन्द्वी जानता है तुलसीदास। हजारी प्रसाद द्विवेदी
+* कबीर ने ऐसी बहुत बाते कही है जिनसे समाज सुधार में सहायता मिलती है पर, इसलिए उनको समाज सुधारक समझना गलती है। हजारी प्रसाद द्विवेदी
+* कबीर की भाषा संत भाषा है। भाषा की यह स्वाभाविकता आगे चलकर प्रेमचन्द में ही मिलती है। डाॅ. बच्चन सिंह
+* भारतीय धर्मसाधना के इतिहास में कबीरदास महान विचारक एवं प्रतिभाशाली महाकवि हैं। डाॅ. नगेन्द्र
+* वे सिर से पैर तक मस्तमौला, स्वभाव से फक्कड़ फकीर थे। हजारी प्रसाद द्विवेदी
+* भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। हजारी प्रसाद द्विवेदी
+* साम्प्रदायिक शिक्षा और सिद्धान्त के उपदेश मुख्यतः ’साखी’ के भीतर है, जो दोहों में है। इसकी भाषा सधुक्कड़ी अर्थात् राजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली है। आचार्य शुक्ल
+* निर्गुण पंथ में जो थोड़ा-बहुत ज्ञान पक्ष है वह वेदान्त से लिया हुआ है। जो प्रेत तत्त्व है, वह सूफीयों का है। अहिंसा, और प्रप्रति के अतिरिक्त वैष्णवता का और कोई अंश उसमें नहीं है। उसके सुरति और निरति शब्द बौद्ध सिद्धों के हैं। आचार्य शुक्ल
+* यह कहना कि वे समाज-सुधारक थे गलत है। यह कहना कि वे धर्म-सुधारक थे, और भी गलत है। यदि सुधारक थे तो रैडिकल सुधारक। वे धर्म के माध्यम से समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना चाहते थे। डाॅ. बच्चन सिंह
+* वे (कबीर) भगवान के नृसिंहावतार के मानो प्रतिमूर्ति थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
+* जो लोग कबीरदास को हिंदू- मुस्लिम धर्मों का सर्व-धर्म समन्वयकारी सुधारक मानते हैं वे क्या कहते हैं; ठीक समझ में नहीं आता। कबीर का रास्ता बहुत साफ था। वे दोनों को शिरसा स्वीकार कर समन्वय करनेवाले नहीं थे। समस्त बाह्याचारों के जंजालों और सं��्कारों को विध्वंस करनेवाले क्रांतिकारी थे। समझौता उनका रास्ता नहीं था। इतने बड़े जंजाल को नाहीं कर सकने की क्षमता मामूली आदमी में नहीं हो सकती। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
+* ऐसे थे कबीर। सिर से पैर तक मस्तमौला, स्वभाव में फक्कड़, आदत से अक्खड़, भक्त के सामने निरीह, भेषधारी के आगे प्रचंड, दिल के साफ, दिमाग के दुरुस्त, भीतर से कोमल, बाहर से कठोर, जन्म से अस्पृश्य, कर्म से वंदनीय। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
+* कबीर की सैद्धांतिक या दार्शनिक मान्यताएँ अद्वैतवाद के अनुकूल हैं। व्यावहारिक क्षेत्र में कबीर पूर्णतः प्रगतिशील दिखाई पड़ते हैं। डाॅ. गणपतिचन्द्र गुप्त
+* हजरीप्रसाद द्विवेदी का नाम कबीर के साथ उसी तरह जुड़ा है जैसे तुलसीदास के साथ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का नाम। नामवर सिंह
+* चूँकि कबीर का तिरस्कार मुख्यत: उनकी अटपटी भाषा और कवित्वहीनता को ही लेकर किया गया था, इसलिए 'कबीर' नामक ग्रंथ में द्विवेदीजी ने इस पक्ष की सविस्तार और सोदाहरण चर्चा की। अब तक कबीर की 'डाँट-फटकार' और 'खंडन-मंडन' की चर्चा तो बहुत हुई थी, किन्तु उनके व्यंग्यों का कहीं जिक्र भी नहीं आया था। द्विवेदीजी ने पहली बार कबीर के व्यंग्यकार रूप को प्रस्तुत करते हुए घोषित किया सच पूछा जाय तो आज तक हिंदी में ऐसा जबर्दस्त व्यंग्य लेखक पैदा ही नहीं हुआ। उनकी साफ चोट करनेवाली भाषा, बिना कहे भी सब कुछ कह देनेवाली शैली और अत्यन्त सादी किंतु अत्यन्त तेज प्रकाशन भंगी अनन्य-साधारण है। हमने देखा है कि बाह्याचार पर आक्रमण करनेवाले संतों और योगियों की कमी नहीं है, पर इस कदर सहज और सरल ढंग से चकनाचूर कर देनेवाली भाषा कबीर के पहले बहुत कम दिखाई दी है। व्यंग्य वह है, जहाँ कहनेवाला अधरोष्ठों में हँस रहा हो और सुननेवाला तिलमिला उठा हो और फिर भी कहनेवाले को जवाब देना अपने को और भी उपहासास्पद बना लेना हो जाता हो। नामवर सिंह
+* वस्तुत: कबीर ने मधुमक्खी के समान अपने समय में विद्यमान समस्त धर्म साधनाओं और निजी के योग से अपनी भक्ति का ऐसा छत्ता तैयार किया है जिसका मधु अमृतोपम है, जिसका पान कर भारतीय जन मानस कृत कृत्य हो उठा है। यह मधु अक्षुण्ण है, युगों से भारतीय इसकी मधुरिमा का रसास्वादन कर रहे हैं। कबीर साहित्य के मर्मज्ञ गोविन्द त्रिगुणायत
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+धनपत राय ३१ जुलाई १८८० ८ अक्टूबर १९३६) एक भारतीय लेखक थे जिन्होंने हिन्दी और उर्दू साहित्य में अपना योगदान दिया था। उन्हें उनके उपनाम मुन्शी प्रेमचन्द या प्रेमचन्द के नाम से ही अधिक जाना जाता है।
+प्रगतिशील लेखक संघ' यह नाम ही मेरे विचार से गलत है। साहित्यकार या कलाकार स्वभावतः प्रगतिशील होता है। अगर वो इसका स्वभाव न होता तो शायद वो साहित्यकार ही नहीं होता। उसे अपने अंदर भी एक कमी महसूस होती है, इसी कमी को पूरा करने के लिए उसकी आत्मा बेचैन रहती है। प्रेमचन्द, १९३६ में लखनऊ में हुए प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अधिवेशन में अपने भाषण में अपने भाषण में
+* हिंदू अपनी संस्कृति को कयामत तक सुरक्षित रखना चाहता है, मुसलमान अपनी संस्कृति को। दोनों ही अभी तक अपनी-अपनी संस्कृति को अछूती समझ रहे हैं, यह भूल गए हैं कि अब न कहीं हिंदू संस्कृति है, न मुस्लिम संस्कृति और न कोई अन्य संस्कृति। अब संसार में केवल एक संस्कृति है और वह है आर्थिक संस्कृति, मगर आज भी हिंदू और मुस्लिम संस्कृति का रोना रोए चले जाते हैं, हालांकि संस्कृति का धर्म से कोई संबंध नहीं। प्रेमचन्द, अपने एक लेख में
+* संसार में हिंदू ही एक जाति है, जो गोमांस को अखाद्य या अपवित्र समझती है तो क्या इसलिए हिंदुओं को समस्त विश्व से धर्मसंग्राम छेड़ देना चाहिए? हिंदू गाय की पूजा स्वयं कर सकते हैं, पर उन्हें दूसरों को भी ऐसे ही करने को बाध्य करने का तो कोई अधिकार नहीं है। प्रेमचन्द
+* अधिकार में स्वयं एक आनन्द है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता।
+* अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परन्तु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है।
+* अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं।
+* अज्ञान की भांति ज्ञान भी सरल, निष्कपट और सुनहले स्वप्न देखने वाला होता है। मानवता में उनका विश्वास इतना दृढ़,इतना सजीव होता है कि वह इसके विरुद्ध व्यवहार को अमानुषीय समझने लगता है। यह वह भूल जाता है की भेड़ियों ने भेडो को निरीहता का जवाब सदैव पंजों और दांतो से दिया है। वह अपना एक आदर्श संसार बनाकर आदर्श मानवता से अवसाद करता है और उसी में मग्न रहता है।
+* अज्ञान में सफाई है और हिम्मत है, उसके दिल और जुबान में पर्दा नहीं होता, ना कथनी और करनी में। क्या यह अफसोस की बात नहीं, ज्ञान अज्ञान के आगे सिर झुकाए?
+* अनाथ बच्च���ं का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है।
+* अनाथों का क्रोध पटाखे की आवाज है, जिससे बच्चे डर जाते हैं और असर कुछ नहीं होता।
+* अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है।
+* अन्याय को बढ़ाने वाले कम अन्यायी नहीं।
+* अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है।
+* अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।
+* अपमान का भय क़ानून के भय से किसी तरह कम क्रियाशील नहीं होता।
+* आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है।
+* आलस्य वह राजयोग है जिसका रोगी कभी संभल नहीं पाता।
+* आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत फर्क है। आलोचना क़रीब लाती है और बुराई दूर करती है।
+* आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है।
+* इंसान का कोई मूल्य नहीं, केवल दहेज का मूल्य है।
+* उपहास और विरोध तो किसी भी सुधारक के लिए पुरस्कार जैसे हैं।
+* ऐश की भूख रोटियों से कभी नहीं मिटती। उसके लिए दुनिया के एक से एक उम्दा पदार्थ चाहिए।
+* कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता, कर्तव्य पालन में ही चित्त की शांति है।
+* कर्तव्य-पालन में ही चित्त की शांति है।
+* कायरता की भांति वीरता भी संक्रामक होती है।
+* कार्यकुशलता की व्यक्ति को हर जगह जरूरत पड़ती है।
+* कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं।
+* केवल बुद्धि के द्वारा ही मानव का मनुष्यत्व प्रकट होता है।
+* कोई वाद जब विवाद का रूप धारण कर लेता है तो वह अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है।
+* क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है।
+* क्रोध और ग्लानि से सद्भावनाएं विकृत हो जाती हैं। जैसे कोई मैली वस्तु निर्मल वस्तु को दूषित कर देती है।
+* खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है, आगे बढ़ते रहने की लगन का।
+* गरज वाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ है लेकिन बेगरज वाले को दाव पर पाना जरा कठिन है।
+* गलती करना उतना ग़लत नहीं जितना उन्हें दोहराना है।
+* घर सेवा की सीढ़ी का पहला डंडा है। इसे छोड़कर तुम ऊपर नहीं जा सकते।
+* चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं।
+* चिंता एक काली दीवार की भांति चारों ओर से घेर लेती है, जिसमें से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती।
+* चिन्ता रोग का मूल है।
+* चोर केवल दंड से नहीं बचना चाहता, वह अपमान से भी बचना चाहता है। वह दंड से उतना नहीं डरता है, जितना कि अपमान से।
+* जब दूसरों के पांवों तले अपनी गर्दन दबी हुई हो, तो उन पांवों को सहलाने में ही कुशल है।
+* जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्ज्वल और पूर्ण बना देता है।
+* जिसके पास जितनी ही बड़ी डिग्री है, उसका स्वार्थ भी उतना ही बड़ा हुआ है मानो लोभ और स्वार्थ ही विद्वता के लक्षण हैं।
+* जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के सिवा और क्या है?
+* जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है, उनका सुख लूटने में नहीं।
+* जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं।
+* जीवन की दुर्घटनाओं में अक्सर बड़े महत्व के नैतिक पहलू छिपे हुए होते हैं।
+* जीवन में सफल होने के लिए आपको शिक्षा की ज़रूरत है न की साक्षरता और डिग्री की।
+* दया मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।।
+* दुनिया में विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई भी विद्यालय आज तक नहीं खुला है।
+* देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है।
+* द्वेष का मायाजाल बड़ी-बड़ी मछलियों को ही फसाता है। छोटी मछलियां या तो उसमें फंसती ही नहीं या तुरंत निकल जाती हैं। उनके लिए वह घातक जाल क्रीडा की वस्तु है, भय का नहीं।
+* धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं।
+* नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है।
+* नीति चतुर प्राणी अवसर के अनुकूल काम करता है, जहाँ दबना चाहिए वहां दब जाता है, जहाँ गरम होना चाहिए वहां गरम होता है, उसे मान अपमान का, हर्ष या दुःख नहीं होता उसकी दृष्टि निरंतर अपने लक्ष्य पर रहती है।
+* नीतिज्ञ के लिए अपना लक्ष्य ही सब कुछ है। आत्मा का उसके सामने कुछ मूल्य नहीं। गौरव सम्पन्न प्राणियों के लिए चरित्र बल ही सर्वप्रधान है।
+* नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत दो, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
+* न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं, वह जैसे चाहती है नचाती है।
+* पहाड़ों की कंदराओं में बैठकर तप कर लेना सहज है, किन्तु परिवार में रहकर धीरज बनाये रखना सबके वश की बात नहीं।
+* बालकों पर प्रेम की भांति द्वेष का असर भी अधिक होता है।
+* बुढ़ापा तृष्णा रोग का अंतिम समय है, जब संपूर्ण इच्छाएं एक ही केंद्र पर आ लगती हैं।
+* बूढो के लिए अतीत में सूखो और वर्तमान के दु:खो और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता।
+* भरोसा प्यार करने के लिए पहला कदम है।
+* भाग्य पर वह भरोसा करता है जिसमें पौरुष नहीं होता।
+* मनुष्य का उद्धार पुत्र से नहीं, अपने कर्मों से होता है। यश और कीर्ति भी कर्मों से प्राप्त होती है। संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है, जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए दी है। बड़ी~बड़ी आत्माएं, जो सभी परीक्षाओं में सफल हो जाती हैं, यहाँ ठोकर खाकर गिर पड़ती हैं।
+* मनुष्य का मन और मस्तिष्क पर भय का जितना प्रभाव होता है, उतना और किसी शक्ति का नहीं। प्रेम, चिंता, हानि यह सब मन को अवश्य दुखित करते हैं, पर यह हवा के हल्के झोंके हैं और भय प्रचंड आधी है।
+* मनुष्य बराबर वालों की हंसी नहीं सह सकता, क्योंकि उनकी हंसी में ईर्ष्या, व्यंग्य और जलन होती है।
+* मनुष्य बिगड़ता है या तो परिस्थितियों से अथवा पूर्व संस्कारों से। परिस्थितियों से गिरने वाला मनुष्य उन परिस्थितियों का त्याग करने से ही बच सकता है।
+* महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम से बहुत अधिक आकर्षित होते हैं।
+* महिला सहानुभूति से हार को भी जीत बना सकती है।
+* मासिक वेतन पूरन मासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है।
+* यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं।
+* युवावस्था आवेश मय होती है, वह क्रोध से आग हो जाती है तो करुणा से पानी भी।
+* लगन को कांटों कि परवाह नहीं होती।
+* लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वो क्या लिखेंगे?
+* लोकनिंदा का भय इसलिए है कि वह हमें बुरे कामों से बचाती है। अगर वह कर्तव्य मार्ग में बाधक हो तो उससे डरना कायरता है।
+* वर्तमान ही सब कुछ है। भविष्य की चिंता हमें कायर बना देती है और भूत का भार हमारी कमर तोड़ देता है।
+* वही तलवार, जो केले को नहीं काट सकती। शान पर चढ़कर लोहे को काट देती है। मानव जीवन में आग बड़े महत्व की चीज है। जिसमें आग है वह बूढ़ा भी तो जवान है। जिसमे आग नहीं है, गैरत नहीं, वह भी मृतक है।
+* विचार और व्यवहार में सा��ंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।
+* विजयी व्यक्ति स्वभाव से, बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।
+* विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला।
+* विषय-भोग से धन का ही सर्वनाश नहीं होता, इससे कहीं अधिक बुद्धि और बल का भी नाश होता है।
+* वीरात्माएं सत्कार्य में विरोध की परवाह नहीं करतीं और अंत में उस पर विजय ही पाती हैं।
+* व्यंग्य शाब्दिक कलह की चरम सीमा है उसका प्रतिकार मुंह से नहीं हाथ से होता है।
+* शत्रु का अंत शत्रु के जीवन के साथ ही हो जाता है।
+* संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए गढ़ी है।
+* सफलता दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है।
+* सफलता में अनंत सजीवता होती है, विफलता में असह्य अशक्ति।
+* समानता की बात तो बहुत से लोग करते हैं, लेकिन जब उसका अवसर आता है तो खामोश रह जाते हैं।
+* हम जिनके लिए त्याग करते हैं, उनसे किसी बदले की आशा ना रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं। चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो। त्याग की मात्रा जितनी ज्यादा होती है, यह शासन भावना उतनी ही प्रबल होती है।
+* हिम्मत और हौसला मुश्किल को आसान कर सकते हैं, आंधी और तूफ़ान से बचा सकते हैं, मगर चेहरे को खिला सकना उनके सामर्थ्य से बाहर है।
+* सोई हुई आत्मा को जगाने के लिए भूलें एक प्रकार की दैविक यंत्रणाएं जो हमें सदा के लिए सतर्क कर देती हैं।
+* सौंदर्य को गहने की जरूरत नहीं है। मृदुता गहनों का वजन सहन नहीं कर सकता।
+* सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं।
+* स्त्री गालियां सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर मायके की निंदा उससे नहीं सही जाती।
+* स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है।
+* कायरों को इसके सिवा और सूझ ही क्या सकता है? धन कमाना आसान नहीं है। व्यवसायियों को जितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, वह अगर संन्यासियों को झेलनी पड़े, तो सारा संन्यास भूल जाएं। किसी भले आदमी के द्वार पर जाकर पड़े रहने के लिए बल, बुद्धि, विद्या, साहस किसी की भी जरूरत नहीं। धनोपार्जन के लिए खून जलाना पड़ता है। सहज काम नहीं है। धन कहीं पड़ा नहीं है कि जो चाहे बटोर लाए। प्रेमचन्द कर्मभूमि' में सुखदा के मुंह से
+* जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।
+* रोने के लिए हम एकांत ढूंढते हैं, हसंने के लिए अनेकांत।
+* पुरुष में थोड़ी-सी पशुता होती है, जिसे वह इरादा करके भी हटा नहीं सकता। वही पशुता उसे पुरुष बनाती है। विकास के क्रम से वह स्त्री से पीछे है। जिस दिन वह पूर्ण विकास को पहुंचेगा, वह भी स्त्री हो जाएगा। वात्सल्य, स्नेह, कोमलता, दया, इन्हीं आधारों पर यह सृष्टि थमी हुई है और यह स्त्रियों के गुण हैं।
+* हमारे शिक्षालयों में नर्मी को घुसने ही नहीं दिया जाता।
+* हमारे शिक्षालयों में नर्मी को घुसने ही नहीं दिया जाता। वहां स्थायी रूप से मार्शल-लॉ का व्यवहार होता है। कचहरी में पैसे का राज है, हमारे स्कूलों में भी पैसे का राज है, उससे कहीं कठोर, कहीं निर्दय। देर में आइए तो जुर्माना न आइए तो जुर्माना सबक न याद हो तो जुर्माना किताबें न खरीद सकिए तो जुर्माना कोई अपराध हो जाए तो जुर्माना शिक्षालय क्या है, जुर्मानालय है। यही हमारी पश्चिमी शिक्षा का आदर्श है, जिसकी तारीफों के पुल बांधे जाते हैं।
+* दबा हुआ पुरुषार्थ ही स्त्रीत्व है।
+* त्यागी दो प्रकार के होते हैं। एक वह जो त्याग में आनंद मानते हैं, जिनकी आत्मा को त्याग में संतोष और पूर्णता का अनुभव होता है, जिनके त्याग में उदारता और सौजन्य है। दूसरे वह, जो दिलजले त्यागी होते हैं, जिनका त्याग अपनी परिस्थितियों से विद्रोह-मात्र है, जो अपने न्यायपथ पर चलने का तावान संसार से लेते हैं, जो खुद जलते हैं इसलिए दूसरों को भी जलाते हैं। अमर इसी तरह का त्यागी था।
+* कायरता की भांति वीरता भी संक्रामक होती है। एक क्षण में उड़ते हुए पत्तों की तरह भागने वाले आदमियों की एक दीवार-सी खड़ी हो गई। अब डंडे पडें।, या गोलियों की वर्षा हो, उन्हें भय नहीं।
+* मां में केवल वात्सल्य है। बहन में क्या है, नहीं कह सकती, पर वह वात्सल्य से कोमल अवश्य है। मां अपराध का दंड भी देती है। बहन क्षमा का रूप है। भाई न्याय करे, अन्याय करे, डांटे या प्यार करे, मान करे, अपमान करे, बहन के पास क्षमा के सिवा और कुछ नहीं है। वह केवल उसके स्नेह की भूखी है।
+* कृषि-प्रधान देश में खेती केवल जीविका का साधन नहीं है सम्मान की वस्तु भी है। गृहस्थ कहलाना गर्व की बात है। किसान गृहस्थी में अपना सर्वस्व खोकर विदेश जाता है, वहां से धन कमाकर लाता है और फिर गृहस्थी करता है। मान-प्रतिष्ठा का मोह औरों की भांति उसे घेरे रहता है। वह गृहस्थ रहकर जीना और गृहस्थ ही में मरना भी चाहता है। उसका बाल-बाल कर्ज से बांधा हो, लेकिन द्वार पर दो-चार बैल बंधकर वह अपने को धन्य समझता है। उसे साल में तीस सौ साठ दिन आधे पेट खाकर रहना पड़े, पुआल में घुसकर रातें काटनी पड़ें, बेबसी से जीना और बेबसी से मरना पड़े, कोई चिंता नहीं, वह गृहस्थ तो है। यह गर्व उसकी सारी दुर्गति की पुरौती कर देता है।
+* साहित्य की बहुत सी परिभाषाएँ की गयी हैं, पर मेरे विचार में सर्वोत्तम परिभाषा ‘जीवन की आलोचना’ है। चाहे वह निबन्ध के रूप में हो, चाहे कहानियों के या काव्य के उसे हमारे जीवन की आलोचना और व्याख्या करनी चाहिए। प्रेमचन्द, साहित्य की परिभाषा के सन्दर्भ में
+* साहित्यकार का लक्ष्य केवल महफिल सजाना और मनोरंजन का सामान जुटाना नहीं है- उसका दरजा इतना न गिराइये। वह देश-भक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई भी नहीं बल्कि उनके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है। प्रेमचन्द
+* यथार्थवाद हमारी दुर्बलताओं, हमारी विषमताओं और हमारी क्रूरताओं का नग्न चित्र होता है। वास्तव में यथार्थवाद हमको निराशावादी बना देता है, मानव चरित्रों से हमारा विश्वास उठ जाता है। हमको चारों तरफ बुराई दिखाई देने लगती है। आदर्शवाद हमें ऐेसे चरित्रों से परिचित कराता है जिनके हृदय पवित्र होते हैं, जो स्वार्थ और वासना से रहित होते हैं जो साधु-प्रकृति के होते हैं। यद्यपि ऐसे चरित्र व्यवहार कुशल नहीं होते, उनकी सरलता उन्हें व्यवहारिक विषयों में धोखा देती है। हम वही साहित्य (उपन्यास) उच्चकोटि का समझते हैं जहाँ यथार्थवाद और आदर्शवाद का समन्वय हो। उसे आप आदर्शोन्मुख यथार्थवाद कह सकते हैं। प्रेमचन्द, आदर्शवाद एवं यथार्थवाद की आलोचना करते हुए
+* साहित्य का उद्देश्य जीवन के आदर्श को उपस्थित करना है, जिसे पढ़कर हम जीवन में कदम-कदम पर आने वाली कठिनाइयों का सामना कर सकें। अगर साहित्य से जीवन का रास्ता न मिले, तो ऐसे साहित्य से लाभ ही क्या? जीवन की आलोचना कीजिए, चाहे चित्र खीचिएँ, आर्ट के लिए लिखिए, चाहे ईश्वर के लिए, मनोरहस्य दिखाइए, चाहे विश्वव्यापी सत्य की तलाश कीजिए, अगर उसमें हमें जीवन का अच्छा मार्ग नहीं मिलता तो उस रचना से हमारा कोई फायदा नहीं। साहित्य न चित्रण का नाम है न अच्छे शब्दों को चुनकर सजा देने का, न अलंकारों से वाणी को शोभायमान बना देने का। ऊँचे और पवित्र विचार ही साहित्य की जान हैं। प्रेमचन्द
+* नीतिशास्त्र और साहित्यशास्त्र का एक ही लक्ष्य है- केवल उपदेश की विधि में अन्तर है। नीतिशास्त्र तर्कों और उपदेशों के द्वारा बुद्धि और मन पर प्रभाव डालने का यत्न करता है, तो साहित्य ने अपने लिए मानसिक अवस्थाओं और भावों का क्षेत्र चुन लिया है। प्रेमचन्द
+* मनुष्य स्वभाव से देवतुल्य है। जमाने के छल-प्रपंच या और परिस्थितियों के वशीभूत होकर वह अपना देवत्व खो बैठता है। साहित्य इसी देवत्व को अपने स्थान पर प्रतिष्ठित करने की चेष्ठा करता है, उपदेशों से नहीं, नसीहतों से नहीं। भावों को स्पन्दित करके, मन के कोमल तारों पर चोट लगाकर, प्रकृति से सामंजस्य उत्पन्न करके। प्रेमचन्द
+* किसी राष्ट्र की सबसे मूल्यवान सम्पत्ति उसके साहित्यिक आदर्श होते हैं। व्यास और वाल्मीकि ने जिन आदर्शों की सृष्टि की, वह आज भी भारत का सिर ऊँचा किए हुए हैं। राम अगर वाल्मीकि के साँचे में न ढलते, तो राम न रहते। सीता भी उसी साँचेे में ढलकर सीता हुई।
+* जीवन का उद्देश्य ही आनन्द है। मनुष्य जीवन पर्यन्त आनन्द की खोज में पड़ा रहता है। किसी को वह (आनन्द) रत्न द्रव्य में मिलता है, किसी को भरे-पूरे परिवार में, किसी को लम्बे-चैड़े भवन में, किसी को ऐश्वर्य में, लेकिन साहित्य का आनन्द इस आनन्द से ऊँचा है, इससे पवित्र है, उसका आधार सुन्दर और सत्य है। वास्तव में सच्चा आनन्द सुन्दर और सत्य से मिलता है, उसी आनन्द को दर्शाना, वही आनन्द उत्पन्न करना साहित्य का उद्देश्य है। प्रेमचन्द
+* वह साहित्य चिरायु हो सकता है जो मनुष्य की मौलिक प्रवृत्तियों पर अवलम्बित हो। ईर्ष्या और प्रेम, क्रोध और लोभ, भक्ति और विराग, दुःख और लज्जा सभी हमारी मौलिक प्रवृत्तियाँ हैं। इन्हीं की छटा दिखाना साहित्य का परम उद्देश्य है और बिना उद्देश्य के कोई रचना हो ही नहीं सकती। प्रेमचन्द
+टाम काका की कुटिया’ गुलामी की प्रथा से व्यथित हृदय की रचना है, पर आज उस प्रथा के उठ जाने पर भी उसमें वह व्यापकता है कि हम लोग भी उसे पढ़कर मुग्ध हो जाते हैं। सच्चा साहित्य कभी पुराना नहीं होता। वह सदा नया बना रहता है। दर्शन और विज्ञान समय की गति के अनुसार बदलते रहते हैं। पर साहित्य तो हृदय की वस्तु है और मानव हृदय में तबदीलियाँ नहीं होती। हर्ष और विस्मय क्रोध और द्वेष, आशा और भय आज भी हमारे मन पर उसी तरह अधिकृत है। प्रेमचन्द
+* साहित्यकार बहुधा अप��े देश-काल से प्रभावित होता है। जब कोई लहर देश में उठती है, तो साहित्यकार के लिए उससे अविचलित रहना असंभव हो जाता है। उसकी विशाल आत्मा अपने देश-बन्धुओं के कष्टों से विकल हो उठती है और तीव्र विकलता में वह रो उठता है, पर उसके रूदन में भी व्यापकता होती है। वह स्वदेश का होकर भी सार्वभौमिक रहता है। प्रेमचन्द
+* साहित्य का काम केवल पाठकों का मन बहलाना नहीं है। यह तो भाड़ो और मदारियों, विदूषक और मसकरों का काम है। प्रेमचन्द
+* मुझे यह कहने में हिचक नहीं कि मैं और चीजों की तरह कला को भी उपयोगिता की तुला पर तौलता हूँ। निस्संदेह कला का उद्देश्य सौंदर्य की पुष्टि करना है और वह हमारे आध्यात्मिक आनन्द की कुंजी है, पर ऐसा कोई रूचिगत, मानसिक तथा आध्यात्मिक आनन्द नहीं, जो अपनी उपयोगिता का पहलू न रखता हो। प्रेमचन्द
+* हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा जिसमें उच्च चिन्तन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौन्दर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो, जीवन की सच्चाइयों का प्रकाश हो जों हमें गीत, संघर्ष और बेचैनी पैदा करे, सुलायें नहीं क्योंकि अब और ज्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।
+* जो साहित्य जीवन के उच्च आदर्शों का विरोधी हो, सुरुचि को बिगाड़ता हो अथवा साम्प्रदायिक सद्भावना में बाधा डालता हो, ऐसे साहित्य को यह परिषद हरगिज प्रोत्साहित न करेगी।
+* साहित्य कलाकार के आध्यात्मिक सामंजस्य का व्यक्त रूप है और सामंजस्य सौन्दर्य की सृष्टि करता है, नाश नहीं। वह हममें वफादारी, सच्चाई, सहानुभूति, न्यायप्रियता और ममता के भावों की पुष्टि करता है। जहाँ ये भाव है, वहीं दृढ़ता है और जीवन है, जहाँ इनका अभाव है, वहीं फूट, विरोध, स्वार्थपरता है, द्वेष, शत्रुता और मृत्यु है।
+* ऐसी भाषा, जिसे लिखने और समझने वाले लोग थोड़े ही हो, मसनुई, बेजान और बोझिल हो जाती है। जनता का मर्म-स्पर्श करने की, उन तक अपना पैगाम पहुँचाने की उनमें कोई शक्ति नहीं रहती।
+* जिस दिन आप अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व तोड़ देंगे और अपनी एक कौमी भाषा बना लेंगे, उसी दिन आपको स्वराज के दर्शन हो जाएँगे।… राष्ट्र की बुनियाद राष्ट्र की भाषा पर टिकी है।… भाषा ही वह बन्धन है, जो चिरकाल तक राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधे रहती है और उसका शीजरा बिखरने नहीं देती।
+* भाषा बोलचाल की भी होती है और लिखने की भी। बोलचाल की भाषा तो मीर अम्मन और लल्लूलाल के जमाने में भी मौजू��� थी पर उन्हें जिस भाषा की दाग बेल डाली, वह लिखने की भाषा थी और वही साहित्य है। बोलचाल से हम अपने करीब के लोगों पर अपने विचार प्रकट करते हैं- अपने हर्ष-शोक के भावों का चित्र खींचते है। साहित्यकार वही काम लेखनी द्वारा करता है। हाँ उसके श्रोताओं की परिधि बहुत विस्तृत होती है और अगर उसके बयान में सच्चाई है, तो शताब्दियों और युगों तक उसकी रचनाएँ हृदयों को प्रभावित करती रहती है।
+* भाषा साधन है, साध्य नहीं। अब हमारी भाषा ने वह रूप प्राप्त कर लिया है कि हम भाषा से आगे बढ़कर भाव की ओर ध्यान दें और इस पर विचार करें कि जिस उद्देश्य से यह निर्माण कार्य आरम्भ किया गया था, वह क्योंकर पूरा हो। वही भाषा, जिसमें आरम्भ में ‘बागोबहार’ और ‘बैताल-पचीसी’ की रचना ही सबसे बड़ी साहित्य सेवा थी अब इस योग्य हो गयी है कि उसमें शास्त्र और विज्ञान के प्रश्नों की भी विवेचना की जा सके और यह सम्मेलन इस सच्चाई की स्पष्ट स्वीकृति है।
+प्रेमचन्द के बारे में उक्तियाँ
+* वे (प्रेमचन्द) अपने काल में समस्त उत्तरी भारत के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार थे। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
+* वास्तव में तुलसीदास और भारतेंदु हरिश्चंद्र के बाद प्रेमचंद के समान सरल और जोरदार हिंदी किसी ने नहीं लिखी । आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
+* दुनिया की सारी जटिलताओं को समझ सकने के कारण ही वे निरीह थे, सरल थे। धार्मिक ढकोसलों को वे ढोंग समझते थे, पर मनुष्य को वे सबसे बड़ी वस्तु समझते थे। उन्होंने ईश्वर पर कभी विश्वास नहीं किया फिर भी इस युग के साहित्यकारों में मानव की सद्वृत्तियों में जैसा अडिग विश्वास प्रेमचंद का था वैसा शायद ही किसी और का हो। असल में यह नास्तिकता भी उनके दृढ़ विश्वास का कवच थी। वे बुद्धिवादी थे और मनुष्य की आनंदिनी वृत्ति पर पूरा विश्वास करते थे । आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
+* ऐसे थे प्रेमचंद जिन्होंने ढोंग को कभी बर्दाश्त नहीं किया, जिन्होंने समाज को सुधारने की बड़ी-बड़ी बातें सुझाई ही नहीं, स्वयं उन्हें व्यवहार में लाए, जो मनसावाचा एक थे, जिनका विनय आत्माभिमान का, संकोच महत्व का, निर्धनता निर्भीकता का, एकांतप्रियता विश्वासानुभूति का और निरीह भाव कठोर कर्तव्य का कवच था, जो समाजकी जटिलताओं की तह में जाकर उसकी टीमटाम और भभ्भड़पन का पर्दाफाश करने में आनंद पाते थे और जो दरिद्र किसान के अंदर आत्मबल का उद्घाटन करने को अपना श्रेष्ठ कर्तव्य समझते थे; जिन्हें कठिनाइयों से जूझने में मजा आता था और जो तरस खानेवाले पर दया की मुस्कुराहट बखेर देते थे, जो ढोंग करनेवाले को कसके व्यंग्य बाण मारते थे और निष्कपट मनुष्यों के चेरे को जाया करते थे। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
+* उनकी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने ग्रामीण जीवन को अपनी कहानी का मुख्य आधार बनाया था। लेकिन वे सारी कहानियाँ एक जैसी नहीं है। कथा की दृष्टि से उनकी प्रत्येक कहानी एक दूसरे से भिन्न है। उनमें पर्याप्त विभिन्नता है। डॉ. रामविलास शर्मा
+* प्रेमचन्द भारतीय समाज के लिए सदा प्रासंगिक रहे हैं पर पिछले दिनों उनकी प्रासंगिकता और बढ़ गई है। हमारा समाज आगे बढ़ने के बदले पीछे जा रहा है। जिस पिछड़ेपन के विरुद्ध प्रेमचन्द ने संघर्ष किया था, वह विशेष रूप से हिन्दी प्रदेश में सघन हो गया है। आर्थिक स्तर पर जनता की गरीबी अपनी जगह है, राजनीतिक स्तर पर देश के विघटन की समस्या और तीव्र हो गयी है। सांस्कृतिक स्तर पर द्विज और शूद्र का भेद, हिन्दू और मुसलमान का भेद, और बढ़ा है। डॉ. रामविलास शर्मा
+* यदि उनके उपन्यास हटा दिए जाएँ, तो वे बहुत अच्छे कहानीकार रह जाएँगें लेकिन विश्व-साहित्य में उनका स्थान उतना ऊँचा न रहेगा जितना इन उपन्यासों के बल पर आज है। डॉ. रामविलास शर्मा प्रेमचन्द और उनका युग' में
+* उनकी काफी कहानियाँ ऐसी हैं जिनमें ग्रामीण कथाओं का रस और उनकी शैली अपनाई गई है। आमतौर से उनकी कहानियों में जो एक ठेठपन है, पाठक के हृदय में अपनी बात को सीधे उतार देने की जो ताकत है, वह उन्होंने हिन्दुस्तान के अक्षय ग्रामीण कथा-भण्डार से सीखी थी। यही कारण है कि किसानों और स्त्रियों में उनकी कहानियाँ तुरंत लोकप्रिय हुई। उनकी कहानियों में एक तरह का लोकरस है। कथा में कसाव है और शैली में व्यंग्यात्मकता है। डॉ. रामविलास शर्मा
+* समाज के विभिन्न स्तरों का व्यापक ज्ञान संसार के बहुत कम साहित्यिकों में मिलेगा। प्रेमचन्द के विचार बहुत स्पष्ट नहीं थे, परन्तु उनमें कलाकार की सचाई की कमी न थी । आज के साहित्यिक के विचार बहुत कुछ स्पष्ट हो गए हैं; परन्तु उसके पास प्रेमचन्द का अनुभव नहीं, उनकी-सी सचाई भी कम है। प्रेमचन्द की कृतियों का हमारे लिए यह संदेश है कि हम जनता में जाकर रहें और काम करें- रचनाओं में 'जनता-जनत��' कम चिल्लाएँ। डॉ. रामविलास शर्मा
+* प्रेमचन्द का मानवतावाद उन्नीसवीं सदी के अनेक साहित्यकारों के मानवतावाद से भिन्न था। वह टॉलस्टाय जैसे महान लेखकों के मानवतावाद से भी भिन्न थे। वह राजनीति और संस्कृति की समस्या को गरीब जनता के दृष्टिकोण से देखने- परखने और हल करने के आदी थे। डाॅ. रामविलास शर्मा
+* यों तो एक हद तक प्रेमचन्द के साहित्य में यह भी दोष है कि उनके देहाती, निम्नवर्गीय पात्रों का चित्रण तो खरा और सर्वांगीण सच्चा है पर शिक्षित मध्यवर्गीय या उच्चवर्गीय पात्रों का चित्रण सतही और अविश्वास्य है। सच्चिदानन्द वात्स्यायन
+* प्रेमचन्द ने सन् 1930 के आसपास एलानिया तौर पर कहा था कि वे जो कुछ लिख रहे हैं वह स्वराज के लिए, उपनिवेशवादी शासन से भारत को मुक्त कराने के लिए लिख रहे हैं। उन्होंने यह भी लिखा है कि केवल जॉन की जगह गोविन्द को बैठा देना ही स्वराज्य नहीं है, बल्कि सामाजिक स्वाधीनता भी होना चाहिए। सामाजिक स्वाधीनता से उनका तात्पर्य सम्प्रदायवाद, जातिवाद, छूआछूत से मुक्ति और स्त्रियों की स्वाधीनता से भी था। नामवर सिंह, प्रेमचन्द और भारतीय समाज, पृष्ट 15
+* उनका (प्रेमचन्द का) उद्देश्य सामयिकता व देश-काल की विशेषता से परे नहीं था, उनका साहित्य सामयिकता की सतह को छूने वाला साहित्य नहीं था, उसमें गहराई से डूबने वाला देश काल की विशेषताओं के परस्पर संबंध को चित्रित करने वाला साहित्य था। इसीलिए वह इतना सशक्त और प्रभावशाली है। डॉ रामविलास शर्मा
+* यद्यपि लोग उन्हें गांधीवादी कहते हैं, लेकिन वे गांधी से दो कदम आगे बढ़कर आन्दोलन और क्रांति की बात करते हैं। प्रेमचन्द अपने जमाने के साहित्यकारों से ज्यादा बुनियादी परिवर्तन की बात करते हैं। नामवर सिंह
+* जब गांधीजी ने भारत की राजनीति में प्रवेश किया और उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में गाँवों की करोड़ों जनता का भाग लेने के लिए आह्वान किया। प्रेमचन्द पहले साहित्यकार हैं जिन्होंने भारत की इस नई राष्ट्रीय चेतना को अपने साहित्य में वाणी दी। नामवर सिंह, प्रेमचन्द और भारतीय समाज, पृष्ट 19 पर
+* अपने उदारवादी नजरिए के बावजूद वह (प्रेमचन्द) हृदय से हिंदू रहे और वह अपनी वैचारगी में मुस्लिमों को नजरअंदाज करते रहे। गीतांजलि पांडे
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+* जब हम खड़े हों, तब आज़ाद हिन्द फौज को एक ग्रेनाइट की दीवार के समान होना होगा; जब हम आगे बढ़ें, तब आज़ाद हिन्द फौज को एक स्ट्रीमरोलर के समान होना होगा।
+* याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना हैं ।
+* एक सच्चे सैनिक को सैन्य और अध्यात्मिक दोनों प्रशिक्षण की जरुरत होती हैं ।
+* इतिहास में कभी भी विचार-विमर्श से कोई ठोस परवर्तन नहीं हासिल किया गया हैं ।
+* राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों सत्यम, शिवम्, सुन्दरम् से प्रेरित हैं।
+* मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्याएं गरीबी,अशिक्षा, बीमारी, कुशल उत्पादन एवं वितरण सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है।
+* किसी एक विचार के लिए यदि कोई मरता है तो वह विचार उसके मरने के बाद भी हजारों लोगों में जीवित रहती है।
+* आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके.
+* एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है।
+* अगर संघर्ष न रहे, किसी भी भय का सामना न करना पड़े, तब जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है।
+* याद रखें – अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है।
+* मैंने जीवन में कभी भी खुशामद नहीं की है। दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें करना मुझे नहीं आता।
+* कष्टों का, निसंदेह एक आंतरिक नैतिक मूल्य होता है।
+* मुझे यह नहीं मालूम कि स्वतंत्रता के इस युद्ध में हम में से कौन कौन जीवित बचेंगे। परन्तु मैं यह जानता हूँ कि अंत में विजय हमारी ही होगी।
+* ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।
+* मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्याओं जैसे गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही किया जा सकता है।
+* व्यर्थ की बातों में समय खोना मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता।
+* आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए – मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके। एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके।
+* राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है।
+* भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी सृजनात्मक श��्ति का संचार किया है जो सदियों से लोगों के अन्दर सुसुप्त पड़ी थी।
+* यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े, तब वीरों की भांति झुकना।
+* समझौतापरस्ती सबसे बड़ी अपवित्र वस्तु है।
+* जीवन में प्रगति का आशय यह है कि शंका संदेह उठते रहें और उनके समाधान के प्रयास का क्रम चलता रहे।
+* हम संघर्षों और उनके समाधानों द्वारा ही आगे बढ़ते हैं।
+* श्रद्धा की कमी ही सारे कष्टों और दुखों की जड़ है।
+* मैं संकट एवं विपदाओं से भयभीत नहीं होता। संकटपूर्ण दिन आने पर भी मैं भागूँगा नहीं, वरन आगे बढकर कष्टों को सहन करूँगा।
+* इतना तो आप भी मानेंगे कि एक न एक दिन तो मैं जेल से अवश्य मुक्त हो जाऊँगा, क्योंकि प्रत्येक दुःख का अंत होना अवश्यम्भावी है।
+* हमें अधीर नहीं होना चहिये। न ही यह आशा करनी चाहिए कि जिस प्रश्न का उत्तर खोजने में न जाने कितने ही लोगों ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया, उसका उत्तर हमें एक-दो दिन में प्राप्त हो जाएगा।
+* जहाँ शहद का अभाव हो वहां गुड़ से ही शहद का कार्य निकालना चाहिए।
+* असफलताएं कभी-कभी सफलता की स्तम्भ होती हैं।
+* सुबह से पहले अँधेरी घडी अवश्य आती है। बहादुर बनो और संघर्ष जारी रखो ,क्योंकि स्वतंत्रता निकट है।
+* समय से पूर्व की परिपक्वता अच्छी नहीं होती, चाहे वह किसी वृक्ष की हो, या व्यक्ति की। उसकी हानि आगे चल कर भुगतनी ही होती है।
+* साथियों! आपने स्वेच्छा से उस मिशन को स्वीकार किया है, जो उतना महान है, जिसकी मानव ह्रदय कल्पना भी नहीं कर सकता है। ऐसे मिशन की पूर्ति के लिए कोई भी बलिदान बहुत महान नहीं होता है, किसी के जीवन का बलिदान भी नहीं। आप आज भारत के राष्ट्रीय सम्मान के संरक्षक और भारत की आशाओं एवं आकांक्षाओं के प्रतीक हैं। इसलिए ऐसे पेश आओ कि आपके देशवासी आपको आशीर्वाद दे सकें और आप पर गर्व कर सके।
+* अपने कॉलेज जीवन की देहलीज पर खड़े होकर मुझे अनुभव हुआ, कि जीवन का कोई अर्थ और उद्देश्य है।
+* स्वामी विवेकानंद का यह कथन बिलकुल सत्य है, यदि तुम्हारे पास लोह शिराएं हैं और कुशाग्र बुद्धि है, तो तुम सारे विश्व को अपने चरणों में झुका सकते हो।
+* मुझे जीवन में एक निश्चित लक्ष्य को पूरा करना है। मेरा जन्म उसी के लिए हुआ है। मुझे नैतिक विचारों की धारा में नहीं बहना है।
+* निसंदेह बचपन और युवावस्था में पवित्रता और संयम अतिआवश्यक है।
+* मेरे जीवन के अनुभवों में एक यह भी ह�� कि मुझे यह आशा है कि कोई-न-कोई किरण उबार लेती है और जीवन से दूर भटकने नहीं देती।
+* चरित्र निर्माण ही छात्रों का मुख्य कर्तव्य है।
+* हमें केवल कार्य करने का अधिकार है। कर्म ही हमारा कर्तव्य है। कर्म के फल का स्वामी वह (भगवान) है, हम नहीं।
+* कर्म के बंधन को तोडना बहुत कठिन कार्य है।
+* मैंने अपने छोटे से जीवन का बहुत सारा समय व्यर्थ में ही खो दिया है।
+* माँ का प्यार सबसे गहरा होता है, स्वार्थ रहित होता है। इसको किसी भी प्रकार नापा नहीं जा सकता।
+* जिस व्यक्ति में सनक नहीं होती, वह कभी भी महान नहीं बन सकता। परन्तु सभी पागल व्यक्ति महान नहीं बन जाते क्योंकि सभी पागल व्यक्ति प्रतिभाशाली नहीं होते। आखिर क्यों कारण यह है कि केवल पागलपन ही काफी नहीं है। इसके अतिरिक्त कुछ और भी आवश्यक है।
+* भावना के बिना चिंतन असंभव है। यदि हमारे पास केवल भावना की पूंजी है तो चिंतन कभी भी फलदायक नहीं हो सकता। बहुत सारे लोग आवश्यकता से अधिक भावुक होते हैं। परन्तु वह कुछ सोचना नहीं चाहते।
+* एक सैनिक के रूप में आपको हमेशा तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा – निष्ठा, कर्तव्य और बलिदान। जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रति वफादार रहता है, जो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने को तैयार रहता है, वो अजेय है। अगर तुम भी अजेय बनना चाहते हो तो इन तीन आदर्शों को अपने ह्रदय में समाहित कर लो।
+* एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है।
+* परीक्षा का समय निकट देख कर हम बहुत घबराते हैं। लेकिन एक बार भी यह नहीं सोचते कि जीवन का प्रत्येक पल परीक्षा का है। यह परीक्षा ईश्वर और धर्म के प्रति है। स्कूल की परीक्षा तो दो दिन की है, परन्तु जीवन की परीक्षा तो अनंत काल के लिए देनी होगी। उसका फल हमें जन्म-जन्मान्तर तक भोगना पड़ेगा।
+* अच्छे विचारों से कमजोरियां दूर होती हैं, हमें हमेशा अपनी आत्मा को उच्च विचारों से प्रेरित करते रहना चाहिए।
+* सफल होने के लिए आपको अकेले चलना होगा। लोग तो तब आपके साथ आते हैं जब आप सफल हो जाते हैं।
+* एक व्यक्ति एक विचार के लिए मर सकता है, लेकिन वह विचार उसकी मृत्यु के बाद, एक हजार व्यक्तियों के जीवन में खुद को अवतार ले लेता है।
+* इतिहास के इस अभूतपूर्व मोड़ पर मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि अपनी अस्थायी हार से निराश न हों, हंसमुख और आशावादी बनें। इन सबसे बढ़कर, भारत के भाग्य में अपना विश्वास कभी ना खोयें। पृथ्वी पर ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो भारत को बंधन में रख सके। भारत आजाद होगा और वह भी जल्द ही। जय हिंद।
+* राजनीतिक सौदेबाजी की कूटनीति यह है कि आप जो भी हैं, उससे ज्यादा शक्तिशाली दिखें।
+* केवल पूर्ण राष्ट्रवाद, पूर्ण न्याय और निष्पक्षता के आधार पर ही भारतीय सेना का निर्माण किया जा सकता है।
+* केवल रक्त ही आज़ादी की कीमत चुका सकता है।
+* शाश्वत नियम याद रखें यदि आप कुछ पाना चाहते हैं, तो आपको कुछ देना होगा।
+* एक ऐसी सेना, जिसके पास साहस, निर्भयता और अजेयता की कोई परंपरा नहीं है, वह एक शक्तिशाली दुश्मन के साथ संघर्ष में अपनी खुद की पकड़ नहीं बना सकती। इसलिए स्वतंत्रता के इस युद्ध के दौरान आपको अनुभव प्राप्त करना होगा और सफलता प्राप्त करनी होगी। यह अनुभव और सफलता ही हमारी सेना के लिए एक राष्ट्रीय परंपरा का निर्माण कर सकते हैं।
+* उन कार्यों के लिए अपनी कमर कस लें, जो सामने हैं। मैंने आपसे पुरुष, धन और सामग्री के लिए कहा था। मैंने उन्हें बहुतायत में पा लिया है। अब मैं आपसे और मांग करता हूँ। पुरुष, धन और सामग्री स्वयं जीत या स्वतंत्रता नहीं ला सकती है। हमारे पास उद्देश्य को पूर्ण करने की शक्ति होनी चाहिए, जो हमें बहादुरी के कार्यों और वीरतापूर्ण कारनामों के लिए प्रेरित करे।
+* भारत पुकार रहा है, रक्त रक्त को पुकार रहा है। उठो, हमारे पास व्यर्थ के लिए समय नहीं है। अपने हथियार उठा लो, हम अपने दुश्मनों के माध्यम से ही अपना मार्ग बना लेंगे या अगर भगवान की इच्छा रही, तो हम एक शहीद की मौत मरेंगे।
+* दिल्ली की सड़क स्वतंत्रता की सड़क है। दिल्ली चलो।
+* मुझे आपको याद दिलाना है कि आपको दो गुना कार्य करने हैं। हथियारों के बल और अपने खून की कीमत पर आपको स्वतंत्रता हासिल करनी होगी। फिर, जब भारत स्वतंत्र होगा, तो आपको स्वतंत्र भारत की स्थायी सेना को संगठित करना होगा। जिसका कार्य हर समय अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखना होगा। हमें अपनी राष्ट्रीय रक्षा ऐसी अटल नींव पर बनानी होगी, ताकि हम इतिहास में फिर कभी अपनी स्वतंत्रता न खोयें।
+* ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं. हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।
+* आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके। एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके।
+* मुझे यह नहीं मालूम की स्वतंत्रता के इस युद्ध में हममे से कौन कौन जीवित बचेंगे। परन्तु में यह जानता हूँ ,अंत में विजय हमारी ही होगी।
+* राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है ।
+* भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी सृजनात्मक शक्ति का संचार किया है जो सदियों से लोगों के अन्दर से सुसुप्त पड़ी थी ।
+* मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्यायों जैसे गरीबी ,अशिक्षा बीमारी कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है ।
+* यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े तब वीरों की भांति झुकना।
+* मध्या भावे गुडं दद्यात अर्थात जहाँ शहद का अभाव हो वहां गुड से ही शहद का कार्य निकालना चाहिए।
+* कष्टों का निसंदेह एक आंतरिक नैतिक मूल्य होता है।
+* जीवन में प्रगति का आशय यह है की शंका संदेह उठते रहें और उनके समाधान के प्रयास का क्रम चलता रहे।
+* हम संघर्षों और उनके समाधानों द्वारा ही आगे बढ़ते हैं।
+* हमारी राह भले ही भयानक और पथरीली हो ,हमारी यात्रा चाहे कितनी भी कष्टदायक हो फिर भी हमें आगे बढ़ना ही है। सफलता का दिन दूर हो सकता है ,पर उसका आना अनिवार्य है।
+* श्रद्धा की कमी ही सारे कष्टों और दुखों की जड़ है।
+* अगर संघर्ष न रहे ,किसी भी भय का सामना न करना पड़े ,तब जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है।
+* मैं संकट एवं विपदाओं से भयभीत नहीं होता। संकटपूर्ण दिन आने पर भी मैं भागूँगा नहीं वरन आगे बढकर कष्टों को सहन करूँगा।
+* असफलताएं कभी कभी सफलता की स्तम्भ होती हैं।
+* सुबह से पहले अँधेरी घडी अवश्य आती है। बहादुर बनो और संघर्ष जारी रखो ,क्योंकि स्वतंत्रता निकट है।।
+* समय से पूर्व की परिपक्वता अच्छी नहीं होती ,चाहे वह किसी वृक्ष की हो ,या व्यक्ति की और उसकी हानि आगे चल कर भुगतनी ही होती है।
+* अपने कॉलेज जीवन की देहलीज पर खड़े होकर मुझे अनुभव हुआ ,जीवन का कोई अर्थ और उद्देश्य है।
+* निसंदेह बचपन और युवावस्था में पवित्रता और संयम अति आवश्यक है।
+* में जीवन की अनिश्चितता से जरा भी नहीं घबराता।
+* मैंने अमूल्य जीवन का इतना समय व्यर्थ ही नष्ट कर दिया। यह सोच कर बहुत ही दुःख होता है। कभी कभी यह पीड़ा असह्य हो उठती है। मनुष्य जीवन पाकर भी जीवन का अर्थ समझ में नहीं आया। यदि मैं अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाया ,तो यह जीवन व्यर्थ है। इसकी क्या सार्थकता है ?।
+* परीक्षा का समय निकट देख कर हम बहुत घबराते हैं। लेकिन एक बार भी यह नहीं सोचते की जीवन का प्रत्येक पल परीक्षा का है। यह परीक्षा ईश्वर और धर्म के प्रति है। स्कूल की परीक्षा तो दो दिन की है ,परन्तु जीवन की परीक्षा तो अनंत काल के लिए देनी होगी। उसका फल हमें जन्म-जन्मान्तर तक भोगना पड़ेगा।
+* मुझे जीवन में एक निश्चित लक्ष्य को पूरा करना है। मेरा जन्म उसी के लिए हुआ है। मुझे नेतिक विचारों की धारा में नहीं बहना है।।
+* मैंने जीवन में कभी भी खुशामद नहीं की है। दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें करना मुझे नहीं आता।
+* चरित्र निर्माण ही छात्रों का मुख्य कर्तव्य है।
+* हमें केवल कार्य करने का अधिकार है। कर्म ही हमारा कर्तव्य है। कर्म के फल का स्वामी वह (भगवान है ,हम नहीं।
+* कर्म के बंधन को तोडना बहुत कठिन कार्य है।
+* व्यर्थ की बातों में समय खोना मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता।
+* मैंने अपने छोटे से जीवन का बहुत सारा समय व्यर्थ में ही खो दिया है।
+* माँ का प्यार सबसे गहरा होता है। स्वार्थ रहित होता है। इसको किसी भी प्रकार नापा नहीं जा सकता।
+* जिस व्यक्ति में सनक नहीं होती ,वह कभी भी महान नहीं बन सकता। परन्तु सभी पागल व्यक्ति महान नहीं बन जाते। क्योंकि सभी पागल व्यक्ति प्रतिभाशाली नहीं होते। आखिर क्यों कारण यह है की केवल पागलपन ही काफी नहीं है। इसके अतिरिक्त कुछ और भी आवश्यक है।
+* भावना के बिना चिंतन असंभव है। यदि हमारे पास केवल भावना की पूंजी है तो चिंतन कभी भी फलदायक नहीं हो सकता। बहुत सारे लोग आवश्यकता से अधिक भावुक होते हैं। परन्तु वह कुछ सोचना नहीं चाहते।
+* हमें अधीर नहीं होना चहिये। न ही यह आशा करनी चाहिए की जिस प्रश्न का उत्तर खोजने में न जाने कितने ही लोगों ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ,उसका उत्तर हमें एक-दो दिन में प्राप्त हो जाएगा।
+* एक सैनिक के रूप में आपको हमेशा तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा निष्ठा कर्तव्य और बलिदान। जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रति वफादार रहता है, जो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने को तैयार रहता है, वो अजेय है. अगर तुम भी अजेय बनना चाहते हो तो इन तीन आदर्शों को अपने ह्रदय में समाहित कर लो।
+* याद रखें अन्याय सहना और गलत के सा��� समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है।
+* एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है।
+* स्वामी विवेकानंद का यह कथन बिलकुल सत्य है ,यदि तुम्हारे पास लोह शिराएं हैं और कुशाग्र बुद्धि है ,तो तुम सारे विश्व को अपने चरणों में झुक सकते हो।
+==सुभाष चन्द्र बोस के बारे में मंतव्य==
+: स्वतंत्रता का यज्ञ रक्त की समिधा से होता है, भिक्षा या सत्याग्रह से नहीं। ये बताने वाले आज़ाद हिन्द के निर्माता सुभाषचन्द्र की जय हो
+*"सुभाष चन्द्र बोस राष्ट्रभक्तों के राजा हैं…."
+नेताजी सुभाष भारत को एक स्वाधीन व गौरवशाली देश बनने के लिए प्रेरणा दी थी । भारत की धरती पर स्वाधीन सरकार बनाने वाले वे पहले व्यक्ति थे ।"
+*"नेताजी कटक के धरती पुत्र हैं । कटक भूमि उनके प्राण में सेवा, संघर्ष और त्याग का मंत्र जागृत की।"
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+:वरना कितने ही यहाँ रोज फना होते हैं।
+इलाहाबाद स्थित नैनी जेल के फाँसी घर के सामने ठाकुर साहब की आवक्ष प्रतिमा के नीचे अंकित।
+[[श्रेणी:भारतीय स्वतंत्रता का क्रांतिकारी आन्दोलन]]
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+यह पुराना मूल सांचा है।
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+* कैसा होता यदि हम संसार के सभी लोगों से अपने-अपने ज्ञान को एक स्थान पर लिखवा सकते। जिमी वेल्स
+* इतिहास विजेताओं द्वारा लिखा जाता है, केवल विकिपिडिया को छोड़कर। एलन मस्क
+* विकिपिडिया लेख एक प्रक्रिया है, उत्पाद नहीं। क्ले शिर्की (Clay Shirky)
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+: समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो पवित्र भूभाग स्थित है, उसका नाम भारतवर्ष है, जहाँ भरत के संतति निवास करते हैं ।
+: देवता गीत गाते हैं कि स्वर्ग और अपवर्ग की मार्गभूत भारत भूमि के भाग में जन्मे लोग देवताओं की अपेक्षा भी अधिक धन्य हैं। अर्थात् स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष-कैवल्य) के मार्ग स्वरूप भारत-भूमि को धन्य धन्य कहते हुए देवगण इसका शौर्य-गान गाते हैं। यहां पर मनुश्य जन्म पाना देवत्व पद प्राप्त करने से भी बढकर है।
+: ऋषभ का जन्म मरुदेवी से हुआ, ऋषभ से भरत हुए, भरत से भारतवर्ष और भारतवर्ष से सुमति हुए।
+: इसके बाद भारतवर्ष (की चर्चा करते हैं)। सभी लोकों में इसकी प्रशांशा के गीत गाये जाते हैं। पिता इसे (पुत्र) भरत को देकर वन में रहने के लिये चले गये।
+: पुराने काल में, इस देश भारत में जन्में लोगों के सामीप्य द्वारा साथ रहकर पृथ्वी के सब लोगों ने अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ली ।
+: व��विध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात॥ भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
+: फैला मनोहर गिरी हिमालय और गंगाजल जहाँ ।
+: सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है,
+: उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन भारत वर्ष है॥१५॥
+: हाँ, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है,
+: ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है ?
+: भगवान की भव-भूतियों का यह प्रथम भण्डार है,
+: विधि ने किया नर-सृष्टि का पहले यहीं विस्तार है॥१६॥
+: यह पुण्य भूमि प्रसिद्ध है, इसके निवासी 'आर्य्य' हैं;
+: विद्या, कला-कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य्य हैं ।
+: हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥
+: हरा-भरा यह देश बना कर विधि ने रवि का मुकुट दिया,
+: पाकर प्रथम प्रकाश जगत ने इसका ही अनुसरण किया।
+: लेखा श्रेष्ट इसे शिष्टों ने, दुष्टों ने देखा दुर्द्धर्ष!
+: हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥ मैथिलीशरण गुप्त मंगलघट पुस्तक के 'भारतवर्ष' शीर्षक से
+*भारत वस्तुतः विश्व पुरुष की कुंडलिनी शक्ति है। जब भारत जागृत होगा तो विश्व पुरुष का दिवता में रूपान्तरण हो जाएगा। अगर भारत सो गया न जागा तो विश्व-मानवता ही समाप्त हो जाएगी। श्री अरविन्द
+* मैं भौगोलिक मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता हूँ। मेरा भरत जड़ भारत नहीं है अपितु वह ज्ञानलोक है जिसका आविर्भाव ऋषियों की आत्मा में हुवा है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर]]
+* अगर कोई देश है जो मानवता के लिए पूर्ण और आदर्श है, तो एशिया की ओर ऊँगली उठाऊंगा जहाँ भारत है। मैक्समूलर]]
+* यदि मुझसे पूछा जाये कि किस आकाश के नीचे मानवीय मस्तिष्क ने अपने कुछ चुनिन्दा उपहारों को विकसित किया है, जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर गहन विचार किया है और उनके हल निकाले है, तो मैं भारत की तरफ़ इशारा करूँगा। मैक्स मूलर
+* भारत मानवता का पलना है। इसके ऊंचे हिमालय से ज्ञान-विज्ञानं की सरिताएँ निकली हैं। सृष्टि की उषा में इसका आंगन ज्ञान से आलोकित हुवा था। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि भारत का अतीत मेरी मातृभूमि के भविष्य में बदल जाए। जैको लाइट ने बाइबिल इन इण्डिया में
+भारत हमारी सम्पूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है। भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है, अरबों के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है, बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है, ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है। अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है।
+भारत हमें एक परिपक्व मन की सहिष्णुता और नम्रता, भावनाओं को समझान और समेकक करना और सभी मनुष्यों को प्रेम से संतुष्ट करना सिखाएगा।
+जब यूरोप के लोग भरतीय दर्शन के सम्पर्क में आयेंगे तो उनके विचार और आस्थाएँ बदलेंगी। वे बदले हुवे लोग यूरोप के विचारों और विश्वास को प्रभावित करेंगे। आगे चलकर यूरोप में ही ईसाई-धर्म को संकट उत्पन्न हो जाएगा।
+भारत मानव जाति का पलना है मानव-भाषा की जन्मस्थली है इतिहास की जननी है पौराणिक कथाओं की दादी है, और प्रथाओं की परदादी है। मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है।
+यदि इस धरातल पर कोई स्थान है जहाँ पर जीवित मानव के सभी स्वप्नों को तब से घर मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था तो वह भारत ही है।
+भारत अपनी सीमा के पार एक भी सैनिक भेजे बिना चीन को जीत लिया और लगभग बीस शताब्दियों तक उस पर सांस्कृतिक रूप से राज किया।
+;— हू शिह अमेरिका में चीन के भूतपूर्व राजदूत
+वेदों से हम सर्जरी, चिकित्सा, संगीत, घर बनाना, जिसमे यंत्रीकृत कला शामिल है, की व्यवहारिक कला सीखते हैं। वे जीवन के हर एक पहलू संस्कृति, धर्म, विज्ञान, नैतिकता, कानून, ब्रह्माण्ड विज्ञान और मौसम विज्ञान के विश्वकोश हैं।
+एक अरब वर्ष पुराने जीवाश्म साबित करते हैं की जीवन की शुरुआत भारत में हुई थी।
+कुछ सन्दर्भों में प्राचीन भारत की न्यायिक प्रणाली सैद्धान्तिक रूप से हमारी आज की न्यायिक प्रणाली से उन्नत थी।
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+**हे सर्वसमर्थ प्रभु, सेवक के क्लेशों को हरनेवाले! मैं इस महाघोर शोक की अग्नि द्वारा तपाया जा रहा हूँ, निरासार संसार-सागर में गिर रहा हूँ, अनाथ और जड़ हूँ, और मोह के पाश से बँधा हूँ, मेरी रक्षा करें।
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+* उस सर्वव्यापक ईश्वर को योग द्वारा जान लेने पर हृदय की अविद्यारुपी गांठ कट जाती है, सभी प्रकार के संशय दूर हो जाते हैं और भविष्य में किये जा सकने वाले पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं, अर्थात ईश्वर को जान लेने पर व्यक्ति भविष्य में पाप नहीं करता।
+* वेदों मे वर्णित सार का पान करने वाले ही ये जान सकते हैं कि 'जीवन' का मूल बिन्दु क्या है।
+* ये 'शरीर नश्वर' है, हमे इस शरीर के माध्यम से केवल एक मौका मिला है, खुद को साबित कर���े का कि मनुष्यता' और 'आत्मविवेक' क्या है।
+* क्रोध का भोजन 'विवेक' है, अतः इससे बचके रहना चाहिए। क्योंकि 'विवेक' नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।
+* अहंकार' एक मनुष्य के अन्दर वो स्थित लाती है, जब वह 'आत्मबल' और 'आत्मज्ञान' को खो देता है।
+मानव' जीवन मे 'तृष्णा' और 'लालसा' है, और ये दुःख के मूल कारण है ।
+काम' मनुष्य के 'विवेक' को भरमा कर उसे पतन के मार्ग पर ले जाता है।
+* ईष्या से मनुष्य को हमेशा दूर रहना चाहिए। क्योकि ये 'मनुष्य' को अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथ भ्रष्ट कर देती है।
+* मद 'मनुष्य की वो स्थिति या दिशा' है, जिसमे वह अपने 'मूल कर्तव्य' से भटक कर 'विनाश' की ओर चला जाता है।
+* संस्कार ही 'मानव' के 'आचरण' का नीव होता है, जितने गहरे 'संस्कार' होते हैं, उतना ही 'अडिग' मनुष्य अपने 'कर्तव्य' पर, अपने 'धर्म' पर सत्य' पर और 'न्याय' पर होता है।
+* यश और 'कीर्ति' ऐसी 'विभूतियाँ' है, जो मनुष्य को 'संसार' के माया जाल से निकलने मे सबसे बड़े 'अवरोधक' हैं।
+* मनुष्य की 'विद्या उसका अस्त्र धर्म उसका रथ सत्य उसका सारथी' और 'भक्ति रथ के घोड़े हैं।
+* इस 'नश्वर शरीर' से 'प्रेम' करने के बजाय हमे 'परमेश्वर' से प्रेम करना चाहिए सत्य और धर्म, से प्रेम करना चाहिए; क्योंकि ये 'नश्वर' नही है।
+* जिसने गर्व किया, उसका पतन अवश्य हुआ है।
+* वेद सभी सत्य विधाओं कि किताब है, वेदों को पढना-पढाना, सुनना-सुनाना सभी आर्यों का परम धर्म है।
+* मानव जीवन में लोगों के दुखों का मूल कारण ‘तृष्णा’ और ‘लालसा’ होती है।
+* अगर किसी इंसान के मन में शांति है, ध्यान में प्रसन्नता है और हृदय में खुशी है, तो अवश्य ही यह उसके अच्छे कर्मो का फल है।
+* अगर आप इस दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ देते है तो यकीन मानिये आपके पास भी सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा।
+* किसी भी कार्य को करने से पहले सोचना अक्लमंदी होती है और काम को करते हुए सोचना सावधानी कहलाती है, लेकिन काम को करने के बाद सोचना मूर्खता कहलाती है।
+* इंसान को किसी से भी ईर्ष्या नही करनी चाहिए, क्योंकि ईर्ष्या इंसान को अंदर ही अंदर जलाती रहती है, और पथ से भटकाकर पथ को भ्रष्ट कर देती है।
+* निर्बल इंसानों पर दया करना और उनको क्षमा करना ही मनुष्य का निजी गुण होता है।
+* नुकसान की भरपाई करने में सबसे जरूरी चीज है उस नुकसान से कुछ सबक लेना, तभी आप सही मायने में विजेता बन सकते है।
+* पैसा एक वस्तु है, जो ईमानद��री और न्याय से कमाया जाता है, वहीं इसके विपरित अधर्म का खजाना होता है।
+* मानव शरीर नश्वर है, इस शरीर के जरिए आपको एक मौका मिला है खुद को साबित करने का, की मनुष्यता और आत्मविवेक क्या होता है।
+* अहंकार इंसान की वह स्थिति है, जिसमें वह अपने मूल कर्तव्यों को भूलकर विनाश की ओर चला जाता है।
+* आपको अपने नश्वर शरीर से प्रेम करने की बजाय ईश्वर से प्रेम करना चाहिए, सत्य और धर्म से प्रेम करना चाहिए, क्योंकि ये नश्वर नही है।
+* जिस व्यक्ति ने अपने ऊपर गर्व किया है, उसका पतन निश्चित हुआ है।
+* क्रोध का भोजन विवेक होता है, इसलिए इससे बचके रहना चाहिए, क्योंकि विवेक नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।
+* मोह करना जाल की तरह होता है, इसमें जो फंस गया वह पूरी तरह से उलझ जाता है।
+वह लोग जो दूसरों के लिए अच्छा करते है वह कभी भी आत्म सम्मान और दुरूपयोग के बारे में नही सोचते है।
+* अगर किसी व्यक्ति पर हमेशा ऊँगली उठाई जाती है तो वह व्यक्ति भावनात्मक रूप से ज्यादा समय तक खड़ा नही रह सकता है।
+* वह मनुष्य सबसे अच्छा और अक्लमंद है जो हमेशा सत्य बोलता है, धर्म के अनुसार काम करता है और दूसरों को उत्तम और प्रसन्न बनाने का प्रयास करता है।
+* लोभ कभी समाप्त न होने वाला रोग होता है।
+* आर्य समाज की स्थापना करने का मुख्य उद्देश्य संसार के लोगों का उपकार (भला) करना है।
+* जो ताकतवर होकर कमजोर लोगों की मदद करता है, वही वास्तविक मनुष्य कहलाता है, ताकत के अहंकार में कमजोर का शोषण करने वाला तो पशु की श्रेणी में आता है।
+* सबसे श्रेष्ठ किस्म की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में भी असमर्थ हो।
+* आत्मा अपने स्वरुप में एक है, लेकिन उसके अस्तित्व अनेक है।
+* लोगों को कभी भी तस्वीरों की पूजा पाठ नही करनी चाहिए, मानसिक अन्धकार का फैलाव मूर्ति पूजा के प्रचलन की वजह से है।
+* वर्तमान जीवन का कार्य अन्धविश्वास पर पूर्ण विश्वास से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
+* मनुष्यों के भीतर संवेदना है, इसलिए अगर वो उन तक नही पहुंचता जिन्हें देखभाल की ज़रुरत है तो वो प्राकृतिक व्यवस्था का उल्लंघन करता है।
+* आप दूसरों को इसलिए बदलना चाहते है ताकि आप खुद स्वतंत्र रह सकें, लेकिन ये कभी ऐसे काम नही करता, इसलिए दूसरों को स्वीकार करिए, तभी आप मुक्त हो सकते है।
+* भारतवर्ष में असंख्य जातिभेद के स्थान पर केवल चार वर्ण रहें। ये जातिभेद भी गुण-कर्म के द्वारा निश्चित हों, जन्म से नहीं। वेद के अधिकार से कोई भी वर्ण वंचित न हो।
+स्वामी दयानन्द के योगदान के बारे में महापुरुषों के विचार
+* डॉ॰ भगवान दास ने कहा था कि स्वामी दयानन्द हिन्दू पुनर्जागरण के मुख्य निर्माता थे।
+* श्रीमती एनी बेसेन्ट का कहना था कि स्वामी दयानन्द पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 'आर्यावर्त (भारत) आर्यावर्तियों (भारतीयों) के लिए' की घोषणा की।
+* फ्रेञ्च लेखक रोमां रोलां के अनुसार स्वामी दयानन्द राष्ट्रीय भावना और जन-जागृति को क्रियात्मक रूप देने में प्रयत्नशील थे।
+* अन्य फ्रेञ्च लेखक रिचर्ड का कहना था कि ऋषि दयानन्द का प्रादुर्भाव लोगों को कारागार से मुक्त कराने और जाति बन्धन तोड़ने के लिए हुआ था। उनका आदर्श है आर्यावर्त उठ, जाग, आगे बढ़। समय आ गया है, नये युग में प्रवेश कर।
+* नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने "आधुनिक भारत का आद्यनिर्माता" माना।
+लाला लाजपत राय ने कहा स्वामी दयानन्द मेरे गुरु हैं। उन्होंने हमे स्वतंत्र विचारना, बोलना और कर्त्तव्यपालन करना सिखाया।
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+* वे खुद को समझते क्या हैं? मैं केवल प्रधानमंत्री को जवाब देती हुँ और वे भी इतने समझदार है की मुझसे ज़्यादा सवाल नहीं करते। तुमने कभी इस तरह के बेवकुफ़ और डरपोक सुवरों का झुंड देखा है? उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं की हम क्या करते है, उन्हें परवाह है तो इस बात की हम कहीं काम करते वक्त पकडे ना जाएं। भला बॉण्ड इतना बेवकुफ़ कैसे हो सकता है? मैने उसे डबल-ओ का दर्जा दिया और उसने दुतावास उडा कर उसका जश्न मनाया! और भला वह है कहां? पुराने दिनों में अगर कोई ऐजंट बेवकुफ़ी करता तो उसमें इतनी समझ होती की वह अपना इस्तिफ़ा दे दे। हे ईश्वर, मैं शित युद्ध को कितना मिस करती हुँ।
+ड्रायडेन बॉण्ड पर बन्दुक तानते हुए शरम की बात है। हम एक दुसरे को पहचान नहीं पाएं।
+ड्रायडेन ट्रिगर दबाता है पर कुछ नहीं होता
+बॉण्ड वैसे भी डबल-ओ की ज़िंदगी काफ़ी छोटी होती है, आपकी गलती ज़्यादा दिन रही रहेगी।
+वेस्पर लैंड बॉण्ड, उम्मिद करती हुँ की हम दोनो एक दुसरे को अच्छे से समझते है।
+बॉण्ड ताश में हार कर आता है
+फोन की घंटी बजती है है
+फ़ोन पर आवाज़ क्या मैं मिस्टर वाइट से बात कर सकता हुँ?
+वाइट को पैर पर गोली लगती है और वह रेंगते हुए घर की सिढियों तक जाता है। तभी बॉण्ड हात में बन्दुक लिए उसके साम���े आता है
+बॉण्ड नाम है बॉण्ड जेम्स बॉण्ड।
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+* डॉन के दुश्मन को हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए की डॉन कभी कुछ नहीं भूलता।
+* ताकत एक नशा है, और मैं उस नशा बनाने वाली फैक्ट्री का इकलौता मालिक हूँ।
+* डॉन आदमी का नाम भूल सकता है लेकिन यह नहीं भूलेगा की उसे दफनाया कहां था।
+* डॉन के दुश्मन, डॉन के हाथों मरने के लिए ही पैदा होते है।
+* डॉन के दुश्मन की सबसे बड़ी गलती यह है कि वह डॉन का दुश्मन है।
+* डॉन का इंतज़ार तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस कर रही है मगर डॉन को पकड़ना मुश्किल नहीं नामुमकिन है।
+* डॉन के दुश्मन जब अपनी पहली चाल चलते हैं, तब तक डॉन अपनी दूसरी चाल चल चूका होता है..
+* तख़्त की परवाह बादशाह से ज़्यादा उसके वज़ीर को होती है।
+आईशा (लारा दत्ता डी ज़ी बी का वाइस-प्रेज़िडेंट इन्डियन है?
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+1. नाक में दम करना-(बहुत तंग करना आतंकवादियों ने सरकार की नाक में दम कर रखा है।
+5. नाक कटना-(प्रतिष्ठा नष्ट होना अरे भैया आजकल की औलाद तो खानदान की नाक काटकर रख देती
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+कोई भी विकि पर पंजीकृत होकर सदस्य बन सकता है। इसके अलावा कोई भी बिना खाता निर्माण के भी अपना योगदान दे सकता है।
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+* गरीबी बहुआयामी है। यह हमारी कमाई के अलावा स्वास्थ, राजनीतिक भागीदारी, और हमारी संस्कृति और सामाजिक संगठन की उन्नति पर भी असर डालती है।
+* भारत में भारी जन भावना थी कि पाकिस्तान के साथ तब तक कोई सार्थक बातचीत नहीं हो सकती जब तक कि वो आतंकवाद का प्रयोग अपनी विदेशी नीति के एक साधन के रूप में करना नहीं छोड़ देता।
+* मैं हिन्दू परम्परा में गर्व महसूस करता हूँ लेकिन मुझे भारतीय परम्परा में और ज्यादा गर्व है।
+* मुझे अपने हिंदुत्व पर अभिमान है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं मुस्लिम-विरोधी हूँ।
+* आप दोस्तों को बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसियों को नहीं।
+* जलना होगा, गलना होगा। कदम मिलकर चलना होगा।
+* एटम बम का जवाब क्या है? एटम बम का जवाब एटम बम है और कोई जवाब नहीं।
+* कोई इस बात से इंकार नहीं कर सकता है कि देश मूल्यों के संकट में फंसा है।
+* मुझे शिक्षकों का मान-सम्मान करने में गर्व की अनुभूति होती है। अध्यापकों को शासन द्वारा प्रोत्साहन मिलना चाहिए। प्राचीनकाल में अध्यापक का बहत सम्मान था। आज तो अध्यापक पिस रहा है।
+* हमें उम्मीद है कि दुनिया प्रबुद्ध स्वार्थ की भावना से कार्य करेगी।
+* गरीबी बहुआयामी ��ै। यह पैसे की आय से परे शिक्षा, स्वास्थ्य की देखरेख, राजनीतिक भागीदारी और व्यक्ति की अपनी संस्कृति और सामाजिक संगठन की उन्नति तक फैली हुई है।
+* एक विरोधी के द्वारा हमारे परमाणु हथियारों को विशुद्ध रूप से परमाणु अभियान के विरुद्ध धमकाने के रूप में बताता हैं।
+* जो लोग हमें पूछते हैं कि हम पाकिस्तान के साथ वार्ता कब करेंगे शायद वे यह नहीं जानते हैं की पिछले 55 सालों में, पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए हर पहल निरपवाद रूप से भारत ने ही की है।
+* वैश्विक स्तर पर आज परस्पर निर्भरता का मतलब विकाशशील देशों में आर्थिक आपदाओं का विकसित देशों पर प्रतिघात करना होगा।
+* हमें विश्वास है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और बाकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर पाकिस्तान के भारत के विरुद्ध सीमा पार आतंकवाद को स्थाई और पारदर्शी रूप से खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।
+* वास्तविकता यह है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं भी केवल उतनी ही प्रभावी हो सकती है जितनी उसके सदस्यों की अनुमति है।
+* एक सार्वभौमिक धारणा से संयुक्त राष्ट्र की अनोखी वैधता बह रही है कि यह एक देह या देशों के एक छोटे से समूह के हितों की तुलना में एक बड़े उद्देश्य को पाने की कोशिश करती है।
+* एक अंतर्निहित दृढ विश्वास था की संयुक्त राष्ट्र अपने घटक सदस्य देशों के योग से अधिक मजबूत होगा।
+* ऐसे किसी देश को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक गठबंधन के साथ साझेदारी की अनुमति नहीं दी जनी चाहिए जबकि वो आतंकवाद को सहायता करने, उकसाने और प्रायोजित करने लगा हुआ हो।
+* सेवा कार्यों की उम्मीद सरकार से नहीं की जा सकती। उसके लिए समाजसेवी संस्थाओं को ही आगे उठना पड़ेगा।
+* भारत के ऋषिओं-महर्षियों ने जिस एकात्मक जीवन के ताने बने को बुना था, आज वह उपहास का विषय बनाया जा रहा है।
+* पड़ोसी कहते हैं कि एक हाथ से ताली नहीं बजती, हमने कहा कि चुटकी तो बज सकती है।
+* आदमी को चाहिए कि वह परिस्थितियों से लादे, एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े।
+* मनुष्य का जीवन अनमोल निधि है। पुण्य का प्रसाद है। हम सिर्फ अपने लिए न जिएं, ओरों के लिए भी जिएं, औरों के लिए भी जिए।
+* जीवन जीना एक कला है। एक विज्ञान है दोनों का समन्वय आवश्यक है।
+* आदमी की पहचान उसके धन या आसन से नहीं होती, उसके मन से होती है। मन की फकीरी पर कुबेर की संप���ा भी रोती है।
+* कपड़ों की दुधिया सफेदी जैसे मन की मलिनता को नहीं छिपा सकती।
+* पृथ्वी पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जो भीड़ में अकेला और अकेले में भीड़ से घिरे होने का अनुभव करता है।
+* टूट सकते हैं मगर झुक नहीं सकते।
+* पौरुष, पराक्रम वीरता हमारे रक्त के रंग में मिली है। यह हमारी महान परम्परा का अंग है। यह संस्कारों द्वारा हमारे जीवन में ढाली जाती है।
+* देश एक मन्दिर है, हम पुजारी हैं, राष्ट्रदेव की पूजा में हमने अपने को समर्पित कर देना चाहिए।
+* हम अहिंसा में आस्था रखते हैं और चाहते हैं कि वैश्विक के संघर्षों का समाधान शांति और समझौते के मार्ग से हो।
+* मानव और मानव के बिच में जो भेद की दीवारें कड़ी हैं, उनको ढहाना होगा, और इसके लिए एक राष्ट्रिय अभियान की आवश्यकता है।
+* यह संघर्ष जितने बलिदान की मांग करेगा, वे बलिदान दिए जाएंगे, जितने अनुशासन का तकाजा होगा, यह देश उतने अनुशासन का परिचय देगा।
+* वर्तमान शिक्षा पद्धति की विकृतियों से, उसके दोषों से, कमियों से सारा देश परिचित है। मगर नई शिक्षा नीति कहां है?
