diff --git "a/hi/shard-60.txt" "b/hi/shard-60.txt" new file mode 100644--- /dev/null +++ "b/hi/shard-60.txt" @@ -0,0 +1,24608 @@ + + +[[अटल बिहारी वाजपेयी अरविन्द केजरीवाल इंदिरा गाँधी किरण बेदी जवाहरलाल नेहरु नरेन्द्र मोदी राहुल गांधी सुभाष चन्द्र बोस]] + + +बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँह चढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है। +लोकोक्तियाँ आम जनमानस द्वारा स्थानीय बोलियों में हर दिन की परिस्थितियों एवं संदर्भों से उपजे वैसे पद एवं वाक्य होते हैं जो किसी खास समूह, उम्र वर्ग या क्षेत्रीय दायरे में प्रयोग किया जाता है। इसमें स्थान विशेष के भूगोल, संस्कृति, भाषाओं का मिश्रण इत्यादि की झलक मिलती है। + + +पर्याप्त रूप से विकसित किसी भी तकनीकी और जादू में अन्तर नहीं किया जा सकता । +सभ्यता की कहानी सार रूप में इंजिनीयरिंग की कहानी है वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया । +इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है । +वैज्ञानिक इस संसार का जैसे है उसी रूप में अध्ययन करते हैं । इंजिनीयर वह संसार बनाते हैं जो कभी था ही नहीं । +मशीनीकरण करने के लिये यह जरूरी है कि लोग भी मशीन की तरह सोचें । +इंजिनीररिंग संख्याओं मे की जाती है । संख्याओं के बिना विश्लेषण मात्र राय है । +जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आप का ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक है । +आवश्यकता डिजाइन का आधार है । किसी चीज को जरूरत से अल्पमात्र भी बेहतर डिजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है । +तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है । हम तकनीकी रूप से विकास नही कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है । +भाषा हमारे सोचने के तरीके को स्वरूप प्रदान करती है और निर्धारित करती है कि हम क्या-क्या सोच सकते हैं । +आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना । +लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है । +साहित���य समाज् का दर्पण होता है । +( साहित्य संगीत और कला से हीन पुरूष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं । ) +हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है समान लोगों के साथ रहनए से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है । +को लाभो गुणिसंगमः लाभ क्या है गुणियों का साथ ) +सत्संगतिः स्वर्गवास सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है ) +संहतिः कार्यसाधिका । एकता से कार्य सिद्ध होते हैं ) +दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं बाकी सब काम की तलाश करते हैं । +मानसिक शक्ति का सबसे बडा स्रोत है दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान करना । +दुनिया की सबसे बडी खोज इन्नोवेशन का नाम है संस्था । +आधुनिक समाज के विकास का इतिहास ही विशेष लक्ष्य वाली संस्थाओं के विकास का इतिहास भी है । +कोई समाज उतना ही स्वस्थ होता है जितनी उसकी संस्थाएँ यदि संस्थायें विकास कर रही हैं तो समाज भी विकास करता है, यदि वे क्षीण हो रही हैं तो समाज भी क्षीण होता है । +उन्नीसवीं शताब्दी की औद्योगिक-क्रान्ति संस्थाओं की क्रान्ति थी । +बाँटो और राज करो एक अच्छी कहावत है लेकिन एक होकर आगे बढो इससे भी अच्छी कहावत है । +व्यक्तियों से राष्ट्र नही बनता संस्थाओं से राष्ट्र बनता है । +साहसे खलु श्री वसति । साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं ) +इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही बदला है । +जरूरी नही है कि कोई साहस लेकर जन्मा हो लेकिन हरेक शक्ति लेकर जन्मता है । +बिना साहस के हम कोई दूसरा गुण भी अनवरत धारण नहीं कर सकते । हम कृपालु, दयालु सत्यवादी उदार या इमानदार नहीं बन सकते । +बिना निराश हुए ही हार को सह लेना पृथ्वी पर साहस की सबसे बडी परीक्षा है । +जिस काम को करने में डर लगता है उसको करने का नाम ही साहस है । +मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। +किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो। +वस्तुतः अच्छा समाज वह नहीं है जिसके अधिका���श सदस्य अच्छे हैं बल्कि वह है जो अपने बुरे सदस्यों को प्रेम के साथ अच्छा बनाने में सतत् प्रयत्नशील है। +शोक मनाने के लिये नैतिक साहस चाहिए और आनंद मनाने के लिए धार्मिक साहस। अनिष्ट की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में आकाश-पाताल का अंतर है। पहला गर्वीला साहस है, दूसरा विनीत साहस। +जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते। +‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं। +‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की। +गलती करने में कोई गलती नहीं है । +गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है । +गलती करने का सीधा सा मतलब है कि आप तेजी से सीख रहे हैं । +सीधे तौर पर अपनी गलतियों को ही हम अनुभव का नाम दे देते हैं । +अपनी गलती स्वीकार कर लेने में लज्जा की कोई बात नहीं है । इससे दूसरे शब्दों में यही प्रमाणित होता है कि कल की अपेक्षा आज आप अधिक समझदार हैं । +दोष निकालना सुगम है उसे ठीक करना कठिन । +जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है । +असफलता आपको महान कार्यों के लिये तैयार करने की प्रकृति की योजना है । +सफलता की सभी कथायें बडी-बडी असफलताओं की कहानी हैं । +असफलता फिर से अधिक सूझ-बूझ के साथ कार्य आरम्भ करने का एक मौका मात्र है । +दो ही प्रकार के व्यक्ति वस्तुतः जीवन में असफल होते है एक तो वे जो सोचते हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर देते हैं पर सोचते कभी नहीं। +दूसरों को असफल करने के प्रयत्न ही में हमें असफल बनाते हैं। +संसार में सब से अधिक दुःखी प्राणी कौन है बेचारी मछलियां क्योंकि दुःख के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण मात्र दुःख भी पर्वत हो जाता है। +संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के शुभेच्छु हुआ करते हैं। विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं। +व्याधि शत्रु से भी अधिक हानिकारक होती है। +विपत्ति में पड़े हुए का साथ बिरला ही कोई देता है। +मनुष्य के जीवन में दो तरह के दुःख होते हैं एक यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी नहीं हुई और दूसरा यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी हो गई। +मानवजीवन में दो और दो चार का नियम सदा लागू होता है। उसमें कभी दो और दो पांच हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर टूट जाती है। +तपाया और जलाया जाता हुआ लौहपिण्ड दूसरे से जुड़ जाता है, वैसे ही दुख से तपते मन आपस में निकट आकर जुड़ जाते हैं। +चाहे राजा हो या किसान वह सबसे ज्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है । +मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है । +आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है । +मानव प्रकृति में सबसे गहरा नियम प्रशंसा प्राप्त करने की लालसा है । +अगर किसी युवती के दोष जानने हों तो उसकी सखियों में उसकी प्रसंसा करो । +चापलूसी करना सरल है प्रशंसा करना कठिन । +इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त होता है। +दान भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं । जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति नाश होती है । +सर्वे गुणाः कांचनं आश्रयन्ते । सभी गुण सोने का ही सहारा लेते हैं ) +संसार के व्यवहारों के लिये धन ही सार-वस्तु है । अत: मनुष्य को उसकी प्राप्ति के लिये युक्ति एवं साहस के साथ यत्न करना चाहिये । +मनुष्य मनुष्य का दास नही होता हे राजा वह् तो धन का दास् होता है । +गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं । +तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी । +राष्ट्रों का कल्याण जितना मुक्त व्यापार पर निर्भर है उतना ही मैत्री इमानदारी और बराबरी पर । +व्यापारिक युद्ध विश्व युद्ध शीत युद्ध इस बात की लडाई कि “गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये । +इससे कोई फ़र्क नहीं पडता कि कौन शाशन करता है क्योंकि सदा व्यापारी ही शाशन चलाते हैं । +आज का व्यापार सायकिल चलाने जैसा है या तो आप चलाते रहिये या गिर जाइये । +कार्पोरेशन व्यक्तिगत उत्तर्दायित्व के बिना ही लाभ कमाने की एक चालाकी से भरी युक्ति । +अपराधी, दस्यु प्रवृति वाला एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास कारपोरेशन शुरू करने के लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है । +निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मंत्र प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र योजना परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है प्रभाव राजोचित शक्ति तेज से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह उद्यम से कार्य सिद्ध होता है । +यथार्थ को स्वीकार न करनें में ही व्यावहारिक राजनीति निहित है । +विपत्तियों को खोजने उसे सर्वत्र प्राप्त करने गलत निदान करने और अनुपयुक्त चिकित्सा करने की कला ही राजनीति है । +मानव स्वभाव का ज्ञान ही राजनीति-शिक्षा का आदि और अन्त है । +लोकतन्त्र जनता की जनता द्वारा जनता के लिये सरकार होती है । +लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है । +शान्तिपूर्वक सरकार बदल देने की शक्ति प्रजातंत्र की आवश्यक शर्त है । प्रजातन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है बल्कि नेताओं को बिना उनकी हत्या किये बदल देने में है । +अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है। +बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन। +( कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो ) +अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता । +थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी महान कार्य नहीं किया जा सकता । +लोकतंत्र जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर । +सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं । अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें । +( न राज्य था और ना राजा था न दण्ड था और न दण्ड देने वाला । +स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी । ) +मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है। +करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता । +वह क्षण जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है ऐसे नर-पशु को नमस्कार । +समय को व्यर्थ नष्ट मत करो क्योंकि यही वह चीज है जिससे जीवन का निर्माण हुआ है । +किसी भी काम के लिये आपको कभी भी समय नहीं मिलेगा । यदि आप समय पाना चाहते हैं तो आपको इसे बनाना पडेगा । +( क्षण-क्षण का उपयोग करके विद्या का और कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये ) +हमें यह विचार त्याग देना चाहिये कि हमें नियमित रहना चाहिये । यह विचार आपके असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है । +दीर्घसूत्री विनश्यति । काम को बहुत समय तक खीचने वाले का नाश हो जाता है ) +बाजार में आपाधापी मतलब अवसर । +संकट के समय ही नायक बनाये जाते हैं । +आशावादी को हर खतरे में अवसर दीखता है और निराशावादी को हर अवसर मे खतरा । +अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है । +हमारा सामना हरदम बडे-बडे अवसरों से होता रहता है जो चालाकी पूर्वक असाध्य समस्याओं के वेष में (छिपे) रहते हैं । +उचित रूप से देंखे तो कुछ भी इतिहास नही है सब कुछ) मात्र आत्मकथा है । +इतिहास, शक्तिशाली लोगों द्वारा, उनके धन और बल की रक्षा के लिये लिखा जाता है । +जो इतिहास को याद नहीं रखते उनको इतिहास को दुहराने का दण्ड मिलता है । +ज्ञानी लोगों का कहना है कि जो भी भविष्य को देखने की इच्छा हो भूत (इतिहास) से सीख ले । +— मकियावेली ” द प्रिन्स ” में +इतिहास स्वयं को दोहराता है इतिहास के बारे में यही एक बुरी बात है । +संक्षेप में मानव इतिहास सुविचारों का इतिहास है । +सभ्यता की कहानी सार रूप में इंजिनीयरिंग की कहानी है वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया । +इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है । +( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है ) +जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? +विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ? +खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले । +( पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो दुख सह लेता है (लेकिन पराक्रम नह�� दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता ) +(जंगल के जानवर सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार । पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है ) +जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है। +आत्म-वृक्ष के फूल और फल शक्ति को ही समझना चाहिए। +अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते। +आत्मविस्वास वीरता का सार है । +आत्मविश्वास सफलता का मुख्य रहस्य है । +आत्मविश्वा बढाने की यह रीति है कि वह का करो जिसको करते हुए डरते हो । +हास्यवृति आत्मविश्वास (आने) से आती है । +मुस्कराओ क्योकि हर किसी में आत्म्विश्वास की कमी होती है और किसी दूसरी चीज की अपेक्षा मुस्कान उनको ज्यादा आश्वस्त करती है । +वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नही देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है । +भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी । उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है । जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी । प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है । +प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है । +सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है । +संचार गणना कम्प्यूटिंग और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं । +ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है । जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं उतना ही अधिक यह बढता है । इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग । +एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक नहीं और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं । +आर्थिक समस्याएँ सदा ही केवल परिवर्तन के परिणाम स्वरूप पैदा होती हैं । +परिवर्तन विज्ञानसम्मत है । परिवर्तन को अस्वीकार नहीं किया जा सकता जबकि प्रगति राय और विवाद का विषय है । +परिवर्तन का मानव के मस्तिष्क पर अच्छा-खासा मानसिक प्रभाव पडता है । डरपोक लोगों के लिये यह धमकी भरा होता है क्योंकि उनको लगता है कि स्थिति और बिगड सकती है आशावान लोगों के लिये ��ह उत्साहपूर्ण होता है क्योंकि स्थिति और बेहतर हो सकती है और विश्वास-सम्पन्न लोगों के लिये यह प्रेरणादायक होता है क्योंकि स्थिति को बेहतर बनाने की चुनौती विद्यमान होती है । +नयी व्यवस्था लागू करने के लिये नेतृत्व करने से अधिक कठिन कार्य नहीं है । +कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो कोई ऐसा मूल (जड़) नही है जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं । +जीवन में हमारी सबसे बडी जरूरत कोई ऐसा व्यक्ति है जो हमें वह कार्य करने के योग्य बना दे जिसे हम कर सकते हैं । +नेताओं का मुख्य काम अपने आस-पास नेता तैयार करना है । +अपने अन्दर योग्यता का होना अच्छी बात है लेकिन दूसरों में योग्यता खोज पाना नेता की असली परीक्षा है । +अपर्याप्त तथ्यों के आधार पर ही अर्थपूर्ण सामान्यीकरण करने की कला प्रबन्धन की कला है । +किसी बालक की क्षमताओं को नष्ट करना हो तो उसे रटने में लगा दो । +केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं । +व्यावहारिक जीवन की उलझनों का समाधा किन्हीं नयी कल्पनाओं में मिलेगा उन्हें ढूढो । +कल्पना ही इस संसार पर शासन करती है । +कल्पना ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है । ज्ञान तो सीमित है कल्पना संसार को घेर लेती है । +मौन निद्रा के सदृश है । यह ज्ञान में नयी स्फूर्ति पैदा करता है । +मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक वाक-शक्ति होती है । +( किसी बात पर मौन रह जाना उसे स्वीकार कर लेने का लक्षण है । ) +उपाय सुविचार सुविचारों की शक्ति मंत्र उपाय-महिमा आइडिया +( जो कार्य उपाय से किया जा सकता है वह पराक्रम से नही किया जा सकता । ) +विचारों की शक्ति अकूत है । विचार ही संसार पर शाशन करते है मनुष्य नहीं । +लोगों के बारे मे कम जिज्ञासु रहिये और विचारों के सम्बन्ध में ज्यादा । +आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है । +कार्य उद्यम से ही सिद्ध होते हैं, मनोरथ मात्र से नहीं। +जीवन की सबसे बडी क्षति मृत्यु नही है । सबसे बडी क्षति तो वह है जो हमारे अन्दर ही मर जाती है । +आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है । +जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये । निर्भीकता के अन्दर मेधा बुद्धि शक्ति और जादू होते हैं । +पराक्रम दिखाने का समय आने पर जो पीछे हट जाता है उस तेजहीन का पुरुषार्थ ��िद्ध नही होता । +हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है । +सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है । जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है । +सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप चौबीस घण्टे मे कितने प्रयोग कर पाते है । +यदि सारी आपत्तियों का निस्तारण करने लगें तो कोई काम कभी भी आरम्भ ही नही हो सकता । +एक समय मे केवल एक काम करना बहुत सारे काम करने का सबसे सरल तरीका है । +उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं । +मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है । +जिस काम को बिल्कुल किया ही नहीं जाना चाहिये उस काम को बहुत दक्षता के साथ करने के समान कोई दूसरा ब्यर्थ काम नहीं है । +स्वतंत्र चिन्तन चिन्तन की स्वतंत्रता +मानवी चेतना का परावलंबन अन्तःस्फुरणा का मूर्छाग्रस्त होना आज की सबसे बडी समस्या है । लोग स्वतन्त्र चिन्तन करके परमार्थ का प्रकाशन नहीं करते बल्कि दूसरों का उटपटांग अनुकरण करके ही रुक जाते हैं । +बिना वैचारिक-स्वतन्त्रता के बुद्धि जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती और बोलने की स्वतन्त्रता के बिना जनता की स्वतन्त्रता नहीं हो सकती। +प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं । +जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है । +(राजा अपने देश में पूजा जाता है विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है ) +( विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं कौवे जैसी दृष्टि बकुले जैसा ध्यान कुत्ते जैसी निद्रा अल्पहारी और गृह्त्यागी । ) +( बिना अभ्यास के विद्या बहुत कठिन काम है ) +ज्ञान प्राप्ति से अधिक महत्वपूर्ण है अलग तरह से बूझना या सोचना । +प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं । +खाली दिमाग को खुला दिमाग बना देना ही शिक्षा का उद्देश्य है । +अट्ठारह वर्ष की उम्र तक इकट्ठा किये गये पूर्वाग्रहों का नाम ही सामान्य बुद्धि है । +कोई भी चीज जो सोचने की शक्ति को बढाती है शिक्षा है । +संसार जितना ही तेजी से बदलता है अनुभव उतना ही कम प्रासंगिक होता जाता है । वो जमाना गया जब आप अनुभव से सीखते थे अब आपको भविष्य से सीखना पडेगा । +गिने-चुने लोग ही वर्ष मे दो या तीन से अधिक बार सोचते हैं मैने हप्ते में एक या दो बार सोचकर अन्तर्राष्ट्रीय छवि बना ली है । +पठन तो मस्तिष्क को केवल ज्ञान की सामग्री उपलब्ध कराता है ये तो चिन्तन है जो पठित चीज को अपना बना देती है । +एक���ग्र-चिन्तन वांछित फल देता है । +शब्द विचारों के वाहक हैं । +दिमाग पैराशूट के समान है वह तभी कार्य करता है जब खुला हो । +अगर हमारी सभ्यता को जीवित रखना है तो हमे महान लोगों के विचारों के आगे झुकने की आदत छोडनी पडेगी । बडे लोग बडी गलतियाँ करते हैं । +शिक्षा प्राप्त करने के तीन आधार-स्तंभ हैं अधिक निरीक्षण करना अधिक अनुभव करना और अधिक अध्ययन करना । +शिक्षा राष्ट्र की सस्ती सुरक्षा है । +अपनी अज्ञानता का अहसास होना ज्ञान की दिशा में एक बहुत बडा कदम है । +विवेक बुद्धि की पूर्णता है । जीवन के सभी कर्तव्यों में वह हमारा पथ-प्रदर्शक है । +विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान सतत प्रसन्नता है । +चिन्ता एक प्रकार की कायरता है और वह जीवन को विषमय बना देती है । +जो आत्म-शक्ति का अनुसरण करके संघर्ष करता है उसे महान् विजय अवश्य मिलती है। +भारत हमारी संपूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है अरबॊं के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है । अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है । +हम भारतीयों के बहुत ऋणी हैं जिन्होने हमे गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई भी मूल्यवान वैज्ञानिक खोज सम्भव नही होती । +भारत मानव जाति का पलना है मानव-भाषा की जन्मस्थली है इतिहास की जननी है पौराणिक कथाओं की दादी है और प्रथाओं की परदादी है । मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है । +यदि इस धरातल पर कोई स्थान है जहाँ पर जीवित मानव के सभी स्वप्नों को तब से घर मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था तो वह भारत ही है । +भारत अपनी सीमा के पार एक भी सैनिक भेजे बिना चीन को जीत लिया और लगभग बीस शताब्दियों तक उस पर सांस्कृतिक रूप से राज किया । +— हू शिह अमेरिका में चीन के भूतपूर्व राजदूत +( भारत की प्रतिष्ठा दो चीजों में निहित है संस्कृति और संस्कृत । ) +इसकी पुरातनता जो भी हो संस्कृत भाषा एक आश्चर्यजनक संरचना वाली भाषा है । यह ग्रीक से अधिक परिपूर्ण है और लैटिन से अधिक शब्दबहुल है तथा दोनों से अधिक सूक्ष्मता पूर्वक दोषरहित की हुई है । +सभ्यता के इतिहास में पुनर्जागरण के बाद अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में संस्कृत साहित्य की खोज से बढकर कोई विश्वव्यापी महत्व की दूसरी घटना नहीं घटी है । +कम्प्यूटर को प्रोग्राम करने के लिये संस्कृत सबसे सुविधाजनक भाषा है । +यह लेख इस बात को प्रतिपादित करता है कि एक प्राकृतिक भाषा संस्कृत एक कृत्रिम भाषा के रूप में भी कार्य कर सकती है और कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में किया गया अधिकाश काम हजारों वर्ष पुराने पहिये संस्कृत को खोजने जैसा ही रहा है । +— रिक् ब्रिग्स नासा वैज्ञानिक १९८५ में ) +हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है । +देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है । +मनव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है । +उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी । +आने वाली पीढियों को विश्वास करने में कठिनाई होगी कि उनके जैसा कोई हाड-मांस से बना मनुष्य इस धरा पर चला था । +मैं और दूसरे लोग क्रान्तिकारी होंगे, लेकिन हम सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से महात्मा गाँधी के शिष्य हैं इससे न कम न ज्यादा । +उनके अधिकांश सिद्धान्त सार्वत्रिक-उपयोग वाले और शाश्वत-सत्यता वाले हैं । +और फिर गाँधी नामक नक्षत्र का उदय हुआ । उसने दिखाया कि अहिंसा का सिद्धान्त सम्भव है । +जब तक स्वतंत्र लोग तथा स्वतंत्रता और न्याय के चाहने वाले रहेंगे, तब तक महात्मा गाँधी को सदा याद किया जायेगा । +मेरे हृदय मैं महात्मा गाँधी के लिये अपार प्रशंसा और सम्मान है । वह एक महान व्यक्ति थे और उनको मानव-प्रकृति का गहन ज्ञान था । +धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है । +लक्ष्मी कमल पर रहती हैं शिव हिमालय पर रहते हैं । +विष्णु क्षीरसागर में रहते हैं माना जाता है कि खटमल के डर से ॥ +उदाहरण वह पाठ है जिसे हर कोई पढ सकता है । +हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु । +हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है । + + +विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है । +संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति । +सही मायने में बुद्धिपूर्ण ��िचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं । लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें । +किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। +बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है। +— मैं अक्सर खुद को उदृत करता हुँ। इससे मेरे भाषण मसालेदार हो जाते हैं। +सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती। +( जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है । ) +( बहुत प्रलाप करने से क्या लभ है इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता ) +ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में हम वे अक्षर सीखते हैं जिनसे यह संसार रूपी महान पुस्तक लिखी गयी है । +गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी । +काफी हद तक गणित का संबन्ध (केवल) सूत्रों और समीकरणों से ही नहीं है । इसका सम्बन्ध सी.डी से कैट-स्कैन से पार्किंग-मीटरों से राष्ट्रपति-चुनावों से और कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है । गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिये है ताकि हम उन समस्याओं को हल कर सकें जो अर्थपूर्ण हैं । +गणित एक भाषा है । +यह असंभव है कि गति के गणितीय सिद्धान्त के बिना हम वृहस्पति पर राकेट भेज पाते । +विज्ञान की तीन विधियाँ हैं सिद्धान्त प्रयोग और सिमुलेशन । +विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ गलत हैं यह पूरी तरह ठीक है । ये गलत परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं । +हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते । अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं । +पर्याप्त रूप से विकसित किसी भी तकनीकी और जादू में अन्तर नहीं किया जा सकता । +सभ्यता की कहानी सार रूप में इंजिनीयरिंग की कहानी है वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया । +इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है । +वैज्ञानिक इस संसार का जैसे है उसी रूप में अध्ययन करते हैं । इंजिनीयर वह संसार बनाते है�� जो कभी था ही नहीं । +मशीनीकरण करने के लिये यह जरूरी है कि लोग भी मशीन की तरह सोचें । +इंजिनीररिंग संख्याओं मे की जाती है । संख्याओं के बिना विश्लेषण मात्र राय है । +जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आप का ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक है । +आवश्यकता डिजाइन का आधार है । किसी चीज को जरूरत से अल्पमात्र भी बेहतर डिजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है । +तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है । हम तकनीकी रूप से विकास नही कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है । +इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता है। +-– टिम बर्नर्स ली (इंटरनेट के सृजक) +कम्प्यूटर कभी भी कमेटियों का विकल्प नहीं बन सकते. चूंकि कमेटियाँ ही कम्प्यूटर खरीदने का प्रस्ताव स्वीकृत करती हैं. +कोई शाम वर्ल्ड वाइड वेब पर बिताना ऐसा ही है जैसा कि आप दो घंटे से कुरकुरे खा रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु आपको पोषण तो मिला ही नहीं. +कला एक प्रकार का एक नशा है,जिससे जीवन की कठोरताओं से विश्राम मिलता है। +भाषा हमारे सोचने के तरीके को स्वरूप प्रदान करती है और निर्धारित करती है कि हम क्या-क्या सोच सकते हैं । +आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना । +लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है । +शिकायत करने की अपनी गहरी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य ने भाषा ईजाद की है। +साहित्य समाज् का दर्पण होता है । +( साहित्य संगीत और कला से हीन पुरूष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं । ) +हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है समान लोगों के साथ रहनए से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है । +को लाभो गुणिसंगमः लाभ क्या है गुणियों का साथ ) +संहतिः कार्यसाधिका । एकता से कार्य सिद्ध होते हैं ) +दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं बाकी सब काम की तलाश करते हैं । +मानसिक शक्ति का सबसे बडा स्रोत है दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान करना । +अच्छे मित्रों को पाना कठिन वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है। +दुनिया की सबसे बडी खोज इन्नोवेशन का नाम है संस्था । +आधुनिक समाज के विकास का इतिहास ही विशेष लक्ष्य वाली संस्थाओं के विकास का इतिहास भी है । +कोई समाज उतना ही स्वस्थ होता है जितनी उसकी संस्थाएँ यदि संस्थायें विकास कर रही हैं तो समाज भी विकास करता है, यदि वे क्षीण हो रही हैं तो समाज भी क्षीण होता है । +उन्नीसवीं शताब्दी की औद्योगिक-क्रान्ति संस्थाओं की क्रान्ति थी । +बाँटो और राज करो एक अच्छी कहावत है लेकिन एक होकर आगे बढो इससे भी अच्छी कहावत है । +व्यक्तियों से राष्ट्र नही बनता संस्थाओं से राष्ट्र बनता है । +साहसे खलु श्री वसति । साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं ) +इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही बदला है । +जरूरी नही है कि कोई साहस लेकर जन्मा हो लेकिन हरेक शक्ति लेकर जन्मता है । +बिना साहस के हम कोई दूसरा गुण भी अनवरत धारण नहीं कर सकते । हम कृपालु, दयालु, सत्यवादी, उदार या इमानदार नहीं बन सकते । +बिना निराश हुए ही हार को सह लेना पृथ्वी पर साहस की सबसे बडी परीक्षा है । +जिस काम को करने में डर लगता है उसको करने का नाम ही साहस है । +मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। +किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो। +वस्तुतः अच्छा समाज वह नहीं है जिसके अधिकांश सदस्य अच्छे हैं बल्कि वह है जो अपने बुरे सदस्यों को प्रेम के साथ अच्छा बनाने में सतत् प्रयत्नशील है। +शोक मनाने के लिये नैतिक साहस चाहिए और आनंद मनाने के लिए धार्मिक साहस। अनिष्ट की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में आकाश-पाताल का अंत�� है। पहला गर्वीला साहस है, दूसरा विनीत साहस। +किसी दूसरे को अपना स्वप्न बताने के लिए लोहे का ज़िगर चाहिए होता है | +हर व्यक्ति में प्रतिभा होती है। दरअसल उस प्रतिभा को निखारने के लिए गहरे अंधेरे रास्ते में जाने का साहस कम लोगों में ही होता है। +जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते। +‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं। +‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की। +डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है | +गलती करने में कोई गलती नहीं है । +गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है । +गलती करने का सीधा सा मतलब है कि आप तेजी से सीख रहे हैं । +सीधे तौर पर अपनी गलतियों को ही हम अनुभव का नाम दे देते हैं । +अपनी गलती स्वीकार कर लेने में लज्जा की कोई बात नहीं है । इससे दूसरे शब्दों में यही प्रमाणित होता है कि कल की अपेक्षा आज आप अधिक समझदार हैं । +दोष निकालना सुगम है उसे ठीक करना कठिन । +त्रुटियों के बीच में से ही सम्पूर्ण सत्य को ढूंढा जा सकता है | +असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया +जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है । +असफलता आपको महान कार्यों के लिये तैयार करने की प्रकृति की योजना है । +सफलता की सभी कथायें बडी-बडी असफलताओं की कहानी हैं । +असफलता फिर से अधिक सूझ-बूझ के साथ कार्य आरम्भ करने का एक मौका मात्र है । +दो ही प्रकार के व्यक्ति वस्तुतः जीवन में असफल होते है एक तो वे जो सोचते हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर देते हैं पर सोचते कभी नहीं। +दूसरों को असफल करने के प्रयत्न ही में हमें असफल बनाते हैं। +किसी दूसरे द्वारा रचित सफलता की परिभाषा को अपना मत समझो । +जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं ��� पहले वे जो सोचते हैं पर करते नहीं दूसरे वे जो करते हैं पर सोचते नहीं । +प्रत्येक व्यक्ति को सफलता प्रिय है लेकिन सफल व्यक्तियों से सभी लोग घृणा करते हैं । +असफल होने पर, आप को निराशा का सामना करना पड़ सकता है। परन्तु प्रयास छोड़ देने पर आप की असफलता सुनिश्चित है। +मैं सफलता के लिए इंतजार नहीं कर सकता था, अतएव उसके बगैर ही मैं आगे बढ़ चला. +संसार में सब से अधिक दुःखी प्राणी कौन है बेचारी मछलियां क्योंकि दुःख के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण मात्र दुःख भी पर्वत हो जाता है। +संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के शुभेच्छु हुआ करते हैं। विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं। +व्याधि शत्रु से भी अधिक हानिकारक होती है। +विपत्ति में पड़े हुए का साथ बिरला ही कोई देता है। +मनुष्य के जीवन में दो तरह के दुःख होते हैं एक यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी नहीं हुई और दूसरा यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी हो गई। +मानवजीवन में दो और दो चार का नियम सदा लागू होता है। उसमें कभी दो और दो पांच हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर टूट जाती है। +तपाया और जलाया जाता हुआ लौहपिण्ड दूसरे से जुड़ जाता है, वैसे ही दुख से तपते मन आपस में निकट आकर जुड़ जाते हैं। +चाहे राजा हो या किसान वह सबसे ज्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है । +मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है । +आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है । +मानव प्रकृति में सबसे गहरा नियम प्रशंसा प्राप्त करने की लालसा है । +अगर किसी युवती के दोष जानने हों तो उसकी सखियों में उसकी प्रसंसा करो । +चापलूसी करना सरल है प्रशंसा करना कठिन । +हमारे साथ प्रायः समस्या यही होती है कि हम झूठी प्रशंसा के द्वारा बरबाद हो जाना तो पसंद करते हैं, परंतु वास्तविक आलोचना के द्वारा संभल जाना नहीं | +इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त होता है�� +अपमानपूर्वक अमृत पीने से तो अच्छा है सम्मानपूर्वक विषपान | +दान भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं । जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति नाश होती है । +सर्वे गुणाः कांचनं आश्रयन्ते । सभी गुण सोने का ही सहारा लेते हैं ) +संसार के व्यवहारों के लिये धन ही सार-वस्तु है । अत: मनुष्य को उसकी प्राप्ति के लिये युक्ति एवं साहस के साथ यत्न करना चाहिये । +मनुष्य मनुष्य का दास नही होता हे राजा वह् तो धन का दास् होता है । +( क्षण-ख्षण करके विद्या और कण-कण करके धन का अर्जन करना चाहिये । +गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं । +गरीबों के बहुत से बच्चे होते हैं अमीरों के सम्बन्धी. +पैसे की कमी समस्त बुराईयों की जड़ है। +तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी । +राष्ट्रों का कल्याण जितना मुक्त व्यापार पर निर्भर है उतना ही मैत्री इमानदारी और बराबरी पर । +व्यापारिक युद्ध विश्व युद्ध शीत युद्ध इस बात की लडाई कि “गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये । +इससे कोई फ़र्क नहीं पडता कि कौन शाशन करता है क्योंकि सदा व्यापारी ही शाशन चलाते हैं । +आज का व्यापार सायकिल चलाने जैसा है या तो आप चलाते रहिये या गिर जाइये । +कार्पोरेशन व्यक्तिगत उत्तर्दायित्व के बिना ही लाभ कमाने की एक चालाकी से भरी युक्ति । +अपराधी, दस्यु प्रवृति वाला एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास कारपोरेशन शुरू करने के लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है । +बीज आधारभूत कारण है पेड उसका प्रगति परिणाम । विचारों की प्रगतिशीलता और उमंग भरी साहसिकता उस बीज के समान हैं । +विकास की कोई सीमा नही होती, क्योंकि मनुष्य की मेधा, कल्पनाशीलता और कौतूहूल की भी कोई सीमा नही है। +निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मंत्र प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र योजना परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है प्रभाव राजोचित शक्ति तेज से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह उद्यम से कार्य सिद्ध होता है । +यथार्थ को स्वीकार न करनें में ही व्यावहारिक राजनीति निहित है । +विपत्तियों को खोजने उसे सर्वत्र प्राप्त करने गलत निदान करने और अनुपयुक्त चिकित्सा करने की कला ही राजनीति है । +मानव स्वभाव का ज्ञान ही राजनीति-शिक्षा का आदि और अन्त है �� +राजनीति में किसी भी बात का तब तक विश्वास मत कीजिए जब तक कि उसका खंडन आधिकारिक रूप से न कर दिया गया हो. +सफल क्रांतिकारी राजनीतिज्ञ होता है असफल अपराधी. +लोकतन्त्र जनता की जनता द्वारा जनता के लिये सरकार होती है । +लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है । +शान्तिपूर्वक सरकार बदल देने की शक्ति प्रजातंत्र की आवश्यक शर्त है । प्रजातन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है बल्कि नेताओं को बिना उनकी हत्या किये बदल देने में है । +अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है। +बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन। +अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है। +बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन। +( कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो ) +अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता । +थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी महान कार्य नहीं किया जा सकता । +लोकतंत्र जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर । +सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं । अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें । +( न राज्य था और ना राजा था न दण्ड था और न दण्ड देने वाला । +स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी । ) +मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है। +करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता । +वह क्षण जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है ऐसे नर-पशु को नमस्कार । +समय को व्यर्थ नष्ट मत करो क्योंकि यही वह चीज है जिससे जीवन का निर्माण हुआ है । +किसी भी काम के लिये आपको कभी भी समय नहीं मिलेगा । यदि आप समय पाना चाहते हैं तो आपको इसे बनाना पडेगा । +( क्षण-क्षण का उपयोग कर���े विद्या का और कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये ) +हमें यह विचार त्याग देना चाहिये कि हमें नियमित रहना चाहिये । यह विचार आपके असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है । +दीर्घसूत्री विनश्यति । काम को बहुत समय तक खीचने वाले का नाश हो जाता है ) +समयनिष्ठ होने पर समस्या यह हो जाती है कि इसका आनंद अकसर आपको अकेले लेना पड़ता है। +बाजार में आपाधापी मतलब अवसर । +संकट के समय ही नायक बनाये जाते हैं । +आशावादी को हर खतरे में अवसर दीखता है और निराशावादी को हर अवसर मे खतरा । +अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है । +हमारा सामना हरदम बडे-बडे अवसरों से होता रहता है जो चालाकी पूर्वक असाध्य समस्याओं के वेष में (छिपे) रहते हैं । +कभी कोयल की कूक भी नहीं भाती और कभी (वर्षा ऋतु में) मेंढक की टर्र टर्र भी भली प्रतीत होती है | +उचित रूप से देंखे तो कुछ भी इतिहास नही है सब कुछ) मात्र आत्मकथा है । +इतिहास, शक्तिशाली लोगों द्वारा, उनके धन और बल की रक्षा के लिये लिखा जाता है । +इतिहास असत्यों पर एकत्र की गयी सहमति है। +जो इतिहास को याद नहीं रखते उनको इतिहास को दुहराने का दण्ड मिलता है । +ज्ञानी लोगों का कहना है कि जो भी भविष्य को देखने की इच्छा हो भूत (इतिहास) से सीख ले । +— मकियावेली ” द प्रिन्स ” में +इतिहास स्वयं को दोहराता है इतिहास के बारे में यही एक बुरी बात है । +संक्षेप में मानव इतिहास सुविचारों का इतिहास है । +सभ्यता की कहानी सार रूप में इंजिनीयरिंग की कहानी है वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया । +इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है । +( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है +जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? +विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है +खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले । +( पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो दुख सह लेता है (लेकिन पराक्रम नही दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता +(जंगल के जानवर सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार । पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है +जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है। +आत्म-वृक्ष के फूल और फल शक्ति को ही समझना चाहिए। +अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते। +सर्वविनाश ही सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है। +( हे कृष्ण बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी जमीन नहीं दूँगा । +पहले ही बिना साम, दान दण्ड का सहारा लिये ही युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है । +यदि शांति पाना चाहते हो तो लोकप्रियता से बचो। +शांति प्रगति के लिये आवश्यक है। +आत्मविश्वास वीरता का सार है । +आत्मविश्वास सफलता का मुख्य रहस्य है । +आत्मविश्वा बढाने की यह रीति है कि वह काम करो जिसको करते हुए डरते हो । +हास्यवृति आत्मविश्वास (आने) से आती है । +मुस्कराओ क्योकि हर किसी में आत्म्विश्वास की कमी होती है और किसी दूसरी चीज की अपेक्षा मुस्कान उनको ज्यादा आश्वस्त करती है । +वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नही देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है । +भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी । उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है । जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी । प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है । +प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है । +सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है । +संचार गणना कम्प्यूटिंग और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं । +ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है । जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं उतना ही अधिक यह बढता है । इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग । +एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक नहीं और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं । +आर्थिक समस्याएँ सदा ही केवल परिवर्तन के परिणाम स्वरूप पैदा होती हैं । +परिवर्तन विज्ञानसम्मत है । परिवर्तन को अस्वीकार नहीं किया जा सकता जबकि प्रगति राय और विवाद का विषय है । +परिवर्तन का मानव के मस्तिष्क पर अच्छा-खासा मानसिक प्रभाव पडता है । डरपोक लोगों के लिये यह धमकी भरा होता है क्योंकि उनको लगता है कि स्थिति और बिगड सकती है आशावान लोग��ं के लिये यह उत्साहपूर्ण होता है क्योंकि स्थिति और बेहतर हो सकती है और विश्वास-सम्पन्न लोगों के लिये यह प्रेरणादायक होता है क्योंकि स्थिति को बेहतर बनाने की चुनौती विद्यमान होती है । +नयी व्यवस्था लागू करने के लिये नेतृत्व करने से अधिक कठिन कार्य नहीं है । +यदि किसी चीज को अच्छी तरह समझना चाहते हो तो इसे बदलने की कोशिश करो । +आप परिवर्तन का प्रबन्ध नहीं कर सकते केवल उसके आगे रह सकते हैं । +कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो कोई ऐसा मूल (जड़) नही है जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं । +जीवन में हमारी सबसे बडी जरूरत कोई ऐसा व्यक्ति है जो हमें वह कार्य करने के योग्य बना दे जिसे हम कर सकते हैं । +नेताओं का मुख्य काम अपने आस-पास नेता तैयार करना है । +अपने अन्दर योग्यता का होना अच्छी बात है लेकिन दूसरों में योग्यता खोज पाना नेता की असली परीक्षा है । +अपर्याप्त तथ्यों के आधार पर ही अर्थपूर्ण सामान्यीकरण करने की कला प्रबन्धन की कला है । +किसी बालक की क्षमताओं को नष्ट करना हो तो उसे रटने में लगा दो । +केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं । +व्यावहारिक जीवन की उलझनों का समाधा किन्हीं नयी कल्पनाओं में मिलेगा उन्हें ढूढो । +कल्पना ही इस संसार पर शासन करती है । +कल्पना ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है । ज्ञान तो सीमित है कल्पना संसार को घेर लेती है । +( ध्यान ज्ञान से बढकर है ) +ज्ञान प्राप्ति का एक ही मार्ग है जिसका नाम है एकाग्रता । शिक्षा का सार है मन को एकाग्र करना तथ्यों का संग्रह करना नहीं । +तर्क आप को किसी एक बिन्दु “क” से दूसरे बिन्दु “ख” तक पहुँचा सकते हैं। लेकिन कल्पना आप को सर्वत्र ले जा सकती है। +मौन निद्रा के सदृश है । यह ज्ञान में नयी स्फूर्ति पैदा करता है । +मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक वाक-शक्ति होती है । +( किसी बात पर मौन रह जाना उसे स्वीकार कर लेने का लक्षण है । ) +कभी आंसू भी सम्पूर्ण वक्तव्य होते हैं | +उपाय सुविचार सुविचारों की शक्ति मंत्र उपाय-महिमा समस्या-समाधान आइडिया +मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं विचार हैं । +( जो कार्य उपाय से किया जा सकता है वह पराक्रम से नही किया जा सकता । ) +विचारों की शक्ति अकूत है । विचार ही संसार पर शाशन करते है मनुष्य नहीं । +लोगों के बारे मे कम जिज्ञासु रहिये और विचारों के सम्बन्ध में ज्यादा । +गलतीयों से ही मनुष्य परिपक्व बनता है। उपमन्यु पंडित गिरीशनन्द शास्त्री(कुमाऊँ) +आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है । +कार्य उद्यम से ही सिद्ध होते हैं मनोरथ मात्र से नहीं। सोये हुए शेर के मुख में मृग प्रवेश नहीं करते । +जीवन की सबसे बडी क्षति मृत्यु नही है । सबसे बडी क्षति तो वह है जो हमारे अन्दर ही मर जाती है । +आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है । +जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये । निर्भीकता के अन्दर मेधा बुद्धि शक्ति और जादू होते हैं । +पराक्रम दिखाने का समय आने पर जो पीछे हट जाता है उस तेजहीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता । +हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है । +सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है । जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है । +सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप चौबीस घण्टे मे कितने प्रयोग कर पाते है । +यदि सारी आपत्तियों का निस्तारण करने लगें तो कोई काम कभी भी आरम्भ ही नही हो सकता । +एक समय मे केवल एक काम करना बहुत सारे काम करने का सबसे सरल तरीका है । +उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं । +मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है । +जिस काम को बिल्कुल किया ही नहीं जाना चाहिये उस काम को बहुत दक्षता के साथ करने के समान कोई दूसरा ब्यर्थ काम नहीं है । +अंतर्दृष्टि के बिना ही काम करने से अधिक भयानक दूसरी चीज नहीं है । +संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया । +मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था – “भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी जिंदगी चैम्पियन की तरह जिओ” – मुहम्मद अली +कठिन परिश्रम से भविष्य सुधरता है। आलस्य से वर्तमान | +चींटी से परिश्रम करना सीखें | +खोजना प्रयोग करना विकास करना खतरा उठाना नियम तोडना गलती करना और मजे करना श्रृजन है । +वही असम्भव को करने में सक्षम है जो व्यक्ति बे-सिर-पैर की चीजें (एब्सर्ड) करने की कोशिश करता है । +रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा । +यदि आप नृत्य कर रहे हों तो आप को ऐसा लगना चाहिए कि आप को देखने वाला कोई भी आस-पास मौजूद नहीं है। यदि आप किसी संगीत की प्रस्तुति कर रहे हों तो आप को ऐसा प्रतीत होना चाहिये कि आप की प्रस्तुत�� पर आप के सिवा अन्य किसी का भी ध्यान नहीं है । और यदि आप सचमुच में किसी से प्रेम कर बैठें हों तो आप में ऐसी अनुभूति होनी चाहिए कि आप पहले कभी भी भावनात्मक तौर पर आहत नहीं हुए हैं। +विद्या सीखना शिक्षा ज्ञान बुद्धि प्रज्ञा विवेक प्रतिभा +जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है । +(राजा अपने देश में पूजा जाता है विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है +( विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं कौवे जैसी दृष्टि बकुले जैसा ध्यान कुत्ते जैसी निद्रा अल्पहारी और गृह्त्यागी । +( बिना अभ्यास के विद्या बहुत कठिन काम है ) +ज्ञान प्राप्ति से अधिक महत्वपूर्ण है अलग तरह से बूझना या सोचना । +प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं । +खाली दिमाग को खुला दिमाग बना देना ही शिक्षा का उद्देश्य है । +अट्ठारह वर्ष की उम्र तक इकट्ठा किये गये पूर्वाग्रहों का नाम ही सामान्य बुद्धि है । +कोई भी चीज जो सोचने की शक्ति को बढाती है शिक्षा है । +संसार जितना ही तेजी से बदलता है अनुभव उतना ही कम प्रासंगिक होता जाता है । वो जमाना गया जब आप अनुभव से सीखते थे अब आपको भविष्य से सीखना पडेगा । +गिने-चुने लोग ही वर्ष मे दो या तीन से अधिक बार सोचते हैं मैने हप्ते में एक या दो बार सोचकर अन्तर्राष्ट्रीय छवि बना ली है । +पठन तो मस्तिष्क को केवल ज्ञान की सामग्री उपलब्ध कराता है ये तो चिन्तन है जो पठित चीज को अपना बना देती है । +एकाग्र-चिन्तन वांछित फल देता है । +शब्द विचारों के वाहक हैं । +दिमाग पैराशूट के समान है वह तभी कार्य करता है जब खुला हो । +अगर हमारी सभ्यता को जीवित रखना है तो हमे महान लोगों के विचारों के आगे झुकने की आदत छोडनी पडेगी । बडे लोग बडी गलतियाँ करते हैं । +शिक्षा प्राप्त करने के तीन आधार-स्तंभ हैं अधिक निरीक्षण करना अधिक अनुभव करना और अधिक अध्ययन करना । +शिक्षा राष्ट्र की सस्ती सुरक्षा है । +अपनी अज्ञानता का अहसास होना ज्ञान की दिशा में एक बहुत बडा कदम है । +ज्ञान एक खजाना है लेकिन अभ्यास इसकी चाभी है। +स्कूल को बन्द कर दो । +प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे समझदारी इमानदारी जिम्मेदारी और बहादुरी । +(जो सीखता है,सिखाने वाला और जो कोई शास्त्रों को पढ़ाता है, उन सभी को शास्त्रों का पाठक मात्र माना जाना चाहिए। जो अपने ज्ञान को क्रिया (कर्म) में लगाता है, वही सच्चे विद्वान हैं। +बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बन्द करना ही अच्छा है। +(खल मनुष्य की विद्या विवाद के लिये, धन अहंकार के लिये और शक्ति दूसरों को पीडा देने के लिये होती है। पर साधु (सज्जन व्यक्ति) का सभी विरुद्ध होता है। उनकी विद्या ज्ञान के लिये, धन दान के लिये और शक्ति दूसरों के रक्षण के लिये होती है।) +विवेक बुद्धि की पूर्णता है । जीवन के सभी कर्तव्यों में वह हमारा पथ-प्रदर्शक है । +विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान सतत प्रसन्नता है । +ज्ञान भूत है विवेक भविष्य । +भविष्य का निर्माण करने वाला और प्रत्युत्पन्नमति हाजिर जबाब ये दोनो सुख भोगते हैं । “जैसा होना होगा होगा” ऐसा सोचने वाले का विनाश हो जाता है । +भविष्य के बारे में पूर्वकथन का सबसे अच्छा तरीका भविष्य का निर्माण करना है । +किसी भी व्यक्ति का अतीत जैसा भी हो भविष्य सदैव बेदाग होता है। +अरूणोदय के पूर्व सदैव घनघोर अंधकार होता है। +खुदा एक दरवाजा बन्द करने से पहले दूसरा खोल देता है, उसे प्रयत्न कर देखो | +हर अच्छा काम पहले असंभव नजर आता है। +चिन्ता एक प्रकार की कायरता है और वह जीवन को विषमय बना देती है । +जो आत्म-शक्ति का अनुसरण करके संघर्ष करता है उसे महान विजय अवश्य मिलती है। +(वन के जीवों द्वारा सिंह का ना तो अभिषेक किया जाता है ना ही संस्कार तथापि अपने पराक्रम से अर्जित राज्य का स्वयं ही राजा बन जाता है) +भारत हमारी संपूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है अरबॊं के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है । अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है । +हम भारतीयों के बहुत ऋणी हैं जिन्होने हमे गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई भी मूल्यवान वैज्ञानिक खोज सम्भव नही होती । +भारत मानव जाति का पलना है मानव-भाषा की जन्मस्थली है इतिहास की जननी है पौराणिक कथाओं की दादी है और प्रथाओं की परदादी है । मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है । +यदि इस धरातल पर कोई स्थान है जहाँ पर जीवित मानव के सभी स्वप्नों को तब से घर मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था तो वह भारत ही है । +भारत अपनी ���ीमा के पार एक भी सैनिक भेजे बिना चीन को जीत लिया और लगभग बीस शताब्दियों तक उस पर सांस्कृतिक रूप से राज किया । +— हू शिह अमेरिका में चीन के भूतपूर्व राजदूत +भारतीयता हीनता से नहीं, गौरव के आनंद से प्रकट होगी और ये गौरव हमें भारत की संपूर्ण धरा पर लाना है । +जब तक भारत स्वयं और भारतीय स्वयं खुद को खुद होने का आंदोलन न पैदा कर दें हमारी वैचारिक स्वतंत्रता से हम बहुत दूर होंगे । +( भारत की प्रतिष्ठा दो चीजों में निहित है संस्कृति और संस्कृत । ) +इसकी पुरातनता जो भी हो संस्कृत भाषा एक आश्चर्यजनक संरचना वाली भाषा है । यह ग्रीक से अधिक परिपूर्ण है और लैटिन से अधिक शब्दबहुल है तथा दोनों से अधिक सूक्ष्मता पूर्वक दोषरहित की हुई है । +सभ्यता के इतिहास में पुनर्जागरण के बाद अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में संस्कृत साहित्य की खोज से बढकर कोई विश्वव्यापी महत्व की दूसरी घटना नहीं घटी है । +कम्प्यूटर को प्रोग्राम करने के लिये संस्कृत सबसे सुविधाजनक भाषा है । +यह लेख इस बात को प्रतिपादित करता है कि एक प्राकृतिक भाषा संस्कृत एक कृत्रिम भाषा के रूप में भी कार्य कर सकती है और कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में किया गया अधिकाश काम हजारों वर्ष पुराने पहिये संस्कृत को खोजने जैसा ही रहा है । +— रिक् ब्रिग्स नासा वैज्ञानिक १९८५ में ) +हिन्दी भाषा के गौरव का वर्णन अकल्पनीय है।जिस प्रकार महासागर में अनेक नदियाँ मिलती हैं और उसमें समाहित हो जाती हैं उसी प्रकार हिन्दी भाषा ने अनेक भाषाओं को अपने में आत्मसात कर लिया साथ ही उन्हें संरक्षण भी प्रदान किया।इस भाषा ने विश्व को श्रेष्ठतम व्यक्तित्व दिए। राजगोपाल सिंह बघेल +हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है । +देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है । +मनव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है । +उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी । +आने वाली पीढियों को विश्वास करने में कठिनाई होगी कि उनके जैसा कोई हाड-मांस से बना मनुष्य इस धरा पर चला था । +मैं और दूसरे लोग क्रान्तिकारी होंगे, लेकिन हम सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से महात्मा गाँधी के शिष्य हैं इससे न कम न ज्यादा । +उनके अधिकांश सिद्धान्त सार्वत्रिक-उपयोग वाले और शाश्वत-सत्यता वाले हैं । +और फिर गाँधी नामक नक्षत्र का उदय हुआ । उसने दिखाया कि अहिंसा का सिद्धान्त सम्भव है । +जब तक स्वतंत्र लोग तथा स्वतंत्रता और न्याय के चाहने वाले रहेंगे, तब तक महात्मा गाँधी को सदा याद किया जायेगा । +मेरे हृदय मैं महात्मा गाँधी के लिये अपार प्रशंसा और सम्मान है । वह एक महान व्यक्ति थे और उनको मानव-प्रकृति का गहन ज्ञान था । +क्रोध यमराज है तॄष्णा (इच्छा) वैतरणी नदी के समान है । विद्या कामधेनु है और सन्तोष नन्दन वन है । ) +चिन्ता चिता के पास ले जाती है । +हमे सीमित मात्रा में निराशा को स्वीकार करना चाहिये लेकिन असीमित आशा को नहीं छोडना चाहिये । +हँसते हुए जो समय आप व्यतीत करते हैं, वह ईश्वर के साथ व्यतीत किया समय है। +सम्पूर्णता (परफ़ेक्शन) के नाम पर घबराइए नहीं आप उसे कभी भी नहीं पा सकते | +सम्पूर्णता की आकांक्षा एक पागल्पन है । +जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने वश में कर लेता है, वह दूसरों के क्रोध से (फलस्वरूप) स्वयमेव बच जाता है | +जब क्रोध में हों तो दस बार सोच कर बोलिए ज्यादा क्रोध में हों तो हजार बार सोचकर. +यदि आप जानना चाहते हैं कि ईश्वर रुपए-पैसे के बारे में क्या सोचता होगा, तो बस आप ऐसे लोगों को देखें, जिन्हें ईश्वर ने खूब दिया है। +जो भी प्रतिभा आपके पास है उसका इस्तेमाल करें. जंगल में नीरवता होती यदि सबसे अच्छा गीत सुनाने वाली चिड़िया को ही चहचहाने की अनुमति होती. +जन्म के बाद मृत्यु, उत्थान के बाद पतन, संयोग के बाद वियोग, संचय के बाद क्षय निश्चित है। ज्ञानी इन बातों का ज्ञान कर हर्ष और शोक के +*धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है। डिजरायली +*जिसके पास धैर्य है उसको उसका फल अवश्य मिलता है। फ्रैंकलिन +*धीर गंभीर कभी उबाल नहीं खाते। चाणक्य +*नीति निपुण निंदा करें या प्रशंसा करें, लक्ष्मी आए चाहे चली जाय, मृत्यु चाहे आज ही हो या एक युग के बाद परन्तु धीर मनुष्य न्यायमार्ग से एक पग भी विचलित नहीं होते। भर्तृहरि +*वास्तव में वे ही मनुष्य धीर हैं जिनका मन विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में भी विकृत नहीं होता। कालिदास +*धीरज सारे आनंदों और शक्तियों का मूल है। जॉन रस्किन +(लक्ष्मी कमल पर रहती हैं शिव हिमालय पर रहते हैं । विष्णु क्षीरसागर में रहते हैं माना जाता है कि खटमल के डर से ॥) +(हे वैद्यराज, यमराज के भाई, तुम्हे ��ेरा प्रणाम। यम सिर्फ प्राणों का हरण करता है पर आप तो प्राण और पैसा, दोनों का हरण करते हो।)(फर्जी डॉक्टर के लिए) +(मनुष्य मटका फोडे,कपड़े फाड दे और गधे पर बैठ के सैर करे। किसी भी प्रकार से वह प्रसिद्ध हो जाए। अर्थात् लोग अपनी हसी उडाकर, मूर्खो की तरह पेश आकर प्रसिद्ध होने का प्रयास करते है।) +चूंकि एक राजनीतिज्ञ कभी भी अपने कहे पर विश्वास नहीं करता, उसे आश्चर्य होता है जब दूसरे उस पर विश्वास करते हैं | +जालिम का नामोनिशां मिट जाता है, पर जुल्म रह जाता है। +पुरुष से नारी अधिक बुद्धिमती होती है, क्योंकि वह जानती कम है पर समझती अधिक है। +इस संसार में दो तरह के लोग हैं – अच्छे और बुरे. अच्छे लोग अच्छी नींद लेते हैं और जो बुरे हैं वे जागते रह कर मज़े करते रहते हैं | +अच्छा ही होगा यदि आप हमेशा सत्य बोलें, सिवाय इसके कि तब जब आप उच्च कोटि के झूठे हों | +किसी व्यक्ति को एक मछली दे दो तो उसका पेट दिन भर के लिए भर जाएगा. उसे इंटरनेट चलाना सिखा दो तो वह हफ़्तों आपको परेशान नहीं करेगा. +यदि आप को 100 रूपए बैंक का ऋण चुकाना है तो यह आपका सिरदर्द है। और यदि आप को 10 करोड़ रुपए चुकाना है तो यह बैंक का सिरदर्द है। +विकल्पों की अनुपस्थिति मस्तिष्क को बड़ा राहत देती है | +मुझे मनुष्यों पर पूरा भरोसा है – जहां तक उनकी बुद्धिमत्ता का प्रश्न है – कोका कोला बहुत बिकता है बनिस्वत् शैम्पेन के. +यदि वोटों से परिवर्तन होता, तो वे उसे कब का अवैध करार दे चुके होते. +यदि आप थोड़ी देर के लिए खुश होना चाहते हैं तो दारू पी लें. लंबे समय के लिए खुश होना चाहते हैं तो प्यार में पड़ जाएँ. और अगर हमेशा के लिए खुश रहना चाहते हैं तो बागवानी में लग जाएँ. +बिल्ली का व्यवहार तब तक ही सम्मानित रह पाता है जब तक कि कुत्ते का प्रवेश नहीं हो जाता. +ऐसा क्यों होता है कि कोई औरत शादी करके दस सालों तक अपने पति को सुधारने का प्रयास करती है और अंत में शिकायत करती है कि यह वह आदमी नहीं है जिससे उसने शादी की थी. +बेचारगी महसूस करने से बचने का सबसे बेहतरीन तरीका है कि खुद को इतना व्यस्त रखो कि कभी यह सोचने का समय न मिले कि तुम खुश क्यों नही हो ? +जो अच्छा करना चाहता है द्वार खटखटाता है, जो प्रेम करता है द्वार खुला पाता है। +( धैर्य क्षमा संयम चोरी न करना शौच स्वच्छता इन्द्रियों को वश मे रखना बुद्धि विद्या सत्य और क्रोध न करना ये दस धर्म के लक्षण हैं । ) +( धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये । ) +( धर्म रक्षा करता है यदि उसकी रक्षा की जाय । ) +धर्म का उद्देश्य मानव को पथभ्रष्ट होने से बचाना है । +धर्म व्यक्ति एवं समाज दोनों के लिये आवश्यक है। +धर्म की उपलब्धि की जा सकती है किन्तु प्रश्न यह है कि क्या तुम उसके अधिकारी हो?क्या तुम्हें धर्म की आवश्यकता वास्तव में है?यदि तुम ठीक ठीक प्रयत्न करो,तभी तुम्हें प्रत्यक्ष उपलब्धि होगी,और तभी तुम वास्तव में धार्मिक होगे। स्वामी विवेकानन्द जी +जीवन का मर्म धर्म है, जीवन के आधार में समस्त के प्रति मार्मिकता का नाम धर्म है +जब तक लोग जन्म से ही किसी पंथ के मार्गी होंगे तब तक धर्म का आगमन नहीं हो सकता। धार्मिक होना हमारी उपलब्धि है, कोई जन्म अधिकार नहीं +सदाचार शिष्टाचार से अधिक महत्वपूर्ण है । +याद रखिए कि जब कभी आप युद्धरत हों, पादरी, पुजारियों, स्त्रियों, बच्चों और निर्धन नागरिकों से आपकी कोई शत्रुता नहीं है। +सच्ची शांति का अर्थ सिर्फ तनाव की समाप्ति नहीं है, न्याय की मौजूदगी भी है। +- मार्टिन सूथर किंग जूनियर +सबसे उत्तम बदला क्षमा करना है। +दुष्टो का बल हिन्सा है, शासको का बल शक्ती है,स्त्रीयों का बल सेवा है और गुणवानो का बल क्षमा है । +मछली एवं अतिथि तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं । +सच्ची मित्रता का नियम है कि जाने वाले मेहमान को जल्दी बिदा करो और आने वाले का स्वागत करो । +अट्ठारह पुराणों में व्यास जी ने केवल दो बात कही है दूसरे का उपकार करने से पुण्य मिलता है और दूसरे को पीडा देने से पाप । +( सज्जनों का धन परोपकार के लिये होता है । ) +समाज के हित में अपना हित है । +आकाश-मंडल में दिवाकर के उदित होने पर सारे फूल खिल जाते हैं, इस में आश्चर्य ही क्या? प्रशंसनीय है तो वह हारसिंगार फूल (शेफाली) जो घनी आधी रात में भी फूलता है। +आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता। +कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे। +कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए। +गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है। +घमंड करना जाहिलों का काम है। +मैं कोयल हूं और आप कौआ हैं-हम दोनों में कालापन तो समान ही है किंतु हम दोनों में जो भेद है, उसे वे ही जानते हैं जो कि ‘काकली’ (स्वर-माधुरी) की पहचान रखते हैं। +यदि राजा किसी अवगुण को पसंद करने लगे तो वह गुण हो जाता है | +सत्य बोलना श्रेष्ठ है लेकिन सत्य क्या है यही जानाना कठिन है । +सही या गलत कुछ भी नहीं है – यह तो सिर्फ सोच का खेल है। +जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है न ज्ञान है न शील है न गुण है और न धर्म है वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं । +मानव तभी तक श्रेष्ठ है जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है । बतौर पशु मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। +आदर्श के दीपक को पीछे रखने वाले अपनी ही छाया के कारण अपने पथ को अंधकारमय बना लेते हैं। +क्लोज़-अप में जीवन एक त्रासदी (ट्रेजेडी) है, तो लंबे शॉट में प्रहसन (कॉमेडी +आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है | +हमेशा बत्तख की तरह व्यवहार रखो. सतह पर एकदम शांत परंतु सतह के नीचे दीवानों की तरह पैडल मारते हुए | +अव्यवस्था से जीवन का प्रादुर्भाव होता है तो अनुक्रम और व्यवस्थाओं से आदत | +दुनिया में सिर्फ दो सम्पूर्ण व्यक्ति हैं – एक मर चुका है, दूसरा अभी पैदा नहीं हुआ है। +प्रसिद्धि व धन उस समुद्री जल के समान है, जितना ज्यादा हम पीते हैं, उतने ही प्यासे होते जाते हैं. +यदि आपको रास्ते का पता नहीं है, तो जरा धीरे चलें | +पूत सपूत त का धन संचय पूत कपूत त का धन संचय । +जिसने बालक को नहीं पढाया वह माता शत्रु है और पिता बैरी है । +(क्योंकि) सभा में वह (बालक) ऐसे ही शोभा नहीं पाता जैसे हंसों के बीच बगुला । +दो बच्चों से खिलता उपवन । +आजादी मतलब जिम्मेदारी। तभी लोग उससे घबराते हैं। +स्वतंत्र चिन्तन चिन्तन की स्वतंत्रता +मानवी चेतना का परावलंबन अन्तःस्फुरणा का मूर्छाग्रस्त होना आज की सबसे बडी समस्या है । लोग स्वतन्त्र चिन्तन करके परमार्थ का प्रकाशन नहीं करते बल्कि दूसरों का उटपटांग अनुकरण करके ही रुक जाते हैं । +बिना वैचारिक-स्वतन्त्रता के बुद्धि जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती और बोलने की स्वतन्त्रता के बिना जनता की स्वतन्त्रता नहीं हो सकती। +प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं । +शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है । +ग्रन्थ पन्थ हो अथवा व्यक्ति नहीं किसी की अंधी भक्ति । +सर्वोत्तम मानव मस्तिष्क की पहचान है किन्हीं दो पूर्णतः विपरीत विचार धाराऒं को साथ- साथ ध्यान में रखते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का होना । +चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें इन्सानों की तरह ज़मीन पर चलना सीखना है। +हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता। वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है। हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल। योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है। +भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। +पत्रकारिता में पच्चीस साल के अनुभव के बाद मैं एक बात निश्चित रूप से जानती हूं कि सत्य को दफ़नाया जा सकता है, उसकी हत्या नहीं की जा सकती। सत्य कब्र से भी उठकर सामने आ जाता है और उनके पीछे भूत की तरह लग जाता है जिन्होंने उसे दफ़न करने की साज़िश की थी। +बकरियों की लड़ाई, मुनि के श्राद्ध, प्रातःकाल की घनघटा तथा पति-पत्नी के बीच कलह में प्रदर्शन अधिक और वास्तविकता कम होती है। +जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते | +पुस्तक एक बग़ीचा है जिसे जेब में रखा जा सकता है। +किताबों को नहीं पढ़ना किताबों को जलाने से बढ़कर अपराध है | +पुस्तक प्रेमी सबसे धनवान व सुखी होता है। +अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अलंकृत भी करता है और योग्य भी बनाता है। +अनेक लोग वह धन व्यय करते हैं जो उनके द्वारा उपार्जित नहीं होता, वे चीज़ें खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते। +मुक्त बाजार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, ��ो उन्हें खरीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है। +व्यक्तिगत चरित्र समाज की सबसे बडी आशा है । +प्रत्येक मनुष्य में तीन चरित्र होता है। एक जो वह दिखाता है, दूसरा जो उसके पास होता है, तीसरी जो वह सोचता है कि उसके पास है | +( स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता मनुष्य कहाँ लगता है । ) +ईश प्राप्ति (शांति) के लिए अंतःकरण शुद्ध होना चाहिए | +( प्रिय वाणी बोलने से सभी जन्तु खुश हो जाते है । इसलिये मीठी वाणी ही बोलनी चाहिये वाणी में क्या दरिद्रता +नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के सच्चे आभूषण होते हैं | +(सत्य बोलना चाहिए प्रिय बोलना चाहिए किन्तु अप्रिय सत्य नही कहना चाहिए।) +यह् अपना है और यह पराया है ऐसी गणना छोटे दिल वाले लोग करते हैं । +उदार हृदय वाले लोगों का तो पृथ्वी ही परिवार है । +सत्यमेव जयते । सत्य ही विजयी होता है ) +सभी सुखी हों सभी निरोग हों । +यदि आप इस बात की चिंता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं +श्रेष्ठ आचरण का जनक परिपूर्ण उदासीनता ही हो सकती है | +भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं घूमता है। क्या बिना अग्नि के धुएं की शिखा कभी दिखाई देती है? +जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए। +जहां गति नहीं है वहां सुमति उत्पन्न नहीं होती है। शूकर से घिरी हुई तलइया में सुगंध कहां फैल सकती है? +अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है। +जब कोई व्यक्ति ठीक काम करता है, तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है। +यह ठीक है कि आशा जीवन की पतवार है। उसका सहारा छोड़ने पर मनुष्य भवसागर में बह जाता है पर यदि आप हाथ-पैर नहीं चलायेंगे तो केवल पतवार की उपस्थिति से गंतव्य तट पर थोड़े ही पहुंच जायेंगे। +सूरज और चांद को आप अपने जन्म के समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह नहीं जान पाये कि काम कैसे करने चाहिए ? +श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्दऔर अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं। +कामा���क्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। +-चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिये,धन तो आता और चला जाता है किन्तु चरित्र के नष्ट हो जाने पर व्यक्ति मृतक के समान हो जाता है। +पूरी इमानदारी से जो व्यक्ति अपना जीविकोपार्जन करता है, उससे बढ़कर दूसरा कोई महात्मा नहीं है। +मेरी समझ में मनुष्य का व्यक्तिगत अस्तित्व एक नदी की तरह का होना चाहिए। नदी प्रारंभ में बहुत पतली होती है। पत्थरों, चट्टानों, झरनों को पार करके मैदान में आती है, एक क्रम से उसका विस्तार होता है, फिर भी बड़ी मन्थर गति से बहती है और बिना क्रम भंग किये अंत में समुद्र में विलीन हो जाती है। समुद्र में अपने अस्तित्व को समाप्त करते समय वह किसी भी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं करती जो वृद्ध परुष जीवन को इस रूप में देखता है, मृत्यु के भय से मुक्त रहता है। +हर साल मेरे लिये महत्वपूर्ण है। आज भी मुझ में पूरा जोश है। मुझे महसूस होता है कि अब भी मैं २५ वर्ष की हूं। मेरे विचार आज भी एक युवा की तरह हैं। मैं आज भी चीज़ों को जानने के प्रति मेरी उत्सुक्ता बनी रहती है। इसलिये मैं यही कहूंगी कि जवां महसूस करना अच्छा लगता है। +बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है। +आक्रामकता सिर्फ एक मुखौटा है जिसके पीछे मनुष्य अपनी कमजोरियों को, अपने से और संसार से छिपाकर चलता है। असली और स्थाई शक्ति सहनशीलता में है। त्वरित और कठोर प्रतिक्रिया सिर्फ कमजोर लोग करते हैं और इसमें वे अपनी मनुष्यता को खो देते हैं। +अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होती हैं, मुंह में रखकर चूसते रहने के लिए नहीं। +चींटी से अच्छा उपदेशक कोई और नहीं है। वह काम करते हुए खामोश रहती है। +जो कोई गुस्से को प्रकट करने की ताकत रखते हुए भी उसे दबाता है, उसे अल्लाह सभी प्राणियों के सामने कयामत के दिन बुलाएगा और बहुत नेमतें देगा। +दो-चार निंदकों को एक जगह बैठकर निंदा में निमग्न देखिए और तुलना कीजिए दो-चार ईश्वर-भक्तों से, जो रामधुन लगा रहें हैं। निंदकों की सी एकाग्रता, परस्पर आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है। इसीलिए संतों ने निंदकों को ‘आंगन कुटि छवाय’ पास रखने की सलाह दी है। +बारह फकीर एक फटे कंबल में आराम से रात क��ट सकते हैं मगर सारी धरती पर यदि केवल दो ही बादशाह रहें तो भी वे एक क्षण भी आराम से नहीं रह सकते। +सभी लोगों के स्वभाव की ही परिक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरिहै)। +शहीद के खून से ज्यादा पवित्र विद्वान आदमी के रक्त की स्याही होती है। +मनुष्य के लिए निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है। इसलिए मनुष्य को पापरूपिणी निराशा को समूल हटाकर आशावादी बनना चाहिए। +मनुष्य की इच्छाओं का पेट आज तक कोई नहीं भर सका है | +जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी देती है। +पुरुष के लिए प्रेम उसके जीवन का एक अलग अंग है पर स्त्री के लिए उसका संपूर्ण अस्तित्व है। +सात सागरों के जल की अपेक्षा मानव-नेत्रों से कहीं अधिक आंसू बह चुके हैं। +सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो? +दुःखी होने पर प्रायः लोग आंसू बहाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते लेकिन जब वे क्रोधित होते हैं तो परिवर्तन ला देते हैं। +पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है। +जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते। +‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं। +‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की। +इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त होता है। +जीवन एक रहस्य है, जिसे जिया न जा सकता है, जी कर जाना भी जा सकता है लेकिन गणित के प��रश्नों की भांति उसे हल नहीं किया जा सकता। वह सवाल नहीं एक चुनौती है, एक अभियान है। +मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है। +कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं। +जो व्यक्ति विवेक के नियम को तो सीख लेता है पर उन्हें अपने जीवन में नहीं उतारता वह ठीक उस किसान की तरह है, जिसने अपने खेत में मेहनत तो की पर बीज बोये ही नहीं। +ज्ञानी आदमी के खोखले ज्ञान से सावधान, वह अज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक है। +निराशा मूर्खता का परिणाम है। +यह कैसा समय है? मेरे कौन मित्र हैं? यह कैसा स्थान है। इससे क्या लाभ है और क्या हानि? मैं कैसा हूं। ये बातें बार-बार सोचें (जब कोई काम हाथ में लें)। +सभी प्राचीन महान नहीं है और न नया, नया होने मात्र से निंदनीय है। विवेकवान लोग स्वयं परीक्षा करके प्राचीन और नवीन के गुण-दोषों का विवेचन करते हैं लेकिन जो मूढ़ होते हैं, वे दूसरों का मत जानकर अपनी राय बनाते हैं। +जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है। +आत्म-वृक्ष के फूल और फल शक्ति को ही समझना चाहिए। +अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते। जोनाथन स्विफ्ट +संपूर्ण रूप से त्रुटिहीन पुस्तक कभी पढ़ने लायक नहीं होती। +भोग और त्याग की शिक्षा बाज़ से लेनी चाहिए। बाज़ पक्षी से जब कोई उसके हक का मांस छीन लेता है तो मरणांतक दुख का अनुभव करता है किंतु जब वह अपनी इच्छा से ही अन्य पक्षियों के लिए अपने हिस्से का मांस, जैसाकि उसका स्वभाव होता है, त्याग देता है तो वह पर सुख का अनुभव करता है। यानि सारा खेल इच्छा आसक्ति अथवा अपने मन का है। +बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग-शिक्षा इस मार्ग पर बच्चे को ले जाने में सहायक है। +चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। +स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है । +शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम । यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं ) +आहार स्वप्न नींद और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ पिलर हैं । +मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय । +जिसका यह दावा है कि वह आध्यात्मिक चेतना के शिखर पर है मगर उसका स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता है तो इसका अर्थ है कि मामला कहीं गड़बड़ है। +स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है । +शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम । यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं ) +आहार स्वप्न नींद और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ पिलर हैं । +( कौन स्वस्थ है कौन स्वस्थ है कौन स्वस्थ है ? +हितकर भोजन करने वाला कम खाने वाला इमानदारी का अन्न खाने वाला ) +स्वास्थ्य के संबंध में पुस्तकों पर भरोसा न करें। छपाई की एक गलती जानलेवा भी हो सकती है। +वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम है। +नीति लोकनीति नय व्यवहार कौशल +हथौड़ा कांच को तो तोड़ देता है, परंतु लोहे को रूप देता है। +तलवारों तथा बंदूकों की आँखें नहीं होती हैं. +कांटों को मुरझाने का डर नहीं सताता. +१२. अगर आप अपने जीवन साथी से तंग आ चुके हैं तथा उससे निपटने का कोई उपाय आपको समझ में नहीं आ रहा तो आप तुरंत ब्लाग लिखना शुरु कर दीजिये। +१४.’कामा-फुलस्टाप’,’शीन-काफ’ तक का लिहाज रखकर लिखने वाला ‘परफेक्शनिस्ट ब्लागर’ गूगल की शरण में पहुंचा वह ब्लागर होता हैं जिसने अपना लिखना तबतक के लिये स्थगित कर रखा होता है जब तक कि ‘कामा-फुलस्टाप’ ,’शीन-काफ’ को ‘यूनीकोड’ में बदलने वाला कोई ‘साफ्टवेयर’ नहीं मिल जाता। +१६. अगर आप अपने ब्लाग पर हिट बढ़ाने के लिये बहुत ही ज्यादा परेशान हैं तो तमाम लटके-झटकों का सहारा छोड़कर किसी चैट रूम में जाकर उम्र,लिंग,स्थान की बजाय अपने ब्लाग का लिंक देना शुरु कर दें। +१८. अच्छा ल���खने वाले की तारीफ करते रहना आपकी सेहत के लिये भी जरूरी है। तारीफ के अभाव में वह अपना ब्लाग बंद करके अलग पत्रिका निकालने लगता है। तब आप उसकी न तारीफ कर सकते हैं न बुराई। +२०. बहुत लिखने वाले ‘ब्लागलती’ को जब कुछ समझ में नहीं आता तो वह एक नया ब्लाग बना लेता है,जब कुछ-कुछ समझ में आता है तो टेम्पलेट बदल लेता है तथा जब सबकुछ समझ में आ जाता है तो पोस्ट लिख देता है। यह बात दीगर है कि पाठक यह समझ नहीं पाता कि इसने यह किसलिये लिखा! +२१. जब आपका कोई नियमित प्रशंसक,पाठक आपकी पोस्ट पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता तो निश्चित मानिये कि वो आपकी तारीफ में दो लाइन लिखने की बजाय बीस लाइन की पोस्ट लिखने में जुटा है। उन बीस लाइनों में आपकी तारीफ में केवल लिंक दिया जाता है जो कि अक्सर गलती संख्या ४०४(HTML ERROR-404) का संकेत देता है। +उदाहरण वह पाठ है जिसे हर कोई पढ सकता है । +हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु । +हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है । +स्पष्टीकरण से बचें । मित्रों को इसकी आवश्यकता नहीं शत्रु इस पर विश्वास नहीं करेंगे । +अपने उसूलों के लिये मैं स्वंय मरने तक को भी तैयार हूँ लेकिन किसी को मारने के लिये बिल्कुल नहीं। +विजयी व्यक्ति स्वभाव से बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है। +परमार्थ उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है । परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता । +बुराई के अवसर दिन में सौ बार आते हैं तो भलाई के साल में एकाध बार. +एक शेर को भी मक्खियों से अपनी रक्षा करनी पड़ती है। +अपनी आंखों को सितारों पर टिकाने से पहले अपने पैर जमीन में गड़ा लो | +आमतौर पर आदमी उन चीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है जिनका उससे कोई लेना देना नहीं होता | +ईश्वर एक ही समय में सर्वत्र उपस्थित नहीं हो सकता था अतः उसने ‘मां’ बनाया. +तालाब शांत है इसका अर्थ यह नहीं कि इसमें मगरमच्छ नहीं हैं +खेल के अंत में राजा और पिद्दा एक ही बक्से में रखे जाते हैं | +यदि आप गर्मी सहन नहीं कर सकते तो रसोई के बाहर निकल जाईये । +अगर आपके पास जेब में सिर्फ दो पैसे हों तो एक पैसे से रोटी खरीदें तथा दूसरे से गुलाब की एक कली. +कभी भी ���फाई नहीं दें. आपके दोस्तों को इसकी आवश्यकता नहीं है और आपके दुश्मनों को विश्वास ही नहीं होगा | +कविता में कोई पैसा नहीं है। परंतु पैसा में भी तो कविता नहीं है। +बातचीत का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह होता है कि ध्यानपूर्वक यह सुना जाए कि कहा क्या जा रहा है। +श्री आशीष श्रीवास्तव द्वारा संकलित सूक्तियाँ +१८. जिसके पास बुद्धि है, उसके पास बल है। बुद्धिहीन के पास बल कहां चाणक्य +मुसीबतें सिकुड़ जाती हैं। -सुधांशु महाराज +रहीमन, मुलही सिंचीबो, फुले फले अगाय । -रहीम +श्री लक्ष्मी नारायण गुप्ता द्वारा संकलित हिन्दी सुभाषित +(सुख की शोभा दुःख के अनुभव के बाद होती है जैसे घने अंधकार में दीपक की। जो मनुष्य सुख से दुःख में जाता है वह जीवित भी मृत के समान जीता है।) +८। का बरखा जब कृखी सुखाने। समय चूकि पुनि का पछिताने।। +आलसी, असंयत करें अत्यधिक भोजन। +मार करता है इन निर्बलों की तवाही +( अपने को जन्म देनेवाली जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है) +१८। काजर की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय +१९। होनवार बिरवान के होत चीकने पात। +(नदियाँ स्वयं अपना पानी नहीं पीती हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। बादल अपने लिये वर्षा नहीं करते हैं। सन्तों का अस्तित्व केवल परोपकार के लिये होता है।) +३१। नेकी कर और दरिया में डाल। +—-घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर जिले के निवासी) +३४। अरहर की दाल औ जड़हन का भात +श्री जितेन्द्र चौधरी द्वारा संकलित सूक्तियाँ +सारा जगत स्वतंत्रताके लिये लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। श्री अरविंद +सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है । एक जुल्मों के खिलाफ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध। सरदार पटेल +कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढाती है। सावरकर +तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। वाल्मीकि +संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास। काका कालेलकर +जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। -सत्यार्थप्रकाश +सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है। कथा सरित्सागर +चाहे गुरू पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य ररवनी चाहिए। क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। -समर्थ रामदास +यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाये तो वह खतरनाक भी हो सकती है। इंदिरा गांधी +प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाआें के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिये। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाआें की प्रियता में ही राजा का हित है। चाणक्य +द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प््रोम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। विनोबा +साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है-परंतु एक नया वातावरण देना भी है। डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन +लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। जयप्रकाश नारायण +बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिये, मंद नहीं पड़ना चाहिये। यशपाल +सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिये उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना। डा शंकर दयाल शर्मा +जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है। नारदभक्ति +धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं। महाभारत +दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिये लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिये। रामायण +शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति। -स्वामी ज्ञानानन्द +धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। -डा शंकरदयाल शर्मा +त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। -बस्र्आ +अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। -जयशंकर प्रसाद +अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं -महर्षि अरविन्द +जैसे अंधे के लिये जगत अंधकारमय है और आंखों वाले के लिये प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिये जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिये आनंदमय। -सम्पूर्णानंद +नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। -संत तिरूवल्लुर +वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। -स्वामी रामतीर्थ +अपने विषय में कुछ कहना प्राय:बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को। -महादेवी वर्मा +कस्र्णा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। -सुदर्शन +हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है। -वाल्मीकि +मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खण्डित करना है। -राम प्रताप त्रिपाठी +नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। -संत तिस्र्वल्लुवर +जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य सम्पन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती। जवाहरलाल नेहरू +कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। डा रामकुमार वर्मा +जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिये समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो। -इंदिरा गांधी +तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। -गुरू गोविन्द सिंह +मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है। -गौतम बुद्ध +कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं। श्री हर्ष +अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। -हरिऔध +जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं। गौतम बुद्ध +अधिक अनुभव, अधिक सहनशीलता और अधिक अध्ययन यही विद्वत्ता के तीन महास्तंभ हैं। -अज्ञात +जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं। -रवीन्द्र +जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता। माघ्र +मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर +प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर +हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है। वाल्मीकि +अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है। प्रेमचंद +जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिये वेदव्यास +फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, सम्पत्ति के समय सज्जन भी नम्र होते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा है। तुलसीदास +प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं। अज्ञात +कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं। -लोकमान्य तिलक +कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। रामधारी सिंह दिनकर +विद्वत्ता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक और बुढ़ापे में संचित धन है। हितोपदेश +खातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास जरूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। -शरतचन्द्र +पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है। -गौतम बुद्ध +कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी। -रवीन्द्रनाथ ठाकुर +रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है -मुक्ता +जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। -डा विक्रम साराभाई +मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। -विनोबा +लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है। -मुक्ता +मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है पर देने वाला दरिद्र नहीं होता। अज्ञात +आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता। भर्तृहरि +क्रोध ऐसी आंधी है जो विवेक को नष्ट कर देती है। -अज्ञात +चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। -रवीन्द्र +आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। -पं रामप्रताप त्रिपाठी +मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता -चाणक्य +जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश ��ा संगीत सबकुछ है। -रवीन्द्रनाथ ठाकुर +कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। -रामधारी सिंह दिनकर +चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। -सत्यसांई बाबा +भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर भाग्य सोया रहता है पर हिम्मत बांध कर खड़े होने पर भाग्य भी उठ खड़ा होता है। -अज्ञात +गरीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार गऱीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। सादी +जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता। रामकृष्ण परमहंस]] +मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो। अज्ञात +जैसे छोटा सा तिनका हवा का स्र्ख़ बताता है वैसे ही मामूली घटनाएं मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। महात्मा गांधी +सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूंछ में किन्तु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। -कबीर +देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। -बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’ +सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। -स्वामी विवेकानंद +दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएं चाहता है, विलासी बहुत सी और लालची सभी वस्तुएं चाहता है। -अज्ञात +भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं। -विवेकानंद +विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय वस्तुओं को चित्रित करती है। अज्ञात +नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिये, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिये। रामकृष्ण परमहंस +जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती। विनोबा +उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। -चीनी कहावत +वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। -अज्ञात +जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है। -दीनानाथ दिनेश! +उड़ने की अपेक्षा जब ��म झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। अज्ञात! +विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास। एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है। -अज्ञात +आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। -महात्मा गांधी +एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। -अज्ञात +किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं। -अज्ञात +ऐसे देश को छोड़ देना चाहिये जहां न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। -विनोबा +विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है। -रवींद्रनाथ ठाकुर +कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और स्र्आब दिखाने से नहीं। -प्रेमचंद +अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। -अज्ञात +अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं। -जवाहरलाल नेहरू +सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है -पं मोतीलाल नेहरू +स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है। -विनोबा +जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। -मुक्ता +दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। -डा रामकुमार वर्मा +डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। -अज्ञात +सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। -अज्ञात +अनुभव-प्राप्ति के लिए काफी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती। -अज्ञात +अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। कहावत +श्री रवि श्रीवास्तव द्वारा संकलित सूक्तियाँ +1. जिसने ज्ञान को आचरण में उतार लिया, उसने ईश्वर को मूर्तिमान कर लिया – विनोबा +2. अकर्मण्यता का दूसरा नाम मृत्यु है – मुसोलिनी +3. पालने से लेकर कब्र तक ज्ञान प्राप्त करते रहो – पवित्र कुरान +5. मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान है – चाणक्य +6. आपका आज का पुरुषार्थ आपका कल का भाग्य है – पालशिरू +7. क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है – महात्मा गांधी +8. ठोकर लगती है और दर्द होता है तभी मनुष्य सीख पाता है – महात्मा गांधी +10. नरम शब्दों से सख्त दिलों को जीता जा सकता है – सुकरात +13. जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है – कबीर +14. जो आपको कल कर देना चाहिए था, वही संसार का सबसे कठिन कार्य है – कन्फ्यूशियस +15. ज्ञानी पुरुषों का क्रोध भीतर ही, शांति से निवास करता है, बाहर नहीं – खलील जिब्रान +16. कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है – चाणक्य +18. ईश्वर के हाथ देने के लिए खुले हैं. लेने के लिए तुम्हें प्रयत्न करना होगा – गुरु नानक देव +20. जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। +24. स्व परिवर्तन से दूसरों का परिवर्तन करो. +26. महान पुरुष की पहली पहचान उसकी विनम्रता है। +27. बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है। +28. क्रोध सदैव मूर्खता से प्रारंभ होता है और पश्चाताप पर समाप्त. +29. नारी की उन्नति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्धारित है। +33. बुद्धिमान किसी का उपहास नहीं करते हैं. + + +अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे +का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर +क्या लभ है  इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है +उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता P> +सम्बन्ध सी.डी से कैट-स्कैन से पार्किंग-मीटरों से राष्ट्रपति-चुनावों से और +कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है । गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिये है +परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं ।

+की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार +संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया +व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं  लेकिन यदि +करने का कोई औचित्य नहीं है ।

+यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है ।

+हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता +रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु +खरीदना पसंद करूंगा। पेट खाली रखकर भी यदि कला-दृष्टि को सींचने का अवसर हाथ लगता +तरीका है उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी +राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को +को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ । P> +इतिहास भी है । P> +विकास कर रही हैं तो समाज भी विकास करता है, यदि वे क्षीण हो रही हैं तो समाज भी +सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही +सत्यवादी उदार या इमानदार नहीं बन सकते ।

+रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की +की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में +अंधेरे रास्ते में जाने का साहस कम लोगों में ही होता है।

+लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं +कुछ किया ही नही गया।

+विद्या विष के समान है nbsp P> +हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर +के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। +अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण +हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर +सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त +धन का अर्जन करना चाहिये ।

+उतना मनुष्य द्वारा स्थापित किसी दूसरी संस्था से नहीं ।

+काम पूरा किया जा सकता है ।

+निस्तेज मनुष्य का समाज तिरस्कार करता है । तिरष्कृत मनुष्य में वैराग्य भाव +उत्पन्न हो जाते हैं और तब मनुष्य को शोक होने लगता है । जब मनुष्य शोकातुर होता है +तो उसकी बुद्धि क्षीण होने लगती है और बुद्धिहीन मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है +“गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये ।

+लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है ।

+है न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है । P> +हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । +मंत्र योजना परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है प्रभाव राजोचित +शक्ति तेज से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह उद्यम से कार्य सिद्ध होता +चाहिये । आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का +प्रजातन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है बल्कि ��ेताओं को +हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा +हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा +देश की सुरक्षा है । जो सम्बन्ध धरन बीम का घर से है या हड्डी का शरीर से है +साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर +( क्षण जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है ऐसे नर-पशु को नमस्कार ।

+तो आपको इसे बनाना पडेगा ।

+कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये P> +कामयाब व्यक्ति बना दिया है ।

+असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है ।

+संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया +नही दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता P> +द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है P> +दिये जा सकते हैं पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है । जब आदमी ने सबसे पहले +प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी । प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक +प्रौद्योगिकी सूचना-साक्षरता सूचना प्रवीण सूचना की सतंत्रता +उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं उतना ही अधिक यह बढता है । इसको आसानी से +बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग ।

+नहीं  और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं ।

+उन्हें स्वयं को उन शक्तियों से सुसज्जित करना चाहिये जो ज्ञान से प्राप्त होती हैं +से बडी याददास्त से भी बडी होती है ।

+लोगों के लिये यह धमकी भरा होता है क्योंकि उनको लगता है कि स्थिति और बिगड सकती है +शुरु होता हो कोई ऐसा मूल (जड़) नही है जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी +प्रतिशत के लिये अधिक विश्लेषण की जरूरत होती है ।

+लगती है कि क्या करना चाहिये ।

+से चलाये जाते हैं ।

+देता है जो उससे पूछे जाते हैं ।

+समस्या है । लोग स्वतन्त्र चिन्तन करके परमार्थ का प्रकाशन नहीं करते बल्कि दूसरों +को साथ- साथ ध्यान में रखते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का होना +स्वयं परीक्षा करके प्राचीन और नवीन के गुण-दोषों का विवेचन करते हैं लेकिन जो मूढ़ +पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत +जाता है पर यदि आप हाथ-पैर नहीं चलायेंगे तो केवल पतवार की उपस्थिति से गंतव्य तट +करने की कोशिश करता है । P> +भी आस-पास मौजूद नहीं है। यदि आप किसी संगीत की प्रस्तुति कर रहे हों तो आप को +ऐसा प्रतीत होना चाहिये कि आप की प्रस्तुति पर आप के सिवा अन्य किसी का भी +ध्यान नहीं है । और यदि आप सचमुच में किसी से प्रेम कर बैठें हों तो आप में +ऐसी अनुभूति होनी चाहिए कि आप पहले कभी भी भावनात्मक तौर पर आहत नहीं हुए +जाता है विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है P> +ध्यान कुत्ते जैसी निद्रा अल्पहारी और गृहत्यागी । P> +वो जमाना गया जब आप अनुभव से सीखते थे अब आपको भविष्य से सीखना पडेगा ।

+है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार +की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह +सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम +, बहुत सारी विद्याएँ हैं समय अल्प है और बहुत सी बाधायें है । ऐसे में जो +सारभूत है सरलीकृत है वही करने योग्य है जैसे हंस पानी से दूध को अलग करक पी +हाजिर जबाब ये दोनो सुख भोगते हैं । “जैसा होना होगा होगा” ऐसा सोचने वाले का +विनाश हो जाता है ।

+अधिकांश गणित की जननी है बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है +ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है । अनेक प्रकार से भारत +पौराणिक कथाओं की दादी है और प्रथाओं की परदादी है । मानव इतिहास की हमारी सबसे +मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था तो वह भारत ही है +रहकर पृथ्वी के सब लोगों ने अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ली । P> +चीजों में निहित है संस्कृति और संस्कृत । P> +ग्रीक से अधिक परिपूर्ण है और लैटिन से अधिक शब्दबहुल है तथा दोनों से अधिक +में संस्कृत साहित्य की खोज से बढकर कोई विश्वव्यापी महत्व की दूसरी घटना नहीं घटी +कृत्रिम भाषा के रूप में भी कार्य कर सकती है और कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में +किया गया अधिकाश काम हजारों वर्ष पुराने पहिये संस्कृत को खोजने जैसा ही रहा है +हैं और जिनको पैसे से नहीं खरीदा जा सकता ।

+संसार से छिपाकर चलता है। असली और स्थाई शक्ति सहनशीलता में है। त्वरित और कठोर +प्रतिक्रिया सिर्फ कमजोर लोग करते हैं और इसमें वे अपनी मनुष्यता को खो देते +से दुःख में जाता है वह जीवित भी मृत के समान जीता है। P> +रहते हैं माना जाता है कि खटमल के डर से ॥

+विष्णु क्षीरसागर में सोते हैं और शिव हिमालय पर । P> +खुश होना चाहते हैं तो प्यार में पड़ जाएँ. और अगर हमेशा के लिए खुश रहना चाहते हैं +प्रयास करती है और अंत में शिकायत करती है कि यह वह आदमी नहीं है जिससे उसने शादी +साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर +आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है। इसीलिए संतों ने निंदकों को ‘आंगन कुटि +छवाय’ पास रखने की सलाह दी है। P> +करना  ये दस धर्म के लक्षण हैं । P> +पर चलो  अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये । +कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी +ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के +क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक +में जो भेद है, उसे वे ही जानते हैं जो कि ‘काकली’ (स्वर-माधुरी) की पहचान रखते +अन्य पक्षियों के लिए अपने हिस्से का मांस, जैसाकि उसका स्वभाव होता है, त्याग देता +है तो वह पर सुख का अनुभव करता है। यानि सारा खेल इच्छा आसक्ति अथवा अपने मन का +से पुण्य मिलता है और दूसरे को पीडा देने से पाप ।

+पानी नहीं पीती हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। बादल अपने लिये वर्षा नहीं +करते हैं। सन्तों का का धन परोपकार के लिये होता है । P> +गुणवानो का बल क्षमा है ।

+और न धर्म है  वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर +चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है। और जब सारी चीज़ें आपके पास +प्यासे होते जाते हैं P> +के प्रश्नों की भांति उसे हल नहीं किया जा सकता। वह सवाल नहीं एक चुनौती है, एक +प्रारंभ में बहुत पतली होती है। पत्थरों, चट्टानों, झरनों को पार करके मैदान में +आती है, एक क्रम से उसका विस्तार होता है, फिर भी बड़ी मन्थर गति से बहती है और +बिना क्रम भंग किये अंत में समुद्र में विलीन हो जाती है। समुद्र में अपने अस्तित्व +को समाप्त करते समय वह किसी भी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं करती जो वृद्ध परुष +से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न +होता है। क्रोध से मूढ़ता और बुद्धि भ्रष्टता उत्पन्न होती है। बुद्धि के भ्रष्ट +होने से स्मरण-शक्ति विलुप्त हो जाती है, यानी ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है। और +विष खाने से लाभ होत�� है लेकिन अकेले खाने से मरण ।

+होने पर मनुष्य को बेंत की रीति-नीति का अनुपालन करना चाहिये, अर्थात नम्र हो जाना +तीन तरह के पुत्रों मे से अजात और मृत पुत्र अधिक श्रेष्ठ हैं क्योंकि अजात और +वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही +कद्र करता है। हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो +अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, +राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज +कि सत्य को दफ़नाया जा सकता है, उसकी हत्या नहीं की जा सकती। सत्य कब्र से भी उठकर +सामने आ जाता है और उनके पीछे भूत की तरह लग जाता है जिन्होंने उसे दफ़न करने की +के द्वारा पुरुष जान लेता है कि अधिक उपयुक्त क्या है P> +खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे +हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो +उन्हें खरीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने +को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता मनुष्य कहाँ लगता है । P> +वाणी ही बोलनी चाहिये वाणी में क्या दरिद्रता  P> +वाले लोगों का तो पृथ्वी ही परिवार है ।

+अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं P> +अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं P> +खाने वाला इमानदारी का अन्न खाने वाला P> +वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का +त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने +माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है P> +कानपुर जिले के निवासी P> +लाए जा सकते हैं। ईसा मसीह

+अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। -वेद

+अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । रामकृष्ण परमहंस P> +हृदय की वृत्ति को बताती हैं। महात्मा गांधी P> +यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। -बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’ P> +पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है। -रवीन्द्रनाथ +जीत सकता है । गौतम बुद्ध P> +आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। -बस्र्आ P> +खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण ��क्तियां बनाते हैं +और मर्यादित चेतना । डा शंकर दयाल शर्मा P> +प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। श्री +स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध । सरदार पटेल

+है बल प्रयोग नहीं P> +होता उसमें बहुत जल भरा होता है । P> +किया जता है । P> +के चरती है । P> +गदही भी अप्सरा बन जाती है । P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> + + +सुभाषित का अर्थ है 'अच्छी तरह से कहा हुआ सु भाषित) । इसे सूक्ति सु उक्ति) भी कहते हैं। संस्कृत साहित्य में सूक्तियों और सुभाषितों की भरमार है। +सुभाषितों के बारे में सुभाषित +: भावार्थ सुभाषित कथन रूपी संंपदा का जो संग्रह नहीं करता वह प्रसंगविशेष की चर्चा के यज्ञ में भला क्या दक्षिणा देगा? समुचित वार्तालाप में भाग लेना एक यज्ञ है और उस यज्ञ में हम दूसरों के प्रति सुभाषित शब्दों की आहुति दे सकते हैं। ऐसे अवसर पर एक व्यक्ति से मीठे बोलों की अपेक्षा की जाती है, किंतु जिसने सुभाषण की संपदा न अर्जित की हो यानी अपना स्वभाव तदनुरूप न ढाला हो वह ऐसे अवसरों पर औरों को क्या दे सकता है ? +: संसार रूपी कड़वे पेड़ से अमृत तुल्य दो ही फल उपलब्ध हो सकते हैं, एक है मीठे बोलों का रसास्वादन और दूसरा है सज्जनों की संगति। +: भाषाओं में मुख्य, मधुर और दिव्य भाषा संस्कृत है। उसमें भी काव्य मधुर है, और काव्य में भी सुभाषित। +: सुभाषितरस के आगे द्राक्षा (अंगूर) का मुख म्लान (खट्टा) हो गया, शर्करा खड़ी हो गयी और अमृत डरकर स्वर्ग चली गयी। +* सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं । लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड़ न जमा लें। गोथे +* किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। विंस्टन चर्चिल +* बुद्धिमानों की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है। आईजक दिसराली +* सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती। राबर्ट हेमिल्टन +* विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है। मैथ्यू अर्नाल्ड +* मैं अक्सर खुद को उद्धृत करता हूँ। इससे मेरे भाषण मसालेदार हो जाते हैं। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती। राबर्ट हेमिल्टन + + +अपना बनाने के लिये ह���को ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे +का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर +क्या लभ है  इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है +उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता P> +सम्बन्ध सी.डी से कैट-स्कैन से पार्किंग-मीटरों से राष्ट्रपति-चुनावों से और +कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है । गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिये है +परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं ।

+की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार +संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया +व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं  लेकिन यदि +करने का कोई औचित्य नहीं है ।

+यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है ।

+हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता +रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु +खरीदना पसंद करूंगा। पेट खाली रखकर भी यदि कला-दृष्टि को सींचने का अवसर हाथ लगता +तरीका है उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी +राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को +को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ । P> +इतिहास भी है । P> +विकास कर रही हैं तो समाज भी विकास करता है, यदि वे क्षीण हो रही हैं तो समाज भी +सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही +सत्यवादी उदार या इमानदार नहीं बन सकते ।

+रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की +की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में +अंधेरे रास्ते में जाने का साहस कम लोगों में ही होता है।

+लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं +कुछ किया ही नही गया।

+विद्या विष के समान है nbsp P> +हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर +के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। +अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण +हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर +सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त +धन का अर्जन करना चाहिये ।

+उतना मनुष्य द्वारा स्थापित किसी दूसरी संस्था से नहीं ।

+काम पूरा किया जा सकता है ।

+निस्तेज मनुष्य का समाज तिरस्कार करता है । तिरष्कृत मनुष्य में वैराग्य भाव +उत्पन्न हो जाते हैं और तब मनुष्य को शोक होने लगता है । जब मनुष्य शोकातुर होता है +तो उसकी बुद्धि क्षीण होने लगती है और बुद्धिहीन मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है +“गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये ।

+लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है ।

+है न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है । P> +हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । +मंत्र योजना परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है प्रभाव राजोचित +शक्ति तेज से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह उद्यम से कार्य सिद्ध होता +चाहिये । आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का +प्रजातन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है बल्कि नेताओं को +हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा +हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा +देश की सुरक्षा है । जो सम्बन्ध धरन बीम का घर से है या हड्डी का शरीर से है +साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर +( क्षण जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है ऐसे नर-पशु को नमस्कार ।

+तो आपको इसे बनाना पडेगा ।

+कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये P> +कामयाब व्यक्ति बना दिया है ।

+असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है ।

+संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया +नही दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता P> +द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है P> +दिये जा सकते हैं पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है । जब आदमी ने सबसे पहले +प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी । प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक +प्रौद्योगिकी सूचना-साक्षरता सूचना प्���वीण सूचना की सतंत्रता +उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं उतना ही अधिक यह बढता है । इसको आसानी से +बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग ।

+नहीं  और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं ।

+उन्हें स्वयं को उन शक्तियों से सुसज्जित करना चाहिये जो ज्ञान से प्राप्त होती हैं +से बडी याददास्त से भी बडी होती है ।

+लोगों के लिये यह धमकी भरा होता है क्योंकि उनको लगता है कि स्थिति और बिगड सकती है +शुरु होता हो कोई ऐसा मूल (जड़) नही है जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी +प्रतिशत के लिये अधिक विश्लेषण की जरूरत होती है ।

+लगती है कि क्या करना चाहिये ।

+से चलाये जाते हैं ।

+देता है जो उससे पूछे जाते हैं ।

+समस्या है । लोग स्वतन्त्र चिन्तन करके परमार्थ का प्रकाशन नहीं करते बल्कि दूसरों +को साथ- साथ ध्यान में रखते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का होना +स्वयं परीक्षा करके प्राचीन और नवीन के गुण-दोषों का विवेचन करते हैं लेकिन जो मूढ़ +पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत +जाता है पर यदि आप हाथ-पैर नहीं चलायेंगे तो केवल पतवार की उपस्थिति से गंतव्य तट +करने की कोशिश करता है । P> +भी आस-पास मौजूद नहीं है। यदि आप किसी संगीत की प्रस्तुति कर रहे हों तो आप को +ऐसा प्रतीत होना चाहिये कि आप की प्रस्तुति पर आप के सिवा अन्य किसी का भी +ध्यान नहीं है । और यदि आप सचमुच में किसी से प्रेम कर बैठें हों तो आप में +ऐसी अनुभूति होनी चाहिए कि आप पहले कभी भी भावनात्मक तौर पर आहत नहीं हुए +जाता है विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है P> +ध्यान कुत्ते जैसी निद्रा अल्पहारी और गृहत्यागी । P> +वो जमाना गया जब आप अनुभव से सीखते थे अब आपको भविष्य से सीखना पडेगा ।

+है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार +की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह +सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम +, बहुत सारी विद्याएँ हैं समय अल्प है और बहुत सी बाधायें है । ऐसे में जो +सारभूत है सरलीकृत है वही करने योग्य है जैसे हंस पानी से दूध को अलग करक पी +हाजिर जबाब ये दोनो सुख भोगते हैं । “जैसा होना होगा होगा” ऐसा सोचने वाले का +विनाश हो जाता है ।

+अधिकांश गणित की जन���ी है बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है +ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शासन और लोकतंत्र की जननी है । अनेक प्रकार से भारत +पौराणिक कथाओं की दादी है और प्रथाओं की परदादी है । मानव इतिहास की हमारी सबसे +मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था तो वह भारत ही है +रहकर पृथ्वी के सब लोगों ने अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ली । P> +चीजों में निहित है संस्कृति और संस्कृत । P> +ग्रीक से अधिक परिपूर्ण है और लैटिन से अधिक शब्दबहुल है तथा दोनों से अधिक +में संस्कृत साहित्य की खोज से बढकर कोई विश्वव्यापी महत्व की दूसरी घटना नहीं घटी +कृत्रिम भाषा के रूप में भी कार्य कर सकती है और कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में +किया गया अधिकाश काम हजारों वर्ष पुराने पहिये संस्कृत को खोजने जैसा ही रहा है +हैं और जिनको पैसे से नहीं खरीदा जा सकता ।

+संसार से छिपाकर चलता है। असली और स्थाई शक्ति सहनशीलता में है। त्वरित और कठोर +प्रतिक्रिया सिर्फ कमजोर लोग करते हैं और इसमें वे अपनी मनुष्यता को खो देते +से दुःख में जाता है वह जीवित भी मृत के समान जीता है। P> +रहते हैं माना जाता है कि खटमल के डर से ॥

+विष्णु क्षीरसागर में सोते हैं और शिव हिमालय पर । P> +खुश होना चाहते हैं तो प्यार में पड़ जाएँ. और अगर हमेशा के लिए खुश रहना चाहते हैं +प्रयास करती है और अंत में शिकायत करती है कि यह वह आदमी नहीं है जिससे उसने शादी +साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर +आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है। इसीलिए संतों ने निंदकों को ‘आंगन कुटि +छवाय’ पास रखने की सलाह दी है। P> +करना  ये दस धर्म के लक्षण हैं । P> +पर चलो  अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये । +कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी +ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के +क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक +में जो भेद है, उसे वे ही जानते हैं जो कि ‘काकली’ (स्वर-माधुरी) की पहचान रखते +अन्य पक्षियों के लिए अपने हिस्से का मांस, जैसाकि उसका स्वभाव होता है, त्याग देता +है तो वह पर सुख का अनुभव करता है। यानि सारा खेल इच्छा आसक्ति अथवा अपने मन का +से पुण्य मिलता है और दूसरे को पीडा देने से पाप ।

+पानी नहीं पीती हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। बादल अपने लिये वर्षा नहीं +करते हैं। सन्तों का का धन परोपकार के लिये होता है । P> +गुणवानो का बल क्षमा है ।

+और न धर्म है  वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर +चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है। और जब सारी चीज़ें आपके पास +प्यासे होते जाते हैं P> +के प्रश्नों की भांति उसे हल नहीं किया जा सकता। वह सवाल नहीं एक चुनौती है, एक +प्रारंभ में बहुत पतली होती है। पत्थरों, चट्टानों, झरनों को पार करके मैदान में +आती है, एक क्रम से उसका विस्तार होता है, फिर भी बड़ी मन्थर गति से बहती है और +बिना क्रम भंग किये अंत में समुद्र में विलीन हो जाती है। समुद्र में अपने अस्तित्व +को समाप्त करते समय वह किसी भी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं करती जो वृद्ध परुष +से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न +होता है। क्रोध से मूढ़ता और बुद्धि भ्रष्टता उत्पन्न होती है। बुद्धि के भ्रष्ट +होने से स्मरण-शक्ति विलुप्त हो जाती है, यानी ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है। और +विष खाने से लाभ होता है लेकिन अकेले खाने से मरण ।

+होने पर मनुष्य को बेंत की रीति-नीति का अनुपालन करना चाहिये, अर्थात नम्र हो जाना +तीन तरह के पुत्रों मे से अजात और मृत पुत्र अधिक श्रेष्ठ हैं क्योंकि अजात और +वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही +कद्र करता है। हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो +अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, +राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज +कि सत्य को दफ़नाया जा सकता है, उसकी हत्या नहीं की जा सकती। सत्य कब्र से भी उठकर +सामने आ जाता है और उनके पीछे भूत की तरह लग जाता है जिन्होंने उसे दफ़न करने की +के द्वारा पुरुष जान लेता है कि अधिक उपयुक्त क्या है P> +खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे +हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो +उन्हें खरीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने +को और पुरुष के भाग��य को भगवान् भी नहीं जानता मनुष्य कहाँ लगता है । P> +वाणी ही बोलनी चाहिये वाणी में क्या दरिद्रता  P> +वाले लोगों का तो पृथ्वी ही परिवार है ।

+अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं P> +अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं P> +खाने वाला इमानदारी का अन्न खाने वाला P> +वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का +त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने +माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है P> +कानपुर जिले के निवासी P> +लाए जा सकते हैं। ईसा मसीह

+अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। -वेद

+अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । रामकृष्ण परमहंस P> +हृदय की वृत्ति को बताती हैं। महात्मा गांधी P> +यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। -बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’ P> +पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है। -रवीन्द्रनाथ +जीत सकता है । -गौतम बुद्ध P> +आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। -बस्र्आ P> +खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं +और मर्यादित चेतना । डा शंकर दयाल शर्मा P> +प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। श्री +स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध । सरदार पटेल P> +है बल प्रयोग नहीं P> +होता उसमें बहुत जल भरा होता है । P> +किया जता है । P> +के चरती है । P> +गदही भी अप्सरा बन जाती है । P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> +प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । P> +विचार को परखने की कसौटी P> + + +* हम अंग्रेर्जों के जमाने के जेलर है! ह हा। +* ऐसे कैसे पैसे मांग रिये हो। +गब्बर सूना? पूरे पचास हज़ार और ये इनाम इसलिए है कि यहाँ से पचास पचास कोस दूर गाँवों में जब बच्चा रात को रोता है तो माँ कहती है बेटा सो जा सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा।" और ये तीन हराम ज़ादे ये गब्बर सिंह का नाम पूरा मिट्टी में मिलाये दिये इसकी सज़ा मिलेगी बराबर मिलेगी +:(एक आदमी से पिस्तौल लेता है और उससे पूछता है) कितनी गोली है इसके अंदर? + + +* जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा है। +* ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्थि कर सकता है। सभी जीवंत ईश्वर हैं–इस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवन्त काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो। +* ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है। +* मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतय बाहर हो सकते हैं–निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है। +*जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंग��े ही आगे बढ़ सकते हैं। +* जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है। +* आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो। +* मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुँचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं। +* हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है। +* मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है। +* पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो। +* सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र- सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके। +* संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत��या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना। +* श्रेयांसि बहुविघ्नानि अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं। प्रलय मचाना ही होगा, इससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता। कुछ परवाह नहीं। दुनीया भर में प्रलय मच जायेगा, वाह! गुरु की फतह! अरे भाई श्रेयांसि बहुविघ्नानि, उन्ही विघ्नों की रेल पेल में आदमी तैयार होता है। मिशनरी फिशनरी का काम थोडे ही है जो यह धक्का सम्हाले!।।।। बडे-बडे बह गये, अब गडरिये का काम है जो थाह ले? यह सब नहीं चलने का भैया, कोई चिन्ता न करना। सभी कामों में एक दल शत्रुता ठानता है; अपना काम करते जाओ किसी की बात का जवाब देने से क्या काम? सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येनैव पन्था विततो देवयानः (सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं; सत्य के ही बल से देवयानमार्ग की गति मिलती है।)।।। धीरे-धीरे सब होगा। +* वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं। +* इस तरह का दिन क्या कभी होगा कि परोपकार के लिए जान जायेगी? दुनिया बच्चों का खिलवाड नहीं है बडे आदमी वे हैं जो अपने हृदय-रुधिर से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं- यही सदा से होता आया है एक आदमी अपना शरीर-पात करके सेतु निर्माण करता है, और हज़ारों आदमी उसके ऊपर से नदी पार करते हैं। एवमस्तु एवमस्तु, शिवोsहम् शिवोsहम् (ऐसा ही हो, ऐसा ही हो- मैं ही शिव हूँ, मैं ही शिव हूँ। ) +* मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे सौगुना उन्न्त बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा- मैं कहता हूँ, अवश्य बनना होगा। आज्ञा-पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। +* अन्त में प्रेम की ही विजय होती है। हैरान होने से काम नहीं चलेगा- ठहरो- धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है- तुमसे कहता हूँ देखना- कोई बाहरी अनुष्ठा���पध्दति आवश्यक न हो- बहुत्व में एकत्व सार्वजनिन भाव में किसी तरह की बाधा न हो। यदि आवश्यक हो तो "सार्वजनीनता" के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोड़ना होगा। मैं मरूँ चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ, तुम लोग अच्छी तरह याद रखना कि, सार्वजनीनता- हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते कि दुसरों के धर्म का द्वेष न करना नहीं, हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उनका ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं सावधान रहना, दूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना इसी भँवर में बडे-बडे जहाज डूब जाते हैं पुरी भक्ति, परन्तु कट्टरता छोडकर, दिखानी होगी, याद रखना उन्की कृपा से सब ठीक हो जायेगा। +* नीतिपरायण तथा साहसी बनो, अन्त: करण पूर्णतया शुद्ध रहना चाहिए। पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी बनो प्रणों के लिए भी कभी न डरो। कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीर पुरूष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते यहाँ तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार नहीं लाते। प्राणिमात्र से प्रेम करने का प्रयास करो। बच्चो, तुम्हारे लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोडकर और कोई दूसरा धर्म नहीं। इसके सिवाय और कोई धार्मिक मत-मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है। कायरता, पाप्, असदाचरण तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिए, बाक़ी आवश्यकीय वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी। +* शक्तिमान, उठो तथा सामर्थ्यशाली बनो। कर्म, निरन्तर कर्म; संघर्ष निरन्तर संघर्ष! अलमिति। पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो सारा धर्म इसी में है। +* क्या संस्कृत पढ रहे हो? कितनी प्रगति होई है? आशा है कि प्रथम भाग तो अवश्य ही समाप्त कर चुके होंगे। विशेष परिश्रम के साथ संस्कृत सीखो। +* शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है। इसलिए अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो। +* बच्चों, धर्म का रहस्य आचरण से जाना जा सकता है, व्यर्थ के मतवादों से नहीं। सच्चा बनना तथा सच्चा बर्ताव करना, इसमें ही समग्र धर्म निहित है। जो केवल प्रभु-प्रभु की रट लगाता है, वह नहीं, किन्तु जो उस परम पिता के इच्छानुसार कार्य करता है वही धार्मिक है। यदि कभी कभी तुमको संसार का थोड़ा-बहुत धक्का भी खाना पडे, तो उससे विचलित न होना, मुहूर्त भर में वह दूर हो जायगा तथा सारी स्थिति पुनः ठीक हो जायगी। +* जब तक जीना, तब तक सीखना अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। +* भाग्य बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है। पीछे मुडकर मत देखो आगे, अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमित साहस और निस्सीम धैर्य की आवश्यकता है- और तभी महत कार्य निष्पन्न किये जा सकते हैं। हमें पूरे विश्व को उद्दीप्त करना है। +* पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं। +* बच्चों, जब तक तुम लोगों को भगवान तथा गुरू में, भक्ति तथा सत्य में विश्वास रहेगा, तब तक कोई भी तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकता। किन्तु इनमें से एक के भी नष्ट हो जाने पर परिणाम विपत्तिजनक है। +* महाशक्ति का तुम में संचार होगा कदापि भयभीत मत होना। पवित्र होओ, विश्वासी होओ, और आज्ञापालक होओ। +* धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वासपात्र रहो। आपस में न लडो! रुपये पैसे के व्यवहार में शुद्ध भाव रखो। हम अभी महान कार्य करेंगे। जब तक तुम में ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हे सफलता मिलेगी। +* ईर्ष्या तथा अंहकार को दूर कर दो संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो। +* पूर्णतः निःस्वार्थ रहो, स्थिर रहो, और काम करो। एक बात और है। सबके सेवक बनो और दूसरों पर शासन करने का तनिक भी यत्न न करो, क्योंकि इससे ईर्ष्या उत्पन्न होगी और इससे हर चीज़ बर्बाद हो जायेगी। आगे बढो तुमने बहुत अच्छा काम किया है। हम अपने भीतर से ही सहायता लेंगे अन्य सहायता के लिए हम प्रतीक्षा नहीं करते। मेरे बच्चे, आत्मविश्वास रखो, सच्चे और सहनशील बनो। +* यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हें सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढ़ेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो। +* पक्षपात ही सब अनर्थों का मूल है, यह न भूलना। अर्थात् यदि तुम किसी के प्रति अन्य की अपेक्षा अधिक प्रीति-प्रदर्शन करते हो, तो याद रखो उसी से भविष्य में कलह का बीजारोपण होगा। +* गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। सबके साथ मेल से रहो। अहंकार के सब भाव छोड़ दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। व्यर्थ विवाद महापाप है। +* बच्चे, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास- ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति ��े विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो। +* किसी को उसकी योजनाओं में हतोत्साह नहीं करना चाहिए। आलोचना की प्रवृत्ति का पूर्णतः परित्याग कर दो। जब तक वे सही मार्ग पर अग्रेसर हो रहे हैं; तब तक उनके कार्य में सहायता करो; और जब कभी तुमको उनके कार्य में कोई ग़लती नज़र आये, तो नम्रतापूर्वक ग़लती के प्रति उनको सजग कर दो। एक दूसरे की आलोचना ही सब दोषों की जड है। किसी भी संगठन को विनष्ट करने में इसका बहुत बड़ा हाथ है। +* क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमान् व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खडा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा। +* बच्चे, जब तक हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो। +* आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें। काम, क्रोध एवं लोभ इस त्रिविध बन्धन से हम मुक्त हो जायें और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा। +* शक्ति और विश्वास के साथ लगे रहो। सत्य निष्ठा, पवित्र और निर्मल रहो, तथा आपस में न लडो। हमारी जाति का रोग ईर्ष्या ही है। +* मेरा आदर्श अवश्य ही थोड़े से शब्दों में कहा जा सकता है मनुष्य जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना, तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना। +* हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता है उपहास, विरोध और स्वीकृति। जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते है। इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं; परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और भगवान् में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे। +* प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पडती हैं। इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो। ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तरकाल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त भण्डार है। जब तक हम उस अन्तराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है। एक बार उस शान्ति-मण्डल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आँधी और तूफान के जितने तुमुल झकोरे आयें, वह मकान, जो सदियों की पुरानि चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता। +* न संख्या-शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक चातुर्य, कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुध्द जीवन, एक शब्द में अनुभूति, आत्म-साक्षात्कार को विजय मिलेगी! प्रत्येक देश में सिंह जैसी शक्तिमान दस-बारह आत्माएँ होने दो, जिन्होने अपने बन्धन तोड डाले हैं, जिन्होंने अनन्त का स्पर्श कर लिया है, जिनका चित्र ब्रह्मनुसन्धान में लीन है, जो न धन की चिन्ता करते हैं, न बल की, न नाम की और ये व्यक्ति ही संसार को हिला डालने के लिए पर्याप्त होंगे। +* यही रहस्य है। योग प्रवर्तक पतंजलि कहते हैं जब मनुष्य समस्त अलौकेक दैवी शक्तियों के लोभ का त्याग करता है, तभी उसे धर्म मेघ नामक समाधि प्राप्त होती है। वह प्रमात्मा का दर्शन करता है, वह परमात्मा बन जाता है और दूसरों को तदरूप बनने में सहायता करता है। मुझे इसीका प्रचार करना है। जगत् में अनेक मतवादों का प्रचार हो चुका है। लाखों पुस्तकें हैं, परन्तु हाय! कोई भी किंचित् अंश में प्रत्य्क्ष आचरण नहीं करता। +* एक महान रहस्य का मैंने पता लगा लिया है वह यह कि केवल धर्म की बातें करने वालों से मुझे कुछ भय नहीं है। और जो सत्यद्र्ष्ट महात्मा हैं, वे कभी किसी से बैर नहीं करते। वाचालों को वाचाल होने दो! वे इससे अधिक और कुछ नहीं जानते! उन्हे नाम, यश, धन, स्त्री से सन्तोष प्राप्त करने दो। और हम धर्मोपलब्धि, ब्रह्मलाभ एवं ब्रह्म होने के लिए ही दृढ़व्रत होंगे। हम आमरण एवं जन्म-जन्मान्त में सत्य का ही अनुसरण करेंगें। दूसरों के कहने पर हम तनिक भी ध्यान न दें और यदि आजन्म यत्न के बाद एक, देवल एक ही आत्मा संसार के बन्धनों को तोड़कर मुक्त हो सके तो हमने अपना काम कर लिया। +* वत्स, धीरज रखो, काम तुम्हारी आशा से बहुत ज्यादा बढ जाएगा। हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैकड़ों कठिनाइयों का सामना करना पडता है। जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल सफलता को देखेंगे। परिश्रम करना है वत्स, कठिन परिश्रम्! काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे में शिष्य न ढल जाय निश्चय ही कठिन काम है। जो प्रतिक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं। अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो। +* मेरी दृढ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है। तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे धीरे और भी अन्य लोग आयेंगे। 'साहसी' शब्द और उससे अधिक 'साहसी' कर्मों की हमें आवश्यकता है। उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है। क्या तुम सो सकते हो? हम बार बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। जीवन में और क्या है? इससे महान कर्म क्या है? +* एक समस्या आती है, तब मनुष्य अनुभव करता है की थोड़ी-सी मनुष्य की सेवा करना लाखो जप-ध्यान से कही बढ़ाकर है। +* किसी की निंदा ना करें।अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं।अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये। +* एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो। +* उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता। +* हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं। +* बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है। +* एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है। +* जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। +* कुछ सच्चे, इमानदार और उर्जावान पुरुष और महिलाएं; जितना कोई भीड़ एक सदी में कर सकती है उससे अधिक एक वर्ष में कर सकते हैं. +* जिस दिन आपके सामने कोई समस्या न आये – आप यकीन कर सकते है की आप गलत रस्ते पर सफर कर रहे है। +* मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं–निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है। +* धन्य हैं वो लोग जिनके शरीर दूसरों की सेवा करने में नष्ट हो जाते हैं। +* वेदान्त दर्शन भारत के प्राचीन दर्शनों में से सबसे महत्त्वपूर्ण दर्शन है, जिसका विश्वास है कि केवल परमात्मा ही सत्य है। और दृष्टिगोचर विश्व असत्य है तथा व्यक्ति की आत्मा का सर्वोच्य आत्मा अर्थात् परमात्मा में लीन होना ही प्रत्येक मानव का लक्ष्य है। इसे मुक्ति कहा गया और सत्य ज्ञान से ही प्राप्त की जा सकती है। +* हमें जो कुछ चाहिए वह यह श्रद्धा ही है। दुर्भाग्यवश भारत से इसका प्रायः लोप ही हो गया है, और हमारी वर्तमान दुर्दशा का कारण भी यही है। एकमात्र इस श्रद्धा के भेद से ही मनुष्य-मनुष्य में अन्तर पाया जाता है। इसका और दूसरा कारण नहीं। यह श्रद्धा ही है, जो एक मनुष्य को बड़ा और दूसरे को दुर्बल और छोटा बना देती है। कलकत्ता-अभिनन्दन का उत्तर) +* हमारे जातीय शोणित में एक प्रकार के भयानक रोग का बीज समा रहा है और वह है प्रत्येक विषय को हँसकर उड़ा देना – गाम्भीर्य का अभाव। इस दोष का सम्पूर्ण रूप से त्याग करो। वीर होओ, श्रद्धा-सम्पन्न होओ, दूसरी बातें उनके पीछे आप ही आयेंगी – उन्हें उनका अनुसरण करना ही होगा। कोलम्बो से अल्मोड़ा तक) +* अपने से निम्न श्रेणिवालों के प्रति हमारा एकमात्र कर्तव्य है – उनको शिक्षा देना, उनके खोये हुए व्यक्तित्व के विकास के लिए सहायता करना। उनमें विचार पैदा कर दो – बस, उन्हें उसी एक सहायता का प्रयोजन है, और शेष सब काल इसके फलस्वरूप आप ही आ जायगा। हमें केवल रासायनिक सामग्रियों को इकट्ठा भर कर देना है, उनका निर्दिष्ट आकार प्राप्त करना – रवा बँध जाना तो प्राकृतिक नियमों से ही साधित होगा। … अच्छा, यदि पहाड़ मुहम्मद के पास न आये, तो महम्मद ही पहाड़ के पास क्यों न जायँ? यदि ग़रीब लड़का शिक्षा के मन्दिर तक न जा सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए। स्वामी विवेकानंद की पत्रावली १, १३४-३५) +* शिक्षा क्या वह है जिसने निरन्तर इच्छाशक्ति को बल-पूर्वक पीढ़ी-दर-पीढ़ी रोक कर प्रायः नष्ट कर दिया है, जिसके प्रभाव से नये विचारों की तो बात ही जाने दीजिये, पुराने विचार भी एक एक करके लोप होते चले जा रहे हैं, क्या वह शिक्षा है। जो मनुष्य को धीरे धीरे यन्त्र बना रही है? जो स्वयं-चालित यन्त्र के समान सुकर्म करता है, उसकी अपेक्षा अपनी स्वतन्त्र इच्छाशक्ति और बुद्धि के बल से अनुचित कर्म करनेवाला मेरे विचार से धन्य है। स्वामी विवेकानंद की पत्रावली २, २९१) +* आज हमें आवश्यकता है वेदान्तयुक्त पाश्चात्य विज्ञान की, ब्रह्मचर्य के आदर्श और श्रद्धा तथा आत्मविश्वास की। … वेदान्त का सिद्ध���न्त है कि मनुष्य के अन्तर में–एक अबोध शिशु में भी–ज्ञान का समस्त भण्डार निहित है, केवल उसके जागृत होने की आवश्यकता है, और यही आचार्य का काम है। … पर इस सब का मूल है धर्म – वही मुख्य है। धर्म तो भात के समान है, शेष सब वस्तुएँ तरकारी और चटनी जैसी हैं। केवल तरकारी और चटनी खाने से अपथ्य हो जाता है, और केवल भात खाने से भी। विवेकानन्द जी के सान्निध्य में, ४) +* देखो, एकमात्र ब्रह्मचर्य का ठीक ठीक पालन कर सकने पर सभी विद्याएँ बहुत ही कम समय में हस्तगत हो जाती हैं – मनुष्य श्रुतिधर, स्मृतिधर बन जाता है। ब्रह्मचर्य के अभाव से ही हमारे देश का सब कुछ नष्ट हो गया। विवेकानन्द जी के सान्निध्य में, ३२७) +* मेरा विश्वास है कि गुरु के साक्षात् सम्पर्क रखते हुए, गुरु-गृह में निवास करने से ही यथार्थ शिक्षा की प्राप्ति होती है। गुरु से साक्षात् सम्पर्क हुए बिना किसी प्रकार की शिक्षा नहीं हो सकती। हमारे वर्तमान विश्वविद्यालयों की ही बात लीजिए। उनका आरम्भ हुए पचास वर्ष हो गये (यह १८९७ में मद्रास में कहा गया था) फल क्या मिला है? वे एक भी मौलिक-भाव-संपन्न व्यक्ति उत्पन्न नहीं कर सके। परीक्षा लेने वाली संस्थाएँ मात्र हैं! साधारण जनता की जागृति और उसके कल्याण के लिए स्वार्थ-त्याग की मनोवृत्ति का हममें थोड़ा भी विकास नहीं हुआ है। स्वामी विवेकानन्द जी से वार्तालाप, ७६) +* सत्य, प्राचीन अथवा आधुनिक किसी समाज का सम्मान नहीं करता। समय को ही सत्य का सम्मान करना पड़ेगा, अन्यथा समाज ध्वंस हो जाय, कोई हानि नहीं सत्य ही हमारे सारे प्राणियों और समाजों का मूल आधार है, अतः सत्य कभी भी समाज के अनुसार अपना गठन नहीं करेगा। … वही समाज सब से श्रेष्ठ है, जहाँ सर्वोच्च सत्यों को कार्य में परिणत किया जा सकता है – यही मेरा मत है। और यदि समाज इस समय उच्चतम सत्यों को स्थान देने में समर्थ नहीं है, तो उसे इस योग्य बनाओ। और जितना शीघ्र तुम ऐसा कर सको, उतना ही अच्छा। ज्ञान योग ६१-६३) +* प्रत्येक मनुष्य एवं प्रत्येक राष्ट्र को बड़ा बनाने के लिए तीन बातें आवश्यक हैं– १. सौजन्य की शक्ति में दृढ़ विश्वास ,२. ईर्ष्या और सन्देह का अभाव, ३. जो सन्मार्ग पर चलने में और सत्कर्म करने में संलग्न हों, उनकी सहायता करना। स्वामी विवेकानंद की पत्रावली १, १०८) +* यदि आपका आदर्श जड़ है, तो आप भी जड़ हो जायेंगे। स्मरण रहे हमारा आदर्श है, परमा��्मा। एकमात्र वे ही अविनाशी हैं – अन्य किसी का अस्तित्व नहीं है, और उन परमात्मा की भाँति हम भी सदा विनाशहीन हैं। भारतीय नारी, २२) +* हिन्दू का खाना धार्मिक, उसका पीना धार्मिक, उसकी नींद धार्मिक उसकी चाल-ढाल धार्मिक, उसके विवाहादि धार्मिक, यहाँ तक कि उसकी डकैती करने की प्रेरणा भी धार्मिक है। … हरएक राष्ट्र का विश्व के लिए एक विशिष्ट कार्य होता है और जब तक वह आक्रान्त नहीं होता, तब तक वह राष्ट्र जीवित रहता है – चाहे कोई भी संकट क्यों न आये। पर ज्यों ही कार्य नष्ट हुआ कि राष्ट्र भी ढह जाता है। मेरा जीवन तथा ध्येय, ५-६) +* क्या तुमने इतिहास में नहीं पढ़ा है कि देश के मृत्यु का चिह्न अपवित्रता या चरित्रहीनता के भीतर से होकर आया है – जब यह किसी जाति में प्रवेश कर जाती है, तो समझना कि उसका विनाश निकट आ गया है। ज्ञान योग ३२) +* इस समय हम पशुओं की अपेक्षा कोई अधिक नीतिपरायण नहीं हैं। केवल समाज के अनुशासन के भय से हम कुछ गड़बड़ नहीं करते। यदि समाज आज कह दे कि चोरी करने से अब दण्ड नहीं मिलेगा, तो हम इसी समय दूसरे की सम्पत्ति लूटने को छूट पड़ेंगे। पुलिस ही हमें सच्चरित्र बनाती है। सामाजिक प्रतिष्ठा के लोप की आशंका ही हमें नीतिपरायण बनाती है, और वस्तुस्थिती तो यह है कि हम पशुओं से कुछ ही अधिक उन्नत हैं। ज्ञान योग २७५) +* अधिकांश सम्प्रदाय अल्पजीवी और पानी के बुदबुदे के समान क्षणभंगुर होते हैं, क्योंकि बहुधा उनके प्रणेताओं में चरित्र-बल नहीं होता। पूर्ण प्रेम और प्रतिक्रिया न करनेवाले हृदय से चरित्र का निर्माण होता है। जब नेता में चरित्र नहीं होता, तब उसमें निष्ठा की सम्भावना नहीं होती। चरित्र की पूर्ण पवित्रता से स्थायी विश्वास और निष्ठा अवश्य उत्पन्न होती है। कोई विचार लो, उसमें अनुरक्त हो जाओ, धैर्य-पूर्वक प्रयत्न करते रहो, तो तुम्हारे लिए सूर्योदय अवश्य होगा। भगवान बुद्ध का संसार को संदेश एवं अन्य व्याख्यान और प्रवचन, १५५) +* हमसे पूछा जाता है कि ‘आपके धर्म से समाज का क्या लाभ है?’ समाज को सत्य की कसौटी बनाया गया है। यह तो बड़ी तर्कहीनता है। समाज केवल विकास की एक अवस्था है, जिसमें होकर हम गुज़र रहे हैं। … यदि सामाजिक अवस्था स्थायी होती है, तो वह शिशु ही बनी रहने जैसी बात होती। पूर्ण मनुष्य शिशु नहीं हो सकता; यह शब्द – ‘मनुष्य-शिशु’ – ही विरोधाभासी है – इसलिए कोई समाज पूर्ण ��हीं हो सकता। मनुष्य को ऐसी आरम्भिक अवस्थाओं से आगे बढ़ना होगा और वह बढ़ेगा। … मेरे गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे, “तुम स्वयं अपने कमल के फूल को खिलने में सहायता क्यों नहीं देते? भौरे तब अपने आप आयेंगे। नारद-भक्ति-सूत्र एवं भक्ति-विषयक प्रवचन और आख्यान, २१) +* दूसरों में बुराई न देखो। बुराई अज्ञान है, दुर्बलता है। लोगों को यह बताने से क्या लाभ कि वे दुर्बल हैं। आलोचना और खण्डन से कोई लाभ नहीं होता। हमें उन्हें कुछ ऊँची वस्तु देनी चाहिए; उन्हें उनके गरिमामयी स्वरूप की, उनके जन्मसिद्ध अधिकार की बात बताओ। नारद-भक्ति-सूत्र एवं भक्ति-विषयक प्रवचन और आख्यान, १७) +* मैं ‘सुधार’ नहीं कहता, अपितु कहता हूँ – ‘बढ़े चलो।’ कोई वस्तु इतनी बुरी नहीं है कि उसका सुधार या पुनर्निर्माण करना पड़े। अनुकूलनक्षमता (Adaptability) ही जीवन का एकमात्र रहस्य है – उसे विकसित करनेवाला अन्तर्निहित तत्त्व है। बाह्य शक्तियों द्वारा आत्मा को दमित करने की चेष्टा के विरुद्ध आत्मा के प्रयास का परिणाम ही अनुकूलन या समायोजन है। जो अपना सर्वोत्तम अनुकूलन कर लेता है, वह सर्वाधिक दीर्घजीवी होता है। यदि मैं उपदेश न भी दूँ, तो भी समाज परिवर्तित हो रहा है, वह परिवर्तित अवश्य होगा। स्वामी विवेकानंद के विविध प्रसंग, ११६) +* और किसी बात की आवश्यकता नहीं, आवश्यकता है केवल प्रेम, अकपटता एवं धैर्य की। जीवन का अर्थ ही वृद्धि, अर्थात् विस्तार, यानी प्रेम है। इसलिए प्रेम ही जीवन है, यही जीवन का एकमात्र गतिनियामक है और स्वार्थपरता ही मृत्यु है। इहलोक एवं परलोक में यही बात सत्य है। यदि कोई कहे कि देह के विनाश के पीछे और कुछ नहीं रहता तो भी उसे यह मानना ही पड़ेगा कि स्वार्थपरता ही यथार्थ मृत्यु है। परोपकार ही जीवन है, परोपकार न करना ही मृत्यु है। जितने नर-पशु तुम देखते हो उनमें नब्बे प्रतिशत मृत हैं, वे प्रेत हैं क्योंकि, ऐ बच्चो, जिसमें प्रेम नहीं है वह तो मृतक है। स्वामी विवेकानंद की पत्रावली १, २०९-१०) +* एक ओर नवीन भारत कहता है कि “पाश्चात्य जातियाँ जो कुछ करें वही अच्छा है। अच्छा न होता तो वे ऐसी बलवान हुई कैसे?” दूसरी ओर प्राचीन भारत कहता है कि “बिजली की चमक तो खूब होती है, पर क्षणिक होती है। रुको! तुम्हारी आँखें चौंधिया रही हैं, सावधान वर्तमान भारत, ४३) +* उपनिषद्युगीन सुदूर अतीत में, हमने इस संसार को एक चुनौती दी थी – न प्रजया धनेन त्यागेनैके अमृतत्वमानशुः – “न तो सन्तति द्वारा और न सम्पत्ति द्वारा, वरन केवल त्याग द्वारा ही अमृतत्व की उपलब्धि होती है।” एक के बाद दूसरी जाति ने इस चुनौती को स्वीकार किया और अपनी शक्ति भर संसार की इस पहेली को कामनाओं के स्तर पर सुलझाने का प्रयत्न किया। वे सब की सब अतीत में तो असफल रही हैं – पुरानी जातियाँ तो शक्ति और स्वर्ण की लोलुपता से उद्भूत पापाचार और दैन्य के बोझ से दबकर पिस-मिट गयीं और नयी जातियाँ गर्त में गिरने को डगमगा रही हैं। इस प्रश्न का तो हल करने के लिए अभी शेष ही है कि शान्ति की जय होगी या युद्ध की, सहिष्णुता की विजय होगी या असहिष्णुता की, शुभ की विजय होगी या अशुभ की, शारीरिक शक्ति की विजय होगी या बुद्धि की, सांसारिकता की विजय होगी या आध्यात्मिकता की। हमने तो युगों पहले इस प्रश्न का अपना हल ढूँढ लिया था। … हमारा समाधान है असांसारिकता – त्याग। भारत का ऐतिहासिक क्रमविकास एवं अन्य प्रबन्ध, ६२) +* मुझे एक ऐसा उदाहरण बताओ, जहाँ बाहर से इन प्रार्थनाओं का उत्तर मिला हो। जो भी उत्तर पाते हो, वह अपने हृदय से ही। तुम जानते हो कि भूत नहीं होते, किन्तु अन्धकार में जाते ही शरीर कुछ काँप सा जाता है। इसका कारण यह है कि बिल्कुल बचपन से ही हम लोगों के सिर में यह भय घुसा दिया गया है। किन्तु समाज के भय से, संसार के कहने सुनने के भय से, बन्धु-बान्धवों की घृणा के भय से, अथवा अपने प्रिय कुसंस्कार के नष्ट होने के भय से, यह सब हम दूसरों को न सिखायें। इन सबको जीत लो। धर्म के विषय में विश्व-ब्रह्माण्ड के एकत्व और आत्मविश्वास के अतिरिक्त और क्या शिक्षा आवश्यक है? शिक्षा केवल इतनी ही देनी है। व्यावहारिक जीवन में वेदांत – प्रथम भाग) +* हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जिससे चरित्र-निर्माण हो, मानसिक शक्ति बढ़े, बुद्धि विकसित हो, और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा होना सीखे। विवेकानंद जी के सान्निध्य में, ४९-५०) +* जिस अभ्यास से मनुष्य की इच्छाशक्ति, और प्रकाश संयमित होकर फलदाई बने उसी का नाम है शिक्षा। +* समस्त ज्ञान चाहे वो लोकिक हो या आध्यात्मिक, मनुष्य के मन में है परन्तु प्रकाशित ना होकर वह ढका रहता है । अध्ययन से वह धीरे धीरे उजागर होता है। +* विद्यार्थी की आवश्यकता के अनुसार शिक्षा में परिवर्तन होना चाहिए । +* ज्ञान की प्राप्ति के लिए केवल एक ही मार्ग है औ��� वह है ‘एकाग्रता’ । +* एकाग्रता की शक्ति ही ज्ञान के खजाने की एकमात्र कुंजी है +* ज्ञान का दान मुक्तहस्ट होकर, बिना कोई दाम लिए करना चाहिए । +* गुरु के प्रति विश्वास, नम्रता, विनय, और श्रद्धा के बिना हममें धर्म का भाव पनप नहीं सकता । +* अधिकांश महापुरुषों को सुख की अपेक्षा दुख और संपत्ति की अपेक्षा दरिद्रता ने अधिक शिक्षा दी है। +* हम स्वयं अपने भाग्य का निर्माण करते हैं। +* जब मन को एकाग्र करके अपने ऊपर लगाया जाता है तो हमारे भीतर के सभी हमारे नोकर बन जाते हैं। +* आत्मविश्वास मानवता का एक शक्तिशाली अंग है। +* शिक्षक अर्थात गुरु के व्यक्तिगत जीवन के बिना कोई शिक्षा नहीं हो सकती। +* शिष्य के लिए आवश्यकता है शुद्धता, ज्ञान की सच्ची लगन के साथ परिश्रम की। +* मस्तिष्क में अनेक तरह का ज्ञान भर लेना, उससे कुछ काम न लेना और जन्म भर वाद विवाद करते रहने का नाम शिक्षा नहीं है। +* शिक्षा और मेहनत एक सुनहरी चाबी होती है जो बंद भाग्य के दरवाजों को आसानी से खोल देती है +* यदि गरीब लड़का शिक्षा के लिए नहीं आ सकता है, तो शिक्षा उसके पास जानी चाहिए। +* ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है । +* जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है । +* तब तक आपको कोई शिक्षित नहीं कर पायेगा जब तक आप स्वयं प्रयास नहीं करते। +* महिलाओ को ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए की वे आत्मनिर्भर बन सके और अपनी समस्या खुद हल करने में समर्थ बन सके। उनमे एक आदर्श चरित्र का विकास हो सके। +* किसी धर्म को विशेष शिक्षा से जोड़ना उचित नहीं है। सभी धर्मो की आवश्यक सामग्री को शिक्षा से जोड़ना चाहिए। +* शिक्षा का अर्थ है उस पूर्णता को व्यक्त करना जो सब मनुष्यों में पहले से विद्यमान है। स्वामी विवेकानन्द की पत्रावली १, ११४) +* शिक्षा क्या है? क्या वह पुस्तक-विद्या है? नहीं! क्या वह नाना प्रकार का ज्ञान है? नहीं, यह भी नहीं। जिस संयम के द्वारा इच्छाशक्ति का प्रवाह और विकास वश में लाया जाता है और वह फलदायक होता है, वह शिक्षा कहलाती है। स्वामी विवेकानन्द की पत्रावली २, २९०-९१) +* मेरे विचार से तो शिक्षा का सार मन की एकाग्रता प्राप्त करना है, तथ्यों का संकलन नहीं। यदि मुझे फिर से अपनी शिक्षा आरम्भ करनी हो और इसमें मेरा वश चले, तो मैं तथ्यों का अध्ययन कदापि न करूँ। मैं मन की एकाग्रता और अनासक्ति का सामर्थ्य बढ़ाता और उपकरण के पूर्णतया तैयार होने पर उससे इच्छानुसार तथ्यों का संकलन करता। भगवान बुद्ध का संसार को संदेश एवं अन्य व्याख्यान और प्रवचन, ७१) +* जो शिक्षा साधारण व्यक्ति को जीवन-संग्राम में समर्थ नहीं बना सकती, जो मनुष्य में चरित्र-बल, परहित-भावना तथा सिंह के समान साहस नहीं ला सकती, वह भी कोई शिक्षा है? जिस शिक्षा के द्वारा जीवन में अपने पैरों पर खड़ा हुआ जाता है, वही है शिक्षा। विवेकानन्द जी के संग में, १७५) +* हरएक व्यक्ति हुकूमत जताना चाहता है, पर आज्ञा पालन करने के लिए कोई भी तैयार नहीं है। और यह सब इसलिए है कि प्राचीन काल के उस अद्भुत ब्रह्मचर्य आश्रम का अब पालन नहीं किया जाता। पहले आदेश पालन करना सीखो, आदेश देना फिर स्वयं आ जायगा। पहले सर्वदा दास होना सीखो, तभी तुम प्रभु हो सकोगे। वेदान्त जाफना में दिया भाषण) +स्वामी विवेकनन्द के बारे में महापुरुषों के विचार + + +*आज़ादी की रक्षा केवल सैनिकों का काम नही है, पूरे देश को मजबूत होना होगा. +*हम अपने देश के लिए आज़ादी चाहते हैं, पर दूसरों का शोषण कर के नहीं, ना ही दूसरे देशों को नीचा दिखाकर, मैं अपने देश की आजादी ऐसे चाहता हूँ कि अन्य देश मेरे आजाद देश से कुछ सीख सकें, और मेरे देश के संसाधन मानवता के लाभ के लिए प्रयोग हो सकें. +*जो शासन करते हैं उन्हें देखना चाहिए कि लोग प्रशासन पर किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं. अंततः जनता ही मुखिया होती है। +*यदि मैं एक तानाशाह होता तो धर्म और राष्ट्र अलग-अलग होते. मैं धर्म के लिए जान तक दे दूंगा. लेकिन यह मेरा नीजी मामला है। राज्य का इससे कुछ लेना देना नहीं है। राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष कल्याण, स्वास्थ्य, संचार, विदेशी संबंधो, मुद्रा इत्यादि का ध्यान रखेगा, लेकिन मेरे या आपके धर्म का नहीं. वो सबका निजी मामला है। +*भ्रष्टाचार को पकड़ना बहुत कठिन काम है, लेकिन मैं पूरे जोर के साथ कहता हूँ कि यदि हम इस समस्या से गंभीरता और दृढ संकल्प के साथ नहीं निपटते तो हम अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में असफल होंगे. +*हम सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए शांति और शांतिपूर्ण विकास में विश्वास रखते हैं। +| location नई दिल्ली में उद्धृत किया गया। + + +मोहनदास करमचन्द गांधी 2 अक्टूबर 1869 30 जनवरी 1948) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व��यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। +==महात्मा गांधी पर महापुरुषों के विचार== +* भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था। अल्बर्ट आइंस्टीन +* ईसा मसीह ने हमें लक्ष्य दिए और महात्मा गांधी ने हमें उन्हें प्राप्त करने के तरीके बताए। मार्टिन लूथर किंग जूनियर +* अनुशासन केवल सैनिक के लिए नहीं होता है बल्कि जीवन के हर क्षेत्र के लिए होता है। +* अनुशासन के बिना न तो राष्ट्र, न ही कोई संस्था और न ही कोई परिवार चल सकता है। अनुशासन इन सबको बांधे रखता है और इनके प्रगति की सीढ़ी है। +* बाहरी दुनिया की तरह अपने मन और शरीर को भी अनुशासन में रखना चाहिए। +* किसी भी राष्ट्र का परिचय वहां के अनुशासित लोगो से पता चलता है। +* अनुशासन शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के होते है। ये दोनों ही किसी भी व्यक्ति के प्रशिक्षण के लिए ज़रूरी होता है। +* अगर आत्मा और इस्वर एक है तो फिर अछूत और अस्पृश्य कोई हो ही नहीं सकता है। +* हिन्दुस्तान सबसे पहले अपनी पोशाक और भाषा को अपनाये। +* गांव की जरुरत की हर चीज़ गांव में ही बननी चाहिए। खादी इसकी पहली सीढ़ी है। +* खादी का मतलब है देश के सभी लोगो की आर्थिक समानता और स्वतन्त्रा का आरंभ है। +* जब यह शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है तो भय किसका और किसलिए। +* अभय रहने से मनुष्य का कोई भी, कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है। +* बल तो निडरता में है, आपके शरीर से इसका कोई मतलब नहीं है। +* जो भगवान पर विश्वास रखते है वे अभय हो जाते है। +* संसार में आधे से अधिक लोग इस लिए सफल नहीं हो पाते है। क्योकि उनमें साहस का संचार नहीं हो पता है और वे भयभीत हो जाते है। +* ग़लती मान लेना, झाड़ू लगाने के समान है। यह गंदगी को बहारकर, सतह को साफ़ कर देता है। +* अपनी गलती से इन्सान बहुत कुछ सीख सकता है, बशर्ते वह इसके लिए तैयार हो। +* गाय जैसे निरीह और उपयोगी पशु का वध करना राष्ट्र के लिए आत्मधात के समान है। +* गो-सेवा करना अपने आप की सेवा करने के समान है। +* गाय हिन्दू-जीवन की अहिंसकता और सादगी का प्रतीक है। +* असहयोग एक बड���ा अस्त्र है। असहयोग का पालन तलवार की धार पर चलने के समान है। +* असहयोग कोई निष्क्रिय (आलसी) की स्थिति नहीं है बल्कि एक सक्रिय स्थिति है। यह हिंसा से कही अधिक क्रियाशील है। +* मैं काम करने के तरीकों, पद्धतियों और प्रणालियो से असहयोग करता हु, न की मनुष्य से। +* असहयोग में तो इतनी शक्ति है की छोटी से छोटी इकाइयो (परिवार) को भी भंग कर सकता है। +* चिंता एक डायन है जो शरीर को खा जाती है। +* चिंता मुक्ति पूर्ण समपर्ण से संभव है। +* चिंता मनुष्य की शक्तियो को शून्य कर देती है, इसलिए इसे त्याग देना चाहिए। +* तप से संसार बड़ी से बड़ी सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। +* तप से मनुष्य मन के उच्च स्तर तक पहुंच सकता है। +* उस जीवन को नष्ट करने का हमें कोई अधिकार नहीं है जिसके बनाने की शक्ति हम में न हो। +* अहिंसा का नियम है कि मर्यादा पर कायम रहना चाहिए। कभी भी अभिमान नहीं करनी चाहिए और हमेशा नर्म रहना चाहिए। +* जहां अहिंसा है, वहां धीरज, भीतरी शांति, भले बुरे का ज्ञान और जानकारी भी है। +* अहिंसा निर्बल और डरपोक का नहीं, वीर का धर्म है। +* किसी को कभी भी नहीं मारना और किसी को कभी नहीं सताना ही अहिंसा है। +* अहिंसा में इतनी ताकत है कि यह आपके विरोधियों को भी मित्र बना लेती है। +* अहिंसा और कायरता परस्पर विरोधी शब्द है। +* जहां दया नहीं वहां अहिंसा नहीं हो सकती है। जितना ज्यादा दया होगी उतनी ज्यादा अहिंसा होगा। +* जो अहिंसा पर अंत तक डटा रहेगा, उसकी विजय निश्चित है। +* हिंसा का परिणाम जल्दी आता है जबकि अहिंसा का परिणाम देर से आता है। +* उपवास का धमकी के रूप में उपयोग करना बुरा है। +* उपवास तो आखरी हथियार है वह अपनी या दूसरों की तलवार की जगह लेता है। +* उपवास शारीरिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आवश्यक सहयोग है। +* अगर भारत को शांतिपूर्ण सच्ची प्रगति करनी है तो पैसे वाले यह समझ ले कि किसानों में ही भारत की आत्मा बसती है। +* किसानों का शहर की ओर भागना उसकी असफलता का ढिंढोरा है। ऐसा करके वह न तो घर का रहेगा न घाट का। +* आहार संतुलित और विवेकपूर्ण हो तो शरीर में कोई रोग हो ही नहीं सकता है। +* आहार शरीर के लिए है न कि शरीर आहार के लिए। +* पशु-पक्षी स्वाद के लिए भोजन नहीं करते है, न ही वे इतना खाते कि पेट फटने लगे। वे भोजन को स्वयं नहीं पकाते है । प्रकृति जैसा देती है वैसे ग्रहण कर लेते है। +* संसार में जितने लोग भूख से नहीं मरते उससे ज्यादा लोग अधिक भोजन करने से मरते है। +* इंसान की शारीरिक बनावट देखने से यह पता चलता है प्रकृति ने मनुष्य को शाकाहारी बनाया है। +* अगर हम आहार विवेकपूर्ण नहीं करेंगे तो हममें और पशु में कोई अंतर नहीं है। +* जब तक आहार में स्वाद की प्रधानता रहेगी तब तक उसमे सात्विकता आ ही नहीं सकता है। +* मै उच्च शिक्षा उसी को कहूंगा जिसे पाकर इन्सान विनम्र, परोपकारी, सेवाभावी और कार्यतत्पर बन जाय। +* क्रांति तो युगों के बाद आती है और वह मनुष्य को सजग कराने और सुधारने के लिए आती है। +* मनुष्य को प्रयत्न करना चाहिए और ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। +* जो ईश्वर में विश्वास रखता है, वह बीमारी का भी सद्पयोग कर लेता है। वह बीमारी से कभी नहीं हारता है। +* मै मानवता की सेवा के माध्यम से ही ईश्वर का साक्षात्कार का प्रयास कर रहा हु। क्योकि मै जानता हुं कि ईश्वर न तो स्वर्ग में है और न ही पाताल में है, वह हर किसी के दिल में मौजूद है। +* मन पर निंयत्रण करना सबसे कठिन काम है। इसके लिए उत्तम उपाय गीता का अध्ययन करना है। +* देशभक्ति मनुष्य का पहला गुण है। इसके बिना वह दुनियाँ में सिर उठाकर नहीं चल सकता। +* दुनिया में देशभक्तो ने आज़ादी का मार्ग प्रशस्त किया है। +* क्रोध से बदले की भावना बढ़ती है और उसके भयंकर परिणाम होते है। +* क्रोध पाप का मूल कारण है। +* क्रोध ख़ुद को तो जलाता ही है आसपास के संबद्ध लोगो भी पीड़ित कर देता है। +* क्रोध एक प्रकार का रोग है जिसे क्षणिक पागलपन भी कह सकते है। +* क्रोध के बिना मनुष्य देवता के सामान है। +* देश के युवक अगर चाहें तो वे बड़े से बड़े सत्कार्य आसानी से सम्पन्न कर सकते है। +* युवकों को अपने जोश का उपयोग होश के साथ करना चाहिए। +* अगर कोई मनुष्य अपना काम नियमित रूप से नहीं करता है, तो उसे सफ़लता नहीं मिल सकती। +* नियमितता सफलता की जननी है। +* नियमितता जीवन की एक कसौटी है। +* बूंद-बूंद से तालाब इसलिए भरता है क्योकि यह काम नियमित रूप से होता है। +* नियमितता के द्वारा मनुष्य बड़े से बड़ा सम्पन्न कर सकता है। +* चरखा भारत की आर्थिक आज़ादी का प्रतीक है। +* चरखे के बिना दूसरे उद्योग नहीं चल सकते है, वैसे ही जैसे यदि सूरज डूब जाए तो दूसरे ग्रह भी डूब जायेगे। +* चरखा तो लंगड़े की लाठी है। +* खेती किसान का धड़ है और चरखा हाथ-पैर। +* चरित्र की संपत्ति दुनिया की सारी दौलत से बढ़कर है। +* चरित्र की रक्षा किसी भी मूल्य पर ह��नी चाहिए। +* चरित्र की सीढ़ी है सदाचरण। +* चरित्र जीवन की सबसे मूल्यवान वस्तु है। +* वयक्ति के चरित्र से ही राष्ट्र का अंदाजा लगाया जा सकता है। +* शिक्षा का उद्देश्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। शिक्षा वही है जिसके द्वारा साहस का विकास हो, गुणों में वृद्धि हो और ऊंचे उदेश्यों के प्रति लगन जागे। +* धर्म की परीक्षा दुःख में ही होती है। +* जो धर्म सत्य और अहिंसा का विरोधी है, वह धर्म नहीं है। +* धर्म तो उत्कृठ श्रद्धा का नाम है। +* संकट के समय धर्म ही मनुष्य को उबार सकता है। +* धर्म भगवान तक पहुँचने का सेतु है। +* धर्महीन मनुष्य बिना पतवार की नाव के समान है। +* प्रार्थना जीभ से नहीं होता है, ह्रदय से होता है। जो गूंगे और मूढ़ है, वे भी प्रार्थना कर सकते है। +* प्रार्थना धर्म का प्राण और सार है। +* प्रार्थना के बिना भीतरी शांति नहीं मिल सकती है। +* प्रार्थना अपनी योग्यता और दुर्बलता को स्वीकार करना है। +* प्रार्थना में असीम शक्ति है। +* प्रार्थना तभी प्रार्थना है, जब वह अपने आप से निकलती है। +* प्रार्थना पश्चाताप का एक चिन्ह है। +* प्रार्थना आत्मशुद्धि का सहज और सरल साधन है। +* मुझे शांति और सफलता प्रार्थना के द्वारा ही मिली है। +* प्रार्थना में तल्लीन हो जाना ही असली उपासना है। +* नम्रता से मनुष्य के ऐसे बहुत से काम बन सकते है, जो कठोरता से नहीं होते है। +* नम्रता मनुष्य का आभूषण है। +* नम्रता अहिंसा का ही हिस्सा है। +* पुस्तकों का मूल्य रत्नो से भी अधिक है। क्योकि बाहरी चमक-दमक दिखाते है जबकि पुस्तकें अंतकरण को प्रकाशित है। +* गीता का मेर ऊपर काफी प्रभाव रहा है। +* मेरे लिए तुलसी दास की रामायण भक्तिरस का बेस्ट ग्रन्थ है। +* जहां प्रेम है, वहां डर का स्थान कहां ? +* प्रेम बारे में मेरा मानना यह है कि प्रेम फूल से भी कोमल और व्रज से ज्यादा कठोर होता है। +* ब्रह्मचर्य का ठीक मतलब ब्रह्म की खोज है और यह खोज इंद्रियों के सम्पूर्ण संयम के बिना असंभव है। +* ब्रह्मचर्य भी अन्य व्रतों के समान ही सत्य से निकलता है। +* अहिंसा का पूरा पालन ब्रह्मचर्य के बिना नामुमकिन है। +* ब्रह्मचर्य का पालन मन, वचन और कर्म से करना चाहिए। +* ब्रह्मचारी को जीने के लिए ही खाना चाहिए। +* ब्रह्मचर्य जीवन की पहली सीढ़ी है। इसके बिना आदमी शिखर तक नहीं पहुंच सकता है। +* माता-पिता कभी संतान का बुरा नहीं चाहते है इसलिए उनके बातो की कद्र करना च���हिए। +* माता-पिता की सेवा पुत्र का प्रथम कर्तव्य है। +* माता-पिता का ऋण संतान जिंदगी भर चूका नहीं सकता है। +* संतान के लिए तो माता-पिता ही प्रथम गुरु और पूजनीय है। +* बुद्धि के बिना मनुष्य अपंग के समान है। +* पहला ह्रदय है उसके बाद बुद्धि है। +* जिसमे शुद्ध श्रद्धा है उसकी बुद्धि तेजस्वी होगी। +* बुद्धि का दुरुपयोग हुआ तो दुनियाँ में बहुत सारे अनर्थ हो सकते हैं। +* मौन से कलह का नाश होता है। +* बोलना एक सुन्दर कला है लेकिन मौन उससे भी ऊंची कला है। +* मौन के द्वारा इन्द्रियों पर नियंत्रण आसान हो जाता है। +* लड़ाई विनाश की जड़ है। +* लड़ाई चाहें दो व्यक्तियो के बीच हो या दो राष्ट्रों के बीच में हो, उसकी तह में बर्बादी ही छिपा रहता है। +* लड़ाई ने बड़े-बड़े राष्ट्रों के नामोनिशान मिटा देता है। +* लड़ाई सभी उपद्रवों की जननी है। +* लड़ाई मनुष्य की सबसे बरी शत्रु है। +* जिंदगी और मौत एक ही सिक्के के दो पहलु है। बिना उथल-पुथल के जीवन किस काम का। +* मनुष्य के विकास के लिए जीवन जितनी ही मृत्यु का होना आवश्यक है। +* मौत ईश्वर की अमर देंन है। +* मौत कभी टाली नहीं जा सकती है, वह तो हमारा मित्र है। +* मृत्यु जीवन की जननी है। +* मृत्यु केवल निद्रा और विस्मृति है। +* विद्यार्थी को आलस्य से दूर रहना चाहिए। +* विद्यार्थी भविष्य की आशा है। +* विद्यार्थी-जीवन में पान, सिगरेट या शराब की आदत डालना आत्मघात के सामान है। +* विद्यार्थी खादी पहने और स्वदेशी वस्तु का ही उपयोग करे। +* विद्यार्थी को किसी न किसी महान व्यक्ति को अपने जीवन का आदर्श बनाए। +* विश्वास से पहाड़ भी हिल सकता है। +* विश्वास के बिना मनुष्य उस बूंद के समान है जो समुद्र से अलग हो चुका है, जिसका नष्ट होना निश्चित है। +* विश्वास के बिना कोई भी भी व्यवहार और व्यापार नही चल सकता है। +* जिस शिक्षा से आर्थिक, समाजिक और आध्यत्मिक मुक्ति मिलती है, वही वास्तविक शिक्षा है। +* शिक्षा एक योग है। +* शिक्षा का उदेश्य आत्मोन्नती होनी चाहिए। +* संगीत के बिना शिक्षा अधूरी है। +* शिक्षा का विषय चरित्र का निर्माण करना है। +* शिक्षा के बिना मानव मस्तिष्क का विकास नहीं सकता है। +* शिक्षा ऊंचा गुण है, लेकिन चरित्र उससे ऊपर है। +* कोई भी प्रतिज्ञा करना या व्रत करना बलवान का काम है, निर्बल का नहीं। +* संयम के बिना व्रत असंभव है। संयम से व्रत पूरा करने बल मिलता है। +* जो मनुष्य मन से दुर्बल होता है वह संयम का पालन नहीं कर पाता है लेकिन जिसके मन में लगन हो, वह अभ्यास से संयम-पालन सीख लेता है। +* विवाह दो वयक्तियों का आधात्मिक और शारीरिक मिलन है। +* विवाह की उपेछा नहीं करनी चाहिए, उसे जीवन में उचित स्थान देना चाहिए। +* विवाह की जिम्मेदारियों से भागना कायर का काम है। +* पृथ्वी सत्य पर टिकी हुई है। +* अगर सम्पूर्ण सत्य का पालन किया जाय, तो क्या नहीं हो सकता है। +* अगर हमारे जीवन में सच्चाई है, तो यह लोगों को प्रभावित करेगा। +* सत्य एक विशाल वृक्ष है। जिसकी जैसे-जैसे सेवा की जाती है वैसे-वैसे उसमें अनेक फल आते हुए दिखाई देते है। +* सत्य के पालन में ही शांति है। +* अपने आप को जान लेना सत्य को पहचानना है। +* व्यायाम, शरीर के लिए उतना ही आवश्यक है जितना हवा, पानी और भोजन। +* व्यायाम शारीरिक स्वास्थ की कुंजी है। +* व्यायाम के बिना दिमाग वैसे ही कमजोर पड़ जाता हैं, शरीर। +* तंदुरुस्त दिमाग का तंदुरुस्त शरीर में होना ही निरोगता है। +* शारीरिक और मानसिक व्यायाम एक सीमा के अंदर करना चाहिए। +* शाकाहार से हमारे अंदर हिंसात्मक विचार नहीं आते। +* शाकाहार मनुष्य को निरोग और दीर्धजीवी बनाता है। +* शाकाहार एक स्वाभाविक वृति है। +* सत्याग्रह बल-प्रयोग के बिलकुल विपरीत है। हिंसा के पूर्ण त्याग से ही सत्याग्रह की कल्पना की जा सकती है। +* सत्याग्रह करने से पहले मनुष्य को बहुत-सी तैयारियां करनी पडती है जिन्हे समझकर ही आगे बढ़ना चाहिए। +* मैंने बहुत सारे प्रयोग के बाद जिन दो अस्त्रों को पाया है, वह है सत्याग्रह और असहयोग। +* शांति बाहर की किसी चीज़ से नहीं मिलती। वह आंतरिक है। +* शांति तभी मिल सकती है, जब मनुष्य का वृतियों पर नियंत्रण हो। +* अपनी आवश्यकताए कम करके आप वास्तविक शांति प्राप्त कर सकते है। +* संसार की उथल-पुथल में रहते हुए भी जो मनुष्य अपनी मानसिक शांति को क़ायम रख सके, वही सच्चा पुरुष है। +* जिसके पास श्रद्धा है उनके कंधों से सारी चिंताएं मिट जाती है। +* जहां श्रद्धा नहीं, वहां धर्म नहीं। धर्म के मूल में श्रद्धा ही है। +* श्रद्धा का अर्थ है आत्म्विश्वास, और आत्म्विश्वास का अर्थ है ईश्वर पर विश्वास। +* श्रद्धा की कसौटी यह है कि अपना फर्ज अदा करने के बाद जो भी भला या बुरा होता है, उसे इन्सान स्वीकार कर ले। +* श्रद्धा के बिना ज्ञान अधूरा है। +* श्रद्धावान वही है जो कठिन परिस्तितियों में भी डिगे नहीं। +* किसी भी भारतीय को स्वदेशी वस्तु के उपयोग के लिए उपदेश देना पड़े तो यह उसके लिए शर्म की बात है। +* स्वदेशी-व्रत निर्वाह तभी हो सकता है। जब विदेशी चीज़ का इस्तमाल न किया जाय। +* स्वदेशी की भावना संसार के सभी स्वतंत्र देशों में है। +* अपना शरीर, भोजन और पानी के साथ-साथ अपने आसपास के स्थानों को भी साफ़ रखें। +* भगवान के बाद सफाई ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। +* सेवा तो मूक होना चाहिए, उसका ढ़िढोरा पीटना चाहिए। +* जो सेवा करेंगे उनका पतन नहीं हो सकता है। +* सेवा का भी मोह हो सकता है। मोह भाव छोड़कर ही सच्ची सेवा की जा सकती है। +* संसार में सेवा से बढ़कर मनुष्य को द्रवित करने वाली कोई और चीज़ नहीं है। +* स्त्री को अबला कहना उसका अपमान है। +* स्त्री पुरुष की ग़ुलाम नहीं बल्कि सहधर्मणि, अर्धनगिनी और मित्र है। +* स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक है। +* किसी भी पुरुष का पर स्त्री से सम्बन्ध जोड़ना पाप है। +* भारत के धर्म और संस्कृति को स्त्रीयों ने टिका रखा है। +* स्त्री चाहें तो संसार को आनंदमय बना सकती है। +* अगर स्वास्थ्य ठीक रखना है तो नियमित और सादा आहार ले और नशीली चीजों से दूर रहे। +* शरीर संसार का एक छोटा सा नमूना है। +* शरीर का निरोग और दीर्घायु होना विषय-रहित परिणाम है। +* स्वस्थ वही है जो बिना थकान के दिन-भर शारीरिक और मानसिक मेहनत कर सके। +* शरीर के स्वस्थ होने का मतलब यह है कि मनुष्य की इंद्रिया और मन भी स्वस्थ हो। +* अच्छे स्वास्थ्य के लिए ब्रम्हचर्य का पालन बहुत जरुरी है। +* हमें यह शरीर इसलिए मिला है कि हम इसे भगवान की सेवा में लगाएं। हमारा यह फर्ज़ है कि हम इसे शुद्ध और स्वस्थ रखें। जब समय आये इसे उसी भांति शुद्ध रूप में लौटा सके। +* इसे मै अच्छा संकेत मानता हु कि हरिजन खुद जाग गये है। +* केवल जन्म के कारण किसी मनुष्य अछूत नहीं माना जा सकता है। +* हरिजनों को खूब जोश के साथ अपने अंदर सुधार करना चाहिए जिससे किसी को यह कहने का हक़ न रहे कि उसके अंदर यह बुराई है। +* ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती। +* ज्ञान ही प्रकाश है। उसके बिना हम एक कदम भी नहीं चल सकते है। +* जो ज्ञान केवल दिमाग में ही रह जाता है और हृदय में प्रवेश नहीं नहीं कर पाता है। वह जीवन के अनुभव में व्यर्थ सिद्ध होता है। +* वे ईसाई हैं, इससे क्या हिन्दुस्तानी नहीं रह और परदेशी बन गये ? +* कितने ही नवयुवक शुरु में निर्दोष होते हुए भी झूठी शरम के कारण बुराई में फँस जाते होगे । +* अहिंसा एक विज्ञान है। विज्ञान के शब्दकोश में 'असफलता' का कोई स्थान नहीं। महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ ८१) +* सार्थक कला रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५६) +* एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १५९) +* मनुष्य अक्सर सत्य का सौंदर्य देखने में असफल रहता है, सामान्य व्यक्ति इससे दूर भागता है और इसमें निहित सौंदर्य के प्रति अंधा बना रहता है। महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०) +* चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो मातापिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७) +* विश्व के सारे महान धर्म मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २५७) +* अधिकारों की प्राप्ति का मूल स्रोत कर्तव्य है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७) +* सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। 'अहिंसा' ही वह एकमात्र शक्ति है जिससे हम शत्रु को अपना मित्र बना सकते हैं और उसके प्रेमपात्र बन सकते हैं महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २४३) +* नि:शस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ २५२) +* आत्मरक्षा हेतु मारने की शक्ति से बढ़कर मरने की हिम्मत होनी चाहिए। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३) +* वीरतापूर्वक सम्मान के साथ मरने की कला के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए परमात्मा में जीवंत श्रद्धा काफी है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२) +* क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३९९) +* एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और गलत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है। महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ १५८) +* आपकी समस्त विद्वत्ता, आपका शेक्सपियर और वड्सवर्थ का संपूर्ण अध्ययन निरर्थक है यदि आप अपने चरित्र का निर्माण व विचारों क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७६) +* वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब 'भाषा' है। एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, १९५८ पृष्ठ १८) +* स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३५६) +* निर्मल चरित्र एवं आत्मिक पवित्रता वाला व्यक्तित्व सहजता से लोगों का विश्वास अर्जित करता है और स्वत अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ५७) +* जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन भक्ति है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ४३) +* अधिकार-प्राप्ति का उचित माध्यम कर्तव्यों का निर्वाह है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १७९) +* उफनते तूफान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढना होगा। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २८६) +* रोम का पतन उसका विनाश होने से बहुत पहले ही हो चुका था। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३४९) +* जहां तक मेरी दृष्टि जाती है मैं देखता हूं कि परमाणु शक्ति ने सदियों से मानवता को संजोये रखने वाली कोमल भावना को नष्ट कर दिया है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ १) +* मेरे विचारानुसार गीता का उद्देश्य आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताना है। द मैसेज ऑफ द गीता, १९५९, पृष्ठ ४) +* गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २७८) +* मैं यह अनुभव करता हूं कि गीता हमें यह सिखाती है कि हम जिसका पालन अपने दैनिक जीवन में नहीं करते हैं, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३११) +* हजारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २५२) +* साहस कोई शारीरिक विशेषता न होकर आत्मिक विशेषता है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ६१) +* संपूर्ण विश्व का इतिहास उन व्यक्तियों के उदाहरणों से भरा पडा है जो अपने आत्म-विश्वास, साहस तथा दृढता की शक्ति से नेतृत्व के शिखर पर पहुंचे हैं। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३) +* सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २४८) +* शांति का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। शांति की अपेक्षा सत्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १५३) +* हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६१) +* यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए। महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ ३७) +* आत्मा की शक्ति संपूर्ण विश्व के हथियारों को परास्त करने की क्षमता रखती है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १२१) +* किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेडियों में होती है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३१३) +* ईश्वर इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३४) +* नारी को अबला कहना अपमानजनक है। यह पुरुषों का नारी के प्रति अन्याय है। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३३) +* गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अथों में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७) +* यदि अंधकार से प्रकाश उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७) +* प्रेम और एकाधिकार एक साथ नहीं हो सकता है। महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ११) +* प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २६४) +* यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २०६) +* मनुष्य अपनी तुच्छ वाणी से केवल ईश्वर का वर्णन कर सकता है। ट्रुथ इज गॉड, १९९९ पृष्ठ ४५) +* यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२) +* युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २) +* जिम्मेदारी युवाओं को मृदु व संयमी बनाती है ताकि वे अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने के लिए तैयार हो सकें। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७१) +* बुद्ध ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २९५) +* हम धर्म के नाम पर गौ-रक्षा की दुहाई देते हैं किन्तु बाल-विधवा के रूप में मौजूद उस मानवीय गाय की सुरक्षा से इंकार कर देते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) +* अपने कर्तव्यों को जानने व उनका निर्वाह करने वाली स्त्री ही अपनी गौरवपूर्ण मर्यादा को पहचान सकती है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९४) +* स्त्री का अंतर्ज्ञान पुरुष के श्रेष्ठ ज्ञानी होने की घमंडपूर्ण धारणा से अधिक यथार्थ है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५१) +* जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता। महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १६) +* समुद्र जलराशियों का समूह है। प्रत्येक बूंद का अपना अस्तित्व है तथापि वे अनेकता में एकता के द्योतक हैं। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ १४७) +* पीडा द्वारा तर्क मजबूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंतर्दृष्टि खोल देती है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२) +* किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के खजाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है। महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ १६५) +* विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नींव ठोस हो। एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ पृष्ठ २७) +* मेरे विचारानुसार मैं निरंतर विकास कर रहा हूं। मुझे बदलती परिस्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना आ गया है तथापि मैं भीतर से अपरिवर्तित ही हूं। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४) +* प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४) +* सत्याग्रह और चरखे का घनिष्ठ संबंध है तथा इस अवधारणा को जितनी अधिक चुनौतियां दी जा रही हैं इससे मेरा विश्वास और अधिक दृढ होता जा रहा है। महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २६४) +* हमें बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे वे श्रम का तिरस्कार करें। एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ २०) +* अंतत अत्याचार का परिणाम और कुछ नहीं केवल अव्यवस्था ही होती है। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ १०२) +* हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर ���धारित होना चाहिए जिसमें मालिक मजदूर एवं जमींदार किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २५५) +* किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद न हो। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ६७) +* यदि शक्ति का तात्पर्य नैतिक दृढता से है तो स्त्री पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ है। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३) +* स्त्री पुरुष की सहचारिणी है जिसे समान मानसिक सामथ्र्य प्राप्त है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२) +* जब कोई युवक विवाह के लिए दहेज की शर्त रखता है तब वह न केवल अपनी शिक्षा और अपने देश को बदनाम करता है बल्कि स्त्री जाति का भी अपमान करता है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९८) +* धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) +* स्त्री जीवन के समस्त पवित्र एवं धार्मिक धरोहर की मुख्य संरक्षिका है। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९३) +* महाभारत के रचयिता ने भौतिक युद्ध की अनिवार्यता का नहीं वरन् उसकी निरर्थकता का प्रतिपादन किया है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ९७) +* स्वामी की आज्ञा का अनिवार्य रूप से पालन करना परतंत्रता है परंतु पिता की आज्ञा का स्वेच्छा से पालन करना पुत्रत्व का गौरव प्रदान करती है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) +* भारतीयों के एक वर्ग को दूसरेे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनानेे में ही उपयुक्त होगी। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३५२) +* स्वतंत्रता एक जन्म की भांति है। जब तक हम पूर्णत स्वतंत्र नहीं हो जाते तब तक हम परतंत्र ही रहेंगे। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३११) +* आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और सुनहरी खामोशी को पीतल के कोलाहल और शोरगुल में परिवर्तित करना सिखाया है। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६०) +* मनुष्य तभी विजयी होगा जब वह जीवन-संघर्ष के बजाय परस्पर-सेवा हेतु संघर्ष करेगा। महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ३६) +* अयोग्य व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी दूसरे अयोग्य व्यक्ति के विषय में निर्णय दे। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३) +* धर्म के बिना व्यक्ति ���तवार बिना नाव के समान है। महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३) +* अहिंसा पर आधारित स्वराज्य में, व्यक्ति को अपने अधिकारों को जानना उतना आवश्यक नहीं है जितना कि अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना। माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२) +* मजदूर के दो हाथ जो अर्जित कर सकते हैं वह मालिक अपनी पूरी संपत्ति द्वारा भी प्राप्त नहीं कर सकता। महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३३) +* अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४) +* पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंत सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४) +* थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है। +* पूर्ण धारणा के साथ बोला गया "नहीं" सिर्फ दूसरों को खुश करने या समस्या से छुटकारा पाने के लिए बोले गए “हाँ” से बेहतर है। +* पूंजी अपने-आप में बुरी नहीं है, उसके गलत उपयोग में ही बुराई है। किसी ना किसी रूप में पूंजी की आवश्यकता हमेशा रहेगी। +* मैं मरने के लिए तैयार हूँ, पर ऐसी कोई वज़ह नहीं है जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ। +* जब मैं निराश होता हूँ, मैं याद कर लेता हूँ कि समस्त इतिहास के दौरान सत्य और प्रेम के मार्ग की ही हमेशा विजय होती है। कितने ही तानाशाह और हत्यारे हुए हैं, और कुछ समय के लिए वो अजेय लग सकते हैं, लेकिन अंत में उनका पतन होता है। इसके बारे में सोचो- हमेशा। +* उपदेश करने से पहले खुद के गुण देखने चाहिए। +* जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है। + + +* डॉन को तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस ढूँढ रही है, पर डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। +डॉन डॉन के दुश्मन की सबसे बड़ी गलती यह है, की वह डॉन का दुश्मन है। + + +नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है: +कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें। + + +आचार्य रामचन्द्र शुक्ल वाल्मीकीय रामायण को आर्य काव्य का आदर्श मानते हैं। ’मानस‘ में तुलसीदास धर्मोपदेष्टा और नीतिकार के रूप में सामने आते हैं। वह ग्रंथ एक धर्मग्रंथ के रूप में भी लिखा गया है। +वास्तव में ’रामायण‘ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का अमृतमय रूप है तो ’रामचरितमानस‘ रामभक्ति की श्रद्धा की सरयू एवं भक्ति की भागीरथी है। +’रामचरितमानस‘ शाश्वत जीवन मूल्यों का आकाशदीप है। प्रत्येक संस्कृति के कुछ ऐसे शाश्वत नियम, उपनियम एवं परंपराएँ होती हैं, जो इसकी आधारशिला होती है। व्यक्ति के निजी जीवन, समाज एवं राष्ट्र को निर्मल, समुन्नत एवं आदर्शलक्षी बनाने के लिए ऐसे नियम विवेकपूर्ण जीवनरीति-नीति के मार्गदर्शक होते हैं। ऐसे मानदंड निर्धारित करने में धर्मग्रंथों, शास्त्रग्रंथों एवं जीवनमूल्यनिष्ठ साहित्यिक रचनाएँ सहायक होती हैं। +तुलसीकृत रामचरितमानस उनकी विराट् प्रतिभा का साधनाजन्य वह पुरस्कार है, जो व्यक्ति के इहलोक एवं परलोक सुधारने की अद्वितीय क्षमता रखता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ’अग्निपुराण‘ के वचन का उल्लेख करते हुए कहा है, ’’नरत्वं दुलर्भं लोके विद्या सुदुर्लभा, कवित्वं दुलर्भं तत्र, शक्तिस्तत्र दुलर्भा।‘‘ महाकवि तुलसीदास को उक्त चारों विभूतियाँ परिप्राप्त थीं और इन का सदुपयोग उन्होंने ’सर्वजनहिताय‘ ही किया। +रामचरित मानस में शाश्वत मूल्यचेतना== +तुलसी का साहित्यिक दृष्टिकोण कलालक्षी नहीं, जीवनलक्षी था। उन्होंने उस भक्ति को आदर्श स्वरूप माना, जिसमें श्रेय एवं प्रेय का समन्वय हो। तुलसी कभी किसी वाद के चौखटे में परिबद्ध नहीं रहे, क्योंकि वे सत्यग्रहणलक्षी साधक थे। इसलिए वे मनुष्य की केन्द्रीय स्थिति एवं जीवन की सार्थकता विषयक एक समन्वित दृष्टिकोण ’रामचरितमानस‘ में प्रस्तुत कर सके। विविध आदर्शों एवं समन्वयतात्मक दृष्टि के कारण ही तुलसी का लोकनायकत्व स्वयं सिद्ध होता है। वास्तव में गोस्वामी तुलसीदास जी ने हिन्दू धर्म में निरन्तर उत्पन्न हो रहे मत-मतान्तरों, सम्प्रदायों और सामाजिक वैषम्य को दूर करके एक आदर्श समाज की कल्पना रामचरित मानस में की हैं । वे शुभ को ही जीवन का ’मूल्य‘ मानते हैं इसलिए उनका साहित्य मानवमूल्यों के जय जयकार के प्रति समर्पित है। +पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन के मधुर आदर्श तथा उत्सर्ग की भावना ’रामचरितमानस‘ में सर्वत्र बिखरी पडी है। तुलसी की काव्य चेतना में जीवन मूल्यों एवं मानव मूल्यों का समन्वय है और यह मूल्य निरूपण भारतीय संस्कृति के उदात्त मूल्यों एवं नैतिकता के आदर्शों से अनुप्राणित है। कर्त्तव्य परायणता, शिष्टाचार, सदाचरण, कर्मण्यता, निष्कपटता, कृतज्ञता, सच्चाई, न्यायप्रियता, उत्सर्ग ���ी भावना समदृष्टि, क्षमा आदि नैतिक मूल्यों का इसलिए भक्ति काव्य में अग्रस्थान प्राप्त किए हुए दिखाया गया है, ताकि समाज, राजनीति एवं लोकजीवन उन्नत बने।‘ +’रामचरितमानस‘ में जीवन मूल्यों का क्षेत्र सीमित नहीं है। उनमें वैश्विक दृष्टि है। मानव मात्र के कल्याण की कामना है। जीवन मूल्य स्थान, काल के बंधनों से मुक्त स्वस्थ समाज एवं कल्याणकारी राजनीति की स्थापना में सहायक एवं मार्गदर्शक सिद्ध हो सकते हैं। +’रामचरितमानस‘ में धार्मिक-दार्शनिक, सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन मूल्यों का निरूपण सुंदर ढंग से हुआ है। +धर्म का उद्देश्य है मनुष्य को शुभत्व एवं शिवत्व की राह दिखा कर आत्मोन्नति की ओर अग्रसर कराना। इसके लिए तप और त्याग आवश्यक है। तप की महत्ता बतानेवाली अनेक उक्तियाँ ’रामचरितमानस‘ में मिलती हैं जैसे +तुलसीदास जी ने तप का महत्त्व निरूपित करने के लिए ही वाल्मीकि, अत्रि, भरद्वाज, नारद आदि को तपस्यालीन चित्रित किया है। +त्याग का मूर्तिमंत उदाहरण यह है बंधुत्रय राम, लक्ष्मण एवं भरत। चक्रवर्ती होने वाले राम वनवासी हो जाते हैं। लक्ष्मण अपने दाम्पत्य सुख की बलि देकर भ्रातृसेवा का त्यागदीप्त जीवनमार्ग अपनाता है और भरत महल में प्राप्त राज्य में लक्ष्मी को तृणवत् मानकर भाई को ढूँढने निकल पडता है। तुलसीदास ने भरत के इस त्यागपूर्ण व्यक्तित्व को प्रशंसित करते हुए कहा है - +सामान्य धर्म के दस अंग माने गये हैं। ’रामचरित मानस‘ में तुलसीदास जी ने धर्म के इन सभी अंगों को भली-भाँति प्रतिपादित किया है। परधन हडप लेने की वृत्ति चौर्य कार्य है। तुलसीदास जी कहते हैं - +संयम के लिए इन्दि्रय-निग्रह आवश्यक है। पंचेन्दि्रयों को मनमाना न करने देना ही संयम है। इसलिए संत पुरुष काम-क्रोधादि का परित्याग करते हैं - +सत्य को धर्म का पर्याय मानकर तुलसीदास कहते हैं- ’धरमु न दूसर सत्य समाना।‘ इसी प्रकार परहित और अहिंसा की भावना का निरूपण करते हुए वे कहते हैं - +विश्व का व्यवहार धर्मपालन पर अवलम्बित है। तुलसीदास के मतानुसार धर्म का पालन करने से ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति होती है और सुख-संतोष की अनुभूति होती है - +ऐसी धार्मिकता कष्टसाध्य है। जिसमें +गोस्वामी तुलसीदास ने धर्मरथ के रूपक के माध्यम से धर्म के विभिन्न अंगों का विस्तार से प्रतिपादन किया है। (७/१०३) ’ज्ञानदीपक‘ (लंकाकां��� ८०/३-६) के प्रसंग में भी उन्होंने धर्म के विविध अंगों का परिचय दिया है। जीवन मनुष्य की कडी कसौटी लेता है। रामचरितमानस में वर्णधर्म, आश्रमधर्म, पुत्रधर्म, स्त्रीधर्म, युगधर्म का भी निरूपण किया है। जैसे : +तत्पश्चात् उन्होंने युगविशेष में मनुष्य के हृदय में कौन-सी भावनाएँ धर्म प्रेरक हो सकती हैं, इसका वर्णन किया है। ’रामचरितमानस‘ समानाचरण मूल्यों की दृष्टि से भी एक समन्वय ग्रंथ है। समाज में संत का कार्य संसारियों का मार्गदर्शन बनता है। अतः समाज को शिक्षा देने हेतु तुलसी ने सन्त के लक्षण एवं आचरणों को विस्तार से उल्लेख किया है। जैसे - +तुलसी का संत, शील का सर्वोच्च आदर्श प्रस्तुत करता है। ऐसे संतत्व के लिए संन्यास ग्रहण करना आवश्यक नहीं। तुलसीदास ने भरत, विभीषण, हनुमान आदि में इसी संतत्व के महान् गुणों का निरूपण किया है। संत समाज का उन्नायक होता है और असंत अर्थात् खल प्रगतिपथ में रोडा। असंत के अवगुणों का भी उन्होंने वर्णन किया है। रावण के बारे में तुलसीदास जी ने कहा है - +तुलसीदास जी गुरुशिष्य सम्बन्ध को पावनतम संबंध मानते हैं। गुरु के गरिमामय व्यक्तित्व का उन्होंने प्रभावशाली शब्दों में वर्णन किया है। +कहकर धोखेबाज गुरुओं को उन्होंने आडे हाथों लिया है। गुरु की तरह मैत्री में वफादारी का मूल्य भी सुंदर ढंग से निरूपित किया है। +’रामचरितमानस‘ में राजनीतिपरक मूल्यों का भी तुलसीदास जी ने विशद् निरूपण किया है। ’रामचरितमानस‘ में तुलसी ने तत्कालीन मुगलप्रशासन तंत्र का चित्रण कलियुग के वर्णन के रूप में उत्तरकांड में किया है। उन्होंने नृपतंत्र के रूप में दशरथ के शासनतंत्र की मर्यादाएँ बताई हैं तो दूसरी ओर जनक जैसे दार्शनिक तथा त्यागी सम्राट के राज्य संचालन को भी वर्णित किया है। किन्तु तुलसीदास को राम के शासनतंत्र के समर्थक और रावण के शासनतंत्र के विरोधी हैं। तुलसी ने राजा को प्रजा का प्रतिनिधि माना है। राजा की सर्वोपरि सत्ता को स्वीकार करते हुए भी उन्होंने उसकी निरंकुशता को सह्य नहीं माना है। उन्होंने उसी शासक को सच्चा शासक माना है जो पद को प्रजा की सेवा का निमित्त मानता है। +’राजा‘ को मुख समान होकर सब विधि प्रजा का पोषण करना चाहिए इस बात पर जोर देते हुए कहा है कि - +तुलसीदास ने इसके लिए ’राम-राज्य‘ अथवा कल्याण-राज्य का आदर्श प्रस्तुत किया है। +यह कल्याणकारी राज्य धर्म का राज्य होता है, न्याय का राज्य होता है, कर्त्तव्य-पालन का राज्य होता है। वह सत्ता का नहीं, सेवा का राज्य होता है। इस कल्याणकारी राज्य की झोली में है क्षमा, समानता, सत्य, त्याग, बैर का अभाव, बलिदान एवं प्रजा का सर्वांगीण उत्कर्ष। इस कल्याणकारी राज्य की कल्पना की परिधि में व्यक्ति, परिवार, समाज, राज्य और विश्व का कल्याण समाविष्ट है। इसके केन्द्र में है धर्म जिसे हम वर्तमान के संदर्भ में ’कर्त्तव्य पालन‘ के स्वरूप में भी ले सकते हैं। जहाँ धर्म होगा, वहाँ सत्य होगा, शिवत्व होगा, सौंदर्य होगा, सुख होगा, शान्ति होगी, कल्याण होगा। +तुलसीदास ने देखा कि अपने युग में जनता पारस्परिक कलह, ईर्ष्या, द्वेष और अधर्म में फँसी हुई है। पति-पत्नी, भाई-भाई, राजा-प्रजा, परिवार-कुटुम्ब में छोटी-मोटी बातों पर कलह-विवाद ओर संघर्ष हो रहे हैं। +जहाँ समाज मानस-रोगों से विमुक्त होकर विमलता, शुभ्रता, नीति और धर्म का चरण करे, उसी का नाम कल्याणकारी राज्य। यह कल्याणकारी राज्य अशत्रुत्व और समता का राज्य है। इसके अभाव में राज्य कल्याण राज्य न रहकर अनेक दूषणों से दूषित हो जाता है, जिसकी झाँकी तुलसी ने हमें ’कलि-काल‘ वर्णन में कराई है। +’रामचरित-मानस‘ उन आदर्शों की उर्वर भूमि है, जिसको अपनाने से किसी युग की प्रजा अपने कल्याण की साधना कर सकती है। वैसे तो रामराज्य का वर्णन रामचरितमानसेतर अन्य ग्रंथों में भी मिलता है जैसे भागवत, महापुराण, पद्मपुराण इत्यादि में। किन्तु ’रामचरितमानस‘ के ’उत्तर-कांड‘ में तुलसी ने राम-राज्य अथवा कल्याण-राज्य की परिकल्पना की है पारस्परिक स्नेह, स्वधर्म पालन, धर्माचरण और आत्मिक उत्कर्ष का संदेश, प्रजा एवं प्रजेश की आत्मीयता और आदरभाव, प्रीति एवं नीतिपूर्ण दाम्पत्य जीवन, उदारता एवं परोपकार, प्रजा-कल्याण एवं सुराज्य का संतोषप्रद वातावरण- ये हैं उस धर्मयुक्त कल्याणमय राज्य की विशेषताएँ। रामराज्य के इस चित्रण के साथ तुलसी के आदर्श अथवा कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना सन्निहित है। +रामराज्य का विस्तृत वर्णन हमें ’रामचरितमानस‘ के ’उत्तरकांड‘ में मिलता है। तुलसीदास कहते हैं - +अर्थात् रघुनाथ जी को जिस समय राज्य-तिलक दिया, उस समय त्रिलोक आनंदित हुए और सारे शोक मिट गये। कोई किसी से बैर नहीं रखता और राम के प्रभाव से सब की कुटिलता जाती रही। चारों वर्ण, चारों आश्रम सब अपने वैदिक धर्म के अनुसार चलते हैं। सुख प्राप्त करते हैं, किसी को भय, शोक और रोग नहीं हैं दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्त होकर सब लोग परस्पर स्नेह करने लगे और अपने कुल धर्मानुसार जीवन जीने लगे। +मनुष्यों के नीति पूर्ण जीवन से प्रसन्न प्रकृति ने भी पूर्ण उदारता से फल, फूल इत्यादि देने में कोई कसर नहीं रखी थी। तुलसी कहते हैं - +पर्वतों में से अनेक तरह की मणियों की खानें जगत्-प्राण राम को देखकर प्रकट हो गईं। सब नदियों में सुन्दर जल प्रवाहित होने लगा, जो शीतल, निर्मल और मजेदार था। सागर अपनी सीमा का अनुल्लंघन करते हुए किनारों पर रत्न फेंकते थे। सरोवरों में पंकज खिले थे। पूरा वायुमंडल मनोहर था। +इस प्रकार राम के राज्य में शशि की अमृतमयी किरणों से अवनि परिपूर्ण थी और बादल माँगने पर जलधारा बरसाते थे। +धर्मयुक्त कल्याणकारी राज्य का मूल है प्रजा-कल्याण एवं शासकों की नीतिमता। राम के राजतंत्र में हमें प्रजा-सत्ता के कल्याणमय स्वरूप का दर्शन होता है। राम हमारे सामने कल्याणकारी शासक का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। आदर्श शासक अथवा सरकार वही है, जो प्रजा को सुख प्रदान करे। इसलिए तुलसीदासजी इस बात पर जोर देते हैं कि +जिसमें प्रजा सुखी है, वही कल्याणकारी राज्य है, वही सुराज्य है ’’सुखी प्रजा जनु पाई सुराजु‘‘ पंक्ति में वही भाव ध्वनित है कल्याणकारी राज्य के राजा का प्रधान धर्म है वचन-पालन, सत्यनिष्ठा एवं स्वावलंबन। राम का राजा के रूप में वर्णन करते हुए तुलसीदास ने कहा हैं: +कल्याणकारी राज्य में व्यक्तिगत स्वातंत्र्य का बहुत बडा महत्त्व है। राम-राज्य एक तरह से प्रजा-तंत्रात्मक राज्य था। उसकी प्रजा को संपूर्ण स्वातंत्र्य था। अतः लोग निर्भीक होकर रानी कैकेयी के कलुषित कार्यों की आलोचना कर सकते थे। यहाँ तक कि राम के व्यक्तिगत जीवन की भी। प्रजा की भावना का आदर करते हुए राम ने सीता का परित्याग किया, इससे बढकर शायद ही कोई सबूत किसी राजा की प्रजा-प्रियता एवं महानता का मिल सके। कल्याणकारी राज्य में सत्ता प्रजा की धरोहर मानी जाती है। राम के राज्य में प्रजा अथवा पंचों के परामर्श को महत्त्व मिलता था। राम-राज्य सत्य, दया, नीति और धर्म का राज्य था। किसी भी राज्य के उत्कर्ष के लिए ये चार वस्तुएँ आधार-शिलाएँ हैं। +जहाँ मानव मात्र को समान समझा जाय, वही कल्याकारी राज्य। ’रामचरितमानस‘ में इसका भी चित्र मिलता है। वनगमन के सिलसिले में राम चित्रकूट में डेरा लगाते हैं। उनके आगमन की खबर सुनकर गुह-किरात-शबर इत्यादि वनवासी लोग उनके दर्शनार्थ दौड आते हैं। उस समय राम का स्नेहासिक्त व्यवहार दर्शनीय है - +राज्य बनता है व्यक्तियों से, परिवारों से और समाजों से। रामराज्य अथवा कल्याणकारी राज्य तभी संभव होता है, जब पारिवारिक जीवन शुद्ध और मर्यादायुक्त हो। पिता-पुत्र, पति-पत्नी, सास-बहू इत्यादि का पारस्परिक संबंध एवं व्यवहार यदि मर्यादापूर्ण एवं विवेकयुक्त होगा तो सामाजिक जीवन स्वस्थ रहेगा। भाई-भाई के बीच स्नेह, विश्वास और प्रेम होना चाहिए। राम भरत से कहते हैं - +तुलसी ने स्वराज्य का स्वरूप, सुराज्य का आदर्श, राजा का आचरण, प्रजा का व्यवहार, मंत्री का कर्त्तव्य एवं दूत का धर्म कैसा होना चाहिए आदि के बारे में अपने विचार अनेक स्थलों पर प्रकट किये हैं, जो प्रजा-कल्याण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। राजा-राजा के बीच, सेवक-स्वामी के बीच कैसा व्यवहार अपेक्षित है, उसकी चर्चा तुलसी ने ’रामचरित मानस‘ में स्पष्टतः की है। +इस तरह हम देखते हैं कि तुलसीकृत राम-राज्य के वर्णन में हमें धर्मयुक्त कल्याणलक्षी आदर्श राज्य का दर्शन होता है। राम का राज्य एकतंत्रात्मक था, किन्तु वही सही अर्थ में लोक-तंत्रात्मक था। क्योंकि सत्ता नहीं सेवा, सेवा नहीं जनकल्याण ही राम का आदर्श था। अतः धर्म अथवा कर्त्तव्यपरायणता ही उनका जीवन-मंत्र था। +’तुलसीदासः आज के संदर्भ में‘ पुस्तक में युगेश्वर जी ने उचित ही कहा है कि राष्ट्र की भावात्मक एकता के लिए जिस उदात्त चरित्र की आवश्यकता है, वह रामकथा में है। मानस एक ऐसा वाग्द्वार है जहाँ समस्त भारतीय साधना और ज्ञान परम्परा प्रत्यक्ष दीख पडती है। दूसरी ओर देशकाल से परेशान, दुःखी और टूटे मनों का सहारा तथा संदेश देने की अद्भुत क्षमता है। आज भी करोडों मनों का यह सहारा है। +’रामचरितमानस‘ के संदेश को केवल भारत तक सीमित स्वीकृत करना इस महान् ग्रंथ के साथ अन्याय होगा। ’रामचरितमानस‘ युगवाणी है। विश्व का एक ऐसा विशिष्ट महाकाव्य जो आधुनिक काल में भी ऊर्ध्वगामी जीवनदृष्टि एवं व्यवहारधर्म तथा विश्वधर्म का पैगाम देता है। ’रामचरितमानस‘ अनुभवजन्य ज्ञान का ’अमरकोश‘ है। +’तुलसी के हिय हेरि‘ में तुलसी-साहित्य के मर्मज्ञ आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री जी ने ’आधुनिकता की चुनौती और तुलसीदास‘ शीर्षक अध्याय में कहा है कि तुलसीदास की विचारधारा का विपुलांश आज भी वरणीय है। श्रीराम सगुण या निर्गुण ब्रह्म, अवतार, विश्वरूप, चराचर व्यक्त जगत् या चाम मूल्यों की समष्टि और स्रोत-उन का जो भी रूप आप को ग्राह्य हो) के प्रति समर्पित, सेवाप्रधान, परहित निरत, आधि-व्याधि-उपाधि रहित जीवन, मन, वाणी और कर्म की एकता, उदार, परमत सहिष्णु, सत्यनिष्ठ, समन्वयी दृष्टि, अन्याय के प्रतिरोध के लिए वज्र कठोर, प्रेम-करुणा के लिए कुसुम कोमल चित्त, गिरे हुए को उठाने और आगे बढने की प्रेरणा और आश्वासन, भोग की तुलना में तप को प्रधानता देने वाला विवेकपूर्ण संयत आचरण, दारिद्रय मुक्त, सुखी, सुशिक्षित, समृद्ध समतायुक्त समाज, साधुमत और लोकमत का समादर करनेवाला प्रजाहितैषी शासन-संक्षेप में यही आदर्श प्रस्तुत किया है, तुलसी की ’मंगल करनि, कलिमल हरनि‘-वाणी ने। क्या आधुनिकता इस को खारिज कर सकती है ? +विष्णुकान्त शास्त्री जी एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न हमारे सामने रखते हुए पूछते है ’’और फिर आधुनिकता को यह आदर्श चुनौती नहीं दे सकता क्या यह उस से नहीं पूछ सकता कि आधुनिक प्राचुर्ययुक्त समाज बाहर से जितना भरा-भरा लगता है, भीतर से उतना ही खोखला नहीं है भौतिक समृद्धि के साथ-ही-साथ मनुष्य की बेचैनी, छटपटाहट, हताशा, क्यों बढती जा रही है आज की उद्धत बौद्धिकता परंपरागत मूल्यों के खंडन में सफल होने का दावा करती है, वैसा दावा हृदय को अवलम्ब दे पाने वाले किसी विश्वास के निर्माण के लिए क्यों नहीं कर पाती +अर्थ स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है । +अर्थ जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं । दरअसल ,उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता । +तुलसीदास के बारे में उक्तियाँ +* भारतीय भक्ति मार्ग सरलता और स्पष्टता का पक्षधर है क्योंकि उसके अनुसार भक्ति का संबंध भावना से है, कठिन योग साधना से नहीं। +* भक्ति रस का पूर्ण परिपाक जैसा विनयपत्रिका में देखा जा सकता है, वैसा अन्यत्र नहीं। भक्ति में प्रेम के अतिरिक्त आलंबन के महत्त्व और अपने दैन्य का अनुभव परमावश्यक अंग है। त���लसी के हृदय से इन दोनों अनुभवों के ऐसे निर्मल शब्द स्रोत निकले हैं, जिसमें अवगाहन करने से मन की मैल करती है और अत्यंत पवित्र प्रफुल्लता आती है। रामचंद्र शुक्ल +* हम निःसंकोच कह सकते हैं कि यह एक कवि ही हिन्दी की एक प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है। +* तुलसीदास जी अपने ही तक दृष्टि रखने वाले भक्त न थे, संसार को भी दृष्टि फैलाकर देखने वाले भक्त थे। जिस व्यक्त जगत के बीच उन्हें भगवान के रामरुप की कला का दर्शन कराना था, पहले चारों ओर दृष्टि दौङाकर उसके अनेक रूपात्मक स्वरूप को उन्होंने सामने रखा है। +* शील और शील का, स्नेह और स्नेह का, नीति और नीति का मिलन है। (राम-भरत मिलन) +* यदि कहीं सौन्दर्य है तो प्रफुल्लता, शक्ति है तो प्रणति, शील है तो हर्ष पुलक, गुण है तो आदर, पाप है तो घृणा, अत्याचार है तो क्रोध, अलौकिकता है तो विस्मय, पाखंड है तो कुढ़न, शोक है तो करुणा, आनंदोत्सव है तो उल्लास, उपकार है तो कृतज्ञता, महत्त्व है तो दीनता, तुलसीदास के हृदय में बिम्ब-प्रतिबिंब भाव से विद्यमान है। +* अनुप्रास के तो वह बादशाह थे। अनुप्रास किस ढंग से लाना चाहिए, उनसे यह सीखकर यदि बहुत से पिछले फुटकर कवियों ने अपने कवित सवैये लिखे होते तो उनमें भद्दापन और अर्थन्यूनता न आने पाती। +* तुलसीदास को जो अभूतपूर्व सफलता मिली उसका कारण यह था कि वे समन्वय की विशाल बुद्धि लेकर उत्पन्न हुए थे। भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर सामने आया हो। +* तुलसीदास जी की कविता में लोकजीवन को बहुत दूर तक प्रभावित किया है। उत्तर भारत में जन्म से लेकर मरण काल तक के सभी अनुष्ठानों और उत्सवों में तुलसीदास की रामभक्ति का कुछ न कुछ असर जरुर है। +रामनरेश त्रिपाठी – महात्मा गाँधी का आत्मशुद्धि का उपदेश और तुलसीदास का रामचरितमानस दोनों एक ही वस्तु है। +उदयभानु सिंह – विनयपत्रिका उत्तम प्रगीत काव्य का उत्कृष्ट नमूना है। +उदयभानु सिंह – मानस भक्तिजल से लबालब भरा है। पहले ही सोपान के आरंभ से भक्तिरस मिलने लगता है। पाठक ज्यों-ज्यों गहराई में उतरता जाता है त्यों-त्यों भक्तिजल में प्रवेश करता जाता है और सातवें सोपान पर पहुँचकर वह भक्ति रस में पूर्णतः मग्न हो जाता है। +रामविलास शर्मा – भक्ति आंदोलन और तुलसी काव्य का राष्ट्रीय महत्त्व यह है कि उनसे भारतीय जनता की भावात्मक एकता दृढ़ हुई। +रामविलास शर्मा – भक्ति आंदोलन और तुलसी काव्य का अन्यतम सामाजिक महत्त्व यह है कि इनमें देश की कोटि-कोटि जनता की व्यथा, प्रतिरोध-भावना और सुखी जीवन की आकांक्षा व्यक्त हुई है। भारत के नए जागरण का कोई महान कवि भक्ति आंदोलन और तुलसीदास से पराङ मुख नहीं रह सकता। +ग्राउस – महलों और झोपङियों में समान रुप से लोग इसमें रस लेते हैं। वस्तुतः भारतवर्ष के इतिहास में गोस्वामी जी का जो महत्त्वपूर्ण स्थान है, उसकी समानता में कोई आता ही नहीं, उसकी ऊँचाई को कोई छू नहीं पाता। +लल्लन सिंह – तुलसी ने काव्य के संबंध में अपने लिए जो प्रतिमान निर्धारित किए थे, उनमें समाजनिष्ठता सर्वोपरि है। +विश्वनाथ त्रिपाठी – तुलसी की पंक्तियाँ लोगों को बहुत याद है। वे उत्तरी भारत के गाँवों, पुरबों, खेतों, खलिहानों, चरागाहों, चौपालों में दूब, जल, धूल, फसल की भाँति बिखरी हैं। +रामकिंकर उपाध्याय – रामचरितमानस के राम ज्ञानियों के परब्रह्म परमात्मा हैं। भक्तों के सगुण साकार ईश्वर हैं। कर्म मार्ग के अनुयायियों के लिए महान मार्ग दर्शक और दीनों के लिए दीनबंधु हैं। चार बाटों के माध्यम से रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने सारे समाज के व्यक्तियों को आमंत्रण दिया कि वे श्रीराम के चरित्र से अपनी अभीष्ट वस्तु प्राप्त कर लें। + + +मुहावरे भाषा को सुदृढ़, गतिशील और रुचिकर बनाते हैं,उनके प्रयोग से भाषा में चित्रमयता आती है। +बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँह चढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है। +भव्य भवन आज तक रुका हुआ है और मुहावरे ही +उसकी टूट-फूट को ठीक करते हुए गर्मी, सर्दी और बरसात के +भाषा को सुदृढ़, गतिशील और रुचिकर बनाते हैं। उनके +'मुहावरा' अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बातचीत +करना या उत्तर देना। कुछ लोग मुहावरे को 'रोज़मर्रा', +'बोलचाल तर्ज़ेकलाम' या 'इस्तलाह' कहते हैं। यूनानी +भाषा में 'मुहावरे' को 'ईडियोमा फ्रेंच में 'इडियाटिस्मी' और +अँगरेजी में 'इडिअम' कहते हैं। +मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि जिस सुगठित शब्द-समूह से +लक्षणाजन्य और कभी-कभी व्यंजनाजन्य कुछ विशिष्ट अर्थ +निकलता है उसे 'मुहावरा' कहते हैं। कई बार यह व्यंग्यात्मक +शब्दों की तीन शक्तियाँ होती हैं अभिधा, लक्षणा, व्यंजना +अभिधा जब किसी शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग होता है +का अर्थ किसी चीज को किसी स्थान से उठाकर सिर पर रखना +लक्षणा जब शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग न करते हुए +किसी विशेष प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है, यह +जिस शक्ति के द्वारा होता है उसे लक्षणा कहते हैं। लक्षणा से +'सिर पर चढ़ने' का अर्थ आदर देना होगा। उदाहरण के लिए +'आग से खेलना खून चूसना ठहाका लगाना शेर +बनना' आदि में लक्षणा शक्ति का प्रयोग हुआ है, इसीलिए वे +व्यंजना जब अभिधा और लक्षणा अपना काम खत्मकर लेती +हैं, तब जिस शक्ति से शब्द-समूहों या वाक्यों के किसी अर्थ की +सूचना मिलती है उसे 'व्यंजना' कहते हैं। व्यंजना से निकले +अधिकांश अर्थों को व्यंग्यार्थ कहते हैं। 'सिर पर चढ़ाना' मुहावरे का +मुहावरे का अर्थ होता है उच्छृंखल, अनुशासनहीन अथवा ढीठ +आधारित होते हैं, उनमें इस्तेमाल शब्दों की जगह दूसरे शब्दों का +प्रयोग किया जाए तो उनका अर्थ ही बदल जाता है जैसे पानी-पानी +होना' की जगह 'जल-जल होना' नहीं कहा जा सकता। ऐसे ही 'गधे +को बाप बनाना' की जगह पर 'बैल को बाप बनाना' और +'मटरगश्ती करना' की जगह पर 'गेहूँगश्ती' या 'चनागश्ती' नहीं +अंग टूटना शरीर में दर्द होना -शरीर में दर्द होने के कारण आज मेरा अंग-अंग टूट रहा है। +अक्ल ठिकाने लगना होश ठीक होना -फिर देखो कैसे चार दिन में होश ठीक।होने पर सबकी अक्ल ठिकाने लगती है। +अपनी खिचड़ी अलग पकाना सबसे अलग रहना -आप लोग किसी के साथ मिलकर काम करना नहींजानते, सबसे रहकर अपनी खिचड़ी अलग पकाते हैं। +नीचे दी गयीं कड़ियों में हिन्दी के प्रमुख मुहावरों के अर्थ तथा उनका वाक्यों में सम्यक प्रयोग दिये गये हैं। + + +बाल गंगाधर तिलक, एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुए। ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें "भारतीय अशान्ति के पिता" कहते थे। उन्हें लोकमान्य" का आदरणीय उपाधि प्राप्त हुई, जिसका अर्थ हैं लोगों द्वारा स्वीकृत (उनके नायक के रूप में)। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। +* स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा ! +* हो सकता है ये भगवान की मर्जी हो कि मैं जिस वजह का प्रतिनिधित्व करता हूँ उसे मेरे आजाद रहने से ज्यादा मेरे पीड़ा में होने से अधिक लाभ मिले। +* भूविज्ञानी पृथ्वी का इतिहास वहां ���े उठाते हैं जहाँ से पुरातत्वविद् इसे छोड़ देते हैं, और उसे और भी पुरातनता में ले जाते हैं। +* धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं हैं। सन्यास लेना जीवन का परित्याग करना नहीं है। असली भावना सिर्फ अपने लिए काम करने की बजाये देश को अपना परिवार बना मिलजुल कर काम करना है। इसके बाद का कदम मानवता की सेवा करना है और अगला कदम ईश्वर की सेवा करना है। +* भारत की गरीबी पूरी तरह से वर्तमान शासन की वजह से है। +* अगर आप नहीं दोड़ सकते तो ना दौडें, लेकिन जो दोड़ सकते हैं, उनकी टांग क्यों खींचते हैं ? +* अपने हितों की रक्षा के लिए यदि हम स्वयं जागरूक नहीं होंगे तो दूसरा कोन होगा? हमे इस समय सोना नहीं चाहिये ,हमे अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिये। +* आप कठिनाइयों, खतरों और असफलताओं के भय से बचने का प्रयत्न मत कीजिये। वे तो निश्चित रूप से आपके मार्ग मे आनी ही हैं। +* आप मुश्किल समय में खतरों और असफलताओं के डर से बचने का प्रयास मत कीजिए, वे तो निश्चित रूप से आपके मार्ग में आयेंगे ही। +* आपका दोष क्षमता की कमी या साधनों की कमी की दृष्टि से नहीं है, वरन दोष इस बात मे है की आपमें संकल्प का अभाव है। आपने उस संकल्प को अपने मे उत्पन्न नहीं किया है जो आपको पहले ही उत्पन्न कर लेना था। संकल्प ही सब कुछ है। आपको संकल्प शक्ति इतना साहस दे सकती है की आपको लक्ष्य पाने से कोई नहीं रोक सकता। +* आपका लक्ष्य किसी जादू से नहीं पूरा होगा, बल्कि आपको ही अपना लक्ष्य प्राप्त करना पड़ेगा। +* आपके लक्ष्य की पूर्ती स्वर्ग से आये किसी जादू से नहीं हो सकेगी। आपको ही अपना लक्ष्य प्राप्त करना है। कार्य करने और कढोर श्रम करने के दिन यही हैं। +* आपके विचार सही हों ,आपके लक्ष्य ईमानदार हों ,और आपके प्रयास संवेधानिक हों तो मुझे पूर्ण विश्वास है की आपको अपने प्रयत्नों मे सफलता मिलेगी। +* आपको ये नहीं मानना चाहिये की आप जो श्रम करेंगे उससे उत्पन्न फसल को आप ही काटेंगे। सदेव ऐसा नहीं होता। हमे अपनी पूर्ण शक्ति से श्रम करना चाहिये और उसका परिणाम आने वाली पीढ़ी के भोगने के लिए छोड़ देना चाहिये। याद रखिये ,आप जो आम आज खा रहे हैं उनके पेड़ आपने नहीं लगाये थे। +* आलसी व्यक्तियों के लिए भगवान अवतार नहीं लेते, वह मेहनती व्यक्तियों के लिए ही अवतरित होते हैं, इसलिए कार्य करना आरम्भ करें। +* एक अच्छे अखबार के शब्द अपने आप बोल देते ह���ं। +* एक बहुत पुरानी कहावत है की भगवान उन्ही की सहायता करता है, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। +* एक बहुत प्राचीन सिद्धांत है की ईश्वर उनकी ही सहायता करता है ,जो अपनी सहायता आप करते हैं। आलसी व्यक्तियों के लिए ईश्वर अवतार नहीं लेता। वह उद्योगशील व्यक्तियों के लिए ही अवतरित होता है। इसलिए कार्य करना शुरु कीजिये। +* कमजोर ना बनें, शक्तिशाली बनें और यह विश्वास रखें की भगवान हमेशा आपके साथ है। +* कायर ना बनें, शक्तिशाली बनें और विशवास रखें की ईश्वर आपके साथ है। +* जनमत जैसी एक चीज होती है जिससे स्वेच्छाचारी और तानाशाह भय खाते हैं। +* जब लोहा गरम हो तभी उस पर चोट कीजिये और आपको निश्चय ही सफलता का यश प्राप्त होगा। +* जीवन एक ताश के खेल की तरह है, सही पत्तों का चयन हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन हमारी सफलता निर्धारित करने वाले पत्ते खेलना हमारे हाथ में है। +* दूसरे के मुह से पानी नहीं पिया जा सकता ,हमे पानी स्वयं पीना होगा। वर्तमान व्यवस्था (अंग्रेजी हुकूमत हमे दुसरे के मुह से पानी पीने के लिए मजबूर करती है। हमे अपने कुवें से अपना पानी खीचना और पानी पीना चाहिये। +* प्रगति स्वतंत्रता में निहित है। बिना स्वशासन के न औद्योगिक विकास संभव है न ही राष्ट्र के लिए शैक्षिक योजनाओं की कोई उपयोगिता है।। देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करना सामाजिक सुधारों से अधिक महत्वपूर्ण है। +* भारत का तब तक खून बहाया जा रहा है जब तक की बस कंकाल ना शेष रह जाये। +* मनुष्य का प्रमुख लक्ष्य भोजन प्राप्त करना ही नहीं है! एक कौवा भी जीवित रहता है और जूठन पर पलता है। +* महान उपलब्धियाँ कभी भी आसानी से नहीं मिलतीं और आसानी से मिली उपलब्धियाँ महान नहीं होतीं। +* मानव स्वभाव ही ऐसा है कि हम बिना उत्सवों के नहीं रह सकते। उत्सव प्रिय होना मानव स्वभाव है। हमारे त्यौहार होने ही चाहियें। +* यदि हम किसी भी देश के इतिहास को अतीत में जाएं, तो हम अंत में मिथकों और परम्पराओं के काल में पहुंच जाते हैं जो आखिरकार अभेद्य अन्धकार में खो जाता है। +* ये सच है कि बारिश की कमी के कारण अकाल पड़ता है लेकिन ये भी सच है कि भारत के लोगों में इस बुराई से लड़ने की शक्ति नहीं है। +* हम हमारे सामने सही रास्ते के प्रकट होने के इंतजार में अपने दिन खर्च करते हैं, लेकिन हम भूल जाते हैं कि रास्ते इंतजार करने के लिए नहीं, बल्कि चलने के लिए बने हैं। +लो���मान्य तिलक के विषय में उक्तियाँ +* भारत का प्रेम लोकमान्य तिलक के जीवन का श्वासोच्छ्वास था। उनका धैर्य कभी कम न हुआ और निराशा उनको छू तक नहीं गई। उनके अलौकिक गुणों को धारण करना ही उनका स्मारक है। महात्मा गाँधी]] +* उन्होंने देश के लिए असीम विपदाएँ झेलीं, क्योंकि भारत का प्रेम ही उनके हृदय की प्रधान भावना थी। मरते दम तक ‘ स्वराज्य ‘ ही उनका ध्येय रहा। मदन मोहन मालवीय]] +* तिलक की मृत्यु के कारण भारत का प्रथम श्रेणी का देशभक्त और अर्वाचीन हिन्दुस्तान का एक स्फूर्तिदाता चल बसा। लाला लाजपत राय]] + + +: अपनी आयु वित्त, गृह के दोष, मंत्र, मैथुन, औषधि, दान, मान, अपमान इन नौ को छुपाकर रखना चाहिए (अन्यथा नुकसान उठाना पड़ सकता है)। +: धर्म का तत्व समझो और उसे गुनो! जो अपने लिये प्रतिकूल हो, वैसा आचरण या व्यवहार दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये। +: यह मेरा है, यह दूसरे का है, ऐसा छोटी बुद्धि वाले सोचते हैं; उदार चरित्र वालों के लिये तो धरती ही परिवार है । +: विद्या विवाद के लिये, धन मद के लिये, शक्ति दूसरों को सताने के लिये, ये चीजें सज्जन लोगों में दुष्टों से उल्टी होती हैं, क्रमशः ज्ञान, दान और रक्षा के लिये । +: न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न भाई बांट सकते हैं और न यह भारी है। खर्च करने पर रोज बढती है, विद्या धन सभी धनों में प्रधान है । +: चन्द्रमा तारों का आभूषण है, नारी का भूषण पति है । पृथ्वी का अभूषण राजा है और विद्या सभी का आभूषण है । +: जो उत्साह से भरा है, आलसी नहीं है, क्रिया कुशल है और अच्छे कामों में रत है, वीर, कृतज्ञ और अच्छी मित्रता रखने वाला है, लक्ष्मी उस के साथ रहने अपने आप आती है । +: व्यवहार परम धर्म है, व्यवहार ही परम तप है, व्यवहार ही परम ज्ञान है, व्यवहार से क्या नहीं मिल सकता । +: किताब में रखा ज्ञान और दूसरे को दिया धन, काम पडने पर न वह विद्या काम आती है और न वह धन । +: जिसके कर्म को शर्दी, गर्मी, भय, भावुकता, समपन्नता अथवा विपन्नता बाधा नहीं डालता है, उसे ही पंडित कहा गया है। +: सभी जीवों के आत्मा के रहस्य को जानने वाले, सभी कर्म के योग को जानने वाले और मनुष्यों में उपाय जानने वाले व्यक्ति को पंडित कहा जाता है। +: जो व्यक्ति बिना बुलाए किसी के यहाँ जाता है, बिना पूछे बोलता है और अविश्वासीयों पर विश्वास कर लेता है, उसे मुर्ख कहा गया है। +: एक ही धर्म सबसे श्रेष्ठ है। क्षमा शांति का ���तम उपाय है। विद्या से संतुष्टि प्राप्त होती है और अहिंसा से सुख प्राप्त होती है। +: एश्वर्य चाहने वाले व्यक्ति को निद्रा (अधिक सोना तन्द्रा (उंघना डर, क्रोध, आलस्य और किसी काम को देर तक करना। इन छः दोषों को त्याग देना चाहिए। +: सत्य से धर्म की रक्षा होती है। अभ्यास से विद्या की रक्षा होती है। श्रृंगार से रूप की रक्षा होती है। अच्छे आचरण से कुल ;परिवारद्ध की रक्षा होती है। +: हे राजन! सदैव प्रिय बोलने वाले और सुनने वाले पुरूष आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन अप्रिय ही सही उचित बोलने वाले कठिन है। +: स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी होती हैं। इन्ही से परिवार की प्रतिष्ठा बढ़ती है। यह महापुरूषों को जन्म देनेवाली होती है। इसलिए स्त्रियाँ विशेष रूप से रक्षा करने योग्य होती है। +: विनम्रता बदनामी को दुर करती है, पौरूष या पराक्रम अनर्थ को दुर करता है, क्षमा क्रोध को दुर करता है और अच्छा आचरण बुरी आदतों को दुर करता है। + + +अब्दुल रहीम खान-ए-खाना (1556-1627) जो कि रहीम के नाम से भी जाने जाते थे, अकबर के विश्वासपात्र बैरम खान के पुत्र थे और भारतवर्ष के महानतम कवियों में से एक थे। रहीम के दोहों में नीति की बातें बहुत ही सरल ढ़ंग से अभिव्यक्त हुई हैं। + + +हिन्दी भाषा विश्व की तीसरी और भारत में यह सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है। इसके मातृ भाषा के रूप में बोलने वालों की संख्या 50 करोड़ से भी अधिक है। यह भारत में 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है। +* हिन्दी को इसका नाम फ़ारसी भाषा के हिन्द शब्द से मिला है। +* इसमें अंग्रेज़ी की तरह (आर्टिकल) a, an और the नहीं है, जो इसे और भी सरल बना देता है। +* हिन्दी भाषा में बड़े और छोटे अक्षर नहीं होते और स्वर व व्यंजन भी पहले से अलग अलग होते हैं। +* हिंदी को देवनागरी वर्णमाला में लिखा जाता है और इसमें संस्कृत से शब्द आते है। +* लेकिन, हिंदी भारत कि राष्ट्रीय भाषा नहीं हैं। (संविधान में, हिंदी को आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था, न कि राष्ट्रीय भाषा।) + + +* गायत्री मंत्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने और आत्माओं की उन्नति के लिए उपयोगी है। गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त हृदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है। महात्मा गाँधी]] +* सचमुच गायत्री ऐसी ही महाशक्ति है जिसको हमें भी श्रद्धापूर्वक हृदयंगम करना चाहिए। महात्मा गाँधी]] +* ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमको दिऐ हैं, उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है। मदन मोहन मालवीय]] +* भारतवर्ष को जगाने वाला जो मंत्र है, वह इतना सरल है कि ऐक ही श्वास में उसका उच्चारण किया जा सकता है। वह मंत्र है गायत्री मंत्र। रबीन्द्रनाथ टैगोर]] +* मैं लोगों से कहता हूँ कि लम्बे लम्बे साधन करने की उतनी जरूरत नहीं है। इस छोटी सी गायत्री की साधना को करके देखो। गायत्री का जप करने से बड़ी बड़ी सिद्धियाँ मिल जाती हैं। यह मंत्र छोटा है पर इसकी शक्ति बड़ी भारी है। अरविन्द घोष]] +* गायत्री में ऐसी शक्ति सन्निहित है, जो महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है। अरविन्द घोष]] +* गायत्री का जप करने से बडी‍-बडी सिद्धियां मिल जाती हैं। यह मंत्र छोटा है, पर इसकी शक्ति भारी है। रामकृष्ण परमहंस]] +* गायत्री सदबुद्धि का मंत्र है, इसलिऐ उसे मंत्रो का मुकुटमणि कहा गया है। स्वामी विवेकानंद]] +* गायत्री के मंत्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने के लिए इसका प्रयोग, प्रार्थना की परिभाषा -आत्मा एक उन्नत अवस्था से दूसरी उन्नत अवस्था को पहुँचने के लिए आतुर हो रही है-सर्वथा चरितार्थ करता है। यदि इसी गायत्री मंत्र का जप अनवरत चित्त और शान्त हृदय से राष्ट्रीय आपत्ति काल में किया जाता है तो उन संकटों को मिटाने के लिए प्रभाव और पराक्रम दिखलाता है। जिन लोगों का यह विश्वास है कि ‘मंदिरों में जाकर गायत्री का जप करना, नमाज या प्रेयर करना मूर्खता या विडम्बना है’ वे भ्रम में फंसे हुए हैं। मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ कि ऐसी मान्यता से बड़ी भूल मनुष्य से ओर कोई नहीं हो सकती। +* गायत्री की महिमा का वर्णन करना मनुष्य की सामर्थ्य से बाहर है। बुद्धि का शुद्ध होना इतना बड़ा कार्य है जिसकी समता संसार के और किसी काम से नहीं हो सकती। आभा प्राप्ति करने की दिव्य दृष्टि जिस शुद्ध बुद्धि से प्राप्त होती है उसकी प्रेरणा गायत्री द्वारा होती है। गायत्री आदि मंत्र है। उसका अवतार दुरितों को नष्ट करने और ऋत के अभिवर्धन के लिए हुआ है। महर्षि रमण]] +* गायत्री मंत्र ऐसा मंत्र है जिससे आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार के लाभ मिलते हैं। मदन मोहन मालवीय]] +* ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमें दिये हैं उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री है। गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है। ईश्वर का प्रकाश आत्मा में आता है। इस प्रकाश में असंख्य��ं आत्माओं को भव बन्धन से त्राण मिला है। गायत्री में ईश्वर परायणता के भाव उत्पन्न करने की शक्ति है, साथ ही वह भौतिक अभावों को दूर रह करती। लोकमान्य तिलक]] +* भारतीय जनता आज अन्धकार में भटक रही है। उसका कल्याण केवल अन्न धन वृद्धि से ही न हो जायगा। आर्थिक दशा सुधर जाने पर भी मनुष्य सुखी नहीं हो सकता उसे आज ऐसे प्रकाश की आवश्यकता है जो उसकी आत्मा को प्रकाशित कर दे। जिस बहुमुखी दासता के बन्धनों में आज प्रजा जकड़ी हुई है उनका अन्त राजनैतिक संघर्ष करने मात्र से नहीं हो जायगा। उसके लिए तो आत्मा के अन्दर प्रकाश उत्पन्न होना चाहिए जिससे सत् और असत् का विवेक हो। कुमार्ग को छोड़ कर श्रेष्ठ मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले। गायत्री मंत्र में वह भावना विद्यमान है। उसमें प्रकाश की कामना की गई है। अन्तः करण में प्रज्वलित ज्ञान ज्योति ही हमारा पथ प्रदर्शन कर सकती है और उसी के पीछे अनुगमन करने से आज की विपन्न दशा से छुटकारा पाया जा सकता है। +* प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्त में उठकर, नित्य कर्म से निवृत्त होकर गायत्री का जप करना चाहिए। ब्राह्ममुहूर्त में गायत्री का जप करने से चित्त शुद्ध होता है और हृदय में निर्मलता आती है। शरीर निरोग रहता है और स्वभाव में नम्रता आती है। बुद्धि सूक्ष्म होने से दूर दर्शिता बढ़ती है और स्मरण शक्ति का विकास होता है। कठिन प्रसंगों में गायत्री द्वारा दैवी सहायता मिलती है। उसके द्वारा आत्म दर्शन हो सकता है। स्वामी रामतीर्थ]] +* राम को प्राप्त करना सब से बड़ा काम है। गायत्री अभिप्राय बुद्धि को काम रुचि से हटाकर राम रुचि में लगा देना है। जिसकी बुद्धि पवित्र होगी वही राम को प्राप्त करने का काम कर सकेगा। गायत्री पुकारती है कि-बुद्धि में इतनी पवित्रता होनी चाहिए कि वह काम को राम से बढ़ कर न समझे। रामकृष्ण परमहंस]] +* परमात्मा से क्या माँगना चाहिए? क्या वह वस्तुएं माँगें जिन्हें अपने बाहुबल से आसानी के साथ कमाया जा सकता? नहीं, ऐसा उचित न होगा। बुहारी की आवश्यकता पड़ने पर उसे दो चार पैसे में बाजार से खरीद लिया जाता है। उसे कौन बुद्धिमान कहेगा जो बुहारी माँगने राजदरबार में जावे। राजा ऐसे माँगने पर हँसेगा और उसकी इस तुच्छ बुद्धि पर हँसेगा। राजा से वही वस्तु माँगी जानी चाहिए जो उसके गौरव के अनुकूल हो। परमात्मा से माँगने योग्य वस्तु सद्बुद्धि है। जिस पर परमात्मा प्रसन्न होते हैं उसे सद्बुद्धि प्रदान करते हैं। सद्बुद्धि से सत् मार्ग पर प्रगति होती है और सत्कर्म से सब प्रकार के सुख मिलते हैं। जो सत् की ओर बढ़ रहा है उसको किसी प्रकार के सुख की कमी नहीं रहती। गायत्री सद्बुद्धि का मंत्र है। इसलिए उसे मन्त्रों का मुकुटमणि कहा गया है। स्वामी करपात्री]] +* मनुष्य शरीर में बुद्धि का प्रमुख स्थान है। गायत्री बुद्धि को पवित्र करती है। जब बुद्धि पवित्र हो गई तो सब कुछ पवित्र हो गया समझना चाहिए। जिसकी बुद्धि पवित्र है उसके लिए संसार में कुछ भी अप्राप्य नहीं है। गायत्री ब्राह्मणों का तो प्रधान आधार है। काली कमली वाले बाबा विश्रद्धानन्द +* गायत्री ने बहुतों को सुमार्ग पर लगाया है। कुमार्ग गामी पुरुष की पहले तो गायत्री की ओर रुचि ही नहीं होती। यदि ईश्वर कृपा से हो जाए तो वह कुमार्ग गामी नहीं रहता। गायत्री जिसके हृदय में बास करती है उसका मन ईश्वर की ओर जाता है। विषय विकारों की व्यर्थता उसे भली प्रकार अनुभव होने लगती है। +* कई महात्मा गायत्री का जप करके परम सिद्ध हुए हैं। परमात्मा की शक्ति ही गायत्री है। जो गायत्री के निकट जाता है वह शुद्ध होकर रहता है। आत्मकल्याण के लिए मन की शुद्धि आवश्यक है। मन की शुद्धि के लिए गायत्री मन्त्र अदभुत है। ईश्वर प्राप्ति के लिए गायत्री जप को प्रथम सीढ़ी समझना चाहिए। प्रसिद्ध आर्यसमाजी महात्मा सर्वदानन्द +* गायत्री मन्त्र द्वारा प्रभु का पूजन सदा से आर्यों की रीति रही है। ऋषि दयानंद ने भी उसी शैली का अनुसरण करके सन्ध्या का विधान, यथाशक्ति सार्थक व्याख्यान तथा वेदों के स्वाध्याय में प्रयत्न करना बतलाया है। ऐसा करने से अन्तःकरण की शुद्धि तथा निर्मल बुद्धि होकर मनुष्य जीवन अपने और दूसरों के लिए हितकर हो जाता है। जितनी भी इस शुभ कर्म में श्रद्धा और विश्वास हो, उतना ही अविद्या आदि क्लेशों का ह्रास होता है। फिर विद्या के प्रकाश में उपासना, प्रभु के आस पास हो जाता है। +* जो जिज्ञासु अर्थ पूर्वक इस मन्त्र का सप्रेम नियमपूर्वक उच्चारण करता है उसके लिए गायत्री संसार सागर संस्तरण की तरणि (नाव) और आत्म प्रसाद प्राप्ति की सरणि (सड़क) है। टी0 सुब्बाराव]] + + +ये सुविचार अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा के हैं। +1) इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं-ए�� दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहींं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। +2) ज्ञान का अर्थ है-जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक्‌ करने वाली जो विवेक बुद्धि है-उसी का नाम ज्ञान है। +3) अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मजबूती से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है। +4) आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कत्र्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है। +5) कुचक्र, छद्‌म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं। बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा। +6) जो दूसरों को धोखा देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है। +7) समर्पण का अर्थ है-पूर्णरूपेण प्रभु को हृदय में स्वीकार करना, उनकी इच्छा, प्रेरणाओं के प्रति सदैव जागरूक रहना और जीवन के प्रतयेक क्षण में उसे परिणत करते रहना। +8) मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं। +11) जिनका प्रत्येक कर्म भगवान्‌ को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है। +13) सत्संग और प्रवचनों का-स्वाध्याय और सुदपदेशों का तभी कुछ मूल्य है, जब उनके अनुसार कार्य करने की प्रेरणा +14) सब ने सही जाग्रत्‌ आत्माओं में से जो जीवन्त हों, वे आपत्तिकालीन समय को समझें और +व्यामोह के दायरे से निकलकर बाहर आएँ। उन्हीं के बिना प्रगति का रथ रुका पड़ा है। +15) साधना एक पराक्रम है, संघर्ष है, जो अपनी ही दुष्प्रवृत्तियों से करना होता है। +16) आत्मा को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम +17) जैसे कोरे कागज पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही +योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है। +18) योग के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो वह नहीं, बल्कि तुम कैसे करते हो, वह बहुत अधिक महत्त्पूर्ण है। +19) यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति धर्म का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख +देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है। +21) प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता वह है, जिसमें अपने ���पका निर्माण दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के +अनुकरण से नहीं, वरन्‌ स्वतंत्र विवेक के आधार पर कर सकना संभव हो सके। +22) बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है। +23) जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह +24) भगवान जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं। +25) हम अपनी कमियों को पहचानें और इन्हें हटाने और उनके स्थान पर सत्प्रवृत्तियाँ स्थापित करने का उपाय +सोचें इसी में अपना व मानव मात्र का कल्याण है। +26) प्रगति के लिए संघर्ष करो। अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों +27) धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके अनुयायियों का कत्र्तव्य है। इसमें +28) अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म +निबाहने के लिए बाधित करते हैं। +29) शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा +एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है? +30) जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है। +31) आचारनिष्ठ उपदेशक ही परिवर्तन लाने में सफल हो सकते हैं। अनधिकारी ध्र्मोपदेशक खोटे सिक्के की +तरह मात्र विक्षोभ और अविश्वास ही भड़काते हैं। +32) इन दिनों जाग्रत्‌ आत्मा मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए +आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें। +33) जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े +अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमेंं महान्‌ परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है-प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ। +34) दैवी शक्तियों के अवतरण के लिए पहली शर्त है- साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता। +35) आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है, पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाइयाँ ही खोजता है। +37) व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए करने की परम्परा जब तक प्रचलित न होगी, तब +तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों मेंं सामथ्र्यवान्‌ नहीं बन सकता है।-वाङ्गमय +39) भुजार्ए साक्षात्‌ हनुमान हैं और मस्तिष्क गणेश, इनके निरन्तर साथ रहते हुए किसी को दरिद्र रहने की आवश्यकता +41) मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से +अपरिचित होने का ही यह परिणाम है।-वाङ्गमय +42) धर्म अंत:करण को प्रभावित और प्रशासित करता है, उसमें उत्कृष्टता अपनाने, आदर्शों को कार्यान्वित +करने की उमंग उत्पन्न करता है।-वाङ्गमय +43) जीवन साधना का अर्थ है- अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये +44) निकृष्ट चिंतन एवं घृणित कर्तृत्व हमारी गौरव गरिमा पर लगा हुआ कलंक है।-वाङ्गमय +45) आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है।-वाङ्गमय +47) अपनी दुCताएँ दूसरों से छिपाकर रखी जा सकती हैं, पर अपने आप से कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता। +48) किसी महान्‌ उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय +49) महानता का गुण न तो किसी के लिए सुरक्षित है और न प्रतिबंधित। जो चाहे अपनी शुभेच्छाओं से उसे +50) सच्ची लगन तथा निर्मल उद्देश्य से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहींं जाता। +51) खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा। +53) साधना का अर्थ है-कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए भी सत्प्रयास जारी रखना। +54) सज्जनों की कोई भी साधना कठिनाइयों में से होकर निकलने पर ही पूर्ण होती है। +55) असत्‌ से सत्‌ की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही +56) किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। +57) अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो। +58) उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है-दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना। +60) चरित्र का अर्थ है- अपने महान्‌ मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर +62) अपने अज्ञान को दूर करके मन-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान्‌ की सच्ची पूजा है। +65) वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक; किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं। +66) वे माता-पिता धन्य हैं, जो अपनी संतान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं। +67) मनोविकारों से परेशान, दु:खी, चिंतित मनुष्य के लिए उनके दु:ख-दर्द के समय श्रेष्ठ पुस्तकें ही सहारा +68) अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बढ़कर प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता। +69) विषयों, व्यसनों और विलासों मेंं सुख खोज���ा और पाने की आशा करना एक भयानक दुराशा है। +70) कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्यांकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता। +71) गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। +72) परमात्मा की सृष्टि का हर व्यक्ति समान है। चाहे उसका रंग वर्ण, कुल और गोत्र कुछ भी क्यों न हो। +73) ज्ञान अक्षय है, उसकी प्राप्ति शैय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। +74) वास्तविक सौन्दर्य के आधर हैं-स्वस्थ शरीर, निर्विकार मन और पवित्र आचरण। +75) ज्ञानदान से बढ़कर आज की परिस्थितियों मेंं और कोई दान नहीं। +77) इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्‌विचार है। +78) उत्तम पुस्तकें जाग्रत्‌ देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान +80) शांन्किुञ्ज एक क्रान्तिकारी विश्वविद्यालय है। अनौचित्य की नींव हिला देने वाली यह संस्था प्रभाव पर्त +की एक नवोदित किरण है। +गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है। +की अवधारणा, आत्मदेव की साधना की दिव्य संगम स्थली है-शांतिकुञ्ज गायत्री तीर्थ। +83) धर्म का मार्ग फूलों सेज नहीं, इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं। +84) मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है; परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं। +86) हम क्या करते हैं, इसका महत्त्व कम है; किन्तु उसे हम किस भाव से करते हैं इसका बहुत महत्त्व है। +87) संसार में सच्चा सुख ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखते हुए पूर्ण परिश्रम के साथ अपना कत्र्तव्य पालन करने +88) किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। +89) दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है। +90) निरभिमानी धन्य है; क्योंकि उन्हीं के हृदय में ईश्वर का निवास होता है। +91) दुनिया में भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। +92) सज्जनता ऐसी विधा है जो वचन से तो कम; किन्तु व्यवहार से अधिक परखी जाती है। +94 अखण्ड ज्योति' हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं। +95) चरित्रवान्‌ व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद्‌ भक्त हैं। +97) जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। +98) परमात्मा जिसे जीवन मेंं कोई विशेष अभ्यु��य-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है। +99) देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और सुविधा की ललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी राह पर एकाकी चल पड़ते हैं। +100) अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हल्का झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है। + + +201) अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठों। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है। +202) दो याद रखने योग्य हैं-एक कत्र्तव्य और दूसरा मरण। +203) कर्म ही पूजा है और कत्र्तव्यपालन भक्ति है। +204) र्हमान और भगवान्‌ ही मनुष्य के सच्चे मित्र है। +205) सम्मान पद में नहीं, मनुष्यता में है। +206) महापुरुषों का ग्रंथ सबसे बड़ा सत्संग है। +207) चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है। +208) बहुमूल्य समय का सदुपयोग करने की कला जिसे आ गई उसने सफलता का रहस्य समझ लिया। +209) सबकी मंगल कामना करो, इससे आपका भी मंगल होगा। +210) स्वाध्याय एक अनिवार्य दैनिक धर्म कत्र्तव्य है। +211) स्वाध्याय को साधना का एक अनिवार्य अंग मानकर अपने आवश्यक नित्य कर्मों में स्थान दें। +213) प्रतिकूल परिस्थितियों करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है। +217) कत्र्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है। +218) इस संसार में कमजोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। +221) परिश्रम ही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है। +223) संसार में रहने का सच्चा तत्त्वज्ञान यही है कि प्रतिदिन एक बार खिलखिलाकर जरूर हँसना चाहिए। +224) विवेक और पुरुषार्थ जिसके साथी हैं, वही प्रकाश प्राप्त करेंगे। +225) अज्ञानी वे हैं, जो कुमार्ग पर चलकर सुख की आशा करते हैं। +227) अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है। +228) किसी को गलत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो। +229) जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है। +231) जिसके पास कुछ भी कर्ज नहीं, वह बड़ा मालदार है। +232) नैतिकता, प्रतिष्ठाओं में सबसे अधिक मूल्यवान्‌ है। +234) वे प्रत्यक्ष देवता हैं, जो कत्र्तव्य पालन के लिए मर मिटते हैं। +239) आत्म निर्माण ही युग निर्माण है। +241) युग निर्माण योजना का आरम्भ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन्‌ अपने मन को समझाने से शुरू होगा। +242) भगवान्‌ की सच्ची पूजा सत्कर्मों में ही हो सकती है। +243) सेवा से बढ़कर पुण्य-परमार्थ इस संसार में और कुछ नहीं हो सकता। +244) स्वयं उत्कृष्ट बनने और दूसरों को उत्कृष्ट बनाने का कार्य आत्म कल्याण का एकमात्र उपाय है। +245) अपने आपको सुधार लेने पर संसार की हर बुराई सुधर सकती है। +246) अपने आपको जान लेने पर मनुष्य सब कुछ पा सकता है। +249) सत्कर्म ही मनुष्य का कत्र्तव्य है। +250) जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान्‌ कार्य करने के लिए है। +251) राष्ट्र को बुराइयों से बचाये रखने का उत्तरदायित्व पुरोहितों का है। +252) इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो। +253) सतोगुणी भोजन से ही मन की सात्विकता स्थिर रहती है। +254) जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ। +255) श्रम और तितिक्षा से शरीर मजबूत बनता है। +256) दूसरे के लिए पाप की बात सोचने में पहले स्वयं को ही पाप का भागी बनना पड़ता है। +257) पराये धन के प्रति लोभ पैदा करना अपनी हानि करना है। +258) ईष्र्या और द्वेष की आग में जलने वाले अपने लिए सबसे बड़े शत्रु हैं। +260) पेट और मस्तिष्क स्वास्थ्य की गाड़ी को ठीक प्रकार चलाने वाले दो पहिए हैं। इनमेंं से एक बिगड़ गया +261) आराम की जिन्गदी एक तरह से मौत का निमंत्रण है। +262) आलस्य से आराम मिल सकता है, पर यह आराम बड़ा महँगा पड़ता है। +263) ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। +264) मन का नियन्त्रण मनुष्य का एक आवश्यक कत्र्तव्य है। +266) शिक्षा का स्थान स्कूल हो सकते हैं, पर दीक्षा का स्थान तो घर ही है। +267) वाणी नहीं, आचरण एवं व्यक्तित्व ही प्रभावशाली उपदेश है +268) आत्म निर्माण का अर्थ है-भाग्य निर्माण। +269) ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही है। +270) बच्चे की प्रथम पाठशाला उसकी माता की गोद में होती है। +271) शिक्षक राष्ट्र मंदिर के कुशल शिल्पी हैं। +272) शिक्षक नई पीढ़ी के निर्माता होत हैं। +273) समाज सुधार सुशिक्षितों का अनिवार्य धर्म-कत्र्तव्य है। +274) ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं। +275) अब भगवानÔ गंगाजल, गुलाबजल और पंचामृत से स्नान करके संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनकी माँग श्रम बिन्दुओं +की है। भगवान्‌ का सच्चा भक्त वह माना जाएगा जो पसीने की बूँदों से उन्हें स्नान कराये। +276) जो हमारे पास है, वह हमारे उपयोग, उपभोग के लिए है यही असुर भावना है। +277) स्वार्थपरता की कलंक कालिमा से जिन्होंने अपना चेहरा पोत लिया है, वे असुर है। +278) मात्र हवन, धूपबत्ती और जप ��ी संख्या के नाम पर प्रसन्न होकर आदमी की मनोकामना पूरी कर दिया करे, ऐसी +279) दुनिया में सफलता एक चीज के बदले में मिलती है और वह है आदमी की उत्कृष्ट व्यक्तित्व। +समझते नहीं कि उन्हें यह बहुमूल्य जीवन क्यों मिला ? +282) दरिद्रता पैसे की कमी का नाम नहीं है, वरन्‌ मनुष्य की कृपणता का नाम दरिद्रता है। +284) कामना करने वाले कभी भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान्‌ की इच्छा पूरी करने की बात +285) भगवान्‌ आदर्शों, श्रेष्ठताओं के समूच्चय का नाम है। सिद्धान्तों के प्रति मनुष्य के जो त्याग और बलिदान है, +286) आस्तिकता का अर्थ है-ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के +अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है। +288) अपनी दिनचर्या में परमार्थ को स्थान दिये बिना आत्मा का निर्मल और निष्कलंक रहना संभव नहीं। +289) जो मन की शक्ति के बादशाह होते हैं, उनके चरणों पर संसार नतमस्तक होता है। +290) एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता +का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए। +291) आदर्शवाद की लम्बी-चौड़ी बातें बखानना किसी के लिए भी सरल है, पर जो उसे अपने जीवनक्रम में +उतार सके, सच्चाई और हिम्मत का धनी वही है। +292) किसी से ईष्र्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और +293) ईष्र्या की आग में अपनी शक्तियाँ जलाने की अपेक्षा कहीं अच्छा और कल्याणकारी है कि दूसरे के गुणों +और सत्प्रयत्नों को देखें जिसके आधार पर उनने अच्छी स्थिति प्राप्त की है। +चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है। +295) किसी महान्‌ उद्द्‌ेश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद +कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। +296) सहानुभूति मनुष्य के हृदय में निवास करने वाली वह कोमलता है, जिसका निर्माण संवेदना, दया, प्रेम +तथा करुणा के सम्मिश्रण से होता है। +297) असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशील की परख होती है। जो इसी +कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा पुरुषार्थी है। +298 स्वर्ग' शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्वप्रमुख है। +सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयो���नों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं। +300) जाग्रत्‌ अत्माएँ कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये +बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता। + + +1) यह संसार कर्म की कसौटी है। यहाँ मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है। +4) जीवनोद्देश्य की खोज ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। उसे और कहीं ढूँढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय में ढूँढ़ना चाहिए। +6) बुद्धिमान्‌ बनने का तरीका यह है कि आज हम जितना जानते हैं भविष्य में उससे अधिक जानने के लिए प्रयत्नशील +7) जीवन उसी का धन्य है जो अनेकों को प्रकाश दे। प्रभाव उसी का धन्य है जिसके द्वारा अनेकों में आशा जाग्रत हो। +जैसे साफ शीशे के द्वारा सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होता है। +9) मनुष्य जीवन का पूरा विकास गलत स्थानों, गलत विचारों और गलत दृष्टिकोणों से मन और शरीर को बचाकर +उचित मार्ग पर आरूढ़ कराने से होता है। +10) जीवन एक परख और कसौटी है जिसमें अपनी सामथ्र्य का परिचय देने पर ही कुछ पा सकना संभव होता है। +11) सेवा का मार्ग ज्ञान, तप, योग आदि के मार्ग से भी ऊँचा है। +12) अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं। +13) मस्तिष्क में जिस प्रकार के विचार भरे रहते हैं वस्तुत: उसका संग्रह ही सच्ची परिस्थिति है। उसी के प्रभाव से +जीवन की दिशाएँ बनती और मुड़ती रहती हैं। +14) संघर्ष ही जीवन है। संघर्ष से बचे रह सकना किसी के लिए भी संभव नहीं। +15) अपने हित की अपेक्षा जब परहित को अधिक महत्त्व मिलेगा तभी सच्चा सतयुग प्रकट होगा। +16) सत्य, प्रेम और न्याय को आचरण में प्रमुख स्थान देने वाला नर ही नारायण को अति प्रिय है। +17) ज्ञान और आचरण में बोध और विवेक में जो सामञ्जस्य पैदा कर सके उसे ही विद्या कहते हैं। +18) संसार में हर वस्तु में अच्छे और बुरे दो पहलू हैं, जो अच्छा पहलू देखते हैं वे अच्छाई और जिन्हें केवल बुरा पहलू +देखना आता है वह बुराई संग्रह करते हैं। +20) फल के लिए प्रयत्न करो, परन्तु दुविधा में खड़े न रह जाओ। कोई भी कार्य ऐसा नहीं जिसे खोज और प्रयत्न से पूर्ण +21) अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई नहीं हो सकता। +22) वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है। +23) स्वार्थ, अहंकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है। +24) अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठो। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है। +25) पाप अपने साथ रोग, शोक, पतन और संकट भी लेकर आता है। +26) ईमानदार होने का अर्थ है-हजार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा। +27) वही जीवित है, जिसका मस्तिष्क ठंडा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है। +28) सद्‌गुणों के विकास में किया हुआ कोई भी त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता। +31) सत्कर्म की प्रेरणा देने से बढ़कर और कोई पुण्य हो ही नहीं सकता। +33) सद्‌भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों से जिनका जीवन जितना ओतप्रोत है, वह ईश्वर के उतना ही निकट है। +34) असत्‌ से सत्‌ की ओर, अंधकार से आलोक की ओर तथा विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना +35) सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता। +36) किसी आदर्श के लिए हँसते-हँसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बड़ी बहादुरी है। +37) उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है। +38) गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है। +41) अपने गुण, कर्म, स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है। +43) समाज का मार्गदर्शन करना एक गुरुतर दायित्व है, जिसका निर्वाह कर कोई नहीं कर सकता। +44) नेतृत्व पहले विशुद्ध रूप से सेवा का मार्ग था। एक कष्ट साध्य कार्य जिसे थोड़े से सक्षम व्यक्ति ही कर पाते थे। +45) सारी शक्तियाँ लोभ, मोह और अहंता के लिए वासना, तृष्णा और प्रदर्शन के लिए नहीं खपनी चाहिए। +46) निश्चित रूप से ध्वंस सरल होता है और निर्माण कठिन है। +47) अपने देश का यह दुर्भाग्य है कि आजादी के बाद देश और समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से खपने वाले सृजेताओं +48) उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर +49) शक्ति उनमें होती है, जिनकी कथनी और करनी एक हो, जो प्रतिपादन करें, उनके पीछे मन, वचन और कर्म का +50) व्यक्ति का चिंतन और चरित्र इतना ढीला हो गया है कि स्वार्थ के लिए अनर्थ करने में व्यक्ति चूकता नहीं। +51) संसार का सबसे बड़ानेता है-सूर्य। वह आजीवन व्रतशील तपस्वी की तरह निरंतर नियमित रूप से अपने सेवा +कार्य में संलग्न रहता है। +52) नेतृत्व ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है, क्योंकि वह प्रामाणिकता, उदारता और साहसिकता के बदले खरीदा जाता +53) किसी का अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है। +54) महात्मा वह है, जिसके सामान्य शरीर में असामान्य आत्मा निवास करती है। +56) स्वर्ग और मुक्ति का द्वार मनुष्य का हृदय ही है। +57) यथार्थ को समझना ही सत्य है। इसी को विवेक कहते हैं। +58) अहंकार के स्थान पर आत्मबल बढ़ाने में लगें, तो समझना चाहिए कि ज्ञान की उपलब्धि हो गयी। +59) समय को नियमितता के बंधनों में बाँधा जाना चाहिए। +61) चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को 'योग' कहते हैं। +62) कुकर्मी से बढ़कर अभागा कोई नहीं, क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं रहता। +64) अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि उसमें सफल हो गये, तो हर काम में सफलता मिलेगी। +67) बुराई मनुष्य के बुरे कर्मों की नहीं, वरन्‌ बुरे विचारों की देन होती है। +68) सब कुछ होने पर भी यदि मनुष्य के पास स्वास्थ्य नहीं, तो समझो उसके पास कुछ है ही नहीं। +69) अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं। +70) सत्य एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति है, जो देश, काल, पात्र अथवा परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होती। +71) सत्य ही वह सार्वकालिक और सार्वदेशिक तथ्य है, जो सूर्य के समान हर स्थान पर समान रूप से चमकता रहता +75) ज्ञान अक्षय है। उसकी प्राप्ति मनुष्य शय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से न जाने देना चाहिए। +76) अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर गरीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं +78) मनुष्यता सबसे अधिक मूल्यवान्‌ है। उसकी रक्षा करना प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का परम कत्र्तव्य है। +79) ज्ञान ही धन और ज्ञान ही जीवन है। उसके लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहींं जाता। +80) असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ। +81) गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। +82) असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता। +83) शालीनता बिना मूल्य मिलती है, पर उससे सब कुछ खरीदा जा सकता है। +84) मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं, वह उनका निर्माता, नियंत्रणकत्र्ता और स्वामी है। +86) कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है। +87) आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते हैं। +88) दु:ख का मूल है पाप। पाप का परिणाम है-पतन, दु:ख, कष्ट, कलह और विषाद। ���ह सब अनीति के अवश्यंभावी +89) अस्वस्थ मन से उत्पन्न कार्य भी अस्वस्थ होंगे। +90) आसक्ति संकुचित वृत्ति है। +91) समान भाव से आत्मीयता पूर्वक कत्र्तव्य-कर्मों का पालन किया जाना मनुष्य का धर्म है। +92) पाप की एक शाखा है-असावधानी। +93) जब तक मनुष्य का लक्ष्य भोग रहेगा, तब तक पाप की जड़ें भी विकसित होती रहेंगी। +94) मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-विज्ञान की जानकारी हुए बिना यह संभव नहीं है कि मनुष्य दुष्कर्मों का +95) ईश्वर अर्थात्‌ मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था। +96) मनुष्य बुद्धिमानी का गर्व करता है, पर किस काम की वह बुद्धिमानी-जिससे जीवन की साधारण कला हँस-खेल +97) जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं। +99) पग-पग पर शिक्षक मौजूद हैं, पर आज सीखना कौन चाहता है? +101) पादरी, मौलवी और महंत भी जब तक एक तरह की बात नहीं कहते, तो दो व्यक्तियों में एकमत की आशा की ही +102) जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें। +103) विवेकशील व्यक्ति उचित अनुचित पर विचार करता है और अनुचित को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करता। +104) धर्मवान्‌ बनने का विशुद्ध अर्थ बुद्धिमान, दूरदर्शी, विवेकशील एवं सुरुचि सम्पन्न बनना ही है। +105) मानव जीवन की सफलता का श्रेय जिस महानता पर निर्भर है, उसे एक शब्द में धार्मिकता कह सकते हैं। +106) मांसाहार मानवता को त्यागकर ही किया जा सकता है। +109) अश£ील, अभद्र अथवा भोगप्रदधान मनोरंजन पतनकारी होते हैं। +110) परोपकार से बढ़कर और निरापत दूसरा कोई ध्धर्म नहीं। +111) परावलम्बी जीवित तो रहते हैं, पर मृत तुल्य ही। +113) एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता। +114) सबसे बड़ा दीन दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रण नहीं। +116) भगवान्‌ की दण्ड संहिता में असामाजिक प्रवृत्ति भी अपराध है। +119) मानवता की सेवा से बढ़कर और कोई बड़ा काम नहीं हो सकता। +120) प्रकृतित: हर मनुष्य अपने आप में सुयोग्य एवं समर्थ है। +121) व्यक्तित्व की अपनी वाणी है, जो जीभ या कलम का इस्तेमाल किये बिना भी लोगों के अंतराल को छूती है। +122) प्रस्तुत उलझनें और दुष्प्रवृत्तियाँ कहीं आसमान से नहीं टपकीं। वे मनुष्य की अपनी बोयी, उगाई और बढ़ाई हुई हैं। +123) दीनता वस्तुत: मानसिक हीनता का ही प्रतिफल है। +125) सत्कर्मों का आत्मसात होना ही उपासना, साधना और आराधना का सारभूत तत्व है। +126) जनसंख्या की अभिवृद्धि हजार समस्याओं की जन्मदात्री है। +127) अंतरंग बदलते ही बहिरंग के उलटने में देर नहीं लगती है। +128) सद्‌विचार तब तक मधुर कल्पना भर बने रहते हैं, जब तक उन्हें कार्य रूप में परिणत नहीं किया जाय। +129) नेतृत्व का अर्थ है वह वर्चस्व जिसके सहारे परिचितों और अपरिचितों को अंकुश में रखा जा सके, अनुशासन में +130) आत्मानुभूति यह भी होनी चाहिए कि सबसे बड़ी पदवी इस संसार में मार्गदर्शक की है। +131) नेता शिक्षित और सुयोग्य ही नहीं, प्रखर संकल्प वाला भी होना चाहिए, जो अपनी कथनी और करनी को एकरूप +132) सफल नेता की शिवत्व भावना-सबका भला 'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' से प्रेरित होती है। +134) विपरीत प्रतिकूलताएँ नेता के आत्म विश्वास को चमका देती हैं। +135) सच्चे नेता आध्यात्मिक सिद्धियों द्वारा आत्म विश्वास फैलाते हैं। वही फैलकर अपना प्रभाव मुहल्ला, ग्राम, शहर, प्रांत और देश भर में व्याप्त हो जाता है। +136) सफल नेतृत्व के लिए मिलनसारी, सहानुभूति और कृतज्ञता जैसे दिव्य गुणों की अतीव आवश्यकता है। +137) हर व्यक्ति जाने या अनजाने में अपनी परिस्थितियों का निर्माण आप करता है। +138) अनीति अपनाने से बढ़कर जीवन का तिरस्कार और कुछ हो ही नहीं सकता। +139) काम छोटा हो या बड़ा, उसकी उत्कृष्टता ही करने वाले का गौरव है। +140) निरंकुश स्वतंत्रता जहाँ बच्चों के विकास में बाधा बनती है, वहीं कठोर अनुशासन भी उनकी प्रतिभा को कुंठित +141) दिल खोलकर हँसना और मुस्कराते रहना चित्त को प्रफुल्लित रखने की एक अचूक औषधि है। +142) नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नहीं, आदर्शों की अवहेलना को कहते हैं। +143) श्रेष्ठ मार्ग पर कदम बढ़ाने के लिए ईश्वर विश्वास एक सुयोग्य साथी की तरह सहायक सिद्ध होता है। +144) मरते वे हैं, जो शरीर के सुख और इन्दि्रय वासनाओं की तृप्ति के लिए रात-दिन खपते रहते हैं। +145) राष्ट्र के उत्थान हेतु मनीषी आगे आयें। +146) राष्ट्र निर्माण जागरूक बुद्धिजीवियों से ही संभव है। +147) राष्ट्रोत्कर्ष हेतु संत समाज का योगदान अपेक्षित है। +148) राष्ट्र का विकास, बिना आत्म बलिदान के नहीं हो सकता। +149) राष्ट्र को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए आदर्शवाद, नैतिकता, मानवता, परमार्थ, देश भक्ति एवं समाज निष्ठा की भावना की जागृति नितान्त आवश्यक है। +150) सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों मे�� जो विकृतियाँ, विपन्नताएँ दृष्टिगोचर हो रही हैं, वे कहीं आकाश से नहीं +टपकी हैं, वरन्‌ हमारे अग्रणी, बुद्धिजीवी एवं प्रतिभा सम्पन्न लोगों की भावनात्मक विकृतियों ने उन्हें उत्पन्न किया +151) राष्ट्रीय स्तर की व्यापक समस्याएँ नैतिक दृष्टि धूमिल होने और निकृष्टता की मात्रा बढ़ जाने के कारण ही उत्पन्न +152) राष्ट्र के नव निर्माण में अनेकों घटकों का योगदान होता है। प्रगति एवं उत्कर्ष के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास चलते और उसके अनुरूप सफलता-असफलताएँ भी मिलती हैं। +153) राष्ट्रों, राज्यों और जातियों के जीवन में आदिकाल से उल्लेखनीय धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक +क्रान्तियाँ हुई हैं। उन परिस्थितियों में श्रेय भले ही एक व्यक्ति या वर्ग को मार्गदर्शन को मिला हो, सच्ची बात यह रही +है कि बुद्धिजीवियों, विचारवान्‌ व्यक्तियों ने उन क्रान्तियों को पैदा किया, जन-जन तक फैलाया और सफल +154) धर्म का मार्ग फूलों की सेज नहीं है। इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं। +158) किसी का मनोबल बढ़ाने से बढ़कर और अनुदान इस संसार में नहीं है। +159) बड़प्पन सुविधा संवर्धन का नहीं, सद्‌गुण संवर्धन का नाम है। +161) मनुष्य की संकल्प शक्ति संसार का सबसे बड़ा चमत्कार है। +164) उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की। +165) जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं। +166) ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है-अध्यात्म। +168) प्रतिभावान्‌ व्यक्तित्व अर्जित कर लेना, धनाध्यक्ष बनने की तुलना में कहीं अधिक श्रेष्ठ और श्रेयस्कर है। +169) दरिद्रता कोई दैवी प्रकोप नहीं, उसे आलस्य, प्रमाद, अपव्यय एवं दुर्गुणों के एकत्रीकरण का प्रतिफल ही करना +170) शत्रु की घात विफल हो सकती है, किन्तु आस्तीन के साँप बने मित्र की घात विफल नहीं होती। +171) अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं। +174) दूसरों की सबसे बड़ी सहायता यही की जा सकती है कि उनके सोचने में जो त्रुटि है, उसे सुधार दिया जाए। +175) ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है। +176) प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह अंदर से जागती है और उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना +177) संकल्प जीवन की उत्कृष्टता का मंत्र है, उसका प्रयोग मनुष्य जीवन के गुण विकास के लिए होना चाहिए। +178) पुण्य की जय-पाप की भी जय ऐसा समदर्शन तो व्यक्ति को दार्शनिक भूल-भुलैयों में उलझा कर संसार का +179) अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता। +180) अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो दरिद्रता की वृद्धि कर देता है। +काम को कल के लिए टालते रहना और आज का दिन आलस्य में बिताना एक बहुत बड़ी भूल है। +आरामतलबी और निष्कि्रयता से बढ़कर अनैतिक बात और दूसरी कोई नहीं हो सकती। +181) किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है। +183) कत्र्तव्य पालन करते हुए मौत मिलना मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी सफलता और सार्थकता है। +184) बड़प्पन बड़े आदमियों के संपर्क से नहीं, अपने गुण, कर्म और स्वभाव की निर्मलता से मिला करता है। + + +खिचड़ी के मुहावरे, कहावतें या लोकोक्तियाँ + + +* सुनो सुनो दुनिया के लोगों सबसे बड़ा है मिस्टर गोगो +* तेजा मैं हूं मार्क इधर है + + +* आर्थिक युद्ध में किसी राष्ट्र को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है,  उसकी मुद्रा को खोटा कर देना और किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है,  उसकी भाषा को हीन बना देना । +* इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को छोटे से समूह ने ही बदला है । +* अगर किसी को अपना मित्र बनाना चाहते हो, तो उसके दोषों, गुणों और विचारों को अच्छी तरह परख लेना चाहिए। +* हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है और यदि मुझसे भारत के लिए एक मात्र भाषा का नाम लेने को कहा जाए तो वह निश्चित रूप से हिंदी ही है। — कामराज +* कोई भी राष्ट्र अपनी भाषा को छोड़कर राष्ट्र नहीं कहला सकता। — थोमस डेविस +* अत्यंत साधारण छात्र भी दृढ संकल्प करें और सही दिशा में निरन्तर परिश्रम करते रहे तो उनका लक्ष्य दूर नहीं रह सकता। +* नियमित रुप से परिश्रम किया जाय तो मंद बुद्वि वाला भी जीवन में बहुत आगे निकल सकता है। +:अर्थ- किसी भी व्यक्ति का मूल स्वभाव कभी नहीं बदलता है, चाहे आप उसे कितनी भी सलाह दे दो। ठीक उसी तरह जैसे पानी तभी गर्म होता है, जब उसे उबाला जाता है। लेकिन कुछ देर के बाद वह फिर ठंडा हो जाता है। + + +आप लोग किसी के साथ मिलकर काम करना नहीं जानते, ���पनी खिचड़ी अलग पकाते हैं। +शाम को घर पहुंचते पहुंचते अंग-अंग ढीले हो चुके होते हैं। +लक्ष्य प्राप्ति पर उसके अंग – अंग मुस्काने लगे। +ऋत के अनुसार वस्त्र अंग धरने चाहिए। +रोज रोज के पकवान उसके अंग लग गये हैं। +दिनों बाद मिले मित्र को उसने अंग लगा लिया। +कर्महीन व्यक्ति के सिर पर अंगार रहते है। +जरूरतमंद हर किसी के आगे अंचल पसारता है। +दस किलोमिटर चलते ही उसके तो अंजर पंजर ढीले हो गए। +सावधान रहना, वह अंटीबाज है। +सत्य कभी अंटी में नहीं रखा रहता। +आसन डोलना लुब्ध या विचलित होना +अब-तब होना परेशान करना या मरने के करीब होना +अपने मुंह मियां मिट्ठू होना अपनी बड़ाई आप करना +ईंट का जवाब पत्थर से देना अहिंसा सिद्धान्त के विरुद्ध है। +पुलिस का डंडा पड़ते ही उसने सारा भेद उगल दिया। +खाँ साहेब सदैव इसी उधेड़बुन में रहते थे कि इस शैतान को कैसे पंजे में लाऊँ। +उम्र ढलने के साथ बहुत से व्यक्ति गंभीर होने लगते हैं। +प्रयागराज में अगर मुंडन कराना है तो संगम तक जाने की जरूरत नहीं है, स्टेशन पर ही पंडे और मुस्तण्डे पुलिस वाले गरीब गाँव वालों को उलटे उस्तरे से मूंड देते हैं। +आपको कोई ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए जिससे असहाय अबला की ओर उंगली उठे। +उंगली पकड़कर पौंहचा पकड़ना थोड़ा-सा सहारा पाकर विशेष की प्राप्ति के लिए प्रयास करना। +अब उनके नामलेवा उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। +मैं इन दोनों को उंगलियों पर नचाऊंगा। +एक लड्डू का तो मुझे कुछ पता ही नहीं चला। अच्छा लगने की वजह से वह बिल्कुल वैसे ही लगा जैसे ऊँच के मुँह में जीरा। +उन्होंने परिश्रम करके कोई 250 रुपए ऊपर से कमाये थे। +उगल देना गुप्त बात प्रकट करना +उल्टी गंगा बहाना प्रतिकूल कार्य +उन्नीस-बीस होना एक का दूसरे से कुछ अच्छा होना +एक आंख से देखना बराबर मानना +एक लाठी से सबको हांकना उचित-अनुचित का बिना विचार किए व्यवहार +कलेजा ठंडा होना संतोष होना +कागजी घोड़े दौड़ना केवल लिखा-पढ़ी करना, पर कुछ काम की बात न होना +किताब का कीड़ा होना पढ़ने के सिवा कुछ न करना +किस खेत की मूली अधिकारहीन, शक्तिहीन +कुआं खोदना हानि पहुंचाने का यत्न करना +खेत रहना या आना वीरगति पाना +खून-पसीना एक करना कठिन परिश्रम करना +खटाई में पड़ना झमेले में पड़ना, रूक जाना + + +और ज्ञानी माना जाता है। +अक्ल बड़ी या भैंस शारीरिक बल से बुद्धि बड़ी है। +अपनी करना पार उतरनी अपने ही कर्मों का फल मिलता है। +पर पछताने का क्या लाभ. +आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए जो दूसरों पर निर्भर रहता है वह जीवित रहते हुए भी मृतप्राय होता है। नहीं. +वह बहुत सन्तोषी आदमी है। लाभ और हानि दोनों होने पर वह प्रसन्न रहता है। उसके ही जैसे लोगों के लिए कहा जाता है कि 'आये की खुशी गम.' +आंख का अंधा नाम नयनसुख गुण के विरूध्द नाम होना +आम के आम गुठलियों के दाम दोहरा लाभ +अभी तो कार्य का आरंभ है, इसे ही देखकर घबरा गए, आगे देखो क्या होता है। +जो मनुष्य दीन-दुखियों को दान देता है, वह सदैव सम्पन्न रहता है, उसे कभी किसी वस्तु का अभाव नहीं होता. इसीलिए कहा गया है कि इस हाथ दे, उस हाथ ले. +आज के जमाने में सीधा होना भी एक अभिशाप है। सीधे आदमी को लोग अनेक विशेषणों से विभूषित करते हैं, जैसे भोंदू, घोंघा बसन्त आदि, किन्तु जो व्यक्ति ईंट की लेनी पत्थर की देनी कहावत चरितार्थ करता है उससे लोग डरते रहते हैं. +उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे अपराधी अपने अपराध को स्वीकार करता नहीं, उल्टा पूछे वाले को धमकाता है। +खेती सबसे श्रेष्ठ व्यवसाय है, व्यापार मध्यम है, नौकरी करना निकृष्ट है और भीख माँगना सबसे बुरा है। यह बुद्धिमानों का महानुभूत सिद्धांत है कि 'उत्तम खेती निदान' पर आज कल कृषिजीवी लोग ही अधिक दरिद्री पाए जाते हैं +जब लोगों ने मुझे बिरादरी से खारिज कर ही दिया है तो अब मैं खुले आम अंग्रेजी होटल में खाना खाऊँगा +आज एक ग्राहक ने मेज पर से किताब उठा ली. उससे पूछा तो लगा शरीफ बनने और धौंस जमाने कि तुम मुझे चोरी लगाते हो +यहाँ से बाँस दूसरी जगह को भेजा जाता है। दूसरे स्थानों से वहाँ बाँस भेजना मूर्खता है। इसलिए इस कहावत का अर्थ है कि स्थिति के विपरीत काम करना, जहाँ जिस वस्तु की आवश्यकता न हो उसे वहाँ ले जाना। +दो-एक बार धोखा खा के धोखेबाजों की हिकमतें सीख लो और कुछ अपनी ओर से जोड़कर 'उसी की जूती उसी का सिर' कर दिखाओ +ऊधो का लेना न माधो का देना जो अपने काम से काम +रखता है, किसी के झगड़े में नहीं पड़ता उसके विषय में +एक पंथ दो काज आम के आम गुठलियों के दाम. एक कार्य से बहुत से कार्य सिद्ध होना. +एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है एक बुरा व्यक्ति सारे कुटुम्ब, समाज या साथियों को बुरा बनाता है। +जितने लोग हैं उनके उतनी तरह के काम हैं और एक +बेचारी गाँधी टोपी है जिसे सबको पार लगाना है। +है उससे हजार बोलने वाले हार मान लेते हैं +मनुष्यों में या एक पदार्थ के कभी भागों में बहुत कम +एक तो करेला (कडुवा) दूसरे नीम चढ़ा कटु या कुटिल +स्वभाव वाले मनुष्य कुसंगति में पड़कर और बिगड़ जाते हैं. +एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है यदि किसी घर या समूह +में एक व्यक्ति दुष्चरित्र होता है तो सारा घर या समूह बुरा या +अत्यंत ऐश्वर्यशाली व्यक्ति के पूर्ण विनाश हो जाने पर इस +लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है। +कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा महल के अंदर नहीं जा सकता था। +कमाते-धमाते तो कुछ हैं नहीं, केवल खाने और बच्चों को डांटने-फटकारने से मतलब है।..ऐसे बूढ़े +ओखली में सिर दिया तो मूसली से क्या डर जब कठिन काम के लिए कमर कस ली तो कठिनाइयों से क्या डरना. +लोगों का प्रेम अस्थायी होता है। +चूक जाता है, उसका काम बिगड़ जाता है और केवल +कपड़े फटे गरीबी आई फटे कपड़े देखने से मालूम होता है +कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर समय पर एक-दूसरे +की सहायता की आवश्यकता पड़ती है। +कर लेना चाहिए, उसमें आलस्य नहीं करना चाहिए। +जाते समय रेल में संदूक रह गया। इस बार मेरे साथ +छोटे लोग काम करते हैं परन्तु नाम उनके सरदार का +न करे पर लड़ने-झगड़ने में तेज हो। +कहां राजा भोज कहां गांगू तेरी उच्च और साधारण की तुलना कैसी +जो मनुष्य जिस स्थान या समाज में रहता है उसको उसी जगह या समाज के लोगों की बात समझ में आती है। +खरादी का काठ काटे ही से कटता है : +काम करने ही से समाप्त होता है या ऋण देने से ही चुकता है। +नगद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है। +खल की दवा पीठ की पूजा : +दुष्ट लोग पीटने से ही ठीक रहते हैं. +खलक का हलक किसने बंद किया है संसार के लोगों का मुँह कौन बंद कर सकता है? +अपने को अच्छा लगे वह खाना खाना चाहिए और जो दूसरों को अच्छा लगे वह कपड़ा पहनना चाहिए. +अनधिकारी को कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए. +किसी अन्य व्यक्ति, मालिक या मित्र के बल पर शेखी बघारना. +जब एक प्रकृति या रुचि के दो मनुष्य मिल जाते हैं तब उनका समय बड़े आनंद से व्यतीत होता है। +दो मूर्खों का साथ, एक ही प्रकार के दो मनुष्यों का साथ. +जब अपराध एक व्यक्ति करे और दंड दूसरा पावे. +खेती या व्यापार में लाभ तभी होता है जब मालिक स्वयं उसकी देखरेख करे. +सुखपूर्वक काम समाप्त हो जाने पर ऐसा कहते हैं. +खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का : +काम कर्मचारी करते हैं और नाम अफसर का होता है। +बहुत परिश्रम करने पर थोड़ा लाभ होना. +गंजी कबूतरी और महल में डेरा : +किसी अयोग्य व्यक्ति के उच्च पद प्राप्त करने पर ऐसा कहते हैं. +स्वार्थी मनुष्य किसी के साथ नहीं होते, अपना मतलब सिद्ध होते ही वे चल देते हैं. +जब कोई आदमी किसी ऐसे काम में पड़ता है जिससे उसका कोई संबंध नहीं तब ऐसा कहा जाता है। +कृतघ्न के साथ नेकी करना व्यर्थ है। +यदि कोई व्यक्ति कोई छोटा कष्ट दूर करने की चेष्टा करता है और उससे बड़े कष्ट में फंस जाता है तब कहते हैं. +गरीब और सीधे आदमी को लोग प्राय: दबाया करते हैं. +यदि कोई व्यक्ति कोई छोटा कष्ट दूर करने की चेष्टा करता है और उससे बड़े कष्ट में फंस जाता है तब कहते हैं. +गरीब और सीधे आदमी को लोग प्राय: दबाया करते हैं. +कंगाली में गीला आटा धन की कमी के समय जब पास से कुछ और +गाँव के जोगी जोगना आन गाँव के सिद्ध अपनी जन्मभूमि में किसी +विद्वान या वीर की उतनी प्रतिष्ठा नहीं होती जितनी दूसरे स्थानों में होती है। +माता-पिता का प्रभाव थोड़ा-बहुत अवश्य पड़ता है। +सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं. +गीदड़ की शामत आए तो गाँव की तरफ भागे जब विपत्ति आने को +होती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है। +गुड़ खाय गुलगुले से परहेज कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से +गुड़ होगा तो मक्खियाँ भी आएँगी यदि पास में धन होगा तो साथी +या खाने वाले भी पास आएँगे. +गुरु गुड़ ही रहा चेला शक्कर हो गया जब शिष्य गुरु से बढ़ जाता +है तब ऐसा कहते हैं. +गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी गुरु से कपट +नहीं करना चाहिए और मित्र से चोरी नहीं करना चाहिए, जो +मनुष्य ऐसा करता है उसकी बड़ी दुर्गति होती है। +गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है अपराधियों के साथ निरपराध व्यक्ति +गैर का सिर कद्दू बराबर दूसरे की विपत्ति को कोई नहीं समझता. +बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है। +बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा पास में रहने पर भी किसी +वस्तु या व्यक्ति का दूर-दूर ढूँढ़ा जाना. +नौकर अपनी स्वाधीनता प्रकट करने के लिए ऐसा कहता है। +ग्वालिन अपने दही को खट्टा नहीं कहती कोई भी व्यक्ति +घड़ीभर की बेशरमी और दिनभर का आराम संकोच करने +की अपेक्षा साफ-साफ कहना अच्छा होता है। +जरा-सी बात पर नाराज हो जाय ऐसे अस्थिर चित्त व्यक्ति के कहा जाता है। +घर आई लक्ष्मी को लात नहीं मारते मिलते हुए धन या वृत्ति +का त्याग नहीं करना चाहिए. +घर कर सत्तर बला सिर कर ब्याह करने और घर बनबाने में +बहुत-से झंझटों का सामना करना पड़ता है। +घर का भेदी लंका ढाये आपसी फूट से सर्वनाश हो जाता है। +घर की मुर्गी दाल बराबर घर की वस्तु या व्यक्ति का उचित +हैं, सब लोगों को कुछ न कुछ कष्ट होता है। +घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ दूसरों की कीर्ति पर डींग +चीज का दाम मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए +घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिध्द निकट का गुणी व्यक्ति कम सम्मान पाता है, पर दूर का ज्यादा +चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे पहले कुछ रुपया पैसा खर्च +करोगे या पहले कुछ खिलाओगे तभी काम हो सकेगा. +जल्दी से अपना काम पूरा कर देने पर उक्ति. +चाह है तो राह भी जब किसी काम के करने की इच्छा होती है तो +की आशा हो वहाँ पर यदि कुविचार, अन्याय या अयोग्यता पाई जाए. +करता है तब उसके लिए ऐसा कहते हैं. +चूल्हे में जाय नष्ट हो जाय। उपेक्षा और तिरस्कारसूचक शाप +जिसका प्रयोग स्त्रियाँ करती हैं. +के हाथ में अधिकार होता है। +चोर की दाढ़ी में तिनका यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई हो और +कोई उसके सामने उस बुराई की निंदा करे, तो वह यह समझेगा कि मेरी ही बुराई कर रहा है, वास्तविक अपराधी +जरा-जरा-सी बात पर अपने ऊपर संदेह करके दूसरों से उसका प्रतिवाद करता है। +चोर-चोर मौसेरे भाई एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्द मेल-जोल हो जाता है। +चोरी और सीनाजोरी अपराध करना और जबरदस्ती +दिखाना, अपराधी का अपने को निरपराध सिद्ध करना और अपराध को दूसरे के सिर मढ़ना. +चौबे गए छब्बे होने दुबे रह गए यदि लाभ के लिए कोई काम +किया जाय परन्तु उल्टे उसमें हानि हो. +थोथा चना बाजे घना दिखावा बहुत करना परन्तु सार न होना. +नदी में रहकर मगरमच्छ से बैर अपने को आश्रय देने वाले से ही +नाच न जाने आंगन टेढ़ काम न जानना और बहाना बनाना +न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी न कारण होगा, न कार्य होगा +रस्सी जल गई पर बल नहीं गया बरबाद हो गया, पर घमंड अभी +होनहार बिरवान के होत चीकने पात होनहार के लक्षण पहले से ही दिखाई पड़ने लगते हैं। +गाँव के जोगी जोगना आन गाँव के सिद्ध अपनी जन्मभूमि में किसी +विद्वान या वीर की उतनी प्रतिष्ठा नहीं होती जितनी दूसरे स्थानों में होती है। +माता-पिता का प्रभाव थोड़ा-बहुत अवश्य पड़ता है। +सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं. +गीदड़ की शामत आए तो गाँव की तरफ भागे जब विपत्ति आने को +होती है तब मनुष्य की बुद्धि विप��ीत हो जाती है। +गुड़ खाय गुलगुले से परहेज कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से +गुड़ होगा तो मक्खियाँ भी आएँगी यदि पास में धन होगा तो साथी +या खाने वाले भी पास आएँगे. +गुरु गुड़ ही रहा चेला शक्कर हो गया जब शिष्य गुरु से बढ़ जाता +है तब ऐसा कहते हैं. +गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी गुरु से कपट +नहीं करना चाहिए और मित्र से चोरी नहीं करना चाहिए, जो +मनुष्य ऐसा करता है उसकी बड़ी दुर्गति होती है। +गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है अपराधियों के साथ निरपराध व्यक्ति +गैर का सिर कद्दू बराबर दूसरे की विपत्ति को कोई नहीं समझता. +बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है। +बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा पास में रहने पर भी किसी +वस्तु या व्यक्ति का दूर-दूर ढूँढ़ा जाना. +नौकर अपनी स्वाधीनता प्रकट करने के लिए ऐसा कहता है। +ग्वालिन अपने दही को खट्टा नहीं कहती कोई भी व्यक्ति +घड़ीभर की बेशरमी और दिनभर का आराम संकोच करने +की अपेक्षा साफ-साफ कहना अच्छा होता है। +जरा-सी बात पर नाराज हो जाय ऐसे अस्थिर चित्त व्यक्ति के कहा जाता है। +घर आई लक्ष्मी को लात नहीं मारते मिलते हुए धन या वृत्ति +का त्याग नहीं करना चाहिए. +घर कर सत्तर बला सिर कर ब्याह करने और घर बनबाने में +बहुत-से झंझटों का सामना करना पड़ता है। +घर का भेदी लंका ढाये आपसी फूट से सर्वनाश हो जाता है। +घर की मुर्गी दाल बराबर घर की वस्तु या व्यक्ति का उचित +हैं, सब लोगों को कुछ न कुछ कष्ट होता है। +घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ दूसरों की कीर्ति पर डींग +चीज का दाम मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए +चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे पहले कुछ रुपया पैसा खर्च +करोगे या पहले कुछ खिलाओगे तभी काम हो सकेगा. +जल्दी से अपना काम पूरा कर देने पर उक्ति. +चाह है तो राह भी जब किसी काम के करने की इच्छा होती है तो +की आशा हो वहाँ पर यदि कुविचार, अन्याय या अयोग्यता पाई जाए. +करता है तब उसके लिए ऐसा कहते हैं. +चूल्हे में जाय नष्ट हो जाय। उपेक्षा और तिरस्कारसूचक शाप +जिसका प्रयोग स्त्रियाँ करती हैं. +के हाथ में अधिकार होता है। +चोर की दाढ़ी में तिनका यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई हो और +कोई उसके सामने उस बुराई की निंदा करे, तो वह यह समझेगा कि मेरी ही बुराई कर रहा है, वास्तविक अपराधी +जरा-जरा-सी बात पर अपने ऊपर संदेह करके दूसरों से उसका प्रतिवाद करता है। +च���र-चोर मौसेरे भाई एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्द मेल-जोल हो जाता है। +चोरी और सीनाजोरी अपराध करना और जबरदस्ती +दिखाना, अपराधी का अपने को निरपराध सिद्ध करना और अपराध को दूसरे के सिर मढ़ना. +चौबे गए छब्बे होने दुबे रह गए यदि लाभ के लिए कोई काम +किया जाय परन्तु उल्टे उसमें हानि हो. +भेद की बात हर एक व्यक्ति से नहीं कहनी चाहिए. +दुर्जन सभी को मरना पड़ता है। +है तब तक उसे कुछ न कुछ करना ही पड़ता है। +अत्याचार को चुपचाप सहना होता है। +जल की मछली जल ही में भली जो जहाँ का होता है उसे वहीं + + +गरदन दबाना कुछ करने, देने, हानि सहने आदि के लिए विवश करना। +ऐसे आदमियों से हम मिल जाते हैं और उनकी मदद से दूसरे आदमियों की गरदन दबाते हैं। +गले पड़ना किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध उसके पास किसी का रहना, उसके पीछे पड़े रहना। +गृहस्थी का सारा काम भाइयों ने मेरे गले मढ़ दिया है। +गाँठ खोलना समस्या का निराकरण करना, कठिनाई अड़चन दूर करना। +गागर में सागर थोड़े-से शब्दों में बहुत अधिक भाव-विचार व्यक्त करना, थोड़े-से शब्दों में बड़ी महत्वपूर्ण बात कहना। +गाल बजाना डींग मारना, बढ़-चढ़कर बातें करना। +कई दिन हुए वे गुजर गए। +गुस्सा उतारना क्रोध की शांति के लिए किसी पर बिगड़ना, मारना। +क्रोध एक व्यक्ति पर हो और दूसरे को डांट-फटकार कर या दण्ड देकर अपने दिल को शांत करना। +गूंगे का गुड़ वह आनंदानुभूति, सुख का अनुभव जिसका वर्णन न किया जा सके। +भक्त को भगवान के चिंतन में जो आनंद मिलता है वह कहा नहीं जा सकता। वह तो गूंगे का गुड़ ही रहेगा। +गूलर का कीड़ा कूपमंडूक, अल्पज्ञ व्यक्ति। +गिन-गिनकर पैर रखना सुस्त चलना, हद से ज्यादा सावधानी बरतना +गिरगिट की तरह रंग बदलना एक रंग-ढंग पर न रहना +गूलर का फूल होना लापता होना +गांठ में बांधना खूब याद रखना +गुदड़ी का लाल गरीब के घर में गुणवान का उत्पन्न होना +घंटा दिखाना आवेदक या याचक को कोई वस्तु न देना, उसे निराश कर देना। +घड़ों पानी पड़ना दूसरों के सामने हीन सिद्ध होने पर अत्यंत लज्जित होना। +घपले में पड़ना किसी काम का खटाई में पड़ना। +घमंड में चूर होना अत्यधिक अभिमान होना। +घर में भूंजी भाँग न होना घर में कुछ धन-दौलत न होना, अकिंचन होना, अत्यंत निर्धन होना। +घाट-घाट का पानी पीना अनेक स्थलों का अनुभव प्राप्त करना। देश-देशान्तर के लोगों की जीवनचर्या की जानकारी प्��ाप्त करना। +घात में रहना किसी को हानि पहुँचाने के लिए अनुकूल अवसर ढूँढते फिरना। +घाव पर नमक छिड़कना दुख पर दुख देना, दुखी व्यक्ति को और यंत्रणा देना। +घाव पर मरहम रखना सांत्वना देना, तसल्ली बंधाना। +घिग्घी बँध जाना भय, क्षोभ या अन्य किसी संवेग के कारण मुंह से बोली न निकलना, कण्ठावरोध होना। +घी का चिराग जलाना कार्य सिद्ध होने पर आनंद मनाना, प्रसन्न होना। +घी-खिचड़ी होना आपस में अत्यधिक मेल होना। +घुन लगना शरीर का अंदर-अंदर क्षीण होना, चिंता होना। +घूंघट का पट खोलना अज्ञान का परदा दूर करना। +घड़ों पानी पड़ जाना अत्यंत लज्जित होना +घी के दीये जलाना अप्रत्याशित लाभ पर प्रसन्नता +चंडाल चौकड़ी दुष्टों का समुदाय, समूह। +चंद्रमा बलवान होना भाग्य अनुकूल होना। +चट कर जाना सबका सब का जाना। दूसरे की वस्तु हड़प कर +चपेट में आना चंगुल में फँसना। +चरणों की धूल किसी की तुलना में अत्यन्त नगण्य व्यक्ति। +चरणामृत लेना देवमूर्ति, महात्मा आदि के चरण धोकर पीना। +चरबी चढ़ना बहुत मोटा होना। मदांध होना। +किसी प्रकार इस मामले को चलता करो। +कुछ दिनों से कमलाचरण को जुए का चस्का पड़ चला था। +चहल-पहल रहना रौनक होना, बहुत-से लोगों का आना-जाना, एकत्र होना। +चाँद का टुकड़ा अत्यंत सुंदर व्यक्ति/पदार्थ। +जिसके कारण स्वयं अपमानित होना पड़े। +उसने चाँदी के टुकड़ों के लिए अपना ईमान बेच दिया है। +शक्ति के अनुसार काम करना। +चाम के दाम चलाना अन्याय करना, अपनी जबरदस्ती के +चार आँखें होना देखा-देखी होना, किसी से नजरें मिलाना। +चार चाँद लगना शोभा, सौंदर्य की अत्यधिक वृद्धि करना। +उनका बस चलता तो दाननाथ चार पैसे के आदमी हो गए होते। +चिकनी चुपड़ी बातें मीठी बातें जो किसी को प्रसन्न करने, बहकाने या धोखा देने के लिए कही जाएँ। +चिड़िया का दूध अप्राप्य वस्तु, ऐसी वस्तु जिसका अस्तित्व न हो। +मिर्जा जी बड़ी जवांमर्दी दिखाने चले थे। पचास कदम में ही चीं बोल गए। +चींटी की पर निकलना मृत्यु के निकट आना। +चुटिया हाथ में होना किसी के अधीन या पूर्णतः नियंत्रण में +चुपड़ी और दो-दो दोनों ओर से लाभ, दोहरा लाभ, बढ़िया भी और मात्रा में भी अधिक। +इन्होंने पहले यह बताया ही नहीं था कि चचिया ससुर को चूना लगाने के लिए बनारस चलना है। +माधवी कल्पित प्रेम के उल्लास में चूर रहती थी। +चूलें ढीली होना अधिक परिश्रम के कारण बहुत थकावट +अह���ते के फाटक में फिटन के प्रवेश करते ही शेख जी का चेहरा खिल उठा। +चेहरा तमतमाना तेज गर्मी, अत्यधिक क्रोध या तीव्र ज्वर के कारण चेहरे का लाल हो जाना। +लाला धनीराम और उनके सहयोगियों को मैं चैन की नींद न सोने दूंगा। +यह पहला अवसर था कि उन्हें चोटी के आदमियों से इतना सम्मान मिले। +चोटी हाथ में होना किसी के वश में होना, लाचार होना। +उनकी चोटी मेरे हाथ में है। अगर रुपये न दिए तो ऐसी खबर लूंगा कि याद करेंगे। +चोली-दामन का साथ घनिष्ठ सम्बन्ध, साथ-साथ चलने वाली वस्तुएँ। +पन्ना रूपवती स्त्री थी और रूप तथा गर्व में चोली-दामन का नाता है। +चौक पूरना पूजा आदि पवित्र कार्य के लिए आटे और अबीर-हल्दी से चौखटा बनाकर उसके भीतर तरह-तरह की आकृतियाँ बनाना। +चौका-बरतन करना बरतन माँजने और रसोईघर लीपने-पोतने या धोने का काम करना। +चौखट पर माथा टेकना अनुनय-विनय करना, विनीत प्रार्थना करना। +चींटी के पर लगना या जमना विनाश के लक्षण प्रकट होना +चंडूखाने की गप बहकी या बेतुकी बातें करना +चादर से बाहर पैर पसारना आय से अधिक व्यय करना +चांद पर थूकना व्यर्थ निंदा या सम्माननीय का अनादर करना +चूड़ियां पहनना स्त्री की सी असमर्थता प्रकट करना +छप्पर फाड़कर देना अचानक या बिना परिश्रम के संपन्न करना +जीती मक्खी निगलना जानबूझकर कुछ अशोभन या अभद्र करना +जमीन पर पैर न पड़ना अधिक घमंड करना +जान पर खेलना साहसिक कार्य करना +टका-सा मुंह लेकर रहना शार्मिंदा होना +टट्टी की ओट में शिकार खेलना छिपे तौर पर किसी के विरूध्द कुछ करना +दूध के दांत न टूटना ज्ञानहीन या अनुभवहीन +धज्जियां उड़ना किसी के दोषों को चुन-चुनकर गिनाना +निनानवे का फेर धन जोड़ने का बुरा लालच +नौ-दो ग्यारह होना चंपत होना +पेट में चूहे कूदना जोर की भूख लगना +पट्टी पढ़ाना बुरी राय देना +पौ बारह होना खूब लाभ होना +फूलना-फलना धनवान या कुलवान होना +बाजार गर्म होना बोलबाला, काम में तेजी +मैदान मारना बाजी या लड़ाई जीतना +रंग लाना प्रभाव उत्पन्न करना +रोंगटें खड़े होना चकित होना, भयभीत होना +लकीर का फकीर होना पुरानी प्रथा पर ही चलना +लेने के देन पड़ना लाभ के बदले हानि +हाथ पैर मारना काफी प्रयत्न करना +हाथ के तोते उड़ना स्तब्ध होना + + +मूल सारणी का सम्पादन अब यथादृश्य सम्पादिका में उपलब्ध है। आप बटन पर क्लिक करके सारणी में स्तम्भ अथवा पंक्ति जोड़ और हटा सक���े हो। +आप अनुप्रेषित श्रेणी भी जोड़ सकते हो, जिसे यथादृश्य सम्पादिका इसके लक्ष्य से जोड़ेगी। विवरण पृष्ठ रहित श्रेणियाँ अब लाल रंग में प्रदर्शित होगी। +आप अब चित्रदीर्घाओं को पुनः विकिपाठ स्रोत की भाँति निर्मित एवं सम्पादित कर सकते हो। +सम्पादन दल उद्धरणों के लिए 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और स्तंभ को इधर उधर कर सकते हो, साथ ही उस पंक्ति और स्तम्भ को कॉपी कर के दूसरे स्थान पर डाल भी सकते हो। +सूत्र संपादक के दो विकल्प हैं: पहला शीघ्र सम्पादन जो आपको LaTeX कोड में बदलाव करने देगा, या दूसरा सम्पादन जो आपको पूरे औज़ार उपयोग करने देगा। पूर्ण औज़ार आपको झलक के साथ कई चिन्ह सूची भी देते हैं। +चलो एक साथ काम करते हैं +कुछ समय के लिए सभी विकि में आप केवल पढ़ सकेंगे, लेकिन लिख नहीं पाएंगे। +*आप मंगलवार, 19 अप्रैल और गुरुवार, 21 अप्रैल को 14:00 UTC (19:30 IST) केओ 15 से 30 मिनट के लिए कुछ भी नहीं लिख पाएंगे। +*इस समय के दौरान यदि आप कोई सम्पादन करने की कोशिश करते हैं, तो आपको एक त्रुटि सन्देश दिखाई देगा। हम यही उम्मीद करते हैं कि इस समय के दौरान कोई भी सम्पादन नहीं छूटेगा, लेकिन हम भरोसा नहीं दिला सकते। यदि आपको कोई त्रुटि सन्देश दिखाई दे, तो कृपया सब कुछ ठीक होने तक प्रतीक्षा क��ें। उसके बाद आप अपने सम्पादन को सहेज सकते हैं। लेकिन, हम आपको यही सुझाव देते हैं कि आप अपने बदलाव को सहेजने से पहले कॉपी या नकल कर रखे। +*कुछ आंतरिक कार्य धीमी गति से कार्य करेंगे और कुछ बन्द हो हो सकते हैं। लाल कड़ी सामान्य गति से अद्यतन नहीं होंगे। यदि आप कोई लेख बनाते हैं जो पहले से ही कहीं पर जोड़ा गया है तो वह लाल रंग की कड़ी पहले से अधिक समय तक वैसे ही रहेगा। कुछ बहुत लम्बे समय तक चलने वाले स्क्रिप्ट रुक जाएँगे। +*18 अप्रैल के सप्ताह में कोड भी रुक सकते हैं। कोई भी गैर-अनावश्यक कोड भी स्थान पर नहीं स्थापित होंगे। +सन्दर्भ सूची डालने के लिए ये बहुत सरल और तेज है। +जहां आप संदर्व सूची प्रदर्शित्त करना चाहते हैं, कर्सर को वहां रखें (प्रायः पृष्ठ के एकदम नीचे int:visualeditor-toolbar-insert मेन्यू को खोलें एवं int:cite-ve-dialogbutton-referenceslist-tooltip के चिह्न (तीम पुस्त्तकें) को क्लिक करें। +चलो साथ काम करते हैं +आइए मिल कर काम करते हैं +नमस्कार! विकिमीडिया फाउंडेशन आपकी सहायता के लिए, ऑफलाइन लेख पढ़ना मुनकिन करना चाहती है। आप ऑफलाइन लेख सेव करने के बाद आपके फ़ोन से दुसरो को शेयरभी कर सकते हे । हमे ये सुविधा उपयोगी हे इसकी खोज पाठक अनुसंधान की दौरान हुई। इस संदर्भ में आपकेलिए कुच नमूने तैयार किये हे। आप ये नूमनों का परिक्षण कर सकते हे। अगर आपको इन नमूनों में +आज हम विकिमीडिया की दुनिया के भविष्य में भूमिका को परिभाषित करने और उस भूमिका को पूरा करने के लिए एक सहयोगी रणनीति विकसित करने के लिए एक व्यापक चर्चा शुरू कर रहे हैं। आपको वार्तालाप में शामिल होने के लिए नम्र रूप से आमंत्रित किया जाता है। +भाग लेने के कई तरीके हैं, मौजूदा वार्तालाप में शामिल होना या अपनी खुद की वार्तालाप शुरू करना +यह तीन वार्तालापों में से पहली वार्तालाप है, और यह अबसे 15 अप्रैल तक चलेगी। चक्र 1 का उद्देश्य आंदोलन के भविष्य पर चर्चा करना और संभावित दिशाओं के आसपास प्रमुख विषयों को उत्पन्न करना है। अगले 15 सालों में हम क्या बनाना चाहते हैं या एक साथ हासिल करना चाहते हैं? +आपके साथ मिलकर चर्चा करने के लिए हम आपका स्वागत करते हैं और हमारे आंदोलन के सभी हिस्सों से व्यापक और विविध भागीदारी की उम्मीद करते हैं। +क्या आप जानते हैं कि आप अपने परिवर्तनों की समीक्षा कर सकते हो? +यथादृश्य विधा में, आपको परिवर्धन, नयी कड़ियाँ और स्वरूपण प्रका��� देखने को मिलेंगे। अन्य परिवर्तन जैसे चित्र के आकार में परिवर्तन को एक तरफ टिप्पणियों में वर्णित किया जाता है। +यथादृश्य और विकिपाठ अन्तरों के मध्य बदलने के लिए टोगल बटन पर क्लिक करें। +इस प्रक्रिया का लक्ष्य विकिमीडिया फाउंडेशन फंड प्रसार समिति की पाँच समुदाय-चयनित सीटों और एक समुदाय-चयनित लोकपाल पद को भरना है। बोर्ड द्वारा ही नियुक्तियों के लिए चुनाव परिणाम का उपयोग किया जाएगा। +एफडीसी चुनावों का पूरा कार्यक्रम इस प्रकार है: सभी तिथियाँ समावेशी हैं, अर्थात् पहले दिन (यूटीसी) की शुरुआत से अंतिम दिन के अंत तक। +* १५ मई – २८ मई – उम्मीदवारों से प्रश्न पूछने का समय +* २९ मई – २ जून – उम्मीदवार प्रश्नों के जवाब देंगे +* ३ जून – ११ जून – मतदान अवधि +* १५ जून – चुनाव परिणामों की घोषणा के लिए संभावित तारीख +मोबाइल वेब रीडर के लिए नया पीडीएफ प्रिंट के लिए सुविधा +कभी कभार विकिपाठ न्तर पर महत्वपूर्ण अन्तरों को देख पाना कठिन हो जाता है। विकिपाठ अन्तर के इस स्क्रीनशॉट (बड़ा करने को क्लिक करें) में अनुच्छेदों की पुनर्व्यवस्था दिखाई देती है, किन्तु इसमें किसी शब्द को हटाना या किसी नये वाक्य का जुड़्ना नहीं उभर कर दिखाई देता। +वे बुधवार, १२ सितम्बर २०१८ को सारे ट्रैफ़िक को दूसरे डेटा केन्द्र में स्थानांतरित करेंगे। +बुधवार, १० अक्तूबर २०१८ को यह पहले के डेटा केन्द्र में वापस आ जाएगा। +कुछ समय के लिए सभी विकियों को आप केवल पढ़ सकेंगे, लेकिन सम्पादित नहीं कर पाएंगे। +*इस समय के दौरान यदि आप कोई सम्पादन करने की कोशिश करते हैं, तो आपको एक त्रुटि सन्देश दिखाई देगा। हम उम्मीद करते हैं कि इस समय के दौरान कोई भी सम्पादन नहीं छूटेगा, लेकिन हम इसका भरोसा नहीं दिला सकते। यदि आपको कोई त्रुटि सन्देश दिखाई दे, तो कृपया सब कुछ ठीक होने तक प्रतीक्षा करें। उसके बाद आप अपने सम्पादन को सहेज सकते हैं। लेकिन, हम आपको यही सुझाव देते हैं कि आप अपने बदलाव को सहेजने से पहले कॉपी कर लें, शायद ज़रूरत पड़े। +*कुछ आंतरिक कार्य धीमी गति से कार्य करेंगे और कुछ बन्द हो सकते हैं। लाल कड़ियाँ सामान्य गति से अद्यतन नहीं होंगी। यदि आप कोई ऐसा लेख बनाते हैं जो पहले से ही कहीं पर जुड़ा हुआ है तो वह लाल रंग की कड़ी पहले से अधिक समय तक वैसे ही रहेगा। कुछ बहुत लम्बे समय तक चलने वाले स्क्रिप्ट को रोका जाएगा। +*१० सितम्बर २०१८ और ८ अक्तूबर २०१८ के सप्ताहों में कोड फ़्रीज़ेज़ होंगे। अनावश्यक कोड स्थापित नहीं होंगे। +क्या आप जानते थे कि आप यथादृश्य सम्पादिका को मोबाइल उपकरण पर भी काम में ले सकते हैं? +आपको उपकरण-बार में एक अन्य पेंसिल आयकन दिखेगा। यथादृश्य सम्पादिका और विकिपाठ सम्पादक के मध्य बदलने के लिए इस पेंसिल आयकन पर दबायें। +जब आप काम पूरा कर लें तो इसे प्रकाशित करना याद रखें। +चलिए साथ काम करते हैं +सात वर्ष पहले इसी महीने संपादन टीम ने विकिपीडिया के ज्यादातर संपादकों के लिए विजुअल एडिटर पेश किया। संपदनकर्ता तब अब तक कई मील के पत्थरों को पार किया है। +वो मंगलवार, १ सितम्बर २०२० को पूरा यातायात द्वितीयक आँकड़ा केन्द्र पर बदल देंगे। +कम्युनिटी टेक टीम (Community Tech team) अनुभवी विकिमीडिया संपादकों के लिए साधनों पर केंद्रित है। आप किसी भी भाषा में प्रस्ताव लिख सकते हैं, और हम उन्हें आपके लिए अनुवाद करेंगे। आपका धन्यवाद! हम आपके प्रस्तावों को देखने के लिए उत्सुक हैं! +सर्वेक्षण में, अनुभवी संपादकों के लिए नए और बेहतर उपकरणों की इच्छा एकत्र की जाती है। मतदान के बाद, हम आपकी इच्छाओं को पूरा करने की पूरी कोशिश करेंगे। हम सबसे लोकप्रिय विषयों के साथ शुरुआत करेंगे। +हम आपके वोटों का इंतजार कर रहे हैं। धन्यवाद! +समुदाय २८ जनवरी और ११ फ़रवरी के बीच प्रस्तावों पर मतदान करेंगे। +सभी विकिज़ लघु समय के लिए पढ पायेगे लेकिन इसे संपादित नही कर सकते +*यदि आप इस समय के दौरान सम्पादन अथवा सहेजने का प्रयास करेंगे तो आपको एक त्रुटि सन्देश दिखाई देगा। हम आशा करते हैं कि इस समय के दौरान कोई सम्पादन लुप्त नहीं होगा लेकिन हम इसकी प्रत्याभूति नहीं करते। यदि आपको कोई त्रुटि सन्देश दिखाई देता है तो कृपया सब कुछ सामान्य होने तक प्रतीक्षा करें। तब आपको अपने सम्पादन सहेजने चाहिए। लेकिन, हम अनुशंसा करते हैं कि आप अपने परिवर्तनों की एक प्रति पहले ही बना लें,जिसकी शायद जरूरत पड़े। +*पृष्ठभूमि की नौकरियां धीमी होंगी और कुछ को स्खलित किया जा सकता है। लाल कड़ियाँ सामान्य गति से अद्यतन नहीं हो सकती हैं। यदि आपने कोई लेख निर्मित किया है जो पहले से कहीं जुड़ा हुआ है, तो कड़ी सामान्य से अधिक समय तक लाल रहेगी। कुछ लम्बे समय तक चलने वाली लिपि रुकी रहेंगी। +* हम अपेक्षा करते हैं कि कोड परिनियोजन अन्य कि��ी सप्ताह की तरह ही होगा। यद्यपि, कुछ विषयानुसार कोड यथासमय बन्द रह सकेगा यदि सम्बंधित संक्रिया की तदुपरांत आवश्यकता होगी। +विकिमेनिया २०२३ स्वागत कार्यक्रम प्रस्तुतियाँ +सभी विकिज़ लघु समय के लिए पढ पायेगे लेकिन इसे संपादित नही कर सकते +*यदि आप इस समय के दौरान सम्पादन अथवा सहेजने का प्रयास करेंगे तो आपको एक त्रुटि सन्देश दिखाई देगा। हम आशा करते हैं कि इस समय के दौरान कोई सम्पादन लुप्त नहीं होगा लेकिन हम इसकी प्रत्याभूति नहीं करते। यदि आपको कोई त्रुटि सन्देश दिखाई देता है तो कृपया सब कुछ सामान्य होने तक प्रतीक्षा करें। तब आपको अपने सम्पादन सहेजने चाहिए। लेकिन, हम अनुशंसा करते हैं कि आप अपने परिवर्तनों की एक प्रति पहले ही बना लें,जिसकी शायद जरूरत पड़े। +*पृष्ठभूमि की नौकरियां धीमी होंगी और कुछ को स्खलित किया जा सकता है। लाल कड़ियाँ सामान्य गति से अद्यतन नहीं हो सकती हैं। यदि आपने कोई लेख निर्मित किया है जो पहले से कहीं जुड़ा हुआ है, तो कड़ी सामान्य से अधिक समय तक लाल रहेगी। कुछ लम्बे समय तक चलने वाली लिपि रुकी रहेंगी। +* हम अपेक्षा करते हैं कि कोड परिनियोजन अन्य किसी सप्ताह की तरह ही होगा। यद्यपि, कुछ विषयानुसार कोड यथासमय बन्द रह सकेगा यदि सम्बंधित संक्रिया की तदुपरांत आवश्यकता होगी। +नई चुनाव समिति के सदस्यों की घोषणा +उन सभी समुदाय सदस्यों को धन्यवाद जिन्होंने विचार के लिए अपने नाम प्रस्तुत किए। हम निकट भविष्य में चुनाव समिति के साथ काम करने के लिए उत्सुक हैं। + + +गुरु नानक देव जिन्हें गुरु नानक और नानक शाह (१४६९-१५३९) के नाम से भी जाना जाता है सिख धर्म के प्रवर्तक हैं, और सिखों के पहले गुरु हैं। +* मन की अशुद्धता है लालच, और जीभ की अशुद्धता है झूठ। आँखों की अशुद्धता है किसी अन्य पुरुष की पत्नी की सुन्दरता और उसके धन को ताड़ना। कानों की अशुद्धता है दूसरों के बारे में कुवचन सुनना। हे नानक, यह मर्त्य जीवात्मा, मृत्यु की नगरी में जाने के लिए विवश है। सारी अशुद्धता संशय और द्विपेक्षता से मोह के कारण होती है। जन्म और मृत्यु ईश्वर की इच्छा पर निर्भर हैं; उन्हीं की इच्छा से हम आते और जाते हैं। +* करुणा को रुई, सन्तोष को धागा, नम्रता को गाँठ और सत्यता को मरोड़ बनाओ। यह आत्मा का पवित्र धागा है, तब आगे बढ़ो और इसे मुझपर डाल दो। +* परमेश्वर एक है। ओंकार स्वरूप है। उसी का नाम सत्य है। वही कर्ता पुरुष है, वह निर्भय है, निर्वैर है, समय से परे है अयोनि है, स्वयंभू है, गुरु के प्रसाद से प्राप्त होता है। । +* उसकी चमक से सबकुछ प्रकाशमान हैं। +* भगवान एक है, लेकिन उसके कई रूप हैं. वो सभी का निर्माणकर्ता है और वो खुद मनुष्य का रूप लेता है। +दुनिया में किसी भी व्यक्ति को भ्रम में नहीं रहना चाहिए. बिना गुरु के कोई भी दुसरे किनारे तक नहीं जा सकता है। +* धन-समृद्धि से युक्त बड़े बड़े राज्यों के राजा-महाराजों की तुलना भी उस चींटी से नहीं की जा सकती है जिसमे में ईश्वर का प्रेम भरा हो। +* ईश्वर एक है लेकिन उसके कई रूप हैं. वो सभी का निर्माणकर्ता है और वो खुद मनुष्य का रूप लेता है। +* परमात्मा एक है और उसके लिए सब एक समान है। +* औरत का सम्मान करना चाहिए क्योंकि इस संसार की जन्मदाता ही औरत है। +* ‌‌‌ दुनिया को जीतने के लिए सबसे पहले अपने मन के विकारों को खत्म करना जरूरी होता है। +* अपने समय का कुछ हिस्सा प्रभु के चरणों के अंदर सम्र्पित कर देना चाहिए । +* मैं जन्मा नहीं हूं मेरे लिए कोई भी कैसे मर सकता है या कैसे जन्म ले सकता है। +* संसार को जलादें और अपनी राख को घीस कर उसे स्याही बनाएं अपने दिल को कलम बनाएं और वह लिखें जिसका कोई अंत नहीं हो जिसकी कोई सीमा भी नहीं हो । + + +जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे जिसका जो काम होता है वही उसे कर सकता है। +जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे जब किसी के द्वारा पाला हुआ व्यक्ति उसी से गुर्राता है। +जिसकी लाठी उसकी भैंस शक्ति अनधिकारी को भी अधिकारी बना देती है, शक्तिशाली की ही विजय होती है। +जिसके राम धनी, उसे कौन कमी जो भगवान के भरोसे रहता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती। +जिसे पिया चाहे वही सुहागिन जिस पर मालिक की कृपा होती है उसी की उन्नति होती है और उसी का सम्मान होता है। +जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है कम बोलने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है। +जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया यदि किसी को बहुत थोड़ी-सी चीज खाने को दी जाये। +जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध कुपात्र पुत्रों के लिए कहते हैं जो अपने पिता के जीवित रहने पर उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीं करते, पर मर जाने पर श्राद्ध करते हैं। +जी ही से जहान है यदि जीवन है तो सब कुछ है। इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए। +जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती साधारण कष्ट या हानि के डर से कोई व्यक्ति काम नहीं छोड़ देता। +जेठ के भरोसे पेट जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है और उसकी स्त्री का पालन-पोषण उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं। +जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार संसार में मनुष्यों की प्रकृति-प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है। +जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे जैसा वेश हो उसी के अनुकूल काम करना चाहिए। +जैसा देश वैसा वेश जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए। +जैसा मुँह वैसा तमाचा जैसा आदमी होता है वैसा ही उसके साथ व्यवहार किया जाता है। +जैसी औढ़ी कामली वैसा ओढ़ा खेश जैसा समय आ पड़े उसी के अनुसार अपना रहन-सहन बना लेना चाहिए। +जैसी चले बयार, तब तैसी दीजे ओट समय और परिस्थिति के अनुसार काम करना चाहिए। +जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे विदेश निकम्मे आदमी के घर रहने से न तो कोई लाभ होता है और न बाहर रहने से कोई हानि होती है। +जैसे को तैसा मिले, मिले डोम को डोम, दाता को दाता मिले, मिले सूम को सूम जो व्यक्ति जैसा होता है उसे जीवन में वैसे ही लोगों से पाला पड़ता है। +जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार जैसे बाबास्वयं झूठे हैं वैसे ही उनके परिवार वाले भी हैं। +जो करे लिखने में गलती, उसकी थैली होगी हल्की रोकड़ लिखने में गलती करने से सम्पत्ति का नाश हो जाता है। +जो गुड़ देने से मरे उसे विषय क्यों दिया जाए जो मीठी-मीठी बातों या सुखद प्रलोभनों से नष्ट हो जाय उससे लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए। +जो दूसरों के लिए गड्ढ़ा खोदता है उसके लिए कुआँ तैयार रहता है जो दूसरे लोगों को हानि पहुँचाता है उसकी हानि अपने आप हो जाती है। +जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट यदि वस्तु के नष्ट हो जाने की आशंका हो तो उसका कुछ भाग खर्च करके शेष भाग बचा लेना चाहिए। +जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए जो लोग दरबारी या परदेसी होते हैं उनका धर्म नष्ट हो जाता है और वे संसार के कर्तव्यों का भी समुचित पालन नहीं कर सकते। +जो बोले सो कुंडा खोले यदि कोई मनुष्य कोई काम करने का उपाय बतावे और उसी को वह काम करने का भार सौपाजाये। +जोगी काके मीत, कलंदर किसके भाई जोगी किसी के मित्र नहीं होते और फकीर किसी के भाई नहीं होते, क्योंकि वे नित्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं। +ज���गी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ गैरिक वस्त्र पहनने से ही कोई जोगी नहीं हो जाता। +जोगी जोगी लड़ पड़े, खप्पड़ का नुकसान बड़ों की लड़ाई मेंगरीबों की हानि होती है। +ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय जितना ही अधिक ऋण लिया जाएगा उतना ही बोझ बढ़ता जाएगा। +ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध जब कोई व्यक्तिकिसी दोषी पुरुष के दोष को बतलाता है तो उसे बहुत बुरा लगता है। +झगड़े की तीन जड़, जन, जमीन, जर स्त्री, पृथ्वी और धन इन्हीं तीनों के कारण संसार में लड़ाई-झगड़े हुआ करते हैं। +झट मँगनी पट ब्याह किसी काम के जल्दी से हो जाने पर उक्ति। +झटपट की धानी, आधा तेल आधा पानी जल्दी का काम अच्छा नहीं होता। +झड़बेरी के जंगल में बिल्ली शेर छोटी जगह में छोटे आदमी बड़े समझे जाते हैं। +टंटा विष की बेल है झगड़ा करने से बहुत हानि होती है। +टका सर्वत्र पूज्यन्ते, बिन टका टकटकायते संसार में सभी कर्म धन से होते हैं,बिना धन के कोई काम नहीं होता। +टका हो जिसके हाथ में, वह है बड़ा जात में धनी लोगों का आदर- सत्कार सब जगह होता है। +टाट का लंगोटा नवाब से यारी निर्धन व्यक्ति का धनी-मानी व्यक्तियों के साथ मित्रता करने का प्रयास। +टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए ऐसा काम करना जिसमें केवल भरपेट भोजन मिले, कोई लाभ न हो। +टेर-टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे जो अपनी हानि की बात सबसे कहा करता है उसकी साख जाती रहती है। +डरें लोमड़ी से नाम शेर खाँ नाम के विपरीत गुण होने पर। +डूबते को तिनके का सहारा विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों को थोड़ा सहारा भी काफी होता है। +ढाक के वही तीन पात सदा से समान रूप से निर्धन रहने पर उक्त, परिणाम कुछ नहीं, बात वहीं की वहीं। +ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़ जिसके पास धन नहीं होता वह गुणहीन और धनी व्यक्ति गुणवान्‌ माना जाता है। +ढेले ऊपर चील जो बोलै, गली-गली में पानी डोलै यदि चील ढेले पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि बहुत अधिक वर्षा होगी। + + +''गणितसारसंग्रहः के 'संज्ञाधिकारः' में मंगलाचरण के पश्चात महावीराचार्य ने बड़े ही मार्मिक ढंग से गणित की प्रशंशा की है। +यथा राजा तथा प्रजा । + + +*अपने बारे में लेख मत बनाएँ। अपने बारे में कुछ सीमित जानकारी आप सदस्य BASEPAGENAME अपने सदस्य पृष्ठ पर दे सकते हैं। अपने सदस्य पृष्ठ पर आप अपना चित्र भी लगा सकते हैं। +*सम्पादन या किसी सदस्य से वार्ता करते समय अपनी भाषा शिष्ट बनाए रखें। इस ज्ञानवर्धक परियोजना में सक्रिय सदस्य अपना बहुमूल्य समय लगा रहे हैं जिसके लिये समस्त पाठक इस परियोजना के सभी रचनात्मक योगदानकर्ताओं के ऋणी हैं। ऐसे सदस्यों के प्रति अशिष्ट भाषा का प्रयोग दंडनीय है। + + +--यह स्थान मेरे प्रयोगों के लिए है-- +आचार्य श्रीराम शर्मा की सूक्तियाँ]] +भारत देश के बारे में विभिन्न महापुरुषों के वचन +हिन्दी के बारे में विभिन्न महापुरुषों के वचन +सुविचार सागर विभिन्न माअपुरुषों के सुविचारों का संकलन +गायत्री मंत्र पर महापुरुषों के विचार]] +धार्मिक मान्यताओं पर आधारित कथन]] + + +* यहाँ नया अनुभाग बनाकर मुखपृष्ठ पर "आज की सूक्ति" हेतु आप सूक्ति सुझा सकते हैं। +* सूक्ति जिस लेखक, पुस्तक, व वस्तु की है उसपर यहाँ विकिसूक्ति पर (उल्लेखनीयता का ध्यान रखते हुए) पृष्ठ बना होना अनिवार्य है। +* सुझाव पर एक दिन तक किसी सदस्य के विरोध न आने पर सूक्ति को मुखपृष्ठ पर डाल दिया जाएगा। +* जिन सुझावों का निर्णय आ चुका होगा उन्हें दो दिन पश्चात पुरालिखित कर दिया जाएगा। +वह जो अपने प्रियजनों से अत्याधिक जुड़ा हुआ है,उसे चिंता और भय का सामना करना पड़ता है,क्योंकि सभी दुखों का जड़ लगाव है.इसलिए खुश रहने के लिए लगाव छोड़ दीजिए।" +काम को निष्पादन करो, परिणाम से मत डरो।" +व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है जन्म से नहीं।" +किसी को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए। सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं।" +भय को समीप न आने दो। यदि यह समीप आए, इस पर आक्रमण करो, यानी भय से भागो मत इसका सामना करो।" +सुगंध का प्रसार वायु की दिशा पर आधारित होता है पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है।" +शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है। शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य दोनों ही दुर्बल हैं।" +अज्ञानी के लिए पुस्तकें और अंधे के लिए दर्पण एक समान उपयोगी है।" +बहादुर और बुद्धिमान व्यक्ति अपना रास्ता खुद बनाते हैं। असंभव शब्द का इस्तेमाल बुजदिल करते हैं।" +अपनी कमाई में से धन का कुछ प्रतिशत हिस्सा संकट काल के लिए हमेशा बचाकर रखें।" +* जब तक तुम स्वंय पर विश्वास नहीं करते,परमात्मा में विश्वास कर ही नहीं सकते. +हर व्यक्ति को भगवान की तरह देखो आप किसी की मदद नहीं कर सकते. बस उसकी सेवा कर सकते हैं +* स��वामी विवेकानंद कहते है कि जब पड़ोसी भूखा मरता हो,तब मंदिर में भोग चढना पुण्य नहीं,बल्कि पाप है| +जब तक जीना,तब तक सीखना'-अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है +हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है.इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते है.शब्द गौण है.विचार रहते है,वे दूर तक यात्रा करते हैं. + + +* ईंट से ईंट बजाना (युद्धात्मक विनाश लाना) +* ईंट का जवाब पत्थर से देना (किसी की दुष्टता का करारा जवाब देना) +* ईंद का चाँद होना (बहुत दिनों पर दीखना) +* कमला नारी कूपजल,और बरगद की छांय।गरमी में शीतल रहें शीतल में गरमाय। +* कोदन की रोटी, और कल्लू लुगाई।पानी के मइरे में, राम की का थराई +* किस खेत की मूली अधिकारहीन, शक्तिहीन) +* कुआं खोदना हानि पहुंचाने का यत्न करना) +* खेत रहना या आना (वीरगति पाना) +* खून-पसीना एक करना (कठिन परिश्रम करना) +* खटाई में पड़ना (झमेले में पड़ना, रूक जाना) +* खेल खेलाना (परेशान करना) +* जैसे उदई, तैसेई भान, न उनके चुटिया, न उनके कान। (इसका अर्थ इस रूप में लगाया जाता है जब किसी भी काम को करने के लिए एक जैसे स्वभाव के लोग मिल जायें और काम उनके कारण बिगड़ जाये।) +* थोथा चना बाजे घना। (कम योग्यता वाले लोग ज्यादा शोर मचाते हैं) +* नाकों चने चाबाना दाँत खटटे कर देना +* पानी को धन पानी में,नाक कटे बेईमानी में। + + +मुहावरे भाषा को सुदृढ़, गतिशील और रुचिकर बनाते हैं, उनके प्रयोग से भाषा में चित्रमयता आती है। बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँहचढ़े वाक्य की नींव के पत्थर हैं, जिस पर उसका भव्य भवन आज तक रुका हुआ है और मुहावरे ही उसकी टूट-फूट को ठीक करते हुए गर्मी, सर्दी और बरसात के प्रकोप से अब तक उसकी रक्षा करते चले आ रहे हैं। मुहावरे भाषा को सुदृढ़, गतिशील और रुचिकर बनाते हैं। उनके प्रयोग से भाषा में चित्रमयता आती है, जैसे- अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना, दाँतों तले उँगली दबाना, रंगा सियार होना। 'मुहावरा' अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बातचीत करना या उत्तर देना। कुछ लोग मुहावरे को 'रोज़मर्रा बोलचाल तर्ज़ेकलाम' या 'इस्तलाह' कहते हैं। यूनानी भाषा में 'मुहावरे' को 'ईडियोमा फ्रेंच में 'इडियाटिस्मी' और अँगरेजी में 'इडिअम' कहते हैं। +मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि जिस सुगठित शब्द-समूह से लक्षणाजन्य और कभी-कभी व्यंजनाजन्य कुछ विशिष्ट अर्थ निकलता है उसे 'मुहावरा' कहते हैं। कई बा��� यह व्यंग्यात्मक भी होते हैं। शब्दों की तीन शक्तियाँ होती हैं अभिधा, लक्षणा, व्यंजना +अभिधा जब किसी शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग होता है तब वहाँ उसकी अभिधा शक्ति होती है, जैसे 'सिर पर चढ़ाना' का अर्थ किसी चीज को किसी स्थान से उठाकर सिर पर रखना होगा। +लक्षणा जब शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग न करते हुए किसी विशेष प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है, यह जिस शक्ति के द्वारा होता है उसे लक्षणा कहते हैं। लक्षणा से 'सिर पर चढ़ने' का अर्थ आदर देना होगा। उदाहरण के लिए 'अँगारों पर लोटना आँख मारना आँखों में रात काटना आग से खेलना खून चूसना ठहाका लगाना शेर बनना' आदि में लक्षणा शक्ति का प्रयोग हुआ है, इसीलिए वे मुहावरे हैं। +व्यंजना जब अभिधा और लक्षणा अपना काम खत्मकर लेती हैं, तब जिस शक्ति से शब्द-समूहों या वाक्यों के किसी अर्थ की सूचना मिलती है उसे 'व्यंजना' कहते हैं। व्यंजना से निकले अधिकांश अर्थों को व्यंग्यार्थ कहते हैं। 'सिर पर चढ़ाना' मुहावरे का व्यंग्यार्थ न तो 'सिर' पर निर्भर करता है न 'चढ़ाने' पर वरन् पूरे मुहावरे का अर्थ होता है उच्छृंखल, अनुशासनहीन अथवा ढीठ बनाना। +मुहावरे के शब्द मुहावरे किसी न किसी व्यक्ति के अनुभव पर आधारित होते हैं, उनमें इस्तेमाल शब्दों की जगह दूसरे शब्दों का प्रयोग किया जाए तो उनका अर्थ ही बदल जाता है जैसे पानी-पानी होना' की जगह 'जल-जल होना' नहीं कहा जा सकता। ऐसे ही 'गधे को बाप बनाना' की जगह पर 'बैल को बाप बनाना' और 'मटरगश्ती करना' की जगह पर 'गेहूँगश्ती' या 'चनागश्ती' नहीं कहा जा सकता है। +अंग टूटना शरीर में दर्द होना -आज मेरा अंग-अंग टूट रहा है। +अपनी खिचड़ी अलग पकाना सबसे अलग रहना -आप लोग किसी के साथ मिलकर काम करना नहींजानते, अपनी खिचड़ी अलग पकाते हैं। +नीचे दी गयीं कड़ियों में हिन्दी के प्रमुख मुहावरों के अर्थ तथा उनका वाक्यों में सम्यक प्रयोग दिये गये हैं। + + +बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँह चढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है। +लोकोक्तियाँ आम जनमानस द्वारा स्थानीय बोलियों में हर दिन की परिस्थितियों एवं संदर्भों से उपजे वैसे पद एवं वाक्य होते हैं जो किसी खास समूह, उम्र वर्ग या क्षेत्रीय दायरे में प्रयोग किया जाता है। इसमें स्थान विशेष के भूगोल, संस्कृति, भाषाओं क�� मिश्रण इत्यादि की झलक मिलती है। + + +आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान किसान कवि घाघ व भड्डरी की कहावतें खेतिहर समाज का पीढि़यों से पथप्रदर्शन करते आयी हैं। बिहार व उत्‍तरप्रदेश के गांवों में ये कहावतें आज भी काफी लोकप्रिय हैं। जहां वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान भी गलत हो जाते हैं, ग्रामीणों की धारणा है कि घाघ की कहावतें प्राय: सत्‍य साबित होती हैं। +अर्थ यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे। +अर्थ यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा। +अर्थ यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है। +अर्थ यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे। +अर्थ यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा। +अर्थ यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे। +अर्थ यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। +अर्थ यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा। +अर्थ यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा। +यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेवती नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी। +यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे। +उत्तर नक्षत्र ने जवाब दे दिया और हस्त भी मुंह मोड़कर चला गया। चित्रा नक्षत्र ही अच्छा है कि प्रजा को बसा लेता है। अर्थात् उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज अच्छी होती है। +ऊंख की जड़ से खोदकर काटने और खूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है। तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है। +हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं। +यदि इस नक्षत्र में थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है। +चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है। +पुनर्वसु और स्वाती नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है कि उन्हें और तांत चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती। +यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे। +यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं तो तीनों अन्न (जौ, गेहूं, और चना) अच्छा होगा। +गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है। +गेहूं पैदावार अच्छी कैसे होती है आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ बार हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से। +गेहूं की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान का बीज बोने के अगले दिन जोतवा देने से,यदि धान के पौधों की रोपाई की जाती है तो विदाहने का काम नहीं करते, यह काम तभी किया जाता है जब आप खेत में सीधे धान का बीज बोते हैं) से अच्छी होती है। +गेहूं और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है। +जौ-गेहूं कई बांह करने से धान बिदाहने से और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है। +खूब बांह करने से गेहूं, खोंटने से चना, बार-बार पानी मिलने से धान, निराने से मक्का और पानी में छोड़कर बाद में बोने से उसकी फसल अच्छी होती है। +पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा पैया (छूछ) पैदा होता है। +एक धान में सोलह पैया।। +पूर्वा नक्षत्र में धान न रोपो नहीं तो धान के एक पेड़ में सोलह पैया पैदा होगा। +कन्या की संक्रान्ति होने पर धान (कुमारी) और मीन की संक्रान्ति होने पर जौ की फसल काटनी चाहिए। +कुलिहर (पूस-माघ में जोते हुए) खेत में भादों में पकने वाला धान बोने से चिउड़े का आनन्द आता है-अर्थात् वह धान उपजता है। +यदि मदार खूब फूलता है तो कोदो की फसल अच्छी है। नीम के पेड़ में अधिक फूल-फल लगते है तो जौ की फसल, यदि गाड़र (एक घास जिसे खस ���ी कहते हैं) की वृद्धि होती है तो गेहूं बेर और चने की फसल अच्छी होती है। +जो किसान आद्रा में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है। +यदि आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा हो और पुनर्वसु नक्षत्र में पानी न बरसे तो ऐसी फसल होगी कि कोई दिया हुआ अन्न भी नहीं खाएगा। +नोन-मिर्च डाल के, खा गया हरीफ।। +खरीफ की फसल के बीच में रबी की फसल अच्छी नहीं होती। + + +जब देश आजाद हुआ तो गांधीजी ने सभी से सहायता मांगी क्योंकि देश की आजादी का प्रश्न सभी के लिए था | +इसी तरह धरती पर स्वर्ग लाना सबका प्रश्न है इससे सभी को स्वर्ग मिलेगा अतः सबसे सहयोग माँगा जा रहा है| +आज परम्परा चालाकी की होती जा रही है ईमानदारी मे चालाकी नही होती आज आदमी बुद्धि का प्रयोग कर रहा है आज संवेदना समाप्त हो गयी यह परम्परा क्या समाज के हित मे है इसके दूरगामी परिणाम देखे तो यह हमारे हित मे नही है | +जिस समाज मे इस चालाकी की परम्परा हो जायेगी वहां चालाक आदमियों की संख्या समाज मे ९९ प्रतिशत हो जायेगी और सज्जनों की संख्या १ प्रतिशत होगी तो आप सोचिये की आप १ जगह धोखा दोगे और ९९ जगह धोखा खाओगे यह फायदे का सोदा नही है इससे सभी का नुकसान होता है | +प्राचीन काल मे संत समाज वाणी द्वारा ही जनमानस को दिशा एवम प्रेरणा देने का कार्य बड़ी सफलता के साथ करता रहा है इसी श्रेष्ट परम्परा को लक्ष्य करके एक मंच की स्थापना की गयी है इस मंच का नाम +इस मंच के माध्यम से ई पत्र द्वारा प्रतिदिन आपको हिन्दी भाषा में एक विचार प्राप्त होगा उस विचार पर आप दो मिनिट के लिए सोच विचार करे | +आपको क्या करना है ? +आप email द्वारा प्राप्त उस विचार को email द्वारा ही अपने परिजनों को प्रेषित (Forward) कर दे इस कार्य मे आपका दो मिनिट का समय लगेगा जिंहे यह विचार प्राप्त होगा वे परिजन भी ऐसा ही करते रहेंगे इस तरह एक अनमोल विचार अनेक तक पहुँचता रहेगा | +आप भी प्रतिदिन प्राप्त होने वाले इस मेल को परिजनों को forward कर इस पुण्य प्रक्रिया मे भागीदार बने | +मंच की आगामी योजना मे परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री राम जी शर्मा के विचारो को ब्लॉग मे संकलित किया जा रहा है। +निःसंदेह यह प्रयास हम सभी के लिए प्रेरक व मार्गदर्शक होगा | +नवयुग यदि आएगा तो विचार शोधन द्वारा ही, क्रान्ति होगी तो वह लहू और लोहे से नही, विचारो की विचारो से काट द्वारा होगी, समाज का नवनिर्माण होगा तो वह सद् विचारो की स्थापना द्वारा ही संभव होगा | +इसलिए आपको यह सहयोग करना ही होगा | +यह सम्पूर्ण योजना परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री राम जी शर्मा के सुक्ष्म सानिध्य मे संपन्न हो रही है इस कार्य के बदले हमें इस सुक्ष्म सत्ता शांतिकुंज हरिद्वार का संरक्षण प्राप्त होता रहेगा यह हमारी सुक्ष्म सत्ता का वादा है | +समय के साथ योजना को विस्तृत किया जाता रहेगा | +विचार क्रांति की यह योजना आप सभी के सहयोग से ही संपन्न होगी | +आप भी अपना अपना अमूल्य सहयोग कर युग निर्माण योजना को सफल बनायें | +आपके अनमोल सुझाव आमंत्रित है | +स्थापना दिवस १८ जुलाई २००८ गुरुपूर्णिमा +राजेंद्र-सुरेन्द्र-हिमांशु-अवधेश (पुत्र) तथा समस्त परिवार + + +विभिन्न भावों से सम्बन्धित कुछ सूक्तियाँ नीचे प्रस्तुत हैं - +पवन के साथ मिलकर धूल आँधी बनकर आकाश तक छू जाती है और वही धूल नीचे की ओर बहने वाले जल के साथ कीचड़ में मिल जाती है। साधु के घर के तोता-मैना परमात्मा का नाम जपते हैं और असाधु के घर के तोता-मैना गिन-गिन कर गालियाँ देते हैं। +किन्तु दैवयोग से यदि कभी सज्जन कुसंगति में पड़ जाते हैं, तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों का ही अनुसरण करते हैं। (अर्थात्‌ जिस प्रकार साँप का संसर्ग पाकर भी मणि उसके विष को ग्रहण नहीं करती तथा अपने सहज गुण प्रकाश को नहीं छोड़ती, उसी प्रकार साधु पुरुष दुष्टों के संग में रहकर भी दूसरों को प्रकाश ही देते हैं, दुष्टों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।)॥5॥ +भावार्थ साधु पुरुष की संगत से हमारे अनंत कोटि जन्मों के अपराध नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद सिर्फ प्रारब्ध भोगना ही शेष रह जाता है। व्यक्ति पूर्व जन्म के पापकर्मों के फल से यानी संचित कर्मों से मुक्त हो जाता है। अब करने को क्रियमाण कर्म (वह कर्म जो तुम अब कर रहे हो जिन्हें आगामी कर्म भी कहा जाता है क्योंकि इनका फल आगे के जन्मों में मिलता है और प्रारब्श कर्मफल ही शेष रह जाता है। +मणि, माणिक और मोती की जैसी सुंदर छबि है, वह साँप, पर्वत और हाथी के मस्तक पर वैसी शोभा नहीं पाती। राजा के मुकुट और नवयुवती स्त्री के शरीर को पाकर ही ये सब अधिक शोभा को प्राप्त होते हैं। +मैं श्री रघुनाथजी के गुणों का वर्णन करना चाहता हूँ, परन्तु मेरी बुद्धि छोटी है और श्री रामजी का चरित्र अथाह है। इसके लिए मुझे उपाय का एक भी अंग अर्थात्‌ कुछ (लेशमात्र) भी उपाय नही�� सूझता। मेरे मन और बुद्धि कंगाल हैं, किन्तु मनोरथ राजा हैं। +उस मनोहर जोड़ी का वर्णन नहीं किया जा सकता, क्योंकि शोभा बहुत अधिक है और मेरी बुद्धि थोड़ी है। श्री राम, लक्ष्मण और सीताजी की सुंदरता को सब लोग मन, चित्त और बुद्धि तीनों को लगाकर देख रहे हैं। +देने-लेने में मन में शंका न रखे। अपने बल के अनुसार सदा हित ही करता रहे। विपत्ति के समय तो सदा सौगुना स्नेह करे। वेद कहते हैं कि संत (श्रेष्ठ) मित्र के गुण (लक्षण) ये हैं॥3॥ +जो सामने तो बना-बनाकर कोमल वचन कहता है और पीठ-पीछे बुराई करता है तथा मन में कुटिलता रखता है- हे भाई इस तरह) जिसका मन साँप की चाल के समान टेढ़ा है, ऐसे कुमित्र को तो त्यागने में ही भलाई है॥4॥ +: जिस राजा के राज्य में प्यारी जनता दुखी रहती है, वह राजा नरकगामी होता है। +: मुखिया (घर का मालिक, राजा आदि) मुख के समान होना चाहिए। खाना-पानी केवल मुख में प्रवेश करता है, लेकिन वह अकेले उसे पचा नहीं जाता। उसे आगे बढ़ा देता है जिससे विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण होता है। +तुलसीदास ने यद्यपि भक्ति तथा ज्ञान का समन्वय किया है, परन्तु उन्होंने भक्ति की श्रेष्ठता को प्रतिपादित की है। "साधन सिद्धि राम पद नेहूँ कहकर उन्होंने मोक्ष का साधन राम के चरण कमलों में प्रेम का होना स्वीकारा है। +: मोक्ष भक्ति रहित हो नहीं सकता दोनों एक-दूसरे पर आधारित हैं। +ज्ञान का रास्ता दुधारी तलवार की धार के जैसा है । इस रास्ते में भटकते देर नही लगती । जो ब्यक्ति बिना विघ्न बाधा के इस मार्ग का निर्वाह कर लेता है वह मोक्ष के परम पद को प्राप्त करता है । +सच्चा ज्ञान कहने समझने में मुश्किल एवं उसे साधने में भी कठिन है । यदि संयोग से कभी ज्ञान हो भी जाता है तो उसे बचाकर रखने में अनेकों बाधायें हैं । +राम मच्छर को भी ब्रह्मा बना सकते हैं और ब्रह्मा को मच्छर से भी छोटा बना सकते हैं । ऐसा जानकर बुद्धिमान लोग सारे संदेहों को त्यागकर राम को ही भजते हैं। +; बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय । +तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है । ठीक वैसे हीं जैसे, जब राख की आग बुझ जाती है, तो उसे हर कोई छूने लगता है । +तुलसीदास जी कहते हैं कि विपत्ति में अर्थात मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती है । ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, आपका सत्य और राम (भगवान) का नाम । +हे उमा, सुनो वह कुल धन्य है, दुनिया के लिए पूज्य है और बहुत पावन (पवित्र) है, जिसमें श्री राम (रघुवीर) की मन से भक्ति करने वाले विनम्र लोग जन्म लेते हैं। +बुरे लोगों की संगती में रहने से अच्छे लोग भी बदनाम हो जाते हैं। वे अपनी प्रतिष्ठा गँवाकर छोटे हो जाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे, किसी व्यक्ति का नाम भले हीं देवी-देवता के नाम पर रखा जाए, लेकिन बुरी संगती के कारण उन्हें मान-सम्मान नहीं मिलता है। जब कोई व्यक्ति बुरी संगती में रहने के बावजूद अपनी काम में सफलता पाना चाहता है और मान-सम्मान पाने की इच्छा करता है, तो उसकी इच्छा कभी पूरी नहीं होती है । ठीक वैसे हीं जैसे मगध के पास होने के कारण विष्णुपद तीर्थ का नाम “गया” पड़ गया । +जो लोग मनुष्य का शरीर पाकर भी राम का भजन नहीं करते हैं और बुरे विषयों में खोए रहते हैं । वे लोग उसी व्यक्ति की तरह मूर्खतापूर्ण आचरण करते हैं, जो पारस मणि को हाथ से फेंक देता है और काँच के टुकड़े हाथ में उठा लेता है । +परिवार के मुखिया को मुँह के जैसा होना चाहिए, जो खाता-पीता मुख से है और शरीर के सभी अंगों का अपनी बुद्धि से पालन-पोषण करता है । +जो लोग दूसरों की निन्दा करके खुद सम्मान पाना चाहते हैं । ऐसे लोगों के मुँह पर ऐसी कालिख लग जाती है, जो लाखों बार धोने से भी नहीं हटती है । +किसी की मीठी बातों और किसी के सुंदर कपड़ों से, किसी पुरुष या स्त्री के मन की भावना कैसी है यह नहीं जाना जा सकता है । क्योंकि मन से मैले सूर्पनखा, मारीच, पूतना और रावण के कपड़े बहुत सुन्दर थे । +मंत्री सलाहकार चिकित्सक और शिक्षक यदि ये तीनों किसी डर या लालच से झूठ बोलते हैं, तो राज्य,शरीर और धर्म का जल्दी हीं नाश हो जाता है । +भगवान एक हैं, उन्हें कोई इच्छा नहीं है । उनका कोई रूप या नाम नहीं है । वे अजन्मा औेर परमानंद के परमधाम हैं । वे सर्वव्यापी विश्वरूप हैं । उन्होंने अनेक रूप, अनेक शरीर धारण कर अनेक लीलायें की हैं । +प्रभु भक्तों के लिये हीं सब लीला करते हैं । वे परम कृपालु और भक्त के प्रेमी हैं । भक्त पर उनकी ममता रहती है । वे केवल करूणा करते हैं । वे किसी पर क्रोध नही करते हैं । +संकट में पड़े भक्त नाम जपते हैं तो उनके समस्त संकट दूर हो जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं । संसार में चार तरह के अर्थाथ; आर्त; जिज्ञासु और ज्ञानी भक्त हैं और वे सभी भक्त पुण्��� के भागी होते हैं । +जो सभी इच्छाओं को छोड़कर राम भक्ति के रस में लीन होकर राम नाम प्रेम के सरोवर में अपने मन को मछली के रूप में रहते हैं और एक क्षण भी अलग नही रहना चाहते वही सच्चा भक्त है । +अनेक तरह से भक्ति करना एवं क्षमा, दया, इन्द्रियों का नियंत्रण, लताओं के मंडप समान हैं । मन का नियमन अहिंसा, सत्य, अस्तेय ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्राणधन, भक्ति के फूल और ज्ञान फल है । भगवान के चरणों में प्रेम भक्ति का रस है । वेदों ने इसका वर्णन किया है । +ईश्वर को नही जानने से झूठ सत्य प्रतीत होता है । बिना पहचाने रस्सी से सांप का भ्रम होता है । लेकिन ईश्वर को जान लेने पर संसार का उसी प्रकार लोप हो जाता है जैसे जागने पर स्वप्न का भ्रम मिट जाता है । +तुलसीदास जी कहते हैं – उसका हृदय बज्र की तरह कठोर और निश्ठुर है जो ईश्वर का चरित्र सुनकर प्रसन्न नही होता है । +तुलसीदास जी कहते हैं – सगुण और निर्गुण में कोई अंतर नही है । मुनि पुराण पन्डित बेद सब ऐसा कहते । जेा निर्गुण निराकार अलख और अजन्मा है वही भक्तों के प्रेम के कारण सगुण हो जाता है । +भगवान अनन्त है, उनकी कथा भी अनन्त है । संत लोग उसे अनेक प्रकार से वर्णन करते हैं । श्रीराम के सुन्दर चरित्र करोड़ों युगों मे भी नही गाये जा सकते हैं । +तुलसीदास जी कहते हैं – प्रभु तो बिना बताये हीं सब जानते हैं । अतः संसार को प्रसन्न करने से कभी भी सिद्धि प्राप्त नही हो सकती । +– तपस्या से कुछ भी प्राप्ति दुर्लभ नही है । इसमें शंका आश्चर्य करने की कोई जरूरत नही है । तपस्या की शक्ति से हीं ब्रह्मा ने संसार की रचना की है और तपस्या की शक्ति से ही विष्णु इस संसार का पालन करते हैं । तपस्या द्वारा हीं शिव संसार का संहार करते हैं । दुनिया में ऐसी कोई चीज नही जो तपस्या द्वारा प्राप्त नही किया जा सकता है । +तुलसीदास जी कहते हैं – भगवान सब जगह हमेशा समान रूप से रहते हैं और प्रेम से बुलाने पर प्रगट हो जाते हैं । वे सभी देश विदेश एव दिशाओं में ब्याप्त हैं । कहा नही जा सकता कि प्रभु कहाँ नही है । +तुलसीदास जी कहते हैं – प्रभु पूर्णकाम सज्जनों के शिरोमणि और प्रेम के प्यारे हैं । प्रभु भक्तों के गुणग्राहक बुराईयों का नाश करने वाले और दया के धाम हैं । +योगी जिस प्रभु के लिये क्रोध मोह ममता और अहंकार को त्यागकर योग साधना करते हैं – वे सर्वव्य��पक ब्रह्म अब्यक्त अविनासी चिदानंद निर्गुण और गुणों के खान हैं । +जिन्हें पूरे मन से शब्दों द्वारा ब्यक्त नहीं किया जा सकता-जिनके बारे में कोई अनुमान नही लगा सकता – जिनकी महिमा बेदों में नेति कहकर वर्णित है और जो हमेशा एकरस निर्विकार रहते हैं । +तुलसीदास जी कहते हैं – जो मित्र के दुख से दुखी नहीं होता है उसे देखने से भी भारी पाप लगता है । अपने पहाड़ समान दुख को धूल के बराबर और मित्र के साधारण धूल समान दुख को सुमेरू पर्वत के समान समझना चाहिए । +मित्र से लेन देन करने में शंका न करे । अपनी शक्ति अनुसार हमेशा मित्र की भलाई करे । वेद के अनुसार संकट के समय वह सौ गुणा स्नेह-प्रेम करता है । अच्छे मित्र के यही गुण हैं । +जो सामने बना-बनाकर मीठा बोलता है और पीछे मन में बुरी भावना रखता है तथा जिसका मन सांप की चाल के जैसा टेढा है ऐसे खराब मित्र को त्यागने में हीं भलाई है । +इस संसार में सभी शत्रु और मित्र तथा सुख और दुख, माया झूठे हैं और वस्तुतः वे सब बिलकुल नहीं हैं । +खराब संगति अत्यंत बुरा रास्ता है । उन कुसंगियों के बोल बाघ, सिंह और सांप की भांति हैं । घर के कामकाज में अनेक झंझट ही बड़े बीहड़ विशाल पहाड़ की तरह हैं । +तुलसीदास जी कहते हैं – गंगा में पवित्र और अपवित्र सब प्रकार का जल बहता है परन्तु कोई भी गंगाजी को अपवित्र नही कहता । सूर्य, आग और गंगा की तरह समर्थ व्यक्ति को कोई दोष नही लगाता है । +तुलसीदास जी कहते हैं – बडे लोग छोटों पर प्रेम करते हैं । पहाड के सिर में हमेशा घास रहता है । अथाह समुद्र में फेन जमा रहता है एवं धरती के मस्तक पर हमेशा धूल रहता है । +यदि गरूड का हिस्सा कौआ और सिंह का हिस्सा खरगोश चाहे – अकारण क्रोध करने वाला अपनी कुशलता और शिव से विरोध करने वाला सब तरह की संपत्ति चाहे – लोभी अच्छी कीर्ति और कामी पुरूष बदनामी और कलंक नही चाहे तो उन सभी की इच्छाएं व्यर्थ हैं । +ग्रह दवाई पानी हवा वस्त्र -ये सब कुसंगति और सुसंगति पाकर संसार में बुरे और अच्छे वस्तु हो जाते हैं । ज्ञानी और समझदार लोग ही इसे जान पाते हैं । +यदि तराजू के एक पलड़े पर स्वर्ग के सभी सुखों को रखा जाये तब भी वह एक क्षण के सतसंग से मिलने बाले सुख के बराबर नहीं हो सकता । +अब असंतों का गुण सुनें । कभी भूलवश भी उनका साथ न करें । उनकी संगति हमेशा कश्टकारक होता है । खराब जाति की गाय अच्छी दुधारू गाय को अपने साथ रखकर खराब कर देती है । +दुर्जन के हृदय में अत्यधिक संताप रहता है । वे दुसरों को सुखी देखकर जलन अनुभव करते हैं । दुसरों की बुराई सुनकर खुश होते हैं जैसे कि रास्ते में गिरा खजाना उन्हें मिल गया हो । +; काम क्रोध मद लोभ परायन । निर्दय कपटी कुटिल मलायन । +वे काम, क्रोध, अहंकार, लोभ के अधीन होते हैं । वे निर्दयी, छली, कपटी एवं पापों के भंडार होते हैं । वे बिना कारण सबसे दुशमनी रखते हैं । जो भलाई करता है वे उसके साथ भी बुराई ही करते हैं । +दुष्ट का लेनादेना सब झूठा होता है । उसका नाश्ता भोजन सब झूठ ही होता है जैसे मोर बहुत मीठा बोलता है । पर उसका दिल इतना कठोर होता है कि वह बहुत विषधर सांप को भी खा जाता है । इसी तरह उपर से मीठा बोलने बाले अधिक निर्दयी होते हैं । +; पर द्रोही पर दार पर धन पर अपवाद +वे दुसरों के द्रोही परायी स्त्री और पराये धन तथा पर निंदा में लीन रहते हैं । वे पामर और पापयुक्त मनुष्य शरीर में राक्षस होते हैं । +; स्वारथ रत परिवार विरोधी । लंपट काम लोभ अति क्रोधी । +वे माता पिता गुरू ब्राम्हण किसी को नही मानते । खुद तो नष्ट रहते ही हैं । दूसरों को भी अपनी संगति से बर्बाद करते हैं । मोह में दूसरों से द्रोह करते हैं । उन्हें संत की संगति और ईश्वर की कथा अच्छी नहीं लगती है । +; विप्र द्रोह पर द्रोह बिसेसा । दंभ कपट जिए धरें सुवेसा । +वे दुर्गुणों के सागर, मंदबुद्धि, कामवासना में रत वेदों की निंदा करने बाला जबरदस्ती दूसरों का धन लूटने वाला, द्रोही विशेषत: ब्राह्मनों के शत्रु होते हैं । उनके दिल में घमंड और छल भरा रहता है पर उनका लिबास बहुत सुन्दर रहता है । +भक्ति स्वतंत्र रूप से समस्त सुखों की खान है । लेकिन बिना संतों की संगति के भक्ति नही मिल सकती है । पुनः बिना पुण्य अर्जित किये संतों की संगति नहीं मिलती है । संतों की संगति हीं जन्म मरण के चक्र से छुटकारा देता है । +नीच आदमी जिससे बड़प्पन पाता है वह सबसे पहले उसी को मारकर नाश करता है । आग से पैदा धुंआ मेघ बनकर सबसे पहले आग को बुझा देता है । +धूल रास्ते पर निरादर पड़ी रहती है और सभी के पैर की चोट सहती रहती है । लेकिन हवा के उड़ाने पर वह पहले उसी हवा को धूल से भर देती है । बाद में वह राजाओं के आँखों और मुकुटों पर पड़ती है । +बुद्धिमान शत्रु अकेला रहने पर भी उसे छोटा नही मानना चाहिये । राहु का केवल सिर बच गया था परन्तु वह आजतक सूर्य ��वं चन्द्रमा को ग्रसित कर दुख देता है । +जब ईश्वर विपरीत हो जाते हैं तब उसके लिये धूल पर्वत के समान पिता काल के समान और रस्सी सांप के समान हो जाती है । +अच्छे स्वामी का यह सहज स्वभाव है कि पहले दण्ड देकर पुनः बाद में सेवक पर कृपा करते हैं । +सुख, धन, संपत्ति, संतान, सेना, मददगार, विजय, प्रताप, बुद्धि, शक्ति और प्रशंसा जैसे जैसे नित्य बढते हैं, वैसे वैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढता हैै । +ऐसे वीर जो रणक्षेत्र से कभी नहीं भागते, दूसरों की स्त्रियों पर जिनका मन और दृष्टि कभी नहीं जाता और भिखारी कभी जिनके यहाँ से खाली हाथ नहीं लौटते । ऐसे उत्तम लोग संसार में बहुत कम हैं । +टेढा जानकर लोग किसी भी व्यक्ति की बंदना प्रार्थना करते हैं । टेढे चन्द्रमा को राहु भी नहीं ग्रसता है । +सेवक के घर स्वामी का आगमन सभी मंगलों की जड और अमंगलों का नाश करने वाला होता है । +भरत की मां हंसकर कहती है – कानों, लंगरों और कुवरों को कुटिल और खराब चालचलन वाला जानना चाहिये । +जैसी भावी होनहार होती है – वैसी हीं बुद्धि भी फिर बदल जाती है । +पहले वाली बात बीत चुकी है । समय बदलने पर मित्र भी शत्रु हो जाते हैं । +ईश्वर जिसे शत्रु के अधीन रखकर जिन्दा रखें, उसके लिये जीने की अपेक्षा मरना अच्छा है । +जो व्यक्ति त्रिशूल, बज्र और तलवार आदि की मार अपने अंगों पर सह लेते हैं वे भी कामदेव के पुष्प बाण से मारे जाते हैं । +किस मौके पर क्या हो जाये-स्त्री पर विश्वास करके कोई उसी प्रकार मारा जा सकता है जैसे योग की सिद्धि का फल मिलने के समय योगी को अविद्या नष्ट कर देती है । +ठहाका मारकर हँसना और क्रोध से गाल फुलाना एक साथ एक ही समय में सम्भव नहीं है । दानी और कृपण बनना तथा युद्ध में बहादुरी और चोट भी नहीं लगना कदापि सम्भव नही है । +स्त्री का स्वभाव समझ से परे, अथाह और रहस्यपूर्ण होता है । कोई अपनी परछाई भले पकड ले पर वह नारी की चाल नहीं जान सकता है । +अग्नि किसे नही जला सकती है? समुद्र में क्या नही समा सकता है? अबला नारी बहुत प्रबल होती है और वह कुछ भी कर सकने में समर्थ होती है । संसार में काल किसे नही खा सकता है? +पति बिना लोगों का स्नेह और नाते रिश्ते सभी स्त्री को सूर्य से भी अधिक ताप देने बाले होते हैं । शरीर धन घर धरती नगर और राज्य यह सब स्त्री के लिये पति के बिना शोक दुख के कारण होते हैं । +ईश्वर शुभ और अशुभ कर्मों के मुताबिक हृदय में विचार कर फल देता है । ऐसा ही वेद नीति और सब लोग कहते हैं । +कोई भी किसी को दुख-सुख नही दे सकता है । सभी को अपने हीं कर्मों का फल भेागना पड़ता है । +ईश्वर ने इस संसार में कर्म को महत्ता दी है अर्थात जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भी भोगना पड़ेगा। +मिलाप और बिछुड़न, अच्छे बुरे भोग ,शत्रु मित्र और तटस्थ -ये सभी भ्रम के फांस हैं । जन्म, मृत्यु संपत्ति, विपत्ति कर्म और काल- ये सभी इसी संसार के जंजाल हैं । +स्त्री के हृदय की चाल ईश्वर भी नहीं जान सकते हैं । वह छल, कपट, पाप और अवगुणों की खान है । +मुनिनाथ ने अत्यंत दुख से भरत से कहा कि जीवन में लाभ नुकसान जिंदगी मौत प्रतिष्ठा या अपयश सभी ईश्वर के हाथों में है । +मूर्ख सांसारिक जीव प्रभुता पा कर मोह में पड़कर अपने असली स्वभाव को प्रकट कर देते हैं । +शत्रु और ऋण को कभी भी शेष नही रखना चाहिये । अल्प मात्रा में भी छोड़ना नही चाहिये । +किसी भी काम में उचित अनुचित विचार कर किया जाये तो सब लोग उसे अच्छा कहते हैं । बेद और विद्वान कहते हैं कि जो काम बिना विचारे जल्दी में करके पछताते हैं – वे बुद्धिमान नहीं हैं । +; विशई साधक सिद्ध सयाने । त्रिविध जीव जग बेद बखाने । +संसारी, साधक और ज्ञानी सिद्ध पुरुष – इस दुनिया में इसी तीन प्रकार के लोग बेदों ने बताये हैं । +ईश्वर की चाल अत्यंत विपरीत एवं विचित्र है । वह संसार की सृश्टि उत्पन्न करता और पालन और फिर संहार भी कर देता है । ईश्वर की बुद्धि बच्चों जैसी भोली विवेक रहित है । +सोना कसौटी पर कसने और रत्न जौहरी के द्वारा ही पहचाना जाता है । पुरूष की परीक्षा समय आने पर उसके स्वभाव और चरित्र से होती है । +बिना कारण हीं दूसरों की भलाई करने बाले बुद्धिमान और श्रेष्ठ मालिक से बहुत कहना गलत होता है । +; बृद्ध रोगबश जड़ धनहीना । अंध बधिर क्रोधी अतिदीना । +धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री की परीक्षा आपद या दुख के समय होती हैै । बूढ़ा, रोगी, मूर्ख, गरीब, अन्धा, बहरा, क्रोधी और अत्यधिक गरीब सभी की परीक्षा इसी समय होती है । +कलियुग अनेक कठिन पापों का भंडार है जिसमें धर्म ज्ञान योग जप तपस्या आदि कुछ भी नहीं है । +में और मेरा तू और तेरा-यही माया है जिाने सम्पूर्ण जीवों को बस में कर रखा है । +शत्रु रोग अग्नि पाप स्वामी एवं साँप को कभी भी छोटा मानकर नहीं समझना चाहिये । +बादलों के कारण कभी दिन में घोर अंधकार छा जाता है और कभी सूर्य ��्रगट हो जाते हैं । जैसे कुसंग पाकर ज्ञान नष्ट हो जाता है और सुसंग पाकर उत्पन्न हो जाता है । +संत की यही महानता है कि वे बुराई करने वाले पर भी उसकी भलाई ही करते हैं । +; साधु संतों का अपमान तुरंत संपूर्ण भलाई का अंत नाश कर देता है । +; आलसी लोग ही भगवान भगवान पुकारा करते हैं । +दूसरों को उपदेश शिक्षा देने में बहुत लोग निपुण कुशल होते हैं परन्तु उस शिक्षा का आचरण पालन करने बाले बहुत कम हीं होते हैं । +संसार में तीन तरह के लोग होते हैं-गुलाब आम और कटहल के जैसा । एक फूल देता है-एक फूल और फल दोनों देता है और एक केवल फल देता है । लोगों मे एक केवल कहते हैं-करते नहीं । दूसरे जो कहते हैं वे करते भी हैं और तीसरे कहते नही केवल करते हैं । +जब किसी को आंखों में दोष होता है तो उसे चन्द्रमा पीले रंग का दिखाई पड़ता है । जब पक्षी के राजा (गरुड़) को दिशाभ्रम होता है तो उसे सूर्य पश्चिम में उदय दिखाई पड़ता है । +नाव पर चढ़ा हुआ आदमी दुनिया को चलता दिखाई देता है लेकिन वह अपने को स्थिर अचल समझता है । बच्चे गोलगोल घूमते है लेकिन घर वगैरह नहीं घूमते । लेकिन वे आपस में परस्पर एक दूसरे को झूठा कहते हैं । +एक पिता के अनेकों पुत्रों में उनके गुण और आचरण भिन्न भिन्न होते हैं । कोई पंडित कोई तपस्वी कोई ज्ञानी कोई धनी कोई बीर और कोई दानी होता है । +किसी की प्रभुता जाने बिना उस पर विश्वास नहीं ठहरता और विश्वास की कमी से प्रेम नहीं होता । प्रेम बिना भक्ति दृढ़ नही हो सकती जैसे पानी की चिकनाई नही ठहरती है । +संसार में दरिद्रता के समान दुख एवं संतों के साथ मिलन समान सुख नहीं है । मन बचन और शरीर से दूसरों का उपकार करना यह संत का सहज स्वभाव है । +अज्ञान सभी रोगों की जड़ है । इससे बहुत प्रकार के कष्ट उत्पन्न होते हैं । काम वात और लोभ बढ़ा हुआ कफ है । क्रोध पित्त है जो हमेशा हृदय जलाता रहता है । +महीने के दोनों पखवाड़ों में उजियाला और अँधेरा समान ही रहता है, परन्तु विधाता ने इनके नाम में भेद कर दिया है (एक का नाम शुक्ल और दूसरे का नाम कृष्ण रख दिया)। एक को चन्द्रमा का बढ़ाने वाला और दूसरे को उसका घटाने वाला समझकर जगत ने एक को सुयश और दूसरे को अपयश दे दिया। +:जगत में ऐसा कौन है, जिसे काम ने नचाया न हो उत्तरकांड] +चिंता रूपी सांपिन ने किसे नहीं डंसा [उत्तरकांड] +संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं जो तप से न मिल सके [बालकांड] +: तृष्णा ने ���िसको बावला नहीं किया [उत्तरकांड] +: परोपकार के समान दूसरा धर्म नहीं है [उत्तरकांड] +: दूसरों को पीडित करने जैसा कोई पाप नहीं है [उत्तरकांड] +: जैसा देवता हो, वैसी उसकी पूजा होनी चाहिए [अयोध्याकांड] +: प्रीति और बैर बराबरी में करना चाहिए [लंकाकांड] +: सभी मानस रोगों की जड़ मोह अज्ञान है [उत्तरकांड] +: कीर्ति, कविता और सम्पत्ति वही उत्तम है, जो गंगाजी की भांति सबका हित करती है [बालकांड] +: मंत्री, बैद्य और गुरु ये तीन यदि अप्रसन्नता के भय या लाभ की आशा से ठकुरसुहाती कहते हैं तो समझिए कि राजधर्म का इन्होने तिनका-तिनका कर दिया है, जिससे इसका (राजधर्म का) शीघ्र ही नाश हो जाएगा। [सुन्दरकांड] +: लोक में प्रतिष्ठा आग के समान है जो तपस्या रूपी बन को भस्म कर डालती है [बालकांड] +मुखिया मुख सों चाहिए खान पान को एक। +: परिवार के मुखिया को मुख के सामान होना चाहिए, जो खाता तो अकेले है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगो का पालन-पोषण करता हैं। +: मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं। किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं। इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे॥ +: सी विपत्ति यानि किसी बड़ी परेशानी के समय आपको ये सात गुण बचायेंगे: आपका ज्ञान या शिक्षा, आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि, आपके भीतर का साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और ईश्वर में विश्वास। + + +नए गति घोषणापत्र प्रारूपण समिति के सदस्यों से मिलें +गति घोषणापत्र प्रारूपण समिति की चुनाव और चयन प्रक्रियाएँ पूरी हो गई हैं। +समिति जल्द ही अपना काम शुरू करेगी। समिति विविधता और विशेषज्ञता अंतराल को कम करने के लिए तीन और सदस्यों को नियुक्त कर सकती है। +संदेश को मेटा-विकी पर अतिरिक्त भाषाओं में अनुवादित किया गया है।'' +न्यासी मंडल आगामी बोर्ड चुनावों के बारे में कॉल फॉर फीडबैक तैयार कर रहा है। यह ७ जनवरी १० फरवरी २०२२ के बीच होगा। +भले ही कॉल फॉर फीडबैक का विवरण एक सप्ताह पहले दिया जाएगा, हमने दो प्रश्नों की पुष्टि की है जो कॉल फॉर फीडबैक के दौरान प्रतिक्रिया के लिए पूछे जाएंगे: +* न्यासी मंडल के बीच उभरते समुदायों का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? +* चुनाव के दौरान उम्मीदवारों की भागीदारी कैसी होनी चाहिए? +भले ही अतिरिक्त प्रश्न जोड़े जा सकते हैं, लेकिन आंदोलन रणनीति और शासन टीम समुदा�� के सदस्यों और सहयोगियों को विचार विमर्श के लिए समय प्रदान करना चाहती हैं। प्रश्नों की पूरी सूची नहीं होने के लिए हम माफी माँगते हैं। प्रश्नों की सूची केवल एक या दो प्रश्नों से बढ़नी चाहिए। हमारा इरादा अनुरोधों के साथ समुदाय को अभिभूत करना नहीं है। +क्या आप स्थानीय बातचीत को व्यवस्थित करने में मदद करना चाहते हैं +यदि आपके कोई प्रश्न हैं तो हमसे संपर्क करें। आंदोलन रणनीति और शासन टीम में ३ जनवरी तक कर्मचारियों की कमी होगी। कृपया विलंबित प्रतिक्रिया को क्षमा करें; यदि हमारा संदेश आपकी छुट्टियों के दौरान आपके पास पहुँचा है तो हम क्षमा चाहते हैं। +न्यासी बोर्ड चुनाव के लिए प्रतिक्रिया आह्वान शूरु हो गए है +प्रतिक्रिया आह्वान:न्यासी मंडल चुनाव शूरु हो गए है और ७ फरवरी २०२२ को बंद हो जाएंगे। +इस प्रतिक्रिया आह्वान पहल में, हमारा दृष्टिकोण २०२१ की प्रक्रिया से सामुदायिक प्रतिक्रिया को शामिल करना होगा। चर्चा प्रमुख प्रश्नों पर केंद्रित होगी। इरादा सामूहिक बातचीत और सहयोगी प्रस्ताव विकास को प्रेरित करना है। +प्रतिक्रिया आह्वान के दौरान दो पुष्ट प्रश्न पूछे जाएंगे: +# निर्वाचित उम्मीदवारों के बीच उभरते समुदायों का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है न्यासी मंडल समझता है कि उम्मीदवारों का चयन विकिमीडिया आंदोलन की पूर्ण विविधता का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। वर्तमान प्रक्रियाओं ने उत्तरी अमेरिका और यूरोप के स्वयंसेवकों का पक्ष लिया है।'' +# चुनाव के दौरान उम्मीदवारों की भागीदारी कैसी होनी चाहिए परंपरागत रूप से, न्यासी मंडल के उम्मीदवारों ने आवेदन पूरे किए और सामुदायिक सवालों के जवाब दिए। एक चुनाव स्वयंसेवकों के रूप में उम्मीदवारों की स्थिति की सराहना करते हुए उम्मीदवारों में उचित अंतर्दृष्टि कैसे प्रदान कर सकता है +प्रतिक्रिया आह्वान के दौरान एक अतिरिक्त प्रश्न पूछा जा सकता है। +टीम टास्क फोर्स की जिम्मेदारियां क्या हो सकती है, इस पर सामुदायिक प्रतिक्रिया चाहती है। इसके अलावा, यदि कोई भी समुदाय सदस्य इस १२-सदस्यीय टास्क फोर्स का हिस्सा बनना चाहता है, तो कृपया तो कृपया हमसे संपर्क करें। प्रतिक्रिया अवधि २५ फरवरी २०२२ तक है। +२ इच्छुक समुदाय के सदस्य Google Meet के माध्यम से 18 फरवरी, शुक्रवार को एक क्षेत्रीय ���र्चा में शामिल हो सकते हैं। +सार्वभौमिक आचार संहिता (UCoC) प्रवर्तन दिशानिर्देश और अनुसमर्थन वोट +यह जानकारी न्यासी बोर्ड और चुनाव समिति के साथ साझा की जाएगी ताकि वे आगामी न्यासी बोर्ड के चुनाव के बारे में सूचित निर्णय ले सकें। न्यासी बोर्ड आंतरिक चर्चा के बाद एक घोषणा करेगा। +चुनाव प्रक्रियाओं में सुधार के लिए भाग लेने और मदद करने के लिए धन्यवाद। +UCoC प्रवर्तन दिशानिर्देशों के लिए अनुसमर्थन मतदान शुरू हो गए है (७ २१ मार्च २०२२ +मरियाना इस्कंदर के साथ दक्षिण एशिया ESEAP सम्बंधित वार्षिक योजना की बैठक +बातचीत इन सवालों के बारे में है: +* विकिमीडिया फाउंडेशन क्षेत्रीय स्तर पर काम करने के बेहतर तरीके तलाश रहा है। हमने अनुदान, नई सुविधाओं और सामुदायिक बातचीत में अपना ध्यान बढ़ाया है। हम और कैसे सुधार कर सकते हैं? +* कोई भी आंदोलन रणनीति प्रक्रिया में योगदान कर सकता है। हम आपकी गतिविधियों, विचारों और अनुरोधों के बारे में अधिक जानना चाहते हैं। विकिमीडिया फाउंडेशन आंदोलन रणनीति गतिविधियों में काम कर रहे स्वयंसेवकों और एफिलिएटस के लिए अपने समर्थन में सुधार कैसे कर सकता है? +==उम्मीदवारों के लिए आह्वान: २०२२ ट्रस्टी बोर्ड चुनाव== +ट्रस्टी बोर्ड विकिमीडिया फाउंडेशन के संचालन की देखरेख करता है। समुदाय और एफिलिएट चयनित ट्रस्टी और बोर्ड द्वारा नियुक्त ट्रस्टी, ट्रस्टी बोर्ड बनाते हैं। प्रत्येक ट्रस्टी तीन साल का कार्यकाल पूरा करता है। विकिमीडिया समुदाय के पास समुदाय और एफिलिएट चयनित न्यासियों के लिए मतदान करने का अवसर है। +विकिमीडिया समुदाय २०२२ में ट्रस्टी बोर्ड में दो सीटों का चुनाव करने के लिए मतदान करेगा। यह ट्रस्टी बोर्ड के प्रतिनिधित्व, विविधता और विशेषज्ञता में सुधार करने का एक अवसर है। +आंदोलन रणनीति और शासन टीम आगामी न्यासी बोर्ड के चुनाव में चुनाव स्वयंसेवकों के रूप में सहयोग करने के लिए समुदाय सदस्यों की तलाश कर रहा है। +२०१७ में भाग नहीं लेने वाले कुल ७४ विकियों ने २०२१ के चुनाव में मतदान किया। क्या आप भागीदारी को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं? +चुनाव स्वयंसेवक निम्नलिखित क्षेत्रों में मदद करेंगे: +* छोटे संदेशों का अनुवाद करना, और सामुदायिक स्थानों में चल रही चुनाव प्रक्रिया की घोषणा करना। +वैकल्पिक टिप्पणियों और प्रश्नों के लिए सामुदायिक स्थानों की निगरानी करना। +स्वयंसेवकों को चाहिए की वह: +* बातचीत और कार्यक्रमों के दौरान फ्रेंडली स्पेस नीति बनाए रखें। +* निष्पक्ष तरीके से समुदाय के लिए चुनाव दिशानिर्देश और मतदान की जानकारी प्रस्तुत करें। +२०२२ चुनाव कम्पास के लिए प्रस्तावित वक्तव्य +चुनाव कम्पास एक ऐसा उपकरण है जो मतदाताओं को उन उम्मीदवारों का चयन करने में मदद करता है जो उनके विश्वासों और विचारों के साथ सर्वोत्तम रूप से संरेखित होते हैं। समुदाय के सदस्य वक्तव्यों का प्रस्ताव रखेंगे और उम्मीदवार लिकर्ट स्केल (सहमत/निष्पक्ष/असहमत) का उपयोग करके जवाब देंगे। वक्तव्यों के जवाब चुनाव कंपास उपकरण पर अपलोड किए जाएंगे। मतदाता इस टूल का उपयोग वक्तव्यों पर उत्तर (सहमत/निष्पक्ष/असहमत) साझा करके करेंगे। परिणाम उन उम्मीदवारों की पहचान करेंगे जो मतदाता के विश्वासों और विचारों के साथ सबसे अच्छी तरह मेल खाते हैं। +* ८ २० जुलाई: चुनाव कंपास के लिए स्वयंसेवक अपने वक्तव्यों को प्रस्तावित करते हैं। +* २१ २२ जुलाई: चुनाव समिति स्पष्टता के लिए वक्तव्यों की समीक्षा करती है और विषय से परे वक्तव्यों को हटा देती है। +* २३ जुलाई १ अगस्त: स्वयंसेवक वक्तव्यों पर मतदान करते हैं। +* २ ४ अगस्त: चुनाव समिति शीर्ष १५ वक्तव्यों का चयन करती है। +* ५ १२ अगस्त: उम्मीदवार खुद को वक्तव्यों के साथ संरेखित करते हैं। +चुनाव समिति अगस्त की शुरुआत में शीर्ष १५ वक्तव्यों का चयन करेगी। चुनाव समिति, आंदोलन रणनीति और अनुशासन टीम के समर्थन के साथ, प्रक्रिया की देखरेख करेगी। आंदोलन रणनीति और अनुशासन टीम प्रश्नों की स्पष्टता, दोहराव, गलतियों आदि की जांच करेगी। +''यह संदेश बोर्ड चयन कार्य बल और चुनाव समिति की ओर से भेजा गया है।'' +२०२२ न्यासी बोर्ड चुनाव के लिए सामुदायिक मतदान ख़त्म होने वाली है +आपको निर्णय लेने में सहायता स्वरुप कुछ संसाधन दिए गए हैं: + + +* मिट्टी से मुक्त हो जाना पेड़ के लिए आजादी नही होती। +* यदि आप गलतियों के लिए अपने दरवाजे बंद करते है तो सत्य अपने आप बाहर आ जायेगा। +* फूल को तोड़कर आप उनकी खूबसूरती को इक्कठा नही कर सकते। +* जो दूसरो की भलाई के लिए हमेसा व्यस्त रहते है वे अक्सर अपने लिए समय नही निकाल पाते हैं। +* उच्च शिक्षा के जरिये सिर्फ जानकारी ही नही प्राप्त कर सकते है बल्कि जीवन कैसे आसान हो और कैसे स��ल बने इसका मार्ग प्रशस्त्र करती है। +* कर्म करते हुए हमेसा आगे बढ़ते रहिये और फल के लिए व्यर्थ चिंता नही करिए और किया हुआ परिश्रम कभी व्यर्थ नही जाता है। +* हमें आजादी तभी मिलती है जब हम इसकी कीमत चुका देते हैं। +* प्रसन्न रहना सरल है लेकिन सरल रहना यह बहुत ही कठिन है। +* खड़े होकर सिर्फ समुद्र के पानी को देखने से आप समुद्र पार नही करते हैं। इसके लिए हमे खुद को आगे बढ़ाना है। +* मनुष्य की सेवा भी ईश्वर की सेवा है। +* तथ्य अनेक हो सकते है लेकिन सच्चाई हमेसा एक ही होती है। +* कला के जरिये व्यक्ति खुद की पहचान उजागर करता है वस्तुओं की नहीं। +* प्रत्येक शिशु जन्म लेकर यही संदेश लेकर आता है की ईश्वर अभी भी मनुष्यों से निराश नही हुआ है। +* मित्रता की गहराई सिर्फ उसके परिचय पर निर्भर नही करती है। +* मूर्ति का टूटकर धूल में मिल जाना यह दिखलाता है ईश्वर के धूल की कीमत आपके मूर्ति से कही अधिक है। +* यदि आप कठिनाई से मुह मोडकर भागते हैं तो यही स्वप्न बनकर आपके नीद में बाधा डालती है। +* किसी बच्चे की शिक्षा सिर्फ अपने समय तक मत रखिये क्योंकि उसका जन्मकाल और आपका जन्मकाल दोनों में बहुत अन्तर है। +* पृथ्वी द्वारा स्वर्ग से बातचीत करने का माध्यम होते हैं ये पेड़। +* तितली महीने नही बल्कि प्रति क्षण की गिनती करती है जिसके कारण उसके पास पर्याप्त समय होता है। +* हम महानता के सबसे नजदीक तब होते है जब हम विनम्र होते है। +* मौत प्रकाश को खत्म नही करता बल्कि यह दिखलाता है सुबह हो गयी है अब दीपक बुझाना है। +* जो पत्तियों से वृक्ष लदा होता है उसमे फल मुश्किल से ही आते है +* प्रेम कभी भी अधिकार नही जताता है बल्कि यह जीने की स्वतंत्रता देता है +* संगीत दो आत्माओ के बीच की दुरी को खत्म कर देता है। +* उपदेश देना तो बहुत आसान है लेकिन उपाय बताना बहुत ही कठिन। +* जो कुछ भी हमारा होता है वह हमारे पास जरुर आता है क्युकी हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते है। +* जो मन की पीड़ा को दुसरो से नही बता पाते उन्हें ही गुस्सा सबसे अधिक आता है। +* विद्यालय वह कारखाने है जिनमे महापुरुषों का निर्माण होता है जिनमे अध्यापक कारीगर होते है। +* बर्तन में रखा पानी चमकता है जबकि समुद्र का पानी अस्पष्ट होता है यानी छोटे सत्य तो आसानी से बताये जा सकते है जबकि महान सदैव मौन ही रहता है। +* ईश्वर भले ही बड़े बड़े साम्राज्य से उब जाता है लेकिन छोटे छोटे फूलो से कभी रुष्ट नही होता है। +* धूल अपना अपमान सहने की क्षमता रखती है और बदले में फूलो का उपहार देती है। +मिटटी के बंधन से मुक्ति पेड़ के लिए आज़ादी नहीं है +जो कुछ हमारा है वो हम तक आता है; यदि हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं। +मंदिर की गंभीर उदासी से बाहर भागकर बच्चे धूल में बैठते हैं, भगवान् उन्हें खेलता देखते हैं और पुजारी को भूल जाते हैं। +मौत प्रकाश को ख़त्म करना नहीं है; ये सिर्फ दीपक को बुझाना है क्योंकि सुबह हो गयी है। +हर बच्चा इसी सन्देश के साथ आता है कि भगवान अभी तक मनुष्यों से हतोत्साहित नहीं हुआ है +* मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती। +* वे लोग जो अच्छाई करने में बहुत ज्यादा व्यस्त होते है, स्वयं अच्छा होने के लिए समय नहीं निकाल पाते। +* मौत प्रकाश को ख़त्म करना नहीं है; ये सिर्फ दीपक को बुझाना है क्योंकि सुबह हो गयी है। +* मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती। + + +हाल की घटनाएँ में उन घटनाओं को रखा जाता है। जिससे इसके विकास का इतिहास पता चले। इसमें लेखों, संपादनों, सदस्यों आदि की संख्या जब 100, 200, 500, 1000 आदि होने पर उसे यहाँ लिखा जाता है। +| 1 मार्च 2016 विकि सूक्ति में कुल संपादनों की संख्या 10,000 हुई। +| 11 फरवरी 2016 इस का छवि और नाम हिन्दी में हुआ। +| 7 फरवरी 2016 विकि सूक्ति में लेखों की संख्या करणवीर बोहरा‎ लेख के निर्माण के साथ 100 पहुँची। + + +भारतीय पंचांग में हम प्राय काल गणना से संबंधित लेख पाते हैं, जिसमें बताया गया होता है की सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलीयुग का काल कितना है। + + +नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है: +कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें। + + +*परिनिर्वाण से पूर्व आनंद ने पूछा भगवान हम तथागत के अवशेषों का क्या करेंगे?इस पर बुद्ध ने कहा “तथागत के अवशेषों को विशेष आदर देकर खुद को मत रोको।धर्मोत्साही बनो,अपनी भलाई के लिए प्रयास करो।” +*स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है,संतोष सबसे बड़ा धन है,वफ़ादारी सबसे बड़ा सम्बन्ध है। +* जब महात्मा बुद्व से उनके एक शिष्य ने प्रश्न किया कि उनके प्रति सकारात्मक दृष्टि किस प्रकार हो,जो हमारे प्रति दर्भावना रखते हैं,तब बुद्वदेव ने जो उत्तर दिया था,वह स्मरणीय हैं- यदि तुम उस दुर्भावना को स्वीकार नहीं करोगे,जो अन्य व्यक्ति तुम्हारे प्रति भेजता हैं,तो वह दुर्भावना उसी व्यक्ति के पास बनी रहती है और तुम अप्रभावित बने रहे हो +*कोई अन्य नहीं बल्कि हम स्वयं को बचाते हैं, कोई भी हमें बचा नहीं सकता और चाहिए भी नहीं। हमें पथ पर स्वयं चलना चाहिए और बुद्ध हमें मार्ग दिखाते हैं। +*शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है। शक लोगों को अलग करता है। यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़तम करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है। +*हर इंसान अपने स्वास्थ्य या बीमारी का लेखक है। +*कोई भी व्यक्ति सिर मुंडवाने से, या फिर उसके परिवार से, या फिर एक जाति में जनम लेने से संत नहीं बन जाता; जिस व्यक्ति में सच्चाई और विवेक होता है, वही धन्य है। वही संत है। +*स्वास्थ्य सबसे महान उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन तथा विश्वसनीयता सबसे अच्छा संबंध है। +*पैर तभी पैर महसूस करता है जब यह जमीन को छूता है। +*अपने बराबर या फिर अपने से समझदार व्यक्तियों के साथ सफ़र कीजिये, मूर्खो के साथ सफ़र करने से अच्छा है अकेले सफ़र करना। +* अतीत में ध्यान केन्द्रित नहीं करना, ना ही भविष्य के लिए सपना देखना, बल्कि अपने दिमाग को वर्तमान क्षण में केंद्रित करना। +* एक पल एक दिन को बदल सकता है, एक दिन एक जीवन को बदल सकता है, और एक जीवन इस दुनिया को बदल सकता है। +* क्रोध को प्यार से, बुराई को अच्छाई से, स्वार्थी को उदारता से और झूठे व्यक्ति को सच्चाई से जीता जा सकता है। +* जिस व्यक्ति का मन शांत होता है, जो व्यक्ति बोलते और अपना काम करते समय शांत रहता है, वह वही व्यक्ति होता है जिसने सच को हासिल कर लिया है और जो दुःख-तकलीफों से मुक्त हो चुका है। +* जो व्यक्ति अपना जीवन को समझदारी से जीता है उसे मृत्यु से भी डर नहीं लगता। +* अज्ञानी आदमी एक बैल के समान है। वह ज्ञान में नहीं, आकार में बढ़ता है। +* क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकडे रहने के सामान है, इसमें आप ही जलते हैं। +* एक जागे हुए व्यक्ति को रात बड़ी लम्बी लगती है, एक थके हुए व्यक्ति को मंजिल बड़ी दूर नजर आती है। इसी तरह सच्चे धर्म से बेखबर मूर्खों के लिए जीवन-मृत्यु का सिलसिला भी उतना ही लंबा होता है। +* निश्चित रूप से जो नाराजगी युक्त विचारों से मुक्त रहते हैं, वही जीवन में शांति पाते हैं। +* जिस प्रकार लापरवाह रहने पर घास जैसी नरम चीज की धार भी ��ाथ को घायल कर देती है, उसी तरह से धर्म के वास्तविक स्वरूप को पहचानने में हुई गलती आपको नर्क के दरवाजे पर पहुंचा सकती है। +* बुराई अवश्य रहना चाहिए, तभी तो अच्छाई इसके ऊपर अपनी पवित्रता साबित कर सकती है। +* माता-पिता बनना अत्यंत सुखद अनुभव है। उत्साह से जीवन जीना और स्वयं पर महारत हासिल करना खुशी देता है। +* बुराइयों से दूर रहने के लिए, अच्छाई का विकास कीजिए और अपने मन को अच्छे विचारों से भर लीजिए। +* अच्छे स्वास्थ्य में शरीर रखना एक कर्तव्य है, अन्यथा हम अपने मन को मजबूत और साफ रखने में सक्षम नहीं हो पाएंगे। +* हमेशा याद रखें कि बुरा कार्य अपने मन में बोझ रखने के समान है। +* वह व्यक्ति जो 50 लोगों से प्यार करता है उसके पास खुश होने के लिए 50 कारण होते हैं। जो किसी से प्यार नहीं करता उसके पास खुश रहने का कोई कारण नहीं होता। +* झरना बहुत शोर मचाता है, लेकिन सागर गहरा और शांत होता है। +* जिस काम को करने में वर्तमान में तो दर्द हो लेकिन भविष्य में खुशी, उसे करने के लिए काफी अभ्यास की जरूरत होती है। +* ज्ञान ध्यान से पैदा होता है और ध्यान के बिना ज्ञान खो जाता है। इसलिए ज्ञान की प्राप्ति और हानि के इस दुगुने मार्ग को जानकर, व्यक्ति को खुद को इस तरह से साधना चाहिए ताकि ज्ञान में वृद्धि हो। +* दूसरे लोगों के दोषों को ना देखें ना ही उनकी गलतियों को, इसके बजाय अपने खुद के कर्मों को देखें कि आप क्या कर चुके हैं और क्या करना अभी बाकी है। +* अकेलापन ऐसे व्यक्ति को खुशी देता है जो कि संतोषी है जिसने धर्म के बारे में सुना है और उसे साफ तौर पर देखा है। +* ईर्ष्या और नफरत की आग में जलते हुए इस संसार में खुशी और हंसी कैसे स्थाई हो सकती है? अगर आप अँधेरे में डूबे हुए हैं, तो रौशनी की तलाश क्यों नहीं करते? +* कोई भी व्यक्ति बहुत ज्यादा बोलने से कुछ नहीं सीख पाता। समझदार व्यक्ति वही कहलाता है, जो धीरज रखने वाला, क्रोधित न होने वाला और निडर होता है। +* उदार हृदय, दयालु वाणी, और सेवा व करुणा का जीवन वे बातें हैं जो मानवता का नवीनीकरण करती हैं। +* शक की आदत सबसे खतरनाक है। शक लोगों को अलग कर देता है। यह दो अच्छे दोस्तों को और किसी भी अच्छे रिश्ते को बरबाद कर देता है। +* मन सभी मानसिक अवस्थाओं से ऊपर होता है। +* अगर आपको अच्छा साथी ना मिले तो अकेले चलें, उस हाथी की तरह जोकि अकेले ही जंगल में घूमता है। अकेले रहना कहीं अच्छा ��ै बजाय उन लोगों के साथ के जोकि आप की प्रगति में बाधा बनते हैं। +* तीन चीजें लंबे समय तक छिप नहीं सकतीं: सूर्य, चंद्रमा और सत्य। +* जीवन में एक दिन भी समझदारी से जीना कहीं अच्छा है, बजाय एक हजार साल तक बिना ध्यान के साधना करने के। +* शब्दों के भीतर नष्ट करने और स्वस्थ करने दोनों ही शक्तियां होती हैं। जब शब्द सच्चे और दयालु होते हैं तो वे हमारे जीवन को बदल सकते हैं। +* आप अपने गुस्से के लिए दंडित नहीं हुए, आप अपने गुस्से के द्वारा दंडित हुए हो। +* जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती, वैसे ही मनुष्य भी बिना आध्यात्मिक जीवन के नहीं जी सकता। +* किसी बात पर हम जैसे ही क्रोधित होते हैं, हम सच का मार्ग छोड़कर अपने लिए प्रयास करने लग जाते है। +* हर इंसान अपने स्वास्थ्य या बीमारी का लेखक है। +* सदैव अपने से समझदार व्यक्तियों के साथ सफर करिये, मूर्खों के साथ सफर करने से अच्छा है अकेले सफर करना। +* आकाश में पूरब और पश्चिम का कोई भेद नहीं है, लोग अपने मन में भेदभाव को जन्म देते हैं और फिर यह सच है ऐसा विश्वास करने लगते हैं। +* आपका शरीर अनमोल है। यह जाग्रत होने के लिए हमारा वाहन है। इसका ध्यान रखें। +* विचलित मन वाले व्यक्ति को मौत उसी तरह से बहा कर ले जाती है, जिस तरह से अचानक आई बाढ़ में गांव के सोते हुए लोग बह जाते हैं। +* हर दिन नया दिन होता है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बीता हुआ कल कितना मुश्किल था। आप हमेशा एक नई शुरुआत कर सकते हैं। +* एक विचारहीन मनुष्य की प्यास अमर बेल की तरह बढ़ती है। वह एक जीवन से दुसरे जीवन की तरफ उसी तरह से भागता है जैसे जंगल में एक बंदर फलों के लिए एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर भागता रहता है। +* अगर आपका चित्त् शांत है, तभी आप इस ब्रह्मांड के प्रवाह को सुन पाएंगे, इसकी लय ताल को महसूस कर पाएंगे। खुशी इसके आगे रहती है और ध्यान इसकी चाबी है। +* अगर आप उन चीजों की कद्र नहीं करते जो आपके पास हैं, तो फिर आपको खुशी कभी भी नहीं मिलेगी। +* एक अनुशासनहीन मन जितना अवज्ञाकारी कुछ भी नहीं होता और एक अनुशासित मन जितना आज्ञाकारी भी कुछ भी नहीं है।सच्चाई को अपनी जमीन बनाएं, सच्चाई को अपना घर बनाएं। क्योंकि दुनिया में इससे बड़ा कोई घर नहीं है। +* सभी व्यक्तियों को सजा से डर लगता है, सभी मौत से डरते हैं। बाकी लोगों को भी अपने जैसा ही समझिए, खुद किसी जीव को ना मारें और दूसरों को भी ऐसा करने से मना करें��� +* आपका काम है अपनी पसंद के काम को खोजना। उसे खोजें और फिर उस काम में खुद को पूरी तरह से लगा दें। यही सफलता का मार्ग है। +* स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ी संपत्ति और वफादारी सबसे अच्छा रिश्ता है। +* अगर आप किसी दूसरे के लिए दिया जलाते हैं तो यह आपके रास्ते को भी रौशन कर देता है। +* आपका बड़े से बड़ा दुश्मन भी आपको उतना नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जितना नुकसान आपके अनियंत्रित विचार आपको पहुंचाते हैं। +* आप खुद अपने प्यार और स्नेह के उतने ही हकदार हैं जितना इस दुनिया में कोई भी अन्य व्यक्ति है। +* सभी बुरे कार्य मन के कारण उत्पन्न होते हैं। अगर मन परिवर्तित हो जाये तो क्या अनैतिक कार्य रह सकते हैं? +* सभी बुराइयों से दूर रहने के लिए, अच्छाई का विकास कीजिए और अपने मन में अच्छे विचार रखिये-बुद्ध आपसे सिर्फ यही कहता है। +* आज हम जो करते हैं जीवन में वही सबसे ज्यादा मायने रखता है। +* जो व्यक्ति थोड़े में ही खुश रहता है सबसे अधिक खुशी उसी के पास होती है। +* सत्य के मार्ग पर चलते हुए कोई व्यक्ति दो गलतियां कर सकता है। एक, पूरा रास्ता तय न करना और दूसरा, इसकी शुरुआत भी न करना। +* जब तक आपके मन में नाराजगी के विचार पोषित होते रहेंगे तब तक आपका क्रोध भी बना रहेगा। लेकिन जैसे ही आप नाराजगी के विचररों को भुला देंगे वैसे ही आपका क्रोध भी गायब हो जाएगा। +* जो व्यक्ति विचलित करने वाले विचारों से मुक्त होते हैं, उन्हें शांति अवश्य प्राप्त होती है। +* चाहे आप जितने पवित्र शब्द पढ़ लें या बोल लें, वो आपका क्या भला करेंगे जब तक आप उन्हें उपयोग में नहीं लाते? +* जिस व्यक्ति का मन शांत होता है, जो व्यक्ति बोलते और अपना काम करते समय शांत रहता है, वह वही व्यक्ति होता है जिसने सच को हासिल कर लिया है और जो दुःख-तकलीफों से मुक्त हो चुका है। +* जिस तरह एक ठोस चट्टान तूफान में भी स्थिर रहती है, वैसे ही बुद्धिमान व्यक्ति भी प्रशंसा या दोष से प्रभावित नहीं होते हैं। +* इच्छाओं का कभी अंत नहीं होता। अगर आपकी एक इच्छा पूरी होती है, तो दूसरी इच्छा तुरंत जन्म ले लेती है। +* एक समझदार व्यक्ति अपने अंदर की कमियों को उसी तरह से दूर कर लेता है, जिस तरह से एक स्वर्णकार चांदी की अशुद्धियों को चुन-चुन कर, थोडा-थोडा करके और इस प्रक्रिया को बार-बार दोहरा कर दूर कर लेता है। +* अगर थोड़े से आराम को छोड़ने से व्यक्ति एक बड़ी खुशी को देख पाता है, तो एक समझदार व्यक्ति को चाहिए कि वह थोड़े से आराम को छोड़कर बड़ी खुशी को हासिल करे। +* यदि आप समस्या का हल निकाल सकते, तो फिर चिंता क्यों? और यदि समस्या का कोई समाधान नहीं है, तो फिर चिंता करने का भी कोई फायदा ही नहीं। +* बुरे कार्य करने वाला व्यक्ति इस संसार में तो शोक मनाता ही है, वह अगले जनम में भी शोक मनाता है। वह दोनों में शोक मनाता है। जब वह अपने काम की बुराई देखता है तो वह दुःख में डूब जाता है। +* दुनिया नहीं जानती कि हम सभी का अंत यहीं पर होना है। लेकिन जो लोग इस सत्य को जानते हैं, उनके सारे झगड़े एक ही बार में खत्म हो जाते हैं। +* विश्वास के बिना आप कहीं भी नहीं पहुँच सकते, इसलिए अगर आप धर्म को पाना चाहते हैं तो विश्वास बहुत जरूरी है। +* अस्तित्व का पूरा रहस्य है डर से मुक्त हो जाना। कभी भी इस बात से ना डरें कि आपका क्या होगा। किसी पर भी निर्भर ना रहें। जिस वक्त आप सभी तरह की मदद को इनकार कर देते हैं, आप आजाद हो जाते हैं। +* सच्चाई के रास्ते पर चलते हुए इंसान दो ही तरह की गलतियां कर सकता है, एक यह कि रास्ते पर आखिर तक ना चलना और दूसरा यह कि शुरुआत ही ना करना। +* जो व्यक्ति जीवन में केवल सुखों की तलाश करता है, जिसकी इंद्रियां अनियंत्रित हैं, जो खाने के लिए जीता है, वह आलसी है और कमजोर है। लालच उसको उसी प्रकार से गिराता है, जैसे कि तूफान एक कमजोर पेड़ को गिरा देता है। +* खुशी, अच्छे स्वास्थ्य और बीती बातों को भुला देने से ज्यादा कुछ नहीं है। +* जो व्यक्ति, क्रोधित होने पर अपने गुस्से को संभाल सकता है वह उस कुशल ड्राईवर की तरह है जोकि एक तेजी से भागती हुई गाडी को संभाल लेता है और जो ऐसा नहीं कर पाते, वे केवल अपनी सीट पर बैठे हुए दुर्घटना की प्रतीक्षा करते रहते हैं। +* सारे बुरे कार्य मन के कारण ही होते हैं। अगर मन ही बदल जाए तो क्या बुरा कार्य हो सकता है? +* अगर व्यक्ति से कोई गलती हो जाती है, तो कोशिश करें कि उसे दोहराएं नहीं। उसमें आनन्द ढूंढने की कोशिश न करें, क्योंकि बुराई में डूबे रहना दुःख को न्योता देता है। +* जीभ एक तेज चाकू की तरह होती है, यह बिना खून निकाले ही मारती है। +* जिसका मन एकाग्र होता है वही चीजों को उनके सही स्वरूप में देख पाता है। +* हमें अपने द्वारा की गयी गल्तियों की सजा तुरंत भले न मिले, पर समय के साथ कभी न कभी अवश्य मिलती है। +* व्यक्ति खुद ही अपना सबसे बड़�� रक्षक हो सकता है; और कौन उसकी रक्षा कर सकता है? अगर आपका खुद पर पूरा नियंत्रण है, तो आपको वह क्षमता हासिल होगी, जिसे बहुत ही कम लोग हासिल कर पाते हैं। +* शांतिप्रिय लोग आनंद का जीवन जीते हैं। उन पर हार या जीत का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। +* नफरत को नफरत से नहीं मिटाया जा सकता, नफरत को केवल प्यार ही मिटा सकता है। +* आपके पास जो कुछ भी है है उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए, और ना ही दूसरों से इर्श्या कीजिये। जो दूसरों से इर्श्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती। +* शांति भीतर से आती है, बाहर इसकी तलाश करन व्यर्थ है। +* स्वयं को जीतना दूसरों को जीतने से ज्यादा मुश्किल काम है। +* अपने शरीर को स्वस्थ रखना आपका कर्तव्य है वर्ना आप अपने मन को मजबूत और स्पष्ट नहीं रख पाएंगे। +* अगर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए आपको कोई साथी नहीं मिलता है, तो अकेले ही चलिए। +* अपना मन अच्छे कार्यों को करने में लगाएं, इसे बार-बार करें। और आप देखेंगे कि आप खुशी से भर जाएंगे। +* एक समझदार व्यक्ति अपने भहतर की कमियों को उसी प्रकार से दूर कर लेता है, जिस तरह से एक सुनार चांदी की अशुद्धियों को, चुन-चुन कर, थोड़ा-थोड़ा करके और इस प्रक्रिया को बार-बार दोहरा कर दूर करता है। +* यह सोचना अत्यंत हास्यास्पद है कि कोई दूसरा व्यक्ति आपको खुश या दु:खी कर सकता है। +* गुस्से को अपने भीतर रखना ऐसा ही है जैसे आप जहर तो खुद पियें और किसी दूसरे आदमी के मरने की उम्मीद करें। +* जिस व्यक्ति के विचार मैले हैं जो लापरवाह है और धोखे से भरा हुआ है, वह गेरुआ वस्त्र कैसे पहन सकता है? वह व्यक्ति जिसने खुद पर नियंत्रण हासिल कर लिया है, ओजस्वी है, स्पष्ट है, सच्चा है, वही गेरुआ वस्त्र पहनने के लायक है। +* हम जो शब्द बोलते हैं उनका चुनाव हमें बड़ी सावधानी से करना चाहिए, क्योंकि उन शब्दों को सुनने वाले व्यक्तियों पर उनका प्रभाव पड़ता है फिर चाहे वह प्रभाव अच्छा हो अथवा बुरा। +* कोई भी व्यक्ति बहुत ज्यादा बोलते रहने से कुछ नहीं सीख पाता, समझदार व्यक्ति वही कहलाता है जोकि धीरज रखने वाला, क्रोधित न होने वाला और निडर होता है। +* आप सिर्फ उसे ही खोते हैं जिससे आप चिपके रहते हैं। +* एक मोमबत्ती हजारों मोमबत्तियों को रौशन कर सकती है, और फिर भी उस मोमबत्ती की उम्र कम नहीं होती। उसी तरह से खुशियां भी बांटने से भी कम नहीं होती हैं। +* जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है। +* बीत�� हुए कल को जाने दीजिये, भविष्य को जाने दीजिये, वर्तमान को भी जाने दीजिये, और अपने अस्तित्व की सीमाओं से बाहर झाँक कर देखिये। जब आपका मन पूरी तरह आजाद होता है, तो आप जीवन-मृत्यु को उसके सही स्वरूप में देख पाते हैं। +* शांतिप्रिय लोग आनंद से जीवन जीते हैं और उन पर हार या जीत का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। +* अपने बराबर या फिर अपने से समझदार व्यक्तियों के साथ सफ़र कीजिये, मूर्खो के साथ सफ़र करने से अच्छा है अकेले सफ़र करना। +* जो व्यक्ति स्वयं से सच्चा प्यार करता है, वह कभी दूसरे व्यक्ति को चोट नहीं पहुंचाता है। +* कोई भी व्यक्ति सिर मुंडवाने से, या फिर उसके परिवार से, या फिर एक जाति में जनम लेने से संत नहीं बन जाता; जिस व्यक्ति में सच्चाई और विवेक होता है, वही धन्य है, वही संत है। +* बीता हुआ समय बीत चुका है, भविष्य अभी दूर है, वर्तमान पल ही वह समय है जिसमें आप जी सकते हैं। +* दुनिया हमेशा से प्रशंसा करने और दोष निकालने का रास्ता ढूंढती आई है यही होता आया है और यही होता रहेगा। +* अगर आपको मेरी तरह बांटने की शक्ति के बारे में पता होता तो आप कभी भी बिना बांटे हुए भोजन नहीं करते। +* अगर कोई काम करने लायक है, तो उसे पूरे मन से करो। तभी उसमें सफलता प्राप्त होगी। +* असली समस्या यह है कि आपको लगता है कि फलां काम को करने के लिए अभी आपके पास बहुत समय है। +* अराजकता सभी जटिल बातों में निहित है. परिश्रम के साथ प्रयास करते रहो। +* ज्ञानी व्यक्ति कभी नहीं मरते और जो नासमझ हैं, वे तो पहले से ही मरे हुए हैं। +* अगर आपकी दिशा सही है, तो फिर चिंता की बात नहीं। आपको बस इतना करना है कि आप चलते रहें। +* एक वफादार, गुणी, प्रतिष्ठित और धनी व्यक्ति जो भी जगह चुनता है, वहां उसका सम्मान किया जाता है। +* दर्द तो तय है, यह आपके हाथ में नहीं है। हां, दुखी होना या न होना आपके हाथ में अवश्य है। +* एक जागे हुए व्यक्ति को रात बड़ी लम्बी लगती है, एक थके हुए व्यक्ति को मंजिल बड़ी दूर नजर आती है, सच्चे धर्म से बेखबर मूर्खों के लिए जीवन-मृत्यु का सिलसिला भी उतना ही लंबा प्रतीत होता है। +* अंत में यही चीज सबसे ज्यादा मायने रखती है कि आपने कितनी अच्छी तरह से प्रेम किया, अपने जीवन को कितना भरपूर जिया और आपने कितनी गहराई से लोगों की त्रुटियों को माफ किया। +* संसार में कोई भी चीज कभी भी अकेले मौजूद नहीं होती, हर एक चीज का संबंध तमाम दूसरी चीजों से होता है। +* जीवन की यात्रा में विश्वास आपको पोषण देता है, अच्छे काम एक घर की तरह हैं, ज्ञान दिन की रोशनी की तरह है और सजगता आपको सुरक्षा देती है। यदि मनुष्य शुद्ध जीवन जीता है, तो कोई चीज उसे नष्ट नहीं कर सकती है। +* सभी व्यक्तियों को मौत से डर लगता है, सभी सजा से डरते हैं। इसलिए बाकी लोगों को भी अपने जैसा ही समझिए, खुद किसी जीव को ना मारें और दूसरों को भी ऐसा करने से मना करें। + + +:बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दिया बताय॥ +कबीर दास के बारे में उक्तियाँ +* कबीर की आध्यात्मिक क्षुधा और आकांक्षा विश्वग्रासी है। वह कुछ भी नहीं छोड़ना चाहती, इसलिये वह ग्रहणशील है; वर्जनशील नहीं, इसलिये उन्होंने हिन्दु, मुसलमान, सूफी, वैष्णव, योगी प्रभृति सब साधनाओं को जोर से पकड़ रखा है। आचार्य क्षितिमोहन सेन +* हिन्दी साहित्य के हजारों साल के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तिव लेकर कोई उत्पन्न नहीं हुआ। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कबीर' में +* कबीरदास बहुत-कुछ को अस्वीकार करने का अपार साहस लेकर अवतीर्ण हुए थे। उन्होंने तत्काल प्रचलित नाना साधन-मार्गों पर उग्र आक्रमण किया है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी +* तिस पर कबीरदास जी स्वयं पढ़े-लिखे न थे। उन्होंने जो कुछ कहा है वह अपनी प्रतिभा और भावुकता के वशीभूत होकर कहा है। उनमें कवित्व उतना नहीं जितना भक्ति और भावुकता थी। उनकी वणी हृदय में चुभने वाली है। बाबू श्यामसुन्दर दास +* मनुष्यत्व की भावना को आगे करके निम्न श्रेणी की जनता में उन्होंने आत्मगौरव का भाव जगाया। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल +* हिन्दी भक्ति काव्य का प्रथम क्रान्तिकारी पुरस्कर्ता कबीर हैं। डाॅ. बच्चन सिंह +* कबीर की वचनावली की सबसे प्राचीन प्रति सन् 1512 ई. की लिखी है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल +* इसमें कोई सन्देह नहीं कि कबीर ने ठीक मौके पर जनता के उस बड़े भाग को सँभाला जो नाथपंथियों के प्रभाव से प्रेमभाव और भक्ति रस से शून्य शुष्क पड़ता जा रहा था। रामचन्द्र शुक्ल +* उन्होंने भारतीय ब्रह्मवाद के साथ सूफियों के भावात्मक रहस्यवाद, हठयोगियों के साधनात्मक रहस्यवाद और वैष्णवों के अहिंसावाद तथा प्रपत्तिवाद का मेल करके अपना पंथ खड़ा किया। रामचन्द्र शुक्ल +* भाषा बहुत परिष्कृत और परिमार्जित न होने पर भी कबीर की उक्तियों में कहीं-कहीं विलक्षण प्रभाव और चमत्कार है। प्रतिभा उनमें बड़ी प्रखर थी इसमें सन्देह नहीं है। रामचन्द्र शुक्ल +* कबीर की रचनाओं में भारतीय निर्गुण ब्रह्मवाद, सूफियों का रहस्यवाद, योगियों की साधना, अहिंसा आदि की बातें होते हुए भी स्वामी की दृष्टि से सगुण ब्रह्म का उल्लेख हो गया है। लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय +* जहाँ कबीर की राख को समाधिस्थ किया गया था वह स्थान बनारस में अब तक कबीर चौरा के नाम से प्रसिद्ध है। डाॅ. श्यामसुन्दर दास +* हिन्दी साहित्य के हजार वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ। महिमा में यह व्यक्तित्व केवल एक ही प्रतिद्वन्द्वी जानता है तुलसीदास। हजारी प्रसाद द्विवेदी +* कबीर ने ऐसी बहुत बाते कही है जिनसे समाज सुधार में सहायता मिलती है पर, इसलिए उनको समाज सुधारक समझना गलती है। हजारी प्रसाद द्विवेदी +* कबीर की भाषा संत भाषा है। भाषा की यह स्वाभाविकता आगे चलकर प्रेमचन्द में ही मिलती है। डाॅ. बच्चन सिंह +* भारतीय धर्मसाधना के इतिहास में कबीरदास महान विचारक एवं प्रतिभाशाली महाकवि हैं। डाॅ. नगेन्द्र +* वे सिर से पैर तक मस्तमौला, स्वभाव से फक्कड़ फकीर थे। हजारी प्रसाद द्विवेदी +* भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। हजारी प्रसाद द्विवेदी +* साम्प्रदायिक शिक्षा और सिद्धान्त के उपदेश मुख्यतः ’साखी’ के भीतर है, जो दोहों में है। इसकी भाषा सधुक्कड़ी अर्थात् राजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली है। आचार्य शुक्ल +* निर्गुण पंथ में जो थोड़ा-बहुत ज्ञान पक्ष है वह वेदान्त से लिया हुआ है। जो प्रेत तत्त्व है, वह सूफीयों का है। अहिंसा, और प्रप्रति के अतिरिक्त वैष्णवता का और कोई अंश उसमें नहीं है। उसके सुरति और निरति शब्द बौद्ध सिद्धों के हैं। आचार्य शुक्ल +* यह कहना कि वे समाज-सुधारक थे गलत है। यह कहना कि वे धर्म-सुधारक थे, और भी गलत है। यदि सुधारक थे तो रैडिकल सुधारक। वे धर्म के माध्यम से समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना चाहते थे। डाॅ. बच्चन सिंह +* वे (कबीर) भगवान के नृसिंहावतार के मानो प्रतिमूर्ति थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी +* जो लोग कबीरदास को हिंदू- मुस्लिम धर्मों का सर्व-धर्म समन्वयकारी सुधारक मानते हैं वे क्या कहते हैं; ठीक समझ में नहीं आता। कबीर का रास्ता बहुत साफ था। वे दोनों को शिरसा स्वीकार कर समन्वय करनेवाले नहीं थे। समस्त बाह्याचारों के जंजालों और सं��्कारों को विध्वंस करनेवाले क्रांतिकारी थे। समझौता उनका रास्ता नहीं था। इतने बड़े जंजाल को नाहीं कर सकने की क्षमता मामूली आदमी में नहीं हो सकती। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी +* ऐसे थे कबीर। सिर से पैर तक मस्तमौला, स्वभाव में फक्कड़, आदत से अक्खड़, भक्त के सामने निरीह, भेषधारी के आगे प्रचंड, दिल के साफ, दिमाग के दुरुस्त, भीतर से कोमल, बाहर से कठोर, जन्म से अस्पृश्य, कर्म से वंदनीय। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी +* कबीर की सैद्धांतिक या दार्शनिक मान्यताएँ अद्वैतवाद के अनुकूल हैं। व्यावहारिक क्षेत्र में कबीर पूर्णतः प्रगतिशील दिखाई पड़ते हैं। डाॅ. गणपतिचन्द्र गुप्त +* हजरीप्रसाद द्विवेदी का नाम कबीर के साथ उसी तरह जुड़ा है जैसे तुलसीदास के साथ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का नाम। नामवर सिंह +* चूँकि कबीर का तिरस्कार मुख्यत: उनकी अटपटी भाषा और कवित्वहीनता को ही लेकर किया गया था, इसलिए 'कबीर' नामक ग्रंथ में द्विवेदीजी ने इस पक्ष की सविस्तार और सोदाहरण चर्चा की। अब तक कबीर की 'डाँट-फटकार' और 'खंडन-मंडन' की चर्चा तो बहुत हुई थी, किन्तु उनके व्यंग्यों का कहीं जिक्र भी नहीं आया था। द्विवेदीजी ने पहली बार कबीर के व्यंग्यकार रूप को प्रस्तुत करते हुए घोषित किया सच पूछा जाय तो आज तक हिंदी में ऐसा जबर्दस्त व्यंग्य लेखक पैदा ही नहीं हुआ। उनकी साफ चोट करनेवाली भाषा, बिना कहे भी सब कुछ कह देनेवाली शैली और अत्यन्त सादी किंतु अत्यन्त तेज प्रकाशन भंगी अनन्य-साधारण है। हमने देखा है कि बाह्याचार पर आक्रमण करनेवाले संतों और योगियों की कमी नहीं है, पर इस कदर सहज और सरल ढंग से चकनाचूर कर देनेवाली भाषा कबीर के पहले बहुत कम दिखाई दी है। व्यंग्य वह है, जहाँ कहनेवाला अधरोष्ठों में हँस रहा हो और सुननेवाला तिलमिला उठा हो और फिर भी कहनेवाले को जवाब देना अपने को और भी उपहासास्पद बना लेना हो जाता हो। नामवर सिंह +* वस्तुत: कबीर ने मधुमक्खी के समान अपने समय में विद्यमान समस्त धर्म साधनाओं और निजी के योग से अपनी भक्ति का ऐसा छत्ता तैयार किया है जिसका मधु अमृतोपम है, जिसका पान कर भारतीय जन मानस कृत कृत्य हो उठा है। यह मधु अक्षुण्ण है, युगों से भारतीय इसकी मधुरिमा का रसास्वादन कर रहे हैं। कबीर साहित्य के मर्मज्ञ गोविन्द त्रिगुणायत + + +धनपत राय ३१ जुलाई १८८० ८ अक्टूबर १९३६) एक भारतीय लेखक थे जिन्होंने हिन्दी और उर्दू साहित्य में अपना योगदान दिया था। उन्हें उनके उपनाम मुन्शी प्रेमचन्द या प्रेमचन्द के नाम से ही अधिक जाना जाता है। +प्रगतिशील लेखक संघ' यह नाम ही मेरे विचार से गलत है। साहित्यकार या कलाकार स्वभावतः प्रगतिशील होता है। अगर वो इसका स्वभाव न होता तो शायद वो साहित्यकार ही नहीं होता। उसे अपने अंदर भी एक कमी महसूस होती है, इसी कमी को पूरा करने के लिए उसकी आत्मा बेचैन रहती है। प्रेमचन्द, १९३६ में लखनऊ में हुए प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अधिवेशन में अपने भाषण में अपने भाषण में +* हिंदू अपनी संस्कृति को कयामत तक सुरक्षित रखना चाहता है, मुसलमान अपनी संस्कृति को। दोनों ही अभी तक अपनी-अपनी संस्कृति को अछूती समझ रहे हैं, यह भूल गए हैं कि अब न कहीं हिंदू संस्कृति है, न मुस्लिम संस्कृति और न कोई अन्य संस्कृति। अब संसार में केवल एक संस्कृति है और वह है आर्थिक संस्कृति, मगर आज भी हिंदू और मुस्लिम संस्कृति का रोना रोए चले जाते हैं, हालांकि संस्कृति का धर्म से कोई संबंध नहीं। प्रेमचन्द, अपने एक लेख में +* संसार में हिंदू ही एक जाति है, जो गोमांस को अखाद्य या अपवित्र समझती है तो क्या इसलिए हिंदुओं को समस्त विश्व से धर्मसंग्राम छेड़ देना चाहिए? हिंदू गाय की पूजा स्वयं कर सकते हैं, पर उन्हें दूसरों को भी ऐसे ही करने को बाध्य करने का तो कोई अधिकार नहीं है। प्रेमचन्द +* अधिकार में स्वयं एक आनन्द है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता। +* अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परन्तु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है। +* अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं। +* अज्ञान की भांति ज्ञान भी सरल, निष्कपट और सुनहले स्वप्न देखने वाला होता है। मानवता में उनका विश्वास इतना दृढ़,इतना सजीव होता है कि वह इसके विरुद्ध व्यवहार को अमानुषीय समझने लगता है। यह वह भूल जाता है की भेड़ियों ने भेडो को निरीहता का जवाब सदैव पंजों और दांतो से दिया है। वह अपना एक आदर्श संसार बनाकर आदर्श मानवता से अवसाद करता है और उसी में मग्न रहता है। +* अज्ञान में सफाई है और हिम्मत है, उसके दिल और जुबान में पर्दा नहीं होता, ना कथनी और करनी में। क्या यह अफसोस की बात नहीं, ज्ञान अज्ञान के आगे सिर झुकाए? +* अनाथ बच्च���ं का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। +* अनाथों का क्रोध पटाखे की आवाज है, जिससे बच्चे डर जाते हैं और असर कुछ नहीं होता। +* अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है। +* अन्याय को बढ़ाने वाले कम अन्यायी नहीं। +* अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है। +* अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है। +* अपमान का भय क़ानून के भय से किसी तरह कम क्रियाशील नहीं होता। +* आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है। +* आलस्य वह राजयोग है जिसका रोगी कभी संभल नहीं पाता। +* आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत फर्क है। आलोचना क़रीब लाती है और बुराई दूर करती है। +* आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है। +* इंसान का कोई मूल्य नहीं, केवल दहेज का मूल्य है। +* उपहास और विरोध तो किसी भी सुधारक के लिए पुरस्कार जैसे हैं। +* ऐश की भूख रोटियों से कभी नहीं मिटती। उसके लिए दुनिया के एक से एक उम्दा पदार्थ चाहिए। +* कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता, कर्तव्य पालन में ही चित्त की शांति है। +* कर्तव्य-पालन में ही चित्त की शांति है। +* कायरता की भांति वीरता भी संक्रामक होती है। +* कार्यकुशलता की व्यक्ति को हर जगह जरूरत पड़ती है। +* कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं। +* केवल बुद्धि के द्वारा ही मानव का मनुष्यत्व प्रकट होता है। +* कोई वाद जब विवाद का रूप धारण कर लेता है तो वह अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है। +* क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है। +* क्रोध और ग्लानि से सद्भावनाएं विकृत हो जाती हैं। जैसे कोई मैली वस्तु निर्मल वस्तु को दूषित कर देती है। +* खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है, आगे बढ़ते रहने की लगन का। +* गरज वाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ है लेकिन बेगरज वाले को दाव पर पाना जरा कठिन है। +* गलती करना उतना ग़लत नहीं जितना उन्हें दोहराना है। +* घर सेवा की सीढ़ी का पहला डंडा है। इसे छोड़कर तुम ऊपर नहीं जा सकते। +* चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। +* चिंता एक काली दीवार की भांति चारों ओर से घेर लेती है, जिसमें से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती। +* चिन्ता रोग का मूल है। +* चोर केवल दंड से नहीं बचना चाहता, वह अपमान से भी बचना चाहता है। वह दंड से उतना नहीं डरता है, जितना कि अपमान से। +* जब दूसरों के पांवों तले अपनी गर्दन दबी हुई हो, तो उन पांवों को सहलाने में ही कुशल है। +* जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्ज्वल और पूर्ण बना देता है। +* जिसके पास जितनी ही बड़ी डिग्री है, उसका स्वार्थ भी उतना ही बड़ा हुआ है मानो लोभ और स्वार्थ ही विद्वता के लक्षण हैं। +* जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के सिवा और क्या है? +* जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है, उनका सुख लूटने में नहीं। +* जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं। +* जीवन की दुर्घटनाओं में अक्‍सर बड़े महत्‍व के नैतिक पहलू छिपे हुए होते हैं। +* जीवन में सफल होने के लिए आपको शिक्षा की ज़रूरत है न की साक्षरता और डिग्री की। +* दया मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।। +* दुनिया में विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई भी विद्यालय आज तक नहीं खुला है। +* देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है। +* द्वेष का मायाजाल बड़ी-बड़ी मछलियों को ही फसाता है। छोटी मछलियां या तो उसमें फंसती ही नहीं या तुरंत निकल जाती हैं। उनके लिए वह घातक जाल क्रीडा की वस्तु है, भय का नहीं। +* धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं। +* नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है। +* नीति चतुर प्राणी अवसर के अनुकूल काम करता है, जहाँ दबना चाहिए वहां दब जाता है, जहाँ गरम होना चाहिए वहां गरम होता है, उसे मान अपमान का, हर्ष या दुःख नहीं होता उसकी दृष्टि निरंतर अपने लक्ष्य पर रहती है। +* नीतिज्ञ के लिए अपना लक्ष्य ही सब कुछ है। आत्मा का उसके सामने कुछ मूल्य नहीं। गौरव सम्‍पन्‍न प्राणियों के लिए चरित्र बल ही सर्वप्रधान है। +* नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत दो, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। +* न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं, वह जैसे चाहती है नचाती है। +* पहाड़ों की कंदराओं में बैठकर तप कर लेना सहज है, किन्तु परिवार में रहकर धीरज बनाये रखना सबके वश की बात नहीं। +* बालकों पर प्रेम की भांति द्वेष का असर भी अधिक होता है। +* बुढ़ापा तृष्णा रोग का अंतिम समय है, जब संपूर्ण इच्छाएं एक ही केंद्र पर आ लगती हैं। +* बूढो के लिए अतीत में सूखो और वर्तमान के दु:खो और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता। +* भरोसा प्यार करने के लिए पहला कदम है। +* भाग्य पर वह भरोसा करता है जिसमें पौरुष नहीं होता। +* मनुष्य का उद्धार पुत्र से नहीं, अपने कर्मों से होता है। यश और कीर्ति भी कर्मों से प्राप्त होती है। संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है, जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए दी है। बड़ी~बड़ी आत्माएं, जो सभी परीक्षाओं में सफल हो जाती हैं, यहाँ ठोकर खाकर गिर पड़ती हैं। +* मनुष्य का मन और मस्तिष्क पर भय का जितना प्रभाव होता है, उतना और किसी शक्ति का नहीं। प्रेम, चिंता, हानि यह सब मन को अवश्य दुखित करते हैं, पर यह हवा के हल्के झोंके हैं और भय प्रचंड आधी है। +* मनुष्य बराबर वालों की हंसी नहीं सह सकता, क्योंकि उनकी हंसी में ईर्ष्या, व्यंग्य और जलन होती है। +* मनुष्य बिगड़ता है या तो परिस्थितियों से अथवा पूर्व संस्कारों से। परिस्थितियों से गिरने वाला मनुष्य उन परिस्थितियों का त्याग करने से ही बच सकता है। +* महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम से बहुत अधिक आकर्षित होते हैं। +* महिला सहानुभूति से हार को भी जीत बना सकती है। +* मासिक वेतन पूरन मासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। +* यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं। +* युवावस्था आवेश मय होती है, वह क्रोध से आग हो जाती है तो करुणा से पानी भी। +* लगन को कांटों कि परवाह नहीं होती। +* लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वो क्या लिखेंगे? +* लोकनिंदा का भय इसलिए है कि वह हमें बुरे कामों से बचाती है। अगर वह कर्तव्य मार्ग में बाधक हो तो उससे डरना कायरता है। +* वर्तमान ही सब कुछ है। भविष्य की चिंता हमें कायर बना देती है और भूत का भार हमारी कमर तोड़ देता है। +* वही तलवार, जो केले को नहीं काट सकती। शान पर चढ़कर लोहे को काट देती है। मानव जीवन में आग बड़े महत्व की चीज है। जिसमें आग है वह बूढ़ा भी तो जवान है। जिसमे आग नहीं है, गैरत नहीं, वह भी मृतक है। +* विचार और व्यवहार में सा��ंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है। +* विजयी व्यक्ति स्वभाव से, बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है। +* विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला। +* विषय-भोग से धन का ही सर्वनाश नहीं होता, इससे कहीं अधिक बुद्धि और बल का भी नाश होता है। +* वीरात्माएं सत्कार्य में विरोध की परवाह नहीं करतीं और अंत में उस पर विजय ही पाती हैं। +* व्यंग्य शाब्दिक कलह की चरम सीमा है उसका प्रतिकार मुंह से नहीं हाथ से होता है। +* शत्रु का अंत शत्रु के जीवन के साथ ही हो जाता है। +* संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए गढ़ी है। +* सफलता दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है। +* सफलता में अनंत सजीवता होती है, विफलता में असह्य अशक्ति। +* समानता की बात तो बहुत से लोग करते हैं, लेकिन जब उसका अवसर आता है तो खामोश रह जाते हैं। +* हम जिनके लिए त्याग करते हैं, उनसे किसी बदले की आशा ना रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं। चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो। त्याग की मात्रा जितनी ज्यादा होती है, यह शासन भावना उतनी ही प्रबल होती है। +* हिम्मत और हौसला मुश्किल को आसान कर सकते हैं, आंधी और तूफ़ान से बचा सकते हैं, मगर चेहरे को खिला सकना उनके सामर्थ्य से बाहर है। +* सोई हुई आत्मा को जगाने के लिए भूलें एक प्रकार की दैविक यंत्रणाएं जो हमें सदा के लिए सतर्क कर देती हैं। +* सौंदर्य को गहने की जरूरत नहीं है। मृदुता गहनों का वजन सहन नहीं कर सकता। +* सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं। +* स्त्री गालियां सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर मायके की निंदा उससे नहीं सही जाती। +* स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है। +* कायरों को इसके सिवा और सूझ ही क्या सकता है? धन कमाना आसान नहीं है। व्यवसायियों को जितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, वह अगर संन्यासियों को झेलनी पड़े, तो सारा संन्यास भूल जाएं। किसी भले आदमी के द्वार पर जाकर पड़े रहने के लिए बल, बुद्धि, विद्या, साहस किसी की भी जरूरत नहीं। धनोपार्जन के लिए खून जलाना पड़ता है। सहज काम नहीं है। धन कहीं पड़ा नहीं है कि जो चाहे बटोर लाए। प्रेमचन्द कर्मभूमि' में सुखदा के मुंह से +* जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती। +* रोने के लिए हम एकांत ढूंढते हैं, हसंने के लिए अनेकांत। +* पुरुष में थोड़ी-सी पशुता होती है, जिसे वह इरादा करके भी हटा नहीं सकता। वही पशुता उसे पुरुष बनाती है। विकास के क्रम से वह स्त्री से पीछे है। जिस दिन वह पूर्ण विकास को पहुंचेगा, वह भी स्त्री हो जाएगा। वात्सल्य, स्नेह, कोमलता, दया, इन्हीं आधारों पर यह सृष्टि थमी हुई है और यह स्त्रियों के गुण हैं। +* हमारे शिक्षालयों में नर्मी को घुसने ही नहीं दिया जाता। +* हमारे शिक्षालयों में नर्मी को घुसने ही नहीं दिया जाता। वहां स्थायी रूप से मार्शल-लॉ का व्यवहार होता है। कचहरी में पैसे का राज है, हमारे स्कूलों में भी पैसे का राज है, उससे कहीं कठोर, कहीं निर्दय। देर में आइए तो जुर्माना न आइए तो जुर्माना सबक न याद हो तो जुर्माना किताबें न खरीद सकिए तो जुर्माना कोई अपराध हो जाए तो जुर्माना शिक्षालय क्या है, जुर्मानालय है। यही हमारी पश्चिमी शिक्षा का आदर्श है, जिसकी तारीफों के पुल बांधे जाते हैं। +* दबा हुआ पुरुषार्थ ही स्त्रीत्व है। +* त्यागी दो प्रकार के होते हैं। एक वह जो त्याग में आनंद मानते हैं, जिनकी आत्मा को त्याग में संतोष और पूर्णता का अनुभव होता है, जिनके त्याग में उदारता और सौजन्य है। दूसरे वह, जो दिलजले त्यागी होते हैं, जिनका त्याग अपनी परिस्थितियों से विद्रोह-मात्र है, जो अपने न्यायपथ पर चलने का तावान संसार से लेते हैं, जो खुद जलते हैं इसलिए दूसरों को भी जलाते हैं। अमर इसी तरह का त्यागी था। +* कायरता की भांति वीरता भी संक्रामक होती है। एक क्षण में उड़ते हुए पत्तों की तरह भागने वाले आदमियों की एक दीवार-सी खड़ी हो गई। अब डंडे पडें।, या गोलियों की वर्षा हो, उन्हें भय नहीं। +* मां में केवल वात्सल्य है। बहन में क्या है, नहीं कह सकती, पर वह वात्सल्य से कोमल अवश्य है। मां अपराध का दंड भी देती है। बहन क्षमा का रूप है। भाई न्याय करे, अन्याय करे, डांटे या प्यार करे, मान करे, अपमान करे, बहन के पास क्षमा के सिवा और कुछ नहीं है। वह केवल उसके स्नेह की भूखी है। +* कृषि-प्रधान देश में खेती केवल जीविका का साधन नहीं है सम्मान की वस्तु भी है। गृहस्थ कहलाना गर्व की बात है। किसान गृहस्थी में अपना सर्वस्व खोकर विदेश जाता है, वहां से धन कमाकर लाता है और फिर गृहस्थी करता है। मान-प्रतिष्ठा का मोह औरों की भांति उसे घेरे रहता है। वह गृहस्थ रहकर जीना और गृहस्थ ही में मरना भी चाहता है। उसका बाल-बाल कर्ज से बांधा हो, लेकिन द्वार पर दो-चार बैल बंधकर वह अपने को धन्य समझता है। उसे साल में तीस सौ साठ दिन आधे पेट खाकर रहना पड़े, पुआल में घुसकर रातें काटनी पड़ें, बेबसी से जीना और बेबसी से मरना पड़े, कोई चिंता नहीं, वह गृहस्थ तो है। यह गर्व उसकी सारी दुर्गति की पुरौती कर देता है। +* साहित्य की बहुत सी परिभाषाएँ की गयी हैं, पर मेरे विचार में सर्वोत्तम परिभाषा ‘जीवन की आलोचना’ है। चाहे वह निबन्ध के रूप में हो, चाहे कहानियों के या काव्य के उसे हमारे जीवन की आलोचना और व्याख्या करनी चाहिए। प्रेमचन्द, साहित्य की परिभाषा के सन्दर्भ में +* साहित्यकार का लक्ष्य केवल महफिल सजाना और मनोरंजन का सामान जुटाना नहीं है- उसका दरजा इतना न गिराइये। वह देश-भक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई भी नहीं बल्कि उनके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है। प्रेमचन्द +* यथार्थवाद हमारी दुर्बलताओं, हमारी विषमताओं और हमारी क्रूरताओं का नग्न चित्र होता है। वास्तव में यथार्थवाद हमको निराशावादी बना देता है, मानव चरित्रों से हमारा विश्वास उठ जाता है। हमको चारों तरफ बुराई दिखाई देने लगती है। आदर्शवाद हमें ऐेसे चरित्रों से परिचित कराता है जिनके हृदय पवित्र होते हैं, जो स्वार्थ और वासना से रहित होते हैं जो साधु-प्रकृति के होते हैं। यद्यपि ऐसे चरित्र व्यवहार कुशल नहीं होते, उनकी सरलता उन्हें व्यवहारिक विषयों में धोखा देती है। हम वही साहित्य (उपन्यास) उच्चकोटि का समझते हैं जहाँ यथार्थवाद और आदर्शवाद का समन्वय हो। उसे आप आदर्शोन्मुख यथार्थवाद कह सकते हैं। प्रेमचन्द, आदर्शवाद एवं यथार्थवाद की आलोचना करते हुए +* साहित्य का उद्देश्य जीवन के आदर्श को उपस्थित करना है, जिसे पढ़कर हम जीवन में कदम-कदम पर आने वाली कठिनाइयों का सामना कर सकें। अगर साहित्य से जीवन का रास्ता न मिले, तो ऐसे साहित्य से लाभ ही क्या? जीवन की आलोचना कीजिए, चाहे चित्र खीचिएँ, आर्ट के लिए लिखिए, चाहे ईश्वर के लिए, मनोरहस्य दिखाइए, चाहे विश्वव्यापी सत्य की तलाश कीजिए, अगर उसमें हमें जीवन का अच्छा मार्ग नहीं मिलता तो उस रचना से हमारा कोई फायदा नहीं। साहित्य न चित्रण का नाम है न अच्छे शब्दों को चुनकर सजा देने का, न अलंकारों से वाणी को शोभायमान बना देने का। ऊँचे और पवित्र विचार ही साहित्य की जान हैं। प्रेमचन्द +* नीतिशास्त्र और साहित्यशास्त्र का एक ही लक्ष्य है- केवल उपदेश की विधि में अन्तर है। नीतिशास्त्र तर्कों और उपदेशों के द्वारा बुद्धि और मन पर प्रभाव डालने का यत्न करता है, तो साहित्य ने अपने लिए मानसिक अवस्थाओं और भावों का क्षेत्र चुन लिया है। प्रेमचन्द +* मनुष्य स्वभाव से देवतुल्य है। जमाने के छल-प्रपंच या और परिस्थितियों के वशीभूत होकर वह अपना देवत्व खो बैठता है। साहित्य इसी देवत्व को अपने स्थान पर प्रतिष्ठित करने की चेष्ठा करता है, उपदेशों से नहीं, नसीहतों से नहीं। भावों को स्पन्दित करके, मन के कोमल तारों पर चोट लगाकर, प्रकृति से सामंजस्य उत्पन्न करके। प्रेमचन्द +* किसी राष्ट्र की सबसे मूल्यवान सम्पत्ति उसके साहित्यिक आदर्श होते हैं। व्यास और वाल्मीकि ने जिन आदर्शों की सृष्टि की, वह आज भी भारत का सिर ऊँचा किए हुए हैं। राम अगर वाल्मीकि के साँचे में न ढलते, तो राम न रहते। सीता भी उसी साँचेे में ढलकर सीता हुई। +* जीवन का उद्देश्य ही आनन्द है। मनुष्य जीवन पर्यन्त आनन्द की खोज में पड़ा रहता है। किसी को वह (आनन्द) रत्न द्रव्य में मिलता है, किसी को भरे-पूरे परिवार में, किसी को लम्बे-चैड़े भवन में, किसी को ऐश्वर्य में, लेकिन साहित्य का आनन्द इस आनन्द से ऊँचा है, इससे पवित्र है, उसका आधार सुन्दर और सत्य है। वास्तव में सच्चा आनन्द सुन्दर और सत्य से मिलता है, उसी आनन्द को दर्शाना, वही आनन्द उत्पन्न करना साहित्य का उद्देश्य है। प्रेमचन्द +* वह साहित्य चिरायु हो सकता है जो मनुष्य की मौलिक प्रवृत्तियों पर अवलम्बित हो। ईर्ष्या और प्रेम, क्रोध और लोभ, भक्ति और विराग, दुःख और लज्जा सभी हमारी मौलिक प्रवृत्तियाँ हैं। इन्हीं की छटा दिखाना साहित्य का परम उद्देश्य है और बिना उद्देश्य के कोई रचना हो ही नहीं सकती। प्रेमचन्द +टाम काका की कुटिया’ गुलामी की प्रथा से व्यथित हृदय की रचना है, पर आज उस प्रथा के उठ जाने पर भी उसमें वह व्यापकता है कि हम लोग भी उसे पढ़कर मुग्ध हो जाते हैं। सच्चा साहित्य कभी पुराना नहीं होता। वह सदा नया बना रहता है। दर्शन और विज्ञान समय की गति के अनुसार बदलते रहते हैं। पर साहित्य तो हृदय की वस्तु है और मानव हृदय में तबदीलियाँ नहीं होती। हर्ष और विस्मय क्रोध और द्वेष, आशा और भय आज भी हमारे मन पर उसी तरह अधिकृत है। प्रेमचन्द +* साहित्यकार बहुधा अप��े देश-काल से प्रभावित होता है। जब कोई लहर देश में उठती है, तो साहित्यकार के लिए उससे अविचलित रहना असंभव हो जाता है। उसकी विशाल आत्मा अपने देश-बन्धुओं के कष्टों से विकल हो उठती है और तीव्र विकलता में वह रो उठता है, पर उसके रूदन में भी व्यापकता होती है। वह स्वदेश का होकर भी सार्वभौमिक रहता है। प्रेमचन्द +* साहित्य का काम केवल पाठकों का मन बहलाना नहीं है। यह तो भाड़ो और मदारियों, विदूषक और मसकरों का काम है। प्रेमचन्द +* मुझे यह कहने में हिचक नहीं कि मैं और चीजों की तरह कला को भी उपयोगिता की तुला पर तौलता हूँ। निस्संदेह कला का उद्देश्य सौंदर्य की पुष्टि करना है और वह हमारे आध्यात्मिक आनन्द की कुंजी है, पर ऐसा कोई रूचिगत, मानसिक तथा आध्यात्मिक आनन्द नहीं, जो अपनी उपयोगिता का पहलू न रखता हो। प्रेमचन्द +* हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा जिसमें उच्च चिन्तन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौन्दर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो, जीवन की सच्चाइयों का प्रकाश हो जों हमें गीत, संघर्ष और बेचैनी पैदा करे, सुलायें नहीं क्योंकि अब और ज्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है। +* जो साहित्य जीवन के उच्च आदर्शों का विरोधी हो, सुरुचि को बिगाड़ता हो अथवा साम्प्रदायिक सद्भावना में बाधा डालता हो, ऐसे साहित्य को यह परिषद हरगिज प्रोत्साहित न करेगी। +* साहित्य कलाकार के आध्यात्मिक सामंजस्य का व्यक्त रूप है और सामंजस्य सौन्दर्य की सृष्टि करता है, नाश नहीं। वह हममें वफादारी, सच्चाई, सहानुभूति, न्यायप्रियता और ममता के भावों की पुष्टि करता है। जहाँ ये भाव है, वहीं दृढ़ता है और जीवन है, जहाँ इनका अभाव है, वहीं फूट, विरोध, स्वार्थपरता है, द्वेष, शत्रुता और मृत्यु है। +* ऐसी भाषा, जिसे लिखने और समझने वाले लोग थोड़े ही हो, मसनुई, बेजान और बोझिल हो जाती है। जनता का मर्म-स्पर्श करने की, उन तक अपना पैगाम पहुँचाने की उनमें कोई शक्ति नहीं रहती। +* जिस दिन आप अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व तोड़ देंगे और अपनी एक कौमी भाषा बना लेंगे, उसी दिन आपको स्वराज के दर्शन हो जाएँगे।… राष्ट्र की बुनियाद राष्ट्र की भाषा पर टिकी है।… भाषा ही वह बन्धन है, जो चिरकाल तक राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधे रहती है और उसका शीजरा बिखरने नहीं देती। +* भाषा बोलचाल की भी होती है और लिखने की भी। बोलचाल की भाषा तो मीर अम्मन और लल्लूलाल के जमाने में भी मौजू��� थी पर उन्हें जिस भाषा की दाग बेल डाली, वह लिखने की भाषा थी और वही साहित्य है। बोलचाल से हम अपने करीब के लोगों पर अपने विचार प्रकट करते हैं- अपने हर्ष-शोक के भावों का चित्र खींचते है। साहित्यकार वही काम लेखनी द्वारा करता है। हाँ उसके श्रोताओं की परिधि बहुत विस्तृत होती है और अगर उसके बयान में सच्चाई है, तो शताब्दियों और युगों तक उसकी रचनाएँ हृदयों को प्रभावित करती रहती है। +* भाषा साधन है, साध्य नहीं। अब हमारी भाषा ने वह रूप प्राप्त कर लिया है कि हम भाषा से आगे बढ़कर भाव की ओर ध्यान दें और इस पर विचार करें कि जिस उद्देश्य से यह निर्माण कार्य आरम्भ किया गया था, वह क्योंकर पूरा हो। वही भाषा, जिसमें आरम्भ में ‘बागोबहार’ और ‘बैताल-पचीसी’ की रचना ही सबसे बड़ी साहित्य सेवा थी अब इस योग्य हो गयी है कि उसमें शास्त्र और विज्ञान के प्रश्नों की भी विवेचना की जा सके और यह सम्मेलन इस सच्चाई की स्पष्ट स्वीकृति है। +प्रेमचन्द के बारे में उक्तियाँ +* वे (प्रेमचन्द) अपने काल में समस्त उत्तरी भारत के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार थे। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी +* वास्तव में तुलसीदास और भारतेंदु हरिश्चंद्र के बाद प्रेमचंद के समान सरल और जोरदार हिंदी किसी ने नहीं लिखी । आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी +* दुनिया की सारी जटिलताओं को समझ सकने के कारण ही वे निरीह थे, सरल थे। धार्मिक ढकोसलों को वे ढोंग समझते थे, पर मनुष्य को वे सबसे बड़ी वस्तु समझते थे। उन्होंने ईश्वर पर कभी विश्वास नहीं किया फिर भी इस युग के साहित्यकारों में मानव की सद्वृत्तियों में जैसा अडिग विश्वास प्रेमचंद का था वैसा शायद ही किसी और का हो। असल में यह नास्तिकता भी उनके दृढ़ विश्वास का कवच थी। वे बुद्धिवादी थे और मनुष्य की आनंदिनी वृत्ति पर पूरा विश्वास करते थे । आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी +* ऐसे थे प्रेमचंद जिन्होंने ढोंग को कभी बर्दाश्त नहीं किया, जिन्होंने समाज को सुधारने की बड़ी-बड़ी बातें सुझाई ही नहीं, स्वयं उन्हें व्यवहार में लाए, जो मनसावाचा एक थे, जिनका विनय आत्माभिमान का, संकोच महत्व का, निर्धनता निर्भीकता का, एकांतप्रियता विश्वासानुभूति का और निरीह भाव कठोर कर्तव्य का कवच था, जो समाजकी जटिलताओं की तह में जाकर उसकी टीमटाम और भभ्भड़पन का पर्दाफाश करने में आनंद पाते थे और जो दरिद्र किसान के अंदर आत्मबल का उद्घाटन करने को अपना श्रेष्ठ कर्तव्य समझते थे; जिन्हें कठिनाइयों से जूझने में मजा आता था और जो तरस खानेवाले पर दया की मुस्कुराहट बखेर देते थे, जो ढोंग करनेवाले को कसके व्यंग्य बाण मारते थे और निष्कपट मनुष्यों के चेरे को जाया करते थे। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी +* उनकी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने ग्रामीण जीवन को अपनी कहानी का मुख्य आधार बनाया था। लेकिन वे सारी कहानियाँ एक जैसी नहीं है। कथा की दृष्टि से उनकी प्रत्येक कहानी एक दूसरे से भिन्न है। उनमें पर्याप्त विभिन्नता है। डॉ. रामविलास शर्मा +* प्रेमचन्द भारतीय समाज के लिए सदा प्रासंगिक रहे हैं पर पिछले दिनों उनकी प्रासंगिकता और बढ़ गई है। हमारा समाज आगे बढ़ने के बदले पीछे जा रहा है। जिस पिछड़ेपन के विरुद्ध प्रेमचन्द ने संघर्ष किया था, वह विशेष रूप से हिन्दी प्रदेश में सघन हो गया है। आर्थिक स्तर पर जनता की गरीबी अपनी जगह है, राजनीतिक स्तर पर देश के विघटन की समस्या और तीव्र हो गयी है। सांस्कृतिक स्तर पर द्विज और शूद्र का भेद, हिन्दू और मुसलमान का भेद, और बढ़ा है। डॉ. रामविलास शर्मा +* यदि उनके उपन्यास हटा दिए जाएँ, तो वे बहुत अच्छे कहानीकार रह जाएँगें लेकिन विश्व-साहित्य में उनका स्थान उतना ऊँचा न रहेगा जितना इन उपन्यासों के बल पर आज है। डॉ. रामविलास शर्मा प्रेमचन्द और उनका युग' में +* उनकी काफी कहानियाँ ऐसी हैं जिनमें ग्रामीण कथाओं का रस और उनकी शैली अपनाई गई है। आमतौर से उनकी कहानियों में जो एक ठेठपन है, पाठक के हृदय में अपनी बात को सीधे उतार देने की जो ताकत है, वह उन्होंने हिन्दुस्तान के अक्षय ग्रामीण कथा-भण्डार से सीखी थी। यही कारण है कि किसानों और स्त्रियों में उनकी कहानियाँ तुरंत लोकप्रिय हुई। उनकी कहानियों में एक तरह का लोकरस है। कथा में कसाव है और शैली में व्यंग्यात्मकता है। डॉ. रामविलास शर्मा +* समाज के विभिन्न स्तरों का व्यापक ज्ञान संसार के बहुत कम साहित्यिकों में मिलेगा। प्रेमचन्द के विचार बहुत स्पष्ट नहीं थे, परन्तु उनमें कलाकार की सचाई की कमी न थी । आज के साहित्यिक के विचार बहुत कुछ स्पष्ट हो गए हैं; परन्तु उसके पास प्रेमचन्द का अनुभव नहीं, उनकी-सी सचाई भी कम है। प्रेमचन्द की कृतियों का हमारे लिए यह संदेश है कि हम जनता में जाकर रहें और काम करें- रचनाओं में 'जनता-जनत��' कम चिल्लाएँ। डॉ. रामविलास शर्मा +* प्रेमचन्द का मानवतावाद उन्नीसवीं सदी के अनेक साहित्यकारों के मानवतावाद से भिन्न था। वह टॉलस्टाय जैसे महान लेखकों के मानवतावाद से भी भिन्न थे। वह राजनीति और संस्कृति की समस्या को गरीब जनता के दृष्टिकोण से देखने- परखने और हल करने के आदी थे। डाॅ. रामविलास शर्मा +* यों तो एक हद तक प्रेमचन्द के साहित्य में यह भी दोष है कि उनके देहाती, निम्नवर्गीय पात्रों का चित्रण तो खरा और सर्वांगीण सच्चा है पर शिक्षित मध्यवर्गीय या उच्चवर्गीय पात्रों का चित्रण सतही और अविश्वास्य है। सच्चिदानन्द वात्स्यायन +* प्रेमचन्द ने सन् 1930 के आसपास एलानिया तौर पर कहा था कि वे जो कुछ लिख रहे हैं वह स्वराज के लिए, उपनिवेशवादी शासन से भारत को मुक्त कराने के लिए लिख रहे हैं। उन्होंने यह भी लिखा है कि केवल जॉन की जगह गोविन्द को बैठा देना ही स्वराज्य नहीं है, बल्कि सामाजिक स्वाधीनता भी होना चाहिए। सामाजिक स्वाधीनता से उनका तात्पर्य सम्प्रदायवाद, जातिवाद, छूआछूत से मुक्ति और स्त्रियों की स्वाधीनता से भी था। नामवर सिंह, प्रेमचन्द और भारतीय समाज, पृष्ट 15 +* उनका (प्रेमचन्द का) उद्देश्य सामयिकता व देश-काल की विशेषता से परे नहीं था, उनका साहित्य सामयिकता की सतह को छूने वाला साहित्य नहीं था, उसमें गहराई से डूबने वाला देश काल की विशेषताओं के परस्पर संबंध को चित्रित करने वाला साहित्य था। इसीलिए वह इतना सशक्त और प्रभावशाली है। डॉ रामविलास शर्मा +* यद्यपि लोग उन्हें गांधीवादी कहते हैं, लेकिन वे गांधी से दो कदम आगे बढ़कर आन्दोलन और क्रांति की बात करते हैं। प्रेमचन्द अपने जमाने के साहित्यकारों से ज्यादा बुनियादी परिवर्तन की बात करते हैं। नामवर सिंह +* जब गांधीजी ने भारत की राजनीति में प्रवेश किया और उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में गाँवों की करोड़ों जनता का भाग लेने के लिए आह्वान किया। प्रेमचन्द पहले साहित्यकार हैं जिन्होंने भारत की इस नई राष्ट्रीय चेतना को अपने साहित्य में वाणी दी। नामवर सिंह, प्रेमचन्द और भारतीय समाज, पृष्ट 19 पर +* अपने उदारवादी नजरिए के बावजूद वह (प्रेमचन्द) हृदय से हिंदू रहे और वह अपनी वैचारगी में मुस्लिमों को नजरअंदाज करते रहे। गीतांजलि पांडे + + +* जब हम खड़े हों, तब आज़ाद हिन्द फौज को एक ग्रेनाइट की दीवार के समान होना होगा; जब हम आगे बढ़ें, तब आज़ाद हिन्द फौज को एक स्ट्रीमरोलर के समान होना होगा। +* याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना हैं । +* एक सच्चे सैनिक को सैन्य और अध्यात्मिक दोनों प्रशिक्षण की जरुरत होती हैं । +* इतिहास में कभी भी विचार-विमर्श से कोई ठोस परवर्तन नहीं हासिल किया गया हैं । +* राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों सत्यम, शिवम्, सुन्दरम् से प्रेरित हैं। +* मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्याएं गरीबी,अशिक्षा, बीमारी, कुशल उत्पादन एवं वितरण सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है। +* किसी एक विचार के लिए यदि कोई मरता है तो वह विचार उसके मरने के बाद भी हजारों लोगों में जीवित रहती है। +* आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके. +* एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है। +* अगर संघर्ष न रहे, किसी भी भय का सामना न करना पड़े, तब जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है। +* याद रखें – अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है। +* मैंने जीवन में कभी भी खुशामद नहीं की है। दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें करना मुझे नहीं आता। +* कष्टों का, निसंदेह एक आंतरिक नैतिक मूल्य होता है। +* मुझे यह नहीं मालूम कि स्वतंत्रता के इस युद्ध में हम में से कौन कौन जीवित बचेंगे। परन्तु मैं यह जानता हूँ कि अंत में विजय हमारी ही होगी। +* ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए। +* मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्याओं जैसे गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही किया जा सकता है। +* व्यर्थ की बातों में समय खोना मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता। +* आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए – मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके। एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके। +* राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है। +* भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी सृजनात्मक श��्ति का संचार किया है जो सदियों से लोगों के अन्दर सुसुप्त पड़ी थी। +* यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े, तब वीरों की भांति झुकना। +* समझौतापरस्ती सबसे बड़ी अपवित्र वस्तु है। +* जीवन में प्रगति का आशय यह है कि शंका संदेह उठते रहें और उनके समाधान के प्रयास का क्रम चलता रहे। +* हम संघर्षों और उनके समाधानों द्वारा ही आगे बढ़ते हैं। +* श्रद्धा की कमी ही सारे कष्टों और दुखों की जड़ है। +* मैं संकट एवं विपदाओं से भयभीत नहीं होता। संकटपूर्ण दिन आने पर भी मैं भागूँगा नहीं, वरन आगे बढकर कष्टों को सहन करूँगा। +* इतना तो आप भी मानेंगे कि एक न एक दिन तो मैं जेल से अवश्य मुक्त हो जाऊँगा, क्योंकि प्रत्येक दुःख का अंत होना अवश्यम्भावी है। +* हमें अधीर नहीं होना चहिये। न ही यह आशा करनी चाहिए कि जिस प्रश्न का उत्तर खोजने में न जाने कितने ही लोगों ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया, उसका उत्तर हमें एक-दो दिन में प्राप्त हो जाएगा। +* जहाँ शहद का अभाव हो वहां गुड़ से ही शहद का कार्य निकालना चाहिए। +* असफलताएं कभी-कभी सफलता की स्तम्भ होती हैं। +* सुबह से पहले अँधेरी घडी अवश्य आती है। बहादुर बनो और संघर्ष जारी रखो ,क्योंकि स्वतंत्रता निकट है। +* समय से पूर्व की परिपक्वता अच्छी नहीं होती, चाहे वह किसी वृक्ष की हो, या व्यक्ति की। उसकी हानि आगे चल कर भुगतनी ही होती है। +* साथियों! आपने स्वेच्छा से उस मिशन को स्वीकार किया है, जो उतना महान है, जिसकी मानव ह्रदय कल्पना भी नहीं कर सकता है। ऐसे मिशन की पूर्ति के लिए कोई भी बलिदान बहुत महान नहीं होता है, किसी के जीवन का बलिदान भी नहीं। आप आज भारत के राष्ट्रीय सम्मान के संरक्षक और भारत की आशाओं एवं आकांक्षाओं के प्रतीक हैं। इसलिए ऐसे पेश आओ कि आपके देशवासी आपको आशीर्वाद दे सकें और आप पर गर्व कर सके। +* अपने कॉलेज जीवन की देहलीज पर खड़े होकर मुझे अनुभव हुआ, कि जीवन का कोई अर्थ और उद्देश्य है। +* स्वामी विवेकानंद का यह कथन बिलकुल सत्य है, यदि तुम्हारे पास लोह शिराएं हैं और कुशाग्र बुद्धि है, तो तुम सारे विश्व को अपने चरणों में झुका सकते हो। +* मुझे जीवन में एक निश्चित लक्ष्य को पूरा करना है। मेरा जन्म उसी के लिए हुआ है। मुझे नैतिक विचारों की धारा में नहीं बहना है। +* निसंदेह बचपन और युवावस्था में पवित्रता और संयम अतिआवश्यक है। +* मेरे जीवन के अनुभवों में एक यह भी ह�� कि मुझे यह आशा है कि कोई-न-कोई किरण उबार लेती है और जीवन से दूर भटकने नहीं देती। +* चरित्र निर्माण ही छात्रों का मुख्य कर्तव्य है। +* हमें केवल कार्य करने का अधिकार है। कर्म ही हमारा कर्तव्य है। कर्म के फल का स्वामी वह (भगवान) है, हम नहीं। +* कर्म के बंधन को तोडना बहुत कठिन कार्य है। +* मैंने अपने छोटे से जीवन का बहुत सारा समय व्यर्थ में ही खो दिया है। +* माँ का प्यार सबसे गहरा होता है, स्वार्थ रहित होता है। इसको किसी भी प्रकार नापा नहीं जा सकता। +* जिस व्यक्ति में सनक नहीं होती, वह कभी भी महान नहीं बन सकता। परन्तु सभी पागल व्यक्ति महान नहीं बन जाते क्योंकि सभी पागल व्यक्ति प्रतिभाशाली नहीं होते। आखिर क्यों कारण यह है कि केवल पागलपन ही काफी नहीं है। इसके अतिरिक्त कुछ और भी आवश्यक है। +* भावना के बिना चिंतन असंभव है। यदि हमारे पास केवल भावना की पूंजी है तो चिंतन कभी भी फलदायक नहीं हो सकता। बहुत सारे लोग आवश्यकता से अधिक भावुक होते हैं। परन्तु वह कुछ सोचना नहीं चाहते। +* एक सैनिक के रूप में आपको हमेशा तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा – निष्ठा, कर्तव्य और बलिदान। जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रति वफादार रहता है, जो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने को तैयार रहता है, वो अजेय है। अगर तुम भी अजेय बनना चाहते हो तो इन तीन आदर्शों को अपने ह्रदय में समाहित कर लो। +* एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है। +* परीक्षा का समय निकट देख कर हम बहुत घबराते हैं। लेकिन एक बार भी यह नहीं सोचते कि जीवन का प्रत्येक पल परीक्षा का है। यह परीक्षा ईश्वर और धर्म के प्रति है। स्कूल की परीक्षा तो दो दिन की है, परन्तु जीवन की परीक्षा तो अनंत काल के लिए देनी होगी। उसका फल हमें जन्म-जन्मान्तर तक भोगना पड़ेगा। +* अच्छे विचारों से कमजोरियां दूर होती हैं, हमें हमेशा अपनी आत्मा को उच्च विचारों से प्रेरित करते रहना चाहिए। +* सफल होने के लिए आपको अकेले चलना होगा। लोग तो तब आपके साथ आते हैं जब आप सफल हो जाते हैं। +* एक व्यक्ति एक विचार के लिए मर सकता है, लेकिन वह विचार उसकी मृत्यु के बाद, एक हजार व्यक्तियों के जीवन में खुद को अवतार ले लेता है। +* इतिहास के इस अभूतपूर्व मोड़ पर मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि अपनी अस्थायी हार से निराश न हों, हंसमुख और आशावादी बनें। इन सबसे बढ़कर, भारत के भाग्य में अपना विश्वास कभी ना खोयें। पृथ्वी पर ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो भारत को बंधन में रख सके। भारत आजाद होगा और वह भी जल्द ही। जय हिंद। +* राजनीतिक सौदेबाजी की कूटनीति यह है कि आप जो भी हैं, उससे ज्यादा शक्तिशाली दिखें। +* केवल पूर्ण राष्ट्रवाद, पूर्ण न्याय और निष्पक्षता के आधार पर ही भारतीय सेना का निर्माण किया जा सकता है। +* केवल रक्त ही आज़ादी की कीमत चुका सकता है। +* शाश्वत नियम याद रखें यदि आप कुछ पाना चाहते हैं, तो आपको कुछ देना होगा। +* एक ऐसी सेना, जिसके पास साहस, निर्भयता और अजेयता की कोई परंपरा नहीं है, वह एक शक्तिशाली दुश्मन के साथ संघर्ष में अपनी खुद की पकड़ नहीं बना सकती। इसलिए स्वतंत्रता के इस युद्ध के दौरान आपको अनुभव प्राप्त करना होगा और सफलता प्राप्त करनी होगी। यह अनुभव और सफलता ही हमारी सेना के लिए एक राष्ट्रीय परंपरा का निर्माण कर सकते हैं। +* उन कार्यों के लिए अपनी कमर कस लें, जो सामने हैं। मैंने आपसे पुरुष, धन और सामग्री के लिए कहा था। मैंने उन्हें बहुतायत में पा लिया है। अब मैं आपसे और मांग करता हूँ। पुरुष, धन और सामग्री स्वयं जीत या स्वतंत्रता नहीं ला सकती है। हमारे पास उद्देश्य को पूर्ण करने की शक्ति होनी चाहिए, जो हमें बहादुरी के कार्यों और वीरतापूर्ण कारनामों के लिए प्रेरित करे। +* भारत पुकार रहा है, रक्त रक्त को पुकार रहा है। उठो, हमारे पास व्यर्थ के लिए समय नहीं है। अपने हथियार उठा लो, हम अपने दुश्मनों के माध्यम से ही अपना मार्ग बना लेंगे या अगर भगवान की इच्छा रही, तो हम एक शहीद की मौत मरेंगे। +* दिल्ली की सड़क स्वतंत्रता की सड़क है। दिल्ली चलो। +* मुझे आपको याद दिलाना है कि आपको दो गुना कार्य करने हैं। हथियारों के बल और अपने खून की कीमत पर आपको स्वतंत्रता हासिल करनी होगी। फिर, जब भारत स्वतंत्र होगा, तो आपको स्वतंत्र भारत की स्थायी सेना को संगठित करना होगा। जिसका कार्य हर समय अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखना होगा। हमें अपनी राष्ट्रीय रक्षा ऐसी अटल नींव पर बनानी होगी, ताकि हम इतिहास में फिर कभी अपनी स्वतंत्रता न खोयें। +* ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं. हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए। +* आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके। एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके। +* मुझे यह नहीं मालूम की स्वतंत्रता के इस युद्ध में हममे से कौन कौन जीवित बचेंगे। परन्तु में यह जानता हूँ ,अंत में विजय हमारी ही होगी। +* राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है । +* भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी सृजनात्मक शक्ति का संचार किया है जो सदियों से लोगों के अन्दर से सुसुप्त पड़ी थी । +* मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्यायों जैसे गरीबी ,अशिक्षा बीमारी कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है । +* यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े तब वीरों की भांति झुकना। +* मध्या भावे गुडं दद्यात अर्थात जहाँ शहद का अभाव हो वहां गुड से ही शहद का कार्य निकालना चाहिए। +* कष्टों का निसंदेह एक आंतरिक नैतिक मूल्य होता है। +* जीवन में प्रगति का आशय यह है की शंका संदेह उठते रहें और उनके समाधान के प्रयास का क्रम चलता रहे। +* हम संघर्षों और उनके समाधानों द्वारा ही आगे बढ़ते हैं। +* हमारी राह भले ही भयानक और पथरीली हो ,हमारी यात्रा चाहे कितनी भी कष्टदायक हो फिर भी हमें आगे बढ़ना ही है। सफलता का दिन दूर हो सकता है ,पर उसका आना अनिवार्य है। +* श्रद्धा की कमी ही सारे कष्टों और दुखों की जड़ है। +* अगर संघर्ष न रहे ,किसी भी भय का सामना न करना पड़े ,तब जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है। +* मैं संकट एवं विपदाओं से भयभीत नहीं होता। संकटपूर्ण दिन आने पर भी मैं भागूँगा नहीं वरन आगे बढकर कष्टों को सहन करूँगा। +* असफलताएं कभी कभी सफलता की स्तम्भ होती हैं। +* सुबह से पहले अँधेरी घडी अवश्य आती है। बहादुर बनो और संघर्ष जारी रखो ,क्योंकि स्वतंत्रता निकट है।। +* समय से पूर्व की परिपक्वता अच्छी नहीं होती ,चाहे वह किसी वृक्ष की हो ,या व्यक्ति की और उसकी हानि आगे चल कर भुगतनी ही होती है। +* अपने कॉलेज जीवन की देहलीज पर खड़े होकर मुझे अनुभव हुआ ,जीवन का कोई अर्थ और उद्देश्य है। +* निसंदेह बचपन और युवावस्था में पवित्रता और संयम अति आवश्यक है। +* में जीवन की अनिश्चितता से जरा भी नहीं घबराता। +* मैंने अमूल्य जीवन का इतना समय व्यर्थ ही नष्ट कर दिया। यह सोच कर बहुत ही दुःख होता है। कभी कभी यह पीड़ा असह्य हो उठती है। मनुष्य जीवन पाकर भी जीवन का अर्थ समझ में नहीं आया। यदि मैं अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाया ,तो यह जीवन व्यर्थ है। इसकी क्या सार्थकता है ?। +* परीक्षा का समय निकट देख कर हम बहुत घबराते हैं। लेकिन एक बार भी यह नहीं सोचते की जीवन का प्रत्येक पल परीक्षा का है। यह परीक्षा ईश्वर और धर्म के प्रति है। स्कूल की परीक्षा तो दो दिन की है ,परन्तु जीवन की परीक्षा तो अनंत काल के लिए देनी होगी। उसका फल हमें जन्म-जन्मान्तर तक भोगना पड़ेगा। +* मुझे जीवन में एक निश्चित लक्ष्य को पूरा करना है। मेरा जन्म उसी के लिए हुआ है। मुझे नेतिक विचारों की धारा में नहीं बहना है।। +* मैंने जीवन में कभी भी खुशामद नहीं की है। दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें करना मुझे नहीं आता। +* चरित्र निर्माण ही छात्रों का मुख्य कर्तव्य है। +* हमें केवल कार्य करने का अधिकार है। कर्म ही हमारा कर्तव्य है। कर्म के फल का स्वामी वह (भगवान है ,हम नहीं। +* कर्म के बंधन को तोडना बहुत कठिन कार्य है। +* व्यर्थ की बातों में समय खोना मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता। +* मैंने अपने छोटे से जीवन का बहुत सारा समय व्यर्थ में ही खो दिया है। +* माँ का प्यार सबसे गहरा होता है। स्वार्थ रहित होता है। इसको किसी भी प्रकार नापा नहीं जा सकता। +* जिस व्यक्ति में सनक नहीं होती ,वह कभी भी महान नहीं बन सकता। परन्तु सभी पागल व्यक्ति महान नहीं बन जाते। क्योंकि सभी पागल व्यक्ति प्रतिभाशाली नहीं होते। आखिर क्यों कारण यह है की केवल पागलपन ही काफी नहीं है। इसके अतिरिक्त कुछ और भी आवश्यक है। +* भावना के बिना चिंतन असंभव है। यदि हमारे पास केवल भावना की पूंजी है तो चिंतन कभी भी फलदायक नहीं हो सकता। बहुत सारे लोग आवश्यकता से अधिक भावुक होते हैं। परन्तु वह कुछ सोचना नहीं चाहते। +* हमें अधीर नहीं होना चहिये। न ही यह आशा करनी चाहिए की जिस प्रश्न का उत्तर खोजने में न जाने कितने ही लोगों ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ,उसका उत्तर हमें एक-दो दिन में प्राप्त हो जाएगा। +* एक सैनिक के रूप में आपको हमेशा तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा निष्ठा कर्तव्य और बलिदान। जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रति वफादार रहता है, जो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने को तैयार रहता है, वो अजेय है. अगर तुम भी अजेय बनना चाहते हो तो इन तीन आदर्शों को अपने ह्रदय में समाहित कर लो। +* याद रखें अन्याय सहना और गलत के सा��� समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है। +* एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है। +* स्वामी विवेकानंद का यह कथन बिलकुल सत्य है ,यदि तुम्हारे पास लोह शिराएं हैं और कुशाग्र बुद्धि है ,तो तुम सारे विश्व को अपने चरणों में झुक सकते हो। +==सुभाष चन्द्र बोस के बारे में मंतव्य== +: स्वतंत्रता का यज्ञ रक्त की समिधा से होता है, भिक्षा या सत्याग्रह से नहीं। ये बताने वाले आज़ाद हिन्द के निर्माता सुभाषचन्द्र की जय हो +*"सुभाष चन्द्र बोस राष्ट्रभक्तों के राजा हैं…." +नेताजी सुभाष भारत को एक स्वाधीन व गौरवशाली देश बनने के लिए प्रेरणा दी थी । भारत की धरती पर स्वाधीन सरकार बनाने वाले वे पहले व्यक्ति थे ।" +*"नेताजी कटक के धरती पुत्र हैं । कटक भूमि उनके प्राण में सेवा, संघर्ष और त्याग का मंत्र जागृत की।" + + +:वरना कितने ही यहाँ रोज फना होते हैं। +इलाहाबाद स्थित नैनी जेल के फाँसी घर के सामने ठाकुर साहब की आवक्ष प्रतिमा के नीचे अंकित। +[[श्रेणी:भारतीय स्वतंत्रता का क्रांतिकारी आन्दोलन]] + + +यह पुराना मूल सांचा है। + + +* कैसा होता यदि हम संसार के सभी लोगों से अपने-अपने ज्ञान को एक स्थान पर लिखवा सकते। जिमी वेल्स +* इतिहास विजेताओं द्वारा लिखा जाता है, केवल विकिपिडिया को छोड़कर। एलन मस्क +* विकिपिडिया लेख एक प्रक्रिया है, उत्पाद नहीं। क्ले शिर्की (Clay Shirky) + + +: समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो पवित्र भूभाग स्थित है, उसका नाम भारतवर्ष है, जहाँ भरत के संतति निवास करते हैं । +: देवता गीत गाते हैं कि स्वर्ग और अपवर्ग की मार्गभूत भारत भूमि के भाग में जन्मे लोग देवताओं की अपेक्षा भी अधिक धन्य हैं। अर्थात् स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष-कैवल्य) के मार्ग स्वरूप भारत-भूमि को धन्य धन्य कहते हुए देवगण इसका शौर्य-गान गाते हैं। यहां पर मनुश्य जन्म पाना देवत्व पद प्राप्त करने से भी बढकर है। +: ऋषभ का जन्म मरुदेवी से हुआ, ऋषभ से भरत हुए, भरत से भारतवर्ष और भारतवर्ष से सुमति हुए। +: इसके बाद भारतवर्ष (की चर्चा करते हैं)। सभी लोकों में इसकी प्रशांशा के गीत गाये जाते हैं। पिता इसे (पुत्र) भरत को देकर वन में रहने के लिये चले गये। +: पुराने काल में, इस देश भारत में जन्में लोगों के सामीप्य द्वारा साथ रहकर पृथ्वी के सब लोगों ने अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ली । +: व��विध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात॥ भारतेंदु हरिश्चंद्र]] +: फैला मनोहर गिरी हिमालय और गंगाजल जहाँ । +: सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है, +: उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन भारत वर्ष है॥१५॥ +: हाँ, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है, +: ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है ? +: भगवान की भव-भूतियों का यह प्रथम भण्डार है, +: विधि ने किया नर-सृष्टि का पहले यहीं विस्तार है॥१६॥ +: यह पुण्य भूमि प्रसिद्ध है, इसके निवासी 'आर्य्य' हैं; +: विद्या, कला-कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य्य हैं । +: हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥ +: हरा-भरा यह देश बना कर विधि ने रवि का मुकुट दिया, +: पाकर प्रथम प्रकाश जगत ने इसका ही अनुसरण किया। +: लेखा श्रेष्ट इसे शिष्टों ने, दुष्टों ने देखा दुर्द्धर्ष! +: हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥ मैथिलीशरण गुप्त मंगलघट पुस्तक के 'भारतवर्ष' शीर्षक से +*भारत वस्तुतः विश्व पुरुष की कुंडलिनी शक्ति है। जब भारत जागृत होगा तो विश्व पुरुष का दिवता में रूपान्तरण हो जाएगा। अगर भारत सो गया न जागा तो विश्व-मानवता ही समाप्त हो जाएगी। श्री अरविन्द +* मैं भौगोलिक मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता हूँ। मेरा भरत जड़ भारत नहीं है अपितु वह ज्ञानलोक है जिसका आविर्भाव ऋषियों की आत्मा में हुवा है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] +* अगर कोई देश है जो मानवता के लिए पूर्ण और आदर्श है, तो एशिया की ओर ऊँगली उठाऊंगा जहाँ भारत है। मैक्समूलर]] +* यदि मुझसे पूछा जाये कि किस आकाश के नीचे मानवीय मस्तिष्क ने अपने कुछ चुनिन्दा उपहारों को विकसित किया है, जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर गहन विचार किया है और उनके हल निकाले है, तो मैं भारत की तरफ़ इशारा करूँगा। मैक्स मूलर +* भारत मानवता का पलना है। इसके ऊंचे हिमालय से ज्ञान-विज्ञानं की सरिताएँ निकली हैं। सृष्टि की उषा में इसका आंगन ज्ञान से आलोकित हुवा था। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि भारत का अतीत मेरी मातृभूमि के भविष्य में बदल जाए। जैको लाइट ने बाइबिल इन इण्डिया में +भारत हमारी सम्पूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है। भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है, अरबों के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है, बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है, ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है। अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है। +भारत हमें एक परिपक्व मन की सहिष्णुता और नम्रता, भावनाओं को समझान और समेकक करना और सभी मनुष्यों को प्रेम से संतुष्ट करना सिखाएगा। +जब यूरोप के लोग भरतीय दर्शन के सम्पर्क में आयेंगे तो उनके विचार और आस्थाएँ बदलेंगी। वे बदले हुवे लोग यूरोप के विचारों और विश्वास को प्रभावित करेंगे। आगे चलकर यूरोप में ही ईसाई-धर्म को संकट उत्पन्न हो जाएगा। +भारत मानव जाति का पलना है मानव-भाषा की जन्मस्थली है इतिहास की जननी है पौराणिक कथाओं की दादी है, और प्रथाओं की परदादी है। मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है। +यदि इस धरातल पर कोई स्थान है जहाँ पर जीवित मानव के सभी स्वप्नों को तब से घर मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था तो वह भारत ही है। +भारत अपनी सीमा के पार एक भी सैनिक भेजे बिना चीन को जीत लिया और लगभग बीस शताब्दियों तक उस पर सांस्कृतिक रूप से राज किया। +;— हू शिह अमेरिका में चीन के भूतपूर्व राजदूत +वेदों से हम सर्जरी, चिकित्सा, संगीत, घर बनाना, जिसमे यंत्रीकृत कला शामिल है, की व्यवहारिक कला सीखते हैं। वे जीवन के हर एक पहलू संस्कृति, धर्म, विज्ञान, नैतिकता, कानून, ब्रह्माण्ड विज्ञान और मौसम विज्ञान के विश्वकोश हैं। +एक अरब वर्ष पुराने जीवाश्म साबित करते हैं की जीवन की शुरुआत भारत में हुई थी। +कुछ सन्दर्भों में प्राचीन भारत की न्यायिक प्रणाली सैद्धान्तिक रूप से हमारी आज की न्यायिक प्रणाली से उन्नत थी। + + +**हे सर्वसमर्थ प्रभु, सेवक के क्लेशों को हरनेवाले! मैं इस महाघोर शोक की अग्नि द्वारा तपाया जा रहा हूँ, निरासार संसार-सागर में गिर रहा हूँ, अनाथ और जड़ हूँ, और मोह के पाश से बँधा हूँ, मेरी रक्षा करें। + + +* उस सर्वव्यापक ईश्वर को योग द्वारा जान लेने पर हृदय की अविद्यारुपी गांठ कट जाती है, सभी प्रकार के संशय दूर हो जाते हैं और भविष्य में किये जा सकने वाले पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं, अर्थात ईश्वर को जान लेने पर व्यक्ति भविष्य में पाप नहीं करता। +* वेदों मे वर्णित सार का पान करने वाले ही ये जान सकते हैं कि 'जीवन' का मूल बिन्दु क्या है। +* ये 'शरीर नश्वर' है, हमे इस शरीर के माध्यम से केवल एक मौका मिला है, खुद को साबित कर���े का कि मनुष्यता' और 'आत्मविवेक' क्या है। +* क्रोध का भोजन 'विवेक' है, अतः इससे बचके रहना चाहिए। क्योंकि 'विवेक' नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है। +* अहंकार' एक मनुष्य के अन्दर वो स्थित लाती है, जब वह 'आत्मबल' और 'आत्मज्ञान' को खो देता है। +मानव' जीवन मे 'तृष्णा' और 'लालसा' है, और ये दुःख के मूल कारण है । +काम' मनुष्य के 'विवेक' को भरमा कर उसे पतन के मार्ग पर ले जाता है। +* ईष्या से मनुष्य को हमेशा दूर रहना चाहिए। क्योकि ये 'मनुष्य' को अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथ भ्रष्ट कर देती है। +* मद 'मनुष्य की वो स्थिति या दिशा' है, जिसमे वह अपने 'मूल कर्तव्य' से भटक कर 'विनाश' की ओर चला जाता है। +* संस्कार ही 'मानव' के 'आचरण' का नीव होता है, जितने गहरे 'संस्कार' होते हैं, उतना ही 'अडिग' मनुष्य अपने 'कर्तव्य' पर, अपने 'धर्म' पर सत्य' पर और 'न्याय' पर होता है। +* यश और 'कीर्ति' ऐसी 'विभूतियाँ' है, जो मनुष्य को 'संसार' के माया जाल से निकलने मे सबसे बड़े 'अवरोधक' हैं। +* मनुष्य की 'विद्या उसका अस्त्र धर्म उसका रथ सत्य उसका सारथी' और 'भक्ति रथ के घोड़े हैं। +* इस 'नश्वर शरीर' से 'प्रेम' करने के बजाय हमे 'परमेश्वर' से प्रेम करना चाहिए सत्य और धर्म, से प्रेम करना चाहिए; क्योंकि ये 'नश्वर' नही है। +* जिसने गर्व किया, उसका पतन अवश्य हुआ है। +* वेद सभी सत्य विधाओं कि किताब है, वेदों को पढना-पढाना, सुनना-सुनाना सभी आर्यों का परम धर्म है। +* मानव जीवन में लोगों के दुखों का मूल कारण ‘तृष्णा’ और ‘लालसा’ होती है। +* अगर किसी इंसान के मन में शांति है, ध्यान में प्रसन्नता है और हृदय में खुशी है, तो अवश्य ही यह उसके अच्छे कर्मो का फल है। +* अगर आप इस दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ देते है तो यकीन मानिये आपके पास भी सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा। +* किसी भी कार्य को करने से पहले सोचना अक्लमंदी होती है और काम को करते हुए सोचना सावधानी कहलाती है, लेकिन काम को करने के बाद सोचना मूर्खता कहलाती है। +* इंसान को किसी से भी ईर्ष्या नही करनी चाहिए, क्योंकि ईर्ष्या इंसान को अंदर ही अंदर जलाती रहती है, और पथ से भटकाकर पथ को भ्रष्ट कर देती है। +* निर्बल इंसानों पर दया करना और उनको क्षमा करना ही मनुष्य का निजी गुण होता है। +* नुकसान की भरपाई करने में सबसे जरूरी चीज है उस नुकसान से कुछ सबक लेना, तभी आप सही मायने में विजेता बन सकते है। +* पैसा एक वस्तु है, जो ईमानद��री और न्याय से कमाया जाता है, वहीं इसके विपरित अधर्म का खजाना होता है। +* मानव शरीर नश्वर है, इस शरीर के जरिए आपको एक मौका मिला है खुद को साबित करने का, की मनुष्यता और आत्मविवेक क्या होता है। +* अहंकार इंसान की वह स्थिति है, जिसमें वह अपने मूल कर्तव्यों को भूलकर विनाश की ओर चला जाता है। +* आपको अपने नश्वर शरीर से प्रेम करने की बजाय ईश्वर से प्रेम करना चाहिए, सत्य और धर्म से प्रेम करना चाहिए, क्योंकि ये नश्वर नही है। +* जिस व्यक्ति ने अपने ऊपर गर्व किया है, उसका पतन निश्चित हुआ है। +* क्रोध का भोजन विवेक होता है, इसलिए इससे बचके रहना चाहिए, क्योंकि विवेक नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है। +* मोह करना जाल की तरह होता है, इसमें जो फंस गया वह पूरी तरह से उलझ जाता है। +वह लोग जो दूसरों के लिए अच्छा करते है वह कभी भी आत्म सम्मान और दुरूपयोग के बारे में नही सोचते है। +* अगर किसी व्यक्ति पर हमेशा ऊँगली उठाई जाती है तो वह व्यक्ति भावनात्मक रूप से ज्यादा समय तक खड़ा नही रह सकता है। +* वह मनुष्य सबसे अच्छा और अक्लमंद है जो हमेशा सत्य बोलता है, धर्म के अनुसार काम करता है और दूसरों को उत्तम और प्रसन्न बनाने का प्रयास करता है। +* लोभ कभी समाप्त न होने वाला रोग होता है। +* आर्य समाज की स्थापना करने का मुख्य उद्देश्य संसार के लोगों का उपकार (भला) करना है। +* जो ताकतवर होकर कमजोर लोगों की मदद करता है, वही वास्तविक मनुष्य कहलाता है, ताकत के अहंकार में कमजोर का शोषण करने वाला तो पशु की श्रेणी में आता है। +* सबसे श्रेष्ठ किस्म की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में भी असमर्थ हो। +* आत्मा अपने स्वरुप में एक है, लेकिन उसके अस्तित्व अनेक है। +* लोगों को कभी भी तस्वीरों की पूजा पाठ नही करनी चाहिए, मानसिक अन्धकार का फैलाव मूर्ति पूजा के प्रचलन की वजह से है। +* वर्तमान जीवन का कार्य अन्धविश्वास पर पूर्ण विश्वास से अधिक महत्त्वपूर्ण है। +* मनुष्यों के भीतर संवेदना है, इसलिए अगर वो उन तक नही पहुंचता जिन्हें देखभाल की ज़रुरत है तो वो प्राकृतिक व्यवस्था का उल्लंघन करता है। +* आप दूसरों को इसलिए बदलना चाहते है ताकि आप खुद स्वतंत्र रह सकें, लेकिन ये कभी ऐसे काम नही करता, इसलिए दूसरों को स्वीकार करिए, तभी आप मुक्त हो सकते है। +* भारतवर्ष में असंख्य जातिभेद के स्थान पर केवल चार वर्ण रहें। ये जातिभेद भी गुण-कर्म के द्वारा निश्चित हों, जन्म से नहीं। वेद के अधिकार से कोई भी वर्ण वंचित न हो। +स्वामी दयानन्द के योगदान के बारे में महापुरुषों के विचार +* डॉ॰ भगवान दास ने कहा था कि स्वामी दयानन्द हिन्दू पुनर्जागरण के मुख्य निर्माता थे। +* श्रीमती एनी बेसेन्ट का कहना था कि स्वामी दयानन्द पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 'आर्यावर्त (भारत) आर्यावर्तियों (भारतीयों) के लिए' की घोषणा की। +* फ्रेञ्च लेखक रोमां रोलां के अनुसार स्वामी दयानन्द राष्ट्रीय भावना और जन-जागृति को क्रियात्मक रूप देने में प्रयत्नशील थे। +* अन्य फ्रेञ्च लेखक रिचर्ड का कहना था कि ऋषि दयानन्द का प्रादुर्भाव लोगों को कारागार से मुक्त कराने और जाति बन्धन तोड़ने के लिए हुआ था। उनका आदर्श है आर्यावर्त उठ, जाग, आगे बढ़। समय आ गया है, नये युग में प्रवेश कर। +* नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने "आधुनिक भारत का आद्यनिर्माता" माना। +लाला लाजपत राय ने कहा स्वामी दयानन्द मेरे  गुरु हैं। उन्होंने हमे स्वतंत्र विचारना, बोलना और कर्त्तव्यपालन करना सिखाया। + + +* वे खुद को समझते क्या हैं? मैं केवल प्रधानमंत्री को जवाब देती हुँ और वे भी इतने समझदार है की मुझसे ज़्यादा सवाल नहीं करते। तुमने कभी इस तरह के बेवकुफ़ और डरपोक सुवरों का झुंड देखा है? उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं की हम क्या करते है, उन्हें परवाह है तो इस बात की हम कहीं काम करते वक्त पकडे ना जाएं। भला बॉण्ड इतना बेवकुफ़ कैसे हो सकता है? मैने उसे डबल-ओ का दर्जा दिया और उसने दुतावास उडा कर उसका जश्न मनाया! और भला वह है कहां? पुराने दिनों में अगर कोई ऐजंट बेवकुफ़ी करता तो उसमें इतनी समझ होती की वह अपना इस्तिफ़ा दे दे। हे ईश्वर, मैं शित युद्ध को कितना मिस करती हुँ। +ड्रायडेन बॉण्ड पर बन्दुक तानते हुए शरम की बात है। हम एक दुसरे को पहचान नहीं पाएं। +ड्रायडेन ट्रिगर दबाता है पर कुछ नहीं होता +बॉण्ड वैसे भी डबल-ओ की ज़िंदगी काफ़ी छोटी होती है, आपकी गलती ज़्यादा दिन रही रहेगी। +वेस्पर लैंड बॉण्ड, उम्मिद करती हुँ की हम दोनो एक दुसरे को अच्छे से समझते है। +बॉण्ड ताश में हार कर आता है +फोन की घंटी बजती है है +फ़ोन पर आवाज़ क्या मैं मिस्टर वाइट से बात कर सकता हुँ? +वाइट को पैर पर गोली लगती है और वह रेंगते हुए घर की सिढियों तक जाता है। तभी बॉण्ड हात में बन्दुक लिए उसके साम���े आता है +बॉण्ड नाम है बॉण्ड जेम्स बॉण्ड। + + +* डॉन के दुश्मन को हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए की डॉन कभी कुछ नहीं भूलता। +* ताकत एक नशा है, और मैं उस नशा बनाने वाली फैक्ट्री का इकलौता मालिक हूँ। +* डॉन आदमी का नाम भूल सकता है लेकिन यह नहीं भूलेगा की उसे दफनाया कहां था। +* डॉन के दुश्मन, डॉन के हाथों मरने के लिए ही पैदा होते है। +* डॉन के दुश्मन की सबसे बड़ी गलती यह है कि वह डॉन का दुश्मन है। +* डॉन का इंतज़ार तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस कर रही है मगर डॉन को पकड़ना मुश्किल नहीं नामुमकिन है। +* डॉन के दुश्मन जब अपनी पहली चाल चलते हैं, तब तक डॉन अपनी दूसरी चाल चल चूका होता है.. +* तख़्त की परवाह बादशाह से ज़्यादा उसके वज़ीर को होती है। +आईशा (लारा दत्ता डी ज़ी बी का वाइस-प्रेज़िडेंट इन्डियन है? + + +1. नाक में दम करना-(बहुत तंग करना आतंकवादियों ने सरकार की नाक में दम कर रखा है। +5. नाक कटना-(प्रतिष्ठा नष्ट होना अरे भैया आजकल की औलाद तो खानदान की नाक काटकर रख देती + + +कोई भी विकि पर पंजीकृत होकर सदस्य बन सकता है। इसके अलावा कोई भी बिना खाता निर्माण के भी अपना योगदान दे सकता है। + + +* गरीबी बहुआयामी है। यह हमारी कमाई के अलावा स्वास्थ, राजनीतिक भागीदारी, और हमारी संस्कृति और सामाजिक संगठन की उन्नति पर भी असर डालती है। +* भारत में भारी जन भावना थी कि पाकिस्तान के साथ तब तक कोई सार्थक बातचीत नहीं हो सकती जब तक कि वो आतंकवाद का प्रयोग अपनी विदेशी नीति के एक साधन के रूप में करना नहीं छोड़ देता। +* मैं हिन्दू परम्परा में गर्व महसूस करता हूँ लेकिन मुझे भारतीय परम्परा में और ज्यादा गर्व है। +* मुझे अपने हिंदुत्व पर अभिमान है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं मुस्लिम-विरोधी हूँ। +* आप दोस्तों को बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसियों को नहीं। +* जलना होगा, गलना होगा। कदम मिलकर चलना होगा। +* एटम बम का जवाब क्या है? एटम बम का जवाब एटम बम है और कोई जवाब नहीं। +* कोई इस बात से इंकार नहीं कर सकता है कि देश मूल्यों के संकट में फंसा है। +* मुझे शिक्षकों का मान-सम्मान करने में गर्व की अनुभूति होती है। अध्यापकों को शासन द्वारा प्रोत्साहन मिलना चाहिए। प्राचीनकाल में अध्यापक का बहत सम्मान था। आज तो अध्यापक पिस रहा है। +* हमें उम्मीद है कि दुनिया प्रबुद्ध स्वार्थ की भावना से कार्य करेगी। +* गरीबी बहुआयामी ��ै। यह पैसे की आय से परे शिक्षा, स्वास्थ्य की देखरेख, राजनीतिक भागीदारी और व्यक्ति की अपनी संस्कृति और सामाजिक संगठन की उन्नति तक फैली हुई है। +* एक विरोधी के द्वारा हमारे परमाणु हथियारों को विशुद्ध रूप से परमाणु अभियान के विरुद्ध धमकाने के रूप में बताता हैं। +* जो लोग हमें पूछते हैं कि हम पाकिस्तान के साथ वार्ता कब करेंगे शायद वे यह नहीं जानते हैं की पिछले 55 सालों में, पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए हर पहल निरपवाद रूप से भारत ने ही की है। +* वैश्विक स्तर पर आज परस्पर निर्भरता का मतलब विकाशशील देशों में आर्थिक आपदाओं का विकसित देशों पर प्रतिघात करना होगा। +* हमें विश्वास है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और बाकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर पाकिस्तान के भारत के विरुद्ध सीमा पार आतंकवाद को स्थाई और पारदर्शी रूप से खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। +* वास्तविकता यह है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं भी केवल उतनी ही प्रभावी हो सकती है जितनी उसके सदस्यों की अनुमति है। +* एक सार्वभौमिक धारणा से संयुक्त राष्ट्र की अनोखी वैधता बह रही है कि यह एक देह या देशों के एक छोटे से समूह के हितों की तुलना में एक बड़े उद्देश्य को पाने की कोशिश करती है। +* एक अंतर्निहित दृढ विश्वास था की संयुक्त राष्ट्र अपने घटक सदस्य देशों के योग से अधिक मजबूत होगा। +* ऐसे किसी देश को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक गठबंधन के साथ साझेदारी की अनुमति नहीं दी जनी चाहिए जबकि वो आतंकवाद को सहायता करने, उकसाने और प्रायोजित करने लगा हुआ हो। +* सेवा कार्यों की उम्मीद सरकार से नहीं की जा सकती। उसके लिए समाजसेवी संस्थाओं को ही आगे उठना पड़ेगा। +* भारत के ऋषिओं-महर्षियों ने जिस एकात्मक जीवन के ताने बने को बुना था, आज वह उपहास का विषय बनाया जा रहा है। +* पड़ोसी कहते हैं कि एक हाथ से ताली नहीं बजती, हमने कहा कि चुटकी तो बज सकती है। +* आदमी को चाहिए कि वह परिस्थितियों से लादे, एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े। +* मनुष्य का जीवन अनमोल निधि है। पुण्‍य का प्रसाद है। हम सिर्फ अपने लिए न जिएं, ओरों के लिए भी जिएं, औरों के लिए भी जिए। +* जीवन जीना एक कला है। एक विज्ञान है दोनों का समन्‍वय आवश्यक है। +* आदमी की पहचान उसके धन या आसन से नहीं होती, उसके मन से होती है। मन की फकीरी पर कुबेर की संप���ा भी रोती है। +* कपड़ों की दुधिया सफेदी जैसे मन की मलिनता को नहीं छिपा सकती। +* पृथ्वी पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जो भीड़ में अकेला और अकेले में भीड़ से घिरे होने का अनुभव करता है। +* टूट सकते हैं मगर झुक नहीं सकते। +* पौरुष, पराक्रम वीरता हमारे रक्त के रंग में मिली है। यह हमारी महान परम्परा का अंग है। यह संस्कारों द्वारा हमारे जीवन में ढाली जाती है। +* देश एक मन्दिर है, हम पुजारी हैं, राष्ट्रदेव की पूजा में हमने अपने को समर्पित कर देना चाहिए। +* हम अहिंसा में आस्था रखते हैं और चाहते हैं कि वैश्विक के संघर्षों का समाधान शांति और समझौते के मार्ग से हो। +* मानव और मानव के बिच में जो भेद की दीवारें कड़ी हैं, उनको ढहाना होगा, और इसके लिए एक राष्ट्रिय अभियान की आवश्यकता है। +* यह संघर्ष जितने बलिदान की मांग करेगा, वे बलिदान दिए जाएंगे, जितने अनुशासन का तकाजा होगा, यह देश उतने अनुशासन का परिचय देगा। +* वर्तमान शिक्षा पद्धति की विकृतियों से, उसके दोषों से, कमियों से सारा देश परिचित है। मगर नई शिक्षा नीति कहां है? +* शहीदों का रक्त अभी गीला है और चिता की रख में चिंगारियां बाकी हैं। उजड़े हुए सुहाग और जंजीरों में जकड़ी हुई जवानियाँ उन उग्त्याचारों की गवाह हैं। +* इतिहास ने, भूगोल ने, परंपरा ने, संस्कृति ने, धर्म ने, नदियों ने हमें आपस में बांधा है। +* मनुष्य-मनुष्य के बीच में भेदभाव का व्यवहार चल रहा है। इस समस्या का हल करे के लिए हमें एक राष्ट्रित अभियान की आवश्यकता है। +* राष्ट्र कुछ संप्रदायों अथवा जनसमूहों का सम्मुचय मात्र नहीं, अपितु एक जीवमान ईकाई है। +* हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव के कल्याण तथा उसकी कीर्ति के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे पग नहीं हटाएंगे। +* इतिहास में हुई भूल के लिए आक किसी से बदला लेने का समय नहीं है, लेकिन उस भूल को ठीक करने का सवाल है। +* कंधों से कंधा लगाकर, कदम से कदम मिलकर हमें अपनी जीवन यात्रा को ध्येय सिद्धि के शिखर तक ले जाना है। भावी भारत हमारे प्रयत्नों और परिश्रम पर निर्भर करता है। हम अपना कर्तव्य पालन करें, हमारी सफलता सुनिश्चित है। +* हरिजनों के कल्याण के साथ गिरिजनों तत्गा अन्य कबीलों की दशा सुधरने का प्रश्न भी जुड़ा हुआ है। +* अमावस के अभेद्य अंधकार का अंतःकरण पूर्णिमा की उज्ज्वलता का स्मरण कर थर्रा उठता है। +* जीवन के फूल को पूर्ण ताकत से खिलाएं। +* इस देश में पुरुषार्थी नवजवानों की कमी नहीं है, लेकिन उनमे से कोई कार बनाने का कारखाना नहीं खोल सकता, क्योंकि किसी को प्रधानमंत्री के घर में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त नहीं है। +* देश को हमसे बड़ी आशाएं हैं। हम परिस्थिति की चुनौती को स्वीकार करें। आँखों में एक महान भारत के सपने, ह्रदय में उस सपने को सत्य सृष्टि में परिणत करने के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा करने का संकल्प, भुजाओं में समूची भारतीय जनता जो समेटकर उसे सीने से लगाए रखने का सात्विक बल और पैरों में युग परिवर्तन की गति लेकर हमें चलना है। +* अगर भारत को बहु राष्ट्रीय राज्य के रूप में वर्णित करने की प्रवृति को समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो भारत के अनेक टुकड़ों में बंट जाने का खतरा पैदा हो जाएगा। +* भारत के प्रति अनन्य निष्ठा रखने वाले सभी भारतीय एक हैं, फिर उनका मजहब, भाषा तथा प्रदेश कोई भी क्यों न हो। +* कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ यह भारत एक राष्ट्र है, अनेक राष्ट्रीयताओं का समूह नहीं। +* देश एक रहेगा तो किसी एक पार्टी की वजह से एक नहीं रहेगा, किसी एक व्यक्ति की वजह से एक नहीं रहेगा, किसी एक परिवार की वजह से एक नहीं रहेगा। देश एक रहेगा तो देश की जनता की देशभक्ति की वजह से रहेगा। +* भारतीयकरण का एक ही अर्थ है भारत में रहने वाले सभी व्यक्ति, चाहे उनकी भाषा कुछ भी हो, वह भारत के प्रति अनन्य, अविभाज्य, अव्यभिचारी निष्ठा रखें। +* मजहब बदलने से न राष्ट्रीयता बदलती है और न संस्कृति में परिवर्तन होता। +* सभ्यता कलेवर है, संस्कृति उसका अन्तरंग। सभ्यता सूल होती है, संस्कृति सूक्ष्म। सभ्यता समय के साथ बदलती है, किंतु संस्कृति अधिक स्थायी होती है। +* मनुष्य जीवन अनमोल निधि है, पुण्य का प्रसाद है। हम केवल अपने लिए न जिएं, औरों के लिए भी जिएं। जीवन जीना एक कला है, एक विज्ञान है। दोनों का समन्वय आवश्यक है। +* नर को नारायण का रूप देने वाले भारत ने दरिद्र और लक्ष्मीवान, दोनों में एक ही परम तत्त्व का दर्शन किया है। +* समता के साथ ममता, अधिकार के साथ उगत्मीयता, वैभव के साथ सादगी-नवनिर्माण के प्राचीन स्तंभ हैं। +* भगवान जो कुछ करता है, वह भलाई के लिए ही करता है। +* जीवन को टुकड़ों में नहीं बांटा जा सकता, उसका पूर्णता में ही विचार किया जाना चाहिए। +* साहित्य और राजनीति के कोई अलस-अलग खाने नहीं हो��े। जो राजनीति में रुचि लेता है, वह साहित्य के लिए समय नहीं निकाल पाता और साहित्यकार राजनीति के लिए समय नहीं दे पाता, लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं, जो दोनों के लिए समय देते हैं। वे अभिनन्दनीय हैं। +* साहित्यकार का हृदय दया, क्षमा, करुणा और प्रेम से आपूरित रहता है। इसलिए वह खून की होली नहीं खेल सकता। +* मेरे भाषणों में मेरा लेखक ही बोलता है, पर ऐसा नहीं कि राजनेता मौन रहता है। मेरे लेखक और राजनेता का परस्पर समन्वय ही मेरे भाषणों में उतरता है। यह जरूर है कि राजनेता ने लेखक से बहुत कुछ पाया है। साहित्यकार को अपने प्रति सच्चा होना चाहिए। उसे समाज के लिए अपने दायित्व का सही अर्थों में निर्वाह करना चाहिए। उसके तर्क प्रामाणिक हो। उसकी दृष्टि रचनात्मक होनी चाहिए। वह समसामयिकता को साथ लेकर चले, पर आने वाले कल की चिंता जरूर करे। +* सदा से ही हमारी धार्मिक और दार्शनिक विचारधारा का केन्द्र बिंदु व्यक्ति रहा है। हमारे धर्मग्रंथों और महाकाव्यों में सदैव यह संदेश निहित रहा है कि समस्त ब्रह्मांड और सृष्टि का मूल व्यक्ति और उसका संपूर्ण विकास है। +* शिक्षा आज व्यापार बन गई है। ऐसी दशा में उसमें प्राणवत्ता कहां रहेगी? उपनिषदों या अन्य प्राचीन ग्रंथों की उगेर हमारा ध्यान नहीं जाता। आज विद्यालयों में छात्र थोक में आते हैं। +* शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। व्यक्तित्व के उत्तम विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आदर्शों से युक्त होना चाहिए। हमारी माटी में आदर्शों की कमी नहीं है। शिक्षा द्वारा ही हम नवयुवकों में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत कर सकते हैं। +* निरक्षरता और निर्धनता का बड़ा गहरा संबंध है। +* शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। ऊंची-से-ऊंची शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जानी चाहिए। +* मोटे तौर पर शिक्षा रोजगार या धंधे से जुड़ी होनी चाहिए। वह राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में सहायक हो और व्यक्ति को सुसंस्कारित करे। +* हिन्दी की कितनी दयनीय स्थिति है, यह उस दिन भली-भांति पता लग गया, जब भारत-पाक समझौते की हिन्दी प्रति न तो संसद सदस्यों को और न हिन्दी पत्रकारों को उपलब्ध कराई गई। +* हिन्दी वालों को चाहिए कि हिन्दी प्रदेशों में हिन्दी को पूरी तरह जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रतिष्ठित करें। +* हिन्दी को अपनाने का फैसला केवल हिन्दी वालों ने ही नहीं किया��� हिन्दी की आवाज पहले अहिन्दी प्रान्तों से उठी। स्वामी दयानन्दजी, महात्मा गांधी या बंगाल के नेता हिन्दीभाषी नहीं थे। हिन्दी हमारी आजादी के आनंदोलन का एक कार्यक्रम बनी। +* भारत की जितनी भी भाषाएं हैं, वे हमारी भाषाएं हैं, वे हमारी अपनी हैं, उनमें हमारी आत्मा का प्रतिबिम्ब है, वे हमारी आत्माभिव्यक्ति का साधन हैं। उनमें कोई छोटी-बड़ी नहीं है। +* राष्ट्र की सच्ची एकता तब पैदा होगी, जब भारतीय भाषाएं अपना स्थान ग्रहण करेंगी। +* हिन्दी का किसी भारतीय भाषा से झगड़ा नहीं है। हिन्दी सभी भारतीय भाषाओं को विकसित देखना चाहती है, लेकिन यह निर्णय संविधान सभा का है कि हिन्दी केन्द्र की भाषा बने। +* हमारा लोकतंत्र संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लोकतंत्र की परंपरा हमारे यहां बड़ी प्राचीन है। चालीस साल से ऊपर का मेरा संसद का अनुभव कभी-कभी मुझे बहुत पीड़ित कर देता है। हम किधर जा रहे हैं? +* भारत के लोग जिस संविधान को आत्म समर्पित कर चुके हैं, उसे विकृत करने का अधिकार किसी को नहीं दिया जा सकता। +* लोकतंत्र बड़ा नाजुक पौधा है। लोकतंत्र को धीरे- धीरे विकसित करना होगा। केन्द्र को सबको साथ लेकर चलने की भावना से आगे बढ़ना होगा। +* अगर किसी को दल बदलना है तो उसे जनता की नजर के सामने दल बदलना चाहिए। उसमें जनता का सामना करने का साहस होना चाहिए। हमारे लोकतंत्र को तभी शक्ति मिलेगी जब हम दल बदलने वालों को जनता का सामना करने का साहस जुटाने की सलाह देंगे। +* लोकतंत्र वह व्यवस्था है, जिसमें बिना मृणा जगाए विरोध किया जा सकता है और बिना हिंसा का आश्रय लिए शासन बदला जा सकता है। +* जातिवाद का जहर समाज के हर वर्ग में पहुंच रहा है। यह स्थिति सबके लिए चिंताजनक है। हमें सामाजिक समता भी चाहिए और सामाजिक समरसता भी चाहिए। +* कुर्सी की मुझे कोई कामना नहीं है। मुझे उन पर दया आती है जो विरोधी दल में बैठने का सम्मान छोड्‌कर कुर्सी की कामना से लालायित होकर सरकारी पार्टी का पन्तु पकड़ने के लिए लालायित हैं। +* भारत की सुरक्षा की अवधारणा सैनिक शक्ति नहीं है। भारत अनुभव करता है सुरक्षा आन्तरिक शक्ति से आती है। +* बिना हमको सफाई का मौका दिए फांसी पर चढ़ाने की कोशिश मत करिए, क्योंकि हम मरते-मरते भी लड़ेंगे और लड़ते-लड़ते भी मरने को तैयार हैं। +* राजनीति काजल की कोठरी है। जो इसमें जाता है, काला होकर ही निकलता है। ऐसी रा���नीतिक व्यवस्था में ईमानदार होकर भी सक्रिय रहना, बेदाग छवि बनाए रखना, क्या कठिन नहीं हो गया है? +* मेरा कहना है कि सबके साथ दोस्ती करें लेकिन राष्ट्र की शक्ति पर विश्वास रखें। राष्ट्र का हित इसी में है कि हम आर्थिक दृष्टि से सबल हों, सैन्य दृष्टि से स्वावलम्बी हों। +* पाकिस्तान कश्मीर, कश्मीरियों के लिए नहीं चाहता। वह कश्मीर चाहता है पाकिस्तान के लिए। वह कश्मीरियों को बलि का बकरा बनाना चाहता है। +* मैं पाकिस्तान से दोस्ती करने के खिलाफ नहीं हूं। सारा देश पाकिस्तान से संबंधों को सुधारना चाहता है, लेकिन जब तक कश्मीर पर पाकिस्तान का दावा कायम है, तब तक शांति नहीं हो सकती। +* पाकिस्तान हमें बार-बार उलझन में डाल रहा है, पर वह स्वयं उलझ जाता है। वह भारत के किरीट कश्मीर की ओर वक्र दृष्टि लगाए है। कश्मीर भारत का अंग है और रहेगा। हमें पाकिस्तान से साफ-साफ कह देना चाहिए कि वह कश्मीर को हथियाने का इरादा छोड़ दे। +* दरिद्रता का सर्वथा उन्मूलन कर हमें प्रत्येक व्यक्ति से उसकी क्षमता के अनुसार कार्य लेना चाहिए और उसकी आवश्यकता के अनुसार उसे देना चाहिए। +* संयुक्त परिवार की प्रणाली सामाजिक सुरक्षा का सुंदर प्रबंध था, जिसने मार्क्स को भी मात कर दिया था। +* समता के साथ ममता, अधिकार के साथ आत्मीयता, वैभव के साथ सादगी-नवनिर्माण के प्राचीन आधारस्तम्भ हैं। इन्हीं स्तम्भों पर हमें भावी भारत का भवन खड़ा करना है। +* अगर भ्रष्टाचार का मतलब यह है कि छोटी-छोटी मछलियों को फांसा जाए और बड़े-बड़े मगरमच्छ जाल में से निकल जाएं तो जनता में विश्वास पैदा नहीं हो सकता। हम अगर देश में राजनीतिक और सामाजिक अनुशासन पैदा करना चाहते हैं तो उसके लिए भ्रष्टाचार का निराकरण आवश्यक है। +* अन्न उत्पादन के द्वारा आत्मनिर्भरता के बिना हम न तो औद्योगिक विकास का सुदृढ़ ढांचा ही तैयार कर सकते है और न विदेशों पर अपनी खतरनाक निर्भरता ही समाप्त कर सकते हैं। +* कृषि-विकास का एक चिंताजनक पहलू यह है कि पैदावार बढ़ते ही दामों में गिरावट आने लगती है। हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव के कल्याण तथा उसकी कीर्ति के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे पग नहीं हटाएंगे। +* मानव और मानव के बीच में जो भेद की दीवारें खड़ी हैं, उनको ढहाना होगा, और इसके लिए एक राष्ट्रीय अभियान की आवश्यकता है। +* अस्पृश्यता कानून के व���रुद्ध ही नहीं, वह परमात्मा तथा मानवता के विरुद्ध भी एक गंभीर अपराध है। +* इतिहास ने, भूगोल ने, परम्परा ने, संस्कृति ने, धर्म ने, नदियों ने हमें आपस में बांधा है। + + +रंगभूमि प्रेमचंद की रचना है। इसे मंगला प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित की गई थी तथा अपने समय में लोकप्रिय हुई थी। + + +स्वतः स्थापित सदस्य कोई भी 10 सम्पादन और 4 दिनों के बाद अपने आप ही बन जाता है। इसके द्वारा किसी पृष्ठ को स्थानांतरण करने और अर्ध-सुरक्षित पृष्ठों को सम्पादन का अधिकार मिल जाता है। + + +* हमें (भारत को) गर्व करना चाहिए कि हमारे पास एक कार्यशील लोकतंत्र है। +भारत के सामने कई समस्याएँ हैं। कहीं बढ़ते साम्प्रदायिक तनाव की समस्या है तो कहीं क्षेत्रीय और जातीय तनाव की समस्या है। कहीं आतंकवाद की तो कहीं नक्सलवाद की समस्या है। + + +''इस श्रेणी में शामिल पृष्ठों पर हाल ही में किए गए परिवर्तनों के लिए विशेष:Recentchangeslinked/श्रेणी:जीवित व्यक्ति देखें।'' + + +विकिकोट वार्ता पृष्ठों पर अपने संदेश के अंत में हस्ताक्षर करें। ऐसा केवल वार्ता पृष्ठों पर ही करें, लेखों के पृष्ठों पर न करें। ऐसा करने से संवाद में आसानी होती है और हर संदेश के लेखक को पहचानने में मदद मिलती है। मिलकर सम्पादन करने के लिए संवाद बहुत ज़रूरी है क्योंकि इससे पढ़ने वालों को लेख का आरूप और प्रगति समझने में आसानी होती है। +# अपने संदेश के बाद चार टिल्ड के चिह्न डाल दें, इस तरह nowiki nowiki> +बदलाव संजोने पर आपका हस्ताक्षर पन्ने पर दिखेगा, और साथ ही समय भी। ऊपर के दोनों तरीकों से एक-सा हस्ताक्षर जुड़ेगा। +तीन टिल्ड nowiki nowiki डालने पर केवल आपका हस्ताक्षर (बिना समय) और पाँच टिल्ड nowiki nowiki डालने पर केवल समय (बिना हस्ताक्षर) जुड़ेगा। +ध्यान रखें कि यदि आपने लॉग-इन नहीं कर रखा है, तो भी आपका हस्ताक्षर दिखेगा, लेकिन आपके नाम की जगह अब आपका आई-पी पता दिखेगा। +आप अपने हस्ताक्षर को बदल सकते हैं। ऐसा करने के लिए "मेरी पसंद" पर जाएँ और "आपका उपनाम (दस्तखत/सही के लिये को सम्पादित करें। आप इस खाने में विकिमार्कप और कोड का इस्तेमाल कर सकते हैं, रंग बदलने के लिए, हिन्दी में नाम लिखने के लिए या अन्य भीतरी कड़ियाँ डालने के लिए (हस्ताक्षर में बाहरी कड़ियाँ डालना मना है)। +==अहस्ताक्षरित संदेशों का क्या करें== + + +* युवा सबसे समझदार दर्शक होते हैं. उन्हें मनोरंजन चाहिए होता है, मुद्दे नहीं. +* भारत में सिनेमा सुबह उठ कर ब्रश करने की तरह है। आप इससे बच नहीं सकते. +* कामयाबी और नाकामयाबी दोनों ज़िन्दगी के हिस्से है। दोनों ही स्थायी नहीं हैं. +* मैं अपने बच्चों को नहीं सिखाता की हिन्दू क्या है मुस्लिम क्या है। +* मैं वास्तव में यकीन करता हूँ कि मेरा काम ये सुनिश्चित करना है की लोग हंसें। +* मैं झूठ बोल सकता हूँ कि मेरी बीवी मेरे लिए खाना बनाती है, लेकिन ऐसा नहीं है। मेरी बीवी ने कभी खाना बनाना नहीं सीखा लेकिन उसके पास घर पे बहुत अच्छे कुक्स हैं. +* जहाँ तक जनता का सवाल है, भारत आश्चर्यजनक रूप से धर्मनिरपेक्ष है। +* मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है की जब फिल्म को एक छोटे शेड्यूल में शूट किया जाता है तो वो अच्छी बनती है, ऊपर से एक्टर्स भी तनाव में नहीं आते. +*चाहे लोग इसे पसंद करें या नहीं, मेरी मार्केटिंग की सोच ये है कि अगर आप कोई चीज लम्बे समय तक लोगों के सामने रखते हैं तो उन्हें इसकी आदत पड़ जाती है. + + +* मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मैंने देश भारत के लिए क्रिकेट खेला। यह देश का सबसे बड़ा खेल है। यहाँ तो इसे धर्म का दर्जा प्राप्त है और ऐसे देश के लिए खेलकर मैं धन्य महसूस करता हूँ। +| title भाग्यशाली हूं कि भारत के लिए खेलने का मौका मिला राहुल द्रविड़ + + +इस साँचे का प्रयोग साँचा पृष्ठों पर एक पृथक /doc पृष्ठ से प्रलेखन प्रदर्शित करने हेतु किया जाता है। + + +इस श्रेणी में विभिन्न साँचों हेतु प्रलेखन पृष्ठ शामिल हैं। + + +: मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; +: दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, +* इच्छाओं का दामन छोटा मत करो, जिंदगी के फल को दोनों हाथों से दबा कर निचोड़ो। +* जिस काम से आत्मा सन्तुष्ट रहें उसी से चेतना भी संतुष्ट रहती है। +* दूसरों की निंदा करने से आप अपनी उन्नति को प्राप्त नही कर सकते। आपकी उन्नति तो तभी होगी जब आप अपने आप को सहनशील और अपने अवगुणों को दूर करेंगे। +* मित्रों का अविश्वास करना बुरा है, उनसे छला जाना कम बुरा है। +* ईष्या की बड़ी बहन का नाम है निंदा। जो इंसान ईष्यालु होता है, वही बुरा निंदक भी होता है। +* लोग हमारी चर्चा ही न करें, यह अधिक बुरा है। वे हमारी निंदा करें यह कम बुरा है। +* उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम, देश में जितने भी हिन्दू बसते हैं, उनकी संस्कृति एक है एवं भारत की प्रत्येक क्षेत्रीय वि���ेषता हमारी सामासिक संस्कृति की ही विशेषता है। +* हम तर्क से पराजित होने वाली जाती नहीं हैं। हाँ, कोई चाहे तो नम्रता, त्याग और चरित्र से हमें जीत सकता है। +* विद्द्या समुद्र की सतह पर उठती हुई तरंगों का नाम है। किन्तु, अनुभूति समुद्र की अंतरात्मा में बसती है। +* हमारा धर्म पंडितों की नहीं, संतों और द्रष्टाओं की रचना है। हिंदुत्व का मूलाधार विद्या और ज्ञान नहीं है, सीधी अनुभूति है। +* धर्म अनुभूति की वस्तु है और धर्मात्मा भारतवासी उसी को मानते आये हैं, जिसने धर्म के महा सत्यों को केवल जाना ही नहीं उनका अनुभव और साक्षात्कार भी किया है। +* परिपक्व मनुष्य जाति भेद को नहीं मानता। +* अवसर कोई ऐसी चीज नहीं है जो रोटी-दाल की तरह सबके सामने परोसा जा सके। उसे पाने के लिए अपने गुणों का विकास करना होता है। तत्परता, मुस्तैदी और धीरता भी रखनी होती है और साथ ही उम्र तथा अनुभवों का ध्यान रखना पड़ता है। +* कोई भी मनुष्य दूसरों की निंदा करने से अपनी उन्नति नहीं कर सकता। उन्नति तो उसकी तभी होगी, जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाए तथा अपने गुणों का विकास करे। +* जो मनुष्य अनुभव के दौर से होकर गुजरने से इंकार करता है, मेहनत से भाग कर आराम की जगह पर पहुँचने के लिए बेचैन है, उसकी यह बेचैनी ही इस बात का सबूत है कि वह अपने संगठन का अच्छा नेता नहीं बन सकता। +* हम जिस समाज में रह रहे हैं उसके प्रोप्रायटर राजनीतिज्ञ हैं, मैनेजर अफसर हैं, बुद्धिजीवी मजदूर हैं। +* मैं तीन चिंताओं का शिकार रहा हूं। अधूरी किताब की चिंता, अधूरे मकान की चिंता, अधूरे बेटे की चिंता। +* विद्वानों ओर लेखकों के सामने सरलता सबसे बड़ी समस्या है। +* सौन्दर्य के तूफान में बुद्धि को राह नहीं मिलती। वह खो जाती है, भटक जाती है। यह पुरुष की चिरन्तर वेदना है। +* जैसे सभी नदियाँ समुद्र में विलीन हो जाती हैं, वैसे ही सभी गुण अंततः स्वार्थ में विलीन हो जाते हैं। +* अभिनन्दन लेने से इनकार करना, उसे दोबारा मांगने की तैयारी है। +* सतत चिन्ताशील व्यक्ति का कोई मित्र नहीं बनता। +* रोटी के बाद मनुष्य की सबसे बड़ी कीमती चीज उसकी संस्कृति होती है। +* हम तर्क से पराजित होने वाले नहीं हैं। हाँ, यदि कोई चाहे तो प्यार, त्याग और चरित्र से हमें जीत सकता है। +: जीवन-जय या कि मरण होगा। +: विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। +: कभी भाग्य के बल से +: उद्यम से श्रमजल से। +: जब वे सुख में होते हैं, +: जब वे दुख में होते हैं। +: सचमुच, उसके लिए उसे सब-कुछ देना पड़ता है। +* कविता वह सुरंग है जिसमें से गुजर कर +: मानव एक संसार को छोड़कर दूसरे संसार में चला जाता है। +: रवि-समान दीपित ललाट से और कवच-कुण्डल से, +: यदि दुःख में साथ न दें अपना, +: मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है +: दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, +: नरों में वह प्रेम केवल कलाकारों में अधिक से अधिक काल तक जीवित रहता है। +* ज्ञान का साहित्य मनुष्य किसी भी भाषा में लिख सकता है, +: जिससे उसने भलीभाँति सीख लिया हो। +: किन्तु रस का साहित्य वह केवल अपनी भाषा में रच सकता है। +* महाप्रलय की ओर सभी को इस मरू में चलते देखा, +* लोग हमारी चर्चा ही न करें, यह अधिक बुरा है। +: वे हमारी निंदा करें, यह कम बुरा है। +* जन-जन स्वजनों के लिए कुटिल यम होगा, +: परिजन, परिजन के हित कृतान्त-सम होगा । +: नर ही नर के शोणित में स्नान करेंगे। +* जिसके मस्तक के शासन को +: वह कदर्य भी कर सकता है +: जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर नाम किया। +: मनुष्य और किसी से नहीं, +: अपने आविष्कार से हारेगा॥ +: पहले विवेक मर जाता है। रश्मिरथी +: तू स्वयं तेज भयकारी है, क्या कर सकती चिनगारी है? +: जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध॥ +: सकेगा इसको कौन सँभाल? +: जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ? +: देंगे जान नहीं ईमान, +* मृतकों से पटी हुई भू है, +: देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में । +* उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है +* एक भेद है और वहां निर्भय होते नर-नारी, +: मगर ऐसी, कि फलों में +: अपनी मिट्टी का स्वाद रहे॥ +* दूसरों की निंदा करने से आप +: अपनी उन्नति को प्राप्त नहीं कर सकते। +: आपकी उन्नति तो तभी होगी जब आप अपने आप को +: सहनशील और अपने अवगुणों को दूर करेंगे। +: वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक। +: धनुष छोड़ कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का ? +: पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर, +: जाति जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर। +: दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है। +: होकर सुख-समृद्धि के अधीन, +: करते मनुष्य का तेज हरण। +: नर वैभव हेतु ललचाता है, +: पर वही मनुज को खाता है॥ +: पर अमृत क्लेश का पिए बिना, +: आताप अंधड़ में जिए बिना। +: वह पुरुष नहीं कहला सकता, +: विघ्नों को नही हिला सकता॥ + + +* यह एक रणक्षेत्र है, मेरा शरीर, जिसने बहुत कुछ सहा है। अमिताभ बच्चन +* मैं कभी एक सुपरस्टार नहीं रहा और कभी इसमें यकीन नहीं किया अमिताभ बच्चन +* में कभी भी अपने करिअर के बारे में आश्वस्त नहीं रहा. +* भारत सरकार ने अमिताभ बच्चन जी को १९८४ में पदमा श्री और २००१ में पदमा भूषण से सम्मानित किया. +* ७० साल की उम्र में भी वो ज़बरदस्त ऊर्जा से काम कर रहे हैं। जो आज के मेनस्ट्रीम कलाकार हैं, अगर कल को उन्हें बुढ़ापे में भी मज़बूत रोल मिलते हैं तो वो सिर्फ बच्चन जी की वजह से मुमकिन होगा। + + +आमिर खान के बारे में +* झूठी कूटनीति और बहानेबाजी की इस दुनिया में आमिर स्पष्ट रुप से अपनी बात रखते हैं। +| title दुनिया की सौ सबसे प्रभावशाली हस्तियों में आमिर और चिदंबरम +* भारतीय फिल्म पुरस्कार विश्वसनीयता की कमी है। +27 फरवरी 2008 को प्रश्न पूछने पर कि "वे किसी पुरस्कार समारोह में क्यों नहीं जाते हैं?" + + +* यदि आप चाहते हैं कि आपकी जिज्ञासा चिरयुवा रहे, प्रश्नाकुलता मरे नहीं तो जितना भी आप से बन पड़े, बच्चों के सान्निध्य में रहें. लेकिन यदि आप नएपन से ऊब चुके हैं, यथास्थिति भंग नहीं करना चाहते तो आपके लिए उचित होगा कि किसी तांत्रिक, ओझा, पुजारी या धर्माचार्य की शरण ले लें. — परीकथाओं का मनोविज्ञान +प्रत्येक धर्म व्यवहार में नैतिकता की बात करता है, संगठन की बात करता है, कल्याण की बात करता है. सबको साथ लेकर चलने की बात करता है. लेकिन जब वास्तविक फल की बात आती है. लक्ष्य की बात आती है, परिणाम से गुजरने की बात आती है तो वह प्राणी को अकेला छोड़ देता है. स्वर्ग के बहाने, जन्नत के बहाने, मोक्ष और कैवल्य के बहाने—उसकी रीति-नीति व्यक्ति को अंततः अकेला कर देने की होती है. — बालशिक्षा और लोकतंत्रीय संस्कार। +शिक्षा का प्रथम ध्येय उन जिज्ञासाओं का समाधान करना है उसका वास्तविक कर्म है बालक की प्रश्नाकुलता को बढ़ावा देना. उसके व्यक्तित्व का परिष्कार करना, आत्मविश्वास को बढ़ाना. यह तभी संभव है बालकों को बताया जाए कि मानवीय सभ्यता ने शताब्दियों में जो प्रगति की है. वह सिर्फ और सिर्फ मानवीय श्रम-कौशल की देन है. उसके पीछे न तो कोई चमत्कार है न ऊपरी कृपा. दुनिया में जिन्होंने भी विलक्षण कार्य किया, जो-जो लोग महान कहलाए, जिन्होंने इतिहास की धारा को मोड़ने का युगांतरकारी कार्य किया, बाकी लोगों तथा उनमें बस इतना अंतर था कि वे अपने सपने को संकल्प में ढालना चाहते थे. इसलिए उन्होंने पलायन के बजाय प्रयाण का वरण किया. भागने के बजाय दुनिया को बदलना बेहतर समझा. मनुष्यता में विश्वास, इसलिए मानवमात्र के कल्याण की राह बनाते समय उन्होंने अपने सुख की परवाह तक नहीं की. उनके लिए लौकिक लक्ष्य निजी सुख-दुख से कही बड़े थे. — बालशिक्षा और लोकतंत्रीय संस्कार। +धार्मिक प्रवचन के दौरान उपस्थित भीड़ का आचरण बाड़े में कैद कर दी गई भेड़ों की तरह होता है, जो अपने ग्वाले द्वारा इधर से उधर हांक दी जाती हैं. — हिंदू धर्म अंध-आस्था का सांस्थानीकरण + + +: जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है। +: बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है। उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता। +: जो परिकलन करता और गिनता है, वह गणित है तथा वह विज्ञान जो इसका आधार है वह भी गणित कहलाता है। +: खगोल तथा गणित में एक दूसरे से अनभिज्ञ पुरुष उसी प्रकार महत्त्वहीन है जैसे घृत के बिना व्यंजन, राजा के बिना राज्य, तथा अच्छे वक्ता के बिना सभा महत्वहीन होती है। +* काफी हद तक गणित का संबन्ध (केवल) सूत्रों और समीकरणों से ही नहीं है। इसका सम्बन्ध सी.डी से कैट-स्कैन से पार्किंग-मीटरों से राष्ट्रपति-चुनावों से और कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है। गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिए है, ताकि हम उन समस्याओं को हल कर सकें जो अर्थपूर्ण हैं। +* गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है; एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी। + + +* धर्म, कला और विज्ञान वास्तव में एक ही वृक्ष की शाखा-प्रशाखाएं हैं अल्बर्ट आइंस्टीन +* प्रत्येक विज्ञान, दर्शन के रूप में शुरू होता है और कला के रूप में समाप्त होता है। विल ड्यूरेंट +* प्रश्न पूछने की कला और विज्ञान सभी ज्ञान का स्रोत है। थॉमस बर्गर +* अवलोकन एक निष्क्रिय विज्ञान है, प्रयोग एक सक्रिय विज्ञान है। क्लाउड बर्नार्ड +* मनोविज्ञान, मनुष्य सहित जानवरों के बुद्धि, चरित्र और व्यवहार का विज्ञान है। एडवर्ड थोरंडिक +* धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते। अगर ऐसा करने की कोशिश करें, तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जाएँगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं। रिचर्ड फ़ेनिमैन +* आज का विज्ञान कल की तकनीक है। एडवर्ड टेलर +* आवश्यकता डीजाइन का आधार है। किसी चीज को जरुरत से अल्पमात्र भी बेहतर डीजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है। अज्ञात +* कला जीवन का पेड़ है, विज्ञान मृत्यु का वृक्ष है। विलियम ब्लेक +* कोई विज्ञान राजनीति के संक्रमण और सत्ता के भ्रष्टाचार से मुक्ति है। याकूब ब्रोनोव्स्की +* चिकित्सा, अनिश्चितता का विज्ञान और संभाव्यता की कला है। विलियम ओस्लर +* जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप आपने विषय के बारे में कुछ जानते हैं लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आपका ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक हैं। लॉर्ड केल्विन +* मशीनीकरण करने के लिए यह जरुरी है की लोग भी मशीन की तरह सोचें। सश्री जैकब +* मुझे लगता है कि विज्ञान यह दिखा रहा है कि उम्र बढ़ना एक बीमारी है। यदि ऐसा है, तो इसे ठीक किया जा सकता है। टॉम रॉबिंस +* लोगों को आश्चर्य करना अच्छा लगता है, और यह विज्ञान का बीज है। राल्फ वाल्डो इमर्सन +* विज्ञान की तीन विधियाँ हैं सिद्धांत, प्रयोग और सिमुलेशन। अज्ञात +* विज्ञान की तीन विधियाँ हैं – सिद्धान्त प्रयोग और सिमुलेशन। +* विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ गलत हैं यह पूरी तरह ठीक है। ये गलत परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं। अज्ञात +* विज्ञान को "व्यवस्थित अति-सरलीकरण की कला" कहा जा सकता है। कार्ल पॉपर +* विज्ञान को विज्ञान तभी कह सकते है जब वह शरीर, मन और आत्मा की भूख मिटने की पूरी ताकत रखता हो। Mahatam Gandhi +* विज्ञान तेजी से उन सवालों का जवाब दे रहा है जो धर्म के क्षेत्र में हुआ करते थेे। स्टीफन हॉकिंग +* विज्ञान ने हमें सच्चाई तक पहुँचाने का भरोसा दिया है… इसने हमें शांति या सुख तक पहुँचाने का आश्वासन कभी नहीं दिया। Le Bain +* विज्ञान मूल रूप से छलनायकों के खिलाफ एक टीका है। नील डेग्रास से टायसन +* विज्ञान हमारा घमंड कम करता है। Barnard Shah +* विज्ञान हर साल चमत्कारी सच्चाइयों और चमकदार उपकरणों की एक नई फसल का उत्पादन करता है। कर मुलिंस +* वैज्ञानिक इस संसार का, जैसे है उसी रूप में अध्ययन करते हैं। इंजिनियर वह संसार बनाते हैं जो कभी था ही नहीं। थिओडोर वान कर्मन +* संदेह और सोच की स्वतंत्रता विज्ञान के गुण हैं। वाल्टर गिल्बर्ट +* सभ्यता की कहानी सार रूप में इंजीनियरिंग की कहानी है वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियों को मनुष्य के भले के लिए कम कराने के लिए किया गया। एस डीकैम्प +* हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते। अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं। रिचर्ड फ़ेनिमैन +* हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते हैं। अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेंगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं। रिचर्ड फेनिमैन +* हमारी वैज्ञानिक शक्ति ने हमारी आध्यात्मिक शक्ति को आगे बढ़ाया हैैं। हमारे पास नियंत्रित मिसाइल और अनियंत्रित पुरुष हैं। मार्टिन लूथर किंग जूनियर। +*विज्ञान की तीन विधियाँ हैं सिद्धान्त प्रयोग और सिमुलेशन। +*विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ गलत हैं यह पूरी तरह ठीक है। ये (गलत परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं। + + +* मैं और नसीरुद्दीन शाह फिल्म इंडस्ट्री के सबसे क्वालीफ़ाइड एक्टर्स हैं। हमें नाच-गाना भले ही नहीं आता लेकिन हमने अभिनय की गंभीर विधिवत शिक्षा ली है। +* बच्चन और ऋषि कपूर स्टार हैं। + + +लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय गायिकाओं में से एक थी। उन्होंने तीस से ज़्यादा भाषाओं में हज़ारों गाने रिकॉर्ड किये हैं । उनके गानों में शास्त्रीय संगीत, हिन्दुस्तानी, कर्नाटकी, लघु संगीत, पाश्चात्य गीत, भजन, लोकगीत भी शामिल हैं । पर ज़्यादातर उनकी पहचान हिन्दी सिनेमा जगत की पार्श्व गायिका के रूप में बनी हुई है । +अन्य व्यक्तियों के बारे में लता +लता के बारे में अन्य व्यक्ति + + +यक़ीनन शायरी का इल्म जिसके पास होता वह +*"जबतक समाजवादी व्यवस्था नहीं आती तबतक दलितों में आर्थिक विषमता बनी रहेगी ।" +*‘हम दलितों का अपना अलग संसार है ताहिरा जी। हम उस संसार को ही सब कुछ समझते हैं, शिक्षा की कमी के कारण। आवश्‍यकताएँ अतिन्‍यून। देशकाल, परिस्थिति, राजनीति से कुछ भी लेना-देना नहीं। वस्‍त्र के नाम पर विहीटी और आश्रय के नाम पर चार हाथ जमीन। स्‍वतंत्रता के इतने वर्षों के बीत जाने के बाद भी हम नंगे, भूखे, भूमिहीन।’ +*'अरे हम हरिजन हैं तो क्या हुआ, हैं तो इंसान ही न। लोकतंत्र में उन्हें मनमानी ��रने की छूट और हमें अपने ढंग से जीने का अधिकार भी नहीं, क्यों समाज से घृणा……….घृणा……… कब होगा इस घृणा का अंत।' +लगाव, दोस्ती, इश्क, ममत्व और भक्ति हमारी पाँच उँगलियाँ है, जो जीवन की मुट्ठी को मजबूत करती है। किसी कठिनाई और समाधान के बीच उतनी ही दूरी है, जितनी हमारे घुटनों और फर्श में है। जो घुटनों को मोड़कर सजादे में झुकता है, वह हर मुश्किल का सामना करने की शक्ति पा लेता है। इसी को प्रेम कहा गया है।'' +*चांदी के जूते की खनक से अच्छे-अच्छे हिल जाते हैं, जिसे चांदी के जूते खाने की आदत पड़ जाती है, उसे बढ़िया से बढ़िया पकवान भी नहीं भाता। +*जो मत और मत पेटियां लूट नहीं सकता, वो नेता नहीं बन सकता। +*सुरा और सुंदरी के बिना यदि महान नेता इस वातावरण में जीवित रहने का प्रयास करेगा तो इसके दबाव को सह नहीं पाएगा। क्योंकि सुरा महान नेता के भीतर कुछ करने का जोश भरती है और किसी भी तरह का निर्णय लेने की ताक़त पैदा करती है। नेता यानि समर्थ । +*विज्ञापन में गन्दी कमीज को उजला करने का रास्ता बताया जाता है और राजनीति में साफ़ कमीज को गंदा करने के रास्ते तलाशे जाते हैं। +*दुनिया को देख पाना एक सुखद आश्चर्य है, मगर उससे भी बड़ा आश्चर्य है अपने भीतर मौजूद असीमित संभावनाओं को देखना, जिससे दुनिया को खूबसूरत बनाया जा सके। +*यदि कोई दुखी है, पीड़ित है और उसके कंधे पर हाथ रख दिया जाये, तो निश्चित रूप से उसकी पीड़ा कम हो जाएगी। रोते हुये बच्चे को माँ या फिर किसी सगे के द्वारा गोद में उठा लेना और संस्पर्श पाकर बच्चे का चुप हो जाना यह दर्शाता है कि स्पर्श हमारा भावनात्मक बल है। +*आप रातोरात अपनी पत्नी को नहीं बदल सकते, अपने बच्चों को नहीं बदल सकते, अपने सहयोगियों/सहकर्मियों अथवा मित्रों को नहीं बदल सकते मगर स्वयं को बदल सकते हैं कोशिश करके देखिये आप बदलेंगे तो अपने आप यह समूह भी बदल जाएगा। +*यदि एक ब्लॉगर नई पीढ़ी को समुचित ज्ञान देने के बिना मर जाता है, तो उसका ज्ञान व्यर्थ है। (अँग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद) + + +* आतंकवादियों की तुलना में पत्रकार बड़े आतंकवादी हैं। + + +* धर्मरहित विज्ञान लंगड़ा है, और विज्ञान रहित धर्म अंधा। अल्बर्ट आइंस्टीन +* अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है। अलबर्ट आइन्स्टाइन +* तर्क, आप को किसी एक बिन्दु 'क' से दूसरे बिन्दु 'ख' तक पहुँचा सकते हैं। लेकिन, कल्पना, आप को ���र्वत्र ले जा सकती है। अलबर्ट आइन्सटीन +* हम भारतीयों के बहुत ऋणी हैं जिन्होंने हमे गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई भी मूल्यवान वैज्ञानिक खोज सम्भव नहीं होती। अलबर्ट आइन्स्टीन +* अट्ठारह वर्ष की उम्र तक इकट्ठा किये गये पूर्वाग्रहों का नाम ही सामान्य बुद्धि है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* प्रकृति को गहराई से देखें, और आप हर चीज़ को बेहतर समझ पाएंगे। अल्बर्ट आइंस्टीन +* आपकी कल्पनाशक्ति आपके जीवन के आने वाले आकर्षणों का पूर्वावलोकन है। एल्बर्ट आइन्स्टाइन +* ऐसा नहीं है कि मैं कोई अति प्रतिभाशाली व्यक्ति हूँ; लेकिन मैं निश्चित रूप से अधिक जिज्ञासु हूँ और किसी समस्या को सुलझाने में अधिक देर तक लगा रहता हूँ। आइंस्टीन +* सफल मनुष्य बनने के प्रयास से बेहतर है गुणी मनुष्य बनने का प्रयास। एल्बर्ट आइंस्टीन +* सफल व्यक्ति होने का प्रयास न करें, अपितु गरिमामय व्यक्ति बनने का प्रयास करें। अल्बर्ट आईंसटीन +* ऐसा नहीं है कि मैं बहुत चतुर हूं; सच्चाई यह है कि मैं समस्याओं का सामना अधिक समय तक करता हूं। अल्बर्ट आंईस्टीन +* एक ऐसा व्यक्ति जिसने कभी गलती नहीं की है, उसने जीवन में कुछ नया करने का कभी प्रयास ही नहीं किया होता है। अल्बर्ट आईंस्टिन +* अपना जीवन जीने के केवल दो ही तरीके हैं. पहला यह मानना कि कोई चमत्कार नहीं होता है, दूसरा है कि हर वस्तु एक चमत्कार है। अल्बर्ट आईन्सटीन +* यह भयावह रूप से स्पष्ट हो चुका है कि हमारी तकनीक हमारी मानवता की सीमाएँ पार कर चुकी है अल्बर्ट आईन्सटीन +* वक्त बहुत कम है यदि हमें कुछ करना है तो अभी से शुरुआत कर देनी चाहिए । अल्बर्ट आइंस्टीन +* आपको खेल के नियम सीखने चाहिए और आप किसी भी खिलाड़ी से बेहतर खेलेंगे । अल्बर्ट आइंस्टीन +* मूर्खता और बुद्धिमता में सिर्फ एक फर्क होता है की बुद्धिमता की एक सीमा होती है । अल्बर्ट आइंस्टीन +* आमतौर पर आदमी उन चीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है जिनका उससे कोई लेना देना नहीं होता। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* पुस्तक प्रेमी सबसे धनवान व सुखी होता है, संपूर्ण रूप से त्रुटिहीन पुस्तक कभी पढ़ने लायक़ नहीं होती। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* शिक्षा और प्रशिक्षण का एकमात्र उद्देश्य समस्या-समाधान होना चाहिये। जार्ज बर्नार्ड शा +* बिना कुछ किए बिताने वाले जीवन की अपेक्षा गलतियाँ करते हुए बिताने वाला जीवन अधिक सम्माननीय होता है। जॉ��्ज बर्नार्ड शॉ +* आप को अच्छा करने का अधिकार बुरा करने के अधिकार के बिना नहीं मिल सकता, माता का दूध शूरवीरों का ही नहीं, वधिकों का भी पोषण करता है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* आप प्रसन्न है या नहीं यह सोचने के लिए फुरसत होना ही दुखी होने का रहस्य है, और इसका उपाय है व्यवसाय। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* किसी पुरुष या महिला के पालन-पोषण की आज़माइश तो एक झगड़े में उनके बर्ताव से होती है। जब सब ठीक चल रहा हो तब अच्छा बर्ताव तो कोई भी कर सकता है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* आज अध्‍ययन करना सब जानते हैं, पर क्‍या अध्‍ययन करना चाहिए यह कोई नहीं जानता। जार्ज बर्नाड शॉ +* सबसे कम खर्चीला मनोरंजन होता है श्रेष्‍ठ पुस्‍तकों के अध्‍ययन से और यह स्‍थाई होता है। जार्ज बनार्ड शॉ +* आप अपने भविष्य को नहीं बदल सकते लेकिन आप अपनी आदतों को बदल सकते है तथा सुनिश्चित मानें आपकी आदतें आपका भविष्य बदल देंगी। बर्नाड शॉ +* कमाए बगैर धन का उपभोग करने की तरह हीt खुशी दिए बगैर खुश रहने का अधिकार हमें नहीं है। जार्ज बरनार्ड शा +* मछली एवं अतिथि, तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु। बेन्जामिन +* चींटी से अच्छा उपदेशक कोई और नहीं है। वह काम करते हुए खामोश रहती है। बैंजामिन फ्रैंकलिन +* यदि कोई व्यक्ति अपने धन को ज्ञान अर्जित करने में ख़र्च करता है, तो उससे उस ज्ञान को कोई नहीं छीन सकता! ज्ञान के लिए किये गए निवेश में हमेशा अच्छा प्रतिफल प्राप्त होता है बेंजामिन फ्रेंकलिन +* आप रुक सकते हैं लेकिन समय नहीं रुकता। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* धन से आज तक किसी को खुशी नहीं मिली और न ही मिलेगी, जितना अधिक व्यक्ति के पास धन होता है, वह उससे कहीं अधिक चाहता है। धन रिक्त स्थान को भरने के बजाय शून्यता को पैदा करता है। बेंजामिन फ्रेंकलिन +* क्रोध कभी भी बिना कारण नहीं होता, लेकिन कदाचित ही यह कारण सार्थक होता है। बेंजामिन फ्रेंकलिन +* ज्ञान में पूंजी लगाने से सर्वाधिक ब्याज मिलता है। बेंजामिन फ्रेंकलिन +* क्रोध से शुरू होने वाली हर बात, लज्‍जा पर समाप्‍त होती है। बेंजामिन फ्रेंकलिन +* जीवन में दुखद बात यह है कि हम बड़े दो जल्दी हो जाते हैं, लेकिन समझदार देर से होते हैं। बेंजामिन फ्रेंकलिन +* गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है। शेक्सप��यर +* ईमानदारी से बड़ी कोई विरासत नहीं है। विलियम शेक्सपियर +* अपेक्षा ही मनोव्यथा का मूल है। विलियम शेक्सपियर +* सभी से प्रेम करें, कुछ पर विश्वास करें और किसी के साथ भी गलत न करें। विलियम शेक्सपियर +* जिस श्रम से हमें आनन्‍द प्राप्‍त होता है, वह हमारी व्‍याधियों के लिए अमृत, तुल्‍य है, हमारी वेदना की निवृत्‍ित है। विलियम शेक्सपियर +* ऐसा व्यक्ति जिसने कभी आशा नहीं की, वह कभी निराशा भी नहीं होता है। विलियम शेक्सपियर +* किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। सर विंस्टन चर्चिल +* सतत प्रयास न कि ताकत या बुद्धिमानी ही हमारे सामर्थ्य को साकार करने की कुंजी है। विंस्टन चर्चिल +* सफलता हमेशा के लिए नहीं होती, असफलता कभी घातक नहीं होती: यह तो लगे रहने की प्रवृत्ति है जो मायने रखती है। विंस्टन चर्चिल +* रणनीति कितनी भी सुंदर क्यों न हो, आप को कभी कभी परिणामों पर भी विचार करना चाहिए। सर विंसटन चर्चिल +* मानव के सभी गुणों में साहस पहला गुण है, क्‍योंकि वह सभी गुणों की जिम्‍मेदारी लेता है। चर्चिल +* निराशावादी हर अवसर में कठिनाई देखता हैं, जबकि आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता हैं। विन्स्टन चर्चिल +* खुशी ही जीवन का अर्थ और उद्देश्य है, और मानव अस्तित्व का लक्ष्य और मनोरथ। अरस्तू +* अच्छी शुरुआत से आधा काम हो जाता है। अरस्तू +* जन्म देने वाले माता पिता से अध्यापक कहीं अधिक सम्मान के पात्र हैं, क्योंकि माता पिता तो केवल जन्म देते हैं, लेकिन अध्यापक उन्हें शिक्षित बनाते हैं, माता पिता तो केवल जीवन प्रदान करते हैं, जबकि अध्यापक उनके लिए बेहतर जीवन को सुनिश्चित करते हैं। अरस्तू +* मित्र क्या है? एक आत्मा जो दो शरीरों में निवास करती है। अरस्तू +* शिक्षा की जड़े भले ही कड़वी हों, इसके फल मीठे होते हैं। अरस्‍तू +* अपने दुश्मनों पर विजय पाने वाले की तुलना में मैं उसे शूरवीर मानता हूं जिसने अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली है; क्योंकि सबसे कठिन विजय अपने आप पर विजय होती है। अरस्तु +* जो सभी का मित्र होता है वो किसी का मित्र नहीं होता है अरस्तु +* हमारे जीवन का उस दिन अंत होना शुरू हो जाता है जिस दिन हम उन विषयों के बारे में चुप रहना शुरू कर देते हैं जो मायने रखते हैं। मार्टिन लुथर किंग, जूनियर +* मैंने प्रेम को ही अपनाने का निर्णय किया है। द्वेष करना तो बेहद बोझिल काम है। मार्टिन ��ूथर किंग, जूनियर +* पत्नी को चाहिए कि पति घर लौटने पर खुश हो, और पति को चाहिए कि पत्नी को उसके घर से निकलने पर दुख हो। मार्टिन लूथर +* हमें परिमित निराशा को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन अपरिमित आशा को कभी नहीं खोना चाहिए। मार्टिन लूथर किंग, जूनियर (1929-1967 अश्वेत मानवाधिकारी नेता +* हमे सीमित मात्रा में निराशा को स्वीकार करना चाहिये, लेकिन असीमित आशा को नहीं छोडना चाहिये। मार्टिन लुथर किंग +* दीर्घायु होना नहीं बल्कि जीवन की गुणवत्ता का महत्व होता है। मार्टिन लूथर किंग, जूनियर +* हमें भाईयों की तरह मिलकर रहना अवश्य सीखना होगा अन्यथा मूर्खों की तरह सभी बरबाद हो जाएंगे। मार्टिन लूथर किंग, जूनियर +* अंधकार से अंधकार को दूर नहीं किया जा सकता है, केवल प्रकाश से ही ऐसा किया जा सकता है, नफरत से नफरत को नहीं हटाया जा सकता है, केवल प्यार से ही ऐसा किया जा सकता है। मार्टिन लूथर किंग, जूनियर +* सही काम करने के लिए समय हर वक्त ही ठीक होता है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर +* संगीत की धुनों में जो स्वर्ग की ऊंचाइयों तक पहूंची है, वह है एक स्नेहभरे दिल की धड़कन। हेनरी वार्ड बीचर +* प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह याद रखना बेहतर होगा कि सभी सफल व्यवसाय नैतिकता की नींव पर आधारित होते हैं। हैनरी वार्ड बीचर +* इस दुनिया में जो कुछ हम अर्जित करते हैं, उससे नहीं अपितु जो कुछ त्याग करते हैं, उससे समृद्ध बनते हैं। हैनरी वार्ड बीचर +* अपने मित्र को उसके दोषों को बताना मित्रता की सबसे कठोर परीक्षा होती है। हैनरी वार्ड बीचर +* विचारों को मूर्त रूप देने की क्षमता ही सफलता का रहस्य है। हैनरी वार्ड बीचर +* कठिनाईयां भगवान का संदेश होती हैं, उनका सामना करते समय हमें भगवान के विश्‍वास के रूप में, भगवान से अभिनंदन के रूप में उनका सम्‍मान करना चाहिये। हेनरी वार्ड बीचर +* काम वह वस्तु नहीं है जिससे किसी व्यक्ति की पराजय होती है, वास्तव में वह वस्तु चिंता है। हेनरी वार्ड बीचर +* मुश्किलें वे औजार हैं जिनसे ईश्वर हमें बेहतर कामों के लिए तैयार करता हैं। एच. डबल्यू वीचर +* प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं। इमर्सन +* डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है। एमर्सन +* सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है। जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है। इमर्सन +* जैसे जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, सुंदरता भीतर घुसती जाती है। रॉल्��� वाल्डो इमर्सन +* लम्बी आयु का महत्व नहीं है जितना महत्व इसकी गहनता है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* हर सुबह जब आप जागते हैं तो अपने भगवान को धन्यवाद दें तथा आप अनुभव करते है कि आपने वह कार्य करना है जिसे अवश्य किया जाना चाहिए, चाहे आप इसे पसंद करें या नहीं, इससे चरित्र का निर्माण होता है। एमरसन +* प्रत्येक कलाकार एक दिन नौसिखिया ही होता है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* बिना उत्साह के आज तक कुछ भी महान उपलब्धि हासिल नहीं की गई है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* पूरा जीवन एक प्रयोग है। जितने अधिक प्रयोग आप करेंगे, उतना ही अच्छा। राल्फ इमरसन +* पूरा जीवन एक अनुभव है, आप जितने अधिक प्रयोग करते हैं, उतना ही इसे बेहतर बनाते हैं। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* एक बार जब आप निर्णय कर लेते हैं तो समस्त सृष्टि इसके भलीभूत होने के लिए तत्पर हो जाती है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* एक बार एक युवक को एक अच्छी सलाह प्राप्त करते हुए मैंने सुना था कि हमेशा वह कार्य करो जिसको करने से आप ड़रते हैं। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* उत्साह, प्रयास की जननी है, तथा इसके बिना आज तक कोई महान उपलब्धि हासिल नहीं की गई है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* हमारे भीतर क्या छिपा है इसकी तुलना में हमारे विगत में क्या था और हमारे भविष्य में क्या है, यह बहुत छोटी छोटी बातें है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* वे जीत जाते हैं, जिन्हें यह विश्वास होता हैं कि वे जीत सकते है। इमर्सन +* इस जीवन का प्रथम लक्ष्य है दूसरों की सहायता करना। और यदि आप दूसरों की सहायता नहीं कर सकते तो कम से कम उन्हें आहत तो न करें। दलाई लामा +* हम धर्म और चिंतन के बिना रह सकते हैं किन्तु मानवीय प्रेम के बिना नहीं। दलाई लामा +* सहिष्णुता के अभ्यास में आपका शत्रु ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षक होता है। दलाई लामा +* जब आप कुछ गंवा बैठते हैं, तो उससे प्राप्त शिक्षा को न गंवाएं। दलाई लामा +* यदि आप दूसरों को खुश देखना चाहते हैं तो सहानुभूति को अपनाएं, यदि आप खुश होना चाहते हैं तो सहानुभूति अपनाएं। तेंजिन ग्यात्सो, 14वें दलाई लामा +* यदि शांति पाना चाहते हो, तो लोकप्रियता से बचो। अब्राहम लिंकन +* मुझे एक पेड़ काटने के लिए यदि आप छह घंटे देते हैं तो मैं पहले चार घंटे अपनी कुल्हाड़ी की धार बनाने में लगाऊँगा। अब्राहम लिंकन +* चरित्र एक वृक्ष है और मान एक छाया। हम हमेशा छाया की सोचते हैं; लेकिन असलियत तो वृक्ष ही है। अब्राहम लिंकन +* चरित्र वृक्ष के समान है तो प्रतिष्‍ठा, उसकी छाया है। हम अक्‍सर छाया के, बारे में सोचते हैं, जबकि असल, चीज तो वृक्ष ही है। अब्राहम लिंकन +* अपने विरोधियो से मित्रता कर लेना क्या विरोधियों को नष्ट करने के समान नहीं है अब्राहम लिंकन +* उस व्यक्ति को आलोचना करने का अधिकार है जो सहायता करने की भावना रखता है। अब्राहम लिंकन +* मुझे अधिक संबंध इस बात से नहीं है कि आप असफ़ल हुए, बल्कि इस बात से कि आप अपनी असफलता से कितने संतुष्ट है। अब्राहम लिंकन +* स्वास्थ्य के संबंध में, पुस्तकों पर भरोसा न करें। छपाई की एक गलती जानलेवा भी हो सकती है। मार्क ट्वेन +* उन लोगों से दूर रहें जो आप आपकी महत्वकांक्षाओं को तुच्छ बनाने का प्रयास करते हैं। छोटे लोग हमेशा ऐसा करते हैं, लेकिन महान लोग आपको इस बात की अनुभूति करवाते हैं कि आप भी वास्तव में महान बन सकते हैं। मार्क ट्वेन +* देरी से प्राप्त की गई सम्पूर्णता की तुलना में निरन्तर सुधार बेहतर होता है। मार्क टवैन +* भारत मानव जाति का पलना है, मानव-भाषा की जन्मस्थली है, इतिहास की जननी है, पौराणिक कथाओं की दादी है, और प्रथाओं की परदादी है। मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है। मार्क ट्वेन +* क्रोध एक तेजाब है जो उस बर्तन का अधिक अनिष्ट कर सकता है जिसमें वह भरा होता है न कि उसका जिस पर वह डाला जाता है। मार्क ट्वेन +* एक शब्‍द और लगभग सही शब्‍द में ठीक उतना ही अंतर है जितना कि रोशनी और जुगनू में। मार्क ट्वेन +* जीवन मुख्य रुप से अथवा मोटे तौर पर तथ्यों और घटनाओं पर आधारित नहीं है। यह मुख्य रुप से किसी व्यक्ति के दिलो दिमाग में निरन्तर उठने वाले विचारों के तूफानों पर आधारित होती है। मार्क ट्वेन +* सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं। लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें। गोथे +* बाँटो और राज करो, एक अच्छी कहावत है लेकिन) एक होकर आगे बढो, इससे भी अच्छी कहावत है। गोथे +* जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये। निर्भीकता के अन्दर मेधा (बुद्धि शक्ति और जादू होते हैं। गोथे +* यदि आप अपरिमित में जाना चाहते हैं, तो पहले परिमित को अच्छे से जान लेने का प्रयत्न करें। जोह��न वोल्फ़्गेंग गोथ +* सोचना आसान होता है, कर्म करना कठिन होता है, लेकिन दुनिया में सबसे कठिन कार्य अपनी सोच के अनुसार काम करना होता है। गोएथ +* केवल जानना पर्याप्त नहीं है, हमें अवश्य ही प्रयोग भी करना चाहिए, केवल इच्छा करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि हमें कार्य करना भी चाहिए। गोएथ +* अज्ञानी व्यक्ति वह प्रश्न पूछते हैं जिनका उत्तर समझदार व्यक्तियों द्वारा एक हजार पहले दे दिया गया होता है। गोएथ +* बुद्धि का अर्जन हम तीन तरीकों से कर सकते हैं: प्रथम, चिंतन से, जो कि उत्तम है; द्वितीय, दूसरों से सीखकर, जो सबसे आसान है; और तृतीय, अनुभव से, जो सबसे कठिन है। कन्फ़्यूशियस +* ऐसे पेशे का चयन करें जो आपको दिलचस्प लगता हो, और आपको अपने जीवन में एक भी दिन काम नहीं करना पड़ेगा। कंफ्यूशियस +* जब यह साफ हो कि लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है, तो लक्ष्यों में फेरबदल न करें, बल्कि अपनी प्रयासों में बदलाव करें। कंफ्यूशिअस +* श्रेष्ठ व्यक्ति बोलने में संयमी होता है लेकिन अपने कार्यों में अग्रणी होता है। कंफ्यूशियस +* प्रत्येक कृति में सुंदरता होती है, लेकिन हर कोई इसे देख नहीं सकता। कन्फूशियस +* हमारी महानतम विशालता (सफलता) कभी भी न गिरने में नहीं अपितु हर बार गिरने पर फिर उठने में निहित होती है। कंफ्यूशियस +* सभ्यता सुव्यस्था के जन्मती है, स्वतन्त्रता के साथ बडी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है। विल डुरान्ट +* भारत हमारी संपूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है: भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है, अरबॊं के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है, बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है, ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है। अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है। विल्ल डुरान्ट, अमरीकी इतिहासकार +* गलती करने में कोई गलती नहीं है। गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है। एल्बर्ट हब्बार्ड +* स्पष्टीकरण से बचें। मित्रों को इसकी आवश्यकता नहीं; शत्रु इस पर विश्वास नहीं करेंगे। अलबर्ट हबर्ड +* कभी भी सफाई नहीं दें। आपके दोस्तों को इसकी आवश्यकता नहीं है और आपके दुश्मनों को विश्वास ही नहीं होगा। अलबर्ट हब्बार्ड +* यदि आपके पास स्वास्थ्य है तो संभवतः आप प्रसन्न होंगे, और यदि आपके पास स्वास्थ्य और प्रसन्नता दोनों हैं, तो आपक�� पास अपनी आवश्यकता के अनुसार समस्त सम्पदा होगी फिर चाहे आप इसे न भी चाहते हों। एल्बर्ट हुब्बार्ड +* जब हम कठिन कार्यों को चुनौती के रुप में स्वीकार करते हैं और उन्हें खुशी और उत्साह से निष्पादित करते हैं, तो चमत्कार हो सकते हैं। अल्बर्ट गिल्बर्ट +* आप इस जीवन में सबसे बड़ी गलती यह कर सकते हैं कि आप निरन्तर इस बात को लेकर डरते रहें कि आप कोई गलती कर देंगे। एल्बर्ट हुब्बार्ड +* असफलता की उत्पत्ति तभी होती है जब आप प्रयास करना बन्द कर देते हैं। एल्बर्ट हब्बार्ड +* मानवता प्रकाश की वह नदी है जो सीमित से असीम की ओर बहती है। खलील जिब्रान +* दानशीलता हमारी क्षमता से अधिक देने में, और गौरव अपनी आवश्यकता से कम लेने में है। खलील गिब्रान +* किसी भी नींव का सबसे मजबूत पत्थर सबसे निचला ही होता है। खलील ज़िब्रान (1883-1931 सीरियाई कवि +* किसी व्यक्ति के दिल-दिमाग को समझने के लिए इस बात को न देखें कि उसने अभी तक क्या प्राप्त किया है, अपितु इस बात को देखें कि वह क्या अभिलाषा रखता है। कैहलिल जिब्रान +* जिनसे प्रेम करते हैं, उन्हें जाने दें, वे यदि लौट आते हैं तो वे सदा के लिए आपके हैं। और अगर नहीं लौटते हैं तो वे कभी आपके थे ही नहीं। खलील ज़िब्रान (1883-1931 सीरियाई कवि +* प्रेम के बिना जीवन उस वृक्ष की भांति है जो फूल तथा फलों से रहित है। काहलिल जिब्रान +* मित्रता कभी भी अवसर नहीं अपितु हमेशा एक मधुर उत्तरदायित्व होती है। कैहलिल गिब्रान +* इंसान अगर लोभ को ठुकरा दे तो बादशाह से भी ऊंचा दर्जा हासिल कर सकता है, क्‍योंकि संतोष ही इंसान का माथा हमेशा ऊंचा रख सकता है। शेख सादी +* अज्ञानी आदमी के लिये खामोशी से बढ़कर कोई चीज नहीं, और अगर उसमें यह समझने की बुद्धि है तो वह अज्ञानी नहीं रहेगा। शेखी सादी +* लोभी को पूरा संसार मिल जाए तो भी वह, भूखा रहता है, लेकिन संतोषी का पेट, एक रोटी से ही भर जाता है। शेख सादी +* ग़रीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार ग़रीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। शेख़ सादी +* घमंड करना जाहिलों का काम है। शेख सादी +* बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बन्द करना ही अच्छा है। शेख सादी +* खुदा एक दरवाजा बन्द करने से पहले दूसरा खोल देता है, उसे प्रयत्न कर देखो। शेख सादी +* धैर्य रखें, सभी कार्य सरल होने से पहले कठिन ही दिखाई देते हैं। सादी +* हमारी शक्ति हमारे निर्णय करने की क्षमता में निहित है। फुलर +* ज्ञान एक खजाना है, लेकिन अभ्यास इसकी चाभी है। थामस फुलर +* जब तक रुग्णता का सामना नहीं करना पड़ता; तब तक स्वास्थ्य का महत्व समझ में नहीं आता है। डा. थॉमस फुल्लर +* प्रार्थनाः दिन की कुंजी तथा रात का ताला होती है। थॉमस फुल्लर +* अपनी अज्ञानता का अहसास होना ज्ञान की दिशा में एक बहुत बडा कदम है। डिजरायली +* निराशा मूर्खता का परिणाम है। डिज़रायली +* धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है। डिजरायली +* बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है। आईजक डिझरायली +* आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है। सेनेका +* जिस प्रकार से श्रम करने से शरीर मजबूत होता है, उसी प्रकार से कठिनाईयों से मस्तिष्क सुदृढ़ होता है। सेनेका +* अगर एक व्यक्ति को मालूम ही नहीं कि उसे किस बंदरगाह की ओर जाना है, तो हवा की हर दिशा उसे अपने विरुद्ध ही प्रतीत होगी। सेनेका +* वह व्यक्ति ग़रीब नहीं है जिस के पास थोड़ा बहुत ही है। ग़रीब तो वह है जो ज़्यादा के लिए मरा जा रहा है। सैनेका, रोमन दार्शनिक +* जिस प्रकार से श्रम करने से शरीर मजबूत होता है, उसी प्रकार से कठिनाईयों से मस्तिष्क सुदृढ़ होता है। सेनेका +* ऐसा नहीं है कि कार्य कठिन हैं इसलिए हमें हिम्मत नहीं करनी चाहिए, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम हिम्मत नहीं करते हैं इसलिए कार्य कठिन हो जाते हैं। सेनेका +* जीवन का उत्तम उपयोग है इसे ऐसा कुछ करने में बिताना जो इससे अधिक स्थायी हो। विलियम जेम्स +* अपने जीवन में परिवर्तन करने के लिए तत्काल कार्य करना आरम्भ करें, ऐसा शानदार ढ़ंग से करें, इसमें कोई अपवाद नहीं है। विलियम जेम्स +* जीवन का महानतम उपयोग इसे किन्हीं ऐसे अच्छे कार्यों पर व्यय करना है जो कि इसके जाने के बाद भी बने रहें। विलियम जेम्स +* मेरी पीढ़ी की महानतम खोज यह रही है कि मनुष्य अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन कर के अपने जीवन को बदल सकता है। विलियम जेम्स (1842-1910 अमरीकी दार्शनिक +* मानव अपनी सोच की आंतरिक प्रवृति को बदलकर अपने जीवन के बाह्य पहलूओं को बदल सकता है। विलिमय जेम्स +* जब दूसरे व्यक्ति सोए हों, तो उस समय अध्ययन करें; उस समय कार्य करें जब दूसरे व्यक्ति अपने समय को नष्ट करते हैं; उस समय तैयारी करें जब दूसरे खेल रहे हों; और उस समय ��पने देखें जब दूसरे केवल कामना ही कर रहे हों। विलियम आर्थर वार्ड +* कुशलतापूर्वक किसी की बात सुनना अकेलेपन, वाचालता और कंठशोथ का सब से बढ़िया इलाज है। विलियम आर्थर वार्ड +* अवसर सूर्योदय की तरह होते हैं, यदि आप ज्यादा देर तक प्रतीक्षा करते हैं तो आप उन्हें गंवा बैठते हैं। विलियम आर्थर वार्ड +* निराशावादी व्यक्ति पवन के बारे में शिकायत करता है; आशावादी इसका रुख बदलने की आशा करता है; लेकिन यथार्थवादी पाल को अनुकूल बनाता है। विलियम आर्थर वार्ड +* प्रतिकूल परिस्थितियों से कुछ व्यक्ति टूट जाते हैं, जबकि कुछ अन्य व्यक्ति रिकार्ड तोड़ते हैं। विलियम ए. वार्ड +* उपलब्धि के चार कदम: उद्देश्यपूर्ण योजना बनाए, प्रार्थना के साथ तैयारी करें, सकारात्मक रूप से आगे बढ़े निरन्तर अपने लक्ष्य के लिए प्रयासरत रहें। विलियम ए. वार्ड +* हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है। अनोन +* किसी व्यक्ति को एक मछली दे दो तो उसका पेट दिन भर के लिए भर जाएगा। उसे इंटरनेट चलाना सिखा दो तो वह हफ़्तों आपको परेशान नहीं करेगा। एनन +* यदि आप इस बात की चिंता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं। हैरी एस. ट्रूमेन +* यदि आप गर्मी सहन नहीं कर सकते तो रसोई के बाहर निकल जाईये। हैरी एस ट्रुमेन +* बच्चों को सीख देने का जो श्रेष्ठ तरीका मुझे पता चला है वह यह है कि बच्चों की चाह का पता लगाया जाए और फिर उन्हें वही करने की सलाह दी जाए। हैरी ट्रूमेन +* सही अवसर न मिलने पर क्षमता के, मायने बेहद सीमित हो जाते हैं। नेपोलियन +* जब तक आप न चाहें तब तक आपको, कोई भी ईर्ष्‍यालु, क्रोधी प्रतिशोधी या लालची नहीं बना सकता। नेपोलियन हिल +* अपने कार्य की योजना बनाएं तथा अपनी योजना पर कार्य करें। नेपोलियन हिल +* यदि आपने अपनी मनोवृतियों पर विजय प्राप्त नहीं की, तो मनोवृत्तियां आप पर विजय प्राप्त कर लेंगी। नेपोलियन हिल +* असफलता आपको महान कार्यों के लिये तैयार करने की प्रकृति की योजना है। नैपोलियन हिल +* जब किसी व्यक्ति द्वारा अपने लक्ष्य को इतनी गहराई से चाहा जाता है कि वह उसके लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार होता है, तो उसका जीतना सुनिश्चित होता है। नेपोलियन हिल +* बुरा व्‍यक्ति उस समय और भी बुरा हो जाता है जब वह अच्‍छा होने का ढोंग करता है। फ्रांसिस बेकन +* बुद्धिमान व्‍यक्ति को जितने, अवसर मिलते हैं उससे अधिक वह स्‍वयं बनाता है। फ्रांसिस बेकन +* प्रतिशोध लेते समय मनुष्‍य अपने शत्रु के समान ही होता है, लेकिन उसकी उपेक्षा कर देने पर वह उससे बड़ा हो जाता है। फ्रांसिस बेकन +* हम स्‍वभाव के मुताबिक सोचते हैं, कायदे के मुताबिक बोलते हैं, रिवाज के मुताबिक आचरण करते हैं। फ्रांसिस बेकन +* क्या आप जानना चाहते हैं कि आप कौन हैं? तो किसी से पूछिये मत। कार्य करना शुरू कर दें। आपका कार्य आपको परिभाषित एवं चित्रित कर देगा। थॉमस जेफर्सन +* विनम्र तो सबके साथ रहें, लेकिन घनिष्ठ कुछ एक के साथ ही। थॉमस जैफरसन +* बुद्धिमत्ता की पुस्तक में ईमानदारी पहला अध्याय है। थॉमस जैफर्सन +* गलती करने की बजाय देर करना कहीं अधिक अच्छा होता है। थॉमस जैफरसन +* ख़ाली दिमाग को खुला दिमाग बना देना ही शिक्षा का उद्देश्य है। फ़ोर्ब्स +* कम्प्यूटर को प्रोग्राम करने के लिये संस्कृत सबसे सुविधाजनक भाषा है। फोर्ब्स पत्रिका (जुलाई, 1987) +* यदि हम असफलता से शिक्षा प्राप्त करते हैं तो वह सफलता ही है। मैल्कम फोर्ब्स +* शिक्षा का ध्येय है एक ख़ाली दिमाग को खुले दिमाग में बदलना। मेल्कम फोर्ब्स +* हम क्या सोचते हैं, क्या जानते हैं, और किसमें विश्वास करते हैं – अंततः ये बातें मायने नहीं रखतीं. हम क्या करते हैं वही महत्वपूर्ण है। जॉन रस्किन +* जब किसी कार्य में रुचि और उसे करने के हुनर का संगम हो, तो उत्कृष्टता स्वाभाविक है। जॉन रस्किन +* जब हम निर्माण करें, तो ऐसा सोच कर करें कि यह हमेशा हमेशा के लिए है। जॉन रस्किन +* मैं नही जानता कि सफलता की सीढी क्या है; पर असफला की सीढी है, हर किसी को प्रसन्न करने की चाह। बिल कोस्बी +* मुझे सफलता का उपाय नहीं मालूम लेकिन यह मालूम है कि सब को खुश करने का प्रयत्न असफलता का उपाय है। बिल कोस्बी +* सफल होने के लिए ज़रूरी है कि आप में सफलता की आस असफलता के डर से कहीं अधिक हो। बिल कोज़्बी +* हर वर्ष एक बुरी आदत को मूल से खोदकर, फेंका जाए तो कुछ ही वर्षों में बुरे से बुरा, व्‍यक्ति भला हो सकता है। सुकरात +* धन से अच्‍छे गुण नहीं मिलते, धन अच्‍छे गुणों से मिलता है। सुकरात +* निकम्मे लोग सिर्फ खाने पीने के लिए जीते हैं, लेकिन सार्थक जीवन वाले जीवित रहने के लिए ही खाते और पीते हैं। सुकरात +* जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने वश म��ं कर लेता है, वह दूसरों के क्रोध से (फलस्वरूप) स्वयमेव बच जाता है। सुकरात +* ऊंची से ऊंची चोटी पर पहुंचना मकसद हो तो अपना काम निचली सतह से शुरू करना चाहिए। स्‍वेट मार्डेन +* आशा और आत्‍मविश्‍वास से ही हमारी, शक्तियां जागृत होती हैं, इनसे हमारी, उत्‍पादन शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। स्‍वेट मार्डेन +* हमारी अधिकतर बाधाएँ पिघल जाएंगी अगर उनके सामने दुबकने के बजाय हम उनसे निडरतापूर्वक निपटने का मानस बनाएँ। ओरिसन स्वेट मार्डेन +* ऐसे सभी व्‍यक्ति जिन्‍होंने महान उपलब्धियां हासिल की हैं, वह महान स्‍वप्‍नदृष्‍टा भी होते हैं। ओरिसन स्‍वेट मार्डन +* अपनी शक्ति को छोटा न समझें, एक छोटी सी चिनगारी भी विशाल वन को जला कर राख कर सकती हैं। स्वेट मार्डन +* जब कोई व्यक्ति ठीक काम करता है, तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है। गेटे +* इस संसार में सबसे सुखी वही व्‍यक्ति है जो अपने घर में शांति पाता है। गेटे +* अपनी आंखों को सितारों पर टिकाने से पहले अपने पैर जमीन में गड़ा लो। थियोडॉर रूज़वेल्ट +* आपसे जितना हो सके करें, वहीं जहां आप हैं और उनसे जो साधन आपके पास हैं। थियोडोर रूसवेल्ट +* लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित कर पाना ही सफ़लता का एक अति महत्वपूर्ण सूत्र है। थियोडोर रूसवेल्ट +* वास्तविक कठिनाईयों को दूर किया जा सकता है; केवल कल्पनात्मक कठिनाईयां को ही पराजित नहीं किया जा सकता है। थियोडोर एन. वेल +* सुविचरों से सुफल उपजते हैं और कुविचारों से कुफल। जेम्स एलन +* लक्ष्‍मी को पाना है तो या तो उल्‍लू बनना होगा या प्रभु विष्‍णु, लक्ष्‍मी केवल इन्‍हीं दोनों के पास ही रहती है। एक की सवारी करती है और एक की सेवा। जितने अंश तक उल्‍लू या विष्‍णु के गुण तुम्‍हारे भीतर होंगे, उतने ही अंश तक लक्ष्‍मी तुम्‍हारे पास रहेगी। जेम्‍स एलन +* गुणवत्ता की कसौटी बनें। कई लोग ऐसे वातावरण के अभ्यस्त नहीं होते जहां उत्कृष्टता अपेक्षित होती है। स्टीव जॉब्स +* मैं अपने जीवन को एक पेशा नहीं मानता, मैं कर्म में विश्वास रखता हूं, मैं परिस्थितियों से शिक्षा लेता हूं, यह पेशा या नौकरी नहीं है यह तो जीवन का सार है। स्टीव जॉब्स, संस्थापक, एप्पल +* मुझे यकीन है कि सफल और असफल उद्यमियों में आधा फर्क तो केवल अध्यवसाय का ही है। स्टीव जॉब्स +* गुणवत्ता प्रचुरता से अधिक महत्वपूर्ण है, एक छक्का दो-दो रन बनाने से कहीं बेहतर है। स्टीव जॉब्स +* अभिकल्पना किसी यंत्र की बाहरी बनावट मात्र नहीं है, अभिकल्पना तो इसकी कार्यविधि का मूल है। स्टीव जॉब्स +* यदि आप सौ व्यक्तियों की सहायता नहीं कर सकते तो केवल एक की ही सहायता कर दें। मदर टेरेसा +* मीठे बोल संक्षिप्त और बोलने में आसान हो सकते हैं, लेकिन उन की गूँज सचमुच अनंत होती है। मां टेरेसा +* मैं सफलता की प्रार्थना नहीं करती हूं, मैं विश्वास के लिए कहती हूं। मदर टेरेसा +* छोटी छोटी बातों में विश्वास रखें, क्योंकि इन में ही आपकी शक्ति निहित है। संत तरेसा +* आयु आपकी सोच में है। जितनी आप सोचते हैं उतनी ही आपकी उम्र है। मुहम्मद अली +* बच्चों को देखकर इच्छा होती है कि जीवन फिर से शुरू करें। मुहम्मद अली +* मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था – 'भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी जिंदगी चैम्पियन की तरह जिओ मुहम्मद अली +* आप प्रत्येक ऐसे अनुभव जिसमें आपको वस्तुत डर सामने दिखाई देता है, से बल, साहस तथा विश्वास अर्जित करते हैं, आपको ऐसे कार्य अवश्य करने चाहिए जिनके बारे में आप सोचते हैं कि आप उनको नहीं कर सकते हैं। एलेनोर रुज़वेल्ट +* भविष्य उनका है जो अपने सपनों की सुंदरता में यकीन करते हैं। एलेअनोर रूज़वेल्ट +* आपकी मर्जी के बिना कोई भी आपको तुच्छ होने का अहसास नहीं करवा सकता है। एलेयनोर रूज़वेल्ट +* महान मानस के लोग विचारों पर बात करते हैं, साधारण मानस के लोग घटनाक्रम की बात करते हैं, और निम्न स्तर के लोग दूसरों के बारे में बात करते हैं। एलेनोर रूसवेल्ट +* यदि मैं उदास महसूस करती हूं तो मैं काम पर चली जाती हूं, काम में व्यस्तता उदासी का उत्तम प्रतिकार है। एलेनोर रूजवेल्ट +* वह व्यक्ति अच्छा कार्य निष्पादन करता है जो परिस्थितियों का ठीक से सामना करता है। प्लुटार्च +* कोई गलती न करना मनुष्य के बूते की बात नहीं है, लेकिन अपनी त्रुटियों और गलतियों से समझदार व्यक्ति भविष्य के लिए बुद्धिमत्ता अवश्य सीख लेते हैं। प्लूटार्क +* क्रोध बुद्धि को घर से बाहर, निकाल देता है और दरवाजे पर, चटकनी लगा देता है। प्‍लूटार्क +* जीवन में अनेक विफलताएं केवल इसलिए होती हैं क्योंकि लोगों को यह आभास नहीं होता है कि जब उन्होंने प्रयास बन्द कर दिए तो उस समय वह सफलता के कित���े क़रीब थे। थोमस एडिसन +* चाहे आप में कितनी भी योग्यता क्यों न हो, केवल एकाग्रचित्त होकर ही आप महान कार्य कर सकते हैं। बिल गेट्स +* टीवी वास्तविकता से परे है, वास्तविक जीवन में लोगों को फुरसत छोड़ कर नौकरी और कारोबार करना होता है। बिल गेट्स +* सफलता की खुशियां मनाना ठीक है, लेकिन असफलताओं से सबक सीखना अधिक महत्‍वपूर्ण है। बिल गेट्स +* अगर सफलता का कोई राज़ है, तो वह दूसरे के दृष्टिकोण को समझने और चीजों को उसके दृष्टिकोण से अपने दृष्टिकोण जितने अच्छे से देख पाने की क्षमता में निहित है। हेनरी फोर्ड +* असफलता मात्र फिर से कार्यारम्भ करने का अवसर होती है, इस बार और अधिक बुद्धिमत्ता से। हेनरी फोर्ड +* व्यस्त रहना काफ़ी नहीं है, व्यस्त तो चींटियाँ भी रहती हैं। सवाल यह है हम किस लिए व्यस्त हैं हेनरी डेविड थोरु +* प्रातःकाल का भ्रमण पूरे दिन के लिए वरदान होता है। हेनरी डेविड थोरो (1817-1862 लेखक +* लोग आपको समालोचना के लिए पूछ भले ही लें, लेकिन चाहते वे केवल प्रशंसा ही हैं। डब्लू सोमरसेट मोघेम +* जब आप अपने मित्रों का चयन करते हैं तो चरित्र के स्थान पर व्यक्तित्व को न चुनें। डब्ल्यू सोमरसेट मोघम +* जीवन के बारे में एक मजेदार बात यह है कि यदि आप सर्वश्रेष्ठ वस्तु से कुछ भी कम स्वीकार करने से इंकार करते हैं तो अकसर आप उसको प्राप्त कर ही लेते हैं। डब्ल्यू. सोमरसेट मोघम +* लोग अक्सर कहते हैं कि प्रेरक विचारों से कुछ नहीं होता। हाँ भाई, वैसे तो नहाने से भी कुछ नहीं होता, तभी तो हम इसे रोज़ करने की सलाह देते हैं। ज़िग ज़िगलर +* जीतने का इतना महत्व नहीं है जितना की जीतने के लिए प्रयास करने का महत्व होता है। जिग जिगलार +* आपकी उपलब्धियों का निर्धारण आपकी प्रवृति से नहीं अपितु आपके रवैय्ये से होता है। जिग जिगलर +* ईमानदारी, चरित्र, विश्वास, प्रेम और वफादारी संतुलित सफलता के लिए नींव के पत्थर हैं। जिग जिगलर +* लोग कहते हैं कि प्रेरणा देर तक नहीं चलती। खैर, स्नान भी नहीं, तभी हम रोज नहाने की सलाह देते हैं। जिग जिगलर +* जब तक आप ढूंढते रहेंगे, समाधान मिलते रहेंगे। जॉन बेज +* निराशा को काम में व्यस्त रहकर दूर भगाया जा सकता है। जॉन बेइज़ +* आपको यह चुनने का अवसर नहीं मिलता है कि आप किस प्रकार से अथवा कब मरेंगे, आप केवल इतना ही निर्णय कर सकते हैं कि आप किस प्रकार से जिंदगी को ज़ीने जा रहे हैं। जॉन बेइज़ +* समस्त सफलताएं कर्म की नींव पर आधारित होती हैं। एंथनी राबिन्स +* मुझे काफ़ी समय पहले ही पता लग गया था कि यदि मैं लोगों की उनकी चाहतों को पूरा करने में सहायता करता हूं तो मुझे हमेशा वह सब मिल जाएगा जो मैं चाहता था और मुझे कभी भी चिंता नहीं करनी पड़ेगी। एंथनी राबिन्स +* आप हमेशा परिस्थितियों को नियंत्रित, नहीं कर सकते, लेकिन आप खुद को जरूर नियंत्रित कर सकते हैं। एंथनी रोबिन्‍स +* यदि आप किसी चीज का सपना देख सकते हैं, तो आप उसे प्राप्त कर सकते हैं। वाल्ट डिज़नी +* जब हम किसी नई परियोजना पर विचार करते हैं तो हम बड़े गौर से उसका अध्ययन करते हैं केवल सतह मात्र का नहीं, बल्कि उसके हर एक पहलू का। वाल्ट डिज़्नी +* हम आगे बढ़ते हैं, नए रास्ते बनाते हैं, और नई योजनाएं बनाते हैं, क्योंकि हम जिज्ञासु है और जिज्ञासा हमें नई राहों पर ले जाती है। वाल्ट डिज़्नी +* एक मूल नियम है कि समान विचारधारा के व्यक्ति एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं, नकारात्मक सोच सुनिश्चित रुप से नकारात्मक परिणामो को आकर्षित करती है, इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति आशा और विश्वास के साथ सोचने को आदत ही बना लेता है तो उसकी सकारात्मक सोच से सृजनात्मक शक्तियों सक्रिय हो जाती हैं- और सफलता उससे दूर जाने की बजाय उसी ओर चलने लगती है। नार्मन विंसेन्ट पीएले +* जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाइयां लड़ना नहीं, बल्कि उन से बचना है। कुशलतापूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है। नॉरमन विंसेंट पील (1896-1993) +* जीवन में दो मूल विकल्‍प होते हैं, स्थितियों को उसी रूप में स्‍वीकार करना जैसी वे हैं या उन्‍हें, बदलने का उत्‍तरदायित्‍व स्‍वीकार करना। डेनिस वेटले +* समय और स्‍वास्‍थ्‍य दो बहुमूल्‍य संपत्तियां हैं, जिनकी पहचान तथा मूल्‍य हम उस समय तक नहीं समझते जब तक उनका नाश नहीं हो जाता। डेनिस वेटले +* यदि आप यह मानते हैं कि आप कर सकते हैं, तो संभवतः आप कर सकते हैं, यदि यह सोचते हैं कि आप नहीं कर सकते, तो आप सुनिश्चित रुप से नहीं कर सकते, विश्वास वह स्विच है जो आपको आगे बढ़ाता है। डेनिस वेटले +* हो सकता है कि मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊँ, परन्तु विचार प्रकट करने के आपके अधिकार की रक्षा करूँगा। वाल्तेयर +* किसी निर्दोष को दंडित करने से बेहतर है एक दोषी व्यक्ति को बख़्श देने का जोख़िम उठाना। वाल्तेयर (1694-1778) +* सत्य से प्यार करें और गलती को क्षमा कर दें। वोल्टेयर +* जिस व्यक्ति के पास शिक्षा है, उसका चिन्ह अच्छा शिष्टाचार है। +* आगे का जीवन केवल तभी शानदार हो सकता है जब आप प्रभु के साथ समग्रता से रहना सीखें। +* अपने और दूसरों के और आपके और मेरे बीच अलगाव की एक दीवार है। इस दीवार को नष्ट कर दो +* अपनी सांसारिक गतिविधियों को सहर्ष करें, लेकिन ईश्वर को न भूलें। +* यदि आप धनवान हैं, तो विनम्र बनें। फल लगने पर पौधे झुक जाते हैं। +* प्रेरणा कार्य आरम्भ करने में सहायता करती है, आदत कार्य को जारी रखने में सहायता करती है। जिम रयून +* अनुशासन, लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का सेतु है। जिम रॉन +* औपचारिक शिक्षा आपको जीविकोपार्जन के लिए उपयुक्त बना देती है; स्व शिक्षा (अनुभव) आपका भाग्य बनाती है। जिन रॉन +* जीवन हमें जो ताश के पत्ते देता हैं, उन्हे हर खिलाड़ी को स्वीकार करना पड़ता हैं, लेकिन जब पत्ते हाथ में आ जावे तो खिलाड़ी को यह तय करना होता हैं कि वह उन पत्तों को किस तरह खेलें, ताकि वह बाजी जीत सके। वाल्तेयर +* मुझे सफलता का उपाय नहीं मालूम है, लेकिन यह मालूम है कि सब को खुश करने का प्रयत्न असफलता का उपाय है । बिल कोस्बी +* अपना जीवन ऐसे जिये कि आपके बच्चे अपने बच्चों से कह सकें कि आप न केवल किसी प्रशंसनीय निमित्त के समर्थक थे आप उसका पालन भी करते थे। डेन जाद्रा +* रोष एक बोझ है जो आपकी सफलता के साथ असंगत है। क्षमा करने में अव्वल रहें; और अपने आप को सबसे पहले क्षमा करें। डेन जाड्रा +* प्रत्येक उतकृष्ट कार्य पहले पहल असम्भव होता है। थॉमस कार्लेले +* अंतर्दृष्टि के बिना ही काम करने से अधिक भयानक दूसरी चीज नहीं है। थामस कार्लाइल +* क्लोज़-अप में जीवन एक त्रासदी (ट्रेजेडी) है, तो लंबे शॉट में प्रहसन (कॉमेडी)। चार्ली चेपलिन +* कठिन परिश्रम से भविष्य सुधरता है। आलस्य से वर्तमान। स्टीवन राइट +* आप को सब कुछ नहीं मिल सकता| आप इसे रखेंगे कहां स्टीवन राइट +* ज्ञान की अपेक्षा अज्ञान ज्यादा आत्मविश्वास पैदा करता है। चार्ल्स डार्विन +* ऐसा व्यक्ति जो एक घंटे का समय बरबाद करता है, उसने जीवन के मूल्य को समझा ही नहीं है। चार्ल्स डारविन +* परस्पर आदान-प्रदान के बिना समाज में जीवन का निर्वाह संभव नहीं है। सेमुअल जॉन्सन +* कभी संदेह न करें कि विचारशील नागरिकों का छोटा समूह दुनिया बदल सकता है। वास्तव में, कभी कुछ बदला है तो ऐसे ही। माग्रेट मीड +* मनुष्य की सबसे शुरुआत��� आवश्यकताओं में एक है किसी ऐसे की ज़रूरत जो आपके रात को घर न लौटने पर चिंतित हो कि आप कहाँ हैं। माग्रेट मीड +* आशा वह शक्ति है जो उन परिस्थितियों में भी हमें प्रसन्न बनाए रखती है जिनके बारे में हम जानते हैं कि वे खराब हैं। जी. के. चेस्टर्टन +* इस धरा पर जैसा कोई विषय नहीं जो अरुचिकर हो; यदि ऐसा कुछ है तो वह एक बेसरोकार व्यक्ति ही हो सकता है। जी. के. चेस्टरटन +* सफलता का कोई रहस्य नहीं हैं, यह तैयारी, कड़ी मेहनत और असफलता से सीखने का ही परिणाम होता है। जन. कोलिन एल. पावेल +* यदि आप बार बार नहीं गिर रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आप कुछ नया नहीं कर रहे हैं। वुडी एलन +* यदि बार-बार असफल नहीं हो रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आप कुछ आविष्कारक काम भी नहीं कर रहे हैं। वुडी एल्लेन +* जो व्यक्ति किसी तारे से बंधा होता है वह पीछे नहीं मुड़ता। लेओनार्दो दा विंची (1452-1519 इतालवी कलाकार, संगीतकार एवं वैज्ञानिक +* सीखने से मस्तिष्क कभी नहीं थकता है। लियोनार्डो दा विंची +* यदि आपको पहली बार में सफलता नहीं मिलती है, तो फिर से कड़ी मेहनत करें। विलियम फैदर +* सफलता का एक ही सूत्र है और वह जब अन्य हिम्मत हार चुके हों तो भी आप डटे रहते हैं। विलियम फैदर +* आकार का इतना अधिक महत्व नहीं होता है, व्हेल मछली का अस्तित्व खतरे में है जबकि चींटी एक सहज जीवन जी रही है। बिल वाघन +* हजार मील का सफर भी एक कदम से ही आरंभ होता है। लाओ त्ज़ु +* अपने शत्रुओं को सदैव क्षमा कर दो, वे और किसी बात से इससे ज्यादा नहीं चिढ़ते। ऑस्कर वाइल्ड +* जीवन का लक्ष्य है आत्मविकास। अपने स्वभाव को पूर्णतः जानने के लिऐ ही हम इस दुनिया में है। ऑस्कर वाइल्ड +* ना कहने का साहस रखें, सच्चाई का सामना करने का साहस रखें, सही कार्य करें क्योंकि यह सही है, यह जीवन को सत्यनिष्ठा से जीने की जादुई चाबियां हैं। डब्ल्यू क्लेमैन्ट स्टोन +* जब हम अपने विचारों को सही दिशा निर्देशन प्रदान करते हैं, तो हम अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं। डब्ल्यू. क्लेमेंट स्टोन +* नन्हे शिशु के जन्म का अर्थ है कि भगवान यह चाहते हैं कि यह दुनिया बनी रहे। कार्ल सैन्बर्ग +* मौन निद्रा के सदृश है। यह ज्ञान में नयी स्फूर्ति पैदा करता है। बेकन +* अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अलंकृत भी करता है और योग्य भी बनाता है, मस्तिष्क के लिये अध्ययन की उतनी ही आवश्यकता है जितनी शरीर के लिये व्याय��म की। जोसेफ एडिशन +* जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है। हक्सले +* साहस और दृढ़ निश्चय जादुई तावीज़ हैं जिनके आगे कठिनाईयां दूर हो जाती हैं और बाधाएं उड़न-छू हो जाती है। जॉन क्विंसी एडम्स +* अपने सम्मान की बजाय अपने चरित्र के प्रति अधिक गम्भीर रहें, आपका चरित्र ही यह बताता है कि आप वास्तव में क्या हैं जबकि आपका सम्मान केवल यही दर्शाता है कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं। जॉन वुडन +* विवाह करने से पहले मेरे पास बच्चों को पालने के छः सिद्धांत थे, अब मेरे पास छः बच्चे हैं पर सिद्धांत एक भी नहीं। जॉन विल्मोट +* जिन्‍दगी वैसी नहीं है जैसी आप इसके लिये कामना करते हैं, यह तो वैसी बन जाती है, जैसा आप इसे बनाते हैं। एंथनी रयान +* जीवन वह नहीं है जिसकी आप चाहत रखते हैं, बल्कि वह तो वैसा बन जाता है जैसा आप इसे बनाते हैं। एंथनी रयान +* जीवन में सबसे महत्वपूर्ण वस्तुएं वस्तुएं नहीं होती। एंथनी डी'एंजेलो +* सफल होने के लिए आपको असफलता का स्वाद अवश्य चखना चाहिए, ताकि आपको यह पता चल सके कि अगली बार क्या नहीं करना है। एंथनी जे. डीएंजेलो +* प्रत्येक समस्या अपने साथ आपके लिए एक उपहार लेकर आती है। रिचर्ड बैक +* वह रिश्ता जो आपके परिवार को वास्तव में बाँधता है, वह खून का नहीं है, बल्कि एक दूसरे के जीवन के प्रति आदर और खुशी का रिश्ता होता है। रिचर्ड बैक +* आप जितना कम बोलेंगे, आप की उतनी ही सुनी जाएगी। एबिगैल वैन ब्यूरेन +* अकेलापन निर्धनता की पराकाष्ठा है। एबिगैल वैन ब्यूरेन +* प्रेरणा अंतर्मन से उत्पन्न होने वाली आग है, यदि आपके भीतर इस आग को जलाने का प्रयास किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है तो इस बात की संभावना है कि यह थोड़ी ही देर जलेगी। स्टीफन आर. कोवे +* अपनी कल्पना को जीवन का मार्गदर्शक बनाएं, अपने अतीत को नहीं। स्टीफन कोवि +* ईमानदारी किसी कायदे क़ानून की मोहताज़ नहीं होती। आल्बेर कामू (1913-1960 1957 में साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता +* यह एक प्रकार का आध्यात्मिक दंभ है जिसमें लोगों को लगता है कि वे धन के बिना सुखी रह सकते हैं। एल्बर्ट कामू +* कोई भी व्यक्ति सेब के बीजों की गिनती कर सकता है, लेकिन बीज में सेबों की गिनती केवल भगवान ही कर सकते हैं। राबर्ट एच. शुलर +* असफलता का मतलब यह नहीं कि आप असफल हैं, इसका मतलब सिर्फ इतना है कि आप अब तक सफल नहीं हो पाएँ हैं। रोबर्ट शुलर +* प्रबंधन अन्य लोगों के माध्यम से काम करवाने की कला है। मैरी पार्कर फोल्लेट्ट +* प्रत्येक बच्चा एक कलाकार होता है, समस्या यह है कि युवा होने पर कलाकार कैसे बने रहा जाए। पाबलो पिकासो +* काम समस्त सफलता की आधारभूत नींव होता है। पाब्लो पिकासो +* एक चीज जिससे डरा जाना चाहिए वह डर है। फ्रेंकलिन डी. रुज़वेल्ट +* बिना उचित अवसर के योग्‍यता किसी काम की, नहीं है भले आप में लाख गुण हों लेकिन यदि, अवसर नहीं मिला तो योग्‍यता व्‍यर्थ है। नेपोलियन बोनापार्ट +* अशिक्षित रहने से पैदा न होना अच्‍छा है, क्‍योंकि अज्ञान सब बुराईयों का मूल हैं। नेपोलियन बोनापार्ट +* सच्ची से सच्ची और अच्छी से अच्छी चतुराई दृढ संकल्प है। नेपोलियन बोनापार्ट +* यदि आप बार-बार शिकायत नहीं करते हैं तो आप किसी भी कठिनाई को दूर कर सकते हैं। बर्नार्ड एम. बारूच +* अधिकांश सफल व्यक्ति जिन्हें मैं जानता हूं वे ऐसे व्यक्ति हैं जो बोलते कम और सुनते ज्यादा हैं। बर्नार्ड एम. बारूच +* निष्क्रियता से संदेह और डर की उत्पत्ति होती है, क्रियाशीलता से विश्वास और साहस का सृजन होता है, यदि आप डर पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं, तो चुपचाप घर पर बैठ कर इसके बारे में विचार न करें, बाहर निकले और व्यस्त रहें। डेल कार्नेगी +* इस तरह से कार्य करें जैसे कि आप पहले से ही खुश हैं तथा इसके परिणामस्वरुप आप खुशी प्राप्त कर लेंगे। डेल कार्नेज +* गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं। डेनियल +* कोई छोटी-छोटी योजनाएं न बनाएं; उनमें मनुष्य को प्रेरित करने का कोई जादु नहीं समाया होता, बड़ी योजनाएं बनाएं, उच्च आशा रखें और काम करें। डैनियल एच. बर्नहम +* मैंने सीखा है कि लोग भूल जाते हैं कि आपने क्या कहा था, लोग भूल जाते हैं कि आपने क्या किया था, लेकिन लोग कभी नहीं भूलते कि आपने उनके साथ कैसा बर्ताव किया था। माया एंजेलो + + +भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ९ सितंबर १८५०-७ जनवरी १८८५) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनके द्वारा रचित मौलिक नाटक, अनूदित नाट्य रचनाएँ, काव्यकृतियां एवम् निबन्ध आदि हिन्दी साहित्य की धरोहर है । +विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार। +* इस प्रान्त की प्राथमिक पाठशालाओं में हिंदी भाषा की लिपि का प्रयोग प्रायः पूर्णतया किया जाता है। परन्तु अदालतों और दफ्तरों मे��� फारसी भाषा की लिपि का प्रयोग होता है; अतः उस प्राथमिक शिक्षा का जो एक ग्रामीण लड़का अपने गाँव में प्राप्त करता है, कोई मूल्य नहीं है, कोई फल नहीं है। उसमें कोई आकर्षण ही नहीं रह जाता. वर्षों तक एक ग्राम पाठशाला में पढ़ने के बाद जब एक जमींदार का लड़का अदालत में जाता है तो उसे पता चलता है कि उसका सब परिश्रम व्यर्थ गया, अपने पूर्वजों की भांति वह भी बिलकुल अज्ञानी है, तथा वह उस घसीट लिपि (उर्दू) को पढ़ने में बिलकुल असमर्थ है जो अदालत का अमला प्रयोग में लाता है। यदि एक निर्धन व्यक्ति के पुत्र को अपने (हिंदी) ज्ञान के भरोसे पर जीविका साधन प्राप्त करने की अभिलाषा है तो उसे शिक्षा विभाग का द्वार खटखटाना पड़ेगा, अन्य विभाग उसे अशिक्षित कहकर वापस कर देंगे। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन) +* मुझे यह जानकर बहुत खेद हुआ कि माननीय अहमद खां बहादुर, सी. एस. आई ने आयोग के सामने अपनी गवाही में कहा है कि सुसभ्य वर्ग की भाषा उर्दू है और असभ्य ग्रामीणों की हिंदी है। यह कथन गलत तो है ही, हिन्दुओं के प्रति अन्यायपूर्ण भी है। इसका अर्थ यह हुआ कि कुछ कायस्थों को छोड़कर, अन्य सब अर्थात् क्षेत्रीय महाजन, जमींदार, यहाँ तक कि आदरणीय ब्राह्मण भी, जो हिंदी बोलते हैं, असभ्य ग्रामीण हैं। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन पृष्ठ 38) +* सभी सभी देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग किया जाता है. यही ऐसा देश है जहाँ अदालती भाषा न तो शासकों की मातृभाषा है और न प्रजा की। यदि आप दो सार्वजनिक नोटिस, एक उर्दू में, तथा एक हिंदी में, लिखकर भेज दें तो आपको आसानी से मालूम हो जाएगा कि प्रत्येक नोटिस को समझने वाले लोगों का अनुपात क्या है। जो सम्मान जिलाधीशों द्वारा जारी किये जाते हैं उनमें हिंदी का प्रयोग होने से रैयत और जमींदार को हार्दिक प्रसन्नता प्राप्त हुई है। साहूकार और व्यापारी अपना हिसाब-किताब हिंदी में रखते हैं. स्त्रियाँ हिंदी लिपि का प्रयोग करती हैं. पटवारी के कागजात हिंदी में लिखे जाते हैं और ग्रामों के अधिकतर स्कूल हिंदी में शिक्षा देते हैं। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन) +* वास्तव में हमारी बोली क्या है, इस प्रश्न का उत्तर देना कुछ कठिन है। भारत में यह कहावत प्रसिद्ध है – बल्कि यह प्रमाणित सत्य है कि प्रत्येक योजन (आठ मील) के बाद बोली बदल जाती है। ���केले उत्तर पश्चिमी प्रान्त में कई बोलियाँ हैं. इस प्रान्त की भाषा एक गहन चीज है, उसके बहुत से रूप हैं। और इसलिए उसे कई उप-शीर्षकों में विभाजित किया जा सकता है; परन्तु इसके मुख्य रूप चार हैं 1. पूर्वी, जिस रूप में वह बनारस तथा उसके पड़ौस के जिलों में बोली जाती है; 2. कन्नौजी, जो कानपुर तथा उसके आसपास के जिलों में बोली जाती है; 3. ब्रजभाषा, जो आगरा तथा उसकी सीमा के क्षेत्रों में बोली जाती है; 4. कय्यान या खड़ी बोली जिस रूप में वह सहारनपुर, मेरठ तथा उसके इर्द-गिर्द के जिलों में बोली जाती है। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन) +* यदि हिन्दी अदालती भाषा हो जाए, तो सम्मन पढ़वाने, के लिए दो-चार आने कौन देगा, और साधारण-सी अर्जी लिखवाने के लिए कोई रुपया-आठ आने क्यों देगा। तब पढ़ने वालों को यह अवसर कहाँ मिलेगा कि गवाही के सम्मन को गिरफ्तारी का वारंट बता दें। सभी सभ्य देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग किया जाता है। यही (भारत) ऐसा देश है जहाँ अदालती भाषा न तो शासकों की मातृभाषा है और न प्रजा की। यदि आप दो सार्वजनिक नोटिस, एक उर्दू में, तथा एक हिंदी में, लिखकर भेज दें तो आपको आसानी से मालूम हो जाएगा कि प्रत्येक नोटिस को समझने वाले लोगों का अनुपात क्या है। जो सम्मन जिलाधीशों द्वारा जारी किये जाते हैं उनमें हिंदी का प्रयोग होने से रैयत और जमींदार को हार्दिक प्रसन्नता प्राप्त हुई है। साहूकार और व्यापारी अपना हिसाब-किताब हिंदी में रखते हैं। स्त्रियाँ हिंदी लिपि का प्रयोग करती हैं। पटवारी के कागजात हिंदी में लिखे जाते हैं और ग्रामों के अधिकतर स्कूल हिंदी में शिक्षा देते हैं। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन) +* जो हो मैंने आप कई बेरे परिश्रम किया कि खड़ी बोली में कुछ कविता बनाऊँ पर वह मेरे चित्तानुसार नहीं बनी इससे यह निश्चित होता है कि ब्रज-भाषा ही में कविता करना उत्तम होता है और इसी के कविता ब्रज-भाषा में ही उत्तम होती है। +* प्रचलित साधुभाषा में कुछ कविता भेजी है। देखिएगा कि इस में क्या कसर है। और किस उपाय के अवलम्बन करने से इस भाषा में काव्य सुंदर बन सकता है। इस विषय में सर्वसाधारण की अनुमति ज्ञात होने पर आगे से वैसा परिश्रम किया जाएगा। तीन भिन्न-भिन्न छंदों में यह अनुभव करने के लिए कि किस छंद में इस भाषा का काव्य अच्छा होगा, कविता लिखी है��� मेरा चित्त इससे संतुष्ट न हुआ और न जाने क्यों ब्रज-भाषा से मुझे इसके लिखने में दूना परिश्रम हुआ। इस भाषा की क्रियाओं में दीर्घ भाग विशेष होने के कारण बहुत असुविधा होती है। मैंने कहीं-कहीं सौकर्य के हेतु दीर्घ मात्राओं को भी लघु करके पढ़ने की चाल रखी है। लोग विशेष इच्छा करेंगे और स्पष्ट अनुमति प्रकाश करेंगे तो मैं और भी लिखने का यत्न करूँगा। (1 सितंबर 1881 को ‘भारत मित्र’ के सम्पादक को पत्र ) +* जब अंग्रेज विलायत से आते हैं प्रायः कैसे दरिद्र होते हैं और जब हिंदुस्तान से अपने विलायत को जाते हैं तब कुबेर बनकर जाते हैं। इससे सिद्ध हुआ कि रोग और दुष्काल इन दोनों के मुख्य कारण अंग्रेज ही हैं। (अपनी पत्रिका कविवचनसुधा में) +* हमारे हिंदुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं. यद्यपि फस्ट क्लास, सेकेंड क्लास आदि गाड़ी बहुत अच्छी-अच्छी और बड़े बड़े महसूल की इस ट्रन में लगी हैं पर बिना इंजिन ये सब नहीं चल सकतीं, वैसे ही हिन्दुस्तानी लोगों को कोई चलाने वाला हो तो ये क्या नहीं कर सकते। इनसे इतना कह दीजिए `का चुप साधि रहा बलवाना´, फिर देखिए हनुमानजी को अपना बल कैसा याद आ जाता है। सो बल कौन याद दिलावै। या हिन्दुस्तानी राजे महाराजे नवाब रईस या हाकिम। राजे-महाराजों को अपनी पूजा, भोजन, गप से छुट्टी नहीं। हाकिमों को कुछ तो सरकारी काम घेरे रहता है, कुछ बाल, धुड़दौड़, थिएटर, अखबार में समय गया। कुछ बचा भी तो उनको क्या गरज है कि हम गरीब गंदे काले आदमियों से मिलकर अपना अनमोल समय खोवैं। बलिया व्याख्यान' की रपट 'हरिश्चंद्र चंद्रिका´ में 3 दिसम्बर 1884 ) +* भारतवर्ष की उन्नति के जो अनेक उपाय महात्मागण आजकल सोच रहे हैं, उनमें एक और उपाय होने की आवश्यकता है। इस विषय के बड़े-बड़े लेख और काव्य प्रकाश होते हैं, किंतु वे जनसाधारण के दृष्टिगोचर नहीं होते। इसके हेतु मैंने यह सोचा है कि जातीय संगीत की छोटी-छोटी पुस्तकें बनें और वे सारे देश, गांव-गांव में साधारण लोगों में प्रचार की जाएं। मेरी इच्छा है कि मैं ऐसे गीतों का संग्रह करूं और उनको छोटी-छोटी पुस्तकों में मुद्रित करूं। +भारतेन्दु पर महापुरुषों के विचार +* विक्रम की बीसवीं शताब्दी का प्रथम चरण समाप्त हो जाने पर जब भारतेन्दु ने हिन्दी-गद्य की भाषा को सुव्यवस्थित और परिमार्जित करके उसका स्वरूप स्थिर कर दिया तब से गद्य-साहित्य की परंपरा लगातार चली । ���सी दृष्टि से भारतेन्दु जी जिस प्रकार वर्तमान गद्य-भाषा के स्वरूप के प्रतिष्ठापक थे, उसी प्रकार वर्तमान साहित्य-परंपरा के प्रवर्तक । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल अपने 'भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' नामक निबन्ध में +* देशी बोली में रचित साहित्य को लोकप्रिय बनाने में भारतेन्दु हरिश्चंद्र से अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य किसी अन्य भारतीय ने नहीं किया। जॉर्ज ग्रियर्सन +* जिसका घर साहित्यकारों के सम्मेलन का सभाभवन हो, जिसने अपने चारों तरफ़ बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र, राधाचरण गोस्वामी, श्रीनिवासदास, काशिनाथ आदि लेखकों का व्यूह रचाया हो, जिसने ‘कवि-वचन-सुधा’ से लेकर ‘सारसुधा निधि’ तक पचीसों अख़बारों और पत्रों से हिन्दी में नयी हलचल मचा दी हो और स्वयं नाटक, निबंध, कविताएं, व्याख्यान, मुकरियाँ आदि से अपने युग को चमत्कृत करके 36 साल की अवस्था में ही अपनी जीवन-लीला समाप्त कर दी हो – दरअसल उसका जीवन कहानी न होगा तो किसका होगा रामविलास शर्मा भारतेन्दु-युग विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, 1951, पृ. 169 +* भारतेन्दु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिन्दी साहित्य में अग्रणी स्थान प्राप्त है। हिन्दी भाषा को हिन्दी गद्य के लिए उन्होंने बड़े सर्जनात्मक ढंग से व्यवहार किया। मित्रों और ख़तो-किताबत करनेवालों के बीच उन्होंने एक मंडली जुटाई और इसे हिन्दी में साहित्य लेखन के लिए प्रेरित किया। बनारस में उनकी गणना ऊँची हैसियत के लोगों में की जाती थी। उनका संबंध बनारस के वनिकों में श्रेष्ठ गिने जाने वालों नवपति महाजनों में से एक से था। नवपति महाजन मूलतः क़र्ज़ देने का काम करते थे और 18वीं सदी में इन्हें अच्छी ख्याति प्राप्त हुई थी। अपने पिता के ही समान उन्होंने बनारस के सांस्कृतिक जीवन में अग्रणी भूमिका निभाई। वह कवि-गोष्ठी और संगीत समारोह का लगातार आयोजन करते थे। बनारस के महराजा से उनकी अच्छी दोस्ती थी। रामनगर की रामलीला को बढ़ावा देने में भारतेन्दु का बड़ा योगदान रहा। उन्होंने इस रामलीला के संवाद लिखे। वह शहर के मजिस्ट्रेट अवैतनिक के पद पर भी रहे और स्वेच्छा से त्यागपत्र दिया। उनका संबंध स्थानीय अंग्रेज अधिकारियों और प्राच्य विद्या विशारदों से रहा। कोलकाता स्थित एशियाटिक सोसायटी के सचिव राजेन्द्र लाल मित्र से उनका पत्र-व्यवहार होता था। ‘एशियाटिक रिसर्चेज़’ में छपे प्राच्य-विद्या स���बंधी शोधपरक लेख तथ अन्य व्याख्यान भारतेन्दु ने अपने पास जुटा कर रखे थे। उन्होंने कई समाजों की स्थापना की, स्कूल खोला या उनके चलने में सहायता दी और तीन महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं का संपादन किया। वसुधा डालमिया, पृ. 403-404 + + +सूत्रधार और नटी आती हैं, +सूत्रधार अहा हा! आज की संध्या की कैसी शोभा है। सब दिशा ऐसा लाल हो रही है, मानो किसी ने बलिदान किया है और पशु के रक्त से पृथ्वी लाल हो गई है। +स्थान रक्त से रंगा हुआ राजभवन +नेपथ्य में, बढ़े जाइयो! कोटिन लवा बटेर के नाशक, वेद धर्म प्रकाशक, मंत्र से शुद्ध करके बकरा खाने वाले, दूसरे के माँस से अपना माँस बढ़ाने वाले, सहित सकल समाज श्री गृध्रराज महाराजाधिराज! +राजा बैठकर, आज की मछली कैसी स्वादिष्ट बनी थी। +पुरोहित सत्य है। मानो अमृत में डुबोई थी और ऐसा कहा भी है- +राजा ठीक है इसमें कुछ संदेह नहीं है। +पुरोहित संदेह होता तो शास्त्र में क्यों लिखा जाता। हाँ, बिना देवी अथवा भैरव के समर्पण किए कुछ होता हो तो हो भी। +पुरोहित सच है और देवी पूजा नित्य करना इसमें कुछ सन्देह नहीं है, और जब देवी की पूजा भई तो माँस भक्षण आ ही गया। बलि बिना पूजा होगी नहीं और जब बलि दिया तब उसका प्रसाद अवश्य ही लेना चाहिए। अजी भागवत में बलि देना लिखा है, जो वैष्णवों का परम पुरुषार्थ है। +मंत्री और ‘पंचपंचनखा भक्ष्याः’ यह सब वाक्य बराबर से शास्त्रों में कहते ही आते हैं। +पुरोहित हाँ हाँ, जी, इसमें भी कुछ पूछना है अभी साक्षात् मनु जी कहते हैं- +और जो मनुजी ने लिखा है कि- +इससे जो खाली मांस भक्षण करते हैं उनको दोष है। महाभारत में लिखा है कि ब्राह्मण गोमाँस खा गये पर पितरों को समर्पित था इससे उन्हें कुछ भी पाप न हुआ। +पुरोहित हाँ जी यह सब मिथ्या एक प्रपंच है, खूब मजे में माँस कचर-कचर के खाना और चैन करना। एक दिन तो आखिर मरना ही है, किस जीवन के वास्ते शरीर का व्यर्थ वैष्णवों की तरह क्लेश देना, इससे क्या होता है। +हे परम प्रचण्ड भुजदण्ड के बल से अनेक पाखण्ड के खष्ड को खण्डन करने वाले, नित्य एक अजापुत्र के भक्षण की सामथ्र्य आप में बढ़ती जाय और अस्थि माला धारण करने वाले शिवजी आप का कल्याण करैं आप बिना ऐसी पूजा और कौन करे। आकर बैठता है, +ऐसा मालूम होता है कि कोई पुनर्विवाह का स्थापन करने वाला बंगाली आता है। +बंगाली अक्षर जिसके सब बे मेल, शब्द सब बे अर्थ न छंद वृत्ति, न कुछ, ऐसे भी मंत्र जिसके मुँह से निकलने से सब काय्र्यों के सिद्ध करने वाले हैं ऐसी भवानी और उनके उपदेष्टा शिवजी इस स्वतंत्र राजा का कल्याण करैं। +राजा क्यों जी भट्टाचार्य जी पुनर्विवाह करना या नहीं। +बंगाली यह वचन श्रीपराशर भगवान् का है जो इस युग के धर्मवक्ता हैं। +राजा क्यों पुरोहित जी, आप इसमें क्या कहते हैं? +पुरोहित कितने साधारण धर्म ऐसे हैं कि जिनके न करने से कुछ पाप नहीं होता, जैसा-”मध्याद्दे भोजनं कुर्यात्“ तो इसमें न करने से कुछ पाप नहीं है, वरन व्रत करने से पुण्य होता है। इसी तरह पुनर्विवाह भी है इसके करने से कुछ पाप नहीं होता और जो न करै तो पुण्य होता है। इसमें प्रमाण श्रीपाराशरीय स्मृति में- +राजा, मंत्री, पुरोहित और उक्त भट्टाचाय्र्य आते हंै और अपने-अपने स्थान पर बैठते हैं।, +राजा चल मुझ उद्दंड को कौन दंड देने वाला है। +वेदांती तुमको इससे कुछ प्रयोजन है? +विदूषक नहीं, कुछ प्रयोजन तो नहीं है। हमने इस वास्ते पूछा कि आप वेदांती अर्थात् बिना दाँत के हैं सो आप भक्षण कैसे करते होंगे। +बंगाली हम तो बंगालियों में वैष्णव हैं। नित्यानंद महाप्रभु के संप्रदाय में हैं और मांसभक्षण कदापि नहीं करते और मच्छ तो कुछ माँसभक्षण में नहीं। +वेदांती क्या तुम वैष्णव बनते हो? किस संप्रदाय के वैष्णव हो? +बंगाली हम नित्यानंद महाप्रभु श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के संप्रदाय में हैं और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु श्रीकृष्ण ही हैं, इसमें प्रमाण श्रीभागवत में- +वेदांती वैष्णवों के आचाय्र्य तो चार हैं। तो तुम इन चारों से विलक्षण कहाँ से आए? +राजा जाने दो, इस कोरी बकवाद का क्या फल है? +पुरोहित कोई वैष्णव और शैव आते हैं। +राजा चोबदार, जा करके अन्दर से ले आओ। ख्चोबदार बाहर गया, वैष्णव और शैव को लेकर फिर आया, +ख्राजा ने उठकर दोनों को बैठाया, +दोनों-शंख कपाल लिए कर मैं, कर दूसरे चक्र त्रिशूल सुधारे। +बंगाली महाराज, शैव और वैष्णव ये दोनों मत वेद के बाहर हैं। +इस युग का शास्त्र तंत्र है। +और कंठी रुद्राक्ष तुलसी की माला तिलक यह सब अप्रमाण है। +इस वाक्य में क्या कहते हैं? +शैव इस वाक्य में ठीक कहते हैं। इसके आगे वाले वाक्यों से इसको मिलाओ। यह दोनों तांत्रिकों ही के वास्ते लिखते हैं। वह शैव कैसे कि- +राजा भला वैष्णव और शैव माँस खाते हैं कि नहीं? +शैव महाराज, वैष्णव तो नहीं खाते और शैवों को भी न खाना चाह���ए परंतु अब के नष्ट बुद्धि शैव खाते हैं। +पुरोहित महाराज, वैष्णवों का मत तो जैनमत की एक शाखा है और महाराज दयानंद स्वामी ने इन सबका खूब खण्डन किया है, पर वह तो देवी की मूर्ति भी तोड़ने को कहते हैं। यह नहीं हो सकता क्योंकि फिर बलिदान किसके सामने होगा? +पुरोहित गंडकीदासजी हमारे बडे़ मित्र हैं। यह और वैष्णवों की तरह जंजाल में नहीं फँसे हैं। यह आनंद से संसार का सुख भोग करते हैं। +गंडकीदास ख्धीरे से पुरोहित से, अजी, इस सभा में हमारी प्रतिष्ठा मत बिगाड़ो। वह तो एकांत की बात है। +पुरोहित वाह जी, इसमें चोरी की कौन बात है? +गंडकी ख्धीरे से, यहाँ वह वैष्णव और शैव बैठे हैं। +विदूषक महाराज, गंडकीदास जी का नाम तो रंडादासजी होता तो अच्छा होता। +विदूषक यह तो रंडा ही के दास हैं। +शैव, वैष्णव और वेदांती: अब हम लोग आज्ञा लेते हैं। इस सभा में रहने का हमारा धर्म नहीं। +विदूषक महाराज, अच्छा हुआ यह सब चले गए। अब आप भी चलें। पूजा का समय हुआ। +पुरोहित गले में माला पहिने टीका दिए बोतल लिए उन्मत्त सा आता है, +पुरोहित ख्घूमकर, वाह भगवान करै ऐसी पूजा नित्य हो, अहा! राजा धन्य है कि ऐसा धर्मनिष्ठ है, आज तो मेरा घर माँस मदिरा से भर गया। अहा! और आज की पूजा की कैसी शोभा थी, एक ओर ब्राह्मणों का वेद पढ़ना, दूसरी ओर बलिदान वालों का कूद-कूदकर बकरा काटना ‘वाचं ते शुंधामि’, तीसरी ओर बकरों का तड़पना और चिल्लाना, चैथी ओर मदिरा के घड़ों की शोभा और बीच में होम का कुंड, उसमें माँस का चटचटाकर जलना अैर उसमें से चिर्राहिन की सुगंध का निकलना, वैसा ही लोहू का चारों ओर फैलना और मदिरा की छलक, तथा ब्राह्मणों का मद्य पीकर पागल होना, चारों ओर घी और चरबी का बहना, मानो इस मंत्र की पुकार सत्य होती थी। +ऐसे ही मदिरा की नदी बहती थी। कुछ ठहर कर, जो कुछ हो मेरा तो कल्याण हो गया, अब इस धर्म के आगे तो सब धर्म तुच्छ हैं और जो मांस न खाय वह तो हिन्दू नहीं जैन है। वेद में सब स्थानों पर बलि देना लिखा है। ऐसा कौन सा यज्ञ है जो बिना बलिदान का है और ऐसा कौन देवता है जो मांस बिना ही प्रसन्न हो जाता है, और जाने दीजिए इस काल में ऐसा कौन है जो मांस नहीं खाता? क्या छिपा के क्या खुले खुले, अँगोछे में मांस और पोथी के चोंगे में मद्य छिपाई जाती है। उसमें जिन हिंदुओं ने थोड़ी भी अंगरेजी पढ़ी है वा जिनके घर में मुसलमानी स्त्री है उनकी तो कुछ बात ही नहीं, आजाद है। ख्स��र पकड़ कर, हैं माथा क्यों घूमता है? अरे मदिरा ने तो जोर किया। उठकर गाता है,। +जोर किया जोर किया जोर किया रे, आज तो मैंने नशा जोरे किया रे। +मीन काट जल धोइए खाए अधिक पियास। +अरे एकादशी के मछली खाई। +घर के जाने मर गए आप नशे के बीच ।। +राजा मंत्री, पुरोहित जी बेसुध पड़े हैं। +मंत्री महाराज, पुरोहित जी आनंद में हैं। ऐसे ही लोगों को मोक्ष मिलता है। +मंत्री महाराज, संसार के सार मदिरा और माँस ही हैं। +मंत्री महाराज, ईश्वर ने बकरा इसी हेतु बनाया ही है, नहीं और बकरा बनाने का काम क्या था? बकरे केवल यज्ञार्थ बने हैं और मद्य पानार्थ। +राजा यज्ञो वै विष्णुः, यज्ञेन यज्ञमयजंति देवाः, ज्ञाद्भवति पज्र्जन्यः, इत्यादि श्रुतिस्मृति में यज्ञ की कैसी स्तुति की है और ”जीवो जीवस्य जीवन“ जीव इसी के हेतु हैं क्योंकि-”माँस भात को छोड़िकै का नर खैहैं घास?“ +मंत्री और फिर महाराज, यदि पाप होता भी हो तो मूर्खों को होता होगा। जो वेदांती अपनी आत्मा में रमण करने वाले ब्रह्मस्वरूप ज्ञानी हैं उनको क्यों होने लगा? कहा है न- +इससे हमारे आप से ज्ञानियों को तो कोई बंधन ही नहीं है। और सुनिए, मदिरा को अब लोग कमेटी करके उठाना चाहते हैं वाह बे वाह! +मंत्री और फिर इस संसार में माँस और मद्य से बढ़कर कोई वस्तु है भी तो नहीं। +राजा अहा! मदिरा की समता कौन करेगा जिसके हेतु लोग अपना धर्म छोड़ देते हैं। देखो- +मंत्री महाराज, ब्राह्मो को कौन कहे हम लोग तो वैदिक धर्म मानकर सौत्रमणि यज्ञ करके मदिरा पी सकते हैं। +मदिरा को तो अंत अरु आदि राम को नाम। +शांपिन शिव, गौड़ी गिरिश, ब्रांडी ब्रह्म विचारि ।। +मंत्री और फिर महाराज, ऐसा कौन है जो मद्य नहीं पीता, इससे तो हमीं लोग न अच्छे जो विधिपूर्वक वेद की रीति से पान करते हैं और यों छिपके इस समय में कौन नहीं करता। +पियत भट्ट के ठट्ट अरु गुजरातिन के वृंद। +वैष्णव लोग कहावही कंठी मुद्रा धारि। +राजा सच है, इसमें क्या संदेह है? +मंत्री महाराज, मेरा सिर घूमता है और ऐसी इच्छा होती है कि कुछ नाचूं और गाऊं, +तननुं तननुं तननुं में गाने का है चसका रे ।। +धिधिकट धिधिकट धिधिकट धाधा बजे मृदंग थाप कस कारे ।। +कि साकी हाथ में मै का लिए पैमाना आता है ।। +यह अठरंग है लोग चतुरंग ही गाते हैं। +ड्रिंक डीप आॅर टेस्ट नाॅट द पीयरियन स्प्रिंग +एक दूसरे के सिर पर धौल मारकर ताल देकर नाचते हैं। फिर एक पुरोहित का सिर पकड़त��� है दूसरा पैर और उसको लेकर नाचते हैं, +यमराज बैठे हैं, और चित्रगुप्त पास खड़े हैं, +(चार दूत राजा, पुरोहित, मंत्री, गंडकीदास, शैव और वैष्णव को पकड़ कर लाते हैं) +१ दूत ख्राजा के सिर में धौल मारकर, चल बे चल, अब यहाँ तेरा राज नहीं है कि छत्र-चंवर होगा, फूल से पैर रखता है, चल भगवान् यम के सामने और अपने पाप का फल भुगत, बहुत कूद-कूद के हिंसा की और मदिरा पी, सौ सोनार की न एक लोहार की। +ख्दो धौल और लगाता है, +२ दूत पुरोहित को घसीटकर, चलिए पुरोहित जी, दक्षिणा लीजिये, वहाँ आपने चक्र-पूजन किया था, यहाँ चक्र में आप मे चलिए, देखिए बलिदान का कैसा बदला लिया जाता है। +३ दूत मंत्री की नाक पकड़कर, चल बे चल, राज के प्रबन्ध के दिन गये, जूती खाने के दिन आये, चल अपने किये का फल ले। +४ दूत ख्गंडकीदास का कान पकड़कर झोंका देकर, चल रे पाखंडी चल, यहाँ लंबा टीका काम न आवेगा। देख वह सामने पाखंडियों का मार्ग देखने वाले सर्प मुंह खोले बैठे हैं। +सब यमराज के सामने जाते हैं, +चित्र बही देखकर, महाराज, सुनिये, यह राजा जन्म से पाप में रत रहा, इसने धर्म को अधर्म माना और अधर्म को धर्म माना जो जी चाहा किया और उसकी व्यवस्था पण्डितों से ले ली, लाखों जीव का इसने नाश किया और हजारों घड़े मदिरा के पी गया पर आड़ सर्वदा धर्म की रखी, अहिंसा, सत्य, शौच, दया, शांति और तप आदि सच्चे धर्म इसने एक न किये, जो कुछ किया वह केवल वितंडा कर्म-जाल किया, जिसमें मांस भक्षण और मदिरा पीने को मिलै, और परमेश्वर-प्रीत्यर्थ इसने एक कौड़ी भी नहीं व्यय की, जो कुछ व्यय किया सब नाम और प्रतिष्ठा पाने के हेतु। +यम प्रतिष्ठा कैसी, धर्म और प्रतिष्ठा से क्या सम्बन्ध? +चित्र महाराज सरकार अंगरेज के राज्य में जो उन लोगों के चित्तानुसार उदारता करता है उसको ”स्टार आफ इंडिया“ की पदवी मिलती है। +चित्र महाराज यह शुद्ध नास्तिक है, केवल दंभ से यज्ञोपवीत पहने है, यह तो इसी श्लोक के अनुरूप है- +इसने शुद्ध चित्त से ईश्वर पर कभी विश्वास नहीं किया, जो-जो पक्ष राजा ने उठाये उसका समर्थन करता रहा और टके-टके पर धर्म छोड़ कर इसने मनमानी व्यवस्था दी। दक्षिणा मात्र दे दीजिए फिर जो कहिए उसी में पंडितजी की सम्मति है, केवल इधर-उधर कमंडलाचार करते इसका जन्म बीता और राजा के संग से माँस-मद्य का भी बहुत सेवन किया, सैकड़ों जीव अपने हाथ से वध कर डाले। +चित्र महाराज, मंत्रीजी की कुछ न पूछिए। इसने कभी ��्वामी का भला नहीं किया, केवल चुटकी बजाकर हां में हां मिलाया, मुंह पर स्तुति पीछे निंदा, अपना घर बनाने से काम, स्वामी चाहे चूल्हे में पड़े, घूस लेते जनम बीता, मांस और मद्य के बिना इसने न और धर्म जाने न कर्म जाने-यह मंत्री की व्यवस्था है, प्रजा पर कर लगाने में तो पहले सम्मति दी पर प्रजा के सुख का उपाय एक भी न किया। +यम ख्राजा से, तुझ पर जो दोष ठहराए गए हैं बोल उनका क्या उत्तर देता है। +राजा हाथ जोड़कर, महाराज, मैंने तो अपने जान सब धर्म ही किया कोई पाप नहीं किया, जो मांस खाया वह देवता-पितर को चढ़ाकर खाया और देखिए महाभारत में लिखा है कि ब्राह्मणों ने भूख के मारे गोवध करके खा लिया पर श्राद्ध कर लिया था इससे कुछ नहीं हुआ। +यम कुछ नहीं हुआ, लगें इसको कोड़े। +यह वाक्य लोग श्राद्ध के पहिले श्राद्ध शुद्ध होने को पढ़ते हैं फिर मैंने क्या पाप किया। अब देखिए, अंगरेजों के राज्य में इतनी गोहिंसा होती है सब हिंदू बीफ खाते हैं उन्हें आप नहीं दंड देते और हाय हमसे धार्मिक की यह दशा, दुहाई वेदों की दुहाई धर्म शास्त्र की, दुहाई व्यासजी की, हाय रे, मैं इनके भरोसे मारा गया। +पुरो दुहाई-दुहाई, मेरी बात तो सुन लीजिए। यदि मांस खाना बुरा है तो दूध क्यों पीते हैं, दूध भी तो मांस ही है और अन्न क्यों खाते हैं अन्न में भी तो जीव हैं और वैसे ही सुरापान बुरा है तो वेद में सोमपान क्यों लिखा है और महाराज, मैंने तो जो बकरे खाए वह जगदंबा के सामने बलि देकर खाए, अपने हेतु कभी हत्या नहीं की और न अपने राजा साहब की भाँति मृगया की। दुहाई, ब्राह्मण व्यर्थ पीसा जाता है। और महाराज, मैं अपनी गवाही के हेतु बाबू राजेंद्रलाल के दोनों लेख देता हूँ, उन्होंने वाक्य और दलीलों से सिद्ध कर दिया है कि मांस की कौन कहे गोमांस खाना और मद्य पीना कोई दोष नहीं, आगे के हिंदू सब खाते-पीते थे। आप चाहिए एशियाटिक सोसाइटी का जर्नल मंगा के देख लीजिए। +यम अब आप बोलिए बाबाजी, आप अपने पापों का क्या उत्तर देते हैं? +गंडकी मैं क्या उत्तर दूँगा। पाप पुण्य जो करता है, ईश्वर करता है इसमें मनुष्य का क्या दोष है? +ख्चारों दूत चारों को पकड़कर घसीटते और मारते हैं और चारों चिल्लाते हैं, +यम शैव और वैष्णव से, आप लोगों की अकृत्रिम भक्ति से ईश्वर ने आपको कैलास और बैकुंठ वास की आज्ञा दी है सो आ लोग जाइए और अपने सुकृत का फल भोगिए। आप लोगों ने इस धर्म वंचकों की दशा तो देखी ही है, देखिए पापियों की यह गति होती है और आप से सुकृतियों को ईश्वर प्रसन्न होकर सामीप्य मुक्ति देता है, सो लीजिए, आप लोगों को परम पद मिला। बधाई है, कहिए इससे भी विशेष कोई आपका हित हो तो मैं पूर्ण करूं। +शै. और वै हाथ जोड़कर, भगवन् इससे बढ़कर और हम लोगों का क्या हित होगा। तथापि यह नाटकाचाय्र्य भरतऋषि का वाक्य सफल हो। + + +इस में सूर्य कुल के राजा हरिश्चन्द्र की कथा है। +* द्वितीय अंक- हरिश्चन्द्र की सभा +* तृतीय अंक- काशी में विक्रय +(नान्दी के पीछे सूत्राधार आता है) +सू अहा! आज की सन्ध्या भी धन्य है कि इतने गुणज्ञ और रसिक लोग एकत्रा हैं और सबकी इच्छा है कि हिन्दी भाषा का कोई नवीन नाटक देखैं। धन्य है विद्या का प्रकाश कि जहाँ के लोग नाटक किस चिड़िया का नाम है इतना भी नहीं जानते थे भला वहाँ अब लोगों की इच्छा इधर प्रवृत्त तो हुई। परन्तु हा! शोच की बात है कि जो बड़े-बडे़ लोग हैं और जिनके किए कुछ हो सकता है वे ऐसी अन्धपरम्परा में फँसे हैं और ऐसे बेपरवाह और अभिमानी हैं कि सच्चे गुणियों की कहीं पूछ ही नहीं है। केवल उन्हीं की चाह और उन्हीं की बात है जिन्हें झूठी खैरखाही दिखाना वा लंबा चैड़ा गाल बजाना आता है। (कुछ सोच कर) क्या हुआ, ढंग पर चला जायगा तौ यों भी बहुत कुछ हो रहैगा। काल बड़ा बली है, धीरे-धीरे सब आप से आप ही कर देगा। पर भला आज इन लोगों को लीला कौन सी दिखाऊं। (सोचकर) अच्छा, उनसे भी तो पूछ लें ऐसे कौतुकों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की बुद्धि विशेष लड़ती है। (नेपथ्य की ओर देख कर) मोहना! अपनी भाभी को जरा इधर तो भेजना। +सू ठीक है, यही हो। भला इससे अच्छा और कौन नाटक होगा। एक तो इन लोगों ने उसे अभी देखा नहीं है, दूसरे आख्यान भी करुणा पूर्ण राजा हरिश्चन्द्र का है, तीसरे उसका कवि भी हम लोगों का एक मात्रा जीवन है। +सू इसमें क्या संदेह है? काशी के पंडितों ही ने कहा है।। +और फिर उनके मित्र पंडित शीतलाप्रसाद जी ने इस नाटक के नायक से उनकी समता भी किया है। इससे उनके बनाए नाटकों में भी सत्य हरिश्चन्द्र ही आज खेलने को जी चाहता है।। +द्वा महाराज! नारद जी आते हैं। +ना हमैं और भी कोई काम है, केवल यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ-यही हमैं है कि और भी कुछ। +इ साधु स्वभाव ही से परोपकारी होते हैं। विशेष कर के आप ऐसे हैं जो हमारे से दीन गृहस्थों को घर बैठे दर्शन देते हैं क्योंकि जो लोग गृहस्थ और काम काजी हैं वे स्वभाव ही से गृहस्थी के बन्धनों से ऐसे जकड़ जाते हैं कि साधु संगम तो उनको सपने में भी दुर्लभ हो जाता है, न वे अपने प्रबन्धों से छुट्टी पावेंगे न कहीं जायंगे। +ना आप को इतनी शिष्टाचार नहीं सोहती। आप देवराज हैं और आप के संग की तो बड़े-बड़े ऋषि मुनि इच्छा करते हैं फिर आप को सतसंग कौन दुर्लभ हैं। केवल जैसा राजा लोगों में एक सहज मुंह देखा व्यापार होता है वैसी ही बातैं आप इस समय कर रहे हैं। +इ हम को बड़ा शोच है कि आप ने हमारी बातों को शिष्टाचार समझा। क्षमा कीजिए आप से हम बनावट नहीं कर सकते। भला, बिराजिये तो सही, यह बातें तो होती ही रहेंगी। +ना महाराज। सत्य की तो मानो हरिश्चन्द्र मूर्ति है। निस्सन्देह ऐसे मनुष्यों के उत्पन्न होने से भारत भूमि का सिर केवल इनके स्मरण से उस समय भी ऊँचा रहेगा जब वह पराधीन होकर हीनावस्था को प्राप्त होगी। +इ आप ही आप) अहा! हृदय भी ईश्वर ने क्या ही वस्तु बनाई है। यद्यपि इसका स्वभाव सहज ही गुणग्राही हो तथापि दूसरों की उत्कट कीर्ति से इसमें ईर्ष्या होती ही हैं, उसमें भी जो जितने बड़े हैऺ उनकी ईर्ष्या भी उतनी ही बड़ी हैं। हमारे ऐसे बड़े पदाधिकारियों को शत्रु उतना संताप नहीं देते जितना दूसरों की सम्पत्ति और कीर्ति। +ना क्यों नहीं, बड़ाई उसी का नाम है जिसे छोटे बड़े सब मानैं, और फिर नाम भी तो उसी का रह जायगा जो ऐसा दृढ़ हो कर धर्म साधन करेगा। (आप ही आप) और उसकी बड़ाई का यह भी तो एक बड़ा प्रमाण है कि आप ऐसे लोग उससे बुरा मानते हैं क्योंकि जिससे बड़े-बड़े लोग डाह करें पर उसका कुछ बिगाड़ न सकें वह निस्संदेह बहुत बड़ा मनुष्य है। +ना दूसरों के लिए उदाहरण बनाने के योग्य। भला पहिले जिसने अपने निज के और अपने घर के चरित्र ही नहीं शुद्ध किए हैं उसकी और बातों पर क्या विश्वास हो सकता है। शरीर में चरित्र ही मुख्य वस्तु है। बचन से उपदेशक और क्रियादिक से कैसा भी धर्मनिष्ठ क्यों न हो पर यदि उसके चरित्र शुद्ध नहीं हैं तो लोगों में वह टकसाल न समझा जायगा और उसकी बातें प्रमाण न होंगी! महात्मा और दुरात्मा में इतना ही भेद है कि उनके मन बचन और कर्म एक रहते हैं, इनके भिन्न निस्संदेह हरिश्चन्द्र महाशय है। उसके आशय बहुत उदार हैं इसमें कोई संदेह नहीं। +ना जिसका भीतर बाहर एक सा हो और विद्यानुरागिता उपकार प्रियता आदि गुण जिसमें सहज हों। अधिकार में क्षमा, विपत्ति में धैर्य, सम्पत्ति में अनाभिमान और युद्ध में जिसको स्थिरता है वह ईश्वर की सृष्टि का रत्न है और उसी की माता पुत्रवती है। हरिश्चंद्र में ये सब बातें सहज हैं। दान करके उसको प्रसन्नता होती है और कितना भी दे पर संतोष नहीं होता, यही समझता है कि अभी थोड़ा दिया। +ना और इन गुणों पर ईश्वर की निश्चला भक्ति उसमें ऐसी है जो सब का भूषण है क्योंकि उसके बिना किसी की शोभा नहीं। फिर इन सब बातों पर विशेषता यह है कि राज्य का प्रबन्ध ऐसा उत्तम और दृढ़ है कि लोगों को संदेह होता है कि इन्हें राज काज देखने की छुट्टी कब मिलती है। सच है छोटे जी के लोग थोड़े ही कामों में ऐसे घबड़ा जाते हैं मानो सारे संसार का बोझ इन्हीं पर है; पर जो बडे़ लोग हैं उन के सब काम महारम्भ होते हैं तब भी उनके मुख पर कहीं से व्याकुलता नहीं झलकती, क्योंकि एक तो उनके उदार चित्त में धैर्य और अवकाश बहुत है, दूसरे उनके समय व्यर्थ नहीं जाते और ऐसे यथायोग्य बने रहते हैं जिससे उन पर कभी भीड़ पड़ती ही नहीं। +इ भला महाराज वह ऐसे दानी हैं तो उनकी लक्ष्मी कैसे स्थिर है। +इ पर यदि कोई अपने वित्त के बाहर माँगे या ऐसी वस्तु मांगे जिससे दाता की सर्वस्व हानि हो तो वह दे कि नहीं? +ना क्यों नहीं। अपना सर्वस्व वह क्षण भर में दे सकता है, पात्रा चाहिए। जिसको धन पाकर सत्पात्रा में उसके त्याग की शक्ति नहीं है वह उदार कहाँ हुआ। +ना राजन्! मानियों के आगे प्राण और धन तो कोई वस्तु ही नहीं है। वे तो अपने सहज सुभाव ही से सत्य और विचार तथा दृढ़ता में ऐसे बंधे हैं कि सत्पात्र मिलने या बात पड़ने पर उनको स्वर्ण का पर्वत भी तिल सा दिखाई देता है। और उसमें भी हरिश्चन्द्र-जिसका सत्य पर ऐसा स्नेह है जैसा भूमि, कोष, रानी, और तलवार पर भी नहीं है। जो सत्यानुरागी ही नहीं है भला उससे न्याय कब होगा, और जिसमें न्याय नहीं है वह राजा ही काहे का है। कैसी भी विपत्ति और उभय संकष्ट पड़ै और कैसी ही हानि वा लाभ हो पर जो न्याय न छोड़े वही धीर और वही राजा और उस न्याय का मूल सत्य है। +ना क्या आप उसका परिहास करते हैं? किसी बड़े के विषय में ऐसी शंका ही उसकी निन्दा है। क्या आप ने उसका यह सहज साभिमान वचन कभी नहीं सुना है- +ना वाह। भला जो ऐसे उदार हैं उनके आगे स्वर्ग क्या वस्तु है। क्या बड़े लोग धर्म स्वर्ग पाने को करते हैं। जो अपने निर्मल चरित्र से संतुष्ट हैं उन के आगे स्वर्ग कौन वस्तु ��ै। फिर भला जिनके शुद्ध हृदय और सहज व्योहार हैं वे क्या यश वा स्वर्ग की लालच में धर्म करते हैं। वे तो आपके स्वर्ग को सहज में दूसरे को दे सकते हैं। और जिन लोगों को भगवान के चरणारविंद में भक्ति है वे क्या किसी कामना से धर्माचरण करते हैं, यह भी तो एक क्षुद्रता है कि इस लोक में एक देकर परलोक में दो की आशा रखना। +ना और जिनको अपने किये शुभ अनुष्ठानों से आप संतोष मिलता है उन के उस असीम आनंद के आगे आप के स्वर्ग का अमृतपान और अप्सरा तो महा महा तुच्छ हैं। क्या अच्छे लोग कभी किसी शुभ कृत्य का बदला चाहते हैं। +इ तथापि एक बेर उनके सत्य की परीक्षा होती तो अच्छा होता। +ना राजन्! आपका यह सब सोचना बहुत अयोग्य है। ईश्वर ने आपको बड़ा किया है तो आप को दूसरों की उन्नति और उत्तमता पर संतोष करना चाहिए। ईर्ष्या करना तो क्षुद्राशयों का काम है। महाशय वही है जो दूसरों की बड़ाई से अपनी बड़ाई समझै। +द्वा महाराज! विश्वामित्र जी आए हैं। +इ आप ही आप) हां इनसे वह काम होगा। अच्छे अवसर पर आए। जैसा काम हो वैसे ही स्वभाव के लोग भी चाहिएं। (प्रकट) हां हां लिवा लाओ। +वि नारदजी को प्रणाम करके और इन्द्र को आशीर्वाद देकर बैठते हैं) +ना तो अब हम जाते हैं, क्योंकि पिता के पास हमें किसी आवश्यक काम को जाना है। +ना आप ही आप) हमारी इच्छा क्या अब तो आप ही की यह इच्छा है कि हम जायं, क्योंकि अब आप तो विश्व के अमित्र जी से राजा हरिश्चन्द्र को दुख देने की सलाह कीजिएगा तो हम उसके बाधक क्यों हो, पर इतना निश्चय रहे कि सज्जन को दुर्जन लोग जितना कष्ट देते हैं उतनी ही उनकी सत्य कीर्ति तपाए सोने की भांति और भी चमकती है क्योंकि विपत्ति बिना सत्य की परीक्षा नहीं होती। (प्रगट) यद्यपि ‘जो इच्छा’ आप ने सहज भाव से कहा है तथापि परस्पर में ऐसे उदासीन बचन नहीं कहते क्योंकि इन वाक्यों से रूखापन झलकता है। मैं कुछ इसका ध्यान नहीं करता, केवल मित्र भाव से कहता हूं। लो, जाता हूं और यही आशीर्वाद दे कर जाता हूं कि तुम किसी को कष्टदायक मत हो क्योंकि अधिकार पाकर कष्ट देना यह बड़ों की शोभा नहीं, सुख देना शोभा है। +इ नहीं तो। राजा हरिश्चन्द्र का प्रसंग निकला था सो उन्होंने उसकी बड़ी स्तुति की और हमारा उच्च पद का आदरणीय स्वभाव उस परकीत्र्ति को सहन न कर सका। इसी में कुछ बात ही बात ऐसा सन्देह होता है कि वे रुष्ट हो गए। +वि तो हरिश्चन्द्र में कौन से ऐसे गुण ���ैं सहज की भृकुटी चढ़ जाती है)। +इ ऋषि का भ्रूभंग देखकर चित्त में संतोष करके उनका क्रोध बढ़ाता हुआ) महाराज सिपारसी लोग चाहे जिसको बढ़ा दें, चाहे घटा दें। भला सत्य धम्र्म पालन क्या हंसी खेल है? यह आप ऐसे महात्माओं ही का काम है जिन्होंने घर बार छोड़ दिया है। भला राज करके और घर में रह के मनुष्य क्या धर्म का हठ करैगा। और फिर कोई परीक्षा लेता तो मालूम पड़ती। इन्हीं बातों से तो नारद जी बिना बात ही अप्रसन्न हुए। +स्थान राजा हरिश्चन्द्र का राजभवन। +रानी शैव्या बैठी हैं और एक सहेली बगल में खड़ी है। +रा महाराज को तो मैंने सारे अंग में भस्म लगाए देखा है और अपने को बाल खोले, और (आँखों में आँसू भर कर) रोहितास्व को देखा है कि उसे सांप काट गया है। +स राम! राम! भगवान् सब कुसल करेगा। भगवान् करे रोहितास्व जुग जुग जिए और जब तक गंगा जमुना में पानी है आप का सोहाग अचल रहे। भला आप ने इस की शांती का भी कुछ उपाय किया है। +ब्रा महाराज गुरूजी ने यह अभिमंत्रित जल भेजा है। इसे महारानी पहिले तो नेत्रों से लगा लें और फिर थोड़ा स पान भी कर लें और यह रक्षाबंधन भेजा है। इसे कुमार रोहिताश्व की दहनी भुजा पर बांध दें फिर इस जल से मैं मार्जन करूंगा। +ब्रा दुर्बा से मार्जन करता है) +(मार्जन का जल पृथ्वी पर फेंककर) +(मार्जन कर के फूल अक्षत रानी के हाथ में देता है) +ब्रा जो आज्ञा (आशीर्वाद देकर जाता है) +(नेपथ्य में बैतालिक गाते हैं) +(नेपथ्य में से बाजे की धुनि सुन पड़ती है) +रा महाराज ठाकुर जी के मंदिर से चले, देखो बाजों का शब्द सुनाई देता है और बंदी लोग भी गाते आते हैं। +रा घबड़ा कर आदर के हेतु उठती हैं) +(परिकर1 सहित महाराज हरिश्चन्द्र2 आते हैं) +(रानी प्रणाम करती हैं और सब लोग यथा स्थान बैठते हैं) +रा नाथ! मोह से धीरज जाता रहता है। +रा महाराज! स्वप्न के शुभाशुभ का विचार कुछ महाराज ने भी ग्रंथों में देखा है? +रा नाथ। क्या स्वप्न के व्योहार को भी आप सत्य मानिएगा? +ह चिन्ता करके) पर मैं अब करूं क्या! अच्छा। प्रधान! नगर में डौंडी पिटवा दो कि राज्य सब लोग आज से अज्ञातनामगोत्रा ब्राह्मण का समझें उसके अभाव में हरिश्चन्द्र उसके सेवक की भाँति उसकी थाती समझ के राज का काय्र्य करेगा और दो मुहर राज काज के हेतु बनवा लो एक पर ‘अज्ञातनामगोत्रा ब्राह्मण सेवक हरिश्चन्द्र’ और दूसरे पर ‘राजाधिराज अज्ञात नाम गोत्रा ब्राह्मण महाराज’ खुदा ���हे और आज से राज काज के सब पत्रों पर भी यही नाम रहे। देस देस के राजाओं और बड़े-बड़े कार्याधीशों को भी आज्ञापत्रा भेज दो कि महाराज हरिश्चन्द्र ने स्वप्न में अज्ञातनामगोत्रा ब्राह्मण को पृथ्वी दी है इससे आज से उसका राज हरिश्चन्द्र मंत्री की भांति सम्हालेगा। +(द्वारपाल के साथ विश्वामित्र आते हैं)। +ह आदरपूर्वक आगे से लेकर और प्रणाम करके) महाराज! पधारिए, यह आसन है। +ह लीजिए, इसमें विलम्ब क्या है, मैंने तो आप के आगमन के पूब्र्ब ही से अपना अधिकार छोड़ दिया है। (पृथ्वी की ओर देखकर) +वि आप ही आप) अच्छा! अभी अभिमान दिखा ले, तो मेरा नाम विश्वामित्र जो तुझको सत्यभ्रष्ट कर के छोड़ा, और लक्ष्मी से तो भ्रष्ट हो ही चुका है। (प्रगट) स्वस्ति। अब इस महादान की दक्षिणा कहां है? +ह महाराज! मैं ब्रह्मदंड से उतना नहीं डरता जितना सत्यदंड से इससे +(आकाश से फूल की वृष्टि और बाजे के साथ जयध्वनि होती है) +स्थान वाराणसी का बाहरी प्रान्त तालाब। +भैर सच है। येषां क्वापि गतिर्नास्ति तेषां वाराणसी गतिः। देखो इतना बड़ा पुन्यशील राजा हरिश्चन्द्र भी अपनी आत्मा और स्त्री पुत्र बेचने को यहीं आया है। अहा! धन्य है सत्य। आज जब भगवान भूतनाथ राजा हरिश्चन्द्र का वृतांत भवानी से कहने लगे तो उनके तीनों नेत्रा अश्रु से पूर्ण हो गए और रोमांच होने से सब शरीर के भस्मकण अलग अलग हो गए। मुझको आज्ञा भी दी हुई है कि अलक्ष रूप से तुम सर्वदा राजा हरिश्चन्द्र की अंगरक्षा करना। इससे चलूं। मैं भी भेस बदलकर भगवान की आज्ञा पालन में प्रवत्र्त हूँ। +(जाते हैं। जवनिका गिरती है) +तीसरे अंक में यह अंकावतार समाप्त हुआ +पुन्यप्रकासिका पापबिनासिका हीयहुलासिका सोहत कासिका’ ।। 1 ।। +तीरथ अनादि पंचगंगा मनिकर्निकादि सात आवरन मध्य पुन्य रूप धंसी है। +समी सम जसी असी बरना में बसी पाप खसी हेतु असी ऐसी लसी बारानसी है’ ।। 2 ।। +खासी परकासी पुनवांसी चंदिक्रा सी जाके वासी अबिनासी अघनासी ऐसी कासी है’ ।। 3 ।। +देखो। जैसा ईश्वर ने यह सुंदर अंगूठी के नगीने सा नगर बनाया है वैसी ही नदी भी इसके लिये दी है। धन्य गंगे! +कुछ महात्म ही पर नहीं गंगा जी का जल भी ऐसा ही उत्तम और मनोहर है। आहा! +विश्वामित्र को पृथ्वी दान करके जितना चित्त प्रसन्न नहीं हुआ उतना अब बिना दक्षिणा दिये दुखी होता है। हा! कैसे कष्ट की बात है राजपाट धनधाम सब छूटा अब दक्षिणा कहाँ से देंगे! क्या करें! हम सत्य धर्म कभी छोड़ेंहीगे नहीं और मुनि ऐसे क्रोधी हैं कि बिना दक्षिणा मिले शाप देने को तैयार होंगे, और जो वह शाप न भी देंगे तो क्या? हम ब्राह्मण का ऋण चुकाए बिना शरीर भी तो नहीं त्याग कर सकते। क्या करें? कुबेर को जीतकर धन लावें? पर कोई शस्त्रा भी तो नहीं है। तो क्या किसी से मांग कर दें? पर क्षत्रिय का तो धर्म नहीं कि किसी के आगे हाथ पसारे। फिर ऋण काढ़ें? पर देंगे कहां से। हा! देखो काशी में आकर लोग संसार के बंधन से छूटते हैं पर हमको यहाँ भी हाय हाय मची है। हा! पृथ्वी! तू फट क्यों नहीं जाती कि मैं अपना कलंकित मंुह फिर किसी को न दिखाऊं। (आतंक से) पर यह क्या? सूर्यवंश में उत्पन्न होकर हमारे यह कर्म हैं कि ब्राह्मण का ऋण दिए बिना पृथ्वी में समा जाना सोचें। (कुछ सोच कर) हमारी तो इस समय कुछ बुद्धि ही नहीं काम करती। क्या करें? हमें तो संसार सूना देख पड़ता है। (चिंता करके। एक साथ हर्ष से) वाह, अभी तो स्त्री पुत्र और हम तीन-तीन मनुष्य तैयार हैं। क्या हम लोगों के बिकने से सहस्र स्वर्ण मुद्रा भी न मिलेंगी? तब फिर किस बात का इतना शोच? न जाने बुद्धि इतनी देर तक कहाँ सोई थी। हमने तो पहले ही विश्वामित्र से कहा था; +ह अरे मुनि तो आ पहुंचे। क्या हुआ आज उनसे एक दो दिन की अवधि और लेंगे। +वि हुई प्रणाम, बोल तैं ने दक्षिणा देने का क्या उपाय किया? आज महीना पूरा हुआ अब मैं एक क्षण भर भी न मानूंगा। दे अभी नहीं तो-(शाप के वास्ते कमंडल से जल हाथ में लेते हैं।) +आर्यपुत्र! ऐसे समय में हम को छोड़े जाते हो। तुम दास होगे तो मैं स्वाधीन रहके क्या करूंगी। स्त्री को अद्र्धांगिनी कहते हैं, इससे पहिले बायां अंग बेच लो तब दाहिना अंग बेचो। +(सड़क पर शैव्या और बालक फिरते हुए दिखाई पड़ते हैं) +शै कोई महात्मा इत्यादि कहती हुई ऊपर देखकर) क्या कहा? ‘क्या क्या करोगी?’ पर पुरुष से संभाषण और उच्छिष्ट भोजन छोड़कर और सब सेवा करूंगी। (ऊपर देखकर) क्या कहा? ‘पर इतने मोल पर कौन लेगा?’ आर्य कोई साधु ब्राह्मण महात्मा कृपा करके ले ही लेंगे। +(उपाध्याय और बटुक आते हैं) +शै पर पुरुष से सम्भाषण और उच्छिष्ट भोजन छोड़कर और जो-जो कहिएगा सब सेवा करूंगी। +उ वाह! ठीक है। अच्छा लो यह सुबर्ण। हमारी ब्राह्मणी अग्निहोत्रा के अग्नि की सेवा से घर से काम काज नहीं कर सकती सो तुम सम्हालना। +उ शैव्या को भली भांति देखकर आप ही आप) आहा! यह निस्संदेह किसी बडे़ कुल की है। इसका मुख सहज लज्जा से ऊँचा नहीं होता, और दृष्टि बराबर पैर ही पर है। जो बोलती है वह धीरे-धीरे बहुत सम्हाल के बोलती है। हा! इसकी यह गति क्यों हुई प्रगट) पुत्री तुम्हारे पति है न? +ह आप ही आप दुख से) अब नहीं। पति के होते भी ऐसी स्त्री की यह दशा हो। +ह भगवान्! और तो विदित करने का अवसर नहीं है इतना ही कह सकता हूँ कि ब्राह्मण के ऋण के कारण यह दशा हुई। +उ तो हम से धन लेकर आप शीघ्र ही ऋणमुक्त हूजिए। +ह दोनों कानों पर हाथ रखकर) राम राम! यह तो ब्राह्मण की बृत्ति है। आप से धन लेकर हमारी कौन गति होगी? +ह अत्यन्त घबड़ाकर) अरे अरे विधाता तुझे यही करना था। (आप ही आप) हा! पहिले महारानी बनाकर अब दैव ने इसे दासी बनाया। यह भी देखना बदा था। हमारी इस दुर्गति से आज कुलगुरु भगवान सूर्य का भी मुख मलिन हो रहा है। (रोता हुआ प्रगट रानी से) प्रिये सर्वभाव से उपाध्याय को प्रसन्न रखना और सेवा करना। +ह आँखों में आँसू भर के) देवी (फिर रुक कर अत्यंत सोच में आप ही आप) हाय! अब मैं देवी क्यों कहता हूं अब तो विधाता ने इसे दासी बनाया। (धैर्य से) देवी! उपाध्याय की आराधना भली भांति करना और इनके सब शिष्यों से भी सुहृत भाव रखना, ब्राह्मण के स्त्री की प्रीति पूर्वक सेवा करना, बालक का यथासंभव पालन करना, और अपने धर्म और प्राण की रक्षा करना। विशेष हम क्या समझावें जो जो दैव दिखावे उसे धीरज से देखना। (आंसू बहते हैं) +बटु बालक को ढकेल कर) चल चल देर होती है। +बा ढकेलने से गिर कर रोता हुआ उठकर अत्यंत क्रोध और करुणा से माता पिता की ओर देखता है) +ह ब्राह्मण, देवता! बालकों के अपराध से नहीं रुष्ट होना (बालक को उठाकर धूर पोंछ के मुंह चूमता हुआ) पुत्र मुझ चांडाल का मुख इस समय ऐसे क्रोध से क्यों देखता है? ब्राह्मण का क्रोध तो सभी दशा में सहना चाहिए। जाओ माता के संग मुझ भाग्यहीन के साथ रह कर क्या करोगे। (रानी से) प्रिये धैर्य धरो। अपना कुल और जाति स्मरण करो। अब जाओ, देर होती है। +(रानी और बालक रोते हुए बटुक के साथ जाते हैं) +ह पैर पर गिर के प्रणाम करता है) +ह हाथ जोड़कर) महाराज आधी लीजिए आधी अभी देता हूं। (सोना देता है) +(नेपथ्य में हाहाकार के साथ बड़ा शब्द होता है) +(चांडाल के भेष में धर्म और सत्य आते हैं)2 +(आश्चर्य से आप ही आप) सचमुच इस राजर्षि के समान दूसरा आज त्रिभुवन में नहीं है। (आगे बढ़कर प्रत्यक्ष) अरे हरजनवाँ! मोहर का संदूख ले आवा है न? +कफन मांगने का है काज ।। +पूजैं सती मसान निवास ।। +देंगे मुहर गांठ के खोल ।। +(मत्त की भांति चेष्टा करता है) +धर्म ठीक है लेव सोना (दूर से राजा के आंचल में मोहर देता है) +ह लेकर हर्ष से आप ही आप) +(प्रगट विश्वामित्र से) भगवन्! लीजिए यह मोहर। +ह हाँ हाँ यह लीजिए। (मोहर देते हैं) +ह हाथ जोड़कर) भगवन् दक्षिणा देने में देर होने का अपराध क्षमा हुआ न? +(बिश्वामित्र आशीर्वाद देकर जाते हैं) +सत्यहरिश्चन्द्र का तीसरा अंक समाप्त हुआ। +न जाने विधाता का क्रोध इतने पर भी शांत हुआ कि नहीं। बड़ों ने सच कहा है कि दुःख से दुःख जाता है। दक्षिणा का ऋण चुका तो यह कर्म करना पड़ा। हम क्या सोचें। अपनी अनथ प्रजा क्या को, या दीन नातेदारों को या अशरश नौकरों को, या रोती हुई दासियों को, या सूनी अयोध्या को, या दासी बनी महारानी को, या उस अनजान बालक को, या अपने ही इस चंडालपने को। हा! बटुक के धक्के से गिरकर रोहिताश्व ने क्रोधभरी और रानी ने जाती समय करुणाभरी दृष्टि से जो मेरी ओर देखा था वह अब तक नहीं भूलती। (घबड़ा कर) हा देवी! सूर्यकुल की बहू और चंद्रकुल की बेटी होकर तुम बेची गईं और दासी बनीं। हा! तुम अपने जिन सुकुमार हाथों से फूल की माला भी नहीं गुथ सकती थीं उनसे बरतन कैसे मांजोगी मोह प्राप्त होने चाहता है पर सम्हल कर) अथवा क्या हुआ? यह तो कोई न कहेगा कि हरिश्चन्द्र ने सत्य छोड़ा। +(आकाश से पुष्पवृष्टि होती है) +अरे! यह असमय में पुष्पवृष्टि कैसी? कोई पुन्यात्मा का मुरदा आया होगा। तो हम सावधान हो जायं। (लट्ठ कंधे पर रखकर फिरता हुआ) खबरदार खबरदार बिना हम से कहे और बिना हमें आधा कफन दिये कोई संस्कार न करे। (यही कहता हुआ निर्भय मुद्रा से इधर उधर देखता फिरता है नेपथ्य में कोलाहल सुनकर) हाय हाय! कैसा भयंकर समशान है! दूर से मंडल बांध बांध कर चोंच बाए, डैना फैलाए, कंगालों की तरह मुरदों पर गिद्ध कैसे गिरते हैं, और कैसा मांस नोंच नोंच कर आपुस में लड़ते और चिल्लाते हैं। इधर अत्यंत कर्णकटु अमंगल के नगाड़े की भांति एक के शब्द की लाग से दूसरे सियार कैसे रोते हैं। उधर चिराईन फैलाती हुई चट चट करती चिता कैसी जल रही हैं, जिन में कहीं से मांस के टुकड़े उड़ते हैं, कहीं लोहू बा चरबी बहती है। आग का रंग मांस के संबंध से नीला पीला हो रहा है। ज्वाला घूम घूम कर निकलती है। आग कभी एक साथ धधक उठती है कभी मन्द हो जाती है। धुआँ चारों ओर छा रहा है। (आगे देखकर आदर से) अहा! यह वीभत्स व्यापार भी बड़ाई के योग्य है। शव! तुम धन्य हो कि इन पशुओं के इतने काम आते हो। अएतएव कहा है +(अहा! शरीर भी कैसी निस्सार वस्तु है।) +हा! मरना भी क्या वस्तु है। +कहां गई वह सुंदर सोभा। +अहा! देखो वही सिर जिस पर मंत्रा से अभिषेक होता था, कभी नवरत्न का मुकुट रक्खा जाता था, जिसमें इतना अभिमान था कि इन्द्र को भी तुच्छ गिनता था, और जिसमें बड़े-बड़े राज जीतने के मनोरथ भरे थे, आज पिशाचों का गेंद बना है और लोग उसे पैर से छूने में भी घिन करते हैं। (आगे देखकर) अरे यह स्मशान देवी हैं। अहा कात्यायनी को भी कैसा वीभत्स उपचार प्यारा है। यह देखो डोम लोगों ने सूखे गले सड़े फूलों की माला गंगा में से पकड़ पकड़ कर देवी को पहिना दी है और कफन की ध्वजा लगा दी है। मरे बैल और भैसों के गले के घंटे पीपल की डार में लटक रहे हैं जिन में लोलक की जगह नली की हड्डी लगी है। घंट के पानी से चारों ओर से देवी का अभिषेक होता है और पेड़ के खंभे में लोहू के थापे लगे हैं। नीचे जो उतारों की बलि दी गई है उसके खाने को कुत्ते और सियार लड़ लड़कर कोलाहल मचा रहे हैं। (हाथ जोड़कर) ‘भगवति! चंडि! प्रेते! प्रेत विमाने! लसत्प्रेते। प्रेतास्थि रौद्ररूपे! प्रेताशनि। भैरवि! नमस्ते’।1 +ह ऊपर देखकर) अहा! स्थिरता किसी को भी नहीं है। जो सूर्य उदय होते ही पद्मिनी बल्लभ और लौकिक वैदिक दोनों कर्म का प्रवत्र्तक था, जो दो पहर तक अपना प्रचंड प्रताप क्षण-क्षण बढ़ाता गया, जो गगनांगन का दीपक और कालसर्प का शिखामणि था वह इस समय परकटे गिद्ध की भांति अपना सब तेज गंवाकर देखो समुद्र में गिरा चाहता है। +अहा! यह चारों ओर से पक्षी लोग कैसा शब्द करते हुए अपने-अपने घोसलों की ओर चले जाते हैं। वर्षा से नदी का भयंकर प्रवाह, सांझ होने से स्मशान के पीपल पर कौओं का एक संग अमंगल शब्द से कांव कांव करना, और रात के आगम से एक सन्नाटे का समय चित्त में कैसी उदासी और नय उत्पन्न करता है। अंधकार बढ़ता ही जाता है। वर्षा के कारण इन स्मशानवासी मंडूकों का टर्र टर्र करना भी कैसा डरावना मालूम होता है। +इस समय ये चिता भी कैसी भयंकर मालूम पड़ती हैं। किसी का सिर चिता के नीचे लटक रहा है, कहीं आंच से हाथ पैर जलकर गिर पड़े हैं, कहीं शरीर आधा जला है, कहीं बिल्कुल कच्चा है, किसी को वैसे ही पानी में बहा दिया है, किसी को किनारे छोड़ दिया है, किसी का मुंह जल जाने से दांत निकला हुआ भयंकर हो रहा है, और कोई दहकती आग में ऐसा जल गया है कि कहीं पता भी नहीं है। बाहरे शरीर! तेरी क्या क्या गति होती है सचमुच मरने पर इस शरीर को चटपट जला ही देना योग्य है क्योंकि ऐसे रूप और गुण जिस शरीर में थे उसको कीड़ों या मछलियों से नुचवाना और सड़ा कर दुर्गंधमय करना बहुत ही बुरा है। न कुछ शेष रहेगा न दुर्गति होगी। हाय! चलो आगे चलें। (खबरदार इत्यादि कहता हुआ इधर उधर घूमता है)1 (कौतुक से देखकर) पिशाचों का क्रीड़ा कुतूहल भी देखने के योग्य है। अहा! यह कैसे काले काले झाड़ई से सिर के बाल खड़े किये लम्बे-लम्बे हाथ पैर बिकराल दांत लम्बी जीभ निकाले इधर-उधर दौड़ते और परस्पर किलकारी मारते हैं मानों भयानक रस की सेना मूर्तिमान होकर यहाँ स्वच्छंद विहार कर रही है। हाय हाय! इन का खेल और सहज व्योहार भी कैसा भयंकर है। कोई कटाकट हड्डी चबा रहा है, कोई खोपड़ियों में लोहू भर भर के पीता है, कोई सिर का गेंद बनाकर खेलता है, कोई अंतड़ी निकालकर गले में डाले है और चंदन की भांति चरबी और लोहू शरीर में पोत रहा है, एक दूसरे से माँस छीनकर ले भागता है, एक जलता मांस मारे तृष्णा के मुंह में रख लेता है पर जब गरम मालूम पड़ता है तो थू थू करके थूक देता है, और दूसरा उसी को फिर झट से खा जाता है। हा! देखो यह चुड़ैल एक स्त्री की नाक नथ समेत नोच लाई है जिसे +सत्य हरिश्चंद्र के परवती संस्करणों में बढ़ाया गया अंश, +(पिशाच और डाकिणी गण परस्पर आमोद करते और गाते बजाते आते हैं।) +डा हम माँग में लाल लाल लोहू का सिंदूर लगावेंगी। +पि लोहू का मुँह से फर्र फर्र फुहारा छोड़ेंगे। +माला गले पहिरने को अँतड़ी को जोडे़गें।। +(वैसे ही कूदते हुए एक ओर चले जाते हैं।) +(कापालिक के वेष में धर्म आता है) +कुछ सोचकर, राजर्षि हरिश्चन्द्र की दुःख परंपरा अत्यंत शोचनीय और इनके चरित्रा अत्यन्त आश्चर्य के हैं! अथवा महात्माओं का यह स्वभाव ही होता है। +ह लज्जा और विकलता नाट्य करता है) +ध महाराज आप लज्जा मत कीजिए। हम लोग योग बल से सब कुछ जानते हैं। आप इस दशा पर भी हमारा अर्थ पूर्ण करने को बहुत हैं। चन्द्रमा राहु से ग्रसा रहता है तब भी दान दिलवा कर भिक्षुओं का कल्याण करता है। +ध आज्ञा यही है कि यह सब मुझे सिद्ध हो गए हैं पर विघ्न इस में बाधक होते हैं सो आप विघ्नों का निवारण कर दीजिए। +ह आप जानते ही हैं कि मैं पराया दास हूँ, इससे जिनमें मेरा धर्म ��� जाय वह मैं करने को तैयार हूं। +ध आप ही आप) राजन्, जिस दिन तुम्हारा धर्म जाएगा उस दिन पृथ्वी किसके बल से ठहरेगी (प्रत्यक्ष) महाराज इसमें धर्म न जायगा क्योंकि स्वामी की आज्ञा तो आप उल्लंघन करते ही नहीं। सिद्धि का आकर इसी स्मशान के निकट ही है और मैं अब पुरश्चरण करने जाता हूँ, आप बिघ्नों का निषेध कर दीजिए। +आप से सत्य वीर की आज्ञा कौन लांघ सकता है। +खुल्यौ द्वारा कल्यान को सिद्ध जोग तप आज। +म. वि महाराज हरिश्चन्द्र! बधाई है। हमीं लोगों को सिद्ध करने को विश्वामित्र ने बड़ा परिश्रम किया था तब देवताओं ने माया से आपको स्वप्न में हमारा रोना सुनाकर हमारा प्राण बचाया। +ह आप ही आप) अरे यही सृष्टि की उत्पन्न, पालन और नाश करने वाली महाविद्या हैं जिन्हें विश्वामित्र भी न सिद्ध कर सके। (प्रगट हाथ जोड़कर) त्रिलोकविजयिनी महाविद्याओं को नमस्कार है। +ह देवियो! यदि हम पर प्रसन्न हो तो विश्वामित्र मुनि का वशवत्र्तिनी हो क्योंकि उन्होंने आप लोगों के वास्ते बड़ा परिश्रम किया है। +धर्म एक बैताल के सिर पर पिटारा रखवाए हुए आता है। +ध महाराज का कल्याण हो। आप की कृपा से महानिधान सिद्ध हुआ। आपको बधाई है अब लीजिए इस रसेन्द्र को। +ह प्रणाम करके) महाराज दास धर्म के यह विरुद्ध है। इस समय स्वामी से कहे बिना मेरा कुछ भी लेना स्वामी को धोखा देना है। +ध आश्चर्य से आप ही आप) वाह रे महानुभावता प्रगट) तो इसके स्वर्ण बना कर आप अपना दास्य छुड़ा लें। +ध महाराज! बड़े बडे़ देवता आप का स्मरण करते हैं और करेंगे मैं क्या हूँ। +(विमान पर अष्ट महासिद्धि नव निधि और बारहो प्रयोग आदि देवता आते हैं)। +दे महाराज हरिश्चन्द्र की जय हो। आप के अनुग्रह से हम लोग विघ्नों से छूटकर स्वतंत्रा हो गए। अब हम आपके वश में हैं जो आज्ञा हो करें। हम लोग अष्ट महा सिद्धि नव निधि और बारह प्रयोग सब आप के हाथ में है। +ह प्रणाम करके) यदि हम पर आप लोग प्रसन्न हो तो महासिद्धि योगियों के, निधि सज्जन के, और प्रयोग साधकों के पास जाओ। +ह आप लोग मेरे सिर आँखों पर हैं पर मैं क्या करूं, क्योंकि मैं पराधीन हूं। एक बात और भी निवेदन है। वह यह कि छह अच्छे प्रयोग की तो हमारे समय में सद्यः सिद्धि होय पर बुरे प्रयोगों की सिद्धि विलंब से हो। +दे महाराज! जो आज्ञा। हम लोग जाते हैं। आज आप के सत्य ने शिव जी के कीलन1 को भी शिथिल कर दिया। महाराज का कल्याण हो। +ह घबड़ा कर ���पर देखकर) अरे! यह कौन है? कुलगुरु भगवान सूर्य अपना तेज समेटे मुझे अनुशासन कर रहे हैं। (ऊपर पितः मैं सावधान हूं सब दुखों को फूल की माला की भांति ग्रहण करूंगा। नेपथ्य में रोने की आवाज सुन पड़ती है) +ह अरे अब सवेरा होने के समय मुरदा आया! अथवा चांडाल कुल का सदा कल्याण हो हमें इस से क्या। (खबरदार इत्यादि कहता हुआ फिरता है) +ह अहह! किसी दीन स्त्री का शब्द है, और शोक भी इस पुत्र का है। हाय हाय! हम को भी भाग्य ने क्या ही निर्दय और वीभत्स कर्म सौंपा है! इससे भी वस्त्रा मांगना पड़ेगा। +ह हाय हाय! इसके पति ने भी इसको छोड़ दिया है। हा! इस तपस्विनी को निष्करुण विधि ने बड़ा ही दुख दिया है। +(शव को बारंबार गले लगाती, देखती और चूमती है) +ह हाय! हाय! इस दुखिया के पास तो खड़ा नहीं हुआ जाता। +ह न जाने क्यों इसके रोने पर मेरा कलेजा फटा जाता है। +ह हाय हाय! इसकी बातों से तो प्राण मुंह को चले आते हैं और मालूम होता है कि संसार उलटा जाता है। यहां से हट चलें (कुछ दूर हटकर उसकी ओर देखता खड़ा हो जाता है)। +ह अरे इन बातों से तो मुझे बड़ी शंका होती है (शव को भली भांति देखकर) अरे इस लड़के में तो सब लक्षण चक्रवर्ती के से दिखाई पड़ते हैं। हाय! न जाने किस बड़े कुल का दीपक आज इस ने बुझाया है, और न जाने किस नगर को आज इसने अनाथ किया है। हाय! रोहिताश्व भी इतना बड़ा भया होगा (बड़े सोच से) हाय हाय! मेरे मुंह से क्या अमंगल निकल गया। नारायण (सोचता है) +शै चिता बनाकर पुत्र के पास आकर उठाना चाहती है और रोती है)। +(दोनों आश्चर्य से ऊपर देखते हैं) +शै हाय। इस कुसमय में आर्यपुत्र की यह कौन स्तुति करता है? वा इस स्तुति ही से क्या है, शास्त्र सब असत्य हैं नहीं तो आर्यपुत्र से धर्मी की यह गति हो! यह केवल देवताओं और ब्राह्मणों का पाषंड है। +ह बलपूर्वक आंसुओं को रोककर और बहुत धीरज धर कर) प्यारी, रोओ मत। ऐसे ही समय में तो धीरज और धरम रखना काम है। मैं जिस का दास हूं उस की आज्ञा है कि बिना आधा कफन लिए क्रिया मत करने दो। इससे मैं यदि अपनी स्त्री और अपना पुत्र समझकर तुम से इसका आधा कफन न लूं तो बड़ा अधर्म हो। जिस हरिश्चन्द्र ने उदय से अस्त तक की पृथ्वी के लिए धर्म न छोड़ा उसका धर्म आध गज कपड़े के वास्ते मत छुड़ाओ और कफन से जल्दी आधा कपड़ा फाड़ दो। देखो सबेरा हुआ चाहता है ऐसा न हो कि कुलगुरु भगवान् सूर्य अपने वंश की यह दुर्दशा देखकर चित् में उदास हों। (हाथ ��ैलाता है) +शै रोती हुई) नाथ जो आज्ञा। (रोहिताश्व का मृतकंबल फाड़ा चाहती है कि रंगभूमि की पृथ्वी हिलती है, तोप छूटने का सा बड़ा शब्द और बिजली का सा उजाला होता है। नेपथ्य में बाजे की ओर बस धन्य और जय-जय की ध्वनि होती है, फूल बरसते हैं और भगवान् नारायण प्रकट होकर राजा हरिश्चन्द्र का हाथ पकड़ लेते हैं।) +ह. और शै आश्चर्य, आनंद, करुणा और प्रेम से कुछ कह नहीं सकते, आंखों से आंसू बहते हैं और एकटक भगवान् के मुखारविंद की ओर देखते हैं) +(राजा हरिश्चन्द्र शैव्या और रोहिताश्व सबको प्रणाम करते हैं) +बि महाराज यह केवल चन्द्र सूर्य तक आप की कीर्ति स्थिर रहने के हेतु मैंने छल किया था सो क्षमा कीजिए और अपना राज्य लीजिए। +(हरिश्चन्द्र भगवान और धर्म का मुंह देखते हैं) +धर्म महाराज राज आप का है इसका मैं साक्षी हूं आप निस्संदेह लीजिए। +सत्य ठीक है जिसने हमारा अस्तित्व संसार में प्रत्यक्ष कर दिखाया उसी का पृथ्वी का राज्य है। +श्रीमहादेव पुत्र हरिश्चन्द्र, भगवान नारायण के अनुग्रह से ब्रह्मलोक पर्यंत तुम ने पाया तथापि मैं आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारी कीर्ति, जब तक पृथ्वी है तब तक स्थिर रहे, और रोहिताश्व दीर्घायु, प्रतापी और चक्रवर्ती होय। +(हरिश्चन्द्र और शैव्या प्रणाम करते हैं) +इन्द्र राजा को आलिंगन करके और हाथ जोड़ के) महाराज ,मुझे क्षमा कीजिये। यह सब मेरी दुष्टता थी परंतु इस बात से आप का तो कल्याण ही हुआ। स्वर्ग कौन कहे आप ने अपने सत्यबल से ब्रह्मपद पाया। देखिये आप की रक्षा के हेतु श्रीशिव जी ने भैरवनाथ को आज्ञा दी थी, आप उपाध्यक्ष बने थे, नारद जी बटु बने थे, साक्षात् धर्म ने आप के हेतु चांडाल और कापालिक का भेष लिया, और सत्य ने आप ही के कारण चांडाल के अनुचर और बैताल का रूप धारण किया। न आप बिके, न दास हुए, यह सब चरित्रा भगवान नारायण की इच्छा से केवल आप के सुयश के हेतु किया गया। +(पुष्पवृष्टि और बाजे की धुनि के साथ जवनिका गिरती है) + + +महन्त बच्चा गोवरधन दास! तू पश्चिम की ओर से जा और नारायण दास पूरब की ओर जायगा। देख, जो कुछ सीधा सामग्री मिलै तो श्री शालग्राम जी का बालभोग सिद्ध हो। +हिन्दू चूरन इस का नाम। +चूरन जब से हिन्द में आया। +चूरन चला डाल की मंडी। +(बाबा जी का चेला गोबर्धनदास आता है और सब बेचनेवालों की आवाज सुन सुन कर खाने के आनन्द में बड़ा प्रसन्न होता है।) +गो. दा क्यों बच्चा! इस न���र का नाम क्या है? +गो. दा और राजा का क्या नाम है? +(हलवाई मिठाई तौलता है-बाबा जी मिठाई लेकर खाते हुए और अंधेर नगरी गाते हुए जाते हैं।) +(महन्त जी और नारायणदास एक ओर से 'राम भजो इत्यादि गीत गाते हुए आते हैं और एक ओर से गोबवर्धनदास अन्धेरनगरी गाते हुए आते हैं') +गो. दा गुरूजी महाराज! सात पैसे भीख में मिले थे, उसी से इतनी मिठाई मोल ली है। +महन्त बच्चा! नारायण दास ने मुझसे कहा था कि यहाँ सब चीज टके सेर मिलती है, तो मैंने इसकी बात का विश्वास नहीं किया। बच्चा, वह कौन सी नगरी है और इसका कौन सा राजा है, जहां टके सेर भाजी और टके ही सेर खाजा है? +महन्त तो बच्चा! ऐसी नगरी में रहना उचित नहीं है, जहाँ टके सेर भाजी और टके ही सेर खाजा हो। +महन्त जी नारायण दास के साथ जाते हैं; गोवर्धन दास बैठकर मिठाई खाता है।, +(राजा, मन्त्री और नौकर लोग यथास्थान स्थित हैं) +१ सेवक चिल्लाकर) पान खाइए महाराज। +२ नौकर एक सुराही में से एक गिलास में शराब उझल कर देता है।) लीजिए महाराज। पीजिए महाराज। +(नेपथ्य में-दुहाई है दुहाई-का शब्द होता है।) +फ दोहाई है महाराज दोहाई है। हमारा न्याव होय। +राजा अच्छा कल्लू बनिये को पकड़ लाओ। +(नौकर लोग दौड़कर बाहर से बनिए को पकड़ लाते हैं) क्यों बे बनिए! इसकी लरकी, नहीं बरकी क्यों दबकर मर गई? +राजा अच्छा, इस मल्लू को छोड़ दो, कारीगर को पकड़ लाओ। (कल्लू जाता है, लोग कारीगर को पकड़ लाते हैं) क्यों बे कारीगर! इसकी बकरी किस तरह मर गई? +राजा अच्छा, इस कारीगर को बुलाओ, नहीं नहीं निकालो, उस चूनेवाले को बुलाओ। +(कारीगर निकाला जाता है, चूनेवाला पकड़कर लाया जाता है) क्यों बे खैर सुपाड़ी चूनेवाले! इसकी कुबरी कैसे मर गई? +चूनेवाला महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं, भिश्ती ने चूने में पानी ढेर दे दिया, इसी से चूना कमजोर हो गया होगा। +राजा अच्छा चुन्नीलाल को निकालो, भिश्ती को पकड़ो। (चूनेवाला निकाला जाता है भिश्ती, भिश्ती लाया जाता है) क्यों वे भिश्ती! गंगा जमुना की किश्ती! इतना पानी क्यों दिया कि इसकी बकरी गिर पड़ी और दीवार दब गई। +राजा अच्छा, कस्साई को लाओ, भिश्ती निकालो। +(लोग भिश्ती को निकालते हैं और कस्साई को लाते हैं) +राजा अच्छा कस्साई को निकालो, गड़ेरिये को लाओ। +(कस्साई निकाला जाता है गंडे़रिया आता है) +राजा अच्छा, इस को निकालो, कोतवाल को अभी सरबमुहर पकड़ लाओ। +(लोग एक तरफ से कोतवाल को पकड़ कर ले जाते हैं, दूसरी ओर से ��ंत्री को पकड़ कर राजा जाते हैं) +गुरु जी ने हमको नाहक यहाँ रहने को मना किया था। माना कि देस बहुत बुरा है। पर अपना क्या? अपने किसी राजकाज में थोड़े हैं कि कुछ डर है, रोज मिठाई चाभना, मजे में आनन्द से राम-भजन करना। +१. प्या आप ने बिगाड़ा है या बनाया है इस से क्या मतलब, अब चलिए। फाँसी चढ़िए। +२. प्या आप बड़े मोटे हैं, इस वास्ते फाँसी होती है। +गो. दा मोटे होने से फाँसी? यह कहां का न्याय है! अरे, हंसी फकीरों से नहीं करनी होती। +१. प्या बात है कि कल कोतवाल को फाँसी का हुकुम हुआ था। जब फाँसी देने को उस को ले गए, तो फाँसी का फंदा बड़ा हुआ, क्योंकि कोतवाल साहब दुबले हैं। हम लोगों ने महाराज से अर्ज किया, इस पर हुक्म हुआ कि एक मोटा आदमी पकड़ कर फाँसी दे दो, क्योंकि बकरी मारने के अपराध में किसी न किसी की सजा होनी जरूर है, नहीं तो न्याव न होगा। इसी वास्ते तुम को ले जाते हैं कि कोतवाल के बदले तुमको फाँसी दें। +(गोबर्धन दास को पकड़े हुए चार सिपाहियों का प्रवेश) +गो. दा हाय! मैं ने गुरु जी का कहना न माना, उसी का यह फल है। गुरु जी ने कहा था कि ऐसे-नगर में न रहना चाहिए, यह मैंने न सुना! अरे! इस नगर का नाम ही अंधेरनगरी और राजा का नाम चौपट्ट है, तब बचने की कौन आशा है। अरे! इस नगर में ऐसा कोई धर्मात्मा नहीं है जो फकीर को बचावै। गुरु जी! कहाँ हौ? बचाओ-गुरुजी-गुरुजी-(रोता है, सिपाही लोग उसे घसीटते हुए ले चलते हैं) +(गुरु जी और नारायण दास आरोह) +सिपाही नहीं महाराज, हम लोग हट जाते हैं। आप बेशक उपदेश कीजिए। +(सिपाही हट जाते हैं। गुरु जी चेले के कान में कुछ समझाते हैं) +(इसी प्रकार दोनों हुज्जत करते हैं-सिपाही लोग परस्पर चकित होते हैं) +२ सिपाही हम भी नहीं समझ सकते हैं कि यह कैसा गबड़ा है। +राजा यह क्या गोलमाल है? +महन्त राजा! इस समय ऐसा साइत है कि जो मरेगा सीधा बैकुंठ जाएगा। +(राजा को लोग टिकठी पर खड़ा करते हैं) + + +हाय-हाय इससे वै$से बचेंगे? अरे यह तो मेरा एक ही कौर कर जायेगा! हाय! परमेश्वर बैकुंठ में और राजराजेश्वरी सात समुद्र पार, अब मेरी कौन दशा होगी? +(दोनों उठाकर भारत को ले जाते हैं big> +(फौज के डेरे दिखाई पड़ते हैं! भारतदुर्दैव’ आता है) +लिया भी तो अँगरेजों से औगुन! हा हाहा! कुछ पढ़े लिखे मिलकर देश सुधारा चाहते हैं? हहा हहा! एक चने से भाड़ फोडं़गे। ऐसे लोगों को दमन करने को मैं जिले के हाकिमों को न हुक्म दूँगा +कि इनको डिसलायल्���ी में पकड़ो और ऐसे लोगों को हर तरह से खारिज करके जितना जो बड़ा मेरा मित्र हो उसको उतना बड़ा मेडल और खिताब दो। हैं! हमारी पालिसी के विरुद्ध उद्योग करते हैं मूर्ख! यह क्यों? +(नेपथ्य में से ‘जो आज्ञा’ का शब्द सुनाई पड़ता है) +भारतदु आहा! हाहा! शाबाश! शाबाश! हाँ, और भी कुछ धम्र्म ने किया? +रोजगार न रहा, सूद ही सही। वह भी नहीं, तो घर ही का सही, ‘संतोषं परमं सुखं’ रोटी को ही सराह सराह के खाते हैं। उद्यम की ओ देखते ही नहीं। निरुद्यमता ने भी संतोष को बड़ी सहायता दी। +इन दोनों को बहादुरी का मेडल जरूर मिले। व्यापार को इन्हीं ने मार गिराया। +अदालत ने भी अच्छे हाथ साफ किए। फैशन ने तो बिल और टोटल के इतने गोले मारे कि अंटाधार कर दिया और सिफारिश ने भी खूब ही छकाया। पूरब से पश्चिम और पश्चिम से पूरब तक पीछा करके खूब भगाया। +डर दिखाया गया, बराबरी का झगड़ा उठा, धांय धांय गिनी गई1 वर्णमाला कंठ कराई,2 बस हाथी के खाए कैथ हो गए। धन की सेना ऐसी भागी कि कब्रों में भी न बची, समुद्र के पार ही शरण मिली। +सत्या. फौ हाँ, सुनिए। फूट, डाह, लोभ, भेय, उपेक्षा, स्वार्थपरता, पक्षपात, हठ, शोक, अश्रुमार्जन और निर्बलता इन एक दरजन दूती और दूतों को शत्राुओं की फौज में हिला मिलाकर ऐसा पंचामृत बनाया कि सारे शत्राु बिना मारे +सत्या. फौ महाराज! उसका बल तो आपकी अतिवृष्टि और अनावृष्टि नामक फौजों ने बिलकुल तोड़ दिया। लाही, कीड़े, टिड्डी और पाला इत्यादि सिपाहियों ने खूब ही सहायता की। बीच में नील ने भी नील बनकर अच्छा लंकादहन किया। +मेरी ही बदौलत ओझा, दरसनिए, सयाने, पंडित, सिद्ध लोगों को ठगते हैं। (आतंक से) भला मेरे प्रबल प्रताप को ऐसा कौन है जो निवारण करे। हह! चुंगी की कमेटी सफाई करके मेरा निवारण करना चाहती है, +काल के बल से औषधों के गुणों और लोगों की प्रकृति में भी भेद पड़ गया। बस अब हमें कौन जीतेगा और फिर हम ऐसी सेना भेजेंगे जिनका भारतवासियों ने कभी नाम तो सुना ही न होगा; तब भला वे उसका प्रतिकार क्या करेंगे! +ये किधर से चढ़ाई करते हैं और कैसे लड़ते हैं जानेंगे तो हई नहीं, फिर छुट्टी हुई वरंच महाराज, इन्हीं से मारे जायँगे और इन्हीं को देवता करके पूजेंगे, +यह लो पान का बीड़ा लो। (बीड़ा देता है) +(रोग बीड़ा लेकर प्रणाम करके जाता है) +आलस्य हहा! एक पोस्ती ने कहा; पोस्ती ने पी पोस्त नै दिन चले अढ़ाई कोस। दूसरे ने जवाब दिया, अबे वह पोस्ती न हो��ा डाक का हरकारा होगा। पोस्ती ने जब पोस्त पी तो या कूँड़ी के उस पार या इस पार ठीक है। +बंदर की तरह धूम मचाना नहीं अच्छा ।। +‘‘मौत अच्छी है पर दिल का लगाना नहीं अच्छा ।। +उमरा को हाथ पैर चलाना नहीं अच्छा ।। +सिर भारी चीज है इस तकलीफ हो तो हो। +पर जीभ विचारी को सताना नहीं अच्छा ।। +फाकों से मरिए पर न कोई काम कीजिए। +अरे करने को दैव आप ही करेगा, हमारा कौन काम है, पर चलें। +तंत्रा तो केवल मेरी ही हेतु बने। संसार में चार मत बहुत प्रबल हैं, हिंदू बौद्ध, मुसलमान और क्रिस्तान। इन चारों में मेरी चार पवित्र प्रेममूर्ति विराजमान हैं। सोमपान, बीराचमन, शराबूनतहूरा और बाप टैजिग वाइन। +पियत भट्ट के ठट्ट अरु, गुजरातिन के वृंद। +शांपिन शिव गौड़ी गिरिश, ब्रांड़ी ब्रह्म बिचारि ।। +विषयेंद्रियों के सुखानुभव मेरे कारण द्विगुणित हो जाते हैं। संगीत साहित्य की तो एकमात्रा जननी हूँ। फिर ऐसा कौन है जो मुझसे विमुख हो? +(राजा को देखकर) महाराज! कहिए क्या हुक्म है? +(रंगशाला के दीपों में से अनेक बुझा दिए जायँगे) +हृदय के और प्रत्यक्ष, चारों नेत्रा हमारे प्रताप से बेकाम हो जाते हैं। हमारे दो स्वरूप हैं, एक आध्यात्मिक और एक आधिभौतिक, जो लोक में अज्ञान और अँधेरे के नाम से प्रसिद्ध हैं। +अंध आपके काम के वास्ते भारत क्या वस्तु है, कहिए मैं विलायत जाऊँ। +अंध बहुत अच्छा, मैं चला। बस जाते ही देखिए क्या करता हूँ। (नेपथ्य में बैतालिक गान और गीत की समाप्ति में क्रम से पूर्ण अंधकार और पटाक्षेप) +सभापति खड़े होकर) सभ्यगण! आज की कमेटी का मुख्य उदेश्य यह है कि भारतदुर्दैव की, सुुना है कि हम लोगों पर चढ़ाई है। इस हेतु आप लोगों को उचित है कि मिलकर ऐसा उपाय सोचिए कि जिससे हम लोग इस भावी आपत्ति से बचें। +जहाँ तक हो सके अपने देश की रक्षा करना ही हम लोगों का मुख्य धर्म है। आशा है कि आप सब लोग अपनी अपनी अनुमति प्रगट करेंगे। (बैठ गए, करतलध्वनि) +शाकता कि हमारा बोज्र्जोबल के बाहर का बात है। क्यों नहीं शाकता? अलबत्त शकैगा, परंतु जो सब लोग एक मत्त होगा। (करतलध्वनि) देखो हमारा बंगाल में इसका अनेक उपाय साधन होते हैं। +ब्रिटिश इंडियन ऐसोशिएशन लीग इत्यादि अनेक शभा भ्री होते हैं। कोई थोड़ा बी बात होता हम लोग मिल के बड़ा गोल करते। गवर्नमेंट तो केवल गोलमाल शे भय खाता। और कोई तरह नहीं शोनता। +प. देशी धीरे से) यहीं, मगर जब तक कमेटी में हैं तभी तक। बाहर निकले कि फिर कुछ नहीं। +दू. देशी ख्धीरे से, क्यों भाई साहब; इस कमेटी में आने से कमिश्नर हमारा नाम तो दरबार से खारिज न कर देंगे? +एडिटर खडे़ होकर) हम अपने प्राणपण से भारत दुर्दैव को हटाने को तैयार हैं। हमने पहिले भी इस विषय में एक बार अपने पत्रा में लिखा था परंतु यहां तो कोई सुनता ही नहीं। अब जब सिर पर आफत आई सो आप लोग उपाय सोचने लगे। +बंगाली खड़े होकर) अलबत, यह भी एक उपाय है किंतु असभ्यगण आकर जो स्त्री लोगों का विचार न करके सहसा कनात को आक्रमण करेगा तो उपवेशन) +एडि खड़े होकर) हमने एक दूसरा उपाय सोचा है, एडूकेशन की एक सेना बनाई जाय। कमेटी की फौज। अखबारों के शस्त्रा और स्पीचों के गोले मारे जायँ। आप लोग क्या कहते हैं उपवेशन) +महा परंतु इसके पूर्व यह होना अवश्य है कि गुप्त रीति से यह बात जाननी कि हाकिम लोग भारतदुर्दैव की सैन्य से मिल तो नहीं जायँगे। +महा तो सार्वजनिक सभा का स्थापन करना। कपड़ा बीनने की कल मँगानी। हिदुस्तानी कपड़ा पहिनना। यह भी सब उपाय हैं। +एडि परंतु अब समय थोड़ा है जल्दी उपाय सोचना चाहिए। +उसमें एक तो पिशान लेकर स्वेज का नहर पाट देगा। दूसरा बाँस काट काट के पवरी नामक जलयंत्रा विशेष बनावेगा। तीसरा उस जलयंत्रा से अंगरेजों की आँख में धूर और पानी डालेगा। +महा नहीं नहीं, इस व्यर्थ की बात से क्या होना है। ऐसा उपाय करना जिससे फल सिद्धि हो। +प. देशी पर उनके पढ़ने का और समझने का अभी संस्कार किसको है? +(सब डरके चैकन्ने से होकर इधर उधर देखते हैं) +सभापति आगे से ले आकर बड़े शिष्टाचार से) आप क्यों यहाँ तशरीफ लाई हैं? कुछ हम लोग सरकार के विरुद्ध किसी प्रकार की सम्मति करने को नहीं एकत्रा हुए हैं। हम लोग अपने देश की भलाई करने को एकत्रा हुए हैं। +बंगाली आगे बढ़कर क्रोध से) काहे को पकडे़गा, कानून कोई वस्तु नहीं है। सरकार के विरुद्ध कौन बात हम लोग बाला? व्यर्थ का विभीषिका! +महा हाय हाय! यहाँ के लोग बड़े भीरु और कापुरूष हैं। इसमें भय की कौन बात है! कानूनी है। +सभा तो पकड़ने का आपको किस कानून से अधिकार है? +सभा स्वगत) चेयरमैन होने से पहिले हमीं को उत्तर देना पडे़गा, इसी से किसी बात में हम अगुआ नहीं होते। +डिस अच्छा चलो। (सब चलने की चेष्टा करते हैं) +(भारत एक वृक्ष के नीचे अचेत पड़ा है) +(भारत को जगाता है और भारत जब नहीं जागता तब अनेक यत्न से फिर जगाता है, अंत में हारकर उदास होकर) +���ाय! भारत को आज क्या हो गया है? क्या निःस्संदेह परमेश्वर इससे ऐसा ही रूठा है? हाय क्या अब भारत के फिर वे दिन न आवेंगे? हाय यह वही भारत है जो किसी समय सारी पृथ्वी का शिरोमणि गिना जाता था? +कुस कन्नौज अंग अरु वंगहि। +हाय! यहीं के लोग किसी काल में जगन्मान्य थे। +इनहीं के क्रोध किए प्रकास। +याही भारत में भए शाक्य सिंह संन्यास ।। +जिस भारतवर्ष के राजा चंद्रगुप्त और अशोक का शासन रूम रूस तक माना जाता था, उस भारत की यह दुर्दशा! जिस भारत में राम, युधिष्ठर, नल, हरिश्चंद्र, रंतिदेव, शिवि इत्यादि पवित्र चरित्रा के लोग हो गए हैं उसकी यह दशा! +हाय, भारत भैया, उठो! देखो विद्या का सूर्य पश्चिम से उदय हुआ चला आता है। अब सोने का समय नहीं है। अँगरेज का राज्य पाकर भी न जगे तो कब जागोगे। मूर्खों के प्रचंड शासन के दिन गए, अब राजा ने प्रजा का स्वत्व पहिचाना। +विद्या की चरचा फैल चली, सबको सब कुछ कहने सुनने का अधिकार मिला, देश विदेश से नई विद्या और कारीगरी आई। तुमको उस पर भी वही सीधी बातें, भाँग के गोले, ग्रामगीत, वही बाल्यविवाह, भूत प्रेत की पूजा जन्मपत्राी की विधि! +(भारत का मुँह चूमकर और गले लगाकर) + + +(मलिन मुख किए सूत्राधार और पारिपाश्र्वक आते हैं) +पा: मित्र आज तुह्मैं1 क्या हो गया है और क्या बकते हो और इतने उदास क्यों हो। +(नेत्रा से जल की धारा बहती है और रोकने से भी नहीं रुकती) +पा अपने गले में सूत्राधार को लगाकर और आँसू पोंछकर) मित्र आज तुह्मै1 हो क्या गया है? यह क्या सूझी है? क्या आज लोगों को यही तमाशा दिखाओगे। +क्या ईश्वर है तो उसके यही काम हैं जो संसार में हो रहे हैं? क्या उसकी इच्छा के बिना भी कुछ होता है? क्या लोग दीनबन्धु दयासिन्धु उसको नहीं कहते? क्या माता पिता के सामने पुत्र की स्त्री के सामने पति की और बन्धुओं के +क्या अब भारतखंड के लोग ऐसे कापुरुष और दीन उसकी इच्छा के बिना ही हो गए? हा आँसू बहते हैं लोग कहते हैं कि ये यह उसके खेल हैं। छिः ऐसे निर्दय को भी लोग दयासमुद्र किस मुँह से पुकारते हैं?) +सू: आभासमात्रा है तो-फिर किसने यह बखेड़ा बनाने कहा था और पचड़ा फैलाने कहा था, उस पर भी न्याव करने और कृपालु बनने का दावा (आँख भर आती है)। +पा: पर उसका परिणाम क्या होगा? +सू: क्या कोई परिणाम होना अभी बाकी है? हो चुका जो होना था। +सू: ऐसा कौन नाटक है यों तो सभी नायकों के चरित्रा किसी किसी विषय में उससे मिलते हैं पर आनुपूव्र्वी चरित्रा कैसे मिलैगा। +पा: मित्र मृच्छकटिक हिन्दी में खेलो क्योंकि! उसके नायक चारुदत्त का चरित्रामात्रा इनसे सब मिलता है केवल बसन्तसेना और राजा की हानि है। +पा स्मरण करके) हाँ हाँ वह नाटक खेलौ जो तुम उस दिन उद्यान में उनसे सुनते थे,-वह उनके और इस घोर काल के बड़ा ही अनुरूप है उसके खेलने से लोगों का वर्तमान समय का ठीक नमूना दिखाई पड़ेगा और वह नाटक भी नई पुरानी, +दोनों रीति मिलके बना है। +पा: चलो ।। (दोनों जाते हैं) +झापटिया: कोड़ा मारकर मंदिर की भीड़ हटाने वाला +मि: अच्छी समय है मंगला की आधी समय है बैठो। +प: अच्छा मथुरादास जी वैसी जाओ। (बैठते हैं) +बा: जी भय्या जी का तो नेम है कि बडे़ सबेरे नहा कर फूलघर में जाते हैं तब मंगला के दर्शन करके तब घर में जायकर सेवा में नहाते हैं और मैं तो आज कल कार्तिक के सबब से नहाता हूँ तिस पर भी देर हो जाती है रोकड़ +ध: और गुरु इनके बदौलत चार जीवन के और चौन है एक तो भट दूसरे इनके सरबस खबा तिसरे बिरकत और चौथी बाई। +ब: भाग होय तो ऐसिसो मिल जायँ। देखो लाड़लीप्रसाद के और बच्चू के ऊ नागरानी और बम्हनिया मिली हैं कि नाहीं! +(रामचन्द्र ठीक इन दोनों के पीछे का किवाड़ खोलकर आता है) +रा: भला आप ऐसे मित्र से कोई खफा हो सकता है? यह आप कैसी बात करते हैं? +बा: कार्तिक नहाना होता है न? +बा: यह भवसागर है। इसमें कोई कुछ बात करता है, कोई कुछ बात करता है। आप इन बातों का कहाँ तक खयाल कीजिएगा ऐं! कहिए कचहरी जाते हैं कि नहीं? +बा हँसकर) उपमा आप ने बहुत अच्छी दिया और कहिए और अंधरी मजिसटरों1 का क्या हाल है big> +प्रयागलाल भी करते हैं, पर वह पुलिस के शत्राु हैं। और विष्णुदास बड़े बवददपदह बींच हैं। दीवानराम हुई नहीं, बाकी रहे फिजिशियन सो वे तो अँगरेज ही हैं, पर भाई कई मूर्खों को बड़ा अभिमान हो गया है, +श्री गोविंदराय जी की श्री मंगला खुली (सब दौड़ते हैं) +सुधाकर रामचंद (नाटक के नायक) का मुसाहब +(दलाल, गंगापुत्र, दुकानदार, भंडेरिया और झुरीसिंह बैठे हैं) +माल वाल कुछ मिला, या हुआ कोरा सत्यानाशी? +ग: और साल से बढ़कर। +कोई का खाना, कोई की रंडी, कोई का पगड़ी जामा ।। +(सब लोग आशीर्वाद, दंडवत, आओ आओ शिष्टाचार करते हैं) +गं: भैया इनके दम के चौन है। ई अमीरन के खेलउना हैं। +दू: हाँ भाई बाजार में भी इनकी साक बँधी है। +(परदेशी के मुँह के पास चुटकी बजाता है और नाक के पास से उँगली लेकर दूसरे हाथ की उँगली पर घुमाता है) +(मिठाई वाले, खिलौने वाले, कुली और चपरासी इधर उधर फिरते हैं। +सुधाकर एक विदेशी पंडित और दलाल बैठे हैं) +द बैठ के पान लगाता है) या दाता राम! कोई भगवान से भेंट कराना। +वि. पं: क्या आपका घर काशी ही जी में है? +सु: वाह! आप काशी का वृत्तान्त अब तक नहीं जानते भला त्रौलोक्य में और दूसरा ऐसा कौन नगर है जिसको काशी की समता दी जाय। +जहाँ तारकेश्वर विश्वेश्वरादि नामधारी भगवान भवानीपति तारकब्रह्म का उपदेश करके तनत्याग मात्रा से ज्ञानियों को भी दुर्लभ अपुनर्भव परम मोक्षपद-मनुष्य पशु कीट पतंगादि आपामर जीवनमात्रा को देकर उसी क्षण अनेक कल्पसंचित महापापपुंज भस्म कर देते हैं। +जहाँ तक देव, दानव, गंधर्व, सिद्ध चारण, विद्याधर देवर्षि, राजर्षिगण और सब उत्तम उत्तम तीर्थ-कोई मूर्तिमान, कोई छिपकर और कोई रूपांतर करके नित्य निवास करते हैं। +जहाँ मूर्तिमान सदाशिव प्रसन्न वदन आशुतोष सकलसद्गुणैकरत्नाकर, विनयैकनिकेतन, निखिल विद्याविशारद, प्रशांतहृदय, गुणिजनसमाश्रय, धार्मिकप्रवर, काशीनरेश महाराजाधिराज श्रीमदीश्वरीप्रसादनारायणसिंह बहादुर और उनके कुमारोपम कुमार श्री प्रभुनारायणसिंह बहादुर दान धम्र्मसभा रामलीलादि के मिस धर्मोन्नति करते हुए और असत् कम्र्म नीहार को सूर्य की भाँति नाशते हुए पुत्र की तरह अपनी प्रजा का पालन करते हैं। +जहाँ श्रीमती चक्रवर्तिनिचयपूजितपादपीठा श्रीमती महारानी विक्टोरिया के शासनानुवर्ती अनेक कमिश्नर जज कलेक्टरादि अपने अपने काम में सावधान प्रजा को हाथ पर लिए रहते हैं और प्रजा उनके विकट दंड के सर्वदा जागने के भरोसे नित्य सुख से सोती है। +जहाँ राजा शंभूनारायणसिंह बाबू फतहनारायणसिंह बाबू गुरुदास बाबू माधवदास विश्वेश्वरदास राय नारायणदास इत्यादि बड़े बड़े प्रतिष्ठित और धनिक तथा श्री बापूदेव शास्त्री, श्रीबाल शास्त्री से प्रसिद्ध पंडित, श्रीराजा शिवप्रसाद, सैयद अहमद खाँ बहादुर ऐसे योग्य पुरुष, मानिकचंद्र मिस्तरी से शिल्पविद्या निपुण, वाजपेयी जी से तन्त्राीकार, श्री पंडित बेचनजी, शीतलजी, श्रीताराचरण से संस्कृत के और सेवक हरिचंद्र से भाषा के कवि बाबू अमृतलाल, मुंशी गन्नूलाल, मुंशी श्यामसुंदरलाल से शस्त्राव्यसनी और एकांतसेवी, श्रीस्वामि विश्वरूपानंद से यति, श्रीस्वामि विशुद्धानंद से धम्र्मोपदेष्टा, दातृगणैकाग्रगण्य श्रीमहाराजाधिराज विजयनगराधिपति से विदेशी सर्वदा निवास करके नगर की शोभा दिन दूनी रात चौगुनी करते रहते हैं। +जहाँ क्वींस कालिज (जिसके भीतर बाहर चारों ओर श्लोक और दोहे खुदे हैं जयनारायण कालिज से बड़े बंगाली टोला, नार्मल और लंडन मिशन से मध्यम तथा हरिश्चंद्र स्कूल से छोटे अनेक विद्यामंदिर हैं, जिनमें संस्कृत, अँगरेजी, हिन्दी, फारसी, बँगला, महाराष्ट्री की शिक्षा पाकर प्रति वर्ष अनेक विद्यार्थी विद्योत्तीर्ण होकर प्रतिष्ठालाभ करते हैं; इनके अतिरिक्त पंडितों के घर में तथा हिंदी फारसी पाठकों की निज शाला में अलग ही लोग शिक्षा पाते हैं, और राय शंकटाप्रसाद के परिश्रमोत्पन्न पबलिक लाइब्रेरी, मुनशी शीतलप्रसाद का सरस्वती-भवन, हरिश्चंद्र का सरस्वती भंडार इत्यादि अनेक पुस्तक-मंदिर हैं, जिनमें साधारण लोग सब विद्या की पुस्तकें देखने पाते हैं। +जहाँ मानमंदिर ऐसे यंत्राभवन, सारनाथ की धंमेक से प्राचीनावशेष चिद्द, विश्वनाथ के मंदिर का वृषभ और स्वर्ण-शिखर, राजा चेतसिंह के गंगा पार के मंदिर, कश्मीरीमल की हवेली और क्वींस कालिज की शिल्पविद्या और माधोराय के धरहरे की ऊँचाई देखकर विदेशी जन सर्वदा रहते हैं। +जहाँ महाराज विजयनगर के तथा सरकार के स्थापित स्त्री-विद्यामंदिर, औषधालय, अंधभवन, उन्मत्तागा इत्यादिक लाकद्वयसाधक अनेक कीर्तिकर कार्य हैं वैसे ही चूड़वाले इत्यादि महाजनों का सदावत्र्त और श्री महाराजाधिराज सेंधिया आदि के अटल सत्रा से ऐसे अनेक दीनों के आश्रयभूत स्थान हैं जिनमें उनको अनायास भी भोजनाच्छादन मिलता है। +जहाँ विदेशी अनेक तत्ववेत्ता धार्मिक धनीजन घरबार कुटुंब देश विदेश छोड़कर निवास करते हुए तत्वचिंता में मग्न सुख दुःख भुलाए संसार की यथारूप में देखते सुख से निवास करते हैं। +जहाँ भिन्न देशनिवासी आस्तिक विद्यार्थीगण परस्पर देव-मंदिरों में, घाटों पर, अध्यापकों के घर में, पंडित सभाओं में वा मार्ग में मिलाकर शास्त्रार्थ करते हुए अनर्गल धारा प्रवाह संस्कृत भाषण से सुनने वालों का चित्त हरण करते हैं। +जहाँ स्वर लय छंद मात्रा, हस्तकंपादि से शुद्ध वेदपाठ की ध्वनि से जो मार्ग में चलते वा घर बैठे सुन पड़ती है, तपोवन की शोभा का अनुभव होता है। +जहाँ द्रविड़, मगध, कान्यकुब्ज, महाराष्ट्र, बंगाल, पंजाब, गुजरात इत्याादि अनेक देश के लोग परस्पर मिले हुए अपन��-अपना काम करते दिखाते हैं और वे एक एक जाति के लोग जिन मुहल्लों में बसे हैं वहाँ जाने से ऐसा ज्ञान होता है मानों उसी देश में आए हैं, जैसे बंगाली टोले में ढाके का, लहौरी टोले में अमृतसर का और ब्रह्माघाट में पूने का भ्रम होता है। +जहाँ अनेक रंगों के कपड़े पहने सोरहो सिंगार बत्तीसो अभरन सजे पान खाए मिस्सी की धड़ी जमाए जोबन मदमाती झलझमाती हुई बारबिलासिनी देवदर्शन वैद्य ज्योतिषी गुणी-गृहगमन जार मिलन गानश्रावण उपवनभ्रमण इत्यादि अनेक बहानों से राजपथ में इधर-उधर झूमती घूमती नैनों के पटे फेरती बिचारे दीन पुरुषों को ठगती फिरती हैं और कहाँ तक कहैं काशी काशी ही है। काशी सी नगरी त्रौलोक्य में दूसरी नहीं है। आप देखिएगा तभी जानिएगा बहुत कहना व्यर्थ है। +सु: मैं तो पूर्व ही कह चुका हूँ कि काशी गुणी और धनियों की खान है यद्यपि यहाँ के बडे़-बड़े पंडित जो स्वर्गवासी हुए उनसे अब होने कठिन हैं, तथापि अब भी जो लोग हैं दर्शनीय ओर स्मरणीय हैं। फिर इन व्यक्तियों के दर्शन भी दुर्लभ हो जायेंगे और यहाँ के दाताओं का तो कुछ पूछना ही नहीं। चूड़ की कोठी वालों ने पंडित काकाराम जी के ऋण के हेतु एक साथ बीस सहस्र मुद्रा दीं। राजा पटनीमल के बाँधे धम्र्मचिन्ह कम्र्मनाशा का पुल और अनेक धम्र्मशाला, कुएँ, तालाब, पुल इत्यादि भारतवर्ष के प्रायः सब तीर्थों पर विद्यमान हैं। साह गोपालदास के भाई साह भवानीदास की भी ऐसी उज्ज्वल कीत्र्ति है और भी दीवान केवलकृष्ण, चम्पतराय अमीन इत्यादि बडे़-बड़े दानी इसी सौ वर्ष के भीतर हुए हैं। बाबू राजेंद्र मित्र की बाँधी देवी पूजा बाबू गुरु दास मित्र के यहाँ अब भी बड़े धूम से प्रतिवर्ष होती है। अभी राजा देवनारायणसिंह ही ऐसे गुणज्ञ हो गए हैं कि उनके यहाँ से कोई खाली हाथ नहीं फिरा। अब भी बाबू हरिश्चंद्र इत्यादि गुणग्राहक इस नगर की शोभा की भाँति विद्यमान हैं। अभी लाला बिहारीलाल और मुंशी रामप्रताप जी ने कायस्थ जाति का उद्धार करके कैसा उत्तम कार्य किया। आप मेरे मित्र रामचंद्र ही को देखिएगा। उसने बाल्यावस्था ही में लक्षावधि मुद्रा व्यय कर दी है। अभी बाबू हरखचंद मरे हैं तो एक गोदान नित्य करके जलपान करते थे। कोई भी फकीर यहाँ से खाली नहीं गया। दस पंद्रह रामलीला इन्हीं काशीवालों के व्यय से प्रति वर्ष होती है और भी हजारों पुण्यकार्य यहाँ हुआ ही करते हैं। आपको सब��े मिलाऊँगा आप काशी चलें तो सही। +वि यह इन्होंने किस भाषा में बात की? +(बुभुक्षित दीक्षित, गप्प पंडित, रामभट्ट, गोपालशास्त्री, चंबूभट्ट, माधव शास्त्री आदि लोग पान बीड़ा खाते और भाँग बूटी की तजबीज करते बैठे हैं; +इतने में महाश कोतवाल अर्थात् निमंत्राण करने वाला आकर चौक +में से दीक्षित को पुकारता है) +गप्प पंडित: अं तो ऐसी झुल्लक बात के हेतु शास्त्राधार का क्या काम है? इसमें तो बहुत से आधार मिलेंगे। +माधव शास्त्री: हाँ पंडित जी आप ठीक कहते हैं, क्योंकि हम लोगों का वाक्य और ईश्वर का वाक्य समान ही समझना चाहिए ”विप्रवाक्ये जनार्दनः“ ”ब्राह्मणो मम दैवतं“ इत्यादि। +गप्प पंडित: हाँ जी, और इसमें निंद्य होने का भी क्या कारण? इसमें शास्त्रा के प्रमाण बहुत से हैं और युक्ति तो हई है। पहिले यही देखिए कि इस क्षौर कर्म से दो मनुष्यों को अर्थात् वह कन्या और उसके स्वजन इनको बहुत ही दुःख होगा ओर उसके प्रतिबंध से सबको परम आनंद होगा। तब यहाँ इस वचन को देखिए- +बुभु और ऐेसे बहुत से उदाहरण भी इसी काशी में होते आए हैं। दूसरा काशीखंड ही में कहा है ‘येषां क्वापि गतिर्नास्ति तेषां वाराणसीगतिः।’ +चंबूभट्ट: मूर्खतागार का भी यह वाक्य है ‘अधवा वाललवनं जीव- नाद्र्दनवद्भवेत्’। संतोषसिंधु में भी ‘सकेशैव हि संस्थाप्या यदि स्यात्तोषदा नृणां’। +बुभु भांग की गोली और जल, बरतन, कटोरा, साफी लेकर) शास्त्री जी! थोड़े से बढ़ा तर।२ +गप्प पंडित: क्यों महाश! इस सभा में कोई गौड़ पंडित भी हैं वा नहीं? +महाश: हाँ पंडित जी, वह बात छोड़ दीजिए, इसमें तो केवल दाक्षिणात्य, द्राविण और क्वचित् तैलंग भी होंगे, परंतु सुना है कि जो इसमें अनुमति करेंगे वे भी अवश्य सभासद होंगे। +माधव: हाँ पंडित जी, मैं तो अपने शक्त्यनुसार प्रयत्न करता हूँ, क्योंकि प्रायः काका धनतुंदिल शास्त्री जो कुछ करते हैं उसका सब प्रबंध मुझे ही सौंप देते हैं। (कुछ ठहर कर) हाँ, पर पंडित जी, अच्छा स्मरण हुआ, आपसे और न्यू फांड ;छमू विदकद्ध शास्त्री से बहुत परिचय है, उन्हीं से आप प्रवेश कीजिए, क्योंकि उनसे और काका जी से गहरी मित्रता है। +गोपाल: कभी सुना नहीं इसी हेतु न्यू फांड। +गप्प पंडित: मित्र! मेरा ठट्टा मत करो। मैं यह तुम्हारी बोली नहीं समझता। क्या यह किसी का नाम है? मुझे मालूम होता है कि कदाचित् यह द्रविड़ त्रिलिंग आदि देश के मनुष्य का नाम होगा। क्यों��ि उधर की बोली मैंने सुनी है उसमें मूर्द्धन्य वर्ण प्रायः बहुत रहते हैं। +माधव शास्त्री: ठीक पंडित जी, अब आप का तर्कशास्त्रा पढ़ना आधा सफल हुआ। अस्तु ये इधर ही के हैं जो आप के साथ रामनगर गए थे, जिन्होंने घर में तमाशे वाले की बैठक की थी- +गप्प पंडित: हाँ, हाँ, अब स्मरण हुआ, परंतु उनका नाम परोपकारी शास्त्री है और तुम क्या भांड कहते हो? +गोपाल शास्त्री: वह पंडित जी, भांड नहीं कहा फांड कहा-न्यू फांड अर्थात् नये शौखीन। सारांश प्राचीन शौखीन लोगों ने जो जो कुछ पदार्थ उत्पन्न किए, उपभुक्त किए उन ही उनके उच्छिष्ट पदार्थ का अवलंबन करके वा प्राचीन रसिकों की चाल चलन को अच्छी समझ हमको भी लोक वैसा ही कहे आदि से खींच खींच के रसिकता लाना, क्या शास्त्री जी ऐसा न इसका अर्थ? +गप्प पंडित: अच्छा, जो होय मुझे उसके नाम से क्या काम। व्यक्ति मैंने जानी परंतु माधव जी आप कहते हैं और मुझसे उनसे भी पूर्ण परिचय है और उनको उनका नाम सच शोभता है, परंतु भाई वे तो बड़े आढ्य मान्य हैं और कंजूस भी हैं-और क्या तुमसे उनसे मित्रता मुझसे अधिक नहीं है। यहाँ तक शयनासन तक वे तुमको परकीय नहीं समझते। +माधव शास्त्री: पंडित जी! वह सर्व ठीक है, परंतु अब वह भूतकालीन हुई। कारण ‘अति सर्वत्रा वर्जयेत्’- +महाश इतने में अपना पान लगाकर खाता है और दीक्षित जी से) +(महाश वहीं से चार अंगुली दिखाकर गडा कहकर गया) +गप्प पंडित: क्या परोपकारी की पत्ती है? खाली पत्ती दी है कि और भी कुछ है? नाहीं तो मैं भी चलूँ। +गप्प पंडित: क्यों शास्त्री जी, मुझे यह बड़ा आश्चर्य ज्ञात होता है और इससे परिहासोक्ति सी देख पड़ती है। क्योंकि उसके यहाँ नाच रंग होना सूर्य का पश्चिमाभिमुख उगना है। +माधव गोपाल: चलिए पंडित जी वैसे ही धनतुंदिल शास्त्री जी के यहाँ पहुँचेंगे। (सब उठर बाहर आते हैं।) +गोपाल: कुछ रोज हमारे शास्त्री जी भी थे, परंतु हमारा क्या उनका कहिए ऐसा दुर्भाग्य हुआ कि अब वर्ष वर्ष दर्शन नहीं होने पाता। रामचंद्र जी तो इनको अपने भ्राते के समान पालन करते थे और इनसे बड़ा प्रेम रखते थे। अस्तु सारांश पंडित वहाँ रामचंद्र जी के बगीचे में जाएँगे। वहाँ सब लहरा देख पड़ेगी और इस मिस से तौ भी उनका दर्शन होगा। +(सब जाते हैं और जवनिका गिरती है big> + + +बसन्त पूजा नामक नाटक भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित है । जिसमें भारतेन्दु जी ने बसंत पूजा पे व्यन्ग्य लि���ा है । +(यजमान और सर्वभट्ट और मुदंर भट्ट आते हैं) +यज महाराज इसका नाम बसंत पूजा क्यों है? +य अच्छा आज कोई इस समय के अनुसार संहिता पढ़िये तो हम विशेष दक्षिणा दें। +य सहस्र शीर्षा का अध्याय तो हमैं भी यह याद है। यह मत पढ़िये दूसरा चरखा निकालिये। +दोनों अहा हा इस गला फाड़ने का फल तो यही था लाइये लाइये। + + +समय पड़े पर सीधै गुंगी । + + +बन्दर सभा भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित् एक हास्य व्यन्ग्य काव्य है । +सभा में दोस्तो बन्दर की आमद आमद है। +गधे औ फूलों के अफसर जी आमद आमद है। +उसी मसीह के पैकर की आमद आमद है। +व मोटे ओठ मुछन्दर की आमद आमद है ।। +हैं खर्च खर्च तो आमद नहीं खर-मुहरे की +उसी बिचारे नए खर की आमद आमद है ।। १ +आना शुतुरमुर्ग परी का बीच सभा में, +गोया गहमिल से व लैली उतरी आती है ।। +तेल और पानी से पट्टी है सँवारी सिर पर। +पान भी खाया है मिस्सी भी जमाई हैगी। +हाथ में पायँचा लेकर निखरी आती है ।। +मार सकते हैं परिन्दे भी नहीं पर जिस तक। +ऐ लोगो शुतुरमुर्ग परी नाम है मेरा ।। +इस गुलशने आलम में बिछा दाम है मेरा ।। +शुरफा व रुजला एक हैं दरबार में मेरे। +किया सभा में याद मुझे राजा ने आज। +लेना है मुझे इनआम में जर ।। +जर ही के लिये कसबो हुनर है ।। ६ +गजल शुतुरमुर्ग परी की बहार के मौसिम में, +आमद से बसंतों के है गुलजार बसंती। +आते हैं नजर कूचओ बाजार बसंती ।। +अफयूँ मदक चरस के व चंडू के बदौलत। +दो चार गुलाबी हां तो दो चार बसंती ।। +जोड़ा हो परी जान का तैयार बसंती ।। ७ +बने दीवारी के बबुआ पर लाइ भली विधि होरी। + + +* किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए उसका घोषणापत्र गीता और कुरान की तरह होना चाहिए। +२०१४ चुनाव अभियान के दौरान +* अच्छे दिन आने वाले हैं। +* मुझे देश के लिए मरने का अवसर नहीं मिला है, लेकिन मुझे देश के लिए जीने का अवसर मिल गया है। +* गुजरात संभवतः एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ आँगनबाड़ी के कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया जाता है। +* अच्छे दिन आने वाले हैं। +* एक समय था जब भारत को अन्य देश के लोग सपेरों का देश मानते थे लेकिन आजकल हमारे देश के युवाओं के चलते ये देश अब सापों को नही 'माउस' को नचाते है। +* हमारे देश की सेना बात नही करती रणक्षेत्र में अपना पराक्रम दिखाती है। +* पिछले सरकारों को आपलोगो ने 70 साल का समय दिया आपलोग सिर्फ मुझे 50 दिन का समय दो सारे कालेधन वाले खुद बाहर निकल आयेगे। +* न���टबंदी का फैसला देशहित में लिया है लेकिन जिससे इसका नुकसान हुआ है वे लोग मुझे छोड़ेगे नही। +* नोटबंदी से हमारे देश की जनता तो आज पहली बार चैन की सास लेकर सोने जा रही है जबकि कुछ लोग आज से नीद की गोलिया लेना शुरू कर देंगे। +* कालेधन को समाप्त करना है तो भारत की कैश अर्थव्यवस्था को कैशलेश की तरफ ले जाना है। हमे नोटबंदी के साथ कैशलेस भी होना जरुरी है। +* आप अपने मोबाइल को अपना बटुआ बना सकते है और अपने मोबाइल से सब्जी भी खरीद सकते है और अपना सारा व्यापार भी कर सकते है। +* लोकतंत्र में जनता का ही फैसला सर्वमान्य होता है जिसे मानना हम सबकी जिम्मेदारी है। +* हमे अपने देश की आजादी के लिए मरने का मौका तो नही मिला लेकिन इन प्यारे देशवासियों के लिए जीने का मौका मिला है तो इसे कभी हम व्यर्थ नही जाया करेगे और देश के हित में काम करना भी देशभक्ति है। +* माता पिता तो अपने बढती हुई बच्चियों पर लगाम तो लगाते है लेकिन ऐसे माता पिता अपने लडको से पूछते है की वे क्या करते है कहा जाते है क्यूकी एक बलात्कारी भी किसी माँ बाप का ही लड़का होता है इसलिए हर माँबाप का कर्तव्य है की अपनी बेटियों के साथ साथ बेटो पर ध्यान रखे की कही उनका बेटा गलत दिशा में तो नही जा रहा है। +* जो हमारे दादा दादी ने किया मेरे माँ बाप ने भी वैसा किया क्या हमे भी वैसा करना चाहिए इस सोच पर देश नही चलती हम तो अपने बडो से मार्गदर्शन तो ले सकते है लेकिन सोच और परिस्थिति तो अपने समय के हिसाब से होती है और उसी के अनुसार आगे बढ़ा जा सकता है। +* हमारे द्वारा की गयी कड़ी मेहनत कभी थकान नही लाती बल्कि उसे पूरा करने से संतोष का आनंद प्राप्त होता है। +* हमारे मन की कोई समस्या नही होती समस्या तो केवल हमारे मानसिकता की होती है जिसकी उपज के लिए खुद हम जिम्मेदार होते है। +* हर इन्सान के अंदर दो गुण होते है एक अच्छा और एक बुरा और इन्सान जिस पर अपना ध्यान लगाएगा वैसा ही बन जायेगा। +* राजनीति का कोई अंत नही होता। +* मेरे लिए धर्म का मतलब अपने काम के प्रति निष्ठावान और देश के प्रति समर्पण है। +* एक गरीब परिवार का बेटा भी अपनी बातें कह सकता है और अपने हक के लिए लड़ सकता है। यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है। +* करोड़ों लोगों का यह देश मेला है कौन कहता है कि मोदी अकेला है। +* गुजरात का विकास माडल देश के विकास विकास का माडल हो सकता है। +* इच्छा स्थिरता संकल्प संकल्प कड़ी परिश्रम सफलता। +* जब कोई कहता है की प्रधानमन्त्री कमजोर हैं इसका मतलब यह नहीं है कि लोग उसके शारीरिक क्षमता के बारे में कह रहे हैं बल्कि प्रधामंत्री वो पद होता है जिसकी गरिमा कम हो गयी है और जिस कार्यालय में बैठता है वो कार्यालय सबसे सशक्त कार्यालय होता है लेकिन वो कार्यालय की शक्ति खत्म सी हो गयी है। +* हम 'स्किल्ड इंडिया चाहते हैं लेकिन पिछली सरकार ने पिछले 10 साल से से भारत को 'स्कैम इण्डिया' बना दिया है। +* राहुल का भाषण लोगो के लिए मनोरंजन का अच्छा साधन है। +* किसी भी लोकतंत्र के लिए राजवंश घातक सिद्ध होता है, आप इतिहास उठाकर देख सकते हैं। +* मोदी-सरकार विरोधी ताकतों का सिर्फ एक ही एजेंडा है मोदी को रोको । +* लगातार जो चलते हैं वही मीठा फल पाते हैं। सूरज की अटलता देखो लगातार गतिशील और निरंतर चलने वाला कभी नहीं रुकने वाला। इसलिए हमें भी हमेसा आगे ही बढ़ते रहना चाहिए। +* एक गरीब कभी मुफ्त की नही खाना चाहता, उसे तो सिर्फ अपने काम के बदले पैसे लेना चाहता है। और इस देश के गरीब में वो ताकत है यदि उसे काम करने का मौका मिले तो बंजर मिट्टी से भी सोना उगा सकता है। +* लोकतंत्र में कोई किसी का दुश्मन नही होता बल्कि यहाँ यही प्रतिस्पर्धा होती है की देश के विकास के लिए कौन अधिक से अधिक अच्छा कार्य कर सकता है। +* सरकार किसी एक की विशेष पार्टी नही होती बल्कि ये लोकतंत्र में सभी लोगो की लिए होती है। +* मै न तो मुफ्त में भोजन दूंगा और न मुफ्त में पानी, बल्कि मैं रोजगार के लिए इतने अवसर लाऊंगा और भारत देश के युवाओं को इतना सक्षम बनाऊंगा की देश का हर नौजवान अपने स्वाभिमान से अपना पेट भर सकेगा और दुसरों के प्यास बुझा सकेगा। +* हमारी जिम्मेदारी देश को चलाने की ही नहीं बल्कि देश के सभी लोगों को साथ में लेकर चलने की है। +* आतंकवाद का कोई मजहब नही होता। यह युद्ध से भी बदतर है। भारत ने अपने युद्धों की तुलना में आतंकवाद से ज्यादा लोगों को खोया है। +* स्वच्छ भारत का सपना गांधीजी ने देखा था, आईये इसे हम साकार करें। +* समाज की सेवा करना यानी एक तरह से हमे एक तरह से अपने ऋण चुकाने का मौका है। +* चंद्रमा के जिस स्थान पर चंद्रयान-2 ने अपने पदचिन्ह छोड़े हैं, वह प्वाइंट अब ‘तिरंगा’ कहलाएगा। ये तिरंगा प्वाइंट भारत के हर प्रयास की प्रेरणा बनेगा, ये तिरंगा प्वाइंट हमें सीख देगा कि कोई भी विफलता आखिरी नहीं होत��। जिस स्थान पर चंद्रयान-3 का मून लैंडर उतरा है, उस स्थान को ‘शिवशक्ति’ के नाम से जाना जाएगा। +* भारत के ज्ञान और विज्ञान का खजाना गुलामी के कालखंड के नीचे दबा हुआ है। ‘आजादी के अमृत काल’ में हमें इस संदूक को खोदना होगा। +* चंद्रयान 3 में महिला वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभाई है। यह ‘शिवशक्ति’ प्वाइंट आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा कि हमें विज्ञान का उपयोग मानवता के कल्याण के लिए ही करना है। मानवता का कल्याण हमारी सर्वोच्च प्रतिबद्धता है। + + +गणित में पढ़ाया जाने वाले प्रयोग एवं आकलन +*शून्य सम संख्या है क्योंकि यदि आप इसे आधा करोगे तो दोनों भागों में कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। +प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के ज्ञाअ के अनुसार सम और विषम संख्याएँ + + +जब तक कर्म क्षय नहीं होता, आत्मा को जन्म मरण के बन्धन में पड़ना ही होता है, यह शास्‍त्रों का निश्‍चय है। यद्यपि यह बात वह परब्रह्म ही जानता है कि किन कर्मों के परिणामस्वरूप कौन सा शरीर इस आत्मा को ग्रहण करना होगा किन्तु अपने लिए यह मेरा दृढ़ निश्‍चय है कि मैं उत्तम शरीर धारण कर नवीन शक्‍तियों सहित अति शीघ्र ही पुनः भारतवर्ष में ही किसी निकटवर्ती सम्बन्धी या इष्‍ट मित्र के गृह में जन्म ग्रहण करूँगा, क्योंकि मेरा जन्म-जन्मान्तर उद्देश्य रहेगा कि मनुष्य मात्र को सभी प्रकृति पदार्थों पर समानाधिकार प्राप्‍त हो। कोई किसी पर हकूमत न करे। सारे संसार में जनतन्त्र की स्थापना हो। वर्तमान समय में भारतवर्ष की अवस्था बड़ी शोचनीय है। अतएव लगातार कई जन्म इसी देश में ग्रहण करने होंगे और जब तक कि भारतवर्ष के नर-नारी पूर्णतया सर्वरूपेण स्वतन्त्र न हो जायें, परमात्मा से मेरी यह प्रार्थना होगी कि वह मुझे इसी देश में जन्म दे, ताकि उसकी पवित्र वाणी वेद वाणी का अनुपम घोष मनुष्य मात्र के कानों तक पहुँचाने में समर्थ हो सकूँ। सम्भव है कि मैं मार्ग-निर्धारण में भूल करूँ, पर इसमें मेरा कोई विशेष दोष नहीं, क्योंकि मैं भी तो अल्पज्ञ जीव मात्र ही हूँ। भूल न करना केवल सर्वज्ञ से ही सम्भव है। हमें परिस्थितियों के अनुसार ही सब कार्य करने पड़े और करने होंगे। परमात्मा अगले जन्म से सुबुद्धि प्रदान करे ताकि मैं जिस मार्ग का अनुसरण करूँ वह त्रुटि रहित ही हो। ref>मदनलाल वर्मा क्रान्त 2014 सरफ़रोशी की तमन्ना भाग-3) रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा निज जीवन की एक छटा प्रवीण प्रकाशन अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-926097-4-4, पृष्ठ 85 +भारतवासियों में शिक्षा का अभाव है। वे साधारण से साधारण सामाजिक उन्नति करने में भी असमर्थ हैं। फिर राजनैतिक क्रान्ति की बात कौन कहे? राजनैतिक क्रान्ति के लिए सर्वप्रथम क्रान्तिकारियों का संगठन ऐसा होना चाहिये कि अनेक विघ्न तथा बाधाओं के उपस्थित होने पर भी संगठन में किसी प्रकार त्रुटि न आये। सब कार्य यथावत् चलते रहें। कार्यकर्त्ता इतने योग्य तथा पर्याप्‍त संख्या में होने चाहिये कि एक की अनुपस्थिति में दूसरा स्थानपूर्ति के लिये सदा उद्यत रहे। भारतवर्ष में कई बार कितने ही षड्यन्त्रों का भण्डा फूट गया और सब किया कराया काम चौपट हो गया। जब क्रान्तिकारी दलों की यह अवस्था है तो फिर क्रान्ति के लिये उद्योग कौन करे! देशवासी इतने शिक्षित हों कि वे वर्तमान सरकार की नीति को समझकर अपने हानि-लाभ को जानने में समर्थ हो सकें। वे यह भी पूर्णतया समझते हों कि वर्तमान सरकार को हटाना आवश्यक है या नहीं। साथ ही साथ उनमें इतनी बुद्धि भी होनी चाहिये कि किस रीति से सरकार को हटाया जा सकता है ref>मदनलाल वर्मा क्रान्त 2014 सरफ़रोशी की तमन्ना भाग-3) रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा निज जीवन की एक छटा प्रवीण प्रकाशन अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-926097-4-4, पृष्ठ 75-76 +क्रान्ति का नाम ही बड़ा भयंकर है। प्रत्येक प्रकार की क्रान्ति विपक्षियों को भयभीत कर देती है। जहाँ पर रात्रि होती है तो दिन का आगमन जान निशिचरों को दुःख होता है। ठंडे जलवायु में रहने वाले पशु-पक्षी गरमी के आने पर उस देश को भी त्याग देते हैं। फिर राजनैतिक क्रान्ति तो बड़ी भयावनी होती है। मनुष्य अभ्यासों का समूह है। अभ्यासों के अनुसार ही उसकी प्रकृति भी बन जाती है। उसके विपरीत जिस समय कोई बाधा उपस्थित होती है, तो उनको भय प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्‍त प्रत्येक सरकार के सहायक अमीर और जमींदार होते हैं। ये लोग कभी नहीं चाहते कि उनके ऐशो आराम में किसी प्रकार की बाधा पड़े। इसलिये वे हमेशा क्रान्तिकारी आन्दोलन को नष्‍ट करने का प्रयत्‍न करते हैं। यदि किसी प्रकार दूसरे देशों की सहायता लेकर, समय पाकर क्रान्तिकारी दल क्रान्ति के उद्योगों में सफल हो जाये, देश में क्रान्ति हो जाए तो भी योग्य नेता न होने से अराजकता फै���कर व्यर्थ की नरहत्या होती है, और उस प्रयत्‍न में अनेकों सुयोग्य वीरों तथा विद्वानों का नाश हो जाता है। इसका ज्वलन्त उदाहरण सन् 1857 ई० का गदर है। यदि फ्रांस तथा अमरीका की भाँति क्रान्ति द्वारा राजतन्त्र को पलट कर प्रजातंत्र स्थापित भी कर लिया जाये तो बड़े-बड़े धनी पुरुष अपने धन, बल से सब प्रकार के अधिकारियों को दबा बैठते हैं। कार्यकारिणी समितियों में बड़े-बड़े अधिकार धनियों को प्राप्‍त हो जाते हैं। देश के शासन में धनियों का मत ही उच्च आदर पाता है। धन बल से देश के समाचार पत्रों, कल कारखानों तथा खानों पर उनका ही अधिकार हो जाता है। मजबूरन जनता की अधिक संख्या धनिकों का समर्थन करने को बाध्य हो जाती है। जो दिमाग वाले होते हैं, वे भी समय पाकर बुद्दिबल से जनता की खरी कमाई से प्राप्‍त किए अधिकारों को हड़प कर बैठते हैं। स्वार्थ के वशीभूत होकर वे श्रमजीवियों तथा कृषकों को उन्नति का अवसर नहीं देते। अन्त में ये लोग भी धनिकों के पक्षपाती होकर राजतन्त्र के स्थान में धनिकतन्‍त्र की ही स्थापना करते हैं। ref>मदनलाल वर्मा क्रान्त 2014 सरफ़रोशी की तमन्ना भाग-3) रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा निज जीवन की एक छटा प्रवीण प्रकाशन अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-926097-4-4, पृष्ठ 76 +* संसार में जितने भी बड़े आदमी हुए हैं, उनमें से अधिकतर ब्रह्मचर्यं के प्रताप से ही बने हैं और सैकड़ों-हजारों वर्षों बाद भी उनका यशोगान करके मनुष्य अपने आपको कृतार्थ करते हैं। ब्रह्मचर्यं की महिमा यदि जाननी हो तो परशुराम, राम, लक्ष्मण, कृष्ण, भीष्म, बंदा वैरागी, राम कृष्ण, महर्षि दयानंद, विवेकानंद तथा राममूर्ति की जीवनियों का अध्ययन अवश्य करें। +* मेरा यह दृढ निश्चय है कि मैं उत्तम शरीर धारण कर नवीन शक्तियों सहित अति शीघ्र ही पुनः भारत में ही किसी निकटवर्ती संबंधी या इष्ट मित्र के गृह में जन्म ग्रहण करूँगा क्योंकि मेरा जन्म-जन्मान्तरों में भी यही उद्देश्य रहेगा कि मनुष्य मात्र को सभी प्राकृतिक साधनों पर समानाधिकार प्राप्त हो। कोई किसी पर हुकूमत न करे। +* किसी को घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाये, किन्तु सबके साथ करुणा सहित प्रेमभाव का बर्ताव किया जाए। +* यदि किसी के मन में जोश, उमंग या उत्तेजना पैदा हो तो शीघ्र गावों में जाकर कृषक की दशा सुधारें। +* पंथ, सम्प्रदाय, मजहब अनेक हो सकते हैं, किन्���ु धर्म तो एक ही होता है। यदि पंथ-सम्प्रदाय उस एक ईश्वर की उपासना के लिए प्रेरणा देते हैं तो ठीक अन्यथा शक्ति का बाना पहनकर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना न धर्म है और न ही ईश्वर भक्ति। +* मुझे विश्वास है कि मेरी आत्मा मातृभूमि तथा उसकी दीन संतति के लिए नए उत्साह और ओज के साथ काम करने के लिए शीघ्र ही फिर लौट आयेगी। +बिस्मिल' का नहीं कौम की पाकीज़ा जमीं के +तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को ref>शोध एवं सम्पादन: मदनलाल वर्मा 'क्रान्त क्रान्ति गीतांजलि संग्रहकर्ता एवं लेखक: श्रीयुत् पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल काकोरी के शहीद प्रवीण प्रकाशन 23, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-7783-128-3, संस्करण: 2006, पृष्ठ 19 +दूर तक यादे-वतन आई थी समझाने को ref>शोध एवं सम्पादन: मदनलाल वर्मा 'क्रान्त क्रान्ति गीतांजलि संग्रहकर्ता एवं लेखक: श्रीयुत् पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल काकोरी के शहीद प्रवीण प्रकाशन 23, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-7783-128-3, संस्करण: 2006, पृष्ठ 19 +पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं +जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को ref>शोध एवं सम्पादन: मदनलाल वर्मा 'क्रान्त क्रान्ति गीतांजलि संग्रहकर्ता एवं लेखक: श्रीयुत् पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल काकोरी के शहीद प्रवीण प्रकाशन 23, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली 110002, ISBN: 978-81-7783-128-3, संस्करण: 2006, पृष्ठ 18 +यदि देश-सेवा हित पड़े मरना सहस्रों बार भी +सौ तरीके काम करने के हैं कोई काम कर।'' + + +ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं, +कि जीवन में मंगल है या नहीं। +पत्थरों को मनाने में , + + +नालापत बालमणि अम्मा भारतiu से मलयालम भाषा की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं।कवयिuहिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों[क] में से एक महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। उन्होंने 500 से अधिक कविताएँ लिखीं। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी की चर्चित व प्रतिष्ठित मलयालम कवयित्रियों में की जाती है। अम्मा का काव्यसाम्राज्य मातृत्व का दिव्य प्रपंच है। उनकी रचनाएँ एक ऐसे अनुभूति मंडल का साक्षात्कार कराती हैं जो मलयालम् में अदृष्टपूर्व है। आधुनिक मलयालम की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें मलयालम साहित्य की दादी कहा जाता है। उनकी अनेक पंक्तियाँ सुभाषित बन गई हैं। जैसे- + + +संस्कृत सुभाषितों के कु�� संग्रह-स्थल]] + + +यह श्रेणी विकिसूक्ति के रखरखाव हेतु है। + + +विकिसूक्ति पर यह श्रेणी लेखों और विषयों से संबंधित सबसे ऊपरी श्रेणी है। + + +कैलाश सत्यार्थी (जन्म: 11 जनवरी 1954) एक भारतीय बाल अधिकार कार्यकर्ता और बाल-श्रम के विरुद्ध पक्षधर हैं। उन्होंने १९८० में बचपन बचाओ आन्दोलन की स्थापना की जिसके बाद से वे विश्व भर के १४४ देशों के ८३,००० से अधिक बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य कर चुके हैं। सत्यार्थी के कार्यों के कारण ही वर्ष १९९९ में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ द्वारा बाल श्रम की निकृष्टतम श्रेणियों पर संधि सं॰ १८२ को अंगीकृत किया गया, जो अब दुनियाभर की सरकारों के लिए इस क्षेत्र में एक प्रमुख मार्गनिर्देशक है। +उनके कार्यों को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों व पुरुस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है। इन पुरुस्कारों में वर्ष २०१४ का नोबेल शान्ति पुरस्कार भी शामिल है जो उन्हें पाकिस्तान की नारी शिक्षा कार्यकर्ता मलाला युसुफ़ज़ई के साथ सम्मिलित रूप से दिया प्रदान किया गया है। +भारत के मध्य प्रदेश के विदिशा में जन्मे कैलाश सत्यार्थी 'बचपन बचाओ आंदोलन' चलाते हैं। वे पेशे से वैद्युत इंजीनियर हैं किन्तु उन्होने 26 वर्ष की उम्र में ही करियर छोड़कर बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था। इस समय वे 'ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर बाल श्रम के ख़िलाफ़ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं। +वर्तमान समय (अक्टूबर २०१४) में सत्यार्थी नई दिल्ली में रहते हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी सुमेधा, पुत्र, पुत्रवधू तथा पुत्री हैं। सामाजिक कार्यों के अतिरिक्त वे एक अच्छे पाकशास्त्री (कुक) भी हैं। +* 2014: नोबेल शांति पुरस्कार +* 2008: अल्फांसो कोमिन अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार (स्पेन) +* 2007: इटली के सिनेट का स्वर्ण पदक +* 2007: अमेरिका के स्टेट विभाग द्वारा 'आधुनिक दासता को समाप्त करने के लिये कार्यरत नायक' का सम्मान +* 2002: वालेनबर्ग मेडल (मिशिगन विश्वविद्यालय द्वारा प्रदत्त) +* 1998: गोल्डेन फ्लैग पुरस्कार (नीदरलैण्ड्स) +* 1995: ट्रम्पेटर पुरस्कार (अमेरिका) + + +* जरा सुंग के बताओ मंत्रीजी नाश्ते मे का खाये है। +* न कोई किसी का रकीब होता है, ना कोई किसी का हबीब होता है। खुदा कि रेहमत से बन जाते ही रिश्ते, जहां जिसका नसीब होता है। +* यहां कबुतर भी एक पंख से उडता ���ै… और दुसरे से अपना इज्जत बचाता है। +* बडे लोग अपना नाम भूल जाते थे। लेकिन अपनी झमीन अपना सामान नही। + + +मेरा नाम अभिनव गारुळे है। मुझे हिंदी फिल्म के संवाद लिखना अच्छा लागता है। + + +लोकोक्तियाँ प्रायः प्रचलित ज्ञान की संक्षिप्त अभिव्यक्ति को कहते हैं। इस लोकप्रिय परिभाषा में सुधार कर एक अधिक सटीक परिभाषा स्थापित करने के प्रयासों में सफलता नहीं मिली है। निर्दिष्ट ज्ञान दुनिया के बारे में एक सामान्य अवलोकन या सलाह के रूप में एवं कभी-कभी किसी परिस्थिति कि तरफ दृष्टिकोण के रूप में होता है। +| title हिन्दी मुहावरे (अध्ययन, संकलन एवं साहित्यिक प्रयोग) + + +अर्थात् शरीर से सभी योगी बन जाते हैं, परंतु मन से बिरला ही योगी बन पाता है। जो मन से योगी बनता है, वह सहज ही में सब कुछ पा लेता है। +• अर्थात् गौओं, मनुष्यों और धन से संपन्न होकर भी जो कुल सदाचार से हीन हैं, वे अच्छे कुलों की गणना में नहीं आ सकते। +-अर्थात जिसके मन में दुविधाएं बसी हों और हृदय में दया-भाव नहीं है, ऐसे मनुष्य का साथ फौरन ही छोड़ देना चाहिए। +- अर्थात् प्रेम रूपी धागे को कभी तोड़ने की कोशिश नहीं चाहिए, क्योंकि वह फिर से नहीं जुड़ता। जुड़ भी जाये तो रिश्ते में गांठ बना रहता है। +- अर्थात् देवतागण चरवाहों की तरह डंडा लेकर पहरा नहीं देते। वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं, उसे उत्तम बुद्धि से युक्त कर देते हैं। +सारे वेद, स्मृतियां और ज्ञानी लोग यही बात बतलाते हैं कि राजा, रोग, और पाप, ये तीनों दुर्बल को दबाते-सताते हैं। +सांसारिक प्रेम-व्यवहार तो धन के लिए है, परमार्थ के लिए नहीं। इस भौतिक युग में तो कोई विरला ही परमार्थी होगा। +कबीर कहते हैं, सांसारिक लोग मन के वंशीभूत हैं। गुरु का दास विरला ही होता है, जो गुरु के ज्ञान-वचनों का पालन करता है। +जब तक इच्छाओं से रहित भक्ति न हो, तब तक व्यक्ति के लिए परमात्मा को पाना असंभव है। +धीर मनुष्य को चाहिए कि पहले कर्मों के प्रयोजन, परिणाम तथा अपनी उन्नति का विचार कर ले, फिर काम को शुरू करे। +जिसकी ज्ञानरूपी आंखें फूटी हुई हैं, वह संत-असंत को कैसे पहचान सकता। वह तो दस-बीस चेलों वाले व्यक्ति को ही महंत समझ बैठता है। +जिस परमेश्वर से सभी प्राणियों की उत्पत्ति हुई है, उसकी अपने कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परमसिध्दि को प्राप्त हो जाता है। +ईश्वर सभी जगह है, सज��व और निर्जीव दोनों में है। लेकिन अहं वाला व्यक्ति उसे न तो देख सकता है न तो मोक्ष प्राप्त कर सकता है। +भगवान के नाम रूपी पतवार से ही तू इस भवसागर को तर सकता है। +मनुष्य भय के कारण ईश्वर की पूजा करता है। भय को ही वह पारसमणि मानता है। यही कारण है कि वह निर्भय नहीं हो पाता। +: जात-जात वित होय है ज्यों जिय में संतोष। +ज्यों-ज्यों धन हाथ से जाता है, मनुष्य मन मार कर संतोष करता है। धन के बढ़ने पर यदि मनुष्य ऐसा करे तो उसे क्षण में मोक्ष मिल जाये। +सब जगह परमात्मा को देखनेवाला एक विशेष आनंद में स्थित रहता है। वह आनंद हिंसा रहित है, क्योंकि वही आनंद अपना स्वरूप है। +ओछा व्यक्ति कभी बड़ा नहीं हो सकता। जैसे आंखें फाड़ कर देखने से आंखें जरा बड़ी नही हो सकती। +जिस व्यक्ति में आगे बढ़ने की शक्ति, प्रभाव, तेज, पराक्रम, उद्योग, और निश्चय है, उसे अपनी जीविका के नाश का भय नहीं रहता है। + + +हिंदुस्तान मी जाब तक सिनेमा तब तक लोग चुतीये बनते रहेंगे। +* बडे लोग अपना नाम भूल जाते है। लेकिन अपनी जमीन नही… अपना सामान नही… +* बच्चे को डैडी काही बोलना? +* मोहसिना और फैझल खान +और पराए अपने होते है जब पैसे पास होते है… + + +दलाई लामा का वास्तविक नाम 'तेनजिन ग्यासो' है। उन्हें शान्ति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। +* हमारे जीवन का प्रथम लक्ष्य है दूसरों की सहायता करना। और यदि आप दूसरों की सहायता नहींं कर सकते तो कम से कम उन्हें आहत तो न करें। +* हम धर्म और चिंतन के बिना रह सकते हैं पर मानवीय प्रेम के बिना नहींं। +* सहिष्णुता के अभ्यास में आपका शत्रु ही आपका सर्वश्रेष्ठ शिक्षक होता है। +* जब आप कुछ गंवा बैठते हैं, तो उससे प्राप्त शिक्षा को कभी न गंवाएं। +* प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहींं है।ये आप ही के कर्मों से आती है। +* यदि आप दूसरों को प्रसन्न देखना चाहते हैं तो करुणा का भाव रखें. यदि आप स्वयम प्रसन्न रहना चाहते हैं तो भी करुणा का भाव रखें। +* सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएं मूल रूप से एक ही संदेश देती हैं – प्रेम, दया,और क्षमा, महत्वपूर्ण बात यह है कि ये हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होनी चाहियें। +* प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहींं है। ये आप ही के कर्मों से आती है। +* प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं, विलासिता नहींं उनके बिना मानवता जीवित नहींं रह सकती। +* यदि आप एक विशेष विश्वास या धर्�� में आस्था रखते हैं तो ये अच्छी बात है| लेकिन आप इसके बिना भी जीवित रह सकते हैं। +* यह ज़रूरी है कि हम अपना दृष्टिकोण और ह्रदय जितना सभव हो अच्छा करें. इसी से हमारे और अन्य लोगों के जीवन में, अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में ही खुशियाँ आयंगी। +* सहिष्णुता के अभ्यास में, एक दुश्मन ही सबसे अच्छा शिक्षक है। +* जब कभी संभव हो दयालु बने, और ये हमेशा संभव है। +* पुराने दोस्त छूटते हैं और नए दोस्त बनते हैं. यह दिनों की तरह ही है। एक पुराना दिन बीतता है तो एक नया दिन आता है। लेकिन जरुरी है उसे सार्थक बनाना चाहे वह एक सार्थक मित्र हो या सार्थक दिन। +* प्रसन्न रहना हमारे जीवन का उद्देश्य है। +* समय बिना रुके चला जाता है। जब हम गलतियां करते हैं तो हम समय को नहींं बदल सकते है और बदलकर दोबारा कोशिश नहींं कर सकते, हम लोग केवल वर्तमान समय का अच्छे से अच्छा उपयोग ही कर सकते हैं। +* अगर आप दूसरों की मदद करने में सक्षम है तो जरूर करिए लेकिन यदि आप मदद नहीं कर सकते तो कम से कम उन्हें नुकसान मत पहुंचाइए। +* प्रेम और सहानुभूति आवश्यकताएँ है, विलासिता नहीं, इनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती। +* सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएं मूल रूप से एक ही संदेश देती है प्यार, कृपा और क्षमा और महत्वपूर्ण बात यह की ये हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होनी चाहिए। +* हम धर्म और चिंतन के बिना रह सकते है पर मानवीय प्रेम के बिना नहीं। +* एक छोटे से झगड़े से एक महान रिश्ते को घायल मत होने देना। +* जीवन का लक्ष्य किसी अन्य व्यक्ति से बेहतर होना नहीं है बल्कि खुद से बेहतर होना है। +* यदि आप एक धर्म विशेष मैं आस्था रखते है तो ये अच्छी बात है, लेकिन आप इसके बिना भी जीवित रह सकते है। +* हमारे जीवन का उद्देश्य प्रसन्न रहना है। +* सभी दुःख अज्ञानता के कारण होते है लोग अपनी खुशी और संतुष्टि के स्वार्थ में दूसरों को पीड़ा पहुंचाते है। +* याद रखना महान प्रेम और महान उपलब्धियों में महान जोखिम शामिल होते है। +* ध्यान रखे की सबसे अच्छा रिश्ता वह है जिसमें एक दूसरे के लिए आपका प्यार एक दूसरे की जरूरत से बढ़कर हो। +* आप अपनी योग्यता को जानकर और उस पर विश्वास करके एक सुंदर संसार का निर्माण कर सकते है। +* महानता सीखने के लिए सबसे पहले दूसरो का आदर करना बहुत जरूरी है। +* बुरा समय एक ऐसी तिजोरी होती है जहां से कामयाबी के हथियार मिलते है। +* हृदय परिवर्तन से ही दुन���या में बदलाव लाया जा सकता है। +* सच्चा हीरो वह होता है जो अपने क्रोध को काबू में कर लेता है। +* जब कुछ गंवा बैठते हैं तो उससे प्राप्त सीख को न गवाएं। +* मंदिरों की आवश्यकता नहीं है ना ही जटिल तत्वज्ञान की, मेरा मस्तिष्क और मेरा हृदय मेरे मंदिर है, मेरा तत्वज्ञान दयालुता है। +* लक्ष्य दूसरों से बेहतर होना नहीं है बल्कि अपने अतीत से बेहतर होना है। +* दूसरों के व्यवहार से अपने मन की शांति नष्ट न करें। +* सहिष्णुता के अभ्यास में आपका शत्रु ही आपका सबसे अच्छा शिक्षक होता है। +* यदि आप दूसरों को खुशी देना चाहते हो तो सहन करना सीखे, यदि आप खुश रहना चाहते हो तो सहानुभूति का अभ्यास करें। +* अपनी क्षमताओं को जानकर और उनमें यकीन करके ही हम एक बेहतर विश्व में का निर्माण कर सकते है। +* जब कभी भी संभव हो नम्र बनिए और ये हमेशा संभव है। +* याद रखें कि सबसे अच्छा रिश्ता वह है जिसमें एक दूसरे के लिए प्यार एक दूसरे की जरूरत से ज्यादा है। +* खुशियां पाने का सबसे अच्छा तरीका पैसा और ताकत नहीं है बल्कि प्रेम की भावना होना है। +* प्रसन्नता पहले से निर्मित चीज नहीं है ये आप ही के कर्मों से आती है। +* अपने ज्ञान को बांटे यह अमरता प्राप्त करने का एक तरीका है। +* आशावादी बनिए, इससेे बहेतर महसूस होता है। +* शांति इंसान के कर्मों पर निर्भर है, इंसान के कर्म विचार और प्रेरणा से होते हैं। +* दूसरों के व्यवहार को अपने मन की शांति को नष्ट करने का अधिकार ना दे। + + +भीमराव रामजी आम्बेडकर 14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसम्बर, 1956 भारत के एक विद्वान, न्यायविद, अर्थशास्त्री, राजनेता और लेखक थे। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मन्त्री थे। भारतीय संविधान के निर्माण में उनकी महती भूमिका है। +* जीवन लम्बा होने की बजाय महान होना चाहिए। +* हर व्यक्ति जो मिल का सिद्धान्त जानता हो कि एक देश दूसरे देश पर राज करने में फिट नहीं है, उसे ये भी स्वीकार करना चाहिये कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर राज करने में फिट नहीं है। +* उदासीनता लोगों को प्रभावित करने वाली सबसे खराब किस्म की बीमारी है। +* यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा। +* समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धान्त रूप में स्वीकार करना होगा। +* एक सुरक्षित सेना एक सुरक्षित सीमा से बेहतर है। +* लोग और उनके धर्म, सामाजिक नैतिकता के आ���ार पर सामाजिक मानकों द्वारा परखे जाने चाहिए। अगर धर्म को लोगों के भले के लिये आवश्यक वस्तु मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा। +* बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। +* यह जरूरी है कि हम अपना दृष्टिकोण और हृदय जितना सभव हो अच्छा करें। इसी से हमारे और अन्य लोगों के जीवन में, अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में ही खुशियाँ आएगीं। +* मैं एक समुदाय की प्रगति का माप महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति के माप से करता हूँ। +* एक महान व्यक्ति एक प्रख्यात व्यक्ति से एक ही बिंदु पर भिन्न हैं कि, महान व्यक्ति समाज का सेवक बनने के लिए तत्पर रहता हैं। +* मनुष्य नश्वर हैं। ऐसे विचार भी होते हैं। एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत है जैसे एक पौधे में पानी की जरूरत की जरूरत होती है। अन्यथा दोनों मुरझा जायेंगे और मर जायेंगे। +* इतिहास बताता है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है। +* निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो। +* एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ असंतोष का होना काफी नहीं है। जिसकी आवश्यकता है वो है राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के महत्व, जरुरत व न्याय में पूर्णतया गहराई से दोष। +* जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिये बेमानी है। +* हम आदि से अन्त तक भारतीय हैं। +* सागर में मिलकर अपनी पहचान खो देने वाली पानी की एक बूँद के विपरीत, इंसान जिस समाज में रहता है वहां अपनी पहचान नहीं खोता। मानव का जीवन स्वतंत्र है। वो सिर्फ समाज के विकास के लिए नहीं पैदा हुआ है, बल्कि स्वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है। +* पति-पत्नी के बीच का सम्बन्ध घनिष्ट मित्रों के सम्बन्ध के समान होना चाहिए। +* हिंदू धर्म में, विवेक, कारण, और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। +* मनुष्य एवम उसके धर्म को समाज के द्वारा नैतिकता के आधार पर चयन करना चाहिये। अगर धर्म को ही मनुष्य के लिए सब कुछ मान लिया जायेगा तो किन्ही और मानको का कोई मूल्य नहीं रह जायेगा। +* एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ असंतोष का होना ही काफी नहीं है, बल्कि इसके लिए न्याय, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था का होना भी बहुत आवश्यक ��ै। +* इतिहास गवाह है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है। निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो। +* किसी भी कौम का विकास उस कौम की महिलाओं के विकास से मापा जाता है। +* एक महान व्यक्ति एक प्रख्यात व्यक्ति से एक ही बिंदु पर भिन्न हैं कि महान व्यक्ति समाज का सेवक बनने के लिए तत्पर रहता हैं। +* जो व्यक्ति अपनी मौत को हमेशा याद रखता है वह सदा अच्छे कार्य में लगा रहता है। +* जिस तरह मनुष्य नश्वर है ठीक उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। जिस तरह पौधे को पानी की जरूरत पड़ती है उसी तरह एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरुरत होती है वरना दोनों मुरझा कर मर जाते है। +* जिस तरह हर एक व्यक्ति यह सिधांत दोहराता हैं कि एक देश दुसरे देश पर शासन नहीं कर सकता उसी प्रकार उसे यह भी मानना होगा कि एक वर्ग दुसरे पर शासन नहीं कर सकता। +* आज भारतीय दो अलग-अलग विचारधाराओं द्वारा शासित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता, समानता, और भाई-चारे को स्थापित करते हैं और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं। +* उदासीनता लोगों को प्रभावित करने वाली सबसे खराब किस्म की बीमारी है। +* एक महान व्यक्ति एक प्रतिष्ठित व्यक्ति से अलग है क्योंकि वह समाज का सेवक बनने के लिए तैयार रहता है। +* क़ानून और व्यवस्था राजनीति रूपी शरीर की दवा है और जब राजनीति रूपी शरीर बीमार पड़ जाएँ तो दवा अवश्य दी जानी चाहिए। +* जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हांसिल कर लेते, क़ानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके किसी काम की नहीं। +* यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा। +* यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं, तो सभी धर्मों के धर्मग्रंथों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए। +* राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है वो सरकार को खारिज कर देने वाले राजनीतिज्ञ से ज्यादा साहसी हैं। +* लोग और उनके धर्म, सामाजिक नैतिकता के आधार पर, सामाजिक मानकों द्वारा परखे जाने चाहिए। अगर धर्म को लोगों के भले के लिये आवश्यक वस्तु मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा। +* समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा। +* हमारे पास यह स्वतंत्रता किस लिए है? हमारे पास ये स्वत्नत्रता इसलिए है ताकि हम अपने सामाजिक व्यवस्था, जो असमानता, भेद-भाव और अन्य चीजों से भरी है, जो हमारे मौलिक अधिकारों से टकराव में है, को सुधार सकें। +* मनुवाद को जड़ से समाप्‍त करना मेरे जीवन का प्रथम लक्ष्‍य है। +* राष्‍ट्रवाद तभी औचित्‍य ग्रहण कर सकता है, जब लोगों के बीच जाति, नरल या रंग का अन्‍तर भुलाकर उसमें सामाजिक भ्रातृत्‍व को सर्वोच्‍च स्‍थान दिया जाये। +* अच्छा दिखने के लिए मत जिओ बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ। +* जो झुक सकता है वह सारी दुनिया को झुका भी सकता है! +* लोकतंत्र सरकार का महज एक रूप नहीं है। +* एक इतिहासकार, सटीक, ईमानदार और निष्‍पक्ष होना चाहिए। +* संविधान, यह एक मात्र वकीलों का दस्‍तावेज नहीं। यह जीवन का एक माध्‍यम है। +* किसी का भी स्‍वाद बदला जा सकता है लेकिन जहर को अमृत में परिवर्तित नही किया जा सकता। +* न्‍याय हमेशा समानता के विचार को पैदा करता है। +* मन की स्‍वतंत्रता ही वास्‍तविक स्‍वतंत्रता है। +* ज्ञान व्‍‍यक्ति के जीवन का आधार हैं। +* शिक्षा जितनी पुरूषों के लिए आवशयक है उतनी ही महिलाओं के लिए। +* स्‍वतंत्रता का रहस्‍य, साहस है और साहस एक पार्टी में व्‍यक्तियों के संयोजन से पैदा होता है। +* इस दुनिया में महान प्रयासों से प्राप्‍त किया गया को छोडकर और कुछ भी बहुमूल्‍य नहीं है। +इस्लाम और मुसलमान पर विचार +* मुस्लिम आक्रान्ता निःसंदेह हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा के गीत गाते हुए आए थे। परन्तु वे घृणा का गीत गाकर और मार्ग में कुछ मंदिरों को आग लगाकर ही वापस नहीं लौटे। ऐसा होता तो वरदान माना जाता। वे इतने ही नकारात्मक परिणाम से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने तो भारत में इस्लाम का पौधा रोपा। इस पौधे का विकास बखूबी हुआ और यह एक बड़ा ओक का पेड़ बन गया। +* मुसलमान कभी भी मातृभूमि के भक्त नहीं हो सकते। हिन्दुओं से कभी उनके दिल मिल नहीं सकते। देश में रह कर शत्रुता पालते रहने की अपेक्षा उन्हें अलग राष्ट्र दे देना चाहिए। भारतीय मुसलमानों का यह कहना है कि वे पहले मुसलमान हैं और फिर भारतीय हैं। उनकी निष्ठाएं देश-बाह्य होती हैं। देश से बाहर के मुस्लिम राष्ट्रों की सहायता लेकर भारत में इस्लाम का वर्चस्व स्थापित करने की उनकी तैयारी है। जिस देश में मुस्लिम राज्य नहीं हो, वहाँ यदि इस्लामी कानून और उस देश के कानून में टकराव पैदा हुआ तो इस्लामी कानून ही श्रेष्ठ समझा जाना चाहिए। देश का कानून झटक कर इस्लामी कानून मानना मुसलमान समर्थनीय समझते हैं। ‘पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’ +* ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आदि प्रकार के भेद सिर्फ हिन्दू धर्म में ही हैं, ऐसी बात नहीं। इस तरह के भेद ईसाई और इस्लाम में भी दिखाई देते हैं। +* यदि मैं इस्लाम स्वीकार करूँगा तो इस देश में मुसलमानों की संख्या दूनी हो जाएगी और मुस्लिम प्रभुत्व का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। +* जो कोई भी व्यक्ति एशिया के नक्शे को देखेगा उसे यह ध्यान में आ जाएगा कि किस तरह यह देश दो पाटों के बीच फंस गया है। एक ओर चीन व जापान जैसे भिन्न संस्कृतियों के राष्ट्रों का फंदा है तो दूसरी ओर तुर्की, पर्शिया और अफगानिस्तान जैसे तीन मुस्लिम राष्ट्रों का फंदा पड़ा हुआ है। इन दोनों के बीच फंसे हुए इस देश को बड़ी सतर्कता से रहना चाहिए, ऐसा हमें लगता है इन परिस्थितियों में चीन एवं जापान में से किसी ने यदि हमला किया तो उनके हमले का सब लोग एकजुट होकर सामना करेंगे। मगर स्वाधीन हो चुके हिन्दुस्थान पर यदि तुर्की, पर्शिया या अफगानिस्तान जैसे तीन मुस्लिम राष्ट्रों में से किसी एक ने भी हमला किया तो क्या कोई इस बात की आश्वस्ति दे सकता है कि इस हमले का सब लोग एकजुटता से सामना करेंगे? हम तो यह आश्वस्ति नहीं दे सकते। 18 जनवरी, 1929 को ‘नेहरू कमेटी की योजना और हिन्दुस्थान का भविष्य’ शीर्षक से 'बहिष्कृत भारत' में एक अग्रलेख +* इस्लाम एक क्लोज कॉर्पोरेशन है और इसकी विशेषता ही यह है कि मुस्लिम और गैर मुस्लिम के बीच वास्तविक भेद करता है। इस्लाम का बंधुत्व मानवता का सार्वभौम बंधुत्व नहीं है। यह बंधुत्व केवल मुसलमान का मुसलमान के प्रति है। दूसरे शब्दों में इस्लाम कभी एक सच्चे मुसलमान को ऐसी अनुमति नहीं देगा कि आप भारत को अपनी मातृभूमि मानो और किसी हिन्दू को अपना आत्मीय बंधु। +* मुसलमानों में एक और उन्माद का दुर्गुण है। जो कैनन लॉ या जिहाद के नाम से प्रचलित है। एक मुसलमान शासक के लिए जरूरी है कि जब तक पूरी दुनिया में इस्लाम की सत्ता न फैल जाए तब तक चैन से न बैठे। इस तरह पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंटी है दार-उल-इस्लाम (इस्लाम के अधीन) और दार-उल-हर्ब (युद्ध के मुहाने पर)। चाहे तो सारे देश एक श्रेणी के अधीन आयें अथवा अन्य श्रेणी में। तकनीकी तौर पर यह मुस्लिम शासकों का कर्तव्य है कि कौन ऐसा करने में सक्षम है। जो दार-उल-हर्ब को दर उल इस्लाम में परिवर्तित कर दे। भारत में मुसलमान हिजरत में रुचि लेते हैं तो वे जिहाद का हिस्सा बनने से भी हिचकेंगे नहीं। +* प्रत्येक हिन्दू के मन में यह प्रश्न उठ रहा था कि पाकिस्तान बनने के बाद हिन्दुस्तान से साम्प्रदायिकता का मामला हटेगा या नहीं, यह एक जायज प्रश्न था और इस पर विचार किया जाना जरूरी था। यह भी स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के बन जाने से हिन्दुस्तान साम्प्रदायिक प्रश्न से मुक्त नहीं हो पाया। पाकिस्तान की सीमाओं की पुनर्रचना कर भले ही इसे सजातीय राज्य बना दिया गया हो लेकिन भारत को तो एक मिश्रित राज्य ही बना रहेगा। हिन्दुस्तान में मुसलमान सभी जगह बिखरे हुए हैं, इसलिए वे ज्यादातर कस्बों में एकत्रित होते हैं। इसलिए इनकी सीमाओं की पुनर्रचना और सजातीयता के आधार पर निर्धारण सरल नहीं है। हिन्दुस्तान को सजातीय बनाने का एक ही रास्ता है कि जनसंख्या की अदला-बदली सुनिश्चित हो, जब तक यह नहीं किया जाता तब तक यह स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के निर्माण के बाद भी, बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक की समस्या और हिन्दुस्तान की राजनीति में असंगति पहले की तरह बनी रहेगी। +* मुसलमानों में इन बुराइयों का होना दुःखद है। किन्तु उससे भी अधिक दुःखद तथ्य यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज सुधार का ऐसा कोई संगठित आंदोलन नहीं उभरा जो इन बुराइयों का सफलतापूर्वक उन्मूलन कर सके। हिंदुओं में भी अनेक सामाजिक बुराइयां हैं, परन्तु संतोष की बात यह है कि उनमें से अनेक इनकी विद्यमानता के प्रति सजग हैं और उनमें से कुछ उन बुराइयों के उन्मूलन हेतु सक्रिय तौर पर आन्दोलन भी चला रहे हैं। दूसरी ओर मुसलमान यह महसूस ही नहीं करते कि ये बुराइयां हैं, परिणामतः वे उनके निवारण हेतु सक्रियता भी नहीं दर्शाते। इसके विपरीत, अपनी मौजूदा प्रथाओं में किसी भी परिवर्तन का विरोध करते हैं। +* मुसलमानों की सोच में लोकतंत्र प्रमुखता नहीं है। उनकी सोच को प्रभावित करने वाला तत्व यह है कि लोकतंत्र प्रमुख नहीं है। उनकी सोच को प्रभावित करने वाला तत्व यह है कि लोकतंत्र, जिसका मतलब बहुमत का शासन है, हिन्दुओं क��� विरुद्ध संघर्ष में मुसलमानों पर क्या असर डालेगा। क्या उससे वे मजबूत होंगे अथवा कमजोर? यदि लोकतंत्र से वे कमजोर पड़ते हैं तो वे लोकतंत्र नहीं चाहेंगे। वे किसी मुस्लिम रियासत में हिंदू प्रजा का मुस्लिम शासक की पकड़ कमजोर करने के बजाए अपने निकम्मे राज्य को वरीयता देंगे। +* मुस्लिम संप्रदाय में राजनीतिक और सामाजिक गतिरोध का केवल ही कारण बताया जा सकता है। मुसलमान सोचते हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों को सतत संघर्षरत रहना चाहिए। हिंदू मुसलमानों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करते हैं, और मुसलमान अपनी शासक होने की ऐतिहासिक हैसियसत बनाए रखने का। +* पर्दा प्रथा की वजह से मुस्लिम महिलाएं अन्य जातियों की महिलाओं से पिछड़ जाती हैं। वो किसी भी तरह की बाहरी गतिविधियों में भाग नहीं ले पातीं हैं जिसके चलते उनमें एक प्रकार की दासता और हीनता की मनोवृत्ति बनी रहती है। उनमें ज्ञान प्राप्ति की इच्छा भी नहीं रहती क्योंकि उन्हें यही सिखाया जाता है कि वो घर की चारदीवारी के बाहर वे अन्य किसी बात में रुचि न लें। पर्दे वाली महिलाएं प्रायः डरपोक, निस्साहय, शर्मीली और जीवन में किसी भी प्रकार का संघर्ष करने के अयोग्य हो जाती हैं। भारत में पर्दा करने वाली महिलाओं की विशाल संख्या को देखते हुए कोई भी आसानी से ये समझ सकता है कि पर्दे की समस्या कितनी व्यापक और गंभीर है। पाकिस्तान, अथवा भारत का विभाजन' +* पर्दा प्रथा ने मुस्लिम पुरुषों की नैतिकता पर विपरीत प्रभाव डाला है। पर्दा प्रथा के कारण कोई मुसलमान अपने घर-परिवार से बाहर की महिलाओं से कोई परिचय नहीं कर पाता। घऱ की महिलाओं से भी उसका संपर्क यदा-कदा बातचीत तक ही सीमित रहता है। बच्चों और वृद्धों के अलावा पुरुष अन्य महिलाओं से हिल-मिल नहीं सकता, अपने अंतरंग साथी से भी नहीं मिल पाता। महिलाओं से पुरुषों की ये पृथकता निश्चित रूप से पुरुष के नैतिक बल पर विकृत प्रभाव डालती है। ये कहने के लिए किसी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की आवश्यकता नहीं कि ऐसी सामाजिक प्रणाली से जो पुरुषों और महिलाओं के बीच के संपर्क को काट दे उससे यौनाचार के प्रति ऐसी अस्वस्थ प्रवृत्ति का सृजन होता है जो आप्राकृतिक और अन्य गंदी आदतों और साधनों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है। +* वैदिक काल में, और उसके बाद शताब्दियों तक अस्पृश्यता का अस्तित्व नहीं मिलत�� है। इसका उद्गम बहुत बाद में हुआ और इसका सम्बन्ध बौद्ध धर्म के बाद परिवर्तनों से पैदा हुई परिस्थितियों से है। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब बौद्ध धर्म ने सम्पूर्ण पृथ्वी को जीत लिया था। देश की जनता और सारा व्यापारी वर्ग बौद्ध धर्म में चला गया था। ब्राह्मणवाद का पतन हो गया था, जो शताब्दियों से राज कर रहा था। बुद्ध ने तीन शिक्षाएं दीं– सामाजिक समानता की, वर्ण व्यवस्था के उन्मूलन की और अहिंसा के सिद्धान्त की, जिसमें धर्म के नाम पर पशु बलि वर्जित थी। उस समय तक ब्राह्मण शाकाहारी नहीं हुए थे, वे गौओं और अन्य पशुओं की बलि देते थे और उनका मांस खाते थे। जब बुद्ध ने बलि का निषेध किया और गाय को कृषि और दूध के लिये उपयोगी पशु बताते हुए उसकी सुरक्षा की शिक्षा दी, तो जनता ने उसे अपना लिया। तब, ब्राह्मणों के सामने शाकाहारी बनने के सिवा कोई चारा नहीं था। अब गाय पवित्र हो गयी थी और उसकी बलि देने की प्रथा समाप्त हो गयी थी। बहुत सारी बुद्ध शिक्षाएं हिंदू धर्म में समाहित कर लीं गयी थीं। जो जनता बौद्ध धर्म में चली गयी थी, वह भी धीरे–धीरे वापिस आने लगी थी। बुद्ध की जो सबसे बड़ी शिक्षा ब्राह्मणों ने स्वीकार नहीं की, वह थी समानता और वर्ण व्यवस्था का उन्मूलन। न तो बुद्ध ने और न ब्राह्मणों ने मृतक पशु के मांस को खाने पर रोक लगायी थी। रोक केवल जीवित गाय का वध करने पर थी। पर, आज के अछूतों का एक बड़ा अपराध यह है कि वे गरीबों में सबसे गरीब और सामाजिक रूप से सबसे निचले स्तर के होने के कारण बौद्ध धर्म में लम्बे समय तक बने रहे और मृतक पशु का मांस खाते रहे। उनको सुधारने के लिये एक बड़ी शक्ति की जरूरत थी, जो उनके लिये लम्बे समय तक काम करती। पर ऐसा कोई काम तो नहीं हुआ, उलटे, सामाजिक बहिष्कार और अस्पृश्यता उन पर लागू कर दी गयी। दि बाम्बे क्रानिकल’ को दिए गये साक्षात्कार में जो 24 फरवरी 1940 के अंक में प्रकाशित हुआ। + + +हम अनके वर्षो से हिंदी कोट्स पे काम कर रहे हैं हम हिंदी कोट्स का संग्रह बना रहे हैं, और अभी विकिक्वोट मैं भी थोडा बहुत योगदान दे रहे हैं. +हम आगे दी गयी लिस्ट पर यहाँ काम करेंगे, आपका सहयोग अवश्यक हैं. +अभी इसमे और भी लिस्ट जोडना हैं, कृपया आपका सहयोग दे + + +*व्यापार का व्यापार सम्बन्ध हैं; जीवन का व्यापार मानवीय लगाव है। +*लक्ष्य प्राप्त करना मायने रखता है। और जो बहादुर�� भरे काम और साहसिक सपने आप पूरे करना चाहते हैं उनके बारे में लिखना उन्हें पूरा करने के लिए चिंगारी का काम करेगा। +*उसे दीजिये जिसे आप सबसे अधिक वापस पाना चाहते हैं। +*आपका “आई कैन” आपके “आईक्यू से अधिक महत्त्वपूर्ण है। +* यदि आप सचमुच विश्व–स्तरीय होना चाहते हैं– जितने अच्छे हो सकते हैं होना चाहते हैं तो अंतत: ये आपकी तैयारी और अभ्यास पर निर्भर करेगा। +सबसे छोटा कार्य सबसे महान इरादे से हमेशा बेहतर होता है। +हमारा एक नॉर्मल होता है। जब आप अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकल जाते हैं तो जो एक समय अनजाना और भयभीत करने वाला था अब आपका न्यू नॉर्मल बन जाता है। + + +* दिल्ली का आम आदमी देश को ये बताने में आगे आया है कि देश की राजनीति किस दिशा में जानी चाहिए. +* इस देश के नेताओं ने आम आदमी को ललकारा कि वो चुनाव लड़ें विधान शभा में आएं और अपना क़ानून बनाएं. वो नेतागढ़ भूल गए कि आम आदमी खेत जोतता है, नेता नहीं, आम आदमी चाँद पर जाता है, नेता नहीं. जब कोई विकल्प नहीं बचा तो आम आदमी ने निश्चय किया कि वो चुनाव लड़ेगा. +* दिल्ली की जनता ने भारतीय राजनीति से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने की हिम्मत दिखायी है। इस सदन के समक्ष प्रश्न यह है कि इसके कौन से सदस्य इस लड़ाई का हिस्सा बनना चाहते हैं ? +* हम बड़ी पार्टीयों का गुरूर तोड़ने के लिए पैदा हुए थे। हमें सावधान रहना होगा कि हमे गिराने के लिए किसी और पार्टी को जन्म ना लेना पड़े. + + +* जो अपने लिए जीते हैं वो मर जाते हैं, जो समाज के लिए मरते हैं वो जिंदा रहते हैं। +* मैं इस देश के युवाओं से कहना चाहता हूँ कि यह लड़ाई लोकपाल के साथ ख़त्म नही होनी चाहिए। हमें मौजूदा चुनावी सुधारों में मौजूद खामियों को दूर करने के लिए लड़ना है। क्योंकि चुनाव प्रणाली में दोष के कारण 150 से भी ज्यादा अपराधी संसद तक पहुँच चुके हैं। +* कल मेरा रक्त चाप कम था, लेकिन आज यह फिर से नियंत्रण में है क्योंकि देश की ताकत मेरे पीछे है। +* मैं इस देश के लोगों से अनुरोध करता हूँ कि इस क्रांति को जारी रखें। मैं ना हूँ तो भी लोगों को संघर्ष जारी रखना चाहिए। +* इस सरकार में एक प्रभावी लोकपाल लाने की इच्छा नहीं है। +* क्या यह लोकतंत्र है? सभी एक साथ पैसा बनाने आये हैं. मैं खुद को सौभाग्यशाली समझूंगा अगर मैं अपने समाज, अपने देशवासियों के लिए मरता हूँ। +* सरकारी पैसा लोगों का पैसा है।लोगों के ���ायदे के लिए प्रभावी नीतियां बनाएँ। +* हम सरकार के साथ बात करने को तैयार हैं लेकिन उनकी तरफ से कोई पहल नहीं हुई। हम बात करने कहाँ जायें और हम किससे बात करें ? +* देश को असल में स्वतंत्रता आजादी के 64 साल बाद भी नहीं मिली और केवल एक बदलाव आया गोरों की जगह काले आ गए। +* लोकपाल के बाद, हमें किसानो के अधिकार के लिए लड़ना होगा. हमें एक ऐसा कानून लाना होगा जो भूमि अधिग्रहण से पहले ग्राम सभाओं की अनुमति लेना अनिवार्य करे। +* मेरी मांगें बिलकुल नहीं बदलेंगी। आप मेरे सर को काट सकते हैं लेकिन मुझे सर झुकाने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। +* खजाने को चोरों से नहीं पहरेदारों से धोखा है। देश को सिर्फ दुश्मनों से ही नहीं बल्कि इन गद्दारों से धोखा है। + + +* शिक्षण एक बहुत ही महान पेशा है जो किसी व्यक्ति के चरित्र, क्षमता, और भविष्य को आकार देता हैं। अगर लोग मुझे एक अच्छे शिक्षक के रूप में याद रखते हैं, तो मेरे लिए ये सबसे बड़ा सम्मान होगा। +जो व्यक्ति समय पर बोलने में या सुनने में समर्थ नहीं है,वही वास्तव में मूक एंव वधिर है अर्थात् असमर्थ और असफल है +* अगर मरने के बाद भी जीना है तो एक काम जरूर करना पढने लायक कुछ लिख जाना या फिर लिखने लायक कुछ कर जाना. +* मैं हमेशा इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार था कि मैं कुछ चीजें नहीं बदल सकता। +* भारत में हम बस मौत, बीमारी, आतंकवाद और अपराध के बारे में पढ़ते हैं। +* अंग्रेजी आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में विज्ञान के मूल काम अंग्रेजी में हैं. मेरा विश्वास है कि अगले दो दशक में विज्ञान के मूल काम हमारी भाषाओँ में आने शुरू हो जायेंगे, तब हम जापानियों की तरह आगे बढ़ सकेंगे। +* मुझे बताइए यहाँ का मीडिया इतना नकारात्मक क्यों है? भारत में हम अपनी अच्छाइयों, अपनी उपलब्धियों को दर्शाने में इतना शर्मिंदा क्यों होते हैं? हम एक माहान राष्ट्र हैं. हमारे पास ढेरों सफलता की गाथाएँ हैं, लेकिन हम उन्हें नहीं स्वीकारते. क्यों? +* एक अच्छी पुस्तक हज़ार दोस्तों के बराबर होती है जबकि एक अच्छा दोस्त एक लाइब्रेरी (पुस्तकालय) के बराबर होता है | +* जीवन में कठिनाइयाँ हमे बर्बाद करने नहीं आती है, बल्कि यह हमारी छुपी हुई सामर्थ्य और शक्तियों को बाहर निकलने में हमारी मदद करने आती है, कठिनाइयों को यह जान लेने दो की आप उससे भी ज्यादा कठिन हो। +* अपनी पहली सफलता के बाद आराम मत करो क्योकि ��गर आप दूसरी बार में असफल हो गए तो बहुत से होंठ यह कहने के इंतज़ार में होंगे की आपकी पहली सफलता केवल एक तुक्का थी। +* सफलता की कहानियां मत पढ़ो उससे आपको केवल एक सन्देश मिलेगा। असफलता की कहानियां पढ़ो उससे आपको सफल होने के कुछ विचार मिलेंगे। +* बारिश की दौरान सारे पक्षी आश्रय की खोज करते है लेकिन बाज़ बादलों के ऊपर उडकर बारिश को ही अवॉयड कर देते है। समस्याएँ कॉमन है, लेकिन आपका एटीट्यूड इनमे डिफरेंस पैदा करता है। +* जिंदगी और समय, विश्व के दो सबसे बड़े अध्यापक है। ज़िंदगी हमे समय का सही उपयोग करना सिखाती है जबकि समय हमे ज़िंदगी की उपयोगिता बताता है। +* किसकी को हराना बहुत आसान है पर किसी को जितना बहुत कठिन है। +* देश का सबसे अच्छा दिमाग, क्लास रूम की आखरी बेंचो पर मिल सकता है। +यदि आप जीवन में चमकना चाहते हैं तो आपको सूर्य की तरह चमकना भी होगा + + +* अंत में यह मायने नहीं रखता कि आपके पास जीवन में कितने साल बचे हैं बल्कि उन बचे हुए सालों में कितना जीवन बचा है, यह मायने रखता है। +* अगर आप एक बार अपने नागरिकों (जनता) का भरोसा तोड़ देते हैं, तो आप फिर कभी उनका सम्मान और आदर नहीं पा सकेंगे। +* अगर आप किसी भी व्यक्ति के अंदर बुराई खोजने की इच्छा रखते हैं तो आपको ज़रुर मिल जाएँगीं। +* किसी वृक्ष को काटने के लिए आप मुझे छः घंटे दीजिये और मैं पहले चार घंटे कुल्हाड़ी की धार तेज करने में लगाऊंगा। +* अगर आपको कोई महत्व नहीं देता है तो चिंता कीजिए पर महत्व प्राप्त करने के लिए कोशिश जारी रखिये। +* अगर कोई भी व्यक्ति किसी काम को बेहतरीन ढ़ग से कर सकता है, तो मैं कहूँगा उसे करने दे, उसे एक मौका दे ताकि वह स्वयं को साबित कर सके। +* अगर शांति चाहते हैं तो लोकप्रियता से बचिए। +* अच्छी नियत से काम करने वालों के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। +* अधिकतर लोग उतने ही खुश होते है जितना की वो होना चाहते है। +* अपने दुश्मनों को मिटाने का सबसे अच्छा और बेहतरीन तरीका यह है कि आप उन्हें अपना दोस्त बना लें। +* अब जो कुछ लोग सफलता हासिल कर लेते हैं तो यह प्रमाण है कि आप भी सफल हो सकते हैं। +* आप सभी लोगों को कुछ समय तक और कुछ लोगों को हर समय धोखा दे सकते हो लेकिन आप सभी लोगों को हर समय धोखा नहीं दे सकते। +* आपका अधिक सम्बन्ध इस बात से नहीं है कि आप असफल हुए, बल्कि इस बात से कि आप अपनी असफलता से कितने संतुष्ट है। +* आपका सच्चा मि���्र वही है, जिसके शत्रु भी वही हैं जो आपके हैं। +* इंतजार करने वालो को केवल प्राप्त होता है, जो मेहनत करने वाले छोड़ जाते है। +* इस बात का हमेशा ख्याल रखें कि सिर्फ आपका संकल्प ही आपकी सफलता के लिए मायने रखता है, कोई और चीज नहीं। +* उस व्यक्ति को आलोचना करने का अधिकार है जो सहायता करने की भावना रखता है। +* एक नौजवान व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए उसे हर संभव तरीके से अपना विकास करना चाहिए, ऐसा कभी नहीं शक करना चाहिए कि कोई उसके रास्ते में रूकावट हो सकता है। +* कठिनाई में तो कोई भी आपके पास खड़ा हो सकता है। लेकिन अगर आप किसी इंसान के चरित्र का स्वाद चखना चाहते हैं तो आप उसे अपनी सारी ताकत दे दीजिये। +* कार्य की अधिकता से उकताने वाला व्यक्ति, कभी कोई बड़ा कार्य नहीं कर सकता । +* किसी भी व्यक्ति के चरित्र और साहस का निर्माण आप उसके पहल और स्वतंत्रता को छीन कर नहीं कर सकते हैं। +* कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं है, जिसके पास ईश्वरीय माँ है। +* गलत करने के डर से ज्यादा आपको सही काम करने के लिए ज्यादा हिम्मत जुटानी पड़ती है। +* जब आप अपने रस्सी के अंत तक पहुंचा जाते है, तो एक गांठ बनाओ और लटकाओ। +* जैसा की हमारी परिस्थितिया नयी हैं, हमें विचार करना चाहिए और तरीके से कम करना चाहिए। +* पक्का कर लीजिए, आश्वस्त हो जाइये की आपके पैर सही जगह पर है। फिर डट कर खड़े रहिये। +* प्रजातंत्र लोगों की, लोगों के द्वारा, और लोगों के लिए बनायीं गयी सरकार है। +* भविष्य के बारे में सबसे बढ़िया बात यह है कि यह एक बार में एक दिन के रूप में आता है। +* मतपत्र बन्दूक की बुलेट की तुलना में अधिक शक्तिशाली है। +* मित्र वो है जिसके शत्रु वही हैं जो आपके शत्रु हैं। +* मुझे जो व्यक्ति पसन्द नहीं है मुझे उसके बारे में और अधिक जानना चाहिए। +* मुसीबत में सभी लोग समान होता है, व्यक्ति का असली चरित्र उसको शक्ति मिलने के बाद उजागर होता है। +* मेरा हमेशा से मानना रहा है कि कड़ी सजा की तुलना में दया ज्यादा फलदायक सिद्ध होती है। +* मेरी चिन्ता ये नहीं है कि भगवान मेरे साथ है या नहीं। मेरी चिन्ता ये है कि मै भगवान के साथ हूं या नहीं। क्योंकि भगवान हमेशा सही होता है। +* मेहनत हमेशा धन से पहले और धन से स्वतंत्र है। धन में मेहनत का सिर्फ एकमात्र फल है, और अगर मेहनत नहीं की जाती तो ये कभी अस्तित्व में नहीं आता। मेहनत धन से बड़ी है और उससे ज्यादा महत्व रखती है। +* मैं धीमी गति से चलता जरूर हूँ, लेकिन कभी पीछे वापस नहीं आता। +* मैं जीतने के लिए प्रतिबद्ध नहीं हूँ लेकिन मैं सही और सच्चे होने के लिए प्रतिबद्ध हूँ। +* मैं नहीं जानता मेरे दादाजी कौन थे; मेरा सारा ध्यान यह जानने में है की उनका पोता क्या और कैसा होगा। +* मैं हमेशा इस तरह याद किया जाना पसंद करूँगा कि जहाँ भी मुझे लगा कि यहाँ फूल लगाये जा सकते हैं, मैंने हमेशा झाड़ियों और कांटेदार पौधों को हटा वहां फूलों को लगाने का काम किया। +* यदि आप एक बार अपने नागरिकों का भरोसा तोड़ दें, तो आप फिर कभी उनका सत्कार और सम्मान नहीं पा सकेंगे। +* वह जो सब्र करता है उसे चीजें मिल सकती हैं, परन्तु जो जल्दबाजी करता है उससे चीजें छूट जाती हैं। +* व्यक्ति का चरित्र एक वृक्ष है और उसका मान-सम्मान एक छाया। लेकिन ये कितने दुःख का विषय है कि हम हमेशा छाया की सोचते हैं, लेकिन असलियत तो वृक्ष ही है। +* व्यक्ति की कार्यविधि कुछ सीमा तक परिवर्तित हो सकती है, परन्तु उसकी प्रकृति परिवर्तित नहीं हो सकती। +* शत्रुओं को मित्र बना कर क्या मैं उन्हें नष्ट नहीं कर रहा? +शांत रहने और मुर्खो की तरह सोचने से अच्छा है कि आप पूछो और सारे संदेहो को दूर कर लो। +* सदैव ख्याल रखिए कि आपके सफल होने का संकल्प अन्य दूसरे संकल्पों से बहुत जरूरी है। +* सफलता का रहस्य तैयारी है। +* सहायता करने वाले दिलों को आलोचना करने का भी अधिकार है। +* साधारण दिखाई देने वाले लोग, विश्व के सबसे अच्छे लोग होते हैं और यही कारण है कि भगवान ऐसे लोगों को बड़ी संख्या में पृथ्वी पर लाते हैं। +* सार्वजानिक भावना के साथ कुछ भी विफल नहीं हो सकता, इसके बिना कुछ भी सफल नहीं हो सकता। +* हमेशा अपने दिमाग में यह बात बैठाकर रखे की सफलता के प्रति आपका अपना दृष्टिकोण सबसे महत्त्वपर्ण है बजाय दूसरों के। +* हमेशा यह ध्यान में रखिये कि आपके द्वारा सफल होने का लिया गया संकल्प आपके किसी भी अन्य संकल्प से ज्यादा महत्वपूर्ण है। + + +* एक मकान तब तक घर नहीं बन सकता जब तक उसमे दिमाग और शरीर दोनों के लिए भोजन और भभक ना हो। +* मित्र बनाने में धीमे रहिये और बदलने में और भी। +* संतोष गरीबों को अमीर बनाता है,असंतोष अमीरों को गरीब। +* अज्ञानी होना उतनी शर्म की बात नहीं है जितना कि सीखने की इच्छा ना रखना। +* छोटे-छोटे खर्चों से सावधान रहिये। एक छोटा सा छेद बड़े से जहाज़ को डूबा सकता है। +* लेनदारों की याद्दाश्त देनदारों से अच्छी होती है। +* तैयारी करने में फेल होने का अर्थ है फेल होने के लिए तैयारी करना। +* निश्चित रूप से इस दुनिया में कुछ भी निश्चित नहीं है सिवाय मौत और करों के। + + +बिल गेट्स अमेरिकी व्यापारी हैं। +ऐसे लोग हैं जिन्हें पूँजीवाद पसंद नहीं है, और ऐसे लोग भी हैं जिन्हें पर्सनल कम्प्यूटर्स पसंद नहीं है। पर ऐसा कोई भी नहीं है जिसे पी सी पसंद हो और वो माइक्रोसोफ्ट को पसंद ना करता हो। +“सफलता का जश्न मनाना ठीक है लेकिन असफलता से सबक सीखना ज्यादा महत्वपूर्ण है।” +अगर मैं पहले से कोई अंतिम लक्ष्य बना के चलता तो क्या आपको नहीं लगता है कि मैं उसे सालों पहले पूरा कर चुका होता। +आपके सबसे असंतुष्ट कस्टमर आपके सीखने का सबसे बड़ा श्रोत हैं। +किसी व्‍यक्ति में चाहे कितनी भी Ability क्यों न हो, लेकिन अगर वह एकाग्रचित्त है तभी वह महान कार्य कर सकता है। + + +ब्रूस ली (जून फान,李振藩,李小龙; पिनयिन: Lǐ Zhènfān, Lǐ Xiăolóng; 27 नवंबर, 1940 20 जुलाई, 1973) अमेरिका में जन्मे, चीनी हांगकांग अभिनेता, मार्शल कलाकार, दार्शनिक, फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, विंग चुन के अभ्यासकर्ता और जीत कुन डो अवधारणा के संस्थापक थे। +हमेशा अपने वास्तिक रूप में रहो, खुद को व्यक्त करो, स्वयं में भरोसा रखो, बाहर जाकर किसी और सफल व्यक्तित्व को मत तलाशो और उसकी नक़ल मत करो। +अगर आप हर चीज में अपने लिए एक सीमा निर्धारित कर देंगे, शारीरिक या कुछ और; वो आपके काम, आपके जीवन मे फ़ैल जायेगा। कोई सीमाएं नहीं हैं। सिर्फ पठार हैं, और आपको वहाँ रुकना नहीं है, आपको उनसे आगे जाना है। +ध्यान दीजिये कि सबसे कठोर पेड़ सबसे आसानी से टूट जाते हैं, जबकि, बांस या विलो हवा के साथ मुड़कर बच जाते है। +गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती हैं, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो। + + +भगत सिंह जन्म: १७ या २८ सितम्बर १९०७; मृत्यु: २३ मार्च १९३१ भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। +* यदि बहरों को सुनना है तो आवाज तेज करनी होगी। जब हमने बम फेका था तब हमारा इरादा किसी को जान से मारने नहीं था। हमने ब्रिटिश सरकार पर बम फेका था। ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ना होगा और उसे स्वतंत्र करना होगा। +* मजिस्ट्रेट साहब, आप भाग्यशाली हैं कि आज आप अपनी आखों से यह देखने का अवसर पा रहे हैं कि भारत के क्रांतिकारी किस प्रकार प्रसन्नतापूर्वक अपन�� सर्वोच्च आदर्श के लिए मृत्यु का आलिंगन कर सकते हैं। (मृत्यु पूर्व) +* मेरा धर्म सिर्फ देश की सेवा करना है। +* निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं। +* पागल, प्रेमी और कवि, ये तीनो एक ही मिट्टी या सामग्री के बने होते हैं। +* बड़े बड़े साम्राज्य तहस नहस हो जाते हैं, पर विचारों को कोई ध्वस्त नहीं कर सकता। +* बम और पिस्तौल क्रांति नहीं लाते हैं। क्रान्ति की तलवार विचारों के धार बढ़ाने वाले पत्थर पर रगड़ी जाती है। +* …व्यक्तियो को कुचल कर वे विचारों को नहीं मार सकते। +* क्रांति केवल हिंसा और तोड़-फोड़ नहीं होती। +* क्रांति मनुष्य का जन्म सिद्ध आधिकार है साथ ही आजादी भी जन्म सिद्ध अधिकार है और परिश्रम समाज का वास्तव में वहन करता है। +* क्रांति मानव जाती का एक अपरिहार्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक कभी न ख़त्म होने वाला जन्म-सिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है। +* क्रांति में सदैव संघर्ष हो यह जरुरी नहीं। यह बम और पिस्तौल की राह नहीं है। +* अगर अपने दुश्मन से बहस करनी है और उससे जीतना है तो इसके लिए अभ्यास करना जरूरी है। +* अगर आपको मेरे (भगत सिंह के अनमोल वचन) प्रेरित करते हैं तो बदलाव लाने की हिम्मत करते समय बिलकुल मत सोचिये। +* अगर कोई आपके विकास की राह के बीच रोड़ा बने तो आपको उसकी आलोचना करनी चाहिए और इसे चुनौती देनी चाहिए। +* अगर बहरों को सुनना है तो आवाज को बहुत जोरदार होना होगा, जब हमने असेम्बली में बम गिराया तो हमारा मकसद किसी को मारना नहीं था हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था। +* अगर हमें सरकार बनाने का मौका मिलेगा तो किसी के पास प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं मिलेगी। +* अपने दुश्मन से बहस करने के लिये उसका अभ्यास करना बहोत जरुरी है। +* अहिंसा को आत्म विश्वास का बल प्राप्त है जिसमे जीत की आशा से कष्ट वहन किया जाता है। लेकिन अगर यह प्रयत्न विफल हो जाए तब क्या होगा? तब हमें इस आत्म शक्ति को शारीरिक शक्ति से जोड़ना होता है ताकि हम अत्याचारी दुश्मन की दया पर न रहे। +* आज मेरी कमजोरियां लोगों के सामने नहीं हैं। अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और इंकलाब का निशान मद्धिम पड़ जाएगा या शायद मिट ही जाए, लेकिन मेरे दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते फांसी पाने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए बलिदान होने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि इंकलाब को रोकना इम्पीरियलिज्म की तमाम सर (संपूर्ण) शैतानी कुबतों के बस की बात न रहेगी। +* आम तौर पर लोग जैसी चीजें हैं उसके आदी हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की जरूरत है। +* इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है जैसाकि हम विधान सभा में बम फेंकने को लेकर थे। +* इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है। +* क़ानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक की वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे। +* कानून में विश्वास और उसकी पवित्रता तब तक ही बनी रह सकती है जब तक वो लोगों को सही न्याय दिलाता रहे और उनकी इच्छाओं की अभिव्यक्ति करे। +* किसी को ‘क्रांति’ शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते हैं। +* किसी ने सच ही कहा है, सुधार बूढ़े आदमी नहीं कर सकते। ते तो बहुत ही बुद्धिमान और समझदार होते हैं। सुधार तो होते हैं युवकों के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से, जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं। +* किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं। +* किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग ना करना काल्पनिक आदर्श है और नया आन्दोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसके आरम्भ की हम चेतावनी दे चुके हैं वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान वाशिंगटन और गैरीबाल्डी लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है। +* कोई भी व्यक्ति जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार खड़ा हो उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमे अविश्वास करना होगा और चुनौती भी देना होगा। +* कोई भी व्यक्ति तब ही कुछ करता है जब वह अपने कार्य के परिणाम (औचित्य) को लेकर आश्व्स्त होता है जैसे हम असेम्बली में बम फेकने पर थे। +* कोई विद्रोह क्रांति नहीं होता, आखिर में आपका अंत हो सकता है। +* क्या तुम्हें पता है कि दूनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है? गरीबी एक अभिशाप है यह एक स���ा है। +* क्रांति लाना किसी भी इंसान की ताकत के बाहर की बात है। क्रांति कभी भी अपनेआप नही आती। बल्कि किसी विशिष्ट वातावरण, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में ही क्रांति लाई जा सकती है। +* क्रांति से हमारा अभिप्राय समाज की वर्तमान प्रणाली और वर्तमान संगठन को पूरी तरह उखाड़ फेंकना है। इस उद्‌देश्य के लिए हम पहले सरकार की ताकत को अपने हाथ में लेना चाहते हैं। इस समय शासन की मशीन धनिकों के हाथ में है। सामान्य जनता के हितों की रक्षा के लिए तथा उरपने आदर्शों को क्रियात्मक रूप देने के लिए अर्थात समाज का नए सिरे से संगठन कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों के अनुसार करने के लिए हम सरकार की मशीन को उरपने हाथ में लेना चाहते हैं। हम इसी उद्‌देश्य के लिए लड़ रहे है, पंरतु इसके लिए हमें साधारण जनता को शिक्षित करना चाहिए। +* क्रांतिकारी सोच के दो आवश्यक लक्षण है – बेरहम निंदा तथा स्वतंत्र सोच। +* क्रान्ति के लिए हथियारों की जरुरत नहीं होती, क्रान्ति की तलवारें तो विचारों की धार पर तेज की जाती हैं। अगर आपको भगत सिंह के अनमोल विचार प्रेरित करते हैं तो अत्याचार के खिलाफ लड़िये, क्रांतिकारी बनिए। +* चीजें जैसी है आम तौर पर लोग उसके आदि हो जाते है और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते है हमें इसी निष्क्रियता को क्रांतिकारी भावना से बदलने कि जरुरत है। +* जरूरी नहीं था कि क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था। +* जहां तक हमारे भाग्य का संबंध है, हम बड़े बलपूर्वक आपसे यह कहना चाहते हैं कि अपने हमें फांसी पर लटकाने का निर्णय कर लिया है, आप ऐसा करेंगे ही, आपके हाथों में शक्ति है और आपको अधिकार भी प्राप्त हैं, परंतु इस प्रकार आप ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला’ सिद्धांत ही अपना रहे हैं और आप उस पर कटिबद्ध है। हमारे अभियोग की सुनवाई इस वक्तव्य को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि हमने कभी कोई प्रार्थना नहीं की और अब भी हम आपसे किसी प्रकार की दया की प्रार्थना नहीं करते। हम केवल आपसे यह प्रार्थना करना चाहते हैं कि आपकी सरकार के ही एक न्यायालय के निर्णय के अनुसार हमारे विरुद्ध युद्ध जारी रखने का अभियोग है, इस स्थिति में हम युद्ध-बंदी हैं, अत: इस आधार पर हम आपसे मांग करते हैं कि हमारे साथ युद्ध-बंदियों जैसा ही बर्ताव किया जाए और हमें फांसी देने के बदले गोली से उड़ा दिया जाए। +* जिंदा रहने की ख्वाहिश कुदरती तौर पर मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन मेरा जिंदा रहना एक शर्त पर है। मैं कैद होकर या पाबंद होकर जिंदा रहना नहीं चाहता। +* जीवन अपने दम पर चलता है दूसरों के कन्धों पर तो अंतिम यात्रा पूरी होती है। +* जैसे पुराना कपड़ा उतारकर नया बदला जाता है, वैसे ही मृत्यु है। मैं उससे डरूंगा नहीं, भागूंगा नहीं। कोशिश करूंगा कि पकड़ा जाऊं पर यूं ही नहीं कि पुलिस आई और पकड़ ले गई। मेरे पास एक तरीका है कि कैसे पकड़ा जाऊं। मौत आएगी, आएगी ही पर मैं अपनी मौत को इतनी महंगी और भारी बना दूंगा कि ब्रिटिश सरकार रेत के ढेर की तरह उसके बोझ से ढक जाए। +* जो व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी। +* देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं। +* भारत की वर्तमान लड़ाई ज्यादातर मध्य श्रेणी के लोगों के बलबूते पर लड़ी जा रही है, जिसका लक्ष्य बहुत सीमित है। कांग्रेस दुकानदारों और पूंजीपतियों के जरिए इंग्लैंड पर आर्थिक दबाव डालकर कुछ अधिकार ले लेना चाहती है, परंतु जहां तक देश के करोड़ों मजदूरों और किसान जनता का ताल्लुक है, उनका उद्धार इतने से नहीं हो सकता। यदि देश की लड़ाई लड़नी हो, तो मजदूरों, किसानों और सामान्य जनता को आगे लाना होगा, इन्हें लड़ाई के लिए संगठित करना होगा। नेता उन्हें अभी तक आगे लाने के लिए कुछ नहीं करते, न कर ही सकते है। इन किसानों को विदेशी हुकूमत के जुए के साथ-साथ भूमिपतियों और पूंजीपतियों के जुए से भी उद्धार पाना है। +* मनुष्य तभी कुछ करता है जब उसे अपने कार्य का उचित होना सुनिश्चित होता है, जैसा की हम विधान सभा में बम गिराते समय थे। जो मनुष्य इस शब्द का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं उनके लाभ के हिसाब के अनुसार इसे अलग-अलग अर्थ और व्याख्या दिए जाते हैं। +* महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं। +* मुझे दंड सुना दिया गया है और फांसी का आदेश हुआ है। इन कोठरियों में मेरे अतिरिक्त फांसी की प्रतीक्षा करने वाले बहुत -से अपराधी हैं। ये यही प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी तरह फांसी से बच जाएं, परंतु उनके बीच शायद मैं ही एक ऐसा आदमी हूं जो बड़ी बेताबी से उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब मुझे अपने आदर्श के लिए फांसी के फंदे पर धूलने का सौभाग्य प्र��प्त होगा। मैं खुशी के साथ फांसी के तख्ते पर चढ़कर दुनिया को दिखा दूंगा कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए कितनी वीरता से बलिदान दे सकते हैं। भगत सिंह( बटुकेश्वर दत्त को लिखे गए पत्र का हिस्सा ) +* मुझे फांसी का दंड मिला है, किंतु तुम्हें आजीवन कारावास दंड मिला है। तुम जीवित रहोगे और तुम्हें जीवित रहकर दुनिया को यह दिखाना है कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए मर ही नहीं सकते, बल्कि जीवित रहकर हर मुसीबत का मुकाबला भी कर सकते हैं। मृत्यु सांसारिक कठिनाइयों से मुक्ति प्राप्त करने का साधन नहीं बननी चाहिए, बल्कि जो क्रांतिकारी संयोगवश फांसी के फंदे से बच गए हैं उन्हें जीवित रहकर दुनिया को यह दिखा देना चाहिए कि वे न केवल अपने आदर्शों के लिए फांसी पर चढ़ सकते हैं, जेलों की अंधकारपूर्ण छोटी कोठरियों में पुल-घुलकर निकृष्टतम दरजे के अत्याचार को सहन भी कर सकते हैं। भगत सिंह बटुकेश्वर दत्त को लिखे गए पत्र का हिस्सा ) +* मुसीबतें इंसान को पूर्ण बनाने का काम करती हैं, हर स्थिति में धैर्य बनाकर रखें। +* मेरा जीवन एक महान लक्ष्य के प्रति समर्पित है – देश की आज़ादी। दुनिया की अन्य कोई आकषिर्त वस्तु मुझे लुभा नहीं सकती। +* मेरा नाम हिन्दुस्तानी इंकलाब पार्टी का निशान बन चुका है और इंकलाब पसंद पार्टी के आदर्शों और बलिदानों ने मुझे बहुत ऊंचा कर दिया है। इतना ऊंचा कि जिंदा रहने की सूरत में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता। इसके सिवा कोई लालच मेरे दिल में फांसी से बचे रहने के लिए कभी नहीं आया, मुझसे ज्यादा खुशकिस्मत कौन होगा। मुझे आज तक अपने आप पर बहुत नाज है। मुझमें अब कोई ख्वाहिश बाकी नहीं है। अब तो बड़ी बेताबी से आखिरी इम्तहां का इंतजार है। आरजू है कि यह और करीब हो जाए। +* मेरे जीवन का केवल एक ही लक्ष्य है और वो है देश की आज़ादी। इसके अलावा कोई और लक्ष्य मुझे लुभा नहीं सकता। +* यदि आप सोलह उगने के लिए लड़ रहे हैं और एक आना मिल जाता है, तो वह एक आना जेब में डालकर बाकी पंद्रह उगने के लिए फिर जंग छेड़ दीजिए। हिन्दुस्तान के माडरेटों की जिस बात से हमें नफरत है, वह यही है कि उनका आदर्श कुछ नहीं है। वे एक आने के लिए ही लड़ते हैं और उन्हें मिलता कुछ भी नहीं। +* यदि हमारे नौजवान इसी प्रकार प्रयत्न करते जाएंगे, तब जाकर एक साल में स्वराज्य तो नहीं, किंतु भारी कुर्बानी और त्याग की कठिन परीक्षा ��ें से गुजरने के बाद वे अवश्य विजयी होंगे। क्रांति चिरंजीवी हो। +* यह बात प्रसिद्ध है कि मैं एक आतंककारी (टेररिस्ट) रहा हूं परंतु मैं आतंककारी नहीं हूं। मैं एक क्रांतिकारी हूं जिसके कुछ निश्चित विचार और निश्चित आदर्श हैं और जिसके सामने एक लंबा प्रोग्राम है। मुझे यह दोष दिया जाएगा, जैसा कि लोग रामप्रसाद बिस्मिल को भी देते थे कि फांसी की काल कोठारी में पड़े रहने से मेरे विचारों में भी कोई परिवर्तन उग गया है, परंतु ऐसी बात नहीं। मेरे विचार अब भी वही हैं, मेरे हृदय में अब भी उतना ही और वैसा ही उत्साह और वही लक्ष्य है जो जेल से बाहर था, पर मेरा यह दृढ़-विश्वास है कि हम बम से कोई लाभ प्राप्त नहीं कर सकते। यह बात हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के इतिहास से भी आसानी से मालूम पड़ती है। बम फेंकना न सिर्फ व्यर्थ है, अपितु बहुत बार हानिकारक भी है। उसकी आवश्यकता किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही पड़ती है, हमारा मुख्य लक्ष्य मजदूर और किसानों का संगठन होना चाहिए। +* लोग जैसा चल रहा है उसे ही अपनाने को तैयार हैं। बदलाव लाने की सोच मात्र से ही उनके हाथ पैर कांपने लगते हैं। हमें अपनी इसी भावना को बदलना है और क्रांतिकारी बनना है। +* व्यक्तियों को कुचल कर, वे विचारों को नही मार सकते। +* समझौता कोई ऐसी हेय और निंदा योग्य वस्तु नहीं, जैसा कि साधारणत: हम लोग समझते है, बल्कि समझौता राजनीतिक संग्रामों का एक अत्यावश्यक अंग है। कोई भी कौम जो किसी अत्याचारी शासन के विरुद्ध खड़ी होती है, यह जरूरी है कि वह आरंभ में असफल हो और अपनी लंबी जद्‌दोजहद के मध्यकाल में इस प्रकार के समझौते के जरिए कुछ राजनीतिक सुधार हासिल करती जाए, परंतु पहुंचते-पहुंचते अपनी ताकतों को इतना संगठित और दृढ़ कर लेती है और उसका दुश्मन पर आखिरी हमला इतना जोरदार होता है कि शासक लोगों की ताकतें उस वक्त तक यह चाहती हैं कि उसे दुश्मन के साथ कोई समझौता कर लेना चाहिए। +* समझौता भी ऐसा हथियार है, जिसे राजनीतिक जद्‌दोजहद के बीच में पग-पग पर इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता है जिससे एक कठिन लड़ाई से थकी हुई कौम को थोड़ी देर के लिए आराम मिल सके और वह आगे के युद्ध के लिए अधिक ताकत के साथ तैयार हो सके, परंतु इन सारे समझौतों के बावजूद जिस चीज को हमें भूलना न चाहिए वह हमारा आदर्श है जो हमेशा हमारे सामने रहना चाहिए। जिस लक्ष्य के लिए हम लड़ रहे हैं उनके संबंध में हमारे विचार बिल्कुल स्पष्ट और दृढ़ होने चाहिए। +* सर्वगत भाईचारा तभी हासिल हो सकता है जब समानताएं हों – सामाजिक, राजनैतिक एवं व्यक्तिगत समानताएं। +* सामान्यत: लोग परिस्थिति के आदि हो जाते है और उनमें बदलाव करने की सोच मात्र से डर जाते है। अत: हमें इस भावना को क्रांति की भावना से बदलने की जरूरत है। +* स्वतंत्रता हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है और अगर कोई इसके बीच रोड़ा बने तो आदमी को क्रांतिकारी बनने का भी अधिकार है। +* हम नौजवानों को बम और पिस्तौल उठाने की सलाह नहीं दे सकते। विद्यार्थियों के लिए और भी महत्त्वपूर्ण काम हैं। राष्ट्रीय इतिहास के नाजुक समय में नौजवानों पर बहुत बड़े दायित्व का भार है और सबसे ज्यादा विद्यार्थी ही तो आजादी की लड़ाई में अगली पांतों में लड़ते हुए शहीद हुए है। क्या भारतीय नौजवान इस परीक्षा के समय में वही संजीदा इरादा दिखाने में झिझक दिखाएंगे। +* हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी, जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है। चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति हों या अंग्रेजी शासक या सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी रखी हुई है। चाहे शुद्ध भारतीय पूंजी-पतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो, तो भी इस स्थिति में कोई अंतर नहीं पड़ता। +* हमारा लक्ष्य शासन शक्ति को उन हाथों के सुपुर्द करना है, जिनका लक्ष्य समाजवाद हो, इसके लिए मजदूरों और किसानों को संगठित करना आवश्यक होगा, क्योंकि उन लोगों के लिए लॉर्ड रीडिंग या इर्विन की जगह तेजबहादुर या पुरुषोत्तम दास, ठाकुर दास के उग जाने से कोई भारी फर्क न पड़ सकेगा। +* हमारे दल को नेताओं की आवश्यकता नहीं है। अगर आप दुनियादार हैं, बाल-बच्चों और गृहस्थी में फंसे है, तो हमारे मार्ग पर मत आइए। ‘आप हमारे उद्‌देश्य में सहानुभूति रखते हैं तो और तरीकों से हमें सहायता दीजिए। नियंत्रण में रह सकने वाले कार्यकर्ता ही इस आदोलन को आगे ले जा सकते हैं। +* हमें धैर्यपूर्वक फांसी की प्रतीक्षा करनी चाहिए। यह मृत्यु सुंदर होगी, परंतु आत्महत्या करना, केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देना तो कायरता है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि आपत्तियां व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली हैं। (सुखदेव को लिखे एक पत्र से) + + +चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र नामक ग्रन्थ राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। +व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले मर जाता है; और वो अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल खुद ही भुगतता है; और वह अकेले ही नर्क या स्वर्ग जाता है। +अगर सांप जहरीला ना भी हो तो उसे खुद को जहरीला दिखाना चाहिए। +शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पता है। शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है। +कोई व्यक्ति अपने कार्यों से महान होता है, अपने जन्म से नहीं। +सर्प, नृप, शेर, डंक मारने वाले ततैया, छोटे बच्चे, दूसरों के कुत्तों, और एक मूर्ख: इन सातों को नींद से नहीं उठाना चाहिए। +इस बात को व्यक्त मत होने दीजिये कि आपने क्या करने के लिए सोचा है, बुद्धिमानी से इसे रहस्य बनाये रखिये और इस काम को करने के लिए दृढ रहिये। +जैसे ही भय आपके करीब आये, उसपर आक्रमण कर उसे नष्ट कर दीजिये। +* जब तक आपका शरीर स्वस्थ्य और नियंत्रण में है और मृत्यु दूर है, अपनी आत्मा को बचाने कि कोशिश कीजिये; जब मृत्यु सर पर आजायेगी तब आप क्या कर पाएंगे? +* पहले पाच सालों में अपने बच्चे को बड़े प्यार से रखिये। अगले पांच साल उन्हें डांट-डपट के रखिये। जब वह सोलह साल का हो जाये तो उसके साथ एक मित्र की तरह व्यव्हार करिए। आपके व्यस्क बच्चे ही आपके सबसे अच्छे मित्र हैं। +* समय को पहचानना ही मनुष्य के सीखने की सर्वोत्तम कला मानी गई है। +* फूलों की सुगंध केवल हवा की दिशा में फैलती है, लेकिन एक इंसान की अच्छाई चारों दिशाओं में फैलती है। +* ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए। +* एक ही देश के दो शत्रु परस्पर मित्र होते हैं। +* भगवान मूर्तियों में नहीं है, आपकी अनुभूति आपका इश्वर है, आत्मा आपका मंदिर है। +* अगर सांप जहरीला ना भी हो तो उसे खुद को जहरीला दिखाना चाहिए। +* कुशलता का ज्ञान प्राप्त कर श्रेय की प्राप्ति कर सकता है। +* दूसरों की गलतियों से भी सीख लेनी चाहिए, क्योंकि अपने ही ऊपर प्रयोग करने पर तुम्हारी आयु कम पड़ जाएगी। +* आपका हमेशा खुश रहना आपके दुश्मनों के लिए सबसे बड़ी सजा है। +* लोहे को लोहे से ही काटना चाहिए। +* सांप को दूध पिलाने से विष ही बढ़ता है, न की अमृत। +* किसी लक्ष्य की सिद्धि में कभी शत्रु का साथ न करें। +* सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है। +* जो जिस कार्ये में कुशल हो, उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए। +* शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करें। +* धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं। +* आग में आग नहीं डालनी चाहिए अर्थात् क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए। +* शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए। +* यदि खुद कुबेर भी अपनी आय से अधिक खर्च करने लगे तो वह एक दिन निर्धन हो जायेगा। +* मूर्खों से अपनी तारीफ सुनने से अच्छा है कि आप किसी बुद्धिमान की डांट सुनें। +* भविष्य के अन्धकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है। +* पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है। +* कच्चा पात्र कच्चे पात्र से टकराकर टूट जाता है। +* व्यक्ति को उट-पटांग अथवा गवार वेशभूषा धारण नहीं करनी चाहिए। +* शराबी व्यक्ति का कोई कार्य पूरा नहीं होता है। +* बिना उपाय के किए गए कार्य प्रयत्न करने पर भी बचाए नहीं जा सकते, नष्ट हो जाते है। +दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है। +* अपने बच्चों को पहले पाँच साल तक खूब प्यार करो, छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो, सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो। आपकी संतति ही आपकी सबसे अच्छी मित्र है। + + +ज़िन्दगी करीब से देखने में एक त्रासदी है, लेकिन दूर से देखने पर एक कॉमेडी। +असफलता महत्त्वहीन है। अपना मजाक बनाने के लिए हिम्मत चाहिए होती है। +हास्य टॉनिक है, राहत है, दर्द रोकने वाला है। +इस मक्कार दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, यहाँ तक की हमारी परेशानिया भी नहीं। +मैं ऐसी सुन्दरता के साथ धैर्यपूर्वक नहीं रह सकता जिसे समझने के लिए किसी को व्याख्या करनी पड़े। + + +आप और मैं अनंत विकल्पों का चुनाव कर सकते हैं। हमारे अस्तित्व के हर एक क्षण में हम उन सभी संभ���वनाओं के मध्य में होते हैं जहाँ हमारे पास अनंत विकल्प मौजूद होते हैं। +अपने आनंद से पुनः जुड़ने से महत्त्वपूर्ण और कुछ भी नहीं है। कुछ भी इतना समृद्ध नहीं है।कुछ भी इतना वास्तविक नहीं है। +अपने शरीर को जानकार कर एवं विश्वास और जीव विज्ञान के बीच कि कड़ी समझ कर आप उम्र बढ़ने से मुक्ति पा सकते हैं। +हम उम्र बढ़ने, बीमारी और मृत्यु के शिकार नहीं हैं। ये सीनरी का हिस्सा हैं, सिद्ध पुरुष नहीं हैं जिनमे कोई बदलाव नहीं आता। यह सिद्ध पुरुष आत्मा है, सनातन अस्तित्व की अभिव्यक्ति। +हमारी सोच और हमारा व्यवहार हमेशा किसी प्रतिक्रिया की आशा में होते हैं। इसलिए ये डर पर आधारित हैं। +ब्रह्माण्ड में कोई भी टुकड़ा अतिरिक्त नहीं है। हर कोई यहाँ इसलिए है क्योंकि उसे कोई जगह भरनी है, हर एक टुकड़े को बड़ी पहेली में फिट होना है। +यदि आप और मैं इस क्षण किसी के भी विरुद्ध हिंसा या नफरत का विचार ला रहे हैं तो हम दुनिया को घायल करने में योगदान दे रेहे हैं। +स्वभाव रखना है तो एक छोटे से दीपक की तरह रखो यो गरीव की झोंपड़ी में भी उतनी रौशनी देता है जितनी के एक राजा के महल में देता है। +ख़ुशी एसी घटनायों की निरंतरता है जिसका आप कभी विरोध नहीं कर पाते। +अंहकार, दरअसल वास्‍तविकता में आप नहीं है। अंहकार की आपकी अपनी छवि है। ये आपका सामाजिक मुखौटा है। ये वो पात्र है जो आप खेल रहे हैं। आपका सामाजिक मुखौटा प्रशंशा पर जीता है। वो नियंत्रण चाहता है, सत्ता के दम पर पनपता है क्‍योंकि वो भय में जीता है। + + +*हम अपने शाशकों को नहीं बदल सकते पर जिस तरह वो हम पे शाशन करते हैं उसे बदल सकते हैं। +*मेरे भूत, वर्तमान और भविष्य के बीच एक आम कारक है: रिश्ते और विश्वास। यही हमारे विकास की नीव हैं। +*रिलायंस में विकास की कोई सीमा नहीं है।मैं हमेशा अपना वीज़न दोहराता रहता हूँ।सपने देखकर ही आप उन्हें पूरा कर सकते हैं। +*हमारे स्वप्न विशाल होने चाहिए। हमारी महत्त्वाकांक्षा ऊँची होनी चाहिए। हमारी प्रतिबद्धता गहरी होनी चाहिए और हमारे प्रयत्न बड़े होने चाहिए। रिलायंस और भारत के लिए यही मेरा सपना है। +*फायदा कमाने के लिए न्योते की ज़रुरत नहीं होती। +*यदि आप दृढ संकल्प और पूर्णता के साथ काम करेंगे तो सफलता ज़रूर मिलेगी। +*कठिन समय में भी अपने लक्ष्य को मत छोड़िये और विपत्ति को अवसर में बदलिए। +*एक दिन धीरुभाई चल�� जायेगा। लेकिन रिलायंस के कर्मचारी और शेयर धारक इसे चलाते रहेंगे। रिलायंस अब एक विचार है, जिसमे अंबानियों का कोई अर्थ नहीं है। +*युवाओं को एक अच्छा वातावरण दीजिये। उन्हें प्रेरित कीजिये। उन्हें जो चाहिए वो सहयोग प्रदान कीजिये। उसमे से हर एक आपार उर्जा का श्रोत है। वो कर दिखायेगा। +*हमारे स्वप्न विशाल होने चाहिए। हमारी महत्त्वाकांक्षा ऊँची होनी चाहिए। हमारी प्रतिबद्धता गहरी होनी चाहिए और हमारे प्रयत्न बड़े होने चाहिए। रिलायंस और भारत के लिए यही मेरा सपना है। +*समय सीमा पर काम ख़तम कर लेना काफी नहीं है,मैं समय सीमा से पहले काम ख़तम होने की अपेक्षा करता हूँ। +*जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं, वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं। + + +* बंदूकें महत्त्व में सिर्फ संविधान से कम होती हैं; वे लोगों की स्वतंत्रता का दांत होती हैं। +* यदि आप अपनी प्रतिष्ठा का सम्मान करते हैं तो अच्छे गुडों से संपन्न लोगों के साथ जुड़िये; क्योंकि बुरी संगत में रहने से अच्छा अकेले रहना है। +* सच्ची दोस्ती धीमी गति से उगने वाला पौधा है, और कोई इस पदवी का हकदार बने उससे पहले उसे विपत्ति के झटको से गुजरना और उन्हें सहना होगा। +* बुरी संगत में रहने से अच्छा अकेले रहना है। +* बिना प्रभु और बाइबिल के देश पर सही ढंग से शासन करना असंभव है। +* सभी देशों के प्रति अच्छी भावना और न्याय रखें। सभी के साथ शांति और सद्भाव स्थापित करें। +* सरकार तर्कपूर्ण नहीं है, वह सुवक्ता नहीं है; वह ताकत है। आगा की तरह, वह एक खतरनाक नौकर है और एक भयानक मालिक। +* वह समय बहुत नज़दीक है जो तय करेगा कि अमेरिकी स्वतंत्र होंगे या गुलाम। +* अनुशासन सेना की आत्मा है। यह छोटी संख्या को भयंकर बना देती है; कमजोरों को सफलता और सभी को सम्मान दिलाती है। +* जब हमने सैनिकों की कल्पना की तो हमने नागरिकों को एक तरफ नहीं रख दिया। +* कुछ लोगों में ही सबसे ऊँची बोली लगाने वाले से बचने का गुण होता है। +* हमारी राजनीतिक व्यवस्था का आधार लोगों का अपनी सरकार के संविधान को बदलने का अधिकार है। + + +* मेरे सभी खेल राजनीतिक खेल होते थे; मैं जोन ऑफ आर्क की तरह थी, मुझे हमेशा दांव पर लगा दिया जाता था। +* यदि मैं इस देश की सेवा करते हुए मर भी जाऊं, मुझे इसका गर्व होगा। मेरे खून की हर एक बूँद …।।इस देश की तरक्की में और इसे मजबूत और गतिशील बनाने में योगदान देगी��� +* अगर मैं एक हिंसक मौत मरती हूँ, जैसा की कुछ लोग डर रहे हैं और कुछ षड्यंत्र कर रहे हैं, मुझे पता है कि हिंसा हत्यारों के विचार और कर्म में होगी, मेरे मरने में नहीं। +* लोग अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं पर अधिकारों को याद रखते हैं। +* क्रोध कभी बिना तर्क के नहीं होता, लेकिन कभी-कभार ही एक अच्छे तर्क के साथ। +* क्षमा वीरों का गुण है। +* कुछ करने में पूर्वाग्रह है – चलिए अभी कुछ होते हुए देखते हैं। आप उस बड़ी योजना को छोटे-छोटे चरणों में बाँट सकते हैं और पहला कदम तुरंत ही उठा सकते हैं। +* सरकार तर्कपूर्ण नहीं है, वह सुवक्ता नहीं है; वह ताकत है। आगा की तरह, वह एक खतरनाक नौकर है और एक भयानक मालिक। +* आप बंद मुट्ठी से हाथ नहीं मिला सकते| +* लोग अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं पर अधिकारों को याद रखते हैं| +* प्रश्न करने का अधिकार मानव प्रगति का आधार है| +* कुछ करने में पूर्वाग्रह है – चलिए अभी कुछ होते हुए देखते हैं. आप उस बड़ी योजना को छोटे-छोटे चरणों में बाँट सकते हैं और पहला कदम तुरंत ही उठा सकते हैं + + +* हिंसक क्रांति हमेशा किसी न किसी तरह की तानाशाही लेकर आई है… क्रांति के बाद, धीरे-धीरे एक नया विशेषाधिकार प्राप्त शासकों एवं शोषकों का वर्ग खड़ा हो जाता है, लोग एक बार फिर उसके अधीन हो जाते हैं। +अगर आप सचमुच स्वतंत्रता, स्वाधीनता की परवाह करते हैं, तो बिना राजनीति के कोई लोकतंत्र या उदार संस्था नहीं हो सकती। राजनीति के रोग का सही मारक बेहतर राजनीति ही हो सकती है, राजनीति का अपवर्जन नहीं। +मेरी रुचि सत्ता के कब्जे में नहीं, बल्कि लोगों द्वारा सत्ता के नियंत्रण में है। +* केवल वे ही लोग हिंसक रास्ते को अपनाते हैं जिन्हें लोगों पर भरोसा और आत्मविश्वास नहीं होता, या फिर जनता का भरोसा जीतने में असमर्थ होते हैं। +* भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं। क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति – सम्पूर्ण क्रान्ति आवश्यक है। +* सम्पूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है। +* सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है – राजनैतिक, आर्थिक, सामाज���क, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है। +* राष्ट्रीय एकता के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति धार्मिक अन्धविश्वासों से बाहर निकलकर अपने अन्दर एक बौद्धिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करे। +* लोकतंत्र को शांति के बिना सुरक्षित और मजबूत नहीं बनाया जा सकता। शांति और लोकतंत्र एक सिक्के के दो पहलू हैं। एक के बिना दूसरा बचा नहीं रह सकता। +* जब सत्ता बंदूक की नली से बाहर आती है और बंदूक आम लोगों के हाथों में नहीं रहती, तब सत्ता सर्वदा अग्रिम पंक्ति वाले क्रांतिकारियों के बीच सबसे क्रूर मुट्ठीभर लोगों द्वारा हड़प ली जाती है। +* मुझे न तो पहले विश्वास था और न अब है कि राज्य पूर्ण रूप से कभी लुप्त हो जाएगा। परन्तु मुझे यह विश्वास है कि राज्य के कार्यक्षेत्र को जहां तक सम्भव हो घटाने के प्रयास करना सबसे अच्छा उद्देश्य है। +* राजनीतिक दलीय प्रणाली में जनता की स्थिति उन भेड़ों की तरह होती है जो निश्चित अवधि के पश्चात् अपने लिए ग्वाला चुन लेती है। ऐसी लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली में मैं उस स्वतन्त्रता के दर्शन कर नहीं पाता जिसके लिए मैंने तथा जनता ने संघर्ष किया था। +* युवा पीढ़ी के उत्साह और आदर्शों को रचनात्मक कार्यों में प्रवृत्त करना कोई बुरी बात नहीं है, परन्तु साधन तथा साध्य के सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि युवा पीढ़ी को क्रान्ति के लिए प्रत्येक प्रकार के साधनों को प्रयुक्त करने को अनुमति दे दी जाए। +* जब तक प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में राष्ट्रवाद की भावना का विकास नहीं होगा तब तक देश का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। भारत में सांस्कृतिक एकता होते हुए भी राजनीतिक एकता का अभाव है। भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा सम्पूर्ण भारतीय प्रदेश पर अधिकार करने के बाद ही एक सरकार के अन्तर्गत राष्ट्रीय एकता का उदय हुआ है। +जयप्रकाश नारायण के बारे में महापुरुषों के विचार +सन 1946 में जयप्रकाश जी जेल से छूटने के बाद रामधारी सिंह 'दिनकर ने निम्नलिखित ओजपूर्ण पंक्तियाँ लिखीं थी और पटना के गांधी मैदान में उनके स्वागत में उमड़ी लाखों लोगों के सामने पढ़ी थी- +: पर, सौंप देश के हाथों में वह एक नई तलवार गया। +: जय नई आग! जय नई ज्योति! जय नये लक्ष्य के अभियानी! +: स्वागत है, आओ, काल-सर्प के फण ��र चढ़ चलने वाले! +: स्वागत है, आओ, हवनकुण्ड में कूद स्वयं बलने वाले! +: है "जयप्रकाश" वह जो कि पंगु का, चरण, मूक की भाषा है, +: है "जयप्रकाश" वह टिकी हुई, जिस पर स्वदेश की आशा है। +: है "जयप्रकाश" वह नाम जिसे, इतिहास समादर देता है, +: वाणी की अंग बढ़ाने को, गायक जिसका गुण गाते हैं। +: स्वप्नों का दृष्टा "जयप्रकाश भारत का भाग्य-विधाता है।" + + +* एक ऐसा क्षण जो इतिहास में बहुत ही कम आता है, जब हम पुराने के छोड़ नए की तरफ जाते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब वर्षों से शोषित एक देश की आत्मा, अपनी बात कह सकती है। +* जब तक मैं स्वयं में आश्वस्त हूँ की किया गया काम सही काम है तब तक मुझे संतुष्टि रहती है। +* तथ्य तथ्य हैं और आपके नापसंद करने से गायब नहीं हो जायेंगे। +* सुझाव देना और बाद में हमने जो कहा उसके नतीजे से बचने की कोशिश करना बेहद आसान है +* नागरिकता देश की सेवा में निहित है। +* संकट के समय हर छोटी चीज मायने रखती है। +* संकट और गतिरोध जब वे होते हैं तो कम से कम उनका एक फायदा होता है कि वे हमें सोचने पर मजबूर करते हैं। +* महान कार्य और छोटे लोग साथ नहीं चल सकते। +* हर एक हमलावर राष्ट्र की यह दावा करने की आदत होती है कि वह अपनी रक्षा के लिए कार्य कर रहा है। +* एक नेता या कर्मठ व्यक्ति संकट के समय लगभग हमेशा ही अवचेतन रूप में कार्य करता है और फिर अपने किये गए कार्यों के लिए तर्क सोचता है। + + +* स्वर्ग में और पृथ्वी पर सारे अधिकार मुझे दिए गए हैं। + + +* धर्म लोगों का अफीम है। +* साम्यवाद के सिद्धांत का एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है: सभी निजी संपत्ति को ख़त्म किया जाये। +* धर्म मानव मस्तिष्क जो न समझ सके उससे निपटने की नपुंसकता है। +* नौकरशाह के लिए दुनिया महज एक हेर-फेर करने की वस्तु है। +* पूँजी मृत श्रम है, जो पिशाच की तरह केवल जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है, और जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों को चूसता है। +* सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से मापी जा सकती है। +* धर्म का अंत होना ही लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता है। +* मजदूरों के पास अपनी जंजीरों के अलावा खोने को कुछ और नहीं है और उनके पास जीतने को पूरी दुनिया है । +* धर्म जनता के लिए अफीम की तरह है । +* पूँजी मृतश्रम है जो पिशाच की तरह केवल जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है ,और जितना अधिक ���े जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों का खून चूसता है । +* सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले सम्मान से मापी जा सकती है । +* नौकरशाह के लिए दुनिया महज एक हेर फेर करने की वस्तु है। +* आजादी जरुरत की चेतना होती है वह तब तक अंधी रहती है जब तक उसे होश न आ जाये। +* बड़ी मात्रा में उपयोग की चीजों का उत्पादन का परिणाम बहुत सारे बेकर लोग होते हैं । +* अमीर गरीब के लिए कुछ भी कर सकते है ,लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते। +* बिना किसी शक के मशीनों ने सम्रद्ध आलसियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ा दी है । +* बिना उपयोग की वस्तु हुए किसी चीज की कीमत नहींं हो सकती। +* चिकित्सा संदेह तथा बीमारी को भी ठीक करती है । +* इतिहास खुद को दोहराता है पहले एक त्रासदी की तरह फिर एक मजाक की तरह। +* जीने और लिखने के लिए लेखक को पैसा कमाना चाहिए लेकिन किसी भी सूरत में उसे पैसा कमाने के लिए जिना और लिखना नहीं चाहिए। +* लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है । +* यूरोप को एक काली छाया सता रही है साम्यवाद की छाया । +* क्षण लाभ के तत्व है । +* सामाजिक प्रगति को महिलाओं की सामाजिक स्थिति से मापा जा सकता है । +* वैज्ञानिक आलोचना पर आधारित प्रत्येक राय का मैं स्वागत करता हूँ। +* अज्ञान ने अभी तक कभी किसी की मदद नहीं की। +* प्रत्येक से उनकी क्षमता के अनुसार प्रत्येक को उनकी आवश्यकता के अनुसार। +* दार्शनिकों ने संसार की केवल विभिन्न प्रकार से व्याख्या की है।हालांकि बात इसे बदलने की है। +* क्रांतियां इतिहास के इंजन है। +* इतिहास खुद को दोहराता है पहले त्रासदी के रूप में दूसरे तमाशे के रूप में। +* पुरूष अपना इतिहास खुद बनाते हैं, लेकिन वे इसे वैसा नहीं बनाते जैसा वे चाहते हैं। +* धर्म लोगों का अफीम है। +* सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से मापी जा सकती है। +* नौकरशाह के लिए दुनिया एक हेर-फेर करने की वस्तु है। +* शांति का अर्थ साम्यवाद के विरोध का नहीं होना है। +* जरुरत तब तक अंधी होती है जब तक उसे होश न आ जाए। आजादी जरुरत की चेतना होती है। +* अमीर गरीब के लिए कुछ भी कर सकते हैं लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते। +* कोई भी इतिहास की कुछ जानकारी रखता है वो ये जनता कि महान सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं के उत्थान के असंभव है। सामाजिक प्रगति महिलाओं की सामाजिक स्थिति को देखकर मापी जा सकती है। +* पूंजी मृत श्रम है, जो पिशाच की तरह सिर्फ जीवित श्रमिकों ���ा खून चूस कर जिंदा रहता है, और जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों को चूसता है। +* धर्म मानव मस्तिष्क जो न समझ सके उससे निपटने की नपुंसकता है। +* मजदूरों के पास अपनी जंजीरों के अलावा और कुछ भी खाने को नहीं है। उनके पास जीतने को एक दुनिया है। +* मानसिक पीड़ा का एकमात्र मारक शारीरिक पीड़ा है। +* अमीर गरीब के लिए कुछ भी कर सकते हैं लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते। +* अनुभव सबसे खुशहाल लोगों की प्रशंसा करता है, वे जिन्होंने सबसे अधिक लोगों को खुश किया। +* बिना किसी शक के मशीनों ने समृद्ध आलसियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ा दी है। +* यह बिलकुल असंभव है कि प्रकृति के नियमो से ऊपर उठा जाए। जो ऐतिहासिक परिस्थितियों में बदल सकता है वह महज वो रूप है जिसमें ये नियम खुद को क्रियांवित करते हैं। +* समाज व्यक्तियों से नहीं बना होता है बल्कि खुद को अंतर संबंधों के योग के रूप में दर्शाता है, वो संबंध जिनके बीच में व्यक्ति खड़ा होता है। +* कारण हमेशा से अस्तित्व में रहे हैं, लेकिन हमेशा उचित रूप में नहीं। +* जमींदार और सभी लोगों की तरह, वहां से काटना पसंद करते हैं जहाँ उन्होंने कभी बोया नहीं। +* बिना उपयोग की वस्तु हुए किसी चीज की कीमत नहीं हो सकती। +* जीने और लिखने के लिए लेखक को पैसा कमाना चाहिए, लेकिन किसी भी सूरत में उसे पैसा कमाने के लिए जीना और लिखना नहीं चाहिए। +* लोगों के विचार उनकी भौतिक स्थिति के सबसे प्रत्यक्ष उद्भव हैं। +* जितना अधिक श्रम का विभाजन और मशीनरी का उपयोग बढ़ता है, उतना ही श्रमिकों के बीच प्रतिस्पर्धा बढती है और उतना ही उनका वेतन कम होता जाता है। +* जबकि कंजूस मात्र एक पागल पूंजीपति है, पूंजीपति एक तर्कसंगत कंजूस है। +* लेखक इतिहास के किसी आन्दोलन को शायद बहुत अच्छी तरह से बता सकता है, लेकिन निश्चित रूप से वह इसे बना नहीं सकता। +* शाशक वर्ग के विचार हर युग में सत्तारूढ़ विचार होते हैं, यानि जो वर्ग समाज की भौतिक वस्तुओं पर शासन करता है, उसी समय में वह उसके बौद्धिक बल पर भी शासन करता है। +* चिकित्सा संदेह और बीमारी को भी ठीक करती है। +* शायद ये कहा जा सकता है कि मशीनें विशिष्ट श्रम के विद्रोह को दबाने के लिए पूंजीपतियों द्वारा लगाए गए हथियार हैं। +* मानसिक श्रम का उत्पाद-विज्ञान-हमेशा अपने मूल्य से कम आँका जाता है, क्योंकि इसे पुनः उत्पादित करने में लगने वाले श्रम-समय क��� इसके मूल उत्पादन में लगने वाले श्रम समय से कोई संबंध नहीं होता। +* सभ्यता और आमतौर पर उद्योगों के विकास ने हमेशा से खुद को वनों के विनाश में इतना सक्रिय रखा है कि उसकी तुलना में हर एक चीज जो उनके संरक्षण और उत्पत्ति के लिए की गई है वह नगण्य है। +* क्रांतियाँ इतिहास के इंजिन हैं। +* एक भूत यूरोप को सता रहा है-साम्यवाद का भूत। +* कारण हमेशा से अस्तित्व में रहे हैं, लेकिन हमेशा उचित रूप में नहीं। +* हमें ये कहना चाहिए कि एक व्यक्ति के एक घंटे की कीमत दुसरे व्यक्ति के एक घंटे के बराबर होती है, बल्कि ये कहें कि एक घंटे के दौरान एक आदमी उतना ही मूल्यवान है जितना कि एक घंटे। +* धर्म दीन प्राणियों का विलाप है, बेरहम दुनिया का ह्रदय है और निष्प्राण परिस्थितियों का प्राण है। यह लोगों का अफीम है। +* लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता धर्म का अंत है। +* पिछले सभी समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है। +* पूंजी मजदुर की सेहत और या उसके जीवन की लंबाई के प्रति लापरवाह है, जब तक कि उसके ऊपर समाज का दवाब न हो। +* साम्यवाद के सिद्धांत को एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है: सभी निजी संपत्ति को खत्म किया जाए। +* पूंजीवादी समाज में पूंजी स्वतंत्र और व्यक्तिगत है, जबकि जीवित व्यक्ति आश्रित है और उसकी कोई निजता नहीं है। +* लेखक इतिहास के किसी आंदोलन को शायद बहुत अच्छी तरह से बता सकता है, लेकिन निश्चित रूप से इसका सृजन नहीं कर सकता। +* चिकित्सा बीमारी की तरह संदेह को भी ठीक करती है। +* इंडस्ट्रियल रूप से ज्यादा विकसित देश कम विकसित देशों की तुलना में खुद की छवि दिखाते हैं। +* पूंजीवादी उत्पादन इसलिए प्रौद्योगिकी विकसित करता है और विभिन्न प्रक्रियाओं को एक पूर्ण समाज के रूप में संयोजित करता है केवल संपत्ति के मूल स्त्रोतों जमीन और मजदूर की जमीन खोदकर। +* क्रांति के लिए अंग्रेजी में सभी आवश्यक वस्तुएं हैं लेकिन उसमे कमी है है सामान्यीकरण और क्रांतिकारी उत्साह की भावना की। +* लेखक बहुत अच्छी तरह से अपने मुखपत्र के रूप में इतिहास के एक आन्दोलन की सेवा कर सकते हैं, लेकिन वह निश्चित रूप से इसे पैदा नहीं कर सकते। +* आजादी जरुरत की चेतना होती है। +* लोग क्या कहते हैं, सोचकर जीवन में अपने जूनून को मत छोड़ें। +* हर किसी से उसकी क्षमता के अनुसार, हर किसी को उसकी जरुरत के अनुसार। + + +* हम बदलाव की श��रुआत अपने घरों,आस–पड़ोस की जगहों,बस्तीयों,गावों,और स्कूलों से कर सकते हैं। +* जो लोग समय रहते अपने जीवन का चार्ज नहीं ले लेते वे समय द्वारा लाठी चार्ज किये जाते हैं। +* मौजूदा दृष्टिकोण में प्रबल बदलाव के बिना सम्बन्ध नहीं बन सकते। +* मैंने हमेशा से अपने अन्दर वंचित लोगों के लिए जीने और सेवा करने का उत्साह पाला है। +* आगे बढ़ने के लिए खुद से चुने गए अभ्यास हैं। +* काम मुझे ‘ख़ुशी’ देता है और हर एक शुरुआत स्वयं की खोज का एक रास्ता है। +* समृद्ध आधुनिक पलस्तर सबसे पुराने पेशे को फलने -फूलने देगा …और जब सौदा बुरा होगा तो महिलाएं बेईमानी होने का रोना रोयेंगी। +* जो लोग समय रहते अपने जीवन का चार्ज नहीं ले लेते वे समय द्वारा लाठी चार्ज किये जाते हैं। +* आचार्संघिता, शालीनता और नैतिकता असली सैनिक हैं। +* बिना शाशक और शाशित के बीच की दूरी कम किये भ्रष्टाचार को नहीं मिटाया जा सकता। + + +हजारों खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जो शांति लाये। +आपके पास जो कुछ भी है है उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए, और ना ही दूसरों से इर्श्या कीजिये। जो दूसरों से इर्श्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती। +सभी बुरे कार्य मन के कारण उत्पन्न होते हैं। अगर मन परिवर्तित हो जाये तो क्या अनैतिक कार्य रह सकते हैं? +जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती, मनुष्य भी आध्यात्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता। + + +महावीर स्वामी जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर है। आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले, ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहाँ तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को इनका जन्म हुआ। इनका बचपन का नाम ‘वर्धमान’ था। ये ही बाद में स्वामी महावीर बने। महावीर को ‘वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा जाता है। महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। उन्होंने एक लँगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा। +हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए, उसी युग में ही भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। पूरी दुनिया को उपदेश दिए। उन्होंने दुनिया को पंचशील के सिद्धांत बताए। इसके अनुसार- सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और क्षमा। उन्होंने अपने कुछ विशेष उपदेशों के माध्���म से दुनिया को सही मार्ग दिखाने की ‍कोशिश की। +अगर आपको सुखी रहना है तो दो चीजे हमेशा याद रखो-भगवान और अपनी मृत्यु। +* अज्ञानी कर्म का प्रभाव ख़त्म करने के लिए लाखों जन्म लेता है जबकि आध्यात्मिक ज्ञान रखने और अनुशासन में रहने वाला व्यक्ति एक क्षण में उसे समाप्त कर देता है। +* आप स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मनों से क्या लड़ना? जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेंगे उन्हें आनन्द की प्राप्ति होगी। +* आपात स्थिति में मन को डगमगाना नहीं चाहिये। +* ईश्वर का कोई अलग अस्तित्व नहीं है। सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास करने से हर कोई देवत्व को प्राप्त कर सकता है। +* एक जीवित शरीर केवल अंगों और मांस का एकीकरण नहीं है, बल्कि यह आत्मा का निवास है जो संभावित रूप से परिपूर्ण धारणा (अनंत-दर्शन संपूर्ण ज्ञान (अनंत-ज्ञान परिपूर्ण शक्ति (अनंत-वीर्य) और परिपूर्ण आनंद (अनंत-सुख) है। +* एक लाख शत्रुओं पर जीत हासिल करने के बजाय स्वयं पर विजय प्राप्त करना बेहतर है। +* एक सच्चा इंसान उतना ही विश्वसनीय है जितनी माँ, उतना ही आदरणीय है जितना गुरु और उतना ही परमप्रिय है जितना ज्ञान रखने वाला व्यक्ति। +* कठिन परिस्थितयो में घबराना नहीं चाहिए बल्कि धैर्य रखना चाहिए। +* किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असल रूप को ना पहचानना है, और यह केवल आत्म ज्ञान प्राप्त कर के ठीक की जा सकती है। +* किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती है कि अपना असली रूप को ना पहचनना और यह गलती केवल आत्मज्ञान प्राप्त करके ही ठीक की जा सकती हैं। +* किसी के सिर पर गुच्छेदार या उलझे हुए बाल हों या उसका सिर मुंडा हुआ हो, वह नग्न रहता हो या फटे-चिथड़े कपड़े पहनता हो। लेकिन अगर वो झूठ बोलता है तो ये सब व्यर्थ और निष्फल है। +* किसी को चुगली नहीं करनी चाहिए और ना ही छल-कपट में लिप्त होना चाहिए। +* किसी को तब तक नहीं बोलना चाहिए जब तक उसे ऐसे करने के लिए कहा न जाय। उसे दूसरों की बातचीत में व्यवधान नहीं डालना चाहिए। +* किसी जीवित प्राणी को मारे नहीं। उन पर शासन करने का प्रयास नहीं करें। +* कीमती वस्तुओं की बात दूर है, एक तिनके के लिए भी लालच करना पाप को जन्म देता है। एक लालचरहित व्यक्ति, अगर वो मुकुट भी पहने हुए है तो पाप नहीं कर सकता। +* केवल वह विज्ञान महान और सभी विज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ है, जिसका अध्ययन मनुष्य को सभी प्रकार के दुखों से मुक्त करता है +* केवल वह व्यक्ति जो भय को पार कर चुका है, समता को अनुभव कर सकता है। +* केवल वही विज्ञान महान और सभी विज्ञानों में श्रेष्ठ है, जिसका अध्यन मनुष्य को सभी प्रकार के दुखों से मुक्त कर देता है। +* केवल वही व्यक्ति सही निर्णय ले सकता है, जिसकी आत्मा बंधन और विरक्ति की यातना से संतप्त ना हो। +* क्रोध हमेशा अधिक क्रोध को जन्म देता है और क्षमा और प्रेम हमेशा अधिक क्षमा और प्रेम को जन्म देते हैं। +* खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है। +* जन्म का मृत्यु द्वारा, नौजवानी का बुढापे द्वारा और भाग्य का दुर्भाग्य द्वारा स्वागत किया जाता है। इस प्रकार इस दुनिया में सब कुछ क्षणिक है। +* जितना अधिक आप पाते हैं, उतना अधिक आप चाहते हैं। लाभ के साथ-साथ लालच बढ़ता जाता है। जो २ ग्राम सोने से पूर्ण किया जा सकता है वो दस लाख से नहीं किया जा सकता। +* जिस तरह आपको दुख पसंद नहीं है, उसी तरह दूसरे भी इसे पसंद नहीं करते हैं। यह जानते हुए भी, आपको दूसरों के साथ वही व्यवहार करना चाहिए जो आपको खुद के लिए पसंद हो। +* जिस प्रकार आप दुःख पसंद नहीं करते उसी तरह और लोग भी इसे पसंद नहीं करते। ये जानकर, आपको उनके साथ वो नहीं करना चाहिए जो आप उन्हें आपके साथ नहीं करने देना चाहते। +* जिसने भय को पार कर लिया है, वह समभाव का अनुभव कर सकता है। +* जैसे कि हर कोई जलती हुई आग से दूर रहता है, इसी प्रकार बुराइयां एक प्रबुद्ध व्यक्ति से दूर रहती हैं। +जो भय का विचार करता है वह खुद को अकेला (और असहाय) पाता है । +* जो लोग जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य से अनजान हैं वे व्रत रखने और धार्मिक आचरण के नियम मानने और ब्रह्मचर्य और ताप का पालन करने के बावजूद निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे। +* जो सुख और दुःख के बीच में समनिहित रहता है वह एक श्रमण है, शुद्ध चेतना की अवस्था में रहने वाला। +* पर्यावरण का महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि एक आप ही इसके अकेले तत्व नहीं हो। +* प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद बाहर से नहीं आता। +* प्रत्येक जीव स्वतंत्र है। कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता। +* प्रबुद्ध व्यक्ति को यह विचार करना चाहिए कि उसकी आत्मा असीम उर्जा से संपन्न है। +* बाहरी त्याग अर्थहीन है यदि आत्मा आंतरिक बंधनों से जकड़ी रहती है। +* भगवान् का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है। हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है। +* भिक्षुक (संन्यासी) को उस पर नाराज़ नहीं होना चाहिए जो उसके साथ दुर्व्यवहार करता है। अन्यथा वह एक अज्ञानी व्यक्ति की तरह होगा। इसलिए उसे क्रोधित नहीं होना चाहिए। +* मुझे अनुराग और द्वेष, अभिमान और विनय, जिज्ञासा, डर, दु:ख, भोग और घृणा के बंधन का त्याग करने दें (समता को प्राप्त करने के लिए)। +* मौन और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है। +* वह जिसकी सहायता से हम सत्य को जान सकते हैं, चंचल मन को नियंत्रित कर सकते हैं और आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं, उसे ज्ञान कहते हैं। +* वाणी के अनुशासन में असत्य बोलने से बचना और मौन का पालन करना शामिल है। +* वो जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके, और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं। +* शांति और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है। +* सत्य के प्रकाश से प्रबुद्ध हो, बुद्धिमान व्यक्ति मृत्यु से ऊपर उठ जाता है। +* सभी अज्ञानी व्यक्ति पीड़ाएं पैदा करते हैं। भ्रमित होने के बाद, वे इस अनन्त दुनिया में दुःखों का उत्पादन और पुनरुत्थान करते हैं। +सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है । +* सभी जीवों के प्रति दया भाव रखें। नफ़रत से विनाश होता है। +* सभी जीवों-जंतु के प्रति सम्मान अहिंसा है। +* सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं, और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं। +* साधक ऐसे शब्द बोलता है जो नपे-तुले हों और सभी जीवित प्राणियों के लिए लाभकारी हों। +* साहसी हो या कायर दोनों को को मरना ही है। जब मृत्यु दोनों के लिए अपरिहार्य है, तो मुस्कराते हुए और धैर्य के साथ मौत का स्वागत क्यों नहीं किया जाना चाहिए? +* स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना? वह जो स्वयम पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी। +* हर आत्मा अपने आप में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद कही बाहर से नहीं आता है। +* हर आत्मा स्वतंत्र है। कोई भी दूसरे पर निर्भर नहीं करता है। +* हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो क्योकि, घृणा से विनाश होता है। +* हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो। घृणा से विनाश होता है। + + +मदर टेरेसा अलबानी महिला थी। जो भारत में अपने ईसाई (क्रिश्चियन) धर्म के प्रचार प्रसार के लिए आई थी। भारत के आजादी के बाद भी यहाँ अपने धर्म परिवर्तन के कार्य में लगे रहने के कारण वापस अपने देश नहीं गई। इस कारण अन्य लोगों की तरह इ���े भी भारतीय नागरिकता मिल गई। +यदि हमारे मन में शांति नहीं है तो इसकी वजह है कि हम यह भूल चुके हैं कि हम एक दुसरे के हैं। +शांति की शुरुआत मुस्कराहट से होती है। +सबसे बड़ी बीमारीकुष्ठ रोग या तपेदिकनहीं है, बल्कि अवांछित होना ही सबसे बड़ी बीमारी है। +मैं चाहती हूँ कि आप अपने पड़ोसी के बारे में चिंतित हों। क्या आप जानते हैं कि आपका पड़ोसी कौन है? +छोटी चीजों में वफादार रहिये क्योंकि इन्ही में आपकी शक्ति निहित है। + + +* प्रदर्शन पहचान दिलाता है। पहचान से सम्मान आता है। सम्मान से शक्ति बढ़ती है। शक्ति मिलने पर विनम्रता और अनुग्रह का भाव रखना किसी संगठन की गरिमा को बढ़ाता है। +* एक साफ अंतःकरण दुनिया का सबसे नर्म तकिया है। +* हम ईश्वर में यकीन रखते हैं, बाकी सभी तथ्य जमा करते हैं। +* पैसे की असली शक्ति इसे दान देने की शक्ति का होना है। +* प्रगति अक्सर मन और मानसिकता के अंतर के बराबर होती है। +* हमारी संपत्ति हर शाम दरवाजे से बाहर निकलती है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि वो अगली सुबह वापस आ जाए। +* एक मुमकिन असंभावना एक निश्चित सम्भावना की तुलना में बेहतर है। +* एक साफ अंतःकरण दुनिया का सबसे नर्म तकिया है। +* अपने काम से प्रेम करों, जिस कंपनी में काम करते हो उससे नहीं, क्योकि क्या पता कब, वह कम्पनी आप से प्रेम करना बंद कर दे। +* हमारी संपत्ति हर शाम दरवाजे से बाहर निकलती है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि वो अगली सुबह वापस आ जाए। +* पैसे की असली शक्ति इसे दान देने की शक्ति का होना है। +* प्रदर्शन पहचान दिलाता है। पहचान से सम्मान आता है। सम्मान से शक्ति बढ़ती है। शक्ति मिलने पर विनम्रता और अनुग्रह का भाव रखना किसी संगठन की गरिमा को बढ़ाता है। + + +नैपोलियन बोनापार्त Napoléon Bonaparte 15 अगस्त 1769 – 5 मई 1821) फ्रान्स का एक सेनानायक और महान विजेता था। फ्रांसीसी क्रंति के समय उसकी बहुत उन्नति हुई। +एक लीडर आशा का व्यापारी होता है। +एक तस्वीर हज़ार शब्दों के बराबर होती है। +अवसर के बिना काबिलियत कुछ भी नहीं है। +अगली दुनिया में हम सेनापतियों से ज्यादा चिकित्सकों को लोगों की जिंदगियों के लिए जवाब देना होगा। +एक सिंघासन महज मखमल से ढंकी एक बेंच है। +उनमे से जो अत्याचार नहीं पसंद करते, कई ऐसे होते हैं जो अत्याचारी होते हैं। +संविधान छोटा और अस्पष्ट होना चाहिए। +एक सेना अपने पेट के बल पर आगे बढ़ती ���ै। +* असम्भव शब्द सिर्फ बेवकूफों के शब्दकोष में पाया जाता है। +* संविधान छोटा और अस्पष्ट होना चाहिए। +* जिसे जीत जाने का भय होता है उसकी हार निश्चित होती है। +* इतिहास सहमति से किया गया झूठ का संग्रह है। +* अपने वचन को निभाने का, सबसे अच्छा तरीका है कि वचन ही ना दें, लेकिन वह काम कर दीजिये। +* निर्धन रहने का एक पक्का तरीका है कि ईमानदार रहिये। +* राजनीति में कभी पीछे ना हटें, कभी अपने शब्द वापस ना लें, और कभी अपनी गलती ना मानें। +* राजनीति में मूर्खता एक बाधा नहीं है। +मरने की तुलना में कष्ट सहने के लिए ज्यादा साहस चाहिए होता है। +* जीत उसे मिलती है जो सबसे दृढ रहता है। +* इतिहास विजेताओं द्वारा लिखा गया हैं। +* जो अत्याचार पसंद नहीं करते, उनमे से कई ऐसे होते हैं जो अत्याचारी होते हैं। +* अब मैं आज्ञा का पालन नहीं कर सकता, मैंने आज्ञा देने का स्वाद चखा है, और मैं इसे छोड़ नहीं सकता। +* एक सेना अपने पेट के बल पर आगे बढती है। +* सम्पन्नता धन के कब्जे में नहीं उसके उपयोग में है। +* मौत कुछ भी नहीं है, लेकिन हार कर और लज्जित होकर जीना रोज़ मरने के बराबर है। +* एक सिपाही एक रंगीन रिबन के लिए दिलो जान से लड़ेगा। +* शरीर के लिए सबसे अच्छा इलाज़ एक शान्त मन है। +* अवसर के बिना काबिलियत कुछ भी नहीं है। +* जितनी मुझे फ्रांस की ज़रुरत नहीं है, उससे ज्यादा फ्रांस को मेरी ज़रुरत है। +* एक सिंहासन महज मखमल से ढंकी एक बेंच है। +* धर्म आम लोगों को शान्त रखने का एक उत्कृष्ट साधन है। +* आपको अपने किसी भी दुशमन से ज्यादा लड़ाइयां नहीं लड़नी चाहिए, अन्यथा आप उसे अपना पूरा युद्ध कौशल सीखा देंगे। +* आदमी अपनी अच्छाइयों से ज्यादा, अपनी बुराइयों द्वारा आसानी से शासित होता है। +* अगली दुनिया में हम सेनापतियों से ज्यादा, चिकित्सकों को लोगों की जिंदगियों के लिए जवाब देना होगा। +* कोई व्यक्ति अपने अधिकारों से ज्यादा अपने हितों के लिए लड़ेगा। +* हज़ार छूरों की तुलना में, विरोधी अखबारों से अधिक डरना चाहिए। +* युद्ध असभ्यों का व्यापार है। +* किसी कार्य को खूबसूरती से करने के लिए, मनुष्य को उसे स्वयं करना चाहिये। +* एक तस्वीर हज़ार शब्दों के बराबर होती है। +* एक लीडर आशा का व्यापारी होता है। + + +नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में अश्वेत लोगों के साथ होने वाली रंगभेद की नीति का पुरजोर विरोध किया था जिसके कारण उनको 27 वर्ष तक जे�� में रहना पड़ा। नेजेल में रहते हुए भी वे रंगभेद का विरोध करते रहे। बाद में वे दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने। +* जब मैं लोगों को समझाने की कोशिश कर रहा था तब मैंने एक चीज सीखी। वो यह कि जब तक मैं खुद को नहीं बदल सकता तब तक मैं औरों को नहीं बदल सकता। +* जिंदगी को जीने के लिये जज़बे और जुनून की जरुरत होती है फिर ये कोई मायने नहीं रखता कि आप कोई छोटा काम कर रहे हो या बड़ा। +* केवल शिक्षा की सहायता से ही किसी किसान का बेटा डॉक्टर और सुरंग में काम करने वाले आदमी का बेटा सुरंग का मुख्य बन सकता है। +यदि आप किसी व्यक्ति से उस भाषा में बात करें जो वो समझता है, तो बात उसके सर में जाती है, यदि आप उससे उसकी भाषा में बात करते हैं, तो बात उसके दिल तक जाती है। +स्वतंत्र होना, अपनी जंजीर को उतार देना मात्र नहीं है, बल्कि इस तरह जीवन जीना है कि औरों का सम्मान और स्वतंत्रता बढे। +मेरे देश में लोग पहले जेल जाते हैं और फिर राष्ट्रपति बन जाते हैं। +* शिक्षा दुनिया का सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिससे आप दुनिया को बदल सकते हो। +* यदि आप किसी व्यक्ति से उस भाषा में बात करते हैं जो वो समझता है तो बात उसके दिमाग में जाती है। लेकिन यदि आप उससे उसकी भाषा में बात करते हैं तो बात सीधे उसके दिल तक जाती है। +* आप किसी काम में तभी सफल हो सकते हैं जब आप उस पर गर्व करें। +* एक विजेता सपने देखने वाला होता है। जो कभी भी अपने लक्ष्य को छोड़ता नहीं है, बल्कि उसे पूरा करता है। +* यह आपका चुनाव है कि आप अपनी आशाओं को देखते हैं या अपने डर को। +* मैं जातिवाद से नफरत करता हूँ, किसी भी देश के विकास में यह सबसे बड़ी बाधा है। +* जब सब जीत का जश्न मना रहे हों तब एक नेता को दूसरों को आगे रखकर पीछे से नेतृत्व करना चाहिए। और जब कोई खतरा हो तब एक नेता को आगे आकर नेतृत्व करना चाहिये। तभी लोग आपके नेतृत्व की प्रशंसा करेंगे। +* मैं एक मसीहा नहीं था, बल्कि एक साधारण व्यक्ति था। जो असाधारण परिस्थितियों के कारण एक नेता बन गया। +* लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को चुनौती देना है। +* कोई भी देश वास्तव में तब तक विकसित नहीं हो सकता जब तक कि उसके नागरिक शिक्षित न हों। +* सबसे कठिन चीज़ समाज का बदलाव नहीं है, बल्कि खुद का बदलाव है। +* सभी लोगों के लिए काम, रोटी, पानी और नमक हो। +* मेरे देश में लोग पहले जेल जाते हैं और फिर राष्ट्रपति बन जाते हैं। +* क्या कोई कभी यह सोचता है कि वह जो चाहता था उसे वो इसलिए नहीं मिला क्योंकि उसके पास प्रतिभा नहीं थी या शक्ति नहीं थी या धीरज नही था या प्रतिबद्धता नहीं थी ? +* कठिनाइयाँ कुछ लोगो को तोड़ती हैं लेकिन कुछ लोगों को बनाती हैं। +* मनुष्य की अच्छाई उस लौ के समान है जिसे छुपाया तो जा सकता है लेकिन कभी बुझाया नहीं जा सकता। +* साहसी लोग शांति के लिए क्षमा करने से भी नहीं घबराते हैं। +* हर कोई अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठ सकता है और सफलता हासिल कर सकता है। अगर वे समर्पित हैं और वे जो करते हैं उसको लेकर भावुक हैं। +* हमें समय का सदुपयोग करना चाहिए और हमेशा यह याद रखना चाहिए कि सही करने के लिए समय हमेशा परिपक्व होता है। +* जब लोग ठान लेते हैं तो वे कुछ भी कर सकते हैं। +* मैं कभी असफल नहीं होता। मैं या तो जीतता हूं या फिर सीखता हूं। +* बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना दूसरों की मदद करने के लिए समय और ऊर्जा देने से बड़ा कोई उपहार नहीं हो सकता है। +* लोग इस बात पर प्रतिक्रिया देते हैं कि आप उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं। +* गरीबी कोई दुर्घटना नहीं है। गुलामी और रंगभेद की तरह यह भी मानव निर्मित है और इसे मानव के कार्यों द्वारा ही हटाया जा सकता है। +* एक बड़े पहाड़ पर चढ़ने के बाद यह पता चलता है कि अभी ऐसे कई पहाड़ चढ़ने के लिए बाकी हैं। +* जब तक काम खत्म ना हो जाये उसे करना असंभव लगता है। +* स्वतंत्र होना अपनी गुलामी की जंजीर को उतार देना मात्र नहीं है। बल्कि इस तरह जीवन जीना है कि औरों का सम्मान और स्वतंत्रता बढे। +* सिर्फ स्वतन्त्र लोग ही समझौता कर सकते हैं, कैदी समझौता नहीं कर सकते हैं। आपकी और मेरी आजादी अलग नहीं है। +* एक अच्छा दिमाग और एक अच्छा हृदय हमेशा अजेय समीकरण होता है। लेकिन अगर आप इस समीकरण में थोड़ी शिक्षा या कलम की ताकत मिला दें तो यह बेहद खास हो जाता है। +* क्रोध एवं आक्रोश जहर को पीने एवं ये उम्मीद करने के समान है कि आपके शत्रु खत्म हो जायेंगे। +* अगर आप अपने शत्रुओं से मित्रता करना चाहते हैं तो आपको उनके साथ काम करना होगा। और इस तरह वो आपके साझेदार हो जायेंगे। + + +यहाँ कोई भी आपका सपना पूरा करने के लिए नहीं है। हर कोई अपनी तकदीर और अपनी हक़ीकत बनाने में लगा है। +सवाल ये नहीं है कि कितना सीखा जा सकता है…इसके उलट, सवाल ये है कि कितना भुलाया जा सकता है। +जीवन ठेहराव और गति के बीच का संत��लन है। +किसी से किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता नहीं है। आप स्वयं में जैसे हैं एकदम सही हैं। खुद को स्वीकारिये। +* मसीहा को मरे जितना समय हो जाता है कर्मकांड उतना ही प्रबल हो जाता है। अगर आज बुद्ध जीवित होते तो तुम उन्हें पसंद न करते। +* पेड़ों को देखो, पक्षियों को देखो, बादलों में देखो, सितारों को देखो और अगर आपके पास आँखें है तो आप यह देखने में सक्षम होगे की पूरा अस्तित्व खुश है सब कुछ बस खुश है पेड़ बिना किसी कारण के खुश हैं; वे प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने नहीं जा रहे हैं और वे अमीर बनने भी जा रहे हैं और ना ही कभी उनके पास बैंक बैलेंस होगा फूलों को देखिये बिना किसी कारण के कितने खुश और अविश्वसनीय है। +* लोग बुद्ध को इतना प्रेम करते हैं कि वो उनका मज़ाक भी उड़ा सकते हैं. ये अथाह प्रेम कि वजह से है; इसलिए उनमे डर नहीं है। +* जब मैं कहता हूँ कि आप लोग देवी-देवता हैं तो मेरा मतलब होता है कि आप में अनंत संभावनाएं है, आपकी क्षमताएं अनंत हैं। +*जो निःशुल्क है वह सबसे ज्यादा किमती है, +*नींद, शांति, आनंद, हवा, पानी,प्रकाश और सबसे ज्यादा किमती हमारी सांसें । +* जीवन जुआ है, केवल जुआरी ही जीवन को जान सकता है। +* किसी के जैसा बनने की कोशिश न करे, क्योंकि पहले से ही आप अनमोल है। आप में सुधार की कोई जरुरत नहीं है। आपको इसे जानने के लिए, अनुभव के लिए अपने पास आना होगा। +* ये ध्यान के गुण हैं, एक ध्यानी व्यक्ति के लिए जीवन एक खेल है। जीवन उसके लिए मौज़ है, जीवन एक लीला है, एक नाटक है। वह उसका आनन्द लेता है। वह गंभीर नहीं है। वह तनावमुक्त है। +* सत्य ऐसी कोई चीज नहीं है जिसे बाहर खोजा जाय, यह भीतर महसूस की जाने वाली चीज है। +* रचनात्मकता अस्तित्व में सबसे बड़ा विद्रोह है। +* साहस अज्ञात के साथ एक प्रेम संबंध है। +* भय हमेशा भविष्य के लिए होता है। भय कभी वर्तमान में नहीं होता। +* मेरा ध्यान सरल है। इसके लिए किसी तरह की जटिल प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं है। यह आसान है। जैसे कोई गा रहा है। जैसे कोई नाच रहा है। जैसे कि कोई चुपचाप बैठा है। +* असली सवाल यह नहीं है कि मृत्यु के बाद जीवन मौजूद है या नहीं। असली सवाल यह है कि क्या आप मृत्यु से पहले सचेत होकर जीये। +* जो व्यक्ति अपरिपक्व होते है वे प्यार में पड़ने के बाद एक-दूसरे की स्वतंत्रता को नष्ट कर देते है, बंधन बना देते हैं, एक दूसरे को कैद कर लेते है। परिपक्व व्यक्ति प्यार में एक-दूसरे को मुक्त होने में मदद करते हैं, वे सभी प्रकार के बंधनों को नष्ट करने के लिए एक-दूसरे की मदद करते हैं। और जब प्रेम स्वतंत्रता के साथ बहता है तो उसमे एक सुंदरता होती है। जब प्रेम निर्भरता के साथ बहता है तो उसमे एक कुरूपता होती है। +* आपका पूरा विचार अपने बारे में दूसरे से लिया गया उधार है। यह उन लोगों से उधार लिया गया है जिन्हें अपने बारे में ख़ुद पता नहीं हैं। +* जहां तक मेरा प्रश्न है, मैंने कभी भी कुछ आयोजित नहीं किया। बस जिया हूं एक विस्मय के साथ कि मालूम नहीं आगे क्या होने वाला है। +* दर्द से बचने वाले, आनंद से भी बच जाते है। मृत्यु से बचने वाले, वे जीवन से भी बच जाते हैं। +* मैं अपना जीवन 2 सिद्धांतों पर जीता हूं। पहला, मैं ऐसे जीता हूं जैसे कि पृथ्वी पर आज मेरा आखिरी दिन है। दूसरा, मैं ऐसे जीता हूं जैसे मैं हमेशा के लिए जीने वाला हूं। +* मित्रता सबसे शुद्ध प्रेम है। यह प्रेम का उच्चतम रूप है जहां कुछ भी मांगा नहीं जाता है, कोई भी शर्त नहीं होती, जहां बस देने में आनंद आता है। +* सभी के अंदर साधारण कारण से आत्महत्या करने की एक गहरी इच्छा होती है, उन्हें जीवन निरर्थक प्रतीत होता है। लोग जीवित रहते हैं, इसलिए नहीं कि वे जीवन से प्यार करते हैं, वे सिर्फ इसलिए जीते हैं क्योंकि वे आत्महत्या करने से डरते हैं। +* जहां कोई पसंद और नापसंद नहीं होता है, तभी आप चीजों को स्पष्ट देख सकते हैं। फिर आपके पास स्पष्टता होती है। आप चीजों को वैसे देखते है जैसे वह है। -ओशो +* जोखिम के बिना जीवन में कुछ भी कभी प्राप्त नहीं होता है। जितना अधिक आप जोखिम उठाते हैं, उतना ही आप भगवान के करीब होते हैं। जब आप सब कुछ दांव पर लगा देते हो फिर सब कुछ आपका हो जाता है। +* सवाल ज्यादा सीखने का नहीं है। इसके विपरीत सवाल यह है की कितना हम भुला सके। +* तुम जीवन का अर्थ तभी पाओगे, यदि तुम इसे निर्माण करते हैं। यह एक कविता है जिसकी रचना की जानी है। यह एक गीत है जिसे अभी गाया जाना है। यह एक नृत्य है जिसे अभी किया जाना है। +* किसी के पास दो कदम एक साथ उठाने की शक्ति नहीं है, आप एक बार में केवल एक ही कदम उठा सकते हैं। +* यदि आप किसी व्यक्ति से प्यार करते हैं, आप उस व्यक्ति को पूरी तरह स्वीकार करे। उसके सभी दोषों के साथ। +* दुनिया में इस विचार के साथ मत जीना कि क्या होने वाला है। चाहे आप जीतने वाले हो या हारने वाले, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मौत सब कुछ छीन लेती है। चाहे आप हारें या जीतें ये मायने नहीं रखता। केवल एक चीज जो मायने रखती है, वह यह है कि आपने खेल कैसे खेला है। +* आपको शक्ति की आवश्यकता तब होती है जब कुछ हानिकारक करना होता है। अन्यथा प्रेम पर्याप्त है, करुणा पर्याप्त है। +* मेरा संदेश छोटा सा है, आनंद से जियो और जीवन के समस्त रंगों को जिओ। +* मेरे पूरे शिक्षा दो शब्दो पर आधारित हैं, ध्यान और प्रेम। ध्यान करें ताकि आप असीम मौन को महसूस कर सकें, और प्यार कर सकें ताकि आपका जीवन एक गीत, एक नृत्य, एक उत्सव बन सके। +* जिस चीज से आपको डर लगे, वहां तलाशने की कोशिश करें और आप पाएंगे कि सभी डर में मौत का डर छिपा है। सब भय मृत्यु का है। मृत्यु एकमात्र भय का स्रोत है। +* प्यार में दूसरा महत्वपूर्ण है, वासना में तुम महत्वपूर्ण हो। +* लोग सोचते हैं कि जो लोग आत्महत्या करते हैं, वे जीवन के खिलाफ हैं। वे नहीं हैं। वे जीवन के लिए बहुत लालसा से भरे हैं, उनके पास जीवन के लिए बड़ी लालसा है और क्योंकि जीवन उनकी वासना को पूरा नहीं कर रहा है, क्रोध में, निराशा में, वे खुद को नष्ट करते हैं। +* कभी भी किसी के जीवन में हस्तक्षेप न करें और किसी को भी अपने जीवन में हस्तक्षेप करने की अनुमति न दें। +* जितनी संभव हो उतनी गलतियाँ करें, केवल एक ही बात याद रखें, फिर से वही गलती न करें। और जीवन में आप आगे बढ़ते जाओगे। +* जीवन कोई समस्या नहीं है। इसे एक समस्या के रूप में देखना गलत कदम उठाना है। यह एक रहस्य है जिसे जीना है, प्यार करना, अनुभव करना है। +* जिस क्षण आप जीवन को गैर-गंभीर, एक खेल के रूप में देखना शुरू करते हैं, आपके दिल से सारा बोझ गायब हो जाता है। मृत्यु का भय, जीवन का, प्रेम का सब कुछ मिट जाता है। +* किसी चीज़ की इच्छा करने से पहले सोचें। इस बात की पूरी संभावना है कि वह पूरी हो जाएगी और फिर आपको दुःख होगा। +* मन, एक सुंदर सेवक है, लेकिन एक खतरनाक मालिक। +* एक व्यक्ति जो जीवित है, वह वास्तव में तभी जीवित है, जब वह अज्ञात में चलने लिए तैयार हो। वहाँ खतरा है लेकिन वह जोखिम उठाएगा। +* जब आप प्यार करते हैं, तो प्यार ऐसे करे जैसे कि वह व्यक्ति भगवान हो, उससे कम नहीं। स्त्री को स्त्री के रूप में कभी प्यार मत करो और पुरुष को पुरुष के रूप में कभी प्यार मत करो। +* तनाव का मतलब है कि आप कुछ और बनना चाहते हैं जो आप नहीं हैं। +* जीवन का अपने आप ���ें कोई अर्थ नहीं है। जीवन अर्थ सृजन का अवसर है। +* बुद्ध, बुद्ध हैं। कृष्ण, कृष्ण हैं और तुम, तुम हो। और आप किसी भी तरह से किसी से कम नहीं हैं। खुद का सम्मान करें, अपनी आंतरिक आवाज का सम्मान करें और उसका पालन करें। -ओशो +* दुनिया को बेहतर बनने में मदद करें। दुनिया को वैसे ही मत छोड़ो जैसा आपने पाया है – इसे थोड़ा बेहतर बनाए, इसे थोड़ा और सुंदर बनाए। +* दुख, हताशा, क्रोध, निराशा, चिंता, पीड़ा, दुख के साथ एकमात्र समस्या यह है कि आप उनसे छुटकारा चाहते हैं। यही एकमात्र बाधा है। आपको उनके साथ रहना होगा। आप इससे भाग नहीं सकते। ऐसी स्थिति में ही जीवन एकीकृत और विकसित होती है। ये जीवन की चुनौतियां हैं। उन्हें स्वीकार करो। वे आशीर्वाद हैं। अगर आप उनसे बचना चाहते हैं, अगर आप किसी तरह से उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं, तो फिर समस्या पैदा होती है क्योंकि अगर आप किसी चीज से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आप उसे सीधे तौर पर कभी नहीं देख सकेंगे। +* ध्यान क्या है, अपने एकांत का आनंद लेना। खुद का उत्सव मनाना। +* उत्सव मनाने वाले बनो, जश्न मनाओ! पहले से ही यहाँ बहुत कुछ है – फूल खिल रहे हैं, पक्षी गा रहे हैं, सूरज आकाश में चमक रहा है – उत्सव मनाओ! आप सांस ले रहे हो और आप जीवित हैं और आपके पास चेतना है, उत्सव मनाएं! +* जो जानता है, वह जानता है कि प्रवचन करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जानना काफी है। +* व्यक्ति से प्यार करो लेकिन व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता दो। व्यक्ति से प्यार करें लेकिन आप स्पष्ट हो कि इसके लिए आप अपनी स्वतंत्रता नहीं बेचेगे। +* यदि आप तर्क से बहुत अधिक चिपकते हैं, तो आप कभी भी उस जीवित प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन पाएंगे जो यह अस्तित्व है। जीवन तर्क से अधिक है। जीवन विरोधाभास है, जीवन रहस्य है। +* पहली बात याद रखना। सृजन और सृजनकर्त्ता, दो नहीं हैं, वे एक ही हैं। +* डर का मतलब हमेशा अज्ञात का डर होता है। डर का मतलब हमेशा मौत का डर होता है। डर का हमेशा मतलब होता है खो जाने का डर – लेकिन अगर आप वास्तव में जीवित रहना चाहते हैं, तो आपको खो जाने की संभावना को स्वीकार करना होगा। +* आपको क्या रुलाता है? यह सिर्फ आपका चीजों के प्रति लगाव है। वह क्या चीज है जिसे आपको खोने का डर है। उन चीजों के बिना धीरे-धीरे जीने की कोशिश करें जिन्हें आप अब सोचते हैं कि आप उसके बिना नहीं रह सकते। अपने भीतर एक स्थिति पैदा करें कि अगर ये चीजें जब खो जायेगी, तो आपके अंदर थोड़ा भी कंपन न हो। तभी आप चीजों के लगाव से मुक्त हो पायेगे। +* बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो कहीं और जाने से पहले, अपने भीतर जाएगा। यह उसकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। केवल आप स्वयं को जब जानते हैं तो आप कहीं और जा सकते हैं। फिर आप जहां भी जाते हैं, अपने चारों ओर एक शांति, उत्सव मनाते हुए जाते हैं।- ओशो +* जब भी कोई ऐसी स्थिति पैदा होती है जो डर पैदा करती है, तो आपके पास दो विकल्प हैं- या तो आप उससे लड़ें या आप उड़ान भरें। +* साधारण प्रेम एक माँग है, वास्तविक प्रेम बांटना है। यह मांग को नहीं जानता, यह केवल देने की खुशी जानता है। +* भगवान कोई तपस्वी नहीं है, नहीं तो फूल नहीं होते, हरे वृक्ष नहीं होते, केवल रेगिस्तान होते। ईश्वर कोई तपस्वी नहीं है, अन्यथा जीवन में कोई गीत नहीं होता, जीवन में कोई नृत्य नहीं होता – केवल कब्रिस्तान और केवल कब्रिस्तान होते । ईश्वर कोई तपस्वी नहीं है। भगवान जीवन का आनंद लेते हैं। +* पूरब असफल रहा है क्योंकि उसने बिना प्रेम के ध्यान की कोशिश की। पश्चिम विफल रहा है क्योंकि उसने बिना ध्यान के प्रेम की कोशिश की। मेरा पूरा प्रयास आपको दोनों देने को है- जिसका अर्थ है ध्यान और प्रेम। +* आपका मन एक बगीचा है, आपके विचार बीज हैं। या तो आप फूल उगा सकते हैं या शोक पैदा कर सकते हो। +* आपको किसी से कुछ भी मांगने का कोई अधिकार नहीं है। यदि कोई आपसे प्यार करता है, तो उसका आभारी रहें, लेकिन कुछ भी मांग न करे क्योंकि दूसरे को अपने आप से प्यार करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते है। अगर कोई आपसे प्यार करता है, तो यह एक चमत्कार है। चमत्कार से रोमांचित हो। +* जहां ध्यान नहीं, वहां जीवन नहीं। ध्यान को जानो, जीवन को जानो। +* यह पैसा, शक्ति और प्रतिष्ठा का सवाल नहीं है। सवाल यह है कि आप आंतरिक रूप से क्या करना चाहते हैं। उसे करें, चाहे परिणाम कुछ भी हो, और आपकी बोरियत दूर हो जाएगी। +* पृथ्वी पर लाखों लोग रहते हैं, और हम उनके नाम भी नहीं जानते हैं। उस सरल तथ्य को स्वीकार करें। आप यहां केवल कुछ दिनों के लिए हैं और फिर आप चले जाएंगे। इन कुछ दिनों को डर में, पाखंड में बर्बाद मत करो। इन दिनों को आनन्दित में जियो । +* मृत्यु के पार जाने का एकमात्र उपाय मृत्यु को स्वीकार कर लो। फिर वह विलीन हो जाता है। निडर होने का एकमात्र तरीका भय को स्वीकार करना है। तब ऊर्जा मुक्��� हो जाती है और वह आपकी स्वतंत्रता बन जाती है। +* रचनात्मकता व्यक्तिगत स्वतंत्रता की खुशबू है। +* अंधेरा सुंदर है। इसमें जबरदस्त गहराई, मौन, अनंतता है। प्रकाश आता है और चला जाता है, अंधकार हमेशा बना रहता है, यह प्रकाश की तुलना में अधिक शाश्वत है। प्रकाश के लिए आपको ईंधन की आवश्यकता होती है। अंधेरे के लिए ईंधन की जरूरत नहीं है – यह बस वहाँ है। +* एक रचनात्मक व्यक्ति वह है जिसके पास अंतर्दृष्टि है, जो उन चीजों को देख सकता है जो पहले किसी और ने नहीं देखी हैं, जो उन चीजों को सुन सकता है जो पहले किसी ने नहीं सुनी हैं – फिर रचनात्मकता पैदा होती है। +* अंधकार प्रकाश का अभाव है। अहंकार जागरूकता का अभाव है। +* जीवन में कुछ भी कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है, विशेष रूप से सत्य की ओर उठाए गए कदम। +* आपका आधा जीवन अतीत और बाकी आधा जीवन भविष्य के बारे में सोचने में बीत जाता है। और जीवन की यात्रा कभी शुरू ही नहीं होती। +* मन आखिर क्यों हस्तक्षेप करता है? क्योंकि मन समाज द्वारा निर्मित होता है। यह आपके भीतर समाज का एजेंट रूप में है, यह आपकी सेवा करने के लिए नहीं है। +* परम रहस्यों के द्वार केवल उनके लिए खुल जाता है जिनके पास असीम धैर्य है। +* केवल अनुशासित लोग स्वतंत्र हो सकते हैं, लेकिन उनका अनुशासन दूसरों के लिए आज्ञाकारिता नहीं होनी चाहिए। उनका अनुशासन उनकी अपनी आंतरिक आवाज़ का पालन हो। और वे इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो। +* आप जो भी करते हैं, उसे गहरी सतर्कता के साथ करे। तब छोटी-छोटी चीजें भी पवित्र हो जाती हैं। फिर खाना बनाना या सफाई करना पवित्र हो जाता है, वे पूजा बन जाता हैं। यह सवाल नहीं है कि आप क्या कर रहे हैं, सवाल यह है कि आप इसे कैसे कर रहे हैं। +* यदि आप बुद्धिमान हैं, यदि आप सतर्क हैं, तो साधारण भी असाधारण हो जाता है। +* आजादी से ज्यादा किसी को कुछ भी पसंद नहीं है। यहां तक ​​कि प्रेम भी स्वतंत्रता के बाद आता है। स्वतंत्रता का मूल्य सर्वोच्च है। स्वतंत्रता के लिए प्रेम का त्याग किया जा सकता है लेकिन प्रेम के लिए स्वतंत्रता का त्याग नहीं किया जा सकता। +* यदि आप किसी भी मार्ग पर चलते हैं अगर वह मार्ग आपके लिए खुशी लाता है, अधिक संवेदनशीलता, साक्षी, ​​और असीम कल्याण की भावना से भर देता है, यही एकमात्र मानदंड है कि आप सही रास्ते पर जा रहे हैं। और यदि आप अधिक दुखी, अधिक क्रोधित, अहंकारी, अधिक लालची, अधिक वासना के शिकार हो जाते हैं, तो यह संकेत हैं कि जो आप गलत रास्ते पर जा रहे हैं। +* सत्य को बौद्धिक प्रयास से नहीं पाया जा सकता क्योंकि सत्य एक सिद्धांत नहीं है, यह एक अनुभव है। +* आनंद आध्यात्मिक घटना है। यह खुशी या खुशी से पूरी तरह से अलग है। इसका बाहर के साथ, दूसरे के साथ कुछ भी लेना देना नहीं है, यह एक आंतरिक घटना है। +* एकांत तुम्हारा स्वभाव है। तुम अकेले पैदा हुए, तुम अकेले ही मरोगे। और आप अकेले जी रहे हैं बिना इसे पूरी तरह से समझे बिना, बिना पूरी जागरूकता के। आप एकांत को अकेलेपन के रूप में गलत समझते हैं। यह केवल एक गलतफहमी है। आप खुद के लिए पर्याप्त हैं। +* दुख एक संकेत है कि आप संघर्ष में हैं। +* आपके पास निश्चित विचार हैं कि क्या होना चाहिए। और अगर जीवन आपके अनुसार नहीं चल रहा है, तो आपको लगता है कुछ गलत हो रहा है। कुछ भी गलत नहीं हो रहा है। जीवन अपने आप चल रहा है, केवल आपके कुछ निश्चित विचार हैं। इसलिए उन निश्चित विचारों को छोड़ दें। ज़िन्दगी कभी भी आपका पालन नहीं करने वाली है। आपको ज़िन्दगी का पालन करना है। तो अगर यह अव्यवस्थित है, तो अव्यवस्थित होने दो। तुम क्या कर सकते हो? +* बिता हुआ कल एक स्मृति है, भविष्य एक कल्पना है। केवल वर्तमान ही समय है। अतीत नहीं है, वह पहले ही जा चुका है। भविष्य नहीं है, यह अभी तक नहीं आया है। केवल वर्तमान है।- ओशो +* काम को खेल के रूप में करें और इसका आनंद लें। सब कुछ एक चुनौती है। बस इसे करना है इसलिए मत कीजिये। +* जो लोग जो कभी गलती नहीं करते, वे कभी कुछ नहीं सीखते, वे कभी आगे नहीं बढ़ते। विकास के लिए गलतिया करने की हिम्मत होनी चाहिए। इस पल से ही केवल वही करें जो आप करना चाहते हैं, चाहें आपको इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े। +* अपना गीत गाओ और अगर कोई नहीं सुनता है, तो इसे अकेले गाओ और इसका आनंद लें। +* प्रशिक्षण की आवश्यकता है, लेकिन प्रशिक्षण लक्ष्य नहीं है। प्रशिक्षण सिर्फ एक साधन है। +* जीवन एक उत्सव बन सकता है यदि आप जानते हैं कि चिंता के बिना कैसे जीना है। अन्यथा जीवन एक लंबी बीमारी बन जाता है, एक बीमारी जो केवल मृत्यु की तरफ ले जाती है। +* ये पेड़ अधैर्य रूप से नहीं उगते हैं। वे एक अनुग्रह के साथ, धैर्य के साथ, विश्वास के साथ बढ़ते हैं। आपके दिमाग के सिवाय कहीं कोई हड़बड़ी नहीं है। यदि आप वास्तव में शांति और आनंद की स्थिति में रहना चाहते ���ैं, तो आपको चीजों को जल्दी से हासिल करने के लिए अपनी पुरानी आदत को छोड़ना होगा। +* कोई तुम्हारा दुख पैदा नहीं कर रहा है, कोई भी दुख पैदा नहीं कर सकता है और कोई भी आपके आनंद का सृजन भी नहीं कर सकता है। यह पूरी तरह से व्यक्तिगत घटना है। +* यह एकमात्र गरीबी है। स्वयं की अज्ञानता, इसके अलावा कोई अन्य गरीबी नहीं है। +* ध्यान के मार्ग पर, कल्पना एक बाधा है। प्यार के रास्ते पर कल्पना सहायक है। +* कल्पना का सीधा सा मतलब है कि आप एक निश्चित चीज़ की कल्पना करते हैं लेकिन आप उसमें इतनी ऊर्जा डालते हैं कि वह लगभग वास्तविक हो जाती है। +* प्रसिद्धि पाना मूर्खता पूर्ण है, व्यर्थ है, निरर्थक है। अगर पूरी दुनिया तुम्हें जान भी ले, फिर भी यह तुम्हें कैसे अमीर बनाता है कैसे तुम्हे आनंदित करता है? यह तुम्हें कैसे अधिक समझने, अधिक जागरूक होने में, अधिक सतर्क रहने के लिए, अधिक जीवित रहने के लिए मदद करता है? +* याद रखें, यह दर्द आपको दुखी करने के लिए नहीं है। लोग यह समझ नहीं पाते है। यह दर्द बस आपको और अधिक सतर्क करने के लिए है – क्योंकि लोग केवल तब ही सतर्क होते हैं जब तीर उनके दिल में गहरा चला जाता है और उन्हें घाव करता है। +* यदि हम केवल जीवन के तथ्यों पर कड़ी नज़र डालें, तो हमें पता चलेगा कि, वास्तव में, कुछ भी हमारे हाथ में नहीं है यहां तक हमारे हाथ हमारे हाथ में भी नहीं है। बस अपने हाथ को अपने हाथ से पकड़ने की कोशिश करें और आपको वास्तविकता पता चल जाएगी। वास्तव में, कुछ भी हमारी शक्ति में नहीं है। फिर “मैं” और और “मेरा” कहने का क्या मतलब है? यहाँ सब कुछ हो रहा है। -ओशो +* योग एक विधि है जो हमें सपनों से बाहर लाता है। योग एक विज्ञान है जो हमें यहाँ और अभी होना सिखाता है। +* सत्य का आपके विश्वास से कोई लेना-देना नहीं है! आप माने या न माने इससे सत्य पर कोई फर्क नहीं पड़ता। -ओशो +* आपको अस्तित्व का आभारी होना चाहिए कि उसने आपको कुछ खूबसूरत बच्चों के लिए, एक मार्ग के रूप में चुना है। लेकिन आपको बच्चों की क्षमता पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। न ही आपने आप को उन पर थोपना चाहिए। +* अधिक जियो और अधिक तीव्रता के साथ जियो। खतरा में जियो। यह आपका जीवन है, इसे किसी भी तरह की मूर्खता के लिए बलिदान मत करो जो आपको सिखाया गया है। यह तुम्हारा जीवन है, इसे जीओ। इसे शब्दों, सिद्धांतों, देशों, और राजनीति के लिए बलिदान मत करो। – ओशो +* ���पकी सभी परेशानियां आपके मन के कारण होती हैं। आपके विचार, आपका तर्क, बहस, आपका जुनून और आश्चर्य। +* किसी भी चीज का मूल्य कहां से आता है? यह आपकी इच्छा से आता है। यदि किसी चीज़ को चाहते हैं, तो यह मूल्यवान है। यदि आप इसकी इच्छा नहीं रखते हैं, तो उसका मूल्य गायब हो जाता है। मूल्य किसी चीज में नहीं है, यह आपकी इच्छा में है। +* आप अच्छा महसूस करते हैं या आप बुरा महसूस करते हैं, ये भावनाएँ आपके अपने अतीत के अवचेतन से आती है, इसके लिए आपके अलावा कोई भी जिम्मेदार नहीं है। कोई भी आपको क्रोधित नहीं कर सकता है, और कोई भी आपको खुश नहीं कर सकता है। +* ऐसा नहीं है कि आप किसी सुंदर व्यक्ति के प्रेम में पड़ जाते हैं। प्रक्रिया इसके ठीक विपरीत है। जब आप किसी व्यक्ति के प्यार में पड़ते हैं, तो वह व्यक्ति सुंदर दिखता है। यह प्यार है, जो सुंदरता का विचार लाता है। +* हर कोई रचनात्मक की शक्ति के साथ पैदा होता है, लेकिन बहुत कम लोग रचनात्मक बने रहते हैं। +* आप कभी भी उतना पीड़ित नहीं होते हैं जितना आप कल्पना करते हैं कि आप पीड़ित हैं। आप उन बीमारियों से ग्रस्त भी नहीं होते हैं जिनसे आप सबसे ज्यादा डरते हैं और न ही उन दुखों से जिन्हें आप डरते हैं। +* प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्ट नियति के साथ इस दुनिया में आता है – उसे कुछ पूरा करना है, कुछ संदेश देना है, कुछ काम पूरा करना है। आप अकस्मात् यहाँ नहीं आये हैं। इसके पीछे एक उद्देश्य है। अस्तित्व का पूरा इरादा आपके माध्यम से कुछ करने का है। +* सबसे बड़ा रोमांच चाँद पर जाना नहीं है – सबसे बड़ा रोमांच आपके अपने अंतरतम में जाना है। +* परम ध्यान है, यथार्थ के प्रति समर्पण। जितना आप अधिक लड़ते हैं, उतना अधिक आप संघर्ष करते हैं और उतना ही आप हारे हुए महसूस करेंगे। गहरे समर्पण में, अहंकार मिट जाता है। और जब अहंकार नहीं होता है, तब पहली बार तुम उसके प्रति सजग होते हो, जो तुम हो। +* जब तक आप बिना कारण के, बिना किसी मकसद के, कुछ करना शुरू नहीं करते, आप धार्मिक नहीं हो सकते। जिस दिन आपके जीवन में बिना किसी कारण के कुछ घटित होने लगता है, जब आपकी क्रिया कोई मकसद या शर्त से जुड़ी नहीं होती है, जब आप बस प्यार और आनंद के लिए कुछ करते है, तब आपको पता चलता है कि धर्म क्या है, ईश्वर क्या है। +* प्रत्येक क्षण, आप जो भी कर रहे हैं, उसे पूरी समग्रता से करें। साधारण चीजें – स्नान करना हो, बैठे है, ��हल रहे है, उस समय पूरी दुनिया को भूल जाओ। फिर किसी ध्यान की आवश्यकता नहीं है। +* ध्यान से बड़ा कोई विलास नहीं है। ध्यान अंतिम विलासिता है क्योंकि यह परम प्रेम संबंध है। +* जब अहंकार नहीं होता है, तो आप पहली बार अपने होने का अनुभव करते हैं। वह शून्य है। तब तुम समर्पण कर सकते हो, तब आपने आत्मसमर्पण कर दिया है। +* जीवन मिला है और तुम केवल जीविका ही जुटा रहे हो। जीवन को रोजी, रोटी, कपड़ा जुटाने और मकान बनाने में ही बिता दोगे। मैं यह नहीं कहता कि यह जरूरी नहीं है। रोटी भी जरूरी है, कपड़ा भी जरूरी है, मकान भी जरूरी है। यह सीढ़ियां है इनका उपयोग कर लो लेकिन मंदिर को मत भूल जाना। जीविका कमा लेना जीवन नहीं है, जीविका तो शरीर के लिए जरुरी है और जीवन तो आत्मा का होता है। +* प्रेम और युद्ध में यही अंतर है, युद्ध दूसरे को मिटाकर जीता जाता है, प्रेम खुद को मिटा कर जीता जाता है। युद्ध में मिली जीत भी हार है और प्रेम में मिली हार भी जीत के समान है। -ओशो +* यदि आप फूल को प्रेम करते हो, तो उसे तोड़े नहीं क्योंकि जैसे आप इसे तोड़ते हो, वह मर जाता है। प्रेम वही समाप्त हो जाता है। इसलिए यदि आप एक फूल से प्रेम करते हैं तो उसे वैसे ही रहने दें। प्यार का मतलब कब्ज़ा करना नहीं है। प्यार तो प्रशंसा के बारे में है। +* इस जगत में इतनी भी मूल्यवान कोई भी चीज नहीं है कि तुम उसके लिए झगड़ो, हिंसा करो। कौड़ियों के लिए लड़ो मत। कौड़ियों के लिए लड़कर आत्मा के बहुमूल्य हीरे को मत गवाओ। +* अपने जीवन पर पकड़ बनाओ। देखों कि पूरा अस्तित्व जश्न मना रहा है। ये पेड़ गंभीर नहीं हैं, ये पक्षी गंभीर नहीं हैं। नदियाँ और महासागर उग्र हैं, और हर जगह खेल चल रहा है, हर जगह आनंद और आनंद ही है। अस्तित्व को देखो, अस्तित्व को सुनो और इसका हिस्सा बनो। +* आप जो भी महसूस करते हो, आप बन जाते हो। यह आपकी जिम्मेदारी है। +* सांस खत्म हो और तमन्ना बाकी रहे वह मृत्यु है। सांस बाकी रहे और तमन्ना खत्म हो जाए वह है मोक्ष। +* हम शरीर और मन पर रुके हुए हैं, अटके हुए हैं। वहां से हम अगर कूद जाए फिर आत्मा का गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल है जो जमीन के गुरुत्वाकर्षण से काफी ज्यादा है। बस एक बार हम अपने शरीर के छत से कूद जाएं फिर आत्मा हमे खींच लेती है। +* कुछ पा लेने की इच्छा से एक प्रेम होता है, वह लोभ है, लिप्सा है और अपने को समर्पित कर देने का एक प्रेम होता है वही भक्ति है। + + +ब्राज़ील फुटबॉल खाता, सोता और पीता है। यह फुटबॉल जीता है। +आप जहां भी जाएं, तीन प्रतीक हैं, जिन्हे हर कोई जानता है: यीशु मसीह, पेले और कोका कोला। +बाइस्किल किक करना आसान नहीं है। मैंने 1,283 गोल दागे, और केवल दो या तीन ही बाइस्किल किक्स थे। +पेनाल्टी गोल करने का कायरतापूर्ण तरीका है +पृथ्वी पर हर एक चीज एक खेल है। एक खत्म हो जाने वाली चीज। हम सभी एक दिन मर जाते हैं। हम सभी का एक ही अंत है, नहीं ? + + +राशिपूरम कृष्णास्वामी लक्षण भारत के एक प्रख्यात व्यंग चित्रकार थे । वह प्रख्यात लेखक आर के नारायण के अनुज भी थे। लक्षण के कार्टून भारत के सर्वाधिक प्रचलित अख़बारों में प्रकाशित हैं । +* एक कार्टूनिस्ट को एक महान आदमी में नहीं एक हास्यास्पद आदमी में आनंद मिलता है। +* कौवे दिखने में इतने अच्छे और बुद्धिमान होते हैं।राजनीति में मुझे ऐसे चरित्र कहाँ मिलेंगे ? + + +मैं क्रिकेट के बारे में नहीं जानता पर फिर भी मैं सचिन को खेलते हुए देखने के लिए क्रिकेट देखता हूँ। इसलिए नहीं कि मुझे उसका खेल पसंद है, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर जब वो बैटिंग करता है तो मेरे देश का प्रोडक्शन 5 गिर क्यों जाता है? + + +डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (तमिल: சர்வபள்ளி ராதாகிருஷ்ணன்; 5 सितम्बर 1888 – 17 अप्रैल 1975) भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। +* दुनिया के सारे संगठन अप्रभावी हो जायेंगे यदि यह सत्य कि प्रेम द्वेष से शक्तिशाली होता है उन्हें प्रेरित नही करता। +* उम्र या युवावस्था का काल-क्रम से लेना-देना नहीं है। हम उतने ही नौजवान या बूढें हैं जितना हम महसूस करते हैं। हम अपने बारे में क्या सोचते हैं यही मायने रखता है। +* शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके। +* केवल निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है। स्वयं के साथ ईमानदारी आध्यात्मिक अखंडता की अनिवार्यता है। +* लोकतंत्र सिर्फ विशेष लोगों के नहीं बल्कि हर एक मनुष्य की आध्यात्मिक संभावनाओं में एक यकीन है। +* हमें मानवता को उन नैतिक जड़ों तक वापस ले जाना चाहिए जहाँ से अनुशाशन और स्वतंत्रता दोनों का उद्गम हो| +* धर्म भय पर विजय है; असफलता और मौत का मारक है। + + +मेरा मानना है कि प्यार किसी भी उम्र में हो सकता है …इसकी कोई उम्र नहीं होती। +मैं जब भी एक पिता या पति के रूप में फेल होता हूँ …एक खिलौना और एक हीरा हमेशा काम कर जाते हैं. +मैं वास्तव में यकीन करता हूँ कि मेरा काम ये सुनिश्चित करना है की लोग हंसें। + + +* अगर एक बच्‍चा गलत रास्‍ते पर चला जाता है तो इसके लिए वह बच्‍चा दोषी नहीं है, बल्कि इसके लिए उसके माता-पिता जिम्‍मेदार है। +* अगर किसी इंसान में यह 5 खूबियाँ हैं तो वह स्कूली शिक्षा हासिल किये बिना कामियाब हो सकता है, और वह हैं – 1 चरित्र 2 प्रतिबद्धता 3 दृण विश्वाश 4 तहजीब 5 साहस +* अगर कोई जिंदगी में बड़ी चीजें हांसिल करना चाहता है तो उसे पूर्णतया कुशल और समझदार बनना पड़ेगा। पूर्णतया कुशलता और समझदारी का मतलब है – छोटी छोटी बातों और बहस में न उलझना। +* अगर कोई मूर्खता की बजाए समझदारी, बुराई की बजाय अच्छाई और असश्यता की बजाय सदगुण को चुनता है, तो ऐसे आदमी के पास स्कूली डिग्रियां न होने के बाबजूत, उसे शिक्षित माना जाना चाहियें। +* अगर हम अपने नज़रिये को सकारात्मक बनाना चाहते हैं तो टालमटोल की आदत छोड़ें और ‘तुरंत काम करो’ पर अमल करना सीखें। +* अगर हम असफल होना चाहते हैं तो भाग्य में विश्वाश कीजिये, और सफल होना चाहते हैं तो वजह और नतीजों के सिद्धांत में विश्वाश कीजिए। +* अच्छा महसूस करना अच्छा करने का एक स्वाभाविक परिणाम है; और अच्छा करना अच्छा होने का एक स्वाभाविक परिणाम है। +* अच्छाई वापसी का रास्ता ढूंढ लेती है यह प्रकृति का बुनियादी नियम है। अच्छा काम करते समय फल पाने की इच्छा रखना जरूरी नहीं है। फल तो कुदरती तोर पर अपने आप मिलता है। +* अच्छे नेता और नेता बनाने की चेष्टा करते हैं, बुरे नेता अनुयायी बनाने की चेष्टा करते हैं। +* अच्छे माँ–बाप अनुशासन लागू करने से नहीं हिचकते, भले ही बच्चे कुछ देर के लिए उन्हें नापसंद करें। +* अच्‍छे माहौल में एक मामूली कर्मचारी की भी काम करने की शक्ति बढ़ जाती है जबकि खराब माहौल में एक अच्‍छे कर्मचारी की भी कुशलता कम हो जाती है। +* अच्छे लीडर्स, हमेंशा अधिक से अधिक अच्‍छे लीडर्स बनाने के बारे में सोचते हैं, और बुरे लीडर्स, हमेशा अधिक से अधिक अनुयायी बनाने के बारे में सोचते हैं। +* अधिकांश लोग जीवन में जीतना चाहते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जीतने में लगने वाली तैयारी की कीमत चुकाने के लिए राज़ी हैं। +* अनजान होना शर्म की बात नहीं है लेकिन सीखने की इच्छा न होना शर्म की बात है। +* अनुशासन और पछतावा दोनों ही दुखदायक हैं। ज्यादातर लोगों को इन दोनों में से किसी एक को ही चुनना होता है। जरा सोचियें इन दोनों में से कौन ज्यादा तकलीफ में हैं। +* अपना एक विजन होना चाहिए- यह अदृश्‍य को देखने की काबिलियत है। अगर आप अदृश्‍य को देख सकते हैं तो आप असंभव को भी संभव कर सकते हैं। +* अपने को बेहतर बनाने में इतना बक्त लगायें कि दूसरों की आलोचना करने के लिए हमारे पास वक्त ही न बचे। इतने बड़े बने कि चिंता छु न सके और इतने अच्छे बने कि गुस्सा आये ही नहीं। +* असफल हो जाना कोई अपराध नहीं है पर कोशिश न करना यकीनन अपराध हैं। +* आत्म-सम्मान और अहंकार का उल्टा सम्बन्ध है। +* आत्मसम्मान एक ऐसा अहसास है, जो अच्छाई को समझने और उस पर अमल करने में पैदा होता है। +* आधे मन से किया गया प्रयास आधा परिणाम नहीं देता; यह कोई परिणाम नहीं देता। +* आप जितनी बहसें जीतते है उतने मित्रों को खो देते हैं। +* आपने मित्रों को सावधानी से चुने । हमारे व्यक्तित्व की झलक न सिर्फ हमारे सांगत से झलकती है बल्कि, जिन संगतों से हम दूर रहते हैं उससे भी झलकती है । +* इन्स्पीरेशन सोच है जबकि मोटीवेशन कार्रवाई है। +* उद्देश्य: जीवन भर के लक्ष्य को ‘उद्देश्य’ कहा जाता है। अपने उद्देश्य की पहचान करने के लिए ख़ुद से पूछें “यदि आज मेरी आयु सौ होती और मैं पलटकर अपने जीवन को देखता, तो वह क्या है जो मैं कहता कि मेरी उपलब्धि है?” उत्तर आपका उद्देश्य है। +* उन चीजों को पसंद करना सीखें, जिन्हें पूरा करना जरूरी है। +* एक अशिक्षित चोर ट्रेन से सामान चुरा सकता है, लेकिन एक शिक्षित पूरी ट्रेन चुरा सकता है। हमें ज्ञान और बुद्धिमत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता है, न कि दर्जे के लिए। +* एक देश नारे लगाने से महान नहीं बन जाता। +* एक बड़े आदमी और एक छोटे आदमी के बीच का अंतर सत्यनिष्ठा और कड़ी मेहनत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता है। +* एक महान आदमी और एक छोटे आदमी के बीच का अंतर ईमानदारी और कड़ी मेहनत के प्रति उनकी वचनबद्धता है। +* एक विचार पुस्तक बनाए, विचार हमारी सोच की तुलना में तेजी से उड़ जाते हैं। +* कड़ी और अच्छी तरह से परिश्रम करो और आपको अपनी परियोजना पूर्ण करने की संतुष्टि प्राप्त होगी। कभी-कभी दूसरों की सराहना प्राप्त हो सकती है, लेकिन वह महत्वपूर्ण आंतरिक संतुष्टि का अधिलाभ है। +* कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। +* कभी भी दुष्‍ट लोगों की सक्रियता समाज को बर्बाद नहीं करती, बल्कि हमेंशा अच्‍छे लोगों की निष्क्रियता समाज को बर्बाद करती है। +* कामियाब लोग कठिनाइयों के बाबजूत सफलता हांसिल करते हैं। न कि तब जब कठिनाई नहीं होती। +* कामियाबी का यह मतलब नहीं है कि हर इंसान आपको पसंद करे। ऐसे लोग भी हैं जिनसे मान्यता पाना मैं खुद नहीं चाहूंगा। मूर्खों की आलोचना को मैं घिनौने चरित्र के लोगों की तारीफ से बेहतर मानता हूँ। +* कार्य टालने की आदत कार्य करने के प्रयास के मुकाबले आपको कहीं अधिक थका देती है। +* किसी अज्ञानी को बहस में हराना नामुमकिन है, उसके तर्क कमज़ोर होते हैं, पर लब्ज़ तीखे और कठोर। +* किसी को धोखा न दें क्‍योंकि ये आदत बन जाती है और फिर आदत से व्यक्तित्व। +* किसी क्षेत्र में सफलता दिलाने वाली बढ़त तैयारी से ही मिलती है। +* किसी डिग्री का न होना दरअसल फायदेमंद है। अगर आप इंजीनियर हैं या डाक्टर हैं तो आप एक ही काम कर सकते हैं। लेकिन यदि आपके पास कोई डिग्री नहीं है, तो आप कुछ भी कर सकते हैं। +* किसी भी प्रोडक्ट को बेचने के लिए 90% दृढ़ विश्वास जबकि 10% प्रोत्‍साहन होना चाहिए। +* कुछ लोग खुद को थोड़ा बेहतर मानते हैं क्योंकि वे गलत का साथ नहीं देते; हालांकि, उनके पास प्रविरोध करने हेतु दृढ़ विश्वास की कमी होती है। उन्हें एहसास नहीं है कि प्रविरोध न करके असल में वे साथ दे रहे हैं। +* कुदरत बड़ी समझदार और मेहरबान है क्‍योंकि उसने आदमी को सोचने की क्षमता का सबसे बड़ा तोहफा दिया है, लेकिन अफसोस की बात है कि बहुत कम ही लोग इस महान तोहफे का पूरा इस्‍तेमाल कर पाते हैं। +* कोई तब तक अच्छा शिक्षक नहीं बन सकता, जब तक वह अच्छा छात्र न हो। +* कोई मौका दोबार नहीं खटखटाता। दूसरा मौका पहले वाले मौके से बेहतर या बत्तर हो सकता है, पर वह ठीक पहले वाले मौके जैसा नहीं हो सकता। गलत वक्त पर लिया गया सही फैसला भी गलत बन जाता है। +* क्योंकि कुदरत खाली जगह को पसंद नहीं करती, इसलिए वह खाली दिमाग को अहंकार से भर देती है। +* क्रियाशीलता में सच्चाई ही न्याय है। +* क्षमता हमें सिखाती है कि हम कैसे करें, प्रेरणा निर्धारित करती है कि हम क्यों करें, और दृष्टिकोण यह तय करता है कि हम कितना अच्छा करते हैं। +* खतरा न उठाने वाला आदमी कोई गलती भी नहीं करता लेकिन कोशिश न करना, कोशिश करके असफल होने से भी बड़ी गलती है। +* गुब्बारा अपने रंग की वजह से नहीं बल्कि अपने अंदर भरे चीज की वजह से उड़ता है। हमारी जिंदगी में भी यही उसूल लागू होता है। अहम् चीज हमारी अंदरूनी सख्शियत है। हमारी अंदरूनी शक्शियत की वजह से हमारा जो नजरिया बनता है, वही हमें ऊपर उठाता है। +* गुस्सा इंसान को मुश्किल में डालता है, और अहंकार उसे आगे बढ़ने से रोकता है। +* चरित्र का निर्माण तब नहीं शुरू होता जब बच्चा पैदा होता है; ये बच्चे के पैदा होने के सौ साल पहले से शुरू हो जाता है। +* छोटे लोग दूसरों के बारे में बाते करते हैं, बीच के लोग चीजों के बारे में बात करते हैं और महान लोग सुझाव के बारे में। +* जब कभी कोई व्यक्ति कहता है कि मैं ये नहीं कर सकता, तो वह वास्तव में दो बातें कह रहा होता है। या तो मैं नहीं जानता कि यह कैसे करना है या मैं यह नहीं करना चाहता। +* जब तक आपकी नज़र आपके लक्ष्य पर है, आप बाधाओं को नहीं देखते। +* जब हम अपने लोगों की समस्याओं का ध्यान रखते हैं, तो हमारी व्यावसायिक समस्याएं स्वतः हल हो जाती हैं। +* जब हालत बिगड़ जाते हैं तो नकारात्मक लोग एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाने लगते हैं। +* जिन्हें मौके की पहचान नहीं होती उन्हें मोके का खटखटाना शोरे लगता है। +* जिस इंसान में साहस की कमी होती है, वह तकलीफ में आपका साथ अवश्य छोड़ देगा। +* जिस तरह किसी भव्य इमारत के टिके रहने के लिए उसकी नीव मजबूत होनी चाहिये, उसी तरह कामियाबी में टिके रहने के लिए भी मजबूत बुनियाद की जरूरत होती है, और कामियाबी की बुनियाद होती है नजरिया। +* जिस तरह कोई व्‍यक्ति डिक्शनरी के ऊपर बैठने से शब्द और स्पेलिंग नहीं सीख सकता, उसी तरह कोई भी व्‍यक्ति कठिन परिश्रम के बिना अपनी काम करने की शक्ति नहीं बढ़ा सकता। +* जीतने वाला हमेशा समाधान का हिस्सा होता है और हारने वाला हमेशा समस्या का हिस्सा होता है। +* जीतने वाले कोई अलग काम नहीं करते, वे हर काम को अलग ढंग से करते हैं। +* जीतने वाले लाभ देखते हैं, हारने वाले दर्द। +* जीवन में ऊपर उठते समय लोगों से अदब से पेश आए, क्‍योंकि नीचे गिरते समय आप इन लोगों से दोबारा मिलेंगे। +* जो करना जरूरी है उसे पसंद करो। +* जो भी उधार लें उसे समय पर चूका दें क्‍योंकि इससे आपकी विश्वसनीयता बढ़ती है। +* जो लोग जीतते हैं वह कोई अलग चीजों को अंजाम नहीं देते, बल्कि वो आम चीजों को खास अंदाज में पूरा करते हैं। +* जो लोग भविष्य में जाना चाहते हैं, उनके पास सफ़ल होने के लिए दो कौशल होने चाहिए – लोक व्यवहार की क्षमता और विक्रय क्षमता। +* ज्यादातर लोग जानकारी या प्रतिभा की कमी की वजह से नहीं, बल्कि कोशिश बंद करने की वजह से असफल होते हैं। +* त्रासदी यह है कि यहाँ कई चलते-फ़िरते विश्वकोष हैं, जो जीते-जागते असफ़ल व्यक्ति हैं। +* दरअसल डिग्री का न होना फ़ायदेमंद है। यदि आप इंजीनियर या डॉक्टर हैं, तो आप केवल एक ही काम कर सकते हैं। लेकिन यदि आपके पास कोई डिग्री नहीं, तो आप कुछ भी कर सकते हैं। +* दिशा गति से अधिक महत्वपूर्ण है। बहुत से लोग तेजी से कहीं नहीं जा रहे हैं। +* दुष्टों की सक्रियता कभी भी समाज को नष्ट नहीं करती, लेकिन यह हमेशा अच्छे लोगों की निष्क्रियता होती है, जो ऐसा करती है। +* दूरदर्शिता रखे। यह अदृश्य देख लेने की क्षमता है। यदि आप अदृश्य देख सकते हैं, तो आप असंभव हासिल कर सकते हैं। +* दृष्टिकोण सफ़लता का आधार है। सफ़लता जितनी अधिक होगी, आधार उतना ही मजबूत होगा। +* नेतृत्व धारणा, प्रस्तुति और लोगों के कौशल के बारे में है। +* पात्रता वह है, जो अर्थ और संतुष्टि दे। संतुष्टि के बिना सफ़लता खोखली है। यह अच्छाई के बिना रूप जैसी है। जीवन में हमें आकार से अधिक सत्त्व की आवश्यकता है, न कि सत्त्व से अधिक आकार की। +* पैसा लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव लाने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपकरण है। यह मूल्यों के आधार पर सकारात्मक या नकारात्मक होता है। +* प्रतिकूल परिस्थितियों में – कुछ लोग टूट जाते हैं, कुछ रिकॉर्ड तोड़ते हैं। +* प्रेरणा एक आग की तरह है, जिसे जलाए रखने के लिए इसमें लगातार ईंधन डालना पड़ता है। प्रेरणा को बनाए रखने के लिए आपका ईंधन “स्वंय पर विश्वास” ही है। +* बहुत सी चीजें बच्चे की परवरिश पर निर्भर करती हैं। +* बिना कठिन परिश्रम के सफलता नहीं मिल सकती, कुदरत चिड़ि‍यों को खाना जरूर देती है, लेकिन उनके घोंसले में नहीं डालती। +* बुद्धिमान लोग झूठी प्रशंसा से बर्बाद होने के बजाय रचनात्मक आलोचना से लाभ उठाना पसंद करते हैं। +* बौद्धिक शिक्षा मस्तिष्क को प्रभावित करती है और मूल्यों पर आधारित शिक्षा हृदय को प्रभावित करती है। +* मानव बहुकार्यन (मल्टीटास्किंग) कई कार्य करने की क्षमता है, लेकिन एक समय में एक। +* मेरा पहला उद्देश्‍य है निवेश करना और इसके अतिरिक्‍त भी कुछ बच जाता है तो उसे ख���्च करना। +* मेरे विचार से यह व्यक्ति का दृढ़ विश्वास है, जो वास्तव में व्यक्ति को आगे लेकर जाता है। +* मैं लोगों का उत्‍साह बढ़ाने को अपनी योग्यता मानता हूँ और वही मेरी सबसे बड़ी पूँजी है। यही एक महत्‍वपूर्ण रास्‍ता है जिससे किसी इंसान की अच्‍छाई उभारी जा सकती है। +* यदि आप एक सकारात्मक दृष्टिकोण का बनाना और कायम रखना चाहते हैं, तो वर्तमान में जीने और अभी करने की आदत डालिए। +* यदि आप सकारात्मक दृष्टिकोण का निर्माण करना चाहते हैं, तो उच्च नैतिक चरित्र के लोगों के साथ जुड़ें और ऐसी किताबें पढ़ें जो आपको सकारात्मक सोच की ओर ले जाये। +* यदि आप सोचते हैं की आप कर सकते हैं, तो आप कर सकते हैं और यदि आप सोचते हैं कि आप नहीं कर सकते हैं- तो आप नहीं कर सकते हैं और दोनों तरह से आप सही हैं +* यदि बच्चा गलत राह पर जाता है, तो वह बच्चा नहीं है, जिसे दोषी ठहराया जाना है; वे माता-पिता, जो जिम्मेदार हैं। +* यदि हम समाधान का हिस्सा नहीं हैं, तो हम समस्या हैं। +* याद रखें सबसे बड़ा प्रेरक विश्वास है। हमें ख़ुद में यह विश्वास जगाना होगा कि हम अपने कार्यों और व्यवहार के लिए जिम्मेदार हैं। जब लोग जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं, तो हर चीज़ में सुधार होता है: गुणवत्ता, उत्पादकता, रिश्ते और टीमवर्क। +* लक्ष्य वे सपने हैं, जिनके साथ समय सीमा और कार्य योजना जुडी होती हैं। लक्ष्य मूल्यवान या मूल्यहीन हो सकता है। सपनो को असलियत का रूप चाहत नहीं बल्कि लगन देती है। +* लम्बी अवधि के निवेश में आपको हर दिन के मैनेजमेंट की जरुरत नहीं होती है। +* लोग इसकी परवाह नहीं करते हैं कि आप कितना जानते हैं, वो ये जानना चाहते हैं कि आप कितना ख़याल रखते हैं। +* लोगों से साथ विनम्र होना सीखे। महत्वपूर्ण होना जरुरी है लेकिन अच्चा होना ज्यादा महत्वपूर्ण है । +* विक्रय का नब्बे प्रतिशत दृढ़ विश्वास है, और दस प्रतिशत प्रोत्साहन। +* विजेता के पास हर समस्या का समाधान होता है; हारने वाले के पास हर समाधान के लिए एक समस्या होती है। +* विजेता बोलते हैं कि “मुझे कुछ करना चाहिए”, हारने वाले बोलते हैं कि “कुछ होना चाहिए”। +* विपरीत परिस्थितियों में कुछ लोग टूट जाते हैं, और कुछ लोग रिकार्ड तोड़ते हैं। +* वे लोग जो भविष्‍य में बहुत आगे जाना चाहते हैं उनमें सफल होने के लिए दो योग्‍यता होनी चाहिए, पहली, लोगों के साथ कुशल व्यवहार करने की और दूसरी, लोगों को कुछ बेचने की। +* व्यक्ति का चरित्र न सिर्फ़ उसकी संगत द्वारा आंका जाता है, बल्कि जो संगत वे नज़रंदाज़ करते हैं, उसके द्वारा भी आंका जाता है। +* व्यवहारिक समझ की बहुतायत को ‘अक्लमंदी’ कहते है। +* शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जो हमें केवल रोजी-रोटी कमाना नहीं बल्कि जीने का तरीका भी सिखाये। +* शिक्षित लोग अपनी सीमाओं को पहचानते हैं, लेकिन अपनी ताकत पर ध्यान केंद्रित करते हैं। +* शोध से पता चला है कि एक आदत बनाने या तोड़ने में 31 दिन का सचेत प्रयास करना पड़ता है। इसका अर्थ है, अगर कोई 31 दिनों तक लगातार कुछ अभ्यास करता है, तो 32 वें दिन वह निश्चित रूप से एक आदत बन जाती है। व्यवहार परिवर्तन में सूचना का समावेश कर दिया गया है, जिसे रूपांतरण कहा जाता है। +* सकारात्मक कार्यों और सकारात्मक दृष्टिकोण के मेल के साथ मेहनत का संबल आपकी सफ़लता की संभावना बढ़ा देता है। +* सकारात्मक की तलाश करने के लिये आवश्यक नहीं कि त्रुटियों को नज़रंदाज़ कर दिया जाये। एक सकारात्मक विचारक होने का अर्थ यह नहीं कि किसी को हर बात पर सहमत होना होगा या हर चीज़ को स्वीकार करना होगा। इसका अर्थ केवल यह है कि व्यक्ति समाधान केंद्रित है। +* सकारात्मक दृष्टिकोण के लोगों के कुछ विशेष व्यक्तिगत गुण आसानी से पहचान में आ जाते हैं। वे परवाह करने वाले, आत्मविश्वासी, धैर्यवान और विनम्र होते हैं। उन्हें ख़ुद से और दूसरों से बहुत उम्मीदें होती हैं। वे सकारात्मक परिणामों की उम्मीद करते हैं। +* सकारात्मक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति सभी मौसमों के फल जैसा है। +* सकारात्मक सोच के साथ आपके सकारात्मक कार्य के मेल का परिणाम सफ़लता है। +* सक्रिय रूप से राह दिखाने करने वाले अच्‍छे नेता होते हैं, और सक्रिय रूप से गलत राह दिखाने वाले बुरे नेता होते हैं। +* सत्य का क्रियान्वन ही न्याय है। +* सफल लोग अपने काम से Competition करते हैं। वे खुद का रिकॉर्ड बेहतर बनाते हैं और लगातार सुधार लाते रहते हैं। +* सफल लोग दो तरह के होते हैं – पहले जो करते तो हैं पर सोचते नहीं दूसरे जो सोचते तो हैं लेकिन कुछ करते नहीं। सोचने की क्षमता का इस्तेमाल किये बिना जिंदगी गुजारना वैसा ही है, जैसे की बिना निशाना लगाये गोली चलना। +* सफल लोग महान काम नहीं करते, वे छोटे–छोटे कामों को महान ढंग से करते हैं। +* सफलता इस बात से नहीं मापी जाती कि हमने जिंदगी में कितनी ऊँचाई हाँसिल क��� है, बल्कि इस बात से मापी जाती है कि हम कितनी बार गिर कर खड़े हुए हैं। सफलता का आंकलन गिर कर उठने की इस क्षमता से ही किया जाता है। +* सफ़लता एक दुर्घटना नहीं है। यह आपके दृष्टिकोण का परिणाम है और आपका दृष्टिकोण एक विकल्प है। इसलिए सफ़लता चुनाव का मुद्दा है और अवसर नहीं। +* सफलता और असफलता के बीच उतना ही अंतर है जितना की सही और लगभग सही के बीच होता है। +* सफलता और प्रसन्नता का चोली-दामन का साथ है। सफलता का मतलब यह है कि हम जो चाहें उसे पा लें, और प्रान्नता का मतलब है कि हम जो चाहें उसे चाहें। +* सफलता के लिए कोई जादुई छड़ी नहीं होती। वास्तविक दुनिया में सफलता सिर्फ काम करने वालों को मिलती है, तमाशबीनों को नहीं। +* सबके साथ विनम्र रहें, लेकिन कुछ के साथ घनिष्ट और उन कुछ को अपना विश्वास देने के पहले अच्छी तरह आज़मा लें। +* सर्वश्रेष्ठ शिक्षक आपको पीने के लिए कुछ नहीं देंगे, वे आपको प्यासा बना देंगे। वे आपको जवाब नहीं देंगे, लेकिन जवाब तलाशने के लिए आपको रास्ता दिखा देंगे। +* सवाल यह है कि क्या हमें प्रतिस्पर्धा से दस गुना अधिक समार्ट होना होगा? बिलकुल नहीं। हमें बस उसमें अपनी नाक घुसेड़ने की ज़रूरत है और नतीज़ा दस गुना बेहतर होगा। सौ अलग-अलग क्षेत्रों में एक प्रतिशत सुधार करना किसी एक क्षेत्र में सौ प्रतिशत सुधार करने की मुकाबले कहीं आसान होता है। यह जीत की बढ़त है! +* सही नजरिया के बिना कामियाबी व्यर्थ होती है। +* सही समय पर सही निर्णय लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। +* साकारात्मक सोच के साथ साकारात्मक कार्यों का परिणाम सफलता है। +* सीखना बहुत कुछ खाना खाने जैसा ही है। यह मायने नहीं रखता कि हम कितना खाते हैं, लेकिन असल में यह मायने रखता है कि हम कितना पचा पाते हैं। +* सीमित सोच के सहारे आप कोई बड़ा लक्ष्य कायम नहीं कर सकते। +* सुनना ही एक ताकत है, लेकिन किसी इंसान में यह खूबी जरूरत से ज्यादा बढ़ने पर ज्यादा सुनना और न बोलना उसकी कमजोरी बन जाती है। +* हम जानकारियों मे डूब रहे हैं लेकिन ज्ञान और बुद्धि के लिए भूखे मर रहे हैं। शिक्षा द्वारा हमें न केवल जीविका उपार्जन का तरीका बल्कि जीने का तरीका भी सिखाना चाहिए। +* हमको एक तोला सोना निकालने के लिए कई टन मिट्टी हटानी पड़ती है। लेकिन खुदाई करते वक्त हमारा ध्यान मिट्टी पर नहीं बल्कि सोने पर रहता है। +* हमारी समस्यायें व्यावसायिक नहीं होती। हमारी समस्या लोगों से संबंधित होती हैं। +* हमारे विचार कारक हैं। आप विचार का बीज बोते हैं, तो आप कार्य की फ़सल काटते हैं। आप कार्य का बीज बोते हैं, तो आप आदत की फ़सल काटते हैं। आप एक आदत का बीज बोते हैं, तो आप चरित्र की फ़सल काटते हैं। आप चरित्र का बीज बोते हैं, तो आप भाग्य की फसल काटते हैं। यह सब एक विचार से प्रारंभ होता है। +* हमें अक्सर बताया जाता है कि ज्ञान शक्ति है। लेकिन यह असलियत नहीं है। ज्ञान तो महज जानकारी है। ज्ञान में शक्ति बनने की क्षमता है, और यह तभी शक्ति बनता है जब इसका इस्तेमाल किया जाता है। +* हर ठोकर के लगने के बाद खुद से पूछे कि हमने इस तजुर्वे से क्या सीखा तभी हम रास्ते के रोड़ो को कामियाबी की सीढ़ी बना पाएंगे। +* हारने वाले लोग भाग्‍य में विश्‍वास करते हैं, हिम्‍मती और पक्‍के इरादे वाले वजह और उसके नतीजों में विश्‍वास करते हैं। + + +श्रद्धा यह समझने में है कि आप हमेशा वो पा जाते हैं जिसकी आपकी ज़रुरत होती है। +“आज” भगवान का दिया हुआ एक उपहार है- इसीलिए इसे “प्रेजेंट” कहते हैं। +* जीवन ऐसा कुछ नहीं है जिसके प्रति बहुत गंभीर रहा जाए। जीवन तुम्हारे हाथों में खेलने के लिए एक गेंद है। गेंद को पकड़े मत रहो। + + +स्टीफन हॉकिंग 1942 2018) ब्रिटेन के एक महान भौतिकविद थे। +* अतीत, भविष्य की तरह ही अनिश्चित है और केवल सम्भावनों के एक स्पेक्ट्रम के रूप में मौजूद है। +* एक शून्य-गुरुत्वाकर्षण उड़ान अंतरिक्ष यात्रा की ओर पहला कदम है। +* कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि क्या मैं अपनी व्हीलचेयर और विकलांगता के लिए उतना ही प्रसिद्ध हूँ जितना अपनी खोजों के लिए। +* काम आपको अर्थ और उद्देश्य देता है और इसके बिना जीवन अधूरा है। +* क्योंकि गुरुत्वाकर्षण जैसा एक नियम है, ब्रह्माण्ड स्वयं को कुछ नहीं से सृजित कर सकता है और करेगा। +* चाहे जीवन जितनी भी कठिन लगे, आप हमेशा कुछ न कुछ कर सकते हैं और सफल हो सकते हैं। +* बुद्धिमत्ता बदलाव के अनुरूप ढलने की क्षमता है। +* मुझे लगता है ब्रह्माण्ड में और ग्रहों पर जीवन आम है, हालांकि बुद्धिमान जीवन कम ही है। कुछ का कहना है इसका अभी भी पृथ्वी पर आना बाकी है। +* मेरा लक्ष्य स्पष्ट है। ये ब्रह्माण्ड को पूरी तरह समझना है, ये जैसा है वैसा क्यों है और आखिर इसके अस्तित्व का कारण क्या है। +* मेरा विश्वास है की चीजें खुद को असंभव नहीं बना सकतीं। +* मैं एक अच्छा छात्र नहीं था। कॉलेज में ज्यादा समय नहीं बीतता था। मैं मजे करने में बहुत व्यस्त था। +* मैं चाहूंगा न्यूक्लीयर फ्यूज़न एक व्यवहारिक ऊर्जा का स्रोत बने। यह प्रदूषण या ग्लोबल वार्मिंग के बिना, ऊर्जा की अटूट आपूर्ति प्रदान करेगा। +* मैं मानता हूँ कि ब्रह्माण्ड विज्ञान के नियमों द्वारा संचालित होता है। हो सकता है ये नियम भगवान द्वारा बनाये गए हों, लेकिन भगवान इन नियमों को तोड़ने के लिए हस्तक्षेप नहीं करता। +* मैं मौत से नहीं डरता, लेकिन मुझे मरने की कोई जल्दी नहीं है । मेरे पास पहले करने के लिए इतना कुछ है। +* मैंने देखा है वो लोग भी जो ये कहते हैं कि सब कुछ पहले से तय है, और हम उसे बदलने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते, वे भी सड़क पार करने से पहले देखते हैं। +* यदि आप यूनिवर्स को समझते हैं तो एक तरह से आप इसे नियंत्रित करते हैं +* यदि आप हमेशा गुस्सा या शिकायत करते हैं तो लोगों के पास आपके लिए समय नहीं रहेगा। +* विज्ञान केवल तर्क का अनुयायी नहीं है, बल्कि रोमांस और जूनून का भी। +* विज्ञान लोगों को गरीबी और बीमारी से निकाल सकता है। और वो बदले में सामाजिक अशांति ख़त्म कर सकता है। +* हम अपने लालच और मूर्खता के कारण खुद को नष्ट करने के खतरे में हैं। हम इस छोटे, तेजी से प्रदूषित हो रहे और भीड़ से भरे ग्रह पर अपनी और अंदर की तरफ देखते नहीं रह सकते। +* हम एक औसत तारे के छोटे से ग्रह पर रहने वाली बंदरों की एक उन्नत प्रजाति हैं। लेकिन हम ब्रह्माण्ड को समझ सकते हैं। ये हमें कुछ विशेष बनाता है। +* हम सोचते हैं हमने सृष्टि के सृजन की गुत्थी सुलझ ली है। शायद हमें ब्रह्माण्ड का पेटेंट करा लेना चाहिए और सभी से उनके अस्तित्व के लिए रॉयल्टी चार्ज करनी चाहिए। + + +इस मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है। +आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का मजबूत हाथों से सामना कीजिये। +एकता के बिना जनशक्ति शक्ति नहीं है जबतक उसे ठीक तरह से सामंजस्य में ना लाया जाए और एकजुट ना किया जाए, और तब यह आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है। +बेशक कर्म पूजा है किन्तु हास्य जीवन है।जो कोई भी अपना जीवन बहुत गंभीरता से लेता है उसे एक तुच्छ जीवन के लिए तैयार रहना चाहिए। जो कोई भी सुख और दुःख का समान रूप से स्वागत करता है व��स्तव में वही सबसे अच्छी तरह से जीता है। +चर्चिल से कहो कि भारत को बचाने से पहले इंग्लैण्ड को बचाए। +शक्ति के अभाव में विश्वास किसी काम का नहीं है। विश्वास और शक्ति, दोनों किसी महान काम को करने के लिए अनिवार्य हैं। +* सत्ताधीशों की सत्ता उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाती है, पर महान देशभक्तों की सत्ता मरने के बाद काम करती है, अतः देशभक्ति अर्थात् देश-सेवा में जो मिठास है, वह और किसी चीज में नहीं। +* सैनिक लड़ने के लिए तो तैयार हो, किन्तु सेनापति द्वारा बताए गये शस्त्रास्त्र न रखे, तो वह युद्ध नहीं जीत सकता, क्योंकि उसमें अनुशासन नहीं है। +* जो तलवार चलाना जानते हुए भी तलवार को म्यान में रखता है, उसी की अहिंसा सच्ची अहिंसा कही जाएगी। कायरों की अहिंसा का मूल्य ही क्या। और जब तक अहिंसा को स्वीकार नहीं जाता, तब तक शांति कहाँ! +* कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति सदैव आशावान रहता है। +* जब जनता एक हो जाती है, तब उसके सामने क्रूर से क्रूर शासन भी नहीं टिक सकता। अतः जात-पांत के ऊँच-नीच के भेदभाव को भुलाकर सब एक हो जाइए। +* कठिनाई दूर करने का प्रयत्न ही न हो तो कठिनाई कैसे मिटे। इसे देखते ही हाथ-पैर बाँधकर बैठ जाना और उसे दूर करने का कोई भी प्रयास न करना निरी कायरता है। +* कर्तव्यनिष्ठ पुरूष कभी निराश नहीं होता। अतः जब तक जीवित रहें और कर्तव्य करते रहें तो इसमें पूरा आनन्द मिलेगा। +* कल किये जानेवाले कर्म का विचार करते-करते आज का कर्म भी बिगड़ जाएगा। और आज के कर्म के बिना कल का कर्म भी नहीं होगा, अतः आज का कर्म कर लिया जाये तो कल का कर्म स्वत: हो जाएगा। +* जैसे प्रसव-वेदना के बाद राहत मिलती है, उसी प्रकार ज्यादती के बाद ही विजय होती है। समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए इससे अधिक शक्तिशाली कोई हथियार नहीं। +* कायरता का बोझा दूसरे पड़ोसियों पर रहता है। अतः हमें मजबूत बनना चाहिए ताकि पड़ोसियों का काम सरल हो जाए। +* मनुष्य को ठंडा रहना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए। लोहा भले ही गर्म हो जाए, हथौड़े को तो ठंडा ही रहना चाहिए अन्यथा वह स्वयं अपना हत्था जला डालेगा। कोई भी राज्य प्रजा पर कितना ही गर्म क्यों न हो जाये, अंत में तो उसे ठंडा होना ही पड़ेगा। +* चरित्र के विकास से बुद्धि का विकास तो हो ही जाएगा। लोगों पर छाप तो हमारे चरित्र की ही पडती है। +* त्याग के मूल्य का तभी पता चलता है, जब अपनी कोई मूल्यवान वस���तु छोडनी पडती है। जिसने कभी त्याग नहीं किया, वह इसका मूल्य क्या जाने। +* भगवान किसी को दूसरे के दोषों का धनद नहीं देता, हर व्यक्ति अपने ही दोषों से दुखी होता है। +* दुःख उठाने के कारण प्राय: हममें कटुता आ जाती है, दृष्टी संकुचित हो जाती है और हम स्वार्थी तथा दूसरों की कमियों के प्रति असहिष्णु बन जाते हैं। शारीरिक दुःख से मानसिक दुःख अधिक बुरा होता है। +* अधिकार मनुष्य को अँधा बना देता है। इसे हजम करने के लिए जब तक पूरा मूल्य न चुकाया जाये, तब तक मिले हुए अधिकारों को भी हम गंवा बैठेंगे। +*जो व्यक्ति अपना दोष जनता है उसे स्वीकार करता है, वही ऊँचा उठता है। हमारा प्रयत्न होना चाहिए कि हम अपने दोषों को त्याग दें। +* अपने धर्म का पालन करते हुए जैसी भी स्थिति आ पड़े, उसी में सुख मानना चाहिए और ईश्वर में विश्वास रखकर सभी कर्तव्यों का पालन करते हुए आनन्दपूर्वक दिन बिताने चाहिए। +* पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम दे सकता है। +* जीतने के बाद नम्रता और निरभिमानता आनी चाहिए, और वह यदि न आए तो वह घमंड कहलाएगा। +* सेवा करनेवाले मनुष्य को विन्रमता सीखनी चाहिए, वर्दी पहन कर अभिमान नहीं, विनम्रता आनी चाहिए। +* सारी उन्नति की कुंजी ही स्त्री की उन्नति में है। स्त्री यह समझ ले तो स्वयं को अबला न कहे। वह तो शक्ति-रूप है। माता के बिना कौन पुरूष पृथ्वी पर पैदा हुआ है। +* किसी तन्त्र या संस्थान की पुनपुर्न: निंदा की जाए तो वह ढीठ बन जाता है और फिर सुधरने की बजाय निंदक की ही निंदा करने लगता है। +* नेतापन तो सेवा में है, पर जो सीधा बन जाता है, वह किसी-न-किसी दिन लुढक अवश्य जाता है। +* हर जाति या राष्ट्र खाली तलवार से वीर नहीं बनता। तलवार तो रक्षा-हेतु आवश्यक है, पर राष्ट्र की प्रगति को तो उसकी नैतिकता से ही मापा जा सकता है। +* आपके घर का प्रबंध दूसरों को सौंपा गया हो तो यह कैसा लगता है- यह आपको सोचना है। जब तक प्रबंध दूसरों के हाथ में है, तब तक परतन्त्रता है, तब तक सुख नहीं। +* चूँकि पाप का भार बढ़ गया है, अतः संसार विनाश के मार्ग पर अग्रसर है। +* कठोर-से-कठोर हृदय को भी प्रेम से वश में किया जा सकता है। प्रेम तो प्रेम है। माता को भी अपना काना-कुबड़ा बच्चा सुंदर लगता है और वह उससे असीम प्रेम करती है। +* हिंसा के बल पर ही जो सारी तैयारी करते हैं। उनके दिल में भी के सिवाय और कुछ नहीं होता। भी तो ईश्वर से होना चाहिए,किसी मनुष���य या सत्ता से नहीं और भी को मिटाकर हम दूसरों को भयभीत करें तो इस जैसा कोई पाप नहीं। +* प्राणियों के इस शरीर की रक्षा का दायित्व बहुत-कुछ हमारे मन पर भी निर्भर करता है। +* प्रत्येक मनुष्य में प्रकृति ने चेतना का अंश रख दिया है जिसका विकास करके मनुष्य उन्नति कर सकता है। +* मृत्यु ईश्वर-निर्मित है, कोई किसी को प्राण न दे सकता है, न ले सकता है। सरकार की तोपें और बंदूकें हमारा कुछ भी नहीं कर सकतीं। +* विश्वास का न होना ही का कारण है। प्रज्ञा का विश्वास राज्य की निर्भयता की निशानी है। +* शक्ति के बिना बोलने से लाभ नहीं। गोला-बारूद के बिना बत्ती लगाने से धडाका नहीं होता। +* संस्कृति समझ-बूझकर शांति पर रची गयी है। मरना होगा तो वे अपने पापों से मरेंगे। जो काम प्रेम, शांति से होता है, वह वैर-भाव से नहीं होता। +* शारीरिक और मानसिक शिक्षा साथ –साथ दी जाये, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। शिक्षा इसी हो जो छात्र के मन का, शरीर का, और आत्मा का विकास करे। +* शक्ति के बिना श्रद्धा व्यर्थ है। किसी भी महान कार्य को पूरा करने में श्रद्धा और शक्ति दोनों की आवश्यकता है। +* देश में अनेक धर्म, अनेक भाषाएँ हैं, तो भी इसकी संस्कृति एक है। +* सत्य के मार्ग पर चलने हेतु बुरे का त्याग अवश्यक है, चरित्र का सुधार आवश्यक है। +* जल्दी करने से आम नहीं पकता। आम की कच्ची कैरी तोड़ेंगे तो दांत खट्टे होंगे। फल को पकने दें, पकेगा तो स्वयं गिरेगा और रसीला होगा। इसी भांति समझौते का समय आएगा, तब सच्चा लाभ मिलेगा। +* जो मनुष्य सम्मान प्राप्त करने योग्य होता है, वह हर जगह सम्मान प्राप्त कर लेता है, पर अपने जन्म-स्थान पर उसके लिए सम्मान प्राप्त करना कठिन ही है। +* सुख और दुःख मन के कारण ही पैदा होते हैं और वे मात्र कागज के गोले हैं। +* सेवा-धर्म बहुत कठिन है। यह तो काँटों की सेज पर सोने के समान ही है। +* किसी राष्ट्र के अंतर में स्वतन्त्रता की अग्नि जल जाने के बाद वह दमन से नहीं बुझाई जा सकती। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भी यदि परतन्त्रता की दुर्गन्ध आती रहे तो स्वतन्त्रता की सुगंध नहीं फैल सकती। +* सच्चे त्याग और आत्मशुद्धि के बिना स्वराज नहीं आएगा। आलसी, ऐश-आराम में लिप्त के लिए स्वराज कहाँ! आत्मबल के आधार पर खड़े रहने को ही स्वराज कहते हैं। +* स्वार्थ के हेतु राजद्रोह करनेवालों से नरककुंड भरा है। +* हम कभी हिंसा न करें, किसी को कष्ट न द���ं और इसी उद्देश्य से हिंसा के विरूद्ध गांधीजी ने अहिंसा का हथियार आजमा कर संसार को चकित कर दिया। + + +थॉमस अल्वा एडीसन अमेरिका के महान वैज्ञानिक, नवोन्वेशक (इन्नोवेटर आविष्कारक और व्यवसायी थे। इन्होंने अपने जीवन में बहुत सारी खोजें की थी, जिनमे से इनकी सबसे बड़ी खोज बिजली के बल्ब की खोज मानी जाती है। उन्होंने १४ कंपनिया बनायीं, उन्हें में से एक जनरल इलेक्ट्रिक विश्व की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक है। बचपन के दिनों में जब इनको प्रयोग करने के लिए पैसों की आवश्यकता पड़ती थी, तब ये पैसे कमाने के लिए ट्रेन में अखबार और सब्जी बेचते थे और अपने प्रयोग को जारी रखते थे। +थॉमस एल्वा एडिसन का जन्म 11 फ़रवरी 1847 को हुआ। एडिसन ने फोनोग्राफ एवं विद्युत बल्ब सहित अनेकों युक्तियाँ विकसित कीं जिनसे संसार भर में लोगों के जीवन में भारी बदलाव आये। “मेन्लो पार्क के जादूगर” के नाम से प्रख्यात भारी मात्रा में उत्पादन' के सिद्धान्त एवं विशाल टीम को लगाकर अन्वेषण-कार्य को आजमाने वाले वे पहले अनुसंधानकर्ता थे। इसलिये एडिसन को ही प्रथम औद्योगिक प्रयोगशाला स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। अमेरिका में अकेले 1093 पेटेन्ट कराने वाले एडिसन विश्व के सबसे महान आविष्कारकों में गिने जाते हैं। एडीसन बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे। उनका देहांत 16 अक्टूबर 1931 को हुआ। +* पाँच प्रतिशत लोग सोचते हैं, दस प्रतिशत लोग सोचते हैं कि वे सोचते हैं, और बाकी के पच्चासी प्रतिशत लोग सोचने से ज्यादा मरना पसंद करते हैं। +आविष्कार करने के लिए, आपको एक अच्छी कल्पना और कबाड़ के ढेर की जरूरत होती है। +कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। +ज्यादातर लोग अवसर गँवा देते हैं क्योंकि ये चौग़ा पहने हुए होता है और काम जैसा दिखता है। +प्रतिभा एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानबे प्रतिशत पसीना है। +* अधिकतर लोग अपनी लाइफ में मौकों को गंवा देते है, क्योंकि ये काम जैसा दिखता है। +* अनगिनत असफल लोग हैं जिन्होंने ये महसूस नहीं किया कि वो सफलता के कितने नजदीक थे। +* अवसर अधिकतर लोगों के द्वारा खो दिया जाते हैं क्योंंकि यह लोग काम करने का चौगा पहने हुए होते हैं जो काम की तरह दिखता है। +* असंतोष सफलता की पहली सीढ़ी है। +* असफल होने पर कभी निराश न हों। इससे सीखो। कोशिश करते रहो। सीखना कभी भी बंद न करें। +* अहिंसा उच्चतम नैतिकत�� तक ले जाती है जो कि क्रमिक विकास का लक्ष्य है जब तक हम अन्य सभी जीवित प्राणियों को नुकसान पहुंचाना नहीं छोड़ते तब तक हम जंगली है। +* आप जो भी हैं वो आपके काम में दिखेगा। +* आपकी कीमत इसमें है कि आप क्या हैं, इसमें नहीं कि आपके पास क्या है। +* आपमें जितनी काबिलियत है उससे कहीं अधिक आपके पास अवसर हैं। +* आविष्कार करने के लिए आपको एक अच्छी कल्पना और कूड़े के ढेर की जरूरत होती है। +* इसे करने का एक बेहतर तरीक है, उसे खोजो। +* उत्तम विचार हमारी मांसपेशियों में उत्पन्न होते है। +* एक विचार विकसित करने वाला लगभग हर आदमी उस बिंदु तक काम करता है जहां यह असंभव दिखता है, और फिर वह निराश हो जाता है। यह हतोत्साहित होने की जगह नहीं है। +* ऐसी वस्तु जो बिक नहीं सकती है, मैं उसका आविष्कार नही करना चाहूंगा, उसका बिकना उपयोगिता का प्रणाम है और उपयोगिता ही कामयाबी होती है। +* कठिन परिश्रम का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। +* कार्यान्वयन के बिना, विजन (दूरदृष्टि) भ्रम है। +* किसी चीज का अविष्कार करने के लिए आपको एक अच्छी कल्पना और कबाड़ के ढेर की आवश्यकता होती है। +* किसी चीज को पाने के लिए अथक प्रयास ही मायने रखता है, हजार नाकामयाबियों के बाद भी कोशिश करना ही कामयाबी के लिए सच्चा प्रयास है। +* किसी भी कामयाबी में एक प्रतिशत प्रेरणा और 99 प्रतिशत पसीना होता है। +* किसी विचार का मूल्य उसके उपयोग में निहित होता है। +* कुछ भी उपयुक्त हासिल करने के लिए तीन महत्त्वपूर्ण चीजें हैं कड़ी मेहनत, दृढ़ता, और कॉमन सेन्स। +* कुछ भी हासिल करने के लिए तीन महान आवश्यक चीजें हैं: कड़ी मेहनत, कभी भी नहीं छोड़ना (किसी कार्य को बीच में नहीं छोड़ना) और व्यावहारिक बुद्धि। +* कोई भी चीज जो बिके ना, मैं उसका आविष्कार नहीं करना चाहूँगा। उसका बिकना उपयोगिता का प्रमाण है, और उपयोगिता सफलता है। +* जब आपने सभी संभावनाओं को समाप्त कर दिया है तो इसे याद रखो आप यह नही कर सकते। +* जितनी आपके पास काबिलियत है उससे कहीं ज्यादा अवसर हैं। +* जितनी काबिलियत है उससे कहीं अधिक अवसर हैं। +* जिस चीज को मानव का दिमाग बना सकता है, उसे मानव का चरित्र नियंत्रित भी कर सकता है। +* जीनियस में एक प्रतिशत प्रेरणा और 99 प्रतिशत पसीना है। +* जीवन में असफल हुए कई लोग वे होते हैं जिन्हें इस बात का आभास नहीं होता कि जब उन्होंने हार मान ली तो वे सफलता के कितने करीब थे। +* जुनून क��� बिना आपके पास ऊर्जा नहीं होगी, ऊर्जा के बिना आपके पास कुछ भी नहीं है। +* जो मनुष्य का दिमाग बना सकता है, उसे मनुष्य का चरित्र नियंत्रित कर सकता है। +* ज्यादा व्यस्त होने का मतलब हमेशा हकीकत में काम होना नहीं होता है। +* ज्यादातर लोग अवसर गँवा देते हैं क्योंकि ये चौग़ा पहने हुए होता है और काम जैसा दिखता है। +* परिपक्वता अक्सर युवाओं की तुलना में अधिक बेतुकी होती है और बहुत बार युवाओं के लिए सबसे अधिक अन्याय होता है। +* पांच प्रतिशत लोग सोचते हैं, दस प्रतिशत लोग सोचते हैं कि वे सोचते हैं और बाकी बचे पचासी प्रतिशत लोग सोचने से ज्यादा मरना पसंद करते हैं। +* प्रकृति वास्तव में अद्भुत है। केवल मनुष्य वास्तव में बेईमानी है। +* प्रतिभा एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानबे प्रतिशत पसीना है। +* प्रत्येक चीज के लिए समय है। +* प्रौढ़ता अक्सर युवावस्था से अधिक बेतुकी होती है और कई बार युवाओं पर अन्यापूर्ण भी। +* बैचेनी असंतोष है और असंतोष प्रगति की पहली आवश्यकता है, आप मुझे कोई पूर्ण रूप से संतुष्ट व्यक्ति दिखाइए और मैं आपको एक असफल व्यक्ति दिखा दूंगा। +* महान विचार मांसपेशियों में उत्पन्न होते हैं। +* मुझे आप पूर्ण रूप से कोई संतुष्ट व्यक्ति दिखाइए और मैं आपको एक असफल व्यक्ति दिखा दूंगा। +* मुझे इस बात पर गर्व है कि मैने कभी भी किसी की हत्या करने वाले हथियारों का आविष्कार नहीं किया। +* में कामयाब नही हुआ हूं, मैंने बस दस हजार ऐसे तरीके खोज लिए है जो काम नही करते है। +* मैं जानता हूँ ये दुनिया अनंत बुद्धि द्वारा शासित होती है। हमारे आस-पास जो कुछ भी है, जिस किसी चीज का भी अस्तित्व है, वह साबित करता है कि उसके पीछे असंख्य नियम है। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता। ये आपकी सटीकता में गणितीय है। +* में पहले ये पता कर लेता हूं कि इस संसार को क्या चाहिए फिर में आगे बढ़ता हूं और उसका अविष्कार करने का प्रयास करता हूं। +* मैं कामयाब नहीं हुआ हूं, मैंने बस दस हजार ऐसे तरीके खोज लिए है जो काम नहीं करते है। +* मैं पहले ये पता कर लेता हूं कि इस संसार को क्या चाहिए फिर मैं आगे बढ़ता हूं और उसका आविष्कार करने का प्रयास करता हूं। +* मैंने कुछ भी तुक्के में नहीं किया और न ही मेरे कोई अविष्कार भाग्य की वजह से हुए बल्कि वे काम द्वारा आये। +* यदि एक अच्छा आईडिया प्राप्त करना है तो बहुत से आईडिया सोचो। +* यदि हम उन सभी चीजों को करते हैं जो करने में हम सक्षम हैं, तो हम सचमुच खुद को चकित कर देंगे। +* ये समस्या, एक बार समाधान मिलने के बाद सरल हो जाएगी। +* वृद्धावस्था अक्सर युवावस्था से अधिक बेतुकी होती है और कई बार युवाओं पर अन्यापूर्ण भी। +* व्यस्त होने का मतलब हमेशा हकीकत में काम होना नहीं है। +* व्याकुलता असंतोष है और असंतोष प्रगति की पहली आवश्यकता है। आप मुझे कोई पूर्ण रूप से संतुष्ट व्यक्ति दिखाइए और मैं आपको एक असफल व्यक्ति दिखा दूंगा। +* शरीर का मुख्य कार्य मस्तिष्क को इधर -उधर ले जाना है। +* सफलता 1 प्रतिशत ज्ञान है और 99 प्रतिशत अभ्यास। +* सबसे अच्छी सोच वो होती है जो एकांत में की गई होती है और सबसे बुरी सोच वो होती है जो उथल पुथल के माहौल में की गई होती है। +* सभी बाइबल मानव निर्मित है। +* सभी बाइबिल मनुष्य द्वारा बनायीं गयी हैं। +* समस्या एक बार समाधान मिलने के बाद आसान हो जाएगी। +* सही में हम सभी लोग किसी चीज के एक प्रतिशत के दस लाख वें हिस्से के बारे में भी नहीं जानते है। +* साहसी बनो। मैंने व्यापार में मंदी के कई दौर देखे हैं। हमेशा अमेरिका इनसे और अधिक शक्तिशाली और समृद्ध होकर निकला है। अपने पूर्वजों की तरह बहादुर बनो। विश्वास रखो आगे बढ़ो ! +* हम इलेक्ट्रिसिटी (बिजली) को इतना सस्ता बना देंगे कि सिर्फ अमीर लोग ही मोमबत्तियां जलाएंगे। +* हम किसी चीज के बारे में 1% के दस लाखवें हिस्से के बराबर भी नहीं जानते है। +* हम किसी भी बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है, अगर हमारे पास तीन जरूरी तत्व है, ज्ञान, दृढ़ संकल्प और कठिन परिश्रम। +* हम जो भी है, वो हमारे काम में दिखता है और हर एक समस्या, समाधान मिलने के बाद सरल हो जाती है। +* हम बिजली को इतना सस्ता बना देंगे कि केवल अमीर ही मोमबत्तियां जलाएंगे। +* हम लोगो की सबसे बड़ी कमजोरी हार मान लेना है। सफल होने का सबसे आसान तरीका है हमेशा एक बार और प्रयास करना। +* हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हार मान लेना है। सफल होने का सबसे निश्चित तरीका है हमेशा एक और बार प्रयास करना। +* हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हार मान लेना है। सफल होने का सबसे निश्चित तरीका है हमेशा एक और बार प्रयास करना। +* हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हार मानने में निहित है। सफल होने का सबसे निश्चित तरीका हमेशा एक बार और प्रयास करना है। +* हमारे शरीर का प्रमुख कार्य मस्तिष्क को इधर-उधर ले जाना है। +* हमेशा एक बेहतर तरीका ���ोता है। +* हमेशा महान विचार मांसपेशियों से निकलते हैं। +* हर चीज के लिए समय है। + + +वॉरेन एडवर्ड बफे Warren Buffett 30 अगस्त 1930 को ओमाहा, नेब्रास्का में पैदा हुए) एक अमेरिकी निवेशक, व्यवसायी और परोपकारी व्यक्तित्व हैं। उन्हें शेयर बाज़ार की दुनिया के सबसे महान निवेशकों में से एक माना जाता है और वो बर्कशायर हैथवे कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और सबसे बड़े शेयर धारक हैं। +* अगर आप मानव जाति के सबसे खुशनसीब एक फीसदी में हैं तो अन्य 99 प्रतिशत के लिए सोचने हेतु आप मानव जाति के ऋणी हैं। +* अगर बिजनेस अच्छा करता है तो स्टाक खुद-बखुद अच्छा करने लगते हैं। +* अपने से बेहतर लोगों के साथ समय बिताना अच्छा होता है। ऐसे सहयोगी बनाएं जिनका व्यवहार आपसे अच्छा हो, और आप उस दिशा में बढ़ जायेंगे। +* आज का निवेशक गए हुए कल की बढ़त से फायदा नहीं कमाता। +* एक अति सक्रिय शेयर बाज़ार उद्यम के लिए जेबकतरा है। +* एक टोकरी में अपने सभी अंडे मत डालो। +* एक शानदार कंपनी को उचित कीमत पर खरीदना एक उचित कम्पनी को शानदार कीमत पर खरीदने से ज्यादा बेहतर है। +* कभी भी एकल आय पर निर्भर न रहे। आय का दूसरा श्रोत बनाने के लिए निवेश करें। +* कीमत वो है जो आप भुगतान करते हैं, मूल्य वो है जो आप प्राप्त करते हैं। +* कोई आज पेड़ की छाया में बैठा है तो इसकी वजह ये है कि उसने बहुत समय पहले पेड़ लगाया होगा। +* खर्च करने के बाद जो बचता है उसे न बचावें बल्कि बचत करने के बाद जो बचता है उसे खर्च करें। +* जोखिम तब होता है जब आपको पता नहीं होता है कि आप क्या कर रहे हैं। +* डेरिवेटिव्स सामूहिक विनाश के वित्तीय हथियार हैं। +* दोनों पैरों से एक साथ नदी की गहराई का परिक्षण कभी नहीं करें। +* प्रतिष्ठा का निर्माण करने में २० साल लग जाते हैं और उसे खोने में पाँच मिनट। अगर आप इस बारे में सोंचते हैं तो आप अलग तरह से काम करेंगे। +* बाज़ार के उतार चढाव को अपना मित्र समझिये। दूसरों की मुर्खता का लाभ उठाइये उसका हिस्सा मत बनिए। +* मैं कभी शेयर बाज़ार से पैसा कमाने के लिए शेयर नहीं खरीदता हूँ। मैं इस धारणा से शेयर खरीदता हूँ कि बाज़ार अगले दिन बंद हो जाएगा और अगले पांच सालों तक नहीं खुलेगा। +* यदि आप उन चीजों को खरीदतें हैं जिनकी आपको जरूरत नहीं है तो शीघ्र ही आपको उन चीजों को बेंचना पड़ जाएगा जिनकी आप को जरूरत है। +* रिस्क तब होता है जब आपको पता ही नही होता है ��ि आप क्या कर रहे हैं। +* वाल स्ट्रीट ही एक ऐसी जगह है ,जहाँ रोल्स रायस से आने वाले लोग सबवे से आने वाले लोगों से सलाह लेते हैं। +* समय शानदार कम्पनियों का मित्र और औसत दर्जे की कंपनियों का दुश्मन होता है। +* साख बनाने में बीस साल लगते हैं और उसे गंवाने में बस पांच मिनट।अगर आप इस बारे में सोचेंगे तो आप चीजें अलग तरह से करेंगे। +* हमेशा लम्बी अवधि के लिए निवेश करें। + + +जैसे शरारती बच्चों के लिए मक्खियाँ होती हैं, वैसे ही देवताओं के लिए हम होते हैं; वो अपने मनोरंजन के लिए हमें मारते हैं। +एक मिनट देर से आने से अछ्छा है तीन घंटे पहले आएं। +डरपोक अपनी मृत्यु से पहले कई बार मरते हैं; बहादुर मौत का स्वाद और कभी नहीं बस एक बार चखते हैं। +अच्छाई की प्रचुरता बुराई में बदल जाती है। +लेकिन आदमी आदमी होता है; जो सबसे अच्छे होते हैं वो कई बार ये भूल जाते हैं। +ये दुनिया एक रंगमंच है और सभी स्त्री और पुरुष केवल अदाकार; सबके प्रवेश और निकास का समय भी तय है; और एक व्यक्ति अपने समय अंतराल में अनेक किरदार निभाता है। ये किरदार ७ चरणों में निभाया जाता है। +* अच्छाई की प्रचुरता बुराई में बदल जाती है। +* महानता से घबराइये नहीं; कुछ लोग महान पैदा होते हैं, कुछ महानता हासिल करते हैं और कुछ लोगों के ऊपर महानता थोप दी जाती है। + + +* सभी प्रचार लोकप्रिय होने चाहिए और इन्हें जिन तक पहुचाना है उनमे से सबसे कम बुद्धिमान व्यक्ति के भी समझ में आने चाहिए। +* जो कोई भी आकाश को हरा और मैदान को नीला देखता या पेंट करता है उसे मार देना चाहिए। +* कुशल और निरंतर प्रचार के ज़रिये, कोई लोगों को स्वर्ग भी नर्क की तरह दिखाया जा सकता है या एक बिलकुल मनहूस जीवन को स्वर्ग की तरह दिखाया जा सकता है। +* जर्मनी या तो एक विश्व-शक्ति होगा या फिर होगा ही नहीं। +* केवल वही, जो युवाओं का मालिक होता है, भविष्य में लाभ उठता है। +* एक ईसाई होने के नाते मुझे खुद को ठगे जाने से बचाने का कोई कर्तव्य नहीं है, लेकिन सत्य और न्याय के लिए लड़ने का मेरा कर्तव्य है। +* सभी महान आन्दोलन लोक्रप्रिय आन्दोलन होते हैं। वे मानवीय जूनून और भावनाओं का विस्फोट होते हैं, जो कि विनाश की देवी या लोगों के बीच बोले गए शब्दों की मशाल के द्वारा क्रियान्वित किये जाते हैं। +* विवेक एक यहूदी अविष्कार है। +* जीत के साथ तो कोई भी खुश हो सकता है। शक्तिशाली केवल वही ह�� जो हार को सह ले। +* दूसरे लोग क्या सोचते हैं, यह सोचकर, वह करना कभी ना छोड़े, जो करना आपको बेहद पसंद है। +* कोई भी व्यक्ति अनियमित ढंग से रह कर ही किसी वस्तु का निवारण निकाल सकता है। +* और कुछ क्षेत्रों में ईमानदारी को मूर्खता की तरह देखा जाता है। +* अगर आप जीत जाते हैं तो आपको कुछ भी समझाने की जरूरत नहीं है, और अगर आप हार जाते हैं तो आपको वहां नहीं होना चाहिए। +* एक रचनात्मक और ऊर्जावान दिमाग केवल उसी व्यक्ति में पाया जा सकता है जो कि खुद रचनात्मक और ऊर्जावान है। +* किसी भी फैसले को लेने से पहले हजार बार सोचें लेकिन कोई भी फैसला लेने के बाद कभी पीछे मुड़कर ना देखें, भले ही आपको हजारों परेशानियों का सामना करना पड़े!!। +* मैं अपने पिता की इज्जत करता हूं, लेकिन मैं अपनी माता से प्रेम करता हूं। +* मेरे जनरल किसी बैल की तरह सीमा पर खड़े होकर, युद्ध युद्ध युद्ध चिल्ला रहे थे, लेकिन अब क्या हुआ? मैं अपनी आक्रामक कूटनीतिक से आगे बढ़ा तो जनरल्स ने ही मुझे रोकने की कोशिश की। यह एक गलत स्थिति है। +* सफल होने के लिए सबसे पहला आवश्यक तत्व है लगातार हिंसा का रोजगार। +* वह व्यक्ति जिसे इतिहास की जरा भी समझ नहीं है, वह एक बहरे और अंधे जैसा है। +* इतिहास पढ़ने का अर्थ है ऐसी शक्तियों को समझना और ढूंढना जिनके कारण वह सब हुआ जो भी कुछ हम आज देखते हैं। लगातार पढ़ने का गुण सही चीजों को याद रखने और बुरी चीजों को भूल जाने में काफी ज़्यादा सहायक है। +* पड़ने और खोज करते रहने से हम यह जान पाते हैं कि कौन सी बातें याद रखने लायक हैं और कौन सी बातें हैं जो याद रखने लायक नहीं हैं। +* जब व्यवस्था का खात्मा होता है, तब युद्ध शुरू होता है। +* बड़े देशों की यही आदत है और शक्ति है कि जो उनकी नकल करने से डरता है, वे उसे परेशान करते हैं और उन्हे डराते हैं। +* शब्दों द्वारा ऐसी जगहों पर जाने के रास्ते बनाए जा सकते हैं जहां आप कभी नहीं गए। +* हमारा सम्पूर्ण विश्व भगवान और शैतानों द्वारा मिलकर बना है। +* पढ़कर आप किसी भी पाठ का अन्त नहीं करते, अपितु उसके बिना होने वाले अन्त का अन्त करते हैं। +* जब आपके पास अपने लोगों के लिए शर्मिंदा होने जैसा कुछ ना हो तब उन पर गर्व किजिए। +* जो अकेले, युवाओं के समूह को चला लेता है, वह भविष्य कमा लेता है। +* ताकतवर व्यक्ति को हमेशा कमजोर व्यक्ति पर हावी रहना चाहिए, ना कि उसके साथ दोस्ती करनी चाहिए, और अगर वह ऐसा करता है तो उसकी ताकत का बलिदान होगा। केवल वही व्यक्ति इस नियम को घृणा की नजर से देखा सकता है, क्यूंकि वह छोटी स्पीच सोच का व्यक्ति है। अगर ऐसा है तो क्यूं इस नियम के कारण, दुनिया विकास कर रही है। +* सारे महान आंदोलन, प्रसिद्ध आंदोलन हैं। वे सभी आंदोलन लोगों की भावनाओं और उम्मीदों के ज्वालामुखी हैं, उन सभी देवताओं के खिलाफ जिन्होने उनके साथ गलत किया है। +* किसी भी राजनेता को बाथ शूट में कभी फोटो नहीं खींचवानी चाहिए। +* ताकतवर व्यक्ति हमेशा अकेला होता है। +* मैं एक ऐसे राज्य की कल्पना करता हूं जहां हर व्यक्ति यह जानता होगा कि वह जीता और मरता है केवल मानवीय स्पिसीज के संरक्षण के लिए।। +* इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना बड़ा झूट बोल रहे हैं, अगर आप इसे लगातार बोलेंगे तो इस पर यकीन कर लिया जाएगा। +* हमारा मकसद होना चाहिए कि हम सामंजस्य बिठाकर, अपनी जनसंख्या को अपनी सीमा के अंदर रखें। +मैं केवल उस चीज के लिए लड़ सकता हूं, जिसे मैं प्यार करता हूं, और केवल उस चीज को प्यार कर सकता हूं, जिसकी मैं इज्जत करता हूं, और केवल उस चीज की इज्जत कर सकता हूं जिसके बारे में मैं थोड़ा बहुत ही सही, मगर जानता हूँ।'' +* परेशानियों के बिना जीतना केवल जीत है, लेकिन परेशानियों के साथ जितना इतिहास बन जाता है। +* आधारभूत तरीके से राष्टीय समाजवाद और मार्क्सवाद एक ही चीजें हैं। +* किसी भी देश को जीतने के लिए, उसके नागरिकों को निहत्था कर दो। +* एक महान व्यक्ति के चुनाव द्वारा खोजे जाने से, एक सुई के छेद से एक ऊंट को गुजरते हुए देखना ज़्यादा आसान है। +* इस दुनिया में बुद्धिमान लोगों द्वारा किया गया कोई भी रचनात्मक कार्य, क्या बड़े समूह द्वारा नकारा नहीं गया है?। +* चालाकी से और लगातार फैलाए गए प्रोपेगेंडा के कारण, लोग स्वर्ग को भी नर्क मानने लगेंगे, और इसी तरह अगर इसके उलट चाहें तो लोग बुरे से बुरे हालातों को भी स्वर्ग समझेंगे। +* अपने युवापन की शुरुआत से ही मैं किताबें पढ़ने में खास दिलचस्पी रखता था, और मैं भाग्यशाली रहा कि मेरी अच्छी याददाश्त ने इन सबमें मेरा भरपूर साथ दिया। +* जब सेना अपनी शक्तियों के आकलन में ही छह महीने लगा दे और दुश्मन पर हमला ना करे, तो यह जान लीजिए कि यह देश वासियों के लिए खतरा है। +* बुद्धिमान लोगों के नेताओं के पास अलग अलग विद्रोहियों को खड़ा करने की क्षमता होनी चाहिए, आखिरकार वे सब एक ह��� वर्ग से जो आते हैं। +* एक औसत व्यक्ति को मृत्यु से सबसे ज़्यादा खतरा रहता है, लेकिन वह इसके बारे में शायद ही कभी सोचता हो। वह कभी कभार इस बारे में सोचता भी है लेकिन सोच की उस हद तक नहीं। वह अंधों की तरह दिन ब दिन जीता चला जाता है। दूसरे लोग उसे सावधानी से देखता हैं, वे चौंका जाते हैं उसकी आँखें देखकर, कितनी शान्त और मधुर हैं। +* खुद की तुलना कभी किसी और के साथ ना करें, यदि आप ऐसा करते हैं तो आप अपनी बेज्त्ती कर रहे हैं। + + +* कामियाबी और नाकामयाबि दोनों ही जिंदिगी के हिस्से हे, और ये स्थाई बिलकुल नहीं है। +* सफलता आपको विनम्र बनती है। +* मेरा मानना है कि प्यार किसी भी उम्र में हो सकता है, इसकी कोई उम्र नहीं होती। +* चाहे लोग इसे पसंद करें या नहीं, मेरी मार्केटिंग की सोच ये है कि अगर आप कोई चीज लम्बे समय तक लोगों के सामने रखते हैं तो उन्हें इसकी आदत पड़ जाती है। + + +* मैं कभी भी सही निर्णय लेने पर विश्वास नहीं करता। मैं निर्णय ले कर, उसे सही साबित करने में विश्वास करता हूं। +* लोहे को कोई नुकसान नहीं पहूंचा सकता लेकिन यह कार्य उसका अपना ही जंग कर सकता है। वैसे ही किसी व्यक्ति को कोई नष्ट नहीं कर सकता सिवाय उसकी अपनी मानसिकता के। +* अगर आप तेज चलना चाहते है तो अकेले चलिए। लेकिन अगर दूर तक जाना चाहते है तो साथ-साथ चलिए। +* जिन जीवन मूल्यों और नीतियों को मैं जीवन में जीता रहा, इसके सिवा मैं जो संपंदा अपने पीछे छोड़ना चाहता हूं वह यह है कि आप हमेशा जिस चीज को सही माने उसके साथ डट कर खड़े रहे और जहां तक संभव हो निष्पक्ष बने रहे। +* मैं भारत के भविष्य और इसकी क्षमता को लेकर काफी आशान्वित हूं। यह बहुत महान देश है। इसमें बहुत क्षमता हैं। +* हमें सफल व्यक्तियों से प्रेरणा लेनी चाहिए कि – अगर वे सफल हो सकते है तो हम क्यों नहीं? परंतु प्रेरणा लेते समय आंखे खुली रखनी चाहिए। +* अगर कोई भी कार्य जन-साधारण के मापदंड़ों पर खरा उतरता है तो उसे जरूर करे लेकिन अगर नहीं उतरता हो तो बिल्कूल न करे। +* विश्व के करोड़ों लोग मेहनत करते है लेकिन सबको इसका फल अलग-अलग प्राप्त होता हैं। इन सब के लिए मेहनत जिम्मेदार हैं। इसलिए मेहनत से मत भागीए, मेहनत करने के तरीको में सुधार लाइए। +* हम सभी के पास समान योग्यता नहीं है लेकिन हमारे पास अपनी प्रतिभा को विकसित करने के लिए समान अवसर है| +* मैं उन लोगों की प्रसंशा क���ता हूं जो बहुत सफल हैं। लेकिन अगर वह सफलता बहुत ज्यादा निर्ममता से हासिल हो तो मैं उस व्यक्ति की प्रसंशा तो करूँगा लेकिन इज्जत नहीं। +* हर व्यक्ति में कुछ-न-कुछ विशेष गुण और प्रतिभा होती है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने अंदर मौजूद गुणों और प्रतिभा का पहचानना चाहिए। + + +* रिश्ते और विश्वास, ये जीवन के आधार हैं। +* अगर हम हमारे विचार प्रक्रिया के केंद्र में लाखों भारतीयों को रखते हैं, अगर हम उनके आत्म बोध के खातिर उनके कल्याण, उनके भविष्य के बारे में सोचते हैं, हम सही रास्ते पर हैं। भारत तभी बढेगा, विकास करेगा जब ये समृद्ध, विकसित होंगे। हम किसी भी गूढ़ रणनीतियों से विकसित नहीं हो सकते। हमारी क्रय शक्ति, हमारी आर्थिक ताकत, हमारे बाजार सभी इन लोगों की समृद्धि पर निर्भर करता है। +* आज मैं एक अरब लोगों में एक अरब संभावित उपभोक्ताओं को देखता हूँ, उनके लिए मूल्य उत्पन्न करने का एक अवसर और अपनी वापसी के लिए एक अवसर के रूप में देखता हूँ। +* मुझे ये लगता है कि हमारे मौलिक धारणा यह है कि हमारा विकास जीवन का एक तरीका है और हमें हमेशा विकासशील बने रहना चाहिए। + + +प्रेम या प्यार love) मन की एक ऐसी भावना है जिस पर न केवल कवियों या लेखकों ने दिया है, बल्कि मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों दोनों ने इसे समझने की कोशिश की है। प्रेम ने हजारों उपन्यासों, फिल्मों, कविता ओं और गीतों को प्रेरित किया है। प्यार सबसे तीव्र भावनाओं को जागृत करता है और प्यार में पड़ने का जुनून प्रेमियों के मन और शरीर को प्रभावित करता है। +* प्यार में हमेशा कुछ पागलपन होता है, लेकिन हमेशा पागलपन में भी कुछ कारण होता है। फ्रेडरिक नीत्से +* एक चुंबन? जब शब्द अतिश्योक्तिपूर्ण हो जाए तो बात करने के लिए मुग्ध चाल। इंग्रिड बर्गमैन +* हम सभी को एक-दूसरे की ज़रूरत है। लियो बुशकाग्लिया +* प्रेम, क्योंकि इसका कोई भूगोल नहीं है, कोई सीमा नहीं जानता। ट्रूमैन कैपोट +* मैं आपके जीवन से नहीं खुशी या मौका के लिए गायब हो गया, बस यह जांचने के लिए कि क्या आप मुझे याद करते हैं और जब आप करते हैं तो आप मुझे ढूंढते हैं। RousTalent +* प्रेम का कोई इलाज नहीं है, लेकिन यह सभी बुराइयों का एकमात्र इलाज है। लियोनार्ड कोहेन +* अपने भाग्य को चिह्नित करने वाले चार अक्षरों से प्यार करें। चार पत्र जो आपको सपने देखने के लिए आमंत्रित करते हैं। चा��� पत्र जो आपको बताते हैं कि आप जीवित हैं, हालांकि कई लोगों के लिए आप मर चुके हैं। अज्ञात +* किसी को याद करने का सबसे खराब तरीका उनके बगल में बैठा जाना है और यह जानना है कि आप उन्हें कभी नहीं कर सकते। गेब्रियल गार्सिया मरकेज़ +* जब आप प्यार में पड़ जाते हैं तो आप वही व्यक्ति नहीं होते जो आप पहले थे, क्योंकि जब आप वास्तविक जीवन जीने लगते हैं। लुइस मिगुएल अलवरेडो +* यह जानने के लिए क्या अफ़सोस है कि ऐसी ताकत वाले लोग हैं जो उन्हें कमज़ोर बनाते हैं और यह उन तथ्यों से परिलक्षित नहीं होता है जो उनके मुंह से निकलते हैं। लियोनार्डो नुनेज़ वेले +* वह व्यक्ति जो आपका हकदार है, वह है जिसे वह करने की स्वतंत्रता है, जो वह चाहता है, आपको हर समय चुनता है। डायरिथ वाइनहाउस +* कुछ लोगों को सत्ता से प्यार है और दूसरों को प्यार करने की शक्ति। बॉब मार्ले +* युवा लोगों का प्यार वास्तव में उनके दिल में नहीं है, बल्कि उनकी आँखों में है। विलियम शेक्सपियर +* जो प्यार से किया जाता है वह अच्छाई और बुराई से परे होता है। फ्रेडरिक नीत्शे +* जो प्रेम करता है, वह विनम्र बनता है। जो लोग प्यार करते हैं अपने नशीलेपन के एक हिस्से का त्याग करें। सिगमंड फ्रायड +* प्यार कुछ ऐसा नहीं है जिसे आपको खोजना है, बल्कि कुछ ऐसा है जो आपको पाता है। लॉरेटा यंग +* प्रेम दो शरीरों में रहने वाली एक आत्मा से बना है। अरस्तू +* प्रेम की शक्ति की कोई सीमा नहीं है। जॉन मॉर्टन +* प्रेम कर्तव्य से बेहतर शिक्षक है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* प्रेम एक हाथी को एक ताला के माध्यम से पारित करेगा। सैमुअल रिचर्डसन +* चुंबन, भले ही वे हवा में हों, सुंदर हैं। ड्रयू बैरीमोर +* ​​हृदय की वृत्ति की तरह कोई वृत्ति नहीं है। लॉर्ड बायरन +* सौंदर्य प्रेमी का उपहार है। विलियम कांग्रेव +* जितना अधिक हम वासना के विचारों में पड़ते हैं उतना ही अधिक हम रोमांटिक प्रेम से दूर जाते हैं। डगलस हॉर्टन +* मैं आप में हूं और आप मुझमें हैं, आपसी ईश्वरीय प्रेम। विलियम ब्लेक +* प्यार क्या है? यह सुबह और शाम का तारा है। सिनक्लेयर लुईस +* मैं एक बेहतर इंसान हूं जब मैं खुद को रोमांस के लिए समय देता हूँ। डायने क्रूगर +* यदि आपका दिल एक ज्वालामुखी है, तो आप इसमें फूलों के बढ़ने की उम्मीद कैसे करते हैं?। खलील जिब्रान +* प्यार का पहला कर्तव्य सुनना है। पॉल टिलिच +* केवल एक ही तरह का प्यार है, लेकिन एक ��जार नकलें हैं। फ्रांकोइस डे ला रोचेफाउल्कड +* प्यार के बिना एक जीवन फूलों या फलों के बिना एक पेड़ की तरह है। खलील जिब्रान +* प्रेम की शक्ति की कोई सीमा नहीं है। जॉन मॉर्टन +* प्यार एक फूल है जिसे आपको बढ़ने देना चाहिए। जॉन लेनन +* प्यार करने की तुलना में प्यार करने में अधिक आनंद है। जॉन फुलर +* प्यार का सबसे अच्छा सबूत है विश्वास। जॉइस ब्रदर्स +* लोग प्रोजेक्ट करते हैं कि उन्हें क्या पसंद है। जैक्स कैस्टेउ +* पहला प्यार बहुत भोलापन और थोड़ी जिज्ञासा है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* हम प्यार करते हैं क्योंकि यह एकमात्र महान साहसिक है। निक्की जियोवानी +* प्यार अंतहीन क्षमा का एक कार्य है, एक निविदा रूप जो एक आदत बन जाता है। पीटर उस्तीनोव +* सबसे छोटे केबिन में प्यार करने वाले और खुश जोड़े के लिए एक कोना है। फ्रेडरिक शिलर +* किसे प्यार किया जा रहा है, गरीब है?। ऑस्कर वाइल्ड +* क्या आपके पास प्यार करने का कोई कारण है?। ब्रिजित बरदोट +* प्रेम का मुख्य जादू हमारी अज्ञानता है कि एक दिन यह समाप्त हो सकता है। बेंजामिन डिसरायली +* यदि आपके पास किसी व्यक्ति से प्यार करने के कारण हैं, तो आप उससे प्यार नहीं करते। स्लावोज ज़िज़ेक +* प्रेम एकमात्र प्रकार का सोना है। अल्फ्रेड लॉर्ड टेनीसन +* प्यार की अंतरंग वास्तविकता को केवल प्यार से ही पहचाना जा सकता है। हंस उर्स वॉन बल्थासार +* प्यार सर्वोच्च और बिना शर्त है, आकर्षण सुखद है लेकिन सीमित है। ड्यूक एलिंगटन +* पर्याप्त "आई लव यू" पर्याप्त नहीं है। लेनी ब्रूस +* कान दिल के लिए आय है। वोल्टेयर +* प्यार अंतरिक्ष और दिल द्वारा मापा गया समय है। मार्सेल प्राउस्ट +* प्रेम में, इशारे, शब्दों की तुलना में अतुलनीय रूप से अधिक आकर्षक, प्रभावी और मूल्यवान हैं। फ्रांकोइस राबेलिस +* कड़वाहट जीवन को घेर लेती है, प्रेम इसे मुक्त कर देता है। हैरी इमर्सन फ़ॉस्डिक +* प्यार एक ऐसा खेल है जिसमें दोनों जीत कर खेल सकते हैं। ईवा गैबर + + +कोई भी महान व्यक्ति अवसरों की कमी के बारे में शिकायत नहीं करता। +जीवन की विडम्बना यह नहीं है कि आप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंचे, बल्कि यह है कि पहुँचने के लिए आपके पास कोई लक्ष्य ही नहीं था। + + +: हे भगवान इंद्र! आप इस नवविवाहित जोड़े को चक्रवाक पक्षियों की जोड़ी की तरह एक साथ लाएं; उन्हें वैवाहिक आनन्द लेने दें, और उनकी सन्तान के साथ, एक पूर्ण जीवन जीने दें। +: विवाह आठ प्रकार के होते हैं जो क्रमशः ये हैं: ब्राह्म विवाह, दैव विवाह, आर्ष विवाह, प्राजापत्य विवाह आसुर विवाह, गान्धर्व विवाह, राक्षस विवाह, और आठवां पैशाच विवाह, जो अधम विवाह है। +: वेदों-शास्त्रों का अध्ययन जिसने किया हो ऐसे वर को स्वयमेव आमंत्रित करके, उसे वस्त्र-आभूषण आदि अर्पित करके, और समुचित रूप से पूजते हुए कन्या का सोंपा जााना धर्मयुक्त ‘ब्राह्म’ विवाह कहलाता है। +: विवाहोत्सुक स्त्री-पुरुष को वर-कन्या के रूप में स्वीकार कर “तुम दोनों मिलकर साथ-साथ धर्माचरण करो” यह कहते हुए और उनका समुचित रूप से स्वागत-सत्कार करते हुए वर को कन्या प्रदान करना ‘प्राजापत्य’ विवाह कहलाता है । +: कन्या एवं वर की इच्छा और परस्पर सहमति से स्थापित संबंध, जो शारीरिक संसर्ग तक पहुंच सकते हैं, की परिणति के रूप में हुए विवाह को ‘गांधर्व’ विवाह की संज्ञा दी गई है। +: कन्यापक्ष के निकट संबंधियों, मित्रों, सुहृदों आदि को डरा-धमका करके, आहत करके, अथवा उनकी हत्या करके रोती-चीखती-चिल्लाती कन्या घर से जबरन उठाकर ले जाना और विवाह करना राक्षस विधि का विवाह कहलाता है। +: जब कोई कन्या सोई हो, भटकी हो, नशे की हालत में हो, अथवा सुरक्षा के प्रति असावधान हो, तब यदि कोई उसके साथ शारीरिक संबंध बनाकर अथवा अन्यथा विवाह कर ले तो उसे निकृष्टतम श्रेणी का ‘पैशाच’ विवाह कहा जाता है। +: ब्राह्मण को आदि से ६ प्रकार के विवाह, क्षत्रिय को असुरादि क्रम से ४ प्रकार के, वैश्य शूद्र को राक्षस रहित ३ प्रकार के विवाह धर्मानुकूल कहे गये हैं। +: धर्म में, अर्थ में, और काम में अपने कर्तव्य में, इनकी सलाह का उल्लंघन नहीं करूँगा। अर्थात अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं में, अपनी आवश्यकताओं में, मैं इनकी बातों का उल्लंघन नहीं करूँगा। दूसरे शब्दों में इसका अर्थ है मेरे कर्तव्य में, मेरी वित्तीय प्रतिबद्धताओं में, मेरी जरूरतों में, मैं आपसे सलाह लूंगा, आपकी सहमति लूंगा और कार्रवाई करूंगा। +* युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह! जो समस्‍त धर्मों का, कुटुम्‍बीजनों का, घर का तथा देवता, पितर और अतिथियों का मूल है, उस कन्‍यादान के विषय में मुझे कुछ उपदेश कीजिये। पृथ्‍वीनाथ सब धर्मों से बढ़कर यही चिन्‍तन करने योग्‍य धर्म माना गया है कि पात्र को कन्‍या देनी चाहिये? भीष्‍मजी ने कहा- बेटा सत्‍पुरुषों को चाहिये कि वे प��ले वर के शील-स्‍वभाव, सदाचार, विद्या, कुल, मर्यादा और कार्यों की जाँच करें। फिर यदि वह सभी दृष्टियों से गुणवान प्रतीत हो तो उसे कन्‍या प्रदान करें। युधिष्ठिर! इस प्रकार ब्‍याहने योग्‍य वर को बुलाकर उसके साथ कन्‍या का विवाह करना उत्तम ब्राहामणों का धर्म-ब्रम्ह विवाह है। जो धन आदि के द्वारा वरपक्ष को अनुकुल करके कन्‍यादान किया जाता है, वह शिष्‍ट ब्राम्हण और क्षत्रियों का सनातन धर्म कहा जाता है। (इसी को प्राजापत्‍य विवाह कहते हैं)। युधिष्ठिर! जब कन्‍या के माता-पिता अपने पसंद किये हुए वर को छोड़कर जिसे कन्‍या पसंद करती हो तथा जो कन्‍या को चाहता हो ऐसे वर के साथ उस कन्‍या का विवाह करते हैं, तब दवेता पुरुष उस विवाह को गान्‍धर्व धर्म (गान्‍धर्व विवाह) कहते हैं। नरेश्‍वर! कन्‍या के बन्‍धु-बान्‍धवों को लोभ में डालकर उन्‍हें बहुत-सा धन देकर जो कन्‍या को खरीद ले जाता है, इसे मनीषी पुरुष असुरों का धर्म (आसुर विवाह)कहते हैं। तात! इसी प्रकार कन्‍या के रोते हुए अभिभावाकों को मारकर, उनके मस्‍तक काटकर रोती हुई कन्‍या को उसके घर से बलपूर्वक हर लाना राक्षसों का काम (राक्षस विवाह) कहा जाता है। युधिष्ठिर! इन पांच (ब्राहय, प्राजापत्‍य,गान्‍धर्व आसुर और राक्षस) विवाहों में से पूर्वकथित तीन विवाह धर्मानुकुल हैं और शेष दो पापमय हैं। आसुर और राक्षस विवाह किसी प्रकार भी नहीं करने चाहियें[१]। नरश्रेष्‍ठ! बारह, क्षात्र (प्राजापत्‍य) तथा गान्‍धर्व- ये तीन विवाह धर्मानुकुल बताये गये हैं। ये पृथक हों या अन्‍य विवाहों से मिश्रित- करने ही योग्‍य हैं। इसमें संशय नहीं है। ब्राम्हण के लिये तीन भार्याएँ बतायी गयी हैं (ब्राहामण-कन्‍या, क्षत्रिय-कन्‍या और वैश्‍य–कन्‍या क्षत्रिय के लिये दो भार्याएँ कही जाती हैं (क्षत्रिय-कन्‍या और वैश्‍य-कन्‍या)। वैश्‍य केवल अपनी ही जाति की कन्‍या के साथ विवाह करे। इन स्त्रियों से जो संतानें उत्‍पन्‍न होती हैं वे पिता के समान वर्णवाली होती हैं (माताओं के कुल या वर्ण के कारण उनमें कोई तारतम्‍य नहीं होता)। ब्राम्हण की पत्नियों में ब्राम्हण-कन्‍या श्रेष्‍ठ मानी जाती है, क्षत्रिय के लिये क्षत्रिय-कन्‍या श्रेष्‍ठ है (वैश्‍य की तो एक ही पत्‍नी होती है; अत: वह श्रेष्‍ठ है ही)।कुछ लोगों का मत है कि रति के लिये शूद्र-जाति की कन्‍या से भी विवाह किया जा सकता है; परंतु और लोग ऐसा नहीं मानते (वे शूद्र-कन्‍या को त्रैवर्णिकों के लिये अग्राह बतलाते हैं)। श्रेष्‍ठ पुरुष ब्राम्हण का शुद्र-कन्‍या के गर्भ से संतान उत्‍पन्‍न करना अच्‍छा नहीं मानते। शूद्रा के गर्भ से संतान उत्‍पन्‍न करने वाला प्रायश्चित का भागी होता है। तीस वर्ष का पुरुष दस वर्ष की कन्‍या को, जो रजस्‍वला न हुई हो, पत्‍नी रूप में प्राप्‍त करे। अथवा इक्‍कीस वर्ष का पुरुष सात वर्ष की कुमारी के साथ विवाह करे। महाभारत अनुशासन पर्व, अध्याय ४४ +: ऊंटों के विवाह में गधे यदि गीत गा रहे हों तो वे परस्पर एक दूसरे की प्रशंसा मे कहते है कि अहा क्या सुन्दरता है और क्या मधुर गायन है! +: सदा वक्र (टेढ़ा सदा क्रूर (निर्दयी सदा पूजा की अपेक्षा करने वाला, नित्य कन्या राशि में ही स्थित रहने वाला जमाता (जमाई) दसवाँ ग्रह है। +: विवाह, जन्म और मृत्यु – ये तीन काल द्वारा निर्मित पाश (बन्धन) हैं।ये तीनों कब, किस प्रकार, और किस कारण होंगे- यह अपरिहार्य हैं, इसको नियंत्रित नहीं किया जा सकता। +* अच्छे विवाह का रहस्य यह समझना है कि विवाह सम्पूर्ण होना चाहिए, यह स्थायी होना चाहिए, और यह बराबरी का होना चाहिए। फ्रैंक पिटमैन +* अच्छी शादी, ख़ुशहाल शादी से भिन्न होती है। डेबरा विंगर +* अच्छा विवाह दो अच्छे माफ कर देने वालों का मिलन है। रूथ बेल ग्राहम +* अगर अच्छी शादी जैसी कोई चीज होती है, तो यह इसलिए है कि यह प्यार के बजाय दोस्ती जैसी है। मिशेल डी मोंटैगने +* यदि मैं विवाह करता हूँ, तो मैं पूरी तरह विवाहित होना चाहता हूँ। ऑड्रे हेपब्र्न +* अपने विवाहित जीवन को सुखी रखने के लिए जरूरी है कि जब आप गलत हों तो स्वीकार कीजिये, और अगर आप सही हैं तो अपना मुह बन्द रखिये। ओग्डेन नैश +* अपने जीवनसाथी को सावधानी से चुनिए। इस एक निर्णय से आप अपने समस्त सुख या दुःख का 90 प्रतिशत भाग पायेंगे। एच जैक्सन ब्राउन जूनियर +* आप किसी को तब तक नहीं जान पाते हैं जब तक कि आप उनसे विवाह नहीं कर लेते। एलानोर रूज़वेल्ट +* आपको मेरी यही सलाह है कि आप विवाह कर लें। अगर आपको अच्छी पत्नी मिल जाती है, तो आप सुखी रहेंगे। यदि नहीं, तो आप एक दार्शनिक बन जायेंगे। सुकरात +* इस दुनिया में कोई भी चीज एक विवाहित स्त्री के समर्पण जैसी नहीं है। यह एक ऐसी वस्तु है जिसके बारे में कोई भी विवाहित व्यक्ति कुछ नहीं जानता। ऑस्कर वाइल्ड +* उस व्यक्ति के साथ विवाह मत कीजिये जिसके साथ रहकर आप जी सकें। किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह कीजिये जिसके बिना आप जिन्दा न रह सकें। जेम्स डॉबसन +* अच्छा विवाह वह है जो लोगों में परिवर्तन लाने और उन्नति करने का अवसर देता है और वह भी उस तरीके से जिसमें वे अपने प्रेम को व्यक्त कर सकें। पर्ल एस. बक +* अच्छा विवाह उदारता की प्रतियोगिता है। डायने सॉयर +* अच्छी शादी से ज्यादा प्यारा, दोस्ताना और आकर्षक रिश्ता, समन्वय या साथ नहीं है। मार्टिन लूथर +* औरत के लिए उस व्यक्ति के साथ सुखी रहना मुश्किल है, जो उससे उस तरह बर्ताव करने पर बहुत जोर देता है, जैसे कि वह पूर्णतया सामान्य व्यक्ति हो। ऑस्कर वाइल्ड +* खुशहाल शादी का रहस्य यह है कि आप चार दीवारों के भीतर किसी के साथ शांति से रह सकते हैं, यदि आप संतुष्ट हैं कि आप जिससे प्यार करते हैं वह आपके पास है, या तो ऊपर या नीचे, या उसी कमरे में, और आपको लगता है कि वह गर्मजोशी आपको बार-बार नहीं मिलती, बस यही तो प्यार है। ब्रूस फोर्सिथ +* विवाह में तीन आदमी होते हैं, एक स्त्री, एक पुरुष, और एक वह जिसे मै तीसरा व्यक्ति कहता हूँ, जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, वह व्यक्ति जो स्त्री और पुरुष दोनों से मिलकर बना है। जोस सरामागो +* सचमुच के सुखमय विवाह की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है स्वामिभक्ति (निष्ठा)। बिना विश्वास के कोई भी सफल विवाह सम्भव नहीं है। अरविन्द सिंह +* सफल विवाह के लिए जरूरी है कि आप कई बार प्यार में पड़ें, लेकिन हमेशा एक ही व्यक्ति के साथ। मिग्नन मकलौघ्लीन +* सफल विवाह के लिए भावपूर्ण प्रेम से भी ज्यादा कुछ चाहिये। एक चिरस्थायी युति के लिए हर हाल में एक दूसरे के प्रति नैसर्गिक प्रेम होना चाहिये। अज्ञात +* सफल विवाह वह नहीं है जब आप अपनी पत्नी के साथ शांति से रह सकें, बल्कि तब है जब आप उसके बिना शांति से न रह सकें। यासिर कढ़ी +* सफल विवाह एक ऐसा भवन है, जिसे हर दिन फिर से बनाया जाना चाहिए। आंद्रे मौरिस +* साधारण विवाह और एक असाधारण विवाह के बीच का अन्तर हर दिन बस थोड़ा अतिरिक्त देने में है; जितनी बार सम्भव हो, जब तक हम दोनों जीवित रहें। फॉन वीवर +* स्त्री की कल्पना बहुत तेज होती है; यह एक क्षण में ही प्रशंसा से प्रेम और फिर प्रेम से विवाह तक पहुँच जाती है। जेन ऑस्टिन +* ऐसे व्यक्ति से शादी न करें जिसके साथ आप रह सकें; सिर्फ उस व्यक्ति से शादी करें जिसके बिना आप रह न सकें। जेम्स सी. ��ॉबसन +* केवल वे ही व्यक्ति विवाह के पवित्र बंधन में बंधने के अधिकारी हैं जो एक दूसरे की भलाई के लिये खुद को पूरी तरह समर्पित कर सकें। अरविन्द सिंह +* कोई भी स्त्री उस व्यक्ति का आधिपत्य स्वीकार नहीं करना चाहती जो ईश्वर की आज्ञानुसार चलने को तैयार नहीं है। टी. डी. जकेस +* ख़ुशहाल शादी आपके एक साथ बिताये दिनों, महीनों या सालों की संख्या पर आधारित नहीं होती। यह इस बारे में है कि आप एक-दूसरे से हर दिन कितना प्यार करते हैं। अज्ञात +* खुशहाल शादी एक लंबा संवाद है, जो हमेशा बहुत छोटा लगता है। आंद्रे मौरिस +* खुशहाल शादी का केवल एक ही तरीका है और जैसे ही मुझे पता चलता है कि यह क्या है, मैं फिर से शादी कर लूंगी। क्लिंट ईस्टवुड +* ख़ुशहाल शादी की शुरूवात तब होती है, जब हम उससे शादी करते हैं, जिससे हम प्यार करते हैं और यह फलती-फूलती है, जब हम उससे प्यार करते हैं, जिससे हम शादी करते हैं। टॉम मुलेन +* ख़ुशहाल शादी फिंगर-प्रिंट्स की तरह हैं, हर एक अलग है और हर एक खूबसूरत है। अज्ञात +* ख़ुशहाल शादी में तीन चीज़ें होती है: एक साथ होने की यादें, गलतियों की माफ़ी और कभी भी एक-दूसरे को न छोड़ने का वादा। सुरभि सुरेंद्र +* चिरस्थायी विवाह की नींव उन दो लोगों द्वारा डाली जाती है, जो अपने द्वारा लिए गये पवित्र वचन पर विश्वास करते और जीते हैं। दारलेने शख्त +* जब आप विवाह करने जा रहें हों, तो अपने आप से यह सवाल पूछिये: क्या आपको विश्वास है कि आप इस व्यक्ति से अपनी वृद्धावस्था में अच्छी तरह से वार्तालाप करने में सक्षम होंगे? विवाह में दूसरी सभी चीज़ें अस्थायी हैं। फ्रेडरिक नीत्से +* जब विवाह में आप त्याग करते हैं, तो आप एक-दूसरे के लिए नहीं बल्कि एक रिश्ते की एकता के लिए त्याग कर रहे होते हैं। जोसेफ कैंपबेल +* दो मानवीय आत्माओं के लिए, इससे ज्यादा श्रेष्ठ बात और क्या हो सकती है कि वे यह महसूस करें कि वे जीवन भर साथ रहने के लिए जुड़े हैं – समस्त श्रमों में एक दूसरे को सशक्त करने के लिए, सभी दुखों में एक दूसरे का सहारा बनने के लिए, समस्त पीडाओं में एक-दूसरे की सहायता करने के लिए, और अंतिम विदाई के क्षणों में खामोश कही न जा सकने वाली यादों में एक दूसरे के साथ एक होने के लिए जॉर्ज इलीयट +* पत्नी को चाहिए कि वह पति के घर लौटने पर खुश हो, और पति को चाहिए कि पत्नी को उसके घर से निकलने पर दुःख हो। मार्टिन लूथर किंग जूनियर +* ��ुरुष एक सम्पूर्ण स्त्री के सपने देखता है और स्त्री एक संपूर्ण पुरुष के सपने देखती है; लेकिन वे यह नहीं जानते कि भगवान ने उन दोनों को एक दूसरे को परिपूर्ण करने के लिए ही बनाया है। पुरानी कहावत +* पुरुष, स्त्री से इस आशा में शादी करता है कि वे कभी नहीं बदलेंगी। स्त्रियाँ पुरुषों से इस आशा में विवाह करती हैं कि वे बदल जायेंगे। अन्ततः दोनों ही निराश होते हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन +* प्यार की कमी असफल शादियों की वजह नहीं है, बल्कि मित्रता की कमी असली वजह है। फ्रेडरिक नीत्से +* प्रत्येक महान सम्बन्ध, विशेषकर विवाह, सम्मान पर ही निर्भर है। अगर यह सम्मान पर निर्भर नहीं है, तो जो कुछ भी अच्छा प्रतीत होता है वह लम्बे समय तक नहीं चल सकेगा। एमी ग्रांट +* प्रेम कमजोरी नहीं है। यह मजबूत होता है। केवल विवाह के संस्कार ही इसमें समाहित हो सकता है। बोरिस पास्टर्नक +* प्रेम की कमी नहीं, बल्कि मित्रता की कमी है जो विवाह को असफ़ल बना देती है। फ्रेडरिक निएत्ज़्स्चे +* प्रेम बिना वैध विवाह के भी नैतिक है, लेकिन बिना प्यार के विवाह अनैतिक है। एलन की +* बचे-खुचे ध्यान से विवाह सफल नहीं हो सकता। इसके लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना होगा। अज्ञात +* बिना संघर्ष के विवाह लगभग असंभव है, जैसे बिना संकट के राष्ट्र। आंद्रे मौरिस +* मुझे लगता है कि लंबे समय तक चलने वाले स्वस्थ रिश्ते विवाह के विचार से अधिक महत्वपूर्ण हैं। प्रत्येक सफल विवाह के मूल में एक सशक्त भागीदारी होती है। कार्सन डेली +* मेरी शादी के संदर्भ में, आप जानते हैं, अपने पति के प्यार में पड़ना अब तक मेरे साथ हुई सबसे अच्छी बात थी। कैरोलीन कैनेडी +* मैं बस शादीशुदा होने के लिए शादी नहीं करना चाहती। इससे अधिक अकेलेपन के बारे में कुछ सोच नहीं सकती कि मैं अपना बाकी जीवन किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बिताऊँ, जिससे मैं बात नहीं कर सकती, या इससे भी बदतर, जिसके साथ मैं ख़ामोश नहीं रह सकती। मैरी एन शफ़र +* मैंने पहली बार अहिंसा की अवधारणाओं को अपनी शादी से सीखा। महात्मा गांधी +* मैंने हमेशा से विवाह को किसी भी व्यक्ति के जीवन की वह सबसे रोचक घटना समझा है, जो किसी के सुख या दुःख की बुनियाद है। जॉर्ज वाशिंगटन +* यदि आप प्यार और शादी के बारे में पढ़ना चाहते हैं, तो आपको दो अलग-अलग किताबें खरीदनी होंगी। एलन राजा +* यदि आपका विवाह सुखमय नहीं है, तो आपका सुखी परिवार नहीं हो सकता। जेरेमी सिस्टो +* सुन्दरता नहीं बल्कि उत्तम चरित्र के शानदार गुण पति को बांधकर रखते हैं। यूरिपाईडस +* प्यार की कमी नहीं, बल्कि दोस्ती की कमी वैवाहिक जीवन को दुखदायी बनाती है। फ्रेडरिक नीत्शे +* वह व्यक्ति सुखी है जिसे एक सच्चा दोस्त मिल गया है, पर उससे भी ज्यादा सुखी वह है जिसे वह सच्चा दोस्त अपनी पत्नी में मिला है। फ्रैंज शुबर्ट +* विवाह आपको अपने जीवन में एक विशेष व्यक्ति को परेशान करने देता है। अज्ञात +* विवाह उम्र की बात नहीं है; यह सही व्यक्ति पा लेने की बात है। सोफिया बुश +* विवाह उस जंजीर में एक सुनहरा छल्ला है जिसकी शुरुआत एक झलक है और जिसका अंत अनंतकाल। खलील जिब्रान +* विवाह एक साथ समस्याओं को हल करने का एक प्रयास है, जो तब थी ही नहीं, जब आप अपने दम पर रह रहे थे। एडी कैंटर +* विवाह का अभिप्राय एक जैसा सोचना नहीं, बल्कि एक साथ सोचना है। रॉबर्ट सी. डोड्स +* विवाह का फूल केवल विश्वास की जमीन में ही पनप सकता है। +* विवाह को ख़ूबसूरत होने के लिए परिपूर्ण होना आवश्यक नहीं है। अज्ञात +* विवाह दो स्नेहमयी आत्माओं का मिलन है, जिसमे दोनों जीवनभर साथ निभाने का वचन ही नहीं देते, बल्कि एक-दूसरे को अपना विश्वास भी सौंपते हैं। यह विश्वास है- एक-दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण का, दूसरे के दुःख को अपने दुःख से बढ़कर मानने का, अपने जीवनसाथी को उसी रूप में स्वीकार करने का और उसे पूर्ण स्वतंत्रता से जीने का अधिकार देने का। +* विवाह न तो स्वर्ग है और न ही नर्क, यह मात्र शुद्धि है। अब्राहम लिंकन +* विवाह पतझड़ में पत्तियों का रंग देखने जैसा है; हर गुजरते दिन के साथ कभी बदलते और अधिक असाधारण रूप से सुंदर। फॉन वीवर +* विवाह मनुष्य की सबसे स्वाभाविक अवस्था है, और वह अवस्था, जिसमें आपको वास्तविक आनंद मिलेगा। बेंजामिन फ्रैंक +* विवाह मित्रता की उच्चतम अवस्था है। यदि सुखमय है, तो यह हमारी चिंता को बांटकर कम कर देता है, साथ ही यह आपसी भागीदारी से हमारे सुखों को दोगुना कर देता है। सैमुअल रिचर्डसन +* विवाह में प्रेम एक सुंदर सपने की पूर्ति होना चाहिए, और न कि अंत, जैसा कि प्रायः होता है। अल्फोंस कर्र +* विवाह में मन और उद्देश्य की अनुपयुक्तता के जैसी दूसरी कोई असमानता नहीं हो सकती है। चार्ल्स डिकेन्स +* विवाह में सफ़लता केवल सही साथी खोज लेने से नहीं मिल जाती, बल्कि सही साथी बनने से आती है। बार्नेट ���र. ब्रिकनर +* विवाह संज्ञा नहीं है; यह एक क्रिया है। यह वह नहीं है, जो आपको मिलता है। यह वह है, जो तुम्हारे द्वारा किया जाता है। यह वह तरीका है, जिससे आप अपने साथी को हर दिन प्रेम करते हैं। बारबरा डे एंजेलिस +* विवाह समझौता नहीं है, विवाह बंधन नहीं है, जैसा कुछ लोग कहते हैं। बल्कि यह दायित्वों से भरे मर्यादित जीवन की ओर बढ़ा कदम है। यह आपकी आजादी नहीं छीनता, बल्कि आपको अपनी सामर्थ्य बढाने का एक अवसर देता है। अपने चरित्र को और ऊँचा उठाने का अवसर देता है। उन मुश्किलों के जरिये, उन जिम्मेदारियों के जरिये जिन्हें वैसे स्वीकार करने का साहस हम कभी नहीं कर पाते। +* विवाह समय की कसौटी पर खरा उतरता है, जब आप और आपका जीवनसाथी दोनों चीजों को बेहतर बनाने की दिशा में काम करते हैं। और जब हम विपत्तियों का सामना करते हैं, तो हमें सबसे अधिक परखा जाता है। यदि आप प्रतिकूलताओं को एक साथ एक टीम की तरह पार कर सकते हैं, तो आप आधी लड़ाई जीत चुके हैं। अज्ञात +* विवाह, अंततः, भावुक दोस्त बनने का अभ्यास है। हार्विल हेंड्रिक्स +* विवाह, परिवार, सभी रिश्ते सही नर्तक खोजने के बजाय नृत्य सीखने की एक प्रक्रिया है। पॉल पियर्सल +* विवाह प्रेम इसका सिद्धांत है। आजीवन मित्रता उपहार है। करुणा ध्येय है। जब तक मृत्यु हमें अलग न करे, इसकी अवधि है। फॉन वीवर +* शादियाँ जन्नत में तय होती हैं। पुरानी कहावत +* शादी अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ जीवन साझा करना, पूरे रास्ते सफ़र का आनन्द उठाना और हर गन्तव्य पर एक साथ पहुँचना है। फॉन वीवर +* शादी आपको ख़ुशगवार नहीं बनाती – आप अपनी शादी को ख़ुशगवार बनाते हैं। डॉ. लेस एंड लेस्ली पैरेट +* शादी आसान नहीं होती। इसमें दूसरे व्यक्ति के लिए समझौता, त्याग और स्वयं को प्रकट करना होता है। हालांकि, यदि आप इस पर चलने और इस प्रक्रिया में ढलने के इच्छुक हैं, तो यह शानदार इनाम का वादा करता है। अज्ञात +* शादी एक उत्तम संस्थान है, लेकिन मैं एक संस्थान के लिए तैयार नहीं हूँ। मे वेस्ट +* शादी एक जुआ है, आओ ईमानदार रहें। योको ओनो +* शादी एक पिंजरे की तरह है; कोई भी व्यक्ति गौर कर सकता है कि बाहर के पंछी अंदर आने को बेताब रहते हैं और जो अंदर हैं, वे भी बाहर निकलने के लिए उतने ही उतावले रहते हैं। मिशेल डी मोंटेनेगी +* शादी एक साझेदारी है, लोकतंत्र नहीं। निकोलस स्पार्क्स +* शादी का केंद्र यादें हैं। बिल कॉ���्बी +* शादी किसी ऐसे की तलाश नहीं है, जो सबसे ज्यादा प्यार करे। यह किसी ऐसे की तलाश है, जो आपको सबसे कम दुःख पहुँचाये। अज्ञात +* शादी की कोई गारंटी नहीं है। यदि आप ये तलाश रहे हैं, तो जाकर कार की बैटरी के साथ रहें। इरमा बॉम्बेक +* शादी को ख़ुशहाल बनाने में जो मायने रखता है, वह यह नहीं है कि आप कितने एक-दूसरे के कितने अनुकूल हैं, बल्कि यह है कि आप अपनी प्रतिकूलता से कैसे निपटते हैं। जॉर्ज लीविंगर लियो टॉल्स्टॉय +* शादी दो लोगों का गठबंधन है, जिनमें से एक को कभी जन्मदिन याद नहीं रखता है और दूसरा उसे कभी नहीं भूलता। ओग्डेन नैश +* शादी ने मुझे बहुत ख़ुश कर दिया है और मैं अपनी पत्नी के साथ गहरे प्यार में हूँ और मैं हर दिन उसके लिए भगवान का शुक्रिया अदा करता हूँ। हैरी कॉनिक, जूनियर +* शादी में ईमानदारी बहुत ज़रूरी है। आप आधे सच और आधे झूठ के बल पर एक मजबूत रिश्ता नहीं बना सकते। हर समय ईमानदार रहें। अज्ञात +* शादी में कठिनाई यह है कि हम एक 'व्यक्तित्व' के प्यार में पड़ते हैं, लेकिन एक 'चरित्र' के साथ रहना पड़ता है। पीटर डे व्रीस +* शादी में ख़ुशी पूरी तरह से संयोग की बात है। जेन ऑस्टेन +* शादी से पहले अपनी आँखें पूरी खुली रखें, शादी की बाद आधी बंद। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* शादी से पहले हम एक-दूसरे के लिए क्या करते हैं, यह इस बात का संकेत नहीं है कि हम शादी के बाद क्या करेंगे। गैरी चैपमैन +* शादी अपरिचितों से लड़ने से हमें रोकने का प्रकृति का तरीका है। एलन राजा +* विवाह एक के अधिकारों को आधा कर देता है और एक के कर्तव्यों को दोगुना कर देता है। लुईसा मे अलकॉट +* विवाह पैसे की तरह, अभी भी हमारे साथ है; और, पैसे की तरह, लगातार इसकी कीमत घट गई। रॉबर्ट ग्रेव्स +* शायद शादी में मेरी समस्या – और यह कई महिलाओं की समस्या है – हम अंतरंगता और स्वतंत्रता दोनों चाहते थे। दोनों में संतुलन बनाना कठिन है, फिर भी शादी के लिए दोनों ही आवश्यकता महत्वपूर्ण है। हदि लामर +* सच्चे वैवाहिक संबंधों में, पति और पत्नी की स्वतंत्रता बराबर होगी, उनकी निर्भरता एक दूसरे पर, और उनके दायित्व पारस्परिक। लुक्रेटिया मोट्ट +* सफल विवाह का महान रहस्य है- सभी आपदाओं को घटना मानना और किसी भी घटना को आपदा न मानना। सर हेरोल्ड जॉर्ज निकोलसन +* सफल विवाह में कई बार प्यार में पड़ने की आवश्यकता होती है, हमेशा एक ही व्यक्ति के साथ। मिग्नॉन मैकलॉघलिन +* सभी शादियाँ खुशहाल होती हैं। यह तो बाद में एक साथ रहना है, जो परेशानी का सबब बनता है। रेमंड हल +* सर्वोत्तम विवाह वह नहीं है, जब एक सर्वगुण संपन्न जोड़ा एक साथ जुड़ता है। यह वह है, जब एक जोड़ा सर्वगुण संपन्न न होते हुए भी अपने मतभेदों का आनन्द लेना सीख लेता है। डेव मयूरेर +* सर्वोत्तम विवाह वह है, जो व्यक्तियों में और जिस तरह से वे अपने प्रेम को व्यक्त करते हैं, उसमें परिवर्तन और विकास की अनुमति दे। मोती एस बक +* सर्वोत्तम शादियाँ साझेदारी हैं। साझेदारी के बिना एक सर्वोत्तम शादी नहीं हो सकती। हेलेन मिरेन +* सामान्यतः वे विवाह प्रेम और धैर्य से परिपूर्ण होते हैं जिनका आरम्भ दीर्घकाल के प्रणयनिवेदन के उपरान्त होता है। जोसफ एडिसन +* सुखी विवाह की दो कसौटियाँ हैं; धन और गरीबी। अज्ञात +* सुखी विवाह के लिए मेरा यह निर्देश है – किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करें, जो वैसा कुछ भी न करता हो, जैसा आप करते हैं। मैक्सिन जीरा +* अच्छी शादी एक अन्धी पत्नी और बहरे पति के बीच ही हो सकती है। + + +मेरा लक्ष्य पैसे बनाना नहीं था। वो अच्छे कंप्यूटर बनाना था। +ऐसे लोग होते हैं जिनके पास पैसे होते हैं और फिर ऐसे लोग होते हैं जो धनवान होते हैं। +कई लोग सोचते हैं की वो पैसे कमाने में अच्छे नहीं है, जबकि वो ये नहीं जानते कि उसे प्रयोग कैसे करते हैं। + + +नालशेषैर्हिमधवस्तैर्न भांति कमलाकरा:॥ वाल्मीकि का हेमन्त वर्णन +: अर्थ वन की भूमि जिसकी हरी-हरी घास ओस गिरने से कुछ-कुछ गीली हो गई है, तरुण धूप के पड़ने से कैसी शोभा दे रही है। अत्यंत प्यासा जंगली हाथी बहुत शीतल जल के स्पर्श से अपनी सूँड़ सिकोड़ लेता है। बिना फूल के वन-समूह कुहरे के अंधाकार में सोए से जान पड़ते हैं। नदियाँ, जिनका जल कुहरे से ढँका हुआ है और जिनमें सारस पक्षियों का पता केवल उनके शब्द से लगता है, हिम से आर्द्र बालू के तटों से ही पहचानी जाती हैं। कमल, जिनके पत्ते जीर्ण होकर झड़ गए हैं, जिनकी केसर-कणिकाएँ टूट-फूटकर छितरा गई हैं, पाले से धवस्त होकर नालमात्र खड़े हैं। +; रामचरितमानस (किष्किन्धा काण्ड) में वर्षा ऋतु का वर्णन +: भावार्थ:-सुंदर वन फूला हुआ अत्यंत सुशोभित है। मधु के लोभ से भौंरों के समूह गुंजार कर रहे हैं। जब से प्रभु आए, तब से वन में सुंदर कन्द, मूल, फल और पत्तों की बहुतायत हो गई॥1॥ +: भावार्थ:-मनोहर और अनुपम पर्वत को देख��र देवताओं के सम्राट् श्री रामजी छोटे भाई सहित वहाँ रह गए। देवता, सिद्ध और मुनि भौंरों, पक्षियों और पशुओं के शरीर धारण करके प्रभु की सेवा करने लगे॥2॥ +: भावार्थ:-बादल पृथ्वी के समीप आकर (नीचे उतरकर) बरस रहे हैं, जैसे विद्या पाकर विद्वान् नम्र हो जाते हैं। बूँदों की चोट पर्वत कैसे सहते हैं, जैसे दुष्टों के वचन संत सहते हैं॥ +: भावार्थ:-जल एकत्र हो-होकर तालाबों में भर रहा है, जैसे सद्गुण (एक-एककर) सज्जन के पास चले आते हैं। नदी का जल समुद्र में जाकर वैसे ही स्थिर हो जाता है, जैसे जीव श्री हरि को पाकर अचल (आवागमन से मुक्त) हो जाता है॥ +: भावार्थ:-पृथ्वी घास से परिपूर्ण होकर हरी हो गई है, जिससे रास्ते समझ नहीं पड़ते। जैसे पाखंड मत के प्रचार से सद्ग्रंथ गुप्त (लुप्त) हो जाते हैं॥ +: भावार्थ:-चारों दिशाओं में मेंढकों की ध्वनि ऐसी सुहावनी लगती है, मानो विद्यार्थियों के समुदाय वेद पढ़ रहे हों। अनेकों वृक्षों में नए पत्ते आ गए हैं, जिससे वे ऐसे हरे-भरे एवं सुशोभित हो गए हैं जैसे साधक का मन विवेक (ज्ञान) प्राप्त होने पर हो जाता है॥ +: भावार्थ:-मदार और जवासा बिना पत्ते के हो गए (उनके पत्ते झड़ गए)। जैसे श्रेष्ठ राज्य में दुष्टों का उद्यम जाता रहा (उनकी एक भी नहीं चलती)। धूल कहीं खोजने पर भी नहीं मिलती, जैसे क्रोध धर्म को दूर कर देता है। (अर्थात् क्रोध का आवेश होने पर धर्म का ज्ञान नहीं रह जाता)॥ +: भावार्थ:-अन्न से युक्त (लहराती हुई खेती से हरी-भरी) पृथ्वी कैसी शोभित हो रही है, जैसी उपकारी पुरुष की संपत्ति। रात के घने अंधकार में जुगनू शोभा पा रहे हैं, मानो दम्भियों का समाज आ जुटा हो॥ +: भावार्थ:-भारी वर्षा से खेतों की क्यारियाँ फूट चली हैं, जैसे स्वतंत्र होने से स्त्रियाँ बिगड़ जाती हैं। चतुर किसान खेतों को निरा रहे हैं (उनमें से घास आदि को निकालकर फेंक रहे हैं।) जैसे विद्वान् लोग मोह, मद और मान का त्याग कर देते हैं॥ +: भावार्थ:-चक्रवाक पक्षी दिखाई नहीं दे रहे हैं, जैसे कलियुग को पाकर धर्म भाग जाते हैं। ऊसर में वर्षा होती है, पर वहाँ घास तक नहीं उगती। जैसे हरिभक्त के हृदय में काम नहीं उत्पन्न होता॥ +: भावार्थ:-पृथ्वी अनेक तरह के जीवों से भरी हुई उसी तरह शोभायमान है, जैसे सुराज्य पाकर प्रजा की वृद्धि होती है। जहाँ-तहाँ अनेक पथिक थककर ठहरे हुए हैं, जैसे ज्ञान उत्पन्न होने पर इंद्रियाँ (शिथिल होकर वि��यों की ओर जाना छोड़ देती हैं)॥ +: भावार्थ:-कभी-कभी वायु बड़े जोर से चलने लगती है, जिससे बादल जहाँ-तहाँ गायब हो जाते हैं। जैसे कुपुत्र के उत्पन्न होने से कुल के उत्तम धर्म (श्रेष्ठ आचरण) नष्ट हो जाते हैं॥ +: भावार्थ:-कभी (बादलों के कारण) दिन में घोर अंधकार छा जाता है और कभी सूर्य प्रकट हो जाते हैं। जैसे कुसंग पाकर ज्ञान नष्ट हो जाता है और सुसंग पाकर उत्पन्न हो जाता है॥ +; रामचरितमानस में शरद ऋतु का वर्णन +: भावार्थ:-हे लक्ष्मण! देखो, वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद् ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने (कास रूपी सफेद बालों के रूप में) अपना बुढ़ापा प्रकट किया है॥ +: भावार्थ:-अगस्त्य के तारे ने उदय होकर मार्ग के जल को सोख लिया, जैसे संतोष लोभ को सोख लेता है। नदियों और तालाबों का निर्मल जल ऐसी शोभा पा रहा है जैसे मद और मोह से रहित संतों का हृदय!॥ +: भावार्थ:-नदी और तालाबों का जल धीरे-धीरे सूख रहा है। जैसे ज्ञानी (विवेकी) पुरुष ममता का त्याग करते हैं। शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए। जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ सकते हैं। (पुण्य प्रकट हो जाते हैं)॥ +: भावार्थ शरद् ऋतु पाकर) राजा, तपस्वी, व्यापारी और भिखारी (क्रमशः विजय, तप, व्यापार और भिक्षा के लिए) हर्षित होकर नगर छोड़कर चले। जैसे श्री हरि की भक्ति पाकर चारों आश्रम वाले (नाना प्रकार के साधन रूपी) श्रमों को त्याग देते हैं॥ +: भावार्थ:-जो मछलियाँ अथाह जल में हैं, वे सुखी हैं, जैसे श्री हरि के शरण में चले जाने पर एक भी बाधा नहीं रहती। कमलों के फूलने से तालाब कैसी शोभा दे रहा है, जैसे निर्गुण ब्रह्म सगुण होने पर शोभित होता है॥ +: भावार्थ:-पपीहा रट लगाए है, उसको बड़ी प्यास है, जैसे श्री शंकरजी का द्रोही सुख नहीं पाता (सुख के लिए झीखता रहता है) शरद् ऋतु के ताप को रात के समय चंद्रमा हर लेता है, जैसे संतों के दर्शन से पाप दूर हो जाते हैं॥ +: भावार्थ:-चकोरों के समुदाय चंद्रमा को देखकर इस प्रकार टकटकी लगाए हैं जैसे भगवद्भक्त भगवान् को पाकर उनके (निर्निमेष नेत्रों से) दर्शन करते हैं। मच्छर और डाँस जाड़े के डर से इस प्रकार नष्ट हो गए जैसे ब्राह्मण के साथ वैर करने से कुल का नाश हो जाता है॥ +* भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ। +: भावार्थ वर्षा ऋतु के कारण) पृथ्वी पर जो जीव भर गए थे, वे शरद् ऋतु को पाकर वैसे ही नष्ट हो गए जैसे सद्गुरु के मिल जान��� पर संदेह और भ्रम के समूह नष्ट हो जाते हैं॥ +: भावार्थ वसन्त ऋतु है। शीतल, मंद, सुगंध तीन प्रकार की हवा बह रही है। सभी को (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) चारों पदार्थ सुलभ हैं। माला, चंदन, स्त्री आदि भोगों को देखकर सब लोग हर्ष और विषाद के वश हो रहे हैं। (हर्ष तो भोग सामग्रियों को और मुनि के तप प्रभाव को देखकर होता है और विषाद इस बात से होता है कि श्री राम के वियोग में नियम-व्रत से रहने वाले हम लोग भोग-विलास में क्यों आ फँसे, कहीं इनमें आसक्त होकर हमारा मन नियम-व्रतों को न त्याग दे)॥ +* अगर कोई तरीका दूसरे तरीके से बेहतर है तो आप निश्चित रूप से कह सकते हैं कि वो प्रकृति का तरीका है। अरस्तु +* अनुकूल बनें या नष्ट हो जाएं, अब या कभी भी, यही प्रकृति कि निष्ठुर अनिवार्यता है। एच. जी. वेल्स +* अपनी जड़ों की गहराइयों में सभी फूल प्रकाश रखते हैं। थीओडोर रोएथ्के +* अपनी पहली सांस लेने के पहले के नौ महीने छोड़ दिया जाए तो इंसान अपने काम इतने अच्छे ढंग से नहीं करता जितना कि एक पेड़ करता है। जार्ज बर्नार्ड शा +* और वो दिन आ गया जब कली के अन्दर बंद रहने का जोखिम खिलने के जोखिम से अधिक दर्दनाक था। एनेस निन +* कुछ लोग बरसात में चहलकदमी करते हैं, और बाकी बस भीगते हैं। रोजर मिलर +* कुदरत को पढ़िए, कुदरत से प्रेम कीजिए उसके करीब रहिए। आप कभी निराश नहीं होंगे। फ्रैंक ल्योड राइट +* केवल जी लेना काफी नहीं है… इंसान को धूप, आजादी और एक नन्हा सा फूल भी चाहिए। हैंस क्रिस्टियन एंडरसन (डेनमार्क के लेखक) +* चीजों के प्रकाश में सामने आओ, प्रकृति को को अपना शिक्षक बनने दो। विल्लियम वर्डस्वर्थ +* जब प्रकृति को कोई काम कराना होता है तो वो किसी प्रतिभा को जन्म दे देती है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* दरअसल बसंत प्रकृति के यह कहने का अपना तरीका है कि ‘चलो जश्न मनाएं’ रॉबिन विलियम्स (अमेरिकी हास्य अभिनेता) +* धरती माता इस साल भले माफ़ कर दें या अगले साल भी, पर अंततः में वो आएँगी और आपको सजा देंगी। आपको तैयार रहना होगा। गेरालडो रिवेरा +* पक्षी तूफ़ान गुजरने के बाद भी गाना गाते हैं; क्यों नहीं लोग भी जो कुछ बचा है उसी में प्रसन्न रहने के लिए खुद को स्वतंत्र महसूस करते हैं। रोज़ केन्नेडी +* पतझड़ एक दूसरा बसंत ही तो है, जिसमें सारे पत्ते फूल बन जाते हैं। अल्बर्ट कामू (फ्रेंच विचारक) +* पतझड़ एक दूसरे बसंत की तरह है जब सभी पत्तियां फूल बन जात��� हैं। अल्बर्ट कैमस +* पानी की याददाश्त उत्तम होती है,वो हमेशा वहीं जाने का प्रयास करता है जहाँ वो था। टोनी मोरिसन +* पानी की याददाश्त भी कितनी कमाल की होती है। वह घूम फिरकर वहीं पहुंचता है जहां वह था। टोनी मॉरिसन (अमेरिकी उपन्यासकार और शिक्षिका) +* पृथ्वी और आकाश, जंगल और मैदान, झीलें और नदियाँ, पहाड़ और समुद्र, ये सभी बेहतरीन शिक्षक हैं और हम में से कुछ को इतना कुछ सीखाते हैं जितना हम किताबों से नहीं सीख सकते। जॉन लुब्बोक +* प्रकृति उपदेश देने से अधिक सीखाती है। शिलाओं पर धर्मोपदेश नहीं लिखे होते। पत्थरों से नैतिकिता की बातें निकालने से आसान है चिंगारी निकालना। जॉन बर्रोज़ +* प्रकृति की सभी चीजों में कुछ ना कुछ अद्भुत है। अरस्तु +* प्रकृति को गहरी नजर से देखिए, तभी आप सब कुछ बेहतर समझ पाएंगे अल्बर्ट आइंस्टीन (महान वैज्ञानिक) +* प्रकृति माँ इस साल भले माफ़ कर दें, या अगले साल भी, पर अंत में वो आएँगी और आपको सजा देंगी। आपको तैयार रहना होगा। गेरालडो रिवेरा +* प्रकृति में गहराई से देखिये, और आप हर एक चीज बेहतर ढंग से समझ सकेंगे। ऐल्बर्ट आइन्स्टाइन +* प्रकृति में बिताया गया हर पल आपको आपकी तलाश से अधिक हासिल कराता है। जॉन म्यूर (अमेरिकी प्रकृतिविद, जिन्हें ‘फादर ऑफ नेशनल पार्क भी कहा जाता है) +* प्रकृति में, रोशनी से रंग बनता है। तस्वीर में रंग से रोशनी बनती है। हैंस हॉफमैन (जर्मन अमेरिकी चित्रकार) +* बसंत; प्रकृति का कहने का तरीका है कि,” चलो जश्न मनाएं!” रोबिन विल्लियम्स +* बहुत सारे लोग सर पे बारिश की बूँद गिरने पर उसे कोसते हैं, और ये नहीं जानते की वही प्रचुरता में भूख मिटाने में वाली चीजें लेकर आती है। सेंट बैसिल +* बारिश होते वक़्त जो सबसे अच्छी चीज आप कर सकते हैं वो ये है कि आप बारिश होने दें। हेनरी वाद्स्वर्थ लोंग्फेल्लो +* मनुष्य ने आगे की चीजें देखने और अनुमान लगाने कि क्षमता गवां दी है। उसका अंत पृथ्वी का विनाश करने से होगा। ऐल्बर्ट स्च्वेत्ज़र +* मैंने जीवन में बहुत से तूफान देखे। कई ऐसे थे जो अचानक आए, और मुझे सिखा गए कि मौसम पर मेरा कोई अधिकार नहीं, और यह कि धैर्य एक विद्या है जो मुझे सीखनी है और प्रकृति का सम्मान करना है पाओलो कोएल्हो (ब्राजीलियन लेखन) +* मैंने पूरी ज़िन्दगी वहां कांटे निकालने और फूल लगाने का प्रयास किया है जहाँ वो विचारों और मन में बड़े हो सके। अब्���ाहम लिंकन +* यदि आकाश का नीलापन आपकी आत्मा को खुशियों से भर देता है, हरी घास के पत्तियों को निहारते हुए आपके अन्दर कुछ होता है, यदि कुदरत की छोटी-छोटी चीजें आपको संदेश देती प्रतीत होती हैं तो समझ लीजिए आपकी आत्मा जीवित है एलियोनोरा ड्यूज +* यदि आप प्रकृति माता से अभिभूत नहीं होते तो समझ लीजिए आपके अंदर कुछ गड़बड़ है। एलेक्स ट्रेबेक (कैनेडियन टेलीविजन होस्ट) +* यदि आपको प्रकृति से सचमुच प्रेम है, तो सुंदरता आपको सर्वत्र दिखाई पड़ेगी। लॉरा इंगैल्स वाइल्डर (अमेरिकी लेखिका) +* वो जो मधुमक्खी के छत्ते के लिए ठीक नहीं है वो मधुमक्खी के लिए भी अच्छा नहीं हो सकता। मार्कस औरेलियस +* वो सबसे धनवान है जो कम से कम में संतुष्ट है, क्योंकि संतुष्टि प्रकृति कि दौलत है। सुकरात +* सभी चीजें कृत्रिम हैं, क्योंकि प्रकृति ईश्वर की कला है। थोमस ब्राउन +* सभी फूल अपनी जड़ों की गहराइयों में प्रकाश रखते हैं। थीओडोर रोएथ्के +* सिर्फ जीना ही काफी नहीं है, आपके के पास धूप, स्वतंत्रता और एक छोटा सा फूल भी होना चाहिए। हैंस एन्डरसन +* हम मनुष्य के बनाए क़ानून तो तोड़ सकते हैं पर प्रकृति के नियमों को नहीं। जुल्स वेर्ने + + +हम एक किताब खोलेंगे। उसके पन्ने खाली हैं। हम खुद उसमे अपने शब्द लिखंगे। इस किताब को अवसर कहते हैं और इसका पहला पाठ नए साल का दिन है। +एक आशावादी आधी रात तक नए साल को आते हुए देखने के लिए जगा रहता है। एक निराशावादी यह निश्चित करने के लिए जगा रहता है कि पुराना साल चला जाए। +नए साल का संकल्प: मूर्खों को और अधिक बर्दाश्त करना बशर्ते ये उन्हें मेरा और समय लेने के लिए प्रोत्साहित ना करे। + + +: संकट काल में भी धैर्य नहीं त्यागना चाहिए। सम्भव है कि धैर्य से स्थिति सुधर जाए। समुद्र में, नौका टूट जाने पर भी यात्री उस पोत को तैराना ही चाहता है। +: विपत्ति में धीरज, उन्नति में क्षमा, सभा में वाक् चातुर्य, युद्ध में पराक्रम, यश में रुचि और वेद में आसक्ति-यही महात्माओं के गुण होते हैं। +: बुद्धि, धैर्य और आत्मादिविज्ञान ये तीनों मनोविकारों के परम औषधि हैं। (आत्मविज्ञान यह जानना कि मै कौन हूँ, कौन मेरा है, मेरा बल क्या है, यह देश कैसा है और कौन मेरे हितैषी हैं, आदि।) +: धी (बुद्धि धृति (धैर्य) और स्मृति (स्मरण शक्ति) के भ्रष्ट हो जाने पर मनुष्य जब अशुभ कर्म करता है तब सभी शारीरिक और मानसिक दोष प्रकुपित हो जाते हैं। इन अशुभ कर्मों को 'प्रज्ञापराध' कहा जाता है। जो प्रज्ञापराध करेगा उसके शरीर और स्वास्थ्य की हानि होगी और वह रोगग्रस्त हो ही जाएगा। +: वास्तव में वे ही पुरूष धीर हैं जिनका मन विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थिति में भी विकृत नहीं होता। कालिदास]] +: हे मन! धीरे-धीरे ही सब कुछ होता है। माली पेड़ों में सैकड़ों घड़ा पनी देता है किन्तु उसमें फल तभी लगते हैं जब अनुकूल ऋतु आती है। (पानी देते ही फल नहीं लग जाते) +* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं होता उसमें धैर्य भी जरूरी है। गेटे +* अच्छे शिष्टाचार की परीक्षा यही है कि वो बुरे के साथ धैर्य से काम ले। सोलोमन लबन गबिरोल +* आपकी अधीरता को छुपाने की कला ही धैर्य है। गाए कावासाकी +* आपकी निपुणता फोकस, धैर्य और अभ्यास पर निर्भर करती है। भाग्य पर नहीं। रॉबिन शर्मा +* उत्साह की कमी को अक्सर धैर्य समझ लिया जाता है। किन हब्बा +* उन्नति करने के लिए धैर्य की आवश्यकता है। सिसरो +* एक प्रतिद्वंद्वी के साथ धैर्य रखिए। ओविड +* ऐसे लोगों को खोजना आसान है जो मरने के लिए तैयार हों, बजाये उनके जो धैर्य के साथ दर्द सहने को तैयार हों। जूलियस सीज़र +* कठिन परिस्थितयो में घबराना नहीं चाहिए बल्कि धैर्य रखना चाहिए। लार्ड महावीर +* किसी रखने लायक चीज को पाने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है और वो कीमत हमेशा काम, धैर्य, प्रेम, और आत्म-बलिदान होती है, कोई कागजी मुद्रा नहीं, भुगतान करने का कोई वादा नहीं, बल्कि असली सेवा का सोना। जॉन बर्रोज +* कुछ भी जरूरी नहीं है लेकिन ये तीन- प्यार, ईमानदारी और धैर्य जरूरी है। स्वामी विवेकानंद +* क्रोध के क्षण में धैर्य का एक पल दुःख के हजारों पलों से बचे रहने में हमारी सहायता करता है। अज्ञात +* जिसके पास धैर्य है, वह जो कुछ इच्छा करता है, प्राप्त कर सकता है। फ्रेंकलिन पी. जॉन +* जिसमें धैर्य है, वह सारी इच्छित वस्तुएं प्राप्त कर सकते है बेंजामिन फ्रैंकलिन +* जिसे धीरज है और जो श्रम से नहीं घबराता है, सफलता उसकी दासी है। -अज्ञात +* जैसे सोना अग्नि में चमकता है, वैसे ही धैर्यवान आपदा में दमकता है। अज्ञात +* जो पेड़ बढ़ने में धीमे होते हैं वे सबसे अच्छे फल देता हैं। मोलिएरे +* जो व्यक्ति धैर्य का मालिक है वो बाकि सभी चीजों का मालिक है। जॉर्ज साविले +* जोश की कमी को अक्सर गलती से धैर्य समझा जाता है। किन हब्बार���ड +* दुर्भाग्य एक व्यक्ति की योग्यता का परीक्षण है। सेनेका +* दो सबसे शक्तिशाली योद्धा धैर्य और समय हैं। लियो टॉल्स्टॉय +* धीमी और नियमिता से रेस जीता जाता है। ईसप +* धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है। बेंजामिन डिसरेली +* धीरज सारे आनन्दों और शक्तियों का मूल है। जॉन रस्किन +* धैर्य आशा की कला है। ल्यूक डी क्लैपीयर +* धैर्य एक कड़वा पौधा है, लेकिन इसका फल मीठा है। चीनी कहावत +* धैर्य एक गुण है, और मैं धैर्य सीख रहा हूं। यह एक कठिन पाठ है। एलोन मस्क +* धैर्य एक विजय प्राप्त गुण है। जेफ्री चौसर +* धैर्य और दृढ़ता चतुरता दोगुनी से अधिक मूल्यवान है। थॉमस हक्सले +* धैर्य और दृढ़ता सभी चीजों को जीतते हैं। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* धैर्य और परिश्रम से हम वह प्राप्त कर सकते हैं, जो शक्ति और शीघ्रता से कभी नहीं कर सकते। ला फ़ोन्टेन +* धैर्य और समझ के साथ दृढ़ता से आप प्रगति कर सकते हैं। मार्क होडसन +* धैर्य और समय, दो सबसे शक्तिशाली योद्धा हैं। लियो टॉलस्टॉय +* धैर्य कड़वा है लेकिन इसका फल मीठा। जीन -जैक्स रूसो +* धैर्य कड़वा है लेकिन उसका फल बहुत मीठा है। जीन जक्क़ुएस रूसो +* धैर्य का एक पल बड़ी आपदा से बच सकता है। अधीरता का एक पल पूरे जीवन को बर्बाद कर सकता है। चीनी कहावत +* धैर्य का एक मिनट, शांति के दस साल। यूनानी कहावत +* धैर्य का दुरूपयोग रोष में बदल जाता है। थॉमस फुलर +* धैर्य का मतलब आत्म-पीड़ा है महात्मा गांधी +* धैर्य की अपनी सीमायें हैं। अगर जायदा हो जाये तो कायरता कहलाता है। जॉर्ज जैक्सन +* धैर्य की सभी सराहना करते हैं, लेकिन कोई भी पीड़ा सहन नहीं कर सकता। थॉमस फुलर +* धैर्य के माध्यम से कई लोग उन परिस्थितियों में भी सफल हो जाते हैं जो कि एक निश्चित असफलता जान पड़ती है। डेल कार्नेगी +* धैर्य केवल प्रतीक्षा करने की क्षमता नहीं है हम प्रतीक्षा करते समय हम कैसे व्यवहार करते हैं। जॉयस मेयर +* धैर्य खोना युद्ध हारना है। महात्मा गांधी +* धैर्य ज्ञान का साथी है। सेंट ऑगस्टीन +* धैर्य दौर्बल्य का समर्थन करता है; अधैर्य सामर्थ्य का विध्वंस करता है। चार्ल्स कैलेब कोल्तों +* धैर्य रखें। आसान होने से पहले सभी चीजें मुश्किल होती हैं। सादी +* धैर्य शक्ति है। धैर्य क्रियाशीलता का अभाव नहीं है बल्कि ये उचित कार्य के सही समय पर सही ढंग से किये जाने की प्रतीक्षा मात्र है। फुल्टन जे.शीन +* धैर्य सभी घावों पर मरहम ���गाने का काम करता है। आयरिश कहावत +* धैर्य सीखना एक कठिन अनुभव हो सकता है, लेकिन एक बार सीखने पर आपको जीवन आसान लगेगा। कैथरीन पल्सिफर +* धैर्य हर समस्या का हल है। प्लेटो +* धैर्य, आपकी वो क़ाबलियत है जो आपके गुस्सा होने से पहले की उलटी गिनती से शुरू होता है। अज्ञात +* धैर्य, दृढ़ता, और पसीना सफलता के लिए एक अपराजेय मिश्रण हैं। नेपोलियन हिल +* धैर्यपूर्वक और समझदारी से रहे । प्रतिहिंसक और द्वेषपूर्ण होने के लिए जीवन बहुत छोटा है। फिलिप्स ब्रुक्स +* धैर्यवान बनाना सीखने के लिए बहुत अधिक धैर्य चाहिए। स्तानिस्लाव लेक +* धैर्यवान मनुष्य आत्मविश्वास की नौका पर सवार होकर आपत्ति की नदियों को सफलतापूर्वक पार कर जाते हैं। अज्ञात +* निराशा के रूप में दिखते हैं; लेकिन हमें धैर्य रखना चाहिए और जल्द ही हम उन्हें के अच्छे रूप में देख पाएंगे। जोसफ एडिसन +* प्यार का एक विकल्प नफरत नहीं बल्कि धैर्य है। संतोष कालवार +* प्रतिभा धैर्य है। आइजैक न्यूटन +* प्रतिभा शाश्वत धैर्य का नाम है। माइकल एंजेलो +* प्रतीक्षा करने वाला व्यक्ति धैर्यवान होता है। धैर्य का मतलब है जहाँ हम है वहीं रहने की तत्परता और उस परिस्थिति का इस उम्मीद के साथ आनंद उठाना कि कुछ छुपा हुआ एक दिन खुद ही हमारे सामने उजागर होगा। हेनरी जे.एम्. नवम +* भगवान का प्यार धीरज, निरंतर, और दृढ़ता से है। रिक वॉरेन +* भगवान यीशु मसीह, धैर्य का हमारा आदर्श उदाहरण है। जोसेफ बी विर्थलिन +* महान काम शक्ति से नहीं बल्कि दृढ़ता से किया जाता है। सैमुअल जॉनसन +* मेरे पास सिखाने के लिए सिर्फ तीन चीजें हैं: सादगी, धैर्य, करुणा। ये तीन आपके सबसे बड़े खजाने हैं। लाओ त्सू +* मैं असाधारण रूप से धैर्यवान हूं, बशर्ते मुझे अंत में अपना रास्ता मिल जाए। मार्गरेट थैचर +* मैं मूर्खता के साथ धैर्यपूर्वक रहता हूँ लेकिन उनके साथ नहीं जो इसपर गर्व करते हैं। एडिथ सिट्वेल +* वह जो नील नदी के समुद्र पर सवारी करेगा उसकी नाव का पाल धैर्य से बुन हुआ होना चाहिए। विलियम गोल्डिंग +* विपत्ति में धैर्य, वैभव में दया और संकट में सहनशीलता ही सच्चे पुरुष के लक्षण हैं। +* वे कितने निर्धन है, जिनके पास धैर्य नही है! क्या आज तक कोई जख्म बिना धैर्य के ठीक हुआ है विलियम शेक्सपीयर +* संतोष का वृक्ष कड़वा है लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है। शिवानन्द सरस्वती +* सभी चीजों के साथ धैर्य र��ें, लेकिन, सबसे पहले अपने साथ। सेंट फ्रांसिस डी सेल्स +* सभी व्यक्ति धैर्य की सराहना करते हैं लेकिन कुछ ही इसको अभ्यास में लाने को तैयार रहते हैं। थॉमस ए केम्पिस +* समझदार और धैर्यवान बनिए ।प्रतिशोधी और द्वेषी होने के लिए जीवन बहुत ही छोटा है। फिलिप्स ब्रुक्स +* समय सभी सलाहकारों से सबसे बुद्धिमानी है। प्लूटार्क +* सहनशक्ति ताकत से महान है, और सौंदर्य से धैर्य है। John Ruskin +* सहनशीलता धैर्य की एकाग्रता है। थॉमस कार्लाइल +* सहनशीलता, क्षमता से अधिक श्रेष्ठ है और धैर्य सौन्दर्य से अधिक श्रेष्ठ है। जॉन रस्किन +* सही समय की प्रतीक्षा के लिए धैर्य और और जिन परिस्थितियों से हमारा सामना होता हैं उससे दुखी न हो जाने का साहस ही हमारी अध्यात्मिक राह में दो सबसे बड़ी परीक्षाएं हैं। पॉलो कोएल्हो +* हमारा धैर्य हमारी शक्ति से अधिक हासिल करेगा। एडमंड बर्क +* हमारे असली आशीर्वाद अक्सर हमें दर्द, हानि और निराशा के रूप में दिखते हैं; लेकिन हमें धैर्य रखना चाहिए और जल्द ही हम उन्हें अच्छे रूप में देख पाएंगे। जोसफ एडिसन +* हर मुसीबत के लिए धैर्य सबसे अच्छा उपाय है। प्लॉटस + + +: बडी बड़ी चिंताएं कराके, कर्मो द्वारा आशा मनुष्य को बन्धन में डालती है । इससे अपने आयुष्य का क्षय हो रहा है, उसका उसे भान नहीं रहता। इस लिए “जागृत हो, जागृत हो ।” +* सौ वर्ष जीने की कामना रखते हो तो जवाब और हंसमुख मित्रों के बीच रहो। एलिजाबेथ सैफ़ोर्ड +* लज्जा युवाओं के लिए एक आभूषण, लेकिन बुढ़ापे के लिए एक तिरस्कार है। + + +* कभी भी कम अनुभव को अपनी महत्त्वाकांक्षा के मार्ग में ना आने दें। टेरी जोसेफसन +* जिस आदमी की महत्त्वाकांक्षा नहीं है उसे भ्रष्ट बनाने की क्या संभावना है ? +* महत्वकांक्षा वो अंकुर है जिससे सभी बड़े अनुष्ठानों का विकास होता है। ऑस्कर वाइल्ड +मैं अपनी कमजोरी और अपनी महत्त्वाकांक्षा के बीच के अंतर से निराश नहीं होना चाहती थी। +* बिना महत्त्वाकांक्षा के एक नवयुवक बस एक वृद्ध व्यक्ति बनने के इंतज़ार में है। स्टीवेन ब्रस्ट +* महत्त्वाकांक्षा वो बीज है जिससे सज्जनता का विकास होता है। आस्कर वाईल्ड +* वो महिलाएं जो पुरुषों के बराबार आना चाहती हैं उनमे महत्त्वाकांक्षा की कमी होती है। टिमोथी लीयरी +* महान महत्त्वाकांक्षा महान चरित्र की अभिलाषा होती है। जिनके पास ये होती है वो बहुत अच्छे या बहुत बुरे काम कर सकते हैं। नेपोलियन बोनापार्टे +* महत्त्वाकांक्षा एक सपना है जिसमे वी-8 इंजन लगा है। एल्विस प्रेस्ले +* महत्त्वाकांक्षा के बिना बुद्धिमत्ता, पंख के बिना चिड़िया के समान है। सैलवाडोर डाली +* सबसे बड़ा अहित जो भाग्य मनुष्य के साथ कर सकता है वो है कम प्रतिभा और बड़ी महत्त्वाकांक्षा देना। लूस डी क्लैपीयर्स +* महत्त्वाकांक्षा सफलता तक जाने का रास्ता है। दृढ़ता वो गाड़ी है जिससे आप पहुँचते हैं। बिल ब्राडले +* ब्रह्माण्ड को मानवीय महत्त्वाकांक्षाओं के साथ सामंजस्य में होने की आवश्यकता नहीं है। कार्ल सागन +* मूलतः जो आपको होना चाहिए वो बनने के लिए आपको अपनी महत्वकांक्षाओं को दबाना होगा। बॉब दिलान +* महत्वकांक्षा के बिना समय केवल समीक्षक है। स्टेनबाक +* जब महत्त्वाकांक्षा समाप्त होती है तो प्रसन्नता शुरू होती है। थोमस मर्टन +* महत्त्वाकांक्षा असफलता की आखिरी शरण है। आस्कर वाईल्ड +* महत्त्वाकांक्षा सफलता तक जाने का रास्ता है. दृढ़ता वो गाड़ी है जिससे आप पहुँचते हैं बिल ब्रेडली +* मैं अपनी कमजोरी और अपनी महत्त्वाकांक्षा के बीच के अंतर से निराश नहीं होना चाहती थी। एल्ला मैलार्ट +* हालांकि महत्त्वाकांक्षा खुद में बुरी है, लेकिन अक्सर यह अच्छाई का मूल भी होती है होसिय बल्लू +* कभी भी कम अनुभव को अपनी महत्त्वाकांक्षा के मार्ग में ना आने दें। टेरी जोसफसन +* महत्वकांक्षा, असफलता का आखिरी सहारा है। ऑस्कर वाइल्ड +* त्रासदी यह है कि बहुतों में महत्त्वाकांक्षा है पर कुछ में ही काबीलियत। विल्लियम फेदर +* बड़े परिणामों के लिए बड़ी महत्वकांक्षाएं जरूरी हैं। हेरलितस + + +: क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है। +: अर्थ क्रोध सभी अनर्थ (विपत्तियों) की जड़ है। क्रोध संसार का बन्धन है। क्रोध से मनुष्य का धर्म नष्ट होता है। इसलिए क्रोध का परित्याग करना चाहिए। +: क्रोध की दशा में मनुष्य को यह विवेक नहीं रहता कि क्या कहना चाहिये और क्या नहीं कहना चाहिये। क्रुद्ध मनुष्य के लिए कुछ कुछ भी अकार्य नहीं है और कुछ भी अवाच्य नहीं है। अर्थात क्रुद्ध मनुष्य कुछ भी कर सकता है और कुछ भी बक सकता है। +: सम्पन्न होने की इच्छा वाले मनुष्य को इन छ�� बुरी आदतों को त्याग देना चाहिए: अधिक नींद, जड़ता, भय, क्रोध, आलस्य और कार्यों को टालने की प्रवृत्ति। +: क्रोध दुर्जय (कठानाई से जीता जा सकने वाला) शत्रु है, लोभ अनन्त (कभी न समाप्त न होने वाला) रोग है। जो दूसरों के कल्याण में लगा हुआ है वही साधु है और जो दया से रहित है वही असाधु (दुर्जन) है। +: क्रोध ही हृदय के दुख का कारण है, क्रोध सांसारिक बन्धन है। क्रोध धर्म का क्षय करने वाला है। इसलिए क्रोध से बचना चाहिए। +: क्रोध के कारण धैर्य का नाश होता है, उसी क्रोध के कारण ज्ञान का भी नाश होता है क्रोध के कारण सबकुछ नष्ट हो जाता है। क्रोध के समान कोई शत्रु नहीं है। +: उत्पन्न हुये क्रोध को जो अपनी विवेक बुद्धि से शाँत कर लेते हैं वही तत्वदर्शी विद्वान माने जाते हैं। +: जिस शरीर में क्रोध उत्पन्न होगा उसे सर्वथा नष्ट कर देगा। इस क्रोध से वैसे ही बचना चाहिये जैसे अग्नि तथा विद्युत से । +: अपकारी पर क्रोध करने की अपेक्षा क्रोध पर ही क्षुभित होना चाहिये क्योंकि यही धर्म, अर्ध, काम, मोक्ष की प्राप्ति में बाधक है इसी को अपना परम शत्रु मानकर वशवर्ती बनाना चाहिये । +:जीवन पर्यन्त प्रयत्न करने पर भी शत्रु रहित नहीं बन सकते पर जिस ने क्रोध को पराजित कर दिया उसका कोई शत्रु कुछ नहीं बिगाड़ सकता। क्रोध पर विजय पाना शत्रुओं को समाप्त कर देना है। +: जो मनुष्य मात्र पर कभी क्रोध नहीं करते, क्रोधियों को शान्त करते हैं तथा क्रोध को अपने नियन्त्रण में रखते हैं वही संसार के सम्पूर्ण दुस्सह दुःखों से छुटकारा पा जाते हैं। +मनुष्य) अहंकार को मारकर प्रिय हो जाता है। क्रोध को मारकर शोक नहीं करता। काम को मारकर धनवान बनता है और लोभ को मारकर सुखी होता है। +: धर्म के दस लक्षण हैं- धृति (धैर्य क्षमा, दम (इन्द्रियों के विषयों का दमन अस्तेय (चोरी न करना शौच (मान और शरीर की स्वच्छता इंद्रियनिग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य, और अक्रोध (क्रोध न करना)। +: क्रोध सारे अर्थों सारे धन) का नाश करने वाला है। +: संसार में प्रजा के विनाश का कारण क्रोध को ही माना जाता है। +: क्रोध ही झगड़े की जड़ है। +* क्रोधित होना गर्म कोयले को किसी दूसरे पर फेंकने से पहले पकड़े रहने के सामान है; इससे आप ही जलते हैं। भगवान गौतम बुद्ध +* हर मिनट जिसमे आप क्रोधित रहते हैं, आप 60 सेकण्ड की मानसिक शांति खो देते हैं। राल्फ वाल्डो इमर्सन +* क्रोध अम्ल की तरह है। यह उ��� बर्तन को अधिक नुकसान पहुंचा सकता है जिसमें उसको रखा जाता हैं। मार्क ट्वेन +* जब गुस्से में हैं तो आप बोलने से पहले दस तक गिने। अगर आप बहुत गुस्से में हैं, तो सौ तक गिनें। थॉमस जेफरसन +* गुस्सा और असहिष्णुता सही समझ के दुश्मन हैं। महात्मा गाँधी +* क्रोध एक प्रकार का पागलपन है। होरेस +* हर कोई क्रोधित हो सकता है- यह सरल है, लेकिन सही आदमी से, सही सीमा में, सही समय पर, सही उद्देश्य के साथ, सही तरीके से क्रोधित होना, सब लोगो के बस की बात नहीं है। अरस्तु +* जो कुछ भी क्रोध में शुरू होता है, वह शर्म पर खत्म होता है। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* क्रोधित होना कुछ भी हल नहीं करता। ग्रेस केली +* क्रोध का सबसे बड़ा उपाय है- थोड़ी देर रूक जाएं। +* जब क्रोध उठता है, तो इसके परिणाम के बारे में सोचो। कन्फ्यूशियस +* गुस्सा आपको छोटा बनाता है, जबकि माफी आपको जो भी हो उससे परे बढ़ने के लिए मजबूर करती है। चेरी कार्टर-स्कॉट +* क्रोध की सबसे अच्छी दवा है लंबी दूरी तक टहलना। जोसेफ जूबर्ट +* गुस्सा करके मैं खुद के लिए खतरा बनाता हूं। ओरियाना फैलेसी +* यदि छोटी चीजें आपको गुस्सा दिला देती हैं तो क्या इससे आपके स्तर का पता नहीं चल जाता सिडनी जे. हैरिस + + +कुछ तत्त्वों को प्रयासपूर्वक इस प्रकार व्यवस्थित करना कला कहलाता है कि उस प्रयास के परिणावस्वरूप उत्पन्न वस्तु इन्द्रियों, मस्तिष्क और भावनाओं को अच्छी लगे। +: साहित्य, संगीत और कला से विहीन पुरुष, पूंछ और सींग से रहित साक्षात् पशु है। +* कला, विचार को मूर्ति में परिवर्तित कर देती है। +* ऊँची कला कोशिश करने पर भी अपने को नीति और उद्देशय के संर्घष से बचा नहीं सकती, क्योंकि नीति और लक्ष्य जीवन के प्रहरी है और कला जीवन का अनुकरण किये बिना जी नही सकती। रामधारीसिंह ‘दिनकर’ +* एक अच्छा कलाकार वही पेंट करना चाहता है ,जो वह होता है। जैक्सन पोल्लोक +* एक कलाकार को उसकी मेहनत के लिए पैसे नहीं मिलते बल्कि उसकी दूरदृष्टि के लिए मिलते हैं। जेम्स विस्लर +* एक कलाकृति एक अद्वितीय स्वभाव का अद्वितीय परिणाम है। ऑस्कार वाइल्ड +* एक चित्र बिना शब्दों के लिखित कविता के समान हैं। होरेस +* एक चित्र हज़ार शब्दों के बराबर होता है। नेपोलियन बोनापार्ट +* एक महान कलाकार हमेशा अपने समय से आगे या पीछे होता है। जॉर्ज एडवर्ड मूर +* एक मूर्तिकार चीजों को आकार देने में रुचि रखता है, एक कवी शब्दों में और एक संगीतकार ध्वनि में। हेनरी मूर +* एक लेखक को अपने आँखों से लिखना चाहिए और एक चित्रकार को अपने कानो से चित्रकारी करनी चाहिए। गैरत्रुद स्टेन +* ऐसे कलाकार जो हर चीज में पूर्णता चाहते हैं, वो इसे किसी भी चीज में नही पा पाते। गौसटैव फ्लौबेर्ट +* कला अति सूक्ष्म और कोमल है, अतः अपनी गति के साथ यह मस्तिष्क को भी कोमल और सूक्ष्म बना देती हैं। अरविन्द +* कला अत्यंत कठिन है और उसका पुरस्कार है नश्वर। शिलर +* कला एक प्रकार का एक नशा है, जिससे जीवन की कठोरताओं से विश्राम मिलता है।- फ्रायड +* कला कभी भी बाहरी रूप-रंग को प्रदर्षित नहीं करता बल्कि वह आंतरिक को दर्शाने में ज्यादा महत्व देता है। अरस्तु +* कला कला के लिए। विक्टर फजिन +* कला का अंतिम और सर्वोच्च ध्येय सौन्दर्य हैं। गेटे +* कला का कार्य किसी विचार को अतिरंजित करना है। आन्द्रे जीद +* कला का शत्रु अज्ञान है। बेन जानसन +* कला का सत्य जीवन की परिधि में सौन्दर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखण्ड सत्य है। महादेवी वर्मा +* कला की कसौटी सौन्दर्य है, जो सुंदर है वही कला हैं। अज्ञात +* कला के लिए आवश्यकता बुद्धि और हृदय की है, रूपये की कदापि नहीं। महात्मा गांधी +* कला के साथ हमारे जीवन का घनिष्ठ सम्बन्ध है। मानव-जीवन से पृथक कर देने पर कला का महत्व नहीं रहता। हितोपदेश +* कला केवल उपकरण मात्र है, कला जीवन के लिए और उसकी पूर्ति में ही है। यशपाला +* कला कोई चीज नहीं ,बल्कि एक तरीका होता है। ऐल्बर्ट हब्बार्ड +* कला कोई वस्तु नहीं यह एक तरीका है। ऐल्बर्ट हब्बार्ड +* कला तो ईश्वर और कलाकार की संयुक्त कृति है और कलाकार जितना कम काम करे, उतना ही अधिक अच्छा। आंद्र जीद +* कला प्रकृति की सहायता करती है और अनुभव कला की। टामस फुलर +* कला या तो साहित्यिक चोरी है या फिर एक क्रांति। पॉल गौगइन +* कला विचार को मूर्ति रूप में परिणित करती हैं। एमर्सन +* कला सम्पूर्णता की ओर पाने का प्रयास है, व्यक्ति की अपने को सिद्ध प्रमाणित करने की चेष्टा है। अज्ञेय +* कला सामाजिक अनुपयोगिता की अनुभूति के विरूद्ध अपने को प्रमाणित करने का प्रयत्न-अपर्याप्तता के विरूद्ध विद्रोह है। अज्ञेय +* कला ही बिना घर छोड़े भाग जाने का एकमात्र तरीका है। त्वयला थार्प +* कला, जहाँ तक सम्भव होता है, प्रकृति का अनुकरण करती है, उसी प्रकार जिस प्रकार एक शिष्य अपने गुरू का अनुकरण करता हैं। अत�� तुम्हारी कला ईश्वर की अनुकृति होनी चाहिए। दांते +* कला, जीवन की विविधता समेटती हुई आगे बढ़ती है, अतः सम्पूर्ण जीवन को गला-पिघलाकर तर्क-सूत्र में कर लेना उसका लक्ष्य नहीं हो सकता। महादेवी वर्मा +* कलाकार आपने काम से जाना जाता है। जीन डी ला फोंटेन +* कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अतः वह उसका दास भी है और स्वामी भी। रवीन्द्रनाथ ठाकुर +* कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। डा रामकुमार वर्मा +* कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। रामधारी सिंह दिनकर +* कविता वह सुरंग है जिसमें से गुजर कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। रामधारी सिंह दिनकर +* काम से कलाकार जाना जाता है। जीन डी ला फोंटेन +* खुद को गलतियाँ करने देना रचनात्मकता। ये जानना कि कौन सी गलतियों को रखना है कला है। स्कॉट एडम्स +* जब लगन और प्रवीणता परस्पर मिलकर कार्य करें तो एक अति उत्तम कला की अपेक्षा करों। रस्किन +* जीवन की सबसे बड़ी कला तपस्या है। महात्मा गांधी +* जो कला आत्मा को आत्म-दर्शन करने की शिक्षा नहीं देती, वह कला ही नहीं हैं। महात्मा गांधी +* ज्ञानी हम सब है, लोगों में फर्क ज्ञान का नहीं, बल्कि कला का हैं। एमर्सन +* तस्वीर एक ऐसी कविता होती है जिसके पास शब्द नहीं होते है। होरेस +* प्रेम के समान ही कला में भी मूल प्रवत्ति ही पर्याय होती है। अनातोले फ्रांस +* फाइन आर्ट वो है जिसमे व्यक्ति का हाथ, दिमाग और दिल एक साथ काम करते हैं। जॉन रस्किन +* महान कला की शुरुआत वहां होती है जहाँ प्रकृति का अंत होता है। मार्क चैगैल +* महान कलाकार लोग हमेशा या तो समय से पहले या फिर समय से पीछे होता है। जॉर्ज एडवर्ड मूर +* मानव-संयुक्त प्रकृति का नाम ही कला हैं। बेकन +* मैं चीजों को पेंट नहीं करता। मैं बस उनके बीच के अंतर को पेंट करता हूँ। हेनरी मतिस्से +* मैंने पाया है कि जो चीजें मैं रंगों और आक्र्तियों के माध्यम से कह सकता हूँ वो और किसी तरह से नहीं कह सकता। +* रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है। मुक्ता +* रचनात्म अभिव्यक्तियाँ नियंत्रित मनोवेगों के द्वारा अपना परिपूर्ण स्वरूप प्राप्त करती है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर +* विज्ञापन बीसवीं सदी की केव आर्ट हैं। मार्शल मैकलुहान +* व्यक्ति अपने दिमाग से पेंट करता है, अपने हाथों से नहीं। माइकलैंजिलो +* संगीत और कला की उपासना करो और भावना के धर्म को उन्नत करो। राधाकृष्णन +* सच्ची कला ईश्वर की भक्तिपूर्ण अनुकरण हैं। अज्ञात +* सबसे महान कलाकार वह है जो अपने जीवन को ही कला का विषय बनाये। थोरो +* सभी सच्चे कलाकार शुरुवात में नौसिखिया ही होते है। रल्प वाल्डो एमर्सन +* समाज में गीतवाद्य, नाट्य-नृत्य का भी महत्पूर्ण स्थान है, ये बड़ी मनोहर और उपयोगी कलाएँ है। पर हैं तभी, जब इनके साथ संस्कृति का निवास-स्थान पवित्र-संस्कृत अन्तः करण हो। केवल ‘कला’ तो ‘काल’ बन जाती है। हनुमान प्रसाद पोद्दार +* हर एक निर्माता अपनी अंतर्दृष्टि और परम अभिव्यक्ति के बीच एक अंतर होने की पीड़ा अनुभव करता है। आइजैक बैशेविस सिंगर + + +प्रवृत्ति की कमजोरी चरित्र की कमजोरी बन जाती है। +नैतिकता महज एक रवैया है जो हम ऐसे लोगों के प्रति अपनाते हैं जिन्हें हम व्यक्तिगत रूप से नापसंद करते हैं। +उत्कृष्टता एक कौशल नहीं है।यह एक दृष्टिकोण है। + + +* जिसे और लोग विफलता का नाम देने या कहने की कोशिश करते हैं, मैंने सीखा है कि वो बस भगवान् का आपको नयी दिशा में भेजने का तरीका है। + + +हर साल अपने जन्मदिन पर आपको एक नयी शुरुआत करने का मौका मिलता है। +जन्मदिन का सबसे मीठा केक भी +इतना मीठा नहीं हो सकता + + +* किसी की बुद्धि का माप उसके बदलाव लाने की क्षमता है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* इस जीवन में सबसे बड़ा खतरा वे लोग हैं जो सब कुछ बदलना चाहते हैं या कुछ भी नहीं। नैंसी ऐस्टर +* अंडे के लिए एक पक्षी में बदलना मुश्किल हो सकता है: अंडे होते हुए उड़ने के सपने देखना ओर कठिन होगा। हम वर्तमान में अंडे की तरह हैं। और आप हमेशा एक अंडा बनकर नहीं रह सकते हैं। या तो हमें बाहर निकलना होगा या फिर सर जाना होगा। सी. यस लुइस +* पैसा और सफलता लोगों को नहीं बदलते हैं; वे केवल उसे बढ़ा देते हैं जो पहले से उनके अंदर मौजूद है। विल स्मिथ +* यदि आप नजरिए को बदलना चाहते हैं, तो व्यवहार में बदलाव के साथ शुरू करें। वीलियम ग्लासर +* यदि आप बुरी स्थिति में हैं, तो यह चिंता न करें कि यह बदल जाएगी। यदि आप एक अच्छी स्थिति में हैं, तो यह चिंता न करें कि यह बदल जाएगी। जॉन ए सिमोन +* यदि आप चीजों को देखने के तरीके को बदलते हैं, तो आप जिन चीजों को देखते हैं वो भी बदल जाती हैं। वेन डायार +* एक व्यक्ति अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाकर अपना भविष्य बदल सकता है। ओपरा विनफ्रे +* एक बच्चा, एक शिक्षक, एक कलम, और एक किताब दुनिया बदल सकती है। मलाला यूसुफजई +* सच्चा जीवन तब जीया जाता है जब छोटे छोटे बदलाव होते हैं। लियो टॉलस्टॉय +* उन्हें अक्सर बदलना होगा, जो खुशी या ज्ञान में स्थिर होना चाहते हैं। कन्फ़्यूशियस +* हर कोई दुनिया को बदलने के बारे में सोचता है, लेकिन कोई भी खुद को बदलने के बारे में नहीं सोचता है। लियो टॉल्स्टॉय +* मैं हवा की दिशा नहीं बदल सकता, लेकिन मैं अपने नाव के पालों को हमेशा अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए समायोजित कर सकता हूं। जिम्मी डीन +* वे हमेशा कहते हैं कि समय चीजों को बदलता है, लेकिन वास्तव में उन्हें खुद को बदलना होगा। एंडी वरहोल +* यदि आपको बदलना मुश्किल लगता है, तो संभवतः आपका सफल होना ओर भी कठिन होगा। एंड्रिया जंग +* यदि आपको कुछ पसंद नहीं है, तो इसे बदल दें। यदि आप इसे बदल नहीं सकते हैं, तो इसके प्रति अपना रवैया(attitude) बदलें। माया एंजेलो +* जब तक आप अपने कम्फर्ट जोन से बाहर नहीं निकलते, आप अपने जीवन कभी नहीं बदलते; परिवर्तन आपके सुविधा क्षेत्र के अंत में शुरू होता है। रॉट टी. बेनेट +* हर महान सपना एक सपने देखने के साथ शुरू होता है। हमेशा याद रखें, आपके पास ताकत और धैर्य हैं। दुनिया को बदलने के लिए सितारों तक पहुंचने का जुनून है। हेरिएट टबमैन +* यदि आप उड़ना चाहते हैं, तो आपको उसका त्याग करना होगा जो आपको नीचे खिचता हो। रॉय बेनेट +* सभी परिवर्तन विकास नहीं होते है, क्योंकि सभी गतिशीलता आगे की तरफ नहीं होती हैं। एलेन ग्लासगो +* परिवर्तन के अलावा कुछ भी स्थायी नहीं है। हेरलिटस +* शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं। नेल्सन मंडेला +* यदि आप दुश्मन बनाना चाहते हैं, तो कुछ बदलने की कोशिश करें। वूड्रो विल्सन +* कोई भी बदलाव, यहां तक कि बेहतर होने के लिए एक बदलाव, हमेशा कमियों और असुविधाओं के साथ होता है। अर्नाल्ड बेनेट +* परिवर्तन का रहस्य अपनी सारी ऊर्जा को पुराने से लड़ने पर नहीं, बल्कि नए निर्माण पर केंद्रित करना है सुकरात +* दुनिया बदलाव से नफरत करती है, फिर भी यह एकमात्र ऐसी चीज है जो प्रगति लाती है। चार्ल्स केटरिंग +* सपने बदलाव के लिए बीज हैं। कुछ भी बीज के बिना कभी नहीं बढ़ता है, और कुछ भी बिना सपने के कभ��� नहीं बदलता है। डिब्बी बॉन +* यदि ऐसा कुछ है जो हम बच्चे में बदलना चाहते हैं, तो हमें पहले इसकी जांच करनी चाहिए और देखना चाहिए कि कहीं उससे अच्छा खुद में कुछ बदलना तो नहीं है। कार्ल जंग +* गतिशील होने से ये नहीं बदलता कि आप कौन हैं। यह केवल आपकी खिड़की के बाहर के दृश्य बदलता है। राचेल होलिस +* शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं। नेल्सन मंडेला +* निराशावादी हवा के बारे में शिकायत करता है; आशावादी इसे बदलने की उम्मीद करता है; यथार्थवादी, पाल को समायोजित (adjust) करता है। विलियम वार्ड +*विचारशील लोगों का एक छोटा सा समूह दुनिया को बदल सकता है। वास्तव में, दुनिया जब भी बदली है इन्ही लोगों के द्वारा बदली है। + + +मेरी शादी होने से पहले, बच्चों कि परवरिश करने से सम्बंधित मेरे 6 सिद्धांत थे; अब मेरे 6 बच्चे हैं और कोई सिद्धांत नहीं है। +आत्मा बच्चों के साथ रहने पर स्वस्थ होती है। +जब तक छोटे बच्चों को कष्ट सहने दिया जाएगा, तब तक इस दुनिया में सच्चा प्रेम नहीं हो सकता। + + +* एक अच्छी अंतरात्मा निरंतर क्रिसमस है। + + +* विजेता बनने का एक हिस्सा ये जानना है कि कब हद पार हो चुकी है। कभी-कभी आपको लड़ाई छोड़ कर जाना पड़ता है, और कुछ और करना होता है जो अधिक प्रोडक्टिव हो। +* सफल बनने के लिए आपको कुछ करने की जरुरत है और थोडा सा बुरा करने की जरुरत है। क्योकि आप कैसे अच्छे दिखते इसे देखने से पहले आप कैसे बुरे दिखते हो इसे देखने की जरुरत होती है। –Barbara DeAngelis +* व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले मर जाता है;और वो अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल खुद ही भुगतता है; और वह अकेले ही नर्क या स्वर्ग जाता है। चाणक्य +* सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाक़ू की तरह है जिसमे सिर्फ ब्लेड है। यह इसका प्रयोग करने वाले के हाथ से खून निकाल देता है। रबिन्द्रनाथ टैगोर +* हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है। यदि कोई व्यक्ति बुरी सोच के साथ बोलता या काम करता है, तो उसे कष्ट ही मिलता है। यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो उसकी परछाई की तरह ख़ुशी उसका साथ कभी नहीं छोडती भगवान गौतम बुद्ध + + +दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे यह एक हिंदी सुप्रसिद्ध फिल्म है। +* बड़े बड़े देशों में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रेहती हैं। + + +::राहुल जी, प्रबंधक का मुख्य दायित्व निम्नलिखित है:- +*ज़रूरत पड़ने पर पृष्ठो को संपादन से सुरक्षित करना। +*पृष्ठो से बर्बरता हटाना/रोकना। जिसमें संपादनो की जाँच करके अयोग्य सम्पादन हटाकर पुन: पुरानी स्थिति पर लाना। नये लेखो की जाँच करके उन्हे नीरिक्षित अंकित करना। +*जरूरत पड़ने पर सदस्य/आई°पी° पतों को अवरोधित करना। (अवरोधित करने कि नीति पढ़ना ज़रूरी।) + + +* विजेता बनने का एक हिस्सा ये जानना है कि कब हद पार हो चुकी है। कभी-कभी आपको लड़ाई छोड़ कर जाना पड़ता है, और कुछ और करना होता है जो अधिक प्रोडक्टिव हो. +* हमेशा अपने विचारों, शब्दों और कर्म के पूर्ण सामंजस्य का लक्ष्य रखें. हमेशा अपने विचारों को शुद्ध करने का लक्ष्य रखें और सब कुछ ठीक हो जायेगा. +शिक्षा सबसे बड़ा शशक्त हथियार है जिससे दुनिया को बदला जा सकता है। +* एक अच्छा दिमाग और अच्छा दिल हमेशा से विजयी जोड़ी रहे हैं. +* मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति तुम्हारे साथ है; और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है। +* मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है।जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है। +* लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे. सम्मानित व्यक्ति के लिए, अपमान मृत्यु से भी बदतर है। +* महानता से घबराइये नहीं: कुछ लोग महान पैदा होते हैं, कुछ महानता हांसिल करते हैं, और कुछ लोगों के ऊपर महानता थोप दी जाती है। +* लेकिन आदमी आदमी होता है; जो सबसे अच्छे होते हैं वो कई बार ये भूल जाते हैं. +* प्रत्येक व्यक्ति को अपने आचरण का परिणाम धैर्यपूर्वक सहना चाहिए. +* एक छोटी सी मोमबत्ती का प्रकाश कितनी दूर तक जाता है! इसी तरह इस बुरी दुनिया में एक अच्छा काम चमचमाता है। +* अगर करना उतना ही आसान होता जितना की जानना की क्या करना अच्छा है, तो शवगृह गिरिजाघर होते, और गरीबो के झोंपड़े महल. +* महान महत्त्वाकांक्षा महान चरित्र की अभिलाषा होती है। जिनके पास ये होती है वो बहुत अच्छे या बहुत बुरे काम कर सकते हैं. +बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए । + + +* झूठी कूटनीति और बहानेबाजी की इस दुनिया में आमिर स्पष्ट रुप से अपनी बात रखते हैं। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि अंग्रेज़ी भाषा में उनका कुशलता स्तर N है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि स्पेनी भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि हिन्दी भाषा में उनका कुशलता स्तर 0 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि पुर्तगाली भाषा में उनका कुशलता स्तर N है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि अंग्रेज़ी भाषा में उनका कुशलता स्तर 3 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि जर्मन भाषा में उनका कुशलता स्तर 2 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि फ़्रेंच भाषा में उनका कुशलता स्तर 3 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि जर्मन भाषा में उनका कुशलता स्तर N है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि इतालवी भाषा में उनका कुशलता स्तर N है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि अंग्रेज़ी भाषा में उनका कुशलता स्तर 2 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि मराठी भाषा में उनका कुशलता स्तर 2 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि हिन्दी भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि गुजराती भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि संस्कृत भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि चीनी भाषा में उनका कुशलता स्तर N है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि कैंटोनीज़ भाषा में उनका कुशलता स्तर N है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि स्पेनी भाषा में उनका कुशलता स्तर N है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि बास्क भाषा में उनका कुशलता स्तर 3 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि सरलीकृत चीनी भाषा में उनका कुशलता स्तर N है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि पारंपरिक चीनी भाषा में उनका कुशलता स्तर 3 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि स्प���नी भाषा में उनका कुशलता स्तर 2 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि कातालान भाषा में उनका कुशलता स्तर 2 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि गैलिशियन भाषा में उनका कुशलता स्तर 2 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि मिरांडी भाषा में उनका कुशलता स्तर 2 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि फ़्रेंच भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि इतालवी भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि अर्गोनी भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है। + + +इस श्रेणी में श्रेणीबद्ध सदस्यों ने यह बताया है कि ओसीटान भाषा में उनका कुशलता स्तर 1 है। + + +मेरा नाम विनय कपूर है मैंने बहरी कड़ियों में अपनी site के लिंक ADD किये थे, पर अब वो वहाँ पर SHOW नहीं हो रहे है, या तो किसी ने हटायें है अगर ऐसा है तो फिर इस यहाँ पर लिंक wikiquote पर डालने का क्या फायदा, can any body help me about this.. +यदि यह पृष्ठ अभी हटाया नहीं गया है तो आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। यदि आपको लगता है कि यह पृष्ठ इस मापदंड के अंतर्गत नहीं आता है तो आप पृष्ठ पर जाकर नामांकन टैग पर दिये हुए बटन पर क्लिक कर के इस नामांकन के विरोध का कारण बता सकते हैं। कृपया ध्यान रखें कि शीघ्र हटाने के नामांकन के पश्चात यदि पृष्ठ नीति अनुसार शीघ्र हटाने योग्य पाया जाता है तो उसे कभी भी हटाया जा सकता है। +यदि यह पृष्ठ अभी हटाया नहीं गया है तो आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। यदि आपको लगता है कि यह पृष्ठ इस मापदंड के अंतर्गत नहीं आता है तो आप पृष्ठ पर जाकर नामांकन टैग पर दिये हुए बटन पर क्लिक कर के इस नामांकन के विरोध का कारण बता सकते हैं। कृपया ध्यान रखें कि शीघ्र हटाने के नामांकन के पश्चात यदि पृष्ठ नीति अनुसार शीघ्र हटाने योग्य पाया जाता है तो उसे कभी भी हटाया जा सकता है। +नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है: +कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें। + + +ऑटोविकिब्राउज़र (जिसे अक्सर संक्षिप्त में AWB कहा जाता है) विंडोज़ एक्सपी और ऊपर के लि��� एक अर्द्ध स्वचालित है मीडियाविकी संपादक है, जिसे थकाऊ एवं पुनरावृत्तीय कार्यों को तेज और आसान बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। (AWB लिनक्स पर वाइन की मदद से अच्छी तरह से चलता है, लेकिन यह आधिकारिक तौर पर समर्थित नहीं है।) यह एक ब्राउज़र विंडो के सामान है, जो पिछले पृष्ठ को सहेजने के पश्चात क्रमिक रूप से नया पृष्ठ खोलते जाता है। +वर्तमान में, AWB एक या अनेक श्रेणियों से यहाँ क्या जुड़ता है" से, किसी पन्ने पर मौजूद विकीलिनक्स से, एक टेक्स्ट फ़ाइल से, गूगल सर्च की मदद से, किसी सदस्य की ध्यानसूची से या किसी सदस्य के योगदान से पन्नों की एक सूची तैयार कर सकता है। AWB के साथ एक ऐसा प्रोग्राम भी आता है, जिसकी मदद से विकिपीडिया डेटाबेस डंप को जाँचा जा सकता है। + + +मेनका गाँधी (जन्म 26 अगस्त 1956) एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जो भारतीय जनता पार्टी और पशु अधिकार कार्यकर्ता हैं। यह 26 मई 2014 में महिला एवं बाल विकास मंत्री के रूप में नियुक्त हुईं। + + +हज़रत इनायत खान 5 जुलाई 1882 5 फरवरी 1927) सूफी ऑर्डर इंटरनेशनल के संस्थापक थे। + + +भारत के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी (बल्लेबाज) एवं अमृतसर लोक सभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद हैं। +* शादी के बाद दूसरे की बीवी ज्यादा खूबसूरत लगती है| +* समुद्र शांत हो तो कोई भी जहाज चला सकता है| +* वह एक ज़हरीले सांप से लडेगा और और उसे दो बार डंसेगा भी| +* भारत के लिए सुरंग के अंत में प्रकाश है, लेकिन वो इसी तरफ आ रही ट्रेन का है जो उन्हें कुचल के रख देगी. + + +खाता निर्माता इस सदस्य के पास अन्य सदस्य हेतु खाता निर्माण करने का अधिकार होता है। + + +प्रशासक इसके पास सदस्य अधिकार प्रबन्धक, बॉट आदि में डालने का अधिकार होता है। +प्रशासक जिनके पास विक्षनरी के लिए "विशिष्ट अधिकार" हैं। वर्तमान अंग्रेजी विकिपीडिया नीति इस पहुंच को स्वतंत्र रूप से किसी को भी देने की है, जो कम समय के लिए सक्रिय विकिपीडिया योगदानकर्ता रहा है और आम तौर पर समुदाय का एक ज्ञात और विश्वसनीय सदस्य है। यह एक बड़ी बात नहीं होनी चाहिए जैसा कि जिमबो ने कहा। +"सिसुप" और "एडमिनिस्ट्रेटर" वास्तव में गलत उपयोगकर्ता हैं, क्योंकि उन्होंने केवल विक्षनरी उपयोगकर्ताओं में योगदान दिया, जिन्होंने कई विशेषताओं को वापस ले लिया और सुरक्षा-आधारित प्रतिबंध लगा दिए क्योंकि वे भरोसेमंद ��ोगों की तरह लग रहे थे और अच्छी तरह से पूछते थे। किसी विशेष प्राधिकरण में शामिल नहीं है और संपादकीय जिम्मेदारियों के मामले में बाकी सभी के बराबर है। +विकी सॉफ्टवेयर की कई सीमाएँ हैं, लेकिन वे महत्वपूर्ण हैं। कर सकते हैं: +* बर्बरता को रोकने के लिए मुख्य पृष्ठ को संपादित करें। कोई भी बात 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+विकिपीडिया पर एक या अधिक विशिष्ट कार्य करने के लिए बॉट बनाए जाते हैं। अतीत में, बहुत कम समय में कई लेख बनाने के लिए बॉट्स का उपयोग किया जाता था। हालांकि, इसके मनमाने उपयोग के परिणामस्वरूप, बॉट-मेकिंग नीतियां विकसित की गईं। +विकिपीडिया बॉट निर्माण नीति के अनुसार, किसी भी हानिकारक उद्देश्य के लिए बॉट का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। बॉट्स का उपयोग करने से पहले अनुमोदन प्राप्त करने के लिए इसे जिम्मेदारी से इस्तेमाल किया जाना चाहिए, और प्रत्येक बॉट को एक अलग खाते से एक बॉट बनाना होगा। +बॉट अनुमोदन टीम विकिपीडिया बॉट्स के बारे में सभी तकनीकी और गुणवत्ता नियंत्रण निर्णय लेता है। बंगाली विकिपीडिया के नौकरशाहों के पास तकनीकी रूप से बॉट फ़्लैट करने की शक्ति होती है। +स्वचालित बॉट बनाने के लिए एक अलग खाते की आवश्यकता होती है। यह खाता विक्षनरी:बॉट/ प्राधिकरण अनुरोध पृष्ठ पर आवेदन करके इसे प्राप्त करना संभव है। + + +प्रबंधक इनके पास पृष्ठ हटाने, हटाये हुए इतिहास देखने, बॉट अधिकार देने आदि का अधिकार होता है। +[[विकिसूक्ति: प्रशासक होने के लिए आवेदन + + +आईपी अवरोध मुक्त यह सदस्य आईपी अवरोध से मुक्त हो कर कोई भी कार्य कर सकते हैं। अर्थात किसी अवरोधित आईपी का भी उपयोग कर सकते हैं। + + +आयातक वे सदस्य जिनके पास आयात करने का अधिकार होता है। + + +सदस्य जाँचकर्ता सदस्यों की जाँच करते हैं। + + +कपिल देव रामलाल निखंज जन्म 6 जनवरी 1959) एक भारतीय पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी हैं। यह भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप 1983 का विश्व कप जीतने में सफल हुए थे। यह 131 टेस्ट खेल चुके हैं और 434 विकेट भी हासिल किया है। यह पहले खिलाड़ी हैं, जिसने 5000 रन और 400 विकेट टेस्ट में लिए। इन्हें पद्म भूषण पुरस्कार भी मिल चुका है। +* टेस्ट क्रिकेट बल्लेबाजों के लिए है, गेंदबाज के लिए नहीं। + + +राहुल बोस एक भारतीय फिल्म अभिनेता, निर्देशक आदि हैं। यह मुख्यतः इनके फिल्मों के किरदार के कारण जाने जाते हैं। इनका जन्म 27 जुलाई 1967 को हुआ था। + + +कमल हासन का जन्म 7 नवम्बर 1954 को परमकुड़ी, तमिलनाडु, भारत में हुआ था। यह एक भारतीय फिल्म अभिनेता हैं, जो मुख्यतः तमिल भाषा के फिल्मों में कार्य करते हैं। इन्हें 4 राष्ट्रीय और 19 फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिल चुका है। ऑस्कर पुरस्कार हेतु भारत द्वारा भेजे गई सबसे अधिक फिल्मों में कमल हासन ने कार्य किया है। इन्हें 1990 में पद्म श्री और 2014 में पद्म भूषण सम्मान दिया गया। + + +राहुल गांधी एक राजनेता हैं, इनका जन्म 19 जून 1970 को हुआ था। +* राजनीति हर जगह है सत्ता पक्ष के रोम रोम में! +* मैं यहाँ हूँ अपनी काबलियत से, ना की राजनीतिक परिवार में होने की वजह से! + + +साध्वी निरंजन ज्योति भारतीय जनता पार्टी से एक सांसद हैं। + + +देशबंधु चित्तरंजनदास 1870-1925 ई सुप्रसिद्ध भारतीय नेता, राजनीतिज्ञ, वकील, कवि तथा पत्रकार थे। उनके पिता का नाम श्री भुवनमोहन दास था, जो सॉलीसिटर थे और बँगला में कविता भी करते थे। + + +इमरान हाशमी (जन्म: 24 मार्च 1979 भारतीय अभिनेता हैं। + + +मिथुन चक्रवर्ती बचपन का नाम गौरांग चक्रवर्ती) का जन्म जून 16, 1950 को हुआ। ये भारत के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कर चुके एक किवदंती फिल्म अभिनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, उद्यमी और राज्यसभा के सांसद हैं। + + +योगेश जी, मुझे हिन्दी विकिपुस्तक में एक विषय नामक नामस्थान की आवश्यकता है, जिसमें सभी विषय रहेगा। +क्या आप इसमें सहायता करेंगे? + + +ब्रायन एडम्स एक कैनेडियन रॉक गायक-गीतकार और फोटोग्राफर हैं। + + +पेच एडम्स एक चिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता, नागरिक राजनयिक, व्यावसायिक जोकर, कलाकार, और लेखक हैं। 28 मई 1945 को इनका जन्म हुआ था। इन्होंने 1972 में एक स्वास्थ्य संस्थान की स्थापना की थी। +पैच एडम्स अस्पताल में (2 मार्च 2016) + + +रियान एडम्स एक अमेरिकी गायक हैं। + + +रे एलेन अमेरिकी फूटबाल खिलाड़ी हैं। + + +लिली एलेन अंग्रेज़ी गायिका है। + + +डेरेक अबोट एक अंग्रेज़ अध्यापक हैं। +* सबसे बड़ी चुनौती (सौर ऊर्जा के लिए) विक्रेताओं द्वारा परमाणु और पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों में बड़े पैमाने पर निवेश है। यह ठीक ऐसा है, जैसे ताले में बन्द किसी राक्षस को खाना खिलाना। + + +टोनी अबोट ऑस्ट्रेलिया के राजनेता और प्रधान मंत्री हैं। +* जैसा कि आप जानते हैं कि में जलवायु परिवर्तन तथाकथित विज्ञान से असंतुष्ट हूँ। + + +रोबर्ट अग्रेस्टा अमेरिकी राजनेता हैं। + + +तलाल असद एक पाकिस्तानी मानवविज्ञानी हैं। + + +तारिक़ अली पाकिस्तानी लेखक, फिल्म निर्माता हैं। + + +सैयद अहमद खान भारतीय शिक्षक और राजनीतिज्ञ थे। + + +कोई भी सदस्य चार दिन बाद व दस सम्पादन करने के बाद स्थापित सदस्य स्वतः ही "स्वतः स्थापित सदस्य" बन जाता है। इसके बाद केपचा दिखाई नहीं देता है और यह सदस्य कोई भी पृष्ठ जिसे स्थापित सदस्य स्तर पर भी रखा गया हो, को भी संपादित कर सकता है। + + +महेश शर्मा भारतीय राजनेता हैं। + + +लाला लाजपत राय भारतीय लेखक, स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। +* सरकार ने जो अपनी ही मासूम विषयों पर हमला करता है एक सभ्य सरकार कहलाने का कोई दावा नहीं कर सकता है। अपने दिमाग में डाल लो कि ऐसी सरकार लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकती है। मैं घोषणा करता हूँ कि मुझ पर हमला भारत में ब्रिटिश शासन के ताबूत में आखिरी नाखून होगा। (20 अक्टूबर 1928 को लाहौर में एक बैठक के दौरान) +पराजय और असफलता कभी कभी विजय की ओर बढने के लिए जरुरी कदम होते हैं । +* अगर सार्वजनिक जीवन में अनुशासन का होना बहुत जरुरी है वरना प्रगति के रास्ते में बाधा आ जाएगी। +* देशभक्ति का निर्माण हमेशा न्याय और सत्य की दृढ़ चट्टान पर ही किया जा सकता है। +सिर्फ अतीत को देखकर उस पर गर्व करना तबतक व्यर्थ है जबतक उससे प्रेरणा न लेकर भविष्य का निर्माण नही किया जाय । +मनुष्य हमेशा प्रगति की मार्ग में अपने गुणों से आगे बढ़ता है किसी दुसरे के भरोसे रहकर आगे नही बढ़ा जा सकता है। +* भले ही आजादी हमे प्यारी हो लेकिन इसके पाने का मार्ग बहुत ही लम्बा और कष्टकारी है। +* परतन्त्रता में जीने से मतलब खुद का विनाश है। +* कष्ट उठाना तो हमारी लक्षण है लेकिन सत्य की खातिर कष्टों से बचना कायरतापूर्ण है। +* गलतियों को सुधारते हुए आगे बढना ही उन्नति कहलाता है। +* पूरी निष्ठा और ईमानदारी से शांतिपूर्ण साधनों के जरिये उद्देश्य को पूरा करने को ही अहिंसा कहा जाता है। +* दुसरों के ऊपर विश्वास रखने के बजाय खुद पर विश्वास होना चाहिए तभी एक राष्ट्र का निर्माण अपने खुद के बलबूते कर सकते है। +* कोई भी समाज तबतक टिक नही सकता जबतक उसकी शिक्षा अपने समय के सदस्यों की जरुरतो को पूरा नही करती। +* इन्सान को हमेसा सत्य की राह पर चलते हुए बिना सांसारिक लाभ की चिंता किये बगैर हमेसा साहसी और ईमानदार होना चाहिए। +* नेता वही होता है जिसका नेतृत्व संतोषप्रद और प्रभावशाली हो जो अपनों के लिए सदैव आगे रहता है और ऐसे लोग हमेसा निर्भीक और साहसी होते है। +* इंसान को सत्य की उपासना करते हुए सांसारिक लाभ पाने की चिंदा किए बिना साहसी और ईमानदार होना चाहिए। +* एक हिन्दू के लिये नारी लक्ष्मी, सरस्वती और शक्ति का मिला-जुला रूप होती है अर्थात वह उस सबका आधार है जो सुन्दर, वांछनीय और शक्ति की ओर उन्मुखकारक है। +वास्तविक मुक्ति दुखों से निर्धनता से, बीमारी से, हर प्रका की अज्ञानता से और दासता से स्वतंत्रता प्राप्त करने में निहित है। + + +* हम नहीं चाहते कि दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियों की क़ीमत पर सरकार को राजस्व मिले और ये भी नहीं चाहते कि कंपनियाँ लाभ अर्जित करने के लिए उपभोक्ताओं से मनमानी पैसे वसूल करें। +एक फिल्म के लिए गाने लिखने पर, जैसा कि Cite news + + +स्मृति ईरानी भारतीय राजनेत्री हैं। +*मैं एक स्वतंत्र देश में पैदा हुआ थी, जिसने सभी के लिए स्वतंत्रता और न्याय को प्रोत���साहित करने की कोशिश की। मैं किसी अन्य भारतीय की तरह ही उस प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहती हूं +*यदि कोई चाहता है कि भारत सही मायने में दुनिया के महानतम देशों में से एक के रूप में बढ़े तो धर्म, क्षेत्र, जाति या पंथ के आधार पर किसी को विभाजन को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। + + +रजनीकान्त भारतीय फिल्म अभिनेता हैं। + + +करणवीर बोहरा भारतीय फिल्म व टीवी अभिनेता हैं। यह कई हिन्दी धारावाहिकों में कार्य कर चुके हैं। +* 18 जून 2012 को एक साक्षात्कार के दौरान + + +अभिषेक बच्चन भारतीय फिल्म अभिनेता हैं। इसके अलावा यह निर्माता और गायक भी हैं। +* 7 फरवरी 2016 को एक समीक्षा के दौरान + + +विकिसूक्ति एक प्रकार का विकि है, जिसका अर्थ है कि कोई भी इसे लिख सकता है। यह पृष्ठ केवल इस बात को बताने के लिए है कि आप किस तरह से किसी पन्ने में लिख सकते हो। + + +हिन्दी विकिपेडिया पर हिन्दी लिखने के लिये जिस देवनागरी फोनेटिक टूल की व्यवस्था की गयी है, उसे हिन्दी-विकिसोर्स, हिन्दी-विकिकोट आदि पर भी उपलब्ध कराया जाय। यह बहुत ही उपयोगी टूल है। इसके उपल्ब्ध होने से हिन्दी में कन्टेन्ट-सृजन को बढ़ावा मिलेगा। +हिन्दी के अलावा मराठी, नेपाली, संस्कृत, काश्मीरी, नेपाल भाषा और भोजपुरी आदि के विकिपेडिया और विकिपेडिया के बन्धु प्रकल्पों पर भी इस टूल को उपलब्ध कराया जाय। +इस प्रकार के खातों की पहुँच हमारे जालपृष्ठों पर बहुत संवेदनशील होती है और ये खाते गलत हाथों में पड़ने पर गहन क्षति पहुँचा सकते हैं। अभी के लिए एकमात्र आवश्यकता है कि पासवर्ड कम से कम एक अक्षर का हो। हम चाहते हैं कि पासवर्ड के लिए न्यूनतम 8 अक्षर (बाइट) अनिवार्य किया जाए और कुछ आम पासवर्डों को प्रतिबन्धित किया जाए। +आप लाॅगो बना सकते है तो काॅमन्स पर अपलोड कर दिजिये। अन्यथा कॉमन्स पर ग्राफिक्स लेब के पृष्ठ पर प्रस्ताव रखने पर टीम के सदस्य लाॅगो बना देंगे। लाॅगो और नामस्थान बदलने के लिए हमें फैब पर बग का पंजीकरण करना होगा। +हिन्दी विकिसूक्ति पर अभी पृष्ठ आयात सुविधा सक्रिय नहीं है। हमारा प्रकल्प अभी प्रारंभिक अवस्था में होने के कारण बहोत सारे मीडियाविकि पृष्ठ, साँचे, विभाग इत्यादि आयात करने में ये उपयोगी है। आयात साॅर्सिस इस प्रकार है: +प्रबंधक अधिकार हेतु नये नामांकन +नामांकित सदसूय यहाँ ये पाठ हटाकर प्रबंधक अधिकार हेतु अपनी स्वीकृति लिखे और दस्तखत करें। +समय बदलने की सूचना और कार्य +:उन्होंने इसकी चर्चा बिना किए ही इसे बदलवा दिया था, पर मुझे यूटीसी रखने का कोई लाभ तो नहीं दिख रहा है। +जिन विकियों में यूटीसी है, उन्हें अलग अलग timezone में रहने वाले लोग उपयोग करते हैं या उन सदस्यों को समय बदलने के बारे में पता नहीं होगा। जैसे अंग्रेजी विकि में कई देशों के लोग सम्पादन करते हैं, मेटा, कॉमन्स आदि में भी अन्य भाषा बोलने वाले सम्पादन करते हैं। इस कारण उन विकियों में समय बदलना ठीक नहीं है। जबकि जिस विकि में उसे संपादित करने वाले लोग एक ही समय क्षेत्र के होते हैं, वे लोग उसी को परियोजना का समय रखते हैं, जिससे अधिक लोगों को परेशानी न हो। +:*हिन्दी विकि में सम्पादन मुख्य रूप से भारत के लोग ही करते हैं, यदि इस संख्या को 80% ही मान लें तो भी हम 80% सदस्यों को सेटिंग बदल कर सम्पादन करने बोलेंगे और 20% सदस्यों में से कई ऐसे होंगे जो यूटीसी से नहीं होंगे और उन्हें भी समय बदलने हेतु सेटिंग में जाना ही पड़ेगा। इसके अलावा उन 20% सदस्यों में से कुछ सदस्यों का समय यूटीसी हो सकता है। पर वे लोग शायद ही हिन्दी जानते हों। +:*timezone की समस्या मोबाइल में वार्ता आदि के दौरान ही होती है। क्योंकि उसमें जावास्क्रिप्ट काम नहीं करता, जिससे हस्ताक्षर के साथ जो समय है, उसे बदला जा सके। डेस्कटॉप पर कोई परेशानी नहीं है। वैसे पिछले माह में 84% लोग मोबाइल व्यू से विकिपीडिया देखे थे। पर शायद वे लोग चर्चा या समय नहीं देखते होंगे। तो उन्हें भी कोई समस्या नहीं होगी। +मेरा नाम विनय कपूर है मैंने बहरी कड़ियों में अपनी site के लिंक ADD किये थे, पर अब वो वहाँ पर SHOW नहीं हो रहे है, या तो किसी ने हटायें है अगर ऐसा है तो फिर इस यहाँ पर लिंक wikiquote पर डालने का क्या फायदा, can any body help me about this +भारत में प्रतिवर्ष ૧૪ सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। सन 1949 में भारत की संविधान सभा में हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया। इस दिन की खुशी में भारत में 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। पूरे देश में हिन्दी भाषा से जुड़े लोग, संस्थान, विश्वविद्यालय आदि के द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। +हिन्दी भाषा से जुड़ा हिन्दी विकिपीडिया हिन्दी भाषा का एक मात्र ऑनलाइन ज्ञानकोश है। देश और दुनिया के कई योगदांकर्ताओ के द्वारा इस ��्ञानकोश का विकास किया जाता है। हिन्दी विकिपीडिया सितंबर के अंत तक हिन्दी दिवस मनाएगा। हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में हिन्दी विकिपीडिया पर लेख प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है। इस प्रतियोगिता में जुड़कर सदस्य हिन्दी भाषा के ज्ञानकोश को समृद्ध बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा विषयों के ऊपर नए नए लेख बनाएँगे और महीने के अंत तक उत्साहपूर्व विभिन्न लेखों का निर्माण किया जाएगा। +हिन्दी विकिपीडिया के योगदानकर्ता सदस्य:स और सदस्यઃआर्यावर्त के द्वारा इस प्रतियोगिता का संचालन किया जा रहा है। हिनहोने बताया कि हिन्दी विकिपीडिया पे स्थानिक तौर पे प्रथम बार ही इस प्रकार कि प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है और आगे हिन्दी दिवस पे प्रति वर्ष इस प्रकार कि प्रतियोगिता आयोजित करने का विचार है जो इस प्रतियोगिता कि सफलता के ऊपर निर्भर है। प्रतियोगिता में सभी सदस्य बिना किसी लालच के कुछ लेने के लिए नहीं किन्तु कुछ देने के लिए एसे कार्यों में जुड़कर अपना योगदान कर रहे हैं। फिर भी सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र दिये जाएंगे और प्रोत्साहक इनाम देने के लिए भी हम विचार कर रहे हैं। हिन्दी विकिपीडिया एक ऐसा ऑनलाइन कार्यस्थल है जहाँ कई देशों से कई योगदानकर्ता जुडते हैं और हिन्दी भाषा के ज्ञानकोश को समृद्ध बनाने के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। हिन्दी विकिपीडिया में अभी ૧ लाख से भी ज्यादा विषयों के ऊपर लेख बने हैं, भूगोल, गणित, विज्ञान, भौतिकी, व्यक्ति, रसायण आदि सभी प्रमुख विषय और दुनियाभर के शहर, देश, राजी, व्यक्तिओ, इतिहास आदि कि जानकारी उपलब्ध है। विकिपीडिया पे प्रतिदिन लेखों की संख्या में वृद्धि होती रहती है। कोई भी व्यक्ति, किसी भी जगह से, किसी भी विषय पे सर्च करके जानकारी प्रपट कर सकता है। विकिपीडिया का सदस्य बनकर जानकारी दाल भी सकता है। +कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि विकिपीडिया में कई लोग कुछ भी लिखते है इसलिए इसकी विश्वसनीयता नहीं है। सदस्योने बताया कि ऐसा नहीं है। ये बात सही है कि विकिपीडिया में कोई भी लिख सकता है और कुछ भी लिखते हैं। लेकिन विकिपीडिया पर पुनरीक्षक और प्रबन्धको की पूरी टिम होती है जिसके द्वारा प्रत्येक सम्पादन कि जांच होती है और अयोग्य संपादनों को पूर्ववत किया जाता है अतઃ इस प्रकार के सम्पादन अल्पकालीन ही होते हैं। विश्वसनीयता के लिए विकिप��डिया के लेखों में प्रत्येक दावे के साठे संदर्भ दिया जाता है। बिना संदर्भ की सामाग्री को हटाया जाता है। +लेख प्रतियोगिता में भी विकि शैली के अनुसार गुणवत्तायुक्त लेखों का निर्माण किया जाएगा। इस प्रतियोगिता में कोई भी सदस्य जुड़ सकता है और किसी भी विषय पे कितने भी लेख बनाकर हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के लिए योगदान कर सकता है। +हिंदी विकिपीडिया का कोई भी सदस्य पंजीकरण कर सकता है और चयन समिति प्रतिभागियों का चयन करेगी। +चयन समिति द्वारा चुने गए लोगों को जाने आने का खर्चा दिया जाएगा और ज़रुरत के हिसाब से रहने की भी व्यवस्था की जायेगी। +अंतिम पंजीकरण १ जनवरी २०१८ +* नया तरीका प्रतिभागियों के बीच पृष्ठ समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाता है। विशेष रूप से तब जब वे गहन मूल्यांकन/आलोचनात्मक अंदाज़ में हों। +* पृष्ठ समस्याएँ पाठकों को समझ में आती हैं और वे समझते हैं कि ये कैसे काम करते हैं। +* पाठक पृष्ठ समस्याओं के बारे में परवाह करते हैं और उन्हें महत्वपूर्ण मानते हैं। +* विकिपीडिया की पृष्ठ समस्याओं के बारे में सीखने को लेकर पाठकों की भावनाएँ अत्यधिक सकारात्मक थीं। +हिन्दी विकिपीडिया में लेख प्रतियोगिता +१४ सितंबर को हिन्दी दिवस है और इसे भारत समेत कई देशों में मनाया जाता है। हिन्दी भारत की आधिकारिक राजभाषा भी है। साथ ही पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल आदि एशियाई देश एवं मोरिसश जैसे अफ्रीकी देशों में भी हिन्दी बोली जाती है। +हिन्दी भाषा को बढ़ावा मिले और हिन्दी भाषा के एकमेव ऑनलाइन ज्ञानकोष विकिपीडिया के लेखों में गुणवत्ता युक्त लेखों की वृद्धि हो इस हेतु से हिन्दी विकिपीडिया १४ सितंबर से एक माह तक लेख प्रतियोगिता का आयोजन कर रहा है। +हिन्दी की अन्य भगिनी भाषाएँ जैसे बंगाली, गुजराती, मराठी, पंजाबी, मैथिली, भोजपुरी आदि भाषाओं को जानने वाले सदस्य हिन्दी जानते हैं। उर्दू भी हिन्दी की भगिनी भाषा है और उर्दूभाषी सदस्य भी हिन्दी का अच्छा ज्ञान रखते हैं। देखा गया है कि अन्यभाषी सदस्य हिन्दी से अधिक अंग्रेजी विकि में योगदान देते हैं अथवा हिन्दी के दूसरे प्रकल्पों में अधिक सक्रिय हैं। हमारा प्रयास है कि हिन्दी दिवस के इस अवसर पर हम हिन्दी जानने वालें सदस्यों को हिन्दी विकिपीडिया के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करें। +इस प्रतियोगिता का आरंभ १४ सितंबर से होगा और १ महीने तक लेख बनाये जाएंगे। आप किसी भी विषय पर लेख बना सकते हैं। प्रतियोगिता पूर्ण होने के बाद परिणाम घोषित होगा और विजेताओं को पुरस्कृत किया जाएगा। +मेरा नाम रूपिका शर्मा है और मैं विकिमीडिआ फाउंडेशन द्वारा नियुक्त हिंदी भाषा की रणनीति समन्वयक हूँ। अगले कुछ महीने मैं हिंदी भाषा समुदाय के साथ रणनीति प्रक्रिया के बारे में चर्चाएँ करुँगी जो 2030 तक विकिमीडिया परियोजनाओं में होने वाले बदलाव को परिभाषित करेंगी। +2017 में आंदोलन रणनीति प्रक्रिया का पहला चक्र शुरू हुआ था जिसमे हिंदी समुदाय के सदस्यों ने भाग लिया था जिससे हम रणनीतिक दिशा की ओर बढ़ सके और अभी 2018 से 2020 तक दूसरा चक्र चल रहा है। इसमें हम विकिमीडिया की भविष्य की भूमिका को ध्यान में रखते हुए और अपनी संरचनाओं को अद्यतन करने के लिए एक सहयोगी रणनीति विकसित करने के लिए एक व्यापक चर्चा शुरू करेंगे जिससे हम 2030 तक अपनी रणनीतिक दिशा में सफलतापूर्वक आगे बढ़ सकें। +विकिमीडिया परियोजनाएं अपने उपयोगकर्ताओं की जरूरतों को बेहतर ढंग से कैसे पूरा करें? हिंदी समुदाय के सदस्यों को विचार-विमर्श में भाग लेकर इस रणनीतिक दिशा को प्रभावित करने का न्योता दिया जा रहा है। +इन चर्चाओं से प्रतिक्रिया संरचनात्मक परिवर्तनों के लिए संस्तुति का आधार बनेगी जिसके साथ हम अपने रणनीतिक दिशा में सफलतापूर्वक और दृढ़ता से आगे बढ़ सकेंगे। +वे कौन सी बातें हैं जिनकी समुदाय को सबसे ज्यादा महत्वता है? हम आपके लिए आंदोलन की रणनीति प्रक्रिया को समझना कैसे आसान बना सकते हैं? भाषा और तकनीकी प्रवीणता बाधाओं को ध्यान में रखते हुए। आप इन चर्चाओं के लिए किन प्लेटफार्मों और मध्यस्थों को पसंद करेंगे? +नौ कार्यवाहक समूहों भूमिकाएं और ज़िम्मेदारियां, आय के स्रोत, संसाधन आबंटन, विविधता, सहभागिताएं, क्षमता निर्माण, सामुदायिक स्वास्थ्य, उत्पाद व प्रौद्योगिकी और वकालत ने दस्तावेज तैयार किए हैं जिनमें हमारे आंदोलन की संरचनाओं से संबंधित विषयों पर मुख्य प्रश्न हैं। मई के अंत तक, हिंदी समुदाय के प्रत्येक सदस्य के पास इन सवालों के जवाब देने और स्कोपिंग दस्तावेजों पर अपनी राय साझा करने का मौका है। +आपके जवाब मुद्दों, चुनौतियों और अवसरों की रूपरेखा तैयार करेंगे जिसे कार्यदल आगे बढ़ाएगा। वे हमारे आंदोलन की गहरी समझ हासिल करने, रोमांचक संभावनाओं की पहचान करने और बदलाव के लिए संस्तुति विकसित करने में मदद करेंगे। इन पहलुओं को विकिमेनिया 2019 में वितरित किया जाएगा। +सभी हिंदी भाषा उपयोगकर्ताओं से अनुरोध किया जाता है: +* पहचानें कि आप किस विषय (स्कोपिंग दस्तावेज़) में सबसे अधिक रुचि रखते हैं। +* रणनीति प्रक्रिया की परिचर्चा के लिए ऑन-विकी, सोशल मीडिया और ऑफ़लाइन वार्तालापों में मित्रवत स्थान नीति का पालन करना याद रखें। ध्यान केंद्रित चर्चाओं के लिए एक सुखद वातावरण सुनिश्चित करने के लिए इन अपेक्षाओं की आवश्यकता होती है जहां योगदानकर्ता सम्मानपूर्वक संलग्न होते हैं। +आपसे अनुरोध है कि आंदोलन रणनीति के पृष्ठों और स्कोपिंग दस्तावेजों को देखें; इनका अनुवाद पेशेवर अनुवादकों द्वारा किया गया है और यदि किसी तरह के बदलाव की आवश्यकता हो तो आप उसके मुताबिक बदलाव कर सकते हैं। इसके इलावा आंदोलन रणनीति से संबंधित कोई भी प्रश्न या संदेह हो, तो अवश्य पूछें। +==आंदोलन रणनीति 2030 चर्चा सारांश मार्च अप्रैल== +नमस्कार! सदस्यों के लिए अनाम प्रतिक्रिया के लिए हमने विकिमीडिया आंदोलन रणनीति सर्वेक्षण तैयार किया है। वार्ताओं को सुविधाजनक बनाने के लिए हमने 9 विषयगत क्षेत्र बनाए हैं, जिनमें से प्रत्येक में प्रश्न दिए गए हैं जो संबंधित विषयगत क्षेत्र पर कार्य कर रहे कार्य समूह द्वारा बनाए गए हैं। आपके उत्तर आंदोलन के भविष्य के लिए सिफ़ारिशों को विकसित करने में कार्य-समूह दल को सूचित करेंगे। +==आंदोलन रणनीति 2030 मसौदा अनुशंसाएँ चर्चा सारांश +स्प्रिंट में, सिफ़ारिशों को आधार बनाकर, एक एकीकृत दस्तावेज़ पर काम किया गया। वहाँ से निश्चित किया गया कि विकिमीडिया 2030 दृष्टि देने के लिए किस प्रकार की संरचनाओं की आवश्यकता होगी। प्रारंभ में, सिफ़ारिशों का एक मसौदा दस्तावेज़ बनाया गया पर बाद में यह स्पष्ट हो गया की मूलभूत सिफ़ारिशें तय करने से पहले हमें मूलभूत सिद्धांत जो 2030 मार्ग को रेखांकित करते हैं, उन्हें एक औपचारिक रूप देने की आवश्यकता है। +कोर टीम चर्चा सामग्री और परिणामों का प्रसंस्करण कर रही है। वर्तमान मसौदा सिफ़ारिशों का एक एकीकृत सेट बनाने के लिए विश्लेषण जारी रहेगा। इस कार्य की समय रेखा बदल सकती है और हम सामुदायिक इनपुट के एक और दौर के लिए विकल्प कर रहें हैं। +कार्यकारी समूहों के लिए आगे क्या है +नौ कार्यकारी समूह वर्तमान में सिफ़ारिशों की दूसरी पुनरावृत्ति पर शेष परिष्करण स्पर्श डाल रहे हैं। यह संस्करण समुदाय के दृष्टिकोण को दर्शाता है जो ऑनलाइन और व्यक्तिगत रूप से विकीमानिया के दौरान और बाद में हुए कई रणनीति सैलून और दो क्षेत्रीय सम्मेलनों में साझा किए गए थे। प्रासंगिक अनुसंधान के अंतिम अंशों को एकीकृत किया जाएगा और कुछ कार्यकारी समूह सिफ़ारिशों में छोटे शोधन कर सकते हैं। इसके साथ ही में सिफ़ारिशों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया चल रही है जो उनके परिप्रेक्ष्य में, हमारे आंदोलन में परिवर्तन के लिए सबसे अधिक मूलभूत है। कार्यकारी समूह के सदस्य 1 नवंबर तक सौंपे कार्य को संपूर्ण कर देंगे। हम सभी कार्यकारी समूह के सदस्यों के अथक प्रयासों और समर्थन के प्रति अविश्वसनीय रूप से आभारी हैं। इसके दौरान, कोर टीम और अनुबंधित रणनीति संपर्क, ऑनलाइन और ऑफलाइन समुदायों के साथ, सिफ़ारिशों के मौजूदा ड्राफ्ट में अब तक साझा किए गए समुदायिक सिफ़ारिशों के निरीक्षण को साझा करेंगे। +अगले कुछ महीनों में 89 सिफ़ारिशों को एक संग्रह में संश्लेषित किया जाएगा और संक्षिप्त, स्पष्ट दस्तावेज़ बनाने के लिए, सामग्री में निर्धारित किया जाएगा कि कौन सी सिफ़ारिशों को कहाँ मिलाया जा सकता है। कार्यान्वयन प्रक्रिया पर विचार के लिए कुछ सिफ़ारिशों को आगे भेजा जा सकता है और कुछ को दूसरी सिफ़ारिशों के साथ मिलाया जा सकता है। इस काम को करने के लिए, एक नया वर्किंग ग्रुप बनाया जाएगा, जिसमें मौजूदा वर्किंग ग्रुप मेंबर्स शामिल होंगे, जो इस काम को जारी रखने में दिलचस्पी रखते हैं। +इस नए समूह में निम्न शामिल होंगे: +* लेखक जो सिफ़ारिशों को संश्लेषित करेंगे और एक सुसंगत सेट विकसित करेंगे। +* कनेक्टर्स, जो लेखकों को मौजूदा सामग्री, शोध और आने वाले समय में और पुराने सामुदायिक वार्तालापों से निवेश एकीकृत करने में मदद करेंगे। +* समीक्षक जो विशिष्ट दृष्टिकोण, विशेषज्ञता, संदर्भों को लाएंगे और प्रक्रिया के लिए सलाह देंगे। +हिंदी विकि सम्मेलन २०२० प्रतिभागिता वृत्ति प्रपत्र की कड़ियाँ +सिफ़ारिशों के लेखक कार्यकारी समूहों द्वारा उत्पादित 89 सिफ़ारिशों को संगठित करने के लिए काम कर रहे हैं। कुछ सप्ताह पहिले बर्लिन में मसौदा सिफ़ारिशों को तैयार करने के लिए लेखकों का सम्मेलन हुआ और इन सिफ़ारिश���ं को 20 जनवरी तक समुदाय के साथ साझा किया जाएगा। परिवर्तन के लिए कई क्षेत्रों को सिफ़ारिशों में परिलक्षित किया गया है, और लेखकों ने इन क्षेत्रों का मूल्यांकन करके उन्हें क्लस्टर का रूप दिया जिसका लक्ष्य परिवर्तन की दिशा को रेखांकित करना और एक सेट के तौर में प्रस्तुत करना है जिसे स्पष्ट रूप से समझा जा सके। +हम इस नए संश्लेषित संस्करण पर समुदाय के साथ चर्चा करेंगे और लेखकों के साथ-साथ विकिमीडिया फ़ाउंडेशन बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टीज़ को समुदाय के विचारों को साझा करेंगे तांकि यह स्पष्ट हो सके कि आगे बढ़ने से पहले क्या अंतिम बदलाव किए जाने चाहिए। रणनीति को और अधिक परिष्कृत करने में आपके विचार अमूल्य होंगे और इसके लिए 20 जनवरी से फरवरी तक 30 दिनों की अवधि के लिए सामुदायिक चर्चा का यह अंतिम चरण शुरू होगा। +सभी सदस्यों से अपने विचारों को साझा करने का अनुवेदन है आप अंतिम मसौदा सिफ़ारिशों पर कैसे और कहॉं चर्चा करना चाहेंगे। यह किसी कॉनफेरेन्स या मीटिंग का एक अंश हो सकता या रणनीति सैलून के माध्यम से, ऑनलाइन बातचीत में शामिल हो कर, या संबंधित चर्चाओं से मीटिंग रिपोर्ट के रूप में हो सकता है। +हिंदी विकि सम्मेलन २०२० रपट +संपर्क सूत्र निर्वाचन सितंबर २०२० सूचना +नये सदस्यों के स्वागत में विसंगति पर ध्यानाकर्षण +नमस्ते, मैं हिंदी भाषा के इस प्रकल्प पर कोई नियमित योगदानकर्ता नहीं हूँ पर कई छोटे प्रकल्पों पर हो रहे संपादनों पर यदा-कदा नज़र डाल लेता हूँ। हाल ही में इस प्रकल्प पर आने पर मुझे एक विसंगति दिखाई दी जिसकी ओर ध्यानाकर्षण चाहता हूँ। यहाँ सभी आगंतुक नये सदस्यों का स्वचालित स्वागत किया जाता है जो एक तरह का मशीनी स्वागत है। चूँकि, यह संपादन/स्वागत बॉट की तरह मशीनी होता है, स्वागतकर्ता के रूप में यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह कार्य मशीन द्वारा किया जा रहा। +तत्कालीन प्रबंधकों ने जब इस सुविधा को लागू करवाया शायद तभी से इसमें विसंगति यह है कि उन्होंने स्वागतकर्ता के रूप में अपने खाते का नाम जोड़ रखा है। इन दस्तखतों को मीडियाविकि:Newusermessage-signatures पर देखा जा सकता है। अब हालत यह है कि दोनों ही खाते असक्रिय हैं, एक का तो नाम भी बदला जा चुका है और उस नाम से वर्तमान में कोई सदस्य पंजीकृत नहीं है। मैं इस विसंगति के निवारण हेतु मेटा पर वैश्विक प्रबंधकों/स्टीवर्ड से अनुरोध करने जा रहा हूँ। यहाँ के सक्रिय सदस्य इस मुद्दे पर यहाँ अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। हालाँकि, मुझे नहीं लगता इस कार्य हेतु किसी मतदान की आवश्यकता है और समर्थन/विरोध की आवश्यकता पड़ेगी। +संदेश को मेटा-विकी पर अतिरिक्त भाषाओं में अनुवादित किया गया है।'' +न्यासी मंडल आगामी बोर्ड चुनावों के बारे में कॉल फॉर फीडबैक तैयार कर रहा है। यह ७ जनवरी १० फरवरी २०२२ के बीच होगा। +भले ही कॉल फॉर फीडबैक का विवरण एक सप्ताह पहले दिया जाएगा, हमने दो प्रश्नों की पुष्टि की है जो कॉल फॉर फीडबैक के दौरान प्रतिक्रिया के लिए पूछे जाएंगे: +* न्यासी मंडल के बीच उभरते समुदायों का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? +* चुनाव के दौरान उम्मीदवारों की भागीदारी कैसी होनी चाहिए? +भले ही अतिरिक्त प्रश्न जोड़े जा सकते हैं, लेकिन आंदोलन रणनीति और शासन टीम समुदाय के सदस्यों और सहयोगियों को विचार विमर्श के लिए समय प्रदान करना चाहती हैं। प्रश्नों की पूरी सूची नहीं होने के लिए हम माफी माँगते हैं। प्रश्नों की सूची केवल एक या दो प्रश्नों से बढ़नी चाहिए। हमारा इरादा अनुरोधों के साथ समुदाय को अभिभूत करना नहीं है। +क्या आप स्थानीय बातचीत को व्यवस्थित करने में मदद करना चाहते हैं +यदि आपके कोई प्रश्न हैं तो हमसे संपर्क करें। आंदोलन रणनीति और शासन टीम में ३ जनवरी तक कर्मचारियों की कमी होगी। कृपया विलंबित प्रतिक्रिया को क्षमा करें; यदि हमारा संदेश आपकी छुट्टियों के दौरान आपके पास पहुँचा है तो हम क्षमा चाहते हैं। +न्यासी बोर्ड चुनाव के लिए प्रतिक्रिया आह्वान शूरु हो गए है +प्रतिक्रिया आह्वान:न्यासी मंडल चुनाव शूरु हो गए है और ७ फरवरी २०२२ को बंद हो जाएंगे। +इस प्रतिक्रिया आह्वान पहल में, हमारा दृष्टिकोण २०२१ की प्रक्रिया से सामुदायिक प्रतिक्रिया को शामिल करना होगा। चर्चा प्रमुख प्रश्नों पर केंद्रित होगी। इरादा सामूहिक बातचीत और सहयोगी प्रस्ताव विकास को प्रेरित करना है। +प्रतिक्रिया आह्वान के दौरान दो पुष्ट प्रश्न पूछे जाएंगे: +# निर्वाचित उम्मीदवारों के बीच उभरते समुदायों का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है न्यासी मंडल समझता है कि उम्मीदवारों का चयन विकिमीडिया आंदोलन की पूर्ण विविधता का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। वर्तमान प्रक्रियाओं ने उत्तरी अमेरिका और यूरोप के स्वयंसेवकों का पक्ष लिया है।'' +# चुनाव के दौरान उम्मीदवारों की भागीदारी कैसी होनी चाहिए परंपरागत रूप से, न्यासी मंडल के उम्मीदवारों ने आवेदन पूरे किए और सामुदायिक सवालों के जवाब दिए। एक चुनाव स्वयंसेवकों के रूप में उम्मीदवारों की स्थिति की सराहना करते हुए उम्मीदवारों में उचित अंतर्दृष्टि कैसे प्रदान कर सकता है +प्रतिक्रिया आह्वान के दौरान एक अतिरिक्त प्रश्न पूछा जा सकता है। +आंदोलन रणनीति और शासन समाचार प्रकाशन ५ +आंदोलन रणनीति और शासन समाचार के पांचवें प्रकाशन में आपका स्वागत है (जिसे पहले सार्वभौमिक आचार संहित समाचार के रूप में जाना जाता था संशोधित संवादपत्र आंदोलन घोषणापत्र, सार्वभौमिक आचार संहिता, आंदोलन रणनीति कार्यान्वयन अनुदान, न्यासी मंडल चुनाव और आंदोलन रणनीति और शासन से संबंधित अन्य प्रासंगिक विषयों के बारे में समाचार को वितरित करता है। +टीम टास्क फोर्स की जिम्मेदारियां क्या हो सकती है, इस पर सामुदायिक प्रतिक्रिया चाहती है। इसके अलावा, यदि कोई भी समुदाय सदस्य इस १२-सदस्यीय टास्क फोर्स का हिस्सा बनना चाहता है, तो कृपया तो कृपया हमसे संपर्क करें। प्रतिक्रिया अवधि २५ फरवरी २०२२ तक है। +२ इच्छुक समुदाय के सदस्य Google Meet के माध्यम से 18 फरवरी, शुक्रवार को एक क्षेत्रीय चर्चा में शामिल हो सकते हैं। +सार्वभौमिक आचार संहिता (UCoC) प्रवर्तन दिशानिर्देश और अनुसमर्थन वोट +यह जानकारी न्यासी बोर्ड और चुनाव समिति के साथ साझा की जाएगी ताकि वे आगामी न्यासी बोर्ड के चुनाव के बारे में सूचित निर्णय ले सकें। न्यासी बोर्ड आंतरिक चर्चा के बाद एक घोषणा करेगा। +चुनाव प्रक्रियाओं में सुधार के लिए भाग लेने और मदद करने के लिए धन्यवाद। +UCoC प्रवर्तन दिशानिर्देशों के लिए अनुसमर्थन मतदान शुरू हो गए है (७ २१ मार्च २०२२ +मरियाना इस्कंदर के साथ दक्षिण एशिया ESEAP सम्बंधित वार्षिक योजना की बैठक +बातचीत इन सवालों के बारे में है: +* विकिमीडिया फाउंडेशन क्षेत्रीय स्तर पर काम करने के बेहतर तरीके तलाश रहा है। हमने अनुदान, नई सुविधाओं और सामुदायिक बातचीत में अपना ध्यान बढ़ाया है। हम और कैसे सुधार कर सकते हैं? +* कोई भी आंदोलन रणनीति प्रक्रिया में योगदान कर सकता है। हम आपकी गतिविधियों, विचारों और अनुरोधों के बारे में अधिक जानना चाहते ��ैं। विकिमीडिया फाउंडेशन आंदोलन रणनीति गतिविधियों में काम कर रहे स्वयंसेवकों और एफिलिएटस के लिए अपने समर्थन में सुधार कैसे कर सकता है? +==उम्मीदवारों के लिए आह्वान: २०२२ ट्रस्टी बोर्ड चुनाव== +ट्रस्टी बोर्ड विकिमीडिया फाउंडेशन के संचालन की देखरेख करता है। समुदाय और एफिलिएट चयनित ट्रस्टी और बोर्ड द्वारा नियुक्त ट्रस्टी, ट्रस्टी बोर्ड बनाते हैं। प्रत्येक ट्रस्टी तीन साल का कार्यकाल पूरा करता है। विकिमीडिया समुदाय के पास समुदाय और एफिलिएट चयनित न्यासियों के लिए मतदान करने का अवसर है। +विकिमीडिया समुदाय २०२२ में ट्रस्टी बोर्ड में दो सीटों का चुनाव करने के लिए मतदान करेगा। यह ट्रस्टी बोर्ड के प्रतिनिधित्व, विविधता और विशेषज्ञता में सुधार करने का एक अवसर है। +आंदोलन रणनीति और शासन टीम आगामी न्यासी बोर्ड के चुनाव में चुनाव स्वयंसेवकों के रूप में सहयोग करने के लिए समुदाय सदस्यों की तलाश कर रहा है। +२०१७ में भाग नहीं लेने वाले कुल ७४ विकियों ने २०२१ के चुनाव में मतदान किया। क्या आप भागीदारी को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं? +चुनाव स्वयंसेवक निम्नलिखित क्षेत्रों में मदद करेंगे: +* छोटे संदेशों का अनुवाद करना, और सामुदायिक स्थानों में चल रही चुनाव प्रक्रिया की घोषणा करना। +वैकल्पिक टिप्पणियों और प्रश्नों के लिए सामुदायिक स्थानों की निगरानी करना। +स्वयंसेवकों को चाहिए की वह: +* बातचीत और कार्यक्रमों के दौरान फ्रेंडली स्पेस नीति बनाए रखें। +* निष्पक्ष तरीके से समुदाय के लिए चुनाव दिशानिर्देश और मतदान की जानकारी प्रस्तुत करें। +विकिसूक्ति के लेखों का प्रारूप +अभी विकिसूक्ति के लेखों का कोई प्रारूप नहीं है। इस कारण लेखों के निर्माण में भी असुविधा होती है। यदि हम कोई अच्छा दिखने और लिखने में भी सरल प्रारूप बना लेंगे तो अच्छा रहेगा। इसके कुछ प्रारूप है। कृपया देखें और कोई अच्छा उपयोगी प्रारूप तय करने में सहायता करें। +कपिल शर्मा अंग्रेजी विकिसूक्ति के जैसा बाहरी कड़ी का उपयोग +विद्युत जामवाल विकिपीडिया की तरह सन्दर्भ का उपयोग +लेख में बाहरी कड़ी के रूप में सन्दर्भ जोड़ना काफी आसान रहता है और कोई भी आसानी से उसमें बाहरी कड़ी जोड़ सकता है। लेकिन इससे कोई भी बाहरी कड़ी में सीधे भी जा सकता है। अर्थात उसके विकिसूक्ति में रहने या इससे विकिपीडिया म��ं जाने की संभावना काफी कम हो जाती है। +लेख में यदि हम सन्दर्भ का उपयोग करें तो <रेफ> जोड़ने में कोई खास परेशानी नहीं है, क्योंकि इसमें सन्दर्भ हेतु सिर्फ सामान्य रेफ का ही उपयोग होगा तो कोई भी आसानी से बाहरी कड़ी के जैसा ही इसे भी डाल सकता है। इससे कोई सीधे ही उस कड़ी से होते हुए विकि से बाहर नहीं चले जाएगा। लेकिन इससे कोई सीधे स्रोत में नहीं जा सकता और बाहरी कड़ी से थोड़ा कठिन है। क्योंकि उसमें पाठ और कड़ी हेतु दो अलग अलग जगह दिया होता है। +:आपके द्वारा प्रस्तावित दोनों प्रारूप के आपने सकारात्मक व नकारात्मक बिंदु गिनाए। वैसे तो दोनों ही प्रारूप सही हैं, लेकिन इन प्रारूपों में से बाहरी कड़ी वाला प्रारूप ज़्यादा उचित है क्योंकि पाठकों को यदि उक्ति का स्रोत (जोकि ये भी उक्तियों के मामले में रूचिकर विषय हैं) जानना हो तो बार-बार ऊपर-नीचे scroll नहीं करना होगा। तथा, पाठकों के विकिसूक्ति या विकिपीडिया पर रहने-न-रहने से मेरे विचार से कोई विशेष समस्या नहीं है, पाठकों को जितना आवश्यक होगा उतनी जानकारी ले लेंगे। यदि मैं कुछ गलत समझी हों तो कृपया बताना जी। +२०२२ चुनाव कम्पास के लिए प्रस्तावित वक्तव्य +चुनाव कम्पास एक ऐसा उपकरण है जो मतदाताओं को उन उम्मीदवारों का चयन करने में मदद करता है जो उनके विश्वासों और विचारों के साथ सर्वोत्तम रूप से संरेखित होते हैं। समुदाय के सदस्य वक्तव्यों का प्रस्ताव रखेंगे और उम्मीदवार लिकर्ट स्केल (सहमत/निष्पक्ष/असहमत) का उपयोग करके जवाब देंगे। वक्तव्यों के जवाब चुनाव कंपास उपकरण पर अपलोड किए जाएंगे। मतदाता इस टूल का उपयोग वक्तव्यों पर उत्तर (सहमत/निष्पक्ष/असहमत) साझा करके करेंगे। परिणाम उन उम्मीदवारों की पहचान करेंगे जो मतदाता के विश्वासों और विचारों के साथ सबसे अच्छी तरह मेल खाते हैं। +* ८ २० जुलाई: चुनाव कंपास के लिए स्वयंसेवक अपने वक्तव्यों को प्रस्तावित करते हैं। +* २१ २२ जुलाई: चुनाव समिति स्पष्टता के लिए वक्तव्यों की समीक्षा करती है और विषय से परे वक्तव्यों को हटा देती है। +* २३ जुलाई १ अगस्त: स्वयंसेवक वक्तव्यों पर मतदान करते हैं। +* २ ४ अगस्त: चुनाव समिति शीर्ष १५ वक्तव्यों का चयन करती है। +* ५ १२ अगस्त: उम्मीदवार खुद को वक्तव्यों के साथ संरेखित करते हैं। +चुनाव समिति अगस्त की शुरुआत में शीर्ष १५ वक्तव्यों का चयन करेगी। चुनाव समिति, आंदोलन रणनीति और अनुशासन टीम के समर्थन के साथ, प्रक्रिया की देखरेख करेगी। आंदोलन रणनीति और अनुशासन टीम प्रश्नों की स्पष्टता, दोहराव, गलतियों आदि की जांच करेगी। +''यह संदेश बोर्ड चयन कार्य बल और चुनाव समिति की ओर से भेजा गया है।'' +मुखपृष्ठ के शीर्ष में कुछ सुधार का प्रस्ताव +आज की सूक्ति का अलग से साँचा +आज की सूक्ति" के प्रारुप में अद्दतन का सुझाव +२०२२ न्यासी बोर्ड चुनाव के लिए सामुदायिक मतदान ख़त्म होने वाली है +आपको निर्णय लेने में सहायता स्वरुप कुछ संसाधन दिए गए हैं: +सार्वभौमिक आचार संहिता के लिए संशोधित प्रवर्तन दिशानिर्देशों पर आगामी मतदान +कौन मतदान कर सकता है +स्वयंसेवकों के एक स्वतंत्र समूह द्वारा मतों की जाँच की जाएगी, और इनके परिणाम विकिमीडिया-I, आंदोलन रणनीति फोरम, डिफ और मेटा-विकी पर प्रकाशित किए जाएँगे। मतदाता पुनः मतदान करने और दिशानिर्देशों के बारे में अपनी चिंताओं को साझा करने में सक्षम होंगे। न्यासी बोर्ड समर्थन के स्तर और उठाई गई चिंताओं को देखेगा क्योंकि वे यह देखते हैं कि प्रवर्तन दिशानिर्देशों को किस प्रकार अनुसमर्थित किया जाना चाहिए या आगे विकसित किया जाना चाहिए। +सार्वभौमिक आचार संहिता के लिए संशोधित प्रवर्तन दिशानिर्देशों हेतु मतदान प्रारम्भ हो गया है +यूसीओसी (UCoC) प्रोजेक्ट टीम की ओर से +विकिमीडिया उपयोग की शर्तों को अद्यतन करने के लिए सामुदायिक प्रतिक्रिया सत्र शुरू होता है +यह अद्यतन कुछ चीजों के बारे में है: +* सार्वभौमिक आचार संहिता को लागू करना; +* अघोषित भुगतान संपादन को बेहतर ढंग से संबोधित करने का प्रस्ताव; +* यूरोपीय डिजिटल सेवा अधिनियम सहित विकिमीडिया फाउंडेशन को प्रभावित करने वाले वर्तमान और हाल ही में पारित कानूनों के अनुरूप हमारी उपयोग की शर्तों को अद्यतन करना| +प्रतिक्रिया प्रक्रिया के हिस्से के रूप में, दो कार्यालयीन समय आयोजित किए जाएंगे-पहला २ मार्च को और दूसरा ४ अप्रैल को। +विकीमीडिया फाउंडेशन कानूनी विभाग की ओर से, + + +मेरा नाम सिद्धार्थ वर्द्धन सिंह है और मैं febuary 2016 से हिन्दी विकिपीडिया पर सक्रिय हूँ। मैं मुख्यतःहिंदी में लेखों द्वारा योगदान देता हूँ। मेरे पसंदीदा विषय भारतीय इतिहास व संस्कृति पर्यावरण विज्ञान और भारतीय प्रबुद्ध धम्म संस्कृति से जुड़े पहलू हैं। + + +छत्रपति शिवाजी महाराज या शिवाजी राजे भोसले १६३० १६८०) भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने १६७४ में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन १६७४ में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और छत्रपति बने। शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनैतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। +* अगर आपके पास दृढ़ इच्छाशक्ति और फ़ौलादी आत्मबल है तो आप संपूर्ण जगत पर अपना विजय पताका फहरा सकता है। +* अगर व्यक्ति के पास दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मबल है तो वह सम्पूर्ण जगत पर अपना विजय पताका फहरा सकता है। +* अंगूर को जब तक पेरा नही जाता तबतक रस नही बनता ठीक उसी प्रकार जबतक मनुष्य कष्ट और कठिनाई के दौर से नही गुजरता तबतक उसकी प्रतिभा सबके सामने नही आती है। +* अपने आत्मबल को जगाने वाला, खुद को पहचानने वाला, और मानव जाति के कल्याण की सोच रखने वाला, पूरे विश्व पर राज्य कर सकता है। +* आत्मबल हमेसा करने की सामर्थ्य देता है और सामर्थ्य विद्या से आती है विद्या जो की हमेसा स्थिरता प्रदान करती है और स्थिरता हमेसा विजय की ओर ले जाती है। +* आत्मबल, सामर्थ्य देता है, और सामर्थ्य, विद्या प्रदान करती है। विद्या, स्थिरता प्रदान करती है, और स्थिरता, विजय की तरफ ले जाती है। +* आप एक छोटे कदम से, छोटे से लक्ष्य की शुरुआत करके भी बड़े बड़े लक्ष्य को आसानी से पा सकते है। +* आप जहा कही भी रहते है आपको अपने पूर्वजो का इतिहास जरुर मालूम होना चाहिए। +* आपका शत्रु चाहे कितना बलवान क्यूँ ना हो उसे सिर्फ मजबूत इरादे और बुलंद हौसले से पराजित किया जा सकता है। +* इस जीवन मे सिर्फ अच्छे दिन की आशा नही रखनी चाहिए, क्योकी दिन और रात की तरह अच्छे दिनो को भी बदलना पङता है। +* इस दुनिया में हर व्यक्ति को स्वतंत्र रहने का अधिकार है और उस अधिकार को पाने के लिए वह किसी से लड़ सकता है। +* एक छोटे कदम से छोटे से लक्ष्य की शुरुआत भी बड़े बड़े लक्ष्य को आसानी पा सकते है। +* एक पुरु��ार्थी भी, एक तेजस्वी विद्वान के सामने झुकता है। क्योंकि पुरुर्षाथ भी विद्या से ही आती है। +* एक सफल व्यक्ति अपने कर्तव्य की पराकाष्ठा के लिए सम्पूर्ण मानव जाति की चुनौती स्वीकार कर लेता है। +* एक स्त्री के सभी अधिकारों में सबसे महान अधिकार उसकी माँ होने में है। +* कभी भी अपना सिर नही झुकाना चाहिए बल्कि हमेशा ऊचा ही रखना चाहिए। +* कोई भी कार्य करने से पहले उसका परिणाम सोच लेना हितकर होता है; क्योकी हमारी आने वाली पीढी उसी का अनुसरण करती है। +* जब आपके हौसले बुलंद होंगे तो पहाड़ जैसी विपत्ति और संघर्ष भी मिट्टी के ढेर के समान ही प्रतीत होगा। +* जब तक मनुष्य कष्ट और कठिनाई के दौर से नही गुजरता तब तक उसकी प्रतिभा दुनिया के सामने नही आती है। +* जब पेड़ इतना दयालु हो सकता है की पत्थर मारने पर फल देता है तो एक राजा होने के नाते तो मुझे उस पेड़ से भी अधिक दयालु और सबका हितैषी होना चाहिए। +* जब लक्ष्य, जीत का बनाया जाता है तो तो उस जीत को हासिल करने के लिए दृढ़ परिश्रम और किसी भी कीमत को चुकाने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। +* जरुरी नही की दुश्मन से लड़कर ही जीत हासिल किया जाए बल्कि उसे बिना लड़े भी जीत हासिल किया जा सकता है। +* जरूरी नही कि विपत्ति का सामना, दुश्मन के सम्मुख से ही करने में, वीरता हो, वीरता तो विजय में है। +* जीवन में सिर्फ अच्छे दिन की आशा नही रखनी चाहिए, क्योंकि दिन और रात की तरह अच्छे दिनों को भी बदलना पड़ता है। +* जो मनुष्य अपने बुरे समय में भी अपने कार्यो में लगा रहता है उसके लिए बुरा समय भी अच्छे समय में बदल जाता है। +* जो व्यक्ति अपने आत्मबल को जान लेता है, खुद को पहचान लेता है, जो मानव जाति के कल्याण को सोच रखता है वही व्यक्ति पूरे विश्व पर राज्य कर सकता है। +* जो व्यक्ति धर्म, सत्य श्रेष्ठता और ईश्वर के सामने झुकता है उस व्यक्ति का आदर समस्त संसार में किया जाता है। +* जो व्यक्ति सिर्फ अपने देश और सत्य के सामने झुकते है उनका आदर सभी जगह होता है। +* बदला लेने की भावना मनुष्य को जलाती रहती है, संयम ही प्रतिशोध को काबू करने का एक मात्र उपाय है। +* यदि एक पेड़, जोकि इतनी उच्च जीवित सत्ता नहीं है, इतना सहिष्णु और दयालु हो सकता है कि किसी के द्वारा मारे जाने पर भी उसे मीठे आम दे; तो एक राजा होकर, क्या मुझे एक पेड़ से अधिक सहिष्णु और दयालु नहीं होना चाहिए? +* यद्यपि तलवार तो किसी के भी ��ाथ में हो सकता है लेकिन साम्राज्य तो वही स्थापित कर सकता है जिसमे दृढ़ इच्छाशक्ति होती है। +* यह जरुरी नही कि खुद गलती करके ही सीखा जाए, दुसरो की गलती से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। +* वास्तव में, इस्लाम और हिन्दू धर्म अलग-अलग मामले हैं। वे उस सच्चे दिव्य चित्रकार द्वारा रंगों को मिलाने और खाका तैयार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। यदि यह एक मस्जिद है, तो उसकी याद में ईबादत के लिए आवाज़ दी जाती है। यही यह एक मंदिर है तो सिर्फ उसी के लिए घंटियाँ बजाई जाती हैं। +* वीर व्यक्ति हमेसा विद्वानों के आगे झुकते है। +* शत्रु चाहे कितना बड़ा और शक्तिशाली क्यों ना हो उसे सही नियोजन और आत्मबल और उत्साह के जरिये ही हराया जा सकता है। +* शत्रु चाहे कितना ही बलवान क्यो न हो, उसे अपने इरादों और उत्साह मात्र से भी परास्त किया जा सकता है। +* स्वतंत्रता एक ऐसा वरदान है जिसे पाने का हर कोई अधिकारी है। +* हमे अपने शत्रु को कभी कमजोर नही समझना चाहिए और अपने से अधिक बलवान समझकर भयभीत भी नही होना चाहिए। +शिवाजी के बारे में उक्तियाँ +: दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर, +भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं। +: अर्थ जिस प्रकार जंभासुर पर इंद्र, समुद्र पर बड़वानल, रावण के दंभ पर रघुकुल राज, बादलों पर पवन, कामदेव पर शंकर, सहस्त्रबाहु पर परशुराम, पेड़ के तनों पर दावानल, हिरणों के झुंड पर चीता, हाथी पर शेर, अंधेरे पर प्रकाश की एक किरण और कंस पर कृष्ण भारी हैं, उसी प्रकार म्लेच्छ वंश पर शिवाजी शेर के समान हैं। +: नदी-नद मद गैबरन के रलत है। +: थारा पर पारा पारावार यों हलत है॥ कवि भूषण द्वारा रचित 'शिवभूषण' से +: कवि भूषण ने इस पद के माध्यम से शिवाजी की धर्म निष्ठा बताई है कि उन्होंने किस प्रकार भारतीय धर्म की रक्षा की है। कवि भूषण ने शिवाजी को धर्म-रक्षक वीर के रूप में चित्रित किया है। जब औरंगजेब सम्पूर्ण भारत में देवस्थानों को नष्ट कर रहा था, वेद-पुराणों को जला रहा था, हिन्दुओं की चोटी कटवा रहा था, ब्राह्मणों के जनेऊ उतरवा रहा था और उनकी मालाओं को तुड़वा रहा था, तब शिवाजी महाराज ने ही मुगलों को मरोड़ कर और शत्रुओं को नष्ट कर सुप्रसिद्ध वेद-पुराणों की रक्षा की; लोगों को राम नाम लेने की स्वतंत्रता प्रदान की; हिन्दुओं की चोटी रखी, सिपाहियों (क्षत्रियों) को अपने यहाँ रखकर उनको रोटी दी; ब्राह्मणों के कंधे पर जनेऊ, गले में माला रखी। देवस्थानों पर देवताओं की रक्षा की और स्वधर्म की घर-घर में रक्षा की। +: सिद्ध की सिधाई गई, रही बात रब की। +: काशी कर्बला होती मथुरा मदीना होती +* मराठा इतिहास के पहले और महान नेता ने मराठा शक्ति के उत्थान के लिए ऐतिहासिक राज्य में आंदोलन शुरू करने से पहले अपने मन में एक हिंदू साम्राज्य की स्थापना की स्पष्ट अवधारणा बना ली थी। प्रदेशों पर विजय प्राप्त करना, शत्रु का विनाश करना, राज्य का विस्तार करना आदि, उन्होंने जो कुछ भी किया यह सब उनके अखिल भारतीय प्रकल्प का भाग था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर अपने निबन्ध शिवाजी ओ गुरु गोविन्द में एके बसु मजूमदार, रबींदन्रनाथ टैगोर: द पोएट ऑफ इंडिया, इंडस पब्लिशिंग, 1993, पृष्ठ 60 में रबींद्रनाथ टैगोर का उद्धरण +* भारत के इतिहास में केवल शिवाजी महाराज का तेजस्वी चरित्र मेरे अंतःकरण में मध्याह्न के सूर्य की तरह प्रकाशमान हुआ है। शिवाजी महाराज के जैसा उज्ज्वल चरित्र मैंने किसी और राजनेता का नहीं देखा। आज की परिस्थिति में इसी महापुरुष की वीर-गाथा का आदर्श हमारा मार्गदर्शन कर सकता है। शिवाजी महाराज के आदर्शों को संपूर्ण भारतवर्ष के सामने रखा जाना चाहिए। सुभाष चन्द्र बोस]] +* जिन व्यक्तियों को उच्च बुद्धि मिली होती है उनका प्रभाव किसी विशेष क्षेत्र में अथवा एक साथ अन्य क्षेत्रों में होता है। वो सद्बुद्धि के व्यापारियों की बनिस्बत उच्च बुद्धि के महानुभाव अधिक प्रभावशाली होते हैं। कोर्स नामक विद्वान, शिवाजी महाराज एवं उनकी बुद्धिमत्ता के संदर्भ में + + +यह asbox or article stub box (आधार लेख डिब्बा साँचा बनाने का साँचा है मेटा टेम्पलेट यह एक मानक साँचा है जिसका इस्तेमाल नए आधार साँचों को बनाने के लिए किया जाता है। इससे भिन्न प्रकार के आधार साँचों का निर्माण किया जा सकता है। +| subject लेख से पहले उदा जीवनी* से सम्बंधित लेख एक आधार है। +| qualifier लेख के बाद उदा: यह संगीत से सम्बंधित लेख *जो रॉक शैली का है* एक आधार है। +| category श्रेणी का नाम उदा: संगीत आधार +| name आधार साँचे का पूरा नाम, खुद के संदर्भ के लिए +यह सरल उपयोग अधिकतर आधार साँचों के लिए काफी है। अतिरिक्त मानको के इस्तेमाल के बारे में नीचे लिखा है। + + +हिन्दी दिवस प्रतिवर्ष 14 सितम्बर के दिन मनाया जाता है। + + +label सभी पुनर्निर्देश भी हटाएँ', +tooltip यह विकल्प पृष्ठ को आ रहे सभी पुनार्निर्देशो��� को भी हटाता है। यदि लेख का विषय ज्ञानकोशीय हो तो आम तौर पर ऐसा नहीं किया जाना चाहिये।", +label यदि संभव हो तो पृष्ठ निर्माता को सूचित करें', +tooltip यदि यह विकल्प सक्षम है, और आपके Twinkle Preferences में सूचना देना सक्षम है, तो पृष्ठ निर्माता के वार्ता पृष्ठ पर एक सूचना साँचा जोड़ दिया जाएगा। +"यदि आपके Twinkle Preferences में आपके द्वारा चुने मापदंड के लिये स्वागत सक्षम है, तो सदस्य का स्वागत भी किया जाएगा।", +label अनेक मापदंडों के साथ टैग करें', +tooltip इसे चुन के आप पृष्ठ पर लागू होने वाले अनेक मापदंड निर्दिष्ट कर सकते हैं।", +label फ़1. 14 दिन से अधिक समय तक कोई लाइसेंस न होना', +tooltip इसमें वे सभी फाइलें आती हैं जिनमें अपलोड होने से दो सप्ताह के बाद तक भी कोई लाइसेंस नहीं दिया गया है। ऐसा होने पर यदि फ़ाइल पुरानी होने के कारण सार्वजनिक क्षेत्र(पब्लिक डोमेन) में नहीं होगी, तो उसे शीघ्र हटा दिया जाएगा।' +label फ़2. चित्र का विकिमीडिया कॉमन्स पर स्रोत और लाइसेंस जानकारी सहित उपलब्ध होना', +tooltip ऐसी फ़ाइलों को हटाने से पहले जाँच लें कि कॉमन्स पर स्रोत और लाइसेंस जानकारी सही हो, और यदि कॉमन्स पर फ़ाइल का नाम विकिपीडिया पर फ़ाइल के नाम से भिन्न है तो विकिपीडिया की फ़ाइल की जगह सभी जगह कॉमन्स की फ़ाइल का प्रयोग करें।', +tooltip यदि कॉमन्स पर फ़ाइल का यही नाम है तो आप इसे रिक्त छोड़ सकते हैं। फ़ाइल के नाम से पहले "File अथवा "चित्र लगाना वैकल्पिक है।' +tooltip इस मापदंड के अंतर्गत वे फ़ाइलें आती हैं जो कॉपीराइट सुरक्षित हैं और उचित उपयोग हेतु विकिपीडिया पर डाली गई हैं, परंतु जिनका कोई उपयोग न किया जा रहा है और न ही होने की संभावना है।' +label फ़4. ग़ैर मुक्त उचित उपयोग उपयोग फ़ाइल जिसपर कोई उचित उपयोग औचित्य न दिया हो', +tooltip ऐसी कॉपीराइट सुरक्षित फ़ाइलें जिनपर 7 दिन तक कोई उचित उपयोग औचित्य न दिया हो, उन्हें इस मापदंड के अंतर्गत हटाया जा सकता है।' +tooltip इस मापदंड के अंतर्गत वे फ़ाइलें आती हैं जो ग़ैर मुक्त हैं और जिनका कोई मुक्त विकल्प उपलब्ध है। यह आवश्यक नहीं कि मुक्त विकल्प हूबहू वही फ़ाइल हो।', +label मुक्त विकल्प फ़ाइल का नाम +tooltip इस मापदंड के अंतर्गत वे फ़ाइलें आती हैं जिनका कोई प्रयोग नहीं हो रहा है और जिनका कोई ज्ञानकोशीय प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इसमें चित्र, ध्वनियाँ एवं वीडियो फ़ाइलें नहीं आती हैं।' +tooltip वे सभी फ़ाइलें जो अंतरजाल पर किसी ऐस��� वेबसाइट से लिये गए हैं जो साफ़-साफ़ फ़ाइल को मुक्त लाइसेंस के अंतर्गत नहीं देती है। इसमें वे फ़ाइलें भी आती हैं जिनका कॉपीराइट स्वयं अपलोडर के पास है और सदस्य ने उसका पहला प्रकाशन किसी मुक्त लाइसेंस के अंतर्गत नहीं किया है।', +tooltip इसमें वे लेख आते हैं जो पूर्णतया हिन्दी के अलावा किसी और भाषा में लिखे हुए हैं, चाहे उनका नाम हिन्दी में हो या किसी और भाषा में।' +tooltip इसमें वे सभी पृष्ठ आते हैं जिनमें केवल प्रचार है, चाहे वह किसी व्यक्ति-विशेष का हो, किसी समूह का, किसी प्रोडक्ट का, अथवा किसी कंपनी का। इसमें प्रचार वाले केवल वही लेख आते हैं जिन्हें ज्ञानकोष के अनुरूप बनाने के लिये शुरू से दोबारा लिखना पड़ेगा।' +tooltip इस मापदंड के अंतर्गत वो लेख आते हैं जो किसी पुराने लेख की प्रतिलिपि हैं। इसमें वे लेख भी आते हैं जो किसी ऐसे विषय पर बनाए गए हैं जिनपर पहले से लेख मौजूद है और पुराना लेख नए लेख से बेहतर है।', +tooltip मूल पुराने लेख का नाम जिसकी प्रतिलिपि यह लेख है' +tooltip यदि सदस्य अपने सदस्य पृष्ठ, वार्ता पृष्ठ अथवा किसी उपपृष्ठ को हटाने का स्वयं अनुरोध करता है तो उस पृष्ठ को शीघ्र हटाया जा सकता है।' +tooltip ऐसे सदस्यों के पृष्ठ, वार्ता पृष्ठ अथवा उपपृष्ठ जो विकिपीडिया पर पंजीकृत नहीं हैं; इस मापदंड के अंतर्गत शाघ्र हटाए जा सकते हैं।' +label स3. वेब होस्ट के रूप में विकिपीडिया का स्पष्ट दुरुपयोग', +tooltip सदस्य नामस्थान में बने ऐसे पृष्ठ जिनका विकिपीडिया के लक्ष्यों से बारीकी से संबंध नहीं, जहाँ स्वामी ने सदस्य स्थान के बाहर बहुत कम या कोई संपादन नहीं किया है। इस मापदंड के अंतर्गत आते हैं।' +tooltip सदस्य अपने सदस्य पृष्ठ, वार्ता पृष्ठ अथवा किसी उपपृष्ठ पर कॉपीराइट सामग्री नहीं रख सकते और ऐसे पृष्ठों को शीघ्र हटाया जा सकता है। इसमें ऐसे पृष्ठ भी आते हैं जिनमें मुख्य रूप से "ग़ैर मुक्त उचित उपयोग चित्रों" की दीर्घा(गैलरी) हो, क्योंकि ऐसे चित्रों का सदस्य नामस्थान में प्रयोग विकिपीडिया की नीतियों के विरुद्ध है।', +tooltip इसके अंतर्गत वे सभी साँचे आते हैं जो अब प्रयोग में नहीं हैं और जिनकी जगह उनसे बेहतर किसी साँचे ने ले ली है। यदि नए साँचे के बेहतर होने पर विवाद हो, अथवा साँचा प्रयोग में हो तो हटाने हेतु चर्चा प्रक्रिया का प्रयोग करें।', +tooltip शीह शीघ्र हटाएँ" का लघु रूप है। ऐसे नामांकन में भी शीघ्र हटान�� का कोई मापदंड लागू होना चाहिये। यदि कोई मापदंड लागू नहीं होता, तो पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा का प्रयोग करें।', +label व1. अर्थहीन नाम अथवा सम्पूर्णतया अर्थहीन सामग्री वाले पृष्ठ', +tooltip इसमें वे पृष्ठ आते हैं जिनका नाम अर्थहीन है; अथवा जिनमें सामग्री अर्थहीन है, चाहे उसका नाम अर्थहीन न हो।' +tooltip इसमें वे पृष्ठ आते हैं जिन्हें परीक्षण के लिये बनाया गया है, अर्थात यह जानने के लिये कि सचमुच सदस्य वहाँ बदलाव कर सकता है या नहीं। इस मापदंड के अंतर्गत सदस्यों के उपपृष्ठ नहीं आते।' +tooltip इस मापदंड के अंतर्गत वे पृष्ठ आते हैं जिनपर साफ़ दिखाई दे रहा धोखा हो।' +tooltip इस मापदंड में वे सभी पृष्ठ आते हैं जो साफ़ तौर पर कॉपीराइट उल्लंघन हैं और जिनके इतिहास में उल्लंघन से मुक्त कोई भी अवतरण नहीं है। इसमें वे पृष्ठ भी आते हैं जिनपर डाली गई सामग्री का कॉपीराइट स्वयं उसी सदस्य के पास है और सदस्य ने उसका पहला प्रकाशन किसी मुक्त लाइसेंस के अंतर्गत नहीं किया है। इस मापदंड का प्रयोग तभी किया जाना चाहिये यदि पृष्ठ व6ल, व6फ़, अथवा व6स के अंतर्गत न आता हो।', +tooltip इसमें वे सभी पृष्ठ आते हैं जिनमें केवल प्रचार है,चाहे वह किसी व्यक्ति-विशेष का हो, किसी समूह का, किसी प्रोडक्ट का, अथवा किसी कंपनी का। इसमें प्रचार वाले केवल वही लेख आते हैं जिन्हें ज्ञानकोश के अनुरूप बनाने के लिये शुरू से दोबारा लिखना पड़ेगा।' +'अर्थहीन अर्थहीन नाम अथवा सम्पूर्णतया अर्थहीन सामग्री वाले पृष्ठ', +'लाइसेंस 14 दिन से अधिक समय तक कोई लाइसेंस न होना', +'कॉमन्स चित्र का विकिमीडिया कॉमन्स पर स्रोत और लाइसेंस जानकारी सहित उपलब्ध होना', +'अप्रयुक्त ग़ैर मुक्त अप्रयुक्त ग़ैर मुक्त उचित उपयोग फ़ाइल', +'औचित्य ग़ैर मुक्त उचित उपयोग उपयोग फ़ाइल जिसपर कोई उचित उपयोग औचित्य न दिया हो', +'वेब होस्ट वेब होस्ट के रूप में विकिपीडिया का स्पष्ट दुरुपयोग', +input prompt('कृपया शीघ्र हटाने के लिये कारण दें।\n\"यह पृष्ठ शीघ्र हटाने योग्य है क्योंकि +input prompt कृपया मूल लेख का नाम बताएँ +input prompt कृपया मुक्त विकल्प का नाम बताएँ। +if(!confirm('इस पृष्ठ के निर्माता आप ही हैं। क्या आप इसे शीघ्र हटाने हेतु नामांकित करना चाहते हैं +if( xfd confirm पृष्ठ पर हहेच साँचा xfd[1 पाया गया है। क्या आप अब भी शीघ्र हटाने का नामांकन जोड़ना चाहते हैं +alert('आपको सूचित किया जाता है कि आपके बनाए इस पृष्ठ को शीघ्र ह��ाने हेतु नामांकित किया गया है। आपके वार्ता पृष्ठ पर सूचना साँचा नहीं जोड़ा जाएगा। +appendText nयह लॉग ट्विंकल के प्रयोग से सीधे हटाए गए पृष्ठों को नहीं दिखाता।\n"; +alert कारण बताना आवश्यक है। नामांकन रोक दिया गया है। +alert आपने स्रोत यू॰आर॰एल नहीं दिया है। नामांकन रोक दिया गया है। +alert आपने मूल लेख का नाम नहीं दिया है। नामांकन रोक दिया गया है। +alert आपने कॉमन्स पर फ़ाइल का नाम नहीं दिया है। नामांकन रोक दिया गया है। +alert आपने कॉमन्स पर फ़ाइल का नाम नहीं दिया है। नामांकन रोक दिया गया है। +alert आपने बेहतर साँचे का नाम नहीं दिया है। नामांकन रोक दिया गया है। + + +label संगठन का नाम (वैकल्पिक +tooltip इनमें से कुछ साँचे एक वैकल्पिक पैरामीटर की सुविधा प्रदान करते हैं, जिसमें आई॰पी॰ पतों के स्वामी या इनको संचालित करने वाले संगठन का नाम भरा जा सकता है। आप वह नाम यहाँ डाल सकते हैं। यदि आवश्यक हो तो wikimarkup का प्रयोग कर सकते हैं।' +label संगठन के संपर्कसूत्र (सिर्फ संगठन के अनुरोध पर भरें +tooltip इनमें से कुछ साँचे संगठनो के संपर्कसूत्र के लिए एक वैकल्पिक पैरामीटर स्वीकार करते हैं। इस पैरामीटर का इस्तेमाल संगठन के विशेष अनुरोध पर ही किया जाना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो wikimarkup का प्रयोग कर सकते हैं।' +tooltip आइ॰पी॰ सदस्य वार्ता पृष्ठ पर प्रयोग हेतु साँचा। यह साँचा आइ॰पी॰ सदस्य तथा उन लोगों को जो उसे चेतावनी देना चाहते हैं या प्रतिबन्धित करना चाहते हैं, को उपयोगी जानकारी उपलब्ध करता है।' +label ISP इंटरनेट सेवा प्रदाता(ISP) संगठनों(खासकर प्रॉक्सीज़) के लिए संशोधित साझा आइ॰पी॰ साँचा', +label mobileIP मोबाइल फोन कंपनी और उनके ग्राहकों के लिए संशोधित साझा आइ॰पी॰ साँचा', +alert आपको value साँचे के लिए संगठन का नाम देना होगा। + + +'यह उपकरण अन्य पृष्ठों पर मौजूद इस पृष्ठ की सभी कड़ियों backlinks को हटाने का विकल्प प्रदान करता है +"। ध्यान से प्रयोग कीजियेगा।" +alert("कड़ियाँ हटाने के लिए कारण देना अनिवार्य है। +tooltip आप ये नामस्थान अपनी ट्विंकल वरीयताओं में बदल सकते हैं वि:Twinkle/Preferences पर।" +tooltip आप ये नामस्थान अपनी ट्विंकल वरीयताओं में बदल सकते हैं वि:Twinkle/Preferences पर।" + + +tooltip आप डिफ़ॉल्ट क्रम अपनी ट्विंकल वरीयताओं (WP:TWPREFS) में परिवर्तित कर सकते हैं।', +label यदि संभव हो तो अनेक समस्याएँ द्वारा वर्गीकृत करें', +tooltip यदि अनेक समस्याएँ द्वारा स्वीकृत 3 से अधिक साँचो��� का प्रयोग कर रहे हों और ये चैकबौक्स checked हो, तो सभी स्वीकृत साँचे एक अनेक समस्याएँ साँचे में एकत्रित कर दिए जायेंगे।', +label सफ़ाई की आवश्यकता का कारण +label इस लेख को के लिए प्रतिलिपि सम्पादन की आवश्यकता है +{ label वैश्वीकरण लेख विषय का विश्वव्यापी दृष्टिकोण नहीं दर्शाता है value वैश्वीकरण +{ label वैश्वीकरण/अंग्रेज़ी लेख मुख्य रूप से अंग्रेज़ी वक्ताओं का दृष्टिकोण दर्शाता है value वैश्वीकरण/अंग्रेज़ी +tooltip यह केवल तभी उपलब्ध है यदि केवल एक लेख का नाम दिया जाये।' +label विलय के लिये कारण tag को विलय दुसरे इस लेख के वार्ता पृष्ठ पर जोड़ा जायेगा +tooltip यह वैकल्पिक है, परन्तु जहाँ तक संभव हो इसका प्रयोग किया जाना चाहिए। इसका प्रयोग ना करना हो तो इसे खाली छोड़ दें। यह तभी जोड़ा जाएगा यदि विलय हेतु एक ही लेख का नाम दिया जाए।' +label स्रोत भाषा जिससे अनुवाद किया गया है (यदि ज्ञात हो +"अत्यधिक विवरण लेख में अनावश्यक अत्यधिक विवरण है", +"अद्यतन लेख में नई जानकारी जोड़ने की आवश्यकता है", +"अतिरंजित लेख में अतिरंजित शब्दावली का प्रयोग है जो सत्यापित जानकारी जोड़े बिना विषयवस्तु का प्रचार करती है", +"अविश्वसनीय स्रोत लेख में दिये गए सन्दर्भों के विश्वसनीय न होने की आशंका है", +"आत्मकथा लेख आत्मकथा है एवं ग़ैर तटस्थ दृष्टिकोण का हों सकता है", +"उल्लेखनीयता लेख की विषयवस्तु उल्लेखनीयता दिशानिर्देशों पर खरी नहीं उतरती", +"एक स्रोत लेख मुख्य रूप से अथवा पूर्णतया एक स्रोत पर निर्भर करता है", +"एकाकी लेख से बहुत कम अथवा कोई भी लेख नहीं जुड़ते", +"कम दृष्टिकोण लेख सभी महत्वपूर्ण दृष्टिकोण नहीं दर्शाता, केवल कुछ को दर्शाता है", +"कहानी लेख में कहानी का सारांश बहुत लम्बा है", +"काम जारी लेख पर इस समय काम चल रहा है और लेख में काफ़ी विस्तार अथवा सुधार किया जा रहा है", +"को विलय इस लेख का एक और लेख में विलय कर देना चाहिए", +"काल्पनिक परिप्रेक्ष्य लेख का विषय कल्पना पर आधारित है और लेख को वास्तविकता के परिप्रेक्ष्य से लिखने की आवश्यकता है", +"कॉपी पेस्ट लेख किसी स्रोत से कॉपी-पेस्ट किया गया है", +"खराब अनुवाद लेख किसी और भाषा से खराब तरीके से अनूदित किया गया है", +"गद्य लेख सूची आरूप में है जिसे गद्य का प्रयोग करके बेहतर दर्शाया जा सकता है", +"ग़ैर मुक्त लेख में ग़ैर मुक्त सामग्री का अत्यधिक अथवा अनुचित उपयोग है", +"छोटी भूमिका लेख की भू���िका बहुत छोटी है और विस्तारित की जानी चाहिए", +"जीवनी स्रोत कम जीवित व्यक्ति की जीवनी में सत्यापन हेतु अतिरिक्त स्रोतों की आवश्यकता है", +"जीवनी स्रोतहीन जीवित व्यक्ति की जीवनी जिसमें कोई संदर्भ नहीं हैं", +"दृष्टिकोण लेख की तटस्थता इस समय विवादित है", +"दृष्टिकोण जाँच लेख को तटस्थता जाँच के लिए नामित करें", +"नया असमीक्षित लेख लेख को बाद में जाँचने के लिये चिन्हित करें", +"निबंध लेख निबंध की तरह लिखा है और ठीक करने की आवश्यकता है", +"पुराना लेख में पुरानी जानकारी है जिसे अद्यतन की आवश्यकता है", +"प्रसंग लेख का प्रसंग अपर्याप्त है", +"प्रतिलिपि सम्पादन लेख को व्याकरण, शैली, सामंजस्य, लहजे अथवा वर्तनी के लिए प्रतिलिपि सम्पादन की आवश्यकता है", +"प्रशंसक दृष्टिकोण लेख प्रशंसक के दृष्टिकोण से लिखा है", +"प्राथमिक स्रोत लेख प्राथमिक स्रोतों पर अत्यधिक रूप से निर्भर है। लेख में तृतीय पक्ष के स्रोतों की आवश्यकता है।", +"बाहरी कड़ियाँ लेख कि बाहरी कड़ियाँ विकी नीतियों एवं दिशानिर्देशों के उल्लंघन में हैं", +"बन्द सिरा लेख में दूसरे लेखों की कड़ियाँ नहीं हैं", +"बड़े सम्पादन लेख में कुछ समय के लिये बड़े सम्पादन किये जा रहे हैं", +"भाग लेख को भागों में विभाजित करने की आवश्यकता है", +"भूमिका नहीं लेख में भूमिका नहीं है, लिखी जानी चाहिए", +"भूमिका फिर लिखें लेख की भूमिका को दिशानिर्देशों के अनुसार पुनर्लेखन की आवश्यकता है", +"भ्रामक भ्रामक शब्दों के प्रयोग से लेख में पक्षपात उत्पन्न हो रहा है", +"में विलय एक और लेख का इस लेख में विलय कर देना चाहिए", +"मूल शोध लेख में मूल शोध अथवा असत्यापित दावे हैं", +"लम्बी भूमिका लेख की भूमिका बहुत लम्बी है, छोटी की जानी चाहिए", +"लहजा लेख का लहजा ठीक नहीं हैं", +"विलय लेख का एक और लेख से विलय कर देना चाहिए", +"विवादित लेख की तथ्यात्मक सटीकता संदिग्ध है", +"विशेषज्ञ लेख को विषय के विशेषज्ञ से ध्यान की आवश्यकता है", +"विज्ञापन लेख विज्ञापन की तरह लिखा है", +"वैश्वीकरण लेख विषय का विश्वव्यापी दृष्टिकोण नहीं दर्शाता है", +"संदर्भ सिर्फ़ कड़ी स्रोतों के लिए सिर्फ़ यूआरएल का प्रयोग हुआ है, जिनके टूटने की संभावना है", +"सफ़ाई लेख को ठीक करने की आवश्यकता है", +"सिर्फ़ कहानी लेख लगभग सम्पूर्णतः कहानी का सारांश है", +"स्रोत कम लेख को सत्यापन के लिए अतिरिक्त संदर्भ एवं स्रोतों की आवश्यकता है", +"स्वयं प्रकाशित स्रोत लेख में स्वप्रकाशित स्रोतों का अनुचित प्रयोग है", +"हालही झुकाव लेख हाल की घटनाओं की ओर झुका हुआ है", +"हिन्दी नहीं लेख हिन्दी के स्थान पर किसी और भाषा में लिखा है एवं अनूदित करने की आवश्यकता है", +"ज्ञानकोषीय नहीं लेख में ज्ञानकोष के लिये अनुपयुक्त जानकारी है जो वि:नहीं के विरुद्ध है", +"श्रेणी कम लेख को अतिरिक्त श्रेणियों की आवश्यकता है", +"तटस्थता, पक्षपात एवं तथ्यात्मक सटीकता +label R to list entry छोटी चीज़ों कि सूची प्रकार के लेख को पुनर्निर्देशन(ऐसे विषयों के लिये जो अपने-आप में सम्पूर्ण लेख जितने उल्लेखनीय नहीं हैं +label R to section R to list entry जैसा, परंतु तब प्रयोग करें जब सूची अनुभाजित हो और पुनर्निर्देशन किसी अनुभाग को किया जा रहा हो', +label R from misspelling गलत वर्तनी अथवा टंकन में गलती से पुनर्निर्देशन', +label R from member किसी समूह के सदस्य से उस समूह, संगठन अथवा टीम इत्यादि को पुनर्निर्देशन', +label R from historic name किसी ऐसे नाम से पुनर्निर्देशन जो ऐतिहासिक रूप से जगह से जुड़ा हुआ है', +tooltip उदहारण: उत्तरांचल से उत्तराखण्ड, मद्रास से चेन्नई' +label R from merge विलय किये गए पन्ने से पुनर्निर्देशन(सम्पादन इतिहास संरक्षित करने के लिये +tooltip इसका प्रयोग तब करें जब दो सम्बन्धित विषयों के लेखों का विलय किया गया हो। एक ही विषय पर बने दो लेखों के लिये R from duplicated article का प्रयोग करें।' +{ label Do not move to Commons सार्वजनिक क्षेत्र समस्या फ़ाइल संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में सार्वजनिक क्षेत्र में है परंतु स्रोत देश में नहीं value Do not move to Commons +// var param prompt('कृपया विलय में शामिल अन्य लेखों के नाम बताएँ। n +// "एक से अधिक लेखों के नाम डालने के लिये उनके बीच में वर्टिकल पाइप का प्रयोग करें। n +// "यह जानकारी आवश्यक है। नाम डालने के बाद OK दबाएँ, विलय टैग छोड़ने के लिये Cancel दबाएँ। +alert कृपया विलय में विलय और को विलय में से एक ही चुनें। यदि अनेक पृष्ठों को विलय करना है तो कृपया विलय का प्रयोग करें और लेखों के नाम के बीच में पाइप का प्रयोग करें। ध्यान रखें कि अनेक लेखों को विलय के लिए चिन्हित करते समय ट्विंकल अन्य पृष्ठों को स्वचालित रूप से चिन्हित नहीं कर सकता है। +alert कृपया हिन्दी नहीं और खराब अनुवाद में से एक ही चुनें। +alert विलय के लिए चिन्हित करते समय अनेक अन्य लेखों को चिन्हित करना, और अनेक लेखों के लिए चर्चा शुरू करना अभी संभव नहीं है। कृपया दूसरे लेख ���ो चिन्हित करने के विकल्प को अनचेक कर के और कारण में इनपुट खाली कर के पुनः यत्न करें। +alert आपको सफ़ाई साँचे के लिए एक कारण बताना होगा। + + +label सम्बन्धित लेख (यदि साँचे द्वारा स्वीकृत +tooltip स्वागत में एक लेख की कड़ी जोड़ी जा सकती है, यदि स्वागत साँचे द्वारा स्वीकृत हो। ऐसे साँचों के आगे लगा है। किसी भी लेख की कड़ी न जोड़ने के लिये खाली छोड़ दें।', + + +tooltip आपके लिये अपने-आप सबसे उपयुक्त चर्चा पृष्ठ चुना जाता है, परंतु आप चाहें तो किसी अन्य विकल्प का प्रयोग भी कर सकते हैं (ऐसा ना किया जाए तो बेहतर है +label श्रेणियाँ हटाने, विलय अथवा स्थानांतरित करने हेतु चर्चा', +label यदि संभव हो तो पृष्ठ निर्माता को सूचित करें', +tooltip आप कारण में विकिपाठ का प्रयोग कर सकते हैं। ट्विंकल स्वचालित रूप से आपके हस्ताक्षर उपयुक्त स्थानों पर जोड़ देगा।' +label श्रेणियाँ हटाने, विलय अथवा स्थानांतरित करने हेतु चर्चा', +tooltip इससे नामांकन साँचे को <noinclude> में लपेट दिया जाएगा, जिससे नामांकन साँचा पृष्ठ के साथ ट्रान्सक्लूड नहीं होगा।' +if (confirm("इस लेख पर पहले से एक नामांकन साँचा मौजूद है। nवर्तमान नामांकन साँचे को हटाकर नया नामांकन साँचा लगाने के लिये OK दबाएँ। नया नामांकन ख़ारिज करने के लिये Cancel दबाएँ। +if (text textNoSd confirm("इस लेख पर शीघ्र हटाने का नामांकन पाया गया है। क्या उस नामांकन को हटाया जाए +editsummary हेतु चर्चा के लिये नामांकित किया गया है।'; + + +watchlist yes ध्यानसूची में जोड़ें no ध्यानसूची में नहीं जोड़ें default आपकी वरीयताओं अनुसार चलें +talkPageMode window एक नई विंडो में, पहले से खुले वार्ता पृष्ठ की जगह tab एक नए टैब में blank एक बिलकुल नई विंडो में +label ट्विंकल के सम्पादन सारांश में जोड़ने हेतु ऐड +helptip यह स्पेस से शुरू होना चाहिए, और छोटा होना चाहिए।", +helptip यह आम-तौर पर सामान्य ऐड ही रखी जाती है।", +label पृष्ठ सुरक्षित करते समय सम्पादन सारांश में जोड़ने हेतु ऐड +helptip यह आम-तौर पर सामान्य ऐड ही रखी जाती है।", +label निम्न मापदंडों से नामांकन करते समय लेख को ध्यानसूची में डालें", +label स्वयं बनाए पृष्ठों को शीघ्र हटाने हेतु चिन्हित करते समय सूचित करें", +helptip यदि आप स्वयं बनाए किसी पृष्ठ को शीघ्र हटाने हेतु चिन्हित कर रहे होंगे, तो आपको एक जावास्क्रिप्ट एलर्ट द्वारा सूचित करेगा। साथ ही यदि आप अपने बनाए किसी पृष्ठ को स1 के अतिरिक्त किसी मापदंड के अंतर्���त चिन्हित कर रहे होंगे तो आपको यह जानकारी देकर आपसे नामांकन के लिए पुष्टि लेगा।", +label नामांकन करते समय लेख को जाँचा हुआ (patrolled) चिन्हित करें (यदि संभव हो +label निम्न मापदंडों से नामांकन करते समय पृष्ठ निर्माता को सूचित करें", +helptip यदि आप नामांकन विंडो में से सूचित करना चुनते हैं और यहाँ उपयुक्त चेकबॉक्स चेक करते हैं, पृष्ठ निर्माता को तभी सूचित किया जाएगा।", +label नामांकन को हटाने के बजाए डिफ़ॉल्ट रखें", +label विंडो की चौड़ाई (पिक्सेल में +label विंडो की ऊँचाई (पिक्सेल में +helptip यदि आपके पास बड़ा मॉनिटर है तो आप इसे बढ़ाना पसंद करेंगे।", +label सभी शीघ्र हटाने के नामांकनों का अपने सदस्य नामस्थान में लॉग रखें", +helptip चूँकि आम सदस्य अपने हटाए हुए योगदान नहीं देख सकते हैं, अपने सदस्य नामस्थान में नामांकनों का लॉग रखना ट्विंकल द्वारा किये गए नामांकनों की सूची पाने का आसान तरीका है।", +label सदस्य नामस्थान का लॉग इस पृष्ठ पर रखें", +helptip यहाँ अपने सदस्य उप-पृष्ठ का नाम दें। इसमें अपना सदस्य नाम एवं नामस्थान ना जोड़ें। यह तभी काम करता है यदि आप सदस्य नामस्थान लॉग सक्षम करें।", +label सदस्य नामस्थान लॉग में निम्न मापदंडों से किये गए नामांकनों की प्रविष्टि ना जोड़ें", +label पृष्ठों को रखरखाव के लिए टैग करते समय उन्हें ध्यानसूची में जोड़ें", +label यदि संभव हो तो अनेक समस्याएँ द्वारा वर्गीकृत करें चेकबॉक्स को डिफ़ॉल्ट रूप से चेक करें", +label लेख रखरखाव के लिए दिखाने हेतु विशिष्ट टैग", +helptip ये टैग सूची के अंत में अतिरिक्त विकल्पों की तरह नज़र आते हैं। आप इसमें ऐसे रखरखाव साँचे जोड़ सकते हैं जो ट्विंकल में डिफ़ॉल्ट रूप से उपलब्ध नहीं हैं।", +helptip यदि यह सक्षम है तो केवल सन्देश साँचा जोड़ने पर भी उसके नीचे आपके हस्ताक्षर जोड़े जाएँगे।", +label सन्देश के लिए प्रयोग किया जाने वाला अनुभाग शीर्षक", +label कड़ियाँ निम्न नामस्थानों से हटाएँ", +helptip किसी भी चर्चा/वार्ता नामस्थान को चुनते समय याद रखें कि इससे पुरालेखों में से भी कड़ियाँ हट जाएँगी (जो नहीं किया जाना चाहिए)।", +helptip इससे आप उस नए सदस्य का ध्यान रख सकेंगे, और आवश्यकता पड़ने पर उनकी मदद कर सकेंगे।", +label स्वागत से पहले अनुभाग शीर्षक जोड़ें", +label स्वागत के लिए प्रयुक्त अनुभाग शीर्षक", +helptip इससे तभी फ़र्क पड़ेगा यदि अनुभाग शीर्षक सक्षम है और साँचे में पहले से अनुभाग शीर्षक नहीं है।", +helptip कुछ स्वागत साँचों में स्वागत करने वाले सदस्य का नाम भी जुड़ता है। यदि आप इस विकल्प को अक्षम करते हैं तो ऐसे साँचों में आपका सदस्यनाम नहीं दिखाई देगा।", +label सम्पादन सारांश में साँचे का नाम णा जोड़ें", +helptip नए सदस्यों को Welcomevandal जैसे नाम अटपटे या बुरे लग सकते हैं, इसलिए उन्हें सम्पादन सारांश में ना जोड़ा जाए तो अच्छा है।", +helptip यदि आप अपने-आप स्वागत करने का चुनाव करते हाँ तो आप नीचे जिस साँचे का नाम देंगे, स्वागत के लिए उसका प्रयोग किया जाएगा।", +label अपने-आप स्वागत करते समय प्रयोग करने हेतु साँचा", +helptip एक स्वागत साँचा का नाम जोड़ें, बिना ब्रैकेट के। उपयुक्त पृष्ठ की कड़ी अपने-आप जोड़ी जाएगी।", +helptip आप अन्य विशिष्ट स्वागत साँचे (अथवा सदस्य नामस्थान के पृष्ठ जो साँचे हैं) यहाँ जोड़ सकते हैं। ये स्वागत विंडो में जोड़ के दिखाए जाएँगे और सदस्य वार्ता पृष्ठों पर substitute किये जाएँगे। सदस्य नामस्थान के पृष्ठ जोड़ते समय पृष्ठ का पूरा नाम (नाम्थान सहित) बताएँ। साँचों के लिए ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है।", +यह फ़ाइल स्वचालित रूप से बनाई गई है।\n +आप जो भी बदलाव यहाँ करेंगे,\n +इस फ़ाइल को संपादित करते समय मान्य जावास्क्रिप्ट का ही प्रयोग करें।\n + + +alert("रोलबैक नहीं किया जा सकता। पृष्ठ बदला जा चुका है। + + +reg n s*सुरक्षा हटाने हेतु वर्तमान अनुरोध\s s +reg n s*सुरक्षित करने हेतु वर्तमान अनुरोध\s s + + +tooltip:"उस सदस्य का नाम जिसके वार्ता पन्ने पर आपने सन्देश छोड़ा है।", +tooltip:"सूचनापट पर सम्बंधित अनुभाग (वैकल्पिक +alert("आपको उस सदस्य का नाम बताना होगा जिसके वार्ता पन्ने पर आपने सन्देश छोड़ा है। +alert("यदि आपका सन्देश सदस्य वार्ता पन्ने की जगह किसी और पन्ने पर है तो आपको उस पन्ने का पूरा नाम बताना होगा। + + +डिफ़ॉल्ट संपादन सारांश बॉक्स के नीचे अक्सर उपयोग में आनेवाले कुछ नए संपादन सारांशों की सूची जोड़ें। + + +Twinkle मूल रूप से अंग्रेज़ी विकिपीडिया पर बनाया गया एक जावास्क्रिप्ट उपकरण है जो विकिपीडिया पर रखरखाव के कार्यों में सहायता करता है। इसका प्रयोग केवल पंजीकृत सदस्यों द्वारा किया जा सकता है। यह कई सुविधाएँ उपलब्ध कराता है, जिसमें सदस्यों को संदेश देना, बर्बरता के कार्यों को एक बटन में वापिस लेना, पृष्ठों को हटाने के लिये नामांकित करना, और भी बहुत कुछ शामिल है। +;ध्यान दें: Twinkle इ���्टरनेट एक्सप्लोरर वर्ज़न 8 या उससे पहले में नहीं काम करता है। यदि आप विन्डोज़ विस्टा या विन्डोज़ 7 का प्रयोग करते हैं तो आप इन्टरनेट एक्सप्लोरर 9 तक अपडेट कर सकते हैं, जिसमें Twinkle काम करेगा। Twinkle अन्य नए ब्राउज़रों में काम करना चाहिये। +Twinkle अंग्रेज़ी और हिन्दी विकिपीडिया के अतिरिक्त चीनी एवं बंगाली विकिपीडिया में भी प्रयोग में लाया जाता है। + + +संपादक इस साँचे के प्रयोगस्थल व प्रयोग पन्नों में प्रयोग कर सकते है। + + +आधार एक ऐसा लेख है जिसमे चंद वाक्य हैं और जो दिए विषय की संतोषजनक जानकारी नहीं देता है। +*हो सके तो लेखों के लिए सबसे उचित आधार साँचों का ही उपयोग करें। +*एक से अधिक अलग आधार साँचों का प्रयोग किया जा सकता है पर चार से अधिक आधार साँचों का उपयोग न करें। +*आधार साँचों को लेख के अंत में ही डालें. आप इन्हें बाहरी कड़ियाँ अनुभाग, श्रेणी टैगों और नेविगेशन साँचों के बाद पर भाषाओँ की कड़ियों से पहले रखें। इनका उपयोग भी अन्य साँचों के समान लिख के किया जाता है। + + +यह एक हिन्दी विकिसूक्ति है, इसके अलावा भी कई अन्य भाषाओं में भी विकिसूक्ति उपलब्ध है। + + +देवनागरी लिपि में कई भाषाओं को लिखा जाता है। यह पूरी तरह ध्वनि अर्थात उच्चारण पर आधारित है, इस कारण किसी भी भाषा को इस लिपि में लिखा जा सकता है। यह बोलियों के लिए सबसे अधिक उपयोगी होती है, क्योंकि बोली हमेशा उच्चारण पर ही आधारित होती है और अन्य किसी लिपि में इसके जैसे उच्चारण नहीं होते हैं। इस लिपि में हिन्दी, नेपाली, मराठी, संस्कृत, पालि, नेपाल भाषा, कश्मीरी, भोजपुरी, कोंकणी, मैथिली, छत्तीसगढ़ी आदि भाषाओं को लिखा जाता है। +* अन्य लिपियों से अलग यह उच्चारण पर आधारित है। इसका अर्थ यह है कि आप जो उच्चारण करते हो उसे इस लिपि के द्वारा लिख सकते हो। +* इसमें स्वर और व्यंजन को अलग अलग रखा गया है। इससे कोई भी आसानी से स्वर और मात्रा को पहचान सकता है। +* इसमें व्यंजन को भी कई तरह से श्रेणियों में रखा गया है, जो उच्चारण के अनुसार है। इससे पढ़ने और इसे सीखने में भी आसानी होती है। +* हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है। +* सभी भारतीय भाषाओं के लिए देवनागरी का प्रयोग हो, इससे राष्ट्रीय एकता और अन्तरराष्ट्रीय सद्भाव लाने में सहायता ���िलेगी। +* देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है। +* मानव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है। +* देवनागरी वर्णमाला, भाषाविज्ञान में ध्वन्यात्मक परिशुद्धता का एक शानदार स्मारक है। +* एक सर्वमान्य लिपि स्वीकार करने से भारत की विभिन्न भाषाओं में जो ज्ञान का भंडार भरा है उसे प्राप्त करने का एक साधारण व्यक्ति को सहज ही अवसर प्राप्त होगा। हमारे लिए यदि कोई सर्व-मान्य लिपि स्वीकार करना संभव है तो वह देवनागरी है। +::— ए एल बाशम द वंडर दैट वाज इंडिया" के लेखक और इतिहासविद् +: देवनागरी ध्वनिशास्त्र की दृष्टि से अत्यन्त वैज्ञानिक लिपि है। +: हमारी नागरी दुनिया की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि है। +: समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है। +: हिंदी, देवनागरी लिपि में ही फल-फूल सकती है। यह महज नारा नहीं है, बल्कि इसके समर्थन में तथ्यपरक बातें हैं। +: देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता स्वयं सिद्ध है। +: बँगला वर्णमाला की जाँच से मालूम होता है कि देवनागरी लिपि से निकली है और इसी का सीधा सादा रूप है। +: हिंदुस्तान के लिये देवनागरी लिपि का ही व्यवहार होना चाहिए, रोमन लिपि का व्यवहार यहाँ हो ही नहीं सकता। +: भारतवर्ष के लिये देवनागरी साधारण लिपि हो सकती है और हिंदी भाषा ही सर्वसाधारण की भाषा होने के उपयुक्त है। +: हमारी देवनागरी इस देश की ही नहीं समस्त संसार की लिपियों में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। +: राष्ट्रीय एकता के लिये हमें प्रांतीयता की भावना त्यागकर सभी प्रांतीय भाषाओं के लिए एक लिपि देवनागरी अपना लेनी चाहिये। +: अंग्रेज़ी के एक मनोभाषाविद ने हिंदी को हटाने की बहुत ही चालाक रणनीति सुझाई है और वह रणनीति पिछले दरवाज़े से हिंदी के अधिकांश अख़बारों में काम करने लगी है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दलालों ने, अख़बारों को यह स्वीकारने के लिए राज़ी कर लिया है कि इसकी `नागरी-लिपि` को बदल कर रोमन' करने का अभियान छेड़ दीजिए और वे अब तन-मन और धन के साथ इस तरफ़ कूच कर रहे हैं। उन्होंने इस अभियान को अपना प्राथमिक एजेंडा बना लिया है। क्यों कि इस देश में, बहुराष्ट्रीय-निगमों की महाविजय, सायबर युग में `रोमन-लिपि` की पीठ पर सवार होकर ही बहुत जल्दी संभव हो सकती है। + + +लालू प्रसाद यादव भ��रतीय राजनेता हैं। यह यूपीए के समय भारत के रेलमंत्री भी रह चुके हैं। इसके बाद यह राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष बन गए। +*रेल मंत्री रहते समय 7 जुलाई 2004 +यदि हम दर बढ़ा देंगे तो वो लोग सड़क से सामान ले जाएँगे और इससे सड़क का बुरा हाल हो जाएगा। +* एक साक्षात्कार के दौरान रेल की सुरक्षा से जुड़े प्रश्न पर +डकैती तो होता रहता है। + + +आर॰ माधवन भारतीय फिल्म अभिनेता हैं। यह मुख्य रूप से तमिल भाषा की फिल्में करते हैं। इसके अलावा यह हिन्दी, तेलुगू, कन्नड़, बंगाली आदि फिल्में भी करते हैं। +* मैं उस तरह का व्यक्ति हूँ, जिसे फिल्म में केवल मनोरंजन चाहता है। मैं उस तरह की फिल्में नहीं करता जिसमें केवल गम, बहुत क्रोधित, या निराश महसूस करने लगें। मैं इस तरह के फिल्में बनाने के लिए तैयार नहीं हूँ। मैं मनोरंजन का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। मुझे इस तरह की फिल्मों पर विश्वास है, जो लोगों का मनोरंजन करे और लोग तीन दिन तक बाते कर के उसे भूल जाएँ। + + +पाकिस्तान भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित एक देश है। यह विश्व का 6वाँ सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। यह पहले भारत का हिस्सा था, जिसे अँग्रेज़ो ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अलग देश बना दिया। +पाकिस्तान में कई गहरी परेशानियाँ है। +* मोहम्मद अली जिन्नाह, 30 अक्टूबर 1947 को लाहौर में + + +चीन एशिया में स्थित एक देश है। जिसकी जनसंख्या विश्व में सबसे अधिक है और स्थान में यह दूसरा है। + + +जापान जो निप्पॉन के नाम से भी जाना जाता है, पूर्व एशिया का एक द्वीप देश है। यह प्रशांत महासागर के पास है। +कोई जापानी केवल अपने तलवार से ही पूरा होता है। + + +कनाडा उत्तर अमेरिका में स्थित एक देश है। इसका क्षेत्रफल एक करोड़ वर्ग किलोमीटर है। +मैं कनाडा जाना चाहता हूँ, लेकिन उसके लिए में इंतेजर नहीं कर सकता हूँ। + + +ब्राज़ील दक्षिण अमेरिका में स्थित एक देश है, जहाँ अधिकतर लोग पुर्तगाली बोलते हैं। +ब्राज़ील काफी सुंदर देश है, जहाँ सभी लोग शिक्षित, कठिन परिश्रमी और शांत स्वभाव के हैं। + + +जर्मनी यूरोप में स्थित एक देश है, जिसका क्षेत्र 357,021 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। यहाँ सबसे अधिक तापमान इसके राजधानी बर्लिन में होता है। +* फौरी (2014 डेविड आएर द्वारा लिखा हुआ +डॉन कोलिएर मैंने यह युद्ध जर्मन लोगों को मरने के लिए अफ्रीका में शुरू किया थ��। उसके बाद फ्रांस, फिर बेल्जियम, फिर अब जर्मनी में। यह जल्द ही समाप्त होगा लेकिन उससे पहले कई लोग मारे जाएंगे। + + +उत्तर कोरिया और उसके साथ दक्षिण कोरिया एक द्वीप में स्थित दो देश हैं। +* उत्तर कोरिया का इतिहास रहा है कि वह अपने कला आदि को सहेज के रखता है। + + +दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया एक द्वीप में स्थित दो देश है। +* ड्रेक बेर, 1 फरवरी 2016 को +दक्षिण कोरिया के जन्म दर में कमी को देखने से ऐसा लगता है कि 2045 तक यह दुनिया का सबसे पुराना देश बन जाएगा। जिसमें लोगों की औसत आयु 50 वर्ष होगी। + + +इटली यूरोप में स्थित एक देश है, जिसका क्षेत्रफल 3,01,338 वर्ग किलोमीटर है। + + +माधुरी दीक्षित भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं। + + +! लिखने का तरीका नाम जानकारी + + +माइक्रोसॉफ्ट इंडिक टायपिंग टूल माइक्रोसॉफ्ट द्वारा बनाया गया एक हिन्दी लिखने का साधन है। जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति जो रोमन लिपि में ही लिखना जानता है, वो बिना किसी परेशानी के हिन्दी में देवनागरी लिपि में उतनी ही तेजी से लिख सकता है। +इससे आपको अलग मेहनत करना नहीं पड़ेगा, अगर आपको पहले से कीबोर्ड के द्वारा लिखना आता है तो आपको केवल शब्द लिखना भर है, यह सॉफ्टवेयर उसे आसानी से देवनागरी लिपि में लिख देगा। उदाहरण के लिए आपको नमस्ते लिखना है तो आप namaste लिखेंगे तो यह अपने आप ही इसे नमस्ते कर देगा। इसमें एक शब्दकोश भी होता है, जिससे आप के द्वारा होने वाली गलती भी कम हो जाएगी। उदाहरण के लिए यदि आप "आदि" लिखना चाहते हैं और "adi" लिखते हैं तो यह अपने आप उसे ठीक करके "आदि" लिख देगा लेकिन यदि आप अदी लिखना चाहते हैं तो अपने कीबोर्ड में नीचे करने वाले बटन को दबा सकते हैं। +नीचे दिये जानकारी से आप कोशिश कर के इससे दो से तीन मिनट में ही बहुत तेजी से हिन्दी लिखने लगोगे। +* kri → कृ (क्रि लिखने के लिए आपको नीचे का बटन दबाना पड़ेगा।) +* krop → क्रॉप (क्रोप लिखने के लिए आपको नीचे का बटन दबाना पड़ेगा।) + + +हिन्दी लिखने में आसानी और उसके लिखने के तरीके जानने को आसान बनाने के लिए यह श्रेणी है। इसमें आप लिखने से जुड़े लेखों को पढ़ सकते हैं। + + +स्वेट मार्डेन एक अमेरिकी लेखक थे। इन्होंने जीवन में सफलता प्राप्त कैसे करें इस बारे में कई किताबें लिखी हैं। +* चिंता और चिता में वही फर्क है जो आत्मविश्वास से भरे सेहतमंद इंसान ��र बीमार इंसान में होता है। +* कोई भी तकलीफ उतनी तकलीफदेह नहीं होती जितनी उस तकलीफ की चिंता तकलीफदेह होती है। +* जब इंसान चिंता में होता है तो उस समय वह कोई भी रचनात्मक कार्य नहीं कर सकता। +* चिंता इंसान शक्ति की समाप्त कर देती हैं। + + +* “मैं आपको बताता हूँ, आपके भीतर एक परमानंद का फव्वारा है, प्रसन्नता का झरना है. आपके मूल के भीतर सत्य,प्रकाश, प्रेम है, वहां कोई अपराध बोध नहीं है, वहां कोई डर नहीं है. मनोवैज्ञानिकों ने कभी इतनी गहराई में नहीं देखा|” +* “जब आप अपना दुःख बांटते हैं वो कम नहीं होता. जब आप अपनी ख़ुशी बांटने से रह जाते हैं, वो कम हो जाती है.अपनी समस्याओं को सिर्फ ईश्वर से सांझा करें और किसी से नहीं, क्योंकि ऐसा करना सिर्फ आपकी समस्या को बढ़ाएगा.अपनी ख़ुशी सबके साथ बांटें| + + +* विपरीत परस्थितियों में कुछ लोग टूट जाते हैं, तो कुछ लोग लोग रिकॉर्ड तोड़ देते हैं. +* अगर आप सोचते हैं कि आप कर सकते हैं, तो आप कर सकते हैं| अगर आप सोचते हैं कि आप नहीं कर सकते हैं, तो आप नहीं कर सकते हैं. +* जो होता है, अच्छे के लिए होता है। +* भगवान ने मनुष्य को अपने समान ही बनाया, पर दुर्भाग्य से इन्सान ने भगवान को अपने जैसा बना डाला. +* प्रेम की शक्ति, हिंसा की शक्ति से हजार गुनी प्रभावशाली और स्थायी होती है। +* यदि आप सच कहते हैं, तो आपको कुछ याद रखने की जरूरत नहीं रहती. + + +* आपके पास जो कुछ भी है उसके लिए शुक्रगुज़ार रहिये; आपके पास और भी अधिक होगा। अगर आप इस बात पर ध्यान केंद्रित करेंगे की आपके पास क्या नहीं है तो आपके पास कभी भी पर्याप्त मात्र में चीजें नहीं होंगी। +* मैं असफलता में यकीन नहीं रखती। अगर आपने प्रक्रिया का आनंद उठाया है तो ये असफलता नहीं है। +* अगर आपको अपने जीवन के लक्ष्य प्राप्त करने हैं तो आपको अपनी आत्मा से शुरुआत करनी होगी। +* असल ईमानदारी ये जानते हुए सही चीज करने में है कि कोई और ये नहीं जान पाए की आपने ये किया है या नहीं। +* जैसे जैसे आपको स्पष्ट हो जायेगा की आप सचमुच कौन हैं, आप और भी अच्छे से तय कर पायेंगे की आपके लिए सबसे अच्छा क्या है- पहली बार में ही। +* मैं असफलता में यकीन नहीं रखती। अगर आपने प्रक्रिया का आनंद उठाया है तो ये असफलता नहीं है। +* ये मायने नहीं रखता की आप दुनिया में कैसे आये, ये मायने रखता है की आप यहाँ हैं। +* मैं खुद को एक पिछाड़ी बस्ती की गरीब वंचित ���ड़की नहीं समझती जिसने कुछ बड़ा हासिल किया। मैं खुद को एक ऐसा व्यक्ति समझती हूँ जो छोटी उम्र से ही ये जानती थी की मैं खुद के लिए जिम्मेदार है, और मुझे अच्छा करना है। + + +मुहम्मद अली (जन्म :कैसियस मर्सलास क्ले, जूनियर; 17 जनवरी, 1942 3 जून, 2016) पूर्व अमेरिकी पेशेवर मुक्केबाज थे, जिन्हें खेल इतिहास में दुनिया का सबसे बड़ा हेवीवेट मुक्केबाज कहा जाता है। +बच्चों को देखकर इच्छा होती है कि जीवन फिर से शुरू करें। +* नदियां तालाब झीलें और धाराएं – इनके अलग-अलग नाम हैं, लेकिन इन सबमे पानी होता है ठीक वैसे ही जैसे धर्म होते हैं- उन सभी में सत्य होता है। +* आयु आपकी सोच में है। जितनी आप सोचते हैं उतनी ही आपकी उम्र है। + + +* हंसी के बिना बिताया हुआ दिन बर्वाद किया हुआ दिन है। +* हम सोचते बहुत हैं और महसूस बहुत कम करते हैं। +* इस मक्कार दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, यहाँ तक की हमारी परेशानिया भी नहीं। +सच में हंसने के लिए आपको अपनी पीड़ा के साथ खेलने में सक्षम होना चाहिए। + + +* जल्द ही हमने देखा कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को दिया जा रहा पैसा परिवार के लिए अधिक फायदेमंद रह रहा है। इसलिए हमने अपनी नीति बदली और महिलाओं को उच्च प्राथमिकता देने लगे। नतीजतन, अब ग्रामीण बैंक ४० लाख उधारकर्ताओं में से ९६% महिलाएं हैं। +* गरीबी और हमारे समाज में आर्थिक संकट की खामियों को दूर करने के लिए, हमें अपने सामाजिक जीवन की कल्पना करने की जरूरत है।हमें अपना दिमाग खोलना होगा, वो सोचना होगा जो कभी नहीं सोचा गया और एक सामाजिक उपन्यास लिखना होगा.हमें चीजों को करने के लिए उनकी कल्पना करनी होगी.अगर आप कल्पना नहीं करेंगे तो वो कभी नहीं होंगी। +* अच्छे आर्थिक सिद्धांतों को लोगों को अपनी प्रतिभा का प्रयोग करके अपने जीवन का निर्माण करने का मौका देना चाहिए। हमें परम्परागत रास्ते जहाँ अमीर व्यवसाय करेंगे और गरीब निजी या सार्वजानिक दान पर निर्भर रहेंगे से दूर हटना होगा। +* मैं बैंक गया और गरीबों को ऋण देने का प्रस्ताव रखा। बैंकर्स लगभग गिर ही गए। + + +[[विकिसूक्ति कई सदस्यों के सहयोग से बना एक मुक्त सूक्ति संग्रह है जिसमें आप अपना योगदान आसानी से दे सकते हैं। यह पाठ आपको एक विकिसूक्ति योगदानकर्ता बनने में सहायता करेगा। +इस पाठ के पन्ने आपको विकिसूक्ति के लेख लिखने के उचित तौर-तरीकों से ��वगत करेंगे, यानी लेख कैसे लिखे जाने चाहिए और क्या सामग्री उचित-अनुचित है। यह पाठ आपको विकिपीडिया सदस्य-समाज, नीतियों और व्यवहार के बारे में भी बताएगा। +यह एक आधारिक पाठ है, और इसमें बारीक़ विषयों पर विस्तृत जानकारी नहीं है। ऐसी चीज़ों पर ज्ञान आपको अन्य पृष्ठों पर मिलेगा जिनके लिए स्थान-स्थान पर जोड़ (लिंक) दिए गए हैं। उन्हें पढ़ने के लिए, आप उन्हें अपने ब्राउज़र पर अन्य टैबों में खोल सकते हैं। +आइए, सम्पादन के बारे में सीखें! +दृष्टिबाधित साथी विकिपीडिया पृष्ठों को पढ़ने एवं सम्पादित करने सम्बन्धी सहायता के लिए दृष्टिबाधितार्थ पृष्ठ देख सकते हैं। + + +कुछ सुरक्षित पन्नो के अलावा हर पृष्ठ में एक सम्पादन टैब होता है जिस से आप उस पृष्ठ में बदलाव ला सकते हैं। यह संपादन करने की सक्षमता विकिसूक्ति का सबसे बुनियादी लक्षण है, और आपको पृष्ठ में संशोधन करने और उसमें तथ्य डालने की अनुमति देता है। अगर आप तथ्य डालते है तो कृपया संदर्भ देना न भूले, क्योकि असंदर्भित तथ्य हटाए जा सकते हैं। +आपके इस पहले संपादन के अभ्यास से दो चीज़ें बाहर छोड़ दी गई जो वास्तव में करे गए लेख-संपादन में की जानी चाहियें। चलिए फिर से "संपादन" का टैब दबाएँ, कुछ और लिखें और फिर इन दो ज़रूरी चीज़ों को भी करें। +प्रथम, जब भी आप किसी लेख को सम्पादित करते हैं तो विकि-शिष्टता के नियमों के अनुसार यह अच्छी बात मानी जाती है कि आप अपने बदलाव के बारे में कुछ "सारांश" के डब्बे में लिख दें। इसमें आप यह लिख सकते हैं के आपने किस कारण से यह बदलाव किया या आपका बदलाव किस तरह का है, जैसे "देश का नाम ठीक किया" या "फल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी डाली"। अगर आपका बदलाव छोटा-सा है तो "यह एक छोटा बदलाव है" नामक डब्बे में आप चिन्ह लगा सकते हैं (यह डब्बा केवल पंजीकृत सदस्यों को उपलब्ध है आप स्वयं को आसानी से पंजीकृत कर सकते हैं और यह स्वशिक्षा लेख आपको आगे चलकर पंजीकरण के बारे में सिखाएगा)। +दूसरा, आप को हमेशा "पूर्वावलोकन" वाले बटन का प्रयोग करना चाहिए। प्रयोगस्थल में बदलाव करने के बाद "लेख सहेजे" वाले बटन की बजाए "पूर्वावलोकन" वाला बटन दबाएँ। अब आपको वही दिखेगा जो आपको लेख सहेजने के बाद नज़र आता, लेकिन आपके बदलाव अभी सहेजे नहीं गए हैं। हम सभी समय-समय पर ग़लतियाँ करते हैं, और पूर्वावलोकन के प्रयोग से हम लेख सहेजने से ���हले अपनी ग़लतियाँ पकड़कर उन्हें सुधार सकते हैं। हाँ, पूर्वावलोकन करने के बाद अपने लेख को सहेजना न भूलें! +पूर्वावलोकन का प्रयोग करके ग़लतियाँ सुधार लीं? संपादन का सारांश लिख लिया? तो फिर आप लेख सहेजने के लिए तैयार हैं। "लेख सहेजें" वाला बटन दबाइए! +इस संबंध में और जानने के लिए दृष्टिबाधित साथी दृष्टिबाधितार्थ पृष्ठ भी देख सकते हैं। + + +किसी विकिसूक्ति के लेख की लिखाई के रूपरंग को निर्धारित करने का तरीक़ा ज़्यादातर मिलने वाले शब्द संसाधकों वर्ड प्रोसैसरों) से अलग है। विकिपीडिया पर देखो सो पाओ यानी विज़ीविग या WYSIWYG) प्रणाली का इस्तेमाल नहीं होता। इसमें किसी पन्ने पर अक्षर गाढ़े-तिरछे करने के लिए और शीर्षकों को दर्शाने के लिए विशेष चिह्नों और शब्दों का प्रयोग होता है। इन चिह्नों और शब्दों की भाषा को "विकि मार्कअप" या "विकीटॅक्स्ट" भाषा कहते हैं। सुनने में यह भले ही कठिन लगे लेकिन वास्तव में इस भाषा का प्रयोग बहुत ही आसान है। +विकिसूक्ति का दस्तूर है कि किसी भी लेख का नाम जब प्रथम दफ़ा लेख में आता है तो उसे गाढ़े अक्षरों में लिखा जाता है। मिसाल के लिए आयो (उपग्रह का लेख इस तरह आरम्भ होता है: +आयो हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का चौथा +''तिरछे अक्षरों का प्रयोग अक्सर किताबों, फ़िल्मों, कंप्यूटर खेलों, इत्यादि के शीर्षकों के लिए होता है। अगर लेख का विषय ही किसी फ़िल्म या पुस्तक का शीर्षक है तो गाढ़े और तिरछे अक्षरों का प्रयोग किया जा सकता है। +बिना किसी वजह के गाढ़े या तिरछे अक्षरों का प्रयोग करने से परहेज़ करें क्योंकि इस से साधारण पाठकों को लेख पढ़ने में कठिनाइयाँ होती हैं, और वे अक्सर ऐसे लेखों को जल्दी से देखकर अन्य किसी पन्ने कि ओर चले जाते हैं। +किसी भी लेख की व्यवस्था को अच्छा बनाने के लिए शीर्षकों और उपशीर्षकों से बड़ा फायदा होता है। अगर आप देखते हैं के किसी लेख में दो या उस से अधिक विषयों पर बात हो रही है और हर विषय पर एक-दो से अधिक अनुच्छेद हैं, तो प्रत्येक विषय के लिए शीर्षक डालने से (यानि हर विषय का अलग उपभाग बनाने से) लेख अधिक पढ़ने के लायक़ हो जाता है। शीर्षक और उपशीर्षक ऐसे बनाए जाते हैं: +ध्यान रखिये के बिना किसी सामग्री के शीर्षक और उपशीर्षक बनाने से लेख पढ़ना मुश्किल हो जाता है। ऐ���े लेख ऐसे लगते हैं जैसे किसी समाचारपत्र में सुर्ख़ियाँ ही सुर्ख़ियाँ हो और उनके नीचे कोई ख़बर न लिखी हो। +दृष्टिबाधित साथी इस संबंध में और जानने के लिए दृष्टिबाधितार्थ पृष्ठ भी देख सकते हैं। + + +विकिसूक्ति के लेखों को एक-दूसरे से जोड़ना बहुत ही ज़रूरी है, क्योंकि इन जोड़ों के द्वारा पढ़ने वाले तेज़ी से एक लेख की जानकारी से दूसरी लेख की सम्बंधित जानकारी तक पहुँच पाते हैं। इस से विकिसूक्ति उपयोगिता कई गुना बढ़ जाती है। +किसी लेख में किसी अन्य विकिसूक्ति लेख के लिए जोड़ बनाने ले लिए उसके इर्द-गिर्द दोहरे चकोर ब्रैकेट लगे दें, कुछ इस तरह: +जो आपके संपादन के बाद पाठक को ऐसे दिखेगा प्रयोगस्थल]] +अगर आप जोड़ तो डालना चाहते हैं, लेकिन चाहते हैं के जुड़े हुए लेख के नाम की बजाए कुछ और शब्द नज़र आएँ, तो नली के चिह्न से यह आसानी से किया जा सकता है। यह अंग्रेज़ी के कुंजीबोर्ड (कीबोर्ड) में SHIFT+BACKSLASH (SHIFT से आसानी से लिखा जाता है, और ध्यान दीजिये कि यह विराम । के चिह्न से अलग है। देखिये, नली-चिह्न के इस्तेमाल से अगर हम लिखें: +आप किसी लेख के विभाग के लिए भी सीधा जोड़ डाल सकते हैं: +अगर आप चाहते हैं के दर्शाया गया जोड़ गाढ़े या तिरछे अक्षरों में हो तो दोहरे चकोर ब्रैकेटों के इर्द-गिर्द वर्ण-लोपों (यानी अपॉस्ट्रॉफ़ीयों) के चिन्ह डाल दें: +जो दिखने में ऐसा लगेगा आषाढ़ का एक दिन +ध्यान रहे के अगर जोड़ किसी ऐसे लेख के लिए है जो अभी लिखा ही नहीं गया, तो उस जोड़ का रंग लाल होगा, जैसे की: +लेखों के लिए जोड़ डालना किसी भी पन्ने को अधिक उपयोगी बनता है, लेकिन बहुत ज़्यादा जोड़ होने से आँख बहकने से लेख को पढ़ना मुश्किल हो जाता है। बहुत अधिक जोड़ों की स्थिति से बचने के लिए, किसी लेख के लिए जोड़ केवल तभी डालें जब उसके नाम का ज़िक्र किसी पन्ने में प्रथम बार हो रहा हो। "विश्व" जैसे अत्यधिक साधारण शब्दों के लिए जोड़ ना डालें। +आप लेखों को उचित श्रेणियों में डाल सकते हैं। अगर किसी सम्बंधित लेख की श्रेणी देखकर आपको किसी लेख के लिए उचित श्रेणी या श्रेणियाँ पता हैं, जो लेख के अंत के आस-पास लिखें, और श्रेणी का नाम द्विबिंदु (कोलन का चिन्ह) और ब्रैकेटों के बीच डाल दें। +यह बहुत ज़रूरी है के आप लेखों पर सही श्रेणियाँ लगाएँ ताकि अन्य लोग आसानी से आपके बनाए लेख ढूंढ पाएँ। यह करने का सब से अच्छा तरीक़ा अपने लेख से सम्बंधित अन्य लेखों को ढूंढकर उनकी श्रेणियों को अपने लेख के लिए भी प्रयोग करना है। अगर आप किसी फल पर लिख रहें हैं तो उसी की तरह के अन्य फलों पर लेख ढूँढने का प्रयास करें जिस से आपको कुछ उचित श्रेणियाँ मिल सकें। +दृष्टिबाधित साथी इस संबंध में और जानने के लिए दृष्टिबाधितार्थ पृष्ठ भी देख सकते हैं। + + +विकिपीडिया की नीति है कि "अगर आप किसी लेख में जानकारी जोड़ते हैं या अन्य कोई भी नईं जानकारी देते हैं,तो उसमें अपने स्रोतों का उल्लेख अवश्य करें, क्योंकि असन्दर्भित जानकारी को यहाँ से हटाया जा सकता है"। सन्दर्भों को सम्मिलित करने का सबसे अच्छा तरीका है उन्हें लेख लिखने में उचित स्थान पर शामिल करें, यानि कि "इनलाइन स्रोत" बना लेना। इस से कोई भी संपादक और पाठक आपके द्वारा लिखे गए तथ्य की स्वयं जाँच कर सकता या सकती है। पक्का कर लें कि जो स्रोत आपने प्रयोग किये हैं या किया है वह विश्वसनीय और प्रामाणिक है। आपका स्वयं या किसी संस्था द्वारा पक्षपात (या संभावित पक्षपाती) की भावना से या व्यक्ति द्वारा पक्षपात की भावना से लिखा गया स्रोत विकिपीडिया पर मान्य नहीं है। +चरण-टिप्पणी वह होती है जो पन्ने के नीचे (यानि पृष्ठ-चरण में) नज़र आये। ऐसे सन्दर्भ आप अपने स्रोत के इर्द-गिर्द "ref" के टीके लगाकर आसानी से लिख सकते हैं। कुछ इस तरह: +अगर आप चरण-टिप्पणी डाल रहे हैं तो विकिपीडिया के सॉफ्टवेयर को यह बताने की ज़रूरत है ताकि वह लेख के अंत में सन्दर्भों की सूची बना सके। इसके लिए लेख के अंतिम हिस्सों में इनमें से एक चीज़ लिख दें: +यह पाठ "इन्हें भी देखें" वाले भाग से नीचे और "बाहरी कड़ियाँ" वाले भाग से ऊपर होनी चाहिए। यह पाठ सॉफ़्टवेयर द्वारा स्वचालित रूप से सभी इनलाइन स्रोतों की सन्दर्भ-सूची में परिवर्तित कर दिया जाता है। +हालांकि यह अनिवार्य नहीं है, किसी चरण-टिप्पणी में URL पते के अलावा और भी जानकारी देना अच्छा होता है। यह चरण टिप्पणी को पूर्ण बनाता है एवं स्रोत के URL के बदल जाने की स्थिति में नया URL ढूँढने में मदद भी करता है: +विकिपीडिया में कई लेखों में एक "बाहरी कड़ियाँ" या "बाह्य सूत्र" या "अन्य वेबसाइट लिंक" नाम का विभाग भी होता है। इसमें कुछ चुनी हुई वेबसाइटों के लिए जोड़ या सहायक सामग्री लिंक या अन्य रूप में होनी चाहिए जिसमें लेख के विषय से सम्बंधित दिलचस्प और उच्च-कोटि की मूल्यसंवर्द्धित जानकारी मिले जो लेख में पहले से नहीं हो। उदाहरण के लिए: +यह एक लम्बी सूची नहीं होनी चाहिए और कुछ चुनी हुई कड़ियाँ(वेबसाइट लिंक) ही हों तो अच्छा है। इसमें कोई पाक्षिक वेबसाईट का लिंक देने का प्रयत्न न करें। यहाँ किसी व्यापारिक या निजी फ़ायदे की वेबसाईट के लिए कोई लिंक या जोड़ या सहायक सामग्री डालना सख़्त वर्जित है। + + +संवाद पृष्ठ विकिपीडिया का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग हैं और लेखकों को आपस में बातचीत, राय-मशवरा करने का मंच देते हैं। यहाँ विकीसदस्य आपस के मतभेद भी सुलझाते हैं। याद रखें के यह गपशप करने, उपदेश और भाषण देने, आपस में जंग लड़ने और विषय पर इधर-उधर 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लिखाई खिसकने के कई तरीक़े हैं: +खिसकने का सबसे सरल तरीक़ा है के किसी पंक्ति के बिलकुल शुरू में एक द्विबिंदु का चिन्ह, जिसे कोलन भी बोलते हैं) लिखें। आप जितने द्विबिंदु लिखेंगे, लिखाई उतनी ही दाएँ की ओर खिसक जाएगी। अगर आपने नई पंक्ति शुरू की (Enter या Return दबाकर तो उसके बाद लिखाई के लिए यह खिसकाव अंत हो जाता है। +देखने में ऐसा लगता है: +: यह पूरा बाएँ की ओर है। +यह थोड़ा सा खिसका हुआ है। +यह थोड़ा और भी खिसका हुआ है। +आप नुक्तों (बिन्दु/बुलेट पॉइंट्स) का भी उपयोग कर सकते हैं जो अक्सर सूचियों के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। नुक्ता जोड़ने के लिए तारे के चिन्ह का प्रयोग करें। खिसकाव की ही तरह, आप जितने तारे डालेंगे, आपकी लिखाई उस नुक्ते में उतनी ही दाएँ को खिसकी हुई होगी। +जो पढ़ने में ऐसा लगेगा: +दूसरे नुक्ते के नीचे उपसूची का एक नुक्ता +आप ऐसी सूचियाँ भी बना सकते हैं जिसमें अंक हों। इसके लिए अंक वाले चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। पहले की ही तरह, आप जितने के चिन्ह डालेंगे, उतना ही खिसकाव होगा। +''यह खिसकाव के सही प्रयोग से आसानी से पढ़े जाने वाली बातचीत की एक मिसाल है +ऐसी बात है तो देखिये, मगरमच्छ के बारे में यह पत्रिकाएँ मुझसे सहमत हैं: +ध्यान रहे कि अगर आप अपनी प्रतिक्रिया में सूची बनाना चाहते हैं, तो हर नुक्ते से पहले द्विबिंदु लगाना न भूलें, जैसे: +जैसा कि पहले कहा गया था, अपनी प्रतिक्रिया पर हस्ताक्षर ऐसा किया जाता है: +अगर आप चाहें तो केवल विकिनाम या केवल समय भी डाल सकते हैं, लेकिन लोग ऐसा बहुत कम करते हैं: +अब आप स्वयं संवाद में कुछ लिखने का अनुभव करिए। इसी लेख के संवाद पृष्ठ पर कुछ लिखिए। याद से अपन��� लिखाई के बाद हस्ताक्षर लगाइए। आप पहले से मौजूद किसी टिपण्णी का उत्तर भी दे सकते हैं। याद रखिये, अपनी लिखाई सहेजने से पहले आप "पूर्वावलोकन" करके देख सकते हैं के जो आपने लिखा है वह पढ़ने में कैसा लगेगा। + + +विकिपीडिया पर संपादन करते हुए कुछ बातों को सदैव ध्यान में रखें । +लेखकों को अपने बारे में और अपनी उपलब्धियों के बारे में लेख न लिखने की चेतावनी दी जाती है, क्योंकि यह एक "स्वार्थ संघर्ष कॉन्फ़्लिक्ट ऑफ़ इन्ट्रॅस्ट) की स्थिति बना देता है। अगर आपके कारनामें वास्तव में उल्लेखनीय हैं, तो धीरज रखिये। कभी न कभी, कोई न कोई आप पर लेख बना ही देगा कृपया स्वयं न बनाए। +लेखों में किसी मुद्दे पर मतों का वर्णन लिखना ठीक है, लेकिन वह लेखक के मत के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। विश्वसनीय और प्रमाणित स्रोतों के साथ यह ज़रूर लिखा जा सकता है कि "यह गुट कहता है कि या "प्रसिद्ध वैज्ञानिक फ़लाना-फ़लाना का कहना है कि । यही वजह है कि कुछ भावात्मक शब्दों का प्रयोग लेखों में नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा कहना कि "दुर्भाग्य से भ्रष्टाचार बढ़ गया" विकिपीडिया में सही नहीं है क्योंकि इसमें आपका पक्ष आ जाता है। केवल इतना ही लिखें कि "भ्रष्टाचार बढ़ गया" या "प्रसिद्ध आर्थशास्त्री जोहर तीव्रबुद्धि का कहना है कि भ्रष्टाचार का बढ़ना दुर्भाग्यपूर्ण है"। +आप कभी-कभी विकिसदस्यों को किसी लेख में "POV" या "पक्ष" की समस्या होने की बात करते देखेंगे। इसका यही अर्थ है कि उनकी राय में वह लेख किसी एक पक्ष को लेकर लिखा गया है। अगर किसी लेख में इश्तेहारनुमा भाषा का प्रयोग है, किसी एक राजनैतिक या धार्मिक पक्ष को सत्य और सही के रूप में पेश किया जा रहा है, या किसी व्यक्ति की केवल बढ़ाई ही लिखी है, जो वह इस "पक्ष की समस्या" की श्रेणी में आता है। ऐसा भी हो सकता है के किसी लेख में हर पक्ष प्रस्तुत तो हो लेकिन किसी एक पक्ष को अनुचित स्थान या मान्यता दी गई हो यह भी इसी समस्या की श्रेणी में आता है। पृथ्वी के लेख में अगर इस पक्ष को उतना ही स्थान दिया जाए जो कहता है के पृथ्वी गोल नहीं है बल्कि एक चपटा क्षेत्र है जितना की गोलाकार पृथ्वी को दिया जा रहा है, तो यह भी पक्षपात दिखता है क्योंकि एक ग़ैर-मुख्य पक्ष को उसकी वैज्ञानिक मान्यता से कहीं ज़्यादा स्थान दिया जा रहा है। +अगर आप राजनीति, भाषा-पहचान और धर्म जैसे संवेदनशील विषयों पर समय लगाने वाले हैं, तो निष्पक्ष दृष्टिकोण पर बहुत ध्यान दें। ऐसे विषयों में झड़पों से बचने के लिए मतभेद में स्वयं को शांत रखने पर भी विशेष ध्यान दें। अगर गणित और विज्ञान जैसे कम संवेदनशील विषयों पर लेख लिखने वाले हैं, तो यह कम चिंता का कारण है लेकिन फिर भी निष्पक्षता की नीतियों का पालन कीजिये। +अगर कोई विकिपीडिया से बाहर की वेबसाईट किसी विषय के पाठकों के लिए दिलचस्पी रखेगी तो उसे "बाहरी कड़ियाँ" नाम के विभाग में शामिल करें। अगर कोई पुस्तकें या पत्रिकाएँ उनके काम की होंगी और वे स्रोतों में शामिल नहीं हैं, तो उन्हें एक "विषय-रूचि की पुस्तकें" नाम के विभाग में भी डाला जा सकता है। +विकिपीडिया में किसी भी सूरत में मुद्राधिकार द्वारा सुरक्षित कोई भी सामग्री न डालें। जब आप लेखों में जानकारी डाल रहें हों, यह ध्यान रखें के शब्द आपके अपने होने चाहिए। याद रखिये के इन्टरनेट पर मिलने वाली सभी सामग्री (लिखाई, चित्र, इत्यादि) मुद्राधिकार से सुरक्षित होते हैं। केवल वही सामग्री मुद्राधिकार-मुक्त है जिसमे साफ़-साफ़ शब्दों में यह कहा गया हो कि वह मुद्राधिकार से बाहर है। +किसी भी शब्द के सामान्य रूप से इस्तेमाल होने वाले शब्दों को विकिपीडिया पर प्रयोग किया जा सकता है। संक्षेप में नीति यह है कि: +किसी लेख को केवल इसलिए सम्पादित न करें क्योंकि किसी शब्द का रूप आपकी पसन्द का नहीं है। उदाहरण के लिए "किये" और "किए" दोनों ठीक हैं। +हिन्दी एक बड़े भूक्षेत्र में विभिन्न समुदायों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। संभव है कि किसी अन्य लेखक की शैली आप से थोड़ी भिन्न हो। किसी एक लेख के अन्दर एक ही शैली होनी चाहिए ताकि यह अटपटी न लगे, लेकिन अगर शैली किसी साधारण हिंदीभाषी द्वारा सरलता से पढ़ी जा सकती है तो उसे अपनी पसन्द की शैली में परिवर्तित करने पर ज़ोर न लगाएँ। +अंग्रेज़ी और अन्य भाषाओँ से हिन्दी में लिप्यन्तरण करते हुए ध्वनी और प्रथा दोनों का ध्यान रखें। "America" को ध्वनी के अनुसार "अमॅरिका" लिखा जाएगा, लेकिन प्रथानुसार इसे "अमरीका" या "अमेरिका" लिखा जाता है। अगर प्रथा के बारे में असमंजस हो तो इन्टरनेट पर खोज कर के सब से अधिक प्रयोग होने वाला लिप्यन्तरण ढूँढा जा सकता है। जहाँ कोई शब्द बहुत ही कम लिप्यन्तरित हुआ हो, वहाँ सही ध्वनी दर्शाने का प्रयास करें। +नुक्ते (बिंदु) वाले शब्दों में नुक्तों के होने या न होने पर ज़ोर ना दें। हिन्दी में "अफ़्ग़ानिस्तान" को "अफ्गानिस्तान अफ़्गानिस्तान अफ्ग़ानिस्तान" और "अफ़्ग़ानिस्तान" सभी रूपों में लिखा जाता है। इसी तरह "Tethys" का लिप्यन्तरण "टॅथ़िस" या "टॅथिस" हो सकता है। सही ध्वनी थ़|"थ़" की ध्वनी है लेकिन दोनों रूप विकिपीडिया पर मान्य हैं। इनमें फेर-बदल करने के लिए संपादन न करें। +विकिपीडिया पर एक मित्रता और खुलेपन का वातावरण रखने का प्रयास किया जाता है। यह बात सच है के कभी-कभी मतभेद होते हैं और जहाँ-तहाँ गरम बहस भी छिड़ जाती है, लेकिन सदस्य-समाज के हर सदस्य से शिष्टता की अपेक्षा की जाती है। +विकिपीडिया में नए लेख बनाते हुए इस स्वशिक्षा में दी गई सलाह को ध्यान में रखें, जैसे की निष्पक्षता की नीति। स्रोतों के प्रयोग से प्रमाणित करें की लेख का विषय उल्लेखनीय है (यानि विकिपीडिया में सम्मिलित होने के योग्य है) और किसी भी पाठक द्वारा जाँचा जा सकता है। नए लेख बनाने के लिए आपका पंजीकृत होना आवश्यक है। + + +विकिपीडिया पर आपका एक विकिनाम चुनकर पंजीकरण करना अनिवार्य नहीं है और आप इसके बग़ैर भी लेखों में अपना योगदान दे सकते हैं। फिर भी, पंजीकरण करने के बहुत से फ़ायदे हैं: +*अपना खाता खोलने से आपको कई सुविधाएँ मिलेंगी, जैसे कि संपादन करते हुए लेख का स्थानांतरण या नाम बदलने की अनुमति और विकिपीडिया को अपने पसंद के अनुसार रूप-रंग में देखने की क्षमता। आप एक ध्यानसूची भी बना सकते हैं और उसमें दर्ज किसी भी लेख में कोई भी परिवर्तन होने पर आपको फ़ौरन उसका पता चल जाएगा। +*ग़ैर-पंजीकृत योगदानकर्ताओं को उनके कंप्यूटर के आई॰पी॰ (IP) पते से जाना जाता है। जब वे विकिपीडिया के किसी लेख में या किसी वार्ता या संवाद पृष्ठ पर कुछ बदलते हैं तो यही पता उस पन्ने के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो जाता है और विश्व में किसी के द्वारा भी देखा जा सकता है। विकिनाम इस्तेमाल करने से आपका पता सबसे छुपा रहता है और अपनी गोपनीयता बनाए रखने के लिए यह एक बहुत बढ़िया साधन है। +*जब आप अन्य सदस्यों से बातचीत करते हैं तो वह आपका विकिनाम ही याद रख सकते हैं। किसी का आई॰पी॰ पता याद रखना कठिन है। इसलिए अगर आप बहुत वार्ताओं में भाग ले रहें हैं और लेखों में योगदान दे रहें हैं, तो अच्छा है के पंजीकृत होकर अपने विकिनाम के ज़रिये अपनी पहचान बनाएँ। अक्सर सदस्यों को किसी पंजीकृत सदस्य द्वारा दिए गए योगदान और सुझावों पर ज़्यादा भरोसा होता है। +*विकिपीडिया पर वरिष्ठ सदस्य, प्रबंधक, उत्पात नियंत्रक, वग़ैरह बनाने के लिए भी पंजीकरण आवश्यक है। +अगर आप पंजीकरण करते हैं तो कृपया ऐसा विकिनाम और पासवर्ड चुने जो आप भूलेंगे नहीं। अगर आप इन्हें भूल सकते हैं तो पंजीकरण करते समय अपना ईमेल पता भी दे दें, ताकि भूलने पर आपको अपना विकिनाम और पासवर्ड दुबारा मिल सके। फ़िक्र न करें, आपका ईमेल पता कोई अन्य सदस्य या पाठक नहीं देख पाएगा। +एक बार किसी विकिनाम के साथ पंजीकृत होने के बाद यह नाम आसानी से बदला नहीं जा सकता, इसलिए अपने लिए कोई अच्छा सा नाम चुने। कोई ऐसा नाम न चुने जिस से अन्य सदस्यों को भ्रम हो, जैसे की "विकिपीडिया महाप्रबंधक"। ऐसा नाम भी न चुने जो किसी अन्य सक्रीय सदस्य से इतना मिलता हो कि लोगों को भ्रम हो के आप वही व्यक्ति हैं। + + +==और कुछ सीखने को है क्या +यह स्वशिक्षा लेख जानबूझ कर सरल और छोटा रखा गया है। वैसे सीखने को बहुत कुछ है। कुछ लाभदायक लेख यहाँ मिलेंगे: + + +यह केवल दिखाई दे रहे अंकों पर काम करता है, इनपुट पर नहीं (इनपुट में अंक बदलने के लिये वि:नारायम देखें)। यह चित्रों के alt एवं title पाठ पर कार्य नहीं करता है। +इसके मेन्यू में अंकों के तीन विकल्प हैं: +यह गैजेट अंक चुनाव याद रखने के लिये कुकी का प्रयोग करता है, अर्थात एक बार एक कंप्यूटर पर एक ब्राउज़र में यदि किसी एक प्रकार के अंकों का चुनाव कर लिया जाए तो उस ब्राउज़र में हिन्दी विकिपीडिया के हर पृष्ठ पर उसी प्रकार के अंक दिखाई देंगे, जब तक कि चुनाव बदला ना जाए। +सदस्य अलग-अलग पृष्ठों पर अलग-अलग विकल्प चुन सकते हैं, परंतु यदि एक बार नागरी अथवा अरबी अंकों का चुनाव कर लिया जाए और उसके बाद डिफ़ॉल्ट का चुनाव किया जाए, तो डिफ़ॉल्ट अंक तभी दिखेंगे जब कोई अन्य पृष्ठ खोला जाए अथवा वर्तमान पृष्ठ को रीलोड (रीफ़्रेश) किया जाए। + + +hi नागरी और अरबी अंकों में परिवर्तन करें', + + +* मनुष्य अपनी सबसे अच्छे रूप में सभी जीवों में सबसे उदार होता है, लेकिन यदि कानून और न्याय न हो तो वो सबसे खराब बन जाता है। +* अपने दुश्मनों पर विजय पाने वाले की तुलना में मैं उसे शूरवीर मानता हूं जिसने अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली है; क्योंकि सबसे कठिन विजय अपने आप पर विजय होती है। +* शिक्षा की जड़ें कड़वी होती है लेकिन फल मीठे होते है। +* शिक्षित मन की यह पहचान है की वो किसी भी विचार को स्वीकार किए बिना उसके साथ सहज रहे। +* एक ही अच्छाई है, ज्ञान। एक ही बुराई है अज्ञानता। +* शिक्षा बुढ़ापे के लिए सबसे अच्छा प्रावधान है। +* चरित्र को हम अपनी बात मनवाने का सबसे प्रभावी माध्यम कह सकते हैं। +* जो सभी का मित्र होता है वो किसी का मित्र नहीं होता है। +* संकोच युवाओं के लिए एक आभूषण है, लेकिन बड़ी उम्र के लोगों के लिए धिक्कार। +* अच्छा व्यवहार सभी गुणों का सार है। +* डर बुराई की अपेक्षा से उत्पन्न होने वाले दर्द है। +* मनुष्य प्राकृतिक रूप से ज्ञान कि इच्छा रखता है। +* जो सबका मित्र होता है वो किसी का मित्र नहीं होता है। +* लोकतंत्र तब होगा जब गरीब ना कि धनाड्य शाशक हों। + + +ऑस्कर वाइल्ड आयरलैण्ड में जन्मे एक उपन्यासकार, कवि और नाटककार थे। उनका जन्म 16 अक्टूबर, 1854 को बलिन, आयरलैंड में हुआ था। +* अपने दुश्मनों को क्षमा कर दें – इससे ज्यादा उन्हें कुछ परेशान नहीं कर सकता। +* कुछ लोग जहाँ जाते हैं वहाँ खुशियाँ लाते हैं, और कुछ लोग जब जाते हैं तब। +* मेरी बहुत सीधी-सादी पसंद है, मैं हमेंशा सबसे अच्छे से संतुष्ट हो जाता हूँ। +* समाज प्रायः अपराधियों को क्षमा कर देता है। +* सभी चीजें जो सही होती हैं उसे सिद्ध किया जा सकता है। +* कोई भी व्यक्ति इतना धनवान नहीं कि अपना भूतकाल खरीद सके। +* हम सभी अपने शैतान हैं। हम सभी ने इस दुनिया को नर्क बना दिया है। +* बुरे कलाकार हमेंशा एक–दूसरे की प्रसंशा करते हैं। +* ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो हम फेंक देते यदि हमें इस बात का चिंता नहीं होती कि कोई और उन्हें उठा लेगा। +* अनुभव मात्र एक नाम है जो हम अपनी गलतियों को देते हैं। +* कोई भी इतिहास बना सकता है, केवल महान लोग इतिहास लिख सकते हैं। +* सफलता एक विज्ञान है, यदि परिस्थितयां हैं तो परिणाम मिलेगा। +* एक सज्जन व्यक्ति वह है जो अनजाने में किसी की भावनाओ को ठेस ना पहुंचाए। +* सच्चे दोस्त सामने से वार करते हैं। + + +यह निश्चय करना की आपको क्या नहीं करना है उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना की यह निश्चय करना की आप को क्या करना है। +* इस बात को याद रखना की मैं बहत जल्द मर जाऊँगा मुझे अपनी ज़िन्दगी के बड़े निर्णय लेने में सबसे ज्यादा मददगार होता है, क्योंकि जब एक बार मौत के बारे में सोचता हूँ तब सारी उम्मीद, ��ारा गर्व, असफल होने का डर सब कुछ गायब हो जाता है और सिर्फ वही बचता है जो वाकई ज़रू री है। इस बात को याद करना की एक दिन मरना है…किसी चीज को खोने के डर को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है। आप पहले से ही नंगे हैं। ऐसा कोई कारण नहीं है की आप अपने दिल की ना सुने। +* आप ग्राहक से पूंछकर उसकी पसंद के उत्पाद नहीं बना सकते क्योंकि जब तक आप वो बनाएंगे वो कुछ नया चाहने लगेंगे। +* यदि आपकी नज़र लाभ पर रहेगी तो आपका ध्यान उत्पाद की गुणवत्ता से हट जायेगा। लेकिन यदि आप एक अच्छा उत्पाद बनाने पर ध्यान लगाओगे तो लाभ अपने आप आपका अनुसरण करेंगा। +नयी खोज एक लीडर और एक अनुयायी के बीच अंतर करती है। +जब आप समुद्री डांकू बन सकते है तो फिर नौसेना में जाने कि क्या ज़रुरत है? +गुणवत्ता का मापदंड बनिए। कुछ लोग ऐसे वातावरण के आदि नहीं होते जहाँ उत्कृष्टता की उम्मीद की जाती है। +आप कस्टमर से यह नहीं पूछ सकते कि वो क्या चाहते हैं और फिर उन्हें वो बना के दें।आप जब तक उसे बनायेंगे तब तक वो कुछ नया चाहने लगेंगे। +कई कम्पनियों ने छंटनी करने का फैसला किया है,शायद उनके लिए ये सही होगा।हमने अलग रास्ता चुना है।हमारा विश्वास है कि अगर हम कस्टमर के सामने अच्छे प्रोडक्ट्स रखते रहेंगे तो वो अपना पर्स खोलते रहेंगे। +…क्योंकि शायद मौत ही इस जिंदगी का सबसे बड़ा आविष्कार है। + + +invalid_parm त्रुटि s" प्राचल (पैरामीटर) में दी गयी जानकारी s" अमान्य है।', + + +श्रीलंका हिन्द महासागर में स्थित एक देश है। यह एक तरह से द्वीप है जो भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़ा हुआ है। +* एशियाई खेलों के दौरान "उपली रत्नायाके 29 जनवरी 2016 +एशियाई खेलों में 2006 में पाकिस्तान और 2010 में भारत के कारण जितना काफी कठिन हो गया था। लेकिन इस साल हम सभी को कड़ी टक्कर देंगे। + + +* काफी समय पहले से मेरे ध्यान में ये बात है कि सफलता पाने वाले बैठ कर चीजों के होने का इंतज़ार नहीं करते। वे बाहर जाते हैं और वे चीजें कर डालते हैं। +* जीवन बहुत आसान है: आप कुछ काम करते हैं। ज्यादातर में असफल हो जाते हैं। कुछ काम कर जाते हैं। जो काम करता है उसे आप और अधिक करते हैं। अगर वो बड़ा स्तर पर काम कर जाता है तो बाकी लोग तेजी से उसे कॉपी कर लेते हैं। तब आप कुछ और करते हैं। ट्रिक कुछ और करते रहने में है। +* जो आप नहीं समझते, यदि उसकी प्रशंशा करते हैं तो बुरा करते हैं, लेकिन अगर निं��ा करते हैं तो और भी बुरा करते हैं। +* अंत की तुलना में शुरुआत में विरोध करना आसान होता है। + + +* चरित्र का विकास आसानी से नहीं किया जा सकता। केवल परिक्षण और पीड़ा के अनुभव से आत्मा को मजबूत, महत्त्वाकांक्षा को प्रेरित, और सफलता को हासिल किया जा सकता है। +* खुद की तुलना ज्यादा भाग्यशाली लोगों से करने कि बजाय हमें अपने साथ के ज्यादातर लोगों से अपनी तुलना करनी चाहिए और तब हमें लगेगा कि हम कितने भाग्यवान हैं। +* अकेले हम कितना कम हासिल कर सकते हैं लेकिन एक साथ बहुत ज्यादा। +* हम बहुत कम अकेले हासिल कर सकते हैं, लेकिन एक साथ बहुत कुछ। +* हम इस दुनिया में कुछ भी हासिल कर सकते हैं, अगर हम लंबे समय तक अपने फैसले पर अडिग रहें। +* साधारण चुनाव महत्वपूर्ण होते हैं और सीधे-सादे शब्द निर्णयकारी। +* सुख का एक द्वार बंद होने पर, दूसरा खुल जाता है; लेकिन कई बार हम बंद दरवाजे की ओर इतनी देर तक ताकते रहते हैं कि जो द्वार हमारे लिए खोल दिया गया है, उसे देख नहीं पाते। +* आनन्द स्वार्थ-सिद्धि से नहीं मिलता बल्कि किसी समुचित उद्देश्य में विश्वास रखने से मिलता है। +* सुरक्षा, निश्चिन्तता या बेफ़िक्री एक कल्पना है, अंधविश्वास है। +* इतिहास ने जिन स्त्री-पुरुषों को मानवता की सेवा का अवसर देकर समादृत किया है, उनमें से अधिकांश को विपरीत परिस्थितियों का अनुभव हुआ है। +* किंवदंती है कि जब ईसा पैदा हुए तो आकाश में सूर्य नाच उठा। पुराने झाड़-झंखाड़ सीधे हो गए और उनमें कोपलें निकल आईं। वे एक बार फिर फूलों से लद गए और उनसे निकलने वाली सुगंध चारों ओर फैल गई। प्रति नए वर्ष में जब हमारे अंतर में शिशु ईसा जन्म लेता है, उस समय हमारे भीतर होने वाले परिवर्तनों के ये प्रतीक हैं। बड़े दिनों की धूप से अभिसिक्त हमारे स्वभाव, जो कदाचित् बहुत दिनों से कोंपलविहीन थे, नया स्नेह, नई दया, नई कृपा और नई करुणा प्रगट करते हैं। जिस प्रकार ईसा का जन्म ईसाइयत का प्रारंभ था, उसी प्रकार बड़े दिन का स्वार्थहीन आनंद उस भावना का प्रारंभ है, जो आने वाले वर्ष को संचालित करेगी। +* जिस तरह स्वार्थ और शिकायत से मन रोगी और धुँधला हो जाता है, उसी तरह प्रेम और उसके उल्लास से दृष्टि तीखी हो जाती है। +* आन्तरिक सत्यों में हमारी अंधता के कारण कोई अन्तर नहीं पड़ता। अधिकतम सौन्दर्य-दृष्टि तक केवल कल्पना के द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। +* मैं अंधी हूँ और मैंने कभी इंद्रधनुष नहीं देखा; किन्तु मुझे उसकी सुन्दरता के बारे में बताया गया है। मैं जानती हूँ कि उसकी सुन्दरता सदैव ही अधूरी और टूटी-फूटी होती है। वह आसमान पर कभी भी पूर्णाकार में प्रकट नहीं होता। यही बात उन सभी वस्तुओं के बारे में सही है जिन्हें हम पृथ्वी वाले जानते हैं। जिस तरह इंद्रधनुष का वृत्त खंडित होता है, उसी तरह जीवन भी अधूरा है और हममें से हरेक के लिए टूटा-फूटा है। हम ब्राउनिंग के इन शब्दों पृथ्वी पर टूटे हुए बिंब, स्वर्ग में एक पूर्ण चंद्र" का अर्थ तब तक नहीं समझ सकेंगे, जब तक हम अपने खण्ड जीवन से अनन्त की ओर कदम नहीं बढ़ा लेते। +* अगर हम अपनी वर्तमान स्थिति में सफल नहीं हो सकते तो किसी अन्य स्थिति में भी नहीं हो सकेंगे। अगर हम कमल की तरह कीचड़ में भी पवित्र और दृढ़ नहीं रह सकते तो हम कहीं भी रहें, नैतिक दृष्टि से कमज़ोर ही साबित होंगे। +* आत्मज्ञान ही हमारी चेतना की शर्त और सीमा है। शायद इसलिए ही कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने अनुभव की छोटी परिधि के बाहर की बातें बहुत कम जानते हैं। वे अपने भीतर देखते हैं और उन्हें जब वहाँ कुछ नहीं मिलता तो वे यह निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि बाहर कुछ नहीं है। + + +वरुण धवन भारतीय हिन्दी फिल्म अभिनेता हैं। इन्होंने अपने फिल्म के सफर को करन जौहर के फिल्म स्टूडेंट ऑफ दी इयर से शुरू किया। + + +कृष्णा अभिषेक भारतीय अभिनेता और हास्यकार हैं। यह बोल बच्चन आदि फिल्मों में कार्य कर चुके हैं। +* कपिल के शो को रेटिंग मिलने दीजिए। मुझे लगता है कि दोनों को अच्छी रेटिंग मिलेगी। कपिल का शो हमें अच्छी टक्कर देगा। इसी टक्कर की वजह से हम अच्छा करने का प्रयास करेंगे, जो दोनों के लिए बेहतर होगा। + + +गौतम गुलाटी एक भारतीय अभिनेता हैं। यह कई धारावाहिकों में कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा यह कुछ फिल्मों में भी अभिनय कर चुके हैं। यह बिगबॉस के 8वें संस्करण भी जीत चुके हैं। +* मैं अभी कार्यक्रमों अलावा कुछ और नहीं कर रहा हूँ। गौतम गुलाटी का कहना है कि वे दिलचस्प फिल्में मिलने के बाद यकीनन उनके बारे में बताएंगे। + + +* कपिल के शो को रेटिंग मिलने दीजिए। मुझे लगता है कि दोनों को अच्छी रेटिंग मिलेगी। कपिल का शो हमें अच्छी टक्कर देगा। इसी टक्कर की वजह से हम अच्छा करने का प्रयास करेंगे, जो दोनों के लिए बेहतर होगा। + + +मल्लिका शेरावत भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं। इनका जन्म 24 अक्टूबर 1972 को हुआ था। जून 2007 में होंग कोंग की एक प्रसिद्ध मेगजीन ने उसे एशिया के सबसे खूबसूरत 100 लोगों की सूची में स्थान दिया। + + +गरमागरम क्या गरमागरम परोसा जाना चाहिए। जॉन अब्राहम और तुषार कपूर के बट शो को देखकर लोग क्या करेंगे? अगर मुझे अपना बट दिखाने का मौका दिया जाता तो यह निश्चित रूप से जॉन और तुषार से बेहतर होता । + + +ओलिवर नेपोलियन हिल का जन्म 26 October 1883 में हुआ. वे सेल्फ-हेल्प किताबों के लेखक रहे. इनके किताब Think and Grow Rich काफी सफल रही. +* मनुष्य का दिमाग कुछ भी कल्पना और विश्वास कर सकता है, उसे हासिल कर सकता है। +* हर एक कामयाबी और दौलत की शुरआत एक विचार से होती है। +* जीवन में आपको जो भी अवसर चाहिए वो आपकी कल्पना में प्रतीक्षा करते हैं, कल्पना आपके मस्तिष्क की कार्यशाला है, जो आपके मन की उर्जा को सिद्धि और धन में बदल देती है। +* इच्छा ही सभी उपलब्धियों का प्रारंभिक बिंदु है। +* डर, मन की एक स्थिति के आलावा और कुछ भी नहीं है। +* बोलने से पहले दो बार सोचो, क्योंकि आपके शब्दों और प्रभाव से दूसरे के मन में सफलता या विफलता का बीज बोया जायेगा। +* आप महान चीजें नहीं कर सकते हैं, तो छोटी चीजों को एक महान तरीके से करें। +* धैर्य, दृढ़ता और पसीना सफलता प्राप्त करने का एक अपराजेय संयोजन है +*अधिकांश महान लोगों को अपनी सबसे बड़ी सफलता उनकी सबसे बड़ी असफलता से सिर्फ एक कदम आगे मिली है + + +* जीवनभर ज्ञानार्जन के बाद मैं केवल इतना ही जान पाया हूं कि मैं कुछ भी नहीं जान पाया हूं। +* मृत्यु संभवतः मानवीय वरदानो में सबसे महान है। +* हमारी प्रार्थना बस सामान्य रूप से आशीर्वाद के लिए होनी चाहिए, क्योंकि भगवान जानते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा है। +* इस दुनिया में सम्मान से जीने का सबसे महान तरीका है कि हम वो बनें जो हम होने का दिखावा करते हैं। +* सच्चा ज्ञान केवल यह जानने में है की आप कुछ नहीं जानते है। +* अध्यापन का सबसे अच्छा तरीका संवाद अर्थात् प्रश्नोत्तर है, जिसमें अध्यापक और अध्येता दोनों सहभागी हों। + + +* कोई भी अपने सबसे अच्छे दोस्त की विफलता पर पूरी तरह से दुखी नहीं होता है। +* वो मेरे सिद्धांत हैं और अगर वे आपको पसंद नहीं… तो मेरे पास और भी हैं। +* अगर आप मजा नहीं कर रहे हैं तो आप कुछ गलत कर रहे हैं। + + +* अंग्रेज�� का शब्द 'रिलिजन धर्म' के लिए सही शब्द नहीं है। +* अनेकता में एकता और विभिन्न रूपों में एकता की अभिव्यक्ति भारतीय संस्कृति की सोच रही है। +* अपने राष्ट्रीय पहचान की उपेक्षा भारत के मूलभूत समस्याओं का प्रमुख कारण है। +* अवसरवाद ने राजनीति में लोगों के विश्वास को हिला कर रख दिया है। +* अवसरवादिता ने राजनीति में लोगों के विश्वास को हिला दिया है। +* आजादी सार्थक तभी हो सकती है जब यह हमारी संस्कृति की अभिव्यक्ति का साधन बन जाए। +* एक अच्छे को शिक्षित करना वास्तव में समाज के हित में है। +* एक देश लोगो का समूह है जो एक लक्ष्य, एक आदर्श, एक मिशन के साथ जीते है और इस धरती के टुकड़े को मातृभूमि के रूप में देखते है यदि आदर्श या मातृभूमि इन दोनों में से कोई एक भी नही है तो इस देश का अस्तित्व नही है। +* एक बीज, जड़ों, तानों, शाखाओं, पत्तियों, फूलों और फलों के रूप में अभिवयक्त होता है। इन सभी के अलग -अलग रूप, रंग और गुण होते हैं। फिर भी हम बीज के माध्यम से उनकी एकता के सम्बन्ध को पहचानते हैं। +* एक राष्ट्र लोगों का एक समूह होता है जो 'एक लक्ष्य एक आदर्श एक मिशन' के साथ जीते हैं और एक विशेष भूभाग को अपनी मातृभूमि के रूप में देखते हैं। यदि आदर्श या मातृभूमि दोनों में से किसी का भी लोप हो तो एक राष्ट्र संभव नहीं हो सकता। +* किसी सिद्धांत को ना मानने वाले अवसरवादी हमारे देश की राजनीति नियंत्रित करते हैं। +* जब अंग्रेज हम पर राज कर रहे थे, तब हमने उनके विरोध में गर्व का अनुभव किया, लेकिन हैरत की बात है कि अब जबकि अंग्रेज चले गए हैं, पश्चिमीकरण प्रगति का पर्याय बन गया है। +* जब राज्य सभी शक्तियों, दोनों राजनीतिक और आर्थिक का अधिग्रहण कर लेता है, तो इसका परिणाम धर्म का पतन होता है। +* जब स्वाभाव को धर्म के सिद्धांतों के अनुसार बदला जाता है, तब हमें संस्कृति और सभ्यता प्राप्त होते हैं। +* जब हमारे स्वाभाव धर्म के सिद्धांतो के जरिये बदलते है तब हमे संस्कृति और सभ्यता की प्राप्ति होती है।। +* जबतक अंग्रेजो ने हमपर राज किया हमने उनका विरोध करना अपना गर्व समझते रहे लेकिन उनके चले जाने के बाद पश्चिमीकरण सभ्यता के जरिये हमारा विकास को अपनाना हमारा पहचान बन गया है। +* जीवन में विविधता और बहुलता है लेकिन हमने हमेशा उनके पीछे छिपी एकता को खोजने का प्रयास किया है। +* धर्म एक बहुत व्यापक अवधारणा है जो समाज को बनाए रखने के जीवन के सभी पहलुओं से संबंधित है। +* धर्म के मौलिक सिद्धांत अनन्त और सार्वभौमिक हैं। हालांकि, उनके कार्यान्वयन का समय और स्थान परिस्थितियों के अनुसार भिन्न हो सकती है। +* धर्म के लिए निकटतम समान अंग्रेजी शब्द ‘जन्मजात कानून’ हो सकता है। हालाँकि यह भी धर्म के पूरा अर्थ को व्यक्त नहीं करता है। चूँकि धर्म सर्वोच्च है, हमारे राज्य के लिए आदर्श ‘धर्म का राज्य’ होना चाहिए। +* धर्म बहुत व्यापक अवधारणा है जो समाज को बनाए रखने के लिये जीवन के सभी पहलुओं से संबंधित है। +* धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष (मानव प्रयास के चार प्रकार) की लालसा व्यक्ति में जन्मगत होता है और इनमें संतुष्टि एकीकृत रूप से भारतीय संस्कृति का सार है। +* धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की लालसा हर मनुष्य में जन्मजात होती है और समग्र रूप में इनकी संतुष्टि भारतीय संस्कृति का सार है। +* नैतिकता के सिद्धांतों को कोई एक व्यक्ति नहीं बनाता है, बल्कि इनकी खोज की जाती है। +* पश्चिमी विज्ञान और पश्चिमी जीवन शैली दो अलग-अलग चीजें हैं। चूँकि पश्चिमी विज्ञान सार्वभौमिक है और हम आगे बढ़ने के लिए इसे अपनाना चाहिए, लेकिन पश्चिमी जीवनशैली और मूल्यों के सन्दर्भ में यह सच नहीं है। +* पिछले हजार वर्षो में हमने जो भी ग्रहण किया या जबरन थोपा गया या अपनी स्वेच्छा से ग्रहण किया अब उसे चाहकर भी नही छोड़ा जा सकता है। +* बिना राष्ट्रीय पहचान के स्वतंत्रता की कल्पना व्यर्थ है।। +* बीज की एक इकाई विभिन्न रूपों में प्रकट होती है – जड़ें, तना, शाखाएं, पत्तियां, फूल और फल। इन सबके रंग और गुण अलग-अलग होते हैं। फिर भी बीज के द्वारा हम इन सबके एकत्व के रिश्ते को पहचान लेते हैं। +* भगवान ने हर आदमी को हाथ दिये हैं, लेकिन हाथों की खुद से उत्पादन करने की एक सीमित क्षमता है. उनकी सहायता के लिए मशीनों के रूप में पूंजी की जरूरत है। +* भारत जिन समस्याओं का सामना कर रहा है उसका मूल कारण इसकी “राष्ट्रीय पहचान” की उपेक्षा है। +* भारत में नैतिकता के सिद्धांतों को धर्म कहा जाता है – जीवन जीने की विधि। +* भारतीय जीवन में अनेक विविधता और बहुलता देखने को मिलती है लेकिन हमे इनके पीछे छिपी एकता को खोजने का प्रयास करना चाहिये। +* भारतीय संस्कृति की मौलिक विशेषता है कि यह जीवन को एक एकीकृत समग्र रूप में देखती है। +* मानव की दोनों प्रवृतिया रही है जहा एक ओर लालच और क्रोध होता है तो दूसरी तरफ प्रेम और बलिदान की भावना समाहित होती है। +* मानव प्रकृति में दोनों प्रवृत्तियां रही हैं – एक तरफ क्रोध और लोभ तो दूसरी तरफ प्रेम और त्याग। +* मानवीय और राष्ट्रीय दोनों तरह से, यह आवश्यक हो गया है कि हम भारतीय संस्कृति के सिद्धांतों के बारे में सोचें। +* मानवीय ज्ञान सभी की अपनी सम्पत्ति है। +* मानवीय स्वभाव में दोनों प्रवृतियाँ हैं – क्रोध और लालच एक हाथ पर तो दूसरे पर प्यार और बलिदान। +* मुसलमान हमारे शरीर का शरीर और हमारे खून का खून हैं। +* यदि समाज का हर व्यक्ति शिक्षित होगा तभी वह समाज के प्रति दायित्वों को पूरा करने में समर्थ होगा। +* यह जरुरी है कि हम ‘हमारी राष्ट्रीय पहचान’ के बारे में सोचते हैं, जिसके बिना आजादी’ का कोई अर्थ नहीं है। +* यहाँ भारत में, व्यक्ति के एकीकृत प्रगति को हासिल के विचार से, हम स्वयं से पहले शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा की चौगुनी आवश्यकताओं की पूर्ति का आदर्श रखते हैं। +* ये ज़रूरी है कि हम “हमारी राष्ट्रीय पहचान” के बारे में सोचें जिसके बिना “स्वतंत्रता” का कोई अर्थ नहीं है। +* रिलिजन शब्द का अभिप्राय पंथ या सम्प्रदाय से होता है इसका अर्थ धर्म तो कतई नही हो सकता है। +* वहां जीवन में विविधता और बहुलता है लेकिन हमने हमेशा इसके पीछे की एकता को खोजने का प्रयास किया है। +* विविधता में एकता और विभिन्न रूपों में एकता की अभिव्यक्ति भारतीय संस्कृति की विचारधारा में रची- बसी हुई है। +* व्यक्ति को वोट दें, बटुए को नहीं, पार्टी को वोट दें, व्यक्ति को नहीं; सिद्धांत को वोट दें, पार्टी को नहीं। +* शक्ति हमारे असंयत व्यवहार में नहीं बल्कि संयत कारवाई में निहित है। +* शिक्षा एक निवेश है जो आगे चलकर शिक्षित व्यक्ति समाज की सेवा करेगा। +* संघर्ष सांस्कृतिक स्वभाव का एक संकेत नहीं है बल्कि यह उनके गिरावट का एक लक्षण है। +* समाज को हर व्यक्ति को ढंग शिक्षित करना होगा, तभी वह समाज के प्रति दायित्वों को पूरा करने में करने सक्षम होगा। +* सिद्धांतहीन अवसरवादी लोगों ने हमारे देश की राजनीति का बागडोर संभाल रखा है। +* स्वतंत्रता तभी सार्थक हो सकती है यदि वो हमारी संस्कृति की अभिव्यक्ति का साधन बन जाए। +* हम लोगों ने अंग्रेजी वस्तुओं का विरोध करने में तब गर्व महसूस किया था जब वे (अंग्रेज) हम पर शाशन करते थे, पर हैरत की बात है, अब जब अंग्रेज जा चुके हैं, पश्चिम��करण प्रगति का पर्याय बन चुका है। +* हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत माता हैं, केवल भारत ही नहीं. माता शब्द हटा दीजिये तो भारत केवल जमीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जायेगा। +* हमारे देश में नैतिकता के सिद्धांतो को पालन करना धर्म कहा जाता है। +* हमारे राष्ट्रीयता का आधार भारत माता है सिर्फ भारत नही,इसमें सिर्फ माता शब्द हटा लीजिये तो भारत मात्र एक जमीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जायेगा।। +* हमे अपनी राष्ट्रीय पहचान के बारे में सोचना चाहिए तभी इस आजादी के महत्व को बनाया रखा जा सकता है। +* हमे सही व्यक्ति को वोट देना चाहिए न की उसके बटुए को, पार्टी को वोट दे किसी व्यक्ति को भी नही, किसी पार्टी को वोट न दे बल्कि उसके सिद्धांतो को वोट देना चाहिए । +* हेगेल ने थीसिस, एंटी थीसिस और संश्लेषण के सिद्धांतों को आगे रखा, कार्ल मार्क्स ने इस सिद्धांत को एक आधार के रूप में इस्तेमाल किया और इतिहास और अर्थशास्त्र के अपने विश्लेषण को प्रस्तुत किया, डार्विन ने योग्यतम की उत्तरजीविता के सिद्धांत को जीवन का एकमात्र आधार माना; लेकिन हमने इस देश में सभी जीवों की मूलभूत एकात्म देखा है। + + +* कड़वाहट कैंसर की तरह है। ये कडवाहट रखने वाले को खा जाती है| लेकिन क्रोध आग की तरह है। ये सबकुछ जला कर साफ़ कर देता है। +* सत्य और तथ्य में बहुत बड़ा अंतर है। तथ्य सत्य को छिपा सकते हैं। +* शब्द जो कागज़ पर लिखा होता है उससे अधिक मायने रखते हैं। उनके अर्थ में गहराई डालने के लिए मानवीय आवाज की आवश्यकता होती है। + + +पीटर ड्रकर Peter Drucker 19 नवम्बर, 1909 – 11 नवम्बर, 2005) एक अमेरिकी प्रबन्धन सलाहकार, शिक्षक एवं लेखक थे। वे मूलतः आस्ट्रिया के निवासी थे। प्रबन्धन शिक्षा के विकास के क्षेत्र में उन्होंने नेतृत्व किया। उन्होने ‘लक्ष्यों द्वारा प्रबन्धन’ (Management by objectives) की संकल्पना दी। उन्हें उनके प्रबन्धन सम्बन्धी सिद्धान्तों के लिए जाना जाता है। उनका प्रभाव इतना है कि उनकी लिखी किताबें पढ़े बिना कोई मार्केटिंग में एमबीए नहीं कर सकता। +* अच्छे निर्णय लेना हर स्तर पर एक महत्त्वपूर्ण कौशल है। +* अधिकतर चीजें जिन्हें हम प्रबन्धन कहते हैं, वो लोगों का काम समाप्त करना कठिन बनाती हैं। +* इस तथ्य को मानिए कि हमें हर किसी को एक स्वयंसेवक के रूप में स्वीकार करना होगा। +* उद्देश्य के अनुसार प्रबन्धन काम करता है, यदि आपको उद्देश्य पता हो। नब्बे प्रतिशत समय आपको ये पता नहीं होता। +* उद्यमी हमेशा बदलाव को खोजता है, उस पर प्रतिक्रिया करता है, और उसे एक अवसर के रूप में प्रयोग करता है। +* परामर्शदाता के रूप में मेरी सबसे बड़ी ताकत है- अनभिज्ञ होकर सवाल पूछना। +* प्रबन्धक, ज्ञान के प्रयोग एवं प्रदर्शन के लिए उत्तरदायी है। +* व्यापार का उद्देश्य ग्राहक बनाना होता है। +* कम्पनी की संस्कृति देश की संस्कृति की तरह होती है। कभी इस बदलने की कोशिश मत करो। बजाये इसके, जो तुम्हारे पास है उसी के साथ काम करने का प्रयास करो। +* कार्य की उत्पादकता, कार्यकर्ता की नहीं, प्रबंधक की जिम्मेदारी है। +* कोई संस्था संभवतः जीवित नहीं रह सकती अगर उसके प्रबंधन के लिए जीनियसों या सुपरमैनों की जरुरत पड़े। उसे इस तरह से व्यवस्थित किया जाना चाहिए कि औसत लोगों के नेतृत्व में वो चल सके। +* जब कोई विषय बिलकुल ही बेमतलब हो जाता है तो हम उसे आवश्यक पाठ्यक्रम बना देते हैं। +* जो लोग खतरा नहीं उठाते वो आम तौर पर एक साल में लगभग दो बड़ी गलतियाँ करते हैं। जो लोग खतरा उठाते हैं वो आम तौर पर एक साल में लगभग दो बड़ी गलतियाँ करते हैं। +* ज्ञान को लगातार सुधारना, चुनौती देना, और बढ़ाना होता है, नहीं तो वो गायब हो जाता है। +* दक्षता चीजों को सही करना है; प्रभावशीलता सही चीजों को करना है। +* निर्णय लेने से सम्बन्धित अधिकांश चर्चाओं में यह मान्यता दिखती है कि केवल वरिष्ठ अधिकारी ही निर्णय लेते हैं या उनके द्वारा लिए गये निर्णयों का ही महत्व है। ऐसा मानता बहुत बड़ी गलती है। +* प्रबन्धन चीजों को सही से करना है; नेतृत्व सही चीजें करना है। +* प्रभावी नेतृत्व भाषण देने या पसंद किये जाने के बारे में नहीं है; नेतृत्व परिणाम द्वारा परिभाषित होता है गुणों द्वारा नहीं। +* भविष्य का अनुमान लगाने का सबसे सही तरीका है उसे बनाना। +* मार्केटिंग का उद्देश्य ग्राहक को इतना जानना और समझना है कि उत्पाद या सेवा उसके उपयुक्त हो और अपने आप बिके। +* योजनाएं केवल अच्छे इरादे हैं जब तक की उन्हें तुरंत कड़ी मेहनत में ना बदला जाये। +* रैंक आपको विशेषाधिकार या शक्ति नहीं देती। ये आपके ऊपर जिम्मेदारी डालती है। +* लक्ष्य, दिशा हैं भाग्य नहीं। लक्ष्य कोई आदेश नहीं हैं। लक्ष्य भविष्य का निर्धारण नहीं करते बल्कि वे भविष्य के निर्माण के लिए संसाधन एवं ऊर्जा जुटाने के साधन हैं। +* व्य��पार, इस आसानी से परिभाषित किया जा सकता है – ये दूसरों का पैसा है। +* संचार में सबसे महत्त्वपूर्ण है वो सुनना जो नहीं कहा जा रहा। +* समय सबसे दुर्लभ संसाधन है कि जब तक इसे प्रबंधित नहीं किया जाये अन्य कुछ भी प्रबंधित नहीं हो सकता। + + +काजल अग्रवाल भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं। यह मुख्य रूप से तेलुगू फिल्मों में कार्य करती हैं। इसके अलावा यह हिन्दी और तमिल फिल्मों में भी कर करते रहती हैं। इनकी पहली फिल्म भी हिन्दी में ही थी। जो 2004 में प्रदर्शित हुई थी। +* तेलुगू और तमिल फिल्म उद्योग में मैं तेलुगू फिल्म उद्योग को ही चुन सकती हूँ। क्योंकि यहाँ औरतों की इज्जत तमिल फिल्म उद्योग से कहीं अधिक है। तमिल सिनेमा में सभी केवल हीरो के बारे में ही सोचते रहते हैं। +तेलुगू और तमिल दोनों फिल्मों में से किसी एक को चुनने के बारे में पूछने पर उत्तर + + +जॉर्ज बर्नार्ड शॉ 26 जुलाई 1856 – 2 नवम्बर 1950 एक दार्शनिक, चिन्तक और लेखक थे। +* तर्कसंगत व्यक्ति अपने आप को संसार के अनुरूप ढाल लेता है, अतर्कसंगत व्यक्ति संसार को अपने अनुरूप बनाने का प्रयत्न करता रहता है। अतः सम्पूर्ण उन्नति अतर्कसंगत व्यक्ति पर निर्भर करती है। +* किसी पुरुष या महिला के पालन-पोषण की आज़माइश तो एक झगड़े में उनके बर्ताव से होती है। जब सब ठीक चल रहा हो तब अच्छा बर्ताव तो कोई भी कर सकता है। +* सफलता कभी गलती ना करने में निहित नहीं होती बल्कि एक ही गलती दोबारा ना करने में निहित होती है। +* कम्युनिकेशन के साथ सबसे बड़ी समस्या है कि इसके हो चुकने का भ्रम हो जाना। +* स्त्रियाँ हमेशा दुःखी रहती हैं। जब आप उनको अपने जीवन में लाते हो तो वह एक चीज चलाती हैं और आप किसी दूसरे चीज को चला रहे होते हो। + + +रानी मुखर्जी भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं। इनका जन्म 21 मार्च 1978 को हुआ था। +* मैं यहाँ पर अभिनय, मनोरंजन एवं अच्छे फ़िल्म करने के लिए हूँ । +* मैं पार्टी नहीं करती, मैं नशे में नहीं होती हूं और मेरे पास मसले नहीं हैं। इसिलिए मेरा सारा जुनून मेरे काम में चला जाता है। + + +* अगर आप एक साल की योजना बना रहे है, तो एक बीज बोईये, योजना अगर दस साल की है तो पेड़ लगाईये और अगर योजना सौ साल की है तो शिक्षक बन जाइए। +* अगर आपको उत्कृष्ट भविष्य का निर्माण करना है, तो अतीत का अध्ययन करें। +* अच्छी तरह से शासित देश में, गरीबी के लिए शर्मिंदा होना पड़ता है। बुरी तरह से शासित देश में, संपत्ति के लिए शर्मिंदा होना पड़ता है। +* आप क्या जानते हैं और आप क्या नहीं जानते हैं का पता होना, ही सच्चा ज्ञान है। +* ईमानदारी और सच्चाई उच्च-नैतिकता के लिए आधार का काम करती हैं। +* उस काम का चुनाव करे, जिसे करने में आनंद आता हो। फिर आपको जिंदगी भर एक भी काम नहीं करना पड़ेगा। +* एक महान व्यक्ति का कथनी में कम, और करनी में ज्यादा होता है। +* एक शेर से ज्यादा एक दमनकारी सरकार से डरना चाहिए। +* एक सज्जन अपने कर्मों का अपने शब्दों से मेल नहीं होने पर शर्मिंदा होगा। +* किसी कमी के साथ एक हीरा बिना किसी कमी के पत्थर से बेहतर है। +* जब आप अपने दिल में झाकते है, और कोई गलती नहीं पाते, तब आपको चिंता करने और डरने की क्या बात है? +* जब आप किसी प्रशंसनीय व्यक्ति को देखे तब आप उससे भी अच्छा बनने की चेष्टा करे। लेकिन जब आप अप्रशंसनीय व्यक्ति को देखे, तब स्वयं के अंदर झांककर आत्मनिरीक्षण करे। +* जब भी क्रोध बढ़े, उसके परिणामों के बारे में सोचें। +* जब यह स्पष्ट हो कि लक्ष्य तक पहुंचा नहीं जा सकता, तब लक्ष्य न बदले। तब लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपनाए गए तरीकों में बदलाव लाए। +* जब हम अपने से विपरीत स्वभाव वाले व्यक्ति को देखे, तब हमें अपने अंदर झांककर उसकी धारणा पर विचार करना चाहिए। +* जीतने की संकल्प शक्ति, सफल होने की इच्छा और अपने अंदर मौजूद क्षमताओं के उच्चतम् स्तर तक पहुंचने की तीव्र अभिलाषा, ये ऐसी चाबियां हैं जो व्यक्तिगत उत्कृष्टता के बंद दरवाजे खोल देती है। +* जीवन की उम्मीदें कर्मठता पर निर्भर है; एक मैकेनिक को अपने काम में खरा उतरने के लिए, पहले अपने उपकरणों को तेज करना जरुरी है। +* धैर्य से बड़ी से बड़ी कठिनाईयों से बाहर निकला जा सकता है। +* नफरत करना आसान है, प्रेम करना मुश्किल. चीजें इसी तरह काम करती हैं। सारी अच्छी चीजों को पाना मुश्किल होता है, और बुरी चीजें बहुत आसानी से मिल जाती हैं। +* प्रतिशोध-रथ पर सवार हो तो, यात्रा प्रारम्भ करने से पहले दो कब्र खोदिये। +* बिना किसी आदर-भावना के अहसास के, हम इंसान को जानवरों से कैसे अलग कर सकते हैं? +* बुद्धि, करुणा, और साहस, व्यक्ति के लिए तीन सार्वभौमिक मान्यता प्राप्त नैतिक गुण हैं। +* बुराई को देखना और सुनना ही बुराई की शुरुआत है। +* महानता कभी ना गिरने में नहीं है, बल्कि हर बार गिरकर उठ जाने में है। +* मुझे विश्वास ह��, बुढ़ापा एक सुखद और अच्छी बात है, यह सच है कि धीरे-धीरे चीजें आपके हाँथ से निकल जाती हैं, लेकिन फिर भी दर्शक के रूप में आपको एक आराम दायक अग्रिम स्थान दिया जाता है। +* मैं दो अन्य पुरुषों के साथ चल रहा हूँ, तो उनमें से प्रत्येक मेरे शिक्षक के रूप में काम करेगा। मैं एक से अच्छी बातों का चयन करूंगा और उनका अनुकरण करूंगा, और अन्य की बुरी बातों का चयन करूंगा और अपने आप में उन्हें सही करूंगा। +* मृत्यु और जीवन के अपने नियोजन निर्धारित हैं, सम्पति और सम्मान भगवान् पर निर्भर करते हैं। +* यह जानते हुए कि सही क्या है, उसे न करना सबसे बड़ी कायरता है। +* यह सबसे अच्छी बात होगी कि अंधेरे को कोसने के बजाए एक छोटा सा दीया जलाया जाए। +* वह जो स्वयं पर विजय प्राप्त करते हैं। वह सबसे बड़े पराक्रमी योद्धा है। +* वास्तव में हमारा जीवन बहुत ही सरल हैं, लेकिन हम ही उसे जटिल बनाने पर तुले रहते हैं। +* वास्तविक शिक्षा वही है जो किसी के अज्ञान की सीमा को जान सके। +* विश्व को व्यवस्थित रखने के लिए, पहले राष्ट्र को व्यवस्थित रखना होगा, राष्ट्र को व्यवस्थित करने के लिए परिवार को व्यवस्थित करना होगा। परिवार को व्यवस्थित रखने के लिए, व्यक्तिगत जीवन का संवर्धन करना होगा और व्यक्तिगत जीवन के संवर्धन के लिए हमें सबसे पहले अपना दिल साफ रखना होगा। +* व्यक्ति जितना अधिक अच्छे विचारों पर चिंतन-मनन करेगा, उसकी दुनिया उतनी ही बेहतर एवं व्यापक होगी। +* सफलता पहले से की गयी तैयारी पर निर्भर है, और बिना ऐसी तैयारी के असफलता निश्चित है। +* सभी परिस्थितियों में पांच चीजों का अभ्यास सही सद्गुण का गठन करता है; और ये पांच चीजें गुरुत्व, आत्मा की उदारता, नेक नियति, गंभीरता एवं दया हैं। +* हम अपना ज्ञान तीन तरीको से अर्जित कर सकते हैं। पहला, चिंतन करके, जो कि सबसे सही तरीका है। दूसरा, अनुकरण करके, जो कि सबसे आसान है, और तीसरा अनुभव से, जो कि सबसे कष्टकारी है। +* अगर आप एक साल की योजना बना रहे है, तो एक बीज बोईये, योजना अगर दस साल की है तो पेड़ लगाईये और अगर योजना सौ साल की है तो शिक्षक बन जाइए। +* अगर आपको उत्कृष्ट भविष्य का निर्माण करना है, तो अतीत का अध्ययन करें। +* अच्छी तरह से शासित देश में, गरीबी के लिए शर्मिंदा होना पड़ता है। बुरी तरह से शासित देश में, संपत्ति के लिए शर्मिंदा होना पड़ता है। +* असफलता निश्चित है अगर सफलता के लिए पहले से तैयारी ना कि गई हो तो। +* आप क्या जानते हैं और आप क्या नहीं जानते हैं का पता होना, ही सच्चा ज्ञान है। +* ईमानदारी और सच्चाई उच्च-नैतिकता के लिए आधार का काम करती हैं। +* उस काम का चुनाव करे, जिसे करने में आनंद आता हो। फिर आपको जिंदगी भर एक भी काम नहीं करना पड़ेगा। +* एक महान व्यक्ति का कथनी में कम, और करनी में ज्यादा होता है। +* एक सज्जन अपने कर्मों का अपने शब्दों से मेल नहीं होने पर शर्मिंदा होगा। +* किसी कमी के साथ एक हीरा बिना किसी कमी के पत्थर से बेहतर है। +* जब आप अपने दिल में झाकते है, और कोई गलती नहीं पाते, तब आपको चिंता करने और डरने की क्या बात है। +* जब आप किसी प्रशंसनीय व्यक्ति को देखे तब आप उससे भी अच्छा बनने की चेष्टा करे। लेकिन जब आप अप्रशंसनीय व्यक्ति को देखे, तब स्वयं के अंदर झांककर आत्मनिरीक्षण करे। +* जब भी क्रोध बढ़े, उसके परिणामों के बारे में सोचें। +* जब यह स्पष्ट हो कि लक्ष्य तक पहुंचा नहीं जा सकता, तब लक्ष्य न बदले। तब लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपनाए गए तरीकों में बदलाव लाए। +* जब हम अपने से विपरीत स्वभाव वाले व्यक्ति को देखे, तब हमें अपने अंदर झांककर उसकी धारणा पर विचार करना चाहिए। +* जीतने की संकल्प शक्ति, सफल होने की इच्छा और अपने अंदर मौजूद क्षमताओं के उच्चतम् स्तर तक पहुंचने की तीव्र अभिलाषा, ये ऐसी चाबियां हैं जो व्यक्तिगत उत्कृष्टता के बंद दरवाजे खोल देती है। +* जीवन की उम्मीदें कर्मठता पर निर्भर है; एक मैकेनिक को अपने काम में खरा उतरने के लिए, पहले अपने उपकरणों को तेज करना जरुरी है। +* धैर्य से बड़ी से बड़ी कठिनाईयों से बाहर निकला जा सकता है। +* नफरत करना आसान है, प्रेम करना मुश्किल. चीजें इसी तरह काम करती हैं। सारी अच्छी चीजों को पाना मुश्किल होता है, और बुरी चीजें बहुत आसानी से मिल जाती हैं। +* प्रतिशोध-रथ पर सवार हो तो, यात्रा प्रारम्भ करने से पहले दो कब्र खोदिये। +* बिना किसी आदर-भावना के अहसास के, हम इंसान को जानवरों से कैसे अलग कर सकते हैं। +* बुराई की शुरुआत ही बुराई को देखना और सुनना है। +* महानता कभी भी ना गिरने में नहीं है महानता तो बल्कि हर बार गिरकर उठ जाने में है। +* मुझे विश्वास है, बुढ़ापा एक सुखद और अच्छी बात है, यह सच है कि धीरे- धीरे चीजें आपके हाँथ से निकल जाती हैं, लेकिन फिर भी दर्शक के रूप में आपको एक आराम दायक अग्रिम स्थान दिया जाता है। +* मैं दो अन्य पुरुषों के साथ चल रहा हूँ, तो उनमें से प्रत्येक मेरे शिक्षक के रूप में काम करेगा। मैं एक से अच्छी बातों का चयन करूंगा और उनका अनुकरण करूंगा, और अन्य की बुरी बातों का चयन करूंगा और अपने आप में उन्हें सही करूंगा। +* मृत्यु और जीवन के अपने नियोजन निर्धारित हैं, सम्पति और सम्मान भगवान् पर निर्भर करते हैं। +* यह जानते हुए कि सही क्या है, उसे न करना सबसे बड़ी कायरता है। +* यह सबसे अच्छी बात होगी कि अंधेरे को कोसने के बजाए एक छोटा सा दीया जलाया जाए। +* वह जो स्वयं पर विजय प्राप्त करते हैं। वह सबसे बड़े पराक्रमी योद्धा है। +* वास्तव में हमारा जीवन बहुत ही सरल हैं, लेकिन हम ही उसे जटिल बनाने पर तुले रहते हैं। +* वास्तविक शिक्षा वही है जो किसी के अज्ञान की सीमा को जान सके। +* विश्व को व्यवस्थित रखने के लिए, पहले राष्ट्र को व्यवस्थित रखना होगा, राष्ट्र को व्यवस्थित करने के लिए परिवार को व्यवस्थित करना होगा। परिवार को व्यवस्थित रखने के लिए, व्यक्तिगत जीवन का संवर्धन करना होगा और व्यक्तिगत जीवन के संवर्धन के लिए हमें सबसे पहले अपना दिल साफ रखना होगा। +* व्यक्ति के लिए तीन सार्वभौमिक मान्यता प्राप्त नैतिक गुण हैं..बुद्धि, करुणा और साहस। +* व्यक्ति जितना अधिक अच्छे विचारों पर चिंतन-मनन करेगा, उसकी दुनिया उतनी ही बेहतर एवं व्यापक होगी। +* सभी परिस्थितियों में पांच चीजों का अभ्यास सही सद्गुण का गठन करता है; और ये पांच चीजें गुरुत्व, आत्मा की उदारता, नेक नियति, गंभीरता एवं दया हैं। +* हम अपना ज्ञान तीन तरीको से अर्जित कर सकते हैं। पहला, चिंतन करके, जो कि सबसे सही तरीका है। दूसरा, अनुकरण करके, जो कि सबसे आसान है, और तीसरा अनुभव से, जो कि सबसे कष्टकारी है। + + +* अच्छे लगने के लिए, अच्छे बनिए। लोगों से उन सवालों को पूछिए जिनके उत्तर देने में उन्हें आनन्द आता है। +* असफलता को सफलता में परिवर्तित कीजिए। निराशा और असफलता, सफलता के मार्ग में आने वाली दो निश्चित चुनौतियाँ हैं। +* आप उत्साहित होने का नाटक कीजिए और आप भी उस उत्साहित हो जाओगे। +* आपके बारे में लोग क्या कहते हैं? इसके बारे में चिन्ता करने के बजाए क्यों ना कुछ करने में समय वहाँ लगाये जिसे अन्य लोग आपको करते हुए देखने की इच्छा करते हैं। +* आलोचना से कोई सुधरता नहीं है, अलबत्ता सम्बंध जरूर बिगड़ जाते हैं। +* इस दुनिया में किसी व्यक्ति को कोई काम कराने का मात्र एक ही तरीका है। वो तरीका है, व्यक्ति के अंदर उस कार्य के प्रति इच्छा पैदा करना। +* ईमानदार रहिए और सच्ची सराहना कीजिए। +* उदासीनता, संदेह और डर को पैदा करती है। कार्यवाही, विश्वास और साहस को पैदा करती है। +* उनसे मत डरिए जो आपसे तर्क करते हैं, बल्कि उनसे डरिए जो धोखा करते हैं। +* किसी आदमी के दिल तक जाने का सही रास्ता है, उससे उस चीज के बारे में बात करना, जिसे वह सबसे ज्यादा चाहता है। +* खुद के लिए और अपनी माजूदा स्थिति के लिए अफ़सोस करना, ना केवेल उर्जा की बर्वादी है बल्कि शायद ये सबसे बुरी आदत है जो आपके अन्दर हो सकती है। +* खुद के लिए और वर्तमान की हालातों के लिए दया करना ना केवल ऊर्जा की बर्बादी है बल्कि आपके पास यह सबसे बुरी आदत है जो हो सकती है। +* खुशी किसी बाह्य परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती। यह मानसिक दृष्टिकोण के द्वारा संचालित होती है। +* जब तक आप जो कर रहे हैं उसे पसंद नहीं करते तब तक आप सफलता नहीं पा सकते। +* जिस चीज को करने से डर लगता है उस चीज को कीजिए और उसे करते रहिए अपने डर पर काबू पाने के लिए यही अब तक का सबसे आसान और भरोसेमंद खोजे जाने वाला रास्ता है। +* ज्ञान तब तक ताकतवर नहीं है, जब तक इसका प्रयोग ना हो। +* पहले खुद से पूछो: आप का सबसे बुरा क्या हो सकता है? फिर उसे मानने के लिए तैयार रहीए और तब उस बुरे को सुधारने के लिए प्रयास करिए। +* प्रशंसा और चापलूसी में क्या फर्क है? इसका जवाब बहुत आसान है। एक सच्ची होती है और दूसरी झूठी होती है, एक दिल से निकलती है दूसरी दांतो से, एक निस्वार्थ होती है तो दूसरी स्वार्थपूर्ण होती है, एक की एक हर जगह सराहना होती है, दूसरे की हर जगह निन्दा। +* मैं इस राह पर सिर्फ एक बार ही चलूंगा, इसलिए अगर मैं कुछ अच्छा कर सकता हूं या किसी इंसान का कुछ भला कर सकता हूं तो मै ऐसा ही करूंगा। मैं इसे टालूंगा नहीं, नजरअंदाज नहीं करुंगा क्योंकि मैं दोबारा इस राह पर नहीं लौटूंगा। +* यदि जो आप कर रहे हो उसमें भरोसा करते हो, तब किसी भी चीज को अपने कार्य को रोकने मत दो। दुनिया के अधिकतर कार्य असम्भव लगने के बावजूद ही किए गए हैं। जरूरी बात यह है कि काम पूरा करो। +* यह वो नहीं है, जो आपके पास है या जो आप हो या जहाँ से हो या आप जो करते हो, जिससे आपको प्रसन्नता या दुख मिलता है। यह उस पर निर्भर करता है, जो आप सोचते हो। +* लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम तार्किक लोगों से व्यवहार नहीं कर रहे हैं, हम भावनात्मक लोगों से व्यवहार कर रहे हैं। +* हर देश खुद को अन्य देशों से बेहतर समझता है। इसी से देशभक्ति आती है और युद्ध भी। + + +* बड़ी सावधानी और चतुराई से अपने कदम बढाइये, और याद रखिये की जीवन संतुलन बनाये रखने का एक महान काम है| + + +* व्यवसाय पर आधारित मित्रता, मित्रता पर आधारित व्यवसाय से बेहतर है। +* मैं अपने खुद के प्रयासों से 100 कमाने की बजाये 100 लोगों के प्रयासों से 1% कमाना चाहूँगा. +* प्रतिस्पर्धा एक पाप है। +* लोगों का प्रबंधन करने की काबिलियत उतनी ही खरीदने योग्य वास्तु है जितना की चीनी या कॉफ़ी और मैं किसी और काबिलियत की तुलना में इस काबिलियत के लिए अधिक पैसे दूंगा. +* धन से जुड़ा एक ही सवाल है, आप इसके साथ क्या करते हैं? +* सफलता का रहस्य है साधारण चीजों को असाधारण तरीके से करना. + + +* इससे पहले कि बदलना पड़े बदल जाइए। +* मैंने सीखा है कि गलतियाँ अक्सर उतनी ही अच्छी शिक्षक हो सकती हैं जितनी की सफलता। +* सच्चाई का सामना ऐसे कीजिये जैसे कि वो है, ना की जैसी थी या आप उसे जैसा होना चाहते हैं। +* सभी के साथ स्पष्ट रहिये। +* अच्छे बिजनेस लीडर विज़न बनाते हैं विज़न बताते हैं विज़न को उत्साह के साथ अपनाते हैं, और सतत उसे पूर्ण करते हैं। + + +: हे अर्जुन! जब-जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूँ अर्थात् अवतार लेता हूँ। सज्जनों के कल्याण, दुष्टों के विनाश एवं धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में जन्म लेता हूँ। +: प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए गंदगी का ढेर, पत्थर और सोना सभी समान हैं। +: हे अर्जुन! हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति (संस्कारों) के अनुसार होता है। मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है। वह जो चाहे बन सकता/सकती है (यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे)। +* इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है। +* संतुष्ट मन इस विश्व का सबसे बड़ा धन है। +* भगवान प्रत्येक वस्तु में, प्रत्येक जीव में मौजूद हैं। +* आत्मा अमर है, इसलिए मरने की चिंता मत करो। +* आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा में मिल जाना होता है। +* बड़प्पन वह गुण है जो पद से नहीं, संस्कारों से प्राप्त होता है। +* व्यक्ति या जीव का कर्म ही ���सके भाग्य का निर्माण करता है। +* जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं, तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं। +* प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर और सोना सभी समान हैं। +* आपके कर्म ही आपकी पहचान है, वरना एक नाम के हजारों इंसान हैं। +* धर्म केवल कर्म से होता है कर्म के बिना धर्म की कोई परिभाषा ही नहीं है। +* अहंकार करने पर इंसान की प्रतिष्ठा, वंश, वैभव, तीनों ही समाप्त हो जाते हैं। +* जीवन में कभी भी किसी से अपनी तुलना मत कीजिये, आप जैसे हैं सर्वश्रेष्ठ हैं। +* बुरे कर्म करने नहीं पड़ते हो जाते है, और अच्‍छे कर्म होते नहीं करने पड़ते हैं। +* बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए। +* स्वार्थ संसार का एक ऐसा कुआं है जिसमें गिरकर निकल पाना बड़ा कठिन होता हैं। +* सेहत के लिए योग और किसी की जरूरत पर सहयोग दोनों से ही जीवन बदलता है। +* आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो। +* मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है। +* उस इंसान का मंजिल से भटक जाना तय है जिसकी संगत में नकारात्मक लोग रहते हैं। +* प्रेम सदैव माफी मांगना पसंद करता है और अहंकार सदैव माफी सुनना पसंद करता है। +* सिर्फ दिखावे के लिए अच्छा मत बनो मैं आपको बाहर से नहीं बल्कि भीतर से जानता हूं। +* जो इस लोक में अपने काम की सफलता की कामना रखते हैं, वे देवताओं का पूजन करें। +* व्‍यक्ति जो चाहे बन सकता है, यदि विश्‍वास के साथ इच्छित वस्‍तु पर लगातार चिंतन करें। +* शब्द उतने ही बाहर निकालने चाहिए, जिन्हें वापिस भी लेना पड़े तो खुद को तकलीफ न हो। +* परायों को अपना बनाना उतना मुश्किल नहीं, जितना अपनों को अपना बनाए रखना होता है। +* यदि आप किसी के साथ मित्रता नहीं कर सकते हैं, तो उसके साथ शत्रुता भी नहीं करना चाहिए। +* मन अशांत हो तो उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है। +* दिव्यता केवल शक्तिशाली होने में नहीं, बल्कि वास्तविक दिव्यता दूसरों में शक्ति जाग्रत करने में है। +* जीवन में वाणी को संयम में रखना अनिवार्य है क्योंकि वाणी से दिए हुए घाव कभी भरे नहीं जा सकते। +* न हार चाहिए ना जीत चाहिए। जीवन में अच्छी सफलता के लिए परिवार और कुछ मित्र का साथ चाहिये। +* वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, मुझे प्राप्त क��ये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं। +* लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे। सम्मानित व्यक्ति के लिए, अपमान मृत्यु से भी बदतर है। +* जो दूसरों की तकलीफों को समझते हैं, जिनमें दया है, दिल से अच्छे हैं। उन्हें दोबारा जन्म लेना नहीं पड़ता। +* जीवन में आधे दु:ख इस वजह से आते है, क्यूंकि हमने उनसे आशाऐं रखी जिन से हमें नहीं रखनी चाहिए थी। +* ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के दिमाग को अस्थिर नहीं करना चाहिए। +* किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े। +* कृष्ण कहते हैं जब – जब संसार में धर्म की हानि होगी, अधर्म की विजय। तब – तब मैं इस पृथ्वी पर अवतार लूंगा। +* अमीर बनने के लिए एक एक क्षण संग्रह करना पड़ता है, किन्तु अमर बनने के लिए एक एक कण बांटना पड़ता है। +* वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है। मैं और मेरा की लालसा तथा भावना से मुक्त हो जाता है। उसे शांति प्राप्त होती है। +* हमेशा छोटी छोटी गलतियों से बचने की कोशिश किया करो, क्योंकि इन्सान पहाड़ों से नहीं पत्थरों से ठोकर खाता है। +* शांति से भी दुखों का अंत हो जाता है और शांत चित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है। +* इच्छा पूरी नहीं होती तो क्रोध बढ़ता है, और इच्छा पूरी होती है तो लोभ बढ़ता है। इसलिये जीवन की हर स्थिति में धैर्य बनाये रखना। +* कृष्ण ने दुष्टों को भी अपनी गलती सुधारने का मौका दिया, क्योकि वो किसी मनुष्य को नहीं उसके अंदर के बुराई को मारना चाहते थे। +* संदेह की स्याही से संबंध के पृष्ठ पर कभी शुभ अंकित नहीं होता इसलिए अपने मन के विचार और संबंधों का आधार दोनों ही शुभ रखें। +* इस भौतिक संसार का यह नियम है जो वस्तु उत्पन्न होती है, कुछ काल तक रहती है अंत में लुप्त हो जाती है चाहे वे शरीर हो या फल हो। +* उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा। जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता। +* अपने परम भक्तों, जो हमेशा मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजन करते हैं, मैं व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेता हूँ। +* जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो। +* श्री ���ृष्ण ने कहा है, अगर तुम्हें किसी ने दुखी किया है तो बुरा मत मानना। लोग उसी पेड़ पर पत्थर मारते है, जिस पेड़ पर ज्यादा मीठे फल होते है। +* अंत काल में जो मनुष्य मेरा स्मरण करते हुए, देह त्याग करता है वह मेरी शरण में आता है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि अंत काल में मेरा चिंतन करें। +* कृष्ण कहते हैं, इस जगत में मनुष्य भौतिक वस्तुओं का भोग कर सकता है। अगर वे चाहे तो सब कुछ छीन सकते हैं। मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकता। +* क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है। +* आत्मा न तो जन्म लेती है, न कभी मरती है और ना ही इसे कभी जलाया जा सकता है, ना ही पानी से गीला किया जा सकता है, आत्मा अमर और अविनाशी है। +* अगर व्यक्ति शिक्षा से पहले संस्कार, व्यापार से पहले व्यवहार और भगवान से पहले माता पिता को पहचान ले तो जिंदगी में कभी कोई कठिनाई नही आएगी। +* विषयों का चिंतन करने से विषयों की आसक्ति होती है। आसक्ति से इच्छा उत्पन्न होती है और इच्छा से क्रोध होता है।क्रोध से सम्मोहन और अविवेक उत्पन्न होता है। +* कृष्ण कहते हैं जैसे प्राणी अपने पुराने कपड़ों उतार कर फेंक देता है, नए को धारण करता है। उसी प्रकार यह आत्मा पुराने शरीर से त्याग करके नया शरीर प्राप्त करती हैं। +* तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नही हैं, और फिर भी ज्ञान की बातें करते हो, बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं। +* मन की गतिविधियों, होश, श्वास और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर सभी कार्य कर रही है। +* हर किसी के अंदर अपनी ताकत और अपनी कमज़ोरी होती है। मछली जंगल में नहीं दौड़ सकती और शेर पानी में राजा नही बन सकता, इसलिए अहमियत सभी को देनी चाहिए। +* धर्म युद्ध में कोई भी व्यक्ति निष्पक्ष नहीं रह सकता है। धर्म युद्ध में जो व्यक्ति धर्म के साथ नहीं खड़ा है। इसका मतलब है वह अधर्म का साथ दे रहा है, वह अधर्म के साथ खड़ा है। +* अगर कोई मनुष्य हमारे साथ बुरा कर रहा है, तो उसे करने दो यह उसका कर्म है। और समय उसके कर्म का फल उसे जरूर देगा। लेकिन हमें कभी भी किसी के साथ बुरा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यही हमारा धर्म है। + + +यदि मापदंड पता हो तो नीचे दिए साँचों में से उपयुक्त साँचे का प्रयोग करें। +यह साँचा निम्न प्राचल स्वीकार करता है: + + 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शिक्षक (शिक्षा देनेवाले और बोधक (बोध करानेवाले) – ये छः गुरु समझे जाते हैं। +: अर्थ अभिलाषा रखनेवाले, सब भोग करनेवाले, संग्रह करनेवाले, ब्रह्मचर्य का पालन न करनेवाले, और मिथ्या उपदेश करनेवाले, गुरु नहीं है। +अर्थ गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शिव है; गुरु ही साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम है। +अर्थ आप ही स्वयं अपने गुरू हैं क्योंकि प्रत्यक्ष और अनुमान के द्वारा पुरुष जान लेता है कि अधिक उपयुक्त क्या है। +: शत्रु यदि गुणवान है तो उसके गुण को स्वीकार करना चाहिए और गुरु में यदि दोष हो तो उसको प्रकट करने में संकोच नही करना चाहिए। हमेशा सभी प्रयत्न से पुत्र को भी शिष्य के समान गिनना चाहिए। +: अर्थ विद्वता, दक्षता, शील, संकान्ति, अनुशीलन, सचेतत्त्व, और प्रसन्नता – ये सात शिक्षक के गुण हैं। +: अर्थ विनय का फल सेवा है, गुरुसेवा का फल ज्ञान है, ज्ञान का फल विरक्ति है, और विरक्ति का फल आश्रवनिरोध है। +: अर्थ तीनों लोक, स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल में ज्ञान देनेवाले गुरु के लिए कोई उपमा नहीं दिखाई देती। गुरु को पारसमणि के जैसा मानते हैं, तो वह ठीक नहीं है, कारण पारसमणि केवल लोहे को सोना बनाता है, पर स्वयं जैसा नहीं बनाता। सद्गुरु तो अपने चरणों का आश्रय लेनेवाले शिष्य को अपने जैसा बना देता है; इसलिए गुरु के लिए कोई उपमा नहीं है, गुरु तो अलौकिक है। +* रचनात्मक अभिव्यक्ति और ज्ञान में आनन्द जगाना ही गुरु की सर्वोच्च कला है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* चीजों की रोशनी में आगे आओ, प्रकृति को अपना गुरु बनने दो। विलियम वर्ड्सवर्थ +* अनुभव एक कठोर गुरु है क्योंकि वह पहले परीक्षा लेता है, बाद में पाठ पढ़ाता है��। Vernon Law +* मुझे एक गुरु पसन्द है जो आपको होमवर्क के अलावा घर ले जाने के लिए कुछ सोचने के लिए भी कुछ देता है। Lily Tomlin +* एक अच्छा शिक्षक आशा को जगाता है, कल्पना को प्रज्वलित करता है, और सीखने का प्यार बढ़ाता है। +* माँ बच्चो की सबसे पहली शिक्षक होती है +* हमारा अनुभव भी एक अच्छा शिक्षक है, जो की कठिन परिस्थतियो से गुजरने के बाद प्राप्त होता है। +पढ़ाने का पेशा एक ऐसा पेशा है जो बाकी सब व्यवसायों को जन्म देता है। +* में एक शिक्षक नहीं हूँ, में तो लोगो को जगाने वाला हूँ। रोबर्ट फ्रॉस्ट +* शिक्षा देने की कला वास्तव में खोज में सहायता करने की कला है। मार्क वेन डोरेन् +: बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दिया बताय॥ + + +यह चर्चा समाप्त हो चुकी है। red कृपया इसे न बदलें। आगे की वार्ताएँ इस पृष्ठ में नये विभागों में होनी चाहिएँ। safesubst if 1 result इसका संक्षिप्त परिणाम निम्न रहा + + +विकिसूक्ति एक मुक्त सूक्ति संग्रह है, जिसे कोई भी संपादित कर सकता है। यहाँ पर सुभाषित, विविध विषयों पर महानुभावों के कथन, लोकोक्ति इत्यादि को रखा जाता है। विकिसूक्ति में कथन लिखने के लिये आप जैसे लोगों की आवश्यकता है। आप एक नया पन्ना आरम्भ कर सकते हैं या किसी भी कथन को बदल या सुधार सकते हैं। अगर आपको लगता है कि आप इसे बिगाड़ देंगे तो आप प्रयोगस्थल में जा कर कोई सम्पादन कर के देख सकते हैं। + + +विकिसूक्ति एक मुक्त सु-उक्ति संग्रह हैं जो दुनिया भर के उन लाखों योगदानकर्ताओं द्वारा लिखा जाता है जो ज्ञान को बाँटने एवं उसका प्रसार करने में विश्वास रखते हैं। विकिसूक्ति के हर लेख एवं सामग्री के पीछे लाखों लोगों का कठिन प्रयास एवं ज्ञान निहित है। इस समय अंग्रेज़ी विकिसूक्ति सबसे बड़ा एवं विशाल संग्रह है जिसमें अधिक लेख है। विकि परियोजनाएं २० भारतीय भाषाओं सहित विश्व की २७९ से भी अधिक भाषाओं में उपलब्ध हैं। विकिसूक्ति में हर लेख स्वयंसेवकों के एक बड़ी संख्या में किए गए सहयोगी सम्पादनों का परिणाम है। +सामान्यत अन्तरजाल में किसी भी वेबसाईट पर कोई जानकारी देने के लिए अथवा सुरक्षित रखने के लिए हमें वेबसाईट के स्वामी से अनुमति लेनी पड़ती है परन्तु विकि एक ऎसा साफ़्टवेयर है जो सभी को किसी भी प्रकार की प्रतिबाधा से मुक्त रखकर बिना किसी तकनीकी ज्ञान एवं विशेषाधिकार के किसी भी सूचना सामग्री को जोड़ने, संशोधित करने एवं पुन: हटाने की सुविधा उपलब्ध कराता है। क्योंकि किसी विकि साफ़्टवेयर पर सूचना सामग्री डालना अत्यन्त सरल है जिस कारण यह सहयोगात्मक संलेखन के लिए एक सर्वोत्तम उपकरण है। +==क्या विकि और विकिसूक्ति एक हैं +विकि और विकिसूक्ति एक ही संस्था अथवा नाम नहीं है। चूंकि विकि साफ़्टवेयर सहयोगात्मक संलेखन के लिए एक सर्वोत्तम उपकरण है इसलिए विकिसूक्ति जो कि एक मुक्त सु-उक्ति संग्रह है, सूचना सामग्री जोड़ने या हटाने के लिए इसका उपयोग करता है। विकिसूक्ति केवल उन वेबसाइट्स में से एक सबसे अधिक प्रसिद्ध एवं विशाल वेबसाईट है जो विकि साफ़्टवेयर का प्रयोग करती है इस कारण कई लोग यह मान लेते है कि विकि और विकिपीडिया या विकिसूक्ति एक ही हैं परन्तु यह सत्य नहीं। +विकिसूक्ति इण्टरनेट पर आधारित एक मुक्त सु-उक्ति संग्रह परियोजना है। यह विकि के रुप में है, यानी एक ऐसा जाल पृष्ठ जो सभी को इसका सम्पादन करने की छूट देता है। विकिसूक्ति शब्द विकि और सु-उक्ति शब्दों को मिला कर बना है। विकिसूक्ति एक बहुभाषीय प्रकल्प है, और स्वयंसेवकों के सहकार से निर्मित है। जिसकी भी इण्टरनेट तक पहुंच है वह विकिसूक्ति पर लिख सकता है और लेखों का सम्पादन कर सकता है। विकिसूक्ति के मुख्य सर्वर टैम्पा, फ़्लोरीडा में है। अतिरिक्त सर्वर एम्सटर्डम और सियोल में हैं। +निपुण लोगों द्वारा बनाए गए ज्ञानकोश न्यूपीडिया के पूरक के रूप में २९ जनवरी, २००१ में इसका शुभारम्भ हुआ। अब यह विकिमीडिया फाउण्डेशन द्वारा संचालित है जो एक अलाभकारी संस्था है। २००६ के मध्य में इसमें ४६ लाख से भी अधिक लेख थे, और केवल अंग्रेज़ी भाषा में ही १२ लाख से भी अधिक लेख थे। अब यह २७९ से भी अधिक भाषाओं में है, जिसमें से ३६ भाषाओं में १ लाख से भी अधिक लेख हैं। जर्मन भाषा के विकिपीडिया को डीवीडी में भी वितरित किया गया है। विकिसूक्ति के संस्थापक जिमी वेल्स के शब्दों में यह "विश्व के प्रत्येक व्यक्ति के लिए, उनके अपनी भाषा में एक बहुभाषीय, मुक्त, सर्वाधिक सम्भव गुणवत्ता वाला विश्वकोश बनाने और वितरित करने का प्रयास है।" +==क्या इस विकि अभियान को केन्द्र या राज्य सरकार की सहायता प्राप्त है +विकिसूक्ति एक अलाभकारी संगठन है जो विकिमीडिया फाउण्डेशन द्वारा संचालित किया जाता है। यह फाउण्डेशन सरकार से किसी प्रकार का कोई कोष या चन्दा प्रा���्त नहीं करता। यह फाउण्डेशन मुख्यत सम्पूर्ण जन समुदाय के दिए गए दान से एकत्रित कोष द्वारा संचालित किया जाता है। क्योंकि अब विकिसूक्ति अत्यधिक लोकप्रिय हो चुका है इसलिए कुछ सरकारी संस्थाएं एवं व्यवसायिक संगठन भी इसे दान के रुप में सहायता उपलब्ध करना आरम्भ कर चुके हैं। +==क्या मुझे हिन्दी विकिसूक्ति पर कोई लेख आरम्भ करने से पहले पर्याप्त जानकारी होना आवश्यक है +अधिकतर लोगों के बीच यह एक गलत अवधारणा है कि विकिसूक्ति पर कोई लेख लिखने के लिए हमें पर्याप्त जानकारी होना आवश्यक है परन्तु ऐसा नहीं है। विकिसूक्ति पर कोई भी लेख लिखने या सम्पादित करने के लिए आपका किसी क्षेत्र-विशेष में विशेषज्ञ होना आवश्यक नहीं है। विकिसूक्ति का हर लेख सैंकड़ों योगदानकर्ताओं के सामुहिक प्रयास का परिणाम है। आप जिस लेख को बहुत कम जानकारी डालकर आरम्भ करेंगे कल उसे कोई और व्यक्ति कुछ नई जानकारी डालकर बढ़ा देगा फिर कोई और, और इस प्रकार कुछ दिनों बाद वह लेख ज्ञान की छोटी-छोटी बूँदों से भरकर परिपूर्ण हो जाएगा जिससे अनेक उत्सुक पाठकों की ज्ञानरुपी प्यास बुझेगी। जिस प्रकार आप जो प्रयास किसी अन्य के लिए करेंगे जिससे उसका ज्ञानवर्धन होगा, उसी प्रकार अन्य लोग भी समान प्रयास कर अनेक लेख बनाएंगे जिससे आपका एवं कई अन्य लोगों का ज्ञानवर्धन होगा। इस प्रकार जब कई लोग स्वयं से ज्ञान की छोटी-छोटी बूँदे समर्पित करेंगे तो ज्ञान का एक ऐसा सागर बन जाएगा जिससे आने वाली समस्त पीढ़ियों के साथ हम सब की ज्ञान रुपी जिज्ञासा शान्त होगी। +मान लीजिए कि आज किसी ने विकिसूक्ति पर महत्मा गांधी कि सूक्तिओ के ऊपर केवल एक पंक्ति का लेख लिखा। कुछ दिनों बाद जब उसे कोई अन्य विकि पर देखता है तो वह उसमें कुछ और जानकारी डाल सकता है और इस प्रकार इस लेख में जानकारी बढ़ती रहेगी जिससे यह गांधीजे कि उक्तिओ के ऊपर एक विशाल जानकारी का स्त्रोत बन जायेगा। अत:किसी भी विषय में कम जानकारी से न घबराएं, मुक्त मन से विकिसूक्ति पर लेख लिखना आरम्भ करें। +==क्या विकिसूक्ति पर कोई ऐसा नियम है कि किस विषय पर लिखना है और किस विषय पर नहीं +आप विकिसूक्ति पर किसी भी ज्ञान वर्धक विषय पर लेख लिख सकते है बशर्ते कि यह लेख सुक्ति संग्रह की शैली के अनुरुप हो। जिसके लिए विकिसूक्ति पर कई विकिनीतियां निर्धारित है। हाँ यह सामान्य समझ की बात है ��ि विवादित विषयों पर लेख बनानें से पूर्व यह सुनुश्चित कर लें कि लेख की जानकारी बिल्कुल निष्पक्ष हो। अन्य किसी लेख पर भी जानकारी निष्पक्ष होनी चाहिए क्योंकि विकिपीडिया ज्ञान बाँटने का साधन है ना कि किसी के पक्ष-विपक्ष में दुष्प्रचार करने का। +==मेरे बनाए लेख को कई लोग सम्पादित करते है ऐसा क्यों +विकिसूक्ति में कौन-कौन योगदान कर सकता है +कोई भी व्यक्ति जो अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, जातीयता, व्यावसायिक या राजनीतिक पृष्ठभूमि या हितों पर ध्यान दिए बिना ज्ञान को बाँटकर ज्ञान का प्रसार करने का इच्छुक है, इस परियोजना को अपना योगदान दे सकता है। कोई भी जो अपने ज्ञान को विकिपीडिया के जरिये सुरक्षित रखना चाहता है एवं उसे जन जन तक पहूँचाकर सबको लाभान्वित करने का इच्छुक है, इस परियोजना को अपना योगदान दे सकता है। इस प्रकार चाहे कोई कालेज का विद्यार्थी, इञ्जीनियर, डाक्टर, पत्रकार, किसान, व्यवसाई इत्यादि हर कोई विकिसूक्ति की परियोजनाओं को अपना योगदान देकर ज्ञान का प्रसार कर सकता है। +क्या विकिपीडिया भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध है +सर्वप्रथम अंग्रेज़ी विकिपीडिया १५ जनवरी २००१ को आरम्भ किया गया था, परन्तु इस वर्ष एक भी भारतीय भाषा का विकिपीडिया आरम्भ नहीं किया जा सका। सर्वप्रथम जून २००२ को पंजाबी, असमी, और उड़िया विकिपीडिया बनाए गए। फिर इसी वर्ष दिसम्बर में मलयालम विकिपीडिया भी आरम्भ किया गया। २००३ के बाद अन्य कई भारतीय भाषाओं के विकिपीडिया आरम्भ किए गए। फिर फरवरी २००३ में भोजपुरी, मई २००३ में मराठी, जून २००३ में कन्नड़, जुलाई २००३ में हिन्दी, सितम्बर २००३ में तमिल, दिसम्बर २००३ में तमिल एवं तेलुगु एवं जनवरी २००४ में बंगाली विकिपीडिया आरम्भ किए गए। इस प्रकार अब भारतीय भाषाओं में कुल २० विकिपीडिया संस्करण उपलब्ध हैं। +आप अंग्रेज़ी में दक्ष है तो यह बहुत प्रशन्सनीय बात है परन्तु यह आपकी मातृ भाषा को त्याग देने का कारण नहीं बनना चाहिए। आप अंग्रेज़ी में उपलब्ध सूचना को एकत्रित कर उसे अपनी मातृ भाषा में दे सकते है जिससे उन लोगों को बहुत सहायता पहूँचेगी जो अंग्रेज़ी भाषा नहीं जानते अथवा जो लेख को अपनी मातृ भाषा में पढना पसन्द करते है। ऐसे अनेक भारतीय हैं जो अंग्रेज़ी में दक्ष नहीं वरन अपनी मातृ भाषा में दक्ष हैं। अंग्रेज़ी दक्ष होना या न होना किसी भी व्यक्त�� को अपनी मातृ भाषा में ज्ञान बाँटने अथवा एकत्रित करने से नहीं रोकता। हिन्दी हमारी मातृ भाषा ही नहीं वरन् राष्ट्र भाषा और सर्वाधिक व्यापक भाषा भी है। अत: इसके वर्चस्व को बनाए रखने का दायित्त्व हम सब ४३ करोड़ हिन्दी भाषियों पर है और हिन्दी विकिसूक्ति हिन्दी में ज्ञान को बचाए रखने एवं उसका प्रसार करने के लिए सर्वोत्तम स्थान है। अत: हम सब इसमें योगदान क्यों न करें? केवल इसलिए कि हम अंग्रेज़ी में प्रवीण है या हमें अपनी मातृ भाषा बोलने में झिझक आती है। यदि आपको झिझक आती है तो उसे दूर करने का सर्वोत्तम उपाय भी विकिसूक्ति है क्योंकि विकिसूक्ति पर आपके योगदान के साथ हिन्दी एवं ज्ञान दोनों का प्रसार होगा और हिन्दी का जितना प्रसार होगा उतना ही आपको अपने आपको हिन्दी भाषी कहने में गर्व अनुभव होगा, अत: जब हम अपने मित्रों से एवं परिवारजनों से निसंकोच हिन्दी में बात कर सकते है तो हिन्दी विकिसूक्ति पर हिन्दी में योगदान करने में संकोच कैसा? +याद रखें कि विकिपीडिया कोई व्यवसायिक संस्था नहीं, अपितु एक ऐसी संस्था है जिसे आप, मैं एवं हम; सब लोग अपने योगदान से चलाते है। यह हम सब का एक सामूहिक प्रयास है ज्ञान को अपनी मातृभाषा में सुरक्षित रखने का एवं हिन्दी का वर्चस्व बनाए रखने का। वैसे भी ज्ञान तो बाँटने से ही बढ़ता है। तो क्या आप अपने ज्ञान का प्रसार नहीं करना चाहेंगे? आप विकिपीडिया पर अपने महत्त्वपूर्ण ज्ञानार्जन को लेख बनाकर सुरक्षित रख पाएंगे अन्यथा समय के साथ आपके द्वारा परिश्रम से एकत्रित किया गया ज्ञान क्षीण होता-होता लुप्त हो जायेगा जिसे पुन: प्राप्त करने में आप कदाचित उतना प्रयास या परिश्रम नहीं लगा पाएंगे। यदि इस सामूहिक प्रयास में हम सब अपना ज्ञान बाँटेगें तो इससे ज्ञान का एक ऐसा जलाशय बन जाएगा जिससे हम ही नहीं अपितु हमारी आने वाली पीढ़ियां भी अपनी ज्ञान की प्यास बुझा पाएंगी। हिन्दी विकिपीडीया के रुप में हम अपने ज्ञान को जो सदियों से न बाँटने के कारण लुप्त होता जा रहा है अपनी मातृ भाषा में सुरक्षित रख सकते है। सोचिए यदि हम सब मिलकर यह प्रयास करेंगे तो इससे भारतवर्ष के हर हिन्दी भाषी को उसकी मातृभाषा में बिल्कुल नि:शुल्क और हर समय एवं हर प्रकार की सूचना उपलब्ध रहेगी। अंग्रेज़ीभाषियों ने तो ऐसा कर दिखलाया है तो क्या हम ४३ करोड़ हिन्दीभाषी ऐसा प्रयास नहीं कर सकते? +हिन्दी विकिपीडीया का इतिहास एवं वर्तमान स्त्तर== +[[हिन्दी विकिपीडिया विकिपीडिया का हिन्दी भाषा का संस्करण है, जिसका स्वमित्व विकिमीडिया संस्थापन के पास है। हिन्दी संस्करण जुलाई २००३ में आरम्भ किया गया था, और वर्तमान में यह NUMBEROFARTICLES लेखों NUMBEROFACTIVEUSERS सक्रिय प्रयोक्ताओं, एवं NUMBEROFUSERS कुल प्रयोक्ताओं के साथ यह भारतीय और दक्षिण एशियाई भाषाओं में उपलब्ध विकिपीडिया का सबसे बड़ा संस्करण है। +हिन्दी विकिपीडीया को मुख्यतः हिन्दी भाषी लोगो की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिया बनाया गया था। चूंकि हिन्दी विकिपीडिया इण्डिक स्क्रिप्ट देवनागरी का प्रयोग करता है इसलिए इसमें जटिल पाठ प्रतिपादन सहायक की आवश्यकता पड़ती है जिसके लिए यहां पर ध्वन्यात्मक रोमन वर्णमाला परिवर्तक उपलब्ध है अत: यहाँ देवनागरी(हिन्दी) लिखना अत्यंत सरल है। +विकिमीडिया फाउण्डेशन की हिन्दी में भी कई परियोजनाएं है जैसे हिन्दी विकिपीडीया, हिन्दी विकिबुक्स, हिन्दी विक्षनरी, हिन्दी विकिक्वोट इत्यादि। विकिपीडिया की सफलता के बाद विकिमीडीया फाउण्डेशन ने कुछ और विकि परियोजनाओं को आरम्भ किया है: +*विकिबुक्स- नई पुस्तको की रचना और निशुल्क पुस्तकों एवं उपयोगी सामग्री हेतु +*विकिक्वोट- विभिन्न सुभाषितों के संकलन हेतु +*विकिविश्वविद्यालय- निःशुल्क पठन सामग्री एवं पठन क्रियाकलाप हेतु +*विकि-शब्दकोष- एक शब्दकोष एवं समानान्तर कोष, विभिन्न भाषाओं से हिन्दी भाषा में एक विशाल शब्दकोष निर्माण हेतु +==क्या विकि पर मेरे द्वारा डाली गई जानकारी सुरक्षित रहेगी एवं क्या विकिपीडीया पर उपलब्ध जानकारी प्रमाणिक होती है, क्योंकि विकि पर तो कोई भी सम्पादन कर सकता है +जी हाँ बिल्कुल। यदि आपके द्वारा डाली गई जानकारी अथवा आपके द्वारा बनाया गया लेख एक ज्ञानकोश की शैली के अनुरुप है तो वह अवश्य सुरक्षित रहेगी। यदि कोई अन्य सदस्य आपकी इस जानकारी अथवा लेख को हटाता या खराब करता है तो आप उसे पुन: पहले वाली अवस्था पर ला सकते है अन्यथा हिन्दी विकि के प्रबन्धको अथवा सक्रिय सदस्यों की सहायता ले सकते है। हाँ यदि कोई अन्य व्यक्ति आपके द्वारा बनाये गए लेख को और विकसित करना चाहता है तो उसे इसका पूर्ण अधिकार है परन्तु यदि वह कोई आपत्तिजनक सामग्री डालता है तो आप उससे चर्चा कर सकते है और यदि चर्चा में वह गलत सिद्ध होता है ��ो आप उस सामग्री को हटा सकते है और यदि वह या कोई अन्य सदस्य उस सामग्री को बार-बार डालकर आपके लेख को खराब करता है तो उस सदस्य को प्रबंधकों की मदद से सम्पादन अधिकार से वंचित भी रखा जा सकता है। अत: आप निर्भय होकर हिन्दी विकिपीडिया पर अपना योगदान दें। विकिपीडीया पर यह पूर्ण प्रयास किया जाता है कि लेखों को बर्बरता एवं गलत तथ्यों से बचाया जा सकें +विकिपीडिया के निम्नलिखित लाभ हैं: +*विकिपीडिया एक बहुभाषीय प्रकल्प है, और स्वयंसेवकों के सहकार से निर्मित है। जिस किसी की भी इण्टरनेट तक पहुंच है वह विकिपीडिया पर लिख सकता है और लेखों का सम्पादन कर सकता है। +* विकि स्वरूप के कारण लेखों की कड़ियों को शब्दों के साथ जोड़ना सरल है, इससे न केवल लेख के बारे में जानकारी मिलती है, बल्कि उससे जुड़ी अन्य रोचक जानकारियां भी प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिएः यदि आप मुम्बई विस्फोटों से जुड़ा लेख पढ़ रहे हैं तो उसमें इण्टरविकि से भिन्न भाषाओं के लेख जुड़े होते हैं। हिन्दी मे महात्मा गाँधी के लेख के साथ लगभग ३१ और भाषाओं में उस लेख की कड़ी है, जिससे आप किसी और भाषा जैसे की गुजराती मे लिखा गया लेख तुरन्त ही पढ़ सकते है। +* विकिपिडीया में बहुत तेज़ी से समसामयिक विषयों के बारे में लेखों का विकास हो सकता है जैसे कि मुम्बई विस्फोटों के समाचार आने के कुछ देर बाद ही उसके बारे में अंग्रेज़ी विकिपीडिया में प्रासंगिक कड़ियों के साथ लेख उपलब्ध था। ऐसे ही परिणाम आपसी सहयोग से हम हिन्दी में भी प्राप्त कर सकते है। +* गूगल और अन्य खोज इञ्जनों की खोज करने पर विकिपीडिया के लेख, परिणामों में प्रमुखता से उभरते हैं। स्पष्ट है कि हिन्दी विकिपीडिया के विकास से इण्टरनेट पर हिन्दी का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या में भी वृद्धि होगी। लोगों को हिन्दी का उपयोग करने हेतु एक और मंच मिलेगा। +* विकिपीडिया एक ऐसा मंच है जो शिकायत का अवसर नहीं देता है, बल्कि आपको अपनी ही शिकायत दूर करने का अवसर देता है। यदि आपको लगता है कि कोई जानकारी अधूरी है या गलत है, तो आप तुरन्त उसमें घटजोड़ या सुधार कर सकते हैं। +==हिन्दी में कौन-कौन सी विकि परियोजनाएं सक्रिय है +निम्नलिखित परियोजनाएं हिन्दी भाषा में सक्रिय हैं: +यह हिन्दी में विकि की सबसे अधिक सक्रिय परियोजना है। +यह परियोजना हिन्दी में विभिन्न शब्द, पर्यायवाची, विलोम, व्यु���्पत्ति आदि की परिभाषा बनाने हेतु है। +यह परियोजना शैक्षिक पाठ्यपुस्तकों की एक मुफ्त पुस्तकालय बनाने के लिए हेतु है जिसे कोई भी सम्पादित कर सकता है। +यह परियोजना विभिन्न लोकोक्तियों ,मुहावरो एवं कथनों का संग्रह है। +==हिन्दी विकिपीडिया से सम्बन्धित किसी प्रकार की सहायता या कोई समस्या आने पर मैं कहां सम्पर्क करुं +मैंने अंग्रेज़ी विकिपीडिया के लिए एक लॉगईन बनाया है। क्या मैं हिन्दी विकिपीडिया के लिए भी उसी लॉगईन का उपयोग कर सकता हूँ +==क्या हिन्दी विकि परियोजनाओं के बारे में चर्चा करने के लिये कोई गूगल या याहू जैसा समूह है जहां पर हम हिन्दी विकिपीडिया के सदस्यों से चर्चा कर सकें +हाँ, हिन्दी विकिपीडिया का स्वयं का एक मेल समूह है जिस पर अधिकतर सक्रिय सदस्य उपलब्ध रहते है। इससे जुड़ने के लिए कृपया इस कड़ी पर जाएं: +इसके अतिरिक्त एक मुक्त नोड रिले वार्ता पर भी आप हिन्दी विकिपीडिया के सदस्यों से चर्चा कर सकते है परन्तु इस पर आपको कम ही सक्रिय सदस्य मिलेंगे। यह सर्वर कड़ी निम्नलिखित है - +इसके अतिरिक्त आप हिन्दी विकिपीडिया के गूगल समूह से भी जुड़ सकते है जिसकी कड़ी निम्नलिखित है- +[[विकिपीडिया पर आपका स्वागत है। आप जैसे विचारको के कारण ही विकिपीडिया का विकास हुआ है। विकिपीडिया पर योगदान के कई तरीके हैं। कुछ यहाँ सुझाये गये हैं। +विकिपीडिया पर लेख पढते समय अक्सर ही लोग पाते हैं कि "कुछ सही नहीं है"। यह गलतियाँ हो सकती हैं कडियाँ, मात्रायें, व्याकरण या जानकारी आदि। फिर वे तुरन्त ही बदलें बटन को क्लिक करते हैं और गलती सही कर देते हैं। लगभग हर एक योगदान करने वाले की शुरूआत की यही कहानी है। अगर आपको यह पता नहीं है क्या सही है, या आपको कुछ अन्देशा है तो पहले आप उस लेख के संवाद पृष्ठ पर चर्चा कर लें। लेख के संवाद पृष्ठ पर जाएँ बटन को क्लिक करें। अपने चर्चा का शीर्षक दें, और चर्चा आरम्भ कर दें। और हाँ, अपना हस्ताक्षर और समय देना न भूलें, उसके लिए का प्रयोग करें। +देखें विकिसूक्ति:नया पृष्ठ कैसे आरम्भ करें तथा विकिपीडिया:लेख का नाम कैसे रखें]] +नया लेख आरम्भ करना काफी महत्त्वपूर्ण काम है। विशेषतः जब कई लेख किसी खाली पन्ने से जुडे हों। +विकिपीडिया लेखों मे अक्सर ही कई कड़ियाँ होती है। यह नीली होती है अगर कड़ी का लेख विकिपीडिया में है तो (या जामुनी, अगर आपने उस कड��ी को क्लिक किया है)। अगर कड़ी का लेख विकिपीडिया में नहीं है तो कड़ी का रंग लाल होता है। लाल कड़ी को क्लिक करने से नए लेख का पन्ना मिलता है। वहाँ आप नए लेख को लिखें और अपने योगदान को सुरक्षित कर दें। आपका धन्यवाद, आपने विकिपीडिया में नया पन्ना जोड़ दिया। +आपके लेखों को दूसरों के द्वारा बदला जाना इस बात को दर्शाता है कि लेख लोकप्रिय है। आप चाहेंगे कि जिसने भी उस लेख को बदला है उनसे वार्ता आरम्भ करें। आप लेख के संवाद पृष्ठ या योगदान करने वाले सदस्य के वार्ता पृष्ठ पर चर्चा करें। आप बदलाव के लिए आभार प्रकट करना चाहेंगे या बदलाव के विषय में अधिक जानकारी की माँग करना चाहेंगे। पारस्परिक संवाद से लेखों को सुधरते हुए पाया गया है। +आपके पास जितनी भी जानकारी है विकिपीडिया पर दें। केवल अपने लेख के अंत में nowiki आधार nowiki जोड दें। जो उस लेख के बारे मे पूरी जानकारी रखते हैं, वे उसे पूरा कर देंगे। ऐसा करने में कुछ वक्त लग सकता है मगर कम से कम कुछ जानकारी तो उपलब्ध रहेगी। +==मेरे व्यक्तिगत विचार क्यों लेखों में से हटा दिए गए +विकिपीडिया निष्पक्ष और प्रमाणित जानकारी देने पर जोर देता है। व्यक्तिगत विचार पक्षपात और विवादों को जन्म देते है। विकिपीडिया पर आप जानकारी दें, अपने विचार नहीं। उदाहरण के लिए आप यह लिख सकते है कि किसी फिल्म में कितने और कौन से गीत हैं। मगर यह लिखना कि कौन से गीत अच्छे हैं और कौन से गीत बेसुरे, व्यक्तिगत विचार है, इसे न लिखें। हो सकता है कि जो गीत आपको अच्छे न लगें किसी के प्रिय गीतों में हों। उसी तरह किसी व्यक्तित्व के लेख में आप यह लिख सकते है कि उनके योगदान क्या हैं, मगर उन योगदानो पे अपनी राय देने से बचें। +==मै किसी लेख को उसके स्रोत्र की कड़ी के साथ कैसे जोड़ सकता हूँ +आम तौर पर यह सन्दर्भ कड़ियाँ मुख्य लेख के बाद तथा इन्हें भी देखें नामक अनुभाग से पहले दी जाती हैं। +==मै लेख पर चित्रों को कैसे लगा सकता हूँ +==मैं समान विषय के लेखों को आपस में कैसे जोड़ सकता हूँ +समान विषय के लेखों को आपस मे जोड़ने के कई तरीके हैं। +उप-शीर्षक का प्रयोग करे। इस में आप अन्य लेखों की कड़ी दे सकते है। उदाहरण के लिए देखें हिन्दी साहित्य]] +साँचे विशेष लेख होते है, यह विषय-वस्तु (content) को एक से अधिक लेखों पर दोहराने का सरल उपाय है। इसे उप-लेख भी माना जा सकता है। साँचों के नाम "Template nowiki> से शुरू होते है (जैसे nowiki>साँचा:हिंदी साहित्यकार के अन्दर लिखे। (जैसे nowiki हिंदी साहित्यकार nowiki>)। साँचे के प्रयोग के उदाहरण के लिए देखें आचार्य रामचंद्र शुक्ल लेख। +हर लेख को आप एक या एक से अधिक श्रेणी मे डाल सकते हैं। लेख को श्रेणी मे डालने के लिए विशेष कमाण्ड का प्रयोग करें। जहाँ लेख की श्रेणी उस श्रेणी का नाम है जिसमे लेख को डालना चाहते है। उदाहरण के लिए देखें आचार्य रामचंद्र शुक्ल लेख, यह व्यक्तिगत जीवन और लेखक श्रेणी में शामिल है। +श्रेणी में लेख क्रमबद्ध होते है, और श्रेणी खुद भी किसी अन्य श्रेणी की उप-श्रेणी हो सकती है। उदाहरण के लिये श्रेणी:सॉफ्टवेयर नामक श्रेणी श्रेणी:संगणक नामक श्रेणी की उपश्रेणी है। +==मैं समान शीर्षक वाले लेख कैसे बना सकता हूँ +नया पन्ना आरम्भ करने के लिये जिस शीर्षक से आप लेख बनाना चाहते हैं, खोज बक्से में लिखकर खोजें। यदि उस शीर्षक से पहले लेख न होगा तो नया लेख बनाने का विकल्प आ जायेगा। जैसे की चित्रानुसार यदि आप भारत के ऊपर लेख खोजना चाहते है तो आप सर्च बाक्स में जैसे ही भारत लिखना शुरु करेंगे वैसे ही आपको इसके अक्षरों के अनुसार नीचे विकल्प दिखाई देंगे, जैसे आपने भ भरा तो भ से शुरु होने वाले लेख दिखाई देंगे, परन्तु सूची लम्बी होने पर आप इसे खोज कर भी ढुंड सकते है। +विकिपीडिया पर नया लेख बनाते समय पहले ये सुनिश्चित कर लें कि इस विषय पर वैकल्पिक नाम अथवा वर्तनी से पहले से लेख न हो। हिन्दी में वर्तनी की विविधता के कारण हो सकता है सामान्य खोज में आपके द्वारा सोचा गया नाम न आये, इसलिये अन्य वैकल्पिक वर्तनी के साथ खोज करें। उदाहरण के लिये यदि आप पंडित रविशंकर नाम से लेख बनाने जा रहे हैं तो पहले यह खोज लें कि पण्डित रविशंकर नाम से लेख मौजूद तो नहीं है। +आप विकिपीडिया पर लॉग-इन बहुत ही आसानी से कर सकते हैं। अगर आप अंग्रेज़ी विकिपीडिया पर हैं, तो +* 2. फिर वेब पेज के उत्तर-पूर्व की दिशा पर बने हुए टैब-बार पर Log In या लॉग इन) पर क्लिक करें। +* 3. अपना यूज़र-नेम एवं पास-वर्ड टाइप करें। +* 4. लॉग इन पर क्लिक करें। +अगर आप पहले से ही हिन्दी विकिपीडिया पर है तो पहले स्टेप को स्किप करें। +==किसी दूसरी वैबसाइट से लेख कॉपी करने पर मुझे कचरा अक्षर दिखायी देते ह���ं। इसका क्या कारण है और मैं क्या करूँ + + +"description सन्दर्भ शीर्षक और टिप्पणिसूची कां साँचा जोड़ ने के बदले यह साँचा जोड़ दें।" + + +सहेजने से पहले प्रत्येक संपादन जाँच लें। सुनिश्चित करें की आपने पाठ समझ लिया है तथा उसके तात्पर्य में कोई परिवर्तन नहीं किया है। +सभी विकिपीडिया दिशा निर्देशों, नीतियों और सामान्य व्यवहार से बँधे हुए हैं। +इसके साथ कोई भी विवादास्पद कार्य न करें। +# बहुत तीव्र संपादन न करें। यदि आप प्रायः एक मिनट में कई संपादन करते हैं तो बॉट खाता खोलने पर विचार करें। +इन नियमों के दुरुपयोग पुनरावृत्ति का परिणाम बिना चेतावनी के सॉफ्टवेयर अक्षम होने में हो सकता है।'' +यदि आप नवीनतम SVN version प्रयोग करना चाहते हैं, तो देखें विकिपीडिया:ऑटोविकिब्राउज़र/Sources इसे + + +ऑटोविकीब्राउज़र का उपयोग कैसे करें (अंग्रेज़ी में) +एप्लीकेशन के बारे में चर्चा करें +नई सुविधाओं के लिए अनुरोध करें + + +| text यह सम्पूर्ण पृष्ठ या इसके कुछ विभाग हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषा(ओं) में भी लिखे गए हैं। आप इनका edit PAGENAME अनुवाद करके विकिपीडिया की सहायता कर सकते हैं। + + +यदि यह पृष्ठ अभी हटाया नहीं गया है तो आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिसूक्ति की नीतियों पर खरा उतरे। यदि आपको लगता है कि यह पृष्ठ इस मापदंड के अंतर्गत नहीं आता है तो आप पृष्ठ पर जाकर नामांकन टैग पर दिये हुए बटन पर क्लिक कर के इस नामांकन के विरोध का कारण बता सकते हैं। कृपया ध्यान रखें कि शीघ्र हटाने के नामांकन के पश्चात यदि पृष्ठ नीति अनुसार शीघ्र हटाने योग्य पाया जाता है तो उसे कभी भी हटाया जा सकता है। + + +यदि यह पृष्ठ अभी हटाया नहीं गया है तो आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। यदि आपको लगता है कि यह पृष्ठ इस मापदंड के अंतर्गत नहीं आता है तो आप पृष्ठ पर जाकर नामांकन टैग पर दिये हुए बटन पर क्लिक कर के इस नामांकन के विरोध का कारण बता सकते हैं। कृपया ध्यान रखें कि शीघ्र हटाने के नामांकन के पश्चात यदि पृष्ठ नीति अनुसार शीघ्र हटाने योग्य पाया जाता है तो उसे कभी भी हटाया जा सकता है। + + +इस पृष्ठ को आपके अनुरोध से शीघ्र हटाने के लिये नामांकित किया गया है। यदि आप इसे रखना चाहते हैं तो कृपया इसके वार्ता पृष्ठ पर यह बात स्पष्ट कर दें। + + +यदि आपको सदस्य नामस्थान में प्रयोग इत्यादि हेतु कोई कार्य करने हैं तो कृपया अपने सदस्य पृष्ठ के उप-पृष्ठों में करें। यदि यह पृष्ठ आपके लिये उपयोगी है तो आप अपने सदस्य उप-पृष्ठ के रूप में इसके स्थानान्तरण का अनुरोध इसके वार्ता पृष्ठ पर कर सकते हैं। + + +[[श्रेणी प्रकार हटाने हेतु चर्चाएँ तिथि + + +नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है: +कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें। +चर्चा के दौरान आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिसूक्ति की नीतियों पर खरा उतरे। परंतु जब तक चर्चा जारी है, कृपया पृष्ठ से नामांकन साँचा ना हटाएँ। + + +ns:0 नामांकन के पश्चात भी इस लेख को सुधारा जा सकता है, परंतु चर्चा सम्पूर्ण होने से पहले इस साँचे को लेख से नहीं हटाया जाना चाहिये। + + +यह साँचा निम्न प्राचल स्वीकार करता है: + + +पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा वह स्थान है जहाँ विकिसूक्ति सदस्य चर्चा करते है कि किसी विशेष पृष्ठ को हटाना है या नहीं। ऐसी चर्चा से पहले पृष्ठ को हटाने के लिए नामांकित किया जाता है तथा कम से कम एक सप्ताह तक उसे हटाने या रखने की चर्चा चलती है। यह चर्चा आगे तक बढ़ाई जा सकती है अगर एक सप्ताह तक कोई अन्य सदस्य (नामांकन करता व लेख निर्माता के अलावा) इसमें भाग न ले। ऐसा उस स्थिति में भी किया जा सकता है जब चर्चा का मतैक्य साफ़ न हो। +* अगर पृष्ठ नीति के अंतर्गत किसी भी शीघ्र हटाने के मापदंड के अंतर्गत साफ़-साफ़ बिना किसी गुंजाइश के आता है तो पृष्ठ को उचित मापदंड के अंतर्गत शीघ्र हटाने के लिये नामांकित किया जाना चाहिये, यहाँ नहीं। +* पहले पृष्ठ के नामांकन के लिये ऊपर दिये पहले दो चरण पूर्ण करें। +* यदि पृष्ठ को एक बार यहाँ हटाने के लिये नामांकित कर दिया जाए तो फिर नीति में दिये किसी भी अन्य विकल्प का उपयोग कर के पृष्ठ को हटने से तभी रोका जा सकता है यदि यहाँ पर चर्चा का नतीजा यह निकले। अन्य विकल्पों का प्रयोग करना यहाँ पर चर्चा से बचने का तरीका नहीं है। +* यहाँ पर किसी भी चर्चा का निष्कर्ष कोई भी प्रबंधक चर्चा शुरू होने के एक सप्ताह के बाद दे सकता है। आवश्यकता होने पर यह जलदी भी किया जा सकता है, जैसे यदि कोई नामांकित पृष्ठ शीघ्र हटाने योग्य हो तो। +विकिसूक्ति एक स्वयंसेवकों द्वारा चलाया जाना वाला ज्��ानकोश है जहाँ विभिन्न प्रकार की सोच और विचार रखने वाले सदस्य सहयोग देते हैं। इसलिए किसी भी चर्चा में कुछ अनौपचारिक मापदंडों का हमेशा ध्यान रखा जाता है, जैसे सभ्य व्यवहार, अन्य सदस्यों का सम्मान, सभी को अपने विचार रखने का अवसर देना व नए सदस्यों से शिष्टता पूर्ण व्यवहार। ये सभी मापदंड पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा में भी लागू होते हैं। +हहेच में भाग लेने वाले सदस्य निम्नलिखित बातों का हमेशा ध्यान रखें: +व्यक्तिगत हमलें नहीं — जो सदस्य आपके साथ असहमत हैं उन पर व्यक्तिगत हमले न करें व ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार की कटु भाषा का प्रयोग कभी न हो। +नकारत्मक दृष्टिकोण नहीं — अगर आपका कभी किसी सदस्य के साथ कोई मतभेद था तो उसे चर्चा में जाहिर न होने दें। +नकारत्मक टिप्पणियाँ नहीं — अगर आपके पास कोई संदर्भ नहीं है तो आप किसी जीवित व्यक्ति के ऊपर कभी नकारत्मक टिप्पणी नहीं कर सकते। +प्रमाण को महत्वता — हहेच में हमेशा प्रमाणों को अधिमान दिया जाता है, विशेष रूप से किसी विषय की उल्लेखनीयता सिद्ध करने के लिए। +कठपुतली नहीं — अगर कोई सदस्य अपने पंजीकृत खाते के अलावा किसी अन्य खाते या आईपी के रूप में किसी हहेच में भाग लेता है तो उसे विकिसूक्ति से प्रतिबंधित किया जा सकता है। परन्तु अगर किसी ने गलती से बिना लॉग इन करें संपादन किया है और बाद में अपनी पहचान बता देता है तो उस स्थिति में यह दंडात्मक नहीं है। +तर्कहीन टिप्पणियाँ नहीं — अगर आप किसी लेख को हटाना या बचाना चाहते हैं तो उसके लिए तर्क दें। इसमें आप विकिसूक्ति की कोई निति या दिशानिर्देश बता सकते हैं। +*चर्चा कम से कम एक हफ़्ते तक चलने देनी चाहिए। +*चर्चा बंद करने से पहले यह सुनिश्चित करें कि उसमें कम से कम दो सदस्यों (नामांकनकर्ता को सम्मिलित करके) ने भाग लिया हो। +*चर्चा को बंद करने से पहले चर्चा में शामिल न हुआ कोई भी प्रबंधक उसका आकलन करेगा तथा अंतिम परिणाम रखा हटाया विलय या पुनर्निर्देशित बताएगा। +*कोई भी विकिसूक्ति का वरिष्ठ सदस्य (हिन्दी विकिसूक्ति पर दो हजार से अधिक संपादन व एक वर्ष से अधिक समय) चर्चा को बंद कर सकता है। ऐसी स्थिति में अंतिम परिणाम किसी भी प्रबंधक को बता देना चाहिए जिस से आगे कि कार्यवाही प्रबंधक कर सके। +*किसी भी चर्चा को बंद करते वक्त उपयुक्त सांचों का प्रयोग करें: +श्रेणी:पृष्ठ हटाने हेतु वर्तमान च��्चाएँ इस श्रेणी में पृष्ठ हटाने हेतु सभी वर्तमान चर्चाएँ पाई जा सकती हैं। +श्रेणी:हटाने हेतु चर्चा के लिये नामांकित पृष्ठ इस श्रेणी में वे सभी पृष्ठ पाए जा सकते हैं जो हटाने हेतु चर्चा के लिये इस समय नामांकित हैं। + + +विकिसूक्ति पृष्ठों को प्रबंधक हटा सकते हैं। पृष्ठ हटाये जाने पर वह पृष्ठ और उसके सभी पुराने अवतरण अंतर्जाल पर दिखाई देना बन्द हो जाते हैं। हटाए गए पृष्ठों को प्रबंधक वापस ला सकते हैं। +यह विकिसूक्ति नीति हटाने की जगह कुछ विकल्प देती है जिन्हें पृष्ठ हटाने से पहले प्रयोग करने की कोशिश करनी चाहिए। यह नीति बताती है कि विकिसूक्ति पृष्ठों को कब और किन कारणों से हटाया जा सकता है और हटाने की क्या-क्या प्रक्रियाएँ हैं। +पृष्ठ हटाने की जगह कई विकल्प मौजूद हैं: +लेख को बेहतर बनाना यदि लेख का विषय ज्ञानकोश के अनुकूल है तो उसे बेहतर बनाया जा सकता है। +विलय करना यदि एक ही विषय पर एक से अधिक लेख बन गए हैं तो सभी लेखों को एक उचित नाम पर विलय करा जा सकता है। यदि किसी ऐसे विषय पर लेख बन गया हो जो स्वयं में सम्पूर्ण लेख जितना बड़ा नहीं है तो उसे किसी सम्बन्धित विषय के लेख में भाग के तौर पर विलय किया जा सकता है। +पुनर्निर्देशन यदि एक से अधिक ऐसे लेख बन गए हैं जिनमें हूबहू सामग्री है तो उन सबको एक ही लेख पर पुनर्निर्देशित करा जा सकता है। +अन्य प्रकल्प यदि पृष्ठ ज्ञानकोश के बजाए विकिमीडिया फाउन्डेशन के अन्य किसी प्रकल्प के अनुरूप है तो उसे हटाने से पहले उस प्रकल्प पर निर्यात कर देना चाहिए। +आर्काइविंग यदि पृष्ठ पर ऐसी सामग्री अथवा चर्चा हो जो भविष्य में काम आ सकती है, तो पृष्ठ को हटाने के बजाए उसका पुरालेख बना लेना चाहिए। +पृष्ठों को निम्न कारणों से बिना किसी मत के शीघ्र हटाया जा सकता है: +ये मापदंड विकिसूक्ति पर सभी प्रकार के पृष्ठों, अर्थात सभी नामस्थानों पर लागू होते हैं: +इसमें वे सभी फ़ाइलें भी आती हैं जिनपर साफ़-साफ़ गलत लाइसेंस का प्रयोग किया गया है। उदाहरण:किसी फ़िल्म के पोस्टर को अपना स्वयं बनाया कार्य कहना, या किसी मुक्त लाइसेंस के अंतर्गत अपलोड करना। +इसमें वे लेख आते हैं जो पूर्णतया हिन्दी के अलावा किसी और भाषा में लिखे हुए हैं, चाहे उनका नाम हिन्दी में हो या किसी और भाषा में। +इसमें वे सभी पृष्ठ आते हैं जिनमें केवल प्रचार है, चाहे वह किसी व्���क्ति-विशेष का हो, किसी समूह का, किसी प्रोडक्ट का, अथवा किसी कंपनी का। इसमें प्रचार वाले केवल वही लेख आते हैं जिन्हें ज्ञानकोश के अनुरूप बनाने के लिये शुरू से दोबारा लिखना पड़ेगा। यदि लेख के इतिहास में कोई ऐसा अवतरण है जो कि पूर्णतया प्रचार नहीं था और जिसमें कुछ जानकारी ज्ञानकोश के अनुरूप भी थी, तो उन लेखों को इस मापदंड के अंतर्गत नहीं हटाया जा सकता, बलकी उन्हें उस अवतरण पर पूर्ववत कर दिया जाना चाहिए। +इस मापदंड के अंतर्गत वो लेख आते हैं जो किसी पुराने लेख की प्रतिलिपि हैं। इसमें वे लेख भी आते हैं जो किसी ऐसे विषय पर बनाए गए हैं जिनपर पहले से लेख मौजूद है और पुराना लेख नए लेख से बेहतर है। ऐसे पृष्ठों को इस मापदंड के अंतर्गत केवल तभी हटाया जाना चाहिए यदि उन्हें पुनर्निर्देशित करना संभव न हो। उदाहरण:यदि किसी बहुविकल्पी नाम वाले पृष्ठ पर संभव विषयों में से किसी एक विषय का पृष्ठ बना दिया जाए। या फिर किसी गलत नाम से लेख बना दिया जाए, जैसे विकिपीडिया पर विकिमीडिया फाउन्डेशन पर लेख। +इसमें वे सभी फाइलें आती हैं जिनमें अपलोड होने से दो सप्ताह के बाद तक भी कोई लाइसेंस नहीं दिया गया है। ऐसा होने पर यदि फ़ाइल पुरानी होने के कारण सार्वजनिक क्षेत्र(पब्लिक डोमेन) में नहीं होगी, तो उसे शीघ्र हटा दिया जाएगा। +इसमें वे सभी फ़ाइलें आएँगी जो विकिमीडिया कॉमन्स पर उसी नाम अथवा किसी और नाम से उपलब्ध हैं, क्योंकि कॉमन्स की फाइलों को विकिसूक्ति पर सीधे प्रयोग किया जा सकता है और वे अन्य प्रकल्पों पर भी प्रयोग की जा सकती हैं। जो फ़ाइलें किसी और नाम से उपलब्ध हैं, उन्हें हटाने से पहले उनकी जगह कॉमन्स की फ़ाइल का प्रयोग करना होगा। यदि कॉमन्स की स्रोत जानकारी गलत हो, जैसे वह फ़ाइल हिन्दी विकिसूक्ति पर कॉमन्स से पहले किसी और सदस्य ने अपना स्वयं का कार्य अपलोड किया हो, तो ऐसी फ़ाइल को हटाने से पहले कॉमन्स पर दी स्रोत जानकारी ठीक करनी अथवा करवानी अनिवार्य है। +इस मापदंड के अंतर्गत वे फ़ाइलें आती हैं जो कॉपीराइट सुरक्षित हैं और उचित उपयोग हेतु विकिसूक्ति पर डाली गई हैं, परंतु जिनका कोई उपयोग न किया जा रहा है और न ही होने की संभावना है। जो चित्र किसी ऐसे लेख के लिये अपलोड किये गए हैं जो बनाया जाना है, उन्हें इस मापदंड के अंतर्गत तभी हटाया जा सकता है यदि उनके अपलोड होने के 7 दिन पश्चात तक वो लेख न बने। +ऐसी कॉपीराइट सुरक्षित फ़ाइलें जिनपर 7 दिन तक कोई उचित उपयोग औचित्य न दिया हो, उन्हें इस मापदंड के अंतर्गत हटाया जा सकता है। ऐसे चित्रों को हटाने से पहले यह कोशिश करनी चाहिए कि उनको हटाने के बजाए उनपर उचित उपयोग औचित्य लगाए जाएँ, परंतु ऐसा करना हटाने के लिये नामांकित करने वाले अथवा हटाने वाले सदस्य की ज़िम्मेदारी नहीं है। +इस मापदंड के अंतर्गत वे फ़ाइलें आती हैं जो ग़ैर मुक्त हैं और जिनका कोई मुक्त विकल्प उपलब्ध है। यह आवश्यक नहीं कि मुक्त विकल्प हूबहू वही फ़ाइल हो। उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति का मुक्त चित्र उपलब्ध है, तो उसके ग़ैर मुक्त चित्र इस मापदंड के अंतर्गत हटाए जा सकते हैं। +इस मापदंड के अंतर्गत वे फ़ाइलें आती हैं जिनका कोई प्रयोग नहीं हो रहा है और जिनका कोई ज्ञानकोशीय प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इसमें चित्र, ध्वनियाँ एवं वीडियो फ़ाइलें नहीं आती हैं। +यदि सदस्य अपने सदस्य पृष्ठ, वार्ता पृष्ठ अथवा किसी उपपृष्ठ को हटाने का स्वयं अनुरोध करता है तो उस पृष्ठ को शीघ्र हटाया जा सकता है। +ऐसे सदस्यों के पृष्ठ, वार्ता पृष्ठ अथवा उपपृष्ठ जो विकिसूक्ति पर पंजीकृत नहीं हैं; इस मापदंड के अंतर्गत शीघ्र हटाए जा सकते हैं। +जो भी पृष्ठ ऊपर दिये गए मापदंडों के अंतर्गत नहीं आते, उन्हें हटाने के लिये इस प्रक्रिया का प्रयोग किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया के अंतर्गत पृष्ठ को विकिपीडिया:पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा पर हटाने के लिये नामांकित करें। वहाँ पृष्ठ को हटाने पर चर्चा की जाएगी और सदस्य मिलकर यह फैसला करेंगे के पृष्ठ को विकिसूक्ति पर रखा जाना चाहिए या नहीं। ऐसी चर्चा में केवल मत नहीं गिने जाते बलकी उनके पीछे के तर्कों पर भी ध्यान दिया जाता है। यहाँ पर चर्चा के पश्चात यदि फ़ैसला पृष्ठ को हटाने का हो तो उसे हटा दिया जाएगा और हटाने की चर्चा विकिपीडिया:पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा के पुरालेख में डाल दी जाएगी। इससे यदि उस पृष्ठ को फिर कभी बनाने की बात आती है, तो उसे पहले हटाने का कारण पता चल जाएगा। यहाँ पर लेख को नामांकित करने के आम कारण हो सकते हैं: +*लेख की निष्पक्षता अत्यंत विवादित होना +*लेख के विषय की उल्लेखनियता विवादित होना +*अत्यंत विशिष्ट नाम की श्रेणी होना जिसमें अधिक लेख होने की संभावना न हो +*ग़ैर मुक्त फ़ाइल के उचित उपयोग के औचित्य पर विवाद होना +श्रेणी:शीघ्र हटाने हेतु साँचे इस श्रेणी में शीघ्र हटाने के मापदंडों से सम्बन्धित सभी साँचे हैं +श्रेणी:विकिनीतियाँ इस श्रेणी में हिन्दी विकिसूक्ति पर लागू सभी नीतियाँ हैं +विकिपीडिया:शैली मार्गदर्शक अच्छे लेख लिखने हेतु सहायता + + +| name विकिनीतियाँ और दिशानिर्देश + + +[[श्रेणी:हटाने हेतु चर्चा के लिये नामांकित पृष्ठ]] + + +:यह श्रेणी विकिसूक्ति के रखरखाव के उद्देश्य से है। यह अधिकतर खाली ही रहेगी। इसे खाली होने के कारण हटाने हेतु नामांकित मत करें। + + +यह साँचा निम्न प्राचल स्वीकार करता है: + + +buttonlabel=इस नामांकन पर आपत्ति जताने हेतु यहाँ क्लिक करें। +ध्यान रखें कि नामांकन के पश्चात् यदि यह पृष्ठ किसी वैध मापदंड के अंतर्गत नामांकित है ifexist TALKPAGENAME और वार्ता पृष्ठ पर हटाने के विरोध का कारण सही नहीं है,  तो इसे कभी भी हटाया जा सकता है। + + +* जिस भी मनुष्य ने गायत्री और यज्ञ को जीवन में उतार दिया, उसका जीवन सफल है। +* गायत्री मंत्र इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली मंत्र हैं। +* भोजन बनाते समय, आटा गूँथते समय गायत्री मंत्र जप करने से वह भोजन अमृत बन जाता हैं वह भोजन पोषित हो जाता हैं। +* लगातार एक माला गायत्री मंत्र जप प्रतिदिन करने से गलत कामो से ध्यान हटता हैं। शरीर को अत्यधिक खुशी मिलती हैं। +* लगातार 12 साल, एक माला गायत्री मंत्र जप प्रतिदिन करने से, उससे प्राप्त उर्जा और शक्ति को अपने अच्छे कर्म में लगाकर सिद्धि प्राप्त की जा सकती हैं। अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है। +* भारत के सभी महापुरुष, भगवान राम, कृष्ण, सभी ऋषि-मुनियों ने, अवतारी पुरुषो ने गायत्री मंत्र का जप किया है। +* जीवन का अर्थ है समय । जो जीवन से अधिक प्यार करते हों, वे व्यर्थ में एक क्षण न गवाएँ। +* यदि विचार बदल जाएँगें तो कार्यों का बदलना सुनिश्चित है। कार्य बदलने पर भी विचारों का न बदलना सम्भव है, पर विचार बदल जाने पर उनसे विपरीत कार्य देर तक नहीं होते रह सकते। विचार बीज हैं, कार्य अंंकुर..विचार पिता हैं, कार्य पुत्र। इसलिए जीवन परिवर्तन का कार्य विचार परिवर्तन से आरम्भ होता है। जीवन-निर्माण का, आत्म-निर्माण का अर्थ है—‘विचार-निर्माण’। +* युग निर्माण का सत्संकल्प नित्य दुहराना चाहिए। मानव-जीवन का आदर्श, कर्तव्य, धर्म और सदाचार का इस संकल्प मंत्र में भावनापूर्व�� समावेश हुआ है। इसका पाठ करना किसी धर्म ग्रन्थ के पाठ से कम प्रेरणा और पुण्यफल प्रदान करने वाला नहीं है। +* मनुष्य को सफल बनने के लिए पहले अपने विचारों को बदलना पड़ेगा। +* मनुष्य जन्म सिर्फ पेट भरने और बच्चा पैदा करने के लिए नही हुआ है। +* असफलता का मतलब है कि जितना अभ्यास, मेहनत और समय आपको उस काम को देना था, उतना काम आपने नहीं किया। +* अगर किसी को उपहार देना ही है तो हिम्मत और आत्मविश्वास बढ़ाने वाला उपहार दो। +* मनुष्य की पहचान उसके सत्कर्मो और अच्छे विचारों से होगी। +* नर-नारी में कोई भेदभाव नही करेंगे। +* एक स्वस्थ युवा ही सबल राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। +* नशा मनुष्य और समाज दोनों को बर्बाद के देता है। +* गपशप नही करे। जप-तप करें। +* अगर व्यक्ति जीभ और कामुकता पर नियंत्रण कर लें, तो उसकी नब्बे प्रतिशत समस्याएँ स्वतः खत्म हो जायेंगी। +* भूख से कम भोजन खाये । मतलब रोज चार रोटी खाते हो तो तीन ही खाये। क्योंकि ज्यादा भोजन करने से शक्ति नहीं मिलती हैं। जो भोजन अच्छी तरह पच कर रस बन जाता है, वही काम आता है। +* प्राकृतिक चिकित्सा शरीर का कायाकल्प करने के लिए सबसे अच्छी चिकित्सा हैं। आप गायत्री परिवार की शक्तिपीठ ग्राम आँवलखेड़ा पर कम कीमत में करवा सकते हैं। खाना-पीना, रहना और भोजन मुफ्त हैं। +* मनुष्य के लिए अस्वाद भोजन ही सर्वश्रेष्ठ है। अस्वाद भोजन का मतलब बिना नमक, मिर्ची, शक्कर के बना भोजन। +* कोई भी खाने की चीज खाने के बाद कुल्ला अवश्य करें। इससे आपके दाँत 100 साल तक टिके रहेंगे। +* आसनों और प्राणायाम का सुंदर योग आसन प्रज्ञायोग" जरूर करें। +* आसन-प्राणायाम करने से हमारा शरीर हिलता-डुलता हैं जिससे शरीर में जमा सारी गंदगी कफ, सांस, और मल-मूत्र के द्वार से बाहर निकल जाती है। +* कहते हैं, योगी प्राणायाम से अपने मृत्यु को वश में कर देते हैं और जब तक चाहे, वो जिंदगी जी सकते हैं। प्राणायाम से शरीर की प्राण ऊर्जा बढ़ती हैं। +* जो लाभ गाय का घी खाने से मिलते हैं वही लाभ गाय के घी का दीपक जलाकर प्राणायाम करने से मिलते हैं। +* संसार के सभी जीव-जन्तु पशु-पक्षी अपना भोजन बिना मिलावट खाते हैं। +* यज्ञ इस पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ कर्म है क्योंकि इस से सभी को लाभ मिलता हैं। +* हमेशा पंचगव्य से निर्मित नहाने का साबुन इस्तेमाल करें। +* नियमित रूप से शुद्ध सरसो के तेल से पुरे शरीर पर मालिश करने से आँखों की दृष्टि तेज होती है। सभी अंग पुष्ट होते हैं। +* भोजन करने से पहले तीन बार गायत्री मंत्र का जप जरूर करे। +* आत्मबोध की साधना और तत्त्वबोध की साधना जरूर करें। मतलब हर दिन जन्म और हर दिन मृत्यु। +* ऐसा कोई भी खाद्य-पर्दाथ जिस पर मख्खी बैठ गई है, वह खाना फेंक दो या बाहर जानवरों को खिला दो क्योंकि मख्खी को 'रोग की अम्मा' कहा जाता हैं। +* युग निर्माण योजना का प्रधान उद्देश्य है विचार क्रान्ति । मूढ़ता और रूढ़ियों से ग्रस्त अनुपयोगी विचारों का ही आज सर्वत्र प्राधान्य है ।। आवश्यकता इस बात की है कि (१) सत्य (२) प्रेम (३) न्याय पर आधारित विवेक और तर्क से प्रभावित हमारी विचार पद्धति हो । प्रकारान्तर से यही है, महान् परिवर्तन प्रस्तुत कर सकने वाली विचार क्रान्ति की रूप-रेखा। लोक-मानस के परिष्कार नाम से भी इसी का उल्लेख होता है। अवांछनीय मान्यताओं, गतिविधियों की रोक-थाम के लिए यह अनिवार्य रूप से आवश्यक है। +* विचार शक्ति को एक जीवित जादू कहा जा सकता है। उसके स्पष्ट होने से निर्जीव मिट्टी नयनाभिराम खिलौने के रूप में और प्राणघातक विष जीवनदायी रसायन के रूप से बदल जाता है। +* यों संसार में शारीरिक, सामाजिक, राजनीतिक और सैनिक- बहुत सी शक्तियाँ विद्यमान हैं। किन्तु इन सब शक्तियों से भी बढ़कर एक शक्ति है, जिसे विचार- शक्ति कहते हैं। वह सर्वोपरि है। उसका एक मोटा सा कारण तो यह है कि विचार-शक्ति निराकार और सूक्ष्मातिसूक्ष्म होती है और अन्य शक्तियाँ स्थूलतर। स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म में अनेक गुना शक्ति अधिक होती है। +* विचारों को जाग्रत कीजिये, उन्हें परिष्कृत कीजिये और जीवन के हर क्षेत्र में पुरस्कृत होकर देवताओं के तुल्य ही जीवन व्यतीत करिये। विचारों की पवित्रता से ही मनुष्य का जीवन उज्ज्वल एवं उन्नत बनता है इसके अतिरिक्त जीवन को सफल बनाने का कोई उपाय मनुष्य के पास नहीं है। सद्विचारों की सृजनात्मक शक्ति से बड़ी शक्ति और क्या होगी? +* हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। +* हमारा जीवन मंदिरों के लिए नहीं है, न आपका जीवन मंदिरों के लिए होना चाहिए। आपका जीवन एक काम के लिए होना चाहिए, विचारों ��े लिए। विचार क्रांति के लिए। +* हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं। +* आप बोना-काटना शुरु कीजिए। अगर आप बोएगें नहीं तो पैदा नहीं होगा। +बच्चों से क्या माँगना?माँगना है यह है कि जहाँ खजाना भरा पड़ा है, जहां शक्तियों के भंडार भरे पड़े हैं वहाँ खेत में बोना शुरू करें। धीरज रखें, समय लगाएँ, नियमितता-निरंतरता का ध्यान रखें। +यह विचारणा के चमत्कार है, विचार पद्धति के चमत्कार हैं। विचार पद्धति को बदल देने की वजह से ऋषि, ऋषि हो गए थे। +* अच्छे विचार ही मनुष्य को सफलता और जीवन देते हैं । +* किसी का भी अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है । +* जूठन छोड़ कर अन्न भगवान का तिरस्कार ना करें । +* अपनी प्रशंसा पर गर्वित होना ही चापलूसी को प्रोत्साहन देना है । +* बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है । +* बाज़ार में वस्तुओं की कीमत दूसरे लोग निर्धारित करते हैं, पर मनुष्य अपना मूल्यांकन स्वयं करता है और वह अपना जितना मूल्यांकन करता है उससे अधिक सफलता उसे कदपित नहीं मिल पाती । +* अपने व्यक्तित्व को सुसंस्कारित एवं चरित्र को परिष्कृत बनाने वाले साधक को गायत्री महाशक्ति मातृवत् संरक्षण प्रदान करती है । +* ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री पाठ करने से चित शुद्ध होता है, हृदय में निर्मलता आती है और शरीर निरोग रहता है । +* डरना केवल दो से चाहिए, एक ईश्वर के न्याय से और दूसरे पाप अनाचार से । +* दूसरों की परिस्तिथि में हम अपने को रखें, अपनी परिस्थिति में दूसरों को रखें और फिर विचार करें की इस स्तिथि में क्या सोचना और करना उचित है? । +* प्रत्येक व्यक्ति जो आगे बढ़ने की आकांक्षा रखते हैं उन्हें यह मानकर चलना चाहिए परमात्मा ने उसे मनुष्य के रूप में इस पृथ्वी पर भेजते समय उसकी चेतना में समस्त संभावनाओं के बीज डाल दिये हैं । +* बुद्धि को निर्मल, पवित्र एवं उत्कृष्ट बनाने का महामंत्र है – गायत्री मंत्र । +* आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है, पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाई ही खोजता है । +* व्यभिचार के, चोरी के, अनीति बरतने के, क्रोध एवं प्रतिशोध के, ठगने एवं दंभ, पाखंड बनाने के कुविचार यदि मन में भरे रहें तो मानसिक स्वास्थ्य का नाश ही होने वाला है । +* अपनी गलतियों क��� ढूँढना, अपनी बुरी आदतों को समझना, अपनी आन्तरिक दुर्बलताओं को अनुभव करना और उन्हें सुधारने के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहना यही जीवन संग्राम है । +* गायत्री को इष्ट मानने का अर्थ है – सत्प्रवृति की सर्वोत्कृष्टता पर आस्था । +* सच्चा ज्ञान वह है, जो हमारे गुण कर्म, स्वभाव की त्रुटियाँ सुझाने, अच्छाईयाँ बढ़ाने एवं आत्म – निर्माण की प्रेरणा प्रस्तुत करता है । +* बाहरी शत्रु उतनी हानि नहीं कर सकते, जितनी अंतः शत्रु करते हैं । +* आत्मिक समाधान के लिए कुछ क्षड़ ही पर्याप्त होते हैं । +* जल्दी सोना जल्दी उठना शरीर और मन की स्वस्थता को बढ़ाता है । +* तृष्णा नष्ट होने के साथ ही विपत्तियाँ भी नष्ट होती हैं” +* चरित्र के उत्थान एवं आत्मिक शक्तियों के उत्थान के लिए इन तीनों सद्गुणों-होशियारी, सज्जनता और सहनशीलता का विकास अनिवार्य है। +* अपना धर्म, अपनी संस्कृति अथवा अपनी सभ्यता छोड़कर दूसरों की नक़ल करने से कल्याण की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं। +* विचारों के अन्दर बहुत बड़ी शक्ति होती है। विचार आदमी को गिरा सकतें है और विचार ही आदमी को उठा सकतें है, आदमी कुछ नहीं हैं। +* जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं, एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं। +* यदि आप अपने दैनिक जीवन और व्यवहार में निरन्तर जागरुक, सावधान रहें, छोटी छोटी बातों का ध्यान रखें, सतर्क रहें, तो आप अपने निश्चित ध्येय की प्राप्ति में निरन्तर अग्रसर हो सकते हैं। सतर्क मनुष्य कभी गलती नहीं करता, असावधान नहीं रहता और कोई उसे दबा नहीं सकता। +* कुविचारों और दुर्भावनाओं के समाधान के लिए स्वाध्याय, सत्संग, मनन और चिन्तन यह चार ही उपाय हैं। +* आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाई ही खोजता है। +* सज्जनता एक ऐसा दैवी गुण है जिसका मानव समाज में सर्वत्र आदर होता है। सज्जन पुरुष वन्दनीय है। वह जीवन पर्यंत पूजनीय होता है। उसके चरित्र की सफाई, मृदुल व्यवहार, एवं पवित्रता उसे उत्तम मार्ग पर चलाती हैं। +* जल्दी सोना, जल्दी उठना शरीर और मन की स्वस्थता को बढ़ाता है। +* सहनशीलता दैवी सम्पदा में सम्मिलित है। सहन करना कोई हँसी खेल नहीं प्रत्युत बड़े साहस और वीरता का काम है केवल महान आत्माएँ ही सहनशील होकर अपने मार्ग पर निरन्तर अग्रसर हो सकती हैं। +* विनम्र रहिये, क्योंकि आप इस महान संसार की वस्तुतः एक बहुत छोटी इकाई हैं। शील दरिद्रता का, दान दुर्गति का, बुद्धि अज्ञान का और भक्ति भय का नाश करती है। +* इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। +* संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है। +* मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय। +* असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। +* शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है। +* जीवन में सफलता पाने के लिए, आत्म विश्वास उतना ही ज़रूरी है, जितना जीने के लिए भोजन। +* अपनी गलतियों को ढूँढना, अपनी बुरी आदतों को समझना, अपनी आन्तरिक दुर्बलताओं को अनुभव करना और उन्हें सुधारने के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहना यही जीवन संग्राम है। +* कोई भी सफलता बिना आत्मा विश्वास के मिलना असंभव है। +* जैसी जनता, वैसा राजा। प्रजातन्त्र का यही तकाजा। +* सच्चा ज्ञान वह है, जो हमारे गुण, कर्म, स्वभाव की त्रुटियाँ सुझाने, अच्छाईयाँ बढ़ाने एवं आत्म निर्माण की प्रेरणा प्रस्तुत करता है। +* राग और द्वेष, स्वार्थ और कुसंगत के जन्मदाता है +* केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं। +* मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं, विचार हैं। +* प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे – समझदारी, इमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी। +* संकट या तो मनुष्य को तोड़ देते हैं या उसे चट्टान जैसा मज़बूत बना देते हैं। +* रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा। +* समाज के हित में अपना हित है। +* पुण्यों में सबसे बड़ा पुण्य, परोपकार है। +* मानव के कार्य ही उसके विचारों की सर्व श्रेष्ठ व्याख्या है। +* बड़प्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है। +* धर्म से आध्यात्मिक जीवन विकसित होता है और जीवन में समृद्धि का उदय होता है। +* आलस्य से बढ़कर अधिक घातक और अधिक समीपवर्ती शत्रु दूसरा नहीं। +* विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है। +* जब तक व्यक्ति असत्य को ही सत्य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्य को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती है। +* बुद्धि ��ो निर्मल, पवित्र एवं उत्कृष्ट बनाने का महामंत्र है गायत्री मंत्र। +* अवसर तो सभी को जिन्दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीके से इस्तेमाल कुछ ही कर पाते हैं। +* किसी का भी अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है। +* दूसरों की परिस्तिथि में हम अपने को रखें, अपनी परिस्थिति में दूसरों को रखें और फिर विचार करें की इस स्तिथि में क्या सोचना और करना उचित है ? +* सारी दुनिया का ज्ञान प्राप्त करके भी जो स्वयं को नहीं जानता उसका सारा ज्ञान ही निरर्थक है। +* जो शिक्षा मनुष्य को धूर्त, परावलम्बी और अहंकारी बनाती हो वह अशिक्षा से भी बुरी है। +* हमारी शिक्षा तब तक अपूर्ण रहेगी, जब तक उसमें धार्मिक विचारों का समावेश नहीं किया जाएगा। +* मुस्कुराने की कला दुखों को आधा कर देती है। +* जिस समाज में लोग एक दूसरे के दु:ख-दर्द में सम्मिलित रहते हैं, सुख संपत्ति को बाँटकर रखते हैं और परस्पर स्नेह, सौजन्य का परिचय देते हुये स्वयं कष्ट सहकर दूसरों को सुखी बनाने का प्रयत्न करते हैं, उसे देव-समाज कहते हैं। जब जहाँ जनसमूह इस प्रकार पारस्परिक सम्बन्ध बनाये रखता है तब वहाँ स्वर्गीय परिस्थितियां बनी रहती हैं। +* पाप, दुराचार, अनीति, छल एवं अपराधों की प्रवृत्तियां जहाँ पनप रही होंगी वहाँ प्रगति का मार्ग रुक जाएगा और पतन की व्यापक परिस्थितियाँ उत्पन्न होने लगेगी। मनुष्य की वास्तविक प्रगति एवं शांति तो पारस्परिक स्नेह, सौजन्य एवं सहयोग पर निर्भर रहती है, यदि वह प्राप्त न हो सके तो विपुल साधन सामग्री पाकर भी सुख-शान्ति के दुर्लभ ही रहेंगे। +* नम्रता, सज्जनता, कृतज्ञता, नागरिकता एवं कर्तव्य परायणता की भावना से ही किसी का मन ओत-प्रोत रहे ऐसे पारस्परिक व्यवहार का प्रचलन हमें करना चाहिए। दूसरों के दु:ख सुख सब लोग अपना दु:ख-सुख समझें और एक दूसरे की सहायता के लिए तत्परता प्रदर्शित करते हुए संतोष अनुभव करें, ऐसा जनमानस निर्माण किया जाना चाहिए। जिस समाज में मनुष्य की महत्ता का मूल्यांकन धन के आधार पर होता है, वह कभी उच्चस्तरीय प्रगति करने कर सकने में समर्थ नहीं हो सकता। +* समाज के निर्माण के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि अपने अपने परिवार के नव-निर्माण कार्य में प्रत्येक ग्रहस्थ पूरी रुचि लेने लगे। समाज की नवरचना दंपत्ति जीवन को परिष्कृत करने से होगी। इस प्रकार आत्मनिर्माण की प्रक्रिया आरंभ करके परिवार, समाज एवं आगामी पीढ़ी को सुसंस्कृत, समुन्नत बना सकना संभव होगा, यह विचार हमें जन-मानस में भली प्रकार हृदयंगम करा देना चाहिए। समाज के नव=निर्माण का मूल आधार यही है। +* समय की पाबंदी, वचन का पालन, पैसे का विवेकपूर्ण सद्व्यय, सज्जनता और सहिष्णुता, श्रम का सम्मान, शिष्टाचार पूर्ण व्यवहार, ईमानदारी की कमाई, अनैतिकता से घृणा, प्रसन्नतापूर्ण मुखाकृति, आहार और विहार का संयम, समूह के हित में स्वार्थ का परित्याग, न्याय और विवेक का सम्मान, स्वच्छता और सादगी की यह हमारे सामाजिक गुण होने चाहिये। +* सभ्य समाज वह है जिसमें हर नागरिक को अपना व्यक्तित्व विकसित करने एवं प्रगति पथ पर बढ़ने के लिए समान रूप से अवसर मिले। इस मार्ग में जितनी भी बाधायें हो उन्हें हटाया जाना चाहिए। हमें सामाजिक न्याय का ऐसा प्रबंध करना होगा कि हर व्यक्ति निर्बाध गति से प्रगति का समान अवसर प्राप्त कर सके। +* जब श्रेष्ठ व्यक्ति घट जाते हैं और सामाजिक वातावरण में उत्कृष्टता बनाये रखने के रचनात्मक प्रयास शिथिल हो जाते हैं तो समाज का स्तर गिर जाता है। समाज गिरेगा तो उस काल के व्यक्ति भी निकृष्ट, अधःपतित और दीन दुर्बल बनते चले जायेंगे। अच्छा समाज- अच्छे व्यक्ति उत्पन्न करता है और अच्छे व्यक्ति अच्छा समाज बनाते हैं। दोनों अन्योन्याश्रित हैं। +* अच्छे व्यक्तियों की आवश्यकता हो तो अच्छा समाज बनाने के लिए जुटना चाहिये । अच्छा समाज बनाने पर ही श्रेष्ठ व्यक्तित्व की आवश्यकता पूरी होगी। सुख साधनों का अभिवर्धन और समुन्नत लोक-व्यवहार का प्रचलन ही सर्वतोमुखी सुख-शान्ति की आवश्यकता पूरी करता है और इस प्रकार का उत्पादन प्रखर प्रतिभासंपन्न सुसंस्कृत व्यक्ति ही कर सकने में समर्थ होते हैं। +* समाज में यदि अनैतिक, अवांछनीय, आपराधिक तत्व भरे पड़े हैं तो उन की हलचलें, हरकतें- किसी संत, सज्जन की उत्कृष्टता को सुरक्षित नहीं रहने दे सकती। विकृत समाज में असीम विकृतियाँ उत्पन्न होती है और अनेक प्रकार के विग्रह उत्पन्न करती है। उनकी लपेट में आये बिना कोई नीतिवान व्यक्ति भी रह नहीं सकता। +* व्यक्ति-निर्माण और परिवार-निर्माण की तरह ही समाज-निर्माण भी हमारे अत्यंत आवश्यक दैनिक कार्यक्रमों का अंग माना जाना चाहिए। अपने लिए हम जितना श्रम, समय, मनोयोग एवं धन खर्च करते हैं, उतना ही समाज को समुन्नत, सु��ंस्कृत बनाने के लिए लगाना चाहिए। यह परोपकार परमार्थ की दृष्टि से ही नहीं विशुद्ध स्वार्थ-साधन और सुरक्षा की दृष्टि से भी आवश्यक है। भारतीय संस्कृति की सुनिश्चित परंपरा है कि वैयक्तिक और पारिवारिक प्रयोजनों के लिए किसी को भी आधे से अधिक समय एवं मनोयोग नहीं लगाना चाहिये। +*राष्ट्रीय दृष्टि से स्वार्थपरता, व्यक्तिवाद, असहयोग, संकीर्णता हमारा एक प्रमुख दोष है। सारी दुनिया परस्पर सहयोग के आधार पर आगे बढ़ रही है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह परस्पर सहयोग के आधार पर ही बढ़ा और समुन्नत हुआ है। जहाँ प्रेम, ममता, एकता, आत्मीयता, सहयोग और उदारता है वहीँ स्वर्ग रहेगा। +* धर्म और अध्यात्म की शिक्षा भी यही है कि व्यक्ति अपने लिये धन,वैभव जमा न करके अपनी प्रतिभा, बुद्धि, क्षमता और संपदा को जीवन निर्वाह की अनिवार्य आवश्यकता के लिए ही उपयोग करें और शेष जो कुछ बचता हो सबको सामूहिक उत्थान में लगा दें। जिस समाज में ऐसे परमार्थी लोग होंगे वही फलेगा, फूलेगा और वही सुखी रहेगा। +* विचार-क्रांति किए बिना समाज-निर्माण की आधारशिला नहीं रखी जा सकेगी। ज्ञान-यज्ञ के बिना सुख-शान्ति एवं प्रगति की सर्वतोमुखी संभावनायें प्रस्तुत कर सकने वाले नवयुग का अवतरण नहीं हो सकेगा। हमें हनुमान आदि की तरह- पांडवों की तरह-धर्म की स्थापना कर सकने वाले अधर्म-विरोधी अभियान में अपने आप को झोकना चाहिए। सभ्य समाज की रचना के लिए कुरीतियों और अनैतिकताओं के दोहरे मोर्चे पर लड़ा जाना आवश्यक है। +* अनाचार प्रायः हर क्षेत्र में अपनी जड़ें गहरी करता चला जा रहा है। इसके खतरों से जन-साधारण को सचेत किया जाना चाहिए। लोकमानस में अवांछनीयता के प्रति विरोध, असहयोग एवं विद्रोह की भावनायें जगाई जानी चाहिए। कुड़कुड़ाते रहने की अपेक्षा अनीति से जूझने की संघर्षात्मक चेतना उभारी जानी चाहिये और उसका सजीव मार्गदर्शन हमें आगे बढ़कर करना चाहिए। +* कम से कम इतना तो संघर्ष हर मोर्चे पर हम में से हर किसी को करना चाहिये कि अनीति एवं अनौचित्य के साथ कोई संबंध न रखें- समर्थन न करें- सहयोग न दें। उससे पूरी तरह अलग रहें और समय-समय पर अपने असहयोग एवं विरोध को व्यक्त करते रहें। जहाँ, जो संभव हो अनीति के विरुद्ध मोर्चा बनाया ही जाना चाहिए। ताकि आततायी, अनाचारियों को निर्भय होकर कुछ भी करते रहने की छूट न मिले। +* समाज में पनपने वाली दुष्प्रवृत्तियों को रोकना, केवल सरकार का ही काम नहीं है वरन उसका पूरा उत्तरदायित्व सभ्य नागरिकों पर है। प्रबुद्ध और मनस्वी लोग जिस बुराई के विरुद्ध आवाज उठाते हैं वह आज नहीं तो कल मिटकर रहती है। +* हमारी सामाजिक क्रांति का अर्थ देश में प्रचलित कुरीतियों को हटा देने मात्र तक सीमित नहीं रहना चाहिए, वरन एक सभ्य, सुरक्षित एवं सुसंस्कृत समाज की रचना होनी चाहिये। सज्जनता को जन-मानस का सहज स्वभाव बनाया जा सका तो आज की भयंकर दिखाई देने वाली कुरीतियाँ अनायास ही नष्ट हो जायेगी। + + +* मुरली प्रसाद शर्मा मुक्का मारते हुए) गांधी जी ने यह नहीं कहा था कि दूसरे गाल में थप्पड़ मारने से क्या करना है। + + +| subject उपरोक्त श्रेणी:राजनेता राजनैतिक व्यक्तित्व + + +इन साँचों के साथ चिप्पित पृष्ठ श्रेणी:विकिसूक्ति आधार में सूचीबद्ध हैं। + + +इस श्रेणी में वह व्यक्तिगण शामिल है जिन्होंने स्वयं को इस्लाम की विभिन्न परंपराओं में से किसी एक का अनुयायी माना है। + + +यह श्रेणी आधार लेखों को सूचीबद्ध करती है। इनका विस्तार करके आप विकिसूक्ति की मदद कर सकते हैं। + + +[[श्रेणी:पाकिस्तानी लोग प्रान्त या क्षेत्र के अनुसार]] + + +| subject फिल्मों की सूची फ़िल्मों + + +नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है: +कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें। + + +नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है: +कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें। + + +नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है: +कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें। + + +विकी पर मेरे द्वारा किएँ योगदानों का संक्षिप्त वर्णन + + +ओबामा हार्वर्ड लॉ स्कूल से १९९१ में स्नातक बनें, जहाँ वे हार्वर्ड लॉ रिव्यू के पहले अफ्रीकी अमरीकी अध्यक्ष भी रहे। १९९७ से २००४ इलिनॉय सेनेट में तीन सेवाकाल पूर्ण करने के पूर्व ओबामा ने सामुदायिक आयोजक के रूप में कार्य किया है और नागरिक अधिकार अधिवक्ता के रूप में प्रेक्टिस की है। १९९२ से २००४ तक उन्होंने शिकागो विधि विश्वविद्यालय में संवैधानिक कानून का अध्यापन भी किया। सन् २००० में अमेरिकी हाउस आफ रिप्रेसेंटेटिव में सीट हासिल करने में असफल होने के बा�� जनवरी २००३ में उन्होंने अमरीकी सेनेट का रुख किया और मार्च २००४ में प्राथमिक विजय हासिल की। नवंबर २००३ में सेनेट के लिये चुने गये। + + +क्रांति कोई गुलाबों की सेज नहीं है। यह भूत और भविष्य के बीच का संघर्ष है। +| title सिगार अपने 'दुश्मनों' को भेंट करने के लिए सबसे अच्छा तोहफा फिदेल कास्त्रो की कही 10 बातें +* मैं कभी भी आस्तिक इन्सान नहीं रहा" और उन्हें इस बात का दृढ़ विश्वास है कि जीवन केवल एक ही बार मिलता है। +* ईसाई धर्म और बाइबिल केवल अफ्रीकियों और महिलाओं के शोषण के लिए है। + + +में एक हिंदी विकिपीडीयन हु + + +* अन्याय का जड़ से उन्मूलन क्र सत्य –धर्म की स्थापना – हेतु क्रांति, रक्तचाप प्रतिशोध आदि प्रकृतिप्रदत्त साधन ही हैं। अन्याय के परिणामस्वरूप होनेवाली वेदना और उद्दण्डता ही तो इन साधनों की नियन्त्रणकत्री है। +* हमारे देश और समाज के माथे पर एक कलंक है – अस्पृश्यता ।हिन्दू समाज के, धर्म के ,रास्त्र के करोड़ों हिन्दू बन्धु इससे अभिशप्त हैं। जब तक हम ऐसे बनाए हुए हैं, तब तक हमारे शत्रु हमें परस्पर लदवाकर, विभाजित क्र सफल होते रहेंगे। इस घातक बुराई को हमें त्यागना ही होगा। +* ब्राह्मणों से चाण्डाल तक सारे-के-सारे हिन्दू समाज की हड्डियों में प्रवेश कर यह जाति- अहंकार उसे चूस रहा है और पूरा हिन्दू समाज इस जाति – अहंकारगत द्वेष के कारण जाति – कलह के यक्ष्मा की प्रबलता से जीर्ण – शीर्ण हो गया है। +* अपने देश की, राष्ट्र की, समाज की स्वतन्त्रता – हेतु प्रभु से की गई मूक प्राथर्ना भी सबसे बड़ी अहिंसा का द्दोतक है। +* देशहित के लिए अन्य त्यागों के साथ जन-प्रियता का त्याग करना सबसे बड़ा और ऊँचा आदर्श है, क्योंकि – 'वर जनहित ध्येयं केवल न जनस्तुति:’ शास्त्रों में उपयुक्त ही कहा गया है। +* वर्तमान परिस्थिति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा – इस तथ्य की चिंता किये बिना ही इतिहासलेखक को इतिहास लिखना चाहिए और समय की जानकारी को विशुद्ध और सत्य–रूप में ही प्रस्तुत करना चाहिए। +* कर्तव्य की निष्ठा संकटों को झेलने में, दुःख उठाने में और जीवन – भर संघर्ष करने में ही समाविष्ट है। यश – अपयश तो मात्र योगायोग की बातें हैं। +* हमारी पीढी ऐसे समय में और ऐसे देश में पैदा हुई है कि प्रत्येक उदार एवं सच्चे हृदय के लिए यह बात आवश्यक हो गई है कि वह अपने लिए उस मार्ग का चयन करे जो आहों, सिसकियों और विरह के मध्य से गुजरता है। बस,यही मार्ग कर्म का मार्ग है। +* संसार को हिन्दू जाति का आदेश सुनना पड़े – ऐसी अवस्था उपस्थित होने पर उनका वह आदेश गीता और गौतम बुद्ध के आदेशों से भिन्न नहीं होगा। +* प्रतिशोध की भट्टी को तपाने के लिए विरोधों और अन्याय का ईंधन अपेक्षित है, तभी तो उसमें से सद्गुणों के कण चमकने लगेगें। इसका मुख्य कारण है कि प्रत्येक वस्तु अपने विरोधी तत्व से रगड खाकर ही स्फुलित हो उठता है। +* ज्ञान प्राप्त होने पर किया गया कर्म सफलतादायक होता है, क्योंकि ज्ञान – युक्त कर्म ही समाज के लिए हितकारक है। ज्ञान – प्राप्ति जितनी कठिन है, उससे अधिक कठिन है – उसे संभाल कर रखना । मनुष्य तब तक कोई भी ठोस पग नहीं उठा सकता यदि उसमें राजनीतिक, ऐतिहासिक,अर्थशास्त्रीय एवं शासनशास्त्रीय ज्ञान का अभाव हो। +* देशभक्ति का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप उसकी हड्डियाँ भुनाते रहें। यदि क्रांतिकारियों को देशभक्ति की हुडियाँ भुनाती होतीं तो वीर हुतात्मा धींगरा, कन्हैया कान्हेरे और भगत सिंह जैसे देशभक्त फांसी पर लटककर स्वर्ग की पूण्य भूमि में प्रवेश करने का साहस न करते। वे ‘ए’ क्लास की जेल में मक्खन, डबलरोटी और मौसम्बियों का सेवन क्र, दो-दो माह की जेल –यात्रा से लौट क्र अपनी हुडियाँ भुनाते दिखाई देते। +* इतिहास, समाज और राष्ट्र को पुष्ट करनेवाला हमारा दैनिक व्यवहार ही हमारा धर्म है। धर्म की यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि कोई भी मनुष्य धर्मातीत रह ही नहीं सकता। देश इतिहास, समाज के प्रति विशुद्ध प्रेम एवं न्यायपूर्ण व्यवहार ही सच्चा धर्म है। +* परतन्त्रता तथा दासता को प्रत्येक सद्धर्म ने सर्वदा धिक्कारा है। धर्म के उच्छेद और ईश्वर की इच्छा के खंडन को ही परतन्त्रता कहते हैं। सभी परतन्त्रताओं से निकृष्टतम परतन्त्रता है – राजनीतिक परतन्त्रता और यही नर्क का द्वार है। +* हिन्दू जाति की गृहस्थली है – भारत, जिसकी गोद में महापुरूष, अवतार, देवी-देवता और देव – जन खेले हैं। यही हमारी पितृभूमि और पुण्यभूमि है। यही हमारी कर्मभूमि है और इससे हमारी वंशगत और सांस्कृतिक आत्मीयता के सम्बन्ध जुड़े हैं। +* बहुसंख्यकों के लिए सुलभ और अनुकूल भाषा ही राष्ट्रभाषा के पद पर सुशोभित ही सकती है, अतः बहुसंख्यक हिन्दुओं की सांस्कृतिक भाषा हिन्दी ही सम्पूर्ण देश में समझी जा सकती है और ��ह राष्ट्रभाषा बन सकती है इसे संस्कृतनिष्ठ बनाने के लिए उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों को प्रयुक्त न किया जाये। दृढ़ता से डटे रहकर ही विदेशियों के भाषाई आक्रमण को विफल किया जा सकता है। इसकी पूर्ण सफलता के लिए हिन्दू संकल्प लें- ‘संस्कृतनिष्ठ हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा तथा नागरी लिपि ही हमारी राष्ट्रलिपि है। ‘ऋषि दयानंद ने ठीक ही तो उद्घोष किया था कि हिन्दुस्तान के अखिल हिन्दुओं की राष्ट्रभाषा हिन्दी है। विदेशी शब्दों की घुसपैठ के कारण हिन्दी भ्रष्ट न हो। इसके लिए जागरूक रहने की आवश्यकता है। भाषा राष्ट्रीयता का एक प्रमुख अंग है। हमारी संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, न्याय, दर्शन आदि सर्वागीं विषय इसी भाषा में हैं। +* मन सृष्टि के विधाता द्वारा मानव-जाति को प्रदान किया गया एक ऐसा उपहार है, जो मनुष्य के परिवर्तनशील जीवन की स्थितियों के अनुसार स्वयं अपना रूप और आकार भी बदल लेता है। +* मनुष्य की सम्पूर्ण शक्ति का मूल उसके अहम की प्रतीति में ही विद्यमान है। +* समय से पूर्व कोई मृत्यु को प्राप्त नहीं करता और जब समय आ जाता है तो कोई अर्थात कोई भी इससे बच नहीं सकता। हजारों – लाखों बीमारी से ही मर जाते हैं, पर जो धर्मयुद्ध में मृत्यु प्राप्त करते हैं, उनके लिए तो अपूर्व सौभाग्य की बात है। ऐसे लोग तो हुतात्मा ही होते हैं। +* समान शक्ति रखने वालों में ही मैत्री संभव है। +* जिस राष्ट्र में शक्ति की पूजा नहीं, शक्ति का महत्व नहीं, उस राष्ट्र की प्रतिष्ठा कौड़ी कीमत की है। प्रतिष्ठा के न होने का प्रमाण है – पड़ोसी देश लंका ,पूर्वी पकिस्तान, पश्चिमी पकिस्तान में हिन्दुओं के साथ हो रहा दुर्व्यहार, जिसके लिए भारत सरकार मात्र विरोध – पत्र ही भेज सकती है, कर कुछ नहीं सकती। +* महान हिन्दू संस्कृति के भव्य मन्दिर को आज तक पुनीत रखा है संस्कृत ने। इसी भाषा में हमारा सम्पूर्ण ज्ञान, सर्वोत्तम तथ्य संगृहीत हैं। एक राष्ट्र, एक जाति और एक संस्कृति के आधार पर ही हम हिन्दुओं की एकता आश्रित और आघृत है। +* भारत की स्वतन्त्रता का और सार्वभौम संघ – राज्य बनाने का श्रेय किसी एक गुट को नहीं, अपितु उसका श्रेय पिछली दो–तीन पीढी के सर्वदलीय देशभक्तों को सामूहिक रूप से है। स्वयं को असहयोगवादी और अहिंसक कहलानेवाले हजारों देशभक्तों ने इस स्वतन्त्रता के लिए जो भारतव्यापी कार्य किया, उसके प्रति हम सबको कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए। +* हिन्दू धर्म कोई ताड़ –पत्र पर लिखित पोथी नहीं जो ताड़–पत्र के चटकते ही चूर–चूर हो जायेगा, आज उत्पन्न होकर कल नष्ट हो जायेगा। यह कोई गोलमेज परिषद का प्रस्ताव भी नहीं, यह तो एक महान जाति का जीवन है; यह एक शब्द-भर नहीं, अपितु सम्पूर्ण इतिहास है – अधिक नहीं तो चालीस सहस्त्राब्दियों का इतिहास इसमें भरा हुआ है। + + +* एक जज कानून का एक छात्र है जो अपनी ही परीक्षा प्रपत्र पर अंक देते हैं। +* कुछ महान और गौरवशाली दिन, देश के सीधे-सादे लोग अंततः अपने दिल की इच्छा पूरी करेंगे, और व्हाइट हाउस पूरी तरह से एक मंदबुद्धि से सज जाएगा। +* क्या आपने कभी एक केकड़े को किनारे पर अटलांटिक महासागर की तलाश में पीछे की तरफ रेंगते देखा है, और लापता होते देखा है? यही तरीका है जिस तरह से आदमी का मन संचालित होता है। +* हर जटिल समस्या के लिए एक जवाब होता है जो कि, स्पष्ट, सरल, और गलत है। +* एक आदर्शवादी वह है जो, गुलाब को फूलगोभी की तुलना में बेहतर गंध को नोटिस करते हुये निष्कर्ष निकालता है कि इससे भी बेहतर सूप बन जाएगा। +* यदि एक राजनीतिज्ञ पाता है कि उसके क्षेत्र में आदमखोर थे, तो वह उन्हें रात्रि भोज के लिए मिशनरियों को सौपने का वादा करेगा। +* मैं कभी व्याख्यान नहीं देता, इसलिए नहीं कि मैं शर्मीला या एक बुरा वक्ता हूँ, लेकिन सिर्फ इसलिए कि मैं वैसे लोगों को नापसंद करता हूँ जो व्याख्यान के लिए जाते हैं और उनसे मिलना नहीं चाहते। +* हमेशा हर समस्या के लिए एक आसान उपाय होता है – साफ, प्रशंसनीय, और गलत । +* हर चुनाव चोरी के सामान का अग्रिम नीलामी का एक प्रकार है। +* युद्ध में नायक हमेशा सैनिकों की संख्या दस से एक करने के लिए बढ़ता है। +* लोकतंत्र बंदर के पिंजरे से सर्कस चलाने की कला और विज्ञान है। +* किंवदंती एक झूठ जिसने उम्र की गरिमा प्राप्त कर ली है। +* भगवान एक हास्य अभिनेता हैं, एक दर्शक के साथ खेलता हुआ जो हंसी करने के लिए अधिक डरा हुआ है। +* मानव जाति की शालीनता का अधिक आकलन मत करो। +* जीवन दुविधाओं के तेज सींगों के बीच एक निरंतर दोलन है। +* कपि का यह विश्वास करना कठिन है कि वह मनुष्य से अवतीर्ण हुआ है। +* जैसे ही धमनियों कड़ा होता है, दिल नरम हो जाता है। +* सम्मान केवल बेहतर पुरुषों की नैतिकता है। + + +* स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है। यह कथन सत्य ही है कि जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति होती है। +* जिस प्रकार एक ही आकाश पात्र के भीतर और बाहर व्याप्त है, उसी प्रकार शाश्वत और सतत परमात्मा समस्त प्राणियों में विद्यमान है। + + +विद्युत जामवाल भारतीय हिन्दी अभिनेता हैं। + + +भारत एक सोने का देश था। लेकिन अंग्रेजो ने इसको लूट कर कंगाल कर दिया था। +परंतु 2014 मैं बनी मोदी की सरकार ने एक बार फिर उमीद की किरण जगाई है। + + +प्रदूषण किसी वातावरण को दूषित करने को कहते हैं, जिससे वहाँ रहने वाले जीव जंतुओं और पेड़ पौधों पर इसका हानिकारक प्रभाव पड़ता है। +* माथाभांगा नदी को बांग्लादेश ने इतना प्रदूषित कर दिया है कि उससे बंगाल के कई इलाके प्रदूषित हो गये हैं। + + +यदि यह पृष्ठ अभी हटाया नहीं गया है तो आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। यदि आपको लगता है कि यह पृष्ठ इस मापदंड के अंतर्गत नहीं आता है तो आप पृष्ठ पर जाकर नामांकन टैग पर दिये हुए बटन पर क्लिक कर के इस नामांकन के विरोध का कारण बता सकते हैं। कृपया ध्यान रखें कि शीघ्र हटाने के नामांकन के 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में एक विकिपी��िया उपयोगकर्ता और प्रसिद्ध इंजीनियर हैं। उनका जन्म ३ दिसंबर, १९९४ को गुजरात के जामनगर शहर में हुआ था। उन्हें अपने परिवार के साथ गुजरात के डिसा में स्थानांतरित किया गया था। उन्होंने अपनी बालवाड़ी शिक्षा पूरी की। तब वह टुंडव, उंझा में स्थानांतरित हो गया, जहां उन्होंने अपना प्राथमिक शिक्षा ७ मानक तक पूरा कर लिया। फिर सभी परिवार फिर से सिटी मेहसाना में स्थानांतरित हो गए। उन्होंने शोरन बैंक स्कूल में ८ से १० की पढ़ाई पूरी की और चोरसी विद्यालय में गणित में ११ व १२ वीं विज्ञान की पढ़ाई की। फिर उन्होंने विश्वकर्मा सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज, गांधीनगर में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। +उन्होंने इंजीनियरिंग के पहले वर्ष के उपयोग से विकिपीडिया शुरू कर दिया, लेकिन इंजीनियरिंग के बाद वे सक्रिय रूप से विकिपीडिया में भाग लेते हैं। वह पेज पढ़ता है, पृष्ठ संपादित करता है और विकिपीडिया के पृष्ठ के बारे में जानकारी भी लिखता है। वह Quora में सक्रिय लेखक हैं। +उसका मैकेनिकल, गणित, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग बहुत अच्छा है। +निकुनज जे पटेल २०१४ से क्वात्र में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, लेकिन २०१७ की शुरूआत तक वह सवाल या जवाब नहीं देता था । वह अप्रैल २०१७ के बाद प्रश्न और उत्तर शुरू करते हैं और उसके बाद सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। + + +एक प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ में पानी से भरा एक ग्लास पकड़ते हुए class शुरू की उन्होंने उसे ऊपर उठा कर सभी students को दिखाया और पूछा आपके हिसाब से glass का वज़न कितना होगा ” +जब तक मैं इसका वज़न ना कर लूँ इसका सही वज़न नहीं बता सकता. प्रोफ़ेसर ने कहा. पर मेरा सवाल है: यदि मैं इस ग्लास को थोड़ी देर तक इसी तरह उठा कर पकडे रहूँ तो क्या होगा ? +‘कुछ नहीं’ …छात्रों ने कहा. +‘अच्छा अगर मैं इसे मैं इसी तरह एक घंटे तक उठाये रहूँ तो क्या होगा ?” प्रोफ़ेसर ने पूछा. आपका हाथ दर्द होने लगेगा’, एक छात्र ने कहा. तुम सही हो, अच्छा अगर मैं इसे इसी तरह पूरे दिन उठाये रहूँ तो का होगा? आपका हाथ सुन्न हो सकता है, आपके muscle में भारी तनाव आ सकता है लकवा मार सकता है और पक्का आपको hospital जाना पड़ सकता है…. किसी छात्र ने कहा, और बाकी सभी हंस पड़े… +“बहुत अच्छा पर क्या इस दौरान glass का वज़न बदला?” प्रोफ़ेसर ने पूछा. +” तब भला हाथ में दर्द और मांशपेशियों में तनाव क्यों आया?” +फिर प���रोफ़ेसर ने पूछा ” अब दर्द से निजात पाने के लिए मैं क्या करूँ?” +” ग्लास को नीचे रख दीजिये! एक छात्र ने कहा. +” बिलकुल सही!” प्रोफ़ेसर ने कहा. +Life की problems भी कुछ इसी तरह होती हैं. इन्हें कुछ देर तक अपने दिमाग में रखिये और लगेगा की सब कुछ ठीक है.उनके बारे में ज्यदा देर सोचिये और आपको पीड़ा होने लगेगी.और इन्हें और भी देर तक अपने दिमाग में रखिये और ये आपको paralyze करने लगेंगी. और आप कुछ नहीं कर पायेंगे. +अपने जीवन में आने वाली चुनातियों और समस्याओं के बारे में सोचना ज़रूरी है, पर उससे भी ज्यादा ज़रूरी है दिन के अंत में सोने जाने से पहले उन्हें नीचे रखना.इस तरह से, आप stressed नहीं रहेंगे, आप हर रोज़ मजबूती और ताजगी के साथ उठेंगे और सामने आने वाली किसी भी चुनौती का सामना कर सकेंगे. + + +देवदास शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास देवदास पर आधारित चलचित्र है। यह इसी नाम पर बना तीसरा और प्रथम रंगीन चलचित्र है। इस चलचित्र में शाहरुख़ खान, ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित प्रमुख भुमिका में हैं और इसका निर्देशन संजय लीला भंसाली ने किया है। जब यह चलचित्र प्रदर्शित किया गया था, तब यह बॉलीवुड का सर्वाधिक बजट वाला चलचित्र था जिसका बजट ५० करोड़ रु बताया जाता है। हिन्दी के अतिरिक्त इसे छः अन्य भाषाओं में प्रदर्शित किया गया था: अंग्रेजी़, गुजराती, फ्रांसीसी, मंदारिन (चीनी थाई और पंजाबी। + + +मुन्ना भाई एम बी बी एस (अंग्रेजी: Munna Bhai MBBS) २००३ में बनी हिन्दी भाषा की संगीतमय हास्य फिल्म है। +*लाइफ में जब टाइम कम रहता है ना, डबल जीने का, डबल। + + +*हर बच्चे की अपनी खूबी होती है, अपनी काबिलियत होती है, अपनी चाहत होती है। + + +क्रांतिवीर 1994 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। +* ये मुसलमान का खून, ये हिन्दू का खून बता इस में मुसलमान का कौन सा हिन्दू का कौन सा बता ? + + +मिस्टर इण्डिया 1987 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। + + +यादों की बारात 1973 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। + + +शहँशाह 1988 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। + + +दामिनी राजकुमार सन्तोषी निर्देशित १९९३ में प्रदर्शित हिन्दी भाषा की फिल्म है + + +गुरु मणिरत्नम द्वारा निर्देशित हिन्दी फिल्म है। इसके मुख्य कलाकार अभिषेक बच्चन, ऐश्वर्या राय, मिथुन चक्रवर्ती, विद्या बालन और माधवन है। इस फिल्म मे मल्लिका शेरावत की भी अतिथि भुमिका है। इस फिल्म को 12 जनवरी, 2007 को प्रदर्शित किया गया। हिन्दी के साथ-साथ इसे तमिल और तेलगु मे भी प्रदर्शित किया गया। + + +कड़वा सदा लाभदायी होता है +ही खाने के समय कडवी लगती हो +फल या ताकत हमेंशा मीठा ही होता है +जो आपको पूर्ण परिवक्वता और तुफानो में + + +मौनं स्वीकृति: लक्षणम्(अर्थात् मौन रहना स्वीकार का लक्षण है किसी बात को स्वीकार करना।) +उदाहरण जब एक लड़की के समक्ष उसके विवाह का प्रस्ताव रखा जाता है तो वह चुपचाप बिना कुछ बोले चली जाती है तो उसका मतलब स्वीकृति प्रदान की है' +जब धर्म का नाश हो रहा हो, आगम सम्मत क्रिया नष्ट हो रही हो, आगम या सिद्धांत का गलत अर्थ लगाया जा रहा हो तब विद्वानों को बिना पूछे भी यथार्थ स्वरूप को बतलाने वाला व्याख्यान कथन जरूर करना चाहिए। +:सर कटाना पड़े या न पड़े, तैयारी तो उसकी होनी ही चाहिए।' +:'समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध । +:जो तटस्थ हैं ,समय लिखेगा उनके भी अपराध ।।' + + +नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है: +कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें। + + 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व्यवस्था का संचालन श्री रा��� नाम विश्व बैंक समिति करती है जिसका प्रधान कार्यालय हरिद्वार में स्थित है। जिसके देश के अंतर्गत लगभग 250 कार्यालय है। राम नाम लेखन का कार्य मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल में ज्यादा प्रचलित है। +इस पूरे कार्यक्रम के पुख्ता प्रमाण संस्था के पास सुरक्षित है। +संस्था के संस्थापक/अध्यक्ष पं0 कुलदीप तिवारी का कहना है कि विगत 30 वर्षों से देश की अखंडता व एकता के लिए राम नाम जप महायज्ञ का कार्य निरंतर प्रगति पर है। +उन्होंने यह भी कहना है कि संस्था की ओर से बहुत जल्द ऐसा भव्य राम नाम संग्रहालय तैयार किया जाएगा जिसमे विश्व मे सबसे ज्यादा हस्तलिखित राम नाम का भंडार होगा जोकि भारत देश की विभिन्न भाषाओं में दर्शाया जाएगा। जिसके दर्शन मात्र से विश्व के लोग लाभ ले सकते है। + + +नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है: +कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें। + + +नमस्कार। मैं एक भारतीय हूं। और विकीसूक्ति पर हिन्दी सेवा के लिए हूं। + + +भारत को आगे बढ़ाना हैं + + +'hoo-tagger-other अन्य कृपया संपादन सारांश भी अवश्य दें +'hoo-tagger-customTag निजी टैग (कृपया इन्हें नीतियों के अनुरूप ही बनायें + + +: संसार में सत्य ही ईश्वर है। सत्य ही लक्ष्मी धन-धान्य) का निवास है। सत्य ही सभी (अच्छाइयों) का मूल है। संसार में सत्य से बढ़कर और कोई परम पद नहीं है। +: सत्य से बढ़कर धर्म और असत्य से बढ़कर दूसरा कोई पाप नहीं है। अतः सभी कार्यों में सत्य को ही श्रेष्ठ माना गया है। +: सत्य की ही विजय होती है असत्य की नहीं सत्य' के द्वारा ही देवों का यात्रा-पथ विस्तीर्ण हुआ, जिसके द्वारा आप्तकाम ऋषिगण वहां आरोहण करते हैं जहाँ 'सत्य' का परम धाम है। +: मृत्यु तथा अमरत्व दोनों एक ही देह में निवास करती हैं। मोह (भ्रम, असत्य) के से मृत्यु आती है तथा सत्य के पीछे चलने से अमरता प्रााप्त होता है। +: धर्म का रक्षण सत्य से, विद्या का अभ्यास से, रुप का सफाई से, और कुल का रक्षण आचरण करने से होता है । +: सत्य से पृथ्वी का धारण होता है, सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से पवन चलता है । सब सत्य पर आधारित है । +: सत्य जैसा अन्य धर्म नहीं । सत्य से पर कुछ नहीं । असत्य से ज्यादा तीव्रतर कुछ नहीं । +केवल सत्य' ऐसा जिसका व्रत है, जो सदा दीन की सेवा करता है, काम-क्रोध जिसके वश में है, उसी को ज्ञानी लोग 'साधु' कहते हैं । +: जय सत्य का होता है, असत्य का नहीं । दैवी मार्ग सत्य से फैला हुआ है । जिस मार्ग पे जाने से मनुष्य आत्मकाम बनता है, वही सत्य का परम् धाम है । +: वेदों के जानकार कहते हैं कि अनृत (असत्य) के अलावा और कोई पातक नहीं; सत्य के अलावा अन्य कोई सुकृत नहीं और विवेक के अलावा अन्य कोई भाई नहीं । +: लक्ष्मी सत्य का अनुसरण करती हैं, कीर्ति त्याग का अनुसरण करती है, विद्या अभ्यास का अनुसरण करती है और बुद्धि कर्म क अनुसरण क्रती है। +* अगर आप कभी भी राजनीति में सच्चाई डाल देते हैं तो वो राजनीति नहीं रह जाती । विल रोजर्स +* अगर मैंने वो सारा सच लिख दिया होता जो मुझे पिछले दस साल से पता है, तो मुझे लेकर लगभग 600 लोग रिओ से सीएटल तक जेलों में सड़ रहे होते । पूर्ण सत्य पेशेवर पत्रकारिता के क्षेत्र में एक दुर्लभ और खतरनाक वस्तु है। हंटर एस. थोम्प्सन +* इस में कुछ भी आश्चर्य नहीं की सच कल्पना से अनोखा है। कल्पना का कोई अर्थ होना चाहिए। मार्क ट्वैन +* एक टिप्पणी आम तौर पर अपनी सच्चाई के अनुपात में चोट पहुंचाती है। विल रोजर्स +* कट्टरता सच को उन हाथों में सुरक्षित रखने की कोशिश करती है जो उसे मारना चाहते हैं। रबीन्द्रनाथ टैगोर +* कल तक हम राजाओं की आज्ञा का पालन करते थे और सम्राटों के सामने सर झुकाते थे । लेकिन आज हम सच के सामने घुटने टेकते हैं, सुन्दरता का अनुसरण करते हैं, और केवल प्रेम की आज्ञा मानते हैं। खलिल गिबरान +* किसी भी सत्य के तीन चरण होते है। पहला, उसका उपहास किया जाता है। दूसरा, उसका हिंसक विरोध किया जाता है। तीसरा, उसे स्वतः ही अपनाया जाता है। आर्थर इस्कोपेन्हौर +* किसी विवाद में हम जैसे ही क्रोधित होते हैं हम सच का मार्ग छोड़ देते हैं, और अपने लिए प्रयास करने लगते हैं। गौतम बुद्ध +* किसी समाधि लेख में सबसे कम पाया जाने वाला गुण सच्चाई है। हेनरी डेविड थोरीयो +* कोई औरत अपने पति के बारे में शादी के एक महीने पहले क्या सोचती है और शादी के एक साल बाद क्या सोचती है, इनका औसत निकाल लीजिये और आपको उस आदमी की सच्चाई पता चल जाएगी। एच एल मेंकेन +* कोई त्रुटि तर्क-वितर्क करने से सत्य नहीं बन सकती और ना ही कोई सत्य इसलिए त्रुटि नहीं बन सकता है क्योंकि कोई उसे देख नहीं रहा। महात्मा गाँधी +* जब मैं सच कहता हूँ तो वह उन्हें समझाने के लिए नहीं हो���ा जो इसे नहीं जानते, बल्कि ये उनका पक्ष लेने के लिए होता है जो इसे जानते हैं। विल्लियम ब्लैक +* जिस चीज से आप डरते हैं उसमें कोई शक्ति नहीं है। शक्ति आपके उस डर में है। वास्तविक रूप में सच का सामना करना आपको मुक्त कर देगा। ओपरा विनफ्रे +* जो व्यक्ति छोटी-छोटी बातों में सच्चाई को गंभीरता से नहीं लेता उस पर बड़ी बातों में भी विश्वास नहीं किया जा सकता। ऐल्बर्ट आइन्स्टीन +* तथ्य कई हैं, पर सत्य एक है । रबीन्द्रनाथ टैगोर +* पृथ्वी सत्य की शक्ति द्वारा समर्थित है; ये सत्य की शक्ति ही है जो सूरज को चमक और हवा को वेग देती है; दरअसल सभी चीजें सत्य पर निर्भर करती हैं। चाणक्य +* प्रेम महज आवेग नहीं है, इसमें सच्चाई होनी चाहिए। रबीन्द्रनाथ टैगोर +* बर्तन में रखा पानी चमकता है; समुद्र का पानी अस्पष्ट होता है। लघु सत्य स्पष्ठ शब्दों से बताया जा सकता है, महान सत्य मौन रहता है। रबीन्द्रनाथ टैगोर +* बहुत हद तक भाषा सच को छुपाने का उपकरण है। जार्ज कार्लिन +* बुरी नियत से कहा गया एक सच आप जितना झूठ सोच सकते हैं उन सभी को मात देता है । विल्लियम ब्लैक +* मुखर होना आसान है जब आप पूर्ण सत्य बोलने की प्रतीक्षा नहीं करते। रबीन्द्रनाथ टैगोर +* मेरा एक सिद्धांत है कि सच कभी भी नौ से पांच बजे के बीच नहीं बोला जाता। हंटर एस. थोम्प्सन +* मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है और अहिंसा उसे पाने का साधन। महात्मा गाँधी +* मैं ऐसा सोचने के लिए क्षमा चाहता हूँ कि किसी व्यक्ति कि सबसे प्रभावी आलोचना तब तक नहीं मिलती जब तक आप उसे उकसाए नहीं । कटु सत्य कुछ कडवाहट के साथ ही व्यक्त किया जाता है । हेनरी डेविड थोरीयो +* यदि आप सभी गलतियों के लिए दरवाजे बंद कर देंगे तो सच बाहर रह जायेगा। रबीन्द्रनाथ टैगोर +* वकील का सच सच नहीं है, बल्कि सामंजस्य बैठाने का तरीका या तर्कयुक्त अवसरवादिता है । हेनरी डेविड थोरीयो +* विरोधाभास का होना झूठ का प्रतीक नहीं है और ना ही इसका ना होना सत्य का । ब्लेज़ पास्कल +* व्यक्ति जब अपने को सामने रखकर बात करता है तब वो सबसे कम वास्तविक होता है। उसे एक मुखौटा दे दीजिये और वो सच बोलेगा। आस्कर वाइल्ड +* शांति अगर संभव हो, सच किसी भी कीमत पर। मार्टिन लूथर किंग +* शिक्षा का लक्ष्य ज्ञान और सत्य का प्रचार-प्रसार है। जॉन ऍफ़. केनेडी +* सच इतना दुर्लभ है कि इसे बताने में ख़ुशी होती है। एमि��ी डिकिन्सन +* सच बोलने के लिए दो लोग चाहिए होते हैं: एक बोलने के लिए, और दूसरा सुनने के लिए। हेनरी डेविड थोरीयो +* सच सभी के लिए नहीं होता, वह केवल उसे खोजने वालों के लिए होता है । ऐनी रैंड +* सच्चाई ये है कि जिनके भी पास सत्ता है उनपर यकीन नहीं करना चाहिए । जेम्स मैडिसन +* सत्य अकाट्य है। दोष इस पर हमला कर सकता है, अज्ञानता इसका उपहास उड़ा सकती है लेकिन अंत में सत्य ही रहता है। विंस्टन चर्चिल +* सत्य और तथ्य में बहुत बड़ा अंतर है। तथ्य सत्य को छुपा सकता है। माया एंजेलो +* सत्य कभी-कभी ऐसे कारण को क्षति नहीं पहुंचाता जो उचित हो। महात्मा गाँधी +* सत्य का महान शत्रु अधिकतर जानबूझकर,काल्पनिक, या बेईमानी से बोला गया झूठ नहीं होता बल्कि दृढ, प्रेरक,और अवास्तविक मिथक होता हैं। जॉन ऍफ़. केनेडी +* सत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है बल्कि ये सभी व्यक्तियों का खजाना है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* सत्य के मार्ग पर चलते हुए कोई दो ही गलतियाँ कर सकता है। पूरा रास्ता ना तय करना और इसकी शुरआत ही ना करना। गौतम बुद्ध +* सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा। स्वामी विवेकानन्द +* सत्य बिना जन समर्थन के भी खड़ा रहता है। वह आत्मनिर्भर है। महात्मा गाँधी +* सत्य बोलने के लिए दो लोग चाहिए होते हैं: एक बोलने के लिए और दूसरा सुनने के लिए। हेनरी डेविड थोरीयो +* सत्य श्रेष्ठ व्यक्ति की वस्तु है। कन्फ्युशियस +* सभी सच तीन चरणों से होकर गुजरते हैं। पहला, उसका उपहास किया जाता है। दूसरा, उसका हिंसक विरोध किया जाता है। तीसरा, उसे स्वतः सिद्ध रूप में मान लिया जाता है। आर्थर इस्कोपेन्हौर +* सिर्फ गलतियों को सरकार के समर्थन की ज़रुरत होती है। सत्य अपने से खड़ा रह सकता है। थोमस जेफ्फेर्सन +* हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसके संघर्ष में खुद के सर्वोच्च विचार के मुताबिक जीने के लिए उत्साहित करें,और साथ ही ये प्रयास करें की उसके आदर्श सत्य के बिलकुल निकट हों। स्वामी विवेकानंदा +* हर सुनी-सुनाई बात पर यकीन मत करिए। एक कहानी के हमेशा तीन पहलू होते हैं। आपका, उनका और सच। ब्रह्माकुमारी शिवानी + + +यदि आप आगामी भविष्य में देश का विकास चाहते हैं तो इसकी शुरुआत आपको आज से करना चाहिए। + + +* लोकतंत्र में यदि सत्ता का दुरुपयोग हो,तो लोगों को कहीं रहने के लिए भी जगह नहीं रह जायेग���. +*परमानंद किसी के अपने लक्ष्य तक पहुंचने के प्रयास में निहित है,न कि वहां पहुंचने में. +*कोई संस्कृति जीवित नहीं रह सकती है,अगर वह विशिष्ट होने का प्रयास करे. +*अहिंसा का लबादा ओढ़ना धोखा है.जरूरत है कि हम दिल में बसे हिंसा का त्याग करें. +*जो आपको दुश्मन समझते हैं,उनसे भी मित्रवत व्यवहार करना सच्चे धर्म का मर्म है. +*विवेक के मामलों में बहुमत के कानून की कोई जगह नहीं है. +*हर इंसान के अंदर अपनी गलतियों को स्वीकारने और उन्हें सुधारने की पर्याप्त विनम्रता होती है. +*एक अन्यायपूर्ण कानून हिंसा की ही एक प्रजाति है. +*मैं दिल से पूर्व और पश्चिम के मिलान का स्वागत करुंगा,पर यह पशुबल पर आधारित नहीं होना चाहिए. +*सबसे अच्छे होने के लिए अनंत प्रयास मनुष्य का कर्तव्य है. +*असहिष्णुता सच्ची लोकतांत्रिक भावना के विकास में बाधक है. +हिंदुस्तान और पाकिस्तान को अपनी-अपनी खामियां मिटानी चाहिए,एक-दूसरे का दोष देखने में किसी का लाभ नहीं है. +*शिक्षा का अर्थ सिर्फ अक्षरज्ञान न हो,अक्षरज्ञान से दुनिया को फायदे के बदले नुकसान ही हुआ है. +*हम सभी को आयी हुई विपत्ति में शांति खोजनी चाहिए. +*मनुष्य जब एक नियम तोड़ता है,तो बाकी अपने आप टूट जाते हैं. +*एक औंस अभ्यास का मूल्य कई टन उपदेश से ज्यादा है. +*कुछ लोग सिर्फ सफलता के सपने देखते हैं,जबकि सफल व्यक्ति कड़ी मेहनत करते हैं. +*स्वच्छता,पवित्रता और आत्मसम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती. +*प्रार्थना मांगना नहीं,यह आत्म की चाह है. यह दैनिक कमजोरियों की अपनी स्वीकारोक्ति है. +चरित्र की शुद्वि ही सारे ज्ञान का ध्येय होना चाहिए. +*शांति का कोई रास्ता नहीं है,केवल शांति है. +*सत्य के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं होता. +*जो काम अपने से हो सके,वह काम दूसरे से कभी नही कराधा चाहिए. +*पृथवी सभी मनुष्य की जरुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है लेकिन लालच पूरी करने के लिए नहीं| +*लम्बे-लम्बे भाषणों से कहीं अधिक मूल्यवान है इंच भर कदम बढ़ाना| + + +विकिमीडिया का वैश्विक समुदाय दुनिया के विभिन्न देशों में हमारे प्रभाव को बेहतर बनाने की रणनीति विकसित करने की प्रक्रिया में है। हमारी रणनीतिक दिशा: सेवा और समानता। 2030 तक, विकिमीडिया मुक्त ज्ञान के पारिस्थितिकी तंत्र का आवश्यक बुनियादी ढाँचा बन जाएगा, और जिसकी भी यह प्रतिबद्धता है वह हम��रे साथ जुड़ने में सक्षम होंगे। +2017 में आंदोलन रणनीति प्रक्रिया का पहला चक्र शुरू हुआ था जिसमे हिंदी समुदाय के सदस्यों ने भाग लिया था जिससे हम रणनीतिक दिशा की ओर बढ़ सके और अभी 2018 से 2020 तक दूसरा चक्र चल रहा है। इसमें हम विकिमीडिया की भविष्य की भूमिका को ध्यान में रखते हुए और अपनी संरचनाओं को अद्यतन करने के लिए एक सहयोगी रणनीति विकसित करने के लिए एक व्यापक चर्चा शुरू करेंगे जिससे हम 2030 तक अपनी रणनीतिक दिशा में सफलतापूर्वक आगे बढ़ सकें। +विकिमीडिया परियोजनाएं अपने उपयोगकर्ताओं की जरूरतों को बेहतर ढंग से कैसे पूरा करें? हिंदी समुदाय के सदस्यों को विचार-विमर्श में भाग लेकर इस रणनीतिक दिशा को प्रभावित करने का न्योता दिया जा रहा है। +इन चर्चाओं से प्रतिक्रिया संरचनात्मक परिवर्तनों के लिए संस्तुति का आधार बनेगी जिसके साथ हम अपने रणनीतिक दिशा में सफलतापूर्वक और दृढ़ता से आगे बढ़ सकेंगे। +वे कौन सी बातें हैं जिनकी समुदाय को सबसे ज्यादा महत्वता है? हम आपके लिए आंदोलन की रणनीति प्रक्रिया को समझना कैसे आसान बना सकते हैं? भाषा और तकनीकी प्रवीणता बाधाओं को ध्यान में रखते हुए। आप इन चर्चाओं के लिए किन प्लेटफार्मों और मध्यस्थों को पसंद करेंगे? +नौ कार्यवाहक समूहों भूमिकाएं और ज़िम्मेदारियां, आय के स्रोत, संसाधन आबंटन, विविधता, सहभागिताएं, क्षमता निर्माण, सामुदायिक स्वास्थ्य, उत्पाद व प्रौद्योगिकी और वकालत ने दस्तावेज तैयार किए हैं जिनमें हमारे आंदोलन की संरचनाओं से संबंधित विषयों पर मुख्य प्रश्न हैं। मई के अंत तक, हिंदी समुदाय के प्रत्येक सदस्य के पास इन सवालों के जवाब देने और स्कोपिंग दस्तावेजों पर अपनी राय साझा करने का मौका है। +आपके जवाब मुद्दों, चुनौतियों और अवसरों की रूपरेखा तैयार करेंगे जिसे कार्यदल आगे बढ़ाएगा। वे हमारे आंदोलन की गहरी समझ हासिल करने, रोमांचक संभावनाओं की पहचान करने और बदलाव के लिए संस्तुति विकसित करने में मदद करेंगे। इन पहलुओं को विकिमेनिया 2019 में वितरित किया जाएगा। +सभी हिंदी भाषा उपयोगकर्ताओं से अनुरोध किया जाता है: +* पहचानें कि आप किस विषय (स्कोपिंग दस्तावेज़) में सबसे अधिक रुचि रखते हैं। +* रणनीति प्रक्रिया की परिचर्चा के लिए ऑन-विकी, सोशल मीडिया और ऑफ़लाइन वार्तालापों में मित्रवत स्थान नीति का पालन करना याद रखें। ध्यान केंद्रित चर्चाओं के लिए एक सुखद वातावरण सुनिश्चित करने के लिए इन अपेक्षाओं की आवश्यकता होती है जहां योगदानकर्ता सम्मानपूर्वक संलग्न होते हैं। +आपसे अनुरोध है कि आंदोलन रणनीति के पृष्ठों और स्कोपिंग दस्तावेजों को देखें; इनका अनुवाद पेशेवर अनुवादकों द्वारा किया गया है और यदि किसी तरह के बदलाव की आवश्यकता हो तो आप उसके मुताबिक बदलाव कर सकते हैं। इसके इलावा आंदोलन रणनीति से संबंधित कोई भी प्रश्न या संदेह हो, तो अवश्य पूछें। + + +नौ कार्यवाहक समूहों भूमिकाएं और ज़िम्मेदारियां, आय के स्रोत, संसाधन आबंटन, विविधता, सहभागिताएं, क्षमता निर्माण, सामुदायिक स्वास्थ्य, उत्पाद व प्रौद्योगिकी और वकालत ने दस्तावेज तैयार किए हैं जिनमें हमारे आंदोलन की संरचनाओं से संबंधित विषयों पर मुख्य प्रश्न हैं। मई के अंत तक, हिंदी समुदाय के प्रत्येक सदस्य के पास इन सवालों के जवाब देने और स्कोपिंग दस्तावेजों पर अपनी राय साझा करने का मौका है। +जवाब मुद्दों, चुनौतियों और अवसरों की रूपरेखा तैयार करेंगे जिसे कार्यदल आगे बढ़ाएगा। वे हमारे आंदोलन की गहरी समझ हासिल करने, रोमांचक संभावनाओं की पहचान करने और बदलाव के लिए संस्तुति विकसित करने में मदद करेंगे। इन पहलुओं को विकिमेनिया 2019 में वितरित किया जाएगा। +अपनी रुचि के अंतर्गत आने वाले विषय में कार्यवाहक समूहों द्वारा तैयार किए गए। इन स्कोपिंग दस्तावेज़ों के बारे में टिप्पणी और सिफारिशें को ऊपर दिए गए गूगल फॉर्म में अपनी प्रतिक्रिया के रूप में छोड़ें। आप मेटा में इन स्कोपिंग दस्तावेज़ों के वार्ता पृष्ठ पर भी अपनें विचारों को छोड़ सकतें हैं। इसके अतिरिक्त, इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए हम प्रत्येक सप्ताह 2 विषयों पर विकी, हैंगआउट और सोशल मीडिया पर खुली चर्चा करेंगे। इसके लिए कार्यक्रम निम्नानुसार हैं: +सामुदायिक वार्तालाप का सारांश मासिक आधार पर मेटा पेज पर साझा किया जाएगा। जिस पर समुदाय को प्रतिक्रिया प्रदान करने का अवसर दिया जाएगा। + + +अब्दुल रशीद सलीम सलमान ख़ान उर्दू: سلمان خان उच्चारण Salman khan, जन्म २७ दिसम्बर १९६५) एक भारतीय फ़िल्म अभिनेता हैं, जो बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाई देते हैं। +* मैंने जिस व्यक्ति को चोट पहुंचाई है, वह केवल मैं हूं। +* एक शेर सबसे तेज दौड़ता है जब वह भूखा होता है। लेकिन नाम��ंकित करें कि देश की अर्थव्यवस्था कैसी है वह कभी घास नहीं खा सकता है। +* आप जितने बड़े हो जाएंगे, आपको उतना ही अच्छा दिखना होगा, जितना अधिक आपको किक मारना होगा, उतना ही कठिन काम करना पड़ेगा। +* मेरे लिए अभिनय, सीधे दिल से आता है। इस अर्थ में मैं बिल्कुल भी काम नहीं करता। मुझे लगता है कि किरदार के दर्द को महसूस करने के लिए मुझे खुद बनना होगा। कहीं न कहीं दर्शकों ने देखा। +* अपने बचपन की समस्याओं और अपने पिता की हेलेन से दूसरी शादी शुरुआत में यह बहुत मुश्किल था, जब हर कोई इसके बारे में बात कर रहा था। मेरी माँ बस नहीं ले सकती थी। इसने उसे बहुत आहत किया। वह हर समय परेशान रहती थी, बार-बार डिप्रेशन में चली जाती थी। जब वह रोती थी, तो हम बच्चे उसके साथ रोते थे। +* जीवन में सीधे चलते हैं और दाएं मुड़ते हैं। + + +*;मेरा स्कूल सबसे अच्छा स्कूल सबसे अच्छा शिक्षण स्टाफ सबसे अच्छा अध्ययन वातावरण। +*;इस विद्यालय में अध्ययन मेरी जीवन भर की उपलब्धि है। +*;सभी महाराज वहाँ शांति के द्वीप की तरह घूम रहे हैं। +*;जब कोई भी नाम गुरु श्री रामकृष्ण और बेलूर मठ के ईश्वरीय संबंध के साथ जुड़ा हो, तो सुनिश्चित करें कि यह बड़े पैमाने पर मानव जाति की सेवा करने के लिए और साम्राज्यवादी मां शारदा की पूजा करके बन जाएगा। विश्वास, आस्था, प्रिय विश्वास को ऐसी जगह के लिए आश्वस्त किया जा सकता है। + + +मैं एक ब्‍लॉगर हूं और ज्ञान को बाटना मुझे बहुत पसंद हैं। इसलिए मैंने दो ब्‍लॉग शुरू किए हैं – + + +बहादुर शाह ज़फर (1775-1862) भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह थे और उर्दू के माने हुए शायर थे। उन्होंने १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया। युद्ध में हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई। + + +'कोई यूआरएल नहीं मिला। कृपया या तो यूआरएल दें अन्यथा विकिडाटा से जोड़ें। +category विकिडाटा और विकिपीडिया पर भिन्न आधिकारिक जालस्थल' + + +* उड़ने की बात परिंदे करते हैं, टूटते हुए पर नहीं । +* कभी-कभी जीतने के लिए कुछ हारना पड़ता है, और हार कर जीतने वालों को ही बाज़ीगर कहते हैं । +* नाम बदलने से इन्सान का चेहरा और उसका जुर्म बदल नहीं जाता । +कभी कभी जीतने के लिए कुछ हारना भी पड़ता है और हार कर जीतने वाले को बाज़ीगर कहते है।'' + + +*हम यहाँ के रॉबिनहुड है, रॉबिनहुड पांडे + + +मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, +आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए। +नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है। + + +एक समय से दूसरे समय में बिना मृत्यु के समय से आगे जाया जा सकता है, जो कि therotical और Practical दोनों सही ✔ है। लेकिन उससे पहले सुदर्शन चक्र का ज्ञान 💯📖📚📝 होना अतिआवश्यक है। + + +रामकृष्ण परमहंस 18 फ़रवरी 1836 – 16 अगस्त 1886) भारत के एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। +* सभी धर्म समान है। महत्वपूर्ण बात यह है कि छत पर पहुंचने के लिए आप पत्थर की सीढ़ियों से, लकड़ी की सीढ़ियों से, बांस की सीढ़ियों से या रस्सी से पहुंचा सकते हैं। आप बांस के खंभे से भी चढ़ सकते हैं। +* जिसने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया, उस पर काम और लोभ का विष नहीं चढ़ता। +* सभी धर्म एक ही है और सबका भगवान एक ही हैं चाहें कोई हिन्दू हो या मुस्लिम या हो सिख-ईसाई। +* भगवान को सभी पथो और माध्यमों के द्वारा महसूस किया जा सकता हैं, सभी धर्म सच्चे और सही हैं। महत्वपूर्ण बात यह यह कि आप उस तक उस तक पहुँच पाते हैं या नहीं। आप वहां तक जानें के लिए कोई भी रास्ता अपना सकते हैं रास्ता महत्व नहीं रखता। +* भगवान की भक्ति या प्रेम के बिना किया गए कार्य को पूर्ण नहीं किया जा सकता। +* संसार के चारो कोनो में यात्रा कीजियें, लेकिन फिर भी आपको कहीं भी कुछ भी नहीं मिलेगा। जो आप प्राप्त करना चाहते हैं वह तो यही आपके अन्दर विराजमान हैं। +* धर्म पर बात करना बहुत ही आसान है, लेकिन इसको आचरण में लाना उतना ही मुश्किल हैं। +* बिना सत्य बोले तो भगवान को प्राप्त ही नहीं किया जा सकता, क्योकि सत्य ही भगवान हैं। +* वह मनुष्य व्यर्थ ही पैदा होता है, जो बहुत ही कठिनाईयों से प्राप्त होने वाले मनुष्य जन्म को यूँ ही गवां देता हैं और अपने पुरे जीवन में भगवान का अहसास करने की कोशिश ही नहीं करता है। +* जब तक यह जीवन हैं और तुम जीवित हो, सीखते रहना चाहिए। +* आपका जितना परिक्षण होगा आपका अनुभव उतना ही ज्यादा होगा और इससे आपका जीवन बेहतर होगा + + +श्यामाचरण लाहिड़ी 30 सितम्बर 1828 – 26 सितम्बर 1895) 18वीं शताब्दी के उच्च कोटि के साधक थे जिन्होंने सद्गृहस्थ के रूप में यौगिक पूर्णता प्राप्त कर ली थी। +* मुसलमान को रोज पाँच बार नमाज़ पढ़ना चाहिये। हिन्दू को दिन में कई बार ध्यान में बैठना चाहिये। ईसाई को र��ज कई बार घुटनों के बल बैठकर प्रार्थना करके फिर बाइबिल का पाठ करना चाहिये। +* केवल बही बुद्धिमान है, जो प्राचीन दर्शनों का केवल पठन-पाठन करने के बजाय उनकी अनुभूति करने का प्रयास करता है। ध्यान में ही अपनी सब समस्याओं का समाधान ढूँढो।* व्यर्थ अनुमान लगाते रहने के बदले ईश्वर से प्रत्यक्ष सम्पर्क करो। + + +प्लेटो यूनान के महान दार्शनिक थे। उनका जन्म 427 ईसा पूर्व एथेन्स के एक कुलीन परिवार में हुआ था। पश्चिमी राजनीतिक दर्शन का आरम्भ प्लेटो से माना जाता है। +* गुलामी मृत्यु से भी भयावह है। +* अच्छे कर्म स्वयं को शक्ति देते हैं और दूसरों को अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। +* एक अच्छा निर्णय ज्ञान पर आधारित होता है, संख्याओं पर नहीं। +* एक नायक सौ में एक पैदा होता है, एक बुद्धिमान व्यक्ति हज़ारों में एक पाया जाता है, लेकिन एक सम्पूर्ण व्यक्ति शायद एक लाख लोगों में भी ना मिले। +* सभी व्यक्ति प्राकृतिक रूप से सामान हैं, एक ही मिटटी से एक ही कर्मकार द्वारा बनाये गए;और भले ही हम खुद को कितना भी धोखें में रख लें पर भगवान को जितना प्रिय एक शश्क्त राजकुमार है उतना ही एक गरीब किसान। +* आपकी चुप्पी, स्वीकरोक्ति है। +* कोई भी किसी को आसानी से नुकसान पंहुचा सकता है, लेकिन हर व्यक्ति औरों के साथ अच्छा नहीं कर सकता है। +* स्वयं को इस जन्म औए अगले जन्म में भी काम में लगाइए। बिना प्रयत्न के आप समृद्ध नहीं बन सकते। भले भूमि उपजाऊ हो, बिना खेती किये उसमे प्रचुर मात्र में फसल नहीं उगाई जा सकती। +* जैसा कि बिल्डर कहते हैं; बड़े पत्थर बिना छोटे पत्थरों के सही से नहीं लग सकते हैं। +* प्रेम के स्पर्श से सभी कवी बन जाते हैं। +* थोड़ा सा जो अच्छे से किया जाए वो बेहतर है,बजाये बहुत कुछ अपूर्णता से करने से। +* साहस मुक्ति का एक प्रकार है। +* साहस ये जानना है कि किससे नहीं डरना है। +* मौत सबसे बुरी चीज नहीं है जो इंसान के साथ हो सकती है। +* स्वतंत्रता की अधिकता, चाहे वो राज्यों या व्यक्तियों में निहित हो, केवल गुलामी की अधिकता में बदल जाती है। +* किसी व्यक्ति के लिए स्वयं पर विजय पाना सभी जीतों में सबसे पहली और महान है। +* जितना भी सोना पृथ्वी या उसके अन्दर है वो अपने सद्गुणों के बदले देना पर्याप्त नहीं है। +* अगर हर एक व्यक्ति अपनी प्राकृतिक काबिलियत के अनुसार,बिना और चीजों में पड़े, सही समय पर और सिर्फ एक काम करता तो चीजें कहीं बेहतर गुणवत्ता और मात्रा में निर्मित होतीं। +* अच्छे लोगों को जिम्मेदारी से रहने के लिए कहने हेतु क़ानून की ज़रुरत नहीं पड़ती, और बुरे लोग क़ानून से बच कर काम करने का रास्ता निकाल लेते हैं। +* शायद ही कोई व्यक्ति एक साथ दो कलाओं या व्य्वसाओं को करने की क़ाबिलियत रखता हो। +* वह एक बुद्धिमान व्यक्ति था जिसने बीयर का आविष्कार किया। +* ईमानदारी ज्यादातर बेईमानी से कम लाभदायक होती है। +* तुम ये कैसे साबित कर सकते हो कि इस क्षण हम सो रहे हैं, और हमारी सारी सोच एक सपना है; या फिर हम जगे हुए हैं और इस अवस्था में एक दूसरे से बात कर रहे हैं? +* मानव व्यवहार तीन मुख्या स्रोतों से निर्मित होता है: इच्छा, भावना, और ज्ञान। +* अगर इंसान शिक्षा की उपेक्षा करता है तो वह लंगडाते हुए अपने जीवन के अंत की तरफ बढ़ता है। +* अज्ञानता, सभी बुराइयों कि जड़ और तना। +* यह उचित है की हर व्यक्ति को वह दिया जाये जिसके वो योग्य है। +* यदि उद्देश्य नेक ना हो तो ज्ञान बुराई बन जाता है। +* मजबूरी में अर्जित किया गया ज्ञान मन पर पकड़ नहीं बना पाता। +* बिना न्याय के ज्ञान को बुद्धिमानी नहीं चालाकी कहा जाना चाहिए। +* अच्छे आदमी के साथ बुरा नहीं हो सकता, ना इस जीवन में ना मरने के बाद। +* कोई क़ानून या अध्यादेश समझ से शक्तिशाली नहीं हैं। +* इंसानों के जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके लिए बहुत चिंता की जाये। +* एक व्यक्ति एक साथ कई कलाओं में सफल नहीं हो सकता। +* राजनीति में हिस्सा ना लेने का दंड यह है की आपको अपने से निम्न लोगों द्वारा शाशित होना पड़ता है। +* केवल मृत लोगों ने युद्ध का अंत देखा है। +* राज्य के गठन का हमारा ध्येय सभी का परम आनंद है,किसी श्रेणी विशेष का नहीं। +* लोग धूल की तरह होते हैं। या तो वो आपको पोषण दे एक व्यक्ति के रूप में विकसित होने में मदद कर सकते हैं, या वो आपका विकास रोककर और थका कर मृत कर सकते हैं। +* देश इंसानों की तरह होते हैं, उनका विकास मानवीय चरित्र से होता है। +* प्रारम्भ किसी काम का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। +* दोष उसका है जो चयन करता है: भगवान निर्दोष हैं। +* ऐसा समुदाय जहाँ न गरीबी है ना समृद्धि, वह समुदाय हमेशा महान सिद्धान्तो से बना होता है। +* जिस दिशा में शिक्षा व्यक्ति की शुरआत करती है वाही जीवन में उसके भविष्य का निर्धारण करता है। +* भगवान की सेवा संतोषजनक है, मानव की सेवा की असहन���य। +* आदमी की पहचान इससे होती है कि वो शक्ति के साथ क्या करता है। +* शिक्षा का सबसे आवश्यक भाग नर्सरी में उचित प्रशिक्षण है। +* तीन तरह के लोग होते हैं; ज्ञान के प्रेमी, सम्मान के प्रेमी, और लाभ के प्रेमी। +* दो मामलो में इंसान को कभी गुस्सा नहीं करना चाहिए, जिसमें वो मदद कर सकता हैं और जिसमें वो मदद नहीं कर सकता हैं। +* अच्छी चीज को दुबारा करने में कोई नुकसान नहीं है। +* जो महान बनना चाहते हैं उन्हें ना स्वयं से ना अपने काम से प्रेम करना चाहिए, उन्हें बस जो उचित है उसे चाहना चाहिए, चाहे वो उनके या किसी और के ही द्वारा किया जाये । +* आप किसी व्यक्ति के बारे में एक साल के वार्तालाप की बजाये एक घंटे के खेल में अधिक जान सकते हैं। +* बुद्धिमान लोग बोलते हैं क्योंकि की उनके पास कुछ कहने को होता है, बेवकूफ; क्योंकि उन्हें कुछ कहना होता है। +* जहाँ आयकर होता है, वहां उचित व्यक्ति अनुचित व्यक्ति की अपेक्षा उसी आय पर अधिक कर देगा। +* धन को एक महान दिलासा देने वाला जाना जाता है। +* माता-पिता अपने बच्चों को वसीयत में धन नहीं बल्कि श्रद्धा की भावना दें। +* जीवन को एक नाटक की तरह जीना चाहिए। +* सबसे बड़ा धन थोड़े में संतोषपूर्वक जीना है। + + +* मनुष्य का जन्म स्वतंत्रत होता है लेकिन वह प्रत्येक जगह अपने को बेडि़यों में जकड़ा हुआ पाता है। +* प्रकृति की ओर वापस लौटो। +* मैं गुलामी के साथ शांति की तुलना में खतरे के साथ स्वतंत्रता पसंद करता हूँ। +* सभ्यता अपने द्वारा पैदा की जाने वाली बुराइयों के उपचार की खोज के लिए एक निराशाजनक दौड़ है। +* जो लोग कम जानते हैं वे आम तौर पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले होते हैं। जो लोग ज्यादा जानते हैं वे कम बोलते हैं। +* जैसे ही कोई आदमी राज्य के मामलों के बारे में कहता है “इससे मुझे क्या फर्क पड़ता है?” राज्य को खोने के लिए छोड़ दिया जा सकता है। +* जो लोग कम जानते हैं वे आमतौर पर अच्छे वक्ता होते हैं, जबकि जो लोग बहुत कुछ जानते हैं वे कम बोलते हैं। +* किसी भी मामले में बार बार दंड देना सरकार में कमजोरी का संकेत है कोई आदमी इतना बुरा नहीं है की उसे किसी भी चीज़ के लिए अच्छा नहीं बनाया जा सकता। +* मैं गुलामी के साथ शांति की तुलना में खतरे के साथ स्वतंत्रता को तरजीह देता हूं। +* हमारी इच्छा हमेशा हमारे भले के लिए होती है, लेकिन हम हमेशा यह नहीं देखते कि वह क्या है। +* जो लोग वादा करने ��ें सबसे धीमे होते हैं, वे उसे पूरा करने में सबसे वफादार होते हैं। +* हमें अपने विग को पाउडर करना चाहिए; यही कारण है कि इतने सारे गरीबों के पास रोटी नहीं है। +* ऐसा कोई बुरा आदमी नहीं है जिसे किसी भी चीज़ के लिए अच्छा नहीं बनाया जा सकता। +* सदाचार यूद्ध की स्थिति है और इसमें जीने के लिए हमे हमेसा अपने आप से लड़ना होगा। +* सहन करना पहली चीज है जो एक बच्चे को सीखनी चाहिए, और जिसे जानने की उसे सबसे ज्यादा जरूरत होगी। +* एक अच्छे दोस्त के प्रोत्साहन से बेहतर कुछ नहीं है। +* हमारे उपकरण जितने अधिक सरल, मोटे और अधिक अकुशल हमारी इंद्रियाँ हैं। +* पागलो की दुनिया में समझदार होना अपने आप में एक पागलपन है। +* आप कौन-सा ज्ञान पा सकते हैं जो दया से बढ़कर है? +* स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है लेकिन पुनः प्राप्त नहीं की जा सकती है , +* मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है और हर जगह वह जंजीरों में जकड़ा हुआ है . +* कृतज्ञता एक कर्तव्य है जिसका भुगतान किया जाना चाहिए, लेकिन जिसकी अपेक्षा करने का अधिकार किसी को नहीं है। +* वास्तविकता की दुनिया की अपनी सीमाएँ हैं; कल्पना की दुनिया असीम है। +* तुम भूल जाते हो कि फल सबका है, और भूमि किसी की नहीं। +* हमारी सबसे बड़ी बुराइयाँ स्वयं से प्रवाहित होती हैं। +* ऐसी चीजें हैं जिन्हें मैं जबरदस्ती नहीं कर सकता। मुझे समायोजित करना चाहिए। +* एक कमजोर शरीर दिमाग को कमजोर करता है। +* जो लोग कम जानते हैं वे आमतौर पर अच्छे वक्ता होते हैं, जबकि जो लोग बहुत कुछ जानते हैं वे कम बोलते हैं। +* एकमात्र नैतिक सबक जो बच्चे के लिए उपयुक्त है जीवन के हर समय के लिए सबसे महत्वपूर्ण सबक यह है कभी किसी को चोट ना पहुचाये। +* खुशी: एक अच्छा बैंक खाता, एक अच्छा रसोइया और एक अच्छा पाचन। +* आज़ाद लोग, इस कहावत को याद रखें: हम आज़ादी हासिल कर सकते हैं, लेकिन अगर यह एक बार खो जाए तो फिर कभी वापस नहीं आती। +* वास्तविकता की दुनिया की अपनी सीमाएँ हैं; कल्पना की दुनिया असीम है। +* यह दावा करने के लिए दास का पुत्र दास पैदा हुआ, यह दावा करना है कि वह एक आदमी पैदा नहीं हुआ। + + +* कुछ लोग दूसरों के सिर काटकर स्वयं ऊँचा बनने का प्रयास करते हैं! +* जिस प्रकार भूख का एक यथार्थ उद्देश्य है, परन्तु लोलुपता का नहीं, उसी प्रकार काम प्रवृत्ति को भी प्रकृति ने केवल प्रजाति के प्रवर्तन के लिये बनाया है, कभी तृत्त न हो सकने वाली वासनाओं को जगाने के लिये नहीं। अपनी गलत इच्छाओं को अभी ही नष्ट कर दो, अन्यथा स्थूल शरीर छूट जाने के बाद भी सूक्ष्म शरीर में वे तुम्हारे साथ चिपकी रहेंगी। शरीर को रोक पाना भले ही कठिन हो, पर मन में निरन्तर विरोध करते ही रहना चाहिये। यदि प्रलोभन निष्दुरतापूर्वक तुम पर आक्रमण करे तो साक्षीभाव से उसका विश्लेषण करके अदम्य इच्छाशक्ति अपनी शक्तियों को बचा कर रखो। विशाल समुद्र के समान बनो जिसमें इन्द्रियों की सब नदियाँ चुपचाप विलीन होती चली जायें। प्रतिदिन नयी शक्ति के साथ जागती वासनाएँ तुम्हारी आंतरिक शान्ति को सोख लेंगी; ये वासनाएँ जलाशय में बने छिद्रों के समान हैं जो प्राणमूलक जल को विषयासक्ति के रेगिस्तान में नष्ट होने के लिये बहा देते हैं। मनुष्य को बाध्य करने वाला कुवासनाओं का शक्तिशाली आवेग उसके सुख का सबसे बड़ा शत्रु है। आत्म-संयम के सिंह बनकर संसार में विचरण करो। इन्द्रिय-दुर्बलताओं के मेंढकों की लातें खाकर इधर से उधर लुढ़कते मत रहो। + + +महावतार बाबाजी योगीराज लाहिड़ी महाशय द्वारा एक भारतीय योगी को दिया गया नाम है, और उनके कई शिष्य हैं, जिन्होंने 1861, 1935 और 1980 के बीच उनसे मिलने की सूचना दी थी। +* अनेकों के दोष के कारण सभी को दोषी मत मानो। इस जगत् में हर चीज़ मिश्रित रूप में है, शक्कर और रेत के मिश्रण की तरह। चींटी की भाँति बुद्धिमान बनो, जो केवल शक्कर के कणों को चुन लेती है और रेत-कणों को स्पर्श किये बिना छोड़ देती है। +| title प्रकरण ३६ पश्चिम के प्रति बाबाजी की अभिरुचि Page 450 +* बहुत ही थोड़े मर्त्य मानवों को यह ज्ञात है कि ईश्वर के राज्य में ऐहिक परिपूर्तियाँ भी सम्मिलित हैं, दैवी जगत् की सत्ता इहलोक में भी चलती है, परन्तु इहलोक का स्वरूप ही भ्रमात्मक होने के कारण उसमें सत्य के दैवी तत्त्व का अभाव है। +| title प्रकरण ३४ हिमालय में महल का सृजन Page 422 + + +रमण महर्षि 1879-1950) आधुनिक काल के महान ऋषि और संत थे। +* सबसे उत्कृष्ट दान विद्या-दान है। +* जो वेद और शास्त्र के ग्रंथों को याद कर लेता है किंतु उनके यथार्थ तत्व को नहीं समझता, उसका वह याद रखना व्यर्थ है। +* केवल शांति अस्तित्वमान है। हमें केवल शान्त रहने की जरूरत है। शान्ति ही हमारी वास्तविक प्रकृति है। हम इसे नष्ट करते हैं। इसे नष्ट करने की आदत को बंद करने की जरुरत है। +* अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। +* मृत्यु शरीर को मार सकती है अहं-मैं-आत्मा' अनीश्वर है, अमर है, मृत्यु की सभी सीमाओं से बाहर है। +* मन, अच्छा और बुरा, दो नहीं हैं। वासना के अनुरूप अच्छे और बुरे मन का स्वरूप हमारे सामने आ जाता है. । +* अपने आपको जानो आत्मज्ञान परमोच्च ज्ञान है, सत्य का ज्ञान है। +* सर्वोत्तम और परम शक्तिमयी भाषा मौन है, मौन शांति का भूषण है। उपदेश तो नितान्त मौन रहकर दिया जा सकता है। +* आपकी स्वयं का आत्म-साक्षात्कार सबसे बड़ी सेवा है जो आप दुनिया को प्रदान कर सकते हैं। +* इसमें रुचि लेने से इनकार करके ही आप विचारों के प्रवाह को रोक सकते हैं। +* मन वह चेतना है जिसने मर्यादाएं बंधी हैं। आप मूल रूप से असीमित और परिपूर्ण हैं। बाद में आप सीमाएं लेते हैं और मन बन जाते हैं। +* स्वयं को महसूस करने के लिए केवल "स्थिर रहने" की आवश्यकता है। +* बोध किसी नई चीज का अधिग्रहण नहीं है और न ही यह कोई नई फैकल्टी है। यह केवल सभी छलावरणों को हटा रहा है +* आपको किसी नए राज्य की आकांक्षा या प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। अपने वर्तमान विचारों से छुटकारा पाएं, बस इतना ही। +* यदि आप उपलब्ध प्रकाश के साथ काम करते रहें, तो आप अपने गुरु से मिलेंगे, जैसे वे स्वयं आपको खोज रहे होंगे। +* प्रश्न ‘मैं कौन हूँ?’ सभी दुखों को दूर करने और परम आनंद की प्राप्ति का प्रमुख साधन है। +* रहस्योद्घाटन या अंतर्ज्ञान अपने समय में उत्पन्न होता है और व्यक्ति को इसकी प्रतीक्षा करनी चाहिए। +* शरीर को जिन सभी गतिविधियों और घटनाओं से गुजरना होता है, वे गर्भाधान के समय निर्धारित की जाती हैं। +* मन की शांति जो संत के वातावरण में व्याप्त है, वह एकमात्र साधन है जिसके द्वारा साधक संत की महानता को समझता है। +* भक्ति पूर्ण ज्ञान में परिणत होती है। +* अवांछित विचारों से मुक्ति का स्तर तथा एक ही विचार पर एकाग्र होने का स्तर, आध्यात्मिक प्रगति के मापदण्ड हैं। +* प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति का अनुभव होता है कि बुराई करने वाले पर देर-सवेर फिर से दबाव पड़ता है। +* सच में तुम आत्मा हो। शरीर को मन द्वारा प्रक्षेपित किया गया है, जो स्वयं आत्मा से उत्पन्न होता है। +* मानव मन अपनी मुश्किलें खुद ही पैदा करता है और फिर मदद के लिए पुकारता है। +* शांति मानव जाति का आंतरिक स्वभाव है। अगर आप इसे अपने भीतर खोज लेंगे, तो आप इसे हर जगह पाएंगे। +* आपके प���स एकमात्र स्वतंत्रता है कि आप अपने मन को भीतर की ओर मोड़ें और वहां की गतिविधियों का त्याग करें। +* शांति आपकी प्राकृतिक अवस्था है। यह तुम्हारा मन है जो इसे नष्ट कर देता है। +* भगवान का कोई संकल्प नहीं है; कोई कर्म उससे नहीं जुड़ता। +* इससे बड़ा कोई रहस्य नहीं है: स्वयं वास्तविकता होने के नाते, हम वास्तविकता को प्राप्त करना चाहते हैं। +* इन सभी दृष्टांतों का उद्देश्य साधक के मन को उन सभी में अंतर्निहित एक वास्तविकता की ओर निर्देशित करना है। +* शुद्ध सुख के भण्डार को खोलने के लिए व्यक्ति को स्वयं की अनुभूति करनी चाहिए। +* यदि हम स्वयं को कर्म कर्ता मानते हैं तो हम भी ऐसे कर्मों के फल के भोक्ता होंगे। +* इसमें कोई शक नहीं कि भक्ति और ज्ञान के मार्गों का अंत एक ही है। +हम वो हैं यह तथ्य कि हम मुक्ति की कामना करते हैं, यह दर्शाता है कि सभी बंधनों से मुक्ति हमारा वास्तविक स्वभाव है। +* सपने देखने वाला सपना देखता है कि उसके जागने से पहले उसके सपने में बाकी सभी को जागना चाहिए। +* मन की कोई बात नहीं। यदि इसके स्रोत की तलाश की जाती है, तो यह स्वयं को अप्रभावित छोड़कर गायब हो जाएगा। +* रहस्योद्घाटन या अंतर्ज्ञान अपने समय में उत्पन्न होता है और इसके लिए प्रतीक्षा करनी चाहिए। +* चेतना वास्तव में हमेशा हमारे साथ है। हर कोई जानता है ‘मैं हूँ!’ कोई अपने होने से इंकार नहीं कर सकता। +* बिना प्रयास के कोई भी सफल नहीं होता। जो लोग सफल होते हैं वे अपनी सफलता का श्रेय दृढ़ता को देते हैं। +* बोध उस भ्रम से छुटकारा पाने के लिए है जिसे आपने महसूस नहीं किया है। +* मौन सबसे शक्तिशाली है। वाणी हमेशा मौन से कम शक्तिशाली होती है। +* अपने आप को जीवित वर्तमान में व्यस्त रखें। भविष्य अपने आप संभल जाएगा। +* आत्मा को महसूस करने के लिए जो कुछ भी आवश्यक है वह स्थिर होना है। इससे आसान क्या हो सकता है? +* घटनाओं के निर्धारित पाठ्यक्रम के लिए ईश्वर की इच्छा स्वतंत्र इच्छा के जटिल प्रश्न का एक अच्छा समाधान है। +* एक सर्वोच्च भगवान की सर्वशक्तिमान शक्ति द्वारा सभी चीजें की जा रही हैं। + + +अरविन्द घोष बांग्ला: শ্রী অরবিন্দ, जन्म: १८७२, मृत्यु: १९५०) भारत के एक क्रान्तिकारी, योगी एवं दार्शनिक थे। वे १५ अगस्त १८७२ को कलकत्ता में जन्मे थे। +* भारत का युग मृत नहीं है और न ही उसने अपना अंतिम रचनात्मक शब्द बोला है यह है और अ��ी भी अपने और मानव लोगों के लिए कुछ करना चाहती है। +* अतीत के दावों से संबंध नहीं, बल्कि भविष्य की दोपहर से। +* अब हमारे सारे कार्यों के लक्ष्य मातृभूमि की सेवा ही होनी चाहिए। आपका अध्ययन, मनन, शरीर ,मन और आत्मा का संस्कार सभी कुछ मातृभूमि के लिए ही होना चाहिए। आप काम करो, जिससे मातृभूमि समृद्ध हो। +* अस्तित्व की सभी समस्याएं अनिवार्य रूप से सद्भाव की समस्याएं हैं। +* आत्मा जो देखती है और अनुभव करती है वह जानती है वाकी उपस्थिति पूर्वाग्रह और राय है। +* आध्यात्मिकता वास्तव में भारतीय मन की प्रमुख कुंजी है इनफिनिटिव अनन्त की भावना इसके मूल निवासी हैं। +* एक भगवान जो मुस्कुरा नहीं सकता है वह इस हास्य ब्रह्मांड का निर्माण नहीं कर सकता है। +* एकता स्थापित करने वाले सच्चे बन्धु हैं। +* और लोग अपने देश को एक भौतिक चीज की तरह जानते हैं। जैसे- मैदान, जमीन, पहाड़, जंगल, नदी वगैरह। लेकिन मैं अपने देश को माँ की तरह जानता हूँ। मैं उसे अपनी भक्ति अर्पित करता हूँ। उसे अपनी पूजा अर्पण करता हूँ। +* कला अतिसूक्ष्म और कोमल है। अतः अपनी गति के साथ यह मस्तिष्क को भी कोमल और सूक्ष्म बना देती है। +* कुछ धर्मपरापण लोगों को सुनने के लिए, कोई कल्पना करेगा भगवान कभी नहीं हंसे। +* कोई भी देश या जाति अब विश्व से अलग नहीं रह सकती। +* क्या यह सच है कि अस्तित्व में केवल ऊर्जा की क्रिया होती है या ऐसा नहींं है कि ऊर्जा अस्तित्व का उत्पादन है ?। +* गुण कोई किसी को नहीं सिखा सकता। दूसरे के गुण लेने या सीखने की जब भूख मन में जागती है, तो गुण अपने आप सीख लिए जाते हैं। +* गुप्त प्रकृति गुप्त भगवान है। +* जब मन शांत होता है, तब सत्य को मौन की पवित्रता में सुनने का मौका मिलता है। +* जिसमें त्याग की मात्रा, जितने अंश में हो, वह व्यक्ति उतने ही अंश में हो, वह व्यक्ति उतने ही अंश में पशुत्व से ऊपर है। +* जिसमें फूट हो गई है और पक्ष भेद हो गए हैं, ऐसा समाज किस काम का आत्मप्रतिष्ठा और आत्मा की एकता की मूर्ति का समाज चाहिए। अलग रह कर जितना काम होता है, उससे सौ गुना संघशक्ति से होता है। +* जैसे सारा संसार बदल रहा है, उसी प्रकार, भारत को भी बदलना चाहिए। +* दर्द नश्वर हृदय में मृत प्रतिरोध को तोड़ने के लिए देवताओं का हथौड़ा है। +* धन को विलास के लिए खर्च करना एक प्रकार से चोरी होगी। वह धन असहायों और जरूरतमन्दों के लिए है। +* बहुत आम तौर पर परोपकारिता केवल स्वार्थ का सबसे बड़ा रुप है। +* भारत की एकता, स्वाधीनता और उन्नति सहज साध्य हो जाएगी, भाषा की रक्षा करते हुए साधारण भाषा के रूप में हिन्दी भाषा को ग्रहण कर उस बाधा को दूर करेंगें। +* भारत भौतिक समृद्धि से हीन है, यद्दपि, उसके जर्जर शरीर में आध्यात्मिकता का तेज वास करता है। +* मेरा ईश्वर प्रेम है और इसके मीठे रूप से सभी पीडि़त हैं। +* मेरा हर काम अपने लिए न होकर देश के लिए ही है, मेरा हित एवं मेरे परिवार का हित देशहित में ही निहित है। +* मैंने शपथ ली कि मैं दुनिया के दु:ख और दुनिया की मूर्खता और क्रूरता और अन्याय से पीडि़त नहीं होऊंगा और मैंने अपने दिल को स्टील की एक पॉलिश सतह के रूप में nether मिलस्टोन और अपने दिमाग के रूप में कठिन बना दिया। मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई थी बस आनंद मुझसे दूर हो गया। +* यदि तुम किसी का चरित्र जानना चाहते हो तो उसके महान कार्य न देखो, उसके जीवन के साधारण कार्यों का सूक्ष्म निरीक्षण करो। +* यह देश यदि पश्चिम की शक्तियों को ग्रहण करे और अपनी शक्तिओं का भी विनाश नहीं होने दे तो उसके भीतर से जिस संस्कृति का उदय होगा वह अखिल विश्व के लिए कल्याणकारिणी होगी। वास्तव में वही संस्कृति विश्व की अगली संस्कृति बनेगी। +* युगों का भारत मृत नहीं हुआ है और न उसने अपना अंतिम सृजनात्मक शब्द उच्चारित ही किया है, वह जीवित है और उसे अभी भी स्वयं अपने लिए और मानव लोगों के लिए बहुत कुछ करना है और जिसे अब जागृत होना आवश्यक है। +* लेकिन हार अंत नहीं है यह केवल एक द्वार या एक शुरुआत है। +* व्यक्तियों में सर्वथा नवीन चेतना का संचार करो, उनके अस्तित्व के समग्र रूप को बदलो, जिससे पृथ्वी पर नए जीवन का समारंभ हो सके। +* सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। + + +* जीवन, मृत्यु से अधिक शक्तिशाली है क्योंकि वह पापों को धोकर भी आगे बढती है। +* योग साधना विचारों की आपसी टकराहट से पैदा होने वाले शोर को पार कर शांति हासिल करने का एक तरीका है। +* लोग अपना संतुलन खो देते हैं एवं धनोपार्जन के पागलपन तथा व्यावसायिक उन्माद के कारण कष्ट भोगते हैं, क्योंकि उनको कभी भी एक संतुलित जीवन की आदत को विकसित करने का मौका ही नहीं मिला। +* हर क्षण में शांति से जियें और फिर अपने परिवेश की सुंदरता को अनुभव करें। भविष्य अपने आप सुदृढ़ हो जायेगा। +* फिर से कोशिश करें, कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितनी बार आप विफल रहे हैं. हमेशा एक बार और कोशिश करनी चाहिये। +* स्थिरता ही आत्मा की बलिवेदी है। +* असफलता के दौर में सफलता का बीज बोने का सबसे बढ़िया समय है। + + +आनन्दमयी माँ 30 अप्रैल 1896 27 अगस्त 1982) भारत की एक संत और आध्यत्मिक गुरु थीं। वे भारत के उन महानतम संतों में एक हैं जिन्हें आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत श्रेष्ठ माना गया है। स्वामी शिवानन्द, स्वामी योगानन्द परमहंस आदि ने भी माँ आनंदमयी की उन्नत आध्यात्मिक अवस्था की प्रशंसा की है। आनन्दमयी माँ के भक्तों ने अपने जीवन में माँ की कृपा से कइयों चमत्कारों, कष्ट निवारण जैसे अद्भुत अनुभव किये हैं। +आनंदमयी माँ का जन्म 30 अप्रैल 1896 को बांग्लादेश के ब्राह्मणबरिया जिले में हुआ था। उनका असली नाम निर्मला सुन्दरी था, परन्तु उनके सदा ईश्वर आनन्द में परिपूर्ण व्यक्तित्व और सबसे माँ के समान स्नेहवत व्यवहार के कारण भक्त लोग उन्हें ‘आनंदमयी माँ’ कहने लगे। 27 अगस्त 1982 को 86 साल की उम्र में आनंदमयी माँ ने उत्तराखण्ड के देहरादून में समाधि लेकर अपनी जीवनलीला पूर्ण की। +* सेवा सबकी करो परन्तु आशा किसी से मत रखो। यह संसार में रहने का उत्तम ढंग है। +* बिना कारण या वजह के उनकी कृपा, उनका अनुग्रह हर क्षण समक्ष बरस रहा है। +* केवल वे ही जानते हैं कि वो किसके समक्ष किस रूप में प्रकट होंगे। किस रास्ते से और किस तरीके से वो किसी खास व्यक्ति को अपनी ओर तीव्र शक्ति से आकर्षित करते हैं, मनुष्य की समझ से बाहर की बात है। निःसंदेह अलग-अलग यात्रियों के मार्ग अलग हैं। +* असली यथार्थ विचार और शब्द के परे है। जो कुछ शब्दों में कहा जा सकता है केवल वही कहा गया है। लेकिन वास्तव में जिसे भाषा में परिभाषित नहीं किया जा सकता, वही वो (परमात्मा) हैं। +* जब भी सम्भव हो सके, पवित्र नाम का प्रवाह चालू रखो (ईश्वर नाम जप)। उनका नाम जपना उनकी उपस्थिति के समान है। अगर तुम उस सर्वोच्च मित्र के साथी बनो, वो अपना सच्चा रूप तुमको प्रकट कर देंगे। +* कौन है जो प्यार करता है और कौन है जो कष्ट भुगतता है केवल वही अकेले खुद खेल रहा है, उसके अलावा कौन मौजूद है व्यक्ति कष्ट पाता है क्योंकि वो द्वैत को अनुभव करता है। ये द्वैत है जो शोक और दुख का कारण है। उस एक को खोजो जो सबमें और सब जगह व्याप्त है, और इससे दुख और दर्द का अंत हो जाएगा। +* जब दिमाग सां��ारिक इच्छाओं से भरा हुआ होता है, तो उनका स्वभाव है दिमाग को भ्रमित करना। दिमाग को बाहरी चीजों से अलग करके अंदर की तरफ मोड़ दो। +* या तो (ईश्वर से) अलगाव के भावना की भक्ति से पिघलो, या ज्ञान की अग्नि से जला दो- क्या है जो पिघलता है या जलता है केवल वही जिसके स्वभाव में जल सकना या पिघल सकना है; यानि वो विचार कि किसी अन्य का अस्तित्व तुमसे अलग है। इसके बाद क्या होगा तुम अपने आप को जान जाओगे। +* कृपा हर समय वर्षा की तरह बरस रही है, प्रत्येक को थोड़ी बहुत आध्यात्मिक साधना करनी चाहिए जिससे कि वो (कृपा) ग्रहण करने लायक बन सके। जो भी थोड़ी बहुत शक्ति तुम्हारे पास है – उसे लगाओ पवित्र ग्रंथों को पढ़ने में, उनका नाम लेने में, जप करने में – उतना करो जितना करने की शक्ति है, करते जाओ। उसके बाद, जो कुछ करना है वो करेंगे। सिर्फ कौर मुंह में डालने से पेट नहीं भर जाता है। (उसे चबाना, निगलना भी पड़ता है) +* उनके लिए रोना कभी व्यर्थ नहीं जाता है। जब तक तुम्हें प्रतिक्रिया न मिले, प्रार्थना करते रहना। +* जब कोई सारे प्रयासों के बावजूद ट्रेन पकड़ने में असफल होता है, क्या इससे ये साफ नहीं होता कि सारी हलचल किसकी तरफ से निर्देशित है तुम्हारे साथ कहीं भी, जो कुछ भी, किसी भी समय होता है, सब कुछ उनके द्वारा निश्चित किया गया है….उनकी व्यवस्था एकदम उत्तम होती है। +* एकमात्र ईश्वर की तरफ मुड़ने से ही मनुष्य के लिए शांति पाने की आशा है। +* हमेशा ये बात दिमाग में रखो सबकुछ भगवान के हाथ में है, और तुम उनकी इच्छानुसार उपयोग किये जाने वाले एक उपकरण हो। ‘सबकुछ उनका है’ इस बात का महत्व समझने की कोशिश करो और तुम तुरंत ही सभी बंधनों से मुक्त अनुभव करोगे। तुम्हारे इस आत्मसमर्पण का क्या परिणाम होगा कोई भी अनजान या पराया नहीं लगेगा, सभी तुम्हारे अपने लगेंगे। + + +राजा राम मोहन राय को 'भारतीय पुनर्जागरण का जनक' कहा जाता है। उन्हें भारत का प्रथम आधुनिक व्यक्ति (The first Modern man of India) भी कहा जाता है। इनका जन्म 1772 ई. में हुगली के राधानगर में हुआ था। वे अमेरिकी स्वाधीनता संग्राम एवं फ्रांसीसी आन्दोलन से काफी प्रभावित हुए। शिक्षा के क्षेत्र में वह अंग्रेजी शिक्षा के पक्षधर थे। उनहें विश्वास था कि उदारवादी पाक्ष्चात्य शिक्षा ही देशवासियों को अज्ञान के अंधकार से बाहर निकाल सकती है और भारतीयों को देश के प्रशासन में भाग दिला स���ती है। +* ईश्वर केवल एक है, उसका कोई अंत नहीं सभी जीवित वस्तुओं में परमात्मा का अस्तित्व है । मैं हिन्दू धर्म का नहीं, उसमें व्याप्त कुरीतियों का विरोधी हूँ । हिन्दी में अखिल भारतीय भाषा बनने की क्षमता है । यह व्यापक विशाल विश्वब्रह्म का पवित्र मन्दिर है, शुद्ध शास्त्र है, श्रद्धा ही धर्म का मूल है, प्रेम ही परम साधन है, स्वार्थों का त्याग ही वैराग्य है । +* प्रत्येक स्त्री को पुरूषों की तरह अधिकार प्राप्त हो, क्योंकि स्त्री ही पुरूष की जननी है, हमें हर हाल में स्त्री का सम्मान करना चाहिए । हमारे समाज के लोग यह समझते हैं कि नदी में नहाने से, पीपल की पूजा करने से और पण्डित को दान करने से हमारे पाप धुल जाएँगे । जो ऐसा समझते हैं, वे भूल कर रहे है, उन्हें नदी में स्नान करने से कभी मुक्ति मिल सकती, वे अंधविश्वास के अँधेरे में भटक रहे हैं । +* यदि मानव जाति किसी के द्वारा थोपे गए विचारों पर ध्यान न दे और अपने तर्क से सत्य का अनुसरण करे, तो उसकी उन्नति को कोई रोक नहीं सकता, प्रत्येक भेदभाव को मिटा कर प्रगति की राह पर अग्रसर हो सकता है । विचलित करने वाले अन्धविश्वासी हैं, धर्माध हैं, वे पूरे समाज में अन्धकार फैलाना चाहते हैं । समाचार- पत्रों को पिछड़ी जातियों तक पहुंचाया जाए, जिससे कि वे ज्ञान के प्रकाश से सराबोर हो सके । किसी भी धर्म का ग्रन्थ पढने से जाति भ्रष्ट होने का प्रश्न ही नहीं उठता। मैंने तो कई बार बाइबिल और कुरानेशरीफ को पढ़ा है, मै न तो ईसाई बना और न ही मुसलमान बना. बहुत से यूरोपियन गीता और रामायण पढ़ते हैं, वे तो हिंदू नहीं हुए । +* ईश्वर केवल एक है. उसका कोई अंत नहीं सभी जीवित वस्तुओं में परमात्मा का अस्तित्व है। +* मैं हिन्दू धर्म का नहीं, उसमें व्याप्त कुरीतियों का विरोधी हूँ। +* हिन्दी में अखिल भारतीय भाषा बनने की क्षमता है। +* यह व्यापक विशाल विश्वब्रह्म का पवित्र मन्दिर है, शुद्ध शास्त्र है। श्रद्धा ही धर्म का मूल है, प्रेम ही परम साधन है। स्वार्थों का त्याग ही वैराग्य है। +* प्रत्येक स्त्री को पुरूषों की तरह अधिकार प्राप्त हो, क्योंकि स्त्री ही पुरूष की जननी है। हमें हर हाल में स्त्री का सम्मान करना चाहिए। +* हमारे समाज के लोग यह समझते हैं कि नदी में नहाने से, पीपल की पूजा करने से और पण्डित को दान करने से हमारे पाप धुल जाएँगे। जो ऐसा समझते हैं, वे भूल कर रहे हैं। उन्हें नदी में स्नान करने से कभी मुक्ति मिल सकती। वे अंधविश्वास के अँधेरे में भटक रहे हैं। +* यदि मानव जाति किसी के द्वारा थोपे गए विचारों पर ध्यान न दे और अपने तर्क से सत्य का अनुसरण करे, तो उसकी उन्नति को कोई रोक नहीं सकता। प्रत्येक भेदभाव को मिटा कर प्रगति की राह पर अग्रसर हो सकता है। +* विचलित करने वाले अन्धविश्वासी हैं, धर्माध हैं, वे पूरे समाज में अन्धकार फैलाना चाहते हैं। +* समाचार- पत्रों को पिछड़ी जातियों तक पहुंचाया जाए, जिससे कि वे ज्ञान के प्रकाश से सराबोर हो सके। +* ज्ञान की ज्योति से मानव मन के अन्धकार को दूर किया जा सकता है। +* किसी भी धर्म का ग्रन्थ पढने से जाति भ्रष्ट होने का प्रश्न ही नहीं उठता। मैंने तो कई बार बाइबिल और कुरानेशरीफ को पढ़ा है। मै न तो ईसाई बना और न ही मुसलमान बना। बहुत से यूरोपियन गीता और रामायण पढ़ते हैं, वे तो हिंदू नहीं हुए। + + +श्री चिन्मय 27 अगस्त 1931 11 अक्टूबर 2007 एक भारतीय आध्यात्मिक नेता थे, जिन्होंने १ ९ ६४ में न्यूयॉर्क शहर जाने के बाद पश्चिम में ध्यान सिखाया था। +* अंतर संवेदना और बाहरी सहिष्णुता आसानी से एक नयी दुनिया का निर्माण कर सकतें हैं, एक बेहतर दुनिया का + + +* जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। +* प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है। तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अन्त तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही 'साहित्य का इतिहास' कहलाता है। +* प्राकृत की अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव माना जा सकता है। उस समय जैसे 'गाथा' कहने से प्राकृत का बोध होता था, वैसे ही 'दोहा' या 'दूहा' कहने से अपभ्रंश या प्रचलित काव्यभाषा का पद्य समझा जाता था। +* जब से प्राकृत बोलचाल की भाषा न रह गई, तभी से अपभ्रंश साहित्य का आविर्भाव समझना चाहिए। +* पहले जैसे 'गाथा' या 'गाहा' कहने से प्राकृत का बोध होता था वैसे ही पीछे 'दोहा' या 'दूहा' कहने से अपभ्रंश या लोकप्रचलित काव्यभाषा का बोध होने लगा। +* जिस प्रकार सिद्धों की संख्या चौरासी प्रसिद्ध है, उसी प्रकार नाथों की संख्या नौ। अब भी लोग 'नवनाथ' और 'चौरासी सिद्ध कहते सुने जाते हैं। +* कबीर आदि संतों को नाथपंथियों से जिस प्रकार 'साखी' और 'बानी' शब्द मिले, उसी प्रकार 'साखी' और 'बानी' के लिए बहुत कुछ सामग्री और 'सधुक्कड़ी' भाषा भी। +* इतिहासविरुद्ध कल्पित घटनाएँ जो भरी पड़ी हैं उनके लिए क्या कहा जा सकता है? माना कि रासो इतिहास नहीं है, काव्यग्रंथ है। पर काव्यग्रंथों में सत्य घटनाओं में बिना किसी प्रयोजन के कोई उलट-फेर नहीं किया जाता। +* इस संबंध में इसके अतिरिक्त और कुछ कहने की जगह नहीं कि यह पूरा ग्रंथ वास्तव में जाली है। +* भाषा की कसौटी पर यदि ग्रंथ को कसते हैं तो और भी निराश होना पड़ता है क्योंकि वह बिल्कुल बेठिकाने है। उसमें व्याकरण आदि की कोई व्यवस्था नहीं है। +*आध्यात्मिक रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गए हैं। उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने 'गीतगोविंद' के पदों को आध्यात्मिक संकेत बताया है, वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी। सूर आदि कृष्णभक्तों के शृंगारी पदों की भी ऐसे लोग आध्यात्मिक व्याख्या चाहते हैं। +* भक्ति का जो सोता दक्षिण की ओर से धीरे-धीरे उत्तर भारत की ओर पहले से ही आ रहा था उसे राजनीतिक परिवर्तन के कारण शून्य पड़ते हुए जनता के हृदय क्षेत्र में फैलने के लिए पूरा स्थान मिला। +* भक्ति के आन्दोलन की जो लहर दक्षिण से आई उसी ने उत्तर भारत की परिस्थिति के अनुरूप हिंदू मुसलमान दोनों के लिए एक सामान्य भक्तिमार्ग की भी भावना कुछ लोगों में जगाई। +* कबीर ने जिस प्रकार एक निराकार ईश्वर के लिए भारतीय वेदांत का पल्ला पकड़ा उसी प्रकार उस निराकार ईश्वर की भक्ति के लिए सूफियों का प्रेमतत्व लिया और अपना 'निर्गुणपंथ' धूमधाम से निकाला। +* इसमें कोई संदेह नहीं कि कबीर ने ठीक मौके पर जनता के उस बड़े भाग को सँभाला जो नाथपंथियों के प्रभाव से प्रेमभाव और भक्तिरस से शून्य और शुष्क पड़ता जा रहा था। उनके द्वारा यह बहुत ही आवश्यक कार्य हुआ। +* कबीर ने अपनी झाड़-फटकार के द्वारा हिंदुओं और मुसलमानों की कट्टरता को दूर करने का जो प्रयास किया। वह अधिकतर चिढ़ाने वाला सिद्ध हुआ, हृदय को स्पर्श करने वाला नहीं। +* मनुष्य मनुष्य के बीच जो रागात्मक संबंध है वह उसके द्वारा व्यक्त न हुआ। अपने नित्य के जीवन में जिस हृदयसाम्य का अनुभव मनुष्य कभी कभी किया करता है, उसकी अभिव्यंजना उससे न हुई। कुतबन, जायसी आदि ��न प्रेम कहानी के कवियों ने प्रेम का शुद्ध मार्ग दिखाते हुए उन सामान्य जीवन दशाओं को सामने रखा जिनका मनुष्यमात्र के हृदय पर एक सा प्रभाव दिखाई पड़ता है। हिंदू हृदय और मुसलमान हृदय आमने सामने करके अजनबीपन मिटानेवालों में इन्हीं का नाम लेना पड़ेगा। इन्होंने मुसलमान होकर हिंदुओं की कहानियाँ हिंदुओं की ही बोली में पूरी सहृदयता से कहकर उनके जीवन की मर्मस्पर्शी अवस्थाओं के साथ अपने उदार हृदय का पूर्ण सामंजस्य दिखा दिया। कबीर ने केवल भिन्न प्रतीत होती हुई परोक्ष सत्ता की एकता का आभास दिया था। प्रत्यक्ष जीवन की एकता का दृश्य सामने रखने की आवश्यकता बनी थी। यह जायसी द्वारा पूरी हुई। +* प्रेमगाथा की परम्परा में पद्मावत सबसे प्रौढ़ और सरस है। इसमें इतिहास और कल्पना का योग है। +* इस कहानी का पूर्वार्द्ध तो बिल्कुल कल्पित है और उत्तरार्द्ध ऐतिहासिक आधार पर है। +* यद्यपि पद्मावत की रचना संस्कृत प्रबंधकाव्यों की सर्गबद्ध पद्धति पर नहीं है, फारसी की मसनवी शैली पर है, पर शृंगार, वीर आदि के वर्णन चली आती हुई भारतीय काव्यपरम्परा के अनुसार ही हैं। इसका पूर्वार्द्ध तो एकांत प्रेममार्ग का ही आभास देता है, पर उत्तरार्द्ध में लोकपक्ष का भी विधान है। +* जिन्हें भाषा की परख है उन्हें यह देखते देर न लगेगी कि तुलसीदास जी की भाषा में ऐसे शब्द, जो स्थान विशेष के बाहर नहीं बोले जाते हैं, केवल दो स्थानों के हैं- चित्रकूट के आसपास के और अयोध्या के आसपास के। किसी कवि की रचना में यदि किसी स्थान विशेष के भीतर ही बोले जाने वाले अनेक शब्द मिलें तो उस स्थान विशेष से कवि का निवास संबंध मानना चाहिए। +* गोस्वामी जी के प्रादुर्भाव को हिन्दी काव्य क्षेत्र में एक चमत्कार समझना चाहिए। हिन्दी काव्य की शक्ति का पूर्ण प्रसार इनकी रचनाओं में ही पहले पहल दिखाई पड़ा। +गीतावली' की रचना गोस्वामी जी ने सूरदास जी के अनुकरण पर की है। बाललीला के कई एक पद ज्यों के त्यों सूरसागर में भी मिलते हैं, केवल 'राम श्याम' का अंतर है। +* जायसी में केवल ठेठ अवधी का माधुर्य है, पर गोस्वामी जी की रचना में संस्कृत की कोमल पदावली का भी बहुत ही मनोहर मिश्रण है। +* भारतीय जनता का प्रतिनिधि कवि यदि किसी को कह सकते हैं तो इन्हीं महानुभाव को। सगुण धारा की भारतीय पद्धति के भक्तों में कबीर, दादू आदि के लोकधर्म विरोधी स्वरूप को यदि किसी ने पहचाना तो गोस्वामी जी ने। +* गोस्वामी जी की भक्तिपद्धति की सबसे बड़ी विशेषता है उसकी सर्वांगपूर्णता। जीवन के किसी पक्ष को सर्वथा छोड़कर वह नहीं चलती है। सब पक्षों के साथ उसका सामंजस्य है। न उनका कर्म या धर्म से विरोध है, न ज्ञान से। धर्म तो उसका नित्यलक्षण है। +मानस' के बालकांड में संत समाज का जो लंबा रूपक है वह इस बात को स्पष्ट रूप में सामने लाता है। भक्ति की चरम सीमा पर पहुँचकर भी लोकपक्ष उन्होंने नहीं छोड़ा। लोकसंग्रह का भाव उनकी भक्ति का एक अंग था। कृष्णोपासक भक्तों में इस अंग की कमी थी। +* कथा के मार्मिक स्थलों की पहचान, +* शृंगार की शिष्ट मर्यादा के भीतर बहुत ही व्यंजक वर्णन। +रामचरितमानस' के भीतर कहीं कहीं घटनाओं के थोड़े ही हेर फेर तथा स्वकल्पित संवादों के समावेशों के अतिरिक्त अपनी ओर से छोटी मोटी घटनाओं या प्रसंगों की नई कल्पना तुलसीदास जी ने नहीं की है। +रामचरितमानस' में तुलसी केवल कवि रूप में ही नहीं, उपदेशक के रूप में भी सामने आते हैं। उपदेश उन्होंने किसी न किसी पात्र के मुख से कराए हैं। +सूरसागर' में जगह जगह दृष्टिकूट वाले पद मिलते हैं। यह भी विद्यापति का अनुकरण है। +* जिस प्रकार रामचरित का गान करने वाले कवियों में गोस्वामी तुलसीदास जी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार कृष्णचरित गानेवाले भक्त कवियों में महात्मा सूरदास जी का। वास्तव में ये हिन्दी काव्य गगन के सूर्य और चंद्र हैं। +* शृंगार और वात्सल्य के क्षेत्र में जहाँ तक इनकी दृष्टि पहुँची वहाँ तक और कोई किसी कवि की नहीं। इन दोनों क्षेत्रों में तो इस महाकवि ने मानो औरों के लिए कुछ छोड़ा ही नहीं। +* वात्सल्य के समान ही शृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का इतना प्रचुर विस्तार और किसी कवि में नहीं। सूर की बड़ी भारी विशेषता है नवीन प्रसंगों की उद्भावना। प्रसंगोद्भावना करने वाली ऐसी प्रतिभा हम तुलसी में नहीं पाते। +* सूरसागर का सबसे मर्मस्पर्शी और वाग्वैदग्धपूर्ण अंश 'भ्रमरगीत' है जिसमें गोपियों की वचनवक्रता अत्यन्त मनोहारिणी है। ऐसा सुन्दर उपालम्भ काव्य और कहीं नहीं मिलता। +* वात्सल्य के क्षेत्र में जितना अधिक उद्घाटन सूर ने अपनी बन्द आँखों से किया, इतना किसी और कवि ने नहीं। इन क्षेत्रों का तो वे कोना-कोना झाँक आए। +* सम्बन्धनिर्वाह की क्षमता केशव में न थी। +* प्रबंधकाव्य र���ना के योग्य न तो केशव में अनुभूति ही थी, न शक्ति। +* केशव की दृष्टि जीवन के गंभीर और मार्मिक पक्ष पर न थी। +* रामचंद्रिका में केशव को सबसे अधिक सफलता हुई है, संवादों में। +* शृंगाररस के ग्रंथों में जितनी ख्याति और जितना मान 'बिहारी सतसई' का हुआ उतना और किसी का नहीं। इसका एक एक दोहा हिन्दी साहित्य में एक एक रत्न माना जाता है। +* किसी कवि का यश उसकी रचनाओं के परिमाण के हिसाब से नहीं होता, गुण के हिसाब से होता है। +* यदि प्रबंधकाव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है। +* बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है। +भूषण' और 'देव' ने शब्दों का बहुत अंग भंग किया है और कहीं कहीं गढ़ंत शब्दों का व्यवहार किया है। बिहारी की भाषा इस दोष से भी बहुत कुछ मुक्त है। +* ये प्रेमोन्मत्त कवि थे और अपनी तरंग के अनुसार रचना करते थे। +* शृंगार रस की ऐसी उन्मादमयी उक्तियाँ इनकी रचना में मिलती हैं कि पढ़ने और सुननेवाले लीन हो जाते हैं। +* प्रेम की तन्मयता की दृष्टि से आलम की गणना 'रसखान' और 'घनानंद' की कोटि में ही होनी चाहिए। +प्रेम की पीर' या 'इश्क का दर्द' इनके एक-एक वाक्य में भरा पाया जाता है। +* ये साक्षात् रस मूर्ति और ब्रजभाषा काव्य के प्रधान स्तंभों में हैं। +* ये वियोग शृंगार के प्रधान मुक्तक कवि हैं। प्रेम की पीर' ही को लेकर इनकी वाणी का प्रादुर्भाव हुआ। प्रेममार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जबाँदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ। +* भाषा पर जैसा अचूक अधिकार इनका था वैसा और किसी कवि का नहीं। +* अपनी भावनाओं के अनूठे रूपरंग की व्यंजना के लिए भाषा का ऐसा बेधाड़क प्रयोग करनेवाला हिन्दी के पुराने कवियों में दूसरा नहीं हुआ। भाषा के लक्षक और व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है, इसकी पूरी परख इन्हीं को थी। +* लक्षणा का विस्तृत मैदान खुला रहने पर भी हिन्दी कवियों ने उसके भीतर बहुत ही कम पैर बढ़ाया। एक घनानंद ही ऐसे कवि हुए हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में अच्छी दौड़ लगाई। +* देश के भिन्न भिन्न भागों में मुसलमानों के फैलने तथा दिल्ली की दरबारी शिष्टता के प्रचार के साथ ही दिल्ली की खड़ी बोली शिष्ट समुदाय के परस्पर व्यवहार की भाषा हो चली थी। +* किसी भाषा का साहित्य में व्यवहार न होना इस बात का प्रमाण नहीं है कि उस भाषा का अस्तित्व ही नहीं था। अकबर और जहाँगीर के समय में ह��� खड़ी बोली भिन्न भिन्न प्रदेशों में शिष्ट समाज के व्यवहार की भाषा हो चली थी। यह भाषा उर्दू नहीं कही जा सकती; यह हिन्दी खड़ी बोली है। +* विक्रम संवत् 1798 में रामप्रसाद 'निरंजनी' ने 'भाषायोगवासिष्ठ' नाम का ग्रंथ साफ सुथरी खड़ी बोली में लिखा। 'भाषायोगवासिष्ठ' को परिमार्जित गद्य की प्रथम पुस्तक और राम प्रसाद निरंजनी को प्रथम प्रौढ़ गद्यलेखक मान सकते हैं। +* 1860 में फोर्ट विलियम कॉलेज (कलकत्ता) के हिन्दी उर्दू अध्यापक जान गिलक्राइस्ट ने देशी भाषा की गद्य पुस्तकें तैयार कराने की व्यवस्था की तब उन्होंने उर्दू और हिन्दी दोनों के लिए अलग अलग प्रबंध किया। +* खड़ी बोली गद्य को एक साथ आगे बढ़ानेवाले चार महानुभाव हुए हैं मुंशी सदासुख लाल, सैयद इंशाअल्ला खाँ, लल्लूलाल और सदल मिश्र। +* उन्होंने अपने हिन्दी गद्य में कथावाचकों, पंडितों और साधु संतों के बीच दूर दूर तक प्रचलित खड़ी बोली का रूप रखा, जिसमें संस्कृत शब्दों का पुट भी बराबर रहता था। इसी संस्कृतमिश्रित हिन्दी को उर्दूवाले 'भाषा' कहते थे। +* इंशा का उद्देश्य ठेठ हिन्दी लिखने का था जिसमें हिन्दी को छोड़कर और किसी बोली का पुट न रहे। इंशा ने अपनी भाषा को तीन प्रकार के शब्दों से मुक्त रखने की प्रतिज्ञा की है, बाहर की बोली अरबी, फारसी, तुरकी। गँवारी ब्रजभाषा, अवधी आदि। भाखापन संस्कृत के शब्दों का मेल। +* आरंभकाल के चारों लेखकों में इंशा की भाषा सबसे चटकीली, मटकीली, मुहावरेदार और चलती है। +* इंशा के समान इन्होंने केवल ठेठ हिन्दी लिखने का संकल्प तो नहीं किया था पर विदेशी शब्दों के न आने देने की प्रतिज्ञा अवश्य लक्षित होती है। +* यद्यपि मुंशी सदासुखलाल ने भी अरबी-फारसी के शब्दों का प्रयोग न कर संस्कृतमिश्रित साधु भाषा लिखने का प्रयत्न किया है पर लल्लूलाल की भाषा से उसमें बहुत कुछ भेद दिखाई पड़ता है। +* मुंशीजी की भाषा साफसुथरी खड़ी बोली है पर लल्लूलाल की भाषा कृष्णोपासक व्यासों की-सी ब्रजरंजित खड़ी बोली है। +* अकबर के समय में गंग कवि ने जैसी खड़ी बोली लिखी थी वैसी ही खड़ी बोली लल्लूलाल ने भी लिखी। दोनों की भाषाओं में अंतर इतना ही है कि गंग ने इधर उधर फारसी अरबी के प्रचलित शब्द भी रखे हैं पर लल्लूलालजी ने ऐसे शब्द बचाए हैं। +* सारांश यह कि लल्लूलालजी का 'काव्याभास' गद्यभक्तों की कथावार्ता के काम का ही अधिकतर है, न नित्य व्यवह��र के अनुकूल है, न संबद्ध विचारधारा के योग्य। +* लल्लूलाल ने उर्दू, खड़ी बोली हिन्दी और ब्रजभाषा तीनों में गद्य की पुस्तकें लिखीं। ये संस्कृत नहीं जानते थे। +* लल्लूलाल के समान इनकी भाषा में न तो ब्रजभाषा के रूपों की वैसी भरमार है और न परंपरागत काव्य भाषा की पदावली का स्थान स्थान पर समावेश। इन्होंने व्यवहारोपयोगी भाषा लिखने का प्रयत्न किया है और जहाँ तक हो सकता है खड़ी बोली का ही व्यवहार किया है। पर इनकी भाषा भी साफ सुथरी नहीं। ब्रजभाषा के भी कुछ रूप हैं और पूरबी बोली के शब्द तो स्थान स्थान पर मिलते हैं। +* गद्य की एक साथ परंपरा चलाने वाले उपर्युक्त चार लेखकों में से आधुनिक हिन्दी का पूरा पूरा आभास मुंशी सदासुखलाल और सदल मिश्र की भाषा में ही मिलता है। व्यवहारोपयोगी इन्हीं की भाषा ठहरती है। इन दो में मुंशी सदासुख की साधु भाषा अधिक महत्व की है। मुंशी सदासुख ने लेखनी भी चारों में पहले उठाई अत: गद्य का प्रवर्तन करनेवालों में उनका विशेष स्थान समझना चाहिए। +मानवधर्मसार' की भाषा राजा शिवप्रसाद की स्वीकृत भाषा नहीं है। प्रारंभकाल से ही वे ऐसी चलती ठेठ हिन्दी के पक्षपाती थे जिसमें सर्वसाधारण के बीच प्रचलित अरबीफारसी शब्दों का भी स्वच्छंद प्रयोग हो। यद्यपि अपने 'गुटका' में जो साहित्य की पाठयपुस्तक थी उन्होंने थोड़ी संस्कृत मिली ठेठ और सरल भाषा का ही आदर्श बनाए रखा, पर संवत् 1917 के पीछे उनका झुकाव उर्दू की ओर होने लगा जो बराबर बना क्या रहा, कुछ न कुछ बढ़ता ही गया। +* किसी देश के साहित्य का संबंध उस देश की संस्कृति परंपरा से होता है। अत: साहित्य की भाषा उस संस्कृति का त्याग करके नहीं चल सकती। भाषा में जो रोचकता या शब्दों में जो सौंदर्य का भाव रहता है वह देश की प्रकृति के अनुसार होता है। +* जिस प्रकार इधर संयुक्त प्रांत में राजा शिवप्रसाद शिक्षाविभाग में रहकर हिन्दी की किसी न किसी रूप में रक्षा कर रहे थे उसी प्रकार पंजाब में बाबू नवीनचंद्र राय महाशय कर रहे थे। +* राजा शिवप्रसाद 'आमफहम' और 'खासपसंद' भाषा का उपदेश ही देते रहे, उधर हिन्दी अपना रूप आप स्थिर कर चली। +;आधुनिक गद्य साहित्य परम्परा का प्रवर्तन प्रथम उत्थान +* आधुनिक काल में गद्य का आविर्भाव सबसे प्रधान घटना है। +* भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने वर्तमान हिन्दी गद्य के प्रवर्तक माने गए। मुंशी सदासुख की भाषा साधु होत�� हुए भी पंडिताऊपन लिए थी, लल्लूलाल में ब्रजभाषापन और सदल मिश्र में पूरबीपन था। राजा शिवप्रसाद का उर्दूपन शब्दों तक ही परिमित न था वाक्यविन्यास तक में घुसा था, राजा लक्ष्मणसिंह की भाषा विशुद्ध और मधुर तो अवश्य थी, पर आगरे की बोलचाल का पुट उसमें कम न था। भाषा का निखरा हुआ सामान्य रूप भारतेंदु की कला के साथ ही प्रकट हुआ। +* पं. प्रतापनारायण मिश्र की प्रकृति विनोदशील थी, अत: उनकी भाषा बहुत स्वच्छंद गति से बोलचाल की चपलता और भावभंगिमा लिए चलती है। हास्य विनोद की उमंग में वह कभी कभी मर्यादा का अतिक्रमण करती, पूरबी कहावतों और मुहावरों की बौछार भी छोड़ती चलती है। +* पंडित बालकृष्ण भट्ट की भाषा अधिकतर वैसी ही होती थी जैसी खरी खरी सुनाने में काम में लाई जाती है। +* हरिश्चंद्र तथा उनके समसामयिक लेखकों में जो एक सामान्य गुण लक्षित होता है, वह है सजीवता या जिंदादिली। सब में हास्य या विनोद की मात्रा थोड़ी या बहुत पाई जाती है। +* विलक्षण बात यह है कि आधुनिक गद्य साहित्य की परंपरा का प्रवर्तन नाटकों से हुआ। +* खेद के साथ कहना पड़ता है कि भारतेंदु के समय में धूम से चली हुई नाटकों की वह परंपरा आगे चलकर बहुत शिथिल पड़ गई। +* पं. शीतलाप्रसाद त्रिपाठीकृत 'जानकीमंगल नाटक' का जो धूमधाम से अभिनय हुआ था उसमें भारतेंदु जी ने पार्ट लिया था। +* प्रतापनारायण मिश्र का अपने पिता से अभिनय के लिए मूँछ मुड़ाने की आज्ञा माँगना प्रसिद्ध ही है। +* अंग्रेजी ढंग का मौलिक उपन्यास पहले पहल हिन्दी में लाला श्रीनिवासदास का 'परीक्षागुरु' ही निकला था। +* नाटक के संदर्भ में, प्राचीन और नवीन का सुन्दर सामंजस्य भारतेंदु की कला का विशेष माधुर्य है। +* अपने समय के सब लेखकों में भारतेंदु की भाषा साफ सुथरी और व्यवस्थित होती थी। +;प्रतापनारायण मिश्र और बालकृष्ण भट्ट +* पं. प्रतापनारायण मिश्र और बालकृष्ण भट्ट ने हिन्दी गद्य साहित्य में वही काम किया है जो अंग्रेजी गद्य साहित्य में एडीसन और स्टील ने किया था। +* उपाधयाय पं. बदरीनारायण चौधारी (प्रेमघन) की शैली सबसे विलक्षण थी। ये गद्य रचना को एक कला के रूप में ग्रहण करने वाले, कलम की कारीगरी समझने वाले, लेखक थे और कभी कभी ऐसे पेचीले मजमून बाँधाते थे कि पाठक एक एक, डेढ़ डेढ़ कॉलम के लंबे वाक्य में उलझा रह जाता था। अनुप्रास और अनूठे पदविन्यास की ओर भी उनका ध्यान रहता था। किसी बात को साधारण ढंग से कहे जाने को ही वे लिखना नहीं कहते थे। +* समालोचना का सूत्रपात हिन्दी में एक प्रकार से भट्टजी और चौधारी साहब ने ही किया। समालोच्य पुस्तक के विषयों का अच्छी तरह विवेचन करके उसके गुण दोष के विस्तृत निरूपण की चाल उन्होंने चलाई। +* हमारा हिन्दी साहित्य पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी का सदा ऋणी रहेगा। व्याकरण की शुद्धता और भाषा की सफाई के प्रवर्तक द्विवेदीजी ही थे। सरस्वती' के संपादक के रूप में उन्होंने आई हुई पुस्तकों के भीतर व्याकरण और भाषा की अशुद्धियाँ दिखाकर लेखकों को बहुत कुछ सावधान कर दिया। +* हिन्दी साहित्य के इतिहास में बाबू देवकीनंदन का स्मरण इस बात के लिए सदा बना रहेगा कि जितने पाठक उन्होंने उत्पन्न किए उतने और किसी ग्रंथकार ने नहीं। चंद्रकांता पढ़ने के लिए न जाने कितने उर्दूजीवी लोगों ने हिन्दी सीखी। चंद्रकांता पढ़ चुकने पर वे 'चंद्रकांता' की किस्म की कोई किताब ढूँढ़ने में परेशान रहते थे। शुरू शुरू में चंद्रकांता और 'चंद्रकांता संतति' पढ़कर न जाने कितने नवयुवक हिन्दी के लेखक हो गए। +* साहित्य की दृष्टि से उन्हें हिन्दी का पहला उपन्यासकार कहना चाहिए। +* यदि मार्मिकता की दृष्टि से भावप्रधान कहानियों को चुनें तो तीन मिलती हैं इन्दुमती ग्यारह वर्ष का समय' और 'दुलाईवाली'। यदि 'इन्दुमती' किसी बँग्ला कहानी की छाया नहीं है तो हिन्दी की यही पहली मौलिक कहानी ठहरती है। इसके उपरान्त 'ग्यारह वर्ष का समय' फिर 'दुलाईवाली' का नम्बर आता है। +* यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है तो निबन्ध गद्य की कसौटी है। भाषा की पूर्ण शक्ति का विकास निबंधों में ही सबसे अधिक सम्भव होता है। +* पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी के अधिकतर लेख 'बातों के संग्रह' के रूप में ही हैं। भाषा के नूतन शक्ति चमत्कार के साथ नए नए विचारों की उद्भावना वाले निबंध बहुत ही कम मिलते हैं। +* द्विवेदीजी के लेखों को पढ़ने से ऐसा जान पड़ता है कि लेखक बहुत मोटी अक्ल के पाठकों के लिए लिख रहा है। एक एक सीधी बात कुछ हेरफेर, कहीं-कहीं केवल शब्दों के ही, साथ पाँच छह तरह के पाँच छह वाक्यों में कही हुई मिलती है। +* हिन्दी साहित्य में समालोचना पहले पहल केवल गुण दोष दर्शन के रूप में प्रकट हुई। लेखों के रूप में इसका सूत्रपात बाबू हरिश्चंद्र के समय में ही हुआ। लेख के रूप में पुस्तकों की विस्तृत सम��लोचना उपाधयाय पंडित बद्रीनारायण चौधरी ने अपनी 'आनंदकादंबिनी' में शुरू की। +* किसी ग्रंथकार के गुण अथवा दोष ही दिखलाने के लिए कोई पुस्तक भारतेंदु के समय में न निकली थी। इस प्रकार की पहली पुस्तक पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी कालिदास की आलोचना' थी जो इस द्वितीय उत्थान के आरम्भ में ही निकली। +;गद्य साहित्य की वर्तमान गति तृतीय उत्थान +* यह ठीक है कि विज्ञान की साधना द्वारा संसार के वर्तमान युग का बहुत सा रूप योरप का खड़ा किया हुआ है। पर इसका क्या यह मतलब है कि युग का सारा रूपविधान योरप ही करे और हम आराम से जीवन के सब क्षेत्रों में उसी के दिए हुए रूप को लेकर रूपवान बनते चलें? क्या अपने स्वतंत्र स्वरूपविकास की हमारी शक्ति सब दिन के लिए मारी गई? +* आजकल भाषा की भी बुरी दशा है। बहुत से लोग शुद्ध भाषा लिखने का अभ्यास होने के पहले ही बड़े-बड़े पोथे लिखने लगते हैं जिनमें व्याकरण की भद्दी भूलें तो रहती ही हैं, कहीं-कहीं वाक्यविन्यास तक ठीक नहीं रहता। यह बात और किसी भाषा के साहित्य में शायद ही देखने को मिले। व्याकरण की भूलों तक ही बात नहीं है। अपनी भाषा की प्रकृति की पहचान न रहने के कारण कुछ लोग उसका स्वरूप भी बिगाड़ चले हैं। वे अंग्रेजी के शब्द, वाक्य और मुहावरे तक ज्यों के त्यों उठाकर रख देते हैं, यह नहीं देखने जाते कि हिन्दी हुई या और कुछ। +* अंग्रेजी ढंग का मौलिक उपन्यास पहले-पहले हिन्दी में लाला श्रीनिवास दास का परीक्षा गुरु निकला था। +* साहित्य को राजनीति के ऊपर रहना चाहिए; सदा उसके इशारों पर ही न नाचना चाहिए। +* यदि हम काव्य को ही लें तो इस 'अभिव्यंजनावाद' को 'वाग्वैचित्रयवाद' ही कह सकते हैं और इसे अपने यहाँ के पुराने 'वक्रोक्तिवाद' का विलायती उत्थान मान सकते हैं। +* भारतेंदु हरिश्चंद्र ने जिस प्रकार गद्य की भाषा का स्वरूप स्थिर करके गद्य साहित्य को देशकाल के अनुसार नए नए विषयों की ओर लगाया, उसी प्रकार कविता की धारा को भी नए नए क्षेत्रों की ओर मोड़ा। इस नए रंग में सबसे ऊँचा स्वर देशभक्ति की वाणी का था। उसी से लगे हुए विषय लोकहित, समाजसुधार, मातृभाषा का उद्धार आदि थे। हास्य और विनोद के नए विषय भी इस काल में कविता को प्राप्त हुए। +* भारतेंदुजी ने हिन्दी काव्य को केवल नए नए विषयों की ओर ही उन्मुख किया, उसके भीतर किसी नवीन विधान या प्रणाली का सूत्रपात नहीं किया। +* गद्य को ���िस परिमाण में भारतेंदु ने नए नए विषयों और मार्गाें की ओर लगाया उस परिमाण में पद्य को नहीं। भारतेंदु के सहयोगी लेखक यद्यपि देशकाल के अनुकूल नए नए विषयों की ओर प्रवृत्त हुए, पर भाषा उन्होंने परम्परा से चली आती हुई ब्रजभाषा ही रखी और छन्द भी वे ही लिए जो ब्रजभाषा में प्रचलित थे। +* गुप्त जी वास्तव में सामंजस्यवादी कवि हैं, प्रतिक्रिया का प्रदर्शन करने वाले अथवा मद में झूमाने वाले कवि नहीं। सब प्रकार की उच्चता से प्रभावित होने वाला हृदय उन्हें प्राप्त है। प्राचीन के प्रति पूज्य भाव और नवीन के प्रति उत्साह दोनों इनमें है। +* छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में समझना चाहिए। एक तो रहस्यवाद के अर्थ में, जहाँ उसका सम्बन्ध काव्य वस्तु से होता है अर्थात जहाँ कवि उस अनन्त और अज्ञात प्रियतम को आलम्बन बनाकर अत्यन्त चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है। छायावाद शब्द का दूसरा प्रयोग काव्य-शैली या पद्धति विशेष की व्यापक अर्थ में हैं। +छायावाद' नाम चल पड़ने का परिणाम यह हुआ कि बहुत से कवि रहस्यात्मकता, अभिव्यंजना के लाक्षणिक वैचित्र्य, वस्तुविन्यास की विशृंखलता, चित्रमयी भाषा और मधुमयी कल्पना को ही साधय मानकर चले। +* छायावाद का केवल पहला अर्थात मूल अर्थ लिखकर तो हिन्दी काव्य-क्षेत्र में चलने वाली सुश्री महादेवी वर्मा ही हैं। +* छायावाद का सामान्यतः अर्थ हुआ प्रस्तुत के स्थान पर उसकी व्यंजना करने वाली छाया के रूप में अप्रस्तुत का कथन। +* छायावाद की प्रवृत्ति अधिकतर प्रेमगीतात्मक है। +* छायावाद का केवल पहला अर्थात मूल अर्थ लिखकर तो हिन्दी काव्य-क्षेत्र में चलने वाली सुश्री महादेवी वर्मा ही हैं। +* इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखीं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता। + + +इस श्रेणी में वे लोग हैं जो राजनीति से संबंध रखते हैं + + +महिला राजनीतिज्ञ को 'राजनेत्री' कहा जाता है + + +महिला राजनीतिज्ञों को राजनेत्री कहा जाता है + + +इरफान खान एक भारतीय अभिनेता हैा +इरफान ने एक ऑडियो मैसेज में कहा था कि कहावत है कि When life gives u lemons, you make a lemonade बोलने में अच्छा लगता है लेकिन सच में जब जिंदगी आपके हाथ में नींबू थमाती है तो शिकंजी बनाना बह��त मुश्किल हो जाता है। लेकिन आपके पास और कोई चॉइस भी क्या होती है सिर्फ पॉजिटिव रहने के अलावा + + +इसमें वे पृष्ठ आते हैं जिनका नाम अर्थहीन है, उदाहरण:"स्द्ग्फ्द्ग अथवा जिनमें सामग्री अर्थहीन है, चाहे उसका नाम अर्थहीन न हो, उदाहरण:लेख जिसमें सामग्री है:"ध्ब्द्फ्ह्फ़" +यदि यह पृष्ठ अभी हटाया नहीं गया है तो आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। यदि आपको लगता है कि यह पृष्ठ इस मापदंड के अंतर्गत नहीं आता है तो आप पृष्ठ पर जाकर नामांकन टैग पर दिये हुए बटन पर क्लिक कर के इस नामांकन के विरोध का कारण बता सकते हैं। कृपया ध्यान रखें कि शीघ्र हटाने के नामांकन के पश्चात यदि 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श्रेष्ठ पुरुष जो-जो कर्म करता है अर्थात् प्रधान मनुष्य जिस-जिस कर्म में बर्तता है दूसरे लोग उसके अनुयायी होकर उसउस कर्म का ही आचरण किया करते हैं। तथा वह श्रेष्ठ पुरुष जिस-जिस लौकिक या वैदिक प्रथा को प्रामाणिक मानता है लोग उसी के अनुसार चलते हैं अर्थात् उसी को प्रमाण मानते हैं। +: हे भारत कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जिस प्रकार से कर्म करते हैं उसी प्रकार से विद्वान् पुरुष अनासक्त होकर, लोकसंग्रह (लोक कल्याण) की इच्छा से कर्म करें। +: ज्ञानी पुरुष, कर्मों में आसक्त अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम उत्पन्न न करे, स्वयं (भक्ति से) युक्त होकर कर्मों का सम्यक् आचरण कर, उनसे भी वैसा ही कराये। +: अर्थ- आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है। जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती। +: अर्थ जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है। इसलिए जो अटल है अपरिहार्य है उसके विषय में तुमको शोक नहीं करना चाहिये। +: हे पार्थ स्त्री, वैश्य और शूद्र ये जो कोई पापयोनि वाले हों, वे भी मुझ पर आश्रित (मेरे शरण) होकर परम गति को प्राप्त होते हैं। +क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है। +* जिस प्रकार अग्नि स्वर्ण को परखती है, उसी प्रकार संकट वीर पुरुषों को। +* मनुष्य को परिणाम की चिन्ता किए बिना, लोभ- लालच बिना एवं निस्वार्थ और निष्पक्ष होकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। +* मनुष्य को अपने कर्मों के संभावित परिणामों से प्राप्त होने वाली विजय या पराजय, लाभ या हानि, प्रसन्नता या दुःख इत्यादि के बारे में सोच कर चिंता से ग्रसित नहीं होना चाहिए। +* अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है। +* अपकीर्ति मृत्यु से भी बुरी है। +: अर्थ जो खाने, सोने, आमोद-प्रमोद तथा काम करने की आदतों में नियमित रहता है। वह योगाभ्यास द्वारा समस्त भौतिक क्लेशों को नष्ट कर सकता है। +* मनुष्य का मन इन्द्रियों के चक्रव्यूह के कारण भ्रमित रहता है। जो वासना, लालच, आलस्य जैसी बुरी आदतों से ग्रसित हो जाता है। इसलिए मनुष्य का अपने मन एवं आत्मा पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए। +: अर्थ हे महाबाहो निःसन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है। परन्तु, हे कुन्तीपुत्र! उसे अभ्यास और वैराग्य के द्वारा वश में किया जा सकता है। +* जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है। +: अर्थ- जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है वहीं पर श्री, विजय, विभूति और ध्रुव नीति है, ऐसा मेरा मत है। (संजय, गीता के अन्त में) +==गीता पर महापुरुषों के विचार== +* पूरब के सभी अवशेषों में गीता सब��े अधिक प्रशंसनीय है। हेनरी डेविड थोरो, प्रसिद्ध अमेरिकी कवि, लेखक और दार्शनिक, अपनी पुस्तक “वाल्डेन” में +* आध्यात्मिक व्यक्ति को वैरागी होने की ज़रूरत नहीं है। दुनिया में रहकर और कर्म करते हुए दिव्यात्मा से सम्पर्क हो सकता है और इसे कायम रखा जा सकता है। इस मिलन में जो बढ़ाएं वे बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर हैं- यही भगवत गीता की मुख्य शिक्षा है। एनी बेसेन्ट, आयरलैंड की समाजवादी विदुषी और थियोसोफिस्ट The Lord’s Song' में +* यह एक महान मौलिक ग्रंथ है, जिसमें विचार की उदात्तता, तर्क और शैली बेमिसाल है। वारेन हेस्टिंग्स, भारत के पहले गवर्नर जनरल +* भगवतगीता का में बहुत ऋणी हूँ। मुझे ऐसा लगा कि जैसे कोई साम्राज्य ने मुझसे बात की हो। इसमें कुछ भी छोटी और व्यर्थ बात नहीं है। इसमें शान्ति और संगति है। इसमें प्राचीन बुद्धिमत्ता है। इसका चिन्तन किसी और युग में हुआ लेकिन हम जिन प्रश्नों से जूझ रहे हैं, उनका उत्तर इनमें है। राल्फ वाल्डो इमर्सन, उन्नीसवीं शताब्दी के लोकप्रिय निबंधकार +* यह एक सुलभ ग्रन्थ है। इस अमर ग्रन्थ के ७०० श्लोक यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि हिन्दू धर्म क्या है और उसे जीवन में किस प्रकार उतारा जाए। गीता में किसी धर्म के प्रति द्वेष नहीं है। मुझे यह कहते बड़ा आनन्द होता है कि मैंने गीता के प्रति जितना पूज्य भाव रखा है, उतने ही पूज्य भाव से बाइबल-कुरान-जदअवस्ता और संसार के अन्य धर्म ग्रंथ पढ़े हैं। इस वाचन ने गीता के प्रति मेरी इच्छा को दृढ़ बनाया है। उससे मेरी दृष्टि और मेरा हिन्दू धर्म विशाल हुआ है। मैं अपने को हिन्दू कहने में गौरव मानता हूँ, क्योंकि मेरे मन में यह शब्द इतना विशाल है कि पृथ्वी के चारों कोनों के पैगम्बरों के प्रति यह केवल सहिष्णुता ही नहीं रखता, वरना उन्हें आत्मसात कर देता है। मोहनदास करमचन्द्र गांधी + + +w: हिंदू हिंदू किसी भी व्यक्ति को संदर्भित करता है जो खुद को सांस्कृतिक, जातीय या धार्मिक रूप से हिंदू धर्म के पहलुओं का पालन करता है। यह ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया के लोगों के लिए एक भौगोलिक, सांस्कृतिक और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में इस्तेमाल किया गया है। +* हिंदुओं का मानना ​​है कि उनके जैसा कोई देश नहीं है, उनका कोई राष्ट्र नहीं है, उनके जैसा कोई राजा नहीं है, उनका कोई धर्म नहीं है, उनके जैसा कोई विज्ञान नहीं है। +अ���-बिरूनी, अलबरूनी का भारत, के.एस लाल, भारतीय मुसलमान जो वे हैं, 1990 +* महमूद ने देश की समृद्धि को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया, और वहां अद्भुत कारनामे किए, जिससे हिंदू सभी दिशाओं में बिखरे धूल के परमाणुओं की तरह हो गए, और लोगों के मुंह में एक पुरानी कहानी की तरह। उनका बिखरा हुआ, निश्चित रूप से, सभी मुसलमानों के प्रति सबसे अधिक घृणास्पद है। हिंदू विज्ञान देश के उन हिस्सों से बहुत दूर चला गया है, जो हमारे द्वारा जीते गए हैं, और उन जगहों पर भाग गए हैं जहां हमारा हाथ अभी तक नहीं पहुंच सकता है, कश्मीर तक। बनारस और अन्य जगह। और उनके (हिंदुओं के) बीच विरोध है और सभी विदेशियों को राजनीतिक और धार्मिक स्रोतों से अधिक से अधिक पोषण प्राप्त होता है +अलबरूनी का भारत, खंड। मैं, पी। 22. जैन, मीनाक्षी (2011) में भी उद्धृत (भाग में)। भारत ने उन्हें देखा: विदेशी खाते। +* हिंदुस्तान के अधिकांश निवासी पगान हैं वे एक मूर्तिपूजक को हिंदू कहते हैं। अधिकांश हिंदू आत्माओं के संचार में विश्वास करते हैं। सभी कारीगर, मज़दूरी करने वाले और अधिकारी हिंदू हैं। +* राजाओं के धर्म के रक्षक होने का लक्षण यह है जब वे किसी हिंदू को देखते हैं, तो उनकी आँखें लाल हो जाती हैं और वे उसे जीवित करने की इच्छा रखते हैं वे उन ब्राहमणों को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने की इच्छा रखते हैं, जो कुफ्र और शिर्क के नेता हैं और जिनके लिए कुफ्र और शिर्क फैले हुए हैं और कुफ्र के आदेशों को लागू किया जाता है +जेड। बारानी, ​​तारीख-ए-फिरोजशाही। शिख नूरुद्दीन मुबारक ग़ज़नवी का हवाला देते हुए। गोयल से उद्धृत, सीता राम (2001)। भारत में इस्लामी साम्राज्यवाद की कहानी। आईएसबीएन 9788185990231 +* एक हिंदू एक जन्मजात रहस्यवादी है, और उसके देश की शानदार प्रकृति ने उसे एक उत्साही पैंथिस्ट बनाया है +इस सनातन धर्म की कितनी भी शाखाएँ और ऑफशूट हैं। इसकी तह में, हमारे पास वैदिक और तंत्रिका, बौद्ध और जैन हैं हमारे पास शैव और वैष्णव, शाक्त और सिख, आर्य समाज और कबीरपंथ हैं हमने इसके तह में केरल में अयप्पा के उपासक, छोटानागपुर के सरना और अरुणाचल प्रदेश में डोनी-पोलो के । इन सभी रूपों और विविधताओं के माध्यम से साझा आध्यात्मिकता की एक अंतर्निहित धारा बहती है जो हमें सभी हिंदू बनाती है और हमें सद्भाव की आंतरिक भावना देती है। ' +आभास चटर्जी: हिंदू राष्ट्र, पृष्ठ ४। एल्स्ट, कोनराड (2002) से उद्धृत। हिंदू कौन है हिंदू पुनरुत्थानवादी विचारवाद, बौद्ध धर्म, सिख धर्म, और हिंदू धर्म के अन्य अपराध। आईएसबीएन 978-8185990743 +* भारतीय शब्द का प्रयोग इस पुस्तक में सामान्य रूप से भारत में लागू होने के रूप में किया जाएगा हिंदू शब्द, विभिन्न प्रकार के लिए, फारसियों और यूनानियों के रिवाज के बाद कभी-कभी एक ही अर्थ में उपयोग किया जाएगा लेकिन जहां किसी भी भ्रम का परिणाम हो सकता है, हिंदू धर्म अपने बाद के और सख्त अर्थ में उपयोग किया जाएगा, केवल भारत के उन निवासियों का उल्लेख करते हैं जो (मोस्लेम भारतीयों से अलग) एक मूल विश्वास को स्वीकार करते हैं। +दुरंत, विल (1963)। हमारी प्राच्य विरासत। न्यूयॉर्क: साइमन एंड शूस्टर। +* हिन्दू होने के लिए भारत में रहना आवश्यक नहीं है। वास्तव में किसी को उस भूमि के साथ सद्भाव में रहना चाहिए जहां एक सच्चा हिंदू होने के लिए स्थित है। +डेविड फ्रॉले मैं कैसे एक हिंदू बन गया वैदिक धर्म की मेरी खोज +* इस तरह मैं एक अमेरिकी हिंदू धर्म की बात कर सकता हूं और खुद को एक अमेरिकी और हिंदू कह सकता हूं जो जमीन से जुड़ा हुआ अमेरिकी है और उस जमीन की आत्मा और आत्मा से जुड़ा हिंदू है। हिंदू धर्म ने मुझे प्रकृति की शक्तियों की खोज करने में मदद की है जिसमें मैं रहता हूं, उनका अतीत और उनका भविष्य, उनके अद्वितीय स्वरूप और अधिक ब्रह्मांड और ब्रह्मांडीय मन के साथ उनके संबंध। +अलगाववाद के इन विरोधियों का तर्क है कि ये' आदिवासी 'पेड़, पत्थर और नाग जैसी चीजों की पूजा करते हैं। इसलिए वे 'एनिमिस्ट' हैं और उन्हें 'हिंदू' नहीं कहा जा सकता। अब यह कुछ ऐसा है जो केवल एक अज्ञानी है जो हिंदू धर्म के एबीसी को नहीं जानता है। क्या पूरे देश में हिंदू पेड़ की पूजा नहीं करते हैं तुलसी, बिल्व, अश्वत्थ सभी हिंदू के लिए पवित्र हैं। नाग, कोबरा की पूजा हमारे देश में प्रचलित है। फिर, क्या हमें इन सभी भक्तों और उपासकों को 'कट्टरपंथी' करार देना चाहिए और उन्हें गैर-हिंदू घोषित करना चाहिए +म । गोलवलकर: विचारों का गुच्छा, पीपी। 471-472। एल्स्ट, कोनराड (2002) से उद्धृत। हिंदू कौन है हिंदू पुनरुत्थानवादी विचारवाद, बौद्ध धर्म, सिख धर्म, और हिंदू धर्म के अन्य अपराध। आईएसबीएन 978-8185990743 +* हिंदू शब्द के बारे में आर्य समाज की गलतफहमी पहले से ही अस्थायी संदेह में पैदा हुई थी, इससे पहले कि यह जवाहरलाल नेहरू के तहत एक गंदा ��ब्द बन गया और 1950 के संविधान के तहत कानूनी नुकसान का कारण बना। दयानंद सरस्वती स्वामी दयानंद सरस्वती ने इस बात पर सही आपत्ति जताई कि यह शब्द विदेशियों द्वारा दिया गया है (जो, इसके अलावा, इसके लिए सभी प्रकार के अपमानजनक अर्थ देते हैं) और माना कि अति पर निर्भरता एक उच्च के लिए थोड़ा उप-मानक है साक्षर और आत्म-अभिव्यंजक सभ्यता। यह तर्क एक निश्चित वैधता को बरकरार रखता है हिंदू' के रूप में हिंदुओं की आत्म-पहचान कभी भी एक दूसरे सर्वश्रेष्ठ विकल्प से अधिक नहीं हो सकती है। दूसरी ओर, यह अल्पावधि में सबसे व्यावहारिक विकल्प है, और अधिकांश हिंदू एक विकल्प के लिए पाइन नहीं लगते हैं। +एल्स्ट, कोएनराड (2002)। हिंदू कौन है हिंदू पुनरुत्थानवादी विचारवाद, बौद्ध धर्म, सिख धर्म, और हिंदू धर्म के अन्य अपराध। आईएसबीएन 978-8185990743 +* फ़ारसी बोलने वाले बाहरी लोगों द्वारा पेश किए गए शब्द के रूप में हिंदू" एक पहचान नहीं है, जिसमें किसी को इसमें शामिल होने के लिए सदस्यता लेनी होती है। अरब और तुर्क आक्रमणकारियों के लिए, इसका सीधा सा मतलब था "कोई भी भारतीय जो जोरास्ट्रियन, यहूदी, मुस्लिम या ईसाई नहीं है"। यह शब्द किसी विशिष्ट संप्रदाय या जाति तक सीमित नहीं है, और न ही इसे किसी विशिष्ट विश्वास की विशिष्टता को अस्वीकार करने या अस्वीकार करने की आवश्यकता है, लेकिन यह भारतीय धार्मिक परंपराओं के पारस्परिक संपर्क के पूरे सामान्य ज्ञान को दर्शाता है। यह कई अलग-अलग दृष्टिकोणों के बीच चल रही बातचीत है, और एक बार बातचीत करने वाले समाज के किसी भी सदस्य के रूप में स्वीकृत सदस्य के रूप में हिंदू आपको क्लब का सदस्य मानेंगे। यह केवल एक बात है कि एक भागीदार के रूप में एक विशिष्ट बिंदु पर व्यापक दृष्टिकोण में स्थित है, किसी भी हिंदू एक राय है कि इस तरह से एक महान कई अन्य हिंदुओं के साथ असहमत होगा अपने मूल मुस्लिम उपयोगकर्ताओं के लिए, शब्द "हिंदू “निश्चित रूप से बौद्ध, आदिवासी, बाद में भी भक्ति (भक्ति) संप्रदायों में शामिल थे, जैसे कि नानक पंथ को अब सिख धर्म के रूप में जाना जाता है, और कबीर जैसे स्वतंत्र भक्ति कवि हैं। +कोइनराड एल्स्ट, द हिंदू आर्गुमेंटेटिव (2012 अध्याय: हिंदू धर्म में हास्य +एल्स्ट, कोएनाड। हिंदू धर्म और संस्कृति युद्ध। 2019)। नई दिल्ली: ठीक है। +* वर्तमान में मैं बस इतना ही कह सकता हूं कि जब तक इस्लामिक तल���ार दक्षिण में बह गई, और विजयनगर साम्राज्य ने आकार ले लिया, तब तक "हिंदू" शब्द मूल निवासियों के लिए घृणास्पद शब्द नहीं था क्योंकि यह विदेशी आक्रमणकारियों के लिए था। इस प्रकार चौदहवीं शताब्दी के मध्य में हिंदू" शब्द ने प्राचीन ईरानियों और इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा उस पर लगाए गए अपमानजनक संघों को गिरा दिया था, और हमारे अपने देशवासियों की आंखों में बहुत अधिक वासना का अधिग्रहण किया था। इस्लामिक आक्रमण को हराने वाले महाआर्य कुंभ, और कृष्णदेवराय जैसे मूल नायकों को बाद की शताब्दियों में हिंदू नायकों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था। पद्मनाभ ने अपनी महाकाव्य कविता, कन्नड़दे प्रबन्ध में जालोर के चौहानों को महिमामंडित करने के लिए "हिंदू" शब्द का प्रयोग किया है, जिसकी रचना उन्होंने 1455 ई। में की थी। मेवाड़ के महाश्रेष्ठ प्रताप सिम्हा के हिंदुत्व-कलाम के रूप में प्रसिद्ध होने से पहले ऐसा नहीं होगा। दिवाकर, सूर्य जो कमल को खिलता है वह हिंदू राष्ट्र है। छत्रपति शिवाजी, जिन्होंने इस्लामी आक्रमण के ज्वार को वापस कर दिया और इस्लामी साम्राज्यवाद से मुक्ति के युद्ध का उद्घाटन किया, को भितरवार के रूप में हिंदू धर्म के उद्धारकर्ता और उसके महत्वपूर्ण प्रतीकों के रक्षक के रूप में प्रतिष्ठित किया जाएगा गौब्राह्मण, šikhã-sûtra, देवमृती देवी और इसी तरह। तो गुरु गोबिंद सिंह, और महराजगंज छत्रसाल। +गोएल, एस। आर। इन। शौरी, ए।, और गोयल, एस। आर। (1993)। हिंदू मंदिर: उनका क्या हुआ। दूसरा बढ़ा हुआ संस्करण) + + +याद रखें कि इंटरनेट पर बात करने वाले पन्नों के विवाद सभी के लिए सुलभ हैं। जिस तरह से आप अपने आप को विकीकोटे पर आचरण करते हैं वह विकीकोट और आप पर प्रतिबिंबित होता है। +अधिकांश विकीकोटीशियन तीसरे पक्ष पर व्यक्तिगत हमलों को हटाते हैं, और हालांकि यह आधिकारिक नीति नहीं है, इसे अक्सर चरम व्यक्तिगत दुर्व्यवहार के लिए एक उपयुक्त प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है। उपयोगकर्ताओं को व्यक्तिगत हमलों में बार-बार उलझाने के लिए विकीकोट: ब्लॉकिंग नीति प्रतिबंधित किया गया है। अपमानजनक संपादन सारांश विशेष रूप से बीमार हैं। +अलग-अलग योगदानकर्ता किसी लेख पर सहमत नहीं हो सकते हैं। विरोधी समुदायों के सदस्य यथोचित अपने विचार व्यक्त करना चाहते हैं। इन विचारों को एक लेख में समेटने से ���भी के लिए एक बेहतर WQ: NPOV NPOV लेख बनता है। यह स्वीकार करना याद रखें कि हम सभी एक ही समुदाय के भाग हैं क्योंकि हम सभी विकिपीडिया: विकिपीडिया विकिपीडिया हैं। +व्यक्तिगत हमलों के विशिष्ट उदाहरणों में शामिल हैं, लेकिन इन तक सीमित नहीं हैं: +बॉब इज अ ट्रोल या "जेन एक बुरा संपादक है" जैसी अपमानजनक टिप्पणी को व्यक्तिगत हमले माना जा सकता है अगर बार-बार कहा जाए, बुरे विश्वास में, या पर्याप्त विष के साथ। +* नकारात्मक व्यक्तिगत टिप्पणियां और "मैं तुमसे बेहतर हूं" हमले, जैसे कि "आपका कोई जीवन नहीं है।" +* नस्लीय, यौन, होमोफोबिक, धार्मिक या जातीय एपिसोड एक अन्य योगदानकर्ता के खिलाफ निर्देशित। योगदानकर्ता एक कथित पंथ का सदस्य होने पर भी धार्मिक प्रसंगों की अनुमति नहीं है। +* किसी की संबद्धता को अपने विचारों को खारिज करने या खारिज करने के साधन के रूप में उपयोग करना भले ही कहा जाए कि संबद्धता मुख्यधारा या चरम है। +* एक और योगदानकर्ता के खिलाफ प्रताड़ना निर्देशित। +* कानूनी कार्रवाई की धमकी +* धमकी या कार्य जो सरकार, उनके नियोक्ता या किसी अन्य द्वारा राजनीतिक, धार्मिक या अन्य उत्पीड़न के लिए अन्य विकिकोट संपादकों को उजागर करते हैं। इस प्रकार के उल्लंघन के परिणामस्वरूप एक विस्तारित अवधि के लिए एक ब्लॉक हो सकता है जो खोज पर किसी भी WQ SYSOP व्यवस्थापक द्वारा तुरंत लागू किया जा सकता है। ऐसे प्रतिबंधों को लागू करने वाले प्रशासकों को गोपनीय रूप से अन्य प्रशासकों को सूचित करना चाहिए कि उन्होंने क्या किया है और क्यों किया है। +नाज़ीवाद नाज़ी कम्युनिस्ट कम्युनिस्ट टेररिज्म आतंकवादी तानाशाहों या अन्य कुख्यात व्यक्तियों की तुलना में संपादकों की तुलना करना। +* कभी सुझाव न दें कि एक दृष्टिकोण केवल इसलिए अमान्य है क्योंकि इसका प्रस्तावक कौन है। +* ई-मेल जैसे कम सार्वजनिक मंच में मुद्दों का अन्वेषण करें यदि कोई बहस व्यक्तिगत होने का खतरा है। +यदि आप पर व्यक्तिगत हमला किया जाता है, तो आपको हमलावर को इस नीति को रोकने और नोट करने के लिए कहना चाहिए। यदि वह जारी रहता है, तो WQ: ADMINS व्यवस्थापक से संपर्क करने पर विचार करें। आप विशेष रूप से स्पष्ट व्यक्तिगत हमलों को हटाने पर भी विचार कर सकते हैं हालाँकि, आपको बहुत सावधानी से "व्यक्तिगत हमले" को बहुत व्यापक रूप से परिभाषित नहीं करना चाहिए, या बहुत बार ऐ��ा करना चाहिए। यदि आप बार-बार इस उपाय का उपयोग कर पाते हैं, तो आपको "व्यक्तिगत हमले" की अपनी परिभाषा पर पुनर्विचार करना चाहिए। जब संदेह हो, तो पहले अन्य उपयोगकर्ताओं से पूछें। +चरम मामलों में, एक हमलावर हो सकता है विकीकोट: अवरुद्ध नीति अवरुद्ध यह पूरी तरह से व्यक्तिगत हमलों की व्याख्या करने के लिए अवरुद्ध व्यवस्थापक के विवेक के भीतर है WQ:BLOCK व्यवधान]]। +एक गलत धारणा नीचे मारते हुए उन्हें मारना +नोट विकीकोटे के कई बार उपयोगकर्ता हैं जो अलोकप्रिय हैं, शायद अतीत में मूर्खतापूर्ण या गंवार व्यवहार के कारण। ऐसे उपयोगकर्ता अनुशासनात्मक कार्रवाई के अधीन हो सकते हैं। यह कल्पना करना केवल मानव है कि ऐसे उपयोगकर्ता व्यक्तिगत हमलों के लिए उचित खेल हो सकते हैं। यह धारणा पथभ्रष्ट है लोग गलती करते हैं, अक्सर उनसे सीखते हैं और अपने तरीके बदलते हैं। नो पर्सनल अटैक उन सभी उपयोगकर्ताओं पर लागू होता है, जो अपने पिछले इतिहास से बेपरवाह हैं या दूसरे उन्हें कैसे मानते हैं। +विकीकोटे में एक सकारात्मक ऑनलाइन समुदाय को बढ़ावा और बनाए रखना आपकी जिम्मेदारी है। किसी उपयोगकर्ता के खिलाफ व्यक्तिगत हमले उसके अतीत या वर्तमान व्यवहार की परवाह किए बिना इस भावना के विपरीत हैं। व्यक्तिगत हमले का विषय होने के नाते एनपीए से प्रतिरक्षा प्रदान नहीं करता है व्यक्तिगत हमलों के जवाब में व्यक्तिगत हमलों और किसी भी अन्य हमले के साथ निपटा जाना चाहिए हो सकता है। + + +वर्तमान हिंदी विकिकोट नीति, किसी को भी प्रशासक का दर्जा देना है जो कुछ समय के लिए सक्रिय विकिकोट योगदानकर्ता रहा है और आम तौर पर समुदाय का एक जाना माना और विश्वसनीय सदस्य है। अधिकांश उपयोगकर्ता इस बात से सहमत प्रतीत होते हैं कि जितने अधिक प्रशासक हैं उतने ही बेहतर हैं। +व्यवस्थापकों के पास रजिस्टर में एक वैध ईमेल पता होता है और उपयोगकर्ताओं को वरीयताओं में थीम संदेश भेजने के लिए, उनके ईमेल पते और उनके उपयोगकर्ता पृष्ठ पर जाना होता है। +यदि आप एक व्यवस्थापक बनना चाहते हैं, तो कृपया नीचे दिए गए बॉक्स का उपयोग करें, सभी आवश्यक क्षेत्रों को भरें और अपने उपयोगकर्ता नाम के साथ "USERNAME" की जगह लें। कोई भी उपयोगकर्ता आपके अनुरोध पर टिप्पणी कर सकता है वे आरक्षण व्यक्त कर सकते हैं (क्योंकि, उदाहरण के लिए, उन्हें संदेह है कि आप अपनी नई-���िली शक्तियों का दुरुपयोग करेंगे, या यदि आप हाल ही में शामिल हुए हैं लेकिन उम्मीद है कि वे अनुमोदन करेंगे और प्यारी बातें कहेंगे आप। यदि यह आपका पहला RfA नहीं है, तो बॉक्स में "USERNAME" के बाद 2 (या जो भी RfA हो सकता है) डालें। + + +| qualifier नाम अनुसार व्यक्तियों की सूची किसी व्यक्ति अथवा नाम अनुसार व्यक्तियों की सूची व्यक्तियों के समूह के बारे में + + +CSS /JS का संपादन जो अन्य उपयोगकर्ताओं के ब्राउज़र पर काम करता है, बहुत दुर्भावनापूर्ण उपयोगकर्ताओं के हाथों में शक्तिशाली और संभावित खतरनाक है। इंटरफ़ेस प्रशासक ऐसे उपयोगकर्ता होने चाहिए, जिन पर समुदाय द्वारा भरोसा किया जाना चाहिए और बुनियादी बुनियादी पासवर्ड और कंप्यूटर सुरक्षा प्रथाओं का पालन करना चाहिए (मजबूत पासवर्ड का उपयोग करें, पासवर्ड का पुन: उपयोग न करें, यदि संभव हो तो दोहरे अंकों के प्रमाणीकरण का उपयोग करें, संदिग्ध सॉफ़्टवेयर स्थापित न करें अपने मशीन पर स्रोत, एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर का उपयोग करें यदि यह आपके वातावरण में एक मानक चीज है)। +व्यवस्थापक और इंटरफ़ेस व्यवस्थापक उन पृष्ठों को संपादित कर सकते हैं जो मीडियाविकि नामस्थान में CSS या JS नहीं हैं। उदा। मीडियाविकि: साइडबार) +==एक अंतरफलक व्यवस्थापक बनने के लिए आवेदन करें== +[[विकिसूक्ति :एक अंतरफलक व्यवस्थापक बनने के लिए आवेदन करें]] + + +चित्रांश द सिक्रेटरीवेड डेविएपिंग डेपिटेड रेरेज एंड कार एंड सीवे सेली एंड प्रफोरम्पी +प्रशासक क्या कर सकता है +व्यवस्थापक संरक्षित पृष्ठों को संपादित कर सकता है और पृष्ठों को सुरक्षित और सुरक्षित कर सकता है। पृष्ठ की सुरक्षा करने का अर्थ है कि एक गैर-व्यवस्थापक इसे ठीक नहीं कर सकता है। +परिणामस्वरूप, प्रशासक मीडियाविकि नामस्थान के संरक्षित पृष्ठों को संपादित कर सकते हैं, जैसे पृष्ठ के शीर्ष पर प्रदर्शित संदेश। +व्यवस्थापक पृष्ठों और उनके इतिहास को हटा सकता है। वे हटाए गए पृष्ठों और उनके इतिहास को भी देख और पुनर्स्थापित कर सकते हैं। +व्यवस्थापक छवियों को स्थायी रूप से हटा भी सकता है। यह एक बार-बार किया जाने वाला परिवर्तन है: एक बार हटाने के बाद, हमेशा हटाएं। ध्यान दें कि कोई विशेष कारण नहीं है कि छवि हटाने को उल्टा नहीं किया जाना चाहिए वर्तमान में सॉफ्टवेयर केवल इस तरह से काम करता है। +व्यवस्थापक के���ल डेटाबेस में पठनीय प्रश्न चला सकता है। + + +भाई ने लिखना सिखाया , +तो बहन ने पढ़ना सिखाया है | +उठने बैठने का सलीका सिखाया है +तो शिक्षक ने हाथ थामा है | + + +भाई ने लिखना सिखाया , +तो बहन ने पढ़ना सिखाया है | +उठने बैठने का सलीका सिखाया है +तो शिक्षक ने हाथ थामा है | + + +*"तुम में सबसे बेहतर वो लोग हैं जिनके अखलाक सबसे अच्छे हैं सही अल-बुख़ारी]]” +*अल्लाह की दृष्टि में सबसे अधिक घृणात्मक वह व्यक्ति जो ज़्यादा सबसे झगड़ालू हो। बुखारी शरीफ 2457) +*इस्लाम की बुनियाद पांच चिजो पर क़ायम की गई है, पहला- गवाही देना की अल्लाह( ईश्वर) के सिवा कोई पूजनीय नहीं और बेशक हज़रत मुहम्मद (सल अल्लाहो अलैहे वसल्लम) अल्लाह के सच्चे रसूल हैं, दूसरा नमाज़ क़ायम (प्रार्थना) करना, तीसरा- ज़कात अदा करना (दान देना चौथा- हज्ज करना (तीर्थ यात्रा और पांचवा- रमज़ान के रोज़े उपवास )रखना| + + +[[w:राजनाथ सिंह जन्म 10 जुलाई 1951 w:भारतीय जनता पार्टी|(भाजपा से संबंधित एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। उन्हें 26 मई 2015 को भारत के गृह मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने पहले 28 अक्टूबर 2000 से 8 मार्च 2002 तक उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। +* हमें पारंपरिक सामाजिक मूल्यों को कायम रखना चाहिए, जो सौंदर्य के इस तरह के अशिष्ट प्रदर्शन की अनुमति नहीं देते हैं। मैं इस राज्य में किसी भी सौंदर्य प्रतियोगिता को आयोजित करने की अनुमति नहीं दूंगा। +ब्यूटी पेजेंट पर प्रतिबंध लगाने पर, जैसा कि "होम स्टेट ऑफ़ मिस वर्ल्ड बार्स ब्यूटी पेजेंट्स" लॉस एंजिल्स टाइम्स (16 दिसंबर 2000) में उद्धृत किया गया है। +* हम यह बताएंगे कि एक सर्वदलीय बैठक में कहा जाएगा कि हम धारा 377 का समर्थन करते हैं क्योंकि हमारा मानना है कि समलैंगिकता एक अप्राकृतिक कृत्य है और इसका समर्थन नहीं किया जा सकता। + + +हमें विश्वास नहीं है कि भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों को किसी एक मुद्दे पर बंधक बनाया जा सकता है या रखा जा सकता है" +हम पाकिस्तान के राष्ट्रपति की यात्रा से धागे उठाएंगे। हम पाकिस्तान के साथ शांति, दोस्ती और सहयोग के संबंधों के दृष्टिकोण को संशोधित करने का प्रयास करेंगे" +इस शिखर सम्मेलन ने पाकिस्तान के साथ भविष्य के संबंधों के लिए टोन निर्धारित किया है शांति के कारवां ने अपना मार्च जारी रखा है और किसी शुभ दिन यह अपने गंतव्य तक पहुंच जाएगा।" +सरकार की प्राथमिकता इस अपहरण की जल्द से जल्द समाप्ति और यात्रियों, चालक दल और विमानों की जल्द से जल्द वापसी है।" +जब आप बस से यात्रा करते हैं, तो आप आम आदमी और महिला से संबंधित होने का प्रयास कर रहे हैं।" +लोकतंत्र और संवैधानिक सरकार के हमारे बचाव में सतर्क।" + + +राम) बाण को दो बार निशाने पर नहीं साधते राम) शरणागत आश्रित को दो बार स्थापित नहीं करते राम) माँगनेवाले को दो बार नहीं देते, राम (एक ही बात) दो बार नहीं कहते। अर्थात् एक ही बार में कार्य पूर्ण करते हैं, दूसरी बार करने की आवश्यकता ही रहती। +: कोई व सन्तान अपने माता एवं पिता का ऋण कभी नहीं चुका सकता चाहे वह अपने माता पिता के लिए कितना व श्रेष्ठ कार्य क्यों न कर दे। वह कभी इस ऋण से मुक्त नहीं हो सकता है। +श्री राम ऋषि वशिष्ठ जी से कहते हैं कि) चन्द्रमा अपनी शोभा छोड़ सकता है, गिरिराज हिमालय हिमहीन हो सकता है और सागर अपना तट बदल सकता है लेकिन में अपने माता-पिता के वचनों का उल्लंघन कभी नहीं कर सकता। +श्री राम ऋषि जाबालि से कहते है कि) मनुष्य का चरित्र ही इसकी व्यख्य करता है कि कोई पुरुष कुलीन है या अकुलीन, कपटी है या सज्जन, वीर है यह डरपोक। +: भगवान राम जब अपने पिता दशरथ जी को टूटा हुआ देखते है तब प्रभु राम माता कैकेयी से कहते है कि अगर इस जीवन में अगर कोई मनुष्य सदैव खुश रहना चाहता है तो वह ब्रह्म में है। +: जिनके मन में सदैव दूसरे का हित करने की अभिलाषा रहती है। अथवा जो सदा दूसरों की सहायता करने में लगे रहते हैं, उनके लिए संपूर्ण जगत में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। +: व्यक्ति सामने ना होने पर भी नाम से उसको जाना जा सकता है, परंतु नाम के बिना व्यक्ति की पहचान नहीं हो सकती। +राम के बारे में कथन +: राम राम कहो। एक बार राम कहने से विष्णुसहस्रनाम का सम्पूर्ण फल मिल जाता है। क्योंकि श्रीराम नाम ही विष्णु सहस्रनाम के तुल्य है। +इस मंत्र को 'श्री राम तारक मंत्र' भी कहा जाता है और इसका जाप सम्पूर्ण विष्णु सहश्रनाम या विष्णु के 1000 नामों के जाप के समतुल्य है। यह मंत्र 'श्री राम रक्षा स्तोत्रम्' के नाम से भी जाना जाता है।) +: जव शंकर जी ने कहा कि राम-नाम अकेले विष्णु के हजार नामों के बराबर है, तब राम नाम का जाप करके पार्वती जी ने प्रसन्न होकर शिवजी के साथ भोजन किया। +* मंत्र महामनि विषय ब्याल के । मेट��� कठिन कुअंक भाल के ॥ रामचरितमानस – बालकाण्ड +: श्री राम के च्रित्र क चिन्त्न विषय रूपी सर्पों के लिये मंत्र और महाऔषध हि। जिस प्रकार मंत्र, महाऔषध और मणि सर्प विष को उतार देता है, ठीक उसी प्रकार श्रीराम चरित्र का स्मरण-चिन्तन करने से विषय भोग रूपी जहर को उतर जाता है। और ललाट पर लिखे हुए कठिन कुअंक (बुरे अंक दुर्भाग्य) मिट जाते हैं। + + +डॉ राम मनोहर लोहिया 23 मार्च 1910 12 अक्टूबर 1967 भारत के उन कुछ चुनिन्दा राजनेताओं में शुमार किए जा सकते हैं जो मौलिक विचारक होने के साथ-साथ देश में मातृभाषा के पक्षधर थे। वे गैर-कांग्रेसवाद के शिल्पी थे, और उन्हीं के अथक प्रयास से कभी अपराजेय समझी जाने वाली कांग्रेस सन् 67 तक कई राज्यों में चुनाव हारी। वे देश में 'अंग्रेजी हटाओ' आन्दोलन के प्रणेता थे और इस मुद्दे पर वे बेबाक राय रखते थे। उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों-करोड़ों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था। डॉ लोहिया न केवल एक गंभीर चिन्तक थे बल्कि सच्चे कर्मवीर भी थे। वे लोहिया ही थे जो राजनीति की गंदी गली में भी शुचिता व शुद्ध आचरण की बात करते थे। वे एक मात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने अपनी पार्टी की सरकार से खुलेआम त्यागपत्र की मांग की, क्योंकि उस सरकार के शासन में आंदोलनकारियों पर गोली चलाई थी। +* अंग्रेजो ने सिर्फ बंदूक की गोली और अंग्रेजी बोली के बल पर हम पर राज किया। +* अंग्रेजी के प्रयोग से आप अपना मौलिक सोच नहीं सकते। इसलिए हमें गर्व से हिन्दी अपनाना चाहिए। +* अंग्रेजी अल्पसंख्यक शासन और शोषण का एक साधन है, जिसका प्रयोग 40 या 50 लाख अल्पसंख्यक रूलिंग क्लास इंडियंस 40 करोड़ से अधिक लोगों पर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। +* अर्थव्यवस्था में एक माध्यम के तौर पर अंग्रेजी का प्रयोग काम की उत्पादकता को घटाता है। शिक्षा में सीखने को कम करता है और रिसर्च को लगभग ख़त्म कर देता है, प्रशासन में क्षमता को घटाता है और असमानता तथा भ्रष्टाचार को बढ़ाता है। +* अंग्रेजों ने बंदूक की गोली और अंग्रेजी की बोली से हमपर राज किया। +* अंग्रेजी का प्रयोग मौलिक सोच में अवरोध है, हीनता की भावनाओं का प्रजनक है और शिक्षित एवं अशिक्षित जनता के बीच की दूरी है। आइये, हम हिंदी की असल प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने के लिए संगठित हो जाएं। +* जात-पात भारतीय जीवन की सबसे सशक्त प्रथा रही है, यहाँ जीवन जाति की सीमाओं के भीतर ही चलता है। +* जाति व्यवस्था भारतीय जीवन की सबसे ताकतवर पहलू बन गया है। हम सिर्फ जाति बन्धन में जीते ही नही बल्कि इसे व्यवहार में भी लेकर चलते हैं। +* जाति अवसर को सीमित करती है। सीमित अवसर क्षमता को संकुचित करता है। संकुचित क्षमता अवसर को और भी सीमित कर देती है। जहाँ जाति का प्रचलन है, वहां अवसर और क्षमता हमेशा से सिकुड़ रहे कुछ लोगों के दायरे तक सीमित है। +* भारत में कौन राज करेगा ये तीन चीजों से तय होता है। उंची जाति, धन और ज्ञान। जिनके पास इनमे से कोई दो चीजें होती हैं वह शासन कर सकता है। +* भारत में जाति एक ऐसा अभेद किला बन गया है जिसे तोड़ नहीं सकते। +* जाति प्रथा को तोड़ने का एक ही उपाय है, वह है ऊँची और नीची जातियों के बीच बराबर के हिस्से का रोटी और बेटी का सम्बन्ध। +* जाति प्रथा के विरोध से ही देश में एक नई सोच आएगी इससे सबको नवजीवन मिलेगा, सबका उत्थान होगा। +* जाति प्रथा के विरुद्ध विद्रोह से ही देश में जागृति आयेगी।। +* आधुनिक अर्थव्यवस्था के माध्यम से गरीबी को दूर करने के साथ, ये अलगाव (जाति के) अपने आप ही गायब हो जाएंगे। +* भारत में असमानता सिर्फ आर्थिक ही बल्कि सामाजिक और जाति व्यवस्था पर भी है। +* भारत में असमानता सिर्फ आर्थिक नहीं है; यह सामाजिक भी है। +* समाजवाद के जरिये दरिद्रता का बंटवारा नही बल्कि समृद्धि का आपसी वितरण है। +* छोटे-छोटे समूहों के शक्ति से इस विशाल लोकतंत्र का अस्तित्व सम्भव है। +* लोगों के छोटे समूहों को शक्ति देकर, प्रथम श्रेणी का लोकतंत्र संभव है। +* भारतीय राजनीति में अच्छाई और सच्चाई तभी देखने को मिल सकता है जब लोग चेहरे और पार्टी से से नहीं बल्कि कार्यों से लोगों की पहचान, तारीफ और आलोचना करें। +* यदि एक समाजवादी सरकार बल प्रयोग करे, जिसके परिणामस्वरूप कुछ लोगों की मौत हो जाए तो तो उसे शासन करने का कोई अधिकार नहीं है। +* जब भी सामाजिक परिवर्तन के कार्य प्रारम्भ होते हैं तो जरुर कुछ लोग इसका विरोध भी करेंगे और विरोध करते भी है। +* क्रांति टुकड़ों से नहीं बल्कि सामूहिक एकता से ही किया जा सकता है। +* जब जुल्म बढ़ जाए तो वक्त के पहले भी सरकारों को बदल देना चाहिए। +* बिना काम के सत्याग्रह क्रिया के बिना एक वाक्य की तरह है। +* मार्क्सवाद एशिया के खिलाफ यूरोप का अंतिम हथियार है। +* यदि हमारे कृषि को यंत्रीकृत कर दिया जाए तो इस आधार पर 8 करोड़ किसानो को शहरों में जाना पड़ेगा। +* अगर भारत बड़े पैमाने पर टेक्नोलॉजी का प्रयोग करता है, तो करोड़ों लोगों को ख़त्म करने की आवश्यकता पड़ेगी। +* अपने आर्थिक उद्देश्य में, पूंजीवाद बड़े पैमाने पर उत्पादन, कम लागत और मालिकों को लाभ पहुंचाना चाहता है। +* मिडल स्कूल तक शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य होनी चाहिए और उच्च स्तर पर शैक्षिक सुविधाएं मुफ्त या सस्ते में उपलब्ध कराई जानी चाहिए, खासतौर से अनुसूचित जाति, जनजाति और समाज के अन्य गरीब वर्गों को। मुफ्त या सस्ती आवासीय सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए। +* हमें समृद्धि बढानी है, कृषि का विस्तार करना है, फैक्ट्रियों की संख्या अधिक करनी है लेकिन हमें सामूहिक सम्पत्ति बढाने के बारे में सोचना चाहिए; अगर हम निजी सम्पति के प्रति प्रेम को ख़त्म करने का प्रयास करें, तो शायद हम भारत में एक नए समाजवाद की स्थापना कर पाएं। +* नारी को गठरी के समान नहीं बल्कि इतनी शक्तिशाली होनी चाहिए कि समय आने पर पुरुष को गठरी बनाकर अपने साथ ले चले। +* भारतीय नारी को द्रौपदी के आदर्शो पर चलने वाली होनी चाहिए जिसने कभी भी पुरुषों के आगे हार नही खायी। +* इस देश की स्त्रियों का आदर्श सीता सावित्री नहीं, द्रौपदी होनी चाहिए। +* आज हिंदुस्तान की युवा सोच विकृत हो गयी है। यौन सम्बन्ध जितने पवित्र होते हैं उतने ही उसके प्रति आज की लोगो की गंदे विचार हो गये हैं। +* त्याग हमेशा जीवन को शांति और संतोष देने वाला होता है। +* ज्ञान और दर्शन से सब काम नहीं होता। ज्ञान और आदत, दोनों को ही सुधारने से मनुष्य सुधरता है। +* आज के युवाओं को आगे बढ़ने के लिए नये नेतृत्त्व और नये खूबियों की जरूरत है। +* हमें अपना कार्य वहाँ भी करते रहना चाहिए जहाँ इसकी कदर भी ना हो। +* मर्यादा केवल न करने की नहीं होती है, करने की भी होती है। बुरे की लकीर मत लांघो, लेकिन अच्छे की लकीर तक चहल पहल होनी चाहिए। + + +* कल्पना, ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है। +* बुद्धि का सही संकेत ज्ञान नहीं बल्कि कल्पनाशीलता है। +* कोई भी समस्या चेतना के उसी स्तर पर रह कर नहीं हल की जा सकती है जिस पर वह उत्पन्न हुई है। +* एक मेज, एक कुर्सी, एक कटोरा फल और एक वायलन; भला खुश रहने के लिए और क्या चाहिए? +* इन्सान को यह देखना चाहिए कि क्या है, यह नहीं कि उसके अनुसार क्या होना चाहिए। +* जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं कि उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की। +* यदि मानव जाति को जीवित रखना है तो हमें बिलकुल नयी सोच की आवश्यकता होगी। +* जो छोटी-छोटी बातों में सच को गंभीरता से नहीं लेता, उस पर बड़े मामलों में भी भरोसा नहीं किया जा सकता। +* दो चीजें अनन्त हैं: एक ब्रह्माण्ड और दूसरा मनुष्य की मूर्खता; और मैं ब्रह्माण्ड के बारे में दृढ़ता से नहीं कह सकता। +* सत्ता के प्रति विचारहीन सम्मान सत्य का सबसे बड़ा शत्रु है। +* सफल व्यक्ति बनने का प्रयास मत कीजिए, बल्कि सिद्धान्तों पर चलने वाला व्यक्ति बनने का प्रयत्न कीजिए। +* महान आत्माओं ने हमेशा मामूली सोच वाले लोगों के हिंसक विरोध का सामना किया है। +* सभी धर्म, कला और विज्ञान एक ही वृक्ष की शाखाएं हैं। +* एक जहाज हमेशा किनारे पर सुरक्षित रहता है- लेकिन वो इसलिए नहीं बना होता है। +* शिक्षा वो है जो स्कूल में सिखाई गयी चीजों को भूल जाने के बाद बचती है। +* महत्वपूर्ण बात यह है कि हम प्रश्न करना ना छोडें। जिज्ञासा के मौजूद होने के अपने खुद के कारण हैं। +* ज़िन्दगी साइकिल चलाने की तरह है। अपना बैलेंस बनाए रखने के लिए आपको चलते रहना होता है। +* मनुष्य और उसके भाग्य की चिंता सभी तकनीकी प्रयासों की मुख्य दिलचस्पी बननी चाहिए। अपने चित्रों और समीकरणों के बीच कभी भी ये मत भूलना। +* जैसे ही आप सीखना बंद कर देते हैं, आप मरना शुरू कर देते हैं। +* ऐसा नहीं है कि मैं बहुत स्मार्ट हूँ, बस मैं समस्याओं के साथ ज्यादा देर तक रहता हूँ। +* केवल वो जो पूरे जी-जान से किसी कारण के लिए खुद को समर्पित कर देता है, वही एक सच्चा माहिर बन सकता है। इसी वजह से महारत व्यक्ति से उसका सब कुछ मांगती है। +* वह जो विस्मित होने के लिए ठहर नहीं सकता और मगन होकर आश्चर्य से खड़ा नहीं हो सकता, वह मरे हुए के समान है; उसकी आँखें बंद हैं। +* नज़रिए की कमज़ोरी चरित्र की कमज़ोरी बन जाती है। +* ज्ञान का एक मात्र स्रोत अनुभव है। +* एक ऐसा समय आता है जब दिमाग ज्ञान के उच्च स्तर पर पहुँच जाता है लेकिन कभी साबित नहीं कर पाता कि वहां वह कैसे पहुंचा। +* दुनिया के बारे में सबसे ज्यादा जो बात समझ से बाहर है वो ये है कि इसे समझा जा सकता है। +* शांति ताकत से नहीं कायम राखी जा सकती। ये केवल समझ से प्राप्त की जा सकती है। +* सबसे सुंदर अनुभव जो हमें हो सकता है वो है रहस्यपूर्ण। यह मौलिक भावना है जो सच्ची कला और सच्चे विज्ञान के पालने में खड़ी है। +* जीनियस और स्टुपिडीटी के बीच अंतर ये है कि जीनियस की अपनी सीमाएं हैं। +* सूचना ज्ञान नहीं है। +* रचनात्मक अभिव्यक्ति और ज्ञान में आनंद जगाना शिक्षक की सर्वोच्च कला है। +* बिना गहन सोच के हम अपने रोज-मर्रा के जीवन से जानते हैं कि हम दूसरों के लिए अस्तित्व में हैं। +* मानव समाज में जो कुछ भी मूल्यवान है वह व्यक्ति को मिले विकास के अवसर पर निर्भर करता है। +* चाहे जितने भी प्रयोग कर लिए जाएं मुझे कभी सही नहीं ठहराया जा सकता है; बस एक प्रयोग मुझे गलत साबित कर सकता है। +* बुधिमत्ता का सही संकेत ज्ञान नहीं बल्कि कल्पना है। +* प्रशंसा के भ्रष्ट प्रभाव से बचने का एकमात्र तरीका काम करते रहना है। +* कभी-कभी लोग उन चीजों के लिए सबसे अधिक मूल्य चुकाते हैं जो मुफ्त में मिल जाती हैं। +* भेड़ के किसी झुण्ड का बेदाग़ सदस्य बनने के लिए सबसे पहले आपको एक भेड़ होना चाहिए। +* हम समस्याओं को उसी तरह की सोच इस्तेमाल कर के नहीं सुलझा सकते जिसका प्रयोग हमने समस्या पैदा करते वक़्त किया था। +* किसी इंसान का मूल्य इससे देखा जाना चाहिए कि वो क्या दे सकता है, इससे नहीं कि वो वो क्या ले पा रहा है। +* जीनियस 1% टैलेंट है और 99% हार्ड वर्क। +* ज्यादातर शिक्षक अपना समय ऐसे प्रश्न पूछने में बर्बाद करते हैं जिनका मकसद ये जानना होता है कि छात्र क्या नहीं जानता है, जबकि प्रश्न पूछने की सच्ची कला ये पता लगाना है कि छात्र क्या जानता है या क्या जानने में सक्षम है। +* मैं शायद ही कभी शब्दों में सोचता हूँ। एक विचार आता है, और मैं बाद में उसे शब्दों में वयक्त करने का प्रयास कर सकता हूँ। +* याददाश्त धोखेबाज है क्योंकि ये आज की घटनाओं से रंगी होती है। +* जो छोटे-छोटे मामलों में सत्य को लेकर लापरवाह होता है उसपर गंभीर मामलों में भी यकीन नहीं किया जा सकता। +* यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चे बुद्धिमान हों तो उन्हें परियों की कहानियां सुनाएं। यदि आप चाहते हैं कि वे और भी बुद्धिमान हों तो उन्हें और भी परियों की कहानियां सुनाएं। +* एक चुतर व्यक्ति समस्या को हल कर देता है। एक बुद्धिमान व्यक्ति उससे बच जाता है। +* धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है। +* वास्तविकता केवल एक भ्रम है, यद्यपि यह बहुत ही निरंतर है। +* ये दुनिया, जैसा हमने ��से बनाया है, हमारी सोच का परिणाम है। इसे बिना हमारी सोच बदले नहीं बदला जा सकता है। +* मुझे नहीं पता कि किन हथियारों से तृतीय विश्व युद्ध लड़ा जाएगा, लेकिन लेकिन चौथा विश्व युद्ध लाठी और पत्थरों से लड़ा जायेगा। +* लोगों के प्रेम में पड़ने का कारण गुरुत्वाकर्षण नहीं है। +* बुद्धिमत्ता की माप बदलने की क्षमता है। +* रचनात्मकता बुद्धि की मौज-मस्ती है। +* दुनिया जीने के लिए एक खतरनाक जगह है, उन लोगों की वजह से नहीं जो बुरे हैं, बल्कि उनकी वजह से जो इसके लिए कुछ करते नहीं हैं। +* यदि ‘ए’ जीवन में सफल है, तो ‘ए’ बराबर है ‘एक्स’ धन ‘वाई’ धन ‘जेड’ के। काम ‘एक्स’ है, ‘वाई’ खेल; और ‘जेड’ अपना मुंह बंद करके रहना है। +* हर एक चीज जितना संभव हो उतनी सरल बनायीं जानी चाहिए। लेकिन उससे सरल नहीं। +* अपने आप को खुश करने का सबसे अच्छा तरीका किसी और को खुश करना है। +* जो सही है वो हमेशा प्रसिद्द नहीं होता और जो प्रसिद्द है वो हेमशा सही नहीं होता। +* प्रेम कर्तव्य से बेहतर स्वामी है। +* केवल वो जो बेतुके प्रयास करते हैं असम्भव प्राप्त कर सकते हैं। +* आने वाली पीढियां मुश्किल से यकीन कर पाएंगी कि कभी मांस और रक्त से पूर्ण कोई ऐसा था जो इस धरती पर चला था। +* आप एक साथ युद्ध रोकने और करने की तैयारी नहीं कर सकते। +* अल्बर्ट आइन्स्टीन के कुछ और अनमोल विचार +* एक सच्चा जीनियस स्वीकार करता है कि उसे कुछ नहीं पता है। +* ब्लैक होल्स वो हैं जहाँ भगवान शून्य से विभाजित होता है। +* हम सभी जानते हैं कि लाइट साउंड से अधिक तेज ट्रैवेल करती है। इसीलिए कुछ लोग बड़े ब्राइट लगते हैं जब तक कि आप उन्हें बोलते हुए नहीं सुन लेते। + + +* नया ज्ञान उत्पन्न करना ही अनुसन्धान है। (Neil Armstrong) +* अपने निर्माण के क्षणों का वर्णन करते हुए १९७८ में मैं अनुसन्धान के चार मूलभूत नियमों का वर्णन पहले ही कर चुका हूँ। मैं उनको साफ-साफ कहना चाहूँगा और उसके बाद उनकी व्याख्या करूँगा। वे निय्म ये हैं- +:(३) मूर्खता करने का साहस करो, +* शोध करने वाले वैज्ञानिक के लिये हर दिन नास्ते के पहले एक घरेलू परिकल्पना (pet hypothesis) को छोड़ देना अच्छी बात है। Konrad Lorenz, On Aggression, 1966 + + +संस्कृत एक अति प्राचीन भाषा है जिसमें विपुल साहित्य है। यह साहित्य जितना विशाल है, उतना ही विविध भी है। संस्कृत भारोपीय भाषा परिवार की सबसे महत्वपूर्ण भाषा मानी जाती है। +: अर्थ भारत की प्रतिष्ठा दो चीजों में निहित है संस्कृत और संस्कृति । +* संस्कृत साहित्य का यूरोप पर इतना अधिक बौद्धिक ऋण है कि उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। आने वाले वर्षों में यह ऋण और बढ़ने की सम्भावना है। हम तो अपनी वर्णमाला तक को परिपूर्ण नहीं बना पाए हैं। (प्रोफ मैक्डोनेल) +* संस्कृत में जितनी स्पष्टता और दार्शनिक परिशुद्धता है, उतनी ग्रीक सहित विश्व की किसी भी भाषा में नहीं है। Friedrich von Schlegel +* संस्कृत भाषा की प्राचीनता जो भी हो, इसकी संरचना आश्चर्यजनक है। यह ग्रीक से अधिक पूर्ण (दोषरहित) है, लैटिन से अधिक शब्दबहुल है, और इन दोनों की अपेक्षा अधिक उत्कृष्टतापूर्वक परिशोधित है; फिर भी क्रियाओं के मूलों के रूप में और व्याकरण के रूपों में, इसका इन दोनों भाषाओं के साथ बहुत मजबूत सम्बन्ध दिखता है, जिसके केवल संयोग से उत्पन्न होने की स्म्भावना कम है। इन तीनों में इतना मजबूत सम्बन्ध है कि इनका विश्लेषण करके कोई भी भाषाशास्त्री इनके समान स्रोत से निकलने के ही निष्कर्ष पर पहुंचेगा। किन्तु वह स्रोत अब शायद बचा नहीं नहीं है। विलियम जोन्स]] +* संस्कृत न केवल जीवित है बल्कि यह मृत को जीवित करने की औषधि भी है। सम्पूर्णानन्द]] +* संस्कृत में क्या बुराई है भीमराव आम्बेडकर जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने संस्कृत को भारत की राजभाषा बनाने का प्रस्ताव क्यों किया। +* संस्कृत विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा है। मैक्स मूलर]] +* संस्कृत के अध्ययन के बिना कोई व्यक्ति सच्चा भारतीय और सच्चा विद्वान नहीं हो सकता। महात्मा गांधी]] +* संस्कृत भाषा के अभिव्यक्ति की विशालता, बहुमुखी प्रतिभा और शक्ति की सराहना इस तथ्य से की जा सकती है कि इस भाषा में पृथ्वी के विभिन्न रूपों का वर्णन करने के लिए ६५ शब्द हैं, पानी के लिए 67 शब्द हैं और वर्षा का वर्णन करने के लिए २५० से अधिक शब्द हैं। बंशी पण्डित +* संस्कृत हमारे रक्त में प्रवाहित होती है। केवल संस्कृत ही इस देश की एकता को स्थापित कर सकती है। डॉ सी वी रमन, संस्कृत को भारत की राजभाषा बनाए जाने के प्रश्न पर) +* यदि आपको एक भाषा स्वीकार करनी है तो विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा क्यों नहीं स्वीकार करते नजीरुद्दीन अहमद, संविधान सभा में भारत की राजभाषा पर चर्चा के समय) +* संस्कृत एक समय विश्व की एकमात्र भाषा थी। यह भाषा ग्रीक और लैटिन से अधिक परिपूर्ण और विपुल है। (Prof. Bopp) +* मैं निम्न जाति के लोगों से कहना चाहता हूँ कि अपनी स्थिति को ऊँचा उठाने का एकमात्र रास्ता संस्कृत का अध्ययन है और यही उनकी एकमात्र सुरक्षा है। आप लोग संस्कृत के विद्वान क्यों नहीं बनते? भारत की सभी जातियों तक संस्कृत शिक्षा पहुँचाने के लिए आप करोड़ों क्यों नहीं लगाते? यही प्रश्न है। जिस क्षण आप यह करेंगे, आप ब्राह्मण के बराबर हो जाएंगे। स्वामी विवेकानन्द]] +* सभ्यता के इतिहास में, पुनर्जागरण के बाद, अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में संस्कृत साहित्य की खोज से बढकर विश्वव्यापी महत्व की कोई दूसरी घटना नहीं घटी है। (आर्थर अन्थोनी मैक्डोनेल्ड) +* जब हम संस्कृत साहित्य पर ध्यान डालते हैं तो अनन्त की संकल्पना हमारे सामने आ जाती है। सबसे लंबा जीवन भी उन कार्यों के अवलोकन के लिए पर्याप्त नहीं होगा जो भारत की सीमा से परे हिमालय की तरह हर देश की विशालतम संरचना से ऊपर उभरे और फूले हुए हैं। विलियम जोन्स]] +* पाणिनि का व्याकरण, विश्व के व्याकरणों में सर्वश्रेष्ठ है। यह मानव आविष्कार और उद्योग की सबसे शानदार उपलब्धियों में से एक है। सर डब्ल्यू हन्टर +* संस्कृत की संरचना की अप्रतिम पारदर्शिता इसे भारत-यूरोपीय परिवार की भाषाओं में प्रथम स्थान का निर्विवाद अधिकार देती है। प्रो० ह्विटनी +* संस्कृत, योरप की आधुनिक भाषाओं की जननी है। M. Dukois +* सभी लोग पाणिनि के व्याकरण को विश्व का सबसे छोटा और पूर्ण व्याकरण स्वीकार करते हैं। प्रो० वेबर +* हिन्दुओं के अलावा कोई भी राष्ट्र अभी तक ध्वनिविज्ञान की इतनी उत्तम प्रणाली की खोज नहीं कर सका है। प्रो० विल्सन +* संस्कृत के व्यंजनों का विन्यास, मानव प्रतिभा का अद्वितीय उदाहरण है। प्रो० थॉम्पसन +* संस्कृत हर मनुष्य की भाषा है, चाहे वह किसी भी जाति (race) का हो। डॉ शहीदुल्लाह, ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर + + +दुसट सभन को मूल उपारन॥ गुरु गोविन्द सिंह विचितर नाटक' में +अर्थ हे शिवा (शिव की शक्ति) मुझे यह वर दें कि मैं शुभ कर्मों को करने से कभी भी पीछे न हटूँ। +और मैं अपने मन को यह सिखा सकूं कि वह इस बात का लालच करे कि आपके गुणों का बखान करता रहूँ। +* जब बाकी सभी तरीके विफल हो जाएं, तो हाथ में तलवार उठाना सही है। +* ईश्वर ने हमें जन्म दिया है ताकि हम संसार में अच्छे काम करें और बुराई को दूर करें। +* अगर आप केवल भविष्य के बारे में सोचते रहेंगे तो वर्तमान भी खो देंगे। +* जब कोई व्यक्ति अपने भीतर से स्वार्थ उन्मूलन करता है तो वह अपने अंदर सबसे बड़ा आराम और स्थायी शांति कि अनुभूति करता है। +* जब आप अपने अंदर से अहंकार मिटा देंगे तभी आपको वास्तविक शांति प्राप्त होगी। +* उसने हेमशा अपने अनुयायियों को आराम दिया है और हर समय उनकी मदद की है। +* हे ईश्वर मुझे आशीर्वाद दें कि मैं कभी अच्छे कर्म करने में संकोच ना करूँ। +* ये मित्र संगठित हैं, और फिर से अलग नहीं होंगे, उन्हें स्वस्वंय सृजनकर्ता भगवान् ने एक किया है +* अच्छे कर्मों से ही आप ईश्वर को पा सकते हैं। अच्छे कर्म करने वालों की ही ईश्वर मदद करता है। +* सबसे महान सुख और स्थायी शांति तब प्राप्त होती है जब कोई अपने भीतर से स्वार्थ को समाप्त कर देता है। +* आप स्वयं ही स्वयं हैं, अपने स्वयं ही सृष्टि का सृजन किया है। +* सच्चे गुरु की सेवा करते हए स्थायी शांति प्राप्त होगी, जन्म और मृत्यु के कष्ट मिट जायेंगे। +* अज्ञानी व्यक्ति पूरी तरह से अंधा है, वह मूल्यवान चीजों की कद्र नहीं करता है। +* बिना गुरु के किसी को भगवान का नाम नहीं मिला है। +* भगवान के नाम के अलावा कोई मित्र नहीं है, भगवान के विनम्र सेवक इसी का चिंतन करते और इसी को देखते हैं। +* बिना नाम के कोई शांति नहीं है। +* मृत्यु के शहर में, उन्हें बाँध कर पीटा जाता है, और कोई उनकी प्रार्थना नहीं सुनता है। +* जो लोग भगवान के नाम पर ध्यान करते हैं, वे सभी शांति और सुख प्राप्त करते हैं। +* अज्ञानी व्यक्ति पूरी तरह से अँधा होता है वह गहना के मूल्य की सराहना नही करता है बल्कि उसके चकाचौंध की तारीफ करता है। +* मैं लोगो को के पैरो में गिरता हु जो लोग सच्चाई पर विश्वास रखते है। +* सचमुच वे गुरु धन्य है जिन्होंने भगवान के नाम को याद करना सिखाया। +* स्वार्थ ही बुरे कर्मो के जन्म का कारण बनता है। +जो लोग हर हाल में ईश्वर का नाम स्मरण करते है वे ही लोग सुख और शांति प्राप्त करते है । +* जो ईश्वर में विश्वास रखता है उनके संरक्षण में, जरूरत में, जीवन के हर पथ पर ईश्वर उनका साथ देते है। +* वह व्यक्ति हमेसा खुद अकेला पाता है जो लोगो के लिए जुबान पर कुछ और दिल में कुछ और ही रखता है। +* जो लोग सच्चाई के मार्ग का अनुसरण करते है और लोगो के प्रति दया का भाव रखते है ऐसे लोगो के प्रति ही लोग करुणा और प्रेम का भाव रखते है। +* परमपिता परमेश्वर के नाम के अलावा कोई भी आपका मित्र नही है ईश्वर के सेवक इ���ी का चिंतन करते है और ईश्वर को ही देखते है। +* जब आप अपने अन्दर बैठे अहंकार को मिटा देंगे तभी आपको वास्तविक शांति की प्राप्त होगी। +* अपने द्वारा किये गए अच्छे कर्मों से ही आप ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। और अच्छे कर्म करने वालों की ईश्वर सदैव सहायता करता है। +* इंसान को सबसे वैभवशाली सुख और स्थायी शांति तब ही प्राप्त होती है, जब कोई अपने भीतर बैठे स्वार्थ को पूरी तरह से समाप्त कर देता है। +* गुरुबानी को आप पूरी तरह से कंठस्थ कर लें। +* अपने काम को लेकर लापरवाह ना बने में खूब मेहनत करें। +* आप अपनी जवानी, जाति और कुल धर्म को लेकर कभी भी घमंडी ना बने उससे हमेशा बचे। +* मैं उस गुरु के लिए न्योछावर हूँ, जो भगवान के उपदेशों का पाठ करता है। +* स्वार्थ ही अशुभ संकल्पों को जन्म देता है। +* हमे सबसे महान सुख और स्थायी शांति तभी प्राप्त हो सकती है जब हम अपने भीतर से स्वार्थ को समाप्त कर देते है। +* किसी की भी इंसान की चुगली-निंदा ना करे उससे बचे, और किसी भी इंसान से ईर्ष्या करने के बजाय अपने कार्यो पर ध्यान दे। +* विदेशी नागरिक, दुखी व्यक्ति, विकलांग व जरूरतमंद इंसान की सदैव हृदय से मदद करें। +* ये मित्र संगठित हैं, और फिर से अलग नहीं होंगे, उन्हें स्वंय सृजनकर्ता भगवान् ने एक किया है। +* जब आप अपने अन्दर से अहंकार मिटा देंगे तभी आपको वास्तविक शांति प्राप्त होगी। +* आप अपनी जीविका को चलाने के लिए ईमानदारी पूर्वक काम करे। +* हमेशा आप अपनी कमाई का दसवां भाग दान में दे दें। +* सेवक नानक भगवान के दास हैं, अपनी कृपा से, भगवान उनका सम्मान सुरक्षित रखते हैं। +* हमेशा अपने दुश्मन से लड़ने से पहले, साम, दाम, दंड और भेद का सहारा लें, और अंत में ही आमने-सामने के युद्ध में पड़ें। +गुरु गोविन्द सिंह के ५२ उपदेश (हुक्म +(1 धर्म दी किरत करनी – धर्म की कीर्ति करना (धर्म का प्रसार करना, अधर्म न करना) +(5 सिख सेवक दी सेवा रूचि नाल करनी – पूरी श्रद्धा से गुरूसिक्खों की सेवा करनी। +(6 गुरुबाणी दे अर्थ सिख विद्वाना तो पढ़ाने – गुरसिखों से गुरबाणी के अर्थ समझने। +(7 पंज ककार दी रेहत दिरीह कर रखनी – पाँच ककार (कड़ा, कच्छा, कृपाण, केस, कघां) की मर्यादा मेँ रहना और सख्ती से पालन करना। +(8 शबद दा अभिहास करना – जीवन में शबद (गुरबानी) का अभ्यास करना। +(11 कारजां दे आरम्भ विच अरदास करनी – सभी कार्य की शुरुआत में अरदास करनी। +(12 जन्म, मरण, जा विआह ���ोके जपजी दा पाठ कर, तिहावाल (कड़ा प्रसाद) कर, आनंद साहिब दे पंज पौरिआं, अरदास, प्रथम पंज प्यारे ते हजूरी ग्रंथी नू वरत के संगत नू वार्ताओना – जन्म, मृत्यु, या विवाह समारोहों (आनंद कारज) में, जपजी साहिब का पाठ करें, कड़ा प्रसाद बनाएं, आनंद साहिब के पांच श्लोक करें, अरदास करें, और फिर पंज प्यारे, हजूर ग्रंथी और फिर संगत को कराह प्रसाद वितरित करें। +(14 आनंद विआह बिना ग्रहस्त नहीं करना – विवाह (आनंद कारज) के बिना वैवाहिक जीवन की शुरुआत नहीं करनी। +(15 पर स्त्री, माँ, बहन, धि, कर जानी। पर स्त्री द संग नहीं करना। – अपनी पत्नी के अलावा सभी औरतों को माँ, बहन, बेटी के रूप में देखना है। पराई स्त्री के साथ वै वाहिक सम्बन्ध नहीं रखना। +(18 रेहतवान आते नाम जुपन वाले गुरसिखा दी संगत करनी – रेहत का पालन करने वाले और वाहेगुरु का नाम ध्यान करने वाले सिक्खो की संगत करनी। +(19 कम करन विच दरीदार नहीं करना – काम करने में आलस नहीं दिखानी। +(20 गुरबाणी दी कथा ते कीर्तन रोज सुनने ते करने – प्रतिदिन कीर्तन और गुरबाणी (गुरु की बाणी) प्रवचन सुनें और करें। +(21 किसे दी निंदा, चुगली, अते इरखा नहीं करनी – किसी भी व्यक्ति की निंदा, चुगली या ईर्ष्या नही करनी। +(22 धन, जवानी ते कुल जात दा अभिमान नहीं करना – धन दौलत जात पात व यौवन का घमंड नहीं करना। सब लोगों में आपसी भाईचारा होने चाहिए। +(24 शुभ कर्मन तो कदे ना कतराना – हमेशा शुभ कार्य करते रहे, नेक कार्य करने से परहेज न करें। +( 25 बुद्ध बल दा दाता वाहेगुरु नू जानना – भगवान (वाहेगुरु) को बुद्धि और शक्ति के दाता (मालिक) के रूप में जानना। +( 26 सोगन्द (कसम साहू) दे कर इतबार जनाओँ वाले ते यकीन नहीं करना – उस व्यक्ति पर विश्वास न करें जो कसम खाता है। जो मनुष्य किसी को ‘कसम या सौगंध’ के साथ मनाने की कोशिश करता है ऐसे व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना। +(27 स्वतंत्र विचारना – राज काज दियां कामां ते दुसरे मुता दिआ पुरषा नू हक नहीं देना – स्वतंत्र रूप से शासन करें। सरकार के कामों में दूसरे धर्म के लोगों को अधिकार या शक्ति न दें। +(28 राजनीति पढ़नी – राजनीति की पढ़ाई करनी। +(29 दुश्मन नाल साम, दाम, दंड, भेद आदि उपाय वरतने – दुश्मन के साथ, विभिन्न रणनीतियों (साम, दाम, दंड, भेद) का उपयोग करना, पर युद्ध धर्म से लड़ना। +( 31 दूसरे मता दे पुस्तक, विद्या पढ़नी, पर भरोसा दृढ़ गुरबानी, अकाल पूरक ते करना – अन्य धर्मों की पुस्तकों और ज्ञान का अध्ययन करना व सम्मान करना, लेकिन भरोसा गुरबाणी और अकाल पुरुख पर रखना। +( 32 गुरु उपदेशा नू धारान करना – गुरु के उपदेशों को धारण करना और पालन करना। +(34 सोन वैले सोहिला अते ‘पौन गुरु पानी पीता’ श्लोक पढ़ना – रात को सोने के समय कीर्तन सोहिला का पाठ करना +(36 सिंह दा आधा नाम नहीं बुलाना – सिंह को उनके आधे नाम से न बुलाना। सिक्खों का पूरा नाम हमेशा आदर से लेना। +(37 शराब नही सेवानी – शराब का सेवन नहीं करना। +(39 शुभ कारज गुरबाणी अनुसार करने – सभी शुभ काम गुरुबाणी के अनुसार ही करने। +(42 दर्शन यात्रा गुरूद्वारे दी ही करनी – तीर्थ यात्रा गुरु घर (गुरुद्वारा) की ही करनी। +(43 बचन करके पालना – वचन देकर उसका पालन करना। +(44 परदेसी, लोढ़वान, दुखी, अपंग मनुका दी यातःशक्त सेवा करनी – परदेसी, जरूरतमंद, दुखी,अपंग व्यक्ति की जितनी आपकी शक्ति हो उतनी सेवा करनी। +(45 पुत्री दा धन भिख जानना – बेटी की कमाई को भीख सामान मानना। +(51 धोखा नहीं करना – किसी को भी धोखा नहीं देना। +(52 लंगर – प्रसाद इक रस वार्ताउना – लंगर और कड़ा प्रसाद को एक समान रुप से बाँटना। +गुरु गोविन्द सिंह के बारे में उक्तियाँ +* जब मैं गुरु गोविंद सिंह जी के व्यक्तित्व के बारे में सोचता हूँ तो मुझे समझ में नहीं आता कि उनके किस पहलू का वर्णन करूँ। वे कभी मुझे महाधिराज नजर आते हैं, कभी महादानी, कभी फकीर नजर आते हैं, कभी वे गुरु नजर आते हैं। मुहम्मद अब्दुल लतीफ + + +महामना मदन मोहन मालवीय भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं शिक्षाविद थे। उन्होने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। +* यदि आप मानव आत्मा की आंतरिक शुद्धता को स्वीकार करते हैं,तो आप या आपका धर्म किसी भी व्यक्ति के स्पर्श या संगति से कभी भी अशुद्ध या अपवित्र नहीं हो सकता है। +* अंग्रेज़ी माध्यम भारतीय शिक्षा में सबसे बड़ा विघ्न है। सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है। +* धार्मिकता और धर्म कायम रहने दें, और सभी समुदाय और समाज प्रगति करें। +* हमारी प्यारी मातृभूमि को अपना खोया हुआ गौरव वापस दिलाएं। भारत के पुत्र विजयी हों। +* भारत की एकता का मुख्य आधार है एक संस्कृति,जिसका उत्साह कभी नहीं टूटा। यही इसकी विशेषता है। +* आप प्रेम को खरीद नहीं सकते, लेकिन इसके लिए आपको भारी जुर्माना जरुर भरना पड़ता है। +* हम मानते हैं कि धर्म चरित्र का आधार है और मानव सुख का सबसे बड़ा स्रोत है। +*हमारा मानना ​​है कि देशभक्ति एक शक्तिशाली उत्थानकारी प्रभाव है जो पुरुषों को उच्च विचारधारा वाली निष्काम कर्म की प्रेरणा देता है. +* हमारे भारत देश के संविधान का पहला खंड गौ हत्या की रोकथाम पर होना चाहिए। + + +राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है। इसकी स्थापना सन १९२५ में विजयादशमी के दिन नागपुर में हुई थी। +* देश की वास्तविक उन्नति समाज से ही सम्भव है। हमें समाज में रहकर अपने विचारों और कर्मों से राष्ट्र की उन्नति में योगदान देना चाहिए। +* भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति हिन्दू है। किसी कालखण्ड में वह हमसे अलग हो गया जिसके कारण उसकी मान्यताएं बदल गई, किन्तु वैचारिक रूप से वह हमारा भाई ही है। +* हिंदू एक जीवन शैली है जो सत्य और सनातन है। हिंदू होने पर गर्व और गौरव का अनुभव होना चाहिए। +* देश में किसी भी अवसर पर संघ के स्वयंसेवक की आवश्यकता होती है, तो यह स्वयंसेवक के लिए गौरव का क्षण होता है। +* संघ की शाखाएं समय से नहीं, समय संघ की शाखाओं से चला करती है। +* ग्रामीण क्षेत्र में एक प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्र में तीन प्रतिशत का लक्ष्य जिस दिन प्राप्त हो जाएगा, भारत माता परम वैभव पर स्थापित हो जाएंगी। +* जाति, वर्ग, पंथ आदि में बठकर समाज का उत्थान संभव नहीं है। सभी भारत के निवासी हैं, यह मानकर सभी को एक समान भाव से गले लगाना होगा। +* जब तक हिंदुस्तान में एक भी हिंदू जीवित है, तब तक यह हिंदू राष्ट्र ही रहेगा। । +* देश की वास्तविक उन्नति समाज से ही सम्भव है। हमें समाज में रहकर अपने विचारों और कर्मों से राष्ट्र की उन्नति में योगदान देना चाहिए। +* लोगों का क्या है, वह आप पर पत्थर ही फेकेंगे। यह आप पर निर्भर करता है यह आप पर निर्भर करता है, उन पत्थरों का आप क्या करेंगे। एक समझदार उन पत्थरों से मजबूत नींव डालता है, वही नासमझ अपना मार्ग परिवर्तित करता है। +* दूसरों को सुनाने के लिए जरूरी नहीं कि आप अपनी आवाज ऊंची करें। अपना व्यक्तित्व ऊंचा करके भी अपनी बात दूसरों को सुना सकते हैं। +* स्वयंसेवक को स्वाद और विवाद दोनों त्याग कर आगे बढ़ जाना चाहिए। स्वाद छोड़ने पर शरीर को फायदा होता है, वही विवाद को छोड़कर संबंध मजबूत होते हैं। +* स्वयंसेवक अपने कार्य के प्रति इतने संलग्न रहते हैं वह थक कर नहीं बैठते। उनकी वाणी इतनी मधुर होती है कि सामने वाले को आकर्षित कर लेती है। लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सीने में एक ज्वाला सदैव जलता रहता है। अपने शक्ति और पुरुषार्थ को प्रदर्शित करने के लिए सिर पर तथा शरीर पर भगवा वस्त्र धारण करते हैं। +* स्वयं की चिन्ता से तनाव उत्पन्न होता है, वही समाज की चिन्ता से लगाव। +* जहां स्वार्थ की सीमाएं समाप्त होती है, वहीं से इंसानियत आरंभ होती है। +* जीवन को बदलने के लिए लड़ना पड़ता है, वहीं जीवन को सुगम बनाने के लिए समझना। +* सच्चे इंसान की भगवान, सदैव परीक्षा लेता है किंतु साथ नहीं छोड़ता। बुरे लोगों को भगवान बहुत कुछ देता है, पर साथ नहीं देता। +* जिसे निभाया ना जा सके ऐसा वादा ना करें +: अपनी हदों को पहचान बातें ज्यादा ना करें। +* लोग आपको जरूरत के समय याद करें तब भी घबराने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आप उनके लिए आशा की किरण हैं जो उनका मार्गदर्शन कर सकती है। +संघ के बारे में विचार +* दुर्लभ है ज्ञान संघ का +: बाल संस्कार की नर्सरी +: प्रौढ़ वृक्षों की है छटा निराली॥ +* जीवन का उच्च आदर्श यहां +: बच्चे हो या बूढ़े सभी के +* राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कुछ नहीं करता और स्वयंसेवक कुछ नहीं छोड़ते, वे सबकुछ करते हैं। +* देशभर में एक संघ की शाखाएं ही हैं जहां प्रातः मातृभूमि की वन्दना की जाती है। +* संघ का स्वयंसेवक इतना सक्षम होता है कि वह स्वयं समाज का नेतृत्व कर सकता है, चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो। +* संघ की शाखाएं समय से नहीं, समय संघ की शाखाओं से चला करता है। + + +श्रीमती एनी बेसेंट आयरलैंड में जन्मी एक भारतप्रेमी महिला थीं जिन्होने भारत की स्वतंत्रता एवं भारतवासियों के सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए अनेक प्रयास किए। वे थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ी हुईं थीं। +* पूर्व जन्म में मैं हिन्दू थी। +* हिन्दू धर्म विश्व में सबसे प्राचीन ही नहीं, सबसे श्रेष्ठ भी है। +* भारत एक ऐसा देश है जिसमें हर महान धर्म के लिए जगह है। +* भारत और हिन्दुत्व एक-दूसरे के पर्याय हैं। भारत और हिन्दुत्व की रक्षा भारतवासी और हिन्दू ही कर सकते हैं। हम बाहरी लोग आपकी चाहे जितनी प्रशंसा करें, किन्तु आपका उद्धार आपके ही हाथ है। +* आप किसी प्रकार के भ्रम में न रहें। हिन्दुत्व के बिना भारत के सामने कोई भविष्य नहीं है। हिन्दुत्व ही वह मिट्टी है, जिसमें भारतवर्ष का मूल गडा हुआ है। यदि यह मिट्टी दृढ हटा ली गयी तो भारतवासी वृक्ष सूख जायेगा। +* भारत में प्रश्रय पाने वाले अनेक धर्म हैं, अनेक जातियां हैं, किन्तु इनमें किसी की भी शिरा भारत के अतीत तक नहीं पहुंची है, इनमें से किसी में भी वह दम नहीं है कि भारत को एक राष्ट्र में जीवित रख सकें, इनमें से प्रत्येक भारत से विलीन हो जाय, तब भी भारत, भारत ही रहेगा। किन्तु, यदि हिंदुत्व विलीन हो गया तो शेष क्या रहेगा। तब शायद, इतना याद रह जायेगा कि भारत नामक कभी कोई भौगोलिक देश था। +* भारत के इतिहास को देखिए, उसके साहित्य, कला और स्मारकों को देखिए, सब पर हिन्दुत्व, स्पष्ट रूप से, खुदा हुआ है। +* चालीस वर्षों के सुगम्भीर चिन्तन के बाद मैं यह कह रही हूँ कि विश्व के सभी धर्मों में हिन्दू धर्म से बढ़ कर पूर्ण, वैज्ञानिक, दर्शनयुक्त एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण धर्म दूसरा और कोई नहीं है। +* भारत की ग्रामीण व्यवस्था को छिन्न भिन्न करना इंग्लैंड की सबसे बड़ी गलती थी। +* समाजवाद आदर्श राज्य है, लेकिन इसे तबतक हासिल नहीं किया जा सकता, जबतक मनुष्य स्वार्थी है। + + +माओ त्से तुंग चीनी क्रान्तिकारी, राजनैतिक विचारक और साम्यवादी दल के सबसे बड़े नेता थे जिनके नेतृत्व में चीन की क्रान्ति सफल हुई। उन्होंने जनवादी गणतन्त्र चीन की स्थापना (सन् 1949) से मृत्यु पर्यन्त (सन् 1973) तक चीन का नेतृत्व किया। मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा को सैनिक रणनीति में जोड़कर उन्होंने जिस सिद्धान्त को जन्म दिया उसे माओवाद नाम से जाना जाता है। कई लोग माओ को एक विवादास्पद व्यक्ति मानते हैं परन्तु चीन में वे राजकीय रुप में महान क्रान्तिकारी, राजनैतिक रणनीतिकार, सैनिक पुरोधा एवं देशरक्षक माने जाते हैं। चीनियों के अनुसार माओ ने अपनी नीति और कार्यक्रमों के माध्यम से आर्थिक, तकनीकी एवं सांस्कृतिक विकास के साथ देश को विश्व में प्रमुख शक्ति के रुप में ला खडा करने में मुख्य भूमिका निभाई। +* साम्यवाद इश्क नहीं है। साम्यवाद एक हथौड़े के समान है, जो शत्रुओं को कुचलने के काम आता है। +* आपदा और अराजकता हमेशा अच्छी होती है। +* एक बच्चे को एक मछली न दें, बल्कि उसे यह सिखाएं कि मछली कैसे पकड़ते हैं। +कठिन समय में हमें अपनी सफलताओं को याद करना चाहि । +* किसी भी काम का बार-बार अभ्यास हमें उस काम में सक्षम बना देता है। +* क्रांति बगावत है, जिसके द्वारा एक सत्���ा दूसरे का तख्ता पलट करती है। +* नैतिकता बंदूक की नोंक पर आती है। +* पहले खुद सीखें, फिर आप दूसरों को शिक्षा दें। +* मनुष्य को अवश्य ही, प्रकृति को जीतना चाहिए। +* मृत्यु के अनेक लाभ हैं, यह धरती को उपजाऊ बनाता है। +* राजनीति बिना खून की लड़ाई है, जब कि युद्ध खून से भरपूर राजनीति है। +* राजनीति सारे आर्थिक कामों की रीढ़ है। +* लोग और केवल लोग ही वह शक्ति हैं, जो विश्व में इतिहास बनाते हैं। +* लोग पानी की तरह होते हैं, और सेना मछली की तरह। +* शक्ति बंदूक की नली से आती है। जिसके पास बंदूक है, उसी के पास शक्ति है। जिसके पास शक्ति होती है, वह तानाशाही करता है। चाहे सरकार का स्वरुप कुछ भी हो। +* संघर्ष के बाद ही विश्व में चमत्कार मुमकिन होते हैं। +सबसे महत्त्वपूर्ण बात है मजबूत बनना। मजबूत होकर हम दूसरों को जीत सकते हैं। दूसरों को जीतना एक गुण है। +* सभी राजनैतिक शक्ति बंदूक की गोली से निकलती है। +* समाजवाद की घास, पूंजीवाद की फसल से बेहतर है। +* सही राजनीतिक दृष्टिकोण नहीं होना, आत्मा नहीं होने जैसा है। +* सेना को चाहिए कि वह जनता के साथ एक रूप हो, ताकि जनता उसे अपनी ही सेना समझे, ऐसी सेना अपराजेय बन जाएगी। +* स्टालिन ने गलतियां की। उसने हमें लेकर गलतियां की, 1927 में। उसने योगोस्वालव को लेकर भी गलतियां की। गलतियां किए बिना कोई आगे नहीं बढ़ सकता। गलतियां करना जरूरी है। पार्टी गलती किए बिना आगे नहीं बढ़ सकती। यह बड़ी बात है। +* हम मार्क्स, एंगल्स, लेनिन और स्टालिन के आभारी हैं कि उन्होंने हमें हथियार दिया। ये हथियार मशीन गन नहीं है। यह मार्क्सवाद – लेनिनवाद है। +* हमारा लक्ष्य अपने शत्रुओं को अपना मित्र बनाना होना चाहिए। +हमें उन सभी बातों का समर्थन करना चाहिए जिसका हमारे दुश्मन विरोध करते हैं। उन सभी बातों का विरोध करना चाहिए, जिसका हमारे दुश्मन समर्थन करते हैं। +* हर सुधार विरोधी व्यक्ति कागज के शेर की तरह होता है। + + +* तथ्‍य स्‍वयं नहीं बोलते हैं। वे तभी हमें विशिष्‍ट जानकारी प्रदान करते हैं जब इतिहासकार उनका उचित सन्दर्भ में उल्‍लेख करते हैं। यह इतिहासकार पर निर्भर करता है कि वह किस तथ्‍य को प्रस्‍तुत करे और इस तरह, इतिहासकार ही आवश्‍यक रूप से चयनकर्ता होते हैं। ई. एच. कार्र (EH Carr) के ‘इतिहास क्‍या है’, अध्‍याय-१ +* अतीत के जिस अंश तक प्रमाण की किरणें पहुँच सकती हैं, उसे हम इतिहास की संज्ञा देते हैं। जो जीवन के स्पन्दन से रहित इतिवृत्त मात्र है। जो हमारे तर्क की सीमा के पार घटित हो चुका है वह पुराण की सीमा में आबद्ध होकर जीवन की ऐसी गाथा बन जाता है जिसमें इतिवृत्त का सूत्र खोजना कठिन है। महादेवी वर्मा +* अनुभव और इतिहास बताता है कि लोगों और सरकारों ने इतिहास से न कभी कुछ सीखा और न इतिहास से निकले नियमों के अनुसार कार्य किया। हेगेल (दर्शनशास्त्र का इतिहास, भूमिका) +* इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है। +* इतिहास असत्यों पर एकत्र की गयी सहमति है।— नेपोलियन बोनापार्ट +* इतिहास अंक-गणित जीवन चरितों का सार है। कार्लाइल +* इतिहास अर्थ है मनुष्य जाति के सम्मुख उपस्थित हुए प्रश्नों का उल्लेख। काका कालेलकर +* इतिहास अर्थात् अफ़वाह का आसव। कार्लाइल +* इतिहास उदाहरणों से व्युत्पन्न दर्शन है। प्लूटार्क +* इतिहास एक उपन्यास है जो घटित हुआ था और उपन्यास, इतिहास है जो घटित हो सकता था। एडमंड और जूल्स डि गोनकोर्ट +* इतिहास का अध्ययन, यानी अपने पूर्व-जन्मों का निरीक्षण। विनोबा +* इतिहास का खेल न्यारा है। सदा नये चमत्कार होते रहते है। नये गुल भी खिलते रहते हैं। संभव और असंभव ये दोनों शब्द इतिहास में निरर्थक हैं। लाला हरदयाल +* इतिहास का प्रयोजन वर्तमान समय और उसके अनुसार कर्तव्य को महत्व देना है। एमर्सन +* इतिहास का सच्चा कार्य है स्वयं घटनाओं को, परामर्श के साथ प्रस्तुत करना और उन पर अभिमतों व निष्कर्ष को जन-जन के निर्णय की स्वाधीनता व क्षमता पर छोड़ देना। बेकन +* इतिहास की पुनरावृत्ति होती है,इतिहास की पुनरावृति नही होती है। जार्ज मैकाले ट्रेवेलयन +* इतिहास केवल देखना नहीं चिंतन भी है। चिंतन सदैव रचनात्मक होता है, चाहे सर्जनात्मक न भी हो। इसलिए-लेखन सर्जनात्मक क्रिया है। यह इतिहास परक अनुसंधान से भिन्न है। डा० राधाकृष्णन +* इतिहास केवल महान व्यक्तियों की जीवनगाथा हैं। +* इतिहास क्या हैं, केवल सहमति द्वारा निर्मित आख्यायिका। +* इतिहास खुद को दोहराता है यही इसकी बुरी कड़ी हैं। +* इतिहास ज्ञान की वह शाखा है जिसमें हम मानव जाति से संबंधित पिछली घटनाओं का अध्ययन करते हैं उसे इतिहास कहते हैं। अज्ञात +* इतिहास तब तक रुचिकर लगता है जब तक वह दृढ़तापूर्वक सत्य रहता हैं। +* इतिहास तो एक सिलसिलेवाद मुकम्मित चीज है, और जब तक तुम्हें यह मालूम ने हो कि दुनिया ���े दूसरे हिस्सों में क्या हुआ-तुम किसी एक देश का इतिहास समझ ही नहीं सकतीं। जवाहरलाल नेहरू +* इतिहास पहले त्रासदी की तरह तथा दुसरे रूप में स्वयं को मजाक की तरह दोहराता हैं। +* इतिहास मनुष्य को देषकाल में जाड़कर पकड़ना चाहता है। वह सत्य घटनाओं को ढूँढता है। लीला मानवीय जीव की नृत्य व्याख्या प्रस्तुत करती है। वासुदेवशरण अग्रवाल +* इतिहास मानव के अपराधों, मूर्खताओं तथा दुर्भाग्यों की गणना – पल से अधिक कुछ ही अधिक वस्तु हैं। +* इतिहास में विचार की केवल उथली धारा होती हैं। +* इतिहास विगत राजनीति है ओर राजनीति वर्तमान इतिहास है। सर जाॅन सीले +* इतिहास विश्वास की नहीं, विश्लेषण की वस्तु है। इतिहास मनुष्य का अपनी परंपरा में आत्म-विश्लेषण है। यशपाल +* इतिहास सदा विजेता द्वारा ही लिखा जाता है। अज्ञात +* इतिहास स्वयं को दोहराता है इतिहास के बारे में यही एक बुरी बात है। –सी डैरो +* इतिहास, शक्तिशाली लोगों द्वारा, उनके धन और बल की रक्षा के लिये लिखा जाता है। +* उचित रूप से देंखे तो कुछ भी इतिहास नही है सब कुछ) मात्र आत्मकथा है। — इमर्सन +* केवल एक स्वतंत्र देश में इतिहास भली भांति लिखा जा सकता हैं। +* जो इतिहास को याद नहीं रखते उनको इतिहास को दुहराने का दण्ड मिलता है। — जार्ज सन्तायन +* जो राष्ट्र अपने इतिहास की गलतियों से सबक नही लेता है उसका हस्र निश्चित हैं। +* जो व्यक्ति इतिहास का निर्माण करते हैं, उनके पास इतिहास लिखने के लिए समय नही होता हैं।, +* ज्ञानी लोगों का कहना है कि जो भी भविष्य को देखने की इच्छा हो भूत (इतिहास) से सीख ले।— मकियावेली ” द प्रिन्स ” में +* तारीख़े और सन् संवत् की सूची बनाने से इतिहास पूर्ण नहीं होता। उसका गौरव कृति में है। देशकाल और पात्रों के समन्वय में कृति करना ही इतिहास है। रत्नाकर शास्त्री +* तिहास असत्यों पर एकत्र की गयी सहमति है। नेपोलियन बोनापार्ट +* तिहास खुद को दोहराता है, पहले एक त्रासदी की तरह, दुसरे एक मज़ाक की तरह । कार्ल मार्क्स +* पुराने विवादों और संघर्षों की स्मृति को अपने हृदय में चिरस्थायी रखने की दृष्टि से इतिहास का अध्ययन नहीं किया जाना चाहिए और न ही आज भी ‘मातृभूमि’ और ‘खुदा’ के नाम पर रक्तपात किया जाना ही सही है। इतिहास का कार्य तो उन मौलिक कारणों की खोज करना है, जो झगड़े, फसाद एवं रक्तपात् को मिटाकर मानव को मानव से, जो एक परम पिता-परमात��मा की संतान है और एक ही माता वसुंधरा की पावन गोदी में खेले है, पले है, मिला दे ओर अंततः इस धराधाम पर सपर्वभौम मानवीय प्रजातंत्र की स्थापना का स्वप्न साकार हो सके। विनायक दामोदर सावरकर +* मानव जाति के सबसे आनंद के काल इतिहास के कोरे पृष्ठ है। लियोपाल्ड फान रैके +* लेखक इतिहास के किसी आन्दोलन को शायद बहुत अच्छी तरह से बता सकता है, लेकिन निश्चित रूप से वह इसे बना नहीं सकता । कार्ल मार्क्स +* वर्तमान को मूल्य एवं कर्तव्य देना- इतिहास का उपयोग हैं। +* वर्तमान भारत का इतिहास भी यथार्थ में विविध संस्कृतियों के संघर्षों एवं संग्रहों का इतिहास है। लक्ष्मणशास्त्री जोशी +* विश्व का इतिहास विश्व का न्यायालय है। शेलिंग +* संक्षेप में मानव इतिहास सुविचारों का इतिहास है। — एच जी वेल्स +* संपूर्ण इतिहास असफुट बाइबिल है। कार्लाइल +* सभ्यता की कहानी सार रूप में इंजिनीयरिंग की कहानी है – वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया। — एस डीकैम्प +* हमारे घरों में प्रतिदिन इन तीर्थो की कथाएँ और चर्चाए कुछ योंही नहीं आ गयी हैं, उनमें इतिहास की सत्यता है। जिस पर विश्व का इतिहास खड़ा है। लोग भारतीयों को रूढ़ि के घेरे में बंद कहते हैं, किंतु सत्य यह है कि हमारे इतिहास को विदेशियों ने भ्रांति के एक घेरे में परिवेष्टित कर दिया है। इस घेरे की रूढ़ियों को तोड़ा और तब देखो, इतिहास के क्षितिज पर कौन प्रकाशमान है रत्नाकर शास्त्री +* हिस्ट्री में कभी भी विचार विनिमय से ठोस परिवर्तन नही निकला हैं। + + +आयुर्वेद, स्वास्थ्य आदि की परिभाषा +: अर्थ- जिसमें आयु है या जिससे आयु का ज्ञान प्राप्त हो, उसे आयुर्वेद कहते हैं। +: अर्थात् हितायु, अहितायु, सुखायु एवं दुःखायु; इस प्रकार चतुर्विध जो आयु है उस आयु के हित तथा अहित अर्थात् पथ्य और अपथ्य आयु का प्रमाण एवं उस आयु का स्वरूप जिसमें कहा गया हो, वह आर्युवेद कहा जाता है। +अर्थ और इसका (आयुर्वेद का) प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करना है। +: धर्म, अर्थ और सुख का साधन आयु है, इस आयु की जिस व्यक्ति को इच्छा हो उसे आयुर्वेद के उपदेशों का परम आदर करना चाहिए। +: भोजन करने की इच्छा, अर्थात भूख समय पर लगती हो, भोजन ठीक से पचता हो, मलमूत्र और वायु के निष्कासन उचित ��ूप से होते हों, शरीर में हलकापन एवं स्फूर्ति रहती हो, इन्द्रियाँ प्रसन्न रहतीं हों, मन की सदा प्रसन्न स्थिति हो, सुखपूर्वक रात्रि में शयन करता हो, सुखपूर्वक ब्रह्ममुहूर्त में जागता हो; बल, वर्ण एवं आयु का लाभ मिलता हो, जिसकी पाचक-अग्नि न अधिक हो न कम, उक्त लक्षण हो तो व्यक्ति निरोगी है अन्यथा रोगी है। +: जिसके दोष (वात, कफ, पित्त) सम (normal) हैं, जिसकी अग्नि सम है (न अधिक, न कम धातु सम हैं, मलक्रिया ठीक है, जिसकी आत्मा, इन्द्रियाँ और मन प्रसन्न हैं, वह स्वस्थ कहा जाता है। +: अर्थ शरीररुपी भवन को धारण करनेवाले तीन स्तम्भ (खम्भे) हैं: आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य (गृहस्थाश्रम में सम्यक् कामभोग) । +: शीत (कफ उष्ण (पित्त) और वायु (वात ये तीन शरीरके गुण (दोष) होते हैं। इन गुणों की जो साम्यावस्था (सामान्य होना) ही स्वास्थ्य का लक्षण है। +अर्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का मूल (जड़) उत्तम आरोग्य ही है। +: अर्थात् धर्म की सिद्धि में सर्वप्रथम, सर्वप्रमुख साधन (स्वस्थ) शरीर ही है। अर्थात् कुछ भी करना हो तो स्वस्थ शरीर पहली आवश्यकता है। +अर्थ वैद्य उसे कहते हैं जो ठीक प्रकार से शास्त्र पढ़ा हुआ, ठीक प्रकार से शास्त्र का अर्थ समझा हुआ, छेदन स्नेहन आदि कर्मों को देखा एवं स्वयं किया हुआ, छेदन आदि शस्त्र-कर्मों में दक्ष हाथ वाला, बाहर एवं अन्दर से पवित्र (रज-तम रहित शूर (विषाद रहित अग्रोपहरणीय अध्याय में वर्णित साज-सामान सहित, प्रत्युत्पन्नमति (उत्तम प्रतिभा-सूझ वाला बुद्धिमान, व्यवसायी (उत्साहसम्पन्न विशारद (पण्डित सत्यनिष्ट, धर्मपरायण हो। +: वैद्य के चार लक्षण—१. दक्ष (चिकित्साकर्म में कुशल २. तीर्थ (आचार्य) से शास्त्र (आयुर्वेदशास्त्र) के अर्थ को ग्रहण कर चुका हो। ३. दृष्टकर्मा (चिकित्सा की विधियों को जो अनेक बार देख चुका हो) और ४. जो शुचि (शरीर तथा आचरण से पवित्र) हो। +: जो अर्थ तथा कामना के लिए नहीं, वरन् भूतदया अर्थात् प्राणिमात्र पर दया की दृष्टि से चिकित्सा में प्रवृत्त होता है, वह सब पर विजय प्राप्त करता है। +अर्थ उत्तम देश में उत्पन्न, प्रशस्त दिन में उखाड़ी गई, युक्तप्रमाण (युक्त मात्रा में मन को प्रिय, गन्ध वर्ण रस से युक्त, दोषों को नष्ट करने वाली, ग्लानि न उत्पन्न करने वाली, विपरीत पड़ने पर भी स्वल्प विकार उत्पन्न करने वाली या विकार न करने वाली, देशकाल आदि की विवेचना करके रोगी को समय पर दी ���ई औषध गुणकारी होती है। +: हे वनस्पति! आप मेरे लिये आयु, बल, वीर्य, यश, पुत्र, पशु, धन, ब्रह्मज्ञान, और प्रज्ञा प्रदान करें। +: संक्षिप्त रूप से औषध (चिकित्सा) दो प्रकार की होती है- १. शोधन अर्थात् वमन-विरेचन आदि विधियों से दोषों को निकालना शोधन कहा जाता है और २. शमन अर्थात् उभड़े हुए वात आदि दोषों को शान्त करने का उपचार। +: शारीरिक दोषों की चिकित्सा-शरीरसम्बन्धी दोषों की उत्तम चिकित्सा क्रमशः इस प्रकार है—वातदोष की चिकित्सा बस्ति-प्रयोग, पित्तदोष की चिकित्सा विरेचन-प्रयोग तथा कफदोष की चिकित्सा वमन-प्रयोग है तथा वातदोष में तैल, पित्तदोष में घृत और कफदोष में मधु का प्रयोग उत्तम शमन-चिकित्सा है। +: वस्ति, विरेचन, वमन तथा तैल, घृत, मधु के प्रयोगों से क्रमशः वात, कफ दोषों का शमन हो जाता है और बुद्धि, धैर्य आदि से रजोगुण एवं तमोगुण जनित राग तथा क्रोध आदि की शान्ति हो जाती है। +: मानस रोग ज्ञान (आत्मज्ञान विज्ञान (सांसारिक ज्ञान वैश्लेषिक ज्ञान धैर्य, स्मृति और समाधि से शान्त होते हैं। (इन पाँचों व्याख्या अगले श्लोक में दी गयी है।) +: ज्ञान अध्यत्मज्ञा विज्ञान शास्त्रज्ञान धैर्य स्थिर चित्त होना स्मृति पूर्व में अनुभव किये गये अर्थों का स्मरण समाधि विषयों से निवृत्ति और मन को अपने अन्दर लगाना। +: मानसिक (रजस् तथा तमस्) दोषों की उत्तम चिकित्सा है—बुद्धि तथा धैर्य से व्यवहार करना और आत्मादि विज्ञान (कौन मेरा है, क्या मेरा बल है, यह कौन देश तथा कौन मेरे हितैषी या सहायक हैं) का विचार कर कार्य करना।। २६।। +: अर्थात् धी (बुद्धि धृति (धैर्य) और स्मृति (स्मरण शक्ति) के भ्रष्ट हो जाने पर मनुष्य जब अशुभ कर्म करता है तब सभी शारीरिक और मानसिक दोष प्रकुपित हो जाते हैं। इन अशुभ कर्मों को 'प्रज्ञापराध' कहा जाता है। जो प्रज्ञापराध करेगा उसके शरीर और स्वास्थ्य की हानि होगी और वह रोगग्रस्त हो ही जाएगा। +: सत्त्व, रजस् और तमस् ये मन के तीन गुण होते हैं। इन गुणों की जो साम्यावस्था होती है उसको (मानसिक) स्वास्थ्य कहते है। +रोग के कारण, रोगपरीक्षा, निदान +: काल, अर्थ, और कर्म का हीनयोग, मिथ्या योग, अतियोग ही रोग का और सम्यक योग आरोग्य का कारण है। +: दर्शन (देखकर स्पर्शन (छूकर प्रश्न (पूछकर निदान, पूर्व रूप, रूप, सम्प्राप्ति तथा उपशय आठ प्रकार) से रोगियों के रोग की परीक्षा करनी चाहिये। +: रोगों को जानने क�� पाँच विधियाँ हैं- कान आदि पाँच इद्रियों से, तथा प्रश्न द्वारा। +: अर्थ रोगाक्रान्त शरीर की आठ स्थानों से परीक्षा करनी चाहिये- नाड़ी, जिह्वा, मल, मूत्र, त्वचा, दाँत, नाखून औ स्वर। +: पंचज्ञानेन्द्रियों से तथा छठवाँ प्रश्न के द्वारा अर्थात् नेत्रों से देखकर कान से सुनकर, नासिका से गंध लेकर, जिह्वा से रस जानकर, त्वचा से स्पर्श करके, प्रश्न द्वारा रोगी या उसके सम्बन्धी से रोगी की उम्र आदि सब जानकारी इनका ज्ञान करना इस षड्विध परीक्षा में प्रतिपाद्य है। +: बढ़ी धातुओं व दोषो को घटाना, घटी हुई को बढ़ाना तथा साम्यावस्था वाले दोष धातु-मलो को साम्यावस्था में बनाये रखना ही चिकित्सा है। +: जिस क्रिया के द्वारा रोग का नाश हो, और जिससे शरीर को धारण करने वाले दोष, धातु, और मलों की विषमता दूर होकर आरोग्य की स्थापना होती है, उसे चिकित्सा कहते हैं, इस चिकित्सा कर्म को करने वाले को चिकित्सक कहते हैं। +: जिस चिकित्सा के प्रयोग से एक रोग शान्त हो जाय किन्तु वह दूसरे रोगों को उत्पन्न करे, वह चिकित्सा शुद्ध नहीं है। +: सभी प्रकार के विकारों को ठीक करने के लिए चार चरण (पाद हैं गुणवान चिकित्सक, गुणयुक्त द्रव्य (औषधियाँ गुण-सम्पन्न उपस्थाता परिचारक) और गुणवान रोगी का होना परम आवश्यक है । +: औषध-द्रव्य के चार लक्षण- १. बहुकल्प (जो स्वरस, क्वाथ, फाण्ट, अवलेह, चूर्ण आदि अनेक रूपों में दिया जा सकता) हो, २. बहुगुण (जो औषध के सभी गुणों से सम्पन्न) हो, ३. सम्पन्न (अपने गुणों की सम्पत्ति से जो युक्त) हो और ४. योग्य (जो रोग-रोगी, देश, काल आदि के अनुकूल) हो। +: परिचारक (उपस्थाता) के चार लक्षण- १. अनुरक्त (रोगी से स्नेह रखने वाला २. शुचि (खान-पान, औषधि खिलाने, रखने आदि में साफ-सफाई रखने वाला ३. दक्ष (कुशल) तथा ४. बुद्धिमान् (समयोचित सूझ-बूझ वाला) होना चाहिए। +: रोगी के चार लक्षण- १. आढ्य (धन-जन आदि से सम्पन्न २. भिषग्वश्य (वैद्य की आज्ञानुसार औषध तथा पथ्य सेवन करने वाला ३. ज्ञापक (अपने सुख-दुःख कहने में सक्षम) तथा ४. सत्त्ववान् (मानसिक शक्तिसम्पन्न अर्थात् चिकित्साकाल में होने वाले कष्टों से न घबड़ाने वाला) हो। २९।। +: रसरक्तादि धातुओं का वैषम्य (abnormal) होना ही विकार (रोग) है और उनका साम्य (सामान्य होना) प्रकृति (स्वास्थ्य) है। (सुख-दुःख कुछ और नहीं हैं बल्कि) निरोग होना ही सुख है तथा रोगग्रस्त होना ही दु:ख कहलाता है। +: कुशल चिकित्सक में चार गुण होने चाहिए शास्त्र का सर्वतोमुखी ज्ञान, अनेक बार उस कर्म का प्रत्यक्ष द्रष्टा होना का प्रत्यक्ष प्रष्टा होना, दक्षता कुशलता) और स्वच्छता । +: द्रव्य (औषधि) में चार गुण होने चाहिए औषध द्रव्यों का पर्याप्त मात्रा में मिलना या होना, रोग को शांत करने की योग्यता (शक्ति) का होना, एक ही द्रव्य का अनेक विधि से निर्माण करना यथा स्वरस, कल्क, फॉण्ट इत्यादि और उस द्रव्य (औषधि) में उसके स्वाभाविक सभी गुणों का होना। +: जिसका आहार और विहार संतुलित हों, जिसका आचरण अच्छा हो, जिसका शयन, जागरण व ध्यान नियम नियमित हो, उसके जीवन के सभी दु:ख स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। +: आयुर्वेद के उपदेशों में परम् आदर का विधेय करना चाहिये (उसे श्रद्धापूर्वक मानना चाहिये) क्योंकि चार में से तीन पुरुषार्थ धर्म-अर्थ-काम, जिससे प्राप्त होते हैं वह आयु (आरोग्य) है, उसके ही कारण ये पूर्ण होते हैं। +: निदान में माधव श्रेष्ठ हैं, सूत्रस्थान में वाग्भट। शारीरस्थान में सुश्रुत और चिकित्सा में चरक । +: जिसने सुश्रुत का नाम नहीं सुना, जिसने वाग्भट की वाणी नहीं पढ़ी-सुनी-समझी, जिसने चरक के ग्रंथों का अध्ययन नहीं किया ऐसा वैद्य (चिकित्सक) यमदूत-तुल्य है। +: वाग्भट्ट की गरिमा कलियुग के प्रमुख वैद्य के रूप में प्रदर्शित है। +: अर्थ शरीर सत्त्व का अनुसरण करता है और सत्त्व शरीर का। +: अर्थात् प्राणियों में प्राण आहार ही होता है। +: जो व्यक्ति अपने अंदर की अग्नि की रक्षा करता है, अग्नि उसकी रक्षा करती है (वह दीर्घायु होता है)। +: सब रोग मन्दाग्नि के कारण की होते हैं। अर्थात पाचन की खराबी के कारण होते हैं। +: अर्थात् जिसकी माता घर में नहीं है उसकी माता हरीतकी (हर्रे) है। माता तो कभी-कभी कुपित भी हो जाती है, परन्तु उदर में स्थित अर्थात् खायी हुई हरड़ कभी भी कुपित (अपकारी) नहीं होती। +: अर्थ सत्य बोलनेवाला, कम व्यय करनेवाला, हितकारक पदार्थ आवश्यक प्रमाण मे खानेवाला, तथा जिसने इन्द्रियों पर विजय पाया है, वह चैन की नींद सोता है। +: दिनचर्या का, रात्रिचर्या का तथा ऋतुचर्या का जो पुरुष उसी प्रकार से पालन करता है जैसा शास्त्रों में वर्णित किया गया है तो वह सदा स्वस्थ रहता है, अन्यथ नहीं। +: अर्थ- अपनी तीन मौलिक विशेषताओं के कारण रस-चिकित्सा सर्वोत्तम हैं १) अल्पमात्रा में प्रयोग २) स्वाद में रुचिपूर्णता, और (३) शीघ्रातिशीघ्�� रोगनाशक। +: भावार्थ जो प्रातकाल उठकर जलपान करता है, रात्रि को भोजनोपरान्त दुग्धपान तथा मध्याह्न में भोजन के बाद छाछ पीता है, उसे वैद्य की आवश्यकता नहीं होती। +: अर्थात् भोजन करने के पश्चात एक ही जगह बैठे रहने से स्थूलत्व आता है । जो व्यक्ति भोजन के बाद चलता है उसक आयु में वृद्धि होती है और जो भागता या दौड़ लगाता है, उसकी मृत्यु समीप आती है। +: अर्थात् भोजन के बाद सौ कदम चलन चाहिए। +: इधर-उधर (प्रकीर्ण) विक्षिप्त उन प्राचीन तन्त्रों में से उत्तम से उत्तम (सार) भाग को लेकर यह संग्रह किया गया है। इस संग्रह ग्रंथ का नाम अष्टांगहृदय है। इसमें वर्णित विषय न अत्यन्त संक्षेप से और न अत्यन्त विस्तार से कहे गये हैं। +आयुर्वेद पर लोगों के विचार +* आयुर्वेद योग की सिस्टर फिलॉसफी है। ये जीवन या दीर्घायु होने का विज्ञान है और ये हमें प्रकृति की शक्तियों, चक्र और तत्वों के बारे में भी सिखाता है। क्रिस्टी टरलिंग्टन +* आयुर्वेद में सिद्धांत है कि कुछ भी भोजन, दवा, या ज़हर हो सकता है, निर्भर करता है कि कौन खा रहा है, क्या खा रहा है, और कितना खा रहा है। इस सन्दर्भ में एक प्रचलित कहावत है: “एक आदमी का खाना दूसरे आदमी का ज़हर है। सेबेस्टियन पोल +* आयुर्वेद हमें “जैसा है” वैसे प्यार करना सिखाता है- ना कि जैसा हम सोचते हैं लोग “होने चाहिएं। लीजा कॉफे +* आयुर्वेद के बारे में एक बहुत अच्छी बात ये है कि इसके उपचार से हमेशा साइड बेनिफिट्स होते हैं, साइड इफेक्ट्स नहीं। शुभ्रा कृष्ण +* कोई भी दवा अन-हेल्दी लिविंग की क्षतिपूर्ति नहीं कर सकती है। रेणु चौधरी +* जब आहार गलत हो, दवा किसी काम की नहीं है; जब आहार सही हो, दवा की कोई ज़रुरत नहीं है। आयुर्वेदिक कहावत +* सामान्यतया, आयुर्वेद चावल, गेहूं, जौ, मूंग दाल, शतावरी, अंगूर, अनार, अदरक, घी (मक्खन क्रीम दूध और शहद को सबसे अधिक लाभकारी खाद्य पदार्थ मानता है। सेबेस्टियन पोल +* अपने परमानन्द का अनुसरण करना और खुशबु, रंग,एवं स्वाद के रहस्य में गोता लगाना; प्रकृति माँ की शानदार विविधता में खो जाना, और भीतरी चिन्हों का अनुगमन करके जानना कि हम सचमुच कौन हैं – यही आयुर्वेदिक पाकशास्त्र का विज्ञान है। प्राण गोगिया +* क्योंकि हम अपने अंदरुनी शरीर को स्क्रब नहीं कर सकते हमें अपने ऊतकों, अंगों, और मन को शुद्ध करने कुछ उपाय सीखने होंगे। ये आयुर्वेद की कला है। सेबस्टियन प��ल +* अच्छे स्वास्थ्य के लिए जो आयुर्वेदिक मार्ग है उसमे दो सरल कदम शामिल हैं: कम करना; अधिक होना। शुभ्रा कृष्ण +* आयुर्वेद हमें हमारी सहज-प्रकृति को संजोना सिखाता है- “हम जो हैं उससे प्रेम करना, उसका सम्मान करना”, वैसे नही जैसा लोग सोचते हैं या कहते हैं, “हमे क्या होना चाहिए। प्राण गोगिया +* आयुर्वेद जैसा कि नाम में निहित है (‘आयु’: “जीवन” और ‘वेद’: “ज्ञान”) स्वस्थ्य रहने का ज्ञान है और सिर्फ बीमारी के इलाज तक सिमित नहीं है। शरदिनी, उर्मिला +* समय बदल रहा है और न सिर्फ भारत के नीति निर्माता, बल्कि पूरी दुनिया आयुर्वेद के महत्व को समझ रही है। कुछ साल पहले कौन सोच सकता था कि महानगरीय संस्कृति में पले-बढे लोग निकट भविष्य में कार्बोनेटेड शीतल पेय से अधिक लौकी का रस या करौंदे का रस पसंद करेंगे। आचार्य बालकृष्ण +* योग का विज्ञान और आयुर्वेद; चिकित्सा विज्ञान की तुलना में सूक्ष्म हैं, क्योंकि अकसर चिकित्सा विज्ञान सांख्यिकीय गड़बड़ी का शिकार हो जाता है। अमित रे +* आयुर्वेद का यही लक्ष्य है कि स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बरकरार रखा जाए और बीमार व्यक्ति को ठीक कर दिया जाए। +* आयुर्वेद केवल कुछ दवाएं या कुछ शास्त्र नहीं हैं, बल्कि एक समग्र समग्र जीवन शैली है जो योग, ध्यान, भोजन की आदतों और स्वदेशी सामाजिक संस्कृतियों से गहराई से जुड़ी हुई है। +* एक आयुर्वेदिक शिक्षार्थी के रूप में, मेरा मानना ​​है कि कैंसर जैसी बीमारियों का प्रचलन आज अधिक बढ़ रहा है क्योंकि हम एक समाज के रूप में अपने दैनिक जीवन की परिस्थितियों के प्रति गलत रवैया अपना रहे हैं। +* शांत रहो और आसक्ति और घृणा की जड़ों को जीतो। अर्थात जुड़ाव की असल जड़ों को पहचानों। +* हमारा कल्याण हमारे व्यवहार, जीवन शैली और मन की स्थिति पर निर्भर करता है। आयुर्वेद और योग हमें हमारे शारीरिक, मानसिक और शारीरिक कल्याण को मजबूत करके हमारे जीवन में कल्याण की हमारी पूरी क्षमता को प्रकट करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। +* वैदिक ज्ञान एक आधुनिक पुनर्जागरण ला रहा है जो पहले ही शुरू हो चुका है। +* प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा वास्तव में अति आधुनिक, अत्याधुनिक एकीकृत क्षेत्र आधारित औषधि है +* जीवन (आयु) शरीर, इंद्रियों, मन और पुनर्जन्म आत्मा का संयोजन (संयोग) है। आयुर्वेद जीवन का सबसे पवित्र विज्ञान है, जो इस दुनिया में और दुनिया के ���ाहर इंसानों के लिए फायदेमंद है। +* भोजन, नींद और ब्रह्मचर्य से संबंधित स्वस्थ आदतें किसी के जीवन की पूरी अवधि के लिए अच्छे रंग, विकास और पूर्ण स्वास्थ्य की ओर ले जाती हैं। +* योग और आयुर्वेद का विज्ञान चिकित्सा विज्ञान की तुलना में सूक्ष्म है, क्योंकि चिकित्सा विज्ञान अक्सर सांख्यिकीय हेरफेर का शिकार होता है। +* ध्यान हमारे बढ़ने के इरादे का प्रतीक और अभिव्यक्ति दोनों है। अपने विचारों और भावनाओं के साथ अकेले बैठे हुए, हम छूटे हुए अवसरों, गुजर रही इच्छाओं, याद की गई निराशाओं के साथ-साथ अपनी आंतरिक शक्ति, व्यक्तिगत ज्ञान और क्षमा करने और प्यार करने की क्षमता का सम्मान कर सकते हैं। +* वास्तव में एलोपैथिक चिकित्सा को वैकल्पिक चिकित्सा कहा जाना चाहिए। जैसा कि आयुर्वेद अधिक समग्र, सिद्ध, समय परीक्षण, कम दुष्प्रभाव, और एलोपैथी से पुराना है। + + +: बिना वन के व्याघ्र (वाघ) का वध हो जाता है और) व्याघ्ररहित वन भी काट दिया जाता है। इसलिए व्याघ्र को चाहिये कि वह वन की रक्षा करे और वन को चाहिए कि वह (अपने अन्दर) व्याघ्र को पाले। +* अत्यन्त लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं। +* अधिक बलवान तो वे ही होते हैं जिनके पास बुद्धि बल होता है। जिनमें केवल शारीरिक बल होता है, वे वास्तविक बलवान नहीं होते। +* अपनी दृष्टि सरल रखो, कुटिल नहीं। सत्य बोलो, असत्य नहीं। दूरदर्शी बनो, अल्पदर्शी नहीं। परम तत्व को देखने का प्रयास करो, क्षुद्र वस्तुओं को नहीं। +* अपनी निन्दा सहने की शक्ति रखने वाला व्यक्ति मानों विश्व पर विजय पा लेता है। +* अपनी प्रभुता के लिए चाहे जितने उपाय किए जाएं परन्तु शील के बिना संसार में सब फीका है। +* अपने पूर्वजों का सम्मान करना चाहिए। उनके बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिए। उनके दिए उपदेशों का आचरण करना चाहिए। +* अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। +* अमृत और मृत्यु दोनों इस शरीर में ही स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। +* अविश्वास से अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती और हो भी जाए, तो जो विश्वासपात्र नहीं है उससे कुछ लेने को जी ही नहीं चाहता। अविश्वास के कारण सदा भय लगा रहता है और भय से जीवित मनुष्य मृतक के समान हो जाता है। +* अशांत को सुख कैसे हो सकता है। सुखी रहन��� के लिए शान्ति बहुत जरुरी है। +* अहंकार मानव का और मानव समाज का इतना बङा शत्रु है, जो सम्पुर्ण मानव जाति के कष्ट का कारण और अन्ततः विनाश का द्वार बनता है। +* आशा ही दुख की जननी है और निराशा ही परम सुख शांति देने वाली है। +* एक बुरा आदमी उतना ही प्रसन्न होता है जितना कि एक अच्छा आदमी दूसरों के बीमार बोलने से व्यथित होता है। +* एकमात्र विद्या ही परम तृप्ति देने वाली है। +* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। +* किसी का सहारा लिए बिना कोई ऊंचे नहीं चढ़ सकता, अतः सबको किसी प्रधान आश्रय का सहारा लेना चाहिए। +* किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए और न किसी प्रकार उसे सुनना ही चाहिए। +* किसी के प्रति मन मेँ क्रोध रखने की अपेक्षा उसे तत्काल प्रकट कर देना अधिक अच्छा है जैसे पल मेँ जल जाना देर तक सुलगने से अच्छा है। +* क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है, वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है। +* गहरे जल से भरी हुई नदियां समुद्र में मिल जाती हैं परंतु जैसे उनके जल से समुद्र तृप्त नहीं होता, उस प्रकार चाहे जितना धन प्राप्त हो जाए, पर लोभी तृप्त नहीं होता। +* चतुर मित्र सबसे श्रेष्ठ व मार्ग-प्रदर्शक होता है। +* जब बोलते समय वक्ता श्रोता की अवहेलना करके दूसरे के लिए अपनी बात कहता है, तब वह वाक्य श्रोता के हृदय में प्रवेश नहीं करता है। +* जहां कृष्ण हैं वहां धर्म है, और जहां धर्म है वहां जय है। +* जिस परिवार व राष्ट्र में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता, वह पतन व विनाश के गर्त में लीन हो जाता है। +* जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता। +* जिस राजा की प्रजा हमेशा कर के भार से पीड़ित रहे, प्रतिदिन दुखी रहे और जिसे तरह-तरह के अनर्थ झेलने पड़ते हैं, उस राजा की हमेशा पराजय होती है। +* जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मज़दूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है। +* जिसे सत्य पर विश्वास होता है, और जो अपने संकल्प पर दृढ होता है, उसका सदैव कल्याण होता रहता है। +* जुआ खेलना अत्यंत निष्कृष्ट कर्म है। यह मनुष्य को समाज से गिरा देता है। +* जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। +* जैसे तेल समाप्त हो जाने पर दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर दैव भी नष्ट हो जाता है। +* जैसे बिना नाविक की नाव जहाँ कहीं भी जल में बह जाती है और बिना सारथी का रथ चाहे जहाँ भटक जाता है। उसी प्रकार सेनापति बिना सेना जहाँ चाहे भाग सकती है। +* जैसे सूखी लकड़ी के साथ मिली होने पर गीली लकड़ी भी जल जाती है, उसी प्रकार दुष्ट-दुराचारियों के साथ सम्पर्क में रहने पर सज्जन भी दुःख भोगते है। +* जो केवल दया से प्रेरित होकर सेवा करते हैँ उन्हें निःसंशय सुख की प्राप्ति होती है। +* जो जैसा शुभ या अशुभ कर्म करता है अवश्य ही उसका फल भोगता है। +* जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं, क्षमा करता है, वह अपनी और क्रोध करने वाले की महा संकट से रक्षा करता है। वह दोनों का रोग दूर करने वाला चिकित्सक है। +* जो मनुष्य जिसके साथ जैसा व्यवहार करे उसके साथ भी उसे वैसा व्यवहार करना चाहिए, यह धर्म है। +* जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दुख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। +* जो वेद और शास्त्र के ग्रंथों को याद रखने में तत्पर है किन्तु उनके यथार्थ तत्व को नहीं समझता, उसका वह याद रखना व्यर्थ है। +* जो सज्जन ता का अतिक्रमण करता है उसकी आयु संपत्ति, यश, धर्म, पुण्य, आशीष, श्रेय नष्ट हो जाते हैँ। +* ज्ञानरूप, जानने योग्य और ज्ञान से प्राप्त होने वाला परमात्मा सबके हृदय में विराजमान है। +* झूठे पर विश्वास और विश्वस्त पर भी विश्वास सहसा नहीं करना चाहिए। +* दूसरों से घृणा करने वाले, दूसरों से ईर्ष्या करने वाले, असंतोषी, क्रोध, सभी बातों में शंका करने वाले और दूसरे के धन से जीविका निर्वाह करने वाले ये छहों सदा दुखी रहते हैं। +* दो प्रकार के व्यक्ति संसार में स्वर्ग के भी ऊपर स्थिति होते हैं- एक तो जो शक्तिशाली होकर क्षमा करता है और दूसरा जो दरिद्र होकर भी कुछ दान करता रहता है। +* द्वैष से सदैव दूर रहें। +* धर्म का पालने करने पर जिस धन की प्राप्ति होती है, उससे बढ़कर कोई धन नहीं है। +* धर्म, सत्य, सदाचार, बल और लक्ष्मी सब शील के ही आश्रय पर रहते हैं। शील ही सबकी नींव है। +* न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। +* निरोगी रहना, ऋणी न होना, अच्छे लोगों से मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निभर्य होकर रहना- ये मनुष्य के सुख हैं। +* परिवर्तन इस संसार का अटल नियम है, और सब को इसे स्वीकारना ही पड़ता है; क्योकि कोई इसे बदल नही सकता। +* परोपकार सबसे बड़ा पुण्य और परपीड़ा यानि दूसरों को कष्ट देना सबसे बड़ा पाप है। +* पुरुषार्थ का सहारा पाकर ही भाग्य भली भांति बढ़ता है। +* पुरुषार्थ नहीं करते वे धन, मित्र, ऐश्वर्य, उत्तम कुल तथा दुर्लभ लक्ष्मी का उपयोग नहीं कर सकते। +* प्रयत्न न करने पर भी विद्वान लोग जिसे आदर दें, वही सम्मानित है। इसलिए दूसरों से सम्मान पाकर भी अभिमान न करे। +* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। +* प्रिय वस्तु प्राप्त होने पर भी तृष्णा तृप्त नहीं होती, वह ओर भी भड़कती है जैसे ईधन डालने से अग्नि। +* बड़े से बड़ा शूरवीर भी अगर अधर्म और अन्याय का साथ देता है तो धर्म के आगे उसे अन्ततः झुकना ही पड़ता है। +* बाणों से बिंधा हुआ तथा फरसे से कटा हुआ वन भी अंकुरित हो जाता है, किंतु कटु वचन कहकर वाणी से किया हुआ भयानक घाव नहीं भरता। +* बुरे कर्मों का बुरा परिणाम निकलता है। +* बैर के कारण उत्पन होने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। +* मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है, किंतु यही यदि कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है। +* मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है, संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बड़कर संसार में कुछ भी नहीं है। +* मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान यह सज्जनों का सनातन धर्म है। +* मनुष्य को अपनी मातृभूमि सर्वोपरि रखनी चाहिए और हर परिस्थत मे उसकी रक्षा करनी चाहिए। +* मनुष्य जीवन की सफलता इसी में है कि वह उपकारी के उपकार को कभी न भूले। उसके उपकार से बढ़ कर उसका उपकार कर दे। +* मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। +* माता के रहते मनुष्य को कभी चि���ता नहीं होती, बुढ़ापा उसे अपनी ओर नहीं खींचता। जो अपनी मां को पुकारता हुआ घर में प्रवेश करता है, वह निर्धन होता हुआ भी मानो अन्नपूर्णा के पास चला आता है। +* मेरा कहना तो यह है कि प्रमाद मृत्यु है और अप्रमाद अमृत। +* मोह मे फंसकर अधर्म का प्रतिकार न करने के कारण ही महाभारत जैसे युध्द से महान जन-धन की हानि हुई। +* मौत आती है, और एक आदमी को अपना शिकार बनाती है, एक ऐसा आदमी जिसकी शक्तियां अभी तक अनपेक्षित हैं; फूलों के इरादे को इकट्ठा करने की तरह, जिनके विचार दूसरे तरीके से बदल जाते हैं। अच्छी प्रैक्टिस करने के लिए दांव लगाना शुरू करें, ऐसा न हो कि भाग्य आपके लिए योजनाओं और परवाह के दौर को अनदेखा कर दे; दुःखद कार्य करने के लिए दिन का समापन। +* यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है। +* यदि पानी पीते – पीते उसकी बूंद मुंह से निकलकर भोजन में गिर पड़े तो वह खाने योग्य नहीं रहता। पीने से बचा हुआ पानी पुनः पीने के योग्य नहीं होता। +* राजधर्म एक नौका के समान है। यह नौका धर्म रूपी समुद्र में स्थित है। सतगुण ही नौका का संचालन करने वाला बल है, धर्मशास्त्र ही उसे बांधने वाली रस्सी है। +* राजन, यद्यपि कहीं-कहीं शीलहीन मनुष्य भी राज्य लक्ष्मी प्राप्त कर लेते हैं, तथापि वे चिरकाल तक उसका उपभोग नहीं कर पाते और मूल सहित नष्ट हो जाते हैं। +* राजा की स्थिति प्रजा पर ही निर्भर होती है। जिसे पुरवासी और देशवासियों को प्रसन्न रखने की कला आती है, वह राजा इस लोक और परलोक में सुख पाता है। +* लज्जा नारी का अमूल्य रत्न है। +* लोभी मनुष्य किसी कार्य के दोषों को नहीं समझता, वह लोभ और मोह से प्रवृत्त हो जाता है। +* विजय की इच्छा रखने वाले शूरवीर अपने बल और पराक्रम से वैसी विजय नहीं पाते, जैसी कि सत्य, सज्जनता, धर्म तथा उत्साह से प्राप्त कर लेते हैं। +* विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है। +* विद्या, शूरवीरता, दक्षता, बल और धैर्य, ये पांच मनुष्य के स्वाभाविक मित्र हैं। बुद्धिमान लोग हमेशा इनके साथ रहते हैं। +* विधि के विधान के आगे कोई नही टिक सकता। एक पुरुर्षाथी को भी वक्त के साथ मिट कर इतिहास बन जाना पड़ता है। +* विपत्ति के आने पर अपनी रक्षा के लिए व्यक्ति को अपने पड़ोसी शत्रु से भी मेल कर लेना चाहिए। +* विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां ह���ं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। +* विषयों के भोगों से विषय वासना की शांति नहीं होती, हवन से बढती हुई अग्नि के समान यह काम वासना नित्य बढती ही जाती है। +* व्यक्ति को अभिमान नहीं करना चाहिए नहीं तो दुर्योधन जैसा हाल होगा। +* शरणागत की रक्षा करना बहुत ही पुनीत कर्म है, ऐसा करने से पापी के भी पाप का प्रायश्चित हो जाता है। +* शोक करनेवाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। +* सच्चा धर्म यह है कि जिन बातों को इन्सान अपने लिए अच्छा नहीं समझता दूसरों के लिए भी न करे। +* सत्पुरुष दूसरों के उपकारों को ही याद रखते हैं, उनके द्वारा किए हुए बैर को नहीं। +* सत्य ही धर्म, तप और योग है। सत्य ही सनातन ब्रह्मा है, सत्य को ही परम यज्ञ कहा गया है तथा सब कुछ सत्य पर ही टिका है। +* सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। +* सभी को भ्रातृभाव से रहना चाहिए। +* समय अत्यधिक बलवान होता है, एक क्षण मे समस्त परिस्थितियाँ बदल जाती है। +* संसार में वही मनुष्य प्रशंसा के योग्य है, वही उत्तम है, वही सत्पुरुष और वही धनी है, जिसके यहाँ से याचक या शरणागत निराश न लौटे। +* सो कर नींद जीतने का प्रयास न करें। कामोपयोग के द्वारा स्त्री को जीतने की इच्छा न करें। +* स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। +* स्वार्थ बड़ा बलवान है। इसी कारण कभी-कभी मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु मित्र। +==महाभारत में ज्ञान पर सूक्तियाँ +: ज्ञान को ही परब्रह्म का स्वरुप मानते हैं। +: हे पाण्डव! ज्ञानवान महापुरुषों को ही सभी तरह के कार्य सौंपने चाहिए। +: महाराज! ज्ञान ही सम्पूर्ण दुःखों को नष्ट करने वाला है। +: मुझे इष्ट और अनिष्ट फल दोनों ही न मिलें इसके लिये ज्ञानयोग का उपदेश किया गया है। +: ज्ञानरूपी नाव से सभी पापों से भली-भाँति मुक्त हो जाओगे। +: हे अर्जुन! ज्ञान की अग्नि सभी कर्मों को भस्म कर डालती है। +: इस जगत् में ज्ञान से अधिक पवित्र और कोई वस्तु नहीं है। +: मनुष्य ज्ञान प्राप्त कर परमात्मा प्राप्ति रूप परम शान्ति को प्राप्त करता है। +: सात्त्विक ज्ञान वह होता है जिसके द्वारा सभी प्राणियों में एक ही अविनाशी परमात्मा की सत्ता दिखाई देती है। ऐसे ज्ञान से उसे अलग अलग प��राणियों में एक ही ईश्वर दिखाई देता है। +: जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सभी प्राणियों में नाना प्रकार के भिन्न भिन्न स्वरुप देखता है ऐसा ज्ञान राजसिक कहलाता है। +: जो व्यक्ति पंचमहाभूतों से बने या इनके कार्य अपने शरीर को ही सब कुछ समझता है और उसमें उसमें आसक्त रहता है, ऐसा ज्ञान तामसिक होता है। +: जो ज्ञान का अनुसरण करता है ज्ञान उसे सारे सांसारिक बन्धनों से छुड़ा देता है। ज्ञान के बिना किया गया कोई भी काम प्रजा को जन्म-मरण के चक्र में डालकर नष्ट कर डालता है। +: कर्म, स्थूल और सूक्ष्म शरीर की शुध्दि करते हैं, किन्तु ज्ञान परमगति है। जब कर्मों द्वारा चित्त के राग आदि दोष जल जाते हैं तब मनुष्य रसस्वरूप ज्ञान में स्थित हो जाता है। +: ज्ञान-विज्ञान के बिना मोक्ष नहीं मिलता। गुरू से पढ़े बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता। +: किसी भी मनुष्य को अपने ज्ञान का अभिमान नहीं करना चाहिए। ज्ञान का फल शान्ति होता है, अतः मनुष्य को सदा शान्त रहने का प्रयत्न करना चाहिए। +: ज्ञान से उत्पन्न पवित्रता, आचार-व्यवहार,मन तथा तीर्थ की पवित्रता से भी अधिक मानी गयी है। +: निश्चित तत्व परमात्मा का साक्षात् करने वाले अनुभवी वृद्ध लोगों के अनुसार ज्ञान ही कल्याण का कारण है। इसलिए पवित्र ज्ञान से मनुष्य सभी पापों से छुटकारा पा जाता है। +: जिस प्रकार हिरन हिरनों से, पक्षियों से तथा हाथी हाथियों से पकड़े जाते हैं उसी प्रकार ज्ञेय ज्ञान से पकड़ा जाता है। +: हमने यह सुना है सांप के पांवों को सांप ही जानता है। उसी पद्धति से मूर्तियों में स्तिथ ज्ञेय को व्यक्ति ज्ञान से देख लेता है। +: अर्थ धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में जो भी ज्ञात है वह सब महाभारत में है। (किन्तु) जो यहाँ नहीं है वह कहीं नहीं है। +* महाभारत में, राज्याभिषेक के समय उपदेश में यह भी कहा गया है कि राजा को माली (मालाकार) के समान होना चाहिये न कि लकड़ी का कोयला बनाने वाले (आङ्गारिक) की तरह। माला सामाजिक समरसता का संकेत करता है, यह धार्मिक विविधता का रूपक है जिसमें विभिन्न रंगों के फूल मिलकर अत्यन्त सुखदायक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। उसके विपरीत लकड़ी का कोयला बनाने वाला पाशविक शक्ति का प्रतीक है जो विविधता को (जलाकर) एकरूपता में बदलता है, जिसमें जीवित पदार्थ को निर्जीव एकसमान राख में बदल दिया जाता है। राजीव मल्होत्रा, इन्द्राज नेट में +उपर���क्त कथन में में राजीव मल्होत्रा निम्नलिखित श्लोक की बात कर रहे हैं- + + +: जो जन्मा है उसकी मृत्यु निश्चित है। +: मैं यह कार्य करूंगा, वह कार्य करूंगा या मुझे वह कार्य करना है -इस प्रकार की चिन्तायें करते करते मनुष्य यह भी भूल जाता है कि उसकी मृत्यु किसी भी क्षण हो सकती है। +बुद्धिमान मनुष्य अपने को बुढापा और मृत्यु से रहित (अजर, अमर) समझकर विद्या और धन का उपार्जन करे और मृत्यु मानों सिर पर सवार है ऐसा समझकर धर्म का पालन करता रहे।) +: अर्थ :सतयुग के अलंकार मान्धाता चले गए। जिन्होने समुद्र पर पुल बांधा, रावण का वध करने वाले वे (राम) कहाँ हैं? हे राजा, युधिष्ठिर आदि दूसरे लोग भी चले गए। किसी के साथ भी यह धरती नहीं गयी। तुम्हारे साथ अवश्य जाएगी। +* दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य ये है की हम रोज मृत्यु होते हुए देखते हैं फिर भी ऐसे व्यवहार करते हैं की जैसे हमें अनंत काल का जीवन मिला हो। युधिष्ठिर +* हर व्यक्ति जिसका जन्म हुआ है वो मरता है परन्तु हर वो व्यक्ति जिसका जन्म हुआ है जी नहीं पाता है। एलन सैक्स +* मृत्यु जीवन का विपरीत नहीं बल्कि इसका एक हिस्सा है। हारुकी मुराकामी, ब्लाइंड विलो, स्लीपिंग वुमन +* जिस तरह से मनुष्य पुराने कपड़े उतार कर नए कपड़े पहनता है, उसी तरह से आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करती है। भगवद्गीता) +* जिंदगी मृत्यु से भी अधिक दर्द देती है। अज्ञात +* जब कैटरपिलर कहता है यह तो मृत्यु है ….ईश्वर कहते हैं नहीं ये तितली का जन्म हुआ है। पाउलो कोलियो +* जीवन और मृत्यु एक ही हैं जैसे नदी और सागर। खलील जिब्रान +* कभी भी बहुत देर नहीं होती। अगर आप को कल मरना है तो आज अपने विचारों के प्रति बिलकुल ईमानदार हो जाओ। और एक दिन के लिए ही सही ऐसी जिंदगी जिओ जो आप हमेशा से जीना चाहते थे। लामा येशे +* ऐसे जियो जैसे कल मरना है। और किसी भी चीज को सीखने के लिए ऐसे प्रयास करो जैसे कभी मरना ही न हो। महात्मा गाँधी +* मैं नहीं चाहता की मैं जीवन के अन्त पर पहुँच कर इसकी लम्बाई नापूँ मैं इसकी चौड़ाई नापना चाहता हूँ। डायने एकरमैन +* जो व्यक्ति यह जानता है कि जीवन क्या है, वो मृत्यु से घबराता नहीं। उसे सहज भाव से गले लगाता है। ओशो +* मृत्यु भी धर्मनिष्ठ प्राणी की रक्षा करती है। कौटिल्य +* मृत्यु साथ ही चलती है साथ ही बैठती है और साथ-साथ ही सुदूरवर्ती यात्रा पर जाती है। वाल्मीकि +* परि��र्तन ही सृष्टि है, जीवन है और स्थिर होना मृत्यु। जयशंकर प्रसाद +* युधिष्ठिर के पास एक भिखारी आया। उन्होंने उसे अगले दिन आने के लिए कह दिया। इस पर भीम हर्षित हो उठे। उन्होंने सोचा कि उनके भाई ने कल तक के लिए मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है। महाभारत +* कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है। शेक्शपीयर) +* भले ही आपका जन्म सामान्य हो, आपकी मृत्यु इतिहास बन सकती है। +* जब आपका जन्म हुआ तो आप रोए और जग हंसा था। अपने जीवन को इस प्रकार से जीएं कि जब आप की मृत्यु हो तो दुनिया रोए और आप हंसें। कबीर +* इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्म-निष्ठा छोड़कर भोग-वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी बनता है। वेद +* यदि तुम्हें मरने की विधि पता नहीं है तो चिन्ता की कोई बात नहीं है। प्रकृति तुम्हें मृत्यु के स्थान पर ही बता देगी, वो भी पूरी तरह से और पर्याप्प्त रूप में। मॉटेग्ने (Montaigne) +* परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है। जयशंकर प्रसाद +* मेरा कहना तो यह है कि प्रमाद मृत्यु है और अप्रमाद अमृत। वेदव्यास + + +: अर्थ चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। +: सांख्य के वक्ता कपिलाचार्य परमर्षि कहलाते हैं और योग के वक्ता हिरण्यगर्भ हैं, इनसे पुराना और कोई वक्ता नहीं है। +: यह द्युतिमान हिरण्यगर्भ वही है जिसकी वेदों में स्तुति की गयी है, जिनकी योगी लोग नित्य पूजा किया करते हैं और संसार में जिन्हें “ विभु ” कहते हैं। +: योग नाम समाधि का है। +: अर्थ ध्यान योग से भी योग आत्मा को जाना जा सकता है। अतः योगपरायण ध्यान होना चाहिए। +: अर्थात् जब पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ मन के साथ स्थिर हो जाती हैं, और मन निश्चल बुद्धि के साथ आ मिलता है, इस अवस्था को परमगति कहते है। इन्द्रियों की स्थिर धारणा ही योग है। जिसकी इन्द्रियाँ स्थिर हो जाती हैं, उसमें शुभ संस्कारों की उत्पत्ति और अशुभ संस्कारों का नाश होने लगता है। यही अवस्था योग की है। +: अर्थात् प्रकृति-पुरुष का पृथकत्व स्थापित कर, अर्थात् दोनो का वियोग करके पुरुष के स्वरुप में स्थिर हो जाना योग है। +: अर्थात् श्रद्धा भक्ति और ध्यान के द्वारा आत्मा को जानना ही योग है। +: अर्थात् जीवात्मा परमात्मा के मिलन को योग कहते है। +: ‘योग’ ���े द्वारा आत्म दर्शन करना ही परमधर्म है। +: अर्थात् ज्ञान का प्रकाश पड़ने पर चित्त ब्रह्म में एकाग्र हो जाता है। जिससे जीव का ब्रह्म में मिलन हो जाता है। ब्रह्म में चित्त की यह एकाग्रता ही योग है। +: अर्थात् जीवात्मा व परमात्मा का अलग-अलग होना ही दुःख का कारण है। और इस का अपृथक भाव ही योग है। एकत्व की स्थिति ही योग है। +: अर्थात् चित्त की सभी वृत्तियों का निरोध हो जाना, उसे पूर्ण समाप्त कर देना ही योग है। उसी से परमगति अर्थात् ब्रह्म की प्राप्ति होती है। +: अर्थात् मन आत्मा में स्थिर होने पर उसके (मन के काय का) अनारम्भ है, वह योग है। +: अर्थात् योग में स्थिर हो कर कर्म फल का त्याग करे और सिद्ध-असिद्ध में सम होकर कर्मों को करे, यही समता ही योग है। +: अर्थात् कर्मो में कुशलता का नाम ही योग है। कर्मों की कुशलता का तात्पर्य यह है कि हमे कर्म इस प्रकार से करने चहिए कि वे बन्धन का कारण ना बनें। अनासक्त भाव से अपने कर्तव्य कर्मों का निर्वहन करना ही कर्म योग है। +: अर्थात् उस योग को उत्साह, श्रद्धा, धैर्य, से समाहित चित्त से निश्चय पूर्वक करना चाहिए। इस दुख रुप संसार के संयोग से रहित है, वह योग है। +: अर्थात् प्राण, मन व इन्द्रियों का एक हो जाना, एकाग्रावस्था को प्राप्त कर लेना, बाह्म विषयों से विमुख होकर इन्द्रियों का मन में और मन आत्मा में लग जाना, प्राण का निष्चल हो जाना योग है। +: अर्थात् अपान और प्राण की एकता कर लेना, स्वरज रूपी महाशक्ति कुण्डलिनी को स्वरेत रूपी आत्मतत्त्व के साथ संयुक्त करना, सूर्य अर्थात् पिंगला और चन्द्र अर्थात् इड़ा स्वर का संयोग करना तथा परमात्मा से जीवात्मा का मिलन योग है। +: अर्थात् जिस प्रकार नमक जल में मिलकर जल की समानता को प्राप्त हो जाता है, उसी प्रकार जब मन वृत्तिशून्य होकर आत्मा के साथ ऐक्य को प्राप्त कर लेता है तो मन की उस अवस्था का नाम समाधि है। +: इस जगत् में मनुष्य बुद्धि से डर को दूर कर सकता है तपस्या के द्वारा महत्त्व को प्राप्त कर सकता है गुरुजनों की सेवा से ज्ञान तथा योग के द्वारा शक्त्ति प्राप्त कर सकता है। +: मोक्ष होने पर वेदनाओं से पूर्ण निवृत्ति हो जाती है, योग मोक्ष का प्रवर्तक है। +: पवन ही योग है, पवन ही भोग है, और पवन ही छत्तीसों (सभी) रोगों को नष्ट करता है। जो कोई पवन की प्रकृति को जानता है वह स्वयं कर्ता (विधाता) है और स्वयं ही देवता है। +: अस्मिता देखने की शक्ति (दृक शक्ति) और दर्शन शक्ति का एक हो जाना, अर्थात् मिथ्या/भ्रम समझने की शक्ति क लुप्त हो जाना +: अभिनिवेश मृत्य का भय +* जीवन जीने की कला ही योग है। श्रीराम शर्मा आचार्य +* मन के संवेगो पर नियन्त्रण ही योग है। महोपनिषद् +* जीवन को बिना खोए भगवान की प्राप्ति योग है। महर्षि अरविन्द +* प्राचीन आर्ष ग्रन्थो का अध्ययन ही योग है। स्वामी विवेकानन्द +* निःस्वार्थ भावना से कर्म करना ही सच्चे धर्म का पालन है, और यही वास्तविक योग है। गुरु ग्रन्थ साहिब +* शिव व शक्ति का मिलन को योग कहते हैं। रागेय राधव, ‘गोरखनाथ और उनका युग’ में +* संसार सागर से पार होने की युक्ति का नाम ही योग है। योग वाशिष्ठ +* योग के द्वारा मनुष्य अपने वास्तविक स्वरुप सद्-चित्-आनन्द का अनुभव कर लेता है। महर्षि वशिष्ठ +* आज के इस भागमभाग भरी जिन्दगी में हम सब अपने आप से ही अलग हो गये है इसलिए योग हमें अपने आप से पुन: जोड़ने में में मदद करता है। +* आप कौन हैं इस बारे में उत्सुक होने के लिए योग एक सही अवसर है। जेसन क्रैंडल +* आप योग नहीं कर सकते। योग आपकी प्राकृतिक अवस्था है। आप जो कर सकते हैं वो है योग व्यायाम जो ये उजागर कर सकता है कि आप कहाँ अपनी प्राकृतिक अवस्था का विरोध कर रहे हैं। शेरोन गैनन +* एक फोटोग्राफर लोगों से उसके लिए पोज दिलवाता है। एक योग प्रशिक्षक लोगों से खुद के लिए पोज दिलवाता है। टी गिलेमेट्स +* एक सर्जन हमेसा गर्भवती महिलाओं को योग का अभ्यास करने के लिए सलाह देता हैं क्योंकि योग के द्वारा उन्हें स्वस्थ रहने में मदद मिलती है। +* एलर्जी को रोकने के लिए ऊर्जा उत्पन्न करें। बाबा रामदेव +* कहा जाता है कि एक व्यक्ति को योग के द्वारा स्वयं के साथ मिलना है जब पूरी तरह अनुशासित होकर अपने मन से सभी इच्छाओं से नियन्त्रण प्राप्त कर लेते हैं तब हम अपने आप को जान पाते है। +* जब आप सांस लेते हैं आप भगवान से शक्ति ले रहे होते हैं। जब आप सांस छोड़ते हैं तो ये उस सेवा को दर्शाता है जो आप दुनिया को दे रहे हैं। बी के एस आयंगर +* जब पुछा गया उसे अपने जन्मदिन पर क्या उपहार चाहिए योगी बोला मुझे किसी उपहार की नहीं बस आपके उपस्थिति की कामना है। अज्ञात +* जब सांसें विचलित होती हैं तो मन भी अस्थिर हो जाता है। लेकिन जब सांसें शांत हो जाती हैं तो मन भी स्थिर हो जाता है, और योगी दीर्घायु हो जाता है। इसलिए हमें श्वास पर ��ियंत्रण करना सीखना चाहिए। हठयोग प्रदीपिका +* जो कोई भी अभ्यास करता है वह योग में सफलता पा सकता है लेकिन वो नहीं जो आलसी है। केवल निरंतर अभ्यास ही सफलता का रहस्य है। स्वात्मरामा +* जो कोई व्यक्ति भी अभ्यास करता है वह योग के द्वारा सफलता प्राप्त कर सकता है लेकिन आलसी व्यक्ति के लिए योग का कोई महत्व नहीं है और निरंतर अभ्यास अकेले सफलता का रहस्य है। +* धन्य हैं वे लचीले लोग, क्योंकि उनके आकार को नहीं बिगड़ना पड़ेगा। अज्ञात +* ध्यान का बीज बोएं और मन की शांति का फल पाएं। अज्ञात +* ध्यान से परे ‘अब’ का अनुभव है। रयान पैरेंटी +* नियमित योग अभ्यास करने से मनुष्य को तनाव से दूर रहने में तो मद्द मिलती ही है साथ ही बुरे दौर से उभरने में भी मद्द मिलती है। योग मनुष्य को एक खुशहाल और समृद्ध जीवन प्रदान करने में अपनी प्रमुख भूमिका निभाता है। +* बाहर क्या जाता है उसे आप हमेशा कंट्रोल नहीं कर सकते हैं। लेकिन अंदर क्या जाता है उसे आप हमेशा कंट्रोल कर सकते हैं। श्री योग +* मन की शांति के लिए सबसे अच्छा साधन योग हैं। +* मेरे लिए, योग सिर्फ एक कसरत नहीं है – यह अपने आप पर काम करने के बारे में है। मैरी ग्लोवर +* मैं योग को प्यार करता हूँ क्योंकि यह न केवल यह हमारे शरीर के लिए कसरत है बल्कि हमारी श्वास भी है जो अत्यधिक तनाव को मुक्त करने में मदद करता है योग सचमुच हमे दिन की दिनचर्या के लिए तैयार करता है। +* यदि शरीर व मन स्वस्थ नही हैं। +* यह योग उसके लिए संभव नहीं है जो बहुत अधिक खाता है या जो बिलकुल भी नहीं खाता जो बहुत अधिक सोता है या जो हमेशा जगा रहता है। भगवद गीता +* योग 99% अभ्यास और 1% सिद्धांत है। श्री कृष्ण पट्टाभि जॉइस +* योग आपके मन को शांत करने का एक प्राचीन तरीका है। +* योग आपको स्वीकार करता है और प्रदान करता है। +* योग एक तरह से लगभग संगीत जैसा है; इसका कोई अंत नहीं है। स्टिंग +* योग एक धर्म नहीं है। यह एक विज्ञान है, सलामती का विज्ञान, यौवन का विज्ञान, शरीर, मन और आत्मा को एकीकृत करने का विज्ञान है। अमित राय +* योग एक लाभदायक प्रक्रिया है, जो न सिर्फ मनुष्य को चुनौतीपूर्ण बीमारियों से छुटकारा दिलवाने में मदद करती है बल्कि उन्हें आजीवन स्वास्थ्य रखने में भी उपयोगी साबित होती है। +* योग करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण उपकरण जो आपको चाहिए होंगे वो हैं आपका शरीर और आपका मन। रॉडने यी +* योग का आसन, जाने के लिए एक अच्छी जगह है जब टॉक थेरेपी और एंटीडेप्रेसेन्ट्स पर्याप्त न हों। एमी वेंट्रौब +* योग के पास उन मेन्टल पैटर्न्स को शार्ट सर्किट करने के बड़े शातिर और चालाक तरीके हैं जो चिंता पैदा करते हैं। बैक्सटर बेल +* योग के बारे में यह कभी भी मत सोचिये की योग से क्या मिल सकता है बल्कि यह सोचिये की योग के द्वारा हम क्या नही प्राप्त कर सकते है। +* योग को दृढ संकल्प और अटलता के साथ बिना किसी मानसिक संदेह या संशय के साथ किया जाना चाहिए। भगवद गीता +* योग न सिर्फ मनुष्य के मस्तिष्क और शरीर की एकता को संगठित करता है बल्कि यह मनुष्य के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का काम करता है। योग से मनुष्य का मन शांत रहता है और उसे अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करने में मदद मिलती है। +* योग बहुत ही आश्चर्यजनक है इससे हमारे स्वास्थ्य की समस्याएं दूर तो होती हैं तथा साथ में खुद का अवलोकन होता भी होता है। +* योग भी अब व्यवसाय के रूप में बदल रहा है और कई लोगों को रोजगार भी प्रदान कर रहा है। +* योग मन के उतार-चढ़ाव को स्थिर करने की प्रक्रिया है। +* योग मन को शांत करने का अभ्यास है। +* योग मन को शांति में स्थिर करना है। जब मन स्थिर हो जाता है हम अपनी आवश्यक प्रकृति में स्थापित हो जाते हैं जोकि असीम चेतना है। हमारी आवश्यक प्रकृति आम तौर पर मस्तिष्क की गतिविधियों द्वारा ढक दी जाती है। पतंजलि +* योग मन को स्थिर करने की क्रिया है। पतंजलि +* योग मनुष्य को सफल बनाने में भी उसकी मदद करता है। वहीं नियमित रुप से किया गया योग अभ्यास मनुष्य को एक बेहतर शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक स्वास्थ्य की तरफ ले जाता है। +* योग यौवन का फव्वारा है। आप उतने ही नौजवान हैं जितनी आपके रीढ़ की हड्डी लचीली है। बॉब हार्पर +* योग वह प्रकश है जो एक बार जला दिया जाए तो कभी कम नहीं होता। जितना अच्छा आप अभ्यास करेंगे लौ उतनी ही उज्जवल होगी। बी के एस आयंगर +* योग विश्राम में उत्साह है। दिनचर्या में स्वतंत्रता। आत्म नियंत्रण के माध्यम से विश्वास। भीतर ऊर्जा और बाहर ऊर्जा । यम्बर डेलेक्टो +* योग सिर्फ आत्म सुधार के बारे में नहीं बतलाता है, बल्कि यह आत्म स्वीकृति के बारे में सिखाता है। +* योग सिर्फ कसरत ही नहीं है बल्कि यह खुद अपने आप पर काम करता है। +* योग से सिर्फ रोगों, बीमारियों से छुटकारा ही नही मिलता है बल्कि यह सबके कल्याण की गारंटी भी देता है। +* योग हम सभी को नकारात्मकता से दूर रखता है और हमारे मस्तिस्क में अच्छे विचारों का निर्माण करता है। वहीं मनुष्य योग के द्धारा अपनी जीवनशैली में बदलाव कर सकता है और एक सुखी और स्वस्थ जीवन जी सकता है। +* योग हमारी कमियों पर प्रकाश डालता हैं। +* योग हमारे जीवन की शक्ति, ध्यान करने की क्षमता और उत्पादकता को बढ़ाता है योग मनुष्य के शरीर, मन और भावना को स्थिर और नियंत्रित भी करता है। +* योग हमें उन चीजों को ठीक करना सिखाता है जिसे सहा नहीं जा सकता और उन चीजों को सहना सिखाता है जिन्हे ठीक नहीं किया जा सकता। बी के एस आयंगर +* योग हमे खुशी, शांति और पूर्ति की एक स्थायी भावना प्रदान करता है। +* योग हर उस व्यक्ति के लिए संभव है जो वास्तव में इसे चाहता है। योग सार्वभौमिक है ….लेकिन योग को सांसारिक लाभ हेतु एक व्यवसायिक दृष्टिकोण से ना अपनाएं। श्री कृष्ण पट्टाभि जॉइस +* योग हर वह व्यक्ति के कर सकता है जो वास्तव में इसे चाहता है क्योंकि योग सार्वभौमिक है। +* रोना उच्चतम भक्ति गीतों में से एक है। जो रोना जानता है, वह साधना जानता है। यदि आप सच्चे दिल से रो सकें, तो इस प्रार्थना के तुल्य कुछ भी नहीं है। रोने में योग के सभी सिद्धांत शामिल हैं। कृपालवानंदजी +* व्यायाम गद्य की तरह है जबकि योग गति की कविता है। एक बार जब आप योग का व्याकरण समझ जाते हैं आप अपने गति की कविता लिख सकते हैं। अमित राय +* शरीर आपका मंदिर है। आत्मा के निवास के लिए इसे पवित्र और स्वच्छ रखिये। बी० के० एस० आयंगर +* सभी बीमारियों का उपचार योग और स्वस्थ जीवन शैली में निहित है। बाबा रामदेव +* सभ्यता द्वारा घायल हुए लोगों के लिए, योग सबसे बड़ा मरहम है। टी गिलेमेट्स +* स्वस्थ जीवन जीना जिंदगी की जमा पूंजी, योग करना रोगमुक्त जीवन की कुंजी…। +* स्वास्थ सबसे बड़ा उपहार हैं, संतोष सबसे बड़ा धन हैं, यह दोनों योग से ही मिलते हैं। +* हमारा स्वास्थ्य ही असली धन है न कि सोने और चांदी के टुकड़े, इसलिए योग के द्वारा इसे बनाये रखें। +* हमारे पास प्राचीनकाल में स्वास्थ्य बीमा नहीं था लेकिन हम सभी के के पास योग एक ऐसा अभ्यास है जो बिना एक पैसे खर्च किये हमारे स्वास्थ्य की रक्षा का आश्वासन देता है। +* विज्ञलोग, पुरोहित, यजमान अपने मनों को केन्द्रित करते हैं और प्रार्थनाओं को महान (सविता) में लगाते हैं जो सभी प्रार्थनाओं को जानने वाला है। ऋग्वेद +: योग के बिना विद्वान का भी कोई यज्ञकर्म सिद्ध नहीं होता। वह योग क्या है? +: वही परमात्मा हमारी समाधि के निमित्त अभिमुख हो, उसकी दया से समाधि, विवेक, ख्याति तथा ऋतम्भरा प्रज्ञा का हमें लाभ हो, अपितु वही परमात्मा अणिमा आदि सिद्धियों के सहित हमारी ओर आगमन करे। +: बार-बार योगाभ्यास करते और बार-बार मानसिक और शारीरिक बल बढ़ाते हुये हम सब परस्पर मित्रभाव से युक्त होकर अपनी रक्षा के लिये अनन्त बलवान्, ऐश्वर्यशाली ईश्वर का ध्यान करते हैं। उसी से सब प्रकार की सहायता मांगते हैं। +: जो पुरुष योगाभ्यास और भूगर्भविद्या सीखना चाहे, वह यम आदि योग के अङ्ग और क्रिया-कौशलों से अपने हृदय को शुद्ध करके तत्त्वों को जान, बुद्धि को प्राप्त और इन को गुण, कर्म तथा स्वभाव से जान के उपयोग लेवे। +: मनुष्य परमेश्वर की इस सृष्टि में समाहित हुए योगाभ्यास ओर तत्त्वविद्या को यथाशक्ति सेवन करें तथा उनमें सुन्दर आत्मज्ञान के प्रकाश से युक्त हुए योग और पदार्थविद्या का अभ्यास करें, तो अवश्य सिद्धियों को प्राप्त हो जावें। +: जो पुरुष योग और पदार्थविद्या का अभ्यास करते हैं, वे अविद्या आदि क्लेशों को हटानेवाले शुद्ध गुणों को प्रकट कर सकते हैं। जो उपदेशक पुरुष से योग और तत्त्वज्ञान को प्राप्त होकर ऐसा अभ्यास करे, वह भी इन गुणों को प्राप्त होवे। +: अर्थात् योगाभ्यास के ज्ञान को चाहने वाले मनुष्यों को चाहिये कि योग में कुशल विद्वानों का सङ्ग करें। उनके सङ्ग से योग की विधि को जान के ब्रह्मज्ञान का अभ्यास करें। +यद्यपि योग विद्या का स्तम्भ पतञ्जलि के योगसूत्र को माना जाता है परन्तु योग विद्या का आधार वेदों में है। वेदों से निकली योग विद्या का वटवृक्ष स्वरूप उपनिषदों में देखने को मिलता है। +: जिसमें इन्द्रियाँ (मन व बुद्धि) स्थिर और संयमित हो जातीं हैं, वही योग है। +: जब मन के साथ समस्त ज्ञानेन्द्रियाँ भलीभाँति स्थिर हो जाती है तथा बुद्धि की भी कोई चेष्टा नहीं रहती तब इस अवस्था को जीवात्मा की परमगति अर्थात योगी की अवस्था कहते हैं। जब समस्त बाह्य जगत को छोड़कर आन्तरिक जगत की ओर हो जाती है, तब योग साधक परमात्मा के साथ एक्य हो जाता है। +: वे योगी ध्यान में गए और उन्होंने ईश्वर की शक्ति को अपने अन्दर देखा। +: विहित कर्मों में इस बुद्धि का बने रहना, यह कर्तव्य कर्म है। शास्त्रानुकूल कर्मों में निरन्तर मन लगाये रखना कर्मयोग कहलाता है। +: श्रेय के अर्थ में चित्त का सदैव बद्ध रहना ज्ञान योग कहलाता है। यह ज्ञान योग सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला और कल्याणकारी है। +ध्यातव्य है कि त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् में अष्टांग योग के साथ-साथ कर्मयोग व ज्ञानयोग का भी वर्णन मिलता है।) +पुराणों में अनेक लोकोपयोगी विद्याओं का वर्णन उपलब्ध होता है, जैसे- अश्वशास्त्र का ज्ञान, रत्नपरीक्षा का ज्ञान, वास्तुविद्या का ज्ञान, धनुर्विद्या का ज्ञान आदि। इसी प्रकार पुराणों में योगविद्या का भी वर्णन विस्तार से मिलता है। पुराणों में भी पातञ्जल योगसूत्र के अनुसार योग का लक्षण दिया गया है, परन्तु पुराणकारों ने चित्त का अर्थ इन्द्रियाँ लिया है। +: आत्माज्ञन के प्रयत्नभूत यम, नियमादि की अपेक्षा रखनेवाली मन की विशिष्ट गति है, उसका ब्रह्म के साथ संयोग होना ही योग है। +: बहिर्गामी उच्छृखल इन्द्रियों को सांसारिक विषयों से हटाकर इनकी प्रवृत्ति को अन्तर्मुखी करना योग है। +: चित्त की एकाग्रता ही योग है और चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है जो जीवात्मा और परमात्मा से परे रहा करता है। +* ज्ञान के द्वारा वैराग्य की उत्पत्ति होती है तथा वैराग्य के द्वारा दुःखों का नाश। मार्कण्डेयपुराण +: तब योग रूपी अग्नि प्रकट करके उसमें समस्त शुभाशुभ कर्म रूपी ईंधन लगा दें (सब कर्मों को योग रूपी अग्नि में भस्म कर दें)। जब (वैराग्य रूपी मक्खन का) ममता रूपी मल, जल जाए, तब (बचे हुए) ज्ञान रूपी घी को (निश्चयात्मिका) बुद्धि से ठंडा करें। +: यह योग तो परम धर्म है जिसकी साधना के द्वारा आत्मदर्शन होता है। +: महायोग एक ही है (किन्तु यह चार प्रकार का होता है- मंत्रयोग हठयोग लययोग व राजयोग। + + +धर्म का सार क्या है, यह सुनो और सुनकर उसे धारण भी करो! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये। +और अपने लिए जिन-जिन बातों की इच्छा हो वे दूसरों को भी मिलें, ऐसा सोचना चाहिये। अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये। +: प्रेरणा, धर्म का लक्षण और अर्थ है। (लोक-परलोक के सुखों की सिद्धि के लिये गुणों और कर्मों में प्रवृति की प्रेरणा धर्म का लक्षण है।) +: जिससे वर्तमान जीवन में अभ्युदय और भावी जीवन में निःश्रेयस (मोक्ष) की सिद्धि हो वही धर्म है। दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि जिससे भौतिक उन्नति और अध्���ात्मिक उन्नति दोनों प्राप्त होतीं हैं, वही धर्म है। +: धर्म, सुख का मूल (जड़) है। +धर्म' शब्द 'धृ' अर्थात 'धारण करना' धातु से बना है। धर्म से ही सब प्रजा बँधी हुई है। यह निश्चय किया गया है कि जिससे (सब प्रजा का) धारण होता है वही धर्म है। +: मैं बाँहें उठाकर लोगों को समझा रहा हूँ कि धर्म से ही अर्थ और काम की प्राप्ति होती है, इसलिए क्यों नहीं धर्म के मार्ग पर चलते? पर कोई मेरी सुनता ही नहीं। +: कामना से, भय से, लोभ से अथवा प्राण बचाने के लिये भी धर्म का त्याग न करे। धर्म नित्य है और सुख-दुःख अनित्य। इसी प्रकार जीवात्मा नित्य है और उसके बन्धन का हेतु अनित्य। +: मनुष्यलोक में इस समबुद्धिरूप धर्म के आरम्भ का नाश नहीं होता। इसके अनुष्ठानका उलटा फल भी नहीं होता और इसका थोड़ासा भी अनुष्ठान महान् भय से रक्षा कर लेता है। +: मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश, और रक्षित धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले। +: सब प्राणियों की प्रवृत्ति सुख के लिए होती है और) बिना धर्म के सुख मिलता नहीं। इसलिए तू धर्मपरायण बन । +: तर्कविहीन वैद्य, लक्षणविहीन पंडित, और भावरहित धर्म – ये अवश्य ही जगत में हंसी के पात्र बनते हैं । +: इस अस्थिर जीवन/संसार में धन, यौवन, पुत्र-पत्नी इत्यादि सब अस्थिर है । केवल धर्म, और कीर्ति ये दो ही बातें स्थिर हैं। +: जो गुणवान है, धार्मिक है वही जीते हैं। जो गुण और धर्म से रहित है उसका जीवन निष्फल है । +: वेदों में प्रामाण्यबुद्धि, साधना के स्वरुप में विविधता, और उपास्यरुप संबंध में नियमन नहीं – ये हि धर्म के लक्षण हैं । +: धर्म कल्पतरु, विषहर मणि, चिंतामणि रत्न है । धर्म सदा सुख देनेवाली कामधेनु है, और संजीवनी औषधि है । धर्म कामघट, कल्पलता, विद्या और कला का खजाना है । इस लिए, तूं उस धर्म का प्रेम और आनंद से पालन कर, वर्ना तेरा जीवन व्यर्थ है । +: यौवन में ऐसा करना चाहिए जिससे बुढ़ापा सुख से कटे। यह जीवन ऐसे जीना जिससे परलोक (या दूसरे जन्म) में चैन मिले । +: इस जगत में धन, जीवन, यौवन अस्थिर हैं; पुत्र और स्त्री भी अस्थिर हैं । केवल धर्म और कीर्ति (ये दो ही) स्थिर है । +: रोज उठकर “आज क्या सुकृत्य किया” यह जान लेना चाहिए, क्यों कि सूर्य (हररोज) आयुष्य का छोटा तुकडा लेकर अस्त होता है । +: बूढापा और मृत्यु नहीं आयेंगे ऐसा समजकर विद्या और धन का ��िंतन करना चाहिए । पर मृत्यु ने हमें बाल से जकड रखा है, ऐसा समजकर धर्म का आचरण करना चाहिए । +: शरीर अनित्य है; धन भी कायमी नहि है; और मृत्यु निश्चित है, इस लिए धर्मसंग्रह करना चाहिए । +: जैसे इन्सान की आँखें कीकी के बिना निस्तेज है, वैसे हि धर्म की कला के बिना सभी कला व्यर्थ है । +: मृत शरीर को छोड़कर जैसे लकड़ी के टुकड़े चले जाते हैं, वैसे संबंधी भी मुँह फेरकर चले जाते हैं । केवल धर्म ही मनुष्य के पीछे जाता है । +: लोगों को धर्म का फल चाहिए, पर धर्म का आचरण नहीं, और पाप का फल नहि चाहिए, पर गर्व से पापाचरण करना है ! +: धर्म सत्य से उत्पन्न होता है, दया और दान से बढता है, क्षमा से स्थिर होता है, और क्रोध एवं लोभ से नष्ट होता है । +: धर्म माता की तरह हमें पुष्ट करता है, पिता की तरह हमारा रक्षण करता है, मित्र की तरह खुशी देता है, और सम्बन्धियों की भाँति स्नेह देता है। +: अन्य जगहों पे किये हुए पापों से धर्मस्थान में मुक्ति मिलती है, पर धर्मस्थान में किया हुआ पाप वज्रलेप बनता है । +: क्लेश बिना द्रव्य नहीं, द्रव्य बिना क्रिया नहीं, क्रिया बिना धर्म संभव नहीं; और धर्म के बिना सुख कैसे हो सकता है? +: अधर्म का आचरण करने से मनुष्य पहले बढ़ता है। इसके बाद धनादि ऐश्वर्य और प्रतिष्ठा को प्राप्त होता है। उसके बाद शत्रुओं को भी जीतता है। अन्त में वह समूल नष्ट हो जाता है। +: धर्म किससे उत्पन्न होता है? धर्म किससे बढ़ता है? और किससे धर्म स्थापित हो जाता है, तथा किससे धर्म विनष्ट हो जाता है? +: धर्म, सत्य से उत्पन्न होता है। दया और दान से बढ़ता है। क्षमा से स्थापित हो जाता है। क्रोध और लोभ से विनष्ट हो जाता है। +दुसट सभन को मूल उपारन॥ गुरु गोविन्द सिंह विचितर नाटक' में + + +: विद्या वह है जो (व्यक्ति को) विमुक्त करती है। +: जो माता-पिता अपने बच्चो को पढ़ाते नहीं है ऐसे माँ-बाप बच्चो के शत्रु के समान है। विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पा सकता। वह वहां हंसो के बीच एक बगुले की तरह होता है। +* जिम्मेदारी शिक्षित करती है। वेन्डेल फिलिप्स +* एक सभ्य घर जैसा कोई स्कूल नहीं है और एक भद्र अभिभावक जैसा कोई शिक्षक नहीं है। महात्मा गाँधी]] +* अगर आप एक पुरुष को शिक्षित करते हैं तो आप सिर्फ एक पुरुष को शिक्षित करते हैं; लेकिन अगर आप एक स्त्री को शिक्षित करते हैं तो आप एक पूरी पीढ़ी को शिक्षित करते हैं। ब्रि���म यंग +* अगर लोग छोटी छोटी नादानियाँ नहीं करते तो कुछ भी बड़ा बुद्धिमत्तापूर्ण काम नहीं होता। लुडविग वित्त्गेंस्तें +* अनदेखी करना अज्ञानता के समान नहीं है, आपको इस पर काम करना होता है। मार्गरेट ऐटवुड +* अमेरिका इतना शिक्षित होता जा रहा है कि अज्ञानता एक नयी बात होगी. मैं कुछ गिने चुने लोगो में रहना चाहूँगा। विल रोजर्स +* आंकड़े जानकारी नहीं हैं, जानकारी ज्ञान नहीं हैं, ज्ञान समझ नहीं है, समझ बुद्धिमानी नहीं है। क्लिफोर्ड स्टोल +* आधुनिक शिक्षक का कार्य जंगलों की कटौती करना नहीं, बल्कि रेगिस्तान की सिंचाई करना है। सी एस लुईस +* आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं; आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं। आप एक औरत को शिक्षित करते हैं; आप एक पूरी पीढ़ी को शिक्षित करते हैं। ब्रिघम यंग +* आप कभी भी ओवरड्रेस्ड या ओवरएजुकेटेड नहीं हो सकते। ऑस्कर वाइल्ड +* आप हमेशा एक छात्र हैं, कभी मास्टर नहीं हैं आपको आगे चलते रहना होगा। कोनार्ड हाल +* एक आधुनिक शिक्षक का काम जंगलों को काटना नहीं बल्कि रेगिस्तान को सींचना है। सी.एस.लेविस +* एक उदार समाज के मूल में उदार शिक्षा होती है ,और एक उदार शिक्षा के मूल में शिक्षण का कार्य होता है। ए. बार्टलेट जियामेट्टी +* एक शिक्षक दरवाजा खोल सकता है, लेकिन उस दरवाजे के अन्दर प्रवेश आपको खुद ही करना है। चीनी कहावत +* एक शिक्षित व्यक्ति वो है जिसने जान लिया है कि सूचना लगभग हमेशा ही अधूरी अक्सर गलत ,भटकाने वाली रस्सेल बेकर +* औपचारिक शिक्षा आपको जीवन यापन करने योग्य बनती है; स्व:शिक्षा आपको सफल बनती है। जिम रोहन +* किसी सेना की अपेक्षा शिक्षा स्वतंत्रता के लिए एक बेहतर सुरक्षा है। एडवर्ड एवरेट +* केवल एक पीढ़ी के पाठक एक पीढ़ी के लेखकों को जन्म देंगे। स्टीवन स्पीलबर्ग +* कोई भी,जिसने सीखना छोड़ दिया चाहे उसकी उम्र बीस साल हो या अस्सी साल,वो बूढा है। कोई भी जिसने ज्ञान प्राप्त करना जारी रखा हुआ है वो युवा है। हेनरी फोर्ड +* जब कोई विषय पूरी तरह से अप्रचलित हो जाता है तो हम उसे आवश्यक पाठ्यक्रम बना देते हैं। पीटर ड्रकर +* जीवन में बस वही वास्तविक असफलता है जिससे आपने सीख नहीं ली। अन्थोनी जे. डी’ एंजिलो +* ज्ञान वो सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे आप पूरी दुनिया बदल सकते है। नेल्सन मंडेला +* ज्ञान ही शक्ति है। जानकारी स्वतंत्रता है। प्रत्येक परिवार और समाज में शिक्षा, प्र���ति का आधार है। कोफी अन्नान +* दिमाग भरा जाने वाला पात्र नहीं है, बल्कि जलाई जाने वाली आग है। प्लूटार्क +* परिवर्तन सभी प्रकार की शिक्षाओं का अंतिम परिणाम है। लेओबुस्कैग्लिया +* परिवर्तन ही सच्ची विद्या का अंतिम परिणाम है। लियो बुस्काग्लिया +* प्रथम स्थान पर, भगवान ने बेवकूफों को बनाया। वह अभ्यास के लिए था। उसके पश्चात उन्होंने स्कूल बोर्ड बनाया। बेस्ट शिक्षा पर विचार +* बच्चों को ये सिखाया जाना चाहिए कि कैसे सोचें, ना कि क्या सोचें मार्गरेट मीड +* बच्चों को शिक्षित किया जाना चाहिए पर उन्हें खुद को शिक्षित करने के लिए भी छोड़ दिया जाना चाहिए। एर्न्स्ट डीम्नेट +* बच्चों को सिखाईये कि कैसे सोचा जाये, न कि क्या सोचा जाये। मार्गरेट मीड +* बिना अपना आपा और आत्म विश्वास खोये, कुछ भी सुन सकने की योग्यता ही शिक्षा है। रोबर्ट फ्रॉस्ट +* बिना दिल को शिक्षित किये दिमाग को शिक्षित करना कोई शिक्षा नहीं है। अरस्तु +* बिना शिक्षा के कामन सेन्स होना, शिक्षा प्राप्त करके भी कामन सेन्स ना होने से हज़ार गुना बेहतर है। रोबर्ट ग्रीन इन्गेर्सोल +* बिना शिक्षा प्राप्त किये कोई व्यक्ति अपनी परम ऊँचाइयों को नहीं छू सकता। होरेस मैन +* बुद्धि और चरित्र – यही सच्ची शिक्षा का लक्ष्य है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर +* भले ही शिक्षा का जड़ बहुत कड़वा होता है, परन्तु इसका फल बहुत मीठा व स्वादिष्ट होता है। अरस्तु +* मुझमें कोई विशिष्ट प्रतिभा नहीं है। मुझे केवल जुनून की हद तक उत्सुकता है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* मूल्यों के बिना शिक्षा, उतना ही उपयोगी है जितना कि ऐसा है, मनुष्य को और अधिक चालाक शैतान बनाने की बजाय। बिना मूल्यों के शिक्षा उतनी ही उपयोगी है, जैसे कि वो एक इंसान को और चालाक शैतान बना रही हो। सी.एस लुईस +* मैं पढ़ाने वाला नहीं बल्कि जगाने वाला हूँ। रॉबर्ट फ्रॉस्ट +* मैंने कभी भी अपनी स्कूलिंग को अपनी शिक्षा के मार्ग में नहीं आने दिया है। मार्क ट्वेन +* यदि आपको लगता है शिक्षा महंगी है तो अज्ञानता को ट्राई कर लीजिये। रॉबर्ट और्बेन +* यह एक शिक्षित दिमाग का लक्षण है, जो एक विचार को स्वीकार किए बिना भी उससे मनोरंजन करने में सक्षम है। अरस्तु +* युवा पीढ़ी को इस काबिल बनाना कि वो जीवन भर अपने आप को प्रशिक्षित करते रहें, ये शिक्षा का असली उद्देश्य है। रोबर्ट मेनार्ड हुत्चिंस +* वो व्यक्ति जो एक विद्या���य खोलता है, एक कारावास बंद करता है। विक्टर ह्यूगो +* व्यावहारिक विवेक का होना शिक्षित होने से हजार गुना बेहतर है। रोबर्ट जी.इन्गेर्सोल्ल +* शादी इंतज़ार कर सकती है, शिक्षा नहीं। खालिद हुसैनी +* शिक्षा अचानक से प्राप्त नहीं की जा सकती, इसे उत्साह और परिश्रम के द्वारा प्राप्त किया जाना चाहिए। अबीगैल एडम्स +* शिक्षा अपने क्रोध या अपने आत्म विश्वास को खोये बिना लगभग कुछ भी सुनने की क्षमता है। राबर्ट फ्रोस्ट +* शिक्षा एक सराहनीय चीज है, पर समय समय पर ये बात याद कर लेनी चाहिए की ऐसा कुछ भी जो जानने योग्य है उसे सिखाया नहीं जा सकता। ऑस्कार वाइल्ड +* शिक्षा एक सराहनीय वस्तु है, परन्तु अच्छा है समय-समय पर याद रखें कि जो कुछ भी जानने योग्य है वह सिखाया जाये। ऑस्कर वाइल्ड +* शिक्षा का अर्थ है वो जानना ,जो आपको पता भी नहीं था कि वो आपको पता नहीं था। डेनियल जे. बूर्स्तिन +* शिक्षा का उच्चतम परिणाम सहनशीलता है। हेलेन केलर +* शिक्षा का उद्देश्य है युवाओं को खुद को जीवन भर शिक्षित करने के लिए तैयार करना। राबर्ट एम्. हचिंस +* शिक्षा का कार्य गहराई से और गंभीर रूप से सोचना सिखाना है। बुद्धिमत्ता के साथ चरित्र – यही सच्ची शिक्षा का लक्ष्य है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर। +* शिक्षा का मकसद है एक खाली दिमाग को खुले दिमाग में परिवर्तित करना। मैल्कम फ़ोर्ब्स +* शिक्षा का ये मतलब नहीं है कि आपने कितना कुछ याद किया हुआ है, या ये कि आप कितना जानते हैं। इसका मतलब है आप जो जानते हैं और जो नहीं जानते हैं उसमे अंतर कर पाना। अनाटोले फ्रांस +* शिक्षा का लक्ष्य ज्ञान की प्रगति और सच्चाई का प्रसार है। जॉन एफ कैनेडी +* शिक्षा का सही उद्देश्य तथ्यों का नहीं, बल्कि मूल्यों का ज्ञान होना चाहिए। विलियम एस ब्यूर शिक्षा पर अनमोल वचन +* शिक्षा की जड़ कडवी है, पर उसके फल मीठे हैं। अरस्तु +* शिक्षा के बिना, हम पर शिक्षित लोगों को गंभीरता से लेने का एक भयानक और घातक खतरा रहता है। जी के चेस्टरटन +* शिक्षा जीवन की तैयारी नहीं है; शिक्षा ही जीवन है। जॉन देवे +* शिक्षा ने ऐसी बहुत बड़ी आबादी पैदा की है जो पढ़ तो सकती है पर ये नहीं पहचान सकती की क्या पढने लायक है। जी. एम् ट्रेवेल्यन +* शिक्षा भविष्य के लिए पासपोर्ट है जो आज इसके लिए तैयारी करते हैं। माल्कॉम एक्स +* शिक्षा भीतर से आती है; आप इसे विचार करके, संघर्ष करके और प्रयास करके प���राप्त कर सकते हैं। नेपोलियन हिल +* शिक्षा राष्ट्रों की सस्ती रक्षा का माध्यम है। एडम्ण्ड बुर्क]] +* शिक्षा वह नींव है जिस पर हम अपने भविष्य का निर्माण करते हैं। क्रिस्टीनग्रेगोइर +* शिक्षा शिक्षा है। हमें सब कुछ सीखना चाहिए और फिर चुनाव करना चाहिए कि हमें कौन से मार्ग पर चलना है। शिक्षा ना ईस्टर्न है ना ही वेस्टर्न, ये ह्यूमन है। मलाला युसुफजई +* शिक्षा सज्जनता को शुरू करती है, लेकिन पढ़ाई, अच्छी कंपनी और दिखावा उसे खत्म कर देता है । जॉन लोक +* शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसे आप दुनिया को बदलने के लिए उपयोग कर सकते हैं। नेल्सन मंडेला +* शिक्षा समृद्धि और प्रतिकूल परिस्थितियों में एक आभूषण है। अरस्तु +* सिद्धांतों के बिना शिक्षा, एक मनुष्य को चालाक दैत्य बनाने जैसा है। सी. एस. लेविस +* सीखने के लिए एक जूनून पैदा कीजिये. यदि आप कर लेंगे तो आपका विकास कभी नहीं रुकेगा। अन्थोनी जे. डी’एंजेलो +* स्कूल का सबसे सीधा लड़का भी अब उस सत्य को जानता है जिसके लिए आर्कमडीज ने अपना जीवन बलिदान कर दिया होता। एर्न्स्ट रेनैन +* स्पून फीडिंग आखिरकार कुछ नहीं सिखाता बस स्पून का शेप सिखा देता है। इ एम् फोरस्टर +* हमने स्कूल में जो सीखा है वह सब भूलने के बाद जो याद रहता है, वही शिक्षा है। ज्ञान का निवेश सर्वोत्तम भुगतान करता है। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* हमारे पुस्तकालयों की जो भी लागत हो, उसकी कीमत एक अज्ञानी राष्ट्र की तुलना में कम है। वाल्टर क्रोंकाईट +* शिक्षा जीवन में सफलता की कुंजी है, और शिक्षक अपने छात्रों के जीवन पर स्थायी प्रभाव डालते हैं जिससे वह अपने जीवन में सफल होते हैं। सोलोमन ऑर्टिज़ +* शिक्षा हमारे समाज की आत्मा है जो कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती है। जी.के.चेस्तेरसों +* शिक्षित व्यक्ति को आसानी से शाषित किया जा सकता है। फ्रेडरिक दी ग्रेट +* सच है, अल्प ज्ञान खतरनाक है,पर फिर भी ये पूर्ण रूप से अज्ञानी होने से बेहतर है। अबीगेल वैन बरेन +* सच्ची शिक्षा के दो लक्ष्य हैं; एक बुद्धिमत्ता, दूसरा चरित्र। मार्टिन लुथर किंग +* शिक्षा स्वतंत्रता के स्वर्ण द्वार खोलने के कुंजी है। जार्ज वाशिंगटन करवर +* शिक्षा की समस्याएं हमारे युग की गहनतम समस्याओं का प्रतिबिम्ब मात्र हैं। उन्हें संगठन, प्रशासन या अधिक धन व्यय से नहीं सुलझाया जा सकता, यद्यपि इन चीजों के महत्त्व से इनकार नही�� किया जा सकता। वास्तव में हम एक रोग से ग्रस्त हैं जो तत्वमीमांसीय है और उसका इलाज भी इसलिए तत्वमीमांसीय ही हो सकता है। जो शिक्षा हमारे प्रमुख विश्वासों को स्पष्ट न कर सके, वह केवल प्रशिक्षण या व्यसन मात्र है। जब तक हमारे विश्वास गड्ड-मड्डु रहेंगे और वर्तमान तत्वमीमांसा-विरोधी वातावरण बना रहेगा, अव्यवस्था बदतर होती जाएगी। ई० एफ० शुमाकर]] +प्राचीन एवं अंग्रेजों के शासन के पहले की भारतीय शिक्षा +: विद्या वह है जो (व्यक्ति को) मुक्ति प्रदान करे। +: सत्य बोलना, धर्म का आचरण करना, स्वाध्याय से प्रमाद मत करना। +* ब्राह्मण शिक्षकों ने जिस शिक्षा प्रणाली का विकास किया, वह न केवल साम्राज्यों के पतन और समाज के परिवर्तनों से अप्रभावित रही, वरन् उसने हजारों वर्षों तक उच्च शिक्षा की ज्योति को प्रज्ज्वलित रखा। डॉ० एफ० ई० केई (FE. Keay) +* ऐसा कोई देश नहीं है जहाँ ज्ञान के प्रति प्रेम इतने प्राचीन समय में प्रारम्भ हुआ हो, या जिसने इतना स्थायी ओर शक्तिशली प्रभाव उत्पन्न किया हो, जितना भारत में। एफ डब्ल्यु थॉमस +* विद्यारम्भ संस्कार, उपनयन संस्कार के अनेक वर्षों बाद उस समय आरम्भ हुआ, जब वैदिक संस्कृत, जनसाधारण की बोलचाल की भाषा नहीं रह गई थी। डॉ० ए० एस० अल्तेकर +* यह संस्कार पाँच वर्ष की आयु में होता था और साधारणतः सब जातियों के बालकों के लिए था। डॉ० वेद मित्र, विद्यारम्भ संस्कार के सम्बन्ध में +* ‘प्रेसीडेंसी के सभी गावों में पाठशालाएं हैं’। थॉमस मुनरो की मद्रास प्रेसीडेन्सी में शिक्षा की स्थिति पर रिपोर्ट (१८२२-२६) +मद्रास) प्रेसीडेंसी में 12,498 पाठशालाएं हैं, जिन में 1,88,650 विद्यार्थी पढ़ते हैं। थॉमस मुनरो की मद्रास प्रेसीडेन्सी में शिक्षा की स्थिति पर रिपोर्ट (१८२२-२६) +* पूरे प्रेसीडेन्सी में मुश्किल से कोई छोटा या बड़ा गाँव होगा जिसमें कम से कम एक विद्यालय न हो। जी एल प्रेण्डरगास्ट की बॉम्बे प्रेसीडेन्सी में शिक्षा की स्थिति के बारे में रपट, मार्च १८२४ +* बंगाल और बिहार में एक लाख के लगभग स्कूल्स हैं। इन दोनों प्रान्तों की जनसंख्या चार करोड़ के बराबर है। अर्थात प्रति 400 व्यक्तियों पर एक शाला है। विलियम एडम्स की बंगाल प्रेसीडेन्सी में शिक्षा की स्थिति पर पहली रपट, 1835 से 1838 तक +* भारत में बड़ी अच्छी विकेंद्रित शिक्षा व्यवस्था है। लगभग प्रत्येक गांव की अपनी पाठशाला हैं, जो गांव व��ले चलाते हैं। इन पाठशालाओं को जमीनें आवंटित हैं, जिनकी आमदनी से पाठशाला का खर्चा निकलता है। ‘इन में से अनेक स्कूलों का स्तर तो हमारे ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज विश्वविद्यालय के बराबर का है। शिक्षकों को अच्छा वेतन दिया जाता हैं। ब्रिटिश आई सी एस अधिकारी जी. डब्लू. लेटनर "History of Indigenous Education in Punjab Since Annexation and in 1882" में पंजाब में शिक्ष की स्थिति के बारे में सन १८८२ में +* इस होशियारपुर जिले में साक्षरता की दर 84% है। जी. डब्लू. लेटनर, उत्तरी पंजाब के होशियारपुर जिले के बृहद सर्वेक्षण के आधार पर, १८७०-७५ +* मालाबार के साहित्य का आधार एक जैसा है और इसमें सभी हिंदू राष्ट्रों (भारत क सभी भागों) की तरह ही शिक्षा-सामग्री शामिल है। शिक्षा हर परिवार में एक प्रारंभिक और महत्वपूर्ण क्रियाकलाप है। उनकी कई महिलाओं को पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है। बच्चों को हिंसा के बिना और विशेष रूप से सरल प्रक्रिया द्वारा शिक्षा दी जाती है। शिष्य एक-दूसरे के मॉनिटर हैं और अक्षरों/ अंकों को रेत पर उंगली से लिखा जाता है। ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी, अलेक्जेंडर वॉकर (1764 – 1831) अपनी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 263 पर +ब्रिटिश प्रशासक, जब भारत आये, तो चीज़ों को ज्यों का त्यों अपने कब्जे में लेने के बजाय, उन्हें जड़ से उखाड़ना शुरू कर दिया। उन्होंने जड़ से मिट्टी हटायी और जड़ को देखने लगे, और जड़ को वैसे ही (बिना मिट्टी के) छोड़ दिया। और वह सुन्दर वृक्ष नष्ट हो गया। महात्मा गांधी, 20 अक्टूबर, 1931 को चैथम हाउस, लंदन में +* इस बात पर ज़ोर देना ज़रूरी है कि स्वदेशी शिक्षा पाठशालाओं, मदरसों और गुरुकुलों के माध्यम से दी जाती थी। इन पारंपरिक संस्थानों का कर्यकलाप 'शिक्षा' कहलाता था और इसे सारे लोग वित्तीय सहयोग देकर जीवित रखते थे। यहाँ तक कि उन लोगों से भी सहयोग मिलता था जो स्वयं अशिक्षित थे। इस शिक्षा में प्रज्ञा, शील और समाधि के विचार शामिल थे। वास्तव में ये संस्थाएँ उस कूप के समान थीं जो समाज की जड़ों को सींचने का कार्य करतीं थीं। इसलिए ये संस्थाएँ आजकल के 'स्कूल' की अपेक्षा बहुत बड़ी भूमिका निभातीं थीं। द ब्युटीफुल ट्री' में +* प्राचीन "गुरुकुल" प्रणाली को अधिक समालोचनात्मक नजरिए से देखने की जरूरत है और पहला कदम इन गुरुकुलों के इतिहास के रिकार्डों से यह ढूँढना होगा कि उनके क्रियाकलाप क्या-क्या थे। इसके बिना हम प्राचीन गौरव के बारे में ये निरर्थक बातचीत करते रहेंगे और वर्तमान स्कूल प्रणाली को ऐसी दिशा में धकेलते रहेंगे जिसके बारे में कोई नहीं जानता कि वह कैसी होगी। डॉ धर्मपाल द ब्युटीफुल ट्री' में +आधुनिक और वर्तमान भारतीय शिक्षा +* हमें वर्तमान में व्यक्तियों का एक ऐसा वर्ग बनाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए जो रक्त और रंग में भारतीय हो, लेकिन रुचि, विचार, नैतिकता और बुद्धि में अंग्रेजी हो। लॉर्ड मैकाले, भारतीय शिक्षा पर विवरण पत्र, १८३५ +* इस देश में 175 साल के ब्रिटिश शासन के बाद भी 90 प्रतिशत से अधिक भारतीय अशिक्षित हैं। यह एक असहनीय स्थिति है जो त्वरित कार्रवाई की मांग करती है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत की स्वतन्त्रता के बाद + + +* विश्व के सर्वोत्कृष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है। – आर्नल्ड +* आंशिक संस्कृति शृंगार की ओर दौड़ती है, अपरिमित संस्कृति सरलता की ओर। –बोबी +* उपासना, मत और ईश्वर सम्बन्धी विश्वास की स्वतंत्रता भारतीय संस्कृति की परम्परा रही है। –अटल बिहारी वाजपेयी +* कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती, यदि वह अपने को अन्य से पृथक रखने का प्रयास करे। – महात्मा गांधी +* जीवन के अर्थ पूर्ण मूल्यों से निर्मित संस्कृति और संस्कार होते हैं, जो हमारे जीवन को बेहतरीन बनाने में मदत करते है। परन्तु इनमें समय के साथ बदलाव जरूरी होता है। +* जो संस्कृति महान होती है, वह दूसरों की संस्कृति को भय नहीं देती, बल्कि उसे साथ लेकर पवित्रता देती है। गंगा महान क्यों है? दूसरे प्रवाहों को स्वयं में मिला लेने के कारण ही वह पवित्र रहती है। – साने गुरुजी +* दूसरों के जीवन में शामिल होना और दूसरों को अपने जीवन में शामिल करना ही संस्कृति है। – दादा धर्माधिकारी +* धार्मिक कट्टरता सांस्कृतिक मूल्यों का पतन कर देती है। +* भारत की एकता का मुख्य आधार एक संस्कृति है, जिसका प्रवाह कहीं नहीं टूटा। यही इसकी विशेषता है। भारतीय एकता अक्षुण्ण है क्योंकि भारतीय संस्कृति की धारा निरंतर बहती रही है और बहेगी। – मदन मालवीय +* भारतीय सभ्यता और संस्कृति की विशालता और उसकी महत्ता तो सम्पूर्ण मानव के साथ तादात्म्य संबंध स्थापित करने अर्थात् ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ की पवित्र भावना में निहित है। –मदनमोहन मालवीय +* मन की संस्कृति अवश्य ही हृदय के अधीन होनी चाहिए। – महात्मा गांधी +* मैं उस संस्कृति को सबसे अ��्छा मानता हूँ जो कमजोरो और असहायों को आगे बढ़ने में मदत करता है। उनमें उत्साह और आत्मविश्वास जगाता है। +* वही संस्कृति सबसे उत्तम होती हैं जिसमे गरीब, कमजोर और लाचारों का शोषण नही होता हैं। +* विविधता में एकता भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है। +* व्यक्ति की भाँति राष्ट्र भी जीवित रहते हैं और मरते हैं, किन्तु संस्कृति का कभी पतन नहीं होता। – मेजिनी +* शिक्षित समाज ही रूढ़िवादी संस्कृति के बदलाव में अपनी मुख्य भूमिका निभाती हैं। +* सभ्यता शरीर है, संस्कृति आत्मा; सभ्यता जानकारी और भिन्न क्षेत्रों में महान एवं दुःखदायी खोज का परिणाम है, संस्कृति ज्ञान का परिणाम है। – श्री प्रकाश +* संस्कृति एकान्तिक वस्तु नहीं है। उसका अर्थ हर एक जगह एक ही नहीं होता। – महात्मा गांधी +* संस्कृति का सही मूल्यांकन अच्छी नारियों का उस पर प्रभाव है। – एमसन +* संस्कृति मन और आत्मा का विस्तार हैं। +* संस्कृति सदियों तक इसलिए जीवित रहती है, क्योंकि इनमें परिवर्तनशीलता का गुण होता है। +* स्वभाव की गंभीरता, मन की समता, संस्कृति के अंतिम पाठों में से एक है और यह समस्त विश्व को वश में करनेवाली शक्ति में पूर्ण विश्वास से उत्पन्न होती है। – स्वेट मार्डन +* हिन्दू संस्कृति आध्यात्मिकता की अमर आधारशिला पर स्थित है। – स्वामी विवेकानन्द + + +: जहाँ नारियों का आदर होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं। +: जिस परिवार में स्त्री (ह्ममाता, पत्नी, बहन, पुत्री) दु:खी रहती है उस परिवार का नाश होता है तथा जिस परिवार में वो सुखी रहती है वह परिवार समॄद्ध रहता है. +: जननी (माँ) और जन्मभूमि दोनों स्वर्ग से भी महान हैं। +: भगवान् ने स्त्री को अमृत और प्रेम दोनों में सानकर बनाया है। स्त्री वैर और प्रेम दोनों की जननी है, इस बात को बुद्धिमान् पुरुष जानते हैं किंतु गँवार नहीं। +* मुझे नहीं पता कि महिलाएं कोई ऐसी चीज को क्यों चाहती हैं जो पुरुषों के पास है, जबकि महिलाओं के पास जो चीजें है उनमे से एक पुरुष हैं। कोको चैनल +* आप अपने फर्ज से मुख मोड़ सकते हैं लेकिन एक स्त्री अपने फर्ज को कभी अधूरा नहीं छोडती। +* आप तभी सम्मान पाते हैं जब आप स्त्री का सम्मान करते हैं। +* एक नारी कुछ भी करने की सामर्थ्य रखती है लेकिन कभी भी वह अपने इच्छा के विरुद्ध प्रेम नही कर सकती है। +* एक नारी के लिए अपने पति का प्यार और बेटे के लिए माँ की मम���ा के आगे रानी का पद भी तुच्छ है। +* एक नारी ही होती है जो माँ, बहन, बेटी और पत्नी का फर्ज निभाती है। +* एक महिला पुरुषो के मुकाबले कही अधिक समझती है। +* एक सुयोग्य स्त्री से परिवार की शोभा बढ़ जाती है। +* एक स्त्री का अश्रु कठोर से कठोर पुरुष के हृदय को पिघला सकता है। +* एक स्त्री का जीवन ही सुंदर जीवन का आधार है। +* एक स्त्री से ही घर की शोभा बनती है। +* एक स्त्री ही घर को स्वर्ग बना सकती है। +* औरत को प्यार से जीता जा सकता है लेकिन स्त्री को समझने में पूरी जिन्दगी आपकी खत्म हो सकती है। +* औरते प्यार करने के लिए बनी हैं, समझने के लिए नहीं। आस्कर वाइल्ड +* औरते वही सुनना पसंद करती है जो उन्हें पसंद होती है। +* किसी भी समाज की तरक्की का मापदंड उस समाज के महिलाओ के विकास से मापा जा सकता है। +* कोई भी राष्ट्र तबतक विकसित नही हो सकता है जबतक उस देश की महिलाये भी देश के विकास में कंधे से कन्धा मिलाकर न चले। +* कोई भी समाज तभी तरक्की करता है जबतक वहा की नारिया सशक्त होती है। +* जिस आंगन में स्त्री का निवास नही होता है वह घर आगन नर्क के समान होता है। +* नारी का जीवन त्याग को ही दर्शाता है। +* नारी का जीवन यानी संतोष की परिभाषा है। +* नारी केवल एक इन्सान ही नही इस प्रकृति को आगे ले जाने वाली निर्माणकर्ता भी है। +* नारी में असीमित शक्ति होती है फिर भी उसे समाज में अबला ही समझा जाता है। +* नारी शांति की प्रतिमा होती है उनका अपमान करना जंगलीपन को दर्शाता है। +* नारीवादी वास्तव में महिलाओं और पुरुषों में समानता और पूर्ण मानवता की पहचान है। ग्लोरिया स्टाइनम +* प्रेम कैसे किया जाता है इसे एक स्त्री ही भलीभाती जानती है। +* मेरा विचार है कि भली औरतों का प्रभाव सभ्यता को मापने के लिए पर्याप्त है। राल्फ वाल्डो इमर्सन +* मैं देखता हूं कि जब पुरुष महिलाओं से प्यार करते हैं। वे उन्हें अपने जीवन का बहुत थोडा हिस्सा देते हैं, लेकिन जब महिलाएं प्यार करती हैं तो सबकुछ दे देती हैं। आस्कर वाइल्ड +* यदि एक पुरुष को शिक्षित किया तो केवल वही पुरुष ही शिक्षित होता है जबकि यदि किसी नारी को शिक्षित करते है तो दो परिवारों के उनके पीढ़ी को शिक्षित करते है। +* यदि नारी सुरक्षित है तभी हमारा भविष्य भी सुरक्षित है। +* यह भी सत्य है हर कोई एक स्त्री के रूप में अपनी बेटियों से सभी प्यार करते है लेकिन दुसरो के बेटियों के लिए बहुत ही कम इज्जत करने वाले लोग मिलते है। +* लज्जा स्त्रियों का गहना है। +* लड़कियों को स्मार्ट होने से कभी भी नही डरना चाहिए। एम्मा वॉटसन +* वर्तमान में नारी की बस यही कहानी है आचल में दूध है तो आखो में बस पानी है। +* स्त्री का सम्मान करना हर इन्सान का कर्तव्य है। +* एक नारी किसी भी समय, कही भी, कोई भी स्थिति का सामना बहादुरी से कर सकती है। +* चीन में मान्यता है कि जब नारी की भृकुटी तनती है तो दूज का चंद्रमा भी डर के टेढ़ा हो जाता है। लिन-उतांग +* जहा नारी का सम्मान नही होता है उस समाज और पशु में कोई अंतर नही होता है। +* जिस समाज में स्त्री का सम्मान नहीं होता, उस समाज का शीघ्र पतन निश्चित है। +* नारी के बिना पुरुषो का जीवन अधुरा है +* नारी जाति को खाली हाथ कभी नहीं बैठना चाहिए। शरतचंद +* पुरुषों को दुनिया में, मजबूत होना है तो, महिला शक्ति को हमेशा साथ लेकर चलना होगा। +* मनुष्यों को बेहतर ये समझना चाहिए कि, महिलाओं की ताकत के आधार पर ही जिंदगी की लड़ाई जीतने की सम्भावनाएं होती है। +* महिलाएं इस समाज की वास्तविक आर्किटेक्ट हैं। +* महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान होती है क्योंकि वे अपेक्षाकृत कम जानती है परन्तु समझती ज्यादा है। +* महिलाये समाज के निर्माण की आधार होती है। +* यदि स्त्रियाँ प्रसन्न रहें तो सारा कुल प्रसन्न रहता है। कहावत +* लड़कियों को कमज़ोर और बोझ मानने वाले लोगों, भारत में ऐसी हज़ारों लडकियाँ हैं जिनपे भारत के हर नागरिक को गर्व है। +* वह दया, करुणा, ममता और प्रेम की पवित्र मूर्ति है और समय पड़ने पर प्रचण्डचण्डी भी। नारी मनुष्य के जीवन की जन्मदात्री है। +* वह माता के समान हमारी रक्षा करती है, मित्र और माता के समान हमें शुभ कार्यों के लिए प्रेरित करती है, बाल्यावस्था से लेकर मृत्युपर्यंत वह हमारी संरक्षिका बनी रहती है। नारी सृष्टि के आरम्भ से अनन्त गुणों की आगार रही है। +* विश्व में कोई वस्तु इतनी मनोहर नहीं, जितनी की सुशील और सुंदर नारी। +* शक्ति महिलाओं की प्रतीक है। प्रकृति की बेहतरीन और सबसे सुन्दर रचना है। इनके बिना कोई निर्माण संभव नहीं है। +* स्त्री का शारीरिक सामर्थ्य भले ही कम हो, उसकी वाणी में असीम सामर्थ्य है। लक्ष्मीबाई केलकर +* हर एक व्यक्ति के अच्छाई और तरक्की के पीछे एक औरत का हाथ है। + + +स्वामी शिवानन्द सरस्वती वेदान्त के महान आचार्य और सनातन धर्म के विख्यात नेता थे। उनका जन्म तमिलनाडु में हुआ पर संन्यास के पश्चात उन्होंने जीवन ऋषिकेश में व्यतीत किया। +स्वामी शिवानन्द का जन्म अप्यायार दीक्षित वंश में 8 सितम्वर 1887 को हुआ था। उन्होने बचपन में ही वेदान्त की अध्ययन और अभ्यास किया। इसके वाद उन्होने चिकित्साविज्ञान का अध्ययन किया। तत्पश्चात उन्होने मलेशिया में डाक्टर के रूप में लोगों की सेवा की। सन् 1924 में चिकित्सा सेवा का त्याग करने के पश्चात ऋषिकेश में बस गये और कठिन आध्यात्मिक साधना की। सन् 1932 में उन्होने शिवानन्दाश्रम और 1936 में दिव्य जीवन संघ की स्थापना की। अध्यात्म, दर्शन और योग पर उन्होने लगभग 300 पुस्तकों की रचना की। 14 जुलाई 1963 को वे महासमाधि लाभ किये। +* जीवन छोटा है। समय क्षणभंगुर है। स्वयं को जानें। हृदय की पवित्रता ईश्वर का प्रवेशद्वार है। महत्वाकांक्षा त्याग और ध्यान। और अच्छा बनो; अच्छा करो। दयालु रहो, उदार बनो। अपने आप से पूछो कि आप कौन हो। +* नियमित रूप से ध्यान का अभ्यास करें। ध्यान शाश्वत आनन्द की ओर ले जाता है। इसलिए ध्यान करो, ध्यान करो। +* यह दुनिया आपकी सबसे अच्छी शिक्षक है। हर कदम पर कुछ न कुछ सिखाती है। प्रत्येक अनुभव में कुछ सीखने लायक है। इससे सीखें और समझदार बनें। हर असफलता सफलता की सीढी है। हर कठिनाई या निराशा आपके विश्वास की परीक्षा है। हर अप्रिय घटना या प्रलोभन आपकी आंतरिक शक्तियों का परीक्षण है। +* एक पर्वत धरती के छोटे कणों से मिलकर बना है। महासागर पानी की छोटी बूंदों से बना है। और अपना जीवन भी, छोटे विवरणों, कार्यों, बोली और विचारों की एक अंतहीन श्रृंखला से बना है। और परिणाम चाहे वे अच्छे हों या बुरे, इन छोटी से छोटी चीज़ों के भी दूरगामी होते हैं। +* आपको अभी मिलने वाली असफलताओ में भी कुछ अच्छा हैं। यह आप अभी नहीं देख पाएंगे। लेकिन समय के साथ पता चल जाएगा। धैर्य रखें। +किसी ने आपको चोट पहुंचाई है तो उसे बच्चे की तरह भूल जाए। इसे अपने दिल में ना रखें। यह केवल नफरत पैदा करता है''। +* संघर्ष हो तभी जिंदगी का मजा है, जीत या हार तो ऊपर वाले के हाथ में है इसलिए अपने संघर्ष का मजा लीजिए। +* अपनी पिछली गलतियों और असफलताओं पर बिलकुल भी उलझे क्योंकि यह केवल आपके मन को दुःख, खेद और अवसाद से भर देगी। बस भविष्य में उन्हें दोहराएं नहीं। +* वर्तमान छात्रों की शिक्षा ज्यादातर किताबी है। छात्रों का उद्द���श्य उपयोगी व्यावहारिक ज्ञान की वास्तविक शिक्षा से अधिक डिग्री प्राप्त करना है। छात्र बिना किसी निश्चित योजना या उद्देश्य के अपने कॉलेज के करियर से गुजरते हैं। +* यदि मन को नियंत्रित किया जाता है, तो यह चमत्कार कर सकता है। यदि इसे वश में नहीं किया जाता है, तो यह अंतहीन दर्द और पीड़ा पैदा करता है। +* आज आप जो कुछ भी हैं वह सब आपकी सोच का परिणाम है। आप आपके विचारों से बने है। +* वास्तविक शिक्षा का उद्देश्य मन को नियंत्रित करना, अहंकार का नाश करना, दिव्य गुणों को विकसित करना, और ब्रह्म-ज्ञान अर्थात स्वयं को प्राप्त करना है। +* हे अमृत के पुत्र, हे अमरत्व के बालक! शक्ति का गीत गाओ। विजय का गीत गाओ। निडर होकर आगे बढ़ो और चमकीले लक्ष्य तक पहुँचो। +* आइए! आइए! योग का अभ्यास करें। गंभीरता से ध्यान करें। आप अंधकार और अज्ञान के इस महासागर को पार कीजिये और प्रकाश और जीवन को चिरस्थायी बनाइये। +* विश्वास प्रार्थना करने के लिए प्रेरित करता है। प्रार्थना व्यक्ति के हृदय को शुद्ध करती है। शुद्ध हृदय में भगवान का प्रकाश प्रकाशित होता है। जब प्रकाश नश्वर को अमर बना देता है +* हर बात में कुछ न कुछ सच्चाई होती है। दृष्टिकोण और मत अलग-अलग पहलू हैं। दूसरों से झगड़ा न करें। +* प्रत्येक मनुष्य अपने स्वास्थ्य या बीमारी का कारक खुद हैं। +* नश्वर चीज़ों में कोई स्थायी सुख नहीं है। अनन्त में ही सच्चा आनंद है। भक्ति योग उस अनंत को प्राप्त करने का मार्ग बताता है। यह दिल को साफ करता है, मन को स्थिर करता है, भावनाओं को बढ़ाता है, आवेगों को कम करता है। यह भौतिक इच्छाओं को आध्यात्मिक इच्छाओं में परिवर्तित करता है। यह मनुष्य में पशु को एक परमात्मा में बदल देता है। यह दुनिया के दुखों से लेकर प्रभु की रक्षा करने वाले चरणों तक का ध्यान रखता है। +* कुछ हृदय-पूर्ण, ईमानदार और ऊर्जावान पुरुष और महिलाएं एक वर्ष में उतना कर लेते हैं जितना एक भीड़ पूरी सदी में नही कर सकती। +* मजबूत बनो! भूत और शैतान की बात मत करो। हम जीवित शैतान हैं। जीवन का संकेत शक्ति और विकास है। मृत्यु का संकेत कमजोरी है। जो कमजोर है, उससे बचो! यह मृत्यु है। +* ध्यान केंद्रित करने की मानसिक क्षमता सभी के लिए अन्दर है; यह असाधारण या रहस्यमय नहीं है। ध्यान कुछ ऐसा नहीं है जो कोई योगी आपको सिखाए; आपके पास पहले से ही विचारों को बन्द करने की क्षमता है��� +* यह संसार तुम्हारा शरीर है। यह संसार एक महान विद्यालय है। यह संसार आपका मूक शिक्षक है। + + +* अनियंत्रित विचार हर बुराई की जड़ हैं। कोई भी विचार अपने आप मे बहुत सशक्त नहीं होता, क्योंकि हमारा मन आमतौर पर अनगिनत और विविध विचारों से विचलित रहता है। स्वामी शिवानन्द +* अपने मन पर काबू करने का सबसे अच्छा तरीका यही है की हम उसमें उत्कृष्ट, श्रेष्ठ और ऊँचे विचारों को जगह दें और उनके माध्यम से हम इधर-उधर के अलग-अलग, मन को विचलित करने वाले सांसारिक और तुच्छ विचारों पर काबू कर पाएं। स्वामी शिवानन्द +* एकाग्रता वह कला है, जिसके आते ही सफलता निश्चित हो जाती है। कर्म, भक्ति, ज्ञान, योग और सम्पूर्ण साधनों की सिद्धि का मूलमंत्र एकाग्रता है। दीनानाथ दिनेश +* अपनी अभिलाषाओं को वशीभूत कर लेने के बाद मन को जितनी देर तक चाहो एकाग्र किया जा सकता है। स्वामी रामतीर्थ +* पवित्रता के बिना एकाग्रता का कोई मूल्य नहीं है। स्वामी शिवानंद +* तुम एकाग्रता द्वारा उस अनन्त शक्ति के अटूट भंडार के साथ मिल जाते हो, जिसमे इस बृह्मांड की उत्पत्ति हुई है। अज्ञात +* साठ वर्ष के बूढ़े में उत्साह सामर्थ्य नजर आ सकता है यदि उसका चित्त एकाग्र हो। विनोबा भावे +* एकाग्र हुआ चित्त ही पूर्ण स्थिरता को प्राप्त होता है। सुखी का चित्त एकाग्र होता है। महात्मा बुद्ध +* एकाग्रता से विनय प्राप्त होती है। चार्ल्स बक्सन +* एकाग्रता आवेश को पवित्र और शांत कर देती है, विचारधारा को शक्तिशाली और कल्पना को स्पष्ट कर देती है। स्वामी शिवानंद +* अनिश्चितमना पुरुष भी मन को एकाग्र करके जब सामना करने को खड़ा होता है तो आपत्तियों का लहराता हुआ समुद्र भी दुबककर बैठ जाता है। तिरुवल्लुवर +* संसार के प्रत्येक कार्य में विजय पाने के लिए एकाग्रचित्त होना आवश्यक है। जो लोग चित्त को चारों ओर बिखेरकर काम करते है उन्हें सैकड़ों वर्षों तक सफलता का मूल्य मालूम नहीं होता। मार्ले +* जबरदस्त एकाग्रता के बिना कोई भी मनुष्य सूझ-बुझ वाला, आविष्कारक, दार्शनिक, लेखक, मौलिक कवि या शोधकर्ता नहीं हो सकता। स्वेट मार्डेन +* विनय प्राप्त करने के लिए एकाग्रता की शरण लीजिए। चार्ल्स बेकन +* सब धर्मो से महान ईश्वरत्व वरण और इंद्रियों की एकाग्रता है। शंकराचार्य +* मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान है। स्वामी विवेकान्द +* मन में एकाग्र शक्ति प्राप्त करने वाले मनुष्य संसार में किसी में किसी समय असफल नहीं होते। अज्ञात + + +* कल्पना ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है। अल्बर्ट आइन्स्टीन +* कल्पना विश्व पर शासन करती है। नेपोलीयन बोनापार्ट +* अपनी कल्पना से जियें, इतिहास से नहीं। स्टीफेन कोवी +* हम अपनी कल्पनाओं का उपयोग करके अपने जीवन को बदलने की क्षमता रखते हैं। कल्पना एक मांसपेशी है, जितना अधिक आप इसका उपयोग करते हैं, उतना ही मजबूत होता है। Rodman Philbrick +* अपने आप के लिए एक चरित्र की कल्पना करें, एक आदर्श व्यक्तित्व, जो उदाहरण आप अपने व्यक्तिगत और व्यवाहारिक जीवन में अनुकरण करने के लिए तय कर चुके हैं। Epictetus +* आंखें क्यों किसी चीज को जगे हुए कल्पना करने की तुलना में सपनों में ज्यादा स्पष्ठ्टा से देखती हैं। लियोनार्डो डा विन्सी +* आपके प्रभाव की सीमा केवल आपकी कल्पना और प्रतिबद्धता है। Tony Robbins +* आविष्कार करने के लिए, आपको एक अच्छी कल्पना और कबाड़ के ढेर की जरूरत होती है। थॉमस अल्वा एडिसन +* एक आदमी झूठे चीजों की कल्पना कर सकता है, लेकिन वह केवल सत्य चीजों को समझ सकता है, यदि वे चीजें गलत हो, तोउ सकी आशंका समझ से परे है। Sir Isaac Newton +* एक ऐसे भविष्य को देखने के लिए जो हो ही ना, आपको कल्पना की ज़रूरत होती हैं। अजर नफीसी +* करना, कल्पना के स्तर से एक लम्बी छलांग है। Barbara Sher +* कलाकार तथ्यों का उपयोग कल्पना के लिए उद्दीपकों के रूप में करते हैं और वैज्ञानिक, कल्पना का उपयोंग तथ्यों को समन्वित करने के लिए करते हैं। आर्थर कोयस्लर +* कल्पना अतीन्द्रिम जगत का मानस-संगीत है, रूपकुमारी है। वह विद्युत गति से रूप की दुकान सजा कर मायापुरी की रचना करती है। नलिनीवाला देवी +* कल्पना अधिकतर आपको ऐसी दुनिया में ले जाएगी जो पहले कभी नहीं थी। लेकिन उसके बिना हम कहीं नहीं जा पाएंगे। कार्ल सेगेन +* कल्पना अभ्यास से बढती है, और आम धारणा के विपरीत, परिपक्कव लोगों में युबा लोगों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है। डब्ल्यू सोमरसेट मौगैम +* कल्पना और परिकल्पना हमारे वास्तविक जीवन के तीन चौथाई से अधिक भाग को बनाती है। Simone Weil +* कल्पना कर पाने की क्षमता ही मनुष्य की प्रकृति पर विजय है। Wallace Stevens +* कल्पना करना इन्सान के जिन्दगी का मुख्य आधार है। अज्ञात +* कल्पना करने में सबसे अधिक आघात तब पहुँचता है जब आपको वो रोकना पड़ता है। L M Montgomery +* कल्पना किसी व्यक्ति की प्रतिभा नहीं लेकिन वो तो ह�� व्यक्ति का स्वास्थ्य है। Ralph Waldo Emerson +* कल्पना की तुलना में बुद्धि इसी प्रकार है जैसे कर्ता की तुलना में उपकरण, आत्मा की तुलना में शरीर और वस्तु की तुलना मे उसकी छाया। शैले +* कल्पना जीवन में आने वाले आकर्षणों का पूर्वदर्शन है। Albert Einstein +* कल्पना ने हमें भाप का इंजन, टेलीफोन, बात करने वाली मशीन और ऑटोमोबाइल दिया, इन सब चीजों के वास्तविकता बनने से पहले इनका सपना देखा गया। L Frank Baum +* कल्पना मानव-जाति को अन्धकार युग से निकाल कर मौजूदा स्थिति में ले आई है। कल्पना ने कोलंबस से अमेरिका की खोज कराई। कल्पना ने फ्रैंकलिन से बिजली की खोज कराई। एल फ्रैंक बौम +* मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है। +* कल्पना साहसी की आवाज है, अगर भगवान् के बारे में कुछ देव तुल्य है तो वो इसी वजह से है कि वो कुछ भी कल्पना कर सकता है। Henry Miller +* कल्पना, मुनष्य-प्राण की मानसी वीण का चिरन्तन संगीत है। नलिनीबाला देवी +* कल्पना, वास्तव में असीम शक्ति, स्पष्टतम अन्तःदृष्टि, मन के विस्तार और बुद्धि की सर्वोत्तम अवस्था का ही दूसरा नाम है। वर्ड्सवर्थ +* जब आप अपनी कल्पना पर केन्द्रित नहीं कर पाते, तब आपको अपनी आखों पर निर्भर नहीं होना चाहिए। Mark Twain +* जब मनुष्य अपनी भावनाओं से काम करता है तब उसके जूनून की एक सीमा है लेकिन जब वो अपनी कल्पना से प्रभावित होकर काम करता है तब उसके जूनून की कोई सीमा नहीं है। Edmund Burke +* जब वास्तविक जीवन ज्यादा दुःख देता है तो सुख की अनुभूति के लिए व्यक्ति कल्पना का सहारा लेता हैं अज्ञात +* जितनी कथाएँ, गीत तथा सुधामय मधुर संगीत है-सभी कल्पना के बनाए हुए हैं-वह विरही प्राणों में अप्राप्य प्रिय से निर्जन स्थान में मिला देती है। नलिनी बाला देवी +* जिन लोगों ने भी महान चीजें हांसिल की हैं वो महान सपने देखने वाले रहे हैं। ओरिसन स्वेट मार्डेन +* जिस प्रकार आँखों को देखने के लिए रौशनी की ज़रुरत होती है, उसी प्रकार हमारे दिमाग को समझने के लिए विचारों की ज़रुरत होती है। Napoleon Hill +* जिस व्यक्ति के पास कल्पना नहीं है उसके पास पंख नहीं हैं। मोहम्मद अली +* जिस व्यक्ति में कल्पना है परन्तु विद्वता नहीं, उसके पंख है परन्तु पैर नहीं। जोसफ जोबर्ट +* जीवन में आपको जो भी अवसर चाहिए वो आपकी कल्पना में प्रतीक्षा करते हैं, कल्पना आपके मस्तिष्क की कार्यशाला है, जो आपके मन की उर्जा को सिद्धि और धन में बदल देती है। Napoleon Hill +* जो भविष्य नहीं है उसकी कल्पना करने के लिए आपके पास कल्पनाशक्ति होनी चाहिए। Azar Nafisi +* जो लोग सिर्फ तर्क, दर्शन और तर्कसंगत बातें ही करते हैं वो अपने मष्तिष्क के सबसे अच्छे भाग को भूखा छोड़ देते हैं। विल्लियम बटलर यीट्स +* ज्ञान से ज्यादा कल्पना जरूरी है। Albert Einstein +* तर्क आपको एक स्थान अ से दूसरे स्थान ब तक ले जाएगा, कल्पना आपको कहीं भी ले जा सकता है। Albert Einstein +* बहुत से लोग एकांत में रहते हैं जिसे वास्तविकता कहते हैं; वे कभी भी विचारों के खुले समुद्र में नहीं जाने का सहस नहीं करते। Francois Gautier +* बिना कल्पना के व्यक्ति ऐसा है जैसे बिना दूरदर्शी के वेधशाला। Henry Ward Beecher +* मानसिक रूप-विधान का नाम ही संभावना या कल्पना है। रामचन्द्र शुक्ल +* मुझे लगता है ब्रह्माण्ड में और ग्रहों पर जीवन आम है हालांकि बुद्धिमान जीवन कम ही है। कुछ का कहना है इसका अभी भी पृथ्वी पर आना बाकी है। Stephen Hawking +* मुझे संदेह है कि कल्पना को दबाया जा सकता है। अगर आप सचमुच इसे एक बच्चे के भीतर से से निकाल दें तो वह बड़ा होकर एक बैंगन भर बनेगा। उर्सुला के। ली ग्युइन +* मुझे हृदय की भावनाओं की पवित्रता तथा कल्पना की सत्यता पर ही पक्का विश्वास है, अन्य पर नहीं। कीट्स +* मैं एक ऐसे ईश्वर की कल्पना नहीं कर सकता जो अपने द्वारा सृजन किये गए लोगों को पुरस्कृत करे और सजा दे, ये बस मनुष्य के दोष का प्रतिबिम्ब है। ऐल्बर्ट आइन्स्टाइन +* विचार और कल्पना हमारे असल जीवन का तीन-चौथाई से अधिक हिस्सा होते हैं। सिमोन वेइल +* वो व्यक्ति जिसके पास कल्पना है पर ज्ञान नहीं, उसके पास उड़ने के लिए पंख तो हैं लेकिन चलने के लिए पैर नहीं। Joseph Joubert +* व्यक्ति अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर ही कल्पना करता हैं। अज्ञात +* सबसे कल्पनाशील व्यक्ति सबसे विश्रंभी होते हैं, उनके लिए सब कुछ संभव होता है। अलेक्जेंडर चेज़ +* सबसे पहले विचार आता है; उसके बाद उस विचार का संघठन सुझाव और योजना के रूप में होता है, फिर उस योजना का रूपांतरण वास्तविकता में होता है।आप देखेंगे कि शुरुआत हमेशा कल्पना से ही होती है। Napoleon Hill +* सभी सफल पुरुष और महिलाएं बड़े सपने देखने वाले होते हैं। वो कल्पना करते हैं कि उनका भविष्य कैसा हो सकता है,हर तरह से आदर्श, और फिर वो हर रोज़ अपने विज़न, लक्ष्य या मकसद के लिए काम करते हैं। ब्रियन ट्रेसी +* समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत ��ूप में स्वीकार करना होगा। B। R। Ambedkar +* हम लोग अक्सर ठेस पहुंच जाने के स्थान पर अधिक भयभीत रहते हैं और हम वास्तविकता से अधिक कल्पना से पीड़ित होते हैं। Lucius Annaeus Seneca + + +: जिनका विवेक भ्रष्ट हो गया उनका पतन सेकङो प्रकार से होता है । +: हे हंस यदि तुम दूध और पानी को अलग करने में आलस्य करोगे तो इस संसार में दूसरा कौन अपने कुल की मर्यादा का पालन करेगा? यदि तुम ही गुण और दोषों को समझने में आलस्य करोगे और उचित अनुचित का निर्णय नहीं करोगे तो इस संसार में दूसरा कोन अपने कुलव्रत का पालन करेगा? +: किसी भी कार्य को आवेश में आ कर या बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिए, क्योंकि विवेक का शून्य होना विपत्तियों को बुलावा देना है जबकि जो व्यक्ति सोंच-समझकर कार्य करता है, ऐसे व्यक्तियों को माँ लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है। +: विवेक और संपत्ति, विद्या और विनय, तथा प्रभुत्व (ताकत) और सौम्यता को साथ-साथ रखना ही महान व्यक्ति के लक्षण हैं। +: बार-बार पाप करने से मनुष्य की विवेक बुद्धि नष्ट होती है और जिसकी विवेक बुद्धि नष्ट हो चुकी हो, ऐसा व्यक्ति सदैव पाप ही करता है। +: बार-बार पुण्य करने से मनुष्य की विवेक बुद्धि बढ़ती है और जिसकी विवेक-बुद्धि बढ़ती रहती हो, ऐसा व्यक्ति हमेशा पुण्य ही करती है। +* मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक। +: तुलसीदासजी कहते हैं कि मुँह खाने पीने का काम अकेला करता है, लेकिन वह जो खाता पीता है, उससे शरीर के सारे अंगों का पालन पोषण करता है। इसलिए मुखिया को भी ऐसे ही विवेकवान होकर वह अपना काम अपने तरह से करे लेकिन उसका फल सभी में बाँटे। +: विद्या, विनय, विवेक, साहस, अच्छे काम, सत्य ये सभी बुरे समय के साथी होते हैं, इनकी मदद से हर विपत्ति दूर हो सकती है। +* विवेक, बुद्धि की पूर्णता है। जीवन के सभी कर्तव्यों में वह हमारा पथ-प्रदर्शक है। ब्रूचे +* विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान सतत प्रसन्नता है। मान्तेन +* उपासना के द्वारा विवेक उत्पन्न होता विवेकी होने से क्षणिक वस्तुओं से सुख और आनंद यह दोनों नहीं होते। स्वामी दयानन्द +* विवेकी मनुष्य को पाकर गुण सुंदरता को प्राप्त होते हैं। चाणक्य +* अपने विवेक को अपना शिक्षक बना शब्दों का कर्म से और धर्म का शब्दों से मेल कराओ। शेक्सपियर +* जो व्यक्ति विवेक के नियम को तो सीख लेता है पर उन्हें अपने जीवन में नहीं उतारता वह ठीक उस किसान की तरह है, ���िसने अपने खेत में मेहनत तो की पर बीज बोये ही नहीं।- शेख सादी +* निर्मल अंतःकरण को जो प्रतीत हो, वही सत्य हैं। – स्वामी विवेकानंद]] +* अंतःकरण के मामले में बहुमत के नियम का कोई स्थान नहीं हैं। – महात्मा गांधी]] +* यदि मनुष्य अपने अंतःकरण की शक्ति को पहचान ले, तो उसे कोई कार्य असंभव नहीं लगेगा। – अज्ञात +* मानव का अंतःकरण ही ईश्वर की वाणी हैं। – वायरन +* अंतःकरण आत्मा की वाणी है, जैसे कि वासनाएं शरीर की। इसमें आश्चर्य ही क्या, यदि वे एक दुसरे का खंडन करती हैं। – रूसो]] +* ईश्वर को प्राप्त करने और समझने से पहले अपने अंतःकरण को समझे। +* आत्मा जिस कार्य से सहमत न हो उस कार्य के करने में शीघ्रता ने करो। – गणेश वर्णी +* मनुष्य का अंतःकरण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आँख और मुख-मुद्रा से मालूम पड़ जाता हैं। – पंचतंत्र]] +* कायरता पूछती हैं – क्या यह भयरहित है? औचित्य पूछता हैं – क्या यह व्यवहारिक हैं।? अहंकार पूछता हैं – क्या यह लोकप्रिय हैं? परन्तु अंतःकरण पूछता है – क्या यह न्यायोचित हैं? – पुश्किन +* संदेह की स्थिति में सज्जनों के अंतःकरण की प्रवृति ही प्रमाण होती हैं। – कालिदास]] +* अंतःकरण साहस का मूल है। जो व्यक्ति वीर बनना चाहता है, वह अपने अंतःकरण के आदेशों का पालन करें। – जे० ऍफ़० क्लार्क +* ईश्वर का मानव से कोमल संलाप ही अंतःकरण हैं। – यंग +* वही मनुष्य ईश्वर को प्राप्त कर सकता है, जिसका अंतःकरण निर्मल और पवित्र है। – स्वेट मार्डेन +* एक ऐसा मनुष्य जो स्वस्थ है, कर्जे के मुक्त है और जिसकी अन्तरात्मा शुद्ध है उसकी ख़ुशी में और क्या जोड़ा जा सकता है। – एडम स्मिथ]] + + +: जिसके पास बुद्धि है वही बलवान है। +: कार्य के आने पर जिसकी बुद्धि कमजोर नहीं पड़ती, वही अगम्य (दुग) को पार करता है, जैसे पानी में स्थित वानर (मगरमच्छ के पीठ पर बैठकर किनारे आ गया था)। +: विनाश के समय बुद्धि उल्टी हो जाती है। +: काल डंडा मारकर किसी का सिर नहीं तोड़ता। उसका बल इतना ही है कि वह बुद्धि को विपरित करके भले को बुरा व बुरे को भला दिखलाने लगता है। +: किसी जन्तु का शरीर सुवर्ण का हो, यह सम्भव नहीं, तथापि श्रीराम स्वर्णमय प्रतीत होनेवाले मृग के लिये लुभा गये। जिनका पतन या पराभव निकट होता है, उनकी बुद्धि प्रायः अत्यन्त विपरीत हो जाती है। +: शुश्रूषा (जानने की इच्छा सुनना, ग्रहण करना (समझना स्मरण रखना, तर���क (ऊहा वितर्क, विश्लेषण (अपोह अर्थज्ञान (शब्दार्थ-ज्ञान) तथा तत्त्वज्ञान ये बुद्धि के आठ गुण हैं। +: चारों वेदों एवं अनेक शास्त्रों को पढ लेने के बाद भी यदि ब्रह्मज्ञान नहीं हुआ तो वह वैसा ही है जैसे कलछुली अनेक व्यञ्जनों में घूमते हुए भी उनके स्वाद से अनभिज्ञ रह जाती है। +: शुद्ध बुद्धि सचमुच कामधेनु है क्योंकि वह संपत्ति को दोहती है, विपत्ति को रोकाती है, यश दिलाती है, मलिनता धो देती है, और संस्काररुप पावित्र्य द्वारा अन्य को पावन करती है । +: परिशुद्धता (accuracy) विद्या का सार है, परिशुद्धता बुद्धि का सार है, परिशुद्धता स्थायित्व का सार है और परिशुद्धता मति का सार है। +* एक चतुर सवाल बुद्धिमत्ता का आधा है। फ्रांसिस बैकन +* जहां बुद्धि है, वहीं शांति है। महाभारत +* असामान्य मात्रा में सामान्य समझ को दुनिया विद्वत्ता कहती है। सैमुएल टेलर कोलरिज +* अच्छा निर्णय अनुभव से आता है, और इसमें से बहुत से बुरे फैसले से आता है। विल रोजर्स +* अनुशासन लक्ष्य और उपलब्धि के बीच पुल है। जिम रोहन +* अपनी अज्ञानता का ज्ञान होना ही ज्ञान के मंदिर की पहली सीढ़ी है। बेंजामिन फ्रेंक्लिन +* अपनी असफलताओं से अनुभव प्राप्त करें। ओपरा विनफ्रे +* अपनी आत्मा को खोकर संसार को मत जीतो। बुद्धिमानी सोने और चांदी से बेहतर है। बॉब मारली +* अपनी सूझबूझ का उपयोग करें। यही वह जगह है जहां सच्चा ज्ञान स्वयं प्रकट होता है। ओपरा विनफ्रे +* अपने अतीत को याद रख कर हम बुद्धिमान नहीं हो जाते, बल्कि अपने भविष्य की जिम्मेदारियों को समझ कर हम बुद्धिमान होते हैं। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* इस संसार में ज्ञान से बड़ी कोई संपत्ति नहीं है, अज्ञान से बड़ा कोई अभाव नहीं है; संस्कृति से बड़ी कोई धरोहर नहीं है और परामर्श से बड़ा कोई सहारा नहीं है। हज़रात अली +* ईमानदारी ज्ञान की किताब में पहला अध्याय है। थॉमस जेफरसन +* उचित परिथिति में मौन ज्ञान है, और किसी भी भाषण से बेहतर है। प्लूटार्क +* उम्र से नहीं बल्कि क्षमता से बुद्धिमानी हासिल किया जाता है। Plautus +* एक अच्छा दिमाग और अच्छा दिल हमेशा एक अजेय संयोजन होते हैं। नेल्सन मंडेला +* एक बुद्धिमान आदमी को ये पता नही होता है कि कैसे एक बाइक पार्क करे। स्पैरो टी अगनेव +* एक बुद्धिमान आदमी जब मूर्खों के साथ समय बिताता है तब वह भी नशे करने के लिए मजबूर हो जाता है। अर्नेस्ट हेमिंग्वे +* एक बुद्धि��ान इंसान अपनी गलतियों से ज्यादा दूसरों की गलतियों से सीखता है। ईसप +* एक सामान्य ज्ञान बोलता है, लेकिन बुद्धिमानी सिर्फ सुनती है। जिमी हेंड्रिक्स +* एक स्मार्ट आदमी जब गलती करता है तो यह सीखता है कि कभी उस गलती को फिर से न दोहराये। लेकिन एक बुद्धिमान व्यक्ति एक स्मार्ट आदमी के साथ होता है तब वह ये सीखता है कि गलती से पूरी तरह बचा कैसे जाये। रॉय एच. विलियम +* एक होशियार और बुद्धिमान मनुष्य के बीच में ये ही अंतर है कि होशियार व्यक्ति जानता है कि क्या बोलना चाहिए और बुद्धिमान व्यक्ति जानता है कि बोलना चाहिए या नहीं। अज्ग्रय बबली जोस्लन +* एकमात्र सच्चा ज्ञान यह जानने में है कि आप कुछ भी नहीं जानते हैं। सुकरात +* कभी कोई व्यक्ति संयोग से ज्ञानी नहीं हुआ। लुसियस अन्नायूस सेनेका +* कमजोरी से पुरुष मजबूत, बुद्धिमान बन जाते हैं। एडमंड वालर +* कार्य करना ही बुद्धिमत्ता का असल मापदंड होता है। नेपोलियन हिल +* खुश रहिये। ये बुद्धिमान होने का एक तरीका है। सिदोनिए गब्रिएल्ले कोलेत्ते +* जटिलता, निष्पादन का दुश्मन है। एंथनी रॉबिन्स +* जहां चिल्लाना है, वहां कोई सच्चा ज्ञान नहीं है। लियोनार्डो दा विंसी +* जहां दान और ज्ञान है, न तो डर और न ही अज्ञान है। अससी के फ्रांसिस +* जागरूकता में ही बुद्धिमता का उदय होता है। सुकरात +* जिनकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। बार-बार किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। महाभारत +* जो बुद्धिहीन है, उनके लिए शास्त्र-वेद आदि भी कोई कल्याण नही कर सकते। चाणक्य +* ज्ञान अनुभव से आता है। अनुभव अक्सर ज्ञान की कमी का परिणाम होता है। टेरी प्रेटचेट +* ज्ञान का सबसे निश्चित संकेत हंसमुखता है। Michel de Montaigne +* ज्ञान की पुस्तक का पहला अध्याय ईमानदारी है। थॉमस जेफ़र्सन +* ज्ञान के बिना, भविष्य का कोई मतलब नहीं है, कोई मूल्यवान उद्देश्य नहीं है। हर्बी हैंकॉक +* ज्ञान प्राप्त करने के लिए, हर रोज चीजें जोड़ें। बुद्धिमत्ता प्राप्त करने के लिए, हर दिन चीजों को हटा दें। लाओ त्सू +* ज्ञान बोलता है, लेकिन बुद्धि सुनती है। जिमी हेंड्रिक्स +* ज्ञान भ्रम से आता है। जॉर्ज संतयान +* तर्क ज्ञान की शुरुआत है, अंत नहीं। लियोनार्ड निमोय +* दर्द ज्ञान और सत्य का द्वार है। कीथ मिलर +* दूसरों की गलतियों से सीख लेकर एक बुद्धिमान व्यक्ति अपनी गलतियाँ सुधारता है। पबलिलुस स��य्रुस +* निराशाजनक चीज़ें न करना बुद्धिमानी का लक्षण है। हेनरी डेविड थोरौ +* पूरी तरह से समझना समझदारी है। एडवर्ड यंग +* प्रतिक्रिया करने से पहले, सोचो। खर्च करने से पहले, कमाएं। आलोचना करने से पहले, प्रतीक्षा करें। आप हार मानने से पहले, कोशिश करे। अर्नेस्ट हेमिंग्वे +* प्रतिभा धैर्य है। न्यूटन +* बुद्धि अतीत का सार है, लेकिन सौंदर्य भविष्य का वादा है। ओलिवर वेंडेल होम्स +* बुद्धि का सही संकेत ज्ञान नहीं बल्कि उसकी कल्पनाशीलता होती है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* बुद्धि किसी भी संपत्ति से अधिक है। Sophocles +* बुद्धि स्कूली शिक्षा का उत्पाद नहीं है बल्कि इसे हासिल करने के आजीवन प्रयासों का है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* बुद्धि, करुणा और साहस, व्यक्ति के लिए तीन सार्वभौमिक मान्यता प्राप्त नैतिक गुण हैं। कन्फुशियस +* बुद्धि, करुणा, और साहस पुरुषों के तीन सार्वभौमिक मान्यता प्राप्त नैतिक गुण हैं। कन्फ्यूशियस +* बुद्धिमान आदमी बदलाव के अनुरूप ढलने की क्षमता रखता है। स्टीफेन हाकिंग +* बुद्धिमान की बुद्धि कांच की तरह होती है, बुद्धिमान की बुद्धि स्वर्ग के प्रकाश की तरह दर्शाता हैं। ऑगस्टस हरे +* बुद्धिमान जब विश्राम करता है तो उसकी उपयोग करने की शक्ति खत्म हो जाती है। अज्ञात +* बुद्धिमान पुरुष संकट आने से पूर्व ही जाग उठता है, अर्थात् चौकन्ना हो जाता है। महाभारत +* बुद्धिमान राजाओं के पास बुद्धिमान सलाहकार होते हैं, और जो ज्ञानी अज्ञानी में अंतर कर सके उसका खुद बुद्धिमान होना ज़रूरी है। Diogenes +* बुद्धिमान लोग जितने अवसर मिलते हैं उससे ज्यादा अवसर बनाते हैं। फ्रांसिस बैकन +* बुद्धिमानी का अर्थ हमारे जीवन में तब ही है जब हमारा मष्तिष्क खुला हो और यह स्वीकार करने को तैयार हो कि वो परिपूर्ण नहीं है और साथ ही उसे संपूर्ण ज्ञान नहीं है। एडवर्ड शय्लित्सा +* महत्वाकांक्षा के बिना बुद्धि बिलकुल वेसे होता है जैसे पंखों के बिना एक पक्षी है। साल्वाडोर डाली +* मूर्खता और प्रतिभा के बीच मे बस यही अंतर होता है कि प्रतिभा अपनी सीमा होती है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* यदि आप पढ़ना जानते हो, तो हर इंसान स्वयं में एक पुस्तक होता है। चैनिंग +* युवाओं को नियम का ज्ञान होता है, बुजुर्गों को अपवादों का। ओलिवर वेन्डेल होल्म्स +* ये जानने की कला कि हमें क्या नज़रअंदाज करना चाहिए ही बुद्धिमान होने की कला है। विलियम जेम��स +* वास्तविक ज्ञान यह जानने में है कि आप कुछ नहीं जानते। सुकरात +* विद्वान और प्रबुद्ध व्यक्ति समाज के अनमोल रत्न हैं। चाणक्य +* विद्वान राजाओं के पास विद्वान सलाहकार होते हैं; और उसे अवश्य ही विद्वान व्यक्ति होना चाहिए, जो ज्ञानी-अज्ञानी में अंतर करने में सक्षम हो। दाइओगीन्स +* व्यक्ति अपने अकल दाढ़ को तब काटना प्रारंभ करता है, जब वह पहली बार जितना चबा सके, उससे ज्यादा काटता है। हर्ब कैन +* सच्चा ज्ञान इसी में है कि आप ये समझे कि आप कुछ नहीं जानते हैं। Socrates +* सफलता का मूलमंत्र बुद्धि ही है। महाभारत +* सबसे बुद्धिमान ज्ञान एक दृढ़ संकल्प है। नेपोलियन बोनापार्ट +* समस्त सांसारिक ज्ञान कभी कुछ बुद्धिमान व्यक्तियों का प्रतिकारक विधर्म था। हेनरी डेविड थोरेओ +* सावधानी ज्ञान का सबसे बड़ा बच्चा है। विक्टर ह्युगो +* सुंदर आंखों के लिए, दूसरों में अच्छे की तलाश करें; सुंदर होंठों के लिए, केवल दयालुता के शब्दों को बोलो; और संतुलन के लिए, ज्ञान के साथ चलना आप कभी अकेले नहीं हैं। ऑड्रे हेपब्र्न +* हम तीन विधियों से ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। पहला, गहन चिंतन से, जो कि श्रेष्ठ है। दूसरा, अनुकरण करके, जो कि सरलतम है, और तीसरा अनुभव से, जो अत्यधिक पीढ़ाकारक है। कन्फुशियस +* हम सभी इस बात से सहमत है कि निराशावाद श्रेष्ठ बुद्धि की एक निशानी है। गालब्रेथ +* हमारा अनुभव और बुद्धिमानी हमें सिर्फ ये ही नहीं बताते कि समस्या क्या है बल्कि उसका समाधान भी देते हैं। अश स्वीनी +* हमारा मस्तिष्क एक शिक्षा लेने का एक खिलौना है। टॉम रोब्बिन्स +* हमे केवल इतना ही जानना हैं कि हम कुछ भी नहीं जानते हैं। और यह मानव ज्ञान की उच्चतम डिग्री है। लियो टॉल्स्टॉय + + +: अर्थ अट्ठारह पुराणों में व्यास जी ने केवल दो बात कही है, दूसरे का उपकार करने से पुण्य मिलता है और दूसरे को पीड़ा देने से पाप। +: अर्थ नदियाँ स्वयं अपना पानी नहीं पीती हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। बादल अपने लिये वर्षा नहीं करते हैं। सन्तों का का धन परोपकार के लिये होता है। +: कानों की शोभा कुण्डलों से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है । हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं न कि कंगन से । दयालु सज्जन व्यक्तियों का शरीर चन्दन से नहीं बल्कि दूसरों का हित करने से शोभा पाता है । +* समाज के हित में अपना हित है। श्रीराम शर्मा आचार्य]] +* जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए। महाभारत]] +* नेकी कर और दरिया में डाल किस्सा हातिमताई +* जिनके हृदय में सदैव परोपकार की भावना रहती है, उनकी आपदाएं समाप्त हो जाती हिं और पग-पग पर धन की प्राप्ति होती हैं। चाणक्य +* भलाई करने के बाद यह अहसास होना कि ‘भला किया’, बुरा करने की तैयारी हुआ करती हैं। वेदान्त तीर्थ +* जिसमें उपकार वृत्ति नहीं, वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं। महात्मा गांधी +* जो मनुष्य भलाई के बदले में बुराई करता हैं, उसके घर में बुराई सदैव निवास करती हैं। नीतिवचन +* जो दूसरों की बुराई करते है, वे खुद निंदित होते हैं। ऋग्वेद +* मनुष्य जब संसार से जाता हैं तो भलाई या बुराई ही साथ ले जाता हैं। कबीर +* आदमी को चाहिए कि बुराई के बजाए भलाई का रास्ता अपनाएं. भलाई करने वाले लोग लोक व परलोक दोनों में ही सुख से रहते हैं। बुद्ध +* यदि शत्रु से सुलह करना चाहते हो, तो बुराई का जवाब भी भलाई से दें। शेख सादी +* जैसे एक छोटे से दीप का प्रकाश बहुत दूर तक फैलता है, उसी तरह इस बुरी दुनिया में भलाई बहुत दूर तक चमकती हैं। शेक्सपीयर +* भलाई की राह भय से पूर्ण है किन्तु फल अत्युत्तम है। अज्ञात +* भली बातें कड़वी होती है, किन्तु उसके कड़वेपन का स्वागत करना चाहिए. क्योंकि उनमें भलाई निवास करती हैं। भर्तृहरि +* जो भलाई करने का सदा प्रयत्न करता है, वह मनुष्य और परमेश्वर, दोनों की कृपा प्राप्त करता है. पर जो बुराई की तलाश में रहता है, उसको बुराई ही मिलती हैं। नीतिवचन +* दुर्जनों के साथ की गई भलाई सज्जनों के साथ की गई बुराई के समान हैं। शेख सादी +* भलाई जितनी अधिक की जाती है उतनी ही अधिक फैलती हैं। मिल्टन +* जगत में भलाई ही रह जाती हैं, इसके अतिरिक्त सब बस्तुएं नष्ट हो जाती हैं। जापानी लोकोक्ति +* जो भलाई से प्रेम करता हैं, वह देवताओं की पूजा करता है, जो आदरणीयों का सम्मान करता है, वह ईश्वर के पास रहता हैं। इमर्सन +* दया के सम्मुख जैसे दुष्टता का नाश हो जाता हैं, वैसे ही प्रेम और उदार सहानुभूति के सम्मुख बुरे मनोविकारों का नाश हो जाता हैं। स्वेट मार्डेन +* वह भावना जो कभी शांत न होकर उत्तेजना के रथ पर सवार रहे, उसमें जूते घोड़े ईर्ष्या के होते हैं। सैमुअल जॉनसन + + +: जिस मनुष्य की वाणी मीठी है, जिसका कार्य परिश्रम से युक्त है, जिसका धन दान करने में प्रयुक्त होता है, उसका जीवन सफल है। +: विद्या, तर्कशक्ति, विज्ञान, स्मृतिशक्ति, तत्परता, और कार्यशीलता, ये छह जिसके पास हैं, उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं। +: उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम यह 6 गुण जिस भी व्यक्ति के पास होते हैं, भगवान भी उसकी मदद करते हैं। +* किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिये तीन बातें आवश्यक हैं- स्वभाव, अध्ययन और अभ्यास । वाल्ट माशन +* धैर्य, दृढ़ता और पसीना सफलता के लिए एक अचूक संयोजन बनाते हैं। नैपोलियन हिल् +* अपने आप को पहले प्यार करो और बाकी सब कुछ इसके बाद आता है। इस दुनिया में कुछ भी करने के लिए आपको खुद को प्यार करना होगा। Lucille Ball +* आप जानते हैं कि आप सफलता के लिए सड़क पर हैं यदि आप अपना काम करेंगे, और इसके लिए भुगतान नहीं किया जाएगा। Oprah Winfrey +* आपका दृष्टिकोण, आपकी योग्यता नहीं, आपकी ऊंचाई निर्धारित करेगा। Zig Ziglar +* उत्साह पैदा करने वाला एक मामूली विचार एक महान विचार से महान है जो किसी को भी प्रेरित नहीं करता है। Mary Kay Ash +* एक सफल व्यक्ति वह व्यक्ति होता है जो फेंकी हुए ईंटों से दृढ़ नींव रख सकता है। David Brinkley +* कुछ भी आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास की तरह उपलब्धि नहीं बनाता है। Thomas Carlyle +* केवल आप ही अपने भविष्य को नियंत्रित कर सकते हैं। Dr. Seuss +* जिन सफल लोगों को मैंने जाना है उनमें से अधिकांश वे हैं जो बात करने से ज्यादा सुनते हैं। Bernard Baruch +* जीवन में सफल होने के लिए, आपको दो चीजों की आवश्यकता है: अज्ञानता और आत्मविश्वास। Mark Twain +* निराशा की कोई भावना महसूस न करें, और अंत में आप सफल होने के लिए निश्चित हैं। Abraham Lincoln +* मैं अपने जीवन में बार-बार असफल रहा हूं और इसलिए मैं सफल हूं। Michael Jordan +* लोग शायद ही कभी सफल होते हैं जब तक वे जो भी कर रहे हैं उसमें मजा नहीं करते। Dale Carnegie +* वह नहीं जो बहुत ज्यादा समृद्ध है, लेकिन वह जो बहुत कुछ देता है। +* विश्वास सफलता का साथी है। Anonymous +* सफलता का रहस्य: पता लगाएं कि लोग कहां जा रहे हैं और वहां पहले पहुंचें। Mark Twain +* सफलता की कुंजी कार्रवाई है, और कार्रवाई में आवश्यक दृढ़ता है। Sun yatsen +* सफलता के लिए, रवैया (attitude) क्षमता के रूप में उतना ही महत्वपूर्ण है। Harry F। Banks +* सफलता केवल आपके जीवन में जो कुछ भी पूरा करती है उसके बारे में नहीं है; यह है कि आप दूसरों को क्या करने के लिए प्रेरित करते हैं। Unknown +* अगर आप यह सपना देख सकते हैं, तो आप यह कर सकते हैं। Walt Disney +* अधिकतर महान लोगों ने अपनी सबसे बड़ी सफलता अपनी सबसे बड़ी विफलता के एक कदम बाद हांसिल की। नेपोलियन हिल +* अनुकरण में सफल होने की तुलना में मौलिकता में असफल होना बेहतर है। Herman Melville +* अपनी असफलताओं को खुद पर हावी मत होने दो, बल्कि असफलताओं को ही अपनी सफलता की सीढी के रूप में इस्तेमाल करो। +* अपनी सफलता को मस्ती और रचनात्मकता के अनुसार मापें। अनीता रोडिक +* अपनी सफलताओं का जश्न मनाएं। अपनी असफलताओं में कुछ हास्य ढूंढें। सैम वाल्टन (वॉलमार्ट) +* अपनी समस्याओं की पहचान करें लेकिन समाधान के लिए अपनी शक्ति और ऊर्जा दें। Tony Robbins +* अपने आप को इतना मजबूत होने का वादा करें कि कुछ भी आपकी मन की शांति को परेशान नहीं कर सकता। Christian Larson +* अपने आप में विश्वास किसी भी सफल उद्यम के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण ईंटों में से एक है। Lydia M। Child +* अपने ऊपर विजय प्राप्त करना, सबसे बड़ी विजय है। +* अपने जीवन में मैं बार-बार असफल हुआ हूं और इसी वजह से मैं सफल हूं। माइकल जोर्डन +* अपने दिल, दिमाग और आत्मा को अपने सबसे छोटे कार्यों में भी रखें। यह सफलता का रहस्य है। Swami Sivananda +* अपने हारने के डर को कभी भी अपने जीतने के उत्साह से अधिक मत होने दो। रॉबर्ट कियोसाकी +* अवसर ‘सूर्य उदय’ की तरह होते हैं। आप ज्यादा देर करेंगे तो आप उन्हें गवा देंगे। अज्ञात +* अवसर मिलते नहीं हैं बल्कि उन्हें बनाना पड़ता है। क्रिस ग्रॉसर +* असफलता का मतलब यह नहीं कि आप असफल हैं, इसका मतलब सिर्फ इतना है कि आप अब तक सफल नहीं हो पाए हैं। रॉबर्ट शुलर +* असफलता का मतलब है कार्य प्रगति पर है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* असफलता का ये मतलब बिलकुल नहीं है कि आप असफल हैं बल्कि इसका बस इतना मतलब है कि आप अभी तक सफल नहीं हुए हैं। रोबेर्ट एच। स्कूलर +* असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि प्रयत्न पूरे मन से नहीं हुआ। श्रीराम शर्मा आचार्य +* असफलता वो मसाला है जो सफलता को उसका स्वाद देता है। ट्रूमैन कैपोट +* आप ‘कौन हैं और क्या बनना चाहते हैं’ इसके बीच का अंतर हैं। अज्ञात +* आप अपने विश्वास की शक्ति द्वारा अपने कठिन समय को भी जीत सकते हैं। अज्ञात +* आप अपने सपने का पीछा करने के लिए कभी भी बूढ़े नहीं होते। Diana Nyad +* आप कौन हैं और आप कौन बनना चाहते हैं के बीच का अंतर यह है कि आप क्या करते हैं। Unknown +* आप जीतने के लिए पैदा हुए थे, लेकिन आप एक विजेता हो, आपको जीतने के लिए योजना चाहिए, जीतने क�� लिए तैयार हैं, और जीतने की उम्मीद है। जिग जिगलर +* आप बेहतर हो अपनी तुलना किसी से मत करो जैसे चांद और सूरज की तुलना किसी से नहीं की जा सकती क्योकि यह अपने समय पर ही चमकते है। अज्ञात +* आपकी 90% योजनाएँ विफल हो रही हैं, चाहे आप कुछ भी करें। इस्की आदत डाल लो। मार्क मैनसन +* आपकी सफलता का आकार आपकी इच्छा की शक्ति से मापा जाता है, आपके सपनों का आकार, और आप जिस तरह से निराशा को संभाल सकें। रोबर्ट क्योसाकी +* आपकी सफलता का रहस्य आपके दैनिक एजेंडा द्वारा निर्धारित किया जाता है। John C। Maxwell +* आपको कोई ऐसा व्यक्ति जो बिना बलिदान और दृढ़ता के सफल होने जा रहा हो। लू होल्त्ज़ +* आपको खेल के नियमों को सीखना है। और फिर आपको किसी और से बेहतर खेलना होगा। Albert Einstein +* आपको डराने वाली कोई एक चीज़ रोज़ाना करें। Anonymous +* आपको पूरी सीढ़ी को देखने की ज़रूरत नहीं है, बस पहला कदम उठाएं। Martin Luther King, Jr। +* आम बात को असामान्य रूप से और अच्छी तरह से करना ही सफलता का रहस्य है। जॉन डी. रॉकफेलर जूनियर +* इस दुनिया में सफल होने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप दूसरों को दी गई सलाह पर कार्य करें। Unknown +* इस पल में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने से आपको अगले पल के लिए सबसे अच्छी जगह मिलती है। Oprah Winfrey +* इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई विचार कितना अच्छा लगता है, पहले परीक्षण करें। Henry Bloch +* ईमानदारी, चरित्र, विश्वास, प्रेम और वफादारी संतुलित सफलता के लिए नींव के पत्थर हैं। जिग जिगलर +* ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। +* एक आदमी जिसने गलती की है और इसे सही नहीं करता है, एक और गलती कर रहा है। Confucius +* एक दीवार को धकेलने में समय मत खर्च करो, बल्कि इसे एक दरवाजे में बदलने की कोशिश करों। कोको चैनल +* एक सफल आदमी वो है जो उन ईंटों के साथ एक मजबूत नींव रख सकता है जो दूसरे उस पर फेंकते हैं।- डेविड ब्रिंकले +* एक सफल और असफल व्यक्ति में अंतर यह नहीं कि उसमें शक्ति की कमी है, ज्ञान की कमी है, बल्कि इच्छाशक्ति नहीं है। विन्स लोमबार्डी +* एक सफ़ल मनुष्य होने के लिये सुदृढ़ व्यक्तित्व की आवश्यकता है। +* एक सफल व्यक्ति और दूसरों के बीच का अंतर ताकत की कमी नहीं है, ज्ञान की कमी है, बल्कि इच्छा की कमी है। Vince Lombardi +* एक सफल व्यक्ति वह है जो दूसरों द्वारा खुद पर फेंकी गयी ईंटों से एक मजबूत नींव बना सके। डेविड ब्रिंकली +* एकमात्र सच्चा ज्ञान यह जानना है कि आप कुछ भी नहीं जानते हैं। Socrates +* एकाग्रता से ही विजय मिलती है। +* ऐसे बहुत से असफल लोग हैं जिन्हें यह अहसास नहीं था कि वो सफलता के कितने करीब थे। थॉमस एडिसन +* कड़ी मेहनत के बिना सफलता के लिए प्रयास करना फसल लगाने की कोशिश करना है जहां आपने लगाया नहीं है। David Bly +* कभी फुर्सत से अपनी कमियों को देखने की कोशिश करना, दूसरों के आईने बनने की ख्वाहिश मिट जायगी। अज्ञात +* कल की समस्याओं के बजाय कल के अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपने अस्सी प्रतिशत खर्च करें। Brian Tracy +* कल के हमारे अहसास की सीमा ही आज की हमारी शंका होगी। फ्रैंकलिन डी। रूजवेल्ट +* कार्यवाही करना सभी सफलता के लिए मूलभूत कुंजी है। पब्लो पिकासो +* किसी और चीज से पहले, तैयारी सफलता की कुंजी है। Alexander Graham Bell +* कुछ लोग बड़ी सफलता प्राप्त करते हैं, यह सबूत है कि अन्य इसे भी प्राप्त कर सकते हैं। Abraham Lincoln +* कुछ लोग सफलता का सपना देखते हैं, जबकि अन्य लोग हर सुबह उठते हैं और ऐसा करते हैं। Wayne Huizenga +* कुछ लोग सफलता की राह देखते हैं, और बाकी उठ खड़े हो उसके लिए जी जान लगा देते हैं। +* कोई भी व्यक्ति जो अपने काम में कुछ महत्वपूर्ण लाने का प्रयास नहीं करता है, उसे इस उम्मीद को बहुत जल्दी छोड़ देना चाहियें कि वह सफल होगा। रॉबर्ट वालसर +* खोना एक सीखने का अनुभव है। यह आपको विनम्रता सिखाता है। यह आपको कड़ी मेहनत करने के लिए सिखाता है। यह एक शक्तिशाली प्रेरक भी है। Yogi Berra +* चरित्र को आसानी और चुपचाप विकसित नहीं किया जा सकता है। केवल परीक्षण और पीड़ा के अनुभव से आत्मा को मजबूत किया जा सकता है, महत्वाकांक्षा से प्रेरित और सफलता प्राप्त की जा सकती है। हेलेन केलर +* जब आप अपना काम तब भी करें जब उसके लिए आपको पैसा न मिले तो आप जानते हैं कि आप सफलता की राह पर हैं। ओपरा विनफ्रे +* जब कोई लक्ष्य किसी व्यक्ति के लिए पर्याप्त मायने रखता है, तो उस व्यक्ति को पूरा करने का एक तरीका मिलेगा जो पहले असंभव प्रतीत होता था। Nido Qubein +* जब पानी उबलने लगे तो ताप को बंद करना मूर्खता है। नेल्सन मंडेला +* जब बाधाएं आती हैं, तो आप अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अपनी दिशा बदलते हैं; वहां पहुंचने के लिए आप अपना निर्णय नहीं बदलते। ज़िग ज़िग्लर +* जब भी आप एक सफल व्यक्ति को देखते हैं, तो आप केवल सार्वजनिक महिमा देखते हैं, कभी भी उन तक पहुंचने के लिए निजी बलिदान नहीं देखते हैं। Vaibhav Shah +* जब भी कोई व्यक्ति या व्यवसाय निर्णय लेता है कि स���लता प्राप्त हो गई है, तो प्रगति बंद हो जाती है। Thomas J। Watson +* जल्दी गुस्सा करना आपको जल्द ही मुर्ख साबित कर देगा। ब्रुसली +* जल्दी या बाद में, जीतने वाले वे हैं जो सोचते हैं कि वे कर सकते हैं। रिचर्ड बाख +* जिनके पास ज्ञान है, भविष्यवाणी नहीं करते हैं। जो लोग भविष्यवाणी करते हैं, उनके पास ज्ञान नहीं है। Lao-tzu +* जिनमें अकेले चलने का होंसला होता हैं, एक दिन उन्हीं के पीछे काफिला होता हैं। अज्ञात +* जिस तरह किसी भव्य इमारत के टिके रहने के लिए उसकी नीव मजबूत होनी चाहियें, उसी तरह कामियाबी में टिके रहने के लिए भी मजबूत बुनियाद की जरूरत होती है, और कामियाबी की बुनियाद होती है नजरिया। शिव खेड़ा +* जिस व्यक्ति में सफलता के लिए आशा और आत्मविश्वास है, वही व्यक्ति उच्च शिखर पर पहुंचते हैं +* जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते। गौत्तम बुद्ध +* जी भर के जीयें। इस तरह से सीखिए जैसे कि आपको यहां हमेशा रहना है। Mahatma Gandhi +* जीतना एक आदत है। दुर्भाग्य से, इसलिए हार रहा है। विंस लोम्बार्डी +* जीतने वाले कोई अलग काम नहीं करते, बल्कि वह हर काम को अलग ढंग से करते हैं। शिव खेड़ा +* जीतने वाले हार नहीं मानते और हार मानने वाले कभी जीतते नहीं हैं। अज्ञात +* जीवन आप सभी को दर्द पहुंचाएगा। आपकी ज़िम्मेदारी खुशी पैदा करना है। Milton Erickson +* जीवन की असफलताओं में से कई लोग ऐसे लोग हैं जिन्हें यह नहीं पता था कि वे हारने पर सफलता के कितने करीब थे। Thomas Edison +* जीवन चीजों को पूरा करने और फिर लोगों को दिखाने के बारे में नहीं है। यह उस चीज़ के बारे में है जो वास्तव में आपके लिए सबसे सुंदर तरीके से मायने रखता है। मैक्सिमे लगैसे +* जीवन में सफलता का रहस्य, हर आने वाले अवसर के लिए तैयार रहना है। डिजरायली +* जीवन में सबसे सफल लोग आमतौर पर वे हैं जिनके पास सबसे अच्छी जानकारी है। Benjamin Disraeli +* जो अकले चलते हैं, वे शीघ्रता से बढ़ते हैं। नेपोलियन +* जो कुछ भी आप कर सकते हैं उसमें हस्तक्षेप न करें। John R। Wooden +* जो पढ़ते हो, उसे अमल में लाना सीखो, यही उन्नति का मार्ग है। स्वामी रामतीर्थ +* जो लोग सोचने के लिए पर्याप्त पागल हैं वे दुनिया को बदल सकते हैं, वे हैं जो करते हैं। Anonymous +* ज्यादातर सफलताएँ असफलता की ठोकर खाकर ही उपजती हैं। मैं एक कार्टूनिस्ट इसलिए बना क्योंकि मैं एक सफल एग्जिक्यूटिव बनने के अपने लक्ष्य में विफल हो ग��ा। स्कोट एडम्स +* थोड़ी और दृढ़ता, थोड़ा और प्रयास, और जो एक निराशाजनक असफलता प्रतीत हो रही थी, वह एक शानदार सफलता में बदल सकती है। ऐल्बर्ट हब्बार्ड +* दुनिया आपको मुफ्त में कुछ नहीं देती। सफलता जैसी बेशकीमती चीज तो बिलकुल नहीं। अतः सफलता का पकवान चखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। +* दूसरों की सीमित कल्पना के कारण खुद को सीमित न करें; अपनी सीमित कल्पना के कारण दूसरों को कभी सीमित न करें। Mae Jemison +* दूसरों के जाने के बाद सफलता काफी हद तक पकड़ने की बात है। Unknown +* दृढ इच्छाशक्ति अक्सर सफलता और असफलता के बीच का अंतर है। डेविड सर्नोफ्फ़ +* ध्येय की सफलता के लिए पूर्ण एकाग्रता और समर्पण आवश्यक है। ब्राउन +* नकल में सफल होने की अपेक्षा मौलिकता में असफल होना बेहतर है। हरमन मेलविल +* निश्चित योजनाओं द्वारा समर्थित एक स्पष्ट दृष्टि, आपको आत्मविश्वास और व्यक्तिगत शक्ति की जबरदस्त भावना देता है। Brian Tracy +* पागलपन और प्रतिभा के बीच की दूरी केवल सफलता से मापा जाता है। Bruce Feirstein +* पारस्परिक व्यवहार प्रगति का सार है। बक्टन +* पैसे का पीछा करना बंद करो और जुनून का पीछा करना शुरू करो। टोनी हेसिन +* प्रयास जारी रखें, सम्भावना है की आप ठोकर खाएंगे, पर शायद जब आप कम से कम इसकी उम्मीद कर रहे हों। मैंने कभी किसी को नीचे बैठे किसी चीज पर ठोकर खाते हुए नहीं सुना। चार्ल्स एफ केटरिंग +* बार-बार असफल होने पर भी अपना उत्साह ना खोना और प्रयास करते रहना ही सफलता है। विंस्टन चर्चिल +* बिना असफलता के सफलता का कोई स्वाद नहीं है। उसकी कोई समझ नहीं है। ग्लेन बेक +* महान संकल्प ही महान फल का जनक होता है। हजारी प्रसाद द्विवेदी +* मुझे पता है कि सफलता असफलता की तुलना में अधिक समय लेने वाली है। एमा डोनॉग्यू +* मुर्ख व्यक्ति भाग्य में विश्वास करते हैं जबकि साहसी व्यक्ति कारण और प्रभाव में विश्वास करते हैं। राल्फ वाल्डो इमर्सन +* मैं अपनी सफलता को इस पर श्रेय देता हूं: मैंने कभी भी कोई बहाना नहीं दिया या लिया। Florence Nightingale +* मैं आपको सफल होने का एक निश्चित तरीका या सूत्र तो नहीं बता सकता परन्तु में आपको विफलता का एक सूत्र बता सकता हूँ और वो है ‘हर समय हर किसी को खुश करने की कोशिश करना’ हर्बर्ट बेयार्ड स्वॉप +* मैं आपको सफलता के लिए सूत्र नहीं दे सकता, लेकिन मैं आपको विफलता के लिए सूत्र दे सकता हूं यह है: सभी को खुश करने का प्रयास करे��। Herbert Bayard Swope +* मैं ईमानदारी से सोचता हूं कि जिस चीज से आप प्यार करते हैं, उसमें असफल होने से बेहतर है कि आप जिस चीज से नफरत करते हैं उस पर सफल हों। जॉर्ज बर्न्स +* मैं उस आदमी से प्यार करता हूं जो मुसीबत में मुस्कुरा सकता है, संकट से ताकत इकट्ठा कर सकता है और प्रतिबिंब से बहादुर हो सकता है। Thomas Paine +* मैंने कभी सफलता के बारे में सपना नही देखा, मैंने इसके लिए काम किया। Estee Lauder +* यदि आप अपनी खुद की जीवन योजना तैयार नहीं करते हैं, तो संभावना है कि आप किसी और की योजना में आ जाएंगे। और अनुमान लगाओ कि उन्होंने आपके लिए क्या योजना बनाई है? बहुत ज्यादा नहीं। Jim Rohn +* यदि आप नई ऊंचाइयों तक पहुंचना चाहते हैं और नई जमीन तोड़ना चाहते हैं, तो नए कौशल सीखना चाहिए। Brian Colbert +* यदि आप बिल्कुल परवाह करते हैं, तो आपको कुछ परिणाम मिलेंगे। यदि आप पर्याप्त देखभाल करते हैं, तो आपको अविश्वसनीय परिणाम मिलेंगे। Edward Simmons +* यदि आप वास्तव में करीब से देखें तो ज्यादातर रातो रात मिली सफलता में एक लम्बा समय लगा होता है। स्टीव जॉब्स +* यदि आप वास्तव में कुछ करना चाहते हैं, तो आपको एक रास्ता मिल जाएगा। यदि आप नहीं करते हैं, तो आपको एक बहाना मिल जाएगा। जिम रोहन +* यदि आप व्यापक प्रभाव और स्थायी मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं, तो साहसिक बनें। Howard Schultz +* यदि आप संतुष्टि के साथ बिस्तर पर जा रहे हैं तो आपको दृढ़ संकल्प के साथ हर सुबह उठना होगा। George Lorimer +* यदि आप सपना देख सकते हैं तो उसे पूरा भी कर सकते हैं। वाल्ट डिज्नी +* यदि आप सफल होना चाहते हैं, तो अपना ध्यान समस्या खोजने में नहीं समाधान खोजने में लगाइए +* यदि आप सफलता चाहते हैं तो इसे अपना लक्ष्य ना बनाये; सिर्फ वो करिए जो आपको पसंद है और जिसमें आपको विश्वास है, और वह खुद-बखुद मिलेगी। डेविड फ्रोस्ट +* यदि आप सामान्य रूप से जोखिम लेने को तैयार नहीं हैं, तो आपको साधारण जीवन के लिए समझौता करना होगा। जिम रोहन +* यदि आप हमेशा जो करते हैं वह हमेशा करते हैं, तो आप हमेशा जो भी प्राप्त करेंगे उसे हमेशा प्राप्त करेंगे। Tech proverb +* यदि आपका कोई आलोचक नहीं हैं तो आपको कोई सफलता नहीं मिलेगी। मैल्कम +* यदि किसी काम में सफलता नहीं मिल रही है तो तरीके बदलिए इरादे नहीं। अज्ञात +* यदि हर कोई एक साथ आगे बढ़ रहा है, तो सफलता स्वयं का ख्याल रखती है। Henry Ford +* यह हमारी प्रकृति है: मनुष्य को सफलता पसंद है लेकिन वे सफल लोगों से नफरत करते हैं। कैरट टॉप +* लगातार प्रयत्न करने वाले लोगों की गोद में सफलता स्वयं आकर बैठ जाती हैं। भारवि +* वही सफल होता है, जिसका काम उसे निरन्तर आनन्द देता है – थोरो +* विचारों के दायरे में सब कुछ उत्साह पर निर्भर करता है। वास्तविक दुनिया में सभी दृढ़ता पर निर्भर रहते हैं। Johann Wolfgang von Goethe +* विफल होता मंजूर किया जा सकता है, लेकिन सफल होने के लिए प्रयास न करना मंजूर नहीं किया जा सकता। माइकल जॉर्डन +* विफलता सबसे बुरी हार नहीं है। कोशिश नहीं करना असली विफलता है। जॉर्ज एडवर्ड वुडबेरी +* विश्वास हमेशा सही होने से नहीं बल्कि गलत होने से डरने से नहीं आता है। Peter T। McIntyre +* शिक्षा के बिना प्रतिभा खान में चांदी की तरह है। Benjamin Franklin +* शिक्षा जीवन में सफलता की कुंजी है, और शिक्षक अपने छात्रों के जीवन में स्थायी प्रभाव डालते हैं। Solomon Ortiz +* शुरुआत करने का तरीका यह है कि आप बात करना छोड़ दें और करना शुरू करें। वाल्ट डिज्नी +* शुरू करने का तरीका बात करना छोड़ना और शुरू करना है। Walt Disney +* सकारात्मक कार्रवाई और सकारात्मक सोच के परिणामों से आपको सफलता मिलती है। Shiv Khera +* सच्ची सफलता उस व्यक्ति की है जिसने खुद का अविष्कार किया। अल गोल्डस्टीन +* सतत (Continuous) साधना के महा परिणाम का नाम सफलता है। अज्ञात +* सफल योद्धा वो औसत आदमी है, जिसमें लेजर जैसा फोकस होता है। ब्रूस ली +* सफल लोग केवल सफल आदतों वाले हैं। Brian Tracy +* सफल लोग वही करते हैं जो असफल लोग करने को तैयार नहीं होते। जिम रोहन +* सफल लोगों और बहुत सफल लोगों के बीच का अंतर यह है कि बहुत सफल लोग लगभग हर चीज के लिए ‘नहीं’ कहते हैं। वारेन बफेट +* सफल लोगों के पास बड़े पुस्तकालय हैं। बाकियों के पास बड़े स्क्रीन वाले टीवी हैं। जिम रोहन +* सफल व्यक्ति बनने की कोशिस मत करें बल्कि एक मूल्यवान व्यक्ति बनने की कोशिस करें। अल्बर्ट आइंस्टीन +* सफल व्यक्ति वही है जो सुबह उठकर पहले यह तय करता है कि आज उसे क्या-क्या काम करने हैं और रात तक वह उन सारे कामों को कई परेशानियों के बाद भी पूरा कर लेता है। अज्ञात +* सफल होने के लिए आपकी इच्छा विफल होने के डर से अधिक होनी चाहिए। बिल कोसबी +* सफल होने के लिए, हमें पहले विश्वास करना चाहिए कि हम कर सकते हैं। Nikos Kazantzakis +* सफल होने से पहले हमें यह विश्वास करना चाहिए कि हम कर सकते हैं। निकोस कज़ांतज़किस +* सफलता 10 प्रतिशत प्रेरणा और 90 प्रतिशत पसीना है। Thomas Edison +* सफलता अक्सर उन लोगों के पास आती है जिनके पास सफलता के रास्ते को देखने की योग्यता है। Laing Burns, Jr। +* सफलता अंतिम नहीं है; विफलता घातक नहीं है, यह जारी रखने का साहस है। विंस्टन एस चर्चिल +* सफलता अंतिम नहीं है; विफलता घातक नहीं है: यह गणना जारी रखने का साहस है। Winston S। Churchill +* सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है। +* सफलता आपके जीवन में आपके द्वारा हासिल की गई चीज़ों के बारे में नहीं है; यह इस बारे में है कि आप दूसरों को क्या करने के लिए प्रेरित करते हैं। अज्ञात ……। Success Quotes in Hindi +* सफलता आमतौर पर उन लोगों को मिलती है जो इसकी तलाश में बहुत व्यस्त रहते हैं। हेनरी डेविड थोरयू +* सफलता एक लुभावनी शिक्षक है। यह स्मार्ट लोगों को यह सोचने में प्रेरित करता है कि वे हार नहीं सकते हैं। Bill Gates +* सफलता एक विज्ञान है; यदि आपके पास शर्तें हैं, तो आपको परिणाम मिल जाएगा। Oscar Wilde +* सफलता कभी अंतिम नहीं होती, विफलता कभी घातक नहीं होती। जो मायने रखता है वह है साहस। जॉन वुडेन +* सफलता कर्म करने से मिलती है। +* सफ़लता कर्म से जुड़ी है। सफल लोग चलते रहते हैं। वे गलतियाँ करते हैं, लेकिन वे हार नहीं मानते। कोनराड हिल्टन +* सफलता का एक सरल सूत्र यह भी है की अपना सर्वश्रेष्ठ करो, और शायद लोग इसे पसंद कर लें। सैम इविंग +* सफलता का कोई रहस्य हैं। यह तैयारी, कड़ी मेहनत, और विफलता से सीखने का नतीजा है। Colin Powell +* सफलता का मार्ग बड़े पैमाने पर निर्धारित कार्रवाई करना है। टोनी रॉबिंस +* सफलता का यदि कोई रहस्य हैं तो वो है तैयारी, कड़ी मेहनत और असफलता से सीखना। कॉलिन पॉवेल +* सफलता का रहस्य सामान्य चीजो को असामान्य रूप से अच्छी तरह से करना है। ohn D। Rockefeller Jr। +* सफलता का सबसे खराब हिस्सा किसी ऐसे व्यक्ति को खोजने की कोशिश करना, जो आपके लिए खुश हो। बेट्ट मिडलर +* सफलता की ओर पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम यह महसूस करना है कि हम सफल हो सकते हैं। Nelson Boswell +* सफलता की तरफ जाने वाली सड़क पर हमेशा कार्य चलता रहता है। Lily Tomlin +* सफलता की राह और असफलता का रास्ता लगभग एक जैसा ही है। कॉलिन आर. डेविस +* सफलता की राह कई आकर्षक पार्किंग रिक्त स्थानों के साथ रेखांकित है। Anonymous +* सफलता के साथ बस एक यही समस्या है, की वो यह नहीं सिखाती कि असफलता से कैसे निपटा जाये। टोमी लासोर्दा +* सफलता को कभी अपने सिर पर न चढ़ने दें, और असफलता को कभी दिल में न उतरने दें। +* सफलता कोई दुर्घटना नहीं है। यह क���़ी मेहनत, दृढ़ता, सीखना, पढ़ना, त्याग करना और सबसे अधिक, आप जो कर रहे हैं या सीख रहे हैं। Pele +* सफलता पिछली तैयारी पर निर्भर करती है, और इस तरह की तैयारी के बिना विफलता होना निश्चित है।- कन्फ्यूशियस +* सफलता पूर्णता, कड़ी मेहनत, विफलता, वफादारी और दृढ़ता से सीखने का परिणाम है। Colin Powell +* सफलता प्रसन्नता की कुंजी नहीं है। खुशहाली सफलता की कुंजी है। यदि आप जो कर रहे हैं उससे प्यार करते हैं, तो आप सफल होंगे। Albert Schweitzer +* सफलता बहुत अच्छी होती है लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम एक सफलता को बार-बार दोहराएं नहीं। जैक निकलसन +* सफलता बाधाओं को दूर कर प्राप्त की जा सकती है, न कि उनसे घबराकर और सिमटकर एवं यह सोचकर कि आगे रास्ता बंद है। जबकि जीवन में रास्ते कभी बंद नहीं होते। बूढ़ी काकी +* सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है। प्रेमचन्द +* सफलता यह नहीं है कि आप कितने ऊंचे चढ़ गए हैं, बल्कि आप दुनिया में कैसे सकारात्मक बदलाव लाते हैं। रॉय टी. बेनेट +* सफलता वह जगह है जहां तैयारी और अवसर मिलते हैं। Bobby Unser +* सफलता सबसे मधुमती उनको लगती है, जो कभी सफल नही होते। एमिली डिकिन्सन +* सफलता सही काम करने के बारे में है, न कि सब कुछ सही करने के बारे में। गैरी केलर +* सफलता हमेशा महानता के बारे में नहीं है। यह स्थिरता के बारे में है। लगातार कड़ी मेहनत सफलता की ओर ले जाती है। महानता आ जाएगी। Dwayne Johnson +* सफलताओं के पीछे बहुत सारी असफलताओं का हाँथ होता है। अज्ञात +* सबसे महान लोगों ने अपनी सबसे बड़ी सफलता हासिल की है जो उनकी सबसे बड़ी विफलता से एक कदम आगे है। Napoleon Hill +* सभी प्रगति आराम क्षेत्र के बाहर होती है। माइकल जॉन बोबाक +* समय, स्थान या परिस्थितियों में नहीं, लेकिन मनुष्य में सफलता है। Charles B। Rouss +* समस्त सफलताएं कर्म की नींव पर आधारित होती हैं। एंथनी रॉबिन्स +* सात बार गिरो और आठवी बार खड़े हो जाओ। जापानी कहावत +* साहसी बनो, और शक्तिशाली सेना आपकी सहायता के लिए आएगी। Basil King +* हमारा आलस्य ही हमारी असफलता की वजह नहीं हैं बल्कि दूसरों की सफलता भी है। जूल्स रेनार्ड +* हमें अपनी असफलताओं पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। सफलता के बारे में दूसरे बात करें तो ज्यादा अच्छा होता है। लोग आपसे आपकी असफलता के बारें में नहीं पूछते, यह सवाल तो आपको अपने आप से पूछना होता है। बोमन ईरानी +* हमेशा ध्यान रखें कि सफल होने का अपना संकल्प किसी अन्य की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। Abraham Lincoln +* हर इंसान के अंदर एक शक्तिशाली प्रेरणा शक्ति होती है, जो एक बार सामने आने के बाद, किसी भी सपने, को साकार कर सकती है या वास्तविकता की इच्छा कर सकती है। एंथनी रॉबिंस +* हर कठिनाई के बाद, अपने आप से दो प्रश्न पूछें मैंने सही क्या किया और "मैं अलग क्या करूं Brian Tracy +* हर जीत केवल एक और मुश्किल समस्या में प्रवेश की कीमत है। Henry Kissinger +* हारने का डर जीतने के उत्साह से ज्यादा मत बढ़ने दो। Robert Kiyosaki + + +: उसी व्यक्ति का जीवन ही सार्थक है जो गुणवान हो या धर्म के नियमों का पालन करता हो । गुणों और धर्म से विहीन व्यक्ति के जीवित रहने का कोई उद्देश्य नहीं होता। +: दिनभर ऐसा काम करना चाहिये जिससे रात में चैन की नींद आ सके । वैसे ही जीवनभर ऐसा काम करना चाहिये जिस‌ से मृत्यु पश्चात् सुख मिले अर्थात् सद्गति प्राप्त हो । +* हर दिन नया जन्म समझें उसका सदुपयोग करें । आचार्य श्रीराम शर्मा]] +* जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं । गौतम बुद्ध +* अगर आपको आत्मविश्वास नहीं है, तो आप जीवन की दौड़ में दो बार पराजित हो जाते हैं। Marcus Garvey +* अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी समझ जीवन के दो सबसे महान आशीर्वाद हैं। Publilius Syrus +* अपने जीवन को हल्के ढंग से एक पत्ते की नोक पर ओस की तरह किनारों पर नृत्य करने दें। रवीन्द्रनाथ ठाकुर +* अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को । महादेवी वर्मा +* अव्यवस्था से जीवन का प्रादुर्भाव होता है तो अनुक्रम और व्यवस्थाओं से आदत । हेनरी एडम्स +* आदर्श के दीपक को पीछे रखने वाले अपनी ही छाया के कारण अपने पथ को अंधकारमय बना लेते हैं। रवीन्द्र नाथ टैगोर +* आपका समय सीमित है, इसलिए इसे किसी और के जीवन में बर्बाद न करें। मतभेद से फंसें मत जो अन्य लोगों की सोच के परिणामों के साथ रह रहा है। दूसरों की राय के शोर को अपनी आंतरिक आवाज से डूबने न दें। और सबसे महत्वपूर्ण, अपने दिल और अंतर्ज्ञान का पालन करने का साहस रखें। Steve Jobs +* आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है । मार्क ऑरेलियस अन्तोनियस +* आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं । इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता । पं रामप्रताप त्रिपाठी +* एक कदम वापस लें, मूल्यांकन करें कि क्या महत्वपूर्ण है, और जीवन का आनंद लें। +* एक हीरो वह व्यक्ति होता है जिसने अपना जीवन को अपने आप से बड़ा कुछ दिया है। Joseph Campbell +* ऐसा करें जो आपको करने की ज़रूरत है और ऐसा होने पर जीवन का आनंद लें। John Scalzi +* कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं । लोकमान्य तिलक +* किसी व्यक्ति के जीवन में दो महान दिन होते हैं जिस दिन हम पैदा होते हैं और जिस दिन हम खोजते हैं। William Barclay +* केवल मैं अपना जीवन बदल सकता हूं। कोई भी मेरे लिए ऐसा नहीं कर सकता है। Carol Burnett +* क्लोज़-अप में जीवन एक त्रासदी (ट्रेजेडी) है, तो लंबे शॉट में प्रहसन (कॉमेडी) । चार्ली चेपलिन +* खुशी एक चयन है। आप खुश रहना चुन सकते हैं। जीवन में तनाव होने जा रहा है, लेकिन यह आपकी पसंद है कि क्या आप इसे प्रभावित करते हैं या नहीं। Valerie Bertinelli +* खुशी का सच्चा रहस्य दैनिक जीवन के सभी विवरणों में वास्तविक रुचि लेने में है। William Morris +* गलत रवैया जीवन में एक मात्र विकलांगता होती है। Scott Hamilton +* जब तक आप अपनी नियत जगह पर नहीं पहुंच जाते तब तक लड़ाई को कभी न रोकें यानी, वह अद्वितीय है। जीवन में एक लक्ष्य रखें, लगातार ज्ञान प्राप्त करें, कड़ी मेहनत करें, और महान जीवन को समझने के लिए दृढ़ता रखें। A. P. J. Abdul Kalam +* जीवन 10% है जो आपके साथ होता है और 90% आप इस पर प्रतिक्रिया कैसे करते हैं। Charles R. Swindoll +* जीवन आपके सुविधा क्षेत्र के अंत में शुरू होता है। Neale Donald Walsch +* जीवन इस बात के बारे में है कि आप कितना ले सकते हैं और लड़ते रह सकते हैं, आप कितना पीड़ित हो सकते हैं और आगे बढ़ते रह सकते हैं। Anderson Silva +* जीवन एक इरेज़र के बिना ड्राइंग की कला है। John W. Gardner +* जीवन एक गीत है, गायें इसे। जीवन एक खेल है, इसे खेलें। जीवन एक चुनौती है, इसे पूरा करें। जीवन एक सपना है, इसे साकार करें। जीवन एक बलिदान है इसे पेश करें। जीवन प्यार है इसका आनंद लें। साई बाबा +* जीवन एक दर्पण है और विचारक को वापस प्रतिबिंबित करेगा कि वह इसमें क्या सोचता है। Ernest Holmes +* जीवन एक यात्रा है और यह बढ़ रहा है और बदल रहा है और आप कौन हैं और क्या कर रहे हैं और आप कौन हैं और किससे प्यार करते हैं। Kelly McGillis +* जीवन एक यात्रा है जिसे यात्रा की जानी चाहिए चाहे कितनी भी सड़के और सुविधा खराब हों। Oliver Goldsmith +* जीवन एक रहस्य है, जिसे जिया न जा सकता है, जी कर जाना भी जा सकता है लेकिन गणित के प्रश्नों की भांति उसे हल नहीं किया जा सकता। वह सवाल नहीं – एक चुनौती है, एक अभियान है। ओशो +* जीवन एक रोलर कोस्टर की तरह है, इसे जीये, खुश रहें, जीवन का आनंद लें। Avril Lavigne +* जीवन और मृत्यु एक धागा है, वही रेखा अलग-अलग तरफ से देखी जाती है। Lao Tzu +* जीवन कठिन है, और चीजें हमेशा अच्छी तरह से काम नहीं करती हैं, लेकिन हमें बहादुर होना चाहिए और हमारे जीवन के साथ चलना चाहिए। Suga +* जीवन कठिन है, लेकिन कुछ क्षण हैं, कभी-कभी घंटे और, यदि आप वास्तव में भाग्यशाली हैं, पूर्ण दिन जहां सब कुछ ठीक लगता है। Andy Grammer +* जीवन का एकमात्र उदेश्य मानवता की सेवा करना है। लेव तोलस्तोय +* जीवन काला और सफेद नहीं है। यह दस लाख भूरे रंग के क्षेत्र हैं, क्या आपको नहीं मिला Ridley Scott +* जीवन के अर्थ को चुनौती देना मानव होने की स्थिति की सबसे अच्छी अभिव्यक्ति है। Viktor E. Frankl +* जीवन को प्यार और सकारात्मक योगदान और अनुग्रह के क्षणों में मापा जाता है। Carly Fiorina +* जीवन को बहुत गंभीरता से न लें। आप इसे जीवित कभी नहीं निकाल पाएंगे। Elbert Hubbard +* जीवन छोटा है, और हमें इसके हर पल का सम्मान करना चाहिए। Orhan Pamuk +* जीवन फूल है जिसके लिए प्यार शहद है। विक्टर ह्यूगो +* जीवन बुद्धिमानों के लिए एक सपना है, मूर्खों के लिए एक खेल, अमीरों के लिए एक कॉमेडी, गरीबों के लिए एक त्रासदी। Sholom Aleichem +* जीवन में तीन स्थिर हैं परिवर्तन, पसंद और सिद्धांत। Stephen Covey +* जीवन में मेरा मिशन केवल जीवित रहने के लिए नहीं बल्कि बढ़ने के लिए है; और कुछ जुनून, कुछ करुणा, कुछ हास्य, और कुछ शैली के साथ कुछ करने के लिए। Maya Angelou +* जीवन में सबसे संतोषजनक चीज दूसरों के लिए स्वयं का एक बड़ा हिस्सा देने में सक्षम होना है। Pierre Teilhard de Chardin +* जीवन वास्तव में सरल है, लेकिन हम इसे जटिल बनाने पर जोर देते हैं। कान्फ्युसियस +* जीवन साइकिल की सवारी करने जैसा है। अपना संतुलन बनाये रखने के लिय आपको अवश्य ही चलते रहना चाहिए। Albert Einstein +* जीवन से अधिक लाभ उठाने का एक तरीका यह है कि इसे एक adventure के रूप में देखें। William Feathe +* जीवन सौंदर्य से भरा है। ध्यान दो। बम्बल मधुमक्खी, छोटे बच्चे, और मुस्कुराते हुए चेहरे पर ध्यान दें। बारिश को सूंघे और हवा को महसूस करें। अपने जीवन को पूरी क्षमता में जीते हैं, और अपने सपनों के लिए लड़ते हैं। Ashley Smith +* जीवन हमेशा सुंदर नहीं होता है, लेकिन यह एक सुंदर सवारी है। Gary Allan +* जैसे अंधे के लिये जगत अंधकारमय है और आंखों वाले के लिये प्रकाशमय है व��से ही अज्ञानी के लिये जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिये आनंदमय । सम्पूर्णानंद +* जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिये । वेदव्यास +* जैसे जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, सुंदरता भीतर घुसती जाती है । रॉल्फ वाल्डो इमर्सन +* जैसे ही एक मोमबत्ती आग के बिना जला नहीं सकती है, पुरुष आध्यात्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकते हैं। गौतम बुद्ध +* जो जोखिम लेने के लिए पर्याप्त साहसी नहीं है वह जीवन में कुछ भी नहीं करेगा। मुहम्मद अली +* ठोकर लगती है और दर्द होता है तभी मनुष्य सीख पाता है । महात्मा गांधी +* दर्पण में मुस्कुराओ। हर सुबह ऐसा करें और आप अपने जीवन में एक बड़ा अंतर देखना शुरू कर देंगे। Yoko Ono +* दुनिया में सिर्फ दो सम्पूर्ण व्यक्ति हैं – एक मर चुका है, दूसरा अभी पैदा नहीं हुआ है। +* देखभाल लोगों के बारे में, चीजों के बारे में, जीवन के बारे में परिपक्वता का एक अधिनियम है। Tracy McMillan +* धन पूरी तरह से जीवन का अनुभव करने की क्षमता है। Henry David Thoreau +* धीमा चले और जीवन का आनंद लें। यह न केवल उन दृश्यों को याद करता है जिन्हें आप तेजी से जाकर याद करते हैं आप यह भी याद करते हैं कि आप कहां जा रहे हैं और क्यों। Eddie Cantor +* धैर्य रखें और समझें। जीवन प्रतिशोधपूर्ण या दुर्भावनापूर्ण होने के लिए बहुत छोटा है। Phillips Brooks +* पढ़ना एक अच्छा जीवन जीने में एक बुनियादी उपकरण है। Joseph Addison +* प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं । अज्ञात +* प्रसिद्धि व धन उस समुद्री जल के समान है, जितना ज्यादा हम पीते हैं, उतने ही प्यासे होते जाते हैं। +* बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिये, मंद नहीं पड़ना चाहिये । यशपाल +* भगवान ने हमें जीवन का उपहार दिया; यह हम पर निर्भर है कि हम खुद को अच्छी तरह से रहने का उपहार दें। Voltaire +* मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान है । चाणक्य +* मनुष्य कुछ और नहीं भटका हुआ देवता है । श्रीराम शर्मा आचार्य +* मानव जीवन का उद्देश्य सेवा करना है, और दूसरों की मदद करने के लिए करुणा और इच्छा दिखाने के लिए है। Albert Schweitzer +* मानव तभी तक श्रेष्ठ है जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है । बतौर पशु मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। रवीन्द्र नाथ टैगोर +* मुझे लगता है कि पारिवारिक जीवन के लिए एकता बहुत महत्वपूर्ण घटक है। Barbara Bush +* मेरी समझ में मनुष्य का व्यक्तिगत अस्तित्व एक नदी की तरह का होना चाहिए। नदी प्रारंभ में बहुत पतली होती है। पत्थरों, चट्टानों, झरनों को पार करके मैदान में आती है, एक क्रम से उसका विस्तार होता है, फिर भी बड़ी मन्थर गति से बहती है और बिना क्रम भंग किये अंत में समुद्र में विलीन हो जाती है। समुद्र में अपने अस्तित्व को समाप्त करते समय वह किसी भी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं करती जो वृद्ध परुष जीवन को इस रूप में देखता है, मृत्यु के भय से मुक्त रहता है। बर्ट्रेंड रसेल +* मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता । चाणक्य +* मौत जीवन में सबसे बड़ा नुकसान नहीं है। सबसे बड़ा नुकसान यह है कि जब हम रहते हैं तो हमारे अंदर क्या मर जाता है। Norman Cousins +* यदि आप जीवन से प्यार करते हैं, तो समय बर्बाद न करें, क्योंकि समय जीवन से बना है। Bruce Lee +* यदि आप डरते हुए घूमते हैं, तो आप कभी भी जीवन का आनंद नहीं ले पाएंगे। आपके पास केवल एक मौका है, इसलिए आपको मज़े करना होगा। Lindsey Vonn +* यदि जीवन में कुछ भी करने का कोई साहस नहीं था तो जीवन क्या होगा Vincent Van Gogh +* यह जीवन एक स्विमिंग पूल की तरह है। आप पानी में गोता लगाते हैं, लेकिन आप नहीं देख सकते कि यह कितना गहरा है। Dennis Rodman +: जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है न ज्ञान है न शील है न गुण है और न धर्म है वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं । +* वह नौकरी चुनें जिसे आप पसंद करते हैं, और आपको अपने जीवन में एक दिन काम नहीं करना पड़ेगा। Confucius +* वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। -स्वामी रामतीर्थ +* वास्तविक साहस दिखने के लिए जीवन में कभी भी देर नहीं हुई है। Robert Kurson +* विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास । एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है । अज्ञात +* विषयों का चिंतन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से मूढ़ता और बुद्धि भ्रष्टता उत्पन्न होती है। बुद्धि के भ्रष्ट होने से स्मरण-शक्ति विलुप्त हो जाती है, यानी ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है। और जब बुद्धि तथा स्मृति का विनाश होता है, तो सब कुछ नष्ट हो जाता है। गीता (अध्याय 2/62, 63) +* शिक्षा जीवन ��ी तैयारी के लिए नहीं है; शिक्षा जीवन ही है। John Dewey +* शिक्षा सिर्फ स्कूल जाने और डिग्री प्राप्त करने के बारे में नहीं है। यह आपके ज्ञान को चौड़ा करने और जीवन के बारे में सच्चाई को अवशोषित करने के बारे में है। Shakuntala Devi +* सकारात्मक होने का चयन करना और आभारी दृष्टिकोण रखना यह निर्धारित करने जा रहा है कि आप अपने जीवन को कैसे जीने जा रहे हैं। Joel Osteen +* सच्चाई यह है कि आप नहीं जानते कि कल क्या होने जा रहा है। जीवन एक पागल सवारी है, और कुछ भी गारंटी नहीं है। Eminem +* सफल लोग जीवन में सकारात्मक फोकस बनाए रखते हैं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके आसपास क्या हो रहा है। वे अपनी पिछली असफलताओं के बजाए अपनी पिछली सफलताओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और अगले कार्यवाही के कदमों पर उन्हें जीवन के सभी अन्य विकृतियों के बजाए अपने लक्ष्यों की पूर्ति के करीब लाने की आवश्यकता होती है। Jack Canfield +* सफलता की कुंजी जीवन के सभी क्षेत्रों में बढ़ते रहना है मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक, साथ ही भौतिक। Julius Erving +* सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने जीवन का आनंद लें खुश रहें यह सब मायने रखता है। Audrey Hepburn +* सीखने के लिए जीवन में सबसे कठिन चीज यह है कि कौन सा पुल पार करना है और किसको जलाना है। David Russell +* हमारा स्वर्गीय पिता हमारी निराशा, पीड़ा, दर्द, भय और संदेह को समझता है। वह हमेशा हमारे दिल को प्रोत्साहित करने और हमें यह समझने में मदद करता है कि वह हमारी सभी आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त है। जब मैंने इसे अपने जीवन में एक पूर्ण सत्य के रूप में स्वीकार किया, तो मैंने पाया कि मेरी चिंता बंद हो गई। Charles Stanley +* हमें जिस जीवन की योजना बनाई गई है, उसे छोड़ देना चाहिए, ताकि हमारे लिए इंतज़ार कर रहे व्यक्ति को स्वीकार किया जा सके। Joseph Campbell +* हमेशा बत्तख की तरह व्यवहार रखो। सतह पर एकदम शांत परंतु सतह के नीचे दीवानों की तरह पैडल मारते हुए । जेकब एम ब्रॉदे + + +: अर्थ सभी गुण स्वर्ण (धन) पर ही आश्रित हैं। +: अर्थ ही समस्त कर्मों की मर्यादा के पालन में सहायक है। अर्थ के बिना धर्म और काम भी सिद्ध नहीं होते ऐसा श्रुति का कथन है। +: प्राण अन्न में होते हैं और अन्न धन में प्रतिष्ठित है। धनवान को धर्म की प्राप्ति होती है और धनावान की कामनाएँ पूर्ण होतीं हैं। +: जिस व्यक्ति के पास धन-संपदा होती है उसी के मित्र होते भी होती हैं। जो धनवान होता है उसी के बंध���-बांधव होते हैं। जिसके पास धन हो वही पुरुष माना जाता है और धनवान व्यक्ति ही वास्तव में जीवन है। +: एक-एक क्षण गँवाए बिना विद्या प्राप्त करनी चाहिए और एक-एक कण बचाकर धन अर्जित करना चाहिए। क्षण गँवाने वाले को विद्या प्राप्त नहीं होती, और कण नष्ट करने वाले को धन नहीं मिलता। +: अधम (मनुष्य) धन की इच्छा करतें हैं, मध्यम धन और मान चाहते हैं, किन्तु उत्तम केवल मान चाहते हैं। महापुरुषों का धन मान ही है। +: कमाए हुए धन को खर्च करना ही उसकी रक्षा है। जैसे तालाब का जल के बहते रहने से ही साफ रहता है। (अगर पानी एक जगह पर लंबे समय तक ठहर जाए तो वो सड़ जाता है और किसी और किसी काम का नहीं रहता। इसी प्रकार धन का प्रवाह भी बना रहना चाहिए।) +* निर्धनता से लज्जा पैदा होती है। लज्जा से पराक्रम नष्ट होता है। पराक्रम न होने से अपमान होता है। अपमान से दुःख मिलता है। दुःख से शोक होता है। शोक से बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि न होने से नाश हो जाता है। अतः निर्धनता ही सब आपत्तियों की आधारशिला है। हितोपदेश +: धन से प्रज्ञा प्राप्त होती है और प्रज्ञा से धन मिलता है। इस जीवलोक में प्रज्ञा एवं धन एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं । +: इस संसार में जिस व्यक्ति के पास धन है वही ईश्वर है अर्थात् सब कुछ करने में समर्थ है, वही संसार के प्राणियों में पूज्य है, वही चतुर वक्ता है, वही चतुरानन अर्थात् ब्रह्मा के समान महान् पण्डित एवं कर्त्ता है, वही पुरुषश्रेष्ठ है। +: अत्यधिक खर्च, धन की देखभाल न करना, अधर्म या अन्याय द्वारा कमाना, मनमाना त्याग, अपने से दूर (छिपाकर) रखना ये धन के विनाश के कारण हैं। +* सम्पदा तो बुरे सेवक के समान हैं जो सैदेव चलते रहते हैं और एक स्वामी के साथ अधिक नहीं ठहरते। बर्क +* ९९ प्रतिशत समस्याओं को पैसे से हल किया जा सकता है और शेष १ प्रतिशत के लिए अल्कोहल है। Quentin R. Bufogle +* नियम १: पैसा कभी न खोएं। नियम २: नियम १ को कभी न भूलें। वारेन बफेट +* अगर आज आप जो करना चाहते हैं वे काम नहीं करते तो 20 साल बाद आपको उन लोगों से ज्यादा अफ़सोस होगा जिन्होंने जो चाहा वो काट्वेनम किया। मार्क +* अगर आप अपने समय की कद्र नहीं करते तो कोई दूसरे भी नहीं करेंगे। अपना टाइम और प्रतिभा लुटाना बंद कीजिये। आप जो जानते हैं उसको महत्त्व दीजिये और उससे कमाना शुरू कीजिये। किम गर्स्ट +* अगर आप अमीर होते, तो बचत करने के बारे में सोचते। बेंजामिन ��्रैंकलिन +* अगर हमारी दौलत पर हमारा नियंत्रण है तो हम अमीर हैं, आजाद हैं। यदि हमारी दौलत हम पर नियंत्रण कर लेती है तो हम वास्तव में गरीब हैं। एडमंड बुर्के +* अन्य लोगो को महत्वपूर्ण मानते हुए अपने लक्ष्यों को निर्धारित न करें। जाचिनमा एनई +* अपने ज्ञान में निवेश करना आपको अच्छा ब्याज दिलाता है। बेंजामिन फ्रेंकलिन +* अमीर लोगों के पास छोटा टीवी होता है और बड़ी लाइब्रेरी होती है जबकि गरीब लोगों के पास छोटी लाइब्रेरी होती है और बड़ा सा टीवी होता है। जिग जिगलर +* अमीर लोगों के पास छोटे टीवी और बड़े पुस्तकालय होते हैं, और गरीब लोगों के पास छोटे पुस्तकालय और बड़े टीवी होते हैं। ज़िग जिग्लार +* असंतोष और निराशा जो आप महसूस करते हैं वह पूरी तरह से आपकी रचना है। स्टीफन रिचर्ड्स +* असफलता के बाद असफलता पर भी उत्साह बना रहे, यही कामयाबी है। विंस्टन चर्चिल +* आप कितने ऐसे लोगों को जानते हैं जिन्होंने बचत खातों में निवेश करके दौलत कमाई हो? रोबर्ट जी। एलेन +* आप जिस चीज को पसंद करते हैं वही सही से सीख सकते हैं। पैसे को अपना लक्ष्य मत बनाइये बल्कि जो काम करना चाहते हैं उसको लक्ष्य बनाइये, और फिर उस काम को इतना कुशलता से कीजिये कि दुनिया की नज़रे आपसे हट ही ना पाए। माया एन्गलू +* आप पैसे के बिना युवा हो सकते हैं, लेकिन आप इसके बिना बूढ़े नहीं हो सकते हैं। टेनेसी विलियम्स +* आपकी खाली जेब के कारण कोई वापस नहीं आयेगा। केवल खाली दिमाग और खाली दिल यह काम कर सकते हैं। नार्मन विन्सेंट पील +* आपकी संपत्ति का वास्तविक माप यह है कि यदि आप अपना पूरा पैसा खो देते हैं तो आप कितना मूल्यवान होंगे। Anonymous +* आपको अपने पैसे पर नियंत्रण प्राप्त करना होगा या इसकी कमी हमेशा के लिए आपको नियंत्रित करेगी। डेव रैमसे +* आपको अपने पैसे पर नियंत्रण लेना चाहिए अन्यथा यह आप पर नियंत्रण कर लेगा। डेव रामसे +* इनोवेशन एक नेता और एक अनुयायी में अंतर बताता है। स्टीव जॉब्स +* इस बात का ज्यादा महत्व नहीं है कि आप कितना पैसा कमाते हो बल्कि महत्व इस बात का है कि आप कितना पैसा अपने पास रख पाते हो और वो पैसा आपके लिए कितना काम करता है और आप उस पैसे को कितनी पीढ़ियों तक अपने पास रख पाते हो। रोबर्ट टी। कियोसाकी +* ईश्वर धन और सम्पत्ति उन्हीं मूर्खों को प्रदान करता है जिन्हें वह इसके अतिरिक्त और कोई अच्छी वस्तु प्रदान नहीं करता। लूथ�� +* एक बुद्धिमान इन्सान को पैसा दिमाग में रखना चाहिए, दिल में नहीं। जोनाथन स्विफ्ट +* एक सफल व्यक्ति वह है जो दूसरों के द्वारा फेंके ईंटों के साथ दृढ़ नींव रख सकता है। डेविड ब्रिंकले +* एक हजार मील की यात्रा एक ही कदम से शुरू होनी चाहिए। लाओ त्सू +* कम खर्च करने की आदत में कई गुण छुपे रहते हैं। सिसेरो +* कामयाब इन्सान वह होता है जो दूसरों द्वारा उस पर फेंके गए पत्थरों से इमारत बना लेता है। डेविड ब्रिंकले +* कोई भी बुरा आदमी कभी दौलत से शांति प्राप्त नहीं कर पाया है। प्लेटो +* कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति का दास नहीं होता है, बल्कि वह पैसों का दास होता है। +* कोई हालात इतना महत्वपूर्ण नहीं होता है बल्कि हम किसी हालात में अपनी प्रतिक्रिया नकारात्मक या सकारात्मक देते हैं, यह महत्वपूर्ण है। जिग जिगलर +* खुशी केवल धन के होने से नहीं है; यह रचनात्मक प्रयास के रोमांच में, उपलब्धि की खुशी में निहित है। फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट +* ख़ुशी पैसे का मालिक बनाने से नहीं मिलती बल्कि यह उपलब्धि के आनंद में छिपी है, रचनात्मक कोशिश के थ्रिल में छिपी है। फ्रेंकलिन डी। रूजवेल्ट +* गरीबी और अमीरी दोनों ही विचार की संतान हैं। नेपोलियन हिल +* जब आप बहुत पैसा कमाते हैं तो सभी पापों को क्षमा किया जाता है। रुपाउल +* जब आप मान लेते हैं कि आप कर सकते हैं तो मान कर चलिए आधा काम तो कर चुके। थिओडोर रूजवेल्ट +* जब आप शेयर खरीदो तो अपने आप से पूछिये कि क्या आप पूरी कंपनी खरीदेंगे? रेने रिवकिन +* जब तक पैसा हाथ में ना आये उसको खर्च करने की योजना मत बनाइये। थॉमस जेफरसन +* जब सब बेच रहे हों तब आप रुकिए जब तक कि सब वापस खरीदना शुरू ना करें। यह कोई नारा नहीं है। यह कामयाब निवेश का एक सार है। जे। पॉल गेट्टी +* जितना अधिक आप सीखते हैं, उतना अधिक आप कमाते हैं। फ्रैंक क्लार्क +* जिसका पैसा गया, उसका कुछ गया; जिसका दोस्त गया, उसका कुछ ज्यादा गया; जिसका विश्वास गया, उसका सबकुछ गया। एलेनोर रूजवेल्ट +* जिसके पास कम है और वह कम ही चाहता है तो वह अमीर है उस आदमी से जिसके पास बहुत कुछ है पर वह और ज्यादा चाहता है। चार्ल्स कैलेब कोल्टन +* जी भर के जीयें। इस तरह से सीखिए जैसे कि आपको यहां हमेशा रहना है। महात्मा गांधी +* जीवन का समय अत्यंत लघु हैं, अतः जितनी जल्दी अपने धन का उपभोग कर सकते हैं उतना ही अच्छा हैं। सैमुअल जॉनसन +* जो धनी होना चाहता है वह कभी ���िर्दोष नहीं हो सकता। बाइबल +* जो भी अपने साधनों में रहता है वह कल्पना की कमी से पीड़ित है। ऑस्कर वाइल्ड +* ज्ञान में निवेश सर्वोत्तम ब्याज का भुगतान करता है। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* झुकाव में अन्य सभी सदगुण शामिल हैं। सिसरो (Cicero) +* देश की सम्पत्ति तो मनुष्य हैं – रेशम, कपास या स्वर्ण नहीं। रिचार्ड हावे +* दौलत अपने अधिकार में बहुत सी वस्तुएं होने से नहीं होती, बल्कि कम इच्छाओं के होने से मानी जाती है। एपिक्टेट्स +* दौलत उसकी नहीं होती जिसके पास यह होती है बल्कि यह उसकी होती है जो इसका आनंद उठाता है। बेंजामिन फ्रेंकलिन +* दौलत ज़िन्दगी को पूरी तरह अनुभव करने की योग्यता का होना है। हेनरी डेविड थोरे +* दौलत समुद्र के पानी की तरह होती है। जितना हम पीते हैं उतना ही प्यास बढ़ जाती है। यही बात प्रसिद्धि के साथ भी जुडी है। -Arthur Schopenhauer +* धन अक्सर बहुत अधिक खर्च होता है। राल्फ वाल्डो इमर्सन +* धन पूरी तरह से जीवन का अनुभव करने की क्षमता है। हेनरी डेविड थोरयू +* धन या तो अपने स्वामी की सेवा करता है या उस पर शासन। होरेस +* नियोक्ता सैलरी नहीं देता। नियोक्ता तो केवल पैसे को हैंडल करता है। सैलरी तो ग्राहक देता है। हेनरी फोर्ड +* निवेश ऐसा होना चाहिए जैसे कि रंग को सूखते हुए देखना या फिर घास को उगते हुए देखना। यदि आप में धीरज नहीं है तो आप ८०० डॉलर लो और लास वेगास चले जाओ। पल सेमुअल्सन +* पूंजी ऐसी बुराई नहीं है; इसका गलत उपयोग है जो बुराई है। किसी न किसी रूप में पूंजी की हमेशा जरूरत होगी। महात्मा गांधी +* पैसा अक्सर ज्यादा कीमत मांगता है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* पैसा अर्जित किया बिना है इसे कभी भी अपना पैसा खर्च न करें। थॉमस जेफरसन +* पैसा एक ड्राईवर की तरह होता है। जहाँ आप चाहोगे ये आप को ले जायेगा, लेकिन यह आपको ड्राईवर नहीं बनाने देगा। जिम रोहन +* पैसा एक भयानक मालिक है पर शानदार नौकर है। पी.टी. बेरनम +* पैसा कमाना कोई बड़ी बात नही हैं पर परिवार के साथ रोटी खाना बड़ी बात हैं. +* पैसा जो सबसे अच्छी चीज खरीद सकता है वह वित्तीय स्वतंत्रता है। Rob Berger, Forbes Staff +* पैसा दृढ़ता के पेड़ पर बढ़ता है। जापानी कहावत +* पैसा बचाना ही पैसा कमाना है बेंजामिन फ्रैंकलिन +* पैसा से आप ख़ुशी नहीं खरीद सकते, लेकिन पैसे की कमी निश्चित रूप से आपको दुख पहुंचाती है। डैनियल कन्नमन +* पैसे की कमी सभी बुराइयों की जड़ है। मार्क ट्वैन +* पैस�� के तीन प्रयोग होते हैं – दान, भोग और नाश। +* पैसे से इन्सान को कभी ख़ुशी नहीं मिली, ना ही कभी मिलेगी। जितना ज्यादा पैसा उसे मिलता है उतना ही वो और भी चाहता है। एक खालीपन को भरने की बजाय वो एक खाली जगह और तैयार कर लेता है। –बेंजामिन फ्रेंकलिन +* पैसे से सबसे अच्छी जो चीज खरीदी जा सकती है वह है आर्थिक आजादी। अज्ञात +* फाइनेंसियल शांति वस्तुओं से नहीं आ सकती। यह तो एक बात सीखनी पड़ेगी कि जितना आप कमा रहे हो, उससे काम में कैसे जिया जाये, ताकि आप बचे हुए पैसे को वापस निवेश कर सको। जब तक आप यह नहीं करोगे, आप जीत नहीं सकते। डेव रामसे +* बहुत से लोग अर्जित धन खर्च करते हैं, उन चीज़ों को खरीदने के लिए जिनकी उनको आवश्यकता नही हैं, उन लोगों को प्रभावित करने के लिए जिन्हें वे पसंद नहीं करते हैं। विल रोजेर्स +* बोलने से पहले सुन लो। लिखने से पहले सोच लो। खर्च करने से पहले कमाई करो। निवेश करने से पहले, जाँच करो। आलोचना करने से पहले इंतज़ार करो। प्रार्थना करने से पहले माफ़ करो। छोड़ने से पहले कोशिश कर लो। रिटायर होने से पहले, बचत कर लो। मरने से पहले, देना सीखो। विलियम ए। वार्ड +* मुझे पैसा पसंद है। इससे जुडी हर बात मुझे लगती है। स्टीव मार्टिन +* मुझे लगता है कि अगर आप गलत जगहों पर खरीदारी करते हैं तो पैसा ख़ुशी नहीं खरीद सकता है। नोरा रॉबर्ट्स +* मैंने अपना पैसा पुराने तरीके से बनाया। मैं अपने एक दौलतमंद रिश्तेदार की बहुत ध्यान रखता था उसके मरने से पहले। –मेल्कम फ़ोर्ब्स +* मैंने कभी स्टोक मार्किट में पैसा कमाने की कोशिश नहीं की। मैं तो इस अनुमान के साथ शेयर खरीदता हूँ कि कल ही बाजार बंद हो जायेगा और अगले दस साल नहीं खुलेगा। वारेन बफेट +* यदि आप इसे सब कुछ करने के लिए जीते हैं, तो आपके पास जो कुछ भी है वह पर्याप्त नहीं है। विकी रॉबिन +* यदि आप बचत कर रहे हैं, तो आप सफल हो रहे हैं। स्टीव बर्कहोल्डर +* यदि आपका प्लान A असफल हो जाता है तो याद रखिये 25 अक्षर और भी हैं। Chris Guillebeau +* यदि आपको सबकुछ चाहिए तो जो आपके पास होगा वो कभी प्रयाप्त नहीं होगा। विकी रोबिन +* यदि तुम धनी हो तो धन बचाने का भी उतना ही ध्यान रखों जितना धन प्राप्त करने का। फ्रैंकलिन +* यह अच्छी बात है कि आपके पास पैसा है और पैसे से खरीदी जाने वाली चीजें भी हैं, पर कभी कभी यह भी चेक कर आश्वस्त हो लेना चाहिए कि कहीं आपने वो चीजें तो नहीं खो दी है जो पैसा नहीं खरीद सकता है। जोर्ज लोरिमर +* वह आदमी सबसे अमीर है जिसका सुख सबसे सस्ता है। हेनरी डेविड थोरयू +* संपत्ति बहुत पैसा होने के बारे में नहीं है; इसके पास बहुत सारे विकल्प हैं। क्रिस रॉक +* सबसे बड़ा धन स्वास्थ हैं इसे कभी भी न भूलें। अज्ञात +* समाज की आदर्श स्थिति वह नहीं है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को सम्पत्ति का समान भाग मिलता है, अपितु आदर्श अवस्था वह है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति उसी अनुपात में धन का हिस्सेदार होता है जिस अनुपात में वह सामान्य कोष को भरता हैं। हेनरी जार्ज +* समुदाय में केवल एक वर्ग है जो अमीरों की तुलना में अधिक पैसे के बारे में सोचता है, और वह गरीब है। ऑस्कर वाइल्ड +* सम्पत्ति की लोलुप वासना को बड़ी से बड़ी सम्पत्ति भी शांत नहीं कर सकती। जेरमि टेलर +* सम्पत्ति वह ताकत हैं जिस पर चंद (कुछ) लोगों का नाजायज कब्जा रहता हैं, ताकि अपने फायदें के लिए वे बहुत से लोगों से जबरन श्रम कर सकें। सैमुअल जॉनसन +* सामान्य पढ़ाई से आप अपना गुजारा चला सकते हैं लेकिन दौलत कमाने के लिए आपको पैसा कैसे काम करता है वो पढ़ाई सीखनी पड़ेगी। जिम रोहन +* हम क्या चुनते हैं इससे पता चलता है कि हम असल में क्या हैं योग्यता की बात तो बाद में आती है। जे. के. रोलिंग +* हर दिन एक बैंक अकाउंट जैसा होता है, और समय हमारा धन है। कोई अमीर नहीं है, कोई गरीब नहीं है, सबके पास 24 घंटे हैं। क्रिस्टोफर राइस +* हर बार जब आप पैसे उधार लेते हैं, तो आप अपना भविष्य स्वयं लूट रहे हैं। नाथन डब्ल्यू मॉरिस +पंचतंत्र संस्कृत साहित्य का सुविख्यात नीतिग्रन्थ है। इस ग्रन्थ के अंतर्गत एक प्रकरण में व्यावहारिक जीवन में धन-संपदा की महत्ता का वर्णन मिलता है। उसके दो सियार पात्रों (दो भाइयों, दमनक एवं करटक) में से एक भाई दूसरे के समक्ष अधिकाधिक मात्रा में धनसम्पदा अर्जित करने का प्रस्ताव रखता है। दूसरे भाई के 'बहुत अधिक धन क्यों के उत्तर में वह धन के विविध लाभों को गिनाना आरम्भ करता है और धन से सभी कुछ सम्भव है, इस बात पर जोर डालता है। +: ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे धन के द्वारा न पाया जा सकता है । अतः बुद्धिमान् व्यक्ति को एकमेव धन अर्जित करने का प्रयत्न करना चाहिए । +: जिस व्यक्ति के पास धन हो उसी के मित्र होते हैं, उसी के बंधुबांधव होते हैं, वही संसार में वस्तुतः पुरुष (सफल व्यक्ति) होता है, और वही पंडित या जानकार होता है। +: ऐसी ���ोई विद्या, दान शिल्प (हुनर कला, स्थिरता या वचनबद्धता नहीं है जिनके धनिकों में होने का गुणगान याचकवृंद द्वारा न किया जाता हो। +: इस संसार में धनिकों के लिए पराया व्यक्ति भी अपना हो जाता है । और निर्धनों के मामले में तो अपने लोग भी दुर्जन (बुरे अथवा दूरी बनाये रखने वाले) हो जाते हैं । +: चारों तरफ से एकत्रित करके बढ़ाये गये धनसंपदा से ही विविध कार्यों का निष्पादन होता है, जैसे पर्वतों से नदियों का उद्गम होता है। +: धन का प्रभाव यह होता है कि जो सम्मान के अयोग्य हो उसकी भी पूजा होती है, जो पास जाने योग्य नहीं होता है उसके पास भी जाया जाता है, जिसकी वन्दना (प्रशंसा) का पात्र नहीं होता उसकी भी स्तुति होती है । +: भोजन का जो संबंध इंद्रियों के पोषण से है वही संबंध धन का समस्त कार्यों के संपादन से है । इसलिए धन को सभी उद्येश्यों की प्राप्ति अथवा कर्मों को पूरा करने का साधन कहा गया है। +: यह लोक धन का भूख होता है, अतः उसके लिए श्मशान का कार्य भी कार्य करने को तैयार रहता है । धन की प्राप्ति के लिए तो वह अपने ही जन्मदाता हो छोड़ दूर देश भी चला जाता है। +: उम्र ढल जाने पर भी वे पुरुष युवा रहते हैं जिनके पास धन रहता है । इसके विपरीत जो धन से क्षीण होते हैं वे युवावस्था में भी बुढ़ा जाते हैं। + + +: श्रम वैभव के बल पर करते हो जड़ में चेतन का विकास +: दानों-दानों में फूट रहे सौ-सौ दानों के हरे हास, +: यह है न पसीने की धारा, यह गंगा की है धवल धार । +* किसान का सम्पूर्ण जीवन प्रकृति से स्थायी सहयोग है। प्रेमचन्द]] +* किसान के बराबर सर्दी, गर्मी, मेह, ओर मच्छर, पिस्सू बगैरा का उपद्रव कौन सहन करता है सरदार वल्लभ भाई पटेल]] +* अगर कोई उद्योगपति अपने उत्पादों को पूरी दुनिया में कहीं भी बेच सकता है, तो एक किसान को ऐसा करने की अनुमति क्यों नहीं दी जानी चाहिए। शरद पवार +* अन्न पैदा करने में किसान भी ब्रह्मा के समान है। खेती उसके ईश्वरीय प्रेम का केन्द्र है। उसका सारा जीवन पत्ते-पत्ते में, फूल-फूल में बिखर रहा है। सरदार पूर्णसिंह +* इस धरती पर अगर किसी को सीना तानकर चलने का अधिकार हो, तो वह धरती से धन-धान्य पैदा करने वाले किसान को ही है। सरदार पटेल +* एक किसान को जीवन के बारे में एक शांत और एक शांत बुढ़ापे की आशा है, जो कोई व्यवसाय या पेशा वादा नहीं कर सकता है। Robert Green Ingersoll +* किसानों के बिना हमारा भोजन संभव नहीं है। Ernest Agyemag Yeboah +* किसानों के हाथ रस्सियों से नहीं, बल्कि बिचौलियों के लालच ने बंधे हैं, जो सिस्टम ने उत्प्न्न किया है, जो किसानों की आय को खा जाते हैं, जबकि सब कुछ किसानों के हाथों में है। Faraaz Kazi +* कृषकों का जीवन ही जीवन है। अन्य सब दूसरों की वन्दना करके भोजन पाकर उनके पीछे चलने वाले ही हैं। तिरुवल्लुवर]] +* कृष्ण सारे संसार के लिए किल्ली के समान है, क्योंकि वह अन्य सभी का भार वहन कर रहा है। तिरूवल्लुवर +* जब आपका काम पेंसिल से हो, और आप मकई के खेतों से एक हजार मील दूर हैं, तो आपको खेती करना आसान लगता है। Dwight D Eisenhower +* जब लड़के और लड़कियां पश्चिम की ओर नहीं जाएंगे और न ही शहरों में, जब जीवन जीने लायक होगा। उस दिन चंद्रमा तेज होगा और सितारे अधिक खुश होंगे, और खुशी और कविता और जीवन का प्यार मिट्टी को भरने वाले आदमी के वापस आ जाएगा। Hamlin Garland +* जो किसान मूसलाधार बरसात में काम करता है, कीचड़ में खेती करता है, मरखने बैलों से काम लेता है और सर्दी-गर्मी सहता है, उसे डर किसका। सरदार पटेल +* देश की व्यक्तिगत संपत्ति का दो तिहाई हिस्सा, करों का भुगतान जहां भी संभव हो, सरकारों ने लगभग पूरे बोझ को छोटे घरों और खेतों की निजी संपत्ति पर फेक दिया है। Robert Marion La Gillette +* पृथ्वी पर किसान सबसे मूल्यवान नागरिक हैं। वे सबसे अच्छे, सबसे स्वतंत्र, सबसे गुणी हैं, और वे अपने देश की जड़ों से बंधे हुए हैं और सबसे स्थायी बंधनों द्वारा अपनी स्वतंत्रता और हितों के लिए वचनबद्ध हैं। Thomas Jefferson +* प्रेम आशा की खेती करता है, आशा है तो उर्वरता को बढ़ावा मिलेगा, और हम सभी सपने के किसान हो सकते हैं। George E।Miller +* बढ़ती आबादी को खिलाने के लिए किसानों को उनकी उपज में सुधार के लिए सब्सिडी दी जानी चाहिए। Lailah Gifty Akita +* बारिश हमारे पिकनिक को खराब कर देती है, लेकिन एक किसान की फसल को बचा लेती है, तब भी हम कहते हैं कि बारिश नहीं होनी चाहिए। Tom Barrett +* भोले-भाले किसानों को ईश्वर अपने खुले दीदार का दर्शन देता है। सरदार पूर्णसिंह +* मैं उसे घर के परिदृश्य में, फसलों की पंक्तियों पर ब्रश करते हुए देखता हूं। मैं उसे रोपण और कटाई के मौसम में तलाशता हूं। पृथ्वी के एक बीहड़ व्यक्ति, उसने इस खेत में जीवन व्यतीत किया। Brenda Sutton Rose +* यदि किसान अधिक अन्न उगाते हैं, तो सभी को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन होगा। Lailah Gifty Akita +* यह केवल किसान है जो ईमानदारी से वसंत में बीज लगाते हैं, तब शरद ऋतु में फसल का���ता है। B C Forbes +* ये सच है उनके दम से जिंदगी त्योहार लगती है कोई माने न माने रोज होली तीज हैं उन्हीं के दम से तो सारी जमीने भी सुहागन हैं। पकी फसलें छुपाए खुद में जिंदा बीज है किसान। Tripurari +* वह देश जो कृषि के संबध में सही मायने में महत्व नहीं देता तब वह भोजन में दुर्लभ हो जाता है। Ernest Agyemag Yeboah +* सारी दुनिया किसान के आधार पर टिकी हुई है। दुनिया के आधार किसान और मजदूर पर है। फिर भी सबसे ज्यादा जुल्म कोई सहता है, तो ये ही सहते हैं। क्योंकि ये दोनों बेजुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं। सरदार पटेल +* हिन्दुस्तान में किसान राष्ट्र कि आत्मा हैं। उस पर पड़ी निराशा की छाया हटाया जाए तभी हिन्दुस्तान का उद्धार हो सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम यह अनुभव करें कि किसान है और हम किसान के हैं। लोकमानय तिलक + + +: इस धरती पर पुरुषों (मनुष्यों) की सुन्दरता न तो बाजूबन्द पहनने से और न ही चन्द्रमा के समान उज्ज्वल कांति वाले मोतियों की माला ही पहनने से बढ़ती है। न स्नान से, न सुगंधित पदार्थों के लेपन से, न फूलों की सज्जा से, न ही बालों को बनाने से ही (मनुष्य की सुन्दरता में वृद्धि होती है)। एकमात्र संस्कारित वाणी अपनाने से ही मनुष्य के सौन्दर्य को बढ़ाती है। सभी प्रकार के आभूषण समयान्तराल के बाद नष्ट ही हो जाते हैं, किन्तु मधुर/सारगर्भित/कल्याणकारी वाणी ही सदैव मनुष्य का आभूषण होती है। +प्रिय वाणी बोलने से सभी जन्तु खुश हो जाते है । इसलिये मीठी वाणी ही बोलनी चाहिये वाणी में क्या दरिद्रता +: जिस मनुष्य की वाणी मीठी है, जिसका कार्य परिश्रम से युक्त है, जिसका धन दान करने में प्रयुक्त होता है, उसका जीवन सफल है। +: बुद्धिमान लोग दूसरों के शरीर के रंग से, हाव-भाव और प्रतिध्वनि से, नेत्र और मुख के आकृति से उनके विचारों को समझ लेते हैं। इसलिये मन्त्रणा एकान्त में करनी चाहिये। +* नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के सच्चे आभूषण होते हैं। तिरूवल्लुवर +* नरम शब्दों से सख्त दिलों को जीता जा सकता है। सुकरात +* कठोर वचन बुरा है क्योकि तन-मन को जला देता है और मृदुल वचन अमृत वर्षा के समान हैं। कबीर +* मनुष्यों के पास धन-दौलत के अंबार हो सकते है लेकिन बुद्धिमान मनुष्य की वाणी तो अनमोल होती हैं। बाइबिल +* मनुष्य की वाणी से उसके गुण और अवगुण जाने जा सकते हैं। शेख सादी +* कम बोलने से मन की शक्ति बढ़ती है। महात्मा विदुर +* कटु वचन दुसरे के मर्म स्थान पर चोट करते हैं और बदले में वह श्राप देता है, जो निष्फल नहीं जाता। वेद व्यास +* मौन से अच्छा भाषण दूसरा नहीं। फिर भी बोलना पड़े तो जहाँ एक शब्द से काम चलता हो वहां दूसरा शब्द न बोलें। महात्मा गांधी +* वाणी से भी बाणों की वर्षा होती है। जिस पर इसकी बौछारें पड़ती हैं, वह दिन-रात दुःखी रहता है। वाल्मीकि +* बोलना शिष्टाचार है और शिष्टाचार में सच और ईमानदारी होना आवश्यक है। इमर्सन +* न्यून वाणी मूर्खो की समझ में नहीं आती और अधिक बोलना विद्वानों को उद्विगन करता है। धनंजय +* जीभ को जीत लेना सब वस्तुओं को जीत लेने के बराबर है। महात्मा गांधी +* जब मन और वाणी एक होकर कोई चीज मांगते है, तब उस प्रार्थना का फल अवश्य मिलता है। स्वामी रामकृष्ण +* झूठा वादा करने से विनम्र इन्कार करना अच्छा है। टॉलस्टाय +* मौन और एकांत पवित्र आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं। विनोबा भावे +* जहाँ मनुष्य की जिह्वा बोलने में असमर्थ हो जाती हैं, वहां पत्थर बोलना प्रारम्भ कर देते हैं। स्वामी रामतीर्थ +* नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य का आभूषण हैं। स्वामी विवेकानंद +* जो अपने मुख और जिह्वा पर संयम रखता है, वह अपनी आत्मा को संतापों से बचाता है। बाइबिल +* वार्तालाप बुद्धि को मूल्यवान बना देता है, परन्तु एकांत प्रतिभा की पाठशाला है। गिबन + + +* हिन्दू और हिन्दुत्व ही एक दिन दुनिया पर राज करेगा, क्योंकि इसी में ज्ञान और बुद्धि का संयोजन है। लियो टॉल्स्टॉय +* हिन्दुत्व का प्रभावीकरण फिर होने तक अनगिनत कितनी पीढ़ियां अत्याचार सहेंगी और जीवन कट जाएगा, तभी एक दिन पूरी दुनिया उसकी ओर आकर्षित हो जाएगी, उसी दिन ही दिलशाद होंगे और उसी दिन दुनिया आबाद होगी।  हर्बर्ट वेल्स +* मैं समझता हूँ कि हिन्दुओं ने अपनी बुद्धि और जागरूकता के माध्यम से वह किया जो यहूदी न कर सके। हिन्दुत्व में ही वह शक्ति है जिससे शांति स्थापित हो सकती है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* हिन्दुत्व ही यूरोप में शासक धर्म बन जाएगा बल्कि यूरोप का प्रसिद्ध शहर हिन्दू राजधानी बन जाएगा। माइकल नोस्टरैडैमस +* मैंने हिन्दुत्व को पढ़ा और जान लिया कि यह सारी दुनिया और सारी मानवता का धर्म बनने के लिए है। हिन्दुत्व पूरे यूरोप में फैल जाएगा और यूरोप में हिन्दुत्व के बड़े विचारक सामने आएंगे। एक दिन ऐसा आएगा कि हिन्दू ही दुनिया की वास्तविक आकर्ष��� होगा। बर्टरेंड रसेल +* हिन्दू ही सुलह और सुधार की बात करता है। सुधार ही के विश्वास की सराहना में इसाइयों को आमंत्रित करता हूँ। गोस्टा लोबोन +* सारी दुनिया एक दिन हिन्दू धर्म स्वीकार कर लेगी। अगर यह वास्तविक नाम स्वीकार नहीं। बरनार्ड शा + + +* संसार विनाश की राह पर आ चुका है और इसका हल तथाकथित धार्मिक लोगों और राजनीतिज्ञों के पास नहीं है। +* आपके भीतर कुछ भी नहीं होना चाहिए तब आप एक साफ और स्पष्ट आकाश देखने के लिए तैयार हो जाते हैं। आप धरती का हिस्सा नहीं, आप स्वयं आकाश हैं। यदि आप कुछ भी है तो फिर आप कुछ नहीं। +* आपने जो कुछ भी परम्परा, देश और काल से जाना है उससे मुक्त होकर ही आप सच्चे अर्थों में मानव बन पाएंगे। जीवन का परिवर्तन सिर्फ इसी बोध में निहित है कि आप स्वतंत्र रूप से सोचते हैं कि नहीं और आप अपनी सोच पर ध्यान देते हैं कि नहीं। +* हम रूढ़ियों के दास हैं। भले ही हम खुद को आधुनिक समझ बैठें, मान लें कि बहुत स्वतंत्र हो गये हैं, परन्तु गहरे में देखें तो हैं हम रूढ़िवादी ही। इसमें कोई संशय नहीं है क्योंकि छवि-रचना के खेल को आपने स्वीकार किया है और परस्पर संबंधों को इन्हीं के आधार पर स्थापित करते हैं। यह बात उतनी ही पुरातन है जितनी कि ये पहाड़ियां। यह हमारी एक रीति बन गई है। हम इसे अपनाते हैं, इसी में जीते हैं, और इसी से एक दूसरे को यातनाएं देते हैं। तो क्या इस रीति को रोका जा सकता है ? +* ध्यान का अर्थ है विचार का अन्त हो जाना और तभी एक भिन्न आयाम प्रकट होता है जो समय से परे है। ध्यानपूर्ण मन शांत होता है। यह मौन विचार की कल्पना और समझ से परे है। यह मौन किसी निस्तब्ध संध्या की नीरवता भी नहीं है। विचार जब अपने सारे अनुभवों, शब्दों और प्रतिमाओं सहित पूर्णत: विदा हो जाता है, तभी इस मौन का जन्म होता है। यह ध्यानपूर्ण मन ही धार्मिक मन है-धर्म, जिसे कोई मंदिर, गिरजाघर या भजन-कीर्तन छू भी नहीं पाता। +* किसी चीज को सहज रूप से, जैसी वह है वैसी ही देखना, यह संसार में सर्वाधिक कठिन चीजों में से एक है क्योंकि हमारे दिल और दिमाग बहुत ही जटिल हैं और हमने सहजता का गुण खो दिया है। +* धार्मिक मन प्रेम का विस्फोटक है। यह प्रेम किसी भी अलगाव को नहीं जानता। इसके लिए दूर निकट है। यह न एक है न अनेक, अपितु यह प्रेम की अवस्था है, जिसमें सारा विभाजन समाप्त हो चुका होता है। सौंदर्य की तरह उसे भी शब्द���ं के द्वारा नहीं मापा जा सकता। इस मौन से ही एक ध्यानपूर्ण मन का सारा क्रियाकलाप जन्म लेता है। +* केवल स्वतंत्र मस्तिष्क जानता है कि प्रेम क्या है। +* मानवीय बुद्धिमत्ता का सर्वोच्च स्वरूप है- तटस्थ होकर आत्मनिरिक्षण करना। +* एकांत सुन्दर अनुभूति है। एकांत में होने का अर्थ अकेले होना नहीं है। इसका अर्थ है मस्तिष्क समाज द्वारा प्रभावित और प्रदूषित नहीं है। +* जब आप किसी को पूरे ध्यान से सुन रहे होते हैं तो आप केवल शब्द नहीं सुन रह होते, आप उनके साथ व्यक्त की जा रही भावनाओं को महसूस कर रहे होते हैं, सम्पूर्ण भावनाओं को न कि उसके एक हिस्से के। +* क्या आपने ध्यान दिया है कि प्रेम मौन है? ये किसी का हाथ हाथों में लेते वक्त होता है या किसी बच्चे को प्यार से निहारते समय होता है या किसी शाम की सुंदरता को महसूस करते समय होता है। प्रेम का कोई अतीत या भविष्य नहीं होता और इसीलिए यह असाधारण मौन की स्थिति है। +* धर्म इंसान के पत्थर बन चुके विचार हैं जिनसे लोग मंदिर बना लेते हैं। +* जिस पल आप अपने हृदय में वो विलक्षण भाव महसूस करते हैं जिसे प्रेम कहते हैं, इसकी गहनता, इसके उल्लास, इसके परमानंद को महसूस करते हैं, आप पाते हैं कि आपके लिए दुनिया बदल चुकी है। + + +* ‘[[गीता पर बात’ मेरे जीवन की कहानी है, और यह मेरा संदेश भी है। +* अगर जीवन में सीमायें नहीं होंगी तो स्वतंत्रता का मोल नहीं होता। +* अगर हम हर रोज एक ही काम करते है तो वह हमारी आदत में शामिल हो जाता है और तब हम अन्य कार्य करते हुये भी उस कार्य को कर सकते है। +* अनगिनत क्रियाएं हर समय हमारे माध्यम से चल रही हैं। अगर हम उन्हें गिनना शुरू कर दें, तो हम कभी अंत तक नहीं पहुँच पाएंगे। +अनुशासन लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का सेतु है। विश्वास मानिए कि ज्ञान की अपेक्षा अज्ञान ज्यादा आत्मविश्वास पैदा करता है। +* अभिमान कई तरह के होते हैं, पर मुझे अभिमान नहीं है, ऐसा भास होने जैसा भयानक अभिमान दूसरा नहीं है। +अवसर और परिवर्तन और परिवर्तनशीलता की इस दुनिया में, किसी भी संकल्प की पूर्ति भगवान की इच्छा पर निर्भर करती है। +अहिंसा में आपको पूर्ण भाप के साथ आगे बढ़ना चाहिए, यदि आप चाहते हैं कि तेजी से अच्छा हो तो आपको इसके बारे में दृढ़ता के साथ जाना चाहिए। +ईश्वर हमें भीतर से निर्देशित करता है। वह इससे ज्यादा कुछ नहीं करता। भगवान को कुम्हार की तरह आकार देने में कोई आकर्षण नहीं है। हम मिट्टी के बरतन नहीं हैं; हम चेतना से भरे हुए हैं। +* एक व्यक्ति जो बिल्ली को पूंछ से पकड़ता है, वह कुछ ऐसा सीखता है जो वह किसी अन्य तरीके से नहीं सीख सकता। +* ऐसा व्यक्ति जो एक घंटे का समय बर्बाद करता है, उसने जीवन के मूल्य को समझा ही नहीं है। +* औपचारिक शिक्षा आपको जीविकोपार्जन के लिए उपयुक्त अवसर देती है, जबकि अनुभव आपका भाग्य बनाते हैं। +* किसी की आत्मा की स्वाभाविक गति उर्ध्वगामी है। लेकिन जैसे भारी वजन बांधने से कोई सामान नीचे गिर जाता है, शरीर का बोझ आत्मा को नीचे गिरा देता है। +* किसी देश का बचाव हथियारों से नहीं बल्कि नैतिक व्यवहार से होना चाहिए। +केवल अंग्रेज़ी सीखने में जितना श्रम करना पड़ता है उतने श्रम में भारत की सभी भाषाएँ सीखी जा सकती हैं। +* खुदा से डरने वाले को और किसी का क्या डर। +* गरीब वह नहीं जिसके पास कम है, बल्कि धनवान होते हुए भी जिसकी इच्‍छा कम नहीं हुई है, वह सबसे अधिक गरीब है। +* गीता को हम निरंतर देखते हैं इसका मुख्य कारण यह है कि जब भी हमें सहायता की आवश्यकता होगी, हम इसे गीता से प्राप्त कर सकते हैं। और, वास्तव में, हम हमेशा इसे प्राप्त करते हैं। +* जब कर्म को शुद्ध करने का निरंतर प्रयास होता है तो शुद्ध कर्म स्वाभाविक रूप से और अधिक सहजता से चलेगा। +* जब कोई बात सच होती है, तो उसे प्रमाणित करने के लिए किसी तर्क का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है। +* जब तक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है। +* जब हम किसी नयी परियोजना पर विचार करते हैं तो हम बड़े गौर से उसका अध्ययन करते हैं केवल सतह मात्र का नहीं, बल्कि उसके हर एक पहलू का। +* जबतक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है। +* जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है, उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती। +* जिसने ज्ञान को आचरण में उतार लिया, उसने ईश्वर को मूर्तिमान कर लिया। +* जीवन का अर्थ मात्र कर्म या मात्र भक्ति या मात्र ज्ञान नहीं है। +* जीवन को मात्र अतीत में जाकर समझा जा सकता है, किंतु इसे भविष्य की ओर अग्रसर होकर जिया जाना होगा। +* ज्ञान का एकमात्र श्रोत अनुभव है। +* ज्ञानी वह है जो वर्तमान को ठीक प्रकार समझे और परिस्थति के अनुसार आचरण करे। +* तगड़े और स्वस्थ व्यक��ति को भिक्षा देना, दान का अन्याय है। कर्महीन मनुष्य भिक्षा के दान का अधिकारी नही हैं। +* द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। +* नदी अपनी मर्जी से बहती है, लेकिन बाढ़ दो तटों में बंधी है। यदि यह इस प्रकार बाध्य नहीं होता, तो इसकी स्वतंत्रता बर्बाद हो जाएगी। +* निष्काम कर्मयोग तभी सिद्ध होता है जब हमारे बाह्य कर्म के साथ अन्दर से चित्त शुद्धि रुपी कर्म का भी संयोग होता है। +* परस्पर आदान-प्रदान के बिना समाज में जीवन का निर्वाह संभव नहीं है। +* परिणामी विस्फोट से अंहकार इच्छाओं, जुनून और क्रोध को कम किया जाएगा और फिर सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त किया जाएगा। +* प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई कोपलें फूटते रहना नई कल्पना, नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं। +* प्रेरणा किसी कार्य आरम्भ करने में सहायता करती है और आदत उस कार्य को जारी रखने में सहायता करती है। +* बुद्धि का पहला लक्षण है काम आरम्भ न करो और अगर शुरू कर दिया है तो उसे पूरा करके ही छोड़ो। +* भगवद्गीता में, कोई लंबी चर्चा नहीं है, कुछ भी विस्तृत नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि गीता में कही गई हर बात का हर आदमी के जीवन में परीक्षण किया जाना है; यह व्यवहार में सत्यापित किए जाने का इरादा है। +* भविष्य में स्त्रियों के हाथ में समाज का अंकुश आने वाला है उसके लिए स्त्रियों को तैयार होना पड़ेगा स्त्रियों का उद्धार तभी होगा, जब स्त्रियाँ जागेंगी और स्त्रियों में शंकराचार्य जैसी कोई निष्ठावान स्त्री होगी। +* मनुष्य जितना ज्ञान के रंग में रंग गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। +* महान विचार ही कार्य रूप में परिवर्तित होकर महान कार्य बनते हैं। +* मानव जीवन संस्कारों के खेल से भरा हुआ है – बार-बार क्रिया द्वारा प्रवृत्तियां विकसित हुई हैं। +* मेरा दृढ़ विश्वास है कि सच्चे ज्ञान की एक चिंगारी दुनिया की सभी समस्याओं को जला सकती है। इस विश्वास के साथ मैंने अपना सारा जीवन ज्ञान की खोज और प्रसार में बिताया है। +* मेरा मूल उद्देश्य एकता और समानता और करुणा के साम्ययोग के विचार को पढ़ना और उसकी सराहना करना है। +* यदि आप किसी चीज का सपना देखने का साहस कर सकते हैं तो उसे प्राप्त भी कर सकते हैं। +* यदि मनुष्य इस शरीर पर विजय प्राप्त कर लेता है, तो दुनिया में कौन उसके ऊपर शक्ति ��ा प्रयोग कर सकता है? वह जो पूरी दुनिया पर अपना शासन करता है। +* यदि हम कामना करते हैं कि हमारा स्वाभाव मुक्त और आनंदित हो, तो हमें अपनी गतिविधियों को एक ही क्रम में ले आना चाहिए। +* यदि हम केवल आत्मा के पैरों को बांधने वाले शरीर के भ्रूणों को काट सकते हैं, तो हमें एक महान आनंद का अनुभव होगा। तब हम शरीर के कष्टों के कारण दुखी नहीं होंगे। हम आजाद हो जाएंगे। +* यदि हम चाहते हैं कि हमारा स्वभाव स्वतंत्र और आनंदमय हो, तो हमें अपनी गतिविधियों को उसी क्रम में लाना चाहिए। +* यह एक जिज्ञासु घटना है कि भगवान ने गरीब, अमीर और अमीर, गरीब के दिलों को बनाया है। +* यह तभी होता है जब हमारा जीवन सीमा के भीतर और एक स्वीकृत, अनुशासित तरीके से आगे बढ़ता है, ताकि मन मुक्त हो सके। +* लाभ की इमारत, कष्ट की धूप में ही बनती है। +* विचारों को दीवार मैं कैद नहीं किया जा सकता है। इसे सद्भावना के साथ लोगों से साझा किया जा सकता हैं इस तरह से विचार बढ़ता है और फैलता है। +* संघर्ष और उथल पुथल के बिना जीवन बिल्कुल नीरस जाएगा। इसलिए इनसे घबराए नही। +* संघर्ष और उथल पुथल के बिना जीवन बिल्कुल नीरस बन कर रह जाता है। इसलिए जीवन में आने वाली विषमताओं को सह लेना ही समझदारी है। +* सत्य को कभी भी किसी के प्रमाण की जरुरत नहीं होती है। +* सभी क्रांतियों का मूल कारण आध्यात्मिक हैं। मेरी सभी गतिविधियों का एकमात्र उद्देश्य दिलों का मेल-मिलाप पूर्ण करना है। +* सिर्फ धन कम रहने से कोई गरीब नहीं होता, यदि कोई व्‍यक्ति धनवान है और इसकी इच्‍छाएं ढेरों हैं तो वही सबसे गरीब है। +* सेवा के लिये पैसे की जरूरत नहीं होती जरूरत है अपना संकुचित जीवन छोड़ने की, गरीबों से एकरूप होने की। +* स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है। +* स्वयं को कल्पना करने की अनुमति न दें कि क्रांतिकारी सोच सरकारी शक्ति द्वारा प्रचारित की जा सकती है। +* हम अपनी बाल्यावस्था के कार्यों को याद भी नहीं कर सकते हैं, हमारा बचपन एक स्लेट पर लिखी गई चीज़ की तरह है, जैसे स्लेट पर लोखा और फिर इसे मिटा दिया। +* हम अपने दोषों को तभी हटा सकते हैं जब हम उनके बारे में जागरुक हों। इस तरह की जागरुकता के बिना प्रगति और विकास के सभी प्रयास शून्य हो जाएंगे। +* हम आगे बढ़ते हैं, नए रास्ते बनाते हैं और नयी परियोजनाएं बनाते हैं क्योंकि हम जिज्ञासु हैं और जिज्ञासा हमें नयी राहों ��ी ओर ले जाती है। +* हम हमारे बचपन को फिर से नहीं प्राप्त कर सकते है, यह तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे किसी ने पेंसिल से कुछ लिखकर पुन उसे मिटा दिया है। +* हमने अनुभव से देखा है कि, यदि हम एक ही सड़क पर नियमित रूप से चलने की आदत में हैं, तो हम अपने कदमों पर ध्यान दिए बिना, चलते समय अन्य चीजों के बारे में सोचने में सक्षम हैं। +* हर समय हमारे माध्यम से असंख्य क्रियाएं चल रही हैं। यदि हमने उन्हें गिनना शुरू किया, तो हमें कभी भी समाप्त नहीं होना चाहिए। +* हाथ में तलवार हिंसक मन का एक निश्चित संकेत है; लेकिन कोई मात्र तलवार फेंकने से अहिंसक नहीं बन जाता। +* हालांकि कर्म योग और संन्यास नाम अलग-अलग हैं, लेकिन दोनों के दिल में सच्चाई समान है। +* हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है। +* हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है। + + +: जल से संसार के सभी प्राणी उत्पन्न होते हैं और जीवित रहते हैं। अतः सभी दानों में जल का दान सर्वोत्तम माना जाता है। +: संसार में जल से ही समस्त प्राणियों को जीवन मिलता है। जल का दान करने से प्राणियों की तृप्ति होती है। जल में अनेक दिव्य गुण हैं। ये गुण परलोक में भी लाभ प्रदान करते हैं। +: जल में अमृत है, जल में औषधि है। +: अथर्ववेद में मातृभूमि से प्रार्थना की गयी है कि, हे मातृभूमि आप हमारी शुद्धता के लिए स्वच्छ जल प्रवाहित करें । हमारे शरीर से उतरा हुआ जल हमारा अनिष्ट करने के इच्छुकों के पास चला जाय । हे भूमे पवित्र शक्ति से हम स्वयं को पावन बनाते है। +: उस देवीरूप जल की हम अभ्यर्थना करते है, जो अन्तरिक्ष के लिए हवि प्रदान करता है तथा जहां हमारी इन्द्रियाँ तृप्त होती है। +: मनुष्य सोलह कलाओं से युक्त है, वह पन्द्रह दिन तक बिना भोजन किये हुए केवल जलपान करके भी जीवित रह सकता है, क्योंकि, प्राण जलमय है, इसलिए जल पीते रहने से जीवन का नाश नहीं होगा। +: जल जगत के प्राण है। जिसमें सब भूत और भुवन है । सम्पूर्ण चर और अचर जगत जल के आधार पर स्थित है। +: जो जल से जल का सृजन करत��� है और जल से जल का पालन करता है तथा जल से ही जल का हरण किया करता है उस कृष्ण का निरंतर भजन करो। +: नर (नारायण) से उत्पन्न होने के कारण जल को नार कहा गया है अतः वह जल नार ही नर का प्रथम अयन अर्थात आश्रयस्थान है अतः उन्हें नारायण कहा जाता है। +: सूर्य आठ मास तक अपनी किरणों से रसस्वरूप जल को ग्रहण करके, उसे चार महीनों में बरसा देता है, उससे अन्न की उत्पति है और अन्न ही से सम्पूर्ण जगत का पोषण होता है। +: जो जल मेघों द्वारा बरसाया जाता है, वह प्राणियों के लिए अमृत स्वरूप है और वह जल मनुष्यों के लिए औषधियों का पोषण करता है। +: सतत बर्षा के कारण जो जल नीचे की ओर प्रवाहित हुआ उससे उनके लिए अनेक स्रोतों तथा नदियों की उत्पत्ति हुई। +: ब्रह्मा से लेकर तृण-पर्यन्त जो भी जलपिपासु हैं, वे इस तडाग में स्थित जल के द्वारा तृप्ति को प्राप्त हों। +जो मनुष्य लाखों अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान करता है तथा जो एक बार भी जलाशय की प्रतिष्ठा करता है, उसका पुण्य उन यज्ञों की अपेक्षा हजारों गुना अधिक है। +: भूमि के अनुसार जल की विशेषता भी अलग अलग होती है सफेद मिट्टी वाली भूमि पर गिरने से जल कषाय वर्ण, पाण्डु वर्ण की भूमि पर गिरने से जल क्षार, उसर भूमि पर गिरने पर जल लवण, पर्वत पर गिरकर बहने वाला जल कटु, और काले मिट्टी पर गिरने वाला जल मधुर होता है इस प्रकार भूमिगत जल के 6 गुण होते हैं। +: शीतल जल मदात्यय, ग्लानि, मूर्च्छा, थकावट, भ्रम, तृषा, उष्मा, दाह, पित्तविकार तथा रक्त विकार को नष्ट करता है। +: पुष्पम से सुगंधित किया हुआ जल, सुवर्ण, चांदी, तांबा, स्फटिक, मिट्टी के बर्तन में पीना चाहिए। +: आकाश से मेघजन्य सभी जल एक ही प्रकार का गिरता है। गिरते हुए आकाश का जल देशकाल के अनुसार गुण या दोष की अपेक्षा करता है। +: जो जल दिन में सूर्य की किरणों से और रात्रि में चंद्रमा की किरणों से संस्कृत होता है तथा जो रोग्य और अभिष्यन्दी नहीं है, वह जल गुण की दृष्टि से अच्छा माना गया है। +: अच्छे पात्र में ग्रहण किया हुआ, अंतरिक्ष का जल त्रिदोष नाशक, बल कारक, रसायन और बुद्धिवर्धक होता है ।इसके सिवा जैसे पात्र में उसका ग्रहण किया हुआ हो, उसके अनुसार भी जल के गुण होते हैं। +: अहितकर जल, चिकना, क्रिमियुक्त, सडे पत्ते, शैवाल, कीचड़ से दूषित, विवर्ण विकृत, विकृत रस युक्त, सान्द्र, गाढ़ा, जो कपडे में न छन सके और जो जल दुग्ध युक्त होता है वह हितकर नह��ं होता है। +: उस जल को नहीं पीये, जो कीचड़, शिवार, तृण तथा पत्तों के सहयोग से मलिन हो तथा उनसे व्याप्त हो और जिस पर सूर्य चंद्रमा की किरणों का तथा शुद्ध वायु का स्पर्श न हो और तुरन्त या प्रथम बार वर्षा हो, जो भारी हो, जिस पर झाग आ रही हो और जो विषाक्त युक्त हो उस जल को नही पीना चाहिए । जो उष्ण तथा अत्यंत शीतल होने से दांतो को लगता हो उसे भी नही पीना चाहिए । +: वर्षा ऋतु के अतिरिक्त ऋतुओं में वर्षा की पहली वर्षा, का जल और प्राणियों के तंतु, पूरीष, मूत्र एवं विष के संपर्क से दूषित जल भी नहीं पीना चाहिए । +: बिना साफ किए हुए, जो दूषित जल को पीता है । वह शोथ [सूजन पाण्डुरोग, त्वचा, व्याधि, अजीर्ण, श्वास, जुकाम, शूल, गूल्म, उदर और अन्य विभिन्न प्रकार के विषम रोगों को प्राप्त हो जाता है। +: जब पृथ्वी तल पर थोड़ा जल संगृहीत हो जाता है, तो पृथ्वी और जल के संयोग से अनेक प्रकार की औषधियाँ उत्पन्न होती है। +: वापी, कूप, तड़ाग, उत्स, प्रस्त्रवण ये जल संरक्षण के साधन हैं। +: सदा अन्नदान करते रहना और प्रतिदिन जल दान में प्रवृत्त रहते थे उन्होंने असंख्य पोखरण बगीचों और बावड़ियो का निर्माण करवाया था। +: यहाँ रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयुक्त किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में 'विनम्रता' से है। मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे के बिना संसार का अस्तित्व नहीं हो सकता, मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है उसी तरह विनम्रता के बिना व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं हो सकता। मनुष्य को अपने व्यवहार में हमेशा विनम्रता रखनी चाहिए। +* यदि इस ग्रह पर जादू है, तो यह पानी में निहित है। लोरेन ईसेली +* पानी सभी प्रकृति की प्रेरक शक्ति है। लियोनार्डो दा विंसी +* पानी की तुलना में कुछ भी नरम या अधिक लचीला नहीं है, फिर भी कुछ भी इसका विरोध नहीं कर सकता है। लाओ त्सू +* हम भूल जाते हैं कि जल चक्र और जीवन चक्र एक हैं। Jacques Yves Cousteau +* पानी की एक बूंद में सभी महासागरों के सभी रहस्य पाए जाते हैं। काहिल जिब्रान +* हजारों प्यार के बिना रहते हैं, पानी के बिना नहीं। डब्ल्यू एच. ऑडेन +* पानी की एक बूंद, अगर यह अपना इतिहास लिख सकता है, तो ब्रह्मांड को हम��ं समझाएगा। लुसी लारकॉम +* हम में जीवन एक नदी में पानी की तरह है। हेनरी डेविड थोरयू +* जब कुआँ सूख जाता है, तब उन्हें पानी का महत्व मालूम होता है। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* आप पानी में गिरने से नहीं डूबते। आप केवल डूबते हैं अगर आप वहां रहते हैं। जिग जिगलर +* पानी पानी में शामिल होना चाहता है। युवा वर्ग युवाओं से जुड़ना चाहता है। हरमन हेस +* मानव का स्वभाव पानी की तरह होना चाहिए. जैसे पानी अपने पात्र का आकार लेता है. +* स्वस्थ जीवनशैली के लिए पानी पीना आवश्यक है। स्टीफन करी +* अनुपयोग से लोहे में जंग लग जाता है; पानी ठहराव से अपनी शुद्धता खो देता है यहां तक कि निष्क्रियता भी मन की शक्ति को नष्ट कर देती है। लियोनार्डो दा विंसी +* जल पृथ्वी की आत्मा है। डब्ल्यू एच. ऑडेन + + +* अक्सर अवसर कड़ी मेहनत के भेष में छिपे होते हैं, इसलिए अधिकतर लोग इन्हें पहचान ही नहीं पाते। एन लैंडर्स +* अगर लोगों को पता होगा कि मुझे अपनी महारत हासिल करने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी थी, तो यह बिल्कुल भी आश्चर्यजनक नहीं लगेगा। माइकल एंजेलो +* अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित कर कठिन परिश्रम करना ही सफलता की चाभी है । जॉन कारमैक +* आपका खुद का थोड़ा सा अभ्यास दुनिया के हर उपदेश से बेहतर है। महात्मा गाँधी +* इंसान को कभी बहानो में विश्वास नहीं करना चाहिए बल्कि समस्याओं को ख़त्म करने में विश्वास करना चाहिए। अज्ञात +* एक सपना किसी चमत्कार से हकीकत नहीं बन सकता इसमें पसीना, दृढ संकल्प और कड़ी मेहनत लगती है। कॉलिन पॉवेल +* कठिन परिश्रम वह कीमत होती है जो हमें सफलता प्राप्त करने के लिए चुकानी पड़ती है। मुझे यह लगता है अगर आप यह कीमत चुका सकते है तो आप कुछ भी पा सकते है। विन्से लोम्बार्डी +* हर अवसर के साथ यह दिक्कत होती है कि वह हमेशा कठिन परिश्रम के भेष में आता है। हर्बर्ट प्रोच्नो +* कुछ भी पाने के लिए तीन चीजें जरूरी हैं कड़ी मेहनत, दृढ़ता और सामान्य समझ। थोमस एडिसन +* कोई भी लीडर पैदा नहीं होता बल्कि उसे बनाना पड़ता है और किसी चीज की तरह ये भी कठोर परिश्रम से बनते हैं। यही वो चीज है जो इस चीज को या किसी अन्य लक्ष्य को पाने के लिए चुकानी पड़ती है। विन्से लोम्बार्डी +* आप यह जानते हैं कि अगर आप अपने काम का आनन्द उठा रहे हैं तो आपको आपका काम कभी कठिन परिश्रम नहीं लगेगा। देखिये, मैं यहाँ 57 वर्षों से हूँ, और मुझे यह बतान�� की जरूरत नहीं की मैं क्यों इतने लम्बे समय तक टिक पाया। मैंने हमेशा इसका आनंद उठाया है। जॉन हेंच +* धैर्य रखना वह कठिन काम है जो आप उस समय करते है जब आप कड़ी मेहनत करके थक जाते है। गिनग्रिच +* पूरा जीवन संघर्ष की मांग करता है। जिन्हें सबकुछ बैठे बैठे मिल जाता है वो आलसी स्वार्थी और जीवन के वास्तविक मूल्यों के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं। सम्पूर्ण प्रयास और कठोर परिश्रम जिससे हम बचने की कोशिश करते हैं दरअसल वही हम आज जो व्यक्ति हैं उसका प्रमुख निर्माण खंड है। राल्फ रैनसम +* प्रतिभा के बिना मेहनत शर्म की बात है, लेकिन कड़ी मेहनत के बिना प्रतिभा एक त्रासदी है। रॉबर्ट हाफ +* प्रेरणा एक ऐसी चीज है जिस पर आप नियंत्रण नहीं कर सकते लेकिन कठिन परिश्रम नाव को चलाता रहता है। अच्छे भाग्य का अर्थ है कड़ी मेहनत। अच्छा काम करते रहिये। केविन युबैंक्स +* बस अपने पसीने का आनंद उठाइए हालाँकि कठिन परिश्रम सफलता की गारंटी नहीं देता, पर उसके बिना सफल होने का कोई चांस ही नहीं है। लेक्स रोद्रिगुएज़ +* बिना मेहनत के झाड़ के अलावा और कुछ भी नहीं उगता। गोर्डन हिन्क्ले +* मुझे किस्मत के बारे में नहीं पता और मैं कभी इसके भरोसे नहीं रहा। मुझे उनसे डर लगता है जो इसके भरोसे रहते हैं। मेरे लिए किस्मत का मतलब कठिन परिश्रम करना है। लूसिले बाल +* मैं कड़ी मेहनत और लम्बे समय त काम करने में यकीन रखता हूँ। इंसान अधिक काम करने से नहीं टूटता, बल्कि चिंता और असंयम से टूटता है। चार्ल्स एवैंस ह्युगेज +* मैं किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानती जो कड़ी मेहनत किये बिना ही शीर्ष तक पंहुचा हो। कड़ी मेहतन ही एक उपाय है जो शायद आपको ज्यादा ऊपर तक न ले जाये, लेकिन आपको काफी करीब पहुंचा देगा। मार्गरेट थैचर +* मैं जानता हूँ कि आप कई बार सुन चुके हैं, लेकिन यह सच है की परिश्रम का फल मिलता है। यदि आप अच्छा बनना चाहते हैं तो खूब अभ्यास कीजिये। यदि आप किसी काम को पसंद नहीं करते उसे मत कीजिये। रे ब्राडबरी +* मैं भाग्य में अधिक विश्वास रखता हूं, और मुझे लगता है कि जितना अधिक मेरे पास है मैं उतना ही कठिन काम करूंगा। थॉमस जेफरसन +* मैंने कड़ी मेहनत की कीमत कड़ी मेहनत कर के जानी। मार्गरेट मीड +* यदि आप कोशिश करते हैं और हार जाते हैं तो यह आपकी गलती नहीं है। लेकिन अगर आप कोशिश ही नहीं करते हैं और हार जाते हैं, तो यह सारी आपकी गलती है। ऑर्ट�� स्कॉट कार्ड +* योजनाएं उस समय तकअच्छे इरादे हैं जब तक कि उन्हें तुरंत कड़ी मेहनत में न बदला जाये। पीटर ड्रकर +* श्रम के बिना कुछ भी नहीं। सोफोक्लेस +* सफलता का आधार है, सकारात्मक सोच के साथ निरंतर प्रयास। अज्ञात +* सफलता का कोई शार्टकट नहीं होता, सकारात्मक सोच और कठिन परिश्रम ही सफलता का रहस्य है। अज्ञात +* सफलता का चिराग परिश्रम से जलता है। अज्ञात +* सिर्फ एक चीज है जो खराब किस्मत पर काबू पाती है और वह वह है कठोर परिश्रम। हैरी गोल्डन +* हर 2 मिनट की शोहरत के पीछे 8 घंटे की मेहनत छुपी होती है। जेसिका सैविच +* हर कोई वहां बैठ कर शो देखता है और एक आइडल बनने की उम्मीद करता है, लेकिन हम उन्हें यह सीखाने जा रहे हैं की इसमें कितनी मेहनत लगती है। बो बाईस +* आदमी कुछ ऐसा बना है कि उसे एक काम से आराम सिर्फ दुसरे काम को कर के मिलता है। अनातोले फ्रांस +* आराम करो; जो खेत विश्राम करते हैं वे भरपूर फसल देते है। ओविड +* कठोर परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है। थॉमस अल्वा एडिसन +* कर्म ही पूजा है। महात्मा गांधी +* काम पैसा कमाने के लिए नहीं है; आप जीवन का औचित्य साबित करने के लिए काम करते हैं। मार्क चगल +* भगवान श्रम की कीमत पर हमें सभी चीजों को बेचता है। लियोनार्डो दा विंसी +* मुझे किसी भी बहानेबाजी में यकीन नहीं है। जीवन की की किसी भी समस्या को सुलझाने के लिए मैं कड़ी मेहनत को प्रमुख कारक मानता हूँ। जेम्स कैश पेनी +* वो जो मेहनत से काम करता है उसे कभी निराश होने की ज़रुरत नहीं है; क्योंकि सभी चीजें परिश्रम एवं श्रम से प्राप्त की जाती हैं। मेंइंडर +* वास्तव में श्रम ही हर चीज में फर्क डालता है। जॉन लॉक +* श्रम एकमात्र प्रार्थना है जिसका उत्तर प्रकृति देती है। रॉबर्ट ग्रीन इंगरसोल +* श्रम का अंत फुर्सत के पल पाना है। अरस्तू +* श्रम के बिना कुछ भी नहीं फलता-फूलता। सोफोक्ल्स +* स्वर्ग परिपूर्ण विश्राम से धन्य है लेकिन पृथ्वी का आशीर्वाद परिश्रम है। हेनरी वैन डाइक +* हर एक काम जो मानवता का उद्धार करता है उसमे गरिमा एवं महत्ता होती है और उसे श्रमसाध्य उत्कृष्टता के साथ किया जाना चाहिए। मार्टिन लूथर किंग + + +वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नही देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है। +भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी। उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं, पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है। जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी। प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है। एरिक हाफर +प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है। +सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है। +यक्ष-युधिष्ठिर संवाद महाभारत में है। +कौन व्यक्ति आनन्दित या सुखी है? इस सृष्टि का आश्चर्य क्या है जीवन जीने का सही मार्ग कौन-सा है? रोचक वार्ता क्या है? मेरे इन चार प्रश्नों का उत्तर देने के बाद तुम जल पी सकते हो। +: हे जलचर (जलाशय में निवास करने वाले यक्ष जो व्यक्ति पांचवें-छठे दिन ही सही, अपने घर में शाक (सब्जी) पकाकर खाता है, जिस पर किसी का ऋण नहीं है और जिसे परदेस में नहीं रहना पड़ता, वही मुदित-सुखी है। +प्रतिदिन ही प्राणी यम के घर में प्रवेश करते हैं, शेष प्राणी अनन्त काल तक यहाँ रहने की इच्छा करते हैं। क्या इससे बड़ा कोई आश्चर्य है? +: प्रतिदिन ही प्राणी यम के घर में प्रवेश करते हैं, शेष प्राणी अनन्त काल तक यहाँ रहने की इच्छा करते हैं। इससे बड़ा और क्या आश्चर्य हो सकता है ! +: जीवन जीने के असली मार्ग के निर्धारण के लिए कोई सुस्थापित तर्क नहीं है। श्रुतियां (शास्त्र तथा अन्य स्रोत) भी अलग-अलग बातें करती हैं। ऐसा कोई ऋषि/चिन्तक/विचारक नहीं है जिसके वचन प्रमाण कहे जा सकें। वास्तव में धर्म का रहस्य तो गुहा (गुफा) में छिपा है, यानी बहुत गूढ़ है। ऐसे में समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति जिस मार्ग को अपनाता है वही अनुकरणीय है । +: काल (यानी निरंतर प्रवाहशील समय) सूर्य रूपी अग्नि और रात्रि-दिन रूपी ईंधन से तपाये जा रहे भवसागर रूपी महा मोहयुक्त कढ़ाई में महीने तथा ऋतुओं के कलछे से उलटते-पलटते हुए जीवधारियों को पका रहा है । यही प्रमुख वार्ता (खबर) है। +: किसके द्वारा प्रेषित यह मन बाण की भांति अपने लक्ष्य पर जाकर गिरता है? किसके द्वारा नियुक्त प्रथम प्राण अपने पथ पर आगे बढ़ता है? किसके द्वारा प्रेरित है यह वाणी जिसे मनुष्य बोलते हैं? कौन है वह देव जिसने चक्षु और कर्ण को उनकी क्रियाओं में नियुक्त कर दिया है? +चरकसंहिता में शारीरस्थानम् में पुरुष के संबंध में अनेक प्रश्न उठाकर उनका उत्तर दिया गया है। जिसमें सांख्य दर्शन का पूर्ण प्रभाव परिलक्षित होता है। +: धातु-भेद से पुरुष पुरुष कितने प्रकार का है यह पुरुष कारण (कर्ता) कैसे है? पुरुष को उत्पन्न करने वाला कौन है? ॥३॥ +: वह पुरुष क्या अज्ञ (ज्ञानरहित) है अथवा ज्ञानी है? क्या वह नित्य है अथवा अनित्य बताया गया है? प्रकृति कौन है विकार कौन से हैं? और पुरुष का लिङ क्या है (जिससे वह अनुमान द्वारा जाना जाता है ॥४॥ +: आत्मज्ञानी लोग आत्मा को क्रियारहित, स्वतन्त्र, वशी (सब भौतिक पदार्थों को वश में रखने वाला सर्वगत, विभु (सर्वव्यापक क्षेत्रज्ञ तथा साक्षी बताते हैं। तथा' से यहाँ निर्विकार का अर्थ भी ग्रहण करना चाहिये।) ॥५॥ +: यदि वशी है तो बलात् दुःखकर भावों से आक्रान्त क्यों होता है अर्थात् यदि वह सबको वश में रखनेवाला है तो दुःखकर भावों से उसके आक्रान्त होने में आप क्या हेतु समझते हैं आत्मा सर्वगत है तो सब वेदनाओं को क्यों नहीं चाहता ७ +: विभु आत्मा पर्वत वा दीवार आदि के पीछे छिपी वस्तु को क्यों नहीं देख पाता यदि आत्मा क्षेत्रज्ञ है तो यह संशय होता है कि क्या क्षेत्रज्ञ पूर्व होगा वा क्षेत्र पूर्व है॥ ८॥ +: यदि क्षेत्रज्ञ पूर्व मानें तो वह हमारी समझ में नहीं आता। क्योंकि ज्ञेय है क्षेत्र। जब ज्ञेय ही नहीं तो शाता कहाँ से? अतएव क्षेत्रज्ञ का पूर्व होना युक्तिसंगत नहीं । यदि हम क्षेत्र को पूर्व मानें तो क्षेत्रज्ञ (आत्मा) को अशाश्वत-अनित्य मानना होगा। (क्योंकि क्षेत्र के बाद आत्मा उत्पन्न हुआ)॥९॥ +: जब आत्मा के अतिरिक्त अन्य कर्ता ही नहीं है तो यह साक्षी किसका है एक व्यक्ति कर्म करता है और दूसरा उसको देखता है वह देखनेवाला व्यक्ति साक्षी कहाता है, परन्तु जब कोई अन्य कर्ता ही नहीं तो हम आत्मा को साक्षी कैसे स्वीकार करें आत्मा को अविकार विकाररहित) कहा जाता है। अर्थात् उसमें किसी प्रकार परिवर्तन नहीं होता। यदि वह अविकार है तो वेदनाजन्य भिन्नता उसमें कैसे होती है अर्थात सुख-दुःख से उसमें भिन्नता क्योंकर होती है?)॥१०॥ +: हे भगवन् भूत, वर्तमान वा भविष्यत् इन तीन प्रकार की वेदनाओं रोगों) में से वैद्य रोगी के किस रोग की चिकित्सा करता है? ॥११॥ +: भविष्यत् वेदना की चिकित्सा तो वह कर ही नहीं सकता, क्योंकि वह तो अभी तक पहुँची ही नहीं। जो भूत वेदना है वह वापिस नहीं आ सकती। जो वर्तमान पीड़ा है वह भी स्थिर नहीं, क्योंकि सब भावों का स्वभाव नित्य गमन करने का है। काल भी नित्यग है। जब संवत्सर रूपी काल और आतुरावस्था रूपी काल नित्यग हैं तो रोग की चिकित्सा नहीं ���ो सकती । क्योंकि ज्यों ही हम रोगी की वेदना का विचार करेंगे वैसे ही नयी अवस्था आ पहुँचेगी और इस प्रकार चिकित्सा असम्भव होगी । अतएव हमको यह संशय होता है कि वैद्य किस वेदना की चिकित्सा करता है॥१२॥ +: वेदनाओं का क्या कारण है? उनका अधिष्ठान (आश्रय क्या है? और ये सब वेदनायें सम्पूर्णतया कहाँ निवृत्त होती हैं? ॥१३॥ +: सर्वज्ञ, सर्वत्यागी, सब संयोगों से हटा हुआ, प्रशान्त भूतात्मा को किन लिङ्गों (लक्षणों) से जान सकते हैं १४ +प्रश्नोत्तररत्नमालिका एक संस्कृत ग्रन्थ है जिसमें १८१ प्रश्नोत्तर सहित ६७ श्लोक हैं। यह रचना वैदिक धर्म के सनातन मूल्यों को प्रश्नोत्तर के रूप में प्रस्तुत करती है जो देश, काल एवं परिस्थिति से परे है। +: भगवन् उपादेय (अर्थात् ग्रहण करने योग्य) क्या है? गुरुजनों के वचन । और हेय (त्यागने योग्य) क्या है?। अकार्य (नहीं करने योग्य कार्य)। गुरु कौन है? जिसने तत्त्व को समझ लिया है, जान लिया है तथा जो निरन्तर जगत के जीवों का हित करने में लगा हुआ हो। +: संसार का सार क्या है? — उस तत्व के लिए निरंतर चिंतन करना । +: मनुष्य के लिए इष्ट क्या है? — स्वयं के और दूसरों के लिए जीवन समर्पित करना । +: मदिरा की तरह मोहजनक (भ्रामक क्या है स्नेह । चोर कौन हैं? विषय (इन्द्रिय सुख)। +: जीवित कौन है जो निष्कलंक है। मूर्खता क्या है? जो सीखा हुआ है, उसका अभ्यास न करना। +: जागृत कौन है? जो विवेकी है। निद्रा क्या है? मनुष्य की अज्ञानता । +: प्राप्त करने योग्य क्या है? प्राणीमात्र का हित । प्राणीमात्र को प्रिय क्या है अपना जीवन। +किससे प्रेम करना चाहिये? दीन व्यक्ति के प्रति करुणा, और सज्जनों से मैत्री । +: कौन निरोग रहता है, कौन निरोग रहता है, कौन निरोग रहता है? हितकारी (पोषक तत्वों से युक्त) भोजन करने वाला, कम मात्रा में भोजन करने वाला और इन्द्रियों को नियन्त्रण में रखने वाला निरोग रहता है। +: कौन निरोग रहता है, कौन निरोग रहता है, कौन निरोग रहता है? सौ कदम चलने वाला और बाएँ तरफ करवट लेटकर सोने वाला निरोगी होता है। +इसका दूसरा रूप भी प्रचलित है- +: कौन निरोग रहता है? कौन निरोग रहता है? कौन निरोग रहता है? हितकारी भोजन करने वाला, अल्प मात्रा में भोजन करने वाला और ऋतु के अनुसार भोजन करने वाला निरोग रहता है। +: मनुष्यों के लिए (वस्तुतः) भाग्य कौन-सा है आरोग्य। किसको फल मिलता है? कृषि करने को। पाप किसको नहीं लग��ा? जप करने वाले को। पूर्ण कौन है बालबच्चेवाला । +: आपकी जो यह इच्छा है कि 'सभी वर्णों में ब्राह्मण वर्ण प्रधान हो' तो यहाँ बताते हैं कि यह ब्राह्मण कौन है? क्या आत्मा ब्राह्मण है, क्या जाति ब्राह्मण है, क्या शरीर ब्राह्मण है, क्या आचार ब्राह्मण है, क्या कर्म ब्राह्मण है, क्या ज्ञान (वेद) ब्राह्मण है? + + +* प्रथम और सरलतम संवेग जो हम मनुष्य के मस्तिष्क में पाते हैं, वह जिज्ञासा है। बार्क +* जिज्ञासा तीव्र बुद्धि का एक निश्चित गुण है। सैमुअल जॉनसन +* वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नही देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है। +* भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी। उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं, पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है। जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी। प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है। एरिक हाफर +* प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है। +* सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है। +* यह कैसा समय है? मेरे कौन मित्र हैं? यह कैसा स्थान है। इससे क्या लाभ है और क्या हानि? मैं कैसा हूं। ये बातें बार-बार सोचें (जब कोई काम हाथ में लें)। नीतसार +* शंका नहीं बल्कि आश्चर्य ही सारे ज्ञान का मूल है। अब्राहम हैकेल +* यह कैसा समय है? मेरे कौन मित्र हैं? यह कैसा स्थान है। इससे क्या लाभ है और क्या हानि? मैं कैसा हूं। ये बातें बार-बार सोचें (जब कोई काम हाथ में लें)। नीतिसार + + +काल या समय का वैज्ञानिक और दार्शनिक दोनों दृष्टियों से महत्व है। समय अदृष्य तो है ही, इसकी प्रकृति को समझना भी दुष्कर है। +: करोड़ों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता। वह क्षण जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है, ऐसे नर-पशु को नमस्कार । +: कोई छोटा सा भी काम अगर सही समय पर पूरा कर दिया जाय तो वह उपकारक होता है। परन्तु यदि ठीक समय पर पूरा न करके देर से पूरा किया जाय तो वह कार्य व्यर्थ चला जाता है। +भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि) काल राजा को बनाता है या राजा काल को बनाता है- इसमें तुम कभी संशय मत करना। जान लो कि राजा ही काल को बनाता है। अर्थात् जैसा राजा होगा, वैसा समय होगा और वैसी ही नीतियाँ व परिस्थितियाँ । +: अर्थ किसी काम को बहुत समय तक खींचते रहने वाला विनष्ट हो ज��ता है। +कालो ह्यं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी समय का कोई अन्त (अवधि) नहीं है और यह पृथ्वी बड़ी है।) +: क्षण-क्षण का उपयोग करके विद्या का और कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये। +: धीरे-धीरे (धैर्य से) रास्ता काटना या चलना चाहिए, धीरे-धीरे सिलाई करना (या वैराग्य लेना) चाहिये, धीरे-धीरे पर्वत चढ़ना चाहिए, धीरे-धीरे विद्या प्राप्त करना चाहिए और पैसे भी धीरे कमाना चाहिए। ये पांचों काम धीरे-धीरे ही करने चाहिए। +: जिस प्रकार धीरे-धीरे सिंह, गज और व्याघ्र आदि को वश में कर लिया जाता है, उसी प्रकार वायु भी प्राणायाम के अभ्यास से धीरे-धीरे वश में आ जाती है; लेकिन इसके विपरीत नियम से चलने पर यानी जल्दबाजी करने से वायु साधक (योगी) का विनाश कर देती है। +: अर्थ लेने, देने और करने योग्य कार्य यदि तुरन्त नहीं कर लिया जाता तो समय उसका रस पी जाता है। +: अर्थ जो राजा योग्य समय पर स्वयं अपना कार्य नहीं करता, वह राजा अपने राज्य एवं अपने द्वारा किये गये कार्यों सहित विनष्ट हो जाता है। +: बुद्धिमान मनुष्यों का अधिकांश समय शास्त्रों और साहित्य का अध्ययन व अध्यापन द्वारा आनन्द पूर्वक व्यतीत होता है जबकि मूर्खों का समय नाना प्रकार के दुर्व्यसनों, निद्रा अथवा कलह (लड़ाई-झगड़े) मे व्यतीत होता है। +: काल किसी का डण्डे से किसी का सिर नहीं तोड़ता। (बल्कि) काल का बल यही है कि वह विपरीतार्थदर्शन कराता है (उल्टा दिखाता है बुद्धिभेद करता है जिससे मनुष्य को गलत रास्ता ही सही लगता है और वह अपने विनाश की ओर बढता है।) +: धनञ्जय (अर्जुन काल ही इन सब की जड़ है। संसार की उत्पत्ति का बीज भी काल ही है और काल ही अकस्मात् सब का संहार कर देता है। +: अर्थ बीता हुआ समय (वापस) नहीं आता। +: अर्थ काल की गति कुटिल (टेढ़ी-मेढ़ी) होती है। +: अर्थ– समय पर आरम्भ की गयी नीतियां सफल होती हैं। +* समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जात । +* का वर्षा जब कृषि सुखाने, समय चूकि पुनि का पछताने। +: तात्पर्य यह है कि कुछ कार्य ऐसे हैं जिनका एक निश्चित समय से पहले करना बहुत जरूरी है। वह समय निकल गया तो उस कार्य को करने से कुछ भी लाभ नहीं होता, जैसे फसल सूख जाने के बाद वर्षा का होना। +: रहीम कहते हैं कि (जब बुरे दिन चल रहे हों) तब समय-चक्र को देखते हुए (समझते हुए) अच्छे दिनों प्रतीक्षा करनी चाहिये। जब अच्छे दिन आयेंगे तब बनते देर नहीं लगेगी। +* समय को व्यर्थ नष्ट मत क���ो क्योंकि यही वह चीज है जिससे जीवन का निर्माण हुआ है। बेन्जामिन फ्रैंकलिन +* किसी भी काम के लिये आपको कभी भी समय नहीं मिलेगा। यदि आप समय पाना चाहते हैं तो इसका निर्माण करना पड़ेगा । +* अतिरिक्त समय का एक टुकड़ा उधार लेना अच्छा था। Francesca Marciano +* अतीत आखिरी नहीं हो सकता है, लेकिन यह अन्तहीन निशान के पीछे छोड़ देता है। Priyaanshu +* अनिश्चितता के क्षण में चीजें अर्थपूर्ण रूप से कड़ी हो सकती हैं। John Ashbery +* अनुभवी लोगों को जानना आपके लिए सबसे अच्छा अवकाश समय है। Mahrukh Memon +* अपना वक्त किसी को देने से पहले दो बार सोचे, क्योंकि उसका हिसाब आपको ही देना होगा। अज्ञात +* अपना समय क्रोध, पछतावा, चिंता तथा ईर्ष्या में मत ज़ाया करें। दुखी रहने के लिए ज़िन्दगी बहुत छोटी है। रॉय टी. बेनेट +* अपनी आंतरिक शक्ति और शांति को विकसित करने का समय और प्रयास निवेश करें। Akiroq Brost +* अपनी आत्मा को खिलाने के लिए समय निकालें और दिमाग-शरीर-भावना के कनेक्शन को मजबूत रखें। Dee Waldeck +* अपने जीवन के हर मिनट का आनंद लेना सीखें। अभी खुश रहो। भविष्य में आपको संतुष्ट करने के लिए खुद से बाहर किसी चीज़ का इंतज़ार न करें। इस बात पर विचार करें कि आपके पास कितना कीमती समय है। +* असल बात समय को खर्च करना नही है, परंतु इसका उचित उपयोग करना है। स्टीफन आर. कोवे +* आप एक बिंदु पर पहुंच जाते हैं जहां बुरा समय चला जाता है। Eugene Marten +* आप विलम्ब कर सकते हैं पर समय नहीं करेगा। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* आप समय की सेवा करने के लिए नहीं हैं। समय आपकी सेवा करने के लिए है। अब अपने मालिक बनें। E'yen A. Gardner +* आपका सबसे बड़ा संसाधन आपका समय है। Brian Tracy +* आपका समय एक ऐसी चीज है जिसे आप किसी और पर नहीं छोड़ सकते। आप क्या करना चाहते हैं? क्या आप यह कर रहे हैं अनीता ढेक +* आपके अंदर का व्यस्त इंसान जीवन में समय की कमी से भली भांति परिचित है। और उसे पता है कि बीता हुआ कल आज की याद है और आने वाला कल आज के ख्वाब की तरह है। काहलिल गिब्रन +* आपके द्वारा निवेश किए जाने वाले समय के अनुसार आपको मूल रूप से भुगतान मिलता है। Yohann Dafeu +* आपके द्वारा प्यार किए जाने वाले किसी व्यक्ति के साथ बिताए एक दिन सबकुछ बदल सकता है। Mitch Albom +* आपके पास कुछ भी नहीं करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है। बिल वॉटर्सन +* आपने अभी यहां रहने का फैसला किया है। आपको वर्तमान में रहने की कोशिश करनी चाहिए। Francesca Marciano +* इस उज्ज्वल नीले ग्रह पर बित��ए गए हर पल कीमती है इसलिए इसे सावधानीपूर्वक उपयोग करें। Santosh Kalwar +* इस आशा के साथ कि वह दरवाजा में बदल जाएगा, किसी दीवार को पीटने में अपना समय नष्ट मत करो। कोको चैनल +* इस संसार में सब कुछ समय के अनुसार बदल जाता है। Sunday Adelaja +* मानव को शान के साथ काम करने के लिए लंबे समय तक सपने देखने चाहिए, और ये सपने अक्सर अँधेरे में पलते हैं। जीन जेनेट +* उन लोगों के बारे में सोचने में एक मिनट बर्बाद न करें जिन्हें आप पसंद नहीं करते हैं। Dwight D. Eisenhower +* उन लोगों के बीच अंतर जो उच्च उपलब्धि प्राप्त करने वाले हैं और जो ऐसा नहीं करने वाले हैं। यह फर्क उन तरीकों से होगा जो अपने समय का उपयोग चीजों को प्राप्त करने के लिए करते हैं। एरिक लोफहोम +* उन लोगों के लिए समय क्या था जो जल्द ही डिजिटल अमरत्व प्राप्त करेंगे?। Clyde DeSouza +* उन लोगों को समय और ऊर्जा दें जो आपको समय और ऊर्जा देते हैं। Akiroq Brost +* एक अच्छा रवैया एक अच्छे दिन का निर्माण करता है, और एक अच्छा दिन एक अच्छे महीने का और एक अच्छा महीना एक अच्छे साल का, और एक अच्छा साल एक अच्छे जीवन का निर्माण करता है। अज्ञात +* एक जीवन दस सेकंड में बदल सकता है या कभी-कभी यह 70 साल ले सकता है। Charles Bukowski +* एक मिनट देर करने से अच्छा है, कि समय से तीन घण्टे पूर्व कार्य कर लिया जाए। विलियम शेक्सपियर +* एक व्यक्ति जो आपके समय का मूल्य नहीं रखता है, वह आपकी सलाह को महत्व नहीं देगा। Orrin Woodward +* एक व्यक्ति जो जीवन के एक घंटे बर्बाद करने की हिम्मत करता है, उसने जीवन के मूल्य की खोज नहीं की है। Charles Darwin +* एक समय में दो चीजें करना कुछ न करना है। Publius Syrus +* ऐसा नही है कि हमारे पास ज़िन्दगी जीने के लिए बहुत कम समय होता है, परंतु उसमे से अधिकांश का हम व्यर्थ में दुरुपयोग कर देते हैं। सेनेका +* कठिन समय में समझदार व्यक्ति हल खोजता है, और कायर व्यक्ति बहाना बनाता है। अज्ञात +* कभी-कभी प्रतीक्षा करना सबसे कठिन बात है। Dean Koontz +* कल तक के लिए कभी नहीं छोड़ें जो आप आज कर सकते हैं। Benjamin Franklin +* कहानी जीवन के लिए रूपक है और जीवन समय पर रहता है। Robert McKee +* कार्य करने के लिए कोई भी समय सही समय नही होता, खुद को तैयार करने से पहले अपनी चाल चलें और सब कुछ अपने आप ही अपने उचित स्थान पर आ जाएगा। ए. टी. जी. डब्लू +* कुछ यादें ऐसी होती हैं, जिन्हें समय नही मिटा सकता, इस अभाव को पूरी उम्र में भी भुलाया नही जा सकता, बस लोग उसे सहन करना सीख लेते हैं। कैसान्द्रा ���्लार +* कुंजी समय बिताने में नहीं है, लेकिन इसे निवेश में है। Stephen R. Covey +* कैलेंडर एक मानव आविष्कार है; समय आध्यात्मिक स्तर पर मौजूद नहीं है। Isabel Allende +* कोई आज छाया में बैठा है क्योंकि किसी ने बहुत समय पहले एक पेड़ लगाया था। वारेन बफेट +* जब अपनों का साथ हो तो, बुरे से बुरा वक्त भी जल्दी कट जाता है। अज्ञात +* जब आप अपनी आत्मा को उन चीजों पर समय बिताते हैं, जिनसे आप प्यार करते हैं, जिसके बारे में आप उत्साहित हैं, तो आपका उत्साह संक्रामक हो जाता है। रीता डेवनपोर्ट +* जब आप पैसा सोच समझकर खर्च करते हैं तो समय के साथ ऐसी लापरवाही क्यों। +* जब आपके पास इसे सही से करने का समय नहीं है तो इसे ख़त्म करने का समय कब होगा जॉन वुडन +* जब तक आप अपना मूल्य नहीं समझेंगे तब तक आप अपने समय की महत्ता नहीं समझेंगे। जब तक आप अपने समय की महत्ता नहीं समझेंगे आप उसका कुछ नहीं करेंगे। एम्.स्कोट पेक +* जब तक हम इसे महत्व देना नहीं चुनते हैं, तब तक समय का कोई अर्थ नहीं होता है। Leo F. Buscaglia +* जब तक हम मर जाते हैं तब तक हम पैदा होते हैं, हम कृत्रिम सामान के साथ व्यस्त रहते हैं जो महत्वपूर्ण नहीं है। Tom Ford +* जब दुर्लभ मौका आता है, तो इसे पकड़ो, दुर्लभ कार्य करने के लिए। Thiruvalluvar +* ज़िन्दगी बहुत छोटी है। उस पर ध्यान केंद्रित करें जो आपके लिए सबसे अधिक मायने रखता है। समय के साथ साथ आपको अपनी प्राथमिकताएं बदलनी चाहिए। रॉय टी. बेनेट +* जीवन का सबसे अच्छा उपयोग प्यार है। प्यार की सबसे अच्छी अभिव्यक्ति समय है। प्यार करने का सबसे अच्छा समय अब है। Rick Warren +* जीवन में मेरी पसंदीदा चीजों में कोई ख़ास खर्च नहीं है। यह वास्तव में बिलकुल स्पष्ट है कि सबसे कीमती संसाधन जो हमारे पास है वह है समय। स्टीव जॉब्स +* जो चीज़ वास्तव में हमारे पास है, वह है समय, क्योंकि जिसके पास कुछ भी नही होता, उसके पास समय होता है। बाल्टसर ग्रेसियन +* जो लोग अपने समय का सबसे अधिक दुरूपयोग करते हैं, वही लोग अक्सर समय न होने की शिकायत किया करते हैं। जीन डी ला ब्रुयेरे +* जो लोग मौज-मस्ती के लिए समय नहीं निकाल पाते वो देर-सबेर बीमारी के लिए समय निकाल लेते हैं। जॉन वानामैकर +* जो सबसे ज्यादा जानता है वह बर्बाद समय के लिए सबसे ज्यादा दुखी होता है। Dante +* जो समय की कदर करता है समय उसकी कदर करता है। अज्ञात +* टाइम के बारे में बात यह है कि हर किसी के लिए इतना प्रचुर, हर किसी के पास खुद को साबि��� करने के लिए एक दिन में ठीक चौबीस घंटे हैं, उस दिन के लिए हमारे पास जो कुछ भी है, उसे हासिल करने के लिए, हमारे पास हर एक दिन अपने को बेहतर बनाने का मौका है। जेम्स क्लियर +* तीन घंटे जल्दी करना एक मिनट देर करने से बेहतर है। विलियम शेक्सपियर +* तुम्हारे पास समय बहुत कम है,किसी दूसरे का जीवन जीने में इसे बर्बाद न करें। अज्ञात +* दीवार को तोड़ने में समय लगाने के बजाये इस दरवाज़े का निर्माण करो। कोको चैनल +* दुनिया की सृजन समय की शुरुआत में नहीं हुई थी, यह हर दिन होता है। Marcel Proust +* दुर्घटनाएं दुर्घटनाएं नहीं हैं लेकिन गलत समय पर सटीक आगमन हैं। Dejan Stojanovic +* दो सबसे महान योद्धा धैर्य और समय हैं। लियो टॉलस्टॉय +* दो सबसे शक्तिशाली योद्धा धैर्य और समय हैं। Leo Tolstoy +* दो स्थानों के बीच की अधिकतम दूरी समय होती है। टेनेसी विलियम्स +* धन, मैं केवल पा या खो सकता हूं। लेकिन समय मैं केवल खो सकता है। तो, मुझे इसे सावधानी से खर्च करना होगा। Author Unknown +* पुरुष समय की हत्या के बारे में बात करते हैं, जबकि समय चुपचाप उन्हें मारता है। Dion Boucicault +* पैसा नहीं, कौशल नहीं, लेकिन भारी धन निर्माण के लिए समय सबसे बड़ा लीवर है। Manoj Arora +* पैसा बर्बाद करने से बस आपके पास पैसा नहीं होगा लेकिन समय बर्बाद करके आप ज़िन्दगी का एक हिस्सा खो देते हैं। माइकल लीबोईफ +* प्यार पर खर्च नहीं किया गया कोई भी समय बर्बाद हो गया है। Torquato Tasso +* प्रकृति के सब काम धीरे-धीरे होते है। अज्ञात +* बहुत कम समय है। हमें हर पल गिनती करने की जरूरत है। Shannon Delany +* बीते समय के लिए मत रोइए वो चला गया और भविष्य की चिंता करना छोड़ो क्यूंकि वो अभी आया ही नहीं है वर्तमान में जियो इसे सुन्दर बनाओ । गौतम बुद्ध +* बुरी खबर है की समय उड़ रहा है, लेकिन अच्छी खबर भी है की तुम इसके पायलट हो। माइकेल अल्थ्सुलर +* भगवान व्यस्त है और आपके लिए कोई समय नहीं है। Dejan Stojanovic +* भले ही हमारा समय अच्छा हो या बुरा हो, हमारे पास यही एकमात्र समय होता है। आर्ट बुचवाल्ड +* भविष्य अनिश्चित है लेकिन अंत हमेशा निकट रहता है। Jim Morrison +* भविष्य के बारे में सबसे अच्छी चीज यह है कि वो एक-एक दिन कर के आता है। अब्राहम लिंकन +* मुझे घड़ी पर शासन करना है, उससे शासित नहीं होना है। गोल्डा मेएर +* मुझे नकारात्मकता अच्छी लगती थी। इस खाली ड्रामा में फंसने के लिए जीवन बहुत बड़ा है और समय बहुत कम है। अज्ञात +* मुझे यह लगता है कि समय सभी चीजों ��ो परिपक्व कर देता है, समय के साथ सभी चीजें उजागर हो जाती हैं, समय सत्य का प्रणेता है। फ़्रन्किओस राबेलैस +* मुझे विश्वास है कि समय की सभी इकाइयां बराबर नहीं हैं। Crystal Woods +* मुझे सबसे मूल्यवान चीज देना है मेरा समय है। Silvia Hartmann +* मुझे समय की जरूरत नहीं है, मुझे समय सीमा की जरूरत है। Duke Ellington +* मैंने कल्पना की कि मैं एक मिलीसेकंड के लिए भगवान था और लंबे समय तक भाषणहीन हो गया। Dejan Stojanovic +* यथोचित तरीके से जीने का सबसे प्रभावी तरीका है हर सुबह एक दिन की योजना बनाना और हर रात प्राप्त परिणामों की जांच करना। एलेक्सिस कैरेल +* यदि आप एक समय में दो कार्य कर रहे है, तो इसका अर्थ है कि आप दोनों ही कार्य नही कर रहे है। सायरस +* यदि आप बहुत अधिक समय तक एक चीज़ के बारे में सोचते रहेंगे, तो आप कभी भी उसे पूरा नही कर पाएंगे। ब्रूस ली +* यदि आप समय का महत्त्व नहीं समझ रहे हैं, तो समय भी ऐसा ही कर रहा है। +* यदि आप समय को नष्ट शुरू करते हैं, तो अंत में आपको नष्ट कर देगा। Deyth Banger +* यदि आपके पास समय है तो आपके पास समाधान खोजने का समय है। Dee Dee Artner +* यह मेरी भावना है कि समय सभी चीजों को परिपक्व कर देता है; समय के साथ सभी चीजें उजागर हो जाती हैं समय सत्य का पिता है। फ़्रन्किओस राबेलैस +* यह वास्तव में स्पष्ट है कि हमारे पास सबसे कीमती संसाधन समय है। स्टीव जॉब्स +* यह सही विचार है, लेकिन सही समय नहीं है। John Dalton +* ये जानिये की जो समय आपको मिला है, उसे कैसे जियें। डारियो फ़ो +* रेत के कणों की तरह ही समय फिसलता चला जाता है और फिर कभी वापस नही मिलता। रोबिन शर्मा +* रोज़ाना कुछ न कुछ करने की कोशिश करनी चाहिए इससे यह तुम्हे एक अच्छे भविष्य के नजदीक ले जाएगा। फाएर बाघ +* लक्ष्य आपके समय को कुशलतापूर्वक और प्रभावी रूप से उपयोग करने में मदद करेंगे। बिना लक्ष्य के लोग आमतौर पर जितना हासिल करने में सक्षम होते हैं उससे बहुत कम पूरा करते हैं। कैथरीन पल्सीफेर +* लोग समय नष्ट करने की बात करते हैं जबकि धीरे-धीरे समय उन्हें नष्ट करता रहता है। डीओंन बौसीकाउल्ट +* वक्त जब सजा सुनाता है तो, ना किसी जज की जरूरत होती है और ना किसी वकील की। अज्ञात +* वह जो अपना भविष्य आनंदमय बनाना चाहता है उसे अपना वर्तमान बर्बाद नहीं करना चाहिए। रोजर बार्ब्सन +* विलंब समय का चोर है। एडवर्ड यंग +* वो जो अपना भविष्य आनंदमय बनाना चाहता है उसे अपना वर्तमान नहीं बर्वाद करना चाहिए। र��जर बार्ब्सन +* व्यस्त रहना महत्वपूर्ण नही है, क्योकि चीटियाँ भी व्यस्त रहती है, महत्वपूर्ण यह है कि आप किस कार्य में व्यस्त है। हेनरी डेविड +* सझदार व्यक्ति खुद सीख जाता है, नासमझ व्यक्ति को समय सिखा देता है। अज्ञात +* सफल व्यक्ति अपने समय का उपयोग बुद्धिमत्ता पूर्वक करते हैं, वे साधारण लोगों की तरह अपने समय को बेमतलब के कार्यों में खर्च नही करते हैं। ए. टी. जी. डब्लू +* सफलता और विफलता के बीच महान विभाजन रेखा को पांच शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है मेरे पास समय नहीं था। Franklin Field +* सभी महान उपलब्धियों के लिए समय की आवश्यकता है। Maya Angelou +* सभी वस्तुओं का समय एक पल में मौजूद है। Amy Tan +* समय अनमोल है। यह सुनिश्चित करें कि आपका समय सही लोगों के साथ ही व्यतीत हो। अज्ञात +* समय अब ​​है, व्यक्ति आप है; अपने जीवन को बेहतर बनाएं और इस दिन और उम्र में एकजुट होने का नाम बनें। Ifeanyi Enoch Onuoha +* समय आपके जीवन का सिक्का है। आपके पास बस यही एक सिक्का है, और सिर्फ आप ही तय कर सकते हैं कि इसे कैसे खर्च करना है। सावधान रहिये नहीं तो आपके लिए और लोग इसे खर्च कर देंगे। कार्ल सैंडबर्ग +* समय आपके लिए इंतजार नहीं करता है, इसलिए इसे रिंग करने से पहले पहुंचें। Ram Ghale +* समय इनकार का प्राणघातक दुश्मन है और हमेशा इसके खिलाफ विजयी होता है। Chris Dietzel +* समय एक अनमोल वस्तु है। यदि आप अपनी युवावस्था में इस वास्तविकता के प्रति सजग नहीं हुए हैं, तो आप निश्चित रूप से बुढ़ापे में अफ़सोस करेंगे। अर्ल ब्रैंडोन +* समय एक खिलाड़ी है। समय आज का हिस्सा है, न केवल इसके गुजरने का एक उपाय। Jeanette Winterson +* समय एक दिशा में बढ़ता है, यादें दूसरी तरफ। विल्लियम गिब्सन +* समय एक निर्मित वस्तु के समान है। यह कहना कि ‘मेरे पास समय नही है’, यह कहने के समान है कि ‘मैं उक्त कार्य करना नही चाहता। अज्ञात +* समय एक महान शिक्षक है, लेकिन दुर्भाग्य से यह अपने सभी छात्रों को मारता है। Hector Berlioz +* समय एक समान अवसर नियोक्ता है, लेकिन हम समय के साथ कैसे व्यवहार करते हैं, यह बराबर नहीं है। जॉन सी. +* समय और ज्वार किसी आदमी के लिए इंतजार नहीं करते हैं। Stephen King +* समय का एकमात्र कारण इतना है कि सब कुछ एक बार में नहीं होता है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* समय की कमी नहीं बल्कि दिशा की कमी समस्या है। हम सभी के पास चौबीस घंटे का दिन है। जिग जिगलर +* समय की कोई शुरुआत या अंत नहीं है। Sunday Adelaja +* समय की परीक्षा ���ठिन जरूर होती है, लेकिन परिणाम आपके हाथों में होता है। अज्ञात +* समय कीमती है, लेकिन समय की तुलना में सच्चाई अधिक कीमती है। Benjamin Disraeli +* समय कुछ भी नहीं करता है लेकिन आपको कमजोर और पुरानी चीजें सौंप देता है। Aleksandar Hemon +* समय के गुजरने से कोई नहीं बच सकता। हम सभी उम्र बढ़ने और मृत्यु दर के अधीन हैं। अज्ञात +* समय के साथ जिंदगी के नए चरण पर चले जाना चाहिए एक ही चीज़ पर अटके नहीं रहना चाहिए मतलब सदा गतिमान रहो। अज्ञात +* समय केवल एक मौका देता है, अगर आप इसे एक बार खो देते हैं, तो आप इसे वापस कभी नहीं प्राप्त कर सकते हैं। Sunday Adelaja +* समय को नष्ट न करना ही समय का उत्पादन है। Softyuva +* समय दुनिया का सबसे बड़ा धन है। अज्ञात +* समय दोस्ती से कभी दूर नही कर सकता और न ही अलगाव से दोस्ती कम होती है। टेनेसी विलियम्स +* समय धीरे-धीरे चलता है, लेकिन जल्दी से गुजरता है। Alice Walker +* समय ने मुझे आशा को नही छोड़ना सिखाया है, फिर भी आशा में बहुत अधिक भरोसा नहीं करना है। Carlos Ruiz Zafón +* समय फिसलता है, इसे एक बार ढीला करने पर, इसकी डोर हाथ से हमेशा के लिए फिसलती चली जाती है। एंथोनी डोरर +* समय बीतने से ज्यादातर चीजों का जहर निकाला जाएगा और उन्हें हानिरहित किया जाएगा। Haruki Murakami +* समय महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण व्यक्ति है। Imants Ziedonis +* समय महान चिकित्सक है। अज्ञात +* समय मुफ्त में मिलता है, परंतु यह अनमोल है। आप इसे अपना नही सकते, लेकिन आप इसका उपयोग कर सकते हैं। आप इसे रख नही सकते, पर आप इसे खर्च कर सकते हैं। एक बार आपने इसे खो दिया, तो वापस कभी इसे पा नही पाएंगे। हार्वे मैके +* समय राय के भविष्यवाणियों को समाप्त करता है और प्रकृति के फैसलों की पुष्टि करता है। Marcus Tullius Cicero +* समय वो है जिसे हम सबसे ज्यादा चाहते हैं, पर जिसे हम सबसे गलत तरीके से उपयोग करते हैं। विल्लियम पेन +* समय व्यतीत करने वाला सबसे मूल्यवान चीज है। Laertius Diogenes +* समय सच्ची दयालुता के कर्मों के माध्यम से बनाया जाता है। Dara Horn +* समय सबसे मूल्यवान चीज है जो एक आदमी खर्च कर सकता है। Diogenes Laërtius +* समय सभी घावों को ठीक नहीं करता है, केवल दूरी ही उनके डंक को कम कर सकती है। Ally Carter +* समय सभी घावो को भर देता है समय से बलवान कुछ नहीं है। अज्ञात +* समय सभी चीजों में सबसे बुद्धिमान है जो; आपके लिए सब कुछ प्रकाश में लाता है। Thales +* समय से कुछ भी स्वतंत्र नहीं है। Sunday Adelaja +* समय, जिसके दांत सब कुछ चबा जाते हैं, वो सत्य के सामने शक्तिहीन है। थोमस हक्सले +* समयबद्धता समय का चोर है। Oscar Wilde +* सामान्य आदमी समय को काटने के बारे सोचते है और महान आदमी सोचते है इसका उपयोग कैसे करे फ्रेंकलिन +* सिर्फ एक ही चीज़ है जो हमारे समय से अधिक कीमती है, वह यह कि हम इसे किस पर खर्च कर रहे हैं। लियो क्रिस्टोफर +* सोने का प्रत्येक धागा मूल्यवान होता है, इसी प्रकार समय का प्रत्येक क्षण भी मूल्यवान होता है। मेसन +* हम भूल जाते हैं कि जीवन केवल वर्तमान काल में परिभाषित किया जा सकता है। Dennis Potter +* हम सभी के पास चौबीस घंटे है। आप अभी जहाँ भी हैं, यह इसका परिणाम है कि इन घंटों का प्रयोग आपने कैसे किया। +* हमे अपना समय हमेशा बुद्धि के साथ उपयोग करना चाहिए और हमेशा ये याद रखना चाहिए, सही कार्य करने के लिए समय हमेशा ही उचित होता है। नेल्सन मंडेला +* हर उस मिनट में जिसमे आप क्रोधित होते हो, आप अपनी खुशियों के 60 सेकंड गंवा देते हो। अज्ञात +* हर समय का समय सीमित है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सबसे महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान केंद्रित करना सबसे महत्वपूर्ण है। Roy Bennett + + +: अर्थ साहित्य संगीत और कला से हीन पुरूष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं । +* साहित्य समाज का दर्पण होता है। +* साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है परन्तु एक नया वातावरण देना भी है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन +* साहित्य आम लोगों के बारे में कुछ असाधारण की खोज, और साधारण शब्दों में कुछ असाधारण के साथ कहने की कला है। बोरिस पास्टेरनक +* अंततः, साहित्य कुछ भी नहीं सिर्फ बढ़ईगीरी है। दोनों के साथ आप वास्तविकता के साथ काम कर रहे हो, एक सामग्री के साथ जो लकड़ी की तरह सख्त है। गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ +* यदि साहित्य सब कुछ नहीं है, यह किसी के लिए परेशानी का एक घंटे के लायक नहीं है। ज्यां पॉल सार्त्र +* हम बहुत ज्यादा जानते हैं, और बहुत कम के प्रति आश्वस्त हैं। हमारा साहित्य धर्म के लिए एक विकल्प है, और इसलिए हमारे धर्म है। टी एस एलियट +* मैं किसी भी रचनात्मक लेखन कार्यशाला में नहीं गया; मैंने साहित्य में बड़ी उपाधि नहीं ली । यदि मैं लिख सकता हूँ तो कोई भी लिख सकता है। जरूरत सिर्फ कल्पना की है। विकास स्वरूप +* साहित्य और तितलियां मनुष्य के दो मधुर ज्ञात भावनाएं होती हैं। व्लादिमीर नबोकोव +* सारा साहित्य गपशप है। ट्रूमैन कपौट +* अमेरिकी साहित्य हमेशा से आप्रवासी रहा है। +* अच्छा गद्य लिखने की कला चीजों उनके सही नाम से पुकारने की कला है। रैल्फ फॉक्स +* गद्य जीवन संग्राम की भाषा है। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ +* यदि गद्य कवियों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है। भाषा की पूर्ण शक्ति का विकास निबंधों में ही सबसे अधिक संभव होता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल +* कहानी ऐसी रचना है जिसमें जीवन के किसी अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास सभी उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं। मुंशी प्रेमंचद +* काव्य साहित्य का ताज है। डब्ल्यू सोमरसेट मौघम +* श्रद्धा साहित्य के लिए घातक है। ई. एम. फोरस्टर +* प्रतिभा साहित्य का एकमात्र स्कूल है। व्लादिमीर नबोकोव + + +* अनुराग आदर का क्रियात्मक रूप है। +* अनेक विरोधी तत्वों का समुच्चय ही जीवन है। +* अपमान की आशंका से स्त्री कितनी असहाय हो जाती है। पुरुष दूसरे पुरुषों से सेवा चाहते हैं, उनके श्रम से लाभ उठाना चाहते हैं, उनका धन छीनना चाहते हैं, रिश्वत चाहते हैं परन्तु स्त्री का केवल निरादर करना चाहते हैं। (झूठा सच से) +* अमरता का अर्थ है परिवर्तन। +* आपकी प्रतिज्ञा बदल जाने से प्रतिज्ञा का आधार नहीं रखता। +* आपदकाल में भित्तियों के भी कान होते हैं। +* आवेग एक वस्तु है, और जीवन दूसरी। +* आसक्ति और साधना का योग असंभव है। +* इन्हें ही राज कर लेने दो। ये पाँच बरस से खा रहे हैं, इनका पेट कुछ भरा होगा; इनका पेट थोड़े में पूरा हो जाएगा। दूसरा कोई आएगा तो जितना ये खा चुके हैं, उतना खाकर फिर और खाएगा। (झूठा सच से) +* इस शरीर के सूक्ष्म गुण है: मनुष्य के विचार और अनुभव की शक्ति। +* इस संसार में बल ही प्रधान है, जैसे की धन-बल, जन-बल। +* कंचन की खान से लौह उत्पन्न नहीं हो सकता। +* कर्मफल का अर्थ है कष्ट और विवशता के कारण अज्ञान। +* कला केवल उपकरण मात्र है। +* कला व्यवस्थित चित्त की वस्तु है। +* कायरता और निरुत्साह वीर पुरूष को शोभा नहीं देते। +* जल का विशेष उपयोग तृषा अनुभव होने पर होता है। +* जागती हुई चींटी की शक्ति सोते हुए हाथी से अधिक होती है। +* जिसे कर्म के भोग से सेवा ही करना है, वह सभी की सेवा करता है। +* जीवन का कोई अनुभव स्थायी और चिरन्तन नहीं। +* जीवन की सार्थकता अधिकार और सामर्थ्य में ही है। +* जीवन के आनन्द से जीवन की रक्षा की चिंता अधिक प्रबल हो जाती है। +* जीव��� में एक समय प्रयत्न की असफलता मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन नहीं है। +* जीवित होते हुए भी मृतवत व्यवहार करने का क्या लाभ? +* जो गतिमान है वह सजीव है और जो स्थिर है वह निर्जीव हैं। +* देवता जीवों को प्राणदान देते हैं, सिर्फ वही इसे ग्रहण भी कर सकते हैं। +* निरंतर प्रयत्न ही जीवन का लक्षण है। +* न्याय कभी लोगों की इच्छा का अनुसरण नहीं करता। +* परलोक में अधिक भोग का अवसर पाने की कामना से किया गया त्याग, त्याग नहीं रहता। +* पराजित होने वाला कभी पूज्य नहीं हो सकता। +* परिवर्तन ही अमरता का अर्थ हैं। +* पाये बिना किसी वस्तु का त्याग नहीं किया जा सकता। +* पुरुष की तुलना में स्त्री की हीनता स्वाभाविक तो नहीं, परन्तु आवश्यक बना दी गयी है। (झूठा सच से) +* प्रतिज्ञा बदल जाने से प्रतिज्ञा का आधार नहीं रहता। +* प्रयत्न और चेष्टा जीवन का स्वभाव एवं गुण है। जब तक जीवन है,प्रयत्न और चेष्टा रहना स्वाभाविक है। +* प्रयोजन से हीन कला, मोहक रूप रंग लिए मिट्टी के फल के समान है। +* बदलने का, चुनने का अर्थ उस बात को महत्त्व देना है। महत्त्व नहीं है तो उपेक्षा ही उचित है। (झूठा सच से) +* भय है जीवित रहकर पीड़ा और पराभव सहने में। +* मनुष्य के विचार और अनुभव की शक्ति इस स्थूल शरीर के ही सूक्ष्म गुण हैं। +* मरना-जीना मनुष्य के जीवन में लगा ही रहता है। +* मृत्यु क्या है? अस्तित्व का अंत। +* रक्त-मांस का उन्मेष ही सही पर हृदय और क्या है, मस्तिष्क और क्या है? शरीर को काट हृदय की परीक्षा करने से तो हृदय में प्यार या मस्तिष्क में विचार रखे हुए नहीं मिलते। प्यार और विचार शरीर के व्यवहार मात्र हैं। (झूठा सच से) +* वर्षा फसल के लिए अच्छी है तो भगवान से कहिये खेतों में बरसाए। यहाँ शहर में बेघरबार, बेसाया लोगों को भिगो कर बीमार करने के लिए, कीचड़ करने के लिए अपना पानी क्यों बरबाद कर रहा है? उसे नहीं दिखता कि कणक का खेत हमारे सिर पर नहीं है। मॉडल टाउन में माली बग़ीचे में पानी देता था तो क्या हमें भी भिगो देता था? भगवान से तो माली ही समझदार था। (झूठा सच से) +* विद्या चाहे जितनी उत्तम वस्तु हो और पैसा केवल हाथ का मैल, परन्तु विद्या पैसे के बिना अप्राप्य रहती है। (झूठा सच से) +* व्यक्ति समाज के चक्कर में कैसे विवश रहता है? समाज कभी डुबा देता है, कभी बचा लेता है परन्तु सदा निर्मम रहता है। (झूठा सच से) +* शत्रु के दैव्य स्वीकार कर लेने पर युद्ध का अंत हो जात��� है। +* शांति ना तो वैभव में है, न ही प्रभुता में और ना ही तृप्ति में, शांति तो केवल अनासक्ति में है। +* शोकातुरों को शोक के वशीभूत न होने देकर शोक को अनिवार्य सम्पादन और कर्त्तव्य बना देना, शोक को वश करने का और उसे बहा देने का मनोवैज्ञानिक उपाय भी था। (झूठा सच से) +* संघर्ष से विरक्त होकर व्यक्तिगत आत्मरक्षा में संतोष खो जाना आत्महत्या है। +* सफ़ेदपोश निम्न-मध्यवर्ग के लिए अपनी ग़रीबी से अधिक संकोच और रहस्य की दूसरी बात क्या हो सकती है। (झूठा सच से) +* सभी प्रसंगों के लिए काल का अवसर होता है। +* संसार केवल शक्तिशाली व्यक्तियों के लिए है। +* संसार में बल ही प्रधान है, जैसे धन-बल और जन-बल। +* साधारण स्वतंत्रता के अभाव में चतुरता की मजबूरी ही नारी का "चलित्तर" कहलाती है। (झूठा सच से) +* सामर्थ्य से ही मनुष्य भोग और कामना का अधिकारी होता है। +* सेवा ग्रहण करना स्वामी का अधिकार है, प्राण को ग्रहण करना नहीं। +* स्त्रियों के जीवन में लज्जा का उतार-चढ़ाव दिन के पहरों में ताप की भाँति होता है। बचपन में लाज की अनुभूति नहीं रहती। जीवन के दूसरे पहर में जब वे अपने शरीर में नारीत्व को पहचानने लगती हैं और जान जाती हैं कि उनके जीवन की परिणति उनकी आकर्षण-शक्ति में है तो वे आकर्षण के प्रबल माध्यम लाज को बढ़ाने लगती हैं। यौवन में विवाह से पूर्ण लाज और संकोच की यह अनुभूति और उसका प्रदर्शन भी नवयुवती में अत्यंत उत्कट होता है। विवाह के रूप में आकर्षण-शक्ति के चरितार्थ हो जाने पर और विवाह की परिणति संतान के रूप में हो जाने पर अपने शरीर के सम्बन्ध में स्त्रियों की लाज घटने लगती है। जर्जर बुढ़ापे की संध्या आ जाने पर, आकर्षण का अवसर नहीं रहता तो स्त्रियों में शरीर के प्रति शैशव का सा निस्संकोच फिर लौट आता है। (झूठा सच से) +* स्त्री अपनी शोभा अपने से बढ़कर पुरुष को पाने में ही समझ लेती है, स्त्री स्वयं अपने योग्य पुरुष से हीन क्यों रहना चाहती है? स्त्री जिसे अपने से बढ़कर नहीं समझ सकती उसे अपने योग्य कैसे समझे, उसके प्रति श्रद्धा और प्यार क्या झूठा सच से) + + +हरिशंकर परसाई १९२४ १९९५ हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंग]]कार थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी में हुआ था। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परम्परागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। +जूते खा गए' अजब मुहावरा है। जूते तो मारे जाते हैं। वे खाए कैसे जाते हैं? मगर भारतवासी इतना भुखमरा है कि जूते भी खा जाता है। +* अपनी पत्नी के बारे में भी उसकी यही धारणा होगी कि इस स्त्री का जन्म मुझसे विवाह करके मुझे तंग करने के लिए हुआ था। निठल्ले की डायरी ) +* आत्मविश्वास धन का होता है, विद्या का भी और बल का भी, पर सबसे बड़ा आत्मविश्वास नासमझी का होता है । निठल्ले की डायरी ) +* आम भारतीय जो गरीबी में, गरीबी की रेखा पर, गरीबी की रेखा के नीचे हैं, वह इसलिए जी रहा है कि उसे विभिन्न रंगों की सरकारों के वादों पर भरोसा नहीं है। भरोसा हो जाये तो वह खुशी से मर जाये। यह आदमी अविश्वास, निराशा और साथ ही जिजीविषा खाकर जीता है। आवारा भीड़ के खतरे ) +* इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं पर वे सियारों की बारात में बैंड बजाते हैं। +* इस पृथ्वी पर जनता की उपयोगिता कुल इतनी है कि उसके वोट से मंत्रिमंडल बनते हैं। +* उसे लगभग ढाई सौ रुपए माहवार मिलते थे । ऊपरी आमदनी बहुत कम या नहीं होती होगी, क्योंकि अच्छी ऊपरी आमदनीवाला कभी तरक्की के झंझट में नहीं पड़ता । निठल्ले की डायरी ) +* एक दिन तरुणों ने उनसे कहा, “प्रातःस्मरणीयो, सुनामधन्यो! आप अब वृद्ध हुए— वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध और कलावृद्ध हुए । आप अब देवता हो गए । हम चाहते हैं कि आप लोगों को मन्दिर में स्थापित कर दें । वहाँ आप आराम से रहें और हमें आशीर्वाद दें । निठल्ले की डायरी ) +* एक देश है! गणतंत्र है! समस्याओं को इस देश में झाड़-फूँक, टोना-टोटका से हल किया जाता है! +* किसी अलौकिक परम सत्ता के अस्तित्व और उसमें आस्था मनुष्य के मन में गहरे धँसी होती है। यह सही है। इस परम सत्ता को, मनुष्य अपनी आखिरी अदालत मानता है। इस परम सत्ता में मनुष्य दया और मंगल की अपेक्षा करता है। फिर इस सत्ता के रूप बनते हैं, प्रार्थनाएँ बनती हैं। आराधना-विधि बनती है। पुरोहित वर्ग प्रकट होता है।कर्मकाण्ड बनते हैं। सम्प्रदाय बनते हैं। आपस में शत्रु भाव पैदा होता है, झगड़े होते हैं। दंगे होते हैं। आवारा भीड़ के खतरे ) +* जगन्नाथ काका के साथ मैं एक बारात से लौट रहा था। एक डिब्बे पर बारातियों ने कब्जा कर लिया था । काका ने मुझसे कहा अगर अपना भला चाहते हो, तो दूसरे डिब्बे में बैठो । बाराती से ज्यादा बर्बर जानवर कोई नहीं होता । ऐसे जानवरों से हमेशा द���र रहना चाहिए । लौटती बारात बहुत खतरनाक होती है । उसकी दाढ़ में लड़कीवाले का खून लग जाता है और वह रास्ते में जिस-तिस पर झपटती है । कहीं झगड़ा हो गया, तो हम दोनों भी उनके साथ पिटेंगे । निठल्ले की डायरी ) +* झूठ बोलने के लिए सबसे सुरक्षित जगह अदालत है। +* दिवस कमजोर का मनाया जाता है, जैसे महिला दिवस, अध्यापक दिवस, मजदूर दिवस। कभी थानेदार दिवस नहीं मनाया जाता। +* दुनिया में भाषा, अभिव्यक्ति के काम आती है। इस देश में दंगे के काम आती है। +* धन उधार देकर समाज का शोषण करने वाले धनपति को जिस दिन "महाजन" कहा गया होगा, उस दिन ही मनुष्यता की हार हो गई। +* धर्म अच्छे को डरपोक और बुरे को निडर बनाता है। +* धार्मिक उन्माद पैदा करना, अंधविश्वास फैलाना, लोगों को अज्ञानी और क्रूर बनाना; राजसत्ता, धर्मसत्ता और पुरुष सत्ता का पुराना हथकंडा है। +* नशे के मामले में हम बहुत ऊँचे हैं। दो नशे खास हैं- हीनता का नशा और उच्चता का नशा। जो बारी-बारी से चढ़ते रहते हैं। +* नारी-मुक्ति के इतिहास में यह वाक्य अमर रहेगा कि ‘एक की कमाई से पूरा नहीं पड़ता।' +* निंदकों को दंड देने की जरूरत नहीं, खुद ही दंडित है। आप चैन से सोइए और वह जलन के कारण सो नहीं पाता। +* निंदा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है। मनुष्य अपनी हीनता से दबता है। वह दूसरों की निंदा करके ऐसा अनुभव करता है कि वे सब निकृष्ट हैं और वह उनसे अच्छा है। उसके अहम् की इससे तुष्टि होती है। बड़ी लकीर को कुछ मिटाकर छोटी लकीर बड़ी बनती है। ज्यों-ज्यों कर्म क्षीण होता जाता है, त्यों-त्यों निंदा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। कठिन कर्म ही ईर्ष्या-द्वेष और इनसे उत्पन्न निंदा को मारता है। इंद्र बड़ा ईर्ष्यालु माना जाता है क्योंकि वह निठल्ला है। स्वर्ग में देवताओं को बिना उगाया अन्न, बे बनाया महल और बिन-बोये फल मिलते हैं। अकर्मण्यता में उन्हें अप्रतिष्ठित होने का भय रहता है, इसलिए कर्मी मनुष्यों से उन्हें ईर्ष्या होती है। तिरछी रेखाएँ ) +* परेशानी साहित्य की कसरत है। जब देखते हैं, ढीले हो रहे हैं, परेशानी के दंड पेल लेते हैं। माँसपेशियाँ कस जाती हैं। आवारा भीड़ के खतरे ) +* पुरुष रोता नहीं है पर जब वो रोता है, रोम-रोम से रोता है। उसकी व्यथा पत्थर में दरार कर सकती है। +* पुस्तक लिखनेवाले से बेचनेवाला बड़ा होता है। कथा लिखनेवाले से कथावाचक बड़ा होता है। सृष्टि निर्माता ���े सृष्टि को लूटनेवाला बड़ा होता है। +* प्रजातंत्र में सबसे बड़ा दोष तो यह है कि उसमें योग्यता को मान्यता नहीं मिलती, लोकप्रियता को मिलती है। हाथ गिने जाते हैं, सर नहीं तौले जाते। +* बड़े कठोर आदमी है। शादी-ब्याह नहीं किया। न बाल-बच्चे। घूस भी नहीं चलेगी। विकलांग श्रद्धा का दौर ) +* बाज़ार बढ़ रहा है इस सड़क पर किताबों की एक नयी दुकान खुली है और दवाओं की दो। ज्ञान और बीमारी का यही अनुपात है हमारे शहर में। +* बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज्जत बच जाती है। +* भरत ने कहा स्मगलिंग तो अनैतिक है। पर स्मगल किए हुए सामान से अपना या अपने भाई-भतीजे का फायदा होता है, तो यह काम नैतिक हो जाता है। जाओ हनुमान, ले जाओ दवा। मुंशी से कहा रजिस्टर का पन्ना फाड़ दो। विकलांग श्रद्धा का दौर ) +* मैं इतना बड़ा लेखक हूँ । यहाँ तीन गर्ल्स-कालेज हैं । उनकी सारी लड़कियों को मेरे इर्द-गिर्द होना चाहिए कि नहीं मगर कोई नहीं आती । निठल्ले की डायरी ) +* मैं ईसा की तरह सूली पर से यह नहीं कहता पिता, उन्हें क्षमा कर। वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं। मैं कहता पिता, इन्हें हरगिज क्षमा न करना। ये कम्बख्त जानते हैं कि ये क्या कर रहे हैं। विकलांग श्रद्धा का दौर ) +* मैंने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या यह स्नो खरीद लो । अपनी चीज वह खुद पसन्द करती है, मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में दखल देती निठल्ले की डायरी ) +* राजनीति में शर्म केवल मूर्खों को ही आती है। +* राजनीतिज्ञों के लिए हम नारे और वोट हैं, बाकी के लिए हम गरीब, भूख, महामारी और बेकारी हैं। मुख्यमंत्रियों के लिए हम सिरदर्द हैं और उनकी पुलिस के लिए हम गोली दागने के निशाने हैं। +* विचार जब लुप्त हो जाता है, या विचार प्रकट करने में बाधा होती है, या किसी के विरोध से भय लगने लगता है। तब तर्क का स्थान हुल्लड़ या गुंडागर्दी ले लेती है। +* विज्ञान ने बहुत से भय भी दूर कर दिये हैं, हालाँकि नये भय भी पैदा कर दिये हैं। विज्ञान तटस्थ (न्यूट्रल) होता है। उसके सवालों का, चुनौतियों का जवाब देना होगा। मगर विज्ञान का उपयोग जो करते हैं, उनमें वह गुण होना चाहिए, जिसे धर्म देता है। वह गुण है अध्यात्म अन्ततः मानवतावाद, वरना विज्ञान विनाशकारी भी हो जाता है। आवारा भीड़ के खतरे ) +* विवाह का दृश्य बड़ा दारुण होता है। विदा के वक्त ��रतों के साथ मिलकर रोने को जी करता है। लड़की के बिछुड़ने के कारण नहीं, उसके बाप की हालत देखकर लगता है, इस कौम की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने में जा रही है। पाव ताकत छिपाने में जा रही है–शराब पीकर छिपाने में, प्रेम करके छिपाने में, घूस लेकर छिपाने में–बची हुई पाव ताकत से देश का निर्माण हो रहा है–तो जितना हो रहा है, बहुत हो रहा है। आखिर एक चौथाई ताकत से कितना होगा अपनी अपनी बीमारी ) +* सत्य को भी प्रचार चाहिए, अन्यथा वह मिथ्या मान लिया जाता है। +* सफेदी की आड़ में हम बूढ़े वह सब कर सकते हैं, जिसे करने की तुम जवानों की भी हिम्मत नहीं होती । हरिशंकर परसाई ) +* सबसे निरर्थक आंदोलन भ्रष्टाचार के विरोध का आंदोलन होता है। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से कोई नहीं डरता। एक प्रकार का यह मनोरंजन है जो राजनीतिक पार्टी कभी-कभी खेल लेती है, जैसे कबड्डी का मैच। +* सबसे बड़ी मूर्खता है इस विश्वास से लबालब भरे रहना कि लोग हमें वही मान रहे हैं, जो हम उन्हें मनवाना चाहते हैं। +* सरकार का विरोध करना भी सरकार से लाभ लेने और उससे संरक्षण प्राप्त करने की एक तरकीब है। +* साल-भर सांप दिखे तो उसे भगाते हैं। मारते हैं। मगर नागपंचमी को सांप की तलाश होती है, दूध पिलाने और पूजा करने के लिए। सांप की तरह ही शिक्षक दिवस पर रिटायर्ड शिक्षक की तलाश होती है, सम्मान करने के लिए। +* साहित्य में जब सन्नाटा आता है, तब कुत्ते भौंककर उसे दूर करते हैं; या साहित्य की बस्ती में कोई अजनबी घुसता है तब भी कुत्ते भौकते हैं। साहित्य में दो तरह के लोग होते हैं- रचना करने वाले और भौंकने वाले। साहित्य के लिए दोनों जरूरी हैं। आवारा भीड़ के खतरे ) +* हम मानसिक रूप से दोगले नहीं तिगले हैं। संस्कारों से सामन्तवादी हैं, जीवन मूल्य अर्द्ध-पूँजीवादी हैं और बातें समाजवाद की करते हैं। +* हीनता के रोग में किसी के अहित का इंजेक्शन बड़ा कारगर होता है। विकलांग श्रद्धा का दौर ) +स्वामीजी, दूसरे देशों में लोग गाय की पूजा नही करते, पर उसे अच्छी तरह रखते है और वह बहुत खूब दूध देती है। +बच्चा, दूसरे देशो की बात छोडो। हम उनसे बहुत ऊँचे है। देवता इसीलिय सिर्फ हमारे यहाँ अवतार लेते है। दुसरे देशो में गाय दूध के उपयोग के लिए होती है, हमारे यहाँ दँगा करने, आंदोलन करने के लिए होती है। हमारी गाय और गायो से भिन्न है। +स्वामीजी, और सब समस्याएं छोड़कर आप लोग इसी एक काम में क्यों लग गए है? +इसी से सब हो जाएगा बच्चा! अगर गोरक्षा का क़ानून बन जाए तो यह देश अपने आप समृद्ध हो जाएगा। फ़िर बादल समय पर पानी बरसाएंगे, भूमि खूब अन्न देगी और कारखाने बिना चले भी उत्पादन करेंगे। धर्म का प्रताप तुम नही जानते। अभी जो देश की दुर्दशा है, वह गौ के अनादर के कारण ही है। +एक और बात बताइये। कई राज्यो में गौ रक्षा के लिए क़ानून है बाकी में समाप्त हो जाएगा। आगे आप किस बात पर आंदोलन करेंगे? +अरे बच्चा, आंदोलन के लिए बहुत विषय है। सिंह दुर्गा का वाहन है। उसे सर्कस वाले पिंजरे में बंद करके रखते है और उससे खेल कराते है। यह अधर्म है। सब सर्कसो के खिलाफ आंदोलन करके, देश के सारे सर्कस बन्द करवा देंगे। फिर भगवान का एक अवतार मत्स्यावतर भी है। मछली भगवान का प्रतीक है। हम मछुओ के खोलाफ आंदोलन छेड़ देंगे। सरकार का मत्स्यपालन विभाग बन्ध करवा देंगे। +: मेरी सुलझी हुई दृष्टि का यही रहस्य है। दूसरो को सुख का रास्ता बताने के लिए में प्रश्न और उत्तर बता देता हूं। +: विश्व में सबसे प्राचीन जाति कौन? +: देवता भगवान को क्या प्रार्थना करते है? +: क्या देवताओ के पास राजनितिक नक्शा है? +: क्या उन्हें पाकिस्तान बनने की खबर है? +: उन्हें सब मालूम है। वे 'बाउंड्री कमीशन' की रेखा को मानते है। +: ज्ञान विज्ञान किसके पास है? +: उसके बाहर कही ज्ञान विज्ञान नही है? +: इन हजारो सालो में मनुष्य जाति ने कोई उपलब्धि की? +: क्या अब हमे कुछ शीखने की जरूरत है? +स्वामीजी, पश्चिम के देश गौ की पूजा नही करते, फिर भी समृद्ध है? +उनका तो भगवान दूसरा है बच्चा! उन्हें कोई दोष नही लगता। +यानी भगवान रखना भी एक झंझट ही है। वह हर बात दंड देने लगता है। +तर्क ठीक है, बच्चा, पर भावना गलत है। +स्वामीजी, जहॉ तक मै जानता हूँ, जनता के मनमे इस समय गोरक्षा नही है, महगाई और अर्थिक शोषण है। जनता महँगाई के खिलाफ आंदोलन करती है। वह वेतन और महगाईभत्ता बढ़वाने के लिए हड़ताल करती है। जनता आर्थिक न्याय के लिए लड़ रही है। और इधर आप गोरक्षा आंदोलन लेकर बेठ गए है। इसमें तुक क्या है? +बच्चा, इसमें तुक है। देखो जनता जब आर्थिक न्याय की मांग करती है, तब उसे किसी दूसरी चीज में उलज़ा देना चाहिए, नही तो वः खतरनाक हो जाती है। जनता कहती है- हमारी माँग है महगाई बन्ध हो, मुनाफाखोरी बन्द हो, वेतन।बढ़े, शोषण बंद हो, तब हम उससे कहते है की नही तुम्हारी बुनियादी मांग गोरक्षा है। बच्चा, आर्थिक क्राँति की तरफ बढ़ती जनता को हम रास्ते में ही गाय के खूंटे से बाँध देते है। यह आंदोलन जनता को उलझाये रखने के लिए है।” + + +: हम दोनों (गुरु और शिष्य) की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों का साथ-साथ पालन करें। हम दोनों को साथ-साथ वीर्यवान (पराक्रमी) बनाएं। हम जो कुछ पढ़ते हैं, वह तेजस्वी हो। हम गुरु और शिष्य एक दूसरे से द्वेष न करें। +: नदियाँ बहें और बादल बरसें। औषधीय पौधे फलें-फूलें और सभी पेड़ फल दें। मैं चावल और दुग्ध आदि पैदा करने वाले लोगों का हितैषी बनूं। थाली में परोसा गया पका हुआ भोजन ईश्वर की ओर से एक उपहार है जिसके सेवन से उच्चतम स्तर की समृद्धि और कल्याण होगा। +: पृथ्वी पर तीन रत्न हैं जल अन्न और सुभाषित । +: मनुष्य के शरीर-मन आदि के जितने रोग हैं; अगर मनुष्य युक्त आहार, युक्त विहार व युक्त चेष्टाएं करे, तो उसे कोई दुःख व रोग नहीं होगा । परन्तु हम भगवान के बताए गए रास्ते पर चल नहीं पाते हैं । हम अयुक्त आहार करते हैं, अयुक्त विहार करते हैं और अयुक्त चेष्टाएं करते हैं; इसलिए दु:ख पाते हैं। +: जो भोजन सात्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति करने वाला होता है। ऐसा भोजन रसमय, स्निग्ध, स्वास्थ्यप्रद तथा ह्रदय को भाने वाला होता है। +: अत्यधिक तिक्त (कड़वे खट्टे, नमकीन, गरम, चटपटे, शुष्क, तथा जलन उत्पन्न करने वाले भोजन रजोगुणी व्यक्तियों को प्रिय होते हैं। ऐसे भोजन दुःख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले हैं। +: पूर्वभोजन के जीर्ण होने (पचने) पर ही हितकर व मित (अल्प) भोजन करना चाहिए। +: कौन स्वस्थ है, कौन स्वस्थ है, कौन स्वस्थ है जो) हितकर भोजन करता है, जो कम भोजन करता है, जो सच्चाई का अन्न खाता है। +: भावार्थ पूर्वभोजन के जीर्ण होने पर ही भोजन करना चाहिए। यदि कभी प्रमाद से अजीर्ण हो जाए तो लंघन (उपवास) उसकी परम औषधि है। +: अर्थात् जो व्यक्ति हिताहारी (हितकर आहार करने वाले मिताहारी (परिमित, नपा तुला, न अधिक न कम आहार करने वाले) तथा कभी- कभी अल्पाहारी (कम भोजन या उपवास करने वाले) होते हैं, उनकी चिकित्सा वैद्य लोग नहीं करते, प्रत्युत वे अपने चिकित्सक स्वयं होते हैं। +: जठराग्नि आहार को पचाती है, यदि उसे आहार नहीं मिले तो बढ़े हुए दोषों को पचाती है, नष्ट करती है। दोषों के क्षीण होने पर भी उपवास किया जाएगा तो जठराग्नि रस-रक्त आदि धातुओं को जलाने लगती है व शरीर कृश होने लगता है तथा अन्त में जीवन को नष्ट कर देती है। (अतः उतना उपवास या अल्पाहार करना चाहिए जिससे दोष तो नष्ट हो जाएं, परन्तु शरीर की क्षीणता का अवसर न आए।) +: कठोर श्रम से जीविकोपार्जन करने वाले दरिद्र लोग सदा स्वादिष्ठ भोजन करते हैं, क्योंकि भूख स्वाद पैदा कर देती है और वह धनी लोगों में प्रयः दुर्लभ होती है। +* अन्न का दान परम दान है। + + +: सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान् फल देता है। +: ऊसर भूमि में बीज बोना जैसे व्यर्थ है, वैसे ही सत्य के बिना पूजा करना व्यर्थ है, सत्य के बिना जप व्यर्थ है और सत्य के बिना तप भी व्यर्थ है। +: हे राजन्! जिस प्रकार एक बीज से दूसरा बीज उत्पन्न होता है, उसी प्रकार एक शरीर (पिता के शरीर) द्वारा अन्य (माता के) शरीर के माध्यम से एक तीसरा (पुत्र का) शरीर उत्पन्न होता है। जैसे भौतिक शरीर के तत्त्व नित्य हैं, वैसे ही इन भौतिक तत्त्वों से प्रकट होने वाली जीवात्मा भी नित्य है। +: जो वृक्ष के कच्चे फलों को चुन लेता हैं, वह उनसे रस नहीं ले सकता और उनका बीज भी नष्ट हो जाता हैं, किन्तु जो मनुष्य समय पर तैयार हुए पक्के फल को लेता हैं, वह फल से रस भी लेता हैं और समय पर वापस बीज से फल भी प्राप्त करता हैं। +: ममता में फँसे हुए मनुष्य से ज्ञान की कथा, अत्यन्त लोभी से वैराग्य का वर्णन, क्रोधी से शम (शांति) की बात और कामी से भगवान्‌ की कथा, इनका वैसा ही फल होता है जैसा ऊसर में बीज बोने से होता है (अर्थात्‌ ऊसर में बीज बोने की भाँति यह सब व्यर्थ जाता है)। +: गोस्वामी जी कहते हैं कि शरीर मानो खेत है, मन मानो किसान है। जिसमें यह किसान पाप और पुण्य रूपी दो प्रकार के बीजों को बोता है। जैसे बीज बोएगा वैसे ही इसे अंत में फल काटने को मिलेंगे। भाव यह है कि यदि मनुष्य शुभ कर्म करेगा तो उसे शुभ फल मिलेंगे और यदि पाप कर्म करेगा तो उसका फल भी बुरा ही मिलेगा। +* मेरे लिए उपलब्धि सक्रियता में है, जितने सर्वश्रेषठ ढंग से मैं बीज बो सकता हूँ। उतने बेहतर ढंग से मैं उन्हें बोता हूँ और उसके बाद सब कुछ ईश्वर पर छोड़ देता हूँ। डी प्रताप सिंह रेड्डी + + +शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय 15 सितम्बर 1876 – 16 जनवरी 1938) बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार तथा कथाकार थे। +* रुपया-पैसा कमाना और उन्नति करना दोनों एक नहीं हैं। ��न्द्रनाथ बैरागो ) +* नशेबाज सब कुछ सहन कर सकता है, लेकिन अपनी बुद्धि भ्रष्ट हो जाने की बात सहन नहीं कर सकता। बिराज बहू ) +* उसकी आंखों के आगे ऐसा अन्धकार छा गया जैसे तेज बिजली के चमक जाने से आंखें चौंधिया गई हों। बिराज बहू ) +* केंचुल से तो खेला जा सकता है, लेकिन जमींदार के लड़के के लिए भी जीवित विषधर खेलने की चीज नहीं। बिराज बहू ) +* अपना कर्तव्य करने से पहले दूसरों के कर्तव्यों की आलोचना करना पाप है। चन्द्रनाथ बैरागो ) +* बर्छे से बेधकर मारा जाने वाला नाग बार-बार बर्छे को ही डसता है और थक कर उसी की ओर देखता रह जाता है। बिराज बहू ) +* दुनिया में प्रायः ही देखा जाता है—किसी सामान्य कारण से ही गुरुतर अनिष्ट की उत्पत्ति होती है। शूर्पणखा का किंचित् चित्तचांचल्य ही सोने की लंका ध्वंस होने का हेतु बना। छोटी सी रूप-लालसा के लिए ट्रॉय नगर ध्वस्त हो गया। महानुभाव, राजा हरिश्चंद्र सामान्य कारण से ही ऐसे विपत्ति ग्रस्त हुए कि संसार में वैसा दृष्टांत दूसरा नहीं चन्द्रनाथ बैरागो ) +* गिरींद्र बाबू की भाँति सत्य पुरुष होना कठिन है। जब मैंने उनसे अपनी बातें बताईं तो उन्होंने मेरे कहने पर विश्वास कर लिया। उन्होंने समझ लिया कि मैं ‘परिणीता’ हूँ। मेरे पतिदेव इस संसार में मौजूद अवश्य हैं, पर मुझे अपनाएँ या न अपनाएँ, यह उनकी अपनी इच्छा है। परिणीता ) +* सूर्यलोक की तरह परिष्कृत और स्फटिक की तरह स्वच्छ वस्तु लोकग्राह्य नहीं हुई—क्यों यह सहज-प्रांजल भाषा संसार के लोग नहीं समझ पाते चन्द्रनाथ बैरागो ) +* फल को ग्रहण करना जैसे मनुष्य का स्वभाव सिद्ध भाव है। जो मछली भाग जाती है, क्या वही बड़ी होती है चन्द्रनाथ बैरागो ) +* औरतों के हृदय की कमजोरी, लज्जा तथा शील के लिए उस विधाता को बारंबार धन्यवाद। परिणीता ) +* हृदय में घृणा भर जाने पर मनुष्य मनचाहा काम करने का अधिकारी होता है। परिणीता ) + + +विदुर धृतराष्ट्र के महामंत्री और नीतिशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् थे। महाभारत में बहुत ही महान बता कर उनकी प्रशंसा की गई है। उन्होंने महाभारत के युद्ध को टालने का हरसम्भव प्रयास किया था परन्तु असफल रहे। युद्ध के अनन्तर विदुर पांडवों के भी मंत्री हुए। पांडवों ने उनकी ही आज्ञा तथा सलाह लेकर शासन आरम्भ किया और आदर्श राज्य की स्थापना की। +महाभारत में महात्मा विदुर सदैव अपनी नीतियों से सही समय पर सही स��झाव देते नजर आते हैं। ये दूरदर्शी थे जो समय से पहले ही परेशानियों को भांप लेते थे। महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले विदुर ने धृतराष्ट्र को चेताया था कि इस युद्ध का अन्त अत्यन्त ही बुरा होगा। महात्मा विदुर को अपने समय के बुद्धिजीवियों में से एक माना जाता है। +विदुर-नीति वास्तव में महाभारत युद्ध से पूर्व युद्ध के परिणाम के प्रति शंकित हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के साथ उनका संवाद है। युद्ध के पूर्व महाराजा धृतराष्ट्र अपने सलाहकार विदुर को बुलाकर अच्छे और बुरे के बारे में चर्चा करते हैं। ‘महाभारत’ के उद्योग पर्व में इस चर्चा का वर्णन मिलता है। +* जो लोग अच्छे कार्य करते हैं उनके पास स्थाई लक्ष्मी आती है, यानी सही तरीके से कमाया गया धन ही हमारे पास टिकता है। +* जिस धन को अर्जित करने में मन तथा शरीर को क्लेश हो, धर्म का उल्लंघन करना पड़े, शत्रु के सामने अपना सिर झुकाने की बाध्यता उपस्थित हो, उसे प्राप्त करने का विचार ही त्याग देना श्रेयस्कर है। +: अर्थ आत्मज्ञान, उद्योग, कष्ट सहने की सामर्थ्य और धर्म में स्थिरता, ये बातें जिसको 'अर्थ पुरुषार्थ) से नहीं भटका पातीं हैं वही पंडित कहलाता है। दूसरे शब्दों में, महात्मा विदुर का कहना है कि तमाम सदगुणों के बाद भी जो व्यक्ति अर्थ से विचलित नहीं होता है, उसे ही बुद्धिमान माना जा सकता है। +* परस्त्री का स्पर्श, पर धन का हरण, मित्रों का त्याग रूप यह तीनों दोष क्रमशः काम, लोभ, और क्रोध से उत्पन्न होते हैं। +* जो विश्वास का पात्र नहीं है, उसका तो कभी विश्वास किया ही नहीं जाना चाहिए। पर जो विश्वास के योग्य है, उस पर भी अधिक विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है, वह मूल उद्देश्य का भी नाश कर डालता है। +* संसार के छह सुख प्रमुख है- धन प्राप्ति, हमेशा स्वस्थ रहना, वश में रहने वाले पुत्र, प्रिय भार्या, प्रिय बोलने वाली भार्या और मनोरथ पूर्ण कराने वाली विद्या- अर्थात् इन छह से संसार में सुख उपलब्ध होता है। +* बुद्धिमान व्यक्ति के प्रति अपराध कर कोई दूर भी चला जाए तो चैन से न बैठे, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति की बाहें लंबी होती है और समय आने पर वह अपना बदला लेता है। +* क्षमा को दोष नहीं मानना चाहिए, निश्चय ही क्षमा परम बल है। क्षमा निर्बल मनुष्यों का गुण है और बलवानों का क्षमा भूषण है। +* ईर्ष्या, दूसरों से घृणा करने ���ाला, असंतुष्ट, क्रोध करने वाला, शंकालु और पराश्रित (दूसरों पर आश्रित रहने वाले) इन छह प्रकार के व्यक्ति सदा दुखी रहते हैं। +*जो पुरुष अच्छे कर्मों और पुरुषों में विश्वास नहीं रखता, गुरुजनों में भी स्वभाव से ही शंकित रहता है। किसी का विश्वास नहीं करता, मित्रों का परित्याग करता है वह पुरुष निश्चय ही अधर्मी होता है। +* जो अच्छे कर्म करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर में भरोसा रखता है और श्रद्धालु है उसके ये सद्गुण पंडित होने के लक्षण हैं। +* जो अपना आदर-सम्मान होने पर खुशी से फूल नहीं उठता और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगा जी के कुण्ड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता, वह ज्ञानी कहलाता है। +* जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर भी इठलाता नहीं, वह पंडित कहलाता है। +* मनुष्य अकेला पाप करता है और बहुत से लोग उसका आनंद उठाते हैं। आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है। +* किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है किसी एक को भी मारे या न मारे, मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है। +* विदुर धृतराष्ट्र को समझाते हुए कहते हैं: राजन! जैसे समुद्र के पार जाने के लिए नाव ही एकमात्र साधन है उसी प्रकार स्वर्ग के लिए सत्य ही एकमात्र सीढ़ी है, कुछ और नहीं, किन्तु आप इसे नहीं समझ रहे हैं। +* केवल धर्म ही परम कल्याणकारक है, एकमात्र क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। एक विद्या ही परम संतोष देने वाली है और एकमात्र अहिंसा ही सुख देने वाली है। +* विदुर धृतराष्ट्र से कहते हैं राजन! ये दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग के भी ऊपर स्थान पाते हैं- शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला और निर्धन होने पर भी दान देने वाला। +* भरतश्रेष्ठ! पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरु-मनुष्य को इन पांच की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए। +* अच्छे कर्मो को अपनाना और बुरे कर्मों से दूर रहना साथ ही परमात्मा में विश्वास रखना और श्रद्धालु भी होना ऐसे सद्गुण बुद्धिमान और पंडित होने का लक्षण है। +* क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्दंडता, तथा स्वयं को पूज्य समझना ये भाव जिस व्यक्ति को पुरुषार्थ के मार्ग (सन्मार्ग) से नहीं भटकाते वही बुद्धिमान या पंडित कहलाता है। +* जिस व्यक्ति के कर्त्तव्य, सलाह और पहले से लिए गए निर्��य को दूसरे लोग केवल काम संपन्न होने पर ही जान पाते हैं, वही पंडित कहलाता है। +* जिस व्यक्ति का निर्णय और बुद्धि धर्मं का अनुशरण करती है और जो भोग विलास ओ त्याग कर पुरुषार्थ को चुनता है वही पण्डित कहलाता है। +* ज्ञानी और बुद्धिमान पुरुष शक्ति के अनुसार काम करने के इच्छा रखते हैं और उसे पूरा भी करते हैं तथा किसी वस्तु को तुक्ष्य समझ कर उसकी अवहेलना नहीं करते हैं। +* जो व्यक्ति किसी विषय को शीघ्र समझ लेते हैं, उस विषय के बारे में धैर्य पूर्वक सुनते हैं, और अपने कार्यों को कामना से नहीं बल्कि बुद्धिमानी से संपन्न करते हैं, तथा किसी के बारे में बिना पूछे व्यर्थ की बात नहीं करते हैं वही पण्डित कहलाते हैं। +* बुद्धिमान तथा ज्ञानी लोग दुर्लभ वस्तुओं की कामना नहीं रखते, न ही खोयी हुए वस्तु के विषय में शोक करना चाहते हैं तथा विपत्ति की घडी में भी घबराते नहीं हैं। +* जो व्यक्ति पहले निश्चय करके रूप रेखा बनाकर काम को शुरू करता है तथा काम के बीच में कभी नहीं रुकता और समय को नहीं गँवाता और अपने मन को वश में किये रखता है वही पण्डित कहलाता है। +* हे भारत कुलभूषण (धृतराष्ट्र ज्ञानी पुरुष हमेशा श्रेष्ठ कर्मों में रूचि रखते हैं, और उन्न्नति के लिए कार्य करते व प्रयासरत रहते हैं तथा भलाई करनेवालों में अवगुण नहीं निकालते हैं। +* जो अपना आदर-सम्मान होने पर भी फूला नहीं समाता, और अपमान होने पर भी दुखी व विचलित नहीं होता तथा गंगाजी के कुण्ड के समान जिसके मन को कोई दुख नहीं होता वह पण्डित कहलाता है। +* जो व्यक्ति प्रकृति के सभी पदार्थों का वास्तविक ज्ञान रखता है, सब कार्यों के करने का उचित ढंग जाननेवाला है तथा मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ उपायों का जानकार है वही मनुष्य पण्डित कहलाता है। +* जो निर्भीक होकर बात करता है कई विषयों पर अच्छे से बात कर सकता है, तर्क-वितर्क में कुशल है, प्रतिभाशाली है और शाश्त्रों में लिखे गए बातों को शीघ्रता से समझ सकता है वही पण्डित कहलाता है। +* जिस व्यक्ति की विद्या या ज्ञान उसके बुद्धि का अनुशरण करती है और बुद्धि उसके ज्ञान का तथा जो भद्र पुरुषों की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता वही पण्डित की पदवी पा सकता है। + + +रावण राक्षस कुल का अत्यन्त ही बलशाली, महापराक्रमी राजा था। लेकिन इसके साथ ही वो शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकाण्ड विद्वान, पण्डित एवं महाज्ञानी था। जब धरती पर उसका पाप बढ़ गया तब भगवान विष्णु ने राम के रूप में धरती पर जन्म लेकर रवण का वध किया था। तब रावण ने मरने से पहले भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण को कुछ उपदेश दिए थे, जो आज के समय में भी लोगों के लिए सफलता की कुंजी है। +* शक्ति और पराक्रम के मद में इतना अंधा नहीं हो जाना चाहिए की हर शत्रु तुच्छ और निम्न लगने लगे। मुझे ब्रह्मा जी से वर मिला था की वानर और मानव के अलावा कोई मुझे मार नहीं सकता। फिर भी मैं उन्हें तुच्छ और निम्न समझ कर अहम में लिप्त रहा, जिस कारण मेरा समूल विनाश हुआ। +* अपने जीवन के गूढ रहस्य स्वजन को भी नहीं बताने चाहिए। चूंकि रिश्ते और नाते बदलते रहते हैं। जैसे की विभीषण जब लंका में था तब मेरा शुभेच्छु था। पर श्री राम की शरण में आने के बाद मेरे विनाश का माध्यम बना। +* हे लक्ष्मण! अपने सारथी, अपने द्वारपाल, अपने रसोईया और अपने भाई के दुश्मन मत बनो। वे कभी भी तुम्हें क्षति पहुंचा सकते है, जैसे मैंने अपने भाई विभीषण को अपना शत्रु बनाने की भूल की थी और वह तुम्हारे पक्ष में शामिल हो गया था। वह उन सभी रहस्यों को जानता था जिससे तुमने इस लड़ाई को जीत लिया। यदि वह मेरे पक्ष में होता तो तुम लोग कभी भी लंका के अंदर प्रवेश नहीं कर पाते और ना ही इस युद्ध को जीत पाते। +*हे सौमित्र! कोई भी व्यक्ति जो यश प्राप्ति के लिए उत्सुक हो उसे लोभ नामक राक्षस से दूर रहना चाहिए। जब भी यह अपना फन उठाने का प्रयत्न करें उसके फन को उसी समय कुचल देना चाहिए। जब हमारी जरूरते बहुत अधिक असंतोषजनक हो जाती हैं तो यह लोभ एक भयानक राक्षस का रूप लेता है। यह पता भी नहीं चलता है, कब यह राक्षस धीरे-धीरे हमें अपने नियंत्रण में ले लेता है, मेरे साथ भी वही हुआ। मैं एक बहुभक्षक या लोभी बन गया था, सत्ता के लिए, साम्राज्य के लिए, भूमि के लिए, शक्ति के लिए, धन के लिए और सुंदर महिलाओं के लिए यह लोभ बढ़ते-बढ़ते कब मुझे निगल गया यह मुझे ज्ञात नहीं है। मेरा सारा ज्ञान, मेरी शक्तियां, मेरी भक्ति, मेरे वरदान बुद्धि के इस लोभ जनित राक्षस के कारण नष्ट हो गया। अधिक लोभ तुम्हें अहंकारी, कुकर्मी और घोर पापी बना देता है। इसलिए हम जो चाहते हैं और जो हमें मिलता है हम उसी से संतुष्ट रहें हैं, सुनिश्चित करें कि हमारी जरूरतें कभी भी लोभ ना बन जाए। +* हे लक्ष्मण! एक महान राजा को अपनी प्रजा की देखभाल अपने पुत्र की भाँति करना च��हिए। जो कुछ भी अपने राज्य को खुशहाल बनाता हो वे वास्तव में एक राजा के लिए सुख होता है। वह किसी भी अन्य संबंध से पहले अपने प्रजा का राजा होता है यहां तक कि अगर उसे अपने स्त्री, पुत्र, परिजनों या अपनी इच्छा के विरुद्ध भी कोई निर्णय लेना पड़े, तो उसे निसंकोच वे निर्णय लेना चाहिए। यही एक महान राजा का कर्तव्य है और राजधर्म भी। अपने प्रबल, लोभ और अहंकार के कारण मैं यह करने में असमर्थ हुआ। अपने राज्यकाल में मैंने हमेशा अपने अहंकार और लोभ को ही प्रमुखता दिया। मैंने अपने प्रजा और राज्य का हित कभी नहीं देखा और ना ही सोचा। प्रजा को प्रमुखता दिए बिना मैंने प्रभु श्रीराम के शांति प्रस्ताव को ठुकरा दिया था, यह केवल मेरे विनाश का कारण नहीं बना, बल्कि संपूर्ण लंका के विनाश का कारण बना। + + +महाभारत के अनुसार भीष्म एक महान योद्धा एवं दृढप्रतिज्ञ व्यक्ति थे। वे पाण्डवों और कौरवों के पितामह थे। महाभारत में वर्णित पांडव-कौरव युद्ध की समाप्ति के बाद राजा युधिष्ठिर सरशय्या पर लेटे भीष्म पितामह से राजकार्य सम्बन्धी नीतिवचन प्राप्त करते हैं । राजा के लिए क्या कृत्य है क्या नहीं, इस बाबत अनेकानेक बातें भीष्म बताते हैं। +* सत्य धर्म सब धर्मों से उत्तम धर्म है। 'सत्य' ही सनातन धर्म है। तप और योग, सत्य से ही उत्पन्न होते हैं। शेष सब धर्म, सत्य के अन्तर्गत ही हैं। +* मृत्यु और अमृतत्व- दोनों मनुष्य के अपने अधीन हैं। मोह का फल मृत्यु और सत्य का फल अमृतत्व है। +* स्वयं अपनी इच्छा से निर्धनता का जीवन स्वीकार करना सुख का हेतु है। यह मनुष्य के लिए कल्याणकारी है। इससे मनुष्य क्लेशों से बच जाता है। इस पथ पर चलने से मनुष्य किसी को अपना शत्रु नहीं बनाता। यह मार्ग कठिन है, परन्तु भले पुरुषों के लिए सुगम है। जिस मनुष्य का जीवन पवित्र है और इसके अतिरिक्त उसकी कोई सम्पत्ति नहीं, उसके समान मुझे दूसरा दिखाई नहीं देता। मैंने तुला के एक पल्ले में ऐसी निर्धनता को रक्खा और दूसरे पल्ले में राज्य को। अकिंचनता का पल्ला भारी निकला। धनवान पुरुष तो सदा भयभीत रहता है, जैसे मृत्यु ने उसे अपने जबड़े में पकड़ रखा है। +* त्याग के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। त्याग के बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। त्याग के बिना मनुष्य भय से मुक्त नहीं हो सकता। त्याग की सहायता से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जा���ा है। +* वह पुरुष सुखी है, जो मन को साम्यावस्था में रखता है, जो व्यर्थ चिन्ता नहीं करता। जो सत्य बोलता है। जो सांसारिक पदार्थों के मोह में फंसता नहीं, जिसे किसी काम के करने की विशेष चेष्टा नहीं होती। +* जो मनुष्य व्यर्थ अपने आपको सन्तप्त करता है, वह अपने रूप रंग, अपनी सम्पत्ति, अपने जीवन और अपने धर्म को भी नष्ट कर देता है। जो पुरुष शोक से बचा रहता है, उसे सुख और आरोग्यता, दोनों प्राप्त हो जाते हैं। +* श्रेष्ठ और सज्जन पुरुष का चिह्न यह है कि वह दूसरों को धनवान देख कर जलता नहीं। वह विद्वानों का सत्कार करता है और धर्म के सम्बन्ध में प्रत्येक स्थान से उपदेश सुनता है। +* जो पुरुष अपने भविष्य पर अधिकार रखता है (अपना पथ आप निश्चित करता है, दूसरों की कठपुतली नहीं बनता) जो समयानुकूल तुरन्त विचार कर सकता है और उस पर आचरण करता है, वह पुरुष सुख को प्राप्त करता है। आलस्य मनुष्य का नाश कर देता है। +* जो पुरुष अपने आपको वश में करना चाहता है उसे लोभ और मोह से मुक्त होना चाहिए। +* कामनाओं को त्याग देना; उन्हें पूरा करने से श्रेष्ठ है। आज तक किस मनुष्य ने अपनी सब कामनाओं को पूरा किया है? इन कामनाओं से बाहर जाओ। पदार्थ के मोह को छोड़ दो। शान्त चित्त हो जाओ। +: अर्थ जिस राजा के राज्य में चीखती-चिल्लाती स्त्रियों का बलपूर्वक अपहरण होता है और उनके पति-पुत्र रोते-चिल्लाते रहते हैं, वह राजा मरा हुआ है न कि जीवित । +: अर्थ जो राजा अपनी जनता की रक्षा नहीं करता, उनकी धनसम्पदा छीनता या जब्त करता है, जो योग्य नेतृत्व से वंचित हो, उस निकृष्ट राजा को प्रजा द्वारा बंधक बनाकर निर्दयतापूर्वक मार डालना चाहिए। +मैं आप सबका रक्षक हूं यह वचन देकर जो राजा रक्षा नहीं करता, उसे रोग एवं पागलपन से ग्रस्त कुत्ते की भांति सबने मिलकर मार डालना चाहिए । + + +मैथिलीशरण गुप्त १८८६ १९६४) हिन्दी के 'द्विवेदी युग' के महान कवि हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्वपूर्ण कवि हैं। इनकी कृति 'भारत-भारती' स्वतंत्रता संग्राम के समय काफी प्रभावशाली रही थी और इसीलिए महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' कहा था। +: वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान है॥ +: सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश को उत्कर्ष है? +: उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है।। +: आँचल में है दूध और आँखों में पानी॥ +हैं रोटियाँ रूखी, खबर है शाक की उनको नहीं। +संतोष से खाकर उन्हें वे, काम में फिर लग गयीं, + + +माधवराव सप्रे १८७१ १९२६) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार एवं हिन्दी साहित्यकार थे। +* मैं महाराष्ट्री हूँ, परन्तु हिंदी के विषय में मुझे उतना ही अभिमान है जितना किसी हिंदी भाषी को हो सकता है। +* जिस शिक्षा से स्वाभिमान की वृत्ति जागृत नहीं होती वह शिक्षा किसी काम की नहीं। +* विदेशी भाषा में शिक्षा होने के कारण हमारी बुद्धि भी विदेशी हो गई है। +* यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारी शिक्षा विदेशी भाषा में होती है और मातृभाषा में नहीं होती +* अंग्रेज सरकार का राज्य, व्यवस्थित और शासन की दृष्टि से सुराज्य होने पर भी, हम लोगों के लिए सुखकारी या लाभदायक नहीं है और यदि हाल की पद्धति कायम रही तो होना भी संभव नहीं है, क्योंकि यह राज्य केवल गोरे राज्याधिकारियों की सलाह पर चलता है, जिन्हें हिंदुस्तान के हित की अपेक्षा गोरे लोगों का हित अधिक प्रिय है। (‘सुराज्य और सुराज्य’ नामक लेख में) +* जब तक संघ शक्ति उत्पन्न न होगी तब तक प्रार्थना में कुछ जान नहीं हो सकती। +* जेलखाने का शासन जैसा कष्ट देता है, उसी तरह अंग्रेजी राज्य-प्रबन्ध के कानून और कायदों से प्रजा चारों ओर से जकड़ी हुई है। अंग्रेजी व्यापारियों का भला करने के लिए, खुले व्यापार का तत्व शुरू करने से, इस देश का व्यापार डूब गया। +* शिक्षा का प्रचार और विद्या की उन्नति इसलिये अपेक्षित है कि जिससे हमारे स्वत्व का रक्षण हो। + + +* अगर शांति चाहते हैं, तो लोकप्रियता से बचें। अब्राहम लिंकन +* अपनी समस्याओं से बचने की कोशिश कर नहीं, बल्कि उनका उन्हें साहसपूर्वक सामना कर आप शांति पाएंगे। आप इंकार में नहीं, बल्कि जीत में शांति पाएंगे। जे. डोनाल्ड वाल्टर्स +* अपने जीवन की परिस्थितियों को पुनर्व्यवस्थित करके आप शांति नहीं पाते हैं, बल्कि यह समझकर पते हैं कि आप सबसे गहनतम स्तर पर क्या हैं। एकार्थ टोल +* अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें। दूसरों पर निर्भर ना रहे। Lord Buddha +* आपके अलावा कोई भी आपके लिए शांति नहीं ला सकता। राल्फ वाल्डो इमर्सन +* आपको सुंदर महसूस करना चाहिए और आपको सुरक्षित महसूस करना चाहिए। आप ख़ुद को जिसके आस-पास रखते हैं, उसे आपको मन की शांति और आत्मा की शांति प्रदान करनी चाहिए। स्टेसी लंडन +* उथल -पुथल और अराजकता के बीच अपने अंदर शांति बनाये रखें। दीपक चोपड़ा +* एक भेड़िये के साथ शांति की बात करना भेंड के लिए पागलपन है। Thomas Fuller +* कभी भी जल्दी में मत रहो; सब कुछ शांतिपूर्वक और शांत भाव से करो। किसी भी चीज के लिए अपनी आंतरिक शांति मत खोओ, भले ही आपकी पूरी दुनिया अस्त-व्यस्त सी लगे। सेंट फ्रांसिस डी सेल्स +* कभी-कभी आप ख़ुद को अलग परिस्थितियों में डालकर मन की शांति पा सकते हैं। वे मात्र शांत रहने का प्रबोधन हैं। यवेस बेहार +* किसी भी व्यक्ति, किसी भी स्थान, और किसी भी वस्तु का हम पर कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि ‘हम’ अपने मन के एकमात्र विचारक हैं। जब हम अपने मन में शांति एवं सद्भाव तथा संतुलन बनायेंगे, तो हम इसे अपने जीवन में पा लेंगे। लुईस एल। हे +* कोई किसी का हाथ पीछे पकड़कर वश में नहीं कर सकता। स्थाई शांति बल से नहीं आती है। David Borenstein +* गुस्से में रहते हुए हर मिनट आप ६० सेकंड की मानसिक शांति खो देते है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* जब तक आप अपने दिल की नहीं सुनेंगें, तब तक आप कभी मानसिक शांति प्राप्त नहीं कर पायेंगें। जॉर्ज माइकल +* जब प्रेम की शक्ति, शक्ति के प्रति प्रेम को वशीभूत कर लेगी, विश्व शांति का अनुभव करेगा। जिमी हेंड्रिक +* जिस व्यक्ति का मन शांत होता है। जो व्यक्ति बोलते और अपना काम करते समय शांत रहता है। वह वही व्यक्ति होता है, जिसने सच को हासिल कर लिया है और जो दुःख-तकलीफों से मुक्त हो चुका है। गौतम बुद्ध +* जीवन को टाल कर आप शांति नहीं पा सकते। वर्जिना वूल्फ +* जीवन जैसा है, उसी रीति में ढलने के लिए अपने मन को प्रशिक्षित करने का परिणाम शांति है, न कि उस तरह जैसा आप सोचते हैं कि इसे होना चाहिए। वेन डब्ल्यू डायर +* जो द्वेषपूर्ण विचारों से मुक्त रहते हैं, निश्चित रूप से वही शांति पाते हैं। गौतम बुद्ध +* दूसरों के व्यवहार को अपनी आंतरिक शांति नष्ट न करने दें। दलाई लामा +* प्रत्येक शांति, प्रत्येक कार्य, प्रत्येक विचार, प्रत्येक भावना, चाहे वह चेतन या अवचेतन रूप में ज्ञात हो, मानसिक शांति बढाने की दिशा में एक प्रयास है। Sydney Madwed +* प्रेम और मन की शांति हमारी रक्षा करते हैं। वे हमें जीवन में आने वाली समस्याओं से उबारते हैं। वे हमें जीवित रहना … आज में जीवित रहना … हर दिन का सामना करने का साहस रखना सिखाते हैं। बर्नी सीगल +* मुझे मानसिक शांति केवल तभी मिल सकती है, जब मैं किसी को परखने के बजाय क्षमा करूं। जेराल्ड जम्पोलेसकी +* मैं इस्लाम में यकीन रखता हूँ, मैं अल्लाह और अमन में यकीन करता हूँ। Muhammad +* मैं नहीं जानता कि युद्ध शांति के मध्य का अंतराल है या शांति युद्ध के मध्य का। जॉर्ज क्लेमेंसौ +* यदि आप अपने दुश्मन के साथ शांति स्थापित करना चाहते हैं तो आपको उसके साथ काम करना होगा । उस दशा में वह आपका साथी बन जाता है। नेल्सन मंडेला +* यदि आप अपने भीतर शांति नहीं पा सकते, तो आप इसे कहीं और नहीं पाएंगे। मार्विन गाये +* यदि आपमें आंतरिक शांति नहीं है, तो लोग इसे आपको नहीं दे सकते। पति आपको यह नहीं दे सकता। आपके बच्चे इसे आपको नहीं दे सकते। आपको इसे ख़ुद को देना होगा। लिंडा इवांस +* यदि हमारे मन में शांति नहीं है, तो इसकी वजह है कि हम यह भूल चुके हैं कि हम एक दूसरे के हैं। मदर टेरेसा +* यह एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि हम शांति को केवल युद्ध के लिए तैयार रह कर सुरक्षित कर सकते हैं। जॉन एफ. कैनेडी +* युद्ध तब तक नही बंद होंगे जब तक इस दुनिया में बच्चे बड़े दिमाग और छोटे एड्रीनल ग्लैंड के साथ नहीं आना शुरू होंगे। H. L. Mencken +* युद्ध शांति है। स्वतंत्रता दासता है। अज्ञानता में शक्ति है। जॉर्ज ओरवेल +* लोग हमेशा युद्ध करते हैं जब वो कहते हैं कि उन्हें शांति प्रिय है। David Herbert Lawrence +* वह एक शब्द उन हजारों खोखले शब्दों की तुलना में बेहतर है, जो शांति लाता है। गौतम बुद्ध +* वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और “मैं” और “मेरा” की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है, शांति प्राप्त करता है। भगवत गीता +* वास्तविक और स्थाई जीत शांति की होती है, युद्ध की नहीं। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* शांति अंदर से आती है। इसके बिना इसकी तलाश मत करो। गौतम बुद्ध +* शांति अपने आप में पुरस्कार है। महात्मा गाँधी +* शांति एक ऐसी लेंस बन सकती है, जिससे आप दुनिया देंखें। इसे ऐसा ही रहने दें। इसका अनुकरण करें। इसे प्रसारित करें। शांति एक आंतरिक कार्य है। वेन डायर +* शांति एक दैनिक, साप्ताहिक, मासिक प्रक्रिया है, जो उतरोत्तर राय बदल रही है, शनैः शनैः पुराने अवरोधों को मिटा रही है, शांतिपूर्वक नई संरचनाओं का निर्माण कर रही है। जॉन एफ़ कैनेडी +* शांति और न्याय एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। डवाइट डी. ईसेनहोवेर +* शांति का अर्थ साम्यवाद के विरोध का नहीं होना है। कार्ल मार्क्स +* शांति की शुरुआत मुस्कराहट से होती है। मदर टेरेसा +* शांति के बारे में बात करना पर्याप्त नहीं है। इस पर विश���वास करना होगा। और इस पर विश्वास करना पर्याप्त नहीं है। इस पर काम करना होगा। एलेनोर रोसवैल्ट +* शांति तब है, जब समय के बीतने से फर्क नहीं पड़ता। मारिया शेल्ल +* शांति दिन-प्रतिदिन की समस्या है, कई घटनाओं और निर्णयों का उत्पाद। शांति “है” नहीं, यह "हो रही है"। हेली सेलसई +* शांति बलपूर्वक बनाई नहीं रखी जा सकती; यह तो केवल सहमति से ही प्राप्त की जा सकती है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* शांति राजनीतिक या आर्थिक बदलाव से नहीं आ सकती, बल्कि मानवीय स्वभाव में बदलाव से आ सकती है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन +* शांति शांतचित्तता में स्वतंत्रता है। मार्कस ट्यूलियस सिसरो +* शांति सदा सुंदर होती है। वाल्ट व्हिटमैन +* शांति से प्रेम करने के लिए आपको युद्ध में लड़ा हुआ होना ज़रूरी नहीं है। Geraldine Ferraro +* शांति हज़ार मील का सफ़र है और इसे एक बार में एक कदम बढ़ाकर तय किया जाना चाहिए। लंडन बी. जॉनसन +* सिर्फ शांति के बारे में बात करना पर्याप्त नहीं है, उसमे यकीन भी करना होगा, और सिर्फ यकीन करना पर्याप्त नहीं है, उस पर काम भी करना होगा। Eleanor Roosevelt +* हम बाहरी दुनिया में कभी शांति नहीं पा सकते हैं, जब तक की हम अंदर से शांत ना हों। दलाई लामा +* हिंसा से शांति नहीं प्राप्त की जा सकती है, यह सिर्फ समझ के माध्यम से मिल सकती है। राल्फ वाल्डो इमर्शन + + +* क्रांतियाँ इतिहास के इंजिन हैं। कार्ल मार्क्स +* राजनीति में प्रयोगों का अर्थ है क्रांतियां। डिजरायली +* क्रांति का अर्थ होता है अतीत और भविष्य के बीच एक जबर्दस्त संघर्ष। फिदेल कास्त्रो +* क्रांति दूसरों को बांध कर नहीं होती, अपने को मुक्त करके होती है। अज्ञेय +* यदि क्रांति सफल न हो पाए तो इतिहासकार उसे ‘विप्लव’ और ‘विद्रोह’ के सम्बोधन प्रदान कर देता है। वस्तुतः सफल विद्रोह ही क्रांति कहलाता है। विनायक दामोदर सावरकर +* स्वच्छ क्रांति तो प्रेम व न्याय के सिद्धान्त से ही हो सकती है। एमर्सन +* अहिंसक प्रक्रिया में क्रांति का साध्य भी मनुष्य है और क्रांति का साधन भी मनुष्य है। दादा धर्माधिकारी +* किसी को क्रांति शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते है। भगत सिंह +* ज़रूरी नहीं था की क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था��� भगत सिंह +* सबको खाना, कपडा, मकान, मिल जाना क्रांति नहीं है। जितनी जरूरत हो, उतना खाना मिले, कपड़े की जरूरतें पूरी हो जाएं, हर एक को रहने के लिए अच्छा मकान मिल जाए-यह मनुष्य को सुखी जानवर बना सकता है, लेकिन स्वतंत्र मानव नहीं बना सकता। इसलिए यह क्रांति नहीं है। दादा धर्माधिकारी +* जीविका की पद्धति में और प्रतिष्ठा में जब आमूलाग्र परिवर्तन हो तब वह क्रांति कहलाती है। दादा धर्माधिकारी +* क्रांति में मूल्य का परिवर्तन होगा। सबसे पहले हमें अपने जीवन में परितर्वन करना होगा। दादा धर्माधिकारी +* सच, कर्म और चरित्र को क्रांति के बाद की चीज नहीं समझना चाहिए। इन्हें तो क्रांति के साथ-साथ चलना चाहिए। राममनोहर लोहिया +* निर्बल व्यक्ति की आहें संगठित होकर समुदाय द्वारा जनित क्रांति का रूप धारण कर सकती हैं। भगवतीचरण वर्मा +* अर्थहीन अकारण विप्लव की चेष्टा में रक्तपात होता है, और कोई फल प्राप्त नहीं होता। विप्लव की सृष्टि मनुष्य के मन में होती है, केवल रक्तपात मे नहीं होता। इसी से धैर्य रखकर उसकी प्रतीक्षा करनी होगी है। शरत्चन्द्र +* क्रांतियां क्षुद्र बातों के लिए नहीं हैं किन्तु क्षुद्र बातों से उद्भूत होती है। अरस्तू +* किसी को क्रांति शब्‍द की व्‍याख्‍या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्‍द का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं, उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग-अलग अर्थ और मायने दिए जाते हैं। भगत सिंह +* क्रांति मानव जाति का एक अपरिहार्य अधिकार है। स्‍वतंत्रता सभी का ए‍क कभी न खत्‍म होने वाला जन्‍मसिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्‍तविक निर्वाहक है। भगत सिंह +* फ्रांस की राज्यक्रांति तो कहीं अधिक बड़ी और कहीं गंभीर राज्यक्रांति की, जो अंतिम होगी, अग्रदूत मात्र है ‘समता’ की मांग के लिए न्याय व प्रसन्नता की शक्तियों को संगठित होना चाहिए। हर मनुष्य के लिए महान् शरणस्थल ‘समानों का गणतंत्र’ स्थापित करने की बेला आ गयी है। फ्रेक्वाइ एमिली वेल्युफ +* क्रांति आम जनता और व्यक्ति से शक्ति के संचय तथा संधान की मांग करती है। लेनिन +* क्रांति की आधारभूत प्रतिज्ञा यह है कि वर्तमान सामाजिक व्यवस्था राष्ट्र के विकास की महत्पूर्ण समस्याओं को हल करने में असमर्थ हो चुकी है। ट्राट्स्की +* यदि तुम क्रांति का सिद्धान्त और विधियों के जिज्ञासु हो तो तुम्हें क्रांति मे भाग लेना चाहिए। समस्त प्रामाणिक ज्ञान प्रत्यक्ष अनुभव से उद्भूत होता है। माओ-त्से-तुंग +* यदि क्रांति करनी हो, तो उसके लिए एक क्रांतिकारी संस्था का होना अनिवार्य है। माओ-त्से-तुंग +* एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ अंसतोष का होना पर्याप्त नहीं है ।जिसकी आवश्यकता है वो है न्याय एवं राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था। डॉ अम्बेकर +* शासक वर्गो को साम्यवादी क्रांति होने पर कांपने दो। सर्वहाराओं पर अपनी बेड़ियों के अतिरिक्त अन्य कुछ है ही नहीं, जिसकी हानि होगी। जीतने के लिए उनके सामने एक संसार है। सभी देशो के श्रमिकों संगठित बनो। कार्ल मार्क्स + + +: प्राण त्याग करने की भी स्थिति आ जाय तो भी जो कार्य करने योग्य नहीं है उसे नहीं करना चाहिए और जो करने योग्य है उसे नहीं छोड़ना चाहिए। यह सनातन धर्म है। +: हे हंस यदि नीर (जल) से क्षीर (दूध) को विलग करने में तूही आलस्य करेगा तो फिर इस संसार में और दूसरा कौन कुल की परिपाटी का पालन करेगा? +: अपने धर्म कर्त्तव्य में लगे रहना ही तपस्या है। मन को वश में रखना ही दमन है। सुख-दुःख, लाभ-हानि में एकसमान भाव रखना ही क्षमा है। न करने योग्य कार्य को त्याग देना ही लज्जा है। +* प्राण-संशय होने पर प्राणियों के लिए कुछ भी अकरणीय नहीं होता। कल्हण +* अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं होती। मुंशी प्रेमचंद +* अधूरा काम और अपराजित शत्रु, ये दोनों बिना बुझी हुई चिंगारियों की तरह हैं। संत तिरूवल्लुवर +* अपना कर्तव्य करने से हम उसे करने की योग्यता प्राप्त करते हैं। ई. वी. पूसे +* अपने से हो सके वह काम, दूसरे से नहीं करवाना चाहिए। महात्मा गांधी +* अव्यवस्थित कार्य करने वालों को जन में वन में कहीं भी सुख की प्राप्ति नहीं है, क्योंकि जन अपने संसर्ग से जलाते हैं और वन अपनी निर्जनता को जलाता है। आचार्य चाणक्य +* आदमी काम की अधिकता से नहीं, उसे भार समझकर अनियमित रूप से करने पर थकता है। श्रीराम शर्मा आचार्य +* आवेश शांत होने पर जो काम किया जाता है, वह फलदायी होता है। महात्मा गाँधी +* उद्यम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं, मात्र इच्छा करने से नहीं। हितोपदेश +* उस काम का करना अच्छा नहीं, जिसे करके पीछे पछताना पड़े और जिसका फल रोते-बिलखते भोगना पड़े। उसी काम को करना ठीक है, जिसे करके पीछे पछताना न पड़े और जिसका फल मनुष्य ��्रसन्नचित होकर ग्रहण करे। भगवान बुद्ध +* कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता । कर्तव्य-पालन में ही चित्त की शांति है। प्रेमचंद +* कर्तव्य पालन स्वभावतः आनन्द में पुष्पित होता है। फिलिप्स ब्रुक्स +* कर्तव्य-पालन करते हुए मरना जीवन का ही दूसरा नाम है। वृन्दावनलाल वर्मा +* कर्तव्य-पालन में से ही हक पैदा होता है। महात्मा गांधी +* कर्म करना जीवन के आनन्द के लिए आवश्यक है। कर्म करते समय मनुष्य अपने दुःख को भी भूल जाता है। स्वामी रामतीर्थ +* काम करके कुछ उपार्जन करना शर्म की बात नहीं। दूसरों का मुंह ताकना शर्म की बात है। मुंशी प्रेमचंद +* कार्य की अधिकता से उकसाने वाला व्यक्ति कभी कोई बड़ा कार्य नहीं कर सकता। अब्राहम लिंकन +* कृतज्ञता एक कर्तव्य है,जिसे पूरा करना चाहिए। रूसो +* कोई भी मनुष्य उस काम को करने में समर्थ हो सकता है, जिसे कोई अन्य मनुष्य कर चुका है। डा. युंग +* कोई भी व्यक्ति कार्य को सर्वोत्तम रूप में नहीं कर सकता, जब तक कि वह उसमें अपनी सम्पूर्ण योग्यता और पूरी सामर्थ्य नहीं लगा देता। स्वेट मार्डेन +* जिसे करना उचित नहीं है उसे प्राणों के कंठ में आ जाने पर भी नहीं कारना चाहिए और जो करणीय है उसे प्राण संकट उपस्थित होने पर भी करना चाहिए। अज्ञात +* जो कर्तव्य से बचता है, लाभ से वंचित रहता है। थ्योडोर पार्कर +* जो कार्य बल अथवा पराक्रम से पूर्ण नहीं हो पाता, उपाय द्वारा वह सरलता से पूर्ण हो सकता है। हितोपदेश +* जो सम्पूर्ण प्राणियों के लिए हितकर और अपने लिए भी सुखद हो, उसे ईश्वररार्पण बुद्धि से करे, सम्पूर्ण सिद्धियों का यही मूल मंत्र है। वेदव्यास +* जो सिर्फ काम की बात करते हैं, वे अवश्य सफल होते हैं। डेल कारनेगी +* पहले सब चीजें देखकर कोइ कार्य आरंभ करें। आरंभ न करना अच्छा, पर आरम्भ करके छोड़ना अच्छी बात नहीं। बोधिचर्या +* पूर्वज, भगवान, अतिथि, बन्धु तथा स्वयं इन पाँचों के लिए धर्मानुकूल सतत कर्म करना ही गृहस्थ का प्रधान कर्तव्य है। तिरूवल्लुवर +* प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असंभव होता है। कार्लाइल +* प्रत्येक अपने क्षेत्र में महान् है, परन्तु एक का कर्तव्य दूसरे का कर्तव्य नहीं हो सकता। विवेकानन्द +* प्राण-संकट उपस्थित होने पर भी न करने योग्य काम को छोड़ना नहीं चाहिए, यह सनातन धर्म है। विष्णुशर्मा +* प्रायः सभी के पास बुद्धि है, सभी अपने को समझदार मानेते हैं परन्���ु ठीक कर्तव्य का ज्ञान किसी विरले की विवेकी को होता है। साधु वेश में एक पथिक +* फल को सामने रखकर ही कर्म में प्रवृत्त होने वाले एक प्रकार से दीन होते हैं। महाभारत +* बड़े कार्य छोटे कार्यो से आरंभ करने चाहिए। विलियम शेक्सपीयर +* बिना काम किए सड़ जाने से बेहतर यह है कि करते-करते घिस जाएँ। रिचर्ड कंवर लैण्ड +* मनुष्य की सेवा मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है। विनोबा भावे +* मनुष्य को कर्म करते हुए सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए। इशोपनिषद +* मनुष्य को चाहिए की वह ईष्यहित, स्त्रियों का रक्षक, सम्पत्ति का न्यायपूर्वक विभाग करने वाला, प्रियवादी, स्वच्छता तथा स्त्रियों के निकट मीठे वचन बोलने वाला हो, परन्तु उनके वश में कभी न हो। वेदव्यास +* महान् संघर्षो में पाखण्डपूर्ण कार्य भी साथ-साथ होते रहते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम इनके प्रति सतर्क रहे। महात्मा गांधी +* यदि आप अपनी ड्यूटी को सैल्यूट करोगे तो आपको किसी भी व्यक्ति को सैल्यूट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अब्दुल कलाम +* राज्य अपना धर्म पालन करे या न करे, मगर हमें तो अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए तैयार रहना चाहिए। सरदार पटेल +* शुभ कार्य करने से सुख और पाप कर्म करने से दुःख होता है, बिना किए हुए कर्म का फल कहीं नहीं भोगा जाता है। महर्षि वेदव्यास +* सबसे अच्छा यही है कि तू अपना कर्तव्य कर और शेष ईश्वर के अधीन छोड़ दे। लांग फैलो +* समुद्र को यद्दपि कोई कामना नहीं होती तो भी अनेक नदियाँ उसमें लीन होती रहती हैं। उसी प्रकार उद्दोगी पुरूषों की सेवा सदैव लक्ष्मी करती है अर्थात जो सदैव उद्योग करते हैं उन्हें कभी धन का अभाव नहीं सताता। ऋग्वेद +* हमारी उन्नति का एकमात्र उपाय यह हे कि हम पहले वह कर्तव्य करें जो हमारे हाथ में है। ओर इस प्रकार धीरे-धीरे शक्ति-संचय करते हुए क्रमश हम सर्वोच्च अवस्था को प्राप्त कर सकते है। स्वामी विवेकानन्द + + +* ९९ प्रतिशत चीजें जिनकी आप चिन्ता करते हैं, वे वास्तव में होती ही नहीं हैं। +* अच्छा विनोद, मन और शरीर के लिए एक टॉनिक है, यह व्यग्रता और अवसाद का अच्छा प्रतिकार है। Kris Carr +* अपने शत्रु में सबसे पहला स्थान चिंता का आता है। शेक्सपियर +* आज तक मैं ऐसे किसी व्यक्ति से नहीं मिला जो काम की अधिकता के चलते मृत्यु को प्राप्त हो गया हो, मगर ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूँ जो चिंता के कारण मर गये। एनोनिमस +* आने वा���े कल का दो तरीकों से सामना कर सकते हैं एक विश्वास के साथ या फिर चिंता के साथ। हेनरी वार्ड बीचर +* आप अपने जीवन के शत्रु हैं, यदि चिंता करते है। शेक्सपीयर +* आपने ही अपने अवसाद को बनाया है, यह आप को दिया नहीं गया था, इसीलिए आप इसे तोड़ भी सकते हैं। Albert Ellis +* इसकी चिंता छोड़ कि कुछ गलत हो जाएगा, इसके बारे में उत्साहित हो कि क्या सही हो सकता है +* ईधन से जैसे अग्नि बढ़ती है, ऐसे ही सोचने से चिंता बढ़ती है। न सोचने से चिंता वैसे ही नष्ट हो जाती है जैसे ईधन के बिना अग्नि। योगवशिष्ट +* एक चिंता सैकड़ो दूसरी चिंताओं को जन्म देती हैं, यथा रक्तबीज। शब्द प्रकाश +* कार्य कभी भी अधिक नहीं होता, चिंता उसे अधिक से अधिक बनाती जाती है। शहद की मधुमक्खी को जितना हटाओगे वह उतना ही चिपटती चली जाएगी, चिंता भी ऐसी ही है। सुदर्शन +* किन्ही को दो दिनों के लिए कभी चिंता नहीं करनी चाहिए और ये हैं व्यतीत हुआ कल और आने वाला कल। रोबर्ट जेम्स +* चिंता अक्सर छोटी छोटी बातों को बड़ा बना देती हैं। देशी कहावत +* चिंता आने वाले दुख को कम नही करती हैं बल्कि यह आज के सुख को लूट लेती हैं। Leo F Buscaglia +* चिंता इतिहास को नहीं बदल सकती हैं मगर आनन्द से पूर्ण वर्तमान को नष्ट अवश्य कर सकती हैं। कहावत +* चिंता ऐसी काली दीवार का निर्माण कर देती हैं जिसमें घिरने के पश्चात फिर कोई गली नहीं सूझती। प्रेमचंद +* चिंता और चिन्तन में वही फर्क हैं जो एक आत्मविश्वासी स्वस्थ इंसान और बीमार इंसान में होता हैं स्वेट मार्डेन +* चिंता और शहद की मक्खी को जितना हटाओ उतना ही चिपटती है। सुदर्शन +* चिंता कमजोरी का संकेत है जो जीवन को विषतुल्य बना देती है। चैनेन +* चिंता करना बंद करो, चिंता जीवन को समाप्त कर देती हैं। अब्राहम एल फ़ेंबेर्ग +* चिंता करना समय की बर्बादी है। इससे कुछ भी नहीं बदलता है, यह सिर्फ आपके दिमाग के साथ खिलवाड़ करती है और आपकी खुशी चुरा लेती है। +* चिंता करनी है तो चरित्र की करो, भविष्य की चिंता से मनोरथ सिद्ध नहीं होते। स्वामी विवेकानन्द +* चिंता का राक्षस आपके हृदय में डेरा डालता है। चनिंग +* चिंता को अपने शत्रुओं की सूचि में पहले स्थान पर रखो। शेक्सपियर +* चिंता क्या हैं- यह उन लोगों द्वारा अदा किया गया ब्याज हैं जो विपत्ति में उधार लेते हैं। मैथ्यू अर्नाल्ड +* चिंता चिता के समान हैं। क्योंकि चिता मुर्दे को जलाती हैं और चिंता जिंदा को जल���ती है। प्रेमचंद +* चिंता जीवन में कायरता और विष भर देती है। वाल्टेयर +* चिंता मतलब आपकी कल्पना का उपयोग करके कुछ ऐसा बनाना है जिसे आप नहीं चाहते हैं। +* चिंता रुपी सांपिन ने जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य को डसा है। रामचरितमानस +* चिंता वाला दिन, काम के दिन से ज्यादा थकावट भरा होता है। जॉन लुबॉक +* चिंता से मुक्ति पाना इंसान का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए अन्यथा वह मनुष्य की शक्तियों को शून्य कर देगी। महात्मा गांधी +* चिंता, किए जाने वाले प्रश्नों की सजा चिता के समान है। प्रेमचन्द +* चिंतामुक्त रहो। जरा मुस्कुराओ। ध्यान से सुनो। जिम्मेदारी लेना सीखे। जो आप नहीं बदल सकते उसे स्वीकार करें। इस पाठ को गले लगाओ। अपनी जिंदगी से प्यार करो। +* चिंतित व्यक्ति के मन में राक्षस अपना स्थायी डेरा जमा लेता है, फिर वह न कार्य आरम्भ करने देता है और न सफ़लता प्राप्त करने देता है। स्वेट मार्डेन +* चिन्तन और चिंता में वहीं अंतर होता है जो एक आत्मविश्वास भरे स्वस्थ व्यक्ति और रोगी व्यक्ति में होता है। स्वेट मार्डेन +* चिन्ता एक प्रकार की कायरता है और वह जीवन को विषमय बना देती है। चैनिंग +* जितना समय हम किसी कार्य की चिंता में लगाते हैं, यदि उतना ही समय हम उस कार्य में लगायें तो चिंता जैसी कोई चीज नहीं रह जायेगी। शेख सादी +* जिन बातों के बारें में लोग चिंता करते हैं उनमें से लगभग निन्यानवे फीसदी तो घटित ही नहीं होती हैं तथा शेष एक फीसदी से तो बचा नहीं जा सकता ओसवाल्ड होफ्फ़मैंन +* फोकट की बातों पर चिंता करने के लिए यह जीवन बहुत छोटा है। +* मनुष्य चिंता से मरता नहीं, सूख जाता है। रूसी लोकोक्ति +* यदि आप जीवन की चिंता पर विजय पाना चाहते हैं, तो इस लम्हे में जिएं, हर सांस में जिएं। Amit Ray +* यदि चिंता से ही कार्यसिद्ध होते तो सभी कार्य के बजाय चिंता ही करते। स्वामी विवेकानन्द +* वह व्यक्ति अपनी पीठ पर वजन का गठ्ठर बांध कर सोता है जो बिस्तर पर चिंताओं के साथ जाता है। हैली बटन +* व्यर्थ चिंता आने वाले कल को उसके दुखों से खाली नहीं करती हैं, वह आज को भी उसकी शक्ति से खाली कर देती हैं। कैर्री टेन बूम +* शक्तियाँ होते हुए भी उनका उपयोग नहीं हो पाता, यदि दिल में चिंता हो। महात्मा गांधी +* सुबह से शाम तक काम करके आदमी उतना नहीं थकता जितना क्रोध या चिंता के एक घंटे में थक जाता है। स्वेट मार्डेन +* हम जितनी कम चिंता करें��े, उतनी जटिलता अपने जीवन में कम होगी। +* हमारी चिंताए को हमें कर्म की तरफ ले जाना चाहिए ना की अवसाद की और। Karen Horney +* हमारी थकान अक्सर काम के कारण नहीं, बल्कि चिंता, हताशा और नाराजगी के कारण होती है। डेल कार्नेगी +* चिन्ता ऐसी डाकिनी काट कलेजा खाय । + + +संगति का अर्थ है साथ-साथ गति' या 'साथ रहना'। संगति दो प्रकार की हो सकती है- सत्संगति (सत्संग) और कुसंगति (कुसंग)। +: महापुरुषों का सामीप्य किसके लिए लाभदायक नहीं होता, कमल के पत्ते पर पड़ी हुई पानी की बूँद मोती जैसी शोभा प्राप्त कर लेती है। +: सन्तोष परम लाभ है, सत्संग परम गति है, विचार परम ज्ञान है और इन्द्रियों पर नियंत्रण ही परम सुख है। +: सत्संग का महत्व देखो, पाषाण के स्पर्श से लोहा सोना बनता है और सोने के योग से काच मणि बनता है। +: सज्जन के सहवास से असज्जन दुष्कर कार्य को भी साध्य बनाता है। पुष्प का आधार लेकर शंकर के मस्तक पर की चींटी चंद्रबिंब का चुंबन करती है। +: संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है । चन्द्र और चन्दन की शीतलता के बीच सज्जन पुरुष की सङ्गति शीतल होती है। +: गंगा की तरह पाप का नाश करनेवाली, चंद्र किरण की तरह शीतल, अज्ञानरुपी अंधकारका नाश करनेवाली, ताप को दूर करनेवाली, कामधेनु की तरह इच्छित चीज देनेवाली, बहुत पुण्य से प्राप्त होनेवाली सत्संगति दुर्लभ है। +: तप्त लोहे पर पानी का नाम निशान नहीं रहता। वही पानी कमल के पुष्प पर हो तो मोती जैसा लगता है, और स्वाति नक्षत्र में छीप के अंदर अगर गिरे तो वह मोती बनता है। ज़ादा करके अधम, मध्यम और उत्तम दशा संसर्ग से होती है। +: कीर्ति नर्तकी की तरह नृत्य करती है। दुनिया में साधुता प्रकाशित होती है। सभा में ज्योत्सना जैसी सुंदर प्रतिभा गंगा की तरह आ मिलती है, चित्तको प्रियाकी तरह आनंद देती है, प्रसादोचित् संपद आती है। अच्छे मानव के सहवास से कौनसा लोकोत्तर कार्य नहीं होता ? +: कल्पवृक्ष कल्पना किया हुआ हि देता है, कामधेनु इच्छित वस्तु ही देती है, चिंतामणी जिसका चिंतन करते हैं वही देता है, लेकिन सत्संग तो सब कुछ देता है। +: कुसंग का त्याग पूर्णरुप से करना चाहिए वह अगर शक्य नहीं  है। सज्जन का संग करना चाहिए क्यों कि सज्जन संग का औषधि है। +: पुष्प के संग से कीडा भी अच्छे लोगों के मस्तक पर चढता है। बडे लोगों से प्रतिष्ठित किया गया पत्थर भ��� देव बनता है। +: फ़ूलके संग से धागाभी मस्तक पर धारण होता है, और वही धागा जाल के संग से पाँव तले कुचला जाता है +: कुमति को दूर करता है, चित्त को निर्मल बनाता है। लंबे समय के पाप को अंजलि में समा जाय ऐसा बनाता है, करुणा का विस्तार करता है; सत्संग मानव को कौन सा मंगल नहीं देता ? +: कर्मपाश से पीडित मानव के ह्रदयबंधको हर लेता है, छोटे मानवको उँचा स्थान देता है, जन्म-मरण की भ्रांति में से विश्रांति देता है; तीनों लोक में साधुसंग अत्यंत दुर्लभ है। +: कमलपत्र पर पानी जैसा चंचल यह जीवन अतिशय चपल है। इसलिए एक क्षण भी की हुई सज्जनसंगति भवसागर को पार करनेवाली नौका है। +: शम, विवेक, संतोष और साधुसमागम – ये चार मोक्षद्वार के पहेरेदार हैं। +: वनचर जन्तुओं के साथ दुर्गम पर्वतीय स्थानों और जंगलों में रहना अच्छा है, परन्तु इन्द्रभवन में भी मूर्खों के साथ रहना ठीक नहीं है। +: अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जड़ता को हर लेता है, वाणी में सत्य का संचार करता है, मान और उन्नति को बढ़ाता है और पाप से मुक्त करता है । चित्त को प्रसन्न करता है और हमारी कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है ।(आप ही कहें कि सत्संगति मनुष्यों का कौन सा भला नहीं करती । +: इस तीर्थराज में स्नान (सन्तों की संगति) का फल तत्काल ऐसा देखने में आता है कि कौए कोयल बन जाते हैं और बगुले हंस। यह सुनकर कोई आश्चर्य न करे, क्योंकि सत्संग की महिमा छिपी नहीं है। +: ग्रह, दवा, पानी, हवा, वस्त्र ये सब कुसंगति (कुयोग) और सुसंगति (सुयोग) पाकर संसार में बुरे और अच्छे वस्तु हो जाते हैं। ज्ञानी और समझदार लोग ही इसे जान पाते हैं। +: यदि तराजू के एक पलड़े पर स्वर्ग के सभी सुखों को रखा जाये तब भी वह एक क्षण के सतसंग से मिलने बाले सुख के बराबर नहीं हो सकता। +: भक्ति समस्त सुखों की खान है। किन्तु संतों के मार्गदर्शन के बिना इसे पाना बहुत कठिन है। ढेर सारा पुण्य किये बिना संतो की संगति नहीं मिलती। सत्संगति ही जन्म-मरण के चक्र का अन्त कर सकती है। +: यदि बुरी संगति करके कोई सफलता तथा समाज से प्रतिष्ठा प्राप्त करने की इच्छा रखता है तो उसे आजीवन कुछ भी हाथ नहीं लगेगा और उसकी इच्छा केवल इच्छा मात्र रह जाएगी। जिस प्रकार मगध के नजदीक बसने के कारण विष्णुपद तीर्थ का नाम 'गया' रखा गया। + + +: अर्थ तोता और मैना अपनी मधुर आवाज के कारण (पिंजरे में) बंध जाते हैं, पर बगुला ऐसे बंधता नहीं (क्यों कि वह बोलता नहीं) । मौन ही सारे काम सिद्ध करने का साधन है। +: वे विद्वान् होकर भी मितभाषी थे; शक्तिमान् होकर भी सहन भाव युक्त थे; दानशाली था पर अपनी प्रशंसा नहीं करते थे। (उनके ये) परस्परविरुद्ध गुण (ज्ञान-मितभाषिता; शक्ति-क्षमा; दानगुण-प्रशंसा में अनासक्ति) उनमें जुड़वा भाईयों के समान रहते थे। +: रहीम कहते हैं कि वर्षा ऋतु को देखकर कोयल ने मौन साध लिया है। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमको कौन पूछेगा? +* अज्ञान की सबसे बड़ी सम्पति है मौन, और जब वह इस रहस्य को जान जाता है तब अज्ञान नहीं रहता। प्लेटो +* विपत्ति में मौन रहना सबसे उत्तम है। ड्राइडेन +* अल्पभाषी मनुष्य सर्वोत्तम हैं। शेक्सपियर +* इसका खेद अनेक बार हुआ कि मैं बोल क्यों पड़ा। पाइथोगोरस +* मौन का इससे अधिक हितकर रूप कुछ नहीं हो सकता कि वह झूठे आरोप और मानहानि का उत्तर बन जाय। जॉसेफ एडिसन +* कभी आंसू भी सम्पूर्ण वक्तव्य होते हैं ।-– ओविड +* क्रोध को जीतने में मौन जितना सहायक होता है, उतनी और कोई भी वस्तु नहीं। महात्मा गांधी +* चींटी से अच्छा कोई उपदेश नहीं देता, और वह मौन रहती है। फ्रैंकलिन +* जहाँ नदी गहरी होती है, वहाँ जलप्रवाह अत्यंत शांत व गंभीर होता हैं। शेक्सपियर +* जो अपनी जिह्वा को वश में रखता है वह जीवन-भर नियन्त्रण रखता है; किन्तु जिसका जिह्वा पर वश नहीं, वह नाश को प्राप्त होता हैं। बाइबिल +* जो सही जीवन जीता है और सही है, उसके मौन में दूसरे के शब्दों से अधिक शक्ति होती है। फिलिप्स बुक्स +* तिरस्कार दिखाने का सबसे अच्छा ढंग है, मौन। बर्नार्ड शॉ +* तुम्हे प्रत्येक का उपदेश सुनना चाहिए जबकि अपना उपदेश कुछ ही व्यक्तियों को दो। +* नारी का मौन मनुष्य की वाणी के समान होता है। बेन जॉन्सन +* प्रत्येक स्थान और समय बोलने के योग्य नहीं होते, कभी-कभी मौन रह जाना बुरी बात नहीं। +* बोलने में समझदारी से काम लेना, वाक्पटुता से अच्छा है। बेकन +* भरे बर्तन की अपेक्षा, खाली बर्तन ज्यादा शोर करते है। जॉन ज्वेल +* मौन और एकांत आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं। लांगफेलो +* मौन की भाषा सबसे प्रभावी भाषा हैं पर व्यक्ति इसका इस्तेमाल बहुत कम करता हैं। अज्ञात +* मौन के वृक्ष पर शान्ति के फल फलते हैं। अरबी लोकोक्ति +* मौन क्रोध का दमन करने में व्यक्ति की जितनी सहायता करता है, उतना अन्य कोई नहीं सहायता करता हैं। महात्मा गांधी +* मौन घृणा की उत्तम अभिव्यक्ति है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* मौन ज्ञानियों की सभा में अज्ञानियों का आभूषण है। भर्नुहरि +* मौन निद्रा के सदृश है। यह ज्ञान में नई स्फूर्ति पैदा करता है। बेकन +* मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक वाक-शक्ति होती है। कार्लाइल +* मौन सर्वोत्तम भाषण है। अगर बोलना ही चाहिए, तो कम से कम बोलो, एक शब्द से काम चले, तो दो नहीं। महात्मा गांधी +* मौनं स्वीकार लक्षणम् । किसी बात पर मौन रह जाना उसे स्वीकार कर लेने का लक्षण है । ) +* वार्तालाप बुद्धि को मूल्यवान बना देता है, किन्तु एकान्त प्रतिभा की पाठशाला है । गिब्बन +* वास्तविक महानता की उत्पत्ति स्वयं पर खामोश विजय से होती है। + + +* अपने चेहरे पर मुस्कान रखें और अपने व्यक्तित्व को अपना ऑटोग्राफ बनने दें। अज्ञात +* आप जो कुछ भी पहनते हैं, वह आपकी मुस्कान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। कोनी स्टीवंस +* आपकी मुस्कान आपका लोगो है, आपका व्यक्तित्व आपका बिज़नेस कार्ड है, अपने साथ के अनुभव से आप दूसरों को कैसा महसूस कराते हैं, वह आपका ट्रेडमार्क बन जाता है। अज्ञात +* आपके दांत मोती जैसे नहीं लगते, जब तक आप मुस्कुराते नहीं हैं। एंथोनी लाइसेंसी +* आपको कभी उसका पछतावा नहीं करना चाहिए, जिसने आपको हँसाया हो। मेई मेजोर +* आपको हर पल में खुश होना चाहिए – यह अन्य लोगों के दिल को छू सकता है और उन्हें मुस्कुरा सकता है। Huma Qureshi +* इस यात्रा में आपको जो मुख्य बात याद रखनी है, वह है, हर किसी के लिए अच्छा होना और हमेशा मुस्कुराना। Ed Sheeran +* एक उदार ह्रदय खुशियों का झरना है, अपने सानिध्य में यह सबमें मुस्कान की तरह ताजगी भर देता है। वाशिंगटन इरविंग +* एक पल के लिए ही सही, किसी और के चेहरे की मुस्कान बनो। डेजन स्टोजनोविक +* एक मुस्कुराहट आपकी खिड़की की रोशनी है जो दूसरों को बताती है कि अन्दर बैठा व्यक्ति देखभाल करने वाला है। Denis Waitley +* एक सरल मुस्कान। यह आपके दिल खोलने और दूसरों के प्रति दयावान होने की शुरुआत है। दलाई लामा +* एक स्नेही मुस्कान उदारता की सर्वभौमिक भाषा है। विलियम आर्थर वार्ड +* कभी-कभी आपकी खुशी आपकी मुस्कान का स्रोत होती है, लेकिन कभी-कभी आपकी मुस्कान आपके आनंद का स्रोत हो सकती है। नहत हान्ह +* कोई भी अपने सबसे अच्छे दिन पर मुस्कुरा सकता है। मुझे एक ऐसे शख्स से मिलना पसंद है, जो उसके सबसे बुरे दिन पर मुस्कुरा सके। लॉरेन ग्राहम +* जब आप अकेले हो��े पर मुस्कुराते हैं, तब वाकई में वह अर्थपूर्ण है। एंडी रूनी +* जब आप बस मुस्कुराएंगे, तो आप पाएंगे कि जीवन अभी भी सार्थक है। चार्ली चैपलिन +* जब एक नया दिन शुरू हो, तो कृतज्ञतापूर्वक मुस्कुराने की हिम्मत रखो। स्टीव मारबोली +* जब जीवन आपको रोने के सौ कारण दे, तो जीवन को दिखाएं कि आपके पास मुस्कुराने के हजार कारण हैं। अज्ञात +* जिन लोगों को देखने मात्र से ही आप मुस्कुरा दें, वे मेरे पसंदीदा लोग हैं। कोइ फ्रेस्को +* जीवन एक दर्पण की तरह है। इस पर मुस्कुराओ और यह तुम पर मुस्कुराता है। Peace Pilgrim +* जीवन में मुश्किले तमाम हैं, फिर भी लबों में मुस्कान हैं, क्योकि जीना हर हाल में हैं, तो मुस्कुराकर जीने में क्या नुकसान हैं। अज्ञात +* जो भी आप हैं, अपने आप से प्यार करें और यकीन मानिए अगर आप भीतर से खुश हैं तो आप सबसे सुंदर व्यक्ति हैं और आपकी मुस्कान आपकी सबसे बेहतरीन संपत्ति है। अज्ञात +* जो मुस्कान पहाड़ों को हिला सकती है, वह दिलों को तोड़ भी सकती हैं। काइली स्कॉट +* झुर्रियों को केवल संकेत देना चाहिए कि मुस्कुराहट कहाँ हुआ करती थी। मार्क ट्वेन +* दुनिया के सभी आँकड़े एक मुस्कान की गर्मी को नहीं माप सकते हैं। – Chris Hart +* दुनिया को बदलने के लिए अपनी मुस्कान का उपयोग करें, लेकिन दुनिया को अपनी मुस्कान बदलने मत दो। अज्ञात +* दुनिया में कुछ चीजें सकारात्मक धक्का की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं। एक मुस्कान। आशावाद और आशा की दुनिया। एक ‘आप यह कर सकते हैं’ की सोच, जब चीजें आपके लिए कठिन होती हैं। Richard M। DeVos +* दृढ़ व्यक्ति वे हैं, जो दूसरों की खुशी के लिए मुस्कुरा सकते हैं। वेरोनिका पुरसेल +* नम्र शब्द, दया दृष्टि, एक नेकदिल मुस्कराहट अद्भुत काम कर सकती है और चमत्कार दिखा सकती है। विलियम हज़लिट +* महिलाओं के शस्त्रागार में मुस्कान से बढ़कर कोई हथियार नहीं है जिसके आगे पुरुष इतना असहाय पड़ जाएं। डोरोथी डिक्स +* मुस्कराहट वो हीरा है जिसे आप बिना खरीदे पहन सकते हो और जब तक यह हीरा आपके पास है आपको सुंदर दिखने के लिये किसी और चीज की जरुरत नहीं है। अज्ञात +* मुस्कान आपके झरोखे से आती हुई वह रोशनी है, जो दूसरों को बताती है कि वहाँ अंदर एक सबका ध्यान रखने और सबसे साझा होने वाला इंसान है। डेनिस वेटलि +* मुस्कान थके हुए के लिए विश्राम है, उदास के लिए दिन का प्रकाश है तथा कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है ��स हर पल मुस्कारते रहो। अज्ञात +* मुस्कान सबसे अच्छा मेकअप है, जो कोई लड़की लगा सकती है। मैरिलिन मुनरो +* मुस्कान सबसे सस्ती उपहार बनी हुई है, जिसे मैं किसी को दे सकता हूँ और फिर भी इसकी शक्तियां राज्यों को जीत सकती है। ओग मैंडिनो +* मुस्कान हर समस्या का सामना करने, हर डर को कुचलने और हर दर्द को छिपाने का सबसे बढ़िया तरीका है। अनजान +* मुस्कुराओ! यह आपकी फ़ेस वैल्यू बढ़ा देता है। रॉबर्ट हार्लिंग +* मुस्कुराओ! यह आपके चेहरे के मूल्य को बढ़ाता है। Robert Harling +* मुस्कुराना एक ऐसा उपहार है, जो बिना मोल के भी अनमोल है, इसमें देने वाले का कुछ कम नहीं होता और पाने वाला निहाल हो जाता है। अज्ञात +* मुस्कुराहट निश्चित रूप से सबसे अच्छे सौंदर्य उपचारों में से एक है। यदि आपकी विनोदप्रियता अच्छी है और जीवन के प्रति दृष्टिकोण अच्छा है, तो वह सुंदर है। रशीदा जोन्स +* मुस्कुराहट लोगों को अच्छा और सकारात्मक होने का एहसास दिलाती है, जो अच्छी-इच्छा, सामंजस्य और विश्वास की भावना को व्यक्त करती है। Dr। T।P।Chia +* मेरी मुस्कुराहट हमेशा के लिए टूट जाएगी, लेकिन मैं हमेशा इस बात के लिए आभारी रहूंगा कि मुझे जो करने को मिला वह मैंने किया। Trent Franks +* मेरे पास एक अच्छी मुस्कान, सुंदर होंठ और बड़े गोल गाल हैं। वे मुझे एक किशोर की तरह दिखने में मदद करते हैं। Gabourey Sidibe +* यदि आप अपनी मुस्कान का उपयोग नहीं कर रहे हैं, तो आप उस व्यक्ति की तरह हैं, जिसके बैंक में मिलियन डॉलर्स हैं और चेकबुक नहीं है। लेस गिब्लिन +* यदि आप कर सकें तो एक बच्चे के चेहरे पर मुस्कान लाने से अधिक मर्मस्पर्शी कुछ भी नहीं। एम्मा रॉबर्ट्स +* यदि आपके पास बस एक ही मुस्कान है, तो इसे अपने प्रियजनों को दें। माया अन्जेलो +* विनोद निहत्थों का हथियार है: यह उन लोगों के लिए सहायक है, जो पीड़ादायक परिस्थितियों में मुस्कुराने को मजबूर हैं। साइमन विएसेंथल +* सच्चा व्यक्ति मुसीबत में मुस्कुराता है, विपत्ति से शक्ति प्राप्त करता है और निंदा से वीर बनता है। थॉमस पाइन +* सबकी मुस्कान की भाषा एक होती है। जॉर्ज कार्लिन +* हमेशा उन्ही के करीब मत रहिए जो आपको खुश रखते है, बल्कि कभी उनके भी करीब जाइए, जो आपके बिना खुश नही रहते है। अज्ञात +* हमेशा किसी को हँसाने और रोजमर्रा की जिंदगी में दया के कोई भी कार्य करने का अवसर खोजें। रॉय टी. बेनेट +* हमेशा दिन में कभी-कभी एक मुस्कान चेह��े पर लाएं – यह आपको खुश महसूस कराता है और आप युवा दिखते हैं। Kylie Bax +* हमेशा पूरे दिन एक मुस्कान सजा कर रखें – यह आपको अधिक प्रसन्नचित और युवा बनाती है। कायली बक्स +* हर परिस्थिति में मुस्कुराना सीखो। इसे अपनी ताकत और क्षमता को साबित करने के अवसर के रूप में देखो। जो ब्राउन + + +* विकासशील देशों में भ्रष्टाचार जनता का सबसे बड़ा शत्रु है। भ्रष्ट अधिकारी या भ्रष्ट व्यापारी जो पैसा अपने थैली में डालते हैं वह पैसा वास्तव में उस गर्भवती महिला से चुराया हुआ है जिसको स्वास्थ्य सुविधा की आवश्यकता है, उस लड़की या लड़के से चुराया हुआ है जिनको शिक्षा पाने का अधिकार है, या उन लोगों से चुराया हुआ है जिनको पानी, सड़क और स्कूल की जरुरत है। यदि हमें २०३० ई तक अत्यधिक गरीबी को समाप्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो एक-एक रूपया महत्वपूर्ण है। जिम योंग किम, विश्व बैंक के समूह अध्यक्ष, 2013 में +* अगर किसी देश को भ्रष्टाचार-मुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगों का देश बनाना है तो, मेरा दृढ़तापूर्वक मानना है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य ये कर सकते हैं, पिता, माता और गुरु। अब्दुल कलाम +* अनुभव बताता है कि सरकार के सबसे अच्छे रूप में भी जिनके हाथ में सत्ता होती है वो धीरे-धीरे अत्याचारी हो जाते हैं। थॉमस जेफरसन +* अमानवीय तरीके से व्यवहार करना लोगों का भ्रष्टाचार है। एलेन बुलाक +* इनसाइडर ट्रेडिंग एक गंभीर अपराध है। क्या आप जानते हैं इसे करने का दंड क्या है? कुछ भी नहीं है, अगर आप कांग्रेस के सदस्य हैं। जैरोड किन्ज़ +* ऐसी सरकार जो बस बिजनेस को बचाने के लिए है, महज एक कंकाल है, और जल्द ही अपने ही भ्रष्टाचार और सड़न की वजह से गिर जाती है। एमोस ब्रोंसन ऐल्कोट +* जब कोई सरकार के साथ बिस्तर में सोता है तो उसे इससे फैलने वाली बीमारियों के लिए तैयार रहना चाहिए। रौन पॉल +* जब मैंने भ्रष्टाचार देखा, तो मैं अपने दम पर सच्चाई का पता लगाने के लिए मजबूर हो गया। मैं पाखण्ड को नहीं निगल सकता था। बैरी वाईट +* जितना अधिक भ्रष्ट राज्य होगा उतने अधिक कानून होंगे। टैकीटस +* न्याय के सपने का भ्रष्ट होना साम्यवाद है। ऐड्लाई ई स्टीवेंसन +* भ्रष्टाचार कभी अनिवार्य नहीं रहा है। एंथनी ईडन +* भ्रष्टाचार के अपराध का सहअपराधी अक्सर हमारी खुद की उदासीनता होती है। बेस मायरसन +* भ्रष्टाचार बर्फ के गोले के सामान है, एक बार ये लुढकने लगता है तो बढ़ता ही जाता है। चार्ल्स कैलेब कोल्टन +* भ्रष्टाचार वेश्यावृत्ति से भी बदतर है।वेश्यावृत्ति किसी व्यक्ति की नैतिकता को खतरे में डालती है, भ्रष्टाचार निर्विवाद रूप से पूरे देश की नैतिकता को खतरे में डालता है। कार्ल क्रॉस +* मुझे बिल्कुल पता नहीं है कि मेरी पीढ़ी ने लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए क्या किया। हमने गलती की। हम संतोष की एक अवधि में प्रवेश कर गए और लोकतंत्र में हो रहे भ्रष्टाचार से आँखे मूँद ली। वेन्टन मैरसैलिस +* मैं किसी को गंदे पैरों के साथ अपने दिमाग से नहीं गुजरने दूंगा। महात्मा गाँधी +* मैंने एक बार एक सांप को गिद्ध के साथ सम्भोग करते देखा, और सोचा, ये वाशिंगटन डी।सी।में आम बात है। जैरोड किन्ज़ +* यह सत्ता नहीं भय है जो भ्रष्ट बनाता है। सत्ता खोने का भय उन्हें सताता है जिनके हाथ में ये होती है और सत्ता से दण्डित होने का भय उन्हें भ्रष्ट बनता है जो इसके अधीन होते हैं। आंग सान सू की +* युवाओं का कर्तव्य है भ्रष्टाचार का विरोध करना। कर्ट कोबेन +* युवाओं को भ्रष्ट बनाने का पक्का तरीका है कि उन्हें उनसे अलग सोच रखने वालों से ज़्यादा उनकी तरह सोचने वाले लोगों को अधिक सम्मान देने की हिदायत दी जाये। फ्रेडरिक नीत्ज़े +* शक्ति का गलत इस्तेमाल अत्याचारी और पीड़ित दोनों को पराजित कर देता है। वैली लैम्ब +* शायद आंकड़ों और तथ्यों से ये दिखाया जा सकता है कि कॉंग्रेस के आलावा अमेरिका में कोई और आपराधिक वर्ग नहीं है। मार्क ट्वेन +* सत्ता भ्रष्ट होने वालों को आकर्षित करती है। जो इसे चाहता हो उस पर शक करो। फ्रैंक हर्बर्ट +* सब लोग कहते हैं कि हर तरफ भ्रष्टाचार है, लेकिन मुझे अजीब लगता है ऐसा कहना और फिर भ्रष्टाचार के दोषी लोगों को सजा ना देना। एलेक्सी नवेंली +* सभी संस्थाएं भ्रष्टाचार और अपने सदस्यों के दोष से प्रभावित हो सकती हैं। मोरिस वेस्ट +* सरकार में भ्रष्टाचार का विरोध देशभक्ति के उच्चतम दायित्व है। जी ऐडवर्ड्स ग्रिफ्फिन +* साठ ऐसे लोगों से घिरे होना जो आपकी जीवन को दयनीय बनाएं का मतलब है परिवार पुनर्मिलन में मौजूद होना। लेकिन छह लाख ऐसे लोगों से घिरे होना जो पूरी दुनिया को दयनीय बनाएं का मतलब है वाशिंगटन डी. सी. में रहना। जैरोड किन्ज़ +* साम्यवाद कभी भी ऐसे देश में सत्ता में नहीं आया है जो भ्रष्टाचार या यद्ध या दोनों से बर्वाद ना हुआ हो। जॉन ऍफ़ केनेडी + + +इसमें वे सभी पृष्ठ आते हैं जिनमें केवल प्रचार है, चाहे वह किसी व्यक्ति-विशेष का हो, किसी समूह का, किसी प्रोडक्ट का, अथवा किसी कंपनी का। इसमें प्रचार वाले केवल वही लेख आते हैं जिन्हें ज्ञानकोष के अनुरूप बनाने के लिये शुरू से दोबारा लिखना पड़ेगा। +यदि यह पृष्ठ अभी हटाया नहीं गया है तो आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। यदि आपको लगता है कि यह पृष्ठ इस मापदंड के अंतर्गत नहीं आता है तो आप पृष्ठ पर जाकर नामांकन टैग पर दिये हुए बटन पर क्लिक कर के इस नामांकन के विरोध का कारण बता सकते हैं। कृपया ध्यान रखें कि शीघ्र हटाने के नामांकन के पश्चात यदि पृष्ठ नीति अनुसार शीघ्र हटाने योग्य पाया जाता है तो उसे कभी भी हटाया जा सकता है। + + +व्यापारे वसते लक्ष्मी । (व्यापार में लक्ष्मी वसती हैं।) +* अपने व्यापार का विस्तार करने में कौशल एवं नेतृत्व की आवश्यकता रहती है। +* एक सफल उद्यमी नित नयापन की खोज में लगा रहता है और उनका उपयोग एक अवसर की भांति करता है। +* काम वाले व्यक्ति से काम की बात करो, अपने काम पर जाओ और उसको अपना काम करने दो। +* जब आपको अधिक लोगों का समर्थन हासिल हो तो यह आपके रूकने और जवाब देने का वक्त होता है। +* जो हरेक का कार्य है, वह किसी का कार्य नहीं होता है। +* व्यापार किसी भी रोचक खेल से ज्यादा रोमांचक होता है। +* व्यापार की सफलता न सिर्फ काम पर निर्भर करती है, बल्कि आप पैसे का उपयोग इस प्रकार करे जिससे पैसा आपको पैसे कमा कर दे। +* यदि अवसर आपके पास नहीं आता है तो आप खुद अवसर पैदा करें। +* यदि आपको लगता है कि आप कुछ नही कर सकते या आप सब कुछ कर सकते हैं तो आप दोनों दशाओं में सही हैं। +* यदि तुम किसी को काम कराना चाहते हो, तो उसको करने के लिए किसी व्यस्त व्यक्ति से कहो। +* व्यवसाय पर आधारित मित्रता, मित्रता पर आधारित व्यवसाय से बेहतर है। +* व्यापार में सफलता प्राप्ति की कला कठिन परिश्रम है और चीजों को अत्यधिक गम्भीरता से मत लो। +* सफलता का सूत्र है जल्दी उठो, कड़ी मेहनत करो, भाग्यशाली बनो। +* सिर्फ पैसे के लिए किया गया व्यापार, व्यापार नहीं बल्कि वह एक कमजोर व्यवहार है। +* अगर तू बिज़नस करने की सोचता है, उनसे दूर रहो जो इसे करने से रोकता है। +* अच्छे व्यापारी और व्यवसायी जीवन पर्यन्त परिश्रम करते है क्योंकि उन्हें परिश्रम करने ���े ख़ुशी मिलती है। +* अपनों से प्यार और शहर में व्यापर- जो इमानदारी से करता है, विश्वास कीजिए वह अपने जिन्दगी में बहुत उन्नति करता है। +* अब टेक्नोलॉजी और इन्टरनेट का जमाना है। अगर आप का व्यवसाय 24 घंटे नही चल रहा है तो आप बहुत पीछे हो जायेंगे। +* आपका सबसे असंतुष्ट ग्राहक आपके सीखने का सबसे बड़ा स्रोत है। +* इन्सान को दो चीजें कभी भी नजरअंदाज नही करनी चाहिए – एक अपना परिवार और दूसरा बिज़नस या पेशा। +* व्यापार का उद्देश्य ग्राहक बनाना होता है। +* कामयाब लोग अपने फैसले से दुनिया बदल दते हैं और नाकामयाब लोग दुनिया के डर से अपने फैसले बदल लेते हैं। +* किसी भी व्यवसाय में मुनाफा केवल उन ग्राहकों से आता है जो दोबारा आते हैं। +* जब आप व्यवसाय शुरू करते हैं तो आपको सबसे अधिक जिम्मेदारी का एहसास होता है और यही आपको सफल भी बनाता है। +* जिनको अपने काम पर भरोसा होता हैं वो नौकरी करते हैं और जिनको अपने आप पर भरोसा होता हैं वो व्यापार करते हैं। +* जोखिम न लेना सबसे बड़ा जोखिम होता है। +* दूसरों के व्यवसाय का अनुभव आपको उत्साहित करता है और जोखिम को बढ़ाता है। लेकिन खुद का व्यवसायिक अनुभव आपके आत्मविश्वास को बढ़ाता है और जोखिम को कम करता है। +* धन कमाने में बर्षो लगते हैं और गवाने के लिए बस एक दिन काफी होता है, अगर आप ऐसा सोचेंगे तो आप चीजों को अलग तरह से करेंगे। +* नौकरी भी एक व्यवसाय है जिसमें व्यक्ति अपनी सेवाओं को बेचता हैं। +* बचत करने की आदत डालें क्योंकि यह बिज़नस में आपकी बहुत मदत करेगा। आपकी जीवन शैली जितनी साधारण होगी, आप अपने बिज़नस पर उतना ही अधिक ध्यान दे पायेंगे। +* यदि आप व्यवसाय कर रहे हैं तो काम में निरंतरता जरूर रखें। +* यदि आपका व्यवसाय इन्टरनेट पर नही हैं तो आपका व्यवसाय, व्यवसाय से बाहर है। +* यदि प्रत्येक व्यक्ति अपना कार्य करे तो यह दुनिया जितनी गति से चलती हैं, उससे कही अधिक तेजी से चलने लगेगी। +* यूँ ही नहीं बिज़नस में कोई पैसे कमाता है, शुरूआत में वह बहुत कुछ गंवाता है। +* वही व्यवसाय सही होता हैं जिसके बारे में आप जानते हैं और आपको विश्वास हो इसे बेहतर ढंग से कर सकते हैं। +* व्यक्ति गरीब विचारों से होता है, पैसों से नही। +* व्यवसाय में आप अपने ग्राहक को जितनी अधिक सुविधाएं देंगे आपको वो उतना ही लाभ पहुँचायेंगे। +* व्यवसाय में कुछ लोग टूट जाते हैं और कुछ लोग रिकॉर्ड तोड़ देते ���ैं। +* व्यवसाय में दूसरों पर उतना ही भरोसा रखें जितने में आपको नुकसान न हो। +* व्यसाय में धैर्य की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। +* व्यापार उसी व्यक्ति को करना चाहिए जिसमें जोखिम लेने का साहस हो। +* व्यापार में लगा पैसा एक निश्चित समय के बाद ही आपको लाभ देगा। + + +* ‘निष्काम कर्म’ ईश्वर को भी ऋणी बना देता है और ईश्वर उसको ब्याज सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। +* आत्म साक्षात्कार मेँ बाधक बनने वाली प्यारी चीज को भी तुरंत हटा देना चाहिए। +* निराशा निर्बलता का चिन्ह है। +* आलस्‍य मृत्‍यु के समान है, और केवल उद्यम ही आपका जीवन है। +* इच्छाएं सांप के जहरीले दांत के समान होती हैं। +* इच्छाओं से ऊपर उठ जाओ वह पूरी हो जाएगी और मांगोगे उनकी पूर्ति तुमसे और दूर जा पड़ेगी । +* किसी काम को करने से पहले इसे करने की दृढ़ इच्छा अपने मन में कर लें और सारी मानसिक शक्तियों को उस ओर झुका दें। इससे आपको अधिक सफलता प्राप्त होगी। +* किसी देश की शांति छोटे विचारों के बड़े आदमियों से नहीं अपितु बड़े विचारों के छोटे आदमियों से बढ़ती है। +* किसी भी मत, धर्म या पंथ को जो आजकल की वैज्ञानिक गवेषणा के स्वस्थ और कल्याणकारी परिणामों से मेल नहीं खाता, कोई अधिकार नहीं है कि वह अपने अंधे भक्तों पर जबरदस्ती करे या या उन्हें अपना शिकार बनाए। +* चिंताएं, परेशानियां, दुःख और तकलीफें परिस्थितियों से लड़ने से नहीं दूर हो सकतीं, वे दूर होंगी अपनी अंदरूनी कमजोरी दूर करने से जिसके कारण ही वे सचमुच पैदा हुईं है। +* जब आदमी उत्तम काम करने लगता है तो उससे धरती के काम दूसरी संभालते हैँ । +* जब तक आप दूसरों के अवगुण ढुंढने या उनके दोष देखने की आदत को दूर नहीं कर लेते तब तक आप ईश्‍वर का साक्षात नहीं कर सकते। +* जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक यदि इस संसार में करोड़ों ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता। +* जब तक तुम्‍हारें अन्‍दर दूसरों के, अवगुण ढुंढने या उनके दोष देखने, की आदत मौजूद है ईश्‍वर का साक्षात, करना अत्‍यंत मुश्किल है। +* जिसे निज गौरव का भान रहता है वह किसी चीज को मुफ्त पा जाने की बनिस्बत उसे अपने पौरुष से प्राप्त करता है । +* नियमों का निर्माण मनुष्य के लिए हुआ है, मनुष्य का निर्माण नियमों के लिए नहीं हुआ है। +* परिवर्तन, समयानुकूल परिवर्तन से घृणा करके पुरानी रीतियों तथा वंश परम्परा पर अधिक जोर देकर अपने को मनुष्यता के आसन से निचे मत गिराओ। +* पाप की गुलामी करने वाली आजादी को नष्ट कर दो । +* भय से और दंड से पाप कभी बंद नहीं होते। +* भाग्य का दूसरा नाम विचार है। जैसा आप सोचते है, वैसा आप बन जाते है। +* यदि आप अहंकार और स्वार्थ को नहीं छोड़ सकते तो आप सच्चा कार्य नहीं कर सकते। +* यह नहीं हो सकता की तुम दुनिया के भी मजे लो और सत्य को भी पालो। +* लक्ष्मी पूजा के अनेक रूप हैं, लेकिन गरीबों की पेट पूजा (गरीबों का पेट भरना) ही श्रेष्ठ लक्ष्मी पूजन है। इससे आत्मतोष भी होता है। +* वही उन्नति कर सकता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। +* वास्तविक शिक्षा का आदर्श यह है कि हम अपने भीतर से कितनी विद्या निकल सकते है, यह नहीं कि बाहर से कितनी भीतर डाल चुके है। +* विद्या व ज्ञान का दान सर्वोपरि श्रेष्ठ दान होता है, जो आप किसी मनुष्य को दे सकते है। +* विश्व राम का शरीर है। +* विश्वास का अभाव अज्ञान है। +* वेदान्त की पुस्तकों को अलमारियों में बंद रखने से काम नहीं चलेगा, तुम्हें आचरण में लाना होगा। संसार के धर्मग्रन्थों को उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए, जिस प्रकार रसायनशास्त्र का हम अध्ययन करते हैं और अपने अनुभव के अनुसार अन्तिम निश्चय पर पहुंचते हैं। +* शब्दों की अपेक्षा कर्म अधिक जोर से बोलते है। +* शाश्वतता का विचार ही विवेक है। +* सच्चा कार्य अहंकार और स्वार्थ को छोड़े बिना नहीं होता। +* सांसारिक बुद्धिमता केवल अज्ञान का बहाना है। + + +कृत्रिम बुद्धि Artificial intelligence AI) संगणक विज्ञान की एक शाखा है जिसमें बुद्धिमान मशीनों की रचना करने का प्रयत्न किया जाता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता की पाठ्यपुस्तकें कृत्रिम बुद्धि की परिभाषा इस प्रकार करतीं हैं- +कृत्रिम बुद्धि, बुद्धिमान एजेन्टों का डिजाइन एवं अध्ययन है। +बुद्धिमान एजेन्ट ऐसे तंत्र को कहते हैं जो अपने पर्यावरण को समझते हुए ऐसा व्यवहार करता है कि इसकी सफलता की सम्भावना अधिकतम हो सके। जॉन मैक्कार्थी ने १९५५ में 'आर्टिफिफिअल इन्टेलिजेन्स' शब्द का सबसे पहले प्रयोग किया था। +* सन १९५६ में हर्ब साइमन ने भविष्यवाणी की थी कि अगले दस वर्ष के भीतर कम्प्यूटर विश्व चेस चैम्पियन को हरा देंगे, सौन्दर्य की दृष्टि से संतोषकारक संगीत की रचना कर सकेंगे, और नए गणितीय प्रमेयों को सिद्ध करेंगे। ���े सभी काम कम्प्यूटर द्वारा सम्पन्न हुए लेकिन ४० वर्ष में, दस में नहीं। माइकल जे बीसों (Michael J. Beeson The Mechanization of Mathematics" में (2004) +* सम्भव है कि कृत्रिम बुद्धि का पूर्ण विकास मानव जति का अन्त कर दे। कृत्रिम बुद्धि अपने-आप आगे बड़ना शुरू करेगी, अपने आप की पुनर्डिजाइन करेगी, और पुनर्डिजाइन की यह गति तेज होती जायेगी। धीमे जीववैज्ज्यनिक विकास के कारण मानव की अपनी सीमाएँ हैं। इसलिये मानव कृत्रिम बुद्धि से स्पर्धा नहीं कर पायेगा, और पिछड़ जाएगा। स्टीफेन हाकिंग्स +* कृत्रिम बुद्धि तथा उसके अन्तर्गत आने वाली मशीन लर्निंग, आश्चर्यजनक औजार हैं। अपने-आप में यह अच्छा या बुरा नहीं है। यह एक जादुई समाधान भी नहीं है। कृत्रिम बुद्धि समस्याओं का मूल भी नहीं है। Vivienne Ming, executive chair and co-founder, Socos Labs +* किसी के पास भी इसका उत्तर नहीं है कि एक चेतना-सम्पन्न मशीन कैस्से बनायी जाय। Stuart Russell +* कृत्रिम बुद्धि प्रौद्योगिकी की सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता है, और स्वास्थ्य-रक्षण कृत्रिम बुद्धि का सबसे आवश्यक अनुप्रयोग। सत्य नाडेला, CEO, माइक्रोसॉफ्ट + + +सहयोग Cooperation) वह प्रक्रिया है जिसमें जीवों का कोई समूह एकसाथ मिलकर सबके/आपसी लाभ के लिए कार्य करता है, न कि स्वार्थ के लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करना। अनेक जन्तु एवं वनस्पति प्रजातियाँ आपस में तथा दूसरी प्रजातियों के साथ सहयोग करतीं हैं। भाषा की शक्ति के कारण मानव समाज में बहुत बड़े पैमाने पर सहयोग सम्भव है। +: अर्थ परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराएँ। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें। +* आज की अधिकांश शिक्षा, नौकरी के लिये है। लोगों को इस बात के लिये तैयार किया जाता है कि वे बाहर के वाणिज्यिक संसार में प्रतिस्पर्धा करते हुए अपनी जीविका कमा सकें। यह बदलकर रहेगा। स्पर्धा के स्थान पर सहयोग आयेगा। बेंजामिन क्रीम नये युग में शिक्षा, Interview with Benjamin Creme, Share International (July/August 1997 Ch. 2 +* अच्छे लोगों के साथ सहयोग करना जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण है बुरे लोगों के साथ असहयोग करना। महात्मा गाँधी + + +: सभी गुण स्वर्ण पर ही आश्रय पाते हैं। +: ⁣⁣शरीर और गुण इन दोनों में बहुत अन्तर है। शरीर थोड़े ही दिनों का मेहमान होता है जबकि गुण प्रलय काल तक बने रहते हैं।⁣⁣ +: विद्या, तर्कशक्ति, विज्ञान, स्मृतिशक्ति, तत्परता, और कार्यशीलता, ये छः जिसके पास हैं, उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं है। +: प्रयास साहस धैर्य बुद्धि शक्ति तथा पराक्रम जहां ये छः गुण होते हैं वहां दैव (भाग्य) भी सहायक होता है। +: शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, चिन्तन, उहापोह (तर्क-वितर्क विशिष्ट ज्ञान, और तत्त्वज्ञान – ये बुद्धि के गुण हैं । +ग्रंथ का संपूर्ण ज्ञान, तात्पर्य निरुपण करने की समझ, और ग्रंथ के आदि, अन्त और मध्य किसी भी भाग पर विवेचन करने की शक्ति – ये शास्त्रविद् के गुण हैं। +: गुण, गुणी लोगों में ही गुण होते हैं कहलाते हैं। वे निर्गुण व्यक्ति के पास पहुँचकर दोष हो जाते हैं। +: लाड़-दुलार से बहुत से दोष पैदा हो जाते हैं। इसके विपरीत, दण्ड देने से या परीक्षा लेने से उनमें जीवन जीने के गुण विकसित होते हैं। इसलिये पुत्रों और शिष्यों को ताड़ना देना चाहिये, लाड़-दुलार नहीं। +: जिसके पास गुण हैं, तथा जिसके पास धर्म है, वही वास्तव में जी रहा है। गुण और धर्म- दोनों जिसके पास नहीं है, उसका जीवन निरर्थक है। +* प्रतिभावान का गुण यह है कि वह मान्यताओं को हिला देता है। गेटे +* बिना साहस के हम कोई दूसरा गुण भी अनवरत धारण नहीं कर सकते । हम कृपालु, दयालु सत्यवादी उदार या इमानदार नहीं बन सकते । +* अभिप्राय में उदारता, कार्य सम्पादन में मानवता, सफलता में संयम, इन्हीं तीन गुणों से मानव महान बन जाता हैं। बिस्मार्क +* आकाश-मंडल में दिवाकर के उदित होने पर सारे फूल खिल जाते हैं, इस में आश्चर्य ही क्या? प्रशंसनीय है तो वह हारसिंगार फूल (शेफाली) जो घनी आधी रात में भी फूलता है। आर्यान्योक्तिशतक +* आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, ममत्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता। भगवान महावीर +* कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे। पंडितराज जगन्नाथ +* किसी के गुणों को गाने में अपना समय नष्ट करने के बजाय उसे अपनाने में लगाओ। कार्ल मार्क्स +* कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं। मृच्छकटिक +* गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है । शेक्सपीयर +* गुण और ज्ञान पाने के पश्चात इस जगत में कोई भी झंझट शेष नहीं रह जाता। ओशो +* गुण और ज्ञान वही सिद्ध हैं, जिससे मनुष्यता का भला होता हैं। महात्मा गांधी +* गुणवान के गुण के अलावा कुछ नहीं देखा जाता। प्रेमचंद +* गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है। वासवदत्ता +* गुणवान व्यक्ति की परीक्षा धन से नहीं सद्गुण और शीलता से होती हैं, जिस प्रकार घोड़ा अपनी साज-सज्जा से नहीं बल्कि ताकत और दौड़ने के गुण से जाना जाता हैं। सुकरात +* गुणवान व्यक्ति दूसरे की गलतियों से अपनी गलती सुधारते हैं। साइरस +* गुणवान होने के लिए विनम्रता, जिज्ञासा और सेवा को अपने व्यवहार में सम्मिलित करना चाहिए। तब हमें अमिट ज्ञान की प्राप्ति होगी। श्रीमदभगवद्गीता +* गुरु के दुर्गुण त्यागो, शत्रु के गुण ग्रहण करो। अज्ञात +* घमंड करना जाहिलों का काम है। शेख सादी +* जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है । कबीर +* जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है। दीनानाथ दिनेश +* जो मनुष्य अपनी उन्नति चाहता है, उसे चाहिए कि वह दूसरों के गुण देखने की आदत डालें और स्वयं पर लागू करे। अज्ञात +* जो वीरता से भरा हुआ है, जिसका नाम लोग बड़े गौरव से लेते हैं, शत्रु भी जिसके गुणों की प्रशंसा करते हैं, वही पुरूष वास्तव में पुरूष है। गणेश शंकर विद्यार्थी +* दान करके गुप्त रखना चाहिए, घर आये शत्रु का सत्कार करना चाहिए, परोपकार करके मौन रहना चाहिए, और दूसरों के उपकार को प्रकट करते रहना चाहिए। धन वैभव होने पर अभिमान नहीं करना चाहिए, पीठ पीछे निंदा नहीं करना चाहिए, अपना दोष बताये जाने पर क्रोधित नहीं होना चाहिए और उपकार करने वाले प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए ये ऐसे सद्गुण है, जो साधारण पुरूष को महापुरूष बना देते हैं। अज्ञात +* धन से सद्गुण नहीं उत्पन्न होते, लेकिन सद्गुणों से धन एवं दूसरी वस्तुएं प्राप्त होती हैं। कन्फ्यूशियस +* पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है । गौतम बुद्ध +* बुद्धिमान किसी का उपहास नहीं करते हैं। +* मनुष्य ��ुणों से श्रेष्ठ बनता हैं, आसन पर बैठने से नहीं। महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं बन जाता। चाणक्य नीति +* मनुष्य सुसंगति में रहकर गुण पाता है तो अपने एक अवगुण से भी मुक्त हो जाता हैं। एकनाथ +* मानव जब तक तृष्णा से दूर हैं, गुणवान बना रहता हैं। अज्ञात +* मैं कोयल हूँ और आप कौआ हैं- हम दोनों में कालापन तो समान ही है किंतु हम दोनों में जो भेद है, उसे वे ही जानते हैं जो कि ‘काकली’ (स्वर-माधुरी) की पहचान रखते हैं। साहित्यदर्पण +* यदि राजा किसी अवगुण को पसंद करने लगे तो वह गुण हो जाता है शेख सादी +* यदि हम सद्गुण के उपदेशों को आचरण में लायें तो हमारे अंतर में छिपी अपार अध्यात्मिक शक्ति हमें प्राप्त हो जाएगी। गुरूनानक +* शिष्टाचार शारीरिक सुन्दरता के अभाव को पूर्ण कर देता हैं। शिष्टाचार के अभाव में सौन्दर्य का कोई मूल्य नहीं रहता। स्वेट मार्टन +* सज्जनों का स्वभाव गुणों को पास रखना हैं और दुर्जनों का स्वभाव अवगुणों को अपने पास रखना हैं। भर्तृहरि +* सज्जनों के मन घोड़े से गुणों के कारण फूलों की भांति ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। बाणभट्ट +* सभी लोगों के स्वभाव की ही परीक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरि है)। हितोपदेश +* समस्त गुण विनय की दास्तान कहते हैं। विनम्रता का जन्म नम्रता की कोख से होता हैं, अतः जो नम्र है, वही सद्गुण सम्पन्न है। अज्ञात +* संसार में आदरपूर्वक जीने का सरल और शर्तिया उपाय यह है कि हिम जो कुछ बाहर दिखना चाहते हैं, वैसे ही वास्तव में हों भी। सुकरात +* सुन्दरता बढ़ जाती है यदि आपमें गुण भी हों। चाणक्य + + +: लोभ पाप का मूल (जड़) है सभी संकटों का मूल भी लोभ है लोभ के कारण ही शत्रुता होती है और बढ़ती है और अतिलोभ के कारण हि किसी का विनाश होता है। +: भावार्थ- मक्खी जब गुड़ के लालच में अपने पंख फंसा देती है तब अपने हाथ पांव पटकने और सिर धुनने के बावजूद भी उसकी मुक्ति नहीं होती। लालच बुरी बला है। + + +* किसी राष्ट्र को प्रदूषित करने का सर्वोत्तम साधन शिक्षा व्यवस्था में नकल की प्रवृत्ति को प्रचलित करना है। देश/ प्रदेश की शिक्षा-प्रणाली की बर्बादी ही उस देश/प्रदेश की बर्बादी के लिए पर्याप्त है। (दक्षिण अफ्रीका के एक प्रोफेसर) +* कोई भी देश सही मायनो में तभी आज़ाद होता है, तभी प्रगति कर सकता है जब उसकी संतति केवल भौतिक ही नहीं बल्कि मानसिक और आर्थिक रूप से भी आज़ाद हो। +* यह दुर्भाग्य ही है कि आज़ाद भारत को नेता जी सुभाषचंद्र बोस के स्तर का एक भी नेता नहीं मिला, और उसका परिणाम सामने है। +* अपने आप को मानसिक गुलामी से आजाद करो। हमारे मन को केवल हम ही आजाद कर सकते हैं। (बॉब मार्ली) + + +* राष्ट्र की उन्नति में प्रत्येक व्यक्ति को सम्मिलित होना पड़ेगा। बिना संगठित हुए राष्ट्र कभी परम वैभव पर नहीं पहुंच सकता। +* चारों तरफ से विरोधियों में घिर जाने पर भी जो हिम्मत से कार्य करता है, वही विजय श्री को प्राप्त करता है। +* जाति-पाति, वर्ग-भिन्नता, अगड़ा–पिछड़ा इन सब में पड़कर समाज अपना अस्तित्व खो बैठता है। समय की मांग है इन सभी पूर्वाग्रह से बाहर निकल कर भारतीय बनाने का देशभक्त बनाने का। +* स्वयंसेवक जिस भी क्षेत्र में जाता है वह वहां के अनुशासन का पालन अवश्य करता है। यह उसके संस्कार हैं यही स्वयंसेवक को विशिष्ट बनाता है। +* पूर्व में क्या हुआ, बिना इस पर विचार किए वर्तमान में सभी को सामान्य दृष्टि से अपनाना होगा और उन्हें हुआ सम्मान तथा दायित्व देना होगा जिनके वह अधिकारी हैं। +* संगठित समाज ही भाग्य परिवर्तन की कुंजी है। संगठित होकर ही व्यक्ति तथा राष्ट्र का भाग्य बदला जा सकता है। +बिना किसी आलोचना पर ध्यान दिए अनेकों जख्मों को सहते हुए हमें निरंतर आगे बढ़ते रहना होगा। लोग फलदार वृक्ष को ही पत्थर मारते हैं, यह समझना होगा। +* समाज के लोगों को एकजुट करना तराजू में मेंढक तोलने के बराबर है। समाज के चार लोग तभी एक साथ होते हैं जब पांचवा कंधे पर हो। इस प्रकार समाज का विकास संभव नहीं है। आपसी वैमनस्य की भावना से राष्ट्र का कभी भला नहीं हो सकता। +* संघ को किसी विशेष विचारधारा मे बांधने की कोशिश व्यर्थ है। यह किताब और पत्र की सीमाओं में बंधने वाला नहीं है। यह जीवन जीने का मार्ग बताता है, जीवन और भविष्य का निर्माण करता है, राष्ट्र का उद्धार हो इसके लिए संघर्ष करता है, यह विचारधारा से परे है। +* भारत हिंदू राष्ट्र है,और यह सत्य है कोई इसे झुठला नहीं सकता। जब तक इस देश में एक भी हिंदू है तब तक यह हिंदू राष्ट्र ही रहेगा। +* मीडिया हमारे विषय में कितना भी कुछ भी लिखें यह एक दो महीने की छींटाकशी होती है किंतु वास्तविकता तो वास्तविकता ही रहती है। +* राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्र���ि लोगों ने गलत प्रचार प्रसार समाज के बीच जाकर किया यह वह लोग हैं जो समाज को संगठित होते नहीं देखना चाहते यह लोग संघ में एक साल रहकर देखें सारी मानसिक विकृतियां शांत हो जाएंगी । +* ना किसी ने हिंदू को बनाया और ना ही किसी ने भारत को यह तो अनंत काल से ऐसा ही चला आ रहा है हिंदू सनातन का प्रतीक है और भारत का निवासी। +* समर्थ की उपेक्षा विश्व में कोई नहीं करता इसीलिए सामर्थवान होना आवश्यक है। +* कभी-कभी विरोधियों का सामना करके भी लक्ष्य की प्राप्ति की जाती है। +* भारत भूमि पर अपनी आस्था प्रकट करने वाला और भारत की भूमि को मातृभूमि मानकर उसकी पूजा करने वाला एक भी हिंदू अगर इस भूमि पर है तब तक यह हिंदू राष्ट्र है। +* भारत किन्ही काल परिस्थितियों के कारण विघटित हुआ अफगानिस्तान, ईरान, भूटान, बांग्लादेश,पाकिस्तान यह सब भारत के अंग है और रहेंगे वहां आज भी अपनी संस्कृति को लेकर समाज चल रहा है मेरा दृढ़ विश्वास है एक दिन हम पुनः संगठित होंगे और एक अखंड भारत का पुनः निर्माण करेंगे। +* विशिष्ट गुण वाले स्वयंसेवक एक प्रतिशत देहात में तथा तीन प्रतिशत शहरों में अगर हो जाए उस दिन समाज का वातावरण बदल जाएगा और समाज सभ्य शिक्षित और समृद्धिशाली हो जाएगा। +* हमारे लिए सभी अपने हैं, कोई पराया नहीं है चाहे वह किसी भी जाति, पंथ, मजहब या राजनीति से संबंध रखता हो। +* जिस प्रकार शिवाजी को भी औरंगजेब की मांद में जाना पड़ा था उसी प्रकार हमारे स्वयंसेवक कठिन परिस्थितियों में जाकर भी राष्ट्र निर्माण का कार्य करने को तत्पर है। +* जो भी स्वयंसेवक जिस भी क्षेत्र में जाता है वह वहां के लिए निष्ठावान होता है किसी प्रशासनिक सेवा या राजनीतिक सेवा के क्षेत्र में जाता है, तो वह वही के प्रति निष्ठावान होता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति जवाबदेही नहीं होती। +* किसी भी आतंकवादी संगठन को हिंदू समर्थन नहीं होता है इसलिए हिंदू आतंकवाद का नाम लेकर एक सभ्य समाज को बदनाम करने की साजिश की जा रही है। +* आतंकवाद व्यक्तिगत होता है किंतु कुछ धर्म के लोग धर्म का आश्रय पाकर उसकी दुहाईयां देकर आतंकवाद फैला रहे हैं जिससे उनका धर्म आतंकवाद के नाम से चिन्हित हो रहा है। +* संघ का स्वयंसेवक स्वेच्छा से अपने संपूर्ण कार्य करते हैं वह किसी के दबाव में या किसी के दिशा निर्देशों का अनुपालन नहीं करते वह स्वयं के विवेक से ही कार्��� करते हैं। +* किसी भी स्वयंसेवक के चाल-चलन की जिम्मेदारी संघ की जवाबदेही बन जाती है इसे नकारा नहीं जा सकता। +* अपना राष्ट्र आत्मवित्त, ब्रह्मा वित, वेदवित्त रूप से संपन्न हो इस प्रयोजन से कार्य किया जाना चाहिए। +* विश्व को सुपंथ पर लाना और उनके प्रयोजन को ध्यान दिलाना यह दायित्व भारत का है और उसके समाज का है इसलिए भारत के समाज में यह गतिविधियां नित्य चलनी चाहिए। +* कार्य के पथ पर हमेशा कठिनाइयां रहती है उपेक्षा, निराशा, आत्मविश्वास इसके प्रभाव से व्यक्ति का लक्ष्य निर्धारित होता है प्रभाव में आने से लक्ष्य से चूकता है। +* विरोध में भी लोगों के पास वह वृत्ति होनी चाहिए जो हमने संकल्प किया, वह सत्य है और वह जग हित में है फिर वह किसी भी विरोध से विचलित नहीं होता। +* सामर्थवान की सदैव पूजा होती है किंतु यह वह समय होता है जब समर्थवान की शक्तियां उसे भ्रमित कर गलत मार्ग दिखाती है। +* मनुष्य का पतन उसके अहंकारों तथा अपार शक्तियों पर निर्भर करता है शक्ति संपन्न होने पर भी वह अहंकार और निंदा का शिकार हो जाता है। +* अधिक लोगों का विनाश उत्थान के समय होता है संघर्ष के समय नहीं इसलिए कहा जाता है उन्नति विनाश का बीज अपने साथ छुपा कर लाती है। +* जब तक शक्ति साथ होती है तब तक आप विजय श्री का साक्षात करते हैं कृष्ण के साथ अर्जुन के रहते अर्जुन को सदैव विजयश्री प्राप्त होती रही बड़ी बड़ी सैन्य टुकड़ियों का सामना किया किंतु शक्ति रुपी कृष्ण के ना रहते हुए छोटे जंगली डकैतों से भी हार गया और अपने परिवार की रक्षा नहीं कर सका। +* किसी प्रकार की सहायता, सम्मान और सराहना व्यक्तिगत नहीं होती बल्कि जिस कार्य को हम कर रहे हैं उसके लिए होती है। +* सुख के लिए बाहर की दौड़ लगाना व्यर्थ है सुख अपने भीतर है उसे ढूंढने का प्रयत्न करना चाहिए। +* सृष्टि की सारी विविधता में एकता का रूप है। +* स्वयं त्तर कर अन्य को तारा ऐसा साधु संतों का व्यवहार होता है। +* व्यक्ति का आचरण परिवर्तित तभी होता है जब कहने वाला स्वयं तपस्वी होता है सत्य, करुणा, सुचिता और उसके लिए तपस्या जिसके जीवन में होता है उसके कहने से समाज और धर्म परिवर्तित होता है। +* हमारी नाकामी और जाति, पंथ विभिन्नता ने दूसरों को फलने फूलने का बल दिया उनकी हैसियत नहीं थी वह हमारे इस कृत्य से बड़े होने लगे। +* परमात्मा की इच्छा है कि संपूर्ण जगत के कल्याण क�� लिए सनातन धर्म का उत्थान हो सके इसके लिए भारत का उत्थान होना चाहिए। +* भारत देश का प्रयोजन ही विश्वकल्याण का है। +* एकांत में योग साधना, लोकांत में सेवा परोपकार की भावना प्रत्येक व्यक्ति में होने चाहिए। +* समाज की स्थिति को बदलने के लिए स्वयं को कृष्ण होना पड़ेगा कृष्ण किसी के वशीभूत नहीं होते वह स्वतंत्र हैं ऐसा ही समाज को होना पड़ेगा जनता ही जनार्दन होता है। + + +राहुल सांकृत्यायन 1893 1962) हिन्दी साहित्यकार, लेखक, विचारक और भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे। वे अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने दर्शन, साहित्य और इतिहास तीनों क्षेत्रों में काम किया। राहुल सांकृत्यायन ने एक ही जीवन में पहले सनातनी, फिर आर्यसमाजी (जिस दौर में वे बड़े हो रहे थे सनातनी और आर्य आपस में बुरी तरह से लड़ रहे थे फिर बौद्ध, फिर मार्क्सवादी और अन्त में स्वाधीन चेता के रूप में जीवन दिया। अपने जीवन में उन्होंने अनेक राहें बदलीं, पर उनकी मंजिल हमेशा या तो हिन्दी रही या हिंदुस्तान की गरिमा। वे हिन्दी और भारतीय बौद्धिक परम्परा के प्रति बहुत सजग रहे। +* मैं चाहता हूं तरुणों की भांति तरुणियां भी हजारों की संख्या में विशाल पृथ्वी पर निकल पड़ें और दर्जनों की तादाद में प्रथम श्रेणी की घुमक्कड़ बनें। बड़ा निश्चय करने के पहले वह इस बात को समझ लें कि स्त्री का काम केवल बच्चा पैदा करना नहीं है। +बौद्ध धर्म को दूसरे धर्मों से जो चीज भिन्न बनाती है वो है ईश्वर के अस्तित्व से पूरी तरह इंकार। ईश्वर के आगे-पीछे तो बड़े-बड़े दर्शन खडे़ किए गए, बड़े-बड़े पोथे लिखे गए। दुनिया के सारे धर्म दूसरी बातों में आपस में कट मरें पर ईश्वर, महोवा या अल्लाह के नाम पर सभी सिर नवाए और अक्ल बेच खाने को तैयार हैं। सिर्फ बौद्ध ही ऐसा धर्म है जिसमें ईश्वर के लिए कोई स्थान नहीं है। ईश्वर से मुक्ति पाए बगैर बुद्धि पूरी तरह मुक्त नहीं होती। +* चौरासी सिद्धों का काल हिन्दी साहित्य का आरम्भ काल है जो कि तिब्बती ग्रन्थों के आधार पर निश्चित है। सिद्धों की कविता का प्रचार ही पीछे कबीर, नानक, दादू आदि संतों के वचन-प्रचार के रूप में परिणित हो गया। और परम्परा बढ़ चली। 1933 में बड़ौदा में इंडियन औरियंटल कान्फ्रेंस मेंडा० ओमप्रकाश शर्मा शास्त्री, ‘राष्ट्रभाषा हिन्दी और राहुल सांकृत्यायन’, पृ 84 +* जो लोग आज हिन्दुस्तानी जबान की ��ैरोकारी राजनीतिक कारणों से कर रहे हैं, वे हिंदी-मुसलमान की एकता चाहते हैं जबकि हिन्दी सबसे पुरानी जबान है। हिन्दी 850 ईस्वी से बोली जाती है। +* यदि हिन्दी का आगे विकास बढ़ना है तो हिंदी की प्रमुख बोली ‘कौरवी’ को समझना होगा। हिंदी के कथाकारों में जो अधूरा चरित्र-चित्रण मिलता है उसका मुख्य कारण है कौरवी भाषा न समझ पाना। इसलिए हमें वैसे साहित्यकार चाहिए जो लोटा-डोरी लेकर ‘कौरवी’ की तरफ जाएं, ताकि जो हिंदी की लोकोक्तियां हैं, मुहावरें हैं उसको समझ सकें। +* मैंने नाम बदला, वेशभूषा बदली, खान-पान बदला लेकिन हिन्दी के संबंध में मैंने विचारों में कोई परिवर्त्तन नहीं किया। +* हमारी नागरी लिपि दुनिया का सबसे वैज्ञानिक लिपि है। +* भाषा और साहित्य, धारा के रूप में चलता है। फर्क इतना ही है कि नदी को हम देश की पृष्ठभूमि में देखते हैं जबकि भाषा, देश और भूमि दोनों की पृष्ठभूमि को लिए आगे बढती है।… कालक्रम के अनुसार देखने पर ही हमें उसका विकास अधिक सुस्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। ऋग्वेद से लेकर १९वीं सदी के अंत तक की गद्य धारा और काव्य धारा के संग्रहों की आवश्यकता है। +* जल्दी ही मुझे मालूम हो गया कि ऐतिहासिक उपन्यासों का लिखना मुझे हाथ में लेना चाहिए… कारण यह कि अतीत के प्रगतिशील प्रयत्नों को सामने लाकर पाठकों के हृदय में आदर्शों के प्रति प्रेरणा पैदा की जा सकती है। +* चौरी-चौरा कांड में शहीद होने वालों का खून देश-माता का चंदन होगा। +* यदि कोई "गंगा मइया" की जय बोलने के स्थान पर ’वोल्गा‘ की जय बोलने के लिए कहे, तो मैं इसे पागल का प्रलाप ही कहूँगा। +* धर्मों की जड़ में कुल्हाड़ा लग गया है, और इसलिए अब मजहबों के मेल-मिलाप की बातें भी कभी-कभी सुनने में आती हैं। लेकिन, क्या यह सम्भव है? ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’- इस सफेद झूठ का क्या ठिकाना है? अगर मजहब बैर नहीं सिखलाता तो चोटी-दाढ़ी की लड़ाई में हजार बरस से आज तक हमारा मुल्क पामाल (बर्बाद) क्यों है? +* असल बात तो यह है कि मजहब तो सिखाता है आपस में बैर रखना। भाई को है सिखाता भाई का खून पीना। हिन्दुस्तानियों की एकता मजहब के मेल पर नहीं होगी, बल्कि मजहबों की चिता पर। कौव्वे को धोकर हंस नहीं बनाया जा सकता। कमली धोकर रंग नहीं चढ़ाया जा सकता। मजहबों की बीमारी स्वाभाविक है। उसकी मौत को छोड़कर इलाज नहीं। तुम्हारी क्षय में) +* कहने के ल��ए तो हिन्दुओं पर ताना कसते हुए इस्लाम कहता है कि हमने जात-पांत के बंधनों को तोड़ दिया। इस्लाम में आते ही सब भाई-भाई हो जाते हैं। लेकिन क्या यह बात सच है? यदि ऐसा होता तो आज मोमिन (जुलाहा अप्सार (धुनिया राइन (कुंजड़ा) आदि का सवाल न उठता। अर्जल और अशरफ़ का शब्द किसी के मुंह पर न आता। सैयद-शेख़, मलिक-पठान, उसी तरह का ख़्याल अपने से छोटी जातियों से रखते हैं, जैसा कि हिंदुओं के बड़ी जात वाले। खाने के बारे में छूतछात कम है और वह तो अब हिंदुओं में भी कम होता जा रहा है। लेकिन सवाल तो है – सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्र में इस्लाम की बड़ी जातों ने छोटी जातों को क्या आगे बढ़ने का कभी मौक़ा दिया? +* जो मजहब अपने नाम पर भाई का खून करने के लिए प्रेरित करता है, उस मजहब पर लानत! जब आदमी चुटिया काट दाढ़ी बढ़ाने भर से मुसलमान और दाढ़ी मुड़ा चुटिया रखने मात्र से हिंदू मालूम होने लगता है, तो इसका मतलब साफ है कि यह भेद सिर्फ बाहरी और बनावटी है। +* हमें यह मानने में कोई उज्र हो ही नहीं सकता कि हमारे देश के मुसलमान अपनी जातीयता में मजहब को बहुत स्थान देते हैं।राहुल सांकृत्यायन, आज की समस्याएँ किताब महल इलाहाबाद, 1945, पृ 1 +* ये जानते नहीं कि जिहाद का समय बीत चुका है और विज्ञान का युग आ गया है। ये समझते हैं कि इस्लामी छूरेबाजी के बल पर इन्होने पाकिस्तान कायम किया है। उनको यह नहीं मालूम कि अंग्रेजों ने अशगुन पैदा करने के लिए पाकिस्तान को बनाया।मेरी जीवन यात्रा भाग 3 +* इस्लाम की सफलता किसी उच्च दार्शनिक विचार, महान सदाचार या भव्य आदर्शवाद के कारण नहीं हुई है। आप कुरान को उठा कर किसी धर्म के प्रमुख ग्रंथ से मिला के देख लीजिए, वह हर तरह से बहुत निम्न कोटि का जँचेगा। इस्लाम की) दूसरी सफलता की कुंजी थी जैसे भी हो स्त्रियों को रख के उससे औलाद को पैदा कर के बढ़ाना। धर्म प्रचार का इस अनूठे ढंग को आप किसी धर्म के लिए शोभा की बात तो नहीं कह सकते। एक सांप्रदायिकता दूसरी सांप्रदायिकता को पैदा करती है। मुसलमान इस्लाम को मानें, इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, किन्तु यदि वह वेश-भूषा, भाषा, संस्कृति में अपने को विदेशी रखना चाहते हैं, तो समझ लें, यह उनके लिए आफत की चीज है। युधिष्ठिर' नामक पात्र के माध्यम से राहुल सांकृत्यायन भागो नहीं दुनिया को बदलो किताब महल, इलाहाबाद, 2016 [प्रथम संस्करण 1945 ref> +* मुसलमानों को वही बोली–बानी, वही पर-पोसाक, वही खान-पान अपनाना होगा, जो कि हिंदुओं का है। बिलाइत में ईसाई रहते हैं, यहूदी भी रहते हैं, लेकिन उनको देख के कोई नहीं कह सकता, कि वह दो तीन धर्म को मानते हैं। भैया' नामक पात्र के माध्यम से राहुल सांकृत्यायन भागो नहीं दुनिया को बदलो किताब महल, इलाहाबाद, 2016 [प्रथम संस्करण 1945 पृ॰ 242-243 +* एक ईश्वर मानने वाले धर्मों की अपेक्षा अनेक देवता मानने वाले धर्म हज़ार गुना उदार रहे हैं। उनके ईश्वरों की संख्या अपरिमित होने से औरों का भी समावेश आसानी से हो सकता था किंतु एक ईश्वरवादी वैसे करके अपने अकेले ईश्वर की हस्ती को ख़तरे में नहीं डाल सकते थे। आप दुनिया के एक ईश्वरवादी धर्मों के पिछले दो हज़ार वर्ष के इतिहास को देख डालिए, मालूम होगा कि वह सभ्यता, कला, विद्या, विचार-स्वातन्त्र्य और स्वयं मनुष्यों के प्राणों के सबसे बड़े दुश्मन रहे हैं। +* जाति-भेद न केवल लोगों को टुकड़े-टुकड़े में बाँट देता है, बल्कि साथ ही यह सबके मन में ऊँच-नीच का भाव पैदा करता है। हमारे पराभव का सारा इतिहास बतलाता है कि हम इसी जाति-भेद के कारण इस अवस्था तक पहुँचे। ये सारी गन्दगियाँ उन्हीं लोगों की तरफ से फैलाई गयी हैं जो धनी हैं या धनी होना चाहते हैं। सबके पीछे ख्याल है धन बटोरकर रख देने या उसकी रक्षा का। गरीबों और अपनी मेहनत की कमाई खाने वालों को ही सबसे ज्यादा नुकसान है, लेकिन सहस्राब्दियों से जात-पाँत के प्रति जनता के अन्दर जो ख्याल पैदा किये गये हैं, वे उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति की ओर नजर दौड़ाने नहीं देते। स्वार्थी नेता खुद इसमें सबसे बड़े बाधक हैं। +* क्या शक्ल देखकर किसी के बारे में आप बतला सकते हैं कि यह ब्राह्मण है और यह शूद्र? कोयले से भी काले ब्राह्मण आपको लाखों की तादाद में मिलेंगे और शूद्रों में भी गेहुएं रंग वालों का अभाव नहीं है। +* कम्युनिस्ट पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी रही कि वे लोग लोकभाषाओं में अपने साहित्य को नहीं ले गए। +* कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य बने बगैर मेरी मृत्यु हो जाती तो मेरा दुभार्ग्य होता। +* जिस दिन भूमि को स्वर्ग में परिणत कर दिया जायगा, उसी दिन आकाश का स्वर्ग ढ़ह पड़ेगा। आकाश-पाताल के स्वर्ग-नर्क को कायम रखने के लिए, उसके नाम पर बाजार चलाने के लिए, जरूरत है, भूमि पर स्वर्ग-नर्क की, राजा-रंक की, दास-स्वामी की। अपनी प्रसिद्ध कृति, ‘वोल्गा से ग���गा तक' में +* हमें अपनी मानसिक दासता की बेड़ी की एक-एक कड़ी को बेदर्दी के साथ तोड़कर फेंकने के लिए तैयार रहना चाहिये। बाहरी क्रान्ति से कहीं ज्यादा जरूरत मानसिक क्रान्ति की है। हमें आगे-पीछे-दाहिने-बांये दोनों हाथों से नंगी तलवारें नचाते हुए अपनी सभी रुढ़ियों को काटकर आगे बढ़ना होगा। +* रूढ़ियों को लोग इसलिए मानते हैं, क्योंकि उनके सामने रूढ़ियों को तोड़ने वालों के उदाहरण पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं। +* बहुतों ने पवित्र, निराकार, अभौतिक, प्लेटोनिक प्रेम की बड़ी-बड़ी महिमा गाई है और समझाने की कोशिश की है कि स्त्री-पुरुष का प्रेम सात्विक तल पर ही सीमित रह सकता है। लेकिन यह व्याख्या आत्म-सम्मोहन और परवंचना से अधिक महत्व नहीं रखती। यदि कोई यह कहे कि ऋण और धन विद्युत-तरंग मिलकर प्रज्वलित नहीं होंगे, तो यह मानने की बात है। +* यदि जनबल पर विश्‍वास है तो हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। जनता की दुर्दम शक्ति ने, फ़ासिज्म की काली घटाओं में, आशा के विद्युत का संचार किया है। वही अमोघ शक्ति हमारे भविष्य की भी गारण्टी है। +* ज़्यादातर पुरानी पोथियों में ७५ प्रतिशत तो बेवकूफियां ही बेवकूफियां भरी पड़ी हैं। हाँ, कहीं कहीं अकल की बातें भी हैं। इलाहाबाद में जवाहर लाल नेहरू की उपस्थिति में 1937 में +* इसमें संदेह है कि ऐतिहासिक काल अथवा पिछली सात शताब्दियों में काशी ने कभी देश और राष्ट्र की तत्कालीन या भावी महत्त्वपूर्ण समस्याओं पर माथापच्ची की हो। काशी ने देश को हमेशा पीछे की तरफ खींचने की कोशिश की। एक से एक प्रतिगामी पंडित और परिब्राजकों को उसने प्रदान किया। पंडितों की नगरी काशी के बारे मेंराहुल सांकृत्यायन, आज की राजनीति आधुनिक पुस्तक भवन, कलकत्ता 1949, भूमिका । +* भारतीय दर्शन सांयस या कला का लग्गू-भग्गू न रहा हो, किन्तु धर्म की गुलामी से बदतर गुलामी और क्या हो सकती है डा० सर्वेपल्ली राधाकृष्णन के कथन-‘प्राचीन भारत में दर्शन किसी भी दूसरी सायंस या कला का लग्गू-भग्गू न होकर, सदा एक स्वतंत्र स्थान रखता है‘-पर राहुलजी की टिप्पणी +* हमारे सामने जो मार्ग है उसका कितना ही भाग बीत चुका है, कुछ हमारे सामने है और बहुत अधिक आनेवाला है। बीते हुए से हम सहायता लेते हैं, आत्म विश्वास प्राप्त करते हैं लेकिन बीते की ओर लौटना प्रगति नहीं, प्रतिगति पीछे लौटना होगा। हम लौट तो सकत�� नहीं, क्योंकि अतीत को वर्त्तमान बनाना प्रकृति ने हमारे हाथ में नहीं दे रखा है। अपनी पुस्तक ‘आज की समस्याएँ‘ में +* मैं नहीं चाहता कि आप मेरी मान्यता को ग्रहण करें, किन्तु मैं इतना अवश्य चाहता हूँ कि आप इतिहास के पृष्ठ पलटें। अंग्रेजों द्वारा लिखा गया इतिहास हमारे देश का दूषित, त्रुटित और पक्षपात रंजित इतिहास है। मैं इस इतिहास पर सिद्ध साहित्य को नहीं परखता। क्या आप बता सकते हैं कि सिद्धों की विशाल परंपरा से कौन सा अंग्रेज़ इतिहासकार परिचित है? किसने पूर्व–मध्य युग पर प्रामाणिक दृष्टि से लिखा है। आप इन इतिहास ग्रन्थों को पढ़ कर कण्णपा या किसी सिद्ध या नाथपंथी योगी का परिचय नहीं पा सकते क्योंकि इनकी दृष्टि सन-सम्वतों में सिमटी रह जाती है। मैं देखता हूँ कि गौतम बुद्ध के बाद देश में तीन-चार बार क्रांतियाँ हुई हैं। किन्तु किसी क्रांति को जनमानस की व्यापक क्रांति के रूप में हमारे इतिहास लेखकों ने अंकित नहीं किया। महेशों और नरेशों का इतिहास लिखने वाले क्या जानें कि जनमानस को जागृत करने वाले विलासी नरेश नहीं होते, साधु, महात्मा और सिद्ध होते हैं। जो राज्य सत्ता से कहीं अधिक प्रभाव जनता पर डालते हैं। आप लोग पहले इतिहास की दृष्टि को स्वच्छ करें, इतिहास के पृष्ठों पर पड़ी धूल को साफ करें और तब इतिहास पढ़ने का उपक्रम करें। मैं सिद्धों और नाथों का समर्थक नहीं हूँ किन्तु इतिहास में उनके महत्त्व की कथाओं को पा कर यह कहने को बाध्य हुआ हूँ। दिल्ली विश्वविद्यालय में सिद्ध साहित्य पर अपने व्याख्यान मेंडा० विजयेन्द्र स्नातक, ‘कड़वे-मीठे दो लघु संस्मरण’, उपरोक्त पृ 183 +* सेठों के सामने अब राजा झूठे हैं। उनके खर्च बहुत बढ़ गए हैं, लेकिन आमदनी उतनी की उतनी ही है, और सेठों के लिए आमदनी की कोई सीमा नहीं। 