+* शहीदों का रक्त अभी गीला है और चिता की रख में चिंगारियां बाकी हैं। उजड़े हुए सुहाग और जंजीरों में जकड़ी हुई जवानियाँ उन उग्त्याचारों की गवाह हैं।
+* इतिहास ने, भूगोल ने, परंपरा ने, संस्कृति ने, धर्म ने, नदियों ने हमें आपस में बांधा है।
+* मनुष्य-मनुष्य के बीच में भेदभाव का व्यवहार चल रहा है। इस समस्या का हल करे के लिए हमें एक राष्ट्रित अभियान की आवश्यकता है।
+* राष्ट्र कुछ संप्रदायों अथवा जनसमूहों का सम्मुचय मात्र नहीं, अपितु एक जीवमान ईकाई है।
+* हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव के कल्याण तथा उसकी कीर्ति के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे पग नहीं हटाएंगे।
+* इतिहास में हुई भूल के लिए आक किसी से बदला लेने का समय नहीं है, लेकिन उस भूल को ठीक करने का सवाल है।
+* कंधों से कंधा लगाकर, कदम से कदम मिलकर हमें अपनी जीवन यात्रा को ध्येय सिद्धि के शिखर तक ले जाना है। भावी भारत हमारे प्रयत्नों और परिश्रम पर निर्भर करता है। हम अपना कर्तव्य पालन करें, हमारी सफलता सुनिश्चित है।
+* हरिजनों के कल्याण के साथ गिरिजनों तत्गा अन्य कबीलों की दशा सुधरने का प्रश्न भी जुड़ा हुआ है।
+* अमावस के अभेद्य अंधकार का अंतःकरण पूर्णिमा की उज्ज्वलता का स्मरण कर थर्रा उठता है।
+* जीवन के फूल को पूर्ण ताकत से खिलाएं।
+* इस देश में पुरुषार्थी नवजवानों की कमी नहीं है, लेकिन उनमे से कोई कार बनाने का कारखाना नहीं खोल सकता, क्योंकि किसी को प्रधानमंत्री के घर में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त नहीं है।
+* देश को हमसे बड़ी आशाएं हैं। हम परिस्थिति की चुनौती को स्वीकार करें। आँखों में एक महान भारत के सपने, ह्रदय में उस सपने को सत्य सृष्टि में परिणत करने के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा करने का संकल्प, भुजाओं में समूची भारतीय जनता जो समेटकर उसे सीने से लगाए रखने का सात्विक बल और पैरों में युग परिवर्तन की गति लेकर हमें चलना है।
+* अगर भारत को बहु राष्ट्रीय राज्य के रूप में वर्णित करने की प्रवृति को समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो भारत के अनेक टुकड़ों में बंट जाने का खतरा पैदा हो जाएगा।
+* भारत के प्रति अनन्य निष्ठा रखने वाले सभी भारतीय एक हैं, फिर उनका मजहब, भाषा तथा प्रदेश कोई भी क्यों न हो।
+* कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ यह भारत एक राष्ट्र है, अनेक राष्ट्रीयताओं का समूह नहीं।
+* देश एक रहेगा तो किसी एक पार्टी की वजह से एक नहीं रहेगा, किसी एक व्यक्ति की वजह से एक नहीं रहेगा, किसी एक परिवार की वजह से एक नहीं रहेगा। देश एक रहेगा तो देश की जनता की देशभक्ति की वजह से रहेगा।
+* भारतीयकरण का एक ही अर्थ है भारत में रहने वाले सभी व्यक्ति, चाहे उनकी भाषा कुछ भी हो, वह भारत के प्रति अनन्य, अविभाज्य, अव्यभिचारी निष्ठा रखें।
+* मजहब बदलने से न राष्ट्रीयता बदलती है और न संस्कृति में परिवर्तन होता।
+* सभ्यता कलेवर है, संस्कृति उसका अन्तरंग। सभ्यता सूल होती है, संस्कृति सूक्ष्म। सभ्यता समय के साथ बदलती है, किंतु संस्कृति अधिक स्थायी होती है।
+* मनुष्य जीवन अनमोल निधि है, पुण्य का प्रसाद है। हम केवल अपने लिए न जिएं, औरों के लिए भी जिएं। जीवन जीना एक कला है, एक विज्ञान है। दोनों का समन्वय आवश्यक है।
+* नर को नारायण का रूप देने वाले भारत ने दरिद्र और लक्ष्मीवान, दोनों में एक ही परम तत्त्व का दर्शन किया है।
+* समता के साथ ममता, अधिकार के साथ उगत्मीयता, वैभव के साथ सादगी-नवनिर्माण के प्राचीन स्तंभ हैं।
+* भगवान जो कुछ करता है, वह भलाई के लिए ही करता है।
+* जीवन को टुकड़ों में नहीं बांटा जा सकता, उसका पूर्णता में ही विचार किया जाना चाहिए।
+* साहित्य और राजनीति के कोई अलस-अलग खाने नहीं हो��े। जो राजनीति में रुचि लेता है, वह साहित्य के लिए समय नहीं निकाल पाता और साहित्यकार राजनीति के लिए समय नहीं दे पाता, लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं, जो दोनों के लिए समय देते हैं। वे अभिनन्दनीय हैं।
+* साहित्यकार का हृदय दया, क्षमा, करुणा और प्रेम से आपूरित रहता है। इसलिए वह खून की होली नहीं खेल सकता।
+* मेरे भाषणों में मेरा लेखक ही बोलता है, पर ऐसा नहीं कि राजनेता मौन रहता है। मेरे लेखक और राजनेता का परस्पर समन्वय ही मेरे भाषणों में उतरता है। यह जरूर है कि राजनेता ने लेखक से बहुत कुछ पाया है। साहित्यकार को अपने प्रति सच्चा होना चाहिए। उसे समाज के लिए अपने दायित्व का सही अर्थों में निर्वाह करना चाहिए। उसके तर्क प्रामाणिक हो। उसकी दृष्टि रचनात्मक होनी चाहिए। वह समसामयिकता को साथ लेकर चले, पर आने वाले कल की चिंता जरूर करे।
+* सदा से ही हमारी धार्मिक और दार्शनिक विचारधारा का केन्द्र बिंदु व्यक्ति रहा है। हमारे धर्मग्रंथों और महाकाव्यों में सदैव यह संदेश निहित रहा है कि समस्त ब्रह्मांड और सृष्टि का मूल व्यक्ति और उसका संपूर्ण विकास है।
+* शिक्षा आज व्यापार बन गई है। ऐसी दशा में उसमें प्राणवत्ता कहां रहेगी? उपनिषदों या अन्य प्राचीन ग्रंथों की उगेर हमारा ध्यान नहीं जाता। आज विद्यालयों में छात्र थोक में आते हैं।
+* शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। व्यक्तित्व के उत्तम विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आदर्शों से युक्त होना चाहिए। हमारी माटी में आदर्शों की कमी नहीं है। शिक्षा द्वारा ही हम नवयुवकों में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत कर सकते हैं।
+* निरक्षरता और निर्धनता का बड़ा गहरा संबंध है।
+* शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। ऊंची-से-ऊंची शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जानी चाहिए।
+* मोटे तौर पर शिक्षा रोजगार या धंधे से जुड़ी होनी चाहिए। वह राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में सहायक हो और व्यक्ति को सुसंस्कारित करे।
+* हिन्दी की कितनी दयनीय स्थिति है, यह उस दिन भली-भांति पता लग गया, जब भारत-पाक समझौते की हिन्दी प्रति न तो संसद सदस्यों को और न हिन्दी पत्रकारों को उपलब्ध कराई गई।
+* हिन्दी वालों को चाहिए कि हिन्दी प्रदेशों में हिन्दी को पूरी तरह जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रतिष्ठित करें।
+* हिन्दी को अपनाने का फैसला केवल हिन्दी वालों ने ही नहीं किया��� हिन्दी की आवाज पहले अहिन्दी प्रान्तों से उठी। स्वामी दयानन्दजी, महात्मा गांधी या बंगाल के नेता हिन्दीभाषी नहीं थे। हिन्दी हमारी आजादी के आनंदोलन का एक कार्यक्रम बनी।
+* भारत की जितनी भी भाषाएं हैं, वे हमारी भाषाएं हैं, वे हमारी अपनी हैं, उनमें हमारी आत्मा का प्रतिबिम्ब है, वे हमारी आत्माभिव्यक्ति का साधन हैं। उनमें कोई छोटी-बड़ी नहीं है।
+* राष्ट्र की सच्ची एकता तब पैदा होगी, जब भारतीय भाषाएं अपना स्थान ग्रहण करेंगी।
+* हिन्दी का किसी भारतीय भाषा से झगड़ा नहीं है। हिन्दी सभी भारतीय भाषाओं को विकसित देखना चाहती है, लेकिन यह निर्णय संविधान सभा का है कि हिन्दी केन्द्र की भाषा बने।
+* हमारा लोकतंत्र संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लोकतंत्र की परंपरा हमारे यहां बड़ी प्राचीन है। चालीस साल से ऊपर का मेरा संसद का अनुभव कभी-कभी मुझे बहुत पीड़ित कर देता है। हम किधर जा रहे हैं?
+* भारत के लोग जिस संविधान को आत्म समर्पित कर चुके हैं, उसे विकृत करने का अधिकार किसी को नहीं दिया जा सकता।
+* लोकतंत्र बड़ा नाजुक पौधा है। लोकतंत्र को धीरे- धीरे विकसित करना होगा। केन्द्र को सबको साथ लेकर चलने की भावना से आगे बढ़ना होगा।
+* अगर किसी को दल बदलना है तो उसे जनता की नजर के सामने दल बदलना चाहिए। उसमें जनता का सामना करने का साहस होना चाहिए। हमारे लोकतंत्र को तभी शक्ति मिलेगी जब हम दल बदलने वालों को जनता का सामना करने का साहस जुटाने की सलाह देंगे।
+* लोकतंत्र वह व्यवस्था है, जिसमें बिना मृणा जगाए विरोध किया जा सकता है और बिना हिंसा का आश्रय लिए शासन बदला जा सकता है।
+* जातिवाद का जहर समाज के हर वर्ग में पहुंच रहा है। यह स्थिति सबके लिए चिंताजनक है। हमें सामाजिक समता भी चाहिए और सामाजिक समरसता भी चाहिए।
+* कुर्सी की मुझे कोई कामना नहीं है। मुझे उन पर दया आती है जो विरोधी दल में बैठने का सम्मान छोड्कर कुर्सी की कामना से लालायित होकर सरकारी पार्टी का पन्तु पकड़ने के लिए लालायित हैं।
+* भारत की सुरक्षा की अवधारणा सैनिक शक्ति नहीं है। भारत अनुभव करता है सुरक्षा आन्तरिक शक्ति से आती है।
+* बिना हमको सफाई का मौका दिए फांसी पर चढ़ाने की कोशिश मत करिए, क्योंकि हम मरते-मरते भी लड़ेंगे और लड़ते-लड़ते भी मरने को तैयार हैं।
+* राजनीति काजल की कोठरी है। जो इसमें जाता है, काला होकर ही निकलता है। ऐसी रा���नीतिक व्यवस्था में ईमानदार होकर भी सक्रिय रहना, बेदाग छवि बनाए रखना, क्या कठिन नहीं हो गया है?
+* मेरा कहना है कि सबके साथ दोस्ती करें लेकिन राष्ट्र की शक्ति पर विश्वास रखें। राष्ट्र का हित इसी में है कि हम आर्थिक दृष्टि से सबल हों, सैन्य दृष्टि से स्वावलम्बी हों।
+* पाकिस्तान कश्मीर, कश्मीरियों के लिए नहीं चाहता। वह कश्मीर चाहता है पाकिस्तान के लिए। वह कश्मीरियों को बलि का बकरा बनाना चाहता है।
+* मैं पाकिस्तान से दोस्ती करने के खिलाफ नहीं हूं। सारा देश पाकिस्तान से संबंधों को सुधारना चाहता है, लेकिन जब तक कश्मीर पर पाकिस्तान का दावा कायम है, तब तक शांति नहीं हो सकती।
+* पाकिस्तान हमें बार-बार उलझन में डाल रहा है, पर वह स्वयं उलझ जाता है। वह भारत के किरीट कश्मीर की ओर वक्र दृष्टि लगाए है। कश्मीर भारत का अंग है और रहेगा। हमें पाकिस्तान से साफ-साफ कह देना चाहिए कि वह कश्मीर को हथियाने का इरादा छोड़ दे।
+* दरिद्रता का सर्वथा उन्मूलन कर हमें प्रत्येक व्यक्ति से उसकी क्षमता के अनुसार कार्य लेना चाहिए और उसकी आवश्यकता के अनुसार उसे देना चाहिए।
+* संयुक्त परिवार की प्रणाली सामाजिक सुरक्षा का सुंदर प्रबंध था, जिसने मार्क्स को भी मात कर दिया था।
+* समता के साथ ममता, अधिकार के साथ आत्मीयता, वैभव के साथ सादगी-नवनिर्माण के प्राचीन आधारस्तम्भ हैं। इन्हीं स्तम्भों पर हमें भावी भारत का भवन खड़ा करना है।
+* अगर भ्रष्टाचार का मतलब यह है कि छोटी-छोटी मछलियों को फांसा जाए और बड़े-बड़े मगरमच्छ जाल में से निकल जाएं तो जनता में विश्वास पैदा नहीं हो सकता। हम अगर देश में राजनीतिक और सामाजिक अनुशासन पैदा करना चाहते हैं तो उसके लिए भ्रष्टाचार का निराकरण आवश्यक है।
+* अन्न उत्पादन के द्वारा आत्मनिर्भरता के बिना हम न तो औद्योगिक विकास का सुदृढ़ ढांचा ही तैयार कर सकते है और न विदेशों पर अपनी खतरनाक निर्भरता ही समाप्त कर सकते हैं।
+* कृषि-विकास का एक चिंताजनक पहलू यह है कि पैदावार बढ़ते ही दामों में गिरावट आने लगती है। हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव के कल्याण तथा उसकी कीर्ति के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे पग नहीं हटाएंगे।
+* मानव और मानव के बीच में जो भेद की दीवारें खड़ी हैं, उनको ढहाना होगा, और इसके लिए एक राष्ट्रीय अभियान की आवश्यकता है।
+* अस्पृश्यता कानून के व���रुद्ध ही नहीं, वह परमात्मा तथा मानवता के विरुद्ध भी एक गंभीर अपराध है।
+* इतिहास ने, भूगोल ने, परम्परा ने, संस्कृति ने, धर्म ने, नदियों ने हमें आपस में बांधा है।
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+रंगभूमि प्रेमचंद की रचना है। इसे मंगला प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित की गई थी तथा अपने समय में लोकप्रिय हुई थी।
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+स्वतः स्थापित सदस्य कोई भी 10 सम्पादन और 4 दिनों के बाद अपने आप ही बन जाता है। इसके द्वारा किसी पृष्ठ को स्थानांतरण करने और अर्ध-सुरक्षित पृष्ठों को सम्पादन का अधिकार मिल जाता है।
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+* हमें (भारत को) गर्व करना चाहिए कि हमारे पास एक कार्यशील लोकतंत्र है।
+भारत के सामने कई समस्याएँ हैं। कहीं बढ़ते साम्प्रदायिक तनाव की समस्या है तो कहीं क्षेत्रीय और जातीय तनाव की समस्या है। कहीं आतंकवाद की तो कहीं नक्सलवाद की समस्या है।
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+* युवा सबसे समझदार दर्शक होते हैं. उन्हें मनोरंजन चाहिए होता है, मुद्दे नहीं.
+* भारत में सिनेमा सुबह उठ कर ब्रश करने की तरह है। आप इससे बच नहीं सकते.
+* कामयाबी और नाकामयाबी दोनों ज़िन्दगी के हिस्से है। दोनों ही स्थायी नहीं हैं.
+* मैं अपने बच्चों को नहीं सिखाता की हिन्दू क्या है मुस्लिम क्या है।
+* मैं वास्तव में यकीन करता हूँ कि मेरा काम ये सुनिश्चित करना है की लोग हंसें।
+* मैं झूठ बोल सकता हूँ कि मेरी बीवी मेरे लिए खाना बनाती है, लेकिन ऐसा नहीं है। मेरी बीवी ने कभी खाना बनाना नहीं सीखा लेकिन उसके पास घर पे बहुत अच्छे कुक्स हैं.
+* जहाँ तक जनता का सवाल है, भारत आश्चर्यजनक रूप से धर्मनिरपेक्ष है।
+* मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है की जब फिल्म को एक छोटे शेड्यूल में शूट किया जाता है तो वो अच्छी बनती है, ऊपर से एक्टर्स भी तनाव में नहीं आते.
+*चाहे लोग इसे पसंद करें या नहीं, मेरी मार्केटिंग की सोच ये है कि अगर आप कोई चीज लम्बे समय तक लोगों के सामने रखते हैं तो उन्हें इसकी आदत पड़ जाती है.
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+* मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मैंने देश भारत के लिए क्रिकेट खेला। यह देश का सबसे बड़ा खेल है। यहाँ तो इसे धर्म का दर्जा प्राप्त है और ऐसे देश के लिए खेलकर मैं धन्य महसूस करता हूँ।
+| title भाग्यशाली हूं कि भारत के लिए खेलने का मौका मिला राहुल द्रविड़
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+: मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
+: दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
+* इच्छाओं का दामन छोटा मत करो, जिंदगी के फल को दोनों हाथों से दबा कर निचोड़ो।
+* जिस काम से आत्मा सन्तुष्ट रहें उसी से चेतना भी संतुष्ट रहती है।
+* दूसरों की निंदा करने से आप अपनी उन्नति को प्राप्त नही कर सकते। आपकी उन्नति तो तभी होगी जब आप अपने आप को सहनशील और अपने अवगुणों को दूर करेंगे।
+* मित्रों का अविश्वास करना बुरा है, उनसे छला जाना कम बुरा है।
+* ईष्या की बड़ी बहन का नाम है निंदा। जो इंसान ईष्यालु होता है, वही बुरा निंदक भी होता है।
+* लोग हमारी चर्चा ही न करें, यह अधिक बुरा है। वे हमारी निंदा करें यह कम बुरा है।
+* उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम, देश में जितने भी हिन्दू बसते हैं, उनकी संस्कृति एक है एवं भारत की प्रत्येक क्षेत्रीय वि���ेषता हमारी सामासिक संस्कृति की ही विशेषता है।
+* हम तर्क से पराजित होने वाली जाती नहीं हैं। हाँ, कोई चाहे तो नम्रता, त्याग और चरित्र से हमें जीत सकता है।
+* विद्द्या समुद्र की सतह पर उठती हुई तरंगों का नाम है। किन्तु, अनुभूति समुद्र की अंतरात्मा में बसती है।
+* हमारा धर्म पंडितों की नहीं, संतों और द्रष्टाओं की रचना है। हिंदुत्व का मूलाधार विद्या और ज्ञान नहीं है, सीधी अनुभूति है।
+* धर्म अनुभूति की वस्तु है और धर्मात्मा भारतवासी उसी को मानते आये हैं, जिसने धर्म के महा सत्यों को केवल जाना ही नहीं उनका अनुभव और साक्षात्कार भी किया है।
+* परिपक्व मनुष्य जाति भेद को नहीं मानता।
+* अवसर कोई ऐसी चीज नहीं है जो रोटी-दाल की तरह सबके सामने परोसा जा सके। उसे पाने के लिए अपने गुणों का विकास करना होता है। तत्परता, मुस्तैदी और धीरता भी रखनी होती है और साथ ही उम्र तथा अनुभवों का ध्यान रखना पड़ता है।
+* कोई भी मनुष्य दूसरों की निंदा करने से अपनी उन्नति नहीं कर सकता। उन्नति तो उसकी तभी होगी, जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाए तथा अपने गुणों का विकास करे।
+* जो मनुष्य अनुभव के दौर से होकर गुजरने से इंकार करता है, मेहनत से भाग कर आराम की जगह पर पहुँचने के लिए बेचैन है, उसकी यह बेचैनी ही इस बात का सबूत है कि वह अपने संगठन का अच्छा नेता नहीं बन सकता।
+* हम जिस समाज में रह रहे हैं उसके प्रोप्रायटर राजनीतिज्ञ हैं, मैनेजर अफसर हैं, बुद्धिजीवी मजदूर हैं।
+* मैं तीन चिंताओं का शिकार रहा हूं। अधूरी किताब की चिंता, अधूरे मकान की चिंता, अधूरे बेटे की चिंता।
+* विद्वानों ओर लेखकों के सामने सरलता सबसे बड़ी समस्या है।
+* सौन्दर्य के तूफान में बुद्धि को राह नहीं मिलती। वह खो जाती है, भटक जाती है। यह पुरुष की चिरन्तर वेदना है।
+* जैसे सभी नदियाँ समुद्र में विलीन हो जाती हैं, वैसे ही सभी गुण अंततः स्वार्थ में विलीन हो जाते हैं।
+* अभिनन्दन लेने से इनकार करना, उसे दोबारा मांगने की तैयारी है।
+* सतत चिन्ताशील व्यक्ति का कोई मित्र नहीं बनता।
+* रोटी के बाद मनुष्य की सबसे बड़ी कीमती चीज उसकी संस्कृति होती है।
+* हम तर्क से पराजित होने वाले नहीं हैं। हाँ, यदि कोई चाहे तो प्यार, त्याग और चरित्र से हमें जीत सकता है।
+: जीवन-जय या कि मरण होगा।
+: विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं।
+: कभी भाग्य के बल से
+: उद्यम से श्रमजल से।
+: जब वे सुख में होते हैं,
+: जब वे दुख में होते हैं।
+: सचमुच, उसके लिए उसे सब-कुछ देना पड़ता है।
+* कविता वह सुरंग है जिसमें से गुजर कर
+: मानव एक संसार को छोड़कर दूसरे संसार में चला जाता है।
+: रवि-समान दीपित ललाट से और कवच-कुण्डल से,
+: यदि दुःख में साथ न दें अपना,
+: मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
+: दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
+: नरों में वह प्रेम केवल कलाकारों में अधिक से अधिक काल तक जीवित रहता है।
+* ज्ञान का साहित्य मनुष्य किसी भी भाषा में लिख सकता है,
+: जिससे उसने भलीभाँति सीख लिया हो।
+: किन्तु रस का साहित्य वह केवल अपनी भाषा में रच सकता है।
+* महाप्रलय की ओर सभी को इस मरू में चलते देखा,
+* लोग हमारी चर्चा ही न करें, यह अधिक बुरा है।
+: वे हमारी निंदा करें, यह कम बुरा है।
+* जन-जन स्वजनों के लिए कुटिल यम होगा,
+: परिजन, परिजन के हित कृतान्त-सम होगा ।
+: नर ही नर के शोणित में स्नान करेंगे।
+* जिसके मस्तक के शासन को
+: वह कदर्य भी कर सकता है
+: जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर नाम किया।
+: मनुष्य और किसी से नहीं,
+: अपने आविष्कार से हारेगा॥
+: पहले विवेक मर जाता है। रश्मिरथी
+: तू स्वयं तेज भयकारी है, क्या कर सकती चिनगारी है?
+: जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध॥
+: सकेगा इसको कौन सँभाल?
+: जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ?
+: देंगे जान नहीं ईमान,
+* मृतकों से पटी हुई भू है,
+: देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में ।
+* उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है
+* एक भेद है और वहां निर्भय होते नर-नारी,
+: मगर ऐसी, कि फलों में
+: अपनी मिट्टी का स्वाद रहे॥
+* दूसरों की निंदा करने से आप
+: अपनी उन्नति को प्राप्त नहीं कर सकते।
+: आपकी उन्नति तो तभी होगी जब आप अपने आप को
+: सहनशील और अपने अवगुणों को दूर करेंगे।
+: वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।
+: धनुष छोड़ कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का ?
+: पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,
+: जाति जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर।
+: दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।
+: होकर सुख-समृद्धि के अधीन,
+: करते मनुष्य का तेज हरण।
+: नर वैभव हेतु ललचाता है,
+: पर वही मनुज को खाता है॥
+: पर अमृत क्लेश का पिए बिना,
+: आताप अंधड़ में जिए बिना।
+: वह पुरुष नहीं कहला सकता,
+: विघ्नों को नही हिला सकता॥
+
+
+* यह एक रणक्षेत्र है, मेरा शरीर, जिसने बहुत कुछ सहा है। अमिताभ बच्चन
+* मैं कभी एक सुपरस्टार नहीं रहा और कभी इसमें यकीन नहीं किया अमिताभ बच्चन
+* में कभी भी अपने करिअर के बारे में आश्वस्त नहीं रहा.
+* भारत सरकार ने अमिताभ बच्चन जी को १९८४ में पदमा श्री और २००१ में पदमा भूषण से सम्मानित किया.
+* ७० साल की उम्र में भी वो ज़बरदस्त ऊर्जा से काम कर रहे हैं। जो आज के मेनस्ट्रीम कलाकार हैं, अगर कल को उन्हें बुढ़ापे में भी मज़बूत रोल मिलते हैं तो वो सिर्फ बच्चन जी की वजह से मुमकिन होगा।
+
+
+आमिर खान के बारे में
+* झूठी कूटनीति और बहानेबाजी की इस दुनिया में आमिर स्पष्ट रुप से अपनी बात रखते हैं।
+| title दुनिया की सौ सबसे प्रभावशाली हस्तियों में आमिर और चिदंबरम
+* भारतीय फिल्म पुरस्कार विश्वसनीयता की कमी है।
+27 फरवरी 2008 को प्रश्न पूछने पर कि "वे किसी पुरस्कार समारोह में क्यों नहीं जाते हैं?"
+
+
+* यदि आप चाहते हैं कि आपकी जिज्ञासा चिरयुवा रहे, प्रश्नाकुलता मरे नहीं तो जितना भी आप से बन पड़े, बच्चों के सान्निध्य में रहें. लेकिन यदि आप नएपन से ऊब चुके हैं, यथास्थिति भंग नहीं करना चाहते तो आपके लिए उचित होगा कि किसी तांत्रिक, ओझा, पुजारी या धर्माचार्य की शरण ले लें. — परीकथाओं का मनोविज्ञान
+प्रत्येक धर्म व्यवहार में नैतिकता की बात करता है, संगठन की बात करता है, कल्याण की बात करता है. सबको साथ लेकर चलने की बात करता है. लेकिन जब वास्तविक फल की बात आती है. लक्ष्य की बात आती है, परिणाम से गुजरने की बात आती है तो वह प्राणी को अकेला छोड़ देता है. स्वर्ग के बहाने, जन्नत के बहाने, मोक्ष और कैवल्य के बहाने—उसकी रीति-नीति व्यक्ति को अंततः अकेला कर देने की होती है. — बालशिक्षा और लोकतंत्रीय संस्कार।
+शिक्षा का प्रथम ध्येय उन जिज्ञासाओं का समाधान करना है उसका वास्तविक कर्म है बालक की प्रश्नाकुलता को बढ़ावा देना. उसके व्यक्तित्व का परिष्कार करना, आत्मविश्वास को बढ़ाना. यह तभी संभव है बालकों को बताया जाए कि मानवीय सभ्यता ने शताब्दियों में जो प्रगति की है. वह सिर्फ और सिर्फ मानवीय श्रम-कौशल की देन है. उसके पीछे न तो कोई चमत्कार है न ऊपरी कृपा. दुनिया में जिन्होंने भी विलक्षण कार्य किया, जो-जो लोग महान कहलाए, जिन्होंने इतिहास की धारा को मोड़ने का युगांतरकारी कार्य किया, बाकी लोगों तथा उनमें बस इतना अंतर था कि वे अपने सपने को संकल्प में ढालना चाहते थे. इसलिए उन्होंने पलायन के बजाय प्रयाण का वरण किया. भागने के बजाय दुनिया को बदलना बेहतर समझा. मनुष्यता में विश्वास, इसलिए मानवमात्र के कल्याण की राह बनाते समय उन्होंने अपने सुख की परवाह तक नहीं की. उनके लिए लौकिक लक्ष्य निजी सुख-दुख से कही बड़े थे. — बालशिक्षा और लोकतंत्रीय संस्कार।
+धार्मिक प्रवचन के दौरान उपस्थित भीड़ का आचरण बाड़े में कैद कर दी गई भेड़ों की तरह होता है, जो अपने ग्वाले द्वारा इधर से उधर हांक दी जाती हैं. — हिंदू धर्म अंध-आस्था का सांस्थानीकरण
+
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+: जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है।
+: बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है। उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता।
+: जो परिकलन करता और गिनता है, वह गणित है तथा वह विज्ञान जो इसका आधार है वह भी गणित कहलाता है।
+: खगोल तथा गणित में एक दूसरे से अनभिज्ञ पुरुष उसी प्रकार महत्त्वहीन है जैसे घृत के बिना व्यंजन, राजा के बिना राज्य, तथा अच्छे वक्ता के बिना सभा महत्वहीन होती है।
+* काफी हद तक गणित का संबन्ध (केवल) सूत्रों और समीकरणों से ही नहीं है। इसका सम्बन्ध सी.डी से कैट-स्कैन से पार्किंग-मीटरों से राष्ट्रपति-चुनावों से और कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है। गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिए है, ताकि हम उन समस्याओं को हल कर सकें जो अर्थपूर्ण हैं।
+* गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है; एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी।
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+* धर्म, कला और विज्ञान वास्तव में एक ही वृक्ष की शाखा-प्रशाखाएं हैं अल्बर्ट आइंस्टीन
+* प्रत्येक विज्ञान, दर्शन के रूप में शुरू होता है और कला के रूप में समाप्त होता है। विल ड्यूरेंट
+* प्रश्न पूछने की कला और विज्ञान सभी ज्ञान का स्रोत है। थॉमस बर्गर
+* अवलोकन एक निष्क्रिय विज्ञान है, प्रयोग एक सक्रिय विज्ञान है। क्लाउड बर्नार्ड
+* मनोविज्ञान, मनुष्य सहित जानवरों के बुद्धि, चरित्र और व्यवहार का विज्ञान है। एडवर्ड थोरंडिक
+* धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है। अल्बर्ट आइंस्टीन
+* हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते। अगर ऐसा करने की कोशिश करें, तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जाएँगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं। रिचर्ड फ़ेनिमैन
+* आज का विज्ञान कल की तकनीक है। एडवर्ड टेलर
+* आवश्यकता डीजाइन का आधार है। किसी चीज को जरुरत से अल्पमात्र भी बेहतर डीजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है। अज्ञात
+* कला जीवन का पेड़ है, विज्ञान मृत्यु का वृक्ष है। विलियम ब्लेक
+* कोई विज्ञान राजनीति के संक्रमण और सत्ता के भ्रष्टाचार से मुक्ति है। याकूब ब्रोनोव्स्की
+* चिकित्सा, अनिश्चितता का विज्ञान और संभाव्यता की कला है। विलियम ओस्लर
+* जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप आपने विषय के बारे में कुछ जानते हैं लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आपका ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक हैं। लॉर्ड केल्विन
+* मशीनीकरण करने के लिए यह जरुरी है की लोग भी मशीन की तरह सोचें। सश्री जैकब
+* मुझे लगता है कि विज्ञान यह दिखा रहा है कि उम्र बढ़ना एक बीमारी है। यदि ऐसा है, तो इसे ठीक किया जा सकता है। टॉम रॉबिंस
+* लोगों को आश्चर्य करना अच्छा लगता है, और यह विज्ञान का बीज है। राल्फ वाल्डो इमर्सन
+* विज्ञान की तीन विधियाँ हैं सिद्धांत, प्रयोग और सिमुलेशन। अज्ञात
+* विज्ञान की तीन विधियाँ हैं – सिद्धान्त प्रयोग और सिमुलेशन।
+* विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ गलत हैं यह पूरी तरह ठीक है। ये गलत परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं। अज्ञात
+* विज्ञान को "व्यवस्थित अति-सरलीकरण की कला" कहा जा सकता है। कार्ल पॉपर
+* विज्ञान को विज्ञान तभी कह सकते है जब वह शरीर, मन और आत्मा की भूख मिटने की पूरी ताकत रखता हो। Mahatam Gandhi
+* विज्ञान तेजी से उन सवालों का जवाब दे रहा है जो धर्म के क्षेत्र में हुआ करते थेे। स्टीफन हॉकिंग
+* विज्ञान ने हमें सच्चाई तक पहुँचाने का भरोसा दिया है… इसने हमें शांति या सुख तक पहुँचाने का आश्वासन कभी नहीं दिया। Le Bain
+* विज्ञान मूल रूप से छलनायकों के खिलाफ एक टीका है। नील डेग्रास से टायसन
+* विज्ञान हमारा घमंड कम करता है। Barnard Shah
+* विज्ञान हर साल चमत्कारी सच्चाइयों और चमकदार उपकरणों की एक नई फसल का उत्पादन करता है। कर मुलिंस
+* वैज्ञानिक इस संसार का, जैसे है उसी रूप में अध्ययन करते हैं। इंजिनियर वह संसार बनाते हैं जो कभी था ही नहीं। थिओडोर वान कर्मन
+* संदेह और सोच की स्वतंत्रता विज्ञान के गुण हैं। वाल्टर गिल्बर्ट
+* सभ्यता की कहानी सार रूप में इंजीनियरिंग की कहानी है वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियों को मनुष्य के भले के लिए कम कराने के लिए किया गया। एस डीकैम्प
+* हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते। अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं। रिचर्ड फ़ेनिमैन
+* हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते हैं। अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेंगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं। रिचर्ड फेनिमैन
+* हमारी वैज्ञानिक शक्ति ने हमारी आध्यात्मिक शक्ति को आगे बढ़ाया हैैं। हमारे पास नियंत्रित मिसाइल और अनियंत्रित पुरुष हैं। मार्टिन लूथर किंग जूनियर।
+*विज्ञान की तीन विधियाँ हैं सिद्धान्त प्रयोग और सिमुलेशन।
+*विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ गलत हैं यह पूरी तरह ठीक है। ये (गलत परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं।
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+* मैं और नसीरुद्दीन शाह फिल्म इंडस्ट्री के सबसे क्वालीफ़ाइड एक्टर्स हैं। हमें नाच-गाना भले ही नहीं आता लेकिन हमने अभिनय की गंभीर विधिवत शिक्षा ली है।
+* बच्चन और ऋषि कपूर स्टार हैं।
+
+
+लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय गायिकाओं में से एक थी। उन्होंने तीस से ज़्यादा भाषाओं में हज़ारों गाने रिकॉर्ड किये हैं । उनके गानों में शास्त्रीय संगीत, हिन्दुस्तानी, कर्नाटकी, लघु संगीत, पाश्चात्य गीत, भजन, लोकगीत भी शामिल हैं । पर ज़्यादातर उनकी पहचान हिन्दी सिनेमा जगत की पार्श्व गायिका के रूप में बनी हुई है ।
+अन्य व्यक्तियों के बारे में लता
+लता के बारे में अन्य व्यक्ति
+
+
+यक़ीनन शायरी का इल्म जिसके पास होता वह
+*"जबतक समाजवादी व्यवस्था नहीं आती तबतक दलितों में आर्थिक विषमता बनी रहेगी ।"
+*‘हम दलितों का अपना अलग संसार है ताहिरा जी। हम उस संसार को ही सब कुछ समझते हैं, शिक्षा की कमी के कारण। आवश्यकताएँ अतिन्यून। देशकाल, परिस्थिति, राजनीति से कुछ भी लेना-देना नहीं। वस्त्र के नाम पर विहीटी और आश्रय के नाम पर चार हाथ जमीन। स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बीत जाने के बाद भी हम नंगे, भूखे, भूमिहीन।’
+*'अरे हम हरिजन हैं तो क्या हुआ, हैं तो इंसान ही न। लोकतंत्र में उन्हें मनमानी ��रने की छूट और हमें अपने ढंग से जीने का अधिकार भी नहीं, क्यों समाज से घृणा……….घृणा……… कब होगा इस घृणा का अंत।'
+लगाव, दोस्ती, इश्क, ममत्व और भक्ति हमारी पाँच उँगलियाँ है, जो जीवन की मुट्ठी को मजबूत करती है। किसी कठिनाई और समाधान के बीच उतनी ही दूरी है, जितनी हमारे घुटनों और फर्श में है। जो घुटनों को मोड़कर सजादे में झुकता है, वह हर मुश्किल का सामना करने की शक्ति पा लेता है। इसी को प्रेम कहा गया है।''
+*चांदी के जूते की खनक से अच्छे-अच्छे हिल जाते हैं, जिसे चांदी के जूते खाने की आदत पड़ जाती है, उसे बढ़िया से बढ़िया पकवान भी नहीं भाता।
+*जो मत और मत पेटियां लूट नहीं सकता, वो नेता नहीं बन सकता।
+*सुरा और सुंदरी के बिना यदि महान नेता इस वातावरण में जीवित रहने का प्रयास करेगा तो इसके दबाव को सह नहीं पाएगा। क्योंकि सुरा महान नेता के भीतर कुछ करने का जोश भरती है और किसी भी तरह का निर्णय लेने की ताक़त पैदा करती है। नेता यानि समर्थ ।
+*विज्ञापन में गन्दी कमीज को उजला करने का रास्ता बताया जाता है और राजनीति में साफ़ कमीज को गंदा करने के रास्ते तलाशे जाते हैं।
+*दुनिया को देख पाना एक सुखद आश्चर्य है, मगर उससे भी बड़ा आश्चर्य है अपने भीतर मौजूद असीमित संभावनाओं को देखना, जिससे दुनिया को खूबसूरत बनाया जा सके।
+*यदि कोई दुखी है, पीड़ित है और उसके कंधे पर हाथ रख दिया जाये, तो निश्चित रूप से उसकी पीड़ा कम हो जाएगी। रोते हुये बच्चे को माँ या फिर किसी सगे के द्वारा गोद में उठा लेना और संस्पर्श पाकर बच्चे का चुप हो जाना यह दर्शाता है कि स्पर्श हमारा भावनात्मक बल है।
+*आप रातोरात अपनी पत्नी को नहीं बदल सकते, अपने बच्चों को नहीं बदल सकते, अपने सहयोगियों/सहकर्मियों अथवा मित्रों को नहीं बदल सकते मगर स्वयं को बदल सकते हैं कोशिश करके देखिये आप बदलेंगे तो अपने आप यह समूह भी बदल जाएगा।
+*यदि एक ब्लॉगर नई पीढ़ी को समुचित ज्ञान देने के बिना मर जाता है, तो उसका ज्ञान व्यर्थ है। (अँग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद)
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+* आतंकवादियों की तुलना में पत्रकार बड़े आतंकवादी हैं।
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+* धर्मरहित विज्ञान लंगड़ा है, और विज्ञान रहित धर्म अंधा। अल्बर्ट आइंस्टीन
+* अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है। अलबर्ट आइन्स्टाइन
+* तर्क, आप को किसी एक बिन्दु 'क' से दूसरे बिन्दु 'ख' तक पहुँचा सकते हैं। लेकिन, कल्पना, आप को ���र्वत्र ले जा सकती है। अलबर्ट आइन्सटीन
+* हम भारतीयों के बहुत ऋणी हैं जिन्होंने हमे गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई भी मूल्यवान वैज्ञानिक खोज सम्भव नहीं होती। अलबर्ट आइन्स्टीन
+* अट्ठारह वर्ष की उम्र तक इकट्ठा किये गये पूर्वाग्रहों का नाम ही सामान्य बुद्धि है। अल्बर्ट आइंस्टीन
+* प्रकृति को गहराई से देखें, और आप हर चीज़ को बेहतर समझ पाएंगे। अल्बर्ट आइंस्टीन
+* आपकी कल्पनाशक्ति आपके जीवन के आने वाले आकर्षणों का पूर्वावलोकन है। एल्बर्ट आइन्स्टाइन
+* ऐसा नहीं है कि मैं कोई अति प्रतिभाशाली व्यक्ति हूँ; लेकिन मैं निश्चित रूप से अधिक जिज्ञासु हूँ और किसी समस्या को सुलझाने में अधिक देर तक लगा रहता हूँ। आइंस्टीन
+* सफल मनुष्य बनने के प्रयास से बेहतर है गुणी मनुष्य बनने का प्रयास। एल्बर्ट आइंस्टीन
+* सफल व्यक्ति होने का प्रयास न करें, अपितु गरिमामय व्यक्ति बनने का प्रयास करें। अल्बर्ट आईंसटीन
+* ऐसा नहीं है कि मैं बहुत चतुर हूं; सच्चाई यह है कि मैं समस्याओं का सामना अधिक समय तक करता हूं। अल्बर्ट आंईस्टीन
+* एक ऐसा व्यक्ति जिसने कभी गलती नहीं की है, उसने जीवन में कुछ नया करने का कभी प्रयास ही नहीं किया होता है। अल्बर्ट आईंस्टिन
+* अपना जीवन जीने के केवल दो ही तरीके हैं. पहला यह मानना कि कोई चमत्कार नहीं होता है, दूसरा है कि हर वस्तु एक चमत्कार है। अल्बर्ट आईन्सटीन
+* यह भयावह रूप से स्पष्ट हो चुका है कि हमारी तकनीक हमारी मानवता की सीमाएँ पार कर चुकी है अल्बर्ट आईन्सटीन
+* वक्त बहुत कम है यदि हमें कुछ करना है तो अभी से शुरुआत कर देनी चाहिए । अल्बर्ट आइंस्टीन
+* आपको खेल के नियम सीखने चाहिए और आप किसी भी खिलाड़ी से बेहतर खेलेंगे । अल्बर्ट आइंस्टीन
+* मूर्खता और बुद्धिमता में सिर्फ एक फर्क होता है की बुद्धिमता की एक सीमा होती है । अल्बर्ट आइंस्टीन
+* आमतौर पर आदमी उन चीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है जिनका उससे कोई लेना देना नहीं होता। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
+* पुस्तक प्रेमी सबसे धनवान व सुखी होता है, संपूर्ण रूप से त्रुटिहीन पुस्तक कभी पढ़ने लायक़ नहीं होती। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
+* शिक्षा और प्रशिक्षण का एकमात्र उद्देश्य समस्या-समाधान होना चाहिये। जार्ज बर्नार्ड शा
+* बिना कुछ किए बिताने वाले जीवन की अपेक्षा गलतियाँ करते हुए बिताने वाला जीवन अधिक सम्माननीय होता है। जॉ��्ज बर्नार्ड शॉ
+* आप को अच्छा करने का अधिकार बुरा करने के अधिकार के बिना नहीं मिल सकता, माता का दूध शूरवीरों का ही नहीं, वधिकों का भी पोषण करता है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
+* आप प्रसन्न है या नहीं यह सोचने के लिए फुरसत होना ही दुखी होने का रहस्य है, और इसका उपाय है व्यवसाय। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
+* किसी पुरुष या महिला के पालन-पोषण की आज़माइश तो एक झगड़े में उनके बर्ताव से होती है। जब सब ठीक चल रहा हो तब अच्छा बर्ताव तो कोई भी कर सकता है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
+* आज अध्ययन करना सब जानते हैं, पर क्या अध्ययन करना चाहिए यह कोई नहीं जानता। जार्ज बर्नाड शॉ
+* सबसे कम खर्चीला मनोरंजन होता है श्रेष्ठ पुस्तकों के अध्ययन से और यह स्थाई होता है। जार्ज बनार्ड शॉ
+* आप अपने भविष्य को नहीं बदल सकते लेकिन आप अपनी आदतों को बदल सकते है तथा सुनिश्चित मानें आपकी आदतें आपका भविष्य बदल देंगी। बर्नाड शॉ
+* कमाए बगैर धन का उपभोग करने की तरह हीt खुशी दिए बगैर खुश रहने का अधिकार हमें नहीं है। जार्ज बरनार्ड शा
+* मछली एवं अतिथि, तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं। बेंजामिन फ्रैंकलिन
+* हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु। बेन्जामिन
+* चींटी से अच्छा उपदेशक कोई और नहीं है। वह काम करते हुए खामोश रहती है। बैंजामिन फ्रैंकलिन
+* यदि कोई व्यक्ति अपने धन को ज्ञान अर्जित करने में ख़र्च करता है, तो उससे उस ज्ञान को कोई नहीं छीन सकता! ज्ञान के लिए किये गए निवेश में हमेशा अच्छा प्रतिफल प्राप्त होता है बेंजामिन फ्रेंकलिन
+* आप रुक सकते हैं लेकिन समय नहीं रुकता। बेंजामिन फ्रैंकलिन
+* धन से आज तक किसी को खुशी नहीं मिली और न ही मिलेगी, जितना अधिक व्यक्ति के पास धन होता है, वह उससे कहीं अधिक चाहता है। धन रिक्त स्थान को भरने के बजाय शून्यता को पैदा करता है। बेंजामिन फ्रेंकलिन
+* क्रोध कभी भी बिना कारण नहीं होता, लेकिन कदाचित ही यह कारण सार्थक होता है। बेंजामिन फ्रेंकलिन
+* ज्ञान में पूंजी लगाने से सर्वाधिक ब्याज मिलता है। बेंजामिन फ्रेंकलिन
+* क्रोध से शुरू होने वाली हर बात, लज्जा पर समाप्त होती है। बेंजामिन फ्रेंकलिन
+* जीवन में दुखद बात यह है कि हम बड़े दो जल्दी हो जाते हैं, लेकिन समझदार देर से होते हैं। बेंजामिन फ्रेंकलिन
+* गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है। शेक्सप��यर
+* ईमानदारी से बड़ी कोई विरासत नहीं है। विलियम शेक्सपियर
+* अपेक्षा ही मनोव्यथा का मूल है। विलियम शेक्सपियर
+* सभी से प्रेम करें, कुछ पर विश्वास करें और किसी के साथ भी गलत न करें। विलियम शेक्सपियर
+* जिस श्रम से हमें आनन्द प्राप्त होता है, वह हमारी व्याधियों के लिए अमृत, तुल्य है, हमारी वेदना की निवृत्ित है। विलियम शेक्सपियर
+* ऐसा व्यक्ति जिसने कभी आशा नहीं की, वह कभी निराशा भी नहीं होता है। विलियम शेक्सपियर
+* किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। सर विंस्टन चर्चिल
+* सतत प्रयास न कि ताकत या बुद्धिमानी ही हमारे सामर्थ्य को साकार करने की कुंजी है। विंस्टन चर्चिल
+* सफलता हमेशा के लिए नहीं होती, असफलता कभी घातक नहीं होती: यह तो लगे रहने की प्रवृत्ति है जो मायने रखती है। विंस्टन चर्चिल
+* रणनीति कितनी भी सुंदर क्यों न हो, आप को कभी कभी परिणामों पर भी विचार करना चाहिए। सर विंसटन चर्चिल
+* मानव के सभी गुणों में साहस पहला गुण है, क्योंकि वह सभी गुणों की जिम्मेदारी लेता है। चर्चिल
+* निराशावादी हर अवसर में कठिनाई देखता हैं, जबकि आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता हैं। विन्स्टन चर्चिल
+* खुशी ही जीवन का अर्थ और उद्देश्य है, और मानव अस्तित्व का लक्ष्य और मनोरथ। अरस्तू
+* अच्छी शुरुआत से आधा काम हो जाता है। अरस्तू
+* जन्म देने वाले माता पिता से अध्यापक कहीं अधिक सम्मान के पात्र हैं, क्योंकि माता पिता तो केवल जन्म देते हैं, लेकिन अध्यापक उन्हें शिक्षित बनाते हैं, माता पिता तो केवल जीवन प्रदान करते हैं, जबकि अध्यापक उनके लिए बेहतर जीवन को सुनिश्चित करते हैं। अरस्तू
+* मित्र क्या है? एक आत्मा जो दो शरीरों में निवास करती है। अरस्तू
+* शिक्षा की जड़े भले ही कड़वी हों, इसके फल मीठे होते हैं। अरस्तू
+* अपने दुश्मनों पर विजय पाने वाले की तुलना में मैं उसे शूरवीर मानता हूं जिसने अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली है; क्योंकि सबसे कठिन विजय अपने आप पर विजय होती है। अरस्तु
+* जो सभी का मित्र होता है वो किसी का मित्र नहीं होता है अरस्तु
+* हमारे जीवन का उस दिन अंत होना शुरू हो जाता है जिस दिन हम उन विषयों के बारे में चुप रहना शुरू कर देते हैं जो मायने रखते हैं। मार्टिन लुथर किंग, जूनियर
+* मैंने प्रेम को ही अपनाने का निर्णय किया है। द्वेष करना तो बेहद बोझिल काम है। मार्टिन ��ूथर किंग, जूनियर
+* पत्नी को चाहिए कि पति घर लौटने पर खुश हो, और पति को चाहिए कि पत्नी को उसके घर से निकलने पर दुख हो। मार्टिन लूथर
+* हमें परिमित निराशा को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन अपरिमित आशा को कभी नहीं खोना चाहिए। मार्टिन लूथर किंग, जूनियर (1929-1967 अश्वेत मानवाधिकारी नेता
+* हमे सीमित मात्रा में निराशा को स्वीकार करना चाहिये, लेकिन असीमित आशा को नहीं छोडना चाहिये। मार्टिन लुथर किंग
+* दीर्घायु होना नहीं बल्कि जीवन की गुणवत्ता का महत्व होता है। मार्टिन लूथर किंग, जूनियर
+* हमें भाईयों की तरह मिलकर रहना अवश्य सीखना होगा अन्यथा मूर्खों की तरह सभी बरबाद हो जाएंगे। मार्टिन लूथर किंग, जूनियर
+* अंधकार से अंधकार को दूर नहीं किया जा सकता है, केवल प्रकाश से ही ऐसा किया जा सकता है, नफरत से नफरत को नहीं हटाया जा सकता है, केवल प्यार से ही ऐसा किया जा सकता है। मार्टिन लूथर किंग, जूनियर
+* सही काम करने के लिए समय हर वक्त ही ठीक होता है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर
+* संगीत की धुनों में जो स्वर्ग की ऊंचाइयों तक पहूंची है, वह है एक स्नेहभरे दिल की धड़कन। हेनरी वार्ड बीचर
+* प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह याद रखना बेहतर होगा कि सभी सफल व्यवसाय नैतिकता की नींव पर आधारित होते हैं। हैनरी वार्ड बीचर
+* इस दुनिया में जो कुछ हम अर्जित करते हैं, उससे नहीं अपितु जो कुछ त्याग करते हैं, उससे समृद्ध बनते हैं। हैनरी वार्ड बीचर
+* अपने मित्र को उसके दोषों को बताना मित्रता की सबसे कठोर परीक्षा होती है। हैनरी वार्ड बीचर
+* विचारों को मूर्त रूप देने की क्षमता ही सफलता का रहस्य है। हैनरी वार्ड बीचर
+* कठिनाईयां भगवान का संदेश होती हैं, उनका सामना करते समय हमें भगवान के विश्वास के रूप में, भगवान से अभिनंदन के रूप में उनका सम्मान करना चाहिये। हेनरी वार्ड बीचर
+* काम वह वस्तु नहीं है जिससे किसी व्यक्ति की पराजय होती है, वास्तव में वह वस्तु चिंता है। हेनरी वार्ड बीचर
+* मुश्किलें वे औजार हैं जिनसे ईश्वर हमें बेहतर कामों के लिए तैयार करता हैं। एच. डबल्यू वीचर
+* प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं। इमर्सन
+* डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है। एमर्सन
+* सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है। जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है। इमर्सन
+* जैसे जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, सुंदरता भीतर घुसती जाती है। रॉल्��� वाल्डो इमर्सन
+* लम्बी आयु का महत्व नहीं है जितना महत्व इसकी गहनता है। राल्फ वाल्डो एमर्सन
+* हर सुबह जब आप जागते हैं तो अपने भगवान को धन्यवाद दें तथा आप अनुभव करते है कि आपने वह कार्य करना है जिसे अवश्य किया जाना चाहिए, चाहे आप इसे पसंद करें या नहीं, इससे चरित्र का निर्माण होता है। एमरसन
+* प्रत्येक कलाकार एक दिन नौसिखिया ही होता है। राल्फ वाल्डो एमर्सन
+* बिना उत्साह के आज तक कुछ भी महान उपलब्धि हासिल नहीं की गई है। राल्फ वाल्डो एमर्सन
+* पूरा जीवन एक प्रयोग है। जितने अधिक प्रयोग आप करेंगे, उतना ही अच्छा। राल्फ इमरसन
+* पूरा जीवन एक अनुभव है, आप जितने अधिक प्रयोग करते हैं, उतना ही इसे बेहतर बनाते हैं। राल्फ वाल्डो एमर्सन
+* एक बार जब आप निर्णय कर लेते हैं तो समस्त सृष्टि इसके भलीभूत होने के लिए तत्पर हो जाती है। राल्फ वाल्डो एमर्सन
+* एक बार एक युवक को एक अच्छी सलाह प्राप्त करते हुए मैंने सुना था कि हमेशा वह कार्य करो जिसको करने से आप ड़रते हैं। राल्फ वाल्डो एमर्सन
+* उत्साह, प्रयास की जननी है, तथा इसके बिना आज तक कोई महान उपलब्धि हासिल नहीं की गई है। राल्फ वाल्डो एमर्सन
+* हमारे भीतर क्या छिपा है इसकी तुलना में हमारे विगत में क्या था और हमारे भविष्य में क्या है, यह बहुत छोटी छोटी बातें है। राल्फ वाल्डो एमर्सन
+* वे जीत जाते हैं, जिन्हें यह विश्वास होता हैं कि वे जीत सकते है। इमर्सन
+* इस जीवन का प्रथम लक्ष्य है दूसरों की सहायता करना। और यदि आप दूसरों की सहायता नहीं कर सकते तो कम से कम उन्हें आहत तो न करें। दलाई लामा
+* हम धर्म और चिंतन के बिना रह सकते हैं किन्तु मानवीय प्रेम के बिना नहीं। दलाई लामा
+* सहिष्णुता के अभ्यास में आपका शत्रु ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षक होता है। दलाई लामा
+* जब आप कुछ गंवा बैठते हैं, तो उससे प्राप्त शिक्षा को न गंवाएं। दलाई लामा
+* यदि आप दूसरों को खुश देखना चाहते हैं तो सहानुभूति को अपनाएं, यदि आप खुश होना चाहते हैं तो सहानुभूति अपनाएं। तेंजिन ग्यात्सो, 14वें दलाई लामा
+* यदि शांति पाना चाहते हो, तो लोकप्रियता से बचो। अब्राहम लिंकन
+* मुझे एक पेड़ काटने के लिए यदि आप छह घंटे देते हैं तो मैं पहले चार घंटे अपनी कुल्हाड़ी की धार बनाने में लगाऊँगा। अब्राहम लिंकन
+* चरित्र एक वृक्ष है और मान एक छाया। हम हमेशा छाया की सोचते हैं; लेकिन असलियत तो वृक्ष ही है। अब्राहम लिंकन
+* चरित्र वृक्ष के समान है तो प्रतिष्ठा, उसकी छाया है। हम अक्सर छाया के, बारे में सोचते हैं, जबकि असल, चीज तो वृक्ष ही है। अब्राहम लिंकन
+* अपने विरोधियो से मित्रता कर लेना क्या विरोधियों को नष्ट करने के समान नहीं है अब्राहम लिंकन
+* उस व्यक्ति को आलोचना करने का अधिकार है जो सहायता करने की भावना रखता है। अब्राहम लिंकन
+* मुझे अधिक संबंध इस बात से नहीं है कि आप असफ़ल हुए, बल्कि इस बात से कि आप अपनी असफलता से कितने संतुष्ट है। अब्राहम लिंकन
+* स्वास्थ्य के संबंध में, पुस्तकों पर भरोसा न करें। छपाई की एक गलती जानलेवा भी हो सकती है। मार्क ट्वेन
+* उन लोगों से दूर रहें जो आप आपकी महत्वकांक्षाओं को तुच्छ बनाने का प्रयास करते हैं। छोटे लोग हमेशा ऐसा करते हैं, लेकिन महान लोग आपको इस बात की अनुभूति करवाते हैं कि आप भी वास्तव में महान बन सकते हैं। मार्क ट्वेन
+* देरी से प्राप्त की गई सम्पूर्णता की तुलना में निरन्तर सुधार बेहतर होता है। मार्क टवैन
+* भारत मानव जाति का पलना है, मानव-भाषा की जन्मस्थली है, इतिहास की जननी है, पौराणिक कथाओं की दादी है, और प्रथाओं की परदादी है। मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है। मार्क ट्वेन
+* क्रोध एक तेजाब है जो उस बर्तन का अधिक अनिष्ट कर सकता है जिसमें वह भरा होता है न कि उसका जिस पर वह डाला जाता है। मार्क ट्वेन
+* एक शब्द और लगभग सही शब्द में ठीक उतना ही अंतर है जितना कि रोशनी और जुगनू में। मार्क ट्वेन
+* जीवन मुख्य रुप से अथवा मोटे तौर पर तथ्यों और घटनाओं पर आधारित नहीं है। यह मुख्य रुप से किसी व्यक्ति के दिलो दिमाग में निरन्तर उठने वाले विचारों के तूफानों पर आधारित होती है। मार्क ट्वेन
+* सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं। लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें। गोथे
+* बाँटो और राज करो, एक अच्छी कहावत है लेकिन) एक होकर आगे बढो, इससे भी अच्छी कहावत है। गोथे
+* जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये। निर्भीकता के अन्दर मेधा (बुद्धि शक्ति और जादू होते हैं। गोथे
+* यदि आप अपरिमित में जाना चाहते हैं, तो पहले परिमित को अच्छे से जान लेने का प्रयत्न करें। जोह��न वोल्फ़्गेंग गोथ
+* सोचना आसान होता है, कर्म करना कठिन होता है, लेकिन दुनिया में सबसे कठिन कार्य अपनी सोच के अनुसार काम करना होता है। गोएथ
+* केवल जानना पर्याप्त नहीं है, हमें अवश्य ही प्रयोग भी करना चाहिए, केवल इच्छा करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि हमें कार्य करना भी चाहिए। गोएथ
+* अज्ञानी व्यक्ति वह प्रश्न पूछते हैं जिनका उत्तर समझदार व्यक्तियों द्वारा एक हजार पहले दे दिया गया होता है। गोएथ
+* बुद्धि का अर्जन हम तीन तरीकों से कर सकते हैं: प्रथम, चिंतन से, जो कि उत्तम है; द्वितीय, दूसरों से सीखकर, जो सबसे आसान है; और तृतीय, अनुभव से, जो सबसे कठिन है। कन्फ़्यूशियस
+* ऐसे पेशे का चयन करें जो आपको दिलचस्प लगता हो, और आपको अपने जीवन में एक भी दिन काम नहीं करना पड़ेगा। कंफ्यूशियस
+* जब यह साफ हो कि लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है, तो लक्ष्यों में फेरबदल न करें, बल्कि अपनी प्रयासों में बदलाव करें। कंफ्यूशिअस
+* श्रेष्ठ व्यक्ति बोलने में संयमी होता है लेकिन अपने कार्यों में अग्रणी होता है। कंफ्यूशियस
+* प्रत्येक कृति में सुंदरता होती है, लेकिन हर कोई इसे देख नहीं सकता। कन्फूशियस
+* हमारी महानतम विशालता (सफलता) कभी भी न गिरने में नहीं अपितु हर बार गिरने पर फिर उठने में निहित होती है। कंफ्यूशियस
+* सभ्यता सुव्यस्था के जन्मती है, स्वतन्त्रता के साथ बडी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है। विल डुरान्ट
+* भारत हमारी संपूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है: भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है, अरबॊं के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है, बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है, ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है। अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है। विल्ल डुरान्ट, अमरीकी इतिहासकार
+* गलती करने में कोई गलती नहीं है। गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है। एल्बर्ट हब्बार्ड
+* स्पष्टीकरण से बचें। मित्रों को इसकी आवश्यकता नहीं; शत्रु इस पर विश्वास नहीं करेंगे। अलबर्ट हबर्ड
+* कभी भी सफाई नहीं दें। आपके दोस्तों को इसकी आवश्यकता नहीं है और आपके दुश्मनों को विश्वास ही नहीं होगा। अलबर्ट हब्बार्ड
+* यदि आपके पास स्वास्थ्य है तो संभवतः आप प्रसन्न होंगे, और यदि आपके पास स्वास्थ्य और प्रसन्नता दोनों हैं, तो आपक�� पास अपनी आवश्यकता के अनुसार समस्त सम्पदा होगी फिर चाहे आप इसे न भी चाहते हों। एल्बर्ट हुब्बार्ड
+* जब हम कठिन कार्यों को चुनौती के रुप में स्वीकार करते हैं और उन्हें खुशी और उत्साह से निष्पादित करते हैं, तो चमत्कार हो सकते हैं। अल्बर्ट गिल्बर्ट
+* आप इस जीवन में सबसे बड़ी गलती यह कर सकते हैं कि आप निरन्तर इस बात को लेकर डरते रहें कि आप कोई गलती कर देंगे। एल्बर्ट हुब्बार्ड
+* असफलता की उत्पत्ति तभी होती है जब आप प्रयास करना बन्द कर देते हैं। एल्बर्ट हब्बार्ड
+* मानवता प्रकाश की वह नदी है जो सीमित से असीम की ओर बहती है। खलील जिब्रान
+* दानशीलता हमारी क्षमता से अधिक देने में, और गौरव अपनी आवश्यकता से कम लेने में है। खलील गिब्रान
+* किसी भी नींव का सबसे मजबूत पत्थर सबसे निचला ही होता है। खलील ज़िब्रान (1883-1931 सीरियाई कवि
+* किसी व्यक्ति के दिल-दिमाग को समझने के लिए इस बात को न देखें कि उसने अभी तक क्या प्राप्त किया है, अपितु इस बात को देखें कि वह क्या अभिलाषा रखता है। कैहलिल जिब्रान
+* जिनसे प्रेम करते हैं, उन्हें जाने दें, वे यदि लौट आते हैं तो वे सदा के लिए आपके हैं। और अगर नहीं लौटते हैं तो वे कभी आपके थे ही नहीं। खलील ज़िब्रान (1883-1931 सीरियाई कवि
+* प्रेम के बिना जीवन उस वृक्ष की भांति है जो फूल तथा फलों से रहित है। काहलिल जिब्रान
+* मित्रता कभी भी अवसर नहीं अपितु हमेशा एक मधुर उत्तरदायित्व होती है। कैहलिल गिब्रान
+* इंसान अगर लोभ को ठुकरा दे तो बादशाह से भी ऊंचा दर्जा हासिल कर सकता है, क्योंकि संतोष ही इंसान का माथा हमेशा ऊंचा रख सकता है। शेख सादी
+* अज्ञानी आदमी के लिये खामोशी से बढ़कर कोई चीज नहीं, और अगर उसमें यह समझने की बुद्धि है तो वह अज्ञानी नहीं रहेगा। शेखी सादी
+* लोभी को पूरा संसार मिल जाए तो भी वह, भूखा रहता है, लेकिन संतोषी का पेट, एक रोटी से ही भर जाता है। शेख सादी
+* ग़रीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार ग़रीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। शेख़ सादी
+* घमंड करना जाहिलों का काम है। शेख सादी
+* बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बन्द करना ही अच्छा है। शेख सादी
+* खुदा एक दरवाजा बन्द करने से पहले दूसरा खोल देता है, उसे प्रयत्न कर देखो। शेख सादी
+* धैर्य रखें, सभी कार्य सरल होने से पहले कठिन ही दिखाई देते हैं। सादी
+* हमारी शक्ति हमारे निर्णय करने की क्षमता में निहित है। फुलर
+* ज्ञान एक खजाना है, लेकिन अभ्यास इसकी चाभी है। थामस फुलर
+* जब तक रुग्णता का सामना नहीं करना पड़ता; तब तक स्वास्थ्य का महत्व समझ में नहीं आता है। डा. थॉमस फुल्लर
+* प्रार्थनाः दिन की कुंजी तथा रात का ताला होती है। थॉमस फुल्लर
+* अपनी अज्ञानता का अहसास होना ज्ञान की दिशा में एक बहुत बडा कदम है। डिजरायली
+* निराशा मूर्खता का परिणाम है। डिज़रायली
+* धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है। डिजरायली
+* बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है। आईजक डिझरायली
+* आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है। सेनेका
+* जिस प्रकार से श्रम करने से शरीर मजबूत होता है, उसी प्रकार से कठिनाईयों से मस्तिष्क सुदृढ़ होता है। सेनेका
+* अगर एक व्यक्ति को मालूम ही नहीं कि उसे किस बंदरगाह की ओर जाना है, तो हवा की हर दिशा उसे अपने विरुद्ध ही प्रतीत होगी। सेनेका
+* वह व्यक्ति ग़रीब नहीं है जिस के पास थोड़ा बहुत ही है। ग़रीब तो वह है जो ज़्यादा के लिए मरा जा रहा है। सैनेका, रोमन दार्शनिक
+* जिस प्रकार से श्रम करने से शरीर मजबूत होता है, उसी प्रकार से कठिनाईयों से मस्तिष्क सुदृढ़ होता है। सेनेका
+* ऐसा नहीं है कि कार्य कठिन हैं इसलिए हमें हिम्मत नहीं करनी चाहिए, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम हिम्मत नहीं करते हैं इसलिए कार्य कठिन हो जाते हैं। सेनेका
+* जीवन का उत्तम उपयोग है इसे ऐसा कुछ करने में बिताना जो इससे अधिक स्थायी हो। विलियम जेम्स
+* अपने जीवन में परिवर्तन करने के लिए तत्काल कार्य करना आरम्भ करें, ऐसा शानदार ढ़ंग से करें, इसमें कोई अपवाद नहीं है। विलियम जेम्स
+* जीवन का महानतम उपयोग इसे किन्हीं ऐसे अच्छे कार्यों पर व्यय करना है जो कि इसके जाने के बाद भी बने रहें। विलियम जेम्स
+* मेरी पीढ़ी की महानतम खोज यह रही है कि मनुष्य अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन कर के अपने जीवन को बदल सकता है। विलियम जेम्स (1842-1910 अमरीकी दार्शनिक
+* मानव अपनी सोच की आंतरिक प्रवृति को बदलकर अपने जीवन के बाह्य पहलूओं को बदल सकता है। विलिमय जेम्स
+* जब दूसरे व्यक्ति सोए हों, तो उस समय अध्ययन करें; उस समय कार्य करें जब दूसरे व्यक्ति अपने समय को नष्ट करते हैं; उस समय तैयारी करें जब दूसरे खेल रहे हों; और उस समय ��पने देखें जब दूसरे केवल कामना ही कर रहे हों। विलियम आर्थर वार्ड
+* कुशलतापूर्वक किसी की बात सुनना अकेलेपन, वाचालता और कंठशोथ का सब से बढ़िया इलाज है। विलियम आर्थर वार्ड
+* अवसर सूर्योदय की तरह होते हैं, यदि आप ज्यादा देर तक प्रतीक्षा करते हैं तो आप उन्हें गंवा बैठते हैं। विलियम आर्थर वार्ड
+* निराशावादी व्यक्ति पवन के बारे में शिकायत करता है; आशावादी इसका रुख बदलने की आशा करता है; लेकिन यथार्थवादी पाल को अनुकूल बनाता है। विलियम आर्थर वार्ड
+* प्रतिकूल परिस्थितियों से कुछ व्यक्ति टूट जाते हैं, जबकि कुछ अन्य व्यक्ति रिकार्ड तोड़ते हैं। विलियम ए. वार्ड
+* उपलब्धि के चार कदम: उद्देश्यपूर्ण योजना बनाए, प्रार्थना के साथ तैयारी करें, सकारात्मक रूप से आगे बढ़े निरन्तर अपने लक्ष्य के लिए प्रयासरत रहें। विलियम ए. वार्ड
+* हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है। अनोन
+* किसी व्यक्ति को एक मछली दे दो तो उसका पेट दिन भर के लिए भर जाएगा। उसे इंटरनेट चलाना सिखा दो तो वह हफ़्तों आपको परेशान नहीं करेगा। एनन
+* यदि आप इस बात की चिंता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं। हैरी एस. ट्रूमेन
+* यदि आप गर्मी सहन नहीं कर सकते तो रसोई के बाहर निकल जाईये। हैरी एस ट्रुमेन
+* बच्चों को सीख देने का जो श्रेष्ठ तरीका मुझे पता चला है वह यह है कि बच्चों की चाह का पता लगाया जाए और फिर उन्हें वही करने की सलाह दी जाए। हैरी ट्रूमेन
+* सही अवसर न मिलने पर क्षमता के, मायने बेहद सीमित हो जाते हैं। नेपोलियन
+* जब तक आप न चाहें तब तक आपको, कोई भी ईर्ष्यालु, क्रोधी प्रतिशोधी या लालची नहीं बना सकता। नेपोलियन हिल
+* अपने कार्य की योजना बनाएं तथा अपनी योजना पर कार्य करें। नेपोलियन हिल
+* यदि आपने अपनी मनोवृतियों पर विजय प्राप्त नहीं की, तो मनोवृत्तियां आप पर विजय प्राप्त कर लेंगी। नेपोलियन हिल
+* असफलता आपको महान कार्यों के लिये तैयार करने की प्रकृति की योजना है। नैपोलियन हिल
+* जब किसी व्यक्ति द्वारा अपने लक्ष्य को इतनी गहराई से चाहा जाता है कि वह उसके लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार होता है, तो उसका जीतना सुनिश्चित होता है। नेपोलियन हिल
+* बुरा व्यक्ति उस समय और भी बुरा हो जाता है जब वह अच्छा होने का ढोंग करता है। फ्रांसिस बेकन
+* बुद्धिमान व्यक्ति को जितने, अवसर मिलते हैं उससे अधिक वह स्वयं बनाता है। फ्रांसिस बेकन
+* प्रतिशोध लेते समय मनुष्य अपने शत्रु के समान ही होता है, लेकिन उसकी उपेक्षा कर देने पर वह उससे बड़ा हो जाता है। फ्रांसिस बेकन
+* हम स्वभाव के मुताबिक सोचते हैं, कायदे के मुताबिक बोलते हैं, रिवाज के मुताबिक आचरण करते हैं। फ्रांसिस बेकन
+* क्या आप जानना चाहते हैं कि आप कौन हैं? तो किसी से पूछिये मत। कार्य करना शुरू कर दें। आपका कार्य आपको परिभाषित एवं चित्रित कर देगा। थॉमस जेफर्सन
+* विनम्र तो सबके साथ रहें, लेकिन घनिष्ठ कुछ एक के साथ ही। थॉमस जैफरसन
+* बुद्धिमत्ता की पुस्तक में ईमानदारी पहला अध्याय है। थॉमस जैफर्सन
+* गलती करने की बजाय देर करना कहीं अधिक अच्छा होता है। थॉमस जैफरसन
+* ख़ाली दिमाग को खुला दिमाग बना देना ही शिक्षा का उद्देश्य है। फ़ोर्ब्स
+* कम्प्यूटर को प्रोग्राम करने के लिये संस्कृत सबसे सुविधाजनक भाषा है। फोर्ब्स पत्रिका (जुलाई, 1987)
+* यदि हम असफलता से शिक्षा प्राप्त करते हैं तो वह सफलता ही है। मैल्कम फोर्ब्स
+* शिक्षा का ध्येय है एक ख़ाली दिमाग को खुले दिमाग में बदलना। मेल्कम फोर्ब्स
+* हम क्या सोचते हैं, क्या जानते हैं, और किसमें विश्वास करते हैं – अंततः ये बातें मायने नहीं रखतीं. हम क्या करते हैं वही महत्वपूर्ण है। जॉन रस्किन
+* जब किसी कार्य में रुचि और उसे करने के हुनर का संगम हो, तो उत्कृष्टता स्वाभाविक है। जॉन रस्किन
+* जब हम निर्माण करें, तो ऐसा सोच कर करें कि यह हमेशा हमेशा के लिए है। जॉन रस्किन
+* मैं नही जानता कि सफलता की सीढी क्या है; पर असफला की सीढी है, हर किसी को प्रसन्न करने की चाह। बिल कोस्बी
+* मुझे सफलता का उपाय नहीं मालूम लेकिन यह मालूम है कि सब को खुश करने का प्रयत्न असफलता का उपाय है। बिल कोस्बी
+* सफल होने के लिए ज़रूरी है कि आप में सफलता की आस असफलता के डर से कहीं अधिक हो। बिल कोज़्बी
+* हर वर्ष एक बुरी आदत को मूल से खोदकर, फेंका जाए तो कुछ ही वर्षों में बुरे से बुरा, व्यक्ति भला हो सकता है। सुकरात
+* धन से अच्छे गुण नहीं मिलते, धन अच्छे गुणों से मिलता है। सुकरात
+* निकम्मे लोग सिर्फ खाने पीने के लिए जीते हैं, लेकिन सार्थक जीवन वाले जीवित रहने के लिए ही खाते और पीते हैं। सुकरात
+* जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने वश म��ं कर लेता है, वह दूसरों के क्रोध से (फलस्वरूप) स्वयमेव बच जाता है। सुकरात
+* ऊंची से ऊंची चोटी पर पहुंचना मकसद हो तो अपना काम निचली सतह से शुरू करना चाहिए। स्वेट मार्डेन
+* आशा और आत्मविश्वास से ही हमारी, शक्तियां जागृत होती हैं, इनसे हमारी, उत्पादन शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। स्वेट मार्डेन
+* हमारी अधिकतर बाधाएँ पिघल जाएंगी अगर उनके सामने दुबकने के बजाय हम उनसे निडरतापूर्वक निपटने का मानस बनाएँ। ओरिसन स्वेट मार्डेन
+* ऐसे सभी व्यक्ति जिन्होंने महान उपलब्धियां हासिल की हैं, वह महान स्वप्नदृष्टा भी होते हैं। ओरिसन स्वेट मार्डन
+* अपनी शक्ति को छोटा न समझें, एक छोटी सी चिनगारी भी विशाल वन को जला कर राख कर सकती हैं। स्वेट मार्डन
+* जब कोई व्यक्ति ठीक काम करता है, तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है। गेटे
+* इस संसार में सबसे सुखी वही व्यक्ति है जो अपने घर में शांति पाता है। गेटे
+* अपनी आंखों को सितारों पर टिकाने से पहले अपने पैर जमीन में गड़ा लो। थियोडॉर रूज़वेल्ट
+* आपसे जितना हो सके करें, वहीं जहां आप हैं और उनसे जो साधन आपके पास हैं। थियोडोर रूसवेल्ट
+* लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित कर पाना ही सफ़लता का एक अति महत्वपूर्ण सूत्र है। थियोडोर रूसवेल्ट
+* वास्तविक कठिनाईयों को दूर किया जा सकता है; केवल कल्पनात्मक कठिनाईयां को ही पराजित नहीं किया जा सकता है। थियोडोर एन. वेल
+* सुविचरों से सुफल उपजते हैं और कुविचारों से कुफल। जेम्स एलन
+* लक्ष्मी को पाना है तो या तो उल्लू बनना होगा या प्रभु विष्णु, लक्ष्मी केवल इन्हीं दोनों के पास ही रहती है। एक की सवारी करती है और एक की सेवा। जितने अंश तक उल्लू या विष्णु के गुण तुम्हारे भीतर होंगे, उतने ही अंश तक लक्ष्मी तुम्हारे पास रहेगी। जेम्स एलन
+* गुणवत्ता की कसौटी बनें। कई लोग ऐसे वातावरण के अभ्यस्त नहीं होते जहां उत्कृष्टता अपेक्षित होती है। स्टीव जॉब्स
+* मैं अपने जीवन को एक पेशा नहीं मानता, मैं कर्म में विश्वास रखता हूं, मैं परिस्थितियों से शिक्षा लेता हूं, यह पेशा या नौकरी नहीं है यह तो जीवन का सार है। स्टीव जॉब्स, संस्थापक, एप्पल
+* मुझे यकीन है कि सफल और असफल उद्यमियों में आधा फर्क तो केवल अध्यवसाय का ही है। स्टीव जॉब्स
+* गुणवत्ता प्रचुरता से अधिक महत्वपूर्ण है, एक छक्का दो-दो रन बनाने से कहीं बेहतर है। स्टीव जॉब्स
+* अभिकल्पना किसी यंत्र की बाहरी बनावट मात्र नहीं है, अभिकल्पना तो इसकी कार्यविधि का मूल है। स्टीव जॉब्स
+* यदि आप सौ व्यक्तियों की सहायता नहीं कर सकते तो केवल एक की ही सहायता कर दें। मदर टेरेसा
+* मीठे बोल संक्षिप्त और बोलने में आसान हो सकते हैं, लेकिन उन की गूँज सचमुच अनंत होती है। मां टेरेसा
+* मैं सफलता की प्रार्थना नहीं करती हूं, मैं विश्वास के लिए कहती हूं। मदर टेरेसा
+* छोटी छोटी बातों में विश्वास रखें, क्योंकि इन में ही आपकी शक्ति निहित है। संत तरेसा
+* आयु आपकी सोच में है। जितनी आप सोचते हैं उतनी ही आपकी उम्र है। मुहम्मद अली
+* बच्चों को देखकर इच्छा होती है कि जीवन फिर से शुरू करें। मुहम्मद अली
+* मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था – 'भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी जिंदगी चैम्पियन की तरह जिओ मुहम्मद अली
+* आप प्रत्येक ऐसे अनुभव जिसमें आपको वस्तुत डर सामने दिखाई देता है, से बल, साहस तथा विश्वास अर्जित करते हैं, आपको ऐसे कार्य अवश्य करने चाहिए जिनके बारे में आप सोचते हैं कि आप उनको नहीं कर सकते हैं। एलेनोर रुज़वेल्ट
+* भविष्य उनका है जो अपने सपनों की सुंदरता में यकीन करते हैं। एलेअनोर रूज़वेल्ट
+* आपकी मर्जी के बिना कोई भी आपको तुच्छ होने का अहसास नहीं करवा सकता है। एलेयनोर रूज़वेल्ट
+* महान मानस के लोग विचारों पर बात करते हैं, साधारण मानस के लोग घटनाक्रम की बात करते हैं, और निम्न स्तर के लोग दूसरों के बारे में बात करते हैं। एलेनोर रूसवेल्ट
+* यदि मैं उदास महसूस करती हूं तो मैं काम पर चली जाती हूं, काम में व्यस्तता उदासी का उत्तम प्रतिकार है। एलेनोर रूजवेल्ट
+* वह व्यक्ति अच्छा कार्य निष्पादन करता है जो परिस्थितियों का ठीक से सामना करता है। प्लुटार्च
+* कोई गलती न करना मनुष्य के बूते की बात नहीं है, लेकिन अपनी त्रुटियों और गलतियों से समझदार व्यक्ति भविष्य के लिए बुद्धिमत्ता अवश्य सीख लेते हैं। प्लूटार्क
+* क्रोध बुद्धि को घर से बाहर, निकाल देता है और दरवाजे पर, चटकनी लगा देता है। प्लूटार्क
+* जीवन में अनेक विफलताएं केवल इसलिए होती हैं क्योंकि लोगों को यह आभास नहीं होता है कि जब उन्होंने प्रयास बन्द कर दिए तो उस समय वह सफलता के कित���े क़रीब थे। थोमस एडिसन
+* चाहे आप में कितनी भी योग्यता क्यों न हो, केवल एकाग्रचित्त होकर ही आप महान कार्य कर सकते हैं। बिल गेट्स
+* टीवी वास्तविकता से परे है, वास्तविक जीवन में लोगों को फुरसत छोड़ कर नौकरी और कारोबार करना होता है। बिल गेट्स
+* सफलता की खुशियां मनाना ठीक है, लेकिन असफलताओं से सबक सीखना अधिक महत्वपूर्ण है। बिल गेट्स
+* अगर सफलता का कोई राज़ है, तो वह दूसरे के दृष्टिकोण को समझने और चीजों को उसके दृष्टिकोण से अपने दृष्टिकोण जितने अच्छे से देख पाने की क्षमता में निहित है। हेनरी फोर्ड
+* असफलता मात्र फिर से कार्यारम्भ करने का अवसर होती है, इस बार और अधिक बुद्धिमत्ता से। हेनरी फोर्ड
+* व्यस्त रहना काफ़ी नहीं है, व्यस्त तो चींटियाँ भी रहती हैं। सवाल यह है हम किस लिए व्यस्त हैं हेनरी डेविड थोरु
+* प्रातःकाल का भ्रमण पूरे दिन के लिए वरदान होता है। हेनरी डेविड थोरो (1817-1862 लेखक
+* लोग आपको समालोचना के लिए पूछ भले ही लें, लेकिन चाहते वे केवल प्रशंसा ही हैं। डब्लू सोमरसेट मोघेम
+* जब आप अपने मित्रों का चयन करते हैं तो चरित्र के स्थान पर व्यक्तित्व को न चुनें। डब्ल्यू सोमरसेट मोघम
+* जीवन के बारे में एक मजेदार बात यह है कि यदि आप सर्वश्रेष्ठ वस्तु से कुछ भी कम स्वीकार करने से इंकार करते हैं तो अकसर आप उसको प्राप्त कर ही लेते हैं। डब्ल्यू. सोमरसेट मोघम
+* लोग अक्सर कहते हैं कि प्रेरक विचारों से कुछ नहीं होता। हाँ भाई, वैसे तो नहाने से भी कुछ नहीं होता, तभी तो हम इसे रोज़ करने की सलाह देते हैं। ज़िग ज़िगलर
+* जीतने का इतना महत्व नहीं है जितना की जीतने के लिए प्रयास करने का महत्व होता है। जिग जिगलार
+* आपकी उपलब्धियों का निर्धारण आपकी प्रवृति से नहीं अपितु आपके रवैय्ये से होता है। जिग जिगलर
+* ईमानदारी, चरित्र, विश्वास, प्रेम और वफादारी संतुलित सफलता के लिए नींव के पत्थर हैं। जिग जिगलर
+* लोग कहते हैं कि प्रेरणा देर तक नहीं चलती। खैर, स्नान भी नहीं, तभी हम रोज नहाने की सलाह देते हैं। जिग जिगलर
+* जब तक आप ढूंढते रहेंगे, समाधान मिलते रहेंगे। जॉन बेज
+* निराशा को काम में व्यस्त रहकर दूर भगाया जा सकता है। जॉन बेइज़
+* आपको यह चुनने का अवसर नहीं मिलता है कि आप किस प्रकार से अथवा कब मरेंगे, आप केवल इतना ही निर्णय कर सकते हैं कि आप किस प्रकार से जिंदगी को ज़ीने जा रहे हैं। जॉन बेइज़
+* समस्त सफलताएं कर्म की नींव पर आधारित होती हैं। एंथनी राबिन्स
+* मुझे काफ़ी समय पहले ही पता लग गया था कि यदि मैं लोगों की उनकी चाहतों को पूरा करने में सहायता करता हूं तो मुझे हमेशा वह सब मिल जाएगा जो मैं चाहता था और मुझे कभी भी चिंता नहीं करनी पड़ेगी। एंथनी राबिन्स
+* आप हमेशा परिस्थितियों को नियंत्रित, नहीं कर सकते, लेकिन आप खुद को जरूर नियंत्रित कर सकते हैं। एंथनी रोबिन्स
+* यदि आप किसी चीज का सपना देख सकते हैं, तो आप उसे प्राप्त कर सकते हैं। वाल्ट डिज़नी
+* जब हम किसी नई परियोजना पर विचार करते हैं तो हम बड़े गौर से उसका अध्ययन करते हैं केवल सतह मात्र का नहीं, बल्कि उसके हर एक पहलू का। वाल्ट डिज़्नी
+* हम आगे बढ़ते हैं, नए रास्ते बनाते हैं, और नई योजनाएं बनाते हैं, क्योंकि हम जिज्ञासु है और जिज्ञासा हमें नई राहों पर ले जाती है। वाल्ट डिज़्नी
+* एक मूल नियम है कि समान विचारधारा के व्यक्ति एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं, नकारात्मक सोच सुनिश्चित रुप से नकारात्मक परिणामो को आकर्षित करती है, इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति आशा और विश्वास के साथ सोचने को आदत ही बना लेता है तो उसकी सकारात्मक सोच से सृजनात्मक शक्तियों सक्रिय हो जाती हैं- और सफलता उससे दूर जाने की बजाय उसी ओर चलने लगती है। नार्मन विंसेन्ट पीएले
+* जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाइयां लड़ना नहीं, बल्कि उन से बचना है। कुशलतापूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है। नॉरमन विंसेंट पील (1896-1993)
+* जीवन में दो मूल विकल्प होते हैं, स्थितियों को उसी रूप में स्वीकार करना जैसी वे हैं या उन्हें, बदलने का उत्तरदायित्व स्वीकार करना। डेनिस वेटले
+* समय और स्वास्थ्य दो बहुमूल्य संपत्तियां हैं, जिनकी पहचान तथा मूल्य हम उस समय तक नहीं समझते जब तक उनका नाश नहीं हो जाता। डेनिस वेटले
+* यदि आप यह मानते हैं कि आप कर सकते हैं, तो संभवतः आप कर सकते हैं, यदि यह सोचते हैं कि आप नहीं कर सकते, तो आप सुनिश्चित रुप से नहीं कर सकते, विश्वास वह स्विच है जो आपको आगे बढ़ाता है। डेनिस वेटले
+* हो सकता है कि मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊँ, परन्तु विचार प्रकट करने के आपके अधिकार की रक्षा करूँगा। वाल्तेयर
+* किसी निर्दोष को दंडित करने से बेहतर है एक दोषी व्यक्ति को बख़्श देने का जोख़िम उठाना। वाल्तेयर (1694-1778)
+* सत्य से प्यार करें और गलती को क्षमा कर दें। वोल्टेयर
+* जिस व्यक्ति के पास शिक्षा है, उसका चिन्ह अच्छा शिष्टाचार है।
+* आगे का जीवन केवल तभी शानदार हो सकता है जब आप प्रभु के साथ समग्रता से रहना सीखें।
+* अपने और दूसरों के और आपके और मेरे बीच अलगाव की एक दीवार है। इस दीवार को नष्ट कर दो
+* अपनी सांसारिक गतिविधियों को सहर्ष करें, लेकिन ईश्वर को न भूलें।
+* यदि आप धनवान हैं, तो विनम्र बनें। फल लगने पर पौधे झुक जाते हैं।
+* प्रेरणा कार्य आरम्भ करने में सहायता करती है, आदत कार्य को जारी रखने में सहायता करती है। जिम रयून
+* अनुशासन, लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का सेतु है। जिम रॉन
+* औपचारिक शिक्षा आपको जीविकोपार्जन के लिए उपयुक्त बना देती है; स्व शिक्षा (अनुभव) आपका भाग्य बनाती है। जिन रॉन
+* जीवन हमें जो ताश के पत्ते देता हैं, उन्हे हर खिलाड़ी को स्वीकार करना पड़ता हैं, लेकिन जब पत्ते हाथ में आ जावे तो खिलाड़ी को यह तय करना होता हैं कि वह उन पत्तों को किस तरह खेलें, ताकि वह बाजी जीत सके। वाल्तेयर
+* मुझे सफलता का उपाय नहीं मालूम है, लेकिन यह मालूम है कि सब को खुश करने का प्रयत्न असफलता का उपाय है । बिल कोस्बी
+* अपना जीवन ऐसे जिये कि आपके बच्चे अपने बच्चों से कह सकें कि आप न केवल किसी प्रशंसनीय निमित्त के समर्थक थे आप उसका पालन भी करते थे। डेन जाद्रा
+* रोष एक बोझ है जो आपकी सफलता के साथ असंगत है। क्षमा करने में अव्वल रहें; और अपने आप को सबसे पहले क्षमा करें। डेन जाड्रा
+* प्रत्येक उतकृष्ट कार्य पहले पहल असम्भव होता है। थॉमस कार्लेले
+* अंतर्दृष्टि के बिना ही काम करने से अधिक भयानक दूसरी चीज नहीं है। थामस कार्लाइल
+* क्लोज़-अप में जीवन एक त्रासदी (ट्रेजेडी) है, तो लंबे शॉट में प्रहसन (कॉमेडी)। चार्ली चेपलिन
+* कठिन परिश्रम से भविष्य सुधरता है। आलस्य से वर्तमान। स्टीवन राइट
+* आप को सब कुछ नहीं मिल सकता| आप इसे रखेंगे कहां स्टीवन राइट
+* ज्ञान की अपेक्षा अज्ञान ज्यादा आत्मविश्वास पैदा करता है। चार्ल्स डार्विन
+* ऐसा व्यक्ति जो एक घंटे का समय बरबाद करता है, उसने जीवन के मूल्य को समझा ही नहीं है। चार्ल्स डारविन
+* परस्पर आदान-प्रदान के बिना समाज में जीवन का निर्वाह संभव नहीं है। सेमुअल जॉन्सन
+* कभी संदेह न करें कि विचारशील नागरिकों का छोटा समूह दुनिया बदल सकता है। वास्तव में, कभी कुछ बदला है तो ऐसे ही। माग्रेट मीड
+* मनुष्य की सबसे शुरुआत��� आवश्यकताओं में एक है किसी ऐसे की ज़रूरत जो आपके रात को घर न लौटने पर चिंतित हो कि आप कहाँ हैं। माग्रेट मीड
+* आशा वह शक्ति है जो उन परिस्थितियों में भी हमें प्रसन्न बनाए रखती है जिनके बारे में हम जानते हैं कि वे खराब हैं। जी. के. चेस्टर्टन
+* इस धरा पर जैसा कोई विषय नहीं जो अरुचिकर हो; यदि ऐसा कुछ है तो वह एक बेसरोकार व्यक्ति ही हो सकता है। जी. के. चेस्टरटन
+* सफलता का कोई रहस्य नहीं हैं, यह तैयारी, कड़ी मेहनत और असफलता से सीखने का ही परिणाम होता है। जन. कोलिन एल. पावेल
+* यदि आप बार बार नहीं गिर रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आप कुछ नया नहीं कर रहे हैं। वुडी एलन
+* यदि बार-बार असफल नहीं हो रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आप कुछ आविष्कारक काम भी नहीं कर रहे हैं। वुडी एल्लेन
+* जो व्यक्ति किसी तारे से बंधा होता है वह पीछे नहीं मुड़ता। लेओनार्दो दा विंची (1452-1519 इतालवी कलाकार, संगीतकार एवं वैज्ञानिक
+* सीखने से मस्तिष्क कभी नहीं थकता है। लियोनार्डो दा विंची
+* यदि आपको पहली बार में सफलता नहीं मिलती है, तो फिर से कड़ी मेहनत करें। विलियम फैदर
+* सफलता का एक ही सूत्र है और वह जब अन्य हिम्मत हार चुके हों तो भी आप डटे रहते हैं। विलियम फैदर
+* आकार का इतना अधिक महत्व नहीं होता है, व्हेल मछली का अस्तित्व खतरे में है जबकि चींटी एक सहज जीवन जी रही है। बिल वाघन
+* हजार मील का सफर भी एक कदम से ही आरंभ होता है। लाओ त्ज़ु
+* अपने शत्रुओं को सदैव क्षमा कर दो, वे और किसी बात से इससे ज्यादा नहीं चिढ़ते। ऑस्कर वाइल्ड
+* जीवन का लक्ष्य है आत्मविकास। अपने स्वभाव को पूर्णतः जानने के लिऐ ही हम इस दुनिया में है। ऑस्कर वाइल्ड
+* ना कहने का साहस रखें, सच्चाई का सामना करने का साहस रखें, सही कार्य करें क्योंकि यह सही है, यह जीवन को सत्यनिष्ठा से जीने की जादुई चाबियां हैं। डब्ल्यू क्लेमैन्ट स्टोन
+* जब हम अपने विचारों को सही दिशा निर्देशन प्रदान करते हैं, तो हम अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं। डब्ल्यू. क्लेमेंट स्टोन
+* नन्हे शिशु के जन्म का अर्थ है कि भगवान यह चाहते हैं कि यह दुनिया बनी रहे। कार्ल सैन्बर्ग
+* मौन निद्रा के सदृश है। यह ज्ञान में नयी स्फूर्ति पैदा करता है। बेकन
+* अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अलंकृत भी करता है और योग्य भी बनाता है, मस्तिष्क के लिये अध्ययन की उतनी ही आवश्यकता है जितनी शरीर के लिये व्याय��म की। जोसेफ एडिशन
+* जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है। हक्सले
+* साहस और दृढ़ निश्चय जादुई तावीज़ हैं जिनके आगे कठिनाईयां दूर हो जाती हैं और बाधाएं उड़न-छू हो जाती है। जॉन क्विंसी एडम्स
+* अपने सम्मान की बजाय अपने चरित्र के प्रति अधिक गम्भीर रहें, आपका चरित्र ही यह बताता है कि आप वास्तव में क्या हैं जबकि आपका सम्मान केवल यही दर्शाता है कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं। जॉन वुडन
+* विवाह करने से पहले मेरे पास बच्चों को पालने के छः सिद्धांत थे, अब मेरे पास छः बच्चे हैं पर सिद्धांत एक भी नहीं। जॉन विल्मोट
+* जिन्दगी वैसी नहीं है जैसी आप इसके लिये कामना करते हैं, यह तो वैसी बन जाती है, जैसा आप इसे बनाते हैं। एंथनी रयान
+* जीवन वह नहीं है जिसकी आप चाहत रखते हैं, बल्कि वह तो वैसा बन जाता है जैसा आप इसे बनाते हैं। एंथनी रयान
+* जीवन में सबसे महत्वपूर्ण वस्तुएं वस्तुएं नहीं होती। एंथनी डी'एंजेलो
+* सफल होने के लिए आपको असफलता का स्वाद अवश्य चखना चाहिए, ताकि आपको यह पता चल सके कि अगली बार क्या नहीं करना है। एंथनी जे. डीएंजेलो
+* प्रत्येक समस्या अपने साथ आपके लिए एक उपहार लेकर आती है। रिचर्ड बैक
+* वह रिश्ता जो आपके परिवार को वास्तव में बाँधता है, वह खून का नहीं है, बल्कि एक दूसरे के जीवन के प्रति आदर और खुशी का रिश्ता होता है। रिचर्ड बैक
+* आप जितना कम बोलेंगे, आप की उतनी ही सुनी जाएगी। एबिगैल वैन ब्यूरेन
+* अकेलापन निर्धनता की पराकाष्ठा है। एबिगैल वैन ब्यूरेन
+* प्रेरणा अंतर्मन से उत्पन्न होने वाली आग है, यदि आपके भीतर इस आग को जलाने का प्रयास किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है तो इस बात की संभावना है कि यह थोड़ी ही देर जलेगी। स्टीफन आर. कोवे
+* अपनी कल्पना को जीवन का मार्गदर्शक बनाएं, अपने अतीत को नहीं। स्टीफन कोवि
+* ईमानदारी किसी कायदे क़ानून की मोहताज़ नहीं होती। आल्बेर कामू (1913-1960 1957 में साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता
+* यह एक प्रकार का आध्यात्मिक दंभ है जिसमें लोगों को लगता है कि वे धन के बिना सुखी रह सकते हैं। एल्बर्ट कामू
+* कोई भी व्यक्ति सेब के बीजों की गिनती कर सकता है, लेकिन बीज में सेबों की गिनती केवल भगवान ही कर सकते हैं। राबर्ट एच. शुलर
+* असफलता का मतलब यह नहीं कि आप असफल हैं, इसका मतलब सिर्फ इतना है कि आप अब तक सफल नहीं हो पाएँ हैं। रोबर्ट शुलर
+* प्रबंधन अन्य लोगों के माध्यम से काम करवाने की कला है। मैरी पार्कर फोल्लेट्ट
+* प्रत्येक बच्चा एक कलाकार होता है, समस्या यह है कि युवा होने पर कलाकार कैसे बने रहा जाए। पाबलो पिकासो
+* काम समस्त सफलता की आधारभूत नींव होता है। पाब्लो पिकासो
+* एक चीज जिससे डरा जाना चाहिए वह डर है। फ्रेंकलिन डी. रुज़वेल्ट
+* बिना उचित अवसर के योग्यता किसी काम की, नहीं है भले आप में लाख गुण हों लेकिन यदि, अवसर नहीं मिला तो योग्यता व्यर्थ है। नेपोलियन बोनापार्ट
+* अशिक्षित रहने से पैदा न होना अच्छा है, क्योंकि अज्ञान सब बुराईयों का मूल हैं। नेपोलियन बोनापार्ट
+* सच्ची से सच्ची और अच्छी से अच्छी चतुराई दृढ संकल्प है। नेपोलियन बोनापार्ट
+* यदि आप बार-बार शिकायत नहीं करते हैं तो आप किसी भी कठिनाई को दूर कर सकते हैं। बर्नार्ड एम. बारूच
+* अधिकांश सफल व्यक्ति जिन्हें मैं जानता हूं वे ऐसे व्यक्ति हैं जो बोलते कम और सुनते ज्यादा हैं। बर्नार्ड एम. बारूच
+* निष्क्रियता से संदेह और डर की उत्पत्ति होती है, क्रियाशीलता से विश्वास और साहस का सृजन होता है, यदि आप डर पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं, तो चुपचाप घर पर बैठ कर इसके बारे में विचार न करें, बाहर निकले और व्यस्त रहें। डेल कार्नेगी
+* इस तरह से कार्य करें जैसे कि आप पहले से ही खुश हैं तथा इसके परिणामस्वरुप आप खुशी प्राप्त कर लेंगे। डेल कार्नेज
+* गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं। डेनियल
+* कोई छोटी-छोटी योजनाएं न बनाएं; उनमें मनुष्य को प्रेरित करने का कोई जादु नहीं समाया होता, बड़ी योजनाएं बनाएं, उच्च आशा रखें और काम करें। डैनियल एच. बर्नहम
+* मैंने सीखा है कि लोग भूल जाते हैं कि आपने क्या कहा था, लोग भूल जाते हैं कि आपने क्या किया था, लेकिन लोग कभी नहीं भूलते कि आपने उनके साथ कैसा बर्ताव किया था। माया एंजेलो
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+भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ९ सितंबर १८५०-७ जनवरी १८८५) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनके द्वारा रचित मौलिक नाटक, अनूदित नाट्य रचनाएँ, काव्यकृतियां एवम् निबन्ध आदि हिन्दी साहित्य की धरोहर है ।
+विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
+* इस प्रान्त की प्राथमिक पाठशालाओं में हिंदी भाषा की लिपि का प्रयोग प्रायः पूर्णतया किया जाता है। परन्तु अदालतों और दफ्तरों मे��� फारसी भाषा की लिपि का प्रयोग होता है; अतः उस प्राथमिक शिक्षा का जो एक ग्रामीण लड़का अपने गाँव में प्राप्त करता है, कोई मूल्य नहीं है, कोई फल नहीं है। उसमें कोई आकर्षण ही नहीं रह जाता. वर्षों तक एक ग्राम पाठशाला में पढ़ने के बाद जब एक जमींदार का लड़का अदालत में जाता है तो उसे पता चलता है कि उसका सब परिश्रम व्यर्थ गया, अपने पूर्वजों की भांति वह भी बिलकुल अज्ञानी है, तथा वह उस घसीट लिपि (उर्दू) को पढ़ने में बिलकुल असमर्थ है जो अदालत का अमला प्रयोग में लाता है। यदि एक निर्धन व्यक्ति के पुत्र को अपने (हिंदी) ज्ञान के भरोसे पर जीविका साधन प्राप्त करने की अभिलाषा है तो उसे शिक्षा विभाग का द्वार खटखटाना पड़ेगा, अन्य विभाग उसे अशिक्षित कहकर वापस कर देंगे। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन)
+* मुझे यह जानकर बहुत खेद हुआ कि माननीय अहमद खां बहादुर, सी. एस. आई ने आयोग के सामने अपनी गवाही में कहा है कि सुसभ्य वर्ग की भाषा उर्दू है और असभ्य ग्रामीणों की हिंदी है। यह कथन गलत तो है ही, हिन्दुओं के प्रति अन्यायपूर्ण भी है। इसका अर्थ यह हुआ कि कुछ कायस्थों को छोड़कर, अन्य सब अर्थात् क्षेत्रीय महाजन, जमींदार, यहाँ तक कि आदरणीय ब्राह्मण भी, जो हिंदी बोलते हैं, असभ्य ग्रामीण हैं। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन पृष्ठ 38)
+* सभी सभी देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग किया जाता है. यही ऐसा देश है जहाँ अदालती भाषा न तो शासकों की मातृभाषा है और न प्रजा की। यदि आप दो सार्वजनिक नोटिस, एक उर्दू में, तथा एक हिंदी में, लिखकर भेज दें तो आपको आसानी से मालूम हो जाएगा कि प्रत्येक नोटिस को समझने वाले लोगों का अनुपात क्या है। जो सम्मान जिलाधीशों द्वारा जारी किये जाते हैं उनमें हिंदी का प्रयोग होने से रैयत और जमींदार को हार्दिक प्रसन्नता प्राप्त हुई है। साहूकार और व्यापारी अपना हिसाब-किताब हिंदी में रखते हैं. स्त्रियाँ हिंदी लिपि का प्रयोग करती हैं. पटवारी के कागजात हिंदी में लिखे जाते हैं और ग्रामों के अधिकतर स्कूल हिंदी में शिक्षा देते हैं। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन)
+* वास्तव में हमारी बोली क्या है, इस प्रश्न का उत्तर देना कुछ कठिन है। भारत में यह कहावत प्रसिद्ध है – बल्कि यह प्रमाणित सत्य है कि प्रत्येक योजन (आठ मील) के बाद बोली बदल जाती है। ���केले उत्तर पश्चिमी प्रान्त में कई बोलियाँ हैं. इस प्रान्त की भाषा एक गहन चीज है, उसके बहुत से रूप हैं। और इसलिए उसे कई उप-शीर्षकों में विभाजित किया जा सकता है; परन्तु इसके मुख्य रूप चार हैं 1. पूर्वी, जिस रूप में वह बनारस तथा उसके पड़ौस के जिलों में बोली जाती है; 2. कन्नौजी, जो कानपुर तथा उसके आसपास के जिलों में बोली जाती है; 3. ब्रजभाषा, जो आगरा तथा उसकी सीमा के क्षेत्रों में बोली जाती है; 4. कय्यान या खड़ी बोली जिस रूप में वह सहारनपुर, मेरठ तथा उसके इर्द-गिर्द के जिलों में बोली जाती है। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन)
+* यदि हिन्दी अदालती भाषा हो जाए, तो सम्मन पढ़वाने, के लिए दो-चार आने कौन देगा, और साधारण-सी अर्जी लिखवाने के लिए कोई रुपया-आठ आने क्यों देगा। तब पढ़ने वालों को यह अवसर कहाँ मिलेगा कि गवाही के सम्मन को गिरफ्तारी का वारंट बता दें। सभी सभ्य देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग किया जाता है। यही (भारत) ऐसा देश है जहाँ अदालती भाषा न तो शासकों की मातृभाषा है और न प्रजा की। यदि आप दो सार्वजनिक नोटिस, एक उर्दू में, तथा एक हिंदी में, लिखकर भेज दें तो आपको आसानी से मालूम हो जाएगा कि प्रत्येक नोटिस को समझने वाले लोगों का अनुपात क्या है। जो सम्मन जिलाधीशों द्वारा जारी किये जाते हैं उनमें हिंदी का प्रयोग होने से रैयत और जमींदार को हार्दिक प्रसन्नता प्राप्त हुई है। साहूकार और व्यापारी अपना हिसाब-किताब हिंदी में रखते हैं। स्त्रियाँ हिंदी लिपि का प्रयोग करती हैं। पटवारी के कागजात हिंदी में लिखे जाते हैं और ग्रामों के अधिकतर स्कूल हिंदी में शिक्षा देते हैं। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन)
+* जो हो मैंने आप कई बेरे परिश्रम किया कि खड़ी बोली में कुछ कविता बनाऊँ पर वह मेरे चित्तानुसार नहीं बनी इससे यह निश्चित होता है कि ब्रज-भाषा ही में कविता करना उत्तम होता है और इसी के कविता ब्रज-भाषा में ही उत्तम होती है।
+* प्रचलित साधुभाषा में कुछ कविता भेजी है। देखिएगा कि इस में क्या कसर है। और किस उपाय के अवलम्बन करने से इस भाषा में काव्य सुंदर बन सकता है। इस विषय में सर्वसाधारण की अनुमति ज्ञात होने पर आगे से वैसा परिश्रम किया जाएगा। तीन भिन्न-भिन्न छंदों में यह अनुभव करने के लिए कि किस छंद में इस भाषा का काव्य अच्छा होगा, कविता लिखी है��� मेरा चित्त इससे संतुष्ट न हुआ और न जाने क्यों ब्रज-भाषा से मुझे इसके लिखने में दूना परिश्रम हुआ। इस भाषा की क्रियाओं में दीर्घ भाग विशेष होने के कारण बहुत असुविधा होती है। मैंने कहीं-कहीं सौकर्य के हेतु दीर्घ मात्राओं को भी लघु करके पढ़ने की चाल रखी है। लोग विशेष इच्छा करेंगे और स्पष्ट अनुमति प्रकाश करेंगे तो मैं और भी लिखने का यत्न करूँगा। (1 सितंबर 1881 को ‘भारत मित्र’ के सम्पादक को पत्र )
+* जब अंग्रेज विलायत से आते हैं प्रायः कैसे दरिद्र होते हैं और जब हिंदुस्तान से अपने विलायत को जाते हैं तब कुबेर बनकर जाते हैं। इससे सिद्ध हुआ कि रोग और दुष्काल इन दोनों के मुख्य कारण अंग्रेज ही हैं। (अपनी पत्रिका कविवचनसुधा में)
+* हमारे हिंदुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं. यद्यपि फस्ट क्लास, सेकेंड क्लास आदि गाड़ी बहुत अच्छी-अच्छी और बड़े बड़े महसूल की इस ट्रन में लगी हैं पर बिना इंजिन ये सब नहीं चल सकतीं, वैसे ही हिन्दुस्तानी लोगों को कोई चलाने वाला हो तो ये क्या नहीं कर सकते। इनसे इतना कह दीजिए `का चुप साधि रहा बलवाना´, फिर देखिए हनुमानजी को अपना बल कैसा याद आ जाता है। सो बल कौन याद दिलावै। या हिन्दुस्तानी राजे महाराजे नवाब रईस या हाकिम। राजे-महाराजों को अपनी पूजा, भोजन, गप से छुट्टी नहीं। हाकिमों को कुछ तो सरकारी काम घेरे रहता है, कुछ बाल, धुड़दौड़, थिएटर, अखबार में समय गया। कुछ बचा भी तो उनको क्या गरज है कि हम गरीब गंदे काले आदमियों से मिलकर अपना अनमोल समय खोवैं। बलिया व्याख्यान' की रपट 'हरिश्चंद्र चंद्रिका´ में 3 दिसम्बर 1884 )
+* भारतवर्ष की उन्नति के जो अनेक उपाय महात्मागण आजकल सोच रहे हैं, उनमें एक और उपाय होने की आवश्यकता है। इस विषय के बड़े-बड़े लेख और काव्य प्रकाश होते हैं, किंतु वे जनसाधारण के दृष्टिगोचर नहीं होते। इसके हेतु मैंने यह सोचा है कि जातीय संगीत की छोटी-छोटी पुस्तकें बनें और वे सारे देश, गांव-गांव में साधारण लोगों में प्रचार की जाएं। मेरी इच्छा है कि मैं ऐसे गीतों का संग्रह करूं और उनको छोटी-छोटी पुस्तकों में मुद्रित करूं।
+भारतेन्दु पर महापुरुषों के विचार
+* विक्रम की बीसवीं शताब्दी का प्रथम चरण समाप्त हो जाने पर जब भारतेन्दु ने हिन्दी-गद्य की भाषा को सुव्यवस्थित और परिमार्जित करके उसका स्वरूप स्थिर कर दिया तब से गद्य-साहित्य की परंपरा लगातार चली । ���सी दृष्टि से भारतेन्दु जी जिस प्रकार वर्तमान गद्य-भाषा के स्वरूप के प्रतिष्ठापक थे, उसी प्रकार वर्तमान साहित्य-परंपरा के प्रवर्तक । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल अपने 'भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' नामक निबन्ध में
+* देशी बोली में रचित साहित्य को लोकप्रिय बनाने में भारतेन्दु हरिश्चंद्र से अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य किसी अन्य भारतीय ने नहीं किया। जॉर्ज ग्रियर्सन
+* जिसका घर साहित्यकारों के सम्मेलन का सभाभवन हो, जिसने अपने चारों तरफ़ बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र, राधाचरण गोस्वामी, श्रीनिवासदास, काशिनाथ आदि लेखकों का व्यूह रचाया हो, जिसने ‘कवि-वचन-सुधा’ से लेकर ‘सारसुधा निधि’ तक पचीसों अख़बारों और पत्रों से हिन्दी में नयी हलचल मचा दी हो और स्वयं नाटक, निबंध, कविताएं, व्याख्यान, मुकरियाँ आदि से अपने युग को चमत्कृत करके 36 साल की अवस्था में ही अपनी जीवन-लीला समाप्त कर दी हो – दरअसल उसका जीवन कहानी न होगा तो किसका होगा रामविलास शर्मा भारतेन्दु-युग विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, 1951, पृ. 169
+* भारतेन्दु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिन्दी साहित्य में अग्रणी स्थान प्राप्त है। हिन्दी भाषा को हिन्दी गद्य के लिए उन्होंने बड़े सर्जनात्मक ढंग से व्यवहार किया। मित्रों और ख़तो-किताबत करनेवालों के बीच उन्होंने एक मंडली जुटाई और इसे हिन्दी में साहित्य लेखन के लिए प्रेरित किया। बनारस में उनकी गणना ऊँची हैसियत के लोगों में की जाती थी। उनका संबंध बनारस के वनिकों में श्रेष्ठ गिने जाने वालों नवपति महाजनों में से एक से था। नवपति महाजन मूलतः क़र्ज़ देने का काम करते थे और 18वीं सदी में इन्हें अच्छी ख्याति प्राप्त हुई थी। अपने पिता के ही समान उन्होंने बनारस के सांस्कृतिक जीवन में अग्रणी भूमिका निभाई। वह कवि-गोष्ठी और संगीत समारोह का लगातार आयोजन करते थे। बनारस के महराजा से उनकी अच्छी दोस्ती थी। रामनगर की रामलीला को बढ़ावा देने में भारतेन्दु का बड़ा योगदान रहा। उन्होंने इस रामलीला के संवाद लिखे। वह शहर के मजिस्ट्रेट अवैतनिक के पद पर भी रहे और स्वेच्छा से त्यागपत्र दिया। उनका संबंध स्थानीय अंग्रेज अधिकारियों और प्राच्य विद्या विशारदों से रहा। कोलकाता स्थित एशियाटिक सोसायटी के सचिव राजेन्द्र लाल मित्र से उनका पत्र-व्यवहार होता था। ‘एशियाटिक रिसर्चेज़’ में छपे प्राच्य-विद्या स���बंधी शोधपरक लेख तथ अन्य व्याख्यान भारतेन्दु ने अपने पास जुटा कर रखे थे। उन्होंने कई समाजों की स्थापना की, स्कूल खोला या उनके चलने में सहायता दी और तीन महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं का संपादन किया। वसुधा डालमिया, पृ. 403-404
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+सूत्रधार और नटी आती हैं,
+सूत्रधार अहा हा! आज की संध्या की कैसी शोभा है। सब दिशा ऐसा लाल हो रही है, मानो किसी ने बलिदान किया है और पशु के रक्त से पृथ्वी लाल हो गई है।
+स्थान रक्त से रंगा हुआ राजभवन
+नेपथ्य में, बढ़े जाइयो! कोटिन लवा बटेर के नाशक, वेद धर्म प्रकाशक, मंत्र से शुद्ध करके बकरा खाने वाले, दूसरे के माँस से अपना माँस बढ़ाने वाले, सहित सकल समाज श्री गृध्रराज महाराजाधिराज!
+राजा बैठकर, आज की मछली कैसी स्वादिष्ट बनी थी।
+पुरोहित सत्य है। मानो अमृत में डुबोई थी और ऐसा कहा भी है-
+राजा ठीक है इसमें कुछ संदेह नहीं है।
+पुरोहित संदेह होता तो शास्त्र में क्यों लिखा जाता। हाँ, बिना देवी अथवा भैरव के समर्पण किए कुछ होता हो तो हो भी।
+पुरोहित सच है और देवी पूजा नित्य करना इसमें कुछ सन्देह नहीं है, और जब देवी की पूजा भई तो माँस भक्षण आ ही गया। बलि बिना पूजा होगी नहीं और जब बलि दिया तब उसका प्रसाद अवश्य ही लेना चाहिए। अजी भागवत में बलि देना लिखा है, जो वैष्णवों का परम पुरुषार्थ है।
+मंत्री और ‘पंचपंचनखा भक्ष्याः’ यह सब वाक्य बराबर से शास्त्रों में कहते ही आते हैं।
+पुरोहित हाँ हाँ, जी, इसमें भी कुछ पूछना है अभी साक्षात् मनु जी कहते हैं-
+और जो मनुजी ने लिखा है कि-
+इससे जो खाली मांस भक्षण करते हैं उनको दोष है। महाभारत में लिखा है कि ब्राह्मण गोमाँस खा गये पर पितरों को समर्पित था इससे उन्हें कुछ भी पाप न हुआ।
+पुरोहित हाँ जी यह सब मिथ्या एक प्रपंच है, खूब मजे में माँस कचर-कचर के खाना और चैन करना। एक दिन तो आखिर मरना ही है, किस जीवन के वास्ते शरीर का व्यर्थ वैष्णवों की तरह क्लेश देना, इससे क्या होता है।
+हे परम प्रचण्ड भुजदण्ड के बल से अनेक पाखण्ड के खष्ड को खण्डन करने वाले, नित्य एक अजापुत्र के भक्षण की सामथ्र्य आप में बढ़ती जाय और अस्थि माला धारण करने वाले शिवजी आप का कल्याण करैं आप बिना ऐसी पूजा और कौन करे। आकर बैठता है,
+ऐसा मालूम होता है कि कोई पुनर्विवाह का स्थापन करने वाला बंगाली आता है।
+बंगाली अक्षर जिसके सब बे मेल, शब्द सब बे अर्थ न छंद वृत्ति, न कुछ, ऐसे भी मंत्र जिसके मुँह से निकलने से सब काय्र्यों के सिद्ध करने वाले हैं ऐसी भवानी और उनके उपदेष्टा शिवजी इस स्वतंत्र राजा का कल्याण करैं।
+राजा क्यों जी भट्टाचार्य जी पुनर्विवाह करना या नहीं।
+बंगाली यह वचन श्रीपराशर भगवान् का है जो इस युग के धर्मवक्ता हैं।
+राजा क्यों पुरोहित जी, आप इसमें क्या कहते हैं?
+पुरोहित कितने साधारण धर्म ऐसे हैं कि जिनके न करने से कुछ पाप नहीं होता, जैसा-”मध्याद्दे भोजनं कुर्यात्“ तो इसमें न करने से कुछ पाप नहीं है, वरन व्रत करने से पुण्य होता है। इसी तरह पुनर्विवाह भी है इसके करने से कुछ पाप नहीं होता और जो न करै तो पुण्य होता है। इसमें प्रमाण श्रीपाराशरीय स्मृति में-
+राजा, मंत्री, पुरोहित और उक्त भट्टाचाय्र्य आते हंै और अपने-अपने स्थान पर बैठते हैं।,
+राजा चल मुझ उद्दंड को कौन दंड देने वाला है।
+वेदांती तुमको इससे कुछ प्रयोजन है?
+विदूषक नहीं, कुछ प्रयोजन तो नहीं है। हमने इस वास्ते पूछा कि आप वेदांती अर्थात् बिना दाँत के हैं सो आप भक्षण कैसे करते होंगे।
+बंगाली हम तो बंगालियों में वैष्णव हैं। नित्यानंद महाप्रभु के संप्रदाय में हैं और मांसभक्षण कदापि नहीं करते और मच्छ तो कुछ माँसभक्षण में नहीं।
+वेदांती क्या तुम वैष्णव बनते हो? किस संप्रदाय के वैष्णव हो?
+बंगाली हम नित्यानंद महाप्रभु श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के संप्रदाय में हैं और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु श्रीकृष्ण ही हैं, इसमें प्रमाण श्रीभागवत में-
+वेदांती वैष्णवों के आचाय्र्य तो चार हैं। तो तुम इन चारों से विलक्षण कहाँ से आए?
+राजा जाने दो, इस कोरी बकवाद का क्या फल है?
+पुरोहित कोई वैष्णव और शैव आते हैं।
+राजा चोबदार, जा करके अन्दर से ले आओ। ख्चोबदार बाहर गया, वैष्णव और शैव को लेकर फिर आया,
+ख्राजा ने उठकर दोनों को बैठाया,
+दोनों-शंख कपाल लिए कर मैं, कर दूसरे चक्र त्रिशूल सुधारे।
+बंगाली महाराज, शैव और वैष्णव ये दोनों मत वेद के बाहर हैं।
+इस युग का शास्त्र तंत्र है।
+और कंठी रुद्राक्ष तुलसी की माला तिलक यह सब अप्रमाण है।
+इस वाक्य में क्या कहते हैं?
+शैव इस वाक्य में ठीक कहते हैं। इसके आगे वाले वाक्यों से इसको मिलाओ। यह दोनों तांत्रिकों ही के वास्ते लिखते हैं। वह शैव कैसे कि-
+राजा भला वैष्णव और शैव माँस खाते हैं कि नहीं?
+शैव महाराज, वैष्णव तो नहीं खाते और शैवों को भी न खाना चाह���ए परंतु अब के नष्ट बुद्धि शैव खाते हैं।
+पुरोहित महाराज, वैष्णवों का मत तो जैनमत की एक शाखा है और महाराज दयानंद स्वामी ने इन सबका खूब खण्डन किया है, पर वह तो देवी की मूर्ति भी तोड़ने को कहते हैं। यह नहीं हो सकता क्योंकि फिर बलिदान किसके सामने होगा?
+पुरोहित गंडकीदासजी हमारे बडे़ मित्र हैं। यह और वैष्णवों की तरह जंजाल में नहीं फँसे हैं। यह आनंद से संसार का सुख भोग करते हैं।
+गंडकीदास ख्धीरे से पुरोहित से, अजी, इस सभा में हमारी प्रतिष्ठा मत बिगाड़ो। वह तो एकांत की बात है।
+पुरोहित वाह जी, इसमें चोरी की कौन बात है?
+गंडकी ख्धीरे से, यहाँ वह वैष्णव और शैव बैठे हैं।
+विदूषक महाराज, गंडकीदास जी का नाम तो रंडादासजी होता तो अच्छा होता।
+विदूषक यह तो रंडा ही के दास हैं।
+शैव, वैष्णव और वेदांती: अब हम लोग आज्ञा लेते हैं। इस सभा में रहने का हमारा धर्म नहीं।
+विदूषक महाराज, अच्छा हुआ यह सब चले गए। अब आप भी चलें। पूजा का समय हुआ।
+पुरोहित गले में माला पहिने टीका दिए बोतल लिए उन्मत्त सा आता है,
+पुरोहित ख्घूमकर, वाह भगवान करै ऐसी पूजा नित्य हो, अहा! राजा धन्य है कि ऐसा धर्मनिष्ठ है, आज तो मेरा घर माँस मदिरा से भर गया। अहा! और आज की पूजा की कैसी शोभा थी, एक ओर ब्राह्मणों का वेद पढ़ना, दूसरी ओर बलिदान वालों का कूद-कूदकर बकरा काटना ‘वाचं ते शुंधामि’, तीसरी ओर बकरों का तड़पना और चिल्लाना, चैथी ओर मदिरा के घड़ों की शोभा और बीच में होम का कुंड, उसमें माँस का चटचटाकर जलना अैर उसमें से चिर्राहिन की सुगंध का निकलना, वैसा ही लोहू का चारों ओर फैलना और मदिरा की छलक, तथा ब्राह्मणों का मद्य पीकर पागल होना, चारों ओर घी और चरबी का बहना, मानो इस मंत्र की पुकार सत्य होती थी।
+ऐसे ही मदिरा की नदी बहती थी। कुछ ठहर कर, जो कुछ हो मेरा तो कल्याण हो गया, अब इस धर्म के आगे तो सब धर्म तुच्छ हैं और जो मांस न खाय वह तो हिन्दू नहीं जैन है। वेद में सब स्थानों पर बलि देना लिखा है। ऐसा कौन सा यज्ञ है जो बिना बलिदान का है और ऐसा कौन देवता है जो मांस बिना ही प्रसन्न हो जाता है, और जाने दीजिए इस काल में ऐसा कौन है जो मांस नहीं खाता? क्या छिपा के क्या खुले खुले, अँगोछे में मांस और पोथी के चोंगे में मद्य छिपाई जाती है। उसमें जिन हिंदुओं ने थोड़ी भी अंगरेजी पढ़ी है वा जिनके घर में मुसलमानी स्त्री है उनकी तो कुछ बात ही नहीं, आजाद है। ख्स��र पकड़ कर, हैं माथा क्यों घूमता है? अरे मदिरा ने तो जोर किया। उठकर गाता है,।
+जोर किया जोर किया जोर किया रे, आज तो मैंने नशा जोरे किया रे।
+मीन काट जल धोइए खाए अधिक पियास।
+अरे एकादशी के मछली खाई।
+घर के जाने मर गए आप नशे के बीच ।।
+राजा मंत्री, पुरोहित जी बेसुध पड़े हैं।
+मंत्री महाराज, पुरोहित जी आनंद में हैं। ऐसे ही लोगों को मोक्ष मिलता है।
+मंत्री महाराज, संसार के सार मदिरा और माँस ही हैं।
+मंत्री महाराज, ईश्वर ने बकरा इसी हेतु बनाया ही है, नहीं और बकरा बनाने का काम क्या था? बकरे केवल यज्ञार्थ बने हैं और मद्य पानार्थ।
+राजा यज्ञो वै विष्णुः, यज्ञेन यज्ञमयजंति देवाः, ज्ञाद्भवति पज्र्जन्यः, इत्यादि श्रुतिस्मृति में यज्ञ की कैसी स्तुति की है और ”जीवो जीवस्य जीवन“ जीव इसी के हेतु हैं क्योंकि-”माँस भात को छोड़िकै का नर खैहैं घास?“
+मंत्री और फिर महाराज, यदि पाप होता भी हो तो मूर्खों को होता होगा। जो वेदांती अपनी आत्मा में रमण करने वाले ब्रह्मस्वरूप ज्ञानी हैं उनको क्यों होने लगा? कहा है न-
+इससे हमारे आप से ज्ञानियों को तो कोई बंधन ही नहीं है। और सुनिए, मदिरा को अब लोग कमेटी करके उठाना चाहते हैं वाह बे वाह!
+मंत्री और फिर इस संसार में माँस और मद्य से बढ़कर कोई वस्तु है भी तो नहीं।
+राजा अहा! मदिरा की समता कौन करेगा जिसके हेतु लोग अपना धर्म छोड़ देते हैं। देखो-
+मंत्री महाराज, ब्राह्मो को कौन कहे हम लोग तो वैदिक धर्म मानकर सौत्रमणि यज्ञ करके मदिरा पी सकते हैं।
+मदिरा को तो अंत अरु आदि राम को नाम।
+शांपिन शिव, गौड़ी गिरिश, ब्रांडी ब्रह्म विचारि ।।
+मंत्री और फिर महाराज, ऐसा कौन है जो मद्य नहीं पीता, इससे तो हमीं लोग न अच्छे जो विधिपूर्वक वेद की रीति से पान करते हैं और यों छिपके इस समय में कौन नहीं करता।
+पियत भट्ट के ठट्ट अरु गुजरातिन के वृंद।
+वैष्णव लोग कहावही कंठी मुद्रा धारि।
+राजा सच है, इसमें क्या संदेह है?
+मंत्री महाराज, मेरा सिर घूमता है और ऐसी इच्छा होती है कि कुछ नाचूं और गाऊं,
+तननुं तननुं तननुं में गाने का है चसका रे ।।
+धिधिकट धिधिकट धिधिकट धाधा बजे मृदंग थाप कस कारे ।।
+कि साकी हाथ में मै का लिए पैमाना आता है ।।
+यह अठरंग है लोग चतुरंग ही गाते हैं।
+ड्रिंक डीप आॅर टेस्ट नाॅट द पीयरियन स्प्रिंग
+एक दूसरे के सिर पर धौल मारकर ताल देकर नाचते हैं। फिर एक पुरोहित का सिर पकड़त��� है दूसरा पैर और उसको लेकर नाचते हैं,
+यमराज बैठे हैं, और चित्रगुप्त पास खड़े हैं,
+(चार दूत राजा, पुरोहित, मंत्री, गंडकीदास, शैव और वैष्णव को पकड़ कर लाते हैं)
+१ दूत ख्राजा के सिर में धौल मारकर, चल बे चल, अब यहाँ तेरा राज नहीं है कि छत्र-चंवर होगा, फूल से पैर रखता है, चल भगवान् यम के सामने और अपने पाप का फल भुगत, बहुत कूद-कूद के हिंसा की और मदिरा पी, सौ सोनार की न एक लोहार की।
+ख्दो धौल और लगाता है,
+२ दूत पुरोहित को घसीटकर, चलिए पुरोहित जी, दक्षिणा लीजिये, वहाँ आपने चक्र-पूजन किया था, यहाँ चक्र में आप मे चलिए, देखिए बलिदान का कैसा बदला लिया जाता है।
+३ दूत मंत्री की नाक पकड़कर, चल बे चल, राज के प्रबन्ध के दिन गये, जूती खाने के दिन आये, चल अपने किये का फल ले।
+४ दूत ख्गंडकीदास का कान पकड़कर झोंका देकर, चल रे पाखंडी चल, यहाँ लंबा टीका काम न आवेगा। देख वह सामने पाखंडियों का मार्ग देखने वाले सर्प मुंह खोले बैठे हैं।
+सब यमराज के सामने जाते हैं,
+चित्र बही देखकर, महाराज, सुनिये, यह राजा जन्म से पाप में रत रहा, इसने धर्म को अधर्म माना और अधर्म को धर्म माना जो जी चाहा किया और उसकी व्यवस्था पण्डितों से ले ली, लाखों जीव का इसने नाश किया और हजारों घड़े मदिरा के पी गया पर आड़ सर्वदा धर्म की रखी, अहिंसा, सत्य, शौच, दया, शांति और तप आदि सच्चे धर्म इसने एक न किये, जो कुछ किया वह केवल वितंडा कर्म-जाल किया, जिसमें मांस भक्षण और मदिरा पीने को मिलै, और परमेश्वर-प्रीत्यर्थ इसने एक कौड़ी भी नहीं व्यय की, जो कुछ व्यय किया सब नाम और प्रतिष्ठा पाने के हेतु।
+यम प्रतिष्ठा कैसी, धर्म और प्रतिष्ठा से क्या सम्बन्ध?
+चित्र महाराज सरकार अंगरेज के राज्य में जो उन लोगों के चित्तानुसार उदारता करता है उसको ”स्टार आफ इंडिया“ की पदवी मिलती है।
+चित्र महाराज यह शुद्ध नास्तिक है, केवल दंभ से यज्ञोपवीत पहने है, यह तो इसी श्लोक के अनुरूप है-
+इसने शुद्ध चित्त से ईश्वर पर कभी विश्वास नहीं किया, जो-जो पक्ष राजा ने उठाये उसका समर्थन करता रहा और टके-टके पर धर्म छोड़ कर इसने मनमानी व्यवस्था दी। दक्षिणा मात्र दे दीजिए फिर जो कहिए उसी में पंडितजी की सम्मति है, केवल इधर-उधर कमंडलाचार करते इसका जन्म बीता और राजा के संग से माँस-मद्य का भी बहुत सेवन किया, सैकड़ों जीव अपने हाथ से वध कर डाले।
+चित्र महाराज, मंत्रीजी की कुछ न पूछिए। इसने कभी ��्वामी का भला नहीं किया, केवल चुटकी बजाकर हां में हां मिलाया, मुंह पर स्तुति पीछे निंदा, अपना घर बनाने से काम, स्वामी चाहे चूल्हे में पड़े, घूस लेते जनम बीता, मांस और मद्य के बिना इसने न और धर्म जाने न कर्म जाने-यह मंत्री की व्यवस्था है, प्रजा पर कर लगाने में तो पहले सम्मति दी पर प्रजा के सुख का उपाय एक भी न किया।
+यम ख्राजा से, तुझ पर जो दोष ठहराए गए हैं बोल उनका क्या उत्तर देता है।
+राजा हाथ जोड़कर, महाराज, मैंने तो अपने जान सब धर्म ही किया कोई पाप नहीं किया, जो मांस खाया वह देवता-पितर को चढ़ाकर खाया और देखिए महाभारत में लिखा है कि ब्राह्मणों ने भूख के मारे गोवध करके खा लिया पर श्राद्ध कर लिया था इससे कुछ नहीं हुआ।
+यम कुछ नहीं हुआ, लगें इसको कोड़े।
+यह वाक्य लोग श्राद्ध के पहिले श्राद्ध शुद्ध होने को पढ़ते हैं फिर मैंने क्या पाप किया। अब देखिए, अंगरेजों के राज्य में इतनी गोहिंसा होती है सब हिंदू बीफ खाते हैं उन्हें आप नहीं दंड देते और हाय हमसे धार्मिक की यह दशा, दुहाई वेदों की दुहाई धर्म शास्त्र की, दुहाई व्यासजी की, हाय रे, मैं इनके भरोसे मारा गया।
+पुरो दुहाई-दुहाई, मेरी बात तो सुन लीजिए। यदि मांस खाना बुरा है तो दूध क्यों पीते हैं, दूध भी तो मांस ही है और अन्न क्यों खाते हैं अन्न में भी तो जीव हैं और वैसे ही सुरापान बुरा है तो वेद में सोमपान क्यों लिखा है और महाराज, मैंने तो जो बकरे खाए वह जगदंबा के सामने बलि देकर खाए, अपने हेतु कभी हत्या नहीं की और न अपने राजा साहब की भाँति मृगया की। दुहाई, ब्राह्मण व्यर्थ पीसा जाता है। और महाराज, मैं अपनी गवाही के हेतु बाबू राजेंद्रलाल के दोनों लेख देता हूँ, उन्होंने वाक्य और दलीलों से सिद्ध कर दिया है कि मांस की कौन कहे गोमांस खाना और मद्य पीना कोई दोष नहीं, आगे के हिंदू सब खाते-पीते थे। आप चाहिए एशियाटिक सोसाइटी का जर्नल मंगा के देख लीजिए।
+यम अब आप बोलिए बाबाजी, आप अपने पापों का क्या उत्तर देते हैं?
+गंडकी मैं क्या उत्तर दूँगा। पाप पुण्य जो करता है, ईश्वर करता है इसमें मनुष्य का क्या दोष है?
+ख्चारों दूत चारों को पकड़कर घसीटते और मारते हैं और चारों चिल्लाते हैं,
+यम शैव और वैष्णव से, आप लोगों की अकृत्रिम भक्ति से ईश्वर ने आपको कैलास और बैकुंठ वास की आज्ञा दी है सो आ लोग जाइए और अपने सुकृत का फल भोगिए। आप लोगों ने इस धर्म वंचकों की दशा तो देखी ही है, देखिए पापियों की यह गति होती है और आप से सुकृतियों को ईश्वर प्रसन्न होकर सामीप्य मुक्ति देता है, सो लीजिए, आप लोगों को परम पद मिला। बधाई है, कहिए इससे भी विशेष कोई आपका हित हो तो मैं पूर्ण करूं।
+शै. और वै हाथ जोड़कर, भगवन् इससे बढ़कर और हम लोगों का क्या हित होगा। तथापि यह नाटकाचाय्र्य भरतऋषि का वाक्य सफल हो।
+
+
+इस में सूर्य कुल के राजा हरिश्चन्द्र की कथा है।
+* द्वितीय अंक- हरिश्चन्द्र की सभा
+* तृतीय अंक- काशी में विक्रय
+(नान्दी के पीछे सूत्राधार आता है)
+सू अहा! आज की सन्ध्या भी धन्य है कि इतने गुणज्ञ और रसिक लोग एकत्रा हैं और सबकी इच्छा है कि हिन्दी भाषा का कोई नवीन नाटक देखैं। धन्य है विद्या का प्रकाश कि जहाँ के लोग नाटक किस चिड़िया का नाम है इतना भी नहीं जानते थे भला वहाँ अब लोगों की इच्छा इधर प्रवृत्त तो हुई। परन्तु हा! शोच की बात है कि जो बड़े-बडे़ लोग हैं और जिनके किए कुछ हो सकता है वे ऐसी अन्धपरम्परा में फँसे हैं और ऐसे बेपरवाह और अभिमानी हैं कि सच्चे गुणियों की कहीं पूछ ही नहीं है। केवल उन्हीं की चाह और उन्हीं की बात है जिन्हें झूठी खैरखाही दिखाना वा लंबा चैड़ा गाल बजाना आता है। (कुछ सोच कर) क्या हुआ, ढंग पर चला जायगा तौ यों भी बहुत कुछ हो रहैगा। काल बड़ा बली है, धीरे-धीरे सब आप से आप ही कर देगा। पर भला आज इन लोगों को लीला कौन सी दिखाऊं। (सोचकर) अच्छा, उनसे भी तो पूछ लें ऐसे कौतुकों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की बुद्धि विशेष लड़ती है। (नेपथ्य की ओर देख कर) मोहना! अपनी भाभी को जरा इधर तो भेजना।
+सू ठीक है, यही हो। भला इससे अच्छा और कौन नाटक होगा। एक तो इन लोगों ने उसे अभी देखा नहीं है, दूसरे आख्यान भी करुणा पूर्ण राजा हरिश्चन्द्र का है, तीसरे उसका कवि भी हम लोगों का एक मात्रा जीवन है।
+सू इसमें क्या संदेह है? काशी के पंडितों ही ने कहा है।।
+और फिर उनके मित्र पंडित शीतलाप्रसाद जी ने इस नाटक के नायक से उनकी समता भी किया है। इससे उनके बनाए नाटकों में भी सत्य हरिश्चन्द्र ही आज खेलने को जी चाहता है।।
+द्वा महाराज! नारद जी आते हैं।
+ना हमैं और भी कोई काम है, केवल यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ-यही हमैं है कि और भी कुछ।
+इ साधु स्वभाव ही से परोपकारी होते हैं। विशेष कर के आप ऐसे हैं जो हमारे से दीन गृहस्थों को घर बैठे दर्शन देते हैं क्योंकि जो लोग गृहस्थ और काम काजी हैं वे स्वभाव ही से गृहस्थी के बन्धनों से ऐसे जकड़ जाते हैं कि साधु संगम तो उनको सपने में भी दुर्लभ हो जाता है, न वे अपने प्रबन्धों से छुट्टी पावेंगे न कहीं जायंगे।
+ना आप को इतनी शिष्टाचार नहीं सोहती। आप देवराज हैं और आप के संग की तो बड़े-बड़े ऋषि मुनि इच्छा करते हैं फिर आप को सतसंग कौन दुर्लभ हैं। केवल जैसा राजा लोगों में एक सहज मुंह देखा व्यापार होता है वैसी ही बातैं आप इस समय कर रहे हैं।
+इ हम को बड़ा शोच है कि आप ने हमारी बातों को शिष्टाचार समझा। क्षमा कीजिए आप से हम बनावट नहीं कर सकते। भला, बिराजिये तो सही, यह बातें तो होती ही रहेंगी।
+ना महाराज। सत्य की तो मानो हरिश्चन्द्र मूर्ति है। निस्सन्देह ऐसे मनुष्यों के उत्पन्न होने से भारत भूमि का सिर केवल इनके स्मरण से उस समय भी ऊँचा रहेगा जब वह पराधीन होकर हीनावस्था को प्राप्त होगी।
+इ आप ही आप) अहा! हृदय भी ईश्वर ने क्या ही वस्तु बनाई है। यद्यपि इसका स्वभाव सहज ही गुणग्राही हो तथापि दूसरों की उत्कट कीर्ति से इसमें ईर्ष्या होती ही हैं, उसमें भी जो जितने बड़े हैऺ उनकी ईर्ष्या भी उतनी ही बड़ी हैं। हमारे ऐसे बड़े पदाधिकारियों को शत्रु उतना संताप नहीं देते जितना दूसरों की सम्पत्ति और कीर्ति।
+ना क्यों नहीं, बड़ाई उसी का नाम है जिसे छोटे बड़े सब मानैं, और फिर नाम भी तो उसी का रह जायगा जो ऐसा दृढ़ हो कर धर्म साधन करेगा। (आप ही आप) और उसकी बड़ाई का यह भी तो एक बड़ा प्रमाण है कि आप ऐसे लोग उससे बुरा मानते हैं क्योंकि जिससे बड़े-बड़े लोग डाह करें पर उसका कुछ बिगाड़ न सकें वह निस्संदेह बहुत बड़ा मनुष्य है।
+ना दूसरों के लिए उदाहरण बनाने के योग्य। भला पहिले जिसने अपने निज के और अपने घर के चरित्र ही नहीं शुद्ध किए हैं उसकी और बातों पर क्या विश्वास हो सकता है। शरीर में चरित्र ही मुख्य वस्तु है। बचन से उपदेशक और क्रियादिक से कैसा भी धर्मनिष्ठ क्यों न हो पर यदि उसके चरित्र शुद्ध नहीं हैं तो लोगों में वह टकसाल न समझा जायगा और उसकी बातें प्रमाण न होंगी! महात्मा और दुरात्मा में इतना ही भेद है कि उनके मन बचन और कर्म एक रहते हैं, इनके भिन्न निस्संदेह हरिश्चन्द्र महाशय है। उसके आशय बहुत उदार हैं इसमें कोई संदेह नहीं।
+ना जिसका भीतर बाहर एक सा हो और विद्यानुरागिता उपकार प्रियता आदि गुण जिसमें सहज हों। अधिकार में क्षमा, विपत्ति में धैर्य, सम्पत्ति में अनाभिमान और युद्ध में जिसको स्थिरता है वह ईश्वर की सृष्टि का रत्न है और उसी की माता पुत्रवती है। हरिश्चंद्र में ये सब बातें सहज हैं। दान करके उसको प्रसन्नता होती है और कितना भी दे पर संतोष नहीं होता, यही समझता है कि अभी थोड़ा दिया।
+ना और इन गुणों पर ईश्वर की निश्चला भक्ति उसमें ऐसी है जो सब का भूषण है क्योंकि उसके बिना किसी की शोभा नहीं। फिर इन सब बातों पर विशेषता यह है कि राज्य का प्रबन्ध ऐसा उत्तम और दृढ़ है कि लोगों को संदेह होता है कि इन्हें राज काज देखने की छुट्टी कब मिलती है। सच है छोटे जी के लोग थोड़े ही कामों में ऐसे घबड़ा जाते हैं मानो सारे संसार का बोझ इन्हीं पर है; पर जो बडे़ लोग हैं उन के सब काम महारम्भ होते हैं तब भी उनके मुख पर कहीं से व्याकुलता नहीं झलकती, क्योंकि एक तो उनके उदार चित्त में धैर्य और अवकाश बहुत है, दूसरे उनके समय व्यर्थ नहीं जाते और ऐसे यथायोग्य बने रहते हैं जिससे उन पर कभी भीड़ पड़ती ही नहीं।
+इ भला महाराज वह ऐसे दानी हैं तो उनकी लक्ष्मी कैसे स्थिर है।
+इ पर यदि कोई अपने वित्त के बाहर माँगे या ऐसी वस्तु मांगे जिससे दाता की सर्वस्व हानि हो तो वह दे कि नहीं?
+ना क्यों नहीं। अपना सर्वस्व वह क्षण भर में दे सकता है, पात्रा चाहिए। जिसको धन पाकर सत्पात्रा में उसके त्याग की शक्ति नहीं है वह उदार कहाँ हुआ।
+ना राजन्! मानियों के आगे प्राण और धन तो कोई वस्तु ही नहीं है। वे तो अपने सहज सुभाव ही से सत्य और विचार तथा दृढ़ता में ऐसे बंधे हैं कि सत्पात्र मिलने या बात पड़ने पर उनको स्वर्ण का पर्वत भी तिल सा दिखाई देता है। और उसमें भी हरिश्चन्द्र-जिसका सत्य पर ऐसा स्नेह है जैसा भूमि, कोष, रानी, और तलवार पर भी नहीं है। जो सत्यानुरागी ही नहीं है भला उससे न्याय कब होगा, और जिसमें न्याय नहीं है वह राजा ही काहे का है। कैसी भी विपत्ति और उभय संकष्ट पड़ै और कैसी ही हानि वा लाभ हो पर जो न्याय न छोड़े वही धीर और वही राजा और उस न्याय का मूल सत्य है।
+ना क्या आप उसका परिहास करते हैं? किसी बड़े के विषय में ऐसी शंका ही उसकी निन्दा है। क्या आप ने उसका यह सहज साभिमान वचन कभी नहीं सुना है-
+ना वाह। भला जो ऐसे उदार हैं उनके आगे स्वर्ग क्या वस्तु है। क्या बड़े लोग धर्म स्वर्ग पाने को करते हैं। जो अपने निर्मल चरित्र से संतुष्ट हैं उन के आगे स्वर्ग कौन वस्तु ��ै। फिर भला जिनके शुद्ध हृदय और सहज व्योहार हैं वे क्या यश वा स्वर्ग की लालच में धर्म करते हैं। वे तो आपके स्वर्ग को सहज में दूसरे को दे सकते हैं। और जिन लोगों को भगवान के चरणारविंद में भक्ति है वे क्या किसी कामना से धर्माचरण करते हैं, यह भी तो एक क्षुद्रता है कि इस लोक में एक देकर परलोक में दो की आशा रखना।
+ना और जिनको अपने किये शुभ अनुष्ठानों से आप संतोष मिलता है उन के उस असीम आनंद के आगे आप के स्वर्ग का अमृतपान और अप्सरा तो महा महा तुच्छ हैं। क्या अच्छे लोग कभी किसी शुभ कृत्य का बदला चाहते हैं।
+इ तथापि एक बेर उनके सत्य की परीक्षा होती तो अच्छा होता।
+ना राजन्! आपका यह सब सोचना बहुत अयोग्य है। ईश्वर ने आपको बड़ा किया है तो आप को दूसरों की उन्नति और उत्तमता पर संतोष करना चाहिए। ईर्ष्या करना तो क्षुद्राशयों का काम है। महाशय वही है जो दूसरों की बड़ाई से अपनी बड़ाई समझै।
+द्वा महाराज! विश्वामित्र जी आए हैं।
+इ आप ही आप) हां इनसे वह काम होगा। अच्छे अवसर पर आए। जैसा काम हो वैसे ही स्वभाव के लोग भी चाहिएं। (प्रकट) हां हां लिवा लाओ।
+वि नारदजी को प्रणाम करके और इन्द्र को आशीर्वाद देकर बैठते हैं)
+ना तो अब हम जाते हैं, क्योंकि पिता के पास हमें किसी आवश्यक काम को जाना है।
+ना आप ही आप) हमारी इच्छा क्या अब तो आप ही की यह इच्छा है कि हम जायं, क्योंकि अब आप तो विश्व के अमित्र जी से राजा हरिश्चन्द्र को दुख देने की सलाह कीजिएगा तो हम उसके बाधक क्यों हो, पर इतना निश्चय रहे कि सज्जन को दुर्जन लोग जितना कष्ट देते हैं उतनी ही उनकी सत्य कीर्ति तपाए सोने की भांति और भी चमकती है क्योंकि विपत्ति बिना सत्य की परीक्षा नहीं होती। (प्रगट) यद्यपि ‘जो इच्छा’ आप ने सहज भाव से कहा है तथापि परस्पर में ऐसे उदासीन बचन नहीं कहते क्योंकि इन वाक्यों से रूखापन झलकता है। मैं कुछ इसका ध्यान नहीं करता, केवल मित्र भाव से कहता हूं। लो, जाता हूं और यही आशीर्वाद दे कर जाता हूं कि तुम किसी को कष्टदायक मत हो क्योंकि अधिकार पाकर कष्ट देना यह बड़ों की शोभा नहीं, सुख देना शोभा है।
+इ नहीं तो। राजा हरिश्चन्द्र का प्रसंग निकला था सो उन्होंने उसकी बड़ी स्तुति की और हमारा उच्च पद का आदरणीय स्वभाव उस परकीत्र्ति को सहन न कर सका। इसी में कुछ बात ही बात ऐसा सन्देह होता है कि वे रुष्ट हो गए।
+वि तो हरिश्चन्द्र में कौन से ऐसे गुण ���ैं सहज की भृकुटी चढ़ जाती है)।
+इ ऋषि का भ्रूभंग देखकर चित्त में संतोष करके उनका क्रोध बढ़ाता हुआ) महाराज सिपारसी लोग चाहे जिसको बढ़ा दें, चाहे घटा दें। भला सत्य धम्र्म पालन क्या हंसी खेल है? यह आप ऐसे महात्माओं ही का काम है जिन्होंने घर बार छोड़ दिया है। भला राज करके और घर में रह के मनुष्य क्या धर्म का हठ करैगा। और फिर कोई परीक्षा लेता तो मालूम पड़ती। इन्हीं बातों से तो नारद जी बिना बात ही अप्रसन्न हुए।
+स्थान राजा हरिश्चन्द्र का राजभवन।
+रानी शैव्या बैठी हैं और एक सहेली बगल में खड़ी है।
+रा महाराज को तो मैंने सारे अंग में भस्म लगाए देखा है और अपने को बाल खोले, और (आँखों में आँसू भर कर) रोहितास्व को देखा है कि उसे सांप काट गया है।
+स राम! राम! भगवान् सब कुसल करेगा। भगवान् करे रोहितास्व जुग जुग जिए और जब तक गंगा जमुना में पानी है आप का सोहाग अचल रहे। भला आप ने इस की शांती का भी कुछ उपाय किया है।
+ब्रा महाराज गुरूजी ने यह अभिमंत्रित जल भेजा है। इसे महारानी पहिले तो नेत्रों से लगा लें और फिर थोड़ा स पान भी कर लें और यह रक्षाबंधन भेजा है। इसे कुमार रोहिताश्व की दहनी भुजा पर बांध दें फिर इस जल से मैं मार्जन करूंगा।
+ब्रा दुर्बा से मार्जन करता है)
+(मार्जन का जल पृथ्वी पर फेंककर)
+(मार्जन कर के फूल अक्षत रानी के हाथ में देता है)
+ब्रा जो आज्ञा (आशीर्वाद देकर जाता है)
+(नेपथ्य में बैतालिक गाते हैं)
+(नेपथ्य में से बाजे की धुनि सुन पड़ती है)
+रा महाराज ठाकुर जी के मंदिर से चले, देखो बाजों का शब्द सुनाई देता है और बंदी लोग भी गाते आते हैं।
+रा घबड़ा कर आदर के हेतु उठती हैं)
+(परिकर1 सहित महाराज हरिश्चन्द्र2 आते हैं)
+(रानी प्रणाम करती हैं और सब लोग यथा स्थान बैठते हैं)
+रा नाथ! मोह से धीरज जाता रहता है।
+रा महाराज! स्वप्न के शुभाशुभ का विचार कुछ महाराज ने भी ग्रंथों में देखा है?
+रा नाथ। क्या स्वप्न के व्योहार को भी आप सत्य मानिएगा?
+ह चिन्ता करके) पर मैं अब करूं क्या! अच्छा। प्रधान! नगर में डौंडी पिटवा दो कि राज्य सब लोग आज से अज्ञातनामगोत्रा ब्राह्मण का समझें उसके अभाव में हरिश्चन्द्र उसके सेवक की भाँति उसकी थाती समझ के राज का काय्र्य करेगा और दो मुहर राज काज के हेतु बनवा लो एक पर ‘अज्ञातनामगोत्रा ब्राह्मण सेवक हरिश्चन्द्र’ और दूसरे पर ‘राजाधिराज अज्ञात नाम गोत्रा ब्राह्मण महाराज’ खुदा ���हे और आज से राज काज के सब पत्रों पर भी यही नाम रहे। देस देस के राजाओं और बड़े-बड़े कार्याधीशों को भी आज्ञापत्रा भेज दो कि महाराज हरिश्चन्द्र ने स्वप्न में अज्ञातनामगोत्रा ब्राह्मण को पृथ्वी दी है इससे आज से उसका राज हरिश्चन्द्र मंत्री की भांति सम्हालेगा।
+(द्वारपाल के साथ विश्वामित्र आते हैं)।
+ह आदरपूर्वक आगे से लेकर और प्रणाम करके) महाराज! पधारिए, यह आसन है।
+ह लीजिए, इसमें विलम्ब क्या है, मैंने तो आप के आगमन के पूब्र्ब ही से अपना अधिकार छोड़ दिया है। (पृथ्वी की ओर देखकर)
+वि आप ही आप) अच्छा! अभी अभिमान दिखा ले, तो मेरा नाम विश्वामित्र जो तुझको सत्यभ्रष्ट कर के छोड़ा, और लक्ष्मी से तो भ्रष्ट हो ही चुका है। (प्रगट) स्वस्ति। अब इस महादान की दक्षिणा कहां है?
+ह महाराज! मैं ब्रह्मदंड से उतना नहीं डरता जितना सत्यदंड से इससे
+(आकाश से फूल की वृष्टि और बाजे के साथ जयध्वनि होती है)
+स्थान वाराणसी का बाहरी प्रान्त तालाब।
+भैर सच है। येषां क्वापि गतिर्नास्ति तेषां वाराणसी गतिः। देखो इतना बड़ा पुन्यशील राजा हरिश्चन्द्र भी अपनी आत्मा और स्त्री पुत्र बेचने को यहीं आया है। अहा! धन्य है सत्य। आज जब भगवान भूतनाथ राजा हरिश्चन्द्र का वृतांत भवानी से कहने लगे तो उनके तीनों नेत्रा अश्रु से पूर्ण हो गए और रोमांच होने से सब शरीर के भस्मकण अलग अलग हो गए। मुझको आज्ञा भी दी हुई है कि अलक्ष रूप से तुम सर्वदा राजा हरिश्चन्द्र की अंगरक्षा करना। इससे चलूं। मैं भी भेस बदलकर भगवान की आज्ञा पालन में प्रवत्र्त हूँ।
+(जाते हैं। जवनिका गिरती है)
+तीसरे अंक में यह अंकावतार समाप्त हुआ
+पुन्यप्रकासिका पापबिनासिका हीयहुलासिका सोहत कासिका’ ।। 1 ।।
+तीरथ अनादि पंचगंगा मनिकर्निकादि सात आवरन मध्य पुन्य रूप धंसी है।
+समी सम जसी असी बरना में बसी पाप खसी हेतु असी ऐसी लसी बारानसी है’ ।। 2 ।।
+खासी परकासी पुनवांसी चंदिक्रा सी जाके वासी अबिनासी अघनासी ऐसी कासी है’ ।। 3 ।।
+देखो। जैसा ईश्वर ने यह सुंदर अंगूठी के नगीने सा नगर बनाया है वैसी ही नदी भी इसके लिये दी है। धन्य गंगे!
+कुछ महात्म ही पर नहीं गंगा जी का जल भी ऐसा ही उत्तम और मनोहर है। आहा!
+विश्वामित्र को पृथ्वी दान करके जितना चित्त प्रसन्न नहीं हुआ उतना अब बिना दक्षिणा दिये दुखी होता है। हा! कैसे कष्ट की बात है राजपाट धनधाम सब छूटा अब दक्षिणा कहाँ से देंगे! क्या करें! हम सत्य धर्म कभी छोड़ेंहीगे नहीं और मुनि ऐसे क्रोधी हैं कि बिना दक्षिणा मिले शाप देने को तैयार होंगे, और जो वह शाप न भी देंगे तो क्या? हम ब्राह्मण का ऋण चुकाए बिना शरीर भी तो नहीं त्याग कर सकते। क्या करें? कुबेर को जीतकर धन लावें? पर कोई शस्त्रा भी तो नहीं है। तो क्या किसी से मांग कर दें? पर क्षत्रिय का तो धर्म नहीं कि किसी के आगे हाथ पसारे। फिर ऋण काढ़ें? पर देंगे कहां से। हा! देखो काशी में आकर लोग संसार के बंधन से छूटते हैं पर हमको यहाँ भी हाय हाय मची है। हा! पृथ्वी! तू फट क्यों नहीं जाती कि मैं अपना कलंकित मंुह फिर किसी को न दिखाऊं। (आतंक से) पर यह क्या? सूर्यवंश में उत्पन्न होकर हमारे यह कर्म हैं कि ब्राह्मण का ऋण दिए बिना पृथ्वी में समा जाना सोचें। (कुछ सोच कर) हमारी तो इस समय कुछ बुद्धि ही नहीं काम करती। क्या करें? हमें तो संसार सूना देख पड़ता है। (चिंता करके। एक साथ हर्ष से) वाह, अभी तो स्त्री पुत्र और हम तीन-तीन मनुष्य तैयार हैं। क्या हम लोगों के बिकने से सहस्र स्वर्ण मुद्रा भी न मिलेंगी? तब फिर किस बात का इतना शोच? न जाने बुद्धि इतनी देर तक कहाँ सोई थी। हमने तो पहले ही विश्वामित्र से कहा था;
+ह अरे मुनि तो आ पहुंचे। क्या हुआ आज उनसे एक दो दिन की अवधि और लेंगे।
+वि हुई प्रणाम, बोल तैं ने दक्षिणा देने का क्या उपाय किया? आज महीना पूरा हुआ अब मैं एक क्षण भर भी न मानूंगा। दे अभी नहीं तो-(शाप के वास्ते कमंडल से जल हाथ में लेते हैं।)
+आर्यपुत्र! ऐसे समय में हम को छोड़े जाते हो। तुम दास होगे तो मैं स्वाधीन रहके क्या करूंगी। स्त्री को अद्र्धांगिनी कहते हैं, इससे पहिले बायां अंग बेच लो तब दाहिना अंग बेचो।
+(सड़क पर शैव्या और बालक फिरते हुए दिखाई पड़ते हैं)
+शै कोई महात्मा इत्यादि कहती हुई ऊपर देखकर) क्या कहा? ‘क्या क्या करोगी?’ पर पुरुष से संभाषण और उच्छिष्ट भोजन छोड़कर और सब सेवा करूंगी। (ऊपर देखकर) क्या कहा? ‘पर इतने मोल पर कौन लेगा?’ आर्य कोई साधु ब्राह्मण महात्मा कृपा करके ले ही लेंगे।
+(उपाध्याय और बटुक आते हैं)
+शै पर पुरुष से सम्भाषण और उच्छिष्ट भोजन छोड़कर और जो-जो कहिएगा सब सेवा करूंगी।
+उ वाह! ठीक है। अच्छा लो यह सुबर्ण। हमारी ब्राह्मणी अग्निहोत्रा के अग्नि की सेवा से घर से काम काज नहीं कर सकती सो तुम सम्हालना।
+उ शैव्या को भली भांति देखकर आप ही आप) आहा! यह निस्संदेह किसी बडे़ कुल की है। इसका मुख सहज लज्जा से ऊँचा नहीं होता, और दृष्टि बराबर पैर ही पर है। जो बोलती है वह धीरे-धीरे बहुत सम्हाल के बोलती है। हा! इसकी यह गति क्यों हुई प्रगट) पुत्री तुम्हारे पति है न?
+ह आप ही आप दुख से) अब नहीं। पति के होते भी ऐसी स्त्री की यह दशा हो।
+ह भगवान्! और तो विदित करने का अवसर नहीं है इतना ही कह सकता हूँ कि ब्राह्मण के ऋण के कारण यह दशा हुई।
+उ तो हम से धन लेकर आप शीघ्र ही ऋणमुक्त हूजिए।
+ह दोनों कानों पर हाथ रखकर) राम राम! यह तो ब्राह्मण की बृत्ति है। आप से धन लेकर हमारी कौन गति होगी?
+ह अत्यन्त घबड़ाकर) अरे अरे विधाता तुझे यही करना था। (आप ही आप) हा! पहिले महारानी बनाकर अब दैव ने इसे दासी बनाया। यह भी देखना बदा था। हमारी इस दुर्गति से आज कुलगुरु भगवान सूर्य का भी मुख मलिन हो रहा है। (रोता हुआ प्रगट रानी से) प्रिये सर्वभाव से उपाध्याय को प्रसन्न रखना और सेवा करना।
+ह आँखों में आँसू भर के) देवी (फिर रुक कर अत्यंत सोच में आप ही आप) हाय! अब मैं देवी क्यों कहता हूं अब तो विधाता ने इसे दासी बनाया। (धैर्य से) देवी! उपाध्याय की आराधना भली भांति करना और इनके सब शिष्यों से भी सुहृत भाव रखना, ब्राह्मण के स्त्री की प्रीति पूर्वक सेवा करना, बालक का यथासंभव पालन करना, और अपने धर्म और प्राण की रक्षा करना। विशेष हम क्या समझावें जो जो दैव दिखावे उसे धीरज से देखना। (आंसू बहते हैं)
+बटु बालक को ढकेल कर) चल चल देर होती है।
+बा ढकेलने से गिर कर रोता हुआ उठकर अत्यंत क्रोध और करुणा से माता पिता की ओर देखता है)
+ह ब्राह्मण, देवता! बालकों के अपराध से नहीं रुष्ट होना (बालक को उठाकर धूर पोंछ के मुंह चूमता हुआ) पुत्र मुझ चांडाल का मुख इस समय ऐसे क्रोध से क्यों देखता है? ब्राह्मण का क्रोध तो सभी दशा में सहना चाहिए। जाओ माता के संग मुझ भाग्यहीन के साथ रह कर क्या करोगे। (रानी से) प्रिये धैर्य धरो। अपना कुल और जाति स्मरण करो। अब जाओ, देर होती है।
+(रानी और बालक रोते हुए बटुक के साथ जाते हैं)
+ह पैर पर गिर के प्रणाम करता है)
+ह हाथ जोड़कर) महाराज आधी लीजिए आधी अभी देता हूं। (सोना देता है)
+(नेपथ्य में हाहाकार के साथ बड़ा शब्द होता है)
+(चांडाल के भेष में धर्म और सत्य आते हैं)2
+(आश्चर्य से आप ही आप) सचमुच इस राजर्षि के समान दूसरा आज त्रिभुवन में नहीं है। (आगे बढ़कर प्रत्यक्ष) अरे हरजनवाँ! मोहर का संदूख ले आवा है न?
+कफन मांगने का है काज ।।
+पूजैं सती मसान निवास ।।
+देंगे मुहर गांठ के खोल ।।
+(मत्त की भांति चेष्टा करता है)
+धर्म ठीक है लेव सोना (दूर से राजा के आंचल में मोहर देता है)
+ह लेकर हर्ष से आप ही आप)
+(प्रगट विश्वामित्र से) भगवन्! लीजिए यह मोहर।
+ह हाँ हाँ यह लीजिए। (मोहर देते हैं)
+ह हाथ जोड़कर) भगवन् दक्षिणा देने में देर होने का अपराध क्षमा हुआ न?