1943 में यात्रा के दौरानमेरी जीवन यात्रा भाग दो किताब महल इलाहाबाद ,1950, पृ 640 +* उपसम्पदा के लिये कांडी जाने से पहले विद्यालंकार विहार में नायकपाद के उपाध्यायत्व में मेरी प्रब्रज्या (22 जून) हुई। मैं लंका में रामोदार स्वामी के नाम से प्रसिद्ध था, और लंका छोड़ने से पूर्व ही अपने गोत्र को जोड़कर अपने को रामोदार सांकृत्यायन बना चुका था। मैं समझता था, यही नाम बना रहेगा, क्योंकि इस नाम से मैं साहित्यिक क्षेत्र में अवतीर्ण हो चुका था, किन्तु प्रब्रज्या संस्कार शुरु होन�� के चन्द ही मिनट पहले नायकपाद की आज्ञा हुई नये नामकरण की। समय होता, तो मैं समझाने की कोशिश करता, किन्तु अब कुछ करना आज्ञा भंग होता। नाम शायद एकाध और पेश किये गये थे, किन्तु मैंने रामोदार के ‘रा’ की साम्यता के देखते हुए राहुल नाम का प्रस्ताव किया और वह स्वीकृत हुआ। इस प्रकार राहुल सांकृत्यायन के नाम से मैं प्रब्रजित (श्रामणेर) हुआ।मेरी जीवन यात्रा, प्रथम खण्ड, राहुल सांकृत्यायन, किताब महल, इलाहाबाद, संस्करण 1946, पृष्ठ १०६-१०७ +बौद्ध धर्म के भारत में पतन पर +* हिन्दी में एक ऐसा आदमी है जो किसान सभा का सभापति बनता है, जिसे प्रगतिशील लेखकों ने अपना पथ प्रदर्शक चुना और हिंदी साहित्य सम्मेलन भी अपना सभापति उसे बनाता है। (बाबा नागार्जुन) +* आप यही धरना देने, जेल जाने के लिए बने हैं? आपको स्कॉलरली और विद्वतापूर्ण काम करना चाहिए। काशीप्रसाद जायसवाल) +वोल्गा से गंगा' प्रागैतिहासिक और एतिहासिक ललित कथा संग्रह की अनोखी कृति है। हिंदी साहित्य में विशाल आयाम के साथ लिखी गई यह पहली कृति है। (प्रभाकर माचवे) +हिंदी के हित का अभिमान वह, दान वह। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला') +* आपने इस शती के तीसरे दशक में जब सरस्वती में लेख लिखना प्रारम्भ किया तब आचार्य द्विवेदी ने साश्चर्य जिज्ञासा की थी कि हिन्दी की यह नवीन उदीयमान प्रतिभा कौन है? तब से आप बराबर सरस्वती की सेवा करते आ रहे हैं। आप संस्कृत, हिन्दी और पालि के विद्वान् हैं। तिब्बती, रुसी और चीनी भाषाओं में निष्ठात हैं। राजनीति, इतिहास और दर्शनशास्त्र के पंडित हैं। आपने तिब्बती भाषा में सैकड़ो अज्ञात संस्कृत ग्रंथो का उद्धार किया। हिन्दी के प्रमुख बौद्ध ग्रंथो का अनुवाद कर हिन्दी का भण्डार भरा। (सरस्वती पत्रिका, अपने हीरक जयन्ती समारोह के अवसर पर मानपत्र देकर सम्मानित करते हुए) +* वह स्वशिक्षित राहुल नियमित पाठशाला पाठ्यक्रम को तिलांजलि देकर संस्कृत से अरबी, फ़ारसी से अंग्रेजी, सिंहली से तिब्बती भाषाओं में भ्रमण करता है। (डा. भागवत शरण उपाध्याय) +* राहुल जी इस्लाम का भारतीयकरण करना चाहते थे और हिन्दी-उर्दू के सम्बन्ध में वह हिन्दी के पक्षधर थे। (राहुल जी के जीवनीकार गुणाकर मुले) +राहुल जी ने अपना सारा काम चाहे वह पालि सम्बन्धी हो या प्राकृत, अपभ्रंश सम्बन्धी हो या संस्कृत अपने सारे ज्ञान को हिन्दी में निचोड़ दिया था। (नामवर सिंह) +* उनके मस्तिष्क में वृहस्पति और पाँवों में शनीचर का निवास रहा है। उनकी रचनाधर्मिता मात्र कलात्मकता को प्रदर्शित न कर समाज, सभ्यता, संस्कृति, इतिहास, विज्ञान, धर्म एवं दर्शन इत्यादि के रूढ़ धारणाओं पर कुठाराघात करती है और जीवन-सापेक्ष बन कर तमाम प्रगतिशील शक्तियों को संघर्ष और गतिशीलता की ओर प्रवृत करती है। डा० श्रीराम शर्मा, अपने निबन्ध “राहुलजी रोगशैया पर“ में +* उनमें प्राचीन भारतीय ऋषि का उद्यात त्याग, महात्मा बुद्ध की तार्किकता, स्वामी दयानन्द की रूढ़ि-भंजकता, इस्लाम के समता-भाव आदि का समाहार मिलता है। साथ ही इनके अंर्तविरोधों का वैज्ञानिक समाधान भी। वे इतिहास को वर्त्तमान के धरातल पर खड़ा होकर देखते हैं और उसके अनुभवों को लेकर भविष्य से बात करते हैं, यही कारण है कि इतिहास उनपर हावी नहीं, वह इतिहास पर हावी रहे। डा० खगेन्द्र ठाकुर, अपने निबंध, ‘राहुलजी और नयी चेतना का प्रसार‘ में +* मैं गोष्ठियों, समारोहों, सम्मेलनों में वैसे बेधड़क बोलता हूँ लेकिन जिस सभा, सम्मेलन या गोष्ठी में महापंडित राहुल सांकृत्यायन होते हैं, वहाँ बोलने में सहमता हूँ। उनके व्यक्तित्व एवं अगाध विद्वता के समक्ष में अपने को बौना महसूस करता हूँ। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, राहुलजी की भाषण कला की प्रशंसा करते हुए +* औघरदानी तो वे थे ही, इसलिए भी धन के प्रति उनकी आसक्ति नहीं थी। मनुष्य को अपने जीवन निर्वाह के लिए धन की भी आवश्यकता पड़ती है, इस सत्यता का बोध महापंडित को अपने जीवन के अंतिम वर्षों में ही हुआ। राहुल सांकृत्यायन की पत्नी कमला सांकृत्यायन कमला सांकृत्यायन, महामानव 1997, पृ 14 +* भावी कम्युनिस्ट क्रांति में उनका अखंड विश्वास था कहा करते थे “लाल भवानी की पूजा से ही देश के दु:ख दूर होंगे। कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’[26] कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’, ‘मंगलमूर्ति श्री राहुल जी”, डा० ब्रह्मानन्द द्वारा सम्पादित 'राहुल सांकृत्यायन व्यक्तित्व एवं कृतित्व हरियाणा प्रकाशन, दिल्ली, 1971, पृ 42 +* साहित्यिक गवेषणा के क्षेत्र में उनके अनुसन्धानों ने जो प्रकाश फैलाया है उससे युगों का घनीभूत अंधकार तिरोहित हुआ है। श्री राहुल जी की तरह ‘मिशनरी स्पिरिट’ से कम करने वाले यदि और भी दो चार व्यक्ति हिन्दी में होते, तो साहित्यिक शोध के क्षेत्र में आज अनेक विस्मयजनक कार��य हुए रहते। राहुल जी को सच्चे अनुयायी रूप से अभी तक निष्ठावान सहायक नहीं मिले हैं। ref>शिवपूजन सहाय, ’वक्तव्य’, दोहा-कोश बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना 1957, पृ 1-2 +* राहुल जी की जिज्ञासा उन्हें बहुत दूर तक ले जा चुकी थी तभी मैंने जाना कि ज्ञान की भूख भी मनुष्य में उन्माद की सी स्थिति पैदा कर सकती है।भीष्म साहनी ‘राहुल जी कुछ यादें’ नया ज्ञानोदय, सितम्बर 2017, पृ 90 । (पुनर्प्रकाशित यह प्रसंग 1935 के आसपास का है। + + +: सभी भाषाओं में सबसे मुख्य, मधुर और दिव्य देवभाषा ‘संस्कृत’ है। उसमें भी काव्य और काव्य में भी सबसे मधुर सुभाषित वचन होते हैं। +* भाषा और साहित्य, धारा के रूप में चलता है फर्क इतना ही है कि नदी को हम देश की पृष्ठभूमि में देखते हैं जब कि भाषा देश और भूमि दोनों की पृष्ठभूमि को लिए आगे बढ़ती है। राहुल सांकृत्यायन +* भाषा हमारे सोचने के तरीके को स्वरूप प्रदान करती है और निर्धारित करती है कि हम क्या-क्या सोच सकते हैं।— बेन्जामिन होर्फ +* आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है उसकी मुद्रा को खोटा कर देना। (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना । लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है।— जार्ज ओर्वेल +* शिकायत करने की अपनी गहरी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य ने भाषा का आविष्कार किया है। — लिली टॉमलिन +* श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्द और अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं। — शिशुपाल वध +* एक अलग भाषा, जीवन की एक अलग दृष्टि है। +* आप एक भाषा कभी भी नहीं समझ सकते जब तक कि आप कम से कम दो भाषाएँ नहीं समझते। जेफरी विलियम्स +* भाषा एक संस्कृति का रोड मैप है। यह बताता है कि इसके लोग कहां से आते हैं और कहां जा रहे हैं। रीता माइ ब्राउन +* किसी भी भाषा के खो जाने पर मुझे हमेशा खेद होता है, क्योंकि भाषाएं राष्ट्रों की वंशावली हैं। सैमुएल जॉनसन +* भाषा आत्मा का रक्त है जिसमें विचार चलते हैं और जिसमें से वे बढ़ते हैं। ” – +* एक अलग भाषा, जीवन की एक एलग दृष्टि भी है। फेदेरिको फेलिनी + + +* शिक्षा किसी बर्तन का भराव नहीं, बल्कि अग��नि का प्रकाश है। डब्ल्यू ब्बी यीट्स +* शिक्षण एक ऐसा पेशा है जो अन्य सभी व्यवसायों को बनाता है। +* शिक्षण, समझ का उच्चतम रूप है। अरस्तू +* आपका सबसे बड़ा दुश्मन आपका सबसे अच्छा शिक्षक है। बुद्ध +* माँ बच्चो की सबसे पहली शिक्षिका होती है। +* एक अच्छा शिक्षक आशा को प्रेरित कर सकता है, कल्पना को प्रज्वलित कर सकता है, और सीखने के प्यार को बढ़ा सकता है। ब्रैड हेनरी +* शिक्षण का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह सिखाना है कि उसे क्या जानना है। सिमोन वेल +* अनुभव सभी चीजों का शिक्षक है। जूलियस सीज़र +* शिक्षक ही एक सफल राष्ट्र का निर्माण करते हैं। +* सुनना सीखना सबसे कठिन कौशल है और सबसे महत्वपूर्ण है। अफ्रीकी कहावत +* एक शिक्षक का काम छात्रों को खुद में जीवन शक्ति देखना सिखाना है। जोसेफ कैंपबेल +* शिक्षक की जिम्मेदारी है कि बच्चों को केवल किताबी ज्ञान ना दें बल्कि अच्छे संस्कार भी दें। +* सहनशीलता के अभ्यास में, किसी का दुश्मन सबसे अच्छा शिक्षक होता है। दलाई लामा +* बिना गुरु के आप सिर्फ किताबें पढ़ सकते हैं ज्ञानी नहीं बन सकते. +* सबसे अच्छे शिक्षक वही होते हैं जो आपके दिमाग बदलते हैं। ट्री हिक +* रचनात्मक अभिव्यक्ति और ज्ञान में आनंद जगाना शिक्षक की सर्वोच्च कला है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* जो जानते हैं, करते हैं. जो समझते हैं, सिखाते हैं। अरस्तू +* मैं एक शिक्षक नहीं हूं, लेकिन एक जागृति हूं। रॉबर्ट फ्रॉस्ट +* एक शिक्षक का रचनात्मक दिमाग होना चाहिए। ए पी जे अब्दुल कलाम +* हमें अपने शिक्षक के रूप में प्रकृति के प्रकोप का उपयोग करना चाहिए। भूमिबोल अदुल्यादेज +* अनुभव एक कठिन शिक्षक है क्योंकि वह पहले परीक्षा लेता है, बाद में सीखता है। वर्नोन लॉ +* अच्छा शिक्षण एक-चौथाई तैयारी और तीन-चौथाई थिएटर है। गेल गॉडविन +* शिक्षक का कार्य सीखने की प्रक्रिया शुरू करना और फिर रास्ते से हट जाना है। जॉन वॉरेन +* एक शिक्षक अनन्त काल को प्रभावित करता है; वह [या वह] कभी नहीं बता सकता है कि उसका प्रभाव कहाँ रुकता है। हेनरी बी एडम्स +* शिक्षण में आप एक दिन के काम का फल नहीं देख सकते जैक्स बारज़ुन +* शिक्षण आशावाद का सबसे बड़ा कार्य है। कोलीन विलकॉक्स +* शिक्षा का उद्देश्य एक खुले दिमाग के साथ एक खाली दिमाग को बदलना है। मैल्कम फोर्ब्स +* जब एक छात्र की अप्रयुक्त क्षमता एक शिक्षक की मुक्त कला से मिलती है, तो एक चमत्कार सामन�� आता है। मैरी हैटवुड फ्यूटरेल +* मेरे लिए मानव मुक्ति की एकमात्र आशा शिक्षण में निहित है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* एक अच्छा शिक्षक एक मोमबत्ती की तरह होता है जो खुद को दूसरों के रास्तो के लिए प्रकाश करने के लिए खपत करता है। मुस्तफा केमल अतातुर्क +* अच्छे शिक्षक जानते हैं कि छात्रों में सर्वश्रेष्ठ कैसे लाया जाए। चार्ल्स कुरल +* शिक्षकों का प्रभाव कक्षा से परे, भविष्य में भी फैलता है। एफ सिओनिल जोस +* मैं यह बनाए रखने के लिए उद्यम करूंगा कि जहां शिक्षक छात्र को खुश नहीं कर रहा है, वहां कोई शिक्षा नहीं है। ज़ेनोफ़ॉन +* समृद्धि एक महान शिक्षक है, विपत्ति उससे भी महान विलीयम हैज़लिट +* आपकी आखिरी गलती आपकी सबसे अच्छी शिक्षक है राल्फ नाडर +* सफलता एक अच्छी शिक्षक नहीं है, असफलता आपको विनम्र बनाती है शाहरुख़ खान +* शिक्षा जीवन के लिए तैयारी नहीं है; शिक्षा ही जीवन है। जॉन डूई +* अगर आपको किसी को पीठ पर बैठाना है, तो शिक्षकों को रखें। वे समाज के नायक हैं। गाय कावासाकी +* सबसे अच्छा शिक्षक एक मनोरंजक कर्ता है। बॉब किशन +* एक बच्चे को पढ़ाने का उद्देश्य उसे अपने लक्ष्यों तक बिना शिक्षक के प्राप्त करने में सक्षम बनाना है। +* शिक्षा जीवन में सफलता की कुंजी है, और शिक्षक अपने छात्रों के जीवन में एक स्थायी प्रभाव बनाते हैं। सोलोमन ऑर्टिज़ +* एक अच्छा शिक्षक एक दृढ़निश्चयी व्यक्ति होता है। गिल्बर्ट हिघेट +* हर कोई जो सीखने में सक्षम है, उसने शिक्षण में भाग लिया है। ऑस्कर वाइल्ड +* याद रखें कि विफलता एक घटना है, व्यक्ति नहीं। जिग जिगलर +* सम्पूर्ण ज्ञान का एक विशिष्ट संकेत शिक्षण की शक्ति है। अरस्तू +* एक शिक्षक को अपने विषय के मूल्य और रुचि पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि एक डॉक्टर स्वास्थ्य में विश्वास करता है। गिल्बर्ट हिघेट +* सबसे अच्छे शिक्षक वे हैं जो आपको दिखाते हैं कि कहाँ दिखना है, लेकिन आपको यह नहीं बताना चाहिए कि क्या देखना है। एलेक्जेंड्रा ट्र्रेनफ़ + + +ग्रन्थ का विषय, उसका प्रयोजन, उसका अधिकारी और प्रतिपाद्य–प्रतिपादक का सम्बन्ध इन चारों को ‘अनुबन्धचतुष्टय’ नाम से कहा जाता है) ये अनुबन्ध जिस ग्रन्थ में न हों उसका मङ्गल नहीं होता। +मनुष्यों को जिससे सांसारिक विषयों में अनुरक्ति अथवा विरक्ति अथवा मानवरचित विषयों का उचित ज्ञान मिलता है, उसे शास्त्र कहा जाता है। तात्��र्य यह है कि जिस पुस्तक से यह पता चले कि किस आचरण को अपनाया जाय और किस आचरण को छोड़ दिया जाय, उसे शास्त्र कहते हैं। +* अच्छी पुस्तकें जीवन्त देव प्रतिमाएँ हैं। उनकी आराधना से तत्काल प्रकाश और उल्लास मिलता है। – पंडित श्रीराम शर्मा 'आचार्य' +* कई सारे छोटे-छोटे तरीके हैं जिनसे आप अपने बच्चे की दुनिया विस्तारित कर सकते हैं। उनमें सबसे अच्छा है किताबों से लगाव पैदा करना। जैकलीन कैनेडी ओनासिस +* अच्छे मित्र, अच्छी किताबें, और साफ़ अंतःकरण यही आदर्श जीवन है। +* जब पढने की मजबूरी ना हो तब आप क्या पढ़ते हैं यही निर्धारित करेगा कि आप जब आपके बस में ना हो तब आप क्या बनेंगे। +* यदि कोई एक ही किताब बार-बार पढने का आनन्द ना उठा पाए तो उसे पढने का कोई फायदा नहीं है। +क्लासिक" – एक ऐसी पुस्तक, जिसकी लोग प्रशंशा करते हैं और पढ़ते नहीं। मार्क ट्वेन +* अगर कोई बार-बार किताब पढ़ने का आनंद नहीं ले सकता है, तो उसे पढ़ने का कोई फायदा नहीं है। ऑस्कर वाइल्ड +* अच्छी किताब में लाइनों के बीच सर्वोत्तम चीजें होती हैं। – स्वीडन की कहावत +* अच्छी किताब वह है जो उम्मीद के साथ खुलती है और फायदे देकर बंद होती है। –ऐमस ब्रॉन्सन ऐल्कट +* अच्छी किताबें न पढ़ें। जीवन इसके लिए बहुत छोटा है। केवल सर्वश्रेष्ठ किताबे पढ़ें। अर्नेस्ट डिमनेट +* अच्छी किताबों को पढ़ना, पिछली सदियों के बेहतरीन व्यक्तियों के साथ बातचीत करने के समान है। डेसकार्टेस +* अच्छी पुस्तकें जीवंत देव प्रतिमाएं हैं। उनकी आराधना से तत्काल प्रकाश और उल्लास मिलता है। – पंडित श्रीराम शर्मा ‘आचार्य +* अच्छे मित्र, अच्छी किताबें, और साफ़ अंतःकरण यही आदर्श जीवन है। मार्क ट्वेन +* अपना तेज बनाये रखने के लिए जिस तरह तलवार को पत्थर की ज़रुरत होती है उसी प्रकार दिमाग को किताबों की। जॉर्ज आर आर मार्टिन +* आप खुशियां नहीं खरीद सकते, लेकिन किताब खरीद सकते हैं जो आपको खुशियां ही देगी। –अज्ञात +* आपकी पढ़ी अच्छी किताब वह होती है जिसके आखिरी पन्ने पलटने पर आप कुछ यूं महसूस करें कि मानो आपका कोई दोस्त छूट गया हो। –पॉल स्वीनी +* पुस्तकें सबसे शान्त और सबसे स्थयी मित्र हैं, ये सबसे सुलभ और बुद्धिमान सलाहकार हैं, और सबसे धैर्यवान शिक्षक हैं। चार्ल्स विलियम एलियट +* आपके द्वारा नही पढ़ी गई पुस्तक, आपकी मदद नहीं करेगी। जिम रोहन +* ईमानदारी ज्ञान की किताब का पहला अध्याय है। थॉमस जेफ़रसन +* एक अच्छी किताब सबसे अच्छी दोस्त होती है, आज के लिए और हमेशा के लिए। मार्टिन टुपर +* एक आदमी को उसके द्वारा पढ़ी किताबों से जाना जाता है। राल्फ वाल्डो इमर्सन +* एक उत्सुक व्यक्ति की किताब पढ़ने की इच्छा और थकान और ऊब मिटाने के लिए किताब पढ़ने की इच्छा दोनों में बड़ा फर्क है। –गिल्बर्ट के. चेस्टर्टन +* एक किताब कल्पना को प्रज्वलित करने के लिए एक माध्यम है। एलन बेनेट +* एक किताब की तरह वफादार कोई दोस्त नहीं है। अर्नेस्ट हेमिंग्वे +* एक किताब पढ़ना एक आलू चिप खाने की तरह है। डायने डुआन +* एक चीज जो आपको बिल्कुल सही-सही जाननी चाहिए वह है लाइब्रेरी का पता। –अल्बर्ट आइंसटाइन +* एक बार जब आप पढ़ना सीख लेते हैं, तो हमेशा के लिए आजाद हो जाते हैं। –फ्रेडरिक डगलस +* एक बेहतरीन किताब आपको कई प्रकार के अनुभव देती हैं, और अंत में थोड़ा उदास भी कर देती है। उसे पढ़ते हुए आप अनेक जीवन की यात्रा कर लेते हैं। –विलियम स्टायरन +* ऐसे मत पढो, जैसे बच्चे पढ़ते हैं, मजे के लिए, या जैसे महत्त्वाकांक्षी पढ़ते हैं, निर्देश के लिए। नहीं, जेने के लिए पढो। गुस्ताव फ्लौबेर्ट +* कई सारे छोटे-छोटे तरीके हैं जिनसे आप अपने बच्चे की दुनिया विस्तारित कर सकते हैं। उनमें सबसे अच्छा है किताबों से लगाव पैदा करना। –जैकलीन कैनेडी ओनासिस +* कभी ऐसे व्यक्ति पर भरोसा ना करें जिसने अपने साथ किताब ना लायी हो। लेमनी स्निकेट +* किताब एक ऐसा उपहार है जिसे आप बार-बार खोल सकते हैं। गैरिसन किलर +* किताब एक ऐसा उपहार है जिसे आप बार-बार खोल सकते हैं। गैरीसन केलर +* किताब के अंदर एकमात्र महत्व की चीज है आपके लिए उसमें निहित अर्थ। डब्ल्यू. सॉमरसेट +* किताब पढ़ना अपने लिए इसे फिर से लिखने जैसा है। एंजेला कार्टर +* किताबें आपके दिमाग को खोलती हैं, आपकी सोच को बड़ा करती हैं, और आपको मजबूत बनाती हैं। ऐसा ओर कोई नही कर सकता। विलियम फेदर +* किताबें एकांत में हमारा साथ देती हैं और हमें खुद पर बोझ बनने से बचाती हैं। जेरेमी कोलियर +* किताबें जलाने से भी बड़े कई अपराध हैं। उनमें से एक है उन्हें नहीं पढ़ना। जोसफ ब्रॉड्स्की +* किताबें पढ़ते रहिए, लेकिन याद रखिए किताब सिर्फ किताब है, चिंतन करने के लिए सीखना तो आपको खुद ही पड़ेगा। मैक्सिम गोर्की +* किताबें पढने की दो वजहें हैं पहली, कि आप उसका लुत्फ़ उठा सकें दूसरा कि आप उसके ब��रें में डींगें हांक सकें। बेरट्रेंड रसेल +* किताबें परिपूर्ण मनोरंजन हैं: कोई विज्ञापन नहीं, कोई बैटरी नहीं, हर डॉलर के बदले घंटों का आनंद। स्टीफन किंग +* किताबें मित्रों में सबसे शांत और स्थिर हैं वे सलाहकारों में सबसे सुलभ और बुद्धिमान हैं, और शिक्षकों में सबसे धैर्यवान हैं। चार्ल्स विलियम एलियोट +* किताबें विमान हैं, ट्रेन हैं और सड़क हैं। ये मंजिल है, और यात्रा भी। ये घर हैं। अन्ना क्विन्डलेन +* किताबे सभ्यता की वाहक हैं। किताबों के बिना इतिहास मौन है, साहित्य गूंगा हैं, विज्ञान अपंग हैं, विचार और अटकलें स्थिर है। ये परिवर्तन का इंजन हैं, विश्व की खिड़कियां हैं, समय के समुद्र में खड़ा प्रकाशस्तंभ हैं। बारबरा डब्ल्यू तुचमन +* किताबें हवाई जहाज होती हैं, ट्रेन होती हैं और सड़क होती हैं। वे ही गंतव्य और सफर भी वही होती हैं। –ऐना क्विनलन +* किताबें, सबसे सस्ती छुट्टियां हैं, जिसे आप खरीद सकते हैं। चार्लिन हैरिस +* किताबों के बगैर घर खिड़कियों के बिना कमरे के सामान है होरेस मैन +* किताबों वे चीजें हैं जिनकी मदद से आप बिना पाँव चलाए ही यात्रा पर निकल जाते हैं। –झुंपा लाहिरी +* किताबों से हमेशा सावधान रहना चाहिए,” टेसा ने कहा है, ” और जो उनके अन्दर है, क्योंकि शब्दों में हमें बदलने की शक्ति होती है। कैसेंड्रा क्लेयर +* किसी किताब को पढ़ना उसे अपने लिए दुबारा लिखने जैसा है। –एंजेला कार्टर +* कुछ ऐसी किताबें हैं जिसका अगला और पिछला हिस्सा ही उसका सबसे अच्छा भाग होता है। चार्ल्स डिकेन्स +* कुछ किताबों को चखना चाहिए, कुछ को निगलना, लेकिन बस कुछ को ही अच्छे से चबाना और पचाना चाहिए। कोर्नेलिया फंकी +* जब पढने की मजबूरी ना हो तब आप क्या पढ़ते हैं यही निर्धारित करेगा कि आप जब आपके बस में ना हो तब आप क्या बनेंगे। ऑस्कर वाइल्ड +* जितना अधिक आप पढ़ते हैं, उतनी ही अधिक चीजें आपको जानने को मिलती हैं और जितनी अधिक चीजें आप जानेंगे उतनी अधिक जगहों पर आप जाएंगे। –डॉ. ज्यूस +* टापुओ पर खजाने की तुलना में किताबो में अधिक खजाना है। वाल्ट डिज्नी +* नई पुस्तकों के बारे में सबसे बुरी बात यह है कि वे हमें पुरानी पुस्तकें पढने से दूर रखती हैं जोसफ जोबेर्ट +* पढ़ते रहिए। यही सबसे बेहतरीन एडवेंचर है। ल्योड अलेक्जैंडर +* पढ़ते हुए बीतने वाले पल जन्नत से चुराए पल होते हैं। थॉमस वार्टन +* पुराने जमाने म���ं विद्वान किताबें लिखते थे और आम लोग उन्हें पढ़ते थे। अब आम लोग किताबें लिखते हैं और पढ़ता उन्हें कोई नहीं। –ऑस्कर वाइल्ड +* पुस्तकें वह विरासत हैं जो मानव जाति के लिए एक महान प्रतिभा छोड़ती हैं, जो पीढ़ी से पीढ़ी तक उन लोगों तक पहुंचाई जाती हैं, जो अभी तक जन्मे नही हैं। जोसेफ एडिसन +* पुस्तकें वे साधन हैं जिसकी मदद से हम संस्कृतियों के बीच पुल बनाते हैं (यानी, संस्कृतियों को जोड़ते हैं)। -डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन +* पुस्तकें हवाईजाहज, ट्रेन, और सड़क हैं। वो गंतव्य हैं और यात्रा भी। वे घर हैं। एना क्विनडलेन +* पुस्तकें, संचित ज्ञान की जलती हुई दीपक हैं। जॉर्ज विलियम कर्टिस +* पोषण, आश्रय और साहचर्य के बाद, कहानियां वो चीजें हैं जिनकी हमें दुनिया में सबसे ज्यादा ज़रुरत होती है। फिलिप पुलमैन +* बच्चों की कहानी जिसका सिर्फ बच्चे आनंद उठा सकें वो बिलकुल भी अच्छी बच्चों की कहानी नहीं है। सी। एस। लुइस पंचतंत्र की कहानियां +* बिना किताबो वाला कमरा, आत्मा के बिना शरीर के समान है। मार्कस ट्यूलियस सिसेरो +* बेशक मैं लोगों से अधिक किताबों से प्यार करता हूँ। डायने सेटरफील्ड +* बोलने से पहले सोचो। सोचने से पहले पढ़ो। फ्रैन लेबोवित्ज़ +* मेरी किताबें पानी की तरह हैं; और उन महान प्रतिभाओं की शराब की तरह। (सौभाग्यवश) सभी लोग पानी पीते हैं। मार्क ट्वैन +* मेरी हमेशा यह कल्पना रही है कि स्वर्ग एक किस्म की लाइब्रेरी होगा – जॉर्गे लुइस बॉर्गेस +* मैं सभी पाठकों को दो श्रेणियों में रखता हूं; एक वे जो याद रखने के लिए पढ़ते हैं और दूसरे वे जो पढ़कर भूल जाते हैं। विलियम लियोन फेल्प्स +* मैंने जो किताबें पढ़ीं उन्हें मैंने जो खाया है उससे अधिक नहीं याद रख सकता, बावजूद इसके कि उन्होंने ने मुझे बनाया है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* मैंने हमेशा कल्पना की है कि स्वर्ग एक तरह का पुस्तकालय है। जॉर्ज लुईस बोर्गेज +* यदि आप किसी किताब को बार-बार पढ़कर आनंदित नहीं होते, तो वैसी किताब पढ़ना किस काम का। –ऑस्कर वाइल्ड +* यदि आपके पास एक बागीचा और पुस्तकालय है तो आपके पास वो सब कुछ है जो आपको चाहिए। मार्कस टुलीयस सिसरो +* यदि कोई एक ही किताब बार-बार पढने का आनंद ना उठा पाए तो उसे पढने का कोई फायदा नहीं है। ऑस्कर वाइल्ड +* यदि कोई ऐसी किताब है जिसे आप पढ़ना चाहते हैं और वह अब तक लिखी न गई हो, तो आप ही वह शख्स होंगे जो उस�� लिखेगा। –टोनी मॉरिसन +* यह नियम बना लीजिये; कभी किसी बच्चे को वो किताब नहीं दीजिये जो आप खुद नहीं पढेंगे। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* याद रखिए: एक किताब, एक कलम, एक बच्चा और एक शिक्षक दुनिया बदल सकते हैं। –मलाला युसफजई +* विज्ञान और धर्म एक दूसरे के खिलाफ नहीं हैं। बस विज्ञान अभी समझने के लिए बहुत छोटा है। डैन ब्राउन +* स्वस्थ्य संबधी किताबें पढने में सावधान रहिये। आप एक मुद्रण त्रुटी से मर सकते हैं। मार्क ट्वेन +* हम पढ़ते हैं यह जानने के लिए कि हमी अकेले नहीं हैं। विलियम निकोल्सन +* हमारी आत्मा के अंदर जमे हुए समुद्रों को तोड़ने के लिए बर्फ की कुल्हाड़ी रूपी किताब चाहिए। फ्रांज काफ्का + + +* सूक्त वचन ज्ञान का सार होते हैं। हमारे मनीषियों, विद्वानों, महापुरुषों, नीतिज्ञों के अनुभव, दर्शन और परिपक्व विचारों से हमारा जीवनपथ प्रशस्त होता है। सूक्तियाँ हमारी मानसिकता व विचारों का निर्माण करती हैं। अनेक अवसरों व परिस्थितियों में ये किसी सुहृद् मित्र की भाँति हमारा पथ-प्रदर्शन करती हैं। जीवन के महत्त्वपूर्ण निर्णयों की पूर्व-पीठिका तैयार करती हैं। +* सूक्त वचनों की महानता, महत्ता एवं उपयोगिता को देखते हुए प्रस्तुत कृति तैयार की गई है। अत्यंत पठनीय, व्यावहारिक व संग्रहणीय सूक्तियों का संग्रह। +* अच्छा अंतःकरण सर्वोत्तम ईश्वर है। टामस फुलर +* अंतर्ज्ञान दर्शन की एक मात्र कसौटी है। शिवानंद +* अग्नि स्वर्ण को परखती है, संकट वीर पुरुषों को। अज्ञात +* अच्छा स्वास्थ्य एवं अच्छी समझ जीवन के दो सर्वोत्तम वरदान हैं। प्यूब्लियस साइरस +* अज्ञान से बढ़कर कोई अंधकार नहीं है। शेक्सपियर +* अज्ञानी का संग नहीं करना चाहिए। आचारांग +* अति से अमृत भी विष बन जाता है। लोकोक्ति +* सभी वस्तुओं की अति दोष उत्पन्न करती है। भवभूति +* अधिक खाने से मनुष्य श्मशान जाता है। लोकोक्ति +* अतिथि सबके आदर का पात्र होता है। अज्ञात +* अधिक का अधिक फल होता है। अज्ञात +* अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। रवीन्द्रनाथ ठाकुर +* अधिकार केवल एक है और वह है सेवा का अधिकार, कर्तव्य पालन का अधिकार। संपूर्णानंद +* अध्ययन उल्लास का और योग्यता का कारण बनता है। बेकन +* अध्ययन आनंद, अलंकार तथा योग्यता के लिए उपयोगी है। बेकन +* अनुभव को खरीदने की तुलना में उसे दूसरों से माँग लेना अधिक अच्छा है। चार्ल्स कैलब काल्टन +* बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है। स्वामी विवेकानंद +* अभावों में अभाव है-बुद्धि का अभाव। दूसरे अभावों को संसार अभाव नहीं मानता। तिरुवल्लुवर +* अभिमान को जीत से नम्रता जाग्रत् होती है। महावीर स्वामी +* शुभार्थियों को अभिमान नहीं होता। कल्हण +* अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। सूत्रकृतांग +* बिना जाने हठ पूर्वक कार्य करनेवाला अभिमानी विनाश को प्राप्त होता है। सोमदेव +* कोई ऐसी वस्तु नहीं, है जो अभ्यास करने पर भी दुष्कर हो। बोधिचर्यावतार +* सच्चा अर्थशास्त्र तो न्याय बुद्धि पर आधारित अर्थशास्त्र है। महात्मा गाँधी +* पराय धन का अपरहण, परस्त्री के साथ संसर्ग, सुहृदों पर अति शंका- ये तीन दोष विनाशकारी हैं। वाल्मीकि +* ‘असंभव’ एक शब्द है, जो मूर्खो के शब्दकोश में पाया जाता है। नेपोलियन +* असमय किया हुआ कार्य न किया हुआ जैसा ही है। अज्ञात +* अहिंसा परम श्रेष्ठ मानव-धर्म है, पशु-बल से वह अनंत गुना महान् और उच्च है। महात्मा गाँधी +* जो औरों के लिए रोते है, उनके आँसू भी हीरों की चमक को हरा देते हैं। रांगेय राघव +* आचरण दर्पण के समान है, जिसमें हर मनुष्य अपना प्रतिबिंब दिखाता है। गेटे +* आत्मसम्मान रखना सफलता की सीढ़ी पर पग रखना है। अज्ञात +* मनुष्य की आत्मा उसके भाग्य से अधिक बड़ी होती है। अरविंद +* आत्मिक शक्ति ही वास्तविकता शक्ति है। शिवानंद +* आनंद का मूल है-संतोष। मनुस्मृति +* आपदा एक ऐसी वस्तु है जो हमें अपने जीवन की गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। विवेकानंद +* नारी का आभूषण शील और लज्जा है। बाह्य आभूषण उसकी शोभा नहीं बढा सकते हैं। बृहत्कल्पभाष्य +* विद्वित्ता, चतुराई और बुद्धिमानी की बात यही है कि मनुष्य अपनी आय से कम व्यय करे। अज्ञात +* आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख है। धम्मपद +* धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रधान कारण आरोग्य है। चरक संहिता +* आलस्य मनुष्यों के शरीर में रहने वाला घोर शत्रु है। भर्तृहरि +* आलस्य दरिद्रता का मूल है। यजुर्वेद +* आवश्यकता अविष्कार की जननी है। लोकोक्ति +* आवश्यकता से अधिक बोलना व्यर्थ है। तुकाराम +* आविष्कार से आविष्कार का जन्म होता है। एमर्सन +* आशा और आत्मविश्वास ही वे वस्तुएँ हैं जो हमारी शक्तियों को जाग्रत करती हैं। स्वेट मार्डेन +* प्रयत्नशील मनुष्य के लिए सदा आशा है। गेटे +* अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है। वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। राजेंद्र अवस्थी +* अंग्रेज़ी माध्यम भारतीय शिक्षा में सबसे बड़ा विघ्न है। सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है। महामना मदनमोहन मालवीय +* अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। कहावत +* अत्याचार और अनाचार को सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव होता है। कमलापति त्रिपाठी +* अधिक अनुभव, अधिक सहनशीलता और अधिक अध्ययन यही विद्वत्ता के तीन महास्तंभ हैं। अज्ञात +* अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। जयशंकर प्रसाद +* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से +* अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। अज्ञात +* अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती। अज्ञात +* अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। हरिऔध +* अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है। प्रेमचंद +* अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। कमलेश्वर +* अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है, कायरों की नहीं। जवाहरलाल नेहरू +* अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्यों कि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को। महादेवी वर्मा +* अवसर तो सभी को ज़िंदगी में मिलते हैं किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीक़े से इस्तेमाल कितने कर पाते हैं संतोष गोयल +* आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। महात्मा गांधी +* आपत्तियाँ मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। पं. रामप्रताप त्रिपाठी +* आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता। भर्तृहरि +* इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। आचार्य श्रीराम शर्मा +* ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से ऊब उठता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। रवींद्रनाथ ठाकुर +* उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। अज्ञात +* उत्तम पुरुषों की संपत्ति का मुख्य प्रयोजन यही है कि औरों की विपत्ति का नाश हो। रहीम +* उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी। इसी प्रकार संपत्ति और विपत्ति के समय महान पुरुषों में एकरूपता होती है। कालिदास +* उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। चीनी कहावत +* उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। महर्षि अरविंद +* एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। अज्ञात +* ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहाँ न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। विनोबा +* करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। सुदर्शन +* कर्म, ज्ञान और भक्ति- ये तीनों जहाँ मिलते हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ जन्म लेता है। अरविंद +* कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी। रवींद्रनाथ ठाकुर +* कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। डॉ. रामकुमार वर्मा +* कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। रामधारी सिंह दिनकर +* कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। रामधारी सिंह दिनकर +* कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं। लोकमान्य तिलक +* कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है। सावरकर +* काम की समाप्ति संतोषप्रद हो तो परिश्रम की थकान याद नहीं रहती। कालिदास +* किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं। अज्ञात +* किताबें समय के महासागर में जलदीप की तरह रास्ता दिखाती हैं। अज्ञात +* कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं। श्री हर्ष +* कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं। प्रेमचंद +* केवल अंग्रेज़ी सीखने में जितना श्रम करना पड़ता है उतने श्रम में भारत की सभी भाषाएँ सीखी जा सकती हैं। विनोबा +* कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। हरिवंश राय बच्चन +* ख़ातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास ज़रूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। शरतचंद्र +* ग़रीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार ग़रीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। सादी +* चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। रवींद्र +* चंद्रमा, हिमालय पर्वत, केले के वृक्ष और चंदन शीतल माने गए हैं, पर इनमें से कुछ भी इतना शीतल नहीं जितना मनुष्य का तृष्णा रहित चित्त। वशिष्ठ +* चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। सत्यसाई बाबा +* चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुँचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएँ। प्रेमचंद +* चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्यों कि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। समर्थ रामदास +* जबतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में नहीं चलेगा तबतक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है। मोरारजी देसाई +* जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य संपन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती। जवाहरलाल नेहरू +* जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है। रवींद्रनाथ ठाकुर +* जिस काम की तुम कल्पना करते हो उसमें जुट जाओ। साहस में प्रतिभा, शक्ति और जादू है। साहस से काम शुरु करो पूरा अवश्य होगा। अज्ञात +* जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। रामकृष्ण परमहंस +* जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है। नारदभक्ति +* जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती। विनोबा +* जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो। इंदिरा गांधी +* जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है। दीनानाथ दिनेश +* जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं। आचार्य श्रीराम शर्मा +* जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय। संपूर्णानंद +* जैसे छोटा-सा तिनका हवा का रुख बताता है वैसे ही मामूली घटनाएँ मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। महात्मा गांधी +* जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। वेदव्यास +* जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण ज़रूरी है वैसे ही सृजनशील बने रहने के लिए प्रतिष्ठा का अस्वीकरण ज़रूरी है। डॉ. रघुवंश +* जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख के बाद सुख का आना जीवन चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र भी निश्चित है। — भावना कुँअर +* जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं। अमृतलाल नागर +* जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं। गौतम बुद्ध +* जो काम घड़ों जल से नहीं होता उसे दवा के दो घूँट कर देते हैं और जो काम तलवार से नहीं होता वह काँटा कर देता है। सुदर्शन +* जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं। रवींद्र +* जो पुरुषार्थ नहीं करते उन्हें धन, मित्र, ऐश्वर्य, सुख, स्वास्थ्य, शांति और संतोष प्राप्त नहीं होते। वेदव्यास +* जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। डॉ. विक्रम साराभाई +* ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। कौटिल्य +* डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। अज्ञात +* तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। वाल्मीकि +* तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। गुरु गोविंद सिंह +* त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। बरुआ +* दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए। रामायण +* दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएँ चाहता है, विलासी बहुत-सी और लालची सभी वस्तुएँ चाहता है। अज्ञात +* दस गरीब आदमी एक कंबल में आराम से सो सकते हैं, परंतु दो राजा एक ही राज्य में इकट्ठे नहीं रह सकते। मधूलिका गुप्ता +* दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। डॉ. रामकुमार वर्मा +* दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, सत्य, दया और आत्मबल पर है। महात्मा गांधी +* दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते हैं पर अपने ऊपर किए गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं। रामचंद्र शुक्ल +* देश कभी चोर उचक्कों की करतूतों से बरबाद नहीं होता बल्कि शरीफ़ लोगों की कायरता और निकम्मेपन से होता है। शिव खेड़ा +* देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। बलभद्र प्रसाद गुप्त 'रसिक' +* द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। विनोबा +* धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। विदुर +* धन के भी पर होते हैं। कभी-कभी वे स्वयं उड़ते हैं और कभी-कभी अधिक धन लाने के लिए उन्हें उड़ाना पड़ता है। —कहावत +* धन तो वापस किया जा सकता है परंतु सहानुभूति के शब्द वे ऋण हैं जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है। सुदर्शन +* धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं। महाभारत +* धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। डॉ. शंकरदयाल शर्मा +* धैर्यवान मनुष्य आत्मविश्वास की नौका पर सवार होकर आपत्ति की नदियों को सफलतापूर्वक पार कर जाते हैं। भर्तृहरि +* नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। संत तिरुवल्लुर +* नारी की करुणा अंतरजगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं। जयशंकर प्रसाद +* नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए। रामकृष्ण परमहंस +* नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है। वेदव्यास +* नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। संत तिरुवल्लुवर +* नेकी से विमुख हो बदी करना निस्संदेह बुरा है। मगर सामने मुस्काना और पीछे चुगली करना और भी बुरा है। संत तिरुवल्लुवर +* पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। महात्मा गांधी +* पुरुष है कुतूहल व प्रश्न और स्त्री है विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान। जयशंकर प्रसाद +* पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है। गौतम बुद्ध +* पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं। कालिदास +* प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। हरिऔध +* प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। हरिऔध +* प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं। अज्ञात +* प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है। चाणक्य +* प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है। वृंद +* प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। रवींद्रनाथ ठाकुर +* प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाई ही प्रजातंत्रीय शासन की सफलता का मूल सिद्धांत है। राजगोपालाचारी +* प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं लेकिन सज्जन लोग महाविपत्ति में भी मर्यादा को नहीं छोड़ते। चाणक्य +* प्रसिद्ध होने का यह एक दंड है कि मनुष्य को निरंतर उन्नतिशील बने रहना पड़ता है। अज्ञात +* फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन भी नम्र होते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा है। तुलसीदास +* बच्चे कोरे कपड़े की तरह होते हैं, जैसा चाहो वैसा रंग लो, उन्हें निश्चित रंग में केवल डुबो देना पर्याप्त है। सत्यसाई बाबा +* बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। यशपाल +* बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएँ पूर्ण अंधकार में हैं। अज्ञात +* बिना जोश के आज तक कोई भी महान कार्य नहीं हुआ। सुभाष चंद्र बोस +* बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है। अष्टावक्र +* बेहतर ज़िंदगी का रास्ता बेहतर किताबों से होकर जाता है। शिल्पायन +* बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है। –आचार्य रामचंद्र शुक्ल +* भय से ही दुःख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं। विवेकानंद +* भूख प्यास से जितने लोगों की मृत्यु होती है उससे कहीं अधिक लोगों की मृत्यु ज़्यादा खाने और ज़्यादा पीने से होती है। कहावत +* मनस्वी पुरुष पर्वत के समान ऊँचे और समुद्र के समान गंभीर होते हैं। उनका पार पाना कठिन है। माघ +* मनुष्य अपना स्वामी नहीं, परिस्थितियों का दास है। भगवतीचरण वर्मा +* मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है। गौतम बुद्ध +* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। विनोबा +* मनुष्य मन की शक्तियों के बादशाह हैं। संसार की समस्त शक्तियाँ उनके सामने नतमस्तक हैं। अज्ञात +* महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम से बहुत अधिक आकर्षित होते हैं। प्रेमचंद +* मानव का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और महामानव होना चमत्कार है। डॉ. राधाकृष्णन +* मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खंडित करना है। राम प्रताप त्रिपाठी +* मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो। अज्ञात +* मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। महात्मा गांधी +* मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। महात्मा गांधी +* मुस्कान थके हुए के लिए विश्राम है, उदास के लिए दिन का प्रकाश है तथा कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है। अज्ञात +* मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है पर देने वाला दरिद्र नहीं होता। अज्ञात +* मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भ�� नहीं होता। चाणक्य +* मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है। हरिशंकर परसाई +* यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाए तो वह ख़तरनाक भी हो सकती है। इंदिरा गांधी +* यशस्वियों का कर्तव्य है कि जो अपने से होड़ करे उससे अपने यश की रक्षा भी करें। कालिदास +* रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है। मुक्ता +* रामायण समस्त मनुष्य जाति को अनिर्वचनीय सुख और शांति पहुँचाने का साधन है। मदनमोहन मालवीय +* राष्ट्र की एकता को अगर बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है। सुब्रह्मण्यम भारती +* लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है। मुक्ता +* लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। जयप्रकाश नारायण +* लोहा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो ठंडा रह कर ही काम कर सकता है। सरदार पटेल +* वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। स्वामी रामतीर्थ +* वही पुत्र हैं जो पितृ-भक्त है, वही पिता हैं जो ठीक से पालन करता हैं, वही मित्र है जिस पर विश्वास किया जा सके और वही देश है जहाँ जीविका हो। चाणक्य +* विजय गर्व और प्रतिष्ठा के साथ आती है पर यदि उसकी रक्षा पौरुष के साथ न की जाय तो अपमान का ज़हर पिला कर चली जाती है। मुक्ता +* विद्वत्ता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक और बुढ़ापे में संचित धन है। हितोपदेश +* विद्वत्ता युवकों को संयमी बनाती है। यह बुढ़ापे का सहारा है, निर्धनता में धन है, और धनवानों के लिए आभूषण है। +* विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास। एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है। अज्ञात +* विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है। हर्ष मोहन +* विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारख़ाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं। रवींद्र +* विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है। रवींद्रनाथ ठाकुर +* विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय वस्तुओं क��� चित्रित करती है। अज्ञात +* वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। तुलसीदास +* वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। अज्ञात +* शत्रु के साथ मृदुता का व्यवहार अपकीर्ति का कारण बनता है और पुरुषार्थ यश का। रामनरेश त्रिपाठी +* शब्द पत्तियों की तरह हैं जब वे ज़्यादा होते हैं तो अर्थ के फल दिखाई नहीं देते। अज्ञात +* शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शांति। स्वामी ज्ञानानंद +शि' का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'व' कहते हैं मुक्ति देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे शिव कहलाते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण +* श्रद्धा और विश्वास ऐसी जड़ी बूटियाँ हैं कि जो एक बार घोल कर पी लेता है वह चाहने पर मृत्यु को भी पीछे धकेल देता है। अमृतलाल नागर +* सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है। पं. मोतीलाल नेहरू +* सज्जन पुरुष बादलों के समान देने के लिए ही कोई वस्तु ग्रहण करते हैं। कालिदास +* सतत परिश्रम, सुकर्म और निरंतर सावधानी से ही स्वतंत्रता का मूल्य चुकाया जा सकता है। मुक्ता +* संतोष का वृक्ष कड़वा है लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है। स्वामी शिवानंद +* सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है। एक ज़ुल्मों के खिलाफ़ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरुद्ध। सरदार पटेल +* सत्याग्रह बलप्रयोग के विपरीत होता है। हिंसा के संपूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है। महात्मा गांधी +* संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है। आचार्य श्रीराम शर्मा +* सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। अज्ञात +* सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। अशोक +* सबसे उत्तम विजय प्रेम की है। जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। सम्राट अशोक +* समय और बुद्धि बड़े से बड़े शोक को भी कम कर देते हैं। कहावत +* समय परिवर्तन का धन है। परंतु घड़ी उसे केवल परिवर्तन के रूप में दिखाती है, धन के रूप में नहीं। रवींद्रनाथ ठाकुर +* संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास। काका कालेलकर +* सर्वसा��ारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। स्वामी विवेकानंद +* संवेदनशीलता न्याय की पहली अनिवार्यता है। कुमार आशीष +* सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिए उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना। डॉ. शंकर दयाल शर्मा +* सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है। कथा सरित्सागर +* साँप के दाँत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूँछ में किंतु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। कबीर +* सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। श्री अरविंद +* साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है परंतु एक नया वातावरण देना भी है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन +* सौभाग्य वीर से डरता है और कायर को डराता है। अज्ञात +* स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है। विनोबा +* स्वयं प्रकाशित दीप भी प्रकाश के लिए तेल और बत्ती का जतन करता है, विकास के लिए निरंतर यत्न ही बुद्धिमान पुरुष के लक्षण है। +* हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है। वाल्मीकि +* हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है। वाल्मीकि +* हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है। हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक ख़रीदें! मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी लेखकों को प्रोत्साहन देंगे शास्त्री फ़िलिप +* दुःख के पश्चात आने वाल खुश ज्यादा आनंद देता है, जैसे धूप में जले हुए को वृक्ष की शीतलता शांति देती है। कालीदास +* जो हानि हो चुकी है उसके लिए शोक करना, अधिक हानि को निमंत्रित करना है। शेक्सपीयर +* संदेह के पाताल में झांकने से पहले विवेक की मजबूती का सहारा ले लेना अक्लमंदी है। जयशंकर प्रसाद +* सात्विकता पर सभी का समान अधिकार है चाहे वह नारी हो या पुरूष, चाहे वह ज्ञानी हो या अज्ञानी, चाहे वह आस्तिक हो अथवा नास्तिक। मनुष्य जीवन पाकर सात्विकता को गँवा देना सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। रवीन्द्रनाथ टैगोर +* अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी समझ जीवन में दो सर्वोत्तम वरदान है। साइरस +* ख्याल इंसान को हरदम रहे दिल की सफाई का, नजर आता है इस आईनें में नक्शा खुदाई का। अज्ञात +* धर्म की हकीकत मुख से ब���ाई नहीं जाती, यह समझी तो जाती है, समझाई नहीं जाती। अज्ञात +* जो लोग जिम्मेदारी लेते है, वे प्रार्थना नहीं करते और जो प्रार्थना करते है, वे जिम्मेदारी नहीं लेते। दुनिया में आज आतंकवाद, उग्रपंथ और असहिष्णुता बढ़ रही है क्योंकि लोग केवल धर्म के अभ्यास, प्रतीकों और रीति-रिवाजों से बांधकर रह गए है। लोग मानव मूल्यों को भूल गये है। श्री रविशंकर +* हर बच्चा इस संदेश को लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्य से निराश नहीं हुआ है। टैगोर +* मनुष्य जितना प्रेम भौतिक वस्तुओं के प्रति रखता है, उसका एक प्रतिशत भी ईश्वर में रखे तो उसे भौतिक सुखों की आवश्यकता ही नहीं रह जायेगी। सामवेद +* जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। मिल्टन +* सुगंध के बिना पुष्प, तृप्ति के बिना प्राप्ति, ध्येय के बिना कर्म व प्रसन्नता के बिना जीवन व्यर्थ है। जयशंकर प्रसाद +* गरीबी में मनुष्य जितना बनता है, उतना अमीरी में नहीं बनता। सरदार पटेल +* आश्चर्य लोग जीवन को बढ़ाना चाहते है, सुधारना नहीं। पं. जवाहरलाल नेहरू +* अक्ल का ओहदा उम्र से ऊँचा होता है। रूसो + + +:कर्म वह है जो बन्धन में न डाले विद्या वह है जो मुक्त कर दे। अन्य कर्म करना मात्र श्रम करना है तथा अन्य विद्याएँ शिल्प में निपुणता मात्र हैं। +: जो विद्या (आध्यात्मिक ज्ञान) और अविद्या (भौतिक ज्ञान) दोनों को जानता है, वह अविद्या के द्वारा मृत्यु को पार करके विद्या से अमृतत्त्व (देवतात्मभाव देवत्व) प्राप्त कर लेता है। +:विद्यावान और विनयी मनुष्य सभी का चित्त हरण (आकर्षित) कर लेता है। जैसे सुवर्ण और मणि का संयोग सबकी आँखों को सुख देता है। +:जिस मनुष्य के पास स्वयं का(प्रज्ञा) विवेक नहीं है, उसके शास्त्र किस काम के, जैसे नेत्रविहीन व्यक्ति के लिए दर्पण व्यर्थ है। +:दुष्ट व्यक्ति यदि विद्या से सुशोभित भी हो अर्थात वह विद्यावान भी हो तो भी उसका परित्याग कर देना चाहिए। मणि से सुशोभित सर्प क्या भयंकर नहीं होता? +:बुढापा और मृत्यु नहीं आनेवाले है, ऐसा समझकर मनुष्य को विद्या और धन प्राप्त करना चाहिए। पर मृत्यु ने हमारे बाल पकड़े हैं, यह समझकर धर्माचरण करना चाहिए। +:आलसी नहीं होना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, शीलवान होना, गुरुजनों का आदर करना, आत्मनिर्भर होना, और कठिन अभ्यास करना – ये छः छात्र के सद्गुण हैं। +:अनेक संशयों को दूर करनेवाला, परोक्ष वस्तु को दिखानेवाला, और सबका नेत्ररुप शास्त्र जिसने पढ़ा नहीं, वह व्यक्ति (आँख होने के बावजुद) अंधा है। +:हे सरस्वती तेरा खज़ाना सचमुच अद्भुत है; जो खर्च करने से बढ़ता है, और जमा करने से कम होता है। +:बड़ों का अभिवादन करने वाले मनुष्य की और नित्य वृद्धों की सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल -ये चार चीजें बढ़ती हैं। +आचार्य पुस्तक निवास सहाय वासो । +:आचार्य, पुस्तक, निवास, मित्र, और वस्त्र – ये पाँच पठन के लिए आवश्यक बाह्य गुण हैं । +:आयु, कर्म, विद्या, वित्त, और मृत्यु, ये पाँच चीजें व्यक्ति के गर्भ में हीं निश्चित हो जाती है। +:आरोग्य, बुद्धि, विनय, उद्यम, और शास्त्र के प्रति राग (आत्यंतिक प्रेम) – ये पाँच पठन के लिए आवश्यक आंतरिक गुण हैं । +:यत्न कहाँ करना विद्याभ्यास, सदौषध और परोपकार में । अनादर कहाँ करना दुर्जन, परायी स्त्री और परधन में । +:एक-एक क्षण गँवाए बिना विद्या पानी चाहिए; और एक-एक कण बचाकर धन इकट्ठा करना चाहिए। क्षण गँवाने वाले को विद्या प्राप्त नहीं होती, और कण नष्ट करने वाले को धन नहीं मिलता। +:गाकर पढ़ना, जल्दी-जल्दी पढ़ना, पढ़ते हुए सिर हिलाना, लिखा हुआ पढ़ जाना, अर्थ जाने बिना पढ़ना, और धीमा आवाज होना ये छः पाठक के दोष हैं। +:गुरु की सेवा करके, अधिक धन देकर, या विद्या के बदले में विद्या, इन तीन तरीकों से हीं विद्या पायी जा सकती है; विद्या पाने का कोई चौथा उपाय नहीं होता है। +:यह विद्यारुपी रत्न महान धन है, जिसका वितरण ज्ञातिजनों द्वारा हो नहीं सकता, जिसे चोर ले जा नहीं सकते, और जिसका दान करने से क्षय नहीं होता । +:ज्ञानी इन्सान हि सुखी है, और ज्ञानी हि सही अर्थ में जीता है । जो ज्ञानी है वही बलवान है, इस लिए तूं ज्ञानी बन । (वसिष्ठ की राम को उक्ति) +:प्रिय वचन के साथ दिया हुआ दान, गर्वरहित ज्ञान, क्षमायुक्त शौर्य, और दान की इच्छावाला धन – ये चारों दुर्लभ हैं। +:सब दानों में कन्यादान, गोदान, भूमिदान, और विद्यादान सर्वश्रेष्ठ है । +:जुआ, वाद्य, नाट्य (फिल्म) में आसक्ति, स्त्री (या पुरुष तंद्रा, और निंद्रा – ये छः विद्या पाने में विघ्न होते हैं। +:जुआ, वाद्य, नाट्य (फिल्म) में आसक्ति, स्त्री (या पुरुष तंद्रा, और निंद्रा – ये छः विद्या पाने में विघ्न होते हैं। +:विद्या जैसा बंधु नहीं है, विद्या जैसा कोई मित्र नहीं है और) विद्या के जैसा कोई धन नहीं है और विद्या के ज���सा कोई सुख नहीं है। +:पढनेवाले को मूर्खत्व नहीं आता; जपनेवाले को पातक नहीं लगता; मौन रहनेवाले का झघडा नहीं होता; और जागृत रहनेवाले को भय नहीं होता । +:जो विद्या पुस्तक में है और जो धन किसी को दिया हुआ है। जरूरत पड़ने पर न तो वह विद्या काम आती है और न वह धन। +:जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते हैं, वह माता शत्रु के समान है और पिता बैरी है, ऐसा मनुष्य विद्वानों की सभा में शोभा नहीं देता जैसे हँसों के बीच बगुला। +:विद्या माता की तरह रक्षण करती है, पिता की तरह हित करती है, पत्नी की तरह थकान दूर करके मन को रीझाती है, शोभा प्राप्त कराती है, और चारों दिशाओं में कीर्ति फैलाती है । सचमुच, कल्पवृक्ष की तरह यह विद्या क्या क्या सिद्ध नहि करती ? +:काठा का हाथी, और चमड़े से बनाया हुआ मृग तथा वेदाध्ययन न किया हुआ ब्राह्मण भी केवल नामधारी ही हैं। +:विद्या यानि ज्ञान हमें विनम्रता प्रादान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है जिससे हम धर्म के कार्य करते हैं और हमे सुख सुख मिलता है। +:विद्या अनुपम कीर्ति है; भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह में रति समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है; इस लिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन । +:विद्या इन्सान का विशिष्ट रुप है, विद्या गुप्त धन है। वह भोग देनेवाली, यशदेने वाली, और सुखकारी है। विद्या गुरुओं की गुरु है, विदेश में विद्या बंधु है। विद्या बड़ी देवता है; राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहीं। विद्याविहीन व्यक्ति पशु ही है। +:ज्ञान प्रवास में, पत्नी घर में, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का सबसे बड़ा मित्र होता है । +:कुरुप का रुप विद्या है, तपस्वी का रुप क्षमा, कोयल का रुप स्वर, और स्त्री का रुप पातिव्रत्य है। +:विद्या, तर्कशक्ति, विज्ञान, स्मृतिशक्ति, तत्परता, और कार्यशीलता, ये छः जिसके पास हैं, उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं है। +:शस्त्रविद्या और शास्त्रविद्या – ये दो प्राप्त करने योग्य विद्या हैं । इन में से पहली वृद्धावस्था में हास्यास्पद बनाती है, और दूसरी सदा आदर दिलाती है । +:विद्या का अभ्यास, तप, ज्ञान, इंद्रिय-संयम, अहिंसा और गुरुसेवा – ये सब बहुत कल्याण करने वाले हैं। +:शुद्ध बुद्धि सचमुच कामधेनु है, क्यों कि वह संपत्ति को दोहती है, विपत्ति को रुकाती है, यश दिलाती है, मलिनता धो देती है, और संस्काररुप पावित्र्य द्वारा अन्य को पावन करती है । +सद्विद्या यदि का चिन्ता वराकोदर पूरणे । +:सद्विद्या हो तो पेट भरने की चिंता करने का कारण नहीं। तोता भी “राम राम” बोलने से खुराक पा ही लेता है। +:जैसे नीचे प्रवाह में बहेनेवाली नदी, नाव में बैठे हुए इन्सान को न पहुँच पानेवाले समंदर तक पहुँचाती है, वैसे हि निम्न जाति में गयी हुई विद्या भी, उस इन्सान को राजा का समागम करा देती है; और राजा का समागम होने के बाद उसका भाग्य खिल उठता है । +:सब धनों में विद्यारुपी धन सर्वोत्तम है, क्योंकि इसे न तो छीना जा सकता है और न यह चोरी की जा सकती है। इसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती है और उसका न इसका कभी नाश होता है। +:आलसी होना, झूठा घमंड होना, बहुत ज्यादा सोना, पराये के पास लिखाना, अल्प विद्या, और वाद-विवाद ये छः आत्मघाती हैं। +:सुख चाहने वाले को विद्या प्राप्त नहीं हो सकती, और विद्यार्थी को सुख नहीं मिल सकता। सुख चाहने वाले को विद्या पाने की आशा छोड़ देनी चाहिए, और विद्या चाहने वाले को सुख छोड़ देना चाहिए। +:स्वंच्छंदता, पैसे का मोह, प्रेमवश होना, भोगाधीन होना, उद्धत होना – ये छः विद्या पाने में बाधा उत्पन्न करते हैं। +:जो चोरों को नजर नहीं आती, देने से जिसका विस्तार होता है, प्रलय काल में भी जिसका विनाश नहीं होता, वह विद्या के अलावा कौन सा धन हो सकता है ? +:हाथ का आभूषण (गहना) दान है, गले का आभूषण सत्य है, कान की शोभा शास्त्र सुनने से है, अन्य आभूषणों की क्या आवश्यकता है? + + +* यदि जनसामान्य अभिकल्पन के मुख्य नियमों को समझ ले तो इससे बढ़कर कोई अन्य कार्य सुन्दरता, वर्कमैनशिप, उत्पादकों का मूल्यवर्धन करने वाला तथा देश के कल्याण और समृद्धि को बढाने वाला नहीं हो सकता। अभिकल्पन के नियम असानी से ग्रहण किये जा सकते हैं, और इन्हें अक्षरज्ञान के साथ से पढ़ाया जाना चाहिये। अर्नेस्ट फ्लैग (Ernest Flagg स्माल हाउसेस देयर इकनॉमिक डिजाइन ऐण्ड कान्स्ट्रक्शन (1922) +* डिजाइन पुनर्डिजाइन है। जान माइकल (2002 सीइंग डिजाइन ऐज रीडिजाइन में (2002 ई) +* अच्छी डिजाइन, डिजाइनकर्ता और प्रयोक्ता के बीच सम्वाद भी है। डॉनाल्ड नॉर्मन (2002) +* अच्छी डिजाइन ठीक दिखती है। वह सरल (स्पष्ट और जटिलता से रहित) होती है। मानचित्र, सुहाना, विचारोत्तेजक और संवाद करने वाला होना चाहिये। आर्थर एच रॉबिन्सन (1953) एलिमेन्ट्स ऑफ कार्टोग्राफी, में +* औद्योगिक डिजाइन, एक सार्वभौमिक भाषा बनकर रहेगी। Jacques-Eugène Armengaud आदि + + +* आविष्कारक, संसार की तरफ देखता है और वह वस्तुएँ जिस रूप में हैं उसी रूप में उनसे संतुष्ट नहीं होता। वह जो कुछ देखता है उसमें सुधार करना चाहता है, वह संसार को लाभ पहुँचाना चाहता है। उसका मस्तिष्क विचारों का बसेरा होता है। अलेक्जान्डर ग्राहम बेल्ल +* औजार, और कुछ नहीं बहीं बल्कि मानव के हाथों का विस्तार ही है। इसी तरह मशीन और कुछ नहीं बल्कि एक जटिल औजार ही है। और जो व्यक्ति किसी मशीन का आविष्कार करता है, वह मानव की शक्ति को और मानवता के कल्याण को ही बढ़ाता है। हेनरी वार्ड बीचर Proverbs from Plymouth Pulpit (1887 Business. +* आवश्यकता, आविष्कार की जननी है। +* केवल आविष्कर्ता ही जानता है कि उधार कैसे लिया जाय। हर व्यक्ति आविष्कर्ता है या बन सकता है। राल्फ वाल्डॉ इमर्शन, Letters and Social Aims (1876 Quotation and + + +* अर्थशास्त्र का ९५ प्रतिशत 'सामान्य बुद्धि' है जिसे जटिल बना दिया गया है। और शेष ५ प्रतिशत को सरल शब्दों में समझाया जा सकता है। Ha-Joon Chang, 23 Things They Don't Tell You About Capitalism, 2010 +* मानव व्यवहार को सूत्रों के रूप में प्रस्तुत करना ही हास्य वृत्ति की कमी को दर्शाता है, और इसलिये यह ज्ञान की कमी को भी दर्शाता है। Lin Yutang, The Importance of Living (1937) + + +प्राचीन काल से अब तक भारत के आर्थिक कार्यकलापों और आर्थिक नीतियों पर कहे गये सद्वाक्य। +प्राचीन भारतीय आर्थिक विचार एक विशाल और जटिल विषय है जिसमें दर्शन धर्म नीति साहित्य राजनीति और अर्थशास्त्र जैसे विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं। वास्तव में भारतीय संस्कृति में पुरुषार्थ की योजना मानव द्वारा करने योग्य कार्यों का एक मोटा विभजन है। पुरुषार्थ के अन्तर्गत अर्थ भी एक महत्वपूर्ण अवयव है। यहाँ तक कहा गया है कि अर्थ के बिना धर्म और काम की प्राप्ति नहीं हो सकती। यहां प्राचीन भारतीय आर्थिक विचारों की कुछ प्रमुख तत्व नीचे दिये गये हैं- +धर्म प्राचीन भारत में आर्थिक गतिविधियों को धर्म या कर्तव्य का एक महत्वपूर्ण पहलू माना जाता था। धर्म की अवधारणा के अनुसार, व्यक्तियों की नैतिक जिम्मेदारी थी कि वे समाज की भलाई के लिए काम करें और आम भलाई में योगदान दें। इसका मतलब यह था कि आर्थिक गतिविधियों को नैतिक और सामाजिक रूप से जिम्मेदार तरीके से संचालित किया जाना था । +वस्तु विनिमय प्रणाली प्राचीन भारत में, विनिमय का प्राथमिक तरीका वस्तु विनिमय प्रणाली थी। इसका मतलब यह था कि पैसे के उपयोग के बिना वस्तुओं और सेवाओं का अन्य वस्तुओं और सेवाओं के लिए आदान-प्रदान किया गया था। वस्तु विनिमय प्रणाली ग्रामीण क्षेत्रों में और उन समुदायों के बीच प्रचलित थी जो शहरी केंद्रों से अलग-थलग थे। +सिक्का निर्माण प्राचीन भारत में विनिमय के माध्यम के रूप में सिक्कों का उपयोग शुरू किया गया था। प्रारंभ में सिक्के चाँदी के बने और बाद में सोने, तांबे और अन्य धातुओं के बने। सिक्कों के उपयोग ने व्यापार और वाणिज्य को अधिक कुशल बनाया और अर्थव्यवस्था के विकास को सुगम बनाया। +कृषि कृषि प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार थी। अधिकांश आबादी कृषि में लगी हुई थी, और अधिशेष उत्पादन का उपयोग व्यापार और वाणिज्य के लिए किया जाता था । +व्यापार और वाणिज्य प्राचीन भारत में व्यापार और वाणिज्य महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियाँ थीं। सिल्क रोड और अन्य व्यापार मार्ग भारत को दुनिया के अन्य हिस्सों से जोड़ते हैं, जिससे वस्तुओं और विचारों के आदान-प्रदान में आसानी होती है। +आर्थिक सिद्धान्त प्राचीन भारतीय आर्थिक विचार वेदांत, योग और सांख्य जैसे दर्शन के विभिन्न विद्यालयों से प्रभावित थे। विचार के इन विद्यालयों ने आत्म-अनुशासन, भौतिक संपत्ति से अलग होने और आध्यात्मिक ज्ञान की खोज पर जोर दिया। प्राचीन भारत के कुछ प्रमुख आर्थिक सिद्धांतों में अर्थ या धन की अवधारणा शामिल है, जिसे मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के साधन के रूप में देखा जाता था, जो मोक्ष या मुक्ति था । इतना ही नहीं, चाणक्य ने कहा है कि 'धर्म का मूल अर्थ है और अर्थ का मूल राज्य'। कुल मिलाकर, प्राचीन भारतीय आर्थिक विचार आर्थिक गतिविधियों के लिए एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण की विशेषता थी। आर्थिक गतिविधियों को आम भलाई हासिल करने और समग्र रूप से समाज की भलाई को बढ़ावा देने के साधन के रूप में देखा गया, न कि केवल व्यक्तिगत लाभ की खोज के रूप में। +कर-प्रणाली प्राचीन भारत में कर की समुचित व्यवस्था थी। माना जाता था कि कोष के बिना राजा का कोई महत्व नहीं है। कर के बारे में यह धारणा थी कि वह इतना कम हो कि कर देने वाले को पता भी न चले और राजा प्रजा को कर के बदले में सार्वजनिक हित के कार्य करे। +* मेगास्थनीज ने ��हा है कि भारत के लोग न तो पैसा व्याज पर देते हैं न ही उधार लेना जानते हैं। किसी का अहित करना या किसी से अहित होना भारतीय सिद्धान्तों के विपरीत है। इसलिये वे लोग न तो संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) करते हैं न किसी प्रतिभूति (सेक्योरिटी) की आवश्यकता होती है। विल डुरान्ट और एरिएल डुरान्त, The Story of Civilization, Book I, Our Oriental Heritage (1935) +* मेरे मन में इस बात की कोई शंका नहीं है कि भविष्य में भारत एक महान अर्थिक शक्ति बनेगा। भारत का एक यही अभिशाप है कि भारत के लोगों में भारतीय होने का गर्व नहीं है। जिस क्षण उनके स्वभिमान आ जायेगा, भारत दूसरा जापान बन जायेगा। माइक्रोकम्प्यूटर के अग्रदूत आदम ऑसबॉर्न (Adam Osborne टाइम्स ऑफ इण्डिया में, 7/12/1990. Quoted from Elst, Koenraad (1991 Ayodhya and after: Issues before Hindu society. +* यदि हम संकल्प कर लें तो हम भारतीय अर्थव्यवस्था की दयनीय स्थिति को सुधार सकते हैं। हमें यह जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी और दृढ़प्रतिज्ञ होना पड़ेगा। नरेन्द्र मोदी +* भारत में विश्व के सबसे अधिक युवा हैं। जब उन सभी के लिये समुचित आजीविका मिल जायेगी तो इस देश का वित्तीय स्वास्थ्य नाटकीय रूप से बढ़ जायेगा। श्रीनिवास मिश्रा +* अगले २० वर्षों में वैश्विक ईंधन और उपभोग के १०० से १५० प्रतिशत बढ़ने की सम्भावना है। तेजी से बढ़ती हुई चीनी और भारतीय अर्थव्यवस्थाएँ इसका मुख्य कारण होंगी। इस वृद्धि के कारण तथा इस मांग में व्र्द्धि के फलस्वरूप कीमतें और भी बढ़ेंगी। John Shadegg +* सेवकों की विश्वसनीयता, सम्पूर्ण भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है। अरविन्द अडिग +* ईस्ट इंडिया कम्पनी के भरतीय अर्थव्यवस्था पर हाबी होने का आधार उसकी निजी सेना थी। Robert Trout +* चीनी अर्थव्यवस्था ९ प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, भारतीय अर्थव्यवस्था ८ प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। मैं सोचता हूँ कि द्विपक्षीय व्यापार, प्रौद्योगिकी और निवेश में अपार अवसर विद्यमान है। मनमोहन सिंह +* 1980 के दशक में हमें सलाह दी गई थी कि आप रीगन-अर्थनीति या थैचर-नीति का अनुसरण क्यों नहीं करते। हमने कहा, हां, कुछ अच्छे बिंदु हैं, आइए देखें कि हम उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था में कैसे फिट कर सकते हैं। हर देश के आगे बढ़ने का अपना तरीका होता है। प्रणब मुखर्जी +* 1970 के दशक में भारत में विदेशी प्रभुत्व के डर के कारण जनता पार्टी ने देश के भीतर सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आंशिक भारतीय स्वामित्व पर जोर दिया। इसका परिणाम यह नि��ला कि आईबीएम और कोका-कोला जैसी कंपनियाँ वापस चली गयीं और अर्थव्यवस्था अवृद्धि की स्थिति में बनी रही। Peter Blair Henry +* यदि आप आज की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को देखें, उदाहरण के लिए, अमेरिकी अर्थव्यवस्था, यूरोपीय अर्थव्यवस्था, भारतीय अर्थव्यवस्था, चीनी अर्थव्यवस्था, तो हम सभी एक साथ बंधे हुए हैं। यदि उनमें से कोई एक डूबती है, तो बाकी लोग भी उसके साथ डूब जायेंगे और यदि एक तैरता है, तो बाकी लोग भी ऊपर उठा लिये जायेंगे। Frans de Waal +* पूरे राजनीतिक अभिजात वर्ग ने पिछले 50 वर्षों से भारतीय अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन किया है। कुप्रबंधन के लक्षण के रूप में पैदा हुए संकट को आप केवल पांच मिनट या एक सप्ताह में हल नहीं कर सकते। इसके लिये त्याग और पीड़ा लेनी पड़ेगी। और मुझे संदेह है कि भारत में इसका सामना करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति है। Marc Faber +* जैसे-जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था हमारे क्षेत्र में और विश्व में शक्ति का संचार करेगी, यह मंगोलिया को भी लाभ पहुँचायेगी। नरेन्द्र मोदी +* भारतीय अर्थव्यवस्था नीतिगत पंगुता और आशावाद की कमी से पीड़ित है। मुझे विश्वास है कि सही निर्णयों से हम एक बार फिर आशा और विश्वास पैदा कर पायेंगे और अपनी अर्थव्यवस्था में परिवर्तन ला सकेंगे। नरेन्द्र मोदी +* भारतीय गिद्ध से लेकर चीनी मधुमख्खियों तक, प्रकृति सबको अपनी सेवा देती है जिससे अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती रहती है। Tony Juniper + + +विक्रम साराभाई 12 अगस्त, 1919 – 30 दिसम्बर, 1971) भारत के एक भौतिकविज्ञानी थे। उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम का जनक माना जाता है। वे एक महान वैज्ञानिक ही नहीं थे, बल्कि उद्योग, प्रबन्धन, कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी उनका योगदान उल्लेखनीय है। उनकी सक्रिय भूमिका और प्रेरणा से देश में कई प्रतिष्ठित संस्थानों की स्थापना हुई। राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला अहमदाबाद; आईआईएम, अहमदाबाद; इसरो; स्पेस ऐप्लिकेशन सेंटर, अहमदाबाद जैसे अनेक राष्ट्रीय संस्थानों की स्थापना में उनकी प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका रही है। अपनी पत्नी प्रसिद्ध भरतनाट्यम-कुचीपुडी नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई के साथ मिलकर उनहोंने नाट्य संस्थान ‘दर्पण अकैडमी’ की भी स्थापना की थी। आजादी के बाद, जब भारत को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के लिए योग्य वैज्ञानिकों और मजबूत सं���्थानों की तत्काल आवश्यकता थी, तब विक्रम साराभाई जैसे दूरदर्शी वैज्ञानिकों इस क्षेत्र में सक्षम नेतृत्व प्रदान किया। +उनका जन्म गुजरात के एक सम्पन्न जैन परिवार में हुआ था। +* भारत अपने विशेषज्ञों के लिए विदेशों पर निर्भर नहीं रहेगा बल्कि खुद अपने हाथों से उनका निर्माण करेगा। +* कुछ लोग विकासशील देशों में अंतरिक्ष सम्बन्धी कार्यकलापों की सार्थकता पर सवाल उठाते हैं। हमारे मन में इसकी सार्थकता संदेश से परे है। हमें आर्थिक रूप से विकसित देशों से के साथ चन्द्रयात्रा या ग्रहों की यात्रा या अंतरिक्ष में यान भेजने में कोई प्रतियोगिता नहीं करना है। लेकिन हमे यह विश्वास है कि एक राष्ट्र के रूप में यदि हमे सार्थक भूमिका निभानी है तो मानव और समाज की समस्याओं के हल के लिये उन्नत प्रौद्योगिकी के उपयोग में हमे किसी भी देश से पीछे नहीं रह सकते। डॉ विक्रम साराभाई के व्याख्यान और शोधपत्रों की सूची" से +* जो व्यक्ति कोलाहल में भी संगीत सुन सकता है, वह महान वस्तुएँ प्राप्त कर सकता है। +* किसी देश का विकास अन्ततः उस देश के लोगों के विज्ञान और प्रौद्योगिकी की समझ और उसके अनुप्रयोग पर निर्भर है। विक्रम ए. साराभाई" से उद्धृत +* मेरा मानना है जो व्यक्ति समय का सम्मान नहीं करता, और जिसे वक्त की परवाह नहीं होती वह कुछ खास हासिल नहीं कर पाता। +* जब आप भीड़ से ऊपर खड़े होते हैं, तो आपको अपने ऊपर फेंके जाने वाले पत्थरों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। +* आपका सफल नहीं होना असफलता नहीं है। असफलता वह होती है जिसमें आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास नहीं करते और लोककल्याण के कार्यों में अपना थोड़ा भी योगदान नहीं देते। +* मेरा मानना है कि आधुनिक भौतिक विज्ञान अपनी उल्लेखनीय प्रगति के लिए प्राचीन भारतीय दार्शनिक अवधारणाओं और उस गणितीय ढांचे के अनुसंधान का ऋणी है जिसके तहत वे परिमाणात्मक रूप से सूत्रबद्ध किए जा सकते हैं। +* हमारे राष्ट्रीय लक्ष्य में निहित होना चाहिए छोटे-छोटे विकासशील कदम उठाकर आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन की अवस्था से उस परिवर्तन को जल्द हासिल करना जिसमें दूसरे देशों को सैकड़ों साल लगे। इसलिए लिए जरूररी हर स्तर पर नवाचार (इनोवेशन) को अपनाना। -डॉ. विक्रम साराभाई +* बाह्य अंतरिक्ष पर हुए समझौते का लाभ केवल पारस्परिक निर्भरता आधारित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के जरिए उठाया जा सकत�� है। +* यदि हमें समाज की वास्तविक समस्याओं के समाधान में विज्ञान और वैज्ञानिकों की मदद लेनी है, तो वैज्ञानिकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना होगा कि वे अपनी विशेषज्ञता वाले क्षेत्र से बाहर जाकर लोगों की समस्याओं से परिचित हों। +* आज नौकरशाही बहुत ज्यादा फूल गई है और इस कारण यह बोझ बन गई है। -डॉ. विक्रम साराभाई +* दरअसल न कोई नेतृत्वकर्ता होता है, न कोई अनुसरणकर्ता। यदि किसी को हम नेतृत्वकर्ता मानते हैं तो वह निर्माता नहीं, किसान जैसा उत्पादक होगा। उसे मिट्टी, जलवायु और वैसा वातावरण मुहैया कराना होगा जिसमें बीज का विकास हो सके। +* लोग ऐसे सरल और सुनम्य व्यक्तियों को चाहते हैं जो लोगों से खुद को नेतृत्वकर्ता मानने की मानसिकता से मुक्त हों। +* जो व्यक्ति शोर के बीच भी संगीत सुन सकता है वह बड़ी चीजें हासिल करने की क्षमता रखता है। +* सरकार सही मायने में क्या है? सरकार वह है जो “शासन” कम करे और उसकी बजाए लोगों की क्षमताओं को एकजुट करने के तरीके ढूंढ़े। +* सहकारिता का ढांचा कभी भी नौकरशाही की विशाल व्यवस्था को बढ़ावा नहीं देता, क्योंकि इसे पता होता है कि विशाल नौकरशाही लोगों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील नहीं हो सकती। +* हमारे वैज्ञानिक यदि कहीं बाहर से परामर्श लेते हैं तो हम उन्हें नीची निगाह से देखते हैं। +* देश का विकास उसके नागरिकों द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समझने और उनके उपयोग के साथ गहराई से जुड़ा होता है। +* मेरा परिवार गैर-रूढ़ीवादी परिवार था। बचपन मे मेरी परवरिश विवेक आधारित सत्य के सिद्धांतो पर हुई न कि इस बात पर कि समाज क्या सही मानता है। +* मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि देश की सुरक्षा को खतरा केवल बाहर से नहीं होता अंदर से भी हो सकता है, यदि हम आर्थिक विकास की दर को कायम नहीं रखते। +* किसी संगठन की शक्ति का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि विपत्ति का सामना वह कैसे करता है। +* उचित सहायता मिले तो प्रतियोगिता सही वक्त पर लाभकारी होती है। +* सामाजिक और आर्थिक मौलिक परिवर्तन क्रमिक रूप से धीरे-धीरे किया जाना चाहिए। जितनी सावधानी के साथ और विचारपूर्वक इसे लागू किया जाएगा उतना ही यह स्थायी होगा। + + +सेवायोजन या रोजगार दो व्यक्तियों या समूहों में एक सम्बन्ध है जो प्रायः संविदा (कान्ट्रैक्ट) पर आधारित होता है। इसमें से एक सेवाप्रदाता (employee) हो���ा है और दूसरा सेवायोजक (employer)। +तात्पर्य प्रत्येक अक्षर से कोई न कोई मंत्र आरम्भ होता है। प्रत्येक मूल (जड़) कोई न कोई औषधि होती है। कोई भी व्यक्ति 'अयोग्य' नहीं है किन्तु उनको काम पर लगाने वाला (योजक) ही दुर्लभ हैं (नहीं होते)। +* अधिकतम आउटपुट के आदर्श की प्राप्ति के लिये अपना समाज यह देखता है कि व्यक्ति काम के लिये उपयुक्त है या नहीं, समाज यह नहीं देखता कि काम, व्यक्ति के लिये उपयुक्त है या नहीं। John Passmore, The Perfectibility of Man, p. 280 + + +वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में प्रयुक्त तकनीकों, कौशलों, विधियों, प्रक्रमों के संयोजन का नाम प्रौद्योगिकी Technology) है। +* जो वस्तुएँ पहले नहीं थीं, उनको बनाना इंजीनियरी या प्रौद्योगिकी है, जबकि जो वस्तुएँ अनन्त काल से अस्तित्व में हैं उन्हें खोजना विज्ञान है। डेविड बिलिंगटन, द टॉवर ऐण्ड द ब्रिज: द न्यू आर्ट ऑफ स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग (1983 9. +* प्रौद्योगिकी को प्रौद्योगिकी ही खिलाती है। प्रौद्योगिकी, अधिक बेहतर प्रौद्योगिकी को सम्भव बनाती है। एल्विन टॉफ़लर, फ्यूचर शॉक (1970) +* पर्याप्त रूप से विकसित किसी प्रद्योगिकी और जादू में अन्तर नहीं किया जा सकता। आर्थर सी. क्लार्क +* सार रूप में, सभ्यता की कहानी, इंजीनियरिंग की कहानी है वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियों को मनुष्य के भले के लिए कम कराने के लिए किया गया। एस डीकैम्प +* इंजिनियर इतिहास का निर्माता रहा है और आज भी है। जेम्स के. फिंक +* मशीनीकरण के लिए यह जरुरी है की लोग भी मशीन की तरह सोचें। सश्री जैकब +* इंजीनियरिंग संख्याओं में की जाती है । संख्याओं की बिना विश्लेषण मात्र राय है। अज्ञात +* जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप आपने विषय के बारे में कुछ जानते हैं लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आपका ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक है। लॉर्ड केल्विन +* आवश्यकता डिजाइन का आधार है । किसी चीज को जरुरत से अल्पमात्र भी बेहतर डिजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है। अज्ञात +* तकनीक के ऊपर ही तकनीक का निर्माण होता है। हम तकनीकी रूप से विकास नहीं सकते यदि हममें ये समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व संभव नहीं है। अज्ञात +* पहले हम पैरों की दौड़ करते थे। उसके बाद हमने भुजाओं/शस्त्रों की दौड़ (arms race) की। अब हम मस्तिष्क की दौड़ करने जा रहे हैं। और यदि हमारी भाग्य ठीक रही तो अन्त में ह्यूमन रेस होगी। John Brunner, The Shockwave Rider (1975 Bk. 1, Ch The Number You Have Reached" +सभी के लिये सुलभ ज्ञान का भण्डार मुख्यतः वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान होगा। पूरे विश्व के वैज्ञानिक और तकनीकीविद अपने कार्यों को इस प्रकार प्रकाशित क्रेंगे कि वह सर्वसुलभ होगा। वे दिन गये जब कोई वैज्ञानिक अपने खोज को उसे बेचता थ जो उसकी सबसे अधिक बोली लगाता था। वह दिन भी अब नहीं आयेगा कि कोई विशाल क्कोर्पोरेशन किसी तकनीकी मास्टरपीस को खरीद लेगी और अपने मौजूदा उत्पादों को लम्बे समय तक बेचती रहेगी। सारा ज्ञान कम्प्यूटर में चल जायेगा। आप चहें तो इसे इन्टरनेट कहें, विश्व सूचना बैंक कहें, या विश्व ज्ञान बैंक कहें सभी नवीन खोजें, अनुसन्धान प्रक्रम की गति को तेज करने वाले सभी वैज्ञानिक ज्ञान, सभी इसी बैंक में जायेंगे जिस तक कोई भी, संसार में कहीं से भी पहुँच सकेगा। जब हम इस ज्ञान को साझा करेंगे, जब इसका उपयोग करने क इच्छुक कोई भी इस ज्ञान तक पहुँच सकेगा, तब खोज, विज्ञान और प्रद्योगिकी की सम्पूर्ण प्रक्रिया आश्चर्यजनक रूप से तेज हो जायेगी। बेंजामिन क्रीम (Benjamin Creme Maitreya's Mission Vol. III 1997 Chapter 1, p. 181-183 +* ऐसा लगता है कि प्रौद्योगिकी ने मानव को उसके पर्यावरण से अधिकाधिक स्वतंत्र बना दिया है। किन्तु वास्तव में देखें तो प्रौद्योगिकी ने केवल यह किया है कि उसने अनवीकरणीय स्रोतों के स्थान पर नवीकरणीय स्रोत ला दिया है। इससे तो मानव अपने पर्यावरण से अधिक स्वतंत्र होने के बजाय कम स्वतंत्र हो गया है। Herman Daly, Steady-State Economics (1977). +* पुराने औद्योगिक देशों को कोयले और लोहे की तकनीक में महारत हासिल करने में तीन पीढ़ियाँ लग गयीं। पूर्वी एशिया, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और ताइवान आदि नए औद्योगिक देशों ने नई तकनीक में महारत हासिल की और एक ही पीढ़ी में गरीबी से कूदकर समृद्ध बन गये। Freeman Dyson, Infinite in All Directions: Gifford lectures given at Aberdeen, Scotland (2004 270. +* तकनीकी प्रगति ने हमें केवल यही दिया है कि हम और अधिक दक्षतापूर्वक पीछे जा सकें। Aldous Huxley Ends and Means (1937) +* हम जिस प्रकृति के भाग हैं वह स्वयं संतुलन लाने वाली, स्वयं समायोजित (ऐडजस्ट) करने वाली और अपने-आप को साफ करने वाली है। लेकिन प्रौद्योगिकी वैसी नहीं है। E. F. Schumacher, in "Small is Beautiful 1973) +* टेक्नोलॉजी एक विचित्र वस्तु है। यह एक हाथ से आपको बड़ा उपहार देती है, और दूसरे हाथ से आपकी पीठ में छुरा घोंप देती है। सी.पी. स्नो द न्यूयॉर्क टाइम्स" में उद्धृत (15 मार्च 1971) + + +भरतीय संस्कृति या भारत की संस्कृत से आशय भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न या भारतीय महाद्वीप से सम्बद्ध सामाजिक विचारों, धार्मिक मूल्यों, प्रथाओं, परम्परओं, दर्शन, राजनैतिक प्रणाली, शिल्पकलाओं और प्रौद्योगिकी आदि से है। इसे 'भारतीय सभ्यता' भी कहते हैं। +प्राचीनतम संस्कृति का जहाँ भी उल्लेख होता है वहाँ भारतीय संस्कृति का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। भारत की संस्कृति न केवल प्राचीन है अपितु विशाल और महान भी है। +* यद्यपि पूर्व से पश्‍चिम की ओर बढ़ने पर, सभ्‍यता के चार मुख्‍य उद्गम केंद्र, चीन, भारत, फर्टाइल क्रीसेंट तथा भूमध्‍य सागरीय प्रदेश, विशेषकर यूनान और रोम हैं, भारत को इसका सर्वाधिक श्रेय जाता है क्‍योंकि इसने एशिया महादेश के अधिकांश प्रदेशों के सांस्‍कृतिक जीवन पर अपना गहरा प्रभाव डाला है। इसने प्रत्‍यक्ष ओर अप्रत्‍यक्ष रूप से विश्‍व के अन्‍य भागों पर भी अपनी संस्‍कृति की गहरी छाप छोड़ी है। डा. ए एल बाशम भारत का सांस्‍कृतिक इतिहास' नामक लेख में +* भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा योगदान अहिंसा का सिद्धान्त है। महात्मा गांधी +* भारतीय संस्कृति, ग्रीक संस्कृति की अपेक्षा अधिक विस्तृत, सूक्ष्म, बहुपक्षीय, जिज्ञासु और गहरी है; यह रोमन संस्कृति की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ और मानवीय है; इजिप्ट की पुरातन संस्कृति की तुलना में अधिक विस्तृत तथा आध्यात्मिक है; किसी भी एशियाई सभ्यता की तुलना में अधिक विशाल एवं मौलिक है; १८वीं शताब्दी से पूर्व के यूरोपीय संस्कृति की तुलना में अधिक बुद्धिवादी है। इन संस्कृतियों की सभी अच्छी बातॉं के अलावा भी भारतीय संस्कृति में बहुत कुछ है। भारतीय संस्कृति सभी प्राचीन संस्कृतियों की तुलना में अधिक शक्तिशली, अधिक परिपूर्ण, अधिक प्रेरक और अधिक प्रभवकारी है। महर्षि अरविन्द, १९६४ में भारतीय विद्या भवन द्वारा आयोजित 'भारत का सन्देश और लक्ष्य' कार्यक्रम में। +* हिन्दू संस्कृति आध्यात्मिकता की अमर आधारशिला पर निर्मित है। स्वामी विवेकानन्द +* उपासना, मत और ईश्वर सम्बन्धी विश्वास की स्वतंत्रता भारतीय संस्कृति की परम्परा रही है। अटल बिहारी वाजपेयी +* भारतीय सभ्यता और संस्कृति की विशालता और उसकी महत्ता तो सम्पूर्ण मानव के साथ तादात्म्य स्थापित करने अर्थात् ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ की पवित्र भावना में निहित है। मदनमोहन मालवीय +* भारत की एकता का मुख्य आधार एक संस्कृति है, जिसका प्रवाह कहीं नहीं टूटा। यही इसकी विशेषता है। भारतीय एकता अक्षुण्ण है क्योंकि भारतीय संस्कृति की धारा निरन्तर बहती रही है और बहेगी। मदनमोहन मालवीय +* भारतीय संस्कृति जीवन के रस का तिरस्कार नहीं हैं, नकार नहीं है, पर एक अलग ढंग का स्वीकार है। भारतीय संस्कृति जीवन को केवल भोग्य रुप में ही नहीं देखती; वह जीवन को भोक्ता के रुप में भी देखती है; बल्कि ठीक-ठीक कहें तो जीवन को भाव के रुप में, अव्यय भाव के रुप में, न चुकने वाले भाव के रुप में देखती है; अंग-अंग कट जाय, तब भी मैदान न छूटे -ऐसे सूरमा के भाव के रूप में देखती है। इस जीवन में मृत्यु नहीं होती, होती भी है तो वह जीवन का पुनर्नवीकरण के रुप में होती है। विद्यानिवास मिश्र + + +* पैसा सोना है, और कुछ नहीं। जे पी मार्गन, १९१२ में + + +* हर प्रणाली को प्रबन्धन की आवश्यकता होती है। यह अपने आप का प्रबन्धन नहीं कर सकती। पश्चिमी जगत में, उनके ऊपर छोड़ देने के कारण संस्था के) अवयव स्वार्थी, प्रतिस्पर्धा करने वाले और स्वतंत्र लाभ के केन्द्र बन जाते हैं, और इस तरह से प्रणाली को नष्ट कर देते हैं । सफलता का रहस्य यह है कि सभी अवयव आपस में सहयोग करें और संस्था के लक्ष्य को प्राप्त करें। हम प्रतिस्पर्धा के नाशी प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकते। W. Edwards Deming उद्योग, सरकार और शिक्षा के लिये नया अर्थशास्त्र (1993). +* बडे उद्योगों ने संसार के सभी लोगों को पास ला दिया है, सभी स्थानीय बजारों को मिलाकर एक विश्व बाजार बना दिया है, सभ्यता और प्रगति को हर जगह फैला दिया है। इस प्रकार इसने यह सुनिश्चित कर दिया है कि जो कुछ किसी सभ्य देश में घटेगा उसका प्रभाव दूसरे देशों पर भी पड़ेगा। इसका अर्थ ये है कि यदि इंग्लैंड या फ्रान्स के ह्रमिक अपने आप को मुक्त करते हैं तो इससे दूसरे देशों के उनके भाइयों को मुक्ति मिलना शुरू होगा। फ्रेडरिक इंगेल्स, साम्यवाद के सिद्धान्त (1847) +* उद्योगों में मानव की भूमिका इतना अलग-अलग है कि यदि हम मापन का उपयोग नहीं करते और मापन के परिणामों को नहीं मानते प्रक्रम को ठीक-ठीक और दक्षतापूर्वक दोहराने की कोई सम्भावना नहीं है। Frank Bunker Gilbreth, Sr. Measurement of the human factor in industry (1917) p. 3. +* उद्योगों का एक उपयोग ये है कि वे वह धन प्रदान करते हैं जिससे बेहतर शिक्षा मिलन�� की सम्भावना बनती है। R. H. Tawney The Acquisitive Society 1920. p. 85. + + +सन १७५६ से १८९० के बीच वस्तुओं के निर्माण की एक नयी प्रक्रिया आरम्भ हुई, जिसे औद्योगिक क्रांति कहते हैं। नयी निर्माण प्रक्रिया में हाथ से वस्तुओं का निर्माण करने के बजाय मशीनों द्वारा निर्माण शुरू हुआ, रसायनों के निर्माण की नयी प्रक्रिया शुर्रू हुई, जलशक्ति की दक्षता में सुधार हुआ, भाप की शक्ति का उपयोग होने लगा और मशीनी औजारों (machine tools) का विकास हुआ। +* भाप के इंजन के लिये जेम्स वाट द्वारा विकसित गवर्नर, जो लोड के घटने-बढ़ने पर भी फीडबैक के माध्यम से इंजन की गति को नियत बनाये रखता था, ने प्रथम औद्योगिक क्रान्ति को मजबूती प्रदान की। एन्थनी स्टैफोर्ड बीयर (1968) Management Science पृष्ट 142. +* मशीनों को चलाने के लिये भाप के इंजन के उपयोग के पहले ही औद्योगिक क्रांति शुरू हो गयी थी। उस समय केवल दो प्राइम मूवर ही अधिकांशतः उपलब्ध थे -पनचक्की और वायु-चक्की। और कुछ अपवादों को छोड़ दें तो ये १० हॉर्सपॉवर और प्रायः उससे कम शक्ति देते थे। +* मानव संख्या का विस्फोट, विशेष रूप से औद्योगिक क्रान्ति के बाद के पिछले दो शताब्दियों में, और इसके साथ इस धरती पर धन का असमान वितरण और उपभोग, छठे विलोपन (Extinction) के कारण होंगे। Niles Eldredge The Sixth Extinction 2001 +* १८वीं शताब्दी और १९वीं शताब्दी के मध्य तक हुए सभी तकनीकी नवाचार, जो औद्योगिक क्रन्ति के आधार थे, वे सभी उन लोगों ने बनाये थे जिनको अधिक से अधिक क्राफ्ट्समैन, शिल्पकार, या इंजीनियर कह सकते हैं। उनमें से बहुत कम लोग थे जिन्होने विश्वविद्यालयी शिक्षा पायी थी, और उन सभी ने बिना किसी वैज्ञानिक सिद्धान्त के ही अच्छे अच्छे परिणाम निकाल दिये। James Edward McClellan III, Harold Dorn, Science and Technology in World History: An Introduction (2006). + + +मित्र का महत्व इस बात से लगाया जा सकता है कि पञ्चतन्त्र के पाँच तन्त्रों में से प्रथम दो तन्त्र मित्र से ही सम्बन्धित हैं। पहला तन्त्र 'मित्रभेद मित्रों में एक-दूसरे पर अविश्वास उत्पन्न करना तथा दूसरा तंत्रर 'मित्रसम्प्राप्ति नये मित्र की प्राप्ति) है। +: अर्थ जो कोई भी हों सैकड़ों मित्र बनाने चाहिये । देखो जैसे कि) मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे (वैसे ही अधिकाधिक मित्र रहने पर विपत्ति में कोई न कोई मित्र काम आ सकता है)! +: साधनरहित और धनहीन होते हुए भी जो बुद्धिमान एक-दूसरे के हितैषी (मित्र) होते ह���ं, वे अपने कार्य वैसे ही शीघ्र ही साध लेते हैं (पूरा कर लेते हैं जिस तरह कौए, कछुए, मृग और चूहे ने अपने कार्य साध लिये थे। +: सब के साथ मित्रवत् व्यवहार करें, परेशान करने वाले लोगों के प्रति प्रेमवत् व्यवहार करें और विपरीत परिस्थिति हो या नहीं, सदैव प्रसन्न चित्त रहें। +: अर्थ न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं। +: घर से दूर प्रवास के समय विद्या मित्र है, घर में पत्नी मित्र है, रोग में औषधि मित्र है और मृतक का मित्र धर्म है। +: साधारण लोगों के बीच मित्रता उपकार के कारण होती है। पशुपक्षियों के बीच किसी हेतु से, मूर्खों के बीच भय और लोभ के कारण और सज्जनों के बीच दर्शन से मित्रता होती है। +: बार-बार मिलने पर अबन्धु भी बन्धु बन जाता है जबकि दूरी के कारण परस्पर मिलने का अभ्यास छूट जाने से भाई से भी स्नेह की कमी हो जाती है। +: जिनका (दो व्यक्तियों का) समान वित्त हो, जिनका कुल समान हो, उन्हीं में परस्पर मित्रता एवं विवाह ठीक है न कि सक्षम एवं असक्षम के बीच। +: पीठ पीछे कार्य को नष्ट करने वाले तथा सम्मुख प्रिय (मीठा) बोलने वाले मित्र का उसी प्रकार त्याग कर देना चाहिए जिस प्रकार मुख पर दूध लगे विष से भरे घड़े को छोड़ दिया जाता है। +: जो सामने बना-बनाकर मीठा बोलता है और पीछे मन में बुरी भावना रखता है तथा जिसका मन सांप की चाल के जैसा टेढा है- ऐसे खराब मित्र को त्यागने में हीं भलाई है। +: मित्र से लेन देन करने में शंका न करे। अपनी शक्ति अनुसार सदा मित्र की भलाई करे। संकट के समय वह सौ गुना स्नेह-प्रेम करता है। श्रुति अच्छे मित्र के यही गुण बताती है। +* शत्रु ऐसे राजा का नाश नहीं कर सकता जिसके पास दोष बताने वाले, असहमति जताने वाले और सुधार करने वाले मित्र हों। सन्त तिरुवल्लुवर +* व्यापार पर खड़ी मैत्री, मैत्री पर खड़े व्यापार से श्रेष्ठतर है। जॉन डी. रॉकफेलर +* यदि आपके पास एक सच्चा मित्र है तो समझिए आपको आपके हिस्से से अधिक मिल गया। थॉमस फुलर +* मित्र पाने का एकमात्र तरीका यह कि आप मित्र बन जाएं। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* आपके हृदय में एक चुम्बक होता है जो सच्चे मित्रों को आपकी ओर आकर्षित करता है। वह चुंबक है आपकी निःस्वार्थता और दूसरों के बारे में पहले सोचने का स्वभाव। जब आप दूसरों के लिए जीना सीख लेते हैं, तब दूसरे आपके लिए जीने लगते हैं। परमहंस यो���ानन्द +* जब आप मित्र बनाएं तो व्यक्तित्व की बजाए चरित्र को महत्व दें। सॉमरसेट मॉम +* यदि आप मित्र बनाने निकलेंगे तो आपको बहुत कम मित्र मिलेंगे। यदि आप मित्र बनने निकलेंगे तो सर्वत्र आपको मित्र मिलेंगे। जिग जिगलर +* ऐसा प्रेम जो दोस्ती की बुनियाद पर नहीं टिका होता, रेत के किले की तरह होता है। एला व्हीलर +* जो मित्रता बराबरी की नहीं होती वह हमेशा घृणा पर ही समाप्त होती है। गोल्डस्मिथ +* महान व्यक्तियों की मित्रता नीचों से नहीं होती, हाथी सियारों के मित्र नहीं होते। भारवि +* मित्र बनाना सरल है, मैत्री पालन दुष्कर है, चित्तों की अस्थिरता के कारण अल्प मतभेद होने पर भी मित्रता टूट जाती है। वाल्मीकि +* बुद्धिमान और वफादार मित्र से बढ़कर कोई दूसरा संबंधी नहीं है। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* मित्र के तीन लक्षण हैं – अहित से रोकना, हित में लगाना और विपत्ति में साथ नहीं छोड़ना। अश्वघोष +* विद्या, शूरवीरता, दक्षता, बल और धैर्य – ये पांच मनुष्य के स्वाभाविक मित्र बताये गए है। विद्वान पुरुष इन्हीं के द्वारा जगत के कार्य करते हैं। वेदव्यास +* सम्पन्नता तो मित्र बनाती है, किन्तु मित्रों की परख विपदा में ही होती है। विलियम शेक्सपीयर +विवाह और मित्रता सामान स्थिति वालों से करनी चाहिए। हितोपदेश +* परदेश में मित्र विद्या होती है और घर में मित्र पत्नी होती है, रोगियों का मित्र दवा और मरने के बाद धर्म ही मित्र होता है। चाणक्य + + +: अर्थ न (उस समय) राज्य था न राजा था। न दण्ड था न दण्ड देने वाला। धर्म से ही सारे लोग परस्पर रक्षा करते थे। +: अर्थ सुख का मूल (जड़) धर्म है। धर्म का मूल अर्थ (धन-सम्पत्ति, रुपया-पैसा, सोना-चाँदी आदि) है। अर्थ का मूल राज्य है। राज्य का मूल इन्द्रियों पर विजय है। +: राज्य तीन शक्तियों के अधीन है और ये शक्तियाँ हैं- मंत्र, प्रभाव और उत्साह जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं। मंत्र (योजना, परामर्श) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है, प्रभाव (राजोचित शक्ति, तेज) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह (उद्यम) से कार्य सिद्ध होता है। अतः पाँच मंत्र की जड़ों वाला, प्रभाव के दो स्कन्ध वाला, चार प्रकार के उत्साह से युक्त शाखा वाला, बहत्तर प्रकृति के पत्तों वाला, छः प्रकार के किसलय वाला तथा शक्ति के पुष्प और सिद्धि के फल से युक्त नय (नीति) रूपी वनस्पति (अपने सभी अंगों सहित) विजिगीषु का निरन्तर उपकार करने वाला होता है। (मन्त्र के पाँच अङ्ग हैं- friends, expedients, distinction of place and time, counteraction of evil, success) +* राज्य एक षड्यन्त्र है जो न केवल शोषण के लिये, अपितु अपने नागरिकों को भ्रष्ट करने के लिये भी बनाया गया है। लेव टॉलस्टॉय, Letter to Vasily Botkin + + +: अर्थ भूमि माता है और मैं उसका पुत्र हूँ। +: अर्थ जननी (माता) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। +: माता को देवता के समान मानो। +: माता (माँ) सभी गुरुओं में श्रेष्ठ है। +: महत्व (गौरव) की दृष्टि से माँ (माता) पिता से हजार गुना श्रेष्ठ है। +: माता, भूमि से भी गुरुतर (भारी) है। +: माता से बढ़कर इस संसार में कोई छाय (सहारा) नहीं है। माँ की छाया में ही जीवन का सुख है। कोई माँ के समान जीवन की रक्षा नहीं कर सकता है तथा माँ के समान इस संसार में कोई प्रिय वस्तु नहीं है। +: माता के जीवित या साथ रहने पर हर कोई अपने आप को सनाथ अनुभव करता है। माँ के साथ न रहने पर वह अनाथ हो जाता है। +: माता अपनी इच्छा से तनिक भी अपने पुत्र का परित्याग नहीं करती है। माता जिस प्रकार सुपुत्र का भरण-पोषण और रक्षा करती है, उसी प्रकार कुपुत्र का भी भरण-पोषण और रक्षा करती है। +: जन्म देने के कारण माता को जननी कहते है। +: पुत्र का गोत्र क्या है तथा उसका पिता कौन है, यह सब माता ही जानती है। गर्भ में धारण करने के कारण माता ही पुत्र से अधिक प्रेम करती है। +: माता का गौरव (महत्व) दश पिताओं से भी अधिक होता है। माँ के गौरव के सामने पृथिवी का गौरव न्यूनतम है। माता के समान इस संसार में कोई गुरु नहीं है। +: माता का गौरव सर्वाधिक है इसलिए संसार के लोग माँ का आदर करते है। +: माँ की छोटी और बड़ी बहनें, नानी और धाय ये सब माँ तुल्य हैं। माता के समान ही इनका आदर करना चाहिए। +: पुत्र को गर्भ में धारण करने के कारण माता धात्री कहलाती है। जन्म देने के कारण माँ जननी कहलाती है। पालन-पोषण करने के कारण माता अम्बा कहलाती है और सुयोग्य वीर को जन्म देने के कारण माँ वीरसू कहलाती है। +: मनुष्य को जो यह पांचभौतिक शरीर प्राप्त हुआ है, इसे माँ ने वैसे ही बनाया है जैसे अरणि से आग बनती है। +* एक माँ का हाथ कोमलता से बना होता है और बच्चे उसमे गहरी नीद में सोते है। विक्टर ह्यूगो +: अर्थ माता के समान गुरु नहीं । वेदव्यास +* मातृत्व कठिन है और लाभप्रद भी। ग्लोरिया एस्तिफैन +भगवान सभी जगह नहीं हो सकते इसलिए उसने माएं बनायीं। रुडयार्ड किपलिंग +* मातृत्व सारा प्रेम वही से आरम्भ और अंत होता है। राबर्ट ब्राउनिंग + + +शरीररुपी भवन को धारण करनेवाले) तीन उपस्तम्भ हैं; आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य । +: ब्रह्मचर्य के तप द्वारा देवता मृत्यु को मार भगाते हैं। +* मन, वाणी तथा शरीर से सदा सर्वत्र तथा सभी परिस्थितियों में सभी प्रकार के मैथुनों से अलग रहना ही ब्रह्मचर्य है। याज्ञवल्क्य +* जो इस ब्रह्मलोक को ब्रह्मचर्य के द्वारा जानते हैं, उन्हीं को यह ब्रह्मलोक प्राप्त होता है तथा उनकी सम्पूर्ण लोकों में यथेच्छ गति हो जाती है। छान्दोग्य उपनिषद् +* आपको ज्ञात हो कि आजीवन अखण्ड ब्रह्मचारी रहने वाले व्यक्ति के लिए इस संसार में कुछ भी अप्राप्य नहीं है। एक व्यक्ति चारों वेदों का ज्ञाता है तथा दूसरा व्यक्ति अखण्ड ब्रह्मचारी है। इन दोनों में पश्चादुक्त व्यक्ति (दूसरा व्यक्ति) ही पूर्वोक्त ब्रह्मचर्य रहित व्यक्ति से श्रेष्ठ है। महाभारत +* बुद्धिमान व्यक्ति को विवाहित जीवन से दूर रहना चाहिए जैसे कि वह जलते हुए कोयले का एक दहकता हुवा गर्त हो। सन्निकर्ष से संवेदन होता है, संवेदन से तृष्णा होती है और तृष्णा से अभिनिवेश होता है। सन्निकर्ष से विरत होने से जीव सभी पापमय जीवन धारण से बच जाता है। भगवान बुद्ध +* काम की सहज प्रवृत्ति जो प्रथम तो एक सामान्य लघूर्मि की भांति होती है, कुसंगति के कारण सागर का परिमाण धारण कर लेती है। नारद +* विषयासक्ति जीवन, कान्ति, बल, ओज, स्मृति, सम्पत्ति, कीर्ति, पवित्रता तथा भगवद्-भक्ति को नष्ट कर डालती है। भगवान श्रीकृष्ण + + +वेद प्राचीनतम हिन्दू धर्मग्रन्थ हैं। ये विश्व के सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं जो नष्ट होने से बचे हुए हैं। चार वेद हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद । +* किसी एक मनुष्य को स्वतंत्र राज्य का अधिकार कभी न दें परन्तु राज्य के समस्त कार्यों को शिष्ट जन की सभा के अधीन रखें। +* उनको ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, जो आलस्य का त्याग करके सदैव सत्कर्म के लिए प्रयासरत रहते हैं। +* मेघ हमें और हमारी प्रजा के लिए सुखकर हों। +* इस ग्राम (संसार) के सभी निवासी निरोगी और स्वस्थ हों। +* दान करनेवाले मनुष्यों का धन क्षीण नहीं होता, दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करनेवाला नहीं मिलता। +* मनुष्य अपनी परिस्थितियों का निर्माता आप है। जो जैसा सोच��ा है और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। +* हमारी बुद्धियाँ विविध प्रकार की हैं। मनुष्य के कर्म भी विविध प्रकार के हैं। +* जो अधर्माचरण से युक्त हिंसक मनुष्य है, उसको धन, राज्यश्री और उत्तम सामर्थ्य प्राप्त नहीं होता। इसलिए सबको न्याय के आचरण से ही धन खोजना चाहिए। +* जिन अध्यापकों के विद्यार्थी विद्वान, सुशील और धार्मिक होते हैं, वे ही अध्यापक प्रशंसनीय होते हैं। +* जैसे महौषधि और बाह्य प्राणवायु सबकी सदा पालन करते हैं, उसी प्रकार उत्तम राजा और वैद्यजन समस्त उपद्रव और रोगों से निरंतर रक्षा करते हैं। +* किसी भी मनुष्य को श्रेष्ठ वृक्ष या वनस्पति को नष्ट नहीं करना चाहिए। किन्तु उनमें जो दोष हो उनक निवारण कर उन्हें उत्तम सिद्ध करना चाहिए। +* राजपुरुषों को ऐसे मार्ग का निर्माण करना चाहिए जिनसे जाते हुये पथिकों को चोरों का भय न हो और द्रव्य का लाभ भी हो। +* मनुष्यों को चाहिए कि सब ऋतुओं में सुख कारक, धनधान्य से युक्त, वृक्ष, पुष्प, फल, शुद्ध वायु, जल तथा धार्मिक और धनाढ्य पुरुषों से युक्त गृह बनाकर वहां निवास करे, जिससे आरोग्य से सदा सुख बढ़े। +: ईश्वर के भक्त को न कोई नष्ट कर सकता है न जीत सकता है। +: मैं परमात्मा की स्तुति का पार नहीं पाता। +: जहां परमेश्वर की ज्योति है वहां सदा ही कल्याण है। +: ईश्वर आपका मित्र कभी नष्ट नहीं होता। +: वह सब लोकों का एक ही स्वामी है। +: इस सारे जगत में ईश्वर व्याप्त है। +: आत्मा को जानने पर मनुष्य मृत्यु से नहीं डरता। +: सब पशु पक्षी और प्राणीमात्र का भला हो। +: पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढावे और पाप की कमाई को मैं नष्ट कर देता हूं। +: प्राणियों की और से बेपरवाह मत हो। +: दानी का दान घटता नहीं। +: वह मित्र ही क्या जो अपने मित्र को सहायता नहीं देता। +: निरपराध की हिंसा करना भयंकर है। +: अपने ज्ञान के प्रकाश से हमारे अज्ञान को नष्ट करो। +: दबाने वाले शत्रु उपासक को नहीं दबा सकते। +: हम सुने हुए वेदोपदेश के विरुद्ध आचरण न करें । +: लोकोपकारहीन कञ्जूस को शोक घेर लेता है। +: मित्र की सहायता न करने वाला मित्र नहीं होता। +: मैं यह भूमि आर्यों को देता हूँ। +: जगत् का राजा एक ही है। +: एक ही परमेश्वर को विप्रजन अनेक नामों से पुकारते हैं। +: आकाश-भूमि को पैदा करने वाला देव एक ही है। +: तुझ महान की महिमा का सर्वत्र गान हो रहा है। +: प्रभु के मित्र को कोई मार या जीत नहीं सकता। +: प्रभु दुष्टों का विनाश कर आर्यजनों की रक्षा करता है। +: हमारी द्वेषवृत्तियों और हिंसकवृत्तियों को नष्ट कर। +: बहुत सन्तान वाले बहुत कष्ट पाते हैं। +: ईश्वर भक्त का तिरस्कार कोई नहीं कर सकता। +: सम्पूर्ण विद्याओं का आदि मूल तू ही है। +: दस्युओं को धुन डाल। +: वीर सन्तान उत्पन्न कर। +: शत्रु के ह्रदय में भय उत्पन्न कर दो। +: मित्र को मित्र की भलाई करनी चाहिये। +: बुरी संगत से मनुष्य अवनत होता है। +: गौ का मूल्य नहीं है। +: निन्दक सबसे निन्दित होते हैं। +: आर्य प्रकाश (ज्ञान) को प्राप्त करने वाला होता है। +: पीड़ितों की सहायता करने वाले हाथ ही उत्तम हैं। +: परस्पर लड़ने वाले मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। +: दुराचारी उत्तम सुख को मत प्राप्त करें। +: शत्रुओं को कुचल डालो। +: प्रभु हमारे दोपाये मनुष्यों और चौपाये पशुओं के लिए कल्याणकारी और सुखदायी हो। +: ब्रह्मचर्य रुपी तप के द्वारा राजा राष्ट्र का संरक्षण करता है। +: परमात्मा भौतिक इन्द्रियों और अविद्वानों का विषय नहीं है। +==वेदों पर महापुरुषों के विचार== +* वेदों में सारे विज्ञान सूक्ष्मरूप से विद्यमान हैं। पं. सत्यव्रत सामश्रमी अपने ‘त्रयी-चतुष्टय’ नामक ग्रन्थ में +* वेदों के आधार पर ही इस ग्रन्थ को बनाया गया है। यन्त्रसर्वस्व के ‘वैमानिक-प्रकरण’ में +* जब कभी भी मैने वेदों का कोई भाग पढ़ा है, मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि कोई अलौकिक और अनजान प्रकाश मुझे प्रकाशित कर रहा है। वेदों की महान शिक्षा में सम्प्रदायवाद का कोई स्पर्श नहीं है। यह युगों और सभी राष्ट्रीयताओं की है। वेद महान ज्ञान की प्राप्ति के राजपथ हैं। जब मैं इस राजपथ पर होता हूँ तब मुझे लगता है कि किसी ग्रीष्म की रात्रि को झिलमिलाते हुए स्वर्ग में हूँ। हेनरी डेविड थोरो Explore Hinduism P. 21. Quoted from Gewali, Salil (2013 Great Minds on India. New Delhi: Penguin Random House. +* वेद ज्ञान की पुस्तक है। इसमें प्रकृति, धर्म, प्रार्थना, सदाचार आदि विषयों की पुस्तकें सम्मिलित हैं। वेद का अर्थ है ज्ञान और वस्तुतः वेद ज्ञान-विज्ञान से ओत-प्रोत हैं। प्रसिद्ध पारसी विद्वान् फर्दून दादा चानजी +* कितनी आश्‍चर्यजनक सच्चाई है। सम्पूर्ण ईश्‍वरीय ज्ञानों में हिन्दुओं का ईश्‍वरीय ज्ञान वेद ही ऐसा है जिसके विचार वर्त्तमान विज्ञान से पूर्णरूपेण मिलते हैं। क्योकि वेद भी विज्ञानानुसार जगत् की मन्द और क्रमिक रचना का प्रतिपादन करते हैं। फ्रांस के विद्वान जैकालियट ने अपने ग्रन्थ 'द बाइबल इन इण्डिया' में +* केवल इसी देन (यजुर्वेद) के लिए पश्‍चिम पूर्व का ऋणी रहेगा। फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान वाल्टेयर +* अतः हमारे लिए इस परिणाम पर पहुंचना अनिवार्य है कि भारत में धार्मिक विचारों का किकास नहीं हुआ, अपितु ह्रास ही हुआ है, उत्थान नहीं अपितु पतन ही हुआ। इसलिए हम यह परिणाम निकालने में न्यायशील हैं कि वैदिक आर्यों के उच्चतर और पवित्रतर विचार एक प्रारम्भिक ईश्‍वरीय ज्ञान का परिणाम थे। ईसाई पादरी मौरिस फिलिप +* यदि भारत की कोई बाइबल संकलित की जाए तो उसमें वेद, उपनिषदें और भगवत्गीता मानवीय आत्मा के हिमालय के समान सबसे ऊपर उठे हुए ग्रन्थ होंगे। जे. मास्करो (J. Mascaro) +* मुझे आशा है, मैं उस कार्य (वेदों के सम्पादन) को पूर्ण कर दूँगा। यद्यपि में उसे देखने के लिए जीवित नहीं रहूंगा, परन्तु मुझे पूर्ण निश्‍चय है कि मेरा यह वेदों का अनुवाद भारत के भाग्य और लाखों भारतीयों के आत्मविश्‍वास पर एक वज्र-प्रहार होगा। वेद उनके धर्म का मूल है और मूल को दिखा देना, उससे पिछले तीन सहस्र वर्षों में जो कुछ निकला है, उसको मूलसहित उखाड़ फेंकने का सबसे उत्तम प्रकार है। मैक्समूलर + + +: क्षमा निर्बलों का बल है, क्षमा बलवानों का आभूषण है, क्षमा ने इस विश्व को वश में किया हुआ है, क्षमा से कौन सा कार्य सिद्ध नहीं हो सकता है? +: क्षमाशील पुरुष का केवल एक दोष है, दूसरा कोई दोष नहीं है। (क्षमाशील पुरुष में एकमात्र दोष यह है कि) लोग क्षमाशील पुरुष को अशक्त (असमर्थ) मानते हैं। +: किन्तु क्षमाशील पुरुष का वह दोष नहीं मानना चाहिये, क्योंकि क्षमा बहुत बड़ा बल है। क्षमा असमर्थ मनुष्योंका गुण तथा समर्थोंका भूषण है। +: इस संसार में क्षमा द्वारा सभी लोग वश में हो जाते हैं। क्षमा से क्या सिद्ध नहीं होता जिस व्यक्त्ति के हाथ में क्षमारूपी कडग (शक्त्ति) है दुर्जन उसका क्या कर सकता है? +: धर्म ही एकमात्र महाकल्याणकारी है। एकमात्र क्षमा ही शान्ति का सर्वोत्तम उपाय है। एक विद्या ही संतोष देने वाली और एकमात्र अहिंसा ही सुख प्रदान करने वाली है। +: रहीम कहते हैं कि बड़ों का कर्तव्य है कि वे क्षमा करें। छोटे लोगों की प्रवृत्ति उत्पात करने की होती है। भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु को लात मारी, विष्णु ने इस कृत्य पर भृगु को क्षमा कर दिया। इससे विष्णु का क्या बिगड़ा? +* दान को सर्वश��रेष्ठ बनाना है तो क्षमादान करना सीखो। चार्ल्स बक्सन +* क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहाँ प्रतिहिंसा हिंसा पर ही आघात कर सकती है, उदारता पर नहीं। सेठ गोविन्ददास +* जिसे पश्चाताप न हो उसे क्षमा कर देना पानी पर लकीर खींचने की तरह निरर्थक है। जापानी लोकोक्ति +* जो लोग बुराई का बदला लेते है, बुद्धिमान उनका सम्मान नहीं करते, किन्तु जो अपने शत्रुओं को क्षमा कर देते है, वे स्वर्ग के अधिकारी समझे जाते है। तिरुवल्लुवर +* क्षमा मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ तथा सर्वोच्च गुण है, क्षमा दंड देने के समान है। बेरन +* दुष्टों का बल हिंसा है, राजाओ का बल दंड है और गुणवानों का क्षमा है। महाभारत +* क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है, वह सब कुछ क्षमा क्षमा करने योग्य हो जाता है। वेदव्यास +* संसार में मानव के लिए क्षमा एक अलंकार है। वाल्मीकि +* क्षमा तेजस्वी पुरुषों का तेज है, क्षमा तपस्वियों का ब्रह्म है, क्षमा सत्यवादी पुरुषों का सत्य है। क्षमा यज्ञ है और क्षमा (मनोविग्रह) है। वेदव्यास +* वही साधुता है कि स्वयं समर्थ होने पर क्षमाभाव रखे। भागवत +* क्षमा कर देना दुश्मन पर विजय पा लेना है। हजरत अली +* मित्र क्षमा नहीं किये जाते, शत्रु को क्षमा भले ही मिल जाए। सेंटल्यूक +* क्षमा अशक्तों के लिए गुण है और समर्थवान के लिए भूषण है। वेदव्यास +* यदि कोई दुर्बल मनुष्य अपमान करे तो उसे क्षमा कर दो, क्योंकि क्षमा करना ही वीरो का काम है, परन्तु यदि अपमान करने वाला बलवान हो तो उसको अवश्य दंड दो। गुरु गोविन्द सिंह +* क्षमा से बढ़कर और किसी बात में पाप को पुण्य बनाने की शक्ति नहीं है। जयशंकर प्रसाद +* क्षमा दंड से अधिक पुरुषोचित है। महात्मा गांधी +* अच्छी तरह जांच-पड़ताल करने पर यदि यह सिद्ध हो जाए कि अमुक अपराध अनजाने में ही हो गया है, तो उसे क्षमा के ही योग्य बताया गया है। वेदव्यास +* क्षमा दंड से बड़ी है। दंड देता है मानव, किन्तु क्षमा प्राप्त होती है देवता से। दंड में उल्लास है पर शांति नहीं और क्षमा में शांति भी है और आनंद भी। अज्ञात +* यदि मानवो में पृथ्वी के समान क्षमाशील पुरुष न हो तो मानवों में कभी संधि हो ही नही सकती, क्योंकि झगडे की जड़ तो क्रोध ही है। वेदव्यास +* क्षमा पर मनुष्य का अधिकार है, वह पशु के पास नहीं मिलती। प्रतिहिंसा पा���व धर्म है। जयशंकर प्रसाद +* जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर की ओर से पुरस्कार मिलता है। कुरान +* जो मनुष्य नारी को क्षमा नहीं कर सकता, उसे उसके महान गुणों का उपयोग करने का अवसर कभी प्राप्त न होगा। खलील जिब्रान +* क्षमावानों के लिए यह लोक है। क्षमावानों के लिए ही परलोक है। क्षमाशील पुरुष इस जगत में सम्मान और परलोक में उत्तम गति पाते है। वेदव्यास +* क्षमा करने का मतलब है जो बीत गया उसे जाने देना। गेराल्ड जेम्पोस्की +* अपने दुश्मनों को हमेशा माफ़ कर दीजिये। उन्हें इससे अधिक और कुछ नहीं परेशान कर सकता। आस्कर वाइल्ड +* क्षमा करना कार्यवाही और स्वतंत्रता के लिए महत्त्वपूर्ण है। हाना एरेंद्त +* माफ करने के लिए एक व्यक्ति की ज़रुरत होती है, पुनः संगठित होने के लिए दो की। लुईस बी. स्मेडेस +* माफ़ करने का मतलब किसी कैदी को आज़ाद करना है और ये जानना है कि आप ही वो कैदी थे। लुईस बी.स्मेडेस +* कमजोर व्यक्ति कभी क्षमा नहीं कर सकता, क्षमा करना शक्तिशाली व्यक्ति का गुण है। महात्मा गाँधी +* बिना क्षमा के कोई भविष्य नहीं है। देस्मोंड टूटू +* जब आप माफ़ करते हैं तब आप भूत को नहीं बदलते हैं– लेकिन आप निश्चित रूप से भविष्य को बदल देते हैं। बर्नार्ड मेल्त्ज़र +* ओरों में बहुत कुछ क्षमा कर दीजिये, खुद में कुछ भी नहीं। औसोनीयास +* क्षमा एक विचित्र चीज है। यह ह्रदय को सुकून देती है और डंक को ठंडा करती है। विलीयम आर्थर वार्ड +* माफ़ करना बहादुरों का गुण है। इंदिरा गाँधी +* क्षमा विश्वास की तरह है। आपको इसे जीवित रखना होता है। मैसन कूली +* क्षमा प्रेम का अंतिम रूप है। रीन्होल्ड नेबर +* दूसरों की गलतियों के लिए क्षमा करना बहुत आसान है, उन्हें अपनी गलतियाँ देखने पर क्षमा करने के लिए कहीं अधिक साहस की आवश्यकता होती है। जेस्सिमिन वेस्ट +* गलतीयां हमेशा क्षम्य होती हैं, यदि व्यक्ति में उन्हें स्वीकार करने का साहस हो। ब्रूस ली +* धन्यवाद ईश्वर, इस अच्छे जीवन के लिए, और यदि हम इससे इतना प्रेम ना करें तो हमें क्षमा कर दीजियेगा। गैरीसन कील्लोर +* जब मैं छोटा था तो मैं हर रोज़ भगवान को नयी साइकिल के लिए पूजता था। तब मुझे एहसास हुआ कि भगवान इस तरह काम नहीं करे इसलिए मैंने एक साइकिल चुराई और उनसे क्षमा करने के लिए कह दिया। एमो फिलिप्स +* बदला लेने के बाद दुश्मन को क्षमा कर देना कहीं अधिक आसान ��ोता है। ओलिन मिलर +* अगर हर एक चीज में कुछ क्षमा करने को है तो कुछ निंदा करने को भी है। फ्रेडरिक नीतजे +* समझने का अर्थ है क्षमा कर देना, खुद को भी। एलेक्जेंडर चेज +* वो जो दूसरों को क्षमा नहीं कर सकता वो उस पुल को तोड़ देता है जिसे उसे पार करना था, क्योंकि हर व्यक्ति को क्षमा पाने की आवश्यकता होती है। थोमस फुलर +* कभी भी अपने पास रखे तीन संसाधनों को मत भूलिए: प्रेम, प्रार्थना, और क्षमा। जैक्सन ब्राउन, जे आर +* माफ़ी मांगने के लिए व्यक्ति को मजबूत होना पड़ता है और एक मजबूत व्यक्ति ही माफ़ कर सकता है। अज्ञात +* हमेशा अपने शत्रुओं को क्षमा कर दो- ये ही उन्हें सबसे ज्यादा परेशान करता है। पामेला दरंजो +* जब आप किसी को क्षमा करते हैं तो आप कभी बीते समय को नहीं बदलते लेकिन यकीकन आप भविष्य को बदल सकते हैं। बर्नार्ड मेल्त्ज़र +* एक गलती करने में एक क्षण लगता है लेकिन उस गलती को भूलने की कोशिश में पूरा जीवन बीत जाता है। जेन्न +* आपको लोगों को क्षमा करना होगा, इसलिए नहीं कि वे इस के योग्य हैं बल्कि इसलिए कि आप उनसे मुक्ति के योग्य हैं। डॉ.फिल +* किसी को क्षमा करने से इनकार करना खुद विश पीकर दुसरे के मरने का इंतज़ार करने जैसा है। स्टेफनी +* ऐसा क्यूँ हैं कि जिस व्यक्ति को हम नाममात्र के लिए जानते हैं उसे क्षमा करना बहुत आसान होता है और जिस व्यक्ति से हम ढंग से परिचित होते हैं उसे माफ़ करना मुश्किल होता है। अज्ञात +* हम में से अधिकतर लोग क्षमा कर देते हैं और भूल भी जाते हैं, हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि दूसरा व्यक्ति ये न भूले कि हमने उसे क्षमा किया है। इवेर्ण बल +* पूर्ण सच्चाई जानने के बाद किया कार्य सच्चे रूप में क्षमा करना नहीं है, क्षमा करना तो एक प्रवृति है जिसके बाद आप हर क्षण में प्रवेश कर सकते हैं। डेविड रिज +* क्षमा वो इत्र है जिसे गुलाब मसले जाने के बाद एडी पर छोड़ देता है। अज्ञात +* वो पाना जिसके आप लायक नहीं है, कृपा कहलाता है। और वो न पा पाना जिसके कि आप लायक हैं दया कहलाता है। जॉन अर्नोत्त +* क्षमा प्रतिशोध से बेहतर है, क्षमा करना विनम्र व्यवहार का सूचक है लेकिन प्रतिशोध असभ्य व्यवहार का सूचक है। एपिक्टेतुस +* पुराने निशानों को खरोंचना और उनका हिसाब रखना, आपको हमेशा जो आप हैं उससे कम ही बनाता है। मल्कोल्म फोर्ब्स +* अगर एक अच्छा व्यक्ति आपके साथ कुछ बुरा करता है तो ऐसे बर्ताव कीजिये जैसे आपने ध्यान ही नहीं दिया। वो व्यक्ति जरूर इस बात पर ध्यान देगा और आगे से आपके शक के दायरे में ही नहीं रहेगा। जोहान्न वोल्फगांग वों गेटे +* किसी को क्षमा करना या किसी से क्षमा पा लेने का अवर्णनीय आनंद एक ऐसा हर्षोन्माद विकसित करता है जो कि ईश्वर के प्रति ईर्ष्या को भी जगा सकता है। एल्बर्ट हब्बार्ड +* अपने आप को क्षमा कर देना साहस का सर्वोच्च कार्य है। उन सब कार्यों के लिए जो मैं नहीं कर सकता था लेकिन मैंने किया। अज्ञात +* क्षमा कोई प्रासंगिक कृत्य नहीं है। ये तो एक स्थायी प्रवृति है। मार्टिन लूथर किंग +* रात में सोने से पहले हर किसी को हर किसी बात के लिए क्षमा कर देना ही एक लम्बे और सुखदायक जीवन का रहस्य है। अन्न लैंडरस +* क्षमाशीलता आपके ह्रदय का अर्थ प्रबन्धन है…क्षमा क्रोध से होने वाले खर्चे को बचाता है.घृणा के मूल्य को कम करता है और उत्साह की फ़िज़ूलखर्ची से बचाता है हन्नाह मोरे +* किसी भी व्यक्ति को उसके और अपने विचार में नीचा दिखाए बिना क्षमा कर देना, एक बहुत ही संवेदनशील कार्य है। हनेरी व्हीलर शो +* जब आप उन लोगों को जिन्होंने आपको ठेस पहुंचाई हो, याद करके उनके भी भले की कामना कर पायें, वहीँ से क्षमा का प्रारंभ होता है। लेविस स्मेदेस +* जीवन कभी भी आसान और क्षमाशील नहीं होता, हम ही समय के साथ मजबूत और लचीले हो जाते हैं। स्टीव मराबोली +* सिर्फ दो बातें लोग एक दुसरे के बारे में याद रखते हैं.वो साथ रहते हैं, इसलिए नहीं क्यूंकि वे भूल जाते हैं, बल्कि इसलिए कि वे क्षमा कर देते हैं। डेमी मूर +* माफ़ी मांगने का मतलब ये नहीं है कि आप गलत हैं और दूसरा व्यक्ति सही है। इसका मतलब ये है कि आप अपने अहम् से ज्यादा अपने सम्बंधों की कदर करते हैं। अज्ञात +* क्षमा एक ऐसा तोहफा है जो आप स्वयं को देते हैं। रियल लाइव प्रेचेर +* सुबह पछतावे के साथ उठाने के लिए जीवन बहुत ही छोटा है, अतः उन लोगों से प्यार कीजिये जिन्होंने आपके साथ अच्छा बर्ताव किया, उन लोगों को क्षमा कर दीजिये जिन्होंने अच्छा बर्ताव नहीं किया और ऐसा विश्वास रखिये कि सभी कुछ किसी कारण से होता है। अज्ञात +* अस्थायी क्रोध को स्थायी भूल बनाने की जरूरत नहीं है। जितना जल्दी हो सके क्षमा कीजिये, आगे बढिए और कभी भी मुस्कराना और विश्वास करना मत भूलिए। जेसिका अगुइलर + + +: अर्थ जो पुरुष 'विहस्य' और 'विहाय' इन दोनों शब्दों को षष्ठी और च��ुर्थी समझता है अहम्' शब्द को द्वितीया समझता है, उसकी मैं कैसे पत्नी (द्वितीया) बन सकती हूँ? +: तात्पर्य केवल व्याकरणशास्त्र का ही विचार करें, तो उसका भी कोई अन्त ही नहीं है। मानव की सम्पूर्ण आयु भी इसके अध्ययन के लिए अल्प है। जो सारभूत है, उसी का अध्ययन करना चाहिए, जैसे नीर-क्षीर विवेक से हंस इन दोनों के मिश्रण से केवल क्षीर को ही अलग करके पीता है। +: संसार का कोई भी ज्ञान शब्द से ही प्रकाशित होता है, शब्द के बाह्य तथा अन्तः स्वरुप को समझने के लिए तत्तत् वैयाकरणों ने अनेक शब्दानुशासनों की रचना की है। +राम कहते हैं कि) ऐसा लगता है कि इन्होंने (हनुमान ने) अवश्य ही सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक प्रकर से अध्ययन किया है क्योंकि इनके द्वारा उच्चारित बहुत से शब्दों में कोई भी त्रुटि नहीं है। +: जो पाठक शब्द के समस्त अर्थों को व्याकृत करता है उसे वैयाकरण कहते हैं। शब्दों को व्याकृत करने वाला शास्त्र ही व्याकरण कहलाता है। +* पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है। लेनिनग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी +* पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं। कोल ब्रुक +* संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है। यह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है। सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हण्डर +* पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा। प्रो॰ मोनियर विलियम्स + + +अपनी भाषा की उन्नति सभी उन्नति की जड़ है। अपनी भाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा नहीं मित सकती।) +* और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात। +* विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार। +: विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात॥ +* बिना मातृभाषा के राष्ट्र का क्या अर्थ है जैक ऐडवर्ड्स +* यदि अंग्रेजी-शिक्षित लोग अपनी मातृभाषा की उपेक्षा करते हैं, जैसा कि वे पहले से करते आ रहे हैं और अब भी कर रहे हैं, तो भाषायी भुखमरी आ जायेगी। महात्मा गांधी +* पहले यह सुनिश्चित करो कि तुम्हारे बच्चे को अपनी मातृभाषा के मूलतत्वों की शिक्षा मिल जाय, और तब उन्हें शिक्षा के उच्च शाखाओं की तरफ जाने दो। Brigham Young +* हमे चाहिये कि हम विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में दें, नहीं तो विज्ञान शिक्षा एक ऐसा खेल बन जायेगा जिसमें हर कोई भाग नहीं ले सकता। सी वी रमण +* अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हम सबके लिये शिक्षा में मातृभाषा के महत्व के ध्वज को ऊँचा करने, सीखने की गुणवत्ता बढ़ाने, तथा जहाँ हम नहीं पहुँचे हैं उस स्थान पर पहुँचने का क्षण है। इरीना बोकोवा, यूनेस्को की महानिदेशिका +* यह अच्छी बात है कि आप अपनी अच्छी अंग्रेजी पर गर्व करते हैं। लेकिन अपने मातृभाषा में कमजोर होने पर गर्व मत कीजिये। धरती के मैल ही ऐसा करते हैं। मानस राव + + +इस विश्व में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जो धन के द्वारा प्राप्त नहीं की जा सकती। अतएव बुद्धिमान् व्यक्ति को प्रयत्नपूर्वक धन का ही उपार्जन करना चाहिए। +जिसके पास धन है उसी के सभी भाई-बन्धु, सगे-सम्बन्धी हैं। जिसके पास धन है वही इन इस लोक में पुरुष है और जिसके पास धन है वही विद्वान् है। +इस विश्व में, ऐसी कोई विद्या, ऐसा कोई दान, ऐसा कोई शिल्प, ऐसी कोई कला एवं ऐसी कोई दृढ़ता, शूरता या स्थिति नहीं है जिसका वर्णन याचकगण धनिकों की प्रशंसा करते समय न करते हों। +इस संसार में पराये भी धनी व्यक्ति के लिये सुजन बन जाते हैं और दरिद्र व्यक्तियों के स्वजन भी उसके प्रति दुर्जनता का ही व्यवहार करते हैं। +विभिन्न स्रोतों से जलसञ्चय के द्वारा जिस प्रकार समस्त नदियाँ पर्वत से स्वयं निकलती हैं, उसी प्रकार विभिन्न उपायों के द्वारा एकत्रित धन से मनुष्य के सम्पूर्ण कार्य स्वतः सम्पन्न हो जाते हैं। +यह धन का ही प्रभाव है कि अपूज्य मनुष्य भी पूजा जाता है, जहाँ जाना कठिन है वहाँ भी व्ह चला जाता है, और अवन्द्य व्यक्ति भी वन्द्य हो जाता है। +: भोजन से सशक्त इन्द्रियाँ जिस प्रकार शरीर के समस्त कार्यों को स्वतः करती रहती हैं, उसी प्रकार मनुष्य की समस्त आवश्यकतायें भी धन से स्वतः पूर्ण होती हैं। अतएव धन को सब कुछ साधने वाला कहा गया है। +धन के प्रति आसक्त व्यक्ति श्मशान की भी उपासना करता है और निर्धन माता-पिता को छोड़कर अन्यत्र चला जाता है। +धनसम्पन्न व्यक्ति वृद्ध होने पर भी तरुण बना रहता है और तरुण व्यक्ति भी निर्धनता के कारण वृद्ध हो जाता है। +* पञ्चतन्त्र एक नीति शास्त्र या नीति ग्रन्थ है- नीति का अर्थ जीवन में बुद्धि पूर्वक व्यवहार करना है। चतुरता और धूर्तता नहीं, नैतिक जीवन वह जीवन है जिसमें मनुष्य की समस्त शक्तियों और सम्भावनाओं का विकास हो अर्थात��� एक ऐसे जीवन की प्राप्ति हो जिसमें आत्मरक्षा, धन-समृद्धि, सत्कर्म, मित्रता एवं विद्या की प्राप्ति हो सके और इनका इस प्रकार समन्वय किया गया हो कि जिससे आनंद की प्राप्ति हो सके, इसी प्रकार के जीवन की प्राप्ति के लिए, पंचतन्त्र में चतुर एवं बुद्धिमान पशु-पक्षियों के कार्य व्यापारों से सम्बद्ध कहानियां ग्रथित की गई हैं। पंचतन्त्र की परम्परा के अनुसार भी इसकी रचना एक राजा के उन्मार्गगामी पुत्रों की शिक्षा के लिए की गई है और लेखक इसमें पूर्ण सफल रहा है। डॉ॰ वासुदेव शरण अग्रवाल पंचतन्त्र के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए + + +अर्थात् जिससे शरीर में थकावट पैदा हो, उसे 'व्यायाम' कहते हैं। +: अर्थात् जो भी शरीर की चेष्टा (कर्म) अपने मन को अच्छी लगे, जो शरीर को स्थिरता प्रदान करती हो और बल को बढ़ाती हो, उसे 'व्यायाम' कहते हैं। उसे मात्रा के अनुसार करना चाहिए। +वातज तथा पित्तज रोगों से पीड़ित रोगी, बालक, वृद्ध तथा अजीर्णरोग से पीड़ित मनुष्य 'व्यायाम' न करें। +: अर्थात् सोलह वर्ष तक की अवस्था वाला बालक कहा जाता है और सत्तर वर्ष से ऊपर की अवस्था वाला वृद्ध होता है। +: बलवान् तथा स्निग्ध (घी-तेल आदि से बने हुए तथा बादाम, काजू आदि) पदार्थों को खाने वाले मनुष्य शीतकाल (हेमन्त-शिशिर ऋतु) में एवं वसन्त ऋतु में आधी शक्ति भर व्यायाम करें, इससे अन्य ऋतुओं में और भी कम व्यायाम करें। +: व्यायाम कर लेने के बाद सम्पूर्ण शरीर का अनुलोम सुखद मर्दन कर्म चारों ओर से करना चाहिए अथवा क्रमशः सभी अंगों को मसलना चाहिए। +* सुश्रुत के टीकाकार जैज्जट का कथन है कि मर्दन (मसलना) यह क्रिया भी व्यायाम का ही एक अंग है। यह मर्दन कर्म भी ऐसा न हो जो शरीर को कष्टकारक हो, अतएव महर्षि वाग्भट ने इसका एक विशेषण 'अनुसुखं' दिया है अर्थात् जो सुख के अनुकूल हो। +: अतिव्यायाम से हानि-अधिक व्यायाम करने से प्यास का लगना, क्षय (राजयक्ष्मा प्रतमक श्वास, रक्तपित्त, श्रम (थकावट क्लम (मानसिक दुर्बलता या सुस्ती कास, ज्वर तथा छर्दि (वमन) आदि रोग हो जाते हैं अथवा हो सकते हैं। +: यायाम, जागरण, मार्गगमन, मैथुन, हँसना, बोलना (जोर-जोर से चिल्लाना) तथा साहसिक कार्यों का अधिक सेवन करने से शक्ति युक्त मनुष्य का भी उस प्रकार विनाश हो जाता है जैसे सिंह अपने द्वारा मारे हुए हाथी को खींचकर ले जाने का दुःसाहस करता है, तो वह स्वयं मर जाता है। +: व��यायाम के बाद उबटन करना चाहिए, इससे कफ का नाश होता है। यह मेदोधातु को पिघला कर उसे सुखा देता है, अंगों को स्थिर (मजबूत) करता है और त्वचा को कान्तियुक्त करता है। +: उष्ण-शीत जलप्रयोग-उष्ण (गरम) जल से अधःकाय (गरदन से नीचे के शरीर) का परिषेक (स्नान) बल को बढाता है। यदि उसी (गरम जल) से सिर को धोया जाय अर्थात् गरम पानी से शिरःस्नान किया जाय तो इससे बालों तथा आँखों की शक्ति घटती है। +: अर्दित (मुखप्रदेश का लकवा नेत्ररोग, मुखरोग, कर्णरोग, अतिसार, आध्मान (अफरा पीनस, अजीर्ण रोगों में तथा भोजन करने के तत्काल बाद स्नान करना हानिकारक होता है। +: श्रम, थकावट, ग्लानि (दुःख प्यास, शीत (जाड़ा उष्णता (गर्मी आदि सहने की शक्ति व्यायाम से ही आती है और परम आरोग्य अर्थात् स्वास्थ्य की प्राप्ति भी व्यायाम से ही होती है। +: अधिक स्थूलता को दूर करने के लिए व्यायाम से बढ़कर कोई और औषधि नहीं है, व्यायामी मनुष्य से उसके शत्रु सर्वदा डरते हैं और उसे दुःख नहीं देते । +: व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं। +: व्यायाम करने वाला मनुष्य गरिष्ठ, जला हुआ अथवा कच्चा किसी प्रकार का भी खराब भोजन क्यों न हो, चाहे उसकी प्रकृति के भी विरुद्ध हो, भलीभांति पचा जाता है और कुछ भी हानि नहीं पहुंचाता । +: व्यायाम से शरीर बढ़ता है, शरीर की कान्ति वा सुन्दरता बढ़ती है, शरीर के सब अंग सुड़ौल होते हैं, पाचनशक्ति बढ़ती है, आलस्य दूर भागता है, शरीर दृढ़ और हल्का होकर स्फूर्ति आती है। तीनों दोषों की (मृजा) शुद्धि होती है। +: व्यायामी मनुष्य पर बुढ़ापा सहसा आक्रमण नहीं करता, व्यायामी पुरुष का शरीर और हाड़-मांस सब स्थिर होते हैं। + + +उद्यम से ही कार्य पूरा होते हैं, केवल इच्छ करने से नहीं। सोये हुए शेर के मुँह में हिरण प्रवेश नहीं करते। +: निरक्षर लोगों से ग्रन्थ पढ़ने वाले श्रेष्ठ हैं तथा उनसे भी अधिक ग्रन्थ को समझने वाले श्रेष्ठ हैं। ग्रन्थ समझने वालों से भी अधिक आत्मज्ञानी श्रेष्ठ हैं तथा उनसे भी अधिक ग्रंथ से प्राप्त ज्ञान को उपयोग में लाने वाले श्रेष्ठ हैं। +:लक्ष्मी कर्म करने वाले पुरुषरूपी सिंह के पास आती है देवता (भाग्य) देने वाला हैं" ऐसा तो कायर पुरुष कहते हैं। इसलिए देव (भाग्य) को छोड़ कर अपनी शक्ति से पौरुष (कर्म) करो, प्रयत्न करने पर भी यदि कार्य सिद्ध नहीं होता है तो देखो क्या समस्या है (कोई और समस्या तो नहीं?)। +: परिश्रमी व्यक्ति के लिए मेरु पर्वत अधिक ऊँचा नहीं है पाताल बहुत नीचा नहीं है और महासागर बहुत विशाल नहीं है॥ +जो नहीं घटित होने वाला है वह होगा नहीं, यदि कुछ होने वाला हो तो वह टलेगा नहीं” इस विषरूपी चिंता (विचारणा) के शमन हेतु अमुक (आगे वर्णित) औषधि का सेवन क्यों नहीं किया जाता है ? +और औषधि यह है दैव यानी भाग्य का विचार करके व्यक्ति को कार्य-संपादन का अपना प्रयास त्याग नहीं देना चाहिए । भला समुचित प्रयास के बिना कौन तिलों से तेल प्राप्त कर सकता है ? +जिस प्रकार केवल एक पहिये से रथ चल नहीं सकता, उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना भाग्य भी सिद्ध नहीं होता। + + +: जब संकट आ जाते हैं तब परिच्छेद (अच्छी तरह से विश्लेषण करके तथा सोच समझकर काम करने) में ही पाण्डित्य है। बिना सोचे समझे काम करने वालों पर हर कदम पर संकट आते रहते हैं। +यदि बात को) स्पष्ट रूप से कहा जाय तो उसे पशु भी समझ लेते हैं। घोड़े एवं हाथी जैसे पशु भी (स्पष्ट रूप से दिये गये आदेश को ग्रहण कर उसका पालन करते हैं। लेकिन पण्डित तो अनकही बात को भी समझ लेता है। दूसरे के संकेत मात्र को समझ लेना ही बुद्धि का फल है। अर्थात बुद्धिमान व्यक्ति थोड़ा सा संकेत मिलने पर भी सारी बात समझ लेता है। +: अर्थ विज्ञ जन झट दूसरे का मतलब समझ जाते हैं। +: देशाटन, बुद्धिमान से मैत्री, वारांगना (गणिका राजसभा में प्रवेश, और शास्त्रों का परिशीलन – ये पाँच चतुराई के मूल है । +: जो बाह्य चिह्नों को देखता है, वह बालबुद्धि का है; जो वृत्ति का विचार करता है, वह मध्यम बुद्धि का है; और जो सर्वयत्न से आगम तत्त्व की परीक्षा करता है, वह बुध/ज्ञानी है । +: अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान, उद्योग, दुःख सहने की शक्ति और धर्म में स्थिरता ये गुण जिस मनुष्य को पुरुषार्थ से च्युत नहीं करते, वही पण्डित कहलाता है। +: जो अच्छे कर्मों का सेवन करता और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो आस्तिक और श्रद्धालु है, उसके वे सद्गुण पण्डित होने के लक्षण हैं। +: दूसरे लोग जिसके कर्तव्य, सलाह और पहले से किये हुए विचार को नहीं जानते बल्कि काम पूरा होनेपर ही जानते हैं, वही पण्डित कहलाता है। +: जिसकी लौकिक बुद्धि धर्म और अर्थ का ही अनुसरण करती है और जो भोग को छोड़कर पुरुषार्थ का ही वरण करता है, वहीं पण्डित कहलाता है। +: विवेकपूर्ण बुद्धिवाले पुरुष शक्तिके अनुसार काम करनेकी इच्छा रखते हैं और करते भी हैं तथाकिसी वस्तुको तुच्छ समझकरउसकी अवहेलना नहीं करते। +: विद्वान् पुरुष विषय को देर तक सुनाता है, किन्तु शीघ्र ही समझ लेता है, समझकर कर्तव्यबुद्धि से पुरुषार्थ में प्रवृत्त होता है- कामना से नहीं । विना पूछे दूसरे के विषय में व्यर्थ कोई बात नहीं कहता है। उसका वह स्वभाव पण्डित की मुख्य पहचान है। +: पण्डितों जैसी बुद्धि रखनेवाले मनुष्य दुर्लभ वस्तु की कामना नहीं करते, खोयी हुई वस्तु के विषय में शोक करना नहीं चाहते और विपत्ति में पड़कर घबराते नहीं हैं। +: जो पहले निश्चय करके फिर कार्य का आरम्भ करता है, कार्य के बीच में नहीं रुकता, समय को व्यर्थ नहीं जाने देता, और चित्त को वश में रखता है। +: भरतकुलभूषण! पण्डितजन श्रेष्ठकर्मों में रुचि रखते हैं, उन्नति के कार्य करते हैं, तथा भलाई करने वालों में दोष नहीं निकालते। +: जो अपना आदर होने पर हर्ष के मारे फूल नहीं जाता, अनादर से संतप्त नहीं होता तथा गंगाजी के ह्रद (गहरे गर्त) – के सम्मान जिसके चित्त को क्षोषुभ नहीं होता, वही पण्डित कहलाता है। +: जो सम्पूर्ण भौतिक पदार्थों की वास्तविकता का ज्ञान रखनेवाला, सब कार्यों के करने का ढंग जानने वाला तथा मनुष्यों में सबसे बढ़कर उपाय का जानकार है, वह मनुष्य पण्डित कहलाता है। +: जिसकी वाणी कहीं रुकती नहीं जो विचित्र ढंग से बातचीत करता है, तर्क में निपुण और प्रतिभाशाली है तथा जो ग्रन्थ के तात्पर्य को शीघ्र बता सक्ता है, वह पण्डित कहलाता है। +: जिसकी विद्या बुद्धिका अनुसरण करती है, और बुद्धि विद्या का, तथा जो शिष्ट पुरुषों की मर्यादा का उल्लंघन नही करता, वही पण्डित की संज्ञा पा सकता है। +: जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर भी उद्दण्डतापूर्वक नही चलता, वह पण्डित कहलाता है। + + +: अर्थ- मनुष्य स्वतन्त्रता से सुख को प्राप्त करता है, स्वतन्त्रता से परम तत्व को प्राप्त करता है, स्वतन्त्रता से निर्वृत्ति (शान्ति) को प्राप्त करता है, स्वतन्त्रता से परम पद को प्राप्त करता है। +: पराधीन व्यक्ति को सपने में भी सुख नहीं मिलता। +* अपने देश की आजादी के लिये मर-मिटना हमारे खून में ही लिखा होता है। हमने बहुत से महान लोगो का बलिदान देकर इस आज़ादी को हासिल किया है और हमें अपनी ताकत के बाल ���र ही इस आजादी को कायम रखना है। सुभाषचंद्र बोस +* स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मै इसे लेकर रहूँगा। बाल गंगाधर तिलक +* स्वतंत्रता जन्मसिद्ध अधिकार नहीं, कर्मसिद्ध अधिकार है। विनोवा भावे +* शिक्षा, स्वतंत्रता के सुनहरे दरवाजे की चाबी है। जॉर्ज वाशिंगटन +* सभी मनुष्यों में स्वतंत्रता बिना शिक्षा के बचा कर नहीं रखी जा सकती। जॉन एडम्स +* अभिव्यक्ति की आजादी क्या है? आलोचना की आजादी के बिना कोई आजादी नहीं हो सकती। सलमान रुश्दी +* असली हीरो वह होता है जो आजादी के साथ आई नयी जिम्मेदारियों को समझता है। बौब +* आज़ादी एक उग्र खुराक है और यदि आप इसे अपनी युवावस्था में लेते हैं तो यह आपके दिमाग पर उसी तरह का प्रभाव डालेगा जैसा कि युवावस्था में शराब करती है। यह कोई मायने नहीं रखता की इसका स्वाद हमेशा आकर्षक हो। यह एक व्यसन है और एक खुराक लेने के बाद भी आपकी और लेने की इच्छा होगी। माया एंजिलो +* आजादी कभी मुफ्त नहीं मिलती। इसमें जोखिम उठाना पड़ता है। नसीम निकोलस तालेब +* आज़ादी की रक्षा करना केवल सैनिकों ही काम नहीं है। बल्कि पूरे देश को मजबूत होना होगा। लाल बहादूर शास्त्री +* आजादी केवल दो तरह की होती है- पहली, धनवानों और समर्थों की आजादी और दूसरी उन कलाकारों और सन्यासियों की आजादी जिन्होंने धन-संपदा का त्याग कर दिया हो। एनैस निंस +* आजादी को हमें अपना मनचाहा करने के अवसर के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसमें हमें वह करने का अवसर मिलता है जिसे किया जाना उचित है। पीटर मार्शल +* आजादी मनमाना करने की ताकत नहीं बल्कि कर्तव्य पूरे करने का अधिकार है। जॉन डैलबर्ग-एक्टन +* आजादी में यकीन रखने वाला व्यक्ति अपनी आजादी हासिल करने और उसे कायम रखने के लिए कुछ भी करेगा। मैल्कम एक्स +* आजादी लोगों से वह कहने का अधिकार है जो वह सुनना नहीं चाहते। जॉर्ज ऑरवेल +* जो दूसरों को आजादी नहीं देते उन्हें खुद भी इसका अधिकार नहीं होता। अब्राहम लिंकन +* आप अपने चरित्र का निर्माण किसी अन्य के अवसर व स्वतंत्रता को छीनकर नहीं कर सकते। अब्राहम लिंकन +* आपातकाल हमेशा से व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छीनने का बहाना रहा है। फ्रेडरिक ऑगस्ट वॉन हायक +* आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के अहम बिंदु है। भगत सिंह +* आवश्यकता तब तक अंधी होती है जब तक कि उसमें सजगता जुड़ी न हो। आवश्यकता के प्रत�� सजग होना स्वतंत्रता है। कार्ल मार्क्स +* ईश्वर की कृपा से हमारे देश में तीन बेहद कीमती चीजें उपलब्ध हैं: भाषण की स्वतंत्रता, अंतरात्मा की स्वतंत्रता,और इनमे से किसी का भी प्रयोग ना करने का विवेक। मार्क ट्वेन +* किसी भी कीमत पर स्वतंत्रता का मोल नहीं किया जा सकता। वह जीवन है। भला जीने के लिए कोई क्या मोल नहीं चुकाएगा?। महात्मा गांधी +* गलती हो जाने का अधिकार स्वतंत्रता है न कि गलत होने का। जॉन जी +* जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हांसिल नहीं कर लेते, क़ानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वह आपके किसी काम की नहीं। भगत सिंह +* जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है। महात्मा गांधी +* जब स्वतंत्रता चली जाती है, तब जीवन निस्तेज हो जाता है। उसमे कोई उत्साह नही रहता। एडीसन +* जब हम कुछ नया करने का अधिकार खो देते हैं तब हम स्वतंत्र होने का अपना विशेषाधिकार भी खो देते हैं। चार्ल्स एवंस +* जब हम विविधता का अधिकार खो देते हैं, तब हम अपनी आजादी का विशेषाधिकार भी खो देते हैं। चार्ल्स ईवांस ह्यूज +* जहाँ स्वतंत्रता निवास करती है, वही मेरा देश है। बेंजमिन फ्रेंकलिन +* जिम्मेदारी स्वतंत्रता की कीमत है। एल्बर्ट हब्बार्ड +* जिस ईश्वर ने हमें जीवन दिया है, उसीने हमें इसके साथ स्वतंत्रता भी दी है। थॉमस जेफर्सन +* जिस प्रकार पानी की एक बूंद समंदर में मिलकर अपनी पहचान खो देता है उस प्रकार इंसान जिस सोसाइटी में रहता है उसमे रहते हुए अपनी पहचान कभी नही खोता। इंसान की जिंदगी स्वतंत्र है। वह केवल अपने समाज के विकास के लिये पैदा नही हुआ बल्कि खुद का विकास करने के लिये पैदा हुआ है। भीमराव अम्बेडकर +* जिस स्वतंत्रता में गलती कर पाने का अधिकार शामिल नहीं हो उस स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं है। महात्मा गाँधी +* जो आपके साथ हुआ है उसके साथ आप क्या कर पाते हैं। वही स्वतंत्रता है। जीन पॉल +* जोर–जबरदस्ती मनुष्य को मात्र पकड़ कर रखती है जबकि स्वतंत्रता उसे लुभा कर रखती है। रोबर्ट मेकनामरा +* ज्यादातर लोग असल में स्वतंत्रता नहीं चाहते क्योंकि स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी आ जाती है और ज्यादातर लोग जिम्मेदारी से ही डरते हैं। सिग्मुंड +थोड़ी आजादी' जैसी कोई चीज नहीं होती। आप या तो पूरी तरह आजाद होते हैं या आप आजाद नहीं होते। वाल्टर क्रोंकाइट +* दूसरे व्यक्ति द्वारा हमारे ऊपर लागू किये गए किये गए मनमाने नियमों से आजादी ही हमारी असली स्वतन्त्रता है। मोर्टमेर +* देश की आजादी के लिए लाखों लोगों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया लेकिन कुछ स्वार्थी लोगों के कारण हमें असली स्वतंत्रता नहीं मिली। अन्ना हजारे +* देश को असली स्वतंत्रता आज़ादी के 64 साल बाद भी नहीं मिली और केवल एक बदलाव आया गोरों की जगह काले आ गए। अन्ना हजारे +* दो किस्म की आजादी होती है – नकली आजादी, जहां व्यक्ति अपने मन की करने के लिए स्वतंत्र होता है; असली आजादी, जहां व्यक्ति वह करने के लिए स्वतंत्र होता है जो उसे करना चाहिए। चार्ल्स किंग्सले +* नायक वह है जो अपनी आजादी के साथ मिली जिम्मेदारियों को समझता है। बॉब डायलन +* नियम आजादी के लिए जेलर के सामान है और विकास की दुश्मन है। जॉन ऍफ़। कैनेडी +* नेत्रों के लिए जैसे प्रकाश है, फेफड़ों के लिए जैसे वायु है, ह्रदय के लिए जैसे प्यार है, उसी प्रकार मनुष्य की आत्मा के लिए स्वतंत्रता है। आर जी इंगरसोल +* भय ही एकमात्र वास्तविक बंधन है, और भय से मुक्त होना ही एकमात्र स्वतंत्रता। ऑन्ग सैन सू की +* मनुष्य उसी क्षण स्वतंत्र हो जाता है, जिस क्षण वह इसकी अभिलाषा कर लेता है। वॉल्टेयर +* मुझे स्वतंत्रता दो अथवा मृत्यु। पेट्रिक हेनरी +* मूर्खों को उन बंधनों से आजाद करना कठिन होता है जिनके आगे वे नतमस्तक रहते हैं। वॉल्टेयर +* यदि आज़ादी पाने के लिये पैसा ही आपका जरिया है तो आपको कभी आज़ादी मिल ही नही सकती। यदि इस दुनिया में इंसान के पास सबसे बेहतर सिक्यूरिटी यदि कोई है तो वह ज्ञान, अनुभव और क्षमता ही है। हेनरी फोर्ड +* लोग बोलने की आजादी को सोचने की उस आजादी के प्रतिपूरक के रूप में चाहते हैं, जिसका उपयोग वे शायद की कभी करते हैं। सोरेन कीर्कगार्ड +* वास्तविक स्वतन्त्रता क्या होती है यह वही जान सकता है जिसने गुलामी सही हो। ब्लॉग लेखक +* विकास के लिए सबसे अच्छा मार्ग आज़ादी का मार्ग है। जॉन ऍफ़ केनेडी +* विचारों की स्वत्रंतता, धार्मिक स्वतंत्रता, अभावों से स्वतंत्रता और भय से स्वतंत्रता, ये चारों प्रत्येक व्यक्ति को मिलनी चाहिये। रुजवेल्ट +* सभी जीव स्वतंत्र हैं, कोई किसी और पर निर्भर नहीं रहता। भगवान महावीर +* सभी महान चीजें बड़ी सरल होती हैं, और कईयों को हम बस एक शब्द में व्यक्त करसकते हैं: स्वतंत्रता, न्याय, सम्मान, कर्तव्य, दया, आशा। विंस्टन चर्चिल +* संसार म��ं बस दो तरीके की स्वतंत्रता हैं – एक झूठी जिसमे इंसान वह करने के लिए स्वतंत्र है जो वह चाहता है और दूसरी सच्ची जिसमें इंसान वो करने के लिए स्वतंत्र है जो उसे करना चाहिए। चार्ल्स किंग्सले +* सिर्फ सोते समय ही वास्तविक स्वतन्त्रता का अनुभव होता है क्योंकि सपनों पर किसी का भी राज नहीं चल सकती चल सकता। अन्द्रेज़िक +* सुरक्षा के लिए स्वतंत्रता को भी सीमित रहना चाहिये। बर्क +* स्वतंत्र होना सिर्फ अपनी जंजीरों को उतार देना नहीं होता बल्कि इस तरह से जीवन जीना होता है कि औरों का सम्मान और स्वतंत्रता बढ़े। नेल्सन मंडेला +* स्वतंत्रता आत्मा का ऑक्सीजन है। मोशे डयान +* स्वतंत्रता ऐसी चीज है जो उपयोग नहीं किए जाने पर मिट जाती है‌। हंटर एस. थॉम्पसन +* स्वतंत्रता कभी भी अत्याचारी द्वारा अपनी इच्छा से नहीं दी जाती बल्कि ये पीड़ित व्यक्ति द्वारा अनिवार्य रूप से मांगी जाती है। मार्टिन लूथर किंग +* स्वतंत्रता का अर्थ जिम्मेदारी है। यही कारण है कि ज्यादातर लोग इससे भय खाते हैं। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* स्वतंत्रता कुछ और नहीं बल्कि बेहतर बनने का एक प्रभावशाली अवसर है। अल्बर्ट कामुस +* स्वतंत्रता के लिए लाखों लोगों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया लेकिन कुछ स्वार्थी लोगों के कारण हमें सही स्वतंत्रता नहीं मिली। अन्ना हज़ारे +* स्वतंत्रता केवल तभी संभव है जब इसके लिए लगातार संघर्ष करते रहा जाए। अल्बर्ट आइंसटाइन +* स्वतंत्रता पर उन लोगों का अधिकार होता है जिनके अन्दर इसका बचाव करने का दुर्लभ साहस होता है। पेरिक्लेस +* स्वतंत्रता मनुष्य की वह शक्ति है जहाँ उसे मजबूर करके रोका न जाये बल्कि उसे वह करने देती है जो वह चाहता है। मार्कस सिसरो +* स्वतन्त्रता कभी भी दी नहीं जाती, बल्कि इसे लेना पड़ता है। ऐ. फिल्लिप +* स्वतन्त्रता व्यक्तिगत और एकाकी युद्ध है और हर व्यक्ति आज के डर से लड़ता है ताकि कल के डर से बच सके। ऐलिस वॉकर +* हम आजादी तभी पाते है, जब अपने जीवित रहने का पूरा मूल्य चुका देते हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर +* हम कितनी चीजों को आसानी से छोड़ सकते हैं। इसकी गणना से ही हमारी स्वतंत्रता मापी जाती है। वेर्नों होवार्ड +* हमें मानवता को उन नैतिक जड़ों तक वापस ले जाना चाहिए जहाँ से अनुशाशन और स्वतंत्रता दोनों का जन्म होता है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन +* हिंसक तरीकों से हिंसक स्वतंत्रता मिलेगी। यह दुनिया के लिए और खुद भारत के लिए एक गंभीर खतरा होगा। महात्मा गांधी +* हीरो वह होता है जो स्वतंत्रता के साथ आई जिम्मेदारियों को समझता है। बॉब डाइलेन + + +: अर्थ नदियाँ अपना जल स्वयं नहीं पीती हैं। पेड़ फल खुद नहीं खाते हैं। बादल भी फसल नहीं खाते हैं। उसी प्रकार सज्जनों की सम्पत्ति परोपकार के लिए होती है। +: अर्थ: रहीम कहते हैं कि वृक्ष कभी स्वयं अपने फल नहीं खाते और तालाब कभी अपना पानी नहीं पीते। उसी तरह सज्जन लोग दूसरे के हित के लिये संपत्ति का संचय करते हैं। +: जो वृक्ष चन्द्रमा और चन्दन के समान शीतल छाया प्रदान करता है, सुन्दर एवं मन को मोहित करने वाले पुष्पों से वातावरण सुगन्धमय बना देता है, आकर्षक तथा स्वादिष्ट फलों को मानवजाति पर न्यौछावर करता है, उस वृक्ष को जंगली असभ्य लोग काट डालते हैं । अहो मनुष्य की यह कैसी कृतघ्नता है! +: दूसरे व्यक्ति द्वारा रोपित वृक्ष का सिंचन करने से भी महान् फलों की प्राप्ति होती है, इसमें विचार करने की आवश्यकता नही है। +: दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष। +: वृक्ष वायु को शुद्ध करते हैं और रोगों को दूर भगाने में सहयोगी होते हैं । इसलिए वृक्षों का रोपण और रक्षण प्राणीमात्र के लिए हितकारी है । +: सन्तों के समान ही वृक्ष अपनी त्वचा शाखा पत्ते मूल पुष्प फल रस आदि सभी अंगों से प्राणियों का उपकार करते है । +: वृक्ष इतने महान होते हैं कि परोपकार के लिये ही जीते हैं। ये आँधी, वर्षा और शीत को स्वयं सहन करते हैं। +: इनका जन्म बहुत अच्छा है क्योंकि इन्हीं के कारण सभी प्राणी जीवित हैं। जिस प्रकार किसी सज्जन के सामने से कोई याचक खाली हाथ नहीं जाते उसी प्रकार इन वृक्षों के पास से भी कोई खाली हाथ नहीं जाता। +: ये हमें पत्र, पुष्प, फल, छाया, मूल, बल्कल, इमारती और जलाऊ लकड़ी, सुगंध, राख, गुठली और अंकुर प्रदान करके हमारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। +: हर प्राणी का कर्तव्य है कि वह अपने प्राण, धन, बुद्धि तथा वाणी से अन्यों के लाभ हेतु कल्याणकारी कर्म करे। +: फलों और फूलों वाले वृक्ष मनुष्यों को तृप्त करते हैं । वृक्ष देने वाले अर्थात् समाजहित में वृक्षरोपण करने वाले व्यक्ति का परलोक में तारण भी वृक्ष करते हैं । +: सब प्राणियों पर उपकार करने वाले वृक्षों का जन्म श्���ेष्ठ है। ये वृक्ष धन्य हैं कि जिनके पास से याचक कभी निराश नहीं लौटते। +: वे वृक्ष धन्य हैं जिनके पास से याचक फूल, पत्ते, फल, छाया, जड़, छाल और लकड़ी से लाभान्वित होते हुए कभी भी निराश नहीं लौटते। +: इसलिए श्रेयस् यानी कल्याण की इच्छा रखने वाले मनुष्य को चाहिए कि वह तालाब के पास अच्छे-अच्छे पेड़ लगाए और उनका पुत्र की भांति पालन करे। वास्तव में धर्मानुसार वृक्षों को पुत्र ही माना गया है। +: दूसरे को छाँव देता है, खुद धूप में खड़ा रहता है, फल भी दूसरों के लिए होते हैं; सचमुच वृक्ष सत्पुरुष जैसे होते हैं। +: तालाब बनवाने, वृक्षरोपण करने, और यज्ञ का अनुष्ठान करने वाले द्विज को स्वर्ग में महत्ता दी जाती है; इसके अतिरिक्त सत्य बोलने वालों को भी महत्व मिलता है। +: महर्षि भृगु कहते हैं कि इन वृक्षों के शरीर में चेष्टा अर्थात् गतिशीलता वायु का रूप है,खोखलापन आकाश का रूप है,गर्मी अग्नि का रूप है, तरल पदार्थ सलिल का रूप है, ठोसपन पृथ्वी का रूप है। इस प्रकार (इन वृक्षों का यह) शरीर पाँच महाभूतों (वायु, आकाश, अग्नि, जल और पृथ्वी तत्त्वों) से बना है। +: वृक्ष दूसरों को छाँव देते हैं। खुद धूप में खडे रहते हैं। इनके फल भी दूसरों के लिए होते हैं। सचमुच वृक्ष सत्पुरुष जैसे होते हैं। +* अगर एक पेड़ मर जाता है, तो उसके स्थान पर एक और पौधा लगाओ। कैरोलस लिनियस +* अपने पिछले इतिहास, उत्पत्ति व संस्कृति के ज्ञान के बिना व्यक्ति वैसे ही है जैसे जड़ों के बिना पेड़। मारकु गर्वे +* आज कोई छाया में बैठा है क्योंकि किसी ने बहुत पहले एक पेड़ लगाया था। वारेन बफे +* आप जड़ों के बिना फल नहीं खा सकते हैं। स्टीफन कोवे +* इस पृथ्वी पर कुछ भी स्थिर नहीं है। यह या तो बढ़ रहा है या यह मर रहा है। फिर चाहे वो पेड़ हो या इंसान। लू होल्त्ज़ +* एक एकड़ में एक हजार जंगलों का निर्माण होता है। राल्फ वाल्डो इमर्सन +* एक वृक्ष दस पुत्र समान । +* कठोर पेड़ सबसे आसानी से टूट जाता है, जबकि बांस हवा के साथ झुकने से जीवित रहता है। ब्रूस ली +* जीवन का सही अर्थ पेड़ लगाना है, जिसकी छाँव में आप बैठने की उम्मीद नहीं करते हैं। नेल्सन हेंडरसन +* देशभक्त का रक्त आजादी के पेड़ का बीज है। थॉमस कैंपबेल +* पेड़ लगाने का सबसे अच्छा समय 20 साल पहले था। दूसरा सबसे अच्छा समय अब है। चीनी कहावत +* मिट्टी के बंधन से मुक्ति पेड़ के लिए कोई आजादी नहीं है। रविन्द्रनाथ ट���गोर +* मिट्टी के बंधन से मुक्ति पेड़ के लिए कोई स्वतंत्रता नहीं है। रविंद्रनाथ टैगोर +* मैं एक पेड़ की तरह हूं। मेरे पत्ते रंग बदल सकते हैं, लेकिन मेरी जड़ें समान हैं। रोज नमाजें +* सभी धर्म, कला और विज्ञान एक ही वृक्ष की शाखाएं हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन + + +: इस संसार में (अच्छे) कर्म करते हुए सौ वर्ष तक जीवन जीने की इच्छा करनी चाहिए। इस प्रकार जो धर्मयुक्त कर्मों में लगा रहता है, वह अधर्मयुक्त कर्मों में अपने को नहीं लगाता। +: अर्थ कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, कभी भी फल में नहीं। +: ज्ञान, ज्ञेय और परिज्ञाता इन तीनों से कर्मप्रेरणा होती है तथा करण, कर्म और कर्ता इन तीनों से कर्मसंग्रह होता है। +: मनुष्य जो कुछ अच्छा या बुरा कार्य करता है, उसका फल उसे भोगना ही पड़ता है. अनन्त काल बीत जाने पर भी कर्म, फल को प्रदान किए बिना नाश को प्राप्त नहीं होता। +: अर्थ इसी संसार में सभी पदार्थ मौजूद हैं किन्तु कर्महीन व्यक्ति को वे नहीं मिलते। +: अर्थ यह विश्व कर्मप्रधान है। जो जैसा करता है वह वैसा ही फल पाता (चखता) है। +: आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है। +: कार्य उद्यम से ही सिद्ध होते हैं मनोरथ मात्र से नहीं। सोये हुए शेर के मुख में मृग प्रवेश नहीं करते। +* जीवन की सबसे बडी क्षति मृत्यु नही है । सबसे बडी क्षति तो वह है जो हमारे अन्दर ही मर जाती है । नार्मन कजिन +* आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है। सैली बर्जर +* जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये । निर्भीकता के अन्दर मेधा बुद्धि शक्ति और जादू होते हैं । गोथे +: पराक्रम दिखाने का समय आने पर जो पीछे हट जाता है, उस तेजहीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता। +* हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है। चीनी कहावत +* सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है। जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है। इमर्सन +* सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप चौबीस घण्टे मे कितने प्रयोग कर पाते है। एडिशन +* उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं। जान फ़्लीचर +* जो जैसा शुभ व अशुभ कार्य करता है, वो वैसा ही फल भोगता है । वेदव्यास +* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है । विनोबा +* सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है । कथासरित्सागर + + +•सूक्ति मम तू भुजौ एव प्रहर्णम् । अर्थ मेरी तो भुजाएं ही प्रहार करने के लिए शास्त्र है/ +अर्थ पुण्यात्मा जिस बात को स्वीकार करते है, उसे निभाते हैं। +अर्थ केयूरक महाश्वेता का संदेश चंद्रापीड को देते हुए कहता है कि आपके प्रति मेरा स्नेह स्वार्थ रहित है फिर भी आपसे मिलने की उत्कण्ठा हो रही है। +अर्थ निरक्षर (मूर्ख) अँधा होता हैं। +अर्थ अगाध जल में तैरने वाली रोहू मछली घमंड नहीं करती +अर्थ अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है । +अर्थ अजीर्ण में जल अमृत के समान होता हैं और भोजन के पचने पर बल देता हैं। +अर्थ अपाचन हुआ हो तब भोजन विष समान है । +अर्थ जिस का कुल और शील मालूम नहीं हो उसके घर नहीं टिकना चाहिए। +अर्थ अधिक लालच नाश कराती है । +अर्थ अति को करने से सब जगह बचना चाहिये । +अर्थ अतिथि देव स्वरूप होता है। +अर्थ अति-भक्ति चोर का लक्षण है । +अर्थ अत्यधिक प्रेम पाप की आशंका उत्पंन करता है। +अर्थ अत्यधिक आदर किया जाना शड़्कनीय है। +अर्थ नियति अतिक्रमणीय होती है अर्थात् होनी नहीं टाला जा सकता। +अर्थ भाग्य का उल्लड़्घन नहीं किया जा सकता। +अर्थ अभ्यास न करने पर शास्त्र विष के तुल्य हैं। +अर्थ परस्त्री के विषय में बात करना अशिष्टता है। +अर्थ सदाचार का उल्लड़्घन नहीं करना चाहिए। +अर्थ तृष्णा का अन्त नहीं है । +अर्थ शकुन्तला के पतिगृह गमन के समय आश्रम में पशु-पक्षी और तरु तलायें भी वियोग पीड़ित हैं। लताओं से पीले पते टूट कर गिर रहे हैं मानो वे आंसू बहा रहे हैं। +अर्थ जिन दंपतियों को पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है उन्हें लोक शुभ नहीं होते। +अर्थ जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता उसमें बहुत जल भरा होता है । +अर्थ बिना प्रार्थना किये ही मेरे प्रति अनुकूल हो जाने वाला कामदेव शीघ्र ही उसे प्रकट कर देगा। ऐसा कादंबरी के अनुराग के कारणों के विषय में चंद्रापीड कहता है। +अर्थ अप्रिय किंतु परिणाम में हितकर हो ऐसी बात कहने और सुनने वाले दुर्लभ होते हैं। +अर्थ वृद्धों की नित्य सेवा करने वाले तथा उनका अभिवादन करने वाले के आयु, विद्या, यश और बल ये चारों बढ़ते हैं। +अर्थ अच्छी तरह बोली गई वाणी अलग अलग प्रकार से मानव का कल्याण करती है । +अर्थ विद्या अभ्यास से आती हैं। +अर्थ यह मेरा हैं यह तुम्हारा हैं। ऐसा चिन्तन तो संकीर्ण बुद्धि वालों का हैं। उदार चरित वालों के लिए तो पूरी पृथ्वी ही परिवार की तरह हैं। +अर��थ कोई भी पुरुष अयोग्य नहीं, पर उसे योग्य काम में जोडनेवाला पुरुष दुर्लभ है +अर्थ अल्पविद्या भयंकर होती है । +अर्थ छोटे लोगों का एकजुट होना भी काम साध लेता हैं। +अर्थ बिना विद्या के जीवन शून्य हैं। +अर्थ नन्दिनी गाय राजा से बोली– मैं प्रसन्न हूं वरदान मांगो! मुझे केवल दूध देने वाली गाय न समझो बल्कि प्रसन्न होने पर मुझे अभिलाषाओं को पूरी करने वाली समझो। +अर्थ अशांत (शांति रहित) व्यक्ति को सुख कैसे मिल सकता है? +अर्थ कण्व कहते हैं– अब मैं इस वनज्योत्स्ना और तुम्हारे विषय में निश्चिंत हो गया हूं। +अर्थ बलवान के साथ विरोध करनेका परिणाम दुःखदायी होता है । +अर्थ कादंबरी पत्रलेखा के सौन्दर्य को देखकर कहती है कि ब्रह्मा ने पत्रलेखा के प्रति पक्षपात किया है और उसे गन्धर्वों से भी अधिक सौन्दर्य प्रदान किया है। +अर्थ आचारों से पवित्र राजा दिलीप की सेवा में झरनों के कणों से सि​ञ्चित हवायें संलग्न थीं। +अर्थ बड़ों की आज्ञा विचारणीय नहीं होती। +अर्थ अपने दुर्व्यवहार का फल भी दुखदायी होता हैं। अतः सुख प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को हमेशा अच्छा व्यवहार करना चाहिए। +अर्थ आपत्ति में मित्र की परीक्षा होती है । +अर्थ कुटिल जनों के प्रति सरलता नीति नहीं होती। +अर्थ शरीर में स्थित आलस्य ही मनुष्यों का सबसे बड़ा शत्रु हैं। +अर्थ हा​थी खंभे से रोका जाता है। घोड़ा लगाम से रोका जाता है, स्त्री हृदय से प्रेम करने से ही वश में की जाती है यदि ऐसा नहीं है तो सीधे अपनी राह नापिये। +अर्थ आहार मनुष्यों के जन्म के साथ ही पैदा हो जाता हैं। +अर्थ शार्ड़्गरव कहता है– भगवन्! प्रिय व्यक्ति का जल के किनारे तक अनुगमन करना चाहिए, ऐसी श्रुति है। +अर्थ संपूर्ण जगत् के कण-कण में ईश्वर व्याप्त है। +अर्थ हे मनुष्य! उठो, जागो और श्रेष्ठ महापुरुषों को पाकर उनके द्वारा परब्रह्म परमेश्वर को जान लो। +अर्थ मनुष्य उत्सव प्रिय होते हैं। +अर्थ काम करने से ही कार्यों की सिद्धि होती हैं। केवल मनोरथ से नहीं, सोते हुए सिंह के मुख में कोई मृग प्रवेश नहीं करता हैं। +अर्थ समृद्धशाली राज्य इंद्र के पद स्वर्ग के समान होता है। +अर्थ एक करुण रस ही कारण भेद से भिन्न होकर अलग-अलग परिणामों को प्राप्त होता है। +अर्थ गुणों के समूह में एक दोष उसी प्रकार छिप जाता है जैसे चन्द्रमा की किरणों में उसका कलंक +अर्थ मृत्���ु समीप आ जाने पर कौन किसकी रक्षा कर सकता है। +कदन्नता चोष्णतया विराजते । 8211; अर्थ:खराब (बुरा) अन्न भी गर्म हो तब अच्छा लगता है । +कलौ वेदान्तिनो भांति फाल्गुने बालकाः इव 8211; अर्थः फाल्गुन में बालको के समान कलि युग में वेदांती सुशोभित होते हैं। +कष्टाद्पि कष्टतरं परगृहवासः परानं च 8211; अर्थः कष्ट से भी बड़ा कष्ट दुसरे के घर में निवास करने एवं दूसरे का अन्न खाना हैं। +अर्थ समय पर आरंभ की गयी नीतियां सफल होती हैं। +अर्थ बुद्धिमान लोगों का समय काव्यशास्त्र की बातों में गुजरता हैं। जबकि मुर्ख व्यक्तियों का समय व्यसन, निद्रा या कलह में गुजरता हैं। +अर्थ सुन्दर आकृतियों के लिए क्या वस्तु अलंकार नहीं होती है। +कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति 8211; अर्थः कुपुत्र हो सकता हैं, लेकिन कुमाता कहीं पर भी नहीं होती +कुरूपता शीलयुता विराजते । 8211; अर्थ:कुरुप व्यक्ति भी शीलवान हो तो शोभारुप बनती है +कुलं शीलेन रक्ष्यते । 8211; अर्थ:शील से कुल की रक्षा होती है +कुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते । 8211; अर्थ:खराब वस्त्र भी स्वच्छ हो तो अच्छा दिखता है । +क्लिश्यन्ते लोभमोहिताः । 8211; अर्थ:लोभ की वजह से मोहित हुए हैं वे दुःखी होते हैं । +अर्थ लोग अंधपरम्परा पर चलने वाले होते हैं असलियत पर नहीं जाते +अर्थ बूढा हो जाने पर भी विद्या सब भांति उपार्जना करता रहे। +गरीयषी गुरोः आज्ञा। 8211; अर्थ गुरुजनों (बड़ों) की आज्ञा महान् होती है अतः प्रत्येक मनुष्य को उसका पालन करना चाहिए। +अर्थ केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है बल प्रयोग नहीं +अर्थ गुणवान् (सुयोग्य) व्यक्ति को कन्या देनी चाहिए। यह माता-पिता का मुख्य विचार होता है। +अर्थ गुणों को जानने वालों के लिए ही गुण गुण होते हैं। +अर्थ गुणों की सभी जगह पूजा होती हैं। +अर्थ मनुष्य को हमेशा गुणों में ही प्रयत्न करना चाहिए। +अर्थ सब गुरु में माता को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है +अर्थ सुख और दुःख चक्र के समान परिवर्तनशील हैं। +अर्थ चक्र के आरे की तरह भाग्यकी पंक्ति उपर-नीचे हो सकती है +अर्थ चलेनेवाले का भाग्य चलता है । +अर्थ चरित्रहीन धनवान् भी दुर्दशा को प्राप्त होता है। +अर्थ चित्र में लिखे हुए बाण निकालने के उद्योग में लगे हुए की भांति हो गया। +अर्थ चौरों के लिए झूठ ही बल हैं। +अर्थ राजा दिलीप ने नन्दिनी को छाया की भांति अनुसरण किया। +अर्थ छाया के समान दुर्जनो��� और सज्जनों की मित्रता होती है। +अर्थ छेदों में अनेक अनर्थ होते हैं। +अर्थ माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। +अर्थ दामाद दसवां ग्रह हैं। +अर्थ जो पैदा हुआ हैं अवश्य मरेगा +अर्थ अच्छे वस्त्र पहननेवाले सभा जित लेते हैं (उन्हें सभा में मानपूर्वक बिठाया जाता है) । +अर्थ हम सौ वर्ष तक देखने वाले और जीवित रहने वाले हों। +अर्थ जीव, जीव का भोजन हैं। +अर्थ आदमी चार बातों से परखा जाता हैं विद्या, शील, कुल और काम से +अर्थ जिस रुप में गुण है वही उत्तम रुप है । +अर्थ अंधकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमृत की ओर ले जायें। +अर्थ तीर्थ जल और अग्नि से अन्य पदार्थ से शुद्धि के योग्य नहीं होते हैं। +अर्थ तिन्के से रुई हलका है, और याचक रुई से भी हलका है । +अर्थ तेजस्वी पुरुषों की आयु नहीं देखी जाती है। +अर्थ क्रोधी पत्नी का त्याग करना चाहिए। +अर्थ पहाड़ के तोड़ने में हाथी के दांत का टूट जाना भी तारीफ़ की बात हैं। +अर्थ दरिद्रता धीरता से शोभित होती हैं। +अर्थ वह ​नन्दिनी दिन और रात्रि के मध्य संध्या के समान सुशोभित हुई। +अर्थ प्रत्येक कार्य में अनावश्यक विलंब करने वाला नष्ट होता है। +अर्थ किसी के न्यास अर्थात् धरोहर की रक्षा करना दुःखपूर्ण (दुष्कर) है। +अर्थ कष्ट सहन करने वाले तपस्वियों में से किससे प्रार्थना करें। +अर्थ दुर्बल का बल राजा होता हैं। +अर्थ भाग की गति विचित्र हैं। +अर्थ दूसरा हो वहाँ भय उत्पन्न होता है । +धनधान्यप्रयोगेषु विद्यायाः संग्रहेषु च, आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् 8211; अर्थः धन धान्य के प्रयोग में विद्या के संग्रह में भोजन में तथा व्यवहार में लज्जा से दूर रहने वाला व्यक्ति हमेशा सुखी रहता हैं। +अर्थ बचाया हुआ धर्म ही रक्षा करता हैं। +अर्थ सौभाग्य से धुएं से व्याकुल दृष्टि वाले यजमान की भी आहुति ठीक अग्नि में ही पड़ी। +अर्थ सज्जन लोगों का धैर्य ही धन होता है। +अर्थ शार्ड़्गरव कहता है– विद्वानों के लिए वस्तुतः कोई चीज अज्ञात नहीं होती है। +अर्थ वय तेजस्विता का कारण नहीं है । +अर्थ ज्ञान से बढ़कर कोई नेत्र नहीं हैं। +अर्थ ज्ञान के बिना मोक्ष नहीं +अर्थ बाल श्वेत होने से हि मानव वृद्ध नहीं कहलाता । +अर्थ कम उम्र वाले व्यक्ति भी तप के कारण आदरणीय होते हैं। +अर्थ धर्म के समान मित्र नहीं +अर्थ धैर्यशील व्यक्ति अपने प्रयोजन से दूर नहीं होते +अर्थ रत���न ढूंढता नहीं खोजा जाता हैं। +अर्थ न राज्य था और ना राजा था न दण्ड था और न दण्ड देने वाला । स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी ॥ +अर्थ मनुष्य कभी धन से तृत्प नहीं हो सकता। +अर्थ क्रोध के समान शत्रु नहीं हैं। +अर्थ इस संसार में ज्ञान से ज्यादा पवित्र कुछ नहीं हैं। +अर्थ सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं हैं। +अर्थ फलों वाले वृक्ष ही झुकते हैं तथा गुणों से युक्त व्यक्ति ही झुकते हैं, सूखे पेड़ और मुर्ख व्यक्ति कभी नहीं झुकते। +अर्थ मनुष्यों में नाई धूर्त होता हैं। +अर्थ प्रयत्न करने वाले के लिए कोई बात दुष्कर नहीं हैं। +अर्थ भीष्म कहते हैं– माता के समान कोई गुरु नहीं। +नास्ति विद्या समं चक्षु। -अर्थ्– संसार में ब्रह्मविद्या के समान कोई नेत्र नहीं है। +अर्थ धर्म की निंदा करने वाला नास्तिक होता हैं। +अर्थ वेदों की निंदा करने वाला नास्तिक हैं। +अर्थ गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है । +अर्थ मनुष्य के जीवन की दशा वैसी ही ऊँची नीची हुआ करती है जैसा रथ का पहिया कभी ऊँचा कभी नीचा होता रहता हैं। +अर्थ गुण ही सर्वत्र शत्रु-मित्रादिकों में पैर को स्थापित करते हैं। +अर्थ सापों को दूध पिलाना, जहर बढ़ाना ही हैं। +अर्थ राजा दिलीप ने समुद्र के समान चार थनों वाली नन्दिनी गाय की रक्षा इस प्रकार की जैसे चार थनों के समान चार समुद्रों वाली पृथ्वी ही गाय के रूप में हो। +अर्थ जो दूसरे के दुःख से दुखी होते है ऐसे विरले ही होते हैं। +अर्थ मनस्वी पुरुषों के लिए पराभव भी उत्सव के ही समान है। +अर्थ कादंबरी चंद्रापीड को अपना हृदय समर्पित करके कहती है– कुल कन्याओं की परम्परा रही है कि गुरुजनों की सहमति से ही वे योग्य वर का चुनाव करती हैं। मैंने यह परम्परा तोड़ दी है। यह लज्जा का विषय है। +अर्थ परोपकार पुण्य तथा परपीड़न पाप देने वाला होता हैं। +अर्थ सज्जनों की विभूति (ऐश्वर्य) परोपकार के लिए है। +अर्थ यह शरीर दूसरे के उपकार के लिए हैं। +अर्थ योग्यता से ही धन की प्राप्ति होती हैं। +अर्थ विवेकी लोगों की आस्था नष्ट होने वाले इन भौतिक शरीरों से नहीं है, बल्कि यश रूपी शरीर की रक्षा करने में है। +अर्थ पिता के वचन का पालन करनेवाला दीन-हीन नहीं होता । +अर्थ पुण्यों से ही यश की प्राप्ति होती हैं। +अर्थ पुत्र के जन्मोत्सव में कौन आनन्द में मतवाला नहीं होता। +अर्थ कोई बात पुरानी मात्र होने से सही नहीं होती +अर्थ इस पृथ्वी पर तीन रत्न हैं; जल, अन्न और सुभाषित । +अर्थ वसिष्ठ कहते हैं– पूजनीय की पूजा का उल्लड़्घन कल्याण को रोकता है। +अर्थ वेद सबसे बढकर प्रमाण हैं। +अर्थ पहले प्रसन्नतासूचक चिन्ह दिखाई पड़ते हैं तदन्तर फल की प्राप्ति होती है। +अर्थ वीरों को प्रण से अधिक प्यार शत्रु से बदला चुकाना हैं। +अर्थ राजा दिलीप को जब लगा कि नन्दिनी को सिंह से नहीं छुड़ा पायेंगे तो उन्होंने कहा-तब तो मेरा ​क्षत्रियत्व ही नष्ट हो जायेगा क्योंकि क्षत्रियत्व से विपरीत वृत्ति वाले व्यक्ति का राज्य से या निन्दा युक्त मलिन प्राणों से क्या लाभ? +अर्थ 16 वर्ष के होने पर तो गधी भी अपने आप को अप्सरा समझती हैं। +अर्थ बहुधा भाग्यहीन जहाँ आते हैं, विपत्तियाँ भी वहां आ जाती हैं। +अर्थ नीचे लोग विघ्नों के भय से कार्य प्रारंभ ही नहीं करते। +अर्थ प्रिय व्यक्ति को सुंदर लगना सौभाग्य का फल हैं। +अर्थ फल भाग्य के अनुसार मिलता हैं। +अर्थ चुप रहना मुर्ख के लिए बल हैं। +अर्थ बलशाली के साथा क्या विरोध? +अर्थ होनहार बलवान् है, जो होना है वह होकर ही रहता है उसे टाला नहीं जा सकता। +अर्थ बलवान को कोई नियम नहीं होते, नियम तो दुर्बल को होते हैं । +अर्थ माता का स्नेह बलवान् होता है। +अर्थ अधिक बोलने वाले पर लोग श्रद्धा नहीं रखते। +अर्थ यह पृथ्वी अनेक रत्नों से युक्त हैं। +अर्थ पृथ्वी अनेक आश्र्चर्यों से भरी हुई है । +अर्थ बुद्धि कर्म के अनुसार होती हैं जैसा कर्म करोगे वैसी ही बुद्धि होगी। +अर्थ जिसके पास बुद्धि हैं, उसके के पास बल हैं। बुद्धिहीन के लिए तो कोई बल नहीं। +अर्थ भय का कारण उपस्थिति हो तब सब भयभीत होते हैं । +अर्थ भार्या दैव से किया हुआ साथी है । +अर्थ गृहस्थ के लिए उसकी पत्नी उसका मित्र है । +अर्थ मानव अलग अलग रूचि के होते हैं । +अर्थ सांप के पाँव को सांप ही जानता हैं। +अर्थ हाथ के रुक जाने से बढ़े हुए क्रोध वाले, राजा दिलीप, मंत्र और औ​षधि से बांध दिया गया है पराक्रम जिसका, ऐसे सांप की भांति समीप में (स्थित)​ अपराधी को नहीं स्पर्श करते हुए अपने तेज से भीतर जलने लगे। +अर्थ भोजन का रस “आदर” है । +अर्थ विष के पेड़ पर चढ़ी लता भी मूर्छित करने वाली हो जाती हैं। +अर्थ मन वायु से भी अधिक गतिशील है +अर्थ मन हि मानव के बंधन और मोक्ष का कारण है । +अर्थ जिस मार्ग से बड़े लोग चले, वो ही अच्छा मार्ग हैं। +अर्थ बडे लोग स्वभाव से हि मितभाषी होते हैं । +अर्थ माता पिता की भली प्रकार से सेवा करनी चाहिये। +अर्थ मित्र के साथ कलह करके कोई व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं हो सकता। +अर्थ स्वच्छता से रूप की रक्षा होती है +अर्थ मौन सम्मति का लक्षण है । +अर्थ मौन यह सर्व कार्य का साधक है । +अर्थ मौनी मानव का किसी से भी कलह नहीं होता । +अर्थ जहाँ नारियो की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। +अर्थ जो नहीं होना है वो नहीं होगा, जो होना है उसे कोई टाल नहीं सकता +अर्थ विधाता ने जो ललाट पर लिखा है उसे कौन मिथ्या कर सकता है ? +अर्थ यशरूपी धनवाले को यश हि सबसे महान वस्तु है । +अर्थ यशोवध प्राणवध से भी बडा है । +अर्थ याचक को देखकर याचक, कुत्ते की तरह घुर्राता है । +अर्थ युक्तियुक्त वचन बालक के पास से भी ग्रहण करना चाहिए । +अर्थ समत्वरूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात् कर्मबंधन से छूटने का उपाय है। +अर्थ रत्न रत्न के साथ जाता है +अर्थ राजा काल का कारण है । +अर्थ रिक्त व्यक्ति लघु होता हैं, पूर्णता गौरव के लिए होती हैं। +अर्थ जिस रूप में गुण या पराक्रम न हो उस रूप का क्या उपयोग ? +अर्थ लोभी की कीर्ति नष्ट हो जाती हैं। +अर्थ लोभी मानव को याचक शत्रु जैसा लगता है । +अर्थ प्रजा को सुखी रखना यही राजा का सनातन धर्म है । +अर्थ लालच) लोभ पाप का कारण है। +अर्थ लोभ विवेक का नाश करता है । +अर्थ लोभ का त्याग करने से मानवी सुखी होता है । +अर्थ सभी पाप का मूल लोभ है । +अर्थ लोभ, प्रमाद और विश्र्वास – इन तीन कारणों से मनुष्य का नाश होता है । +अर्थ मानव कैसा भोजन लेता है उसका ध्यान उसके शरीर पर से आता है । +अर्थ असत्य वचन बोलने से मौन धारण करना अच्छा है । +अर्थ सम्पूर्ण पृथ्वी एक परिवार है। +अर्थ अच्छे या बुरे वस्त्र से क्या फ़र्क पडता है एसा न बोलो, क्योंकि सभा में तो वस्त्र बहुत उपयोगी बनता है ! +अर्थ दुर्वचन रुपी बाण को बाहर नहीं निकाल सकते क्यों कि वह ह्रदय में घुस गया होता है । +अर्थ वाणी पर संयम रखना अत्यंत कठिन है । +अर्थ वाणिज्य में लक्ष्मी निवास करती है । +अर्थ संस्कृत अर्थात् संस्कारयुक्त वाणी हि मानव को सुशोभित करती है । +अर्थ विद्याधन सभी धनों में श्रेष्ठ धन हैं। +अर्थ विद्या से विहीन व्यक्ति पशु ही होता हैं। +अर्थ मूर्खों का मौन रहना उनके लिए भूषण (अलड़्ंकार) है। +अर्थ पृथ्वी का उपभोग वीर पुरुष हि कर सकते है । +अर्थ प्रयास करके अपने आचरण की रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता हैं एवं चला जाता है। धन चले जाने पर तो कुछ भी नष्ट नहीं होता। आचरण से हीन व्यक्ति वास्तव में मर ही जाता हैं। +अर्थ जो धर्म की बात नहीं करते वे वृद्ध नहीं हैं +अर्थ व्यवहार से ही मित्र और शत्रु बनते हैं। +अर्थ शठ (धूर्त) के साथ शठता करनी चाहिये। +अर्थ कल के कार्य को आज करे तथा शाम के कार्य को सुबह करें। +अर्थ यह शील बड़ा भारी आभूषण है। +अर्थ शील कुल को विभूषित करता है +अर्थ इमानदार, दक्ष और अनुरागी भृत्य (सेवक) दुर्लभ होते हैं । +अर्थ कलियुग में संघ में ही शक्ति हैं। +अर्थ बड़े लोग सम्पति और विपत्ति दोनों में समान रहते हैं। +अर्थ संसर्ग से ही दोष और गुण उत्पन्न होते हैं। +अर्थ सत्य की ही जीत होती हैं, झूठ की नहीं। +अर्थ सच और जूठ एसे दो प्रकार के वाणिज्य हैं । +अर्थ सत्य से ही पृथ्वी धारण करती हैं, सत्य से ही सूर्य तपता हैं, सत्य से ही वायु बहती हैं, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित हैं। +अर्थ सत्संगति से मनुष्यों का क्या काम नहीं हो सकता। +अर्थ सज्जन और दुर्जनों की समयवाणी को सुनकर संत व्यक्ति मधुर सूक्तियों का सृजन करते हैं। +अर्थ देह् सभी अर्थ की प्राप्र्ति का साधन है । +अर्थ सारे गुण धन को आश्रित करके ही होते हैं। +अर्थ समृद्धि काल में सब मित्र बनते हैं । +अर्थ शत्रुओं के प्रति क्रोध से व्याकुल भीम को शांत करने के लिए युधिष्ठिर ने कहा– कार्य को एकाएक बिना विचार विमर्श किये नहीं प्रारम्भ करना चाहिए। +अर्थ जैसी भवितव्यता हो एसे हि सहायक मिल जाते हैं +अर्थ साक्षर अगर विपरीत बने तो राक्षस बनता है । +अर्थ साहस में लक्ष्मी निवास करती हैं। (शर्विलक का कथन है?) +अर्थ सभी सुखी होवें, सभी निरोगी होवें तथा सभी का कल्याण हो, किसी को भी दुःख की प्राप्ति नहीं हो। +अर्थ साहित्य, संगीत और कला से रहित व्यक्ति, पूंछ और सींगो से हीन साक्षात पशु होता हैं। +अर्थ स्त्री की सुन्दरता ही परिवार की सुन्दरता हैं। +अर्थ राजा अपने देश में ही पूजा जाता हैं, जबकि विद्वान् सभी जगह पूजा जाता हैं। +अर्थ स्वभाव बदलना मुश्किल है । +अर्थ जिस भृत्य का स्वामी बलवान है वह भृत्य गर्विष्ट बनता है । +अर्थ हाथ का आभूषण दान हैं, कंठ का आभूषण सत्य बोलना हैं तथा कानों का आभूषण शास्त्र हैं, अन्य आभूषणों से क्या? +अर्थ हितकारी एवं मनोहारी वचन काफी दुर्लभ हैं। +अर्थ जो प्रत्येक क्षण नवीनत��� को धारण करता है वही रमणीयता का स्वरूप है। +अर्थ महर्षि वशिष्ठ के प्रभाव से मेरे ऊपर यमराज भी आक्रमण करने में समर्थ नहीं है तो सांसारिक हिंसक पशुओं का तो कहना ही क्या? +अर्थ क्षमा के बराबर तप नहीं हैं। +अर्थ बादल समुद्र का खारा पानी पीते हैं पर मीठा पानी बरसाते हैं। +अर्थ कमजोर व्यक्ति ही दयाहीन होते हैं। +अर्थ शरीररुपी मकान को धारण करनेवाले तीन स्तंभ हैं; आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य (गृहस्थाश्रम में सम्यक् कामभोग) । +अर्थ क्रिया के बिना ज्ञान भारस्वरूप हैं। +अर्थ ज्ञान से रहित पशुओं के समान हैं। +अर्थ श्रद्धा ज्ञान देती है, नम्रता मान देती है और योग्यता स्थान देती है । +अर्थ वृद्धों की बात सुननी चाहिए एसा शास्त्रों का कथन है । + + +: अर्थ नीति को जानने वाले लोग चाहें निन्दा करें या प्रशंसा, धन आए या जाए, मृत्यु अभी आ जाए या चिरकाल के बाद आए, परन्तु धैर्यवान् लोग न्याय के मार्ग से विचलित नहीं होते । +: न्याय करने के लिये प्रवृत्त व्यक्ति की सहायता पशु भी करने लगते हैं जबकि गलत रास्ते (अपन्थ) पर चलने वाले का साथ उसके सगे भाई भी छोड़ देते हैं। +: ऐ हंस, यदि तुम दूध और पानी को भिन्न करना छोड़ दोगे तो तुम्हारे कुलव्रत का पालन इस विश्व मे कौन करेगा भावार्थ यह है कि यदि बुद्धिमान व्यक्ति ही इस संसार मे अपना कर्त्तव्य त्याग देंगे तो निष्पक्ष व्यवहार कौन करेगा) +* न्याय में देर करना न्याय को अस्वीकार करना है। ग्लेडस्टोन +* ईश्वरीय न्याय की चक्की यद्यपि मन्द गति से चलती है, किन्तु चलती अवश्य है। जार्ज हर्बर्ट +* न्याय वह है जो कि दूध का दूध, पानी का पानी कर दे, यह नहीं कि खुद ही कागजों के धोखे में आ जाए, खुद ही पाखंडियों के जाल में फँस जाए। – प्रेमचंद +* न्याय और नीति सब लक्ष्मी के दो खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती है नचाती है। प्रेमचंद +* न्याय वह है जो कि दूध, पानी का पानी कर दे, यह नहीं कि खुद ही कागजों के धोखो में आ जाए, खुद ही पाखंडियों के जाल में फँस जाए। प्रेमचंद +* सच्चाई का कार्य में बदल जाना न्याय है। डिजरायली +* कोई भी अच्छा निर्णय जानकारियो पर निर्भर करता है, आंकड़ों या संख्याओ पर नहीं। प्लेटो +* पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढ़कर और कोई धर्माचरण नहीं है। वाल्मीकि + + +: अर्थ जिस प्रकार सूर्य हजार गुना जल बरसाने के लिए ही पृथ्वी के जल का बहुत कम भाग लेता है, वैसे ही वे (राजा दिलीप) भी अपनी प्रजा के हित के लिए ही प्रजा से (बहुत कम मात्रा में कर लिया करते थे। +: अर्थ सूर्य जिस प्रकार पृथ्वी से अनजाने में ही जल खींच लेता है और किसी को पता नहीं चलता, किन्तु उसी जल को बादल के रूप में एकत्र कर वर्षा में बरसते देखकर सभी लोग प्रसन्न होते हैं। इसी रीति से कर संग्रह करके राजा द्वारा जनता के हित में कार्य करना चाहिए। +* व्‍यापारियों तथा कारीगरों को चाँदी और सोने के व्‍यापार में होने वाले अपने लाभ का पाँचवाँ हिस्‍सा और किसानों को अपनी उपज का छठा, आठवाँ या दसवाँ हिस्‍सा, अपनी हालात के आधार पर, कर के रूप में भुगतान करना चाहिए। मनु +* राजा को अपनी प्रजा से उसी प्रकार शुल्क या कर आदि वसूलना चाहिए जिस प्रकार मधुमक्खियां फूलों से पराग लेकर शहद बनाती हैं और छत्ते का निर्माण करती हैं। +: अर्थ जो प्राप्त न हो वो प्राप्त करना, जो प्राप्त हो गया हो उसे संरक्षित करना, जो संरक्षित हो गया उसे समानता के आधार पर बांटना। + + +* स्नान करना शरीर का धर्म है, संध्या करना आत्मा का धर्म है। + + +सत्यार्थ प्रकाश आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित ग्रन्थ है। +* जो पूर्ण विद्यायुक्त हैं, वे ही शिक्षा देने योग्य हैं। +* जो अध्यापक पुरूष और स्त्री दुष्टाचारी हो उनसे शिक्षा न दिलावे, किन्तु जो पूर्ण विद्यायुक्त धार्मिक हों, वे ही पढ़ने और शिक्षा देने योग्य हैं। +* किसी का अनुचित पक्षपात मत करो और न धर्मात्मा को अपने हृदय में स्थान दो। +* प्राणी मात्र पर दया दिखानी चाहिए। +* अनाथों, विधवाओं, दीन-दुखी जनों की सहायता और सामाजिक सुधार करने का प्रयत्न करना चाहिए। +* आर्य भाषा (हिन्दी) ही भारत की राजभाषा है। +* जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसा ही कहना, लिखना और मानना सत्य कहलाता है जो पदार्थ सत्य है उसके गुण, कर्म और स्वभाव भी सत्य होते हैं जो मनुष्य पक्षपाती होता है, वह अपने असत्य को भी सत्य और विरोधी मत वाले के सत्य को भी असत्य सिद्ध करने में प्रवृत्त होता है। इसलिए वह सत्य मत को प्राप्त नहीं हो सकता। +* अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि होनी चाहिए। +* यह आर्यावर्त देश ऐसा देश है, जिसके सदृश भूगोल में दूसरा कोई देश नहीं है। इसलिए इस भूमि का नाम सुवर्ण भूमि है। +* जब परदेशी हमारे देश में व्यापार करे तो दारिद्रय और दुःख के सिवा दूसरा कुछ भी नही��� हो सकता। +* ब्राह्मण और साधु अपने गुण, कर्म, स्वभाव से होते हैं, परोपकार उनका परम कर्म है। ब्राह्मण और साधु के नाम से उत्तम जनों ही का ग्रहण होता है। +* श्राद्ध, तर्पण आदि कर्म जीवित पात्रों जैसे माता, पिता, पितर, गुरु आदि के लिए होता है, मृतकों के लिए नहीं। + + +* कठिनाइयों के बीच ही अवसर छुपे हुए होते हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन +* सही अवसर की प्रतीक्षा न करें, इसे बनाएं। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* सफलता वहां है, जहाँ तैयारी और अवसर मिलते हैं। Bobby Unser +आज" सिर्फ एक और दिन नहीं है। यह एक नया अवसर, एक और मौका, एक नई शुरुआत है। इसे गले लगाओ। +* दबाव, चुनौतियाँ – वे सभी मेरे लिए उन्नति के अवसर हैं। कोबे ब्रायंट +* उद्यमी केवल वो हैं जो समझते हैं कि बाधा और अवसर के बीच थोड़ा सा अंतर है और वे दोनों को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। Victor Kiam +* उद्यमी हमेशा बदलाव के लिए काम करता है, और एक अवसर के रूप में इसका लाभ लेता है। पीटर ड्रकर +* यहां कोई गलतियाँ नहीं हैं, केवल अवसर हैं। Tina Fey +* असफलता केवल फिर से अधिक समझदारी से शुरूआत करने के लिए एक अवसर है। हेनरी फोर्ड +* एक बुद्धिमान व्यक्ति जितने अवसर उस को मिलते हैं उनसे ज्यादा अवसर वह बना लेता है। Francis Bacon +* यदि अवसर की खिड़की दिखाई देती है, तो इसे बंद न करे। टॉम पीटर्स +* अवसर आमतौर पर कड़ी मेहनत के रूप में दिखाई देते हैं, इसलिए अधिकांश लोग उन्हें पहचान नहीं पाते हैं। Ann Landers +* यदि कोई व्यक्ति आपको एक शानदार अवसर प्रदान करता है, लेकिन आपको यकीन नहीं है कि आप इसे कर सकते हैं, फिर भी ये अवसर प्राप्त कर लेना चाहिए – फिर बाद में इसे करना सीखे। Richard Branson +* ज्यादातर लोग अवसर को छोड़ देते हैं क्योंकि यह चोला पहने हुए है और काम की तरह दिखता है। थॉमस अल्वा एडीसन +* अवसर सूर्योदय की तरह होते हैं। यदि अपने देर कर दी, तो आप उन्हें खो देंगे। William Arthur Ward +* बहुत से लोग समय का बहाना बनाकर अवसर को खो देते हैं। इसलिये इंतजार मत करो। समय कभी भी सही नहीं होता है। Stephen C. Hogan +* अवसर देखने के लिए हमारा दिमाग सभी तरह के विचारों के लिए खुला होना चाहिए। Catherine Pulsifer +* हर जगह अवसर है। बस इसे देखने के लिए नजरिया विकसित करना है। अज्ञात +* बदलाव की अपेक्षा करें। परिदृश्य का विश्लेषण करके अवसर बनाओ। शतरंज का टुकड़ा बनना बंद करो; खिलाड़ी बन जाओ। यह आपकी बाज़ी है। टोनी रॉबिंस +* अगर अवसर खुद आपके पास आये, तो इसका पीछा ��रने से डरो मत। Eddie Kennison +* आपका बड़ा अवसर वही हो सकता है जहाँ आप अभी हैं। नेपोलियन हिल +* बहुत से लोग अवसर के बजाय सुरक्षा के बारे में ज्यादा सोच रहे हैं। वे मृत्यु से ज्यादा जीवन से डरे हुए लगते हैं। James F. Byrnes +* विजय समस्याओं में अवसर खोजने से आती है। Sun Tzu + + +* प्रकृति में असीम रूप से छोटे की भूमिका असीम रूप से महान है। +* कठिनाइयों को पार करना ही हीरो बनाता है। +* एक काम करना चाहिए, एक काम करना चाहिए। मैं जो कर सकता था मैंने किया है। +* अवलोकन के क्षेत्र में मौका केवल तैयार दिमाग का ही होता है। +* व्यावहारिक विज्ञान जैसी कोई चीज नहीं है केवल विज्ञान के अनुप्रयोग हैं। +* शराब सबसे स्वास्थवर्धक और सबसे स्वच्छ पेय पदार्थ है। +* अपने आप को एक बंजर संदेह से कलंकित न होने दें। +* मौके तैयार मन के पक्ष में जाते है। +* जब मैं किसी बच्चे के पास जाता हूँ, तो वह मुझमें दो भावनाओं को प्रेरित करता है; वह जो है उसके लिए कोमलता, और जो वह बन सकता है उसके लिए सम्मान। +* विज्ञान किसी देश को नहीं जानता, क्योंकि ज्ञान मानवता का है, और वह मशाल है जो दुनिया को रोशन करती है। +* धन्य है वह जिसके भीतर ईश्वर है और जो उसका पालन करता है। मानव कार्यों की भव्यता उस प्रेरणा से मापी जाती है जिससे वे वसंत करते हैं। + + +* शराब शरीर और आत्मा दोनों का नाश करती है। महात्मा गाँधी +* मदिरा में सत्य है। रोमन कहावत + + +: साहित्य, संगीत और कला से विहीन मानव पशु ही है जिसके पूँच और सींग नहीं हैं। +* संगीत वह अभिव्यक्त कर देता है, जिसे कहा नही जा सकता और जिस पर चुप रहना भी असंभव है। विक्टर ह्यूगो +* संगीत भावनात्मक रूप से हमे छूता है, जबकि सिर्फ शब्द ऐसा नही कर सकते। जॉनी डेप +* एक चित्रकार कपड़े पर चित्र बनाता है। लेकिन संगीतकार अपनी तस्वीरों को ख़ामोशी पर रंग देते हैं। लियोपोल्ड स्टोकोव्स्की +* संगीत एक नैतिक कानून है। यह ब्रह्माण्ड की आत्मा बनता है, मन को पंख लगा देता है, कल्पना को उड़ान प्रदान करता है तथा जीवन और सभी वस्तुओं को उल्लास और आकर्षण प्रदान करता है। प्लेटो +* संगीत इस संसार का सबसे महान संचार का माध्यम है। यदि लोग आपकी भाषा जिसमे आप गा रहे हो, ना भी समझ पाए, लेकिन अच्छे संगीत को वह भी सुनकर ज़रूर जान जाएंगे। लॉ रॉल्स +* इसीलिए लोग संगीत सुनते हैं और तस्वीरें हैं, जिससे कि वे पूर्णता के संपर्क में बने रह पाएं। कॉ���िटा केंट +* संगीत, अपने सार रूप में, हमे स्मृतियाँ देता है। और एक गीत जितने अधिक समय के लिए हमारे जीवन में रहता है, उससे जुड़ी उतनी ही अधिक स्मृतियाँ हमारे पास बनती जाती हैं। स्टेवी वंडर +* संगीत लोगों से ऐसे अंदाज़ में बातें कर सकता है, जिससे कि दायरे और सीमाएं टूट जाती हैं, जो अक्सर शब्द और कार्यों से मुमकिन नही हो पाता। डैन रेनॉल्ड्स +* संगीत हमे यह बताता है कि मानव जाति को जितना हम समझते हैं, यह उससे भी महान है। नेपोलियन बोनापार्ट +* आपको लंबी गहरी सांस लेकर संगीत को अपने अंदर प्रवाहित होने देना चाहिए। इसका आनंद ले, और स्वयं को चकित होने दे। जब आप संगीत सुनते हैं, तब आप इसे इसकी ख़ूबसूरती के कारण अपना दिल तक तोड़ने देते हैं। केली व्हाइट +* संगीत और ख़ामोशी एक दूसरे से मजबूती से जुड़े हुए हैं क्योंकि संगीत ख़ामोशी से ही सुना जाता है और ख़ामोशी संगीत से भरी हुई होती है। मार्सेल मार्सेओ +* संगीत की असल ख़ूबसूरती इसमें है कि यह लोगों को जोड़ती है। यह एक सन्देश देती है, और हम, संगीतकार इसके संदेशवाहक होते हैं। रॉय आयर्स +* मेरे ख्याल से संगीत आपको कई तरीकों से प्रभावित कर सकता है। जब आप एक ख़ुशी का गीत सुनते हैं, तो यह आपकी मनोदशा को बदल सकता है, और यह आपके दिन को बदल सकता है। काइगो +* संगीत से आप चलते हैं। यह आपको जगाता है, आपको संचालित रखता है। और दिन के अंत में, सही धुन आपको शांति प्रदान करती है। डिमेबग डेरेल +* संगीत वैयक्तिकता की अभिव्यक्ति है; इसी से आप संसार को देखते हो। सभी कला इसके अंतर्गत आती हैं। आप संसार के अनुभव प्राप्त करते हो, उसकी व्याख्या करते हो, और उसे आगे बढ़ाते हो, अभिव्यक्त करते हो- भले ही वह मूर्तिकला हो, नृत्य या फिर गायन हो। डेविड सनबोर्न +* मेरे विचार में संगीत में लोगों को बदलने की शक्ति होती है, और ऐसा करके, यह परिस्थितियों को भी बदल सकती है- बड़े तथा छोटे दोनों स्तर पर। जोआन बीज़ +* संगीत सुनकर पुरुष के ह्रदय से अग्नि उत्पन्न होनी चाहिए और स्त्री की आँखों से आंसू निकलने चाहिए। लुडविग वैन बीथोवेन +* अपने सत्य को जियो। प्रेम को प्रदर्शित करो। उत्साह को बांटना चाहिए। अपने सपनों की पूर्ति की ओर कार्य करने चाहिए। अपनी बातों पर अमल करें। अपने संगीत को गाइये और नृत्य करें। शुभकामनाओं को स्वीकार करें। आज के दिन को स्मरण योग्य बनाएं। स्टीव मारबोली +* संगीत ��ूठ नही बोलता। अगर इस संसार में कुछ परिवर्तित किया जा सकता है, तो वह सिर्फ संगीत के ज़रिये ही किया जा सकता है। जिमी हेंड्रिक्स +* संगीत ईश्वर के सम्मान और आत्मा के अनुमेय उल्लास के मध्य एक सहमतिपूर्ण किया गया सद्भाव है। जोहान सेबेस्टियन बैच +* यदि लोग मेरे संगीत से कुछ सीखना चाहते हैं, तो वह यह प्रेरणा है कि सब कुछ संभव है अगर उसके लिए कार्य करते रहे और पीछे ना हटें। एमिनेम +* गायन उस भाव को दर्शाने का जरिया है जिसे आप अभिनय से प्रदर्शित नही कर सकते। संगीत आपकी आत्मा को झकझोर देता है, इसलिए संगीत आपके जीवन के सबसे गहरे मनोभावों का उद्गम है। अमांडा सैफ्रीड +* लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं संगीत कैसे बनाता हूँ। मैं उन्हें बताता हूँ कि मैं बस इसमें उतर जाता हूँ। यह एक नदी में उतर कर नदी के प्रवाह से जुड़ने जैसा ही है। नदी में एक एक क्षण का अपना गीत होता है। माइकल जैक्सन +* संगीत एक ऐसी भाषा है, जिसे शब्दों से नही बोला जा सकता। यह भावों के ज़रिये बोलता है, और यदि यह आपको अपने शरीर के भीतर महसूस होता है, तो यह वहां मौजूद होता है। कैथ रिचर्ड्स +* संगीत स्वयं में ही एक जीवन है। अच्छे संगीत के बगैर यह संसार क्या ही होगा? भले ही वह किसी भी तरह का हो। लुइस आर्मस्ट्रांग +* जीना संगीत सुनने जैसा ही है, ठीक वैसे ही जब रक्त आपकी नसों में नृत्य करता है हर सजीव वस्तु की अपनी लय होती है। क्या आप अपना संगीत महसूस कर सकते हो माइकल जैक्सन +* जहाँ पर शब्द काम करना बन्द कर देते हैं, वहां से संगीत बोलना शुरू करता है। क्रिस्चियन एंडरसन +* सूर्य की धूप के जैसे ही, संगीत भी एक शक्तिशाली बल है जो तुरंत ही और रासायनिक रूप से भी आपके मनोभावों को बदल सकता है। माइकल फ्रांटी +* जीवन एक खूबसूरत राग के जैसे ही है, जिसके बस बोल बिखरे हुए हैं। हैंस क्रिस्चियन एंडर्सन +* मुझे नही पता कि संगीत के बिना कार्य कैसे किये जाते हैं। जब मैं संगीत नही बना रही होती हूँ, तब मैं इसे सुन रही होती हूँ। यह मुझे साहस देता है और मेरे मस्तिष्क का ध्यान रखता है। बिली एलिश +* सबसे अच्छे संगीत में ऐसा कुछ ज़रूर होता है, जिसके सहारे से आप दुनिया का सामना कर सकते हो। ब्रूस स्प्रिंगस्टीन +* संगीत आत्माओं की भाषा है। यह शांति बनाने और कलह मिटाने के रास्ते खोल सकता है। काहलिल गिब्रन +* मेरे जीवन में मैंने संगीत को ही एकमात्र वास्तविक जादू के रूप मे�� देखा है। इसके साथ कोई चालाकी नही जुड़ी होती है। यह शुद्ध और वास्तविक होता है। यह चलता है, यह ज़ख्म भरता है, यह बातें करता है और ऐसी ही अन्य अद्भुत कार्य करता है। टॉम पेटी +* किताबों की तरह ही, संगीत हमारे जीवन को सकारात्मक अथवा नकारात्मक रास्ते पर मोड़ सकता है। कैथरीन पल्सिफायर +* संगीत जादू का सबसे अधिक मजबूत रूप है। मर्लिन मुनरो +* संगीत एक ऐसे आनन्द को जन्म देता है, जिसके अभाव में मानव कुछ भी नही कर सकता है। कन्फ्यूसियस +* मेरा मानना है कि संगीत स्वयं ही घाव भर सकता है। यह मानवता के भावों के विस्फोट के रूप में सामने आता है। इसमें कुछ ऐसा होता है, जो हमे अंदर तक छू जाता है। इससे फर्क नही पड़ता कि हम किस संस्कृति से जुड़े हुए हैं, संगीत सभी को पसंद होता है। बिली जोएल +* संगीत हृदय का साहित्य होता है; यह वहाँ प्रारम्भ होता है, जहाँ पर शब्द समाप्त हो जाते हैं। अल्फोंसे डी लामार्टिने +* संगीत गणित नही होती। यह विज्ञान है। आप चीज़ों को जोड़ते रहते हो, जब तक कि यह आपका दिमाग न उड़ा दे, या फिर तब तक जब तक कि ऐसा एक अद्भुत मिश्रण ना तैयार हो जाये। ब्रूनो मार्स +* संगीत आपका अपना अनुभव होता है, आपके विचार और आपका ज्ञान होता है। यदि आप इसे जीते नही है, तो यह कभी आपके मस्तिष्क से बाहर ही नही आएगा। चार्ली पार्कर +* मेरा हृदय जो हमेशा भरा रहता है, कई बार एकाकी भी हो जाता है, और फिर यह थका हुआ होने के बावजूद संगीत के कारण प्रसन्न हो जाता है। मार्टिन लूथर +* इस संसार में हर एक वस्तु की एक लय होती है और हर वस्तु नृत्य भी करती है। माया एंजेलो + + +: सदाचार से आयु की प्राप्ति होती है, सदाचार से अभिलषित सन्तान की प्राप्ति होती है, सदाचार से उस धन की प्राप्ति होती है जो कभी नष्ट नहीं होता, सदाचार से बुरी आदतों का नाश होता है। +: आचार ही श्रेष्ततम धर्म है, तपस्या है तथा ज्ञान है। सदाचरण से भला क्या प्राप्त नही किया जा सकता? +: भावार्थ — चरित्र की प्रयत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिए, धन तो आता-जाता रहता है। धन के नष्ट हो जाने से व्यक्ति नष्ट नहीं होता पर चरित्र के नष्ट हो जाने से वह मरे हुए के समान है॥ +: इस संसार में पुरुष में चरित्र ही मुख्य गुण होता है। जिसका शील नष्ट हो जाता है वह मर जाता है। उसके न जीवित रहने का कोई मतलब है, न धन का न बन्धुओं का। +: अर्थ हे लोगो) धर्म का सार सुनिये। सुन कर समझ लें कि जो (व्यवह��र) अपने लिये प्रतिकूल लगे, उसे दूसरों के प्रति आचरण न करें। +: दूसरों को उपदेश देने में बहुत से लोग दक्ष (कुशल) हैं किन्तु जो उन उपदेशों के अनुसार आचरण करते हैं वे बहुत कम हैं। दूसरे शब्दों में, उपदेश देना तो बहुत आसान है लेकिन स्वयं उन उपदेशों पर अमल करना कठिन। +चरित्र वृक्ष है, और प्रतिष्ठा उसकी छाया। अब्राहम लिंकन +चरित्र का हीरा विपदाओं के तमाम, पाषाण खण्डो को भी काट देता है। बार्टल +चरित्र के शुद्ध होने से ही, सारे ज्ञान का ध्यान होना है। महात्मा गांधी +एक चरित्रवान इन्सान, कभी भी अपने पद और अपने शक्ति का, भरपूर फायदा नहीं उठा सकता है। माघ +एक महान चरित्र का निर्माण, अच्छे-अच्छे विचारो से होता है। अज्ञात +इन्सान बिना सफलता के तो रह सकताहै, मगर वह बिना चरित्र के नहीं रह सकता है। इमर्सन +एक इन्सान का असली चरित्र तब सामने आता है, जब वह नशे में होता है। चार्ली चैपलिन +चरित्र का विकास आसानी से नहीं किया जा सकता। हेलेन केलर +औरत के चरित्र का पता भगवान नहीं लगा सकता है, फिर तो इन्सान तो भगवान के हाथो की कठपुतली है। अज्ञात +चरित्र परिवर्तनशील नहीं, बल्कि उसका विकास होता है। डिजरायली +तुम कुलीन हो या अकुलीन, वीर हो या कायर, पवित्र हो या अपवित्र, यह आपके चरित्र से ज्ञात हो जाएगा। वाल्मीकि +चरित्र निर्माण के तीन आधार स्तम्भ है, अधिक निरीक्षण करना, अधिक अनुभव करना एवं अधिक अध्ययन करना। कैथराल +स्त्री कभी भी पति की दौलत के, सुखी या दुखी नहीं होती.उसका सुख या दुख पति की योग्यता और चरित्र पर निर्भर करता है। जॉर्ज बर्नाड शॉ +चरित्र द्वारा शासित व्यक्ति वैसे ही श्रेष्ठ है, जैसे जीवित मृतकों से। अरस्तू +चरित्र निर्माण का अर्थ है, स्वयं को अनुशासित, सुसंगठित और व्यवस्थित बनाना। आचार्य वेदान्त तीर्थ +चरित्र की शुद्धि ही, सारे ज्ञान का ध्येय होनी चाहिए। महात्मा गांधी +इन्सान के अन्दर, यश बाहर और चरित्र अन्दर होता है। अज्ञात +इन्सान के चरित्र से, इन्सान की प्रवृति आंकी जा सकती है। वाल्मीकि +यदि आपका चरित्र सही है तोगया हुआ धन फिर से कमाया जा सकता है अज्ञात +अधिकांश पुरुष नारियों में वह खोजते है, जिसका स्वयं उनके चरित्र में अभाव होता है। फील्डिंग'' +चरित्र जब गिरता है तब मिट्टी के बर्तन की भाँति चकनाचूर हो जाता है। माघ +चारित्रिक का गठन, इंसान की प्रथम आवश्यकता है। स्वामी विवेकानन्द +चरित्र कभी भी ज्ञान, पैसा आदि में वृद्धि नहीं करता है, बल्कि चरित्र दूसरो के दिलो में जाकर, अपना घर बनाता है। डॉटेड +एक चरित्र का निर्माण, छोटे-छोटे विषय से ही बनता है।फिल्लिप ब्रुक्स +अपनी बात मनवाने का सबसे प्रभावी माध्यम, चरित्र होता है। अरस्तू +चरित्र की शिक्षा पाए हुए के लिए, सभी देश और सभी नगर पराए होकर भी, अपने बन जाते है। तिरुवल्लुवर +मनुष्य का चरित्र वह वस्त्र है, जो विचारो के धागो से बनता है। जेम्स एलन + + +* व्यक्ति की पहचान उसके कपड़ों से नहीं उसके चरित्र से होती है। महात्मा गाँधी +* खादी केवल वस्त्र नहीं अपितु विचार, स्वाभिमान और रोेजगार का माध्यम भी है। + + +: कलियुग में संघ में ही शक्ति है। +: जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है। +: सिंह को जंगल का राजा नियुक्त करने के लिए न तो कोई अभिषेक किया जाता है, न कोई संस्कार । अपने गुण और पराक्रम से वह खुद ही मृगेंद्रपद प्राप्त करता है । +: दुर्जन की विद्या विवाद के लिये, धन उन्माद के लिये, और शक्ति दूसरों को कष्ट देने के लिये होती है। इसके विपरीत सज्जन इनको क्रमशः ज्ञान, दान और दूसरों के रक्षण के लिये उपयोग करते हैं। +: महापुरुषों की क्रिया-सिद्धि पौरुष से होती है, न कि साधन से। +* विद्वान् का बल विद्या और बुद्धि है। राष्ट्र का बल सेना और एकता है। व्यापारी का बल धन और चतुराई है। सेवक का बल सेवा और कर्तव्यपरायणता है। शासन का बल दंड-विधान और राजस्व है। सुन्दरता का बल युवावस्था है। नारी का बल शील है। पुरूष का बल पुरुषार्थ है। वीरों का बल साहस है, निर्बल का बल शासन व्यवस्था है। बच्चों का बल रोना है। दुष्टों का बल हिंसा है। मूर्खों का बल चुप रहना है और भक्त का बल प्रभु की कृपा है। +* शक्ति भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख होती है, और पूरी तरह से निरपेक्ष शक्ति पूरी तरह से भ्रष्ट करती है। लॉर्ड ऐक्टन + + +* दुनिया में कोई देश गुलामी की निशानियों को सँजो कर नहीं रखता। आज विदेशी कंपनियों की लूट बंद करने का उपाय है विदेशी वस्तुओं का त्याग। राजीव दीक्षित +* अगर आप विदेशियों पर निर्भर हैं, प्रावलम्बी हैं, तो आप दुनिया में कोई ताकत हासिल नहीं कर सकते। राजीव दीक्षित +* केवल स्वदेशी नीतियों से ही देश फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है। राजीव दीक्षित +* भारत को अंग्रेजों के कानून रद्द करके भारत की व्यवस्थाओं और अपने देश के अ���ुसार कानून बनाने चाहिए। राजीव दीक्षित +स्वदेशी आन्दोलन के सम्बन्धित नारे +आओ करें प्रण, भारत बने आत्मनिर्भर । +आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना, भारत को स्वदेशी बनाना । +स्वदेशी अपनाना है, भारत की पुरानी पहचान दिलाना है । +भारत का हित, स्वदेशी में निहित । +जन जन का ये नारा है, अब से सिर्फ स्वदेशी अपनाना है । +जन जन की है पुकार, स्वदेशी पर होगा हमारा अधिकार । +स्वदेशी अपनाकर पूरे विश्व में भारत का मान बढ़ाये । +भारत हमारी माता है इसकी शान में हम स्वदेशी अपनायेगे । + + +* लक्ष्य निर्धारण, अदृश्य को दृश्य बनाने वाला पहला कदम है। +* सभी अच्छे प्रदर्शन (पर्फॉर्मैंस) स्पष्ट लक्ष्यों के साथ शुरू होते हैं। केन ब्लैंकार्ड +* लक्ष्य आपको अपने लिए और दूसरों के लिए भी अधिक सक्षम बनाते हैं। जिग जिगलर +* लक्ष्य आपकी ऊर्जा को क्रिया में लाने में आपकी सहायता करते हैं। लेस ब्राउन Les Brown ) +* अनुशासन लक्ष्यों और सिद्धि के बीच का सेतु (पुल) है। जिम रॉन +* महत्वाकांक्षा के बिना कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। Kya Aliana +* कागज पर अपने लक्ष्यों को पूरा करने से आपके उन्हें प्राप्त करने की संभावना एक हजार प्रतिशत बढ़ जाती है। Brian Tracy +* लक्ष्यों के बीच में जीवन नामक एक चीज है, जिसे जीना और आनन्द लेना है। Sid Caesar +* लक्ष्य, एक समय-सीमा के साथ देखा गया एक सपना है। नेपोलीयन हिल +* मुझे लगता है कि लक्ष्य कभी भी आसान नहीं होने चाहिए। अक्ष्य ऐसे हों जो आपको काम करने के लिए मजबूर करें, भले ही वे उस समय असहज हों। Michael Phelps +* बाधाएँ भयावह चीजें हैं। उन्हें आप तब देखते हैं जब आपकी दृष्टि अपने लक्ष्य से दूर हो जाती है। हेनरी फोर्ड +* जब असफलता मिले तो इसे संकेत समझें कि आपकी योजना ठीक नहीं है। उन योजनाओं को फिर से बनाएँ और अपने प्रतिष्ठित लक्ष्य की ओर एक बार फिर से चल पड़ें। नैपोलियन हिल्ल +* छोटा लक्ष्य लेकर चलोगे तो छोटी उपलब्धि होगी। बड़ा लक्ष्य लेकर चलो और बड़ी सफलता मिलेगी। David Joseph Schwartz +* लक्ष्य तब असम्भव लगते हैं, जब आप उनकी ओर नहीं बढ़ रहे होते हैं। Mike Hawkins + + +* आत्म-अनुशासन से स्वतंत्रता मिलती है। अरस्तू +*️ अगर आपका खुद पर अनुशासन नहीं होगा, तो आप पर कोई भी व्यक्ति अपना शासन स्थापित कर सकता है। +*️ अनुशासन एक आदत होनी चाहिए, ताकि यह मुकाबले के जोश से मजबूत हो जाए। अज्ञात +*️ अनुशासन एक बच्चे के उत्साह को उसका आधा भी नहीं तोड���ती, जितनी अक्सर इसकी कमी माता-पिता का दिल तोड़ देती है। अज्ञात +* अनुशासन और अभ्यास से ही आत्मविश्वास पैदा होता है। रॉबर्ट कियोसाकी +*️ अनुशासन और एकाग्रता रुचि रखने का विषय है। टॉम काइट +*️ अनुशासन और प्रतिबद्धता लक्ष्यों और सपनों तक पहुँचने का मार्ग है। डॉ अनिल कुमार सिन्हा +*️ अनुशासन की अग्नि से कई कोयले हीरे बन कर निकले हैं। +*️ अनुशासन की कमी निराशा और आत्म-घृणा की ओर ले जाती है। मैरी चैपियन +*️ अनुशासन के प्रति प्रेम बच्चे को दूसरों का सम्मान करने और एक जिम्मेदार, रचनात्मक नागरिक के रूप में जीने के लिए प्रोत्साहित करता है। डॉ. जेम्स डॉब्सन +* अनुशासन के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है। वेद व्यास +*️ अनुशासन के बिना न तो किसी व्यक्ति और न किसी समाज का उत्थान हो सकता है। +*️ अनुशासन के बिना प्रतिभा रोलर स्केट्स पर एक ऑक्टोपस की तरह है। एच. जैक्सन ब्राउन +*️ अनुशासन के बिना सेना सिर्फ एक ही रंग के कपड़े पहने लोगों का एक समूह होगी। फ्रैंक बर्न्स +*️ अनुशासन कोई सदाचार नहीं है, बल्कि सच्चरित्र का रक्षक है। कोल्बी टेटम +*️ अनुशासन ज्ञान है और विपरीततया। एम. स्कॉट पेक +*️ अनुशासन लक्ष्यों और उपलब्धियों के मध्य का सेतु है। जिम रोहन +*️ अनुशासन वह करना है, जिसे आपके न चाहते हुए भी करने की आवश्यकता है। अज्ञात +*️ अनुशासन वह परिष्कृत अग्नि है, जिसके द्वारा प्रतिभा क्षमता बनती है। रॉय एल. स्मिथ +*️ अनुशासन वह स्मृति करना है, जो आप चाहते हैं। डेविड कैंपबेल +*️ अनुशासन वो निर्मल अग्नि है जिससे प्रतिभा क्षमता में परिवर्तित हो जाती है। +*️ अनुशासन सिर्फ़ सैनिकों को दुश्मन से ज्यादा उनके अधिकारियों से डराने की कला है। क्लॉड एड्रियन हेल्वेटियस +* अनुशासन सेना की आत्मा है। यह छोटी संख्या को भयंकर बना देती है; कमजोरों को सफलता और सभी को सम्मान दिलाती है। जॉर्ज वाशिंगटन +* अनुशासन ही अपने जीवन के उद्देश्य और उपलब्धि के बीच का सेतु है। Jim Rohn +*️ अनुशासन ही उद्देश्य और उपलब्धि के बीच का सेतु है। +* अपनी इच्छाओं पर अनुशासन ही आपके चरित्र का आधार है। जॉन लॉक +*️ अपने मष्तिष्क को नियंत्रित कीजिये नहीं तो आपका मष्तिष्क आपको नियंत्रित करने लगेगा। +*️ अवसर को सफलता में तब्दील करने के लिए अनुशासन की आवश्यकता होती है। +*️ आत्म अनुशासन अमीर, मध्यम वर्ग और गरीबों के बीच का सबसे पहला सीमा निर्धारक कारक है। रॉबर्ट कियोसाकी +*️ आत्म-अनुशासन से कुछ भी सम्भव है। थियोडोर रूसवेल्ट +* आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने हृदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो। अनुशाषित रहो। भगवद्गीता +*️ आत्म-निपुणता और आत्म-अनुशासन दूसरों के साथ अच्छे संबंधों की नींव है। स्टीफन आर. कोवे +*️ आत्म-सम्मान, अनुशासन का फल है। आत्म-सम्मान की भावना स्वयं को न कहने की क्षमता के साथ बढ़ती है। अब्राहम जोशुआ हेशेल +*️ आप अपने मस्तिष्क पर नियंत्रण करिए अन्यथा दिमाग आप पर नियंत्रण कर लेगा। +*️ आप कभी भी पहाड़ पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते। आप मात्र स्वयं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। जिम व्हिटकर +*️ आपको महान चीजों में अनुशासित और छोटी चीजों में अनुशासनहीन नहीं किया जा सकता। जॉर्ज एस. पैटन +*️ एक अनुशासन हमेशा दूसरे अनुशासन की ओर ले जाता है। जिम रोहन +*️ एक अनुशासन, जो मैंने देखा है वह है लोगों के प्रति प्रेम और श्रद्धा का दृष्टिकोण। बेसी हेड +*️ एक मछली पानी में डूब जाती यदि वह प्रतिदिन तैरने का अभ्यास न करती। +*️ एक शेर भी अनुशासन का पालन किये बिना शिकार नहीं कर सकता है। +*️ एकमात्र अनुशासन जो कायम रहता है, वह आत्म-अनुशासन है। बम फिलिप्स +*️ किसी बात को लिख कर रखने का अनुशासन उस बात को कर दिखाने की तरफ पहला सोपान है। Lee Iacocca +*️ जब व्यक्ति अनुशासन में रहना प्रारम्भ कर देता है, वह जीवन का असली सार समझ जाता है। +*️ ज़िम्मेदार व्यक्ति बनने के लिए ज़िम्मेदारियाँ उठाना एवं उनका पालन करना आवश्यक होता है। +*️ जो अनुशासन के बिना रहता है, वह बिना सम्मान के मर जाता है। आइसलैंडिक नीतिवचन +*️ जो व्यक्ति स्वयं को नियंत्रित न कर सके, वह दूसरों को नियंत्रित करने के योग्य नहीं है। विलियम पेन +*️ दृढ निश्चय एवं दृढ निष्ठां आपकी दिव्या सफलता का कारण बन जाएंगी। +*️ प्रकृति खूबसूरत है क्यूंकि वह कभी भी अनुशासन का पालन करना बंद नहीं करती। +*️ प्रत्येक अनुशासित प्रयास के लिए एक से अधिक पुरस्कार हैं। जिम रोहन +*️ प्रेरणा आपको चलायमान रखती है, लेकिन अनुशासन आपका विकास करता रहता है। जॉन सी. मैक्सवेल +*️ बाहर से लगाई गई अनुशासन अंततः पराजित हो जाती है, जब वह भीतर की इच्छा से मेल नहीं खाती। डॉसन अर्ल ट्रॉटमैन +*️ बिना अनुशासन के दृढ़ वचन, भ्रांति का आरम्भ है। Jim Rohn +* यदि हर घर में अनुशासन का पालन किया जाये तो युवाओं द्वाराकि�� जाने वाले अपराधों में ९५ प्रतिशत तक कमी आ जाएगी। J. Edgar Hoover +*️ लोग अनुशासन को नहीं अपना पाते क्योंकि आरम्भ में अनुशासन अत्यंत कष्ट देता है। +*️ समय से पहले सफल होने के लिए हर कार्य को समय पर पूरा करना आवश्यक है। +*️ सभी उत्कृष्टता में अनुशासन और उद्देश्य की दृढ़ता सम्मिलित है। जॉन डब्ल्यू गार्डनर +*️ सिद्धि, निरंतरता के सिद्धान्त पर चल कर प्राप्त होती है। +*️ स्व-आदेश मुख्य अनुशासन है। राल्फ वाल्डो इमर्सन +* स्वतंत्रता ढूंढ़िए और अपनी इच्छाओं के कैदी बन जाइये, लेकिन अनुशासन ढूंढ़िए और अपनी स्वतंत्रता पाइये। फ्रैंक हर्बर्ट +*️ स्वयं को वह करने के लिए अनुशासित करो, जो तुम जानते हो कि सही और महत्वपूर्ण है। गर्व, आत्मसम्मान और व्यक्तिगत संतुष्टि का मुख्य मार्ग यद्यपि दुर्गम है। मार्गरेट थैचर +*️ हम दबाव से अनुशासन नहीं सीख सकते। महात्मा गांधी +* हम सभी को दो चीजें बर्दाश्त करनी पड़ती हैं: अनुशासन का कष्ट या पछतावे और मायूसी की पीड़ा। Jim Rohn + + +* लोकतंत्र जनता की, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन है। अब्राहम लिंकन +* लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है। हेनरी एमर्शन फास्डिक +* शान्तिपूर्वक सरकार बदल देने की शक्ति प्रजातंत्र की आवश्यक शर्त है। प्रजातन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है बल्कि नेताओं को बिना उनकी हत्या किये बदल देने में है। लार्ड बिवरेज +* बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन। महात्मा गांधी +* सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। स्वामी विवेकानन्द +* लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। जयप्रकाश नारायण +* लोकतंत्र के बारे में मेरी यह धारणा है कि इसमें कमजोर से कमजोर आदमी के पास भी उतने ही अवसर होने चाहिए जितने कि सबसे ताकतवर के पास। महात्मा गांधी +* सच्चा लोकतंत्र किसी एक केंद्र में बीस आदमियों के मिल बैठने से नहीं चलाया जा सकता। इसे नीचे से काम करना चाहिए, लोकतंत्र का संचालन गांव-गांव के लोगों द्वारा खुद से होना चाहिए। महात्मा गांधी +* लोकतंत्र का मार्ग घुमावदार हो सकता है, यह कई बार मुड़ने वाली नदी की तरह हो सकता है, लेकिन अंततः नदी को (जनहित रूपी) समुद���र में ही मिल जाना है। चेेेेन शुई-बियान +* मेरा सिद्धान्त यह है कि बहुमत की इच्छा ही लागू होनी चाहिए थॉमस जेफरसन +* लोकतंत्र का प्राथमिक सिद्धांत है व्यक्ति का मूल्य और उसकी गरिमा। एडवर्ड बेलामी +* लोकतंत्र का अर्थ सरकार के एक स्वरूप से बढ़कर सिद्धान्तों से एक समुच्चय से है। वुडरो विल्सन +* स्वाभाविक तौर पर तनाशाही का जन्म लोकतंत्र से ही होता है, और निरंकुशता व गुलामी का सबसे चरम रूप सबसे स्वच्छंद आजादी से जन्म लेता है। प्लेटो +* दैनिक नागरिकता के बिना दैनिक लोकंतत्र नहीं हो सकता। राल्फ नैडर +* लोकतंत्र कोई पूरा हो जाने वाला काम नहीं है। लोकतंत्र हमेशा चलते रहने वाला काम है जो एक राष्ट्र को करते रहना चाहिए। आर्कीबाल्ड मैकलीश +* महान लोकत्रंत को प्रगतिशील होना चाहिए, अन्यथा जल्द ही यह महान लोकतंत्र नहीं रह जाएगा। थियोडोर रूजवेल्ट +* लोकतंत्र में व्यक्ति के पास केवल सर्वोच्च शक्ति ही नहीं होती बल्कि उसके ऊपर जिम्मेदारी भी सबसे बड़ी होती है। नॉर्मन कजिंस +* इतिहास का सबक स्पष्ट है: अंत में लोकतंत्र की ही जीत होती है। मार्जोरी केली +* लोकतंत्र में बहुमत का सिद्धान्त सर्वोपरि नहीं है बल्कि अल्पतंत्र की रक्षा सर्वोपरि है। अल्बेयर कामू +* लोकतंत्र में सवाल केवल वोट पाने का नहीं है, बल्कि इसमें प्रत्येक नागरिक की संभावनाओं और समाज में जीवन के विमर्श में उसके सहभागी होने की क्षमताओं का सशक्तीकरण निहित है फर्नैंडो कार्डोसो +* लोकतंत्र तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि मतदाता अपना चुनाव बुद्धिमत्ता से न करें। इसलिए लोकतंत्र की वास्तविक रक्षा के लिए शिक्षा जरूरी है। फ्रैंकलीन डी. रूजवेल्ट +* राजनैतिक लोकतंत्र तब तक टिकाऊ नहीं हो सकता है जब तक कि इसके मूल में सामाजिक लोकतंत्र न हो। सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ क्या है? जीने का वह तरीका, वह जीवन शैली जिसमें आजादी, बराबरी और भाईचारे को जीवन के सिद्धांत के रूप में माना जाता हो। बी.आर. अंबेडकर +* लोकतंत्र दो भेड़िए और एक भेड़ द्वारा इस बात पर वोटिंग करना नहीं है कि खाने में क्या होना चाहिए। जेम्स बोवार्ड +* लोकतंत्र समाजवाद के लिए अपरिहार्य है। व्लादिमीर लेनिन +* शिक्षा एक ऐसा मानवाधिकार है जिसमें परिवर्तन लाने की अथाह क्षमता है। इसकी नींव स्वतंत्रता, लोकतंत्र और धारणीय मानव विकास पर टिकी होती है। कोफी अन्नान +* पत्रकारिता वह चीज है जो लोकतंत्र को चलाए रखने के लिए जरूरी है। वाल्टर क्रोंइकाइट +* तानाशाही का सबसे जोरदार हथियार है गोपनीयता, लेकिन लोकतंत्र का सबसे असरदार हथियार है खुलापन। नील्स बोर +* मानव अस्तित्व के इस संभावित अंत वाले चरण में, लोकतंत्र और स्वतंत्रता महज दो मूल्यवान विचारों से बढ़कर हैं। इनका असली महत्व मानव अस्तित्व को बचाए रखने में होगा। नोम चोम्सकी + + +* बुरे अधिकारी उन अच्छे लोगों द्वारा चुने जाते हैं जो मतदान नहीं करते। जॉर्ज जीन नाथन +* बुलेट की तुलना में बैलेट (मत) अधिक बलवान होता है। अब्राहम लिंकन +* एक वोट एक राइफल की तरह है: इसकी उपयोगिता उपयोगकर्ता के चरित्र पर निर्भर करती है। +* चुनाव जनता से संबंधित होता है। +* हर चुनाव तमाशा करने वाले लोगों द्वारा निर्धारित किया जाता है। लैरी जे. सबटो +* लोकतंत्र में एक मतदाता की अज्ञानता सभी की सुरक्षा को बाधित करती है। जॉन एफ़ कैनेडी +* यदि आप मतदान नहीं करते हैं, तो आप शिकायत करने का अधिकार खो देते हैं। जॉर्ज कार्लिन +* वोट के अधिकार से वंचित एक आदमी बिना सुरक्षा वाला एक आदमी होता है। लिंडन बी. जॉनसन +* आपके वोट डालने के अधिकार के लिए किसी ने संघर्ष किया। कृपया इसका इस्तेमाल करें। सुसान बी. एंथोनी +* किसी ने कभी भी अपने राजनीतिक विरोधियों पर थूक कर चुनाव नहीं जीता। डेविड फ्रम +* अगर चुनाव महज एक धोखा है, तो चुनावी उम्मीदवारों को मारने और मतदाताओं को डराने के लिए पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस एजेंसी की कमान में आतंकवादियों को प्रशिक्षित और घुसपैठ क्यों कराया जा रहा है अटल बिहारी वाजपेयी]] +* हमारे पास बहुमत की सरकार नहीं है। हमारे पास भागीदारी वाली बहुमत की सरकार है। थॉमस जेफरसन +* प्रत्येक चुनाव में, यह आपके अधिकार हैं, यह आपकी स्वतंत्रता है, यह आपके हित हैं जो मतपत्र में निहित हैं। टोड यंग +* अन्त में, इस चुनाव को क्या कहते हैं। क्या हम निन्दक की राजनीति या आशा की राजनीति में भाग लेते हैं बराक ओबामा +* चुनाव का अधिकार संविधान का सार है। +* सरकार को राजनीतिक ज्ञान और क्षमता के अधिग्रहण में लोगों को प्रशिक्षित और निर्देशित करना चाहिए, जिससे उन्हें चुनाव, वापस बुलाने, पहल करने और जनमत संग्रह की शक्तियों का उपयोग करने में सक्षम बनाया जा सके। सन यात सेन + + +* अगर हमें पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार लाना है तो केवल एक ही तरीका है, सबको शामिल करना। रिचर्ड रोजर्स +* हमारा कोई समाज नहीं होगा अगर हम पर्यावरण को नष्ट करते हैं। मार्गरेट मीड +* पर्यावरण प्रदुषण एक लाइलाज बीमारी है। इसे केवल रोका जा सकता है। बैरी कॉमनर +* मैं ईश्वर को प्रकृति में, जानवरों में, पक्षियों में और पर्यावरण में पा सकता हूँ। पैट बकले +* मनुष्य अभी भी इस दुनिया का सबसे बड़ा चमत्कार है और इस धरती की सबसे बड़ी समस्या भी। सारनॉफ, अमेरिकी बिजनेसमैन +* अफसोस की बात है, जंगल की तुलना में रेगिस्तान बनाना कहीं आसान होता है। जेम्स लवलॉक +* केमिकल युक्त समाधान की तुलना कभी भी प्राकृतिक उत्पादों से नहीं हो सकता है। थॉमस एल्वा एडिसन +* संरक्षण इंसानो और पृथ्वी के बीच एक सामजस्य की स्थिति है। आल्डो लियोपोल्ड +* पेड़ एक तरह से सुनने के लिए, तैयार स्वर्ग से बात करने के लिए पृथ्वी का कभी न खत्म होने वाला प्रयास है। रवीन्द्रनाथ टैगोर +* मैं ईश्वर को प्रकृति में, जानवरों में, पक्षियों में और पर्यावरण में पा सकता हूँ। Pat Buckley +* भविष्य या तो हरा होगा या तो होगा ही नहीं। Bob Brown +* मैं टैक्स का विरोधी हूँ, लेकिन मैं कार्बन टैक्स का समर्थन करता हूँ। एलन मस्क +* भगवान की कृपा से इंसान उड़ नहीं सकते, और आसमान और धरती दोनों को ही बर्वाद नहीं कर सकते। Henry David Thoreau +* हमें यह ग्रह हमारे पूर्वजों से उत्तराधिकार में नहीं मिला ,हम इसे अपने बच्चों से उधार में लेते हैं। अमेरिकी कहावत +* पर्यावरण प्रदूषण एक लाइलाज बीमारी है। इसे केवल रोका जा सकता है। Barry Commoner +* हवा और पानी जंगल और जानवर को बचाने वाली योजनाएं दरअसल इंसान को बचाने की योजनाएं हैं। Stewart Udall +* मानवजाति ने शायद पहले के कुल मानव इतिहास की तुलना में २० वीं सदी में पृथ्वी को अधिक नुकसान पहुँचाया है। Jacques Yves Cousteau +* यदि आप एक जंगल काट देते हैं तो इससे फर्क नहीं पड़ता कि आपके पास कितनी सॉमिल्स हैं अगर अब पेड़ ही नहीं बचे हैं। Susan George +* जलवायु परिवर्तन एक भयानक समस्या है, और इसे पूरी तरह से हल करने की आवश्यकता है। यह एक बहुत बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। Bill Gates +* यदि मधुमक्खी पृथिवी के मुख से गायब हो गयी तो इंसानो के पास जीवित रहने के लिए बस चार साल बचेंगे। Maurice Maeterlinck +* प्रयास करें कि जब आप आये थे उसकी तुलना में पृथ्वी को एक बेहतर स्थान के रूप में छोड़ कर जाएं। Sidney Sheldon +* वो जो मधुमक्खी के छत्ते के लिए ठीक नहीं है वो मधुमक्खी के लिए भी अच्छा नहीं हो सकता। Marcus Aurelius +* आर्थिक लाभ के लिए वर्षावन नष्ट करना कोई भोजन पकाने के लिए किसी रेनेसेन्स पेंटिंग को जलाने की तरह है। O. Wilson +* पक्षी पर्यावरण के संकेतक हैं। यदि वे खतरे में हैं तो हम जानते हैं कि हम भी जल्द ही खतरे में होंगे। Roger Tory Peterson +* यह भयावह है कि पर्यावरण बचाने के लिए हमें अपनी ही सरकार से लड़ना पड़ता है। Ansel Adams +* अगर हमें पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार लाना है तो केवल एक ही तरीका है, सबको शामिल करना। Richard Rogers +* पृथ्वी सभी मनुष्यों की ज़रुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है लेकिन लालच पूरा करने के लिए नहीं। Mahatma Gandhi +* वो जो मधुमक्खी के छत्ते के लिए ठीक नहीं है वो मधुमक्खी के लिए भी अच्छा नहीं हो सकता। मार्कस औरेलियस + + +* गुप्तचर ही राजा के आँख होते हैं। हितोपदेश +* ज्ञान दो तरह का होता है। या तो हम विषय को स्वयं जानते हैं, या हम यह जानते हैं कि इसके बारे में कहाँ जानकारी मिल सकती है। सैमुएल जॉनसन, Boswell's Life of Johnson, 18th April 1775. +* आपने देखा है कि सूचना किस प्रकार किसी प्रणाली को एक साथ बाँधे रखती है और यदि सूचना में देरी हो, सूचना पक्षपातपूर्ण हो, बिखरी हुई हो, या प्राप्त न हो तो किसतरह फीडबैक लूप का काम बिगड़ जाता है। निर्णय लेने वाले लोग उस सूचना के बारे में कह सकते हैं जो उनके पास नहीं है, किन्तु उस सूचना के बरे में ठीक से बता नहीं सकते जो अशुद्ध है। वे उस सूचना के बारे में भी समय से नहीं कह सकते जो देर से आती है। मेरा अनुमान है कि किसी प्रणाली में होने वाली गड़बड़ी, पक्षपातपूर्ण सूचना के कारण होती है, सूचना के देर से आने से होती है, या सूचना के न मिलने के कारण होती है। सूचना शक्ति है। डोनेला मीडोज Thinking in Systems: A Primer, Chelsea Green Publishing, 2008, page 173 (ISBN 9781603580557). +सूचना को नष्ट करके आप उसे छिपा नहीं सकते। सूचना को छिपाने के लिये उसके स्थान पर गलत सूचना देनी पड़ती है। Michael Swanwick, Stations of the Tide (1991 Chapter 8 +* सूचना ही लोकतन्त्र की मुद्रा है। थामस जेफर्सन +* ज्ञान का विकास और प्रसार ही स्वतन्त्रता की सच्चा रक्षक है। जेम्स मेडिसन +ज्ञान हमेशा ही अज्ञान पर शाशन करेगा और जो लोग स्व-शाशन के इच्छुक हैं उन्हें स्वयं को उन शक्तियों से सुसज्जित करना चाहिये जो ज्ञान से प्राप्त होती हैं। पैट्रिक हेनरी + + +: हे राजा ज्ञान दो प्रकार के होते हैं; एक तो स्मृतिजन्य शाब्दिक ज्ञान, और दूसरा अनुभवजन्य ज्ञा�� जो अत्यन्त दुर्लभ है। +: इस सम्पूर्ण संसार में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ भी नहीं है। +: अनपढ़ों की अपेक्षा पुस्तक पढ़ने वाले श्रेष्ठ हैं। पुस्तक पढ़ने वालों की अपेक्षा अर्थ को धारण करने वाले श्रेष्ठ हैं। ग्रंथों के अर्थ को धारण करने वालों की अपेक्षा ज्ञानी श्रेष्ठ हैं। ज्ञानियों की अपेक्षा अर्थ को क्रियान्वित करने वाले श्रेष्ठ हैं। +* बार-बार और लगतार प्रश्न पूछना ज्ञान प्राप्ति की पहली कुंजी है। Peter Abelard (1079–1142) +* किस चीज को अनदेखा किया जाय, इसे जानने की कला ही ज्ञानी होने की कला है। विलियम जेम्स The Principles of Psychology (1890 Ch. 22 +* सभी ज्ञानपरक कहावतों को संतुलित करने के लिये उनके उल्टी कहावतें भी मिल जायेगीं जो उतनी ही ज्ञानपरक होतीं है। जॉर्ज सन्तायन, The Life of Reason, Vol. 5 (1906 Ch. 8 +* बिना खाली समय गँवाये, ज्ञानी नहीं बना जा सकता। प्राचीन यहूदी ज्ञान, डब्ल्यू बी यीट्स द्वारा १९२३ में उद्धृत +* अपनी अज्ञानता का अहसास होना ज्ञान की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। +* अविद्या के अन्धकार से निकलकर ज्ञान के प्रकाश की और बढ़ो। अथर्ववेद +* आत्म-ज्ञान सर्वश्रेष्ठ ज्ञान है। डॉ० राधाकृष्णन +* आपका यह जानना की आप क्या जानते है और क्या नहीं जानते यही सच्चा ज्ञान है। कन्फ़ुसिअस +* इस विश्व में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है। योगीराज श्रीकृष्ण +* इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निःसंदेह कुछ भी नहीं हैं वेदव्यास +* उस ज्ञान का कोई लाभ नहीं जिसे आप काम में नहीं लेते। एंटन चेखोव +* किसी भी आदमी का ज्ञान उसके अनुभव से पर नहीं जा सकता है। जॉन लॉक +* किसी व्यक्ति में कितना ज्ञान है, इसका पता इस बात से लगता हैं कि उसका मन विषयों में कितना अटका हुआ है या उनसे मुड़ा हुआ हैं। तुलसीदास +* क्रिया के बिना ज्ञान भार है। उपनिषद +* जब ज्ञान इतना घमंडी बन जाए कि वह रो न सके, इतना गंभीर बन जाए कि हँस न सके और इतना आत्म-केंद्रित बन जाए कि अपने सिवा और किसी की चिंता न करे, तो वह ज्ञान अज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक होता है। खलील जिब्रान +* जिसे ज्ञान है वह समझता है कि विद्व्ता नहीं, बल्कि उसे उपयोग में लाने की कला का नाम ज्ञान है। एटील +* जिसे हम नहीं जान सकते उसे जानना ही ज्ञान है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* जो दूसरों को जानता है, वह विद्वान है। जो स्वयं को जानता है वह ज्ञानी। -लाओत्से +* ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र-निर्माण होना चाहि���। महात्मा गाँधी +* ज्ञान का मूल्य बहुमूल्य रत्न से भी अधिक है। निराला +* ज्ञान का लक्ष्य सत्य है, और सत्य आत्मा की भूख है। लेसिंग +* ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं। संस्कृत सूक्ति +* ज्ञान तीन प्रकार से मिल सकता है – मनन से, जो सबसे श्रेष्ठ होता है, अनुसरण से, जो सबसे सरल होता है और अनुभव से, जो सबसे कड़वा होता है। कन्फ्यूशियस +* ज्ञान भी जब सीमा के बाहर हो जाता है तो नास्तिकता के क्षेत्र में जा पहुंचता हैं। प्रेमचंद +* ज्ञान से ही मुक्ति होती है। सांख्य +* ज्ञानी पुरुष विवेक से सीखते हैं साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। सिसरो +* ज्ञानी मनुष्य इस जगत को स्वर्ग में परिवर्तित कर सकता है। स्वामी शिवानंद +* ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है। भगवत गीता +* झूठे ज्ञान से खबरदार रहिये ये अज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक है। जोर्ज बर्नार्ड शॉ +* पक्के ज्ञान की एक मात्र पहचान है, सिखाने की शक्ति। अरस्तू +* प्रयोग, ज्ञान की सही विधि है। विलियम ब्लेक +* बुद्धि की पहचान ज्ञान नहीं है बल्कि कल्पना है। अलबर्ट आइंस्टाईन +* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो, उतना ही वह कर्म के रंग में रंग जाता है। विनोबा भावे +* लोगो को ज्ञान दो, वे अपना रास्ता स्वयं ढूंढ लेंगे। कार्ल मार्क्स +* लोभ को केवल एक ही शास्त्र से काटा जा सकता हैं, और वह है ज्ञान। ज्ञान के अतिरिक्त इस महारोग की अन्य औषधि नहीं हैं। रामकृष्ण परमहंस +* संदेह ज्ञान के साथ बढ़ता है। जोहन फोल्गंग वों गाथ +* सांख्य के समान कोई ज्ञान नहीं है और योग के समान कोई बल नहीं हैं। वेदव्यास +* सूचना ज्ञान नहीं है। अलबर्ट आइंस्टीन +* हमेशा ही विश्वास के खिलाफ लड़ना ज्ञान के खिलाफ लड़ने से अधिक कठिन होता है। अडोल्फ़ हिटलर + + +: प्रातः काल उठते ही यह सोचना चाहिये कि मुझे आज क्या सुकर्म करना है, क्या सत्कर्म मैंने किया है क्योंकि प्रतिदिन ही आयु का एक भाग क्षीण हो जाता है। +* विचार ही संसार पर राज करते हैं। प्लेटो +* “हमारे विचार” केवल अंशतः ही 'हमारे' होते हैं। हमारे अधिकांश विचार दूसरे लोगों के विचारों के अवशेष या लघुरूप होते हैं। Leo Strauss, What is Political Philosophy 1959 p. 73 +* कोई वैज्ञानिक व्यक्ति कभी भी तुरन्त परिणाम का लक्ष्य नहीं रखता। वह यह अपेक्षा नहीं रखता कि उसके उन्नत विचारों को लोग तुरन्त स्वीकार कर ले��गे। उसका काम तो पेड़ लगाने वाले व्यक्ति जैसा होता है, जो भविष्य के लिये काम करता है। उसका काम यह है कि वह आने वाले दिनों के लिये 'नींव' तैयार करे। निकोला टेस्ला Radio Power Will Revolutionize the World" in Modern Mechanics and Inventions (July 1934) + + +* जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी सन्ताप को प्राप्त नहीं होते। पञ्चतन्त्र +* ‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं। बर्ट्रेंड रसेल +* मनुष्य केवल दो लीवर के द्वारा चलता रहता है डर तथा स्वार्थ । नेपोलियन +* डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है। एमर्सन +* अभय-दान सबसे बडा दान है। +* ‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं। बर्ट्रेंड रसेल +* अगर सांप जहरीला न भी हो तो उसे खुद को जहरीला दिखाना चाहिए । Chanakya +* अधिनायकवादी राज्य की सबसे बड़ी शक्ति यह है की जो लोग उसका अनुशरण करने से डरते हैं वह उनपर बल प्रयोग करता है। एडोल्फ हिटलर +* अपमान का डर क़ानून के डर से कम क्रियाशील नहीं होता। प्रेमचंद +* अपराध करने के बाद भय उत्पन्न होता है और यही उसका दंड है। वाल्टेयर +* अहंकार,दरअसल वास्तविकता में आप नहीं हैं। अहंकार आपकी अपनी छवि है; ये आपका सामजिक मुखौटा है; ये वो पात्र है जो आप खेल रहे हैं। आपका सामजिक मुखौटा प्रशंशा पर जीता है।वो नियंत्रण चाहता है, सत्ता के दम पर पनपता… Deepak Chopra +* आप जिस काम को करने से डरते है उसे करिए और करते रहिये, अपने डर पर काबू पाने का यह अब तक खोजा गया सबसे अच्छा तरीका है। डेल कारनेगी +* आपका जीवन महान हो इसके लिए आपका विश्वास आपके भय से बड़ा होना चाहिये। रोबिन शर्मा +* इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी कि हम सभी सदा एक-दुसरे से डरे रहते हैं। वेदान्त तीर्थ +* उस शिक्षा का क्या महत्व जो हमारे अंदर गलत को सही करने का जूनून और निडरता न पैदा कर सके। किरण बेदी +* उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा।जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता। भगवत्गीता +* एक बार धोखा खाया ह���आ मनुष्य सत्य में भी विनाश का संदेह करने लगता है। सांप का काटा रस्सी से भी डरने लगता है।- नारायण पंडित +* एक शेर से ज्यादा एक दमनकारी सरकार से डरना चाहिए। कन्फ्यूसिअस +* एक शेर से ज्यादा दमनकारी सरकार से डरना चाहिए । कन्फुशियस +* एक सबसे अच्छी बात जो शेर से सीखी जा सकती है, वह यह है कि व्यक्ति जो कुछ भी करना चाहता है उसे पूरे दिल से एक जोरदार प्रयास के साथ करे । Chanakya +* ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो हम फेंक देते यदि हमें इस बात का चिंता नहीं होती की कोई और उन्हें उठा लेगा। Oscar Wilde +* कामयाबी उन्ही लोगों के कदम चूमती है, जो अपनें फ़ैसलों से दुनियाँ बदल कर रख देते हैं और नाकामयाबी उन लोगों का मुकद्दर बन कर रह जाती है जो लोग दुनियाँ के डर से अपनें फैसले बदल दिया करते हैं। Unknown +* केवल एक ही चीज है जो सपने को पूरा होना असंभव बनाती है, और वह है असफलता का डर। पाउलो कोयलों +* कोई भी व्यक्ति बहुत ज्यादा बोलते रहने से कुछ नहीं सीख पाता; समझदार व्यक्ति धीरज रखने वाला, क्रोधित न होने वाला एवं निडर होता है। गौतम बुद्ध +* खतरा उनके सिर पर सदैव मंडराता रहता है, जो उससे डरते हैं। जार्ज बर्नाड शॉ +* जन साधारण की दृष्टि में सब धनी व्यक्ति ऊँचे दिखाई देते हैं। लोग उनसे ईर्ष्या करते हैं कि वे धनी, शक्तिशाली, सम्मानित, आदरणीय हैं। किन्तु वे धनी हर घड़ी कांपते रहते हैं कि उन्हें जो समझा जाता है, वस्तुतः वे ऐसे हैं नहीं। वे भयभीत हैं कि कहीं उनकी कलई न खुल जाए। स्वेट मार्डेन +* जब आप किसी काम की शुरुआत करें, तो असफलता से न डरें और उस काम को न छोड़ें। जो लोग ईमानदारी से काम करते हैं वह सबसे प्रसन्न होते हैं । Chanakya +* जब सभी लालची हो जाते हैं तो हम डर के रहते है, और जब सभी डर जाते है तब हम लालची बन जाते हैं। वारेन बफेट +* जब सभी लालची हो जाते हैं तो हम डर के रहते हैं, और जब सभी डर जाते हैं तब हम लालची बन जाते हैं। Warren Buffett +* जिस प्रकार बच्चे अधेंरे में जाने से भयभीत होते हैं, उसी प्रकार मनुष्य मृत्यु से भयभीत होते हैं। जर्मन लोकोक्ति +* जिससे प्रायः हम डरते हैं, कालान्तर में उसी से घृणा करते हैं।- शेक्सपीयर +* जिसे जीत लिए जाने का भय होता है, उसकी हार निश्चित होती है। नेपोलियन बोनापार्ट +* जिसे भविष्य का भय नहीं है, वही वर्तमान का आनंद उठा सकता है। +* जैसे पके फलों को गिरने के अतिरिक्त कोई भय नहीं, उसी प्रकार जिसने ज्ञान लिया है, उस मनुष्��� को मृत्यु +* जो भविष्य का भय नहीं करता वहीं वर्तमान का आनंद ले सकता हैं। फुलर +* डर अन्धविश्वास और क्रूरता का मुख्या श्रोत है, डर को जीतना ज्ञान की शुरुआत है। बर्त्रंद रसेल +* डर का न होना सहस नहीं है, बल्कि डर पर विजय पाना साहस है बहदुर वह नहीं है जो भयभीत नहीं होता, बल्कि वह है जो डर को परास्त करता है। नेल्सन मंडेला +* डर दूरदर्शिता की जननी है। थॉमस हार्डी +* डर बुराई की अपेक्षा से उत्पन्न होने वाले दर्द है। Aristotle +* डर में जीना आधे जीवित रहने जैसा है। +* डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है। एमर्सन +* डर, मन की एक स्थिति के आलावा और कुछ भी नहीं है। नैपोलियन हिल +* धर्म भय पर विजय है; असफलता और मौत का मारक है। सर्वेपल्ली राधाकृष्णन् +* निष्क्रियता संदेह एवं भय को जन्म देती है, कार्यवाही विश्वास और साहस को। डेल कारनेगी +* बिना भय के साहस नहीं हो सकता। +* भय से पैदा हुई कुप्रवृत्तियां पुरूषार्थ को खा जाती हैं। सर पी. सिडनी +* भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं । स्वामी विवेकानन्द +* भय ही पतन और पाप का निश्चित कारण है। स्वामी विवेकानंद +* भयमुक्त जीवन ही मानव मस्तिष्क की अव्यक्त अभिलाषा है। मिल्टन +* भीरू को भय से जितनी पीड़ा होती है, उतनी सच्चे साहसी को उसका सामना करते भी नहीं होती। सिडनी +* मैं आपसे बताता हूँ की आपके अंदर एक परमानंद का फव्बारा है, प्रशनंता का झरना है। आपके मूल के भीतर सत्य, प्रकाश, प्रेम है, वहां कोई अपराध बोध नहीं है, वहां कोई डर नहीं है। मनोवैज्ञानिकों ने कभी इतनी गहरे में नहीं देखा। श्री श्री रवि शंकर +* मैंने ये जाना है कि डर का ना होना साहस नही है, बल्कि डर पर विजय पाना साहस है। बहादुर वह नहीं है जो भयभीत नहीं होता, बल्कि वह है जो इस भय को परास्त करता है। नेल्सन मण्डेला +* यदि आप भय और क्रोध से बिना उनका मतलब जाने छुटकारा पाना चाहते है, तो वो और शक्तिशाली होकर लौटेंगे। दीपक चोपडा +* यदि आप भय पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं तो घर पर बैठ कर उसके बारे में सोचिए मत, बाहर निकलिए और व्यस्त हो जाईये। डेल कारनेगी +* यदि कोई अपना पूरा समय मुझमें लगाता है और मेरी शरण में आता है तो उसे अपने शारीर और आत्मा के लिए कोई भय नहीं होना चाहिए। साईं बाबा +* याद रखिये सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है। सुभाष चन्द्र बोस +* लोग क्या स��ंचेंगे इस बात की चिंता करने के बजाय क्यों ना हम कुछ ऐसा करने में समय लगाये जिसे प्राप्त करने पर लोग आपकी प्रसंशा करें। डेल कारनेगी +* वह व्यक्ति जो भय या शंका से प्रभावित होता है, वहीं भय उसके नाश का कारण बन जाता है। अज्ञात +* विपत्ति में हार तभी तक होती है, जब तक मनुष्य उससे डरता है। कन्फ्यूशियस +* सभी प्रकार के भय में से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है। आचार्य चाणक्य +* सभी व्यक्तियों को सजा से डर लगता है, एवं सभी मौत से डरते है| बाकी लोगों को अपने जैसा ही समझिये| इसीलिए खुद किसी जीव को न मारें और दूसरों को भी मना करें। गौतम बुद्ध +* समय से साथ जिससे हम अक्सर डरते है उससे नफ़रत करने लगते हैं। विलियम शेक्सपियर +* साहस यह जानने में है कि हमें किससे नहीं डरना है। प्लेटो +* साहस ये जानना है कि किससे नहीं डरना है। प्लेटो +* स्वतंत्रता का अर्थ जिम्मेदारी है। इसीलिए ज्यादातर लोग इससे डरते हैं। जार्ज बर्नार्ड शॉ +* स्वभाव में जब भय घुल जाए तब कायरता का आरम्भ हो जाता हैं। रामचन्द्र शुक्ल +* हजार छूरों की तुलना में चार विरोधी अखबारों से अधिक डरना चाहिए। नेपोलियन बोनापार्ट +* हम यह प्रार्थना न करें की हमारे ऊपर खतरे न आये, बल्कि यह कहें की हम उनका सामना करने में निडर रहें। रविन्द्र नाथ टैगोर +* हमारी सोच और हमारा व्यवहार हमेशा किसी प्रतिक्रिया की आशा में होते हैं। इसलिए ये डर पर आधारित हैं। दीपक चोपड़ा +* हमें अतीत के बारे में पछतावा नहीं करना चाहिए, न ही भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए। विवेकवान व्यक्ति हमेशा वर्तमान में ही जीते हैं। चाणक्य +* हमेशा डरते रहने से एक बार ख़तरे का सामना कर डालना अच्छा है। नीतिसूत्र +* हे मेरे प्राण! जैसे वायु और आकाश न भय को प्राप्त होते हैं और न क्षीण होते हैं, वैसे ही तू भी न भय को प्राप्त हो और न क्षीण हो। अथर्ववेद + + +जो लोग भगवान के बारे में यह मानते हैं कि वह संसार क निर्माता, इसका पालनपोषण करने वाला, और सर्वशक्तिमान है, उन्हें आस्तिक कहा जाता है। 'ब्रह्म ईश्वर, प्रभु आदि इसके पर्याय हैं। कुछ लोग भगवान को काल्पनिक मानते हैं, उन्हें नास्तिक कहा जाता है। +: प्रज्ञान ही ब्रह्म है। +: यह आत्मा ब्रह्म है। +: अर्थ दो सुन्दर पंखों वाले पक्षी, जो साथ-साथ रहने वाले तथा परस्पर सखा हैं, समान वृक्ष पर ही आकर रहते हैं; उनमें से एक (आत्मा) उस वृक्ष के स्वादिष्��� फलों को खाता है, दूसरा (परमात्मा) खाता नहीं है, केवल देखता है। (इस मन्त्र में जीव को कर्मफल का भोक्ता और परमेश्वर को प्रत्येक कर्म का द्रष्टा अर्थात् कर्मफल के साथ तनिक भी सम्बन्ध न रखनेवाला बताया गया है।) +: दो विद्याएँ जानने योग्य हैं, प्रथम विद्या को ‘शब्द ब्रह्म’ और दूसरी विद्या को ‘परब्रह्म’ के नाम से जाना जाता है। ‘शब्द ब्रह्म’ अर्थात् वेद-शास्त्रों के ज्ञान में निष्णात होने पर विद्वान् मनुष्य परब्रह्म को जानने की सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है॥ +: इस देह को देवालय कहा गया है। (इसके अन्दर निवास करने वाला) जीव ही सनातन देवता है। (इसलिये) अज्ञान को छोड़कर सोऽहं (मैं 'वह' हूँ) भाव से पूजा करनी चहिये। +: अर्थ एक ही ब्रह्म है दूसरा नहीं। ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है। +: अर्थ वह ब्रह्म) बिना पैर के चलता है, बिना कान के सुनता है। बिना मुख के ही सभी रसों का भोग करने वाला है और वाणी के बिना भी वक्ता है और बड़ा योगी है। (अर्थात् ब्रह्म निराकार है।) +: को है जनक, कौन है जननी, कौन नारि, को दासी? +: अर्थ जब उद्धव गोपियों को निराकार ब्रह्म की आराधना करने को कहते हैं तब गोपियाँ ‘भ्रमर’ की अन्योक्ति से उद्धव को सम्बोधित करती हुई पूछती हैं कि हे उद्धव! तुम यह बताओ तुम्हारा वह निर्गुण ब्रह्म किस देश का रहने वाला है? हम आपको कसम दिलाकर सच-सच पूछ रही हैं, कोई हँसी नहीं कर रही हैं। आप यह बतलाओ कि उस निर्गुण का पिता कौन है? उसकी माता का क्या नाम है? उसकी पत्नी और दासियाँ कौन-कौन हैं? उस निर्गुण ब्रह्म का रंग कैसा है, उसकी वेश-भूषा कैसी है और उसकी किस रस में रुचि है? गोपियाँ उद्धव को चेतावनी देती हुई कहती हैं कि हमें सभी बातों का ठीक-ठीक उत्तर देना। यदि सही बात बताने में जरा भी छल-कपट करोगे तो अपने किये का फल अवश्य पाओगे। सूरदास जी कहते हैं कि गोपियों के ऐसे प्रश्नों को सुनकर ज्ञानी उद्धव ठगे-से रह गये और उनका सारा ज्ञान-गर्व अनपढ़ गोपियों के सामने नष्ट हो गया। +: भावार्थ:-सगुण और निर्गुण में कुछ भी भेद नहीं है- मुनि, पुराण, पण्डित और वेद सभी ऐसा कहते हैं। जो निर्गुण, अरूप (निराकार अलख (अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण हो जाता है। +: भावार्थ:-जो निर्गुण है वही सगुण कैसे है? जैसे जल और ओले में भेद नहीं। (दोनों जल ही हैं, ऐसे ही निर्गुण और सगुण एक ही हैं।) जिसका नाम भ्रम रूपी अंधकार के मिटा���े के लिए सूर्य है, उसके लिए मोह का प्रसंग भी कैसे कहा जा सकता है? +: भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी सच्चिदानन्दस्वरूप सूर्य हैं। वहाँ मोह रूपी रात्रि का लवलेश भी नहीं है। वे स्वभाव से ही प्रकाश रूप और (षडैश्वर्ययुक्त) भगवान है, वहाँ तो विज्ञान रूपी प्रातःकाल भी नहीं होता (अज्ञान रूपी रात्रि हो तब तो विज्ञान रूपी प्रातःकाल हो, भगवान तो नित्य ज्ञान स्वरूप हैं।)॥3॥ +* पुरुष प्रसिद्ध प्रकाश निधि प्रगट परावर नाथ। +: भावार्थ जो (पुराण) पुरुष प्रसिद्ध हैं, प्रकाश के भंडार हैं, सब रूपों में प्रकट हैं, जीव, माया और जगत सबके स्वामी हैं, वे ही रघुकुल मणि श्री रामचन्द्रजी मेरे स्वामी हैं- ऐसा कहकर शिवजी ने उनको मस्तक नवाया॥ +: भावार्थ:-जो मनुष्य आँख में अँगुली लगाकर देखता है, उसके लिए तो दो चन्द्रमा प्रकट (प्रत्यक्ष) हैं। हे पार्वती! श्री रामचन्द्रजी के विषय में इस प्रकार मोह की कल्पना करना वैसा ही है, जैसा आकाश में अंधकार, धुएँ और धूल का सोहना (दिखना)। (आकाश जैसे निर्मल और निर्लेप है, उसको कोई मलिन या स्पर्श नहीं कर सकता, इसी प्रकार भगवान श्री रामचन्द्रजी नित्य निर्मल और निर्लेप हैं।) ॥2॥ +: भावार्थ:-विषय, इन्द्रियाँ, इन्द्रियों के देवता और जीवात्मा- ये सब एक की सहायता से एक चेतन होते हैं। (अर्थात विषयों का प्रकाश इन्द्रियों से, इन्द्रियों का इन्द्रियों के देवताओं से और इन्द्रिय देवताओं का चेतन जीवात्मा से प्रकाश होता है।) इन सबका जो परम प्रकाशक है (अर्थात जिससे इन सबका प्रकाश होता है वही अनादि ब्रह्म अयोध्या नरेश श्री रामचन्द्रजी हैं। +: भावार्थ यह जगत प्रकाश्य है और श्री रामचन्द्रजी इसके प्रकाशक हैं। वे माया के स्वामी और ज्ञान तथा गुणों के धाम हैं। जिनकी सत्ता से, मोह की सहायता पाकर जड़ माया भी सत्य सी भासित होती है। +: भावार्थ जैसे सीप में चाँदी की और सूर्य की किरणों में पानी की (बिना हुए भी) प्रतीति होती है। यद्यपि यह प्रतीति तीनों कालों में झूठ है, तथापि इस भ्रम को कोई हटा नहीं सकता॥117॥ +: भावार्थ हे पार्वती! जिनकी कृपा से इस प्रकार का भ्रम मिट जाता है, वही कृपालु श्री रघुनाथजी हैं। जिनका आदि और अंत किसी ने नहीं (जान) पाया। वेदों ने अपनी बुद्धि से अनुमान करके इस प्रकार (नीचे लिखे अनुसार) गाया है॥ +: भावार्थ वह (ब्रह्म) बिना ही पैर के चलता है, बिना ही कान के सुनता है, बिना ही हाथ के ना���ा प्रकार के काम करता है, बिना मुँह (जिव्हा) के ही सारे (छहों) रसों का आनंद लेता है और बिना ही वाणी के बहुत योग्य वक्ता है॥ +: भावार्थ वह बिना ही शरीर (त्वचा) के स्पर्श करता है, बिना ही आँखों के देखता है और बिना ही नाक के सब गंधों को ग्रहण करता है (सूँघता है)। उस ब्रह्म की करनी सभी प्रकार से ऐसी अलौकिक है कि जिसकी महिमा कही नहीं जा सकती॥ +: भावार्थ जिसका वेद और पंडित इस प्रकार वर्णन करते हैं और मुनि जिसका ध्यान धरते हैं, वही दशरथनंदन, भक्तों के हितकारी, अयोध्या के स्वामी भगवान श्री रामचन्द्रजी हैं॥ +: भावार्थ विवश होकर (बिना इच्छा के) भी जिनका नाम लेने से मनुष्यों के अनेक जन्मों में किए हुए पाप जल जाते हैं। फिर जो मनुष्य आदरपूर्वक उनका स्मरण करते हैं, वे तो संसार रूपी (दुस्तर) समुद्र को गाय के खुर से बने हुए गड्ढे के समान (अर्थात बिना किसी परिश्रम के) पार कर जाते हैं॥ +: भावार्थ हे पार्वती! वही परमात्मा श्री रामचन्द्रजी हैं। उनमें भ्रम (देखने में आता) है, तुम्हारा ऐसा कहना अत्यन्त ही अनुचित है। इस प्रकार का संदेह मन में लाते ही मनुष्य के ज्ञान, वैराग्य आदि सारे सद्गुण नष्ट हो जाते हैं॥ +* ईश्वर हर व्यक्ति में एक निजी दरवाजे से प्रवेश करता है। राल्फ वाल्डो एमर्सन +* ईश्वर की कोई परिभाषा नहीं हो सकती। वह तो पूरी डिक्शनरी से भी बहुत बड़ा है। टेरी गुलेमेट्स +* ईश्वर को देखा नहीं जा सकता, इसीलिए तो वह हर जगह मौजूद है। यासुनारी कावाबात +* प्रार्थना तब होती है जब आप परमात्मा से बात करते हैं, ध्यान तब होता है जब आप ईश्वर को सुनते हैं। +* आप देखेंगे की भगवान भी मेहनती लोगों की ही मदद करता है। यह नियम स्पष्ट है। ए पी जे अब्दुल कलाम +* मेरा काम सम्भव की देखभाल करना है, और असम्भव के साथ भगवान पर भरोसा करना है। +* यदि परमेश्वर आपका साथी है, तो अपनी योजनाओं को बड़ा करें। +* ईश्वर को अपना वकील बनाने वाला, अपना मुकदमा मुफ्त में जीतता है। +* मौन प्रार्थनाएँ जल्दी पहुँचती है भगवान तक, क्योंकि वो शब्दों के बोझ से मुक्त होती है। +* भगवान के लिए सबसे स्वीकार्य पूजा एक आभारी और हंसमुख दिल से आती है। +* अपने बुरे समय में भगवान और समय पर विश्वास रखें, समय कोयले को भी हीरा बना देता है और भगवान रंक को भी राजा। +* प्रार्थना शब्दों से नहीं हृदय से होनी चाहिए, क्योंकि ईश्वर उनकी भी सुनते है जो बोल नहीं सकते। +* भगवान में ���रोसा रखें, लेकिन अपनी तैयारी पूरी रखें। +* याद रखिये प्रकृति से प्रेम करना ही ईश्वर से प्रेम करने के सामान है। +* कल्पना हमें ईश्वर की ओर से दिया गया उपहार है और हम में से हर एक इसे अलग तरह से इस्तेमाल करता है। Brian Jacques +* मुझे नहीं पता कि भगवान है या नहीं, लेकिन अगर वह नहीं है तो यह उसकी प्रतिष्ठा के लिए बेहतर होगा। Jules Renard + + +: अभ्यास न करने से विद्या नष्ट हो जाती है, अपच होने पर खाया-पीया विष बन जाता है, दरिद्र का सभा में सम्मान नहीं होता और बूढ़े व्यक्ति के लिए जवान स्त्री विष के समान घातक होती है। +: भावार्थ निरन्तर अभ्यास के बल पर ही लोग चौदह प्रकार की विद्यायें प्राप्त कर लेते हैं। देखो न अभ्यास के बल पर ही सूर्य सौर मण्डल को भेद कर उसमें सतत भ्रमण करता रहता है। +: अभ्यास से सब क्रिया होती है । अभ्यास से सब कला, ध्यान, मौन आदि होते हैं। अभ्यास से क्या दुष्कर है अर्थात कुछ भी दुष्कर नहीं है।) +: बार-बार मिलने से अपरिचित भी मित्र बन जाते हैं। दूरी के कारण मिलने का अभ्यास छूट जाने से बन्धुओं में स्नेह कम हो जाता है। +: लक्ष्मी सत्य का अनुसरण करती है। कीर्ति त्याग के पीछे जाती है। विद्या अभ्यास से ही प्राप्त होती है और बुद्धि पर कर्म का ही अंकुश रहता है। +: अभ्यास करने से मंद व्यक्ति भी सुज्ञ बनती है। रस्सी को सतत घिसने से पत्थर पर भी रेखा पड़ जाती है। +: कुए से पानी खींचने के लिए बर्तन से बाँधी हुई रस्सी कुएं के किनारे पर रखे हुए पत्थर से बार-बार रगड़ खाने से पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं। ठीक इसी प्रकार बार-बार अभ्यास करने से मन्द बुद्धि व्यक्ति भी कई नई बातें सीख कर उनका जानकार हो जाता है। +* ज्ञान एक खजाना है लेकिन अभ्यास इसकी चाभी है। थामस फुलर +* अभ्यास के बिना लक्ष्य की प्राप्ति हो, यह संभव नहीं है। तुकाराम +* अभ्यास की शक्ति तो देखो- निरंतर अभ्यास से किसी विषय का अज्ञानी भी उसका ज्ञाता हो जाता है। पत्थर भी धीरे-धीरे घिस कर चुरा बन जाता है। बाण भी अपने सूक्ष्म लक्ष्य को भेद सकता है। योग वशिष्ठ +* संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो अभ्यास करने पर भी प्राप्त न हो। बोधिचर्यावतार +* हमे सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए अभ्यास की आवश्यकता है। स्वामी विवेकानन्द +* मनुष्य जिस वस्तु का निरन्तर चिन्तन करता है, अभ्यास के कारण उसके मन का झुकाव भी उसी वस्तु की ओर होता है। अश्वघोष +* ऐसी प्रैक्टि��� करें जैसे कि कभी जीते ही नहीं, और ऐसे खेलें जैसे आप कभी हारे ही नहीं। माइकल जॉर्डन +* हमेशा महसूस करें कि आप बेहतर हो सकते हैं। आपका सबसे अच्छा काम अभी तक नहीं किया गया है। अभ्यास करो, अभ्यास करो, अभ्यास करो लेस ब्राउन +अकेले में किया गया अभ्यास, आपको सार्वजनिक रूप से पुरस्कार दिलायेगा। टोनी रॉबिंस +अभ्यास से आत्मविश्वास पैदा होता है। आत्मविश्वास आपको सशक्त बनाता है। Simone Biles +* यदि आप कड़ा अभ्यास करते हैं, तो आप हर लड़ाई जीत सकते हैं। Manny Pacquiao +* हर चीज में अच्छा खोजने का अभ्यास करें, और आप इसे बहुत बार पा लेंगे। टिम फेरिस +* स्वभाव से, पुरुष लगभग एक जैसे होते हैं; अभ्यास से वे अलग हो जाते हैं। कन्फ्यूशियस +* ज्ञान सीखने से प्राप्त होता है; अभ्यास से कौशल; प्यार से प्यार प्राप्त होता हैं। Thomas Szasz +* भविष्य में आप जैसा जीवन चाहते हैं, उसकी कल्पना करके उसकी ओर एक अभ्यास का कदम उठाकर आज ही शुरू करें। Denise Duffield Thomas +* जितना अधिक आप अभ्यास में पसीना बहाते हैं, उतना ही कम आप लड़ाई में खून बहाते हैं। Norman Schwarzkopf +किसी भी चीज में वास्तव में अच्छा बनने के लिए, आपको अभ्यास करना और दोहराना, लगातार अभ्यास करना और दोहराना होगा, जब तक कि वो सहज नहीं हो जाती। Paulo Coelho +* मेरे पिता ने मुझे सिखाया कि किसी भी चीज को अच्छा बनाने का एकमात्र तरीका हैं अभ्यास करना और फिर थोड़ा और अभ्यास करना। Pete Rose +* अभ्यास में कोई प्रतिष्ठा नहीं है, लेकिन अभ्यास के बिना, कोई प्रतिष्ठा नहीं मिलती है। +* आप अपने लिए प्रैक्टिस करने के लिए किसी को नहीं रख सकते। H. Jackson Brown Jr +* अभ्यास परफेक्ट बनाता है। लंबे समय तक अभ्यास करने के बाद, हमारा काम स्वाभाविक, कुशल, तेज और स्थिर हो जाएगा। ब्रूस ली +* अभ्यास सीखने का सबसे कठिन हिस्सा है, और प्रशिक्षण परिवर्तन का सार है। Ann Voskamp +* अभ्यास, आपकी मांसपेशियों में दिमाग डाल देता है। Sam Snead + + +आशावाद या सकारात्मक सोच निराशावाद का विलोम है। आशावाद वह जीवन दर्शन है जो सोचता है कि शुभ ही होगा। आशावादी प्रायः यह विश्वास करता है कि लोग और घटनाएँ मूलतः अच्छे होते हैं। +: आशा नामक मनुष्यों की कोई अचरज भरी सांकल (चेन) है जिससे बंधे हुए दौड़ते फिरते हैं, पर मुक्त (आशा ना रखने वाले) किसी पंगु की भांति खड़े रहते हैं। +: जो लोग मेरी रचना (भविष्यवाणी) की अवहेलना कर रहे हैं, वे जान लें कि यह कृति उनके लिये नहीं लिखी गयी है। (निश्च���त ही) मेरा समानधर्मा उत्पन्न होगा (और मेरी कृति को सुयश प्रदान करेगा क्योंकि काल अनन्त है और पृथ्वी बहुत बड़ी है। +* मान लें कि जीवन जीने योग्य है और आपकी धारणा इस तथ्य को बनाने में मदद करेगी। विलियम जेम्स +* अगर हम दूसरों को कुछ सकारात्मक देते हैं, तो यह हमारे पास वापस आ जाएगा। अगर हम नकारात्मक देते हैं, तो नकारात्मकता वापस आ जाएगी। अल्लु अर्जुन +* मैं एक सकारात्मक व्यक्ति हूं, और मैं सब चीजों के अच्छे पक्ष को देखने की कोशिश करता हूं। लियोना लेविस +* खुद से प्यार करो। सकारात्मक रहना महत्वपूर्ण है क्योंकि सुन्दरता अन्दर से आती है। जेन प्रोस्के +* पूरी जिंदगी जीने के लिए, सकारात्मक पर ध्यान केंद्रित करें। मैट कैमरून +* सकारात्मक और खुश रहो। कड़ी मेहनत करें और उम्मीद मत छोड़ो। आलोचना के लिए तैयार रहें और सीखते रहें। अपने आप को खुश, गर्म और वास्तविक लोगों के साथ रहे। टेना देसाई +* सकारात्मक कार्रवाई के साथ आपकी सकारात्मक सोच से परिणाम में सफलता मिलती है। शिव खेरा +* सही दृष्टिकोण को अपनाने से नकारात्मक तनाव को सकारात्मक में परिवर्तित किया जा सकता है। हंस सेली +* जब आप सकारात्मक सोचते हैं, अच्छी चीजें होती हैं। मैट केम्प +* मैंने सीखा है कि जीवित रहने के लिए, आपको दिमाग की सकारात्मक स्थिति की आवश्यकता है। थालिअ +* एक मजबूत, सकारात्मक आत्म-छवि सफलता के लिए सबसे अच्छी संभव तैयारी है। जॉयस ब्रदर्स +* अपने आप को सकारात्मक चीजें प्रतिदिन बताना न भूलें! बाहरी रूप से चमकने के लिए आपको आंतरिक रूप से प्यार करना चाहिए। हन्ना ब्रोंफमैन +* सकारात्मक होने का चयन करना और आभारी दृष्टिकोण रखना यह निर्धारित करने जा रहा है कि आप अपने जीवन को कैसे जीने जा रहे हैं। जोएल ओस्टिन +* आपके पास सकारात्मक जीवन और नकारात्मक दिमाग नहीं हो सकता है। जॉयस मेयर +* जब आप जो करते हैं उसके बारे में उत्साहित होते हैं, तो आप इस सकारात्मक ऊर्जा को महसूस करते हैं। यह बहुत सरल है। पाउलो कोइल्हो +* सपने में भरोसा करें, क्योंकि उनमें अनन्त के द्वार को छुपाया गया है। खलील जिब्रान +* दिन के अन्त में, बच्चे की सफलता के लिए सबसे जबरदस्त कुंजी माता-पिता की सकारात्मक भागीदारी है। जेन डी. हल +* सकारात्मक सोच आपको नकारात्मक सोच से बेहतर सब कुछ करने देगी। जिग जिग्लार +* मैं बस इतना नियंत्रित कर सकता हूं कि मैं खुद ही सकारा��्मक दृष्टिकोण रखता हूं। गुलाब नमजुनस +* जीवन को प्यार और सकारात्मक योगदान और अनुग्रह के क्षणों से मापा जाता है। कार्ली फियोरीना +* वह व्यक्ति जो एक कमरे में हंसी की भावना ला सकता है वह वास्तव में धन्य है। बेनेट सर्फ +* प्रेरणा आपके भीतर से आती है। सकारात्मक होना चाहिए। जब आप सकारात्मक होते हैं, तो अच्छी चीजें होती हैं। दीप रॉय +* सकारात्मक सोच आपको अपनी क्षमता का उपयोग करने देगी, और यह कमाल है। जिग जिग्लार +* मैं हमेशा जीवन के आशावादी पक्ष को देखना पसंद करता हूं, लेकिन मैं यह जानकर वास्तववादी हूं कि जीवन एक जटिल मामला है। वाल्ट डिज्नी +* नकारात्मक दृष्टिकोण सकारात्मक दृष्टिकोण से नौ गुना अधिक शक्तिशाली है। बिक्रम चौधरी +* मुझे मानसिकता विकसित करना और मेरी वापसी के बारे में सकारात्मक रहना पड़ा। Alonzo Mourning +* विजेताओं ने घटना से पहले अपनी सकारात्मक उम्मीदों का निर्माण करने की आदत बना ली है। ब्रायन ट्रेसी +* सकारात्मक ज्ञान को अवशोषित करने के लिए मेरी प्रतिभा की तुलना में कल्पना का उपहार मेरे लिए अधिक मायने रखता है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* लोग उन लोगों के आस-पास होना पसन्द करते हैं जो सकारात्मक ऊर्जा देते हैं। एरिन हेदरटन +* एक मजबूत सकारात्मक मानसिक रवैया किसी भी अद्भुत दवा की तुलना में अधिक चमत्कार पैदा करेगा। पेट्रीसिया नील +* नकारात्मक चीजों पर ध्यान केंद्रित न करें; सकारात्मक पर ध्यान केंद्रित करें, और आप उन्नति करगे। अलेक वीक +* उत्साह उत्पन्न करने वाला एक औसत विचार एक महान विचार से अच्छा है जो किसी को भी प्रेरित नहीं करता है। Mary Kay Ash +* कल ठीक होने के लिए हमारा नहीं है, लेकिन कल जीतने या हारने के लिए हमारा है। लिंडन बी जॉनसन +* खुशी एक दृष्टिकोण है। हम या तो खुद को दुखी करते हैं, या खुश और मजबूत। फ्रांसेस्का रिगलर +* आज एक नई शुरुआत है, अपनी असफलताओं को उपलब्धियों और अपने दुखों को संपत्ति में बदलने का मौका। बहाने के लिए कोई जगह नहीं है। जोएल ब्राउन +* एक निराशावादी को हर अवसर में कठिनाई दिखाई देती है एक आशावादी को हर कठिनाई में अवसर दिखाई देता है। विंस्टन चर्चिल +* सभी समय की सबसे बड़ी खोज यह है कि कोई व्यक्ति अपना दृष्टिकोण बदलकर अपना भविष्य बदल सकता है। ओपरा विनफ्रे + + +* राज्य तीन शक्तियों के अधीन होता है- मन्त्र, प्रभाव और उत्साह। दण्डी, दशकुमारचरितम् में +: मन्��्र से अर्थ (क्या करना चाहिये, क्या नहीं) का निर्धारण होता है, प्रभाव से प्रारम्भ होता है, उत्साह से कार्य का निर्वहन (आगे बढ़ाते रहना) होता है। +: जो उत्साह से भरा हुआ है, आलसी नहीं है, कार्य की विधि को जानता है, व्यसनों से से मुक्त है, पराक्रमी है, कृतज्ञ और लोगों की भलाई चाहने वाला है उसके पास लक्ष्मी (धन-संपदा) स्वयं चलकर निवास करने आती हैं। +: जहाँ उत्साह है, आरम्भ (पहल) है, और आलस्य नहीं है, नय (नीति) और पराक्रम का समुचित समन्वय है, वहाँ से लक्ष्मी कहीं और नहीं जाती, यह निश्चित है। +: हे आर्य, उत्साह बलवान है, उत्साह से बड़ा बल कोई नहीं है। जिसके पास उत्साह है उसको संसर में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। +* जिनमें उत्साह नहीं होता, मित्र भी उनके दुश्मन हो जाते हैं। जिनमें उत्साह हो, शत्रु भी उनकी मित्रता स्वीकार करते हैं। कौटिल्य +* अधिकांश अवसरों पर साहस को परीक्षा द्वारा जीवित रखना होता है। संतुलित उत्साह सफलता की कुंजी है। अलफांसो +* भय का जो स्थान दुःख वर्ग में है, उत्साह का वही स्थान आनन्द वर्ग में है। रामचन्द्र शुक्ल +* बिना उत्साह के कभी किसी उच्च लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। इमर्सन +* दुर्लभ कुछ भी नहीं, यदि उत्साह का साथ न छोड़ा जाए। वाल्मीकि +* उत्साह आदमी की मान्यशीलता का पैमाना हैं। तिरुवल्लुवर +* उत्साहित होने का नाटक कीजिये और आप उत्साहित हो जायेंगे। डेल कार्नेगी +* उत्साह एक अलौकिक शांति है। हेनरी डेविड थोरयू +* यदि आप उत्साही बनना चाहते हैं, उत्साहित होकर काम करें। डेल कार्नेगी +* एक उत्साही टीम के साथ आप लगभग सब कुछ हासिल कर सकते हैं। ताहिर शाह +* आपके सबसे महत्वपूर्ण क्षमता, उत्साह के साथ जीतना और उसी उत्साह के साथ हारने के लिए भी तैयार रहने की क्षमता है। Meir Ezra +* जीवन को बच्चे के जैसे आश्चर्य और उत्साह के साथ जियो। Avina Celeste +* कोई मनुष्य कितना भाग्यशाली होगा, यह उसके उत्साह के आधार पर हम जान सकते हैं। +* अपने उत्साह को दूसरों की नकारात्मकता और भय से बचाएं। + + +उन्नत चित्त वाले पुरुषों का यह स्वभाव है कि वे बड़ों पर महान् पराक्रम दिखाते हैं, दुर्बलों पर नहीं। +* वीरभोग्या वसुन्धरा ।( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है ) +: पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो दुख सह लेता है (लेकिन पराक्रम नही दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता। +: इसलिए उन्नति में बाधक उद्योगशून��यता (अनुत्साह) का आश्रय करना अनुचित है, क्योंकि समृद्धियाँ पराक्रम के ही आश्रय में रहतीं हैं, विषाद के साथ नहीं। +: वन में सिंह का अभिषेक नहीं होता है और न तो उसका कोई संस्कार ही होता है, किन्तु नित्य सम्यक्‌ पुरुषार्थ करने से प्राणी में स्वयं ही सिंहत्व का भाव आ जाता है। +: वन के जन्तु सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार । पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है। +: जहाँ उत्साह है, आरम्भ (पहल) है, और आलस्य नहीं है, नय (नीति) और पराक्रम का समुचित समन्वय है, वहाँ से लक्ष्मी कहीं और नहीं जाती, यह निश्चित है। +* बिना पराक्रम के कोई पदोन्नति नहीं कर सकता। साइरस + + +शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का सबसे पहला साधन है। +: कौन निरोग रहता है? कौन निरोग रहता है? कौन निरोग रहता है? +: जो हितकारी वस्तुएँ ही खाता है, भूख से कम खाता है, न्याय-नीति से कमाया हुआ खाता है वह सुखी रहता है। +* स्वस्थ होना हमारे लिए सबसे बड़ा उपहार हैं। स्वास्थ ही सबसे बड़ी सम्पति है और सबसे अच्छा रिश्ता है। गौतम बुद्ध +* जिसके पास स्वस्थ शरीर होता है, वह कइयों से कई गुना अमीर होता है। +* अच्छा स्वास्थ्य आतंरिक शक्ति, शांत मन और आत्मविश्वाश लाता हैं, जो की बहुत मत्वपूर्ण है। दलाई लामा +* अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी समझदारी जीवन के दो सबसे बड़े आशीर्वाद हैं। पब्लिकलीस साइरस +* किसी के परिवार में सच्ची खुशी लाने के लिए, एक शांत मन पाने के लिए सबसे पहले खुद को अनुशासित करना चाहिए और अपने मन को नियंत्रित करना होगा। यदि मनुष्य अपने मन को नियंत्रित कर सकता है तो वह आत्मज्ञान का मार्ग खोज सकता है, और सभी ज्ञान और गुण स्वाभाविक रूप से उसके पास आएंगे और यह सब तभी सम्भव है जब आपमें पास एक स्वस्थ शरीर है। गौतम बुद्ध +* अपने शरीर को स्वस्थ रखना हमारा कर्तव्य है, अन्यथा हम अपने दिमाग को मजबूत और स्पष्ट नहीं रख पाएंगे। गौतम बुद्ध +* अच्छे स्वास्थ्य की चमक का आनंद लेने के लिए, आपको व्यायाम करना चाहिए। जीन ट्यूनी +* आपका स्वास्थ्य आपकी सबसे बड़ी सम्पति है, इसका अहसास तब होता है जब हम इसे खो देते हैं। जोश बिलिंग्स +* जो रखते है सदैव अपने स्वास्थ्य का ध्यान, तो बनते है महान। +* बिना स्वास्थ्य जीवन, जीवन नहीं होता, बल्कि यह दुखों और आलस्य की अवस्था होती है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* बीमारी आने तक स्वास्थ्य का महत्व नहीं है। थॉमस फुलर +* हमारे अच्छे स्वास्थ्य से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं यह हमारी प्रमुख पूंजीगत संपत्ति है। अर्लेन स्पेक्टर +* अच्छे स्वास्थ्य को हम खरीद नहीं सकते पर यह एक अत्यंत मूल्यवान बचत खाता हो सकता है। ऐनी विल्सन शेफ़ +* स्वास्थ्य आपके और आपके शरीर के बीच का संबंध है। +* स्वास्थ्य एक बड़ा शब्द है। यह केवल शरीर को ही नहीं बल्कि मन और आत्मा दोनों को गले लगता है। जेम्स एच. वेस्ट +* बिस्तर से जल्दी उठना और जल्दी उठना मनुष्य को स्वस्थ, धनवान और बुद्धिमान बनाता है। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* मैंने खुश रहना इसलिए चुना है क्योंकि यह मेरे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। वॉल्टेयर +* जीने के लिए खाओ, खाने के लिए न जियो। सुकरात +* आरोग्य रहना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। बाबा रामदेव +* हमारा शरीर एक बगीचे की तरह है और हमारी इच्छाएं बागवान की तरह। विलियम शेक्सपियर +* जो व्यक्ति अपनी जीभ पर काबू नहीं पा सकता वो शायद ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखे। अज्ञात +* यदि आप खुश हैं, और अच्छा महसूस कर रहे हैं, तो कुछ और मायने नहीं रखता। रॉबिन राइट +* आज सबसे बड़ी बीमारी कुष्ठ और तपेदिक नहीं है, बल्कि अवांछित होने की भावना है। मदर टेरेसा +* तनाव बहार के ट्रैफिक, शोर, आपके बॉस, आपके बच्चों, आपके पति या पत्नी, स्वास्थ्य चुनौतियों या अन्य परिस्थितियों से नहीं आता है। यह इन परिस्थितियों के बारे में आपके विचारों से आता है। एंड्रयू जे बर्नस्टीन +* आवश्क्यता से कम भोजन करना ही स्वास्थ्य प्रदान करता है। चाणक्य +* अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने का एकमात्र तरीका यह है कि आप जो चाहते हैं वह न खाएं, आप जो पसंद करते हैं उसे पीएं, और वही करें जो आप नहीं चाहते हैं। मार्क ट्वेन +* समय और स्वास्थ्य दो अनमोल संपत्ति हैं जिनकी वैल्यू हम तब समझते हैं जब वो नहीं रहती। डेनिस वेटली +* एक देश तभी स्वस्थ हो सकता है जब उसके लोग स्वस्थ हों। स्वामी रामदेव +* बिमारी की कड़वाहट से मनुष्य स्वास्थ्य का महत्त्व जान लेता है। प्रोवर्ब +* देखभाल के अलावा इससे ज्यादा कुछ भी स्वास्थ्य के लिए घातक नहीं है। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* स्वास्थ्य और बुद्धि जीवन के दो आशीर्वाद हैं। मेनांडर +* स्वास्थ्य ही पर्याप्त धन है। लैलाह गिफ्टी अकिता +* अपने शरीर को अपना पवित्र मंदिर बनने दो। लैलाह गिफ्टी अकिता +* अधिकांश लोगों को यह नहीं पता ���ै कि उनके शरीर को महसूस करने के लिए कितना अच्छा डिज़ाइन किया गया है। केविन ट्रूडो +* साधारण भोजन और चिंतामुक्त मन स्वास्थ्य की निशानी हैं। अज्ञात +* नींद वह सुनहरी श्रृंखला है जो स्वास्थ्य और हमारे शरीर को एक साथ जोड़ती है। थॉमस डेकर +* दुनिया का सम्पूर्ण धन खर्च करके के भी आप अपना अच्छा स्वास्थ्य वापस नहीं प्राप्त कर सकते। रेबा मकएंटीरे +* स्वास्थ्य ही है जो वास्तविक धन है, सोने और चांदी के टुकड़े नहीं हैं। महात्मा गांधी +* मानव शरीर मानव आत्मा का सबसे अच्छा चित्र है। टोनी रॉबिंस +* खाना खाने के तुरंत बाद कभी नहीं सोना चाहिए इससे फिटनेस बिगड़ती है। स्वामी रामदेव +* युवा आगे आएं, स्वस्थ रहें और देश का नेतृत्व करें। स्वामी रामदेव + + +: भोग रोग के समान हैं, गहने भार रूप हैं और संसार यम यातना (नरक की पीड़ा) के समान है। हे प्राणनाथ! आपके बिना जगत् में मुझे कहीं कुछ भी सुखदायी नहीं है॥ +जो यह सोचते हैं कि उनके पास व्यायाम करने के समय नहीं है, उन्हें देर-सबेर बीमार पड़ने के लिए समय निकालना पड़ेगा। Edward Stanley +* स्वस्थ के बिना जीवन, जीवन नहीं होता, बल्कि दुःख और आलस्य की अवस्था होती है। अल्बर्ट आइंस्टीन + + +: जिस मनुष्य में स्वयं का विवेक, चेतना एवं बोध नहीं है, उसके लिए शास्त्र क्या कर सकता है। आंखों से हीन अर्थात् अंधे मनुष्य के लिए दर्पण क्या कर सकता है? +अर्थात- शास्त्रों का ज्ञान अगाध है; वे कलाएँ अनन्त हैं जो हमें सीखनी चाहिये; हमारे पास समय अल्प है, जो सीखने के मौके हैं उनमें अनेक विघ्न आते हैं। इसीलिए वही सीखें जो अत्यन्त सारभूत (महत्वपूर्ण) है, उसी प्रकार जैसे हंस पानी छोड़कर उसमे मिला हुआ दूध पी लेता है । +: शास्त्र ज्योति के समान होते हैं जो (वस्तुओं को) प्रकाशित करता है। बुद्धि आँख के समान है। इन दोनों से युक्त वैद्य चिकित्सा करते समय गलती नहीं करता। +: केवल कानून की किताबों व पोथियों मात्र के अध्ययन के आधार पर निर्णय देना उचित नहीं होता। इसके लिए ‘युक्ति’ का सहारा लिया जाना चाहिए। युक्तिहीन विचार से तो धर्म की हानि होती है। + + +शरीररुपी मकान को धारण करनेवाले) तीन उपस्तम्भ हैं; आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य (गृहस्थाश्रम में सम्यक् कामभोग) । +: भोजन, नींद, डर और वासना, पशु और आदमी दोनों में सामान्य है। आदमी का विशेष गुण धर्म है; धर्म के बिना वह एक पशु के समान ��ै। +: समृद्धि चाहने वाले मनुष्य को छः दोष समाप्त कर देने चाहिये- निद्रा, तन्द्रा (उंघना भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता (काम को समप्त न करते हुए उसे खींचते रहना) +: सत्य बोलनेवाला, मर्यादित व्यय करनेवाला, हितकारक पदार्थ आवश्यक प्रमाण मे खानेवाला, तथा जिसने इन्द्रियों पर विजय पाया है वह चैन की नींद सोता है। +: विद्यार्थी मे ये पांच लक्षण हैं- कौवे की तरह जानने की चेष्टा, बगुले की तरह ध्यान, कुत्ते की तरह नींद, अल्पाहारी और गृह-त्यागी होना। +: उस पुरुष के लिए योग दु:खनाशक होता है, जो युक्त आहार और विहार करने वाला है, यथायोग्य चेष्टा करने वाला है और परिमित शयन और जागरण करने वाला है। + + +: यह मेरा है, यह दूसरे का है ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है। उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है। +* अपने साथ उपकार करने वालों के साथ जो साधुता बरतता है, उसकी प्रशंसा क्या करें। महात्मा तो वह है जो अपने साथ बुराई करने वालों के साथ भी भलाई करे। महात्मा गांधी +* सुशील, धर्मात्मा और सबके मित्र व प्राणियों पर दया करने वाले पात्र बनो। संसार की अनेकानेक सम्पत्तियां ऐसे पात्र को ही अपना आश्रय बनाती हैं, उसी तरह जैसे पानी नीचे की ओर तथा धुआँ आसमान की ओर स्वाभाविक रूप से गति करता है। विष्णु पुराण +* प्राकृत के नियम के अनुसार सुख उदारता का और दुःख त्याग का पाठ पढ़ाने आता है। इतना ही नहीं, उदारता त्याग को पुष्ट करती है और त्याग उदारता को सुरक्षित रखता है। उदारता और त्याग को अपना लेने पर सुखियों और दुःखियों में वास्तविक एकता हो जाती है, जिसके होते ही समस्त संघर्ष अपने आप मिट जाते हैं। तब कोई वैर भाव शेष नहीं रहता। स्वामी शरणानन्द +* केवल अपने लिए मांगने वाल भिखारी कहलाता है, किन्तु सबके लिए मांगने वाला साधु कहलाता हैं महादेवी वर्मा +* यदि आप इस बात की चिन्ता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है, तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं। हैरी एस. ट्रूमेन + + +* ईमानदारी सर्वोत्तम नीति हैं अंग्रेजी लोकोक्ति +* ईमानदारी वह चीज है जिस पर मनुष्य की प्रतिष्ठा निर्भर करती है। श्रीराम शर्मा आचार्य +* वह व्यक्ति जो अपने खून-पसीने की कमाई से रोजी हासिल करता है, और जो भी वह कमाता है, उसमें दूसरों को हिस्सा देता है, ऐसे व्यक्ति को ईमानदार कहना च��हिए। गुरू नानक +किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए क्योकि सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं। चाणक्य +* ईमानदार बन कर आप अपनी बिलकुल अलग पहचान बनाते है। आपके व्यक्तित्व की यह चमक किसी की लाख कोशिशों के बाद छिपाए नहीं छुपती। वेदान्त तीर्थ +* ईमानदार होना दस हजार में से एक होना हैं। शेक्सपियर +* ईमानदार और सच्चे दिल वाला व्यक्ति स्वयम को सदा हल्का व तनावमुक्त अनुभव करता है। अज्ञात +* ईमानदारी मनुष्य स्वभावतः स्पष्टभाषी होता है। उसे अपनी बातों में नमक मिर्च लगाने की जरूरत नहीं होती। प्रेमचंद +* ईमानदारी के बराबर और कोई भी गुण अभी तक संसार में खोजा नहीं जा सका। असंख्य लोग ईमानदारी के बजाय धोखे के नकली सिक्के को चलाने में अपने जीवन को बिगाड़ चुके है। स्वेट मार्डेन +* किसी के मरणोपरान्त मिलने वाला कोई धन ईमानदारी से अधिक मूल्यवान नहीं है। शेक्सपियर +* ईमानदार व्यक्ति न चाहते हुए भी प्रसिद्ध हो जाता हैं। रूजवेल्ट +* आदमी को चाहिए कि वह पहले ईमानदार और सज्जन बने। बाद में शिष्टाचार और संतोष की पालिश चढ़ाए। कन्फ्यूशियस +* ईमानदार का हर काम खुलेआम होता हैं। चाणक्य +* बुजुर्गो से प्राप्त की हुई कोई भी वस्तु इतनी मूल्यवान नहीं होती जितनी की ईमानदारी। शेक्सपियर +* न्यायधीश को तीक्ष्ण बुद्धि होने, अधिक योग्य, प्रदर्शनीय होने, सम्मानित और पूर्ण विश्वस्त होने के बजाय अधिक विचारपूर्ण होना चाहिए। इससे भी ऊपर ईमानदारी और सच्चाई उनका असली गुण हैं। फ़्रांसिस बेकन +* ईमानदारी वैभव का मुंह नहीं देखती, वह तो मेहनत के पालने पर किलकारियां मारती है और संतोष पिता की तरह उसे देखकर तृप्त हुआ करता है। रांगेय राघव +* जो व्यक्ति छोटे-छोटे कामों को ईमानदारी से करता है, वही बड़े कामों को भी ईमानदारी से कर सकता हैं। सैमुअल स्माइल्स +* उस तुच्छ व्यक्ति का चित्त कभी शांत नहीं हो सकता, जिसने पैसे की खातिर अपना ईमान बेच दिया। शेखसादी +* ईमानदारी स्वयं अपना परिचय हैं। स्वामी गोविन्द प्रकाश +ईमानदार होने का मतलब यह कतई नहीं है कि आप बेईमानी से किसी भी तरह से हारे। ऐसी परिस्थिति में ईमानदारी को यमराज से भी ज्यादा क्रूर हो जाना चाहिए। वेदान्त तीर्थ +* ईमानदार कभी बेईमान हो नहीं सकता, यहीं बात बेईमान के साथ भी लागू होती है। के. हैरी +* ईमानदार होने का अर्थ है, सब खुला है, कोई भय नही���, किसी से कोई अपेक्षा नहीं, इसलिए ईमानदार का चेहरा प्रसन्नता से जगमगाता रहता है। किशोर स्वामी + + +: जहाँ उत्साह है, आरम्भ (पहल) है, और आलस्य नहीं है, नय (नीति) और पराक्रम का समुचित समन्वय है, वहाँ से लक्ष्मी कहीं और नहीं जाती, यह निश्चित है। +दीर्घसूत्री विनश्यति । (जो कार्य को आरम्भ करने में आलस्य करते हैं, उनका विनाश होता है।) +* हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है। चीनी कहावत +* प्रेरणा किसी कार्य आरम्भ करने में सहायता करती है और आदत उस कार्य को जारी रखने में सहायता करती है। विनोबा भावे +* बुद्धि का पहला लक्षण है काम आरम्भ न करो और अगर शुरू कर दिया है तो उसे पूरा करके ही छोड़ो। विनोबा भावे +* निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मंत्र प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र योजना परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है प्रभाव राजोचित शक्ति तेज से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह उद्यम से कार्य सिद्ध होता है । दसकुमारचरित +* आरम्भ करने के लिए आपको महान होने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन आपको महान बनने के लिए आरम्भ करना होगा। लेस ब्राउन +* आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है। सैली बर्जर +* जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये। निर्भीकता के अन्दर मेधा बुद्धि शक्ति और जादू होते हैं। गोथे +* यदि सारी आपत्तियों का निस्तारण करने लगें तो कोई काम कभी भी आरम्भ ही नही हो सकता। + + +लेस ब्राउन Les Brown) एक अमेरिकी प्रेरक वक्ता होने के साथ एक लेखक, पूर्व रेडियो डीजे और पूर्व टेलीविजन होस्ट भी हैं। उनका जन्म 17 फरवरी, 1945 को अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित मियामी में हुआ था। उन्होंने भी जिंदगी में बहुत बार असफलताओ का सामना किया है। वे बताते हैं की जब वे पहली बार रेडिओ डीजे बनने के लिए गए थे तो उन्हें बार बार रिजेक्ट कर दिया गया था लेकिन अपनी कभी हार न मानने वाली जज्बे के कारण वे आखिर उस रेडिओ डीजे बन ही गये। +* आरम्भ करने के लिए आपको महान होने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन आपको महान बनने के लिए आरम्भ करना होगा। +* जीवन की कोई सीमा नहीं है, सिवाय इसके कि आप जो भी बनाते हैं। +* यदि आप अपने लिए जिम्मेदारी लेते हैं तो आप अपने सपनों को पूरा करने की भूख विकसित करेंगे। +* सबसे बड़ा बदला भारी सफलता है। +* सिर्फ इसलिए कि भाग्य आपको सही कार्ड नहीं देता है, इसका मतलब यह नहीं है कि आपको हार माननी चाहिए। इसका मतलब है कि आपको अपनी अधिकतम क्षमता के हिसाब से कार्ड खेलना होगा। +* पूर्णता मौजूद नहीं है आप हमेशा बेहतर कर सकते हैं और आप हमेशा बढ़ सकते हैं। +* अपने दोषों और अपनी गलतियों के लिए खुद को क्षमा करें और आगे बढ़ें। +* अपने जीवन के लिए जिम्मेदारी स्वीकार करें। यह जान लें कि यह आप ही हैं जो आपको वहां ले जाएगा जहाँ आप जाना चाहते हैं, कोई और नहीं। +* कोई भी कम उम्मीदों के लिए नहीं उठता है। +* यह तब तक खत्म नहीं होता जब तक आप जीत नहीं जाते। +* सुनिश्चित करें कि जब आप गिरते हैं तो आपकी पीठ पर उतरते हैं यदि आप देख सकते हैं कि आप उठ सकते हैं। +* यदि आप अपने आप को एक ऐसी स्थिति में रखते हैं जहाँ आपको अपने कम्फर्ट ज़ोन के बाहर खिंचाव पड़ता है, तो आप अपनी चेतना का विस्तार करने के लिए मजबूर होते हैं। +* अपने सपनों को हासिल करने में दूसरों की मदद करें और आप अपनी उपलब्धि हासिल करेंगे। +* कुछ ऐसा हासिल करने के लिए जिसे आपने पहले कभी हासिल नहीं किया है, आपको कोई ऐसा व्यक्ति बनना चाहिए जो आप पहले कभी नहीं थे। +* यदि आप अपने आप को प्रोग्राम नहीं करते हैं, तो जीवन आपको प्रोग्राम करेगा। +* कोई भी आपकी अनुमति के बिना लगातार आपकी भावनाओं का अपमान या चोट नहीं कर सकता है। +* आप तय करते हैं कि आपकी सीमाएं क्या हैं, और आप अपनी सफलता का स्तर तय करते हैं। आप उस समय के लिए जिम्मेदार हैं जो आप इस ग्रह पर बिताते हैं। +* ऐसे लोग हैं जो अपने जीवन को बदलने और अपने सपनों को जीने के लिए पर्याप्त रूप से बुद्धिमान हैं और प्रेरित हैं, और फिर ऐसे लोग हैं जिन्हें अपने तरीके बदलने के लिए पैंट में किक की आवश्यकता है। +* यदि आपके पास ऐसे बच्चे हैं जो आपसे प्यार करते हैं और आपका सम्मान करते हैं, तो यह भी आपकी सफलता का संकेत हो सकता है। +* आप जीवन में जिस तरह के परिणामों की तलाश कर रहे हैं यदि आप उन्हें प्राप्त करने के लिए स्मार्ट काम करने के इच्छुक हैं तो आप उन्हें प्राप्त कर सकते हैं। +* जब आप कुछ चाहते हैं, तो आपको अपना बकाया चुकाने के लिए तैयार रहना होगा। +* सबसे जरूरी चीजों में से एक जो आपको अपने लिए करने की जरूरत है, वह है एक ऐसा लक्ष्य चुनना जो आपके लिए महत्वपूर्ण हो। +* बहुत बार, एक लक्ष्य तक पहुंचने में सबसे बड़ी बाधा शुरू हो रही है। और दूसरी सबसे बड़ी बाधा सही दिशा में शुरू हो रही है। +* यदि आप अपने आत्मसम्मान को मिटने देते हैं, तो आपका डर आपको खा जाएगा; अंततः यह आपको नष्ट कर सकता है। +* आपकी मुस्कुराहट आपको एक सकारात्मक प्रतिज्ञान देगी जो लोगों को आपके आस-पास सहज महसूस कराएगी। +* आपके बारे में अन्य लोगों की राय आपकी वास्तविकता बनने की नहीं है। + + +* हंसी के हमले के आगे कुछ भी नहीं ठहर सकता। मार्क ट्वेन]] +* हंसी परेशान दुनिया के कंधे पर भगवान का हाथ है। बेटैनल हंजनिकर +* आपका शरीर बिना खेल के ठीक नहीं हो सकता है। आपका दिमाग बिना हंसी के ठीक नहीं हो सकता है। आपकी आत्मा बिना खुशी के ठीक नहीं हो सकती है। कैथरीन रिपेंजर फेनविक +* जब भी हंस सको हंसो। यह एक सस्ती दवा है। लार्ड बायरन +* आपकी मुस्कान आपके चेहरे पर भगवान् के हस्ताक्षर हैं, उसे अपने आंसुओं से धुलने या क्रोध से मिटने ना दें। ब्रह्माकुमारी शिवानी +* एक हलकी सी मुस्कुराहट होंठों से शुरू होती है, एक अच्छी मुस्कान आँखों तक जाती है, एक हँसी पेट से निकलती है लेकिन एक ठहाका आत्मा से फूटता है, ऊपर से बहता है और चारों और अपने बुलबुले छोड़ता है। कैरोलिन बर्मिंघम +* एक संतुलित व्यक्ति वह है जो किसी मुद्दे के दोनों ओर को हंसने योग्य पाता है। हर्बर्ट प्रौक्नो +* हमें हर उस सत्य को असत्य कहना चाहिए जिसके साथ कम से में एक हंसी ना रही हो। फ्रेडरिक नीत्शे +* जैसे साबुन शरीर के लिए है, वैसे हंसी आत्मा के लिए है। एक यहूदी कहावत +* यहाँ तक की देवताओं को भी चुटकुले पसंद हैं। प्लेटो +* वहां से यहाँ तक, यहाँ से वहां तक, हर जगह मजाकिया चीजें मौजूद हैं। डॉ सियस +* भगवान् एक कॉमेडियन हैं जो ऐसे दर्शकों के सामने प्रदर्शन कर रहे हैं जो इतने डरे हुए हैं कि हंस नहीं सकते। वोल्टेयर +* हंसी भगवान् की दवा है। हेनरी वार्ड बीचर +* हास्य आस्था का आरम्भ है और हंसी प्रार्थना की शुरुआत है। रीन्होल्ड नेबर +* हास्य उस चीज पर हंसना है जो आपके पास तब नहीं है जब वो आपके पास होनी चाहिए थी। जेम्स लैंगस्टन ह्यूजेस +* इस दुनिया में, हंसने का एक अच्छा समय है जब भी आप हंस सकें। लिंडा एलेर्बी +* मैंने किसी को हंसी की वजह से मरते हुए नहीं देखा है, लेकिन मैं लाखों लोगों को जानता हूँ जो इसलिए मर रहे हैं क्योंकि वे हंस नहीं रहे हैं। डॉ मदन कटारिया +* यदि हंसी आपकी समस्या सॉल्व नहीं ���र सकती, तो निश्चित रूप से ये आपकी समस्या डीजौल्व कर देगा; ताकि आप साफ-साफ़ सोच सकें कि उनके बारे में आपको क्या करना है। डॉ मदन कटारिया +* यदि आप खुश हैं और आपके आस-पास के लोग खुश नहीं हैं तो वे आपको भी खुश नहीं रहने देंगे। इसलिए आपकी ख़ुशी काफी हद तक ख़ुशी फैलाने की आपकी क्षमता पर निर्भर करती है। डॉ मदन कटारिया +* यदि आप अपनी हंसी के बाद शांत हो जाते हैं तो एक दिन आप भगवान् को भी हँसते हुए सुनेंगे, आप पूरे अस्तित्व को हंसते हुए सुनेंगे – पेड़ों और पत्थरों और सितारों के साथ। ओशो +* यदि आप अपनी मुसीबतों पर हँसना नहीं सीखते तो आपके पास कुछ भी हंसने के लिए नहीं होगा जब आप बूढ़े होंगे। एडगर वाटसन होव +* यदि आपके पास कोई ट्रेजडी नहीं है तो आपके पास कोई कॉमेडी नहीं है। रोना और हँसना एक ही भावना है। यदि आप बहुत अधिक हँसते हैं तो आप रोते हैं। और इसके उलट भी। सिड सीजर +* अगर आप चाहते हैं लोग आप पर हँसे नहीं तो खुद पर हंसने वाला पहला व्यक्ति बनिए। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* हंसीं को दबाना अच्छा नहीं है। यह वापस आपके हिप्स तक जाकर फ़ैल जाती है। फ्रेड एलन इससे पहले कि कोई और आप पर हँसे, आप खुद पर हंसिये। एलसा मैक्सवेल +* हंसीं का कोई फॉरेन एक्सेंट नहीं होता। पॉल लोनी +* हंसी आंतरिक जॉगिंग का एक रूप है। नॉर्मन कजंस +* हंसी दो लोगों के बीच की सबसे कम दूरी है। विक्टर बोर्ज +* हंसी फेफड़ों को खोलती है, और फेफड़ों को खोलना आत्मा को हवा देता है। अनाम +* हमारे बारे में मजाकिया बात यह है कि हम खुद को बहुत गंभीरता से लेते हैं। रीन्होल्ड नेबर +* खुशी और हंसी के साथ झुर्रियां आने दीजिये। विलियम शेक्सपीयर +* आप इसलिए हँसना नहीं छोड़ देते क्योंकि आप बूढ़े हो जाते हैं। आप हँसना छोड़ देते है इसलिए बूढ़े हो जाते हैं। माइकल पिटचार्ड +* हास्य सबसे अच्छी दवा है। अज्ञात +* एक पल के लिए ही सही, किसी और के चेहरे की मुस्कान बनो। डेजन स्टोजनोविक +* हंसी के बिना बिताया हुआ दिन बर्वाद किया हुआ दिन है। चार्ली चैपलिन +* कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके दिल का दर्द क्या है, हँसने से आप इसे कुछ सेकंड के लिए भूल जाते हैं। रेड स्केलेटन +* इस बात को याद रखिये: एक खुशहाल जिन्दगी के लिए बहुत कम चीजों की आवश्यकता होती है। मार्कस औरेलियस +* खुद को खुश करने का सबसे अच्छा तरीका है किस और को खुश करने की कोशिश करना। मार्क ट्वेन +* जितना गहरा दुख आपके वजू�� में आता है, उतना अधिक खुशी आप खुद में समा सकते हैं। खलील जिब्रान]] +* मुसीबत ने दरवाजा खटखटाया, लेकिन, हंसी सुनकर, वापस चली गयी। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* मेरा दर्द किसी के लिए हंसने की वजह हो सकता है। पर मेरी हंसी कभी भी किसी के दर्द की वजह नहीं होनी चाहिए। चार्ली चैपलिन + + +: हे धनञ्जय तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर, योग में स्थित हुआ कर्तव्यकर्मों को कर; यही समत्व योग कहलाता है। +* यह कहना ठीक नहीं है कि समानता प्रकृति का नियम है। प्रकृति ने कुछ भी एक समान नहीं बनाया है। प्रकृति का नियम है- अधीनता तथा निर्भरता। Luc de Clapiers, Marquis de Vauvenargues, Réflexions et Maximes (1746) +* जिस समाज में समानता को स्वतंत्रता से अधिक महत्व दिया जायेगा उस समाज में न समानता होगी न स्वतंत्रता। ज्स समाज में स्वतंत्रता को समानता से अधिक महत्व दिया जायेगा, उस समाज में स्वतंत्रता और समानता दोनों ही अधिक मात्रा में होंगी। Milton Friedman, From Created Equal, an episode of the PBS Free to Choose television series (1980, vol. 5 transcript). +* क्योंकि यदि सभी मनुष्यों में सब कुछ समान होता तो किसी भी गुण का महत्व नहीं होता। थॉमस हॉब्स, Leviathan (1651 Part I, Chapter 8, page 32. + + +: प्रतिदिन ही प्राणी यम के घर में प्रवेश करते हैं, शेष प्राणी अनन्त काल तक यहाँ रहने की इच्छा करते हैं। क्या इससे बड़ा कोई आश्चर्य है? +: दान, तप, शूरता, विज्ञान, विनय तथा नीति के विषय में आश्चर्य नहीं करना चाहिए। (क्योंकि) यह पृथ्वी अनेक रत्नों वाली है (अर्थात यह धरती गूणी जनों से भरी प्ड़ी है)। +* आश्चर्य से दर्शन की उत्पत्ति होती है। ए एन व्हाइटहेड, नेचर ऐण्ड लाइफ में +* मानव आश्चर्य करने के लिये ही जागता है। विज्ञान उसे पुनः सुलाने का एक तरीका है। लुडविग विटगेन्स्टीन + + +: अनेक छोटी-छोटी नगण्य वस्तुओं को सही ढंग से एकसाथ लाने से बड़े काम भी हो सकते हैं, जैसे कि तृणों को जोड़कर बनाई गई रस्सी से मत्त हाथी बाँध लिये जाते हैं। +: एकता समाज का बल है, और इसके बिना वह समाज दुर्बल होता है। इसीलिये दृढ़ राष्ट्र के शुभचिन्तक एकता की प्रशंसा करते हैं। +* आप कभी भी एकता नहीं बना सकते हैं यदि आप चाहते हैं कि चीजें आपके रास्ते पर जाएं। सिरिल रामाफोसा +* आवश्यक चीजों में, एकता; संदिग्ध चीजों में, स्वतंत्रता; सभी चीजों में, दान। रिचर्ड बैक्सटर +* इतनी शक्तिशाली एकता की रोशनी है कि यह पूरी पृथ्वी को रोशन कर सकती है। बहाउल्लाह +* इसमें कोई शक नहीं, एकता के लिए वांछित होने के लिए कुछ किया जाना है, लेकिन यह केवल घोषणाओं द्वारा नहीं किया जा सकता है। थियोडोर बिकेल +* एक-साथ आना एक शुरूआत है। साथ रखना प्रगति है। साथ मिलकर काम करना सफलता है। हेनरी फोर्ड +* एक के लिए सब और सब के लिए एक। अलेक्जेंड्रे डुमास +* एक रानी के रूप में, मैं एकता और सम्मान के बारे में बोलती हूं। मुझे लगता है कि यह सबसे महत्वपूर्ण बात है। गैब्रिएला इसलर +* एकता और जीत पर्यायवाची हैं। समोरा मचेल +* एकता और धर्मनिरपेक्षता सरकार का आदर्श वाक्य होगा। हम भारत में विभाजनकारी राजनीति बर्दाश्त नहीं कर सकते। मनमोहन सिंह +* एकता के बिना कोई सफलता नहीं है। एला व्हीलर विलकॉक्स +* एकता के बिना, देश आपदा का सामना करेगा। भूमिबोल अदुल्यादेज +* एकता के साथ हर नामुमकिन काम मुमकिन हो जाता है। +* एकता ताकत है, विभाजन कमजोरी है। स्वाहिली कहावत +* एकता दिव्यता, पवित्रता और ज्ञान है। डॉ। पुरुषोत्तमन +* एकता प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक प्रकार का इंजन है। टिम स्वीनी +* एकता बहुवचन है और, कम से कम, दो है। बकमिनस्टर फुलर +* एकता में अटूट शक्ति। ईसप +* एकता में जो महत्व है वह एक शाश्वत आश्चर्य है। रविंद्रनाथ टैगोर +* एकता में बल है। जब टीम वर्क और सहयोग होता है, तो अद्भुत चीजें हासिल की जा सकती हैं। मैटी स्टेपानेक +* एकता में सुंदरता और शक्ति है। हमें दिल और दिमाग में एकजुट होना चाहिए। एक दुनिया, एक लोग। लैलाह गिफ्टी अकिता +* एकता वह है जहाँ हम सभी को होना चाहिए। +* एकता शक्ति है; एकता के बिना महिलाएं कहीं भी अपने अधिकारों के लिए नहीं लड़ सकती हैं। Nawal El Saadawi +* एकता शक्तिहीन को भी शक्ति प्रदान करता है। +* कमजोर तब भी मजबूत हो जाते हैं जब वे एकजुट होते हैं। फ्रेडरिक वॉन शिलर +* कुरान से मैंने जो पहला पाठ सीखा, वह एकता और शांति का संदेश था। Cat Stevens +* कोई भी राष्ट्रीय एकता को कमजोर नहीं कर सकता। इविका डैसिक +* जब मकड़ियों एकजुट हो जाते हैं, तो वे एक शेर को बांध सकते हैं। इथियोपियाई नीतिवचन +* जहां एकता है वहां हमेशा जीत होती है। पब्लिकलीस साइरस +* जिन सवालों का सामना करना पड़ता है, उन्हें अनदेखा करके आप एकता नहीं पाते हैं। जे वेदरिल +* जो एकजुट हो सकता है उसे कभी मत काटो। जोसेफ जौबर्ट +* पुलों का निर्माण करें, दीवारों का नहीं। Suzy Kassem +* प्रत्येक के आचरण पर सभी के भाग्य पर निर्भर करत��� है। सिकंदर महान +* बिना सत्य के एकता साजिश से बेहतर नहीं है। जॉन ट्रैप +* भले ही विश्वास की एकता संभव नहीं है, लेकिन प्यार की एक एकता है। हंस उर्स वॉन बल्थासर +* मानव-जाति को एकता का पाठ चींटियों से सीखनी चाहिए +* मेरा दृष्टिकोण है, एक स्मारक, एक मूर्ति, जो विभाजन के बजाय एकता का प्रतीक होना चाहिए। बिल नेल्सन +* मैं वास्तविक एकता के बिना किसी भी वास्तविकता की कल्पना नहीं करता हूं। गॉटफ्रीड लीबनिज +* मैं विभाजन के विपरीत एकता में विश्वास करता हूं। टॉम शैडाक +* यदि चिड़ियाँ एकता कर लें तो शेर की खाल खींच सकती हैं। शेख सादी +* यदि हम ईमानदार नहीं हैं, तो हम एकता बनाने में सक्षम नहीं हैं। सिरिल रामाफोसा +* विजेता होने के लिए, टीम में एकता की भावना होनी चाहिए; प्रत्येक खिलाड़ी को टीम को पहले रखना होगा, व्यक्तिगत गौरव के आगे। Paul Bryant +* विभाजन की तुलना में एकता में अधिक शक्ति है। एमानुएल क्लीवर +* संख्या में नहीं, बल्कि एकता में हमारी महान शक्ति निहित है। थॉमस पाइन +* सुंदर का सार विविधता में एकता है। डब्ल्यू। समरसेट मौघम +* स्थायी एकता वहीं उत्पन्न होती हैं जहाँ अंतःकरण एक होते हैं। स्वामी रामतीर्थ +* हमें प्रकृति, घरों और मनुष्यों को एक साथ लाने का प्रयास करना चाहिए। लुडविग मिज़ वैन डेर रोहे +* हमें हमेशा मतभेदों के बजाय चीजों में एकता की तलाश में रहना चाहिए। जेनेसिस पी-ऑरिज +* हमें हिंसा और स्वार्थ को अस्वीकार करना चाहिए जो हमारे देश की एकता को नष्ट कर सकता है। Mwai Kibaki + + +* अच्छे निर्णय लेना अनुभव से आता है, और अनुभव बुरे निर्णय लेने से। रीटा मॅई ब्राउन +* अनुभव एक अच्छा स्कूल है, लेकिन फीस अधिक है। हेनरिक हीन +* अनुभव एक ऐसी चीज है जिसे आप बिना कुछ किये नहीं पा सकते। ऑस्कर वाइल्ड +* अनुभव एक कठोर शिक्षक है क्योंकि वो पहले परीक्षा लेता है और पाठ बाद में पढ़ता है। वेर्नोन लॉ +* अनुभव एक महान शिक्षक है। जॉन लीजेंड +* अनुभव का एक काँटा चेतावनी के पूरे जंगल के बराबर है जेम्स रस्सेल लोवेल +* अनुभव दुबारा हो रही गलती को पहचानने में सक्षम बनता है। फ्रेंक्लिन पी. जोंस +* अनुभव प्राप्त करने से आसान कुछ नहीं है और उसे प्रयोग में लाने से कठिन कुछ नहीं है। जोश बिल्लिंग्स +* अनुभव वह है जो आपको तब मिलता है जब आप कुछ और खोज रहे होते हैं। फेडेरिको फेल्लिनी +* अनुभव विचार की सन्तान है, और विचार क्रिया की। ���ेंजामिन डिस्रेलि +* अनुभव सबसे ख़ुशी से उसकी प्रशंशा करता है जिसने सबसे अधिक लोगों को खुश किया हो। कार्ल मार्क्स +* अनुभव सभी बातों का शिक्षक है। जूलियस सीजर +* अनुभव से हमने केवल एक चीज सीखा है और वो ये कि अनुभव से कुछ नहीं सीखा जा सकता। चिनुआ अचेबे +* अपने सुख-दुःख अनुभव करने से बहुत पहले हम स्वयं उन्हें चुनते हैं । खलील जिब्रान +* आकाश ही सीमा है। आप एक ही अनुभव बार बार नहीं पा सकते। फ्रैंक मैक कोर्ट +* आप अनुभव पैदा नहीं कर सकते। आपको उससे हो कर गुजरना होता है। अल्बर्ट कैमस +* इसमें कोई सन्देह नहीं की हमारे समस्त ज्ञान का आरम्भ अनुभव से होता है। इम्मानुअल कैंट +* एक कहावत लम्बे अनुभव पर आधारित एक छोटा सा वाक्य है। मिगुएल डे सरवनटस +* एक नए अनुभव से विस्तृत हुआ मन कभी अपने मूल आयाम को पुनः नहीं पा सकता। ओलिवर वेंडेल होम्स, जूनियर +* कभी इतना बड़ा विशेषज्ञ मत बनिए कि आप विशेषज्ञता प्राप्त करना बंद कर दें। जीवन को एक निरंतर अनुभव के रूप में देखें। डेनिस वैट्ले +* कहावत लम्बे अनुभव पर आधारित एक छोटा सा वाक्य है। मिगुएल डे सरवनटस +* कुछ भी करना समय की बर्वादी नहीं है यदि आप अनुभव को समझदारी से प्रयोग करें। औगास्ते रोडिन +* कुछ भी वास्तविक नहीं होता जब तक उसका अनुभव न किया जाये। जॉन कीट्स +* क्या आपको शिक्षा और अनुभव के बीच का अन्तर पता है? शिक्षा वो है जिससे आप फाइन प्रिन्ट पढ़ लेते हैं अनुभव वो है जो ना पढ़ने पर मिलता है। पीटर सिगेर +* क्या कोई इतना समझदार है कि दूसरे के अनुभवों से सीख ले वाल्टेयर +* जीवन केवल पीछे देखकर समझा जा सकता है, लेकिन इसे आगे देखते हुए जीना चाहिए। सोरेन कियर्केगार्ड +* ज्ञान का एकमात्र स्रोत अनुभव है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* तीन तरह से हम ज्ञान पा सकते हैं: पहला, विचार करके, जो की सबसे अच्छा तरीका है; दूसरा अनुकरण करके, जो सबसे आसान है; और तीसरा अनुभव से, जो सबसे पीड़ादायक है। कन्फ़्यूशियस +* तीव्र परिवर्तन के समय, अनुभव आपका सबसे बड़ा दुश्मन बन सकता है। जे पॉल गेट्टी +* दो चीजें मनुष्य की प्रकृति को नियंत्रित करती हैं- वृत्ति और अनुभव। ब्लेज पास्कल +* धन पूरी तरह से जीवन अनुभव करने का सामर्थ्य है। हेनरी डेविड थोरो +* मैं चाहूँगा कि बहुत सारे अनुभव और थोड़ी सी प्रतिभा की अपेक्षा मेरे पास बहुत अधिक प्रतिभा और थोडा सा अनुभव हो। जॉन वुडेन +* मैं वृत्ति के अनुसार चलत��� हूँ, मैं अनुभव की चिंता नहीं करती। बारबरा स्ट्रीसैंड +* यह एक आम अनुभव है कि रात की कठिन समस्या नीद की कमिटी के काम करने के बाद सुबह आसानी से हल हो जाती है । जॉन स्टीनबेक +ये मेरा अनुभव रहा है की जिन लोगों में कोई बुराई नहीं होती उनमे अच्छाई भी बहुत कम होती है। अब्राहम लिंकन +* व्यक्ति अपने अनुभव के अनुपात में नहीं, बल्कि अपनी अनुभव लेने की क्षमता के अनुपात में बुद्धिमान होता है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* व्यवसाय की दुनिया में, हर किसी को दो मुद्राओं में भुगतान किया जाता है: नकद और अनुभव। पहले अनुभव ले लो, नकद बाद में आ जायेगा। हेरोल्ड एस जीनेन +* सदियों के अनुभव ने मानवता को सिखाया है कि पति-पत्नी की एक दूसरे से प्रेम और मदद करने की प्रतिबद्धता बच्चों के कल्याण और समाज की स्थिरता को बढ़ावा देती है। जैक किंग्स्टन +* सूचना का कोई विशेष अर्थ नहीं होता जब तक उसे अनुभव के साथ मिलाया न जाये। क्लेरेंस डे +* हम अनुभव से सीखते हैं कि मनुष्य अनुभव से कुछ नहीं सीखता है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* हम अपने सभी अनुभवों के के लिए खुद जिम्मेदार हैं। लुईस एल हे +* हम मनुष्य नहीं हैं जो आध्यात्मिक अनुभव ले रहे हैं। हम आध्यात्मिक प्राणी हैं जो मनुष्य होने का अनुभव ले रहे हैं। पिएरे टेइल्हार्ड डी चारडीन +* होते समय गलतियाँ कष्टकारी होती हैं, लेकिन सालों बाद इन्ही गलतियों के संग्रह को हम अनुभव कहते हैं। डेनिस वैट्ले + + +किसी परिकल्पना (हाइपोथेसिस) की जाँच करने के लिये, उसको असिद्ध करने के लिये, या स्थापित करने के लिये अपनायी गयी विधि को ही प्रयोग कहते हैं। प्रयोग में विधि के साथ साथ कुछ वस्तुएँ और उपकरण (विशेष रूप से, मापन के लिये आवश्यक उपकरण) होते हैं। +* सामान्यतः किसी नये नियम की खोज के लिये हम यह रीति अपनाते हैं- पहले हम अनुमान (guess) करते हैं। उसके बाद हम गणना करके देखते हैं कि यदि ये अनुमान सही निकले तो क्या होगा अर्थात यदि यह नियम सही सिद्ध हुआ तो इसके क्या-क्या परिणाम हो सकते हैं। इसके बद हम गणना से प्राप्त परिणामों और प्रकृति से प्रप्त आंकडों की तुलना करते हैं और देखते हैं कि वे मिल्ते-जुलते हैं या नहीं। यदि यह प्रयोग से मेल नहीं खाता तो यह गलत है। उस सरल कथन में ही विज्ञान की कुंजी छिपी है। इससे कोई अन्तर नहीं पड़त कि आपका अनुमन कितना सही है, किसने अनुमान लगाया, या उसका नाम क्या है। यदि यह (अनुमान) प्रयोग से सहमत नहीं है तो यह गलत है। रिचर्ड फीनमान (Richard Feynman) + + +: कुण्डल पहन लेने से कानों की शोभा नहीं बढ़ती, अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है। हाथ, कंगन धारण करने से सुन्दर नहीं होते, उनकी शोभा दान करने से बढ़ती है। सज्जनों का शरीर भी चन्दन से नहीं अपितु परहित में किये गये कार्यों से शोभित होता है। +: उठती जवानी की मृगनयनी सुंदरियों के कौन से काम मनोमुग्धकर नहीं होते उनका मन्द-मन्द मुस्काना, स्वाभाविक चञ्चल कटाक्ष, नवीन भोग-विलास की उक्ति से रसीली बातें करना और नखरे के साथ मन्द-मन्द चलना – ये सभी हाव-भाव कामियों के मन को शीघ्र वश में कर लेते हैं। +* अभिव्यक्ति के बिना सौन्दर्य उबाऊ है। राल्फ वल्डो इमर्शन +* आंतरिक सौन्दर्य आत्म सुधार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए। प्रिसिला प्रेस्ली +* उन लोगों से अधिक सुन्दर कुछ भी नही हो सकता, जो स्वयं आगे बढ़कर दूसरों के जीवन को खुशहाल बनाने के लिए प्रयास करते हैं। मैंडी हेल +* उसे उसके लुक्स उसके पिता से मिले। वह एक पलस्टिक सर्जन हैं। ग्रुशो मार्क्स +* कभी-कभार लोग सुन्दर होते हैं।दिखने में नहीं। इसमें नहीं कि वे क्या कहते हैं। बस इसमें जोकि वे हैं। मार्कस ज़ुकस +* जीने में आनन्द लेना एक औरत का सबसे अच्छा कॉस्मेटिक है। रॉसलिंड रसेल +* जीवन के दो प्रमुख उपहार, सौन्दर्य और सत्य, पहले को मैंने एक प्रेम करने वाले हृदय में पाया और दुसरे को एक मजदूर के हाथों में। खलील जिब्रान +* दोष में एक प्रकार सौन्दर्य है। कॉनराड हॉल +* प्राकृतिक सौन्दर्य को अपने भीतर समाहित कर लेना भी बहुत सुखद है। विक्टोरिया जस्टिस +* भविष्य उनका है जो अपने सपनों की खूबसूरती में विश्वास करते हैं। एलेनोर रूज़वेल्ट +* भविष्य सिर्फ उन्हें ही प्राप्त होता है, जो अपने सपनों की सुन्दरता पर विश्वास रखते हैं। एलेनोर रूज़वेल्ट +* यदि कोई चीज़ बहुत सुन्दर है, इसका अर्थ यह नही है कि वह अच्छी भी होगी। एलेक्स फ्लिन +* ये सभी विचार आप यहा पढ रहे है ये तमाम महान हस्तियो का खुद्के विचार है जो उन्होने खुबसुरती इस विषय पर बडे ही खुबसुरत तरीके से बयान किये है, जिसमे प्लेटो, चाणक्य, कन्फुशियस जैसे उच्च दर्जे के तत्वग्यानी शामिल है। +* वफ़ादारी सौन्दर्य व्यक्त करती है। थॉमस लियोनार्ड +* वह व्यक्ति जो काँटों से डरता है, उसे कभी गुलाब को पाने की लालसा नही करन��� चाहिए।- ऐनी ब्रायंट +* शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पता है। शिक्षा सौन्दर्य और यौवन को परास्त कर देती है। चाणक्य +* सत्य हमेशा सुन्दर नहीं होता लेकिन इसकी भूख होती है। नादिन गौर्डीमर +* सुन्दरता का सबसे अच्छा हिस्सा वो है जिसे कोई तस्वीर व्यक्त नहीं कर सकती। फ्रांसिस बेकन +* सुन्दरता किसी कारण से नहीं होती। यह बस होती है। एमिली डिकिंसन +* सुन्दरता के साथ समस्या यह है कि ये अमीर पैदा होने और धीरे-धीरे गरीब होने की तरह है। जोन कॉलिंस +* सुन्दरता शराब से भी बदतर है यह रखने वाले और देखने वाले दोनों को मदहोश कर देती है। एल्ड्स हक्सले +* सौन्दर्य एक आईने में शाश्वतता का खुद को एकटक देखना है। खलील जिब्रान +* सौन्दर्य और पवित्रता का मिलन दुर्लभ है। जुवेनल +* सौन्दर्य का चरित्र के साथ बहुत कुछ लेना-देना है। केविन औकोइन +* सौन्दर्य की एक चीज हमेशा का आनंद है। जॉन कीट्स +* सौन्दर्य पहला उपहार है जो प्रकृति महिलाओं को देती है और जो सबसे पहले ले लेती है। फे वेल्डन +* सौन्दर्य से प्यार करना प्रकाश को देखना है। विक्टर ह्यूगो + + +सीमा का अर्थ वह स्थान है जिसके आगे नहीं जाया जा सकता। +* आपके प्रभाव की केवल एक ही सीमा है कि आप की कल्पना कहाँ तक पहुँचती है और आप कितने कटिबद्ध हैं। टोनी रॉबिन्स +* जब हम बड़े होते हैं तो हमें अपनी सीमा का ज्ञान होता है। + + +विक्रय या बिक्री का अर्थ है- कोई धन (मुद्रा) या कोई वस्तु लेकर कोई अन्य वस्तु या सेवा देना। + + +लाभ का अर्थ है 'सम्पत्ति में वृद्धि' । कोई उद्योग करने पर या सेवा प्रदान करके हम लाभ कमाते हैं। अर्थशास्त्र की भाषा में कहें तो किसी निवेश (इन्वेस्टमेन्ट) के मूल्य में वृद्धि को लाभ कहा जाता है। +: जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को समान समझकर, उसके बाद युद्ध के लिए तैयार हो जा, इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा। +* ज्ञान में किए गए निवेश से सबसे उत्तम लाभ प्राप्त होता है। बेंजामिन फ्रैंकलीन + + +गंगा नदी भारतीय संस्कृति का गौरव है जो विश्व में हमें एक अलग पहचान दिलाती है। पुराणों में गंगा नदी को सभी तीर्थ-स्थलों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ-स्थल माना गया है तथा सभी नदियों में सर्वश्रेष्ठ नदी माना गया है। +गंगा का आध्यात्मिक और भौतिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। भौतिक दृष्टि स�� गंगा नदी तंत्र एक विशाल नदी तंत्र है, जिसपर सहस्रों बाँध बने हैं तथा असंख्य कृषि भू-भाग संचित होता है। आध्यात्मिक दृष्टि से गंगा को 'मोक्षदा मोक्ष देने वाली) कहा गया है। 'तारयतेति तीर्थ' जो भवसागर से पार करा दे वही तीर्थ है। कलियुग में जितने भी तीर्थ-स्थल है, उनमें गंगा नदी को परम पवित्र तीर्थ-स्थल माना गया है। +पुराणों के आख्यानों और उपाख्यानों में देवी अर्थात ब्रह्म का स्वरुप माना गया है, एक स्थान पर कहा गया है कि गंगा नदी गंगा के नाम से द्रव रूप में परिणत साक्षात परम ब्रह्म ही है तथा महापातकियों का भी उद्धार करने के लिए स्वयं कृपानिधि परमात्मा ही पुण्यतम जल के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेकर आये हैं। +सर्वपापहरणी त्रिपथगा भागीरथी माँ गंगा उद्गम-स्थल गंगोत्री से दस मिल दूर हिमाच्छादित गोमुख है । यहाँ भागीरथ शिखर से नीचे गोमुख हिमानी ही गंगा नदी का उद्गम-स्थल है। गोमुख स्वर्ग की अनुभूति का अहसास करता है। गोमुख गंगोत्री से लगभग २५ किलोमीटर के आस-पास की दूरी पर स्थित है। यहाँ के लिए चीरवासा (चीड़ के वृक्षों की अधिकता होने के कारण यह नाम पड़ा और भोजवासा (भोज वृक्षों की अधिकता) से होकर जाना पड़ता है। +पतित पावनी माँ गंगा नदी का मुख्य मंदिर गंगोत्री में है। यही पर पापहरणी माँ भागीरथी की पूजा-अर्चना होती है। +गंगा का पृथवी पर अवतरण की कहानी पुराणों के आख्यानों-उपाख्यानों में मिलती है । जिसमें अनेक कथाएं प्रचलित हैं । उनमे से मुख्य है - +१) शान्तनु की पत्नी के रूप में पृथिवी पर गंगावतरण की कथा- जिसमे किसी शाप के कारण माँ गंगा पृथिवी पर आई और कुछ समय के लिए शान्तनु की पत्नी बनकर रहने के बाद वापस स्वर्गलोक चली गई । +गंगा नदी के अन्य नाबताए गये हैं जिनमे से प्रमुख नाम निम्नवत हैं - +इनके अतिरिक्त गंगा नदी के विभिन्न नाम विष्णुपदी, त्रिपथगा, जान्हवी, हेमवती, स्वर्गा, गां गता, वसुमाता आदि हैं । +: तीर्थों में परम तीर्थ और नदियों में परम नदी। +: गंगा नदी अपने जल से सम्पूर्ण भूतल को पवित्र कर देती है तथा उसके पादोदक स्थान निश्चत ही तीर्थ-स्थल बन जाते हैं। +: श्रीविष्णु भगवान के वाम चरण-कमल के अगुठे के नख-भाग से गंगा नदी की उत्पति हुई। +: सर्वपपहरणी माँ भगवती गंगा को भगवान विष्णु के परमपद से उत्पन्न होने के कारण 'विष्णुपदी' भी कहा जाता है। +: गंगा नदी का नाम गंगा क्यों पड़ा? इस संबध में कहा गया है कि उस परम ब्रह्म का द्रव्य रूप अत्यन्त पवित्र गंगा नाम है, जो पृथ्वी पर प्राप्त है। +: गंगा नदी का पृथ्वी पर पहुँचने (गां गता) के कारण ही उसका नाम गंगा पड़ा। +गंगोत्री के विषय में कहा गया है कि) जहाँ पर गंगा का उद्गम स्थल है, उसे गंगोद्वार या गंगोत्री कहते हैं। वाजपेय यज्ञ करने से जो फल प्राप्त होता है, वह गंगोत्री मात्र जाने और तीन दिन व्रत, श्राद्ध तर्पण आदि करने से प्राप्त हो जाता है तथा मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है। +: गंगा श्री शंकर के जटा कपाल से निकलकर सगर के पापी पुत्रों के अस्थि चूर्ण को आप्लावित कर उन्हें स्वर्ग में पहुंचा देती है- +: इस संसार में जो मनुष्य भगवती भागीरथी मां गंगा का दर्शन, स्पर्श, जलपान तथा गंगा इस नाम का उच्चारण करता है, वह मनुष्य अपने सैकड़ों हजारों पीढ़ियों को पवित्र कर देता है। +: जन्म जन्मांतरों से अर्जित पाप चाहे अधिक हों या कम हों, भागीरथी माँ गंगा के प्रसाद से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। +: जिस-जिस देश में गंगा नदी बहती है, वही उत्तम देश है और वही तपोवन है। गंगा नदी के समीप जितने भी स्थान हैं, उन सबको सिद्ध क्षेत्र समझना चाहिए। +: गंगा पृथ्वी पर मनुष्यों को तारती है, पाताल में नागों को और स्वर्ग में देवों को तारती है। इसी के कारण इसको त्रिपथगा कहा जाता है। +वाल्मीकि रामायण में भी गंगा नदी के जल को परम पवित्र तथा समस्त प्राणियों के पाप का नाश करने वाला बताया गया है। जिसमे कहा गया है कि, विष्णु के चरणों से उत्पन्न, श्री शंकर के सिर पर विराजमान, तथा सम्पूर्ण पापों को हरने वाला गंगाजल मुझको पवित्र कर दे। +: जो व्यक्ति मां गंगा के नाम का उच्चारण करते हुए कुएं के जल से स्नान करता है उसको गंगा नदी में स्नान करने वाले व्यक्ति के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। +: मां गंगा सभी पापों को विनष्ट करने वाली तथा स्वर्ग लोक प्रदान करने वाली है । पुराणों के अनुसार जब तक पुरुष की हड्डियां गंगा में रहती हैं, उतने सहस्त्र वर्षों तक वह स्वर्ग में पूजित होता है। +: मोक्षदायनी माँ गंगा का नाम सौ योजन दूरी से भी उच्चारण किए जाने पर जीव के तीनों जन्मों के संचित पाप नष्ट हो जाते है। +: गंगा नदी जल में स्नान करने से शीघ्र ही समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अपूर्व पुण्य की प्राप्ति होती है। +: मनुष्यों द्वारा उपार्जित करोड़ों जन्मों के पाप गंगा की वायु स्प��्श मात्र से नष्ट हो जाते हैं। भगवती गंगा के दर्शन मात्र एवं स्पर्श करने से दस गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता है। +: कीर्ति, काव्य और ऐश्वर्य तो वही श्रेष्ठ है जिससे गंगा के समान हित हो। +* दर्शन से, स्पर्श से, जलपान करने तथा नाम कीर्तन से सैकड़ो तथा हजारो पापियों को गंगा पवित्र कर देती है। वेदव्यास +* गंगा की पवित्रता में कोई विश्वास नहीं करने जाता. गंगा के निकट पहुँच जाने पर अनायास, वह विश्वास पता नहीं कहाँ से आ जाता है। लक्ष्मीनारायण मिश्र +* गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है और माता के समान कोई गुरू नहीं है। नारदपुराण +* गंगा पर सुविचार जिस प्रकार देवताओं को अमृत, पितरों को स्वाधा तथा नागों को सुधा तृप्तिकारक है, उसी प्रकार मनुष्यों को गंगाजल तृप्तिकारक है। वेदव्यास +* तीर्थ तो केवल गंगा है, उसके अतिरिक्त नदियाँ तो निर्मल जल का समूह मात्र है. उसकी उत्पति साक्षात् विष्णु से हुई है अन्य बेचारे देवता तो स्वर्ग के है. जहाँ वह है, वही जनपद है, शेष तो मिट्टी मात्र हैं. उसको जा नित्य नमन करता है, वही विद्धान् हैं, अन्य तो बुद्धिशून्य हैं। अज्ञात +* गंगा के जल सशब्द तिर्यक् प्रवाह में स्नान करने वाले संसार-तापकृत हा-हा शब्द स अपरिचित, सुमेरूपतिपर्यन्त जाने में समर्थ, कुटिल इन्द्रियों के वश में न रहने वाले, पाप-रूपी कौओं को नष्ट करने वाले आप स्वर्ग को जाओगे तथा पृथ्वी की प्रदक्षिण करोंगे। अज्ञात +* निस्सन्देह गंगा के तट पर, बहुत समय तक रहना और उसके व्यक्तित्व के जादू से प्रभावित न होना कठिन बात है। भागिनी निवेदिता + + +* मैं अपने व्यक्तित्व की पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्रता चाहता हूं। महात्मा गांधी +* हमेशा अपने वास्तविक रूप में रहो, खुद को व्यक्त करो, स्वयं में भरोसा रखो, बाहर जाकर किसी सफल व्यक्तित्व को तलाश कर उसकी नक़ल मत करो। ब्रूस ली +* एक अच्छे सकारात्मक व्यक्तित्व से ज्यादा आकर्षक कुछ भी नहीं है। इसकी खूबसूरती समय के साथ कभी फीकी नहीं पड़ती। Edmond Mbiaka +* जब आप अपने मित्रों का चयन करते हैं तो चरित्र के स्थान पर व्यक्तित्व को न चुनें। W. Somerset Maugham +* व्यक्तित्व दो घोड़े के उस सारथी के समान हैं जिसके दो सिर हैं और जिसके दोनों सिर अलग-अलग दिशाओं में जाने चाहते हैं। Martin Luther King, Jr. +* किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसी तरह है, जैसे एक फूल के लिए उसका सुगंध हैं। Charles M. Schwab +* जो आपके पास है, ज�� आप हैं- आपका रूप, आपका व्यक्तित्व, आपके सोचने का तरीका – सब अनन्य हैं। पूरी दुनिया में कोई और आपके जैसा नहीं है।इसका लाभ उठाइए। जैक लॉर्ड +* प्रशंसा से बचो, यह आपके व्यक्तित्व की अच्छाइयों को घुन की तरह चाट जाती है। – चाणक्य +* व्यक्तित्व जितना महान होगा, बुराइयों के पुल उतने ही ऊँचे होंगे। +* शब्द वही हैं, बस उन्हें कहने की शैली, आपका व्यक्तित्व बनाता है। +* खुद वैसे व्यक्ति बनिये, जैसे लोगों से आप मिलना चाहते हैं। – संदीप महेश्वरी +* आपकी शैली, आपके अभिवृत्ति (attitude) और व्यक्तित्व को दर्शाता हैं। – शॉन अश्मोर +* दो चीजें आपके व्यक्तित्व को परिभाषित करती हैं, जब आपके पास कुछ नही होता है तब आप किस तरह से चीजों को मैनेज करते है और जब आपके पास सब कुछ होता है तब किस तरह से आप व्यवहार करते हैं। +* लोगों के बीच आपकी सुंदरता कुछ सालों तक रहेगी किन्तु आपका सुन्दर व्यक्तित्व जीवन भर रहेगा। + + +: इस जगत् में कभी भी बिना इच्छा के कोई भी जया या कर्म सम्पन्न होता दिखाई नहीं देता है, क्योंकि मनुष्य जो जो कर्म करता है, वह कर्म उसकी इच्छा की ही चेष्टा का परिणाम है-ऐसा मानना चाहिये। +: सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय, वेदज्ञाताओं मनु आदि के स्मृति ग्रन्थ तथा उनका शिष्ट व्यवहार, महापुरुषों के सत्याचरण, अपने मन की प्रसन्नता-ये सभी धर्म के प्रमाण रूप में ग्रहण करने चाहिए। +: मनु ने जिन सम्पूर्ण चारों वर्गों के गुणस्वभावादि धर्मों का उल्लेख किया है। वे सब वेदों में कहे गये है, क्योंकि भगवान मनु समस्त वेदों के अर्थ ज्ञाता है। +: मनुष्य वेदों व स्मृतियों में कहे गये धर्म का सेवन करते हुए संसार में निर्मल कीर्ति प्राप्त करता है तथा मृत्यु के पश्चात् परलोक में परमानन्द को अधिगत कर लेता है। +: जो कोई विद्वान द्विज धर्म की मूलाधार श्रुतियों एवं स्मृतियों की निन्दा या अपमान करे तो सत्पुरुषों को उस वेद निन्दक अधम व्यक्ति को समस्त श्रेष्ठ कर्मों से अलग कर देना चाहिए। +: ऋषि संसार के मनुष्यों को सम्बोधित करते हैं कि भूतल के सम्पूर्ण मनुष्यों की ब्रह्मावर्त देश में उत्पन्न ज्ञान साधनारत ब्राह्मण के चरित्र से अपने चरित्र की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। +: पूर्वी समुद्र से लेकर पश्चिमी समुद्र तक हिमालय और विन्ध्याचल के मध्य में जो प्रदेश भू-भाग विराजमान है, उसे विद्वान् पुरुष आर्यावर्त नाम से जानते हैं। +: भृगु ऋषि निर्देश देते हैं कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य वर्गों के पवित्र वैदिक मन्त्रों द्वारा इस लोक में तथा मृत्यु पश्चात् सम्पूर्ण शारीरिक गर्भाधानादि संस्कार अवश्य करने चाहिए। +: इस श्लोक में नवजात बालकों का जातकर्म संस्कार का विधान बताया जाता है। यथा नाल काटने से पूर्व नवजात शिशु का जातकर्म संस्कार सम्पन्न होता है। इस समय स्वर्ण को सलाई से घृत, मधुमिश्रित प्राशन किया जाता है। अर्थात् बालक का पिता मन्त्र-उच्चारण पूर्वक बच्चे को मधु और घी चटाता है और बच्चे की जीभ पर ओउम् लिखता है। +: ब्राह्मण शिशु का नाम मांगलिक, क्षत्रिय शिशु का नाम बल युक्त, वैश्य के बालक का नाम समृद्धि सूचक तथा शुद्ध के बच्चे का नाम निन्दनीय होना चाहिये। +: चतुर्थ मास में बालकों को घर से बाहर निकालना चाहिये। छठेमास में दाल-भात आदि सुपाच्य आहार देना चाहिये। अथवा कुल के अनुसार मांगलिक सभी आचार सम्पादित करने चाहिये। +: ब्राह्मण बालक का उपनयन संस्कार गर्भ से आठवें वर्ष में, क्षत्रिय का गर्भ से ग्यारहवें वर्ष में और वैश्य के शिशु का गर्भ से बारहवें वर्ष में सम्पन्न कराना चाहिये। +: अब ऋषि ब्रहाचारियों के धारण योग्य दण्ड का मान बताते हैं। धर्मशास्त्र के प्रमाणानुसार ब्राहाण अपने सिर के केशों तक, क्षत्रिय मस्तक पर्यन्त और वैश्य नाक पर्यन्त परिमाण अनुवाद लम्बाई वाले दण्ड को धारण करे। +: ब्राह्मणादि वर्गों के ब्रह्मचारियों को शास्त्र के नियमानुसार अपने इष्ट दण्ड को ग्रहण कर सूर्य का उपस्थान कर, अग्नि को प्रदक्षिणा कर भिक्षाचरण करना चाहिए। +: ब्रह्मचारी को सबसे पहले अपनी माता, अपनी बहिन, तथा मौसी से भिक्षा की याचना करनी चाहिए और उन्हें भी किसी प्रकार ब्रह्मचारी का तिरस्कार नहीं करना चाहिए। +: ब्रह्मचारी तथा गृहस्थद्विज भी एकाग्रचित हो आचमन कर जल से आचमन करे तथा इन्द्रियों, आँख, नाक तथा कानों के छिन्द्रो को भी जल स्पर्श करे। +: किसी को जूठा भोजन नहीं देना चाहिए। प्रातः और सायंकाल के भोजन के अतिरिक्त बीच में भोजन नहीं करना चाहिए अत्यधिक भोजन नहीं लेना चाहिए। कहीं भी जूठे मुँह नहीं जाना चाहिए। +: विप्र को सदा ब्राह्म नामक तीर्थ से अथवा प्राजापत्य और दैवतीर्थों से आचमन करना चाहिए, पितृतीर्थ द्वारा तो कभी भी आजमन नहीं करना चाहिए। +: हाथ के अंगूठे के पास ब्राह्म तीर्थ, कनिष्ठिका अंगुली के मूल के पास 'प्रजापति' तीर्थ, अंगुलियों के आगे 'दैवतीर्थ' और अंगूठे तथा प्रदेशिनी तर्जनी अंगुली के मध्य पितृतीर्थ होता है। +: ब्रह्मचारी के यदि मेखला, मृग चर्म, पालाशादि से बना हुआ दण्ड, यज्ञोपवीत, कमण्डलु-ये नष्ट हो गये हों तो इन्हें जल में फेंककर अन्य नवीन मन्त्रपाठपूर्वक ग्रहण कर लेने चाहिए। +: नारियों का पाणि-ग्रहण संस्कार ही गृहम सूत्रों में कहा गया संस्कार है। निष्ठापूर्वक पतिसेवा ही गुरूकूल में निवास है। गृहकार्य को कुशलता से करना ही यज्ञ का अनुष्ठान है। +: विद्याध्यन के लिये उद्यत, आचमन किया हुआ, ब्रह्मान्जलि से युक्त, अल्प और हलके वस्त्र धारण करने वाला, इन्द्रियजयी शिष्य ही शास्त्रानुसार अध्यापन के योग्य है। +: वेद-विधा के अध्ययन की विधि बतलाई जाती है। ब्रह्मचारी को सदा अपने गुरूचरणों में वेदाध्ययन के पूर्व और अवसान में ओमकार का उच्चारण करना चाहिए क्योंकि ओऽम इस मंत्र के उच्चारण से विहीन वेदाध्ययन शनैः शनैः नष्ट हो जाता है विस्मृत हो जाता है। +: इस गायत्री महामन्त्र के जप से और अपने सदाचारादि कर्तव्यों से विरहित हुआ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य सज्जनों में निन्दा को प्राप्त करता है। +: जो द्विज आलस्य छोड़कर प्रतिदिन प्रणय और व्यहतियों के साथ गायत्री-महामन्त्र का तीन वर्षपर्यन्त जप करता है, वह इस मन्त्र के प्रभाव से अपना गायत्री मन्त्रमय परमात्मा के अनुग्रह से आकाशरूप होकर सच्चिदानन्दस्वरूप पर ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। +: मन अपने गुणों के प्रभाव से ग्यारहवीं उभयात्मक दोनों ही अर्थात् ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय भी है। इसीलिए मन के जीत लेने पर ये दोनों ज्ञान व कर्मेन्द्रियाँ स्वमेव विजित हो जाती है। +: दूषित हृदय वाले व्यक्ति का वेदाध्ययन, त्याग, यज्ञादि का अनुष्ठान, यम-नियमों का पालन, अभ्यास ये कभी सिद्धि प्राप्त नहीं करते हैं। +: कौन-कौन शिक्षा देने योग्य हैं? इस सम्बन्ध में कहते हैं कि आचार्य का पुत्रः सेवापरायण, अन्य विषय की शिक्षा या गुरू को व्यवहार के सम्बन्ध में परामर्श देने वाला, धर्मतत्पर, पवित्र मन वाला, श्रेष्ठ, सत्यवादी, पाठ को धारण करने में समर्थ, धन देने वाला, सज्जन और स्वजातीय में दश ही गुरू के द्वारा धर्मानुसार अध्यापन योग्य हैं। + + +: जागृत अवस्था में जो मन दूर दूर तक चला जाता है और सुप्तावस्था में भी दूर दूर तक चला जाता है, वही मन इन्द्रियों रुपी ज्योतियों की एक मात्र ज्योति है अर्थात् इन्द्रियों को प्रकाशित करने वाली एक ज्योति है अथवा जो मन इन्द्रियों का प्रकाशक है। हे परमात्मा ऐसा हमारा मन शुभ-कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो ! +: जिस सनातन मन से भूत, भविष्य व वर्त्तमान- तीनों कालों का प्रत्यक्षीकरण होता है, जिसके द्वारा सप्त होतागण यज्ञ का विस्तार करते हैं, ऐसा हमारा मन शुभ संकल्पों से युक्त हो ! +* उठो और संकल्प लेकर कार्य में जुट जाओ। यह जीवन भला है कितने दिन का? जब तुम इस संसार में आये हो तो कुछ चिन्ह छोड़ जाओ अन्यथा तुममें और वृक्षादि में अन्तर ही क्या रह जाएगा। वे भी पैदा होते हैं, परिणाम को प्राप्त होते हैं और मर जाते हैं। स्वामी विवेकानन्द +* जो आदमी संकल्प कर सकता है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। इमर्सन +* इच्छा का मूल संकल्प है। यज्ञ संकल्प से होते हैं। व्रत और धर्मपालन आदि भी संकल्प से ही होते हैं। मनुस्मृति +* मनुष्य में शक्ति की कमी नही होती, संकल्प की कमी होती है। अज्ञात +* जो संकल्प कर सकता है उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं हैं। इमर्सन +* मनुष्य जितना ज्ञानवान और संकल्पवान बनेगा, उसकी इच्छाएं भी इसी अनुपात में पूर्ण होंगी। अथर्ववेद +* संकल्प लेकर पुरूषार्थ करने वाले की जीत निश्चित हैं। शब्द प्रकाश +* किसी कार्य का असम्भव या सम्भव होना, व्यक्ति के दृढ़ संकल्प पर निर्भर करता हैं। अज्ञात +* सफलता से ख़ुशी नहीं मिलती हैं बल्कि ख़ुश रहने से सफलता मिलती हैं। हर परिस्थिति में खुश रहने का दृढ़ संकल्प ही आपको सफल बनाएगा। अज्ञात +* कोई सपना सोचने से नहीं पूरा होता हैं उसके लिए आपको दृढ़ संकल्प के साथ कड़ी मेहनत करनी होती हैं। कोलिन पॉवेल +* कुछ लोग सफल होते है क्योकि सफल होना उनके भाग्य में लिखा है, लेकिन अधिक्तर लोग सफल होते है क्योकि वे दृढ़ संकल्पी होते हैं। हेनरी वैन डाइक +* असफलता आपको विनम्र बनाए रखती हैं, सफ़लता आपको उत्साही बनाएं रखती है, लेकिन सिर्फ विश्वास और दृढ़ संकल्प ही आपको कुछ करते रहने की प्रेरणा देती हैं। मार्क अमेंड +* परिश्रम और योग्यता से लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता हैं परन्तु लक्ष्य बड़ा प्राप्त करने के लिए आपको दृढ़ संकल्पी होना चाहिए। अज्ञात +* यदि आप दृढ़ संकल्प और पूर्णता के साथ काम करेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी। धीरूभाई अम्��ानी + + +: अनागतविधाता और प्रत्युत्पन्नमति ये दो ही प्रकार के लोग सुखी रहते हैं लेकिन दीर्घसूत्री मनुष्य नष्ट हो जाता है। (अनागतविधाता जो संकट आने से पहले ही अपने बचाव का उपाय कर लेता है प्रत्युत्पन्नमति जिसे ठीक समय पर ही आत्मरक्षा का उपाय सूझ जाता है दीर्घसूत्री प्रत्येक कार्य में अनावश्यक विलम्ब करता है।) +: मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसके शरीर में स्थित आलस्य होता है और उद्यम के समान कोई दूसरा बन्धु नहीं है जिसे करके वह कभी दुखी नहीं होता। +लक्ष्मण कहते हैं कि) यह दैव (भाग्य) तो कायर के मन का एक आधार (तसल्ली देने का उपाय) है। आलसी लोग ही दैव-दैव पुकारा करते हैं। +* आलसी व्यक्ति का न वर्तमान होता है और न ही भविष्य। चाणक्य +* असफलता केवल आलस्य के लिए हमारी सजा नहीं है, दूसरों की सफलता भी है। जूल्स – रेनार्ड +* आलस आपके थकने से पहले आराम करने की आदत से ज्यादा कुछ नहीं है। मार्टिमर कैपलन +* आलसी होकर जीवन बिताना आत्महत्या के समान है। महात्मा गांधी +* आलस्य आकर्षक लग सकता है, लेकिन काम संतुष्टि देता है। ऐनी फ्रैंक +* आलस्य आपके लिए मृत्यु है और केवल उद्योग ही आपका जीवन है। स्वामी रामतीर्थ +* आलस्य इतनी धीरे-धीरे यात्रा करता है कि गरीबी जल्द ही उससे आगे निकल जाती है। बेन्जामिन फ्रैंकलिन +* आलस्य ईश्वर के दिए हुए हाथ-पैर का अपमान हैं। अज्ञात +* आलस्य एक गुप्त घटक है जो विफलता में जाता है। लेकिन यह केवल उस व्यक्ति से एक रहस्य रखता है जो विफल रहता ह। रोबर्ट हाफ +* आलस्य का मार्ग मृत्यु की ओर लेकर जाता है। जो आलसी हैं वो मानो मर चुके हैं। गौतम बुद्ध +* आलस्य दक्षता की ओर जाने पर पहले कदम पर आता है। पैट्रिक बेनेट +* आलस्य दक्षता की ओर पहला कदम है। जेम्स कैश पेनी +* आलस्य दरिद्रता का मूल है। यजुर्वेद +* आलस्य भगवान के दिए गए हाथों और पैरों का अपमान है। संत तिरुवल्लुवर +* आलस्य मनुष्य का शत्रु है और परिश्रम मित्र। रामतीर्थ +* आलस्य मूर्खो का अवकाश दिवस हैं। चैस्टर फील्ड +* आलस्य में दरिद्रता का वास हैं और परिश्रम में लक्ष्मी बसती हैं। संत तिरूवल्लुवर +* आलस्य वह रोग है जिसका रोगी कभी नहीं सम्भलता। प्रेमचंद +* आलस्य से ही दरिद्रता और परतन्त्रता मिलती हैं। अज्ञात +* किसी रोग का इलाज ना मिले यह असंभव है। लेकिन यदि दरिद्रता के साथ आलस्य भी आ जाए इस रोग का कोई इलाज नहीं है। इस्माइल इब्न अ���्रीबकर +* कुछ व्यक्तियों में तत्परता से कुछ न करने की पूर्ण प्रतिभा होती हैं। हैलीबर्टन +* जब आप व्यस्त होते हैं तो सब कुछ आसान होता हैं लेकिन आलसी होने पर कुछ भी आसान नहीं होता हैं। स्वामी विवेकानंद +* जीवन और समय के महत्व को न समझने वाला अपना कीमती जीवन और समय आलस्य के कारण गवां देता है। दुनियाहैगोल +* जो आलसी होते हैं उनका कोई काम सिद्ध नहीं होता है। योगवाशिष्ठ +* जो व्यक्ति आलस्य या प्रमाद में समय को नष्ट करते हैं, एक दिन समय उन्हें नष्ट कर देता है। अज्ञात +* निर्वीर्य और आलसी मनुष्यों को कभी अप्राप्त वस्तुओं की प्राप्ति नहीं होती। अश्वघोष +* भगवान आलसी लोगों को पसंद नहीं करते हैं, वह काम करने वालों को पसंद करते हैं। रविवार एडलजा +* भगवान उनकी मदद करते हैं जो खुद की मदद करते हैं। महात्मा गांधी +* यदि कुछ करने का एक आसान, तरीका है, तो इसे खोजने के लिए किसी आलसी व्यक्ति के पास जाना चाहिए। मार्टी रुबिन +* युवा, वृद्ध, रोगी और दुर्बल भी आलस्य का त्याग करने पर निरंतर अभ्यास से सिद्धि प्राप्त करता है। हठयोग प्रदीपिका +* व्यापार कष्टदायक हो सकता है लेकिन आलस्य नाशकारी है। कहावत +* सही दिनचर्या का न होना भी आलस्य को बढ़ावा देता हैं और धीरे-धीरे आलस्य दिनचर्या का हिस्सा लगने लगता है। अज्ञात +* हर व्यक्ति के पास करने के लिए कुछ न कुछ काम होता है लेकिन करने की नहीं सोचते इसलिए आलस्य हमारे ऊपर हावी होता है। अज्ञात + + +* आप अलग हैं। आपके पास अलग-अलग प्रतिभाएँ और क्षमताएँ हैं। आपको कभी भी दूसरों के पदचिह्नों पर नहीं चलना चाहिए। रॉय टी बेनेट +* आपको हमेशा खुद को याद दिलाना होगा कि आपको वह नहीं करना है जो हर कोई कर रहा है। Roy T. Bennett +* भगवान ने आपको जो प्रतिभा दी है उसको विकसित करने की जिम्मेदारी आपकी है। Roy T. Bennett +* आपके पास अपनी प्रतिक्रियाओं को चुनने की क्षमता है। Steve Maraboli +* आपके पास किसी क्षेत्र में चमकने और अपनी पहचान बनाने की क्षमता है। आपका काम अपने विषय को खोजना, उत्कृष्टता प्राप्त करना और एक स्थायी विरासत का निर्माण करना है। Roopleen +* नेतृत्व तब शुरू होती है जब आप अपने 'कम्फर्ट जोन' से बाहर कदम रखते हैं। Roy T. Bennett +* वे सक्षम हैं जो सोचते हैं कि वे सक्षम हैं। Virgil +* अगर आप यह सपना देख सकते हैं, तो आप यह कर सकते हैं। Helen Keller +* प्राकृतिक क्षमताएं प्राकृतिक पौधों की तरह हैं; उन्हें अध्ययन द्वारा छंटाई की जरूरत है। Francis Bacon +* हम अपनी क्षमताओं से नहीं, बल्कि अपनी दृष्टि से सीमित होते हैं। अभिषेक कुमार +* किसी और को महत्वपूर्ण बनाना आपकी सबसे बड़ी क्षमता है। Meir Ezra +* आपके पास लेंस को समायोजित करने की क्षमता है जिसके माध्यम से आप दुनिया को देखते हैं। Jeffrey G. Duarte +* शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं आती है। एक अदम्य इच्छा शक्ति से आती है। महात्मा गांधी +* योग्यता आपको शीर्ष पर पहुंचा सकती है, लेकिन आपको वहां रहने के लिए चरित्र की आवश्यकता होती है। John Wooden +* योग्यता वह है जो आप करने में सक्षम हैं। प्रेरणा निर्धारित करती है कि आप क्या करते हैं। आपकी मनोवृत्ति निर्धारित करती है की आप कितने अच्छे से काम करते है। Lou Holtz +* कोई भी किसी कविता की पहली पंक्ति लिख सकता है, लेकिन पहली पंक्ति के साथ दूसरी पंक्ति कविता बनाना बहुत मुश्किल काम है। मार्क ट्वेन + + +: धन और अनाज के लेन-देन, विद्या प्राप्त करते समय, भोजन तथा आपसी व्यवहार में लज्जा न करनेवाला सुखी रहता है। +* किसी महान्‌ उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना। श्रीराम शर्मा आचार्य +* यदि कोई लड़की लज्जा का त्याग कर देती है तो अपने सौन्दर्य का सबसे बड़ा आकर्षण खो देती है। सेंट ग्रेगरी +* अपने मनमौजीपन में विश्वास करो और अपने शर्मीलेपन को समाप्त कर दो। कन्ये वेस्ट +* में यह सोचता हूँ की हमारे और हमारे आदर्श स्वरुप के बीच में कई अवरोध (ब्लॉक्स) होते हैं, चाहे वह शर्मीलापन, असुरक्षा, चिंता हो या फिर कोई भोतिक रूकावट, और उस व्यक्ति की कहानी वास्तव में प्रेरणादायक होती है जो अपने इस ब्लाक को हटा देता है। टॉम हूपर +* वैज्ञानिकों ने शर्मीलेपन का जीन खोज लिया है, उन्होंने इसे बहुत पहले खोज लिया होता, लेकिन यह दूसरे जिंसो के पीछे छुपा हुआ था। जोनाथन कत्ज़ + + +: जो दुःख अभी आया नहीं है, उसे दूर किया जा सकता है। +: अनागतविधाता (जो संकट आने से पहले ही अपने बचाव का उपाय कर लेता है) और प्रत्युत्पन्नमति (जिसे ठीक समय पर ही आत्मरक्षा का उपाय सूझ जाता है ये दो ही प्रकार के लोग सुखी रहते हैं लेकिन दीर्घसूत्री जो प्रत्येक कार्य में अनावश्यक विलम्ब करता है) मनुष्य नष्ट हो जाता है। +* यदि आप एक साल तक का सोचते हैं तो एक बीज बोइये, यदि दस साल तक का सोचते हैं तो एक पेड़ लगाइये; यदि सौ साल तक का सोचते हैं तो लोगों को शिक्षित कीजिये। कन्फ्यूशियस +* केवल आप ही अपने भविष्य पर नियन्त्रण कर सकते हैं। डॉक्टर सेउस +* शिक्षा भविष्य के लिए पासपोर्ट है, कल यह उसके पास होगा, जो आज इसके लिए तैयारी करते हैं। मैल्कम एक्स +* भविष्य उन लोगों को पुरस्कृत करता है जो सतत प्रयास करते हैं। मेरे पास स्वयं के लिए खेद महसूस करने के लिए समय नहीं है। मेरे पास शिकायत करने का समय नहीं है। मैं सदैव प्रयत्नशील रहता हूँ। बराक ओबामा +* जो अतीत पर नियंत्रित रखता करता है उसका भविष्य भी नियंत्रित रहता है। जो वर्तमान पर नियंत्रित रखता है उसका अतीत भी नियंत्रित रहता है। जॉर्ज ऑरवेल +* यह हमेशा बुद्धिमानी है कि आगे देखें, लेकिन जहाँ तक आप देख सकते हैं, उससे आगे देखना कठिन है। विंस्टन चर्चिल +* भविष्यवाणी बहुत मुश्किल है, खासकर यदि यह भविष्य के बारे में है तो। नील्स बोर +* अतीत, वर्तमान और भविष्य वास्तव में एक हैं: वे वर्तमान हैं। हेरिएट बीचर स्टोव +* बीता हुआ कल एक रद्द किया हुआ चेक की तरह है। वर्तमान नकदी है। आनेवाला कल एक वचनपत्र (प्रॉमिसरी नोट) है। हांक स्ट्राम +* यदि आप भावी पीढ़ी पर ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं, तो इसका मतलब है कि आप अपने देश को नष्ट कर रहे हैं। मलाला यूसूफ़जई +* हम अपने अतीत की याद करके बुद्धिमान नहीं बने हैं, बल्कि अपने भविष्य की जिम्मेदारी उठाकर बने हैं। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* सच्चा सुख… वर्तमान में भविष्य की चिंता किये बिना आनंद लेना है। लुसियस अन्नायूस सेनेका +* भविष्य उनका होता है जो अपने सपनों की खूबसूरती में विश्वास करते हैं। एलेनोर रूजवेल्ट +* भविष्य उनका होता है जो आज इसके लिए तैयार होते हैं। मैल्कम एक्स +* आप अपने कर्तव्य का पालन करते हुए उससे थोडा ज्यादा करें और भविष्य अपना ख्याल खुद रख लेगा। एंड्रयू कार्नेगी + + +: जबतक काम पूरे नहीं होते तबतक लोग दूसरों की प्रशंसा करते हैं। नदी पार करने के बाद नाव का क्या उपयोग? +* न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। वेदव्यास +* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। वेदव्यास +* स्वार्थ को सदा क्षमा कर देना चाहिये क्योंकि इसके इलाज की कोई सम्भावना नहीं है। Jane Austen, Mansfield Park (1814) +: जीव के लिए सच्चा स्वार्थ यही है कि मन, वच��� और कर्म से श्रीराम के चरणों में प्रेम हो। वही शरीर पवित्र और सुन्दर है जिस शरीर को पाकर श्री रघुवीर का भजन किया जाए॥ +* प्रत्येक व्यक्ति वास्तव में समाज के वार्षिक राजस्व को जितना अधिक बढ़ा सकता है, उतना बढ़ाने के लिये श्रम करता है। उसका उद्देश्य जनता का हित करना नहीं होता है, न ही वह जानता है कि वह जानता है कि वह जनता का कितना हित कर रहा है। विदेशी उद्योग के बजाय घरेलू उद्योग का समर्थन करके वह अपनी ही सुरक्षा की पूर्ति करता है। उस उद्योग को वह इस प्रकार निर्देशित करता है कि उसके उत्पाद अधिकतम उपयोगी हों, इसमें भी उसका अपना लाभ निहित है। यहाँ भी उसे एक 'अदृश्य हाथ' चला रहा होता है ताकि वह वह कार्य कर सके जिसे करना उसका लक्ष्य नहीं है। आदम स्मिथ +जिस प्रकार वृक्ष जब तक रसदार हो, पंछी उनका सेवन करते हैं और नीरस होते ही अन्यत्र प्रस्थान कर जाते हैं उसी प्रकार जब तक स्वार्थ सधता रहता है सभी सगे संबंधी हमारे बने रहते हैं परन्तु बिना स्वार्थ तो अपने भी पराये बन जाते है। +: इस संसार की यह रीति है कि बिना स्वार्थ के कोई भी किसी के कड़ुवे वचनों को सहन नहीं करता है, अर्थात् अपने स्वार्थ को पूरा करने के कारण ही वह उसके विपरीत व्यवहार को भी सहन कर लेता है। जिस प्रकार यदि गाय दूध देने वाली होती है तो हम उसकी लात खाकर भी, उसे प्यार करते हैं, पुचकारते हैं, क्योंकि उससे हमारे स्वार्थ की सिद्धि होती है। + + +: धर्म का सार क्या है, यह सुनो और सुनकर उसे धारण भी करो! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये। +: और अपने लिए जिन-जिन बातों की इच्छा हो वे दूसरों को भी मिलें, ऐसा सोचना चाहिये। अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये। +* कानून के दृष्टि से कोई व्यक्ति तब दोषी माना जाता है जब वह दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करता है लेकिन धर्म की दृष्टि से जब कोई किसी दूसरे के अधिकारों के हनन के बारे में सोचता है तब भी वह दोषी है। इमानुएल काण्ट +* अकेला व्यक्ति धरती का सबसे छोटा अल्पसंख्यक है। जो लोगों को व्यक्तिगत अधिकार दिये जाने के पक्ष में नहीं हैं वे अल्पसंख्यकों के रक्षक कहलाने के अधिकारी नहीं हैं। Ayn Rand +* किसी के पास भी यह अधिकार नहीं है कि उसको क्रोधित करने वाली बात नहीं कही जा सकती। ऐसा अधिकार मैने कभी भी किसी भी घोषणापत्र में नहीं पढ़ा है। स��मान रुशदी +* देर-सवेर हमें समझना पड़ेगा कि धरती का भी यह अधिकार है कि वह प्रदूषण से मुक्त रहे। मानव समाज को समझना होगा कि वे धरती माँ के बिना नहीं रह सकते जबकि धरती बिना मानव के भी रह सकती है। Evo Morale +* बोलने की स्वतन्त्रता का हनन करना दो बार गलती करने जैसा है। इससे बोलने वाले के अधिकारों का हनन तो होता ही है, इससे सुनने वाले के अधिकारों का भी हनन होता है। Frederick Douglass + + +: अहिंसा सबसे श्रेष्ठ धर्म है। +* शाकाहार अपनाने से हम कुछ देते या खोते नहीं है। इससे हम अपने अन्दर एक शान्ति प्राप्त करते हैं। यह शान्ति अहिंसा से और असहाय प्राणियों के शोषण में भाग न लेने से प्राप्त होती है। GaryLFrancione +* मैं यह महसूस करने के बाद शाकाहारी हो गया कि पशु भी हमारी तरह भय, ठंड, भूख और उदासी को महसूस करते हैं। सीज़र शावेज़ (१९२७-१९९३ अमेरिकी नागरिक-अधिकार कार्यकर्ता + + +जिस किसी नियम को जनता ने स्वीकार नहीं किया है, वह शून्य है और वह नियम नहीं है। रूसो द सोशल कान्ट्रैक्ट' में + + +: ऐसा कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो। +न राज्य था और ना राजा था न दण्ड था और न दण्ड देने वाला ।स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी । ) +अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता। थामस फुलर +थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी महान कार्य नहीं किया जा सकता। लुइस दी उलोआ +* लोकतंत्र – जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर। +सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं। अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत कड़ाई से न करें। इमर्शन +* मनुष्य पाप करता है और व्यवस्था न्याय देता है; कानून पाप करता है और शैतान पुरस्कार देता है। जेम्स लेंडल बासफोर्ड (1845-1915 सेवेन सटर सेवन सेंसेशन, 1897 +* कानून मकड़ी के जाले की तरह होते हैं। वे छोटी रुकावट को पकड़ सकते हैं, लेकिन तैयों और सींगों को आने देते हैं। जोनाथन स्विफ्ट, द फैकल्टीज ऑफ द माइंड पर एक क्रिटिकल एसे, 1707 + + +कोई कार्य पूरा करने के लिये जो प्रक्रिया अपनायी जाती है, उसे उस कार्य की विधि कहते हैं। +जो व्यक्ति उत्साही है, शीघ्र कार्य सम्पन्न करने वाला है, व्यापार मे कुशल है, व्यसनों से दूर रहने वाला है, शूर, कृतज्ञ तथा मित्रता निभाने वाला होता है, धन संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी स्वयं ऐसे गुणसम्पन्न व्यक्ति के यहां निवास करने की इच्छ�� रखती हैं। + + +:ये आशिक की है उमड़ी आहें आतिशबार होली में +: लाल-गुलाल अमोल लिए हैं +: किंतु रही कोरी की कोरी +: काम्य कपोली कुंज किलोली +: पर्व हो गया आज- +: साजन! होली आई है! +: साजन! होली आई है! +: साजन! होली आई है! +* बचपन की शैतानियाँ, जवानी की यादें और बुढ़ापे का अहसास, होली के रंगों में जीवन के सारे रंग बस जाते हैं। +* होली में किसी को रंग लगाने से ज्यादा अच्छा है किसी की उदास बेरंग जिन्दगी में खुशियों के रंग भरे जाएँ। +* यदि जीवन में ग़मों का अँधेरा हो तो होली के रंग भी बेरंग लगते हैं। जरूरत रंगों की नहीं प्रकाश की होती है, जिसमें रंगों का अस्तित्व होता है। जिससे रंगों की पहचान होती है। +* इस होली पर प्रयास करें कि कुदरत में भी रंग भरे जाएँ, आस-पड़ोस साफ़ रखें और एक पेड़ लगायें। +* होली के रंग बस रंग ही नहीं होते, इनमें होती हैं कुछ यादें, किसी की कही बातें और होलिका दहन की कुछ बीती हुई रातें। +* होली के त्यौहार में बस रंगों का ही नहीं मीठे पकवानों का भी बहुत महत्व है जो हमें दूसरों के जीवन में प्यार की मिठास भरने के लिए प्रेरित करते हैं। +* होली पर किसी को रंग लगायें या न लगायें लेकिन किसी की बेरंग जिन्दगी में रंग भरने का प्रयास जरूर करें। +* होली एक अच्छा मौका है होलिका दहन के साथ अपनी बुरी आदतों का भी दहन करने के लिए। +* होलिका के पास वरदान होने के बावजूद अग्नि में जल जाना इस बात का प्रमाण है कि कई बार बुराई स्वयं ही अपने अंत का कारन बन जाती है। +* जलती अग्नि में प्रह्लाद का होलिका की गोद में बैठना भक्ति था और उनका बच जाना भक्ति की शक्ति। +* होली ही एक अवसर है जो कई बिछड़ों को मिलाता है और उन्हें एक नयी शुरुआत का बहाना देता है। + + +* जीने के लिये मनुष्य को रंग की आवश्यकता होती है। यह उतना ही आवश्यक है जितना आग और पानी। Fernand Léger. +* भगवान द्वारा प्रदत्त उपहारों में रंग सबसे पवित्र, सबसे दैवी और सबसे गम्भीर उपहार है। John Ruskin +* जीवन, श्वेत या श्याम हो जाता किन्तु कल्पना के कारण यह रंगीन बना हुआ है। Wes Adamson +* रंग वह शक्ति है जो सीधे आत्मा को प्रभावित करती है। Wassily Kandinsky +* रंग वह स्थान है जहाँ मस्तिष्क और ब्रह्माण्ड मिलते हैं। Paul Klee +* सबसे पवित्र और सबसे चिन्तनशील मस्तिष्क वे होते हैं जो रंग से सबसे अधिक प्यार करते हैं। जॉन रस्किन, The Stones of Venice + + +: यदि पुत्र सुपुत्र है, तो धन का संचय व्यर्थ है, और पुत्र कुपुत्र हो तो भी धन का संचय व्यर्थ है। (पूत सपूत त का धनसंचय, पूत कपूत त का धनसंचय?) +: शोक और सन्ताप उत्पन करने वाले अनेक पुत्रों के पैदा होने से क्या लाभ है? कुल को सहारा देने वाला ज्ञानी, कर्मठ और धन कमाने वाला एक ही पुत्र श्रेठ है, जिसके सहारे सारा कुल विश्राम करता है। +: पुत्र का पाँच वर्ष तक लालन करें, दस वर्ष तक ताड़न करें, सोलहवाँ वर्ष लग जाने पर उसके साथ मित्र के समान व्यवहार करना चाहिए। +: घड़े में सीमित मात्रा में जल आता है किन्तु घड़े से उत्प्न्न हुए अगस्त्य मुनि समुद्र को पीते हैं। उसी प्रकार कुछ अच्छे पुत्र अपने पिता की अपेक्षा बहुत अधिक और श्रेष्ठतर कार्य सम्पन्न कर देते हैं। +: पिता द्वारा ताडित (मारा फटकारा गया) पुत्र, गुरु द्वारा पढ़ाया जाने वाला शिष्य और हथौड़े से ठोका गया सोना लोगों के लिए आभूषण बन जाता है। + + +: जो काम उपाय से किया जा सकता है, वह पराक्रम से नहीं किया जा सकता। +: उपाय से शत्रु को जीतो, हथियार से नहीं। +: उपाय से आरम्भ किये गये सभी उपक्रम सिद्ध होते हैं। इसलिये हे राजन्, ऐसा उपाय देखिये जिससे आप इस प्रजा पर शासन कर सकें। +: साम, दान, भेद और दण्ड इन चार का समूह तथा माया, उपेक्षा और इन्द्रजाल, ये सात उपाय प्रसिद्ध हैं। +: जो सम्पूर्ण भौतिक पदार्थों की वास्तविकता का ज्ञान रखनेवाला, सब कार्यों के करने का ढंग जानने वाला तथा मनुष्यों में सबसे बढ़कर उपाय का जानकार है, वह मनुष्य पण्डित कहलाता है। + + +सज्जन सत् जन) का अर्थ है 'अच्छा व्यक्ति'। साधु, सन्त, सुजन आदि इसके पर्याय हैं। +: सज्जन लोगों का धन परोपकार के लिए होता है। +: दुर्जन पुरुष की विद्या विवाद के लिये होती है, धन घमण्ड के लिये होता है, और शक्ति दूसरों को पीड़ित करने के लिये होती है। इसके विपरीत सज्जनों की विद्या ज्ञान के लिये, धन दान के लिये और शक्ति रक्षा के लिये होती है। +: सूर्य उदित होने के समय भी लाल रहता है और अस्त होने के समय भी। महान् पुरुष सम्पत्ति (सुख) एवं विपत्ति (द:ख) में एक समान रहते हैं। +: जो दुर्जन व्यक्तियों का धन लेकर सज्जन लोगों को देता है वह अपने आप को तो पार लगाता ही है, उन दोनों (दुर्जन मनुष्य और सज्जन मनुष्य) को भी तार देत है। +: जो मान देने पर हर्षित नहीं होता अपमान होने पर क्रोधित नहीं होता तथा स्वयं क्रोधित होने पर कठोर शब्द नही बोलता, वही उत्तम साधु है। +* साधू ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। +: संतों का चरित्र कपास के चरित्र (जीवन) के समान शुभ होता है जिसका फल नीरस, विशद और गुणमय होता है।जैसे कपास का धागा सुई के किए हुए छेद को अपना तन देकर ढँक देता है, अथवा कपास जैसे लोढ़े जाने, काते जाने और बुने जाने का कष्ट सहकर भी वस्त्र के रूप में परिणत होकर दूसरों के गोपनीय स्थानों को ढँकता है, उसी प्रकार संत स्वयं दुःख सहकर दूसरों के छिद्रों (दोषों) को ढँकता है, जिसके कारण उसने जगत में वंदनीय यश प्राप्त किया है। +संतों का समाज आनन्द और कल्याणमय है, जो जगत में चलता-फिरता तीर्थराज (प्रयाग) है। जहां (उस संत समाज रूपी प्रयागराज में) राम भक्ति रूपी गंगाजी की धारा है और ब्रह्मविचार का प्रचार सरस्वतीजी हैं। +: संत और असंतों की करनी ऐसी है जैसे चंदन और कुठार (कुल्हाड़ी) का आचरण होता है। हे भाई! सुनो, कुल्हाड़ी चंदन को काटती है (क्योंकि उसका स्वभाव या काम ही वृक्षों को काटना है किन्तु चन्दन अपने स्वभाववश उसे (काटने वाली कुल्हाड़ी को) अपना गुण (सुगंध) देकर उसे सुसंधित कर देता है॥ +: इसी गुण के कारण चंदन देवताओं के सिरों पर चढ़ता है और जगत्‌ का प्रिय है। (इसके उल्टा) कुल्हाड़ी के मुख को यह दंड मिलता है कि उसको आग में जलाकर फिर घन से पीटते हैं। +: संत विषयों में लंपट (लिप्त) नहीं होते, शील और सद्गुणों की खान होते हैं। उन्हें पराया दुःख देखकर दुःख और पराया सुख देखकर सुख होता है। वे (सबमें, सर्वत्र, सब समय) समता रखते हैं, उनके मन कोई उनका शत्रु नहीं है। वे मद से रहित और वैराग्यवान्‌ होते हैं तथा लोभ, क्रोध, हर्ष और भय का त्याग किए हुए रहते हैं। +: उनका चित्त बड़ा कोमल होता है। वे दीनों पर दया करते हैं तथा मन, वचन और कर्म से मेरी निष्कपट (विशुद्ध) भक्ति करते हैं। सबको सम्मान देते हैं, पर स्वयं मानरहित होते हैं। हे भरत! वे प्राणी (संतजन) मेरे प्राणों के समान हैं। +* प्रशंसा सफलता की नहीं, सज्जनता की होनी चाहिए। श्री राम शर्मा आचार्य +* सज्जन व्यक्ति वह होता है जो कभी भी अनजाने में भी किसी की भावनाओं को ठेस नही पहुँचाता हैं। ऑस्कर वाइल्ड +* सज्जन व्यक्ति वह होता है जो दुनिया से कम लेता है और ज्यादा देता हैं। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* जहाँ एक ओर सोना, सज्जन और साधुजन सौ बार टूट कर अर्थात पराजित हो कर भी अपनी हिम्मत नहीं हारते हैं और पुनः प्रयास करते रहते हैं, वही दूसरी ओर दुर्जन और कुम���हार के बनाये हुए मिट्टी के घड़े बस एक ठोकर में ही चूर चूर हो जाते हैं। कबीर दास +* सज्जन व्यक्ति जरूर शर्मिंदा होगा यदि उसने कुछ कहा और किया नहीं। कन्फ्यूशियस + + +: वह मन्द व्यक्ति स्वयं को ही नुकसान पहुँचाता है जो महापुरुष (तुङ्ग) की घोर निन्दा करता है। जो व्यक्ति सूर्य की तरफ धूल फेंकता हैं, उसी का मुख मलिन होता है। +: जो निन्दा-स्तुति को समान समझने वाला, मननशील और जिस किसी प्रकार से भी शरीर का निर्वाह होने में सदा ही सन्तुष्ट है और रहने के स्थान में ममता और आसक्ति से रहित है- वह स्थिर बुद्धि भक्तिमान् पुरुष मुझको प्रिय है। +* पूरे संसार को वश में वही व्यक्ति कर सकता है, जो किसी की निंदा नहीं करता हो। चाणक्य]] +: जो हमारी निन्दा करता है, उसे अपने अधिक से अधिक पास ही रखना चाहिए क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को साफ कर देता है। +: दुर्जन के हृदय में अत्यधिक संताप रहता है । वे दूसरों को सुखी देखकर जलन अनुभव करते हैं । दुसरों की बुराई सुनकर खुश होते हैं जैसे कि रास्ते में गिरा खजाना उन्हें मिल गया हो । +: जो लोग दूसरों की निन्दा करके खुद सम्मान पाना चाहते हैं । ऐसे लोगों के मुँह पर ऐसी कालिख लग जाती है, जो लाखों बार धोने से भी नहीं हटती है । +* पर द्रोही पर दार पर धन पर अपवाद । +: वे दूसरों के द्रोही, परायी स्त्री और पराये धन पर जिनकी कुदृष्टि रहती है, तथा पर निंदा में लीन रहते हैं, वे पामर और पापयुक्त मनुष्य शरीर में राक्षस होते हैं । +* आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत अन्तर है। आलोचना निकट लाती है और बुराई दूर करती है। प्रेमचंद]] +* दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता जितना अपने को बचाता है। स्वामी रामतीर्थ]] +* दूसरों में ताकत तलाशना कहीं अधिक उपयोगी है। आप उनकी खामियों की आलोचना करने से कुछ हासिल नहीं कर सकते। दैसाकु इकेदा +* आलोचना लोगों की अस्वीकृति है, दोष होने के लिए नहीं, बल्कि अपने से अलग दोष होने के कारण। अज्ञात + + +: दूसरों की कमियों की आलोचना करने में सभी लोग सदैव निपुण होते हैं, परन्तु स्वयं अपनी कमियों को या तो नहीं जानते और यदि जानते भी हों तो उन्हें छिपाते हैं। +: वह मन्द व्यक्ति स्वयं को ही नुकसान पहुँचाता है जो महापुरुष (तुङ्ग) की घोर निन्दा करता है। जो व्यक्ति सूर्य की तरफ धूल फेंकता हैं, उसी का मुख मलिन होता है। +: जो हमारी निन्दा करता है, उसे अपने अधिक से अधिक पास ही रखना चाहिए क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को साफ कर देता है। +* किसी का सहारा लिए बिना कोई ऊंचे नहीं चढ़ सकता, अतः सबको किसी प्रधान आश्रय का सहारा लेना चाहिए। वेदव्यास +* आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत अन्तर है। आलोचना निकट लाती है और बुराई दूर करती है। प्रेमचंद +* दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता जितना अपने को बचाता है। स्वामी रामतीर्थ +* स्वस्थ आलोचना मनुष्य को जीवन का सही मार्ग दिखाती है। जो व्यक्ति उससे परेशान होता है, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। महात्मा गांधी +* आलोचना से परे कोई भी नहीं है, न साहूकार और न मजदूर। आलोचना से हर कोई सबक ले सकता है। गणेश शंकर विद्यार्थी +* समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। कोल्टन +* गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता हृदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक निःस्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। डेल कारनेगी +* आलोचना एक भयानक चिन्गारी है- ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। डेल कारनेगी +* कभी-कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है। अज्ञात +* आलोचना स्वीकार्य नहीं हो सकती है, लेकिन यह आवश्यक है। यह मानव शरीर में दर्द के समान कार्य को पूरा करता है। यह चीजों की अस्वस्थ स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करता है। विंस्टन चर्चिल +* हम में से अधिकांश के साथ समस्या यह है कि हम आलोचना से बचने के बजाय प्रशंसा से बर्बाद हो जाते हैं। नॉर्मन विंसेंट पील +* बच्चों को आलोचकों के बजाय मॉडल की जरूरत होती है। जोसेफ जौबर्टा +* आप प्रशंसा या आलोचना को अपने पास नहीं आने दे सकते। किसी एक में फंसना कमजोरी है। जॉन वुडन +* इससे पहले कि आप जाएं और युवा पीढ़ी की आलोचना करें, बस यह याद रखें कि उन्हें किसने पाला। अज्ञात +* दूसरों में ताकत तलाशना कहीं अधिक मूल्यव��न है। आप उनकी खामियों की आलोचना करने से कुछ हासिल नहीं कर सकते। दैसाकु इकेदा +* किसी को अन्य लोगों की इस आधार पर आलोचना नहीं करनी चाहिए कि वह स्वयं सीधा खड़ा नहीं हो सकता। मार्क ट्वेन +* मुझे कोई अधिकार नहीं है, मैं जो कुछ भी करता हूं या कहता हूं, किसी इंसान को उसकी नजर में नीचा दिखाने का। मायने यह नहीं रखता कि मैं उसके बारे में क्या सोचता हूँ; वह अपने बारे में यही सोचता है। मनुष्य के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाना पाप है। ओंत्वान डे सेंट एक्सुपरी +* आप किसके साथ समय बिताते हैं? आलोचक या प्रोत्साहनकर्ता? अपने आप को उन लोगों के साथ घेरें जो आप पर विश्वास करते हैं। आपका जीवन किसी भी चीज़ से कम के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्टीव गुडियर +* आलोचना, बारिश की तरह, इतनी कोमल होनी चाहिए कि किसी व्यक्ति की जड़ों को नष्ट किए बिना उसके विकास को पोषण दे सके। फ्रैंक ए क्लार्क +* लोग अपने जीवनसाथी की उस क्षेत्र में सबसे अधिक आलोचना करते हैं, जहां उन्हें स्वयं सबसे गहरी भावनात्मक आवश्यकता होती है। गैरी चैपमैन +* वही करें जो आपको अपने दिल में सही लगे क्योंकि वैसे भी आपकी आलोचना की जाएगी। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप शापित होंगे और यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो शापित हो जाएंगे। एलेनोर रोसवैल्ट +* आलोचना एक ऐसी चीज है जिससे हम कुछ न कहकर, कुछ न करके और कुछ न होने से आसानी से बच सकते हैं। अरस्तू +* आलोचना लोगों की अस्वीकृति है, दोष होने के लिए नहीं, बल्कि अपने से अलग दोष होने के कारण। अज्ञात +* उसे आलोचना करने का अधिकार है, जिसके पास मदद करने का दिल है। अब्राहम लिंकन + + +: ऊँटों के विवाह में गधे गीत गा रहे हैं। एक-दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं, अहा! क्या रूप है? अहा! क्या आवाज़ है! +: नीति में निपुण मनुष्य चाहे निन्दा करें या प्रशंसा करें, लक्ष्मी आये या चली जाये, मृत्यु आज हो या युगों के बाद, परन्तु धैर्यवान मनुष्य कभी भी न्याय के मार्ग से विचलित नहीं होते हैं। +* आत्म-प्रशंसा ओछेपन का लक्षण है। वैस्कल +अपनी प्रशंसा के गीत गाना स्वयं को हीन साबित करना है। सच्ची बड़ाई उसी की है, जिसकी शत्रु भी प्रशंसा करे। अज्ञात +* जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे स्वयं सिद्ध करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है। महात्मा गांधी +* मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है। चार्ल्स ��्वेव +* आप किसी भी व्यक्ति का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है। सेनेका +* मानव प्रकृति में सबसे गहरा नियम प्रशंसा प्राप्त करने की लालसा है। विलियम जेम्स +अगर किसी युवती के दोष जानने हों तो उसकी सखियों में उसकी प्रसंसा करो। फ्रंकलिन +* चापलूसी करना सरल है, प्रशंसा करना कठिन। मेरी चापलूसी करो, और मैं आप पर भरोसा नहीं करुंगा। मेरी आलोचना करो, और मैं आपको पसन्द नहीं करुंगा। मेरी उपेक्षा करो, और मैं आपको माफ नहीं करुंगा। मुझे प्रोत्साहित करो, और मैं कभी आपको नहीं भूलूंगा। विलियम ऑर्थर वार्ड +* हमारे साथ प्रायः समस्या यही होती है कि हम झूठी प्रशंसा के द्वारा नष्ट हो जाना तो पसंद करते हैं, परन्तु वास्तविक आलोचना के द्वारा संभल जाना नहीं। नॉर्मन विंसेंट पील + + +: काव्य रचना कष्ट से होती है, काव्य रचना हो जाने पर उसे सुनाना कष्टप्रद होता है एवं जब सुनाया जाता है तब सुनने वाले भी कठिनाई से मिलते हैं। +: जब विद्वान विरस एवं अशुद्ध काव्य पाठ से ऊब कर भौंहें टेंढ़ी करने लगते हैं, उस समय उनके कटाक्ष से मानों उन मूर्खों के सिर ही कट जाते हैं, परन्‍तु वे इतना भी नहीं जान पाते। +: रसीली हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती? किन्तु जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे उत्तम पुरुष जगत में बहुत नहीं हैं। +: जो न तो कविता के रसिक हैं और न जिनका श्री रामचन्द्रजी के चरणों में प्रेम है, उनके लिए भी यह कविता सुखद हास्यरस का काम देगी। प्रथम तो यह भाषा की रचना है, दूसरे मेरी बुद्धि भोली है, इससे यह हँसने के योग्य ही है, हँसने में उन्हें कोई दोष नहीं। +: नाना प्रकार के अक्षर, अर्थ और अलंकार, अनेक प्रकार की छंद रचना, भावों और रसों के अपार भेद और कविता के भाँति-भाँति के गुण-दोष होते हैं। +* मनुष्य के लिए कविता इतनी प्रयोजनीय वस्तु है कि संसार की सभ्य-असभ्य सभी जातियों में, किसी न-किसी रूप में पाई जाती है। चाहे इतिहास न हो, विज्ञान न हो, दर्शन न हो, पर कविता का प्रचार अवश्य रहेगा। रामचन्द्र शुक्ल]] +* जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति की साधाना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं। रामचन्द्र शुक्ल]] +* काव्य के लिए अनेक स��थलों पर हमें भावों के विषयों के मूल और आदिम रूपों तक जाना होगा जो मूर्त और गोचर होंगें।…जब तक भावों से सीधा और पुराना लगाव रखने वाले मूर्त और गोचर रूप न मिलेंगें तब तक काव्य का वास्तविक ढांचा खड़ा न हो सकेगा। काव्य में अर्थ ग्रहण मात्र से काम नहीं चलता, बिम्ब ग्रहण अपेक्षित होता है। यह बिम्ब ग्रहण निर्दिष्ट, गोचर और मूर्त विषय का ही हो सकता है। रामचन्द्र शुक्ल +* सुन्दर और कुरूप-काव्य में बस ये ही दो पक्ष हैं। भला-बुरा, शुभ-अशुभ, पाप-पुण्य, मंगल-अमंगल, उपयोगी-अनुपयोगी-ये सब शब्द काव्य-क्षेत्र के बाहर के हैं। ये नीति, धर्म, व्यवहार, अर्थशास्त्र आदि के शब्द हैं। शुद्ध काव्य-क्षेत्र में न कोई बात भली कही जाती है न बुरी, न शुभ, न अशुभ, न उपयोगी, न अनुपयोगी। सब बातें केवल दो रूपों में दिखाई जाती हैं-सुन्दर और असुन्दर। जिसे धार्मिक शुभ या मंगल कहता है, कवि उसके सौंदर्य-पक्ष पर आप ही मुग्धा रहता है और दूसरों को भी मुधा करता है। जिसे धर्मज्ञ अपनी दृष्टि के अनुसार शुभ या मंगल समझता है, उसी को कवि अपनी दृष्टि के अनुसार सुंदर कहता है। रामचन्द्र शुक्ल]] +* नाद-सौंदर्य से कविता की आयु बढ़ती है। तालपत्र भोजपत्र, कागज आदि का आश्रय छूट जाने पर भी वह बहुत दिनों तक लोगों की जिह्ना पर नाचती रहतीहै। बहुत सी उक्तियों को लोग, उनके अर्थ की रमणीयता इत्यादि की ओर ध्याजनलेजाने का कष्ट उठाए बिना ही, प्रसन्न-चित्त रहने पर गुनगुनाया करते हैं। अत: नाद-सौंदर्य का योग भी कविता का पूर्ण स्वरूप खड़ा करने के लिए कुछ न-कुछ आवश्यक होता है। इसे हम बिलकुल हटा नहीं सकते। रामचन्द्र शुक्ल]] +* गद्य और पद्य दोनों ही में कविता हो सकती है। यह समझना अज्ञानता की पराकाष्ठा है कि जो छन्दोबद्ध है सभी काव्य है। कविता का लक्षण जहाँ कहीं पाया जाय, चाहे वह गद्य में हो चाहे पद्य में वही काव्य है। लक्षणहीन होने से कोई भी छन्दोबद्ध लेख काव्य नहीं कहलाए जा सकते और लक्षणयुक्त होने से सभी गद्य-बन्ध काव्य-कक्ष में सन्निविष्ट किये जा सकते हैं, गद्य के विषय में कोई विशेष निर्दिष्ट करने की उतनी आवश्यकता नहीं, जितनी पद्य के विषय में है। महावीर प्रसाद द्विवेदी]] +* सौरस्य ही कविता का प्राण है। जिस पद्य में अर्थ का चमत्कार नहीं वह कविता नहीं । कवि जिस विषय का वर्णन करे उस विषय से उसका तादात्म्य हो जाना चाहिए, ऐसा न होने से अर्थ-सौरस्य नहीं आ सकता। महावीर प्रसाद द्विवेदी]] +* कविता मानवता की उच्चतम अनुभूति की अभिव्यक्ति हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी +* कविता वह सुरंग है जिसके भीतर से मनुष्य एक विश्व को छोड़कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता हैं। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ +* काव्य सभी ज्ञान का आदि और अंत है – यह इतना ही अमर है जितना मानव का हृदय। विलियम वर्ड्सवर्थ +* जिससे आनन्द की प्राप्ति न हो वह कविता नहीं है। जोबार्ट +* कविता अभ्यास से नहीं आती जिसमें कविता करने का स्वाभाविक गुण होता है वही कविता कर सकता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी +* कविता करना अनंत पुन्य का फल हैं। जयशंकर प्रसाद + + +* हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती +: असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी +* अत्याचार के श्मशान में ही मंगल का, शिव का, सत्य-सुन्दर संगीत का शुभारम्भ होता है। +* अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि हैं, लेकिन भारत मानवता की जन्मभूमि है। +* अपने कुकर्मों का फल चखने में कड़वा, परन्तु परिणाम में मधुर होता है। +* अर्थ देकर विजय खरीदना देश की वीरता के प्रतिकूल है। +* असम्भव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में कांपकर लड़खडाओ मत। +* आतंक का दमन करना प्रत्येक राजपुरुष का कर्म है। +* इस भीषण संसार में एक प्रेम करनेवाले ह्रदय को दबा देना सबसे बड़ी हानि है। +* उत्पीडन की चिनगारी को अत्याचारी अपने ही अंचल में छिपाए रखता है। +* किसी के उजड़ने से ही कोई दूसरा बसता है। +* क्षमा पर केवल मनुष्य का अधिकार है, वह हमें पशु के पास नहीं मिलती। +* जागृत राष्ट्र में ही विलास और कलाओं का आदर होता है। +* जिस वस्तु को मनुष्य दे नहीं सकता, उसे ले लेने की स्पर्धा से बढ़कर दूसरा दंभ नहीं। +* जिसकी भुजाओं में दम न हो, उसके मस्तिष्क में तो कुछ होना ही चाहिए। +* जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है प्रसन्नता। यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया। +* जीवन विश्व की संपत्ति है। +* दो प्यार करनेवाले हृदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का निवास होता है। +* पढाई सभी कामों में सुधार लाना सिखाती है। +* पराधीनता से बढ़कर विडम्बना और क्या है? +* पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा है। +* प्रत्येक स्थान और समय बोलने योग्य नहीं रहते। +* प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं कर सकता। +* व्यक्ति का मान नष्ट होने पर फिर नहीं मिलता। +* बाहुबल ही तो वीरों की आ��ीविका है। +* भारत समस्त विश्व का है और सम्पूर्ण वसुंधरा इसके प्रेम पाश में आबद्ध है। +* मनुष्यों के मुंह में भी तो साँपों की तरह दो जीभ होते हैं। +* मानव के अंतरतम में कल्याण के देवता का निवास है। उसकी संवर्धना ही उत्तम पूजा है। +* मानव स्वभाव दुर्बलताओं का संकलन है। +* मुझे विश्वास है कि दुराचारी सदाचार के जरिये शुद्ध हो सकता है। +* राजसत्ता सुव्यवस्था से बढे तो बढ़ सकती है, केवल विजयों से नहीं। +* राजा अपने राज्य की रक्षा करने में असमर्थ है, तब भी उस राज्य की रक्षा होनी ही चाहिए। +* संदेह के गर्त में गिरने से पहले विवेक का अवलंबन ले लो। +* समय बदलने पर लोगों की आँखें भी बदल जाती है। +* सम्पूर्ण संसार कर्मण्य वीरों की चित्रशाला है। +* संसार ही युद्ध क्षेत्र है, इसमें पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ? +* सहनशील होना अच्छी बात है, पर अन्याय का विरोध करना उससे भी उत्तम है। +* सेवा सबसे कठिन व्रत है। +* सोने की कटार पर मुग्ध होकर उसे कोई अपने ह्रदय में डुबा नहीं सकता। +* सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूँ। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को सींचता है। +* स्त्री की मंत्रणा बड़ी अनुकूल और उपयोगी होती है। + + +: सुख का मूल है, धर्म। धर्म का मूल है, अर्थ। अर्थ का मूल है, राज्य। राज्य का मूल है, इन्द्रियों पर विजय। इन्द्रियजय का मूल है, विनय। विनय का मूल है, वृद्धों की सेवा। +: सेना छोटी हो या बड़ी, हर एक सैनिक में लड़ने का उत्साह होना ही विजय प्राप्त करने का एकमात्र लक्षण है। +तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥ संजय, गीता के उपदेश के अन्त में +: जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन हैं, वहाँ ही श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है। +: क्रोध को अक्रोध से जीतना चाहिये। असाधु को साधुता से जीतना चाहिये। दान द्वारा कंजूसी को जीतना चाहिये और असत्य को सत्य से जीतना चाहिये। +मनुष्य) अहंकार को मारकर प्रिय हो जाता है। क्रोध को मारकर शोक नहीं करता। काम को मारकर धनवान बनता है और लोभ को मारकर सुखी होता है। +* चुनौतियों को स्वीकार करें ताकि आप जीत की भावना को महसूस कर सकें। जॉर्ज एस पैटों +* जीत मीलों में नहीं बल्कि इंच में जीती जाती है। थोड़ा-थोड़ा जीतो, अपने फैसले पर अडिग रहो और बाद ���ें, थोड़ा और जीतो। Louis L’Amour +* भगवान जो करना था वह पहले से ही सब कुछ कर चुका है। गेंद अब आपके पाले में है। यदि आप विजय हासिल करना चाहते हैं, यदि आप ज्ञान चाहते हैं, यदि आप समृद्ध और स्वस्थ होना चाहते हैं, तो आपको ध्यान और विश्वास से भी आगे बढ़कर अधिक काम करना होगा। Joel Osteen +* उस व्यक्ति के लिए जीत हमेशा संभव है जो हार मानने से इनकार करता है। नेपोलियन हिल +* संतोष आपकी कोशिश में निहित है, प्राप्ति में नहीं, पूर्ण प्रयास पूर्ण विजय है। महात्मा गांधी +* जीत का अधिकार देने के लिए, खूनी गोलियां (bullets) नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण मतपत्र (ballet) ही आवश्यक हैं। अब्राहम लिंकन +* विजय के एक हजार पिता हैं, लेकिन हार एक अनाथ है। John F. Kennedy +* पहली और सबसे बड़ी जीत खुद को जीतना है Plato +* वो जीत बहुत अधिक सार्थक हो जाती है जब यह सिर्फ एक व्यक्ति से नहीं, बल्कि कई व्यक्तियों की संयुक्त उपलब्धियों से आती है। Howard Schultz +* जीत हासिल करने के लिए सबसे पहली जगह हमारे अपने दिमाग में है। अगर आपको नहीं लगता कि आप सफल हो सकते हैं, तो आप कभी सफल नहीं होंगे। Joel Osteen +* विजयी योद्धा पहले मन में जीतते हैं और फिर युद्ध में जाते हैं, जबकि पराजित योद्धा पहले युद्ध में जाते हैं और फिर जीतना चाहते हैं। Sun Tzu +* विजय उन लोगों की होती है जो इसमें सबसे अधिक विश्वास करते हैं और इसमें सबसे लंबे समय तक विश्वास करते हैं। Randall Wallace +* विजय उसी को मिलती है जो दृढ़ता से टिका रहता है। नेपोलियन बोनापार्ट +* विजय, जीत या हार से परिभाषित नहीं होती है। यह आपकी कोशिश द्वारा परिभाषित है। अगर आप सच में कह सकते हैं कि, ‘मैंने जो कुछ भी किया सबसे अच्छा किया, मैंने वह सब कुछ दिया जो मेरे पास था,’ तो आप विजेता हैं। Wolfgang Schadler +* विजय केवल उन लोगों के लिए आती है जो इसे पाने के लिए तैयार हैं, और इसे पा लेते हैं। Tom Clancy + + +मेधावी (पुरुष) उद्योग, अप्रमाद, संयम तथा (इंद्रियों के) दमन द्वारा (अपने लिए ऐसा) द्वीप बना ले जिसे (चार प्रकार के क्लेशों की) बाढ़ आप्लावित न कर सके। +: संयम सदाचार बिना मनुष्य पशु समान है। +: करण (आचरण) के बिना ज्ञान, संयम के बिना तप और सम्यक्त्व के बिना दीक्षा ग्रहण करना व्यर्थ होता है। +* संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास। काका कालेलकर +* संयम और श्रम मानव के दो सर्वोत्तम चिकित्सक हैं। श्रम से भूख तेज होती है और संयम अतिभोग को रोकता है। रूसो +* मन वाणी और शरीर से सम्पूर्ण संयम में रहने का सार ही ब्रह्मचर्य है। स्वामी महावीर +* गति के साथ संयम और स्थिति रक्षा दोनों ही आवश्यक हैं। बाबू गुलाब राय +* अपनी कर्मेन्द्रियों का संयम करते हुए जो मन से विषयों का चिन्तन करता है, वह पाखण्डी है। संयम का अर्थ है इस बात की समझ कि विषयों में सुख नही, वे दुःख का कारण हैं। श्री कृष्ण +* जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते। भगवान बुद्ध +* यदि आप अपने मन को नियंत्रित नहीं करेंगे तो मन आपको नियंत्रित करेगा और यही दुःख का कारण होगा। अज्ञात +* संयम उस मित्र के समान है जो ओझल होने पर भी मनुष्य की शक्ति धारा में विद्यमान रहता है। प्रेमचन्द +* धन अच्छे कार्यो से उत्पन्न होता है। हिम्मत, योग्यता, विद्वता, वेग, दृढ़ता से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। विदुर नीति +* संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता, निर्बलता और अनुकरण के वातावरण से न संस्कृति का उदय होता है और न विकास। संयम के आधार पर निर्मित संस्कृति प्रभावशाली और दीर्घजीवी होती हैं। काका कालेलकर +* गृहस्थ का घर भी एक तपोभूमि है, सहनशीलता और संयम खोकर कोई भी इसमें सुखी नहीं रह सकता। अज्ञात +* संत संयम नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को वह दुसरे के निमित्त समझता है। लाओत्से +* असंयमी व्यक्ति जानवरों से भी गया-बीता है। जानवर भी भोजन और वासनापूर्ति में कुछ संयम रखते है, किन्तु इंसान बुद्धिमान होकर भी आहार-विहार में बड़े असंयमी होते है जिससे वे बीमार पड़ते हैं। संयम एक ऐसा अंकुश है, जो हमें विवेक और सत्य के पथ पर आरूढ़ रखता है। अज्ञात +* शरीर के लिए संयम, पथ्य एवं औषध की व्यवस्था रखनी ही चाहिए। हकीकत राय +* सदा ध्यान रखो संयम इंसान का बेहतरीन गुण है, जो व्यक्ति संयम नहीं रखता उसके निर्णय, उसकी इच्छाएं बदलती रहती हैं और परीक्षा के क्षणों में वह निर्बल साबित होता हैं। स्वेट मार्डेन +* आत्मज्ञानी व संयमी पुरूषों को न तो विषयों में आसक्ति होती है और न ही वे विषयों के लिए युक्ति करते है। अश्वघोष +* संयम का अर्थ है सदा सचेत रहना कि अन्तस्तल में क्या घट रहा है। अविवेकी व्यक्ति संयम पर भाषण दे सकता है, संयम की मिठास भी चख नहीं सकता। जबकि यह मिठास आंवले की मिठास की तरह पुष्टिकारक तथा रोग���ं का निवारण करने वाली हुआ करती है। स्वामी अमरमुनि +* वही साधक आत्मतत्व की अनुभूति कर पाता है, जिसका वरण आत्मा करती है और वह उसी को करती है जो संयमी होता है। उपनिषद +* बाहरी किन्हीं विशेष कारणों से किया गया संयम वास्तविक संयम नहीं है, असली संयम का सम्बन्ध भीतरी समझ से होता है। वेदान्त तीर्थ +* संयम का अर्थ है अपनी बिखरी शक्ति को एक निश्चित दिशा देना। लक्ष्य का निश्चय होते ही ऐसे पदार्थ और व्यक्ति निरर्थक लगने लगते है, जो लक्ष्य प्राप्ति के सहायक नहीं होते, बल्कि बाधक होते हैं। इस संदर्भ में की जाने वाली सतत विचार प्रक्रिया सहज संयम का कारण बनती है। स्वामी रामतीर्थ +* जिसे नहीं करना चाहिए उस ओर जब मन आकृष्ट हो और आप उसे प्रयासपूर्वक रोकें, वैसा न करने दें, तो उसे संयम कहा जाता है। लेकिन संयम का अर्थ है, जब आकर्षणों की ओर जाने के लिए मन सहज रूप से रूक जाए। वेदान्त तीर्थ +* संयम की जानकारी और उसका अभ्यास दोनों अलग-अलग बातें है। दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे है, क्योकि अधूरेपन में भटकने की सम्भावना पूरी तरह से बनी रहती है। स्वामी गोविन्द प्रकाश + + +: अवश्य ही इन्होने सम्पूर्ण व्याकरण सुन लिया लिया है क्योंकि बहुत कुछ बोलने के बाद भी इनके भाषण में कोई त्रुटि नहीं मिली। यह बहुत अधिक विस्तार से नहीं बोलते; असंदिग्ध बोलते हैं; न धीमी गति से बोलते हैं और न तेज गति से। इनके हृदय से निकलकर कंठ तक आने वाला वाक्य मध्यम स्वर में होता है। ये कल्याणमयी वाणी बोलते हैं जो दुःखी मन वाले और तलवार ताने हुए शत्रु के हृदय को छू जाती है। यदि ऐसा व्यक्ति किसी का दूत न हो तो उसके कार्य कैसे सिद्ध होंगे? +* राजा को राजदूत नियुक्त कर देना चाहिये, सेना को सेनापति पर आश्रित रहना चाहिये, प्रजा पर नियंत्राण सेना पर निर्भर करता है, राज्य की सरकार राजा पर, शांति और युद्ध राजदूत पर। मनु]] +* योग्य व चतुर राजदूत मित्र राज्यों में मतभेद तथा शत्रु राज्यों के बीच मित्रता स्थापित करने में सफल होता है। मनु]] +* दूत के तीन प्रमुख कार्य हैं- दूसरे राजा के साथ युद्ध अथवा शांति की घोषणा करना, संधियां करना और विदेशों में रहकर कार्य करना। मनु +* राजा को आवश्यकता तथा परिस्थिति अनुसार अपने पड़ोसी राज्यों के साथ मित्रता, शत्रुता, आक्रमण, उपेक्षा, संरक्षण अथवा फूट डालने का प्रयत्न करना चाहिये। याज्ञवल्क्य स्मृति +* दूतों के माध्यम से राज्य को अपने शत्रु और मित्र दोनों ही पक्षों के अभिलाषित विषय का ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिये। महाभारत +* मैं तुम्हारी बात को कौरवों के दरबार में अच्छी प्रकार से रखूंगा और प्राणप्रण से यह चेष्टा करूंगा कि वे तुम्हारी मांग को स्वीकार कर लें। यदि मेरे सारे प्रयत्न असफल हो जायेंगे और युद्ध अवश्यम्भावी होगा, तो हम संसार को दिखायेंगे कि कैसे हम उचित नीति का पालन कर रहे हैं और वे अनुचित नीति का, जिससे विश्व हम दोनों के साथ अन्याय नही कर सके। कृष्ण, महाभारत में +श्री रामजी फिर बोले जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आए हुए का त्याग कर देते हैं, वे पामर (क्षुद्र) हैं, पापमय हैं, उन्हें देखने में भी हानि है (पाप लगता है)। +* घृणिततम बात को अतिसुन्दर ढंग से कहना और करना ही कूटनीति है। आइजाक +* अशान्त जल में शन्तिरुपी मछली को खोजने की कला का नाम कूटनीति हैं। जे. सी. हेरोल्ड +* मुट्ठियां बाँध कर किसी से हाथ मिलाने की कला को कूटनीति कहते हैं। अज्ञात +* कूटनीति मानवीय गुणों के विरूद्ध एक ऐसा दुर्गुण है जिसने दुनिया के बहुत बड़े भाग को गुलामी के जंजीरों में जकड़ रखा है और जो मानवता के विकास में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। रोमां रोलां +* कूटनीतिज्ञ वह व्यक्ति है जो आपसे नर्क में जाने के लिए इस प्रकार कह सके कि आप सचमुच उसके संकेत के अनुसार तैयार होने लगें। कैसकी सिटनेट +* केवल वीरता से नहीं, नीतियुक्त वीरता से जय होती है। अज्ञात +* जैसे पानी को कभी सुखाया नहीं जा सकता हैं, ठीक उसी प्रकार किसी कूटनीतिज्ञ को कभी ईमानदार नहीं कहा जा सकता। जोसेफ स्टॅलिन +* जिसे कूटनीति का अच्छा ज्ञान होता हैं, वही राजनीति में सफल होता है। अज्ञात + + +: हे तात प्रियवर) आप में अपने वंश के अनुरूप सभी संपदाएँ (गुण) अत्यधिक रूप से दिखाई पड़ती हैं। नृत्य-गीतादि कलाओं में, चित्र (निर्माण) में तथा शल्य कला में स्वभाव से ही तीक्ष्ण आपकी बुद्धि और लोगों की अपेक्षा अधिक विशिष्ट है तथापि (आपकी बुद्धि) अर्थशास्त्र (राजनीति) में आत्मसंस्कार न पाकर (शिक्षा न पाने के कारण) न तपाये हुए स्वर्ण के समान, अधिक शोभा नहीं देती। बुद्धिरहित राजा अत्युन्नत होने पर भी शत्रु द्वारा आक्रमण किये जाते हुए भी अपने को समझने में समर्थ नहीं होता है। वह साध्य तथा साधन का (समुचित) विभाग कर व्यवहार करने में भी समर्थ नहीं होता। अनुचित रीति से व्यवहार करने वाला राजा (अपने) कार्यों में असफल होता हुआ, अपने तथा अन्य लोगों के द्वारा तिरस्कृत हुआ करता है। उस अवज्ञात (तिरस्कृत) राजा की आज्ञा, प्रजा के योग (अप्राप्त का प्राप्त करना) तथा क्षेम (प्राप्त की सुरक्षा) साधने में समर्थ नहीं होती। (फिर तो) शासन का उल्लंघन (अतिक्रमण) करने वाली प्रजाएँ अपनी इच्छानुसार जो चाहती है वही कहने लगा करती हैं, अपनी इच्छानुसार व्यवहार करने लगा करती हैं तथा अन्त में सम्पूर्ण स्थिति (मर्यादा) को छिन्न-भिन्न (तितर-बितर) कर देती हैं। (पुनः) ऐसी मर्यादाहीन प्रजाएँ इस लोक तथा परलोक दोनों से अपने को तथा (अपने) स्वामी को भ्रष्ट कर देती हैं। लोकयात्रा (जीवन यात्रा तो) शास्त्र रूपी दीपक से देखे हुए मार्ग (पर चलने) से (ही) सुखपूर्वक चलती है। वह रहने वाले एवं दूरस्थ विषयों में भी अप्रतिहत गति से पहुँच जाया करती है, कहीं भी रुकती नहीं है। उस (शास्त्र ज्ञान) से रहित प्राणी लम्बे-चौड़े तथा विशाल नेत्रों के रखते होने पर भी अर्थदर्शन (राजनीति) में सामर्थ्य (ज्ञान अथवा योग्यता) न होने के कारण अंधा ही हुआ करता है। अतः आप बाह्य विद्याओं की आसक्ति (रुचि) का त्याग कर अपनी वंश परम्परा की विद्या (दण्डनीति) की ओर ध्यान लगायें तथा सीखें। उसके अर्थों (नियमों) के अनुसार व्यवहार करने से (व्यवहार करके) शक्तिसिद्धि प्राप्त कर बाधाओं से रहित शासन वाला बनकर, चिरकाल तक, समुद्ररूपी करधनी वाली (अर्थात् समुद्र से घिरी हुई) पृथ्वी पर शासन करो। दशकुमारचरितम के अष्टम् उच्छास 'विश्रुतचरितम' में वृद्ध मन्त्री वसुरक्षित द्वारा राजा अनन्तवर्मा को राजनीति का उपदेश) +शक्ति स्वतन्त्रता की जड़ है मेहनत धन-दौलत की जड़ है न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड़ है । ) +* निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मन्त्र प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र योजना परामर्श से कार्य का ठीक निर्धारण होता है प्रभाव राजोचित शक्ति तेज से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह उद्यम से कार्य सिद्ध होता है। दशकुमारचरित +* यथार्थ को स्वीकार न करनें में ही व्यावहारिक राजनीति निहित है। हेनरी एडम +* विपत्तियों को खोजने, उसे सर्वत्र प्राप्त करने, गलत निदान करने और अनुपयुक्त चिकित्सा करने की कला ही राजनीति है। सर अर्नेस्ट वेम +* मानव स्वभाव का ज्ञान ही राजनीति-शिक्षा का आदि और अन्त है। हेनरी एडम +* राजनीति में किसी भी बात का तब तक विश्वास मत कीजिए जब तक कि उसका खंडन आधिकारिक रूप से न कर दिया गया हो। ओटो वान बिस्मार्क +* सफल क्रांतिकारी, राजनीतिज्ञ होता है असफल अपराधी। एरिक फ्रॉम +* दण्ड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिये लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिये। रामायण +* प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजा के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिये । आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का हित है। चाणक्य +* वही सरकार सबसे अच्छी होती है जो सबसे कम शाशन करती है। +* राजनीति भौतिकी से ज्यादा कठिन है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* राजनीति एक दूसरे से रक्षा करने का वादा करके, गरीबों से वोट पाने और अमीरों से प्रचार के धन प्राप्त करने की सौम्य कला है। ऑस्कर आमिंगर +* सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली क्रांतियां अक्सर बहुत चुपचाप शुरू होती हैं, छाया में छिपी होती हैं। इसे याद रखो। रिचर्डेल मीड +* यह बहुत बुरा है कि देश को चलाने के बारे में जानने वाले सभी लोग टैक्सी चलाने और बाल काटने में व्यस्त हैं। जॉर्ज बर्न्स +* लोकतंत्र के तहत एक पार्टी हमेशा अपनी ऊर्जा मुख्य रूप से यह साबित करने की कोशिश में लगाती है कि दूसरी पार्टी शासन करने के लिए अयोग्य है – और दोनों आमतौर पर सफल होते हैं, और सही हैं। एच. एल. मेनकेन +* शासन में गिरावट के लिए सबसे भारी जुर्माना किसी अपने से हीन व्यक्ति द्वारा शासित होना है। प्लेटो, द रिपब्लिक +* एक राजनेता एक ऐसा व्यक्ति होता है जो लहरें उठा सकता है और फिर आपको यह लगता है कि वह एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जो इन लहरों से जहाज को बचा सकता है। इवन बॉल +* देश के प्रति वफादारी। सरकार के प्रति वफादारी, जब वह इसका हकदार हो। मार्क ट्वेन +* मैं देख सकता हूं कि मनुष्य के लिए पृथ्वी पर नीचे देखना और नास्तिक होना कैसे संभव हो सकता है, लेकिन मैं यह कल्पना नहीं कर सकता कि एक आदमी कैसे आकाश में देख सकता है और कह सकता है कि कोई भगवान नहीं है। “ अब्राहम लिंकन +* राजनीति बिना रक्तपात के युद्ध है जबकि युद्ध रक्तपात से राजनीति है। माओ ज़ेडॉन्ग +* राजनीति में, मूर्खता कोई बाधा नहीं है। नेपोलियन बोनापार्ट +* राजनीति निर्णयों को स्थगित ��रने की कला है जब तक वे प्रासंगिक नहीं हैं। हेनरी क्यूइइल +* सभी युद्ध एक जानवर की सोच वाले आदमी के रूप में की विफलता का एक लक्षण है। जॉन स्टीनबेक +* राजनीति वर्तमान के लिए है, लेकिन एक समीकरण अनंत काल के लिए है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* राजनीति मुसीबत की तलाश करने, उसे हर जगह खोजने, गलत तरीके से निदान करने और गलत उपायों को लागू करने की कला है। ग्रूचो मार्क्स +* मेरी चिंता यह नहीं है कि क्या ईश्वर हमारी तरफ है; मेरी सबसे बड़ी चिंता भगवान की तरफ होना है, क्योंकि भगवान हमेशा सही होते हैं। अब्राहम लिंकन +* राजनीति एक पेंडुलम है जिसके अराजकता और अत्याचार के बीच झूलों को सदा के लिए भ्रम में डाल दिया जाता है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* आप देशभक्ति के साथ इतने अंधे नहीं हैं कि आप वास्तविकता का सामना नहीं कर सकते। गलत है, कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन इसे करता है या यह कहता है। मैल्कम एक्स +* सरकार हमें एक दूसरे से बचाने के लिए है। जहां सरकार अपनी सीमाओं से परे चली गई है वह हमें खुद से बचाने का फैसला कर रही है। रोनाल्ड रीगन +* राजनीति लोगों को उन मामलों में भाग लेने से रोकने की कला है जो उन्हें ठीक से चिंतित करते हैं। पॉल वालेरी +* युद्ध में, आप केवल एक बार मारे जा सकते हैं, लेकिन राजनीति में, कई बार। विंस्टन चर्चिल +* राजनीति को दूसरा सबसे पुराना पेशा माना जाता है। मुझे पता चला है कि यह पहले के बहुत करीब है। रोनाल्ड रीगन +* यदि आप विद्रोह करना चाहते हैं, तो सिस्टम के अंदर से विद्रोह करें। यह सिस्टम के बाहर विद्रोह करने की तुलना में बहुत अधिक शक्तिशाली है। मैरी लू, किंवदंति +* राजनीति में आपको हमेशा पैक के साथ चलना चाहिए। जिस क्षण आप लड़खड़ाएंगे और उन्हें पता चलेगा कि आप घायल हो गए हैं, तो बाकी लोग भेड़ियों की तरह आप पर टूट पड़ेंगे। आर ए बटलर +* जब तक दार्शनिक शासक नहीं बन जाते अथवा विश्व के राजाओं तथा युवराजों में दर्शन की भावना व शक्ति नहीं आ जाती है, तब तक राज्यों की बुराइयाँ दूर नहीं हो सकतीं। प्लेटो +* स्त्रियों में पुरुषों के समान ही प्रतिभा, शक्ति एवम् कार्यक्षमता होती है, अतः उन्हें भी पुरुषों के समान सार्वजनिक जीवन में भाग लेने का अधिकार होना चाहिए। प्लेटो +* सामाजिक शिक्षा ही सामाजिक न्याय का साधन है। प्लेटो +* नागरिकों में कर्तव्य भावना ही राज्या का न्याय सिद्धान्त है। प्लेटो +* उचित नेतृत्���, उचित सुरक्षा एवम् उचित पोषण आदर्श राज्य के अपरिहार्य तत्व हैं। वेपर +* यदि सद्गुण ज्ञान हैं तो उनकी शिक्षा दी जा सकती है। प्लेटो +* शिक्षा एक ऐसा सकारात्मक साधन है जिसके द्वारा एक सामंजस्यपूर्ण राज्य का निर्माण करने के लिए मानव प्रकृति को सही दिशा में ढाला जा सकता है। सेबाइन +* वैयक्तिक नैतिकता एवम् सार्वजनिक नैतिकता में एकता स्थापित होने से राज्य की एकता एवम् स्थायित्व में दृढ़ता आती है। प्लेटो +* राज्य महान उद्देश्यों वाला मानव समुदाय है। अरस्तू +* कानून सामान्य हित में विवेक द्वारा दिया गया आदेश है जिसे वह व्यक्ति उद्घोषित व लागू करता है, जिस पर समाज की रक्षा का भार होता है। एक्वीनास +* मनुष्य स्वतन्त्र पैदा होता है और प्रत्येक स्थान पर वह बन्धनों से जकड़ा हुआ है। अनेकों में कोई एक ऐसा मनुष्य होता है जो स्वयम् को अन्यों का स्वामी/नेता मानता है परन्तु वह अन्यों की तुलना में अधिक दास होता है। रूसो +* चरित्र की शुद्धि ही सारे ज्ञान का ध्येय होनी चाहिए। महात्मा गाँधी + + +* इंटरनेट वह कक्षा है जहाँ पूरा विश्व एक दूसरे से नोट का आदान-प्रदान कर रहा है। Jon Stewart +* इंटरनेट ने हमको सभी चीजों तक पहुँच की सुविधा दे दी लेकिन इसने सभी चीजों को भी हम तक पहुँचने का रास्ता दे दिया। James Veitch + + +* राजधर्म एक नौका के समान है, यह नौका धर्म रूपी समुद्र में स्थित है। सतगुण ही नौका का संचालन करने वाला बल है, धर्मशास्त्र ही उसे बांधने वाली रस्सी है। +* राजन जिन गुणों को आचरण में लाकर राजा उत्कर्ष लाभ करता है, वे गुण छत्तीस हैं। राजा को चाहिए कि वह इन गुणों से युक्त होने का प्रयास करें। महाभारत (भीष्म, युधिष्ठिर से) +: प्रजा के सुख में राजा का सुख है, प्रजाके हित में उसका हित है। राजा का अपना प्रिय (स्वार्थ) कुछ नहीं है, प्रजा का प्रिय ही उसका प्रिय है। + + +* जीवविज्ञान आज तक सृजित सबसे शक्तिशाली प्रौद्योगिकी है। इसमें डीएनए सॉफ्टवेयर है, विभिन्न प्रोटीन हार्डवेयर हैं और कोशिकाएँ कारखाने हैं। अरविन्द गुप्ता +* सॉफ्टवेयर, कला और इंजीनियरी का श्रेष्ठ मिश्रण है। बिल गेट्स +* स्वचालन अब केवल विनिर्माण से जुड़ा मुद्दा नहीं रहा। पहले शारीरिक श्रम को रोबोटों ने दूर किया। कृत्रिम बुद्धि (AI) और सॉफ्टवेयर, मानसिक श्रम का स्थान लेंगे। Andrew Yang +* अच्छी ग्राफिक्स केवल हार्डवेयर से नहीं आती। गेम खेलनने वाले जानते हैं कि सॉफ्टवेयर भी उतना ही महत्वपूर्ण है। Lisa Su +* सब कुछ क्लाउड और डेटा से जुड़ जाएगा। इन सबका समन्वय सॉफ्तवेयर करेगा। सत्य नाडेला +* मशीन को सिखाकर ऐसे सॉफ्टवेयर बनाये जा रहे हैं जिन्हे बनाना मानव की समझ से परे है। इससे दिखता है कि कृत्रिम बुद्धि किस प्रकार सभी उद्योगों में दिमाग डाल देगी। Steve Jurvetson +* मुक्तस्रोत संस्कृति ने हमे दिखा दिया है कि लिनक्स और मोजिला जैसे विश्वस्तरीय फॉटवेयर न तो फर्म के ब्यूरोक्रैटिक संरचना से बनाये जा सकते हैं न ही बाजार के इन्सेन्टिव से। Howard Rheingold +* ऑपरेटिंग सिस्टम और उसके ऊपर चलने वाले सॉफ्टवेयर में कोई स्पष्ट अन्तर नहीं है। Jim Allchin +* नयी प्रोग्रामिंग भाषा सीखने का एक ही तरीका है कि उस भाषा में प्रोग्राम लिखा जाय। डेनिस रिची + + +* धरती पर कोई सुरक्षा नहीं है, केवल अवसर हैं। दगलस मैक आर्थर द्वारा कहा गया, माना जाता है। +* स्वतंत्रता के बदले सुरक्षा प्राप्त करना शैतान का सौदा है। इस सौदे के बाद न तो न तो स्वतंत्रता का आनन्द मिलता है, न सुरक्षा का। गैरी स्पेन्स (Give Me Liberty!) +* शिक्षा राष्ट्र की सस्ती सुरक्षा है। +* सुरक्षा प्रायः एक अन्धविश्वास ही है। प्रकृति में इसका अस्तित्व नहीं है और न ही मनुष्य की सन्ताने इसका अनुभव करते हैं। लम्बे समय में खतरे को टालते रहना सीधे खतरे का मुकाबला करने से अधिक सुरक्षित नहीं है। जीवन या तो एक साहसपूर्ण खोज है या कुछ भी नहीं। हेलेन केलर (द ओपेन डोर (1957)) + + +साहस की पहचान: साहस की पहली और सबसे महत्वपूर्ण पहचान यह है कि डर का अनुभव होने के बावजूद व्यक्ति वह करता है जो उचित है। साहस का अर्थ डर का ना होना नहीं बल्कि डर पर जीत हासिल करना है। अगर आप डरे नहीं हैं तो फिर साहस का सवाल ही नहीं पैदा होता है। प्रतिक्रिया करने के बजाय हमारे पास कुछ कर डालने का साहस होना चाहिए। +जीवन में जो भी घटनाएं घटित होती है और जो कुछ भी हुआ है। उसे स्वीकार करने की कोशिश करते रहना चाहिए। हम में से कई लोग जिन चीजों की उम्मीदें संजोते हैं जब वह नहीं मिल पाती तो जिंदगी से हार मान लेते हैं। हमेशा याद रखें जिसे हम पूरी शिद्दत से चाहते हैं। जिसे हमने लगातार चाहा हो, उसके न मिलने पर भी जिंदगी में आगे बढ़ते जाना ही साहस है। +साहस की पहचान है अपने दिल की सुनना और मुश्किलों का सामना होने पर भी डटे रहना, जुटे रहना। मैंने जिंदगी में सीखा है जीत का सिंघनाद नहीं है बल्कि वह धीमी आवाज है। जो कहती है कि कल मैं फिर कोशिश करूंगा। जो सही है उसका साथ देना साहस की पहचान है। साहस की पहचान है कि दुनिया को युवाओं वाले गुण होने चाहिए उम्र विशेष के नहीं। बल्कि ऐसी स्थिति, इच्छाशक्ति, कल्पनाशीलता, डर के मुकाबले साहस की प्रधानता, जोखिम उठाने का भूख।जितना साहस होता है उसी के अनुपात में जिंदगी सिकुड़ती और फैलती है। +: साहस में ही लक्ष्मी का वास होता है। +: उद्यमिता, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम ये छः गुण जिस व्यक्ति में होते हैं, ईश्वर भी उसका सहायक होता है। +: जहां कार्य उत्साह से आरम्भ होता है, आलस्य नहीं रहता, नीति व साहस का संगम होता है। वहां यश (विजय) निश्चित है। +* साहस भय की अनुपस्थिति नहीं है। यह तो इस निर्णय तक पहुँचने का बोध है कि कुछ है जो भय से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। एम्ब्रोस रेडमून +* संसार में आधे से अधिक लोग तो इसलिए असफ़ल हो जाते हैं कि समय पर उनमें साहस का संचार नहीं हो पाता और वे भयभीत हो उठते हैं। स्वामी विवेकानन्द +* साहसी ही सही मायने में जीते हैं। धरम बारिया +* साहस प्रेम के समान है, इसकी खुराक आशाएं है। नेपोलियन +* अधिकांश अवसरों पर साहस को परीक्षा द्वारा जीवित रखना होता है। संतुलित उत्साह सफलता की कुंजी है। अलफांसो +* मानव में यदि साहस है तो वह बाकी गुणों का नेतृत्व स्वयं कर लेगा। चर्चिल +* सच बोलने और स्वीकारने के लिए असीम साहस की जरूरत होती है। अज्ञात +* काम करते रहने में उत्साह नहीं, कष्ट सहते रहने में उत्साह नहीं, प्रसन्न रहने में उत्साह नहीं, बल्कि काम करते हुए बीच में आने वाले कष्ट को सहते हुए प्रसन्न रहें और काम करते चले जायें वही उत्साह है। स्वेट मार्डेन +* जिनमें उत्साह नहीं होता, मित्र भी उनके दुश्मन हो जाते हैं। जिनमें उत्साह हो, शत्रु भी उनकी मित्रता स्वीकार करते है। कौटिल्य +* जिसके अंदर साहस नहीं होता उसे हर कार्य असम्भव लगता हैं और जिसके अंदर साहस होता है वह हर असम्भव कार्य को साधारण समझता है। अज्ञात +* जितने महान कार्य साहस के बल पर किये जाते है, उतने बुद्धिमता के बल पर नहीं किये जाते। अंग्रेजी लोकोक्ति +* साहस और सम्पति साथ रहते हैं। शूद्रक +* साहस सहन करने में है बदला लेने में नहीं। शेक्सपीयर +* साहस इस बात में है कि आपने पराजय को हंसते-हंसते स्वीकार किय���। जेम्स मैथ्यू +* साहस का सुगंध वीरों का प्रथम गुण है। चर्चिल +* साहसी के साश अक्सर भाग्य रहता है। साहसी स्वयं भाग्य निर्माता है। सुभाषित +* साहसी लोग अम्बर और धरती को एक करने का प्रयास करते है। ऐसे लोगों के सामने तुम्हारा प्रयास कम है। लू-ह-सन् +* साहस ऐसी जगह पाया जाता है जहाँ उसकी संभवना कम हो। जे आर आर टोकन +* जीवन किसी के साहस के अनुपात में सिमटता या विस्तृत होता है। एनेस निन +* निराश हुए बिना पराजय को सह लेना, साहस की सबसे बड़ी मिसाल है। अज्ञात +* साहस एक सर्वोत्तम मानसिक औषधि है यदि आप आशा और विश्वास के साथ महान कार्य सम्पन्न करना चाहते है तो आपकी आत्मा में साहस का वास होना चाहिए। यदि ऐसे व्यक्ति को कभी हार का भी सामना करना पड़े तो वह क्षणिक हार होती है। अंत में विजय साहस की ही होगी। स्वेट मार्डेन +* संसार में कठिन परिस्थितियां आने के पश्चात जो व्यक्ति साहस और धैर्य अपनायें रखता हैं वह कठिनाईयों पर काबू पा लेता है। महात्मा गांधी +* साहस जाने के साथ मनुष्य की आधी समझदारी भी चली जाती है। इमर्सन + + +कम्प्यूटर प्रोग्रामन Computer programming या programming या coding) का आशय कमाण्ड या अनुदेश (instructions) की ऐसी शृंखला लिखने से है जिनको कम्पाइल करके या इन्टरप्रीट करके एक चलाने योग (executable) प्रोग्राम बनाया जा सके और जिसे किसी इलेक्ट्रॉनिक मशीन पर चलाया (execute या "run किया जा सके। +* प्वाइंटर्स के साथ खेलना आग से खेलने जैसा है। आग ही सम्भवतः मानव को ज्ञात सबसे महत्वपूर्ण औजार है। यदि आग का उपयोग सावधानी से किया जाय तो यह मानव के लिये अत्यन्त लाभकारी है; लेकिन यदि यह नियन्त्र्ण से बाहर चली गयी तो महाविपत्ति ला देती है। John Barnes, Programming in Ada 2012, Cambridge University Press, 2014, p. 189 + + +* कला की विषयवस्तु न वेदान्तियों का ब्रह्म है, न हेगल का निरपेक्ष विचार। मनुष्य का इन्द्रियबोध, उसके भाव उसके विचार, उसका सौन्दर्यबोध कला की विषयवस्तु है। +* साहित्य के सभी तत्त्व समान रूप से परिवर्तनशील नहीं है, इन्द्रियबोध की अपेक्षा भाव और भावों की अपेक्षा विचार अधिक परिवर्तनशील है। युग बदलने पर यहाँ विचारों में अधिक परिवर्तन होता है, वहाँ इन्द्रियबोध और भाव-जगत् में अपेक्षाकृत स्थायित्व रहता है। +* साहित्य का शिल्प, उसके विभिन्न रूप, सामाजिक विकास से ही सम्भव हुए हैं। जनता तक साहित्य पहुँचाने के साधनों में जो परिवर्तन हुए, उनका प्रभाव उ��के रूपों पर भी पड़ा। +* कला और विषयवस्तु दोनों ही समान रूप से साहित्य-रचना के लिए निर्णायक महत्त्व की नहीं हैं। निर्णायक भूमिका हमेशा विषयवस्तु की ही होती है। +* आजकल कुछ आलोचक साहित्य की विषयवस्तु की विवेचना से बचने के लिए भाषा की चर्चा करना यथेष्ट समझते हैं। वे तर्क भी देते हैं कि साहित्य में विषय-वस्तु को भाषा से अलग नहीं किया जा सकता इसलिए भाषा की चर्चा करना ही काफी है। इसके विरोध में कहा जा सकता है कि जब दोनों में इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है, तब विषय-वस्तु की चर्चा भी प्रयाप्त हो सकती है, चर्चा के लिए भाषा ही क्यों चुनी गई। कारण यह कि ऐसे लोगों के लिए भाषा और विषय-वस्तु का प्रगाढ़ सम्बन्ध, साहित्य की विषय-वस्तु उसकी भाव-विचार सम्पदा को नकारने के लिए है, वे यान्त्रिक दृष्टि से भाषा का रूपात्मक विवेचन करते हैं। +* साहित्य शुद्ध विचारधारा का रूप नहीं हैं, उसका भावों और इंद्रियबोध से घनिष्ठ सम्बन्ध है। +* यह आवश्यक नहीं कि शोषक वर्ग ने जिन नैतिक अथवा कलात्मक मूल्यों का निर्माण किया है वे सभी शोषण-मुक्त वर्ग के लिए अनुपयोगी हों — प्राचीन साहित्य के मूल्यांकन में हमें मार्क्सवाद से यह सहायता मिलती है कि हम उसकी विषयवस्तु और कलात्मक सौन्दर्य को ऐतिहासिक दृष्टि से देखकर उनका उचित मूल्यांकन कर सकते हैं। +* शुक्लजी की आलोचना गम्भीर है, इसलिए कि उसका आधार वस्तुवादी दृष्टिकोण है। शुक्लजी की गम्भीरता का दूसरा कारण उनकी तर्क और चिन्तन पद्धति है। इस पद्धति को हम द्वन्द्व नाम दें तो अनुचित न होगा। विरोधी लगने वाली वस्तुओं का सामंजस्य पहचानना, उन्हें गतिशील और विकासमान देखना, संसार के विभिन्न भौतिक और मानसिक व्यापारों का परस्पर सम्बन्ध स्थापित करके उनका अध्ययन करना इस पद्धति की विशेषताएँ हैं। रामचन्द्र शुक्ल की आलोचना पद्धति की प्रशंसा करते हुए +* भारतेन्दु युग का साहित्य हिन्दी-भाषी जनता का जातीय साहित्य है, वह हमारे जातीय नवजागरण का साहित्य है। भारतेन्दु युग की जिन्दादिली, उसके व्यंग्य और हास्य, उसके सरल-सरस गद्य और लोक-संस्कृति से उसकी निकटता से सभी परिचित हैं। ये उसकी जातीय विशेषताएँ हैं। अंग्रेजी साम्राज्यवाद और अंग्रेजी साहित्य एक ही वस्तु नहीं है। भारतेन्दु युग के साहित्य ने न केवल अंग्रेजी साहित्य से वरन् बँगला साहित्य से भी प्रेरणा पायी है। लेकिन उसके साहित्य की जड़ें इसी धरती में हैं और ऊपर बताई हुई उसकी जातीय विशेषताएँ उसकी अपनी हैं, मौलिक हैं। +* हिन्दी में नवीन चेतना किन व्यक्तियों और संस्थानों के माध्यम से विकसित हो रही थी। कौन-सी परिस्थितियाँ उस चेतना के विकास का कारण थीं और विकास के दौरान, परिस्थितियाँ भी किस प्रकार प्रभावित होकर बदल रही थी। साहित्य इस विकास-प्रक्रिया की केवल तटस्थ झाँकी ही नहीं प्रस्तुत कर रहा था बल्कि सक्रिय सहयोग कर रहा था। यह भारतेन्दु-युग की बहुत बड़ी विशेषता थी। +* साहित्य में जो रीति-विरोधी क्रान्ति शुरू हुई उसका पहला चरण है द्विवेदी युग और उसी का विकास छायावाद और प्रगतिवाद में होता है। ये तीनों युग एक दूसरे से भिन्न हैं, साथ ही एक दूसरे के पूरक भी हैं। द्विवेदी युग की भूमिका आधुनिक साहित्य का मार्ग प्रशस्त करने वाले अग्रदल की भूमिका है। द्विवेदी युग के बारे में ) +* पूर्व तक हिन्दी में ऐसी हवा बह रही थी कि लोग पं. रामचन्द्र शुक्ल के विचारों का विरोध करना अपनी आलोचनात्मक प्रतिभा का परिचय देना समझते थे। इस दिशा में कई साहित्य सेवियों का उत्साह आवश्यकता से अधिक बढ़ गया था। दुर्भाग्यवश जो लोग अपने को शुक्लानुवर्ती कहते थे और शुक्लजी के विचारों का विरोध करने वालों का विरोध करते थे, वे शुक्लजी की साहित्य-सेवा की महत्ता को प्रकट करने में असमर्थ थे। (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना, से) +* उन्होंने हिन्दी की सैद्धान्तिक आलोचना को ठोस दार्शनिक आधार दिया, रस की अलौकिकता का निषेध किया, जीवन और साहित्य के भावों में बुनियादी अन्तर स्वीकार नहीं किया, भावों को उनके आधार से अलग करके देखा, लोक-हृदय में लीन होने की दशा को रसदशा माना, रीति-ग्रंन्थों और उनकी सीमा में बंधे समीक्षकों का विरोध किया, ‘प्रेम’ की अपेक्षा ‘करुणा’ को अधिक महत्त्व दिया और लोक-रक्षा के विधान में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचाना, साम्राज्यवादी उत्पीड़न का विरोध किया, अंग्रेजी साहित्य की व्यक्तिवादी एवं प्रगतिविरोधी प्रवृत्तियों से हिन्दी लेखकों को सावधान किया, काव्य में करुणा-प्रेरित प्रचण्ड भावों (क्रोध आदि) के विधान में भी सौन्दर्य देखा, परोक्ष सत्ता के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति करने वाले साम्प्रदायिक रहस्यवाद का विरोध किया, वस्तुओं और विचारों की गतिशीलता पर बल देते हुए सौन्दर��य एवं मंगल के गत्यात्मक स्वरूप को सहारा और इतिहास के अध्ययन की एक व्यवस्थित पद्धति कायम की। (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना, से) +* उनकी शैली तार्किक विवेचन के लिए उपयुक्त होने के साथ आवश्यकतानुसार आवेशपूर्ण और आलंकारिक भी है और उसकी एक विशेषता जीवन का संचित अनुभव प्रकट करने वाली वाक्यावली है। शब्द चयन में उर्दू के प्रचलित शब्दों से उन्हें परहेज नहीं है। उनका व्यक्तित्व एक सहृदय और विनोदी साहित्य-प्रेमी और संसार प्रेमी मनुष्य का है, पुस्तक-सेवी सन्यासी का नहीं। उनकी निर्भीकता, दृढ़ता, गहन अध्यवसाय और आत्मविश्वास के गुण उनके काव्य-सिद्धान्तों और साहित्यलोचन की ही तरह हिन्दी-प्रेमियों के लिए शिक्षाप्रद और प्रेरणा दायक है। (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना, से) +* ब्रजनन्दन जी ने कुछ झूठ न लिखा था कि हिंदी-भाषी जनता ने प्रेमचंद जी से पूरा लाभ नहीं उठाया। बल्कि जनता ने तो लाभ उठाया है, हिन्दी-लेखकों ने लाभ नहीं उठाया। लाभ उठाने का प्रमाण यह होना चाहिए कि हमने प्रेमचन्द की स्वस्थ परम्परा का अनुसरण किया हो, उसे आगे बढ़ाया हो। लेकिन कितने लेखकों ने उस परम्परा को पहचाना है, उसे हिंदी-साहित्य की मूल्यवान विरासत समझा है। हिंदी के महान कथाकारों को चीरहरण से फुरसत न मिली, वह अंतस्तल की निगूढ़ भावनाओं का चित्रण करने में हिंदुस्तान की जनता का दुख-दर्द भूल गए। (‘प्रेमचंद और उनका युग’ के प्रथम संस्करण की भूमिका में) +* तुलसीदास के बाद हिंदी में यह पहला इतना बड़ा कलाकार पैदा हुआ था जिसकी रचनाएँ अपनी ही भाषा के क्षेत्र में नहीं, सुदूर दक्षिण के गाँवों में भी पहुँच गई थी। (‘प्रेमचंद और उनका युग’ से) +* प्रेमचन्द से जिस चीज़ को हिन्दी के इन दिग्गज आलोचकों और कलाकारों ने नहीं सीखा, वह यह कि जनता कला का स्रोत है और उससे अलग रहकर महान साहित्य की रचना नहीं की जा सकती। (‘प्रेमचंद और उनका युग’) +* ‘चन्द्रकान्ता’ और ‘तिलिस्म होशरुबा’ के पढ़नेवाले लाखों थे। प्रेमचन्द ने इन लाखों पाठकों को सेवासदन का पाठक बनाया, यह उनका युगान्तकारी काम था। इन पाठकों की संख्या का अंदाज किताबों की बिक्री और संस्करणों से नहीं लगाया जा सकता। शहर या कस्बे के किसी पुस्तकालय में जाकर प्रेमचंद की किताबों की हालत देखिए। तरकारी काटने वाली स्त्रियों के हाथों से लेकर लाठी को तेल पि���ानेवाले दरबानों की उंगलियों तक उनके सफे पलटे जाने से वे किस खस्ता हालत में दिखाई देती है। प्रेमचंद ने ‘चंद्रकान्ता’ के पाठकों को अपनी तरफ ही नहीं खींचा, ‘चंद्रकांता’ में अरुचि भी पैदा की, जन-रूचि के लिए उन्होंने नए मापदंड कायम किए और साहित्य के नए पाठक और पाठिकाएँ भी पैदा किए। यह उनकी जबरदस्त सफलता थी। (‘प्रेमचंद और उनका युग’) +* कुछ आलोचक कहते हैं कि प्रेमचंद में मनोवैज्ञानिक गहराई नहीं है। मनोविज्ञान का अर्थ विकृत काम-विकार ही न हो तो यह भी बड़ा सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चित्रण है। बेटे की दुर्दशा देखकर बाप अपने को रोक नहीं पाता। तैश में आ कर सिपाहियों को धक्का देता है, लेकिन दूसरे ही क्षण अपनी बेबसी समझकर रोने लगता है। (‘प्रेमचंद और उनका युग’ प्रसंग प्रेमाश्रम में बलराज के पकड़े जाने का प्रसंग) +* सर्वतोन्मुखी क्रांति का यह समर्थक अमल में हमेशा समझौता करता है। सकीना के मामले में वह दोहरा विश्वासघात करता है- एक तरफ अपनी स्त्री से, जो माँ बन चुकी है, दूसरी तरफ सकीना से, जो उसकी प्रेमिका है। किसानों के मामले में भी वह दोहरी दग़ा करता है, एक तरफ़ आत्मानन्द से, जिन्हें फँसाने का निश्चय कर लेता है, दूसरी तरफ किसानों से जिनके सामने वह स्वच्छ देश-भक्त बना रहता है। (प्रेमचंद 'कर्मभूमि' के नायक अमरकांत पर डॉ. शर्मा की टिप्पणी) +* प्रेमचंद ने जब गोदान लिखा था, तब वह खुद भी कर्ज़ के बोझ से दबे हुए थे। ‘गोदान’ की मूल समस्या ऋण की समस्या है। इस उपन्यास में किसानों के साथ मानों वह आपबीती भी कह रहे थे। किसानों के जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर वह उपन्यास लिख चुके थे- ‘प्रेमाश्रम’ में बेदखली और इज़ाफ़ा लगान पर, ‘कर्मभूमि’ में बढ़ते हुए आर्थिक संकट और किसानों की लगानबंदी की लड़ाई पर-लेकिन कर्ज़ की समस्या पर उन्होंने विस्तार से कोई उपन्यास न लिखा था। ‘गोदान’ लिखकर उन्होंने किसान की उस समस्या पर प्रकाश डाला जो आए दिन उनके जीवन को सबसे ज्यादा स्पर्श करती है। (गोदान में ऋण की समस्या को प्रेमचंद के स्वयं कर्ज़दार होने की बात से जोड़ते हुए) +* रत्नावली के शब्दों में तुलसीदास को नहीं, वरन् साहित्य और संस्कृति की समस्त रीतिकालीन परम्परा को धिक्कारा गया है। उसके योगिनी रूप में मध्यकालीन नारी का नायिका-भेद वाला रूप जलकर भस्म हो गया है। (निराला की कविता 'तुलसीदास' पर डॉ शर्मा के विचार) +* ��नके आत्म-संघर्ष के अनेक स्तर हैं। एक स्तर हैं निम्न वर्ग की भूमि को छोड़कर सर्वहारा वर्ग से तादात्मय स्थापित करने का। दूसरा स्तर है मन के दुःस्वप्नों- पाप बोध, मृत्युचिन्तन, असमान्य स्थिति- से निकलकर स्वयं को और संसार को वस्तुगत रूप में देखने का। तीसरा स्तर है अपनी काव्यकला को निरन्तर विकसित करने का। मुक्तिबोध का साहित्य उस व्यक्ति का साहित्य है जो जीवन की अनिवार्य विवशताओं के बीच निरन्तर अपने विवेक के अनुसार व्यक्तित्व के निर्माण में प्रयत्नशील रहता है। (‘मुक्तिबोध’ के काव्य का मूल्यांकन करते हुए) +* शमशेर का काव्य रीतिवादी रूमानी सौर्न्यबोध और मार्क्सवादी विवेक के द्वन्द्व का काव्य है। शमशेर में यह द्वन्द्व शुरू से ही पाया जाता है और वे इस द्वन्द्व को सार्थक संगति नहीं दे पाये। (शमशेर के सम्बन्ध में डॉ.शर्मा का मत) +* मुक्तिबोध रहस्यवाद को लेकर बड़ी उलझन में पड़े थे। शमशेर में ऐसी कोई उलझन नहीं है। ‘मुक्तिबोध’ मनोविश्लेषण शास्त्र से प्रभावित होकर अन्तर्मन की गुफा में ज्ञान के मणि और रत्न ढूँढते थे और फिर इस आत्मप्रवंचना पर झुँझलाते थे। शमशेर सजीले जिस्म के गुणगाने पर ऐसा रीझते हैं कि अँधेरे कुएँ या बाबड़ी में उतरने की उन्हें फुर्सत नहीं मिलती। किन्तु शमशेर उतने आत्ममुग्ध नहीं जितने ‘मुक्तिबोध’ थे। मुक्तिबोध अस्तित्ववाद की ओर खिंचे और अपने-पराये अनेक पापों का मैल मन से धोते रहे। शमशेर नयी कविता के उन तमाम लेखकों से अलग है जो अस्तित्ववाद से प्रभावित हैं। उनका आत्म-संघर्ष है उत्तर छायावादी काव्यबोध को लेकर। ‘मुक्तिबोध’ और ‘शमशेर’ के आत्मसंघर्ष की तुलना करते हुए) +* जब समाजवादी दलों का बिखराव दूर होगा, जब हिन्दी प्रदेश की श्रमिक जनता एकजुट होकर नये समाज के निमार्ण की ओर बढ़ेगी, जब नयी कविता का अस्तित्वादी सैलाब सूख चुका होगाा, जब मध्यवर्ग और किसानों और मजदूरों में भी जन्म लेने वाले कवि दृढ़ता से अपना सम्बन्ध जन आन्दोलन से कायम करेंगे तब उनके सामने लोकप्रिय साहित्य और कलात्मक सौन्दर्य के सन्तुलन की समस्या फिर से पेश होगी और तब साहित्य और राजनीति में उनका सही मार्ग दर्शन करने वाले, अपनी रचनाओं के प्रत्यक्ष उदाहरण से उन्हें शिक्षित करने वाले, उनके प्रेरक और गुरू होंगे कवि नागार्जुन। (‘नयी कविता और अस्तित्वाद’ में नयी कविता के संदर्भ में नागार्जुन की काव्य-कला का मूल्यांकन) +* उसमें दृढ़ क्रान्ति-भावना विद्यमान है। वह लोक-संस्कृति के निकट है। उस में प्रखर राजनीतिक चेतना और गहरा व्यंग्य है। उसमें यथार्थ जीवन के वैविध्यपूर्ण मार्मिक चित्र है। उसमें रहस्यवाद और यथार्थवाद को लेकर किसी प्रकार का द्वन्द्व नहीं है— उसमें कथ्य के अनुकूल भाषा की सहज गति और लय को आधार बनाकर विविध प्रकार के प्रयोग किये गये हैं। (‘नयी कविता और अस्तित्वाद’ में नागार्जुन के बारे में) +* मेरी पुस्तक 'भाषा और समाज' में जिन सिद्धान्तों का प्रतिपादन है, उनका यहाँ संवर्धन और विस्तार है, उनमें कहीं मौलिक परिवर्तन करना आवश्कयक प्रतीत नहीं हुआ। कुछ शब्दों की व्युत्पत्ति में फेर-बदल संभव है। जहाँ उस पुरानी पुस्तक को देखते शब्द की व्युत्पत्ति के बारे में यहाँ भिन्न मत प्रकट किया गया हो, वहाँ इस पुस्तक में व्यक्त मत को मेरी वर्तमान धारणा का सूचक मानना चाहिए। जिस विवेचन में अटल नियमों की अस्वीकृति हो, उसमें किसी भी स्थापना के लिए पूर्ण सत्य का दावा करना हास्यास्पद होगा। जो लोग अटल नियमों का प्रतिपादन करते हैं, उनके ग्रंथों में भी संभव है, ‘ऐसा हुआ होगा’, “शायद ऐसा हो”, “हो सकता है कि” इत्यादि की खपत काफी होती है। इस पुस्तक में कोई भी स्थापना चाहे जितने आत्मविश्वास से प्रस्तुत की गई हो, आप अपनी ओर से उसके आगे पीछे संभव और शायद जोड लें। मेरा प्रयत्न यह है कि प्रत्येक स्थापना के विरोध में जो तर्क दिया जा सके उस पर विचार करने के बाद अपनी स्थापना प्रस्तुत करुँ।” भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी' भाग-1 पृ.सं.24) +* व्यक्तिवादी विचारधारा क्षीण होकर निर्जीव, विकृत, अस्वस्थ, यथार्थ विरोधी रचनाओं की सृष्टि कर रही है। यथार्थवादी विचारधारा मनुष्य के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से ऐसी रचनाएँ करने की ओर प्रवृत्त है जिससे हमारी सामाजिक चेतना प्रखर हो। और हमारी सौंदर्य बोध की वृत्तियाँ भी संतुष्ट हों। आधुनिक हिन्दी साहित्य की मूल धारा भी हमें इसी ओर बढ़ने की प्ररणा देती है। आस्था और सौन्दर्य पृ.सं. 25 लेख 'यथार्थ जगत और साहित्य' में) +* कविता में तरह-तरह के प्रयोग करने की बडी गुंजाईश है। अनेक प्रकार की शैलियों द्वारा कवि अपने भाव और विचार पाठकों तक पहुँचा सकता है। शैली की यह विविधता भावों की अभिव्यंजना में ही नहीं, भावानुभूति और संवेदना के प्रकारों में भी देखी जा सकती है। इस विविधता से हिन्दी कविता की मूल यथार्थवादी धारा समृद्ध होती है। नई कविता और आधुनिक हिन्दी कविता एक ही वस्तु नहीं है। हमें संकुचित अर्थ में ग्रहण की जानेवाली नई कविता के अलावा भी पिछले दस वर्षों में रची हुई आधुनिक हिन्दी कविता का विवेचन करना चाहिए। आलोचना का कोलाहल शांत होने पर नई कविता के कर्दम पर यथार्थवाद की निर्मल धारा बहती दिखाई देगी। आस्था और सौंदर्य पृ.सं. 174 लेख 'नई कविता और आधुनिक हिन्दी कविता +* आज के अनेक प्रसिद्ध लेखक झकोले खा रहे हैं, आस्था-अनास्था की समस्याओं से व्यथित हो उठते हैं, प्रत्येक राजनीतिक पार्टी से विश्वास उठ जाने की बातें करते हैं। ये सब पार्टियाँ जनता से उत्पन्न होती हैँ, उसकी सेवा के बल पर जीती हैं, यदि वे जनता के लिए ऐतिहासिक रुप से अनावश्यक हो जाती हैं तो उनकी चमक-दमक, रोब-दाब अस्थायी ही सिद्ध होते हैं। यदि लेखक को इस जनता में आस्था हो, वह उसके साथ आगे बढ़ने को तैयार हो तो उसका झकोले खाना बंद हो जाए। कभी-कभी प्रेमचंद के मानवतावद का स्तर न समझकर अपने साथ हम उन्हें भी झकोले खाता हुआ देखने लगते हैं। हमें अपने से प्रश्न करना चाहिए, क्या हमने निर्धन और पीड़ित जनता के पक्ष को प्रेमचंद के समान दृढ़ता से अपनाया है? क्या हम उनके सामने धैर्य, लगन, निस्वार्थ भाव से यह सेवाव्रत निबाहने को तत्पर हैं? प्रेमचंद की परंपरा में अनेक लेखक हैं। लेकिन उन जैसा असंदिग्ध विवेक, अटूट, सहानुभति और अमोघ शब्द-शक्ति का लेखक दूसरा नहीं है। वे “आज भी हमारे गुरु हैं।” और शायद कल भी रहेंगे। (आस्था और सौंदर्य, पृ,सं.95 राजनीति और साहित्य के संबंधों के बारे में) +* भाषाई विवेचन एक कौशल है, यह कौशल यंत्रवत निश्चित किया जा सकता है। जैसे उद्योग-धंधों की एक टेकनोलॉजी है, वैसे ही भाषा-वैज्ञानिक धंधे की एक टेकनोलॉजी है। टेकनोलाऑजी स्वयं विज्ञान नहीं है, वैसे ही भाषाई विवेचन का कौशल भाषा विज्ञान नहीं है। जब भाषाई टेकनोलॉजी में टेकनीकल शब्दावली की भरमार हो तो उसे विज्ञान समझने के भ्रम से बचना और भी जरुरी है। प्रत्येक विज्ञान में अनुसंधानकर्त्ता का संवेदनशील होना उस विज्ञान के विकास की पहली शर्त है। भाषा विज्ञान के विकास के लिए यह संवदेनशीलता और भी आवश्यक है। कारण यह कि भाषा निसर्गतः संवेदनाओं के निखार और उन्हें दूसरों तक पहुँचाने का माध्यम है। साहित्यिक बोध यहाँ सहायक होता है। कौशल की उपयोगिता असंदिग्ध है। भाषाओं के विवेचन के लिए जितना कौशल आवश्यक और उपयोगी है। उतना अवश्य स्वीकार करना चाहिए। किन्तु बहुत-सी भाषाई टेकनोलॉजी ऐसी है जिसकी उपयोगिता प्रमाणित नहीं हुई। कला के लिए कला, जैसे यह सिद्धान्त अमान्य है, वैसे ही कौशल के लिए कौशल-यह सिद्धान्त भी अमान्य है। (भाषा-विज्ञान के बारे में भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी भाग-1 पृ.