+(बिश्वामित्र आशीर्वाद देकर जाते हैं)
+सत्यहरिश्चन्द्र का तीसरा अंक समाप्त हुआ।
+न जाने विधाता का क्रोध इतने पर भी शांत हुआ कि नहीं। बड़ों ने सच कहा है कि दुःख से दुःख जाता है। दक्षिणा का ऋण चुका तो यह कर्म करना पड़ा। हम क्या सोचें। अपनी अनथ प्रजा क्या को, या दीन नातेदारों को या अशरश नौकरों को, या रोती हुई दासियों को, या सूनी अयोध्या को, या दासी बनी महारानी को, या उस अनजान बालक को, या अपने ही इस चंडालपने को। हा! बटुक के धक्के से गिरकर रोहिताश्व ने क्रोधभरी और रानी ने जाती समय करुणाभरी दृष्टि से जो मेरी ओर देखा था वह अब तक नहीं भूलती। (घबड़ा कर) हा देवी! सूर्यकुल की बहू और चंद्रकुल की बेटी होकर तुम बेची गईं और दासी बनीं। हा! तुम अपने जिन सुकुमार हाथों से फूल की माला भी नहीं गुथ सकती थीं उनसे बरतन कैसे मांजोगी मोह प्राप्त होने चाहता है पर सम्हल कर) अथवा क्या हुआ? यह तो कोई न कहेगा कि हरिश्चन्द्र ने सत्य छोड़ा।
+(आकाश से पुष्पवृष्टि होती है)
+अरे! यह असमय में पुष्पवृष्टि कैसी? कोई पुन्यात्मा का मुरदा आया होगा। तो हम सावधान हो जायं। (लट्ठ कंधे पर रखकर फिरता हुआ) खबरदार खबरदार बिना हम से कहे और बिना हमें आधा कफन दिये कोई संस्कार न करे। (यही कहता हुआ निर्भय मुद्रा से इधर उधर देखता फिरता है नेपथ्य में कोलाहल सुनकर) हाय हाय! कैसा भयंकर समशान है! दूर से मंडल बांध बांध कर चोंच बाए, डैना फैलाए, कंगालों की तरह मुरदों पर गिद्ध कैसे गिरते हैं, और कैसा मांस नोंच नोंच कर आपुस में लड़ते और चिल्लाते हैं। इधर अत्यंत कर्णकटु अमंगल के नगाड़े की भांति एक के शब्द की लाग से दूसरे सियार कैसे रोते हैं। उधर चिराईन फैलाती हुई चट चट करती चिता कैसी जल रही हैं, जिन में कहीं से मांस के टुकड़े उड़ते हैं, कहीं लोहू बा चरबी बहती है। आग का रंग मांस के संबंध से नीला पीला हो रहा है। ज्वाला घूम घूम कर निकलती है। आग कभी एक साथ धधक उठती है कभी मन्द हो जाती है। धुआँ चारों ओर छा रहा है। (आगे देखकर आदर से) अहा! यह वीभत्स व्यापार भी बड़ाई के योग्य है। शव! तुम धन्य हो कि इन पशुओं के इतने काम आते हो। अएतएव कहा है
+(अहा! शरीर भी कैसी निस्सार वस्तु है।)
+हा! मरना भी क्या वस्तु है।
+कहां गई वह सुंदर सोभा।
+अहा! देखो वही सिर जिस पर मंत्रा से अभिषेक होता था, कभी नवरत्न का मुकुट रक्खा जाता था, जिसमें इतना अभिमान था कि इन्द्र को भी तुच्छ गिनता था, और जिसमें बड़े-बड़े राज जीतने के मनोरथ भरे थे, आज पिशाचों का गेंद बना है और लोग उसे पैर से छूने में भी घिन करते हैं। (आगे देखकर) अरे यह स्मशान देवी हैं। अहा कात्यायनी को भी कैसा वीभत्स उपचार प्यारा है। यह देखो डोम लोगों ने सूखे गले सड़े फूलों की माला गंगा में से पकड़ पकड़ कर देवी को पहिना दी है और कफन की ध्वजा लगा दी है। मरे बैल और भैसों के गले के घंटे पीपल की डार में लटक रहे हैं जिन में लोलक की जगह नली की हड्डी लगी है। घंट के पानी से चारों ओर से देवी का अभिषेक होता है और पेड़ के खंभे में लोहू के थापे लगे हैं। नीचे जो उतारों की बलि दी गई है उसके खाने को कुत्ते और सियार लड़ लड़कर कोलाहल मचा रहे हैं। (हाथ जोड़कर) ‘भगवति! चंडि! प्रेते! प्रेत विमाने! लसत्प्रेते। प्रेतास्थि रौद्ररूपे! प्रेताशनि। भैरवि! नमस्ते’।1
+ह ऊपर देखकर) अहा! स्थिरता किसी को भी नहीं है। जो सूर्य उदय होते ही पद्मिनी बल्लभ और लौकिक वैदिक दोनों कर्म का प्रवत्र्तक था, जो दो पहर तक अपना प्रचंड प्रताप क्षण-क्षण बढ़ाता गया, जो गगनांगन का दीपक और कालसर्प का शिखामणि था वह इस समय परकटे गिद्ध की भांति अपना सब तेज गंवाकर देखो समुद्र में गिरा चाहता है।
+अहा! यह चारों ओर से पक्षी लोग कैसा शब्द करते हुए अपने-अपने घोसलों की ओर चले जाते हैं। वर्षा से नदी का भयंकर प्रवाह, सांझ होने से स्मशान के पीपल पर कौओं का एक संग अमंगल शब्द से कांव कांव करना, और रात के आगम से एक सन्नाटे का समय चित्त में कैसी उदासी और नय उत्पन्न करता है। अंधकार बढ़ता ही जाता है। वर्षा के कारण इन स्मशानवासी मंडूकों का टर्र टर्र करना भी कैसा डरावना मालूम होता है।
+इस समय ये चिता भी कैसी भयंकर मालूम पड़ती हैं। किसी का सिर चिता के नीचे लटक रहा है, कहीं आंच से हाथ पैर जलकर गिर पड़े हैं, कहीं शरीर आधा जला है, कहीं बिल्कुल कच्चा है, किसी को वैसे ही पानी में बहा दिया है, किसी को किनारे छोड़ दिया है, किसी का मुंह जल जाने से दांत निकला हुआ भयंकर हो रहा है, और कोई दहकती आग में ऐसा जल गया है कि कहीं पता भी नहीं है। बाहरे शरीर! तेरी क्या क्या गति होती है सचमुच मरने पर इस शरीर को चटपट जला ही देना योग्य है क्योंकि ऐसे रूप और गुण जिस शरीर में थे उसको कीड़ों या मछलियों से नुचवाना और सड़ा कर दुर्गंधमय करना बहुत ही बुरा है। न कुछ शेष रहेगा न दुर्गति होगी। हाय! चलो आगे चलें। (खबरदार इत्यादि कहता हुआ इधर उधर घूमता है)1 (कौतुक से देखकर) पिशाचों का क्रीड़ा कुतूहल भी देखने के योग्य है। अहा! यह कैसे काले काले झाड़ई से सिर के बाल खड़े किये लम्बे-लम्बे हाथ पैर बिकराल दांत लम्बी जीभ निकाले इधर-उधर दौड़ते और परस्पर किलकारी मारते हैं मानों भयानक रस की सेना मूर्तिमान होकर यहाँ स्वच्छंद विहार कर रही है। हाय हाय! इन का खेल और सहज व्योहार भी कैसा भयंकर है। कोई कटाकट हड्डी चबा रहा है, कोई खोपड़ियों में लोहू भर भर के पीता है, कोई सिर का गेंद बनाकर खेलता है, कोई अंतड़ी निकालकर गले में डाले है और चंदन की भांति चरबी और लोहू शरीर में पोत रहा है, एक दूसरे से माँस छीनकर ले भागता है, एक जलता मांस मारे तृष्णा के मुंह में रख लेता है पर जब गरम मालूम पड़ता है तो थू थू करके थूक देता है, और दूसरा उसी को फिर झट से खा जाता है। हा! देखो यह चुड़ैल एक स्त्री की नाक नथ समेत नोच लाई है जिसे
+सत्य हरिश्चंद्र के परवती संस्करणों में बढ़ाया गया अंश,
+(पिशाच और डाकिणी गण परस्पर आमोद करते और गाते बजाते आते हैं।)
+डा हम माँग में लाल लाल लोहू का सिंदूर लगावेंगी।
+पि लोहू का मुँह से फर्र फर्र फुहारा छोड़ेंगे।
+माला गले पहिरने को अँतड़ी को जोडे़गें।।
+(वैसे ही कूदते हुए एक ओर चले जाते हैं।)
+(कापालिक के वेष में धर्म आता है)
+कुछ सोचकर, राजर्षि हरिश्चन्द्र की दुःख परंपरा अत्यंत शोचनीय और इनके चरित्रा अत्यन्त आश्चर्य के हैं! अथवा महात्माओं का यह स्वभाव ही होता है।
+ह लज्जा और विकलता नाट्य करता है)
+ध महाराज आप लज्जा मत कीजिए। हम लोग योग बल से सब कुछ जानते हैं। आप इस दशा पर भी हमारा अर्थ पूर्ण करने को बहुत हैं। चन्द्रमा राहु से ग्रसा रहता है तब भी दान दिलवा कर भिक्षुओं का कल्याण करता है।
+ध आज्ञा यही है कि यह सब मुझे सिद्ध हो गए हैं पर विघ्न इस में बाधक होते हैं सो आप विघ्नों का निवारण कर दीजिए।
+ह आप जानते ही हैं कि मैं पराया दास हूँ, इससे जिनमें मेरा धर्म ��� जाय वह मैं करने को तैयार हूं।
+ध आप ही आप) राजन्, जिस दिन तुम्हारा धर्म जाएगा उस दिन पृथ्वी किसके बल से ठहरेगी (प्रत्यक्ष) महाराज इसमें धर्म न जायगा क्योंकि स्वामी की आज्ञा तो आप उल्लंघन करते ही नहीं। सिद्धि का आकर इसी स्मशान के निकट ही है और मैं अब पुरश्चरण करने जाता हूँ, आप बिघ्नों का निषेध कर दीजिए।
+आप से सत्य वीर की आज्ञा कौन लांघ सकता है।
+खुल्यौ द्वारा कल्यान को सिद्ध जोग तप आज।
+म. वि महाराज हरिश्चन्द्र! बधाई है। हमीं लोगों को सिद्ध करने को विश्वामित्र ने बड़ा परिश्रम किया था तब देवताओं ने माया से आपको स्वप्न में हमारा रोना सुनाकर हमारा प्राण बचाया।
+ह आप ही आप) अरे यही सृष्टि की उत्पन्न, पालन और नाश करने वाली महाविद्या हैं जिन्हें विश्वामित्र भी न सिद्ध कर सके। (प्रगट हाथ जोड़कर) त्रिलोकविजयिनी महाविद्याओं को नमस्कार है।
+ह देवियो! यदि हम पर प्रसन्न हो तो विश्वामित्र मुनि का वशवत्र्तिनी हो क्योंकि उन्होंने आप लोगों के वास्ते बड़ा परिश्रम किया है।
+धर्म एक बैताल के सिर पर पिटारा रखवाए हुए आता है।
+ध महाराज का कल्याण हो। आप की कृपा से महानिधान सिद्ध हुआ। आपको बधाई है अब लीजिए इस रसेन्द्र को।
+ह प्रणाम करके) महाराज दास धर्म के यह विरुद्ध है। इस समय स्वामी से कहे बिना मेरा कुछ भी लेना स्वामी को धोखा देना है।
+ध आश्चर्य से आप ही आप) वाह रे महानुभावता प्रगट) तो इसके स्वर्ण बना कर आप अपना दास्य छुड़ा लें।
+ध महाराज! बड़े बडे़ देवता आप का स्मरण करते हैं और करेंगे मैं क्या हूँ।
+(विमान पर अष्ट महासिद्धि नव निधि और बारहो प्रयोग आदि देवता आते हैं)।
+दे महाराज हरिश्चन्द्र की जय हो। आप के अनुग्रह से हम लोग विघ्नों से छूटकर स्वतंत्रा हो गए। अब हम आपके वश में हैं जो आज्ञा हो करें। हम लोग अष्ट महा सिद्धि नव निधि और बारह प्रयोग सब आप के हाथ में है।
+ह प्रणाम करके) यदि हम पर आप लोग प्रसन्न हो तो महासिद्धि योगियों के, निधि सज्जन के, और प्रयोग साधकों के पास जाओ।
+ह आप लोग मेरे सिर आँखों पर हैं पर मैं क्या करूं, क्योंकि मैं पराधीन हूं। एक बात और भी निवेदन है। वह यह कि छह अच्छे प्रयोग की तो हमारे समय में सद्यः सिद्धि होय पर बुरे प्रयोगों की सिद्धि विलंब से हो।
+दे महाराज! जो आज्ञा। हम लोग जाते हैं। आज आप के सत्य ने शिव जी के कीलन1 को भी शिथिल कर दिया। महाराज का कल्याण हो।
+ह घबड़ा कर ���पर देखकर) अरे! यह कौन है? कुलगुरु भगवान सूर्य अपना तेज समेटे मुझे अनुशासन कर रहे हैं। (ऊपर पितः मैं सावधान हूं सब दुखों को फूल की माला की भांति ग्रहण करूंगा। नेपथ्य में रोने की आवाज सुन पड़ती है)
+ह अरे अब सवेरा होने के समय मुरदा आया! अथवा चांडाल कुल का सदा कल्याण हो हमें इस से क्या। (खबरदार इत्यादि कहता हुआ फिरता है)
+ह अहह! किसी दीन स्त्री का शब्द है, और शोक भी इस पुत्र का है। हाय हाय! हम को भी भाग्य ने क्या ही निर्दय और वीभत्स कर्म सौंपा है! इससे भी वस्त्रा मांगना पड़ेगा।
+ह हाय हाय! इसके पति ने भी इसको छोड़ दिया है। हा! इस तपस्विनी को निष्करुण विधि ने बड़ा ही दुख दिया है।
+(शव को बारंबार गले लगाती, देखती और चूमती है)
+ह हाय! हाय! इस दुखिया के पास तो खड़ा नहीं हुआ जाता।
+ह न जाने क्यों इसके रोने पर मेरा कलेजा फटा जाता है।
+ह हाय हाय! इसकी बातों से तो प्राण मुंह को चले आते हैं और मालूम होता है कि संसार उलटा जाता है। यहां से हट चलें (कुछ दूर हटकर उसकी ओर देखता खड़ा हो जाता है)।
+ह अरे इन बातों से तो मुझे बड़ी शंका होती है (शव को भली भांति देखकर) अरे इस लड़के में तो सब लक्षण चक्रवर्ती के से दिखाई पड़ते हैं। हाय! न जाने किस बड़े कुल का दीपक आज इस ने बुझाया है, और न जाने किस नगर को आज इसने अनाथ किया है। हाय! रोहिताश्व भी इतना बड़ा भया होगा (बड़े सोच से) हाय हाय! मेरे मुंह से क्या अमंगल निकल गया। नारायण (सोचता है)
+शै चिता बनाकर पुत्र के पास आकर उठाना चाहती है और रोती है)।
+(दोनों आश्चर्य से ऊपर देखते हैं)
+शै हाय। इस कुसमय में आर्यपुत्र की यह कौन स्तुति करता है? वा इस स्तुति ही से क्या है, शास्त्र सब असत्य हैं नहीं तो आर्यपुत्र से धर्मी की यह गति हो! यह केवल देवताओं और ब्राह्मणों का पाषंड है।
+ह बलपूर्वक आंसुओं को रोककर और बहुत धीरज धर कर) प्यारी, रोओ मत। ऐसे ही समय में तो धीरज और धरम रखना काम है। मैं जिस का दास हूं उस की आज्ञा है कि बिना आधा कफन लिए क्रिया मत करने दो। इससे मैं यदि अपनी स्त्री और अपना पुत्र समझकर तुम से इसका आधा कफन न लूं तो बड़ा अधर्म हो। जिस हरिश्चन्द्र ने उदय से अस्त तक की पृथ्वी के लिए धर्म न छोड़ा उसका धर्म आध गज कपड़े के वास्ते मत छुड़ाओ और कफन से जल्दी आधा कपड़ा फाड़ दो। देखो सबेरा हुआ चाहता है ऐसा न हो कि कुलगुरु भगवान् सूर्य अपने वंश की यह दुर्दशा देखकर चित् में उदास हों। (हाथ ��ैलाता है)
+शै रोती हुई) नाथ जो आज्ञा। (रोहिताश्व का मृतकंबल फाड़ा चाहती है कि रंगभूमि की पृथ्वी हिलती है, तोप छूटने का सा बड़ा शब्द और बिजली का सा उजाला होता है। नेपथ्य में बाजे की ओर बस धन्य और जय-जय की ध्वनि होती है, फूल बरसते हैं और भगवान् नारायण प्रकट होकर राजा हरिश्चन्द्र का हाथ पकड़ लेते हैं।)
+ह. और शै आश्चर्य, आनंद, करुणा और प्रेम से कुछ कह नहीं सकते, आंखों से आंसू बहते हैं और एकटक भगवान् के मुखारविंद की ओर देखते हैं)
+(राजा हरिश्चन्द्र शैव्या और रोहिताश्व सबको प्रणाम करते हैं)
+बि महाराज यह केवल चन्द्र सूर्य तक आप की कीर्ति स्थिर रहने के हेतु मैंने छल किया था सो क्षमा कीजिए और अपना राज्य लीजिए।
+(हरिश्चन्द्र भगवान और धर्म का मुंह देखते हैं)
+धर्म महाराज राज आप का है इसका मैं साक्षी हूं आप निस्संदेह लीजिए।
+सत्य ठीक है जिसने हमारा अस्तित्व संसार में प्रत्यक्ष कर दिखाया उसी का पृथ्वी का राज्य है।
+श्रीमहादेव पुत्र हरिश्चन्द्र, भगवान नारायण के अनुग्रह से ब्रह्मलोक पर्यंत तुम ने पाया तथापि मैं आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारी कीर्ति, जब तक पृथ्वी है तब तक स्थिर रहे, और रोहिताश्व दीर्घायु, प्रतापी और चक्रवर्ती होय।
+(हरिश्चन्द्र और शैव्या प्रणाम करते हैं)
+इन्द्र राजा को आलिंगन करके और हाथ जोड़ के) महाराज ,मुझे क्षमा कीजिये। यह सब मेरी दुष्टता थी परंतु इस बात से आप का तो कल्याण ही हुआ। स्वर्ग कौन कहे आप ने अपने सत्यबल से ब्रह्मपद पाया। देखिये आप की रक्षा के हेतु श्रीशिव जी ने भैरवनाथ को आज्ञा दी थी, आप उपाध्यक्ष बने थे, नारद जी बटु बने थे, साक्षात् धर्म ने आप के हेतु चांडाल और कापालिक का भेष लिया, और सत्य ने आप ही के कारण चांडाल के अनुचर और बैताल का रूप धारण किया। न आप बिके, न दास हुए, यह सब चरित्रा भगवान नारायण की इच्छा से केवल आप के सुयश के हेतु किया गया।
+(पुष्पवृष्टि और बाजे की धुनि के साथ जवनिका गिरती है)
+
+
+महन्त बच्चा गोवरधन दास! तू पश्चिम की ओर से जा और नारायण दास पूरब की ओर जायगा। देख, जो कुछ सीधा सामग्री मिलै तो श्री शालग्राम जी का बालभोग सिद्ध हो।
+हिन्दू चूरन इस का नाम।
+चूरन जब से हिन्द में आया।
+चूरन चला डाल की मंडी।
+(बाबा जी का चेला गोबर्धनदास आता है और सब बेचनेवालों की आवाज सुन सुन कर खाने के आनन्द में बड़ा प्रसन्न होता है।)
+गो. दा क्यों बच्चा! इस न���र का नाम क्या है?
+गो. दा और राजा का क्या नाम है?
+(हलवाई मिठाई तौलता है-बाबा जी मिठाई लेकर खाते हुए और अंधेर नगरी गाते हुए जाते हैं।)
+(महन्त जी और नारायणदास एक ओर से 'राम भजो इत्यादि गीत गाते हुए आते हैं और एक ओर से गोबवर्धनदास अन्धेरनगरी गाते हुए आते हैं')
+गो. दा गुरूजी महाराज! सात पैसे भीख में मिले थे, उसी से इतनी मिठाई मोल ली है।
+महन्त बच्चा! नारायण दास ने मुझसे कहा था कि यहाँ सब चीज टके सेर मिलती है, तो मैंने इसकी बात का विश्वास नहीं किया। बच्चा, वह कौन सी नगरी है और इसका कौन सा राजा है, जहां टके सेर भाजी और टके ही सेर खाजा है?
+महन्त तो बच्चा! ऐसी नगरी में रहना उचित नहीं है, जहाँ टके सेर भाजी और टके ही सेर खाजा हो।
+महन्त जी नारायण दास के साथ जाते हैं; गोवर्धन दास बैठकर मिठाई खाता है।,
+(राजा, मन्त्री और नौकर लोग यथास्थान स्थित हैं)
+१ सेवक चिल्लाकर) पान खाइए महाराज।
+२ नौकर एक सुराही में से एक गिलास में शराब उझल कर देता है।) लीजिए महाराज। पीजिए महाराज।
+(नेपथ्य में-दुहाई है दुहाई-का शब्द होता है।)
+फ दोहाई है महाराज दोहाई है। हमारा न्याव होय।
+राजा अच्छा कल्लू बनिये को पकड़ लाओ।
+(नौकर लोग दौड़कर बाहर से बनिए को पकड़ लाते हैं) क्यों बे बनिए! इसकी लरकी, नहीं बरकी क्यों दबकर मर गई?
+राजा अच्छा, इस मल्लू को छोड़ दो, कारीगर को पकड़ लाओ। (कल्लू जाता है, लोग कारीगर को पकड़ लाते हैं) क्यों बे कारीगर! इसकी बकरी किस तरह मर गई?
+राजा अच्छा, इस कारीगर को बुलाओ, नहीं नहीं निकालो, उस चूनेवाले को बुलाओ।
+(कारीगर निकाला जाता है, चूनेवाला पकड़कर लाया जाता है) क्यों बे खैर सुपाड़ी चूनेवाले! इसकी कुबरी कैसे मर गई?
+चूनेवाला महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं, भिश्ती ने चूने में पानी ढेर दे दिया, इसी से चूना कमजोर हो गया होगा।
+राजा अच्छा चुन्नीलाल को निकालो, भिश्ती को पकड़ो। (चूनेवाला निकाला जाता है भिश्ती, भिश्ती लाया जाता है) क्यों वे भिश्ती! गंगा जमुना की किश्ती! इतना पानी क्यों दिया कि इसकी बकरी गिर पड़ी और दीवार दब गई।
+राजा अच्छा, कस्साई को लाओ, भिश्ती निकालो।
+(लोग भिश्ती को निकालते हैं और कस्साई को लाते हैं)
+राजा अच्छा कस्साई को निकालो, गड़ेरिये को लाओ।
+(कस्साई निकाला जाता है गंडे़रिया आता है)
+राजा अच्छा, इस को निकालो, कोतवाल को अभी सरबमुहर पकड़ लाओ।
+(लोग एक तरफ से कोतवाल को पकड़ कर ले जाते हैं, दूसरी ओर से ��ंत्री को पकड़ कर राजा जाते हैं)
+गुरु जी ने हमको नाहक यहाँ रहने को मना किया था। माना कि देस बहुत बुरा है। पर अपना क्या? अपने किसी राजकाज में थोड़े हैं कि कुछ डर है, रोज मिठाई चाभना, मजे में आनन्द से राम-भजन करना।
+१. प्या आप ने बिगाड़ा है या बनाया है इस से क्या मतलब, अब चलिए। फाँसी चढ़िए।
+२. प्या आप बड़े मोटे हैं, इस वास्ते फाँसी होती है।
+गो. दा मोटे होने से फाँसी? यह कहां का न्याय है! अरे, हंसी फकीरों से नहीं करनी होती।
+१. प्या बात है कि कल कोतवाल को फाँसी का हुकुम हुआ था। जब फाँसी देने को उस को ले गए, तो फाँसी का फंदा बड़ा हुआ, क्योंकि कोतवाल साहब दुबले हैं। हम लोगों ने महाराज से अर्ज किया, इस पर हुक्म हुआ कि एक मोटा आदमी पकड़ कर फाँसी दे दो, क्योंकि बकरी मारने के अपराध में किसी न किसी की सजा होनी जरूर है, नहीं तो न्याव न होगा। इसी वास्ते तुम को ले जाते हैं कि कोतवाल के बदले तुमको फाँसी दें।
+(गोबर्धन दास को पकड़े हुए चार सिपाहियों का प्रवेश)
+गो. दा हाय! मैं ने गुरु जी का कहना न माना, उसी का यह फल है। गुरु जी ने कहा था कि ऐसे-नगर में न रहना चाहिए, यह मैंने न सुना! अरे! इस नगर का नाम ही अंधेरनगरी और राजा का नाम चौपट्ट है, तब बचने की कौन आशा है। अरे! इस नगर में ऐसा कोई धर्मात्मा नहीं है जो फकीर को बचावै। गुरु जी! कहाँ हौ? बचाओ-गुरुजी-गुरुजी-(रोता है, सिपाही लोग उसे घसीटते हुए ले चलते हैं)
+(गुरु जी और नारायण दास आरोह)
+सिपाही नहीं महाराज, हम लोग हट जाते हैं। आप बेशक उपदेश कीजिए।
+(सिपाही हट जाते हैं। गुरु जी चेले के कान में कुछ समझाते हैं)
+(इसी प्रकार दोनों हुज्जत करते हैं-सिपाही लोग परस्पर चकित होते हैं)
+२ सिपाही हम भी नहीं समझ सकते हैं कि यह कैसा गबड़ा है।
+राजा यह क्या गोलमाल है?
+महन्त राजा! इस समय ऐसा साइत है कि जो मरेगा सीधा बैकुंठ जाएगा।
+(राजा को लोग टिकठी पर खड़ा करते हैं)
+
+
+हाय-हाय इससे वै$से बचेंगे? अरे यह तो मेरा एक ही कौर कर जायेगा! हाय! परमेश्वर बैकुंठ में और राजराजेश्वरी सात समुद्र पार, अब मेरी कौन दशा होगी?
+(दोनों उठाकर भारत को ले जाते हैं big>
+(फौज के डेरे दिखाई पड़ते हैं! भारतदुर्दैव’ आता है)
+लिया भी तो अँगरेजों से औगुन! हा हाहा! कुछ पढ़े लिखे मिलकर देश सुधारा चाहते हैं? हहा हहा! एक चने से भाड़ फोडं़गे। ऐसे लोगों को दमन करने को मैं जिले के हाकिमों को न हुक्म दूँगा
+कि इनको डिसलायल्���ी में पकड़ो और ऐसे लोगों को हर तरह से खारिज करके जितना जो बड़ा मेरा मित्र हो उसको उतना बड़ा मेडल और खिताब दो। हैं! हमारी पालिसी के विरुद्ध उद्योग करते हैं मूर्ख! यह क्यों?
+(नेपथ्य में से ‘जो आज्ञा’ का शब्द सुनाई पड़ता है)
+भारतदु आहा! हाहा! शाबाश! शाबाश! हाँ, और भी कुछ धम्र्म ने किया?
+रोजगार न रहा, सूद ही सही। वह भी नहीं, तो घर ही का सही, ‘संतोषं परमं सुखं’ रोटी को ही सराह सराह के खाते हैं। उद्यम की ओ देखते ही नहीं। निरुद्यमता ने भी संतोष को बड़ी सहायता दी।
+इन दोनों को बहादुरी का मेडल जरूर मिले। व्यापार को इन्हीं ने मार गिराया।
+अदालत ने भी अच्छे हाथ साफ किए। फैशन ने तो बिल और टोटल के इतने गोले मारे कि अंटाधार कर दिया और सिफारिश ने भी खूब ही छकाया। पूरब से पश्चिम और पश्चिम से पूरब तक पीछा करके खूब भगाया।
+डर दिखाया गया, बराबरी का झगड़ा उठा, धांय धांय गिनी गई1 वर्णमाला कंठ कराई,2 बस हाथी के खाए कैथ हो गए। धन की सेना ऐसी भागी कि कब्रों में भी न बची, समुद्र के पार ही शरण मिली।
+सत्या. फौ हाँ, सुनिए। फूट, डाह, लोभ, भेय, उपेक्षा, स्वार्थपरता, पक्षपात, हठ, शोक, अश्रुमार्जन और निर्बलता इन एक दरजन दूती और दूतों को शत्राुओं की फौज में हिला मिलाकर ऐसा पंचामृत बनाया कि सारे शत्राु बिना मारे
+सत्या. फौ महाराज! उसका बल तो आपकी अतिवृष्टि और अनावृष्टि नामक फौजों ने बिलकुल तोड़ दिया। लाही, कीड़े, टिड्डी और पाला इत्यादि सिपाहियों ने खूब ही सहायता की। बीच में नील ने भी नील बनकर अच्छा लंकादहन किया।
+मेरी ही बदौलत ओझा, दरसनिए, सयाने, पंडित, सिद्ध लोगों को ठगते हैं। (आतंक से) भला मेरे प्रबल प्रताप को ऐसा कौन है जो निवारण करे। हह! चुंगी की कमेटी सफाई करके मेरा निवारण करना चाहती है,
+काल के बल से औषधों के गुणों और लोगों की प्रकृति में भी भेद पड़ गया। बस अब हमें कौन जीतेगा और फिर हम ऐसी सेना भेजेंगे जिनका भारतवासियों ने कभी नाम तो सुना ही न होगा; तब भला वे उसका प्रतिकार क्या करेंगे!
+ये किधर से चढ़ाई करते हैं और कैसे लड़ते हैं जानेंगे तो हई नहीं, फिर छुट्टी हुई वरंच महाराज, इन्हीं से मारे जायँगे और इन्हीं को देवता करके पूजेंगे,
+यह लो पान का बीड़ा लो। (बीड़ा देता है)
+(रोग बीड़ा लेकर प्रणाम करके जाता है)
+आलस्य हहा! एक पोस्ती ने कहा; पोस्ती ने पी पोस्त नै दिन चले अढ़ाई कोस। दूसरे ने जवाब दिया, अबे वह पोस्ती न हो��ा डाक का हरकारा होगा। पोस्ती ने जब पोस्त पी तो या कूँड़ी के उस पार या इस पार ठीक है।
+बंदर की तरह धूम मचाना नहीं अच्छा ।।
+‘‘मौत अच्छी है पर दिल का लगाना नहीं अच्छा ।।
+उमरा को हाथ पैर चलाना नहीं अच्छा ।।
+सिर भारी चीज है इस तकलीफ हो तो हो।
+पर जीभ विचारी को सताना नहीं अच्छा ।।
+फाकों से मरिए पर न कोई काम कीजिए।
+अरे करने को दैव आप ही करेगा, हमारा कौन काम है, पर चलें।
+तंत्रा तो केवल मेरी ही हेतु बने। संसार में चार मत बहुत प्रबल हैं, हिंदू बौद्ध, मुसलमान और क्रिस्तान। इन चारों में मेरी चार पवित्र प्रेममूर्ति विराजमान हैं। सोमपान, बीराचमन, शराबूनतहूरा और बाप टैजिग वाइन।
+पियत भट्ट के ठट्ट अरु, गुजरातिन के वृंद।
+शांपिन शिव गौड़ी गिरिश, ब्रांड़ी ब्रह्म बिचारि ।।
+विषयेंद्रियों के सुखानुभव मेरे कारण द्विगुणित हो जाते हैं। संगीत साहित्य की तो एकमात्रा जननी हूँ। फिर ऐसा कौन है जो मुझसे विमुख हो?
+(राजा को देखकर) महाराज! कहिए क्या हुक्म है?
+(रंगशाला के दीपों में से अनेक बुझा दिए जायँगे)
+हृदय के और प्रत्यक्ष, चारों नेत्रा हमारे प्रताप से बेकाम हो जाते हैं। हमारे दो स्वरूप हैं, एक आध्यात्मिक और एक आधिभौतिक, जो लोक में अज्ञान और अँधेरे के नाम से प्रसिद्ध हैं।
+अंध आपके काम के वास्ते भारत क्या वस्तु है, कहिए मैं विलायत जाऊँ।
+अंध बहुत अच्छा, मैं चला। बस जाते ही देखिए क्या करता हूँ। (नेपथ्य में बैतालिक गान और गीत की समाप्ति में क्रम से पूर्ण अंधकार और पटाक्षेप)
+सभापति खड़े होकर) सभ्यगण! आज की कमेटी का मुख्य उदेश्य यह है कि भारतदुर्दैव की, सुुना है कि हम लोगों पर चढ़ाई है। इस हेतु आप लोगों को उचित है कि मिलकर ऐसा उपाय सोचिए कि जिससे हम लोग इस भावी आपत्ति से बचें।
+जहाँ तक हो सके अपने देश की रक्षा करना ही हम लोगों का मुख्य धर्म है। आशा है कि आप सब लोग अपनी अपनी अनुमति प्रगट करेंगे। (बैठ गए, करतलध्वनि)
+शाकता कि हमारा बोज्र्जोबल के बाहर का बात है। क्यों नहीं शाकता? अलबत्त शकैगा, परंतु जो सब लोग एक मत्त होगा। (करतलध्वनि) देखो हमारा बंगाल में इसका अनेक उपाय साधन होते हैं।
+ब्रिटिश इंडियन ऐसोशिएशन लीग इत्यादि अनेक शभा भ्री होते हैं। कोई थोड़ा बी बात होता हम लोग मिल के बड़ा गोल करते। गवर्नमेंट तो केवल गोलमाल शे भय खाता। और कोई तरह नहीं शोनता।
+प. देशी धीरे से) यहीं, मगर जब तक कमेटी में हैं तभी तक। बाहर निकले कि फिर कुछ नहीं।
+दू. देशी ख्धीरे से, क्यों भाई साहब; इस कमेटी में आने से कमिश्नर हमारा नाम तो दरबार से खारिज न कर देंगे?
+एडिटर खडे़ होकर) हम अपने प्राणपण से भारत दुर्दैव को हटाने को तैयार हैं। हमने पहिले भी इस विषय में एक बार अपने पत्रा में लिखा था परंतु यहां तो कोई सुनता ही नहीं। अब जब सिर पर आफत आई सो आप लोग उपाय सोचने लगे।
+बंगाली खड़े होकर) अलबत, यह भी एक उपाय है किंतु असभ्यगण आकर जो स्त्री लोगों का विचार न करके सहसा कनात को आक्रमण करेगा तो उपवेशन)
+एडि खड़े होकर) हमने एक दूसरा उपाय सोचा है, एडूकेशन की एक सेना बनाई जाय। कमेटी की फौज। अखबारों के शस्त्रा और स्पीचों के गोले मारे जायँ। आप लोग क्या कहते हैं उपवेशन)
+महा परंतु इसके पूर्व यह होना अवश्य है कि गुप्त रीति से यह बात जाननी कि हाकिम लोग भारतदुर्दैव की सैन्य से मिल तो नहीं जायँगे।
+महा तो सार्वजनिक सभा का स्थापन करना। कपड़ा बीनने की कल मँगानी। हिदुस्तानी कपड़ा पहिनना। यह भी सब उपाय हैं।
+एडि परंतु अब समय थोड़ा है जल्दी उपाय सोचना चाहिए।
+उसमें एक तो पिशान लेकर स्वेज का नहर पाट देगा। दूसरा बाँस काट काट के पवरी नामक जलयंत्रा विशेष बनावेगा। तीसरा उस जलयंत्रा से अंगरेजों की आँख में धूर और पानी डालेगा।
+महा नहीं नहीं, इस व्यर्थ की बात से क्या होना है। ऐसा उपाय करना जिससे फल सिद्धि हो।
+प. देशी पर उनके पढ़ने का और समझने का अभी संस्कार किसको है?
+(सब डरके चैकन्ने से होकर इधर उधर देखते हैं)
+सभापति आगे से ले आकर बड़े शिष्टाचार से) आप क्यों यहाँ तशरीफ लाई हैं? कुछ हम लोग सरकार के विरुद्ध किसी प्रकार की सम्मति करने को नहीं एकत्रा हुए हैं। हम लोग अपने देश की भलाई करने को एकत्रा हुए हैं।
+बंगाली आगे बढ़कर क्रोध से) काहे को पकडे़गा, कानून कोई वस्तु नहीं है। सरकार के विरुद्ध कौन बात हम लोग बाला? व्यर्थ का विभीषिका!
+महा हाय हाय! यहाँ के लोग बड़े भीरु और कापुरूष हैं। इसमें भय की कौन बात है! कानूनी है।
+सभा तो पकड़ने का आपको किस कानून से अधिकार है?
+सभा स्वगत) चेयरमैन होने से पहिले हमीं को उत्तर देना पडे़गा, इसी से किसी बात में हम अगुआ नहीं होते।
+डिस अच्छा चलो। (सब चलने की चेष्टा करते हैं)
+(भारत एक वृक्ष के नीचे अचेत पड़ा है)
+(भारत को जगाता है और भारत जब नहीं जागता तब अनेक यत्न से फिर जगाता है, अंत में हारकर उदास होकर)
+���ाय! भारत को आज क्या हो गया है? क्या निःस्संदेह परमेश्वर इससे ऐसा ही रूठा है? हाय क्या अब भारत के फिर वे दिन न आवेंगे? हाय यह वही भारत है जो किसी समय सारी पृथ्वी का शिरोमणि गिना जाता था?
+कुस कन्नौज अंग अरु वंगहि।
+हाय! यहीं के लोग किसी काल में जगन्मान्य थे।
+इनहीं के क्रोध किए प्रकास।
+याही भारत में भए शाक्य सिंह संन्यास ।।
+जिस भारतवर्ष के राजा चंद्रगुप्त और अशोक का शासन रूम रूस तक माना जाता था, उस भारत की यह दुर्दशा! जिस भारत में राम, युधिष्ठर, नल, हरिश्चंद्र, रंतिदेव, शिवि इत्यादि पवित्र चरित्रा के लोग हो गए हैं उसकी यह दशा!
+हाय, भारत भैया, उठो! देखो विद्या का सूर्य पश्चिम से उदय हुआ चला आता है। अब सोने का समय नहीं है। अँगरेज का राज्य पाकर भी न जगे तो कब जागोगे। मूर्खों के प्रचंड शासन के दिन गए, अब राजा ने प्रजा का स्वत्व पहिचाना।
+विद्या की चरचा फैल चली, सबको सब कुछ कहने सुनने का अधिकार मिला, देश विदेश से नई विद्या और कारीगरी आई। तुमको उस पर भी वही सीधी बातें, भाँग के गोले, ग्रामगीत, वही बाल्यविवाह, भूत प्रेत की पूजा जन्मपत्राी की विधि!
+(भारत का मुँह चूमकर और गले लगाकर)
+
+
+(मलिन मुख किए सूत्राधार और पारिपाश्र्वक आते हैं)
+पा: मित्र आज तुह्मैं1 क्या हो गया है और क्या बकते हो और इतने उदास क्यों हो।
+(नेत्रा से जल की धारा बहती है और रोकने से भी नहीं रुकती)
+पा अपने गले में सूत्राधार को लगाकर और आँसू पोंछकर) मित्र आज तुह्मै1 हो क्या गया है? यह क्या सूझी है? क्या आज लोगों को यही तमाशा दिखाओगे।
+क्या ईश्वर है तो उसके यही काम हैं जो संसार में हो रहे हैं? क्या उसकी इच्छा के बिना भी कुछ होता है? क्या लोग दीनबन्धु दयासिन्धु उसको नहीं कहते? क्या माता पिता के सामने पुत्र की स्त्री के सामने पति की और बन्धुओं के
+क्या अब भारतखंड के लोग ऐसे कापुरुष और दीन उसकी इच्छा के बिना ही हो गए? हा आँसू बहते हैं लोग कहते हैं कि ये यह उसके खेल हैं। छिः ऐसे निर्दय को भी लोग दयासमुद्र किस मुँह से पुकारते हैं?)
+सू: आभासमात्रा है तो-फिर किसने यह बखेड़ा बनाने कहा था और पचड़ा फैलाने कहा था, उस पर भी न्याव करने और कृपालु बनने का दावा (आँख भर आती है)।
+पा: पर उसका परिणाम क्या होगा?
+सू: क्या कोई परिणाम होना अभी बाकी है? हो चुका जो होना था।
+सू: ऐसा कौन नाटक है यों तो सभी नायकों के चरित्रा किसी किसी विषय में उससे मिलते हैं पर आनुपूव्र्वी चरित्रा कैसे मिलैगा।
+पा: मित्र मृच्छकटिक हिन्दी में खेलो क्योंकि! उसके नायक चारुदत्त का चरित्रामात्रा इनसे सब मिलता है केवल बसन्तसेना और राजा की हानि है।
+पा स्मरण करके) हाँ हाँ वह नाटक खेलौ जो तुम उस दिन उद्यान में उनसे सुनते थे,-वह उनके और इस घोर काल के बड़ा ही अनुरूप है उसके खेलने से लोगों का वर्तमान समय का ठीक नमूना दिखाई पड़ेगा और वह नाटक भी नई पुरानी,
+दोनों रीति मिलके बना है।
+पा: चलो ।। (दोनों जाते हैं)
+झापटिया: कोड़ा मारकर मंदिर की भीड़ हटाने वाला
+मि: अच्छी समय है मंगला की आधी समय है बैठो।
+प: अच्छा मथुरादास जी वैसी जाओ। (बैठते हैं)
+बा: जी भय्या जी का तो नेम है कि बडे़ सबेरे नहा कर फूलघर में जाते हैं तब मंगला के दर्शन करके तब घर में जायकर सेवा में नहाते हैं और मैं तो आज कल कार्तिक के सबब से नहाता हूँ तिस पर भी देर हो जाती है रोकड़
+ध: और गुरु इनके बदौलत चार जीवन के और चौन है एक तो भट दूसरे इनके सरबस खबा तिसरे बिरकत और चौथी बाई।
+ब: भाग होय तो ऐसिसो मिल जायँ। देखो लाड़लीप्रसाद के और बच्चू के ऊ नागरानी और बम्हनिया मिली हैं कि नाहीं!
+(रामचन्द्र ठीक इन दोनों के पीछे का किवाड़ खोलकर आता है)
+रा: भला आप ऐसे मित्र से कोई खफा हो सकता है? यह आप कैसी बात करते हैं?
+बा: कार्तिक नहाना होता है न?
+बा: यह भवसागर है। इसमें कोई कुछ बात करता है, कोई कुछ बात करता है। आप इन बातों का कहाँ तक खयाल कीजिएगा ऐं! कहिए कचहरी जाते हैं कि नहीं?
+बा हँसकर) उपमा आप ने बहुत अच्छी दिया और कहिए और अंधरी मजिसटरों1 का क्या हाल है big>
+प्रयागलाल भी करते हैं, पर वह पुलिस के शत्राु हैं। और विष्णुदास बड़े बवददपदह बींच हैं। दीवानराम हुई नहीं, बाकी रहे फिजिशियन सो वे तो अँगरेज ही हैं, पर भाई कई मूर्खों को बड़ा अभिमान हो गया है,
+श्री गोविंदराय जी की श्री मंगला खुली (सब दौड़ते हैं)
+सुधाकर रामचंद (नाटक के नायक) का मुसाहब
+(दलाल, गंगापुत्र, दुकानदार, भंडेरिया और झुरीसिंह बैठे हैं)
+माल वाल कुछ मिला, या हुआ कोरा सत्यानाशी?
+ग: और साल से बढ़कर।
+कोई का खाना, कोई की रंडी, कोई का पगड़ी जामा ।।
+(सब लोग आशीर्वाद, दंडवत, आओ आओ शिष्टाचार करते हैं)
+गं: भैया इनके दम के चौन है। ई अमीरन के खेलउना हैं।
+दू: हाँ भाई बाजार में भी इनकी साक बँधी है।
+(परदेशी के मुँह के पास चुटकी बजाता है और नाक के पास से उँगली लेकर दूसरे हाथ की उँगली पर घुमाता है)
+(मिठाई वाले, खिलौने वाले, कुली और चपरासी इधर उधर फिरते हैं।
+सुधाकर एक विदेशी पंडित और दलाल बैठे हैं)
+द बैठ के पान लगाता है) या दाता राम! कोई भगवान से भेंट कराना।
+वि. पं: क्या आपका घर काशी ही जी में है?
+सु: वाह! आप काशी का वृत्तान्त अब तक नहीं जानते भला त्रौलोक्य में और दूसरा ऐसा कौन नगर है जिसको काशी की समता दी जाय।
+जहाँ तारकेश्वर विश्वेश्वरादि नामधारी भगवान भवानीपति तारकब्रह्म का उपदेश करके तनत्याग मात्रा से ज्ञानियों को भी दुर्लभ अपुनर्भव परम मोक्षपद-मनुष्य पशु कीट पतंगादि आपामर जीवनमात्रा को देकर उसी क्षण अनेक कल्पसंचित महापापपुंज भस्म कर देते हैं।
+जहाँ तक देव, दानव, गंधर्व, सिद्ध चारण, विद्याधर देवर्षि, राजर्षिगण और सब उत्तम उत्तम तीर्थ-कोई मूर्तिमान, कोई छिपकर और कोई रूपांतर करके नित्य निवास करते हैं।
+जहाँ मूर्तिमान सदाशिव प्रसन्न वदन आशुतोष सकलसद्गुणैकरत्नाकर, विनयैकनिकेतन, निखिल विद्याविशारद, प्रशांतहृदय, गुणिजनसमाश्रय, धार्मिकप्रवर, काशीनरेश महाराजाधिराज श्रीमदीश्वरीप्रसादनारायणसिंह बहादुर और उनके कुमारोपम कुमार श्री प्रभुनारायणसिंह बहादुर दान धम्र्मसभा रामलीलादि के मिस धर्मोन्नति करते हुए और असत् कम्र्म नीहार को सूर्य की भाँति नाशते हुए पुत्र की तरह अपनी प्रजा का पालन करते हैं।
+जहाँ श्रीमती चक्रवर्तिनिचयपूजितपादपीठा श्रीमती महारानी विक्टोरिया के शासनानुवर्ती अनेक कमिश्नर जज कलेक्टरादि अपने अपने काम में सावधान प्रजा को हाथ पर लिए रहते हैं और प्रजा उनके विकट दंड के सर्वदा जागने के भरोसे नित्य सुख से सोती है।
+जहाँ राजा शंभूनारायणसिंह बाबू फतहनारायणसिंह बाबू गुरुदास बाबू माधवदास विश्वेश्वरदास राय नारायणदास इत्यादि बड़े बड़े प्रतिष्ठित और धनिक तथा श्री बापूदेव शास्त्री, श्रीबाल शास्त्री से प्रसिद्ध पंडित, श्रीराजा शिवप्रसाद, सैयद अहमद खाँ बहादुर ऐसे योग्य पुरुष, मानिकचंद्र मिस्तरी से शिल्पविद्या निपुण, वाजपेयी जी से तन्त्राीकार, श्री पंडित बेचनजी, शीतलजी, श्रीताराचरण से संस्कृत के और सेवक हरिचंद्र से भाषा के कवि बाबू अमृतलाल, मुंशी गन्नूलाल, मुंशी श्यामसुंदरलाल से शस्त्राव्यसनी और एकांतसेवी, श्रीस्वामि विश्वरूपानंद से यति, श्रीस्वामि विशुद्धानंद से धम्र्मोपदेष्टा, दातृगणैकाग्रगण्य श्रीमहाराजाधिराज विजयनगराधिपति से विदेशी सर्वदा निवास करके नगर की शोभा दिन दूनी रात चौगुनी करते रहते हैं।
+जहाँ क्वींस कालिज (जिसके भीतर बाहर चारों ओर श्लोक और दोहे खुदे हैं जयनारायण कालिज से बड़े बंगाली टोला, नार्मल और लंडन मिशन से मध्यम तथा हरिश्चंद्र स्कूल से छोटे अनेक विद्यामंदिर हैं, जिनमें संस्कृत, अँगरेजी, हिन्दी, फारसी, बँगला, महाराष्ट्री की शिक्षा पाकर प्रति वर्ष अनेक विद्यार्थी विद्योत्तीर्ण होकर प्रतिष्ठालाभ करते हैं; इनके अतिरिक्त पंडितों के घर में तथा हिंदी फारसी पाठकों की निज शाला में अलग ही लोग शिक्षा पाते हैं, और राय शंकटाप्रसाद के परिश्रमोत्पन्न पबलिक लाइब्रेरी, मुनशी शीतलप्रसाद का सरस्वती-भवन, हरिश्चंद्र का सरस्वती भंडार इत्यादि अनेक पुस्तक-मंदिर हैं, जिनमें साधारण लोग सब विद्या की पुस्तकें देखने पाते हैं।
+जहाँ मानमंदिर ऐसे यंत्राभवन, सारनाथ की धंमेक से प्राचीनावशेष चिद्द, विश्वनाथ के मंदिर का वृषभ और स्वर्ण-शिखर, राजा चेतसिंह के गंगा पार के मंदिर, कश्मीरीमल की हवेली और क्वींस कालिज की शिल्पविद्या और माधोराय के धरहरे की ऊँचाई देखकर विदेशी जन सर्वदा रहते हैं।
+जहाँ महाराज विजयनगर के तथा सरकार के स्थापित स्त्री-विद्यामंदिर, औषधालय, अंधभवन, उन्मत्तागा इत्यादिक लाकद्वयसाधक अनेक कीर्तिकर कार्य हैं वैसे ही चूड़वाले इत्यादि महाजनों का सदावत्र्त और श्री महाराजाधिराज सेंधिया आदि के अटल सत्रा से ऐसे अनेक दीनों के आश्रयभूत स्थान हैं जिनमें उनको अनायास भी भोजनाच्छादन मिलता है।
+जहाँ विदेशी अनेक तत्ववेत्ता धार्मिक धनीजन घरबार कुटुंब देश विदेश छोड़कर निवास करते हुए तत्वचिंता में मग्न सुख दुःख भुलाए संसार की यथारूप में देखते सुख से निवास करते हैं।
+जहाँ भिन्न देशनिवासी आस्तिक विद्यार्थीगण परस्पर देव-मंदिरों में, घाटों पर, अध्यापकों के घर में, पंडित सभाओं में वा मार्ग में मिलाकर शास्त्रार्थ करते हुए अनर्गल धारा प्रवाह संस्कृत भाषण से सुनने वालों का चित्त हरण करते हैं।
+जहाँ स्वर लय छंद मात्रा, हस्तकंपादि से शुद्ध वेदपाठ की ध्वनि से जो मार्ग में चलते वा घर बैठे सुन पड़ती है, तपोवन की शोभा का अनुभव होता है।
+जहाँ द्रविड़, मगध, कान्यकुब्ज, महाराष्ट्र, बंगाल, पंजाब, गुजरात इत्याादि अनेक देश के लोग परस्पर मिले हुए अपन��-अपना काम करते दिखाते हैं और वे एक एक जाति के लोग जिन मुहल्लों में बसे हैं वहाँ जाने से ऐसा ज्ञान होता है मानों उसी देश में आए हैं, जैसे बंगाली टोले में ढाके का, लहौरी टोले में अमृतसर का और ब्रह्माघाट में पूने का भ्रम होता है।
+जहाँ अनेक रंगों के कपड़े पहने सोरहो सिंगार बत्तीसो अभरन सजे पान खाए मिस्सी की धड़ी जमाए जोबन मदमाती झलझमाती हुई बारबिलासिनी देवदर्शन वैद्य ज्योतिषी गुणी-गृहगमन जार मिलन गानश्रावण उपवनभ्रमण इत्यादि अनेक बहानों से राजपथ में इधर-उधर झूमती घूमती नैनों के पटे फेरती बिचारे दीन पुरुषों को ठगती फिरती हैं और कहाँ तक कहैं काशी काशी ही है। काशी सी नगरी त्रौलोक्य में दूसरी नहीं है। आप देखिएगा तभी जानिएगा बहुत कहना व्यर्थ है।
+सु: मैं तो पूर्व ही कह चुका हूँ कि काशी गुणी और धनियों की खान है यद्यपि यहाँ के बडे़-बड़े पंडित जो स्वर्गवासी हुए उनसे अब होने कठिन हैं, तथापि अब भी जो लोग हैं दर्शनीय ओर स्मरणीय हैं। फिर इन व्यक्तियों के दर्शन भी दुर्लभ हो जायेंगे और यहाँ के दाताओं का तो कुछ पूछना ही नहीं। चूड़ की कोठी वालों ने पंडित काकाराम जी के ऋण के हेतु एक साथ बीस सहस्र मुद्रा दीं। राजा पटनीमल के बाँधे धम्र्मचिन्ह कम्र्मनाशा का पुल और अनेक धम्र्मशाला, कुएँ, तालाब, पुल इत्यादि भारतवर्ष के प्रायः सब तीर्थों पर विद्यमान हैं। साह गोपालदास के भाई साह भवानीदास की भी ऐसी उज्ज्वल कीत्र्ति है और भी दीवान केवलकृष्ण, चम्पतराय अमीन इत्यादि बडे़-बड़े दानी इसी सौ वर्ष के भीतर हुए हैं। बाबू राजेंद्र मित्र की बाँधी देवी पूजा बाबू गुरु दास मित्र के यहाँ अब भी बड़े धूम से प्रतिवर्ष होती है। अभी राजा देवनारायणसिंह ही ऐसे गुणज्ञ हो गए हैं कि उनके यहाँ से कोई खाली हाथ नहीं फिरा। अब भी बाबू हरिश्चंद्र इत्यादि गुणग्राहक इस नगर की शोभा की भाँति विद्यमान हैं। अभी लाला बिहारीलाल और मुंशी रामप्रताप जी ने कायस्थ जाति का उद्धार करके कैसा उत्तम कार्य किया। आप मेरे मित्र रामचंद्र ही को देखिएगा। उसने बाल्यावस्था ही में लक्षावधि मुद्रा व्यय कर दी है। अभी बाबू हरखचंद मरे हैं तो एक गोदान नित्य करके जलपान करते थे। कोई भी फकीर यहाँ से खाली नहीं गया। दस पंद्रह रामलीला इन्हीं काशीवालों के व्यय से प्रति वर्ष होती है और भी हजारों पुण्यकार्य यहाँ हुआ ही करते हैं। आपको सब��े मिलाऊँगा आप काशी चलें तो सही।
+वि यह इन्होंने किस भाषा में बात की?
+(बुभुक्षित दीक्षित, गप्प पंडित, रामभट्ट, गोपालशास्त्री, चंबूभट्ट, माधव शास्त्री आदि लोग पान बीड़ा खाते और भाँग बूटी की तजबीज करते बैठे हैं;
+इतने में महाश कोतवाल अर्थात् निमंत्राण करने वाला आकर चौक
+में से दीक्षित को पुकारता है)
+गप्प पंडित: अं तो ऐसी झुल्लक बात के हेतु शास्त्राधार का क्या काम है? इसमें तो बहुत से आधार मिलेंगे।
+माधव शास्त्री: हाँ पंडित जी आप ठीक कहते हैं, क्योंकि हम लोगों का वाक्य और ईश्वर का वाक्य समान ही समझना चाहिए ”विप्रवाक्ये जनार्दनः“ ”ब्राह्मणो मम दैवतं“ इत्यादि।
+गप्प पंडित: हाँ जी, और इसमें निंद्य होने का भी क्या कारण? इसमें शास्त्रा के प्रमाण बहुत से हैं और युक्ति तो हई है। पहिले यही देखिए कि इस क्षौर कर्म से दो मनुष्यों को अर्थात् वह कन्या और उसके स्वजन इनको बहुत ही दुःख होगा ओर उसके प्रतिबंध से सबको परम आनंद होगा। तब यहाँ इस वचन को देखिए-
+बुभु और ऐेसे बहुत से उदाहरण भी इसी काशी में होते आए हैं। दूसरा काशीखंड ही में कहा है ‘येषां क्वापि गतिर्नास्ति तेषां वाराणसीगतिः।’
+चंबूभट्ट: मूर्खतागार का भी यह वाक्य है ‘अधवा वाललवनं जीव- नाद्र्दनवद्भवेत्’। संतोषसिंधु में भी ‘सकेशैव हि संस्थाप्या यदि स्यात्तोषदा नृणां’।
+बुभु भांग की गोली और जल, बरतन, कटोरा, साफी लेकर) शास्त्री जी! थोड़े से बढ़ा तर।२
+गप्प पंडित: क्यों महाश! इस सभा में कोई गौड़ पंडित भी हैं वा नहीं?
+महाश: हाँ पंडित जी, वह बात छोड़ दीजिए, इसमें तो केवल दाक्षिणात्य, द्राविण और क्वचित् तैलंग भी होंगे, परंतु सुना है कि जो इसमें अनुमति करेंगे वे भी अवश्य सभासद होंगे।
+माधव: हाँ पंडित जी, मैं तो अपने शक्त्यनुसार प्रयत्न करता हूँ, क्योंकि प्रायः काका धनतुंदिल शास्त्री जो कुछ करते हैं उसका सब प्रबंध मुझे ही सौंप देते हैं। (कुछ ठहर कर) हाँ, पर पंडित जी, अच्छा स्मरण हुआ, आपसे और न्यू फांड ;छमू विदकद्ध शास्त्री से बहुत परिचय है, उन्हीं से आप प्रवेश कीजिए, क्योंकि उनसे और काका जी से गहरी मित्रता है।
+गोपाल: कभी सुना नहीं इसी हेतु न्यू फांड।
+गप्प पंडित: मित्र! मेरा ठट्टा मत करो। मैं यह तुम्हारी बोली नहीं समझता। क्या यह किसी का नाम है? मुझे मालूम होता है कि कदाचित् यह द्रविड़ त्रिलिंग आदि देश के मनुष्य का नाम होगा। क्यों��ि उधर की बोली मैंने सुनी है उसमें मूर्द्धन्य वर्ण प्रायः बहुत रहते हैं।
+माधव शास्त्री: ठीक पंडित जी, अब आप का तर्कशास्त्रा पढ़ना आधा सफल हुआ। अस्तु ये इधर ही के हैं जो आप के साथ रामनगर गए थे, जिन्होंने घर में तमाशे वाले की बैठक की थी-
+गप्प पंडित: हाँ, हाँ, अब स्मरण हुआ, परंतु उनका नाम परोपकारी शास्त्री है और तुम क्या भांड कहते हो?
+गोपाल शास्त्री: वह पंडित जी, भांड नहीं कहा फांड कहा-न्यू फांड अर्थात् नये शौखीन। सारांश प्राचीन शौखीन लोगों ने जो जो कुछ पदार्थ उत्पन्न किए, उपभुक्त किए उन ही उनके उच्छिष्ट पदार्थ का अवलंबन करके वा प्राचीन रसिकों की चाल चलन को अच्छी समझ हमको भी लोक वैसा ही कहे आदि से खींच खींच के रसिकता लाना, क्या शास्त्री जी ऐसा न इसका अर्थ?
+गप्प पंडित: अच्छा, जो होय मुझे उसके नाम से क्या काम। व्यक्ति मैंने जानी परंतु माधव जी आप कहते हैं और मुझसे उनसे भी पूर्ण परिचय है और उनको उनका नाम सच शोभता है, परंतु भाई वे तो बड़े आढ्य मान्य हैं और कंजूस भी हैं-और क्या तुमसे उनसे मित्रता मुझसे अधिक नहीं है। यहाँ तक शयनासन तक वे तुमको परकीय नहीं समझते।
+माधव शास्त्री: पंडित जी! वह सर्व ठीक है, परंतु अब वह भूतकालीन हुई। कारण ‘अति सर्वत्रा वर्जयेत्’-
+महाश इतने में अपना पान लगाकर खाता है और दीक्षित जी से)
+(महाश वहीं से चार अंगुली दिखाकर गडा कहकर गया)
+गप्प पंडित: क्या परोपकारी की पत्ती है? खाली पत्ती दी है कि और भी कुछ है? नाहीं तो मैं भी चलूँ।
+गप्प पंडित: क्यों शास्त्री जी, मुझे यह बड़ा आश्चर्य ज्ञात होता है और इससे परिहासोक्ति सी देख पड़ती है। क्योंकि उसके यहाँ नाच रंग होना सूर्य का पश्चिमाभिमुख उगना है।
+माधव गोपाल: चलिए पंडित जी वैसे ही धनतुंदिल शास्त्री जी के यहाँ पहुँचेंगे। (सब उठर बाहर आते हैं।)
+गोपाल: कुछ रोज हमारे शास्त्री जी भी थे, परंतु हमारा क्या उनका कहिए ऐसा दुर्भाग्य हुआ कि अब वर्ष वर्ष दर्शन नहीं होने पाता। रामचंद्र जी तो इनको अपने भ्राते के समान पालन करते थे और इनसे बड़ा प्रेम रखते थे। अस्तु सारांश पंडित वहाँ रामचंद्र जी के बगीचे में जाएँगे। वहाँ सब लहरा देख पड़ेगी और इस मिस से तौ भी उनका दर्शन होगा।
+(सब जाते हैं और जवनिका गिरती है big>
+
+
+बसन्त पूजा नामक नाटक भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित है । जिसमें भारतेन्दु जी ने बसंत पूजा पे व्यन्ग्य लि���ा है ।
+(यजमान और सर्वभट्ट और मुदंर भट्ट आते हैं)
+यज महाराज इसका नाम बसंत पूजा क्यों है?
+य अच्छा आज कोई इस समय के अनुसार संहिता पढ़िये तो हम विशेष दक्षिणा दें।
+य सहस्र शीर्षा का अध्याय तो हमैं भी यह याद है। यह मत पढ़िये दूसरा चरखा निकालिये।
+दोनों अहा हा इस गला फाड़ने का फल तो यही था लाइये लाइये।
+
+
+समय पड़े पर सीधै गुंगी ।
+
+
+बन्दर सभा भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित् एक हास्य व्यन्ग्य काव्य है ।
+सभा में दोस्तो बन्दर की आमद आमद है।
+गधे औ फूलों के अफसर जी आमद आमद है।
+उसी मसीह के पैकर की आमद आमद है।
+व मोटे ओठ मुछन्दर की आमद आमद है ।।
+हैं खर्च खर्च तो आमद नहीं खर-मुहरे की
+उसी बिचारे नए खर की आमद आमद है ।। १
+आना शुतुरमुर्ग परी का बीच सभा में,
+गोया गहमिल से व लैली उतरी आती है ।।
+तेल और पानी से पट्टी है सँवारी सिर पर।
+पान भी खाया है मिस्सी भी जमाई हैगी।
+हाथ में पायँचा लेकर निखरी आती है ।।
+मार सकते हैं परिन्दे भी नहीं पर जिस तक।
+ऐ लोगो शुतुरमुर्ग परी नाम है मेरा ।।
+इस गुलशने आलम में बिछा दाम है मेरा ।।
+शुरफा व रुजला एक हैं दरबार में मेरे।
+किया सभा में याद मुझे राजा ने आज।
+लेना है मुझे इनआम में जर ।।
+जर ही के लिये कसबो हुनर है ।। ६
+गजल शुतुरमुर्ग परी की बहार के मौसिम में,
+आमद से बसंतों के है गुलजार बसंती।
+आते हैं नजर कूचओ बाजार बसंती ।।
+अफयूँ मदक चरस के व चंडू के बदौलत।
+दो चार गुलाबी हां तो दो चार बसंती ।।
+जोड़ा हो परी जान का तैयार बसंती ।। ७
+बने दीवारी के बबुआ पर लाइ भली विधि होरी।
+
+
+* किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए उसका घोषणापत्र गीता और कुरान की तरह होना चाहिए।
+२०१४ चुनाव अभियान के दौरान
+* अच्छे दिन आने वाले हैं।
+* मुझे देश के लिए मरने का अवसर नहीं मिला है, लेकिन मुझे देश के लिए जीने का अवसर मिल गया है।
+* गुजरात संभवतः एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ आँगनबाड़ी के कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया जाता है।
+* अच्छे दिन आने वाले हैं।
+* एक समय था जब भारत को अन्य देश के लोग सपेरों का देश मानते थे लेकिन आजकल हमारे देश के युवाओं के चलते ये देश अब सापों को नही 'माउस' को नचाते है।
+* हमारे देश की सेना बात नही करती रणक्षेत्र में अपना पराक्रम दिखाती है।
+* पिछले सरकारों को आपलोगो ने 70 साल का समय दिया आपलोग सिर्फ मुझे 50 दिन का समय दो सारे कालेधन वाले खुद बाहर निकल आयेगे।
+* न���टबंदी का फैसला देशहित में लिया है लेकिन जिससे इसका नुकसान हुआ है वे लोग मुझे छोड़ेगे नही।
+* नोटबंदी से हमारे देश की जनता तो आज पहली बार चैन की सास लेकर सोने जा रही है जबकि कुछ लोग आज से नीद की गोलिया लेना शुरू कर देंगे।
+* कालेधन को समाप्त करना है तो भारत की कैश अर्थव्यवस्था को कैशलेश की तरफ ले जाना है। हमे नोटबंदी के साथ कैशलेस भी होना जरुरी है।
+* आप अपने मोबाइल को अपना बटुआ बना सकते है और अपने मोबाइल से सब्जी भी खरीद सकते है और अपना सारा व्यापार भी कर सकते है।
+* लोकतंत्र में जनता का ही फैसला सर्वमान्य होता है जिसे मानना हम सबकी जिम्मेदारी है।
+* हमे अपने देश की आजादी के लिए मरने का मौका तो नही मिला लेकिन इन प्यारे देशवासियों के लिए जीने का मौका मिला है तो इसे कभी हम व्यर्थ नही जाया करेगे और देश के हित में काम करना भी देशभक्ति है।
+* माता पिता तो अपने बढती हुई बच्चियों पर लगाम तो लगाते है लेकिन ऐसे माता पिता अपने लडको से पूछते है की वे क्या करते है कहा जाते है क्यूकी एक बलात्कारी भी किसी माँ बाप का ही लड़का होता है इसलिए हर माँबाप का कर्तव्य है की अपनी बेटियों के साथ साथ बेटो पर ध्यान रखे की कही उनका बेटा गलत दिशा में तो नही जा रहा है।
+* जो हमारे दादा दादी ने किया मेरे माँ बाप ने भी वैसा किया क्या हमे भी वैसा करना चाहिए इस सोच पर देश नही चलती हम तो अपने बडो से मार्गदर्शन तो ले सकते है लेकिन सोच और परिस्थिति तो अपने समय के हिसाब से होती है और उसी के अनुसार आगे बढ़ा जा सकता है।
+* हमारे द्वारा की गयी कड़ी मेहनत कभी थकान नही लाती बल्कि उसे पूरा करने से संतोष का आनंद प्राप्त होता है।
+* हमारे मन की कोई समस्या नही होती समस्या तो केवल हमारे मानसिकता की होती है जिसकी उपज के लिए खुद हम जिम्मेदार होते है।
+* हर इन्सान के अंदर दो गुण होते है एक अच्छा और एक बुरा और इन्सान जिस पर अपना ध्यान लगाएगा वैसा ही बन जायेगा।
+* राजनीति का कोई अंत नही होता।
+* मेरे लिए धर्म का मतलब अपने काम के प्रति निष्ठावान और देश के प्रति समर्पण है।
+* एक गरीब परिवार का बेटा भी अपनी बातें कह सकता है और अपने हक के लिए लड़ सकता है। यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है।
+* करोड़ों लोगों का यह देश मेला है कौन कहता है कि मोदी अकेला है।
+* गुजरात का विकास माडल देश के विकास विकास का माडल हो सकता है।
+* इच्छा स्थिरता संकल्प संकल्प कड़ी परिश्रम सफलता।
+* जब कोई कहता है की प्रधानमन्त्री कमजोर हैं इसका मतलब यह नहीं है कि लोग उसके शारीरिक क्षमता के बारे में कह रहे हैं बल्कि प्रधामंत्री वो पद होता है जिसकी गरिमा कम हो गयी है और जिस कार्यालय में बैठता है वो कार्यालय सबसे सशक्त कार्यालय होता है लेकिन वो कार्यालय की शक्ति खत्म सी हो गयी है।
+* हम 'स्किल्ड इंडिया चाहते हैं लेकिन पिछली सरकार ने पिछले 10 साल से से भारत को 'स्कैम इण्डिया' बना दिया है।
+* राहुल का भाषण लोगो के लिए मनोरंजन का अच्छा साधन है।
+* किसी भी लोकतंत्र के लिए राजवंश घातक सिद्ध होता है, आप इतिहास उठाकर देख सकते हैं।
+* मोदी-सरकार विरोधी ताकतों का सिर्फ एक ही एजेंडा है मोदी को रोको ।
+* लगातार जो चलते हैं वही मीठा फल पाते हैं। सूरज की अटलता देखो लगातार गतिशील और निरंतर चलने वाला कभी नहीं रुकने वाला। इसलिए हमें भी हमेसा आगे ही बढ़ते रहना चाहिए।
+* एक गरीब कभी मुफ्त की नही खाना चाहता, उसे तो सिर्फ अपने काम के बदले पैसे लेना चाहता है। और इस देश के गरीब में वो ताकत है यदि उसे काम करने का मौका मिले तो बंजर मिट्टी से भी सोना उगा सकता है।
+* लोकतंत्र में कोई किसी का दुश्मन नही होता बल्कि यहाँ यही प्रतिस्पर्धा होती है की देश के विकास के लिए कौन अधिक से अधिक अच्छा कार्य कर सकता है।
+* सरकार किसी एक की विशेष पार्टी नही होती बल्कि ये लोकतंत्र में सभी लोगो की लिए होती है।
+* मै न तो मुफ्त में भोजन दूंगा और न मुफ्त में पानी, बल्कि मैं रोजगार के लिए इतने अवसर लाऊंगा और भारत देश के युवाओं को इतना सक्षम बनाऊंगा की देश का हर नौजवान अपने स्वाभिमान से अपना पेट भर सकेगा और दुसरों के प्यास बुझा सकेगा।
+* हमारी जिम्मेदारी देश को चलाने की ही नहीं बल्कि देश के सभी लोगों को साथ में लेकर चलने की है।
+* आतंकवाद का कोई मजहब नही होता। यह युद्ध से भी बदतर है। भारत ने अपने युद्धों की तुलना में आतंकवाद से ज्यादा लोगों को खोया है।
+* स्वच्छ भारत का सपना गांधीजी ने देखा था, आईये इसे हम साकार करें।
+* समाज की सेवा करना यानी एक तरह से हमे एक तरह से अपने ऋण चुकाने का मौका है।
+* चंद्रमा के जिस स्थान पर चंद्रयान-2 ने अपने पदचिन्ह छोड़े हैं, वह प्वाइंट अब ‘तिरंगा’ कहलाएगा। ये तिरंगा प्वाइंट भारत के हर प्रयास की प्रेरणा बनेगा, ये तिरंगा प्वाइंट हमें सीख देगा कि कोई भी विफलता आखिरी नहीं होत��। जिस स्थान पर चंद्रयान-3 का मून लैंडर उतरा है, उस स्थान को ‘शिवशक्ति’ के नाम से जाना जाएगा।
+* भारत के ज्ञान और विज्ञान का खजाना गुलामी के कालखंड के नीचे दबा हुआ है। ‘आजादी के अमृत काल’ में हमें इस संदूक को खोदना होगा।
+* चंद्रयान 3 में महिला वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभाई है। यह ‘शिवशक्ति’ प्वाइंट आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा कि हमें विज्ञान का उपयोग मानवता के कल्याण के लिए ही करना है। मानवता का कल्याण हमारी सर्वोच्च प्रतिबद्धता है।
+
+
+गणित में पढ़ाया जाने वाले प्रयोग एवं आकलन
+*शून्य सम संख्या है क्योंकि यदि आप इसे आधा करोगे तो दोनों भागों में कुछ भी प्राप्त नहीं होगा।
+प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के ज्ञाअ के अनुसार सम और विषम संख्याएँ
+
+
+जब तक कर्म क्षय नहीं होता, आत्मा को जन्म मरण के बन्धन में पड़ना ही होता है, यह शास्त्रों का निश्चय है। यद्यपि यह बात वह परब्रह्म ही जानता है कि किन कर्मों के परिणामस्वरूप कौन सा शरीर इस आत्मा को ग्रहण करना होगा किन्तु अपने लिए यह मेरा दृढ़ निश्चय है कि मैं उत्तम शरीर धारण कर नवीन शक्तियों सहित अति शीघ्र ही पुनः भारतवर्ष में ही किसी निकटवर्ती सम्बन्धी या इष्ट मित्र के गृह में जन्म ग्रहण करूँगा, क्योंकि मेरा जन्म-जन्मान्तर उद्देश्य रहेगा कि मनुष्य मात्र को सभी प्रकृति पदार्थों पर समानाधिकार प्राप्त हो। कोई किसी पर हकूमत न करे। सारे संसार में जनतन्त्र की स्थापना हो। वर्तमान समय में भारतवर्ष की अवस्था बड़ी शोचनीय है। अतएव लगातार कई जन्म इसी देश में ग्रहण करने होंगे और जब तक कि भारतवर्ष के नर-नारी पूर्णतया सर्वरूपेण स्वतन्त्र न हो जायें, परमात्मा से मेरी यह प्रार्थना होगी कि वह मुझे इसी देश में जन्म दे, ताकि उसकी पवित्र वाणी वेद वाणी का अनुपम घोष मनुष्य मात्र के कानों तक पहुँचाने में समर्थ हो सकूँ। सम्भव है कि मैं मार्ग-निर्धारण में भूल करूँ, पर इसमें मेरा कोई विशेष दोष नहीं, क्योंकि मैं भी तो अल्पज्ञ जीव मात्र ही हूँ। भूल न करना केवल सर्वज्ञ से ही सम्भव है। हमें परिस्थितियों के अनुसार ही सब कार्य करने पड़े और करने होंगे। परमात्मा अगले जन्म से सुबुद्धि प्रदान करे ताकि मैं जिस मार्ग का अनुसरण करूँ वह त्रुटि रहित ही हो। ref>मदनलाल वर्मा क्रान्त 2014 सरफ़रोशी की तमन्ना भाग-3) रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा निज जीवन की एक छटा प्रवीण प्रकाशन अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-926097-4-4, पृष्ठ 85]
+भारतवासियों में शिक्षा का अभाव है। वे साधारण से साधारण सामाजिक उन्नति करने में भी असमर्थ हैं। फिर राजनैतिक क्रान्ति की बात कौन कहे? राजनैतिक क्रान्ति के लिए सर्वप्रथम क्रान्तिकारियों का संगठन ऐसा होना चाहिये कि अनेक विघ्न तथा बाधाओं के उपस्थित होने पर भी संगठन में किसी प्रकार त्रुटि न आये। सब कार्य यथावत् चलते रहें। कार्यकर्त्ता इतने योग्य तथा पर्याप्त संख्या में होने चाहिये कि एक की अनुपस्थिति में दूसरा स्थानपूर्ति के लिये सदा उद्यत रहे। भारतवर्ष में कई बार कितने ही षड्यन्त्रों का भण्डा फूट गया और सब किया कराया काम चौपट हो गया। जब क्रान्तिकारी दलों की यह अवस्था है तो फिर क्रान्ति के लिये उद्योग कौन करे! देशवासी इतने शिक्षित हों कि वे वर्तमान सरकार की नीति को समझकर अपने हानि-लाभ को जानने में समर्थ हो सकें। वे यह भी पूर्णतया समझते हों कि वर्तमान सरकार को हटाना आवश्यक है या नहीं। साथ ही साथ उनमें इतनी बुद्धि भी होनी चाहिये कि किस रीति से सरकार को हटाया जा सकता है ref>मदनलाल वर्मा क्रान्त 2014 सरफ़रोशी की तमन्ना भाग-3) रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा निज जीवन की एक छटा प्रवीण प्रकाशन अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-926097-4-4, पृष्ठ 75-76
+क्रान्ति का नाम ही बड़ा भयंकर है। प्रत्येक प्रकार की क्रान्ति विपक्षियों को भयभीत कर देती है। जहाँ पर रात्रि होती है तो दिन का आगमन जान निशिचरों को दुःख होता है। ठंडे जलवायु में रहने वाले पशु-पक्षी गरमी के आने पर उस देश को भी त्याग देते हैं। फिर राजनैतिक क्रान्ति तो बड़ी भयावनी होती है। मनुष्य अभ्यासों का समूह है। अभ्यासों के अनुसार ही उसकी प्रकृति भी बन जाती है। उसके विपरीत जिस समय कोई बाधा उपस्थित होती है, तो उनको भय प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक सरकार के सहायक अमीर और जमींदार होते हैं। ये लोग कभी नहीं चाहते कि उनके ऐशो आराम में किसी प्रकार की बाधा पड़े। इसलिये वे हमेशा क्रान्तिकारी आन्दोलन को नष्ट करने का प्रयत्न करते हैं। यदि किसी प्रकार दूसरे देशों की सहायता लेकर, समय पाकर क्रान्तिकारी दल क्रान्ति के उद्योगों में सफल हो जाये, देश में क्रान्ति हो जाए तो भी योग्य नेता न होने से अराजकता फै���कर व्यर्थ की नरहत्या होती है, और उस प्रयत्न में अनेकों सुयोग्य वीरों तथा विद्वानों का नाश हो जाता है। इसका ज्वलन्त उदाहरण सन् 1857 ई० का गदर है। यदि फ्रांस तथा अमरीका की भाँति क्रान्ति द्वारा राजतन्त्र को पलट कर प्रजातंत्र स्थापित भी कर लिया जाये तो बड़े-बड़े धनी पुरुष अपने धन, बल से सब प्रकार के अधिकारियों को दबा बैठते हैं। कार्यकारिणी समितियों में बड़े-बड़े अधिकार धनियों को प्राप्त हो जाते हैं। देश के शासन में धनियों का मत ही उच्च आदर पाता है। धन बल से देश के समाचार पत्रों, कल कारखानों तथा खानों पर उनका ही अधिकार हो जाता है। मजबूरन जनता की अधिक संख्या धनिकों का समर्थन करने को बाध्य हो जाती है। जो दिमाग वाले होते हैं, वे भी समय पाकर बुद्दिबल से जनता की खरी कमाई से प्राप्त किए अधिकारों को हड़प कर बैठते हैं। स्वार्थ के वशीभूत होकर वे श्रमजीवियों तथा कृषकों को उन्नति का अवसर नहीं देते। अन्त में ये लोग भी धनिकों के पक्षपाती होकर राजतन्त्र के स्थान में धनिकतन्त्र की ही स्थापना करते हैं। ref>मदनलाल वर्मा क्रान्त 2014 सरफ़रोशी की तमन्ना भाग-3) रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा निज जीवन की एक छटा प्रवीण प्रकाशन अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-926097-4-4, पृष्ठ 76
+* संसार में जितने भी बड़े आदमी हुए हैं, उनमें से अधिकतर ब्रह्मचर्यं के प्रताप से ही बने हैं और सैकड़ों-हजारों वर्षों बाद भी उनका यशोगान करके मनुष्य अपने आपको कृतार्थ करते हैं। ब्रह्मचर्यं की महिमा यदि जाननी हो तो परशुराम, राम, लक्ष्मण, कृष्ण, भीष्म, बंदा वैरागी, राम कृष्ण, महर्षि दयानंद, विवेकानंद तथा राममूर्ति की जीवनियों का अध्ययन अवश्य करें।
+* मेरा यह दृढ निश्चय है कि मैं उत्तम शरीर धारण कर नवीन शक्तियों सहित अति शीघ्र ही पुनः भारत में ही किसी निकटवर्ती संबंधी या इष्ट मित्र के गृह में जन्म ग्रहण करूँगा क्योंकि मेरा जन्म-जन्मान्तरों में भी यही उद्देश्य रहेगा कि मनुष्य मात्र को सभी प्राकृतिक साधनों पर समानाधिकार प्राप्त हो। कोई किसी पर हुकूमत न करे।
+* किसी को घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाये, किन्तु सबके साथ करुणा सहित प्रेमभाव का बर्ताव किया जाए।
+* यदि किसी के मन में जोश, उमंग या उत्तेजना पैदा हो तो शीघ्र गावों में जाकर कृषक की दशा सुधारें।
+* पंथ, सम्प्रदाय, मजहब अनेक हो सकते हैं, किन्���ु धर्म तो एक ही होता है। यदि पंथ-सम्प्रदाय उस एक ईश्वर की उपासना के लिए प्रेरणा देते हैं तो ठीक अन्यथा शक्ति का बाना पहनकर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना न धर्म है और न ही ईश्वर भक्ति।
+* मुझे विश्वास है कि मेरी आत्मा मातृभूमि तथा उसकी दीन संतति के लिए नए उत्साह और ओज के साथ काम करने के लिए शीघ्र ही फिर लौट आयेगी।
+बिस्मिल' का नहीं कौम की पाकीज़ा जमीं के
+तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को ref>शोध एवं सम्पादन: मदनलाल वर्मा 'क्रान्त क्रान्ति गीतांजलि संग्रहकर्ता एवं लेखक: श्रीयुत् पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल काकोरी के शहीद प्रवीण प्रकाशन 23, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-7783-128-3, संस्करण: 2006, पृष्ठ 19
+दूर तक यादे-वतन आई थी समझाने को ref>शोध एवं सम्पादन: मदनलाल वर्मा 'क्रान्त क्रान्ति गीतांजलि संग्रहकर्ता एवं लेखक: श्रीयुत् पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल काकोरी के शहीद प्रवीण प्रकाशन 23, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-7783-128-3, संस्करण: 2006, पृष्ठ 19
+पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं
+जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को ref>शोध एवं सम्पादन: मदनलाल वर्मा 'क्रान्त क्रान्ति गीतांजलि संग्रहकर्ता एवं लेखक: श्रीयुत् पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल काकोरी के शहीद प्रवीण प्रकाशन 23, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-7783-128-3, संस्करण: 2006, पृष्ठ 18
+यदि देश-सेवा हित पड़े मरना सहस्रों बार भी
+सौ तरीके काम करने के हैं कोई काम कर।''
+
+
+ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं,
+कि जीवन में मंगल है या नहीं।
+पत्थरों को मनाने में ,
+
+
+नालापत बालमणि अम्मा भारतiu से मलयालम भाषा की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं।कवयिuहिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों[क] में से एक महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। उन्होंने 500 से अधिक कविताएँ लिखीं। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी की चर्चित व प्रतिष्ठित मलयालम कवयित्रियों में की जाती है। अम्मा का काव्यसाम्राज्य मातृत्व का दिव्य प्रपंच है। उनकी रचनाएँ एक ऐसे अनुभूति मंडल का साक्षात्कार कराती हैं जो मलयालम् में अदृष्टपूर्व है। आधुनिक मलयालम की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें मलयालम साहित्य की दादी कहा जाता है। उनकी अनेक पंक्तियाँ सुभाषित बन गई हैं। जैसे-
+
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+संस्कृत सुभाषितों के कु�� संग्रह-स्थल]]
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+यह श्रेणी विकिसूक्ति के रखरखाव हेतु है।
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+विकिसूक्ति पर यह श्रेणी लेखों और विषयों से संबंधित सबसे ऊपरी श्रेणी है।
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+कैलाश सत्यार्थी (जन्म: 11 जनवरी 1954) एक भारतीय बाल अधिकार कार्यकर्ता और बाल-श्रम के विरुद्ध पक्षधर हैं। उन्होंने १९८० में बचपन बचाओ आन्दोलन की स्थापना की जिसके बाद से वे विश्व भर के १४४ देशों के ८३,००० से अधिक बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य कर चुके हैं। सत्यार्थी के कार्यों के कारण ही वर्ष १९९९ में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ द्वारा बाल श्रम की निकृष्टतम श्रेणियों पर संधि सं॰ १८२ को अंगीकृत किया गया, जो अब दुनियाभर की सरकारों के लिए इस क्षेत्र में एक प्रमुख मार्गनिर्देशक है।
+उनके कार्यों को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों व पुरुस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है। इन पुरुस्कारों में वर्ष २०१४ का नोबेल शान्ति पुरस्कार भी शामिल है जो उन्हें पाकिस्तान की नारी शिक्षा कार्यकर्ता मलाला युसुफ़ज़ई के साथ सम्मिलित रूप से दिया प्रदान किया गया है।
+भारत के मध्य प्रदेश के विदिशा में जन्मे कैलाश सत्यार्थी 'बचपन बचाओ आंदोलन' चलाते हैं। वे पेशे से वैद्युत इंजीनियर हैं किन्तु उन्होने 26 वर्ष की उम्र में ही करियर छोड़कर बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था। इस समय वे 'ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर बाल श्रम के ख़िलाफ़ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं।
+वर्तमान समय (अक्टूबर २०१४) में सत्यार्थी नई दिल्ली में रहते हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी सुमेधा, पुत्र, पुत्रवधू तथा पुत्री हैं। सामाजिक कार्यों के अतिरिक्त वे एक अच्छे पाकशास्त्री (कुक) भी हैं।
+* 2014: नोबेल शांति पुरस्कार
+* 2008: अल्फांसो कोमिन अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार (स्पेन)
+* 2007: इटली के सिनेट का स्वर्ण पदक
+* 2007: अमेरिका के स्टेट विभाग द्वारा 'आधुनिक दासता को समाप्त करने के लिये कार्यरत नायक' का सम्मान
+* 2002: वालेनबर्ग मेडल (मिशिगन विश्वविद्यालय द्वारा प्रदत्त)
+* 1998: गोल्डेन फ्लैग पुरस्कार (नीदरलैण्ड्स)
+* 1995: ट्रम्पेटर पुरस्कार (अमेरिका)
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+* जरा सुंग के बताओ मंत्रीजी नाश्ते मे का खाये है।
+* न कोई किसी का रकीब होता है, ना कोई किसी का हबीब होता है। खुदा कि रेहमत से बन जाते ही रिश्ते, जहां जिसका नसीब होता है।
+* यहां कबुतर भी एक पंख से उडता ���ै… और दुसरे से अपना इज्जत बचाता है।
+* बडे लोग अपना नाम भूल जाते थे। लेकिन अपनी झमीन अपना सामान नही।
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+मेरा नाम अभिनव गारुळे है। मुझे हिंदी फिल्म के संवाद लिखना अच्छा लागता है।
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+लोकोक्तियाँ प्रायः प्रचलित ज्ञान की संक्षिप्त अभिव्यक्ति को कहते हैं। इस लोकप्रिय परिभाषा में सुधार कर एक अधिक सटीक परिभाषा स्थापित करने के प्रयासों में सफलता नहीं मिली है। निर्दिष्ट ज्ञान दुनिया के बारे में एक सामान्य अवलोकन या सलाह के रूप में एवं कभी-कभी किसी परिस्थिति कि तरफ दृष्टिकोण के रूप में होता है।
+| title हिन्दी मुहावरे (अध्ययन, संकलन एवं साहित्यिक प्रयोग)
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+अर्थात् शरीर से सभी योगी बन जाते हैं, परंतु मन से बिरला ही योगी बन पाता है। जो मन से योगी बनता है, वह सहज ही में सब कुछ पा लेता है।
+• अर्थात् गौओं, मनुष्यों और धन से संपन्न होकर भी जो कुल सदाचार से हीन हैं, वे अच्छे कुलों की गणना में नहीं आ सकते।
+-अर्थात जिसके मन में दुविधाएं बसी हों और हृदय में दया-भाव नहीं है, ऐसे मनुष्य का साथ फौरन ही छोड़ देना चाहिए।
+- अर्थात् प्रेम रूपी धागे को कभी तोड़ने की कोशिश नहीं चाहिए, क्योंकि वह फिर से नहीं जुड़ता। जुड़ भी जाये तो रिश्ते में गांठ बना रहता है।
+- अर्थात् देवतागण चरवाहों की तरह डंडा लेकर पहरा नहीं देते। वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं, उसे उत्तम बुद्धि से युक्त कर देते हैं।
+सारे वेद, स्मृतियां और ज्ञानी लोग यही बात बतलाते हैं कि राजा, रोग, और पाप, ये तीनों दुर्बल को दबाते-सताते हैं।
+सांसारिक प्रेम-व्यवहार तो धन के लिए है, परमार्थ के लिए नहीं। इस भौतिक युग में तो कोई विरला ही परमार्थी होगा।
+कबीर कहते हैं, सांसारिक लोग मन के वंशीभूत हैं। गुरु का दास विरला ही होता है, जो गुरु के ज्ञान-वचनों का पालन करता है।
+जब तक इच्छाओं से रहित भक्ति न हो, तब तक व्यक्ति के लिए परमात्मा को पाना असंभव है।
+धीर मनुष्य को चाहिए कि पहले कर्मों के प्रयोजन, परिणाम तथा अपनी उन्नति का विचार कर ले, फिर काम को शुरू करे।
+जिसकी ज्ञानरूपी आंखें फूटी हुई हैं, वह संत-असंत को कैसे पहचान सकता। वह तो दस-बीस चेलों वाले व्यक्ति को ही महंत समझ बैठता है।
+जिस परमेश्वर से सभी प्राणियों की उत्पत्ति हुई है, उसकी अपने कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परमसिध्दि को प्राप्त हो जाता है।
+ईश्वर सभी जगह है, सज��व और निर्जीव दोनों में है। लेकिन अहं वाला व्यक्ति उसे न तो देख सकता है न तो मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
+भगवान के नाम रूपी पतवार से ही तू इस भवसागर को तर सकता है।
+मनुष्य भय के कारण ईश्वर की पूजा करता है। भय को ही वह पारसमणि मानता है। यही कारण है कि वह निर्भय नहीं हो पाता।
+: जात-जात वित होय है ज्यों जिय में संतोष।
+ज्यों-ज्यों धन हाथ से जाता है, मनुष्य मन मार कर संतोष करता है। धन के बढ़ने पर यदि मनुष्य ऐसा करे तो उसे क्षण में मोक्ष मिल जाये।
+सब जगह परमात्मा को देखनेवाला एक विशेष आनंद में स्थित रहता है। वह आनंद हिंसा रहित है, क्योंकि वही आनंद अपना स्वरूप है।
+ओछा व्यक्ति कभी बड़ा नहीं हो सकता। जैसे आंखें फाड़ कर देखने से आंखें जरा बड़ी नही हो सकती।
+जिस व्यक्ति में आगे बढ़ने की शक्ति, प्रभाव, तेज, पराक्रम, उद्योग, और निश्चय है, उसे अपनी जीविका के नाश का भय नहीं रहता है।
+
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+हिंदुस्तान मी जाब तक सिनेमा तब तक लोग चुतीये बनते रहेंगे।
+* बडे लोग अपना नाम भूल जाते है। लेकिन अपनी जमीन नही… अपना सामान नही…
+* बच्चे को डैडी काही बोलना?
+* मोहसिना और फैझल खान
+और पराए अपने होते है जब पैसे पास होते है…
+
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+दलाई लामा का वास्तविक नाम 'तेनजिन ग्यासो' है। उन्हें शान्ति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था।
+* हमारे जीवन का प्रथम लक्ष्य है दूसरों की सहायता करना। और यदि आप दूसरों की सहायता नहींं कर सकते तो कम से कम उन्हें आहत तो न करें।
+* हम धर्म और चिंतन के बिना रह सकते हैं पर मानवीय प्रेम के बिना नहींं।
+* सहिष्णुता के अभ्यास में आपका शत्रु ही आपका सर्वश्रेष्ठ शिक्षक होता है।
+* जब आप कुछ गंवा बैठते हैं, तो उससे प्राप्त शिक्षा को कभी न गंवाएं।
+* प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहींं है।ये आप ही के कर्मों से आती है।
+* यदि आप दूसरों को प्रसन्न देखना चाहते हैं तो करुणा का भाव रखें. यदि आप स्वयम प्रसन्न रहना चाहते हैं तो भी करुणा का भाव रखें।
+* सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएं मूल रूप से एक ही संदेश देती हैं – प्रेम, दया,और क्षमा, महत्वपूर्ण बात यह है कि ये हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होनी चाहियें।
+* प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहींं है। ये आप ही के कर्मों से आती है।
+* प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं, विलासिता नहींं उनके बिना मानवता जीवित नहींं रह सकती।
+* यदि आप एक विशेष विश्वास या धर्�� में आस्था रखते हैं तो ये अच्छी बात है| लेकिन आप इसके बिना भी जीवित रह सकते हैं।
+* यह ज़रूरी है कि हम अपना दृष्टिकोण और ह्रदय जितना सभव हो अच्छा करें. इसी से हमारे और अन्य लोगों के जीवन में, अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में ही खुशियाँ आयंगी।
+* सहिष्णुता के अभ्यास में, एक दुश्मन ही सबसे अच्छा शिक्षक है।
+* जब कभी संभव हो दयालु बने, और ये हमेशा संभव है।
+* पुराने दोस्त छूटते हैं और नए दोस्त बनते हैं. यह दिनों की तरह ही है। एक पुराना दिन बीतता है तो एक नया दिन आता है। लेकिन जरुरी है उसे सार्थक बनाना चाहे वह एक सार्थक मित्र हो या सार्थक दिन।
+* प्रसन्न रहना हमारे जीवन का उद्देश्य है।
+* समय बिना रुके चला जाता है। जब हम गलतियां करते हैं तो हम समय को नहींं बदल सकते है और बदलकर दोबारा कोशिश नहींं कर सकते, हम लोग केवल वर्तमान समय का अच्छे से अच्छा उपयोग ही कर सकते हैं।
+* अगर आप दूसरों की मदद करने में सक्षम है तो जरूर करिए लेकिन यदि आप मदद नहीं कर सकते तो कम से कम उन्हें नुकसान मत पहुंचाइए।
+* प्रेम और सहानुभूति आवश्यकताएँ है, विलासिता नहीं, इनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती।
+* सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएं मूल रूप से एक ही संदेश देती है प्यार, कृपा और क्षमा और महत्वपूर्ण बात यह की ये हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होनी चाहिए।
+* हम धर्म और चिंतन के बिना रह सकते है पर मानवीय प्रेम के बिना नहीं।
+* एक छोटे से झगड़े से एक महान रिश्ते को घायल मत होने देना।
+* जीवन का लक्ष्य किसी अन्य व्यक्ति से बेहतर होना नहीं है बल्कि खुद से बेहतर होना है।
+* यदि आप एक धर्म विशेष मैं आस्था रखते है तो ये अच्छी बात है, लेकिन आप इसके बिना भी जीवित रह सकते है।
+* हमारे जीवन का उद्देश्य प्रसन्न रहना है।
+* सभी दुःख अज्ञानता के कारण होते है लोग अपनी खुशी और संतुष्टि के स्वार्थ में दूसरों को पीड़ा पहुंचाते है।
+* याद रखना महान प्रेम और महान उपलब्धियों में महान जोखिम शामिल होते है।
+* ध्यान रखे की सबसे अच्छा रिश्ता वह है जिसमें एक दूसरे के लिए आपका प्यार एक दूसरे की जरूरत से बढ़कर हो।
+* आप अपनी योग्यता को जानकर और उस पर विश्वास करके एक सुंदर संसार का निर्माण कर सकते है।
+* महानता सीखने के लिए सबसे पहले दूसरो का आदर करना बहुत जरूरी है।
+* बुरा समय एक ऐसी तिजोरी होती है जहां से कामयाबी के हथियार मिलते है।
+* हृदय परिवर्तन से ही दुन���या में बदलाव लाया जा सकता है।
+* सच्चा हीरो वह होता है जो अपने क्रोध को काबू में कर लेता है।
+* जब कुछ गंवा बैठते हैं तो उससे प्राप्त सीख को न गवाएं।
+* मंदिरों की आवश्यकता नहीं है ना ही जटिल तत्वज्ञान की, मेरा मस्तिष्क और मेरा हृदय मेरे मंदिर है, मेरा तत्वज्ञान दयालुता है।
+* लक्ष्य दूसरों से बेहतर होना नहीं है बल्कि अपने अतीत से बेहतर होना है।
+* दूसरों के व्यवहार से अपने मन की शांति नष्ट न करें।
+* सहिष्णुता के अभ्यास में आपका शत्रु ही आपका सबसे अच्छा शिक्षक होता है।
+* यदि आप दूसरों को खुशी देना चाहते हो तो सहन करना सीखे, यदि आप खुश रहना चाहते हो तो सहानुभूति का अभ्यास करें।
+* अपनी क्षमताओं को जानकर और उनमें यकीन करके ही हम एक बेहतर विश्व में का निर्माण कर सकते है।
+* जब कभी भी संभव हो नम्र बनिए और ये हमेशा संभव है।
+* याद रखें कि सबसे अच्छा रिश्ता वह है जिसमें एक दूसरे के लिए प्यार एक दूसरे की जरूरत से ज्यादा है।
+* खुशियां पाने का सबसे अच्छा तरीका पैसा और ताकत नहीं है बल्कि प्रेम की भावना होना है।
+* प्रसन्नता पहले से निर्मित चीज नहीं है ये आप ही के कर्मों से आती है।
+* अपने ज्ञान को बांटे यह अमरता प्राप्त करने का एक तरीका है।
+* आशावादी बनिए, इससेे बहेतर महसूस होता है।
+* शांति इंसान के कर्मों पर निर्भर है, इंसान के कर्म विचार और प्रेरणा से होते हैं।
+* दूसरों के व्यवहार को अपने मन की शांति को नष्ट करने का अधिकार ना दे।
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+भीमराव रामजी आम्बेडकर 14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसम्बर, 1956 भारत के एक विद्वान, न्यायविद, अर्थशास्त्री, राजनेता और लेखक थे। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मन्त्री थे। भारतीय संविधान के निर्माण में उनकी महती भूमिका है।
+* जीवन लम्बा होने की बजाय महान होना चाहिए।
+* हर व्यक्ति जो मिल का सिद्धान्त जानता हो कि एक देश दूसरे देश पर राज करने में फिट नहीं है, उसे ये भी स्वीकार करना चाहिये कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर राज करने में फिट नहीं है।
+* उदासीनता लोगों को प्रभावित करने वाली सबसे खराब किस्म की बीमारी है।
+* यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा।
+* समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धान्त रूप में स्वीकार करना होगा।
+* एक सुरक्षित सेना एक सुरक्षित सीमा से बेहतर है।
+* लोग और उनके धर्म, सामाजिक नैतिकता के आ���ार पर सामाजिक मानकों द्वारा परखे जाने चाहिए। अगर धर्म को लोगों के भले के लिये आवश्यक वस्तु मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा।
+* बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
+* यह जरूरी है कि हम अपना दृष्टिकोण और हृदय जितना सभव हो अच्छा करें। इसी से हमारे और अन्य लोगों के जीवन में, अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में ही खुशियाँ आएगीं।
+* मैं एक समुदाय की प्रगति का माप महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति के माप से करता हूँ।
+* एक महान व्यक्ति एक प्रख्यात व्यक्ति से एक ही बिंदु पर भिन्न हैं कि, महान व्यक्ति समाज का सेवक बनने के लिए तत्पर रहता हैं।
+* मनुष्य नश्वर हैं। ऐसे विचार भी होते हैं। एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत है जैसे एक पौधे में पानी की जरूरत की जरूरत होती है। अन्यथा दोनों मुरझा जायेंगे और मर जायेंगे।
+* इतिहास बताता है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है।
+* निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो।
+* एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ असंतोष का होना काफी नहीं है। जिसकी आवश्यकता है वो है राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के महत्व, जरुरत व न्याय में पूर्णतया गहराई से दोष।
+* जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिये बेमानी है।
+* हम आदि से अन्त तक भारतीय हैं।
+* सागर में मिलकर अपनी पहचान खो देने वाली पानी की एक बूँद के विपरीत, इंसान जिस समाज में रहता है वहां अपनी पहचान नहीं खोता। मानव का जीवन स्वतंत्र है। वो सिर्फ समाज के विकास के लिए नहीं पैदा हुआ है, बल्कि स्वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है।
+* पति-पत्नी के बीच का सम्बन्ध घनिष्ट मित्रों के सम्बन्ध के समान होना चाहिए।
+* हिंदू धर्म में, विवेक, कारण, और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
+* मनुष्य एवम उसके धर्म को समाज के द्वारा नैतिकता के आधार पर चयन करना चाहिये। अगर धर्म को ही मनुष्य के लिए सब कुछ मान लिया जायेगा तो किन्ही और मानको का कोई मूल्य नहीं रह जायेगा।
+* एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ असंतोष का होना ही काफी नहीं है, बल्कि इसके लिए न्याय, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था का होना भी बहुत आवश्यक ��ै।
+* इतिहास गवाह है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है। निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो।
+* किसी भी कौम का विकास उस कौम की महिलाओं के विकास से मापा जाता है।
+* एक महान व्यक्ति एक प्रख्यात व्यक्ति से एक ही बिंदु पर भिन्न हैं कि महान व्यक्ति समाज का सेवक बनने के लिए तत्पर रहता हैं।
+* जो व्यक्ति अपनी मौत को हमेशा याद रखता है वह सदा अच्छे कार्य में लगा रहता है।
+* जिस तरह मनुष्य नश्वर है ठीक उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। जिस तरह पौधे को पानी की जरूरत पड़ती है उसी तरह एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरुरत होती है वरना दोनों मुरझा कर मर जाते है।
+* जिस तरह हर एक व्यक्ति यह सिधांत दोहराता हैं कि एक देश दुसरे देश पर शासन नहीं कर सकता उसी प्रकार उसे यह भी मानना होगा कि एक वर्ग दुसरे पर शासन नहीं कर सकता।
+* आज भारतीय दो अलग-अलग विचारधाराओं द्वारा शासित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता, समानता, और भाई-चारे को स्थापित करते हैं और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।
+* उदासीनता लोगों को प्रभावित करने वाली सबसे खराब किस्म की बीमारी है।
+* एक महान व्यक्ति एक प्रतिष्ठित व्यक्ति से अलग है क्योंकि वह समाज का सेवक बनने के लिए तैयार रहता है।
+* क़ानून और व्यवस्था राजनीति रूपी शरीर की दवा है और जब राजनीति रूपी शरीर बीमार पड़ जाएँ तो दवा अवश्य दी जानी चाहिए।
+* जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हांसिल कर लेते, क़ानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके किसी काम की नहीं।
+* यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा।
+* यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं, तो सभी धर्मों के धर्मग्रंथों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
+* राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है वो सरकार को खारिज कर देने वाले राजनीतिज्ञ से ज्यादा साहसी हैं।
+* लोग और उनके धर्म, सामाजिक नैतिकता के आधार पर, सामाजिक मानकों द्वारा परखे जाने चाहिए। अगर धर्म को लोगों के भले के लिये आवश्यक वस्तु मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा।
+* समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।
+* हमारे पास यह स्वतंत्रता किस लिए है? हमारे पास ये स्वत्नत्रता इसलिए है ताकि हम अपने सामाजिक व्यवस्था, जो असमानता, भेद-भाव और अन्य चीजों से भरी है, जो हमारे मौलिक अधिकारों से टकराव में है, को सुधार सकें।
+* मनुवाद को जड़ से समाप्त करना मेरे जीवन का प्रथम लक्ष्य है।
+* राष्ट्रवाद तभी औचित्य ग्रहण कर सकता है, जब लोगों के बीच जाति, नरल या रंग का अन्तर भुलाकर उसमें सामाजिक भ्रातृत्व को सर्वोच्च स्थान दिया जाये।
+* अच्छा दिखने के लिए मत जिओ बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ।
+* जो झुक सकता है वह सारी दुनिया को झुका भी सकता है!
+* लोकतंत्र सरकार का महज एक रूप नहीं है।
+* एक इतिहासकार, सटीक, ईमानदार और निष्पक्ष होना चाहिए।
+* संविधान, यह एक मात्र वकीलों का दस्तावेज नहीं। यह जीवन का एक माध्यम है।
+* किसी का भी स्वाद बदला जा सकता है लेकिन जहर को अमृत में परिवर्तित नही किया जा सकता।
+* न्याय हमेशा समानता के विचार को पैदा करता है।
+* मन की स्वतंत्रता ही वास्तविक स्वतंत्रता है।
+* ज्ञान व्यक्ति के जीवन का आधार हैं।
+* शिक्षा जितनी पुरूषों के लिए आवशयक है उतनी ही महिलाओं के लिए।
+* स्वतंत्रता का रहस्य, साहस है और साहस एक पार्टी में व्यक्तियों के संयोजन से पैदा होता है।
+* इस दुनिया में महान प्रयासों से प्राप्त किया गया को छोडकर और कुछ भी बहुमूल्य नहीं है।
+इस्लाम और मुसलमान पर विचार
+* मुस्लिम आक्रान्ता निःसंदेह हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा के गीत गाते हुए आए थे। परन्तु वे घृणा का गीत गाकर और मार्ग में कुछ मंदिरों को आग लगाकर ही वापस नहीं लौटे। ऐसा होता तो वरदान माना जाता। वे इतने ही नकारात्मक परिणाम से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने तो भारत में इस्लाम का पौधा रोपा। इस पौधे का विकास बखूबी हुआ और यह एक बड़ा ओक का पेड़ बन गया।
+* मुसलमान कभी भी मातृभूमि के भक्त नहीं हो सकते। हिन्दुओं से कभी उनके दिल मिल नहीं सकते। देश में रह कर शत्रुता पालते रहने की अपेक्षा उन्हें अलग राष्ट्र दे देना चाहिए। भारतीय मुसलमानों का यह कहना है कि वे पहले मुसलमान हैं और फिर भारतीय हैं। उनकी निष्ठाएं देश-बाह्य होती हैं। देश से बाहर के मुस्लिम राष्ट्रों की सहायता लेकर भारत में इस्लाम का वर्चस्व स्थापित करने की उनकी तैयारी है। जिस देश में मुस्लिम राज्य नहीं हो, वहाँ यदि इस्लामी कानून और उस देश के कानून में टकराव पैदा हुआ तो इस्लामी कानून ही श्रेष्ठ समझा जाना चाहिए। देश का कानून झटक कर इस्लामी कानून मानना मुसलमान समर्थनीय समझते हैं। ‘पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’
+* ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आदि प्रकार के भेद सिर्फ हिन्दू धर्म में ही हैं, ऐसी बात नहीं। इस तरह के भेद ईसाई और इस्लाम में भी दिखाई देते हैं।
+* यदि मैं इस्लाम स्वीकार करूँगा तो इस देश में मुसलमानों की संख्या दूनी हो जाएगी और मुस्लिम प्रभुत्व का खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
+* जो कोई भी व्यक्ति एशिया के नक्शे को देखेगा उसे यह ध्यान में आ जाएगा कि किस तरह यह देश दो पाटों के बीच फंस गया है। एक ओर चीन व जापान जैसे भिन्न संस्कृतियों के राष्ट्रों का फंदा है तो दूसरी ओर तुर्की, पर्शिया और अफगानिस्तान जैसे तीन मुस्लिम राष्ट्रों का फंदा पड़ा हुआ है। इन दोनों के बीच फंसे हुए इस देश को बड़ी सतर्कता से रहना चाहिए, ऐसा हमें लगता है इन परिस्थितियों में चीन एवं जापान में से किसी ने यदि हमला किया तो उनके हमले का सब लोग एकजुट होकर सामना करेंगे। मगर स्वाधीन हो चुके हिन्दुस्थान पर यदि तुर्की, पर्शिया या अफगानिस्तान जैसे तीन मुस्लिम राष्ट्रों में से किसी एक ने भी हमला किया तो क्या कोई इस बात की आश्वस्ति दे सकता है कि इस हमले का सब लोग एकजुटता से सामना करेंगे? हम तो यह आश्वस्ति नहीं दे सकते। 18 जनवरी, 1929 को ‘नेहरू कमेटी की योजना और हिन्दुस्थान का भविष्य’ शीर्षक से 'बहिष्कृत भारत' में एक अग्रलेख
+* इस्लाम एक क्लोज कॉर्पोरेशन है और इसकी विशेषता ही यह है कि मुस्लिम और गैर मुस्लिम के बीच वास्तविक भेद करता है। इस्लाम का बंधुत्व मानवता का सार्वभौम बंधुत्व नहीं है। यह बंधुत्व केवल मुसलमान का मुसलमान के प्रति है। दूसरे शब्दों में इस्लाम कभी एक सच्चे मुसलमान को ऐसी अनुमति नहीं देगा कि आप भारत को अपनी मातृभूमि मानो और किसी हिन्दू को अपना आत्मीय बंधु।
+* मुसलमानों में एक और उन्माद का दुर्गुण है। जो कैनन लॉ या जिहाद के नाम से प्रचलित है। एक मुसलमान शासक के लिए जरूरी है कि जब तक पूरी दुनिया में इस्लाम की सत्ता न फैल जाए तब तक चैन से न बैठे। इस तरह पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंटी है दार-उल-इस्लाम (इस्लाम के अधीन) और दार-उल-हर्ब (युद्ध के मुहाने पर)। चाहे तो सारे देश एक श्रेणी के अधीन आयें अथवा अन्य श्रेणी में। तकनीकी तौर पर यह मुस्लिम शासकों का कर्तव्य है कि कौन ऐसा करने में सक्षम है। जो दार-उल-हर्ब को दर उल इस्लाम में परिवर्तित कर दे। भारत में मुसलमान हिजरत में रुचि लेते हैं तो वे जिहाद का हिस्सा बनने से भी हिचकेंगे नहीं।
+* प्रत्येक हिन्दू के मन में यह प्रश्न उठ रहा था कि पाकिस्तान बनने के बाद हिन्दुस्तान से साम्प्रदायिकता का मामला हटेगा या नहीं, यह एक जायज प्रश्न था और इस पर विचार किया जाना जरूरी था। यह भी स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के बन जाने से हिन्दुस्तान साम्प्रदायिक प्रश्न से मुक्त नहीं हो पाया। पाकिस्तान की सीमाओं की पुनर्रचना कर भले ही इसे सजातीय राज्य बना दिया गया हो लेकिन भारत को तो एक मिश्रित राज्य ही बना रहेगा। हिन्दुस्तान में मुसलमान सभी जगह बिखरे हुए हैं, इसलिए वे ज्यादातर कस्बों में एकत्रित होते हैं। इसलिए इनकी सीमाओं की पुनर्रचना और सजातीयता के आधार पर निर्धारण सरल नहीं है। हिन्दुस्तान को सजातीय बनाने का एक ही रास्ता है कि जनसंख्या की अदला-बदली सुनिश्चित हो, जब तक यह नहीं किया जाता तब तक यह स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के निर्माण के बाद भी, बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक की समस्या और हिन्दुस्तान की राजनीति में असंगति पहले की तरह बनी रहेगी।
+* मुसलमानों में इन बुराइयों का होना दुःखद है। किन्तु उससे भी अधिक दुःखद तथ्य यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज सुधार का ऐसा कोई संगठित आंदोलन नहीं उभरा जो इन बुराइयों का सफलतापूर्वक उन्मूलन कर सके। हिंदुओं में भी अनेक सामाजिक बुराइयां हैं, परन्तु संतोष की बात यह है कि उनमें से अनेक इनकी विद्यमानता के प्रति सजग हैं और उनमें से कुछ उन बुराइयों के उन्मूलन हेतु सक्रिय तौर पर आन्दोलन भी चला रहे हैं। दूसरी ओर मुसलमान यह महसूस ही नहीं करते कि ये बुराइयां हैं, परिणामतः वे उनके निवारण हेतु सक्रियता भी नहीं दर्शाते। इसके विपरीत, अपनी मौजूदा प्रथाओं में किसी भी परिवर्तन का विरोध करते हैं।
+* मुसलमानों की सोच में लोकतंत्र प्रमुखता नहीं है। उनकी सोच को प्रभावित करने वाला तत्व यह है कि लोकतंत्र प्रमुख नहीं है। उनकी सोच को प्रभावित करने वाला तत्व यह है कि लोकतंत्र, जिसका मतलब बहुमत का शासन है, हिन्दुओं क��� विरुद्ध संघर्ष में मुसलमानों पर क्या असर डालेगा। क्या उससे वे मजबूत होंगे अथवा कमजोर? यदि लोकतंत्र से वे कमजोर पड़ते हैं तो वे लोकतंत्र नहीं चाहेंगे। वे किसी मुस्लिम रियासत में हिंदू प्रजा का मुस्लिम शासक की पकड़ कमजोर करने के बजाए अपने निकम्मे राज्य को वरीयता देंगे।
+* मुस्लिम संप्रदाय में राजनीतिक और सामाजिक गतिरोध का केवल ही कारण बताया जा सकता है। मुसलमान सोचते हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों को सतत संघर्षरत रहना चाहिए। हिंदू मुसलमानों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करते हैं, और मुसलमान अपनी शासक होने की ऐतिहासिक हैसियसत बनाए रखने का।
+* पर्दा प्रथा की वजह से मुस्लिम महिलाएं अन्य जातियों की महिलाओं से पिछड़ जाती हैं। वो किसी भी तरह की बाहरी गतिविधियों में भाग नहीं ले पातीं हैं जिसके चलते उनमें एक प्रकार की दासता और हीनता की मनोवृत्ति बनी रहती है। उनमें ज्ञान प्राप्ति की इच्छा भी नहीं रहती क्योंकि उन्हें यही सिखाया जाता है कि वो घर की चारदीवारी के बाहर वे अन्य किसी बात में रुचि न लें। पर्दे वाली महिलाएं प्रायः डरपोक, निस्साहय, शर्मीली और जीवन में किसी भी प्रकार का संघर्ष करने के अयोग्य हो जाती हैं। भारत में पर्दा करने वाली महिलाओं की विशाल संख्या को देखते हुए कोई भी आसानी से ये समझ सकता है कि पर्दे की समस्या कितनी व्यापक और गंभीर है। पाकिस्तान, अथवा भारत का विभाजन'
+* पर्दा प्रथा ने मुस्लिम पुरुषों की नैतिकता पर विपरीत प्रभाव डाला है। पर्दा प्रथा के कारण कोई मुसलमान अपने घर-परिवार से बाहर की महिलाओं से कोई परिचय नहीं कर पाता। घऱ की महिलाओं से भी उसका संपर्क यदा-कदा बातचीत तक ही सीमित रहता है। बच्चों और वृद्धों के अलावा पुरुष अन्य महिलाओं से हिल-मिल नहीं सकता, अपने अंतरंग साथी से भी नहीं मिल पाता। महिलाओं से पुरुषों की ये पृथकता निश्चित रूप से पुरुष के नैतिक बल पर विकृत प्रभाव डालती है। ये कहने के लिए किसी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की आवश्यकता नहीं कि ऐसी सामाजिक प्रणाली से जो पुरुषों और महिलाओं के बीच के संपर्क को काट दे उससे यौनाचार के प्रति ऐसी अस्वस्थ प्रवृत्ति का सृजन होता है जो आप्राकृतिक और अन्य गंदी आदतों और साधनों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है।
+* वैदिक काल में, और उसके बाद शताब्दियों तक अस्पृश्यता का अस्तित्व नहीं मिलत�� है। इसका उद्गम बहुत बाद में हुआ और इसका सम्बन्ध बौद्ध धर्म के बाद परिवर्तनों से पैदा हुई परिस्थितियों से है। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब बौद्ध धर्म ने सम्पूर्ण पृथ्वी को जीत लिया था। देश की जनता और सारा व्यापारी वर्ग बौद्ध धर्म में चला गया था। ब्राह्मणवाद का पतन हो गया था, जो शताब्दियों से राज कर रहा था। बुद्ध ने तीन शिक्षाएं दीं– सामाजिक समानता की, वर्ण व्यवस्था के उन्मूलन की और अहिंसा के सिद्धान्त की, जिसमें धर्म के नाम पर पशु बलि वर्जित थी। उस समय तक ब्राह्मण शाकाहारी नहीं हुए थे, वे गौओं और अन्य पशुओं की बलि देते थे और उनका मांस खाते थे। जब बुद्ध ने बलि का निषेध किया और गाय को कृषि और दूध के लिये उपयोगी पशु बताते हुए उसकी सुरक्षा की शिक्षा दी, तो जनता ने उसे अपना लिया। तब, ब्राह्मणों के सामने शाकाहारी बनने के सिवा कोई चारा नहीं था। अब गाय पवित्र हो गयी थी और उसकी बलि देने की प्रथा समाप्त हो गयी थी। बहुत सारी बुद्ध शिक्षाएं हिंदू धर्म में समाहित कर लीं गयी थीं। जो जनता बौद्ध धर्म में चली गयी थी, वह भी धीरे–धीरे वापिस आने लगी थी। बुद्ध की जो सबसे बड़ी शिक्षा ब्राह्मणों ने स्वीकार नहीं की, वह थी समानता और वर्ण व्यवस्था का उन्मूलन। न तो बुद्ध ने और न ब्राह्मणों ने मृतक पशु के मांस को खाने पर रोक लगायी थी। रोक केवल जीवित गाय का वध करने पर थी। पर, आज के अछूतों का एक बड़ा अपराध यह है कि वे गरीबों में सबसे गरीब और सामाजिक रूप से सबसे निचले स्तर के होने के कारण बौद्ध धर्म में लम्बे समय तक बने रहे और मृतक पशु का मांस खाते रहे। उनको सुधारने के लिये एक बड़ी शक्ति की जरूरत थी, जो उनके लिये लम्बे समय तक काम करती। पर ऐसा कोई काम तो नहीं हुआ, उलटे, सामाजिक बहिष्कार और अस्पृश्यता उन पर लागू कर दी गयी। दि बाम्बे क्रानिकल’ को दिए गये साक्षात्कार में जो 24 फरवरी 1940 के अंक में प्रकाशित हुआ।
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+हम अनके वर्षो से हिंदी कोट्स पे काम कर रहे हैं हम हिंदी कोट्स का संग्रह बना रहे हैं, और अभी विकिक्वोट मैं भी थोडा बहुत योगदान दे रहे हैं.
+हम आगे दी गयी लिस्ट पर यहाँ काम करेंगे, आपका सहयोग अवश्यक हैं.
+अभी इसमे और भी लिस्ट जोडना हैं, कृपया आपका सहयोग दे
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+*व्यापार का व्यापार सम्बन्ध हैं; जीवन का व्यापार मानवीय लगाव है।
+*लक्ष्य प्राप्त करना मायने रखता है। और जो बहादुर�� भरे काम और साहसिक सपने आप पूरे करना चाहते हैं उनके बारे में लिखना उन्हें पूरा करने के लिए चिंगारी का काम करेगा।
+*उसे दीजिये जिसे आप सबसे अधिक वापस पाना चाहते हैं।
+*आपका “आई कैन” आपके “आईक्यू से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
+* यदि आप सचमुच विश्व–स्तरीय होना चाहते हैं– जितने अच्छे हो सकते हैं होना चाहते हैं तो अंतत: ये आपकी तैयारी और अभ्यास पर निर्भर करेगा।
+सबसे छोटा कार्य सबसे महान इरादे से हमेशा बेहतर होता है।
+हमारा एक नॉर्मल होता है। जब आप अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकल जाते हैं तो जो एक समय अनजाना और भयभीत करने वाला था अब आपका न्यू नॉर्मल बन जाता है।
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+* दिल्ली का आम आदमी देश को ये बताने में आगे आया है कि देश की राजनीति किस दिशा में जानी चाहिए.
+* इस देश के नेताओं ने आम आदमी को ललकारा कि वो चुनाव लड़ें विधान शभा में आएं और अपना क़ानून बनाएं. वो नेतागढ़ भूल गए कि आम आदमी खेत जोतता है, नेता नहीं, आम आदमी चाँद पर जाता है, नेता नहीं. जब कोई विकल्प नहीं बचा तो आम आदमी ने निश्चय किया कि वो चुनाव लड़ेगा.
+* दिल्ली की जनता ने भारतीय राजनीति से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने की हिम्मत दिखायी है। इस सदन के समक्ष प्रश्न यह है कि इसके कौन से सदस्य इस लड़ाई का हिस्सा बनना चाहते हैं ?
+* हम बड़ी पार्टीयों का गुरूर तोड़ने के लिए पैदा हुए थे। हमें सावधान रहना होगा कि हमे गिराने के लिए किसी और पार्टी को जन्म ना लेना पड़े.
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+* जो अपने लिए जीते हैं वो मर जाते हैं, जो समाज के लिए मरते हैं वो जिंदा रहते हैं।
+* मैं इस देश के युवाओं से कहना चाहता हूँ कि यह लड़ाई लोकपाल के साथ ख़त्म नही होनी चाहिए। हमें मौजूदा चुनावी सुधारों में मौजूद खामियों को दूर करने के लिए लड़ना है। क्योंकि चुनाव प्रणाली में दोष के कारण 150 से भी ज्यादा अपराधी संसद तक पहुँच चुके हैं।
+* कल मेरा रक्त चाप कम था, लेकिन आज यह फिर से नियंत्रण में है क्योंकि देश की ताकत मेरे पीछे है।
+* मैं इस देश के लोगों से अनुरोध करता हूँ कि इस क्रांति को जारी रखें। मैं ना हूँ तो भी लोगों को संघर्ष जारी रखना चाहिए।
+* इस सरकार में एक प्रभावी लोकपाल लाने की इच्छा नहीं है।
+* क्या यह लोकतंत्र है? सभी एक साथ पैसा बनाने आये हैं. मैं खुद को सौभाग्यशाली समझूंगा अगर मैं अपने समाज, अपने देशवासियों के लिए मरता हूँ।
+* सरकारी पैसा लोगों का पैसा है।लोगों के ���ायदे के लिए प्रभावी नीतियां बनाएँ।
+* हम सरकार के साथ बात करने को तैयार हैं लेकिन उनकी तरफ से कोई पहल नहीं हुई। हम बात करने कहाँ जायें और हम किससे बात करें ?
+* देश को असल में स्वतंत्रता आजादी के 64 साल बाद भी नहीं मिली और केवल एक बदलाव आया गोरों की जगह काले आ गए।
+* लोकपाल के बाद, हमें किसानो के अधिकार के लिए लड़ना होगा. हमें एक ऐसा कानून लाना होगा जो भूमि अधिग्रहण से पहले ग्राम सभाओं की अनुमति लेना अनिवार्य करे।
+* मेरी मांगें बिलकुल नहीं बदलेंगी। आप मेरे सर को काट सकते हैं लेकिन मुझे सर झुकाने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।
+* खजाने को चोरों से नहीं पहरेदारों से धोखा है। देश को सिर्फ दुश्मनों से ही नहीं बल्कि इन गद्दारों से धोखा है।
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+* शिक्षण एक बहुत ही महान पेशा है जो किसी व्यक्ति के चरित्र, क्षमता, और भविष्य को आकार देता हैं। अगर लोग मुझे एक अच्छे शिक्षक के रूप में याद रखते हैं, तो मेरे लिए ये सबसे बड़ा सम्मान होगा।
+जो व्यक्ति समय पर बोलने में या सुनने में समर्थ नहीं है,वही वास्तव में मूक एंव वधिर है अर्थात् असमर्थ और असफल है
+* अगर मरने के बाद भी जीना है तो एक काम जरूर करना पढने लायक कुछ लिख जाना या फिर लिखने लायक कुछ कर जाना.
+* मैं हमेशा इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार था कि मैं कुछ चीजें नहीं बदल सकता।
+* भारत में हम बस मौत, बीमारी, आतंकवाद और अपराध के बारे में पढ़ते हैं।
+* अंग्रेजी आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में विज्ञान के मूल काम अंग्रेजी में हैं. मेरा विश्वास है कि अगले दो दशक में विज्ञान के मूल काम हमारी भाषाओँ में आने शुरू हो जायेंगे, तब हम जापानियों की तरह आगे बढ़ सकेंगे।
+* मुझे बताइए यहाँ का मीडिया इतना नकारात्मक क्यों है? भारत में हम अपनी अच्छाइयों, अपनी उपलब्धियों को दर्शाने में इतना शर्मिंदा क्यों होते हैं? हम एक माहान राष्ट्र हैं. हमारे पास ढेरों सफलता की गाथाएँ हैं, लेकिन हम उन्हें नहीं स्वीकारते. क्यों?
+* एक अच्छी पुस्तक हज़ार दोस्तों के बराबर होती है जबकि एक अच्छा दोस्त एक लाइब्रेरी (पुस्तकालय) के बराबर होता है |
+* जीवन में कठिनाइयाँ हमे बर्बाद करने नहीं आती है, बल्कि यह हमारी छुपी हुई सामर्थ्य और शक्तियों को बाहर निकलने में हमारी मदद करने आती है, कठिनाइयों को यह जान लेने दो की आप उससे भी ज्यादा कठिन हो।
+* अपनी पहली सफलता के बाद आराम मत करो क्योकि ��गर आप दूसरी बार में असफल हो गए तो बहुत से होंठ यह कहने के इंतज़ार में होंगे की आपकी पहली सफलता केवल एक तुक्का थी।
+* सफलता की कहानियां मत पढ़ो उससे आपको केवल एक सन्देश मिलेगा। असफलता की कहानियां पढ़ो उससे आपको सफल होने के कुछ विचार मिलेंगे।
+* बारिश की दौरान सारे पक्षी आश्रय की खोज करते है लेकिन बाज़ बादलों के ऊपर उडकर बारिश को ही अवॉयड कर देते है। समस्याएँ कॉमन है, लेकिन आपका एटीट्यूड इनमे डिफरेंस पैदा करता है।
+* जिंदगी और समय, विश्व के दो सबसे बड़े अध्यापक है। ज़िंदगी हमे समय का सही उपयोग करना सिखाती है जबकि समय हमे ज़िंदगी की उपयोगिता बताता है।
+* किसकी को हराना बहुत आसान है पर किसी को जितना बहुत कठिन है।
+* देश का सबसे अच्छा दिमाग, क्लास रूम की आखरी बेंचो पर मिल सकता है।
+यदि आप जीवन में चमकना चाहते हैं तो आपको सूर्य की तरह चमकना भी होगा
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+* अंत में यह मायने नहीं रखता कि आपके पास जीवन में कितने साल बचे हैं बल्कि उन बचे हुए सालों में कितना जीवन बचा है, यह मायने रखता है।
+* अगर आप एक बार अपने नागरिकों (जनता) का भरोसा तोड़ देते हैं, तो आप फिर कभी उनका सम्मान और आदर नहीं पा सकेंगे।
+* अगर आप किसी भी व्यक्ति के अंदर बुराई खोजने की इच्छा रखते हैं तो आपको ज़रुर मिल जाएँगीं।
+* किसी वृक्ष को काटने के लिए आप मुझे छः घंटे दीजिये और मैं पहले चार घंटे कुल्हाड़ी की धार तेज करने में लगाऊंगा।
+* अगर आपको कोई महत्व नहीं देता है तो चिंता कीजिए पर महत्व प्राप्त करने के लिए कोशिश जारी रखिये।
+* अगर कोई भी व्यक्ति किसी काम को बेहतरीन ढ़ग से कर सकता है, तो मैं कहूँगा उसे करने दे, उसे एक मौका दे ताकि वह स्वयं को साबित कर सके।
+* अगर शांति चाहते हैं तो लोकप्रियता से बचिए।
+* अच्छी नियत से काम करने वालों के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।
+* अधिकतर लोग उतने ही खुश होते है जितना की वो होना चाहते है।
+* अपने दुश्मनों को मिटाने का सबसे अच्छा और बेहतरीन तरीका यह है कि आप उन्हें अपना दोस्त बना लें।
+* अब जो कुछ लोग सफलता हासिल कर लेते हैं तो यह प्रमाण है कि आप भी सफल हो सकते हैं।
+* आप सभी लोगों को कुछ समय तक और कुछ लोगों को हर समय धोखा दे सकते हो लेकिन आप सभी लोगों को हर समय धोखा नहीं दे सकते।
+* आपका अधिक सम्बन्ध इस बात से नहीं है कि आप असफल हुए, बल्कि इस बात से कि आप अपनी असफलता से कितने संतुष्ट है।
+* आपका सच्चा मि���्र वही है, जिसके शत्रु भी वही हैं जो आपके हैं।
+* इंतजार करने वालो को केवल प्राप्त होता है, जो मेहनत करने वाले छोड़ जाते है।
+* इस बात का हमेशा ख्याल रखें कि सिर्फ आपका संकल्प ही आपकी सफलता के लिए मायने रखता है, कोई और चीज नहीं।
+* उस व्यक्ति को आलोचना करने का अधिकार है जो सहायता करने की भावना रखता है।
+* एक नौजवान व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए उसे हर संभव तरीके से अपना विकास करना चाहिए, ऐसा कभी नहीं शक करना चाहिए कि कोई उसके रास्ते में रूकावट हो सकता है।
+* कठिनाई में तो कोई भी आपके पास खड़ा हो सकता है। लेकिन अगर आप किसी इंसान के चरित्र का स्वाद चखना चाहते हैं तो आप उसे अपनी सारी ताकत दे दीजिये।
+* कार्य की अधिकता से उकताने वाला व्यक्ति, कभी कोई बड़ा कार्य नहीं कर सकता ।
+* किसी भी व्यक्ति के चरित्र और साहस का निर्माण आप उसके पहल और स्वतंत्रता को छीन कर नहीं कर सकते हैं।
+* कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं है, जिसके पास ईश्वरीय माँ है।
+* गलत करने के डर से ज्यादा आपको सही काम करने के लिए ज्यादा हिम्मत जुटानी पड़ती है।
+* जब आप अपने रस्सी के अंत तक पहुंचा जाते है, तो एक गांठ बनाओ और लटकाओ।
+* जैसा की हमारी परिस्थितिया नयी हैं, हमें विचार करना चाहिए और तरीके से कम करना चाहिए।
+* पक्का कर लीजिए, आश्वस्त हो जाइये की आपके पैर सही जगह पर है। फिर डट कर खड़े रहिये।
+* प्रजातंत्र लोगों की, लोगों के द्वारा, और लोगों के लिए बनायीं गयी सरकार है।
+* भविष्य के बारे में सबसे बढ़िया बात यह है कि यह एक बार में एक दिन के रूप में आता है।
+* मतपत्र बन्दूक की बुलेट की तुलना में अधिक शक्तिशाली है।
+* मित्र वो है जिसके शत्रु वही हैं जो आपके शत्रु हैं।
+* मुझे जो व्यक्ति पसन्द नहीं है मुझे उसके बारे में और अधिक जानना चाहिए।
+* मुसीबत में सभी लोग समान होता है, व्यक्ति का असली चरित्र उसको शक्ति मिलने के बाद उजागर होता है।
+* मेरा हमेशा से मानना रहा है कि कड़ी सजा की तुलना में दया ज्यादा फलदायक सिद्ध होती है।
+* मेरी चिन्ता ये नहीं है कि भगवान मेरे साथ है या नहीं। मेरी चिन्ता ये है कि मै भगवान के साथ हूं या नहीं। क्योंकि भगवान हमेशा सही होता है।
+* मेहनत हमेशा धन से पहले और धन से स्वतंत्र है। धन में मेहनत का सिर्फ एकमात्र फल है, और अगर मेहनत नहीं की जाती तो ये कभी अस्तित्व में नहीं आता। मेहनत धन से बड़ी है और उससे ज्यादा महत्व रखती है।
+* मैं धीमी गति से चलता जरूर हूँ, लेकिन कभी पीछे वापस नहीं आता।
+* मैं जीतने के लिए प्रतिबद्ध नहीं हूँ लेकिन मैं सही और सच्चे होने के लिए प्रतिबद्ध हूँ।
+* मैं नहीं जानता मेरे दादाजी कौन थे; मेरा सारा ध्यान यह जानने में है की उनका पोता क्या और कैसा होगा।
+* मैं हमेशा इस तरह याद किया जाना पसंद करूँगा कि जहाँ भी मुझे लगा कि यहाँ फूल लगाये जा सकते हैं, मैंने हमेशा झाड़ियों और कांटेदार पौधों को हटा वहां फूलों को लगाने का काम किया।
+* यदि आप एक बार अपने नागरिकों का भरोसा तोड़ दें, तो आप फिर कभी उनका सत्कार और सम्मान नहीं पा सकेंगे।
+* वह जो सब्र करता है उसे चीजें मिल सकती हैं, परन्तु जो जल्दबाजी करता है उससे चीजें छूट जाती हैं।
+* व्यक्ति का चरित्र एक वृक्ष है और उसका मान-सम्मान एक छाया। लेकिन ये कितने दुःख का विषय है कि हम हमेशा छाया की सोचते हैं, लेकिन असलियत तो वृक्ष ही है।
+* व्यक्ति की कार्यविधि कुछ सीमा तक परिवर्तित हो सकती है, परन्तु उसकी प्रकृति परिवर्तित नहीं हो सकती।
+* शत्रुओं को मित्र बना कर क्या मैं उन्हें नष्ट नहीं कर रहा?
+शांत रहने और मुर्खो की तरह सोचने से अच्छा है कि आप पूछो और सारे संदेहो को दूर कर लो।
+* सदैव ख्याल रखिए कि आपके सफल होने का संकल्प अन्य दूसरे संकल्पों से बहुत जरूरी है।
+* सफलता का रहस्य तैयारी है।
+* सहायता करने वाले दिलों को आलोचना करने का भी अधिकार है।
+* साधारण दिखाई देने वाले लोग, विश्व के सबसे अच्छे लोग होते हैं और यही कारण है कि भगवान ऐसे लोगों को बड़ी संख्या में पृथ्वी पर लाते हैं।
+* सार्वजानिक भावना के साथ कुछ भी विफल नहीं हो सकता, इसके बिना कुछ भी सफल नहीं हो सकता।
+* हमेशा अपने दिमाग में यह बात बैठाकर रखे की सफलता के प्रति आपका अपना दृष्टिकोण सबसे महत्त्वपर्ण है बजाय दूसरों के।
+* हमेशा यह ध्यान में रखिये कि आपके द्वारा सफल होने का लिया गया संकल्प आपके किसी भी अन्य संकल्प से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
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+* एक मकान तब तक घर नहीं बन सकता जब तक उसमे दिमाग और शरीर दोनों के लिए भोजन और भभक ना हो।
+* मित्र बनाने में धीमे रहिये और बदलने में और भी।
+* संतोष गरीबों को अमीर बनाता है,असंतोष अमीरों को गरीब।
+* अज्ञानी होना उतनी शर्म की बात नहीं है जितना कि सीखने की इच्छा ना रखना।
+* छोटे-छोटे खर्चों से सावधान रहिये। एक छोटा सा छेद बड़े से जहाज़ को डूबा सकता है।
+* लेनदारों की याद्दाश्त देनदारों से अच्छी होती है।
+* तैयारी करने में फेल होने का अर्थ है फेल होने के लिए तैयारी करना।
+* निश्चित रूप से इस दुनिया में कुछ भी निश्चित नहीं है सिवाय मौत और करों के।
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+बिल गेट्स अमेरिकी व्यापारी हैं।
+ऐसे लोग हैं जिन्हें पूँजीवाद पसंद नहीं है, और ऐसे लोग भी हैं जिन्हें पर्सनल कम्प्यूटर्स पसंद नहीं है। पर ऐसा कोई भी नहीं है जिसे पी सी पसंद हो और वो माइक्रोसोफ्ट को पसंद ना करता हो।
+“सफलता का जश्न मनाना ठीक है लेकिन असफलता से सबक सीखना ज्यादा महत्वपूर्ण है।”
+अगर मैं पहले से कोई अंतिम लक्ष्य बना के चलता तो क्या आपको नहीं लगता है कि मैं उसे सालों पहले पूरा कर चुका होता।
+आपके सबसे असंतुष्ट कस्टमर आपके सीखने का सबसे बड़ा श्रोत हैं।
+किसी व्यक्ति में चाहे कितनी भी Ability क्यों न हो, लेकिन अगर वह एकाग्रचित्त है तभी वह महान कार्य कर सकता है।
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+ब्रूस ली (जून फान,李振藩,李小龙; पिनयिन: Lǐ Zhènfān, Lǐ Xiăolóng; 27 नवंबर, 1940 20 जुलाई, 1973) अमेरिका में जन्मे, चीनी हांगकांग अभिनेता, मार्शल कलाकार, दार्शनिक, फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, विंग चुन के अभ्यासकर्ता और जीत कुन डो अवधारणा के संस्थापक थे।
+हमेशा अपने वास्तिक रूप में रहो, खुद को व्यक्त करो, स्वयं में भरोसा रखो, बाहर जाकर किसी और सफल व्यक्तित्व को मत तलाशो और उसकी नक़ल मत करो।
+अगर आप हर चीज में अपने लिए एक सीमा निर्धारित कर देंगे, शारीरिक या कुछ और; वो आपके काम, आपके जीवन मे फ़ैल जायेगा। कोई सीमाएं नहीं हैं। सिर्फ पठार हैं, और आपको वहाँ रुकना नहीं है, आपको उनसे आगे जाना है।
+ध्यान दीजिये कि सबसे कठोर पेड़ सबसे आसानी से टूट जाते हैं, जबकि, बांस या विलो हवा के साथ मुड़कर बच जाते है।
+गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती हैं, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो।
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+भगत सिंह जन्म: १७ या २८ सितम्बर १९०७; मृत्यु: २३ मार्च १९३१ भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे।
+* यदि बहरों को सुनना है तो आवाज तेज करनी होगी। जब हमने बम फेका था तब हमारा इरादा किसी को जान से मारने नहीं था। हमने ब्रिटिश सरकार पर बम फेका था। ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ना होगा और उसे स्वतंत्र करना होगा।
+* मजिस्ट्रेट साहब, आप भाग्यशाली हैं कि आज आप अपनी आखों से यह देखने का अवसर पा रहे हैं कि भारत के क्रांतिकारी किस प्रकार प्रसन्नतापूर्वक अपन�� सर्वोच्च आदर्श के लिए मृत्यु का आलिंगन कर सकते हैं। (मृत्यु पूर्व)
+* मेरा धर्म सिर्फ देश की सेवा करना है।
+* निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।
+* पागल, प्रेमी और कवि, ये तीनो एक ही मिट्टी या सामग्री के बने होते हैं।
+* बड़े बड़े साम्राज्य तहस नहस हो जाते हैं, पर विचारों को कोई ध्वस्त नहीं कर सकता।
+* बम और पिस्तौल क्रांति नहीं लाते हैं। क्रान्ति की तलवार विचारों के धार बढ़ाने वाले पत्थर पर रगड़ी जाती है।
+* …व्यक्तियो को कुचल कर वे विचारों को नहीं मार सकते।
+* क्रांति केवल हिंसा और तोड़-फोड़ नहीं होती।
+* क्रांति मनुष्य का जन्म सिद्ध आधिकार है साथ ही आजादी भी जन्म सिद्ध अधिकार है और परिश्रम समाज का वास्तव में वहन करता है।
+* क्रांति मानव जाती का एक अपरिहार्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक कभी न ख़त्म होने वाला जन्म-सिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है।
+* क्रांति में सदैव संघर्ष हो यह जरुरी नहीं। यह बम और पिस्तौल की राह नहीं है।
+* अगर अपने दुश्मन से बहस करनी है और उससे जीतना है तो इसके लिए अभ्यास करना जरूरी है।
+* अगर आपको मेरे (भगत सिंह के अनमोल वचन) प्रेरित करते हैं तो बदलाव लाने की हिम्मत करते समय बिलकुल मत सोचिये।
+* अगर कोई आपके विकास की राह के बीच रोड़ा बने तो आपको उसकी आलोचना करनी चाहिए और इसे चुनौती देनी चाहिए।
+* अगर बहरों को सुनना है तो आवाज को बहुत जोरदार होना होगा, जब हमने असेम्बली में बम गिराया तो हमारा मकसद किसी को मारना नहीं था हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था।
+* अगर हमें सरकार बनाने का मौका मिलेगा तो किसी के पास प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं मिलेगी।
+* अपने दुश्मन से बहस करने के लिये उसका अभ्यास करना बहोत जरुरी है।
+* अहिंसा को आत्म विश्वास का बल प्राप्त है जिसमे जीत की आशा से कष्ट वहन किया जाता है। लेकिन अगर यह प्रयत्न विफल हो जाए तब क्या होगा? तब हमें इस आत्म शक्ति को शारीरिक शक्ति से जोड़ना होता है ताकि हम अत्याचारी दुश्मन की दया पर न रहे।
+* आज मेरी कमजोरियां लोगों के सामने नहीं हैं। अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और इंकलाब का निशान मद्धिम पड़ जाएगा या शायद मिट ही जाए, लेकिन मेरे दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते फांसी पाने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए बलिदान होने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि इंकलाब को रोकना इम्पीरियलिज्म की तमाम सर (संपूर्ण) शैतानी कुबतों के बस की बात न रहेगी।
+* आम तौर पर लोग जैसी चीजें हैं उसके आदी हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की जरूरत है।
+* इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है जैसाकि हम विधान सभा में बम फेंकने को लेकर थे।
+* इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है।
+* क़ानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक की वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे।
+* कानून में विश्वास और उसकी पवित्रता तब तक ही बनी रह सकती है जब तक वो लोगों को सही न्याय दिलाता रहे और उनकी इच्छाओं की अभिव्यक्ति करे।
+* किसी को ‘क्रांति’ शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते हैं।
+* किसी ने सच ही कहा है, सुधार बूढ़े आदमी नहीं कर सकते। ते तो बहुत ही बुद्धिमान और समझदार होते हैं। सुधार तो होते हैं युवकों के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से, जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं।
+* किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।
+* किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग ना करना काल्पनिक आदर्श है और नया आन्दोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसके आरम्भ की हम चेतावनी दे चुके हैं वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान वाशिंगटन और गैरीबाल्डी लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है।
+* कोई भी व्यक्ति जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार खड़ा हो उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमे अविश्वास करना होगा और चुनौती भी देना होगा।
+* कोई भी व्यक्ति तब ही कुछ करता है जब वह अपने कार्य के परिणाम (औचित्य) को लेकर आश्व्स्त होता है जैसे हम असेम्बली में बम फेकने पर थे।
+* कोई विद्रोह क्रांति नहीं होता, आखिर में आपका अंत हो सकता है।
+* क्या तुम्हें पता है कि दूनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है? गरीबी एक अभिशाप है यह एक स���ा है।
+* क्रांति लाना किसी भी इंसान की ताकत के बाहर की बात है। क्रांति कभी भी अपनेआप नही आती। बल्कि किसी विशिष्ट वातावरण, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में ही क्रांति लाई जा सकती है।
+* क्रांति से हमारा अभिप्राय समाज की वर्तमान प्रणाली और वर्तमान संगठन को पूरी तरह उखाड़ फेंकना है। इस उद्देश्य के लिए हम पहले सरकार की ताकत को अपने हाथ में लेना चाहते हैं। इस समय शासन की मशीन धनिकों के हाथ में है। सामान्य जनता के हितों की रक्षा के लिए तथा उरपने आदर्शों को क्रियात्मक रूप देने के लिए अर्थात समाज का नए सिरे से संगठन कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों के अनुसार करने के लिए हम सरकार की मशीन को उरपने हाथ में लेना चाहते हैं। हम इसी उद्देश्य के लिए लड़ रहे है, पंरतु इसके लिए हमें साधारण जनता को शिक्षित करना चाहिए।
+* क्रांतिकारी सोच के दो आवश्यक लक्षण है – बेरहम निंदा तथा स्वतंत्र सोच।
+* क्रान्ति के लिए हथियारों की जरुरत नहीं होती, क्रान्ति की तलवारें तो विचारों की धार पर तेज की जाती हैं। अगर आपको भगत सिंह के अनमोल विचार प्रेरित करते हैं तो अत्याचार के खिलाफ लड़िये, क्रांतिकारी बनिए।
+* चीजें जैसी है आम तौर पर लोग उसके आदि हो जाते है और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते है हमें इसी निष्क्रियता को क्रांतिकारी भावना से बदलने कि जरुरत है।
+* जरूरी नहीं था कि क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था।
+* जहां तक हमारे भाग्य का संबंध है, हम बड़े बलपूर्वक आपसे यह कहना चाहते हैं कि अपने हमें फांसी पर लटकाने का निर्णय कर लिया है, आप ऐसा करेंगे ही, आपके हाथों में शक्ति है और आपको अधिकार भी प्राप्त हैं, परंतु इस प्रकार आप ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला’ सिद्धांत ही अपना रहे हैं और आप उस पर कटिबद्ध है। हमारे अभियोग की सुनवाई इस वक्तव्य को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि हमने कभी कोई प्रार्थना नहीं की और अब भी हम आपसे किसी प्रकार की दया की प्रार्थना नहीं करते। हम केवल आपसे यह प्रार्थना करना चाहते हैं कि आपकी सरकार के ही एक न्यायालय के निर्णय के अनुसार हमारे विरुद्ध युद्ध जारी रखने का अभियोग है, इस स्थिति में हम युद्ध-बंदी हैं, अत: इस आधार पर हम आपसे मांग करते हैं कि हमारे साथ युद्ध-बंदियों जैसा ही बर्ताव किया जाए और हमें फांसी देने के बदले गोली से उड़ा दिया जाए।
+* जिंदा रहने की ख्वाहिश कुदरती तौर पर मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन मेरा जिंदा रहना एक शर्त पर है। मैं कैद होकर या पाबंद होकर जिंदा रहना नहीं चाहता।
+* जीवन अपने दम पर चलता है दूसरों के कन्धों पर तो अंतिम यात्रा पूरी होती है।
+* जैसे पुराना कपड़ा उतारकर नया बदला जाता है, वैसे ही मृत्यु है। मैं उससे डरूंगा नहीं, भागूंगा नहीं। कोशिश करूंगा कि पकड़ा जाऊं पर यूं ही नहीं कि पुलिस आई और पकड़ ले गई। मेरे पास एक तरीका है कि कैसे पकड़ा जाऊं। मौत आएगी, आएगी ही पर मैं अपनी मौत को इतनी महंगी और भारी बना दूंगा कि ब्रिटिश सरकार रेत के ढेर की तरह उसके बोझ से ढक जाए।
+* जो व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी।
+* देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं।
+* भारत की वर्तमान लड़ाई ज्यादातर मध्य श्रेणी के लोगों के बलबूते पर लड़ी जा रही है, जिसका लक्ष्य बहुत सीमित है। कांग्रेस दुकानदारों और पूंजीपतियों के जरिए इंग्लैंड पर आर्थिक दबाव डालकर कुछ अधिकार ले लेना चाहती है, परंतु जहां तक देश के करोड़ों मजदूरों और किसान जनता का ताल्लुक है, उनका उद्धार इतने से नहीं हो सकता। यदि देश की लड़ाई लड़नी हो, तो मजदूरों, किसानों और सामान्य जनता को आगे लाना होगा, इन्हें लड़ाई के लिए संगठित करना होगा। नेता उन्हें अभी तक आगे लाने के लिए कुछ नहीं करते, न कर ही सकते है। इन किसानों को विदेशी हुकूमत के जुए के साथ-साथ भूमिपतियों और पूंजीपतियों के जुए से भी उद्धार पाना है।
+* मनुष्य तभी कुछ करता है जब उसे अपने कार्य का उचित होना सुनिश्चित होता है, जैसा की हम विधान सभा में बम गिराते समय थे। जो मनुष्य इस शब्द का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं उनके लाभ के हिसाब के अनुसार इसे अलग-अलग अर्थ और व्याख्या दिए जाते हैं।
+* महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।
+* मुझे दंड सुना दिया गया है और फांसी का आदेश हुआ है। इन कोठरियों में मेरे अतिरिक्त फांसी की प्रतीक्षा करने वाले बहुत -से अपराधी हैं। ये यही प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी तरह फांसी से बच जाएं, परंतु उनके बीच शायद मैं ही एक ऐसा आदमी हूं जो बड़ी बेताबी से उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब मुझे अपने आदर्श के लिए फांसी के फंदे पर धूलने का सौभाग्य प्र��प्त होगा। मैं खुशी के साथ फांसी के तख्ते पर चढ़कर दुनिया को दिखा दूंगा कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए कितनी वीरता से बलिदान दे सकते हैं। भगत सिंह( बटुकेश्वर दत्त को लिखे गए पत्र का हिस्सा )
+* मुझे फांसी का दंड मिला है, किंतु तुम्हें आजीवन कारावास दंड मिला है। तुम जीवित रहोगे और तुम्हें जीवित रहकर दुनिया को यह दिखाना है कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए मर ही नहीं सकते, बल्कि जीवित रहकर हर मुसीबत का मुकाबला भी कर सकते हैं। मृत्यु सांसारिक कठिनाइयों से मुक्ति प्राप्त करने का साधन नहीं बननी चाहिए, बल्कि जो क्रांतिकारी संयोगवश फांसी के फंदे से बच गए हैं उन्हें जीवित रहकर दुनिया को यह दिखा देना चाहिए कि वे न केवल अपने आदर्शों के लिए फांसी पर चढ़ सकते हैं, जेलों की अंधकारपूर्ण छोटी कोठरियों में पुल-घुलकर निकृष्टतम दरजे के अत्याचार को सहन भी कर सकते हैं। भगत सिंह बटुकेश्वर दत्त को लिखे गए पत्र का हिस्सा )
+* मुसीबतें इंसान को पूर्ण बनाने का काम करती हैं, हर स्थिति में धैर्य बनाकर रखें।
+* मेरा जीवन एक महान लक्ष्य के प्रति समर्पित है – देश की आज़ादी। दुनिया की अन्य कोई आकषिर्त वस्तु मुझे लुभा नहीं सकती।
+* मेरा नाम हिन्दुस्तानी इंकलाब पार्टी का निशान बन चुका है और इंकलाब पसंद पार्टी के आदर्शों और बलिदानों ने मुझे बहुत ऊंचा कर दिया है। इतना ऊंचा कि जिंदा रहने की सूरत में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता। इसके सिवा कोई लालच मेरे दिल में फांसी से बचे रहने के लिए कभी नहीं आया, मुझसे ज्यादा खुशकिस्मत कौन होगा। मुझे आज तक अपने आप पर बहुत नाज है। मुझमें अब कोई ख्वाहिश बाकी नहीं है। अब तो बड़ी बेताबी से आखिरी इम्तहां का इंतजार है। आरजू है कि यह और करीब हो जाए।
+* मेरे जीवन का केवल एक ही लक्ष्य है और वो है देश की आज़ादी। इसके अलावा कोई और लक्ष्य मुझे लुभा नहीं सकता।
+* यदि आप सोलह उगने के लिए लड़ रहे हैं और एक आना मिल जाता है, तो वह एक आना जेब में डालकर बाकी पंद्रह उगने के लिए फिर जंग छेड़ दीजिए। हिन्दुस्तान के माडरेटों की जिस बात से हमें नफरत है, वह यही है कि उनका आदर्श कुछ नहीं है। वे एक आने के लिए ही लड़ते हैं और उन्हें मिलता कुछ भी नहीं।
+* यदि हमारे नौजवान इसी प्रकार प्रयत्न करते जाएंगे, तब जाकर एक साल में स्वराज्य तो नहीं, किंतु भारी कुर्बानी और त्याग की कठिन परीक्षा ��ें से गुजरने के बाद वे अवश्य विजयी होंगे। क्रांति चिरंजीवी हो।
+* यह बात प्रसिद्ध है कि मैं एक आतंककारी (टेररिस्ट) रहा हूं परंतु मैं आतंककारी नहीं हूं। मैं एक क्रांतिकारी हूं जिसके कुछ निश्चित विचार और निश्चित आदर्श हैं और जिसके सामने एक लंबा प्रोग्राम है। मुझे यह दोष दिया जाएगा, जैसा कि लोग रामप्रसाद बिस्मिल को भी देते थे कि फांसी की काल कोठारी में पड़े रहने से मेरे विचारों में भी कोई परिवर्तन उग गया है, परंतु ऐसी बात नहीं। मेरे विचार अब भी वही हैं, मेरे हृदय में अब भी उतना ही और वैसा ही उत्साह और वही लक्ष्य है जो जेल से बाहर था, पर मेरा यह दृढ़-विश्वास है कि हम बम से कोई लाभ प्राप्त नहीं कर सकते। यह बात हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के इतिहास से भी आसानी से मालूम पड़ती है। बम फेंकना न सिर्फ व्यर्थ है, अपितु बहुत बार हानिकारक भी है। उसकी आवश्यकता किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही पड़ती है, हमारा मुख्य लक्ष्य मजदूर और किसानों का संगठन होना चाहिए।
+* लोग जैसा चल रहा है उसे ही अपनाने को तैयार हैं। बदलाव लाने की सोच मात्र से ही उनके हाथ पैर कांपने लगते हैं। हमें अपनी इसी भावना को बदलना है और क्रांतिकारी बनना है।
+* व्यक्तियों को कुचल कर, वे विचारों को नही मार सकते।
+* समझौता कोई ऐसी हेय और निंदा योग्य वस्तु नहीं, जैसा कि साधारणत: हम लोग समझते है, बल्कि समझौता राजनीतिक संग्रामों का एक अत्यावश्यक अंग है। कोई भी कौम जो किसी अत्याचारी शासन के विरुद्ध खड़ी होती है, यह जरूरी है कि वह आरंभ में असफल हो और अपनी लंबी जद्दोजहद के मध्यकाल में इस प्रकार के समझौते के जरिए कुछ राजनीतिक सुधार हासिल करती जाए, परंतु पहुंचते-पहुंचते अपनी ताकतों को इतना संगठित और दृढ़ कर लेती है और उसका दुश्मन पर आखिरी हमला इतना जोरदार होता है कि शासक लोगों की ताकतें उस वक्त तक यह चाहती हैं कि उसे दुश्मन के साथ कोई समझौता कर लेना चाहिए।
+* समझौता भी ऐसा हथियार है, जिसे राजनीतिक जद्दोजहद के बीच में पग-पग पर इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता है जिससे एक कठिन लड़ाई से थकी हुई कौम को थोड़ी देर के लिए आराम मिल सके और वह आगे के युद्ध के लिए अधिक ताकत के साथ तैयार हो सके, परंतु इन सारे समझौतों के बावजूद जिस चीज को हमें भूलना न चाहिए वह हमारा आदर्श है जो हमेशा हमारे सामने रहना चाहिए। जिस लक्ष्य के लिए हम लड़ रहे हैं उनके संबंध में हमारे विचार बिल्कुल स्पष्ट और दृढ़ होने चाहिए।
+* सर्वगत भाईचारा तभी हासिल हो सकता है जब समानताएं हों – सामाजिक, राजनैतिक एवं व्यक्तिगत समानताएं।
+* सामान्यत: लोग परिस्थिति के आदि हो जाते है और उनमें बदलाव करने की सोच मात्र से डर जाते है। अत: हमें इस भावना को क्रांति की भावना से बदलने की जरूरत है।
+* स्वतंत्रता हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है और अगर कोई इसके बीच रोड़ा बने तो आदमी को क्रांतिकारी बनने का भी अधिकार है।
+* हम नौजवानों को बम और पिस्तौल उठाने की सलाह नहीं दे सकते। विद्यार्थियों के लिए और भी महत्त्वपूर्ण काम हैं। राष्ट्रीय इतिहास के नाजुक समय में नौजवानों पर बहुत बड़े दायित्व का भार है और सबसे ज्यादा विद्यार्थी ही तो आजादी की लड़ाई में अगली पांतों में लड़ते हुए शहीद हुए है। क्या भारतीय नौजवान इस परीक्षा के समय में वही संजीदा इरादा दिखाने में झिझक दिखाएंगे।
+* हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी, जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है। चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति हों या अंग्रेजी शासक या सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी रखी हुई है। चाहे शुद्ध भारतीय पूंजी-पतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो, तो भी इस स्थिति में कोई अंतर नहीं पड़ता।
+* हमारा लक्ष्य शासन शक्ति को उन हाथों के सुपुर्द करना है, जिनका लक्ष्य समाजवाद हो, इसके लिए मजदूरों और किसानों को संगठित करना आवश्यक होगा, क्योंकि उन लोगों के लिए लॉर्ड रीडिंग या इर्विन की जगह तेजबहादुर या पुरुषोत्तम दास, ठाकुर दास के उग जाने से कोई भारी फर्क न पड़ सकेगा।
+* हमारे दल को नेताओं की आवश्यकता नहीं है। अगर आप दुनियादार हैं, बाल-बच्चों और गृहस्थी में फंसे है, तो हमारे मार्ग पर मत आइए। ‘आप हमारे उद्देश्य में सहानुभूति रखते हैं तो और तरीकों से हमें सहायता दीजिए। नियंत्रण में रह सकने वाले कार्यकर्ता ही इस आदोलन को आगे ले जा सकते हैं।
+* हमें धैर्यपूर्वक फांसी की प्रतीक्षा करनी चाहिए। यह मृत्यु सुंदर होगी, परंतु आत्महत्या करना, केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देना तो कायरता है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि आपत्तियां व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली हैं। (सुखदेव को लिखे एक पत्र से)
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+चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र नामक ग्रन्थ राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है।
+व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले मर जाता है; और वो अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल खुद ही भुगतता है; और वह अकेले ही नर्क या स्वर्ग जाता है।
+अगर सांप जहरीला ना भी हो तो उसे खुद को जहरीला दिखाना चाहिए।
+शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पता है। शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है।
+कोई व्यक्ति अपने कार्यों से महान होता है, अपने जन्म से नहीं।
+सर्प, नृप, शेर, डंक मारने वाले ततैया, छोटे बच्चे, दूसरों के कुत्तों, और एक मूर्ख: इन सातों को नींद से नहीं उठाना चाहिए।
+इस बात को व्यक्त मत होने दीजिये कि आपने क्या करने के लिए सोचा है, बुद्धिमानी से इसे रहस्य बनाये रखिये और इस काम को करने के लिए दृढ रहिये।
+जैसे ही भय आपके करीब आये, उसपर आक्रमण कर उसे नष्ट कर दीजिये।
+* जब तक आपका शरीर स्वस्थ्य और नियंत्रण में है और मृत्यु दूर है, अपनी आत्मा को बचाने कि कोशिश कीजिये; जब मृत्यु सर पर आजायेगी तब आप क्या कर पाएंगे?
+* पहले पाच सालों में अपने बच्चे को बड़े प्यार से रखिये। अगले पांच साल उन्हें डांट-डपट के रखिये। जब वह सोलह साल का हो जाये तो उसके साथ एक मित्र की तरह व्यव्हार करिए। आपके व्यस्क बच्चे ही आपके सबसे अच्छे मित्र हैं।
+* समय को पहचानना ही मनुष्य के सीखने की सर्वोत्तम कला मानी गई है।
+* फूलों की सुगंध केवल हवा की दिशा में फैलती है, लेकिन एक इंसान की अच्छाई चारों दिशाओं में फैलती है।
+* ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए।
+* एक ही देश के दो शत्रु परस्पर मित्र होते हैं।
+* भगवान मूर्तियों में नहीं है, आपकी अनुभूति आपका इश्वर है, आत्मा आपका मंदिर है।
+* अगर सांप जहरीला ना भी हो तो उसे खुद को जहरीला दिखाना चाहिए।
+* कुशलता का ज्ञान प्राप्त कर श्रेय की प्राप्ति कर सकता है।
+* दूसरों की गलतियों से भी सीख लेनी चाहिए, क्योंकि अपने ही ऊपर प्रयोग करने पर तुम्हारी आयु कम पड़ जाएगी।
+* आपका हमेशा खुश रहना आपके दुश्मनों के लिए सबसे बड़ी सजा है।
+* लोहे को लोहे से ही काटना चाहिए।
+* सांप को दूध पिलाने से विष ही बढ़ता है, न की अमृत।
+* किसी लक्ष्य की सिद्धि में कभी शत्रु का साथ न करें।
+* सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।
+* जो जिस कार्ये में कुशल हो, उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए।
+* शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करें।
+* धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं।
+* आग में आग नहीं डालनी चाहिए अर्थात् क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।
+* शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।
+* यदि खुद कुबेर भी अपनी आय से अधिक खर्च करने लगे तो वह एक दिन निर्धन हो जायेगा।
+* मूर्खों से अपनी तारीफ सुनने से अच्छा है कि आप किसी बुद्धिमान की डांट सुनें।
+* भविष्य के अन्धकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है।
+* पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है।
+* कच्चा पात्र कच्चे पात्र से टकराकर टूट जाता है।
+* व्यक्ति को उट-पटांग अथवा गवार वेशभूषा धारण नहीं करनी चाहिए।
+* शराबी व्यक्ति का कोई कार्य पूरा नहीं होता है।
+* बिना उपाय के किए गए कार्य प्रयत्न करने पर भी बचाए नहीं जा सकते, नष्ट हो जाते है।
+दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है।
+* अपने बच्चों को पहले पाँच साल तक खूब प्यार करो, छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो, सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो। आपकी संतति ही आपकी सबसे अच्छी मित्र है।
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+ज़िन्दगी करीब से देखने में एक त्रासदी है, लेकिन दूर से देखने पर एक कॉमेडी।
+असफलता महत्त्वहीन है। अपना मजाक बनाने के लिए हिम्मत चाहिए होती है।
+हास्य टॉनिक है, राहत है, दर्द रोकने वाला है।
+इस मक्कार दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, यहाँ तक की हमारी परेशानिया भी नहीं।
+मैं ऐसी सुन्दरता के साथ धैर्यपूर्वक नहीं रह सकता जिसे समझने के लिए किसी को व्याख्या करनी पड़े।
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+आप और मैं अनंत विकल्पों का चुनाव कर सकते हैं। हमारे अस्तित्व के हर एक क्षण में हम उन सभी संभ���वनाओं के मध्य में होते हैं जहाँ हमारे पास अनंत विकल्प मौजूद होते हैं।
+अपने आनंद से पुनः जुड़ने से महत्त्वपूर्ण और कुछ भी नहीं है। कुछ भी इतना समृद्ध नहीं है।कुछ भी इतना वास्तविक नहीं है।
+अपने शरीर को जानकार कर एवं विश्वास और जीव विज्ञान के बीच कि कड़ी समझ कर आप उम्र बढ़ने से मुक्ति पा सकते हैं।
+हम उम्र बढ़ने, बीमारी और मृत्यु के शिकार नहीं हैं। ये सीनरी का हिस्सा हैं, सिद्ध पुरुष नहीं हैं जिनमे कोई बदलाव नहीं आता। यह सिद्ध पुरुष आत्मा है, सनातन अस्तित्व की अभिव्यक्ति।
+हमारी सोच और हमारा व्यवहार हमेशा किसी प्रतिक्रिया की आशा में होते हैं। इसलिए ये डर पर आधारित हैं।
+ब्रह्माण्ड में कोई भी टुकड़ा अतिरिक्त नहीं है। हर कोई यहाँ इसलिए है क्योंकि उसे कोई जगह भरनी है, हर एक टुकड़े को बड़ी पहेली में फिट होना है।
+यदि आप और मैं इस क्षण किसी के भी विरुद्ध हिंसा या नफरत का विचार ला रहे हैं तो हम दुनिया को घायल करने में योगदान दे रेहे हैं।
+स्वभाव रखना है तो एक छोटे से दीपक की तरह रखो यो गरीव की झोंपड़ी में भी उतनी रौशनी देता है जितनी के एक राजा के महल में देता है।
+ख़ुशी एसी घटनायों की निरंतरता है जिसका आप कभी विरोध नहीं कर पाते।
+अंहकार, दरअसल वास्तविकता में आप नहीं है। अंहकार की आपकी अपनी छवि है। ये आपका सामाजिक मुखौटा है। ये वो पात्र है जो आप खेल रहे हैं। आपका सामाजिक मुखौटा प्रशंशा पर जीता है। वो नियंत्रण चाहता है, सत्ता के दम पर पनपता है क्योंकि वो भय में जीता है।
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+*हम अपने शाशकों को नहीं बदल सकते पर जिस तरह वो हम पे शाशन करते हैं उसे बदल सकते हैं।
+*मेरे भूत, वर्तमान और भविष्य के बीच एक आम कारक है: रिश्ते और विश्वास। यही हमारे विकास की नीव हैं।
+*रिलायंस में विकास की कोई सीमा नहीं है।मैं हमेशा अपना वीज़न दोहराता रहता हूँ।सपने देखकर ही आप उन्हें पूरा कर सकते हैं।
+*हमारे स्वप्न विशाल होने चाहिए। हमारी महत्त्वाकांक्षा ऊँची होनी चाहिए। हमारी प्रतिबद्धता गहरी होनी चाहिए और हमारे प्रयत्न बड़े होने चाहिए। रिलायंस और भारत के लिए यही मेरा सपना है।
+*फायदा कमाने के लिए न्योते की ज़रुरत नहीं होती।
+*यदि आप दृढ संकल्प और पूर्णता के साथ काम करेंगे तो सफलता ज़रूर मिलेगी।
+*कठिन समय में भी अपने लक्ष्य को मत छोड़िये और विपत्ति को अवसर में बदलिए।
+*एक दिन धीरुभाई चल�� जायेगा। लेकिन रिलायंस के कर्मचारी और शेयर धारक इसे चलाते रहेंगे। रिलायंस अब एक विचार है, जिसमे अंबानियों का कोई अर्थ नहीं है।
+*युवाओं को एक अच्छा वातावरण दीजिये। उन्हें प्रेरित कीजिये। उन्हें जो चाहिए वो सहयोग प्रदान कीजिये। उसमे से हर एक आपार उर्जा का श्रोत है। वो कर दिखायेगा।
+*हमारे स्वप्न विशाल होने चाहिए। हमारी महत्त्वाकांक्षा ऊँची होनी चाहिए। हमारी प्रतिबद्धता गहरी होनी चाहिए और हमारे प्रयत्न बड़े होने चाहिए। रिलायंस और भारत के लिए यही मेरा सपना है।
+*समय सीमा पर काम ख़तम कर लेना काफी नहीं है,मैं समय सीमा से पहले काम ख़तम होने की अपेक्षा करता हूँ।
+*जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं, वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं।
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+* बंदूकें महत्त्व में सिर्फ संविधान से कम होती हैं; वे लोगों की स्वतंत्रता का दांत होती हैं।
+* यदि आप अपनी प्रतिष्ठा का सम्मान करते हैं तो अच्छे गुडों से संपन्न लोगों के साथ जुड़िये; क्योंकि बुरी संगत में रहने से अच्छा अकेले रहना है।
+* सच्ची दोस्ती धीमी गति से उगने वाला पौधा है, और कोई इस पदवी का हकदार बने उससे पहले उसे विपत्ति के झटको से गुजरना और उन्हें सहना होगा।
+* बुरी संगत में रहने से अच्छा अकेले रहना है।
+* बिना प्रभु और बाइबिल के देश पर सही ढंग से शासन करना असंभव है।
+* सभी देशों के प्रति अच्छी भावना और न्याय रखें। सभी के साथ शांति और सद्भाव स्थापित करें।
+* सरकार तर्कपूर्ण नहीं है, वह सुवक्ता नहीं है; वह ताकत है। आगा की तरह, वह एक खतरनाक नौकर है और एक भयानक मालिक।
+* वह समय बहुत नज़दीक है जो तय करेगा कि अमेरिकी स्वतंत्र होंगे या गुलाम।
+* अनुशासन सेना की आत्मा है। यह छोटी संख्या को भयंकर बना देती है; कमजोरों को सफलता और सभी को सम्मान दिलाती है।
+* जब हमने सैनिकों की कल्पना की तो हमने नागरिकों को एक तरफ नहीं रख दिया।
+* कुछ लोगों में ही सबसे ऊँची बोली लगाने वाले से बचने का गुण होता है।
+* हमारी राजनीतिक व्यवस्था का आधार लोगों का अपनी सरकार के संविधान को बदलने का अधिकार है।
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+* मेरे सभी खेल राजनीतिक खेल होते थे; मैं जोन ऑफ आर्क की तरह थी, मुझे हमेशा दांव पर लगा दिया जाता था।
+* यदि मैं इस देश की सेवा करते हुए मर भी जाऊं, मुझे इसका गर्व होगा। मेरे खून की हर एक बूँद …।।इस देश की तरक्की में और इसे मजबूत और गतिशील बनाने में योगदान देगी���
+* अगर मैं एक हिंसक मौत मरती हूँ, जैसा की कुछ लोग डर रहे हैं और कुछ षड्यंत्र कर रहे हैं, मुझे पता है कि हिंसा हत्यारों के विचार और कर्म में होगी, मेरे मरने में नहीं।
+* लोग अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं पर अधिकारों को याद रखते हैं।
+* क्रोध कभी बिना तर्क के नहीं होता, लेकिन कभी-कभार ही एक अच्छे तर्क के साथ।
+* क्षमा वीरों का गुण है।
+* कुछ करने में पूर्वाग्रह है – चलिए अभी कुछ होते हुए देखते हैं। आप उस बड़ी योजना को छोटे-छोटे चरणों में बाँट सकते हैं और पहला कदम तुरंत ही उठा सकते हैं।
+* सरकार तर्कपूर्ण नहीं है, वह सुवक्ता नहीं है; वह ताकत है। आगा की तरह, वह एक खतरनाक नौकर है और एक भयानक मालिक।
+* आप बंद मुट्ठी से हाथ नहीं मिला सकते|
+* लोग अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं पर अधिकारों को याद रखते हैं|
+* प्रश्न करने का अधिकार मानव प्रगति का आधार है|
+* कुछ करने में पूर्वाग्रह है – चलिए अभी कुछ होते हुए देखते हैं. आप उस बड़ी योजना को छोटे-छोटे चरणों में बाँट सकते हैं और पहला कदम तुरंत ही उठा सकते हैं
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+* हिंसक क्रांति हमेशा किसी न किसी तरह की तानाशाही लेकर आई है… क्रांति के बाद, धीरे-धीरे एक नया विशेषाधिकार प्राप्त शासकों एवं शोषकों का वर्ग खड़ा हो जाता है, लोग एक बार फिर उसके अधीन हो जाते हैं।
+अगर आप सचमुच स्वतंत्रता, स्वाधीनता की परवाह करते हैं, तो बिना राजनीति के कोई लोकतंत्र या उदार संस्था नहीं हो सकती। राजनीति के रोग का सही मारक बेहतर राजनीति ही हो सकती है, राजनीति का अपवर्जन नहीं।
+मेरी रुचि सत्ता के कब्जे में नहीं, बल्कि लोगों द्वारा सत्ता के नियंत्रण में है।
+* केवल वे ही लोग हिंसक रास्ते को अपनाते हैं जिन्हें लोगों पर भरोसा और आत्मविश्वास नहीं होता, या फिर जनता का भरोसा जीतने में असमर्थ होते हैं।
+* भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं। क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति – सम्पूर्ण क्रान्ति आवश्यक है।
+* सम्पूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है।
+* सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है – राजनैतिक, आर्थिक, सामाज���क, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है।
+* राष्ट्रीय एकता के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति धार्मिक अन्धविश्वासों से बाहर निकलकर अपने अन्दर एक बौद्धिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करे।
+* लोकतंत्र को शांति के बिना सुरक्षित और मजबूत नहीं बनाया जा सकता। शांति और लोकतंत्र एक सिक्के के दो पहलू हैं। एक के बिना दूसरा बचा नहीं रह सकता।
+* जब सत्ता बंदूक की नली से बाहर आती है और बंदूक आम लोगों के हाथों में नहीं रहती, तब सत्ता सर्वदा अग्रिम पंक्ति वाले क्रांतिकारियों के बीच सबसे क्रूर मुट्ठीभर लोगों द्वारा हड़प ली जाती है।
+* मुझे न तो पहले विश्वास था और न अब है कि राज्य पूर्ण रूप से कभी लुप्त हो जाएगा। परन्तु मुझे यह विश्वास है कि राज्य के कार्यक्षेत्र को जहां तक सम्भव हो घटाने के प्रयास करना सबसे अच्छा उद्देश्य है।
+* राजनीतिक दलीय प्रणाली में जनता की स्थिति उन भेड़ों की तरह होती है जो निश्चित अवधि के पश्चात् अपने लिए ग्वाला चुन लेती है। ऐसी लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली में मैं उस स्वतन्त्रता के दर्शन कर नहीं पाता जिसके लिए मैंने तथा जनता ने संघर्ष किया था।
+* युवा पीढ़ी के उत्साह और आदर्शों को रचनात्मक कार्यों में प्रवृत्त करना कोई बुरी बात नहीं है, परन्तु साधन तथा साध्य के सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि युवा पीढ़ी को क्रान्ति के लिए प्रत्येक प्रकार के साधनों को प्रयुक्त करने को अनुमति दे दी जाए।
+* जब तक प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में राष्ट्रवाद की भावना का विकास नहीं होगा तब तक देश का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। भारत में सांस्कृतिक एकता होते हुए भी राजनीतिक एकता का अभाव है। भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा सम्पूर्ण भारतीय प्रदेश पर अधिकार करने के बाद ही एक सरकार के अन्तर्गत राष्ट्रीय एकता का उदय हुआ है।
+जयप्रकाश नारायण के बारे में महापुरुषों के विचार
+सन 1946 में जयप्रकाश जी जेल से छूटने के बाद रामधारी सिंह 'दिनकर ने निम्नलिखित ओजपूर्ण पंक्तियाँ लिखीं थी और पटना के गांधी मैदान में उनके स्वागत में उमड़ी लाखों लोगों के सामने पढ़ी थी-
+: पर, सौंप देश के हाथों में वह एक नई तलवार गया।
+: जय नई आग! जय नई ज्योति! जय नये लक्ष्य के अभियानी!
+: स्वागत है, आओ, काल-सर्प के फण ��र चढ़ चलने वाले!
+: स्वागत है, आओ, हवनकुण्ड में कूद स्वयं बलने वाले!
+: है "जयप्रकाश" वह जो कि पंगु का, चरण, मूक की भाषा है,
+: है "जयप्रकाश" वह टिकी हुई, जिस पर स्वदेश की आशा है।
+: है "जयप्रकाश" वह नाम जिसे, इतिहास समादर देता है,
+: वाणी की अंग बढ़ाने को, गायक जिसका गुण गाते हैं।
+: स्वप्नों का दृष्टा "जयप्रकाश भारत का भाग्य-विधाता है।"
+
+
+* एक ऐसा क्षण जो इतिहास में बहुत ही कम आता है, जब हम पुराने के छोड़ नए की तरफ जाते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब वर्षों से शोषित एक देश की आत्मा, अपनी बात कह सकती है।
+* जब तक मैं स्वयं में आश्वस्त हूँ की किया गया काम सही काम है तब तक मुझे संतुष्टि रहती है।
+* तथ्य तथ्य हैं और आपके नापसंद करने से गायब नहीं हो जायेंगे।
+* सुझाव देना और बाद में हमने जो कहा उसके नतीजे से बचने की कोशिश करना बेहद आसान है
+* नागरिकता देश की सेवा में निहित है।
+* संकट के समय हर छोटी चीज मायने रखती है।
+* संकट और गतिरोध जब वे होते हैं तो कम से कम उनका एक फायदा होता है कि वे हमें सोचने पर मजबूर करते हैं।
+* महान कार्य और छोटे लोग साथ नहीं चल सकते।
+* हर एक हमलावर राष्ट्र की यह दावा करने की आदत होती है कि वह अपनी रक्षा के लिए कार्य कर रहा है।
+* एक नेता या कर्मठ व्यक्ति संकट के समय लगभग हमेशा ही अवचेतन रूप में कार्य करता है और फिर अपने किये गए कार्यों के लिए तर्क सोचता है।
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+* स्वर्ग में और पृथ्वी पर सारे अधिकार मुझे दिए गए हैं।
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+* धर्म लोगों का अफीम है।
+* साम्यवाद के सिद्धांत का एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है: सभी निजी संपत्ति को ख़त्म किया जाये।
+* धर्म मानव मस्तिष्क जो न समझ सके उससे निपटने की नपुंसकता है।
+* नौकरशाह के लिए दुनिया महज एक हेर-फेर करने की वस्तु है।
+* पूँजी मृत श्रम है, जो पिशाच की तरह केवल जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है, और जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों को चूसता है।
+* सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से मापी जा सकती है।
+* धर्म का अंत होना ही लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता है।
+* मजदूरों के पास अपनी जंजीरों के अलावा खोने को कुछ और नहीं है और उनके पास जीतने को पूरी दुनिया है ।
+* धर्म जनता के लिए अफीम की तरह है ।
+* पूँजी मृतश्रम है जो पिशाच की तरह केवल जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है ,और जितना अधिक ���े जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों का खून चूसता है ।
+* सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले सम्मान से मापी जा सकती है ।
+* नौकरशाह के लिए दुनिया महज एक हेर फेर करने की वस्तु है।
+* आजादी जरुरत की चेतना होती है वह तब तक अंधी रहती है जब तक उसे होश न आ जाये।
+* बड़ी मात्रा में उपयोग की चीजों का उत्पादन का परिणाम बहुत सारे बेकर लोग होते हैं ।
+* अमीर गरीब के लिए कुछ भी कर सकते है ,लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते।
+* बिना किसी शक के मशीनों ने सम्रद्ध आलसियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ा दी है ।
+* बिना उपयोग की वस्तु हुए किसी चीज की कीमत नहींं हो सकती।
+* चिकित्सा संदेह तथा बीमारी को भी ठीक करती है ।
+* इतिहास खुद को दोहराता है पहले एक त्रासदी की तरह फिर एक मजाक की तरह।
+* जीने और लिखने के लिए लेखक को पैसा कमाना चाहिए लेकिन किसी भी सूरत में उसे पैसा कमाने के लिए जिना और लिखना नहीं चाहिए।
+* लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है ।
+* यूरोप को एक काली छाया सता रही है साम्यवाद की छाया ।
+* क्षण लाभ के तत्व है ।
+* सामाजिक प्रगति को महिलाओं की सामाजिक स्थिति से मापा जा सकता है ।
+* वैज्ञानिक आलोचना पर आधारित प्रत्येक राय का मैं स्वागत करता हूँ।
+* अज्ञान ने अभी तक कभी किसी की मदद नहीं की।
+* प्रत्येक से उनकी क्षमता के अनुसार प्रत्येक को उनकी आवश्यकता के अनुसार।
+* दार्शनिकों ने संसार की केवल विभिन्न प्रकार से व्याख्या की है।हालांकि बात इसे बदलने की है।
+* क्रांतियां इतिहास के इंजन है।
+* इतिहास खुद को दोहराता है पहले त्रासदी के रूप में दूसरे तमाशे के रूप में।
+* पुरूष अपना इतिहास खुद बनाते हैं, लेकिन वे इसे वैसा नहीं बनाते जैसा वे चाहते हैं।
+* धर्म लोगों का अफीम है।
+* सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से मापी जा सकती है।
+* नौकरशाह के लिए दुनिया एक हेर-फेर करने की वस्तु है।
+* शांति का अर्थ साम्यवाद के विरोध का नहीं होना है।
+* जरुरत तब तक अंधी होती है जब तक उसे होश न आ जाए। आजादी जरुरत की चेतना होती है।
+* अमीर गरीब के लिए कुछ भी कर सकते हैं लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते।
+* कोई भी इतिहास की कुछ जानकारी रखता है वो ये जनता कि महान सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं के उत्थान के असंभव है। सामाजिक प्रगति महिलाओं की सामाजिक स्थिति को देखकर मापी जा सकती है।
+* पूंजी मृत श्रम है, जो पिशाच की तरह सिर्फ जीवित श्रमिकों ���ा खून चूस कर जिंदा रहता है, और जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों को चूसता है।
+* धर्म मानव मस्तिष्क जो न समझ सके उससे निपटने की नपुंसकता है।
+* मजदूरों के पास अपनी जंजीरों के अलावा और कुछ भी खाने को नहीं है। उनके पास जीतने को एक दुनिया है।
+* मानसिक पीड़ा का एकमात्र मारक शारीरिक पीड़ा है।
+* अमीर गरीब के लिए कुछ भी कर सकते हैं लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते।
+* अनुभव सबसे खुशहाल लोगों की प्रशंसा करता है, वे जिन्होंने सबसे अधिक लोगों को खुश किया।
+* बिना किसी शक के मशीनों ने समृद्ध आलसियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ा दी है।
+* यह बिलकुल असंभव है कि प्रकृति के नियमो से ऊपर उठा जाए। जो ऐतिहासिक परिस्थितियों में बदल सकता है वह महज वो रूप है जिसमें ये नियम खुद को क्रियांवित करते हैं।
+* समाज व्यक्तियों से नहीं बना होता है बल्कि खुद को अंतर संबंधों के योग के रूप में दर्शाता है, वो संबंध जिनके बीच में व्यक्ति खड़ा होता है।
+* कारण हमेशा से अस्तित्व में रहे हैं, लेकिन हमेशा उचित रूप में नहीं।
+* जमींदार और सभी लोगों की तरह, वहां से काटना पसंद करते हैं जहाँ उन्होंने कभी बोया नहीं।
+* बिना उपयोग की वस्तु हुए किसी चीज की कीमत नहीं हो सकती।
+* जीने और लिखने के लिए लेखक को पैसा कमाना चाहिए, लेकिन किसी भी सूरत में उसे पैसा कमाने के लिए जीना और लिखना नहीं चाहिए।
+* लोगों के विचार उनकी भौतिक स्थिति के सबसे प्रत्यक्ष उद्भव हैं।
+* जितना अधिक श्रम का विभाजन और मशीनरी का उपयोग बढ़ता है, उतना ही श्रमिकों के बीच प्रतिस्पर्धा बढती है और उतना ही उनका वेतन कम होता जाता है।
+* जबकि कंजूस मात्र एक पागल पूंजीपति है, पूंजीपति एक तर्कसंगत कंजूस है।
+* लेखक इतिहास के किसी आन्दोलन को शायद बहुत अच्छी तरह से बता सकता है, लेकिन निश्चित रूप से वह इसे बना नहीं सकता।
+* शाशक वर्ग के विचार हर युग में सत्तारूढ़ विचार होते हैं, यानि जो वर्ग समाज की भौतिक वस्तुओं पर शासन करता है, उसी समय में वह उसके बौद्धिक बल पर भी शासन करता है।
+* चिकित्सा संदेह और बीमारी को भी ठीक करती है।
+* शायद ये कहा जा सकता है कि मशीनें विशिष्ट श्रम के विद्रोह को दबाने के लिए पूंजीपतियों द्वारा लगाए गए हथियार हैं।
+* मानसिक श्रम का उत्पाद-विज्ञान-हमेशा अपने मूल्य से कम आँका जाता है, क्योंकि इसे पुनः उत्पादित करने में लगने वाले श्रम-समय क��� इसके मूल उत्पादन में लगने वाले श्रम समय से कोई संबंध नहीं होता।
+* सभ्यता और आमतौर पर उद्योगों के विकास ने हमेशा से खुद को वनों के विनाश में इतना सक्रिय रखा है कि उसकी तुलना में हर एक चीज जो उनके संरक्षण और उत्पत्ति के लिए की गई है वह नगण्य है।
+* क्रांतियाँ इतिहास के इंजिन हैं।
+* एक भूत यूरोप को सता रहा है-साम्यवाद का भूत।
+* कारण हमेशा से अस्तित्व में रहे हैं, लेकिन हमेशा उचित रूप में नहीं।
+* हमें ये कहना चाहिए कि एक व्यक्ति के एक घंटे की कीमत दुसरे व्यक्ति के एक घंटे के बराबर होती है, बल्कि ये कहें कि एक घंटे के दौरान एक आदमी उतना ही मूल्यवान है जितना कि एक घंटे।
+* धर्म दीन प्राणियों का विलाप है, बेरहम दुनिया का ह्रदय है और निष्प्राण परिस्थितियों का प्राण है। यह लोगों का अफीम है।
+* लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता धर्म का अंत है।
+* पिछले सभी समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है।
+* पूंजी मजदुर की सेहत और या उसके जीवन की लंबाई के प्रति लापरवाह है, जब तक कि उसके ऊपर समाज का दवाब न हो।
+* साम्यवाद के सिद्धांत को एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है: सभी निजी संपत्ति को खत्म किया जाए।
+* पूंजीवादी समाज में पूंजी स्वतंत्र और व्यक्तिगत है, जबकि जीवित व्यक्ति आश्रित है और उसकी कोई निजता नहीं है।
+* लेखक इतिहास के किसी आंदोलन को शायद बहुत अच्छी तरह से बता सकता है, लेकिन निश्चित रूप से इसका सृजन नहीं कर सकता।
+* चिकित्सा बीमारी की तरह संदेह को भी ठीक करती है।
+* इंडस्ट्रियल रूप से ज्यादा विकसित देश कम विकसित देशों की तुलना में खुद की छवि दिखाते हैं।
+* पूंजीवादी उत्पादन इसलिए प्रौद्योगिकी विकसित करता है और विभिन्न प्रक्रियाओं को एक पूर्ण समाज के रूप में संयोजित करता है केवल संपत्ति के मूल स्त्रोतों जमीन और मजदूर की जमीन खोदकर।
+* क्रांति के लिए अंग्रेजी में सभी आवश्यक वस्तुएं हैं लेकिन उसमे कमी है है सामान्यीकरण और क्रांतिकारी उत्साह की भावना की।
+* लेखक बहुत अच्छी तरह से अपने मुखपत्र के रूप में इतिहास के एक आन्दोलन की सेवा कर सकते हैं, लेकिन वह निश्चित रूप से इसे पैदा नहीं कर सकते।
+* आजादी जरुरत की चेतना होती है।
+* लोग क्या कहते हैं, सोचकर जीवन में अपने जूनून को मत छोड़ें।
+* हर किसी से उसकी क्षमता के अनुसार, हर किसी को उसकी जरुरत के अनुसार।
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+* हम बदलाव की श��रुआत अपने घरों,आस–पड़ोस की जगहों,बस्तीयों,गावों,और स्कूलों से कर सकते हैं।
+* जो लोग समय रहते अपने जीवन का चार्ज नहीं ले लेते वे समय द्वारा लाठी चार्ज किये जाते हैं।
+* मौजूदा दृष्टिकोण में प्रबल बदलाव के बिना सम्बन्ध नहीं बन सकते।
+* मैंने हमेशा से अपने अन्दर वंचित लोगों के लिए जीने और सेवा करने का उत्साह पाला है।
+* आगे बढ़ने के लिए खुद से चुने गए अभ्यास हैं।
+* काम मुझे ‘ख़ुशी’ देता है और हर एक शुरुआत स्वयं की खोज का एक रास्ता है।
+* समृद्ध आधुनिक पलस्तर सबसे पुराने पेशे को फलने -फूलने देगा …और जब सौदा बुरा होगा तो महिलाएं बेईमानी होने का रोना रोयेंगी।
+* जो लोग समय रहते अपने जीवन का चार्ज नहीं ले लेते वे समय द्वारा लाठी चार्ज किये जाते हैं।
+* आचार्संघिता, शालीनता और नैतिकता असली सैनिक हैं।
+* बिना शाशक और शाशित के बीच की दूरी कम किये भ्रष्टाचार को नहीं मिटाया जा सकता।
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+हजारों खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जो शांति लाये।
+आपके पास जो कुछ भी है है उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए, और ना ही दूसरों से इर्श्या कीजिये। जो दूसरों से इर्श्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती।
+सभी बुरे कार्य मन के कारण उत्पन्न होते हैं। अगर मन परिवर्तित हो जाये तो क्या अनैतिक कार्य रह सकते हैं?
+जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती, मनुष्य भी आध्यात्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता।
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+महावीर स्वामी जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर है। आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले, ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहाँ तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को इनका जन्म हुआ। इनका बचपन का नाम ‘वर्धमान’ था। ये ही बाद में स्वामी महावीर बने। महावीर को ‘वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा जाता है। महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। उन्होंने एक लँगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा।
+हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए, उसी युग में ही भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। पूरी दुनिया को उपदेश दिए। उन्होंने दुनिया को पंचशील के सिद्धांत बताए। इसके अनुसार- सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और क्षमा। उन्होंने अपने कुछ विशेष उपदेशों के माध्���म से दुनिया को सही मार्ग दिखाने की कोशिश की।
+अगर आपको सुखी रहना है तो दो चीजे हमेशा याद रखो-भगवान और अपनी मृत्यु।
+* अज्ञानी कर्म का प्रभाव ख़त्म करने के लिए लाखों जन्म लेता है जबकि आध्यात्मिक ज्ञान रखने और अनुशासन में रहने वाला व्यक्ति एक क्षण में उसे समाप्त कर देता है।
+* आप स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मनों से क्या लड़ना? जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेंगे उन्हें आनन्द की प्राप्ति होगी।
+* आपात स्थिति में मन को डगमगाना नहीं चाहिये।
+* ईश्वर का कोई अलग अस्तित्व नहीं है। सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास करने से हर कोई देवत्व को प्राप्त कर सकता है।
+* एक जीवित शरीर केवल अंगों और मांस का एकीकरण नहीं है, बल्कि यह आत्मा का निवास है जो संभावित रूप से परिपूर्ण धारणा (अनंत-दर्शन संपूर्ण ज्ञान (अनंत-ज्ञान परिपूर्ण शक्ति (अनंत-वीर्य) और परिपूर्ण आनंद (अनंत-सुख) है।
+* एक लाख शत्रुओं पर जीत हासिल करने के बजाय स्वयं पर विजय प्राप्त करना बेहतर है।
+* एक सच्चा इंसान उतना ही विश्वसनीय है जितनी माँ, उतना ही आदरणीय है जितना गुरु और उतना ही परमप्रिय है जितना ज्ञान रखने वाला व्यक्ति।
+* कठिन परिस्थितयो में घबराना नहीं चाहिए बल्कि धैर्य रखना चाहिए।
+* किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असल रूप को ना पहचानना है, और यह केवल आत्म ज्ञान प्राप्त कर के ठीक की जा सकती है।
+* किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती है कि अपना असली रूप को ना पहचनना और यह गलती केवल आत्मज्ञान प्राप्त करके ही ठीक की जा सकती हैं।
+* किसी के सिर पर गुच्छेदार या उलझे हुए बाल हों या उसका सिर मुंडा हुआ हो, वह नग्न रहता हो या फटे-चिथड़े कपड़े पहनता हो। लेकिन अगर वो झूठ बोलता है तो ये सब व्यर्थ और निष्फल है।
+* किसी को चुगली नहीं करनी चाहिए और ना ही छल-कपट में लिप्त होना चाहिए।
+* किसी को तब तक नहीं बोलना चाहिए जब तक उसे ऐसे करने के लिए कहा न जाय। उसे दूसरों की बातचीत में व्यवधान नहीं डालना चाहिए।
+* किसी जीवित प्राणी को मारे नहीं। उन पर शासन करने का प्रयास नहीं करें।
+* कीमती वस्तुओं की बात दूर है, एक तिनके के लिए भी लालच करना पाप को जन्म देता है। एक लालचरहित व्यक्ति, अगर वो मुकुट भी पहने हुए है तो पाप नहीं कर सकता।
+* केवल वह विज्ञान महान और सभी विज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ है, जिसका अध्ययन मनुष्य को सभी प्रकार के दुखों से मुक्त करता है
+* केवल वह व्यक्ति जो भय को पार कर चुका है, समता को अनुभव कर सकता है।
+* केवल वही विज्ञान महान और सभी विज्ञानों में श्रेष्ठ है, जिसका अध्यन मनुष्य को सभी प्रकार के दुखों से मुक्त कर देता है।
+* केवल वही व्यक्ति सही निर्णय ले सकता है, जिसकी आत्मा बंधन और विरक्ति की यातना से संतप्त ना हो।
+* क्रोध हमेशा अधिक क्रोध को जन्म देता है और क्षमा और प्रेम हमेशा अधिक क्षमा और प्रेम को जन्म देते हैं।
+* खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।
+* जन्म का मृत्यु द्वारा, नौजवानी का बुढापे द्वारा और भाग्य का दुर्भाग्य द्वारा स्वागत किया जाता है। इस प्रकार इस दुनिया में सब कुछ क्षणिक है।
+* जितना अधिक आप पाते हैं, उतना अधिक आप चाहते हैं। लाभ के साथ-साथ लालच बढ़ता जाता है। जो २ ग्राम सोने से पूर्ण किया जा सकता है वो दस लाख से नहीं किया जा सकता।
+* जिस तरह आपको दुख पसंद नहीं है, उसी तरह दूसरे भी इसे पसंद नहीं करते हैं। यह जानते हुए भी, आपको दूसरों के साथ वही व्यवहार करना चाहिए जो आपको खुद के लिए पसंद हो।
+* जिस प्रकार आप दुःख पसंद नहीं करते उसी तरह और लोग भी इसे पसंद नहीं करते। ये जानकर, आपको उनके साथ वो नहीं करना चाहिए जो आप उन्हें आपके साथ नहीं करने देना चाहते।
+* जिसने भय को पार कर लिया है, वह समभाव का अनुभव कर सकता है।
+* जैसे कि हर कोई जलती हुई आग से दूर रहता है, इसी प्रकार बुराइयां एक प्रबुद्ध व्यक्ति से दूर रहती हैं।
+जो भय का विचार करता है वह खुद को अकेला (और असहाय) पाता है ।
+* जो लोग जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य से अनजान हैं वे व्रत रखने और धार्मिक आचरण के नियम मानने और ब्रह्मचर्य और ताप का पालन करने के बावजूद निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे।
+* जो सुख और दुःख के बीच में समनिहित रहता है वह एक श्रमण है, शुद्ध चेतना की अवस्था में रहने वाला।
+* पर्यावरण का महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि एक आप ही इसके अकेले तत्व नहीं हो।
+* प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद बाहर से नहीं आता।
+* प्रत्येक जीव स्वतंत्र है। कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता।
+* प्रबुद्ध व्यक्ति को यह विचार करना चाहिए कि उसकी आत्मा असीम उर्जा से संपन्न है।
+* बाहरी त्याग अर्थहीन है यदि आत्मा आंतरिक बंधनों से जकड़ी रहती है।
+* भगवान् का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है। हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है।
+* भिक्षुक (संन्यासी) को उस पर नाराज़ नहीं होना चाहिए जो उसके साथ दुर्व्यवहार करता है। अन्यथा वह एक अज्ञानी व्यक्ति की तरह होगा। इसलिए उसे क्रोधित नहीं होना चाहिए।
+* मुझे अनुराग और द्वेष, अभिमान और विनय, जिज्ञासा, डर, दु:ख, भोग और घृणा के बंधन का त्याग करने दें (समता को प्राप्त करने के लिए)।
+* मौन और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है।
+* वह जिसकी सहायता से हम सत्य को जान सकते हैं, चंचल मन को नियंत्रित कर सकते हैं और आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं, उसे ज्ञान कहते हैं।
+* वाणी के अनुशासन में असत्य बोलने से बचना और मौन का पालन करना शामिल है।
+* वो जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके, और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं।
+* शांति और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है।
+* सत्य के प्रकाश से प्रबुद्ध हो, बुद्धिमान व्यक्ति मृत्यु से ऊपर उठ जाता है।
+* सभी अज्ञानी व्यक्ति पीड़ाएं पैदा करते हैं। भ्रमित होने के बाद, वे इस अनन्त दुनिया में दुःखों का उत्पादन और पुनरुत्थान करते हैं।
+सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है ।
+* सभी जीवों के प्रति दया भाव रखें। नफ़रत से विनाश होता है।
+* सभी जीवों-जंतु के प्रति सम्मान अहिंसा है।
+* सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं, और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं।
+* साधक ऐसे शब्द बोलता है जो नपे-तुले हों और सभी जीवित प्राणियों के लिए लाभकारी हों।
+* साहसी हो या कायर दोनों को को मरना ही है। जब मृत्यु दोनों के लिए अपरिहार्य है, तो मुस्कराते हुए और धैर्य के साथ मौत का स्वागत क्यों नहीं किया जाना चाहिए?
+* स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना? वह जो स्वयम पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी।
+* हर आत्मा अपने आप में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद कही बाहर से नहीं आता है।
+* हर आत्मा स्वतंत्र है। कोई भी दूसरे पर निर्भर नहीं करता है।
+* हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो क्योकि, घृणा से विनाश होता है।
+* हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो। घृणा से विनाश होता है।
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+मदर टेरेसा अलबानी महिला थी। जो भारत में अपने ईसाई (क्रिश्चियन) धर्म के प्रचार प्रसार के लिए आई थी। भारत के आजादी के बाद भी यहाँ अपने धर्म परिवर्तन के कार्य में लगे रहने के कारण वापस अपने देश नहीं गई। इस कारण अन्य लोगों की तरह इ���े भी भारतीय नागरिकता मिल गई।
+यदि हमारे मन में शांति नहीं है तो इसकी वजह है कि हम यह भूल चुके हैं कि हम एक दुसरे के हैं।
+शांति की शुरुआत मुस्कराहट से होती है।
+सबसे बड़ी बीमारीकुष्ठ रोग या तपेदिकनहीं है, बल्कि अवांछित होना ही सबसे बड़ी बीमारी है।
+मैं चाहती हूँ कि आप अपने पड़ोसी के बारे में चिंतित हों। क्या आप जानते हैं कि आपका पड़ोसी कौन है?
+छोटी चीजों में वफादार रहिये क्योंकि इन्ही में आपकी शक्ति निहित है।
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+* प्रदर्शन पहचान दिलाता है। पहचान से सम्मान आता है। सम्मान से शक्ति बढ़ती है। शक्ति मिलने पर विनम्रता और अनुग्रह का भाव रखना किसी संगठन की गरिमा को बढ़ाता है।
+* एक साफ अंतःकरण दुनिया का सबसे नर्म तकिया है।
+* हम ईश्वर में यकीन रखते हैं, बाकी सभी तथ्य जमा करते हैं।
+* पैसे की असली शक्ति इसे दान देने की शक्ति का होना है।
+* प्रगति अक्सर मन और मानसिकता के अंतर के बराबर होती है।
+* हमारी संपत्ति हर शाम दरवाजे से बाहर निकलती है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि वो अगली सुबह वापस आ जाए।
+* एक मुमकिन असंभावना एक निश्चित सम्भावना की तुलना में बेहतर है।
+* एक साफ अंतःकरण दुनिया का सबसे नर्म तकिया है।
+* अपने काम से प्रेम करों, जिस कंपनी में काम करते हो उससे नहीं, क्योकि क्या पता कब, वह कम्पनी आप से प्रेम करना बंद कर दे।
+* हमारी संपत्ति हर शाम दरवाजे से बाहर निकलती है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि वो अगली सुबह वापस आ जाए।
+* पैसे की असली शक्ति इसे दान देने की शक्ति का होना है।
+* प्रदर्शन पहचान दिलाता है। पहचान से सम्मान आता है। सम्मान से शक्ति बढ़ती है। शक्ति मिलने पर विनम्रता और अनुग्रह का भाव रखना किसी संगठन की गरिमा को बढ़ाता है।
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+नैपोलियन बोनापार्त Napoléon Bonaparte 15 अगस्त 1769 – 5 मई 1821) फ्रान्स का एक सेनानायक और महान विजेता था। फ्रांसीसी क्रंति के समय उसकी बहुत उन्नति हुई।
+एक लीडर आशा का व्यापारी होता है।
+एक तस्वीर हज़ार शब्दों के बराबर होती है।
+अवसर के बिना काबिलियत कुछ भी नहीं है।
+अगली दुनिया में हम सेनापतियों से ज्यादा चिकित्सकों को लोगों की जिंदगियों के लिए जवाब देना होगा।
+एक सिंघासन महज मखमल से ढंकी एक बेंच है।
+उनमे से जो अत्याचार नहीं पसंद करते, कई ऐसे होते हैं जो अत्याचारी होते हैं।
+संविधान छोटा और अस्पष्ट होना चाहिए।
+एक सेना अपने पेट के बल पर आगे बढ़ती ���ै।
+* असम्भव शब्द सिर्फ बेवकूफों के शब्दकोष में पाया जाता है।
+* संविधान छोटा और अस्पष्ट होना चाहिए।
+* जिसे जीत जाने का भय होता है उसकी हार निश्चित होती है।
+* इतिहास सहमति से किया गया झूठ का संग्रह है।
+* अपने वचन को निभाने का, सबसे अच्छा तरीका है कि वचन ही ना दें, लेकिन वह काम कर दीजिये।
+* निर्धन रहने का एक पक्का तरीका है कि ईमानदार रहिये।
+* राजनीति में कभी पीछे ना हटें, कभी अपने शब्द वापस ना लें, और कभी अपनी गलती ना मानें।
+* राजनीति में मूर्खता एक बाधा नहीं है।
+मरने की तुलना में कष्ट सहने के लिए ज्यादा साहस चाहिए होता है।
+* जीत उसे मिलती है जो सबसे दृढ रहता है।
+* इतिहास विजेताओं द्वारा लिखा गया हैं।
+* जो अत्याचार पसंद नहीं करते, उनमे से कई ऐसे होते हैं जो अत्याचारी होते हैं।
+* अब मैं आज्ञा का पालन नहीं कर सकता, मैंने आज्ञा देने का स्वाद चखा है, और मैं इसे छोड़ नहीं सकता।
+* एक सेना अपने पेट के बल पर आगे बढती है।
+* सम्पन्नता धन के कब्जे में नहीं उसके उपयोग में है।
+* मौत कुछ भी नहीं है, लेकिन हार कर और लज्जित होकर जीना रोज़ मरने के बराबर है।
+* एक सिपाही एक रंगीन रिबन के लिए दिलो जान से लड़ेगा।
+* शरीर के लिए सबसे अच्छा इलाज़ एक शान्त मन है।
+* अवसर के बिना काबिलियत कुछ भी नहीं है।
+* जितनी मुझे फ्रांस की ज़रुरत नहीं है, उससे ज्यादा फ्रांस को मेरी ज़रुरत है।
+* एक सिंहासन महज मखमल से ढंकी एक बेंच है।
+* धर्म आम लोगों को शान्त रखने का एक उत्कृष्ट साधन है।
+* आपको अपने किसी भी दुशमन से ज्यादा लड़ाइयां नहीं लड़नी चाहिए, अन्यथा आप उसे अपना पूरा युद्ध कौशल सीखा देंगे।
+* आदमी अपनी अच्छाइयों से ज्यादा, अपनी बुराइयों द्वारा आसानी से शासित होता है।
+* अगली दुनिया में हम सेनापतियों से ज्यादा, चिकित्सकों को लोगों की जिंदगियों के लिए जवाब देना होगा।
+* कोई व्यक्ति अपने अधिकारों से ज्यादा अपने हितों के लिए लड़ेगा।
+* हज़ार छूरों की तुलना में, विरोधी अखबारों से अधिक डरना चाहिए।
+* युद्ध असभ्यों का व्यापार है।
+* किसी कार्य को खूबसूरती से करने के लिए, मनुष्य को उसे स्वयं करना चाहिये।
+* एक तस्वीर हज़ार शब्दों के बराबर होती है।
+* एक लीडर आशा का व्यापारी होता है।
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+नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में अश्वेत लोगों के साथ होने वाली रंगभेद की नीति का पुरजोर विरोध किया था जिसके कारण उनको 27 वर्ष तक जे�� में रहना पड़ा। नेजेल में रहते हुए भी वे रंगभेद का विरोध करते रहे। बाद में वे दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने।
+* जब मैं लोगों को समझाने की कोशिश कर रहा था तब मैंने एक चीज सीखी। वो यह कि जब तक मैं खुद को नहीं बदल सकता तब तक मैं औरों को नहीं बदल सकता।
+* जिंदगी को जीने के लिये जज़बे और जुनून की जरुरत होती है फिर ये कोई मायने नहीं रखता कि आप कोई छोटा काम कर रहे हो या बड़ा।
+* केवल शिक्षा की सहायता से ही किसी किसान का बेटा डॉक्टर और सुरंग में काम करने वाले आदमी का बेटा सुरंग का मुख्य बन सकता है।
+यदि आप किसी व्यक्ति से उस भाषा में बात करें जो वो समझता है, तो बात उसके सर में जाती है, यदि आप उससे उसकी भाषा में बात करते हैं, तो बात उसके दिल तक जाती है।
+स्वतंत्र होना, अपनी जंजीर को उतार देना मात्र नहीं है, बल्कि इस तरह जीवन जीना है कि औरों का सम्मान और स्वतंत्रता बढे।
+मेरे देश में लोग पहले जेल जाते हैं और फिर राष्ट्रपति बन जाते हैं।
+* शिक्षा दुनिया का सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिससे आप दुनिया को बदल सकते हो।
+* यदि आप किसी व्यक्ति से उस भाषा में बात करते हैं जो वो समझता है तो बात उसके दिमाग में जाती है। लेकिन यदि आप उससे उसकी भाषा में बात करते हैं तो बात सीधे उसके दिल तक जाती है।
+* आप किसी काम में तभी सफल हो सकते हैं जब आप उस पर गर्व करें।
+* एक विजेता सपने देखने वाला होता है। जो कभी भी अपने लक्ष्य को छोड़ता नहीं है, बल्कि उसे पूरा करता है।
+* यह आपका चुनाव है कि आप अपनी आशाओं को देखते हैं या अपने डर को।
+* मैं जातिवाद से नफरत करता हूँ, किसी भी देश के विकास में यह सबसे बड़ी बाधा है।
+* जब सब जीत का जश्न मना रहे हों तब एक नेता को दूसरों को आगे रखकर पीछे से नेतृत्व करना चाहिए। और जब कोई खतरा हो तब एक नेता को आगे आकर नेतृत्व करना चाहिये। तभी लोग आपके नेतृत्व की प्रशंसा करेंगे।
+* मैं एक मसीहा नहीं था, बल्कि एक साधारण व्यक्ति था। जो असाधारण परिस्थितियों के कारण एक नेता बन गया।
+* लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को चुनौती देना है।
+* कोई भी देश वास्तव में तब तक विकसित नहीं हो सकता जब तक कि उसके नागरिक शिक्षित न हों।
+* सबसे कठिन चीज़ समाज का बदलाव नहीं है, बल्कि खुद का बदलाव है।
+* सभी लोगों के लिए काम, रोटी, पानी और नमक हो।
+* मेरे देश में लोग पहले जेल जाते हैं और फिर राष्ट्रपति बन जाते हैं।
+* क्या कोई कभी यह सोचता है कि वह जो चाहता था उसे वो इसलिए नहीं मिला क्योंकि उसके पास प्रतिभा नहीं थी या शक्ति नहीं थी या धीरज नही था या प्रतिबद्धता नहीं थी ?
+* कठिनाइयाँ कुछ लोगो को तोड़ती हैं लेकिन कुछ लोगों को बनाती हैं।
+* मनुष्य की अच्छाई उस लौ के समान है जिसे छुपाया तो जा सकता है लेकिन कभी बुझाया नहीं जा सकता।
+* साहसी लोग शांति के लिए क्षमा करने से भी नहीं घबराते हैं।
+* हर कोई अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठ सकता है और सफलता हासिल कर सकता है। अगर वे समर्पित हैं और वे जो करते हैं उसको लेकर भावुक हैं।
+* हमें समय का सदुपयोग करना चाहिए और हमेशा यह याद रखना चाहिए कि सही करने के लिए समय हमेशा परिपक्व होता है।
+* जब लोग ठान लेते हैं तो वे कुछ भी कर सकते हैं।
+* मैं कभी असफल नहीं होता। मैं या तो जीतता हूं या फिर सीखता हूं।
+* बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना दूसरों की मदद करने के लिए समय और ऊर्जा देने से बड़ा कोई उपहार नहीं हो सकता है।
+* लोग इस बात पर प्रतिक्रिया देते हैं कि आप उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
+* गरीबी कोई दुर्घटना नहीं है। गुलामी और रंगभेद की तरह यह भी मानव निर्मित है और इसे मानव के कार्यों द्वारा ही हटाया जा सकता है।
+* एक बड़े पहाड़ पर चढ़ने के बाद यह पता चलता है कि अभी ऐसे कई पहाड़ चढ़ने के लिए बाकी हैं।
+* जब तक काम खत्म ना हो जाये उसे करना असंभव लगता है।
+* स्वतंत्र होना अपनी गुलामी की जंजीर को उतार देना मात्र नहीं है। बल्कि इस तरह जीवन जीना है कि औरों का सम्मान और स्वतंत्रता बढे।
+* सिर्फ स्वतन्त्र लोग ही समझौता कर सकते हैं, कैदी समझौता नहीं कर सकते हैं। आपकी और मेरी आजादी अलग नहीं है।
+* एक अच्छा दिमाग और एक अच्छा हृदय हमेशा अजेय समीकरण होता है। लेकिन अगर आप इस समीकरण में थोड़ी शिक्षा या कलम की ताकत मिला दें तो यह बेहद खास हो जाता है।
+* क्रोध एवं आक्रोश जहर को पीने एवं ये उम्मीद करने के समान है कि आपके शत्रु खत्म हो जायेंगे।
+* अगर आप अपने शत्रुओं से मित्रता करना चाहते हैं तो आपको उनके साथ काम करना होगा। और इस तरह वो आपके साझेदार हो जायेंगे।
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+यहाँ कोई भी आपका सपना पूरा करने के लिए नहीं है। हर कोई अपनी तकदीर और अपनी हक़ीकत बनाने में लगा है।
+सवाल ये नहीं है कि कितना सीखा जा सकता है…इसके उलट, सवाल ये है कि कितना भुलाया जा सकता है।
+जीवन ठेहराव और गति के बीच का संत��लन है।
+किसी से किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता नहीं है। आप स्वयं में जैसे हैं एकदम सही हैं। खुद को स्वीकारिये।
+* मसीहा को मरे जितना समय हो जाता है कर्मकांड उतना ही प्रबल हो जाता है। अगर आज बुद्ध जीवित होते तो तुम उन्हें पसंद न करते।
+* पेड़ों को देखो, पक्षियों को देखो, बादलों में देखो, सितारों को देखो और अगर आपके पास आँखें है तो आप यह देखने में सक्षम होगे की पूरा अस्तित्व खुश है सब कुछ बस खुश है पेड़ बिना किसी कारण के खुश हैं; वे प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने नहीं जा रहे हैं और वे अमीर बनने भी जा रहे हैं और ना ही कभी उनके पास बैंक बैलेंस होगा फूलों को देखिये बिना किसी कारण के कितने खुश और अविश्वसनीय है।
+* लोग बुद्ध को इतना प्रेम करते हैं कि वो उनका मज़ाक भी उड़ा सकते हैं. ये अथाह प्रेम कि वजह से है; इसलिए उनमे डर नहीं है।
+* जब मैं कहता हूँ कि आप लोग देवी-देवता हैं तो मेरा मतलब होता है कि आप में अनंत संभावनाएं है, आपकी क्षमताएं अनंत हैं।
+*जो निःशुल्क है वह सबसे ज्यादा किमती है,
+*नींद, शांति, आनंद, हवा, पानी,प्रकाश और सबसे ज्यादा किमती हमारी सांसें ।
+* जीवन जुआ है, केवल जुआरी ही जीवन को जान सकता है।
+* किसी के जैसा बनने की कोशिश न करे, क्योंकि पहले से ही आप अनमोल है। आप में सुधार की कोई जरुरत नहीं है। आपको इसे जानने के लिए, अनुभव के लिए अपने पास आना होगा।
+* ये ध्यान के गुण हैं, एक ध्यानी व्यक्ति के लिए जीवन एक खेल है। जीवन उसके लिए मौज़ है, जीवन एक लीला है, एक नाटक है। वह उसका आनन्द लेता है। वह गंभीर नहीं है। वह तनावमुक्त है।
+* सत्य ऐसी कोई चीज नहीं है जिसे बाहर खोजा जाय, यह भीतर महसूस की जाने वाली चीज है।
+* रचनात्मकता अस्तित्व में सबसे बड़ा विद्रोह है।
+* साहस अज्ञात के साथ एक प्रेम संबंध है।
+* भय हमेशा भविष्य के लिए होता है। भय कभी वर्तमान में नहीं होता।
+* मेरा ध्यान सरल है। इसके लिए किसी तरह की जटिल प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं है। यह आसान है। जैसे कोई गा रहा है। जैसे कोई नाच रहा है। जैसे कि कोई चुपचाप बैठा है।
+* असली सवाल यह नहीं है कि मृत्यु के बाद जीवन मौजूद है या नहीं। असली सवाल यह है कि क्या आप मृत्यु से पहले सचेत होकर जीये।
+* जो व्यक्ति अपरिपक्व होते है वे प्यार में पड़ने के बाद एक-दूसरे की स्वतंत्रता को नष्ट कर देते है, बंधन बना देते हैं, एक दूसरे को कैद कर लेते है। परिपक्व व्यक्ति प्यार में एक-दूसरे को मुक्त होने में मदद करते हैं, वे सभी प्रकार के बंधनों को नष्ट करने के लिए एक-दूसरे की मदद करते हैं। और जब प्रेम स्वतंत्रता के साथ बहता है तो उसमे एक सुंदरता होती है। जब प्रेम निर्भरता के साथ बहता है तो उसमे एक कुरूपता होती है।
+* आपका पूरा विचार अपने बारे में दूसरे से लिया गया उधार है। यह उन लोगों से उधार लिया गया है जिन्हें अपने बारे में ख़ुद पता नहीं हैं।
+* जहां तक मेरा प्रश्न है, मैंने कभी भी कुछ आयोजित नहीं किया। बस जिया हूं एक विस्मय के साथ कि मालूम नहीं आगे क्या होने वाला है।
+* दर्द से बचने वाले, आनंद से भी बच जाते है। मृत्यु से बचने वाले, वे जीवन से भी बच जाते हैं।
+* मैं अपना जीवन 2 सिद्धांतों पर जीता हूं। पहला, मैं ऐसे जीता हूं जैसे कि पृथ्वी पर आज मेरा आखिरी दिन है। दूसरा, मैं ऐसे जीता हूं जैसे मैं हमेशा के लिए जीने वाला हूं।
+* मित्रता सबसे शुद्ध प्रेम है। यह प्रेम का उच्चतम रूप है जहां कुछ भी मांगा नहीं जाता है, कोई भी शर्त नहीं होती, जहां बस देने में आनंद आता है।
+* सभी के अंदर साधारण कारण से आत्महत्या करने की एक गहरी इच्छा होती है, उन्हें जीवन निरर्थक प्रतीत होता है। लोग जीवित रहते हैं, इसलिए नहीं कि वे जीवन से प्यार करते हैं, वे सिर्फ इसलिए जीते हैं क्योंकि वे आत्महत्या करने से डरते हैं।
+* जहां कोई पसंद और नापसंद नहीं होता है, तभी आप चीजों को स्पष्ट देख सकते हैं। फिर आपके पास स्पष्टता होती है। आप चीजों को वैसे देखते है जैसे वह है। -ओशो
+* जोखिम के बिना जीवन में कुछ भी कभी प्राप्त नहीं होता है। जितना अधिक आप जोखिम उठाते हैं, उतना ही आप भगवान के करीब होते हैं। जब आप सब कुछ दांव पर लगा देते हो फिर सब कुछ आपका हो जाता है।
+* सवाल ज्यादा सीखने का नहीं है। इसके विपरीत सवाल यह है की कितना हम भुला सके।
+* तुम जीवन का अर्थ तभी पाओगे, यदि तुम इसे निर्माण करते हैं। यह एक कविता है जिसकी रचना की जानी है। यह एक गीत है जिसे अभी गाया जाना है। यह एक नृत्य है जिसे अभी किया जाना है।
+* किसी के पास दो कदम एक साथ उठाने की शक्ति नहीं है, आप एक बार में केवल एक ही कदम उठा सकते हैं।
+* यदि आप किसी व्यक्ति से प्यार करते हैं, आप उस व्यक्ति को पूरी तरह स्वीकार करे। उसके सभी दोषों के साथ।
+* दुनिया में इस विचार के साथ मत जीना कि क्या होने वाला है। चाहे आप जीतने वाले हो या हारने वाले, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मौत सब कुछ छीन लेती है। चाहे आप हारें या जीतें ये मायने नहीं रखता। केवल एक चीज जो मायने रखती है, वह यह है कि आपने खेल कैसे खेला है।
+* आपको शक्ति की आवश्यकता तब होती है जब कुछ हानिकारक करना होता है। अन्यथा प्रेम पर्याप्त है, करुणा पर्याप्त है।
+* मेरा संदेश छोटा सा है, आनंद से जियो और जीवन के समस्त रंगों को जिओ।
+* मेरे पूरे शिक्षा दो शब्दो पर आधारित हैं, ध्यान और प्रेम। ध्यान करें ताकि आप असीम मौन को महसूस कर सकें, और प्यार कर सकें ताकि आपका जीवन एक गीत, एक नृत्य, एक उत्सव बन सके।
+* जिस चीज से आपको डर लगे, वहां तलाशने की कोशिश करें और आप पाएंगे कि सभी डर में मौत का डर छिपा है। सब भय मृत्यु का है। मृत्यु एकमात्र भय का स्रोत है।
+* प्यार में दूसरा महत्वपूर्ण है, वासना में तुम महत्वपूर्ण हो।
+* लोग सोचते हैं कि जो लोग आत्महत्या करते हैं, वे जीवन के खिलाफ हैं। वे नहीं हैं। वे जीवन के लिए बहुत लालसा से भरे हैं, उनके पास जीवन के लिए बड़ी लालसा है और क्योंकि जीवन उनकी वासना को पूरा नहीं कर रहा है, क्रोध में, निराशा में, वे खुद को नष्ट करते हैं।
+* कभी भी किसी के जीवन में हस्तक्षेप न करें और किसी को भी अपने जीवन में हस्तक्षेप करने की अनुमति न दें।
+* जितनी संभव हो उतनी गलतियाँ करें, केवल एक ही बात याद रखें, फिर से वही गलती न करें। और जीवन में आप आगे बढ़ते जाओगे।
+* जीवन कोई समस्या नहीं है। इसे एक समस्या के रूप में देखना गलत कदम उठाना है। यह एक रहस्य है जिसे जीना है, प्यार करना, अनुभव करना है।
+* जिस क्षण आप जीवन को गैर-गंभीर, एक खेल के रूप में देखना शुरू करते हैं, आपके दिल से सारा बोझ गायब हो जाता है। मृत्यु का भय, जीवन का, प्रेम का सब कुछ मिट जाता है।
+* किसी चीज़ की इच्छा करने से पहले सोचें। इस बात की पूरी संभावना है कि वह पूरी हो जाएगी और फिर आपको दुःख होगा।
+* मन, एक सुंदर सेवक है, लेकिन एक खतरनाक मालिक।
+* एक व्यक्ति जो जीवित है, वह वास्तव में तभी जीवित है, जब वह अज्ञात में चलने लिए तैयार हो। वहाँ खतरा है लेकिन वह जोखिम उठाएगा।
+* जब आप प्यार करते हैं, तो प्यार ऐसे करे जैसे कि वह व्यक्ति भगवान हो, उससे कम नहीं। स्त्री को स्त्री के रूप में कभी प्यार मत करो और पुरुष को पुरुष के रूप में कभी प्यार मत करो।
+* तनाव का मतलब है कि आप कुछ और बनना चाहते हैं जो आप नहीं हैं।
+* जीवन का अपने आप ���ें कोई अर्थ नहीं है। जीवन अर्थ सृजन का अवसर है।
+* बुद्ध, बुद्ध हैं। कृष्ण, कृष्ण हैं और तुम, तुम हो। और आप किसी भी तरह से किसी से कम नहीं हैं। खुद का सम्मान करें, अपनी आंतरिक आवाज का सम्मान करें और उसका पालन करें। -ओशो
+* दुनिया को बेहतर बनने में मदद करें। दुनिया को वैसे ही मत छोड़ो जैसा आपने पाया है – इसे थोड़ा बेहतर बनाए, इसे थोड़ा और सुंदर बनाए।
+* दुख, हताशा, क्रोध, निराशा, चिंता, पीड़ा, दुख के साथ एकमात्र समस्या यह है कि आप उनसे छुटकारा चाहते हैं। यही एकमात्र बाधा है। आपको उनके साथ रहना होगा। आप इससे भाग नहीं सकते। ऐसी स्थिति में ही जीवन एकीकृत और विकसित होती है। ये जीवन की चुनौतियां हैं। उन्हें स्वीकार करो। वे आशीर्वाद हैं। अगर आप उनसे बचना चाहते हैं, अगर आप किसी तरह से उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं, तो फिर समस्या पैदा होती है क्योंकि अगर आप किसी चीज से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आप उसे सीधे तौर पर कभी नहीं देख सकेंगे।
+* ध्यान क्या है, अपने एकांत का आनंद लेना। खुद का उत्सव मनाना।
+* उत्सव मनाने वाले बनो, जश्न मनाओ! पहले से ही यहाँ बहुत कुछ है – फूल खिल रहे हैं, पक्षी गा रहे हैं, सूरज आकाश में चमक रहा है – उत्सव मनाओ! आप सांस ले रहे हो और आप जीवित हैं और आपके पास चेतना है, उत्सव मनाएं!
+* जो जानता है, वह जानता है कि प्रवचन करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जानना काफी है।
+* व्यक्ति से प्यार करो लेकिन व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता दो। व्यक्ति से प्यार करें लेकिन आप स्पष्ट हो कि इसके लिए आप अपनी स्वतंत्रता नहीं बेचेगे।
+* यदि आप तर्क से बहुत अधिक चिपकते हैं, तो आप कभी भी उस जीवित प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन पाएंगे जो यह अस्तित्व है। जीवन तर्क से अधिक है। जीवन विरोधाभास है, जीवन रहस्य है।
+* पहली बात याद रखना। सृजन और सृजनकर्त्ता, दो नहीं हैं, वे एक ही हैं।
+* डर का मतलब हमेशा अज्ञात का डर होता है। डर का मतलब हमेशा मौत का डर होता है। डर का हमेशा मतलब होता है खो जाने का डर – लेकिन अगर आप वास्तव में जीवित रहना चाहते हैं, तो आपको खो जाने की संभावना को स्वीकार करना होगा।
+* आपको क्या रुलाता है? यह सिर्फ आपका चीजों के प्रति लगाव है। वह क्या चीज है जिसे आपको खोने का डर है। उन चीजों के बिना धीरे-धीरे जीने की कोशिश करें जिन्हें आप अब सोचते हैं कि आप उसके बिना नहीं रह सकते। अपने भीतर एक स्थिति पैदा करें कि अगर ये चीजें जब खो जायेगी, तो आपके अंदर थोड़ा भी कंपन न हो। तभी आप चीजों के लगाव से मुक्त हो पायेगे।
+* बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो कहीं और जाने से पहले, अपने भीतर जाएगा। यह उसकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। केवल आप स्वयं को जब जानते हैं तो आप कहीं और जा सकते हैं। फिर आप जहां भी जाते हैं, अपने चारों ओर एक शांति, उत्सव मनाते हुए जाते हैं।- ओशो
+* जब भी कोई ऐसी स्थिति पैदा होती है जो डर पैदा करती है, तो आपके पास दो विकल्प हैं- या तो आप उससे लड़ें या आप उड़ान भरें।
+* साधारण प्रेम एक माँग है, वास्तविक प्रेम बांटना है। यह मांग को नहीं जानता, यह केवल देने की खुशी जानता है।
+* भगवान कोई तपस्वी नहीं है, नहीं तो फूल नहीं होते, हरे वृक्ष नहीं होते, केवल रेगिस्तान होते। ईश्वर कोई तपस्वी नहीं है, अन्यथा जीवन में कोई गीत नहीं होता, जीवन में कोई नृत्य नहीं होता – केवल कब्रिस्तान और केवल कब्रिस्तान होते । ईश्वर कोई तपस्वी नहीं है। भगवान जीवन का आनंद लेते हैं।
+* पूरब असफल रहा है क्योंकि उसने बिना प्रेम के ध्यान की कोशिश की। पश्चिम विफल रहा है क्योंकि उसने बिना ध्यान के प्रेम की कोशिश की। मेरा पूरा प्रयास आपको दोनों देने को है- जिसका अर्थ है ध्यान और प्रेम।
+* आपका मन एक बगीचा है, आपके विचार बीज हैं। या तो आप फूल उगा सकते हैं या शोक पैदा कर सकते हो।
+* आपको किसी से कुछ भी मांगने का कोई अधिकार नहीं है। यदि कोई आपसे प्यार करता है, तो उसका आभारी रहें, लेकिन कुछ भी मांग न करे क्योंकि दूसरे को अपने आप से प्यार करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते है। अगर कोई आपसे प्यार करता है, तो यह एक चमत्कार है। चमत्कार से रोमांचित हो।
+* जहां ध्यान नहीं, वहां जीवन नहीं। ध्यान को जानो, जीवन को जानो।
+* यह पैसा, शक्ति और प्रतिष्ठा का सवाल नहीं है। सवाल यह है कि आप आंतरिक रूप से क्या करना चाहते हैं। उसे करें, चाहे परिणाम कुछ भी हो, और आपकी बोरियत दूर हो जाएगी।
+* पृथ्वी पर लाखों लोग रहते हैं, और हम उनके नाम भी नहीं जानते हैं। उस सरल तथ्य को स्वीकार करें। आप यहां केवल कुछ दिनों के लिए हैं और फिर आप चले जाएंगे। इन कुछ दिनों को डर में, पाखंड में बर्बाद मत करो। इन दिनों को आनन्दित में जियो ।
+* मृत्यु के पार जाने का एकमात्र उपाय मृत्यु को स्वीकार कर लो। फिर वह विलीन हो जाता है। निडर होने का एकमात्र तरीका भय को स्वीकार करना है। तब ऊर्जा मुक्��� हो जाती है और वह आपकी स्वतंत्रता बन जाती है।
+* रचनात्मकता व्यक्तिगत स्वतंत्रता की खुशबू है।
+* अंधेरा सुंदर है। इसमें जबरदस्त गहराई, मौन, अनंतता है। प्रकाश आता है और चला जाता है, अंधकार हमेशा बना रहता है, यह प्रकाश की तुलना में अधिक शाश्वत है। प्रकाश के लिए आपको ईंधन की आवश्यकता होती है। अंधेरे के लिए ईंधन की जरूरत नहीं है – यह बस वहाँ है।
+* एक रचनात्मक व्यक्ति वह है जिसके पास अंतर्दृष्टि है, जो उन चीजों को देख सकता है जो पहले किसी और ने नहीं देखी हैं, जो उन चीजों को सुन सकता है जो पहले किसी ने नहीं सुनी हैं – फिर रचनात्मकता पैदा होती है।
+* अंधकार प्रकाश का अभाव है। अहंकार जागरूकता का अभाव है।
+* जीवन में कुछ भी कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है, विशेष रूप से सत्य की ओर उठाए गए कदम।
+* आपका आधा जीवन अतीत और बाकी आधा जीवन भविष्य के बारे में सोचने में बीत जाता है। और जीवन की यात्रा कभी शुरू ही नहीं होती।
+* मन आखिर क्यों हस्तक्षेप करता है? क्योंकि मन समाज द्वारा निर्मित होता है। यह आपके भीतर समाज का एजेंट रूप में है, यह आपकी सेवा करने के लिए नहीं है।
+* परम रहस्यों के द्वार केवल उनके लिए खुल जाता है जिनके पास असीम धैर्य है।
+* केवल अनुशासित लोग स्वतंत्र हो सकते हैं, लेकिन उनका अनुशासन दूसरों के लिए आज्ञाकारिता नहीं होनी चाहिए। उनका अनुशासन उनकी अपनी आंतरिक आवाज़ का पालन हो। और वे इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो।
+* आप जो भी करते हैं, उसे गहरी सतर्कता के साथ करे। तब छोटी-छोटी चीजें भी पवित्र हो जाती हैं। फिर खाना बनाना या सफाई करना पवित्र हो जाता है, वे पूजा बन जाता हैं। यह सवाल नहीं है कि आप क्या कर रहे हैं, सवाल यह है कि आप इसे कैसे कर रहे हैं।
+* यदि आप बुद्धिमान हैं, यदि आप सतर्क हैं, तो साधारण भी असाधारण हो जाता है।
+* आजादी से ज्यादा किसी को कुछ भी पसंद नहीं है। यहां तक कि प्रेम भी स्वतंत्रता के बाद आता है। स्वतंत्रता का मूल्य सर्वोच्च है। स्वतंत्रता के लिए प्रेम का त्याग किया जा सकता है लेकिन प्रेम के लिए स्वतंत्रता का त्याग नहीं किया जा सकता।
+* यदि आप किसी भी मार्ग पर चलते हैं अगर वह मार्ग आपके लिए खुशी लाता है, अधिक संवेदनशीलता, साक्षी, और असीम कल्याण की भावना से भर देता है, यही एकमात्र मानदंड है कि आप सही रास्ते पर जा रहे हैं। और यदि आप अधिक दुखी, अधिक क्रोधित, अहंकारी, अधिक लालची, अधिक वासना के शिकार हो जाते हैं, तो यह संकेत हैं कि जो आप गलत रास्ते पर जा रहे हैं।
+* सत्य को बौद्धिक प्रयास से नहीं पाया जा सकता क्योंकि सत्य एक सिद्धांत नहीं है, यह एक अनुभव है।
+* आनंद आध्यात्मिक घटना है। यह खुशी या खुशी से पूरी तरह से अलग है। इसका बाहर के साथ, दूसरे के साथ कुछ भी लेना देना नहीं है, यह एक आंतरिक घटना है।
+* एकांत तुम्हारा स्वभाव है। तुम अकेले पैदा हुए, तुम अकेले ही मरोगे। और आप अकेले जी रहे हैं बिना इसे पूरी तरह से समझे बिना, बिना पूरी जागरूकता के। आप एकांत को अकेलेपन के रूप में गलत समझते हैं। यह केवल एक गलतफहमी है। आप खुद के लिए पर्याप्त हैं।
+* दुख एक संकेत है कि आप संघर्ष में हैं।
+* आपके पास निश्चित विचार हैं कि क्या होना चाहिए। और अगर जीवन आपके अनुसार नहीं चल रहा है, तो आपको लगता है कुछ गलत हो रहा है। कुछ भी गलत नहीं हो रहा है। जीवन अपने आप चल रहा है, केवल आपके कुछ निश्चित विचार हैं। इसलिए उन निश्चित विचारों को छोड़ दें। ज़िन्दगी कभी भी आपका पालन नहीं करने वाली है। आपको ज़िन्दगी का पालन करना है। तो अगर यह अव्यवस्थित है, तो अव्यवस्थित होने दो। तुम क्या कर सकते हो?
+* बिता हुआ कल एक स्मृति है, भविष्य एक कल्पना है। केवल वर्तमान ही समय है। अतीत नहीं है, वह पहले ही जा चुका है। भविष्य नहीं है, यह अभी तक नहीं आया है। केवल वर्तमान है।- ओशो
+* काम को खेल के रूप में करें और इसका आनंद लें। सब कुछ एक चुनौती है। बस इसे करना है इसलिए मत कीजिये।
+* जो लोग जो कभी गलती नहीं करते, वे कभी कुछ नहीं सीखते, वे कभी आगे नहीं बढ़ते। विकास के लिए गलतिया करने की हिम्मत होनी चाहिए। इस पल से ही केवल वही करें जो आप करना चाहते हैं, चाहें आपको इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े।
+* अपना गीत गाओ और अगर कोई नहीं सुनता है, तो इसे अकेले गाओ और इसका आनंद लें।
+* प्रशिक्षण की आवश्यकता है, लेकिन प्रशिक्षण लक्ष्य नहीं है। प्रशिक्षण सिर्फ एक साधन है।
+* जीवन एक उत्सव बन सकता है यदि आप जानते हैं कि चिंता के बिना कैसे जीना है। अन्यथा जीवन एक लंबी बीमारी बन जाता है, एक बीमारी जो केवल मृत्यु की तरफ ले जाती है।
+* ये पेड़ अधैर्य रूप से नहीं उगते हैं। वे एक अनुग्रह के साथ, धैर्य के साथ, विश्वास के साथ बढ़ते हैं। आपके दिमाग के सिवाय कहीं कोई हड़बड़ी नहीं है। यदि आप वास्तव में शांति और आनंद की स्थिति में रहना चाहते ���ैं, तो आपको चीजों को जल्दी से हासिल करने के लिए अपनी पुरानी आदत को छोड़ना होगा।
+* कोई तुम्हारा दुख पैदा नहीं कर रहा है, कोई भी दुख पैदा नहीं कर सकता है और कोई भी आपके आनंद का सृजन भी नहीं कर सकता है। यह पूरी तरह से व्यक्तिगत घटना है।
+* यह एकमात्र गरीबी है। स्वयं की अज्ञानता, इसके अलावा कोई अन्य गरीबी नहीं है।
+* ध्यान के मार्ग पर, कल्पना एक बाधा है। प्यार के रास्ते पर कल्पना सहायक है।
+* कल्पना का सीधा सा मतलब है कि आप एक निश्चित चीज़ की कल्पना करते हैं लेकिन आप उसमें इतनी ऊर्जा डालते हैं कि वह लगभग वास्तविक हो जाती है।
+* प्रसिद्धि पाना मूर्खता पूर्ण है, व्यर्थ है, निरर्थक है। अगर पूरी दुनिया तुम्हें जान भी ले, फिर भी यह तुम्हें कैसे अमीर बनाता है कैसे तुम्हे आनंदित करता है? यह तुम्हें कैसे अधिक समझने, अधिक जागरूक होने में, अधिक सतर्क रहने के लिए, अधिक जीवित रहने के लिए मदद करता है?
+* याद रखें, यह दर्द आपको दुखी करने के लिए नहीं है। लोग यह समझ नहीं पाते है। यह दर्द बस आपको और अधिक सतर्क करने के लिए है – क्योंकि लोग केवल तब ही सतर्क होते हैं जब तीर उनके दिल में गहरा चला जाता है और उन्हें घाव करता है।
+* यदि हम केवल जीवन के तथ्यों पर कड़ी नज़र डालें, तो हमें पता चलेगा कि, वास्तव में, कुछ भी हमारे हाथ में नहीं है यहां तक हमारे हाथ हमारे हाथ में भी नहीं है। बस अपने हाथ को अपने हाथ से पकड़ने की कोशिश करें और आपको वास्तविकता पता चल जाएगी। वास्तव में, कुछ भी हमारी शक्ति में नहीं है। फिर “मैं” और और “मेरा” कहने का क्या मतलब है? यहाँ सब कुछ हो रहा है। -ओशो
+* योग एक विधि है जो हमें सपनों से बाहर लाता है। योग एक विज्ञान है जो हमें यहाँ और अभी होना सिखाता है।
+* सत्य का आपके विश्वास से कोई लेना-देना नहीं है! आप माने या न माने इससे सत्य पर कोई फर्क नहीं पड़ता। -ओशो
+* आपको अस्तित्व का आभारी होना चाहिए कि उसने आपको कुछ खूबसूरत बच्चों के लिए, एक मार्ग के रूप में चुना है। लेकिन आपको बच्चों की क्षमता पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। न ही आपने आप को उन पर थोपना चाहिए।
+* अधिक जियो और अधिक तीव्रता के साथ जियो। खतरा में जियो। यह आपका जीवन है, इसे किसी भी तरह की मूर्खता के लिए बलिदान मत करो जो आपको सिखाया गया है। यह तुम्हारा जीवन है, इसे जीओ। इसे शब्दों, सिद्धांतों, देशों, और राजनीति के लिए बलिदान मत करो। – ओशो
+* ���पकी सभी परेशानियां आपके मन के कारण होती हैं। आपके विचार, आपका तर्क, बहस, आपका जुनून और आश्चर्य।
+* किसी भी चीज का मूल्य कहां से आता है? यह आपकी इच्छा से आता है। यदि किसी चीज़ को चाहते हैं, तो यह मूल्यवान है। यदि आप इसकी इच्छा नहीं रखते हैं, तो उसका मूल्य गायब हो जाता है। मूल्य किसी चीज में नहीं है, यह आपकी इच्छा में है।
+* आप अच्छा महसूस करते हैं या आप बुरा महसूस करते हैं, ये भावनाएँ आपके अपने अतीत के अवचेतन से आती है, इसके लिए आपके अलावा कोई भी जिम्मेदार नहीं है। कोई भी आपको क्रोधित नहीं कर सकता है, और कोई भी आपको खुश नहीं कर सकता है।
+* ऐसा नहीं है कि आप किसी सुंदर व्यक्ति के प्रेम में पड़ जाते हैं। प्रक्रिया इसके ठीक विपरीत है। जब आप किसी व्यक्ति के प्यार में पड़ते हैं, तो वह व्यक्ति सुंदर दिखता है। यह प्यार है, जो सुंदरता का विचार लाता है।
+* हर कोई रचनात्मक की शक्ति के साथ पैदा होता है, लेकिन बहुत कम लोग रचनात्मक बने रहते हैं।
+* आप कभी भी उतना पीड़ित नहीं होते हैं जितना आप कल्पना करते हैं कि आप पीड़ित हैं। आप उन बीमारियों से ग्रस्त भी नहीं होते हैं जिनसे आप सबसे ज्यादा डरते हैं और न ही उन दुखों से जिन्हें आप डरते हैं।
+* प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्ट नियति के साथ इस दुनिया में आता है – उसे कुछ पूरा करना है, कुछ संदेश देना है, कुछ काम पूरा करना है। आप अकस्मात् यहाँ नहीं आये हैं। इसके पीछे एक उद्देश्य है। अस्तित्व का पूरा इरादा आपके माध्यम से कुछ करने का है।
+* सबसे बड़ा रोमांच चाँद पर जाना नहीं है – सबसे बड़ा रोमांच आपके अपने अंतरतम में जाना है।
+* परम ध्यान है, यथार्थ के प्रति समर्पण। जितना आप अधिक लड़ते हैं, उतना अधिक आप संघर्ष करते हैं और उतना ही आप हारे हुए महसूस करेंगे। गहरे समर्पण में, अहंकार मिट जाता है। और जब अहंकार नहीं होता है, तब पहली बार तुम उसके प्रति सजग होते हो, जो तुम हो।
+* जब तक आप बिना कारण के, बिना किसी मकसद के, कुछ करना शुरू नहीं करते, आप धार्मिक नहीं हो सकते। जिस दिन आपके जीवन में बिना किसी कारण के कुछ घटित होने लगता है, जब आपकी क्रिया कोई मकसद या शर्त से जुड़ी नहीं होती है, जब आप बस प्यार और आनंद के लिए कुछ करते है, तब आपको पता चलता है कि धर्म क्या है, ईश्वर क्या है।
+* प्रत्येक क्षण, आप जो भी कर रहे हैं, उसे पूरी समग्रता से करें। साधारण चीजें – स्नान करना हो, बैठे है, ��हल रहे है, उस समय पूरी दुनिया को भूल जाओ। फिर किसी ध्यान की आवश्यकता नहीं है।
+* ध्यान से बड़ा कोई विलास नहीं है। ध्यान अंतिम विलासिता है क्योंकि यह परम प्रेम संबंध है।
+* जब अहंकार नहीं होता है, तो आप पहली बार अपने होने का अनुभव करते हैं। वह शून्य है। तब तुम समर्पण कर सकते हो, तब आपने आत्मसमर्पण कर दिया है।
+* जीवन मिला है और तुम केवल जीविका ही जुटा रहे हो। जीवन को रोजी, रोटी, कपड़ा जुटाने और मकान बनाने में ही बिता दोगे। मैं यह नहीं कहता कि यह जरूरी नहीं है। रोटी भी जरूरी है, कपड़ा भी जरूरी है, मकान भी जरूरी है। यह सीढ़ियां है इनका उपयोग कर लो लेकिन मंदिर को मत भूल जाना। जीविका कमा लेना जीवन नहीं है, जीविका तो शरीर के लिए जरुरी है और जीवन तो आत्मा का होता है।
+* प्रेम और युद्ध में यही अंतर है, युद्ध दूसरे को मिटाकर जीता जाता है, प्रेम खुद को मिटा कर जीता जाता है। युद्ध में मिली जीत भी हार है और प्रेम में मिली हार भी जीत के समान है। -ओशो
+* यदि आप फूल को प्रेम करते हो, तो उसे तोड़े नहीं क्योंकि जैसे आप इसे तोड़ते हो, वह मर जाता है। प्रेम वही समाप्त हो जाता है। इसलिए यदि आप एक फूल से प्रेम करते हैं तो उसे वैसे ही रहने दें। प्यार का मतलब कब्ज़ा करना नहीं है। प्यार तो प्रशंसा के बारे में है।
+* इस जगत में इतनी भी मूल्यवान कोई भी चीज नहीं है कि तुम उसके लिए झगड़ो, हिंसा करो। कौड़ियों के लिए लड़ो मत। कौड़ियों के लिए लड़कर आत्मा के बहुमूल्य हीरे को मत गवाओ।
+* अपने जीवन पर पकड़ बनाओ। देखों कि पूरा अस्तित्व जश्न मना रहा है। ये पेड़ गंभीर नहीं हैं, ये पक्षी गंभीर नहीं हैं। नदियाँ और महासागर उग्र हैं, और हर जगह खेल चल रहा है, हर जगह आनंद और आनंद ही है। अस्तित्व को देखो, अस्तित्व को सुनो और इसका हिस्सा बनो।
+* आप जो भी महसूस करते हो, आप बन जाते हो। यह आपकी जिम्मेदारी है।
+* सांस खत्म हो और तमन्ना बाकी रहे वह मृत्यु है। सांस बाकी रहे और तमन्ना खत्म हो जाए वह है मोक्ष।
+* हम शरीर और मन पर रुके हुए हैं, अटके हुए हैं। वहां से हम अगर कूद जाए फिर आत्मा का गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल है जो जमीन के गुरुत्वाकर्षण से काफी ज्यादा है। बस एक बार हम अपने शरीर के छत से कूद जाएं फिर आत्मा हमे खींच लेती है।
+* कुछ पा लेने की इच्छा से एक प्रेम होता है, वह लोभ है, लिप्सा है और अपने को समर्पित कर देने का एक प्रेम होता है वही भक्ति है।
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+ब्राज़ील फुटबॉल खाता, सोता और पीता है। यह फुटबॉल जीता है।
+आप जहां भी जाएं, तीन प्रतीक हैं, जिन्हे हर कोई जानता है: यीशु मसीह, पेले और कोका कोला।
+बाइस्किल किक करना आसान नहीं है। मैंने 1,283 गोल दागे, और केवल दो या तीन ही बाइस्किल किक्स थे।
+पेनाल्टी गोल करने का कायरतापूर्ण तरीका है
+पृथ्वी पर हर एक चीज एक खेल है। एक खत्म हो जाने वाली चीज। हम सभी एक दिन मर जाते हैं। हम सभी का एक ही अंत है, नहीं ?
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+राशिपूरम कृष्णास्वामी लक्षण भारत के एक प्रख्यात व्यंग चित्रकार थे । वह प्रख्यात लेखक आर के नारायण के अनुज भी थे। लक्षण के कार्टून भारत के सर्वाधिक प्रचलित अख़बारों में प्रकाशित हैं ।
+* एक कार्टूनिस्ट को एक महान आदमी में नहीं एक हास्यास्पद आदमी में आनंद मिलता है।
+* कौवे दिखने में इतने अच्छे और बुद्धिमान होते हैं।राजनीति में मुझे ऐसे चरित्र कहाँ मिलेंगे ?
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+मैं क्रिकेट के बारे में नहीं जानता पर फिर भी मैं सचिन को खेलते हुए देखने के लिए क्रिकेट देखता हूँ। इसलिए नहीं कि मुझे उसका खेल पसंद है, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर जब वो बैटिंग करता है तो मेरे देश का प्रोडक्शन 5 गिर क्यों जाता है?
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+डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (तमिल: சர்வபள்ளி ராதாகிருஷ்ணன்; 5 सितम्बर 1888 – 17 अप्रैल 1975) भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे।
+* दुनिया के सारे संगठन अप्रभावी हो जायेंगे यदि यह सत्य कि प्रेम द्वेष से शक्तिशाली होता है उन्हें प्रेरित नही करता।
+* उम्र या युवावस्था का काल-क्रम से लेना-देना नहीं है। हम उतने ही नौजवान या बूढें हैं जितना हम महसूस करते हैं। हम अपने बारे में क्या सोचते हैं यही मायने रखता है।
+* शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके।
+* केवल निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है। स्वयं के साथ ईमानदारी आध्यात्मिक अखंडता की अनिवार्यता है।
+* लोकतंत्र सिर्फ विशेष लोगों के नहीं बल्कि हर एक मनुष्य की आध्यात्मिक संभावनाओं में एक यकीन है।
+* हमें मानवता को उन नैतिक जड़ों तक वापस ले जाना चाहिए जहाँ से अनुशाशन और स्वतंत्रता दोनों का उद्गम हो|
+* धर्म भय पर विजय है; असफलता और मौत का मारक है।
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+मेरा मानना है कि प्यार किसी भी उम्र में हो सकता है …इसकी कोई उम्र नहीं होती।
+मैं जब भी एक पिता या पति के रूप में फेल होता हूँ …एक खिलौना और एक हीरा हमेशा काम कर जाते हैं.
+मैं वास्तव में यकीन करता हूँ कि मेरा काम ये सुनिश्चित करना है की लोग हंसें।
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+* अगर एक बच्चा गलत रास्ते पर चला जाता है तो इसके लिए वह बच्चा दोषी नहीं है, बल्कि इसके लिए उसके माता-पिता जिम्मेदार है।
+* अगर किसी इंसान में यह 5 खूबियाँ हैं तो वह स्कूली शिक्षा हासिल किये बिना कामियाब हो सकता है, और वह हैं – 1 चरित्र 2 प्रतिबद्धता 3 दृण विश्वाश 4 तहजीब 5 साहस
+* अगर कोई जिंदगी में बड़ी चीजें हांसिल करना चाहता है तो उसे पूर्णतया कुशल और समझदार बनना पड़ेगा। पूर्णतया कुशलता और समझदारी का मतलब है – छोटी छोटी बातों और बहस में न उलझना।
+* अगर कोई मूर्खता की बजाए समझदारी, बुराई की बजाय अच्छाई और असश्यता की बजाय सदगुण को चुनता है, तो ऐसे आदमी के पास स्कूली डिग्रियां न होने के बाबजूत, उसे शिक्षित माना जाना चाहियें।
+* अगर हम अपने नज़रिये को सकारात्मक बनाना चाहते हैं तो टालमटोल की आदत छोड़ें और ‘तुरंत काम करो’ पर अमल करना सीखें।
+* अगर हम असफल होना चाहते हैं तो भाग्य में विश्वाश कीजिये, और सफल होना चाहते हैं तो वजह और नतीजों के सिद्धांत में विश्वाश कीजिए।
+* अच्छा महसूस करना अच्छा करने का एक स्वाभाविक परिणाम है; और अच्छा करना अच्छा होने का एक स्वाभाविक परिणाम है।
+* अच्छाई वापसी का रास्ता ढूंढ लेती है यह प्रकृति का बुनियादी नियम है। अच्छा काम करते समय फल पाने की इच्छा रखना जरूरी नहीं है। फल तो कुदरती तोर पर अपने आप मिलता है।
+* अच्छे नेता और नेता बनाने की चेष्टा करते हैं, बुरे नेता अनुयायी बनाने की चेष्टा करते हैं।
+* अच्छे माँ–बाप अनुशासन लागू करने से नहीं हिचकते, भले ही बच्चे कुछ देर के लिए उन्हें नापसंद करें।
+* अच्छे माहौल में एक मामूली कर्मचारी की भी काम करने की शक्ति बढ़ जाती है जबकि खराब माहौल में एक अच्छे कर्मचारी की भी कुशलता कम हो जाती है।
+* अच्छे लीडर्स, हमेंशा अधिक से अधिक अच्छे लीडर्स बनाने के बारे में सोचते हैं, और बुरे लीडर्स, हमेशा अधिक से अधिक अनुयायी बनाने के बारे में सोचते हैं।
+* अधिकांश लोग जीवन में जीतना चाहते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जीतने में लगने वाली तैयारी की कीमत चुकाने के लिए राज़ी हैं।
+* अनजान होना शर्म की बात नहीं है लेकिन सीखने की इच्छा न होना शर्म की बात है।
+* अनुशासन और पछतावा दोनों ही दुखदायक हैं। ज्यादातर लोगों को इन दोनों में से किसी एक को ही चुनना होता है। जरा सोचियें इन दोनों में से कौन ज्यादा तकलीफ में हैं।
+* अपना एक विजन होना चाहिए- यह अदृश्य को देखने की काबिलियत है। अगर आप अदृश्य को देख सकते हैं तो आप असंभव को भी संभव कर सकते हैं।
+* अपने को बेहतर बनाने में इतना बक्त लगायें कि दूसरों की आलोचना करने के लिए हमारे पास वक्त ही न बचे। इतने बड़े बने कि चिंता छु न सके और इतने अच्छे बने कि गुस्सा आये ही नहीं।
+* असफल हो जाना कोई अपराध नहीं है पर कोशिश न करना यकीनन अपराध हैं।
+* आत्म-सम्मान और अहंकार का उल्टा सम्बन्ध है।
+* आत्मसम्मान एक ऐसा अहसास है, जो अच्छाई को समझने और उस पर अमल करने में पैदा होता है।
+* आधे मन से किया गया प्रयास आधा परिणाम नहीं देता; यह कोई परिणाम नहीं देता।
+* आप जितनी बहसें जीतते है उतने मित्रों को खो देते हैं।
+* आपने मित्रों को सावधानी से चुने । हमारे व्यक्तित्व की झलक न सिर्फ हमारे सांगत से झलकती है बल्कि, जिन संगतों से हम दूर रहते हैं उससे भी झलकती है ।
+* इन्स्पीरेशन सोच है जबकि मोटीवेशन कार्रवाई है।
+* उद्देश्य: जीवन भर के लक्ष्य को ‘उद्देश्य’ कहा जाता है। अपने उद्देश्य की पहचान करने के लिए ख़ुद से पूछें “यदि आज मेरी आयु सौ होती और मैं पलटकर अपने जीवन को देखता, तो वह क्या है जो मैं कहता कि मेरी उपलब्धि है?” उत्तर आपका उद्देश्य है।
+* उन चीजों को पसंद करना सीखें, जिन्हें पूरा करना जरूरी है।
+* एक अशिक्षित चोर ट्रेन से सामान चुरा सकता है, लेकिन एक शिक्षित पूरी ट्रेन चुरा सकता है। हमें ज्ञान और बुद्धिमत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता है, न कि दर्जे के लिए।
+* एक देश नारे लगाने से महान नहीं बन जाता।
+* एक बड़े आदमी और एक छोटे आदमी के बीच का अंतर सत्यनिष्ठा और कड़ी मेहनत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता है।
+* एक महान आदमी और एक छोटे आदमी के बीच का अंतर ईमानदारी और कड़ी मेहनत के प्रति उनकी वचनबद्धता है।
+* एक विचार पुस्तक बनाए, विचार हमारी सोच की तुलना में तेजी से उड़ जाते हैं।
+* कड़ी और अच्छी तरह से परिश्रम करो और आपको अपनी परियोजना पूर्ण करने की संतुष्टि प्राप्त होगी। कभी-कभी दूसरों की सराहना प्राप्त हो सकती है, लेकिन वह महत्वपूर्ण आंतरिक संतुष्टि का अधिलाभ है।
+* कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।
+* कभी भी दुष्ट लोगों की सक्रियता समाज को बर्बाद नहीं करती, बल्कि हमेंशा अच्छे लोगों की निष्क्रियता समाज को बर्बाद करती है।
+* कामियाब लोग कठिनाइयों के बाबजूत सफलता हांसिल करते हैं। न कि तब जब कठिनाई नहीं होती।
+* कामियाबी का यह मतलब नहीं है कि हर इंसान आपको पसंद करे। ऐसे लोग भी हैं जिनसे मान्यता पाना मैं खुद नहीं चाहूंगा। मूर्खों की आलोचना को मैं घिनौने चरित्र के लोगों की तारीफ से बेहतर मानता हूँ।
+* कार्य टालने की आदत कार्य करने के प्रयास के मुकाबले आपको कहीं अधिक थका देती है।
+* किसी अज्ञानी को बहस में हराना नामुमकिन है, उसके तर्क कमज़ोर होते हैं, पर लब्ज़ तीखे और कठोर।
+* किसी को धोखा न दें क्योंकि ये आदत बन जाती है और फिर आदत से व्यक्तित्व।
+* किसी क्षेत्र में सफलता दिलाने वाली बढ़त तैयारी से ही मिलती है।
+* किसी डिग्री का न होना दरअसल फायदेमंद है। अगर आप इंजीनियर हैं या डाक्टर हैं तो आप एक ही काम कर सकते हैं। लेकिन यदि आपके पास कोई डिग्री नहीं है, तो आप कुछ भी कर सकते हैं।
+* किसी भी प्रोडक्ट को बेचने के लिए 90% दृढ़ विश्वास जबकि 10% प्रोत्साहन होना चाहिए।
+* कुछ लोग खुद को थोड़ा बेहतर मानते हैं क्योंकि वे गलत का साथ नहीं देते; हालांकि, उनके पास प्रविरोध करने हेतु दृढ़ विश्वास की कमी होती है। उन्हें एहसास नहीं है कि प्रविरोध न करके असल में वे साथ दे रहे हैं।
+* कुदरत बड़ी समझदार और मेहरबान है क्योंकि उसने आदमी को सोचने की क्षमता का सबसे बड़ा तोहफा दिया है, लेकिन अफसोस की बात है कि बहुत कम ही लोग इस महान तोहफे का पूरा इस्तेमाल कर पाते हैं।
+* कोई तब तक अच्छा शिक्षक नहीं बन सकता, जब तक वह अच्छा छात्र न हो।
+* कोई मौका दोबार नहीं खटखटाता। दूसरा मौका पहले वाले मौके से बेहतर या बत्तर हो सकता है, पर वह ठीक पहले वाले मौके जैसा नहीं हो सकता। गलत वक्त पर लिया गया सही फैसला भी गलत बन जाता है।
+* क्योंकि कुदरत खाली जगह को पसंद नहीं करती, इसलिए वह खाली दिमाग को अहंकार से भर देती है।
+* क्रियाशीलता में सच्चाई ही न्याय है।
+* क्षमता हमें सिखाती है कि हम कैसे करें, प्रेरणा निर्धारित करती है कि हम क्यों करें, और दृष्टिकोण यह तय करता है कि हम कितना अच्छा करते हैं।
+* खतरा न उठाने वाला आदमी कोई गलती भी नहीं करता लेकिन कोशिश न करना, कोशिश करके असफल होने से भी बड़ी गलती है।
+* गुब्बारा अपने रंग की वजह से नहीं बल्कि अपने अंदर भरे चीज की वजह से उड़ता है। हमारी जिंदगी में भी यही उसूल लागू होता है। अहम् चीज हमारी अंदरूनी सख्शियत है। हमारी अंदरूनी शक्शियत की वजह से हमारा जो नजरिया बनता है, वही हमें ऊपर उठाता है।
+* गुस्सा इंसान को मुश्किल में डालता है, और अहंकार उसे आगे बढ़ने से रोकता है।
+* चरित्र का निर्माण तब नहीं शुरू होता जब बच्चा पैदा होता है; ये बच्चे के पैदा होने के सौ साल पहले से शुरू हो जाता है।
+* छोटे लोग दूसरों के बारे में बाते करते हैं, बीच के लोग चीजों के बारे में बात करते हैं और महान लोग सुझाव के बारे में।
+* जब कभी कोई व्यक्ति कहता है कि मैं ये नहीं कर सकता, तो वह वास्तव में दो बातें कह रहा होता है। या तो मैं नहीं जानता कि यह कैसे करना है या मैं यह नहीं करना चाहता।
+* जब तक आपकी नज़र आपके लक्ष्य पर है, आप बाधाओं को नहीं देखते।
+* जब हम अपने लोगों की समस्याओं का ध्यान रखते हैं, तो हमारी व्यावसायिक समस्याएं स्वतः हल हो जाती हैं।
+* जब हालत बिगड़ जाते हैं तो नकारात्मक लोग एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाने लगते हैं।
+* जिन्हें मौके की पहचान नहीं होती उन्हें मोके का खटखटाना शोरे लगता है।
+* जिस इंसान में साहस की कमी होती है, वह तकलीफ में आपका साथ अवश्य छोड़ देगा।
+* जिस तरह किसी भव्य इमारत के टिके रहने के लिए उसकी नीव मजबूत होनी चाहिये, उसी तरह कामियाबी में टिके रहने के लिए भी मजबूत बुनियाद की जरूरत होती है, और कामियाबी की बुनियाद होती है नजरिया।
+* जिस तरह कोई व्यक्ति डिक्शनरी के ऊपर बैठने से शब्द और स्पेलिंग नहीं सीख सकता, उसी तरह कोई भी व्यक्ति कठिन परिश्रम के बिना अपनी काम करने की शक्ति नहीं बढ़ा सकता।
+* जीतने वाला हमेशा समाधान का हिस्सा होता है और हारने वाला हमेशा समस्या का हिस्सा होता है।
+* जीतने वाले कोई अलग काम नहीं करते, वे हर काम को अलग ढंग से करते हैं।
+* जीतने वाले लाभ देखते हैं, हारने वाले दर्द।
+* जीवन में ऊपर उठते समय लोगों से अदब से पेश आए, क्योंकि नीचे गिरते समय आप इन लोगों से दोबारा मिलेंगे।
+* जो करना जरूरी है उसे पसंद करो।
+* जो भी उधार लें उसे समय पर चूका दें क्योंकि इससे आपकी विश्वसनीयता बढ़ती है।
+* जो लोग जीतते हैं वह कोई अलग चीजों को अंजाम नहीं देते, बल्कि वो आम चीजों को खास अंदाज में पूरा करते हैं।
+* जो लोग भविष्य में जाना चाहते हैं, उनके पास सफ़ल होने के लिए दो कौशल होने चाहिए – लोक व्यवहार की क्षमता और विक्रय क्षमता।
+* ज्यादातर लोग जानकारी या प्रतिभा की कमी की वजह से नहीं, बल्कि कोशिश बंद करने की वजह से असफल होते हैं।
+* त्रासदी यह है कि यहाँ कई चलते-फ़िरते विश्वकोष हैं, जो जीते-जागते असफ़ल व्यक्ति हैं।
+* दरअसल डिग्री का न होना फ़ायदेमंद है। यदि आप इंजीनियर या डॉक्टर हैं, तो आप केवल एक ही काम कर सकते हैं। लेकिन यदि आपके पास कोई डिग्री नहीं, तो आप कुछ भी कर सकते हैं।
+* दिशा गति से अधिक महत्वपूर्ण है। बहुत से लोग तेजी से कहीं नहीं जा रहे हैं।
+* दुष्टों की सक्रियता कभी भी समाज को नष्ट नहीं करती, लेकिन यह हमेशा अच्छे लोगों की निष्क्रियता होती है, जो ऐसा करती है।
+* दूरदर्शिता रखे। यह अदृश्य देख लेने की क्षमता है। यदि आप अदृश्य देख सकते हैं, तो आप असंभव हासिल कर सकते हैं।
+* दृष्टिकोण सफ़लता का आधार है। सफ़लता जितनी अधिक होगी, आधार उतना ही मजबूत होगा।
+* नेतृत्व धारणा, प्रस्तुति और लोगों के कौशल के बारे में है।
+* पात्रता वह है, जो अर्थ और संतुष्टि दे। संतुष्टि के बिना सफ़लता खोखली है। यह अच्छाई के बिना रूप जैसी है। जीवन में हमें आकार से अधिक सत्त्व की आवश्यकता है, न कि सत्त्व से अधिक आकार की।
+* पैसा लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव लाने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपकरण है। यह मूल्यों के आधार पर सकारात्मक या नकारात्मक होता है।
+* प्रतिकूल परिस्थितियों में – कुछ लोग टूट जाते हैं, कुछ रिकॉर्ड तोड़ते हैं।
+* प्रेरणा एक आग की तरह है, जिसे जलाए रखने के लिए इसमें लगातार ईंधन डालना पड़ता है। प्रेरणा को बनाए रखने के लिए आपका ईंधन “स्वंय पर विश्वास” ही है।
+* बहुत सी चीजें बच्चे की परवरिश पर निर्भर करती हैं।
+* बिना कठिन परिश्रम के सफलता नहीं मिल सकती, कुदरत चिड़ियों को खाना जरूर देती है, लेकिन उनके घोंसले में नहीं डालती।
+* बुद्धिमान लोग झूठी प्रशंसा से बर्बाद होने के बजाय रचनात्मक आलोचना से लाभ उठाना पसंद करते हैं।
+* बौद्धिक शिक्षा मस्तिष्क को प्रभावित करती है और मूल्यों पर आधारित शिक्षा हृदय को प्रभावित करती है।
+* मानव बहुकार्यन (मल्टीटास्किंग) कई कार्य करने की क्षमता है, लेकिन एक समय में एक।
+* मेरा पहला उद्देश्य है निवेश करना और इसके अतिरिक्त भी कुछ बच जाता है तो उसे ख���्च करना।
+* मेरे विचार से यह व्यक्ति का दृढ़ विश्वास है, जो वास्तव में व्यक्ति को आगे लेकर जाता है।
+* मैं लोगों का उत्साह बढ़ाने को अपनी योग्यता मानता हूँ और वही मेरी सबसे बड़ी पूँजी है। यही एक महत्वपूर्ण रास्ता है जिससे किसी इंसान की अच्छाई उभारी जा सकती है।
+* यदि आप एक सकारात्मक दृष्टिकोण का बनाना और कायम रखना चाहते हैं, तो वर्तमान में जीने और अभी करने की आदत डालिए।
+* यदि आप सकारात्मक दृष्टिकोण का निर्माण करना चाहते हैं, तो उच्च नैतिक चरित्र के लोगों के साथ जुड़ें और ऐसी किताबें पढ़ें जो आपको सकारात्मक सोच की ओर ले जाये।
+* यदि आप सोचते हैं की आप कर सकते हैं, तो आप कर सकते हैं और यदि आप सोचते हैं कि आप नहीं कर सकते हैं- तो आप नहीं कर सकते हैं और दोनों तरह से आप सही हैं
+* यदि बच्चा गलत राह पर जाता है, तो वह बच्चा नहीं है, जिसे दोषी ठहराया जाना है; वे माता-पिता, जो जिम्मेदार हैं।
+* यदि हम समाधान का हिस्सा नहीं हैं, तो हम समस्या हैं।
+* याद रखें सबसे बड़ा प्रेरक विश्वास है। हमें ख़ुद में यह विश्वास जगाना होगा कि हम अपने कार्यों और व्यवहार के लिए जिम्मेदार हैं। जब लोग जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं, तो हर चीज़ में सुधार होता है: गुणवत्ता, उत्पादकता, रिश्ते और टीमवर्क।
+* लक्ष्य वे सपने हैं, जिनके साथ समय सीमा और कार्य योजना जुडी होती हैं। लक्ष्य मूल्यवान या मूल्यहीन हो सकता है। सपनो को असलियत का रूप चाहत नहीं बल्कि लगन देती है।
+* लम्बी अवधि के निवेश में आपको हर दिन के मैनेजमेंट की जरुरत नहीं होती है।
+* लोग इसकी परवाह नहीं करते हैं कि आप कितना जानते हैं, वो ये जानना चाहते हैं कि आप कितना ख़याल रखते हैं।
+* लोगों से साथ विनम्र होना सीखे। महत्वपूर्ण होना जरुरी है लेकिन अच्चा होना ज्यादा महत्वपूर्ण है ।
+* विक्रय का नब्बे प्रतिशत दृढ़ विश्वास है, और दस प्रतिशत प्रोत्साहन।
+* विजेता के पास हर समस्या का समाधान होता है; हारने वाले के पास हर समाधान के लिए एक समस्या होती है।
+* विजेता बोलते हैं कि “मुझे कुछ करना चाहिए”, हारने वाले बोलते हैं कि “कुछ होना चाहिए”।
+* विपरीत परिस्थितियों में कुछ लोग टूट जाते हैं, और कुछ लोग रिकार्ड तोड़ते हैं।
+* वे लोग जो भविष्य में बहुत आगे जाना चाहते हैं उनमें सफल होने के लिए दो योग्यता होनी चाहिए, पहली, लोगों के साथ कुशल व्यवहार करने की और दूसरी, लोगों को कुछ बेचने की।
+* व्यक्ति का चरित्र न सिर्फ़ उसकी संगत द्वारा आंका जाता है, बल्कि जो संगत वे नज़रंदाज़ करते हैं, उसके द्वारा भी आंका जाता है।
+* व्यवहारिक समझ की बहुतायत को ‘अक्लमंदी’ कहते है।
+* शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जो हमें केवल रोजी-रोटी कमाना नहीं बल्कि जीने का तरीका भी सिखाये।
+* शिक्षित लोग अपनी सीमाओं को पहचानते हैं, लेकिन अपनी ताकत पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
+* शोध से पता चला है कि एक आदत बनाने या तोड़ने में 31 दिन का सचेत प्रयास करना पड़ता है। इसका अर्थ है, अगर कोई 31 दिनों तक लगातार कुछ अभ्यास करता है, तो 32 वें दिन वह निश्चित रूप से एक आदत बन जाती है। व्यवहार परिवर्तन में सूचना का समावेश कर दिया गया है, जिसे रूपांतरण कहा जाता है।
+* सकारात्मक कार्यों और सकारात्मक दृष्टिकोण के मेल के साथ मेहनत का संबल आपकी सफ़लता की संभावना बढ़ा देता है।
+* सकारात्मक की तलाश करने के लिये आवश्यक नहीं कि त्रुटियों को नज़रंदाज़ कर दिया जाये। एक सकारात्मक विचारक होने का अर्थ यह नहीं कि किसी को हर बात पर सहमत होना होगा या हर चीज़ को स्वीकार करना होगा। इसका अर्थ केवल यह है कि व्यक्ति समाधान केंद्रित है।
+* सकारात्मक दृष्टिकोण के लोगों के कुछ विशेष व्यक्तिगत गुण आसानी से पहचान में आ जाते हैं। वे परवाह करने वाले, आत्मविश्वासी, धैर्यवान और विनम्र होते हैं। उन्हें ख़ुद से और दूसरों से बहुत उम्मीदें होती हैं। वे सकारात्मक परिणामों की उम्मीद करते हैं।
+* सकारात्मक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति सभी मौसमों के फल जैसा है।
+* सकारात्मक सोच के साथ आपके सकारात्मक कार्य के मेल का परिणाम सफ़लता है।
+* सक्रिय रूप से राह दिखाने करने वाले अच्छे नेता होते हैं, और सक्रिय रूप से गलत राह दिखाने वाले बुरे नेता होते हैं।
+* सत्य का क्रियान्वन ही न्याय है।
+* सफल लोग अपने काम से Competition करते हैं। वे खुद का रिकॉर्ड बेहतर बनाते हैं और लगातार सुधार लाते रहते हैं।
+* सफल लोग दो तरह के होते हैं – पहले जो करते तो हैं पर सोचते नहीं दूसरे जो सोचते तो हैं लेकिन कुछ करते नहीं। सोचने की क्षमता का इस्तेमाल किये बिना जिंदगी गुजारना वैसा ही है, जैसे की बिना निशाना लगाये गोली चलना।
+* सफल लोग महान काम नहीं करते, वे छोटे–छोटे कामों को महान ढंग से करते हैं।
+* सफलता इस बात से नहीं मापी जाती कि हमने जिंदगी में कितनी ऊँचाई हाँसिल क��� है, बल्कि इस बात से मापी जाती है कि हम कितनी बार गिर कर खड़े हुए हैं। सफलता का आंकलन गिर कर उठने की इस क्षमता से ही किया जाता है।
+* सफ़लता एक दुर्घटना नहीं है। यह आपके दृष्टिकोण का परिणाम है और आपका दृष्टिकोण एक विकल्प है। इसलिए सफ़लता चुनाव का मुद्दा है और अवसर नहीं।
+* सफलता और असफलता के बीच उतना ही अंतर है जितना की सही और लगभग सही के बीच होता है।
+* सफलता और प्रसन्नता का चोली-दामन का साथ है। सफलता का मतलब यह है कि हम जो चाहें उसे पा लें, और प्रान्नता का मतलब है कि हम जो चाहें उसे चाहें।
+* सफलता के लिए कोई जादुई छड़ी नहीं होती। वास्तविक दुनिया में सफलता सिर्फ काम करने वालों को मिलती है, तमाशबीनों को नहीं।
+* सबके साथ विनम्र रहें, लेकिन कुछ के साथ घनिष्ट और उन कुछ को अपना विश्वास देने के पहले अच्छी तरह आज़मा लें।
+* सर्वश्रेष्ठ शिक्षक आपको पीने के लिए कुछ नहीं देंगे, वे आपको प्यासा बना देंगे। वे आपको जवाब नहीं देंगे, लेकिन जवाब तलाशने के लिए आपको रास्ता दिखा देंगे।
+* सवाल यह है कि क्या हमें प्रतिस्पर्धा से दस गुना अधिक समार्ट होना होगा? बिलकुल नहीं। हमें बस उसमें अपनी नाक घुसेड़ने की ज़रूरत है और नतीज़ा दस गुना बेहतर होगा। सौ अलग-अलग क्षेत्रों में एक प्रतिशत सुधार करना किसी एक क्षेत्र में सौ प्रतिशत सुधार करने की मुकाबले कहीं आसान होता है। यह जीत की बढ़त है!
+* सही नजरिया के बिना कामियाबी व्यर्थ होती है।
+* सही समय पर सही निर्णय लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
+* साकारात्मक सोच के साथ साकारात्मक कार्यों का परिणाम सफलता है।
+* सीखना बहुत कुछ खाना खाने जैसा ही है। यह मायने नहीं रखता कि हम कितना खाते हैं, लेकिन असल में यह मायने रखता है कि हम कितना पचा पाते हैं।
+* सीमित सोच के सहारे आप कोई बड़ा लक्ष्य कायम नहीं कर सकते।
+* सुनना ही एक ताकत है, लेकिन किसी इंसान में यह खूबी जरूरत से ज्यादा बढ़ने पर ज्यादा सुनना और न बोलना उसकी कमजोरी बन जाती है।
+* हम जानकारियों मे डूब रहे हैं लेकिन ज्ञान और बुद्धि के लिए भूखे मर रहे हैं। शिक्षा द्वारा हमें न केवल जीविका उपार्जन का तरीका बल्कि जीने का तरीका भी सिखाना चाहिए।
+* हमको एक तोला सोना निकालने के लिए कई टन मिट्टी हटानी पड़ती है। लेकिन खुदाई करते वक्त हमारा ध्यान मिट्टी पर नहीं बल्कि सोने पर रहता है।
+* हमारी समस्यायें व्यावसायिक नहीं होती। हमारी समस्या लोगों से संबंधित होती हैं।
+* हमारे विचार कारक हैं। आप विचार का बीज बोते हैं, तो आप कार्य की फ़सल काटते हैं। आप कार्य का बीज बोते हैं, तो आप आदत की फ़सल काटते हैं। आप एक आदत का बीज बोते हैं, तो आप चरित्र की फ़सल काटते हैं। आप चरित्र का बीज बोते हैं, तो आप भाग्य की फसल काटते हैं। यह सब एक विचार से प्रारंभ होता है।
+* हमें अक्सर बताया जाता है कि ज्ञान शक्ति है। लेकिन यह असलियत नहीं है। ज्ञान तो महज जानकारी है। ज्ञान में शक्ति बनने की क्षमता है, और यह तभी शक्ति बनता है जब इसका इस्तेमाल किया जाता है।
+* हर ठोकर के लगने के बाद खुद से पूछे कि हमने इस तजुर्वे से क्या सीखा तभी हम रास्ते के रोड़ो को कामियाबी की सीढ़ी बना पाएंगे।
+* हारने वाले लोग भाग्य में विश्वास करते हैं, हिम्मती और पक्के इरादे वाले वजह और उसके नतीजों में विश्वास करते हैं।
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+श्रद्धा यह समझने में है कि आप हमेशा वो पा जाते हैं जिसकी आपकी ज़रुरत होती है।
+“आज” भगवान का दिया हुआ एक उपहार है- इसीलिए इसे “प्रेजेंट” कहते हैं।
+* जीवन ऐसा कुछ नहीं है जिसके प्रति बहुत गंभीर रहा जाए। जीवन तुम्हारे हाथों में खेलने के लिए एक गेंद है। गेंद को पकड़े मत रहो।
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+स्टीफन हॉकिंग 1942 2018) ब्रिटेन के एक महान भौतिकविद थे।
+* अतीत, भविष्य की तरह ही अनिश्चित है और केवल सम्भावनों के एक स्पेक्ट्रम के रूप में मौजूद है।
+* एक शून्य-गुरुत्वाकर्षण उड़ान अंतरिक्ष यात्रा की ओर पहला कदम है।
+* कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि क्या मैं अपनी व्हीलचेयर और विकलांगता के लिए उतना ही प्रसिद्ध हूँ जितना अपनी खोजों के लिए।
+* काम आपको अर्थ और उद्देश्य देता है और इसके बिना जीवन अधूरा है।
+* क्योंकि गुरुत्वाकर्षण जैसा एक नियम है, ब्रह्माण्ड स्वयं को कुछ नहीं से सृजित कर सकता है और करेगा।
+* चाहे जीवन जितनी भी कठिन लगे, आप हमेशा कुछ न कुछ कर सकते हैं और सफल हो सकते हैं।
+* बुद्धिमत्ता बदलाव के अनुरूप ढलने की क्षमता है।
+* मुझे लगता है ब्रह्माण्ड में और ग्रहों पर जीवन आम है, हालांकि बुद्धिमान जीवन कम ही है। कुछ का कहना है इसका अभी भी पृथ्वी पर आना बाकी है।
+* मेरा लक्ष्य स्पष्ट है। ये ब्रह्माण्ड को पूरी तरह समझना है, ये जैसा है वैसा क्यों है और आखिर इसके अस्तित्व का कारण क्या है।
+* मेरा विश्वास है की चीजें खुद को असंभव नहीं बना सकतीं।
+* मैं एक अच्छा छात्र नहीं था। कॉलेज में ज्यादा समय नहीं बीतता था। मैं मजे करने में बहुत व्यस्त था।
+* मैं चाहूंगा न्यूक्लीयर फ्यूज़न एक व्यवहारिक ऊर्जा का स्रोत बने। यह प्रदूषण या ग्लोबल वार्मिंग के बिना, ऊर्जा की अटूट आपूर्ति प्रदान करेगा।
+* मैं मानता हूँ कि ब्रह्माण्ड विज्ञान के नियमों द्वारा संचालित होता है। हो सकता है ये नियम भगवान द्वारा बनाये गए हों, लेकिन भगवान इन नियमों को तोड़ने के लिए हस्तक्षेप नहीं करता।
+* मैं मौत से नहीं डरता, लेकिन मुझे मरने की कोई जल्दी नहीं है । मेरे पास पहले करने के लिए इतना कुछ है।
+* मैंने देखा है वो लोग भी जो ये कहते हैं कि सब कुछ पहले से तय है, और हम उसे बदलने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते, वे भी सड़क पार करने से पहले देखते हैं।
+* यदि आप यूनिवर्स को समझते हैं तो एक तरह से आप इसे नियंत्रित करते हैं
+* यदि आप हमेशा गुस्सा या शिकायत करते हैं तो लोगों के पास आपके लिए समय नहीं रहेगा।
+* विज्ञान केवल तर्क का अनुयायी नहीं है, बल्कि रोमांस और जूनून का भी।
+* विज्ञान लोगों को गरीबी और बीमारी से निकाल सकता है। और वो बदले में सामाजिक अशांति ख़त्म कर सकता है।
+* हम अपने लालच और मूर्खता के कारण खुद को नष्ट करने के खतरे में हैं। हम इस छोटे, तेजी से प्रदूषित हो रहे और भीड़ से भरे ग्रह पर अपनी और अंदर की तरफ देखते नहीं रह सकते।
+* हम एक औसत तारे के छोटे से ग्रह पर रहने वाली बंदरों की एक उन्नत प्रजाति हैं। लेकिन हम ब्रह्माण्ड को समझ सकते हैं। ये हमें कुछ विशेष बनाता है।
+* हम सोचते हैं हमने सृष्टि के सृजन की गुत्थी सुलझ ली है। शायद हमें ब्रह्माण्ड का पेटेंट करा लेना चाहिए और सभी से उनके अस्तित्व के लिए रॉयल्टी चार्ज करनी चाहिए।
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+इस मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है।
+आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का मजबूत हाथों से सामना कीजिये।
+एकता के बिना जनशक्ति शक्ति नहीं है जबतक उसे ठीक तरह से सामंजस्य में ना लाया जाए और एकजुट ना किया जाए, और तब यह आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है।
+बेशक कर्म पूजा है किन्तु हास्य जीवन है।जो कोई भी अपना जीवन बहुत गंभीरता से लेता है उसे एक तुच्छ जीवन के लिए तैयार रहना चाहिए। जो कोई भी सुख और दुःख का समान रूप से स्वागत करता है व��स्तव में वही सबसे अच्छी तरह से जीता है।
+चर्चिल से कहो कि भारत को बचाने से पहले इंग्लैण्ड को बचाए।
+शक्ति के अभाव में विश्वास किसी काम का नहीं है। विश्वास और शक्ति, दोनों किसी महान काम को करने के लिए अनिवार्य हैं।
+* सत्ताधीशों की सत्ता उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाती है, पर महान देशभक्तों की सत्ता मरने के बाद काम करती है, अतः देशभक्ति अर्थात् देश-सेवा में जो मिठास है, वह और किसी चीज में नहीं।
+* सैनिक लड़ने के लिए तो तैयार हो, किन्तु सेनापति द्वारा बताए गये शस्त्रास्त्र न रखे, तो वह युद्ध नहीं जीत सकता, क्योंकि उसमें अनुशासन नहीं है।
+* जो तलवार चलाना जानते हुए भी तलवार को म्यान में रखता है, उसी की अहिंसा सच्ची अहिंसा कही जाएगी। कायरों की अहिंसा का मूल्य ही क्या। और जब तक अहिंसा को स्वीकार नहीं जाता, तब तक शांति कहाँ!
+* कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति सदैव आशावान रहता है।
+* जब जनता एक हो जाती है, तब उसके सामने क्रूर से क्रूर शासन भी नहीं टिक सकता। अतः जात-पांत के ऊँच-नीच के भेदभाव को भुलाकर सब एक हो जाइए।
+* कठिनाई दूर करने का प्रयत्न ही न हो तो कठिनाई कैसे मिटे। इसे देखते ही हाथ-पैर बाँधकर बैठ जाना और उसे दूर करने का कोई भी प्रयास न करना निरी कायरता है।
+* कर्तव्यनिष्ठ पुरूष कभी निराश नहीं होता। अतः जब तक जीवित रहें और कर्तव्य करते रहें तो इसमें पूरा आनन्द मिलेगा।
+* कल किये जानेवाले कर्म का विचार करते-करते आज का कर्म भी बिगड़ जाएगा। और आज के कर्म के बिना कल का कर्म भी नहीं होगा, अतः आज का कर्म कर लिया जाये तो कल का कर्म स्वत: हो जाएगा।
+* जैसे प्रसव-वेदना के बाद राहत मिलती है, उसी प्रकार ज्यादती के बाद ही विजय होती है। समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए इससे अधिक शक्तिशाली कोई हथियार नहीं।
+* कायरता का बोझा दूसरे पड़ोसियों पर रहता है। अतः हमें मजबूत बनना चाहिए ताकि पड़ोसियों का काम सरल हो जाए।
+* मनुष्य को ठंडा रहना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए। लोहा भले ही गर्म हो जाए, हथौड़े को तो ठंडा ही रहना चाहिए अन्यथा वह स्वयं अपना हत्था जला डालेगा। कोई भी राज्य प्रजा पर कितना ही गर्म क्यों न हो जाये, अंत में तो उसे ठंडा होना ही पड़ेगा।
+* चरित्र के विकास से बुद्धि का विकास तो हो ही जाएगा। लोगों पर छाप तो हमारे चरित्र की ही पडती है।
+* त्याग के मूल्य का तभी पता चलता है, जब अपनी कोई मूल्यवान वस���तु छोडनी पडती है। जिसने कभी त्याग नहीं किया, वह इसका मूल्य क्या जाने।
+* भगवान किसी को दूसरे के दोषों का धनद नहीं देता, हर व्यक्ति अपने ही दोषों से दुखी होता है।
+* दुःख उठाने के कारण प्राय: हममें कटुता आ जाती है, दृष्टी संकुचित हो जाती है और हम स्वार्थी तथा दूसरों की कमियों के प्रति असहिष्णु बन जाते हैं। शारीरिक दुःख से मानसिक दुःख अधिक बुरा होता है।
+* अधिकार मनुष्य को अँधा बना देता है। इसे हजम करने के लिए जब तक पूरा मूल्य न चुकाया जाये, तब तक मिले हुए अधिकारों को भी हम गंवा बैठेंगे।
+*जो व्यक्ति अपना दोष जनता है उसे स्वीकार करता है, वही ऊँचा उठता है। हमारा प्रयत्न होना चाहिए कि हम अपने दोषों को त्याग दें।
+* अपने धर्म का पालन करते हुए जैसी भी स्थिति आ पड़े, उसी में सुख मानना चाहिए और ईश्वर में विश्वास रखकर सभी कर्तव्यों का पालन करते हुए आनन्दपूर्वक दिन बिताने चाहिए।
+* पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम दे सकता है।
+* जीतने के बाद नम्रता और निरभिमानता आनी चाहिए, और वह यदि न आए तो वह घमंड कहलाएगा।
+* सेवा करनेवाले मनुष्य को विन्रमता सीखनी चाहिए, वर्दी पहन कर अभिमान नहीं, विनम्रता आनी चाहिए।
+* सारी उन्नति की कुंजी ही स्त्री की उन्नति में है। स्त्री यह समझ ले तो स्वयं को अबला न कहे। वह तो शक्ति-रूप है। माता के बिना कौन पुरूष पृथ्वी पर पैदा हुआ है।
+* किसी तन्त्र या संस्थान की पुनपुर्न: निंदा की जाए तो वह ढीठ बन जाता है और फिर सुधरने की बजाय निंदक की ही निंदा करने लगता है।
+* नेतापन तो सेवा में है, पर जो सीधा बन जाता है, वह किसी-न-किसी दिन लुढक अवश्य जाता है।
+* हर जाति या राष्ट्र खाली तलवार से वीर नहीं बनता। तलवार तो रक्षा-हेतु आवश्यक है, पर राष्ट्र की प्रगति को तो उसकी नैतिकता से ही मापा जा सकता है।
+* आपके घर का प्रबंध दूसरों को सौंपा गया हो तो यह कैसा लगता है- यह आपको सोचना है। जब तक प्रबंध दूसरों के हाथ में है, तब तक परतन्त्रता है, तब तक सुख नहीं।
+* चूँकि पाप का भार बढ़ गया है, अतः संसार विनाश के मार्ग पर अग्रसर है।
+* कठोर-से-कठोर हृदय को भी प्रेम से वश में किया जा सकता है। प्रेम तो प्रेम है। माता को भी अपना काना-कुबड़ा बच्चा सुंदर लगता है और वह उससे असीम प्रेम करती है।
+* हिंसा के बल पर ही जो सारी तैयारी करते हैं। उनके दिल में भी के सिवाय और कुछ नहीं होता। भी तो ईश्वर से होना चाहिए,किसी मनुष���य या सत्ता से नहीं और भी को मिटाकर हम दूसरों को भयभीत करें तो इस जैसा कोई पाप नहीं।
+* प्राणियों के इस शरीर की रक्षा का दायित्व बहुत-कुछ हमारे मन पर भी निर्भर करता है।
+* प्रत्येक मनुष्य में प्रकृति ने चेतना का अंश रख दिया है जिसका विकास करके मनुष्य उन्नति कर सकता है।
+* मृत्यु ईश्वर-निर्मित है, कोई किसी को प्राण न दे सकता है, न ले सकता है। सरकार की तोपें और बंदूकें हमारा कुछ भी नहीं कर सकतीं।
+* विश्वास का न होना ही का कारण है। प्रज्ञा का विश्वास राज्य की निर्भयता की निशानी है।
+* शक्ति के बिना बोलने से लाभ नहीं। गोला-बारूद के बिना बत्ती लगाने से धडाका नहीं होता।
+* संस्कृति समझ-बूझकर शांति पर रची गयी है। मरना होगा तो वे अपने पापों से मरेंगे। जो काम प्रेम, शांति से होता है, वह वैर-भाव से नहीं होता।
+* शारीरिक और मानसिक शिक्षा साथ –साथ दी जाये, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। शिक्षा इसी हो जो छात्र के मन का, शरीर का, और आत्मा का विकास करे।
+* शक्ति के बिना श्रद्धा व्यर्थ है। किसी भी महान कार्य को पूरा करने में श्रद्धा और शक्ति दोनों की आवश्यकता है।
+* देश में अनेक धर्म, अनेक भाषाएँ हैं, तो भी इसकी संस्कृति एक है।
+* सत्य के मार्ग पर चलने हेतु बुरे का त्याग अवश्यक है, चरित्र का सुधार आवश्यक है।
+* जल्दी करने से आम नहीं पकता। आम की कच्ची कैरी तोड़ेंगे तो दांत खट्टे होंगे। फल को पकने दें, पकेगा तो स्वयं गिरेगा और रसीला होगा। इसी भांति समझौते का समय आएगा, तब सच्चा लाभ मिलेगा।
+* जो मनुष्य सम्मान प्राप्त करने योग्य होता है, वह हर जगह सम्मान प्राप्त कर लेता है, पर अपने जन्म-स्थान पर उसके लिए सम्मान प्राप्त करना कठिन ही है।
+* सुख और दुःख मन के कारण ही पैदा होते हैं और वे मात्र कागज के गोले हैं।
+* सेवा-धर्म बहुत कठिन है। यह तो काँटों की सेज पर सोने के समान ही है।
+* किसी राष्ट्र के अंतर में स्वतन्त्रता की अग्नि जल जाने के बाद वह दमन से नहीं बुझाई जा सकती। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भी यदि परतन्त्रता की दुर्गन्ध आती रहे तो स्वतन्त्रता की सुगंध नहीं फैल सकती।
+* सच्चे त्याग और आत्मशुद्धि के बिना स्वराज नहीं आएगा। आलसी, ऐश-आराम में लिप्त के लिए स्वराज कहाँ! आत्मबल के आधार पर खड़े रहने को ही स्वराज कहते हैं।
+* स्वार्थ के हेतु राजद्रोह करनेवालों से नरककुंड भरा है।
+* हम कभी हिंसा न करें, किसी को कष्ट न द���ं और इसी उद्देश्य से हिंसा के विरूद्ध गांधीजी ने अहिंसा का हथियार आजमा कर संसार को चकित कर दिया।
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+थॉमस अल्वा एडीसन अमेरिका के महान वैज्ञानिक, नवोन्वेशक (इन्नोवेटर आविष्कारक और व्यवसायी थे। इन्होंने अपने जीवन में बहुत सारी खोजें की थी, जिनमे से इनकी सबसे बड़ी खोज बिजली के बल्ब की खोज मानी जाती है। उन्होंने १४ कंपनिया बनायीं, उन्हें में से एक जनरल इलेक्ट्रिक विश्व की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक है। बचपन के दिनों में जब इनको प्रयोग करने के लिए पैसों की आवश्यकता पड़ती थी, तब ये पैसे कमाने के लिए ट्रेन में अखबार और सब्जी बेचते थे और अपने प्रयोग को जारी रखते थे।
+थॉमस एल्वा एडिसन का जन्म 11 फ़रवरी 1847 को हुआ। एडिसन ने फोनोग्राफ एवं विद्युत बल्ब सहित अनेकों युक्तियाँ विकसित कीं जिनसे संसार भर में लोगों के जीवन में भारी बदलाव आये। “मेन्लो पार्क के जादूगर” के नाम से प्रख्यात भारी मात्रा में उत्पादन' के सिद्धान्त एवं विशाल टीम को लगाकर अन्वेषण-कार्य को आजमाने वाले वे पहले अनुसंधानकर्ता थे। इसलिये एडिसन को ही प्रथम औद्योगिक प्रयोगशाला स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। अमेरिका में अकेले 1093 पेटेन्ट कराने वाले एडिसन विश्व के सबसे महान आविष्कारकों में गिने जाते हैं। एडीसन बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे। उनका देहांत 16 अक्टूबर 1931 को हुआ।
+* पाँच प्रतिशत लोग सोचते हैं, दस प्रतिशत लोग सोचते हैं कि वे सोचते हैं, और बाकी के पच्चासी प्रतिशत लोग सोचने से ज्यादा मरना पसंद करते हैं।
+आविष्कार करने के लिए, आपको एक अच्छी कल्पना और कबाड़ के ढेर की जरूरत होती है।
+कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।
+ज्यादातर लोग अवसर गँवा देते हैं क्योंकि ये चौग़ा पहने हुए होता है और काम जैसा दिखता है।
+प्रतिभा एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानबे प्रतिशत पसीना है।
+* अधिकतर लोग अपनी लाइफ में मौकों को गंवा देते है, क्योंकि ये काम जैसा दिखता है।
+* अनगिनत असफल लोग हैं जिन्होंने ये महसूस नहीं किया कि वो सफलता के कितने नजदीक थे।
+* अवसर अधिकतर लोगों के द्वारा खो दिया जाते हैं क्योंंकि यह लोग काम करने का चौगा पहने हुए होते हैं जो काम की तरह दिखता है।
+* असंतोष सफलता की पहली सीढ़ी है।
+* असफल होने पर कभी निराश न हों। इससे सीखो। कोशिश करते रहो। सीखना कभी भी बंद न करें।
+* अहिंसा उच्चतम नैतिकत�� तक ले जाती है जो कि क्रमिक विकास का लक्ष्य है जब तक हम अन्य सभी जीवित प्राणियों को नुकसान पहुंचाना नहीं छोड़ते तब तक हम जंगली है।
+* आप जो भी हैं वो आपके काम में दिखेगा।
+* आपकी कीमत इसमें है कि आप क्या हैं, इसमें नहीं कि आपके पास क्या है।
+* आपमें जितनी काबिलियत है उससे कहीं अधिक आपके पास अवसर हैं।
+* आविष्कार करने के लिए आपको एक अच्छी कल्पना और कूड़े के ढेर की जरूरत होती है।
+* इसे करने का एक बेहतर तरीक है, उसे खोजो।
+* उत्तम विचार हमारी मांसपेशियों में उत्पन्न होते है।
+* एक विचार विकसित करने वाला लगभग हर आदमी उस बिंदु तक काम करता है जहां यह असंभव दिखता है, और फिर वह निराश हो जाता है। यह हतोत्साहित होने की जगह नहीं है।
+* ऐसी वस्तु जो बिक नहीं सकती है, मैं उसका आविष्कार नही करना चाहूंगा, उसका बिकना उपयोगिता का प्रणाम है और उपयोगिता ही कामयाबी होती है।
+* कठिन परिश्रम का कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
+* कार्यान्वयन के बिना, विजन (दूरदृष्टि) भ्रम है।
+* किसी चीज का अविष्कार करने के लिए आपको एक अच्छी कल्पना और कबाड़ के ढेर की आवश्यकता होती है।
+* किसी चीज को पाने के लिए अथक प्रयास ही मायने रखता है, हजार नाकामयाबियों के बाद भी कोशिश करना ही कामयाबी के लिए सच्चा प्रयास है।
+* किसी भी कामयाबी में एक प्रतिशत प्रेरणा और 99 प्रतिशत पसीना होता है।
+* किसी विचार का मूल्य उसके उपयोग में निहित होता है।
+* कुछ भी उपयुक्त हासिल करने के लिए तीन महत्त्वपूर्ण चीजें हैं कड़ी मेहनत, दृढ़ता, और कॉमन सेन्स।
+* कुछ भी हासिल करने के लिए तीन महान आवश्यक चीजें हैं: कड़ी मेहनत, कभी भी नहीं छोड़ना (किसी कार्य को बीच में नहीं छोड़ना) और व्यावहारिक बुद्धि।
+* कोई भी चीज जो बिके ना, मैं उसका आविष्कार नहीं करना चाहूँगा। उसका बिकना उपयोगिता का प्रमाण है, और उपयोगिता सफलता है।
+* जब आपने सभी संभावनाओं को समाप्त कर दिया है तो इसे याद रखो आप यह नही कर सकते।
+* जितनी आपके पास काबिलियत है उससे कहीं ज्यादा अवसर हैं।
+* जितनी काबिलियत है उससे कहीं अधिक अवसर हैं।
+* जिस चीज को मानव का दिमाग बना सकता है, उसे मानव का चरित्र नियंत्रित भी कर सकता है।
+* जीनियस में एक प्रतिशत प्रेरणा और 99 प्रतिशत पसीना है।
+* जीवन में असफल हुए कई लोग वे होते हैं जिन्हें इस बात का आभास नहीं होता कि जब उन्होंने हार मान ली तो वे सफलता के कितने करीब थे।
+* जुनून क��� बिना आपके पास ऊर्जा नहीं होगी, ऊर्जा के बिना आपके पास कुछ भी नहीं है।
+* जो मनुष्य का दिमाग बना सकता है, उसे मनुष्य का चरित्र नियंत्रित कर सकता है।
+* ज्यादा व्यस्त होने का मतलब हमेशा हकीकत में काम होना नहीं होता है।
+* ज्यादातर लोग अवसर गँवा देते हैं क्योंकि ये चौग़ा पहने हुए होता है और काम जैसा दिखता है।
+* परिपक्वता अक्सर युवाओं की तुलना में अधिक बेतुकी होती है और बहुत बार युवाओं के लिए सबसे अधिक अन्याय होता है।
+* पांच प्रतिशत लोग सोचते हैं, दस प्रतिशत लोग सोचते हैं कि वे सोचते हैं और बाकी बचे पचासी प्रतिशत लोग सोचने से ज्यादा मरना पसंद करते हैं।
+* प्रकृति वास्तव में अद्भुत है। केवल मनुष्य वास्तव में बेईमानी है।
+* प्रतिभा एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानबे प्रतिशत पसीना है।
+* प्रत्येक चीज के लिए समय है।
+* प्रौढ़ता अक्सर युवावस्था से अधिक बेतुकी होती है और कई बार युवाओं पर अन्यापूर्ण भी।
+* बैचेनी असंतोष है और असंतोष प्रगति की पहली आवश्यकता है, आप मुझे कोई पूर्ण रूप से संतुष्ट व्यक्ति दिखाइए और मैं आपको एक असफल व्यक्ति दिखा दूंगा।
+* महान विचार मांसपेशियों में उत्पन्न होते हैं।
+* मुझे आप पूर्ण रूप से कोई संतुष्ट व्यक्ति दिखाइए और मैं आपको एक असफल व्यक्ति दिखा दूंगा।
+* मुझे इस बात पर गर्व है कि मैने कभी भी किसी की हत्या करने वाले हथियारों का आविष्कार नहीं किया।
+* में कामयाब नही हुआ हूं, मैंने बस दस हजार ऐसे तरीके खोज लिए है जो काम नही करते है।
+* मैं जानता हूँ ये दुनिया अनंत बुद्धि द्वारा शासित होती है। हमारे आस-पास जो कुछ भी है, जिस किसी चीज का भी अस्तित्व है, वह साबित करता है कि उसके पीछे असंख्य नियम है। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता। ये आपकी सटीकता में गणितीय है।
+* में पहले ये पता कर लेता हूं कि इस संसार को क्या चाहिए फिर में आगे बढ़ता हूं और उसका अविष्कार करने का प्रयास करता हूं।
+* मैं कामयाब नहीं हुआ हूं, मैंने बस दस हजार ऐसे तरीके खोज लिए है जो काम नहीं करते है।
+* मैं पहले ये पता कर लेता हूं कि इस संसार को क्या चाहिए फिर मैं आगे बढ़ता हूं और उसका आविष्कार करने का प्रयास करता हूं।
+* मैंने कुछ भी तुक्के में नहीं किया और न ही मेरे कोई अविष्कार भाग्य की वजह से हुए बल्कि वे काम द्वारा आये।
+* यदि एक अच्छा आईडिया प्राप्त करना है तो बहुत से आईडिया सोचो।
+* यदि हम उन सभी चीजों को करते हैं जो करने में हम सक्षम हैं, तो हम सचमुच खुद को चकित कर देंगे।
+* ये समस्या, एक बार समाधान मिलने के बाद सरल हो जाएगी।
+* वृद्धावस्था अक्सर युवावस्था से अधिक बेतुकी होती है और कई बार युवाओं पर अन्यापूर्ण भी।
+* व्यस्त होने का मतलब हमेशा हकीकत में काम होना नहीं है।
+* व्याकुलता असंतोष है और असंतोष प्रगति की पहली आवश्यकता है। आप मुझे कोई पूर्ण रूप से संतुष्ट व्यक्ति दिखाइए और मैं आपको एक असफल व्यक्ति दिखा दूंगा।
+* शरीर का मुख्य कार्य मस्तिष्क को इधर -उधर ले जाना है।
+* सफलता 1 प्रतिशत ज्ञान है और 99 प्रतिशत अभ्यास।
+* सबसे अच्छी सोच वो होती है जो एकांत में की गई होती है और सबसे बुरी सोच वो होती है जो उथल पुथल के माहौल में की गई होती है।
+* सभी बाइबल मानव निर्मित है।
+* सभी बाइबिल मनुष्य द्वारा बनायीं गयी हैं।
+* समस्या एक बार समाधान मिलने के बाद आसान हो जाएगी।
+* सही में हम सभी लोग किसी चीज के एक प्रतिशत के दस लाख वें हिस्से के बारे में भी नहीं जानते है।
+* साहसी बनो। मैंने व्यापार में मंदी के कई दौर देखे हैं। हमेशा अमेरिका इनसे और अधिक शक्तिशाली और समृद्ध होकर निकला है। अपने पूर्वजों की तरह बहादुर बनो। विश्वास रखो आगे बढ़ो !
+* हम इलेक्ट्रिसिटी (बिजली) को इतना सस्ता बना देंगे कि सिर्फ अमीर लोग ही मोमबत्तियां जलाएंगे।
+* हम किसी चीज के बारे में 1% के दस लाखवें हिस्से के बराबर भी नहीं जानते है।
+* हम किसी भी बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है, अगर हमारे पास तीन जरूरी तत्व है, ज्ञान, दृढ़ संकल्प और कठिन परिश्रम।
+* हम जो भी है, वो हमारे काम में दिखता है और हर एक समस्या, समाधान मिलने के बाद सरल हो जाती है।
+* हम बिजली को इतना सस्ता बना देंगे कि केवल अमीर ही मोमबत्तियां जलाएंगे।
+* हम लोगो की सबसे बड़ी कमजोरी हार मान लेना है। सफल होने का सबसे आसान तरीका है हमेशा एक बार और प्रयास करना।
+* हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हार मान लेना है। सफल होने का सबसे निश्चित तरीका है हमेशा एक और बार प्रयास करना।
+* हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हार मान लेना है। सफल होने का सबसे निश्चित तरीका है हमेशा एक और बार प्रयास करना।
+* हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हार मानने में निहित है। सफल होने का सबसे निश्चित तरीका हमेशा एक बार और प्रयास करना है।
+* हमारे शरीर का प्रमुख कार्य मस्तिष्क को इधर-उधर ले जाना है।
+* हमेशा एक बेहतर तरीका ���ोता है।
+* हमेशा महान विचार मांसपेशियों से निकलते हैं।
+* हर चीज के लिए समय है।
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+वॉरेन एडवर्ड बफे Warren Buffett 30 अगस्त 1930 को ओमाहा, नेब्रास्का में पैदा हुए) एक अमेरिकी निवेशक, व्यवसायी और परोपकारी व्यक्तित्व हैं। उन्हें शेयर बाज़ार की दुनिया के सबसे महान निवेशकों में से एक माना जाता है और वो बर्कशायर हैथवे कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और सबसे बड़े शेयर धारक हैं।
+* अगर आप मानव जाति के सबसे खुशनसीब एक फीसदी में हैं तो अन्य 99 प्रतिशत के लिए सोचने हेतु आप मानव जाति के ऋणी हैं।
+* अगर बिजनेस अच्छा करता है तो स्टाक खुद-बखुद अच्छा करने लगते हैं।
+* अपने से बेहतर लोगों के साथ समय बिताना अच्छा होता है। ऐसे सहयोगी बनाएं जिनका व्यवहार आपसे अच्छा हो, और आप उस दिशा में बढ़ जायेंगे।
+* आज का निवेशक गए हुए कल की बढ़त से फायदा नहीं कमाता।
+* एक अति सक्रिय शेयर बाज़ार उद्यम के लिए जेबकतरा है।
+* एक टोकरी में अपने सभी अंडे मत डालो।
+* एक शानदार कंपनी को उचित कीमत पर खरीदना एक उचित कम्पनी को शानदार कीमत पर खरीदने से ज्यादा बेहतर है।
+* कभी भी एकल आय पर निर्भर न रहे। आय का दूसरा श्रोत बनाने के लिए निवेश करें।
+* कीमत वो है जो आप भुगतान करते हैं, मूल्य वो है जो आप प्राप्त करते हैं।
+* कोई आज पेड़ की छाया में बैठा है तो इसकी वजह ये है कि उसने बहुत समय पहले पेड़ लगाया होगा।
+* खर्च करने के बाद जो बचता है उसे न बचावें बल्कि बचत करने के बाद जो बचता है उसे खर्च करें।
+* जोखिम तब होता है जब आपको पता नहीं होता है कि आप क्या कर रहे हैं।
+* डेरिवेटिव्स सामूहिक विनाश के वित्तीय हथियार हैं।
+* दोनों पैरों से एक साथ नदी की गहराई का परिक्षण कभी नहीं करें।
+* प्रतिष्ठा का निर्माण करने में २० साल लग जाते हैं और उसे खोने में पाँच मिनट। अगर आप इस बारे में सोंचते हैं तो आप अलग तरह से काम करेंगे।
+* बाज़ार के उतार चढाव को अपना मित्र समझिये। दूसरों की मुर्खता का लाभ उठाइये उसका हिस्सा मत बनिए।
+* मैं कभी शेयर बाज़ार से पैसा कमाने के लिए शेयर नहीं खरीदता हूँ। मैं इस धारणा से शेयर खरीदता हूँ कि बाज़ार अगले दिन बंद हो जाएगा और अगले पांच सालों तक नहीं खुलेगा।
+* यदि आप उन चीजों को खरीदतें हैं जिनकी आपको जरूरत नहीं है तो शीघ्र ही आपको उन चीजों को बेंचना पड़ जाएगा जिनकी आप को जरूरत है।
+* रिस्क तब होता है जब आपको पता ही नही होता है ��ि आप क्या कर रहे हैं।
+* वाल स्ट्रीट ही एक ऐसी जगह है ,जहाँ रोल्स रायस से आने वाले लोग सबवे से आने वाले लोगों से सलाह लेते हैं।
+* समय शानदार कम्पनियों का मित्र और औसत दर्जे की कंपनियों का दुश्मन होता है।
+* साख बनाने में बीस साल लगते हैं और उसे गंवाने में बस पांच मिनट।अगर आप इस बारे में सोचेंगे तो आप चीजें अलग तरह से करेंगे।
+* हमेशा लम्बी अवधि के लिए निवेश करें।
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+जैसे शरारती बच्चों के लिए मक्खियाँ होती हैं, वैसे ही देवताओं के लिए हम होते हैं; वो अपने मनोरंजन के लिए हमें मारते हैं।
+एक मिनट देर से आने से अछ्छा है तीन घंटे पहले आएं।
+डरपोक अपनी मृत्यु से पहले कई बार मरते हैं; बहादुर मौत का स्वाद और कभी नहीं बस एक बार चखते हैं।
+अच्छाई की प्रचुरता बुराई में बदल जाती है।
+लेकिन आदमी आदमी होता है; जो सबसे अच्छे होते हैं वो कई बार ये भूल जाते हैं।
+ये दुनिया एक रंगमंच है और सभी स्त्री और पुरुष केवल अदाकार; सबके प्रवेश और निकास का समय भी तय है; और एक व्यक्ति अपने समय अंतराल में अनेक किरदार निभाता है। ये किरदार ७ चरणों में निभाया जाता है।
+* अच्छाई की प्रचुरता बुराई में बदल जाती है।
+* महानता से घबराइये नहीं; कुछ लोग महान पैदा होते हैं, कुछ महानता हासिल करते हैं और कुछ लोगों के ऊपर महानता थोप दी जाती है।
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+* सभी प्रचार लोकप्रिय होने चाहिए और इन्हें जिन तक पहुचाना है उनमे से सबसे कम बुद्धिमान व्यक्ति के भी समझ में आने चाहिए।
+* जो कोई भी आकाश को हरा और मैदान को नीला देखता या पेंट करता है उसे मार देना चाहिए।
+* कुशल और निरंतर प्रचार के ज़रिये, कोई लोगों को स्वर्ग भी नर्क की तरह दिखाया जा सकता है या एक बिलकुल मनहूस जीवन को स्वर्ग की तरह दिखाया जा सकता है।
+* जर्मनी या तो एक विश्व-शक्ति होगा या फिर होगा ही नहीं।
+* केवल वही, जो युवाओं का मालिक होता है, भविष्य में लाभ उठता है।
+* एक ईसाई होने के नाते मुझे खुद को ठगे जाने से बचाने का कोई कर्तव्य नहीं है, लेकिन सत्य और न्याय के लिए लड़ने का मेरा कर्तव्य है।
+* सभी महान आन्दोलन लोक्रप्रिय आन्दोलन होते हैं। वे मानवीय जूनून और भावनाओं का विस्फोट होते हैं, जो कि विनाश की देवी या लोगों के बीच बोले गए शब्दों की मशाल के द्वारा क्रियान्वित किये जाते हैं।
+* विवेक एक यहूदी अविष्कार है।
+* जीत के साथ तो कोई भी खुश हो सकता है। शक्तिशाली केवल वही ह�� जो हार को सह ले।
+* दूसरे लोग क्या सोचते हैं, यह सोचकर, वह करना कभी ना छोड़े, जो करना आपको बेहद पसंद है।
+* कोई भी व्यक्ति अनियमित ढंग से रह कर ही किसी वस्तु का निवारण निकाल सकता है।
+* और कुछ क्षेत्रों में ईमानदारी को मूर्खता की तरह देखा जाता है।
+* अगर आप जीत जाते हैं तो आपको कुछ भी समझाने की जरूरत नहीं है, और अगर आप हार जाते हैं तो आपको वहां नहीं होना चाहिए।
+* एक रचनात्मक और ऊर्जावान दिमाग केवल उसी व्यक्ति में पाया जा सकता है जो कि खुद रचनात्मक और ऊर्जावान है।
+* किसी भी फैसले को लेने से पहले हजार बार सोचें लेकिन कोई भी फैसला लेने के बाद कभी पीछे मुड़कर ना देखें, भले ही आपको हजारों परेशानियों का सामना करना पड़े!!।
+* मैं अपने पिता की इज्जत करता हूं, लेकिन मैं अपनी माता से प्रेम करता हूं।
+* मेरे जनरल किसी बैल की तरह सीमा पर खड़े होकर, युद्ध युद्ध युद्ध चिल्ला रहे थे, लेकिन अब क्या हुआ? मैं अपनी आक्रामक कूटनीतिक से आगे बढ़ा तो जनरल्स ने ही मुझे रोकने की कोशिश की। यह एक गलत स्थिति है।
+* सफल होने के लिए सबसे पहला आवश्यक तत्व है लगातार हिंसा का रोजगार।
+* वह व्यक्ति जिसे इतिहास की जरा भी समझ नहीं है, वह एक बहरे और अंधे जैसा है।
+* इतिहास पढ़ने का अर्थ है ऐसी शक्तियों को समझना और ढूंढना जिनके कारण वह सब हुआ जो भी कुछ हम आज देखते हैं। लगातार पढ़ने का गुण सही चीजों को याद रखने और बुरी चीजों को भूल जाने में काफी ज़्यादा सहायक है।
+* पड़ने और खोज करते रहने से हम यह जान पाते हैं कि कौन सी बातें याद रखने लायक हैं और कौन सी बातें हैं जो याद रखने लायक नहीं हैं।
+* जब व्यवस्था का खात्मा होता है, तब युद्ध शुरू होता है।
+* बड़े देशों की यही आदत है और शक्ति है कि जो उनकी नकल करने से डरता है, वे उसे परेशान करते हैं और उन्हे डराते हैं।
+* शब्दों द्वारा ऐसी जगहों पर जाने के रास्ते बनाए जा सकते हैं जहां आप कभी नहीं गए।
+* हमारा सम्पूर्ण विश्व भगवान और शैतानों द्वारा मिलकर बना है।
+* पढ़कर आप किसी भी पाठ का अन्त नहीं करते, अपितु उसके बिना होने वाले अन्त का अन्त करते हैं।
+* जब आपके पास अपने लोगों के लिए शर्मिंदा होने जैसा कुछ ना हो तब उन पर गर्व किजिए।
+* जो अकेले, युवाओं के समूह को चला लेता है, वह भविष्य कमा लेता है।
+* ताकतवर व्यक्ति को हमेशा कमजोर व्यक्ति पर हावी रहना चाहिए, ना कि उसके साथ दोस्ती करनी चाहिए, और अगर वह ऐसा करता है तो उसकी ताकत का बलिदान होगा। केवल वही व्यक्ति इस नियम को घृणा की नजर से देखा सकता है, क्यूंकि वह छोटी स्पीच सोच का व्यक्ति है। अगर ऐसा है तो क्यूं इस नियम के कारण, दुनिया विकास कर रही है।
+* सारे महान आंदोलन, प्रसिद्ध आंदोलन हैं। वे सभी आंदोलन लोगों की भावनाओं और उम्मीदों के ज्वालामुखी हैं, उन सभी देवताओं के खिलाफ जिन्होने उनके साथ गलत किया है।
+* किसी भी राजनेता को बाथ शूट में कभी फोटो नहीं खींचवानी चाहिए।
+* ताकतवर व्यक्ति हमेशा अकेला होता है।
+* मैं एक ऐसे राज्य की कल्पना करता हूं जहां हर व्यक्ति यह जानता होगा कि वह जीता और मरता है केवल मानवीय स्पिसीज के संरक्षण के लिए।।
+* इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना बड़ा झूट बोल रहे हैं, अगर आप इसे लगातार बोलेंगे तो इस पर यकीन कर लिया जाएगा।
+* हमारा मकसद होना चाहिए कि हम सामंजस्य बिठाकर, अपनी जनसंख्या को अपनी सीमा के अंदर रखें।
+मैं केवल उस चीज के लिए लड़ सकता हूं, जिसे मैं प्यार करता हूं, और केवल उस चीज को प्यार कर सकता हूं, जिसकी मैं इज्जत करता हूं, और केवल उस चीज की इज्जत कर सकता हूं जिसके बारे में मैं थोड़ा बहुत ही सही, मगर जानता हूँ।''
+* परेशानियों के बिना जीतना केवल जीत है, लेकिन परेशानियों के साथ जितना इतिहास बन जाता है।
+* आधारभूत तरीके से राष्टीय समाजवाद और मार्क्सवाद एक ही चीजें हैं।
+* किसी भी देश को जीतने के लिए, उसके नागरिकों को निहत्था कर दो।
+* एक महान व्यक्ति के चुनाव द्वारा खोजे जाने से, एक सुई के छेद से एक ऊंट को गुजरते हुए देखना ज़्यादा आसान है।
+* इस दुनिया में बुद्धिमान लोगों द्वारा किया गया कोई भी रचनात्मक कार्य, क्या बड़े समूह द्वारा नकारा नहीं गया है?।
+* चालाकी से और लगातार फैलाए गए प्रोपेगेंडा के कारण, लोग स्वर्ग को भी नर्क मानने लगेंगे, और इसी तरह अगर इसके उलट चाहें तो लोग बुरे से बुरे हालातों को भी स्वर्ग समझेंगे।
+* अपने युवापन की शुरुआत से ही मैं किताबें पढ़ने में खास दिलचस्पी रखता था, और मैं भाग्यशाली रहा कि मेरी अच्छी याददाश्त ने इन सबमें मेरा भरपूर साथ दिया।
+* जब सेना अपनी शक्तियों के आकलन में ही छह महीने लगा दे और दुश्मन पर हमला ना करे, तो यह जान लीजिए कि यह देश वासियों के लिए खतरा है।
+* बुद्धिमान लोगों के नेताओं के पास अलग अलग विद्रोहियों को खड़ा करने की क्षमता होनी चाहिए, आखिरकार वे सब एक ह��� वर्ग से जो आते हैं।
+* एक औसत व्यक्ति को मृत्यु से सबसे ज़्यादा खतरा रहता है, लेकिन वह इसके बारे में शायद ही कभी सोचता हो। वह कभी कभार इस बारे में सोचता भी है लेकिन सोच की उस हद तक नहीं। वह अंधों की तरह दिन ब दिन जीता चला जाता है। दूसरे लोग उसे सावधानी से देखता हैं, वे चौंका जाते हैं उसकी आँखें देखकर, कितनी शान्त और मधुर हैं।
+* खुद की तुलना कभी किसी और के साथ ना करें, यदि आप ऐसा करते हैं तो आप अपनी बेज्त्ती कर रहे हैं।
+
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+* कामियाबी और नाकामयाबि दोनों ही जिंदिगी के हिस्से हे, और ये स्थाई बिलकुल नहीं है।
+* सफलता आपको विनम्र बनती है।
+* मेरा मानना है कि प्यार किसी भी उम्र में हो सकता है, इसकी कोई उम्र नहीं होती।
+* चाहे लोग इसे पसंद करें या नहीं, मेरी मार्केटिंग की सोच ये है कि अगर आप कोई चीज लम्बे समय तक लोगों के सामने रखते हैं तो उन्हें इसकी आदत पड़ जाती है।
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+* मैं कभी भी सही निर्णय लेने पर विश्वास नहीं करता। मैं निर्णय ले कर, उसे सही साबित करने में विश्वास करता हूं।
+* लोहे को कोई नुकसान नहीं पहूंचा सकता लेकिन यह कार्य उसका अपना ही जंग कर सकता है। वैसे ही किसी व्यक्ति को कोई नष्ट नहीं कर सकता सिवाय उसकी अपनी मानसिकता के।
+* अगर आप तेज चलना चाहते है तो अकेले चलिए। लेकिन अगर दूर तक जाना चाहते है तो साथ-साथ चलिए।
+* जिन जीवन मूल्यों और नीतियों को मैं जीवन में जीता रहा, इसके सिवा मैं जो संपंदा अपने पीछे छोड़ना चाहता हूं वह यह है कि आप हमेशा जिस चीज को सही माने उसके साथ डट कर खड़े रहे और जहां तक संभव हो निष्पक्ष बने रहे।
+* मैं भारत के भविष्य और इसकी क्षमता को लेकर काफी आशान्वित हूं। यह बहुत महान देश है। इसमें बहुत क्षमता हैं।
+* हमें सफल व्यक्तियों से प्रेरणा लेनी चाहिए कि – अगर वे सफल हो सकते है तो हम क्यों नहीं? परंतु प्रेरणा लेते समय आंखे खुली रखनी चाहिए।
+* अगर कोई भी कार्य जन-साधारण के मापदंड़ों पर खरा उतरता है तो उसे जरूर करे लेकिन अगर नहीं उतरता हो तो बिल्कूल न करे।
+* विश्व के करोड़ों लोग मेहनत करते है लेकिन सबको इसका फल अलग-अलग प्राप्त होता हैं। इन सब के लिए मेहनत जिम्मेदार हैं। इसलिए मेहनत से मत भागीए, मेहनत करने के तरीको में सुधार लाइए।
+* हम सभी के पास समान योग्यता नहीं है लेकिन हमारे पास अपनी प्रतिभा को विकसित करने के लिए समान अवसर है|
+* मैं उन लोगों की प्रसंशा क���ता हूं जो बहुत सफल हैं। लेकिन अगर वह सफलता बहुत ज्यादा निर्ममता से हासिल हो तो मैं उस व्यक्ति की प्रसंशा तो करूँगा लेकिन इज्जत नहीं।
+* हर व्यक्ति में कुछ-न-कुछ विशेष गुण और प्रतिभा होती है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने अंदर मौजूद गुणों और प्रतिभा का पहचानना चाहिए।
+
+
+* रिश्ते और विश्वास, ये जीवन के आधार हैं।
+* अगर हम हमारे विचार प्रक्रिया के केंद्र में लाखों भारतीयों को रखते हैं, अगर हम उनके आत्म बोध के खातिर उनके कल्याण, उनके भविष्य के बारे में सोचते हैं, हम सही रास्ते पर हैं। भारत तभी बढेगा, विकास करेगा जब ये समृद्ध, विकसित होंगे। हम किसी भी गूढ़ रणनीतियों से विकसित नहीं हो सकते। हमारी क्रय शक्ति, हमारी आर्थिक ताकत, हमारे बाजार सभी इन लोगों की समृद्धि पर निर्भर करता है।
+* आज मैं एक अरब लोगों में एक अरब संभावित उपभोक्ताओं को देखता हूँ, उनके लिए मूल्य उत्पन्न करने का एक अवसर और अपनी वापसी के लिए एक अवसर के रूप में देखता हूँ।
+* मुझे ये लगता है कि हमारे मौलिक धारणा यह है कि हमारा विकास जीवन का एक तरीका है और हमें हमेशा विकासशील बने रहना चाहिए।
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+प्रेम या प्यार love) मन की एक ऐसी भावना है जिस पर न केवल कवियों या लेखकों ने दिया है, बल्कि मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों दोनों ने इसे समझने की कोशिश की है। प्रेम ने हजारों उपन्यासों, फिल्मों, कविता ओं और गीतों को प्रेरित किया है। प्यार सबसे तीव्र भावनाओं को जागृत करता है और प्यार में पड़ने का जुनून प्रेमियों के मन और शरीर को प्रभावित करता है।
+* प्यार में हमेशा कुछ पागलपन होता है, लेकिन हमेशा पागलपन में भी कुछ कारण होता है। फ्रेडरिक नीत्से
+* एक चुंबन? जब शब्द अतिश्योक्तिपूर्ण हो जाए तो बात करने के लिए मुग्ध चाल। इंग्रिड बर्गमैन
+* हम सभी को एक-दूसरे की ज़रूरत है। लियो बुशकाग्लिया
+* प्रेम, क्योंकि इसका कोई भूगोल नहीं है, कोई सीमा नहीं जानता। ट्रूमैन कैपोट
+* मैं आपके जीवन से नहीं खुशी या मौका के लिए गायब हो गया, बस यह जांचने के लिए कि क्या आप मुझे याद करते हैं और जब आप करते हैं तो आप मुझे ढूंढते हैं। RousTalent
+* प्रेम का कोई इलाज नहीं है, लेकिन यह सभी बुराइयों का एकमात्र इलाज है। लियोनार्ड कोहेन
+* अपने भाग्य को चिह्नित करने वाले चार अक्षरों से प्यार करें। चार पत्र जो आपको सपने देखने के लिए आमंत्रित करते हैं। चा��� पत्र जो आपको बताते हैं कि आप जीवित हैं, हालांकि कई लोगों के लिए आप मर चुके हैं। अज्ञात
+* किसी को याद करने का सबसे खराब तरीका उनके बगल में बैठा जाना है और यह जानना है कि आप उन्हें कभी नहीं कर सकते। गेब्रियल गार्सिया मरकेज़
+* जब आप प्यार में पड़ जाते हैं तो आप वही व्यक्ति नहीं होते जो आप पहले थे, क्योंकि जब आप वास्तविक जीवन जीने लगते हैं। लुइस मिगुएल अलवरेडो
+* यह जानने के लिए क्या अफ़सोस है कि ऐसी ताकत वाले लोग हैं जो उन्हें कमज़ोर बनाते हैं और यह उन तथ्यों से परिलक्षित नहीं होता है जो उनके मुंह से निकलते हैं। लियोनार्डो नुनेज़ वेले
+* वह व्यक्ति जो आपका हकदार है, वह है जिसे वह करने की स्वतंत्रता है, जो वह चाहता है, आपको हर समय चुनता है। डायरिथ वाइनहाउस
+* कुछ लोगों को सत्ता से प्यार है और दूसरों को प्यार करने की शक्ति। बॉब मार्ले
+* युवा लोगों का प्यार वास्तव में उनके दिल में नहीं है, बल्कि उनकी आँखों में है। विलियम शेक्सपियर
+* जो प्यार से किया जाता है वह अच्छाई और बुराई से परे होता है। फ्रेडरिक नीत्शे
+* जो प्रेम करता है, वह विनम्र बनता है। जो लोग प्यार करते हैं अपने नशीलेपन के एक हिस्से का त्याग करें। सिगमंड फ्रायड
+* प्यार कुछ ऐसा नहीं है जिसे आपको खोजना है, बल्कि कुछ ऐसा है जो आपको पाता है। लॉरेटा यंग
+* प्रेम दो शरीरों में रहने वाली एक आत्मा से बना है। अरस्तू
+* प्रेम की शक्ति की कोई सीमा नहीं है। जॉन मॉर्टन
+* प्रेम कर्तव्य से बेहतर शिक्षक है। अल्बर्ट आइंस्टीन
+* प्रेम एक हाथी को एक ताला के माध्यम से पारित करेगा। सैमुअल रिचर्डसन
+* चुंबन, भले ही वे हवा में हों, सुंदर हैं। ड्रयू बैरीमोर
+* हृदय की वृत्ति की तरह कोई वृत्ति नहीं है। लॉर्ड बायरन
+* सौंदर्य प्रेमी का उपहार है। विलियम कांग्रेव
+* जितना अधिक हम वासना के विचारों में पड़ते हैं उतना ही अधिक हम रोमांटिक प्रेम से दूर जाते हैं। डगलस हॉर्टन
+* मैं आप में हूं और आप मुझमें हैं, आपसी ईश्वरीय प्रेम। विलियम ब्लेक
+* प्यार क्या है? यह सुबह और शाम का तारा है। सिनक्लेयर लुईस
+* मैं एक बेहतर इंसान हूं जब मैं खुद को रोमांस के लिए समय देता हूँ। डायने क्रूगर
+* यदि आपका दिल एक ज्वालामुखी है, तो आप इसमें फूलों के बढ़ने की उम्मीद कैसे करते हैं?। खलील जिब्रान
+* प्यार का पहला कर्तव्य सुनना है। पॉल टिलिच
+* केवल एक ही तरह का प्यार है, लेकिन एक ��जार नकलें हैं। फ्रांकोइस डे ला रोचेफाउल्कड
+* प्यार के बिना एक जीवन फूलों या फलों के बिना एक पेड़ की तरह है। खलील जिब्रान
+* प्रेम की शक्ति की कोई सीमा नहीं है। जॉन मॉर्टन
+* प्यार एक फूल है जिसे आपको बढ़ने देना चाहिए। जॉन लेनन
+* प्यार करने की तुलना में प्यार करने में अधिक आनंद है। जॉन फुलर
+* प्यार का सबसे अच्छा सबूत है विश्वास। जॉइस ब्रदर्स
+* लोग प्रोजेक्ट करते हैं कि उन्हें क्या पसंद है। जैक्स कैस्टेउ
+* पहला प्यार बहुत भोलापन और थोड़ी जिज्ञासा है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
+* हम प्यार करते हैं क्योंकि यह एकमात्र महान साहसिक है। निक्की जियोवानी
+* प्यार अंतहीन क्षमा का एक कार्य है, एक निविदा रूप जो एक आदत बन जाता है। पीटर उस्तीनोव
+* सबसे छोटे केबिन में प्यार करने वाले और खुश जोड़े के लिए एक कोना है। फ्रेडरिक शिलर
+* किसे प्यार किया जा रहा है, गरीब है?। ऑस्कर वाइल्ड
+* क्या आपके पास प्यार करने का कोई कारण है?। ब्रिजित बरदोट
+* प्रेम का मुख्य जादू हमारी अज्ञानता है कि एक दिन यह समाप्त हो सकता है। बेंजामिन डिसरायली
+* यदि आपके पास किसी व्यक्ति से प्यार करने के कारण हैं, तो आप उससे प्यार नहीं करते। स्लावोज ज़िज़ेक
+* प्रेम एकमात्र प्रकार का सोना है। अल्फ्रेड लॉर्ड टेनीसन
+* प्यार की अंतरंग वास्तविकता को केवल प्यार से ही पहचाना जा सकता है। हंस उर्स वॉन बल्थासार
+* प्यार सर्वोच्च और बिना शर्त है, आकर्षण सुखद है लेकिन सीमित है। ड्यूक एलिंगटन
+* पर्याप्त "आई लव यू" पर्याप्त नहीं है। लेनी ब्रूस
+* कान दिल के लिए आय है। वोल्टेयर
+* प्यार अंतरिक्ष और दिल द्वारा मापा गया समय है। मार्सेल प्राउस्ट
+* प्रेम में, इशारे, शब्दों की तुलना में अतुलनीय रूप से अधिक आकर्षक, प्रभावी और मूल्यवान हैं। फ्रांकोइस राबेलिस
+* कड़वाहट जीवन को घेर लेती है, प्रेम इसे मुक्त कर देता है। हैरी इमर्सन फ़ॉस्डिक
+* प्यार एक ऐसा खेल है जिसमें दोनों जीत कर खेल सकते हैं। ईवा गैबर
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+कोई भी महान व्यक्ति अवसरों की कमी के बारे में शिकायत नहीं करता।
+जीवन की विडम्बना यह नहीं है कि आप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंचे, बल्कि यह है कि पहुँचने के लिए आपके पास कोई लक्ष्य ही नहीं था।
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+: हे भगवान इंद्र! आप इस नवविवाहित जोड़े को चक्रवाक पक्षियों की जोड़ी की तरह एक साथ लाएं; उन्हें वैवाहिक आनन्द लेने दें, और उनकी सन्तान के साथ, एक पूर्ण जीवन जीने दें।
+: विवाह आठ प्रकार के होते हैं जो क्रमशः ये हैं: ब्राह्म विवाह, दैव विवाह, आर्ष विवाह, प्राजापत्य विवाह आसुर विवाह, गान्धर्व विवाह, राक्षस विवाह, और आठवां पैशाच विवाह, जो अधम विवाह है।
+: वेदों-शास्त्रों का अध्ययन जिसने किया हो ऐसे वर को स्वयमेव आमंत्रित करके, उसे वस्त्र-आभूषण आदि अर्पित करके, और समुचित रूप से पूजते हुए कन्या का सोंपा जााना धर्मयुक्त ‘ब्राह्म’ विवाह कहलाता है।
+: विवाहोत्सुक स्त्री-पुरुष को वर-कन्या के रूप में स्वीकार कर “तुम दोनों मिलकर साथ-साथ धर्माचरण करो” यह कहते हुए और उनका समुचित रूप से स्वागत-सत्कार करते हुए वर को कन्या प्रदान करना ‘प्राजापत्य’ विवाह कहलाता है ।
+: कन्या एवं वर की इच्छा और परस्पर सहमति से स्थापित संबंध, जो शारीरिक संसर्ग तक पहुंच सकते हैं, की परिणति के रूप में हुए विवाह को ‘गांधर्व’ विवाह की संज्ञा दी गई है।
+: कन्यापक्ष के निकट संबंधियों, मित्रों, सुहृदों आदि को डरा-धमका करके, आहत करके, अथवा उनकी हत्या करके रोती-चीखती-चिल्लाती कन्या घर से जबरन उठाकर ले जाना और विवाह करना राक्षस विधि का विवाह कहलाता है।
+: जब कोई कन्या सोई हो, भटकी हो, नशे की हालत में हो, अथवा सुरक्षा के प्रति असावधान हो, तब यदि कोई उसके साथ शारीरिक संबंध बनाकर अथवा अन्यथा विवाह कर ले तो उसे निकृष्टतम श्रेणी का ‘पैशाच’ विवाह कहा जाता है।
+: ब्राह्मण को आदि से ६ प्रकार के विवाह, क्षत्रिय को असुरादि क्रम से ४ प्रकार के, वैश्य शूद्र को राक्षस रहित ३ प्रकार के विवाह धर्मानुकूल कहे गये हैं।
+: धर्म में, अर्थ में, और काम में अपने कर्तव्य में, इनकी सलाह का उल्लंघन नहीं करूँगा। अर्थात अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं में, अपनी आवश्यकताओं में, मैं इनकी बातों का उल्लंघन नहीं करूँगा। दूसरे शब्दों में इसका अर्थ है मेरे कर्तव्य में, मेरी वित्तीय प्रतिबद्धताओं में, मेरी जरूरतों में, मैं आपसे सलाह लूंगा, आपकी सहमति लूंगा और कार्रवाई करूंगा।
+* युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह! जो समस्त धर्मों का, कुटुम्बीजनों का, घर का तथा देवता, पितर और अतिथियों का मूल है, उस कन्यादान के विषय में मुझे कुछ उपदेश कीजिये। पृथ्वीनाथ सब धर्मों से बढ़कर यही चिन्तन करने योग्य धर्म माना गया है कि पात्र को कन्या देनी चाहिये? भीष्मजी ने कहा- बेटा सत्पुरुषों को चाहिये कि वे प��ले वर के शील-स्वभाव, सदाचार, विद्या, कुल, मर्यादा और कार्यों की जाँच करें। फिर यदि वह सभी दृष्टियों से गुणवान प्रतीत हो तो उसे कन्या प्रदान करें। युधिष्ठिर! इस प्रकार ब्याहने योग्य वर को बुलाकर उसके साथ कन्या का विवाह करना उत्तम ब्राहामणों का धर्म-ब्रम्ह विवाह है। जो धन आदि के द्वारा वरपक्ष को अनुकुल करके कन्यादान किया जाता है, वह शिष्ट ब्राम्हण और क्षत्रियों का सनातन धर्म कहा जाता है। (इसी को प्राजापत्य विवाह कहते हैं)। युधिष्ठिर! जब कन्या के माता-पिता अपने पसंद किये हुए वर को छोड़कर जिसे कन्या पसंद करती हो तथा जो कन्या को चाहता हो ऐसे वर के साथ उस कन्या का विवाह करते हैं, तब दवेता पुरुष उस विवाह को गान्धर्व धर्म (गान्धर्व विवाह) कहते हैं। नरेश्वर! कन्या के बन्धु-बान्धवों को लोभ में डालकर उन्हें बहुत-सा धन देकर जो कन्या को खरीद ले जाता है, इसे मनीषी पुरुष असुरों का धर्म (आसुर विवाह)कहते हैं। तात! इसी प्रकार कन्या के रोते हुए अभिभावाकों को मारकर, उनके मस्तक काटकर रोती हुई कन्या को उसके घर से बलपूर्वक हर लाना राक्षसों का काम (राक्षस विवाह) कहा जाता है। युधिष्ठिर! इन पांच (ब्राहय, प्राजापत्य,गान्धर्व आसुर और राक्षस) विवाहों में से पूर्वकथित तीन विवाह धर्मानुकुल हैं और शेष दो पापमय हैं। आसुर और राक्षस विवाह किसी प्रकार भी नहीं करने चाहियें[१]। नरश्रेष्ठ! बारह, क्षात्र (प्राजापत्य) तथा गान्धर्व- ये तीन विवाह धर्मानुकुल बताये गये हैं। ये पृथक हों या अन्य विवाहों से मिश्रित- करने ही योग्य हैं। इसमें संशय नहीं है। ब्राम्हण के लिये तीन भार्याएँ बतायी गयी हैं (ब्राहामण-कन्या, क्षत्रिय-कन्या और वैश्य–कन्या क्षत्रिय के लिये दो भार्याएँ कही जाती हैं (क्षत्रिय-कन्या और वैश्य-कन्या)। वैश्य केवल अपनी ही जाति की कन्या के साथ विवाह करे। इन स्त्रियों से जो संतानें उत्पन्न होती हैं वे पिता के समान वर्णवाली होती हैं (माताओं के कुल या वर्ण के कारण उनमें कोई तारतम्य नहीं होता)। ब्राम्हण की पत्नियों में ब्राम्हण-कन्या श्रेष्ठ मानी जाती है, क्षत्रिय के लिये क्षत्रिय-कन्या श्रेष्ठ है (वैश्य की तो एक ही पत्नी होती है; अत: वह श्रेष्ठ है ही)।कुछ लोगों का मत है कि रति के लिये शूद्र-जाति की कन्या से भी विवाह किया जा सकता है; परंतु और लोग ऐसा नहीं मानते (वे शूद्र-कन्या को त्रैवर्णिकों के लिये अग्राह बतलाते हैं)। श्रेष्ठ पुरुष ब्राम्हण का शुद्र-कन्या के गर्भ से संतान उत्पन्न करना अच्छा नहीं मानते। शूद्रा के गर्भ से संतान उत्पन्न करने वाला प्रायश्चित का भागी होता है। तीस वर्ष का पुरुष दस वर्ष की कन्या को, जो रजस्वला न हुई हो, पत्नी रूप में प्राप्त करे। अथवा इक्कीस वर्ष का पुरुष सात वर्ष की कुमारी के साथ विवाह करे। महाभारत अनुशासन पर्व, अध्याय ४४
+: ऊंटों के विवाह में गधे यदि गीत गा रहे हों तो वे परस्पर एक दूसरे की प्रशंसा मे कहते है कि अहा क्या सुन्दरता है और क्या मधुर गायन है!
+: सदा वक्र (टेढ़ा सदा क्रूर (निर्दयी सदा पूजा की अपेक्षा करने वाला, नित्य कन्या राशि में ही स्थित रहने वाला जमाता (जमाई) दसवाँ ग्रह है।
+: विवाह, जन्म और मृत्यु – ये तीन काल द्वारा निर्मित पाश (बन्धन) हैं।ये तीनों कब, किस प्रकार, और किस कारण होंगे- यह अपरिहार्य हैं, इसको नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
+* अच्छे विवाह का रहस्य यह समझना है कि विवाह सम्पूर्ण होना चाहिए, यह स्थायी होना चाहिए, और यह बराबरी का होना चाहिए। फ्रैंक पिटमैन
+* अच्छी शादी, ख़ुशहाल शादी से भिन्न होती है। डेबरा विंगर
+* अच्छा विवाह दो अच्छे माफ कर देने वालों का मिलन है। रूथ बेल ग्राहम
+* अगर अच्छी शादी जैसी कोई चीज होती है, तो यह इसलिए है कि यह प्यार के बजाय दोस्ती जैसी है। मिशेल डी मोंटैगने
+* यदि मैं विवाह करता हूँ, तो मैं पूरी तरह विवाहित होना चाहता हूँ। ऑड्रे हेपब्र्न
+* अपने विवाहित जीवन को सुखी रखने के लिए जरूरी है कि जब आप गलत हों तो स्वीकार कीजिये, और अगर आप सही हैं तो अपना मुह बन्द रखिये। ओग्डेन नैश
+* अपने जीवनसाथी को सावधानी से चुनिए। इस एक निर्णय से आप अपने समस्त सुख या दुःख का 90 प्रतिशत भाग पायेंगे। एच जैक्सन ब्राउन जूनियर
+* आप किसी को तब तक नहीं जान पाते हैं जब तक कि आप उनसे विवाह नहीं कर लेते। एलानोर रूज़वेल्ट
+* आपको मेरी यही सलाह है कि आप विवाह कर लें। अगर आपको अच्छी पत्नी मिल जाती है, तो आप सुखी रहेंगे। यदि नहीं, तो आप एक दार्शनिक बन जायेंगे। सुकरात
+* इस दुनिया में कोई भी चीज एक विवाहित स्त्री के समर्पण जैसी नहीं है। यह एक ऐसी वस्तु है जिसके बारे में कोई भी विवाहित व्यक्ति कुछ नहीं जानता। ऑस्कर वाइल्ड
+* उस व्यक्ति के साथ विवाह मत कीजिये जिसके साथ रहकर आप जी सकें। किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह कीजिये जिसके बिना आप जिन्दा न रह सकें। जेम्स डॉबसन
+* अच्छा विवाह वह है जो लोगों में परिवर्तन लाने और उन्नति करने का अवसर देता है और वह भी उस तरीके से जिसमें वे अपने प्रेम को व्यक्त कर सकें। पर्ल एस. बक
+* अच्छा विवाह उदारता की प्रतियोगिता है। डायने सॉयर
+* अच्छी शादी से ज्यादा प्यारा, दोस्ताना और आकर्षक रिश्ता, समन्वय या साथ नहीं है। मार्टिन लूथर
+* औरत के लिए उस व्यक्ति के साथ सुखी रहना मुश्किल है, जो उससे उस तरह बर्ताव करने पर बहुत जोर देता है, जैसे कि वह पूर्णतया सामान्य व्यक्ति हो। ऑस्कर वाइल्ड
+* खुशहाल शादी का रहस्य यह है कि आप चार दीवारों के भीतर किसी के साथ शांति से रह सकते हैं, यदि आप संतुष्ट हैं कि आप जिससे प्यार करते हैं वह आपके पास है, या तो ऊपर या नीचे, या उसी कमरे में, और आपको लगता है कि वह गर्मजोशी आपको बार-बार नहीं मिलती, बस यही तो प्यार है। ब्रूस फोर्सिथ
+* विवाह में तीन आदमी होते हैं, एक स्त्री, एक पुरुष, और एक वह जिसे मै तीसरा व्यक्ति कहता हूँ, जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, वह व्यक्ति जो स्त्री और पुरुष दोनों से मिलकर बना है। जोस सरामागो
+* सचमुच के सुखमय विवाह की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है स्वामिभक्ति (निष्ठा)। बिना विश्वास के कोई भी सफल विवाह सम्भव नहीं है। अरविन्द सिंह
+* सफल विवाह के लिए जरूरी है कि आप कई बार प्यार में पड़ें, लेकिन हमेशा एक ही व्यक्ति के साथ। मिग्नन मकलौघ्लीन
+* सफल विवाह के लिए भावपूर्ण प्रेम से भी ज्यादा कुछ चाहिये। एक चिरस्थायी युति के लिए हर हाल में एक दूसरे के प्रति नैसर्गिक प्रेम होना चाहिये। अज्ञात
+* सफल विवाह वह नहीं है जब आप अपनी पत्नी के साथ शांति से रह सकें, बल्कि तब है जब आप उसके बिना शांति से न रह सकें। यासिर कढ़ी
+* सफल विवाह एक ऐसा भवन है, जिसे हर दिन फिर से बनाया जाना चाहिए। आंद्रे मौरिस
+* साधारण विवाह और एक असाधारण विवाह के बीच का अन्तर हर दिन बस थोड़ा अतिरिक्त देने में है; जितनी बार सम्भव हो, जब तक हम दोनों जीवित रहें। फॉन वीवर
+* स्त्री की कल्पना बहुत तेज होती है; यह एक क्षण में ही प्रशंसा से प्रेम और फिर प्रेम से विवाह तक पहुँच जाती है। जेन ऑस्टिन
+* ऐसे व्यक्ति से शादी न करें जिसके साथ आप रह सकें; सिर्फ उस व्यक्ति से शादी करें जिसके बिना आप रह न सकें। जेम्स सी. ��ॉबसन
+* केवल वे ही व्यक्ति विवाह के पवित्र बंधन में बंधने के अधिकारी हैं जो एक दूसरे की भलाई के लिये खुद को पूरी तरह समर्पित कर सकें। अरविन्द सिंह
+* कोई भी स्त्री उस व्यक्ति का आधिपत्य स्वीकार नहीं करना चाहती जो ईश्वर की आज्ञानुसार चलने को तैयार नहीं है। टी. डी. जकेस
+* ख़ुशहाल शादी आपके एक साथ बिताये दिनों, महीनों या सालों की संख्या पर आधारित नहीं होती। यह इस बारे में है कि आप एक-दूसरे से हर दिन कितना प्यार करते हैं। अज्ञात
+* खुशहाल शादी एक लंबा संवाद है, जो हमेशा बहुत छोटा लगता है। आंद्रे मौरिस
+* खुशहाल शादी का केवल एक ही तरीका है और जैसे ही मुझे पता चलता है कि यह क्या है, मैं फिर से शादी कर लूंगी। क्लिंट ईस्टवुड
+* ख़ुशहाल शादी की शुरूवात तब होती है, जब हम उससे शादी करते हैं, जिससे हम प्यार करते हैं और यह फलती-फूलती है, जब हम उससे प्यार करते हैं, जिससे हम शादी करते हैं। टॉम मुलेन
+* ख़ुशहाल शादी फिंगर-प्रिंट्स की तरह हैं, हर एक अलग है और हर एक खूबसूरत है। अज्ञात
+* ख़ुशहाल शादी में तीन चीज़ें होती है: एक साथ होने की यादें, गलतियों की माफ़ी और कभी भी एक-दूसरे को न छोड़ने का वादा। सुरभि सुरेंद्र
+* चिरस्थायी विवाह की नींव उन दो लोगों द्वारा डाली जाती है, जो अपने द्वारा लिए गये पवित्र वचन पर विश्वास करते और जीते हैं। दारलेने शख्त
+* जब आप विवाह करने जा रहें हों, तो अपने आप से यह सवाल पूछिये: क्या आपको विश्वास है कि आप इस व्यक्ति से अपनी वृद्धावस्था में अच्छी तरह से वार्तालाप करने में सक्षम होंगे? विवाह में दूसरी सभी चीज़ें अस्थायी हैं। फ्रेडरिक नीत्से
+* जब विवाह में आप त्याग करते हैं, तो आप एक-दूसरे के लिए नहीं बल्कि एक रिश्ते की एकता के लिए त्याग कर रहे होते हैं। जोसेफ कैंपबेल
+* दो मानवीय आत्माओं के लिए, इससे ज्यादा श्रेष्ठ बात और क्या हो सकती है कि वे यह महसूस करें कि वे जीवन भर साथ रहने के लिए जुड़े हैं – समस्त श्रमों में एक दूसरे को सशक्त करने के लिए, सभी दुखों में एक दूसरे का सहारा बनने के लिए, समस्त पीडाओं में एक-दूसरे की सहायता करने के लिए, और अंतिम विदाई के क्षणों में खामोश कही न जा सकने वाली यादों में एक दूसरे के साथ एक होने के लिए जॉर्ज इलीयट
+* पत्नी को चाहिए कि वह पति के घर लौटने पर खुश हो, और पति को चाहिए कि पत्नी को उसके घर से निकलने पर दुःख हो। मार्टिन लूथर किंग जूनियर
+* ��ुरुष एक सम्पूर्ण स्त्री के सपने देखता है और स्त्री एक संपूर्ण पुरुष के सपने देखती है; लेकिन वे यह नहीं जानते कि भगवान ने उन दोनों को एक दूसरे को परिपूर्ण करने के लिए ही बनाया है। पुरानी कहावत
+* पुरुष, स्त्री से इस आशा में शादी करता है कि वे कभी नहीं बदलेंगी। स्त्रियाँ पुरुषों से इस आशा में विवाह करती हैं कि वे बदल जायेंगे। अन्ततः दोनों ही निराश होते हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन
+* प्यार की कमी असफल शादियों की वजह नहीं है, बल्कि मित्रता की कमी असली वजह है। फ्रेडरिक नीत्से
+* प्रत्येक महान सम्बन्ध, विशेषकर विवाह, सम्मान पर ही निर्भर है। अगर यह सम्मान पर निर्भर नहीं है, तो जो कुछ भी अच्छा प्रतीत होता है वह लम्बे समय तक नहीं चल सकेगा। एमी ग्रांट
+* प्रेम कमजोरी नहीं है। यह मजबूत होता है। केवल विवाह के संस्कार ही इसमें समाहित हो सकता है। बोरिस पास्टर्नक
+* प्रेम की कमी नहीं, बल्कि मित्रता की कमी है जो विवाह को असफ़ल बना देती है। फ्रेडरिक निएत्ज़्स्चे
+* प्रेम बिना वैध विवाह के भी नैतिक है, लेकिन बिना प्यार के विवाह अनैतिक है। एलन की
+* बचे-खुचे ध्यान से विवाह सफल नहीं हो सकता। इसके लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना होगा। अज्ञात
+* बिना संघर्ष के विवाह लगभग असंभव है, जैसे बिना संकट के राष्ट्र। आंद्रे मौरिस
+* मुझे लगता है कि लंबे समय तक चलने वाले स्वस्थ रिश्ते विवाह के विचार से अधिक महत्वपूर्ण हैं। प्रत्येक सफल विवाह के मूल में एक सशक्त भागीदारी होती है। कार्सन डेली
+* मेरी शादी के संदर्भ में, आप जानते हैं, अपने पति के प्यार में पड़ना अब तक मेरे साथ हुई सबसे अच्छी बात थी। कैरोलीन कैनेडी
+* मैं बस शादीशुदा होने के लिए शादी नहीं करना चाहती। इससे अधिक अकेलेपन के बारे में कुछ सोच नहीं सकती कि मैं अपना बाकी जीवन किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बिताऊँ, जिससे मैं बात नहीं कर सकती, या इससे भी बदतर, जिसके साथ मैं ख़ामोश नहीं रह सकती। मैरी एन शफ़र
+* मैंने पहली बार अहिंसा की अवधारणाओं को अपनी शादी से सीखा। महात्मा गांधी
+* मैंने हमेशा से विवाह को किसी भी व्यक्ति के जीवन की वह सबसे रोचक घटना समझा है, जो किसी के सुख या दुःख की बुनियाद है। जॉर्ज वाशिंगटन
+* यदि आप प्यार और शादी के बारे में पढ़ना चाहते हैं, तो आपको दो अलग-अलग किताबें खरीदनी होंगी। एलन राजा
+* यदि आपका विवाह सुखमय नहीं है, तो आपका सुखी परिवार नहीं हो सकता। जेरेमी सिस्टो
+* सुन्दरता नहीं बल्कि उत्तम चरित्र के शानदार गुण पति को बांधकर रखते हैं। यूरिपाईडस
+* प्यार की कमी नहीं, बल्कि दोस्ती की कमी वैवाहिक जीवन को दुखदायी बनाती है। फ्रेडरिक नीत्शे
+* वह व्यक्ति सुखी है जिसे एक सच्चा दोस्त मिल गया है, पर उससे भी ज्यादा सुखी वह है जिसे वह सच्चा दोस्त अपनी पत्नी में मिला है। फ्रैंज शुबर्ट
+* विवाह आपको अपने जीवन में एक विशेष व्यक्ति को परेशान करने देता है। अज्ञात
+* विवाह उम्र की बात नहीं है; यह सही व्यक्ति पा लेने की बात है। सोफिया बुश
+* विवाह उस जंजीर में एक सुनहरा छल्ला है जिसकी शुरुआत एक झलक है और जिसका अंत अनंतकाल। खलील जिब्रान
+* विवाह एक साथ समस्याओं को हल करने का एक प्रयास है, जो तब थी ही नहीं, जब आप अपने दम पर रह रहे थे। एडी कैंटर
+* विवाह का अभिप्राय एक जैसा सोचना नहीं, बल्कि एक साथ सोचना है। रॉबर्ट सी. डोड्स
+* विवाह का फूल केवल विश्वास की जमीन में ही पनप सकता है।
+* विवाह को ख़ूबसूरत होने के लिए परिपूर्ण होना आवश्यक नहीं है। अज्ञात
+* विवाह दो स्नेहमयी आत्माओं का मिलन है, जिसमे दोनों जीवनभर साथ निभाने का वचन ही नहीं देते, बल्कि एक-दूसरे को अपना विश्वास भी सौंपते हैं। यह विश्वास है- एक-दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण का, दूसरे के दुःख को अपने दुःख से बढ़कर मानने का, अपने जीवनसाथी को उसी रूप में स्वीकार करने का और उसे पूर्ण स्वतंत्रता से जीने का अधिकार देने का।
+* विवाह न तो स्वर्ग है और न ही नर्क, यह मात्र शुद्धि है। अब्राहम लिंकन
+* विवाह पतझड़ में पत्तियों का रंग देखने जैसा है; हर गुजरते दिन के साथ कभी बदलते और अधिक असाधारण रूप से सुंदर। फॉन वीवर
+* विवाह मनुष्य की सबसे स्वाभाविक अवस्था है, और वह अवस्था, जिसमें आपको वास्तविक आनंद मिलेगा। बेंजामिन फ्रैंक
+* विवाह मित्रता की उच्चतम अवस्था है। यदि सुखमय है, तो यह हमारी चिंता को बांटकर कम कर देता है, साथ ही यह आपसी भागीदारी से हमारे सुखों को दोगुना कर देता है। सैमुअल रिचर्डसन
+* विवाह में प्रेम एक सुंदर सपने की पूर्ति होना चाहिए, और न कि अंत, जैसा कि प्रायः होता है। अल्फोंस कर्र
+* विवाह में मन और उद्देश्य की अनुपयुक्तता के जैसी दूसरी कोई असमानता नहीं हो सकती है। चार्ल्स डिकेन्स
+* विवाह में सफ़लता केवल सही साथी खोज लेने से नहीं मिल जाती, बल्कि सही साथी बनने से आती है। बार्नेट ���र. ब्रिकनर
+* विवाह संज्ञा नहीं है; यह एक क्रिया है। यह वह नहीं है, जो आपको मिलता है। यह वह है, जो तुम्हारे द्वारा किया जाता है। यह वह तरीका है, जिससे आप अपने साथी को हर दिन प्रेम करते हैं। बारबरा डे एंजेलिस
+* विवाह समझौता नहीं है, विवाह बंधन नहीं है, जैसा कुछ लोग कहते हैं। बल्कि यह दायित्वों से भरे मर्यादित जीवन की ओर बढ़ा कदम है। यह आपकी आजादी नहीं छीनता, बल्कि आपको अपनी सामर्थ्य बढाने का एक अवसर देता है। अपने चरित्र को और ऊँचा उठाने का अवसर देता है। उन मुश्किलों के जरिये, उन जिम्मेदारियों के जरिये जिन्हें वैसे स्वीकार करने का साहस हम कभी नहीं कर पाते।
+* विवाह समय की कसौटी पर खरा उतरता है, जब आप और आपका जीवनसाथी दोनों चीजों को बेहतर बनाने की दिशा में काम करते हैं। और जब हम विपत्तियों का सामना करते हैं, तो हमें सबसे अधिक परखा जाता है। यदि आप प्रतिकूलताओं को एक साथ एक टीम की तरह पार कर सकते हैं, तो आप आधी लड़ाई जीत चुके हैं। अज्ञात
+* विवाह, अंततः, भावुक दोस्त बनने का अभ्यास है। हार्विल हेंड्रिक्स
+* विवाह, परिवार, सभी रिश्ते सही नर्तक खोजने के बजाय नृत्य सीखने की एक प्रक्रिया है। पॉल पियर्सल
+* विवाह प्रेम इसका सिद्धांत है। आजीवन मित्रता उपहार है। करुणा ध्येय है। जब तक मृत्यु हमें अलग न करे, इसकी अवधि है। फॉन वीवर
+* शादियाँ जन्नत में तय होती हैं। पुरानी कहावत
+* शादी अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ जीवन साझा करना, पूरे रास्ते सफ़र का आनन्द उठाना और हर गन्तव्य पर एक साथ पहुँचना है। फॉन वीवर
+* शादी आपको ख़ुशगवार नहीं बनाती – आप अपनी शादी को ख़ुशगवार बनाते हैं। डॉ. लेस एंड लेस्ली पैरेट
+* शादी आसान नहीं होती। इसमें दूसरे व्यक्ति के लिए समझौता, त्याग और स्वयं को प्रकट करना होता है। हालांकि, यदि आप इस पर चलने और इस प्रक्रिया में ढलने के इच्छुक हैं, तो यह शानदार इनाम का वादा करता है। अज्ञात
+* शादी एक उत्तम संस्थान है, लेकिन मैं एक संस्थान के लिए तैयार नहीं हूँ। मे वेस्ट
+* शादी एक जुआ है, आओ ईमानदार रहें। योको ओनो
+* शादी एक पिंजरे की तरह है; कोई भी व्यक्ति गौर कर सकता है कि बाहर के पंछी अंदर आने को बेताब रहते हैं और जो अंदर हैं, वे भी बाहर निकलने के लिए उतने ही उतावले रहते हैं। मिशेल डी मोंटेनेगी
+* शादी एक साझेदारी है, लोकतंत्र नहीं। निकोलस स्पार्क्स
+* शादी का केंद्र यादें हैं। बिल कॉ���्बी
+* शादी किसी ऐसे की तलाश नहीं है, जो सबसे ज्यादा प्यार करे। यह किसी ऐसे की तलाश है, जो आपको सबसे कम दुःख पहुँचाये। अज्ञात
+* शादी की कोई गारंटी नहीं है। यदि आप ये तलाश रहे हैं, तो जाकर कार की बैटरी के साथ रहें। इरमा बॉम्बेक
+* शादी को ख़ुशहाल बनाने में जो मायने रखता है, वह यह नहीं है कि आप कितने एक-दूसरे के कितने अनुकूल हैं, बल्कि यह है कि आप अपनी प्रतिकूलता से कैसे निपटते हैं। जॉर्ज लीविंगर लियो टॉल्स्टॉय
+* शादी दो लोगों का गठबंधन है, जिनमें से एक को कभी जन्मदिन याद नहीं रखता है और दूसरा उसे कभी नहीं भूलता। ओग्डेन नैश
+* शादी ने मुझे बहुत ख़ुश कर दिया है और मैं अपनी पत्नी के साथ गहरे प्यार में हूँ और मैं हर दिन उसके लिए भगवान का शुक्रिया अदा करता हूँ। हैरी कॉनिक, जूनियर
+* शादी में ईमानदारी बहुत ज़रूरी है। आप आधे सच और आधे झूठ के बल पर एक मजबूत रिश्ता नहीं बना सकते। हर समय ईमानदार रहें। अज्ञात
+* शादी में कठिनाई यह है कि हम एक 'व्यक्तित्व' के प्यार में पड़ते हैं, लेकिन एक 'चरित्र' के साथ रहना पड़ता है। पीटर डे व्रीस
+* शादी में ख़ुशी पूरी तरह से संयोग की बात है। जेन ऑस्टेन
+* शादी से पहले अपनी आँखें पूरी खुली रखें, शादी की बाद आधी बंद। बेंजामिन फ्रैंकलिन
+* शादी से पहले हम एक-दूसरे के लिए क्या करते हैं, यह इस बात का संकेत नहीं है कि हम शादी के बाद क्या करेंगे। गैरी चैपमैन
+* शादी अपरिचितों से लड़ने से हमें रोकने का प्रकृति का तरीका है। एलन राजा
+* विवाह एक के अधिकारों को आधा कर देता है और एक के कर्तव्यों को दोगुना कर देता है। लुईसा मे अलकॉट
+* विवाह पैसे की तरह, अभी भी हमारे साथ है; और, पैसे की तरह, लगातार इसकी कीमत घट गई। रॉबर्ट ग्रेव्स
+* शायद शादी में मेरी समस्या – और यह कई महिलाओं की समस्या है – हम अंतरंगता और स्वतंत्रता दोनों चाहते थे। दोनों में संतुलन बनाना कठिन है, फिर भी शादी के लिए दोनों ही आवश्यकता महत्वपूर्ण है। हदि लामर
+* सच्चे वैवाहिक संबंधों में, पति और पत्नी की स्वतंत्रता बराबर होगी, उनकी निर्भरता एक दूसरे पर, और उनके दायित्व पारस्परिक। लुक्रेटिया मोट्ट
+* सफल विवाह का महान रहस्य है- सभी आपदाओं को घटना मानना और किसी भी घटना को आपदा न मानना। सर हेरोल्ड जॉर्ज निकोलसन
+* सफल विवाह में कई बार प्यार में पड़ने की आवश्यकता होती है, हमेशा एक ही व्यक्ति के साथ। मिग्नॉन मैकलॉघलिन
+* सभी शादियाँ खुशहाल होती हैं। यह तो बाद में एक साथ रहना है, जो परेशानी का सबब बनता है। रेमंड हल
+* सर्वोत्तम विवाह वह नहीं है, जब एक सर्वगुण संपन्न जोड़ा एक साथ जुड़ता है। यह वह है, जब एक जोड़ा सर्वगुण संपन्न न होते हुए भी अपने मतभेदों का आनन्द लेना सीख लेता है। डेव मयूरेर
+* सर्वोत्तम विवाह वह है, जो व्यक्तियों में और जिस तरह से वे अपने प्रेम को व्यक्त करते हैं, उसमें परिवर्तन और विकास की अनुमति दे। मोती एस बक
+* सर्वोत्तम शादियाँ साझेदारी हैं। साझेदारी के बिना एक सर्वोत्तम शादी नहीं हो सकती। हेलेन मिरेन
+* सामान्यतः वे विवाह प्रेम और धैर्य से परिपूर्ण होते हैं जिनका आरम्भ दीर्घकाल के प्रणयनिवेदन के उपरान्त होता है। जोसफ एडिसन
+* सुखी विवाह की दो कसौटियाँ हैं; धन और गरीबी। अज्ञात
+* सुखी विवाह के लिए मेरा यह निर्देश है – किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करें, जो वैसा कुछ भी न करता हो, जैसा आप करते हैं। मैक्सिन जीरा
+* अच्छी शादी एक अन्धी पत्नी और बहरे पति के बीच ही हो सकती है।
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+मेरा लक्ष्य पैसे बनाना नहीं था। वो अच्छे कंप्यूटर बनाना था।
+ऐसे लोग होते हैं जिनके पास पैसे होते हैं और फिर ऐसे लोग होते हैं जो धनवान होते हैं।
+कई लोग सोचते हैं की वो पैसे कमाने में अच्छे नहीं है, जबकि वो ये नहीं जानते कि उसे प्रयोग कैसे करते हैं।
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+नालशेषैर्हिमधवस्तैर्न भांति कमलाकरा:॥ वाल्मीकि का हेमन्त वर्णन
+: अर्थ वन की भूमि जिसकी हरी-हरी घास ओस गिरने से कुछ-कुछ गीली हो गई है, तरुण धूप के पड़ने से कैसी शोभा दे रही है। अत्यंत प्यासा जंगली हाथी बहुत शीतल जल के स्पर्श से अपनी सूँड़ सिकोड़ लेता है। बिना फूल के वन-समूह कुहरे के अंधाकार में सोए से जान पड़ते हैं। नदियाँ, जिनका जल कुहरे से ढँका हुआ है और जिनमें सारस पक्षियों का पता केवल उनके शब्द से लगता है, हिम से आर्द्र बालू के तटों से ही पहचानी जाती हैं। कमल, जिनके पत्ते जीर्ण होकर झड़ गए हैं, जिनकी केसर-कणिकाएँ टूट-फूटकर छितरा गई हैं, पाले से धवस्त होकर नालमात्र खड़े हैं।
+; रामचरितमानस (किष्किन्धा काण्ड) में वर्षा ऋतु का वर्णन
+: भावार्थ:-सुंदर वन फूला हुआ अत्यंत सुशोभित है। मधु के लोभ से भौंरों के समूह गुंजार कर रहे हैं। जब से प्रभु आए, तब से वन में सुंदर कन्द, मूल, फल और पत्तों की बहुतायत हो गई॥1॥
+: भावार्थ:-मनोहर और अनुपम पर्वत को देख��र देवताओं के सम्राट् श्री रामजी छोटे भाई सहित वहाँ रह गए। देवता, सिद्ध और मुनि भौंरों, पक्षियों और पशुओं के शरीर धारण करके प्रभु की सेवा करने लगे॥2॥
+: भावार्थ:-बादल पृथ्वी के समीप आकर (नीचे उतरकर) बरस रहे हैं, जैसे विद्या पाकर विद्वान् नम्र हो जाते हैं। बूँदों की चोट पर्वत कैसे सहते हैं, जैसे दुष्टों के वचन संत सहते हैं॥
+: भावार्थ:-जल एकत्र हो-होकर तालाबों में भर रहा है, जैसे सद्गुण (एक-एककर) सज्जन के पास चले आते हैं। नदी का जल समुद्र में जाकर वैसे ही स्थिर हो जाता है, जैसे जीव श्री हरि को पाकर अचल (आवागमन से मुक्त) हो जाता है॥
+: भावार्थ:-पृथ्वी घास से परिपूर्ण होकर हरी हो गई है, जिससे रास्ते समझ नहीं पड़ते। जैसे पाखंड मत के प्रचार से सद्ग्रंथ गुप्त (लुप्त) हो जाते हैं॥
+: भावार्थ:-चारों दिशाओं में मेंढकों की ध्वनि ऐसी सुहावनी लगती है, मानो विद्यार्थियों के समुदाय वेद पढ़ रहे हों। अनेकों वृक्षों में नए पत्ते आ गए हैं, जिससे वे ऐसे हरे-भरे एवं सुशोभित हो गए हैं जैसे साधक का मन विवेक (ज्ञान) प्राप्त होने पर हो जाता है॥
+: भावार्थ:-मदार और जवासा बिना पत्ते के हो गए (उनके पत्ते झड़ गए)। जैसे श्रेष्ठ राज्य में दुष्टों का उद्यम जाता रहा (उनकी एक भी नहीं चलती)। धूल कहीं खोजने पर भी नहीं मिलती, जैसे क्रोध धर्म को दूर कर देता है। (अर्थात् क्रोध का आवेश होने पर धर्म का ज्ञान नहीं रह जाता)॥
+: भावार्थ:-अन्न से युक्त (लहराती हुई खेती से हरी-भरी) पृथ्वी कैसी शोभित हो रही है, जैसी उपकारी पुरुष की संपत्ति। रात के घने अंधकार में जुगनू शोभा पा रहे हैं, मानो दम्भियों का समाज आ जुटा हो॥
+: भावार्थ:-भारी वर्षा से खेतों की क्यारियाँ फूट चली हैं, जैसे स्वतंत्र होने से स्त्रियाँ बिगड़ जाती हैं। चतुर किसान खेतों को निरा रहे हैं (उनमें से घास आदि को निकालकर फेंक रहे हैं।) जैसे विद्वान् लोग मोह, मद और मान का त्याग कर देते हैं॥
+: भावार्थ:-चक्रवाक पक्षी दिखाई नहीं दे रहे हैं, जैसे कलियुग को पाकर धर्म भाग जाते हैं। ऊसर में वर्षा होती है, पर वहाँ घास तक नहीं उगती। जैसे हरिभक्त के हृदय में काम नहीं उत्पन्न होता॥
+: भावार्थ:-पृथ्वी अनेक तरह के जीवों से भरी हुई उसी तरह शोभायमान है, जैसे सुराज्य पाकर प्रजा की वृद्धि होती है। जहाँ-तहाँ अनेक पथिक थककर ठहरे हुए हैं, जैसे ज्ञान उत्पन्न होने पर इंद्रियाँ (शिथिल होकर वि��यों की ओर जाना छोड़ देती हैं)॥
+: भावार्थ:-कभी-कभी वायु बड़े जोर से चलने लगती है, जिससे बादल जहाँ-तहाँ गायब हो जाते हैं। जैसे कुपुत्र के उत्पन्न होने से कुल के उत्तम धर्म (श्रेष्ठ आचरण) नष्ट हो जाते हैं॥
+: भावार्थ:-कभी (बादलों के कारण) दिन में घोर अंधकार छा जाता है और कभी सूर्य प्रकट हो जाते हैं। जैसे कुसंग पाकर ज्ञान नष्ट हो जाता है और सुसंग पाकर उत्पन्न हो जाता है॥
+; रामचरितमानस में शरद ऋतु का वर्णन
+: भावार्थ:-हे लक्ष्मण! देखो, वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद् ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने (कास रूपी सफेद बालों के रूप में) अपना बुढ़ापा प्रकट किया है॥
+: भावार्थ:-अगस्त्य के तारे ने उदय होकर मार्ग के जल को सोख लिया, जैसे संतोष लोभ को सोख लेता है। नदियों और तालाबों का निर्मल जल ऐसी शोभा पा रहा है जैसे मद और मोह से रहित संतों का हृदय!॥
+: भावार्थ:-नदी और तालाबों का जल धीरे-धीरे सूख रहा है। जैसे ज्ञानी (विवेकी) पुरुष ममता का त्याग करते हैं। शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए। जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ सकते हैं। (पुण्य प्रकट हो जाते हैं)॥
+: भावार्थ शरद् ऋतु पाकर) राजा, तपस्वी, व्यापारी और भिखारी (क्रमशः विजय, तप, व्यापार और भिक्षा के लिए) हर्षित होकर नगर छोड़कर चले। जैसे श्री हरि की भक्ति पाकर चारों आश्रम वाले (नाना प्रकार के साधन रूपी) श्रमों को त्याग देते हैं॥
+: भावार्थ:-जो मछलियाँ अथाह जल में हैं, वे सुखी हैं, जैसे श्री हरि के शरण में चले जाने पर एक भी बाधा नहीं रहती। कमलों के फूलने से तालाब कैसी शोभा दे रहा है, जैसे निर्गुण ब्रह्म सगुण होने पर शोभित होता है॥
+: भावार्थ:-पपीहा रट लगाए है, उसको बड़ी प्यास है, जैसे श्री शंकरजी का द्रोही सुख नहीं पाता (सुख के लिए झीखता रहता है) शरद् ऋतु के ताप को रात के समय चंद्रमा हर लेता है, जैसे संतों के दर्शन से पाप दूर हो जाते हैं॥
+: भावार्थ:-चकोरों के समुदाय चंद्रमा को देखकर इस प्रकार टकटकी लगाए हैं जैसे भगवद्भक्त भगवान् को पाकर उनके (निर्निमेष नेत्रों से) दर्शन करते हैं। मच्छर और डाँस जाड़े के डर से इस प्रकार नष्ट हो गए जैसे ब्राह्मण के साथ वैर करने से कुल का नाश हो जाता है॥
+* भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ।
+: भावार्थ वर्षा ऋतु के कारण) पृथ्वी पर जो जीव भर गए थे, वे शरद् ऋतु को पाकर वैसे ही नष्ट हो गए जैसे सद्गुरु के मिल जान��� पर संदेह और भ्रम के समूह नष्ट हो जाते हैं॥
+: भावार्थ वसन्त ऋतु है। शीतल, मंद, सुगंध तीन प्रकार की हवा बह रही है। सभी को (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) चारों पदार्थ सुलभ हैं। माला, चंदन, स्त्री आदि भोगों को देखकर सब लोग हर्ष और विषाद के वश हो रहे हैं। (हर्ष तो भोग सामग्रियों को और मुनि के तप प्रभाव को देखकर होता है और विषाद इस बात से होता है कि श्री राम के वियोग में नियम-व्रत से रहने वाले हम लोग भोग-विलास में क्यों आ फँसे, कहीं इनमें आसक्त होकर हमारा मन नियम-व्रतों को न त्याग दे)॥
+* अगर कोई तरीका दूसरे तरीके से बेहतर है तो आप निश्चित रूप से कह सकते हैं कि वो प्रकृति का तरीका है। अरस्तु
+* अनुकूल बनें या नष्ट हो जाएं, अब या कभी भी, यही प्रकृति कि निष्ठुर अनिवार्यता है। एच. जी. वेल्स
+* अपनी जड़ों की गहराइयों में सभी फूल प्रकाश रखते हैं। थीओडोर रोएथ्के
+* अपनी पहली सांस लेने के पहले के नौ महीने छोड़ दिया जाए तो इंसान अपने काम इतने अच्छे ढंग से नहीं करता जितना कि एक पेड़ करता है। जार्ज बर्नार्ड शा
+* और वो दिन आ गया जब कली के अन्दर बंद रहने का जोखिम खिलने के जोखिम से अधिक दर्दनाक था। एनेस निन
+* कुछ लोग बरसात में चहलकदमी करते हैं, और बाकी बस भीगते हैं। रोजर मिलर
+* कुदरत को पढ़िए, कुदरत से प्रेम कीजिए उसके करीब रहिए। आप कभी निराश नहीं होंगे। फ्रैंक ल्योड राइट
+* केवल जी लेना काफी नहीं है… इंसान को धूप, आजादी और एक नन्हा सा फूल भी चाहिए। हैंस क्रिस्टियन एंडरसन (डेनमार्क के लेखक)
+* चीजों के प्रकाश में सामने आओ, प्रकृति को को अपना शिक्षक बनने दो। विल्लियम वर्डस्वर्थ
+* जब प्रकृति को कोई काम कराना होता है तो वो किसी प्रतिभा को जन्म दे देती है। राल्फ वाल्डो एमर्सन
+* दरअसल बसंत प्रकृति के यह कहने का अपना तरीका है कि ‘चलो जश्न मनाएं’ रॉबिन विलियम्स (अमेरिकी हास्य अभिनेता)
+* धरती माता इस साल भले माफ़ कर दें या अगले साल भी, पर अंततः में वो आएँगी और आपको सजा देंगी। आपको तैयार रहना होगा। गेरालडो रिवेरा
+* पक्षी तूफ़ान गुजरने के बाद भी गाना गाते हैं; क्यों नहीं लोग भी जो कुछ बचा है उसी में प्रसन्न रहने के लिए खुद को स्वतंत्र महसूस करते हैं। रोज़ केन्नेडी
+* पतझड़ एक दूसरा बसंत ही तो है, जिसमें सारे पत्ते फूल बन जाते हैं। अल्बर्ट कामू (फ्रेंच विचारक)
+* पतझड़ एक दूसरे बसंत की तरह है जब सभी पत्तियां फूल बन जात��� हैं। अल्बर्ट कैमस
+* पानी की याददाश्त उत्तम होती है,वो हमेशा वहीं जाने का प्रयास करता है जहाँ वो था। टोनी मोरिसन
+* पानी की याददाश्त भी कितनी कमाल की होती है। वह घूम फिरकर वहीं पहुंचता है जहां वह था। टोनी मॉरिसन (अमेरिकी उपन्यासकार और शिक्षिका)
+* पृथ्वी और आकाश, जंगल और मैदान, झीलें और नदियाँ, पहाड़ और समुद्र, ये सभी बेहतरीन शिक्षक हैं और हम में से कुछ को इतना कुछ सीखाते हैं जितना हम किताबों से नहीं सीख सकते। जॉन लुब्बोक
+* प्रकृति उपदेश देने से अधिक सीखाती है। शिलाओं पर धर्मोपदेश नहीं लिखे होते। पत्थरों से नैतिकिता की बातें निकालने से आसान है चिंगारी निकालना। जॉन बर्रोज़
+* प्रकृति की सभी चीजों में कुछ ना कुछ अद्भुत है। अरस्तु
+* प्रकृति को गहरी नजर से देखिए, तभी आप सब कुछ बेहतर समझ पाएंगे अल्बर्ट आइंस्टीन (महान वैज्ञानिक)
+* प्रकृति माँ इस साल भले माफ़ कर दें, या अगले साल भी, पर अंत में वो आएँगी और आपको सजा देंगी। आपको तैयार रहना होगा। गेरालडो रिवेरा
+* प्रकृति में गहराई से देखिये, और आप हर एक चीज बेहतर ढंग से समझ सकेंगे। ऐल्बर्ट आइन्स्टाइन
+* प्रकृति में बिताया गया हर पल आपको आपकी तलाश से अधिक हासिल कराता है। जॉन म्यूर (अमेरिकी प्रकृतिविद, जिन्हें ‘फादर ऑफ नेशनल पार्क भी कहा जाता है)
+* प्रकृति में, रोशनी से रंग बनता है। तस्वीर में रंग से रोशनी बनती है। हैंस हॉफमैन (जर्मन अमेरिकी चित्रकार)
+* बसंत; प्रकृति का कहने का तरीका है कि,” चलो जश्न मनाएं!” रोबिन विल्लियम्स
+* बहुत सारे लोग सर पे बारिश की बूँद गिरने पर उसे कोसते हैं, और ये नहीं जानते की वही प्रचुरता में भूख मिटाने में वाली चीजें लेकर आती है। सेंट बैसिल
+* बारिश होते वक़्त जो सबसे अच्छी चीज आप कर सकते हैं वो ये है कि आप बारिश होने दें। हेनरी वाद्स्वर्थ लोंग्फेल्लो
+* मनुष्य ने आगे की चीजें देखने और अनुमान लगाने कि क्षमता गवां दी है। उसका अंत पृथ्वी का विनाश करने से होगा। ऐल्बर्ट स्च्वेत्ज़र
+* मैंने जीवन में बहुत से तूफान देखे। कई ऐसे थे जो अचानक आए, और मुझे सिखा गए कि मौसम पर मेरा कोई अधिकार नहीं, और यह कि धैर्य एक विद्या है जो मुझे सीखनी है और प्रकृति का सम्मान करना है पाओलो कोएल्हो (ब्राजीलियन लेखन)
+* मैंने पूरी ज़िन्दगी वहां कांटे निकालने और फूल लगाने का प्रयास किया है जहाँ वो विचारों और मन में बड़े हो सके। अब्���ाहम लिंकन
+* यदि आकाश का नीलापन आपकी आत्मा को खुशियों से भर देता है, हरी घास के पत्तियों को निहारते हुए आपके अन्दर कुछ होता है, यदि कुदरत की छोटी-छोटी चीजें आपको संदेश देती प्रतीत होती हैं तो समझ लीजिए आपकी आत्मा जीवित है एलियोनोरा ड्यूज
+* यदि आप प्रकृति माता से अभिभूत नहीं होते तो समझ लीजिए आपके अंदर कुछ गड़बड़ है। एलेक्स ट्रेबेक (कैनेडियन टेलीविजन होस्ट)
+* यदि आपको प्रकृति से सचमुच प्रेम है, तो सुंदरता आपको सर्वत्र दिखाई पड़ेगी। लॉरा इंगैल्स वाइल्डर (अमेरिकी लेखिका)
+* वो जो मधुमक्खी के छत्ते के लिए ठीक नहीं है वो मधुमक्खी के लिए भी अच्छा नहीं हो सकता। मार्कस औरेलियस
+* वो सबसे धनवान है जो कम से कम में संतुष्ट है, क्योंकि संतुष्टि प्रकृति कि दौलत है। सुकरात
+* सभी चीजें कृत्रिम हैं, क्योंकि प्रकृति ईश्वर की कला है। थोमस ब्राउन
+* सभी फूल अपनी जड़ों की गहराइयों में प्रकाश रखते हैं। थीओडोर रोएथ्के
+* सिर्फ जीना ही काफी नहीं है, आपके के पास धूप, स्वतंत्रता और एक छोटा सा फूल भी होना चाहिए। हैंस एन्डरसन
+* हम मनुष्य के बनाए क़ानून तो तोड़ सकते हैं पर प्रकृति के नियमों को नहीं। जुल्स वेर्ने
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+हम एक किताब खोलेंगे। उसके पन्ने खाली हैं। हम खुद उसमे अपने शब्द लिखंगे। इस किताब को अवसर कहते हैं और इसका पहला पाठ नए साल का दिन है।
+एक आशावादी आधी रात तक नए साल को आते हुए देखने के लिए जगा रहता है। एक निराशावादी यह निश्चित करने के लिए जगा रहता है कि पुराना साल चला जाए।
+नए साल का संकल्प: मूर्खों को और अधिक बर्दाश्त करना बशर्ते ये उन्हें मेरा और समय लेने के लिए प्रोत्साहित ना करे।
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+: संकट काल में भी धैर्य नहीं त्यागना चाहिए। सम्भव है कि धैर्य से स्थिति सुधर जाए। समुद्र में, नौका टूट जाने पर भी यात्री उस पोत को तैराना ही चाहता है।
+: विपत्ति में धीरज, उन्नति में क्षमा, सभा में वाक् चातुर्य, युद्ध में पराक्रम, यश में रुचि और वेद में आसक्ति-यही महात्माओं के गुण होते हैं।
+: बुद्धि, धैर्य और आत्मादिविज्ञान ये तीनों मनोविकारों के परम औषधि हैं। (आत्मविज्ञान यह जानना कि मै कौन हूँ, कौन मेरा है, मेरा बल क्या है, यह देश कैसा है और कौन मेरे हितैषी हैं, आदि।)
+: धी (बुद्धि धृति (धैर्य) और स्मृति (स्मरण शक्ति) के भ्रष्ट हो जाने पर मनुष्य जब अशुभ कर्म करता है तब सभी शारीरिक और मानसिक दोष प्रकुपित हो जाते हैं। इन अशुभ कर्मों को 'प्रज्ञापराध' कहा जाता है। जो प्रज्ञापराध करेगा उसके शरीर और स्वास्थ्य की हानि होगी और वह रोगग्रस्त हो ही जाएगा।
+: वास्तव में वे ही पुरूष धीर हैं जिनका मन विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थिति में भी विकृत नहीं होता। कालिदास]]
+: हे मन! धीरे-धीरे ही सब कुछ होता है। माली पेड़ों में सैकड़ों घड़ा पनी देता है किन्तु उसमें फल तभी लगते हैं जब अनुकूल ऋतु आती है। (पानी देते ही फल नहीं लग जाते)
+* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं होता उसमें धैर्य भी जरूरी है। गेटे
+* अच्छे शिष्टाचार की परीक्षा यही है कि वो बुरे के साथ धैर्य से काम ले। सोलोमन लबन गबिरोल
+* आपकी अधीरता को छुपाने की कला ही धैर्य है। गाए कावासाकी
+* आपकी निपुणता फोकस, धैर्य और अभ्यास पर निर्भर करती है। भाग्य पर नहीं। रॉबिन शर्मा
+* उत्साह की कमी को अक्सर धैर्य समझ लिया जाता है। किन हब्बा
+* उन्नति करने के लिए धैर्य की आवश्यकता है। सिसरो
+* एक प्रतिद्वंद्वी के साथ धैर्य रखिए। ओविड
+* ऐसे लोगों को खोजना आसान है जो मरने के लिए तैयार हों, बजाये उनके जो धैर्य के साथ दर्द सहने को तैयार हों। जूलियस सीज़र
+* कठिन परिस्थितयो में घबराना नहीं चाहिए बल्कि धैर्य रखना चाहिए। लार्ड महावीर
+* किसी रखने लायक चीज को पाने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है और वो कीमत हमेशा काम, धैर्य, प्रेम, और आत्म-बलिदान होती है, कोई कागजी मुद्रा नहीं, भुगतान करने का कोई वादा नहीं, बल्कि असली सेवा का सोना। जॉन बर्रोज
+* कुछ भी जरूरी नहीं है लेकिन ये तीन- प्यार, ईमानदारी और धैर्य जरूरी है। स्वामी विवेकानंद
+* क्रोध के क्षण में धैर्य का एक पल दुःख के हजारों पलों से बचे रहने में हमारी सहायता करता है। अज्ञात
+* जिसके पास धैर्य है, वह जो कुछ इच्छा करता है, प्राप्त कर सकता है। फ्रेंकलिन पी. जॉन
+* जिसमें धैर्य है, वह सारी इच्छित वस्तुएं प्राप्त कर सकते है बेंजामिन फ्रैंकलिन
+* जिसे धीरज है और जो श्रम से नहीं घबराता है, सफलता उसकी दासी है। -अज्ञात
+* जैसे सोना अग्नि में चमकता है, वैसे ही धैर्यवान आपदा में दमकता है। अज्ञात
+* जो पेड़ बढ़ने में धीमे होते हैं वे सबसे अच्छे फल देता हैं। मोलिएरे
+* जो व्यक्ति धैर्य का मालिक है वो बाकि सभी चीजों का मालिक है। जॉर्ज साविले
+* जोश की कमी को अक्सर गलती से धैर्य समझा जाता है। किन हब्बार���ड
+* दुर्भाग्य एक व्यक्ति की योग्यता का परीक्षण है। सेनेका
+* दो सबसे शक्तिशाली योद्धा धैर्य और समय हैं। लियो टॉल्स्टॉय
+* धीमी और नियमिता से रेस जीता जाता है। ईसप
+* धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है। बेंजामिन डिसरेली
+* धीरज सारे आनन्दों और शक्तियों का मूल है। जॉन रस्किन
+* धैर्य आशा की कला है। ल्यूक डी क्लैपीयर
+* धैर्य एक कड़वा पौधा है, लेकिन इसका फल मीठा है। चीनी कहावत
+* धैर्य एक गुण है, और मैं धैर्य सीख रहा हूं। यह एक कठिन पाठ है। एलोन मस्क
+* धैर्य एक विजय प्राप्त गुण है। जेफ्री चौसर
+* धैर्य और दृढ़ता चतुरता दोगुनी से अधिक मूल्यवान है। थॉमस हक्सले
+* धैर्य और दृढ़ता सभी चीजों को जीतते हैं। राल्फ वाल्डो एमर्सन
+* धैर्य और परिश्रम से हम वह प्राप्त कर सकते हैं, जो शक्ति और शीघ्रता से कभी नहीं कर सकते। ला फ़ोन्टेन
+* धैर्य और समझ के साथ दृढ़ता से आप प्रगति कर सकते हैं। मार्क होडसन
+* धैर्य और समय, दो सबसे शक्तिशाली योद्धा हैं। लियो टॉलस्टॉय
+* धैर्य कड़वा है लेकिन इसका फल मीठा। जीन -जैक्स रूसो
+* धैर्य कड़वा है लेकिन उसका फल बहुत मीठा है। जीन जक्क़ुएस रूसो
+* धैर्य का एक पल बड़ी आपदा से बच सकता है। अधीरता का एक पल पूरे जीवन को बर्बाद कर सकता है। चीनी कहावत
+* धैर्य का एक मिनट, शांति के दस साल। यूनानी कहावत
+* धैर्य का दुरूपयोग रोष में बदल जाता है। थॉमस फुलर
+* धैर्य का मतलब आत्म-पीड़ा है महात्मा गांधी
+* धैर्य की अपनी सीमायें हैं। अगर जायदा हो जाये तो कायरता कहलाता है। जॉर्ज जैक्सन
+* धैर्य की सभी सराहना करते हैं, लेकिन कोई भी पीड़ा सहन नहीं कर सकता। थॉमस फुलर
+* धैर्य के माध्यम से कई लोग उन परिस्थितियों में भी सफल हो जाते हैं जो कि एक निश्चित असफलता जान पड़ती है। डेल कार्नेगी
+* धैर्य केवल प्रतीक्षा करने की क्षमता नहीं है हम प्रतीक्षा करते समय हम कैसे व्यवहार करते हैं। जॉयस मेयर
+* धैर्य खोना युद्ध हारना है। महात्मा गांधी
+* धैर्य ज्ञान का साथी है। सेंट ऑगस्टीन
+* धैर्य दौर्बल्य का समर्थन करता है; अधैर्य सामर्थ्य का विध्वंस करता है। चार्ल्स कैलेब कोल्तों
+* धैर्य रखें। आसान होने से पहले सभी चीजें मुश्किल होती हैं। सादी
+* धैर्य शक्ति है। धैर्य क्रियाशीलता का अभाव नहीं है बल्कि ये उचित कार्य के सही समय पर सही ढंग से किये जाने की प्रतीक्षा मात्र है। फुल्टन जे.शीन
+* धैर्य सभी घावों पर मरहम ���गाने का काम करता है। आयरिश कहावत
+* धैर्य सीखना एक कठिन अनुभव हो सकता है, लेकिन एक बार सीखने पर आपको जीवन आसान लगेगा। कैथरीन पल्सिफर
+* धैर्य हर समस्या का हल है। प्लेटो
+* धैर्य, आपकी वो क़ाबलियत है जो आपके गुस्सा होने से पहले की उलटी गिनती से शुरू होता है। अज्ञात
+* धैर्य, दृढ़ता, और पसीना सफलता के लिए एक अपराजेय मिश्रण हैं। नेपोलियन हिल
+* धैर्यपूर्वक और समझदारी से रहे । प्रतिहिंसक और द्वेषपूर्ण होने के लिए जीवन बहुत छोटा है। फिलिप्स ब्रुक्स
+* धैर्यवान बनाना सीखने के लिए बहुत अधिक धैर्य चाहिए। स्तानिस्लाव लेक
+* धैर्यवान मनुष्य आत्मविश्वास की नौका पर सवार होकर आपत्ति की नदियों को सफलतापूर्वक पार कर जाते हैं। अज्ञात
+* निराशा के रूप में दिखते हैं; लेकिन हमें धैर्य रखना चाहिए और जल्द ही हम उन्हें के अच्छे रूप में देख पाएंगे। जोसफ एडिसन
+* प्यार का एक विकल्प नफरत नहीं बल्कि धैर्य है। संतोष कालवार
+* प्रतिभा धैर्य है। आइजैक न्यूटन
+* प्रतिभा शाश्वत धैर्य का नाम है। माइकल एंजेलो
+* प्रतीक्षा करने वाला व्यक्ति धैर्यवान होता है। धैर्य का मतलब है जहाँ हम है वहीं रहने की तत्परता और उस परिस्थिति का इस उम्मीद के साथ आनंद उठाना कि कुछ छुपा हुआ एक दिन खुद ही हमारे सामने उजागर होगा। हेनरी जे.एम्. नवम
+* भगवान का प्यार धीरज, निरंतर, और दृढ़ता से है। रिक वॉरेन
+* भगवान यीशु मसीह, धैर्य का हमारा आदर्श उदाहरण है। जोसेफ बी विर्थलिन
+* महान काम शक्ति से नहीं बल्कि दृढ़ता से किया जाता है। सैमुअल जॉनसन
+* मेरे पास सिखाने के लिए सिर्फ तीन चीजें हैं: सादगी, धैर्य, करुणा। ये तीन आपके सबसे बड़े खजाने हैं। लाओ त्सू
+* मैं असाधारण रूप से धैर्यवान हूं, बशर्ते मुझे अंत में अपना रास्ता मिल जाए। मार्गरेट थैचर
+* मैं मूर्खता के साथ धैर्यपूर्वक रहता हूँ लेकिन उनके साथ नहीं जो इसपर गर्व करते हैं। एडिथ सिट्वेल
+* वह जो नील नदी के समुद्र पर सवारी करेगा उसकी नाव का पाल धैर्य से बुन हुआ होना चाहिए। विलियम गोल्डिंग
+* विपत्ति में धैर्य, वैभव में दया और संकट में सहनशीलता ही सच्चे पुरुष के लक्षण हैं।
+* वे कितने निर्धन है, जिनके पास धैर्य नही है! क्या आज तक कोई जख्म बिना धैर्य के ठीक हुआ है विलियम शेक्सपीयर
+* संतोष का वृक्ष कड़वा है लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है। शिवानन्द सरस्वती
+* सभी चीजों के साथ धैर्य र��ें, लेकिन, सबसे पहले अपने साथ। सेंट फ्रांसिस डी सेल्स
+* सभी व्यक्ति धैर्य की सराहना करते हैं लेकिन कुछ ही इसको अभ्यास में लाने को तैयार रहते हैं। थॉमस ए केम्पिस
+* समझदार और धैर्यवान बनिए ।प्रतिशोधी और द्वेषी होने के लिए जीवन बहुत ही छोटा है। फिलिप्स ब्रुक्स
+* समय सभी सलाहकारों से सबसे बुद्धिमानी है। प्लूटार्क
+* सहनशक्ति ताकत से महान है, और सौंदर्य से धैर्य है। John Ruskin
+* सहनशीलता धैर्य की एकाग्रता है। थॉमस कार्लाइल
+* सहनशीलता, क्षमता से अधिक श्रेष्ठ है और धैर्य सौन्दर्य से अधिक श्रेष्ठ है। जॉन रस्किन
+* सही समय की प्रतीक्षा के लिए धैर्य और और जिन परिस्थितियों से हमारा सामना होता हैं उससे दुखी न हो जाने का साहस ही हमारी अध्यात्मिक राह में दो सबसे बड़ी परीक्षाएं हैं। पॉलो कोएल्हो
+* हमारा धैर्य हमारी शक्ति से अधिक हासिल करेगा। एडमंड बर्क
+* हमारे असली आशीर्वाद अक्सर हमें दर्द, हानि और निराशा के रूप में दिखते हैं; लेकिन हमें धैर्य रखना चाहिए और जल्द ही हम उन्हें अच्छे रूप में देख पाएंगे। जोसफ एडिसन
+* हर मुसीबत के लिए धैर्य सबसे अच्छा उपाय है। प्लॉटस
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+: बडी बड़ी चिंताएं कराके, कर्मो द्वारा आशा मनुष्य को बन्धन में डालती है । इससे अपने आयुष्य का क्षय हो रहा है, उसका उसे भान नहीं रहता। इस लिए “जागृत हो, जागृत हो ।”
+* सौ वर्ष जीने की कामना रखते हो तो जवाब और हंसमुख मित्रों के बीच रहो। एलिजाबेथ सैफ़ोर्ड
+* लज्जा युवाओं के लिए एक आभूषण, लेकिन बुढ़ापे के लिए एक तिरस्कार है।
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+* कभी भी कम अनुभव को अपनी महत्त्वाकांक्षा के मार्ग में ना आने दें। टेरी जोसेफसन
+* जिस आदमी की महत्त्वाकांक्षा नहीं है उसे भ्रष्ट बनाने की क्या संभावना है ?
+* महत्वकांक्षा वो अंकुर है जिससे सभी बड़े अनुष्ठानों का विकास होता है। ऑस्कर वाइल्ड
+मैं अपनी कमजोरी और अपनी महत्त्वाकांक्षा के बीच के अंतर से निराश नहीं होना चाहती थी।
+* बिना महत्त्वाकांक्षा के एक नवयुवक बस एक वृद्ध व्यक्ति बनने के इंतज़ार में है। स्टीवेन ब्रस्ट
+* महत्त्वाकांक्षा वो बीज है जिससे सज्जनता का विकास होता है। आस्कर वाईल्ड
+* वो महिलाएं जो पुरुषों के बराबार आना चाहती हैं उनमे महत्त्वाकांक्षा की कमी होती है। टिमोथी लीयरी
+* महान महत्त्वाकांक्षा महान चरित्र की अभिलाषा होती है। जिनके पास ये होती है वो बहुत अच्छे या बहुत बुरे काम कर सकते हैं। नेपोलियन बोनापार्टे
+* महत्त्वाकांक्षा एक सपना है जिसमे वी-8 इंजन लगा है। एल्विस प्रेस्ले
+* महत्त्वाकांक्षा के बिना बुद्धिमत्ता, पंख के बिना चिड़िया के समान है। सैलवाडोर डाली
+* सबसे बड़ा अहित जो भाग्य मनुष्य के साथ कर सकता है वो है कम प्रतिभा और बड़ी महत्त्वाकांक्षा देना। लूस डी क्लैपीयर्स
+* महत्त्वाकांक्षा सफलता तक जाने का रास्ता है। दृढ़ता वो गाड़ी है जिससे आप पहुँचते हैं। बिल ब्राडले
+* ब्रह्माण्ड को मानवीय महत्त्वाकांक्षाओं के साथ सामंजस्य में होने की आवश्यकता नहीं है। कार्ल सागन
+* मूलतः जो आपको होना चाहिए वो बनने के लिए आपको अपनी महत्वकांक्षाओं को दबाना होगा। बॉब दिलान
+* महत्वकांक्षा के बिना समय केवल समीक्षक है। स्टेनबाक
+* जब महत्त्वाकांक्षा समाप्त होती है तो प्रसन्नता शुरू होती है। थोमस मर्टन
+* महत्त्वाकांक्षा असफलता की आखिरी शरण है। आस्कर वाईल्ड
+* महत्त्वाकांक्षा सफलता तक जाने का रास्ता है. दृढ़ता वो गाड़ी है जिससे आप पहुँचते हैं बिल ब्रेडली
+* मैं अपनी कमजोरी और अपनी महत्त्वाकांक्षा के बीच के अंतर से निराश नहीं होना चाहती थी। एल्ला मैलार्ट
+* हालांकि महत्त्वाकांक्षा खुद में बुरी है, लेकिन अक्सर यह अच्छाई का मूल भी होती है होसिय बल्लू
+* कभी भी कम अनुभव को अपनी महत्त्वाकांक्षा के मार्ग में ना आने दें। टेरी जोसफसन
+* महत्वकांक्षा, असफलता का आखिरी सहारा है। ऑस्कर वाइल्ड
+* त्रासदी यह है कि बहुतों में महत्त्वाकांक्षा है पर कुछ में ही काबीलियत। विल्लियम फेदर
+* बड़े परिणामों के लिए बड़ी महत्वकांक्षाएं जरूरी हैं। हेरलितस
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+: क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है।
+: अर्थ क्रोध सभी अनर्थ (विपत्तियों) की जड़ है। क्रोध संसार का बन्धन है। क्रोध से मनुष्य का धर्म नष्ट होता है। इसलिए क्रोध का परित्याग करना चाहिए।
+: क्रोध की दशा में मनुष्य को यह विवेक नहीं रहता कि क्या कहना चाहिये और क्या नहीं कहना चाहिये। क्रुद्ध मनुष्य के लिए कुछ कुछ भी अकार्य नहीं है और कुछ भी अवाच्य नहीं है। अर्थात क्रुद्ध मनुष्य कुछ भी कर सकता है और कुछ भी बक सकता है।
+: सम्पन्न होने की इच्छा वाले मनुष्य को इन छ�� बुरी आदतों को त्याग देना चाहिए: अधिक नींद, जड़ता, भय, क्रोध, आलस्य और कार्यों को टालने की प्रवृत्ति।
+: क्रोध दुर्जय (कठानाई से जीता जा सकने वाला) शत्रु है, लोभ अनन्त (कभी न समाप्त न होने वाला) रोग है। जो दूसरों के कल्याण में लगा हुआ है वही साधु है और जो दया से रहित है वही असाधु (दुर्जन) है।
+: क्रोध ही हृदय के दुख का कारण है, क्रोध सांसारिक बन्धन है। क्रोध धर्म का क्षय करने वाला है। इसलिए क्रोध से बचना चाहिए।
+: क्रोध के कारण धैर्य का नाश होता है, उसी क्रोध के कारण ज्ञान का भी नाश होता है क्रोध के कारण सबकुछ नष्ट हो जाता है। क्रोध के समान कोई शत्रु नहीं है।
+: उत्पन्न हुये क्रोध को जो अपनी विवेक बुद्धि से शाँत कर लेते हैं वही तत्वदर्शी विद्वान माने जाते हैं।
+: जिस शरीर में क्रोध उत्पन्न होगा उसे सर्वथा नष्ट कर देगा। इस क्रोध से वैसे ही बचना चाहिये जैसे अग्नि तथा विद्युत से ।
+: अपकारी पर क्रोध करने की अपेक्षा क्रोध पर ही क्षुभित होना चाहिये क्योंकि यही धर्म, अर्ध, काम, मोक्ष की प्राप्ति में बाधक है इसी को अपना परम शत्रु मानकर वशवर्ती बनाना चाहिये ।
+:जीवन पर्यन्त प्रयत्न करने पर भी शत्रु रहित नहीं बन सकते पर जिस ने क्रोध को पराजित कर दिया उसका कोई शत्रु कुछ नहीं बिगाड़ सकता। क्रोध पर विजय पाना शत्रुओं को समाप्त कर देना है।
+: जो मनुष्य मात्र पर कभी क्रोध नहीं करते, क्रोधियों को शान्त करते हैं तथा क्रोध को अपने नियन्त्रण में रखते हैं वही संसार के सम्पूर्ण दुस्सह दुःखों से छुटकारा पा जाते हैं।
+मनुष्य) अहंकार को मारकर प्रिय हो जाता है। क्रोध को मारकर शोक नहीं करता। काम को मारकर धनवान बनता है और लोभ को मारकर सुखी होता है।
+: धर्म के दस लक्षण हैं- धृति (धैर्य क्षमा, दम (इन्द्रियों के विषयों का दमन अस्तेय (चोरी न करना शौच (मान और शरीर की स्वच्छता इंद्रियनिग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य, और अक्रोध (क्रोध न करना)।
+: क्रोध सारे अर्थों सारे धन) का नाश करने वाला है।
+: संसार में प्रजा के विनाश का कारण क्रोध को ही माना जाता है।
+: क्रोध ही झगड़े की जड़ है।
+* क्रोधित होना गर्म कोयले को किसी दूसरे पर फेंकने से पहले पकड़े रहने के सामान है; इससे आप ही जलते हैं। भगवान गौतम बुद्ध
+* हर मिनट जिसमे आप क्रोधित रहते हैं, आप 60 सेकण्ड की मानसिक शांति खो देते हैं। राल्फ वाल्डो इमर्सन
+* क्रोध अम्ल की तरह है। यह उ��� बर्तन को अधिक नुकसान पहुंचा सकता है जिसमें उसको रखा जाता हैं। मार्क ट्वेन
+* जब गुस्से में हैं तो आप बोलने से पहले दस तक गिने। अगर आप बहुत गुस्से में हैं, तो सौ तक गिनें। थॉमस जेफरसन
+* गुस्सा और असहिष्णुता सही समझ के दुश्मन हैं। महात्मा गाँधी
+* क्रोध एक प्रकार का पागलपन है। होरेस
+* हर कोई क्रोधित हो सकता है- यह सरल है, लेकिन सही आदमी से, सही सीमा में, सही समय पर, सही उद्देश्य के साथ, सही तरीके से क्रोधित होना, सब लोगो के बस की बात नहीं है। अरस्तु
+* जो कुछ भी क्रोध में शुरू होता है, वह शर्म पर खत्म होता है। बेंजामिन फ्रैंकलिन
+* क्रोधित होना कुछ भी हल नहीं करता। ग्रेस केली
+* क्रोध का सबसे बड़ा उपाय है- थोड़ी देर रूक जाएं।
+* जब क्रोध उठता है, तो इसके परिणाम के बारे में सोचो। कन्फ्यूशियस
+* गुस्सा आपको छोटा बनाता है, जबकि माफी आपको जो भी हो उससे परे बढ़ने के लिए मजबूर करती है। चेरी कार्टर-स्कॉट
+* क्रोध की सबसे अच्छी दवा है लंबी दूरी तक टहलना। जोसेफ जूबर्ट
+* गुस्सा करके मैं खुद के लिए खतरा बनाता हूं। ओरियाना फैलेसी
+* यदि छोटी चीजें आपको गुस्सा दिला देती हैं तो क्या इससे आपके स्तर का पता नहीं चल जाता सिडनी जे. हैरिस
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+कुछ तत्त्वों को प्रयासपूर्वक इस प्रकार व्यवस्थित करना कला कहलाता है कि उस प्रयास के परिणावस्वरूप उत्पन्न वस्तु इन्द्रियों, मस्तिष्क और भावनाओं को अच्छी लगे।
+: साहित्य, संगीत और कला से विहीन पुरुष, पूंछ और सींग से रहित साक्षात् पशु है।
+* कला, विचार को मूर्ति में परिवर्तित कर देती है।
+* ऊँची कला कोशिश करने पर भी अपने को नीति और उद्देशय के संर्घष से बचा नहीं सकती, क्योंकि नीति और लक्ष्य जीवन के प्रहरी है और कला जीवन का अनुकरण किये बिना जी नही सकती। रामधारीसिंह ‘दिनकर’
+* एक अच्छा कलाकार वही पेंट करना चाहता है ,जो वह होता है। जैक्सन पोल्लोक
+* एक कलाकार को उसकी मेहनत के लिए पैसे नहीं मिलते बल्कि उसकी दूरदृष्टि के लिए मिलते हैं। जेम्स विस्लर
+* एक कलाकृति एक अद्वितीय स्वभाव का अद्वितीय परिणाम है। ऑस्कार वाइल्ड
+* एक चित्र बिना शब्दों के लिखित कविता के समान हैं। होरेस
+* एक चित्र हज़ार शब्दों के बराबर होता है। नेपोलियन बोनापार्ट
+* एक महान कलाकार हमेशा अपने समय से आगे या पीछे होता है। जॉर्ज एडवर्ड मूर
+* एक मूर्तिकार चीजों को आकार देने में रुचि रखता है, एक कवी शब्दों में और एक संगीतकार ध्वनि में। हेनरी मूर
+* एक लेखक को अपने आँखों से लिखना चाहिए और एक चित्रकार को अपने कानो से चित्रकारी करनी चाहिए। गैरत्रुद स्टेन
+* ऐसे कलाकार जो हर चीज में पूर्णता चाहते हैं, वो इसे किसी भी चीज में नही पा पाते। गौसटैव फ्लौबेर्ट
+* कला अति सूक्ष्म और कोमल है, अतः अपनी गति के साथ यह मस्तिष्क को भी कोमल और सूक्ष्म बना देती हैं। अरविन्द
+* कला अत्यंत कठिन है और उसका पुरस्कार है नश्वर। शिलर
+* कला एक प्रकार का एक नशा है, जिससे जीवन की कठोरताओं से विश्राम मिलता है।- फ्रायड
+* कला कभी भी बाहरी रूप-रंग को प्रदर्षित नहीं करता बल्कि वह आंतरिक को दर्शाने में ज्यादा महत्व देता है। अरस्तु
+* कला कला के लिए। विक्टर फजिन
+* कला का अंतिम और सर्वोच्च ध्येय सौन्दर्य हैं। गेटे
+* कला का कार्य किसी विचार को अतिरंजित करना है। आन्द्रे जीद
+* कला का शत्रु अज्ञान है। बेन जानसन
+* कला का सत्य जीवन की परिधि में सौन्दर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखण्ड सत्य है। महादेवी वर्मा
+* कला की कसौटी सौन्दर्य है, जो सुंदर है वही कला हैं। अज्ञात
+* कला के लिए आवश्यकता बुद्धि और हृदय की है, रूपये की कदापि नहीं। महात्मा गांधी
+* कला के साथ हमारे जीवन का घनिष्ठ सम्बन्ध है। मानव-जीवन से पृथक कर देने पर कला का महत्व नहीं रहता। हितोपदेश
+* कला केवल उपकरण मात्र है, कला जीवन के लिए और उसकी पूर्ति में ही है। यशपाला
+* कला कोई चीज नहीं ,बल्कि एक तरीका होता है। ऐल्बर्ट हब्बार्ड
+* कला कोई वस्तु नहीं यह एक तरीका है। ऐल्बर्ट हब्बार्ड
+* कला तो ईश्वर और कलाकार की संयुक्त कृति है और कलाकार जितना कम काम करे, उतना ही अधिक अच्छा। आंद्र जीद
+* कला प्रकृति की सहायता करती है और अनुभव कला की। टामस फुलर
+* कला या तो साहित्यिक चोरी है या फिर एक क्रांति। पॉल गौगइन
+* कला विचार को मूर्ति रूप में परिणित करती हैं। एमर्सन
+* कला सम्पूर्णता की ओर पाने का प्रयास है, व्यक्ति की अपने को सिद्ध प्रमाणित करने की चेष्टा है। अज्ञेय
+* कला सामाजिक अनुपयोगिता की अनुभूति के विरूद्ध अपने को प्रमाणित करने का प्रयत्न-अपर्याप्तता के विरूद्ध विद्रोह है। अज्ञेय
+* कला ही बिना घर छोड़े भाग जाने का एकमात्र तरीका है। त्वयला थार्प
+* कला, जहाँ तक सम्भव होता है, प्रकृति का अनुकरण करती है, उसी प्रकार जिस प्रकार एक शिष्य अपने गुरू का अनुकरण करता हैं। अत�� तुम्हारी कला ईश्वर की अनुकृति होनी चाहिए। दांते
+* कला, जीवन की विविधता समेटती हुई आगे बढ़ती है, अतः सम्पूर्ण जीवन को गला-पिघलाकर तर्क-सूत्र में कर लेना उसका लक्ष्य नहीं हो सकता। महादेवी वर्मा
+* कलाकार आपने काम से जाना जाता है। जीन डी ला फोंटेन
+* कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अतः वह उसका दास भी है और स्वामी भी। रवीन्द्रनाथ ठाकुर
+* कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। डा रामकुमार वर्मा
+* कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। रामधारी सिंह दिनकर
+* कविता वह सुरंग है जिसमें से गुजर कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। रामधारी सिंह दिनकर
+* काम से कलाकार जाना जाता है। जीन डी ला फोंटेन
+* खुद को गलतियाँ करने देना रचनात्मकता। ये जानना कि कौन सी गलतियों को रखना है कला है। स्कॉट एडम्स
+* जब लगन और प्रवीणता परस्पर मिलकर कार्य करें तो एक अति उत्तम कला की अपेक्षा करों। रस्किन
+* जीवन की सबसे बड़ी कला तपस्या है। महात्मा गांधी
+* जो कला आत्मा को आत्म-दर्शन करने की शिक्षा नहीं देती, वह कला ही नहीं हैं। महात्मा गांधी
+* ज्ञानी हम सब है, लोगों में फर्क ज्ञान का नहीं, बल्कि कला का हैं। एमर्सन
+* तस्वीर एक ऐसी कविता होती है जिसके पास शब्द नहीं होते है। होरेस
+* प्रेम के समान ही कला में भी मूल प्रवत्ति ही पर्याय होती है। अनातोले फ्रांस
+* फाइन आर्ट वो है जिसमे व्यक्ति का हाथ, दिमाग और दिल एक साथ काम करते हैं। जॉन रस्किन
+* महान कला की शुरुआत वहां होती है जहाँ प्रकृति का अंत होता है। मार्क चैगैल
+* महान कलाकार लोग हमेशा या तो समय से पहले या फिर समय से पीछे होता है। जॉर्ज एडवर्ड मूर
+* मानव-संयुक्त प्रकृति का नाम ही कला हैं। बेकन
+* मैं चीजों को पेंट नहीं करता। मैं बस उनके बीच के अंतर को पेंट करता हूँ। हेनरी मतिस्से
+* मैंने पाया है कि जो चीजें मैं रंगों और आक्र्तियों के माध्यम से कह सकता हूँ वो और किसी तरह से नहीं कह सकता।
+* रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है। मुक्ता
+* रचनात्म अभिव्यक्तियाँ नियंत्रित मनोवेगों के द्वारा अपना परिपूर्ण स्वरूप प्राप्त करती है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर
+* विज्ञापन बीसवीं सदी की केव आर्ट हैं। मार्शल मैकलुहान
+* व्यक्ति अपने दिमाग से पेंट करता है, अपने हाथों से नहीं। माइकलैंजिलो
+* संगीत और कला की उपासना करो और भावना के धर्म को उन्नत करो। राधाकृष्णन
+* सच्ची कला ईश्वर की भक्तिपूर्ण अनुकरण हैं। अज्ञात
+* सबसे महान कलाकार वह है जो अपने जीवन को ही कला का विषय बनाये। थोरो
+* सभी सच्चे कलाकार शुरुवात में नौसिखिया ही होते है। रल्प वाल्डो एमर्सन
+* समाज में गीतवाद्य, नाट्य-नृत्य का भी महत्पूर्ण स्थान है, ये बड़ी मनोहर और उपयोगी कलाएँ है। पर हैं तभी, जब इनके साथ संस्कृति का निवास-स्थान पवित्र-संस्कृत अन्तः करण हो। केवल ‘कला’ तो ‘काल’ बन जाती है। हनुमान प्रसाद पोद्दार
+* हर एक निर्माता अपनी अंतर्दृष्टि और परम अभिव्यक्ति के बीच एक अंतर होने की पीड़ा अनुभव करता है। आइजैक बैशेविस सिंगर
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+प्रवृत्ति की कमजोरी चरित्र की कमजोरी बन जाती है।
+नैतिकता महज एक रवैया है जो हम ऐसे लोगों के प्रति अपनाते हैं जिन्हें हम व्यक्तिगत रूप से नापसंद करते हैं।
+उत्कृष्टता एक कौशल नहीं है।यह एक दृष्टिकोण है।
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+* जिसे और लोग विफलता का नाम देने या कहने की कोशिश करते हैं, मैंने सीखा है कि वो बस भगवान् का आपको नयी दिशा में भेजने का तरीका है।
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+हर साल अपने जन्मदिन पर आपको एक नयी शुरुआत करने का मौका मिलता है।
+जन्मदिन का सबसे मीठा केक भी
+इतना मीठा नहीं हो सकता
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+* किसी की बुद्धि का माप उसके बदलाव लाने की क्षमता है। अल्बर्ट आइंस्टीन
+* इस जीवन में सबसे बड़ा खतरा वे लोग हैं जो सब कुछ बदलना चाहते हैं या कुछ भी नहीं। नैंसी ऐस्टर
+* अंडे के लिए एक पक्षी में बदलना मुश्किल हो सकता है: अंडे होते हुए उड़ने के सपने देखना ओर कठिन होगा। हम वर्तमान में अंडे की तरह हैं। और आप हमेशा एक अंडा बनकर नहीं रह सकते हैं। या तो हमें बाहर निकलना होगा या फिर सर जाना होगा। सी. यस लुइस
+* पैसा और सफलता लोगों को नहीं बदलते हैं; वे केवल उसे बढ़ा देते हैं जो पहले से उनके अंदर मौजूद है। विल स्मिथ
+* यदि आप नजरिए को बदलना चाहते हैं, तो व्यवहार में बदलाव के साथ शुरू करें। वीलियम ग्लासर
+* यदि आप बुरी स्थिति में हैं, तो यह चिंता न करें कि यह बदल जाएगी। यदि आप एक अच्छी स्थिति में हैं, तो यह चिंता न करें कि यह बदल जाएगी। जॉन ए सिमोन
+* यदि आप चीजों को देखने के तरीके को बदलते हैं, तो आप जिन चीजों को देखते हैं वो भी बदल जाती हैं। वेन डायार
+* एक व्यक्ति अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाकर अपना भविष्य बदल सकता है। ओपरा विनफ्रे
+* एक बच्चा, एक शिक्षक, एक कलम, और एक किताब दुनिया बदल सकती है। मलाला यूसुफजई
+* सच्चा जीवन तब जीया जाता है जब छोटे छोटे बदलाव होते हैं। लियो टॉलस्टॉय
+* उन्हें अक्सर बदलना होगा, जो खुशी या ज्ञान में स्थिर होना चाहते हैं। कन्फ़्यूशियस
+* हर कोई दुनिया को बदलने के बारे में सोचता है, लेकिन कोई भी खुद को बदलने के बारे में नहीं सोचता है। लियो टॉल्स्टॉय
+* मैं हवा की दिशा नहीं बदल सकता, लेकिन मैं अपने नाव के पालों को हमेशा अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए समायोजित कर सकता हूं। जिम्मी डीन
+* वे हमेशा कहते हैं कि समय चीजों को बदलता है, लेकिन वास्तव में उन्हें खुद को बदलना होगा। एंडी वरहोल
+* यदि आपको बदलना मुश्किल लगता है, तो संभवतः आपका सफल होना ओर भी कठिन होगा। एंड्रिया जंग
+* यदि आपको कुछ पसंद नहीं है, तो इसे बदल दें। यदि आप इसे बदल नहीं सकते हैं, तो इसके प्रति अपना रवैया(attitude) बदलें। माया एंजेलो
+* जब तक आप अपने कम्फर्ट जोन से बाहर नहीं निकलते, आप अपने जीवन कभी नहीं बदलते; परिवर्तन आपके सुविधा क्षेत्र के अंत में शुरू होता है। रॉट टी. बेनेट
+* हर महान सपना एक सपने देखने के साथ शुरू होता है। हमेशा याद रखें, आपके पास ताकत और धैर्य हैं। दुनिया को बदलने के लिए सितारों तक पहुंचने का जुनून है। हेरिएट टबमैन
+* यदि आप उड़ना चाहते हैं, तो आपको उसका त्याग करना होगा जो आपको नीचे खिचता हो। रॉय बेनेट
+* सभी परिवर्तन विकास नहीं होते है, क्योंकि सभी गतिशीलता आगे की तरफ नहीं होती हैं। एलेन ग्लासगो
+* परिवर्तन के अलावा कुछ भी स्थायी नहीं है। हेरलिटस
+* शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं। नेल्सन मंडेला
+* यदि आप दुश्मन बनाना चाहते हैं, तो कुछ बदलने की कोशिश करें। वूड्रो विल्सन
+* कोई भी बदलाव, यहां तक कि बेहतर होने के लिए एक बदलाव, हमेशा कमियों और असुविधाओं के साथ होता है। अर्नाल्ड बेनेट
+* परिवर्तन का रहस्य अपनी सारी ऊर्जा को पुराने से लड़ने पर नहीं, बल्कि नए निर्माण पर केंद्रित करना है सुकरात
+* दुनिया बदलाव से नफरत करती है, फिर भी यह एकमात्र ऐसी चीज है जो प्रगति लाती है। चार्ल्स केटरिंग
+* सपने बदलाव के लिए बीज हैं। कुछ भी बीज के बिना कभी नहीं बढ़ता है, और कुछ भी बिना सपने के कभ��� नहीं बदलता है। डिब्बी बॉन
+* यदि ऐसा कुछ है जो हम बच्चे में बदलना चाहते हैं, तो हमें पहले इसकी जांच करनी चाहिए और देखना चाहिए कि कहीं उससे अच्छा खुद में कुछ बदलना तो नहीं है। कार्ल जंग
+* गतिशील होने से ये नहीं बदलता कि आप कौन हैं। यह केवल आपकी खिड़की के बाहर के दृश्य बदलता है। राचेल होलिस
+* शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं। नेल्सन मंडेला
+* निराशावादी हवा के बारे में शिकायत करता है; आशावादी इसे बदलने की उम्मीद करता है; यथार्थवादी, पाल को समायोजित (adjust) करता है। विलियम वार्ड
+*विचारशील लोगों का एक छोटा सा समूह दुनिया को बदल सकता है। वास्तव में, दुनिया जब भी बदली है इन्ही लोगों के द्वारा बदली है।
+
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+मेरी शादी होने से पहले, बच्चों कि परवरिश करने से सम्बंधित मेरे 6 सिद्धांत थे; अब मेरे 6 बच्चे हैं और कोई सिद्धांत नहीं है।
+आत्मा बच्चों के साथ रहने पर स्वस्थ होती है।
+जब तक छोटे बच्चों को कष्ट सहने दिया जाएगा, तब तक इस दुनिया में सच्चा प्रेम नहीं हो सकता।
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+* एक अच्छी अंतरात्मा निरंतर क्रिसमस है।
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+* विजेता बनने का एक हिस्सा ये जानना है कि कब हद पार हो चुकी है। कभी-कभी आपको लड़ाई छोड़ कर जाना पड़ता है, और कुछ और करना होता है जो अधिक प्रोडक्टिव हो।
+* सफल बनने के लिए आपको कुछ करने की जरुरत है और थोडा सा बुरा करने की जरुरत है। क्योकि आप कैसे अच्छे दिखते इसे देखने से पहले आप कैसे बुरे दिखते हो इसे देखने की जरुरत होती है। –Barbara DeAngelis
+* व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले मर जाता है;और वो अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल खुद ही भुगतता है; और वह अकेले ही नर्क या स्वर्ग जाता है। चाणक्य
+* सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाक़ू की तरह है जिसमे सिर्फ ब्लेड है। यह इसका प्रयोग करने वाले के हाथ से खून निकाल देता है। रबिन्द्रनाथ टैगोर
+* हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है। यदि कोई व्यक्ति बुरी सोच के साथ बोलता या काम करता है, तो उसे कष्ट ही मिलता है। यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो उसकी परछाई की तरह ख़ुशी उसका साथ कभी नहीं छोडती भगवान गौतम बुद्ध
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+दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे यह एक हिंदी सुप्रसिद्ध फिल्म है।
+* बड़े बड़े देशों में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रेहती हैं।
+
+
+::राहुल जी, प्रबंधक का मुख्य दायित्व निम्नलिखित है:-
+*ज़रूरत पड़ने पर पृष्ठो को संपादन से सुरक्षित करना।
+*पृष्ठो से बर्बरता हटाना/रोकना। जिसमें संपादनो की जाँच करके अयोग्य सम्पादन हटाकर पुन: पुरानी स्थिति पर लाना। नये लेखो की जाँच करके उन्हे नीरिक्षित अंकित करना।
+*जरूरत पड़ने पर सदस्य/आई°पी° पतों को अवरोधित करना। (अवरोधित करने कि नीति पढ़ना ज़रूरी।)
+
+
+* विजेता बनने का एक हिस्सा ये जानना है कि कब हद पार हो चुकी है। कभी-कभी आपको लड़ाई छोड़ कर जाना पड़ता है, और कुछ और करना होता है जो अधिक प्रोडक्टिव हो.
+* हमेशा अपने विचारों, शब्दों और कर्म के पूर्ण सामंजस्य का लक्ष्य रखें. हमेशा अपने विचारों को शुद्ध करने का लक्ष्य रखें और सब कुछ ठीक हो जायेगा.
+शिक्षा सबसे बड़ा शशक्त हथियार है जिससे दुनिया को बदला जा सकता है।
+* एक अच्छा दिमाग और अच्छा दिल हमेशा से विजयी जोड़ी रहे हैं.
+* मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति तुम्हारे साथ है; और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है।
+* मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है।जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है।
+* लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे. सम्मानित व्यक्ति के लिए, अपमान मृत्यु से भी बदतर है।
+* महानता से घबराइये नहीं: कुछ लोग महान पैदा होते हैं, कुछ महानता हांसिल करते हैं, और कुछ लोगों के ऊपर महानता थोप दी जाती है।
+* लेकिन आदमी आदमी होता है; जो सबसे अच्छे होते हैं वो कई बार ये भूल जाते हैं.
+* प्रत्येक व्यक्ति को अपने आचरण का परिणाम धैर्यपूर्वक सहना चाहिए.
+* एक छोटी सी मोमबत्ती का प्रकाश कितनी दूर तक जाता है! इसी तरह इस बुरी दुनिया में एक अच्छा काम चमचमाता है।
+* अगर करना उतना ही आसान होता जितना की जानना की क्या करना अच्छा है, तो शवगृह गिरिजाघर होते, और गरीबो के झोंपड़े महल.
+* महान महत्त्वाकांक्षा महान चरित्र की अभिलाषा होती है। जिनके पास ये होती है वो बहुत अच्छे या बहुत बुरे काम कर सकते हैं.
+बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए ।
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+* झूठी कूटनीति और बहानेबाजी की इस दुनिया में आमिर स्पष्ट रुप से अपनी बात रखते हैं।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि अंग्रेज़ी भाषा में उनका कुशलता स्तर N है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि स्पेनी भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि हिन्दी भाषा में उनका कुशलता स्तर 0 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि पुर्तगाली भाषा में उनका कुशलता स्तर N है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि अंग्रेज़ी भाषा में उनका कुशलता स्तर 3 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि जर्मन भाषा में उनका कुशलता स्तर 2 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि फ़्रेंच भाषा में उनका कुशलता स्तर 3 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि जर्मन भाषा में उनका कुशलता स्तर N है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि इतालवी भाषा में उनका कुशलता स्तर N है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि अंग्रेज़ी भाषा में उनका कुशलता स्तर 2 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि मराठी भाषा में उनका कुशलता स्तर 2 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि हिन्दी भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि गुजराती भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि संस्कृत भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि चीनी भाषा में उनका कुशलता स्तर N है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि कैंटोनीज़ भाषा में उनका कुशलता स्तर N है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि स्पेनी भाषा में उनका कुशलता स्तर N है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि बास्क भाषा में उनका कुशलता स्तर 3 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि सरलीकृत चीनी भाषा में उनका कुशलता स्तर N है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि पारंपरिक चीनी भाषा में उनका कुशलता स्तर 3 है।
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+इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि स्प���नी भाषा में उनका कुशलता स्तर 2 है।
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