स.22) +* कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक, बंगाल से लेकर गुजरात तक राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन ने एक भावना-सूत्र में देश की सभी जातियों और भाषाओं को बाँध दिया था। बहुजातीय राष्ट्रीयता का पाठ हमें अंग्रेजों ने नहीं पढ़ाया। युनाइटेड किंगडम ऊर्फ ग्रेट ब्रिटेन में आइरिश, स्काट, वेल्स और अंग्रेज जातियों में काफी कशमकश रही है। इस युनाइटेड किंगडम की यूनिटी युद्धों और हिंसक दमन द्वारा प्राप्त की गयी थी। आयरलैंड-जैसे भिन्न देश का विभाजन करके उसके एक खण्ड को नकली ढंग से यूनाइटेड किंगडम का अंग बनाया गया है। स्काटलैंड अपेक्षाकृत पिछडा रहा है और उन्नसवीं सदी तक अंग्रेज उसे दूसरा देश (प्रदेश नहीं) समझते थे। वेल्स की भाषा अंग्रेजी से भिन्न परिवार की है लेकिन उसे निर्मूल करने में अंग्रेजों ने कुछ उठा नहीं रखा। हमारी राष्ट्रीयता जिस में तमिल, कश्मीरी, सिंधी आदि फलती-फूलती हैं। युनाइटेड किंगडम की राष्ट्रीयता से दूसरे ढंग की है। न हमने संयुक्त राष्ट्र अमरीका की तरह गृहयुद्ध द्वारा उत्तर-दक्षिण को संयुक्त किया है। हमारी बहुजातीय राष्ट्रीयता की नींव अंग्रेजी राज कायम होने से पहले डाली गई थि। (भारतीय इतिहास बोध पर डॉ शर्मा के विचार आस्था और सौन्दर्य पृ.सं.176-177) +* मानव जाति समस्त धरती पर फैली हुई है, समस्त काल में उसका प्रसार है। इस मानव समाज को आपस में बाँधनेवाला कौन है? वह कवि है। और कवि उसे बाँधता है भाव और ज्ञान के द्वारा। भाव और ज्ञान वर्ड्सवर्थ के लिए परस्पर विरोधी नहीं हैं। वे एक-दूसरे के पूरक हैं, एक साथ चलते हैं। कविता के लिए भावशक्ति और ज्ञानशक्ति का संयोग दरकार है। फ्रांसीसी राज्य क्रांति ने जो भाईचारे का नारा दिया था, उसे हम वर्ड्सवर्थ को अंग्रेजी कविता में लागू करते हुए देखते हैं। (साहित्येतिहास की पुर्नव्याख्या करते हुए आस्था और सौन्दर्य पृ.199) +* जिसे रोमांटिसिज्म (छायावाद, स्वच्छन्दतावाद) कहा जाता है, वह अनेक प्रकार का था। कभी-कभी एक ही कवि में कई तरह का रोमांटिसिज्म देखने को मिलता है। इंगलैंड के रोमांटिक कवियों में बायरन ने व्यंग्यपूर्ण कविताएँ सबसे अधिक लिखीं। उनसे पहले के युग में ड्राइडन और पोप बहुत शक्तिशाली व्यंगयकार हुए थे। बायरन ने इससे बहुत-सी बातें सीखीं किंतु अपने युग के अनुरुप उन्होंने व्यंग्य कविता को नई दिशा में मोड़ा।” आस्था और सौन्दर्य पृ.सं.208) +डॉ रामविलास शर्मा के बारे में अन्य विद्वानों के विचार +* वे अत्यन्त तटस्थ रहते थे और हुड़दंग से विदुर की तरह अलग और अपने शोधकार्य में तल्लीन रहते। दूसरे हितैषियों के दबाव के कारण मैं आगरा आया, तब से मुझसे परिचय घनिष्ठ हुआ। किसी विद्याप्रसंग की बात होती तो वे बुलाते, किसी पुस्तक के संदर्भ की बात होती तो पत्र भेजते। उनसे बात करना बड़ा प्रीतिकर लगता था। वे निश्चल भाव से बात करते थे, इसलिए उनसे बहुत बेबाक होकर बात होती थी। जिनकी वह आलोचना करते थे उनके प्रति भी उनके मन में कोई द्वेषभाव नहीं होता था। हल्के प्रयास के बाद चुटीली-से चुटीली टिण्पणी भी दे जाते थे और उसका कसैलापन मालूम भी नहीं होने देते थे। मैंने दो-तीन बार उनसे अपनी संपादकीय पत्रिकाओं के लिए लेख मांगा या खुशी से लेख भी दिया और साक्षात्कार भी। उनका जाना एक ऐसे महान विचारक का जाना है जो हिन्दी का दुर्धर्ष समर्थक रहा। (डॉ. विद्यानिवास मिश्र 14 जून 2000, इंडिया टुडे में) +आर्य' शब्द नस्ल का द्योतक नहीं है। यह अपने प्राचीन साहित्य में प्रयोग होता रहा है। इस स्थापना में वे मार्क्सवादी इतिहासकारों से गहरा मतभेद रखते थे। वे मार्क्सवाद के मूल सिद्धान्तों को स्वीकार करते हुए भी धरती की संस्कृति से अलग होने को तैयार नहीं थे। जड़ से उखड़ने में उनका विश्वास न था। इसलिए वे परिवार के दायित्व के प्रति भी बड़े गंभीर थे। दांपत्य जीवन में वे एकनिष्ठ थे। मैंने देखा है कि आगरा में उनकी पत्नी अस्वस्थ रहती थी लेकिन उनकी सेवा की व्यवस्था किए बिना वे घर से बाहर नहीं निकलते थे। अत्यन्त धीर, स्वाध्यायपरायण व्यक्ति होते हुए भी बडे पुत्र के निधन का शोक संभालते हुए वे कहीं न कहीं भीतर से टूट गए थे। उसके बाद ही उनका स्वास्थ्य गिरने लगा था।(शर्मा जी के निधन पर लिखते हुए डॉ. विद्यानिवास मिश्र, “इंडिया ���ुडे, 14 जून 2000) +* डॉ. राम विलास शर्मा को मैं पत्थरों में राह बनानेवाली और पत्थरों को रत्न का रुप देनेवाली झर-झर करती विशाल नदी के रुप में स्मरण करता हूँ और उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देता हूँ। (शर्मा जी के निधन पर लिखते हुए डॉ. विद्यानिवास मिश्र, इंडिया टुडे 14 जून 2000) +* हिन्दी समाज, हिंदी भाषा और हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल से संबंधित रामविलास शर्मा के संपूर्ण चिंतन और लेखन के केन्द्र में है उनकी हिंदी नवजागरण की अवधारणा चाहे 1857 का स्वाधीनता संग्राम हो या हिंदी जाति की धारणा, चाहे हिंदी में आधुनिकता के उदय का सवाल हो या हिंदी-उर्दू के संबंध का, चाहे देश में राजनीतिक चेतना के जागरण का प्रश्न हो या समाज सुधार का, इन सभी प्रश्नों पर विचार करते हुए वे हिंदी नवजागरण संबंधी मान्यताओं को ध्यान में रखते हैं। (डॉ मैनेजर पाण्डेय) +* प्रेमचन्द की एक और विशेषता की ओर डॉ.शर्मा ने ध्यान दिया है- वह है, हिन्दू-मुसलमान दोनों के जीवन पर समान अधिकार से लिख सकने की शक्ति। हिन्दी और उर्दू, हिन्दी और मुसलमान दोनों धर्मावलम्बियों के बीच ऐसा दूसरा कोई साहित्यकार नहीं हुआ जिसने साम्प्रदायिक एकता स्थापित करने के लिए साहित्य में ऐसे मार्मिक चित्र प्रस्तुत किए हैं। डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ) +* डॉ. रामविलास शर्मा ने प्रेमचन्द को कबीर, तुलसी और भारतेन्दु की परम्परा से जोड़ा है। ऐसा करके डॉ. शर्मा ने केवल प्रेमचन्द को ही स्थापित नहीं किया है, प्रगतिवादी आलोचना पद्धति को भी हमारी जातीय परम्पराओं से जोड़ा है। उन्होंने प्रेमचन्द द्वारा चित्रित भारतीय जीवन की व्याख्या करके, उसका परीक्षण-निरीक्षण करके प्रेमचंद का मूल्यांकन किया है और प्रगतिवादी कसौटी को विश्वसनीय बनाया है। (डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी, डॉ. रामविलास शर्मा के बारे में) + + +स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग "Techno Hiten" पर आज का हमारा आर्टिकल बेहद रोचक और मजेदार है ब्लॉग कैसे शुरू करें, Blog se paise kaise kamaye in Hindi, इस पर यह आर्टिकल है। bloging कई लोगों के लिए एक बहुत ही आकर्षक पेशा बन गया है और इसे पार्ट-टाइम किया जा सकता है। साइड में bloging करते हुए मैंने खुद फुल टाइम जॉब की। इस लेख में, मैं जानेंगे कि आप Google Adsense अपने ब्लॉग को जोड़ के उस से कमा सकते हैं आपको अपने Blog को एक प्रोफेसनल लुक देना पड़ेगा +Blog एक ऐसी वेबसाइट है जहां एक या अधिक लोग कमेंट्री, घटनाओं का विवर�� या अन्य सामग्री पोस्ट करते हैं। Blogger अपने स्वयं के अनुभवों के बारे में कमेंट्री प्रदान कर सकते हैं, अपनी hobby और गतिविधियों के बारे में विचार साझा कर सकते हैं, अपने स्वयं के कार्य की प्रगति पर रिपोर्ट कर सकते हैं और अपनी रचनात्मक प्रक्रिया का प्रदर्शन कर सकते हैं। इस मामले में, हम एक Blogger हैं। +Blog बनाने के कई तरीके हैं। आप एक ऐसी कंपनी की तलाश कर सकते हैं जो मुफ्त Blog प्रदान करे, एक मुफ्त टेम्पलेट खोजने का प्रयास करें, या अपनी खुद की वेबसाइट बनाने का निर्णय लें। ऐसी कई चीजें हैं जिन पर आपको ध्यान देने की आवश्यकता है जैसे कि hosting और Domain नाम Registration। यह भी महत्वपूर्ण है कि आपके पास Post लिखने के लिए पर्याप्त समय हो क्योंकि ये सभी निर्धारित करेंगे कि आप कितना पैसा कमा सकते हैं। +यदि आपके पास एक अच्छा ब्लॉग है, तो आप इससे कुछ पैसे कमाने में सक्षम हो सकते हैं। ऐसे कई तरीके हैं जिनसे आप एक ब्लॉगर के रूप में पैसा कमा सकते हैं, लेकिन Affiliate Marketing सबसे अच्छे तरीकों में से एक है। Affiliate Marketing आपको अन्य प्रकार के विज्ञापनों की तुलना में अधिक पैसा कमाने की अनुमति देगा क्योंकि आपको बैनर विज्ञापनों या प्रायोजित सामग्री पर भरोसा करने की आवश्यकता नहीं है। यदि आपका Blog लोकप्रिय है और आपको बहुत अधिक ट्रैफ़िक मिलता है, तो आप और भी अधिक प्रतिशत अर्जित करेंगे। + + +आदि शंकराचार्य प्राचीन भारतीय दार्शनिक थे जिन्होंने अद्वैत के सिद्धान्त को स्थापित किया। स्मार्त सम्प्रदाय में आदि शंकराचार्य को शिव का अवतार माना जाता है। इन्होंने ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखा। उनके जीवनकाल के सम्बन्ध में मतभेद है। विभिन्न विद्वान उनका जीवनकाल ८वीं से १०वीं शताब्दी मानते हैं। +भारतीय सभ्यता में सनातन धर्म के आदि काल से चली आ रही परम्परा के प्रचार, प्रसार में उनका बहुमूल्य योगदान है। पूरे भारत में सनातन धर्म प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने पूरे भारत में चार मठ और बारह ज्योतिर्लिंगों का स्थपाना की। इस कार्य ने पूरे भारत को एक सूत्र में बाँधने का कार्य किया। +: ब्रह्म वास्तविक है, ब्रह्मांड मिथ्या है (इसे वास्तविक या असत्य के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है)। जीव ही ब्रह्म है और भिन्न नहीं। इसे सही शास्त्र के रूप में समझा जाना चाहिए। य�� वेदान्त द्वारा घोषित किया गया है। +* आत्मा की गति मोक्ष में हैं। +* सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है, जो विशेष रूप से शुद्ध किया गया हो। +* प्रज्वलित दीपक को चमकने के लिए, दूसरे दीपक की आवश्यकता नहीं होती। उसी प्रकार आत्मा जो स्वयं ज्ञान का स्वरूप है उसे और किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती। +* यह मोह से भरा हुआ संसार एक स्वप्न की तरह है। यह तब तक ही सत्य प्रतीत होता है जब तक व्यक्ति अज्ञान रुपी निद्रा में सो रहा होता हैं, परन्तु जाग जाने पर इसकी कोई सत्ता नही रहती। +* लोग तभी तक याद रखते है जब तक उनकी साँसे चलती है जैसे ही साँसे चलनी बन्द हो जाती हैं सबसे निकट सम्बन्धी, मित्र यहाँ तक की पत्नी भी अपनों से दूर चली जाती है। +* यदि हृदय में सत्य को जानने की इच्छा है तो बाहरी चीजें अर्थहीन लगती हैं। +* हर व्यक्ति को यह ज्ञान होना चाहिए कि आत्मा एक राजा के समान होती है जो शरीर, इन्द्रियों, मन बुद्धि से बिल्कुल अलग होती है। आत्मा इन सबका साक्षी स्वरूप हैं। +* परमात्मा और आत्मा में कोई अन्तर नहीं, ये दोनों एक ही हैं लेकिन अज्ञानता के कारण मनुष्य इन्हें अलग-अलग समझता है। +* आत्मसंयम क्या है? आंखो को दुनिया की चीज़ों की ओर आकर्षित न होने देना और बाहरी तत्वों को खुद से दूर रखना। +* यह परम सत्य है की लोग आपको उसी समय तक याद करते है जब तक आपकी सांसें चलती हैं। इन सांसों के रुकते ही आपके क़रीबी रिश्तेदार, दोस्त और यहां तक की पत्नी भी दूर चली जाती है। +* अज्ञानता के कारण आत्मा सीमित लगती है लेकिन जब अज्ञान का अंधेरा मिट जाता है तब आत्मा के वास्तविक स्वरुप का ज्ञान हो जाता है। जैसे बादलों के हट जाने पर सूर्य दिखाई देने लगता है। +* कर्म चित्त की शुद्धि के लिए ही है, तत्व दृष्टि के लिए नहीं। सिद्धि तो विचार से ही होती है। करोड़ो कर्मोँ से कुछ भी नहीं हो सकता। +* अज्ञानता के कारण आत्मा सीमित लगती है लेकिन जब अज्ञान का अंधेरा मिट जाता है तब आत्मा के वास्तविक स्वरुप का ज्ञान हो जाता है। जैसे बादलों के हट जाने पर सूर्य दिखाई देने लगता है। +* हर व्यक्ति को यह ज्ञान होना चाहिए कि आत्मा एक राजा के समान होती है जो शरीर, इन्द्रियों, मन बुद्धि से बिल्कुल अलग होती है। आत्मा इन सबका साक्षी स्वरूप हैं। +* ज्ञान की अग्नि सुलगते ही कर्म भस्म हो जाते हैं। +* यथार्थ ज्ञान ही मुक्ति का कारण है और हमें यथार्थ ज्ञान की प्राप्त��� परमार्थिक कर्मोँ से ही होती है। +* लोग तभी तक याद रखते हैं जब तक उनकी साँसे चलती है जैसे ही साँसे चलनी बन्द हो जाती है सबसे निकट के सम्बन्धी, मित्र यहाँ तक की पत्नी भी अपनों से दूर चली जाती हैं। +तत्व' की प्राप्ति का मुख्य उपाय ध्यान है। सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रुप से शुद्ध किया हुआ हो। +* तीर्थ करने के लिए किसी जगह जाने की आवश्यकता नहीं है। सबसे बड़ा और अच्छा तीर्थ आपका अपना मन है जिसे विशिष्ट रूप से शुद्ध किया गया हो। +* आत्म अज्ञान के कारण ही सीमित प्रतीत होती है, परन्तु जब अज्ञान मिट जाता है, तब आत्मा के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो जाता है, जैसे बादलों के हट जाने पर सूर्य दिखाई देता है। +* पुरुषार्थहीन व्यक्ति जीते जी ही मरा हुआ है। +* हर व्यक्ति को यह ज्ञान होना चाहिए कि आत्मा एक राजा के समान होती है जो शरीर, इन्द्रियों, मन, बुद्धि से बिल्कुल अलग है। आत्मा इन सबका साक्षी स्वरुप है। +* आत्मसंयम क्या है आंखो को दुनिया की चीज़ों कि ओर आकर्षित न होने देना और बाहरी ताकतों को खुद से दूर रखना। +* तीर्थ करने के लिए किसी जगह जाने की जरूरत नहीं है। सबसे बड़ा और अच्छा तीर्थ आपका अपना मन है जिसे विशिष्ट रूप से शुद्ध किया गया हो। +* सत्य की कोई भाषा नहीं है। भाषा तो केवल मनुष्य द्वारा बनाई गई है। लेकिन सत्य मनुष्य का निर्माण नहीं, आविष्कार है। सत्य को बनाना या प्रमाणित नहीं करना पड़ता। +* बाहरी ताकतों को अपने से दूर रखना और दुनिया के तमाम चीजों की तरफ आकर्षित ना होना ही आत्मसंयम कहलाता है। +* जब मन में सत्य जानने की जिज्ञासा पैदा हो जाती है तब दुनिया की बाहरी वस्तुएँ अर्थहीन लगती हैं। +* सत्य की कोई भाषा नहीं है। भाषा तो सिर्फ मनुष्य द्वारा बनाई गई है लेकिन सत्य मनुष्य का निर्माण नहीं, आविष्कार है। सत्य को बनाना या प्रमाणित नहीं करना पड़ता। +* यह मोह से भरा हुआ संसार है एक स्वप्न की तरह है, यह तब तक ही सत्य प्रतीत होता है जब तक व्यक्ति अज्ञान रुपी निद्रा में सो रहा होता हैं, परन्तु जाग जाने पर इसकी कोई सत्ता नही रहती। +* यह परम सत्य है की लोग आपको उसी समय तक याद करते है जब तक आपकी सांसें चलती हैं। इन सांसों के रुकते ही आपके क़रीबी रिश्तेदार, दोस्त और यहां तक की पत्नी भी दूर चली जाती है। + + +वन्दे मातरम् शाब्दिक अर्थ माँ की वन्दना करता हूँं) बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द���वारा रचित एक संस्कृत गीत है। इसकी रचना उन्होने १८७० के दशक में की थी। इसे उन्होंने १८८२ में स्वरचित आनन्दमठ नामक बांग्ला उपन्यास में सम्मिलित किया। +* यह एक साम्राज्यवाद-विरोधी नारा था मेरा मन वंदे मातरम् में लीन हो गया था, और जब मैंने इसे पहली बार गाते हुए सुना तो इसने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। मैंने इसके साथ शुद्धतम राष्ट्रीय भावना को जोड़ा इसके चुने हुए श्लोक पूरे देश को बंगाल की देन हैं। महात्मा गांधी, १९३९ में हरिजन में +* बंकिम [चंद्र चटर्जी] की अपने राष्ट्र के लिए सर्वोच्च सेवा यह थी कि उन्होंने हमें अपनी माता का दर्शन कराया । जब तक मातृभूमि मन की आंखों के सामने खुद को पृथ्वी के एक टुकड़े से अधिक के रूप में प्रकट नहीं करती है, जब तक वह सुंदरता के रूप में एक महान दैवीय और मातृ शक्ति के रूप में आकार नहीं लेती है, तब तक वह देशभक्ति पैदा नहीं होती जो चमत्कार करती है और एक विनष्ट राष्ट्र को बचा लेती है। बत्तीस साल पहले बंकिम ने अपना महान गीत लिखा और कुछ ने सुना। लंबे भ्रम से जागने के क्षण में बंगाल के लोग स्त्य की खोज में चारों ओर देख रहे थे। तभी किसी ने बंदे मातरम् गाया। इस प्रकार उन्हें वह मन्त्र मिल गया जिसने एक ही दिन में पूरे देश को देशभक्ति के रंग में रंग दिया। माँ ने स्वयं प्रकट किया था। महर्षि अरविन्द घोष, १६ अप्रैल १९०७ + + +बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला के महान साहित्यकार थे। वन्दे मातरम् उनकी ही रचना है जो 'आनन्दमठ' में है। +* इस संसार में विशेष दुःख यही है कि मृत्यु के उपयुक्त समय पर कोई नहीं मरता। सभी असमय ही मरते हैं। +* कुसुम आपके लिए नहीं खिलता, अपने हृदय में दूसरों के कुसुम को खिलने दें। +* जब किसी मनुष्य को संदेह होता है कि क्या करना चाहिये, तो उसे सबसे पहले जहाँ से बुलावा आता है, वह वहीं चला जाता है। +* अपना काम किए बिना मर जाना, क्या यह वांछनीय है? +* मुझे पता है कि मुझे अपने सपनों को वास्तविकता में बदलने के लिए कितने समय तक काम करने की आवश्यकता है। +* गद्य को ऐसी भाषा में लिखा जाना चाहिए जो उसके पाठकों द्वारा अच्छी तरह से समझी जा सके। दुनिया शायद ही उन साहित्यिक कृतियों को याद करेगी जिन्हें केवल आधा दर्जन पंडितों ने महारत हासिल की है। +* बिना किसी प्रणाली के किए गए किसी भी अध्ययन के परिणाम के फलदायी होने की संभावना नहीं होती। अधिकांश लोग जो ज्ञान के लिए ज्ञान की खोज करते हैं, लक्ष्यहीन और व्यभिचारी ढंग से उसका अनुसरण करते हैं। +* देशभक्ति धर्म है और धर्म भारत के लिए प्रेम है। +* हजारों पुरुष, महिलाएं और बच्चे भूख से मर सकते हैं फिर भी करों का संग्रह समाप्त नहीं होना चाहिए। +* नारी ईश्वरीय सृष्टि की सर्वोच्च उत्कृष्टता है महिला प्रकाश है, पुरुष छाया है। +* हमारे काम में हम हिंदू या मुसलमान, बौद्ध या सिख, पारसी या पारिया के बीच अंतर नहीं करते। यहाँ हम सब भाई हैं, एक ही भारत माता की संतान। +* महात्मा ने कहा, माँ यह भारत माता का मंदिर, मस्जिद, विहार और गुरुद्वारा है। अपने हृदय से सारे भय निकाल फेंको। +* अंग्रेज भारत को तलवार के बल पर अपने वश में रखते हैं और वह केवल तलवार के द्वारा ही छुड़ाई जा सकती है। +* क्षमा अतीत को नहीं बदलती, लेकिन यह भविष्य को बदल देती है। +* यह देश हमारा है। यह हमारी मातृभूमि है। हम इस मिट्टी की संतान हैं। +बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पर विद्वानों के विचार +* राममोहन ने बंग साहित्य को निमज्जन दशा से उन्नत किया, बंकिम ने उसके ऊपर प्रतिभा प्रवाहित की। बंकिम के कारण ही आज बंगभाषा मात्र प्रौढ़ ही नहीं, उर्वरा और शस्यश्यामला भी हो सकी है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] +* बंकिम के दोनों हाथो में बराबर ताकत थी, वे सही मायने में सब्यसाची थे। एक हाथ से उन्होंने उत्कृष्ट साहित्य का निर्माण किया और दूसरे से, युवा और महत्वकांक्षी लेखकों का मार्गदर्शन किया। एक हाथ से साहित्य द्वारा ज्ञान की मशाल जला कर रखी और दूसरे से, अज्ञानता और अंधविश्वास की सोच को मिटाया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] +* बंकिम के पूर्व बंग भाषा इकतारे की तरह एक ही तार में बंधी हुई थी, उसमें सीधे स्वरों द्वारा धर्मगीत मात्र गाये जा सकते थे। बंकिम ने अपने हाथों नए तार चढ़ाकर उसे वीणायंत्र बना दिया। पहले उसमें सिर्फ ग्राम्यसुर बजते थे, बंकिम के कारण वह विश्वसभा में ध्रुपद अंग की कलावती रागिनी का आलाप करने के उपयुक्त हो गई। रवीन्द्रनाथ ठाकुर +* राममोहन ने बंग साहित्य को निमज्जन दशा से उन्नत किया, बंकिम ने उसके ऊपर प्रतिभा प्रवाहित करके स्तरबद्ध मूर्तिका अपसरित कर दी। बंकिम के कारण ही आज बंगभाषा मात्र प्रौढ़ ही नहीं, उर्वरा और शस्यश्यामला भी हो सकी है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर +* बंकिम ने एक भाषा, एक साहित्य, एक राष्ट्र की रचना की है। अरविन्द घोष]] +* स्वतंत���रता आन्दोलन के कई प्रतिभागी उस कार्य संगठन से प्रेरित थे जिसकी योजना बंकिम चंद्र ने अपने उपन्यास आनन्द मठ में बनाई थी। अरविन्द घोष उग्रवादी राष्ट्रवाद के विषय पर अपने निबंध “बंकिम तिलक दयानन्द” में +* भारत के लोगों के लिए मनीषी बंकिमचंद्र की पहचान राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में है। इतिहासकार डॉ. निशिथरंजन राय +* बंकिमचंद्र के कई उपन्यासों के ऐतिहासिक मूल्य को नकारा नहीं जा सकता। इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार और प्रो. गौच (Prof. Gouch) +* बंकिम चन्द्र भारतीय राष्त्रवाद के असली जनक थे। मनीषी हिरेंद्रनाथ दत्त + + +सीताराम गोयल 16 अक्टूबर 1921 – 3 दिसम्बर 2003) भारत के एक प्रमुख विचारक, इतिहासकार, लेखक एवं प्रकाशक थे। वे अपनी प्रमुख पुस्तकों जैसे "हाऊ आई बीकेम हिंदू द कलकत्ता कुरान पेटिशन" और "द ऋषि ऑफ ए रिसर्जेंट इंडिया" के लिए प्रसिद्ध हैं। सीता राम गोयल को उनकी लेखन शैली के लिए भी जाना जाता है। उनकी अधिकांश पुस्तकों में विषय के रूप में हिंदू धर्म और इस्लाम के बीच वर्ग शामिल था। +सीताराम गोयल "धर्मनिरपेक्षता" की धारणा पर सीधे प्रहार करते हैं, जैसे उनकी हिंदी पुस्तिका 'धर्मनिरपेक्षता देशद्रोह का वैकल्पिक नाम" के शीर्षक से ही स्पष्त है। वे भारत के एकमात्र स्वघोषित साम्प्रदायिक हैं। उनका दीर्घकालिक बौद्धिक महत्व यह है कि उन्होंने सभी प्रकार के ईसाईयों के जादू को तोड़ने में बहुत योगदान दिया है। उन्होंने मुस्लिम और मार्क्सवादी पूर्वाग्रह तथा हिंदू धर्म और हिंदू पुनरुत्थानवादी आन्दोलन की गलत व्याख्या को भी बड़ी स्पष्टता से उजागर किया है। +केवल एक वर्ष और कुछ महीने बाद ही मैंने मार्क्सवाद को उसके अधूरे दर्शन के कारण त्याग दिया, और महसूस किया कि भारत की साम्यवादी पार्टी, भारत में रूसी साम्राज्यवाद के अभ्युदय के लिए पांचवा स्तम्भ थी और स्टालिन के तहत सोवियत संघ की एक विशाल दास साम्राज्य की कल्पना करती थी। मैं हिन्दू कैसे बना अध्याय-३ +* मेरे बौद्धिक विकास पर स्थाई छाप छोड़ने वाले महाविद्यालय के पहले शिक्षक हमारे संस्कृत के प्राध्यापक थे। संस्कृत भाषा और साहित्य, कला स्नातक में मेरा मुख्य विषय नहीं था। मैं केवल एक पूरक परीक्षा में इसे उत्तीर्ण करता था और फिर इसके बारे में भूल जाता था। निर्धारित पाठ्यक्रम में दंडी के दसकुमारचरित के पहले चार अध्याय और भ��रवि के किरातार्जुनीयम् के कुछ सर्ग थे, जिसमें कुछ व्याकरण और अनुवाद कार्य सहायता के रूप में दिए गए थे। समान्यतः, मेरे जैसे अनियत/अनौपचारिक छात्र को हमारे संस्कृत प्राध्यापक का ध्यान आकर्षित नहीं करना चाहिए था, ना ही उनकी तरफ मेरा ध्यान आकर्षित होना था, लेकिन मानो हम दोनों का एक दूसरे की ओर आकर्षित होना लिखा था। इस मुलाकात का परिणाम, न केवल संस्कृत भाषा और साहित्य के प्रति मेरे स्थायी प्रेम का विकसित होना था, बल्कि हिंदू दर्शन और इतिहास को देखने के मेरे नज़रिये में एक निर्णायक प्रयाण भी था। मैं हिन्दू कैसे बना अध्याय-३ +* मानव जाति की जिस चरम नियति के बारे में श्री अरबिन्द घोष ने दावा और वादा किया था, वह मार्क्स की तुलना में कहीं अधिक विलक्षण था। मार्क्स द्वारा अनुमानित और पक्षपोषित अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा क्रांति एक ऐसी अवस्था की ओर ले जाने के लिए की गई थी जिस पर मानव जाति खुद को तर्कसंगत, नैतिक और सौंदर्यविषयक प्रयासों में संलग्न कर सकती है, और जो वर्गीय हितों से जुड़ी विकृतियों से मुक्त हो। लेकिन श्री ऑरबिंदो द्वारा परिकल्पित और अनुशंसित मनुष्य की मानसिक, जीवनिक, और शारीरिक प्रकृति की सर्वोच्चता मानव जाति को एक मानव जीवन के आध्यात्मिक आत्म अस्तित्व और मानव जीवन के लौकिक उथल-पुथल के बीच की खाई को पाटने में सक्षम बनाएगी। मैं हिन्दू कैसे बना अध्याय-३ +अंततः मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि मार्क्स एक सामंजस्यपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के प्रतीक थे तो श्री औरबिन्दो एक सामंजस्यपूर्ण मानव व्यक्तित्व की कुंजी थे। मैं हिन्दू कैसे बना अध्याय-३ +* भारत का विभाजन इस्लामी साम्राज्यवाद ने किया था, किन्तु नेहरूवादियों ने बेशर्मी से इसका दोष उन पर डाल दिया जिसे वे ‘हिन्दू सांप्रदायिकता’ कह कर बदनाम करते थे। नए भारतीय गणतंत्र पर यहाँ कम्युनिस्टों द्वारा सोवियत साम्राज्यवाद के हित में एक खुला युद्ध छेड़ा गया, लेकिन नेहरूवादी लोग उन गद्दार कम्युनिस्टों की सफाई देने में लगे हुए थे, जबकि उसी समय पूरी शक्ति और उत्साह से आर. एस. एस. के पीछे पड़े हुए थे। ब्रिटिश राज और नेहरूवादी शासन में कई अन्य समानताएं भी हैं। मैं उसके विस्तार में नहीं जाउँगा, क्योंकि मुझे विश्वास है कि वे समानताएं किसी को भी स्वतः दिख जाएंगी जो इस विषय पर अपनी बुद्धि लगाएगा। नेहरूवादी फार्मूला ���ह है कि हर हालत में हिन्दुओं पर आरोप लगाओ, चाहे असली अपराधी कोई भी हो। स्व. सीताराम गोयल मैं हिन्दू कैसे बना" में) +* सत्य हमारा एकमात्र शस्त्र है। सन २०१५ में Koenraad Elst द्वारा 'मोदी टाइम' पर +* मुझे थोड़ा भी सन्देह नहीं है कि इस्लाम के सन्दर्भ में जिसे 'हिन्दू सहनशीलता' कहा जाता है वह अज्ञानता और कायरता के मिश्रण के अलावा और कुछ नहीं है। Islam vis-a-vis Hindu temples में (1993) +* पाणिनि की अष्टाध्यायी जैसा एक छोटा ग्रन्थ भी भारत के सभी जनपदों की लगभग पूरी गणना प्रदान करता है। सीता राम गोयल ने एस. तलागेरी, द आर्यन आक्रमण सिद्धांत और भारतीय राष्ट्रवाद (1993) में। +* किसी संगठन के जीवनपथ में एक बिन्दु आता है जब अपनी ही चिन्ता करने में उसके मूल लक्ष्य ओझल हो जाते हैं। +* आज का विषय है ‘उदीयमान राष्ट्रदृष्टि’। मेरे लिए यह धृष्टता ही कही जाएगी कि मैं बंगाल के श्रोतागण के सामने, विशेषतया कलकत्ता महानगर के श्रोतागण के सामने, राष्ट्रदृष्टि पर व्याख्यान दूँ। राष्ट्रदृष्टि का जो सर्वांग-सम्पूर्ण दर्शन हमारे सामने है वह हमको इस शती के प्रथम दशक में बंगाल से ही प्राप्त हुआ था, कलकत्ता महानगर में ही मिला था। बंकिमचन्द्र, स्वामी विवेकानन्द तथा श्री अरविन्द की रचनाएँ पढ़ कर और रवीन्द्रनाथ के गान सुनकर ही हम समझ सकते हैं कि राष्ट्रदृष्टि का रूप क्या था और फिर से अनुप्राणित तथा अनुमोदित होने पर वह रूप क्या होगा। इन महापुरूषों ने जो कुछ लिखा है, जो कुछ व्याख्या की है, और अपने जीवन में जो कुछ चरितार्थ किया है, उसमें मुझे कुछ नहीं जोड़ना। मैं तो एक अकिंचन टीकाकार के नाते केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि आज की वस्तुस्थिति में इन महापुरुषों की दृष्टि का विस्तार किस प्रकार किया जाना चाहिए, उस दृष्टि का पुनरुत्थान कैसा होना चाहिए। +जिस राष्ट्रदृष्टि की व्याख्या इन महापुरुषों ने की थी उसकी पराकाष्ठा, उसका पूर्ण विस्तार और उसका पूर्ण परिचय हमें स्वदेशी आंदोलन के समय प्राप्त हुआ था। जिन साम्राज्यवादी शक्तियों ने बाद में बंगाल का विभाजन किया, उन्हीं ने उस समय भी बंगाल के विभाजन का प्रयास किया था। इस्लामी साम्राज्यवाद अथवा उस साम्राज्यवाद के अवशेषों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ मिलकर उस बंगभूमि को विभाजित करने का प्रयास किया था जिसे भगवान ने अविभाज्य बनाया है। उस समय उन शक्तियों का वह षड्यंत्र विफल हुआ था। उन शक्तियों का वह खेल उस दिन इसीलिए बिगड़ गया था कि उस समय हमारी राष्ट्रदृष्टि सचेत थी, सर्वथा सुदृढ़ थी। स्वदेशी आन्दोलन ने ही वस्तुतः हमारे स्वाधीनता संग्राम का सूत्रपात किया था। उस आंदोलन के पूर्व कुछ गिने-चुने महानुभाव एक साथ बैठकर कई-एक प्रस्ताव पास कर लेते थे। इससे अधिक वे लोग कुछ नहीं कर पाते थे। स्वदेशी आंदोलन ने ही हमारे स्वाधीनता-संग्राम के इतिहास में सर्वप्रथम हमारे जनगण को जगाया था। उस जागरण की गूंज सारे भारतवर्ष में दूर-दूर तक सुनी गई थी। महाराष्ट्र तथा पंजाब में वह गूंज विशेषतया सुनी गई थी। स्वदेशी आंदोलन द्वारा दिए गए मन्त्र भी सारे देश ने सुने थे – स्वदेशी का मन्त्र, स्वराज्य का मन्त्र और वन्देमातरम् का वह मन्त्र जिसमें एक जागृत राष्ट्र की सारी आकांक्षाएँ निहित थीं। राष्ट्रदृष्टि की यह छवि सर्वांग-सम्पूर्ण थी। यह छवि कुछ और हो भी नहीं सकती थी। +किन्तु दुर्भाग्यवश देश के परवर्ती नेताओं ने स्वाधीनता-संग्राम के परवर्ती काल में इस दृष्टि को धुंधला कर डाला। कई एक अन्य दृष्टियों की आड़ में यह दृष्टि ओझल हो गई। इस दृष्टि की प्रखरता लुप्त हो गई। परिणामस्वरूप देश को विभाजन की विभीषिका झेलनी पड़ी। हम सब भली-भांति जानते हैं कि घटनाचक्र कैसे चला और देश को कैसा दुर्दिन देखना पड़ा। उस विभीषिका का दुःख बंगाल ने सबसे अधिक भोगा है। बंगाल के शरीर में जो घाव उस समय लगे थे वे अब नासूर बन चुके हैं। इस प्रसंग में मैं अधिक नहीं कहना चाहता। आप लोगों से कुछ भी छुपा नहीं है। मैं तो केवल इतना ही कहना चाहता हूँ, और बड़े दुःख के साथ कह रहा हूँ, कि जिस बंगाल ने राष्ट्रदृष्टि के विलोप के कारण इतना सब सहा है वही बंगाल आज राष्ट्रदृष्टि की सबसे अधिक अवहेलना कर रहा है। राष्ट्रदृष्टि की ऐसी अवहेलना इस देश में अन्यत्र कहीं नहीं हुई। अतएव बंगाल के लिए यही उपादेय है कि वह राष्ट्रदृष्टि को फिर से अनुप्राणित करे, फिर से अनुमोदित करे, फिर से प्रतिष्ठित करे। यही एक मार्ग है जिस पर चलकर बंगाल एक बार फिर भारतवर्ष का नेतृत्व कर सकता है – वह नेतृत्व जो एक दिन उसका था और जो उसने आगे चलकर खो दिया। +आज बंगाल में यह भावना व्याप्त है कि शेष भारत उसकी अवहेलना कर रहा है। किन्तु इस में शेष भारत का कोई दोष नहीं। दोष बंगाल का ही है। बंगाल ने ही अपनी थाती की अवहेलना की है। बंगाल ��े ही उस राष्ट्रदृष्टि को भुलाया है जो उसने एक समय सारे भारत को दी थी और जिसके बल पर बंगाल सारे देश का नेता बना था। इस विषय में मैं विस्तार से बोलना नहीं चाहता। आप सब लोग अच्छी तरह जानते हैं कि आज बंगाल में क्या हो रहा है। आज बंगाल में उसी के महापुरुषों द्वारा प्रदत्त दृष्टि की ही नहीं, उन महापुरुषों के चरित्र की भी छीछालेदर की जा रही है। मैं बंगाल में प्रकाशित समाचार-पत्रों में चलने वाली चर्चा पढ़ता रहता हूँ, बंगला भाषा में छपे उपन्यास पढ़ता रहता हूँ तथा अन्य साहित्य भी देखता रहता हूँ। मुझे यह सब पढ़कर पीड़ा का अनुभव होता है। मेरे मन में बार-बार यह प्रश्न उठता है कि क्या यह वही बंगाल है जिसने एक समय सारे भारत को इतना ऊंचा उठाया था। इस भूमि में इस प्रकार की कुत्सित चेष्टाएँ किस प्रकार सम्भव हुईं? +वह राष्ट्रदृष्टि क्या थी जिसे हमने बंगाल के महापुरुषों से पाया था और जिससे प्रेरणा पाकर भारतवर्ष में एक महान स्वाधीनता-संग्राम का सूत्रपात हुआ था? उन क्रान्तिकारियों का स्मरण कीजिए जिनको उस समय भारतवर्ष ने जन्म दिया था। वे महाप्राण मानव थे जो हाथ में श्रीमद्भगवद्गीता लेकर और कण्ठ से वन्देमातरम् का निनाद करते हुए फांसी के तख़्तों पर झूल गए थे। आजकल भी कुछ लोग क्रान्तिकारी होने का दम भरते हैं। मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं होता कि आजकल के बहुत से क्रान्तिकारी क्रूर अपराधियों से अधिक कुछ नहीं। पूर्वकाल के क्रान्तिकारी एक अन्य कोटि के क्रान्तिकारी थे। वे अन्य कोटि के इसीलिए थे कि उनकी दृष्टि अन्य प्रकार की थी। +वह दृष्टि क्या थी? एक प्रकार से देखा जाए तो वह दृष्टि कोई नई दृष्टि नहीं थी। जिस सनातन वैदिक दृष्टि का विस्तार उपनिषद्, जैनागम, त्रिपिटक, रामायण, महाभारत, पुराण, धर्मशास्त्र और परवर्ती सिद्धों और सन्तों की वाणी में मिलता है, उसी का पुनरोच्चारण आधुनिक भाषा में तथा आधुनिक प्रसंग के अनुकूल किया गया था। उस दृष्टि का प्रचार करने वाले महापुरुष हमारे इतिहास में अनेकानेक हुए हैं। +उस दृष्टि का प्रथम आयाम था कि भारतवर्ष सनातन धर्म की भूमि है। यही उस दृष्टि का आदिम तथा सर्वोत्तम स्वर था। उत्तरपाड़ा में दिए गए अपने भाषण में श्री अरविन्द ने कहा था कि सनातन धर्म के उत्थान के साथ ही भारतवर्ष का उत्थान होता है, सनातन धर्म के पतन के साथ ही भारतवर्ष का पतन ��ोता है, और यदि यह सम्भव है कि सनातन धर्म का विलोप हो जाए तो भारतवर्ष भी विनष्ट हो जाएगा। सनातन धर्म के विषय में चर्चा करना इस समय समीचीन नहीं है। मै केवल इतना ही कहूँगा कि सनातन धर्म एक सहज धर्म है, मानवप्रकृति के विकासक्रम के अनुकूल है और मानवप्राणी की चरम साधना को चरितार्थ करने वाला है। वह इस्लाम और ईसाइयत की नाईं एक मनगढ़ंत ढकोसला नहीं है। न ही वह ऐसे कृत्रिम मान्यताओं का संग्रह (set of mechanical beliefs) है जिनको मनुष्य की बाह्य मानस द्वारा गढ़ कर उसके अनुयाइयों के ऊपर लाद दिया गया हो। +उस दृष्टि का दूसरा आयाम था एक विराट और वैविध्य-सम्पन्न संस्कृति का दिग्दर्शन। आधार तथा अधिकार के अनुरूप हमारे समाज के विविध समुदायों ने, हमारे देश के विविध अंचलों ने अपनी-अपनी संस्कृति का विकास किया है, अपनी-अपनी ललित-कलाओं को निखारा है, अपने-अपने साहित्य का सृजन किया है। हमारा साहित्य विराट है- अध्यात्म-विषयक साहित्य, इहलोक से सम्बंधित साहित्य, विज्ञान सम्मत साहित्य। इस साहित्य का सृजन देश के विविध अंचलों में हुआ है, विविध प्रकार के सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवेशों में हुआ है। इसी प्रकार हमारी ललित-कलाएँ, हमारा स्थापत्य, हमारा मूर्तिशिल्प तथा हमारा संगीत भी विशालकाय है। कुल मिलाकर ये सारी ललित-कलाएँ, यह समस्त साहित्य एक विपुल सम्पदा है। किन्तु इस समस्त सृजन के पीछे जो प्रेरणा है वह सनातन धर्म की ही प्रेरणा है। राष्ट्रदृष्टि का यह दूसरा आयाम था। +उस दृष्टि का तीसरा आयाम था वह महामहिम समाज जो अधुना हिन्दू समाज कहलाता है। इस समाज का संगठन अध्यात्म के आधार पर हुआ है। सनातन धर्म के धरातल पर खड़ा है यह समाज। इस समाज में सनातन धर्म द्वारा सृष्ट संस्कृति का समावेश है। इस समाज को वर्णाश्रम के रूप में सँवारा गया है। आज हम वर्णाश्रम की वर्णना अंग्रेजी के एक भोंडे शब्द-समवाय द्वारा करते हैं। हम उसे कास्ट-सिस्टम कह कर पुकारते हैं। आज सब लोग कास्ट-सिस्टम को कोसने में व्यस्त हैं। किन्तु वर्णाश्रम ही ने हमारी उस बहुविध समाजव्यवस्था को एक ऐसे सांचे में ढाला है जो अनेक विडम्बनाएँ झेल कर और दीर्घकाल तक अनेक विदेशी आक्रमणों के आघात सहकर, आज तक प्राणवान् है, आज तक प्रगति-परायण है। आधुनिक युग के हमारे सारे महापुरुषों ने वर्णाश्रम की सराहना की है – महर्षि दयानन्द ने, बंकिमचन्द्र ने, स्वाम�� विवेकानन्द ने, लोकमान्य तिलक ने, महामना मदन मोहन मालवीय ने, महात्मा गांधी ने। इन सब महापुरुषों ने एक स्वर से यह कहा है कि वर्णाश्रम ने ही हिन्दू समाज को विनाश से बचा लिया। ईसायत, इस्लाम तथा कम्युनिज्म ने भारतवर्ष के बाहर अनेक समाज-व्यवस्थाओं का विनाश किया है। भारतवर्ष में ये दस्युदल वैसा नहीं कर पाए। यह वर्णाश्रम का ही प्रताप है। राष्ट्रदृष्टि का यह तीसरा आयाम था। योगक्षेम, कलकत्ता, की मासिक सभा में ४ दिसम्बर, १९८३ को सीताराम गोयल का भाषण + + +भारतीय दर्शन से तात्पर्य भारत चिन्तन-धारा से उपजे विविध दर्शनों से है। इसके अन्तर्गत वैदिक दर्शन से लेकर षट्दर्शन (न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त) सहित जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन और आधुनिक काल के मनीषियों के दर्शन सम्मिलित हैं। +: प्रमाण के द्वारा किसी अर्थ (सिद्धान्त) की परीक्षा करना ही न्याय है। +* आन्विक्षिकी (न्यायविद्या) समस्त विद्याओं का प्रदीप है,सब कर्मों का उपाय है, तथा सब धर्मों का आश्रय है। +: असाधारण धर्म का कथन ही 'लक्षण' है। +: असाधारण कारण को करण कहते है। +: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द ये (चार) प्रमाण हैं। +: प्रत्यक्ष इन्द्रियार्थसन्निकर्षोत्पन्न ज्ञान है जो अव्यपदेश्य, अव्यभिचारी और व्यवसायात्मक होता है। +: इन्द्रियों का अर्थ (विषय, सत्) के साथ सम्बन्ध होने पर (संप्रयोगे) पुरुष की बुद्धि से जो प्रमाण उत्पन्न होता है उसे प्रत्यक्ष कहते हैं वह (प्रत्यक्ष) धर्मज्ञान का साधन नहीं हो सकता क्योंकि वह केवल वर्तमान काल में अवस्थित वस्तुओं का ग्रहण कर सकता है। (इसे 'प्रत्यक्षाद्यप्रमाण्याधिकरण प्रत्यक्ष आदि अप्रमाण्य अधिकरण' कहते हैं।) +: वस्तु के साथ इंद्रिय-संयोग होने से जो उसका ज्ञान होता है उसी को 'प्रत्यक्ष' कहते हैं। +: उपलब्ध अथवा निर्णीत अर्थ में न्याय की प्रवृत्ति नहीं होती है अपितु सन्दिग्ध अर्थ में ही न्यायशास्त्र की प्रवृत्ति होती है। +: जिस अर्थ का तत्व निर्णीत न हो उसके तत्त्वज्ञान के लिए युक्ति पूर्वक किए जानेवाले "ऊह" ज्ञान का नाम है "तर्क"। +: संसाररूपी कार्य के कर्ता के रूप में, सृष्टि के आरम्भ में दो परमाणुओं को जोड़नेवाले के रूप में, संसार का धारण करनेवाले के रूप में, विभिन्न कलाओं का व्यवहार चलाने वाले के रूप में, अतर्क्य वेद-सिद्धान्तों के प्रवर्तक के रूप में, श्रुति-प्रतिपादित होने के कारण, वाक्यभूत वेदों के रचयिता के रूप में, द्वित्वसंख्या की उत्पादक अपेक्षाबुद्धि को धारण करनेवाले के रूप में, तथा अदृष्ट धर्माधर्म के व्यवस्थापक के रूप में विश्ववेत्ता अव्यय ईश्वर की सिद्धि होती है। +: अर्थ और वह अनुमान पदार्थ न्यायसाध्य है, और उसके अवयव ये हैं- प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन। +: जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति होती है, वही धर्म है। +: अर्थात् किसी ग्रन्थ या प्रकरण के तात्पर्यनिर्णय के लिये छह बातों पर ध्यान देना चाहिए— उपक्रम आरम्भ) और उपसंहार अन्त अभ्यास बार-बार कथन अपूर्वता नवीनता फल ग्रन्थ का परिणाम वा लाभ जो बताया गया हो अर्थवाद किसी बात को जी में जमाने के लिये दृष्टान्त, उपमा, गुणकथन आदि के रूप में जो कुछ कहा जाय और जो मुख्य बात के रूप में न हो और उपपत्ति साधक प्रमाणों द्वारा सिद्धि)। [मीमांसकों का यह श्लोक सामान्यतः तात्पर्यनिर्णय के लिये प्रसिद्ध है। मीमांसक ऐसे ही नियमों के द्वारा वेद के वचनों का तात्पर्य निकालते हैं।] +: अर्थ हे कालामाओ ये सब मैंने तुमको बताया है, किन्तु तुम इसे स्वीकार करो, इसलिए नहीं कि वह एक अनुविवरण है, इसलिए नहीं कि एक परम्परा है, इसलिए नहीं कि पहले ऐसे कहा गया है, इसलिए नहीं कि यह धर्मग्रन्थ में है। यह विवाद के लिए नहीं, एक विशेष प्रणाली के लिए नहीं, सावधानी से सोचविचार के लिए नहीं, असत्य धारणाओं को सहन करने के लिए नहीं, इसलिए नहीं कि वह अनुकूल मालूम होता है, इसलिए नहीं कि तुम्हारा गुरु एक प्रमाण है, किन्तु तुम स्वयं यदि यह समझते हो कि ये धर्म (धारणाएँ) शुभ हैं, निर्दोष हैं, बुद्धिमान लोग इन धर्मों की प्रशंसा करते हैं, इन धर्मों को ग्रहण करने पर यह कल्याण और सुख देंगे, तब तुम्हें इन्हें स्वीकर करना चाहिए। +: ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है। जीव ही ब्रह्म है और दूसरा कोई नहीं। +: क्लेष, कर्म, विपाक और आशय से अछूता (अप्रभावित) वह विशेष पुरुष है। (हिन्दु धर्म में यह ईश्वर की एक मान्य परिभाषा है।) +: जड़-भूतों से चैतन्य उसी प्रकार उत्पन्न होता है जिस प्रकार पान-पत्र, सुपारी, चूने और कत्थे के संयोग से लाल रंग उत्पन्न होता है। +: अब धर्म सम्बन्धी विवेचना करते हैं। +: धर्म नामक विषय के बारे में कहना मीमांसा का प्रयोजन है। +जबतक सम्पूर्ण शास्त्र का ही अथवा किसी कर्म का भी प्रयोजन नहीं कहा जाता, तबतक उसको कौन ग्रहण करता है ? +: वेद-वाक्य से लक्षित अर्थ, धर्म है। (अर्थात जिस काम को करने के लिये वेद की आज्ञा हो वह धर्म है, और जो वेदविरुद्ध है वह अधर्म।) +: विषय, विशय (संशय/शंका पूर्वपक्ष, उत्तरपक्ष, प्रयोजन और संगति ये शास्त्र में अधिकरण कहे जाते हैं। +: जितने ही अधिक शब्द प्रयुक्त होते हैं, उतने ही अधिक अर्थ निकलते हैं। +: एक ही शब्द यदि अलग-अलग स्थानों पर प्रयुक्त किया जाय तो सभी स्थानों पर उसका एक ही अर्थ होना चाहिये। +: शब्द और अर्थ का सम्बन्ध नित्य (अपरिवर्तनीय) है। +: अर्थात् किसी ग्रंथ या प्रकरण के तात्पर्यनिर्णय के लिये सात बातों पर ध्यान देना चाहिए— उपक्रम (आरम्भ उपसंहार (अन्त अभ्यास (बार-बार कथन अपूर्वता (नवीनता फल (ग्रन्थ का परिणाम वा लाभ जो बताया गया हो अर्थवाद (किसी बात को जी में जमाने के लिये दृष्टान्त, उपमा, गुणकथन आदि के रूप में जो कुछ कहा जाय और जो मुख्य बात के रूप में न हो और उपपत्ति (साधक प्रमाणों द्वारा सिद्धि)। मीमांसकों का यह श्लोक सामान्यतः तात्पर्यनिर्णय के लिये प्रसिद्ध है। मीमांसक ऐसे ही नियमों के द्वारा वेद के वचनों का तात्पर्य निकालते हैं। +: ब्रह्म सत्य है, जीवन मिथ्या है, जीव ब्रह्म है दूसरा नहीं (जीव और ब्रह्म में कोई भिन्नता नहीं है)। +: भावार्थ प्रत्यक्ष और अनुमान ये दो प्रमाण हैं। इनके अलावा कोई प्रमाण नहीं होता। +: जहां कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहां वेद की बात ही मान्य होगी। जहाँ स्मृति और पुराण में द्वैध (विरोध) दिखता हो वहाँ स्मृति की बात मान्य होगी। +भारतीय दर्शन पर मनीषियों के विचार +* भारतवर्ष के तत्त्ववेत्ताओं ने अपनी प्रतिभ चक्षु के द्वारा जिन सूक्ष्म तत्त्वों का साक्षात्कार किया है और अपनी कुशाग्र बुद्धि के द्वारा जिन सिद्धान्तों का विश्लेषण किया है, वे दर्शन के इतिहास में नितान्त महत्त्वशाली हैं। यही विचारशात्र भारतीय धर्म तथा संस्कृति का मेरुदण्ड है। मानसिक दासता के पङ्क में लिप्त रहनेवाले आजकल के भारतीय पश्चिमी सभ्यता के चाकचिक्य के सामने इन अनुपम ज्ञानराश्रियों की अवहेलना भले ही करें, परन्तु उन्हें स्मरण रखना चाहिये कि यदि भारतवर्ष अतीत में गौरवझाली था तो इन्हीं के कारण; यदि वर्तमानकाल में वह ख्यातनामा है तो इन्हीं के हेतु और यदि भविष्य में इस देश की चिन्तन-जगत्‌ में स्वतन्���्र सत्ता बनी रहेगी, तो पुण्यात्मा महर्षियों के द्वारा साक्षात्कृत इन्हीं दार्शनिक सिद्धान्तों के बल पर। तत्त्वज्ञान तो भारतीय संस्कृति और धर्म की मूल प्रतिष्ठा है जिसके उदय और अभ्युदय से परिचित होना प्रत्येक शिक्षित भारतीय का परम पावन कर्तव्य है। आचार्य बलदेव उपाध्याय भारतीय दर्शन' के अपने 'व्यक्तव्य' में +* अट्ठारहवीं शताब्दी के एक राजपूत चित्रकला में हमें भारतीय "दर्शन स्कूल" के दर्शन होते हैं। इस चित्र में गुरु वृक्ष के नीचे एक चटाई पर बैठे हैं और शिष्य उनके पास घास पर बैठे हैं। ऐसे दृष्य सर्वत्र देखने को मिलते थे क्योंकि भारत में दर्शन के शिक्षक इतनी अधिक संख्या में थे जितने कि बेबिलोनिया में व्यापारी। किसी दूसरे देश में इतने अधिक वैचारिक पन्थ नहीं हुए। बुद्ध के एक उपदेश में हमे देखने को मिलता है कि उस समय के दार्शनिकों में आत्मा के बारे में बासठ भिन्न-भिन्न सिद्धान्त थे। काउण्ट किसर्लिंग कहते हैं कि "उत्कृष्टता के भी पार पहुँचे हुए इस देश" के पास संस्कृत में दार्शनिक और धार्मिक विचारों को अभिव्यक्त करने वाले जितने शब्द हैं उतने ग्रीक, लैटिन, और जर्मन तीनों को मिलाकर भी नहीं हैं। विल डुरण्ट Our Oriental Heritage India and Her Neighbors. +* मुसलमानी आक्रमणों ने हिन्दू दर्शन के महान युग का अन्त कर दिया। पहले मुसलमानों के आक्रमण तथा बाद में ईसाइयों के आक्रमण के कारण से बचने के लिये हिन्दू धर्म ने एक भयभीत एकता का रूप धारण कर लिया। अब शास्त्रार्थ को राजद्रोह समझा जाने लगा और रचनात्मक मतभिन्नता दबकर विचार की स्थिर एकरूपता में बदल गयी। बारहवीं शताब्दी आते आते रामानुज (1050 ई) जैसे सन्तों ने वेदान्त की प्रणाली की पुनर्व्याख्या करते हुए इसे विष्णु, राम और कृष्ण की रूढ़िवादी पूजा का रूप दे दिया जबकि शंकराचार्य ने वेदान्त को एक ऐसा धर्म बनाने की कोशिश की थी जो दार्शनिकों के लिए हो। +* हमारे न्यूटन के चिरजीवी सम्मान को कम करने का मेरा बिल्कुल इरादा नहीं है, किन्तु मैं इस बात की पुष्टि करने का साहस कर सकता हूँ कि उनका पूरा धर्मशास्त्र (थियोलोजी और उनके दर्शन का कुछ भाग वेदों में पाया जा सकता है और यहाँ तक ​​कि सूफियों की कृतियों में भी पाया जा सकता है। सबसे सूक्ष्म आत्मा, जिसके बारे में उन्हें संदेह था कि वे प्राकृतिक शरीरों में व्याप्त हैं, और उनमें छिपे हुए हैं, जो आकर्षण औ�� विकर्षण का कारण बनते हैं; प्रकाश का उत्सर्जन, परावर्तन और अपवर्तन; विद्युत, तन्तु (calefaction संवेदना और पेशीय गति को हिन्दुओं ने 'पंचम तत्व' के रूप में वर्णित किया है, जो उन्हीं शक्तियों से सम्पन्न है। और सार्वभौमिक आकर्षक शक्ति के संकेत तो वेदों में भरे पड़े हैं, वेद इसका स्रोत मुख्य रूप से सूर्य को बताते हैं, इसलिए सूर्य को 'आदित्य या आकर्षित करने वाला कहा जाता है। सर विलियम जोन्स कलकता में एशियाटिक सोसायटी के सामने अपने संभाषण में (२० फरव्री, १७९४) +* छः दार्शनिक सम्प्रदायों के दर्शनशास्त्र में पुरानी अकादमी (old Academy स्टोआ (Stoa लिसेयुम (Lyceum) की सभी तत्वमीमांसा विद्यमान है। इसी प्रकार वेदान्त या इसके अनेकों सुन्दर भाष्यों को पढ़ने के बाद यह विश्वास किए बिना नहीं रह सकते कि पाइथागोरस और प्लेटो ने भारत के ऋषि-मुनियों के साथ समान स्रोत से अपने उदात्त सिद्धान्त (sublime theories) प्राप्त किए थे। विलियम जोन्स स्रोत: The Philomathic Journal, The Philomathic institution. Quoted from Gewali, Salil (2013 Great Minds on India. New Delhi: Penguin Random House. +* पश्चिमी जगत में, भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों के बारे में हमारी समझ हमारे अपने इतिहास के रंग में रंगी हुई है। इन सम्प्रदायों के बीच सम्बन्धों के लिए डिफ़ॉल्ट मॉडल अक्सर अनजाने में पश्चिमी धार्मिक इतिहास से प्राप्त मॉडल पर आधारित होता है (जो ये हैं तीनों धर्मों के बीच शत्रुता, ईसाइयों के विभिन्न संप्रदायों के आधुनिक सम्बन्ध, या यहाँ तक ​​​​कि प्रारंभिक ईसाई-धर्म के रूढ़िवादी (ऑर्थोडोक्स) और विधर्मी (हेटेरोडोक्स) संप्रदायों के बीच संबंध। एंड्रयू निकोलसन राजीव मल्होत्रा: इंद्र का नेट, पृष्ठ 169, पहला संस्करण में में उद्धृत। +* इस नई भौतिकी और धर्म के बीच के सम्बन्ध को हाइजेनबर्ग और श्रोडिंगर (दोनों भौतिकी में नोबेल पुरस्कार विजेता) ने क्वांटम यांत्रिकी की खोज के बाद उल्लेख किया है। इन दोनों अग्रदूतों ने कहा है कि, जहाँ तक उनकी जानकारी है, उपनिषद एकमात्र स्रोत है जो क्वांटम यांत्रिकी के अनुसार 'वास्तविकता की विरोधाभासी प्रकृति' के अनुरूप हैं। राजीव मल्होत्रा इंद्राज नेट, पृ. 252, पहला संस्करण। +* मैं यह सोचता हूँ कि कोई यह पता लगाएगा कि भारत का गहनतम चिन्तन ने किस प्रकार ग्रीस और वहां से हमारे वर्तमान दर्शन तक की यात्रा की। जॉन व्हीलर स्रोत: इंडियन कॉन्क्वेस्ट्स ऑफ द माइंड, सैबल गुप्ता। गवली, सलिल (2013) से उद्ध���ित। भारत पर महान विचार। नई दिल्ली: पेंगुइन रैंडम हाउस। +* यह (भारतीय) दर्शन के साथ मेरी पहली मुलाकात थी। इसने मेरी अस्पष्ट अटकलों की पुष्टि की और एक बार में ही यह तर्कपूर्ण और असीम प्रतीत हो रहा था। विलियम बटलर यीट्स स्रोत: भारत और विश्व सभ्यता, डी.पी. सिंघल ने गवली, सलिल (2013) से उद्धरित किया। भारत पर महान विचार। नई दिल्ली: पेंगुइन रैंडम हाउस। +* वेदान्त दर्शन को अन्य सभी दर्शनों से जो अलग करता है वह यह है कि यह धर्म और दर्शन दोनों है। मैक्स मुलर स्रोत: वेदान्त दर्शन पर तीन व्याख्यान, मैक्स मूलर गवली, सलिल (2013) से उद्धृत। भारत पर महान विचार। नई दिल्ली: पेंगुइन रैंडम हाउस। +* मीमांसा दर्शन, हिन्दू चिन्तन परम्परा के सबसे उत्कृष्ट रूपों में से एक है। इसके तुल्य विश्व में दूसरा दर्शन नहीं है। फ्रांसिस क्लूनी (Francis Clooney हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, जिन्होंने हिन्दू धर्म में विशेषज्ञता प्राप्त की है। +: अर्थात् जैसे कोई मनुष्य समुद्र पर्यन्त जाने की इच्छा रखते हुए हिमालय में चला जाता है, उसी प्रकार धर्म के व्याख्यान के इच्छुक (कणाद मुनि) षट् पदार्थों का विवेचन करते रह गए। ध्यातव्य है कि कणादकृत विशेषिकसूत्र का पहला सूत्र 'अथातो धर्मं व्याख्यास्यामः' है जो इंगित करता है कि इस ग्रन्थ का आरम्भ 'धर्म की व्याख्या' के प्रयोजन से किया गया था। +सर्वेपल्ली राधाकृष्णन आदि विद्वानों ने पूर्वमीमांसा की इस बात के लिये आलोचना की है कि यह ईश्वर, आत्मा, संसार, पदार्थ आदि दार्शनिक विषयों के बारे में मौन है और पूरा ध्यान यज्ञ के कर्मकाण्डों पर केन्द्रित है। अर्थात इसमें ज्ञानमीमांसा बहुत कम और कर्ममीमंसा बहुत अधिक है। + + +किसी अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में, किसी अवधि में, वस्तुओं तथा सेवाओं के सामान्य मूल्य-स्तर में लगातार वृद्धि मूल्यवृद्धि महंगाई या स्फीति inflation) कहलाती है। दूसरे शब्दों में, जब मूल्यवृद्धि होती है तो मुद्रा की एक नियत मात्रा देने पर पहले की अपेक्षा कम सामान या सेवाएँ प्राप्त होतीं हैं। +* वेतन की नीति मुख्यतः इस तरह बनायी जाती है कि वेतन को कम रखा जा सके न कि महंगाई रोकने के लिये। मूल्यस्फीति का उपयोग एक बहाने के रूप में किया जा रहा है ताकि श्रमिक संघ को स्वतंत्र होकर वार्ता करने की क्षमता खो दें। Tony Benn Speech in the House of Commons (Hansard, 7 November 1973, Col. 1015). +* अनियंत्रित महंगा��� मामूली सा कष्ट नहीं है। यह एक रोग है जो हर दिन को अस्तित्व को बचाने का संघर्ष बना देता है। यह लोगों के अन्दर की सबसे खराब चीजें सामने लाता है और यह हमारे राजनेताओं को और भी अर्थहीन बना देता है। वियतनाम युद्ध के समय जब अण्डों के दाम बढ़े तब राष्ट्रपति जॉनसन ने सर्जन जनरल से अण्डों के कोलस्ट्रॉल के खतरों के बारे एक चेतावनी प्रकाशित करवा दी, प्रयास यह था कि अण्डों की मांग और फलतः उनका मूल्य भी कम हो जाय। यह मिथक युद्ध के बाद भी समाप्त नहीं हुआ, और इसके कारण करोड़ों अमेरिकियों के स्वास्थ्य को नुक्सान पहुँचा है। Benjamin Braddock, The Dying Dollar, American Greatness, 18 December 2021 +* मूल्यवृद्धि इस अर्थ में सर्वत्र और सर्वदा एक मौद्रिक परिघटना है कि उत्पादन की मात्रा की अपेक्षा मुद्रा की मात्रा के तेजी से बढ़ाकर इसे (महंगाई को) पैदा किया जा सकता है। यदि मुद्रा की मात्रा में सतत किन्तु धीमी गति से वृद्धि की जाय तो अल्प महंगाई और अधिक विकास प्राप्त किया जा सकता है। Milton Friedman The Counter-Revolution in Monetary Theory (1970). +* अधिकांश पशिचिमी अर्थव्यवस्थाओं में, मुद्रास्फीति की दर और बेरोजगारी के स्तर में सीधा सम्बन्ध नहीं है बल्कि मुद्रास्फीति के परिवर्तन की दर और बेरोजगारी में परिवर्तन की दर में सीधा सम्बन्ध है। Paul Ormerod The Death of Economics (1994) Part II, अध्याय 6, Unemployment and Inflation, पृष्ठ 130. + + +अर्थतंत्र के सन्दर्भ में, जब कोई व्यक्ति या संस्था किसी से कोई पूँजी उधार लेती है तो चुकाते समय उसे मूल पूँजी के साथ कुछ अतिरिक्त धन भी देना पड़ता है जिसे ब्याज interest) कहते हैं। अर्थात ब्याज, दूसरे की पूँजी का स्वतंत्र उपयोग करने के बदले में दिया जाने वाला धन है। +* किसी भी देश को बिना ऋण नहीं रहना चाहिये। राष्ट्रीय ऋण, राष्ट्रीय प्रतिभूति (बॉण्ड) है। और जब ऋण पर कोई ब्याज न हो, तब तो कोई दुख की बात ही नहीं। Thomas Paine, Common Sense (1776 पृष्ठ 3. + + +भारत का संविधान २६ नवम्बर १९४९ में स्वीकृत हुआ। +* इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि जब भी संविधान में सुधार का प्रस्ताव आता है, हर बार मुसलमान कुछ नई राजनीतिक मांगों के साथ तैयार होते हैं। मुस्लिम मांगों के इस तरह के अनिश्चित विस्तार पर एकमात्र रोक ब्रिटिश सरकार की शक्ति है, जिसे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच किसी भी विवाद में अंतिम मध्यस्थ होना चाहिए। कौन विश्वास के साथ कह सकता है कि यदि इन नई मांगों से संबंधित विवाद उन्हें मध्यस्थता के ���िए भेजा जाय तो अंग्रेजों का निर्णय मुसलमानों के पक्ष में नहीं होगा? मुसलमान जितनी माँग करते हैं, अंग्रेज उतने ही छूट देते चले जाते हैं। पिछले अनुभव से पता चलता है कि अंग्रेजों से मुसलमान जितना मांगते हैं, अंग्रेज उससे अधिक देने को तैयार रहते हैं। भीमराव आम्बेडकर पाकिस्तान या भारत का विभाजन (१९४६) +* हमारे लोकतंत्र का अस्तित्व और राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता इस अहसास पर निर्भर करती है कि संवैधानिक नैतिकता संवैधानिक वैधता से कम आवश्यक नहीं है। धर्म जनता के दिलों में रहता है; जब उसकी मृत्यु हो जाती है तो कोई संविधान, कोई कानून, कोई संशोधन, उसे नहीं बचा सकता। नानी पालकीवाला (१९७१) +* 1977 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के संविधान में एक संशोधन पेश किया जिसके तहत 'सेक्युलर' शब्द को औपचारिक रूप से प्रस्तावना में शामिल किया गया था। स्वर्गीय लक्ष्मी मल्ल सिंघवी, जिन्होंने सलाहकार के रूप में काम किया, ने मसौदे के हिंदी संस्करण पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, जिसमें 'सेक्युलर' का अनुवाद 'धर्म-निरपेक्ष' किया गया था। चूंकि धर्म समाज की नींव है, उन्होंने कहा सेक्युलर' का सही हिन्दी अनुवाद 'पंथ-निरपेक्ष' होना चाहिए। इंदिरा गांधी मान गईं और उन्हें अपनी कलम दीं, जिसके बाद सिंघवी ने अंतिम मसौदे में सुधार किया जो अब राष्ट्रपति भवन में जमा है। राजीव मल्होत्रा, बीइंग डिफरेन्ट में + + +*"फ्री सॉफ्टवेयर" के मुक्त होने का महत्व है, न कि मुफ्त होने का। इस संकल्पना में आये 'फ्री' का वही अर्थ है जो 'फ्री स्पीच' में है न कि 'फ्री लंच' में आये हुये 'फ्री' का। The Free Software Foundation What is free software? में। +* मुक्त सॉफ़्टवेयर पर मेरा कार्य एक आदर्शवादी लक्ष्य से प्रेरित है, वह है- स्वतन्त्रता और स्पर्धा का प्रसार करना। मैं मुक्त सॉफ्तवेयर के प्रसार को प्रोत्साहित करना चाहता हूँ और यह चाहता हूँ कि निजी सॉफ्टवेयर के स्थान पर मुक्त सॉफ्टवेयर का प्रयोग हो और हमारा समाज बेहतर बन सके। निजी सॉफ्टवेयर सहयोग को रोकता है। रिचर्ड स्टालमैन, Copyleft: Pragmatic Idealism, The Free Software Foundation +* मुफ्त सॉफ्टवेयर जैसी कोई चीज नहीं होती। कोई भी धर्मार्थ सॉफ्टवेयर विकसित नहीं करता। नवाचार जारी रहे, इसके लिये आवश्यक है कि सॉफ्टवेयर का मूल्य हो और यहां तक ​​​​कि ओपन-सोर्स अनुप्रयोगों का भी कोई न कोई 'बाजार मॉडल' होता है जो उन्हें नवाचार ज���री रखने के लिए प्रोत्साहित करता है। Paulo Ferreira, platform strategy manager at Microsoft South Africa, March 2008 +* हाल के अध्ययनों से एक बड़ी नाटकीय बात सामने आयी है कि मुक्तस्रोत सॉफ्तवेयर की गुणवत्ता, वाणिज्यिक सॉफ्तवेयरों की गुणवत्ता के बराबर या उससे अधिक हो सकती है। विनोद वल्लोपिल्लिल, माइक्रोसॉफ्त प्रोग्राम के प्रबन्धक Open Source Software: A (New Development Methodology" में (1998) +* हमारी कानूनी प्रणाली काम नहीं करती है। या और अधिक सटीक ढंग से कहा जाय तो यह सबसे अधिक संसाधनों वाले लोगों को छोड़कर किसी के लिए भी काम नहीं करती है।ऐसा नहीं है कि यह प्रणाली भ्रष्ट है। मुझे नहीं लगता कि हमारी न्याय-प्रणाली भ्रष्ट है (कम से कम, संघीय स्तर पर)। मेरे कहने का अर्थ केवल यह है कि हमारी न्याय-प्रणाली इतनी महंगी है कि व्यावहारिक रूप से कभी भी न्याय नहीं किया जा सकता। लॉरेंस लेसिग, फ्री कल्चर (2004) + + +: यह दिखाता है, इसलिये यह 'दर्शन' है। (असत् एवं सत् पदार्थों का यथार्थ ज्ञान ही दर्शन है।) +: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द ये (चार) प्रमाण हैं। +अर्थ हे कालामाओ ये सब मैंने तुमको बताया है, किन्तु तुम इसे स्वीकार करो, इसलिए नहीं कि वह एक अनुविवरण है, इसलिए नहीं कि एक परम्परा है, इसलिए नहीं कि पहले ऐसे कहा गया है, इसलिए नहीं कि यह धर्मग्रन्थ में है। यह विवाद के लिए नहीं, एक विशेष प्रणाली के लिए नहीं, सावधानी से सोचविचार के लिए नहीं, असत्य धारणाओं को सहन करने के लिए नहीं, इसलिए नहीं कि वह अनुकूल मालूम होता है, इसलिए नहीं कि तुम्हारा गुरु एक प्रमाण है, किन्तु तुम स्वयं यदि यह समझते हो कि ये धर्म (धारणाएँ) शुभ हैं, निर्दोष हैं, बुद्धिमान लोग इन धर्मों की प्रशंसा करते हैं, इन धर्मों को ग्रहण करने पर यह कल्याण और सुख देंगे, तब तुम्हें इन्हें स्वीकर करना चाहिए। +वास्तविकता के एक परिकल्पनात्मक, व्यवस्थित, सम्पूर्ण रूप का दर्शन कराना; +वास्तविकता के परम, वास्तविक प्रकृति का वर्णन करना; +ज्ञान की सीमा, दायरा, स्रोत, प्रकृति, वैधता और मूल्य निर्धारित करना; +ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों की पूर्वधारणाओं और दावों की समालोचनापूर्ण परीक्षा करना; तथा +आप जो कहते हैं उसे "दिखाने" वाला और जो आप "देखते हैं" उसे कहने वाली एक विधा। +पीटर एंजेल्स ने दर्शन के छह अलग-अलग पक्ष बताये। पहले वह कहते हैं कि दर्शन के अर्थ उतने ही विविध हैं जितने कि दार्शनिक। फिर उन्होंने "प्रयासों" की पाँच "आधारभूत परिभाषाओं" की सूची दी है। +* जब मैं कॉलेज पहुंचा, तो मैंने तुरन्त दर्शनशास्त्र ले लिया कभी भी किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं मिला। मैं समझ गया कि "क्यों" से युक्त प्रश्न बहुत गहरे हैं और मानव भाषा के में वह क्षमता नहीं कि इसका उत्तर दे सके। जे डॉयने फार्मर, द थर्ड कल्चर: बियॉन्ड द साइंटिफिक रेवोल्यूशन (1995)। +* प्राचीन दर्शन मानव के समक्ष 'जीवन की एक कला' प्रस्तुत करता था। इसके विपरीत, आधुनिक दर्शन ऐसा लगता है जैसे वह तकनीकी शब्दावली की कोई रचना है जो केवल विशेषज्ञों के लिये है। Pierre Hadot, Philosophy as a Way of Life, trans. Michael Chase, p. 272. + + +उपनिषद संस्कृत में रचित हिन्दू धर्मग्रंथों का एक विशेष वर्ग है। इनकी रचना वे ईसापूर्व ९वीं और ६ठी शताब्दी के बीच हुई थी। +: अर्थ सत्य की ही विजय होती है। +: अर्थ यह आत्मा ही ब्रह्म है। +: अर्थ प्रज्ञा ही ब्रह्म है। +: वह यह आत्मा ब्रह्म है। वह विज्ञानमय, मनोमय, प्राणमय, चक्षुर्मय, श्रोत्रमय, पृथ्वीमय, जलमय, वायुमय, आकाशमय, तेजोमय, अतेजोमय, काममय, अकाममय, क्रोधमय, अक्रोधमय, धर्ममय, अधर्ममय और सर्वमय है। जो कुछ इदंमय और अदोमय है, वह वही है। वह जैसा करने वाला और जैसे आचरणवाला है, वैसा ही हो जाता है। शुभकर्म करने वाला शुभ होता है और पापकर्म से पापी होता है। कोई-कोई कहते हैं कि वह पुरुष काममय ही है, वह जैसी कामनावाला होता है (जैसी इच्छा करता है) वैसा ही संकल्प (या श्रम) करता है, जैसा संकल्पवाला होता है, वैसा ही कर्म करता है और जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल प्राप्त करता है। +: हे गौतम! अब तुम्हें इनका (मिताहार का लक्षण कहता हूँ, सादर (ध्यानपूर्वक) सुनो। सबसे पहले साधक को चाहिए कि वह स्निग्ध एवं मधुर भोजन (आधा पेट) करे उसका आधा भाग पानी) एवं चौथाई भाग (हवा के लिए) खाली रखे। इस तरह से शिव (कल्याण) के निमित्त भोजन करने को मिताहार कहते हैं। (प्राणजय के लिए प्रमुख) आसन दो कहे गये हैं — पहला है पद्मासन, दूसरा है वज्रासन ॥ +: अर्थ जो विद्या और अविद्या दोनों को एक साथ जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या से अमरता का आस्वादन करता है। +: चित्त (की चंचलता) के दो कारण हैं, वासना अर्थात् पूर्वार्जित संस्कार एवं वायु अर्थात् प्राण; इन दोनों में से एक का भी निरोध हो जाने पर दोनों समाप्त (निरुद्ध) हो जाते हैं॥ +: जिसके मूल में सभी देवता, सिद्ध, चारण, नाग एवं तीर्थ चारों तरफ से स���थित हैं तथा जिसके मध्य में ब्रह्म देवता निवास करते हैं। जिनके अग्रभाग में वेद शास्त्रों का निवास है। उन तुलसी को मैं नमस्कार करता हूँ। हे तुलसी तुम लक्ष्मी की सहेली, कल्याणप्रद, पापों का हरण करने वाली तथा पुण्यदात्री हो। ब्रह्म के आनन्द रूपी आँसुओं से उत्पन्न होने वाली तुलसी तुम वृन्दावन में निवास करने वाली हो । नारद के द्वारा स्तुत्य आपको नमस्कार है, नारायण भगवान् के मन को प्रिय लगने वाली आपको नमस्कार है । +: इस संसार में कर्म करते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिये। हे मानव! तेरे लिए इस प्रकार का ही विधान है, इससे भिन्न किसी और प्रकार का नहीं है, इस प्रकार कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा करने से मनुष्य में कर्म का लेप नहीं होता। +: ”मैं धनकोष के विषय मे जानता हूँ कि वह अनित्य है; अनित्य (अध्रुव) पदार्थो से उस ‘तत्त्व’ की प्राप्ति नहीं होती जो नित्य (ध्रुव) है। इसलिए मैंने नचिकेता- अग्नि को संचित किया है तथा अनित्य पदार्थों की हवि देकर ‘नित्य’ तत्त्व को प्राप्त किया है।” +: वह अचल, अचलायमान एकमेव ब्रह्म मन से वेगवत्तर, अत्यधिक वेगवाला है। उस एकमेव तक देवता नहीं पहुँच पाते, क्योंकि वह सदैव उनसे आगे-आगे पहुँच जाता है पहुँचा होता है। वह ठहरा हुआ भी दौड़ते हुए दूसरों को पार कर आगे निकल जाता है। उस तत् में जीवन-शक्ति का स्वामी वायु जलधाराओं को स्थापित करता है। +: तप, आत्म-विजय (दम) तथा कर्म इस अन्तरज्ञान के आधार (प्रतिष्ठा) हैं, ‘वेद’ इसके सब अंग हैं, सत्य इसका धाम है। +: इस वैश्व गति में, इस अत्यन्त गतिशील समष्टि-जगत् में जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् है-यह सबका सब ईश्वर के आवास के लिए है। इस सबके त्याग द्वारा तुझे इसका उपभोग करना चाहिये; किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि मत डाल। +: वस्तुओं का प्राण, वायु, अमर जीवनतत्त्व है, परन्तु इस का अन्त है भस्म। ओ३म। हे दिव्य संकल्पशक्ति! स्मरण कर, जो किया था उसे स्मरण कर! हे दिव्य संकल्पशक्ति, स्मरण कर, किये हुए कर्म का स्मरण कर। +: ”जो दुष्कर्मों से विरत नहीं हुआ है, जो शान्त नहीं है, जो अपने में एकाग्र (समाहित) नहीं है अथवा जिसका मन शान्त नहीं है ऐसे किसी को भी यह ‘आत्मा’ प्रज्ञा द्वारा प्राप्त नहीं हो सकता। +उपनिषदों के बारे में उक्तियाँ +* उपनिषदों के ऋषि जाति के नियमों से बंधे नहीं थे। आत्मा की सर्वव्यापकता के सिद्धांत को वे मानव-जीवन की चरम-सीमाओं में फैला देते हैं। सत्यकाम जाबाल यद्यपि अपने पिता का नाम नहीं बता पाता है, फिर भी उसे आध्यात्मिक जीवन की शिक्षा दी जाती है। यह कथा इस बात का प्रमाण है कि उपनिषदों के रचयिता रीति-रिवाज के कड़े आदेशों से अधिक मान्यता उन दिव्य और आत्मिक नियमों को देते हैं, जो आज या कल के नहीं, बल्कि शाश्वत नियम हैं और जिनके बारे में कोई भी मनुष्य यह नहीं जानता कि उनका जन्म कैसे हुआ। ‘तत त्वम् असि’ ये शब्द इतने जाने-पहचाने हैं कि वे पूर्ण अर्थावबोध से पहले ही हमारे मन पर से फिसल जाते हैं। सर्वेपल्ली राधाकृष्णन उपनिषदों की भूमिका -पृष्ठ -50 + + +रामायण वाल्मिकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य है। इसमें श्रीराम का जीवनचरित वर्णित है। +: बिना राजा के राज्य में धनी जन सुरक्षित नहीं रह पाते हैं और न ही कृषिकार्य एवं गोरक्षा (गोपालन) से आजीविका कमाने वाले लोग ही दरवाजे खुले छोड़कर सो सकते हैं। अर्थात् राजा न होने पर सर्वत्र असुरक्षा फैल जाती है और चोरी-छीनाझपटी जैसी घटनाओं का उन्हें सामना करना पड़ता है। +: अप्रिय अर्थात् कठोर बोलने वाला, किन्तु पथ्य अर्थात् सही मार्ग बताने वाला, हितकारी बोलने वाला वक्ता इस संसार में दुर्लभ होते हैं और साथ ही ऐसी वाणी सुनने वाले श्रोता भी दुर्लभ होते हैं । +* सर्वनाश के प्रमुख तीन कारण इस प्रकार हैं- दूसरों के धन की चोरी, दूसरे की पत्नी पर बुरी नजर और अपने ही मित्रों के चरित्र व अखण्डता पर शक। +* जिनके पास धर्म का ज्ञान हैं, वे सभी कहते हैं कि सत्य ही परम धर्म हैं। +* जो किसी से धन व सामग्री की सहायता लेने के बाद अपने दिए हुए वचन का पालन नहीं करता, वो संसार में सबसे बुरा माना जाता है। +* नदी में गिरने से कभी भी किसी की मौत नहीं होती है। मौत तो तब होती है जब उसे तैरना नहीं आता है। +* उदास न होना, कुंठित न होना अथवा मन को टूटने न देना ही सुख और समृद्धि का आधार है। +* सत्यवादी ब्यक्ति कभी झूठे बचन नहीं देते। दिए हुए बचन का पालन करना ही उनकी महानता का चिन्ह होता हैं। +* जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढकर हैं। +* उदासी अत्यन्त बुरी चीज होती है। हमें कभी भी अपने मस्तिक का नियंत्रण उदासी के हाथ में नहीं देना चाहिये। उदाशी एक ब्यक्ति को उसी प्रकार मार डालती हैं, जैसे की एक क्रोधित साँप किसी बच्चे को। +* क्रोध हमारा शत��रु है, और हमारे जीवन का अंत करने में समर्थय है, क्रोध हमारा ऐसा शत्रु है, जिसका चेहरा हमारे मित्र जैसा लगता है! क्रोध एक तलवार की तेज़ धार की भांति है! जो हमारा सबकुछ नष्ट कर सकता है। +* मित्रता या शत्रुता बराबर वालों से करनी चाहिए। +* किसी भी नेक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक हैं- उदास व दुखी न होना, अपने कर्तव्य पालन की क्षमता, अथवा कठिनाइयों का बल पूर्वक सामना करने की क्षमता। +* सभी का चेहरा उनकी अंदरूनी विचारधाराओं व भावनाओं का दर्पण होता हैं। इन विचारधाराओं व भावनाओं को छुपाना लगभग असम्भव होता हैं और देखने वाला उन्हें भाँप सकता हैं। +* जो व्यक्ति जो कार्य निश्चित है उसे छोड़कर, जो कार्य अनिश्चित है उसके पीछे भागे तो वह व्यक्ति उसके हाथ में आया कार्य भी खो देता है। +* जो व्यक्ति किसी से भेदभाव नहीं करता और सबके साथ अच्छा व्यवहार करता है वह आदमी जीवन में खूब प्रगति करता है, ऐसे आदमी की हर इच्छा पूरी होती है। +* जो आपका कुमित्र है उन पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए, और जो मित्र है उन पर भी अंधा विश्वास नहीं करना चाहिए। +* जो व्यक्ति हमेशा रोना रोते हैं, उन्हें जीवन में कभी सुख नहीं मिलता। +* दुःख ऐसी वस्तु हैं जो ज्ञान और बल दोनों का विनाशक होता है। दुःख से बड़ा कोई शत्रु नहीं होता। +* सभी का चेहरा उनकी अंदरूनी विचार और भावनाओं का दर्पण होता है। इन विचार और भावनाओं को छुपाना लगभग असंभव होता है, और देखने वाला उन्हें भांप सकता है। +* आपसी फूट मनुष्य को नष्ट कर देती है। +ऐसा विचार करके दुखी न हों कि विधाता का लिखा हुआ नहीं मिट सकता। +* बच्चों के लिए उस कर्ज को चुकाना मुश्किल है जो उनके माता-पिता ने उन्हें बड़ा करने के लिए किया है। +* जिनके पास धर्म का ज्ञान है, वे सभी कहते हैं कि सत्य ही परम धर्म है। +* अपनी बातों को हमेशा ध्यानपूर्वक कहे, क्योंकि हम तो कहकर भूल जाते हैं, लेकिन लोग उसे याद रखते हैं। +* किसी भी नेक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्न लिखित गुंणों का होना आवश्यक हैं – उदास व दुखी न होना, अपने कर्तब्य पालन की क्षमता, अथवा कठिनाइयों का बल पूर्बक सामना करने की क्षमता। +* दुःख व्यक्ति का साहस खत्म कर देता है। वह व्यक्ति की सीख खत्म कर देता है। हर किसी का सबकुछ नष्ट कर देता है। दुःख से बड़ा कोई शत्रु नहीं है। +* चरित्रहीन ब्यक्ति की मित्रता उस प���नी की बूंद की भांति होती है जो कमल फूल की पत्ती पर होते हुए भी उस पे चिपक नहीं सकता। +* जो अपनों को छोड़कर दुश्मन के बीच चला जाता है, उसी के अपने पुराने साथी दुश्मन को मारने के बाद उसे भी मार डालते हैं। +* क्रोध हमारा शत्रु हैं, और हमारे जीवन का अंत करने में समर्थ्य है, क्रोध हमारा ऐसा शत्रु है जिसका चेहरा हमारे मित्र जैसा लगता हैं। क्रोध एक तलवार की तेज़ धार की भांति है। क्रोध हमारा सबकुछ नस्ट कर सकता हैं। +* केवल डरपोक और कमजोर ही चीजों को भाग्य पर छोड़ते हैं लेकिन जो मजबूत और खुद पर भरोसा करने वाले होते हैं वे कभी भी नियति या भाग्य पर निर्भर नही करते। +* उत्साह हीन, निर्बल व दुख में डूबा हुआ व्यक्ति कोई अच्छा कार्य नहीं कर सकता, अतः वह धीरे -धीरे दुःख की गहराईयों में डूब जाता है। +* क्रोध हमारा शत्रु है, और हमारे जीवन का अंत करने में समर्थ है, क्रोध हमारा ऐसा शत्रु है जिसका चेहरा हमारे मित्र जैसा लगता हैं। क्रोध एक तलवार की तेज धार की भांति है। क्रोध हमारा सबकुछ नष्ट कर सकता है। +* उदासी बहुत बुरी चीज़ होती है, हमें कभी भी अपने मस्तिस्क का नियंत्रण उदासी के हाथ में नहीं देना चाहिए, उदासी एक व्यक्ति को उसी प्रकार मार डालती है, जैसे की एक क्रोधित सांप किसी बच्चे को। +* अपने जीवन का अंत कर देने में कोई अच्छाई नहीं होती, सुख और आनंद का रास्ता जीवन से ही निकलता है। +* सदा प्रसन्न रहना कुछ ऐसा है जिसे प्राप्त करना कठिन है। कहने का अर्थ है, प्रसन्नता और दुःख किसी के जीवन में आते-जाते रहते हैं और ऐसा नही हो सकता ही कि लगातार केवल प्रसन्नता ही बनी रहे। +* जो व्यक्ति हमेशा अच्छा, मीठा बोलता हो, हर समय अपनी भाषा का ध्यान रखता हो, और किसी भी परिस्थिति में बुरे शब्दों का उपयोग नहीं करता वह व्यक्ति जीवन में हमेशा प्रगति करता है। +* अच्छे लोगों की संगति में बुरा से बुरा मनुष्य भी सही आचरण करने लगता है। +* हर मनुष्य में दया और प्रेम होना चाहिए, हर किसी के मन में अपने से छोटे के प्रति दया और अपने से बड़ों के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए। +* किसी भी व्यक्ति के वास्तविक स्थिति का ज्ञान उसके आचरण और चरित्र से हो जाता है। +* सहयोग और समन्वय की सदैव जीत होती है। +* ऐसा कोई व्यक्ति अब तक नहीं जन्मा, जो वृद्धावस्था को जीत सका हो। +* सन्तोष नन्दन वन है तथा शांति कामधेनु है। इस पर विचार करो और शांति के लिए श��रम करो। +रामायण के बारे में विद्वानों के वचन + + +भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि) काल राजा को बनाता है या राजा काल को? इसमें तुम कभी संशय मत करना। राजा ही काल को बनाता है। (जैसा राजा होगा, वैसा समय।) +: यदि किसी देश का राजा (शासक) धार्मिक आचरण करने (राजधर्म का पालन करने वाला) वाला हो तो उस देश की प्रजा भी धार्मिक होती है। यदि राजा पापी (दुष्ट) हो तो प्रजा भी पापी होती है। प्रजा, राजा के आचरण का अनुसरण करती है। जैसा राजा होता है वैसी ही प्रजा होती है। +: प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है; प्रजा का हित ही राजा का वास्तविक हित है। वैयक्तिक स्तर पर राजा को जो अच्छा लगे उसमें उसे अपना हित न देखना चाहिए, बल्कि प्रजा को जो ठीक लगे, उसे ही राजा अपना हित समझे। +: अतः उक्त बातों को ध्यान में रखते हुए राजा को चाहिए कि वह प्रतिदिन उन्नतिशील-उद्यमशील होकर शासन-प्रशासन एवं व्यवहार के दैनिक कार्यव्यापार सम्पन्न करे। अर्थ के मूल में उद्योग में संलग्नता ही है, इसके विपरीत लापरवाही, आलस्य, श्रम का अभाव आदि अनर्थ (संपन्नता के अभाव या हानि) के कारण बनते हैं। +: बिना राजा के राज्य में धनी जन सुरक्षित नहीं रह पाते हैं और न ही कृषिकार्य एवं गोरक्षा (गोपालन) से आजीविका कमाने वाले लोग ही दरवाजे खुले छोड़कर सो सकते हैं। अर्थात् राजा न होने पर सर्वत्र असुरक्षा फैल जाती है और चोरी-छीनाझपटी जैसी घटनाओं का उन्हें सामना करना पड़ता है। +: अर्थ बिना राजा के इस लोक में सब ओर अराजकता फैल जायेगी, जिसके कारण सब लोग सब ओर से भय को प्राप्त होंगे। इन सबकी रक्षा के लिए परमात्मा ने राजा को बनाया। +: हे राजा अगर आप पृथ्वी रुपी गाय को दुहना चाहते हैं, तो प्रजा रुपी बछड़े का पालन-पोषण कीजिये। यदि आप प्रजा रुपी बछड़े का अच्छी तरह पालन-पोषण करेंगे तो पृथ्वी कल्पलता की तरह आपको नाना प्रकार के फल देगी। +: जिस प्रकार इन्द्र वर्ष में चार माह वर्षा करके सबको तृप्त कर देता है, वैसे ही राजा को अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि-शान्ति-उन्नति की इच्छाओं को पूर्ण करना चाहिए। उसको अपनी प्रजा को ऐश्वर्य-युक्त करना चाहिए। यह उसका इन्द्र-व्रत कहलाता है। +: जिस प्रकार शेष आठ मास सूर्य, अपनी किरणों के द्वारा, सब वस्तुओं में से जल हरता रहता है, उसी प्रकार राजा भी, बिना किसी को कष्ट पहुंचाए, नित्य कर की वसूली करे । यह उसका अर्कव्रत होता है। +: जिस प्रकार वायु सब वस्तुओं में प्रविष्ट होती है, उसी प्रकार राजा को गुप्तचरों द्वारा अपनी राष्ट्र के हर भाग में प्रवेश करके, वहां की सूचना रखनी चाहिए। यह उसका मारुत-व्रत कहलाता है। +: जिस प्रकार यम, समय आने पर कर्मानुसार सब को प्रिय या अप्रिय कर्मफल देकर नियन्त्रित करता है, उसी प्रकार राजा को प्रजा को दण्ड और लाभ देकर नियन्त्रण में रखना चाहिए। यह उसका यम-व्रत होता है। +: जिस प्रकार पूर्ण चन्द्र को देखकर मानव हर्ष करते हैं, वैसी ही प्रकृति राजा की होनी चाहिए। अर्थात् राजा की आर्थिक व नैयायिक व्यवस्था से सन्तुष्ट जन उसको देखकर आह्लादित होने चाहिए । वही राजा चान्द्रव्रतिक कहलाता है। +: जिस प्रकार पृथ्वी सब प्राणियों को समान भाव से धारण करती है, उसी प्रकार राजा को सारी प्रजा का पक्षपात-रहित होकर पालन-पोषण करना चाहिए । यह उसका पार्थिव व्रत कहलाता है। +: स्वामी (राजा मन्त्रीवृन्द, प्रजा, दुर्ग, राजकोश, दण्ड, एवं राज्य के मित्रगण, ये सभी राज्य के सात अंग होते हैं। इसलिए राज्य को सप्तांग (सात अंगों वाला) कहा गया है। +: भाई, पुत्र, पूज्य जन, श्वसुर, एवं मामा, कोई भी अपने धर्म से विचलित होने पर राजा के लिए अदण्डनीय नहीं होता है। +: जिसमें क्रोध का अभाव होता है, जो दुर्व्यसनों से दूर रहता है, जिसका दण्ड भी कठोर नहीं होता तथा जो अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लिया है वह राजा हिमालय के समान सम्पूर्ण प्राणियों का विश्वासपात्र बन जाता है। +: राजा यदि धर्म के अनुसार आचरण करता है तो देवता बन जाता है और यदि वह अधर्म का आचरण करता है तो नरकगामी हो जाता है। +* आपको राजा बनने के लिए राजा को हराना होगा। कोई आपको स्वर्ण पदक देने वाला नहीं है। Donovan Bailey +* मैं हमेशा मानता हूं कि राजा या आधिकारिक नेता का शासन पुराना है। अब हमें आधुनिक दुनिया के साथ चलना होगा। दलाई लामा]] +* राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषण में, हमने अभी भी राजा का सिर नहीं काटा है। माइकेल फौकल्ट +* मैं वहां रहना और प्यार करना पसंद करूंगा जहां मौत राजा है बजाय अनंत जीवन पाने के जहां प्यार नहीं है। Robert Green Ingersoll +* राजा कोई गलती नहीं कर सकता यह अंग्रेजी संविधान का एक आवश्यक और मौलिक सिद्धांत है। William Blackstone +* मैं पढ़ने की इच्छा के बिना एक राजा की तुलना में किताबों से भरी झोपड़ी में गरीब होना पसंद करूंगा। Thomas Babington Macaulay +* मैंने हमेशा कहा है, अगर आप अपन��� आप को एक रानी की तरह मानते हैं, तो आप एक राजा को आकर्षित करेंगे। Pepa +* हमारी व्यवस्था के अधीन लोग, राजशाही में राजा की तरह, कभी नहीं मरते। Martin Van Buren +* सत्ता एक मरते हुए राजा को भूल जाती है। अल्फ्रेड लॉर्ड टेन्नीसन +* ऐसा कोई राजा नहीं है जिसका झारखंड में कोई दास नहीं हो रहा है, और न ऐसा कोई दास हुआ है जिसका कोई राजा न हुआ हो। रॉबर्ट केनेडी +* वह जो अपने भीतर राज करता है और जुनून, इच्छाओं और भय पर शासन करता है, वह राजा से बढ़कर है। जॉन मिल्टन +* राजा की कृपा और सच्चाई उसकी रक्षा करते हैं, करूणा से उसकी गद्दी स्थिर रहती है। King Solomon + + +: कोई अक्षर ऐसा नहीं है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो, कोई ऐसा मूल (जड़) नहीं है, जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी व्यक्ति अयोग्य नही होता, उसको काम मे लेने वाले ही दुर्लभ हैं। +: भीष्म और द्रोण जिसके दो तट हैं, जयद्रथ जिसका जल है, शकुनि ही जिसमें नीलकमल है, शल्य जलचर ग्राह है, कर्ण तथा कृपाचार्य ने जिसकी मर्यादा को आकुल कर डाला है, अश्वत्थामा और विकर्ण जिस के घोर मगर हैं, ऐसी भयंकर और दुर्योधन रूपी भंवर से युक्त रणनदी को केवल श्रीकृष्ण रूपी नाविक की सहायता से पाण्डव पार कर गये। +: राजा का कारण काल है, या काल का कारण राजा है, ऐसा सन्देह तुम्हारे मन में नहीं उठना चाहिए; क्योंकि राजा ही काल का कारण होता है। राजा का कारण तत्कालीन परिस्थिति है, या राजा तत्कालीन परिस्थिति का कारण है, इस सम्बन्ध में सन्देह ना रहे; राजा (ही) तत्कालीन परिस्थिति का कारण है। ) +: जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ? +: देवता पशुपालक की भाँति दण्ड लेकर रक्षा नहीं करते। वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे बुद्धि प्रदान कर देते हैं। +* २०वीं शताब्दी के प्रबन्धन का सबसे महत्वपूर्ण और वस्तुतः अनन्य योगदान यह था कि उसने विनिर्माण के श्रमिकों की उत्पादकता को ५० गुना बढ़ा दिया। पीटर ड्रकर]] +* उस व्यक्ति को प्रबन्धक के पद पर नहीं नियुक्त किया जाना चाहिये जिसकी दृष्टि मनुष्य की शक्ति के बजाय पर केन्द्रित होने के उसकी कमजोरियों पर केन्द्रित रहती हो। पीटर ड्रकर]] +* प्रबन्धक लक्ष्य निर्धारित करता है, प्रबन्धक संगठित करता है, प्रबन्धक मोटिवेट करता है और अपनी बात सामने रखता है, प्रबन���धक एक मापदण्ड स्थापित करते हुए (कार्य का) मापन करता है प्रबन्धक लोगों का विकास करता है। पीटर ड्रकर]] + + +: मनुष्य सदाचार से ही आर्य होता धन या विद्या से नहीं। +: आर्य अपने भक्त की आशा को कभी भंग नहीं करते हैं। +: आर्य के लिये अच्छा कर्म करना सरल है। +: आर्य को कभी अपनी प्रशंसा नहीं करनी चाहिये। +: आर्य के गुणों की ही लोग अधिक प्रशंसा करते हैं। +: प्राणियोको हनन करने से (कोई आर्य गहीं होता, सभी प्राणियों की हिंसा न करने से बस आर्य कहा जाता है। +: हैं दस्यु-म्लेच्छ, करोड़ों ही नर, गौतम! प्रमाद क्षण का मतकर ॥१६॥ +: हैं कितने इन्द्रिय-विकल यहाँ, गौतम! प्रमाद क्षण का मतकर ॥१७॥ उत्तराध्ययनसूत्र, अध्याय १० (द्रुमपत्रक) का हिन्दी काव्यरूपानतरण + + +: अर्थ धर्मशास्त्रों के ज्ञाता ब्राह्मणों द्वारा पापी को उसकी आयु, समय और शारीरिक क्षमता को ध्यान में रखते हुए दण्ड (प्राय्श्चित) देना चाहिए। दण्ड ऐसा हो कि वह पापी का सुधार (शुद्धि) करे, ऐसा नहीं जो उसके प्राण ही ले ले। पापी या अपराधी के प्राणों को संकट में डालने वाला दण्ड देना उचित नहीं है। +: जो भ्रष्टबुद्धि घुसखोरी का काला काला कम करते हैं, उनका सर्वस्व हर कर राजा उन्हें देशनिकाला दे दे। +: जब तक पेट भरता है तभी तक देह में शक्ति (सत्व) है। अतः जो भी अपने उदर की क्षमता से अधिक पाने की इच्छा रखता है वह चोर (दूसरों के हक को छीनने वाला) दण्ड दिये जाने के योग्य है। +: यदि राजा दण्डित किए जाने योग्य दुर्जनों के ऊपर दण्ड का प्रयोग न करे तो बलशाली व्यक्ति दुर्बल लोगों को वैसे ही पकाऐंगे जैसे शूल अथवा सींक की मदद से मछली पकाई जाती है । +: यह संसार दण्ड के द्वारा ही जीते जाने योग्य है, अर्थात् दण्ड के द्वारा ही इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है । ऐसा व्यक्ति दुर्लभ है जो स्वभाव से ही साफ-सुथरा एवं सच्चरित्र हो, न कि दण्ड के भय से । दण्ड के भय से ही वह व्यवस्था बन पाती है जिसमें लोग अपनी संपदा का भोग कर पाते हैं । +: जहां श्याम वर्ण एवं लाल नेत्रों वाला और पापों (पापियों का नाश करने वाला ‘दण्ड’ विचरण करता है, और जहां शासन का निर्वाह करने वाला उचितानुचित का विचार कर दण्ड देता है वहां प्रजा उद्विग्न या व्याकुल नहीं होती । +: अर्थ राजन! शाकद्वीप के मंक, मशक, मानस, मदंग नामक जनपद में) न कोई राजा था, न दण्ड है और न दण्डदेनेवाला। वहाँ के लोग धर्म के ज्ञाता थ��� और स्वधर्म पालन के ही प्रभाव से एक दूसरे की रक्षा करते थे। +: काल भाग्य किसी व्यक्ति को यदि दण्ड देता है तो किसी दण्ड (शस्त्र से न दे कर केवल उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देता है। उसकी शक्ति इसी में निहित है कि वह उस व्यक्ति की अपना भला बुरा समझने की शक्ति को ही नष्ट कर देता है जिस के फलस्वरूप वह हर बात का उलटा मतलब निकाल कर नष्ट हो जाता है। +: जो राजा (शासक) योग्य सहायकों मन्त्री, सेनापति, कोषाधिकारी न्यायाधीश आदि) से रहित हो मूर्ख, लोभी, शास्त्रों के ज्ञान से रहित हो परन्तु विषय वासना में लिप्त हो तो वह इस दण्डव्यस्था का न्यायपूर्ण चालन कदापि नहीं कर सकता है। +: जब एक सामान्य व्यक्ति पर एक 'कार्षपण' का जुर्माना लगाया जाएगा, तो राजा पर एक हजार का जुर्माना लगाया जाना चाहिए; ऐसा स्थापित नियम है। +राजा पृथु ने आगे कहा भगवत्कृपा से मैं इस लोक का राजा नियुक्त हुआ हूँ और मैं प्रजा के ऊपर शासन करने, उसे विपत्ति से बचाने तथा वैदिक आदेश से स्थापित सामाजिक व्यवस्था में प्रत्येक की स्थिति के अनुसार उसे आजीविका प्रदान करने के लिए यह राजदण्ड धारण कर रहा हूँ। +* दण्ड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिये लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिये। रामायण]] +* अपराध करने के बाद भय उत्पन्न होता है और यही उसका दंड है। वाल्टेयर + + +: जिस तरह सोने की परख घिसकर, छेदकर, गरम करके और पीटकर की जाती है, वैसे ही मनुष्य की परख उसके त्याग, शील, गुण और कर्म से होती है। +: किसी काम को बिना परीक्षा के नहीं करना चाहिये, अच्छी तरह परीक्षा करके ही करना चाहिये। क्योंकि बाद में दुख होता है, जैसे ब्राह्मणी ने नेवले को बिना परीक्षा के ही मार दिया था। +: विचारवान् पुरुष तो सर्वसमर्थ लक्ष्मी प्रदान कराने वाले धर्म को ठगाये जाने के भय से स्वर्ण की भांति परीक्षा करके ही ग्रहण करते हैं। +दाहच्छेदकषा शुद्धे हेम्नि का शपथक्रिया। +दाहच्छेदकषाऽशुद्धे हेम्नि का शपथक्रिया॥ आचार्य सोमदेव सूरि ‘यशस्तिलकचम्पू’ में +: पक्ष और शपथ-दोनों ही तत्त्वबोध के लिए व्यर्थ हैं, क्योंकि ज्ञानी पुरुष परप्रत्ययमात्र से तत्त्व का विश्वास नहीं करते। दहन, छेदन, कर्षण आदि से शुद्ध हुए स्वर्ण में शपथ क्या करेगी तथा दहन, छेदन, कर्षण आदि से शुद्ध न हुए स्वर्ण में भी शपथ क्या करेगी ? +: मुझे महावीर से कोई पक्षपात नहीं है और कपिलादि से कोई द्��ेष नहीं है, परन्तु जिसके वचन युक्तिसंगत हों उसी का ग्रहण करना चाहिए। +: हे वीर प्रभु! मुझे केवल श्रद्धामात्र से आपके प्रति पक्षपात नहीं है और द्वेषमात्र से दूसरे देवों में अरुचि नहीं है, परन्तु मैंने आप्तत्व की यथावत् परीक्षा करके ही आपका ही आश्रय ग्रहण किया है। किसी भी मत या सम्प्रदाय में हो, कैसा भी हो, किसी भी नाम से जाना जाता हो, परन्तु यदि वह सर्व दोष-कालुष्य से रहित हो गया हो तो हे भगवन्! वह तुम ही हो और तुम्हें ही मेरा नमस्कार हो। +: हे विद्वान् भिक्षुओ! जिस प्रकार स्वर्ण को भलीभांति तपाकर, काटकर और कसौटी पर कसकर ही ग्रहण किया जाता है, उसी प्रकार तुम भी मेरे वचनों को परीक्षा करके ही ग्रहण करना, न कि गौरव से। +: सच्चे मित्र की परीक्षा बुरी संगति के समय में होती है। वीर की परीक्षा युद्ध में होती है। सेवक की परीक्षा उसके विनम्रतापूर्वक व्यवहार से होती है। दानवीर की परीक्षा दुर्भिक्ष (अकाल) के समय होती है। +: किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेज़ते समय सेवक की पहचान होती है। दुःख के समय में बन्धु-बान्धवों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है। +: जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी भी विश्वास न करें। परन्तु जो विश्वासपात्र है, उस पर भी अति विश्वास न करें। क्योंकि अधिक विश्वास से भय उत्पन्न होता है। इसलिए बिना उचित परीक्षा लिए किसी पर भी विश्वास न करें। +: बुद्धिमान मनुष्य को अपनी बुद्धि से परीक्षा करके, अच्छी तरह परखकर, अन्य लोगों के विचार सुनकर, देखकर, और उसके बाद समझकर ज्ञानी लोगों के साथ मैत्री करनी चाहिये। +: पुराना होने से न तो कोई काव्य उत्कृष्ट हो जाता है और न नया होने से निकृष्ट। ज्ञानी लोग दोनों को परखकर उनमें से वरेण्य को अपनाते हैं। मूढ़ औरों के कहने पर चलते हैं। +: विधि (भाग्य) की कैसी विडम्बना है कि वह किसी व्यक्ति के कुलीन विद्वान, सच्चरित्र, तथा शूरवीर होने की भली प्रकार परीक्षा करने के उपरान्त एक चतुर कन्या के समान दरिद्रता उसके पल्ले बांध देता है। +: विपत्ति काल में धीरज, धर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा होती है। +* बिना निराश हुए ही हार को सह लेना पृथ्वी पर साहस की सबसे बडी परीक्षा है। आर. जी. इंगरसोल +* अपने अन्दर योग्यता का होना अच्छी बात है लेकिन दूसरों में योग्यता खोज पाना नेता की असली परीक्षा है। एल्बर्ट हब्बार्ड +* बाधा��ँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिये, मंद नहीं पड़ना चाहिये । यशपाल +* किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं । अज्ञात +पंचज्ञानेन्द्रियों से तथा छठवाँ प्रश्न के द्वारा अर्थात् नेत्रों से देखकर कान से सुनकर, नासिका से गंध लेकर, जिह्वा से रस जानकर, त्वचा से स्पर्श करके, प्रश्न द्वारा रोगी या उसके सम्बन्धी से रोगी की उम्र आदि सब जानकारी इनका ज्ञान करना इस षड्विध परीक्षा में प्रतिपाद्य है। +अर्थ रोगाक्रान्त शरीर की आठ स्थानों से परीक्षा करनी चाहिये- नाड़ी, जिह्वा, मल, मूत्र, त्वचा, दाँत, नाखून औ स्वर। +देखकर, स्पर्श करके और प्रश्न पूछकर रोगी की परीक्षा करनी चाहिये। + + +* देश के प्रति निष्ठा सभी निष्ठाओं से पहले आती है। और यह पूर्ण निष्ठा है क्योंकि इसमें कोई प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि बदले में उसे क्या मिलता है। लाल बहादुर शाश्त्री +* ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिले, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए। सुभाष चन्द्र बोस +* जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है। महात्मा गाँधी +* सभी महान आन्दोलन लोक्रप्रिय आन्दोलन होते हैं। वे मानवीय जूनून और भावनाओं का विस्फोट होते हैं, जो कि विनाश की देवी या लोगों के बीच बोले गए शब्दों की मशाल के द्वारा क्रियान्वित किये जाते हैं। अडोल्फ़ हिटलर +* इस मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है। वल्लभभाई पटेल +* हम अपने देश के लिए आज़ादी चाहते हैं, पर दूसरों का शोषण कर के नहीं, ना ही दूसरे देशों को नीचा दिखा कर….मैं अपने देश की आजादी ऐसे चाहता हूँ कि अन्य देश मेरे आजाद देश से कुछ सीख सकें, और मेरे देश के संसाधन मानवता के लाभ के लिए प्रयोग हो सकें। लाल बहादुर शाश्त्री +* देशभक्ति मूल रूप से एक धारणा है कि कोई देश इसलिए दुनिया में सबसे अच्छा है क्योंकि आप वहां पैदा हुए थे। जार्ज बर्नार्ड शा +* राष्ट्रवाद एक बचकानी बीमारी है। यह मानवजाति का खसरा है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* सभी युद्ध गृहयुद्ध हैं क्योंकि सभी इंसान आपस में भाई-बंधु हैं … हर एक व्यक्ति अपनी मातृभूमि से कहीं ज्यादा मानवजाति का करजदार है। फ्रांकोइस फेनेलॉन +* निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं। भगत सिंह +* किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग ना करना काल्पनिक आदर्श है और नया आन्दोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसके आरम्भ की हम चेतावनी दे चुके हैं वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान वाशिंगटन और गैरीबाल्डी लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है। भगत सिंह +* देशप्रेम आमतौर पे किसी ख़ास वर्ग के प्रति घृणा से मजबूत होता है और अंतर्राष्ट्रीयता से हमेशा ही मजबूत होती है। जॉर्ज ऑरवेल +* देशभक्त का कर्तव्य है कि वो अपने देश की रक्षा उसकी सरकार से करे। थॉमस पेन +* आम तौर पर लोग चीजें जैसी हैं उसके आदि हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की ज़रुरत है। भगत सिंह +* धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं हैं। सन्यास लेना जीवन का परित्याग करना नहीं है। असली भावना सिर्फ अपने लिए काम करने की बजाये देश को अपना परिवार बना मिलजुल कर काम करना है। इसके बाद का कदम मानवता की सेवा करना है और अगला कदम ईश्वर की सेवा करना है। बाल गंगाधर तिलक +* हर देश खुद को और देशों से बेहतर समझता है। इसी से देशभक्ति आती है- और युद्ध भी। डेल कार्नेगी +* क्या कुछ इससे भी अधिक मूर्खतापूर्ण हो सकता है कि किसी व्यक्ति को मुझे मारने का अधिकार सिर्फ इसलिए है। क्योंकि वो नदी के उस पार रहता है और उसके शासक का मेरे शासक से झगड़ा हो गया है, जबकि मैंने उसके साथ कोई झगड़ा नहीं किया है ब्लेज पास्कल +* देशभक्त वह व्यक्ति जो सबसे तेज चिल्ला सके बिना ये जाने कि वो किस लिए चिल्ला रहा है। मार्क ट्वेन +* आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके। सुभाष चन्द्र बोस +* देशप्रेमी हमेशा अपने देश के लिए मरने की बात करते हैं पर कभी अपने देश के लिए मारने की बात नहीं करते। बरट्रैंड रस्सेल +* सबसे बड़ी देशभक्ति अपने देश को ये बताना है कि कब वो नीचतापपूर्ण, मूर्खतापूर्ण और, दोषपूर्ण व्यवहार कर रही है। जूलियन बार्न्स +* अच्छा आदमी और अच्छा नागरिक होना हमेशा एक जैसा नहीं होता। अरस्तु +* देशभक्ति भ्रष्टाचारियों का गुण है। ऑस्कर वाइल्ड +* कभी-कभार आजादी के पेड़ को देशभक्तों और तानाशाहों के खून से सींचा जाना चाहिए। थॉमस जेफ़र्सन +* पहले वो लिखा करते थे कि अपने देश के लिए मरना अच्छा और सही है । लेकिन आज कल के युद्ध में आपके मरने में ना कुछ अच्छा है न सही है । आप बिना किसी ख़ास वजह के कुत्ते की तरह मारे जायेंगे । अर्नेस्ट हेमिंग्वे +* देश के प्रति वफादारी हमेशा सरकार के प्रति वफादारी, जब वो इसकी हकदार हो । मार्क ट्वेन +* प्रगति स्वतंत्रता में निहित है। बिना स्वशासन के न औद्योगिक विकास संभव है, न ही राष्ट्र के लिए शैक्षिक योजनाओं की कोई उपयोगिता है… देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करना सामाजिक सुधारों से अधिक महत्वपूर्ण है। बाल गंगाधर तिलक +* एक देश की ताकत अंततः इस बात में निहित है कि वो खुद क्या कर सकता है, इसमें नहीं कि वो औरों से क्या उधार ले सकता है। इंदिरा गाँधी +* आज़ादी की रक्षा केवल सैनिकों का काम नही है । पूरे देश को मजबूत होना होगा। लाल बहादुर शाश्त्री + + +* गिनती की भारतीय पद्धति शायद मानव द्वारा खोजी गयी सबसे सफल बौद्धिक नवाचार है। इसे सभी देशों ने अपना लिया है। यह सार्वदेशिक भाषा के सबसे निकट है। जॉन डी बैरो, The Book of Nothing (2009) पहला अध्याय "Zero—The Whole Story" +विश्व भारत का गणित के क्षेत्र में सबसे अधिक ऋणी है। गुप्त काल में भारत में भारतीय गणित उस ऊँचाई पर पहुँच गया था जैसा प्राचीन काल के किसी भी अन्य राष्ट्र में नहीं पहुँच सका था। ए एल बाशम, आस्ट्रेलिया के भारतविद् +* यह (भास्कर की चक्रवाल पद्धति) सभी प्रशंसा से परे है: निश्चित रूप से यह लैग्रेंज से पहले संख्या-सिद्धान्त में हासिल की गई सबसे बेहतरीन चीज है। हर्मन हैंकेल् (1839 1873 प्रसिद्ध जर्मन गणितज्ञ +* भारत ही है जिसने हमें दस प्रतीकों के माध्यम से सभी संख्याओं को व्यक्त करने की सरल विधि दी है, प्रत्येक प्रतीक को स्थानीय मान के साथ-साथ पूर्ण मान भी प्राप्त होता है। आर्किमिडीज और अपोलोनियस की प्रतिभा भी यहाँ तक नहीं पहुँच पायी। पी. एस. लाप्लास, प्रमुख फ्रांसीसी गणितज्ञ +* सभी दार्शनिक और गणितीय सिद्धान्त जो पाइथागोरस के बताये जाते हैं, लगभग वे सभी भारत से प्राप्त हुए हैं। लियोपोल्ड वॉन श्रोएडर (1851-1920) जर्मन भारतविद् + + +: बलहीन या कापुरुष ही भाग्य के भरोसे बैठा रहता है। स्वावलम्बी पुरुष कर्म के माध्यम से सब कुछ प्राप्त कर लेता है, वह केवल भाग्य के भरोसे नहीं बैठा रहता है। +लक्ष्मणजी ने कहा यह दैव (भाग्य) तो कायर के मन का एक आधार (तसल्ली देने का उपाय) है। आलसी लोग ही दैव-दैव पुकारा करते हैं॥ +: लक्ष्मी कर्म करने वाले पुरुषरूपी सिंह के पास आती है देवता (भाग्य) देने वाला हैं" ऐसा तो कायर पुरुष कहते हैं। इसलिए देव (भाग्य) को छोड़ कर अपनी शक्ति से पौरुष (कर्म) करो, प्रयत्न करने पर भी यदि कार्य सिद्ध नहीं होता है तो देखो क्या समस्या है (कोई और समस्या तो नहीं?)। +* मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं ही निर्माता है। स्वामी रामतीर्थ +* भाग्य पर वह भरोसा करता है, जिसमें पौरुष नहीं होता। प्रेमचंद +* विचार सारे भाग्य का प्रारंभिक बिंदु है। नेपोलियन हिल +* भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर भाग्य सोया रहता है, और साहसपूर्वक खड़े होने पर भाग्य भी उठ खड़ा होता है। +* ईश्वर या प्रारब्ध या भाग्य को कोसने से कोई लाभ नहीं क्योंकि अपने को अपमान और लांछना की स्थिति में ला पटकने की सारी जिम्मेदारी हमारी है। सुभाषित +* जो कुछ भी होता है, वह अच्छे के लिए होता है। ईश्वर के पास हमेशा एक बेहतर योजना होती है। अज्ञात +* अपने पुरुषार्थ से अर्जित ऐश्वर्य का ही दूसरा नाम सौभाग्य है। अज्ञात +* भाग्य साहसी मनुष्य की सहायता करता है। वर्जिल +* प्रत्येक व्यक्ति का भाग्य एक बार अवश्य उदय होता है। यह बात अलग है कि वह उसका कितना लाभ उठाता है। भृगु +* भाग्यचक्र लगातार घूमा करता है, कौन कह सकता है कि आज मैं उच्च शिखर पर पहुँच जाऊंगा। कन्फ्यूशस +* सौभाग्य दरवाजा खटखटाता है और पूछता है क्या समझदारी घर में मौजूद है +* आज का पुरुषार्थ ही कल का भाग्य है। पाल शिरट + + +: संसार में मनुष्यत्व, मनुष्यत्व में कुलीनता, कुलीनता में धर्मित्व, और धर्मित्व में भी दया का होना, सार (रुप) है । +:धर्म का लक्षण अहिंसा है, और प्राणियों का वध अधर्म है । अर्थात् धर्म की इच्छावाले ने प्राणियों पर दया करनी चाहिए । +: सब इच्छित फल देनेवाली दयांगना का सेवन करना चाहिए । यदि सेवन किया जाय तो तुरंत ही वह मन को करुणामय बनाता है । +: लावण्यरहित रुप, विद्यारहित शरीर, जलरहित तालाब शोभा नहीं देते । उसी प्रकार दयारहित धर्म भी शोभा नहीं देता । +: इस संसार में जीवदया के तुल्य धर्म इतर कहीं भी नहीं है। इसलिये आपने सर्व प्रयत्न द्वारा जीवदया करनी चाहिए। +: देव और गुरुपूजा, तप, सर्वइंद्रियदमन, दान और शास्त्राध्��यन – ये सब क्रिया दया के बिना वैसे ही हैं जैसी कि सेनापति के बिना सेना। +* दया सबसे बड़ा धर्म है। महाभारत]] +* दया दोहरी कृपा है। इसकी कृपा दाता पर भी होती है और पात्र पर भी। शेक्सपियर]] +* दया के छोटे-छोटे से कार्य, प्रेम के जरा-जरा से शब्द हमारी पृथ्वी को स्वर्गोपम बना देते हैं। जूलिया कार्नी +* न्याय करना ईश्वर का काम है, आदमी का काम तो दया करना है। फ्रांसिस +* हम सभी ईश्वर से दया की प्रार्थना करते हैं और वही प्रार्थना हमें दया करना भी सिखाती है। -शेक्सपियर +* कृतज्ञता प्राप्त दयालुता की आन्तरिक भावना है। कृतज्ञता उस भावना को व्यक्त करने का स्वाभाविक आवेग है। धन्यवाद देना उस आवेग का अनुसरण है। हेनरी वैन डाइक +* दयालु शब्दों की ज्यादा कीमत नहीं होती है। फिर भी वे बहुत कुछ हासिल करते हैं। ब्लेस पास्कल +* क्योंकि यही दया है। यह किसी और के लिए कुछ नहीं कर रहा है क्योंकि वे नहीं कर सकते, बल्कि इसलिए कि आप कर सकते हैं। एंड्रयू इस्कंदर +* उदार व्यक्ति की विशेषता है कि वह कोई एहसान न करे बल्कि दूसरों पर दया करने के लिए तैयार रहे। अरिस्टोटल +* बहुत बार हम एक स्पर्श, एक मुस्कान, एक दयालु शब्द, एक सुनने वाले कान, एक ईमानदार तारीफ, या देखभाल करने के सबसे छोटे कार्य की शक्ति को कम आंकते हैं, जिनमें से सभी में जीवन को बदलने की क्षमता होती है। लियो बुस्काग्लिया +* आप दया से वह हासिल कर सकते हैं जो आप बल से नहीं कर सकते। पब्लियुस साइरस +* जब शब्द सच्चे और दयालु दोनों हों, तो वे दुनिया को बदल सकते हैं। बुद्ध +* सभी परिस्थितियों में पाँच चीजों का अभ्यास करना पूर्ण पुण्य का गठन करता है; ये पाँच हैं गुरुत्वाकर्षण, आत्मा की उदारता, ईमानदारी, ईमानदारी और दया। कन्फ्यूशियस +* हम दुनिया को कैसे बदलते हैं? एक समय में दयालुता का एक यादृच्छिक कार्य करके। मॉर्गन फ्रीमैन +* लोगों के लिए चीजें इस वजह से न करें कि वे कौन हैं या बदले में वे क्या करते हैं, बल्कि इस वजह से करें कि आप कौन हैं। हेरोल्ड एस. कुशनेर +* दयालुता इस समझ से शुरू होती है कि हम सभी संघर्ष करते हैं। चार्ल्स ग्लासमैन +* झुके हुए हृदय के लिए करूणा की बातें बाम या मधु से अधिक चंगा करती हैं। सारा फील्डिंग +* सरल दयालुता इस पहेली की सबसे महत्वपूर्ण कुंजी हो सकती है कि कैसे मनुष्य एक-दूसरे के साथ शांति से रह सकते हैं और इस ग्रह की ठीक से देखभाल कर सकते हैं जिसे हम सभी साझा करते हैं। बो लोज़ोफ़ +* कभी-कभी किसी व्यक्ति के जीवन को बदलने के लिए दयालुता और देखभाल में से केवल एक कार्य की आवश्यकता होती है। जैकी चैन +* दयालुता का अंतिम परिणाम यह है कि यह लोगों को आपकी ओर खींचता है। अनीता रोडिक +* अप्रत्याशित दयालुता मानव परिवर्तन का सबसे शक्तिशाली, कम खर्चीला और सबसे कम आंका गया एजेंट है। बॉब केरेयू +* दयालुता और विनम्रता बिल्कुल भी अधिक नहीं है। उनका कम उपयोग किया जाता है। टॉमी ली जोन्स +* एक महान व्यक्ति छोटे पुरुषों के साथ व्यवहार करने के तरीके से अपनी महानता दिखाता है। थॉमस कार्ली +* अपने आप में दयालुता वह शहद है जो दूसरे में मानवता का डंक मारता है। वाल्टर सैवेज लैंडर +* दयालुता का एक एकल कार्य सभी दिशाओं में जड़ें निकालता है, और जड़ें ऊपर उठती हैं और नए पेड़ बनाती हैं। अमेलिया ईअरहार्ट +* दयालुता के कई कारण हैं, और धर्म उनमें से एक है। फ्रैंस डी वाल +* हमेशा जरूरत से थोड़ा दयालु बनें। जम्स एम. बैरी +* मैं खुद को ठीक करने के तरीकों की खोज कर रहा हूं, और मैंने पाया है कि दयालुता सबसे अच्छा तरीका है। लेडी गागा +* एक अच्छे इंसान के जीवन का सबसे अच्छा हिस्सा दयालुता और प्रेम के अपने छोटे, नामहीन, अनियमित कृत्यों है। विलियम वर्डसवर्थ +* दयालुता एक साथी को अच्छा महसूस करती है कि क्या उसके साथ या उसके द्वारा किया जा रहा है। फ्रैंक ए क्लार्क +* आप किस ज्ञान को पा सकते हैं जो दयालुता से बड़ा है जीन जस्क्यु +* अच्छे लोग आपको आकर्षण और दया के साथ एक हजार समस्याओं से बाहर निकाल सकते हैं। अनुष्का हेम्पेल +* दयालुता वह धूप है जिसमें गुण बढ़ता है। रॉबर्ट ग्रीन इंगरसोल +* जीवन छोटा है लेकिन शिष्टाचार के लिए हमेशा समय होता है। राल्फ वाल्डो इमर्सन +* दया के रूप में इतना राजसी कुछ नहीं है, और सत्य के रूप में इतना शाही कुछ भी नहीं है। ऐलिस कैरी +* दयालुता और वफादारी एक राजा को सुरक्षित रखती है, दयालुता के माध्यम से उसका सिंहासन सुरक्षित हो जाता है। किंग सोलोमन +* आप कुत्ते की दया से बता सकते हैं कि मनुष्य कैसे होना चाहिए। कैप्टेन बीफ़ीट +* दयालुता वह धूप है जिसमें गुण बढ़ता है। रोबर्ट ग्रीन +* दयालु लोग सबसे अच्छे किस्म के लोग होते हैं। +* एक महान आदमी छोटे पुरुषों से व्यवहार करने के तरीके से अपनी महानता दिखाता है। थॉमस कार्लील +* महिलाओं में मैं सबसे ज्याद��� प्रशंसा करता हूं वे विश्वास और दयालु हैं। ऑस्कर द ला रेंट +* दयालुता की कोई सीमा नहीं होती है। कैथरीन स्टॉकट +* मैं हमेशा कहता हूं कि दयालुता आपके पास सबसे बड़ी सुंदरता है। एंडी मकडोवेल +* जब मानक सभ्यता है, तो अन्य गुण बढ़ सकते हैं: ईमानदारी, करुणा, दयालुता, और विश्वास। राजा कृष्णमूर्ति +* निर्दयी लोगों के लिए दयालु बनो, उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है। अज्ञात +* शब्दों में दयालुता आत्मविश्वास पैदा करती है। सोच में दयालुता गहराई पैदा करती है। देने में दयालुता प्यार पैदा करती है। लाओत्से +* हमें अधिक दयालुता, अधिक करुणा, अधिक खुशी, और हंसी की आवश्यकता है। मैं निश्चित रूप से उसमें योगदान देना चाहता हूं। एलेन देगेंर्स +* दया के साथ कार्य करें, लेकिन कृतज्ञता की उम्मीद न करें। कन्फ्यूशियस +* दयालुता हमेशा फैशनेबल होती है, और हमेशा स्वागत है। एमेली +* एक महान आदमी छोटे पुरुषों से व्यवहार करने के तरीके से अपनी महानता दिखाता है। थॉमस कार्लील +* दयालुता वह भाषा है जो बहरे सुन सकते है और अंधे देख सकते है। मार्क ट्वेन +* दयालुता ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है, और इसकी मान्यता ज्ञान की शुरुआत है। थिओडोर इसाक रुबिन +* जब मैं जवान था, तो मैं बुद्धिमान लोगों की प्रशंसा करता था; जैसे-जैसे मैं बड़ा हो जाता हूं, मैं दयालु लोगों की प्रशंसा करता हूं। इब्राहीम यहोशू हेशेल +* सच्ची सुंदरता हमारे कार्यों और आकांक्षाओं और दयालुता के माध्यम से पैदा होती है जो हम दूसरों को देते हैं। आलेख वेक +* एक छोटे से विचार और थोड़ी दयालुता अक्सर एक बहुत अधिक पैसे से अधिक मूल्यवान होती है। जॉन रस्किन +* दयालुता उन लोगों से ज्यादा प्यार करती है जो उनके लायक हैं। जोसफ जौबर्ट +* सुंदर आंखों के लिए, दूसरों में अच्छे की तलाश करें; सुंदर होंठों के लिए, केवल दयालुता के शब्दों को बोलो; और संतुलन के लिए, ज्ञान के साथ चले कि आप कभी अकेले नहीं हैं। ऑड्रे हेपबर्न +* दयालुता का सबसे छोटा कार्य सबसे बड़े इरादे से अधिक मूल्यवान है। खलील जिब्रान + + +* जीवन में यहां मनुष्यों के लिए त्याग से बढ़ कर कुछ नहीं है। जातक +* श्रेय के लिए, मनुष्य को सब त्याग करना चाहिए। जयशंकर प्रसाद +* मनुष्य में उच्च प्रकृति हमेशा किसी ऐसी चीज की तलाश करती है जो खुद से परे हो और फिर भी उसका सबसे गहरा सत्य हो; जो अपने सारे बलिदान का दावा करता है, फिर भी ���स बलिदान को अपना प्रतिफल देता है। यही मनुष्य का धर्म है, मनुष्य का धर्म है और मनुष्य की आत्मा ही पात्र है। रवीन्द्रनाथ टैगोर +* लेकिन आप जो हैं उसका त्याग करना और बिना विश्वास के जीना, यह मरने से ज्यादा भयानक भाग्य है। जोन ऑफ आर्क +* अपने जुनून का पालन करें, कड़ी मेहनत और बलिदान के लिए तैयार रहें, और सबसे बढ़कर, किसी को भी अपने सपनों को सीमित न करने दें। डोनोवन बेली. +* महत्वपूर्ण बात यह है: हम जो बन सकते हैं उसके लिए किसी भी क्षण बलिदान करने में सक्षम होना। चार्ल्स डू बोस +* आत्म-अस्वीकार केवल एक तरीका है जिसके द्वारा उसकी प्रगति को गिरफ्तार किया जाता है, और आत्म-बलिदान जंगली के अंग-भंग से बचने के लिए होता है। ऑस्कर वाइल्ड +* महत्वपूर्ण बात यह है कि हम जो बन सकते हैं उसके लिए हम जो कुछ भी हैं, उसका त्याग करने के लिए किसी भी क्षण सक्षम होना। महर्षि महेश योगी +सच्चा प्यार निस्वार्थ है। यह बलिदान के लिए तैयार है। साधु वासवानी +* आपकी सफलता की गति केवल आपके समर्पण और आप जो त्याग करने को तैयार हैं, उस तक सीमित है। नाथन डब्ल्यू. मॉरिस +* अपने सर्वश्रेष्ठ से कम कुछ देना उपहार का त्याग करना है। स्टीव प्रीफोंटेन +* सबसे उदात्त कार्य है अपने सामने दूसरे को स्थापित करना। विलियम ब्लेक +* सफलता कोई दुर्घटना नहीं है। यह कड़ी मेहनत है, लगन है, सीखना है, पढ़ाई है, त्याग है और सबसे बढ़कर जो आप कर रहे हैं या करना सीख रहे हैं उससे प्यार है। पेले +* आत्मग्लानि केवल दुख की ओर ले जाती है। विपरीत परिस्थितियों और आत्म-बलिदान के संघर्ष के बिना कुछ भी महान या सार्थक कभी भी पूरा नहीं होता है मरियम जमीलाह +* समय, एक ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने वास्तव में इसका एक सेकंड भी महसूस नहीं किया है, यह एक महान बलिदान नहीं है। जोसफिन हार्ट +* अपने सपने को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। आपको इसके लिए त्याग करना होगा और कड़ी मेहनत करनी होगी। लियोनेल मेसी +* त्याग के बिना सफलता नहीं मिलती। यदि आप बिना त्याग के सफल होते हैं तो इसका कारण यह है कि आपके सामने किसी ने कष्ट सहा है। यदि आप सफलता के बिना बलिदान करते हैं तो ऐसा इसलिए है क्योंकि कोई बाद में सफल होगा। एडोनीराम जुडसन +* प्रसन्नता एक उदार और धिक्कार व्यक्ति की निशानी है जो सब कुछ भूलकर, यहाँ तक कि स्वयं भी, अपने ईश्वर को प्रसन्न करने की कोशिश करता है, जो वह आत्माओं के लिए करती है। प्रसन्नता अक्सर एक लबादा होता है जो बलिदान के जीवन और ईश्वर के साथ एक निरंतर मिलन को छुपाता है। मदर टेरेसा +* अंत में, हम सभी जीतना चाहते हैं, इसलिए जब आप किसी विशेष चीज का हिस्सा बनना चाहते हैं तो हर किसी को त्याग करना पड़ता है। जैसन टैटम +* चीजें बदलती हैं, लोग बदलते हैं, लेकिन आप हमेशा आप ही रहेंगे, इसलिए अपने प्रति सच्चे रहें और कभी भी किसी के लिए यह त्याग न करें कि आप कौन हैं। ज़ेन मलिक +* सच्चा क्रांतिकारी बनने के लिए आपको प्रेम को समझना होगा। प्रेम, त्याग और मृत्यु। सोनिया सांचेज +यह कहना पर्याप्त नहीं है कि हमें युद्ध नहीं करना चाहिए। शांति से प्रेम करना और उसके लिए बलिदान करना आवश्यक है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर +* केवल वही समझ सकता है कि खेत क्या होता है, देश क्या होता है, जिसने अपने खेत या देश के लिए अपना कुछ हिस्सा कुर्बान कर दिया होगा, उसे बचाने के लिए संघर्ष किया होगा, उसे सुंदर बनाने के लिए संघर्ष किया होगा। एंटोनी डी सैंटो +* यदि आपका कोई सपना है, तो वह निश्चित रूप से कड़ी मेहनत, समर्पण, बलिदान, सब कुछ के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। कार्ली लॉयड +* सपने सच होते हैं, अगर केवल हम काफी मेहनत करते हैं। आप जीवन में कुछ भी पा सकते हैं यदि आप इसके लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देंगे। जेएम बैरी +* महान उपलब्धि आमतौर पर महान बलिदान से पैदा होती है, और कभी भी स्वार्थ का परिणाम नहीं होती है। नेपोलियन हिल +* मेरे लिए, कोई भी वैचारिक या राजनीतिक विश्वास मानव जीवन के बलिदान को उचित नहीं ठहराएगा। मेरे लिए, जीवन का मूल्य निरपेक्ष है, बिना किसी रियायत के। यह परक्राम्य नहीं है। एडगर रामिरेज़ +* हमें स्वस्थ पर्यावरण के लिए एक मजबूत अर्थव्यवस्था का त्याग करने की जरूरत नहीं है। डेनिस वीवर +* लेकिन जिसने वास्तव में बलिदान किया है वह जानता है कि वह चाहता था और बदले में कुछ मिला शायद अपने लिए कुछ कि उसने यहां और अधिक पाने के लिए या कम से कम यह महसूस करने के लिए छोड़ दिया कि उसके पास 'अधिक' है। फ्रेडरिक नीत्शे +* स्थिरता किसी प्रकार के नैतिक बलिदान या राजनीतिक दुविधा या एक परोपकारी कारण की तरह नहीं हो सकती। यह एक डिजाइन चुनौती होनी चाहिए। बजर्के इंगल्स +* महान कार्य के लिए महान त्याग की जरूरत होती हैं। स्वामी विवेकानन्द +* नींद, थकान, भय, क्रोध आलस्य और बिलंब करने का स्वाभाव – इन अवगुणों को उन्नति के इच्छुक पुरुष को त्याग देना चाहिए। हितोपदेश +* जब जगत् का वियोग निश्चित है, तब धर्म के लिए परिवार से स्वयं पृथक् हो जाना अवश्य श्रेष्ठ है। अश्वघोष +* इच्छाओं का त्याग करने वाले यात्रियों.के गुण गाना उतना ही असंभव है, जितना संसार में अब तक मरे जीवो की गिनती करना। श्री निक्वार्क +* कोई भी मनुष्य स्वयं के लिए गुलाब नहीं उगाता। आनंद प्राप्ति के लिए सुंदरता को दुसरो के साथ बांटने से ही उसकी प्राप्ति में वृद्धि होती है। चेस्टर चार्ल्स +* त्याग के अतिरिक्त और कहां वास्तविक आनन्द मिल सकता है, त्याग के बिना न ईश्वर प्रेरणा हो पाती है, न प्रार्थना। रामतीर्थ +* छोटी वस्तुओं की अपेक्षा बड़ी वस्तुओं का त्याग सरल है। माल्टेन +* जिस त्याग में कड़वाहट है, वह शांति का मार्ग नही। मुनि गणेश वर्णी +* दीपशिखा अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। अमृतवर्धन +* मान त्याग देने पर मनुष्य सबका प्रिय हो जाता है, क्रोध छोड़ देने पर शोकरहित हो जाता है, काम का त्याग कर देने पर धनवान होता है और लोभ छोड़ देने पर सुखी हो जाता है। युधिष्ठिर +* ख़ुशी इस बात पर निर्भर करती है कि आप क्या दे सकते है इस पर नहीं कि आप क्या पा सकते हो। महात्मा गांधी +* त्याग के बिना किसी स्वार्थ की प्राप्ति की नहीं होती। रवीन्द्रनाथ ठाकुर +* जिसकी कलाएं देवताओं ने पी डाली है, ऐसा क्षीण चन्द्रमा वृद्धिगत चन्द्रमा की अपेक्षा अधिक प्रशंसनीय है। कालिदास +* कुल की रक्षा के लिए एक मनुष्य का, ग्राम की रक्षा के लिए कुल का, देश की रक्षा के लिए ग्राम का और आत्मा की रक्षा के लिए पृथ्वी का त्याग कर देना चाहिए। वेदव्यास +* मुझे लंबे समय से विश्वास है कि बलिदान देशभक्ति का शिखर है। बॉब रिले +* त्याग और बलिदान किए बिना यदि तुम ज्ञान प्राप्त करना चाहते हो तो उसका देवता तुम्हारे लिए द्वार नहीं खोलेगा। इस संसार में कुछ भी पाने के लिए उसका मूल्य चुकाना ही पड़ता है। स्वेट मार्डन +* त्याग के बिना कोई बदलाव नहीं है। ग्लोरिया एलेड +* हम अक्सर भूल जाते हैं कि विकास को त्याग की आवश्यकता है। अल्बर्टो +* आवश्यकताएं कम करे आवश्यकताएं जितनी कम होगी, उतना ही अधिक सुख होगा। स्वामी रामतीर्थ +* मान को त्याग देने पर मनुष्य प्रिय होता है. क्रोध को त्याग कर शोक नही करता. काम को त्याग कर वह अर्थवान्लेकिन आप जो हैं उसका त्याग करना औ��� बिना विश्वास के जीना, यह मरने से ज्यादा भयानक भाग्य है। वेदव्यास +* पाने से पहले दीजिये। नेपोलियन हिल +* संसार में सबसे बड़े अधिकार सेवा और त्याग से मिलते है। प्रेमचन्द +* त्याग और उपलब्धि एक ही सिक्के के दो पहलू है। सुभाषचन्द्र बसु +* जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसे घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है और जो इच्छाओं का बंधुआ है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्यागी जहां रहे, वहीं वन और वहीं वन-कन्दरा है। महाभारत +* आइये अपने वर्तमान की कुर्बानी दे दें ताकि हमारे बच्चों का भविष्य बेहतर हो सके। अब्दुल कलाम +* जिस आदमी की त्याग की भावना अपनी जाति.से आगे नहीं बढ़ती, वह स्वयं स्वार्थी होता है और अपनी जाति को भी स्वार्थी बनाता है। महात्मा गांधी +* जिसमें त्याग भाव नहीं है, वह सेवा का काम नही कर सकता। महात्मा गाँधी +* अपना जीवन लेने के लिए नहीं, देने के लिए है। विवेकानन्द +* अपने जुनून का पालन करें, कड़ी मेहनत और त्याग के लिए तैयार रहें, और सबसे ऊपर, किसी को भी अपने सपनों को सीमित न करने दें। डोनोवन बेली + + +* एक दिए से कई दिए जलाये जा सकते है, और ऐसा करके उस दिए का जीवन घटता नहीं है। इसी प्रकार खुशियां कभी भी बाटने से घटती नहीं है। महात्मा बुद्ध +* मानव की पहचान उसके गुणों से होती है, न की ऊँचें सिंघासन पर बैठकर। महल के ऊँचें शिखर पर बैठकर कौआ गरुण नहीं हो सकता। आचार्य चाणक्य +* अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है – मुंशी प्रेमचंद +* विज्ञान मानवता के लिए एक ख़ूबसूरत तोहफा है और किसी को भी इस तोहफे को बिगड़ना नहीं चाहियें। डॉ. अब्दुल कलाम +* दयालुता होना मानवता का सबसे अच्छा रूप है। डोरिस ली +* मानव जाति के लिए अगला विकासवादी कदम मनुष्य से दयालु की ओर बढ़ना है। अज्ञात +* मेरे पास सभी लोगों के प्रति कर्तव्य की भावना है और उन लोगों के प्रति लगाव है जिनके साथ मैं अंतरंग हो गया हूं। अल्बर्ट आइंस्टीन +* यदि आप, लोगों का न्याय करते हैं, तो आपके पास उन्हें प्यार करने का समय नहीं होगा। मदर टेरेसा +* आप किसी की मुस्कुराहट का कारण बनो। ऐसा कारण जिससे कोई भी व्यक्ति प्रेम महसूस करे और लोग अच्छाई पर विश्वास करे। रॉय. टी. बेनेट +* मानव को क्रोध से नहीं बल्कि प्रेम से जीता जा सकता है और क्रोध को क्रोध से नहीं बल्कि क्षमा से जीता जा सकता है। जो व्यक्ति क्षमा को धारण करके रहता ह��� वह महान बन जाता है। मुनि +* आपको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहियें। मानवता एक सागर के समान है। यदि सागर की कुछ बूंदें गंदी भो जो जाएँ तो इससे पूरा सागर मैला नहीं होता। महात्मा गाँधी +* इस दुनियां में लोग अक्सर महान बनने की चाहत में इंसान बनना भूल जाते हैं। अज्ञात +* आज मानवता के पास बेहतर वैश्विक व्यवस्था लाने के लिए पर्याप्त आर्थिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संसाधन हैं। हंस कुंग +* बलवान लोग अपने लिए खड़े होते हैं लेकिन मज़बूत लोग दूसरों के लिए खड़े होते हैं। अज्ञात +* आप मुझे पसंद करें या नापसंद करें मुझे इससे कोई सरोकार नहीं है … बस मैं यही पूछता हूं कि आप एक इंसान के रूप में मेरा सम्मान करते हैं। जैकी रॉबिन्सन +* प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं, विलासिता नहीं। उनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती। दलाई लामा +* दूसरों की सेवा करना वह किराया है जो आप अपने कमरे के लिए यहाँ पृथ्वी पर देते हैं। मुहम्मद अली +* खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप खुद को दूसरों की सेवा में खो दें। महात्मा गांधी +* एक किताब, एक कलम, एक बच्चा और एक शिक्षक दुनिया बदल सकते हैं। मलाला यूसूफ़जई +* क्रोध की आग को क्षमा, अहंकार की अकड़ता को नम्रता, माया को सरलता और लोभ को संतोष से समाप्त किया जा सकता है। साध्वी +* मस्तिष्क कोई कचरे का डिब्बा नहीं हैं जिसमे आप क्रोध, अहंकार, लोग, मोह-माया और जलन रखें। मस्तिष्क तो एक ऐसा खजाना है जिसमे आप ज्ञान-विज्ञान, प्यार-सम्मान, दया-भाव जैसी बहुमूल्य चीज़े रख सकते हैं। अज्ञात +* भले ही मेरा दर्द किसी के हंसी की वजह हो जाये। पर मेरी हंसी किसी के दर्द की वजह नहीं होनी चाहियें। चार्ली चैपलिन +* मानव जाति अपनी कल्पना से संचालित होती है। नेपोलियन +* लोग शिक्षित हो गए हैं लेकिन मानव नहीं बने हैं। अब्दुल सत्तार ईधी +* हर कोई महान हो सकता है, क्योंकि कोई भी सेवा कर सकता है। सेवा करने के लिए आपके पास कॉलेज की डिग्री होने की जरूरत नहीं है। आपको इसका कोई विषय नहीं चुनना होगा और न ही क्रिया को सेवा के लिए सहमत होना होगा। आपको बस एक दया से भरे दिल और प्रेम से उत्पन्न एक आत्मा की आवश्यकता है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर +* केवल दूसरों के लिए सेवा में जीने वाला जीवन जीने योग्य है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* मानव सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। आम लोगों के लिए काम करना सबसे बड़ा पंथ है। वुड���ो विल्सन +* यदि आप मानवता के एक प्रतिशत भाग्यशाली हैं, तो आप बाकी मानवता के लिए अन्य 99 प्रतिशत के बारे में सोचने के लिए इसका श्रेय देते हैं। वारेन बफेट +* जीवन का एकमात्र उदेश्य मानवता की सेवा करना है। लियो टॉल्स्टॉय + + +: कुतर्क ज्ञान को रोकने वाला, शान्ति का विनाशक, श्रद्धा को भंग करने वाला और अभिमान को बढ़ाने वाला मानसिक रोग है, जो कि अनेक प्रकार से ध्यान का शत्रु सिद्ध होता है, अतः मोक्षाभिलाषियों को कुतर्क में अपना मन नहीं लगाना चाहिए। +* तर्क एक उत्पादक चिन्तन है जिसमें पहले के अनुभव किसी समस्या को हल करने के लिए नए ढंगों से संगठित या संयोजित किये जाते हैं। प्रो० गेट्स और अन्य +* तर्क की क्रिया एक सम्बद्ध किया है जिसमें एक या दूसरे प्रकार के प्रतीकों का हस्तवन शामिल होता है। प्रो० क्रूज़ +* तर्क तथ्यों या घटनाओं में सम्बन्धों के अनुमान, साक्ष्यों के तोलन और मूल्यांकन और तार्किक निष्कर्ष पर पहुँचने की मानसिक प्रक्रिया है। प्रो० गुड +* तर्क विचारात्मक चिन्तन है। प्रो० डीवी +* तर्क चिन्तन की एक प्रक्रिया जिसमें अनुमान शामिल हो; या सामान्य सिद्धान्तों का प्रयोग करते हुए समस्या हल करने की प्रक्रिया। प्रो० ड्रेवर + + +* महान कार्य छोटे-छोटे कार्यों से बने होते हैं। +* हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो, घृणा से विनाश होता है। +* हार और जीत यह आपके सोच पर निर्भर है, मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है। +* गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती है, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने की साहस हो। +* एक सज्जन व्यक्ति वह है जो अनजाने में किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए। +* दिलेरी डर की गैरमौजूदगी नहीं, बल्कि यह फैसला है कि डर से भी जरूरी कुछ है। +* सफलता कभी अंतिम नहीं होती, विफलता कभी घातक नहीं होती, इनमें जो मायने रखता है वो है साहस। +* किसी के द्वारा प्रगाढ़ता से प्रेम किया जाना आपको शक्ति देता है और किसी से प्रगाढ़ता से प्रेम करना आपको साहस देता है। +* सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है। +* जीवन किसी के साहस के अनुपात में सिमटता या विस्तृत होता है। +* प्यार पर एक और बार और हमेशा एक और बार यकीन करने का साहस रखिए। +* अपने सिर को छोड़ दो, लेकिन उन लोगों को त्यागें जिन्हें आपने संरक्षित करने के लिए किया है। अपना जीवन दो, लेकिन अपना विश्वास छोड़ दो। +* गलतियां हमेशा क्षमा क�� जा सकती हैं, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो। +* आध्यात्मिक मार्ग पर दो सबसे कठिन परिक्षण हैं, सही समय की प्रतीक्षा करने का धैर्य और जो सामने आए उससे निराश ना होने का साहस। +* साहस ऐसी जगह पाया जाता है जहां उसकी संभावना कम हो। +* जिनके लिए प्रशंसा और विवाद समान हैं तथा जिन पर लालच और लगाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, उस पर विचार करें। +* अपना सिर छोड़ दो, लेकिन उन लोगों का त्याग न करें जिन्हें आपने रक्षा करने के लिए किया है। अपने जीवन का बलिदान करें, लेकिन अपने विश्वास को त्यागें नहीं। +* इस भौतिक संसार की वास्तविक प्रकृति का सच्चा ज्ञान, इसके विनाशकारी, क्षणभंगुर और भ्रामक पहलू दुःख में एक व्यक्ति पर सबसे अधिक डालते हैं। +अपने सिर को छोड़ दो, लेकिन उन लोगों को त्यागें जिन्हें आपने संरक्षित करने के लिए किया है। अपना जीवन दो, लेकिन अपना विश्वास छोड़ दो। +साहस ऐसे स्थान पाया जाता है जहाँ उसकी उम्मीद कम हो। +इस भौतिक संसार की वास्तविक प्रकृति का सही अहसास, इसके विनाशकारी, क्षणिक और भ्रमपूर्ण पहलुओं को पीड़ित व्यक्ति पर सबसे अच्छा लगता है। + + +कोएनराड एल्स्ट जन्म 7 अगस्त 1959) एक फ्लेमी (Flemish) लेखक तथा हिन्दू समर्थक दक्षिणपन्थी विचारक हैं। वे इस विचार के समर्थक हैं कि आर्य भारतीय मूल के हैं तथा वे भारत से प्रवास करते हुए अन्य देशों में जा बसे हैं। वे फ्लेमी आन्दोलन (Flemish movement) से भी जुड़े हैं जो प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की मांग करती है। एल्स्ट, २० से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं। उनकी ये पुस्तकें इतिहास, हिन्दुत्व, और भारतीय राजनीति से सम्बन्धित हैं। उनकी रुचि के प्रमुख विषय ये हैं- हिन्द-यूरोपीय भाषाओं का मूल, राम मन्दिर विवाद, भारत में पन्थनिरपेक्षता, तथा महात्मा गाँधी की ऐतिहासिक विरासत। +* जनजातीय अन्तर्विवाह (सगोत्रीय विवाह) में हिन्दुओं की जाति व्यवस्था की व्याख्या छिपी हुई है। हिन्दुओं का वैदिक समाज वर्णाश्रम की सुव्यवस्था से युक्त एक उन्नत और विभेदित समाज था। उत्तर-पश्चिम से आरम्भ होकर यह समाज भारत के आन्तरिक भागों में फैला। और अधिक जनजातियाँ इसमें सम्मिलित हुईं। लेकिन वे अपनी विशिष्ट परम्पराओं, जैसे सगोत्रीय विवाह, का पालन करने के लिये स्वतन्त्र थे। इस प्रकार अन्तर्विवाह करने वाले विभिन्न प्राचीन जनजातीय समाज ही आज की 'जातियाँ' हैं। कोएनराड एल्���्ट, The Sarna a case study in natural religion +* हिंदू धर्म का सार 'सत्य' है न कि 'सहनशीलता' या 'सभी धर्मों के लिए समान सम्मान'। सतही तौर पर ईसाई धर्म और इस्लाम के साथ समस्या उनकी असहिष्णुता और कट्टरता है। लेकिन यह असहिष्णुता इन धर्मों की असत्यता का परिणाम है। यदि आपका 'धर्म' भ्रम पर आधारित है, तो आप इस धर्म की तर्कपूर्ण परीक्षा की अनुमति ही नहीं देंगे और इसको अधिक स्थायी विचार प्रणालियों से बचायेंगे। एकेश्वरवादी धर्मों के साथ मूल समस्या यह नहीं है कि वे असहिष्णु हैं बल्कि यह कि वे असत्य या अनृत हैं। Sita Ram Goel: Jesus Christ An Artifice for Aggression (1994 में + + +: अर्थ है- मानव कुमार्ग पर चलकर कमाए गए धन का नगण्य भाग दान करके आकाश की ओर देखता है कि उसे स्वर्ग ले जाने वाला विमान अभी कितनी दूर है? अज्ञानी मानव द्वारा ऐसा किया जाना अन्धविश्वास को ही दर्शाता है। +: यदि पत्थर को पूजने से भगवान मिलें तो मं पहाड़ की पूजा करूँगा। इससे तो अच्छी चक्की (की पूजा करना) है जिससे पीसकर लोग खाते हैं। +* तर्क करने से अच्छे भविष्य का निर्माण होता है जबकि अन्धविश्वास से वर्तमान भी रोगग्रस्त हो जाता है। Iain Banks, Piece (1989) +* अपराध करने वाले बड़े अन्धविश्वासी होते हैं। बैटमैन (१९३९) +* सही रास्ते पर चलने की इच्छा रखने वाले को स्वयं सोचना पड़ेगा क्योंकि अन्धविश्वास संसार की सबसे बड़ी बुराइयों में से एक है। जिद्दू कृष्णमूर्ति, At the Feet of the Master (1911) +* तीन चीजें सबसे अधिक हानि करतीं हैं- गल्प (गप्प निर्दयता और अन्धविश्वास। जिद्दू कृष्णमूर्ति, At the Feet of the Master (1911) +* डर, अन्धविश्वास का मुख्य स्रोत है और निर्दयता के प्रमुख स्रोतों में से एक है। बर्ट्रान्ड रसेल, An Outline of Intellectual Rubbish (1943 23. + + +गुरु ग्रन्थ साहिब सिखों का पवित्र ग्रन्थ है। इसे 'आदि ग्रन्थ' भी कहते हैं। +* जब आप में सहज ज्ञान उपजेगा तभी आपकी बुद्धि जागेगी। +* श्री राम भी चले गए और रावण भी चला गया भले ही उनके कितने भी रिश्तेदार थे। नानक कहते हैं- कुछ भी हमेशा के लिए नहीं रहता। जीवन एक सपने की तरह है। +* जिस काम में आपको संतुष्टि मिलती है वह कर्म की एक शुद्ध क्रिया है। +* प्रत्येक प्राणी में केवल एक तरह की वायु, पृथ्वी और केवल एक ही प्रकाश है। +* पाखंड का अभ्यास करने से और अपने मन को सांसारिक वस्तुओं से जोड़ने से, आपका संदेह कभी दूर नहीं होगा। +* जो आपने अच्छे कर्म किए हैं केवल वही आपके साथ रहेंगे। यह अवसर फिर नहीं आएगा। +* धन दौलत की खातिर, लोग नौकर और चोर बन जाते हैं। लेकिन यह उनके साथ नहीं जाता और दूसरे के लिए यहीं रह जाता है। +* महिमा वाहेगुरु के हाथ में ही है, आशीर्वाद उन लोगों को मिलता है जिन से वो प्रसन्न होते हैं। +* वही अकेला व्यक्ति बुद्धिमान है, जो आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करता है, दिव्य गुणों पर ध्यान के माध्यम से। +* हर कोई कहता है कि भगवान एक है, लेकिन हर एक अहंकार और अभिमान में तल्लीन है। +* लालच, अहंकार और अत्यधिक अहंकार में दुनिया इच्छा की आग में जल रही है। +* ब्रह्मांड का निर्माण करने के बाद, भगवान का वास होता है, वह, जिसे जीने का लाभ मिलता है, वास्तव में भगवान का सेवक है। +* स्नान के बिना भी संत एक संत ही रहता है। एक चोर हमेशा एक चोर होता है चाहे वह पवित्र जल में कितना भी स्नान करे। +* प्रेम भक्ति के माध्यम से, अहंकार वाष्पित हो जाता है। +* अच्छे कर्मों के कर्म के बिना, आप केवल खुद को नष्ट कर रहे हैं। +* जिसे अपने आप पर कोई विश्वास नहीं है वह कभी भी ईश्वर में विश्वास नहीं रख सकता है। +* यदि ईश्वर एक है तो उसे उसी के रास्ते से प्राप्त किया जा सकता है, किसी दूसरे रास्ते से नहीं। +* यहां तक कि धन के ढेर और विशाल प्रभुत्व वाले राजाओं और सम्राटों की तुलना भगवान के प्रेम से भरी चींटी से नहीं की जा सकती। +* जिस व्यक्ति को सुख और दुःख एक ही समान लगते हैं, उसे कोई चिन्ता कैसे हो सकती है। +* जो मरने के लिए पैदा हुआ है, उसकी नहीं, बल्कि उसकी पूजा करो जो अनंत है और पूरे ब्रह्मांड में निहित है। +* आप सभी आत्माओं के दाता हैं और जीवित प्राणियों के भीतर का जीवन हैं। +* सभी ऊपर वाले मालिक के फरमान के साथ आते हैं। उसका फरमान सब पर लागु होता है। +* तो उसे बुरा क्यों कहें? उससे राजा पैदा होते हैं। +* लेकिन जब बुद्धि दागदार और पाप से प्रदूषित होती है, तो यह केवल ऊपर वाले का नाम जपने से ही साफ हो सकती है। +* जीभ एक ऐसे तेज चाकू की तरह है जो खून को गिराए बिना मारता है। +* मैं हमेशा उस गुरु के लिए कृतज्ञ हूँ, जिसने मुझे प्रभु की सेवा करने के लिए प्रेरित किया है। +* आप केवल प्रेम से वाहेगुरु को पा सकते हो। +* एक मुसलमान, हिंदू, सिख या ईसाई बनने से पहले हम सब को एक अच्छा व्यक्ति बनना चाहिए। +* दूसरों को खुश करने की कोशिश में आप खुद को भी खो बैठोगे। + + +* सूचना, २१वीं शताब्दी का तेल है और आंकड़ा-विश्लेषण दहन इंजन। पीटर सोन्दरगार��द, गार्टनर इन्कॉर्पोरेशन के उपाध्यक्ष और अनुसन्धान के ग्लोबल प्रमुख +* सभ्यता के आरम्भ से लेकर २००३ तक ५ इक्जाबाइट सूचना का सृजन हुआ था। किन्तु उतनी ही सूचना आजकल हर दो दिन में सृजित हो रही है। एरिक श्मिट, गूगल के इक्सक्यूटिव चेयरमैन + + +* लिखकर आप कुछ भी बना सकते हैं। सी एस लिविस +* शब्द के बाद शब्द के बाद शब्द एक शक्ति है। Margaret Atwood +* लेखक का उद्देश्य सभ्यता द्वारा अपने आप को नष्ट होने से बचाए रखना है। अल्बर्ट कैमस (Albert Camus) +* मन को केन्द्रित करने के लिये शब्द एक लेंस का काम करते हैं। Ayn Rand + + +* हमें अपनी दृष्टि से दूसरे देशों के साहित्य को देखना होगा, दूसरे देशों की दृष्टि से अपने साहित्य को नहीं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (चिन्तामणि भाग-2) +* जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान-दशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है। आचार्य शुक्ल (रस मीमांसा) +* सर्वभूत को आत्मभूत करके अनुभव करना ही काव्य का चरम लक्ष्य है। आचार्य शुक्ल (काव्य में प्राकृतिक दर्शन) +* जिस कवि में कल्पना की समाहार-शक्ति के साथ भाषा की समास-शक्ति जितनी ही अधिक होगी, उतना ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा। यह क्षमता बिहारी में पूर्ण रूप से वर्तमान थी। आचार्य शुक्ल (हिन्दी साहित्य का इतिहास) +* ये (घनानन्द) साक्षात् रस-मूर्ति और ब्रज भाषा के प्रधान स्तंभों में है। प्रेम की गूढ़ अन्तर्दशा का उद्घाटन जैसा इनमें है वैसा हिन्दी के अन्य शृंगारी कवि में नहीं। आचार्य शुक्ल (हिन्दी साहित्य का इतिहास) +* इनका-सा (देव कवि सा) अर्थ सौष्ठव और नवोन्मेष विरले ही कवियों में मिलता है। रीतिकाल के कवियों में से बङे ही प्रगल्भ और प्रतिभासंपन्न कवि थे, इसमें संदेह नहीं। आचार्य शुक्ल (हिन्दी साहित्य का इतिहास) +* कामायनी में उन्होंने (प्रसाद ने) नर-जीवन के विकास में भिन्न-भिन्न भावात्मिका वृत्तियों का योग और संघर्ष बङी प्रगल्भ और रमणीय कल्पना द्वारा चित्रित करके मानवता का रसात्मक इतिहास प्रस्तुत किया है। आचार्य शुक्ल (हिन्दी साहित्य का इतिहास) +* कविता का संबंध ब्रह्म की व्यक्त सत्ता से है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल +* अनूठी से अनूठी उक्ति तभी काव्य हो सकती है, जबकि उसका संबंध कुछ दूर का ही सही हृदय के किसी भाव या वृत्ति से होगा। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल +* यथार्थवाद की विशेषता में प्रधान है – ���घुता की ओर साहित्यिक दृष्टिपात जयशंकर प्रसाद +* कविता की भाषा से मनोरंजन तो होता है, परन्तु वह जीवन-संग्राम के काम नहीं आता। सूर्यकान्त त्रिपाठी ’निराला’ +* सत्य अपनी एकता में असीम रहता है, तो सौन्दर्य अपनी अनेकता में अनंत। महादेवी वर्मा +* राजनीति और साहित्य मात्र अभिव्यक्ति में भिन्न है, उनका मूल है आज का यथार्थ, उसके लक्ष्य, उसके अभिप्रेत, उसके संघर्ष। मुक्तिबोध +* चरम व्यक्तिवाद ही ’प्रयोगवाद’ का केन्द्र बिन्दु है। डाॅ. नामवर सिंह +* मैंने कला-पक्ष की अवहेलना न करते हुए भी भाव-पक्ष को अधिक मुख्यता दी है। बाबू गुलाब राय (अध्ययन और आस्वाद) +* काव्य संसार के प्रति कवि की भाव-प्रधान मानसिक प्रतिक्रियाओं की कल्पना के ढांचे में ढली हुई, श्रेय की प्रेयरूपा प्रभावोत्पादक अभिव्यक्ति है। बाबू गुलाबराय (सिद्धान्त और अध्ययन) +* दमित प्रवृत्तियों के उदात्तीकरण द्वारा ही मनुष्य स्थूल पशुचेतना से ऊपर उठा और मानव में काव्यात्मक सौन्दर्य-चेतना तभी जगी, किसी दूसरे कारण से नहीं। देखा-परखा, इलाचन्द्र जोशी +* छायावाद और ग्रामीण बोलियों के नये गीत एक ही रस-परिवार के है, सहोदर है। इन गीतों से प्रगतिवाद और प्रयोगवाद फीका लगने लगा है। दोनों बासी हो गये है। ताजगी की दृष्टि से नये गीत ही नयी कविता है। वृत्त और विकास, पं. शांतिप्रिय द्विवेदी +* साहित्य मानव-जीवन से सीधा उत्पन्न होकर सीधे मानव-जीवन को प्रभावित करता है। साहित्य में उन सारी बातों का जीवन्त विवरण होता है, जिसे मनुष्य ने देखा है, अनुभव किया है, सोचा है और समझा है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (साहित्य सहचर) +* मैं कविता को जीवन तक पहुँचने की सबसे सीधी और सबसे छोटी राह मानता हूँ। यह मस्तिष्क नहीं हृदय की राह है। रामधारी सिंह दिनकर (अर्द्धनारीश्वर) +* कला सामाजिक अनुपयोगिता की अनुभूति के विरुद्ध अपने को प्रमाणित करने का प्रयत्न-अपर्याप्तता के विरुद्ध विद्रोह है। अज्ञेय (त्रिशंकु) +* कला और विषय वस्तु दोनों ही समान रूप से साहित्य-रचना के लिए निर्णायक महत्त्व की नहीं है। निर्णायक भूमिका हमेशा विषय-वस्तु की ही होती है। रामविलास शर्मा (प्रगतिशील साहित्य की समस्याएँ) +* शुक्ल जी का आदिकाल वास्तविक मध्यकाल है, हिन्दी जनपदों के इतिहास का ’सामंतकाल’ है। वीरगाथा काल ’रीतिकाल’ का प्रथम उत्थान है। पूर्व मध्यकाल (रीतिकाल) ’रीतिवाद’ का द्वितीय उत्थान है। रामविलास शर्मा (हिन्दी जाति की समस्या) +* सौन्दर्य कोई निरपेक्ष वस्तु नहीं है। उसका निर्माण भी तो कलाकार की अपनी भावनाओं और धारणाओं के आधार पर हीे होता है। डाॅ. नगेन्द्र (आलोचक की आस्था) +* ’रस’ एक व्यापक शब्द है, ’वह’ विभावानुभाव व्याभिचारी संयुक्त स्थायी’-अर्थात् परिपाक अवस्था का ही वाचक नहीं है, वरन् उसमें काव्यगत संपूर्ण भाव-सम्पदा का अन्तर्भाव है। डाॅ. नगेन्द्र (रस सिद्धान्त) +* सच्चा कलाकार सौन्दर्य की सृष्टि करने के लिए ही कला की साधना करता है – अपनी भावनाओं, मान्यताओं अथवा विचारों का प्रसार सच्चे कलाकार का उद्देश्य नहीं होता। डाॅ. नगेन्द्र (आलोचक की आस्था) +* भक्ति-आन्दोलन एक जातीय और जनवादी आन्दोलन हैं। रामविलास शर्मा (भारत की भाषा समस्या) +* कला की विषय वस्तु न वेदान्तियों का ब्रह्म है, न हेगेल का निरपेक्ष विचार। मनुष्य का इन्द्रिय-बोध, उसके भाव, उसके विचार, उसका सौन्दर्यबोध कला की विषय वस्तु है। रामविलास शर्मा (आस्था और सौन्दर्य) +* जीवन एक विस्मयकर विभूति है, और मानवीय संबंध और भी विस्मयकर। अज्ञेय (आत्मनेपद) +* साहित्य वस्तुतः मनुष्य का वह उच्छलित आनन्द है जो उसके अंतर में अँटाये नहीं अट सका था। हजारी प्रसाद द्विवेदी (ज्ञान शिखा) +* मनुष्य की सीमित बुद्धि के बाहर, मानव के चेतन तत्त्व से संबद्ध, ज्ञान की सीमा से परे कोई भी शक्ति है जिससे समस्त सृष्टि शासित है। भगवतीचरण वर्मा (साहित्य के सिद्धान्त तथा रूप) +* सौन्दर्य को हम वस्तुगत गुणों वा रूपों का ऐसा सामंजस्य कह सकते है, जो हमारे भावों में साम्य उत्पन्न कर हमको प्रसन्नता प्रदान करे तथा हमको तन्मय कर ले। सौन्दर्य रस का वस्तुगत पक्ष है। बाबू गुलाबराय (सिद्धान्त और अध्ययन) +* कला कलाकार के आनन्द की श्रेय और प्रेय तथा आदर्श को समन्वित करने वाली प्रभावोत्पादक अभिव्यक्ति है। बाबू गुलाब राय +* भावना, ज्ञान और कर्म जब एक सम पर मिलते हैं तभी युग प्रवर्तक साहित्यकार प्राप्त होता है। महादेवी वर्मा +* साहित्य का उद्देश्य सार्वदेशिक और सार्वकालिक होना चाहिए। हमें अपने साहित्य का उद्देश्य सार्वभौमिक करना है, संकीर्ण एकदेशीय नहीं। सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला +* कविता की भाषा चित्रात्मक होनी चाहिए। काव्य में शब्द और अर्थ का अभिन्न संबंध होता है तथा भावों की अभिव्यक्ति और भ���षा सौष्ठव मुक्त छन्द में अधिक सुगमता से व्यक्त किया जा सकता है। सुमित्रानंदन पन्त +* यथार्थवाद हमारी दुर्बलताओं, विषमताओं तथा क्रूरताओं का नग्न चित्रण होता है। प्रेमचन्द +* रस ऐसी वस्ती है, जो अनुभवसिद्ध है, इसके मानने में प्राचीनों की कोई आवश्यकता नहीं, कवि अनुभव में आवे मानिए न आवे मानिए। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र +* स्थायी साहित्य जीवन की चिरन्तन समस्याओं का समाधान है। मनुष्य मात्र की मनोवृत्तियों, उनकी आशाओं, आकांक्षाओं और उनके भावों, विचारों का यह अक्षय भण्डार है। श्यामसुन्दर दास +* कवियों का यह काम है कि, वे जिस पात्र अथवा वस्तु का वर्णन करते है, उसका रस अपने अन्तःकरण में लेकर उसे ऐसा शब्द-स्वरूप देते हैं कि उन शब्दों को सुनने से वह रस सुनने वालों के हृदय में जागृत हो जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी (रसज्ञ-रंजन) +* प्राचीन और नवीन का सुन्दर सामंजस्य भारतेन्दु की कला का विशेष माधुर्य है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल +* जगत् अव्यक्त की अभिव्यक्त है, काव्य उस अभिव्यक्ति की अभिव्यक्ति है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल +* ’छायावाद’ के भीतर माने जाने वाले सब कवियों में प्रकृति के साथ सीधा प्रेम-संबंध पंत जी का ही दिखाई पङता है। आचार्य शुक्ल (हिन्दी साहित्य का इतिहास) +* वे (भारतेन्दु) सिद्ध वाणी के अत्यंत-सरस हृदय कवि थे। प्राचीन और नवीन का यही सुन्दर सामंजस्य भारतेन्दु की कला का विशेष माधुर्य है। आचार्य शुक्ल (हिन्दी साहित्य का इतिहास ) +* अपनी भावनाओं के अनूठे रूप-रंग की व्यंजना के लिए भाषा का ऐसा बेधङक प्रयोग करने वाला हिन्दी के पुराने कवियों में दूसरा नहीं हुआ। आचार्य शुक्ल (हिन्दी साहित्य का इतिहास) +* इनकी (पद्माकर) की मधुर कल्पना ऐसी स्वाभावित और हाव-भावपूर्ण मूर्ति-विधान करती है कि पाठक मानो अनुभूति में मग्न हो जाता है। आचार्य शुक्ल (हिन्दी साहित्य का इतिहास) +* तुलसी और सूर ऐसे सगुणोपासक भक्त राम और कृष्ण की सौन्दर्य-भावना में मग्न होकर ऐसी मंगलदशा का अनुभव कर गये है, जिसके सामने कैवल्य या मुक्ति की कामना का कहीं पता नहीं लगता। आचार्य शुक्ल (चिंतामणि-भाग-1) +* हृदय की अनुभूति ही साहित्य में ’रस’ और ’भाव’ कहलाती है। आचार्य शुक्ल, चिंतामणि भाग-2 +* शब्द-शक्ति, रस और अलंकार, ये विषम-विभाग काव्य-समीक्षा के लिए इतने उपयोगी हैं कि इनको अन्तर्भूत करके संसार की नयी पुरान��� सब प्रकार की कविताओं की बहुत ही सूक्ष्म, मार्मिक और स्वच्छ आलोचना हो सकती है। आचार्य शुक्ल (काव्य में अभिव्यंजनावाद) +: भावार्थ- पंडित सभी शास्त्रों का बखान करते हैं परन्तु देह में बसने वाले बुद्ध ब्रह्म को नहीं जानते । +: भावार्थ- जिस तरह बाल चंद्रमा निर्दोष है उसी तरह विद्यापति की भाषा दोनों का दुर्जन उपहास नहीं कर सकते विद्यापति +: भावार्थ- मैंने अपनी रचना षटभाषा में की है और इसकी प्रेरणा पुराण व कुरान दोनों से ली है चंदबरदाई +* मैंने एक बूंद चखी है और पाया है कि घाटियों में खोया हआ पक्षी अब तक महानदी के विस्तार से अपरिचित था संस्कृत साहित्य के संबंध में अमीर खुसरो +: फंसत अमावस गोरी के फंदा । +* खीर पकाई जतन से और चरखा दिया जलाय । +: भावार्थ- जो शरीर में है वही ब्रह्माण्ड में है । गोरखनाथ +: भावार्थ- प्रायः मुनियों को भी भ्रांति हो जाती है वे मनका गिनते हैं । अक्षय निरामय परम पद में आज भी लौ नहीं लगा पाते । हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण ) +* जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान । +* संतन को कहा सीकरी सो काम +: अब का तुलसी होहिंगे नर के मनसबदार । तुलसीदास +: लादि खेप गुन ज्ञान-जोग की ब्रज में आय उतारी । सरदास +* जिस तरह के उन्मुक्त समाज की कल्पना अंग्रेज कवि शेली की है ठीक उसी तरह का उन्मुक्त समाज है गोपियों का । आचार्य राम चन्द्र शुक्ल +* गोपियों का वियोग-वर्णन वर्णन के लिए ही है उसमें रिस्थितियों का अनुरोध नहीं है । राधा या गोपियों के विरह वह तीव्रता और गंभीरता नहीं है जो समुद्र पार अशोक जन में बैठी सीता के विरह में है । आचार्य रामचंद्र शुक्ल +* या लकुटि अरु कंवरिया पर । +जिस प्रकार रामचरित का गान करने वाले भक्त कवियों में गोस्वामी तुलसीदास जी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है उसी प्रकार कृष्णचरित गानेवाले भक्त कवियों में महात्मा सूरदास जी का । वास्तव में ये हिन्दी काव्यगगन के सूर्य और चंद्र हैं । आचार्य शुक्ल +* पूजिए विप्र शील गण हीना शूद्र न गण गन ज्ञान प्रवीना । तुलसीदास +प्रेम ही मनुष्य के जीवन का चरम मूल्य है जिसे पाकर मनुष्य बैकुंठी हो जाता है अन्यथा वह एक मुट्ठी राख नहीं तो और क्या है +: हौं बिनु नाँह मंदिर को छावा । +* हिन्दी काव्य की सब प्रकार की रचना शैली के ऊपर गोस्वामी तुलसीदास ने अपना ऊँचा आसन प्रतिष्ठित किया है । यह उच्चता और किसी को प्राप्त नहीं । रामचन्द्र शुक्ल +* समूचे भारतीय साहित्य में अपने ढंग का अकेला साहित्य है । इसी का नाम भक्ति साहित्य है । यह एक नई दुनिया है । हजारी प्रसाद द्विवेदी +: न तौ राधिका कन्हाई सुमिरन को बहानो है । +मैने काव्य की रीति कवियों से ही सीखी है । भिखारीदास +* पुष्टिमार्ग का जहाज जात है सो जाको कछु लेना लेउ । विट्ठलदास +* लोटा तुलसीदास को लाख टका को मोल । होलराय +* अभिधा उत्तम काव्य है मध्य लक्षणा लीन अधम व्यंजना रस विरस उलटी कहत प्रवीन । देव +* नेहीं महा ब्रजभाषा प्रवीन और सुंदरतानि के भेद को जानै । ब्रजनाथ +: ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है +* देशभक्त वीरों मरने से नेक नहीं डरना होगा । +: पर प्राणों का बलिदान देश की वेदी पर करना होगा । नाथूराम शर्मा शंकर +: वज्रनाद से व्योम जगा दे । +: यह अपमान जगत में केवल पशु ही सह सकता है ॥ राम नरेश त्रिपाठी +* नारी पर नर का कितना अत्याचार है । +* साहित्य समाज का दर्पण है । महावीर प्रसाद द्विवेदी +* केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए । उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए । मैथिली शरण गुप्त +* अधिकार खोकर बैठना यह महा दुष्कर्म है । +* अन्न नहीं है वस्त्र नहीं है रहने का न ठिकाना , +: कोई नहीं किसी का साथी अपना और बिगाना । रामनरेश त्रिपाठी +: विपत्ति बाल विधवन की । प्रताप नारायण मिश्र +* सभी धर्म में वही सत्य सिद्धांत न और विचारो । भारतेन्दु हरिश्चंद्र +* भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हिन्दी साहित्य को एक नये मार्ग पर खड़ा किया ।के नये युग के प्रवर्तक हुए । रामचन्द्र शुक्ल +* खरीफ के खेतों में जब सुनसान है +: रब्बी के ऊपर किसान का ध्यान है । श्रीधर पाठक +* विजन वन-प्रांत था प्रकृति मुख शांत था +: अटन का समय था रजनि का उदय था । श्रीधर पाठक +* लख अपार-प्रसार गिरीन्द में । +: ब्रज धराधिप के प्रिय-पुत्र का । +: उसे रख लिया है उँगली पर श्याम ने । हरिऔध प्रियप्रवास +* मैं आया उनके हेतु कि जो शापित हैं +* छोटे से घर की लघु सीमा में, +* दिवसावसान का समय , +* खुल गये छंद के बंध प्रास के रजत पाश । सुमित्रानंदन पंत +* प्रथम रश्मि का आना रंगिणि तूने कैसे पहचाना सुमित्रानंदन पंत +* हाय मृत्यु का ऐसा अमर अपार्थिव पूजन । +: जब विषण्ण निर्जीव पडा हो जग का जीवन । सुमित्रानंदन पंत +* छायावादी कविता का गौरव अक्षय है उसकी समृद्धि की । कवल भक्ति काव्य ही कर सकता है । डॉ० नगेन्द्र +: जा रहे जिस पंथ से युग कल्प उसका छोर क्या है मह��देवी वर्मा +: चकित रहता शिश सा नादान , +: न जाने नक्षत्रों से कौन +* हिमालय के आंगन में जिसे प्रथम किरणों का दे उपहार । जयशंकर प्रसाद +* राजनीति का प्रश्न नहीं रे आज जगत के सम्मुख एक वृहत सांस्कृतिक समस्या जग के निकट उपस्थित। सुमित्रानंदन पंत +* हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती +* भारत माता ग्रामवासिनी । सुमित्रानंदन पंत +* बापू के भी ताऊ निकले, +: तीनों बंदर बापू के । नागाजुन +: साइत और कुसाइत क्या है ? +: हिंसा और अहिंसा क्या है +: जीवन से बढ़ हिंसा क्या है । केदार नाथ अग्रवाल +* भारत माता ग्रामवासिनी । सुमित्रानंदन पंत +* एक बीते के बराबर यह हरा ठिंगना चना , +: सजकर खड़ा है । केदार नाथ अग्रवाल +: मार रहा है चूंसे कसकर तोड़ रहा है तट चट्टानी । केदार नाथ अग्रवाल +: इसलिए तो हमको इसका म चप्पा-चप्पा प्यारा है । नागार्जुन +* कन्हाई ने प्यार किया , +: का यदि किसी प्रेयसी में उसे पा लिया होता तो फिर दूसरे को प्यार क्यों करता । अज्ञेय +: स्थिर समर्पण है हमारा । +: द्वीप हैं हम । अजेय +: मन से मस्तिष्क से गिर भावना से चेतना से भी बुद्धि से +: विवेक से भी क्योकि हम जन हाफोर-साधारण हैं हम नहीं विशिष्ट । गिरजा कुमार माथुर +* जो कुछ है उससे बेहतर चाहिए पूरी दुनिया साफ करने के लिए एक मेहतर चाहिए जो मैं हो नहीं सकता । मुक्तिबोध +* इस कौम की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने में जा रही है। हरिशंकर परसाई + + +* लोग हमेशा कहते हैं कि मैंने अपनी सीट इसलिए नहीं छोड़ी क्योंकि मैं थकी थी, लेकिन यह सच नहीं है। मैं शारीरिक रूप से थकी हुई नहीं थी, या जितना मैं आमतौर पर एक कार्य दिवस के अंत में होती थी उससे अधिक थकी हुई नहीं थी। मैं बूढी नहीं थी, हालाँकि कुछ लोगों के मन में उस समय मेरे बुज़ुर्ग होने की छवि है। मैं बयालीस की थी। नहीं, मैं सिर्फ एक रूप से थकी थी, समर्पण करने से थकी थी। +* मैं अपने साथ दुर्व्यवहार नहीं होने देना चाहती थी, मैं उस सीट से वंचित नहीं होना चाहती थी जिसके लिए मैंने भुगतान किया था। यह बस समय था मेरे लिए इस तरह से व्यवहार किए जाने के बारे में जिस तरह से महसूस होता था, उसे व्यक्त करने का अवसर था। मैंने गिरफ्तार होने की योजना नहीं बनाई थी। मुझे जेल में बंद किए जाने के बगैर बहुत कुछ करना था। लेकिन जब मुझे उस फैसले का सामना करना पड़ा, तो मैंने ऐसा करने में संकोच नहीं किया क्योंकि मुझे लगा कि हमने इ���े बहुत लंबा झेला है। जितना अधिक हमने समर्पण किया, जितना अधिक हमने उस तरह के व्यवहार का अनुपालन किया, यह उतना ही अधिक दमनकारी होता गया। +* आपका बहुत बहुत धन्यवाद। मेरे दिवंगत पति रेमंड पार्क्स, अन्य स्वतंत्रता सेनानियों, सद्भावना के लोगों को मेरा सम्मान जो यहां उपस्थित नहीं हो सके। मैं उन युवकों द्वारा भी सम्मानित हूं जो मेरा आदर करते हैं और जिन्होंने मुझे एक बुज़ुर्ग के रूप में आमंत्रित किया है। रेमंड, या पार्क्स, जैसा कि मैं उन्हें बुलाती थी, स्कॉट्सबोरो बॉयज़ मामले, मतदाता पंजीकरण में एक कार्यकर्ता थे, और युवाओं के लिए एक रोल मॉडल थे। एक स्व-शिक्षित व्यवसायी के रूप में उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण किया, और वे मुझसे प्यार करते थे और मेरा सम्मान करते थे। पार्क्स हमारे इतने सारे पुरुषों को हमारे आम आदमी के लिए एकजुट होते हुए और अपने, अपने परिवार और इस देश के बेहतर भविष्य के लिए अपना जीवन समर्पित करते हुए देखकर गर्व के साथ खड़े होते। हालांकि आध्यात्मिक भोजन और निर्देशन के लिए शांतिपूर्वक एकत्रित होने वाले दस लाख पुरुषों के लिए लाभ के बजाय आलोचना और विवाद को मीडिया में केंद्रित किया गया है, यह एक सफलता है। मैं प्रार्थना करती हूं कि मेरे बहुजातीय और अंतर्राष्ट्रीय मित्र इस [कुछ ऑडियो अस्पष्ट] सभा को सभी पुरुषों के लिए एक अवसर के रूप में देखेंगे, लेकिन मुख्य रूप से अफ्रीकी विरासत के पुरुषों को बेहतरी के लिए अपने जीवन में बदलाव करने के लिए। मुझे उन सभी समूहों के लोगों पर गर्व है जो किसी भी तरह से मुझसे जुड़े हुए महसूस करते हैं, और मैं हमेशा सभी लोगों के मानवाधिकारों के लिए काम करती रहूंगी। हालांकि, एक अफ्रीकी अमेरिकी महिला होने के नाते मुझे इस सभा में हमारे पुरुषों पर गर्व है, मेरी ओर से उन्हें सराहना और समर्थन है। मैं काफ़ी चाहती हूं कि पाथवे टू फ्रीडम के पुरुष छात्र मेरे साथ यहां आएं और अपना हाथ लहराएं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे अभी यहां हैं। लेकिन पाथवे टू फ्रीडम के सभी नौजवानों को धन्यवाद। धन्यवाद और भगवान तुम सब का भला करे। शुक्रिया। +* मैं गिरफ्तार होने के लिए बस में नहीं चढ़ी थी। मैं घर जाने के लिए बस में चढ़ी थी। +* मैं जीवन को आशावाद और उम्मीद के साथ देखने और एक बेहतर दिन की प्रतीक्षा करने की पूरी कोशिश करती हूं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि पूर्ण खुशी जैसी कोई चीज़ है। यह मुझे पीड़ा देता है कि अभी भी बहुत सी क्लान गतिविधि और नस्लवाद है। मुझे लगता है कि जब आप कहते हैं कि आप खुश हैं, तो आपके पास वह सब कुछ है जिसकी आपको ज़रूरत है और वह सब कुछ जो आप चाहते हैं, और इसके अलावा किसी और चीज़ के लिए इच्छा नहीं होती। मैं अभी उस मुकाम तक नहीं पहुंची हूं। +* मेरे पालन-पोषण और बाइबल से मैंने सीखा कि लोगों को अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहिए जैसे इज़राइल के बच्चे फिरौन के सामने खड़े हुए थे। +* मैं एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जानी चाहती हूं जो सभी लोगों के लिए स्वतंत्रता और समानता और न्याय और समृद्धि के बारे में चिंतित है। +* प्रतिदिन रात के खाने से पहले और रविवार को सेवाओं में जाने से पहले मेरी दादी मुझे बाइबल पढ़ाती थीं, और मेरे दादाजी प्रार्थना करते थे। खेतों में कपास लेने जाने से पहले भी हमारी भक्ति होती थी। प्रार्थना और बाइबल, मेरे दैनिक विचारों और विश्वासों का हिस्सा बन गए। मैंने परमेश्वर पर भरोसा करना और उसे अपनी शक्ति के रूप में खोजना सीखा। +* मैंने वर्षों से सीखा है कि जब किसी का मन बना लिया जाता है, तो इससे डर कम हो जाता है; यह जानकर कि क्या किया जाना चाहिए, भय दूर हो जाता है। +रोज़ा पार्क्स के बारे में उक्तियाँ +* श्रीमती रोजा पार्क्स बहुत अच्छी इंसान हैं। और, चूंकि यह होना ही था, मुझे खुशी है कि यह श्रीमती पार्क्स जैसी व्यक्ति के साथ हुआ, क्योंकि कोई भी उनकी ईमानदारी की असीम पहुंच पर संदेह नहीं कर सकता। कोई भी उनके चरित्र की ऊंचाई पर संदेह नहीं कर सकता है कोई भी उनकी ईसाई प्रतिबद्धता और यीशु की शिक्षाओं के प्रति समर्पण की गहराई पर संदेह नहीं कर सकता है। और मैं खुश हूं क्योंकि यह होना ही था, यह एक ऐसे व्यक्ति के साथ हुआ जिसे कोई भी समुदाय में परेशान करने वाला कारक नहीं कह सकता। श्रीमती पार्क्स एक अच्छी ईसाई व्यक्ति हैं, सरल हैं, और फिर भी सत्यनिष्ठा और चरित्र रखती हैं। और सिर्फ इसलिए कि उन्होंने उठने से इनकार कर दिया, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। +* वास्तव में कोई भी श्रीमती पार्क्स की कार्रवाई को तब तक नहीं समझ सकता जब तक उन्हें यह समझ न आए कि अंततः धीरज का प्याला भर जाता है, और मानव व्यक्तित्व चिल्ला उठता है मैं इसे और नहीं सह सकता।' + + +: जब तक पाप सम्पूर्ण रूप से फलित नहीं होता (अर्थात् जब तक पाप का घडा भर नहीं जाता) तब तक वह पाप कर्म मीठा लगता है। किन्तु पूर्ण रूपसे फलित होने के पश्चात् मनुष्य को उसके कटु परिणाम सहन करने ही पड़ते हैं। +: मनुष्य के दुष्कृत्य या पाप उसके अन्न में रहते हैं। जो जिसका अन्न खाता है। वह उसके पाप को भी खाता है। +: भूख से व्याकुल माता अपने पुत्र का त्याग करेगी भूख से व्याकुल साँप अपने अण्डे खा लेगा। भूखा कौन सा पाप नहीं कर सकता? क्षीण लोग निर्दय बन जाते हैं। +: लोभ, पाप का कारण है। +: पूर्व के पाप के कारण ह्रि चर्चा च्छी नहीं लगती। वे या तो सत्संग में बैठे बैठे ऊँघने लगते हैं या किसी से लड़ाई झगड़ा कर बैठते हैं; अथवा फिर सत्संग में रुचि न लगने के कारण उठकर घर को चल देते हैं। +: गोस्वामी जी कहते हैं कि शरीर मानो खेत है, मन मानो किसान है। जिसमें यह किसान पाप और पुण्य रूपी दो प्रकार के बीजों को बोता है। जैसे बीज बोएगा वैसे ही इसे अंत में फल काटने को मिलेंगे। भाव यह है कि यदि मनुष्य शुभ कर्म करेगा तो उसे शुभ फल मिलेंगे और यदि पाप कर्म करेगा तो उसका फल भी बुरा ही मिलेगा। +* समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध । +: जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध ॥ रामधारी सिंह 'दिनकर' +* पृथ्वी हर आदमी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन हर आदमी के लालच को नहीं। महात्मा गांधी +* लालच के अलावा और कुछ भी हमें कमजोर नहीं बनाता। थॉमस हैरिस +* धन की स्वस्थ इच्छा लोभ नहीं है। यह जीवन की इच्छा है। जेन सिंसरियो +* लालच एक छोटे मुंह के साथ एक मोटा दानव है और आप इसे जो भी खिलाते हैं वह कभी भी पर्याप्त नहीं होता है। जैनविलम वान डी वार्मिंग +* यहाँ जीवन को प्यार करने और इसके लिए लालची होने के बीच एक बहुत ही महीन रेखा है। माया एंजेलो +* एक लालची व्यक्ति और एक कंगाल, व्यावहारिक रूप से समान ही हैं। स्विस कहावत +* तीन महान शक्तियां दुनिया पर राज करती हैं; मूर्खता, भय, और लालच। अल्बर्ट आइंस्टीन +* जब इंसान के अंदर लालच का जन्म होता है तो उसके सुख और संतुष्टि को खत्म कर देता हैं. +* लालच पर बना एक घर लंबे समय तक नहीं रह सकता है। एडवर्ड एबे +* लालच से अधर्म बढ़ता है और इसके परिणामस्वरूप लाभ कम हो सकता है। जीन रोडडेनबेरी +* लालच अन्याय का आविष्कारक है। जूलियन कैसाब्लांका +* एक बुद्धिमान व्यक्ति के सिर में पैसा होना चाहिए, उसके हृदय में नहीं। जोनाथन स्विफ़्ट +* वो जो एक दिन में अमीर बनना चाहता है उ���े एक साल में फांसी पर लटका दिया जायेगा। लिओनार्डॉ डा विन्सी +* लालच के लिए सम्पूर्ण प्रकृति भी बहुत कम है। लुसियस अन्नासुस सेनेका +* लालच सबसे बुरी वस्तु है। ब्रूस ग्रोबबेलर +* लालच कोई वित्तीय मुद्दा नहीं है। यह दिल का मसला है। एंडी स्टैनली +* नेतृत्व दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक विशेषाधिकार है। यह व्यक्तिगत लालच को संतुष्ट करने का अवसर नहीं है। मवि किबाकी + + +मोह का अर्थ है कुछ का कुछ समझ लेना। अर्थात् अज्ञान, भ्रम, भ्रांति । मोह का अर्थ शरीर और सांसारिक पदार्थों को अपना या सत्य समझने की बुद्धि भी है। यह बुद्धि दुःखदायिनी मानी जाती है । मूर्छा बेहोशी और गश को भी 'मोह' कहा जाता है। मोह शब्द का उपयोग प्रेम मुहब्बत और प्यार के लिये भी किया जाता है जैसे साँचेहु उनके मोह न माया । उदासीन धन धाम न जाया ॥) । साहित्य में ३३ संचारी भावों में से 'मोह' भी एक भाव है। +: देहधारीके इस मनुष्यशरीरमें जैसे बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, ऐसे ही देहान्तरकी प्राप्ति होती है। उस विषयमें धीर मनुष्य मोहित नहीं होता। +: मोह सभी रोगों की जड़ है। उन रोगों से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं। +उनमें से भी किस-किस को मोह ने अंधा (विवेकशून्य) नहीं किया? जगत्‌ में ऐसा कौन है जिसे काम ने न नचाया हो? तृष्णा ने किसको मतवाला नहीं बनाया? क्रोध ने किसका हृदय नहीं जलाया? +: भावार्थ:-सत्संग के बिना हरि की कथा सुनने को नहीं मिलती, उसके बिना मोह नहीं भागता और मोह के गए बिना श्री रामचंद्रजी के चरणों में दृढ़ (अचल) प्रेम नहीं होता॥ + + +* “हे तात्! ब्राह्मणत्व का कारण न तो स्वाध्याय है और न ही शास्त्र श्रवण। ब्राह्मणत्व का हेतु मात्र सदाचार है, इसमें कोई संशय नहीं है।” महाभारत में युधिष्ठिर, यक्ष से +: ज्ञान आचरणहीन व्यक्ति का वरण नहीं करता। +: आचारहीन का उद्धार वेद भी नहीं कर सकते। +* सदाचार की रक्षा सबसे पहले करनी चाहिए क्योकि धन तो आता-जाता रहता है। उसके न रहने पर सदाचारी कमजोर नहीं माना जाता, किन्तु जिसने सदाचार त्याग दिया, वह तो नष्ट ही होना है। विदुर नीति + + +इस विचार से सहमत हूँ कि दो डैश की जगह एक em-डैश ज़्यादा सही लग रहा है। लेकिन समस्या यह है कि दो डैश कीबोर्ड पर आसानी से उपलब्ध हैं, जबकि em-डैश लगाने के लिये थोड़ा लम्बा रास्ता अपनाना पड़ेगा। समय लगेगा। इसके अलावा, यदि ���वश्यक हो तो, पूरे विकिसूक्ति में, एक साथ 'दो डैश' के स्थान पर em-डैश आसानी से किया भी जा सकता है। + + +व्यवहार व्यक्ति के दैनिक जीवन का एक भाग है। व्यवहार-कुशलता अपने आप में एक गुण भी हैं जो इंसान को सफल बनाने में मदत करता है। अच्छे व्यवहार जीवन में लाभ देते है तो बुरे व्यवहार जीवन में हानि पहुँचाते हैं। व्यवहारिक व्यक्ति अधिक प्रसन्नचित्त होते हैं। व्यवहार से व्यक्ति पहचाना जाता है। आपका अपना व्यवहार ही आपका शत्रु भी है और मित्र भी। संसार में सभी सम्बन्ध व्यवहार पर आधारित हैं। अपने व्यवहार से ही आप मित्रों को शत्रु और शत्रुओं को मित्र बना सकते हैं। +: न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं । +* सदाचार की रक्षा सबसे पहले करनी चाहिए। क्योकि धन तो आता जाता रहता है उसके न रहने पर सदाचारी कमजोर नहीं माना जाता, किन्तु जिसने सदाचार त्याग दिया, वह तो नष्ट ही होना है। विदुर नीति +* न कोई किसी का मित्र है न शत्रु। संसार में व्यवहार से ही लोग मित्र और शत्रु होते रहते हैं। नारायण पंडित +* जो मिट्टी भी सोना बनाते है, वही व्यवहारकुशल हैं। डिजरायली +* आपकी व्यावहारिकता इस बात पर निर्भर करती है कि आप सामने वाले की विचारों को कितना महत्व देते हैं। भर्तृहरि +* अच्छे व्यवहार छोटे-छोटे त्याग से बनते हैं। इमर्सन +* जो किसी से द्वेष नहीं करता, उसे किसी प्रकार का भी नहीं होता। ऐसे मनुष्यों को अनेकों सुख स्वमेव मिलते रहते है। अथर्ववेद +मिलने पर मित्र का सम्मान करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो, विपत्ति के समय सहयोग करो। अरस्तु +* मेरा विश्वास है कि वास्तविक महान पुरूष की पहली पहचान उसकी नम्रता है। रस्किन +* महान पुरूषों की महानता देखना चाहते हो तो उसके द्वारा उस व्यवहार में देखो जो वह छोटे मनुष्यों के साथ करते हैं। कार्लाइल +* असली शिक्षा अपने अंदर की सबसे अच्छी बातों को बाहर निकालना है। मनुष्यता से बढ़कर कोई अच्छी बात नहीं। महात्मा गांधी +* सदाचार का त्याग करके किसी ने अपना कल्याण नहीं किया। विष्णु पुराण +* सदाचार धर्म उत्पन्न करता है और धर्म से आयु बढ़ती है। वेदव्यास +* व्यवहार कुशल होने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि आप दूसरों से गलत को सच मनवाने में कितने माहिर हैं। बल्कि इसका अर्थ है कि आप सच की कड़वी दवा को कैसी ख़ूबसूरती से पेश करें, ताकि द��सरा व्यक्ति उसे बिना मुंह विचाकाए स्वयं मुस्कराता हुआ पी जाए। स्वामी अमारमुनि +* आपका व्यवहार कसौटी है इस बात का कि आप असल में क्या हैं। वेदान्त तीर्थ +* जिसकी जेब में पैसा न हो, उसकी जुबान में शहद होना चाहिए। फ्रांसीसी लोकोक्ति +किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान का होना भी जरूरी होता हैं। अज्ञात +* अपने सम्मान, सत्य और मनुष्यता के लिए प्राण देने वाल वास्तविक विजेता होता हैं। हरि कृष्ण प्रेमी +* जो मनुष्य जिसके साथ जैसा व्यवहार करे, उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, यह धर्म है। कपटपूर्ण आचरण करने वाले को वैसे ही आचरण द्वारा दबाना उचित है और सदाचारी को सद्व्यवहार के द्वारा ही अपनाना चाहिए। वेदव्यास +* दूसरों के साथ वही व्यवहार करें जैसा आप अपने लिए चाहते हैं। अज्ञात +* अपने साथियों के साथ शत्रुओं जैसा व्यवहार करने का अर्थ होगा शत्रु के दृष्टिकोण को अपना लेना। माओ-त्से-तुंग +* सदा सांत्वनापूर्ण मधुर वचन ही बोले, कभी कठोर वचन नहीं बोलेन। पूजनीय पुरूषों का सत्कार करें। दूसरों को दान दें किन्तु स्वयं कभी किसी से कुछ न मांगे। महाभारत +* पिता की सेवा और उनकी आज्ञा का पालन जैसा धर्म दूसरा कोई भी नहीं है। वाल्मीकि +* भूल करना मनुष्य की सहज प्रवृत्ति है और भूल-सुधार मानवता का परिचायक। नचिकेता +* अपने को पारदर्शी बनाओ तो तुम्हारे अंतर्गत प्रकाशों का प्रकाश और परमात्मा का ज्ञान प्रकाशित होगा। स्वामी रामतीर्थ +* व्यवहार छोटा सदाचार है। पेव +* मालिक से भी अधिक बुरा है लेनदार। चूंकि मालिक केवल तुम्हारे व्यक्तित्व पर अधिकार रखता है, लेकिन लेनदार तुम्हारी आबरू भी ले सकता है और कभी भी तुम्हें तंग कर सकता है। विक्टर ह्यूगो + + +* मुझे किशोर होना पसंद है क्योंकि अभी तक आपके पास एक वयस्क की सभी जिम्मेदारियां नहीं हैं। एलिजाबेथ गिलीस +* युवाओं को नौकरी चाहने वालों से नौकरी देने वाला बनने के लिए सक्षम बनाने की जरूरत है। एपीजे अब्दुल कलाम +* युवावस्था में बनने वाली अच्छी आदतें ही सब कुछ बदल देती हैं। अरस्तू +* हम वास्तव में कभी बड़े नहीं होते, हम बस यह सीखते हैं कि लोगों के सामने कैसे व्यवहार किया जाए। ब्रायन व्हाइट +* युवाओं के दिमाग को शिक्षित करने में हमें उनके दिल को शिक्षित करना नहीं भूलना चाहिए। दलाई लामा +* युवाओं की ताकत पूरी दुनिया की साझी संपदा है। युवा��ं के चेहरे हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य के चेहरे हैं। समाज का कोई भी हिस्सा युवाओं की शक्ति, उनके आदर्श, उल्लास और साहस का मुकाबला नहीं कर सकता है। कैलाश सत्यार्थी +* बुजुर्ग लोग युद्ध के घोषणा करते हैं। लेकिन, युद्ध में लड़ते और मरते हैं युवा। हर्बर्ट हूवर +* भविष्य उन शिक्षित युवाओं का है जिनके पास सृजन करने की कल्पनाशीलता है। बराक ओबामा +* युवाओं को आसानी से धोखा दिया जा सकता है क्योंकि वे तुरंत उम्मीद कर लेते हैं। अरस्तू +* हमें लड़कियों को बताना चाहिए कि उनकी आवाज महत्वपूर्ण है। मलाला यूसूफ़जई +* बचपन में दोस्ती आमतौर पर संयोग की बात होती है, जबकि किशोरावस्था में ये अक्सर पसंद की बात होती है। डेविड एल्किंड +* किशोर सोचते हैं कि संगीत सुनने से उन्हें ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है। यह नहीं है। यह उन्हें उस बोरियत से छुटकारा दिलाता है जो गृहकार्य पर एकाग्रता प्रेरित करती है। मर्लिन वोस सावंती +* बहुत से लोग बहुत तेजी से बड़े होने की कोशिश करते हैं, और यह मज़ेदार नहीं है! आपको यथासंभव लंबे समय तक बच्चा रहना चाहिए वैनेसा हडजेंस + + +* शपथ एक वादा है, और एक वादा भावना की परवाह किए बिना किया जा सकता है। वेरोनिका रॉसी +* शपथ लेने से अधिक चरित्र के बड़प्पन पर भरोसा करें। सोलोन +* शपथ केवल शब्द हैं और शब्द केवल हवा हैं। सैमुअल बटलर +* मैंने अपने हृदय में शपथ ली है कि मैं मरने के दिन तक साम्यवाद का विरोध करूंगा। एल्ड्रिज क्लीवर + + +जो कार्य उपाय से सम्भव है, वह पराक्रम से नहीं हो सकता। बिल्कुल उसी प्रकार जैसे कि सियार द्वारा हाथी लोभ देकर दलदल को ओर ले जाने पर दलदल में फंसकर मारा गया। + + +: धृतराष्ट्र ने कहा हे संजय धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्र हुए युद्ध के इच्छुक (युयुत्सवः) मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया? +अर्जुन बोले) हे कृष्ण! युद्ध करने की इच्छा से एक दूसरे का वध करने के लिए यहाँ अपने वंशजों को देखकर मेरे शरीर के अंग कांप रहे हैं और मेरा मुंह सूख रहा है। भगवद्गीता]] +कृष्ण ने कहा) हे पार्थ! अपने भीतर इस प्रकार की नपुंसकता का भाव लाना तुम्हें शोभा नहीं देता। हे शत्रु विजेता! हृदय की तुच्छ दुर्बलता का त्याग करो और युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। भगवद्गीता]] +कृष्ण ने कहा एक योद्धा के रूप में अपने कर्तव्य पर विचार करते हुए तुम्हें उसका त्याग न���ीं करना चाहिए। वास्तव में योद्धा के लिए धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं होता। भगवद्गीता]] +कृष्ण ने कहा) हे पार्थ! वे क्षत्रिय भाग्यशाली होते हैं जिन्हें बिना इच्छा किए धर्म की रक्षा हेतु युद्ध के ऐसे अवसर प्राप्त होते हैं जिसके कारण उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। भगवद्गीता]] +हे कृष्ण बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी भूमि नहीं दूँगा ।— दुर्योधन महाभारत में +: वसन्त और शरद् ऋतुमें चतुरंगिणी सेनाको यात्रामें लगाना उचित है। जिस राजाके पास पैदल सेना अधिक हो, उसे विषम स्थानपर स्थित शत्रुपर आक्रमण करना चाहिये। राजाको चाहिये कि जो शत्रु अधिक वृक्षोंसे युक्त देशमें या कुछ कीचड़वाले स्थानपर स्थित हो, उसपर हाथियोंकी सेनाके साथ चढ़ाई करे। समतल भूमिमें स्थित शत्रुपर रथ और घोड़ोंकी सेना साथ लेकर चढ़ाई करनी चाहिये। जिस शत्रुओंके पास बहुत बड़ी सेना हो, राजाको चाहिये कि उनका आदर-सत्कार करे, अर्थात् उनके साथ संधि कर ले। वर्षा ऋतु में अधिक संख्यामें गधे और ऊँटोंकी सेना रखनेवाला राजा यदि शत्रुके बन्धनमें पड़ गया हो तो उस अवस्थामें भी उसे वर्षा ॠतुमें चढ़ाई करनी चाहिये। जिस देशमें बरफ गिरती हो, वहाँ राजा ग्रीष्म ऋतुमें आक्रमण करे। पार्थिव हेमन्त और शिशिर ऋतुओंका समय काष्ठ तथा घास आदि साधनोंसे युक्त होने से यात्राके लिये बहुत अनुकूल रहता है। धर्मज्ञ इसी प्रकार शरद और वसन्त- ऋतुओंके काल भी अनुकूल माने गये हैं । राजाको देश-काल और त्रिकालज्ञ ज्योतिषीसे यात्राकी स्थितिको भलीभाँति समझकर उसी प्रकार पुरोहित और मन्त्रियोंके साथ परामर्श कर विजय यात्रा करनी चाहिये ॥ १९ २७ ॥ +* सर्वविनाश ही, सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है।— पं. जवाहरलाल नेहरू +: पहले ही बिना साम, दान दण्ड का सहारा लिये ही युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है । +* यदि शान्ति पाना चाहते हो तो लोकप्रियता से बचो।— अब्राहम लिंकन]] +* शांति प्रगति के लिये आवश्यक है।— डा॰ राजेन्द्र प्रसाद +* शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति ।–स्वामी ज्ञानानन्द + + +सन्धि का अर्थ समझौता या करार है। संधि दो पक्षों के बीच मेल-मिलाप है, सुलह है, ‘ट्रीटी’,है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में दो विवादित मुद्दों पर अन्ततः एक ‘संधि’ कायम हो जाना आम बात है। प्रायः अदालत के बाहर दो पक्षों के बीच जो ‘स्वतन्त्र रूप से एक सहमति’ बन जाती है, उसे मान्यता प्रदान कर अदालत उस संधि पर अपनी मुहर लगा देती है, और दावे वापस ले लिए जाते हैं। आर्थिक और सामाजिक जीवन में तो कदम कदम पर समझौते करने ही पड़ते हैं अन्यथा हमेशा संघर्ष की स्थितियां बनी रहें। राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक समझौते कभी लम्बे समय तक कायम रहते हैं तो कभी जल्दी ही टूट जाते हैं। सन्धियाँ देर-सबेर नई संधियों को जगह देते हुए शायद टूटने के लिए ही होतीं हैं। +* निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए। आचार्य चाणक्य +* दुर्बल के साथ संधि न करे। ठंडा लोहा लोहे से नहीं जुड़ता। चाणक्य + + +अर्थ वैद्य उसे कहते हैं जो ठीक प्रकार से शास्त्र पढ़ा हुआ, ठीक प्रकार से शास्त्र का अर्थ समझा हुआ, छेदन स्नेहन आदि कर्मों को देखा एवं स्वयं किया हुआ, छेदन आदि शस्त्र-कर्मों में दक्ष हाथ वाला, बाहर एवं अन्दर से पवित्र (रज-तम रहित शूर (विषाद रहित अग्रोपहरणीय अध्याय में वर्णित साज-सामान सहित, प्रत्युत्पन्नमति (उत्तम प्रतिभा-सूझ वाला बुद्धिमान, व्यवसायी (उत्साहसम्पन्न विशारद (पण्डित सत्यनिष्ट, धर्मपरायण हो। +: अर्थात दोषों का संचय, प्रकोप, प्रसर, स्थानसंश्रय, व्यक्ति और भेद को जो जानता है, वही यथार्थ वैद्य है। (इन्हें 'षट् क्रियाकाल' कहते हैं।) +: जिसने अपने गुरुओं से सम्पूर्ण चिकित्सा विज्ञान सीखा हो, शल्यक्रिया करने में इतना कुशल हो कि मानो उसके हाथों में मृतक को भी जीवित करने वाला अमृत हो, ईर्ष्या से रहित, धैर्यवान, दयालु और सरल स्वभाव वाला हो वही वैद्य वास्तव में एक आदर्श वैद्य होता है। +: तर्कविहीन वैद्य, लक्षणविहीन पंडित, और भावरहित धर्म – ये अवश्य ही जगत में हंसी के पात्र बनते हैं। +: हस्तरेखा व शरीर के लक्षणों के जानकार को, चोर व चोरी से व्यापारी बने व्यक्ति को, जुआरी को, चिकित्सक को, मित्र को तथा सेवक को इन सातों को कभी अपना गवाह न बनाएँ, ये कभी भी पलट सकते हैं। +* हर वैध में हनुमान का वास है और वैध के लिए हर मरीज़ की जान भगवान् लक्ष्मण के सामान है। +* कोई दुआ काम नहीं करती, अगर अस्पतालों में डॉक्टर और उनकी लिखीं दवाएं काम नहीं करती। +* अभिभावकों के बाद जीवन की सुरक्षा का बीड़ा चिकित्सक ही उठाते हैं। +* डॉक्टर बिमारी का ईलाज करने से पूर्व मन का इलाज करते हैं। +* दवा से रोग ठीक हो जाते हैं, लेकिन रोगी को चिकित्सक ही ठीक कर सकते हैं। Carl Jung. +* माता पिता के बाद हमारे जीवन की देखभाल डॉक्टर ही करते है। +* ईश्वर सबके जीवन की रक्षा खुद से नही कर पाते इसलिए उन्होंने इस धरती पर अपने रूप में डॉक्टर को भेज दिया। +* डॉक्टर न केवल दवाइयां खाने की सलाह देते है बल्कि इससे दूरी बनाने को भी कहते हैं। +* यदि आप अपने शरीर व सेहत को लेकर फिक्रमंद है तो आप स्वयं एक अच्छे डॉक्टर हैं। +* बीमारी से लड़ने की ताकत एक डॉक्टर ही हमे देता है। +* डॉक्टर की एक स्माइल ही मरीज के लिए दवा से कई असरदार होती है। +* बीमारी वह डॉक्टर है जिस पर हम सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं; दया के लिए, ज्ञान के लिए, हम केवल वादा करते हैं; दर्द हम मानते हैं। Marcel Proust +* डॉक्टर इस वास्तविक संसार के वास्तविक हीरो होते है, जो जीवन की रक्षा करते है। +* एक अच्छा चिकित्सक दवाई कम और स्वास्थ्य सलाह अधिक देता हैं। +* हर मरीज अपने अंदर अपना डॉक्टर लेकर चलता है। +* सम्मान करिए हर चिकित्सक का क्यूंकि वह किरदार निभाता है एक रक्षक का। +* जीवन को अच्छे तरीके से जीने के लिए अभिभावकों के बाद चिकित्सक की सलाह लेनी पडती हैं। +* उत्कृष्ट चिकित्सक ने चिकित्सा देखभाल के मानवीय पहलू पर लगातार जोर दिया। +* अधिकांश डॉक्टर अपनी शिक्षा के कैदी हैं और अपने पेशे से बेड़ियों में जकड़े हुए है. Richard Diaz.। +* मैं एक डॉक्टर हूँ यह एक ऐसा पेशा है जिसे एक विशेष मिशन, एक भक्ति माना जा सकता है. Ewa Kopacz.। +* जिस तरह मंदिर मे भगवान होते है, उसी तरह हॉस्पिटल मे डॉक्टर ही हमारे भगवान होते है। +* एक डॉक्टर हमे दवा का आदी नही बनाता, बल्कि दवा से कैसे दूर रहे उसकी सलाह ज्यादा देता है। +* हर मरीज़ का इलाज हो सके इसलिए खुदा को डॉक्टर का रूप लेना पड़ा। +* एक डॉक्टर भगवान् तक बात पहुंचने से पहले, इंसान को बचाने पहुँच जाता है +* मेरा यह दायित्व है कि मैं जो कुछ भी जानता हूं उसका उपयोग करके हर डॉक्टर और बेडसाइड और रोगी के लिए वास्तविक, प्रयोग करने योग्य चिकित्सा विज्ञान लाने की कोशिश करूं। +* 50 फीसदी बीमारी का इलाज चिकित्सक की सांत्वना से हो जाता हैं। +* जन्म माता-पिता देते हैं, पर एक बच्चे का जन्म नहीं होता अगर एक डॉक्टर नहीं होता। +* एक डॉक्टर के दवा से कही ज्यादा उसके सुझाव कार्य करते है। +* हर मरीज़ का इलाज हो सके इसलिए खुदा को डॉक्टर का रूप लेना पड़ा। +* चिकित्सक को उसके उन उपयो���ों के प्रति उपर्युक्त आदर दो, जो तुमने प्राप्त किये हैं, क्योंकि उसका स्रजन परमपिता ने किया हैं। +* बीमारी अपने आप दूर होने लगती है, जब डॉक्टर और अस्पताल पास में होते हैं। +* एक अच्छा डॉक्टर दवा कम ख्याल ज्यादा रखने की सलाह देता है। +* डॉक्टर ही रियल हीरोज होते है जो हमारी जीवन रक्षा करते हैं। +* अब तो लोग भी डॉक्टर को भगवान् मानते हैं, तभी तो मंदिर जाने से पहले वो अस्पताल जाते हैं। +* भंयकर बीमारी को भी चिकित्सक अपनी सूझबूझ से जड़ से मिटा देते हैं। +* मरीज़ सोया है बिस्तर पर और डॉक्टर बिना पलके झपकाए बीमारी से लड़ता है। +* जीवन से प्यार करना एक डॉक्टर ही सीखा देते है। +* एक भगवान् राम ने इंसान के वेश में जन्म लिया था और एक डॉक्टर है जो भगवान् के रूर्प में धरती पर जन्मे हैं। +* अगर बीमारी है तो उसका इलाज जरूर है और अगर भगवान है, तो धरती पर उसका अस्तित्व जरूर है, जो की एक डॉक्टर के रूप मे है। +* कितना महान है हर डॉक्टर खुद को बुखार है, पर आराम करने की सलाह वो मरीज़ को देता है। +* एक चिकित्सक अपने मरीज के स्वास्थ्य को लेकर निरंतर व्यतीत रहता हैं। +* इस दुनिया मे नही पता चलता है किसी का करैक्टर आज भी लोगो के लिए दुसरे खुदा है डॉक्टर। +* एक डॉक्टर को कभी भी आपकी जाति या धर्म से मतलब नही होता उसके लिए सभी एक समान होते है। +* एक डॉक्टर जिसकी खुद की जान जोखिम में है, पर वह जोखिम में फंसे मरीज़ को जोखिम से निकालना ज्यादा ज़रूरी समझता है। +* परेशान लोगों की दुनिया में परेशानी से निकालने वाला शख्स केवल एक है डॉक्टर। +* एक शिक्षक जीने का तरीक़ा सिखाता है और एक चिकित्सक जीवित रखने में मदद करता है दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। +* सेहत के सुधार के लिए जितनी दवाएं आवश्यक होती है उतना ही डॉ पर विश्वास की भी आवश्यक होती है । +* एक डॉक्टर की मुस्कराहट उसके दवाओ से कही ज्यादा असर दिखाती है। +* डॉक्टर की पढाई पैसे कमाने के लिए बल्कि मानवता की सेवा के लिए होता हैं । +* एक सफल डॉक्टर वही होता हैं, जिसके ह्रदय में करुणा के भाव होते हैं। + + +: अर्थात् चिकित्सा के पूर्व परीक्षा अत्यन्त आवश्यक है। परीक्षा की जहां तक बात आती है तो परीक्षा रोगी की भी होती है और रोग की भी। रोग-रोगी दोनों की परीक्षा करके उनका बलाबल ज्ञान करके ही सफल चिकित्सा की जा सकती है। +: निदान, पूर्वरूप, रूप, उपशय और सम्प्राति ये रोगों के पाँच प्रकार के विज्ञान हैं। +* आयुर्वेद केवल पोषण या जड़ी-बूटी के बारे में नहीं है, इसमें निदान के लिए एक अनूठा उपकरण है। मानव संविधान को समझने का निदान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न है। प्रत्येक में एक अद्वितीय चयापचय प्रणाली होती है। +* उपलब्ध युक्तियों का प्रयोग करते हुए मैंने आत्म-निदान किया और समय से पहले मरने से बच गया। Steven Magee, Magee’s Disease + + +*आप जानते हो मेरे दोस्तों, एक समय ऐसा भी आता है जब लोग ज़ुल्म के लोहे के पैरों से रौंदे जाने से थक जाते हैं। एक समय आता है मेरे दोस्तों, जब लोग अपमान के रसातल में गिरते-गिरते थक जाते हैं, जहां वे निराशा की नीरसता का अनुभव करते हैं। एक समय ऐसा आता है जब लोग जीवन की जुलाई की तेज़ धूप से बाहर निकलने से थक जाते हैं और अल्पाइन नवंबर की चुभती ठंड के बीच खड़े रह जाते हैं। एक समय ऐसा आता है। +*हम, इस भूमि से वंचित, हम जो इतने लंबे समय से प्रताड़ित हैं, कैद की लंबी रात से गुज़रते हुए थक गए हैं। और अब हम स्वतंत्रता और न्याय और समानता के भोर की ओर बढ़ रहे हैं। +:—होल्ट स्ट्रीट बैपटिस्ट चर्च में मोंटगोमरी बस बहिष्कार भाषण (५ दिसंबर १९५५) +*हम यहाँ हैं, हम आज शाम यहाँ हैं क्योंकि हम अब थक चुके हैं। और मैं कहना चाहता हूं कि हम यहां हिंसा की वकालत नहीं कर रहे हैं। हमने ऐसा कभी नहीं किया है। मैं चाहता हूं कि यह पूरे मोंटगोमरी और पूरे देश में ज्ञात हो कि हम ईसाई लोग हैं। हम ईसाई धर्म में विश्वास करते हैं। हम यीशु की शिक्षाओं में विश्वास करते हैं। आज शाम हमारे हाथ में एकमात्र हथियार विरोध का हथियार है। बस इतना ही। +:—होल्ट स्ट्रीट बैपटिस्ट चर्च में मोंटगोमरी बस बहिष्कार भाषण (५ दिसंबर १९५५) +* हमारे जीवन का उस दिन अन्त होना शुरू हो जाता है, जिस दिन हम उन मुद्दों के बारे में चुप हो जाते हैं, जो आम समाज के लिए मायने रखते हैं। +* सही काम को करने के लिए, समय भी हर क्षण सही ही होता है। +* अंधकार को अंधकार से नहीं, बल्कि प्रकाश से दूर किया जा सकता है। घृणा को ग्घृणा से नहीं, बल्कि प्रेम से खत्म किया जा सकता है। +* मैंने प्रेम को ही अपनाने का निर्णय किया है, घृणा करना तो बहुत कष्टदायक काम है। +* हमें सीमित निराशा को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन असीमित आशा को कभी नहीं भूलना चाहिए। + + +ईश्वर चन्द्र विद्यासागर २६ सितम्बर १८२० – २९ जुलाई १८९१) उन्नीसवीं शताब्दी के बंगाल के प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक, अनुवादक, मुद्रक, प्रकाशक, उद्यमी और परोपकारी व्यक्ति थे। वे बंगाल के पुनर्जागरण के स्तम्भों में से एक थे। उनके बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बन्द्योपाध्याय था। संस्कृत भाषा और दर्शन में अगाध पाण्डित्य के कारण विद्यार्थी जीवन में ही संस्कृत कॉलेज ने उन्हें 'विद्यासागर' की उपाधि प्रदान की थी। +वे नारी शिक्षा के समर्थक थे। उनके प्रयास से ही कलकत्ता में एवं अन्य स्थानों में बहुत अधिक बालिका विद्यालयों की स्थापना हुई। +उस समय हिन्दु समाज में विधवाओं की स्थिति बहुत ही शोचनीय थी। उन्होनें विधवा पुनर्विवाह के लिए लोकमत तैयार किया। उन्हीं के प्रयासों से 1856 ई. में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ। उन्होंने अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक विधवा से ही किया। उन्होंने बाल विवाह का भी विरोध किया। +बांग्ला भाषा के गद्य को सरल एवं आधुनिक बनाने का उनका कार्य सदा याद किया जायेगा। उन्होने बांग्ला लिपि के वर्णमाला को भी सरल एवं तर्कसम्मत बनाया। बँगला पढ़ाने के लिए उन्होंने सैकड़ों विद्यालय स्थापित किए तथा रात्रि पाठशालाओं की भी व्यवस्था की। उन्होंने संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास किया। उन्होंने संस्कृत कॉलेज में पाश्चात्य चिन्तन का अध्ययन भी आरम्भ किया। +सन २००४ में एक सर्वेक्षण में उन्हें 'अब तक का सर्वश्रेष्ठ बंगाली' माना गया था। +* जो व्यक्ति दूसरों के काम न आये वह वास्तव में मनुष्य नहीं है। +* समाज के हित में किये गए कार्यों से बढ़कर दूसरा कोई शुभ काम नहीं है। यही मनुष्य का सच्चा धर्म है। +* कष्ट और परेशानी बिना जीवन बिना नाविक की नाव जैसा है, जिसमे खुद का कोई विवेक नहीं। नाविक के बिना नाव जहाँ हवा का झोका होता है वही चली जाती है। +* जिसके अंदर विनम्रता है वही जीवन में सुखी और सफल है, और विनम्रता विद्या से ही आती है। +* अपना हित करने से पहले, समाज और देश के हित को देखना एक विवेक युक्त सच्चे नागरिकत का धर्म है। +* नास्तिक व्यक्ति को वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर भगवान में विश्वास करना चाहिए। इसी में उनका हित है। +* ध्यान करना एकाग्रता देता है, संयम विवेक देता है। शांति, सन्तुष्टि और परोपकार मनुष्यता देती है। +* यदि कोई व्यक्ति बड़ा बनना चाहता है तो उसे छोटे छोटे काम भी पूर्ण निष्ठा से करना चाहिए, क्योंकि स्��ावलम्बिता ही श्रेष्ठ है। +* जो मनुष्य संयम के साथ, विर्द्याजन करता है और अपने विद्या से सब का परोपकार करता है, उसकी पूजा केवल इस लोक मे नहीं वरन परलोक मे भी होती है। +* विद्या सबसे अनमोल ‘धन’ है। इसके आने मात्र से ही हमारा ही नहीं अपितु पूरे समाज का कल्याण होता है। +* मनुष्य का सबसे बड़ा कार्य दूसरों की भलाई और सहयोग होना चाहिए, जो एक समृद्ध राष्ट्र का निर्माण करता है। +* यदि आप सफल और प्रतिष्ठित बनना चाहते हैं, तो झुकना सीखें। जो झुकते नहीं, समय की हवा उन्हें झुका देती है। + + +: अर्थ कालिदास उपमा में, भारवि अर्थगौरव में, और दण्डी पदलालित्य में बेजोड़ हैं। लेकिन माघ में ये तीनों गुण हैं। +: अर्थ — बुद्धिमान लोग काव्य-शास्त्र का अध्ययन करने में अपना समय व्यतीत करते हैं जबकि मुर्ख लोग निंद्रा, कलह और बुरी आदतों में अपना समय बिताते हैं। + + +: वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा। +चीन के ध्वज में एक बड़ा तारा तथा चार छोटे तारे हैं जिसका अर्थ है कि चीन एक बड़े राष्ट्र तथा कई छोटे राष्ट्रों मिलकर बना है। भारत के ध्वज में २४ तिल्लियों वाला चक्रवर्ती का चक्र है जिसका अर्थ है कि उसके (चक्रवर्ती के) राज्य में सभी सहभागी राज्यों की अपनी-अपनी स्वायत्तता और परम्पराएँ थीं। आधुनिक तथा अधिक समतावादी शब्दों में कहें तो भारतीय संघ कई समुदायों को एक सभ्यता-राज्य के रूप में जोड़ता है। Koenraad Elst, On Modi Time Merits And Flaws of Hindu Activism In Its Day Of Incumbency (2015 अध्याय 18 + + +* हम यह लगातार देखते आ रहे हैं कि जिस व्यक्ति के पास सत्ता है वह इसका दुरुपयोग करने की तरफ प्रवृत्त होता है। जब तक उसे सीमा नहीं मिल जाती, तब तक वह सत्ता का दुरुपयोग करता ही जाता है। मॉन्टेस्क्यू, द स्पिरिट ऑफ द लॉज, भाग-११, अध्याय-४, १७४८ +* मेरा मानना है कि सत्ता का दुरुपयोग ही सभी बुराइयों की जड़ है। Patricia Cornwell +* हमारे बड़े-बडे कॉरपोरेशन उस भयावह शक्ति का अधिकाधिक दुरुपयोग करते आ रहे हैं जिसे उन्होंने जमा कर रखा है। शक्ति या यह दुरुपयोग कई रूपों में दिखता है। उनका यह काम विशेष रूप से परेशान करने वाला है जो वे वैध और अवैध दोनों तरीकों से बड़े-बडे योगदान करके और इसके बदले राजनीतिक प्रक्रिया को अपने हित में ढाल कर करते हैं। मार्शल बी क्लिनार्ड, Corporate Corruption: The Abuse of Power. Greenwood Publishing Group. 1990. p. 6. ISBN 978-0-275-93485-9. +* इन्टरनेट उन लोगों को बल प्रदान करता है जो सत्ता क�� रुरुपयोग के विरुद्ध विरोध कर रहे हैं। Rebecca MacKinnon + + +* ये परिवारवादी पार्टियां आज भी देश को पीछे ले जाना चाहती हैं। उनका सार्वजनिक जीवन परिवार से शुरू होता है और सिर्फ परिवार के लिए ही होता है। हमें याद रखना है कि परिवारवाद की राजनीति से धोखा खाने वाले लोगों का भरोसा भाजपा ही लौटा सकती है। परिवार-वंशवाद की राजनीति ने देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। लोकतंत्र बचाने के लिए परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ संघर्ष करना होगा। आजादी के बाद से परिवारवाद-वंशवाद की राजनीति ने देश का भयंकर नुकसान किया है। महात्मा गांधी का देश में सिर्फ नाम लिया गया, काम उनके विजन से उल्टे किए गए। वे देश में स्वावलंबन चाहते थे, लेकिन सालों तक देश को विदेशों पर निर्भर बना दिया गया, लेकिन आज देश आत्मनिर्भरता के रास्ते पर चल पड़ा है। ये काम भाजपा ने ही किया है। नरेन्द्र मोदी मई २०२२, जयपुर) +* एक राजवंश और कुछ नहीं बल्कि विश्वासघात का सफल परिचालन है। स्टीवर्ट स्टैफ़ोर्ड +* आप किसी प्रसिद्ध धार्मिक नेता को ले लें और कहें कि हम उनका क्लोन बनाते जायेंगे ताकि अनन्त काल तक अच्छे नेता मिलते जायेंगे। लेकिन मेर अनुमान यह है कि हर बार जब आप क्लोनिंग करेंगे तब हर बार वे पहले से अधिक दोषपूर्ण होते जायेंगे। सम्भवतः वे मानसिक रूप से अधिक दोषपूर्ण होंगे और आगे चलकर वे और भी अधिक दोषपूर्ण होंगे। John Gurdon +* भारतीय लोकतंत्र दोहरे संकट से ग्रस्त है राजनैतिक दलों का वंशवाद तथा न्यायपालिका का भाई-भतीजावाद। बी एस मूर्ति + + +श्रेणी कोड से भाषा lc 1 विकिपीडिया से अनूदित पृष्ठ]] + + +::धारण करती इस सृष्टि को +: हे पृथ्वी माँ, समुद्र आपके वस्त्र हैं और पर्वत आपके वक्षस्थल हैं। आप विष्णु पत्नी हैं, मैं आपको नम्स्कार करता हूँ और चलते समय मेरे चरणों के स्पर्श आपको होंगे कृपया मेरी इस धृष्टता को क्षमा करें ! +* विशाल ब्रह्मांडीय अखाड़े में पृथ्वी एक बहुत छोटा सा मंच है। कार्ल सागन]] +* पृथ्वी सभी मनुष्यों की ज़रुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है, लेकिन लालच पूरा करने के लिए नहीं। महात्मा गाँधी]] +* एक अच्छे घर का क्या उपयोग है, यदि आपके पास इसे बनाने के लिए एक सहनशील ग्रह नहीं है। हेनरी डेविड थोरो +* तुम पृथ्वी से जो लेते हो, उसे वापस कर देना चाहिए। यही प्रकृति का तरीका है। क्रिस डी लेसी +* ह���ें यह ग्रह हमारे पूर्वजों से उत्तराधिकार में नहीं मिला, हम इसे अपने बच्चों से उधार में लेते हैं। अमेरिकी कहावत +* मनुष्य ही इस पृथ्वी पर एक मात्र प्राणी है जो अपने बच्चों को घर वापस आने की इज़ाज़त देता है। बिल कोस्बी +* कमजोरों को स्वर्ग पर शाशन करने दो। जो मज़बूत हैं वे पृथ्वी पर शाशन करें। जेनिफर अर्मीनट्राउट +* भगवान् ने पृथ्वी पर स्वर्ग बनाया लेकिन इंसान ने नरक। संतोष कलवार +* बिना पृथ्वी के मानव जाति घर के बिना मानवता के सामान है। एस. जी. रेन्बोल्ट +* पृथ्वी एक कैनवास है, और परमेश्वर कलाकार है। एमी बी. +* सूर्य सौ साल पहले मुस्कुरा रहा था और आज वो हंस रहा है। संतोष कलवार +* स्वस्थ्य पृथ्वी स्वस्थ्य निवासियों के बराबर है। लौरेल मेरी सोबोल +* पृथ्वी नर्क का ही एक रूप है, और इंसान इसके राक्षस हैं। अनाम +* पानी और हवा, दो महत्त्वपूर्ण द्रव्य जिस पर हर प्रकार का जीवन निर्भर करता है, वैश्विक कचरे के डिब्बे बन गए हैं। जैक्स -एवस कौस्टो +* “क्योंकि प्रकृति के लिए सामान्य मानव गतिविधि इतिहास में घटी सबसे बड़ी परमाणु दुर्घटना से भी बदतर है।” मार्टिन क्रूज़ स्मिथ +* बर्वादी आपराधिक है। क्रिस्टिन कैशोर +* इस नीले चमकते ग्रह पर बीताया हर एक पल कीमती है इसलिए इसे सावधानी से प्रयोग करो। संतोष कलवार +* हम इतने अभिमानी कैसे हो सकते हैं? यह ग्रह हमेशा से हमसे शक्तिशाली था, है और रहेगा। हम इसे नष्ट नही कर सकते, अगर हम अपनी सीमा लांघते हैं तो ये ग्रह बस हमें बस अपनी सतह से मिटादेगा और खुद जीवित रहेगी। वे इस बारे में बात क्यों नहीं शुरू करते कि कहीं ये गृह हमारा ही विनाश ना कर दे। पाउलो कोएलो +* जन्म से ही, इंसान अपने कन्धों पर गुरुत्वाकर्षण का बोझ उठाये रहता है। वह पृथ्वी से बंधा रहता है। लेकिन एक व्यक्ति को बस सतह से थोडा नीचे जाना होता है और वो स्वतंत्र हो जाता है। जैक्स ईव्स कोस्टे +* हम ऐसे बिंदु पर पहुँच रहे हैं जहाँ हमने पृथ्वी पर जो बोझ रखा है यदि उसे खुद नहीं हटाते तो पृथ्वी को उसे हटाना होगा। स्टीवन एम्. ग्रीयर +: अर्थ पृथ्वी मेरी माता है और मैंं उसका पुत्र हूँ। +: अर्थात महान् सत्य, कठोर नैतिक आचरण, शुभ कार्य करने का दृढ़ संकल्प, तपस्या, वैदिक स्वाध्याय अथवा ब्रह्मज्ञान और सर्वलोकहित के लिये समर्पित जीवन पृथ्वी को धारण करते हैं। इस पृथ्वी ने भूत काल में जीवों का पालन किया था और भव��ष्य काल में भी जीवों का पालन करेगी। इस प्रकार की पृथ्वी हमें निवास के लिए विशाल स्थान प्रदान करे। +: वह धरती मॉ जो अपने पर्वत, ढलान और मैदानों के माध्यम से मनुसष्यों तथा समस्त जीवों के लिए निर्बाध स्वतंत्रता (दोनों बाहरी और आंतरिक दोनों) प्रदान करती है। वह कई पौधों और विभिन्न क्षमता के औषधीय जड़ी बूटी को जनम देती हैह उन्हे परिपोषित करती है वह हमें समृद्ध करे और हमें स्वस्थ बनाये। +: समुद्र और नदियो क जल जिसमें गूथा हुआ है, इसमें खेती करने से अन्न प्राप्त होता है, जिस पर सभी जीवन जीवित है, वह मॉ पृथ्वी हमें जीवन का अमृत प्रदान करे। +: इस पर आदिकाल से हमारे पूर्वज विचरण करते रहे, इस पर देवों (सात्विक शक्तियों) ने असुरों(तामसिक शक्तियों) को पराजित किया। इस पर गाय, घोडा, पक्षी अन्य जीव –जंतु) पनपे। वह माता पृथ्वी हमें समृद्धि और वैभव प्रदान करे। +: मातृ पृथ्वी के लिए नमस्कार हे मातृ पृथ्वी, आपके पर्वत, और बर्फ से ढकी चोटिया, घने जंगल हमे शीतलता और सुखानुभुति प्रदान करें । हे मॉ आप अपने कई रंगों के साथ विश्वरूपा हो – भूरा रंग (पहाड़ों की नीला रंग( समुद्र के जल का लाल रंग (फूलों का लेकिन इन सभी विस्मयकारक रूपों के पीछे) हे मॉ धरती, आप ध्रुव की तरह हैं- दृढ और अचल; और आप इंद्र, द्वारा संरक्षित हैं। (आपकी नींव जो कि अविजित है, अचल है, अटूट है, उस पर मै दृढ्ता से खड़ा हूँ।) + + +| अतिस्नेहः पापशंकी। अत्यधिक प्रेम पाप की आशंका उत्पन्न करता है। +| अनतिक्रमणीयो हि विधिः। भाग्य का उल्लङ्घन नहीं किया जा सकता। +| ईशावास्यमिदं सर्वं संपूर्ण जगत् के कण-कण में ईश्वर व्याप्त है। +| अकारणपक्षपातिनं भवन्तं द्रष्ट्म् इच्छति में हृदयम्। केयूरक महाश्वेता का संदेश चंद्रापीड को देते हुए कहता है कि आपके प्रति मेरा स्नेह स्वार्थ रहित है फिर भी आपसे मिलने की उत्कण्ठा हो रही है। +| अगाधजलसंचारी रोहितः नैव गर्वितः अगाध जल में तैरने वाली रोहू मछली घमंड नहीं करती +| अङ्गुलिप्रवेशात्‌ बाहुप्रवेशः । अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है । +| अजीर्ण हि अमृतं वारि, जीर्ण वारि बलप्रदम अजीर्ण में जल अमृत के समान होता हैं और भोजन के पचने पर बल देता हैं। +| अजीर्णे भोजनं विषम् । अपाचन हुआ हो तब भोजन विष समान है । +| अज्ञातकुलशीलस्य वासो न देयः जिस का कुल और शील मालूम नहीं हो उसके घर नहीं टिकना चाहिए। +| अति सर्वत्र वर्जयेत् । अति को करने से सब जगह बचना चाहिये । +| अतिभक्ति चोरलक्षणम्‌ अति-भक्ति चोर का लक्षण है । +| अनतिक्रमणीया नियतिरिति। नियति अतिक्रमणीय होती है अर्थात् होनी नहीं टाला जा सकता। +| अनुपयुक्तभूषणोऽयं जनः। दोनों सखियां शकुंतला को आभूषण धारण कराते हुए कहती हैं हम दोनों आभूषणों के उपयोग से अनभिज्ञ हैं अतः चित्रावली को देखकर आभूषण पहनाती हैं। +| अपसृतपाण्डुपत्रा मुञ्चन्त्यश्रूणीव लताः। शकुन्तला के पतिगृह गमन के समय आश्रम में पशु-पक्षी और तरु तलायें भी वियोग पीड़ित हैं। लताओं से पीले पते टूट कर गिर रहे हैं मानो वे आंसू बहा रहे हैं। +| अपुत्राणां न सन्ति लोकाशुभाः। जिन दंपतियों को पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है उन्हें लोक शुभ नहीं होते। +| अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति । जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता उसमें बहुत जल भरा होता है । +| अप्रार्थितानुकूलः मन्मथः प्रकटीकरिष्यति। बिना प्रार्थना किये ही मेरे प्रति अनुकूल हो जाने वाला कामदेव शीघ्र ही उसे प्रकट कर देगा। ऐसा कादंबरी के अनुराग के कारणों के विषय में चंद्रापीड कहता है। +| अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता । अच्छी तरह बोली गई वाणी अलग अलग प्रकार से मानव का कल्याण करती है । +| अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम, उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् यह मेरा हैं यह तुम्हारा हैं. ऐसा चिन्तन तो संकीर्ण बुद्धि वालों का हैं. उदार चरित वालों के लिए तो पूरी पृथ्वी ही परिवार की तरह हैं। +| अल्पविद्या भयङ्करी अल्पविद्या भयंकर होती है । +| अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका छोटे लोगों का एकजुट होना भी काम साध लेता हैं। +| अशांतस्य कुतः सुखम्। अशांत (शांति रहित) व्यक्ति को सुख कैसे मिल सकता है? +| अहो दुरन्ता बलवद्विरोधिता । बलवान के साथ विरोध करनेका परिणाम दुःखदायी होता है । +| अहो मानुषीषु पक्षपातः प्रजापतेः। कादंबरी पत्रलेखा के सौन्दर्य को देखकर कहती है कि ब्रह्मा ने पत्रलेखा के प्रति पक्षपात किया है और उसे गन्धर्वों से भी अधिक सौन्दर्य प्रदान किया है। +| आचारपूतं पवनः सिषेवे। आचारों से पवित्र राजा दिलीप की सेवा में झरनों के कणों से सि​ञ्चित हवायें संलग्न थीं। +| आज्ञा गुरुणामविचारणीया। बड़ों की आज्ञा विचारणीय नहीं होती। +| आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं भवति दुःखदम, तस्म���त् सदव्यवहर्तव्य मानवेन सुखैषीणा अपने दुर्व्यवहार का फल भी दुखदायी होता हैं. अतः सुख प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को हमेशा अच्छा व्यवहार करना चाहिए। +| आपदि मित्र परीक्षा । आपत्ति में मित्र की परीक्षा होती है । +| आलाने गृह्यते हस्ती वाजी वल्गासु गृह्यते। हृदये गृह्यते नारी यदीदं नास्ति गम्यताम्।। हा​थी खंभे से रोका जाता है। घोड़ा लगाम से रोका जाता है, स्त्री हृदय से प्रेम करने से ही वश में की जाती है यदि ऐसा नहीं है तो सीधे अपनी राह नापिये। +| आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते आहार मनुष्यों के जन्म के साथ ही पैदा हो जाता हैं। +| उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत हे मनुष्य! उठो, जागो और श्रेष्ठ महापुरुषों को पाकर उनके द्वारा परब्रह्म परमेश्वर को जान लो। +| एको रसः करुण एव निमित्तभेदात्। एक करुण रस ही कारण भेद से भिन्न होकर अलग-अलग परिणामों को प्राप्त होता है। +| कलौ वेदान्तिनो भांति फाल्गुने बालकाः इव फाल्गुन में बालको के समान कलि युग में वेदांती सुशोभित होते हैं। +| कष्टाद्पि कष्टतरं परगृहवासः परानं च कष्ट से भी बड़ा कष्ट दुसरे के घर में निवास करने एवं दूसरे का अन्न खाना हैं। +| कालस्य कुटिला गतिः काल की गति टेडी होती हैं। +| काले खलु समारब्धाः फलं बध्नन्ति नीतयः। समय पर आरंभ की गयी नीतियां सफल होती हैं। +| काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम, व्यसनेन च मूर्खाणा निद्रया कलहेन वा बुद्धिमान लोगों का समय काव्यशास्त्र की बातों में गुजरता हैं. जबकि मुर्ख व्यक्तियों का समय व्यसन, निद्रा या कलह में गुजरता हैं। +| कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति कुपुत्र हो सकता हैं, लेकिन कुमाता कहीं पर भी नहीं होती +| कुभोज्येन दिनं नष्टम् । बुरे भोजन से पूरा दिन बिगडता है । +| कुरूपता शीलयुता विराजते । कुरुप व्यक्ति भी शीलवान हो तो शोभारुप बनती है +| कुलं शीलेन रक्ष्यते । शील से कुल की रक्षा होती है +| कुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते । खराब वस्त्र भी स्वच्छ हो तो अच्छा दिखता है । +| कोअतिभारः समर्थानाम समर्थ जनों के लिए क्या अधिक भार हैं। +| क्लिश्यन्ते लोभमोहिताः । लोभ की वजह से मोहित हुए हैं वे दुःखी होते हैं । +| क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढः। महर्षि वशिष्ठ के प्रभाव से मेरे ऊपर यमराज भी आक्रमण करने में समर्थ नहीं है तो सांसारिक हिंसक पशुओं का तो कहना ही क्या? +| क्षीणा नरा निष्करुणा भवन्ति कमजोर व्यक्ति ही दयाहीन होते हैं। +| गतानुगतिको लोको न लोकः पारमार्थिकः लोग अंधपरम्परा पर चलने वाले होते हैं असलियत पर नहीं जाते +| गतेअपि वयसे ग्राहा विद्या सर्वात्मना बुधैः बूढा हो जाने पर भी विद्या सब भांति उपार्जना करता रहे। +| गरीयषी गुरोः आज्ञा। गुरुजनों (बड़ों) की आज्ञा महान् होती है अतः प्रत्येक मनुष्य को उसका पालन करना चाहिए। +| गुणवते कन्यका प्रतिपादनीया। गुणवान् (सुयोग्य) व्यक्ति को कन्या देनी चाहिए। यह माता-पिता का मुख्य विचार होता है। +| गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति। गुणों को जानने वालों के लिए ही गुण गुण होते हैं। +| गुणा सर्वत्र पूज्यते। गुणों की सभी जगह पूजा होती हैं। +| गुरुणामेव सर्वेषां माता गुरुतरा स्मृता । सब गुरु में माता को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है +| चक्रवत परिवर्तन्ते दुखानि च सुखानि च सुख और दुःख चक्र के समान परिवर्तनशील हैं। +| चक्रारपंक्तिरिव गच्छति भाग्यपंक्तिः । चक्र के आरे की तरह भाग्यकी पंक्ति उपर-नीचे हो सकती है +| चित्रार्पितारम्भ इवावतस्थे। चित्र में लिखे हुए बाण निकालने के उद्योग में लगे हुए की भांति हो गया। +| छायेव तां भूपतिरन्वगच्छत्। राजा दिलीप ने नन्दिनी को छाया की भांति अनुसरण किया। +| छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्। छाया के समान दुर्जनों और सज्जनों की मित्रता होती है। +| जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। +| जिता सभा वस्त्रवता । अच्छे वस्त्र पहननेवाले सभा जित लेते हैं (उन्हें सभा में मानपूर्वक बिठाया जाता है) । +| जीवेम शरदः शतम्। हम सौ वर्ष तक देखने वाले और जीवित रहने वाले हों। +| जीवो जीवस्य भोजनम् जीव, जीव का भोजन हैं। +| तमसो मा ज्योतिर्गमय। अंधकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमृत की ओर ले जायें। +| त्यजेत क्रोधमुखी भार्याम क्रोधी पत्नी का त्याग करना चाहिए। +| दंतभंगो हि नागानां श्लाघ्यो गिरिविदारणे पहाड़ के तोड़ने में हाथी के दांत का टूट जाना भी तारीफ़ की बात हैं। +| दरिद्रता धीरतया विराज्रते दरिद्रता धीरता से शोभित होती हैं। +| दिनक्षपामध्यगतेव संध्या। वह ​नन्दिनी दिन और रात्रि के मध्य संध्या के समान सुशोभित हुई। +| दीर्घसूत्री विनश्यति। प्रत्येक कार्य में अनावश्यक विलंब करने वाला नष्ट होता है। +| दुःखशीले तपस्विजने ��ोsभ्यर्थ्यताम् कष्ट सहन करने वाले तपस्वियों में से किससे प्रार्थना करें। +| दुर्बलस्य बलं राजा दुर्बल का बल राजा होता हैं। +| धनधान्यप्रयोगेषु विद्यायाः संग्रहेषु च, आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् धन धान्य के प्रयोग में विद्या के संग्रह में भोजन में तथा व्यवहार में लज्जा से दूर रहने वाला व्यक्ति हमेशा सुखी रहता हैं। +| धूमाकुलितदृष्टेरपि यजमानस्य पावके एवाहुतिः पपिता। सौभाग्य से धुएं से व्याकुल दृष्टि वाले यजमान की भी आहुति ठीक अग्नि में ही पड़ी। +| न निश्चितार्थद विरमन्ति धीराः धैर्यशील व्यक्ति अपने प्रयोजन से दूर नहीं होते +| न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्य। मनुष्य कभी धन से तृत्प नहीं हो सकता। +| न हि ज्ञानेन सद्रश पवित्रमिह वर्तते इस संसार में ज्ञान से ज्यादा पवित्र कुछ नहीं हैं। +| नराणाम नापितो धूर्तः मनुष्यों में नाई धूर्त होता हैं। +| नास्ति विद्या समं चक्षु। संसार में ब्रह्मविद्या के समान कोई नेत्र नहीं है। +| नास्तिको धर्मनिंदकः धर्म की निंदा करने वाला नास्तिक होता हैं। +| नास्तिको वेदनिंदक वेदों की निंदा करने वाला नास्तिक हैं। +| निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् । गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है । +| नीचैर्गच्छतयुपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण मनुष्य के जीवन की दशा वैसी ही ऊँची नीची हुआ करती है जैसा रथ का पहिया कभी ऊँचा कभी नीचा होता रहता हैं। +| पदं हि सर्वत्र गुणैर्निधीयते। गुण ही सर्वत्र शत्रु-मित्रादिकों में पैर को स्थापित करते हैं। +| पयः पानं भुजंगाना केवलं विषवर्धनम सापों को दूध पिलाना, जहर बढ़ाना ही हैं। +| पयोधरीभूत चतुःसमुद्रां, जुगोप गोरूपधरामिवोर्वीम्। राजा दिलीप ने समुद्र के समान चार थनों वाली नन्दिनी गाय की रक्षा इस प्रकार की जैसे चार थनों के समान चार समुद्रों वाली पृथ्वी ही गाय के रूप में हो। +| पराभवोsप्युत्सव एव मानिनाम्। मनस्वी पुरुषों के लिए पराभव भी उत्सव के ही समान है। +| परित्यक्तः कुलकन्यकानां क्रमः। कादंबरी चंद्रापीड को अपना हृदय समर्पित करके कहती है– कुल कन्याओं की परम्परा रही है कि गुरुजनों की सहमति से ही वे योग्य वर का चुनाव करती हैं। मैंने यह परम्परा तोड़ दी है। यह लज्जा का विषय है। +| परोपकारः पुण्याय पापाय परपीड़नम परोपकार पुण्य तथा परपीड़न पाप देने वाला होता हैं। +| परोपकाराय सतां विभूतय��। सज्जनों की विभूति (ऐश्वर्य) परोपकार के लिए है। +| परोपकारार्थमिदं शरीरम यह शरीर दूसरे के उपकार के लिए हैं। +| पात्रत्वात धनमाप्नोति योग्यता से ही धन की प्राप्ति होती हैं। +| पिण्डेष्वनास्था खलु भौतिकेषु। विवेकी लोगों की आस्था नष्ट होने वाले इन भौतिक शरीरों से नहीं है, बल्कि यश रूपी शरीर की रक्षा करने में है। +| पुण्येः यशो लभते पुण्यों से ही यश की प्राप्ति होती हैं। +| पुत्रोत्सवे माद्यति को न हर्षात पुत्र के जन्मोत्सव में कौन आनन्द में मतवाला नहीं होता। +| प्रतिबदध्नाति हि श्रेयः पूज्यपूजाव्यतिक्रमः। वसिष्ठ कहते हैं– पूजनीय की पूजा का उल्लड़्घन कल्याण को रोकता है। +| प्रसादचिह्नानि पुरःफलानि। पहले प्रसन्नतासूचक चिन्ह दिखाई पड़ते हैं तदन्तर फल की प्राप्ति होती है। +| प्राणेभ्योपि हि वीराणां प्रिया शत्रुप्रतिक्रिया वीरों को प्रण से अधिक प्यार शत्रु से बदला चुकाना हैं। +| प्राणैरुपक्रोशमलीमसैर्वा। राजा दिलीप को जब लगा कि नन्दिनी को सिंह से नहीं छुड़ा पायेंगे तो उन्होंने कहा-तब तो मेरा ​क्षत्रियत्व ही नष्ट हो जायेगा क्योंकि क्षत्रियत्व से विपरीत वृत्ति वाले व्यक्ति का राज्य से या निन्दा युक्त मलिन प्राणों से क्या लाभ? +| प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्द्भ्यूप्यप्सरायते 16 वर्ष के होने पर तो गधी भी अपने आप को अप्सरा समझती हैं। +| प्रियेषु सौभाग्यफला हि चारुता प्रिय व्यक्ति को सुंदर लगना सौभाग्य का फल हैं। +| फलं भाग्यानुसारतः फल भाग्य के अनुसार मिलता हैं। +| बलवता सह को विरोधः। बलशाली के साथा क्या विरोध? +| बलवती हि भवितव्यता। होनहार बलवान् है, जो होना है वह होकर ही रहता है उसे टाला नहीं जा सकता। +| बलवन्तो हि अनियमाः नियमा दुर्बलीयसाम् । बलवान को कोई नियम नहीं होते, नियम तो दुर्बल को होते हैं । +| बहुरत्ना वसुंधरा यह पृथ्वी अनेक रत्नों से युक्त हैं। +| बुद्धिः कर्मानुसारिणी बुद्धि कर्म के अनुसार होती हैं जैसा कर्म करोगे वैसी ही बुद्धि होगी। +| भवितव्यता बलवती होनहार बलवान हैं। +| भार्या दैवकृतः सखा । भार्या दैव से किया हुआ साथी है । +| भिन्नरूचि र्हि लोकः । मानव अलग अलग रूचि के होते हैं । +| भोगीव मन्त्रोषधिरुद्धवीर्यः हाथ के रुक जाने से बढ़े हुए क्रोध वाले, राजा दिलीप, मंत्र और औ​षधि से बांध दिया गया है पराक्रम जिसका, ऐसे सांप की भांति समीप में (स्थित)​ अपराधी को नहीं स्पर्श करते हुए अपने तेज से भीतर जलने लगे। +| भोजनस्यादरो रसः । भोजन का रस “आदर है । +| मधुरापि हि मुर्छ्यते विषवृक्षसमाश्रिता वल्ली विष के पेड़ पर चढ़ी लता भी मूर्छित करने वाली हो जाती हैं। +| मृजया रक्ष्यते रूपम् । स्वच्छता से रूप की रक्षा होती है +| मौनं सर्वार्थसाधनम् । मौन यह सर्व कार्य का साधक है । +| यदभावि न तदभावी भावि चेन्न तदन्यथा । जो नहीं होना है वो नहीं होगा, जो होना है उसे कोई टाल नहीं सकता +| युक्तियुक्तमुपादेयं वचनं बालकादपि । युक्तियुक्त वचन बालक के पास से भी ग्रहण करना चाहिए । +| योगः कर्मसु कौशलम् समत्वरूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात् कर्मबंधन से छूटने का उपाय है। +| राजा कालस्य कारणम् । राजा काल का कारण है । +| रिक्तः सर्वों भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय रिक्त व्यक्ति लघु होता हैं, पूर्णता गौरव के लिए होती हैं। +| रूपेण किं गुणपराक्रमवर्जितेन । जिस रूप में गुण या पराक्रम न हो उस रूप का क्या उपयोग ? +| लोकरझ्जनमेवात्र राज्ञां धर्मः सनातनः । प्रजा को सुखी रखना यही राजा का सनातन धर्म है । +| लोभः प्रज्ञानमाहन्ति । लोभ विवेक का नाश करता है । +| लोभमूलानि पापानि । सभी पाप का मूल लोभ है । +| वपुराख्याति भोजनम् । मानव कैसा भोजन लेता है उसका ध्यान उसके शरीर पर से आता है । +| वसुधैव कुटुंबकम सम्पूर्ण पृथ्वी एक परिवार है। +| वाक्शल्यस्तु न निर्हर्तु शक्यो ह्रदिशयो हि सः । दुर्वचन रुपी बाण को बाहर नहीं निकाल सकते क्यों कि वह ह्रदय में घुस गया होता है । +| विद्याधनं सर्वधनप्रधानम विद्याधन सभी धनों में श्रेष्ठ धन हैं। +| विद्याविहीनः पशुः विद्या से विहीन व्यक्ति पशु ही होता हैं। +| वीरभोग्या वसुन्धरा । पृथ्वी का उपभोग वीर पुरुष हि कर सकते है । +| वृतं यत्नेन संरक्षेद वितमेति च याति च, अक्षीणो वित्तः क्षीणों वृत्ततस्तु हतोहतः ।। प्रयास करके अपने आचरण की रक्षा करनी चाहिए. धन तो आता हैं एवं चला जाता है. धन चले जाने पर तो कुछ भी नष्ट नहीं होता. आचरण से हीन व्यक्ति वास्तव में मर ही जाता हैं। +| शठे शाठ्यं समाचरेत्। शठ (धूर्त) के साथ शठता करनी चाहिये। +| शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ब्रह्मचारी शास्त्रोक्तविधिपूर्वक की गई पूजा को स्वीकार करके पार्वती से बोले– शरीर धर्म का मुख्य साधन है। +| शवः कार्यमद्य कुर्वीत पूर्वाह्ने चापराहिणकम कल के कार्य को आज ��रे तथा शाम के कार्य को सुबह करें। +| शीलं भूषयते कुलम् । शील कुल को विभूषित करता है +| श्रध्दा ज्ञानं ददाति । नम्रता मानं ददाति । (किन्तु) योग्यता स्थानं ददाति । श्रद्धा ज्ञान देती है, नम्रता मान देती है और योग्यता स्थान देती है । +| श्रोतव्यं खलु वृध्दानामिति शास्त्रनिदर्शनम् । वृद्धों की बात सुननी चाहिए एसा शास्त्रों का कथन है । +| संघे शक्तिः कलौ युगे कलियुग में संघ में ही शक्ति हैं। +| संपतौ च विपतौ च महतामेकरूपता बड़े लोग सम्पति और विपत्ति दोनों में समान रहते हैं। +| सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ति सारे गुण धन को आश्रित करके ही होते हैं। +| सर्वे मित्राणि समृध्दिकाले । समृद्धि काल में सब मित्र बनते हैं । +| सहसा विदधीत न क्रियाम्। शत्रुओं के प्रति क्रोध से व्याकुल भीम को शांत करने के लिए युधिष्ठिर ने कहा– कार्य को एकाएक बिना विचार विमर्श किये नहीं प्रारम्भ करना चाहिए। +| सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता । जैसी भवितव्यता हो एसे हि सहायक मिल जाते हैं +| साहसे श्री प्रतिवसति। शर्विलक का कथन है? साहस में लक्ष्मी निवास करती हैं। +| साहित्य- संगीत- कलाविहीनः, साक्षातपशुः पुच्छविषाणहीनः साहित्य, संगीत और कला से रहित व्यक्ति, पूंछ और सींगो से हीन साक्षात पशु होता हैं। + + +: जिसका मन सन्तुष्ट है, उसके पास सब सम्पत्तियाँ है। जिस मनुष्य के पैर में जूता हो, उसके लिये मानो सम्पूर्ण पृथ्वी ही चमड़े से ढ़की हुई (निष्कण्टक) है। +: बिना सन्तोष के कामना नष्ट नहीं होती और कामना के जीवित रहते सपने में भी सुख नहीं मिल सकता। +* शरीर का दुख भी मिट जाता है। मन में सन्तोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है, संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। महाभारत +* मैं सबसे अच्छे से आसानी से संतुष्ट हो जाता हूँ। विंस्टन चर्चिल +* अपने बीते हुए जीवन को संतुष्टि के साथ देख पाना दुबारा जीना है। लार्ड ऐक्टन +* बहुत लोगों के पास बहुत ज्यादा है, लेकिन किसी के पास पर्याप्त नहीं है। डैनिश प्रोवर्ब +* जब तक एक औरत अपनी बेटी से दस साल छोटी दिख सकती है, वो पूरी तरह संतुष्ट रहती है। ऑस्कर वाइल्ड +* कुछ हार जीत से अधिक संतोषजनक होती हैं। चन्द्रपाल खसिया +* जीवन में कभी भी पूर्ण संतुष्टि नहीं होगी, संतुष्टि एक भ्रम है, केवल एक चीज है वीरता। अमित कलंत्री +* पर्याप्त पाने के दो तरीके हैं। पहला है कि अधिक से अधिक जमा करते जाओ। दूसरा है कि कम की इच्छा करो। जी. के. चेस्टरटन +* वह जो थोड़े से संतुष्ट नहीं होता, किसी से संतुष्ट नहीं होता। एपिक्यूरस +* वह जो ये जानता है कि पर्याप्त पर्याप्त है उसके पास हमेशा पर्याप्त होगा। लाओ -त्ज़ु +* आपको वो नहीं मिलता जो आप चाहते हैं, आपको वो मिलता है जो आपको मिल सकता है। बंगाम्बिकी हैब्यारिमाना +* अगर आप पूर्णता की खोज में हैं तो आप कभी भी संतुष्ट नहीं होगें। लियो टॉलस्टॉय +* वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है जो उन चीजों के लिए शोक नहीं करता है जो उसके पास नहीं हैं, बल्कि उन चीजों के लिए खुश रहता है जो उसके पास हैं। एपिक्टेटस +* लोग सोचते हैं कि वे उससे संतुष्ट नहीं हैं जो उनके पास है लेकिन सही मायनों में वे उससे संतुष्ट नहीं हैं जो वे हैं। अमित कलंत्री +* ख़ुशी एक लक्ष्य नहीं है, यह अच्छी तरह से जिए गए जीवन का एक बाई-प्रोडक्ट है। एलेनोर रूजवेल्ट +* आलस्य आकर्षक दिखाई दे सकता है, लेकिन काम संतुष्टि देता है। ऐनी फ्रैंक +* कोई भी कभी जहाँ है वहां संतुष्ट नहीं होता, केवल बच्चों को पता होता है कि उनहें क्या चाहिए। ऐन्तोय्न डे सेंट–एक्स्जुपरी +* मेरा मानना ​​है कि आप काम करने से कभी नहीं थकते। जब आप काम नहीं करते हैं तो आप थक जाते हैं। जब आप अपना घर साफ करते हैं, तो आप थकते नहीं हैं; यह आपको संतुष्टि देता है। नरेंद्र मोदी +* स्वर्ण पदक एक अद्भुत चीज है, लेकिन अगर आप पदक के बिना संतुष्ट नहीं हैं, तो आप इसे पाकर भी संतुष्ट नहीं होगें। कूल रनिंग्स मूवी +* मेरे पास पैसा नहीं है लेकिन मेरे पास कुछ है जो पैसा भी नहीं खरीद सकता – संतुष्टि। जो कुछ थोड़ा मेरे पास है मैं उसके साथ संतुष्ट हूँ। सरू सिंघल +* संतोष सफलता का अंत है। रमन अग्रवाल +* वह समृद्ध है जो संतुष्ट है। थॉमस फुलर +* आप कहते हैं अगर मेरे पास थोड़ा और होता, तो मुझे बहुत संतुष्ट होना चाहिए।' आप गलती करते हैं। यदि आपके पास जो है उससे आप संतुष्ट नहीं हैं, यदि आप इसे दोगुना कर देते हैं तो भी आप संतुष्ट नहीं होंगे। चार्ल्स स्पर्जन +* जब तक एक महिला अपनी बेटी से दस साल छोटी दिख सकती है, वह पूरी तरह से संतुष्ट है ऑस्कर वाइल्ड + + +भारतीय साहित्य से तात्पर्य सन् १९४७ के पहले तक भारतीय उपमहाद्वीप एवं तत्पश्चात् भारत गणराज्य में निर्मित वाचिक और लिखित साहित्य से है। विश्व का सबसे पुराना वाचिक साहित्य आदिवासी भाषाओं में मिलता है। इस दृष्टि से आदिवासी साहित्य सभी साहित्य का मूल स्रोत है। +यदि आधुनिक भारतीय भाषाओं के ही सम्पूर्ण वाङ्मय का संचयन किया जाये तो वह यूरोप के संकलित वाङ्मय से किसी भी दृष्टि से कम नहीं होगा। वैदिक संस्कृत, संस्कृत, पालि, प्राकृतों और अपभ्रंशों का समावेश कर लेने पर तो उसका अनन्त विस्तार कल्पना की सीमा को पार कर जाता है। +इन सभी साहित्यों में अपनी-अपनी विशिष्ट विभूतियां हैं। तमिल का संगम-साहित्य, तेलगु के द्वि-अर्थी काव्य और उदाहरण तथा अवधान-साहित्य, मलयालम के संदेश-काव्य एवं कीर-गीत (किलिप्पाट्टु) तथा मणिप्रवालम् शैली, मराठी के वोवाडे, गुजराती के आख्यान और फागु, बँगला का मंगल काव्य, असमिया के बरगीत और बुरंजी साहित्य, पंजाबी के रम्याख्यान तथा वीरगति, उर्दू की गजल और हिन्दी का रीतिकाव्य तथा छायावाद आदि अपने-अपने भाषा–साहित्य के वैशिष्ट्य के उज्ज्वल प्रमाण हैं। +फिर भी कदाचित् यह पार्थक्य आत्मा का नहीं है। जिस प्रकार अनेक धर्मों, विचार-धाराओं और जीवन प्रणालियों के रहते हुए भी भारतीय संस्कृति की एकता असंदिग्ध है, इसी प्रकार इसी कारण से अनेक भाषाओं और अभिवयंजना-पद्धतियों के रहते हुए भी भारतीय साहित्य की मूलभूत एकता का अनुसंधान भी सहज-संभव है। भारतीय साहित्य का प्राचुर्य और वैविध्य तो अपूर्व है ही, उसकी यह मौलिकता एकता और भी रमणीय है। +वैशम्पायन जनमेजय से कहते हैं कि) हे भरतश्रेष्ठ! धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में जो इस ग्रन्थ में है वही दूसरे ग्रन्थों में भी है किन्तु जो यहाँ नहीं है वह कहीं भी नहीं है। +* भारतीय साहित्य बौद्धिक उत्पादों और गहनतम विचारों से समृद्ध भूमि है। इसलिये हर किसी के मन में आता है कि आरम्भ में ही इस खजाने से परिचित हो लिया जाय। जॉर्ज डब्ल्यू एफ हेगेल (Georg Wilhelm Friedrich Hegel) + + +सबसे हालिया पुरालेख संख्या से अधिक है + + +राकेश झुनझुनवाला भारत के एक प्रसिद्ध शेयर-निवेशक थे। उन्होंने शेयर बाजार में निवेश के द्वारा बहुत पैसा कमाया। +* उधार लेकर कभी निवेश ना करें। +* हमेशा उतना ही रिस्क ले, जितना आप बर्दाश्त कर सकते हैं। +* लालची लोग शेयर बाजार में कभी पैसा नहीं कमा पाएंगे। +* मैं स्वभाव से आशावादी हूँ, लेकिन गलत साबित होने का अधिकार भी साथ रखता हूँ। +* जब लोग आपकी तारीफ करें, तब सावधान रहें। क्योंकि सबसे बड़ी गलतियां तब होती हैं, जब आपका अच्छा समय चल रहा है। +* भाव भगवान होता है, हमेशा इस बात का सम्मान करें कि आप गलत भी हो सकते हैं। +* बाजार महिलाओ की तरह है – हमेशा कमांडिंग, रहस्यमय, अप्रत्याशित और अस्थिर। +* बाजार में आपको हमेशा गिरगिट की तरह रंग बदलना होगा। यदि आप इसके खिलाफ जाने की कोशिश करोगे, तो आप हार जाओगे। +* शेयर मार्केट में निवेश, बैंकों की तरह हमेशा सुरक्षित नहीं होता। यहां बड़ा रिटर्न है तो रिस्क भी है। +* नुकसान के लिए हमेशा तैयार रहे, नुकसान निवेशक की जिंदगी का हिस्सा है। +* बाजार का सम्मान करें। खुला दिमाग रखे। जानिए क्या दांव लगाना है। जानिए कब नुकसान उठाना है। जिम्मेदार बनें। +* जल्दबाजी में लिए गए फैसले से हमेशा भारी नुकसान होता है। किसी भी स्टॉक में पैसा लगाने से पहले अपना समय लें। +* अनुचित मूल्यांकन पर कभी भी निवेश न करें। उन कंपनियों के लिए कभी न दौड़ें जो सुर्खियों में हैं। +* ट्रेडिंग आपको हमेशा अपने पैरों पर खड़ा रखती है, यह आपको सतर्क रखती है। यही एक कारण है कि मुझे ट्रेडिंग करना पसंद है। +* इमोशनल होकर निवेश करना, शेयर बाजार में नुकसान करने का एक निश्चित तरीका है। +* आप शेयर बाजार में तब तक मुनाफा नहीं कमा सकते जब तक आपके पास नुकसान सहने की क्षमता न हो। +* ट्रेंड का अनुमान लगाएं और इससे लाभ उठाएं। व्यापारियों को मानव-स्वभाव के खिलाफ जाना चाहिए। + + +: भूमि माता है, मैं पृथ्वी का पुत्र हूँ। +: अर्थात भारत वह देश है जहां के ऊर्जावान युवा सब विद्याओं में अग्नि के समान तेजस्वी विद्वान हैं, सब का भला करने वाले हैं, सुखी हैं और जिन्हें ऋषिगण उपदेश देते हैं कि वे कल्याणमयी, विवेकशील तथा सर्वप्रिय लक्ष्मी को धारण करें। वैदिक परंपरा में ब्राह्मण के लिए लक्ष्मी ज्ञान है, क्षत्रिय के लिए बल है, वैश्य के लिए धन है और शूद्र के लिए सेवा है। +: देश की रक्षा के समान पुण्य, देशरक्षा के समान व्रत, और देशरक्षा के समान योग नहीं देखा गया है। +* राष्ट्र वह समाज है जो अपने पूर्वजों से सम्बन्धित भ्रमपूर्ण ज्ञान तथा अपने पड़ोसियों के प्रति समान घृणा के माध्यम से एकीकृत होता है। विलियम राल्फ इंगे, द एन्द ऑफ ऐन एज ऐण्ड अदर एस्सेज (1948 पृष्ट 127. +* महान राष्ट्र अपनी आत्मकथा तीन पाण्डुलिपियों के रूप मे लिखते हैं- एक अपने कर्मों की पुस्तक, एक अपने भाषा की पुस्तक और एक अपने कला की पुस्तक। इनमें से कोई भी पु��्तक अन्य दो को पढ़े बिना समझी नहीं जा सकती। लेकिन इनमें से सबसे विश्वसनीय कला की पुस्तक ही होती है। जॉन रस्किन, सेंट मार्क्स रेस्ट, द हिस्ट्री ऑफ वेनिस, प्राक्कथन पृष्ट १ (1885) +* शिक्षा, राष्ट्र की सस्ती सुरक्षा है। +* बड़े देशों ने सदा गिरोहबाजों की तरह काम किया है और छोटे देशों ने वेश्याओं की तरह। स्टैनली कुब्रिक, द गार्जियन (1963) + + +[[w:चारण चारण भारतीय उपमहाद्वीप की एक जाति है। ऐतिहासिक रूप से, चारण कवि और इतिहासकर होने के साथ-साथ योद्धा और जागीरदार भी रहे हैं। मध्ययुगीन राजपूत राज्यों में चारण मंत्रियों, मध्यस्थों, प्रशासकों, सलाहकारों और योद्धाओं के रूप में स्थापित थे। शाही दरबारों में कविराजा (राज कवि और इतिहासकार) का पद मुख्यतया चारणों के लिए नियोजित था। +ज्यों-ज्यों चारणों का संबंध क्षत्रिय जाति से उत्तरोत्तर बढ़ता गया त्यों-त्यों शक्ति की उपासना तीव्र होती गई। चारण जाति में शक्ति के अवतार बहुत हुए है। अत: इनकी स्तुति में भी गीत-रचना का अभाव नहीं। यथार्थ में चारण धर्म में समय समय पर अनेक परिवर्तन हुए हैं। दूसरी शताब्दी में चारण जाति के अनेक व्यक्ति जैन धर्म में दीक्षित हुए थे। क्षत्रिय धर्म के प्रभाव-स्वरूप चारण ब्राह्मण धर्म से शनै: शनै: दूर हटते गये। इसके लिए जिस ‘कौल’ शब्द का व्यवहार किया जाता है उससे यही सिद्ध होता है कि किसी समय यह जाति शाक्त सम्प्रदाय (कौल धर्म) की उपासना करती थी। नाथ सम्प्रदाय के उत्थान काल में शाक्त धर्म ने उसके आधारभूत सिद्धान्तों को आत्मसात कर अपनी समन्वयवादी भावना का परिचय दिया। चारण जाति में नाथ सम्प्रदाय के अनेक योगी हुए हैं। इस प्रकार यद्यपि ब्राह्मण, यायावर, वैष्णव, जैन एवं नाथ सम्प्रदाय का प्रभाव चारण धर्म पर पड़ता गया तथापि प्राचीन काल से अर्वाचीन काल तक शाक्त धर्म का परित्याग यह जाति कभी नहीं कर पाई।" +चारण राजपूत का चित्रकार है। एक गुरु है, दूसरा शिष्य। चारण अपने ओजस्वी भाषणों से प्राणों का मोह छुड़ा कर वीरों को स्वदेश एवं परहितार्थ सहर्ष मृत्यु का आलिंगन करना सिखाते हैं। ऐसे चारण गुरुओं की बलिहारी है जो क्षणमात्र के तप से स्वर्ग-प्राप्ति करा देते हैं। यही इस सम्बंध का मूल रहस्य है। इन दोनों जातियों के अन्योन्याश्रित सम्बंध को देख कर कहना ही पड़ेगा कि भारत की अन्य जातियों में ऐसा घनिष्ट सम्पर्��� दुर्लभ है। इस सम्बंध का आरम्भ हर्षवर्द्धन के पश्चात क्रमबद्ध रूप से देखने को मिलता है। जब कोई राजपूत अपने बंधु-बांधवों के अपराध से अथवा राजा-महाराजाओं के अन्याय से बचने के लिए चारण के घर आश्रय ग्रहण करता तब उसे कोई नहीं छेड़ता था। युद्ध का निमन्त्रण मिलने पर राजपूत अपनी बहू-बेटियां एवं स्त्रियों को चारणों के घर छोड़ देते थे। इस प्रकार हम इन दोनों को एक आत्मा दो शरीर के रूप में देख सकते हैं। चारण काव्य है तो राजपूत उसका चरित-नायक!" +इन चारणों का व्यक्तिय पवित्र माना जाता था और हर राजपूत उनके साथ बड़े सम्मान से पेश आता था। शासक उन्हें जागीर के रूप में जानी जाने वाली भूमि वंशानुगत अनुदान से पुरस्कृत करते थे, दावतों में उन्हें सबसे पहले भोज के लिए उन्हें आमंत्रित किया जाता था, और जब भी वे किसी दरबार में आते थे तो शासक उनका अभिवादन करने के लिए उठ खड़ा होता था, क्योंकि 'चारण राजपूतों के बहुत मजबूत समर्थक थे और राजपूत इस समुदाय के बहुत प्रबल शुभचिंतक थे'।" + + +* लेखक का उद्देश्य सभ्यता द्वारा अपने आप को नष्ट करने से बचाना है। अल्बर्ट कैमस +* लिपि का विकास, सभ्यता के विकास में मील का पत्थर है। + + +* गणित सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है। हॉगबेन +* औद्योगिक कलाओं के उन्नत होने से सभ्यता उससे भी तेजी से बढ़ेगी जितनी सभ्यता के सबसे बड़े समर्थक सोच सकते हैं। चार्ल्स बाबेज "The Exposition of 1851 पृष्ट xii-xiii +* किसी समाज की सभ्यता का अनुमान उसकी जेलों में घुसकर लगाया जा सकता है। फियोडोर दोस्त्रोवस्की, The House of the Dead (1862) +* कोई महान सभ्यता बाहरी लोगों द्वारा तब तक विजित नहीं हो सकती है जब तक वह स्वयं को अन्दर से ही नष्ट न कर दे। रोम के पतन का सबसे प्रमुख कारण उसके लोग थे, रोम की नैतिकता थी, उसके वर्ग-संघर्ष थे, उसके व्यापार का क्षीण हो जाना था, उसके शासनतन्त्र में भाई-भतीजावाद आ जाना था, उसके गलाघोंटू टैक्स थे, और उसके खाने वाले युद्ध थे। विल डुरन्ट, Caesar and Christ, Epilogue, p. 665 (1944) +* बर्बरता मानव जाति की नैसर्गिक अवस्था है। सभ्यता कृत्रिम है। यह परिस्थिति की सनक है और बर्बरता ही अंततः जीतेगी। रॉबर्ट ई हॉवर्ड काली नदी से परे 1935) + + +: अज्ञानी मनुष्य को समझाना सामान्यतः सरल होता है। उससे भी आसान होता है जानकार या विशेषज्ञ अर्थात् चर्चा में निहित विषय को जानने वाले को समझाना । किन्तु जो व्यक्ति अल्पज्ञ होता है, जिसकी जानकारी आधी-अधूरी होती है, उसे समझाना तो स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के भी वश से बाहर होता है। +: दोषयुक्त बर्ताव करते हुए भी जो दूसरे पर उसके दोष बताकर आक्षेप करता है तथा जो असमर्थ होते हुए भी क्रोध सकता है, वह मुष्य महामूर्ख है। +: जो अपने बल को न समझकर विना काम किये ही धर्म और अर्थ से विरुद्ध तथा न पाने योग्य वस्तुकी इच्छा करता है, वह पुरुष इस संसार में मूढबुद्धि कहलाता है। +: जो अनधिकारी को उपदेश देता है और शून्य की उपासना करता है, तथा जो कृपण का आश्रय लेता है, उसे मूढचित्तवाला कहते है। + + +: सर्प एवम् दुर्जन के मध्य तुलना करें तो दुर्जन से सर्प अच्छा है क्योंकि सर्प कभी-कभार समय आने पर काटता है परन्तु दुर्जन पद-पद पर समय काटता रहता है। +: दुष्टों और सज्जनों की मित्रता दिन की छाया की तरह होती है। जिस प्रकार मध्यान्ह से पूर्व की छाया आरम्भ में बड़ी होती दिखती है और बाद में क्रमशः छोटी होती हुई मध्यान्ह में समाप्त हो जाती है, उसी प्रकार दुष्टों की मित्रता आरम्भ में अत्यन्त प्रगाढ़ होती है जो धीरे-धीरे कम होकर समाप्त हो जाती है। +: हे पाण्डव! मेरी प्रतिज्ञा निश्चित है कि धर्म की स्थापना के लिए मैं उन्हें मारता हूँ जो धर्म का लोप (नाश) करने वाले हैं। +: दुष्टों के हृदय में बहुत अधिक संताप रहता है। वे पराई संपत्ति (सुख) देखकर सदा जलते रहते हैं। वे जहाँ कहीं दूसरे की निंदा सुन पाते हैं, वहाँ ऐसे हर्षित होते हैं मानो रास्ते में पड़ी निधि (खजाना) पा ली हो। +: वे काम, क्रोध, मद और लोभ के परायण तथा निर्दयी, कपटी, कुटिल और पापों के घर होते हैं। वे बिना ही कारण सब किसी से वैर किया करते हैं। जो भलाई करता है उसके साथ भी बुराई करते हैं। +: उनका झूठा ही लेना और झूठा ही देना होता है। झूठा ही भोजन होता है और झूठा ही चबेना होता है। जैसे मोर बहुत मीठा बोलता है, परन्तु उसका हृदय ऐसा कठोर होता है कि वह महान् विषैले साँपों को भी खा जाता है। +पर द्रोही पर दार रत, पर धन पर अपबाद। +: वे (दुष्ट) दूसरों से द्रोह करते हैं और पराई स्त्री, पराए धन तथा पराई निंदा में आसक्त रहते हैं। वे पामर और पापमय मनुष्य नर शरीर धारण किए हुए राक्षस ही हैं॥ +* मनुष्य की बुराई मरणोपरान्त भी बनी रहती है। गुरुदत्त +* दुष्टों से गुणवानों को भी भय होता है। हितोपदेश +* काँटो और दुष्टों के प्रतिकार के दो ही मार्ग ह���ं जूतों से उनके मुख तोड़ देना अथवा दूर से ही उनका परित्याग। चाणक्य +* बुराई से बुराई उत्पन्न होती है, इसलिए आग से भी बढ़ कर बुराई से डरना चाहिए। तिरुवल्लुवर + + +लेख हटाने से पहले पढ़ें और सोचें + + +: ‪विपत्ति में धैर्य, उन्नति में क्षमाशीलता, सभा में वाणी की चतुरता, युद्ध में वीरता, यश में अभिरुचि, वेद-शास्त्रों के अध्ययन में अनुराग ये छः गुण महापुरुषों में स्वाभाविक रूप से होते हैं। +: हे जगद्गुरु (कृष्ण हमारे जीवन में हमेशा पग-पग पर विपत्ति आती रहें; क्योंकि विपत्तियों में ही निश्चित रूप से आपके दर्शन हुआ करते हैं और आपके दर्शन हो जाने पर फिर जन्म-मृत्यु के चक्र में भी नहीं आता पड़ता। +: दूसरों की निन्दा करने में प्रवीणता, अपने कार्यों में उद्यम न लगाना, गुणज्ञों से द्वेष करना ये तीनों ही विपत्ति के मार्ग हैं। +: जो दूसरों से आशा (उम्मीद) करते हैं उन्हें आपदा झेलनी पड़ती है और शंशय करने से शोक का सामना करना पड़ता है। ये दोनो ही बड़े घातक रोग हैं। गुरु के मुख से प्राप्त ज्ञान को धारण किये बिना ये भागेंगे नहीं (यानी समाप्त नही होंगे)। +: विद्या, विनय, विवेक, साहस, किये गये अच्छे कार्य, सत्यव्रत, और ईश्वर में विश्वास विपत्ति के समय साथ देते हैं। +: किसी व्यक्ति के पास धन होता है तब तक ही लोग उसके अपने होते हैं। विपत्ति के समय साथ देने वाला ही सच्चा मित्र होता है । +: विपत्ति में मित्र की परीक्षा होती है। +* प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है। महात्मा गांधी ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४ +* जिनके हृदय में सदैव परोपकार की भावना रहती है, उनकी आपदाएं समाप्त हो जाती हैं और पग-पग पर धन की प्राप्ति होती है। चाणक्य +* महान लोग विपत्ति आने पर धैर्य धारण करते हैं। नारायण पण्डित +* जो मनुष्य अपने मुँह में लगाम देता है और जीभ को वश में रखता है, वह अपने प्राण को विपत्तियों से बचाता है। नीतिवचन +* विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखानेवाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला। मुंशी प्रेमचन्द +* आनेवाले संकट को देखकर अपना भावी कार्यक्रम निश्चित करनेवाला सुखी रहता है। विष्णु शर्मा +* विपत्ति के आने पर अपनी रक्षा के लिए व्यक्ति को अपने पड़ोसी शत्रु से भी मेल कर लेना चाहिए। महाभारत +* समस्या यह नहीं है की जीवन में समास्याए हैं। समस्या तो यह है की हम इसके विपरीत आशा करते है�� और सोचतें हैं की समस्याए होना ही समस्या है। थिओडोर रुबिन +* शांत समुद्र में जहाज चलाने से कोई कुशल नाविक नहीं बनता। अफ्रीकन कहावत +* बुरे समय से अच्छा शिक्षक कोई नहीं है। डिज़राइली +* अगर आप किसी बुरी स्थिति में हैं तो चिंता मत कीजिये वह ख़त्म हो जाएगी। अगर आप किसी अच्छी स्थिति में है तो चिंता मत कीजिये वह ख़त्म हो जाएगी। जॉन ए. साइमन +* जिसको पता है की वह क्यों जी रहा है वह कैसे भी जी लेगा। फ्रेडरिच नित्ज्शे +* बुरा समय और गरीबी प्रतिभा और योग्यताओं को बहार निकल देतें हैं, जो की अमीरी की हालत में इन्सान में सोये पड़े रहतें हैं। होरेस +* विपत्ति का मनुष्य पर वही असर होता है जो किसी खिलाड़ी पर कठिन प्रशिक्षण का होता है। जोश बिल्लिंग्स +* हर समस्या के अन्दर उसके हल के बीज छुपे होतें हैं। अगर आपके पास कोई समस्या न आये तो आप कोई भी बीज हांसिल नहीं कर सकेंगे। नार्मन विन्सेंट पियल +* दो चीजें हैं जिनकी हर मनुष्य को आदत बना लेना चाहिए अन्यथा जीवन असहनीय हो जाएगा। वे दो चीजें हैं समय द्वारा पहुचाया गया नुकसान और मनुष्यों द्वारा किया गया अन्याय। सेबेस्टियन रोच निकोलस +: दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना। मिर्ज़ा ग़ालिब +* रंज से खुंगर हुआ इंसा तो मिट जाता है रंज, + + +: दोषयुक्त सोना (सुवर्ण) भी अग्नि से शुद्ध होता है, वैसे यह (संसार से तप्त) जीव तपरुप अग्नि से शुद्ध होता है । +: जिससे विघ्न परम्परा दूर होती है, देव दास बनते हैं, काम शान्त होता है, इंद्रियों का दमन होता है, कल्याण नजदीक आता है, बडी संपत्ति का उदय होता है, जो कर्मो का ध्वंस करता है, और स्वर्ग का कब्जा दिलाता है, उस कल्याणकारी, प्रशंसनीय तप का आचरण करो। +: तप धर्म को फैलाता है, दुःख का नाश करता है, अस्मिता देता है, सत्त्व का संचय करता है, तमस् का नाश करता है । अर्थात् यूँ कहो कि तप क्या नहीं करता ? +: देवों, ब्राह्मण, गुरुजन-ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा – यह शरीर का तप कहलाता है। +: उद्वेग को जन्म न देनेवाले, यथार्थ, प्रिय और हितकारक वचन (बोलना शास्त्रों का) स्वाध्याय और अभ्यास करना, यह वाङमयीन तप है। +: अनशन, कम खुराक, वृत्ति को संकोरना, रसत्याग, काया को कष्ट देना, और संलीनता – ये सब बाह्य तप कहे गये हैं। +: अहिंसा, सत्यवचन, दयाभाव, दम और (भोगों के प्रति) तिरष्कार, इन्हें धीर पुरुष तप कहते हैं, न कि शरीर के शोषण को। +: जो दूर है, कष्टसाध्य है, और दूर रहा हुआ है, वह सब तप से साध्य है। तप से बचना कठिन है। +: यदि राग-द्वेष समाप्त नहीं हुए हों तो तप का क्या मतलब? और यदि वे दोनों न हों तो तप की क्या जरुरत ? +: क्षमा से विद्वान शुद्ध होते हैं; अयोग्य काम करनेवाले दान से, और गुप्त पाप करनेवाले जप से शुद्ध होते हैं। पर तप से तो सभी शुद्ध होते हैं। +: मास या पक्ष के उपवास को सामान्य लोग तप समझते हैं (वह तप नहीं है पर वह आत्मविद्या का उपघात है, ऐसा सज्जनों का मत है। +: जिस तरह दावाग्नि के अतिरिक्त अन्य कोई वन को जलाने में प्रवीण नहीं, जिस तरह दावाग्नि के शमन में बादलों के सिवा अन्य कोई समर्थ नहीं, और निष्णात पवन के अलावा अन्य कोई बादलों को हटाने शक्तिमान नहीं, वैसे तप के अलावा और कोई, कर्मप्रवाह को नष्ट करने में समर्थ नहीं। +: विषय की आशा के वश में न आया हुआ, अनारंभी, अपरिग्रही, ज्ञान-ध्यान-तप में मग्न रहनेवाला तपस्वी प्रशंसा के पात्र है। +* पहाड़ों की कन्दराओं में जाकर तप कर लेना सहज है किन्तु परिवार में रहकर धीरज बनाये रखना सबके वश की बात नहीं। प्रेमचन्द + + +* ईर्ष्या मनुष्य को ठीक उसी प्रकार खा जाती है, जिस प्रकार कपड़े को कीड़ा खा जाता है। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य +* “शांत मन” तन का जीवन है परन्तु मन के जलने से हड्डियाँ भी जल जाती है। नीतिवचन +* ईर्ष्या असफलता का दूसरा नाम है ईर्ष्या करने से अपना ही महत्त्व कम होता है। चाणक्य नीति +* हत्यारे की कुल्हाड़ी की तुलना में ईर्ष्या की धार दुगनी तेज होती है। शेक्सपीयर +* ईर्ष्या की सबसे अच्छी दवा है – उद्योग और आशा। रामचन्द्र शुक्ल +* मनुष्य से मनुष्य को जितनी ईर्ष्या होती है, उतनी संभवतः यमराज को भी नहीं। रविन्द्रनाथ ठाकुर +* प्रायः समान विद्यावाले लोग एक-दुसरे के यश से ईर्ष्या करते हैं। कालिदास + + +* अभिमान की अपेक्षा नम्रता से अधिक लाभ होता है। भगवान गौतम बुद्ध +* नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण हैं। स्वामी विवेकानंद +* आदर पाने के लिए मनुष्य को पहले विनम्र बनना पड़ता है। नीतिवचन +* विनय पात्रता प्रदान करती है। हितोपदेश +* दुःख और हानि सहने के बाद आदमी अधिक नम्र और ज्ञानी होता है। बैंजामिन फ्रैंकलिन + + +: स्वभाव को बदलना अत्यन्त कठिन है। +: जिसका जो स्वभाव होता है वह नित्य वैसा ही रहता है। यदि कुत्ते को राजा भी बनाया जाय तो क्या वह जूता चबाना छोड़ देगा ? +: रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छे स्वभाव का होता है,उसे बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती। जैसे विषैले सर्प चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी चन्दन का विष को विषैला नहीं कर पाते हैं। +: किसी व्यक्ति को आप चाहे कितनी ही सलाह दे दो किन्तु उसका मूल स्वभाव नहीं बदलता ठीक उसी तरह जैसे ठन्डे पानी को उबालने पर तो वह गर्म हो जाता है लेकिन बाद में वह पुनः ठंडा हो जाता है। +: सब गुण के उस पार जानेवाला “स्वभाव” हि श्रेष्ठ है (अर्थात् गुण सहज हो जाना चाहिए) । +* व्यक्ति के स्वभाव पर उसका भविष्य निर्भर करता है। मुंशी प्रेमचंद +* भूखा होने पर भी सिंह घास नहीं खाता। आचार्य चाणक्य +* अत्यन्त सीधे स्वभाव से रहना अच्छा नहीं होता वन में जाकर देखो, सीधे वृक्ष ही काटे जाते है और टेढ़े-मेढ़े वृक्ष खड़े ही रहते है। आचार्य चाणक्य +* विचार जब स्वभाव के साथ घुल-मिलकर एक हो जाता है, तब वे आचार बन जाते है। रवीद्रनाथ ठाकुर +* व्यक्ति के स्वभाव को स्पष्ट करनेवाली उसकी वाणी होती है, उसका रूप नहीं। शेख सादी + + +: सत्य बोलना । धर्मसम्मत कर्म करना । स्वाध्याय के प्रति प्रमाद मत करना। +* स्वाध्याय में नित्य तत्पर होना चाहिये। मनुस्मृति +: जो मनुष्य एक वर्ष तक यथाविधि नियम से वेद का स्वाध्याय करता है, वेद उसको कामधेनु की नाई दूध घी देता है। (टिप्पणी दूध घी से तात्पर्य सुख, यश और निर्भयता से है।) +: तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्राणिधान को क्रियायोग कहते हैं। +* स्वाध्याय करना मनुष्य की वाणी का तप है। श्रीमद्भगवतगीता +* स्वाध्याय बुद्धि का यज्ञ है। स्वाध्याय के द्वारा मानव सत को प्राप्त होता है। जयशंकर प्रसाद +* स्वाध्याय की संपत्ति से परमात्मा का साक्षात्कार होता है। योगसूत्र + + +* सभी मॉडल त्रुटिपूर्ण होते हैं, लेकिन कुछ उपयोगी होते हैं। जॉर्ज ई पी बॉक्स, 1979 +* हममें से हर कोई अपने पूरे जीवन सांख्यिकी करता रहा है। मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि हममें से हरेक व्यक्ति प्रायोगिक प्रेक्षणों के आधार पर निष्कर्ष निकालने में व्यस्त रहा है। William Kruskal (1965 STATISTICS, MOLIERE AND HENRY ADAMS 81. +* एक आदमी की मृत्यु एक त्रासदी है, करोड़ों की मृत्यु सांख्यिकी है। +* एक व्यक्ति के जीवनकाल से बढ़कर कोई अनिश्चितता नहीं है लेकिन एक हजार जीवनों के औसत से अधिक निश्चित कुछ भी नहीं है। Attributed to Elizur Wright + + +* माशरूम ��ात को उगता है, और सुबह तक मर जाता है, परन्तु बट वृक्ष को सालों-साल लग जाते हैं अंकुर लगने में । सच्चा प्रेम एक बट वृक्ष की तरह होता है, देर आता है और देर तक साथ देता है । +*सत्य नंगा है । सत्य नंगा था, है, और रहेगा । परन्तु मनुष्य नक़ाब में रहना पसंद करता है । +* अगर अनावृष्टि एक प्राकृतिक विपत्ति है, तो अनाहार मृत्यु एक मनुष्यकृत विपत्ति है । +* जब मौत छा जाएगी गाँव गाँव, तब आएगी अक़्ल जीवित मुर्दों को । +* मूल सहित जोड़ कर दस गुना ब्याज, कालाहांडी लेगी तभी उसकी छलनाओं का प्रतिशोध। +* इतिहास हमेशा बदलता रहता है अपनी रास्ता, पेण्डुलॉम की तरह, एक सत्ताधारी पार्टी और एक विपक्ष पार्टी के बीच। +प्रधान के बारे में मंतव्य + + +साम्यवाद कम्युनिज्म) एक राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक विचारधारा है। इसका आधार १९वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा विकसित किए गए थे । "कम्युनिस्ट घोषणापत्र" या "द कैपिटल" जैसी कृतियों ने इस परियोजना का समापन किया। साम्यवाद की विचारधारा वर्ग के भेद के बिना, धनी और निर्धन के भेद के बिना समाज के गठन को बढ़ावा देती है। +* साम्यवाद के सिद्धान्त का एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है: सभी निजी संपत्ति समाप्त की जाय। कार्ल मार्क्स]] +* शांति का अर्थ साम्यवाद के विरोध का नहीं होना है। कार्ल मार्क्स]] +* न्याय के सपने का भ्रष्ट होना साम्यवाद है। ऐड्लाई ई स्टीवेंसन +* पूँजीवादी व्यवस्था में मानव, मानव का शोषण करता है। साम्यवादी व्यवस्था में इसका ठीक उल्टा होता है। Coluche Les syndicats et le délégué १९९८) +* रूस का साम्यवाद कार्ल मार्क और कैथराइन महान की अवैध सन्तान है। क्लीमेन्ट एतली, द ऑब्जर्वर में उद्धृत (1956) +* साम्यवाद, यहूदीवाद है। रूस में १९१८ में यहूदी क्रान्ति हुई थी। हेनरी हैमिल्टन बीमिश +* स्टैलिन के बारे में ख्रुश्चेव ने जो रहस्योद्घाटन किया है वह उन सभी लोगों को झटका, कष्ट और लज्जा में डुबो देने के लिये पर्याप्त हैं जिन्होंने कम्युनिस्ट गतिविधियों में किसी भी सीमा तक भाग लिया है। Aimé Césaire (October 24, 1956) +* पूँजीवाद और साम्यवाद के दर्शन में बहुत अन्तर नहीं है। वह अन्तर बहुत सरल है। पूँजीवाद में मनुष्य मनुष्य का शोषण करता है, साम्यवाद में इसका उल्टा होता है। जॉन गार्डनर, The Man from Barbarossa +* मेरा विश्वास और भी पक्का होता जा रहा है कि हम केवल साम्यवा�� के माध्यम से ही मानव बन सकते हैं। Frida Kahlo, १९३० के दशक में अमेरिका से लिखे अपने पत्र में +* साम्यवाद, आटोइम्यून रोग की तरह है। यह स्वयं नहीं मारता लेकिन शरीर को इतना निर्बल कर देता है कि इससे ग्रस्त व्यक्ति निराश हो जाता है और किसी दूसरे रोग से लड़ने में असमर्थ हो जाता है। गैरी कास्पोरोव, Winter is Coming (2015 पृष्ट 33 +* साम्यवाद, मानव जाति के इतिहास में सबसे महान लक्ष्य है क्योंकि यह समाज से सभी प्रकार के उत्पीड़न और शोषण को दूर करने, मानव जाति को मुक्त करने और सभी के लिए शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने का प्रयास करता है। नेल्सन मंडेला (१९८६) +* साम्यवाद की असली समस्या यह है कि वह भौतिकवाद की ही एक अलग प्रजाति है। यह वही भौतिकवाद है जो सारी समस्याओं की जड़ है। Thomas Merton, The Seven Storey Mountain (1948 पृष्ट 149-150 +* साम्यवाद शराबबन्दी की तरह है, यह एक अच्छा विचार है किन्तु व्यावहारिक नहीं है। विल जोजर्स, The Autobiography of Will Rogers (1949) +* मैं साम्यवाद को पसन्द नहीं करता क्योंकि यह अलोकतांत्रिक है। पूँजीवाद को मैं इसलिये पसन्द नहीं करता क्योंकि यह शोषण को बढ़ावा देता है। बर्ट्रंड रसल Unarmed Victory (1963 पृष्ट 14 +* कम्युनिस्टों ने हमेशा औपनिवेशिक क्षेत्रों की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभाई है। नेल्सन मंडेला +* ऊपर से आने वाली हिंसा, नीचे से हिंसा हेल्डर केमरा +नई सरकार" को सत्ता सौंपे जाने पर क्रांतियाँ विफल हो जाती हैं। रिकार्डो फ्लोर +* थोड़ा और हत्या, और मानवता बहुत बेहतर हो जाएगी। जीन रोस्टैंड +* यूटोपियन, मानव गरिमा के आकाश में कुछ सितारों को रोशन करता है, लेकिन वह बिना बंदरगाहों के समुद्र में डूब जाता है। सी. बर्नरी +* बड़े लोग महान हैं क्योंकि हम अपने घुटनों पर हैं। मैक्स स्टनर +* हम किसी भी पार्टी से संबंधित नहीं हैं, क्योंकि कोई भी हमारे उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकता। हर्बर्ट रीड +* एक ऐसी सरकार के तहत जो अन्यायपूर्ण कारावास करती है, रहने के लिए सबसे उचित स्थान जेल है। एच. डी. थोरो +* मार्क्सवाद विचार की स्वतंत्रता। स्टालिन +* यदि आप जैसा सोचते हैं वैसे ही नहीं रहते, तो आप यह सोचकर समाप्त होंगे कि आप कैसे रहते हैं। एम. गांधी +* पहचान पत्र के साथ हर मानव एक वस्तु है। मोरिन +* हमारे पास असंभव के अलावा कोई संभावना नहीं है। जॉर्ज बैटल +* अराजकतावादी उदारवादी हैं, लेकिन उदारवादियों की तुलना में अधिक उदार हैं। हम भी समाजव���दी हैं, लेकिन समाजवादियों की तुलना में अधिक समाजवादी हैं। निकोलस वाल्टर +* धन्य हो अराजकता, यह स्वतंत्रता का एक लक्षण है। एनरिक गैल्वन +* मानव कल्पना से कुछ भी स्वतंत्र नहीं है। ह्यूम +* शासक पूंजीवाद के प्रहरी के अलावा कुछ नहीं हैं। रिकार्डो फ्लोर्स मैगोन +* जब गरीब गरीबों पर विश्वास करेंगे, तो हम स्वतंत्रता और भाईचारे के गीत गा सकते हैं। ह्यूगो चावेज़ +* किसी भी इंसान के खिलाफ किए गए किसी भी अन्याय के बारे में गहराई से महसूस करने में सक्षम हो जाओ। चे ग्वेरा +* क्रूर बल, मूर्खों का पूर्ण अधिकार है। सिसरो +* यह बात हास्यास्पद लगेगी कि सच्चा क्रांतिकारी प्यार की महान भावनाओं द्वारा निर्देशित होता है। चे ग्वेरा]] +* आप अपने हाथों पर रेशम के दस्ताने के साथ क्रांति शुरू नहीं कर सकते। Iosif Stalin +* कार्यकर्ता को रोटी के बजाय सम्मान की जरूरत है। कार्ल मार्क्स +* साम्यवाद प्रेम नहीं है, यह एक ऐसा क्लब है जिसका उपयोग हम दुश्मन को कुचलने के लिए करते हैं। माओ त्से तुंग +* मैं हमेशा ईसा मसीह का प्रशंसक रहा हूं क्योंकि वह प्रथम कम्युनिस्ट थे: उन्होंने रोटियों और मछलियों को कई गुना किया, और यही हम करना चाहते हैं। फिदेल कास्त्रो +* मेरा 100 साल के लिए पद संभालने का इरादा नहीं है। फिदेल कास्त्रो +* पूंजीवाद में आदमी आदमी का शोषण करता है साम्यवाद में इसके ठीक उल्टा होता है। जॉन गैलब्रेथ +* केवल साम्यवाद के तहत व्यक्ति अपने भाग्य का नेतृत्व करेगा। जोहान मोस्ट +* साम्यवाद काम नहीं करता है क्योंकि लोग चीजों को खरीदना पसंद करते हैं। फ्रैंक ज़प्पा +* साम्यवाद का लक्ष्य केवल एक चीज होना चाहिए निजी संपत्ति को समाप्त करना। कार्ल मार्क्स +* जनता से सीखो, और फिर उन्हें रास्ता दिखाओ। माओ त्से तुंग +* हमारी आवाज़ स्वतंत्र है और साम्राज्यवाद के सामने हमारी गरिमा का प्रतिनिधित्व करती है। ह्यूगो चावेज़ +* लोग अपनी अधीनता के लिए भुगतान करते हैं। नोआम चॉम्स्की]] +* यदि आप 5 साल पहले जैसी ही बात सिखाते हैं, तो या आपके सिद्धांत मर चुके हैं या आप स्वयं। नोआम चॉम्स्की +* अराजकता अव्यवस्था नहीं है, बल्कि आदेश है, शक्ति की नहीं, बल्कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की। Piotr Kropotkin +* हमारा साम्यवाद जर्मन सत्तावादी सिद्धांतकारों का नहीं है। हमारा साम्यवाद अराजकतावादी है, सरकार के बिना, मुक्त व्यक्ति का। पिओट्र क्रोपोटक���न +* साम्यवाद प्रेम की तरह मुक्त होना चाहिए, अर्थात यह अराजकतावादी होना चाहिए या अस्तित्व में नहीं होना चाहिए। लिब्राडो रिवेरा +* अभिन्न मनुष्य के लिए समाजवाद बनाया गया है। चे ग्वेरा +* पूंजीवाद अनिश्चित है। अपनी सभी कमियों के साथ, समाजवाद सबसे अच्छा काम है जो मनुष्य कर सकता है। फिदेल कास्त्रो +* समाजवाद का अर्थ न्याय और समानता है, लेकिन अधिकारों और अवसरों की समानता, आय का नहीं। राउल कास्त्रो +* संगठन ठीक है, लेकिन नियंत्रण और भी बेहतर है। लेनिन +* साम्यवाद के मूल उद्देश्यों में से एक लक्ष्य व्यक्तिगत हित को खत्म करना है। चे ग्वेरा +* समाजवाद लोगों के लिए अपनी जीवन स्थितियों में गहरा परिवर्तन प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है। कार्लोस फोंसेका +* वर्ग संघर्ष और उत्पादन के साधनों के लिए संघर्ष, एक शक्तिशाली समाजवादी देश बनाने के स्तम्भ हैं। माओ त्से तुंग) +* यदि हम वर्ग संघर्ष की दृष्टि खो देते हैं, तो यह मार्क्सवाद की अपूर्णता को दर्शाता है। लेनिन +* समाजवाद का अर्थ है स्वतंत्रता की आवश्यकता के दायरे से एक छलांग। लियोन ट्रॉट्स्की +* समाजवादी मरते नहीं, समाजवादी बोए जाते हैं। पाब्लो इग्लेसियस +* आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता एक ढोंग, धोखाधड़ी, झूठ है। कार्यकर्ता अधिक झूठ नहीं चाहता। मिखाइल बाकुनिन +* समाजवाद केवल एक देश (रूस) में सफल नहीं हो सकता। इसे पूरे यूरोप और अमेरिका में जीतना है। लियोन ट्रॉट्स्की +* एक समाजवादी इस चीज का अनुसरण करता है कि कोई भी इतना अमीर न हो कि वह दूसरे को घुटने के बल खड़ा कर दे या कोई भी इतना गरीब न हो कि दूसरे के सामने घुटने टेक दे। +* किसी एक पार्टी की वजह से आज अगर हैदराबाद पूरी दुनिया में बदनाम है तो वो है कम्युनिस्ट पार्टी। ये लोग कुछ और नहीं बल्कि हत्यारे और डकैत हैं। महिलाओं, बच्चों और गांववालों को गोली से मार देना या फिर बेदर्दी से उनके टुकड़े कर देना वामपंथ नहीं है। मैं कम्युनिस्टों से कह देना चाहता हूं कि इन क्रूर हरकतों में शामिल लोगों को मैं उखाड़ फेकूंगा। हैदराबाद में कम्युनिस्ट लोग सिर्फ उत्पात करने के लिए आये हैं, क्योंकि इससे उन्हे काफी पैसा मिलता है। मैं उनसे कहता हूं कि हैदराबाद छोड़ दो, मैं यहां एक भी कम्युनिस्ट बर्दाश्त नहीं करूंगा। स्रोत – सरदार पटेल के पर्सनल सेक्रेटरी और पूर्व आईसीएस अधिकारी वी. शंकर की पुस्तक "My reminiscences of Sardar Patel" के पृष्ठ 132 पर +* चीन के बाहरी खतरे के साथ-साथ हमें आंतरिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ेगा। अभी भारत के कम्युनिस्टों को विदेश में रहने वाले कम्युनिस्टों से संपर्क करने और हथियार प्राप्त करने में दिक्कत आती है। लेकिन अब चीन तिब्बत तक पहुंच चुका है, अब उनके पास कम्युनिस्ट चीन तक पहुंचने का आसान तरीका मिल गया है। अब देशद्रोहियों और कम्युनिस्टों को देश में घुसपैठ करना आसान हो जाएगा। सरदार पटेल द्वारा 11 नवंबर 1950 को नेहरू को लिखे गये पत्र में +* कम्युनिस्टों का काम है कि देश में गड़बड़ कराओ, अशांति पैदा करो और रेल की पटरी उखाड़ दो। इस प्रकार की हड़ताल कराओ कि सरकार चले ही नहीं। तब हमने सोच लिया कि इन कम्युनिस्टों के साथ ट्रेड यूनियन में बैठना देश के लिए बड़ी खतरनाक चीज है। इस लिए हमने उनसे अलग रहने का फैसला किया। स्रोत – भारत की एकता का निर्माण, पेज नंबर 163, पब्लिकेशन डिपार्टमेंट, सूचना प्रसारण मंत्रालय +* मुझे समाजवाद सिखाने की किसी को जरूरत नहीं है। मैंने फैसला किया था कि यदि सार्वजनिक जीवन में काम करना हो, तो अपनी नीजि संपत्ति नहीं रखनी चाहिए। तब से आज तक मैंने अपनी कोई चीज नहीं रखी। न मेरा कोई बैंक एकाउंट है, न मेरे पास कोई जमीन है और न मेरे पास अपना कोई मकान है। इसीलिए कोई मुझे कोई समाजवाद का पाठ न सिखाए। लेकिन याद रहे मैं हिंदुस्तान की बरबादी होने के काम में कभी साथ नहीं दूंगा। चाहे आप मुझे पूंजीपतियों का एजेंट कहें या जो कहें। + + +समाजवाद एक आर्थिक-सामाजिक दर्शन है। समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण के अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक प्रत्यय के तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है। + + +18 दिसम्बर 1890 को भारत की राष्ट्रीय शाखा अड्यार में स्थापित हुई थी। इसके बाद आयरलैंड निवासी श्रीमती एनी बेसेन्ट ने 1893 में भारत आकर हिन्दू धर्म अपना लिया था और इस संस्था में जुड़ गईं। इनके प्रयासों से इस संस्था ने पर्याप्त प्रगति की। +थियोसोफिकल सोसायटी ने हिंदू धार्मिक विचारों पर शोध किए और हिंदू शास्त्रों का अनुवाद करके उन्हें प्रकाशित किया। इस कारण भारत में बौद्धिक जागरूकता की प्रक्रिया में गतिशीलता उत्पन्न हुई। थियोसोफिकल सोसायटी ने हिंदू आध्यात्मिक सिद्धान्तों की महानता की स्थापना की और शिक्षित भारतीय युवाओं के दिमाग में राष्ट्रीय गौरव के प्रति आकर्षण उत्पन्न किया, जिसने राष्ट्रवाद की आधुनिक अवधारणा को जन्म दिया। +ईश्वर एक है। वह अनन्त, असीम और सर्वव्यापी है। अनन्त सत्ता अज्ञेय है और वह पूजा का विषय नहीं है। +* आत्मा परमात्मा का अंश है और समस्त आत्माएँ एक समान हैं। +* इस लोक के अतिरिक्त एक और लोक है जहां आत्माएं निवास करती हैं। +* सभी धर्मों के सारभूत सिद्धान्तों में सत्य है। वर्तमान काल में हिंदू और बौद्ध धर्म ही पुरातन ज्ञान के भंडार हैं। +* प्रत्येक मनुष्य को स्वविवेक के आधार पर अपने चरित्र निर्माण को प्रमुखता देनी चाहिए। +* सभी मनुष्य समान है और जातिगत भेदभाव निरर्थक है, अतः सभी को समानता भ्रातृत्व और प्रेम की भावना के आधार पर एक दूसरे से व्यवहार करना चाहिए। +* बाल विवाह जैसी रूढ़िवादी परम्पराओं का परित्याग कर दिया जाना चाहिए। + + +पुरुषोत्तम दास टंडन भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी, राजनेता और हिन्दी के महान सेवक थे। +देश की वर्तमान स्थितियों में और देश के भविष्य को सामने रखते हुए यह आवश्यक है कि भारतीय संस्कृति की आधारशिला पर ही देश की राजनीति का निर्माण हो। इन सिद्धान्तों को व्यवहार में स्वीकार करने और बरतने से ही देश की सरकार जनता का सच्चा प्रतिनिधित्व कर उससे शक्ति प्राप्त कर सकती है। प्रथम भारतीय संस्कृति सम्मेलन, प्रयाग (1948) में +* अस्पतालों और शय्यायों की संख्या बढ़ाने के बदले स्वस्थ जीवन के समुचित साधनों को उपलब्ध कराना राष्त्रीय जीवन के लिये परम आवश्यक है। +पुरुषोत्तम दास टण्टन के बारे में महापुरुषों के विचार + + +ललिता अय्यर भारत की एक कश्मीरी कवयित्री हैं । उन्होंने विविध भाषाओं में हज़ारों कविताएँ लिखीं हैं, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्म विचारों का समन्वय दर्शित है। मशहूर भारतीय कवि तपन कुमार प्रधान के अनुसार ललिता अय्यर कश्मीरी कवयित्री हेमांगी शर्मा का छद्म नाम है । +* प्रेम है ईश्वर के हाथ और बाहु । प्रेम से ही ईश्वर अपनी संतानों को आलिंगन करते हैं । + + +* जब शब्द शांत पड़ जाते हैं तब आत्मा ब्रह्माण्ड से जुड़ जाती है । +* दो में ही आनंद है । ईश्वर ने जब प्रेम करना चाहा, तो उन्होंने ख़ुद को दो हिस्सों में बाँट दिया । + + +: संधि करके भी बुद्धिमान ��िसी का विश्वास न करें। 'मैं फिर वैर ना करूंगा' यह कहकर भी इंद्र ने वृत्र असुर को मार डाला। +: जिसके प्रभाव से यह त्रिभुवन सनातन मर्यादा नीतिमार्ग में निरन्तर स्थिति करता है उस परात्पर दण्डधारी परमेश्वर की सदा जय हो, अथवा जिसके प्रताप से यह भूमण्डल निरन्तर धर्ममार्ग में प्रवर्तित होता है, उस प्रबल प्रतापी राजा की सदा जय हो ॥ १ ॥ +: जा बत्र और आमिके ममान तनम्बी निमकं मवाभिचारम्प पत्रमहारम जर पर्वपाला श्रीमान नन्दवशम्प पर्वत समूल नष्ट होगया ॥४॥ +: जो पराक्रम में साक्षात कार्तिकय के समान जिसने इन्टही मग्रम्प शक्ति के प्रभास चन्द्रगुप्त राना को मामान्य दिया ॥ ५॥ +मन जो ज्ञान माप्तकिया उसके अनुमार राजनीतिषियताकै कारण सक्षपसे – यह “नीतियथ” मकान करताह ॥७॥ +: राज्यलाभ और राज्यमतिपालन सम्बन्ध मे राजा को जो उपाय अवलम्बन करने उचित हैं, हम इस ग्रथम वह वर्णन करते हैं ॥ ८॥…. + + +: मनुष्य आज जो भी कार्य कर रहा है उसे भविष्य को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। साथ ही आज का काम कल पर नहीं टालना चाहिए। इसका वास्तविक अर्थ यह हुआ कि मनुष्य को भविष्य की योजनाएं अवश्य बनाना चाहिए। उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि आज वह जो भी कार्य कर रहा है उसका भविष्य में क्या परिणाम होगा। साथ ही जो काम आज करना है उसे आज ही करें। आलस्य करते हुए उसे भविष्य पर कदापि न टालें। +: अपनी आयु वित्त, गृह के दोष, मंत्र, मैथुन, औषधि, दान, मान, अपमान इन नौ को छुपाकर रखना चाहिए (अन्यथा नुकसान उठाना पड़ सकता है)। +: मनुष्य को अपने मित्र बनाने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। बिना सोचे-समझे किसी से भी मित्रता कर लेना आपके लिए कई बार हानिकारक भी हो सकता है, क्योंकि मित्र के गुण-अवगुण, उसकी अच्छी-बुरी आदतें हम पर समान रूप से असर डालती है। इसलिए बुरे विचारों वाले या बुरी आदतों वाले लोगों से मित्रता नहीं करना चाहिए। +: शुक्र नीति कहती है किसी व्यक्ति पर विश्वास करें लेकिन उस विश्वास की भी कोई सीमा रेखा होना चाहिए। शुक्राचार्य ने यह स्पष्ट कहा है कि किसी भी व्यक्ति पर हद से ज्यादा विश्वास करना घातक हो सकता है। कई लोग ऊपर से आपके भरोसेमंद होने का दावा करते हैं लेकिन भीतर ही भीतर आपसे बैर भाव रख सकते हैं इसलिए कभी भी अपनी अत्यंत गुप्त बातें करीबी मित्र से भी न कहें। +: मनुष्य को तुष्ट, पुष्ट करने वाले अन्न का कभी अपमा�� नहीं करना चाहिए। अन्न प्रत्येक मनुष्य के जीवन का आधार होता है, इसलिए जो भी भोजन आपको प्रतिदिन के आहार में प्राप्त हो उसे परमात्मा का प्रसाद समझते हुए ग्रहण करें। अन्न का अपमान करने वाला मनुष्य नर्क में घोर पीड़ा भोगता है। +: हर व्यक्ति को अपने धर्म का सम्मान और उसकी बातों का पालन करना चाहिए। जो मनुष्य अपने धर्म में बताए अनुसार जीवनयापन करता है उसे कभी पराजय का सामना नहीं करना पड़ता। धर्म ही मनुष्य को सम्मान दिलाता है। + + +* उदाहरण वह पाठ है जिसे हर कोई पढ सकता है। +* उदाहरण सदा उपदेश से अधिक प्रभावशाली होता है। सैमुअल जॉनसन, रासेलस (1759 अध्याय 29 +* यदि आप प्रकृति को एक उदाहरण के रूप में लेते हैं तो आप वास्तव में कभी गलत नहीं हो सकते। क्रिश्चियन डाइओर + + +: माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। +: जो लोग स्वर्ग में रहते हैं, उन्हें केवल सुख मिलता है, जबकि मातृभूमि पर रहने वाले लोगों को सुख और धर्म दोनों मिलता है। +: हे सैनिको! मातृभूमि की पवित्र मिट्टी अपने सिर पर रखो, क्योंकि मातृभूमि की मिट्टी ही चन्दन है और मातृभूमि ही वन्दनीय है। +: बीज जब भूमि में अच्छी तरह लीन हो जाता है, तभी सुन्दर वृक्ष की उत्पत्ति होती है। इसी तरह मनुष्य जब अपनी मातृभूमि के प्रति अपनी आत्मीयता सुदृढ़ करता हैं, तब वह मातृभूमि वृद्धि को प्राप्त होती है। +: हे मातृभूमि आप हमें कल्याणकारी प्रतिष्ठा से युक्त करें। हे देवि! हमें ऐश्वर्य और श्रेय में प्रतिष्ठित करते हुए स्वर्ग की प्राप्ति काराएं। +: जिस मातृभूमि का हृदय परमव्योम के सत्य रुपी अमृत के प्रवाह से आवृत रहता है, बुद्धिमान लोग अपनी कुशलता से जिसका अनुगमन करते हैं। वह मातृभूमि हमारे राष्ट्र में तेजस्विता, बलवत्ता बढ़ाने वाली हो। +: हे मातृभूमि आपकी पवित्र शक्ति से हम स्वयं को पावन बनाते हैं। +: धर्मधारिणी और सर्वपालनकर्त्री मातृभूमि को हम शीश झुकाकर अभिनन्दन (स्तुति) करते हैं। +: मनुष्यों द्वारा अपनी माता के समान जन्मभूमि भी सदा पूजनीय है। +: मातृभूमि में प्रतिष्ठित और पवित्र पोषणयुक्त पदार्थ हैं, मातृभूमि उन्हें हमें प्रदान करें, क्योंकि यह धरती हमारी माता है और हम सब उसके पुत्र हैं। +कल्याणकारी और सुख-साधनों को देने वाली मातृभूमि की हम सदैव सेवा करें। +: मातृभूमि आवश्यकता के अनुरूप हमें वाञ्छित धन प्रदान करे। + + +वायु पुल्लिंग, वातीति। वागतिगन्धनयोः धातु में कृवा-पाजिमिस्वदिसाध्यशूभ्य उण् से उण् तथा आतो युक्चिण्कृतोः से युक् होने पर वायु शब्द निष्पन्न होता है। जिसका अर्थ है गति, गमन और गन्धग्रहण करना। ऋग्वेद में वायु की देवता के रूप में स्तुति की गई है। ऋग्वेद में वायु के लिए 'मातरिश्वा' कहा गया है- +: यक्ष के द्वारा प्रश्न पुच्छने पर आप कौन है? वायु कहते है मैं वायुदेव हूँ। मुझे मातरिश्वा भी कहा जाता है। +: वायु को वान् (गति करने गमन और गन्धग्रहण के कारण वायु कहा गया है। +: अन्तरिक्ष में विचरण करने के कारण वायु को मातरिश्वा कहा जाता है। +: वायु ही सम्पूर्ण विश्व है और वायु को ही इस संसार का स्वामी या ईश्वर माना जाता है। +: यह वायु विश्वकर्मा है, विश्व आत्मा है, विश्व रुप है, प्रजा का स्वामी है, सृष्टिकर्ता है, धारण करने वाला है, सर्व व्यापक है, कल्याण करने वाला है तथा संहार करने वाला है। अतः वायु कभी प्रदूषित न हो हमें ऐसा प्रयत्न सर्वदा करना चाहिए। +: वायु सभी भूतप्राणियों की अलग-अलग सभी चेष्टाओं का सम्पादन करता है। तथा सम्पूर्ण जीव-प्राणियों को जीवित रखता है, जिस कारण वायु को 'प्राण' भी कहा जाता है। +: वायु ही संवर्ग है। जब अग्नि शान्त होती है, सूर्य और अस्त होता है, तो वह वायु में ही समाहित हो जातें हैं। +( छान्दोग्योपनिषद में वायु के दो संवर्ग माने गये हैं। देवताओं में वायु देव और इन्द्रियों में प्राण वायु।) +: हे सेमल प्राणी इस भूतल पर जो भी चेष्टा करता है, उस चेष्टा की सम्पूर्ण शक्ति तथा जीवन देने का सारा सामर्थ्य के कारक भगवान वायु ही हैं। +: वायु ही आयु है। वायु ही शरीर की शक्ति है। वायु ही आत्मा को धारण करने वाली है। वायु ही संसार है। वायु ही इस जगत के प्रभु हैं। +: वायु देव विशेष गति से बहकर औषधियों और वनस्पतियों को स्पर्श करते हुए उलूखल में प्रेवश करता है। जो सोम, इन्द्रदेव के सेवनार्थ होता है। अर्थात् औषधिसमवायः वायु भूत-प्राणियों के लिए हितकर होता है। +महाभारत के अनुसार वायु के प्रकार सात (७) हैं। महाभारत के शान्तिपर्व के अध्याय 328 में सात प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है। वायु के प्रकार १) प्रवह (२) आवह (३) उद्वह (४) संवह (५) विवह (६) परिवह (७) परावह। +: जो वायु धुएं और उष्णता से बादलों को इधर-उधर ले जाता है, वह प्रथम मार्ग पर प्रवाहित होने के कारण प्रथम वायु प्रवह नाम की है। +: जो वायु आकाश में जलादि रस मात्राओं और विद्युत आदि को उत्पन्न करने के लिए प्रकट होती है। वह तेजयुक्त वायु आवह नामक द्वितीय वायु है। यह वायु अत्यधिक तेजयुक्त आवाज (शोर) करती हुई बहती है। +: जल (समुद्र के) को (वाष्प रुप में) ऊपर उठाकर जीमूत मेघों के रुप में स्थापित करता है तथा जीमूत नामक बादलों को जल से संयुक्त कर पर्जन्य को समर्पित करता है, वह वायु उद्वह कहा जाता है। जो तृतीय मार्ग का अनुसरण करने पर तीसरा वायु कहा गया है। +: जो वायु आकाश मार्ग से विचरण करने वाले देवताओं के विमानों का वहन स्वयं करता है तथा पर्वतों का मान मर्दन करता है, वह चतुर्थ वायु संवह कहलाता है। +: जिस वायु का संचरण बहुत ही भंयकर उत्पात करने वाला होता है तथा जो आकाश में मेघ घटाओं को अपने साथ लेकर चलता है, वह तीव्र वेगशाली वायु पंचम वायु विवह नाम का है। +: जिस वायु से अमृत की दिव्य निधि चन्द्रमा का भी पोषण होता है, वह षष्ठ श्रेष्ठ विजयशील वायु परिवह नाम से विख्यात है। +: जिस वायु का स्पर्श होकर प्राणी इस जगत से विलीन होता हुआ चला जाता है और वापस नहीं आता है (सर्वप्राणभूतां प्राणान् योऽन्तकाले निरस्यति)। उस सर्वश्रेष्ठ वायु का नाम परावह है। +: वायु के मात्र दो संवर्ग हैं, देवताओं में वायु देव और इन्द्रियों में प्राणवायु संवर्ग है। +अष्टांगहृदय में स्पष्ट कहा गया है कि वायु संसार की उत्पत्ति का प्रधान कारक है, और यदि यह वायु प्रदूषित हो जाता है तो वायु ही संसार के विनाश का प्रमुख कारण बन जाता है- +: जब प्रदूषित वायु बाह्य सिराओं में प्रवेश करके कफ, रक्त और पित्त को दूषित करता है, तो रूकी हुई वायु गमन नहीं कर सकती है,जिसके कारण उत्सधे लक्षण वाला शोध उत्पन्न होता है। +: आयुर्वेद शास्त्र चरकसंहिता के जयदेव विद्यालंकार द्वारा प्रणीत तन्त्रार्थदीपिका और हिन्दी व्याख्या सहित ग्रन्थ में वायु प्रदूषण के विषय में कहा गया है कि वायु जब कुपित संचरण करती है तो वह पर्वतों की चोटियों तोड़ती है, वृक्षों को उखाड़ फेंकती है, सागर में तरंगों को उत्पन्न करती है, पृथ्वी पर कम्पन करती है अर्थात् भूकम्प लाती है, ऋतुओं अर्थात् मौसम में परिवर्तन करती है, खाद्यपदार्थों के उत्पन्न होने में असंतुलन पैदा करती है तथा भूतप्राणियों के शरीर में असंख्य रोग उत्पन्न करती है। अर्थात् सम्पूर्ण सृष्टि का अन्त कर देती है। + + +: पर-उपदेश में पाण्डित्य (प्रवीणता) सभी मनुष्यों में आसानी से मिल जाती है। किन्तु अपने कर्तव्य का पालन कुछ ही महात्मा करते हैं। +: दूसरों को उपदेश देने में बहुत से लोग दक्ष (कुशल) हैं किन्तु जो उन उपदेशों के अनुसार आचरण करने वाले बहुत कम लोग हैं। +* जिसे हर कोई देने को तैयार रहता है पर लेता कोई नहीं ऐसी वस्तु क्या है? उपदेश, सलाह। स्वामी रामतीर्थ +: मूर्खों को दिया गया उपदेश, उसी प्रकार उनके क्रोध को बढ़ाने वाला होता है, जिस प्रकार सापों को दूध पिलाने से उनके विष में वृद्धि होती है। +: किसी व्यक्ति के स्वभाव को उपदेश देकर नहीं बदला जा सकता। ठण्डे जल को उबालने पर तो वह गर्म हो जाता है लेकिन बाद में वह पुनः ठंडा हो जाता है। +: दूसरोंको उपदेश देकर अपना पाण्डित्य दिखाना बहुत सरल है। परन्तु केवल महान व्यक्ति ही उस तरह से (धर्मानुसार) अपना बर्ताव रख सकता है। + + +* जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध ॥ रामधारी सिंह 'दिनकर' +* किसी व्यक्ति को समझना इतना मुश्किल कार्य नहीं है,जितना मुश्किल बिना पक्षपात किए निर्णय लेना। अज्ञात +* सार्वजनिक मामलों के प्रति उदासीनता की कीमत बुरे पुरुषों द्वारा शासित होना है। प्लेटो +* उदासीनता लोगों को प्रभावित करने वाली सबसे खराब किस्म की बीमारी है। डॉ भीमरव अम्बेडकर +* विज्ञान ने बहुत सी बुराइयों का इलाज ढूंढ़ लिया है; लेकिन उन सभी में सबसे बुरे के लिए कोई उपाय नहीं खोजा है – वह है मनुष्य की उदासीनता। + + +: आशा नाम की एक आश्चर्यपूर्ण जंजीर है जिससे बंधे हुए व्यक्ति इधर-उधर भागते हुए नजर आते हैं लेकिन जो व्यक्ति उससे (आशा से) मुक्त हैं वे कहीं (एक जगह) बैठे रहते हैं। +: जो लोग आशा के दास होते हैं वे सब लोगों के दास होते हैं। किन्तु आशा जिनकी दासी होती है, लोग उनके दास बनकर आचरण करते हैं। +: भूख, प्यास और आशा मनुष्य की पत्नियाँ हैं जो जीवनपर्यन्त मनुष्य का साथ निभाती हैं। इन तीनों में आशा महासाध्वी है क्योंकि वह क्षणभर भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ती, जबकि भूख और प्यास कुछ कुछ समय के लिए मनुष्य का साथ छोड़ देते हैं। +: गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है कि आशा देवी नाम की एक अदभुत देवी हैं, यह सेवा करने पर दुख देतीं हैं और विमुख होने पर सुख। +* आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है। मुंशी प्रेमचन्द +* प्रेम आशा की खेती करता है। आशा है तो उर्वरता को बढ़ावा मिलेगा, और हम सभी सपने के किसान हो सकते हैं। जॉर्ज ई मिलर +* नेता, आशा का व्यापारी होता है। नेपोलियन बोनापार्ट]] +* हमें क्षणिक निराशा को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन अनन्त आशा को कभी नहीं खोना चाहिए। मार्टिन लूथर किंग जूनियर +* जहां कोई लक्ष्य नहींं होता, वहां कोई आशा भी नहीं होती। जॉर्ज वाशिंगटन +* आशा वास्तव में सभी बुराइयों में सबसे बुरी है क्योंकि यह मनुष्य की पीड़ा को लम्बा खींचती है। फ्रेडरिक नीत्से +* आशा ही एकमात्र मधुमक्खी है जो फूलों के बिना शहद बनाती है। रॉबर्ट ग्रीन इंगेरसोल +* लेकिन मुझे पता है कि जब अंधेरा होता है, केवल तभी आप सितारों को देख सकते हैं। मार्टिन लूथ्र किंग जूनियर]] +* आशा कभी मत छोड़ो। तूफान लोगों को मजबूत बनाते हैं और हमेशा के लिए कभी नहीं रहते। रॉय टी बेन्नेट +* अगर व्यक्ति पर्याप्त आशा रखता है तो वह अविश्वसनीय चीजें कर सकता है। शैनन के बूचर + + +* कोई भी बेवफूफ सच्ची बात कह सकता है, परन्तु किसी झूठी बात को भली प्रकार से कहने के लिए थोड़ी समझ वाले व्यक्ति की आवश्यकता होती है। +* कष्ट पहुचाने वाले सत्य की अपेक्षा सांत्वना प्रदान करने वाला असत्य अच्छा होता है। +* झूठ बोलना एक लडके में दोष है, प्रेमी में वह कला है, एक अविवाहित में निपुणता है तथा एक विवाहित नारी के स्वभाव का अंग होता है। +* झूठ का मिश्रण सदैव आनन्द में वृद्धि करने वाला होता है। +* जो व्यक्ति अपनी साख बचाने के लिए झूठ बोलता है, वह उस व्यक्ति की भांति होता है जो अपना रुमाल बचाने के लिए कमीज की बाहों से मुंह पोंछता है। +* जो व्यक्ति एक झूठ बोलता है, उसको यह ज्ञान नहीं होता है कि वह कितने बड़े कार्य की जिम्मेदारी ले रहा है क्योंकि उस झूठ की स्थापने के लिए उसे बीस झूठों का आविष्कार करना होगा। +* अपराध के अनेक औजार होते हैं, परन्तु झूठ एक ऐसा हैंडिल है जो प्रत्येक औजार में फिट हो जाता हैं, ठीक बैठ जाता है। +* झूठ वृद्धावस्था तक कभी जीवित नही रहता। +* झूठ अधिक समय तक टिकता नही है। +* निर्ममतम झूठ मौन द्वारा व्यक्त किये जाते हैं। + + +पेशे में मेरा संबंध पुस्तक प्रकाशन, संगीत व कला संग्रह क्षेत्र से है। विकिपीडिया पर मेरे लेख तथा संपादन ज़्यादातर व्यक्तिगत जानकारी पर आधारित हैं । अगर लेखों से सहमत नहीं हैं तो हटाने से पहले कृपया सूच���त करें । + + +मुनव्वर राणा एक मशहूर भारतीय उर्दू कवि व शायर हैं । उन्होंने उर्दू ग़ज़लों में हिन्दी और मागधी शब्दों का प्रयोग करके ग़ज़ल को आम जनता तक पहुँचाया है। उर्दू ग़ज़ल के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । परन्तु समाज में बढ़ती हुई धर्म संबंधी हिंसा और जातिवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए उन्होंने पुरस्कार लौटा दिया । +* अगर आप वाल्मीकि के बारे में बात करेंगे तो आपको उनके अतीत के बारे में भी बात करनी होगी । वाल्मीकि सिर्फ़ एक लेखक ही थे, और आप लोगों ने उन्हें भगवान बना दिया । +*जिस तरह मुस्लिम बच्चों को झूठे मुक़दमे में फँसाया जा रहा है, इससे उन्हें आल क़ायदा में घुसने के लिए मजबूर किया जा रहा है । कल शायद मुझे भी पुलिस उठा लेगी क्यूं कि मैं अक्सर शायरी के लिए पाकिस्तान जाता रहता हूँ । +* मुस्लिम के आठ बच्चे इसलिए हैं कि अगर दो बच्चों को पुलिस पकड़ लिया और दो बच्चे करोना में मर गए, तो बाक़ी चार बच्चे घर सँभाल लेंगे और अपनी माता-पिता की अंत्येष्टि भी कर लेंगे । + + +: सुख का मूल (जड़) धर्म है। धर्म का मूल अर्थ (धन-सम्पत्ति, रुपया-पैसा, सोना-चाँदी आदि) है। अर्थ का मूल राज्य है। राज्य का मूल इन्द्रियों पर विजय है। +: स्वतंत्रता का मूल सामर्थ्य (शक्ति) है, वैभव का मूल परिश्रम है, सुराज्य का मूल न्याय है और तथा महाशक्ति का मूल संगठन है। +: रहीम कहते हैं कि पहले एक काम पूरा करने की ओर ध्यान देना चाहिए। बहुत से काम एक साथ शुरू करने से कोई भी काम ढंग से नहीं हो पता, वे सब अधूरे से रह जाते हैं। एक ही काम एक बार में किया जाना ठीक है। जैसे किसी पेड़ की जड़ को अच्छी तरह सींचा जाए तो उसका तना, शाखाएँ, पत्ते, फल-फूल सब हरे-भरे रहते हैं। +* हिन्दुत्व ही वह मिट्टी है जिसमें भारतवर्ष का मूल गड़ा हुआ है। यदि यह मिट्टी दृढ हटा ली गयी तो भारतवासी वृक्ष सूख जायेगा। एनी बेसेन्ट +* संयम संस्कृति का मूल है। +* सत्संगति आनन्द और कल्याण की मूल है। रामचरितमानस +: दया धर्म की जड़ है और अभिमान पाप की जड़। इसलिये जब तक शरीर में प्राण हो तब तक दया को मत छोड़िये। +* आधुनिक सम्पत्ति-शास्त्र (अर्थशास्त्र) अनर्भ का मूल है। श्रीराम शर्मा आचार्य + + +‘अनुवाद’ शब्द संस्कृत का यौगिक शब्द है जो ‘अनु’ उपसर्ग तथा ‘वाद’ के संयोग से बना है। संस्कृत के ‘वद्’ धातु में ‘घञ’ प्र���्यय जोड़ देने पर भाववाचक संज्ञा में इसका परिवर्तित रूप है ‘वाद’। ‘वद्’ धातु का अर्थ है ‘बोलना या कहना’ और ‘वाद’ का अर्थ हुआ ‘कहने की क्रिया’ या ‘कही हुई बात’। +‘अनु’ उपसर्ग अनुवर्तिता के अर्थ में व्यवहृत होता है। ‘वाद’ में यह ‘अनु’ उपसर्ग जुड़कर बनने वाला शब्द ‘अनुवाद’ का अर्थ हुआ-’प्राप्त कथन को पुनः कहना’। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि ‘पुनः कथन’ में अर्थ की पुनरावृत्ति होती है, शब्दों की नहीं। +हिन्दी में अनुवाद के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले अन्य शब्द ये हैं छाया, टीका, उल्था, भाषान्तर आदि। अन्य भारतीय भाषाओं में ‘अनुवाद’ के समानान्तर प्रयोग होने वाले शब्द हैं भाषान्तर (संस्कृत, कन्नड़, मराठी तर्जुमा (कश्मीरी, सिन्धी, उर्दू विवर्तन (मलयालम मोषिये चर्ण्यु (तमिल अनुवादम् (तेलुगु अनुवाद (संस्कृत, हिन्दी, असमिया, बांग्ला, कन्नड़, ओड़िआ, गुजराती, पंजाबी, सिंधी)। +* समस्त अभिव्यक्ति अनुवाद है क्योंकि वह अव्यक्त (या अदृश्य आदि) को भाषा (या रेखा या रंग) में प्रस्तुत करती है। सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन +* अनुवाद वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्थक अनुभव को एक भाषा समुदाय में संप्रेषित किया जाता है। पटनायक +* भाषा भेद के विशिष्ट पाठ को दूसरी भाषा में इस प्रकार प्रस्तुत करना अनुवाद है जिसमें वह मूल के भाषिक अर्थ, प्रयोग के वैशिष्ट्य को यथासंभव संरक्षित करते हुए दूसरी भाषा के पाठक को स्वाभाविक रूप से ग्राह्य प्रतीत हो। डॉ. सुरेश कुमार +* अनुवाद को दो संदर्भों में देखा जा सकता है- एक व्यापक और दूसरी, सीमित. व्यापक संदर्भ में अनुवाद को प्रतीक सिद्धांत के परिप्रेश्य में देखा जाता है. इस दृष्टि से मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि कथ्य का प्रतीकांतरण अनुवाद है. अपने सीमित अर्थ में अनुवाद भाषा सिद्धांत का संदर्भ लेकर चलता है. इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि कथ्य का भाषांतरण अनुवाद है। प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव +* अनुवाद अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसका संबधं विशेष रूप से अर्थांतरण की समस्या से है. यह अर्थांतरण एक भाषा के सुसंबद्ध प्रतीकों में होता है। डार्ट (Dostert) +* अनुवाद एक भाषा के पाठपरक उपादानों का दूसरी भाषा के पाठपरक उपादानों के रूप में समतुल्य के सिद्धांत के अधाता पर प्रतिस्थापना है। कैटफोर्ड (Catford) +* अनुवाद का संबंध स्रोतभाषा के सं��ेश का पहले अर्थ और फिर शैली के धरातल पर लक्ष्यभाषा में निकटतम, स्वाभाविक तथा तुल्यार्थक उपादान प्रस्तुत करने से होता है। ई. ए. नाइडा (E. A. Naida) +* अनुवाद एक श्रम-साध्य कला है जो किसी भी भाषा में मौलिक लेखन की अपेक्षा अधिक कठिन है बेहतरीन अनुवाद वह है जो शाब्दिक न होकर प्रत्येक मूल भावना को, मूल लेख के प्रत्येक कथ्य पर समुचित ज़ोर देते हुए व्यक्त करे। डॉ राजेन्द्र प्रसाद डॉ. ज्ञानवती दरबार को 1960 में लिखे अपने पत्र में +* मेरा मानना है कि अनुवाद की वास्तविक कसौटी शब्दशः या वाक्यशः अनुवाद करना नहीं है। हम अपने अनुभव से जानते हैं कि यह कार्य कितना कठिन है और रोचक भी। कठिनाई अनुवाद की नहीं, बल्कि एक भाषा के विचारों को दूसरी भाषा में अनूदित करने की है। क्या हमने अभिभाषणों का अनुवाद करते समय इन जटिलताओं का अनुभव नहीं किया है डॉ राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. ज्ञानवती दरबार को 1960 में लिखे अपने पत्र में +स्वराज्य' का कोई सम्यक अंग्रेजी अनुवाद नहीं है। महात्मा गांधी]] +* अनुवादक का कार्य निश्चित रूप से एक कठिन कार्य है और इसके लिये कोई धन्यवाद या प्रशंसा नहीं मिलता। अनुवादक यदि गलती करे तो उसकी बुरी तरह आलोचना होती है किन्तु वह सफल होता है तो उसकी प्रशंसा सादे शब्दों में कर दी जाती है। यूजीन अल्बर्ट नाइडा + + +* हमारी शक्ति हमारे निर्णय करने की क्षमता में निहित है। फुलर +* निर्णय लेने से उर्जा उत्पन्न होती है अनिर्णय से थकान । माइक हाकिन्स +* अच्छे निर्णय लेना अनुभव से आता है, और अनुभव बुरे निर्णय लेने से। रीटा मई ब्राउन +* कोई भी अच्छा निर्णय जानकारियो पर निर्भर करता है। आंकड़ों या संख्याओं पर नहीं। प्लेटो +* सही समय पर सही निर्णय लेना बहुत महत्वपूर्ण है। गलत समय पर सही निर्णय गलत निर्णय बन जाता है। शिव खेड़ा +* अगर आप निर्णय नहीं ले पाते तो आप बास या नेता कुछ भी नहीं बन सकते । +* नब्बे प्रतिशत निर्णय अतीत के अनुभव के आधार पर लिये जा सकते हैं, केवल दस प्रतिशत के लिये अधिक विश्लेषण की जरूरत होती है । +* काम करने में ज्यादा ताकत नहीं लगती लेकिन यह निर्णय करने में ज्यादा ताकत लगती है कि क्या करना चाहिये । +* निर्णय के क्षणों मे ही आप की भाग्य का निर्माण होता है। +* कार्य करना मुश्किल नहीं है, लेकिन क्या करना है, इसका निर्णय करना निश्चित ही मुश्किल है। +* एक इच्छा से कुछ नहीं बदलता, एक निर्णय स��� थोड़ा कुछ बदलता है, लेकिन एक निश्चय सब कुछ बदल सकता है। +* क्या करना है यदि यह निर्णय आप नहीं करेंगे तो यह निर्णय दूसरे करेंगे कि आपका क्या करना है। +* समय जब निर्णय लेता है तब गवाहों की जरुरत नहीं होती। +* राय दूसरों से जरूर लेना चाहिए, पर निर्णय खुद का होना चाहिए। +* भाग्य आपके हाथ में नहीं होती, पर निर्णय आपके आपके हाथ में होता है। भाग्य आपका निर्णय नहीं बदल सकती, पर आपका निर्णय आपकी भाग्य को बदल सकता है। + + +: जो दूसरों की पत्नी को माता तथा दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले की भांति समझता हो। जो संसार के सभी प्राणियों में अपने आत्मा का दर्शन करता हो अर्थात सबको अपना मानता हो वही पंडित है। +* अदृष्य को देखने की कला ही दूरदृष्टि है। जोनाथन स्विफ्ट, Thoughts on various subjects में +* बिना क्रिया के दूरदृष्टि दिवास्वप्न है, बिना दृष्टि के क्रिया दुःस्वप्न है। जापानी कहावत +* जहाँ दूरदृष्टि नहीं होती, लोगों को कष्ट झेलना पड़ता है। बुक ऑफ प्रोबर्ब्स +* निष्पादन (परफॉर्मैंस) के बिना दृष्टि मतिभ्रम है। चार्ल्स डिकेन्स +* विजन के बिना लोग नष्ट हो जाते हैं। +* अच्छा करने की वह गौरवशाली दृष्टि अक्सर इतने अच्छे दिमागों की रक्तमय मृगतृष्णा होती है। जोएल ओस्टीन +* इस बात पर ध्यान केंद्रित न करें कि आप आज कहां हैं। सकारात्मक दृष्टि रखें और खुद को अपने लक्ष्यों को पूरा करते हुए और अपने भाग्य को पूरा करते हुए देखें। +* एक सपना भविष्य में आपके जीवन के लिए रचनात्मक विजन है। Tony Hsieh +* नेतृत्व, दृष्टि को वास्तविकता में बदलने की क्षमता है। जॉन सी मैक्सवेल +* अपनी दृष्टि का पता लगाएं, और इसे आप जो कुछ भी करते हैं उसमें आपका मार्गदर्शन करने दें। यदि आपके पास दृष्टि की कमी है, तो अपने अंदर देखें। अपने प्राकृतिक उपहारों और इच्छाओं को आकर्षित करें। राल्फ लौरेन +* नेता के पास दृष्टि और दृढ़ विश्वास होता है कि सपना हासिल किया जा सकता है। वह इसे पूरा करने के लिए शक्ति और ऊर्जा को प्रेरित करता है। नैपोलियन हिल +* जहां भी आपको एक समृद्ध व्यवसाय मिलेगा, आप किसी ऐसे व्यक्ति के पास आएंगे, जिसके पास रचनात्मक दृष्टि हो। Rosabeth Moss Kanter +* दृष्टि केवल एक तस्वीर नहीं है कि क्या सम्भव है; यह हमारे बेहतर स्वयं के लिए एक अपील है, कुछ और बनने का आह्वान है। Roy T. Bennett +* उस जीवन के लिए एक विजन बनाएं जो आप वास्तव में चाहते हैं और फिर इसे वास्तविकता बनाने की दिशा में लगातार काम करें। Les Brown +* यदि आपके पास भविष्य के लिए अपनी कोई दृष्टि नहीं है, तो आपके पास जीने के लिए कुछ भी नहीं है। Lewis Howes +* जब आपके पास एक दृष्टि है जो काफी मजबूत और पर्याप्त शक्तिशाली है, तो कुछ भी आपके रास्ते में खड़ा नहीं हो सकता। Jack Welch +* अच्छे बिजनेस लीडर्स एक विजन बनाते हैं, विजन को स्पष्ट करते हैं, विजन को जोश से अपनाते हैं, और लगातार इसे पूरा करने के लिए ड्राइव करते हैं। मुहम्मद अली +* चैंपियन जिम में नहीं बनते। चैंपियंस किसी ऐसी चीज़ से बनते हैं जो उनके अंदर गहरी होती है एक इच्छा, एक सपना, एक विजन। ऐन्ड्रू कार्नेगी +* महान अवसरों की दुनिया अब उपलब्ध है, केवल महान दृष्टि वाले लोगों के लिए, जैसा कि यह हमेशा से रहा है। Vance Havner +* उद्यम द्वारा दृष्टि का पालन किया जाना चाहिए। सीढि़यों को देखते रहना ही काफी नहीं है हमें सीढि़यां चढ़नी ही चाहिए। Arnold Schwarzenegger +* यदि आप किसी सपने को हकीकत में बदलना चाहते हैं, तो आपको अपना 100% देना होगा और अपने सपने पर विश्वास करना कभी नहीं छोड़ना होगा। Rainbow Rowell +* वास्तविक जीवन उसकी परिधीय दृष्टि में कुछ घटित हो रहा था। Joel A. Barker +* क्रिया के बिना दृष्टि केवल एक सपना है। बिना सोचे काम करने से समय बीत जाता है। कार्य के साथ दृष्टि दुनिया को बदल सकती है। Malcolm Forbes +* दृष्टि, वह देखने की कला है जो दूसरों के लिए अदृश्य है। Vince McMahon +* आपको अपने आप को ऐसे गुणवत्तापूर्ण मनुष्यों से घेरने की आवश्यकता है जो बुद्धिमान हों और जिनके पास दूरदृष्टि हो। George Eliot +* सहनशीलता की जिम्मेदारी उन लोगों की होती है जिनके पास व्यापक दृष्टि होती है। John C. Maxwell +* जुनून के बिना विजन संभावनाओं के बिना एक तस्वीर है। Joel Osteen +* मर्यादाओं को अपने से दूर करो। आप कभी भी अपनी सोच से ऊपर नहीं उठेंगे। अपने जीवन के लिए एक महान दृष्टि बनाएँ। खलील जिब्रान +* हम अपनी क्षमताओं से नहीं, बल्कि अपनी दृष्टि से सीमित हैं। जॉन मैक्सवेल +* एक महान नेता का अपने दृष्टिकोण को पूरा करने का साहस जुनून से आता है, पद से नहीं। हेलेन केलर (Helen Keller) +* रणनीति के बिना दृष्टि एक भ्रम बनी हुई है। Jack Ma +* सफलता की प्रक्रिया अपने दिन को घड़ी के अनुसार और अपने जीवन को एक दृष्टि से चलाएं। Helen Keller +* दुनिया में सबसे दयनीय व्यक्ति वह है जिसके पास दृष्टि तो है पर दूरदृष्टि नहीं। Oprah Winfrey +* अपने जीवन के लिए संभव उच्चतम भव्यतम विजन बनाएं, क्योंकि आप वही बन जाते हैं जिस पर आप विश्वास करते हैं। बिल गेट्स + + +साहित्य अकादमी भाषा और साहित्य का प्रचार, प्रसार व संरक्षण के लिए भारत की सर्वोच्च राष्ट्रीय संस्था है । भारत सरकार से अनुदान प्राप्त होने पर भी साहित्य अकादमी सरकारी नियंत्रण से मुक्त रहा है। अकादमी की कार्यप्रणाली पर देश-विदेश के महान व्यक्तियों ने कई मंतव्य दिए हैं यो विचारणीय हैं । +* साहित्य अकादमी के अध्यक्ष होते हुए मैं यह नहीं चाहूँगा कि देश के प्रधानमंत्री मेरे कार्य में हस्तक्षेप करें । +* साहित्य अकादमी जैसे संस्था अपने मूल आदर्शों के अनुसार कार्य करने में असफल रहे हैं । + + +: ईश्वर को नही जानने से झूठ सत्य प्रतीत होता है । बिना पहचाने रस्सी से सांप का भ्रम होता है । +क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। गीता +* यदि आपका 'धर्म' भ्रम पर आधारित है, तो आप इस धर्म की तर्कपूर्ण परीक्षा की अनुमति ही नहीं देंगे। कोएनराड एल्स्ट +* समय एक भ्रम है। अल्बर्ट आइंस्टीन +* ज्ञान भ्रम से आता है। जॉर्ज संतयान + + +गुलज़ार मूल नाम "संपूर्ण सिंह कालरा भारत के एक प्रख्यात कवि, लेखक, संगीतकार व सिनेमा निर्देशक हैं। उनके द्वारा रचित फ़िल्म गाने व कविताएँ सुधी पाठक व आम जनता द्वारा उच्च प्रशंसित हैं। +अन्य व्यक्तियों के बारे में गुलज़ार +लता मंगेशकर के निधन पर +* हिन्दी सिनेमा का सबसे संपूर्ण अभिनेता हैं अमिताभ बच्चन दिलीप कुमार से भी अधिक निपुण। मगर अफ़सोस है कि मैं उनके साथ कभी काम कर न सका। +w:द ट्रिब्यून| ट्रिब्यून से साक्षात्कार +गुलज़ार के बारे में अन्य व्यक्ति + + +डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। उनका जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। वे पढ़ाई लिखाई में अच्छे थे। उन्होंने कानून में मास्टर की डिग्री और डाक्टरेट की उपाधि हासिल कर रखी थी। उन्होने भारतीय संविधान के निर्माण में अपना खास योगदान दिया था। वे 1950 में देश के पहले राष्ट्रपति बने और 12 साल तक राष्ट्रपति पद पर बने रहे। साल 1962 में राष्ट्रपति पद से निवृत होने के बाद राजेंद्र प्रसाद को भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। वे एक उच्‍च कोटि के लेखक भी थे उन्‍होंने 1946 में अपनी आत्मकथा के अलावा और भी कई पुस्तकें लिखी जिनमें 'बापू के कदमों में 1954 इंडिया डिवाइडेड 1946 सत्याग्रह ऐट चंपारण 1922 गांधी जी की देन भारतीय संस्कृति' व 'खादी का अर्थशास्त्र' आदि कई रचनाएं शामिल हैं। +* किसी की गलत मंशाएं आपको किनारे नहीं लगा सकतीं। +* जो बात सिद्धान्त में गलत है, वह बात व्यवहार में भी सही नहीं होती। +* हर किसी को अपनी उम्र के साथ सीखने के लिए खेलना चाहिए। +* जो मैं करता हूं, उन सभी भूमिकाओं के बारे में सावधान रहता हूँ। +* खुद पर उम्र को कभी हावी नहीं होने देना चाहिए। +* पेड़ों के आसपास चलने वाला अभिनेता कभी आगे नहीं बढ़ सकता। +* मैं जानता हूँ कि दस साल पहले किए गए काम दोबारा उसी शिद्दत से नहीं कर पाउँगा। +* आजकल का सिनेमा तड़क-भड़क और भावनाओं पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करता है। + + +* हमारे यहाँ टीचर हैं, प्रोफ़ेसर हैं, प्रिंसिपल हैं, उस्ताद हैं, मौलवी हैं पर आचार्य नहीं है। आचार्य अर्थात् आचारवान व्यक्ति की महती आवश्यकता है। चरित्रवान व्यक्तियों के अभाव में महान से महान व धनवान से धनवान राष्ट्र भी समाप्त हो जाते हैं। +* छुआछूत ने इस देश में अनेक जटिलताओं को जन्म दिया है तथा वैदिक वर्ण व्यवस्था द्वारा ही इसका अन्त कर अछूतोद्धार सम्भव है। +* अज्ञान, स्वार्थ व प्रलोभन के कारण धर्मान्तरण कर बिछुड़े स्वजनों की शुद्धि करना देश को मजबूत करने के लिए परम आवश्यक है। +* भारत को सेवकों की आवश्यकता है, लीडरों की नहीं। +* प्यारे भाइयो! आओ, दोनों समय नित्य प्रति संध्या करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करें और उसकी सत्ता से इस योग्य बनने का यत्‍‌न करें कि हमारे मन, वाणी और कर्म सब सत्य ही हों। सर्वदा सत्य का चिन्तन करें। वाणी द्वारा सत्य ही प्रकाशित करें और कमरें में भी सत्य का ही पालन करें। +स्वामी श्रद्धानन्द के प्रति महापुरुषों के विचार +* वह वीर सैनिक थे। वीर सैनिक रोग शैय्या पर नहीं, परन्तु रणांगण में मरना पसंद करते हैं। वह वीर के समान जीये तथा वीर के समान मरे। महात्मा गांधी + + +; आर्यसमाज के दस नियम +* हर एक आर्य समाजी को भगवान में अटूट विश्वास होना चाहिए और भगवान ही सारे ज्ञान का प्राथमिक स्रोत है। +* इस संसार में सिर्फ भगवान की ही पूजा के योग्य हैं, परन्तु उनकी पूजा किसी मूर्ति के रूप में नहीं होनी चाहिए क्यूंकि भगवान का कोई एक स्थायी स्वरूप नहीं है। +* वेदों ही मूल सिद्धांत हैं और वेद ही सच्चे ज्ञान के ग्रंथ हैं। +* ह��� एक व्यक्ति को सच को अपनाने और और झूठ को त्यागने के लिए तत्पर रहना है। +* हर कार्य को धर्म के अनुसार ही करना है और कार्य को करने से पहले अध्ययन करना है कि वह सही है या नहीं। +* आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया के लिए अच्छा करना है, ताकि सभी लोगों के लिए भौतिक समृद्धि, आध्यात्मिक समृद्धि और सामाजिक समृद्धि लाई जा सके। +* सभी लोगों के साथ प्यार और न्याय के साथ व्यवहार करना है। +* हर व्यक्ति को अज्ञान को दूर और ज्ञान का प्रचार करना चाहिए। +* दूसरों के उत्थान पर ही किसी का व्यक्तिगत उत्थान निर्भर होना चाहिए। +* व्यक्तिगत भलाई के ऊपर संसार की भलाई को रखा जाए। + + +केशव बलिराम हेडगेवार 1 अप्रैल 1889 21 जून 1940) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी, समाज-संगठक एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक एवं प्रथम सरसंघचालक थे। उनके द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज विश्व का सबसे बड़ा संघटन है। +* यदि हिन्दुस्तान हिन्दुओं का देश है तो इसके उद्धार की पूरी जिम्मेदारी हम हिन्दुओं के सिर पर है। अतः हम इस जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते। यह आशा रखना व्यर्थ है कि बाहरी लोग जिन्हें इस देश से न भक्ति है न प्रेम, वे हमारी मदद करेंगे। जब हमें ही अपने देश को व्यवस्थित और संस्कृतिनिष्ठ रखना है तो संगगठन के सिवाय दूसरा कोई चारा नहीं है। +जीवो जीवस्य जीवनम्' यह प्रकृति का नियम है। अर्थात दुर्बल लोग सदैव बलवानों का भक्ष्य बनते हैं। संसार दुर्बलों के लिए गौरव से जीना असंभव है। उन्हें तो बलवानों का दास बनकर ही रहना पड़ता है। सदैव अपमानित तथा असहनीय कष्टों से परिपूर्ण जीवन ही उनके भाग्य में लिखा रहता है। +हिंदू जाति का सुख ही मेरा और मेरे परिवार का सुख है। हिंदू पर आने वाली विपत्ति हम सभी के लिए महा संकट है। +हिंदू-मुस्लिम एकता" मात्र एक भ्रम है अर्थात् यह असंभव प्रतित होता हैं। +* अगर मैं तो आपसे केवल यही कहना चाहता हूँ कि भविष्य के विषय में किसी तरह का संदेह ना रखते हुए आप नियमित रूप से शाखा में आया करें। संघ कार्य के प्रत्येक विभाग का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर उनमें निपुण बनने का प्रयास करें। बिना किसी व्यक्तियों की सहायता लिए स्वतंत्र रीति से एक-दो संघ शाखाएं चला सकने की क्षमता प्राप्त करें। +* अच्छे संस्कारों के बिना देशभक्ति की भावना पैदा नहीं हो सकती हैं। +* अतीत काल में हम बहुत बलवान थे, परन्तु इस सत्य को आज हम भूल गए हैं इसलिए आज के हमारे सारे आन्दोलन दुर्बलतापूर्ण दिखाई देते हैं। हमारे आज के आंदोलनों में ना चैतन्य है और ना पुरुषार्थ ही है। +* अनुशासन अपने संगठन की नींव है, इसी पर हमें विशाल इमारत को खड़ा करना है। किसी भी भूल से यदि नींव ज़रा सी भी कच्ची रह गई, तो इमारत का उस ओर का भाग ढल जाएगा। इमारत में दरार पड़ जाएगी, और आखिर में वह संपूर्ण इमारत ढ़ह जाएगी। +* अपने देश का नहीं हो सकता हैं, वह किसी का नहीं हो सकता हैं। +* अपने निजी मान सम्मान की शुद्र भावनाओं को त्यागकर, हमें प्रेम तथा नम्रता के साथ अपने समाज को सभी भाइयों के पास पहुंचाना होगा। +* अपने समाज में संगठन निर्माण कर उसे बलवान तथा अजेय बनाने के अतिरिक्त हमें और कुछ नहीं करना है। इतना कर देने पर सारा काम आप ही आप बन जाएगा। हमें आज सताने वाली सारी राजनैतिक सामाजिक और आर्थिक समस्याएं आसानी से हल हो जाएगी। +* अपने समाज में संगठन निर्माण कर उसे बलवान तथा अजेय बनाने के अतिरिक्त, हमें और कुछ नहीं करना है। इतना कर देने पर सारा काम अपने आप ही हो जाएगा। हमें आज सताने वाली सारी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याएं आसानी से हल हो जाएंगी। +* अपने हिंदू समाज को बलशाली और संगठित करने के लिए ही, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जन्म लिया है। +* आगामी 100 सालों अर्थात 2025 तक भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का लक्ष्य तय किया। +* आप इस भ्रम में ना रहें कि लोग हमारी ओर नहीं देखते। वे हमारे कार्य तथा हमारे व्यक्तिगत आचरण की ओर आलोचनात्मक दृष्टि से देखा करते हैं। +* आप यह अच्छी तरह याद रखें कि हमारा निश्चय और स्पष्ट ध्येय ही हमारी प्रगति का मूल कारण है। संघ के आरंभ से हम हमारी भावनाएं ध्येय से समरस हो गई है हम कार्य से एक रूप हो गए हैं। +* आपस के सारे कृत्रिम ऊपरी भेद मिटा कर सम्पूर्ण समाज एकत्व और प्रेम की भावना से तथा हिन्दू जाति को गंगा के हम सब हिन्दू की ओर टेढ़ी नजर से नहीं देख सकेगी। +* आसेतु हिमाचल, अखिल भारतवर्ष हमारी कार्य भूमि है। हमारा दृष्टिकोण विशाल होना चाहिए। हमें ऐसा लगना चाहिए कि समूचे भारतवर्ष हमारा घर है। हम किस सीमा तक और कौन सा कार्य कर सकते हैं। यह पहले निश्चित कर उसके अनुसार हम अपने जीवन का आयोजन करें और प्रतिज्ञा पूर्वक उस कार्य को पूरा करके ही रहे। +* इस समाज को जागृत एवं सुसंगठित करना ही, राष्ट्र का ज���गरण एवं संगठन है। यही राष्ट्रधर्म है। +* कच्ची नींव पर खड़ी की गई इमारत प्रारंभ से भले ही सुंदर या सुघड़ प्रतीत होती होगी परंतु बवंडर के पहले ही झोंके के साथ वह भूमिसात हुए बिना खड़ी करना हो उतनी ही उसकी नींव विस्तृत और ठोस होनी चाहिए। +* कार्य करते–करते कभी भ्रम हो जाता है कि चारों ओर के कोलाहल में मेरी छीन वाणी कौन सुनेगा यह धारणा व्यर्थ है सब सुनेंगे और अवश्य सुनेंगे। यदि मेरे शब्दों के पीछे त्याग और चरित्र है तो लोग सिर झुका कर सुनेंगे। यह आत्मविश्वास कार्यकर्ता में होना चाहिए। ” सारा हिंदू समाज हमारा कार्यक्षेत्र है हम सभी हिंदुओं को अपनावे। अपनी निजी मान – अपमान की शुद्र भावनाओं को त्याग कर हमें प्रेम तथा नम्रता के साथ अपने समाज को सब भाइयों के पास पहुंचाना होगा कौन सा पत्थर हृदय हिंदू है ,जो तुम्हारे मृदुता तथा नम्रता पूर्ण शब्दों को सुनना इंकार कर देगा। +* किसी भी आंदोलन में साधारण जनता कार्यकर्ता के कार्य का इतना ख्याल नहीं करती जितना कि उसके व्यक्तिगत चरित्र ढूंढने से भी दोष या कलंक के छींटे तक ना मिले। +* किसी भी राष्ट्र के सार्वभौमिकता आधार, उस राष्ट्र की संस्कृति है, और इसीलिए भारत हिंदू राष्ट्र है। +* कुछ लोगों को स्वधर्म के संरक्षण में दूसरों का धर्म विद्वेष दिखता है, किंतु अपने धर्म के संरक्षण में दूसरे के धर्म का विरोध कैसे हो सकता है! +* केवल हम संघ के स्वयंसेवक हैं, और इतने वर्ष में संघ ने ऐसा कार्य किया है, इसी बात में आनंद तथा अभिमान करते हुए, आलस्य के दिन काटना केवल पागलपन नहीं, अपितु कार्य नाशक भी है। +* चरित्र निष्कलंक होने के कारण अनजाने में भी हममें यह दुर्भावना छू तक नहीं आनी चाहिए कि हम कुछ विशेष हैं तथा औरों से श्रेष्ठ हैं। किसी भी दशा में स्वप्न में भी ऐसा ना मालूम पड़े कि हम अन्य लोगों से कहीं अच्छे हैं। मुझे विश्वास है कि हममें ऐसा अहंभाव रचने वाला कोई नहीं है। किंतु यदि कोई ऐसा हो जो सोचता हो कि मैं बहुत कार्य कर रहा हूं इसलिए औरों से कुछ श्रेष्ठ हूं और इसी नाते दूसरों को नीचा तथा तुच्छ दृष्टि से देखने का अधिकारी हूं तो मैं उसे यह परामर्श दूंगा कि वह ऐसे रिता अभिमान को सत्वर निकाल बाहर फेंके। +* चारों ओर कोलाहल में, क्षीण वाणी को लोग अवश्य सुन सकते हैं, पर तभी जब शब्दों के पीछे त्याग और चरित्र हो तो लोग सिर झुकाकर अवश्य सुनेंगे�� +* छोटे-छोटे सामाजिक भेदभाव को मिटाकर हिंदू समाज में एकता लानी होगी ताकि कोई भी हमारे ऊपर गलत नजर नहीं डाल सके। +* जब तक हम दुर्बल रहेंगे तब तक हम पर आक्रमण करने के लिए बलवानों का मन अवश्य ही ललचाता रहेगा। यह तो निसर्ग नियम ही है। केवल बलवानों को गालियां देने से अथवा उनकी निंदा करने से क्या लाभ होगा ऐसा करने मात्र से परिस्थितियां बदल नहीं सकती। +* जिस ध्वज को देखते ही, मन में एक विशिष्ट स्फूर्ति और उमंग हिलोरे मारने लगे, ऐसा भगवा ध्वज, हमारी राष्ट्रीयता का प्रतीक है। +* जीवन में नि:स्वार्थ भावना आये बिना खरा अनुशासन निर्माण नहीं होता। +* ताकत संगठन से आती है, इसीलिए हर हिंदू का कर्तव्य है कि वह हिंदू समाज को मजबूत बनाने के लिए हर संभव कोशिश करे। +* देश की एकता और प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए सामाजिक एकता होना बहुत जरूरी है। +* ध्येय पर अविचल दृष्टि रख कर मार्ग में मखमली बिछौने हों या कांटे बिखरे हों, उनकी चिंता न करते हुए निरंतर आगे ही बढने के दृढ निश्चय वाले कृतिशील तरुण खड़े करने पड़ेंगे। +* निर्दोष कार्य करने हेतु शुद्ध चरित्र के साथ – साथ आकर्षकता और बुद्धिमता का मणिकांचन योग भी साधना चाहिए सच्चरित्र आकर्षकता और चातुर्य इन तीनों के त्रिवेणी संगम से ही संघ का उत्कर्ष होता है। चरित्र के रहते हुए भी चतुराई के अभाव में संघ कार्य हो नहीं सकता। संघ कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए हमें लोक संग्रह के तत्वों को भली-भांति समझ लेना होगा। +* पूर्ण प्रभावी संस्कार किये बिना देशभक्ति का स्थायी स्वरूप निर्माण होना संभव नहीं है तथा इस प्रकार की स्थिति का निर्माण होने तक सामाजिक व्यवहार में प्रमाणिकता भी संभव नहीं। +* प्रत्येक अधिकारी तथा शिक्षक को सोचना चाहिए कि उसका बर्ताव कैसा रहे और स्वयंसेवकों को कैसे तैयार किया जाए स्वयंसेवकों को पूर्णता संगठन के साथ एकरूप बनाकर उनमें से प्रत्येक के मन में यह विचार भर देना चाहिए कि मैं स्वयं ही संग हूं प्रत्येक व्यक्ति की आंखों के सामने का एक ही तारा सदा जगमगाता रहे उस पर उसकी दृष्टि तथा मन पूर्णता केंद्रित हो जाए। +* प्रत्येक अधिकारी व शिक्षक को प्रत्येक के मन में यह विचार भर देना चाहिए कि मैं स्वयं ही संघ हूं। +* प्रत्येक व्यक्ति को उत्साह और हिम्मत से आगे आना चाहिए, और संघ कार्यों में जुट जाना चाहिए। +* प्रत्येक व्यक्ति को, अपने चरित्र पर विचार करना चाहिए। अपने चरित्र को कभी भी कमजोर व क्षीण ना होने दें। +* बोलते–चलते, आचार–व्यवहार करते, तथा प्रत्येक कार्य करते समय हम सावधान रहे कि हमारी किसी भी कृति के कारण संघ के ध्येय तथा कार्य को कोई क्षति न पंहुचे। +* भगवा ध्वज को हम अपने गुरु स्थान पर मानते हैं, उसे देखते ही मन में एक विशिष्ट स्फूर्ति और उमंग हिलोरे मारने लगे, ऐसा भगवा ध्वज जो हमारी राष्ट्रीयता का प्रतीक है। +* भारतवर्ष, भारतखण्ड, आर्यावर्त, हिन्दुस्थान आदि नामों के द्वारा एक ही अर्थ प्रकट होता है परन्तु उस अर्थ की कल्पना मात्र से हम अकारण हड़बड़ में आ जाते हैं। बंधन में जकड़े हुए तोते जैसे हमारी अवस्था हो रही है। हम भ्रम के भंवर में फंसकर गोते खा रहे हैं। हमारी संस्कृति को नष्ट–भ्रष्ट करने पर जो लोग तुले हुए हैं उन्हें गले लगाने के लिए हम मरे जा रहे हैं। यह सारा हमारी मानसिक दुर्बलता का परिणाम है। +* भावना के वेग तथा जवानी के जोश में कई तरुण खड़े हो जाते हैं, परन्तु दमन चक्र प्रारंभ होते ही वे मुंह मोड़ कर सदा के लिए सामाजिक क्षेत्रों से दूर हट जाते हैं. ऐसे लोगों के भरोसे देश की विकट तथा उलझी समस्याएँ कैसे सुलझ सकेगी? +* भावनाओं में बहकर या आवेश में आकर कई लोग सामाजिक हितों के लिए खड़े हो जाते हैं लेकिन समस्या आते ही वह पीछे हट जाते हैं. ऐसे लोगों के सहारे देश की विकट समस्याओं को नहीं सुलझाया जा सकता है। +* यदि आप कहेंगे कि हम तो अलग रहेंगे खड़े देखते रहेंगे तो उससे कुछ लाभ नहीं यह संघ तो सब हिंदुओं का है तब फिर सब हिंदुओं को इसमें सम्मिलित हो जाना चाहिए। +* यदि आप स्वयं को संघ का कार्यकर्ता समझते हैं तो पहले आपको सोचना होगा कि, आप हर दिन और हर माह कौन से कार्य कर रहे हैं। अपने किए हुए कार्य की आपको सदैव जांच-पड़ताल करते रहना चाहिए। केवल हम संघ के स्वयंसेवक हैं और इतने वर्ष में संघ ने ऐसा कार्य किया है इसी बात में आनंद तथा अभिमान मानते हुए आलस्य में दिन काटना गिरा पागलपन ही नहीं अपितु कार्यनासक भी है। +* यदि प्रौढ़ लोग अपने प्रतिष्ठा और व्यवहार कुशलता का उपयोग संघ कार्य किए तो करें, तो युवा अधिक उत्साह से कार्य कर सकेंगे। +* यह खूब समझ लो कि बिना कष्ट उठाए और बिना स्वार्थ त्याग किए हमें कुछ भी फल मिलना असंभव है। मैंने स्वार्थ त्याग शब्द और उपयोग किया है परंतु उनमें जो कार्य करना है वह ह���ारी हिंदू जाति के स्वार्थ पूर्ति के लिए है। अतः उसी में हमारा व्यक्तिगत स्वार्थ भी अनारभूत है। फिर हमारे लिए भला दूसरा कौन सा स्वार्थ बचता है यदि इस प्रकार यह कार्य हमारे स्वार्थ का ही है तो फिर उसके लिए हमें जो भी कष्ट उठाने पड़ेंगे उसे हम स्वार्थ त्याग कैसे कह कैसे कह सकेंगे वास्तव में यह स्वार्थ त्याग हो ही नहीं सकता। हमें केवल अपने स्व का अर्थ विशाल करना है। अपने स्वार्थ को हिंदू राष्ट्र के स्वार्थ से हम एक रूप कर दें। +* युवा पीढ़ी में डाले गए संस्कार ही एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण करते हैं। +* राष्ट्र सेवा सर्वोपरि है। +* राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने खूब सोच समझ कर अपना कार्य क्षेत्र निर्धारित किया है और इसलिए वह अन्य किसी कार्य के झमेले में नहीं पड़ना चाहता है। इस पर दृष्टि रखते हुए हमें अपने निश्चित मार्ग पर अग्रसर होना है। +* लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर रास्ते में आने वाली सुख सुविधा और कठिनाइयों की चिंता किए बिना जो दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ सके ऐसी तरुण (युवा) पीढ़ी को खड़ी करनी होगी। +* लोकतंत्र सिर्फ़ भाषणों में नहीं बल्कि समर्थन करने वाले लोगों के व्यवहार में समाहित हैं। +* वयोवृद्ध लोगों को तो संघ कार्य में काफी महत्व का स्थान है। वे संघ में महत्वपूर्ण कार्य का दायित्व उठा सकते हैं। यदि प्रौढ़ लोग अपनी प्रतिष्ठा तथा व्यवहार कुशलता का उपयोग संघ कार्य के हेतु करें तो युवजन अधिकाधिक उत्साह से कार्य कर सकेंगे। बड़ों के मार्गदर्शन से युवकों की शक्ति कई गुना बढ़ती है और तब संघ कार्य अपने निश्चित ध्येय कि और द्रुतगति से बढ़ता चला जाता है। इसलिए किसी भी संघ के प्रति उदासीनता नहीं रखनी चाहिए प्रत्येक को उत्साह तथा हिम्मत से आगे आना चाहिए कार्य में जुट जाना चाहिए। +* शक्ति केवल सेना या शास्त्रों में नहीं होती, बल्कि सेना का निर्माण जिस समाज से होता है, वह समाज जितना राष्ट्र प्रेमी, नीतिवान और चरित्रवान संपन्न होगा, उतनी मात्रा में वह शक्तिमान होगा। +* शतक बीत गए। हम पर विदेशी आक्रमणों का तांता लगातार क्यों लगा हुआ है? हम दिन दुर्बल तथा मातृप्राय हो गए हैं इसलिए ना? हमारी सब विपत्तियों की जड़ में हमारी शक्तिहीनता ही है। उसे हमें सर्वप्रथम उखाड़ फेंकना होगा। +* संघ का कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए हमें लोक संग्रह के तत्वों को भली भांति समझ लेन�� होगा। +* संघ का ध्येय धर्म, समाज तथा संस्कृति का संरक्षण है। +* संघ का लक्ष्य भारत राष्ट्र को पुनः परम वैभव तक ले जाना है। +* संघ केवल स्वयं सेवकों के लिए नहीं संघ के बाहर जो लोग हैं उनके लिए भी है। हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि उन लोगों को हम राष्ट्र के उद्धार का सच्चा मार्ग बताएं। और यह मार्ग है केवल संगठन का। +* संघ केवल स्वयंसेवकों के लिए नहीं, बल्कि संघ के बाहर जो लोग हैं, उनके लिए भी है। हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि उन लोगों को हम राष्ट्र के उद्धार का सच्चा मार्ग बताएं। +* संघ हिंदू समाज की अखंडता और अक्षुण्णता को जीवित रखने के लिए कार्य करने का लक्ष्य रखता है। +* सच्चरित्र, आकर्षकता और चातुर्य इन तीनों के त्रिवेणी संगम से ही, संघ का उत्कर्ष होता है। चरित्र के रहते हुए भी चतुराई के अभाव में संघ का कार्य नहीं हो सकता। +* सभी हिंदुओं को संघ में सम्मिलित होना चाहिए। अलग खड़े रहकर देखते रहने से कुछ भी लाभ नहीं होगा। +* समरसता के बिना, समता स्थायी नहीं हो सकती, और दोनों के अभाव में राष्ट्रीयता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। +* हम लोगों को हमेशा सोचना चाहिए कि जिस कार्य को करने का हमने प्रण किया है और जो उद्देश्य हमारे सामने है उसे प्राप्त करने के लिए हम कितना काम कर रहे हैं। जिस गति से तथा जिस प्रमाण से हम अपने कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं क्या वह गति या प्रमाण हमारी कार्य सिद्धि के लिए पर्याप्त है “ +* हममें रात दिन केवल इसी बात का विचार बना रहे कि हमारे जीवन का प्रत्येक क्षण इस पवित्र कार्य के लिए किस प्रकार खर्च हो सकेगा साथ ही साथ हमें अपने विचारों के अनुरूप आचरण करना भी सीखना चाहिए हमें सतत इसी बात की लगन लगी रहनी चाहिए कि हमारा संगठन प्रतिक्षण किस प्रकार बढे । +* हमारा धर्म तथा संस्कृति कितनी ही श्रेष्ठ क्यों न हो जब तक उनकी रक्षा के लिए हमारे पास आवश्यक शक्ति नहीं है उनका कुछ भी महत्व नहीं। +* हमारा निश्चय और स्पष्ट ध्येय ही, हमारी प्रगति का मूल कारण है। +* हमारा विश्वास है कि भगवान हमारे साथ है। हमारा काम किसी पर आक्रमण करना नहीं है अपितु अपनी शक्ति और संगठन का है। हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति के लिए हमे यह पवित्र कार्य करना चाहिए और अपनी उज्जवल संस्कृति की रक्षा कर उसकी वृद्धि करनी चाहिए। तब ही आज की दुनिया में हमारा समाज टिक सकेगा। +* हमें अपने नित्य के व्यवहार भी ध्येय पर दृष्टि रखकर ही करने चाहिए प्रत्येक को अपना चरित्र कैसा रहे इसका विचार करना चाहिए अपने चरित्र में किसी भी प्रकार की त्रुटि ना रहे। +* हमें केवल अपने कार्य में व्यक्तिगत चाल-चलन की दृष्टि से सावधानी नहीं बरतनी चाहिए, बल्कि सामूहिक व सार्वजनिक जीवन में भी इसका ध्यान रखना चाहिए‌। +* हिंदुत्व के हित की रक्षा के लिए, युवाओं की सोच को बदलना संघ का परम लक्ष्य है। +* हिंदुस्तान के साथ जिस के सारे हित संबंध जुड़े हैं, जो इस देश को भारत माता कहकर अति पवित्र दृष्टि से देखता है, तथा जिसका देश के बाहर कोई अन्य आधार नहीं है, ऐसा महान धर्म और संस्कृति से एक सूत्र में गूंथा हुआ हिंदू समाज ही, यहां का राष्ट्रीय समाज है। +* हिंदुस्तान पर प्रेम करने वाले हर हिंदू से हमारा व्यवहार भाई जैसा ही होना चाहिए। यदि हमारा व्यवहार आदर्श होगा, तो सभी हमारी ओर आकर्षित होंगे। +* हिंदू जाति का अपमान हम सभी का अपमान है, ऐसी आत्मीयता हर हिंदू के रोम-रोम में व्याप्त होनी चाहिए। यही संघ का मूल मंत्र है। +* हिंदू धर्म और संस्कृति के लिए, हमें शक्ति और संगठन का कार्य करना चाहिए, और अपनी उज्जवल संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए। +* हिंदू समाज की तरुण पीढ़ी (बाल्यावस्था) में संस्कार डालने चाहिए। +* हिंदू समाज को संगठित और जागृत करना ही राष्ट्र जागृति हैं, यह राष्ट्र हित में कार्य हैं। +* हिंदू समाज में तरुण पीढ़ी को हाथ में लेकर, उसके ऊपर संस्कार डालने चाहिए। +* हिंदू समाज ही यहां का राष्ट्रीय समाज हैं क्योंकि हिंदुस्तान के साथ इनका हित जुड़ा हुआ है, यह समाज देश को भारतमाता कहकर संबोधित करता है और अपने देश को को सब कुछ मानता है। +* हिंदू संस्कृति हिंदुस्तान की धड़कन है, अगर हिंदुस्तान की सुरक्षा करनी है, तो पहले हिंदू संस्कृति को संवारना होगा। +* हिन्दुस्थान के साथ जिसके सारे हित संबंध जुड़े हैं, जो इस देश को भारतमाता कह कर अति पवित्र दृष्टि से देखता है तथा जिसका देश के बाहर कोई अन्य आधार नहीं है, ऐसा महान धर्म और संस्कृति से एकसूत्र में गुंथा हुआ हिन्दू समाज ही यहाँ का राष्ट्रीय समाज है। +* हिन्दू-मुसलमानों की एकता की कल्पना भ्रम मात्र है। + + +साहित्य अकादमी पर लेख की प्रासंगिकता + + +: विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं कौवे जैसी दृष्टि, बकुले जैसा ध्यान, कुत्ते जैसी नींद, अल्पहारी तथा गृह का त्याग करने वाला। +: सुख चाहने वाले को विद्या और विद्या चाहने वाले को सुख त्याग देना चाहिए। सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्या चाहने वाले को सुख कहाँ है? +: अनालस्य, ब्रह्मचर्य, शील, गुरुजनों के लिए आदर, स्वावलम्बी होना, और दृढ़ अभ्यास – ये छे छात्र के सद्गुण हैं । +आचार्य पुस्तक निवास सहाय वासो । +: आचार्य, पुस्तक, निवास, मित्र, और वस्त्र – ये पाँच पठन के लिए आवश्यक बाह्य गुण हैं । + + +* स्पर्धा और प्रतिस्पर्धा से वातावरण दीप्त और उद्दीप्त रहता है। जैनेन्द्र कुमार +* कुछ लोग दुर्भीति (Phobia) के शिकार हो जाते हैं। उन्हें उनकी क्षमता पर पूरा विश्वास नहीं रहता और वे सोचते हैं प्रतियोगिता के दौड़ में अन्य प्रतियोगी आगे निकल जायेंगे। +* प्रतियोगिता हमें अधिक सक्षम बनाती हैं, नये जवाब तलाश करने के लिये प्रेरित करती हैं और इस दम्भ से बचाती हैं कि हम सब कुछ जानते हैं। टाम मोनाहन +* विजेता उस समय विजेता नहीं बनते हैं जब वह किसी प्रतियोगिता को जीतते हैं। विजेता तो वे उन घंटो, सप्ताहों, महीनों और वर्षों में बनते हैं जब वे इसके लिए तैयारी करते हैं। विजयी निष्पादन (performance) तो केवल उनके विजेता स्वभाव को परिलक्षित करता है। टी. एलन आर्मस्ट्रांग + + +* विफलता सबसे बुरी हार नहीं है। कोशिश नहीं करना असली विफलता है। जॉर्ज एडवर्ड वुडबेरी +* विफलता नहीं बल्कि दोयम दर्जे का लक्ष्य एक अपराध है । +* मैं असफलता में यकीन नहीं रखती। अगर आपने प्रक्रिया का आनंद उठाया है तो ये असफलता नहीं है। +* सफलता का जश्न मनाना ठीक है लेकिन असफलता से सबक सीखना ज्यादा महत्वपूर्ण है। बिल गेट्स +* सफलता की कहानियां मत पढ़ो उससे आपको केवल एक सन्देश मिलेगा। असफलता की कहानियां पढ़ो उससे आपको सफल होने के कुछ विचार मिलेंगे। ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम +* मुझे अधिक संबंध इस बात से नहीं है कि आप असफल हुए, बल्कि इस बात से है कि आप अपनी असफलता से कितने संतुष्ट है। अब्राहम लिंकन +* असफलता के दौर में सफलता का बीज बोने का सबसे बढ़िया समय है। परमहंस योगानन्द +* अधिकांश महान लोगों को अपनी सबसे बड़ी सफलता उनकी सबसे बड़ी असफलता से सिर्फ एक कदम आगे मिली है। नेपोलियन हिल +* ईर्ष्या असफलता का दूसरा नाम है ईर्ष्या करने से अपना ही महत्त्व कम होता है। चाणक्य नीति +* असफलता कुदरत की योजना है आपको बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार करने ��ी। नेपोलियन हिल +* जिंदगी की सबसे बड़ी गलती यह कि आप गलती करने से लगातार डरते रहें। एल्बर्ट हबर्ड +* तैराकी सीखते हुए आपने पहली बार क्या किया? गलतियां कीं, है न? और क्या हुआ? आपने और भी गलतियां कीं, और जब आप डूबे बिना सारी गलतियां कर चुके और उनमें से कई गलतियों को कई बार कर किया तब आपने क्या पाया? यही कि आपको तैरना आ गया! है न! +* बस, ऐसा ही होता है जीवन के साथ तैराकी जैसा! गलतियां करने से, असफल होने से डरिए नहीं, क्योंकि इसके अलावा दूसरा कोई तरीका नहीं जीना सीखने का अल्फ्रेड एड्लर +* जीवन में एकमात्र असफलता यह है कि व्यक्ति अपने ज्ञान पर अमल न करे। बुद्ध +* सफलता इस बात की क्षमता है कि कितनी भी असफलता आए आपका उत्साह कम न हो। विंस्टन चर्चिल +* गलतियां करता हुआ जीना उस जीवन से अधिक सम्मानजनक और उपयोगी है जो बिना कुछ किए व्यतीत हो जाए। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* ज्यादातर महान लोगों को उनकी सबसे बड़ी सफलता उनकी सबसे बड़ी असफलता के बाद मिली। नेपोलियन हिल +* मनुष्य को इतना बड़ा होना चाहिए कि वह अपनी गलतियों को स्वीकार कर सके, इतना बुद्धिमान होना चाहिए कि उनसे लाभ उठा पाए और इतना मजबूत होना चाहिए कि उन्हें सुधार सके। जॉन सी. मैक्सवेल +* यदि आप हमेशा वही करें जो आपने हमेशा किया है, तो आपको हमेशा वही मिलेगा जो आपने हमेशा पाया है। मार्क ट्वेन +* विजेता कभी हार से नहीं डरते। असफल लोगों को हार से डर लगता है। विफलता सफलता का ही एक अंग है। जो लोग असफल होने से डरते हैं वे सफलता से दूर रहते हैं। रॉबर्ट टी. कियोसाकी +* जो निशाना आप साधते ही नहीं, उसमें आप 100% असफल ही होते हैं न व्येन ग्रेट्ज्की +* असफलता जैसी कोई चीज नहीं होती, जो है बस उसके बारे में आपका नजरिया और आपकी प्रतिक्रिया है। टॉम क्राउज +* सफलता स्थायी नहीं होती और विफलता जानलेवा नहीं। माइक डिट्का +* सफलता चरित्र का निर्माण करती है, असफलता उसे प्रकट करती है। डेव चेकेट +* यदि आप गलतियां करने को तैयार नहीं होंगे तो आप कभी भी, कुछ भी मौलिक नहीं कर पाएंगे। केन रिब्सन +* बिना किसी चीज में असफल हुए जीना संभव हो ही नहीं सकता, बशर्ते कि आप इस तरह फूंक-फूंक कर जिएं कि वह कोई जीना ही न हो, और फिर तो आप स्वतः ही असफल हो गए। जे.के. राउलिंग +* गलतियां हो जाने में कुछ बुरा नहीं, बशर्ते कि आप उसे याद रखें‌ -कनफ्यूसियस +* ऐसा कोई काम जो आपने नहीं किया हो तीन बार करें। पहली बार, उसे करने के डर से मुक्त होने के लिए। दूसरी बार, उसे कैसे करें यह सीखने के लिए। तीसरी बार, यह जानने के लिए कि आपको वह पसंद है या नहीं। वर्जिल थॉमसन +* जब हम खुद को असफल होने की छूट देते हैं, तो उसी के साथ हमें बेहतरीन करने की भी छूट मिल जाती है। एलॉईज़ रिस्टैड +* मनुष्य होने का एक अर्थ है अपनी सफलता और विफलता की जिम्मेदारी खुद लेना। आप किसी जो दोष नहीं दे सकते या ईर्ष्यालु नहीं हो सकते। किसी और की सफलता को अपनी विफलता के रूप में देखना जीने का कैंसरकारी तरीका है। केविन बैकन +* असफलताएं सफलता के रास्ते के संकेत चिह्न होते हैं। सी.एस.लेविस +* जब छोटा था, मैंने गौर किया कि मेरी की हुई दस में से नौ चीजें असफल होती थीं। इसलिए, मैंने दस गुना अधिक मिहनत की जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* आदमी जब तक अपनी नाकामयाबी के लिए दूसरों को जिम्मेदार न ठहराए, तब तक वह बार-बार असफलता पाकर भी ‘असफल’ नहीं होता। जॉन बरोज +* कभी प्रयास किए। कभी असफल हुए। कोई बात नहीं। फिर से कोशिश कीजिए। असफल हो भी गए तो यह असफलता आपको पहले से बेहतरी की ओर ले जाएगा। सैमुअल बेकेट +* आविष्कारक 999 बार विफल होता है, और यदि वह एक बार सफल हो गया तो आविष्कार पूरा। वह अपनी विफलताओं को प्रैक्टिश शॉट्स की तरह लेता है। चार्ल्स एफ. केटरिंग +* गौरव इस बात में नहीं कि हम असफल ही न हों, बल्कि इस बात में है, कि हर बार असफल होने पर भी उठकर हम अगले प्रयास की तैयारी करें। कन्फ्यूसिय +* असफलता कोई विकल्प नहीं है। सभी को सफल होना है। ऐर्नोल्ड स्वाज्नेगर +* अक्सर एक सफल और एक असफल व्यक्ति के बीच का अंतर बेहतर क्षमता या विचार नहीं होते, बल्कि अपनी योजना को क्रियान्वित करने का साहस, समझबूझ कर जोखिम उठाना, और कार्य करना होता है। मैक्सवेल माल्त्ज़ +* ज्यादातर सफलताएँ असफलता की ठोकर से उपजती हैं मैं एक एग्जिक्यूटिव बनने के अपने लक्ष्य में विफल होने के बाद एक कार्टूनिस्ट बना। स्कोट एडम्स +* हर असफलता के साथ मेरी प्रतिष्ठा बढती जाती है। जार्ज बर्नार्ड शा +* दृढ रहने की इच्छाशक्ति अक्सर सफलता और असफलता के बीच का अंतर होती है। डेविड सर्नोफ्फ़ +* कोई व्यक्ति कई बार विफल हो सकता है लेकिन वो तब तक असफल नहीं है जब वो दूसरों को दोष ना देने लगे। जॉन बर्रोज़ +* असफलता तभी मिलती है जब हम अपने आदर्शों उद्देश्यों और सिद्धांतों को भूल जाते हैं। जवाहरलाल नेहरु +* मनुष्य की असफलता का बस एक ही कारण है। और वो है स्वयं पर विश्वास में कमी होना। विल्ल्यम जेम्स +* असफलता से बस यही प्रमाणित होता है आपकी सफल होने के संकल्प में पर्याप्त शक्ति नहीं थी। क्रिश्चयन नेस्ले बोवी +* लोग अपने कार्य में अक्सर तब विफल हो जाते हैं जब वो सफल होने ही वाले होते हैं। यदि कोई अंत में उतना ही चौकन्ना रहे जितना कि वो प्रारंभ में था तो कोई विफलता नहीं होगी। लाओ जू +* मैं असफलता में यकीन नहीं करती, यदि आपने काम का लुत्फ़ उठाया है तो यह असफलता नहीं है। ओपरा विनफ्रे +* असफलता महज एक अवसर है फिर से शुरुआत करें इस बार और बुद्धिमानी से। हेनरी फोर्ड +* उस अंतर पर ध्यान दीजिये जब एक व्यक्ति स्वयं से कहता है कि वह तीन बार असफल हुआ है और जब वह कहता है कि वह एक असफल व्यक्ति है। एस. आइ. हयाकावा +* बिना असफलता के सफलता का कोई स्वाद नहीं है उसकी कोई समझ नहीं है। ग्लेन बेक +* अगर कोई बिल्डिंग बनने के बाद की अपेक्षा बनते समय ज्यादा बेहतर दिखे तो वो असफल है। डौग कूप्लैंड +* मेरा मानना है कि सफलता का कोई नियम नहीं है लेकिन आप असफलता से बहुत कुछ सीख सकते हैं। जीन केर्र +* सफलता की ख़ुशी मानना अच्छा है पर उससे ज़रूरी है अपनी असफलता से सीख लेना। बिल गेट्स +* असफलता महज एक अवसर है फिर से शुरुआत करने का इस बार और बुद्धिमानी से। हेनरी फोर्ड +* अधिकतर महान लोगों ने अपनी सबसे बड़ी सफलता अपनी सबसे बड़ी विफलता के एक कदम आगे हांसिल की है। नेपोलियन हिल +* सफलता कभी अंतिम नहीं होती विफलता कभी घातक नहीं होती, जो मायने रखता है वो है साहस। जॉन वुडेन +* हर समय असफलता मिलती रहती है असल में यह रोजाना मिलती है जो चीज आपको बेहतर बनाती है वो यह है कि आप असफलता पर किस प्रकार प्रतिक्रिया करते हैं। मिया हम +* धैर्य के माध्यम से कई लोग उन परिस्थितियों में भी सफल हो जाते हैं जो कि एक निश्चित असफलता जान पड़ती है। बेंजामिन डीज्रैली +* जिस व्यक्ति ने अपना साहस अपना चरित्र अपना आत्मसम्मान या आत्मविश्वास नहीं खोया है वह असफल नहीं हो सकता वो अभी भी एक रजा है। ओरिसन स्वेट मार्डेन +* सिद्धांत कुछ ऐसा लगता है कि जब तक इंसान असफल रहता है वो ईश्वर की संतान होता है लेकिन जैसे ही वह सफल हो जाता है वो शैतान द्वारा अपना लिया जाता है। एच .एल मेन्केन असफलता पर विचार Failure Quotes in hindi +* आप सफलता की सीढ़ी असफलता के कपडे पहन कर नहीं चढ़ सकते। जिग जिगलर +* जिस व्यक्ति ने अपनी अंतरात्मा को दांव पर लगा कर लाखों जीतें हैं वह असफल है। बी. सी फ़ोर्ब्स +* मई इमानदारी से मानता हूँ कि जिस चीज को आप चाहते हैं उसमे असफल होना जिस चीज से आप नफरत करते हैं उसमे सफल होने से बेहतर है। जार्ज बर्न्स +* असफलता कुछ ऐसा है जिससे हम सिर्फ ना कुछ कह कर ना कुछ कर के और ना कुछ होकर बच सकते हैं। डेनिस वैटली +* असफलता से सफलता का सृजन कीजिये. निराशा और असफलता, सफलता के दो निश्चित आधार स्तम्भ हैं। डेल कार्नेगी +* राजनीति में जो भय के साथ शुरू होता है अक्सर नाकामयाबी के साथ ख़त्म हो जाता है। सैम्युएल टेलर कोलेरिज़ +* व्याकुलता असंतोष है और असंतोष प्रगति की पहली आवश्यकता है आप मुझे कोई पूर्ण रूप से संतुष्ट व्यक्ति दिखाइए और मैं आपको एक असफल व्यक्ति दिखा दूंगा। थोमस ए एडिसन +* असफलता आपको बड़ी जिम्मेदारियों के लिए तैयार करने का प्रकृति का तरीका है। नेपोलियन हिल +* असफलता घातक नहीं होती लेकिन स्वयं को बदलने में विफल होना घातक हो सकता है। जॉन वुडेन +* यदि हार की कोई सम्भावना ना हो तो जीत का कोई अर्थ नहीं है। रोबेर्ट एच स्कूलर +* मुझे सफलता का मन्त्र नहीं पता, पर सभी को खुश करने का प्रयास करना ही असफलता का मन्त्र है। बिल कासबी +* जिसने खतरा उठाया और असफल हो गया उसे क्षमा किया जा सकता है जिसने कभी खतरा नहीं उठाया और कभी असफल नहीं हुआ वो खुद में एक असफल व्यक्ति है। पॉल टीलीच +* जिस व्यक्ति ने कभी किसी स्त्री को क्रोधित नहीं किया है वह अपने जीवन में असफल है। क्रिस्टोफर मोरले +* जो भी व्यक्ति जीवन का आनंद उठा रहा है वो असफल नहीं है। विल्लियम फेदर +* असफल वह व्यक्ति है जिसने गलती की लेकिन वह उस अनुभव का लाभ नहीं उठा पाया। ऐल्बर्ट हब्बार्ड +* यदि आप 40 साल के हैं और कभी असफल नहीं हुए हैं तो आपको वंचित रखा गया है। ग्लोरिया स्वांसन +* असफलता नहीं बल्कि छोटा लक्ष्य रखना अपराध है। जेम्स रस्सेल लोवेल +* सफलता अंत नहीं है असफलता घातक नहीं है लगे रहने का साहस ही मायने रखता है। विंस्टन चर्चिल +* असफलता का ये मतलब नहीं है कि आप असफल हैं इसका बस ये मतलब है कि आप अभी तक सफल नहीं हुए हैं। रोबेर्ट एच स्कूलर +* मैं असफलता को स्वीकार कर सकता हूँ हर कोई किसी ना किसी चीज में विफल होता है लेकिन मैं प्रयास ना करना नहीं स्वीकार कर सकता। माइकल जार्डन +* सफलता पहले से की गयी तयारी पर निर्भर है,और बिना ��सी तयारी के असफलता निश्चित है। कन्फ्यूशियस +* मेरी चिंता यह नहीं है कि आप विफल हो गए बल्कि यह है कि कहीं आप अपनी विफलता से संतुष्ट तो नहीं हैं। अब्राहम लिंकन +* जब आप किसी काम की शुरुआत करें तो असफलता से मत डरें और उस काम को ना छोड़ें. जो लोग इमानदारी से काम करते हैं वो सबसे प्रसन्न होते हैं। चाणक्य +* एक मिनट की सफलता बरसों की असफलता की कीमत चुका देती है। रोबर्ट ब्राउनिंग +* महत्त्वाकांक्षा विफलता की अंतिम शरण है। आस्कर वाइल्ड +* थोड़ी सी और दृढ़ता थोडा सा और प्रयास और जो एक निराशाजनक असफलता दिख रही थी वह एक शानदार सफलता में बदल सकती है। ऐल्बर्ट हब्बार्ड +* बार बार असफल होने पर भी उत्साह ना खोना ही सफलता है। विंस्टन चर्चिल +* सफल होने के लिए सफलता की इच्छा ,असफलता के भय सेअधिक होनी चाहिए। बिल कासबी +* विफलता जैसी कोई चीज नहीं है ये बस परिणाम हैं टोनी रोब्बिन्स +* जो आप अच्छी तरह जानते हैं उसके प्रति इमानदार ना होना ही जीवन की एक मात्र विफलता है। भगवान गौतम बुद्ध +* अच्छे निर्णय के संकेत के साथ, किसी भी चीज़ से डरना नहीं, असफलता या पीड़ा या मृत्यु से भी नहीं, यह दर्शाता है कि आप जीवन को सबसे अधिक महत्व देते हैं। आप चरम पर रहते हैं; आप सीमा को धक्का देते हैं; आप अपना समय विरासतों के निर्माण में लगाते हैं। वे मरते नहीं हैं। क्रिस जैमिक +* आप विफलता पर निर्माण करते हैं। आप इसे एक कदम पत्थर के रूप में उपयोग करते हैं। अतीत पर दरवाजा बंद करो। आप गलतियों को भूलने की कोशिश नहीं करते हैं, लेकिन आप उस पर ध्यान नहीं देते हैं। आप इसे अपनी कोई ऊर्जा, या अपना कोई समय, या अपना कोई स्थान नहीं होने देते। जॉनी कैश +* कोई भी इंसान कभी असफल न होकर दिलचस्प नहीं बनता। जितना अधिक आप असफल होते हैं और ठीक हो जाते हैं और सुधार करते हैं, आप एक व्यक्ति के रूप में बेहतर होते हैं। कभी किसी ऐसे व्यक्ति से मिलें जिसने शून्य संघर्ष के साथ हमेशा सब कुछ ठीक किया हो? उनके पास आमतौर पर एक पोखर की गहराई होती है। या वे मौजूद नहीं हैं। क्रिस हार्डविक +* असफलता इतनी महत्वपूर्ण है। हम हमेशा सफलता की बात करते हैं। यह विफलता का विरोध करने या विफलता का उपयोग करने की क्षमता है जो अक्सर अधिक सफलता की ओर ले जाती है। मैं ऐसे लोगों से मिला हूं जो असफल होने के डर से प्रयास नहीं करना चाहते हैं। जे.के. राउलिंग +* जब आप जोखिम लेते हैं तो आप सीखते हैं कि कई बार आप सफल होंगे और कई बार आप असफल होंगे, और दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। एलेन डिजेनरेस +* जीतने वाले हारने से नहीं डरते। लेकिन हारने वाले हैं। असफलता सफलता की प्रक्रिया का हिस्सा है। जो लोग असफलता से बचते हैं वे सफलता से भी बचते हैं। रॉबर्ट टी. कियोसाकी + + +: ओम! हे सूर्य देव, मैं आपकी पूजा करता हूं, आप मुझे ज्ञान के प्रकाश से रोशन करते हैं। हे दिन के निर्माता! मुझे ज्ञान दें और मेरे मन को हल्का करें। +: सूर्य उदय के समय लाल रंग का होता है और अस्त के समय भी लाल रंग का होता है। उन्नति और विपत्ति दोनों में महान लोग एक ही तरह से रहते हैं। +: सहस्र किरणों से उज्ज्वल, हे देवों के देव आप को नमस्कार है। हे संसार के दीपक, आपको नमस्कार है। हे कोणवल्लभ! आप को नमस्कार करता हूँ। संसार को प्रकाश देने वाले को नित्य नमस्कार है। हे अन्तरिक्ष में विचरण करने वाले (खषोल्क आपको नमस्कार है। हे विष्णु, हे कालचक्र, हे सोम, हे अमित तेज से युक्त, आपको नमस्कार है। +: सूर्य जब मकर रशि में प्रवेश करते हैं, तो तीर्थराज प्रयाग में सब लोग आते हैं। देवता, दानव, किन्नर, मानव आदि सभी त्रिवेणी में स्नान करते हैं। +* असफलता को इजाज़त दें की वो आपको बड़ा कुछ सिखाये, क्योकि प्रत्येक सूर्यास्त के बाद एक बहुत बड़ा सूर्योदय होता है। श्री चिन्मय +* हर सूर्यास्त फिरसे शुरुवात करने का अवसर होता है। रिची नॉर्टन +* ये ना भूलो की सुंदर सूर्यास्त के लिए आसमान में बादल होने भी जरुरी होते है। पाउलो कोइल्हो]] +* एक स्वस्थ दिन खत्म करने के लिए सुंदर सूर्यास्त जैसा कुछ भी नहीं है। राहेल बोस्टन]] +* हर एक अच्छे दिन का भी एक सूर्यास्त होता ही है। अज्ञात +* मै आपको सूर्यास्त का समय नहीं दे सकता लेकिन रात दे सकता हु। एरिन मैकार्थी +* सूर्यास्त का रंग अभी भी मेरा पसंदीदा रंग है और बाद में इंद्रधनुष का। मैटी स्टेपैनेक +* सूर्यास्त के बाद आकाश ऐसे प्रकाश में बदल जाता है, जैसे की चांदी के तारों से लिपटा हुआ हल्का बैंगनी रंग। जे.के. रोलिंग + + +* क्रांति आम जनता और व्यक्ति से शक्ति के संचय तथा संधान की मांग करती है। +* लोकतंत्र समाजवाद के लिए अपरिहार्य है। + + +मार्टिन एलियास पीटर सेलिगमैन Martin E. P. Seligman 1942 – अब तक) एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक, शिक्षक एवं स्वसहायक पुस्तकों के लेखक हैं। वे अपने सकारात्मक मनोविज्ञान और कल्याण के सिद्धान्तों के एक मजबूत प्रस्तुतकर्ता (प्रमोटर) हैं। उनकी 'सीखी हुई लाचारी' का सिद्धान्त वैज्ञानिक और नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिकों में प्रसिद्ध है। +* सकारात्मक मनोविज्ञान का उद्देश्य जीवन में सबसे खराब चीजों की मरम्मत के साथ-साथ जीवन में सर्वोत्तम गुणों का निर्माण करने के लिए मनोविज्ञान में बदलाव को उत्प्रेरित करना है। +* सार्थक जीवन के लिए आशावाद अमूल्य है। सकारात्मक भविष्य में दृढ़ विश्वास के साथ, आप खुद को अपने सबसे बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं। +* आशावाद एक निश्चित स्पष्ट लाभ वाला उपकरण है: यह अवसाद से लड़ता है, उपलब्धि को बढ़ावा देता है और बेहतर स्वास्थ्य पैदा करता है। +* आशावाद ने आशा पैदा की आशा ने सपने छोड़े सपने लक्ष्य निर्धारित करते हैं उत्साह पीछा करता है। +* जब आप उन असफलताओं का अनुभव करते हैं जो जीवन में हम सभी को प्रभावित करती हैं, तब आप अपने आप से अनुपयोगी चीजों को बदलते हैं जो आपके आशावाद का केंद्रीय कौशल है। +* आप जहां हैं उससे आगे पहुंचना वास्तव में महत्वपूर्ण है। +* मेरा मानना ​​​​है कि मनोविज्ञान ने बीमारी को समझने और उसका इलाज करने में बहुत अच्छा काम किया है। लेकिन मुझे लगता है कि यह सचमुच आधा-अधूरा है। यदि आप केवल समस्याओं को ठीक करने के लिए, दुख को कम करने के लिए काम करते हैं, तो इसकी परिभाषा के अनुसार आप लोगों को शून्य, तटस्थ करने के लिए काम कर रहे हैं। +* जब आप अपने रास्ते में आने वाली उच्चतम चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी सर्वोच्च शक्तियों को तैनात करते हैं तो आप धारा प्रवाह से आगे बढ़ते जाते हैं। +* कल्याण और भलाई केवल आप स्वयं तक ही सीमित नहीं है भलाई दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव करने और अच्छा महसूस कराने के साथ-साथ वास्तव में इसका अर्थ, अच्छे रिश्ते और उपलब्धि का संयोजन है। +* यह उचित प्रतिभा और हार का सामना करने की क्षमता का संयोजन है जो सफलता की ओर ले जाता है। +* अच्छा जीवन हर दिन आपके हस्ताक्षर की ताकत का उपयोग प्रामाणिक खुशी और प्रचुर संतुष्टि पैदा करने के लिए कर रहा है। +* एक गुणी व्यक्ति होने के लिए, इच्छा के कार्यों से, सभी या कम से कम छह सर्वव्यापी गुणों को प्रदर्शित करना है: ज्ञान, साहस, मानवता, न्याय, संयम और श्रेष्ठता। +* जीवन आशावादी को निराशावादी के समान ही मुसीबतें ओर चुनौतियां देता ���ै, लेकिन आशावादी उन्हें बेहतर तरीके से झेलता है। +* मनोविज्ञान को निर्माण की ताकत से उतना ही संबंधित होना चाहिए जितना कि मरम्मत की क्षति के साथ। +* हम अपने बच्चों को, जीवन के संघर्षों से वंचित करते हैं। मैं जो कहने की कोशिश कर रहा हूं वह यह है कि हमें असफल होने की जरूरत है, बच्चों को असफल होने की जरूरत है और उस असफलता से सीखने की जरुरत है, हमें दुखी, चिंतित और पीड़ा महसूस करने की जरूरत है और इन सब से उबरने के लिए संघर्ष और ताकत की जरूरत है । अगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे जीवन में सफल बने तो हमें जरूरत है कि उन्हें थोड़ा बहुत जीवन की परेशानियों ओर मुसीबतों से जूझने देना चाहिए ताकि वह मजबूत बने और हर चीज़ से संघर्ष करते हुए सफल हों। +* सोचने की आदत हमेशा के लिए नहीं होनी चाहिए। पिछले बीस वर्षों में मेने मनोविज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्षों यह निकाला है कि व्यक्ति अपने ज्यादा सोचने के तरीके को ही चुनते हैं। +* निराशावादियों की परिभाषित विशेषता यह है कि वे मानते हैं कि बुरी घटनाएं लंबे समय तक चलेंगी, वे जो कुछ भी करते हैं वह काम गलत ही होगा, जबकि आशावादी, जो इस दुनिया के समान कठिन मुसीबतों का सामना करते हैं, वह सोचते हैं दुर्भाग्य को भी बदला जा सकता है वे मानते हैं कि हार हमेशा के लिए नही यह तो सिर्फ एक अस्थायी झटका या चुनौती है। +* जब भलाई हमारी शक्तियों और गुणों को जोड़ने से आती है, तो हमारा जीवन प्रामाणिकता से ओत-प्रोत हो जाता है। +* यदि आप एक आशावादी किशोर थे, तो आप 80 वर्ष की आयु में एक आशावादी होंगे। बुरी घटनाओं के प्रति लोगों की प्रतिक्रियाएँ आधी सदी या उससे अधिक समय में बहुत कुछ स्थिर हो जातीं हैं। + + +* अच्छी आदतों को हमें कट्टरता के साथ अपनाना चाहिए। जॉन इरविंग +* आदत की शक्ति महान है। यह हमें मेहनत को बर्दाश्त करना सिखाती है और चोट से नफ़रत कराती है। सिसरो]] +* आदत के कारण लोग जितने काम करते हैं उतने विवेक के कारण नहीं करते। अंग्रेजी लोकोक्ति +* आदत डालनी है, तो परहित करने की आदत डाल धरम बारिया +* आदत तो आदत ही है और किसी भी व्यक्ति द्वारा यह खिड़की से बाहर नहीं फैक दी जाती। हाँ, एक आध सीडी तो खिसकाई जा सकती है। मार्क ट्वेन +* आदत रस्सी की भाति है, पर रोज़ इसमें हम बट देते हैं और अंत में इसे तोड़ नहीं पाते। मान (Maun) +* आदत रस्सी के समान है. नित्य इसमें एक बट देते हैं अ��त में इसे तोड़ नहीं सकते ऐचमैन +* आदत विषैली नाग की भांति हैं जिसका ज़हर इंसान के जीवन को समय से पूर्व नष्ट कर देता है। हेगलेट (Heglett) +* आदतें लोहे की जंजीर के समान है जो हमें बांधकर रखती हैं लेक स्टीन +* आदतों की श्रुंखला महसूस करने के लिए बहोत कमजोर और ओड़ने के लिए काफी मजबूत होती है। सामुएल जॉनसन +* आदतों को रोका ना जाए तो वह शीघ्र ही लत बन जाती है। संत अगस्टिन +* आदतों को सुधारने के अलावा आपको और कुछ सुधारने की जरुरत नही है। मार्क ट्वेन +* आपके जीवन की कुल कीमत को आपकी बुरी आदतों में से अच्छी आदतों को घटाकर ही पता किया जा सकता है। बेंजामिन फ्रेंक्लिन +* इस दुनिया में बारे में यदि कोई अच्छी और निश्चित बात कही जाये तो वह यह होगी की बुरी आदतों को छोड़ने से आसान अच्छी आदतों को छोड़ना होता है। सॉमरसेट मौघम +* इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति आदत से मजबूर होता है। सुकरात +* इंसान ने जीवन में दुसरे भाग में कुछ नही किया फिर भी वह दिखाई देती है, लेकिन आदते इंसान को जीवन में पहले भाग में ही लगानी पड़ती है। +* एक बुरी आदत कभी भी चमत्कारीक रूप से गायब नही होती। आप उसे अपनेआप में ही परियोजित कर सकते हो। अबीगेल वन बुरेन +* किसी व्यक्ति में एक बुरी आदत पड़ती है तो फिर वह बीज के रूप में बुरी आदतों के वृक्ष को पनपा देती है। शैतान के बेटे को घर पर आमंत्रित करो तो उसका पूरा कुनवा चला आता है। स्वेट मार्डन +* प्रेरणा आपको काम को शुरू करने में सहायक होती है, जबकि आदत आपको काम को करते रहने में सहायक होती है। जिम र्युन + + +* किसी व्यक्ति की असफलता का सबसे बड़ा कारण यह है कि वह खुद पर भरोसा नहीं करता। +* मानव स्वभाव में सबसे गहरा सिद्धान्त सराहना पाने की लालसा है। +* तनाव के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार एक विचार को दूसरे विचार के ऊपर चुनने की हमारी क्षमता है। +* जब कोई व्यक्ति किसी अच्छे अवसर का लाभ नहीं लेता या लाभ नहीं उठाता है, तो उसका असफल होना निश्चित है। +* दो चीजें हमें जीवन में सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं; पहली है ‘जरूरत’ और दूसरी है ‘संघर्ष’। जब हमें लगता है कि जीत अब कदम चूमने लगी है, तभी तो जीवन में एक ठहराव आने लगता है। +* अगर आप अपनी जीवनशैली को बदलना चाहते हैं, तो आज से ही इसकी शुरुआत करें. इसे और आगे टालने की जरूरत नहीं है। +* हम समुद्र के द्वीपों की तरह हैं, सतह पर अलग लेकिन गहराई में जुड़े हुए हैं। +* इ��� तरह से काम करें कि आपके काम से कुछ न कुछ बदलाव जरूर आएगा और आप देखेंगे कि बदलाव आकर ही रहेगा। +* उस विशेष मानसिक विशेषता की तलाश करें, जो आपको सबसे अधिक गहराई से और जीवित रूप से जीवंत महसूस कराती है, जिसके साथ-साथ भीतर की आवाज़ सुनाई देती है, जो कहती है, ‘यह वास्तविक मैं है’, और जब आपको वह रवैया मिल जाता है, तो उसका पालन करें। +* वही व्यक्ति बुद्धिमान है, जो जानता है कि किन बातों को पूरी तरह से अनदेखा करना चाहिए. +* यदि आप परिणामों के बारे में चिंतित हैं, तो आप उन्हें प्राप्त करने के लिए जुट जाएंगे और आप उन परिणामों को प्राप्त करेंगे। +* हम जैसा सुनने का निर्णय करते हैं वैसे ही दुनिया के बारे में हमारा दृष्टिकोण वास्तव में रूप लेता है। +* अधिक काम करने के कारण थकान नहीं होती है. लेकिन बीच में ही छोड़े गए कार्य के बारे में सोचते-सोचते हम थकने लगते हैं। +* जब भी दो लोग मिलते हैं, तो वास्तव में वहां छह लोग मौजूद होते हैं. पहला आदमी है जैसा कि वह खुद को देखता है, दूसरा आदमी जैसा कि दूसरा व्यक्ति उसे देखता है, और तीसरा आदमी जैसा की वह वास्तव में होता है। +* यदि आप अपना मन बदल सकते हैं, तो आप अपना जीवन बदल सकते हैं। +* जीवन का सही उपयोग इसे उस चीज के लिए व्यतीत करना है जो इसे बहुत समय तक जीवित रखेगा. +* जब आप किसी चीज पर विश्वास करना शुरू करते हैं, तभी वे तथ्य का रूप धारण करेंगे। +* जैसा कि आप बाद में बनना चाहते हैं, उसकी शुरुआत आज से ही करें। +* किसी के जीवन को बदलने के लिए: इसे तुरंत शुरू करें, इसे तेजतर्रार करें, और कोई अपवाद न रखे. +* मनुष्य अपने मन के आंतरिक दृष्टिकोण को बदलकर, अपने जीवन के बाहरी पहलुओं को बदल सकता है। +* सच में, प्रतिभा का अर्थ अनैतिक तरीके से विचार करने के क्षमता से थोड़ा अधिक है। +* किसी भी पीढ़ी की सबसे बड़ी खोज यह है कि मनुष्य अपने दृष्टिकोण को बदलकर अपने जीवन को बदल सकता है। +* आप दुनिया में जहां कहीं भी रहें, लेकिन केवल आपके मित्र ही आपकी दुनिया को खूबसूरत बनाते हैं। +* यदि कोई जीव अपनी क्षमताओं को पूरा करने में विफल होता है, तो वह बीमार हो जाता है। + + +: उत्तम देश में उत्पन्न, प्रशस्त दिन में उखाड़ी गई, युक्तप्रमाण (युक्त मात्रा में मन को प्रिय, गन्ध वर्ण रस से युक्त, दोषों को नष्त करने वाली, ग्लानि न उत्पन्न करने वाली, विपरीत पड़ने पर भी स्वल्प विकार उत्पन्न करने वाली या वि���ार न करने वाली, देशकाल आदि की विवेचना करके रोगी को समय पर दी गई औषध गुणकारी होती है। +: व्याकरण छोड़कर किया हुआ अध्ययन, तूटी हुई नौका से नदी पार करना, और अयोग्य आहार के साथ लिया हुआ औषध – ये ऐसे करने के बजाय तो न करने हि बेहतर है। +* प्रसन्नता परमात्मा की दी हुई औषधि है, इसे व्यर्थ ना जाने दें। +* हित चाहने वाला पराया भी अपना है, और अहित करने वाला अपना भी पराया है। रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है और औषधि वन में पैदा होकर भी हमें लाभ पहुँचाती है। + + +: जिस भूमि में आनन्द के बाजे बज रहे हैं, जहाँ लोग प्रसन्नता से नाचते गाते हैं और वीर लोग उत्साह से अपने राष्ट्र की रक्षा में तत्पर हैं। +: यद्यपि अन्य विद्वान भी काव्यों की रचना करते है परन्तु जिस काव्य की रचना पण्डितों में राजा के समान श्रेष्ठतम विद्वान करते हैं वही काव्य सर्वोत्तम होता है। सर्वश्रेष्ठ नृत्य तो स्वयं पिनाकपाणि शिव का ही होता है, यद्यपि उनके गण भूत बेताल तथा अन्य व्यक्ति भी नृत्य करते हैं। +* यदि आप नृत्य कर रहे हों, तो आप को ऐसा लगना चाहिए कि आप को देखने वाला कोई भी आस-पास मौजूद नहीं है। यदि आप किसी संगीत की प्रस्तुति कर रहे हों, तो आप को ऐसा प्रतीत होना चाहिये कि आप की प्रस्तुति पर आप के सिवा अन्य किसी का भी ध्यान नहीं है । और यदि आप सचमुच में, किसी से प्रेम कर बैठें हों तो आप में ऐसी अनुभूति होनी चाहिए कि आप पहले कभी भी भावनात्मक तौर पर आहत नहीं हुए हैं। मार्क ट्वेन +: शंकर जी पार्वती से कहते हैं कि हे उमा! स्वामी श्री रामजी सबको कठपुतली की तरह नचाते हैं। +काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि हे पक्षियों के राजा गरुड़! नट (मदारी) के बंदर की तरह श्री रामजी सबको नचाते हैं, वेद ऐसा कहते हैं। + + +* मैं गैर-यूरोपीय सभ्यताओं के बचाव पक्ष में खड़ा रहता हूँ। मैं उपनिवेशवाद द्वारा नष्ट किये गये समाजों के रक्षा के पक्ष में बोलता हूँ। Aimé Césaire, Discourse on Colonialism (1955) + + +बिपिन चन्द्र पाल 7 नवम्बर 1858 – 20 मई 1932) भारत के एक महान राष्ट्रवादी, लेखक और सामजसुधारक, तथा भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी थे। + + +: संसार रूपी कड़ुवे पेड़ से अमृत तुल्य दो ही फल उपलब्ध हो सकते हैं, एक है मीठे बोलों का रसास्वादन और दूसरा है सज्जनों की संगति। +: कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है, फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो। +: मनुष्य जैसा भी अच्छा या बुरा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है। कर्त्ता को अपने कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है। +फलों और छाया से युक्त बहुत बड़े पेड़ की सेवा करनी चाहिए। अगर दैव योग से फल ना भी मिले तो उस पेड़ की छाया को कौन हटाता है। +: राजा, देवता, गुरु और विशेष रूप से निमित्तज्ञानी का दर्शन खाली हाथ नहीं करना चाहिए क्योंकि फल की प्राप्ति फल से ही होती है ॥ +: खालिहाथ (रिक्तपाणी) राजा के, देवता के, गुरु के, ज्योतिषी के, पुत्र के, मित्र के पास नहीं जाना चाहिए। फल से ही फल की प्राप्ति होती है। +: वृक्ष कभी भी अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। नदी अपना पानी स्वयं नहीं पीती। श्रेष्ठ पुरुष परमार्थ के लिए शरीर धारण करते हैं। + + +* ब्रह्मा ने पत्रलेखा के प्रति पक्षपात किया है और उसे गन्धर्वों से भी अधिक सौन्दर्य प्रदान किया है। +* एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता। प्रज्ञा सुभाषित +* किसी व्यक्ति को समझना इतना मुश्किल कार्य नहीं है, जितना मुश्किल बिना पक्षपात किए निर्णय लेना। अज्ञात +* राजा को सारी प्रजा का पक्षपात-रहित होकर पालन-पोषण करना चाहिए । यह उसका पार्थिव व्रत कहलाता है। + + +हे धर्मनिरत विद्वानो आप परस्पर एक होकर रहें, परस्पर मिलकर प्रेम से वार्तालाप करें । समान मन होकर ज्ञान प्राप्त करें । जिस प्रकार श्रेष्ठजन एकमत होकर ज्ञानार्जन करते हुए ईश्वर की उपासना करते हैं, उसी प्रकार आप भी एकमत होकर व विरोध त्याग करके अपना काम करें । +: हम सबकी प्रार्थना एक समान हो, भेद-भाव से रहित परस्पर मिलकर रहें, अंतःकरण मन-चित्त-विचार समान हों । मैं सबके हित के लिए समान मन्त्रों को अभिमंत्रित करके हवि प्रदान करता हूँ । +: हे सौमनस्य के आकांक्षी –तुम सामान ज्ञान वाले बनो और सामान कार्य में संलग्न हो जाओ। ज्ञान के उत्पत्ति के निमित्त तुम्हारे अन्तःकरण सामान हो। जिस प्रकार देवगण एक ही कार्य को जानते हुए यजमान द्वारा दिए गए हवि को ग्रहण कर लेते हैं –उसी प्रकार तुम भी विरोध त्यागकर इच्छित फल प्राप्त करो। +: हमारे गुप्त भाषण एक रूप हों –हमारे कार्यों की प्रवृत्ति समान हो। हमारा कर्म भी एकरूप हो –हमारा अंतःकरण भी इसी प्रकार का हो। फल पाने के लिए हे देवो –हम एकता उत्पन्न करने वाले आज्य आदि से आपके निमित्त हवन करे। इससे हममे एक चित्तता हो सके। +: शक्ति स्वतन्त्रता की जड़ है मेहनत धन-दौलत की जड़ है न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड़ है । +: त्रेता युग में मन्त्र शक्ति, सत्ययुग में ज्ञान शक्ति तथा द्वापर में युद्ध शक्ति प्रमुख बल था, किन्तु कलियुग में संगठन की शक्ति ही प्रधान है। +: विरोधी के मत को भी आत्मीयता दिखाते हुए सुनना चाहिए, तत्काल विरोध नहीं करना चाहिए। समय देखकर कालान्तर में उसकी अनुचित बात का खण्डन करना चाहिए। +सुख-दुःख में समान और समान उद्देश्य को चाहने वाले तथा समान श्रद्धा वालों का ‘संगठन’ स्वाभाविक है। +: सेना के समान केवल बाहर का अनुशासन ही दिखना पर्याप्त नहीं, समिति में आन्तरिक अनुशासन भी होना चाहिए। +: जहाँ क्षण-क्षण पर विरोध, पद-पद पर विपत्ति और अनन्त प्रलोभन हों, वहाँ संगठन करना बहुत कठिन होता है। +: धर्म, सभ्यता और संस्कृति के योगक्षेम हेतु समाज के संगठन के बिना दूसरा कोई मार्ग नहीं है। +: प्रेम के बिना, नीति के बिना, सत्कार्य पद्धति के बिना और कर्तृत्व शक्ति के बिना संगठन का कार्य नहीं बढ़ता । +: आपत्ति में फंसा कोई व्यक्ति आवे तो उसे 'आओ, बोलो ऐसा कहें। उसका समाधान करे, उसे अच्छी प्रकार आश्वासन दें। 'मत डरो यह कहें, तो उस व्यक्ति के सभी लोग अनुयायी हो जाते हैं। +: उत्साह वालों को नियन्त्रण में करें, समय आने पर उनका परीक्षण करें तथा निरुत्साही लोगों को वाणी से ही नहीं, अपितु कर्म से भी प्रोत्साहित करें। +: जहाँ सभी सुख से बैठने वाले हों, ज्यादा बोलने वाले हों, प्रमादी हों, दीन हों, दुर्व्यसनों में आसक्त हों, वह संगठन नष्ट हो जाता है। +: वाणी से ही मित्रता होती है और वाणी से ही शत्रुता होती है, यह ध्यान में रखकर संगठन चाहने वाला व्यक्ति सदा वाणी के संयम वाला रहे। +: सत्ययुग में ज्ञान शक्ति, त्रेता में मन्त्र शक्ति तथा द्वापर में युद्ध शक्ति का बल था। किन्तु कलियुग में संगठन की शक्ति ही प्रधान है। +: संगठन से सामर्थ्य प्राप्त होती है एवम् सामर्थ्य से सब प्रकार की योग्यता। ऐसी योग्यता से जो उत्कर्ष प्राप्त होता है वह सब प्रकार से विघ्न रहित होता है। +: विद्वान जिस शक्ति को शास्त्रों से, वीर शस्त्रों से एवम् अन्य धन एवम् श्रम से प्राप्त करते हैं। वह शक्ति संगठन से सभी को सहज ही प्राप्त हो जाती है। +* हमारे स्वभाव में ही संगठन क्षमत�� का पूर्णतया अभाव है फिर भी हमें अपने देशवासियों में इस भावना को संचारित करना पड़ेगा। इसका सबसे बड़ा रहस्य है ईर्ष्या का अभाव। तुम तीस करोड़ मनुष्य अपनी-अपनी इच्छाशक्ति को एक दूसरे से पृथक किये रहते हो। स्वामी विवेकानन्द +* हमलोग आलसी हैं, एकजुट नहीं हो सकते हैं एक-दूसरे से प्रेम नहीं कर सकते हैं बड़े स्वार्थी हैं हम तीन मनुष्य भी एक-दूसरे से घृणा किये बिना, ईर्ष्या किये बिना एकत्र नहीं हो सकते। इसलिए यदि तुम सफल होना चाहते हो तो पहले 'अहं का नाश कर डालो। तुम अपने भाइयों का नेता बनने की कोशिश मत करो बल्कि उनके सेवक ही बने रहो। कभी भी दूसरों का मार्गदर्शन या शासन करने का प्रयास नहीं करो। सभी के सेवक बने रहो। शासक बनने की कोशिश मत करो। सबसे अच्छा शासक वह है जो अपने को सभी का सेवक समझता है जो अच्छी सेवा कर सकता हैं। स्वामी विवेकानन्द +* मेरे बच्चे, संघबद्ध तरीके से कार्य किस तरह किया जाता है, इस बात की शिक्षा ग्रहण करो अभी हमें बड़े बड़े काम करने हैं। एकमात्र 'इच्छा-शक्ति' को समन्वित करने से सब कुछ हो जायेगा। एक समिति को संगठित करो जिसके अधिवेशन (साप्ताहिक पाठचक्र वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर वार्षिक आम बैठक Annual General Meeting आदि) नियमित रूप से होते रहें। और जहाँ तक हो सके उसके बारे में मुझे लिखते रहो। संगठन की शक्ति का हमारी प्रकृति में (हमारे राष्ट्रीय चरित्र में पूर्णतया अभाव है, उसका विकास करना होगा। स्वामी विवेकानन्द, 11 जुलाई 1894 को आलासिंगा पेरुमल को लिखे पत्र में + + +* हमेशा पूर्णता का लक्ष्य रखें, तभी आप उत्कृष्टता प्राप्त कर पाएंगे। +* कभी भी आत्मसंदेह से किस चीज की शुरुआत ना करें बल्कि आत्मविश्वास से शुरुआत करें। +* गुणवत्ता पहली इंजीनियर है तभी इसकी आशा की जाती है। +* मेरी पैसा बनाने में कभी कोई रुचि नहीं रही है। मेरा कोई भी निर्णय इस बात से प्रभावित नहीं था कि इससे मुझे धन मिलेगा या दौलत। +* हमारी ज्यादातर परेशानी खराब क्रियान्वयन, गलत प्राथमिकताओं और अप्राप्य लक्ष्यों के कारण होती है। +* बिना सोचे समझे और कड़ी मेहनत के कुछ भी हासिल नहीं होता। +* जिंदगी को थोड़ा खतरनाक तरीके से जिएं। +* यदि आप उत्कृष्टता चाहते हैं, तो आपको पूर्णता का लक्ष्य रखना चाहिए। इसकी कमियां हैं लेकिन बारीक होना जरूरी है। +* एक नेता बनने के लिए आपको स्नेह के साथ मनुष्यों का नेतृत्व करना होगा। +* असामान्य विचारक पुन: उपयोग करते हैं जिसे आम विचारक मना करते हैं। +* भौतिक दृष्टि से कोई भी सफलता या उपलब्धि तब तक सार्थक नहीं है जब तक कि वह देश और उसके लोगों की जरूरतों या हितों को पूरा न करे और निष्पक्ष और ईमानदार तरीकों से हासिल ना हुई हो। +* इसका समर्थन करने की शक्ति के बिना स्वतंत्रता और यदि आवश्यक हो, तो इसकी रक्षा करें, यह एक क्रूर भ्रम होगा। +* हमारे बीच एक तरह का दान आम है… वह चिथड़े परोपकार है जो चीर-फाड़ करने वाले को कपड़े पहनाता है, गरीबों को खिलाता है और बीमारों को ठीक करता है। +* एक स्वतंत्र उद्यम में समुदाय न केवल एक अन्य हितधारक होता है बल्कि वास्तव में इसके अस्तित्व का मूल उद्देश्य होता है। +* पैसा खाद की तरह है। जब आप इसे ढेर करते हैं तो यह बदबू देता है, जब आप इसे फैलाते हैं तो यह बढ़ता है। +* उत्पादकता और दक्षता केवल निरंतर कड़ी मेहनत, विस्तार पर अथक ध्यान और गुणवत्ता और प्रदर्शन के उच्च मानकों पर जोर देने के साथ ही चरण-दर-चरण प्राप्त की जा सकती है। +* जब आप काम करें तो ऐसे काम करें जैसे कि सब कुछ आप पर निर्भर है। जब आप प्रार्थना करें तो ऐसे प्रार्थना करें जैसे सब कुछ भगवान पर निर्भर है। +* आम लोगों को खाने की भूख होती है, असामान्य लोगों में सेवा की भूख होती है। +* अच्छे मानवीय सम्बन्ध न केवल महान व्यक्तिगत पुरस्कार लाते हैं बल्कि किसी भी उद्यम की सफलता के लिए आवश्यक हैं। + + +* असामान्य विचारक पुनः उपयोग करते हैं जो आम विचारक मना करते हैं। +* आम लोगों को भोजन की भूख है, असामान्य लोगों को सेवा की भूख है। +* बिना बड़ी सोच और कड़ी मेहनत के कुछ भी सार्थक प्राप्त नही किया जा सकता। +* अच्छे मानवीय संबंध न केवल महान व्यक्तिगत पुरस्कार लाते हैं बल्कि किसी भी उद्यम की सफलता के लिए आवश्यक हैं। +* हमेशा पूर्णता का लक्ष्य रखें तभी आप उत्कृष्टता प्राप्त कर पाएंगे । +* एक नेता होने के लिए, आपको स्नेह के साथ मनुष्यों का नेतृत्व करने के लिए मिला है। +* जब आप काम करते हैं, तो काम करते हैं जैसे कि सब कुछ आप पर निर्भर करता है। जब आप प्रार्थना करते हैं, तो प्रार्थना करें जैसे कि सब कुछ भगवान पर निर्भर करता है । +* जीवन को थोड़ा खतरनाक तरीके से जियो। +* हमारी अधिकांश समस्याएं खराब कार्यान्वयन, गलत प्राथमिकताओं और अप्राप्य लक्ष्यों के कारण हैं। +* पैसा खाद की तरह ही होता है, इसका ढेर बदबू फैलता फैलाता है, लेकिन जब आप इसे फैलाते है, तो यह और ज्यादा बढ़ता है। +* स्वच्छता पूर्ण मानकों की पहचान है और सबसे अच्छी गुणवत्ता निरीक्षक विवेक है। +* किसी भी क्षेत्र में बढ़ते संगठनों को लगातार नए विचारों, नए विचारों और नए उत्साह की तलाश, स्वीकृति या विकास करना चाहिए। +* स्टील बनाने की तुलना एक चपाती बनाने से की जा सकती है। एक अच्छी चपाती बनाने के लिए, एक सुनहरा पिन भी काम नहीं करेगा जब तक कि आटा अच्छा न हो । +* हमारी अधिकांश समस्याएं खराब कार्यान्वयन के कारण हैं गलत प्राथमिकताएं और अप्राप्य लक्ष्य। + + +अर्थ हे कालामाओ ये सब मैंने तुमको बताया है, किन्तु तुम इसे स्वीकार करो, इसलिए नहीं कि वह एक अनुविवरण है, इसलिए नहीं कि एक परम्परा है, इसलिए नहीं कि पहले ऐसे कहा गया है, इसलिए नहीं कि यह धर्मग्रन्थ में है। यह विवाद के लिए नहीं, एक विशेष प्रणाली के लिए नहीं, सावधानी से सोचविचार के लिए नहीं, असत्य धारणाओं को सहन करने के लिए नहीं, इसलिए नहीं कि वह अनुकूल मालूम होता है, इसलिए नहीं कि तुम्हारा गुरु एक प्रमाण है, किन्तु तुम स्वयं यदि यह समझते हो कि ये धर्म (धारणाएँ) शुभ हैं, निर्दोष हैं, बुद्धिमान लोग इन धर्मों की प्रशंसा करते हैं, इन धर्मों को ग्रहण करने पर यह कल्याण और सुख देंगे, तब तुम्हें इन्हें स्वीकर करना चाहिए। +: क्या (यथार्थ) है और क्या (यथार्थ) नहीं है – इस संशय में दूसरों के वाक्य (ज्ञान) मेरे लिए निश्चय नहीं हैं। अपनी तपस्या और इन्द्रिय संयम से मैं उस निश्चय (यथार्थ) को स्वयं ग्रहण करूँगा॥ +भगवान बुद्ध अपने शिष्यों से कहते हैं कि) जिस तरह स्वर्ण की परीक्षा उसे गरम करके, छेद करके और कसौटी पर कसकर किया जाता है, उसी प्रकार पण्डितों द्वारा मेरी बात की अच्छी तरह परीक्षा करके ही इसे ग्रहण करना चाहिये, इसलिये नहीं कि मैं बड़ा आदमी हूँ। +* आलोचनात्मक चिन्तन का उद्देश्य है, पुनर्चिन्तन, अर्थात विचार की समीक्षा करना, उसका मूल्यांकन करना और उसका पुनः स्मराण करना। Jon Stratton (1999) Critical Thinking for College Students. + + +* अगर आप एक साल की योजना बना रहे है, तो एक बीज बोईये, योजना अगर दस साल की है तो पेड़ लगाईये और अगर योजना सौ साल की है तो शिक्षक बन जाइए। कन्फ्यूशियस]] +* वास्तविक महान् व्यक्ति तीन बातों द्वारा जाना जाता है- योजना में उदारता, उसे पूरा करने में मनुष्यता और सफलता में संयम। बिस्मार्क +* अपने कार्य की योजना बनाएं तथा अपनी योजना पर कार्य करें। नेपोलियन हिल]] +* लक्ष्य से आपकी योजनाओं को आकार मिलता है।योजना से आपके कार्य तय होते हैं । कार्यों से परिणाम हासिल होते हैं और परिणाम से आपको सफलता मिलती है और यह सब लक्ष्य से शुरू होता है। सैड +* बिना किसी योजना के जीवन जीना किसी दूसरे व्यक्ति के साथ टेलीविजन देखने जैसा है ,जिसके हाथ में रिमोट कंट्रोल हो। पीटर टुर्ला +* सारा समय-प्रबंधन योजना से शुरू होता है। टॉम ग्रीनिंग +* आधा युद्ध मेज पर ही जीता जाता है। + + +: कार्य शीघ्रता से करो, प्रारम्भ किये गये कार्य किसी प्रकार भी शिथिल न करो क्यों कि प्रारम्भ किये गये तथा पुन: शिथिल कर दिये गये कार्य सिद्ध नहीं होते हैं। +: विश्व का मूल ‘कर्म’ है एवं कर्म का मूल ‘कषाय’ है। +* कड़ी मेहनत के बिना, कुछ भी नहीं बढ़ता है लेकिन खरपतवार। गॉर्डन बी हिनक्ले +* दृढ़ता वह कठिन काम है जो आप पहले से किए गए कड़ी मेहनत से थकने के बाद करते हैं। न्यूट गिंगरिच +* सफलता हमेशा महानता के बारे में नहीं है। यह स्थिरता के बारे में है। लगातार कड़ी मेहनत सफलता की ओर ले जाती है। महानता आ जाएगी। ड्वेन जान्सन +* कड़ी मेहनत करें, सकारात्मक रहें, और जल्दी उठो। यह दिन का सबसे अच्छा हिस्सा है। जॉर्ज एलन, सीनियर +* एक सपना जादू के माध्यम से वास्तविकता नहीं बनता है; यह पसीना, दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से होता है। कॉलिन पॉवेल +* सकारात्मक और खुश रहो। कड़ी मेहनत करें और उम्मीद मत छोड़ो। आलोचना के लिए खुले रहें और सीखते रहें। अपने आप को खुश, गर्म और वास्तविक लोगों के साथ घिराओ। टेना देसाई +* वह नौकरी चुनें जिसे आप पसंद करते हैं, और आपको अपने जीवन में एक दिन काम नहीं करना पड़ेगा। अज्ञात +* सफलता पूर्णता, कड़ी मेहनत, विफलता, वफादारी और दृढ़ता से सीखने का परिणाम है। कॉलिन पॉवेल +* सफलता कोई दुर्घटना नहीं है। यह कड़ी मेहनत, दृढ़ता, सीखना, पढ़ना, त्याग करना और सबसे अधिक, आप जो कर रहे हैं या सीखना सीख रहे हैं। पेले +* कुछ काम शुरू करने से पहले, हमेशा अपने आप से तीन प्रश्न पूछें मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं, परिणाम क्या हो सकते हैं और क्या मैं सफल रहूंगा। केवल तभी जब आप गहराई से सोचते हैं और इन सवालों के संतोषजनक उत्तर पाते हैं, तो आगे बढ़ें। चाणक्य +* अपने जुनून का पालन करें, कड़ी मेहनत और बलिदान के लिए तैयार ��हें, और सबसे ऊपर, किसी को भी अपने सपनों को सीमित न करने दें। डोनोवन बेली +* युवा प्रकृति का उपहार है, लेकिन उम्र कला का एक काम है। स्टेनस्ला जेर्ज़ी लीक +* आपको अपने सपने तक पहुंचने के लिए लड़ना है। आपको इसके लिए त्याग और कड़ी मेहनत करनी है। लॉयनल मैसी +* जब तक आप अपनी नियत जगह पर नहीं पहुंच जाते तब तक लड़ाई को कभी न रोकें यानी, वह अद्वितीय है। जीवन में एक लक्ष्य रखें, लगातार ज्ञान प्राप्त करें, कड़ी मेहनत करें, और महान जीवन को समझने के लिए दृढ़ता रखें। ए पी जे अब्दुल कलाम +* मैं असफल नहीं हुआ मुझे अभी 10,000 तरीके मिले हैं जो काम नहीं करेंगे। थॉमस ए एडिसन +* नौकरी में खुशी काम में पूर्णता लाती है। अरस्तू +* सफलता का कोई रहस्य नही हैं। यह तैयारी, कड़ी मेहनत, और विफलता से सीखने का परिणाम है। कॉलिन पॉवेल +* आप देखते हैं, भगवान केवल उन लोगों की सहायता करता है जो कड़ी मेहनत करते हैं। यह सिद्धांत बहुत स्पष्ट है। ए पी जे अब्दुल कलाम +* अपने पूरे दिल से अपना काम करो, और आप सफल होंगे बहुत कम प्रतियोगिता है। एल्बर्ट हूबार्ड +* अपने कड़ी मेहनत का फल सबसे प्यारा है। दीपिका पादुकोन +* मेरे पिता से मैंने हमेशा लोगों के लिए अच्छा होना सीखा, हमेशा ईमानदार और सीधा होना। मैंने कड़ी मेहनत और दृढ़ता सीखी। ल्यूक ब्रायन +* हमारा काम हमारी क्षमताओं की प्रस्तुति है। एडवर्ड गिब्बन +* खुशी आसान काम करने से नहीं आती है, लेकिन संतुष्टि के बाद से जो एक कठिन कार्य की उपलब्धि के बाद आता है जो हमारी सर्वश्रेष्ठ की मांग करता है। थियोडोर आइजैक रूबिन +* हर सुबह दरवाजे पर अपनी अहंकार छोड़ दो, और बस कुछ सचमुच महान काम करें। कुछ चीजें आपको शानदार काम से बेहतर महसूस कर सकती हैं। रॉबिन एस शर्मा +* यदि चार चीजों का पालन किया जाता है एक महान उद्देश्य, ज्ञान, कड़ी मेहनत और दृढ़ता प्राप्त करना तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। ए पी जे अब्दुल कलाम +* कला का सच्चा काम दिव्य पूर्णता की छाया है। माइकल एंजेलो +* शुरुआत काम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्लेटो +* अवसर आमतौर पर कड़ी मेहनत के रूप में छिपाए जाते हैं, इसलिए अधिकांश लोग उन्हें पहचान नहीं पाते हैं। एन लैंडर्स +* मैंने कड़ी मेहनत करके कड़ी मेहनत के मूल्य को सीखा। मार्गरेट मीड +* कड़ी मेहनत के लिए कोई विकल्प नहीं है। थॉमस ए एडिसन +* जब लोग मुझे संदेह करते हैं तो मुझे यह पसंद है। य�� मुझे गलत साबित करने के लिए कठिन काम करता है। डेरेक जेटर +* कड़ी मेहनत, दृढ़ता और ईश्वर में विश्वास के माध्यम से, आप अपने सपनों को जी सकते हैं। बेन कार्सन +* रचनात्मकता आपकी कल्पना को काम पर डाल रही है, और इसने मानव संस्कृति में सबसे असाधारण परिणाम प्रस्तुत किए हैं। केन रॉबिन्सन +* ईमानदार बनें, एक लक्ष्य की ओर काम करें, और आप इसे प्राप्त करेंगे। इमरान हाश्मी +* गगन की ओर देखो। हम अकेले नही है। पूरा ब्रह्मांड हमारे लिए अनुकूल है और केवल सपने देखने और काम करने वालों को सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित करता है। ए पी जे अब्दुल कलाम +* हमारी थकान अक्सर काम से नहीं होती है, लेकिन चिंता, निराशा और नाराजगी से। डेल कार्नेगी +* जब सर्वश्रेष्ठ नेता का काम किया जाता है तो लोग कहते हैं हमने इसे स्वयं किया। लाओ त्सू +* यदि आप जो करते हैं वह करते हैं, तो आप कभी भी अपने जीवन में एक दिन काम नहीं करेंगे। मार्क एंथोनी +* जीवन कठिन है, और चीजें हमेशा अच्छी तरह से काम नहीं करती हैं, लेकिन हमें बहादुर होना चाहिए और हमारे जीवन के साथ चलना चाहिए। Suga +* टीमवर्क के लिए कुछ बलिदान की आवश्यकता होती है; जो लोग टीम के रूप में काम करते हैं उन्हें समूह की सामूहिक जरूरतों को अपने व्यक्तिगत हितों से पहले रखना पड़ता है। -पैट्रिक लेनसीनी +* प्रार्थना करें कि सबकुछ भगवान पर निर्भर है। काम करें जैसे सब कुछ आप पर निर्भर करता है। सेंट ऑगस्टीन +* गुणवत्ता हर किसी की ज़िम्मेदारी है। डब्ल्यू एडवर्ड्स डेमिंग +* सफलता के लिए चार चीजें: काम करें और प्रार्थना करें, सोचें और विश्वास करें। नॉर्मन विन्सेंट पीले +* मुझे लगता है कि मैं भाग्यशाली हूं। मैं इस जीवन के लिए आभारी हूं कि भगवान ने मुझे दिया है। मैं खुश हूं, क्योंकि मैं ऐसा काम करने जा रहा हूं जिसे मैं करना चाहता हूं और इसे करने का आनंद लेता हूं। सोनम कपूर +* यदि आप कड़ी मेहनत करते हैं और आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करते हैं, तो आप कुछ भी कर सकते हैं। एरिन हेदरटन +* सभी विकास गतिविधि पर निर्भर करता है। प्रयास के बिना शारीरिक या बौद्धिक रूप से कोई विकास नहीं है, और प्रयास का मतलब है काम। केल्विन कूलिज +* प्रभावी नेटवर्किंग भाग्य का नतीजा नहीं है इसके लिए कड़ी मेहनत और दृढ़ता की आवश्यकता होती है। लुईस हाउस +* कार्य आपको अर्थ और उद्देश्य देता है और जीवन इसके बिना खाली है। स्��ीफन हॉकिंग +* जीवन की उम्मीदें परिश्रम पर निर्भर करती हैं; मैकेनिक जो उसके काम को पूरा करेगा, उसे पहले अपने औजारों को तेज करना होगा। कन्फ्यूशियस +* मुझे लगता है कि हमारा पारिवारिक आदर्श वाक्य हमेशा कठिन परिश्रम करना, विनम्र, दयालु और हमारे आस-पास के लोगों के बारे में विचारशील होना है। अनवर हदीद +* वित्तीय स्वतंत्रता उन लोगों के लिए उपलब्ध है जो इसके बारे में सीखते हैं और इसके लिए काम करते हैं। रॉबर्ट कियोसाकी +* चमत्कार यह नहीं है कि हम यह काम करते हैं, लेकिन हम इसे करने में प्रसन्न हैं। मदर टेरेसा +* कठिन परिश्रम करना और कभी-कभी स्मार्ट काम करना दो अलग-अलग चीजें हो सकती है। बायरन डॉर्गन +* यदि आप अपने दुश्मन के साथ शांति बनाना चाहते हैं, तो आपको अपने दुश्मन के साथ काम करना होगा। फिर वह आपका साथी बन जाता है। नेल्सन मंडेला +* आलस्य आकर्षक दिखाई दे सकती है, लेकिन काम संतुष्टि देता है। ऐनी फ्रैंक +* मुझे एक नेता को परिभाषित करने दें। उसे दृष्टि और जुनून होना चाहिए और किसी भी समस्या से डरना नहीं चाहिए। इसके बजाय, उसे पता होना चाहिए कि इसे कैसे पराजित किया जाए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उसे अखंडता के साथ काम करना चाहिए। ए पी जे अब्दुल कलाम +* सर्वोच्च उपलब्धि काम और खेल के बीच की रेखा को धुंधला करना है। अर्नोल्ड जे टोनीबी +* केवल एक विकास रणनीति है: कड़ी मेहनत करें। विलियम हेग +* Communication एक कौशल है जिसे आप सीख सकते हैं। यह एक साइकिल की सवारी की तरह है। यदि आप इस पर काम करने के इच्छुक हैं, तो आप अपने जीवन के उत्खनन की गुणवत्ता में तेजी से सुधार कर सकते हैं। ब्रायन ट्रेसी +* मैं कभी भी एक अपूर्ण आदमी से एक परिपूर्ण काम देखने की उम्मीद नहीं करता हूं। अलेक्जेंडर हैमिल्टन +* मेरा कोई आदर्श (idols) नहीं है। मैं काम, समर्पण और योग्यता की प्रशंसा करता हूं। आर्टन सेना +* मैंने हमेशा विश्वास किया है कि यदि आप काम करते हैं, तो परिणाम आते हैं। माइकल जॉर्डन +* प्रत्येक व्यक्ति का काम, चाहे वह साहित्य हो, या संगीत या चित्र या वास्तुकला या कुछ और, हमेशा अपने आप का चित्र है। सैमुअल बटलर +* बचपन के आश्चर्य को कभी न खोएं। कृतज्ञता दिखाएं शिकायत मत करो; बस कड़ी मेहनत करें कभी हार न दें। रैंडी पॉश +* भविष्य को सच्चाई बताएं, और अपने काम और उपलब्धियों के अनुसार प्रत्येक का मूल्यांकन करें। वर्तमान उनका है; भवि���्य, जिसके लिए मैंने वास्तव में काम किया है, मेरा है। निकोला टेस्ला +* भाग्य पसीने का लाभांश है। जितना अधिक आप पसीना बहंगे, भाग्य आप को उतना ही मिलता है। रे क्रोक +* यह हमेशा मेरा आदर्श रहा है: अपने काम को बेहतर बनाने के लिए असंभव प्रयास करें। बेट डेविस +* किसी भी महान काम के लिए जुनून की आवश्यकता है, और क्रांति के लिए, बड़ी खुराक में जुनून और धैर्य की आवश्यकता होती है। चे ग्वेरा +* कल के लिए सबसे अच्छी तैयारी आज के काम को शानदार ढंग से करना है। विलियम ओस्लर +* मैं साधारण होने पर काम नहीं करता हूं। पॉल मेकार्टनी +* अच्छी चीजें उन लोगों के साथ होती हैं जो हलचल करते हैं। चक नोल +* मैं काम रोकने और दोपहर का भोजन खाने में विश्वास करता हूं। एल व्रेन स्कॉट +* मैंने अनुभव से सीखा है कि यदि आप इसमें कड़ी मेहनत करते हैं, और इसके लिए अधिक ऊर्जा और समय लागू करते हैं, और अधिक स्थिरता, तो आपको बेहतर परिणाम मिलता है। यह काम से आता है। लुई सी के +* दृढ़ता और लचीलापन मुश्किल समस्याओं के बावजूद काम करने का मौका देता है। गीवर टुली +* एक सकारात्मक दृष्टिकोण यह है कि हर कोई काम कर सकता है, और हर कोई यह सीख सकता है कि इसे कैसे नियोजित किया जाए। जोआन लुंडेन +* हमारे कुछ बेहतरीन काम दूसरों के सेवा के माध्यम से आता है। गॉर्डन बी हिनक्ले +* अपने काम करने से पहले अपने आप पर कड़ी मेहनत करें। जिम रोहन +* आज और हर दिन अपने काम की योजना बनाएं, फिर अपनी योजना बनाएं। मार्गरेट थैचर +* काम जीवन का भोजन है, मिठाई खुशी है। बी सी फोर्ब्स +* जब प्यार और कौशल एक साथ काम करते हैं, तो एक उत्कृष्ट कृति की अपेक्षा करें। John Ruskin +* आपकी अहंकार आपके काम में बाधा बन सकती है। यदि आप अपनी महानता पर विश्वास करना शुरू करते हैं, तो यह आपकी रचनात्मकता की मृत्यु है। मरीना एब्रोमोविच +* गुणवत्ता कारीगरी का गौरव है। डब्ल्यू एडवर्ड्स डेमिंग +* कड़ी मेहनत और शिक्षा के माध्यम से, हम सभी के लिए एक मजबूत अर्थव्यवस्था और अवसर प्रदान कर सकते हैं। जूलिया गिलार्ड +* श्रम का अंत अवकाश हासिल करना है। अरस्तू +* चिंता का एक दिन काम के एक सप्ताह से अधिक थकाऊ है। जॉन लब्बॉक +* जो आराम चाहता है वह उदासी पाता है। जो काम चाहता है वह आराम पाता है। डायलन थॉमस +* एक सुंदर महिला प्रकृति का दुर्घटना है। एक सुंदर बूढ़ी औरत कला का काम है। लुई नाइजर +* सफलता के लिए कड़ी मेहनत और समर्पण महत्वपूर्ण है, और मेरे पास ये गुण हैं। नर्गिस फाखरी +* जब आप असफल होते हैं तो आप अपनी गलतियों से सीखते हैं और यह आपको कठिन काम करने के लिए प्रेरित करता है। नेटली गुलबिस +* प्रतिष्ठा कड़ी मेहनत से, चरण-दर-चरण से प्राप्त होती है। मा लांग +* जब आप एक लक्ष्य में बहुत मेहनत करते हैं और आप इसे प्राप्त करते हैं, तो यह वास्तव में अच्छी भावना है। डेरेक जेटर +* सबसे अच्छा काम यह नहीं है कि आपके लिए सबसे कठिन क्या है; यह वही है जो आप सबसे अच्छा करते हैं। जीन-पॉल सार्त्रे + + +नेहरू-गांधी परिवार एक भारतीय राजनीतिक परिवार है जिसने भारत की राजनीति में एक प्रमुख स्थान पर कब्जा कर लिया है। परिवार की भागीदारी पारंपरिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूमती रही है, क्योंकि विभिन्न सदस्यों ने पारंपरिक रूप से पार्टी का नेतृत्व किया है। परिवार के तीन सदस्य: जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने भारत के प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया है, जबकि कई अन्य संसद के सदस्य रहे हैं। +गांधी उपनाम गुजराती पारसी वंश के एक राजनेता फिरोज गांधी से आया था, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के बाद महात्मा गांधी के अनुरूप लाने के लिए गांधी से गांधी तक अपने उपनाम की वर्तनी बदल दी थी। इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू (जवाहरलाल नेहरू की बेटी) ने 1942 में फिरोज गांधी से शादी की और अपना उपनाम अपनाया। +*नेहरू ब्रांड का दुनिया में कोई समकक्ष नहीं है परिवार का एक सदस्य आजादी के बाद से 60 वर्षों में से 40 वर्षों तक भारत का प्रभारी रहा है। भारत के पहले परिवार का आकर्षण ब्रिटिश राजशाही के अधिकार को अमेरिका के कैनेडी कबीले के दुखद ग्लैमर के साथ मिलाता है। +*भारत के लोगों ने पिछले 55 वर्षों की बाधाओं को देखा है और उन्होंने हमारे 55 महीनों के आशावाद को देखा है। उन्होंने फैमिली फर्स्ट के 55 साल और इंडिया फर्स्ट के 55 महीने देखे हैं। हम लोकतंत्र के लिए खड़े हैं, वे वंश के लिए खड़े हैं, हम पहले भारत के लिए खड़े हैं, वे पहले परिवार के लिए खड़े हैं। +**नरेंद्र मोदी। "2014 आशा और आकांक्षा के लिए एक जनादेश था, 2019 आत्मविश्वास और त्वरण के बारे में है 2019 साक्षात्कार, 18 अप्रैल, 2019 टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ 2014 आशा और आकांक्षा के लिए एक जनादेश था, 2019 आत्मविश्वास और त्वरण के बारे में है +*यही कारण है कि गांधी वंश ��े लिए भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को पारिवारिक फर्म में बदलना इतना आश्चर्यजनक रूप से आसान हो गया है। और एक बार जब वंशवादी उत्तराधिकार राजनीतिक सत्ता के उच्चतम स्तरों पर स्वीकार्य हो गया, तो वंशवादी लोकतंत्र को भारत की आत्मा में धीमे जहर की तरह फैलने से रोकना असंभव हो गया। भारत के 'भाग्य के साथ प्रयास' को अधिक उचित रूप से भारत का वंशवाद के साथ प्रयास कहा जा सकता था। +*राजवंश, शासक वर्ग के हाथों में एक राजनीतिक उपकरण, एक ऐसे देश के नए उपनिवेशीकरण के लिए उत्प्रेरक बन गया है, जिसकी आत्मा सदियों से पहले ही गहरे जख्मी हो चुकी है। + + +इमरान मसूद एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने सहारनपुर की नगर परिषद के अध्यक्ष और यूपी राज्य विधानसभा में सहारनपुर जिले में मुजफ्फराबाद सीट (अब बेहट सीट) से विधायक के रूप में कार्य किया है। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष थे। वह उत्तर प्रदेश कांग्रेस में सलाहकार परिषद के सदस्य थे। वर्तमान में वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के राष्ट्रीय सचिव हैं। +* उन्होंने कहा अगर मोदी उत्तर प्रदेश को गुजरात बनाने की कोशिश करते हैं, तो हम उन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देंगे..मैं किसी के मारे जाने या हमला करने से नहीं डरता। मैं मोदी के खिलाफ लड़ूंगा। उन्हें लगता है कि यूपी गुजरात है। गुजरात में सिर्फ 4 फीसदी मुसलमान हैं जबकि यूपी में 42 फीसदी मुसलमान हैं. +* मोदी के खिलाफ कौन लड़ेगा? जो इस मोदी को वापस देना जानता है वह सोचता है कि यह गुजरात है, गुजरात में 4 फीसदी मुसलमान हैं, यहां मुसलमान 42% हैं, हम यहां गुजरात बनाएंगे, काटेंगे छोटे टुकड़ों में। + + +पंडित अमी चंद्र विद्यालंकार (1900 13 मार्च 1954) एक इंडो-फिजी शिक्षक, उपदेशक, मजदूर नेता, राजनीतिज्ञ और फुटबॉल प्रशासक थे। उन्होंने1947 और 1953 के बीच विधान परिषद के सदस्य के रूप में कार्य किया। +पंडित अमी चंद्रा फिजी के सबसे प्रतिष्ठित भारतीय ट्रेड यूनियनिस्ट थे, जिनके पास उच्च बुद्धि और शांत लेकिन दृढ़ व्यक्तित्व था। उन्होंने राजनीति में ट्रेड यूनियनों की किसी भी भागीदारी का कड़ा विरोध किया; और उन्होंने बहु-नस्लीय ट्रेड यूनियनवाद लाने के लिए अपनी कोमल अनुनय की शक्तियों का भी इस्तेमाल किया। +* औद्योगिक संघ और स्थानीय राजनीति। . +* 1 अप्रैल 1956 को लंदन के लिए एक प्र���षण में फिजी के गवर्नर, सर रोनाल्ड गारवे। + + +हाफिज़ुद डीन खान एक फ़िजी व्यवसायी और राजनीतिज्ञ हैं। उन्हें जुलाई 2005 में सीनेट में नियुक्त किया गया था। +सीनेट में पहला भाषण 24 अगस्त 2005 (अंश +*जैसा कि मैंने फिजी को चुना है, यहाँ जन्म और पालन-पोषण, मेरे घर के रूप में, स्वदेशी फ़िजी आकांक्षाओं और विशेष रूप से, अपने स्वयं के भाग्य का निर्धारण करने के लिए उनके अधिकारों की सुरक्षा, मेरा मानना ​​​​है, हमेशा सर्वोपरि होना चाहिए। +*गैर-फिजियन और शायद एक पश्चिमी व्याख्या विभिन्न दृष्टिकोणों से असंवेदनशीलता को जन्म दे सकती है। + + +सिद्दीक कोया (1924-1993) भारतीय मूल के एक फिजी राजनेता1970 में यूनाइटेड किंगडम से स्वतंत्रता के लिए हुई वार्ता में अग्रणी भूमिका निभाई। +मैं अब कुछ कहूंगा, जो मैंने पहले कभी नहीं कहा यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन है, अगर यह कानून नहीं है, कि जब किसी देश के लोगों को स्वतंत्रता एक विलेख द्वारा दी जाती है, तो उस देश की संप्रभुता उस देश के लोगों को हस्तांतरित किया जाता है जिसने विलेख सौंपा था। अगर मैं विपक्ष का नेता नहीं होता और मैं फिजी में पैदा नहीं होता और 1965 के लंदन संवैधानिक सम्मेलन में फिजी के लोगों के लिए एक संक्षिप्त जानकारी रखता, तो मैं अंग्रेजों को यह सोचने के लिए मजबूर करता कि वे फिजी के साथ क्या कर रहे हैं। लोगइस देश में। 1874 में यह उनका देश था, 1965 में यह उनका देश था… फ़िजी लोगों को यह कहने से रोकने के लिए क्या था महामहिम देश हमें वापस दे दो।' अप्रवासी नस्लें यूरोपीय, रोटुमैन, चीनी, वगैरह, की देखभाल हमारे द्वारा की जाएगी। वे हमारे मेहमान हैं। + + +अंबालाल दह्याभाई पटेल (13 मार्च, 1905 1 अक्टूबर 1969) एक इंडो-फिजी राजनेता, किसान नेता और नेशनल फेडरेशन पार्टी के संस्थापक और नेता थे। पटेल पूरी तरह से नस्लीय एकीकरण के साथ एक स्वतंत्र फिजी के दृष्टिकोण के लिए प्रतिबद्ध थे। वह एक गणतंत्र की वकालत करने वाले पहले लोगों में से एक थे, एक ऐसा आदर्श जो उनके जीवनकाल में साकार नहीं हुआ। उन्होंने एक आम मतदाता सूची की भी वकालत की और सांप्रदायिक मताधिकार का विरोध किया, जो फिजी की राजनीति की विशेषता है, और इसे जारी रखता है। +* सांप्रदायिक मताधिकार सिद्धांत रूप में गलत है और व्यवहार में हानिकारक है; फीजी में समय आ गया है कि सभी जातियों को पानी से भरे पतले डिब्बों स��� बाहर निकलकर फिजी के निवासियों के संदर्भ में सोचना शुरू करें। +* सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण यह मान्यता और अहसास होना चाहिए कि शिक्षा औपनिवेशिक क्षेत्रों में एक विलासिता नहीं है, बल्कि यह उतनी ही आवश्यकता है जितनी कि स्वतंत्र देशों में। यह एक ऐसी सुविधा है जिस पर हर नागरिक का अधिकार है। यह एक समाज सेवा है जो किसी देश के वित्त पर पहला प्रभार होना चाहिए। और उन्नत देशों में राज्य के लिए अपने राजस्व का 25 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करना असामान्य नहीं है। +1954 का वक्तव्य शिक्षा पर अधिक खर्च करने का आह्वान करता है। +* हमें फिजी में विश्वविद्यालय शिक्षा की आवश्यकता है और फिजी में माध्यमिक शिक्षा के बाद शुरू करने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। निकट भविष्य में हम फिजी में एक विश्वविद्यालय कॉलेज और अंततः एक पूर्ण विकसित विश्वविद्यालय देखने की उम्मीद करते हैं +1964 के बजट बहस के दौरान, उन्होंने फिजी में एक विश्वविद्यालय की स्थापना का आह्वान किया। + + +मिस्टर राइट एकनैतिक रूप से अस्पष्ट हिटमैन के बारे में 2015 की फिल्म + + +सामान्य अस्वीकरण विकिसूक्ति का प्रयोग अपने जोखिम पर करें विकिसूक्ति में स्पॉइलर और सामग्री है जो आपको आपत्तिजनक लग सकती है। उद्धरणों का एक व्यापक और सटीक स्रोत बनाने और बनाए रखने का प्रयास किया जाता है, लेकिन त्रुटियां कभी-कभी नोटिस से बच जाती हैं। +आप यह जानकारी देख रहे हैं। विकिसूक्ति किसी भी कानून के उल्लंघन को प्रोत्साहित नहीं करती है, लेकिन चूंकि यह जानकारी युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में सर्वरों पर संग्रहीत है इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के पहले संशोधन और सिद्धांतों के तहत सभी को प्रदान की गई सुरक्षा के संदर्भ में बनाए रखा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के आपके देश के कानून संयुक्त राज्य अमेरिका के कानूनों या संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के रूप में मुक्त भाषण की व्यापक सुरक्षा के रूप में मान्यता नहीं दे सकते हैं, और इस तरह,यदि आप इस डोमेन से लिंक करते हैं या यहां निहित किसी भी जानकारी का किसी भी तरह से उपयोग करते हैं तो विकिसूक्ति ऐसे कानूनों के किसी भी संभावित उल्लंघन के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकती है। +विकिसूक्ति की समान रूप से समीक्षा नहीं की जाती है; जबकि पाठक त्रुट���यों को सुधार सकते हैं या गलत सुझावों को हटा सकते हैं, ऐसा करने के लिए उनका कोई कानूनी कर्तव्य नहीं है और इस प्रकार यहां पढ़ी गई सभी जानकारी किसी भी उद्देश्य या किसी भी उपयोग के लिए फिटनेस की निहित वारंटी के बिना है। +विकिसूक्ति के खिलाफ कोई परिणामी नुकसान नहीं मांगा जा सकता है क्योंकि यह व्यक्तियों का एक स्वैच्छिक संघ है जो विभिन्न ओपन सोर्स ऑनलाइन शैक्षिक, सांस्कृतिक और सूचनात्मक संसाधनों को बनाने के लिए स्वतंत्र रूप से विकसित किया गया है। यह जानकारी आपको नि:शुल्क दी जा रही है और 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अनुनय हांगकांग के भविष्य को आकार देगा? +*हम अपने दृढ़ संकल्प को दिखाने के लिए इसे वीटो करने जा रहे हैं कि हम इस नकली लोकतंत्र को स्वीकार नहीं करने जा रहे हैं। +*3 सितंबर, 2014 लोकतंत्र मरा नहीं है, हांगकांग के ऑक्युपाई सेंट्रल कार्यकर्ताओं का कहना है +*यह एक जबरन गायब होना है जो गायब हो गए हैं वे कॉजवे बे बुकशॉप से ​​संबंधित हैं और यह किताबों की दुकान न केवल बिक्री के लिए, बल्कि संवेदनशील पुस्तकों की एक श्रृंखला के प्रकाशन और प्रसार के लिए भी प्रसिद्ध थी। +*जनवरी 6, 2016 ब्रिटन ने लापता होने की पुष्टि की क्योंकि हांगकांग के पुस्तक विक्रेताओं पर रहस��य गहराता है +*प्रदर्शनकारी प्रशंसा करते हैं कि कैसे एक सामान्य नागरिक के रूप में लैम विंग- की ने सत्ता के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उसके झूठ का पर्दाफाश किया। बहुत से लोगों ने मुझे बताया कि वे लैम की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। +*18 जून, 2016 हांगकांग के 4,000 प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बुकसेलर की नजरबंदी पर चीन के खिलाफ आवाज उठाई + + +न्याय सूत्र प्राचीन भारतीय ग्रन्थ है जिसकी रचना अक्षपाद गौतम द्वारा की गई है। यह न्याय दर्शन नामक हिन्दू दर्शन का मूल ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ की रचना कब और किसके द्वारा हुई, यह ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है। लेकिन विभिन्न विद्वानों ने 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व और दूसरी शताब्दी ई के बीच इसकी रचना होने का अनुमान लगाया है। यह भी सम्भावना है कि इस ग्रन्थ की सामग्री एक से अधिक लोगों द्वारा रचित है। इस ग्रन्थ के ५ भाग हैं और प्रत्येक भाग में दो अध्याय हैं, जिसमें कुल 528 सूत्र सूत्र हैं, जो तर्क, ज्ञानमीमांसा और तत्वमीमांसा के नियमों के बारे में हैं। +न्याय-दर्शन में शिक्षा का अभिप्राय तर्क पर आधारित विद्या और ज्ञान से है। न्याय शब्द का अर्थ है नीयते अनेन इति न्यायः" अर्थात् वह प्रक्रिया जिसके द्वारा मस्तिष्क एक निष्कर्ष तक पहुँच सके। इस प्रकार न्याय, ज्ञान-प्राप्ति की प्रक्रिया है। न्यायदर्शन में इन्द्रियजन्य ज्ञान पर बल दिया गया है। इन्द्रियजन्य ज्ञान, बिना मस्तिष्क के सम्भव नहीं होता। शिक्षा और सीखना इंद्रियजन्य ज्ञान प्राप्त करने प्रक्रिया है। +न्याय-दर्शन के अनुसार शिक्षा का एक अन्य अभिप्राय भी है आन्वीक्षिकी अर्थात् तर्क के द्वारा किसी विषय का अनुसंधान करना। इस प्रकार शिक्षा विद्या अथवा जान तक सीमित न रहकर एक सीढ़ी और ऊपर उठते हुए अनुसंधान का पर्याय बन जाती है। +: प्रमाण के द्वारा किसी अर्थ (सिद्धान्त) की परीक्षा करना ही न्याय है। +: आन्विक्षिकी (न्यायविद्या) समस्त विद्याओं का प्रदीप,सब कर्मों का उपाय, तथा सब धर्मों का आश्रय मानी गयी है। +: यह प्रमाण आदि की व्यवस्था अनादिनिधन है और इसका व्यवहार करने वाले सभी लोगों में अत्यन्त प्रसिद्ध है, तथापि यहाँ उसे हमने पुनः कहा है। +: अहो, आत्महिताभिलाषी जीवों के पूर्वोपार्जित महापाप कर्म के उदय से, अविद्या-अंधकार के माहात्म्य से और स्वयं कलियुग के प्रभाव से वर्तमान में गुणद्वेषी लोगों ने न्याय को मलिन कर दिया है। तथापि धन्य हैं वे अनुकम्पा-परायण आचार्य जो आज भी उसे किसी प्रकार सम्यग्ज्ञानरूपी जल से प्रक्षालित करते हुए आगे लिए चले जा रहे हैं। +: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द ये (चार) प्रमाण हैं। +: प्रत्यक्ष इन्द्रियार्थसन्निकर्षोत्पन्न ज्ञान है जो अव्यपदेश्य, अव्यभिचारी और व्यवसायात्मक होता है। +: उपलब्ध अथवा निर्णीत अर्थ में न्याय की प्रवृत्ति नहीं होती है अपितु सन्दिग्ध अर्थ में ही न्यायशास्त्र की प्रवृत्ति होती है। +: जिस अर्थ का तत्व निर्णीत न हो उसके तत्त्वज्ञान के लिए युक्ति पूर्वक किए जानेवाले "ऊह" ज्ञान का नाम है "तर्क"। +*भारतीय न्यायपालिका अपना न्यायशास्त्र एंग्लो-सैक्सन मॉडल से लेती है जो अरस्तू के लॉजिक (तर्कशास्त्र) और फारसी तर्क पर आधारित है। जब मैंने भारतीय न्याय शास्त्र के बारे में पढ़ा, तो मैंने पाया कि यह अरस्तू की प्रणाली से कुछ भी कम नहीं है। अपने पूर्वजों की प्रतिभा को त्यागने, अनदेखा करने और लाभ न उठाने के पीछे मुझे कोई कारण नहीं दिखता। शरद अरविन्द बोबडे (भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश अप्रैल 2021 + + +गस माइकल बिलिरकिस (8 फरवरी, 1963–) एक अमेरिकी वकील और राजनीतिज्ञ हैं, जो फ्लोरिडा के 12वें कांग्रेस जिले के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत हैं । +*अगर हम नृत्य के बारे में बात कर रहे थे, तो यह समय खुद से ज़ीबेकिको करने का है। + + +* जीवन में मृत्यु से भी बदतर चीजें हैं। क्या आपने कभी एक बीमा विक्रेता के साथ एक शाम बिताया है वुडी एलन +* मज़ा जीवन बीमा की तरह है, आप जितना उम्रदराज होते जाते हैं यह उतना महंगा होता जाता है। किन हबर्ड +* लाभ के लिए काम कर रही कोई निजी स्वास्थ्य बीमा कम्पनी नहीं होनी चाहिए। माइकल मूर +* स्वास्थ्य बीमा हर नागरिक को दी जानी चाहिए । जेस्से वेंचुरा +* बीमा कंपनियां कुछ भी नहीं बनाती हैं। जेम्स डायसन +* मैं चिकित्सा को एक वाउचर में कभी नहीं परिणत करूँगा। किसी भी अमेरिकी को अपने सुनहरे वर्षों को बीमा कंपनियों की दया पर नहीं बिताना चाहिए। उन्हें अपने द्वारा अर्जित गरिमा और प्रतिष्टा के साथ रिटायर होना चाहिए। बराक ओबामा +* हर सात अमेरिकियों में से एक बिना स्वास्थ्य बीमा के रहता है, और वास्तव में यह एक चौंका देने वाला आंकड़ा है। जॉन एम मकहुग्य +* सामाजिक सुरक्षा एक परिवार बीमा कार्यक्रम है, एक न��वेश योजना नहीं। डायने वाटसन +* मैं अनुसंधान की स्वतंत्रता पसंद करता हूँ। इसके अलावा यदि मैं विज्ञान में असफल होता हूँ, मुझे लगता है मैं हमेशा गुजारा करता रहूँगा क्योंकि मैं एक एम।डी हूँ। यह मेरा बीमा नीति रही है । शिन्या याम्नाका +* निजी बीमा की उपलब्धता लाखों लोगों के लिए जबरदस्त रोधन (इन्सुलेशन) प्रदान करता है। लॉरेंस समर्स +* लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका में 90 लाख बंदूक के मालिक हैं। केवल 35 लाख बीमा और पत्रिकायें चाहते हैं और आप एन आर ए में शामिल होकर कई चीजें पा सकते हैं। माइकल डी बार्न्स +* हम भारत को बेहतर जानते हैं। एल आई सी + + +संरक्षा और दुर्घटना और संरक्षा (safety) पर नारे +* दुर्घटना से देर भली। +* आपका मस्तिष्क सुरक्षा का सबसे बढ़िया साधन है। +* करना हो गर ज्यादा काम, सुरक्षा पर दो पहले ध्यान। +* वाहन जरा धीरे चलाना, स्वयं के साथ दूसरों का जीवन भी बचाना। +* नजर तो बस थोड़ी हटी, दुर्घटना लेकिन पूरी घटी। +* सड़क सुरक्षा आपके हाथ, बांध के रखो इसको गांठ। +* सुरक्षा जीवन का अर्थ है, इसके बिना सब व्यर्थ है। +* दुर्घटना पर लगेगा ताला, जब पहनोगे सुरक्षा का माला। +* वाहन को जरा धीरे चलाना और फिर अपना जीवन बचाना। +* पढ़े लिखो की क्या पहचान, सड़क सुरक्षा रखें ध्यान। +* जेबरा क्रॉसिंग का करो प्रयोग, स्वस्थ रहो और बनो निरोग। +* बच्चों से नहीं जिन्हें प्यार, सड़क पर बढ़ाते अधिक रफ्तार। + + +तेज, क्षमा, धृति, शौच (आन्तरिक और वाह्य स्वच्छता अद्रोह, अतिमानिता का अभाव हे भारत अभय से लेकर यहाँ तक के ये सब लक्षण सम्पत्तियुक्त उत्पन्न हुए पुरुषमें होते हैं। +* सफाई के लिए साल में कम से कम १०० घंटे, और हफ्ते में २ घंटे दें। स्वच्छता प्रतिज्ञा +* ईश्वर सफाई से प्रेम करता है। पर्यावरण को ज़रूर स्वच्छ रखा जाना चाहिए। लैला गिफ्टी अकिता +* शब्दों के बीच की हवा को ताजा रखना शाब्दिक स्वच्छता का रहस्य है। डेजन स्टोजनोविक +* सभ्यता वो दुरी है जो आदमी ने स्वयं और अपने मलमूत्र के बीच रखी है। ब्रायन डब्ल्यू अल्डिस +* श्रीमती जो एक बहुत साफ-सफाई रखने वाली हाउसकीपर थीं, लेकिन उनके अंदर अपनी सफाई को गंदगी से भी अधिक असुविधाजनक और अस्वीकार्य बनाने की उत्कृष्ट कला थी। चार्ल्स डिकेंस, +* अपने हाथ साफ़ रखो भगवान को साफ़ हाथ पसंद हैं और इसमें कोई आश्चार्य नहीं की स्वच्छता देवत्व के समान है। इस्राएलमोरे आईवोर +* अपने खाली पॉप कॉर्न टब कचरे में फेंकिए और आगे आने वाले लोगों के लिए पूरा सिनेमा साफ़ हो जायेगा। मालती भोजवानी +* स्वच्छता की शुरुआत मन, विचार और हृदय की पवित्रता के साथ होती है। विश्वास छवन +* साफ-सफाई कला की आफत है। क्रैग ब्राउन +* स्वच्छता और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है जब देवत्व की संभावना काम हो। पी जे ओ’रुरके +* साफ-सफाई बहुत जरूरी है। यदि आप बच्चों को किचन पूरा तहस-नहस करके जाने देती हैं तो वास्तव में आप उन्हें कुछ भी नहीं सीखतीं। एमेरिल लैगेसे +* मेरा मानना है कि शौचालय मंदिरों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। जयराम रमेश +* भारत का नागरिक होने के नाते ये हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है कि हम गांधी जी के स्वच्छ भारत के सपने को २०१९ में उनकी 150 वीं जयंती तक पूरा करें। नरेन्द्र मोदी +* मैं देख रहा हूँ कि गांधी जी इन चश्मो से देख रहे हैं कि हमने भारत को स्वच्छ बनाया है कि नहीं, हमने क्या किया है और हमने क्या किया है । नरेन्द्र मोदी +* देश की सफाई एकमात्र सफाईकर्मीयों की जिम्मेदारी नहीं है। क्या इसमें नागरिकों की कोई भूमिका नहीं है? हमें इस मानसिकता को बदलना होगा। नरेन्द्र मोदी +* स्वच्छता को एक राजनीतिक औजार के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे सिर्फ देशभक्ति और स्वास्थ्य के प्रति प्रतिबद्धता से जोड़ कर देखा जाना चाहिए। नरेन्द्र मोदी +* विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में सफाई और स्वच्छता की कमी के कारण औसतन प्रति व्यक्ति ६५०० रूपये बर्वाद होते हैं। स्वच्छ भारत सार्वजानिक स्वास्थ्य और गरीबों की आय की सुरक्षा पर सार्थक प्रभाव डालेगा, और अन्ततोगत्वा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान देगा। नरेन्द्र मोदी +* हम मंगल ग्रह पर पहुंच गए । कोई प्रधानमंत्री या मंत्री नहीं गया। यह लोगों ने किया, ये हमारे वैज्ञानिक थे जिन्होंने ये किया। तो क्या हम एक स्वच्छ भारत का निर्माण नहीं कर सकते नरेन्द्र मोदी + + +* आधुनिक मनोविज्ञान की आत्मा की समझ सन्देह के घेरे में है। इसमें दार्शनिक जीवन की सर्वोच्चता की भावना के लिये कोई स्थान नहीं है। इसको शिक्षा की कोई समझ नहीं है। इसलिये इस तरह की मानसिकता से युक्त बच्चे एक तरह से तहखाने में जी रहे होते हैं और सामान्य बुद्धि के ही स्तर तक आने के लिये उन्हें बहुत अधिक चढ़ना पड़ता है, जो कि ज्ञान के स्तर तक की ऊँचाई तक पहुँच���े की उनकी यात्रा का आरम्भ मात्र है। वे जो कुछ अनुभव करते हैं या जो कुछ देखते हैं, उन पर उनको विश्वास नहीं रहता। उनके पास जो विचारधारा होती है वह वह उनको तर्कशक्ति प्रदान नहीं करती बल्कि उनके भय को तार्किक आधार देती है। एलन ब्लूम, The Closing of the American Mind (1987 पृष्ठ 121 + + +* मनुष्य की सारी समस्याओं की जड़ उसकी स्मृति है। +* भाषा स्मृतियों का पुंज है और विलक्षण यह है कि स्मृतियाँ पुरानी और एकदम ताज़ा भाषा में घुली-मिली होती हैं। केदारनाथ सिंह +* अच्छी यादों का आनंद उठाएं। लेकिन अपने बाकी बचे दिनों को पीछे देखने में नष्ट न करें। रैंडी अलकॉर्न +* जिन्हें हम याद कहते हैं, वे हमारे वर्तमान विचार ही होते हैं। जिन्हें हम पूर्वानुमान कहते हैं, वे भी हमारे वर्तमान विचार होते हैं। कोई भी व्यक्ति वर्तमान के अलावा कभी किसी अन्य क्षण में नही जिया है। एमेट फॉक्स +* विज्ञान और तकनीकी ने हमारे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाएं हैं, लेकिन स्मृति, परंपरा और मिथक हमारी प्रतिक्रिया को दर्शाते हैं। आर्थर एम. स्लेसिंगेर +* जब दोनों माता पिता बारी- बारी से अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत करते हैं, तो यह सिर्फ यादें बनाने में ही मदद नही करता, बल्कि यह आपस में विश्वास जगाने में भी सहायक होता है। एस. जे. बेकर +* एक मजबूत और स्वस्थ स्मृति होने पर आप हर तरह की मानसिक बाधाओं को पार कर अपने निजी, व्यावसायिक और शैक्षणिक जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके बिना आप स्वयं को हर राह पर संघर्ष करते हुए पाएंगे। जॉन पार्कर +* किसी बात पर विश्वास करना या उसके होने की इच्छा करना यह पूर्णतः हमारी स्मृति में एकत्रित जानकारी की उपलब्धता पर निर्भर करती है। योंग कांग चैन +* एक अच्छी स्मरण शक्ति मस्तिष्क की ऊर्जा और शक्ति पर निर्भर करती है। मैट फॉक्स +* कल्पना शक्ति में आपकी स्मृति को निखारने की अद्भुत क्षमता होती है। यह आपको क्षितिज से परे विचरने देती है। आपके याद रखने के लिए यह कई सारी कहानियों और चित्रों को एक साथ जोड़कर, यह आपकी स्मृति को और भी अधिक मज़बूत बना देती है। विलियम डी +* जो व्यक्ति प्रशासन से अनुरोध करके एक बहस शुरू कर रहा है, वह अपनी बुद्धि का प्रयोग नही कर रहा है। वह तो बस अपनी स्मृति का उपयोग कर रहा है। लियोनार्डो डा विन्ची +* आपने जो कुछ सीखा है, आप उसे जितना अधिक लोगों के साथ साझा करते हो, आपकी स्मृ��ि में वह जानकारी उतनी ही अधिक मजबूती के साथ जमी रहेगी। स्टीव ब्रुनकहोर्स्ट +* एक आसान स्मृति का नियम यह है कि आप किसी भी तरह की नई जानकारी को याद कर सकते हो, अगर वह किसी ऐसी चीज़ से जुडी हो जिसे आप पहले से जानते हो या आपको वो याद हो। हैरी लॉरेन +* इससे फर्क नही पड़ता कि आपने अपने भूतकाल में क्या किया, क्योंकि अब आप उसे बदल नही सकते। बल्कि आप यह कर सकते हैं कि आप अपने परिवार और लोगों के साथ बनाई गई अच्छी यादों का स्मरण करके खुश रहिये। ज़ो मैकी +* स्मृति आपके निजी अनुभवों का एक ब्यौरा होती हैं। यह ब्यौरा परीक्षण और त्रुटि तथा हार और जीत से जुड़ा होता है। आपकी पिछली असफलताएं आपको वही पुरानी गलतियां दोहराने से बचाती हैं। विल्फ्रेड पिटर्सन + + +: महान लोग जिस मार्ग से गये हैं, वही सही रास्ता है। +* जिस रास्ते को आप नही चुनते हो, उससे जुड़ी सबसे मुश्किल बात यह है कि वह रास्ता आपको पता नही कहाँ तक पहुंचा सकता था। लिसा वांगटे +*धर्म परायण व्यक्ति न्याय के पथ से कभी विचलित नही होते, चाहे नीति में निपुण लोग उनकी प्रशंसा करें या निन्दा करें, चाहे उन्हे सम्पत्ति मिलती हो या छिनती हो, चाहे आज ही मृत्यु होने वाली हो या युगों के बाद। +* हम एक आदर्श रास्ते की खोज में दिनोदिन इन्तजार करते रहते हैं कि शायद वह अब मिलेगा, किन्तु हम भूल जाते हैं कि रास्ते चलने के लिए बनाये जाते हैं, इन्तजार के लिए नहीं। अज्ञात +* जब एक बार सही पथ के अनुगमन की इच्छा ही नहीं रहे तो यह अनुभूति ही नहीं हो सकती कि गलत क्या है। अज्ञात + + +: अन्धकार में प्रवेश करने के लिये ऐसा दीपक जलाना चाहिये जिसका आधार (पेंदी) सत्य की हो, उसमें तेल तप का हो, उसकी बत्ती दया की हो, और लौ की शिखा क्षमा की हो। +: संध्या-काल मे चन्द्रमा दीपक है, प्रातः काल में सूर्य दीपक है, तीनों लोकों का दीपक धर्म है और सुपुत्र कुल का दीपक है। +: गुणवान व्यक्तियों के गुण उनसे भी अधिक गुणवान व्यक्तियों की उपस्थिति में उसी प्रकार नहीं दिखाई देते हैं जैसे कि दीपक की लौ से उत्पन्न हुआ प्रकाश रात्रि में ही दिखाई देता है और सूर्य के उदय होने पर प्रभावी नहीं रहता। +: कबीरदास जी कहते हैं कि सतगुरु ने मुझे ज्ञान रूपी दीपक देकर उसमे भक्ति रूपी तेल भर दिया है। इसके प्रकाश में मैंने अपनी सारी आवश्यक वस्तुएं खरीद ली है। अब इस बाजार (मृत्युलोक) में फिर से लौटकर नहीं आउंगा। +: नर रूपी पतंग (कीट) के लिये माया दीपक के समान है जिस पर वह घूमघूमकर आता है (और इसकी लौ से जल जाता है)। कबीरदास कहते हैं कि गुरु के द्वारा दिये गये सत्यज्ञान से इसमें से एक-आध बच पाते हैं। +: युवा स्त्रियों का शरीर दीपक की लौ के समान है। हे मन! तू उसका पतिंगा न बन। काम और मद को छोड़कर श्री रामचन्द्रजी का भजन कर और सदा सत्संग कर॥ + + +: जिस तरह नेत्रहीन व्यक्ति के लिये दर्पण किसी काम का नहीं होता, उसी तरह जिसके पास स्वप्रज्ञा (इंद्रियातीत ज्ञान) के रूप में नेत्र न हों, उसके लिये शास्त्ररूपी दर्पण कुछ काम का नहीं है। +* विद्या के समान कोई दूसरा नेत्र नहीं है। वेद व्यास +* अक्सर यह कहा जाता है, जब आप मारने वाले होते हो, तब आपकी आँखों के सामने से आपका सारा जीवन गुजरता है। यह बिल्कुल सत्य भी है। इसे ही जीना कहते हैं। टेरी प्रचेट +* आत्मा के पास सौभाग्यवश अपना एक व्याख्याता होता है, जो अक्सर अचेत लेकिन वफादार होता है। चार्लोट ब्रायंट +* शादी से पहले अपनी आँखें खुली रखनी चाहिए और शादी के बाद उन्हें आधी बंद रखनी चाहिए। बेंजामिन फ्रेंक्लिन +* खूबसूरती देखने वाले की आंखों में होती है। अज्ञात +* चेहरा हमेसा मस्तिष्क का प्रतिबिंब होता है, और आंखें दिल के गहरे राज़ बयान कर सकती हैं। स्टी. जेरोम +* केवल अपनी आँखें खोलना ही काफी नहीं है, उनका प्रयोग दुनिया को देखने के लिए करें। अज्ञात +* बच्चे जब किसी नई जगह पर जाते हैं तो उस जगह को लेकर काफी ज़्यादा उत्सुक रहते हैं। ऐसा इसलिए क्यूंकि वे इस दुनिया से डरते नहीं ओरहाँ पामुक +* आंसू प्रकृति द्वारा दिया गया आँखों को मरहम हैं. आँखें उनसे साफ होने के बाद सब कुछ साफ साफ देख सकती हैं.। क्रिश्चियन नेवेल ब्रोव +* मुझे लगता है कि भगवान ने मनुष्य को जो सबसे बड़ा तोहफा दिया है वह देख पाने का नहीं, बल्कि सोच पाने का है। देख पाना आंखो का कार्य है लेकिन सोच पाना और समझ पाना, सीधा दिल से जुड़ा हुआ है। माइल्स मुनरो +* सालों का अनुभव समेटना बुरा नहीं है, लेकिन दुनिया को किसी बच्चे की आंखों से ही देखें। रॉन वाइल्ड +* किसी की आंखें उसका असल स्वरूप हैं, किसी का मूह वह है, जो वह बन गया है। जॉन गैल्सवर्थी +* कोई व्यक्ति अपने पुराने परिचय से तभी पीछा छुड़ा सकता है, जब वह अपना नया परिचय किसी महिला की आंखों में देखने के लिए उत्सुक हो। क्लेर बूथ +* जैसे हमारी आँखों को देखने के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार हमारे मस्तिष्क को चलते रहने के लिए विचारों की आवश्यकता होती है। नेपोलियन हिल + + +दीपावली भारत का पर्व है जिसमें अमावस्या की अंधेरी रात को दीये जलाकर प्रकाश किया जाता है। इसलिये इसे 'प्रकाशोत्सव' भी कहा जाता है। इसे भारत के सभी मूल धर्मों के लोग मनाते हैं। +* दीपावली का शाब्दिक अर्थ "दीपों की पंक्ति" है। परम्परानुसार दीपावली वर्ष के सबसे अन्धकारमय रात्रि को मनायी जाती है। और यही वह समय है जब प्रकाश की आवश्यकता और उसके महत्व को सही प्रकार से समझा जा सकता है। संसार के सभी धर्मों में प्रकाश को भगवान, सत्य तथा ज्ञान का प्रतीक माना गया है। अनन्तानन्द रामबचन, भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय द्वारा आयोजित Diwali does not end when the lights go out 30 अक्तूबर 2013) +* शताब्दियों से दीपावली एक राष्ट्रीय पर्व बन गया है जिसे सभी भारतीय मनाते हैं चाहे वे हिन्दू हों, बौद्ध हों, जैन हों या सिख हों। रीनिता मल्होत्रा दीपावली भारत का प्रकाश पर्व" नेशनल ज्योग्राफिक सोसायटी, में + + +: जो मनुष्य विभिन्न देशों में घूमता है और जो पंडितो के संग रहता है उनकी की सेवा करता है, उस मनुष्य की बुद्धि वैसे ही विस्तारित होती है जैसे जल में तेल की एक बूंद गिरते ही तेल फैलता है। +: दैव यानी भाग्य का विचार करके व्यक्ति को कार्य-संपादन का अपना प्रयास त्याग नहीं देना चाहिए। भला समुचित प्रयास के बिना कौन तिलों से तेल प्राप्त कर सकता है? +: पानी पर गिरा हुआ तेल, शरारती व्यक्ति को बताया हुआ राज, योग्य व्यक्ति को दिया हुआ दान और बुद्धिमान व्यक्ति को दिया गया आध्यात्मिक ज्ञान भले ही कम मात्रा में क्यों न हों, उन वस्तुओं के विशिष्ट गुणों के कारण तेजी से फैलते हैं। +: घी का दर्शन मात्र भी अच्छा होता है (खाना तो अच्छा होता ही है किन्तु तेल तो मुख में डाला हुआ भी अच्छा नहीं होता। ठीक इसी तऱह साधु जनों से झगड़ा अच्छा हो सकता है किन्तु बुद्धिहीन से मिलाप करना उचित नहीं है। +* जैसे तेल समाप्त हो जाने से पर दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर दैव भी नष्ट हो जाता है। +* दूसरे के लिए कितना ही मरो, तो भी अपने नहीं होते। पानी तेल में कितना ही मिले, फिर भी अलग ही रहेगा। मुंशी प्रेमचन्द + + +: ठहरे हुए व्यक्ति का सौभाग्य भी ठहर जाता है। उठ खड़े होने वाले व्यक्ति का सौभाग्य उठ खड़ा हो जाता है तथा सुप्त व्यक्ति का सौभाग्य भी सुप्त हो जाता है। उसी प्रकार गतिमान व्यक्ति का सौभाग्य उसके साथ-साथ चल पड़ता है अर्थात उसके सौभाग्य में भी वृद्धि होने लगती है। +: जो व्यक्ति सदा श्रमशील एवं गतिशील हैं, वही सदा मधुपान (शहद/ अमृत परिश्रम का सुफल) करते हैं। कर्मयोगी को सदा श्रेष्ठ कर्म का श्रेष्ठ परिणाम मिलता है। सूर्य की कर्मठता तथा सृजन शीलता देखिए, क्षण भर भी जो दूसरों के कल्याण के लिये अपने श्रम से विमुख नहीं है। +: देशाटन, बुद्धिमान से मैत्री, वारांगना (गणिका राजसभा में प्रवेश, और शास्त्रों का परिशीलन – ये पाँच चतुराई के मूल है । +: जिस प्रकार बिल में रहने वाले मेढक, चूहे आदि जीवों को सर्प खा जाता है, उसी प्रकार शत्रु का विरोध न करने वाले राजा और परदेस गमन से डरने वाले ब्राह्मण को यह पृथ्वी खा जाती है। +: जो गुणों की खोज में अग्रसर हैं, वे सम्पूर्ण पृथ्वी का भ्रमण करते हैं। +: जो व्यक्ति उनके समक्ष आने वाले हर प्रकार के मार्ग पर चलने के लिए तत्पर हैं, वे श्रेष्ठ होते हैं तथा उनको अभीष्ट प्राप्त होता है। +: बुद्धिमान और वाक्-कुशल व्यक्ति, सारी पृथ्वी का भ्रमण करते हैं। +: तीर्थों का अवलोकन, सर्वत्र परिचय, द्रव्य-संपादन, अनेकानेक आश्चर्य पदार्थों का निरीक्षण, बुद्धि-चातुर्य और सुन्दर भाषा––इतने सब गुण प्रवास में हैं। परन्तु उसमें एक बड़ा भारी दोष भी है कि मुग्धांगना के मधुर अधर का अमृत-प्राशन किये बिना रहना पड़ता है। +: जो कभी बाहर निकलकर सम्पूर्ण पृथ्वी को और अनेक अद्भुत वृत्तान्तों को नहीं देखता, वह मनुष्य कुएँ का मेढ़क है। +* दूसरे देशों का भ्रमण अच्छे राजा और उसके प्रशासन के लिए उपयोगी एवं आवश्यक है। शुक्राचार्य +: पथिक व्यक्ति को मार्ग का ज्ञान स्वयं ही हो जाता है। +: एक दूसरे की पहचान जो वीरता के मापदंड से करते है, वे भ्रमण करते हैं। +: उनके हृदय में सुख व संपत्ती तथा पैरों में पर्यटन होता है। +: उनके मन में संपत्ति, सिर पर राज्य का दायित्व तथा पैरों में पर्यटन होता है। +: शनैः शनैः ही सही, सतत चलते रहने पर, चींटी जैसी छोटी सी जीव भी सहस्रों योजन की यात्रा पूर्ण कर लेती है। +: भिन्न भिन्न देशों में भ्रमण करने वाले तथा विद्वानों के साथ संबंध रखने वाले व्यक्ति की बुद्धि उसी तरह बढ़ती है, जैसे तेल की एक बूंद पानी में फैलती है। +* मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है घुम्मकड़ी। घुम्मकड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता। दुनिया दुःख में हो चाहे सुख में, सभी समय यदि सहारा पाती है, तो घुम्मकड़ों की है………घुम्मकड़ों के काफिले न आते जाते, तो सुस्त मानव जातियाँ सो जाती और पशु से ऊपर नहीं उठ पाती। राहुल सांकृत्यायन +* समदर्शिता घुम्मकड़ का एकमात्र दृष्टिकोण है और आत्मीयता उसके हरेक बर्ताव का सार। राहुल सांकृत्यायन +* यात्रा और जगह का परिवर्तन मन को नया जोश प्रदान करता है। सेनेका +* बिना किसी बहाने के साथ जीवन व्यतीत करें, बिना किसी खेद के साथ यात्रा करें। ऑस्कर वाइल्ड +* इन्सान के यात्रा करने का जूनून ही उसे चाँद तक पहुँचा दिया। अज्ञात +* मैं अपनी डायरी के बिना कभी यात्रा नहीं करता। ट्रेन में पढ़ने के लिए हमेशा कुछ सनसनीखेज होना चाहिए। -ऑस्कर वाइल्ड +* हम इस दुनिया के जंगल में सभी यात्री हैं, और हमारी यात्रा में जो सबसे अच्छा मिलसकता है, वह एक ईमानदार दोस्त है। रॉबर्ट लुई स्टीवेन्सन +* खोज की वास्तविक यात्रा नए परिदृश्य की तलाश में नहीं है, बल्कि इसके लिए नई आँखें होनी चाहिए। मार्सेल प्रूस्ट +* मुझे अब तक की सबसे अच्छी शिक्षा यात्रा के माध्यम से मिली। लिसा लिंग +* लेखन एक यात्रा की तरह है किसी जगह पर जाना अच्छा है, अगर आप रुक कर थक गए हैं । लैंग्स्टन ह्यूजेस +* मैं यात्रा को एक महान सीखने की प्रक्रिया के रूप में देखता हूँ, और मेरा सबसे बड़ा सपना पूरे विश्व की यात्रा करना है। पूजा हेगड़े +* एक जहाज एक बंदरगाह में सुरक्षित है, लेकिन जहाज इसके लिए नहीं बनाए जाते हैं। जॉन ए. शेड +* एक अच्छे यात्री की कोई निश्चित योजना नहीं होती है, और यह पहुँचने का इरादा नहीं है । लओ टजू +* जीवन ज्ञान पाने के लिए एक यात्रा है, फिर एक उछाल लिया जाना चाहिए । डी. एच. लॉरेंस +* वहां अनुसरण न करें जहाँ रास्ता ले जा सकता है। इसके बजाय जाओ जहाँ कोई रास्ता नहीं है और एक निशान छोड़ दो राल्फ वाल्डो इमर्सन +* पर्यटक यह नहीं जानते कि वे कहाँ हैं, यात्रियों को नहीं पता कि वे कहाँ जा रहे हैं। पुल थेरॉक्स +* एक झूठ से दुनिया भर के आधे रास्ते पर जा सकते हैं, जबकि सच्चाई उसे अपने जूते पर डाल रही है । -चार्ल्स स्पार्जन +* मैं यात्रा को एक महान सीखने की प्रक्रिया के रूप में देख रहा हूं, और मेरा सबसे बड़ा सपना दुनिया की यात्रा करना है। अज्ञात +* यात्रा कभी भी धन की बात नहीं होती बल्कि साहस की होती है। पाउलो कोइल्हो +* यात्रा करने से हमारे अंदर नई उर्जा का संचार होता हैं और विचार सकारात्मक होते हैं. कई प्रकार के मानसिक विकार दूर हो जाते हैं। अज्ञात +* केवल वही है जो आप हमेशा अपने साथ ले जा सकते हैं: ज्ञात भाषाएँ, ज्ञात देश, ज्ञात लोग। अपनी याददाश्त को अपना यात्रा बैग बनाने दें। अलेक्सांडर सोल्जहेनित्सिन +* सभी महान यात्रियों की तरह, मैंने जितना याद किया है, उससे अधिक देखा है, और जितना मैंने देखा है उससे अधिक याद है। बेंजामिन डिसरायली +* यात्रा कभी भी धन की बात नहीं होती, बल्कि साहस की होती है। पाउलो कोइल्हो +* यात्रा मन का विस्तार करती है और खालीपन को भर देती है। शेडा सावेज +* यात्रा पैसे की नहीं, बल्कि साहस की बात है। पाओलो कोयल्हो +* वास्तविक खोज-यात्रा नए परिदृश्यों की तलाश में नहीं, बल्कि नई दृष्टि में है। मार्सेल प्राउस्ट +* सफ़र करना यह जानना है, कि हर कोई दूसरे देशों के बारे में गलत है। ऐलडस हक्सले +* पर्यटक यह नहीं जानते हैं कि वे कहाँ हैं, यात्री यह नहीं जानते कि वे कहाँ जा रहे हैं। पॉल थेरॉक्स +* यात्रा और स्थान परिवर्तन, मन में नए जोश का संचार करते हैं। सेनेका +* जीवन में मिलने वाले हर मौके का लाभ उठाये, क्योंकि कुछ चीजें केवल एक ही बार होती हैं। करेन गिब्सट्रेवल +* समय उड़ जाता है, यह आपके लिए नाविक है। रॉबर्ट ओर्बेन +* यात्रा करने से सभी मानवीय भावनाओं में, वृद्धि होती है। पीटर होएग +* कोई विदेशी भूमि नहीं हैं, यह केवल यात्री है जो विदेशी है। रॉबर्ट लुई स्टीवेन्सन +* बिना किसी बहाने के साथ जीवन व्यतीत करें, बिना किसी खेद के साथ यात्रा करें। ऑस्कर वाइल्ड +* पर्यटक यह नहीं जानते कि वे कहाँ हैं, यात्रियों को नहीं पता कि वे कहाँ जा रहे हैं। पुल थेरॉक्स + + +: सत्य, रूप, शास्त्रज्ञान, विद्या, कुलीनता, शील, बल, धन, शूरता और वाक्पटुता ये दस लक्षण स्वर्ग के कारण हैं। +* जिस दिन धरती को स्वर्ग में परिणत कर दिया जायगा, उसी दिन आकाश का स्वर्ग ढ़ह पड़ेगा। आकाश-पाताल के स्वर्ग-नर्क को कायम रखने के लिए, उसके नाम पर बाजार चलाने के लिए, जरूरत है, धरती पर स्वर्ग-नर्क की, राजा-रंक की, दास-स्वामी की। राहुल सांकृत्यायन +* स्वर्ग एक वास्तविक स्थान है. जितना अधिक हम इसके बारे में जानते हैं, उतना ही हमें इसकी आशा करनी चाहिए. जैसा कि मैंन��� अक्सर सुझाव दिया है, स्वर्ग तैयार लोगों के लिए एक तैयार जगह है। डॉन पाइपर +* स्वर्ग का अर्थ है ईश्वर के साथ एक होना। कन्फ्यूशियस +* जिसकी पत्नी अनुकूल है, उसका स्वर्ग यहीं है और जिसकी पत्नी प्रतिकूल है, उसका नर्क यहीं है। दक्ष स्मृति + + +: जगत में जो लोग दुखी हैं उसका कारण उनकी अपनी सुख की इच्छा है और जो लोग सुखी हैं उसका कारण उनकी दुसरों के सुखी होने की इच्छा के कारण है। अर्थात् जो स्वार्थी हैं वह दुःखी हैं और जो परार्थी है वह सुखी हैं। +: जो लोग दूसरों पर आश्रित है वह दुःखी हैं, और स्वाश्रित हैं वे सुखी हैं। +* दुखी दिल, आकाश में भारी बादलों की तरह, थोड़ा पानी गिराने से सबसे अच्छा राहत मिलती है। क्रिस्टोफर मोर्ली +* आज के अच्छे समय, कल के दुखद विचार हैं। बॉब मार्ले +* जिस दिन आपको लगता है कि कोई सुधार नहीं किया गया है वह किसी भी खिलाड़ी के लिए दुखद है। Lionel Messi +* यह दुख की बात है कि हम कभी भी धारणाओं को छोड़ने के लिए प्रशिक्षित नहीं होते हैं। Sebastian Thrun +* मेरा प्राकृतिक स्वभाव बहुत आनन्दपूर्ण है, लेकिन आप जानते हैं, मेरे पास किसी और की तरह बुरे दिन और दुखद क्षण हैं। Tracee Ellis Ros +* अच्छा समय अच्छी यादें बन जाता है; बुरे समय अच्छे सबक बन जाते हैं। अज्ञात +* सबसे पहले, उदासी स्वीकार करें। महसूस करें कि हारने के बिना, जीत इतना महान नहीं है। Alyssa Milano +* मुझे विश्वास है कि अगर आपने उदासी के बारे में नहीं सीखा है, तो आप खुशी की सराहना नहीं कर सकते। Nana Mouskouri +* अवसाद भविष्य का निर्माण करने में असमर्थता है। रोलो मे +* गहरी उदासी में भावनात्मकता के लिए कोई जगह नहीं है। William S. Burroughs +* हम कभी भी एक परिपूर्ण खुशी का स्वाद नहीं लेते; हमारी सबसे खुशहाल सफलताओं को उदासी से मिश्रित किया जाता है। Pierre Corneille +* हमारे सबसे प्यारे गाने वे हैं जो सबसे बुरे विचारों के बारे में बताते हैं। पी बी शेली +* गुलाब और कांटा, और दुख और खुशी एक साथ जुड़े हुए हैं। सादी +* उदासी और क्रोध का अनुभव करने से आप अधिक रचनात्मक महसूस कर सकते हैं, और रचनात्मक होने के कारण, आप अपने दर्द या नकारात्मकता से परे हो सकते हैं। Yoko Ono +* राजनीति का दुखद कर्तव्य एक पापी दुनिया में न्याय स्थापित करना है। Reinhold Niebuhr +* दुखद चीजें होती हैं। वे करते हैं। लेकिन हमें हमेशा के लिए दुखी रहने की जरूरत नहीं है। Mattie Stepanek +* क्या मैं किसी और की दुःख देख सकता हूं, और दुख में भी नहीं? क्या मैं किसी और का दुःख देख सकता हूं, और दयालु राहत की तलाश नहीं कर सकता William Blake +* मुझे अपने आस-पास के लोगों को उदासीनता पसंद नहीं है। मुझे लोगों को खुश करना पसंद है। Tyler + + +ऊर्जा Energy भौतिक विज्ञान की एक मूलभूत संकल्पना (क्न्सेप्ट) है। इसे यांत्रिक कार्य करने की क्षमता के रूप में पारिभाषित किया गया है। इस परिभाषा को कई भौतिकीविद ठीक नहीं मानते। ऊर्जा, आधुनिक प्रौद्योगिकीय जीवन का संचालक भी है। +* ऐसा पाया गया है कि गति में निहित ऊर्जा तथा स्थिति में निहित ऊर्जा का योग सदा नियत होता है ऊर्जा वह राशि है जो कम य अधिक हो सकती है किन्तु इसकी कोई दिशा नहीं होती ऊर्जा संरक्षित होती है, दूसरे शब्दों में इसे नष्ट नहीं किया जा सकता। William Kingdon Clifford Energy and Force Mar 28, 1873) +* यह अनुभ्व करना महत्वपूर्ण है कि भौतिकी में इस समय हमे कुछ भी पता नहीं है कि ऊर्जा क्या है। हम यह नहीं जानते कि ऊर्जा छोटे-छोटे टुकड़ोँ में आती है जिन्की मात्रा निश्चित होती है। रिचर्ड फीनमैन, in The Feynman Lectures on Physics (1964) Volume I, 4-1 + + +* इतिहास का खेल न्यारा है। सदा नये चमत्कार होते रहते हैं। नये गुल भी खिलते रहते हैं। संभव और असंभव ये दोनों शब्द इतिहास में निरर्थक हैं। लाला हरदयाल +* यदि मन को नियंत्रित किया जाय, तो यह चमत्कार कर सकता है। यदि इसे वश में नहीं किया जाता है, तो यह अंतहीन दर्द और पीड़ा पैदा करता है। स्वामी शिवानन्द सरस्वती +* मनुष्य की संकल्प-शक्ति संसार का सबसे बड़ा चमत्कार है। प्रज्ञा सुभाषित, आचार्य श्रीराम शर्मा +* मनुष्य अभी भी इस दुनिया का सबसे बड़ा चमत्कार है और इस धरती की सबसे बड़ी समस्या भी। सारनॉफ +* एक मजबूत सकारात्मक मानसिक रवैया किसी भी अद्भुत दवा की तुलना में अधिक चमत्कार पैदा करेगा। पेट्रीसिया नील +* चाहे सरकार का स्वरुप कुछ भी हो। संघर्ष के बाद ही विश्व में चमत्कार मुमकिन होते हैं। माओ त्से तुंग +* जीने के केवल दो ही तरीके हैं, पहला यह मानना कि कोई चमत्कार नहीं होता, दूसरा कि हर वस्तु एक चमत्कार है। अल्बर्ट आईन्सटीन +* विज्ञान हर साल चमत्कारी सच्चाइयों और चमकदार उपकरणों की एक नई फसल का उत्पादन करता है। कर मुलिंस +* कोई सपना किसी चमत्कार से वास्तविक नहीं बन सकता इसमें पसीना, दृढ संकल्प और कड़ी मेहनत लगती है। कॉलिन पॉवेल +* गोस्वामी जी के प्रादुर्भाव को हिन्दी काव्य क्षेत्र में एक चमत्कार समझना चाहिए। रामचंद्र शुक्ल +* अज्ञात नम्र शब्द, दया दृष्टि, एक नेकदिल मुस्कराहट अद्भुत काम कर सकती है और चमत्कार दिखा सकती है। विलियम हज़लिट +* मानव का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और महामानव होना चमत्कार है। डॉ. सर्वेपल्ली राधाकृष्णन + + +गाय को हिन्दू लोग 'गो-माता' कहते हैं। +: गाय विश्व की माता है। +: गौएं स्वर्ग की सीढ़ी हैं, गौएं स्वर्ग में भी पूजनीय हैं। गौएँ समस्त मनोवांछित वस्तुओं को देनेवाली हैं। अतः गौओं से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ वस्तु नहीं है। +: सभी उपनिषद गाय (के तुल्य) हैं, श्रीकृष्ण उन गायों का दूध निकालने वाले हैं, अर्जुन बछड़े (के समान) हैं, और इन सबके परिणामस्वरूप निकलने वाला दूध गीता रूपी अमृत है। +: को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर॥ बिहारी +: अर्थात: यह जोड़ी चिरजीवी हो। इनमें क्यों न गहरा प्रेम हो, एक वृषभानु की पुत्री हैं, दूसरे हैं बलराम के भाई। +: दूसरा अर्थ यह जोड़ी चिरजीवी हो। इनमें क्यों न गहरा प्रेम हो एक वृषभ (बैल) की अनुजा (बहन) हैं (अर्थात गाय) और दूसरे हलधर (बैल) के भाई (बैल) हैं। +: यहाँ श्लेष अलंकार है। + + +* हीरा वह कोयला है जिसने दबाव में अच्छा काम किया था। हेनरी किसिंजर +* क्रोध करना ऐसे ही है जैसे जलते हुए कोयले को दूसरों पर फेंकने के लिये हाथ में थामे रखना। महात्मा बुद्ध + + +: हम अग्निदेव की स्तुति करते हैं जो यज्ञ (श्रेष्ठतम पारमार्थिक कर्म) के पुरोहित (आगे बढाने वाले देवता (अनुदान देनेवाले ऋत्विज समयानुकूल यज्ञ का सम्पादन करनेवाले होता (देवो का आवाहन करनेवाले) और याचको को रत्नों (यज्ञ के लाभों) से विभूषित करने वाले हैं। +: जो अग्निदेव पूर्वकालिन ऋषियो (भृगु, अंगिरादि) द्वारा प्रशंसित है, जो आधुनिक काल मे भी ऋषि कल्प वेदज्ञ विद्वानो द्वारा स्तुत्य है वे अग्निदेव इस यज्ञ मे देवो का आवाहन करें। +स्तोता द्वारा स्तुति किये जाने पर) ये बढा़ने वाले अग्निदेव मनुष्यो (यजमानो) को प्रतिदिन विवर्धमान (बढ़ने वाला) धन, यश एवं पुत्र-पौत्रादि वीर् पुरूष प्रदान करनेवाले हैं। +: हे अग्निदेव! आप सबका रक्षण करने मे समर्थ है। आप जिस अध्वर (हिंसारहित यज्ञ) को सभी ओर से आवृत किये रहते है, वही यज्ञ देवताओं तक पहुंचता है। +: हे अग्निदेव! आप हवि प्रदाता, ज्ञान और कर्म की संयुक्त शक्ति के प्रेरक, सत्यरूप एवं विलक्षण रूप् युक्त है। आप देवो के साथ इस यज्�� मे पधारें। +: हे अग्निदेव! आप यज्ञकरने वाले यजमान का धन, आवास, संतान एवं पशुओ की समृद्धि करके जो भी कल्याण करते है, वह भविष्य के किये जाने वाले यज्ञो के माध्यम से आपको ही प्राप्त होता है। +: हे जाज्वलयमान अग्निदेव! हम आपके सच्चे उपासक है। श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा आपकी स्तुति करते है और दिन् रात, आपका सतत गुणगान करते हैं। हे देव। हमे आपका सान्निध्य प्राप्त हो। +: हम गृहस्थ लोग दिप्तिमान, यज्ञो के रक्षक, सत्यवचनरूप व्रत को आलोकित करने वाले, यज्ञस्थल मे वृद्धि को प्राप्त करने वाले अग्निदेव के निकट स्तुतिपूर्वक आते हैं। +: हे गाहर्पत्य अग्ने जिस प्रकार पुत्र को पिता (बिना बाधा के) सहज की प्राप्त होता है, उसी प्रकार् आप भी (हम यजमानो के लिये) बाधारहित होकर सुखपूर्वक प्राप्त हों। आप हमारे कल्याण के लिये हमारे निकट रहे। +*आचार्य यास्क ने अग्नि की पाँच प्रकार से निरुक्ति दिखाई हैः +: मनुष्य के सभी कार्यों में अग्नि अग्रणी होती है । +: यज्ञ में सर्वप्रथम अग्निदेव का ही आह्वान किया जाता है । +: अग्नि में पड़ने वाली सभी वस्तुओं को यह अपना अंग बना लेता है। +: निरुक्तकार स्थौलाष्ठीवि का मानना है कि यह रूक्ष (शुष्क) करने वाली होती है, अतः इसे अग्नि कहते हैं । +: अग्नि में सभी दोवताओं का वास होता है। +: उधार कर्जा, ज्वलित अग्नि और सुरक्षित शत्रु हमेशा बढ़ते रहते हैं। इसलिये तो कहते हैं कि ये तीनों का – कर्जा, अग्नि और शत्रु का – पूरी तरहसे नाश होना जरूरी है। +: जिस प्रकार लकडी के टुकडों को आपस में जोर से रगडने से उनमें स्वतः ही अग्नि उत्पन्न हो जाती है और वे तत्क्षण जल उठते हैं, वैसे ही मनुष्य के शरीर में भी क्रोध रूपी अग्नि छुपी होती है और विवाद या झगडे की स्थिति में निश्चय ही सुलग कर उसे जला देती (हानि पहुंचाती है। + + +उठो, जागो, वरिष्ठ पुरुषों को पाकर उनसे बोध प्राप्त करो। छुरी की तीक्ष्णा धार पर चलकर उसे पार करने के समान दुर्गम है यह पथ-ऐसा ऋषिगण कहते हैं। + + +* मैं अदब (साहित्य) और फ़िल्म को एक ऐसा मय-ख़ाना समझता हूँ, जिसकी बोतलों पर कोई लेबल नहीं होता। +* मैं तहज़ीब-ओ-तमद्दुन और सोसाइटी की चोली क्या उतारुंगा, जो है ही नंगी? +* कोई अफ़साना या अदब पारा फ़ोह्श नहीं हो सकता। जब तक लिखने वाले का मक़सद अदब निगारी है। अदब ब-हैसीयत-ए-अदब के कभी फ़ोह्श नहीं होता। +* जब तक इन्सानों में और ख���ास तौर पर सआदत हसन मंटो में कमज़ोरियाँ मौजूद हैं, वो ख़ुर्दबीन से देख देखकर बाहर निकालता और दूसरों को दिखाता रहेगा। +* ज़बान और अदब की ख़िदमत हो सकती है सिर्फ़ अदीबों और ज़बान-दानों की हौसला-अफ़ज़ाई से। और हौसला-अफ़ज़ाई सिर्फ उनकी मेहनत का मुआवज़ा अदा करने ही से हो सकती है। +* हमारे अफ़्साना निगारों की सबसे मज़हकाख़ेज़ तख़लीक़ विलेन है। जिसकी सारी उम्र गुनाह में बसर कराई जाती है और आख़िर में उसे नेकी के समुंद्र में ग़ोता दे दिया जाता है। +* हिन्दुस्तान में अभी तक आर्टिस्ट के सही मआनी पेश नहीं किए गए। आर्ट को ख़ुदा मालूम क्या चीज़ समझा जाता है। यहाँ आर्ट एक रंग से भरा हुआ बर्तन है जिसमें हर शख़्स अपने कपड़े भिगो लेता है, लेकिन आर्ट ये नहीं है और ना वो तमाम लोग आर्टिस्ट हैं जो अपने माथों पर लेबल लगाए फिरते हैं। हिन्दुस्तान में जिस चीज़ को आर्ट कहा जाता है, अभी तक मैं उस के मुताल्लिक़ फ़ैसला ही नहीं कर सका कि वो किया है? + + +* बदलाव की तरफ पहला कदम स्वीकार करना है। एक बार आप खुद को स्वीकार कर लेते हैं आप बदलाव के दरवाजे खोल देते हैं। आपको बस यही करना है। बदलाव कुछ ऐसा नही है जिसे आप करते हैं, ये कुछ ऐसा है जिसकी आप अनुमति देते हैं। +* सत्य एक डेबिट कार्ड है- पहले कीमत चुकाएं और बाद में आनंद लें। झूठ एक क्रेडिट कार्ड है- पहले आनंद लें और बाद में कीमत चुकाएं। +* आपका माइंड एक मैगनेट की तरह है। अगर आप ब्लेसिंग्स के बारे में सोचेंगे तो आप ब्लेसिंग्स को आकर्षित करेंगे। अगर आप प्रोब्लम्स के बारे में सोचेंगे तो आप प्रोबल्म्स को आकर्षित करेंगे। हमेशा अच्छे विचारों के बारे में सोचें और हमेशा पोजिटिव रहे। +* अगर आप किसी की खुशियाँ लिखने वाली पेन्सिल नहीं हो सकते हैं तो एक अच्छा सा इरेजर बनिए जो उनका दुःख मिटा सके। +* यदि आप एक मुट्ठी नमक एक गिलास पानी में डाल दें तो वो खारा लगेगा। यदि आप एक मुट्ठी नमक एक झील में डाल दें तो भी उसका पानी मीठा लगेगा। इसलिए, इसी तरह, अपने पीड़ा को परिवर्तित करने की क्षमता बहुत हद्द तक तय करती है कि हम कितना कष्ट झेलते हैं। यदि हमारा ह्रदय कसा हुआ है और हमारे अहंकार तक सीमित है तो हम ज्यादा भुगतेंगे बजाये तबके जब हमारा ह्रदय हमारी और बाकी लोगों की पीड़ा को अन्तर्निहित करने को तैयार है। +* हमारे जीवन की ज्यादातर समस्याएं हमारे बोलने के लहज़े से पैदा होती हैं। इससे मतलब नहीं है कि हम क्या कहते हैं, इससे मतलब है कि हम कैसे कहते हैं. क्या आप सहमत हैं? +* आपके अलावा आपकी ख़ुशी का कोई इंचार्ज नहीं है। +* अगर आप किसी की हेल्प कर रहे हैं और बदले में कुछ वापस चाह रहे हैं तो आप बिजनेस कर रहे हैं काइंडनेस नहीं। +* अपने जीवन में सफल होने के लिए, उन समस्याओं को भूल जाइए जिनका आपने सामना किया…लेकिन उन समस्याओं से मिलने वाली सीख को मत भूलिए। +* जीवन जन्म और मृत्यु के बीच का छोटा सा अंतराल है। इसलिए इस अंतराल में खुश रहिये और दूसरों को खुश करिए…जीवन के हर एक क्षण का आनंद लीजिये। +* हर कोई कहता है गलती सफलता का पहला कदम है लेकिन हकीकत में गलती को सुधारना सफलता का पहला कदम है। +* लोग आपको हर्ट करते है, भगवान् आपको हील करेंगे । +* लोग आपको हयुमिलीएट करते हैं, भगवान् आपको मैग्निफाई करेंगे। +* लोग आपको जज करते हैं, भगवान् आपको जस्टिफाई करेंगे। +* ज्ञान दो तरह का है। हम वषय के बारे में खुद जानते हैं, या हम ये जानते हैं कि हम इसके बारे में कहाँ से जानकारी जुटा सकते हैं। +* क्रोध को क्रोध से काबू नहीं किया जा सकता है। यदि कोई आपसे क्रोध दिखाता है और आप भी बदले में उसे क्रोध दिखाते हैं तो इसका परिणाम विपत्ति होता है। +* मंदिरों में आरती की तेज आवज़, मस्जिदों में नमाज़ और गिरिजाघरों में प्रार्थना लोगों द्वारा सुनी जाती है, परमेश्वर द्वारा नहीं। ईश्वर केवल मौन आवाज़ सुनता है जो हमारे ह्रदय के अन्तर्भाग से निकलती है… +* हर बार जब हम कहते हैं कि हम ऐसा परिस्थितियों और लोगों की वजह से महसूस कर रहे हैं। हम अपनी मनोदशा के लिए उन्हें दोष दे रहे हैं। +* जब लोहे की रॉड गरम हो जाती है आप उसे किसी भी आकर में ढाल सकते हैं कभी भी अपना मिजाज़ खराब मत करिए नहीं तो लोग आपको उसी तरह ढाल देंगे जैसा वे चाहते हैं। +* सफलता प्रसन्नता की चाभी नहीं है। प्रसन्नता सफलता की चाभी है। अगर आप उस चीज से प्यार करते हैं जो आप कर रहे हैं, आप सफल हो जायेंगे। +* विज्ञान और आध्यात्मिकता जुड़े हुए हैं। दोनों एक ही चीज कहते हैं- विश्वास मत करो, अनुभव करो। +* सफल रिश्ते इस बात पर निर्भर नहीं करते कि हमारे बीच कितनी अच्छी अंडरस्टैंडिंग है। बल्कि इस आर निर्भर करते हैं कि हम कितने अच्छे से मिसअंडरस्टैंडिंग से बच पाते हैं। +* समस्या उतनी ही बड़ी होती है जितनी बड़ी हम पीड़ा उत्पन्न करते हैं। अग�� हम स्थिर रहें, समस्या बहुत छोटी और आसानी से सामना की जा सकने वाली लगती है। +* जीभ में कोई हड्डी नहीं होती…. लेकिन, एक टूटे हुए दिल के लिए ये शक्ति का स्तम्भ हो सकती है… इसे सावधानी से प्रयोग करिए…! +* जीवन कोई प्रतियोगिता नहीं है। हर कोई अपनी यात्रा पर है। अपने चुनावों, क्षमता, मूल्यों और सिद्धांतो के अनुसार जिएं। +* आपका दिमाग आपका सबसे अच्छा दोस्त है अगर आप उसे कंट्रोल करते हैं लेकिन अगर आपका दिमाग आपको कंट्रोल करता है तो वो आपका सबसे बड़ा दुश्मन है। +* आपकी मुस्कान आपके चेहरे पर भगवान् के हस्ताक्षर हैं, उसे अपने आंसुओं से धुलने या क्रोध से मिटने ना दें। +* हर कोई अलग है, कोई भी सही या गलत नहीं है, हम बस अलग हैं। स्वीकार करने का मतलब है कि हम इस अंतर को स्वीकार करते हैं। +* अगर आप खुद पर भरोसा रखें तो कुछ भी सम्भव है। +* अमीर होने के दो तरीके हैं। पहला है वो सब कुछ पा लेना जो आप चाहते हैं, दूसरा है जो कुछ आपके पास है उससे संतुष्ट हो जाना। +* उसके साथ रहने का कोई कारण नही है जो आपको आप जैसे हैं वैसा होने के लिए खराब महसूस कराये। +* सबसे अच्छा रिश्ता वो है जिसमे कल की लड़ाई आज के संवाद को ना रोके। +* अगर आप अपना विजन ऊँचा रखेंगे तो आपका सिर अपने आप उठा रहेगा। +* अपने शब्दों के साथ सावधान रहिये। एक बार वो कह दिए जाएं तो उन्हें सिर्फ माफ़ किया जा सकता है भुलाया नहीं जा सकता। +* हर सुनी-सुनाई बात पर यकीन मत करिए। एक कहानी के हमेशा तीन पहलू होते हैं। आपका, उनका और सच। +* किसी का खराब काम देखकर क्रोध आना मामूली बात है लेकिन क्रोध के बजाये दुआ निकलना महान आत्मा के लक्षण हैं। +* खुश रहने के लिए हमें किसी वजह की तलाश नहीं करनी चाहिए। आगर आप किसी “वजह” से खुश हैं तो आप खतरे में हैं…क्योंकि वो “वजह” आपसे कभी भी छिन सकती है। +* जीवन की हर के समस्या के भीतर एक उपहार छुपा होता है, इसलिए जब समस्या आये तो निराश मत होइए, उसका अंत आपकी उम्मीद से सुन्दर हो सकता है। + + +महाराणा प्रताप भारत के एक महान वीर और योद्धा थे जिन्होंने अपना जीवन देश हित के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने स्वयं कष्टों में जीवन व्यतीत किया लेकिन, फिर भी देश की रक्षा के लिए अंतिम साँस तक वे बाहरी शक्तियों से लड़ते रहे। देश के लिए लड़ते-लड़ते उन्होंने वन में अपना जीवन गुजारा, घास की रोटियां खा कर अपना जीवन जीया फिर भी उन्होंने हार नही�� मानी। +* मनुष्य का गौरव और आत्मसम्मान उसकी सबसे बड़ी कमाई होती है। अतः सदा इनकी रक्षा करनी चाहिए। +* सम्मानहीन मनुष्य एक मृत व्यक्ति के समान होता है। +* मातृभूमि और अपनी माँ में तुलना करना और अन्तर समझना निर्बल और मूर्खों का काम है। +* समय इतना बलवान होता है, कि एक राजा को भी घास की रोटी खिला सकता है। +* जो सुख में अतिप्रसन्न और विपत्ति में डर के झुक जाते हैं, उन्हें न ही सफलता मिलती है और न ही इतिहास में जगह। +* अपने अच्छे समय में अपने कर्म से इतने विश्वास पात्र बना लो कि बुरा वक्त आने पर वो उसे भी अच्छा बना दे। +* जो अत्यंत विकट परिस्थिति में भी झुक कर हार नहीं मानते। वो हार कर भी जीते होते हैं। +* शत्रु सफल और शौर्यवान व्यक्ति के ही होते हैं। +* एक शासक का पहला कर्तव्य अपने राज्य का गौरव और सम्मान बचाने का होता है। +* अपनी कीमती जीवन को सुख और आराम की जिन्दगी बनाकर कर नष्ट करने से बढ़िया है कि, अपने राष्ट्र की सेवा करो। +* गौरव, मान-मर्यादा और आत्मसम्मान से बढ़ कर कीमती जीवन भी नहीं समझना चाहिए। +* अपनो से बड़ों के आगे झुक कर समस्त संसार को झुकाया जा सकता है। +* अन्याय, अधर्म, आदि का विनाश करना पूरे मानव जाति का कर्तव्य है। +* अपने कतर्व्य, और पूरे सृष्टि के कल्याण के लिए प्रयत्नरत मनुष्य को युग युगान्तर तक स्मरण रखा जाता है। +* मनुष्य अपने कठिन परिश्रम और कष्टों से ही अपने नाम को अमर कर सकता है। +* अपने और अपने परिवार के अलावा जो अपने राष्ट्र के बारे में सोचे वही सच्चा नागरिक होता है। +* अगर इरादा नेक और मजबूत है। तो मनुष्य की पराजय नहीं विजय होती है। +* कष्ट, विपत्ति और संकट ये जीवन को मजबूत और अनुभवी बनाते हैं। इनसे डरना नहीं बल्कि प्रसन्नता पूर्वक इनसे जूझना चाहिए। +* सत्य, परिश्रम, और संतोष सुखमय जीवन के साधन हैं। परन्तु अन्याय के प्रतिकार के लिए हिंसा भी आवश्यक है। +* नित्य, अपने लक्ष्य, परिश्रम, और आत्मशक्ति को याद करने पर सफलता का मार्ग सरल हो जाता है। + + +तरुण सागर जैन परम्परा के सुप्रसिद्ध मुनि थे। वे एक साधारण सन्त नहीं बल्कि बड़े ही विद्रोही और क्रांतिकारी मुनि थे। वे प्रतिदिन एक नए नियम का पालन करने की सीख देते थे। उनकी वाणी लोगों के अन्तर्मन को झकझोर देती थी। उन्होंने १३ वर्ष की छोटी उम्र में ही दीक्षा ले ली थी। +26 जून 1967 को मध्य प्रदेश के दमोह जिले के ग्राम गुहजी में उनका जन्म हुआ। उनका पहले का नाम पवन कुमार था। आपने लगभग चार दर्जनों से भी अधिक पुस्तकें लिखें जिसका 6 भाषाओं में अनुवाद किया गया। आपने अपनी दीक्षा आचार्य पुष्पदन्त सागर जी से ली थी। इनका देहावसान 1 सितम्बर 2018 को दिल्ली के राधेपुरी में हो गया। +उनके चिन्तन-मनन से कोई भी विषय अछूता नहीं है। आदर्श गृहस्थ आश्रम, ऐहिक समृद्धि, देश की व्यवस्था, लोक हितकारी राज्य, शासन-प्रशासन, शिक्षा व्यवस्था सब पर उन्होंने मनन किया है। वे देश के प्रथम मुनि थे जिन्होंने दिल्ली के लाल किले से भी अपना प्रवचन किया। ये अपनी अनोखी और कड़वे प्रवचन के लिए जाने जाते हैं। +* समाज व देश आम लोगों की वजह से नहीं बंटा है बल्कि उन खास लोगों की वजह से बंटा है जिन्हें आप संत, मुनि, आचार्य, मौलवी और पादरी कहते हैं। +* अगर यह खास लोग अपने अहम और वहम को छोड़कर सच्चे मन से तख्त और वक्त पर एक हो जाए तो रातों-रात समाज व देश का कायाकल्प हो सकता है। +* पचास लाख साधु-सन्यासी और धर्मगुरु इस देश में है जिनकी किसी भी सामाजिक और राष्ट्रीय परिवर्तन में बड़ी भूमिका हो सकती है। +* जैन धर्म अपने अनुयायी को सिर्फ भक्त बनाकर नहीं रखता, बल्कि उसे खुद भगवान बनने की भी छूट देता है। +* जैन धर्म हीरा है मगर दुर्भाग्य है, आज यह कोयला बेचने वालों के हाथ में आ गया है। +* युवतियाँ कभी भी घर से भागकर शादी मत करना। विधर्मी से शादी करने पर आपको वह सब भी करना पद सकता है जिसकी कल्पना आपने कभी भी नहीं की होगी। तीन घंटे की फिल्म और वास्तविक जीवन में काफी अंतर होता है। अतः कोई भी काम जाग्रत अवस्था में ही करो। +* मंजिल मिले या न मिले यह मुकद्दर की बात है। लेकिन हम कोशिश नहीं करें यह गलत बात है। + + +अमित शाह भारत के एक राजनेता हैं। सम्प्रति वे भारत के गृहमन्त्री एवं सहकारिता मन्त्री हैं। उन्हें राजनीति का चाणक्य माना जाता है। अमित शाह के ही अध्यक्ष पद पर रहते हुए बीजेपी ने नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। यहां तक की 2014 और 2019 में लोकसभा का चुनाव बहुमत से जीतकर अमित शाह ने अपनी राजनीति के शतरंज का खिलाड़ी साबित किया। +अमित शाह ने गुजरात में अपना राजनीतिक सफर आरम्भ किया था। वहां की राजनीति में मुख्य पदों पर आसीन रहे। जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हुआ करते थे तब वह गुजरात में गृह मंत्रालय का भार संभालते थे। +उन्होंने अनेक क्रान्तिक��री फैसले भी लिए, जैसे धारा 370 को हटाना अनुच्छेद 35 को समाप्त करना। उन्होंने रक्षा सौदा, देश की सीमा की सुरक्षा आंतरिक सुरक्षा आदि अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण कार्यों का निर्वहन किया। +* जीवन में आगे बढ़ना है तो पहले एक लक्ष्य निर्धारित करो कार्य कोई छोटा बड़ा नहीं होता छोटा कार्य करके ही बड़ा कार्य करने का अभ्यास होता है। +* मैं घटता हुआ समुद्र हूं लौट कर वापस अवश्य आऊंगा। +* मैं जब भारत कहता हूं तो मेरा आशय संपूर्ण भारत से है पीओके और अक्साई चीन भी। +* मैं भारत का एक इंच भी अपने देश के शत्रुओं के पास नहीं रहने दूंगा इसके लिए चाहे मुझे अपने प्राण देने पड़े। +* हमारे पूर्वज जो गलतियां करते हैं उसका सुधार करना हमारा दायित्व है हम उन गलतियों के सुधार से ही आगे का सुनहरा भविष्य देख सकते हैं। +* जब कानून का हवाला दिया जाता है तो यह सभी के लिए मान्य होता है चाहे वह किसी भी जाति धर्म का हो जो कानून देश का है वह यहां के निवासियों पर अवश्य लागू होगी। +* शिक्षा किसी एक वर्ग या समुदाय की जागीर नहीं है शिक्षा पर सभी का बराबर अधिकार है इस अधिकार से किसी को वंचित नहीं किया जा सकता। +* भारत सभी धर्मों का आदर करता है यह संविधान उसे अधिकार देता है उस सविधान का गला घोट कर किसी के अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए। +* जब तक देश का युवा आगे नहीं बढ़ेगा उसे आत्मनिर्भर नहीं बनाया जाएगा तब तक देश का विकास संभव नहीं है न्यू इंडिया के सपने को साकार करने के लिए युवाओं को आगे आना होगा। +* देश में स्वच्छता बिना जन-भागीदारी के संभव नहीं है स्वच्छता स्थल की ही नहीं मन की भी प्रासंगिक है। +* व्यक्ति को कमल से प्रेरणा लेना चाहिए वह कीचड़ में रहकर भी स्वयं को निखरता है। +* सरकारे अगर पूर्ण इच्छाशक्ति से कार्य करें तो अपने एक कार्यकाल में भी वह ऐतिहासिक कार्य कर सकती है जिसके लिए जनता हमेशा याद रखे। +* सामान्य तौर पर विजय पाकर व्यक्ति अहंकारी हो जाता है और पराजय का मुख देखकर हतोत्साहित जबकि इन दोनों पर काबू पाकर व्यक्ति स्वयं को महान बना सकता है। +* किसी भी संघर्षशील व्यक्ति के लिए राष्ट्रवाद उसकी प्रेरणा होनी चाहिए और अंत्योदय अंतिम लक्ष्य। +* व्यक्ति को राजनीति से ऊपर उठकर विचार करना चाहिए राष्ट्रहित में कार्य करना चाहिए पार्टी संगठन आदि की विचारधारा राष्ट्र से ऊपर नहीं हो सकती। +* भारतीय संस्कृति विश्व वि���्यात है भारत की पहचान उसकी संस्कृति से है इसको बनाए रखना सभी देशवासियों का कर्तव्य है। +* गरीबी हटाओ आदि के नारे लगाकर गरीबी नहीं हटाई जाती, गरीबी हटाने के लिए गरीब का जीवन को जीना पड़ता है। +* जिस सरकार के पास भविष्य की योजना नहीं होती वह सरकार अपना भंडार भरने का ध्येय रखती है। +* हम किस प्रकार एक श्रेष्ठ व्यक्ति बन सके उसके लिए दिन-रात विचार करना चाहिए श्रेष्ठता से बढ़कर और कुछ नहीं होता यही जीवन की संचित पूंजी होती है। +* चुने गए जनप्रतिनिधि का कर्तव्य होना चाहिए पूंजीवादी विचारधारा से ऊपर उठकर दरिद्र नारायण की सेवा करना। +* राष्ट्र के पुनर्निर्माण और मजबूत नीवं डालने के लिए प्रबल इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। +* शत्रु की निर्बलता योद्धा की ताकत का परिचायक नहीं होती योद्धा अपने बाहुबल और मजबूत इच्छा शक्ति से स्वयं का परिचय देता है। +* समाज का परिवर्तन तभी संभव है जब समाज में समरूपता का भाव जागृत होगा। +* कोई भी बड़ा संगठन एक व्यक्ति के संघर्ष से नहीं खड़ा होता उसको खड़ा करने के लिए कितने ही नीव का पत्थर बनते हैं। +* समाज का कार्य समाज में परिवर्तन के साथ-साथ देश को उन्नति का मार्ग दिखाती है। + + +* सबसे बड़ी सहायता यही की जा सकती है कि उनके सोचने में जो त्रुटि है, उसे सुधार दिया जाए। आचार्य श्रीराम शर्मा]] +* हमारे पास यह आजादी इसीलिए है ताकि हम उन चीजों को सुधार सकें जो सामाजिक व्यवस्था, असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरी हैं, जो हमारे मौलिक अधिकारों की विरोधी है। डॉ भीमराव आम्बेडकर]] +* मुसलमानों में इन बुराइयों का होना दुखद हैं। किन्तु उससे भी अधिक दुखद तथ्य यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज सुधार का ऐसा कोई संगठित आन्दोलन नहीं उभरा जो इन बुराईयों का सफलतापूर्वक उन्मूलन कर सके। हिन्दुओं में भी अनेक सामाजिक बुराईयां हैं। परन्तु सन्तोषजनक बात यह है कि उनमें से अनेक इनकी विद्यमानता के प्रति सजग हैं और उनमें से कुछ उन बुराईयों के उन्मूलन हेतु सक्रिय तौर पर आन्दोलन भी चला रहे हैं। दूसरी ओर, मुसलमान यह महसूस ही नहीं करते कि ये बुराईयां हैं। परिणामतः वे उनके निवारण हेतु सक्रियता भी नहीं दर्शाते। इसके विपरीत, वे अपनी मौजूदा प्रथाओं में किसी भी परिवर्तन का विरोध करते हैं। यह उल्लेखनीय है कि मुसलमानों ने केन्द्रीय असेंबली में 1930 में पेश किए गए बाल व���वाह विरोधी विधेयक का भी विरोध किया था, जिसमें लड़की की विवाह-योग्य आयु 14 वर्ष् और लड़के की 18 वर्ष करने का प्रावधान था। मुसलमानों ने इस विधेयक का विरोध इस आधार पर किया कि ऐसा किया जाना मुस्लिम धर्मग्रन्थ द्वारा निर्धारित कानून के विरुद्ध होगा। उन्होंने इस विधेयक का हर चरण पर विरोध ही नहीं किया, बल्कि जब यह कानून बन गया तो उसके खिलाफ सविनय अवज्ञा अभियान भी छेड़ा। सौभाग्य से उक्त अधिनियम के विरुद्ध मुसलमानों द्वारा छोड़ा गया वह अभियान फेल नहीं हो पाया, और उन्हीं दिनों कांग्रेस द्वारा चलाए गए सविनय अवज्ञा आन्दोलन में समा गया। परन्तु उस अभियान से यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि मुसलमान समाज सुधार के कितने प्रबल विरोधी हैं। भीमराव आम्बेडकर (पृ. 226 ) +* मुस्लिम राजनीतिज्ञ जीवन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को अपनी राजनीति का आधार नहीं मानते, क्योंकि उने लिए इसका अर्थ हिन्दुओं के विरुद्ध अपने संघर्ष में अपने समुदाय को कमजोर करना ही है। गरीब मुसलमान धनियों से इंसा पाने के लिए गरीब हिन्दुओं के साथ नहीं मिलेंगे। मुस्लिम जोतदार जमींदारों के अन्याय को रोकने के लिए अपनी ही श्रेणी के हिन्दुओं के साथ एकजुट नहीं होंगे। पूंजीवाद के खिलाफ श्रमिक के संघर्ष में मुस्लिम श्रमिक हिन्दू श्रमिकों के साथ शामिल नहीं होंगे। क्यों उत्तर बड़ा सरल है। गरीब मुसलमान यह सोचता है कि यदि वह धनी के खिलाफ गरीबों के संघर्ष में शामिल होता है तो उसे एक धनी मुसलमान से भी टकराना पड़ेगा। मुस्लिम जोतदार यह महसूस करते हैं कि यदि वे जमींदारों के खिलाफ अभियान में योगदान करते हैं तो उन्हें एक मुस्लिम जमींदार के खिलाफ भी संघर्ष करना पड़ सकता है। मुसलमान मजदूर यह सोचता है कि यदि वह पूंजीपति के खिलाफ श्रमिक के संघर्ष में सहभागी बना तो वह मुस्लिम मिल-मालिक की भावाओं को आघात पहुंचाएगा। वह इस बारे में सजग हैं कि किसी धनी मुस्लिम, मुस्लिम ज़मींदार अथवा मुस्लिम मिल-मालिक को आघात पहुंचाना मुस्लिम समुदाय को हानि पहुंचाना है और ऐसा करने का तात्पर्य हिन्दू समुदाय के विरुद्ध मुसलमानों के संघर्ष को कमजोर करना ही होगा। भीमराव आम्बेडकर, अपनी पुस्तक ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में, पृ. 229 – 230 ) +* मैंने गत छह माह मुस्लिम इतिहास और कानून (शरीयः) का अध्ययन करने में लगाये। मैं ईमानदारी से हिन्दू मुस्लिम एकता की आवश्यकता और वांछनीयता में भी विश्वास करता हूं। मैं मुस्लिम नेताओं पर पूरी तरह विश्वास करने को भी तैयार हूं। परन्तु कुरान और हदीस के उन आदेशों का क्या होगा जो मानवता को खुदा की पार्टी और शैतान की पार्टी में विभाजित करते हैं।) उनका उल्लंघन तो मुस्लिम नेता भी नही कर सकते। लाला लाजपतराय, सन 1924 में चित्तरंजन दास को लिखे एक पत्र में +: मुई खाल की सांस सों लोह भसम हो जाए। + + +बाबा आमटे 1914 2008) भारत के एक समाजसेवी एवं समाजसुधारक हैं। उनका पूरा नाम मुरलीधर देविदास आमटे है। एक सामजिक कार्यकर्ता के रूप में बाबा आमटे ने कुष्ट रोग पीड़ितों की सेवा की। +बाबा आमटे का जन्म 26 दिसम्बर 1914 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिन्घनघाट शहर में हुआ था। उन्हें डेमियन डट्टन पुरस्कार, रेमन मैगसेसे पुरस्कार, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सम्मान, टेम्पलटन पुरस्कार, राइट लाइवलीहुड पुरस्कार, पद्म श्री, पद्म विभूषण, गाँधी शांति पुरस्कार और अनेक पुरष्कार प्रदान किये गये। 9 फरवरी 2008 को 94 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। +* भविष्य साधारण लोगो के असाधारण दृढ संकल्प से सम्बन्धित है। +* मै एक महान नेता नही बनना चाहता हु मै एक आदमी बनना चाहता हु जो की थोड़े से मिलने पर भी संतुष्ट हो और लोगो के टूटने पर लोगो की सहायता करे, जो मनुष्य ऐसा करता है निश्चित ही वह भगवा रंग के वस्त्रो में किसी पवित्र व्यक्ति से भी बड़ा है यही मेरे जीवन का आदर्श है। +* ख़ुशी आपके अनुभवो का एक तुलनात्मक रूप है जब आप उसकी तुलना उन पालो से करते है जो आपके लिए अच्छी नही रही है और इस तरह आप खुश होते है और इसका आभारी व्यक्त करते है यही ख़ुशी के पल है। +* महान नेता बनने से कही अच्छा है जरुरतमन्दो की सहायता करना, जो मै करना चाहता हूँ। +* मैंने कुष्ट रोग को खत्म करने के लिए किसी की मदद नही की बल्कि लोगो के बीच में इस रोग से पैदा हुए डर को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया। +* खुशियों का अंत हो जाता है जब इसे लोगो के बीच में साझा नही किया जाय। +* खुशी एक सतत रचनात्मक गतिविधि है। +* आनन्द कुष्ट रोग से कही अधिक संक्रामक है जो बहुत तेजी से फैलता है। +* यदि आप सपने में जी रहे है तो यह आपके प्रगति के रुकावट का कारण बनता है। +* एक कुशल कप्तान कभी भी डूबते हुए जहाज का साथ नही छोड़ता है ऐसे देश को भी डूबने से बचाने के लिए बहादुर नाविकों को उभरने चाहिए। +* आप कभी भी गुफा में मृत शेर नही देखते है न ही घोसलों में मृत पक्षी को देखते है तो आप मुझसे क्या चाहते है मै वही मिलता हु जहा जिंदादिल लोग रहते है। +* जीवन जीने के लिए हमेसा कुछ नया सीखते रहना चाहिए। +* कार्य महान बनाता है जबकि दान पाने से लोग अकर्मण्य हो जाते है इसलिए लोगो को दान नही कुछ करने का मौका दीजिये। +* सबसे पहले आपको अपने दिल में भाला लेना है यानी खुद को इतना कठोर बनाना है की कठिनाईयों का डटकर सामना करे तभी आपके सिर पर सफलता का मुकुट पहन सकते है। +* कोई भी बिना एक ऊँगली के रह सकता है लेकिन बिना आत्मसम्मान के जीना व्यर्थ है। + + +* जीवन, सायकिल पर चढ़ने जैसा है। संतुलन बनाये रखने के लिये आपको चलते रहना होगा। अलबर्ट आइन्स्टीन +* आज का व्यापार सायकिल चलाने जैसा है इसे चलाते रहिये अन्यथा आप गिर जाएंगे। Frank Lloyd Wright + + +* जलयान में होना, जेल में होने के समान है, जिसमें डूबने की सम्भावना भी है। सैमुएल जॉन्सन, James Boswell द्वारा 'Life of Samuel Johnson 1759) मे उद्धृत। +* आप जो कोई भी हों, गति और पुनरावलोकन (रिफ्लेक्शन) आपके लिये ही हैं। दैवी जलयान, आपके लिये दैवी सागर पर चल रहा है। वाल्ट व्हिटमैन, Song of the Rolling Earth, 2. + + +परमाणु अस्त्र Nuclear weapons) वे विस्फोटक युक्तियाँ हैं जिनकी नाशक क्षमता का आधार नाभिकीय अभिक्रिया (नाभिकीय विखण्डन, नाभिकीय संलयन या दोनों का उपयुक्त सम्मिश्रण) होती है। परमाणु अस्त्रों की मुख्य विशेषता यह है कि पदार्थ की कम मात्रा का उपयोग करके बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा मिलती है जो विध्वंश का कार्य करती है। + + +* यदि आप संगणक के बारे में कुछ नहीं जानते तो बस इतना याद रखिये कि वे ऐसी मशीने हैं जो वही करतीं हैं जैसा उनको करने के लिये कहा जाता है, लेकिन उसके परिणाम आपको आश्चर्यचकित कर सकते हैं। Richard Dawkins, The Blind Watchmaker (1986 III, p. 50 ISBN 0-393-31570-3 +* आज के ENIAC जैसे कैलकुलेटर में १८ हजार निर्वात नलिकाएँ लगी हुईं हैं और उसका भार ३० टन है। भविष्य के कम्प्यूटरों में सम्भवतः केवल १ हजार निर्वात नलिकाएँ होंगी और उसका भार केवल डेढ़ टन होगा। ऐन्ड्रू हैमिल्टन Brains that Click Popular Mechanics 91 (3 मार्च 1949 pp. 162 et seq at p. 258. +* इस तरह की मशीनें वास्तव में करती क्या हैं? वे और ऐसे कार्य करतीं हैं जो हम बिना सोचे कर सकते हैं। जिन कार्यों को हम बिना सोचे कर सकते हैं यहीं असली खतरा है। फ्रैंक हर्बर्ट, God Emperor of Dune +* सही प्रकार कम्प्यूटर वाइरस प्रसारित करने वाला, या सही टर���मिनल तक पहुँच बना सकने वाला शत्रु भारी मात्रा में क्षति पहुँचा सकता है। जॉर्ज टिनेट (George Tenet अमेरिका के सीआईए के निदेशक Awake! पत्रिका 2001, 5/22 में उद्धृत + + +* अभिकलन (कम्प्युटिंग) का लक्ष्य अन्तर्दृष्टि पैद करना है, संख्याएँ नहीं। रिचर्ड हैमिंग (1962 Numerical Methods for Scientists and Engineers' के प्राक्कथन में + + +* जब दो जातियों में परस्पर संबंध हो जाता है – चाहे वह संबंध मित्रता का हो चाहे अधीनता का हो, चाहे व्यवहार या व्यवसाय का हो, तब उसमें परस्पर भावों, विचारों आदि का विनिमय होने लगता है। जो जाति अधिक शक्तिशालिनी होती है उसका प्रभाव शीघ्रता से पड़ने लगता है और जो कम शक्तिशालिनी या निःसत्व होती है अथवा जो चिरकाल से पराधीन होती है, वह शीघ्रता से प्रभावित होने लगती है। साहित्यालोचन, पृष्ठ-55) +* क्या आप संसार में कहीं का भी एक दृष्टान्त उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो? +* शब्द प्रयोग की दृष्टि से सबसे पहला स्थान शुद्ध हिन्दी के शब्दों को, उसके पीछे संस्कृत के सुगम और प्रचलित शब्दों को, इसके पीछे फारसी आदि विदेशी भाषाओं के साधारण और प्रचलित शब्दों को और सबसे पीछे संस्कृत के अप्रचलित शब्दों को स्थान दिया जाय। फारसी आदि विदेशी भाषाओं के कठिन शब्दों का प्रयोग कदापि न हो। मेरी आत्म कहानी, पृष्ठ -72 पर +* जिन्होंने बाल्यकाल ही से मातृभाषा हिन्दी में अनुराग प्रकट किया; जिनके उत्साह और अश्रान्त श्रम से नागरी प्रचारिणी सभा की इतनी उन्नति हुई; हिन्दी की दशा को सुधारने के लिए जिनके उद्योग को देखकर सहस्रशः साधु-वाद दिए बिना नहीं रहा जाता; जिन्होंने विगत दो वर्षों में, इस पत्रिका के संपादन कार्य को बड़ी ही योग्यता से निबाहा, उन विद्वान बाबू श्यामसुन्दर दास के चित्र को इस वर्ष, आदि में प्रकाशित करके, सरस्वती अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करती है। ‘सरस्वती’ पत्रिका के जनवरी १९०३ के अंक में सम्पादक महावीर प्रसाद द्विवेदी]] +* बाबू साहब ने बड़ा भारी काम लेखकों के लिए सामग्री प्रस्तुत करने का किया है। हिन्दी पुस्तकों की खोज के विधान द्वारा आपने साहित्य का इतिहास, कवियों के चरित्र और उनपर प्रबन्ध आदि लिखने का बहुत सा मसाला इकट्टा करके रख दिया। इसी प्रकार आधुनिक हिन्दी के नए- पुराने लेखकों के संक्षिप्त जीवनवृत्त ‘हिन्दी कोविदमाला’ के दो भागों में संग्रहीत ���िए हैं। शिक्षोपयोगी तीन पुस्तकें ‘भाषा विज्ञान’, ‘हिन्दी भाषा और साहित्य’ तथा ‘साहित्यालोचन’ – भी आपने लिखी या संकलित की है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृष्ठ – 495 पर +* व्याख्या की पूर्णता के लिए विवेचन, तुलना, निष्कर्ष, उदाहरण, निर्णय आदि आवश्यक उपकरणों का भी यथास्थान बाबूसाहब ने प्रयोग किया है। तुलसी की प्रबंधपटुता पर विचार करते हुए आपने ‘वाल्मीकि रामायण’, ‘हनुमन्नाटक’ और ‘अध्यात्म रामायण’ के कथा- प्रसंगों से ‘रामचरितमानस’ की तुलना की है। इसी प्रकार उनके प्रकृति वर्णन की विशेषता बताते हुए आपने सूरदास और केशवदास का भी उल्लेख किया है। बाबूसाहब की व्यावहारिक समीक्षा में प्रासंगिक रूप से यह तुलनात्मक शैली बराबर प्रयुक्त हुई है। रामचंद्र तिवारी हिन्दी का गद्य साहित्य, पृष्ठ- 512 पर + + +* पत्रकारिता वह चीज है जो लोकतंत्र को चलाए रखने के लिए जरूरी है। वाल्टर क्रोंइकाइट +* पूर्ण सत्य पेशेवर पत्रकारिता के क्षेत्र में एक दुर्लभ और खतरनाक वस्तु है। हंटर एस. थोम्प्सन +* हम पत्रकारिता में लोकप्रिय होने के लिए नहीं आते। यह हमारा कर्तव्य होता है कि, हम सच्चाई की तलाश करें और जब तक जवाब नहीं मिले तब तक अपने नेताओं पर लगातार दबाव डालें। हेलन थॉमस +* पत्रकारिता का कार्य है, जनहित में महत्वपूर्ण नई जानकारी को उजागर करना और उस जानकारी को एक संदर्भ में रखना है। ताकि हम उस जानकारी का उपयोग मानव की स्थिति को सुधारने में कर सकें। जोशुआ ओपनहाइमर +* प्रेस आधुनिक जीवन के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है, खासकर लोकतंत्र में। प्रेस के पास जबरदस्त शक्तियां और जिम्मेदारियां हैं। प्रेस का सम्मान किया जाना चाहिए और उसका सहयोग भी। जवाहरलाल नेहरु +* पत्रकारिता का संबंध घटनाओं से है, भावनाओं की काव्य से हैं। पत्रकारिता का संबंध संसार की दृष्टि से है, यह दुनिया को महसूस करने वाली कविता हैं। आर्कीबाल्ड मैकलेश +* पत्रकारिता आपकी जान ले सकती हैं, लेकिन जब तक आप इसमें हैं, तब तक यह आपको जीवित रखेगी। होरेस ग्रीले +* प्रकाशन एक व्यवसाय है, लेकिन पत्रकारिता कभी व्यवसाय नहीं थी और आज भी नहीं है। और न ही यह कोई पेशा हैं। हेनरी ल्यूस +* पत्रकारिता, लोकतंत्र को बनाए रखती है। यह प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तन के लिए ताकत है। एंड्रयू वॉक्स +* पत्रकारिता का क्षेत्र सेवा ���ा क्षेत्र है, इसमें पहले सेवा और बाद में मेवा की अभिलाषा रखनी चाहिए। बाबूराव विष्णु पराडकर, संपादक दैनिक सत्ता, 1920 +* हमें अशिक्षितों की राय देकर, पत्रकारिता हमें समुदाय की अज्ञानता से जोड़े रखती है। ऑस्कर वाइल्ड +* और मेरा मानना है कि, अच्छी पत्रकारिता, अच्छा टेलीविजन हमारी दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकता है। क्रिस्टियन अमनपुर +* पत्रकारिता कोई पेशा नहीं है, यह जनसेवा का माध्यम है, लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा करने, शांति और भाईचारे की भावना बढाने में इसकी भूमिका है। डॉ। शंकर दयाल शर्मा, भारत के पूर्व राष्ट्रपति +* पत्रकारिता को मैं रणभूमि से भी बढ़ी चीज मानता हूँ, यह कोई पेशा नहीं, बल्कि पेशे से भी कोई उंची चीज हैं। जेम्स मैक्डोवाल +* समाज और समाज से पहले ज्ञान और विविध प्रकार की जानकारियां रखकर समाज को शिक्षित करने और मार्ग-निर्देशन की शैली ही पत्रकारिता हैं। जिसमें तटस्थता, स्पष्टता और मूल्यों के प्रति आस्था समाहित रहती हैं। विजय कुलश्रेष्ठ, लेखक +* पत्रकारिता विज्ञान की तरह होनी चाहिए। जहाँ तक संभव हो, तथ्यों का सत्यापन किया जाना चाहिए। यदि पत्रकार अपने पेशे के लिए दीर्घकालिक विश्वसनीयता चाहते हैं, तो उन्हें उस दिशा में जाना चाहिए। जूलियन असांजे +* पत्रकारिता एक रचनाशील शैली हैं। इसके बगैर समाज को बदलना असंभव हैं। अत: पत्रकारों को अपने दायित्व और कर्तव्य का निरवाह निष्ठापूर्वक करना चाहिए। क्योंकि उन्हीं के पैरों के छालों से इतिहास लिखा जाएगा। महादेवी वर्मा +* एक पत्रकार की पहली निष्ठा जनता के प्रति होनी चाहिए। और स्वतंत्र रहना चाहिए। किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत, दलों, संगठनों के दबाव में नहीं आना चाहिए। बल्कि सच्चाई को उजागर करना चाहिए। डॉ० एपीजे अब्दुल कलाम, भारत के पूर्व राष्ट्रपति +* पौराणिक युग में जो स्थान और महत्व नारद मुनि को था, वही स्थान आज समाचार पत्र (पत्रकारिता) का है। उस समय नारद आकश-पाताल की खबरे देवताओं को दिया करते थे। आज वहीं काम समाचार पत्र लोगों के बीच करते हैं। डॉ सुशीला जोशी +* समाचार बोध वह बोध हैं, जिससे पता चलता है कि क्या जरुरी हैं, क्या महत्वपूर्ण हैं, किस बात में लोग रूचि रखते हैं और यही पत्रकारिता हैं। बर्टन रस्कोय +* पत्रकारिता वह चीज है जो लोकतंत्र को चलाए रखने के लिए जरूरी है। वाल्टर क्रोनकाइट +* पत्रकारिता में आपकी जान जा सकती है, लेकिन जब तक आप इसमें है यह आपको जिंदा रखेगी। होरैस ग्रीले +* मेरा अब भी मानना है कि यदि आपका लक्ष्य दुनिया बदलना है तो, पत्रकारिता इसके लिए एक फौरी अल्पकालीन औजार है। टॉप स्टोपर्ड +* खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। कैथरीन ग्राहम +* मैं जर्नलिस्ट बना ताकि दुनिया के दिल के अधिक करीब रहूं। हेनरी ल्यूस +* अशिक्षितों की राय बताकर, पत्रकारिता हमें समाज की अज्ञानता से जोड़े रखती है। ऑस्कर वाइल्ड +* लोकतंत्र की सफलता या विफलता उसकी पत्रकारिता पर निर्भर करती है। स्कॉट पेली +* पत्रकारिता का मुख्य काम है, लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को संदर्भ के साथ इस तरह रखना कि हम उसका इस्तेमाल मनुष्य की स्थिति सुधारने में कर सकें। जोशुआ ओपनहाइमर +* पत्रकारिता में हम लोकप्रियता बटोरने नहीं आते। हमारा काम है सत्य की तलाश करना और जवाब पाने के लिए शासकों के ऊपर दबाव डालना। हेलेन थॉमस +* सत्ता का दुरुपयोग करने वाले ताकतवरों के खिलाफ मोर्चा खोलना अच्छी पत्रकारिता का कर्तव्य है, और जब ऐसा होता है, उनकी ओर से बुरी प्रतिक्रिया आती है। हमें विरोध का सामना करना पड़ता है, और हम मानते हैं कि ऐसा होना अच्छा है। जुलियन असांजे +* पत्रकारिता वह चीज है जो लोकतंत्र को जिंदा रखती है। यह प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तन की ताकत है। -एंड्र्यू वाक्स +* अमेरिका में राष्ट्रपति को चार साल में पद छोड़ना पड़ता है लेकिन पत्रकारिता का राज हमेशा रहता है।–ऑस्कर वाइल्ड +* और मेरा मानना है कि अच्छी पत्रकारिता और अच्छा टेलीविजन दुनिया को बेहतर बना सकते हैं। क्रिस्टियाने आमनपोर +* सूचना के लोकतंत्रीकरण के कारण पत्रकारिता बहुत बदल गई है। कोई भी व्यक्ति इंटरनेट पर कुछ भी डाल सकता है। इसलिए सच का पता लगाना और ज्यादा मुश्किल हो गया है। रॉबर्ट रेडफोर्ड +* पत्रकारिता को बहुत कुछ विज्ञान की तरह होना चाहिए। जहां तक संभव हो, तथ्य सत्यापन योग्य होने चाहिए। यदि पत्रकार टिकाऊ विश्वसनीयता चाहते हैं, तो उन्हें इसी दिशा में बढ़ना चाहिए। जुलीयन असांजे +* लोकप्रियता की संस्कृति यानी पॉपुलर-कल्चर का निम्नतम स्वरूप है- सूचना का अभाव, गलत सूचना, विकृति सूचना और लोक-जीवन के सत्य या वास��तविकता की अवहेलना, जिसने वास्तविक पत्रकारिता को लील लिया है। -कार्ल बर्नस्टीन +* मेरा इकलौता सुझाव यह है कि अपने सपने का अनुसरण करें और वहीं करें जो करना आपको सबसे अच्छा लगता हो। मैंने पत्रकारिता इसलिए चुना क्योंकि मैं ऐसी जगहों पर होना चाहता था जहां इतिहास गढ़े जाते हों। जॉर्ज रैमोस +* लोकतंत्र में पत्रकारिता लोगों को शिक्षित बनाने और हमारे प्राचीन आदर्शों के प्रति सक्रिय बनाने वाली जरूरी ताकत है डोरिस केअर्न्स गुडविन +* पत्रकारिता का एकमात्र लक्ष्य सेवा होना चाहिए। अखबारी प्रेस एक बड़ी ताकत है, लेकिन जैसे अनियंत्रित जल-प्रवाह में गांव के गांव डूब जाते हैं, फसलें बर्बाद हो जाती हैं, उसी तरह अनियंत्रित लेखनी सेवा करने की बजाए विध्वंस लाने का काम करती है। महात्मा गांधी +* मुझे लगता है पीत पत्रकारिता ऐसी चीज है जो हर जगह है, अल्पविकसित देशों से लेकर विकसित देशों में- हर जगह एक जैसी। मारियो वर्गास लियोसा +* प्रकाशन एक व्यापार है, लेकिन पत्रकारिता न कभी व्यापार थी और न ही आज है। न ही यह कोई पेशा है। हेनरी आर. ल्यूस +* पत्रकारिता का वास्ता घटनाओं से है, यह भावनाओं का काव्य है। पत्रकारिता का सरोकार दुनिया से है, यह दुनिया को महसूस करने वाली कविता है। आर्कीबाल्ड मैकलीश +* कुल मिलाकर, विज्ञान को इससे मतलब नहीं होता कि उत्तर क्या होना चाहिए। उसे केवल सही उत्तर पाने से मतलब है। पत्रकारिता को भी बहुत कुछ ऐसा ही होना चाहिए। स्कॉट पेली + + +योग गुरु बेल्लूर कृष्णमचारी सुंदरराज अयंगर (बी.के.एस. अयंगर) आधुनिक समय में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के महान योग शिक्षक थे। आपने योगासन को भारत की सीमाओं से बाहर विदेशों में प्रसिद्धि दिलाई। लाखों विदेशियों ने इनसे योग का प्रशिक्षण लिया। योगाभ्यास की इनकी शैली ‘अयंगर योग’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। योग पर इन्होंने कई प्रामाणिक ग्रंथों की रचना की, जिनमें प्रमुख है ‘लाइट ऑन योग योग प्रकाशिका)। सन् 1991 में इन्हें पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2014 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 2004 में 'टाइम' पत्रिका ने इन्हें दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में सम्मिलित किया। 20 अगस्त 2014 को पुणे में इनका निधन हो गया। +बी के एस अयंगर का जन्म कर्नाटक में कोल्लार जिले के बेल्लूर में 14 दिसंबर 1918 को हुआ था। +* योग केवल चीजों को देखने का नजरिया ही नहीं बदलता, बल्कि यह व्यक्ति को भी रूपान्तरित कर देता है। +* जीवन जीने के लिए है। समस्याएं तो हमेशा रहेंगी। जब वे उत्पन्न हों तो योग के सहारे उन्हें पार करें। +* योग वह प्रकाश है जो एक बार प्रज्ज्वलित हो जाने पर कभी कम नहीं होता, जितना बेहतर आप अभ्यास करेंगे आपकी ज्वाला उतनी ही तेज होगी। +* सांस ही मन का नियंत्रक है। +* आत्मा अलग-अलग नहीं होती, केवल खुद के बारे में हमारी धारणाएं अलग-अलग होती हैं। +* शरीर ही आपका मंदिर है। आत्मा के निवास के लिए इसे शुद्ध और स्वच्छ रखें। +* योग की अवस्था तब होती है जब शरीर की हर कोशिका आत्मा के संगीत का गान करती है। +* योग साधन भी है और साध्य भी। +* योग हमें उन चीजों को सुधारना सिखाता है जिन्हें हम सहन नहीं कर सकते और उन चीजों को सहन करना सिखाता है जिन्हें हम सुधार नहीं सकते। +* मैंने शरीर को साध कर मन को, आत्म को और बुद्धि को साधा। +* हीरे की कठोरता उसकी उपयोगिता का हिस्सा है, लेकिन इसका असली मोल उस चमक में निहित होता है जो इससे होकर निकलती है। +* योग आपको एक ऐसी नई आजादी पाने का अवसर देता है, जिसके अस्तित्व पर आपको हो सकता है यकीन ही न हो। +* योग आपको अपने जीवन में पूर्णता का अहसान दिलाता है, जहां आपको ऐसा नहीं लगता कि आप लगातार टूटे-बिखरे टुकड़ों को जोड़ने में लगे हैं। +* योग सोने की वह चाबी है जिससे अमन, चैन और सुख के द्वार खुलते हैं। +* संसार गतिविधियों से भरी है। लेकिन जो चीज संसार को चाहिए वह है- सजगता और चेतना के साथ किए जाने वाले काम। +* जब आप सांस लेते हैं तो आप ईश्वर की शक्ति ग्रहण कर रहे होते हैं। जब आप सांस छोड़ते हैं तो उस सेवा को दर्शाते हैं जो आप संसार को प्रदान करते हैं। +* आप ईश्वर को कैसे जान पाएंगे यदि आप अपने पांव के अंगूठे को नहीं जानते? +* कुछ भी बलपूर्वक नहीं सिखाया जा सकता, ग्रहणशीलता ही सब कुछ है। +* वास्तविक एकाग्रता सजगता का अटूट धागा है। +* सारे खेल निरर्थक हैं यदि आपको नियम न पता हो‌। +* मैं दार्शनिक की तरह अभ्यास करता हूं। वैज्ञानिक की तरह सिखाता हूं। कलाकार की तरह प्रदर्शन करता हूँ। +* आप अपना ध्यान मेरुदंड सीधा रखने पर केंद्रित करें। आपके मस्तिष्क को सजग रखने का काम आपका मेरुदंड कर लेगा। +* सहिष्णुता में शिक्षण की कला निहित है। विनम्रता में सीखने की कला निहित है। +* आत्मविश्वास, स्पष्टता और करुणा शिक्षक के अनिवार्य गुण हैं। + + +* ज��यादातर लोग सही व्यक्ति की तलाश में लगे रहते हैं, ऐसा करने की बजाए आप खुद सही व्यक्ति बनने की कोशिश कीजिए। ग्लोरिया स्टीनेम +* अच्छे रिश्ते इसलिए अच्छे नहीं होते कि वहां कोई समस्या नहीं होती। वे अच्छे इसलिए होते हैं क्योंकि रिश्ते में बंधे दोनों व्यक्ति रिश्ते को अच्छा बनाने के लिए एक दूसरे की भरपूर परवाह करते हैं। अज्ञात +* अक्सर हम एक स्पर्श, एक मुस्कान, सुकून भरे शब्द, सुनने वाले कान, सच्ची तारीफ या छोटी सी परवाह के महत्व को कम करके आंकते हैं, जबकि इन चीजों में जीवन बदल देने की ताकत होती है। लियो बुस्कैग्लिया +* धारणाएं रिश्तों को दीमक की तरह खा जाती हैं। हेनरी विंकलर +* रिश्ते और विवाह तब सही नहीं चलते जब एक व्यक्ति लगातार सीखता रहे, विकास करता रहे, आगे बढ़ता रहे है और दूसरा व्यक्ति ठहरा रह जाए। कैथरीन पल्सीफर +* कोई समझने वाला आपको मिले यह महत्वपूर्ण नहीं। महत्वपूर्ण है कोई ऐसा मिले जो आपको समझना चाहे। रॉबर्ट ब्रॉट +* यदि हम एक दूसरे के जीवन की मुश्किलों को कम करने के लिए न जिएं तो किस लिए जिएं जॉर्ज ईलियट +* पति-पत्नी का संबंध घनिष्ठ मित्रों के जैसा होना चाहिए। बी.आर. आंबेडकर +* अपने रिश्ते में हर रोज खुश रहना कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है मुश्किल वक्त और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सफलतापूर्वक सामना करना। इपिक्युरस +* चाहे दोस्ती हो या रिश्ता, सारे संबंध विश्वास पर टिके होते हैं। इसके बिना आपके पास कुछ नहीं। अज्ञात +* रिश्ते का उद्देश्य ऐसे किसी व्यक्ति को पाना नहीं है जो आपको पूर्ण कर दे, बल्कि ऐसे व्यक्ति को पाना है जिसके साथ आप अपनी पूर्णता साझा कर पाएं। नील डोनल्ड वॉल्श +* हमेशा दयालु रहने से बहुत कुछ हो सकता है। जैसे कि धूप बर्फ को पिघला देती है, वैसे ही दयालुता से असम्मति, अविश्वास और शत्रुता नष्ट हो जाते हैं। एल्बर्ट स्वेजर +* यह जानना कि कब दूर जाना है और कब नजदीक आना है किसी भी टिकाऊ रिश्ते की कुंजी होता है। डॉमिनिको सीरी एस्ट्राडा +* दो लोगों का मिलना दो रासायनिक पदार्थों के मिलने जैसा है। यदि अभिक्रिया हुई तो दोनों ही रूपांतरित हो जाते हैं। सी.जी.युंग +* किसी के प्रति उदासीनता और उपेक्षा का भाव रखने से अच्छा है खुलकर नापसंद करना। जे.के. रॉलिंग +* यदि आपको क्षमा करना नहीं आता तो आप प्रेम नहीं कर सकते, और यदि आपके अंदर प्रेम नहीं है तो आप किसी को क्ष��ा नहीं कर सकते। ब्रायंट एच. मैकगिल +* एक सफल रिश्ते के लिए जरूरी होता है कई बार प्रेम में पड़ना, लेकिन हर बार बस एक ही व्यक्ति के प्रेम में। अज्ञात +* असल मायने में देना तब होता है जब हम अपने जीवनसाथी को वह चीज देते हैं जो उसके लिए महत्वपूर्ण हो, चाहे हम उस चीज को समझें या न समझें, उसे पसंद करें या न करें, उससे सहमत हो या न हों। + + +* ईश्वर को अपना वकील बनाने वाला, अपना मुकदमा मुफ्त में जीतता है। + + +: जहाँ बहुत से नेता हैं सभी अपने को पण्डित मानने वाले अहंकारी हैं और सभी अपनी महत्ता चाहते हैं, वह समाज नष्ट हो जाता है। +* मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक। +: मुखिया को मुख के समान होना चाहिए। मुँह खाने-पीने का काम अकेला करता है, लेकिन वह जो खाता पीता है, उससे शरीर के सारे अंगों का पालन-पोषण करता है। +* अगर आपको लोगों का नेता बनना है तो उनके आगे नहीं पीछे चलो। लाओ तसु +* अगर मैंने दूसरों की तुलना में आगे देखा है, तो यह इसलिए है क्योंकि मैं दिग्गजों के कंधे पर खड़ा था। आइजैक न्यूटन +* आज कोई छाया में बैठा है क्योंकि किसी ने बहुत समय पहले एक पेड़ लगाया था। वारेन बफेट +* आपको खेल के नियमों को सीखना होगा और फिर, आपको इसे किसी और से बेहतर खेलना होगा। अल्बर्ट आइंस्टीन +* इस समय जहा तक आपको दिख रहा है वहां तक पहुंच जाइये, जब आप वहां पहुंच जायेंगे तो आप और आगे देख पाएंगे। जे- पी. मौरगन +* नेता आशाओं का एक व्यापारी होता है। नेपोलियन बोनापार्ट +* नेता का काम है समाधान ढूंढना, न कि गलतियाँ ढूढ़ना। हेनरी फोर्ड +* नेता को सफलता का रास्ता पता होता है, कैसे जाना है वो जानता है और सभी को रास्ता दिखता है। जॉन सी. मैक्सवेल +* नेता बनने से पहले सफलता का मतलब आपको स्वयं का विकास करना होगा और एक नेता बनने के बाद सफलता का मतलब दूसरों को आगे बढ़ाना होगा। जैक वेल्च +* नेता में आत्मविश्वाश का होना बहुत जरूति है। ऐसा लीडर ही कठिन फैसले लेता है और दूसरों की जरूरतों को समझता है। डगलस मैकआर्थर +* नेता वह होता है जो जानता है कि महत्वपूर्ण चीजों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण चीजों को कब सेट करना है। ब्रैंडन सैंडरसन +* एक समूह के प्रयास के लिए व्यक्तिगत प्रतिबद्धता – यही एक टीम काम करती है, एक कंपनी काम करती है, एक समाज कार्य करता है, एक सभ्यता काम करती है। विंस लोम्बार्डी +* कमजोर व्यक्ति कभी माफ़ नहीं कर सकता, माफ़ करने के लिए एक बड़े और मज़बूत दिल की ज़रुरत होती है। महात्मा गांधी +* केवल अपने जीवन का लक्ष्य अपने दिमाग में रखो और दूसरे विचारों को दिमाग से निकाल दो, यही सफलता का मंत्र है। स्वामी विवेकानंद +* जब लोग बात करते हैं, तो उसे पूरी तरह से सुनें। र्नेस्ट हेमिंग्वे +* जिंदगी सिर्फ एक बार मिलती है, अगर अच्छे से जिओ तो एक ही काफी है। मॅई वेस्ट +* तुम सभी लोगों को कुछ समय के लिए तो मुर्ख बना सकते हो पर सभी लोगो को काफी समय के लिए मुर्ख नहीं बना सकते हो। अब्राहम लिंकन +* तूफान में एकमात्र सुरक्षित जहाज नेतृत्व है। फेय वटलटन +* नेताओं को दूसरों से संबंधित होने के लिए पर्याप्त होना चाहिए, लेकिन उन्हें प्रेरित करने के लिए काफी आगे। जॉन सी मैक्सवेल +* नेतृत्व करना एक क्रिया है, पद (Position) नहीं। डोनाल्ड मैकगॉनन +* प्रतिभा खेल जीतती है, लेकिन टीमवर्क और बुद्धिमता पूरी चैंपियनशिप जीतती है। माइकल जॉर्डन +* मुझे लगता है पहले नेता का मतलब था ताकत, लेकिन अब नेता का मतलब है लोगों को साथ मिलकर आगे बढ़ना। महात्मा गांधी +* मैं किसी भी कठिन काम को करने के लिए किसी आलसी इन्सान को चुनुँगा, क्योंकि वह आलसी इन्सान उस कठिन काम को पूरा करने के लिए कोई न कोई आसान तरीका जरूर ढूंढ निकालेगा। +* यदि आप अब भी वही कर रहें है जो हमेशा से करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा जो हमेशा से मिलता आया है। टोनी रॉबिंस +* यदि उड़ नहीं सकते, तो दौड़ो और दौड़ भी नहीं सकते तो चलो और चल भी नहीं सकते तो रेंगते हुए चलो, लेकिन कभी रुको नहीं, हमेशा आगे बढ़ते रहो। मार्टिन लूथर किंग +* नेतृत्व एक सोच को अपनी क्षमता द्वारा हकीकत में बदलने की कला है। वारेन बेन्नीस +* अगर आप संगठन को मजबूत करना चाहते हैं तो सबसे पहले खुद को मजबूत करिये, आपके मजबूत होने से ही संगठन मजबूर होगा इंदिरा नूई +* अगर आपके कार्य किसी को कुछ करने के लिए प्रेरित करते हैं, सपने देखने के लिए प्रेरित करते हैं, तब ही आप एक अच्छे नेता हैं जॉन क्वींसी एडम +* अगर एक अच्छा नेतृत्व, हमसे ज़्यादा बड़ा कुछ है तो हमें खबरदार होने की ज़रूरत है, होश में आने की ज़रूरत है, क्यूंकि हम ऐसी चीजों का उत्सव मना रहें हैं जो कि आम है, सामान्य है ड्रे डूडली +* अगर तुम उन्हे प्रकाश नहीं दिखा सकते, तो कम से कम उन्हे ऊष्मा तो महसूस करवा ही दो रोनाल्ड रीगन +* अच्छा नेतृत्व हमेशा ईमानदार होता है, भले ही उसे सही ढं�� से दर्शाया न जा सके। ईमानदारी को सफलता से ऊपर रखना जरूरी है शेरिल सैंडबर्ग +* असाधारण नेता, कठिन रास्तों से गुजर कर ही, वो सब कर पाते हैं जो साधारण लोग नहीं कर पाते। अगर लोगों को खुद में यकीन हो तो, यह देखना रोमांचक होगा कि वे क्या ही कर सकते हैं सैम वाल्टन +* आप क्या कहते हैं इससे ज़्यादा प्रभावित यह करता है कि आप क्या करते हैं स्टीफन कोवेय +* उस तरह के लीडर बनें जिसका लोग स्वेच्छा से अनुसरण करें, भले ही आपके पास कोई पद हो या न हो। ब्रायन ट्रेसी +* एक अच्छा नेता बनने के लिए आप चाहेंगे कि लोग आपके समर्थक बनें, और यह जान लीजिए कि कोई नहीं चाहता कि वह ऐसे इंसान को समर्थन दे, जिसे खुद नहीं पता कि वह कहां जा रहा है जोय नमथ +* एक अच्छा नेता बनने के लिए आपको किसी पद पर होने की जरूरत नहीं है हेनरी फोर्ड +* एक अच्छा नेता बनने के लिए सबसे पहले तो यह जानना जरूरी है कि हर मनुष्य के पास कुछ ना कुछ प्रतिभा जरूर है। एक अच्छा नेता उस प्रतिभा को लक्ष्य की तरफ ले जाने के लिए तराश ही लेता है। बेन करसन +* एक अच्छा नेता हमेशा इल्जामों में थोड़ा ज़्यादा और सफलताओं में थोड़ा कम हिस्सा लेता है अर्नोल्ड एच. ग्लैसो +* एक असल नेता, मौकों की तलाश में नहीं रहता, अपितु मौकों का निर्माण करता है मार्टिन लूथर किंग जूनियर +* नेता और एक समर्थक के मध्य केवल सोच का ही फर्क होता है स्टीव जॉब्स +* नेता का कार्य है, अपने लोगों को जहां वे हैं, वहां से, जहां वे जाना चाहते हैं, तक पहुंचाना है हेनरी किसिंगर +* नेतृत्व की सबसे बड़ी परीक्षा किसी भी परेशानी को भांपना है, इससे पहले कि वह परेशानी किसी बड़े खतरे में तब्दील हो जाए अरनोल्ड एच. ग्लेसो +* एक महान व्यक्ति महान लोगों को आकर्षित करता है और उन्हें एक साथ रखना जानता है। जोहान वोल्फगैंग वॉन गोएथे +* एक लीडर की पहली जिम्मेदारी रियलिटी को परिभाषित करना है। अंतिम धन्यवाद कहना है। इनके बीच में नेता नौकर होता है। मैक्स डीप्री +* एक लीडर वह होता है जो रास्ते जानता है, रास्ते चलता है और रास्ते दिखाता है। जॉन मैक्सवेल +* एक लीडर सबसे अच्छा तब होता है जब लोगों को अहसास नहीं होता कि वह मौजूद है, जब उसका काम हो जाता, उसका लक्ष्य पूरा हो जाएगा, और लोग कहें कि हमने इस कार्य को स्वयं किया है लाओ त्सू +* एक ही मोमबत्ती से हजारों मोमबत्तियां जलाई जा सकती हैं, और यह उस सबको जलाने वाली मोमबत्ती की ज़िन्दगी को भी प्रभावित नहीं करेगा गौतम बुद्ध +* छोटे छोटे लक्ष्य बनाएं और छोटी सफलता का प्रयास करें। उसके बाद बड़े लक्ष्य बनाएं और बड़ी तरह सफल हो जाएं। डेविड जोसेफ वर्तज़ +* ज़िन्दगी की कई असफलताओं में लोग यह भी नहीं जानते हैं कि जब उन्होने हार मानी, वे सफलता के कितने अधिक पास थे थॉमस एडीसन +* जिसने कभी आज्ञा का पालन करना नहीं सीखा वह एक अच्छा सेनापति नहीं हो सकता। अरिस्टोटल +* ज़्यादा भाव हमेशा जीत जाते है. नेता जो अपने समर्थकों को खून, माटी, आंसू और पसीना दे सकता है, वही नेता अपने समर्थकों से ज़्यादा से ज़्यादा प्यार पा सकता है। आप मनुष्य है यह अपने आप में ही कम नहीं है जॉर्ज ऑरवेल +* दुनिया में अपनी पहचान बनाना काफी ज़्यादा मुश्किल है। अगर यह आसान होता तो हर कोई इसे कर लेता। लेकिन यह आसन नहीं है। इसे करने के लिए सब्र रखना पड़ता है, इसे करने के लिए अडिग होना पड़ता है, और ऐसा तब ही हो पाता है जब आप रास्ते में असफलताओं का सामना करते हैं बराक ओबामा +* नेता पैदा नहीं होते, वो बनते हैं। वे हर किसी की तरह ही कड़ी मेहनत से बनते है। उनसे यह सीखा जा सकता है कि हमें अपने सपनों को पाने के लिए मेहनत रूपी कीमत चुकानी ही पड़ेगी, चाहे वह सपना कोई भी क्यूं न हो विंस लोम्बार्डी +* नेतृत्व एक कला है, यह कला है किसी से वह करवाने की जो आप कर चुके हो और वह भी करना चाहता है, मगर कर नहीं पा रहा है ड्वीलाइट डी. एसेनहोवर +* नेतृत्व ऐसा हो जो हर व्यक्ति के लिए आशाओं की सीढ़िया बनाए। जस्टिन ट्रेड +* नेतृत्व का मतलब केवल इतना होता है कि लोग आपकी ओर देखकर आत्मविश्वास से भर जाएं। वे केवल आपकी प्रतिक्रिया भर से आत्मविश्वास से भर जायें। अगर आप नियंत्रण में रहेंगे, तो वे भी नियंत्रण में रहेंगे। टॉम लैंडरी +* नेतृत्व के द्वारा दी गई चुनौती, ताकतवर बनने की होती है, निर्दयी बनने की नहीं; दयालु बनो, पर कमजोर नहीं। जिज्ञासु बनो, लेकिन एक मुंहफट नहीं। जमीन से जुड़ो, लेकिन जमीन पर गिरो मत। गर्व करो, घमंड नहीं। व्यंगकार बनो, पर किसी का मजाक मत उड़ाओ। जिम रोहन +* नेतृत्व क्षमता और सीखते रहना एक दूसरे के पूरक हैं। जॉन एफ. केनेडी +* नेतृत्व क्षमता केवल दर्शन और जिम्मेदारी है, यह कोई ताकत नहीं है सेठ बेर्केल +* नेतृत्व क्षमता परम धर्म है, दूसरों का जीवन सवारने के लिए। यह अपने निजी स्वार्थ के लिए किया गया कार्य नहीं हो सकता मै किबकी +* नेतृत्व प्रभाव है। जॉन सी मैक्सवेल +* नेतृत्व, सोच और चरित्र का एक बड़ा ही असाधारण जोड़ है। लेकिन अगर आपको कहा जाए कि आप केवल एक को ही ले जा सकते हैं तो चरित्र लीजिएगा नोर्मन वर्ककॉप +* नेतृत्व, सोचने का एक तरीका है, व्यवहार का एक तरीका है, यह बात करने का एक तरीका है, सबसे ज़्यादा जरूरी है कि यह दर्शाने का एक तरीका है लाॅ ज़ू +* प्रभावित करने वाली नेतृत्व क्षमता पहले आने वाली वस्तुओं को पहले रखती है, लेकिन प्रभावित करने वाला मैनेजमेंट सब कुछ साथ लेकर अनुशासन में कार्य करता है स्टीफन कोवे +* प्रभावी नेतृत्व भाषण देने या पसंद किए जाने के बारे में नहीं है; नेतृत्व गुणों से नहीं परिणामों से परिभाषित होता है। पीटर ड्रूक्कर +* महान नेता हमेशा वे नहीं होते, जिन्होने कुछ महान काम किए हो। महान नेता वे लोग होते हैं जो अपने लोगों से महान कार्य कराते हैं रोनाल्ड रीगन +* महान लोग वे हैं, जो चीजों को आसान कर दें। वे लोग बहस, वाद विवाद और शक के दायरे से हल ढूंढ लाते हैं जो कोई भी ढूंढ सकता है। जनरल कोलिन पॉवेल +* माता पिता से बढ़कर इस दुनिया में कोई भी नेता नहीं है और उनके नेतृत्व से बढ़कर कुछ भी नहीं। शेरी एल. ड्यू +* मुझे ऐसा लगता है कि अगर आप कुछ कर रहे हैं और यह सही निकल जाए तो कुछ नया कीजिए जो और भी ज़्यादा रोमांचक हो। उसी एक कार्य पर ज्यादा देर तक अटके न रहें। यह सोचते रहें की अगला कार्य क्या हो सकता है। स्टीव जॉब्स +* मैं इस आधार से शुरू करता हूं कि नेतृत्व का कार्य अधिक नेता पैदा करना है, अधिक अनुयायी नहीं। राल्फ नादेर +* मैंने जो भी कुछ किया है, उसमें सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण था, उन लोगों को विकसित होने के लिए प्रेरित करना जिन्होने मेरे साथ एक लक्ष्य के लिए प्रेरित होकर कार्य किया था वाल्ट डिज्नी +* प्रबन्धन का अर्थ होता है चीजों को सही करना; नेतृत्व का अर्थ होता है सही चीजें करना। पीटर एफ. ड्रकर +* लीडर बनने के लिए आपको किसी उपाधि की आवश्यकता नहीं है। Multiple Attributions +* लीडर बनने से पहले आपकी सफलता खुद को विकसित करने के बारे में है। जब आप एक लीडर बन जाते हैं, तो सफलता दूसरों को विकसित करने में होती है। जैक वेल्च +* लीडरशिप विज़न को रियलिटी में बदलने की क्षमता है। वॉरेन बेनीसो +* सफल नेताओं की यह आदत होती है कि वे लगभग हर परेशानी में संभावना ढूंढ लेते हैं, जबकि सामान्य लोग हर संभावना में परेशानी ��लाश लेते हैं रीड मार्कहम +* सफलता का उत्सव मनाना अच्छा है लेकिन अपनी हार से सीखना उससे भी ज्यादा ज़रूरी है। बिल गेट्स +* सभी बड़े नेताओं में एक बात साझा थी, वह यह थी कि वे सभी समकालीन लोगों की असल समस्याओं के लिए लड़ रहे थे, समकालीन लोगों की मानसिकताओं से लड़ रहे थे। ज्यादा कुछ नहीं, बस यही नेतृत्व का गुण है जॉन केनेथ गेलब्रेथ +* समुद्र के शांत होने पर तो कोई भी पतवार पकड़ सकता है। पब्लियुस साइरस +* सामान्य व्यक्ति तो शरीफ हो ही सकता है, अगर आप उसका चरित्र आंकना चाहते हैं तो उसे ताकत दीजिए अब्राहम लिंकन +* हम सभी ने कई बार नामुमकिन परिस्थियों में भी संभावनाएं ढूंढ कर निकाली हैं चक स्वीनडॉल +* हमें दुनिया को बदलने के लिए किसी भी तरह के जादू की जरूरत नहीं होती। सारा जादू हमारे अंदर ही मौजूद होता है। हमारे अंदर अच्छा सोच पाने की ताकत हमेशा होती है। जेके रोलिंग +* हर आपके कार्य, एक तरह का साम्राज्य स्थापित करें, दूसरों को प्रभावित करे, सपने देखने को मजबूर करे, सीखने को मजबूर करे, अधिक से अधिक करने के लिए प्रेरित करे, तब ही आप एक महान नेता हैं, अन्यथा नहीं। डॉली पार्टन + + +झुम्पा लाहिड़ी (जन्म 11 जुलाई 1967 एक भारतीय-अमेरिकी उपन्यासकार ,लघु कथाकार और पुलित्जर पुरस्कार विजेता हैं। +"मेरे दादाजी हमेशा कहते हैं कि किताबों के लिए क्या है अशोक ने अपने हाथों में वॉल्यूम खोलने के अवसर का उपयोग करते हुए कहा। "एक इंच भी हिले बिना यात्रा करना।" + + +पर्यावरणवाद Environmentalism) से आशय नैसर्गिक पर्यावरण को संरक्षित रखना, उसको पुनर्जीवित करना, या उसमें और सुधर करना है। उदाहरण के लिये, प्रकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखना, प्रदूषण से बचाना आदि। +* खुशी की एक पहली शर्त यह है कि मनुष्य और प्रकृति के बीच का जुड़ाव न टूटे। लियो टॉल्सटॉय +* जो देश अपनी धरती को नष्ट करता है खुद नष्ट हो जाता है। जंगल हमारी धरती के फेफड़े हैं जो हवा को शुद्ध और ताजा बनाकर लोगों को नवीन शक्ति प्रदान करती है। फ्रैंकलीन डी. रूजवेल्ट +* धरती हर व्यक्ति की पर्याप्त जरूरतें पूरी कर सकती है, लेकिन किसी की लालच नहीं। महात्मा गांधी +* प्रकृति को गहराई से देखिए, आप हर चीज बेहतर समझ पाएंगे। अल्बर्ट आइंस्टीन +* मत भूलिए कि आपके नंगे पैरों का स्पर्श पाकर धरती खुश होती है और हवा को आपके बालों से खेलना भाता है। खलील जिब्रान +* महसूस क���जिए कि रेत के एक कण में सारा संसार है, और एक वनफूल में सारा स्वर्ग; अपनी हथेली पर अनंत और क्षण के अंदर शाश्वत समय का आनंद लीजिए। विलियम ब्लेक +* पृथ्वी रूपी अंतरिक्ष यान में कोई यात्री नहीं है। हम सभी इसके चालक दल के सदस्य हैं। मार्शल मैकलुहन +* कभी-कभी पूरी तरह मुक्त हो जाइए, और पहाड़ों पर जाइए या एक सप्ताह जंगल में बिताइए। अपनी आत्मा को धोकर साफ कर लीजिए। जॉन मुइर, प्रकृतिविद +* राष्ट्र की संपदा उसकी हवा, पानी, मिट्टी, जंगल, खनिज, नदियां, झीलें, सागर, प्राकृतिक सौंदर्य, वन्यजीवों के पर्यावास और जैवविविधता होती है। गेलॉर्ड नेल्सन +* विज्ञान का सही उपयोग प्रकृति पर विजय पाना नहीं बल्कि उसमें जीना है। बेरी कॉमनर +* जब आखिरी पेड़ काट दिया जाएगा, आखिरी मछली पकड़ ली जाएगी और आखिरी नदी प्रदूषित हो जाएगी; जब सांस लेने वाली हवा हमें बीमार बनाएगी, तब हमें पता चलेगा कि दौलत बैंक अकाउंट में नहीं होता और खाने में आप रुपए-पैसे नहीं खा सकते, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। ऐलैनिस ओबोम्साविन +* हममें से ज्यादातर लोग पुनर्चक्रण (रिसाइकल) और पुनःउपयोग के बारे में जानते हैं, लेकिन क्या हम आवश्यकता कम करने के बारे में सोचते हैं? आवश्यकता को कम करना शायद संसाधनों के संरक्षण के तीनों उपायों में सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि हम अपनी जरूरतें कम करते हैं, तो हमें पुनर्चक्रण और पुनःउपयोग कम करना होगा। कैथरीन पल्सीफर +* पर्यावरण वह है जहां हम सभी मिलते हैं; जहां हम सबके समान हित जुड़े होते हैं; यही वह चीज है जो हम सभी के पास साझे में होती है। लेडी बर्ड जॉन्सन +* पेड़ों के साथ बिताया गया वक्त कभी बरबाद नहीं होता। ‌ कैटरीना मेयर +* वैश्विक परिवार को सुरक्षित रखना, उसका भरण-पोषण करना, उसके कमजोर सदस्यों की सहायता करना और हम जिस पर्यावरण में जीते हैं उसकी रक्षा करना और उससे प्रेम करना हम सबकी सामूहिक और व्यक्तिगत जिम्मेदारी है। -दलाई लामा +* पृथ्वी दिवस से हमें यह प्रेरणा मिलनी चाहिए कि इस धरती को हम अधिक धारणीय और जीन योग्य बेहतर स्थल बनाने पर विचार करें। स्कॉट पीटर्स +* जीवन के ताने-बाने मनुष्य ने नहीं बुने हैं। हम तो बस इसका एक धागा हैं। हम इस ताने-बाने के साथ जो कुछ भी करते हैं, वह हम खुद के साथ करते हैं। हर चीज आपस में जुड़ी हुई है…एक दूसरे से गुंथी हुई है। मूल अमेरिकी सरदार सिएटल +* मुझे सच में हैरानी होती है कि हमारी इस धरती को बर्बाद करने का अधिकार हमें किसने दिया कर्ट वोनेगट जूनियर +* सच्चा पर्यावरणविद वह है जो यह जानता है कि धरती उसे उसके पूर्वजों द्वारा विरासत में मिली हुई नहीं है बल्कि यह उसके बच्चों की अमानत है। जॉन जेम्स ऑडुबन +* धरती आपको जैसी मिली थी उससे बेहतर छोड़कर जाने के लिए कभी-कभी आपको दूसरों के फैलाए कचरे उठाने पड़ेंगे। बिल नाय +* बिना निष्ठावान प्रबंधन के धरती अपना धन-धान्य हमेशा प्रदान नहीं कर सकती। एक तरफ तो हम यह कहते हैं कि हम इस वसुंधरा को प्यार करते हैं और दूसरी ओर भावी पीढ़ियों के लिए इसे नष्ट करते जाते हैं। पॉप जॉन पॉल II +* धरती एक संगीत है, केवल उनके लिए जो इसे सुन सकते हैं। विलियम शेक्सपियर + + +माधव सदाशिव गोलवलकर 19 फरवरी 1906 को रामटेक, महाराष्ट्र ५ जून १९७३ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक थे। इन्हें प्रायः 'गुरुजी' के नाम सम्बोधित किया जाता है। +मानव स्वयं पर अनुशासन के कठोरतम बंधन तब बड़े आनन्द से स्वीकार करता है, जब उसे यह अनुभूति होती है कि उसके द्वारा कोई महान कार्य होने जा रहा है। +मनुष्य के आत्मविश्वास में और अहंकार में अंतर करना कई बार कठिन होता है। +मानव के हृदय में यदि यह भाव आ जाय कि विश्व में सब-कुछ भगवत्स्वरूप है तो घृणा का भाव स्वयमेव ही लुप्त हो जाता है। +हमारी मुख्य समस्या है – जीवन के शुद्ध दृष्टिकोण का अभाव और इसी के कारण शेष समस्याएँ प्रयास करने पर भी नहीं सुलझ पातीं। +मनुष्य के लिए यह कदाचित अशोभनीय है कि वह मनुष्य-निर्मित संकटों से भयभीत रहे। +इस बात से कभी वास्तविक प्रगति नहीं हो सकती कि हम वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त किये बिना अंधों की भांति इधर-उधर भटकते फिरें। +भारत-भूमि इतनी पावन है कि अखिल विश्व में दिखाई देनेवाला सत तत्व यहीं अनुभूत किया जाता है, अन्यत्र नहीं। +सच्ची शक्ति उसे कहते हैं जिसमें अच्छे गुण, शील, विनम्रता, पवित्रता, परोपकार की प्रेरणा तथा जन-जन के प्रति प्रेम भरा हो। मात्र शारीरिक शक्ति ही शक्ति नहीं कहलाती। +सेवाएँ अपने चारों ओर परिवेष्टित समाज के प्रति भी अर्पित करनी चाहिए। +सेवा करने का वास्तविक अर्थ है – हृदय की शुद्धि; अहंभावना का विनाश; सर्वत्र ईश्वरत्व की अनुभूति तथा शांति की प्राप्ति। +स्वतन्त्रता तो उसी को कहेंगे जिसके अस्तित्व में आने पर हम अपनी आत्मा का, राष्ट्रीय आत्मा का दर्शन करने में तथा स्वयं को व्यक्त करने में सामर्थ्यवान हों। + + +* जो आदमी संकल्प कर सकता है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। इमर्सन +* मेरे शब्दकोष में 'असम्भव' शब्द नहीं है। असम्भव शब्द सिर्फ बेवकूफों के शब्दकोष में पाया जाता है। नेपोलियन बोनापार्ट]] +* जिसके अन्दर साहस नहीं होता उसे हर कार्य असम्भव लगता हैं और जिसके अन्दर साहस होता है वह हर असम्भव कार्य को साधारण समझता है। अज्ञात +* हमारे भारत देश के संविधान का पहला खंड गौ हत्या की रोकथाम पर होना चाहिए। कमजोर आदमी हर काम को असम्भव समझता है जबकि वीर साधारण। मदन मोहन मालवीय]] +* लक्ष्य तब असम्भव लगते हैं, जब आप उनकी ओर नहीं बढ़ रहे होते हैं। माइक हाकिन्स +* दुनिया के अधिकतर कार्य असम्भव लगने के बावजूद ही किए गए हैं। जरूरी बात यह है कि काम पूरा करो। डेल कार्नेगी +* अच्छी नियत से काम करने वालों के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। अधिकतर लोग उतने ही खुश होते है जितना की वो होना चाहते हैं। अब्राहम लिंकन]] +* केवल वो जो बेतुके प्रयास करते हैं असम्भव प्राप्त कर सकते हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन]] +* कठिन वह है जो थोड़ा समय लेता है और संभव वह है जो कुछ अधिक समय लेता है। फ्रित्ज +* जीवन में सफलता पाने के लिए, आत्म विश्वास उतना ही आवश्यक है, जितना जीने के लिए भोजन। कोई भी सफलता बिना आत्मा विश्वास के मिलना असंभव है। श्रीराम शर्मा]] +* भावना के बिना चिंतन असंभव है, यदि हमारे पास केवल भावना की पूंजी है तो चिन्तन कभी भी फलदायक नहीं हो सकता. बहुत सारे लोग आवश्यकता से अधिक भावुक होते हैं, परन्तु वह कुछ सोचना नहीं चाहते। सुभाष चन्द्र बोस]] +* नेतृत्‍व करने वालों के शब्‍दकोशों में असंभव शब्‍द नहीं होता है. कितनी भी बड़ी चुनौतियां क्‍यों न हो, मजबूत इरादें और दृढ़ संकल्‍प से उन्‍हें सुलझाया जा सकता है। स्वामी विवेकानन्द]] +* असंभव का नाम न लो, इस संभव विश्व में अंभव कहां। रामकृष्णदास +* कोई भी जो इतिहास की कुछ जानकारी रखता है वो ये जानता है कि महान सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं के उत्थान के असंभव हैं, सामाजिक प्रगति महिलाओं की सामजिक स्थिति, जिसमे बुरी दिखने वाली महिलाएं भी शामिल हैं, को देखकर मापी जा सकती है। कार्ल मार्क्स +* यह बिल्कुल असंभव है कि प्रकृति के नियमों से ऊपर उठा जाए, जो ऐतिहासिक परिस्थितियों में बदल सकता है, वह महज वो रूप है जिसमे ये नियम खुद को क्रियान्वित करते हैं। कार्ल मार्क्स +* असम्भव की सीमा जानने का एक ही तरीका है असंभव से भी आगे निकल जाना। स्वामी विवेकानन्द +* इस तरह से बोलना असंभव है कि आपको गलत न समझा जा सके। +* स्‍वयं से बाहर ईश्‍वर को ढूँढ़ना असंभव है, क्‍योंकि शरीर ही उसका सबसे बड़ा मंदिर है। स्वामी विवेकानन्द +* डर कहता है, यह असंभव है। अनुभव कहता है, यह जोखिम भरा है। तर्क कहता है, यह उचित नहीं है लेकिन हमारी महत्वकांक्षा कहती है एक बार कोशिश तो कीजिए। +* महिलाओं को पुरुषों की तरह, असंभव करने की कोशिश करनी चाहिए, और जब वे असफल हों तो उनकी असफलता दूसरों के लिए एक चुनौती होनी चाहिए। अमेर्लिया इरहार्ट +* लगभग हर व्यक्ति जो किसी कल्पना को विकसित करता है, उसपर तब तक काम करता है जब तक वो असंभव न लगने लगे, और तब वो उस जगह निराश हो जाता हैं जहाँ निराश नहीं होना चाहिए। टामस ऐल्वा एडिसन +* मुश्किल का मतलब असंभव नहीं है, इसका मतलब केवल यह है कि आपको इसके लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। +* असंभव को अपने आत्मबल से संभव बनाया जा सकता है। तरुण आनन्द +* जो व्यक्ति शांतिपूर्ण क्रांति को असंभव बना देते हैं, वो हिंसक क्रांति को अपरिहार्य बना देंगे। जॉन ऍफ़ केनेडी +* सदा नये चमत्कार होते रहते हैं। नये गुल भी खिलते रहते हैं। संभव और असंभव ये दोनों शब्द इतिहास में निरर्थक हैं। लाला हरदयाल +* मेरा विश्वास है की चीजें खुद को असंभव नहीं बना सकतीं। स्टीफन हॉकिंग +* भावना के बिना चिंतन असंभव है। यदि हमारे पास केवल भावना की पूंजी है तो चिंतन कभी भी फलदायक नहीं हो सकता। सुभाष चन्द्र बोस]] +* यह नितान्त असम्भव है कि कोई व्यक्ति अपूर्ण समाज में पूर्ण बन सके। स्वामी रामतीर्थ +* कोई भी सफलता बिना आत्मविश्वास के मिलना असम्भव है। श्रीराम शर्मा +* अगर आप अदृश्‍य को देख सकते हैं तो आप असम्भव को भी संभव कर सकते हैं। शिव खेड़ा + + +राल्फ वाल्डो इमर्सन 1803 1882) अमेरिका के महान दार्शनिक, लेखक, निबन्धकार, कवि, विचारक और वक्ता थे। वे अमेरिका में नई जागृति लेकर आये थे। इनका जन्म मई 25, 1803 में बोस्टन, मेसाचुसेट्स में तथा देहान्त अप्रैल 27, 1882 कॉन्कर्ड, मेसाचुसेट्स में हुआ था। +* अनुग्रह बिना सुन्दरता, चारे बिना कांटे के सामान है। +* अपने कार्यों को लेकर बहुत डरपोक और शक्की मत बनिए। ये पूरा जीवन एक प्रयोग है। +* अमेरिका अवसर का ���ूसरा नाम है। +* उत्साह, प्रयत्न की जननी है। इसके बिना कभी कुछ महान नहीं प्राप्त किया गया। +* एक औंस कार्य एक टन बात के बराबर है। +* कोई नायक किसी आम आदमी से ज्यादा बहादुर नहीं होता, लेकिन वो पांच मिनट अधिक बहादुर रहता है। +* कमजोर लोग भाग्य में विश्वास करते हैं जबकि साहसी आदमी अपनी मेहनत में। +* जब आप कोई निर्णय ले लेते हैं तो ब्रह्माण्ड उसे पूर्ण करने की साजिश करता है। +* जीतो ऐसे जैसे कि तुम्हे इसकी आदत हो, हारो ऐसे जैसे कि आनन्द उठाने के लिए एक बदलाव किया हो। +* दुनिया में किसी भी और चीज से ज्यादा भय लोगों को हराता है। +* स्वास्थ्य पहला धन है। +* बुरे समय का वैज्ञानिक महत्व है। ये ऐसे अवसर हैं जिसे एक अच्छा शिक्षार्थी नहीं खोना चाहेगा। +* मित्र बनाने का एक ही तरीका है, मित्र बनिए। +* यह जानना कि आपकी वजह से किसी एक व्यक्ति का जीवन आसान हुई है- यही सफलता है। +* ये पूरा जीवान एक प्रयोग है। आप जितने ज्यादा प्रयोग करेंगे उतना अच्छा होगा। +* लोग बस वही देखते हैं, जो देखने के लिए वो तैयार होते हैं। +* हम जितना जानते हैं उससे ज्यादा बुद्धिमान हैं। +* हर एक मिनट जिसमे आप क्रोधित रहते हैं, आप 60 सेकेण्ड की मन की शांति खोते हैं। +* हर एक व्यक्ति को अपने जीवन में अपने द्वारा की गयी गलतियों को धन्यवाद देना चाहिए। +* हर एक समाज में कुछ लोग शाशन करने के लिए पैदा होते हैं और कुछ लोग सलाह देने के लिए। +* अगर एक मिनट के लिए भी आप गुस्से में रहते हैं, आप मन की शांति के साठ सेकंड खो देते हैं। +* अगर तारे दिखाई दें, लेकिन हर हजार साल में एक रात, तो आदमी कैसे अचंभित और पूजा करेगा। +* अनुग्रह बिना सुन्दरता, चारे बिना कांटे के सामान है। +* अपना अधिकतम लाभ उठाएं….उसके लिए बस इतना ही आप में है। +* अपनी पहली दौलत स्वास्थ्य है। +* अपने कार्यों के बारे में बहुत डरपोक और चिड़चिड़े न हों। पूरी जिंदगी एक प्रयोग है। आप जितने अधिक प्रयोग करें उतना ही अच्छा है। +* अपने कार्यों के बारे में बहुत डरपोक और शक्की मत होइए। यह पूरी जिंदगी एक प्रयोग है। +* अमेरिका अवसर का दूसरा नाम है। +* असीम शक्ति हांसिल करने से पहले हमें उसे प्रयोग करने कि बुद्धिमत्ता हांसिल करनी चाहिए। +* आप जो हैं वह बनने के लिए आपको लगातार आमंत्रित किया जाता है। +* आपको अपने सिवाह और कुछ चैन नहीं दे सकता। सिद्धांतों की जीत के अलावा कुछ भी आपको शांति नहीं दिला सकता। +* आपन��� अभी-अभी भोजन किया है, और कितनी ही सावधानी से वधशाला मीलों की सुंदर दूरी में छिपी हुई है, इसमें मिलीभगत है। +* इस जीवन की अधिकांश छायाएँ स्वयं की धूप में खड़े होने के कारण होती हैं। +* इस दुनिया मे डर ही लोगो को अक्सर हरा देता हैं। +* इससे पहले कि हम असीम शक्ति प्राप्त करें, हमें इसे अच्छी तरह से उपयोग करने के लिए ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। +* उत्साह, प्रयत्न की जननी है, बिना इसके कभी कुछ महान नहीं हासिल किया गया। +* उत्साह के बिना कुछ भी अच्छा हासिल नहीं होता। +* उत्साह प्रयास की जननी है, और इसके बिना कभी कुछ भी महान हासिल नहीं हुआ। +* उत्साह सफलता के सबसे शक्तिशाली इंजनों में से एक है। जब आप कोई काम करते हैं, तो उसे पूरी ताकत से करें। अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो। इसे अपने व्यक्तित्व से चिपकाएं। सक्रिय रहें, ऊर्जावान बनें, उत्साही और वफादार रहें, और आप अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। +* उत्साह, प्रयत्न की जननी है, बिना इसके कभी कुछ महान नहीं हांसिल किया गया। +* एक आदमी के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा वह है, और वह जैसा है वैसा ही रहेगा। एक आदमी के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा वह हो सकता है, और वह वही बन जाएगा जो उसे होना चाहिए। +* एक ग्राम कार्य, एक टन बात के बराबर होता हैं। +* एक दोस्त होने का एकमात्र तरीका एक होना है। +* एक बलूत में है हजार वनों का निर्माण। +* एक बार जब आप कोई निर्णय ले लेते हैं, तो ब्रह्मांड उसे पूरा करने की साजिश रचता है। +* एक महान व्यक्ति बहादुरी से उद्धरण देता है, और जब उसकी स्मृति उसे एक अच्छे शब्द के साथ सेवा देती है तो वह अपने आविष्कार पर आकर्षित नहीं होगा। +* एक महान व्यक्ति हमेशा छोटा होने को तैयार रहता है। +* एक हीरो एक आम आदमी से ज्यादा बहादुर नहीं होता, लेकिन वो पांच मिनट अधिक बहादुर रहता है। +* एकमात्र व्यक्ति जिसे आप बनना चाहते हैं, वह वह व्यक्ति है जिसे आप बनने का निर्णय लेते हैं। +* कभी-कभी एक चीख एक शोध से बेहतर है। +* कुछ लोग कहेंगे चाय के एक संदूक में गजब शायरी और उम्दा जज्बा है। +* खुद को ऐसी दुनिया में होना जो आपको लगातार कुछ और बनाने की कोशिश कर रही है, सबसे बड़ी उपलब्धि है। +* जब काफी अंधेरा होता है, तो आप सितारों को देख सकते हैं। +* जहां रास्ता है वहां मत जाएं, इसके बजाय वहां जाएं जहां कोई रास्ता नहीं है और वहां अपनी छाप छोड़ दें। +* जीवन की लम्बाई नही, गहराई म��यने रखती है। +* जिस काम को करने में हम लगे रहते हैं, उसे करना आसान हो जाता है, ऐसा नहीं है कि वस्तु का स्वरूप बदल गया है, बल्कि हमारी करने की शक्ति बढ़ गई है। +* जीतो ऐसे, जैसे कि तुम्हे इसकी आदत हो, हारो ऐसे जैसे कि आनंद उठाने के लिए एक बदलाव किया हो। +* जीवन का उद्देश्य खुश रहना नहीं है। यह उपयोगी होना है, सम्मानजनक होना, दयालु होना, इससे कुछ फर्क पड़ता है कि आपने अच्छी तरह से जिया और जिया है। +* जीवन की लम्बाई नहीं, गहराई मायने रखती है। +* जीवन छोटा है, लेकिन शिष्टाचार के लिए हमेशा पर्याप्त समय होता है। +* जीवन सबक का एक क्रम है जिसे समझने के लिए जीना चाहिए। +* तो क्या गलत समझा जाना इतना बुरा है? पाइथागोरस को गलत समझा गया, और सुकरात, और यीशु, और लूथर, और कॉपरनिकस, और गैलीलियो, और न्यूटन, और हर शुद्ध और बुद्धिमान आत्मा जिसने कभी मांस लिया। महान होने के लिए गलत समझा जाना है। +* दुनिया में किसी भी और चीज से ज्यादा भय लोगों को हराता है। +* धूप में जिएं, समुद्र में तैरें, जंगली हवा पिएं। +* धूर्त पुरुष भाग्य या परिस्थिति में विश्वास करते हैं। मजबूत पुरुष कारण और प्रभाव में विश्वास करते हैं। +* पुण्य का ही प्रतिफल पुण्य है; एक दोस्त होने का एकमात्र तरीका एक होना है। +* प्रत्येक समाज में कुछ लोग शासन करने के लिए पैदा होते हैं, और कुछ सलाह देने के लिए। +* भगवान अपने काम को कायरों द्वारा प्रकट नहीं करेंगे। +* कोई भी महत्वाकांक्षा के बिना काम शुरू नहीं करता। बिना काम के कोई कुछ भी खत्म नहीं करता। पुरस्कार आपको नहीं भेजा जाएगा। आपको इसे जीतना है। +* महापुरुष वह है जो भीड़ के बीच एकांत की स्वतंत्रता को पूर्ण मधुरता के साथ रखता है। +* मित्र बनाने का एक ही तरीका है, मित्र बनिए। +* मैं आज सुबह अपने पुराने और नए दोस्तों के लिए श्रद्धापूर्वक धन्यवाद के साथ उठा। +* मैं उन किताबों को याद नहीं रख सकता जो मैंने अपने द्वारा खाए गए भोजन से अधिक पढ़ी हैं; फिर भी उन्होंने मुझे बनाया है। +* मैं निर्मल और अमर सौन्दर्य का प्रेमी हूँ। जंगल में, मुझे सड़कों या गांवों की तुलना में कुछ अधिक प्रिय और मिलनसार लगता है। शांत परिदृश्य में, और विशेष रूप से क्षितिज की दूर की रेखा में, मनुष्य कुछ हद तक अपनी प्रकृति के रूप में सुंदर दिखता है। +* यदि हम किसी दुर्लभ बुद्धि के व्यक्ति से मिलते हैं, तो हमें उससे पूछना चाहिए कि वह कौन सी कि��ाबें पढ़ता है। +* यह जीवन के खूबसूरत मुआवजे में से एक है कि कोई भी व्यक्ति खुद की मदद किए बिना ईमानदारी से दूसरे की मदद करने की कोशिश नहीं कर सकता है। +* लोग केवल वही देखते हैं, जो वे देखने के लिए तैयार होते हैं। +* लोगों को यह एहसास नहीं होता है कि दुनिया के बारे में उनकी राय भी उनके चरित्र की स्वीकारोक्ति है। +* शांति हिंसा से नहीं मिलती, समझ से ही मिलती है। +* सपना हमें सपने में लाता है, और भ्रम का कोई अंत नहीं है। जीवन मूड की एक ट्रेन की तरह है जैसे मोतियों की एक स्ट्रिंग, और, जैसे ही हम उनके पास से गुजरते हैं, वे कई रंगीन लेंस साबित होते हैं जो दुनिया को अपना रंग रंगते हैं। +* सबसे सुखी मनुष्य वह है जो प्रकृति से उपासना का पाठ सीखता है। +* हम जितना जानते हैं उससे ज्यादा बुद्धिमान हैं। +* हमारी सबसे बड़ी महिमा कभी असफल न होने में नहीं है, बल्कि हर बार असफल होने पर उठ खड़े होने में है। +* हर एक मिनट जिसमे आप क्रोधित रहते हैं, आप ६० सेकेण्ड की मन की शांति खोते हैं। +* हर एक व्यक्ति को अपने जीवन में, अपने द्वारा की गयी गलतियों को धन्यवाद देना चाहिए। +* हर एक समाज में कुछ लोग शाशन करने के लिए पैदा होते हैं और कुछ लोग सलाह देने के लिए। +* हर मिनट के लिए आप क्रोधित होते हैं आप साठ सेकंड की खुशी खो देते हैं। + + +* गरीब होने और टूट जाने में फर्क है। टूटना अस्थायी है, गरीब शाश्वत है। +* वास्तविक दुनिया में आगे बढ़ने वाले प्रायः स्मार्ट नहीं, बल्कि साहसी होते हैं। +* जितना अधिक पैसे आप कमाते हैं उतना प्रायः खर्च कर देते हैं; इसीलिए अधिक पैसे आपको अमीर नहीं बनाते- संपत्ति आपको अमीर बनाती है। +* अगर आप अभी भी वही कर रहे हैं जो आपके मम्मी-पापा ने करने को कहा है (स्कूल जाओ, नौकरी पाओ, और पैसे बचाओ) तो आप बहुत कुछ लूज कर रहे हैं। +* अगर आप अमीर बनना चाहते हैं तो आपको अपना विजन डेवलप करना होगा। आपको समय के कगार पर खड़े हो कर भविष्य में झांकना होगा। +* अगर आप अमीर बनना चाहते हैं तो मोटा नियम यह है कि आप औरों को सीखें कि अमीर कैसे बना जाता है। +* अगर आप आर्थिक रूप से आज़ाद होना चाहते हैं तो आप आज जो हैं उससे अलग व्यक्ति बनना होगा और उन चीजों को जाने देना होगा जो पहले आपको रोकती रही हैं। +* अगर आप कहीं जाना चाहते हैं, तो सबसे अच्छा है कि आप किसी ऐसे को खोज लें जो पहले ही वहां पहुँच चुका हो। +* अगर आप रिच बनना चाहते हैं त��� बस अधिक से अधिक लोगों को सर्व करिए। +* अगर आपको ये एहसास हो कि आप ही समस्या हैं, तब आप खुद को बदल सकते हैं, कुछ सीख सकते हैं और बुद्धिमान बन सकते हैं। अपनी समस्या के लिए दूसरों को दोष मत दीजिये। +* अगर मुझे वहां काम करना है, तो यह कोई व्यवसाय नहीं है। यह मेरा काम बन जाता है। +* अगर मेरे पास नकद है और मैं इसे अचल संपत्ति या अपने व्यवसाय में लगाने का कोई तरीका नहीं समझ पा रहा हूं, तो मैं इसे सोने और चांदी में रखता हूं। +* अधिक पैसा शायद ही कभी किसी की पैसे की समस्या का समाधान करता है। +* अधिकतर लोग दुनिया में बाकी सभी लोगों को बदलना चाहते हैं। मैं आपको बता दूँ, बाकी लोगों की अपेक्षा खुद को बदलना आसान है। +* अधिकांश लोग यह महसूस करने में विफल रहते हैं कि जीवन में, यह नहीं है कि आप कितना पैसा कमाते हैं। आप कितना पैसा रखते हैं। +* अपना दिन का काम रखें, लेकिन वास्तविक संपत्ति खरीदना शुरू करें, देनदारियों को नहीं। +* अपनी भावनाओं के प्रति सच्चे रहें और अपने मन और भावनाओं का उपयोग अपने पक्ष में करें, अपने खिलाफ नहीं +* अपने खर्चे काटने से ज्यादा ज़रूरी अपनी आमदन बढ़ाना है। अपने सपनो को काटने से ज्यादा ज़रूरी अपने साहस को बढ़ाना है। +* अपने डर और संदेह का सामना करिए, और आपके सामने नयी दुनिया खुल जायेगी। +* अमीर और गरीब आदमी के बीच एक मात्र अंतर है कि वो कैसे अपने समय का उपयोग करते हैं। +* अमीर और गरीब की फिलॉस्फी ये है: अमीर अपना पैसा इन्वेस्ट करते हैं और जो बचता है उसे खर्च करते हैं। गरीब अपना पैसा खर्च करते हैं और जो बचता है उसे इन्वेस्ट करते हैं। +* धनी व्यक्ति जानता है कि पैसा एक भ्रम है। +* धनी व्यक्ति जानते हैं कि बचत का उपयोग केवल अधिक पैसा बनाने के लिए किया जाता है, बिलों का भुगतान करने के लिए नहीं। +* धनी बनना सही माइंडसेट, सही शब्दों, और सही प्लान के साथ शुरू होता है। +* अमीर लोग संपत्ति अर्जित करते हैं। गरीब और मध्यम वर्ग उन देनदारियों का अधिग्रहण करते हैं जिन्हें वे संपत्ति समझते हैं। +* अमीर विलासिता वाली चीजें अंत में खरीदते हैं, जबकि गरीब और मिडल क्लास पहले विलासितापूर्ण चीजें खरीदना चाहता है। क्यों? भावनात्मक अनुशासन। +* अमीर वे हैं जो जीतने के लिए खेलते हैं। मध्यम वर्ग हारने के लिए नहीं खेलता है। +* अलग होने का भय ज्यादातर लोगों को अपनी समस्या हल करने के लिए नए तरीके खोजने से रोकता है। +* असफलता से बचने वाले लोग सफलता से भी बचते हैं +* असल दुनिया में होशियार लोग वो होते हैं जो गलतियाँ करते हैं और सीखते हैं। स्कूल में, होशियार लोग गलतियाँ नहीं करते। +* आज धन जानकारी में है। और जिस व्यक्ति के पास सबसे अधिक समय पर जानकारी होती है वह धन का मालिक होता है। +* आत्मविश्वास अनुशासन और प्रशिक्षण से आता है। +* आप अक्सर पाएंगे कि यह माँ या पिताजी, पति या पत्नी या बच्चे नहीं हैं जो आपको रोक रहे हैं। यह आप है। अपने रास्ते से हट जाओ। +* आप कुछ गलतियाँ करेंगे, लेकिन अगर आप उन गलतियों से सीखते हैं, तो वे गलतियाँ बुद्धिमत्ता बन जायेंगी और बुद्धिमत्ता अमीर बनने के लिए ज़रूरी है। +* आप तभी गरीब हैं, जब आप हार मान लेते हैं। सबसे ज़रूरी चीज है की आपने कुछ किया। ज्यादातर लोग केवल अमीर बनने की बात करते हैं और सपने देखते हैं। आपने कुछ किया है। +* आपका भविष्य इससे बनता है कि आपने आज क्या किया, कल नहीं। +* आपकी सफलता का आकार आपकी इच्छा की ताकत, आपके सपनो के आकार, और मार्ग में आने वाली हताशा से आप कैसे निपटते हैं से मापा जाता है। +* आपके विकल्प आपके भाग्य का फैसला करते हैं। सही विकल्प चुनने में समय लीजिये । अगर आप गलती कर देते हैं तो कोई बात नहीं, उससे सीखिए और दोबारा मत दोहराइए । +* आपके सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है वो है अपने सेल्फ-डाउट और लेज़ीनेस को चुनौती देना। ये आपके सेल्फ-डाउट और लेज़ीनेस ही हैं जो आपको डिफाइन और लिमिट करते हैं कि आप कौन हैं। +* आपको एक ज़िन्दगी मिलती है। इसे इस तरह जियें कि ये किसी को प्रेरित कर सके। +* आपको शिक्षकों की तलाश करनी होगी। यदि आप मैकेनिक बनना चाहते हैं, तो मैकेनिक के साथ घूमें। +* आर्थिक रूप से अच्छा करने के लिए आपको सरल गणित और सामान्य ज्ञान की आवश्यकता है। +* इतिहास हमें याद दिलाता है कि गंभीर आर्थिक संकट के समय तानाशाह और निरंकुश पैदा होते हैं। +* एक औंट्राप्रेनेयोर होने का मतलब है बस एक गलती से दूसरी गलती पर जाना। आपके पास कंटीन्यू करने के लिए धैर्य होना चाहिए। +* एक कीमती धातु के रूप में, चांदी भी पैसा है। +* एक गलती एक संकेत है कि यह कुछ नया सीखने का समय है, जिसे आप पहले नहीं जानते थे। +* एक जानकार निवेशक जानता है कि सबसे खराब समय वास्तव में पैसा बनाने का सबसे अच्छा समय है। +* एक बुद्धिमान व्यक्ति ऐसे लोगों को काम पर रखता है जो उससे अधिक बुद्धिमान होते हैं। +* एक विनिंग स्ट्रेटेजी में लूजिंग भी शामिल होना चाहिए। +* एक व्यक्ति जितना अधिक सुरक्षा चाहता है, उतना ही वह व्यक्ति अपने जीवन पर नियंत्रण छोड़ देता है। +* एक सक्रिय निवेशक वह है जो वास्तव में नौकरी से मजदूरी के विपरीत अपने निवेश से दूर रहता है। +* एक संपत्ति एक ऐसी चीज है जो मेरी जेब में पैसा डालती है। एक देनदारी एक ऐसी चीज है जो मेरी जेब से पैसे निकालती है। +* एक संपत्ति मेरी जेब में पैसा डालती है। एक दायित्व मेरी जेब से पैसे निकालता है। +* एक सफल बिजेनस ओनर उर इन्वेस्टर होने के लिए आपको जीता या हार के प्रति भावनात्मक रूप से न्यूट्रल होना होगा। जीतना और हारना बस खेल का हिस्सा हैं। +* कभी ये मत कहो कि तुम कोई चीज अफोर्ड नहीं कर सकते। ये गरीब आदमी का नजरिया है। ये पूछो कि इसे कैसे अफोर्ड किया जा सकता है। +* कभी-कभी आप जीतते हैं, कभी-कभी आप सीखते हैं। +* कल केवल ड्रीमर्स और लूजर्स के माइंड में एग्जिस्ट करता है। +* किनारे खड़े होकर आलोचना करना, और ये बताना कि तुमको कोई चीज क्यों नहीं करनी चाहिए आसान है। किनारे भीड़ होती है। खेल में आओ। +* कुछ ऐसे लोग होते हैं जो चीजों को करते हैं, कुछ ऐसे लोग होते हैं जो चीजों को होते हुए देखते हैं और कुछ ऐसे लोग होते हैं जो कहते हैं क्या हुआ? +* कैश फ्लो यह बताता है कि एक व्यक्ति पैसे को कैसे संभालता है। +* कोई बिजनेस शुरू करना बिना पैराशूट के हवाईजाहज से कूदने के जैसा है। बीच हवा में औंट्राप्रेनेयोर पैराशूट बनाना शुरू करता है और उम्मीद करता है कि जमीन पर गिरने से पहले वो खुल जाएगा। +* कौशल आपको अमीर बनाता है, सिद्धांत नहीं। +क्रेडिट' विश्वसनीयता का दूसरा शब्द है। +* खेल एक दर्पण की तरह है जो आपको खुद को देखने की अनुमति देता है। +* गरीब और मध्यम वर्ग पैसे के लिए काम करते हैं। अमीरों के पास उनके लिए पैसे का काम है। +* गलतियाँ करना महान बनने के लिए काफी नहीं है। आपको गलतियां स्वीकार करना होगा, और फिर सीखना होगा कि कैसे उस गलती को अपने फायदे में बदल दें। +* चांदी का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में किया जाता है और इसकी दैनिक खपत होती है; चांदी के भंडार घट रहे हैं। +* छोटे सपने देखने वाले लोग छोटे लोगों की तरह जीते रहते हैं। +* जब आप अपने ज्ञान की सीमाओं तक पहुँच जाते हैं, तो कुछ गलतियाँ करने का समय आ जाता है। +* जब आपको सोचने के लिए मजबूर किया जाता है, तब आप अपन�� मानसिक क्षमता का विस्तार करते हैं। जब आप अपनी मानसिक क्षमता का विस्तार करते हैं, आपकी दौलत बढ़ जाती है। +* जब तक आप फायनेंशियल फ्रीडम नहीं पा लेते तब तक आप असली फ्रीडम को नहीं जान पायेंगे। +* जब मैं छोटा था तो लोग तनख्वाह से लेकर तनख्वाह तक रहते थे। आज, ऐसा लगता है कि वे क्रेडिट कार्ड से भुगतान से लेकर क्रेडिट कार्ड से भुगतान तक जीते हैं। +* जब लोगों में दोष होता है, तो उन्हें दोष देना अच्छा लगता है। +* जब समय खराब होता है तभी असली उद्यमी उभरते हैं। +* ज़िन्दगी में सबसे सफल लोग वे होते हैं जो सवाल पूछते हैं। वे हमेशा सीखते हैं। वे हमेशा बढ़ते हैं। वे हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। +* जीतने वाले हार से नहीं डरते। लेकिन हारने वाले डरते हैं। असफलता सफलता की प्रक्रिया का हिस्सा है। जो लोग असफलता से बचते हैं वे सफलता से भी बचे रहते हैं। +* जैसे हैं वैसे बने रहना आसान है लेकिन बदलना आसान नहीं है। अधिकतर लोग आजीवन वैसे ही बने रहते हैं। +* जॉब ‘जस्ट ओवर ब्रोक’ का संक्षिप्त रूप है। +* जो लोग उपनगरों में रहते हैं और उन्हें काम करने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, उनकी संपत्ति ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि के रूप में डूब जाएगी। +* जो लोग छोटे सपने देखते हैं वे छोटे लोगों की तरह ही जीते रह जाते हैं। +* ज्यादातर लोग औसत होने से खुश हैं। अधिकांश चेहरों के समुद्र में बेदाग रहकर खुश हैं। +* दुनिया के सबसे अमीर लोग नेटवर्क ढूंढते हैं और उसका निर्माण करते हैं; बाकी सब काम की तलाश में हैं। +* दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति नेटवर्क बनाते हैं; बाकी सभी लोग काम खोजने के लिए प्रशिक्षित किये जाते हैं। +* दो पिता होने के कारण मुझे विपरीत दृष्टिकोण का विकल्प मिला: एक अमीर आदमी का और एक गरीब आदमी का। +* धन के साथ महान शक्ति आती है जिसे रखने और इसे गुणा करने के लिए सही ज्ञान की आवश्यकता होती है +* धन व्यय कॉलम की तुलना में परिसंपत्ति कॉलम से नकदी प्रवाह का माप है +* नकदी प्रवाह प्रदान करने वाली संपत्तियां खरीदना या निर्माण करना आपके पैसे को आपके काम में लगा रहा है। उच्च वेतन वाली नौकरियों का मतलब दो चीजें हैं: आप पैसे के लिए काम कर रहे हैं और आपके द्वारा भुगतान किए जाने वाले कर शायद बढ़ जाएंगे। +* नयी चीजों को ट्राई करने के लिए तैयार रहने और गलतियाँ करने के बारे में एक सबसे अच्छी बात ये है कि गलतियाँ करना आपको विनम��र बनाता है। जो लोग विनम्र होते हैं वे घमंडी लोगों से अधिक सीखते हैं। +* नौकरी होने के साथ ये समस्या है कि ये अमीर बनने के रास्ते में आ जाती है। +* नौकरी, एक दीर्घकालिक समस्या के लिए एक अल्पकालिक समाधान है। +* पता लगाएं कि आप कहां हैं, आप कहां जा रहे हैं और वहां पहुंचने की योजना बनाएं। +* पैसा और निवेश जटिल, भ्रमित करने वाले और अक्सर उबाऊ विषय हो सकते हैं। +* पैसा बनाने के लिए पैसे की ज़रूरत नहीं होती। +* पैसा वास्तव में सिर्फ एक विचार है। +* पैसे और निवेश की दुनिया में आपको अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना सीखना चाहिए। +* पैसे का मोह सभी बुराइयों की जड़ है। पैसे की कमी सभी बुराइयों की जड़ है। +* पैसे का सबसे महत्वपूर्ण नियम दे दो, और तुम पाओगे'। +* पैसे को न समझकर, अधिकांश लोग इसकी भयानक शक्ति को अपने नियंत्रण में आने देते हैं। +* पैसों की लत मत लगाइए। सीखने के लिए काम करिए। पैसों के लिए मत काम करिए। ज्ञान के लिए काम करिए। +* फ्रेंच फ्राइज़ बंदूक और शार्क से ज्यादा लोगों को मारते हैं, फिर भी फ्रेंच फ्राइज़ से कोई नहीं डरता। +* बदलाव का सबसे कठिन हिस्सा अनजान से होकर गुजरना होता है। +* बहाने बहुत सस्ते होते हैं इसीलिए गरीब इसे बहुत ज्यादा अफोर्ड कर लेते हैं। +* बहुत कम लोगों को एहसास होता है कि किस्मत बनती है। +* बहुत सारे लोग सोचने में बहुत आलसी होते हैं। कुछ नया सीखने की बजाये, वे एक ही विचार के बारे में दिन-रात सोचते हैं। +* बहुत से लोग अमीर नहीं हैं क्योंकि वे झूठे हैं। +* बहुत से लोगों के पास अपने कामकाजी जीवन के अंत में कुछ भी नहीं होगा। +* बिजनेस एक व्हील बैरो की तरह है। जब तक आप इसे पुश नहीं करते तब तक कुछ नहीं होता। +* बुद्धि समस्या का समाधान करती है और पैसे पैदा करती है। बिना वित्तीय ज्ञान के पैसा जल्द ही खोया हुआ पैसा बन जाता है। +* बेचने की काबिलियत बिजनेस में नंबर वन स्किल है। अगर आप बेच नहीं सकते तो बिजनेस ओनर बनने की चिंता मत करिए। +* बेचने की क्षमता – किसी अन्य इंसान से संवाद करना, चाहे वह ग्राहक, कर्मचारी, बॉस, जीवनसाथी या बच्चा हो – व्यक्तिगत सफलता का आधार कौशल है। +* भविष्यवाणी करने का सबसे अच्छा तरीका अतीत का अध्ययन करना या भविष्यवाणी करना है। +* मुझे इतने लोग संघर्ष करते हुए दिखते हैं, अक्सर कड़ी मेहनत करते हुए, बस इसलिए क्योंकि वे पुराने आइडियाज से चिपके हुए होते हैं। +* मेरी सफलता का पैमाना यह है कि क्या मैं अपने मिशन को पूरा कर रहा हूँ। +* मेरे अनुभव में, बहुत से लोग कायर होने को अच्छा होने के साथ भ्रमित करते हैं। +* मैं अपना वित्तीय आईक्यू विकसित करता हूं क्योंकि मैं दुनिया के सबसे तेज खेल और सबसे बड़े खेल में भाग लेना चाहता हूं। +* मैं उन लाखों बेबी बूमर्स के बारे में बहुत चिंतित हूं जो एक सुरक्षित, स्वस्थ, लंबी सेवानिवृत्ति देने के लिए शेयर बाजार पर भरोसा कर रहे हैं। मुझे डर है कि शेयर बाजार पर भरोसा करने वाले बेबी बूमर्स मुश्किल में हैं। +* मैं कहूंगा कि अधिकांश उद्यमियों के लिए पूंजी जुटाना सबसे कमजोर चीजों में से एक है। +* मैं जितना अधिक अस्वीकार किये जाने का जोखिम उठाता हूँ, मेरे स्वीकार किये जाने की सम्भावना उतनी ही बढ़ जाती है। +* मैं जिसमें निवेश करता हूं, जबकि मेरे लिए जोखिम भरा नहीं है, अधिकांश लोगों के लिए बहुत जोखिम भरा हो सकता है। +* मैं बदलाव से डरने के बजाय बदलाव का स्वागत करना पसंद करूंगा। +* मैंने उस पर ध्यान केंद्रित करना सीख लिया है जिस पर मेरा नियंत्रण है: स्वयं। और अगर चीजें बदलनी हैं, तो पहले मुझे बदलना होगा। +* मैंने वास्तव में कंपनियों को सार्वजनिक किया है, मैंने वास्तव में कंपनियों का भंडाफोड़ किया है, मैं वास्तव में टूट गया हूं। +* यदि आप एक अच्छी कंपनी के लिए काम कर रहे हैं और आप वहां खुश हैं, और आपको तदनुसार मुआवजा दिया जा रहा है, और आपका काम आपको संतुष्ट करता है, तो आपको वहीं रहना चाहिए। +* यदि आप कहीं जाना चाहते हैं, तो किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढना सबसे अच्छा है जो पहले से ही वहां जा चुका हो। +* यदि आप किसी युवा को अपने देश के लिए अपनी जान देने के लिए कह सकते हैं, तो आप लोगों का नेतृत्व कर सकते हैं। +* यदि आप जीवन में विजेता बनने जा रहे हैं, तो आपको लगातार अपने सर्वश्रेष्ठ से आगे जाना होगा। +* यदि आप लोगों के लीडर बनना चाहते हैं, तो आपको शब्दों का मास्टर बनना होगा। +* यदि भय बहुत प्रबल हो तो प्रतिभा दब जाती है +* यदि मेरा व्यवसाय या मेरा निवेश लाभदायक नहीं है, तो मैं नहीं खाता। और मुझे खाना पसंद है। +* ये पता लगाएं कि आप कहाँ हैं, आप कहाँ जा रहे हैं और वहां पहुँचने की एक योजना बनाएं। +* ये वो नहीं है जो आप अपने मुंह से बोलते हैं जो आपका जीवन निर्धारित करता है, ये वो है जो आप खुद से कहते हैं जिसमे सबसे अधिक शक्ति होती है। +* रियल एस्टेट निवेश, यहां तक ​​कि बहुत छोटे पैमाने पर भी, एक व्यक्ति के नकदी प्रवाह और धन के निर्माण का एक आजमाया हुआ और सच्चा साधन बना हुआ है। +* लूजर्स फेल होने पर मैदान छोड़ देते हैं। विनर्स तब तक फेल होते रहते हैं जब तक वे सक्सेसफुल नहीं हो जाते। +* लोगों को जागना चाहिए और समझना चाहिए कि ज़िन्दगी आपके लिए इंतज़ार नहीं करती। अगर आपको कुछ चाहिए, तो उठिए और और उसके पीछे भागिए। +* वर्कर्स कड़ी मेहनत करते हैं कि उन्हें निकाला ना जाए, और ओनर्स बस इतना पे करते हैं की वर्कर्स छोड़ कर न जाएं। +* वही रहना आसान है लेकिन बदलना आसान नहीं है। अधिकांश लोग जीवन भर एक जैसे रहने का चुनाव करते हैं। +* वित्तीय संघर्ष अक्सर लोगों द्वारा जीवन भर किसी और के लिए काम करने का प्रत्यक्ष परिणाम होता है। +* वित्तीय स्वतंत्रता उन लोगों के लिए उपलब्ध है जो इसके बारे में सीखते हैं और इसके लिए काम करते हैं। +* वे इमोशंस (भावनाएं) ही हैं जो हमें मनुष्य बनाती हैं। वास्तविक बनाती हैं। ‘इमोशन’ शब्द का मतलब है 'एनर्जी इन मोशन गतिशील ऊर्जा)। +* वह खेल खोजिये जिसमे आप जीत सकते हैं, और फिर अपनी लाइफ उसे खेलने में लगा दीजिये; और जीतने के लिए खेलिए। +* व्यापार और निवेश टीम स्पोर्ट्स हैं। +* शक्ति और करुणा परस्पर अनन्य नहीं हैं। +* शिक्षा सस्ती है; अनुभव महंगा है। +* सफल लोग सवाल पूछते हैं। वे नए शिक्षक तलाशते हैं। वे हमेशा सीखते रहते हैं। +* सबसे अधिक बेवकूफी भरे कामो में से एक है अपने आप को बुद्धीमान दिखाने का दिखावा करना। जब आप बुद्धीमान होने का दिखावा करते हैं, तब आप मूर्खता के चरम पे होते हैं। +* सबसे सफल लोग कुछ अलग तरह के होते हैं जो क्यों पूछने से नहीं डरते, खासतौर से जब सब लोग उसे ज़ाहिर मानते हैं। +* सबसे सशक्त संपत्ति जो हम सभी के पास है वो है हमारा दिमाग। अगर इसे सही से ट्रेन किया जाए, तो ये पल भर में आपार धन पैदा कर सकता है। +* सभी शब्दों में ज़िन्दगी को सबसे अधिक बर्बाद करने वाला शब्द ‘कल’ है। +* समझदार निवेशक एक निवेश तब खरीदते हैं जब वह लोकप्रिय नहीं होता है। वे जानते हैं कि जब वे खरीदते हैं तो उनका मुनाफा होता है, न कि जब वे बेचते हैं। +* सामूहीकरण’ का अर्थ है कि हम अपनी अधिक व्यक्तिगत शक्तियों को बिग ब्रदर को सौंप देते हैं, मुक्त उद्यम को नहीं। +* सोने की कीमत में वृद्धि इस बात का संकेत है कि पूंजीवाद लड़खड़ा गया है। +* स्कूल जाने और ���ौकरी पाने का विचार आपके दिमाग में सबसे विनाशकारी है। +* स्कूल में हम सीखते हैं की गलती करना बुरा है, और ऐसा करने पर हमे सजा मिलती है। फिर भी, अगर आप देखें कि मनुष्यों को कैसे सीखने के लिए डिजाईन किया गया है, तो पायेंगे कि हम गलतियाँ कर के सीखते हैं। +* स्कूलों के साथ ये समस्या है कि वे पहले आपको उत्तर देते हैं, और फिर आपकी परीक्षा लेते हैं। ज़िन्दगी ऐसी नहीं है। +* हम जोखिम का गलत आकलन करते हैं यदि हमें लगता है कि इस पर हमारा कुछ नियंत्रण है, भले ही यह नियंत्रण की एक भ्रामक भावना हो। +* हम में से हर एक अन्दर एक डेविड और एक गोलिऐथ है। (डेविड गोलिऐथ की कहानी) +* हमारी संपत्ति इतनी बड़ी है कि वह अपने आप बढ़ सकती है। यह एक पेड़ लगाने जैसा है। आप इसे वर्षों तक पानी देते हैं, और फिर एक दिन इसे आपकी आवश्यकता नहीं होती है। +* हर कोई आपको जोखिम बता सकता है। एक उद्यमी इनाम देख सकता है। +* हाल के दिनों में नौकरियों का भारी नुकसान यह साबित करता है कि मध्य वर्ग वास्तव में आर्थिक रूप से कितना अस्थिर है। +* आशा करना आपकी ऊर्जा बहा देता है। एक्शन लेना, ऊर्जा पैदा करता है। + + +* अगर मैं एक किताब में तल्लीन हूँ, तो मुझे अन्य लोगों के साथ घुलने-मिलने से पहले अपने विचारों को पुनर्व्यवस्थित करना होगा, अन्यथा वे सोच सकते हैं कि मैं अजीब हूँ। +* इस हफ्ते मैं बहुत कुछ पढ़ रहा हूं और थोड़ा काम कर रहा हूं। चीजें ऐसी ही होनी चाहिए। निश्चय ही यही सफलता का मार्ग है। +* कमजोर गिरते हैं, लेकिन मजबूत रहेंगे और कभी नीचे नहीं जाएंगे! +* कुछ लोगों को भूखा क्यों रहना पड़ता है, जबकि दुनिया के अन्य हिस्सों में अधिशेष सड़ रहे हैं? अरे लोग इतने पागल क्यों हैं? +* केवल एक ही नियम है जिसे आपको याद रखने की आवश्यकता है: हर बात पर हंसें और बाकी सभी को भूल जाएं! यह बात अहंकार से भरी लगती है, लेकिन वास्तव में आत्म-दया से पीड़ित लोगों के लिए यह एकमात्र इलाज है। +* खुशी कमाने का मतलब है अच्छा करना और काम करना, न कि अटकलें लगाना और आलसी होना। आलस्य आमंत्रित करने वाला लग सकता है, लेकिन केवल काम ही आपको सच्ची संतुष्टि देता है। +* गहरे में, युवा बूढ़े की तुलना में अकेले होते हैं। +* जब आप कई लोगों से प्यार करते हैं, तब भी आप अकेले रह सकते हैं, क्योंकि आप अभी भी किसी और के अकेले नहीं हैं। +* जब तक यह मौजूद है, यह धूप और यह बादल रहित आकाश, और जब तक मैं ���सका आनंद ले सकता हूं, मैं कैसे दुखी हो सकता हूं? +* जिन लोगों के पास धर्म है उन्हें खुश होना चाहिए, क्योंकि हर किसी के पास स्वर्गीय चीजों में विश्वास करने का उपहार नहीं है। +* जिन लोगों में साहस और विश्वास है, वे कभी भी दुख में नष्ट नहीं होंगे +* जो कोई इसे नहीं जानता उसे अनुभव से सीखना और खोजना चाहिए कि ‘एक शांत अंतःकरण व्यक्ति को मजबूत बनाता है’ +* जो खुश है वही दूसरों को खुश करेगा; साहस और विश्वास रखने वाला व्यक्ति कभी भी दुख में नहीं मरेगा +* देखें कि कैसे एक मोमबत्ती अंधेरे को टाल सकती है और परिभाषित कर सकती है। +* नींद मौन और भयानक भय को और अधिक तेज़ी से दूर करती है, समय बीतने में मदद करती है, क्योंकि इसे मारना असंभव है। +* भविष्य में मैं भावुकता को कम समय और वास्तविकता को अधिक समय देने जा रहा हूं। +* मनुष्य की महानता धन या शक्ति में नहीं, बल्कि चरित्र और अच्छाई में होती है। लोग सिर्फ लोग होते हैं, और सभी लोगों में दोष और कमियां होती हैं, लेकिन हम सभी एक बुनियादी अच्छाई के साथ पैदा होते हैं। +* मरे हुए लोगों को जीवित लोगों की तुलना में अधिक फूल प्राप्त होते हैं क्योंकि पछतावा कृतज्ञता से अधिक मजबूत होता है। +* माता-पिता केवल अच्छी सलाह दे सकते हैं या उन्हें सही रास्ते पर ला सकते हैं, लेकिन किसी व्यक्ति के चरित्र का अंतिम निर्माण उनके अपने हाथों में होता है। +* मुझे अपने आदर्शों को बनाए रखना चाहिए, क्योंकि शायद वह समय आएगा जब मैं उन्हें पूरा कर सकूंगा। +* मुझे पता है कि मुझे क्या चाहिए, मेरा एक लक्ष्य है, एक राय है, मेरा एक धर्म और प्यार है। मुझे खुद बनने दो और फिर मैं संतुष्ट हूं। मुझे पता है कि मैं एक महिला हूं, आंतरिक शक्ति और बहुत साहस वाली महिला हूं। +* मुझे लगता है कि यह अजीब है कि बड़े लोग इतनी आसानी से और इतनी बार और इस तरह की छोटी-छोटी बातों पर झगड़ते हैं। अब तक मैं हमेशा सोचता था कि कलह कुछ ऐसा है जो बच्चों ने किया है और उन्होंने इसे आगे बढ़ाया है। +* मेरा हल्का, अधिक सतही पक्ष हमेशा गहरे पक्ष में एक मार्च चुराएगा और इसलिए हमेशा जीतेगा। आप कल्पना नहीं कर सकते कि मैंने कितनी बार इस ऐनी को दूर धकेलने की कोशिश की है, जो कि ऐनी के नाम से जानी जाने वाली का केवल आधा है – उसे मारने के लिए, उसे छिपाने के लिए। +* मेरी डायरी शुरू करने का कारण यह है कि मेरा कोई वास्तविक मित्र नहीं है। +* मैं ���पनी मृत्यु के बाद भी जीवित रहना चाहता हूं। +* मैं अब अपनी अंतरात्मा को इस विचार से शांत करता हूं कि कठिन शब्दों का कागज पर होना बेहतर है कि माँ उन्हें अपने दिल में ले जाए। +* मैं इस समय डिप्रेशन के बीच में हूं। मैं वास्तव में आपको यह नहीं बता सकता कि यह किस कारण से हुआ, लेकिन मुझे लगता है कि यह मेरी कायरता से उपजा है, जो हर मोड़ पर मेरा सामना करता है। +* मैं उस मुकाम पर पहुंच गया हूं जहां मुझे परवाह नहीं है कि मैं जिंदा हूं या मर रहा हूं। मेरे बिना दुनिया पलटती रहेगी, मैं वैसे भी घटनाओं को बदलने के लिए कुछ नहीं कर सकता। +* मैं कल्पना नहीं कर सकता कि कोई कैसे कह सकता है: “मैं कमजोर हूं,” और फिर ऐसा ही बना रहता है। आखिरकार, अगर आप इसे जानते हैं, तो इसके खिलाफ क्यों न लड़ें, अपने चरित्र को प्रशिक्षित करने का प्रयास क्यों न करें? जवाब था: “क्योंकि यह इतना आसान नहीं है! +* मैं वह हूं जो एक गहन विचारक के लिए एक रोमांटिक फिल्म है – एक मात्र मोड़, एक हास्य अंतराल, कुछ ऐसा जो जल्द ही भुला दिया जाता है। +* मैं हमेशा से कुँवारा रहा हूँ, परिवार का कभी-न-कहीं, मुझे हमेशा अपने कर्मों के लिए दोगुना भुगतान करना पड़ता है, पहले डांट से और फिर जिस तरह से मेरी भावनाओं को ठेस पहुँचाई जाती है। +* मैं हर किसी को खुश करने की पूरी कोशिश करता हूं, जितना उन्होंने कभी अनुमान लगाया था उससे कहीं ज्यादा। मैं यह सब हंसने की कोशिश करता हूं, क्योंकि मैं उन्हें अपनी परेशानी देखने नहीं देना चाहता। +* मैंने पाया है कि हमेशा कुछ सुंदरता बची रहती है – प्रकृति में, धूप में, स्वतंत्रता में, अपने आप में; ये सब आपकी मदद कर सकते हैं। +* यदि आप सुख अर्जित करना चाहते हैं तो आपको काम करना चाहिए और अच्छा करना चाहिए, आलसी और जुआरी नहीं बनना चाहिए। आलस्य आकर्षक लग सकता है, लेकिन काम संतुष्टि देता है। +* यदि कोई अति विनम्र न हो तो जीवन में बेहतर होता जाता है। +* यह कितना अद्भुत है कि दुनिया को बेहतर बनाने के लिए किसी को भी एक पल इंतजार करने की जरूरत नहीं है। +* यह महसूस करना भयानक होगा कि आपको इसकी आवश्यकता नहीं है। +* यह मेरी एक तस्वीर है जैसा कि काश मैं हर समय देखता। तब मुझे हॉलीवुड में आने का मौका मिल सकता है। +* लड़के तो लड़के रहेंगें। और इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा अगर हम लड़कियों को लड़की होने से रोक सकते हैं। +* लंबे समय में, सभी का सबसे तेज ���थियार एक दयालु और कोमल आत्मा है। +* लेकिन भावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, चाहे वे कितने भी अन्यायपूर्ण या कृतघ्न क्यों न हों। +* लोग आपको अपना मुंह बंद रखने के लिए कह सकते हैं, लेकिन यह आपको अपनी राय रखने से नहीं रोकता है। +* वह अपने एकांत, अपनी प्रभावित उदासीनता और अपने बड़े होने के तरीकों से चिपके रहते हैं, लेकिन यह सिर्फ एक कार्य है, इसलिए कभी भी, अपनी वास्तविक भावनाओं को कभी नहीं दिखाना चाहिए। +* वैसे भी, मैंने अब एक बात सीखी है। आप वास्तव में लोगों को तभी जान पाते हैं, जब आपका उनके साथ अच्छा झगड़ा होता है। तब और उसके बाद ही आप उनके असली किरदारों को आंक सकते हैं। +* व्यक्ति के चरित्र का अंतिम रूप उन्हीं के हाथों में होता है। +* सब कुछ के बावजूद, मैं अब भी मानता हूं कि लोग वास्तव में दिल के अच्छे होते हैं। +* सहानुभूति, प्रेम, भाग्य… हम सभी में ये गुण होते हैं लेकिन फिर भी हम इनका उपयोग नहीं करते हैं। +* हम यह सब दुख सहते हैं और यदि यहूदी अब भी बचे हैं, जब यह समाप्त हो जाएगा, तो यहूदियों को बर्बाद होने के बजाय एक उदाहरण के रूप में रखा जाएगा। +* हम सभी खुश रहने के उद्देश्य से जीते हैं; हमारे सभी जीवन अलग हैं और फिर भी वही हैं। +* हालाँकि मैं केवल चौदह वर्ष का हूँ, मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मुझे क्या चाहिए, मैं जानता हूँ कि कौन सही है और कौन गलत। मेरे अपने विचार हैं, मेरे अपने विचार और सिद्धांत हैं, और यद्यपि यह एक किशोर से बहुत पागल लग सकता है, मैं एक बच्चे की तुलना में एक व्यक्ति को अधिक महसूस करता हूं, मैं किसी से भी काफी स्वतंत्र महसूस करता हूं। + + +* यदि कोई स्वयं का सम्मान नहीं करता है तो उसके पास न तो प्यार हो सकता है और न ही दूसरों के लिए सम्मान। +* अपने आप को महत्व देना सीखें, जिसका अर्थ है: अपनी खुशी के लिए लड़ना। +* अपने ज्ञान के दायरे में, आप सही हैं। +* अवांछित राय देना उचित नहीं है। आपको अपने श्रोता के लिए उनके सटीक मूल्य की शर्मनाक खोज से बचना चाहिए। +* आप जिस दुनिया की इच्छा रखते हैं उसे जीता जा सकता है, यह मौजूद है, यह वास्तविक है, यह संभव है, यह आपकी है। +* किसी की हत्या करने की तुलना में एक क्रूर बुराई, उसे आत्महत्या को पुण्य के रूप में बेचना है। +* एक व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन किसी निजी व्यक्ति द्वारा उसके साथ व्यवहार करने से इनकार करने से नहीं होता है। +* कभी भी दर्द या खतरे या दुश्मनों के बारे में उनसे लड़ने के लिए जरूरत से ज्यादा एक पल भी न सोचें। +* क्या आपने कभी किसी ऐसे व्यक्ति की लालसा महसूस की है जिसकी आप प्रशंसा कर सकते हैं? किसी चीज़ के लिए, नीचे देखने के लिए नहीं, बल्कि ऊपर तक? +* गर्व इस तथ्य की मान्यता है कि आप अपने स्वयं के सर्वोच्च आदर्श हैं और मनुष्य के सभी मूल्यों की तरह, इसे अर्जित करना होगा। +* जितना अधिक आप सीखते हैं, उतना ही अधिक आप जानते हैं कि आप कुछ भी नहीं जानते हैं। +* जितना आप सोचते हैं उतनी देर नहीं हुई है। यह केवल प्रारंभिक है – व्यक्तिवाद के पुनर्जन्म के युग में। +* जिस व्यक्ति ने धन को धिक्कारा है, उसने उसे बेईमानी से प्राप्त किया है; जो व्यक्ति इसका सम्मान करता है उसने इसे अर्जित किया है। +* जीवन को प्राप्त करना मृत्यु से बचने के बराबर नहीं है। +* दूसरों से सहमत होने का अधिकार किसी भी समाज में कोई समस्या नहीं है; असहमत होने का अधिकार महत्वपूर्ण है। +* नैतिकता का उद्देश्य आपको सिखाना है, कष्ट सहना और मरना नहीं, बल्कि स्वयं का आनंद लेना और जीना है। +* व्यक्ति ही पृथ्वी पर सबसे छोटा अल्पसंख्यक है। जो लोग व्यक्तिगत अधिकारों से इनकार करते हैं वे अल्पसंख्यकों के रक्षक होने का दावा नहीं कर सकते। +* प्राप्त करने के लिए, आपको विचार की आवश्यकता है। आपको पता होना चाहिए कि आप क्या कर रहे हैं और यही असली ताकत है। +* मनुष्य का अहंकार मानव प्रगति का स्रोत है। +* मनुष्य का सबसे भ्रष्ट प्रकार वह मनुष्य है जिसका कोई प्रयोजन न हो। +* मुझे होने के लिए किसी वारंट की आवश्यकता नहीं है, और न ही मेरे होने पर स्वीकृति के शब्द की आवश्यकता है। मैं वारंट और मंजूरी हूं। +* मेरी खुशी किसी अंत का साधन नहीं है। यह अंतिम है। इसका अपना लक्ष्य है। इसका अपना उद्देश्य है। +* मैं आपको पुरुष पात्रों के बारे में एक सुराग देता हूं: जिस व्यक्ति ने पैसे की निन्दा की है, उसने इसे बेईमानी से प्राप्त किया है; जो व्यक्ति इसका सम्मान करता है उसने इसे अर्जित किया है। +* मैं व्यक्तियों के रूप में उनकी उच्चतम संभावनाओं के लिए उनकी पूजा करता हूं और इन संभावनाओं को जीने में विफलता के लिए मैं मानवता से घृणा करता हूं। +* मैंने अपने जीवन की शुरुआत एक ही निरपेक्षता के साथ की: कि दुनिया मेरे उच्चतम मूल्यों की छवि में आकार देने के लिए मेरी थी और कभी भी कम स्तर तक नहीं छोड़ी जानी चाहिए, चाहे संघर्ष कितना भी लंबा या कठिन क्यों न हो। +* यदि आप नहीं जानते हैं, तो करने की बात यह है कि डरना नहीं है, बल्कि सीखना है। +* यदि किसी के कार्य ईमानदार हैं, तो उसे दूसरों के पूर्व विश्वास की आवश्यकता नहीं है। +* यदि यह करने योग्य है, तो यह अति करने योग्य है। +* यह अस्तित्व की सबसे बड़ी अनुभूति थी: भरोसा करने के लिए नहीं बल्कि जानने के लिए। +* विरोधाभास मौजूद नहीं हैं। जब भी आपको लगे कि आप एक अंतर्विरोध का सामना कर रहे हैं, तो अपने परिसर की जांच करें। आप पायेंगे की उनमें एक गलत है। +* व्यक्तिवाद, प्रत्येक व्यक्ति को-एक स्वतंत्र, संप्रभु इकाई के रूप में मानता है, जिसके पास अपने जीवन के लिए एक अहरणीय अधिकार है, जो एक तर्कसंगत प्राणी के रूप में उसकी प्रकृति से प्राप्त अधिकार है। +* शक्ति एक महिला होने की तरह है … अगर आपको लोगों को बताना है कि आप हैं, तो आप नहीं हैं। +* सभ्यता मनुष्य को पुरुषों से मुक्त करने की प्रक्रिया है। +* समझाने के लिए सबसे कठिन बात वह है जो स्पष्ट रूप से स्पष्ट है और जिसे हर किसी ने न देखने का फैसला किया है। +* सरकार, मानव अधिकारों के लिए सबसे खतरनाक खतरा है: यह कानूनी रूप से निहत्थे पीड़ितों के खिलाफ शारीरिक बल के प्रयोग पर कानूनी एकाधिकार रखती है। +* हम सभी खाल के नीचे भाई हैं – और इसे साबित करने के लिए मैं मानवता की खाल उतारने को तैयार हूं। +* एक रचनात्मक व्यक्ति दूसरों को हराने की इच्छा से नहीं, बल्कि हासिल करने की इच्छा से प्रेरित होता है। + + +दर्शन का प्रकाश की भांति उपयोग करना ही सच्चा दार्शनिक होना है। +* मैंने इस पत्र को केवल इसलिए लम्बा किया है क्योंकि मेरे पास इसे छोटा करने का समय नहीं है। +* आप उन्हीं वस्तुओं की तरफ आकर्षित होते हैं जो आपको समझ में नहीं आतीं। +* मनुष्य की अधिकतर समस्याएं इस कारण होती हैं क्योंकि वह खाली कमरे में कुछ समय अकेले और शान्त नहीं बैठ सकता। +* छोटे दिमाग वाले लोग केवल असाधारण चीज़ों के बारे में सोचते हैं, जबकि महान लोग साधारण चीज़ों में से ही कुछ असाधारण ढूंढ निकालते हैं। +* जब आप किसी को प्यार करते हैं तो आपकी मुलाक़ात दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत व्यक्ति से होती है यानी खुद के साथ। +* विनम्रता भरे शब्दों से कोई नुकसान नहीं होता, पर इनसे काफी कुछ हासिल कर सकते हैं। +* अगर आपको पता चल जाए कि आपका मित्र पीठ के पीछे क्���ा बोल रहा है तो कम ही लोगों के अच्छे और सच्चे मित्र होंगे। +* मैं इसे एक तथ्य के रूप में रखता हूँ कि अगर सभी पुरुषों को पता होता कि दूसरे उनके बारे में क्या कहते हैं, तो दुनिया में चार मित्र नहीं होते। +* छोटी चीज़ों से ही दिमाग को आराम मिलता है, क्योंकि छोटी बातें ही दिमाग और दिल को परेशान कर देती हैं। +* जब कोई काम करने का तरीका तलाश रहा होगा तो अंतिम बार जिसके बारे में उसने सोचा होगा वह ये है कि किस काम को पहले करें। +* मन की स्पष्टता का अर्थ जुनून की स्पष्टता भी है; यही कारण है कि एक महान और स्पष्ट मन जोश से प्यार करता है और स्पष्ट रूप से देखता है कि वह क्या प्यार कर रहा है। +* आप किसी चीज़ या व्यक्ति को खुल कर प्यार नहीं कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि आपने अब तक खुलकर प्यार नहीं किया। +* आप चाहते हैं कि दूसरे लोग आपके बारे में अच्छा सोचें तो आप खुद के बारे में अच्छा बोलना पूर्णतः छोड़ दीजिए। +* चीज़ों को समझने का मतलब गलतियों को माफ़ करना होता है। +* भगवान ने किसी भी चीज़ को दूसरी चीज़ पर निर्भर नहीं बनाया है, लेकिन हमारे आर्ट या रचनात्मकता के कारण चीज़ें एक दूसरे पर निर्भर हो जाती हैं। +* जब तक हम कुछ न कुछ करते रहेंगे तब तक जीवित माने जाएंगे। जिस दिन शांत बैठ जाएंगे तो मृतक ही कहलाएंगे। +* आपको किसी चीज़ के प्रति तड़प है तो ही उसे पूरी करने के लिए कदम बढ़ाएंगे। +* विरोधाभास का होना झूठ का प्रतीक नहीं है, और ना ही इसका ना होना सत्य का। +* जो चीज़ आपको वास्तव में समझ नहीं आती है आपको उसकी हमेशा प्रशंसा करनी चाहिए। +* पुरुष कभी भी बुराई को इतनी पूरी तरह और खुशी से नहीं करते जितना कि वे धार्मिक विश्वास से करते हैं। +* लोग लगभग हमेशा अपने विश्वासों पर प्रमाण के आधार पर नहीं, बल्कि उसके आधार पर पहुंचते जिसे वे आकर्षक पाते हैं। +* हृदय के अपने कारण होते हैं जिसके बारे में कारण कुछ नहीं जानता। हम सत्य को केवल कारण से नहीं, बल्कि हृदय से जानते हैं। +* सभी पुरुष सुख चाहते हैं, यह बिना किसी अपवाद के सत्य है। वे जो भी अलग-अलग साधन अपनाते हैं, वे सभी इस लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। कुछ के युद्ध में जाने और दूसरों के इससे बचने का कारण, दोनों में एक ही इच्छा है, अलग-अलग विचारों के साथ। वसीयत कभी भी कम से कम कदम नहीं उठाती है लेकिन इस उद्देश्य के लिए। हर आदमी की हर हरकत का यही मकसद है, यहां तक ​​कि फांसी लगान��� वालों का भी। +* किसी कृति की रचना करते समय जो आखिरी चीज पता चलती है, वह यह है कि सबसे पहले क्या रखा जाए। +* हम आम तौर पर दूसरों द्वारा हमें दिए गए कारणों की तुलना में खुद को खोजने के कारणों से बेहतर आश्वस्त होते हैं। +* यह विश्वास करना मनुष्य की स्वाभाविक बीमारी है कि उसके पास सत्य है। +* क्या आप चाहते हैं कि लोग आपके बारे में अच्छा सोचें? अपने बारे में अच्छा मत बोलो। +* मनुष्य की छोटी-छोटी बातों के प्रति संवेदनशीलता और महानतम के प्रति असंवेदनशीलता एक विचित्र विकार के लक्षण हैं। +* छोटी चीजें हमें सुकून देती हैं क्योंकि छोटी चीजें हमें परेशान करती हैं। +* मनुष्य उस शून्यता को देखने में भी समान रूप से अक्षम है जिससे वह उभरा है और जिस अनन्त में वह घिरा हुआ है। +* कुछ लोग नम्रता के बारे में विनम्रता से बोलते हैं, पवित्रता की शुद्धता के बारे में, संशयवाद के बारे में। +* विश्वास एक बुद्धिमान दांव है। माना कि विश्वास को सिद्ध नहीं किया जा सकता, यदि आप उसके सत्य पर दांव लगाते हैं और वह झूठा साबित होता है, तो आपको क्या हानि होगी? अगर आप हासिल करते हैं, तो आपको सब कुछ मिलता है; यदि आप हारते हैं, तो आप कुछ नहीं खोते हैं। फिर, बिना किसी हिचकिचाहट के, कि वह मौजूद है, दांव लगाएं। +* प्रत्येक मनुष्य के हृदय में एक ईश्वर के आकार का शून्य होता है जिसे किसी भी सृजित वस्तु से संतुष्ट नहीं किया जा सकता है, लेकिन केवल निर्माता ईश्वर द्वारा, जिसे यीशु मसीह के माध्यम से जाना जाता है। +* पुरुष अनिवार्य रूप से इतने पागल हैं कि पागल न होना पागलपन के दूसरे रूप के समान होगा। +* बल के बिना न्याय शक्तिहीन है; न्याय के बिना बल अत्याचारी है। +* जितना अधिक मैं मानव जाति को देखता हूं, उतना ही मैं अपने कुत्ते को पसंद करता हूं। +* आत्मा की अमरता एक ऐसा मामला है जो हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है और जो हमें इतनी गहराई से छूता है कि हम इसके प्रति उदासीन होने की सभी भावना खो चुके होंगे। +* यीशु वह परमेश्वर है जिसके पास हम बिना गर्व के आ सकते हैं और जिसके सामने हम बिना निराशा के खुद को दीन कर सकते हैं। +* प्रकृति ने अपने सभी सत्यों को एक दूसरे से स्वतंत्र कर दिया है। हमारी कला एक को दूसरे पर आश्रित बनाती है। +* अलग-अलग व्यवस्थित शब्दों का एक अलग अर्थ होता है, और अलग-अलग व्यवस्थित अर्थों के अलग-अलग प्रभाव होते हैं। +* कारण का अंतिम क���र्य यह पहचानना है कि अनंत चीजें हैं जो इसे पार करती हैं। +* विरोधाभास असत्य का संकेत नहीं है, और न ही विरोधाभास की कमी सत्य का संकेत है। +* यदि मनुष्य भगवान के लिए नहीं बना है, तो वह केवल भगवान में ही खुश क्यों है?। +* यहाँ कृपा और सुंदरता का एक निश्चित मानक है जो हमारी प्रकृति के बीच एक निश्चित संबंध में है … और वह चीज जो हमें प्रसन्न करती है। +* मनुष्य के लिए कुछ भी इतना असहनीय नहीं है जितना कि पूरी तरह से आराम से, बिना जुनून के, बिना व्यवसाय के, बिना मनोरंजन के, बिना परवाह के। +* मनुष्य के लिए कुछ भी इतना असहनीय नहीं है जितना कि पूरी तरह से आराम से, बिना जुनून के, बिना व्यवसाय के, बिना मनोरंजन के, बिना परवाह के। +* अलग-अलग व्यवस्थित शब्दों के अलग-अलग अर्थ होते हैं, और अलग-अलग व्यवस्थित अर्थों के अलग-अलग प्रभाव होते हैं। +* दो प्रकार के लोग हैं जिन्हें कोई समझदार कह सकता है: वे जो परमेश्वर की सेवा पूरे मन से करते हैं क्योंकि वे उसे जानते हैं, और दूसरे जो उसे पूरे मन से खोजते हैं क्योंकि वे उसे नहीं जानते हैं। +* हमारे सिवा किसी धर्म ने यह नहीं सिखाया कि मनुष्य पाप में जन्म लेता है; किसी भी दार्शनिक संप्रदाय ने इसे स्वीकार नहीं किया है; इसलिए किसी ने सच नहीं बोला। +* पृथ्वी पर जो देखा जा सकता है वह न तो पूर्ण अनुपस्थिति और न ही देवत्व की स्पष्ट उपस्थिति की ओर इशारा करता है, बल्कि एक छिपे हुए ईश्वर की उपस्थिति की ओर इशारा करता है। सब कुछ इस निशान को धारण करता है। +* हम वास्तविक जीवन से संतुष्ट नहीं हैं; हम अन्य लोगों की नज़र में कुछ काल्पनिक जीवन जीना चाहते हैं और वास्तव में हम जो हैं उससे अलग दिखना चाहते हैं। +* कारण की अंतिम प्रक्रिया यह पहचानना है कि अनंत चीजें हैं जो इससे परे हैं। तर्क के लिए इतना अनुकूल कुछ भी नहीं है क्योंकि यह कारण की अस्वीकृति है। +* जब हम किसी चीज़ को हमारे सामने रख देते हैं तो हम उसे देखने से रोकने के लिए लापरवाही से दौड़ते हैं। +* यीशु एक ऐसा ईश्वर है जिसके पास हम बिना गर्व के आ सकते हैं और जिसके सामने हम बिना निराशा के खुद को दीन कर सकते हैं। +* पुरुष कभी भी बुराई को इतनी पूरी तरह और खुशी से नहीं करते जितना कि वे धार्मिक विश्वास से करते हैं। +* चूंकि मनुष्य मृत्यु, दुख, अज्ञान से लड़ने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए उन्होंने इसे अपने सिर में ले लिया है, ताकि वे खुश रहें, उनके बारे में बिल्कुल भी न सोचें। +* अंतरिक्ष के माध्यम से, ब्रह्मांड एक परमाणु की तरह मुझे घेर लेता है और निगल जाता है; विचार से, मैं दुनिया को समझता हूं। +* मैंने इस पत्र को सामान्य से अधिक लंबा बनाया है, केवल इसलिए कि मेरे पास इसे छोटा करने का समय नहीं है। +* हम स्वयं सत्य की मूर्ति बनाते हैं, क्योंकि दान के अलावा सत्य ईश्वर नहीं है, बल्कि उसकी छवि और एक मूर्ति है जिसे हमें प्यार या पूजा नहीं करनी चाहिए। +* मृत्यु, दुर्दशा और अज्ञानता को दूर करने में असमर्थ होने के कारण, पुरुषों ने खुश रहने के लिए, ऐसी चीजों के बारे में नहीं सोचने का फैसला किया है। +* मैंने पाया है कि मनुष्यों के सारे दुख एक ही तथ्य से उत्पन्न होते हैं, कि वे अपने कक्ष में चुपचाप नहीं रह सकते। +* मनुष्य उस शून्यता को देखने में भी समान रूप से अक्षम है जिससे वह उभरा है और जिस अनंत में वह घिरा हुआ है। +* आदत दूसरी प्रकृति है जो पहले को नष्ट कर देती है। लेकिन प्रकृति क्या है? आदत स्वाभाविक क्यों नहीं है? मुझे बहुत डर लगता है कि प्रकृति अपने आप में केवल एक पहली आदत है, जैसे आदत दूसरी प्रकृति है। +* लोगों को आमतौर पर उन कारणों से बेहतर समझा जाता है जो उन्होंने स्वयं खोजे हैं, उन लोगों की तुलना में जो दूसरों के दिमाग में आए हैं। +* यह समझ से बाहर है कि ईश्वर का अस्तित्व होना चाहिए, और यह समझ से बाहर है कि उसका अस्तित्व नहीं होना चाहिए। +* दुनिया में सबसे बड़ी और सबसे महत्वपूर्ण चीज कमजोरी पर आधारित है। यह एक उल्लेखनीय रूप से निश्चित नींव है, क्योंकि इससे अधिक निश्चित नहीं है कि लोग कमजोर होंगे। +* यीशु वह परमेश्वर है जिसके पास हम बिना गर्व के आ सकते हैं और जिसके सामने हम बिना निराशा के खुद को दीन कर सकते हैं। +* मनुष्य के सद्गुणों की शक्ति को उसके विशेष परिश्रम से नहीं, बल्कि उसके अभ्यस्त कर्मों से नापा जाना चाहिए। +* मन की स्पष्टता का अर्थ है जुनून की स्पष्टता भी; यही कारण है कि एक महान और स्पष्ट मन जोश से प्यार करता है और स्पष्ट रूप से देखता है कि वह क्या प्यार करता है। +* हम चीजों को न केवल अलग-अलग पक्षों से बल्कि अलग-अलग आंखों से देखते हैं; हमें उन्हें समान रूप से खोजने की कोई इच्छा नहीं है। +* जब तक वे हमारी आत्मा को भर देते हैं, तब तक कल्पना छोटी वस्तुओं को शानदार अतिशयोक्ति के साथ बढ़ा देती है, और बोल्ड जिद के साथ महान चीजों क��� अपने आकार में काट देती है, जैसे कि भगवान की बात करते समय। +* यदि आप सत्य के सच्चे साधक बनना चाहते हैं, तो आपको अपने जीवन में कम से कम एक बार, जितना संभव हो सके, हर चीज में संदेह करना होगा। +* वह जो अपने मार्गदर्शक के लिए सत्य लेता है, और अपने अंत के लिए कर्तव्य लेता है, वह सुरक्षित रूप से भगवान की भविष्यवाणी पर भरोसा कर सकता है कि वह उसे सही तरीके से ले जाए। +* जो लोग अपने स्वार्थ से घृणा नहीं करते हैं और अपने आप को दुनिया के बाकी हिस्सों से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं, वे अंधे हैं क्योंकि सच्चाई कहीं और है। +* व्यक्ति को स्वयं को जानना चाहिए। यदि यह सत्य की खोज के लिए कार्य नहीं करता है, तो यह कम से कम जीवन के नियम के रूप में कार्य करता है और इससे बेहतर कुछ नहीं है। +* आदत दूसरी प्रकृति है जो पहले को नष्ट कर देती है। लेकिन प्रकृति क्या है? आदत स्वाभाविक क्यों नहीं है? मुझे बहुत डर लगता है कि प्रकृति अपने आप में केवल एक पहली आदत है, जैसे आदत दूसरी प्रकृति है। +* मनुष्य की छोटी-छोटी बातों के प्रति संवेदनशीलता और महानतम के प्रति असंवेदनशीलता एक विचित्र विकार के लक्षण हैं। +* विश्वास प्रमाण से भिन्न है; उत्तरार्द्ध मानव है, पूर्व भगवान की ओर से एक उपहार है। +* वे शांति से मृत्यु को तरजीह देते हैं, दूसरे युद्ध की अपेक्षा मृत्यु को तरजीह देते हैं। +* जीवन के लिए किसी भी राय को प्राथमिकता दी जा सकती है, जिसे प्रिय रूप से प्यार करना इतना स्वाभाविक लगता है। +* मनुष्य न तो देवदूत है और न ही पशु, और दुर्भाग्य की बात यह है कि जो स्वर्गदूत का कार्य करता है वह पाशविक कार्य करता है। +* मनुष्य केवल दो प्रकार के होते हैं: धर्मी जो सोचते हैं कि वे पापी हैं और पापी जो सोचते हैं कि वे धर्मी हैं। +* मैंने इसे सामान्य से अधिक लंबा बनाया है क्योंकि मेरे पास इसे छोटा करने का समय नहीं है। +* जो कुछ भी प्रगति से परिपूर्ण होता है वह प्रगति से भी नष्ट हो जाता है। +* पुरुष अनिवार्य रूप से इतने पागल हैं कि पागल न होना पागलपन के दूसरे रूप के समान होगा। +* प्रत्येक मनुष्य के हृदय में एक ईश्वर के आकार का शून्य है जिसे किसी भी सृजित वस्तु से नहीं भरा जा सकता है, लेकिन केवल ईश्वर, निर्माता, जिसे यीशु के माध्यम से जाना जाता है। +* सभोपदेशक बताते हैं कि ईश्वर के बिना मनुष्य पूर्ण अज्ञान और अपरिहार्य दुख में है। +* और क्या यह स्पष्��� नहीं है कि जिस तरह सत्य के शासन में शांति भंग करना अपराध है, उसी प्रकार सत्य के नष्ट होने पर भी शांति से रहना भी अपराध है?। +* औसत दर्जे के रूप में कुछ भी स्वीकृत नहीं है, बहुमत ने इसे स्थापित किया है और जो कुछ भी इससे परे है, उस पर इसे ठीक करता है। +* विज्ञान की व्यर्थता। दुख के समय में नैतिकता की अज्ञानता के लिए भौतिक विज्ञान मुझे सांत्वना नहीं देगा। लेकिन भौतिक विज्ञानों की अज्ञानता के लिए नैतिकता का विज्ञान मुझे हमेशा सांत्वना देगा। +* मनुष्य की महानता इस मायने में महान है कि वह खुद को मनहूस जानता है। एक पेड़ खुद को मनहूस नहीं जानता। +* अंतिम कार्य खूनी है, बाकी सभी नाटक कितना सुखद है: एक छोटी सी पृथ्वी अंत में हमारे सिर पर फेंक दी जाती है, और यह हमेशा के लिए अंत है। +* उनके बीच की इच्छा और बल हमारे सभी कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं; इच्छा हमारे स्वैच्छिक कृत्यों का कारण बनती है, हमारे अनैच्छिक को मजबूर करती है। +* लोग आमतौर पर उन कारणों से अधिक आश्वस्त होते हैं जो उन्होंने खुद को दूसरों द्वारा पाए गए कारणों से खोजा था। +* अलग-अलग अर्थ रखने के लिए अलग-अलग तरीके से व्यवस्थित किए गए शब्द, और अलग-अलग व्यवस्थित अर्थों के अलग-अलग प्रभाव होते हैं। +* वर्तमान कभी हमारा लक्ष्य नहीं है: अतीत और वर्तमान हमारे साधन हैं: केवल भविष्य ही हमारा लक्ष्य है। इस प्रकार, हम कभी नहीं जीते लेकिन हम जीने की आशा करते हैं; और हमेशा खुश रहने की उम्मीद में, यह अपरिहार्य है कि हम कभी भी ऐसा नहीं होंगे। +* वह जो अपने मार्गदर्शक के लिए सत्य लेता है, और अपने अंत के लिए कर्तव्य लेता है, वह सुरक्षित रूप से भगवान की भविष्यवाणी पर भरोसा कर सकता है कि वह उसे सही तरीके से ले जाए। +* मनुष्य को प्रेम करने के लिए जाना जाना चाहिए, लेकिन जानने के लिए दैवीय प्राणियों को प्रेम करना चाहिए। +* ईसाई धर्म मुझे दो बातें सिखाता है कि एक ईश्वर है जिसे लोग जान सकते हैं, और यह कि उनका स्वभाव इतना भ्रष्ट है कि वे उसके योग्य नहीं हैं। +* विश्वास में, उन लोगों के लिए पर्याप्त प्रकाश है जो विश्वास करना चाहते हैं और जो नहीं करना चाहते उन्हें अंधा करने के लिए पर्याप्त छाया है। +* यह हृदय है जो ईश्वर को देखता है, कारण को नहीं। यही विश्वास है: ईश्वर को हृदय से माना जाता है, कारण से नहीं। +* यदि मैं ईश्वर और मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करता हूं और आप नहीं करते हैं, और यदि कोई ईश्वर नहीं है, तो मरने पर हम दोनों हार जाते हैं। हालांकि, अगर कोई भगवान है, तो भी आप हारते हैं और मुझे सब कुछ मिलता है। +* यह शिकायत करने के बजाय कि परमेश्वर ने स्वयं को छिपा रखा है, स्वयं को इतना प्रकट करने के लिए आप उसे धन्यवाद देंगे। +* अगर हम सब कुछ तर्क द्वारा परखकर करेंगे तो हमारे धर्म में रहस्यमय या अलौकिक कुछ भी नहीं बचेगा। यदि हम तर्क के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं तो हमारा धर्म बेतुका और हास्यास्पद होगा। दोनों ही समान रूप से खतरनाक चरम हैं: कारण को बाहर करना, तथा तर्क के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करना। + + +कर्ट वोनेगट 1922 – 2007) बीसवीं सदी के महान अमरीकी व्यंग्यकार, उपन्यासकार और ग्राफिक आर्टिस्ट थे। +* अच्छा व्यक्ति मृत्यु के बाद मिलने वाले पुरस्कार और दण्ड से निडर होकर जीवन जीता है। +* किसी काम को आप बीच में ही छोड़ देते हैं या आधा ही करते हैं, तो आप अंधों की दुनिया में काने राजा की तरह हैं। +* ऐसे व्यक्ति से सावधान रहिए, जो कुछ नया सीखना चाहता है और सीखता भी है, लेकिन उसे खुद में कोई सुधार महसूस नहीं होता। +* हम वही बन जाते हैं जैसा हम बनने की कोशिश करते हैं, इसलिए किसी दूसरे व्यक्ति जैसा बनने से पहले थोड़ी सावधानी बरतिए। +* उम्र बढ़ना किसी निराशा से कम नहीं है। इसकी कोई दवा भी उपलब्ध नहीं है, अगर आप यह न समझे कि हंसना ही हर बात का इलाज है। +* आपके जीवन की सबसे बड़ी समस्या यह है कि आपके मन में जो विचार आते हैं वह चिन्तायुक्त मन में नहीं आते बल्कि जब आप किसी दिन आराम से बैठे होते हैं और वह आपके मन में आ जाते हैं। + + +: भावार्थ जो राजा काम, क्रोध, लोभ, दम्भ दर्प (घमण्ड इन सभी दुर्गुणों पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त कर लेता है, वही इस पृथ्वी पर अधिकारपूर्वक शासन करने में समर्थ होता है। +: अज्ञानी को को आसानी के साथ सिखाया तथा समझाया जा सकता है और उससे भी अधिक आसानी के साथ पूर्ण ज्ञान रखने वाले को सिखाया तथा समझाया जा सकता है किन्तु ज्ञानी होने का दम्भ रखने वाले अल्पज्ञानी को ब्रह्मा भी सिखा तथा समझा नहीं सकते। +:भावार्थ तथा वैराग्य, विवेक, विनय, विज्ञान (परमात्मा के तत्व का ज्ञान) और वेद-पुराण का यथार्थ ज्ञान रहता है। वे दम्भ, अभिमान और मद कभी नहीं करते और भूलकर भी कुमार्ग पर पैर नहीं रखते॥ +: कलियुग के पापों ने सब धर्मों को ग्रस ल��या, सद्ग्रन्थ लुप्त हो गए, दंभियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर-करके बहुत-से पंथ प्रकट कर दिए॥ +* दम्भ का हमारे स्वभाव से वैसा ही सम्बन्ध है जैसा कि रंग का सौंदर्य से, यह न केवल अनावश्यक है, लेकिन, यह हममें हो रहे सुधार को भी क्षीण कर देता है। अलेक्जैण्डर पोप +* पुरुष जिनका यह दावा है कि तु है, +: बहादुर और स्वतन्त्र वयस्क पिता की संतान, +: तो क्या आप सही मायने में स्वतंत्र और बहादुर हैं जेम्स रसेल कोवेल +* मेरे सभी शो महान हैं। उनमें से कुछ खराब भी हैं लेकिन वे सभी महान हैं। ल्यू ग्रेड +* अमेरिका के सीमा शुल्क काउंटर पर कहा – “मेरे पास मेरी प्रतिभा के अलावा घोषणा करने के लिए कुछ भी नहीं है।” ऑस्कर वाइल्ड +* अपने कुल चिन्ह के बारे में डींग और शक्ति का प्रदर्शन और समग्र सौन्दर्य, सारा प्राप्त किया हुआ धन, अपरिहार्य घंटे की तरह इंतजार करता है। महिमामंडित मार्ग जाते तो हैं लेकिन कब्र की ओर। थॉमस ग्रे +* मनुष्य अपने सभी विचारों को सिद्धान्तों के रूप में लेता है। हर्बर्ट अगर +* जब लोग अचानक समृद्ध हो जाते हैं, वे निरर्थक भी हो जाते हैं। लारेंस जे पीटर +* मेरी अपनी हड्डियों से चिपकने वाले वसा की तुलना में कोई मीठा वसा नहीं मिला। वॉल्ट व्हिटमॅन +* एक व्यक्ति जितना ज्यादा अपने बारे में बोलता है, उसे दूसरे के बारे में सुनने में उतनी ही कम दिलचस्पी होती है। जोहान कास्पर लावाटर +* मैं केवल भगवान और इतिहास के प्रति जिम्मेदार हूँ। जी एफ फ्रेंको बाहामोंडे +* दम्भ सबसे कमजोर शरीर का सबसे मजबूत कार्य है। विलियम शेक्सपियर +* दम्भ अपनी बुद्धि की तुलना में अधिक बात करता है। डुक डे ला रोचेफौकाउल्ड +* मेरी विशेषता है कि जब अन्य लोग गलत होते हैं तो मैं सही होता हूँ। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* अगर मैं सृष्टि के निर्माण के समय उपस्थित होता तो ब्रह्मांड के बेहतर क्रम के लिए कुछ उपयोगी संकेत दिया होता। स्पेन के राजा अलफोंसो +* मैंने इतना सही और ईमानदारी से लिखा है कि मेरे सम्पूर्ण योगदान के बारे में भविष्य के छात्र विचार करेंगे। जॉन ओ ‘हारा +* जब भगवान ने आदमी का आविष्कार किया तो वह उसे मेरे जैसा देखना चाहता था। ब्रायन ओल्डफील्ड +* वाहवाही की भूख सभी चेतन साहित्य और वीरता का स्रोत है। डुक डे ला रोचे फौकाउल्ड +* सभी भ्रमों में यह एक जिज्ञासु तथ्य है। आक्रांत मानव जाति में, कोई भी इतना जिज्ञासु नहीं जितना कि हमल���ग हैं, मानसिक और नैतिक रूप से उनसे ज्यादा योग्य जो हमसे अलग विचार रखते हैं। एल्बर्ट हब्बार्ड +* आम तौर पर लोग दूसरों के द्वारा खोजे गए कारणों के अपेक्षा अपने द्वारा खोजे गए कारणों से ज्यादा आश्वस्त होते हैं। ब्लेज़ पास्कल +* हमें ईश्वर से अधिक महान होना चाहिए, क्योंकि हमें उसके अन्याय को पूर्ववत रखना है। जूल्स रेनार्ड +* लोगों को लगता है कि वे पैसे के बिना खुश रह सकते हैं, यह एक प्रकार का आध्यात्मिक दम्भ है। अल्बर्ट कामू + + +राम स्वरूप 1920-26 दिसंबर, 1998) वैदिक परम्परा के प्रमुख बुद्धिजीवी थे। उनकारा जन्म हरियाणा में सोनीपत में एक धनी परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा दिल्ली में हुई जहां उन्होंने अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। शिक्षा के पश्चात कई वर्ष वह वामपंथ विचारधारा के प्रभाव में थे। जब उन्हें रूस और चीन में साम्यवाद (कम्यूनिज्म) के नाम पर अत्याचार के बारे में पता चला तो वे साम्यवाद के विरोधी हो गये और उन्होंने इसके विरुद्ध कई ग्रन्थ लिखे जिनका प्रभाव अमेरिकी बुद्धिजीवियों पर भी पड़ा। वह अविवाहित रहे और जीवन के दूसरे भाग को उन्होंने धर्म, ज्ञान और समाज के चिन्तन पर व्यतीत किया। +* नए स्वयंभू सामाजिक न्याय का नाम लेने वाले बुद्धिजीवियों और दलों को जातिविहीन भारत नहीं चाहिए, वे बिना धर्म के जाति चाहते हैं। राम स्वरूप जाति के विकृति के पीछे तर्क" में, इंडियन एक्सप्रेस, 13-9-1996 +* धार्मिक सद्भाव एक वांछनीय वस्तु है। लेकिन इस खेल को खेलने में दो पक्ष लगते हैं। दुर्भाग्य से ऐसी भावना (धार्मिक सद्भाव) इस्लामी धर्मशास्त्र में निम्न स्थान रखती है। के.एस. लाल (1999) द्वारा रचित "भारत में मुस्लिम राज्य का सिद्धांत और व्यवहार Theory and practice of Muslim state in India) नई दिल्ली: आदित्य प्रकाशन, अध्याय 7 से उद्धरित। + + +होमर यूनान के पहले और सबसे महान महाकवि थे। इन्होंने 'ओडिसी' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ का रचना की है। +* किसी मित्र के लिए मर मिटना कठिन नहीं है, लेकिन ऐसे मित्र की खोज करना जिसके लिए आप सचमुच मरना चाहेंगे, यह कठिन है। +* ऐसे मित्र जो आपके सुख-दुःख को समझें और कठिन समय में साथ निभाए, ऐसा मित्र आपके जीवन में भाई-बहन की तरह होते हैं। +* जिस तरह से बातचीत करने के लिए निश्चित समय होता है, उसी तरह से सोने के लिए भी समय तय करिये। +* लड़ाई-झगडे समाप्त करने के लिए समझदार होना जरुरी है। इसी तरह से ���च्छा प्रदर्शन देने के लिए धैर्य रखना बहुत जरूरी है। +* अच्छे मित्र आपको हर परिस्थिति का सामना करना सिखाते हैं, वे भी पूरे साहस के साथ। +* किसी के साथ घृणा करना नर्क के द्वार पर खड़े होने जैसा है। यह बात उन लोगो के लिए सटीक है जो अपने दिल में किसी बात को छिपाते हैं और दूसरा व्यक्ति सबके सामने बोल देता है। +* ज्यादा लोग आप पर राज करें, या आपको निर्देश दे, यह ठीक नहीं है। +* दान करना बेशक हमारे लिए छोटी बात हो, लेकिन दूसरों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। +* सफलता प्राप्त करने के लिए अधिकांश लोगों को कठिन से कठिन परिश्रम करना पड़ता है। +* वही दो लोग अच्छे मित्र बन सकते हैं जो किसी एक चीज से प्रेरित हों। +* सुन्दर लोगो में और युवाओ में समझदारी होती है, लेकिन उनमे समझदारी काफी कम होती है। +* नींद लेना शरीर के लिए बहुत जरुरी है, लेकिन बहुत ज्यादा सोना भी घातक हो सकता है। +* इस बात से ज्यादा महत्वपूर्ण कोई भी बात हो सकती जब दो लोग एक-दूसरे की आँखों में आँखे डाल कर देखते है, घर को अपनेपन से भर देते है, दुश्मनो को घर से बाहर और दोस्तों को भरपूर प्यार देते है। + + +खलील जिब्रान एक श्रेष्ठ चिन्तक और महाकवि थे। वे अरबी, अंग्रेजी, फांसी के ज्ञाता, दार्शनिक और चित्रकार भी थे। उन्होंने देश-विदेश में भ्रमण किया। उनका जन्म 6 जनवरी 1883 को हुआ था। +* मित्रता एक सुन्दर जिम्मेदारी है, यह कोई अवसर या मौका नहीं है। +* अपने सुख-दुख अनुभव करने से बहुत पहले, हम स्वयं उन्हें चुनते हैं +* जो सत्य बोलता है वो लोगों के हृदय के निकट होता है, लेकिन जो दयालु है वह भगवान के हृदय के निकट होता है। +* आप किसी से प्रेम करते हैं तो उसे जाने दें। अगर वह लौटते हैं तो वह हमेशा से आपके थे और अगर नहीं लौटते हैं तो कभी आपके नहीं थे। + + +मैरी क्युरी विश्वप्रसिद्ध भौतिकविद और रसायनशास्त्री थीं। इन्होंने रेडियम की खोज की थी। इन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इनका जन्म 7 नवम्बर 1867 को हुआ था। +* किसी भी व्यक्ति के लिए जीवन आसान नहीं है। फिर क्या किया जाए? इससे बाहर निकलने का एक ही रास्ता है, स्वयं पर विश्वास कीजिए। +* तब तक डरने की कोई आवश्यकता नहीं है जब तक आप जानते हैं कि आप जो कर रहे हैं वह सही है, उससे किसी को नुकसान नहीं पहुंच रहा है। +* कम ही लोग इस बात की तरफ ध्यान देते हैं कि क्या हो चुका है। अधिकांश लोगों की रु���ि इस बात में रहती है कि क्या बाकी रह गया है। +* किसी चीज की गहराई को तभी समझ पाएंगे जब आपके पास पूरी आजादी हो। + + +फ्योदोर दोस्तवोस्की रूसी भाषा की महान कहानीकार, उपन्यासकार, और निबंधकार थे। इनका जन्म 11 नवम्बर 1821 को हुआ था। +* एक लक्ष्य को प्राप्त करना, दूसरे लक्ष्य की और बढ़ने की तरह है। +* दो काम करने से लोग सबसे ज्यादा घबराते हैं: पहला- नया कदम बढ़ाना, और दूसरा- नया शब्द बोलना। +* आप अपने जीवन को सही तरीके से जी रहे हैं तो आपके पास सुनाने के लिए कई कहानियां होंगी। +* प्रेम का मतलब ही पीड़ा है। इसके बिना प्रेम सम्भव नहीं है। +* आत्मा को सुख पहुंचाने के लिए बच्चों के साथ जीवन गुजारिए। + + +पब्लियस वर्जिलियस मारो ईसापूर्व 15 अक्तूबर, 70 – से ईसापूर्व 21 सितम्बर, 19) रोम के कवि थे। इन्हें प्रायः 'वर्जिल Vergil) नाम से जाना जाता है। इनकी गिनती रोम के महानतम कवियों में की जाती है। +* डर लगने का अर्थ है कि मस्तिष्क पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है। +* वही लोग सफल होते हैं, जो जानते हैं कि वह सफल ही होंगे। +* बाहरी सुन्दरता से प्रभावित होने की जरूरत नहीं है। यह स्थायी नहीं है। +* जो लोग कठिनाइयों से संघर्ष करना जानते हैं, भाग्य उन्हीं के साथ होती है। +* हर व्यक्ति सारे काम नहीं कर सकता। +* आप ही खुद के साथ तुलना कर सकते हैं, कोई दूसरा नहीं। +* बुरे समय को धैर्य और समझदारी से ही जीत सकते हैं। +* वही व्यक्ति खुश रहना जानता है जो वस्तुओं और घटनाओं के होने का कारण जानता है। +* जो अच्छा काम आप आज करेंगे, इसका फल आने वाली पीढ़ियों को मिलेगा। +* हर व्यक्ति के सुख और दुख बिल्कुल अलग होते हैं। +* ऐसा समय अवश्य आएगा जब आप कठिन समय को भी खुश होकर सुनाएंगे। +* आज को संभाल कर रखिए, इसी से आने वाला समय सुन्दर बनेगा। +* सबसे अच्छा समय, सबसे जल्दी बीत जाता है। + + +अल्डस हक्सले Aldous Huxley) एक अंग्रेजी उपन्यासकार, बौद्धिक, व्यंग्यकार और निबंधकार थे। वे २०वीं शताब्दी के अपने समय के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यकारों में से एक थे। उनका जन्म प्रभावशाली हक्सले परिवार में हुआ था जो पूरे इंग्लैंड में कुछ बेहतरीन दिमागो के निर्माण के लिए जाना जाता है। +* ज्ञात और अज्ञात चीजों के बीच धारणा के दरवाजे हैं । +* ब्रह्मांड का केवल एक ही कोना है जिसे आप सुधारना सुनिश्चित कर सकते हैं और वह है आपका स्वयं का मन। +* अनुभव वह नहीं है जो एक आदमी के लिए होता है, यह वह है जो कोई आदमी अनुभव के साथ करता है। +* मौन के बाद, अनुभवातीत को व्यक्त करने के लिए जो सबसे पास है वह संगीत है । +* तथ्य मौजूद नहीं हैंं क्योंंकि उन्हें नजरअंदाज किया जाता है। +* अधिकांश मनुष्यों के पास चीजों को ग्रहण करने की लगभग असीम क्षमता होती है। +* जो कुछ भी होता है वह अर्थपूर्ण है। आप जो कुछ भी करते हैं, वह कभी भी महत्वहीन नहीं होता। +* संगीत प्रकृति के विपरीत है, जीवन के विपरीत है। केवल पूरी तरह से तर्कयुक्त लोग मृत हैं। +* व्यक्तिगत स्थिरता के बिना कोई सामाजिक स्थिरता नहीं हो सकती। +* स्वर्ग नाम की एक चीज थी, लेकिन वे सभी समान मात्रा में शराब पीते थे। +* यात्रा करके पता चलता है सभी गलत (कहते) हैं। +* जब आप अकेले होते हैं, तो ईश्वर पर विश्वास करना स्वाभाविक है- रात में, अकेले मृत्यु के बारे में सोचते हुए। + + +चे ग्वेरा Che Guevara क्यूबा के एक डॉक्टर थे जो बाद में क्रांतिकारी बने। क्यूबा में उनका बड़ा सम्मान है। अपने आसपास गरीबी और शोषण देखकर युवा ग्वेरा का झुकाव मार्क्सवाद की तरफ हो गया और बहुत जल्द ही इस विचारशील युवक को लगा कि दक्षिण अमरीकी महाद्वीप की समस्याओं के निदान के लिए सशस्त्र आंदोलन ही एकमात्र तरीका है। क्यूबा की साक्षरता दर में आश्चर्यजनक वृद्धि के पीछे भी उनका योगदान है। +* घुटनों के बल जीने के बजाय में खड़ा होकर मरना पसंद करूंगा। +* क्रान्ति कोई ऐसा फल नही है जो स्वयं जमीन पर आ गिरता है। इस फल को जमीन पर गिराने के लिए हमे खुद मेहनत करनी पड़ती है। +* हर एक सच्चा क्रांतिकारी वास्तव में गहन प्रेम की भावना से संचालित होता है। +* क्या तुम अपनी अमरता के बारे में सोच रहे हो हत्या के कुछ मिनट पहले, बोलिवियन सैनिक ने चे ग्वेरा से पूछा +नहीं में क्रांति की अमरता के बारे में सोच रहा हूँ। चे ग्वेरा का उत्तर) +* कोई जन्मजात क्रांतिकारी नहीं होता, संघर्षों में तपकर ही क्रांतिकारी बनता है। वह हालात को बदलने के लिए संघर्ष करता है, सबको जोड़ता है और इस प्रक्रिया में खुद भी बदल जाता है। संघर्ष की आंच रत्ती रत्ती कर उसमें ऐसा ओज भर देती है, जो पहले कहीं था ही नही। +* जिसे मौत का डर नहींं, उसके लिए कोई भी काम नामुमकिन नहीं। +* बहुत से लोग मुझे दिलेर कहेंगे। मैं हूँ। सिर्फ मैं अपनी तरह का एक दम अलग। एक जो अपने सच को सही साबित करने के लिए अपनी जान भी खतरे में डाल सकता है। +क्रूर नेताओं द्वारा अपनी जगह नए नेताओं को भी क्रूर बनाया जाता है। +अन्य साधनों के द्वारा किए गए मौन तर्क हैं। +* जब तक हम इसके लिए मरने के लिए तैयार नहीं हैं, तब तक हमें जीने के लिए निश्चित नहीं होना चाहिए। +* मुझे पता है कि तुम मुझे मारने के लिए यहां हो। गोली मारो, कायर, आप केवल एक आदमी को मारने जा रहेंं हैं। +* एक क्रांतिकारी का पहला कर्तव्य शिक्षित होना है। +* क्रांति इंसानों के माध्यम से की जाती है, लेकिन व्यक्तीयों को दिन प्रतिदिन अपनी क्रांतिकारी भावना को बनाए रखना चाहिए। +* एक क्रांतिकारी का पहला कर्तव्य शिक्षित होना है। +* सच्चा क्रांतिकारी प्रेम की महान भावनाओं द्वारा निर्देशित होता है। +* आपको हवा की हर सांस के लिए लड़ना होगा और मौत को नर्क में भेजना होगा। +* जब तक हम इसके लिए मरने के लिए तैयार नहीं हैं, तब तक हमें जीने के लिए निश्चित नहीं होना चाहिए। +* क्रांति कोई ऐसा फल नही है जो खुद व खुद जमीन पर आ गिरता है, इस फल को जमीन पर गिराने के लिए हमे खुद मेहनत करनी पड़ती है। + + +होमी जहांगीर भाभा 30 अक्टूबर 1909 24 जनवरी ,1966 भारत के महान परमाणु वैज्ञानिक थे। उन्हें भारत के परमाणु ऊर्जा कर्यक्रम का जनक कहा जाता है। उन्होंने देश के परमाणु कार्यक्रम के भावी स्वरूप की मजबूत नींव रखी जिसके चलते भारत आज विश्व के प्रमुख परमाणु संपन्न देशों की पंक्ति में खड़ा है। होमी जहांगीर भाभा का जन्म मुंबई के एक समद्ध पारसी परिवार में हुआ था। +* बहुसंस्कृतिवाद या संस्कृतियों की विविधता पर नहीं बल्कि संस्कृति की संकरता के शिलालेख और अभिव्यक्ति पर आधारित है जो एक अंतरराष्ट्रीय संस्कृति की अवधारणा के रास्ते को खोल सकता है। यह इनबिल्ट स्पेस है जो संस्कृति के अर्थ का भार वहन करता है। तीसरे स्थान की खोज करके हम ध्रुवीयता की राजनीति की खोज करके, ध्रुवीयता की राजनीति को समाप्त कर सकते हैं और हमारे स्वयं के अन्य लोगों के रूप में उभर सकते हैं। +आलोचक की राजनीतिक जिम्मेदारी पर एक वक्तव्य आलोचक को पूरी तरह से महसूस करने का प्रयास करना चाहिए, और ऐतिहासिक अतीत को परेशान करने वाले अप्रकाशित अतीत की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। +* शब्द नहीं बोलेंगे और चुप्पी रंगभेद की छवियों में जम जाती है। +* अस्वाभाविक रूप से एक जातिगत समाज की हिंसा जीवन के विवरणों पर सबसे अधिक पड़ती है। जहां आप बैठ सकते हैं या नहीं आप कैसे रह सकते हैं या नहीं आप क्या सीख सकते हैं, या नहीं आप किसे प्यार कर सकते हैं, या नहीं। +* अब जब आप किसी को देखते हैं, तो वह बस नहीं है, क्या आप मेरे जैसे हैं या मेरे विपरीत हैं क्या आपकी संस्कृति ने महान कलाकारों का निर्माण किया है तुम्हारे संस्कार क्या हैं यह है आपकी संस्कृति सुरक्षित है या नहीं ? +* कला संगीत कविता और बाकी सब । मेरा यह एक उद्देश्य है जीवन की मेरी चेतना की तीव्रता को बढ़ाना । +* किसी के जीवन की अवधि सीमित है मृत्यु के बाद क्या आता है कोई नहीं जानता । और न ही मुझे परवाह है । चूंकि मैं इसकी अवधि बढ़ाकर जीवन की सामग्री नहीं बढ़ा सकता मैं इसकी तीव्रता बढ़ाकर इसे बढ़ाऊंगा। +* यह इनविल्ट स्पेस है जो संस्कृति के अर्थ का भार वहन करता है और इस तीसरे स्थान की खोज करके हम ध्रुवीयता की राजनीति को समाप्त कर सकते हैं और हमारे स्वयं के अन्य लोगों के रूप में उभर सकते हैं। +* मुझे नहीं लगता कि अन्य देशों मैं वैज्ञानिक विकास से परिचित कोई भी भारत म़े इस तरह के स्कूल की आवश्यकता से इनकार करेगा जैसा कि मैं प्रस्तावित करता हूँ। +होमी जहाँगीर भाभा के बारे में महापुरुषों के विचार== +* भारत के महान वैज्ञानिक सीवी रमन होमी जहांगीर भाभा को भारत का लियोनार्दो दा विंसी कहा करते थे। + + +एलन मस्क जन्म 28 जून, 1971 एक शीर्ष अमेरिकी उद्यमी हैं। वे विद्युत प्रौद्योगिकी क्षेत्र की सबसे अग्रणी कंपनी 'टेस्ला' के सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) हैं। टेस्ला मुख्यतः बिजली से चलने वाली गाड़ियाँ बनाती है। +* अगर कुछ बेहद जरूरी है, तो भले ही चीजें आपके खिलाफ हों फिर भी आपको वो जरुर करना चाहिए। +* आप एक ही टोकरी में सारे अंडे रख सकते है जब तक आप टोकरी को कंट्रोल कर सकते हैं। +* आपके द्वारा हल की गई समस्याओं के अनुपात में ही आपको भुगतान किया जाता है। +* आपको कुछ कर गुजरना है तो आपको बहुत मोटीवेट होना होगा वरना आप हमेशा खुद को ही दु:खी करते रहेंगे। +* आपको चीजों को बस इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि वे अलग है। उनका बेहतर होना भी जरुरी है। +* एक ही चीज है जिसका कोई अर्थ है वह है ज्ञान के लिए प्रयास करना। +* कोई भी कठिन काम करने के लिए बहुत सारे लोगों को इकट्ठा करना जरूरी नहीं हैं। अधिक संख्या जरूरी नहीं है कि रिजल्ट भी बेहतर दे। +* चलो कुछ अलग सोचते हैं और एक ऐसा कल्चर विकसित करते है जहां अच्छी ��ोच को प्रोत्साहन मिले और फेल होना ठीक समझा जाए। +* जब कोई चीज पर्याप्त रुप से महत्वपूर्ण होती है, तो आप इसे करते हैं, भले ही परिस्थितियांं आपके पक्ष में न हों। +* जब में कॉलेज में पढ़ता था तब मैं उन चीजों में शामिल होना चाहता था जो इस दुनिया में बदलाव लाये और आज मैं वही करने में लगा हूँ। +* दृढ़ता बहुत जरुरी है। आपको तब तक हार नहींं माननी चाहिए जब तक की आपको हार मानने के लिए मजबूर ना किया जाए। +* धैर्य एक गुण है और मैं धैर्य सीख रहा हूँ। यह एक कठिन सबक है। +* नही मैं कभी हार नहीं मानता। इसके लिए मुझे मृत या पूरी तरह से अक्षम होना होगा। +* बहुत जरुरी है कि लोग सुबह काम करने जाए और उसे एन्जॉय करे। +* मुझे लगता है कि साधारण लोगों के लिए असाधारण होने का चयन करना संभव है। +* मैं अपना समय मुश्किल चीजें पढ़ने में नहीं लगाता मैं अपना समय इंजीनियरिंग और निर्माण की परेशानियों को हल करने में लगता हूँ। +* मैं इस निष्कर्ष पर पंहुचा कि हमें मानव चेतना के दायरे और पैमाने को बेहतर ढंग से समझने की इच्छा रखनी चाहिए कि कौन से प्रश्न पूछने हैं। +* यदि आप एक कम्पनी बनाने का प्रयास कर रहे हैं तो वे एक केक बनाने की तरह है आपको सभी सामग्री सही मात्रा मेंं डालनी होगी। +* यदि आप सुबह उठते हैं और सोचते हैं कि भविष्य बेहतर होने वाला है, तो यह आपका उज्ज्वल दिन है। अन्यथा नहीं है। +* लगातार सोचें कि आप चीजों को बेहतर कैसे कर सकते हैं। +* लम्बेंं समय तक नाराज रहने के लिए जिंदगी बहुत छोटी है। +* वास्तव में कठिन चीजों में एक यह पता लगाना है कि क्या प्रश्न पूछना है। एक बार जब आप प्रश्न का पता लगा लेते हैं, तो उत्तर अपेक्षाकृत आसान हो जाता है। +* वास्तव में, केवल एक चीज जिसका कोई अर्थ है वो है बड़े सामूहिक ज्ञान के लिए प्रयास करना। +* व्यक्ति तब बेहतर काम करता है जब उसे अपने लक्ष्य के बारे में पता होता है की वह क्या और क़्यो कर रहा है। + + +मैक्सिम गोर्की Alexei Maximovich Peshkov 16 मार्च ,1868 18 जून 1936 रूस और सोवियत संघ के लेखक समाजवादी यथार्थवाद' साहित्यिक पद्धति के संस्थापक और एक राजनीतिक कार्यकर्ता थे। उन्हें साहित्य में नोबेल पुरस्कार के लिए पांच बार नामांकित किया गया। +* अतीत का स्मरण सभी वर्तमान ऊर्जा को नष्ट कर देता है और भविष्य के लिए सभी आशाओं को नष्ट कर देता है। +* आपको बच्चों के लिए उसी तरह लिखना चाहिए जैसे आप वयस्कों के लिए ल��खते हैं, केवल बेहतर। +* कई समकालीन लेखन जितना लिखते हैं उससे अधिक पीते है । +* गुस्सा बर्फ की तरह होना चाहिए और जल्दी पिघल जाना चाहिए। +* झूठ गुलामों और मालिकों का धर्म है। सत्य स्वतंत्र मनुष्य का देवता है । +* भविष्य के बारे केवल माता ही सोच सकती है क्योंकि वे अपने बच्चों को जन्म देती हैं। +* यदि काम एक खुशी है, तो जीवन एक खुशी है यदि काम एक कर्तव्य है, तो जीवन गुलामी है। +* लेखक हवा में महल बनाते हैं, पाठक अन्दर रहता है, और प्रकाशन किराया देता है। +* संगीत में कोई भी सब कुछ सुन सकता है। + + +इमानुएल कांट Immanuel kant 22 अप्रैल 1724 12 फरवरी 1804 एक महान जर्मन दार्शनिक थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति 'क्रिटिक ऑफ प्योर रीजन' है। कोनिंग्सबर्ग विश्वविद्यालय में एक पूर्ण प्रोफेसर बनने से पहले उन्होंने तर्कवाद और अनुभववाद के बीच के मध्य की खोज करते हुए एक शिक्षक के रूप में काम किया था। +* सामग्री के बिना विचार खाली हैं, अवधारणाओं के बिना अन्तर्ज्ञान अंधा है। +* शिक्षा के माध्यम से ही दुनिया की सारी अच्छी चीजें निकलती हैं। +* खुशी एक आदर्श कारण नहीं है, लेकिन कल्पना की है। +* आदमी को अनुशसित होना चाहिए, क्योंंकि वह स्वभाव से कच्चा और जंगली होता है। +* सिद्धांत के बिना अनुभव अंधा है लेकिन अनुभव के बिना सिद्धांत केवल बौद्धिक नाटक है। +* हमारा सारा ज्ञान इंद्रियों से शुरु होता है फिर समझ में आता है, और तर्क के साथ समाप्त होता है। कारण से बढ़कर कुछ भी नहीं है। +* हम इस लिए अमीर नहीं है कि हमारे पास क्या है लेकिन इसके बिना हम क्या कर सकते हैं। +* नजदीक से देखों। छोटा भी सुंदर हो सकता है। +* जो खुद को एक कीड़ा बना लेता है वह बाद मेंं शिकायत नहीं कर सकता अगर लोग उस पर कदम रखें। +* एक आदमी जानवरों के साथ कैसा बरताव करता है उसी से हम उसके व्यवहार को समझ सकते है। +* मानवता की कुटिल लकड़ी में से कोई सीधी चीज कभी नहीं बनाई गई थी। +* हठधर्मिता की मृत्यु नैतिकता का जन्म है। +* धीरज रखो निंदक दीर्घजीवी नहीं होते हैं। सत्य समय का बच्चा है वह तुझ से लिपटेगी। +* जानने की हिम्मत अपनी बुद्धि का उपयोग करने का सहास रखें। +* लोगों को एक अंत के रुप में समझो और एक अंत के साधन के रुप में कभी नहीं। +* सभी अच्छी पुस्तकों का पढ़ना पिछली शताब्दियों के बेहतरीन दिमागों के साथ बातचीत की तरह है। +* दो चीजें जिनका अर्थ जरुरी नहीं है, एक संगीत और दूसरा हास्य। +* सबसे बड़ी मानवीय खोज यह जानना है कि मनुष्य बनने के लिए उसको क्या करना चाहिए। +* सिद्धांतवाद की मृत्यु नैतिकता का जन्म है। +* विज्ञान संगठित ज्ञान है। बुद्धि संगठित जीवन है। +* खुशी के नियम कुछ करना किसी को प्यार करना कुछ अच्छे की आशा करना। +* सोचने का साहस रखें जानने की इच्छा रखे अपनी बुद्धि का उपयोग करने का साहस करे। + + +* कोई क्रांति नहीं है जो मनुष्य की प्रकृति को बदल सकती है। +* जहाँ अज्ञान बोलता है, वहां बुद्धि को सलाह नहीं देनी चाहिए। +* जो हमसे असहमत होते हैं उनसे हम बहस नहीं करते, उन्हें नष्ट कर देते हैं। +* दूसरों पर भरोसा करना अच्छा है, लेकिन भरोसा न करना बेहतर है। +* धर्म कमजोर दिमाग वाले व्यक्तियों को नियंत्रित करने में मनुष्य की प्रकृति को बदल सकती है। +* पत्रकारिता एक पेशा नहीं, एक मिशन है। +* फासीवाद एक धर्म है। इतिहास में बीसवीं सदी को फासीवाद की सदी के रूप में जाना जाएगा। +* फासीवाद की परिभाषा है- निगम और राज्य का विवाह। +* भेड़ के रूप में सौ वर्ष की तुलना में एक दिन शेर के रूप में जीना बेहतर है। +* मौन ही एकमात्र उत्तर है जो आपको मूर्खों को देना चाहिए। +* लहू ही इतिहास के पहिए को चलाता है। +* सच तो यह है कि मनुष्य स्वतंत्रता से थक चुके हैं। +* सन्तों का इतिहास मुख्य रूप से पागल लोगों का इतिहास है। +* समाजवाद एक धोखा है, एक कॉमेडी है, एक प्रेत है, एक ब्लैकमेल है। +* सिद्धान्त रूप में लोकतन्त्र सुन्दर है; व्यवहार में यह एक भ्रम है। + + +* जहां जीवन है वहां उम्मीद है। +* भटकने वाले सभी लापता नहीं होते है। +* थोड़ी-थोड़ी करके एक दूर की यात्रा संभव है। +* हमे केवल यह तय करना है कि उस समय का क्या किया जाए जो हमें दिया गया है। +* जादूगरों के मामलों में ध्यान न दें क्योंंकि वे सूक्ष्म और क्रोध के तेज है। +* साहस, असंभव स्थानों पर पाया जाता है। +* आपके पंखों के नीचे की हवा आपको खुशी प्रदान कर सकती है जहां सूरज डूबता और चंद्रमा चलता है। +* आप केवल छाया के माध्यम से सुबह तक आ सकते है। +* जो मायने रखता है वो शरीर की ताकत नहीं है बल्कि आत्मा की ताकत है। +* अगर मैं अपने जीवन या मृत्यु से आपकी रक्षा कर सकता हूँ, तो मैं करूंगा। +* निराशा केवल उन लोगों के लिए है जो सभी आशाओं से परे अंत को देखते हैं। हम नहीं। +* जहां आप अनुसरण नहींं कर सकते वह मत जाओ। +* शॉर्ट कट अक्सर अधिक समय लगाते हैं। + + +मार्क ट्वेन एक अमेरिकी व्यंग्यकार थे। उनका जन्म 30 नवंबर 1835 को संयुक्त राज्य के फ्लोरिडा के मिज़ुरी में हुआ था। +क्लासिक एक ऐसी पुस्तक जिसकी लोग प्रशंशा करते हैं पर पढ़ते नहीं। +* अगर हमें सुनने से ज्यादा बोलना होता, तो हमारे पास दो मुंह और एक कान होता। +* अपने संदेह से अधिक अपनी इच्छा पर ध्यान केंद्रित करें और सपना अपने आप ठीक हो जाएगा। +* आइये ऐसे जियें कि जब हम मरने वाले हों तो क्रिया-करम का व्यवसाय करने वाले भी अफ़सोस करें। +* आगे बढ़ने का सबसे बड़ा राज शुरुआत करना हैं। +* आपके जीवन में दो सबसे महत्वपूर्ण दिन हैं एक वो दिन जब आप जन्म लेते हैं और दूसरा वो दिन जिस दिन आपको अपने जीने का उद्देश्य पता चलता हैं। +* आमतौर पे मुझे बिना तैयारी के दिए जाने वाले भाषण को तैयार करने में तीन हफ्ते लगते हैं। +* आयु शरीर से अधिक मन की अवस्था है। अगर आपको कोई आपत्ति नहीं है तो कोई बात नहीं। +* आवश्यकता जोखिम उठाने की जननी है। +* इतिहास खुद को दोहराता नहीं है, लेकिन यह तुकबंदी करता है। +* इंसान ही एक ऐसा प्राणी है जो शर्मिंदा होता है- या जिसे जरूरत पड़ती है। +* ईश्वर की कृपा से हमारे देश में तीन बेहद कीमती चीजें उपलब्ध हैं: भाषण की स्वतंत्रता, अंतरात्मा की स्वतंत्रता,और इनमे से किसी का भी प्रयोग ना करने का विवेक। +* उन लोगों से दूर रहें जो आपकी महत्वाकांक्षाओं को कम करने की कोशिश करते हैं। छोटे लोग हमेशा ऐसा करते हैं, लेकिन महान लोग आपको भी ऐसा महसूस कराते हैं कि आप भी महान बन सकते हैं। +* एक अच्छा तत्काल भाषण तैयार करने में मुझे आमतौर पर तीन सप्ताह से अधिक समय लगता है। +* एक आदमी के चरित्र को उन विशेषणों से सीखा जा सकता है जिनका वह आदतन बातचीत में उपयोग करता है। +* ऐसा क्यों होता कि हम किसी के पैदा होने पर खुश होते हैं और मरने पर दुखी, क्योंकि हम खुद वो व्यक्ति नहीं होते हैं। +* किताबें उन लोगों के लिए होती हैं जो चाहते हैं कि वे कहीं और हों। +* क्रोध एक ऐसा तेज़ाब है जो जिस चीज पे डाला जाता है उससे ज्यादा उस पात्र को नुकसान पहुंचाता सकता है जिसमें वो रखा है। +* खुद को खुश करने का सबसे अच्छा तरीका है किसी और को खुश करने की कोशिश करना। +* चिंता करना उस कर्ज का भुगतान करने जैसा है जो आप पर बकाया नहीं है। +* चीजों को जितना ज्यादा वर्जित किया जाता है वो उतना ही लोकप्रिय हो जाती हैं। +* जमीन खरीदिये वो इसे अ��� और नहीं बना रहे है। +* ज़िन्दगी कहीं ज्यादा खुशहाल होती अगर हम 80 साल के पैदा होते और धीरे-धीरे 18 की तरफ बढ़ते। +* जीवन में सफल होने के लिए, आपको दो चीजों की आवश्यकता है। अनभिज्ञता और आत्मविश्वास। +* जो व्यक्ति नहीं पढ़ेगा, उसे उस व्यक्ति की अपेक्षा कोई लाभ नहीं होगा जो पढ़ नहीं सकता। +* जो व्यक्ति पढता नहीं है वो ना पढ़ पाने वाले व्यक्ति की अपेक्षा कोई लाभ नहीं है। +* झूठ होते हैं, बहुत बड़े झूठ होते हैं और फिर आंकड़े होते हैं। +* दया वह भाषा है जिसे बहरे सुन सकते हैं और अंधे देख सकते हैं। +* देश के प्रति वफादारी हमेशा।सरकार के प्रति वफादारी जब वो उसके लायक हो। +* धन की कमी सभी बुराई की जड़ है। +* पवित्रता और खुशी एक असंभव संयोजन है। +* पहले अपने तथ्यों को प्राप्त करें, फिर आप उन्हें अपनी ख़ुशी से तोड़ मरोड़ सकते हैं। +* पुरस्कार लेने से मना करने; और अधिक शोर के साथ पुरस्कार लेने का तरीका है। +* पैसे की कमी सभी समस्याओं की जड़ है। +* बैंकर एक ऐसा साथी है जो सूरज के चमकने पर आपको अपना छाता उधार देता है, लेकिन जब बारिश शुरू होती है तो वह उसे वापस लेना चाहता है। +* भले ही आप कपडे पहनने में लापरवाह रहिये पर अपनी आत्मा को दुरुस्त रखिये। +* मनुष्य – एक ऐसा जीव जो साप्ताहिक कार्य के अंत में बनाया गया जब भगवान थके थे। +* मूलतः दो तरह के लोग होते हैं। वो जो चीजें हासिल करते हैं, और वो जो जीजें हासिल करने का दावा करते हैं। पहले समूह में भीड़ कम होती है। +* मृत्यु का भय जीवन के भय से शुरू होता है। वही आदमी पूरी तरह से जीता है जो हर समय मरने के लिए तैयार हो। +* मेरी किताबें पानी की तरह हैं; और उन महान प्रतिभाओं की शराब की तरह। (सौभाग्यवश) सभी लोग पानी पीते हैं। +* मेल-जोल घृणा को जन्म देता है- और बच्चों को भी। +* मैं एक अच्छी तारीफ पर दो महीने तक रह सकता हूँ। +* मैं मौत से नहीं डरता। मैं पैदा होने से पहले अरबों और अरबों साल पहले मर चुका था, और इससे मुझे थोड़ी सी भी असुविधा नहीं हुई थी। +* यदि आप अखबार नहीं पढ़ते हैं, तो आप बेख़बर हैं। यदि आप अखबार पढ़ते हैं, तो आपको गलत सूचना दी जाती है। +* यदि आप एक भूखे कुत्ते को उठाकर उसे समृद्ध बनाते हैं तो वह आपको नहीं काटेगा। यह कुत्ते और आदमी के बीच मुख्य अंतर है। +* यदि आप सच कहते हैं, तो आपको कुछ याद रखने की जरूरत नहीं रहती। +* यदि आपका काम एक मेंढक खाना है तो सबसे अच्छा होगा कि सुबह ���बसे पहले ये काम करें। और यदि आपका काम दो मेंढक खाना है तो बड़े वाले को पहले खाना अच्छा होगा। +* यदि आपमें इसे बदलने की इच्छा नहीं है, तो आपको इसकी आलोचना करने का कोई अधिकार नहीं है। +* यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सत्य कल्पना से अधिक अजनबी है। कहानी को अर्थपूर्ण होना चाहिए। +* ये बेहतर है कि आप सम्मान के लायक हों और वो आपको ना मिले। बजाये इसके कि वो आपको मिले और आप उसके लायक ना हों। +* लड़ाई में कुत्ते का आकर मायने नहीं रखता, कुत्ते में लड़ाई का आकार मायने रखता है। +* वास्तविकता को पर्याप्त कल्पना से हराया जा सकता है। +* विलंबित पूर्णता की तुलना में निरंतर सुधार बेहतर है। +* सत्य कल्पना से अलग है, लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि कल्पना संभावनाओं से चिपके रहने के लिए बाध्य है; सच नहीं है। +* सबसे बुरा अकेलापन खुद के साथ सहज न होना है। +* सबसे महान आविष्कारक का नाम बताइए। दुर्घटना। +* सभी जानवरों में से, मनुष्य ही एकमात्र ऐसा है जो क्रूर है। वह अकेला है जो इसे करने की खुशी के लिए दर्द देता है। +* सभी सामान्यीकरणगलत होते हैं। ये भी। +* समृद्धि, सिद्धांत का सबसे बड़ा रक्षक है। +* सही शब्द प्रभावी हो सकता है पर कभी भी कोई शब्द इतना प्रभावी नहीं हुआ है जितना कि सही समय पर दिया गया एक विराम। +* स्कूली शिक्षा को अपनी शिक्षा में हस्तक्षेप न करने दें। +* स्मोकिंग छोड़ना दुनिया का सबसे आसान काम है। मुझे पता है क्योंकि मैंने ये हज़ारों बार किया है। +* स्वस्थ्य सम्बन्धी किताबों को पढने में सावधानी बरतिए। एक मुद्रणदोष की वजह से आपकी मौत हो सकती है। +* स्वास्थ्य संबंधी पुस्तकें पढ़ने में सावधानी बरतें। आप गलत छपने से मर भी सकते हो। +* हमेशा सही करें। ये कुछ लोगों को संतुष्ट करेगा और बाकियों को अचंभित। +* हर दिन को अपने जीवन का सबसे खूबसूरत दिन बनने का मौका दें। +* हास्य मानव जाति की सबसे बड़ी आशीर्वाद है। + + +* किसी को अपना व्यक्तित्व छोड़कर दूसरे का व्यक्तित्व नहीं अपनाना चाहिए। चैनिंग +* मानव नकल करने वाला प्राणी है और जो सबसे आगे रहता है वो नेत्रित्व करता है। शिलर +* जहाँ नकल है वहां खाली दिखावा होगा, जहाँ खाली दिखावा है वहां मूर्खता होगी। जॉन्सन + + +तिरुक्कूरल तमिल भाषा में वेद की भांति सम्मानित ग्रन्थ है जिसके रचियता तिरुवल्लुवर माने जाते हैं। इनका जीवनकाल आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व माना जाता है। जन-मानस में पीढ़ी दर पीढ़ी अंकित उनकी छवि के अतिरिक्त उनके जीवन के संबध में ओर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। तिरुवल्लुवर अपनी पत्नी बासुही के साथ अत्यन्त सरल जीवन व्यतीत करते थे। पत्नी चरखे पर सूत कातती और वे कपड़ा बुनकर बाजार में बेचते। उनके शान्त स्वभाव, सत्य-निष्ठा और सहनशीलता की सर्वत्र सराहना होती। +उनकी सहनशीलता से एक धनी व्यक्ति के पुत्र के जीवन में इतना परिवर्तन आया कि पिता-पुत्र सदा के लिए उनके भक्त बन गये। एलेल शिंगन नाम के उस धनी व्यक्ति के आग्रह पर तिरुवल्लुवर ने जीवन के तीन पहलुओ – धर्म, अर्थ और काम पर ग्रन्थ लिखना स्वीकार किया। उनका कहना था कि मोक्ष के बारे में मैं कुछ नही जानता। +तिरुवल्लुवर ने काव्य में अपना ग्रन्थ लिखा जिसमे कुल 1330 छोटी छोटी कविताये हैं जो दोहे से भी छोटी हैं। जिस छंद में यह ग्रन्थ लिखा गया उसे "कुरल" कहते हैं। +तिरुक्कुरल तीन वर्गों में विभाजित है- अरम, पारुल, और इनबम। पहले खंड में विवेक और सम्मान के साथ अच्छे नैतिक व्यवहार सही आचरण को बताया गया है। द्वितीय खण्ड में सांसारिक मामलों की सही ढंग से चर्चा की गई है। तीसरे अनुभाग में नर और नारी के बीच प्रेम संबंधों पर विचार किया गया है। प्रथम खंड में 38 अध्याय हैं, दूसरे में 70 अध्याय और तीसरे में 25 अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में कुल 10 दोहे या कुरल है और कुल मिलाकर कृति में 1330 कुरल हैं। +* श्रेष्ठ अवसर मिले तो उसे पकड़ लें और सर्वश्रेष्ठ काम ही करें। +* व्यक्ति भीतर से जितना मजबूत होगा उतना ही उसका कद ऊंचा होगा। +* अच्छे और विनम्र शब्दों की जानकारी होने के बावजूद दूसरों के साथ अपशब्दों का प्रयोग करना वैसा ही है जैसे पेड़ पर पके हुए फल लगे होने के बावजूद कच्चे फल खाना। +* पानी चाहे जितना भी गहरा हो, कमल का फूल पानी के ऊपर ही खिलता है। उसी तरह व्यक्ति कितना महान है, ये उसकी आन्तरिक और मानसिक ताकत पर निर्भर करता है। +* बुरे व्यवहार या बुरी आदतों वाले व्यक्ति से बात करना वैसा है जैसे टॉर्च की मदद से पानी के नीचे डूबते आदमी को तलाशना। +* अगर आवश्यकता पड़ने पर थोड़ी सी सहायता मिल जाए तो उससे अधिक महत्वपूर्ण या बड़ा कुछ भी नहीं हो सकता। + + +मुस्तफा कमाल अतातुर्क आधुनिक तुर्की के जनक (अता तुर्क) कहे जाते हैं। उनका जन्म 1881 ई. में सेलोनिका के एक सामान्य परिवार में हुआ था�� सात वर्ष की उम्र में ही उसके पिता अली रजा की मृत्यु हो गयी, अतः उसका लालन-पालन उनकी माता जुबेदा ने किया। +मुस्तफा कमाल पाशा साम्राज्यवाद के कट्टरविरोधी तथा राष्ट्रीयता एव आधुनिकता का प्रबल समर्थक थे। मुस्तफा पाशा ने तुर्की को आधुनिक राष्ट्र के रूप में परिवर्तित किया, जिसे पहले 'यूरोप का रोगी' कहा जाता था। मुस्तफा कमाल पाशा ने आधुनिक तुर्की के निर्माण के लिये आधुनिक शिक्षा प्रणाली शुरू की तथा प्रारम्भिक शिक्षा अनिवार्य तथा निशुल्क कर दिया; उपाधियों का अन्त कर दिया गया राष्ट्रीयता के विकास के लिए नगरों के प्राचीन नामों को बदला गया; स्त्री शिक्षा व्यवस्था और सिविल विवाह की पद्धति लागू की गई; खिलापत (खलीफा को शासनाध्यक्ष मानना) का अन्त कर दिया गया तथा तुर्की धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया; पंचवर्षीय योजनाओं का आरम्भ कर तीव्र औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दिया गया। + + +ऑटो फॉन बिस्मार्क Otto Von Bismarck) जर्मनी के प्रथम चांसलर और महान राजनयिक थे। उन्होंने जर्मनी का एकीकरण किया। +* आज के बड़े-बड़े सवाल भाषणों और बहुमत के फैसलों से नहीं बल्कि खून-खराबे से हल होंगे। +* राजनीति संभव, अगले सर्वश्रेष्ठ के प्राप्ति की कला। +* राजनीति में किसी भी बात पर तब तक विश्वास न करें जब तक कि उसे आधिकारिक रूप से नकार दिया गया हो। +* मूर्खों, पियक्कड़ों और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए परमेश्वर का एक विशेष विधान है। +* सीमा पर विजयी सेना को वाक्पटुता से नहीं रोका जाएगा। +* श्रमिकों की सामाजिक असुरक्षा उनके राज्य के लिए खतरा होने का असली कारण है। +* निवारक युद्ध मृत्यु के भय से आत्महत्या करने के समान है। +* एक दिन महान यूरोपीय युद्ध बाल्कन (1888) में किसी शापित मूर्खता से निकलेगा। +* यह दुर्बलों की नियति है कि वे बलवानों को निगल जाएँ। +* जर्मनी में प्रशिया की स्थिति उसके उदारवाद से नहीं बल्कि उसकी शक्ति से निर्धारित होगी। +* लोग कभी इतना झूठ नहीं बोलते जितना शिकार के बाद, युद्ध के दौरान या चुनाव से पहले। +* चुनाव से पहले, युद्ध के दौरान या शिकार के बाद लोग कभी इतना झूठ नहीं बोलते। +* राजनीति का राज? रूस के साथ एक अच्छी संधि करें। +* आज के बड़े-बड़े सवाल भाषणों और बहुमत के फैसलों से नहीं बल्कि खून-खराबे से हल होंगे। +* निवारक युद्ध मृत्यु के भय से आत्महत्या करने के समान है। +* ताज पहनाया हुआ सिर, धन और विशेषाधिकार अच्छी तरह से कांप सकते हैं, फिर कभी ब्लैक एंड रेड एकजुट हो जाएं 1872 में अराजकतावादियों और मार्क्सवादियों के बीच विभाजन के बाद) +* मुख्य बात इतिहास बनाना है, लिखना नहीं। +* विनम्र रहें; कूटनीतिक रूप से लिखें; यहां तक ​​कि युद्ध की घोषणा में भी व्यक्ति विनम्रता के नियमों का पालन करता है। +* मैंने तीन बादशाहों को नग्न अवस्था में देखा है, और यह नजारा प्रेरक नहीं था। +* एक बार अपना रास्ता चुन लेने के बाद सरकार को छूट नहीं देनी चाहिए। इसे बाएं या दाएं नहीं देखना चाहिए बल्कि आगे बढ़ना चाहिए। +* मनुष्य घटनाओं की धारा को नियंत्रित नहीं कर सकता। वह केवल उनके साथ तैर सकता है और चला सकता है +* आज के महान प्रश्नों का समाधान भाषणों और बहुमत के फैसलों से नहीं बल्कि लोहे और खून से होगा +* कानून सॉसेज की तरह हैं, उन्हें बनते हुए न देखना बेहतर है। +* राजनीति तर्क पर आधारित विज्ञान नहीं है; वे हमेशा हर पल, लगातार बदलती परिस्थितियों में, कम से कम हानिकारक, सबसे उपयोगी चुनने की क्षमता रखते हैं। +* एक दिन महान यूरोपीय युद्ध बाल्कन में किसी शापित मूर्खता से निकलेगा। +* राजनेता का कार्य इतिहास के माध्यम से चलते हुए परमेश्वर के पदचिन्हों को सुनना है, और जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता है, उसकी कोशिश करना और उसे पकड़ना है। +* एक सज्जन के साथ, मैं हमेशा एक सज्जन और आधा हूं, और धोखेबाज के साथ, मैं धोखेबाज़ और आधा बनने की कोशिश करता हूं। +* हम एक अद्भुत समय में रहते हैं, जिसमें ताकतवर अपनी चतुराई के कारण कमजोर होता है और कमजोर उसके दुस्साहस के कारण मजबूत होता है। +* मनुष्य घटनाओं की धारा को नियंत्रित नहीं कर सकता। वह केवल उनके साथ तैर सकता है और चला सकता है। +* अगर यूरोप में कभी एक और युद्ध होता है, तो यह बाल्कन में किसी शापित मूर्खतापूर्ण बात से निकलेगा। +* वास्तव में एक महान व्यक्ति को तीन संकेतों से जाना जाता है- डिजाइन में उदारता, निष्पादन में मानवता, सफलता में संयम। +* हम जर्मन भगवान से डरते हैं, लेकिन दुनिया में और कुछ नहीं। +* राजनीति संभव की कला है, संबंधियों का विज्ञान है। +* थोड़ी सी सावधानी एक बड़ी घुड़सवार सेना से आगे निकल जाती है। +* जीवन दन्त-चिकित्सक के पास होने जैसा है। आप हमेशा सोचते हैं कि सबसे बुरा अभी आना बाकी है, और फिर भी यह पहले ही खत्म हो चुका है। +* राजनीतिक निर्णय इतिहास के घोड़े के दूर के खुरों को सुनने की क्षमता है। +* उस नेता के लिए धिक्कार है, जिसके तर्क युद्ध के अंत में उतने प्रशंसनीय नहीं हैं जितने शुरुआत में थे। +* सॉसेज और कानूनों के लिए एक निश्चित सम्मान बनाए रखने के लिए, उन्हें बनते हुए नहीं देखना चाहिए। +* मैं पुरुषों को उनके अपने सिक्के में वापस भुगतान करने का आदी हूँ। +* मनुष्य का जीवन शतरंज के खेल के समान है, जिसे वह अपनी कला के अनुसार खेलता है। +* भगवान शिशुओं, मूर्खों और संयुक्त राज्य अमेरिका की देखभाल करते हैं। +* नुकीले भाषणों से बेहतर नुकीली गोलियां! + + +निकोलो डि बर्नार्डो मैकियावेली 3 मई, 1469 21 जून ,1527 इटली का एक इतिहासकार, राजनीतिक विचारक, राजनयिक, लेखक और दार्शनिक था। उसे इतिहास का महान राजनीतिक विचारक माना जाता है। मैकियावेली को अक्सर आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है। +* उद्यमी केवल वे होते है जो समझते है की बाधा और अवसर के बीच केवल थोड़ा ही अन्तर है और जो दोनों को अपने लाभ में बदलने में सक्षम है। +* बुद्धिमान शासक को इस बात पर भरोसा करना चाहिए कि उसके नियंत्रण में क्या है, दूसरों के नियंत्रण में नहीं है। +* किसी शासक की बुद्धि का आकलन करने का पहला तरीका यह है की उसके आस-पास के लोगो को देखें। +* कार्य न करने और पछताने से बेहतर है की कार्य करें और पश्चाताप करें। +* खतरे के बिना कोई भी कुछ भी बड़ा हासिल नहीं कर सकता। +* गणतंत्र में शासन की बागडोर सामान्य जनता में होती है और सामान्य जनता एक व्यक्तिगत राजा की अपेक्षा अधिक समझदार होती है। +* चापलूसी से खुद को बचाने का केवल एक ही तरीका है, वह है दूसरों को समझना की आपको सच बताने से आप नाराज नहीं होंगे। +* जब आप लोगों को घृणा करते हैं, तो आप उन्हें अपमानित करना शुरू करते हैं और दिखाते हैं कि आप उन्हें कायरता या विश्वास की कमी के माध्यम से अविश्वास करते हैं, और ये दोनों राय नफरत पैदा करते हैं। +* जो आज्ञा का पालन कराना चाहता है, उसे आज्ञा का पालन करना आना चाहिए। +* जो धोखा देता है वह हमेशा उन्हें ढूंढेगा जो खुद को धोखा देने की अनुमति देते है। +* जो धोखे से जीता जा सकता है उसे बल से जितने की कोशिश न करे। +* जो व्यक्ति निरंतर सफलता चाहता है उसे समय के साथ अपने आचरण को बदलना चाहिए। +* दिया गया वादा अतीत की एक आवश्यकता थी: टूटा हुआ शब्द वर्तमान की एक आवश्यकता है। +* धोखेबाज को धोखा देने में दोहरा आनंद आता है। +* पुरुष इतने सरल और तत्काल जरूरतों का पालन करने के लिए इतने इच्छुक है की एक धोखेबाज को अपने धोखे की पीड़ितों की कभी कमी नहीं होती। +* पुरुष एक महत्वाकांक्षा से दूसरे महत्वाकांक्षा की ओर बढ़ते है, पहले वे हमले की खिलाफ खुद को सुरक्षित करना चाहते है, ओर फिर वे दुसरो पर हमला करते है। +* पुरुषों को हमेशा ऐसे उद्यमों का सामना करना पड़ता है जिसमें वे कठिनाइयों का सामना करते हैं। +* बुद्धि की निशानी अपने स्वय के अज्ञान के बारे में जागरूकता है। +* बुद्धि में मुसीबत की प्रकृति को भेद करने और कम बुराई को चुनने का तरीका जानना शामिल है। +* मैं यथास्थिति को संरक्षित करने में दिलचस्पी नहीं रखता; मैं इसे उखाड़ फेंकना चाहता हूं। +* युद्ध तब शुरू होते हैं जब आप करेंगे, लेकिन जब आप चाहें तो वे समाप्त नहीं होंगे। +* राजतंत्र में राज्य की प्रकृति समय अनुकूल परिवर्तित नहीं होती पर जनतंत्र में राज्य का स्वरूप और प्रकृति आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। +* राजनिति का नैतिकता से कोई सबंन्ध नहीं है। +* राजा राज्य के निर्णय के लिए उत्तम है पर राज्य को कायम रखने के लिए गणतंत्र ही अधिक उपयुक्त होता है। +* राज्य के पदाधिकारियों के चयन करने में जनता का निर्णय किसी एक राजा की अपेक्षा अधिक सही होता है। +* लाभ धीरे-धीरे दिया जाना चाहिए; और इस तरह वे बेहतर स्वाद लेंगे। +* शक्ति वह केंद्रबिंदु है जिस पर सबकुछ टिका है, जिसके पास शक्ति है वह हमेशा सही होता है; कमजोर हमेशा गलत होता है। +* समुन्द्र के शांत होने पर तुफानो की आशंका न करना एक सामान्य गलती है। +* सामान्य जनता उतनी कृतघ्नी नहीं हो सकती जितना कि एक राजा हो सकता है। +* सामान्यता और दुस्साहस अक्सर वही हासिल करते हैं जो सामान्य साधन हासिल करने में विफल होते हैं। +* सिंह जाल से अपनी रक्षा नहीं कर सकता और लोमड़ी भेडियो से अपनी रक्षा नहीं कर सकती, इसलीए जाल को पहचानने के लिए लोमड़ी और भेडियो को डराने के लिए सिंह होना चाहिए। +* हर कोई देखता है की आप क्या दिखाते है, परन्तु बहुत कम लोग ही अनुभव करते है की आप वास्तव में क्या है? + + +* आशा एक अच्छा नाश्ता है, लेकिन एक बुरा रात्रि भोजन भी है। +* दान में कोई अति नहीं है। +* आज्ञा देने के लिए प्रकृति का पालन करना चाहिए। +* ज्ञान का पोषण सदैव मौन की नींद ही करती है। +* यदि कोई व्यक्��ि निश्चितता के साथ शुरू करेगा, तो वह संदेह में समाप्त होगा, लेकिन यदि वह संदेह से शुरू करना चाहता है, तो वह निश्चितता में समाप्त होगा। +* उस समय के विचार लिखिए। जो बिना मांगे आते हैं वे आमतौर पर सबसे मूल्यवान होते हैं। +* समय को बचाना ही, समय का उचित उपयोग है। +* दया करना इंसान का काम न्याय करना भगवान का काम। +* इंसान अपने स्वभाव के मुताबिक सोचता है कायदे के मुताबिक बोलता है रिवाज के मुताबिक व्यवहार करता है। +* बुद्धिमान व्यक्ति को जितने अवसर मिलते हैं उससे अधिक वह स्वयं बनाता है। +* कुछ पुस्तकों को चखा जाना चाहिये, कुछ को निगल जाना और कुछ को चबाया और पचाया जाना है। +* अगर हमें उन चीजों को हासिल करना है जो पहले कभी हासिल नहीं हुई हैं, तो हमें पहले कभी नहीं किए गए तरीकों को अमल में लाना चाहिए। +* जो विचार बिना सोचे समझे आते हैं, वे अधिक मूल्यवान होते हैं। +* बदले की भावना रखने वाले व्यक्ति के घाव हरे रहते। +* कलाकार का काम हमेशा रहस्य को गहरा करना होता है। +* ज्ञान ही शक्ति है। +* हम प्रकृति की आज्ञा का पालन करने के अलावा उसे आज्ञा नहीं दे सकते। +* विरोध करने और खंडन करने के लिए नहीं पढ़ें, न ही विश्वास करने और हल्के में लेने के लिए बल्कि तोलने और विचार करने के लिए। +* अनुभव अब तक का सबसे अच्छा सबूत है। +* ज्ञान की शक्ति के स्मारक को बनाए रखे +* सुंदरता के सबसे सुंदर हिस्से को कोई तस्वीर व्यक्त नही कर सकती। +* सत्य समय की बेटी है अधिकार की नहीं। +* एक आदमी के लिए यह एक दुखद भाग्य है कि वह हर किसी के लिए बहुत अच्छी तरह से जाना जाता है, और अभी भी खुद के लिए अज्ञात है। +* हम छोटे कदमों की घुमावदार सीढ़ी से बड़ी ऊंचाइयों तक पहुंचते हैं। +* मंच मनुष्य के जीवन से अधिक प्रेम को निहारता है। जहां तक ​​मंच की बात है, प्रेम हमेशा हास्य का विषय होता है और कभी-कभी त्रासदियों का; लेकिन जीवन में यह बहुत शरारत करता है, कभी जलपरी की तरह, कभी रोष की तरह। +* जो समय के अनुसार बदलाव नहीं करेगा वह नए खतरों को न्यौता देगा। +* अगर आप ऐसी सफलता प्राप्त करना चाहते हो जो अभी तक न कि हो तो आपको प्रयास भी ऐसा ही करना होगा जो कभी न किया हो। +* पैसा एक महान नौकर है, लेकिन एक बुरा मास्टर भी है। +* आश्चर्य ज्ञान का बीज है। +* केवल एक अधिकारी की आवाज सुनने से ही सत्य तक नहीं पहुंचा जा सकता है। +* लोग आमतौर पर अपने झुकाव के अनुसार सोचते हैं, अपनी ��िक्षा और अंतर्निहित राय के अनुसार बोलते हैं, लेकिन आम तौर पर रिवाज के अनुसार कार्य करते हैं। +* बुरा आदमी उस समय और अधिक बुरा हो जाता है जब वह अच्छा होने का दिखावा करता है। +* जो आप अभी करना चाहते हैं उसे करना शुरू करें। हम अनंत काल में नहीं जी रहे हैं। हमारे पास केवल यह क्षण है, यह हमारे हाथ में एक तारे की तरह चमक रहा है और बर्फ के टुकड़े की तरह पिघल रहा है। +* प्रतिशोध लेते समय मनुष्य अपने शत्रु के समान ही क्रूर होता है जबकि उसकी उपेक्षा कर देने पर वह महान बन जाता है। + + +: वीर ही पृथ्वी का भोग करते हैं। +: जो किसी दुर्बल का अपमान नहीं करता, सदा सावधान रहकर शत्रुके साथ बुद्धिपूर्वक व्यवहार करता है, बलवानों के साथ युद्ध पसन्द नहीं करता तथा समय आने पर पराक्रम दिखाता है, वही धीर है। +: शेर को जंगल का राजा नियुक्त करने के लिए न तो कोई राज्याभिषेक किया जाता है, न कोई संस्कार । अपने गुण और पराक्रम से वह खुद ही मृगेंद्रपद प्राप्त करता है। यानि शेर अपनी विशेषताओं और वीरता (‘पराक्रम’) से जंगल का राजा बन जाता है। +: विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। +: मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, +: शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। +: है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? +: मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है। रामधारी सिंह 'दिनकर' +* साहसिक और वीरता पूर्ण कार्य मानव को सर्वाधिक आनन्द देते हैं। +* असफलताओं के बावजूद सफलता के लिए वही प्रयास करते हैं जिनके अन्दर वीरता होती हैं। +* मुसीबतें और कठिनाईयाँ वीरों को डरा नहीं सकती। ये तो इन्हें और वीर बनाती हैं। +* जीवन कठिन है और चीजें हमेशा अच्छी नहीं होतीं। लेकिन हमें वीरता के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए। शक +* नैतिक उत्कृष्टता आदत के परिणामस्वरूप आती ​​है। हम न्यायपूर्ण कार्य करने से न्यायी बनते हैं, संयमी कार्य करने से संयमी, बहादुरी से कार्य करने से वीर बनते हैं। अरस्तू +* बहादुर और वीर होना डर ​​का अभाव नहीं है। बहादुर होने का मतलब है की इसके माध्यम से एक रास्ता खोजना। बेयर ग्रिल्स +* एक कायर प्रेम प्रदर्शित करने में असमर्थ होता है; यह वीरों का विशेषाधिकार है। महात्मा गांधी +* वीरता संक्रामक है। जब एक वीर आदमी खड़ा होता है, तो अक्सर दूसरों की रीढ़ की हड्डी अकड़ जाती है। ब��ली ग्राहम +* यह देश आजादों की धरती तभी तक रहेगा जब तक यह वीरों का घर है। एल्मर डेविस +* चांस लो, गलती करो। वैसे ही तुम बढ़ते हो। दर्द आपके साहस को बढ़ाता है। बहादुर और वीर होने का अभ्यास करने के लिए आपको असफल होना होगा। मैरी टायलर मूर +* असली आदमी मुसीबत में मुस्कुराता है, संकट से ताकत बटोरता है, और खुद के प्रतिबिम्ब से वीर बनता है। थॉमस पेन +* आप वीर और बहादुर नहीं हो सकते यदि आपके साथ केवल अद्भुत चीजें हुई हैं। मैरी टायलर मूर +* अपने सिद्दांतों के लिए अपनी जगह पर डटे रहकर मर जाना वीरता हैं, मगर अपने सिद्धांतों के लिए लड़ने और जीतने के वास्ते निकल पड़ना और भी अधिक वीरता हैं। राल्फ़ वाल्डो एमर्सन +* वीरता के साथ नैतिकता का होना अति आवश्यक हैं, नहीं तो वीरता पाश्विक प्रवृति के समान हो जाती हैं। +* वीरता किसी व्यक्ति के आंतरिक शक्ति को प्रदर्शित करता हैं। +* जिनके अंदर वीरता होती हैं वो अपने कर्मों से ही अपनी पहचान बनाते हैं। +* मृत्यु निश्चित हैं फिर भी मृत्यु से डरते हैं, जो अपनी आत्मा को एकाग्रचित करके मृत्यु के डर को ही खत्म कर देते हैं ऐसी वीरता अनुकरणीय होती हैं। + + +रेने देकार्त यूरोप के मध्य युग के श्रेष्ठ गणितज्ञ व दार्शनिक थे। उनका जन्म 31 मार्च, 1596 को फ्रांस के रोटे प्रांत में ला हाये नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता एक अन्य प्रांत ब्रिटनी के पार्षद थे। वे पेशे से वकील व जज थे। रेने डेस्कार्टेस की माता भी कुलीन घराने की महिला थीं। +* हमारे अपने विचारों के अलावा, पूरी तरह से हमारी शक्ति में कुछ भी नहीं है। +* एक अच्छा दिमाग होना काफी नहीं है, मुख्य बात यह है कि इसका अच्छी तरह से उपयोग करना है। +* मैं वास्तव में चकित हो जाता हूं जब मैं सोचता हूं कि मेरा दिमाग कितना कमजोर है और त्रुटि की संभावना कितनी है। +* उस पर कभी भी पूरा भरोसा न रखना ही समझदारी है जिससे हम एक बार भी धोखा खा चुके हैं। +* अपने विचारों को छोड़कर, हमारी शक्ति में बिल्कुल कुछ भी नहीं है। +* यात्रा करना लगभग अन्य सदियों के लोगों के साथ बात करने जैसा है। +* प्रत्येक समस्या जिसे मैंने हल किया वह एक नियम बन गया जो बाद में अन्य समस्याओं को हल करने के लिए काम करता था। +* जहां कुछ नही है वहां एक आशावादी को एक रोशनी दिखाई दे सकती है, लेकिन एक निराशावादी को हमेशा इससे दूर ही क्यों भागना चाहिए? +* बुरी किताबें बुरी आदतों को जन्म देती हैं, लेकिन बुरी आदतें अच्छी किताबों को जन्म देती है। +* सच्चाई तलाशने के लिए, हमारे जीवन के दौरान सभी चीजों के बारे में, जहां तक ​​संभव हो, संदेह करना आवश्यक है। +* हर एक समस्या जिसे मैंने हल किया वह एक नियम बन गया, जो की बाद में अन्य समस्याओं को हल करने के लिए काम किया। +* हर कठिनाई को हल करने के लिए जितना संभव हो सके और जितना आवश्यक हो इसे उतने भागों मे विभाजित करें। +* कोई इतना अजीब और इतना अकल्पनीय कुछ भी नहीं सोच सकता है कि यह पहले से ही एक दार्शनिक या किसी अन्य ने नहीं कहा है। +* मैं जीवन में शांति से रहना चाहता हूं और जीवन को अच्छी तरह से जीने के लिए मैंने आदर्श वाक्य को अपना लिया है वह यह है की "अच्छी तरह से रहने के लिए आपको चीजों को अनदेखा रहना होगा"। +* एक अच्छा दिमाग होना काफी नहीं है, असली बात यह है कि इसका इस्तेमाल अच्छी तरह से करें। +* जब सत्य का अनुसरण करना हमारी शक्ति में नहीं है, तो हमें उसका अनुसरण करना चाहिए जिसकी सबसे अधिक संभावना है। +* यदि हमें किसी जानवर के बीज के सभी भागों का गहन ज्ञान होता है, तो हम केवल उसी से उसके प्रत्येक सदस्य की संपूर्ण संरचना और आकृति का अनुमान लगा सकते हैं। +* दिमाग में सुधार करने के लिए, हमें सीखने से अधिक विचार करना चाहिए। +* हमारे विश्वास निश्चित रूप से किसी भी ज्ञान से बहुत अधिक रीति और उदाहरण से उत्पन्न होते हैं। +* यह जानने के लिए कि लोग वास्तव में क्या सोचते हैं, वे जो कहते हैं उसके बजाए उनके द्वारा किए गए कार्यों पर ध्यान दें। +* पूरी तरह से सरल और आसान तर्कों की इन लंबी श्रृंखलाओं के माध्यम से जिनके माध्यम से जियोमीटर अपने सबसे कठिन प्रदर्शनों को करने के आदी हैं, ने मुझे कल्पना की थी कि मानव ज्ञान के अंतर्गत आने वाली हर चीज एक समान अनुक्रम बनाती है। +* मेरे हिसाब से, प्रकृति के सभी चीजें गणितानुसार ही होती हैं। +* अच्छा दिमाग होना ही काफी नहीं है; मुख्य बात यह है कि इसका अच्छी तरह से उपयोग करना है। +* मन भी स्वभाव और शरीर के अंगों के स्वभाव पर इतना निर्भर करता है कि, यदि लोगों को पहले की तुलना में आम तौर पर बुद्धिमान और अधिक कुशल बनाने का कोई तरीका खोजना संभव है, तो मेरा मानना ​​​​है कि हमें इसकी तलाश करनी चाहिए दवा। +* जब भी किसी ने मुझे नाराज किया है, तो मैं अपनी आत्मा को इतना ऊंचा उठाने की कोशिश करता हूं कि अपराध उस तक न पह���ंच सके। +* सत्य की खोज संपूर्ण लोगों के बजाय एक व्यक्ति द्वारा की जाएगी। +* यात्रा करना लगभग अन्य सदियों के लोगों के साथ बात करने जैसा है। +* सभी अच्छी किताबों को पढ़ना पिछली सदियों के बेहतरीन व्यक्तियों के साथ वार्तालाप करने जैसा है | +* संदेह ज्ञान की उत्पत्ति है। +* हमारी समझ, अंतर्ज्ञान और कटौती के दो संचालन, जिन पर हमने अकेले ही कहा है कि हमें ज्ञान के अधिग्रहण में भरोसा करना चाहिए। +* सत्य से ज्यादा कुछ भी प्राचीन नहीं है। +* बिना दर्शन के जीना वास्तव में आंखों को खोलने की कोशिश किए बिना बंद रखने के समान है। +* जब भी किसी ने मुझे अपमानित किया है, तो मैं अपनी आत्मा को इतना ऊंचा रखने की कोशिश करता हूं कि अपमान वहाँ तक पहुंच ही नहीं सकता है। + + +* जहां संपत्ति नहीं है वहां अन्याय नहीं है। +* सभी मानव जाति, सभी समान स्वतंत्र होने के कारण, किसी को भी अपने जीवन, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता या संपत्ति में दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। +* इच्छा का अनुशासन चरित्र की पृष्ठभूमि है। +* हम जितना भी पैसा कमाते है उसकी तुलना जूतो से की जा सकती है। जूता छोटा है तो वो पैरों को काटने लगेगा। जूते का आकार बड़ा है तो लड़खड़ाकर गिर भी सकते हैं। +* नाविक के लिए अपनी रेखा की लंबाई जानना बहुत उपयोगी है, हालांकि वह इसके साथ समुद्र की सभी गहराई को नहीं समझ सकता। +* पैसा कमाने के लिए कई विकल्प हो सकते हैं, लेकिन स्वर्ग में जाने के लिए केवल एक रास्ता है "अच्छे कर्म करना"। +* यहां किसी भी व्यक्ति का ज्ञान उसके अनुभव से आगे नहीं जा सकता। +* किसी भी शिक्षक के लिए कमांड या नियंत्रण करना, पढ़ाने से ज्यादा जरूरी होता है। +* विद्रोह करना और आवाज उठाना हर व्यक्ति का अधिकार है। +* हमारी इनकम हमारे जूते की तरह है; यदि बहुत छोटे हैं, तो वे हमें चोट पहुंचाते हैं; परन्तु यदि वे बहुत बड़े हैं, तो वे हमें ठोकर खिलाते हैं, और ठोकर मारते हैं। +* कानून बनाने का मतलब किसी चीज को जड़ से खत्म करना नहीं होता है। इसका मतलब आजादी के दायरे को फैलाना और इसे महफूज रखने से है। +* आप जिन चीजो की चिंता करते है, उनमे मास्टरी प्राप्त करते है। +* जो व्यक्ति बार-बार में अपशब्दों का इस्तेमाल करता है, या तो कोई उसे समझ नहीं पाता है या उसकी बातों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। +* सारी संपत्ति श्रम का उत्पाद है। +* सिर्फ जानकारियों के आधार पर खुद को इस दुनिया में महफूज रख सकते है। +* आदमी के बातों की तुलना में एक बच्चे के अप्रत्याशित प्रश्नों से अक्सर अधिक सीखा जा सकता है। +* नई राय और सोच पर हमेशा संदेह किया जाता है, और आमतौर पर बिना किसी अन्य कारण के विरोध किया जाता है, केवल इसलिए क्योंकि वे पहले से ही सामान्य नहीं हैं। +* जो व्यक्ति जैसा काम करता है, उसी से उनके विचारो का पता चलता है। क्योंकि जैसा आप सोचेंगे, वैसा ही काम करेंगे। +* अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करना मानव समाज को विनियमित करने के लिए एक ऐसा सत्य है, कि केवल उसी के द्वारा सामाजिक नैतिकता के सभी मामलों को निर्धारित किया जा सकता है। +* हम गिरगिट की तरह हैं, हम अपने रंग और अपने नैतिक चरित्र का रंग अपने आसपास के लोगों से लेते हैं। +* समझ में सुधार के लिए दो छोरों पर काम करना चाहिए: पहला, ज्ञान की हमारी अपनी वृद्धि; दूसरा, हमें उस ज्ञान को दूसरों तक पहुँचाने में सक्षम बनाने के लिए। +* पढ़ते रहने से दिमाग को जानकारी बढ़ाने के लिए सामग्री मिलती है। लेकिन जो पढ़ा है उसके बारे में सोचने से ही उन जानकारियो को अपनाया जा सकता है। +* हर व्यक्ति को गलती करने का अधिकार है। लेकिन कुछ लोगो को गलतियां करने का शौक होता है। उन्हें बार-बार गलती करने का जुनून या रूझान भी हो सकता है। +* हम दुनिया में मौजूद हर चीज सीखने नहीं आये है। लेकिन उन चीजो की जानकारी होना जरूरी है जिनसे हमारे चरित्र और व्यवहार का निर्माण होगा। +* हर आदमी कहता है मै अच्छा हू लेकिन लोग क्या मानते है यह ज्यादा महत्वपूर्ण बात है। +* शिक्षा सज्जन से शुरू होती है, लेकिन पढ़ना, अच्छी संगति और प्रतिबिंब पर खत्म होना चाहिए। +* जहां हर चीज सपने की तरह होती है वहां सवाल-जवाब या बहस का कोई मतलब नहीं होता। सच्चाई और जानकारियां भी कोई भूमिका नहीं निभाते है। +* एक उत्कृष्ट व्यक्ति, कीमती धातु की तरह होता है वह हर तरह से अपरिवर्तनीय है; जबकि एक खलनायक, संतुलन के बीम की तरह होता है, जो हमेशा ऊपर और नीचे बदलता रहता है। +* नए विचारो को हमेशा शक की नजर से देखा जा सकता है। उनकी आलोचना भी होती है। कोई उसे अपनाना पसंद नहीं करता है। इसका कोई खास कारण नहीं। कारण इतना है की ये विचार बिलकुल कॉमन नहीं होते है। +* हम अपने जीवन में जिन चीजो की ख्वाहिश रखते है उसी से हमारे चरित्र के बारे में पता लगाया जा सकता है। + + +* दर्शन, यदि यह इत���े प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकता जितना हम चाह सकते हैं, तो कम से कम ऐसे प्रश्न पूछने की शक्ति देता है जो दुनिया की रुचि को बढ़ाते हैं, और दैनिक जीवन की सामान्य चीजों में भी सतह के नीचे अजीबता और आश्चर्य दिखाते हैं। द प्रॉब्लम्स ऑफ फिलॉसफी ) +* किसी किताब को पढ़ने के दो उद्देश्य होते हैं; एक, कि आप इसका आनंद लें; दूसरा, कि आप इसके बारे में घमंड कर सकते हैं। +* उत्साह से भरा जीवन एक थका देने वाला जीवन है, जिसमें उस रोमांच को देने के लिए लगातार मजबूत उत्तेजनाओं की आवश्यकता होती है जिसे आनन्द का एक अनिवार्य हिस्सा माना गया है। द कॉन्क्वेस्ट ऑफ हैप्पीनेस ) +* हर चीज में सत्ता उनके पास होती है जो वित्त को नियंत्रित करते हैं, न कि उन लोगों के पास जो वित्तीय मामलों को जानते हैं जिन पर पैसा खर्च किया जाना है। इस प्रकार, सत्ताधारी, सामान्यतः अज्ञानी और द्वेष से भरे लोग होते हैं, और जितना कम वे अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं उतना ही बेहतर है। संशयवादी निबंध ) +* कोई आदमी उसी अनुपात में तर्कसंगत व्यवहार करता है जिस अनुपात में उसकी बुद्धि उसकी इच्छाओं को निर्देशित और नियंत्रित करती है। संशयवादी निबंध ) +* विलियम जेम्स एक ऐसे व्यक्ति का वर्णन करता है जिसे हंसी-मज़ाक से अनुभव प्राप्त हुआ; जब भी वे इसके प्रभाव में थे, उन्हें ब्रह्मांड का रहस्य पता था, लेकिन जब वे आए, तो वे इसे भूल गए थे। अंत में, अपार प्रयास के साथ, उन्होंने दृष्टि के फीके पड़ने से पहले रहस्य को लिख दिया। जब वह पूरी तरह से ठीक हो गया, तो वह यह देखने के लिए दौड़ पड़ा कि उसने क्या लिखा है। यह था: पेट्रोलियम की गंध हर जगह व्याप्त है। ए हिस्ट्री ऑफ वेस्टर्न फिलॉसफी ) +* निश्चितता की मांग वह है जो मनुष्य के लिए स्वाभाविक है, लेकिन फिर भी एक बौद्धिक दोष है। +* मैं नीत्शे को नापसंद करता हूं क्योंकि उसे दर्द का चिंतन पसंद है, क्योंकि वह दंभ को एक कर्तव्य के रूप में खड़ा करता है, क्योंकि वे विजेताओं की सबसे अधिक प्रशंसा करते हैं। ए हिस्ट्री ऑफ वेस्टर्न फिलॉसफी ) +* सम्मान, नियमितता, और दिनचर्या एक आधुनिक औद्योगिक समाज के पूरे कच्चा लोहा अनुशासन ने कलात्मक आवेग को कम कर दिया है, और प्यार को कैद कर दिया है ताकि यह अब उदार और स्वतंत्र और रचनात्मक न हो, लेकिन या तो भरा हुआ या गुप्त होना चाहिए। संशयवादी निबंध ) +* मत में सनकी होने से डरो मत, क्यों��ि अब स्वीकार की गई हर राय एक बार सनकी थी। +* सभी प्रकार की सावधानी में, प्यार में सावधानी शायद सच्ची खुशी के लिए सबसे घातक है। +* प्यार से डरना जीवन से डरना है, और जो जीवन से डरते हैं वे पहले से ही तीन भागों में मर चुके हैं। +* मैं अपने विश्वासों के लिए कभी नहीं मरूंगा क्योंकि मैं गलत हो सकता हूं। +* और अगर कोई ईश्वर होता, तो मुझे लगता है कि यह बहुत कम संभावना है कि उसके पास इतना असहज घमंड होगा कि जो लोग उसके अस्तित्व पर संदेह करते हैं, उन्हें नाराज किया जाए। +* तीन जुनून, सरल लेकिन अत्यधिक मजबूत ने मेरे जीवन को नियंत्रित किया है: प्रेम की लालसा, ज्ञान की खोज, और मानव जाति की पीड़ा के लिए असहनीय दया। +* सभी मामलों में यह एक स्वस्थ बात है कि जिन चीजों को आप लंबे समय से मानते आए हैं, उन पर सवालिया निशान लगाना चाहिए। +* मैं यह साबित करने में सक्षम होने का दिखावा नहीं करता कि कोई ईश्वर नहीं है। मैं समान रूप से यह साबित नहीं कर सकता कि शैतान एक कल्पना है। ईसाई भगवान मौजूद हो सकता है; ऐसा ही ओलिंप के देवता, या प्राचीन मिस्र के, या बाबुल के हो सकते हैं। लेकिन इन परिकल्पनाओं में से कोई भी किसी अन्य की तुलना में अधिक संभावित नहीं है: वे संभावित ज्ञान के क्षेत्र से बाहर हैं, और इसलिए उनमें से किसी पर विचार करने का कोई कारण नहीं है। +* नर्वस ब्रेकडाउन के निकट आने के लक्षणों में से एक यह विश्वास है कि किसी का काम बहुत महत्वपूर्ण है। +* डर अंधविश्वास का मुख्य स्रोत है, और क्रूरता के मुख्य स्रोतों में से एक है। भय पर विजय पाना ही ज्ञान की शुरुआत है। +* जीवन में सीखने के लिए सबसे कठिन बात यह है कि कौन सा पुल पार करना है और कौन सा जलना है। +* प्यार में पड़ना आसान है। कठिन हिस्सा आपको पकड़ने के लिए किसी को ढूंढ रहा है। +* निश्चितता के बिना कैसे जीना है, और फिर भी बिना किसी हिचकिचाहट के कैसे जीना है, यह सिखाने के लिए, शायद मुख्य बात यह है कि हमारे युग में दर्शनशास्त्र अभी भी इसका अध्ययन करने वालों के लिए कर सकता है। +* ज्यादातर लोग सोचने से जल्दी मर जाते हैं; वास्तव में, वे ऐसा करते हैं। +* मेरी इच्छा और इच्छा यह है कि जिन चीजों से मैं शुरू करता हूं, वे इतनी स्पष्ट हों कि आपको आश्चर्य हो कि मैं अपना समय उन्हें बताते हुए क्यों बिताता हूं। यही मेरा लक्ष्य है क्योंकि दर्शन का उद्देश्य किसी ऐसी सरल चीज़ से शुरू करना है जो कहने लायक नहीं लगती, और कुछ ऐसी विरोधाभास के साथ समाप्त होती है कि कोई भी इस पर विश्वास नहीं करेगा। +* यह किसी भी चीज़ से अधिक संपत्ति के साथ व्यस्तता है, जो हमें स्वतंत्र और महान रहने से रोकता है। +* जिन लोगों ने कभी भी गहरी अंतरंगता और सुखी आपसी प्रेम की गहन साहचर्य को नहीं जाना है, उन्होंने जीवन की सबसे अच्छी चीज को खो दिया है। +* जब आप दुनिया भर में देखते हैं तो आप पाते हैं कि मानवीय भावना में हर एक प्रगति, आपराधिक कानून में हर सुधार, युद्ध के ह्रास की ओर हर कदम, रंगीन जातियों के बेहतर इलाज की दिशा में हर कदम, या गुलामी का हर शमन, हर दुनिया में हुई नैतिक प्रगति का दुनिया के संगठित चर्चों ने लगातार विरोध किया है। मैं जान-बूझकर कहता हूं कि ईसाई धर्म, जैसा कि इसके चर्चों में संगठित है, दुनिया में नैतिक प्रगति का प्रमुख दुश्मन रहा है और अभी भी है। +* आप सोच सकते हैं कि मैं बहुत दूर जा रहा हूं जब मैं कहता हूं कि अभी भी ऐसा ही है। मुझे नहीं लगता कि मैं हूं। एक तथ्य लीजिए। यदि मैं इसका उल्लेख करता हूं तो आप मेरे साथ रहेंगे। यह एक सुखद तथ्य नहीं है, लेकिन चर्च किसी को उन तथ्यों का उल्लेख करने के लिए मजबूर करते हैं जो सुखद नहीं हैं। मान लीजिए कि आज हम जिस दुनिया में रहते हैं, उसमें एक अनुभवहीन लड़की की शादी सिफिलिटिक आदमी से हो जाती है; उस मामले में कैथोलिक चर्च कहता है यह एक अघुलनशील संस्कार है। आपको ब्रह्मचर्य सहना चाहिए या साथ रहना चाहिए। और यदि आप एक साथ रहते हैं, तो आपको सिफिलिटिक बच्चों के जन्म को रोकने के लिए जन्म नियंत्रण का उपयोग नहीं करना चाहिए।' कोई भी व्यक्ति जिसकी प्राकृतिक सहानुभूति हठधर्मिता से विकृत नहीं हुई है, या जिसका नैतिक स्वभाव दुख की सभी भावनाओं के लिए बिल्कुल मृत नहीं था, यह सुनिश्चित नहीं कर सकता कि यह सही और उचित है कि चीजों की स्थिति बनी रहनी चाहिए। +* यह तो एक उदाहरण मात्र है। ऐसे बहुत से तरीके हैं जिनमें, वर्तमान समय में, चर्च, जिसे वह नैतिकता कहता है, उस पर जोर देकर, सभी प्रकार के लोगों को अयोग्य और अनावश्यक पीड़ा देता है। और निश्चित रूप से, जैसा कि हम जानते हैं, यह अपने प्रमुख हिस्से में अभी भी प्रगति और सुधार के सभी तरीकों से विरोधी है जो दुनिया में दुख को कम करता है, क्योंकि उसने नैतिकता के रूप में आचरण के नियमों के एक निश्चित संकीर्ण सेट को लेब�� करने के लिए चुना है मानव सुख से कोई लेना-देना नहीं; और जब आप कहते हैं कि यह या वह किया जाना चाहिए क्योंकि इससे मानव को खुशी मिलेगी, तो वे सोचते हैं कि इसका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। 'मानव सुख का नैतिकता से क्या लेना-देना है? नैतिकता का उद्देश्य लोगों को खुश करना नहीं है। +* जब आप बच्चों को सोचना सिखाना चाहते हैं, तो आप उनके साथ गंभीरता से व्यवहार करना शुरू करते हैं, जब वे छोटे होते हैं, उन्हें ज़िम्मेदारियाँ देते हैं, उनसे खुलकर बात करते हैं, उनके लिए एकांत और एकांत प्रदान करते हैं, और उन्हें शुरू से ही महत्वपूर्ण विचारों के पाठक और विचारक बनाते हैं। अगर आप उन्हें सोचना सिखाना चाहते हैं। +* हम बहुत कम जानते हैं, और फिर भी यह आश्चर्यजनक है कि हम इतना कुछ जानते हैं, और उससे भी अधिक आश्चर्यजनक है कि इतना कम ज्ञान हमें इतनी शक्ति दे सकता है। +* कोई भी अन्य लोगों के गुप्त गुणों के बारे में गपशप नहीं करता है। शिक्षा पर ) +* कहा गया है कि मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। मैं अपने पूरे जीवन में ऐसे सबूतों की तलाश में रहा हूं जो इसका समर्थन कर सकें। +* एक नियम के रूप में, जहां तक ​​भुखमरी से बचने और जेल से बाहर रहने के लिए आवश्यक है, जनता की राय का सम्मान करना चाहिए, लेकिन जो कुछ भी इससे आगे जाता है वह एक अनावश्यक अत्याचार के लिए स्वैच्छिक अधीनता है, और सभी प्रकार की खुशी में हस्तक्षेप करने की संभावना है। तरीके। द कॉन्क्वेस्ट ऑफ हैप्पीनेस ) +* एक दार्शनिक के रूप में, अगर मैं विशुद्ध रूप से दार्शनिक श्रोताओं से बात कर रहा था, तो मुझे कहना चाहिए कि मुझे खुद को एक अज्ञेयवादी के रूप में वर्णित करना चाहिए, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि कोई निर्णायक तर्क है जिसके द्वारा कोई यह साबित कर सकता है कि ईश्वर नहीं है। दूसरी ओर, अगर मुझे गली में आम आदमी को सही प्रभाव देना है, तो मुझे लगता है कि मुझे यह कहना चाहिए कि मैं नास्तिक हूं, क्योंकि जब मैं कहता हूं कि मैं यह साबित नहीं कर सकता कि ईश्वर नहीं है, तो मैं समान रूप से जोड़ना चाहिए कि मैं यह साबित नहीं कर सकता कि होमरिक देवता नहीं हैं। +* तीन जुनून, सरल लेकिन अत्यधिक मजबूत, ने मेरे जीवन को नियंत्रित किया है: प्रेम की लालसा, ज्ञान की खोज, और मानव जाति की पीड़ा के लिए असहनीय दया। इन वासनाओं ने, महान हवाओं की तरह, मुझे इधर-उधर उड़ा दिया है, एक पथभ्रष्ट मार्ग में, पीड़ा के एक महान महासागर के ऊपर, निराशा के चरम तक पहुँचते हुए। +* मैंने प्रेम की तलाश की है, सबसे पहले, क्योंकि यह परमानंद लाता है परमानंद इतना महान कि मैं अक्सर इस आनंद के कुछ घंटों के लिए अपना शेष जीवन बलिदान कर देता। मैंने इसकी तलाश की है, इसके बाद, क्योंकि यह अकेलेपन से छुटकारा दिलाता है वह भयानक अकेलापन जिसमें एक कांपती चेतना दुनिया के रिम को ठंडे, अथाह बेजान रसातल में देखती है। मैंने इसे आखिरकार खोजा है, क्योंकि प्रेम के मिलन में, मैंने एक रहस्यवादी लघु में, स्वर्ग की पूर्व-रूपी दृष्टि देखी है, जिसकी संतों और कवियों ने कल्पना की है। यह वही है जो मैंने खोजा था, और यद्यपि यह मानव जीवन के लिए बहुत अच्छा लग सकता है, यह वही है अंत में मैंने पाया है। +* मैंने उतनी ही लगन से ज्ञान की खोज की है। मैंने पुरुषों के दिलों को समझना चाहा है। मैंने जानना चाहा है कि तारे क्यों चमकते हैं। और मैंने पाइथागोरस शक्ति को पकड़ने की कोशिश की है जिसके द्वारा संख्या प्रवाह से ऊपर है। इसमें से थोड़ा, लेकिन ज्यादा नहीं, मैंने हासिल किया है। +* प्रेम और ज्ञान, जहाँ तक हो सके, स्वर्ग की ओर ऊपर की ओर ले गए। लेकिन हमेशा दया ने मुझे धरती पर वापस ला दिया। दिल में दर्द की पुकार गूंजती है। अकाल में बच्चे, उत्पीड़कों द्वारा प्रताड़ित, असहाय बूढ़े अपने बेटों के लिए बोझ, और अकेलापन, गरीबी और दर्द की पूरी दुनिया मानव जीवन का मजाक उड़ाती है। मैं इस बुराई को दूर करना चाहता हूं, लेकिन मैं नहीं कर सकता, और मैं भी पीड़ित हूं। +* तथ्य यह है कि एक राय व्यापक रूप से आयोजित की गई है, कोई सबूत नहीं है कि यह पूरी तरह से बेतुका नहीं है; वास्तव में बहुसंख्यक मानव जाति की मूर्खता को देखते हुए, व्यापक रूप से फैला हुआ विश्वास समझदारी से मूर्खता की अधिक संभावना है। विवाह और नैतिकता ) +* मुझे विश्वास है कि जब मैं मरूंगा तो मैं सड़ जाऊंगा, और मेरे अहंकार का कुछ भी नहीं बचेगा। मैं युवा नहीं हूं और मुझे जीवन से प्यार है। लेकिन मुझे विनाश के विचार से आतंक से कांपने के लिए तिरस्कार करना चाहिए। खुशी फिर भी सच्ची खुशी है क्योंकि इसका अंत होना चाहिए, न ही विचार और प्रेम अपना मूल्य खोते हैं क्योंकि वे चिरस्थायी नहीं हैं। बहुत से लोगों ने अपने आप को पाड़ पर गर्व से उभारा है; निश्चित रूप से वही गर्व हमें दुनिया में मनुष्य के स्थान के बारे में सही मायने में सोचना सिखाना चाहिए। भले ही विज्ञान की खुली खिड़कियाँ शुरू में हमें पारंपरिक मानवीय मिथकों की आरामदायक इनडोर गर्मी के बाद कंपकंपा दें, अंत में ताजी हवा जोश लाती है, और महान स्थानों का अपना वैभव होता है। +* देशभक्त हमेशा अपने देश के लिए मरने की बात करते हैं लेकिन अपने देश के लिए मारने की कभी नहीं। +* ये दृष्टांत चार सामान्य सिद्धांतों का सुझाव देते हैं +: पहला यह है याद रखें कि आपके इरादे हमेशा उतने परोपकारी नहीं होते जितने वे आपको लगते हैं। +: दूसरा है अपनी खूबियों का अधिक आकलन न करें। +: तीसरा है दूसरों से यह अपेक्षा न करें कि वे आप में उतनी रुचि लेंगे जितना आप स्वयं करते हैं। +* एक अच्छे अंतःकरण के साथ क्रूरता करना नैतिकतावादियों के लिए खुशी की बात है। इसलिए उन्होंने नर्क का आविष्कार किया। संशयवादी निबंध ) +* एक ऐसे व्यक्ति के बारे में कुछ कमजोर और थोड़ा घृणित है जो आरामदायक मिथकों की मदद के बिना जीवन के खतरों का सामना नहीं कर सकता है। लगभग अनिवार्य रूप से उसका कुछ हिस्सा जानता है कि वे मिथक हैं और वह उन पर केवल इसलिए विश्वास करता है क्योंकि वे सुकून देने वाले हैं। लेकिन उसने इस विचार का सामना करने की हिम्मत नहीं की! इसके अलावा, चूँकि वह जानता है, चाहे कितना ही अस्पष्ट क्यों न हो, कि उसकी राय तर्कसंगत नहीं है, वह विवादित होने पर उग्र हो जाता है। ह्यूमन सोसाइटी इन एथिक्स एंड पॉलिटिक्स ) +* जहां तक ​​मुझे याद है, सुसमाचार में बुद्धि की प्रशंसा में एक भी शब्द नहीं है। +* न तो एक आदमी और न ही भीड़ और न ही एक राष्ट्र पर मानवीय कार्य करने या महान भय के प्रभाव में विवेकपूर्ण सोचने के लिए भरोसा किया जा सकता है। अलोकप्रिय निबंध ) +* बिल्कुल निश्चित नहीं होना, मुझे लगता है, तर्कसंगतता में आवश्यक चीजों में से एक है। क्या मैं नास्तिक या अज्ञेयवादी हूँ?) +* जो विचार जोश के साथ रखे जाते हैं, वे हमेशा वही होते हैं जिनके लिए कोई अच्छा आधार मौजूद नहीं होता है; वास्तव में जुनून तर्कसंगत दृढ़ विश्वास की कमी धारकों का उपाय है। राजनीति और धर्म में राय लगभग हमेशा जुनून से रखी जाती है। संशयवादी निबंध ) +* अगर आज दुनिया में बड़ी संख्या में ऐसे लोग होते जो दूसरों के दुख की अपेक्षा अपने स्वयं के सुख की इच्छा रखते थे, तो हम कुछ वर्षों में स्वर्ग प्राप्त कर सकते थे। +* भले ही वि���्ञान की खुली खिड़कियां पारंपरिक मानवीकरण मिथकों की आरामदायक इनडोर गर्मी के बाद पहली बार हमें कांपती हैं, अंत में ताजी हवा ताकत लाती है, और महान रिक्त स्थान का अपना वैभव होता है। व्हाट आई बिलीव ) +* खुशी का रहस्य यह है: अपनी रुचि को यथासंभव व्यापक होने दें और उन चीजों और व्यक्तियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया दें जो आपकी रुचि रखते हैं, शत्रुतापूर्ण होने के बजाय यथासंभव मित्रवत रहें। +* सब कुछ एक हद तक अस्पष्ट है जब तक आप इसे सटीक बनाने की कोशिश नहीं करते हैं, तब तक आपको इसका एहसास नहीं होता है। +* किसी भी विचारक के लिए सबसे बड़ी चुनौती समस्या को इस तरह से बताना है जिससे उसका समाधान हो सके। +* जो कुछ भी आप अच्छा कर रहे हैं वह खुशी में योगदान देता है। +* विवाह पर विचार करते समय व्यक्ति को अपने आप से यह प्रश्न पूछना चाहिए क्या मैं इस व्यक्ति के साथ बुढ़ापे में बात कर पाऊंगा बाकी सब कुछ क्षणभंगुर है, बातचीत में सबसे अधिक समय व्यतीत होता है। +* कुछ चीजों के बिना रहना जो आप चाहते हैं, खुशी का एक अनिवार्य हिस्सा है। +* अच्छा जीवन प्रेम से प्रेरित और ज्ञान से निर्देशित होता है ह्यूमन नॉलेज: इट्स स्कोप एंड वैल्यू ) +* प्यार बुद्धिमान है; घृणा मूर्खता है। इस दुनिया में, जो अधिक से अधिक आपस में जुड़ती जा रही है, हमें एक-दूसरे को सहन करना सीखना होगा, हमें इस तथ्य को स्वीकार करना सीखना होगा कि कुछ लोग ऐसी बातें कहते हैं जो हमें पसंद नहीं हैं। हम केवल उसी तरह एक साथ रह सकते हैं। लेकिन अगर हमें एक साथ रहना है, और एक साथ मरना नहीं है, तो हमें एक तरह का दान और एक तरह की सहनशीलता सीखनी होगी, जो इस ग्रह पर मानव जीवन की निरंतरता के लिए नितांत महत्वपूर्ण है। +* मुझे लगता है कि हमें हमेशा कुछ संदेह के साथ अपने विचारों का मनोरंजन करना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि लोग हठपूर्वक किसी भी दर्शन पर विश्वास करें, यहां तक ​​कि मेरा भी नहीं। +* गणित, सही ढंग से देखा गया, न केवल सत्य है, बल्कि सर्वोच्च सौंदर्य है एक सौंदर्य ठंडा और कठोर, मूर्तिकला की तरह, हमारे कमजोर प्रकृति के किसी भी हिस्से से अपील किए बिना, पेंटिंग या संगीत के भव्य जाल के बिना, फिर भी बेहद शुद्ध, और एक कठोर पूर्णता के लिए सक्षम है जैसे कि केवल सबसे बड़ी कला ही दिखा सकती है। +* जो वांछित है वह विश्वास करने की इच्छा नहीं है, बल्कि पता लगाने की इच्छा है, जो इ���के ठीक विपरीत है। +* पूंजीवाद के पैरोकार स्वतंत्रता के पवित्र सिद्धांतों की अपील करने के लिए बहुत उपयुक्त हैं, जो एक कहावत में सन्निहित हैं: दुर्भाग्यपूर्ण पर अत्याचार के अभ्यास में भाग्यशाली को संयमित नहीं किया जाना चाहिए। +* यदि किसी व्यक्ति को एक तथ्य की पेशकश की जाती है जो उसकी प्रवृत्ति के खिलाफ जाता है, तो वह इसकी बारीकी से जांच करेगा, और जब तक सबूत भारी न हो, वह उस पर विश्वास करने से इंकार कर देगा। दूसरी ओर, यदि उसे कुछ ऐसा पेश किया जाता है जो उसकी प्रवृत्ति के अनुसार कार्य करने का कारण देता है, तो वह इसे मामूली सबूत पर भी स्वीकार कर लेगा। मिथकों की उत्पत्ति को इस प्रकार समझाया गया है। +* यदि आप अपने पूरे जीवन में हत्या, चोरी, व्यभिचार, झूठी गवाही, ईशनिंदा, और अपने माता-पिता, चर्च और अपने राजा के प्रति अनादर से दूर रहते हैं, तो आप पारंपरिक रूप से नैतिक प्रशंसा के पात्र माने जाते हैं, भले ही आपने कभी एक भी प्रकार का, उदार या उपयोगी क्रिया। पुण्य की यह बहुत ही अपर्याप्त धारणा वर्जित नैतिकता का परिणाम है, और इसने अनकहा नुकसान किया है। +* डेसकार्टेस के तर्क का उपयोग करने में कुछ सावधानी बरतने की आवश्यकता है। मुझे लगता है, इसलिए मैं हूं के बजाय अधिक सख्ती से निश्चित है। ऐसा लग सकता है कि हम आज भी उसी व्यक्ति होने के बारे में निश्चित हैं जैसे हम कल थे, और यह निश्चित रूप से कुछ अर्थों में सच है। लेकिन वास्तविक आत्मा तक पहुंचना उतना ही कठिन है जितना कि वास्तविक तालिका तक पहुंचना, और ऐसा नहीं लगता कि उस पूर्ण, आश्वस्त करने वाली निश्चितता है जो विशेष अनुभवों से संबंधित है। +* विज्ञान हमें सिखा सकता है, और मुझे लगता है कि हमारे दिल हमें सिखा सकते हैं, अब काल्पनिक समर्थकों की तलाश करने के लिए नहीं, आकाश में सहयोगियों का आविष्कार करने के लिए नहीं, बल्कि दुनिया को एक फिट जगह बनाने के लिए यहां अपने स्वयं के प्रयासों को देखने के लिए। जीने के लिए। व्हाई आई एम नॉट ए क्रिश्चियन एंड अदर एसेज ऑन रिलिजन एंड रिलेटेड सब्जेक्ट्स ) +* हठधर्मिता मानव सुख के लिए सबसे बड़ी मानसिक बाधा है। द कॉन्क्वेस्ट ऑफ हैप्पीनेस ) +* हम अपने पैरों पर खड़े होना चाहते हैं और दुनिया में निष्पक्ष और चौकोर दिखना चाहते हैं इसके अच्छे तथ्य, इसके बुरे तथ्य, इसकी सुंदरता और इसकी कुरूपता; दुनिया को वैसे ही देखें ज���से वह है और उससे डरो मत। दुनिया को बुद्धि से जीतें, न कि केवल उस आतंक से, जो उससे उत्पन्न होता है, के अधीन हो जाता है। ईश्वर की संपूर्ण अवधारणा प्राचीन प्राच्य निरंकुशता से प्राप्त एक अवधारणा है। यह एक ऐसी अवधारणा है जो स्वतंत्र पुरुषों के लिए बिलकुल अयोग्य है। जब आप चर्च में लोगों को खुद को नीचा दिखाते हुए और यह कहते हुए सुनते हैं कि वे दुखी पापी हैं, और बाकी सब कुछ, यह घृणित लगता है और स्वाभिमानी मनुष्यों के योग्य नहीं है। हमें उठ खड़ा होना चाहिए और दुनिया को खुलकर सामने देखना चाहिए। हमें दुनिया का सबसे अच्छा बनाना चाहिए, और अगर यह उतना अच्छा नहीं है जितना हम चाहते हैं, आखिरकार यह इन सभी युगों में इन लोगों ने जो कुछ भी बनाया है उससे बेहतर होगा। एक अच्छी दुनिया को ज्ञान, दया और साहस की आवश्यकता होती है; इसे अतीत के पीछे पछतावे की लालसा या अज्ञानी पुरुषों द्वारा बहुत पहले बोले गए शब्दों से मुक्त बुद्धि की बेड़ियों की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए एक निडर दृष्टिकोण और मुक्त बुद्धि की आवश्यकता है। इसे भविष्य के लिए आशा की आवश्यकता है, न कि हर समय मृत अतीत की ओर मुड़कर देखना, जिस पर हमें विश्वास है कि हमारी बुद्धि द्वारा निर्मित भविष्य से कहीं आगे निकल जाएगा। व्हाई आई एम नॉट ए क्रिश्चियन एंड अदर एसेज ऑन रिलिजन एंड रिलेटेड सब्जेक्ट्स ) +* कई लोगों को अनायास और बिना प्रयास के पसंद करना शायद व्यक्तिगत खुशी के सभी स्रोतों में सबसे बड़ा है। +* मनुष्य एक भरोसेमंद जानवर है, और उसे कुछ विश्वास करना चाहिए; विश्वास के लिए अच्छे आधार के अभाव में, वह बुरे लोगों से संतुष्ट होगा। अलोकप्रिय निबंध ) +* प्यार तभी तक पनप सकता है जब तक वह स्वतंत्र और सहज है; यह कर्तव्य के विचार से मारा जाता है। यह कहना कि फलाने से प्रेम करना तुम्हारा कर्तव्य है, उससे घृणा करने का पक्का उपाय है। विवाह और नैतिकता ) +* खुशी के लिए यह आवश्यक है कि हमारे जीने का तरीका हमारे अपने गहरे आवेगों से उत्पन्न होना चाहिए, न कि उन लोगों के आकस्मिक स्वाद और इच्छाओं से जो हमारे पड़ोसी होते हैं, या यहां तक ​​कि हमारे संबंध भी। +* आपका लेखन कभी भी उतना अच्छा नहीं होता जितना आपने आशा की थी; लेकिन कभी भी उतना बुरा नहीं जितना आपको डर था। +* धर्म मुख्य रूप से भय पर आधारित है। यह आंशिक रूप से अज्ञात का आतंक है और आंशिक रूप से यह महसूस करने की इच्छा है कि आपके पास एक प्रकार का बड़ा भाई है जो आपकी सभी परेशानियों और विवादों में आपके साथ खड़ा रहेगा। रहस्य का भय, हार का भय, मृत्यु का भय। भय क्रूरता का जनक है, और इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि क्रूरता और धर्म साथ-साथ चले गए हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि डर उन दो चीजों के आधार पर है। इस दुनिया में अब हम चीजों को समझने के लिए थोड़ा शुरू कर सकते हैं, और विज्ञान की मदद से उन्हें थोड़ा महारत हासिल कर सकते हैं, जिसने सभी पुराने नियमों के विरोध के खिलाफ कदम से कदम उठाया है। विज्ञान हमें इस भयानक भय से बाहर निकलने में मदद कर सकता है जिसमें मानव जाति कई पीढ़ियों से रह रही है। विज्ञान हमें सिखा सकता है, और मुझे लगता है कि हमारे अपने दिल हमें सिखा सकते हैं, अब काल्पनिक समर्थन के लिए चारों ओर देखने के लिए नहीं, आकाश में सहयोगियों का आविष्कार करने के लिए नहीं, बल्कि इस दुनिया को एक उपयुक्त जगह बनाने के लिए यहां अपने स्वयं के प्रयासों को देखने के लिए रहने के लिए, उस जगह के बजाय जिसे इन सभी सदियों में चर्चों ने बनाया है। व्हाई आई एम नॉट ए क्रिश्चियन एंड अदर एसेज ऑन रिलिजन एंड रिलेटेड सब्जेक्ट्स ) +* यह मानने का कोई कारण नहीं है कि दुनिया की शुरुआत बिल्कुल हुई थी। यह विचार कि चीजों की शुरुआत होनी चाहिए, वास्तव में हमारे विचारों की गरीबी के कारण है। +* एक सुखी जीवन काफी हद तक एक शांत जीवन होना चाहिए, क्योंकि केवल शांत वातावरण में ही सच्चा आनंद जी सकता है। द कॉन्क्वेस्ट ऑफ हैप्पीनेस ) +* लगभग सब कुछ जो आधुनिक दुनिया को पिछली शताब्दियों से अलग करता है, विज्ञान के लिए जिम्मेदार है, जिसने सत्रहवीं शताब्दी में अपनी सबसे शानदार जीत हासिल की। ए हिस्ट्री ऑफ वेस्टर्न फिलॉसफी ) +* परंपरागत लोग सम्मेलन से प्रस्थान करके क्रोधित होते हैं, मुख्यतः क्योंकि वे इस तरह के प्रस्थान को स्वयं की आलोचना के रूप में देखते हैं। +* क्या दुनिया में कोई ऐसा ज्ञान है जो इतना निश्चित है कि कोई भी समझदार व्यक्ति उस पर संदेह नहीं कर सकता द प्रॉब्लम्स ऑफ फिलॉसफी ) +* जीवन और कुछ नहीं बल्कि पीड़ित के बजाय अपराधी होने की एक प्रतियोगिता है। +* अगर हम सभी को जादू द्वारा एक-दूसरे के विचारों को पढ़ने की शक्ति दी जाती, तो मुझे लगता है कि पहला प्रभाव यह होगा कि लगभग सभी मित्रता भंग हो जाएगी; दूसरा प्रभाव, हालांकि, ���त्कृष्ट हो सकता है, क्योंकि बिना किसी मित्र के दुनिया को असहनीय माना जाएगा, और हमें खुद से यह छिपाने के लिए भ्रम के घूंघट की आवश्यकता के बिना एक दूसरे को पसंद करना सीखना चाहिए कि हम एक दूसरे को बिल्कुल सही नहीं समझते थे । द कॉन्क्वेस्ट ऑफ हैप्पीनेस ) +* धैर्य और ऊब का गहरा संबंध है। ऊब, एक खास तरह की ऊब, वास्तव में अधीरता है। आपको चीजें पसंद नहीं हैं, वे आपके लिए काफी दिलचस्प नहीं हैं, इसलिए आप निर्णय लेते हैं- और बोरियत एक निर्णय है-कि आप ऊब गए हैं। +* दुनिया कब तक इस क्रूर क्रूरता के तमाशे को सहने को तैयार है? +* दर्शन हमें निश्चित रूप से यह बताने में असमर्थ है कि यह जो संदेह उठाता है उसका सही उत्तर क्या है, यह कई संभावनाओं का सुझाव देने में सक्षम है जो हमारे विचारों को बढ़ाता है और उन्हें प्रथा के अत्याचार से मुक्त करता है। इस प्रकार, चीजों के बारे में हमारी निश्चितता की भावना को कम करते हुए, यह हमारे ज्ञान को बहुत बढ़ाता है कि क्या हो सकता है; यह उन लोगों के कुछ हद तक अहंकारी हठधर्मिता को दूर करता है जिन्होंने कभी भी संदेह से मुक्ति के क्षेत्र में यात्रा नहीं की है, और यह एक अपरिचित पहलू में परिचित चीजों को दिखाकर हमारे आश्चर्य की भावना को जीवित रखता है द प्रॉब्लम्स ऑफ फिलॉसफी ) +* मैं कहता हूं कि जिन लोगों को लगता है कि जीवन का सामना करने के लिए उनके पास एक धर्म या धर्म होना चाहिए, वे एक प्रकार की कायरता दिखा रहे हैं, जिसे किसी भी अन्य क्षेत्र में अवमानना ​​माना जाएगा। लेकिन जब यह धार्मिक क्षेत्र में होता है तो इसे प्रशंसनीय माना जाता है, और मैं कायरता की प्रशंसा नहीं कर सकता, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो। बर्ट्रेंड रसेल अपने मन की बात कहते हैं।) +* अनिर्णय के रूप में कुछ भी इतना थकाऊ नहीं है, और कुछ भी इतना व्यर्थ नहीं है। द कॉन्क्वेस्ट ऑफ हैप्पीनेस ) +* अरस्तू ने कहा कि महिलाओं के दांत पुरुषों की तुलना में कम होते हैं; हालाँकि वह दो बार शादी कर चुका था, फिर भी उसने अपनी पत्नियों के मुँह की जाँच करके इस कथन को सत्यापित करने के लिए ऐसा नहीं किया। समाज पर विज्ञान का प्रभाव ) +* मैं तलाक, जन्म नियंत्रण और सेंसरशिप पर आधिकारिक कैथोलिक रवैये को मानव जाति के लिए अत्यधिक खतरनाक मानता हूं। प्रिय बर्ट्रेंड रसेल: आम जनता के साथ उनके पत्राचार का चयन 1950-68 ) +* विज्ञान ज्ञान की सीमा निर्��ारित कर सकता है, लेकिन कल्पना की सीमा निर्धारित नहीं करनी चाहिए। +* हर अलग जुनून, अलगाव में, पागल है; विवेक को पागलपन के संश्लेषण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। प्रत्येक प्रबल जुनून एक प्रमुख भय उत्पन्न करता है, इसकी पूर्ति न होने का भय। प्रत्येक प्रबल भय एक दुःस्वप्न उत्पन्न करता है, कभी-कभी स्पष्ट और सचेत कट्टरता के रूप में, कभी-कभी कायरता को पंगु बनाने में, कभी-कभी अचेतन या अवचेतन आतंक में जो केवल सपनों में अभिव्यक्ति पाता है। एक व्यक्ति जो एक खतरनाक दुनिया में विवेक की रक्षा करना चाहता है, उसे अपने मन में भय की संसद बुलानी चाहिए, जिसमें प्रत्येक को अन्य सभी द्वारा बेतुका करार दिया जाता है। +* मैंने एक दिन स्कूल में एक मध्यम आकार के लड़के को एक छोटे लड़के के साथ दुर्व्यवहार करते पाया। मैंने समझाया, लेकिन उसने उत्तर दिया: बड़े लोगों ने मुझे मारा, इसलिए मैंने बच्चों को मारा, यह उचित है। इन शब्दों में उन्होंने मानव जाति के इतिहास का प्रतीक किया। शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था ) +* कुछ लोग तब तक खुश रह सकते हैं जब तक वे किसी अन्य व्यक्ति, राष्ट्र या पंथ से घृणा नहीं करते। +* भले ही सभी विशेषज्ञ सहमत हों, वे गलत हो सकते हैं। +* मुझ पर अपनी राय बदलने की आदत का आरोप लगाया गया है। मैं अपने विचारों को बदलने के लिए किसी भी हद तक शर्मिंदा नहीं हूं। कौन सा भौतिक विज्ञानी जो 1900 में पहले से ही सक्रिय था, यह शेखी बघारने का सपना देखेगा कि पिछली आधी सदी के दौरान उसकी राय नहीं बदली थी? जब नया ज्ञान उपलब्ध होता है तो विज्ञान में पुरुष अपनी राय बदलते हैं; लेकिन कई लोगों के दिमाग में दर्शन विज्ञान के बजाय धर्मशास्त्र के लिए आत्मसात किया जाता है। जिस तरह के दर्शन को मैं महत्व देता हूं और उसका पालन करने का प्रयास किया है, वह वैज्ञानिक है, इस अर्थ में कि कुछ निश्चित ज्ञान प्राप्त करना है और नई खोजें किसी भी स्पष्ट दिमाग के लिए पूर्व त्रुटि की स्वीकृति को अपरिहार्य बना सकती हैं। मैंने जो कहा है, चाहे जल्दी हो या देर से, मैं उस तरह के सत्य का दावा नहीं करता, जो धर्मशास्त्री अपने पंथ के लिए दावा करते हैं। मैं केवल सबसे अच्छा दावा करता हूं कि व्यक्त की गई राय उस समय व्यक्त की गई थी जब इसे व्यक्त किया गया था। मुझे बहुत आश्चर्य होना चाहिए अगर बाद के शोध ने यह नहीं दिखाया कि इसे संशोधित करने की आ��श्यकता है। इसलिए, मुझे आशा है कि जो कोई भी इस शब्दकोश का उपयोग करता है, वह उन टिप्पणियों को नहीं मानेगा, जिन्हें वह उद्धृत करता है, जो कि परमधर्मपीठीय घोषणाओं के रूप में अभिप्रेत है, बल्कि केवल उतना ही अच्छा होगा जितना मैं उस समय स्पष्ट और सटीक सोच को बढ़ावा देने के लिए कर सकता था। स्पष्टता, सबसे बढ़कर, मेरा उद्देश्य रहा है। डिक्शनरी ऑफ़ माइंड, मैटर एंड मोराल्स ) +* ईर्ष्या में चीजों को अपने आप में कभी नहीं देखना है, बल्कि केवल उनके संबंधों में है। यदि आप महिमा चाहते हैं, तो आप नेपोलियन से ईर्ष्या कर सकते हैं, लेकिन नेपोलियन ने सीज़र से ईर्ष्या की, सीज़र ने सिकंदर से ईर्ष्या की, और सिकंदर, मैं हिम्मत से, हरक्यूलिस से ईर्ष्या कर रहा था, जो कभी अस्तित्व में नहीं था। +* सबसे क्रूर विवाद उन मामलों के बारे में हैं जिनके बारे में किसी भी तरह से कोई अच्छा सबूत नहीं है। +* अधिकांश सबसे बड़ी बुराइयाँ जो मनुष्य ने मनुष्य पर डाली हैं, वे लोगों द्वारा किसी ऐसी चीज़ के बारे में पूरी तरह से निश्चित महसूस करने के कारण आई हैं, जो वास्तव में झूठी थी। अलोकप्रिय निबंध ) +* मुख्य चीजें जो मुझे अपने खाते में महत्वपूर्ण लगती हैं, न कि केवल अन्य चीजों के साधन के रूप में, ज्ञान, कला, सहज खुशी, और दोस्ती या स्नेह के संबंध हैं। +* मुझे विश्वास है कि जब मैं मरूंगा तो मैं सड़ जाऊंगा, और मेरे अहंकार का कुछ भी नहीं बचेगा। व्हाई आई एम नॉट ए क्रिश्चियन एंड अदर एसेज ऑन रिलिजन एंड रिलेटेड सब्जेक्ट्स ) +* ज्यादातर लोग सोचने के बजाय मरना पसंद करते हैं और उनमें से कई करते हैं द एबीसी ऑफ़ रिलेटिविटी ) +* एक पीढ़ी जो ऊब को सहन नहीं कर सकती है, वह छोटे लोगों की एक पीढ़ी होगी, प्रकृति की धीमी प्रक्रिया से अनुचित रूप से तलाकशुदा पुरुषों की, जिनमें हर महत्वपूर्ण आवेग धीरे-धीरे मुरझा जाता है जैसे कि वे फूलदान में फूल काट रहे हों। +* शुरुआती समय से, दर्शन ने अधिक से अधिक दावे किए हैं, और सीखने की किसी भी अन्य शाखा की तुलना में कम परिणाम प्राप्त किए हैं। बाहरी दुनिया का हमारा ज्ञान ) +* विचार की स्वतंत्रता तभी मौजूद हो सकती है जब सरकार खुद को सुरक्षित समझे। +* मैं दुनिया और उसमें मौजूद लगभग सभी लोगों से नफरत करता हूं। मुझे लेबर कांग्रेस और उन पत्रकारों से नफरत है जो पुरुषों को कत्ल करने के लिए भेजते हैं, और पिता जो अपने बेटों को मारने पर गर्व महसूस करते हैं, और यहां तक ​​​​कि शांतिवादी जो मानव स्वभाव को अनिवार्य रूप से अच्छा कहते हैं, सभी दैनिक सबूतों के बावजूद विपरीत। मुझे ग्रह और मानव जाति से नफरत है- मुझे ऐसी प्रजाति से संबंधित होने में शर्म आती है। बर्ट्रेंड रसेल की आत्मकथा ) +* जब भी आप अपने आप को मतभेद के बारे में क्रोधित पाते हैं, तो सावधान रहें; जांच करने पर आपको शायद पता चलेगा कि आपका विश्वास सबूतों से परे जा रहा है। पोर्टेबल नास्तिक: अविश्वासी के लिए आवश्यक रीडिंग ) +* अत्यधिक दुख से अत्यधिक आशाएं पैदा होती हैं। +* हम अपनी आदतों को अपनी आय से अधिक, अक्सर अपने जीवन से अधिक प्यार करते हैं। संशयवादी निबंध ) +* मानव स्वभाव को समझना मानव जीवन में किसी भी वास्तविक सुधार का आधार होना चाहिए। विज्ञान ने भौतिक दुनिया के नियमों में महारत हासिल करने में चमत्कार किया है, लेकिन सितारों और इलेक्ट्रॉनों की प्रकृति की तुलना में हमारी अपनी प्रकृति को अभी तक बहुत कम समझा गया है। जब विज्ञान मानव स्वभाव को समझना सीख जाएगा, तो वह हमारे जीवन में एक ऐसी खुशी ला सकेगा, जिसे बनाने में मशीनें और भौतिक विज्ञान विफल रहे हैं। संशयवादी निबंध ) +* कार्रवाई के बजाय विचार में आनंद पाने की आदत, मूर्खता और शक्ति के अत्यधिक प्रेम के खिलाफ एक सुरक्षा है, दुर्भाग्य में शांति और चिंताओं के बीच मन की शांति बनाए रखने का एक साधन है। जो जीवन व्यक्तिगत है, उसके लिए सीमित जीवन, देर-सबेर असहनीय रूप से दर्दनाक होने की संभावना है; यह केवल खिड़कियों द्वारा एक बड़े और कम भयावह ब्रह्मांड में है कि जीवन के अधिक दुखद हिस्से सहन करने योग्य हो जाते हैं। आलस्य और अन्य निबंधों की प्रशंसा में ) +* कभी-कभी जीवन में सबसे कठिन काम यह जानना होता है कि किस पुल को पार करना है और कौन सा जलना है। +* किसी स्थायी चीज़ की खोज मनुष्य को दर्शन की ओर ले जाने वाली सबसे गहरी वृत्ति में से एक है। ए हिस्ट्री ऑफ वेस्टर्न फिलॉसफी ) +* भाषा न केवल विचार व्यक्त करने का कार्य करती है, बल्कि उन विचारों को भी संभव बनाती है जो इसके बिना मौजूद नहीं हो सकते। +* मैं दो बातें कहना चाहूंगा, एक बौद्धिक और एक नैतिक। मैं जो बौद्धिक बात कहना चाहता हूं, वह यह है: जब आप किसी मामले का अध्ययन कर रहे हों, या किसी दर्शन पर विचार कर रहे हों, तो अपने आप से केवल यही पूछें कि तथ्य क्या हैं और तथ���य क्या हैं। आप जिस पर विश्वास करना चाहते हैं, या जो आपको लगता है कि अगर उस पर विश्वास किया जाता है तो उसके लाभकारी सामाजिक प्रभाव होंगे, कभी भी खुद को विचलित न होने दें। लेकिन केवल और पूरी तरह से देखें कि तथ्य क्या हैं। यही वह बौद्धिक बात है जो मैं कहना चाहता हूं। नैतिक बात जो मैं कहना चाहता हूं मुझे कहना चाहिए कि प्रेम बुद्धिमान है, घृणा मूर्खता है। इस दुनिया में जो और अधिक घनिष्ठ और घनिष्ठ रूप से परस्पर जुड़ी हुई है, हमें एक-दूसरे को सहन करना सीखना होगा, हमें इस तथ्य को स्वीकार करना सीखना होगा कि कुछ लोग ऐसी बातें कहते हैं जो हमें पसंद नहीं हैं। हम केवल इस तरह से एक साथ रह सकते हैं और अगर हमें एक साथ रहना है और एक साथ मरना नहीं है तो हमें एक तरह का दान और एक तरह की सहनशीलता सीखनी होगी जो इस ग्रह पर मानव जीवन की निरंतरता के लिए नितांत महत्वपूर्ण है। +* मैंने एक अजीब खोज की है। हर बार जब मैं किसी जानकार से बात करता हूं, तो मुझे पूरा यकीन हो जाता है कि अब खुशी की कोई संभावना नहीं है। फिर भी जब मैं अपने माली से बात करता हूं, तो मैं इसके विपरीत कायल हो जाता हूं। +* कुल मिलाकर यह पाया जाएगा कि एक शांत जीवन महापुरुषों की विशेषता है, और यह कि उनके सुख उस तरह के नहीं हैं जो बाहरी आंखों को रोमांचक लगते हैं। द कॉन्क्वेस्ट ऑफ हैप्पीनेस ) +* यदि साधारण वेतनभोगी दिन में चार घंटे काम करता है, तो सभी के लिए पर्याप्त होगा और कोई बेरोजगारी नहीं होगी एक निश्चित बहुत ही मध्यम मात्रा में समझदार संगठन। यह विचार अमीरों को झकझोर देता है, क्योंकि उन्हें विश्वास है कि गरीबों को यह नहीं पता होगा कि इतने अवकाश का उपयोग कैसे किया जाए। अमेरिका में पुरुष अक्सर लंबे समय तक काम करते हैं, भले ही वे अच्छी तरह से हों; ऐसे लोग, स्वाभाविक रूप से, बेरोजगारी की गंभीर सजा को छोड़कर, वेतन पाने वालों के लिए अवकाश के विचार पर क्रोधित हैं; वास्तव में, उन्हें अपने बेटों के लिए भी फुरसत पसंद नहीं है। +* मेरा केंद्र हमेशा और हमेशा के लिए भयानक दर्द में है दुनिया में जो कुछ भी है, उससे परे कुछ खोज रहा है, कुछ बदल रहा है और अनंत है। +* यह [हेगेल का दर्शन] एक महत्वपूर्ण सत्य को दर्शाता है, अर्थात्, आपका तर्क जितना खराब होगा, परिणाम उतने ही दिलचस्प होंगे। ए हिस्ट्री ऑफ वेस्टर्न फिलॉसफी ) +* जिस व्यक्ति के पास दर्शन की कोई टिंचर नही��� है, वह सामान्य ज्ञान, अपनी उम्र या अपने राष्ट्र के अभ्यस्त विश्वासों से प्राप्त पूर्वाग्रहों में कैद जीवन से गुजरता है, और उन विश्वासों से जो उसके जानबूझकर सहयोग या सहमति के बिना उसके दिमाग में बड़े हो गए हैं। कारण। द प्रॉब्लम्स ऑफ फिलॉसफी ) +* बुद्धिमान व्यक्ति उतना ही खुश होगा जितना कि परिस्थितियाँ अनुमति दें, और यदि वह ब्रह्मांड के चिंतन को एक बिंदु से परे दर्दनाक पाता है, तो वह इसके बजाय कुछ और सोचेगा। द कॉन्क्वेस्ट ऑफ हैप्पीनेस ) +* राजनीति काफी हद तक भावुक बयानबाजी से संचालित होती है जो सत्य से रहित होती है। +* जो व्यक्ति बुद्धिमानी से खुशी का पीछा करता है, उसका लक्ष्य उन केंद्रीय हितों के अलावा कई सहायक हितों पर कब्जा करना होगा, जिन पर उसका जीवन टिका हुआ है। द कॉन्क्वेस्ट ऑफ हैप्पीनेस ) +* इस मामले की जड़ एक बहुत ही सरल और पुराने जमाने की चीज है प्यार या करुणा। यदि आप इसे महसूस करते हैं, तो आपके पास अस्तित्व के लिए एक मकसद है, कार्रवाई के लिए एक मार्गदर्शक है, साहस का एक कारण है, बौद्धिक ईमानदारी के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। +* अपने आप को कभी भी विचलित न होने दें, या तो आप जिस पर विश्वास करना चाहते हैं, या जो आप सोचते हैं कि अगर उस पर विश्वास किया जाए तो उसके लाभकारी सामाजिक प्रभाव हो सकते हैं; लेकिन केवल और पूरी तरह से देखें कि तथ्य क्या हैं। +* कोई भी दूसरों के गुणों के बारे में कभी गपशप नहीं करता। +* ईश्वर में विश्वास और भविष्य के जीवन में संशयवादियों की आवश्यकता से कम साहस के साथ जीवन को जीना संभव हो जाता है। शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था ) + + +चन्द्रशेखर वेंकटरमन 7 नवम्बर 1888 – 21 नवम्बर 1970 सी वी रामन् भारत के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक थे जिन्हें १९३० का भौतिकी का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया था। इनका जन्म तमिलनाडु राज्य के तिरुचिरापल्ली शहर में 7 नवम्बर 1888 को हुआ था। इनके पिता का नाम चंद्रशेखर अय्यर था जो की गणित और भौतिकी के व्याख्याता थे। इनकी माता का नाम पार्वती अम्मल था। +प्रकाश के प्रकीर्णन और 'रमन प्रभाव' की खोज करने के लिए इन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। +* विज्ञान एक कठिन विषय है। इसे पढ़ने के लिए एकाग्रता चाहिए। +* कोई भी अनुसन्धान करने में कठिन परिश्रम और लगन की आवश्यकता होती है, कीमती उपकरण की नहीं। +* मैंने विज्ञान के अध्ययन के लिए कभ�� भी किसी कीमती उपकरण का उपयोग नही किया, मैंने "रमन प्रभाव" की खोज के लिए शायद ही किसी उपकरण पर 200 रुपए से अधिक खर्च किया हो। +* सही व्यक्ति, सही सोच और सही उपकरण मतलब सही नतीजे। +* गरीबी और साधनहीन प्रयोगशालाओं ने मुझे मेरा सर्वोत्तम काम करने के लिए दृढ़ता दी। +* आधुनिक भौतिकी की पूरी रूपरेखा पदार्थ के परमाणु या आणविक संरचना की मौलिक परिकल्पना पर बनी है। +* मेरा दृढ़ता से मानना ​​है कि मौलिक विज्ञान को अनुदेशात्मक, औद्योगिक और सरकार या सैन्य दबावों द्वारा संचालित नहीं किया जाना चाहिए। +* अगर आप मेरे साथ अच्छे से पेश आते हैं तो आप कुछ प्राप्त कर सकते हैं। अगर आप मेरे साथ सही ढंग से पेश नही आते है तो आपको कुछ नही मिल सकता। +* यदि कोई आपको जज कर रहा है तो वह स्वयं के दिमाग को खराब कर रहा है और वह उसकी खुद की समस्या है। +* आप अपनी लाइफ में यह नही चुन सकते है की आपकी लाइफ में कौन आता है लेकिन आप उससे सबक ले सकते है। +* आपके सामने उपस्थित कार्य के लिए दमदार समर्पण से आप कामयाबी प्राप्त कर सकते है। + + +आत्मविश्वास महत्त्वपूर्ण है कभी-कभी जब आप में विश्वास ना भी हो तो भी आपको आत्मविश्वासी दिखना चाहिए। वैनेस्सा ह्युजेंस +बिना विश्वास और आश्वासन के साहस नहीं हो सकता और आधी लड़ाई तो इसी धारणा में है कि हमने जो ठाना है उसे कर सकते हैं। स्वेट मार्डेन +जैसा हमारा आत्मविश्वास होता है वैसी हमारी क्षमता होती है। विल्लियम हैज्लिट +नेत्रित्व का अर्थ है कि लोग आपकी प्रतिक्रिया देखकर अपना आत्मविश्वास बढ़ा सकें, यदि आप नियंत्रण में हैं तो वो नियंत्रण में हैं। टॉम लेंड्री +आस्था विश्वास है, आश्वाशन है, प्रभावशाली सत्य है, ज्ञान है। रोबर्ट कोल्लियर +आत्मविश्वास के साथ काम करना सबसे अच्छा है, भले ही आपके पास उसके होने का कितना कम अधिकार ही क्यों ना हो। लीलियन हेलिमैन +मैं खुद को आत्मविश्वास से पूर्ण महसूस कर रही थी, इसलिए मैंने इसका फायदा उठाना चाह और खेलती रही। गैब्रिएला सबातीनी +उपलब्धि से अधिक और कोई भी चीज आपके अन्दर आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास नहीं पैदा करती। थोमस कार्लैले +यदि आप एक बार अपने साथी नागरिकों का भरोसा तोड़ दें, तो आप फिर कभी उनका सत्कार और सम्मान नहीं पा सकेंगे। अब्राहम लिंकन +बड़े काम करने के लिए आत्मविश्वास पहली अनिवार्यता है। सैम्युएल जोंसन +अत्यधिक भरोसा खतरे को जन्म देता है। पियरे कोर्नेल +वह जो दूसरों के राय देते समय अपने कान बंद कर लेता है उसे अपने खुद के विचारों की अखंडता में कम यकीन होता है। विल्लियम कोंग्रीव +बावजूद इसके की आप अन्दर से कैसा महसूस कर रहे हैं, हमेशा एक विजेता की तरह दिखने का प्रयास कीजिये। यहाँ तक की यदि आप पीछे भी हैं तो नियंत्रित और आत्मविश्वासी दिखकर आपको एक मानसिक बढ़त मिल जाएगी जो आपको जीत दिला देगी। डीएन आर्बस +जब आपके अन्दर आत्मविश्वास होता है तब आप खूब आनंद उठा सकते हैं, और जब आप आनंद उठाते हैं तब आप अद्भुत चीजें कर सकते हैं। जो नामथ +दोस्तों की मदद हमारी उतनी मदद नहीं करती जितना की उनकी मदद मिलने का विश्वास। एपिकुरस +सफलता के लिए आत्म-विश्वास आवश्यक है, और आत्म-विश्वास लिए तैयारी। आर्थर ऐश +अपनी क्षमता को पहचानकर और उस पे विश्वास कर के कोई एक बेहतर दुनिया बना सकता है। दलाई लामा +जीवन में सफल होने के लिए आपको दो चीजें चाहिएं अनभिज्ञता और आत्मविश्वास। मार्क ट्वैन +जब एक टीम व्यक्तिगत प्रदर्शन से ऊपर उठकर टीम का भरोसा करना सीख लेती है, तब उत्कृष्टता वास्तविकता बन जाती है। जो पेट्रीनो +स्वास्थ्य सबसे बड़ी दौलत है. संतोष सबसे बड़ा खजाना है. आत्म -विश्वास सबसे बड़ा मित्र है। लाओ जू +लोग बड़े कार्यों में भरोसा करने में शिथिल होते हैं। ओविड +टीम को कप्तान के फैसलों पर अन्तर्निहित विश्वास होना चाहिए। लोर्ड माउन्टबैटन +आत्मविश्वास संक्रामक है. और इसकी कमी भी। विन्से लोम्बार्डी +सभी के साथ विनम्र रहे, पर कुछ ही के साथ अन्तरंग हों, और इन कुछ को अपना विश्वास देने से पहले अच्छी तरह परख लें। जार्ज वाशिंगटन +दूसरे की अच्छाई में यकीन होना खुद में अच्छाई होने का एक अच्छा प्रमाण है। मिशेल डी.मोंटेगने +आत्म -विश्वास का संचलन पैसे के संचलन से बेहतर है। जेम्स मैडिसन +* साहस भय और आत्मविश्वास के बीच का जरिया है। अरस्तु +निष्क्रियता संदेह और भय को जन्म देती है। कार्रवाई विश्वास और साहस को। डेल कार्नेगी +हर वो अनुभव जिसमे आप भय का सामना करते हैं, वो आपकी शक्ति, साहस और आत्मविश्वास को बढ़ता है। एलेनोर रूजवेल्ट +जिन लोगों ने हमें अपना पूर्ण विश्वास दिया है वो ये सोचते हैं कि उन्हें हमारे विश्वास का अधिकार है. यह निष्कर्ष गलत है, उपहार कोई अधिकार नहीं प्रदान करता। फ्रेडरिक नीतजे +गौरव,निष्ठा,अनुशाशन, दिल��� -दिमाग के आलावा आत्मविश्वास सभी तालों की चाभी है। जो पेट्रीनो +हमें लगातार समस्याओं को हल करने का प्रयास करते रहना चाहिए एक -एक कर के चरणबद्ध तरीके से यदि बहरोसे और सहयोह के आधार पर नहीं तो कम से कम आपसी सहनशीलता और निजी -स्वार्थ के लिए। लेस्टर बी. पीयर्सन +शब्दों में दयालुता विश्वास उत्पन्न करती है.विचारों में दयालुता प्रगाढ़ता उत्पन्न करती है. बांटने में दयालुता प्रेम उत्पन्न करती है। लाओ जू +कार्रवाई आत्मविश्वास को पुनः स्थापित और निर्माण करने का महान साधन है. निष्क्रियता, सिर्फ परिणाम नहीं बल्कि भय का कारण है. शायद आप जो कार्य करेंगे वो सफल होगा या शायद कोई और कार्य या समायोजन करना होगा. पर कोई भी कार्यवाई निष्क्रियता से अच्छी है। नोर्मन विन्सेंट पील +आत्मविश्वास है तो तुम शुरू करने से पहले ही जीत चुके हो। मार्कस गर्वे +आत्मविश्वास बात-चीत में बुद्धि से अधिक सहायक होता है। फ़्रिअन्कोइस डी. ला. रोशेफौकाउल्ड +अपने लक्ष्य को स्पष्ठ करिए, उन्हें पूर्ण करने की योजना बनाइये और अपने लिए एक समय सीमा निर्धारित कीजिये, फिर बाधाओं एवं अन्य लोगों की आलोचनाओं की परवाह किये बिना, परम विश्वास और दृढ़ता के साथ अपनी योजना को क्रियान्वित कीजिये। पॉल जे. मेयर +विश्वास..इमानदारी, सम्मान, कार्य की पवित्रता, विश्वसनीय संरक्षण, और निस्वार्थ कर्म के द्वारा पनपता है. इनके बिना यह नहीं रह सकता। फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट +चाहे आप छोटी या बड़ी जगह से हों, आपकी सफलता आपके आत्मविश्वास और दृढ़ता से निर्धारित होती है। मिशेल ओबामा +हम विश्वास के साथ जिस चीज की भी उम्मीद करते हैं वो स्वयम को पूर्ण करने वाली भविष्यवाणी बन जाती है। ब्रायन ट्रेसी +आशावादिता वो विश्वास है जो उपलब्धि की तरफ ले जाती है। बिना आशा और विश्वास के कुछ भी नहीं किया जा सकता। हेलेन केलर +दरअसल, लोगों का विश्वास पैसे से अधिक मूल्यवान है। कार्टर जी. वुड्सन +समझदारी इसी में है कि कभी भी उस व्यक्ति पर पूरा भरोसा मत कीजिये जिससे आप एक बार भी धोखा खा चुके हों। रेने डेस्कर्तीज +खुद पर भरोसा रखो, अपनी क्षमताओं पर विश्वास करो, बिना अपनी शक्तियों में एक विनम्र लेकिन उचित आत्मविश्वास के तुम सफल या प्रसन्न नहीं हो सकते। नोर्मन विन्सेंट पील +अपने आप पर भरोसा रखें क्योंकि यह भरोसा ही आपको लंबा रास्ता तय करा सकता है। +आत्मविश्वास एक देवीय शक्ति हैं। जब आप इसपर विश्वाश करते हैं तो आपके साथ जादू होने लगते हैं। +आपको बहुत सारे लोग मिलेंगे जो कहेंगे की आप नहीं कर सकते। आपको जो करने को मिला है, उसे घुमाएँ और कहें 'मुझे देखो'। +आप जैसे हैं खुद से प्यार करें। यही बात आपका आत्मविश्वास बढाती है। +सुन्दर होने का मतलब है आत्मविश्वास आपको दूसरों द्वारा स्वीकार किए जाने की आवश्यकता नहीं है। आपको खुद को स्वीकार करने की आवश्यकता है। +जब आप आत्मविश्वास से भरे होते हैं तो आपका मन शांत होता है तो आप कुछ भी कर सकते हैं। + + +* जिस चीज के बारे में आप सोच सकते हैं उसे पा भी सकते हैं। +* अक्सर वही लोग सफल होते हैं जो हमेशा अपनी सोच को बड़ा बनाएं रखते हैं। +* जीवन में बड़ा बनना है तो हमेशा बड़़ा सोचें, छोटी सोच वाले छोटे रह जाते हैं। +* धनवान लोग हमेशा बड़ा सोचते हैं, इसलिए वे और भी धनवान बनते चले जाते हैं। +* जीवन में सफलता की सीढ़ियों को चढ़ना है तो सबसे पहले अपनी सोच को बड़ा बनाएं। सफलता आपके कदमों में होगी। +* बड़ी सोच वाले लोगों की किताब में असंभव जैसा कोई शब्द नहीं होता। +* अपने दुश्मनों से ज्यादा नुकसान आपकी गलत सोच आपको नुकसान पहुंचाती है। +* किसी बड़े काम को शुरू करने के लिए ताकत की बजाए बड़ी सोच की जरूरत होती है। +* अगर आप अपने जीवन में कुछ बदलाव लाना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी सोच को बदले सब कुछ बदल जाएगा। +* यदि आप अपनी सोच को नहीं बदल सकते हैं तो आप दुनिया के किसी भी चीज को नहीं बदल सकते। + + +नोआम चाम्सकी Noam Chomsky जन्म 7 दिसंबर 1928 वर्तमान समय के एक चिन्तक तथा भाषाविज्ञानी हैं। उन्होंने 'जेनेरेटिव ग्रामर' के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उन्हें २०वीं सदी के भाषाविज्ञान मेंं सबसे बड़ा योगदानकर्ता माना जाता है। जितने शोधकर्ता एवं विद्वानोंं ने उनको उद्धृत किया है, उतना शायद ही किसी जीवित लेखक को किया गया हो। +नोआम चाम्सकी को विशेषतः अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मीडिया के अलोचक एव राजनीति के विद्वान के तौर पर जाना जाता है। वामपन्थ एवं अमेरीका की राजनीति में आज वे एक प्रखर बौद्धिक के रूप में जाने जाते हैं। +नाओम चाम्सकी का जन्म अमेरिका में फिलाडेल्फिया प्रांत के इस्ट ओक लेन में हुआ था। उनके पिता विलियम चाम्सकी 1896-1977) थे जो हिब्रू के विद्धान व शिक्षक थे। उनकी माता एल्सी नामस्की बेलारुस से थी। +उन्होंन�� जब मनोविज्ञान के ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक बी एफ स्कीनर की पुस्तक वर्बल बिहेवियर की आलोचना लिखी, जिसमें 1950 के दशक में व्यापक स्वीकृति प्राप्त व्यवहारवाद के सिद्धान्त को चुनौती दी, तो इससे काग्नीटिव मनोविज्ञान में एक तरह की क्रांति का सूत्रपात हुआ, बल्कि भाषाविज्ञान, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र जैसे कई क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन आया। +* अज्ञानता की एक निशानी है, थोपी हुई शिक्षा। +* हमें नायकों की तलाश नहीं करनी चाहिए, हमें अच्छे विचारों की तलाश करनी चाहिए। +* सत्य बोलना और झूठ का पर्दाफाश करना बुद्धिजीवियोंं की जिम्मेदारी है। +* आतंकवाद को रोकने की चिन्ता हर किसी को है। बहुत आसान तरीका है इसम़े भाग लेना बंद करो। +* शक्तिशाली लोगों के लिए, अपराध वे होते है जो दूसरे लोग करते हैं। +* राष्ट्रवाद का एक तरीका है, दूसरों पर अत्याचार करना। +* मानव विज्ञान नुकसान में है, यदि इच्छा, निर्णय और पसंद पर सवाल उठता है। +* मानव भाषा एक अनोखी घटना प्रतीत होती है, जिसके अनुरूप पशुजगत में कुछ नहीं है। +* आप अपनी स्वयं की जनसंख्या को बलपूर्वक नियंत्रित नही कर सकते हैं, लेकिन इसका इस्तेमाल करके उपयोग किया जा सकता है। +* रंगहीन हरे विचार उग्र रूप से सोते हैं। +* देखो, सत्ता में बैठे लोग हिंसा को बिल्कुल एक 'वस्तु' समझते हैं। +* अगर हम लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास नहींं करते हैं तो हम घृणा करते हैं, हम इस तरह की घृणा में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते हैंं। +* बाइबल इतिहास में सबसे अधिक जनसंहारक पुस्तक है। +* इस्लाम कट्टरपंथी नहीं है जिसकी अमेरिका अलोचना करता है। इस्लाम स्वतंत्रत है, आशा है। +* लोगों का मस्तिष्क नियंत्रित करने के लिए सरकारें हर साल अरबों रुपये खर्च करती हैं। +* कोई भी तानाशाह अमेरिकी मीडिया की एकरुपता और आज्ञाकारिता की प्रशंसा करेगा। +* किसी एक अच्छे कारण से कोई बुरा इतिहास क्यों नहीं पढ़ता है, जबकि यह आपको बहुत कुछ सिखाता है। + + +वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण globalization) विश्व के विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं और समाजों की परस्पर निर्भरता, परस्पर जुड़ाव और एकीकरण को इस हद तक बढ़ाने की एक प्रक्रिया है कि विश्व के किसी भी भाग में होने वाली घटना, विश्व के अन्य भागों के लोगों को शीघ्र ही प्रभावित करे। +'वैश्वीकरण' शब्द का प्रयोग कभी-कभी विशेष रूप से आर्थिक वैश्वीकरण के सन्दर्भ में किया जाता है, अर्थात् व्यापार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, पूंजी प्रवाह, प्रवासन और प्रौद्योगिकी के प्रसार के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण। +* वैश्वीकरण किसी देश की राजनीतिक सीमाओं से परे आर्थिक गतिविधियों का विस्तार है। दीपक नय्यर, प्रसिद्ध भारतीय लेखक +* वैश्वीकरण को एक ऐसे विश्व के रूप में देखा जाना चाहिए जिसमें सभी देशों का व्यापार एक देश की ओर बढ़ रहा हो। इसमें पूरा विश्व एक अर्थव्यवस्था और एक बाजार है। जॉन नेसविट और पोर्टेशिया एबरडीन + + +आदम स्मिथ 16 जून 1723 – 17 जुलाई 1790) स्कॉटलैण्ड में जन्मे एक अर्थशास्त्री और दार्शनिक थे। बहुत से लोग उन्हें आधुनिक 'अर्थशास्त्र का जनक' मानते हैं। +* सारा पैसा विश्वास का विषय है। +* निश्चित ही कोई भी समाज समृद्ध और सुखी नहीं हो सकता यदि उसके सदस्यों का बड़ा हिस्सा गरीब और दुखी है। +* विज्ञान उत्साह और अंधविश्वास के जहर का सबसे बड़ा मारक है। +* पहली चीज जो आपको जाननी है वह आप स्वयं हैं। एक आदमी जो खुद को जानता है वह खुद से बाहर कदम रख सकता है और एक पर्यवेक्षक की तरह अपनी प्रतिक्रियाओं को देख सकता है। +* दोषियों पर दया, निर्दोष के प्रति क्रूरता है। +* श्रम पहली कीमत थी, मूल खरीद – पैसा जो सभी चीजों के लिए भुगतान किया गया था। सोने या चांदी से नहीं, बल्कि श्रम से, दुनिया की सारी संपत्ति मूल रूप से खरीदी गई थी। +* एक राष्ट्र चमकदार धातुओं के बचकाने संचय से अमीर नहीं बनता है, बल्कि यह अपने लोगों की आर्थिक समृद्धि से समृद्ध होता है। +* कभी भी उस चीज की शिकायत न करें जिससे छुटकारा पाना आपकी शक्ति में हर समय हो। +* आदतन प्रफुल्लता से बढ़कर कुछ भी सुंदर नहीं है। +* उस व्यक्ति की खुशी में क्या जोड़ा जा सकता है जो स्वस्थ है, जो कर्ज से मुक्त है, और एक स्पष्ट विवेक से पूर्ण है? +* संदेह के शहर से सड़क पर, मुझे अस्पष्टता की घाटी से गुजरना पड़ा। +* दूसरों के लिए ज्यादा और खुद के लिए कम महसूस करना; अपने स्वार्थ पर लगाम लगाना और अपने हितैषी स्नेह का प्रयोग करना, मानव स्वभाव की पूर्णता का निर्माण करता है। +* विद्वान अपनी कल्पना के विचारों के सामंजस्य को बनाए रखने के लिए अपनी इंद्रियों के साक्ष्य की उपेक्षा करते हैं। +* हमले के योग्य समस्याएं पलटवार करके अपनी योग्यता साबित करें। +* मानवता स��त्री का गुण है, उदारता पुरुष का। +* गरीबों की असली त्रासदी उनकी आकांक्षाओं की गरीबी है। +* मैंने कभी नहीं जाना कि जनता की भलाई के लिए व्यापार करने वालों ने कितना अच्छा किया है। +* प्रत्येक व्यक्ति उस मात्रा के अनुसार अमीर या गरीब होता है जिसमें वह मानव जीवन की आवश्यकताओं, सुविधाओं और मनोरंजन का आनंद उठा सकता है। +* हर चीज की असली कीमत, जो कुछ भी वास्तव में उस आदमी को खर्च होती है जो उसे हासिल करना चाहता है, वह है इसे हासिल करने की मेहनत और परेशानी। +* वस्तुओं की कीमत के संबंध में, मजदूरी में वृद्धि साधारण ब्याज की तरह चलती है, लाभ की वृद्धि चक्रवृद्धि ब्याज की तरह चलती है। +* श्रम पहली कीमत थी, मूल खरीद – पैसा जो सभी चीजों के लिए भुगतान किया गया था। +* सामान्य तौर पर, यदि व्यापार की कोई शाखा, या श्रम का कोई विभाजन, जनता के लिए फायदेमंद हो, तो प्रतिस्पर्धा जितनी अधिक मुक्त और सामान्य होगी, यह हमेशा उतना ही अधिक होगा। +* एक ही व्यापार के लोग शायद ही कभी एक साथ मिलते हैं, यहाँ तक कि मनोरंजन और मोड़ के लिए भी, लेकिन बातचीत जनता के खिलाफ एक साजिश में, या कीमतों को बढ़ाने के लिए किसी तरह की साजिश में समाप्त होती है। +* खपत ही सभी उत्पादन का एकमात्र लक्ष्य और उद्देश्य है; और निर्माता के हित पर ध्यान दिया जाना चाहिए, जहां तक ​​यह उपभोक्ता के प्रचार के लिए आवश्यक हो। + + +* अकेलापन स्वयं की गरीबी है; एकान्त स्वयं की समृद्धि है। मई सार्टन +* वह व्यक्ति जो हर किसी को खुश रखने की कोशिश करता है, अक्सर अकेला महसूस करता है। +* किसी के साथ खुश होने का सबसे अच्छा तरीका अकेले रहना सीखना है। इस तरह से संगति पसंद का मामला होगा और आवश्यकता नहीं होगी। +* हम खुद को अलग-थलग कर लेते हैं क्योंकि इससे चोट कम लगती है। जोडी पिकॉक +* मजेदार बात यह है कि जब आप अकेले खुश महसूस करना शुरू करते हैं, तो हर कोई आपके साथ रहना चाहता है। +* कभी-कभी आपको खुद को हर किसी से अलग करना होता है और बस आपको करने पर ध्यान देना होता है। +* मैं जिस दुनिया में रहता हूं, वह खाली और ठंडी है। अकेलापन मुझे काटता है और मेरी आत्मा को प्रताड़ित करता है। वेलोन जेनिंग्स +* याद रखें: जिस समय आप अकेलापन महसूस करते हैं, वह समय होता है जिसकी आपको सबसे ज्यादा जरूरत होती है। जीवन की क्रूर विडंबना। डॉगलस कप्लैंड +* सबसे भयानक गरीबी अकेलापन है और अप्रभावित ��हने की भावना है। मदर टेरेसा +* अकेले चलने के लिए तैयार रहे, और आपको आपके साथ चलने वाले बहुत से लोग मिल जायेंगे। +* यदि आप अपने आप से दोस्ती करते हैं तो आप कभी अकेले नहीं होंगे। मैक्सवेल माल्टज़ +* अगर लोग आपको अकेले छोड़ देंगे तो जीवन अद्भुत हो सकता है। चार्ली चैपलिन +* सुंदर आंखों के लिए, दूसरों में अच्छे की तलाश करें; सुंदर होंठों के लिए, केवल दयालुता के शब्दों को बोलो; और संतुलन के लिए, ज्ञान के साथ चले, आप कभी अकेले नहीं हैं। ऑड्रे हेपबर्न +* हम सब अकेले पैदा हुए हैं और अकेले मर जाते हैं। अकेलापन निश्चित रूप से जीवन की यात्रा का हिस्सा है। जेनोवा चेन +* पानी की एक बूंद के विपरीत जो समुद्र में शामिल होने पर अपनी पहचान खो देता है, मनुष्य उस समाज में अपना अस्तित्व खो देता है जिसमें वह रहता है। मनुष्य का जीवन स्वतंत्र है। वह अकेले समाज के विकास के लिए नहीं, बल्कि अपने स्वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है। बी आर अम्बेडकर +* गगन की ओर देखो। हम अकेले नही है। पूरा ब्रह्मांड हमारे लिए अनुकूल है और केवल सपने देखने और काम करने वालों को सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित करता है। ए पी जे अब्दुल कलाम +* बुरी संगति में रहने की तुलना में अकेले रहना कहीं बेहतर है। जॉर्ज वाशिंगटन +* अकेले हम बहुत कम कर सकते हैं; एक साथ हम बहुत कुछ कर सकते हैं। हेलेन केलर +* जब कोई नही होता है तो मैं अपना सबसे अच्छा दोस्त बन सकता हूं। कॉनॉर ओबेरस्ट +* विवाह उन लोगों के लिए अच्छा है जो रात में अकेले सोने से डरते हैं। सेंट जेरोम +* किसी के साथ नाखुश होने से अकेले नाखुश होना बेहतर है। मैरिलिन मुनरो +* आपका दुख पथ अकेला है, और कोई इसे नहीं चला सकता है, और कोई भी इसे समझ नहीं सकता है। टेरी इरविन +* ईर्ष्या मुस्कुराते हुए दुश्मनों के खिलाफ अकेले महसूस करने से ज्यादा नहीं है। एलिजाबेथ बोवेन +* एक परिवार के बिना, अकेले आदमी, दुनिया में, ठंड के साथ कांपता है। आंद्रे मौर्यिस +* यह सच है कि अकेले ईमानदारी आपको एक नेता नहीं बनायेगी, लेकिन ईमानदारी के बिना आप कभी भी एक नहीं होंगे। जिग जिग्लार +* लालसा का कोई अंत नहीं है। इसलिए अकेले संतुष्टि खुशी का सबसे अच्छा तरीका है। स्वामी शिवानंद +* यदि आप अकेले हैं तो आप अकेले हैं, तो आप बुरी संगति में हैं। जीन-पॉल सार्त्रे +* अकेले होने की स्वतंत्रता नशे की लत है। कंगना राणावत +* मुझे किसी को भी यह न���ीं बताना कि मुझे अपने जीवन को कैसे ठीक किया जाए। मैं इसे अकेला कर सकता हूँ। +* भीड़ के साथ खड़ा होना आसान है, अकेले खड़े होने के लिए साहस चाहिए. +* मुझे लगता था कि जीवन में सबसे बुरी चीज अकेले खत्म होना था, ऐसा नहीं है। जीवन में सबसे बुरी चीज उन लोगों के साथ समाप्त होती है जो आपको अकेले महसूस करते हैं। +* कभी-कभी, आपको अकेले रहना पड़ता है। अकेले नहीं रहना, बल्कि अपने खाली समय का आनंद लेना। +* अकेले खड़े होने का मतलब यह नहीं है कि मैं अकेला हूं। इसका मतलब है कि मैं अपने आप सब कुछ संभालने के लिए पर्याप्त मजबूत हूं। +* कभी-कभी, आपको बस एक ब्रेक की आवश्यकता होती है। एक खूबसूरत जगह में। अकेला। सब कुछ समझने के लिए अज्ञात +* अंधेरे में एक दोस्त के साथ चलना प्रकाश में अकेले चलने से बेहतर है। +* सबसे कठिन काम अकेले चलना है, लेकिन अकेले चलने से आप सबसे मजबूत बनते है। अज्ञात +* यदि आप मेरे दिमाग को पढ़ सकते हैं, तो आप आँसू में होंगे। +* शांति खोजने के लिए, कभी-कभी आपको लोगों, स्थानों और चीजों के साथ संबंध खोने के लिए तैयार रहना पड़ता है जो आपके जीवन में सभी शोर पैदा करते हैं। अज्ञात +* अर्थपूर्ण मौन हमेशा अर्थहीन शब्दों से बेहतर होता है। अज्ञात +* आप मुस्कुराते हैं, लेकिन आप रोना चाहते हैं। आप बात करते हैं, लेकिन आप चुप रहना चाहते हैं। आप नाटक करते हैं कि आप खुश हैं, लेकिन आप नहीं हैं। +* अकेले खड़े रहना उन लोगों के आस-पास होने से बेहतर है जो आपको महत्व नहीं देते हैं। +* कभी-कभी आपको हर किसी से ब्रेक लेने और अनुभव करने, सराहना करने और खुद से प्यार करने के लिए अकेले समय बिताना पड़ता है। रॉबर्ट ट्यू +* अकेलापन अकेले होने का दर्द व्यक्त करता है और एकांत अकेले होने की महिमा व्यक्त करता है। पॉल टिलिच +* अकेले होने का सबसे अच्छा हिस्सा यह है कि आपको वास्तव में किसी को जवाब देने की आवश्यकता नहीं है। आप जो चाहते हो करो। जस्टिन टिम्बरलेक +* कभी नहीं कहें कि आप अकेले हैं अकेले नहीं हैं, आपका भगवान और आपका प्रतिभा भीतर है। +* कभी-कभी जीवन अकेले रहना बहुत कठिन होता है, और कभी-कभी जीवन अकेले होने के लिए बहुत अच्छा होता है। एलिजाबेथ गिल्बर्ट +* जब सबकुछ अकेला होता है तो मैं अपना सबसे अच्छा दोस्त बन सकता हूं। कॉनर ओबेरस्ट +* कभी कभी अकेला होना बेहतर होता है। कोई भी तुम्हें चोट नहीं पहुंचा सकता। +* कुछ कदम अकेले लेने की जरूरत है। वास्तव में यह पता लगाने का एकमात्र तरीका है कि आपको कहां जाना है और आपको किसकी आवश्यकता है। + + +जॉन स्टुअर्ट मिल ब्रिटेन के प्रसिद्ध आर्थिक, सामजिक, राजनितिक, दार्शनिक, चिन्तक और अर्थशास्त्री थे। उनका जन्म 20 मई 1806 को लन्दन में हुआ। वह स्वतंत्रता, समाज, शासन और महिलाओं पर आदर्शों की वकालत करने के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने समाज में महिलाओं के जीवन का बारीकी से अवलोकन किया और उनके अधिकारों और सुधारों की वकालत की। मिल, भारत के बारे में अपनी औपनिवेशिक सोच के लिए कुख्यात हैं। +* कई बार कुछ न बोलकर भी आप दूसरों को नुकसान पहुंचा सकते है। वैसे चाहे बोलकर हो या न बोलकर, चोट हमेशा दूसरे व्यक्ति को ही लगती है। +* खुद के लिए कुछ अच्छा करना और इसे खुद के अंदाज़ में करने के तरीके को तभी आज़ादी कहा जाएगा जब आप दूसरे लोगों को भी ऐसा ही करने का मौका दें। +* कई सच ऐसे है जिनके असली अर्थ को समझना तब तक मुमकिन नहीं है जब तक निजी तौर उनसे सीखने के लिए कुछ मिल न जाए। +* जब दो या दो से ज्यादा लोग बातचीत करते है तो वे जिन बातों में विश्वास करते हैं उन्हें सही और जिन बातों को न पसंद करते है उन्हें गलत साबित करने में लग जाते है। +* हर मनुष्य के पास, कुछ भी करने की पूरी आज़ादी होनी चाहिए। लेकिन उसे किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन को नुकसान पहुंचाने की इज़ाज़त नहीं होनी चाहिए। +* युद्ध एक बदसूरत वस्तु है। +* ऐसा न हो कि काम की आदत को तोड़ दिया जाए और आलस्य का स्वाद लिया जाए। +* वह जो मामले में केवल अपना पक्ष जानता है, वह बहुत कम जानता है। +* मानव जाति में कोई भी महान सुधार तब तक संभव नहीं है जब तक उसके विचारों के मौलिक संविधान में एक महान परिवर्तन नहीं होता है। +* शिक्षक और शिक्षार्थी दोनोंं ही अपने पद पर सो जाते हैं क्योंंकि मैदान में कोई दुश्मन नहीं होता है। +* ऐसा प्रतीत होता है कि समय आ गया है कि धर्म से असंतोष को ज्ञात करना सभी का कर्तव्य है। +* आदेश या स्थिरता की पार्टी, प्रगति या सुधार की पार्टी, दोनों राजनीतिक जीवन के स्वस्थ राज्य के आवश्यक तत्व है। +* एक मात्र स्वतंत्रता जो नाम की हकदार है, वह यह है कि हमारे अपने तरीके से अपने अच्छे का पीछा करना। +* कोई भी महान विचारक नहीं हो सकता है जो यह नहीं मानता है कि एक विचारक के रूप में यह उसका पहला कर्तव्य है कि वह अपनी बुद्धि का अनुसरण करें, निष्कर्ष जो भ�� हो। +* देशभक्ति बर्बर लोगों से निपटने में सरकार का एक वैध तरीका है, बशर्ते अंत में उनका सुधार हो। +* जो कुछ भी सामान्य है वह स्वाभाविक है। +* मैंने अपनी इच्छाओं को सीमित करके अपनी खुशी की तलाश करना सीख लिया है। +* स्वतंत्रता मानव स्वभाव की पहली और सबसे मजबूत इच्छा है। +* सत्ता के प्रेमी और स्वतंत्रता के प्रेमी परस्पर दुश्मनी में है। +* मानसिक दासता के सामान्य वातावरण में भी महान व्यक्तिगत विचारक हो सकते हैं। +* एक विश्वास वाला व्यक्ति एक लाख शक्तियों के बराबर है। +* जो व्यक्ति सिर्फ खुद के बारे में जानता है वह हक़ीक़त में काफी काम जानता है। +* किसी काम को करने से अगर आपको ख़ुशी का एहसास होता है तो आपका काम ठीक है। लेकिन किसी काम को करने में दर्द मिलता है तो आप निश्चित ही कुछ गलत कर रहे है। +* लड़ना गलत नहीं, लेकिन लड़ने की सोच रखना सबसे गलत है। +* परेशानी पैदा करने वाली सोच के साथ उस समस्या का समाधान ढूंढना मुश्किल है। +* जैसे हैं वैसे ही रहने से दुनिया की सभी अच्छी बातें आपके साथ होगी। + + +[[कविता या काव्य की रचना करने वाले को कवि कहते हैं। +* यम कुबेर दिगपाल जहांते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते। तुलसीदास हनुमान के बारे में +: गद्यकाव्य को कवियों की कसौटी कहते हैं। + + +कालिदास संस्कृत के महान कवि थे। उनकी रचनात्मक प्रतिभा असाधारण थी। उनके साहित्य को अनेक देशी एवं विदेशी विद्वानों ने मुक्त कण्ठ से सराहा है। विश्व की प्रायः प्रमुख भाषाओँ में इनकी रचनाओं का अनुवाद हो चुका है। 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' उनकी महान नाट्य काव्य रचना है। इसके अतिरिक्त उन्होंने मेघदूतम्, कुमारसम्भवम्, ऋतुसंहारम् आदि अनेक कालजयी रचनाएँ की। +: कोई वस्तु पुरानी होने से अच्छी नहीं हो जाती और न ही कोई काव्य नया होने से निन्दनीय हो जाता है। संत जन विवेक मार्ग से सत्य का परीक्षण करते हैं पर न्यून बुद्धि दूसरों की बातों पर ही विश्वास करते हैं । +* इस पृथ्वी पर तीन रत्न हैं- जल, अन्न और सुभाषित; लेकिन अज्ञानी पत्थरों के टुकड़ों को ही रत्न कहते हैं। +* अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। +* अपनी आत्मा की पीड़ा को अपने वश में करें क्योकि सुख और दुख हर किसी के भाग्य में होता है और ये जीवन का पहिया ऊपर-नीचे लेता रहता है। +* अपनी बात के धनी लोगों के निश्चय मन को और नीचे गिरते हुए पानी के वेग को भला कौन फेर सकता है। +* ��वगुण नाव की पेंदी में छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या बड़ा, एक दिन उसे डुबो देगा। +* काम की समाप्ति यदि संतोषजनक हो तो परिश्रम की थकान याद नहीं रहती। +* कोई वस्तु पुरानी होने से अच्छी नहीं हो जाती और न ही कोई काव्य नया होने से निंदनीय हो जाता है। +* गुण से ही व्यक्ति की पहचान होती है, गुणी व्यक्ति सब जगह अपना आदर करा लेता है। +* जल तो आग की गर्मी पाकर ही गर्म होता है। उसका अपना स्वभाव तो ठंडा ही होता है। +* जितेन्द्रिय पुरूष के मन में विघ्न कर वस्तुएँ थोडा भी क्षोभ उत्पन्न नहीं कर सकतीं । +* जिस प्रकार जब सूरज निकलता है तब लालिमा युक्त होता है और अस्त होता है तो भी लालिमायुक्त होता है। इसी प्रकार महान पुरुष भी सुख और दुःख में एकरूपता रखता है। +* जिसने इंद्रियों पर विजय पा ली है उसके मन में विघन्कार वस्तुएं थोड़ा भी छोभ उत्पन्न नहीं कर सकतीं। +* जो सुख-दुःख के पश्चात होता है, वह साधारण सुख से अधिक सुखमय होता है। +* तुमने निंदायुक्त वचनों को उत्तम मानकर जो यहां कहा है उनसे कोई कार्य तो सिद्ध हुआ नहीं, केवल तुम्हारे स्वरूप का स्पष्टीकरण हो गया है। +* दान पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य सन्तान अपनी सेवा द्वारा इस लोक और परलोक दोनों में ही सुख देती है। +* दु:ख में अपने स्वजनों को देखते ही दु:ख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए। +* धरती पर केवल तीन रत्न हैं। अन्न जल, और सुभाषित। लेकिन कुछ अज्ञानी पत्थर के टुकड़ो को ही रत्न करते रहते है। +* नम्रता के संसर्ग से ऐश्वर्य की शोभा बढ़ती है। +* पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित वचन, परन्तु मूढ़जन पत्थर के टुकड़े को रत्न कहते हैं। +* प्रत्येक व्यक्ति की रुचि एक दूसरे से भिन्न होती है। +* फल आने पर पेड़ झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं। सम्पति आने पर सज्जन लोग विनम्र हो जाते हैं – परोपकारियों का स्वाभाव ऐसा ही है। +* भगवान की शोभा नम्रता से ही बढ़ती है। +* यदि प्यार अधिक हो तो पाप की शंका होती ही है। +* रथचक्र की अरों के समान मनुष्य के जीवन की दशा ऊपर-नीचे हुआ करती है। कभी के दिन बड़े कभी की रात। +* वास्तविक धीर पुरूष वे ही हैं जिनका चित्त विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थितिओं में भी अस्थिर नहीं होता। +* विपत्ति में पड़े हुए पुरुषों की पीड़ा हर लेना ही सत्पुरुषों की संपत्ति का सच���चा फल है। संपत्ति पाकर भी मनुष्य अगर विपत्ति-ग्रस्त लोगों के काम न आया तो वह संपत्ति किस काम की। +* विश्व महापुरुष को खोजता है न की महापुरुष विश्व को। +* वृक्ष अपने सिर पर गर्मी झेल लेता है। किन्तु अपनी छाया से औरों को गर्मी से बचाता है। +* वृक्ष के समान बनो जो कड़ी गर्मी झेलने के बाद भी सभी को छाया देता है। +* शत्रु के छिद्र अर्थात दोष या कमजोरी को देख कर उसी पर आघात करने से विजय मिलती है। +* सभी व्यक्ति कठिनाईयों पर विजय प्राप्त कर सकें, सभी सबका भला सोचें, सबके कार्यों की पूर्ती का प्रयत्न करें और सब स्थानों पर सबकी प्रसन्नता का यत्न करें। +* हंस पानी मिले दूध मे से दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है। +कालिदास के बारे में साहित्यकारों के विचार +: उपमा में कालिदास बेजोड़ हैं। +: भावर्थ यह है कि प्राचीन काल में कवियों की गणना के प्रसंग में सर्वश्रेष्ठ होने के कारण कालिदास का नाम कनिष्ठिका पर आता था, किन्तु आज तक उनके समकक्ष कवि के अभाव के कारण, अनामिका पर किसी का नाम न आ सका और इस प्रकार अनामिका का नाम सार्थक हुआ। + + +पुराण हिन्दू धर्मग्रन्थ हैं। वेद व्यास परम्परा से इनके रचनाकार माने जाते हैं। इनकी संख्या १८ है। +'पुराण' का शाब्दिक अर्थ है प्राचीन आख्यान' या 'पुरानी कथा' । सांस्कृतिक अर्थ से पुराण हिन्दू संस्कृति के वे विशिष्ट धर्मग्रंथ जिनमें सृष्टि से लेकर प्रलय तक का इतिहास-वर्णन शब्दों से किया गया हो, पुराण कहे जाते हैं। +* सर्ग (सृष्टि प्रतिसर्ग (प्रलय, पुनर्जन्म वंश (देवता व ऋषि सूचियां मन्वन्तर (चौदह मनु के काल और वंशानुचरित (सूर्य चंद्रादि वंशीय चरित) ये पुराण के पाँच लक्षण हैं। अमरकोष +श्री शुकदेव जी परीक्षित से कहते हैं कि) इस पुराण में सर्ग, विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति मन्वन्तर, ईशानुकथा, निरोध, मुक्ति तथा आश्रय महापुराण के दस लक्षण हैं। +: अर्थात् पुराणों का आविर्भाव ऋक्, साम, यजुस् औद छन्द के साथ ही हुआ था। +* कल्पना ज्ञान से महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। सपना भी कल्पना है। शिव ने इस आधार पर ध्यान की ११२ विधियों का विकास किया। अतः अच्छी कल्पना करें। भगवान शिव, शिव पुराण में) +: मनुष्य जीवन में धन, स्त्री, पुत्र, घर-धर्म के काम, और खेत ये पाँच चीजें जिस मनुष्य के पास होती हैं, उसी मनुष्य का जीवन इस धरती पर सफल माना जाता है��� +* सत्कर्म और सुमति से ही मृत्यु के बाद सद्गति और मुक्ति मिलती है। मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना या सत्य का साथ देना और सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना या असत्य का साथ देना। कहते भी हैं कि राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत्य है। गरुड पुराण +* अपराधी, नशे का व्यापारी, अत्यधिक क्रोधी, निर्दयी व्यक्ति, ब्याजखोर, निंदक व्यक्ति, किन्नर, संक्रामित व्यक्ति और चरित्रहीन महिला से दूर ही रहना चाहिए और इनका अन्न नहीं खाना चाहिए अन्यथा पाप लगता है। गरुड पुराण +* कुसंगत, माता पिता से झगड़ना, सेवा का भाव न रखना, आज का कार्य कल पर टालना, धर्म का पालन का करना, कटु वचन बोलना, बहुत बातूनी होगा, बड़ों का और समाज का अपमान करना, परस्त्रीगमन करना, फिजूलखर्ची, चोरी करना, शराब पीना, मांस खाना, लोगों को भ्रमित करना, तामसिक भोजन करना और बहुत देर तक सोना यह सब ऐसी बुराइयां हैं जो व्यक्ति का सदा दु:खी बनाए रखकर जीवन को नष्ट कर देती है। +* कर्मयोग से बढ़कर है ज्ञानयोग, ज्ञानयोग से बढ़कर है भक्तियोग। जो व्यक्ति अपने ईष्टदेव की भक्ति में दृढ़ रहता है उसके जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार की परेशानी खड़ी नहीं होती है। +: जो पुरूष ज्ञानशील है, वे परमगति को प्राप्त होते है।जो प्राणी पापकर्म में प्रवृत्त है, वे तो दुख से यमयातना को भोगते हैं। +* जो व्यक्ति दूसरों के विषय में सोचता है और स्वार्थ से बिल्कुल दूर है, वही व्यक्ति कलियुग में सफलता प्राप्त कर सकता है। विष्णु पुराण +* चिन्ता करने से आयु का नाश होता है और प्रभु की भक्ति करने से आयु वृद्धि होती है। +* अशांत को सुख कैसे हो सकता है। सुखी रहने के लिए शान्ति बहुत जरुरी है। +* जिस घर में स्त्री का मान-सम्मान होता है वहां पर लक्ष्मी सदा विराजमान रहती है। नारी वह धुरी है, जिसके चारों ओर परिवार घूमता है। जिस परिवार व राष्ट्र में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता, वह पतन व विनाश के गर्त में लीन हो जाता है। +* बुरे कर्मों का बुरा परिणाम निकलता है। जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा। अच्छे कर्म करते जाओ, फल की चिन्ता मत करो। व्यक्ति अपने कर्मों से पहचाना जाता है और महान बनता है जाति से नहीं। +* दो प्रकार के व्यक्ति संसार में स्वर्ग के भी ऊपर स्थिति होते हैं- एक तो जो शक्तिशाली होकर क्षमा करता है और दूसरा जो दरिद्र होकर भी कुछ दान करता रहता है। +* मन, वचन और कर्म से जो व्यक्ति एक है वहीं जीवन में लोगों से प्यार और आदर प्राप्त करके सफल हो जाता है। +* एकादशी व्रत रखना, गंगा नदी में स्नान करना, विष्णु की पूजा, तुलसी की पूजा और उसका सेवन करना, गाय की पूजा और उसकी सेवा करना, श्राद्धकर्म करना, वेद अध्यन करना, तीर्थ परिक्रमा करना और माता-पिता की सेवा करना, संध्यावंदन करना यह सभी पुण्य कर्म है। ऐसा करने वाला सदा सुखी रहकर मोक्ष को प्राप्त होता है। + + +सिख धर्म भारत की धरती से उत्पन्न एक धर्म है। 'सिख' शब्द शिष्य का अपभ्रंश है। सिख ईश्वर के वे शिष्य हैं जो दस सिख गुरुओं की शिक्षाओं का पालन करते हैं। सिख एक ईश्वर में विश्वास करते हैं। उनका मानना ​​है कि उन्हें अपने प्रत्येक काम में ईश्वर को याद करना चाहिये। इसे सिमरन (सुमिरण) कहा जाता है। विश्व भर में ढाई करोड़ से अधिक सिख हैं जिनमें से अधिकांश भारतीय राज्य पंजाब में निवास करते हैं। +सिख अपने पंथ को गुरुमत (गुरु का मार्ग) कहते हैं। सिख परम्परा के अनुसार, सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक 1469-1539) द्वारा की गई थी और बाद में नौ अन्य गुरुओं ने इसका नेतृत्व किया। सिख मानते हैं कि सभी १० मानव गुरुओं में एक ही आत्मा का वास था। १०वें गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708) की मृत्यु के बाद अनन्त गुरु की आत्मा ने स्वयं को सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब जिसे 'आदि ग्रंथ' भी कहा जाता है) में स्थानान्तरित कर लिया और इसके उपरान्त गुरु ग्रंथ साहिब को ही एकमात्र गुरु माना गया। +* धन के लिये मनुष्य नौकर या चोर बन जाता है। लेकिन धन उसके साथ नहीं जाता, और किसी दूसरे के लिये यहीं रह जाता है। गुरु ग्रन्थ साहिब, पृष्ठ ९३७ +सिख धर्म के बारे में + + +भारतीय कला के अन्तर्गत अनेक प्रकार की कला]]एँ आतीं हैं, जैसे मिट्टी के वर्तन सम्बन्धी कला, मूर्तिकला, दृष्यकलाएँ (जैसे चित्रकला और वस्त्रों से सम्बन्धित कलाएँ (जैसे बुना हुए रेश्नी वस्त्रों की कला आदि)। +* हम भारतीय कला के साथ कभी न्याय नहीं कर पाएंगे क्योंकि अज्ञानता और कट्टरता ने इसकी महानतम उपलब्धियों को नष्ट कर दिया है, और जो शेष बची रहीं उनको भी आधा नष्ट कर दिया है। पुर्तगालियों ने अपनी पोंगापन्थिता को प्रमाणित करते हुए एलिफेंटा में मूर्तियों और बेस-रिलीफ को असीम बर्बरता से तोड़ा-मरोड़ा। मुसलमानों ने [भारत के] उत्तरी भागों में लगभग हर जगह पांचवीं और छठी शताब्दी की श्रेष्ठ भारतीय वास्तुकला को नष्ट कर दिया जो बाद में निर्मित उन वास्तुकलाओं से कहीं बेहतर थीं जिन पर आज आश्चर्य किया जाता है और जिनकी आज प्रशंसा की जाती है। मुसलमानों ने मूर्तियों को काट दिया, मूर्तियों के अंग-प्रत्यंग तोड़ दिये और उन्हें अपनी मस्जिदों को बनाने में खपा दिया। मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर जैन मंदिरों के सुन्दर स्तम्भों की नकल की। इस विध्वंस में काल और कट्टरता एक हो गये थे क्योंकि जो मन्दिर विदेशी (विधर्मी) लोगों के स्पर्श से अपवित्र हो गए थे उन्हें हिंदुओं ने अपने रूढ़िवाद के चलते त्याग दिया और उनको भूल गये। विल डुरंट हमारी पूर्वी विरासत (Our Oriental heritage) में +* मुझे यह कहते हुए दुःख हो रहा है कि भारत के लोगों को अपने लोककलाओं और लोककलाकरों के बारे में बहुत कम पता है वे इस माध्यम (टीवी) के द्वारा अपनी मौलिकता को नष्ट किये जा रहे हैं और विदेशी संस्कृति को फैला रहे हैं, जो खतरनाक है बुद्धिजीवियों को यह समझना चाहिये कि उनकी स्वयं की संस्कृति का ठीक वैसे ही क्षरण हो रहा है जैसे समुद्र में डेल्टा का। डॉ जेम्स ओ'बार्नहिल, ब्राउन विश्वविद्यालय, यूएसए के थिएटर कलाओं के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ऑर्गनाइजर' पत्रिका को दिनांक 5/3/1989 को एक सक्षात्कार में। +सन्दर्भ कुछ वर्ष पहले जब वे गुजरात गए थे, तो उनकी मुलाकात एक 'भवई' लोक नाटक कलाकार से हुई थी। उस समय वह कलाकार 200 नाटकों को जानता था लेकिन, इस बार, सबसे पुराने भवई कलाकार को केवल 65 नाटक ज्ञात थे। दो पीढ़ियों के बीच, 135 भवई खो गए थे! किसी ने उन्हें रिकॉर्ड करने का कष्ट नहीं किया। वे भवई नाटक हमेशा के लिए खो गए।) + + +* मन का [ज्ञान से] प्रकाशित हो जाना तथा चरित्र का उन्नयन ही वास्तविक क्रांति है। व्यक्तिगत मुक्ति ही एकमात्र वास्तविक मुक्ति है। दार्शनिक और सन्त एकमात्र वास्तविक क्रांतिकारी हैं। The Lessons of History (1968)‎, पृष्ट 72 पर (एरियल डुरन्ट इस पुस्तक की सह-लेखिका हैं।) +* परस्पर प्रेम करो। इतिहास से अन्ततः जो मैने सीखा है वह वही है जो जीसस की शिक्षा है। आपको लगेगा कि यह तो बस एक 'लॉलीपॉप' है, किन्तु इसे करके तो देखिये। प्रेम ही इस जगत की सबसे व्यावहारिक वस्तु है। जिससे भी आप मिलते हैं, यदि आपका व्यवहार उससे प्रेमपूर्ण होगा तो अन्ततः आपको अपना लक्ष्य मिल जाएगा। यह बात उन्होंने तब कही थी जब उनके 92 वर्ष के होने पर उनसे पूछा गया कि वे एक वाक्य में इतिहास की शिक्षा का सार बताएँ। Pam Proctor द्वारा लिखित "Durants on History from the Ages, with Love 6 August 1978) पृष्ट 12 से उद्धृत +* भारत की मुस्लिम विजय शायद इतिहास की सबसे खूनी कहानी है। विल डुरंट द स्टोरी ऑफ़ सिविलाइज़ेशन अवर ओरिएंटल हेरिटेज" में +* भारत में वर्तमान वर्ण व्यवस्था चार वर्गों से बनी है: असली ब्राह्मण है ब्रिटिश नौकरशाही; असली क्षत्रिय है ब्रिटिश सेना, असली वैश्य है ब्रिटिश व्यापारी और असली शूद्र तथा अस्पृश्य हैं हिन्दू लोग। ”दि कांस्ट सिस्टम इन इंडिया” उपशीर्षक के अन्तर्गत +* 1783 की शुरुआत में एडमण्ड ब्रुक ने भविष्यवाणी की थी कि भारत के संसाधनों को इंग्लैण्ड भेजने से तथा उसके बराबर संसधन भारत में वापस न आने देने की नीति वास्तव में भारत को नष्ट कर देगी। प्लासी से वाटरलू के सत्तावन वर्षों में भारत से इंग्लैण्ड को भेजी गई सम्पत्ति का हिसाब बु्रक एडमस् ने ढाई से पांच बिलियन डॉलर लगाया था। इससे काफी पहले मैकाले ने सुझाया था कि भारत से चुरा कर इंग्लैण्ड भेजी गई सम्पत्ति मशीनी आविष्कारों के विकास हेतु मुख्य पूंजी के रुप में उपयोग हुई और इसी के चलते औद्योगिक क्रांति सम्भव हो सकी। +अब हम समझ सकते हैं कि भारत में अकाल क्यों हैं? सीधे शब्दों में कहें तो इसका कारण पर्याप्त खाद्य पदार्थों का न होना नहीं है, बल्कि इसका कारण यह है कि लोग खाद्य पदार्थ खरीद पाने असमर्थ हैं। ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत आने के बाद भारत में अकाल अधिक बार आने लगे हैं और उनकी गंभीरता भी बढ़ी है। 1770 से 1900 तक दो लाख पचास हजार हिन्दू भुखमरी के शिकर हुए। इनमें से एक लाख पचास हजार लोग तो केवल 1877, 1889, 1897 और 1900 के अकालों में मारे गये। विल डुरन्ट, THE CASE FOR INDIA में + + +भारत ने ही हमें दस चिह्नों का उपयोग करके सभी संख्याओं को व्यक्त करने की सरल विधि दी; इन संख्याओं को एक निरपेक्ष मान के साथ ही एक स्थानीय मान भी दिया। यह एक अच्छा और महत्वपूर्ण विचार था जो अब इतना आसान लगता है कि हम शायद ही इसकी महानता की सराहना करते हैं। इसके कारण सभी गणनाएँ इतनी सरल हों गयीं और इसीलिये अंकगणित की हमारी यह पद्धति सबसे महत्वपूर्ण आविष्कारों में गिनी जाती है। हम इस पद्धति की खोज में आयी कठिनाई को समझते हैं क्योंकि आर्किमिडीज और अपोलोनियस जैसे प्रतिभाशाली लोग यह काम नहीं कर पाये जो प्राचीन काल के दो सबसे सम्मानित और सबसे महान व्यक��ति थे। लाप्लास लाप्लास Exposition du Système du Monde, Vol. 2 (1798) also quoted in Tobias Dantzig, Number: The Language of Science (1930). + + +प्रायिकता या सम्भाव्यता probability) किसी घटना के घटित होने की सम्भवना की माप है। किसी घटना की प्रायिकता का मान शून्य (0) और एक (1) के बीच की किसी संख्या के द्वारा व्यक्त किया जाता है। किसी घटना की प्रायिकता शून्य होने का अर्थ है कि उस घटना के घटित होना असम्भव है, जबकि प्रायिकता 1 होने का अर्थ यह है कि उस घटना क घटित होना निश्चित है। +किसी सिक्के को उछाला जाय तो सिर (हेड) ऊपर आने की प्रायिकता 1/2 होगी। +* आइन्स्टीन की महानता इसमें है कि उन्होंने भौतिकशास्त्रियों को प्रायिकता की शब्दावली में सोचने की तरफ अग्रसर किया। W. H. McCrea; G. J. Whitrow द्वारा 'Einstein, the Man and His Achievement 1973) में उद्धृत +* प्रायिकता का सिद्धान्त, सामान्य बुद्धि के आधार पर तर्क करने की पद्धति को गणना के साथ जोड़ती है। यह भाग्य को तर्क के अधीन बनाकर उसे पालतू बना देती है। इवार्स पीटर्सन (1997 The Jungles of Randomness. John Wiley Sons. p. 19. ISBN 0-471-29587-6. + + +मार्कस ट्यूलियस सिसरो Marcus Tullius Cicero 3 जनवरी, 106 ईसापूर्व 7 दिसम्बर, 43 ईसपूर्व एक राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, वकील तथा लेखक थे। वे रोम के महानतम लेखकों में से एक थे। उनके 900 से अधिक पत्र सुरक्षित हैं जो स्वयं सिसरो द्वारा लिखे गए हैं। सिसरो की सर्वप्रथम और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण देन उसका प्राकृतिक कानून का सिद्धान्त है। उसकी प्राकृतिक कानून की धारणा स्टोइक विचारधारा पर निश्चित रूप से एक महत्त्वपूर्ण सुधार है। +सिसरो के राजदर्शन की कई आधारों पर आलोचना की जाती है। आलोचकों के अनुसार सिसरो में मौलिकता का अभाव था। जहाँ उसने मिश्रित संविधानों के ऐतिहासिक चक्र का सिद्धान्त पोलीबियस से ग्रहण किया था वहाँ स्टोइकों से प्राकृतिक कानून का विचार अपना लिया। +आलोचकों का यह भी कहना है कि उसके विचार इतने स्पष्ट नहीं जितनी प्रभावशाली उसकी भाषा है। वह राज्य की सत्ता ‘जनता’ के हाथों में रखना चाहता है, लेकिन जनता से उसका अर्थ क्या है, यह स्पष्ट नहीं है। उसके कानून सम्बन्धी विचारों से ऐसा लगता है कि वह राजनीतिक चिन्तक के बजाय आध्यात्मिक चिन्तक अधिक है। +सिसरो के विचारों में भौतिकता न होते हुए भी उसका राजनीतिक चिन्तन के क्षेत्र में असाधारण महत्त्व है। यह निर्विवाद है कि यदि सिसरो नहीं होता तो प्राचीन काल के चिन्तन के कुछ अमूल्य विचारकण विस्मृत हो जाते��� +* अन्यायपूर्ण शांति, युद्ध से बेहतर है। +जो व्यक्ति साहसी है वह विश्वास से भरा होता है। +* महान चीजें शारारिक बल से नहीं बल्कि प्रतिबिंब, चरित्र और निर्णय के बल से होती हैं। +वो चीज़े जो प्रकृति द्वारा कलात्मक तरीके से पूरी की जाती हैं बेहतर होती हैं। +जिस प्रकार शरीर के लिए भोजन की जरूरत है उसी प्रकार मन के लिए साधना की। +कोई भी आपको समझदार सलाह नहीं दे सकता है जैसी आप अपने आप को। +यह केवल कर्म है जो सद्गुण को सही मूल्य और प्रशंसा देता है। +जो व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों में भी नहीं बदलता वही यह एक बहादुर और दृढ़ आदमी का चरित्र है। +मजाक में भी दोस्त को आहत न करें। +उतावलापन युवावस्था का है और वृद्धावस्था में विवेक। +मौन रहना वार्तालाव की श्रेष्ठ कलाओं में से एक है। +प्रेम सौंदर्य से प्रेरित दोस्ती बनाने का प्रयास है। +पुस्तकों के बिना एक घर आत्मा के बिना एक शरीर है। +एक अव्यवस्थित शरीर और उलझन भरे मन में स्वास्थ्य की ध्वनि असंभव है। +समय मनुष्य के अनुमानों को खंडित करता है, लेकिन प्रकृति को प्रमाणित कर देता है। +यदि आपको स्वयं पर विश्वास नहीं है, तो आप जीवन की दौड़ में दो बार पराजित हुए हैं। आत्मविश्वास के साथ, आपने शुरुआत करने से पहले ही जीत हासिल कर ली है। +स्वतंत्रता का मूल्य निष्ठुर मूल्य है। +न्याय एक निर्धारित और स्थिर उद्देश्य के लिए है जो हर आदमी को उसका हक दिलाता है। +कानून की प्रस्तावनायें ईमानदारी से जीने की लिए हैं न की किसी को घायल करने के लिए और न ही बाकि सबको इसका हक़ देने के लिए। +भगवान के आगे हम कुछ नहीं हैं और भगवान के लिए हम सब कुछ हैं। +एक गणतंत्र में इस नियम का पालन किया जाना चाहिए: कि बहुमत में प्रबल शक्ति नहीं होनी चाहिए। +प्रकृति द्वारा हमें दिया गया जीवन छोटा है; लेकिन अच्छी तरह से बिताए जीवन की स्मृति शाश्वत है। +मृत्यु के बाद केवल कार्य को जीवित रखा जाता है। पूरी जिंदगी आपके द्वारा दिया गया प्यार लोगों को उनके समय से परे जीवित रखता है। वह हमेशा दूसरे के दिल में रहेगा। +यदि आपके पास एक बगीचा और एक पुस्तकालय है, तो आपके पास वह सब कुछ है जो आपको चाहिए। +कानूनों को जानना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उनकी पूरी ताकत और अर्थ को समझना जरूरी है। +भले ही एक अपराधी को छोड़ दिया जाए पर एक निर्दोश को सजा नहीं होनी चाहिए। +आप जितनी अपनी वैल्यू करते हैं ���ूसरों के लिए भी आप उतनी वैल्यू रखते हैं। +आने वाला लंबा समय जब मेरे पास मौजूद नहीं होगा तो इस छोटे से वर्तमान समय की तुलना में मुझ पर अधिक प्रभाव पड़ेगा, जो फिर भी अंतहीन लगता है। +सच्चा वैभव जड़ की तरह होता है जो फैलता भी है। सभी झूठे बहाने, फूल की तरह, जमीन पर गिर जाते हैं और नकली दिखावा लंबे समय तक टिक सकता है। +जनसंख्या से अधिक अविश्वसनीय कुछ भी नहीं है, मानव इरादों से अधिक अस्पष्ट कुछ भी नहीं है, पूरे चुनावी तंत्र से अधिक भ्रामक कुछ भी नहीं है। +एक महान आदत में वो शक्ति है जो हमें थकान को सहन करने और घाव और दर्द को दूर करने के लिए सिखाता है। +सिसरो के बारे में अन्य लोगों के विचार +* उसका दर्शन स्टोइक दार्शनिकों के विचारों का संकलन मात्र है, पोलीबियस के सिद्धान्तों की उसने पुनरावृत्ति की है। सेबाइन +* मध्ययुग के राजनीतिक चिन्तन पर तो उसके विचारों का प्रभाव सर्वाधिक रूप में पड़ा है। उसके सार्वभौम कानून तथा विश्व एकता की धारणाओं में समूचे मध्य युग के राजनीतिक चिन्तन के केन्द्रीभूत तत्त्व होने का यश प्राप्त किया है। गैटिल]] +* वह पहला रोमन था जिसने दर्शन को विद्वानों के हाथ से लेकर उसे विदेशी भाषा के बोझ से मुक्त किया है। उसने दर्शन को विवेक की भाँति जनसाधारण की मिली-जुली सम्पत्ति बना दिया। मॉन्टेस्क्यू +* सिसरो का महत्त्व अपने विचारों की मौलिकता में नहीं वरन् अभिव्यंजना की शैली में है। उसकी शैली ओजपूर्ण है और उसमें धाराप्रवाह है। सेबाइन + + +फ्रेडरिक शिलर Friedrich Von Schiller; 10 नवम्बर, 1759 9 मई, 1805 जर्मनी के एक महान नाटककार, कवि चिकित्सक, दार्शनिक और इतिहासकार थे। वे 18वीं शताब्दी के प्रमुख बीमर क्लासिजिम आन्दोलन से जुडे थे। +* दुष्कर्म एक धीमी आत्महत्या है। +* मूर्खता के साथ देवता स्वयं व्यर्थ संघर्ष करते हैं। +* जो कुछ भी करने की हिम्मत नहीं रखता है, उसे किसी भी प्रकार की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। +* महान आत्माएं मौन से पीडि़त होती हैं। +* सभी को बचाने के लिए हम सभी को जोखिम उठाना चाहिए। +* हर सच्चा जीनियस सीधा-साधा होने के लिए बाध्य है। +* मजबूत आदमी अकेला होने पर सबसे मजबूत होता है। +* जब शराब अंदर जाती है, तो अजीब चीजें सामने आती हैं। +* ज्ञानी के लिए सत्य मौजूद है, ह्रदय के लिए सौंदर्य है। +* अनुग्रह स्वतंत्रता के प्रभाव में रूप की सुंदरता है। +* सभी शक्तिशाली आत्माओं ने एक दूस���े के साथ दया की है। +* गलती करने की हिम्मत और सपने देखने की हिम्मत, हमेशा रखो। +* मानव, जाति को अपनी मर्जी से महान या निम्न बनाता है। +* जो ज्यादा दर्शाता है वह बहुत कम पूरा करता है। +* विश्व इतिहास विश्व का न्यायालय है। +* मनुष्य केवल पूरी तरह से संघर्ष से ही मानव होता है। +* भविष्य धीरे-धीरे आता है, वर्तमान उड़ जाता है और अतीत हमेशा के लिए खड़ा हो जाता है। +* बहुमत की आवाज न्याय का प्रमाण नहीं है। +* मतों को तौला जाना चाहिए, न कि गिना जाना चाहिए। + + +* मौन वह नींद है जिससे ज्ञान का पोषण होता है। +* सही बुद्धिमानी इसमें है कि आप अपने बारे में यह जानें कि आपको कुछ भी पता नहीं है। सुकरात]] +* अनुशासन लक्ष्य और उपलब्धि के बीच का पुल है। जिम रोन +* हम अपने प्यार पर नियंत्रण नहीं कर सकते, लेकिन हम अपने कार्य पर नियंत्रण कर सकते हैं। ऑर्थर कानन डॉयल +* बुद्धिमत्ता खुशी का सर्वोच्च अंग है। सोफोक्लेस +* ज्ञान बोलता है, लेकिन बुद्धिमत्ता सुनती है। जिमी हेंड्रिक्स + + +उत्पादकता Productivity दक्षता और उत्पादन की औसत माप है। +* गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार के लिये उत्पादन और सेवा की प्रणाली का लगातार और सदा के लिये सुधार कीजिए, और इसके द्वारा लगातार लागत को कम कीजिये। W. Edwards Deming (1982) Out Of The Crisis. The MIT Press. p. 23 +* बहु-इकाई व्यवसाय ने परम्परागत छोटे उद्यम का स्थान लिया। अब बाजार की मेकेनिज्म के बजाय प्रशासनिक समन्वय के द्वारा अधिक उत्पादकता, कम लागत और अधिक लाभ मिलने लगा। Alfred D. Chandler, Jr 1977 The Visible Hand, Cambridge, Mass: p. 6. + + +फ्रेडरिक नीत्शे Friedrich Wilhelm Nietzsche जर्मनी के महान दार्शनिक थे। उन्हें पश्चिम के महान दार्शनिको में गिना जाता है। उनकी पुस्तक “ज़रथुस्त्र की वाणी” दुनिया की श्रेष्ठतम रचनाओं में गिनी जाती है। +* कोई तथ्य नहीं हैं, केवल व्याख्याएं हैं। +* मनुष्य सबसे क्रूर जानवर है। +* अदृश्य धागे सबसे मजबूत बंधन होते हैं। +* ये प्यार की कमी नहीं, बल्कि दोस्ती की कमी है जो शादियों को दुखदायी बनाती है। +* और जो लोग डांस करते देखे गए उन्हें जो म्यूजिक नहीं सुन सकते थे उनके द्वारा पागल समझा गया। +* प्यार में हमेशा कुछ पागलपन होता है। लेकिन पागलपन में हमेशा कोई कारण होता है। +* जो कोई भी राक्षसों से लड़ता है उसे ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रक्रिया में कहीं वो खुद ही राक्षस ना बन जाए । और अगर आप लम्बे समय तक खायी को घूरते हैं तो खायी भी ��पको घूरने लगेगी। +* आपका अपना रास्ता है। मेरा अपना रास्ता है। जहाँ तक सही रास्ते, उचित रास्ते, और एक ही रास्ते की बात है, वो एग्जिस्ट नहीं करता। +* ज्ञानी व्यक्ति को सिर्फ अपने दुश्मनों से प्रेम ही नहीं बल्कि अपने दोस्तों से नफरत भी करने में सक्षम होना चाहिए। +* वो जिसके पास जीने का कारण है कुछ भी सहन कर सकता है। +* कोई भी आपके लिए उस पुल का निर्माण नही कर सकता है जिसपे चढ़ कर आप जीवन की धारा को पार कर सकें, कोई नहीं बस आप अकेले ऐसा कर सकते हैं। +* बुरी यादाश्त का ये फायदा है कि कोई एक ही अच्छी चीज का बार-बार पहली बार आनंद उठाता है। +* किसी युवक को भ्रष्ट करने का पक्का तरीका है कि उसे ये निर्देश दो कि वो उससे अलग सोचने की बजाये उनका खूब सम्मान करे जो उसकी तरह सोचते हों। +* हर एक गहन विचारक गलत समझे जाने कि तुलना में सही समझ लिए जाने से अधिक डरता है। +* विचार हमारी भावनाओं के साये हैं – हमेशा गहरे, खाली और सरल। +* सच्चा आदमी दो चीजें चाहता है: खतरा और खेल। इसी कारण से वो महिलाओं को सबसे खतरनाक खेलने की चीज के रूप में चाहता है। +* दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं, वो जो जानना चाहते हैं, और वो जो यकीन करना चाहते हैं। +* सभी चीजें व्याख्या के अधीन हैं। किसी समय कौन सी व्याख्या मान्य होती है ये शक्ति पर आधारित होता है सत्य पर नहीं। +* जो प्रेमवश किया जाता है वो हमेशा अच्छे-बुरे से परे होता है। +* मुझे केवल कागज़ का एक टुकड़ा और लिखने के लिए कुछ चाहिए, और तब मैं दुनिया को उलट सकता हूँ। +* मौन बदतर है; सभी सत्य जिन्हें मौन रखा जाता है जहरीले बन जाते हैं। +* आपकी अंतरात्मा की आवाज़ क्या कहती है ‘ आपको वो व्यक्ति बन जाना चाहिए जो आप हैं’। +* एक धार्मिक व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद मुझे हमेशा लगता है कि मुझे अपने हाथ ज़रूर धो लेने चाहिए। +* किसी कारण को नुक्सान पहुंचाने का सबसे अधर्मी तरीका है उसका जानबूझ कर गलत तर्कों से बचाव करना। +* वास्तविकता में आशा सभी बुराइयों में सबसे बुरी है क्योंकि ये इंसान की पीड़ा को लम्बा खींचती है। +* कोई अपने गुरु का कर्ज ठीक से नहीं चुकाता है यदि वो हमेशा कुछ और नहीं बस एक शिष्य ही बना रह जाता है। +* अपने बारे में अधिक बात करना भी अपने आप को छुपाने का एक साधन हो सकता है। +* दुनिया में मनुष्य को उसकी नाराजगी के जूनून से अधिक और कुछ भी नष्ट नहीं करता है। +* धारणा असत्य की तुलना म���ं सत्य की अधिक खतरनाक दुश्मन है। +* मुक्ति की मुहर क्या है? स्वयं के सामने शर्मिंदा ना होना। +* जब लेखक का काम बोलने लगे तो उन्हें अपना मुंह बंद रखना चाहिए। +* बिना अपवित्र हुए दूषित धारा को धारण करने के लिए आपको एक समुद्र होना चाहिए। +* महिलाएं भगवान् की दूसरी गलती थीं। + + +दार्शनिक मिशेल Michel Foucault 15 अक्टूबर, 1926 25 जून 1984 फ्रांस के एक प्रसिद्ध दार्शनिक, इतिहासकार, साहित्यिक आलोचक और सामाजिक सिद्धान्तकार थे। उनके लेखन विचार और सिद्धान्त मुख्य रूप से ज्ञान और शक्ति के बीच संबंधों को उजागर करते हैं। वे इस बात पर भी प्रकाश डालते हैं कि सामाजिक संस्थाएं किस प्रकार सामाजिक नियंत्रण के रूप में शक्ति और ज्ञान का उपयोग करती है। उनकी कृतियों, लेखन और विचारों ने शिक्षाविदों को बहुत प्रभावित किया है। +* जेल, अपराध की सेना के लिए एक भर्ती केन्द्र है। +* ज्ञान वास्तव में मानव प्राकृति का हिस्सा नहीं है। संघर्ष मुकाबला जोखिम और मौका ज्ञान को जन्म देता है। +* विवेक की स्वतंत्रता का अधिकार निरकुशता की तुलना में खतरों को अधिक मजबूत करती है। +* सामाजिक खानाबदोश जो एक विनम्र भयभीत आदेश के साथ सीमाओं पर पहुंचता है। +* न्याय को हमेशा अपने आप पर सवाल उठाना चाहिए, जिस तरह समाज केवल अपने और अपने संस्थानों पर काम करता है। +* कार्य में दंडित करने की शक्ति शिक्षित करने का एक तरीका है। +* व्यक्ति शक्ति का ही एक उत्पाद है। +* ज्ञान समझने के लिए नहीं बना है यह काटने के लिए बनाया गया है। +* पागलपन कला के काम के साथ पूर्ण विराम है जो समय के साथ कला के काम की सच्चाई में घुल जाता है। +* आत्मा शरीर की जेल है। +* राजनीतिक क्षेत्र के सबसे अंधेरे क्षेत्र में निदा करने वाला व्यक्ति राजा के सममित उल्टे आंकडे पेश करता है। +* जैसा कि पुरातत्व आसानी से दिखाता है, मनुष्य हाल की तारीख का अविष्कार है। और शायद अपने अंत के नजदीक है। +* उत्पीड़न और वर्चस्व के रूप जल्द ही अदृश्य हो जाते है। यह सच्चाई है। +* समाज में, कला एक ऐसी चीज बन गई है जो केवल वस्तुओं से संबंधित है न कि व्यक्तियों के लिए, या जीवन के लिए। +* दण्डत्मक कानून पूरी तरह से पूंजीपतियों द्वारा एक विभाजन की प्रणाली और महत्वपूर्ण सामरिक हथियार है। +* रणनीतिक प्रतिकूलता फासीवाद है। हम सभी में हमारे सिर पर और हमारे रोजमर्रा के व्यवहार में हमारे ऊपर हावी है और हमार��� शोषण करती है। + + +गास्टन बेचेलार्ड Gaston Bachelard 1884 1962 फ्रांस के एक एपिस्टमोलॉजिस्ट और विज्ञान के दार्शनिक थे। उनकी कृतियों ने बाद के फ़्रांसिसी बुद्धिजीवियों के विचारों को काफी प्रभावित किया। +वैज्ञानिक प्रगति की विशेषता हमारा ज्ञान है। +व्यक्ति को हमेशा अतीत से अपना संबंध बनाए रखना चाहिए। +* जीवन को अच्छी तरह से जीने के लिए जीवन को खराब तरीके से व्यक्त करना पड़ता है। +दुनिया के शब्द वाक्य बनाना चाहते हैं। +मनुष्य इच्छा का सृजन है, आवश्यकता का सृजन नहीं। +भाषा में एक विशेष प्रकार की सुंदरता होती है जो भाषा में, भाषा के लिए और भाषा से पैदा होती है। +आपका एक शब्द एक कली है जो टहनी बनने का प्रयास करती है। +वह कलम है जो सपने पूरा करने का अधिकार देती है, खाली पेज केवल सपने देखने का अधिकार देता है। +अंतिमता की तुलना में अपूर्णता की स्थिति मेंं रहना बेहतर है। +सबसे खूबसूरती से जिंदा महसूस करने का मतलब है कुछ खूबसूरत पढ़ना। +साहित्यिक कल्पना एक सौन्दर्यवादी वस्तु है जो लेखक के द्वारा पुस्तकों के प्रेमी को दी जाती है। +कविता का महान कार्य हमारे सपनों की स्थितियों को हमें वापस देना है। + + +नाओमी क्लेन Naomi Klein कनाडा की एक ख्याति प्राप्त लेखिका हैं। साथ ही वह सामाजिक कार्यकर्ता और फिल्म निर्माता भी हैं। उनका जन्म 8 मई 1970 को कनाडा के क्युबेक के मॉन्ट्रियल में हुआ था। उन्हें राजनीतिक विश्लेषणों, कॉर्पोरेट वैश्वीकरण और पूंजीवाद की मुखर आलोचिका के रुप में जाना जाता है। +सबसे अधिक लाभ पाने वाले लोग या दल युद्ध के मैदान में कभी नहीं दिखते। +चरम हिंसा में हमारे जनता हित को रोकने का एक तरीका है। +डोनाल्ड ट्रंप के साथ समस्या यह है कि उन्होंने एक ब्रांड बनाया और जो पूरी तरह से नीतिहीन है। +लोकतंत्र सिर्फ वोट देने का अधिकार नहीं है, यह सम्मान से जीने का अधिकार है। +मैं अभिनय करना चाहती हूँ, अगर मैं कर सकती हूं, तो उन लोगों के लिए एक पुल के रूप में काम करना चाहती हूँ जो सदमे के कारण या जिनका कोई उद्देश्य नही है लोग बाहर बैठे हैं। +चौकाने वाला नीले रंग की बोल्ट की तरह है। यह कुछ बाहरी है जो आपकी दुनिया को तोड़ देता है। +अफ्रीका गरीब है क्योंंकि यह के निवेशक और लेनदार हद से अधिक अमीर है। +मैं अस्सी के दशक की अपने परिवार की विद्रोही बच्चा थी। जिसका एक मात्र उद्देश्य मॉल जाना होता था। +मुझे उम्मीद है कि ग्रीन आंदोलन सकारात्मक साबित होगा क्योंंकि अधिकतर लोग ग्रीन आंदोलन का हिस्सा बनते जा रहें हैं। +बिना याददाशत के लोग पुतले जैसे होते हैं। +मैंने कभी भी एक आंदोलन को फॉसिल फ्यूल डिविजन आंदोलन के रुप में इतनी तेजी नहीं देखी है। +बहुत से लोगों ने सदमे के सिद्धांत को फिर से लिखने और उसमें ट्रम्प के बारे में एक अध्याय जोड़ने के लिए कहा है। +नौसिखये और खेल के मास्टर के साथ जुआ कभी नहीं खेलना चाहिए। +नाइके खेल का सार था, खेल के माध्यम से पारगमन। +राजनीति, स्वच्छता से घृणा करती है। अगर यह आशा से भरा नहीं है, तो कोई इसे भय से भर देगा। +ग्राहक हमेशा सही होता हैंं ग्राहक आपका पैसा है। आपको ग्राहक की बात माननी होगी। +क्या हुआ अगर यह सब एक धोखा है और हमने कुछ नहीं के लिए एक बेहतर दुनिया बनाई है। + + +रोजर पेनरोज Sir Roger Penrose; जन्म 8 अगस्त 1971) ब्रिटेन के एक गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी, विज्ञान के दार्शनिक हैं। वे भौतिकी में नोबेल पुरस्कार तथा १९८८ में वुल्फ पुरस्कार सहित कई बड़े पुरस्कार से सम्मानित हैं। +* चेतना वह परिघटना है जिससे ब्रह्मांड का अस्तित्व ज्ञात होता है। +* मैं कंहूगा कि ब्रह्मांड का एक उद्देश्य है। यह सिर्फ मात्र संयोग से मौजूद नहीं है। +* वास्तविकता में क्वांटम यांत्रिकी का कोई मतलब नहीं है। +* वास्तविकता में क्वांटम यांत्रिकी का कोई मतलब नहीं है। +* क्वांटम उलझाव का बहुत ही दिलचस्प मुद्दा है, लेकिन असंभव नहीं है। +* महत्वाकांक्षा, मूर्खतापूर्ण कार्य, बदला और दुर्भावना मस्तिष्क को निगल जाती है। +* कभी-कभी मार्ग परिवर्तन के बेहतरीन विचार जीवन बदल देते है। +* मूल सिद्धांत, ट्विस्ट या थ्योरी में अत्तिरिक्त आयाम जोड़ना नहीं है। +* नैतिकता के लिए, चेतना के सवालों का जुड़ा होना महत्वपूर्ण है। +* मेरा बड़ा भाई एक प्रतिष्ठित सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी, शाही समाज का एक साथी है। +* विज्ञान और आनन्द को अलग नहीं किया जा सकता है। +* एक कम्प्यूटेशनल डिवाइस भी हमारे दिमाग को विकसित करने में असमर्थ है। सिर्फ होशियार होने पर ही चेतना का विकास होता है। +* यह पूरी तरह से संभव है कि मस्तिष्क में कुछ चल रहा है लेकिन उस समय हमारे पास कोई संकेत न हो। +* मैंने वास्तव में मैट्रिक्स नहीं देखी है लेकिन इसके जैसी कुछ और फिल्में देखी है, मैट्रिक्स जैसे विषयों पर। +* मुझे लगता ह��� कि वह सुन्दरता और नैतिकता के अन्य आदर्शवादी निरपेक्षता के बारे में आश्चर्य करने के लिए एक गम्भीर मुद्दा है। +* समझ के बिना बुद्धि का कोई अस्तित्व नहीं है। किसी भी कंप्यूटर को यह पता नहीं होता कि वह क्या करता है। + + +ट्रूमैन कैपोट Truman Streckfus Persons) अमेरिका के एक महान उपन्यासकार, नाटककार, अभिनेता और पटकथा लेखक हैं, जिन्होंने लघु कथाओं, गैर-उपन्यास और नाटकों सहित समृद्ध साहित्य लिखा है। महायुद्ध के बाद के युग के इस सबसे प्रसिद्ध लेखक का बचपन कठिन परिस्थितियोंं में बीता था। एक अकेला बच्चा होने के कारण, उन्हें अपने माता-पिता के तलाक और बार बार स्थानान्तरण का दुष्परिणाम भुगतना पड़ा। +* असफलता वह मसाला है जो सफलता को उसका स्वाद देता है। +* मैं पेंसिल पर जितना विश्वास करता हूँ, उससे ज्यादा कैंची पर विश्वास करता हूँ। +* आप एक लेखक को दोष नहीं दे सकते कि चरित्र क्या कहता है। +* हर किसी को किसी न किसी से श्रेष्ठ महसूस करना पड़ता है, यह आपके लिए विशेषाधिकारी लेने से पहले थोड़ा सा प्रमाण प्रस्तुत करने की प्रथा है। +* प्रेम, प्रेम की एक श्रंखला है क्योंंकि प्रकृति जीवन की एक श्रंखला है। +* जब भगवान आपको एक उपहार देता है, तो वह आपको एक कोड़ा भी सौपता हैं, और कोड़ा पूरी तरह से आत्म ध्वज के लिए अभिप्रेत है। +* एक किताब को बर्बाद करना ठीक उसी तरह है जैसे आपने एक बच्चे को पिछले यार्ड में बाहर निकाला और उसे गोली मार दी। +* जीवन में मेरा सबसे बड़ा अफसोस यह है कि मेरा बचपन अनावश्यक रुप से अकेला था। +* प्रसिद्धि केवल एक चीज के लिए अच्छी है वे आपके चेक को एक छोटे शहर में भुनाएंगे। + + +टोनी मॉरिसन Toni Morrison नोबेल पुरस्कार और पुलित्जर पुरस्कार विजेता उपन्यासकार हैं जो भाषा और अविस्मरणीय अफ्रीकी, अमेरिकी यात्राओं के अपने समृद्ध उपयोग के लिए प्रसिद्ध हैं। अपने पहले उपन्यास 'द ब्लूएस्ट आई The Bluest Eye) से उन्होंने सुला सोलोमन के गीत और समीक्षको द्वारा प्रशंसित Beloved जैसे कामों को जारी रखा। वह प्रिन्सटन विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं और आकांक्षी लेखकों के लिए कार्यशालाएं आयोजित करती है। +* स्वतंत्रता का असली मकसद किसी और को मुक्त करना है। +* इस देश में अमेरिकन का मतलब सफेद है। +* यदि कोई पुस्तक है जिसे आप पढ़ना चाहते हैं, लेकिन उसे अभी तक लिखा नहीं गया है, तो आपको इसे लिखने के लिए एक होना होगा। +* हम मरेग���ं यह जीवन का अर्थ हो सकता है।लेकिन हमारी भाषा हमारे जीवन का मापक हो सकती है। +* यदि आप उड़ना चाहते हैं तो आपको अनचाही चीजों का त्याग करना होगा जो आपका वजन कम करते है। +* यदि आप खुद को हवा में समर्पित करते हैं, तो आप इसकी सवारी कर सकते है। +* जैसे ही आप विश्वास और शक्ति के पदों में प्रवेश करते हैं, इससे पहले आप एक बड़ा सपना देखते हैं। +* अपने आप को मुक्त करना एक बात है, लेकिन उस मुक्ति पर अपने स्वामित्व का दावा करना अहम बात है। +* परिभाषाएं परिभाषाओं से संबंधित हैं, परिभाषित नहीं। +* बिना रुप और कलाकार के, कला खतरनाक हो जाती है। +* आप, अपनी सबसे अच्छी चीज है। +* यदि आपको किसी भी चीज से डर लगता है तो फिर इसका कोई मतलब नहीं है कि वह असली है या नकली। +* जीवन में किसी समय दुनिया की सुंदरता इतनी अधिक हो जाती है, आपको फोटो,पेंट या यहां तक कि इसे याद रखने की आवश्यकता नहीं होती। यह पर्याप्त है। +* आधे वाक्यों, दिवास्प्नोंं और गलत कहनियों से भरी मीठी, दीवानगी भरी बातचीत कभी समझने से अधिक रोमांचकारी होती है। + + +रस्किन बांड Raskin Bond) अंग्रेजी कथाकार, कवि और उपन्यासकार हैं। वे हमेशा ही कम उम्र के अपने पाठकों को पुस्तकों को अपना सबसे अच्छा दोस्त बनाने और अधिक से अधिक पुस्तकें पढ़ने की सलाह देते हैं। उन्होंने बाल साहित्य में योगदान दिया है। उन्हें 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1999 में बाल साहित्य में योगदान के लिए वे पद्मश्री से सम्मानित किये गये। +* हंसना और दयालुता ही केवल दो बातें हैं जो मनुष्य को जानवर से अलग करते हैं। +* प्राकृति के करीब रहें और आपकी आत्मा आसानी से टूटेगी नहीं क्योंंकि इससे आप धैर्य और लचीलापन के बारे में सीखते हैं। आप बैचेन नहीं होंगे, और आप कभी अकेला अनुभव नहीं करेंगे। +* भूत हमारे चारों ओर हैं उनकी तरह देखो, और आप उन्हें पाएंगे। +* जब भी मैं लोगों के बारे में लिखने के लिए बाहर निकलता हूं, मैं कुछ भूतों का खाना बनता हूं, या वे मेरे सामने आते है। +* भूत की कहानी मेरी एक लोक प्रिय शैली है और खासतौर से दृश्य मीडिया के अनुकूल है। +* मैं अचार बनाने वाला हूं। मुझे सभी प्रकार के अचार पसंद हैं। लहसुन का अचार, नींबू का अचार, आम का अचार, कटहल का अचार, आप जिसका भी नाम ले। +* एकान्त, चिन्तन करने में आपकी मदद करता है। +* मुझे अपने आसपास की बहुत सी चीजों से प्रेरणा मिल��ी है प्रकृति, पहाड़ियाँ, लोग और यहां तक कि कीड़े। +* नहीं, मैं एक ब्रांड नहीं बनना चाहता। ब्रांड का मतलब है कि मैं पर्यटकों और प्रशंसको के बिना लगातार शांत यात्रा के बाहर नहीं जा सकता। +* मैं बिना खिड़की वाले कमरे में नहीं रह सकता। +* मैं एक अच्छा लेखक नहीं बन सका, लेकिन मैं लेखन से एक जीवित बनने में कामयाब रहा। + + +युवा वह है जो बचपन और बुढ़ापे की अवस्थाओं के बीच में हो। इस अवस्था को युवावस्था या जवानी कहते हैं। +* जवान होने में बहुत समय लगता है। पाबलो पिकासो]] +* खुशाल बचपन जीने के लिए कभी बहुत देर नहीं हुई होती है। Tom Robbins +* सच कहना बहुत कठिन होता है, और युवा बहुत कम ही इसकी क्षमता रखते हैं। लेव टोलस्टॉय]] +* युवा रहने का राज है कि कभी अनुपयुक्त भावना मत रखो। ऑस्कर वाइल्ड]] +* आप केवल एक बार युवा होते हैं, पर आप अनिश्चित काल के लिए अपरिपक्व रह सकते हैं। Ogden Nash +* मैं उस एकांत में रहता हूँ जो युवावस्था में तकलीफदेह है, लेकिन परिपक्वता के दिनों में स्वादिष्ट। अल्बर्ट आइन्स्टीन]] +* शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पता है। शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है। चाणक्य]] +* किसी युवा को भ्रष्ट करने का पक्का तरीका है की उसे ये सिखाओ की वो अपने से अलग सोचने वालों की तुलना में खुद उसके जैसी सोच रखने वालों का अधिक सम्मान करे। फ्रेडरिक नीत्शे]] +* युवावस्था में डाली गयी अच्छी आदतें सारा अंतर ला देती हैं। अरस्तू]] +* जार्ज वाशिंगटन एक लड़के के रूप में युवाओं की आम उपलब्धियों से अनभिज्ञ थे। वो झूठ भी नहीं बोल सकते थे। मार्क ट्वेन]] +* युवा आसानी से धोखा खा जाता हैं क्योंकि वह उम्मीद करने में बहुत तेज होता हैं। अरस्तू]] +* युवाओं का कर्तव्य है भ्रष्टाचार को ललकारना। Kurt Cobain +* वरिष्ठ व्यक्ति जंग का ऐलान करते हैं। लेकिन वो तो नौजवान हैं जिन्हें लड़ना और मरना होता है। Herbert Hoover +* यौवन युवाओं पर बर्वाद हो जाता है। ऑस्कर वाइल्ड]] +* लज्जा युवाओं के लिए एक आभूषण, लेकिन बुढ़ापे के लिए एक तिरस्कार है। अरस्तू]] +* युवावस्था एक अधूत चीज है। इसे बच्चों पर बर्वाद करना कितना बड़ा अपराध है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ]] +* मैं भविष्य जानने के लिए युवाओं को पढ़ाने जाता हूँ। रॉबर्ट फ्रॉस्ट]] +* अक्सर परिपक्क्वता जवानी से अधिक बेतुकी होती है और बहुत बार युवाओं के साथ सबसे अधिक अन्यायपूर्ण भी। थॉमस अल्वा एडिसन]] +* एक आरामदायक बुढापा अच्छी तरह से बितायी गयी जवानी का इनाम होता है। Maurice Chevalier +* एक लेखक को अपनी पीढ़ी के युवाओं के लिए, अगली पीढ़ी के आलोचकों के लिए, और उससे भी बाद की पीढ़ी के अध्यापकों के लिए लिखना चाहिए। एफ स्कॉट फिट्जेराल्ड +* जवानी वह है जब आपको नव वर्ष के मौके पर आधी रात तक जागने दिया जाता है। अधेढ़ावस्था वह है जब आपको इसके लिए मजबूर किया जाता है। Bill Vaughn +* युवाओं को नौकरी खोजने वाला की जगह नौकरी पैदा करने वाला बनाने की आवश्यकता है। Abdul Kalam +* बढती उम्र के साथ जवानी का नशा हमेशा हल्का नहीं पड़ता कभी-कभी ये और गाढ़ा हो जाता है। कार्ल जुंग]] +* यौवन प्रकृति का उपहार है, लेकिन उम्र कला की एक कृति है। Stanislaw Lec +* बूढ़ा होना जवानी का खोना नहीं बल्कि नए अवसर और ताकत का मंच है। Betty Friedan +* युवावस्था अमीर होने के लिए सबसे अच्छा समय है, और गरीब होने के लिए भी। Euripides +* युवा समृद्धि के संरक्षक हैं। बेंजामिन डिजरायली]] + + +लियो टॉलस्टॉय Count Lev Nikolayevich Tolstoy) रूस के साहित्यकार और चिन्तक थे। उनकी सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक 'वार ऐण्ड पीस' है जिस पर उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। +धैर्य और समय दो सबसे महान योद्धा हैं। +* संगीत भावनाओं का शॉर्टहैण्ड है। +* सभी सुखी परिवार एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं, हर एक दुखी परिवार के दुखी होने का अपना अलग कारण होता है। +* महान चीजें हमेशा सरल और विनम्र होती हैं। +* सबसे महान सत्य सरल होते हैं। +* जब आप किसी को प्यार करते हैं, तो आप उन्हें ऐसे प्यार करते हैं जैसे वे हैं ना कि जैसा आप चाहते हैं कि वे हों। +* सच, सोने की तरह, अपनी उपज से नहीं प्राप्त होता है, बल्कि उससे हर वो चीज जो सोना नहीं है साफ़ करके प्राप्त होता है। +* प्रसन्नता की पहली शर्तों में से एक है कि मनुष्य और प्रकृति के बीच का सम्बन्ध नहीं टूटना चाहिए। +* हर आदमी और औरत का पेशा और लोगों की सेवा करना है। +* गलती को कभी गलती से ठीक नहीं किया जा सकता, और बुराई का अंत बुराई से नहीं हो सकता है। +* ख़ुशी बाहरी चीजों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि हम जैसे उन्हें देखते हैं इसपर निर्भर करती है। +* गलत, गलत होना बंद नहीं हो जाता क्योंकि ज्यादातर लोग उसे मानते हैं। +* कोई इस दुनिया में शानदार तरीके से रह सकता है यदि वो जानता है कि काम कैसे करना है और प्यार कैसे करना है। +* शुद्ध और पूर्ण दुःख उतना ही असंभव है जितना कि शुद्ध और पूर्ण आनन्द। +* आर्ट कोई हेंडीक्राफ्ट नहीं है, ये उस अनुभव का प्रसारण है जिसे कलाकार ने महसूस किया है। +* सत्ता पाने और रखने के लिए, एक इंसान को उसे चाहना होगा। +* एक इंसान खाने के लिए जानवरों को मारे बिना भी जी सकता है और स्वस्थ रह सकता है, इसलिए, अगर वो मीट खाता है तो वो बस अपने पेट के लिए जानवरों का जीवन लेता है। और ऐसा करना अनैतिक है। +* यदि कोई व्यक्ति एक धर्मी जीवन की महत्वाकांक्षा रखता है तो उसका पहला संयम जानवरों को चोट ना पहुंचाना होना चाहिए। +* किसी गणितज्ञ ने कहा है: ‘मजा सच खोजने में नहीं, बल्कि उसे खोजने का प्रयास करने में है। +* कला के महान कार्य केवल इसलिए महान हैं क्योंकि वे सभी की पहुँच में और समझ में आने वाले हैं। +* कला ज्ञान का उच्चतम साधन है। +* देशभक्ति की भावना एक अप्राकृतिक, तर्कहीन, और हानिकारक भावना है, और जिन बुराइयों से मानवता पीड़ित है उसके एक बड़े हिस्से का कारण है। +* जीवन सबकुछ है। जीवन ईश्वर है। हर चीज बदलती है और वो गति भगवान है। और जब तक जीवन है तब तक परमात्मा की चेतना में आनंद है। जीवन को प्रेम करना ईश्वर को प्रेम करना है। +* और सभी लोग जीते हैं, इस कारण से नहीं क्योंकि वे अपना ध्यान रखते हैं, बल्कि उस प्रेम के कारण जो और लोगों के भीतर उनके प्रति है। +* हर एक कमाई जो उसके लिए की गयी मेहनत के अनुरूप नहीं है; बेईमान है। +* अगर अपने कनसाइंस को कम करने का कोई बाहरी माध्यम नहीं होता तो आधे लोग फ़ौरन खुद को गोली मार लेते, क्योंकि अपने विवेक के विरुद्ध जीना सबसे असहनीय स्थिति है; और हमारे समय के सभी लोग ऐसी ही स्थिति में हैं। +* हमारा शरीर जीने की एक मशीन है। यह इसी के लिए संयोजित किया गया है, यही इसकी प्रकृति है। इसमें जीवन को बिना बाधित हुए जाने दीजिये और इसे अपनी रक्षा करने दीजिये। +* जब छोटे बदलाव होते हैं तब सच्चा जीवन जिया जाता है। +* हर एक हिंसा कुछ लोगों द्वारा औरों को पीड़ा या मृत्यु के भय से वो करने के लिए मजबूर करना है जो वो नहीं करना चाहते हैं। +* बसंत ऋतु, स्प्रिंग योजनाओं और परियोजनाओं का समय है। +* आदर का आविष्कार किया गया था उस खाली जगह को भरने के लिए जहाँ प्यार होना चाहिए था। +* समय के साथ बुराई उससे भी बदतर हो जाती है जिसे उसके द्वारा नियंत्रित करने की कल्पना की गयी थी। +* सबसे अच्छे, सबसे दोस्ताने और सबसे सरल संबंधों में खुशामदी या प्रशंसा ज़रूरी ह��, ठीक वैसे ही जैसे पहियों के घूमते रहने के लिए ग्रीस ज़रूरी है। + + +निवेश Investment) शब्द का उपयोग आर्थिक, वित्तीय और सैन्य सन्दर्भों में अलग-अलग ढंग से किया जाता है। अर्थ-जगत में निवेश का अर्थ बचाये हुए पैसे का उपभोग न करते हुए या उपभोग को आगे के लिये टालते हुए इस पैसे को समय, ऊर्जा, पदार्थ, या अर्थव्यवस्था के अन्यान्य क्षेत्रों में लगाना। सामान्य अर्थ में बात करें तो अपने आप में निवेश करने से अनेक तरीकों से अच्छा रिटर्न मिलता है। +* अपने आप में निवेश करना आपके लिए सबसे अच्छा निवेश है। यह न केवल आपके जीवन को बेहतर बनाएगा, बल्कि यह आपके आसपास के सभी लोगों के जीवन को भी बेहतर बनाएगा। Robin S. Sharma +* आप जो सबसे बड़ा निवेश करेंगे, वह है स्वयं में निवेश। Saji Ijiyemi +* स्वास्थ्य एक अमूल्य धन है। जब तक आप कर सकते हैं उस पर निवेश करें। Bryant McGill +* जीवन में सबसे बड़ा निवेश unconditional love का निवेश है, लाभ के रूप में, आपको जीवन का सबसे बड़ा उपहार मिलेगा: खुशी। Debasish Mridha +* आपको खुद को समझने और खोजने में समय निवेश करने की जरूरत है। Sunday Adelaja +* सफलता इस बात से निर्धारित होती है कि आप अपने समय का सर्वोत्तम उपयोग कैसे कर सकते हैं। Sunday Adelaja +* जितना अधिक आपका पैसा आपके लिए काम करेगा, उतना ही कम आपको पैसे के लिए काम करना पड़ेगा। इसलिए इसका सही निवेश करें। Idowu Koyenikan +* जब पैसे को पता चलता है कि यह अच्छे हाथों में है, तो वह उन हाथों में रहना पसंद करेगा और multiply होता जाएगा। Idowu Koyenikan +* पैसा हमेशा उत्सुक रहता है और हर उस व्यक्ति के लिए काम करने के लिए तैयार होता है जो इसे नियोजित करने के लिए तैयार है। Idowu Koyenikan +* सफल कंपनियाँ बड़ी मात्रा में धन और सैकड़ों लीटर पसीने के निवेश से बनती हैं। Amit Kalantri +* जो लोग सबसे अधिक सफल होते हैं वे वही होते हैं जो वे पसंद करते हैं। Warren Buffett +* हमेशा अपने जीवन को अपनी उद्देश्य में निवेश करें। Sunday Adelaja +* जीवन में अवसरों का आगमन सिर्फ इसलिए होता है ताकि हम इसका सही उपयोग और निवेश कर सके। Sunday Adelaja + + +यूनिक्स Unix) कम्प्यूटर का एक ऑपरेटिंग सिस्टम है जो विभिन्न रूपों में मिलता है। यह एक साथ अनेक कार्य करने वाला तथा एक साथ अनेक प्रयोक्तओं को सेवा देने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है। मूल यूनिक्स का विकास AT&T कम्पनी के बेल प्रयोगशाला में हुआ था। +* यूनिक्स का विकास मेरे लिये किया गया था। मैंने इसका विकास दूसरों के लिये किया ही नहीं था, मैं��े तो इसका विकस गेम खेलने के लिये और अपने निजी काम करने के लिये किया था। केन थॉम्पसन (18 फरवरी, 2019 The Thompson and Ritchie Story. National Inventors Hall of Fame NIHF. +यूनिक्स का दर्शन यह है ऐसे प्रोग्राम लिखो जो एक ही काम करें और उसे अच्छी तरह करें। एक दूसरे के साथ काम करने वाले प्रोग्राम लिखो। टेक्स्ट स्ट्रीम को हैंडिल करने वाले प्रोग्रम लिखो, क्योंकि वही इसा इन्टरफेस है जो हर जगह उपलब्ध है। Doug McIlroy (2003 The Art of Unix Programming: Basics of the Unix Philosophy + + +कन्हैयालाल मणिकलाल मुंशी ३० दिसंबर सन १८८७ ८ फरवरी, १९७१) आधुनिक भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, शिक्षाविद्, वकील एवं सहित्यकार थे। उन्होंने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की थी और सोमनाथ मंदिर के पुनर्निमाण में भी भूमिका निभाई थी। +कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का जन्म 30 दिसंबर सन 1887 को गुजरात के भरूच में हुआ था। एक छात्र के रुप में वह बहुत प्रतिभाशाली थे और उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए बड़ौदा कॉलेज में प्रवेश ले लिया था। यहां उनके एक शिक्षक श्री अरविन्द घोष भी थे, जो क्रांतिकारी थे जिनसे प्रभावित होकर वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए थे। +* लोगों में स्वराज की भूख है। ये भूख उस स्तर तक बढ़ रही है, जहाँ जनता को सन्तोष से वंचित नहीं रखा जा सकता। ये भूख केवल भावना नहीं है, यहां तक कि, ये उन लोगों का भी काम नहीं है जिन्हें उस समय खतरनाक आन्दोलनकारी कहा जाता था। ये दरअसल अंग्रेज़ों का काम था। वे यहां 175 साल पहले आए थे। उन्होंने यहां अपने हितों के लिए हुकूमत की और देश पर नियंत्रण किया। उन्होंने देश के उद्योगों को नष्ट किया, सब कुछ अपने भले के लिए किया, विकास नहीं होने दिया, लोगों को कुपोषण का शिकार बनाया और लोगों को पिछड़ा बनाए रखा। अपनी पुस्तक “द रुइन्स देट ब्रिटैन रॉट (1946)” में +* भारत के हमारे अधिकतर इतिहास में परिपेक्ष का अभाव है। ये इतिहास कुछ घटनाओं और काल से संबंधित हैं। ये इतिहास भारतीय दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि कुछ सूत्रों के हवाले से लिखा गया है, जो पक्षपाती हैं और जो मूल स्वभाव में भारत के विरुद्ध हैं। इन घटनाओं और काल का वर्णन बहुत असंगत और विस्तृत है जिसका उस काल पर विकृत प्रभाव पड़ता है। “अखण्ड हिंदुस्तान” (1942) +* भारतीय संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं है। वह चिन्तन का एक सतत प्रवाह है। +* मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि भारत का सामूहिक अवचेतन मन इस योजना से खुश ��ै कि सोमनाथ का पुनर्निर्माण भारत सरकार प्रायोजित होने जा रहा है मैं हिंदुत्व से जुड़ी कुछ दकियानूसी बातों को नकारता रहा हूं और इसके कुछ पहलुओं को अपने लेखन व काम से आकार देता रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि इस कदम से भारत आधुनिक स्थितियों में काफी एडवांस देश के रूप में उभरेगा। सोमनाथ मन्दिर के निर्माण से सम्बन्धित नेहरू के आशंकाओं और बयानों के उत्तर में + + +हथियार या अस्त्र उन युक्तियों को कहते हैं जो जीवित प्राणियों, भवनों या प्रणालियों को नुक्सान पहुँचा सकते हैं या उन्हें मार सकते या नष्ट कर सकते हैं। इनका उपयोग शिकार, अपराध, आत्मरक्षा या युद्ध में किया जाता है। विस्तृत अर्थ में उन सभी वस्तुओं को अस्त्र कह सकते हैं जो शत्रु के विरुद्ध रणनीतिक, मानसिक या पदार्थ सम्बन्धी लाभ पाने के लिये उपयोग में लाये जाते हैं। डण्डा, पत्थर, तीर-धनुष, भाला, फरसा, तलवार, बन्दूक, बम, तोप, मिसाइल, परमाणु बम आदि कुछ प्रमुख हथियार हैं। +: शस्त्र से रक्षित राष्ट्र में ही शास्त्र चिन्तन सम्भव है। +: इस (आत्मा) को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती। +: क्षमारूपी शस्त्र जिसके हाथ में हो उसे दुर्जन क्या कर सकता है अग्नि जब किसी ऐसी जगह पर गिरता है जहाँ घास न हो तो वह अपने आप बुझ जाता है। +: शस्त्र और शास्त्र दोनों ही विद्या है । और दोनो ही ज्ञान तथा सन्मान देती है। किन्तु वृद्धावस्था में शस्त्रविद्या लोगों के उपहास का पात्र बनती है जबकि शास्त्र विद्या (ज्ञान) का सदा आदर होता है। +: गुरु हो, बालक हो, वृद्ध हो या बहुश्रुत ब्राह्मण हो – लेकिन यदि वह शस्त्र लेकर वध करने को आ रहा हो तो ऐसे आततायी को तो बिना कोई विचार किये मार ही डालना चाहिये। +: आग लगाने वाला, विष देने वाला, शस्त्र से उन्मत्त, धन चुराने वाला, खेत हरने वाला, स्त्री का अपहरण करने वाला ये ६ आततायी हैं। +* विश्वयुद्ध, जो कि प्रमाणु युद्ध होगा, के खतरे को समाप्त करना आज का सबसे महत्वपूर्ण और तुरन्त करने योग्य कार्य है। मानव जति के पास एक ही विकल्प है हमे हथियारों की दौड़ समाप्त कर देनी चाहिये और निःशस्त्रीकरण की ओर बढ़ना चाहिये, नहीं तो हम पूर्णतः समाप्त हो जायेंगे। निःशस्त्रीकरण पर संयुक्त रष्ट्र के प्रथम विशेष सत्र (१९७८) के अन्तिम दस्तवेज में +परमाणु अस्त्र किसी भी सैन्य उद्देश्य की पूर्ति नहीं करते। इनका उपयोग केवल अपने शत्रु को इनका प्रयोग करने से रोकने में है। इसके अलावा वे पूर्णतः व्यर्थ हैं। रॉबर्ट मैक नमरा द न्युक्लियर डिलेमा' में उद्धृत Awake! पत्रिका (22 अगस्त 1988). + + +खेलों का मानव जीवन में बहुत महत्व है। खेल शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए तो उपयोगी है ही, साथ ही खेल मनोरंजन का साधन भी है। बच्चों के विकास में सहायक है। खेल शरीर में स्फूर्ति बनाए रखता है। +* जीतने वाले कभी हौसला नहीं हारते और हौसला हारने वाले कभी नहीं जीतते। विंस लोम्बार्डी +* जब आप अपनी हार से सीखते हैं तब आप जीतते हैं तब आप सीखते हैं कि आगे कैसे बढ़ना है। मोरगन वूटन +* खेल आज को बेहतर बनाता है और भविष्य का निर्माण करता है। +* खेल एकता, सामाजिकता, देश प्रेम और अनुशासन की भावना पैदा करता है। +* खेल आत्मनियंत्रण सिखाता है। +* मैं उस खिलाडी से नहीं डरूँगा जिसने 50 कलाएं सीख ली हैं, बल्कि उस खिलाडी से डरूंगा जो एक ही कला की 50 बार प्रैक्टिस करता है। +* असंभव और संभव के बीच का अंतर एक व्यक्ति के दृण संकल्प में निहित है। टॉमी लसोरड़ा +* यदि आप तैयारी करने में असफल रहे तो असफल होने के लिए तैयार रहें। +* जीतना सबकुछ नहीं है, लेकिन जीतना है। विंस लोम्बार्डी +* जीतने की चाभी इच्छाशक्ति नहीं है। यह हर किसी के पास है। बल्कि जीतने की चाभी तैयारी करने की इच्छाशक्ति है। +* मेरे लिए, एक शतक बनाने के बजाय यह ज्यादा महत्वपूर्ण है की एक अच्छी साझेदारी बनायी जाय। एक बार जब आप अच्छी साझेदारी बना लेते हो तो तब आप शतक भी बना लोगे। महेन्द्र सिंह धोनी +* ब्राज़ील फुटबॉल खाता, सोता और पीता है। यह फुटबॉल जीता है। पेले +* विश्वास कोई तोड़ने की चीज नहीं है, तोड़ना ही है तो खेल में किसी का रिकॉर्ड तोड़ो। ध्यानचंद + + +चन्द्रशेखर आजाद २३ जुलाई १९०६ २७ फरवरी १९३१ भारत के एक निडर क्रांतकारी थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिये सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाया। अपने साथी भगत सिंह सुखदेव और राम प्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर इन्होंने ब्रिटिश सरकार की नाक में दम कर दिया था। +आजाद चन्द्रशेखर का जन्म 23 जुलाई 1906 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव शहर में हुआ था। वे मात्र 14 साल की आयु में ही गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे। +* दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे। +* किसी भी एक भारतवासी के ���ख्म का बदला हजारों जख्मों से लिया जाएगा। यह चेतावनी नहीं घोषणा है। +* सूरज पश्चिम में निकल सकता है परन्तु ये आजाद अपने देश को कभी अकेला नहीं छोड़ सकता। +* किसी क्रांतिकारी का सबसे बड़ा हथियार नहीं होती हैं बंदूकें, बम या तोप। क्रांतिकारी विचारों से बनते हैं जो नैतिकता से, सत्य से, प्रेम से और किताबों से आते हैं। +* जो दुश्मन हमारी धन-संपदा और संस्कृति को लूट रहे हैं, उन्हें लूटना और उनसे अपने धन-संपदा का रक्षा करना कोई गुनाह नहीं है। +* जीवित रहते मैं अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए निरन्तर संघर्ष करता रहूँगा। किसी भी क्षण मैं मातृभूमि की खातिर अपने प्राण न्योछावर करने से पीछे नहीं हटूंगा। +* किसी भी भारतवासी के जख्म का बदला हजारों जख्मों से लिया जाएगा। यह चेतावनी नहीं घोषणा है। +* जो दुश्मन हमारे धन संपदा और संस्कृति को लूट रहे हैं, उन्हें लूटना और उनसे अपने धन संपदा की रक्षा करना कोई गुनाह नहीं है। +* अगर आपके लहू में रोष नहीं है, तो यह पानी है जो आपकी रगों में बह रहा है। +* मातृभूमि की इस दुर्दशा को देखकर अभी तक यदि आपका रक्त क्रोध नहीं करता है, तो यह आपकी रगों में बहता खून नहीं है ये तो पानी है। +* ऐसी जवानी का क्या मतलब अगर वह मातृभूमि के काम ना आए। +* दूसरे अपने से बेहतर कर रहे हैं यह नहीं देखना चाहिए। हर दिन अपने ही नए कीर्तिमान स्थापित करने चाहिए क्योंकि लड़ाई खुद से होती है दूसरों से नहीं। +* आज का युवा संगठित हो रहा है। यह मेरा देश की शक्ति का संगठन है। +* मौत तो एक दिन सबको आनी है। कुछ लोग डर-डर के जीते है, कुछ लोग मर कर भी अमर हो जाते हैं। +* शत्रु के साथ कैसी नम्रता? हमारी नम्रता का ही फल है कि आज हमारी मातृभूमि संकट में है। +* मैं ऐसे धर्म और संस्कार का पालन करता हूँ जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखता है। +* गालों पर थप्पड़ खाने से स्वतंत्रता नहीं मिलती। गोलियां मारनी पड़ती हैं दुश्मनों को। +* सच्चा धर्म वही है जो स्वतंत्रता को परम मूल्य की तरह स्थापित करे। +* कोई विमान जमीन पर सदा सुरक्षित रहता है, लेकिन यह इसके लिए नहीं बनाया जाता। महान ऊंचाई प्राप्त करने के लिए हमेशा जीवन में कुछ सार्थक जोखिम लेना होगा। +* अगर मातृभूमि को आजाद करना है तो अंग्रेजों की बोली बोलना छोड़ दो, उनका आचरण करना छोड़ दो। +: विश्व कांपता रह जाएगा, होगी मां जब रण हुंकार। +: नृत्य करेगी रण प्रांगण में, फिर-फिर खंग हमारी आज +: इंकलाब की ज्वालाएं लिपटी मेरे बदन में हैं, +: कुर्बानी का जज्बा जिंदा मेरे कफन में है। +* जो युवा अपनी मातृभूमि की खातिर संघर्ष नहीं कर सकते, वे अपनी जननी की खातिर समर्पित नहीं हो सकते। +* आजाद की कलाई में हथकड़ी लगाना बिलकुल असंभव है। एक बार सरकार लगा चुकी, अब तो शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे लेकिन जीवित रहते पुलिस बंदी नहीं बना सकती। +: आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे । +* गिरफ्तार हो कर अदालत में हाथ बांध मुझे बंदरिया का नाच नहीं नाचना है। आठ गोली पिस्तौल में है और आठ का दूसरा मैगजीन है। पंद्रह दुश्मन पर चलाऊंगा और सोलहवी यंहा… (और आजाद अपनी पिस्तौल अपनी कनपटी पर छुआ देते) +* मैं जीवन की अंतिम सांस तक देश के लिए शत्रु से लड़ता रहूँगा। +* जब तक मेरे शरीर में प्राण है मैं अंग्रेजों की गुलामी नहीं करूंगा। +चन्द्रशेखर आजाद के बारे में +: और बची आखरी पिस्टल की गोली भी चीख-चीख कर बोले + + +राम प्रसाद बिस्मिल 11 जून 1897 19 दिसम्बर 1927) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के महान क्रन्तिकारी थे। वे एक महान क्रन्तिकारी ही नहीं वरन् एक बहुभाषाविद्, साहित्यकार, उच्च कोटि के कवि, शायर, और अनुवादक भी थे। वो अपनी कवितायें ‘बिस्मिल’ उपनाम से और राम तथा अज्ञात नाम से लिखते थे। उन्होंने अपने ११ वर्ष की क्रान्तिकारी जीवन में कई पुस्तके लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। लेकिन उनकी सभी प्रकाशित पुस्तकों को अंग्रेजी सरकार ने जब्त कर लिया। +अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में हुआ था। उन्होंने अपने क्रांतिकारी जीवन में मैनपुरी षड्यंत्र और काकोरी काण्ड को अंजाम दिया। अंग्रेजी हुकूमत ने अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह के साथ राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी की सजा सुनाई गयी और उसके बाद गोरखपुर की जेल में 19 दिसम्बर 1927 को इस देश के वीर शहीद को फांसी दे दी। +जिस समय उन्हें फांसी दी जा रही थी तब जेल के बाहर हजारों की संख्या में देशभक्त उनके अंतिम दर्शन के लिए खड़े रहे। हजारो की संख्या में उनकी शवयात्रा में देशभक्त सम्मिलित हुए। भारत के इस वीर सपूत का अंतिम संस्कार वैदिक मंत्रों के साथ राप्ती के तट पर किया गया। +* यदि किसी के मन में जोश, उमंग या उत्तेजना पैदा हो तो शीघ्र गावों में जाकर कृषक की दशा को सुधारे��। +* मुझे विश्वास है कि मेरी आत्मा मातृभूमि तथा उसकी दीन संतति के लिए नए उत्साह और ओज के साथ काम करने के लिए शीघ्र ही फिर लौट आयेगी। +* किसी को घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाये, किन्तु सबके साथ करुणा सहित प्रेमभाव का बर्ताव किया जाए। +* संसार में जितने भी बड़े आदमी हुए हैं, उनमें से अधिकतर ब्रह्मचर्यं के प्रताप से ही बने हैं और सैकड़ों-हजारों वर्षों बाद भी उनका यशोगान करके मनुष्य पने आपको कृतार्थ करते हैं। ब्रह्मचर्य की महिमा यदि जाननी हो तो परशुराम, राम, लक्ष्मण, कृष्ण, भीष्म, बंदा वैरागी, राम कृष्ण, महर्षि दयानन्द, विवेकानन्द तथा राममूर्ति की जीवनियों का अवश्य अध्ययन करें। +* पंथ, सम्प्रदाय, मजहब अनेक हो सकते हैं, किन्तु धर्म तो एक ही होता है। यदि पंथ-सम्प्रदाय उस एक ईश्वर की उपासना के लिए प्रेरणा देते हैं तो ठीक अन्यथा शक्ति का बाना पहनकर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना न धर्म है और न ही ईश्वर भक्ति। +* मेरा यह दृढ निश्चय है कि मैं उत्तम शरीर धारण कर नवीन शक्तियों सहित अति शीघ्र ही पुनः भारत में ही किसी निकटवर्ती संबंधी या इष्ट मित्र के गृह में जन्म ग्रहण करूँगा क्योंकि मेरा जन्म-जन्मान्तरों में भी यही उद्देश्य रहेगा कि मनुष्य मात्र को सभी प्राकृतिक साधनों पर समानाधिकार प्राप्त हो। कोई किसी पर हुकूमत न करे। +* मुझे विश्वास है कि मेरी आत्मा मातृभूमि तथा उसकी दीन संतति के लिए नए उत्साह और ओज के साथ काम करने के लिए फिर लौट आयेगी।। +शहीद राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा रचित सबसे प्रसिद्ध रचना जिसे गा कर अनेकों सपूतोण ने मातृभूमि के लिए हंसते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। +: खेंच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद, +: खून से खेलेंगे होली, गर वतन मुश्किल में है +: दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब, +: मैं उनकी अमरी को मिट्टी में मिला दूंगा। +:दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या ! + + +: कार्य प्रसंग में मंत्री, गृहकार्य में दासी, भोजन कराते वक्त माता, रति प्रसंग में रंभा, धर्म में सानुकूल, क्षमा करने में धरित्री, इन छः गुणों से युक्त पत्नी मिलना दुर्लभ है। +नारी को गठरी के समान नहीं बल्कि इतनी शक्तिशाली होनी चाहिए कि वक्त पर पुरुष को गठरी बना अपने साथ ले चले। डॉ. राम मनोहर लोहिया +* इस देश की औरतों के लिए आदर्श सावित्री नहीं, द्रोपदी होनी चाहिए। डॉ. राम मनोहर लोहिया +* फिर भी, बाद के भारत की तुलना में वैदिक काल में महिलाओं को कहीं अधिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। विवाह के जितने भी प्रकार प्रचलित थे, उनमें नारी के जो अधिकार थे, अपने जीवनसाथी के चुनाव में वह उससे भी अधिक कहने का अधिकार रखती थी। वह दावतों और नृत्यों में स्वतंत्रता पूर्वक दिखाई देती थी, और पुरुषों के साथ धार्मिक यज्ञों में भाग लेती थी। उसे शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार था और गार्गी की तरह वह शास्त्रार्थ में भी भाग ले सकती थी। यदि वह विधवा हो जाती थी, तो उसके पुनर्विवाह पर कोई प्रतिबन्ध नहीं था। ऐसा लगता है कि वीर युग में महिला ने इस स्वतंत्रता का कुछ हिस्सा खो दिया। विल डुरन्ट 1963 Our Oriental heritage. New York: Simon Schuster. + + +* नारी शिक्षा, विशेषकर नये मूल्यों के प्रति उनकी जागरूकता, उन्हें नये व्यवसायों के लिये प्रशिक्षित करना, उनका अपने अधिकारों के लिये जागरूक होना, यह सब अभिशाप है। यह सब उनके लिये हानिकर समझा जाता है। वस्तुतः इन सब कार्यों को समाज में व्यवधान ढालने जैसा समझा जाता है और इसे इस्लाम को नीचा दिखाने जैसा माना जाता है। अरुण शूरी, The World of Fatwas Or The Sharia in Action (2012, हार्पर कोलिन्स) + + +: इस अस्थिर जीवन/संसार में धन, यौवन, पुत्र-पत्नी इत्यादि सब अस्थिर है । केवल धर्म, और कीर्ति ये दो ही बातें स्थिर हैं। +: निष्काम होकर नित्य परिश्रम करने वालों की गोद में उत्सुक होकर यश, सुख, आदि सफलताएँ आती ही हैं। +* यश और 'कीर्ति' ऐसी 'विभूतियाँ' है, जो मनुष्य को 'संसार' के माया जाल से निकलने मे सबसे बड़े 'अवरोधक' हैं। दयानन्द सरस्वती]] + + +: जिस राजा के वैद्य, गुरु और मन्त्री प्रिय बोल्ने वाले होते हैं, उस राजा का शरीर, धर्म और राजकोश शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। +: मन्त्री, वैद्य और गुरु ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं तो (राजा के) राज्य, शरीर एवं धर्म इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है। +: यदि किसी राज्य में केवल एक भी मन्त्री बुद्धिमान, शूरवीर, कार्यकुशल तथा विद्वान हो तो वह राजा या राज्य के प्रशासन से बहुत अधिक सम्मान ओर श्रेय प्राप्त करता है। +: जो मन्त्री बोलने में चतुर, धैर्यवान् और (भरी) सभा में भी न हिचकिचाने वाला होता है, उसे अन्य लोग किसी भी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते। +: कोई कम शिक्षित मन्त्री चाहे वह सज्जन हो तथा उच्च कुल में उत्पन्न हुआ भी क्यों न हो, उसके द्वारा दिये गये धर्म, अर्थ (धन संपत्ति) काम विभिन्न इच्छायें से सम्बन्धित परामर्श को भली भांति जांच लेना चाहिये क्योंकि उसमें योग्यता की कमी हो सकती है। +: जहाँ स्त्री वृत्ति का वर्चस्व होता है, राजा बालबुद्धि होता है, और मंत्री अशिक्षित होते हैं, वहाँ धन की आशा तो दूर, जीवन की आशा रखना भी दुर्लभ है ! +: जैसे, नीरोग मनुष्य अच्छा होने पर भी किसी समय चिकित्सक के पास (पाश) में जाना नहीं चाहता, वैसे (अन्तर्बाह्य) आपत्तियों से मुक्त राजा मन्त्री के पास (पाश) में जाना नहीं चाहता। + + +: पाखण्डी ब्राह्मण के बारह गुण हैं सब को अपना संस्कृत ज्ञान दिखाने के लिए) बड़े बड़े आवाज़ से पाठ करना केवल) पुराण की कथाओं का पारायण करना (क्योंकि उसे वेदों का ज्ञान नहीं है स्त्रियों के देख कर (उनके सामने अपनी विद्वत्ता प्रदर्शित करने) उनके साथ वार्तालाप करना स्त्रियों के पति की मिथ्या प्रशंसा करना (अर्थात किसी भी व्यक्ति के सामने लाचार हो जाना ऐसी स्त्रियों को प्रभावित करने) उनके बालकों को संभालना स्त्रियों की रसोई की मिथ्या प्रशंसा करना शास्त्रीय मान्यता हो या ना हो केवल यजमान की इच्छा से और उसके द्वारा पैसा कमाने के लिए) अनावश्यक विधियों का चयन करना (अर्थात यजमान को मुर्ख बनाना अनावश्यक) लेखनकार्य में पंडिताई का दर्शन करना गारुड़ीविद्या, मन्त्र, तन्त्र, कविता इत्यादि में ही रममाण होना (केवल उसमे ही विद्वत्ता हासिल करना) । +: राम के गुणों के समूह कुमार्ग, कुतर्क, कुचाल और कलियुग के कपट, दंभ और पाखंड को जलाने के लिए वैसे ही हैं, जैसे ईंधन के लिए प्रचंड अग्नि॥ +: भावार्थ:-पृथ्वी घास से परिपूर्ण होकर हरी हो गई है, जिससे रास्ते समझ नहीं पड़ते। जैसे पाखंड मत के प्रचार से सद्ग्रंथ गुप्त (लुप्त) हो जाते हैं॥ +* आओ, मनुष्य बनो! उन पाखंडी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नत्ति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकरें मार कर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उनके हृदय कभी विशाल न होंगे। उनकी उत्पत्ति तो सैकड़ों वर्षों के अंधविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है। पहले पुरोहिती पाखंड को जड-मूल से निकाल फेंको। स्वामी विवेकानन्द]] +* कृषि के बाद, पाखण्ड हमारे युग का सबसे बड़ा उद्योग है। अल्फ्रेड नोबेल +* पाखण्ड मुंह कि दुर्गन्ध कि तरह होता है, अपने को पाता नहीं चलता और दूसरों कि बुरी लगती ��ै। + + +ब्राह्मण का शाब्दिक अर्थ है ब्रह्म ज्ञानी। सनातन वर्ण व्यवस्था में से ब्राह्मण एक वर्ण है। +: ब्राह्मण परमपुरुष के मुख से, क्षत्रिय बाहुओं से, वैश्य जांघों से तथा शूद्र पैर से उत्पन्न हुए। +: क्षत्रिय के बल (बाहुबल) को धिक्कार है। ज्ञानी के तेज (ब्रह्मतेज) का बल ही वास्तविक बल है। एक ही ब्रह्म्दण्ड से मेरे सभी अस्त्र नष्ट हो गये। +: न जन्म, न संस्कार, न शास्त्र, और न कुल आदि द्विजत्व के कारण हैं (अर्थात इनसे कोई द्विज नहीं हो जाता। द्विजत्व का वास्तविक कारण) तो वृत्त (सदाचार है। +फिर वैशम्पायन ने इसकी व्याख्या करते हुए बताया—) +तब ब्राह्मण किसे माना जाय? जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त न हो; जाति, गुण और क्रिया से भी युक्त न हो; षड् ऊर्मियों और षड्भावों आदि समस्त दोषों से मुक्त हो; सत्य, ज्ञान, आनन्द स्वरूप, स्वयं निर्विकल्प स्थिति में रहने वाला, अशेष कल्पों को आधार रूप, समस्त प्राणियों के अन्त में निवास करने वाला, अन्दर-बाहर आकाशवत् संव्याप्त; अखण्ड आनन्दवान्, अप्रमेय, अनुभवगम्य, अप्रत्यक्ष भासित होने वाले आत्मा का करतल आमलकवत् परोक्ष का भी साक्षात्कार करने वाला; काम रागद्वेष आदि दोषों से रहित होकर कृतार्थ हो जाने वाला; शम-दम आदि से सम्पन्न; मात्सर्य, तृष्णा, आशा, मोह आदि भावों से रहित; दम्भ, अहङ्कार आदि दोषों से चित्त को सर्वथा अलग रखने वाला हो, वही ब्राह्मण है; ऐसा श्रुति, स्मृति-पुराण और इतिहास का अभिप्राय है। इस (अभिप्राय) के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार से ब्राह्मणत्व सिद्ध नहीं हो सकता। आत्मा ही सत्-चित् और आनन्द स्वरूप तथा अद्वितीय है। इस प्रकार के ब्रह्म भाव से सम्पन्न मनुष्यों को ही ब्राह्मण माना जा सकता है। यही उपचिषद् का मत है॥ वज्रसूच्का उपनिषद् +: यहां तक कि कोई शूद्र भी शील एवं सदाचार का अनुसरण करके ब्राह्मण बन सकता है। यदि कोई ब्राह्मण गुण-शील से हीन, स्वार्थी और परिग्रही है, जो क्रोधी, कामी और लालची है, वह शूद्र से भी गिरा हुआ है।43। +: जिसको इस सम्पूर्ण जगत की नश्वरता का ज्ञान है, जो प्रकृति और विकृति से परिचित है तथा जिसे सम्पूर्ण प्राणियों की गति का ज्ञान है, उसे देवता लोग ब्राह्मण जानते हैं। +: ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। +: ”वेद-वेदांग पारंगत ब्राह्मण की परीक्षा प्रथम से ही करना चाहिए, क्योंक�� वही देव, पितर के लिए दिये गये पदार्थों के लिए योग्य अधिकारी और पात्र है। जहाँ लाखों मूर्खों के खिलाने से जितना धर्म होता है वहाँ एक ही वेद-वेदांग के ज्ञाता को भोजनादि से सन्तुष्ट करने से उतना ही पुण्य होता है। +: अर्थात भूतों (जो पैदा हुए हैं) प्राणी श्रेष्ठ हैं, प्राणियों में बुद्धि के आधर पर जीने वले प्रणी श्रेष्ठ हैं, बुद्धिमानों में मनुष्य श्रेष्ठ है, और मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं। ब्राह्मणों में विद्वान् और विद्वानों में कर्मज्ञ जिसे कृतबुद्धि कहा जाता है वे श्रेष्ठ होते हैं। कर्मज्ञों में आचारवान श्रेष्ठ होते हैं और आचारवानो में ब्रह्मज्ञानी श्रेष्ठ होते हैं। ब्राह्मण धर्म के लिए उत्पन्न होता है क्योंकि ब्राह्मण ही सभी प्राणियों में धर्मसमूह की रक्षा करने में समर्थ होता है। +: ब्राह्मण यदि समदर्शी और शान्तस्वभाव वाला भी हो तो भी दीनों की उपेक्षा करने से उसका तप उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे फूटे हुए घड़े में से जल बह जाता है। +: ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न गोत्र से और न जन्म से। जिसमें सत्य है, धर्म है और जो पवित्र है, वही ब्राह्मण है। +: जो इस बात को जानता है कि कौन प्राणी त्रस है, कौन स्थावर है। और मन, वचन और काया से किसी भी जीव की हिंसा नहीं करता, उसी को हम ब्राह्मण कहते हैं। +: सिर मुंडा लेने से ही कोई श्रमण नहीं बन जाता। ‘ओंकार’ का जप कर लेने से ही कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता। केवल जंगल में जाकर बस जाने से ही कोई मुनि नहीं बन जाता। वल्कल वस्त्र पहन लेने से ही कोई तपस्वी नहीं बन जाता। +: किसी को केवल इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी पूजनीय पद पर है। यदि व्यक्ति में उस पद के योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए। इसकी जगह अगर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो किसी ऊंचे पद पर तो नहीं है लेकिन बहुत गुणवान है तो उसका पूजन अवश्य करना चाहिए। + + +: विद्या (कर्म) के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शूद्र ब्राह्मणत्व को। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न संतान भी अन्य वर्णों को प्राप्त हो जाया करती हैं। +: जन्म से तो सभी शूद्र होते हैं। द्विज कहलाता उनके संस्कारों की वजह से है। यदि वह वेदाध्ययन करने वाला है तो वह विप्र कहलायेगा और जो ब्रह्म को जानता है वह ब्राह्मण कहलाता है। +सामान्य शूद्र और सामान्य ब्राह्मण, ये दोनों स���मग्री और अनुष्ठान समान ही है, इसीलिये ब्राह्मण और शूद्र भी वाध्य या आध्यात्मिक कोई भेद नहीं हैं। +: जाति, संस्कार श्रुति और स्मृति से कोई द्विज नहीं होता, केवल चरित्र से ही होता है। इस लोक में चरित्र से ही सबके ब्राह्मणत्व का विधान है। सद्वृत्त में स्थित शूद्र भी ब्राह्मणता को प्राप्त होता है। ब्राह्मण वही है जिसमें निर्मल, निर्गुण ब्रह्मज्ञान हो। +: नाभगरिष्ट के दो पुत्र वैश्य से ब्राह्मण हो गये थे। +: पुरुपंशीय राजा और ब्रह्मर्षि कौशिक ये दोनों क्षत्रिय ब्राह्मण वंश परस्पर सम्बन्ध है, यह बात लोक प्रसिद्ध है। +: सृष्टि के आदि काल में कर्मों के शुभ या अशुभ होने के अनुसार ब्राह्मण आदि वर्ण बनाये गये थे। +: ब्राह्मण धर्म के आचरण और ब्राह्मण जीविका के अवलम्बन से क्षत्रिय और वैश्य भी ब्राह्मण हो जाते हैं। +: वैश्य वाले कर्म करने वाला द्विज वैश्य हो जाता है और शूद्र का काम करने वाला वैश्य, शूद्र वर्ण का हो जाता है। अपने धर्म से प्रच्युत विप्र वैसेवैसे शूद्र हो जाता है। +हे देवि इन कर्मों के पालन करने से तथा शुभ आचरण से शूद्र भी ब्राह्मण बन जाता है और वैश्य क्षत्रिय हो जाता है। +: अर्थात्-शूद्र में जो लक्षण या कर्म होते हैं वे ब्राह्मण में नहीं होते। ब्राह्मण के कर्म और लक्षण शूद्र में नहीं होते। यदि शूद्र में शूद्र वाले लक्षण न हों तो वह शूद्र नहीं होता और ब्राह्मण में ब्राह्मण वाले लक्षण न हों तो वह ब्राह्मण नहीं होता। अभिप्राय यह है कि लक्षणों और कर्मों के अनुसार ही व्यक्ति उस वर्ण का होता है जिसके लक्षण या कर्म वह ग्रहण कर लेता है। +: शूद्र भी यदि आगम सम्पन्न और संस्कृत हो तो अह द्विज हो जाता है। +: पुण्य कर्म करने से उच्च वर्ण को प्राप्त होता है और पाप कर्म करने से नीचता प्राप्त होती है। +: यदि एक पिता के चार पुत्र हो तो उन पुत्रों की एक जाति होनी चाहिये। इसी प्रकार सबका पिता एक ही परमेश्वर है अतः मनुष्य समाज में भी जाति भेद बिल्कुल नहीं होना चाहिये। जिस प्रकार एक ही गूलर के वृक्ष के अग्रभाग, मध्यभाग तथा पींड में वर्ण, आकृति, स्पर्श तथा रस इन बातों में एक से फल लगते हैं उसी प्रकार एक विराट् पुरुष परम ब्रह्म परमेश्वर से उत्पन्न हुये मनुष्यों में भी किसी प्रकार का जातिभेद नहीं हो सकता। +: प्रारम्भ में एक ही वाङ्मय ॐ था, नारायण ही एकमात्र देव थे, दूसरा नहीं और एक ह��� अग्नि यानी ब्राह्मण वर्ण था। +: जो ईश्वर के सच्चे भक्त हैं वे ही ब्राह्मण हैं, उन्हें शूद्र नहीं कहना चाहिये। +: अधम योनिजा कन्या अक्षमाला वशिष्ठ के साथ युक्त होकर और तिर्यक् कन्या शारंगी मंदपाल ऋषी की परिणीता होकर मान्या पदवी को प्राप्त हुई थी इनके सिवा और अनेक नारियाँ निकृष्ट कुल में उत्पन्न होकर भी पति के महद्गुण के कारण उत्कृष्ट स्थान प्राप्त कर गई थीं। +: अति यत्नपूर्वक सभी देवता मिलकर भी खोजे तो ब्राह्मण और शूद्र में कोई भेद नहीं पावेंगे। +: ब्राह्मण लोग भी चाँदी की किरण के समान शुक्ल वर्ण नहीं हैं। क्षत्रिय लोग भी किंशुक पुष्प से लाल नहीं हैं और शूद्र कोयले के समान काले नहीं हैं। +: चलना, फिरना, शरीर, वर्ण केश, सुख दुख रक्त त्वचा, माँस, मेद, अस्थि रस-इनमें सभी तो समान हैं, फिर चार वर्णों का भेद कहाँ है? वर्ण, प्रमाण आकृति, गर्भवास, वाक्य, बुद्धि कर्म, इन्द्रिय, प्राणशक्ति धर्म,अर्थ,काम,व्याधि, औषधि-इनमें कहीं भी तो जातिगत प्रभेद नहीं है। जिस प्रकार एक ही पिता के चार पुत्रों की जाति एक ही होती है उसी प्रकार सभी प्रजाओं का वह भगवान एकमात्र पिता है। इसीलिये जातिभेद नहीं हैँ। + + +पाछे दिन पाछे गए हरि से किया न हेत । +: बीता समय निकल गया, आपने ना ही कोई परोपकार किया और नाही ईश्वर का ध्यान किया। अब पछताने से क्या होता है, जब चिड़िया चुग गयी खेत। +* जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के सिवा और क्या है मुंशी प्रेमचन्द गबन में +* पछतावा हृदय की वेदना है और निर्मल जीवन का उदय। शेक्सपियर]] +* सुधार के बिना पश्चाताप ऐसा है जैसे सुराख़ बंद किये बिना जहाज में से पानी निकलना। पामर +* कभी-कभी हम बुरे कामों की तरह अच्छे कामों पर भी पछताते हैं। – विलियम हैजलिट +* एक आदमी का पश्चाताप दुसरे का संस्मरण होता है। आग्डेन नैश +* कुछ ऐसे भी लोग होते है जो पश्चाताप करने में बहुत कुशल होते हैं। आग्डेन नैश +* जवानी एक गलती है; परिपक्कता एक संघर्ष है और बुढ़ापा एक पश्चाताप है। बेंजामिन डिजरायली]] + + +: जो कभी बाहर निकलकर सम्पूर्ण पृथ्वी को और अनेक अद्भुत वृत्तान्तों को नहीं देखता, वह मनुष्य कुएँ का मेढ़क है। + + +: छेदों में अनेक अनर्थ होते हैं। +अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। कालिदास]] + + +: इस संसार में जो कामसुख है, और दिव्य महान सुख है- ये दोनों तृष्णा के नष्ट होने से प्राप्त होने वाले सुख के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं हैं। +: यह पुरुष काममय ही है। वह जैसी काम्ना करता है वैसा करने का यत्न करता है, जैसा करना चाहता है, वैसा ही कर्म करता है जैसा कर्म करता है वैसा ही काम होता है। +: अर्थ के लिये आतुर मनुष्य का कोई मित्र होता है न कोई भाई, काम के लिये आतुर व्यक्ति को न कोई भय होता है न लज्जा, विद्या के लिये आतुर व्यक्ति को न सुख होत है न निद्रा, और भूख से आतुर मनुष्य के पास न तो स्वास्थ्य होता है न तेज। +: इच्छाएँ कभी भी उपभोग करने से शान्त नहीं होतीं। ये वैसे ही बढ़ जतीं हैं जैसे आग में घी डालने पर अग बढ़ जाती है, शान्त नहीं होती। +: असंकल्प से काम को जीतना चाहिये; इच्छा का त्याग करके काम को जीतना चाहिये +: संकल्पों के परित्याग से काम को, कामनाओं के त्याग को क्रोध को, संसारी लोग जिसे अर्थ कहते हैं उसे अनर्थ समझकर लोभ को और तत्त्व के विचार से भय को जीत लेना चाहिये। अध्यात्मविद्या से शोक और मोह पर, संतो की उपासना से दम्भ पर, मौन के द्वारा योग के विघ्नों पर और शरीर-प्राण आदि को निश्चेष्ट कर के हिंसा पर विजय प्राप्त करनी चाहिये। आधिभौतिक दुःख को दया के द्वारा, आधिदैविक वेदना को समाधि के द्वारा और आध्यात्मिक दुःख को योगबल से एवं निद्रा को सात्विक भोजन, स्थान, संग आदि के सेवन से जीत लेना चाहिये। + + +वैज्ञानिक प्रतिरूपण Scientific modelling) से आशय किसी भौतिक प्रणाली का अमूर्त, संकल्पनात्मक, ग्राफीय और/या गणितीय प्रतिरूप (मॉडल) बनाने की प्रक्रिया से है। विज्ञान में विधियों, तकनीकों, और विविध प्रकार के वैज्ञानिक मॉडलों की संख्या लगतार बढती गयी है। + + +: इस पृथ्वी पर तीन रत्न हैं- जल, अन्न और सुभाषित; लेकिन अज्ञानी पत्थरों के टुकड़ों को ही रत्न कहते हैं। +: दान देने में अग्रणी तपस्वी, शूरवीर, वैज्ञानिक विनम्र स्वभाव वाले तथा अपने सिद्धान्तों पर सदैव दृढ रहने वाले किसी महान व्यक्ति को देख कर आश्चर्य नहीं करना चाहिये क्योंकि इस पृथ्वी को सुशोभित करने वाले ऐसे एक से बढ़कर और भी महान व्यक्ति हैं। +रत्नं रत्नेन संगच्छते । मृच्छकटिक में विट की उक्ति +: रत्न, रत्न के साथ जाता है। +* लज्जा नारी का अमूल्य रत्न है। +* विद्वान और प्रबुद्ध व्यक्ति समाज के अनमोल रत्न हैं। चाणक्य + + +* वोट नहीं डालने वाले अच्छे नागरिक ही (परोक्ष रूप से) बुरे अधिकारियों का चुनाव करते हैं। जॉ���्ज जीन नाथन +* हर चुनाव तमाशा करने वाले लोगों द्वारा निर्धारित किया जाता है। लैरी जे. सबटो +* यदि आप मतदान नहीं करते हैं, तो आप शिकायत करने का अधिकार खो देते हैं। जॉर्ज कार्लिन +* लोकतंत्र केवल एक चुनाव नहीं है, यह हमारा दैनिक जीवन है। त्सई इंग-वेन +* चुनाव का अधिकार संविधान का सार है। जुनिउस +* बुलेट की तुलना में बैलेट (मतपत्र) अधिक शक्तिशाली होता है। अब्राहम लिंकन]] +* मतदान केवल हमारा अधिकार नहीं है, यह हमारी शक्ति भी है। लुंग अनग +* लोकतंत्र में मतदाता की अज्ञानता सभी की सुरक्षा को खतरे में डाल देती है। जॉन एफ कैनेडी +* मताधिकार से वंचित मनुष्य बिना सुरक्षा वाला मनुष्य है। लिंडन बी जॉनसन +* आपके मताधिकार के लिये किसी ने संघर्ष किया था, इसका उपयोग करें। सुसान बी एन्थोनी + + +पृथ्वीराज चौहान या पृथ्वीराज तृतीय  1178–1192 ई भारत के मध्ययुग के एक प्रतापी राजा थे। +पृथ्वीराज चौहान के बारे में उक्तियाँ + + +* संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता। संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगों का प्रावधान कर सकता है। उन अंगों का संचालन लोगों पर तथा उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाये जाने वाले राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है। भीमराव आम्बेडकर]] +* मैं महसूस करता हूँ कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाये, खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाये, अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा। भीमराव आम्बेडकर]] + + +* साधु किसी वस्त्र से नही, चरित्र से बनता है। +* किसी व्यक्ति की नही व्यक्तित्व की पूजा करो। चित्र की नही चरित्र की पूजा करो। कर्म को अपना धर्म मानो। राष्ट्रधर्म को सबसे ऊपर रखें। +* अपने जीवन को छोटे उद्देश्यो के लिए जीना अपने जीवन का अपमान हैं। +* मानव जीवन हमारे लिए ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है। +* यह सब राष्ट्र के लिए हैं यह मेरा नही है। +* अगर हम अपनी अंदरूनी क्षमताओं का बेहतरीन उपयोग करे तो हम पुरुष से महापुरुष बन सकते हैं। +* निष्काम कर्म का अर्थ कर्म का अभाव नही, बल्कि कर्तव्य के अहंकार का अभाव हैं। +* अपने भीतर संकल्प की अग्नि हमेशा प्रज्वलित रखो। इससे आपका जीवन हमेशा प्रकाशमान रहेगा। +* भीड़ में खोया इंसान खोज लिया जाता हैं, लेकिन विचारो की भीड़ में भटके इंसान का जीवन अंधकारमय हो जाता हैं। +* बुढापा आयु से नही, अपने विचारों से देखा जाता हैं। +* अपने विचार ही सम्पूर्ण खुशियो का आधार हैं। +* अपने सुख-दुख का कारण दूसरे व्यक्ति नही, हमारे अच्छे बुरे विचार ही होते है। +* वैचारिक दरिद्रता ही किसी देश के दुख, पीड़ा, अवनति और अभाव का प्रमुख कारण हैं। +* वैचारिक दृढ़ता ही देश के सुख समृद्धि और उन्नति का मूलमंत्र हैं। +* आहार से ही मनुष्य की प्रकृति और स्वभाव बनता हैं। शाकाहार से शांत और मांसाहार से उग्र बनता हैं। +* विचारो का शुद्धिकरण और नियंत्रण सफलता का मार्ग हैं। +* इस दुनिया मे जीना ओर यहां से जाना गौरवपूर्ण होना चाहिये। + + +* क्षमा आत्मा को मुक्त करती है, यह डर को दूर करती है +* यदि आपके जीवन में सब कुछ अच्छा है, आपके चारों और बेहतर वातावरण हैं, तो ऐसा दूसरों के लिए भी कीजिए। +* आपका क्या चुनते हैं, अच्छा, बुरा या उदासीन। उसी तरह का आपका भाग्य होगा। +* अपने आपको चुनौती दें। यह एकमात्र रास्ता है जो उन्नति की ओर जाता है। +* शान्त रहना सीखो, जो हो रहा हैं होने दो आपकी यह शांति एक चमक बन जाएगी। +* अगर आप हार मान लोगे तो नुकसान होने की पूरी गारंटी है +* आपकी ज़िंदगी के कोई मायने नही रहेंगे, जब तक आप कुछ ऐसा नहीं करते हैं जो आपकी वास्तविकता को चुनौती दे। +* घमंड को अपने जीवन में कभी मत आने दे। आपके लिए अपनी उपलब्धियों को बोलने दे। +* बहुत बार आप चलना बंद कर देते हैं और आप कहते हैं कि मैं इस पहाड़ी पर चढ़ते चढ़ते थक गया हूं, मैं कभी भी टॉप पर नहीं पहुच सकता। जबकि आप टॉप से सिर्फ दो कदम दूर है +* जब तक आप एक पीड़ित की तरह महसूस करते हैं, तो आप वास्तव में पीड़ित बन जाएंगे। +* जो आप चाहते हैं उससे डरो मत। अभी आपका समय हैं। सारे गतिरोध नीचे हैं। +* दुसरो के अनुसार खुद को मत बदलो। खुद का ख्याल रखो। +* कोई मनुष्य परिपूर्ण नहीं है। लेकिन दृढ़ इरादे जरूर हैं। + + +नीतिशास्त्र मानव आचरण में सही या गलत क्या है, इसका अध्ययन है। यह दर्शनशास्त्र की एक शाखा है जो नैतिक सिद्धांतों का अध्ययन करती है। नीतिशास्त्र समाज द्वारा प्रतिस्थापित मानंदड एवं नैतिक सिद्धांतों के परिप्रेक्ष्य में उचित और अनुचित मानवीय कृत्यों एवं आचरण का अध्ययन करता है। +भारत में नीतिशास्त्र की बड़ी पुरानी परम्परा रही है। इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। भर्तृहरि का नीतिशतक, चाणक्यनीति, विदुरनीति, शुक्रनीति, कमन्दकीय नीतिसार आदि अत्यन्त प्राचीन और प्रसिद्ध हैं। शुक्राचार्य ने नीतिशास्त्र के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा है- +: अन्य जितने शास्त्र हैं वे सब व्यवहार के एक अंश को बतलाते हैं किन्तु सभी लोगों का उपकारक, समाज की स्थिति को सुरक्षित रखने वाला नीतिशास्त्र ही है क्योंकि यह धर्म, अर्थ तथा काम का प्रधान कारण और मोक्ष को देनेवाला कहा गया है। +कामन्दक द्वारा रचित नीतिसार में कहा गया है- +: उन बुद्धिमान विष्णुगुप्त (चाणक्य) को नमस्कार करता हूँ जिन्होंने अर्थशास्त्र के महान समुद्र से नीति-शास्त्र रूपी अमृत निकाला। +: पहले ही बिना साम, दान दण्ड का सहारा लिये ही युद्ध करना कोई अच्छी नीति नहीं है। +: दुष्ठ के साथ दुष्ठता का व्यवहार करना चाहिये। +चाणक्य के नीति के वचन +* ऋण, शत्रु और रोग को कभी छोटा नही समझना चाहिए और हो सके तो इन्हें हमेसा समाप्त ही रखना चाहिए। +* भाग्य भी उन्ही का साथ देता है जो कठिन से कठिन स्थितियों में भी अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहते है। +* अच्छे आचरण से दुखों से मुक्ति मिलती है विवेक से अज्ञानता को मिटाया जा सकता है और जानकारी से भय को दूर किया जा सकता है। +* संकट के समय हमेसा बुद्धि की ही परीक्षा होती है और बुद्धि ही हमारे काम आती है। +* अन्न के अलावा किसी भी धन का कोई मोल नही है और भूख से बड़ी कोई शत्रु भी नही है। +* विद्या ही निर्धन का धन होता है और यह ऐसा धन है जिसे कभी चुराया नही जा सकता है और इसे बाटने पर हमेसा बढ़ता ही है। +* उस स्थान पर एक पल भी नही ठहरना चाहिए जहा आपकी इज्जत न हो, जहा आप अपनी जीविका नही चला सकते है जहा आपका कोई दोस्त नही हो और ऐसे जगह जहा ज्ञान की तनिक भी बाते न हो। +* दूसरे व्यक्ति के धन का लालच करना नाश का कारण बनता है। +* व्यक्ति हमेसा हमे गुणों से ऊँचा होता है ऊचे स्थान पर बैठने से कोई व्यक्ति ऊचा नही हो जाता है। +* हमेशा खुश रहना दुश्मनों के दुखो का कारण बनता है और खुद का खुश रहना उनके लिए सबसे सजा है। +* अपने गहरे राज किसी से प्रकट नही करना चाहिए क्योंकि समय आने पर हमारे यही राज वे दूसरे के सामने खोल सकते हैं। +* भविष्य की सुरक्षा के लिए धन का इकट्ठा करना आवश्यक है लेकिन जरूरत पड़ने पर इन धन को खर्च करना उससे कही अधिक आवश्यक होती है +* मन से सोचे हुए काम किसी के सामने जाहिर करना खुद को लोगो के सामने हंसी का पात्र बनने के बराबर है यदि मन में ठान लिया है तो उसे मन में ही रखते हुए पूरे मन से करने में लग जाना ही बेहतर है। +* जिसे समय का ध्यान नही रहता है यह व्यक्ति कभी भी अपने जीवन के प्रति सचेत नही हो सकता है। +* धूर्त और कपटी व्यक्ति हमेसा हमे स्वार्थ के लिए ही दूसरे की सेवा करते है अतः इनसे हमेसा बचके ही रहना चाहिए। +* मित्रता सदा बराबर वालों से ही करना चाहिए अधिक धनी या निर्धन व्यक्ति से मित्रता कर लेने पर कभी कभी भरपाई करनी पड़ती है जो कभी भी सुख नही देती है। +* अपनी कमियों को कभी भी दूसरे के सामने नही बताना चाहिए। ये अपने लिए ही अहितकर हो सकता है। +विदुर के नीति के वचन +महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत के उद्योग पर्व में विदुर नीति का प्रसंगवस वर्णन हुआ है। उनकी नीतियों में मानवता के श्रेष्ठ सिद्धान्त भरे हुए हैं।मान्यता के अनुसार, जो विदुर नीति का पालन अपने जीवन में अपना लेता है तो संसार में उससे सुखी और कोई नहीं हो स्कता। +: अप्रिय अर्थात् कठोर बोलने वाला, किन्तु पथ्य अर्थात् सही मार्ग बताने वाला, हितकारी बोलने वाला वक्ता इस संसार में दुर्लभ होते हैं और साथ ही ऐसी वाणी सुनने वाले श्रोता भी दुर्लभ होते हैं । +: जो व्यक्ति सरदी-गरमी, अमीरी-गरीबी, प्रेम-धृणा इत्यादि विषय परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होता और तटस्थ भाव से अपना राजधर्म निभाता है, वही सच्चा ज्ञानी है । +: ऐश्वर्य या उन्नति चाहने वाले पुरुषों को नींद, तन्द्रा (उंघना डर, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घसूत्रता (जल्दी हो जाने वाले कामों में अधिक समय लगाने की आदत इन छ: दुर्गुणों को त्याग देना चाहिए। +मनुष्य को कभी भी सत्य, दान, कर्मण्यता, अनसूया (गुणों में दोष दिखाने की प्रवृत्ति का अभाव क्षमा तथा धैर्य – इन छः गुणों का त्याग नहीं करना चाहिए। +: ईर्ष्या करने वाला, घृणा करने वाला, असंतोषी, क्रोधी, सदा संकित रहने वाला और दूसरों के भाग्य पर जीवन-निर्वाह करने वाला – ये छः सदा दुखी रहते हैं। +: बुद्धि, कुलीनता, इन्द्रियनिग्रह, शास्त्रज्ञान, पराक्रम, अधिक न बोलना, शक्ति के अनुसार दान और कृतज्ञता – ये आठ गुण पुरुष की ख्याति बढ़ा देते हैं। +: ज्ञानी लोग किसी भी विषय को शीघ्र समझ लेते हैं, लेकिन उसे धैर्यपूर्वक देर तक सुनते रहते हैं। किसी भी कार्य को कर्तव्य समझकर करते है, कामना समझकर नहीं और व्यर्थ किसी के विषय में बात नहीं करते । +रहीम के नीति के दोहे + + +मनोरोगविज्ञान Psychiatry आयुर्विज्ञान की एक विशिष्ट शाखा है जिसमें मनोरोगों का अध्ययन, निदान, चिकित्सा और रोकथाम के उपाय किये जाते हैं। हिन्दी में इसे मनोविकारविज्ञान, मनोविकारचिकित्सा, मनोरोगचिकित्सा, मानसचिकित्सा आदि नामों से भी जाना जाता है। +: असमर्थता भयकारी होती है। और भय मानसिक रोगों का बीज है।) +रामचरितमानस के अनुसार मानस रोग +: सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है। उन व्याधियों से फिर और बहुत-से शूल उत्पन्न होते हैं। काम वात है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है। + + +* जो नास्तिक हैं उनको वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भगवान में विश्वाश करना चाहिए इसी में उनका हित है। ईश्वर चन्द्र विद्यासागर + + +अदलाई ईविंग स्टीवन्सन अमरीका के एक वकील, डिप्लोमेट और राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने अमरीका में विभिन्न पदों पर कार्य किया। वे संयुक्त राष्ट्रसंघ में अमरीका के राजदूत भी रहे। वे इल्लिनिओस प्रान्त के गवर्नर भी रहे। उनको अमरीका में बहुत ही रचनात्मक राजनेता के रूप में सम्मान प्राप्त था। +न्याय के स्वप्न का भ्रष्ट हो जाना साम्यवाद है। +कानून एक पेशा बिल्कुल नहीं है, बल्कि एक व्यावसायिक सेवा केंद्र और मरम्मत की दुकान है। +* किसी क्रांति को रोकने का समय इसकी शुरुआत में होता है, अंत में नहीं। +* राजनीतिज्ञ एक स्टेटमेन होता है जो अपने खुले मुंह से हर सवाल तक पहुंचता है। +* एक हजार मील की यात्रा एक कदम से शुरू होती है। इसलिए हमें अपनी पहुंच में रहे शांति के किसी भी काम को कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए, हालांकि वह छोटा ही क्यों न हो। +* यदि आपको लगता है कि आप घोड़े पर जोकर दिखते हैं, तो आपके लिए एक घुड़सवार दस्ते का नेतृत्व करना कठिन होगा। +* जो लोग आम जनता के दिमाग को भ्रष्ट करते हैं, वे उतने ही बुरे होते हैं, जो लोग सरकारी धन की चोरी करते हैं। +* मनुष्य सिर्फ शब्दों से नहीं जीता है, इस तथ्य के बावजूद कि उसे कभी-कभी इन्हें खाना पड़ता है। +* चापलूसी तबतक सही है जबतक आप इसे अपने अन्दर नहीं लेते हैं। +* सभी प्रगति उन लोगों से हुई है जो अलोकप्रिय पदों पर रहे हैं। +* इस ��िकुड़ी हुई दुनिया में, लोग अब अजनबियों के रूप में नहीं रह सकते हैं। +* प्रकृति मानव प्रजातियों के अस्तित्व के प्रति उदासीन है, जिसमें अमेरिकी भी शामिल हैं। +* यह आपके जीवन के वर्ष नहीं हैं, बल्कि आपके इन वर्षों में आपका जीवन कैसा रहा, यह मायने रखता है। +* अज्ञानता जिद्दी होती है और पूर्वाग्रह कठोर होता है। +* संपादक वह व्यक्ति होता है जो गेहूं को भूसे से अलग करता है और फिर उस भूसे को प्रिंट करता है। + + +एंड्र्यू कार्नेगी Andrew Carnegie 25 नवम्बर, 1835 अगस्त 1919) अमेरिका के एक बिज़नस साम्राज्य के निर्माता थे। वे कार्नेगी स्टील कंपनी के संस्थापक व अध्यक्ष, न्यूयॉर्क के कार्नेगी निगम के संस्थापक, अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए कार्नेगी एंडोमेंट के संस्थापक थे। +धनवान बनने का रास्ता यह है कि अपने सभी अण्डों को एक ही टोकरी में रख दो और फिर उस टोकरी को देखो। +आप किसी को एक सीढ़ी पर ऊपर धकेल नहीं सकते जब तक कि वह स्वयं ऊपर चढ़ने को तैयार न हो। +जो भी व्यक्ति सफल हुआ है, उसने एक लाइन को चुना है और निरंतर उसी में लगा रहा है। +पहले आदमी को सीप मिलता है, दूसरे को उसक खोल। +कोई भी आदमी एक महान नेता नहीं बन पायेगा यदि वह स्वयं सबकुछ करना चाहता है या काम करने का सारा क्रेडिट खुद प्राप्त करना चाहता है। +जहाँ थोड़ी हंसी है वहां सफलता भी कम होती है। +अपना कर्तव्य करो और थोड़ा सा और प्रयास करो और भविष्य खुद का ख्याल स्वयं रख लेगा। +जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं हम व्यक्ति क्या कर रहा है इसपर कम ध्यान देते हैं। हम सिर्फ देखते हैं कि वे क्या कर रहे हैं । + + +अर्नोल्ड अलोइस श्वार्जनेगर Arnold Alois Schwarzenegger 30 जुलाई 1947 स्थान ऑस्ट्रिया) अस्ट्रिया मूल के अमेरिकी राजनेता, बॉडी बिल्डर, अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, व्यापारी, और निवेशक हैं। वे कैलिफोर्निया के 38 वें राज्यपाल थे। +* असफलता एक विकल्प नहीं है। सबको सफल होना ही चाहिए। +* हमारे समाज में, महिलाएं जो बाधाओं को तोड़ देती हैं वे वही हैं जो सीमा की अनदेखी करती हैं। +* मेरा शरीर नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात के खाना की तरह है। मैं इसके बारे में सोचता नहीं, मैंने इसे सिर्फ पाया है। +* स्वतंत्रता अंततः अमेरिका के सैनिकों और महिलाओं के बलिदान से मिली है। +* सरकार का पहला कर्तव्य और सर्वोच्च दायित्व जनता की सुरक्षा है। +* भविष्य हरित ऊर्जा का है, यह सतत और नवीकरणीय है। +* मेरे पास एक निजी विमान है। लेकिन मैं पर्यावरण सम्मेलनों में वाणिज्यिक उड़ानों से जाता हूँ। +* पैसा आपको खुश नहीं कर सकता है। मेरे पास अभी 50 लाख डॉलर हैं, लेकिन मैं उतना ही खुश हूँ जितना कि 48 लाख डॉलर के वक्त था। +* शक्ति जीतने से नहीं आती है। आपका संघर्ष आपको सबल बनाता है। आप कठिनाइयों में जीते हैं हार नहीं मानते हैं, यही ताकत है। +* लोगों का विश्वास बहाल करने के लिए हमें सरकार के संचालन के तरीके में सुधार करना होगा। +* शरीर सौष्ठव किसी अन्य खेल की तरह ही है। सफल होने के लिए आपको अपने प्रशिक्षण, आहार और मानसिक दृष्टिकोण पर 100% समर्पित करना चाहिए। +* मेरे लिए जीवन लगातार बुभुक्षा है। जीवन का अर्थ है, न सिर्फ अस्तित्व में बने रहना, या जीवित रहना बल्कि आगे बढ़ना, कुछ पाना और जीत हासिल करना। +* मन की सीमा है। जब तक आपका मन यह नहीं सोचता है कि आप यह कर सकते हो जब तक आप सही में 100 प्रतिशत विश्वास करते हो। +* यह सरल है अगर यह थुलथुल (jiggles) है तो यह वसा है। +* जिम में मिले शारीरिक बाधा और जीवन में मिली शारीरिक बाधाएं जिससे आप लड़ते हो से ही आपके मजबूत चरित्र का निर्माण होता है। +* आपके स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा गतिविधियों पम्पिंग और हुम्पिंग है। +* मुझे अपनी फिल्मों के प्रत्येक चीजों से एक अभिरुचि है एक बंदूक। +* आरम्भ विस्तार से करें, उसे आगे फैलाएं और कभी वापस मुड़कर नहीं देखें। +* जिस चीज का भी हम सामना कर रहे होते हैं वह दुर्गम लग सकता है। लेकिन मुझे लगता है कि प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्धा के उन सभी वर्षों से मैंने कुछ सीखा है। मैंने उन सभी सेट और रेप्स से कुछ सीखा है जबकि मैं तो एक ओंस और वजन उठाने की सोच भी नहीं सकता था। हमने जो सीखा वह यह कि हम हमेशा हम जितना सोचते हैं उससे ज्यादा मजबूत होते हैं। +* दूसरों की मदद करें और कुछ वापस दें। मैं गारंटी देता हूँ कि जब आप सार्वजनिक सेवा जीवन में अपने चारों ओर दुनिया को बेहतर बनाते हैं, इसका सबसे बडा इनाम आपके जीवन का संवर्धन और इसे एक नया अर्थ मिलना है। + + +भक्तिकाल, हिन्दी साहित्य के इतिहास का एक महत्वपूर्ण कालखण्ड है। इसके विषय में अनेकानेक साहित्यकारों ने अपने विचार रखे हैं। +* कबीर ने अपनी झाड़-फटकर के द्वारा हिन्दुओं और मुसलमानों के कट्टरपन को दूर करने का जो प्रयास किया वह अधिकतर चिढ़ाने वाला सिद्ध हुआ, हृदय को स्पर्श करने वाला नहीं�� +* ज्ञानमार्ग की बातें कबीर ने हिंदू साधु-संन्यासियों से ग्रहण की जिनमें सूफियों के सत्संग से उन्होंने प्रेम तत्वों का मिश्रण किया। +* कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे पर उनकी प्रतिभा बड़ी प्रखर थी जिससे उनके मुंह से बड़ी चुटीली और व्यंग्य–चमत्कार पूर्ण बातें निकलती थी। +* कबीर तथा अन्य निर्गुण पंथी संतों के द्वारा अंतस्साधना में रागात्मिकता भक्ति और ज्ञान का योग तो हुआ है पर कर्म की दिशा वही रही जो नाथ पंथियों के यहाँ थी। +* कबीर की भाषा सधुक्कड़ी अर्थात् राजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली है। +* जिस प्रकार रामचरितमानस का गान करने वाले भक्त कवियों में तुलसीदास का स्थान सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार कृष्ण चरित गाने वाले भक्त कवियों में महात्मा सूरदास का।वास्तव में ये हिन्दी काव्यंगगन के सूर्य और चंद्र हैं। +* रामचरितमानस में तुलसी केवल कवि रूप में ही नहीं, उपदेशक के रूप में भी सामने आते हैं। +* रामचरितमानस को ‘लोगों के हृदय का हार’ कहा है। +* तुलसीदास जी उत्तरी भारत की समग्र जनता के हृदय मन्दिर में पूर्ण प्रतिष्ठा के साथ विराज रहे है। +* गोस्वामी जी की भक्ति पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता है उसकी सर्वांगपूर्णता। +* इनकी भक्ति रसभरी वाणी जैसे मंगलकारिणी मानी गई वैसी और किसी की नहीं। (तुलसीदास के संबंध में ) +* तुलसीदास जी अपने ही तक दृष्टि रखने वाले भक्त न थे बल्कि संसार को भी दृष्टि फैलाकर देखने वाले भक्त थे। +* तुलसीदास की रचना विधि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे अपनी सर्व़तोमुखी प्रतिभा के बल पर सबके सौंदर्य की परकाष्ठा अपनी दिव्य वाणी में दिखाकर साहित्य क्षेत्र में प्रथम पद के अधिकारी हुए। +* हिंदी कविता के प्रेमी मात्र जानते हैं कि उनका ब्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं का समान अधिकार था। ब्रजभाषा का जो माधुर्य हम सूरसागर में पाते हैं वहीं माधुर्य और भी संस्कृत रूप में हम गीतावली और कृष्णगीतावली में पाते थे। ठेठ अवधी की जो मिठास हमें जायसी की पद्मावत में मिलती है, वही जानकी मंगल,पार्वती मंगल,बरवै रामायण और रामलला नहछू में हम पाते हैं। यह सूचित करने की आवश्यकता नहीं है कि न तो सूर का अवधि पर अधिकार था और न जायसी का ब्रजभाषा पर। +* प्रेम और श्रृंगार का ऐसा वर्णन जो बिना किसी लज्जा और संकोच के सबके सामने पढ़ा जा सके, गोस्वामी जी का ही है। +* उन्होंने रचनानैपुण्य का भद्दा प्रदर्शन कहीं नहीं किया है और न वे शब्द चमत्कार आदि से खिलवाड़ों में फंसे हैं। तुलसीदास के बारे मे ) +* दोहावली के कुछ दोहे के अतिरिक्त और सर्वत्र भाषा का प्रयोग उन्होंने भावों और विचारों को स्पष्ट रूप से रखने के लिए किया है, कारीगरी दिखाने के लिये नहीं।उनकी – सी भाषा की सफाई और किसी कवि में नही मिलती। (तुलसीदास की भाषा के संबंध में ) +* हम नि:संकोच कह सकते हैं कि यह एक कवि ही हिन्दी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है। तुलसीदास के बारे मे ) +* गोस्वामीजी खानपान का विचार रखने वाले स्मार्त्त वैष्णव थे। +* प्रंबधकार कवि की भावुता का सबसे अधिक पता यह देखने से चल सकता है कि वह किसी आख्यान को अधिक मर्मस्पर्शी स्थलों को पहचान सका है या नहीं। तुलसीदास के बारे मे ) +* भ्रमरगीत सूर साहित्य का मुकुटमणि है। यदि वात्सल्य और श्रृंगार के पदों को निकाल भी दिया जाय तो हिन्दी साहित्य में सूर का नाम अमर रखने के लिए भ्रमरगीत ही काफी है। +* वात्सल्य और श्रृंगार के क्षेत्रों का जितना अधिक उद्घाटन सूर ने अपनी बन्द आँखों से किया उतना किसी और ने नहीं, इन क्षेत्रों का कोना-कोना झाँक आए हैं। +* श्रृंगार और वात्सल्य के क्षेत्र में जहाँ तक इनकी दृष्टि पहुँची वहाँ तक और किसी कवि की नहीं। +* सूरदास की रचना में संस्कृत की कोमलकांत पदावली और अनुप्रासों की छटा नहीं है जो तुलसी की रचना में दिखाई पड़ती है। +* सूर की बड़ी भारी विशेषता है नवीन प्रसंगों की उद्भावना। +* सूर ही वात्सल्य है, वात्सल्य ही सूर है +* सूरसागर में कृष्ण जन्म से लेकर श्री कृष्ण के मथुरा जाने तक की कथा अत्यंत विस्तार से फुटकल पदों में गाई गई है । भिन्न – भिन्न लीलाओं के प्रसंग को लेकर इस सच्चे रसमग्न कवि ने अत्यंत मधुर और मनोहर पदों की झड़ी सी बांधी दी है। +* यह रचना इतनी प्रगल्भ और काव्यपूर्ण है कि आगे होने वाले कवियों की श्रृंगार और वात्सल्य की उक्तियाँ सूर की जूठी सी जान पडती है। (सूरसागर के बारे में ) +* तुलसी के स्थान पर सूर का काव्यक्षेत्र इतना व्यापक नहीं है कि उसमें जीवन की भिन्न-भिन्न दिशाओं का समावेश हो जिस परिमित पुण्यभूमि में उनकी वाणी ने संचरण किया है उसका कोई कोना अछूता न छूटा। +* कबीर ने केवल भिन्न प्रतीत होती हुई परोक्ष सत्ता की एकता का आभास दिया था जबकि प्रत्यक्ष जीवन की एकता का दृश्य सामने रखने की आवश्यकता बनी हुई थी जो जायसी द्वारा पूरी की गई। +* प्रेमगाथा की परम्परा में पद्मावत सबसे प्रौढ़ और सरस है। +नूर मोहम्मद के बारे में +* सूफ़ी आख्यान काव्यों की अखंडित परम्परा की यहीं समाप्ति मानी जा सकती है। (नूर मुहम्मद कृत अनुराग बांसुरी के बारे में) +* नूर मोहम्मद फारसी के अच्छे आलिम थे और इनका हिंदी काव्यभाषा का भी ज्ञान ओर सब सूफी कवियों से अधिक था। +* नूर मुहम्मद को हिन्दी  भाषा में कविता करने के कारण जगह-जगह इसका सबूत देना पड़ा है कि वे इस्लाम के पक्के अनुयायी थे। +अन्य कवियों के बारे में +* कबीर के मुख से मूर्तिपूजा, तीर्थाटन,देवार्चन आदि का खंडन सुनकर इनका झुकाव ‘निर्गुण’ संतमत की ओर हुआ। (धर्मदास के संबंध में ) +* इनका डीलडौल बहुत अच्छा, रंग गोरा और रूप बहुत सुंदर था। इनका स्वभाव अत्यंत कोमल और मृदुल था। ये बाल ब्रह्मचारी थे और स्त्री की चर्चा से सदा दूर रहते थे । निर्गुणपंथियों में यही एक ऐसे व्यक्ति हुए थे,जिन्हें समुचित शिक्षा मिली थी और जो काव्यकला की रीति आदि से अच्छी तरह परिचित थे। सुंदरदास के संबंध में ) +* प्रेममार्ग का एक ऐसा प्रवीण और धीरज पथिक तथा जबादानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ है। (घनानंद के संबंध में ) +* इस कहानी के द्वारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत प्रेम का स्वरूप दिखाया है।  (कुतबन कृत मृगावती के बारे में ) +* इस परम्परा में मुसलमान कवि हुए हैं। केवल एक हिन्दू मिला है। (सूफी मत के अनुयायी सूरदास पंजाबी के संबंध में ) +* यहीं प्रेममार्गी सूफी कवियों की प्रचुरता की समाप्ति समझनी चाहिए।  (शेख नबी के बारे में ) +* जनता पर चाहे जो प्रभाव पड़ा हो पर उक्त गद्दी के भक्त शिष्यों ने सुन्दर-सुन्दर पदों द्वारा जो मनोहर प्रेम संगीत धारा बहाई उसने मुरझाते हुए हिंदू जीवन को सरस और प्रफुल्लित किया।  (श्री बल्लभाचार्य जी के संबंध में ) +* यह बड़े भारी कृष्णभक्त और गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के बड़े कृपापात्र शिष्य थे।  (रसखान के बारे में ) +* भारतीय धर्म–साधना के इतिहास में कबीर दास ऐसी महान विचारक एवं प्रतिभाशाली महाकवि है, जिन्होंने शताब्दियों की सीमा का उल्लंघन कर दीर्घकाल तक भारतीय जनता का पथ आलोकित किया और सच्चे अर्थों में जनजीवन का नायकत्व किया। +* उन्होंने कविता लिखने की प्रतिज्ञा करके कहीं पर कुछ नहीं लिखा और न उन्हें पिंगल अलंकारों का ज्ञान था तथापि उनमें काव्यानुभूति इतनी प्रबल एवं उत्कृष्ट थी कि वे सरलता के साथ महाकवि कहलाने के अधिकारी हैं। +* वे जन्म से विद्रोही,प्रकृति से समाज – सुधारक, कारणों से प्रेरित हो कर धर्म – सुधारक, प्रगतिशील दार्शनिक और आवश्यकतानुसार कवि थे। +जायसी की रचना ‘पद्मावत’ के बारे में +* ‘पद्मावत’ रोमांचक शैली का कथा- काव्य है। +* ‘पद्मावत’ को रूपक – काव्य भी कहा जाता है। +* कवितत्व एवं भावव्यंजना की दृष्टि से ‘पद्मावत’ उच्चकोटि का महाकाव्य है। +* गोस्वामी जी की रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता भाव वैविध्य, शैली वैविध्य और उक्ति वैविध्य +* जिस समय समसामयिक निर्गुण भक्त संसार की असारता का आख्यान कर रहे थे और कृष्णभक्त कवि अपने आराध्य के मधुर रूप का आलंबन ग्रहण कर जीवन और जगत के व्याप्त नैराश्य को दूर करने का प्रयास कर रहे थे, उस समय गोस्वामी जी ने मर्यादापुरुषोत्तम राम के शील,शक्ति और सौंदर्य से संवलित अद्भुत रूप का गुणगान करते हुए लोकमंगल की साधनावस्था को पथ को प्रशस्त किया। +* श्री वल्लभाचार्य के संपर्क में आने पर उन्हीं की प्रेरणा से सूरदास ने दास्य भाव और विनय के पद लिखना बंद कर दिया था तथा सख्य, वात्सल्य माधुर्य भाव पद रचना करने लगे। +* बाल- भाव और वात्सल्य से सने मातृहृदय के प्रेम – भावों के चित्रण में सूर अपना सानी नही रखते।बालक की विविध चेष्टाओं और विनोदों के क्रीड़ास्थल मातृहृदय की अभिलाषाओं,उत्कंठाओं और भावनाओं के वर्णन में सूरदास हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि ठहरते हैं। +* सूर की भक्ति पद्धति का मेरुदंड पुष्टिमार्गीय भक्ति है। +* सूरदास ने प्रेम और विरह के द्वारा सगुण मार्ग से कृष्ण को साध्य माना है। +* लौकिक रागात्मक संबंधों से दूर हट कर वे सच्चे कृष्णभक्त हो गए। नंददास के बारे में ) +* मधुर और परिचित शब्दों का चयन कवि की विशेषताएं है।नंददास को ‘जड़िया’ कहा जाता है, जिसका कारण उनका सुंदर एवं उपयुक्त शब्द चयन ही है। +अन्य कवियों के बारे में +* सुंदर तत्सम ललित पदावली से संयुक्त पदों को पढ़ कर कोई यह नहीं कह सकता है कि इस भक्त – कवि की मातृभाषा ब्रज के अतिरिक्त कोई दूसरा हो कृष्णादास के बारे में ) +* सत्रहवीं शती के मध्य संख्या की दृष्टि से सर्वाधिक प्रेमाख्यान की रचना करने का श्रेय जान कवि है। +* हरिदास निरंजनी संप्रदाय (प्रर्��तक – हरिदास निरंजनी) में को नाथ पंथ एवं संत मत की मध्यवर्ती कड़ी कहा जा सकता है। +* लालपंथ (प्रर्वतक – लालदास) में ‘राम’ ही श्रेष्ठ शक्ति है, वही आराध्य, वही ब्रह्म है। +* सुंदरदास की रचनाओं में भक्ति,योग – साधना और नीति को प्रधान स्थान प्राप्त हुआ है । श्रृंगार रस की रचनाओं के वे कट्टर विरोधी थे। +* शैली की दृष्टि से यह काव्य हिंदी प्रेमाख्यान – परंपरा का प्रथम प्रतिनिधि काव्य कहा जा सकता है। (हंसावली के संबंध में ) +हजारी प्रसाद द्विवेदी के कथन +* भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। +* हिंदी साहित्य के हजारों वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेकर उत्पन्न नहीं हुआ। +* पन्द्रहवीं शताब्दी में कबीर सबसे शक्तिशाली और प्रभावोत्पादक व्यक्ति थे। +* संयोग से वे ऐसे युग – संधि के समय उत्पन्न हुए थे, जिसे हम विविध धर्म – साधनाओं और मनोभावनाओं का चौराहा कह सकते हैं। +* वे मुसलमान होकर भी असल में मुसलमान नहीं थे। वे हिंदू होकर भी हिंदू नहीं थे। वे साधु होकर भी साधु (अगृहस्थ)नहीं थे।वे वैष्णव होकर भी वैष्णव नहीं थे। वे योगी होकर भी योगी नहीं थे। वे कुछ भगवान की ओर से ही सबसे न्यारे बनाकर भेजे गए थे। वे भगवान के नृसिंहावतार की मानो प्रतिमूर्ति थे। +* उन्हें सौभाग्यवश सुयोग भी अच्छा मिला था। जितने प्रकार के संस्कार पड़ने के रास्ते हैं, वे प्रायः सभी उनके लिए बन्द थे। +* कबीर में एक प्रकार घर फूंक मस्ती और पक्कड़ाना लापरवाही के भाव मिलते हैं। उनमें अपने – आपके ऊपर अखंड विश्वास था । उन्होंने कभी भी अपने ज्ञान को ,अपने गुरू को अपनी साधना को संदेह की दृष्टि से नहीं देखा। +* कबीर अपने युग के सबसे बड़े क्रांतदर्शी थे। +* कबीर जब पंडित या शेख पर आक्रमण करने को उद्यत होते है तो उतने सावधान नहीं होते जितने अवधूत या योगी पर आक्रमण करते समय दिखते हैं। +* हमने देखा है कि ब्रह्माचार पर आक्रमण करने वाले संतों और योगियों की कमी नहीं है,पर इस कदर सहज और सरल सरल ढंग से चकनाचूर करने वाली भाषा कबीर के पहले बहुत कम दिखाई दी है। +* व्यंग्य वह है, जहां कहने वाला अधरोष्ठों में हँस रहा हो और सुननेवाला तिलमिला उठा हो और भी कहने वाले को जवाब देना अपने की ओर भी उपहासस्पद् बना लेना हो कबीर ऐसे ही व्यंग्य कर्त्ता थे। +* ऐसे थे कबीर। सिर से पैर तक मस्त – मौला,स्वभाव में फक्कड़,आदत से अक्खड़,भक्त के सामने निरीह, भेषधारी के आगे प्रचण्ड, दिल के साफ, दिमाग के दुरुस्त,भीतर से कोमल, बाहर से कठोर, जन्म से अस्पृश्य,कर्म से वंदनीय। वे जो कुछ कहते थे अनुभव के आधार पर कहते थे इसलिए उनकी उक्तियॉ बंधने वाली और व्यंग्य चोट करने वाले होते थे। +* वात्सल्य भाव के काव्य के लिए सूरदास की बड़ी ख्याति है। +* सूरदास ने यदि राधिका के प्रेम को लेकर गीतिकाव्य की रचना न करके प्रबंध काव्य की रचना की होती तो आज असफल हुए होते हैं। +* गीतिकाव्यात्मक मनोरागों पर आधारित विशाल महाकाव्य ही सूरसागर है। +* प्रेम के इस स्वच्छ और मार्जित रूप का चित्रण भारतीय साहित्य में किसी और कवि ने नहीं किया। +* सूरदास जब अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे – पीछे दौड़ा करता है। उपमाओं की बाढ़ आ जाती है, रूपको की वर्षा होने लगती है। संगीत के प्रवाह में कवि स्वयं बह जाता है।वह अपने को भूल जाता है। +* सूरदास की गोपियों में जिस प्रकार का अशिक्षित पटुत्व और सारल्यगर्भ माधुर्य पाया जाता है, वैसा नंददास की गोपियों में नहीं पाया जाता। भ्रमरगीत में उद्धव के तर्कों को सुनकर वे शिथिलवाक् होकर परास्त नहीं हो जाती बल्कि आगे बढ़कर उत्तर देती है और तर्क को तर्क से काटने का प्रयत्न करती है। (नंददास के बारे में ) +* निर्गुण भाव के प्रत्याख्यान सूरदास ने भी कराया है और नन्ददास ने भी, पर सूरदास का एकमात्र अस्त्र प्रेमातिरेक है जबकि नन्ददास का सबसे अस्त्र है युक्ति और तर्क, फिर भी नन्ददास की रचनाओं में अपना मोहक सौंदर्य है। नन्ददास के बारे में ) +* माधुर्य भाव में अन्यान्य भक्त कवियों की भाँति मीरा का प्रेम निवेदन है और विरह व्याकुलता अभिमानाश्रित और अध्यंतरित नही है बल्कि सहज और साक्षात् संबंधित है। (मीरा के बारे में ) +* वह सहृदय को स्पंदित और चालित करती है और अपने रग में रंग डालती है। (मीरा के बारे में ) +* निस्संदेह इस कवि का हृदय मानवीय रस से परिपूर्ण और अनासक्त तथा अनाविल सौंदर्य दृष्टि से समृद्ध था। (रहीम के बारे में ) +* जीवन के अनेक घात प्रतिघात के भीतर से भी राजकीय षड्यंत्रों के चपेट में बार-बार आते रहने के बाद भी और हर प्रकार के उतार-चढ़ाव में उठते – गिरते रहने के बाद भी जिस कवि के हृदय का मानवीय रस निःशेष नही हुआ उसके हृदय की अद्भुत सरसता का अनुमान सह��� किया जा सकता है। (रहीम के बारे में ) +* तुलसीदास असाधारण शक्तिशाली कवि, लोकनायक और महात्मा थे। +* वे समन्वय की विशाल बुद्धि लेकर उत्पन्न हुए थे। +* भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है, जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर आया हो। +* तुलसी के काव्य की सफलता का एक और रहस्य उनकी अपूर्व समन्वय शक्ति में है। +* लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके। +अन्य कवियों के बारे में +* भगवान ने उन्हें रूप देने की बड़ी कंजूसी की थी किंतु शुद्ध निर्मल प्रेमपरायण हृदय देने में बड़ी उदारता से कम लिया था। (जायसी के बारे में ) +* कबीर के पूर्ववर्ती सिद्ध और योगी लोगों की आक्रमणात्मक उक्तियों में एक प्रकार की ‘हीन भावना की ग्रंथि’ या ‘इनफीरियारिटी कम्पलेक्स’ पाया जाता है। वे मानो लोमड़ी के खट्टे अंगूर की प्रतिध्वनि है, मानो चिलम न पा सकने वालों की आक्रोश है । उनमें तर्क है पर लापरवाही नहीं है, आक्रोश है पर मस्ती नहीं है, तीव्रता है पर मृदुता नहीं। (आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार) +* जिन भजनों में मधुर भाव बोलता दिखता हो उनके लेखक को रहस्र सुख के अधिकारी कहना ही उचित है। (सूरदास मनमोहन के संबंध में आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का कथन ) +==डॉ. बच्चन सिंह के कथन +* हिंदी प्रदेश में कबीर पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने संस्कृत को कूपजल और भाखा को बहता नीर कहा। +* हिंदी भक्ति काव्य का प्रथम क्रांतिकारी पुरस्कर्ता। +* कबीर के व्यक्तित्व में वह ताकत थी जिससे सामंती व्यवस्था की इन सरमायादारों की मूर्ति तोड़ने में वे एक सीमा तक सफल हुए। लेकिन इसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी। +* जनता में ऐसे शिष्ट और शिक्षित लोग भी मौजूद हैं जिनका कबीरदास कुछ नहीं बिगाड़ सकते। किन्तु बाबा तुलसीदास ऐसा प्रकाण्ड पंडित हो श्रेष्ठ कवि उनसे प्रभावित था। बाबा में कबीर के प्रति जो गुस्सा, झल्लाहट और खीज पैदा होती रहती थी वह देखने ही लायक है। +* संत कवियों में कबीर के बाद के कवि वैसे दिखाई ही पड़ते हैं जैसे चंद्रोदय के बाद नक्षत्रमालिकाएँ । +* तुलसी बड़े कवि है, उनका सौंदर्यबोध पारंपरिक और आदर्शवादी है। कबीर का सौंदर्यबोध अपारंपरिक और यथार्थवादी है। +* तुलसीदास ने जोखिम उठाकर भी संस्कृत को छोड़कर अवधी भाषा में लिखना आरंभ किया। +* रामभक्ति काव्य में तुलसी के बाहर जो कुछ है वह निस्तेज है,निष्प्रभ है। +* कबीर में ओज, अक्खड़ता और प्रखरता थी तो रैदास में शांति, संयम और विनम्रता। +* कबीर की विचारधारा के केंद्र में हिंदूओं – मुसलमानों का शोषित – प्रताड़ित वर्ग था तो रैदास के विचार केंद्र में चमारों और सर्वण हिंदुओं का भेदभाव। +* नानकदेव अकेले संत हैं जिन्होंने मुसलमान राजाओं- नवाबों का स्पष्ट विरोध किया। +* नानक पहले संत है जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध आवाज उठाई। +* सुंदरदास संत होने के साथ-साथ पढ़े – लिखे, भाषा तथा पिंगल की बारिकियों के अच्छे जानकार थे। +* संत – कवियों में सुंदरदास एकमात्र कवि हैं,जिन्हें पारंपरिक ढंग से शिक्षा मिली थी। +* इनकी कविता में तत्ववाद तो वही है जो कबीर और दादू का है, पर संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन के कारण उसमें सुथरापन आ गया है। (सुंदरदास के बारे में ) +* जायसी को अवधि ‘अवधी की अरघान’ है। +* जायसी का जो भी कुछ पढ़िये,अवधि की रस – गंध जरूर मिलेगी। +* जायसी की भाषा ठेठ अवधी है तो तुलसी की संस्कृतनिष्ट। यह अंतर दोनों विषय वस्तु में भी है। एक में लोककथा है इसलिए लोकभाषा, दूसरे में क्लासिकल कथा है इसलिए संस्कृतनिष्ठ भाषा। +* सूफी काव्य में एक ही कवि है जायसी,शेष लकीर के फकीर हैं। +* सूर के पद इतनी परिष्कृत और अनुशासनबध्द हैं कि वह ‘किसी चली आती हुई गीत – काव्य – परंपरा का – चाहे वह मौखिक ही हो – पूर्ण विकास – सा प्रतीत’ होते हैं। +* सूरदास की प्रतिभा का उत्कर्ष सूरदास के दसवें स्कंध में दिखाई पड़ता है। इसमें कृष्ण के बाल और यौवन की लीलाएं वर्णित हैं। +* इस बाललीला में स्वयं सूरदास का व्यक्तिगत रूप से सम्मिलित होना एक आधुनिक नाटकीय प्रविधि की तरह मालूम पड़ता है। इस प्रविधि में दर्शक स्वयं नाटक का एक पात्र बन जाता है। नाटक का रंगमंच तो नंद का घर है। उनका इस नाटक में शामिल ना वैसा ही मालूम पड़ता है, जैसा नाटक की प्रेक्षकों में से किसी दर्शक का उठकर कुछ कहते हुए मंच की ओर दौड़ पड़ना। +* शुक्ल जी ने इसे (गोपी – कृष्ण और राधा- कृष्ण के प्रेम को) ‘जीवनोत्सव’ कहा है और यदि कालिदास को कहना होता तो वह इसे असमाप्त प्रेमोत्सव कहते। +* जहां उद्धव संबोधित है वहां गोपियों उद्धव से सीधे शास्त्रास्त्र करती है। जहां भ्रमर को संबोधित किया है वहां पर व्यंग्योक्तियों की बाणवर्षा देखने ही लायक है। +* सूरसागर समाप्त होकर भी असमाप्त रहता है। +* सूर का भ्रमरगीत मुक्तकाव्य है तो नंद का प्रबंधात्मक। सूर में लोक का रंग है तो नंददास में शास्त्र का। सूरदास के भ्रमरगीत में गोपी – उद्धव के संवाद की स्थितियाँ कम हैं जबकि नंद के भ्रमरगीत में गोपियों – उद्धव संवाद का शास्त्रार्थ होता है – कथोपकथन के रूप में।सूर की गोपियाँ सरल- सहज है और नन्ददास की पंडित। सूर की भाषा ठेठ ब्रजी है और नन्ददास की संस्कृतनिष्ठ ब्रजी। +* शब्दों के प्रति सजग होने का नन्ददास को ‘जड़िया’ कहा जाता है। +* रसखान के ने कृष्णभक्ति काव्य की पद – परंपरा को छोड़कर कवित्त – सवैयों को मार्ग अपनाया। तुलसीदास उनके समसामयिक थे। उन्होंने रामकाव्य के लिए तो कवित्त – सवैयों को अपनाया पर कृष्णभक्ति के लिए पदों का ही प्रयोग किया। +* रसखान पहले कवि हैं जिन्होंने कवित्त – सवैयों में कृष्ण का गुणानुवाद किया। +* सूर और तुलसी में दरबारी कायदे दिखाई पड़ते हैं, पर रसखान उनसे मुक्त हैं। +* ब्रज की धरती,पशु – पक्षी, वन – बाग आदि के प्रति रसखान जैसा प्रेम सूर के अतिरिक्त किसी और में नहीं मिलता। +* कबीर का भक्ति आंदोलन विद्रोहमूलक (प्रोटेस्टेंट) है तो गोस्वामीजी का प्रतिरोधात्मक (रेजिस्टेंट)। +* आधुनिक शब्दावली में हनुमान बाहुक को मृत्यु–पीड़ा की चीख कहा जायेगा। +* अवधी और ब्रजभाषा पर तुलसीदासजी का पूर्ण स्वामित्व है, पर उनकी भाषा ने जायसी की ठेठ अवधी है और न सूर की ठेठ ब्रजी। +* रूपकों के बादशाह हैं गोस्वामीजी +* युगल प्रियाजी ने अग्रदास को सीता की प्रिय सखी चंद्रकला का अवतार कहते हैं। +* रसिक संप्रदाय (प्रर्वतक अग्रदास) में अग्रअली कहा जाता है। +* नाभादास ने अग्रदास को बाग–बगीचों का प्रेमी कहा है। +* तुलसी को मुगल काल का सबसे बड़ा व्यक्ति माना। (स्मिथ का कथन ) +* तुलसीदास जी अपने युग में भारत वर्ष के सबसे महान व्यक्ति थे। अकबर से भी बढ़कर इस बात में की करोड़ों नर – नारियों के हृदय पर प्राप्त हुई की हुई कवि की विजय सम्राट की एक या समस्त विजयों की उपेक्षा असंख्यगुनी अधिक चिरस्थायी और महत्वपूर्ण थी। (स्मिथ का कथन ) +* महात्मा बुद्ध के बाद भारत के सबसे बड़ेलोकनायक तुलसी थे। (जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार) +* आधुनिक काल में तुलसीदास जी के समान दूसरा ग्रंथ का नहीं हुआ।(जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार) +* तुलसी कलिकाल के वाल्मीकि हैं। (नाभादास का कथन ) +* जिस युग में कबीर, जायसी, तुलसी, सूर जैसे सुप्रसिद्ध कवियों और महात्माओं की दिव्यवाणी उनके अंतःकरणों से निकल कर देश के कोने-कोने में फैली थी, उसे साहित्य के इतिहास में सामान्यतः भक्तियुग कहते हैं। निश्चित ही वह हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग था। (श्यामसुन्दर दास का कथन ) +* कबीर में जैसे सामाजिक विद्रोह का तीखापन और प्रणयानुभूति की कोमलता एक साथ मिलती है, कुछ वैसा ही रचाव मुक्तिबोध में है। (रामस्वरूप चतुर्वेदी का कथन ) +* ग्रंथों में (भवतारण ग्रंथ) तो कबीर को सत्पुरुष का प्रतिरूप मानते हुए उन्हें सब युगों में वर्तमान कहा गया है।(डॉ.रामकुमार वर्मा के अनुसार) +* कबीर स्वाधीन विचार के व्यक्ति थे।(डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार) +* मिश्रबंधुओं ने ‘हिंदी नवरत्न’ में कबीर की रचनाओं की संख्या 75 मानी है। +* कबीर का जीवन काल उन्हें रामानंद, सिकंदर लोदी, पीपा, नानक आदि के समकालीन बना देता है। (डॉ. सरनाम सिह शर्मा के अनुसार) +* सूरदास की कविता में विश्वव्यापी राग सुनते हैं। वह राग मनुष्य के हृदय का सूक्ष्म उदगार है। (रामकुमार वर्मा का कथन) +* सूरदास की मृत्यु पर शोकविह्वल विट्ठलनाथ ने कहा था कि पुष्टिमार्ग का जहाज जात है सो जाको कछु लेना हो सो लेउ। +अन्य कवियों के बारे में +* रसखान आदि की भक्ति रीझकर भारतेन्दु ने लिखा था इन मुस्लिमन हरिजन पर कोटिन हिन्दुन ने वारिए"। +* मेरी जानकारी में बिहारी जैसी रचनाएँ यूरोप की किसी भी भाषा में नहीं पाई जाती। (जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार) + + +महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे जिन्होंने ‘सरस्वती’ पत्रिका का अठारह वर्षों तक सम्पादन कर हिन्दी पत्रकारिता में एक महान् कीर्तिमान स्थापित किया। वे हिन्दी के पहले व्यवस्थित समालोचक थे, जिन्होंने समालोचना की कई पुस्तकें लिखी थीं। वे खड़ी बोली हिन्दी की कविता के प्रारंभिक और महत्त्वपूर्ण कवि थे। आधुनिक हिन्दी कहानी उन्हीं के प्रयत्नों से एक साहित्यिक विधा के रूप में मान्यता प्राप्त कर सकी थी। वे भाषाशास्त्री थे, अनुवादक थे, वैय्याकरणिक थे, इतिहासज्ञ थे, अर्थशास्त्री थे तथा विज्ञान में भी गहरी रूचि रखने वाले थे। अन्ततः वे युगान्तर लाने वाले साहित्यकार थे या दूसरे शब्दों में कहें, युग निर्माता थे। वे अपने चिंतन और लेखन के द्वारा हिन्दी प्रदेश में नव जागरण पैदा करने वाले साहित्यकार थे। +द्विवेदी जी बहुभाषाविद् होने के साथ ही साहित्य क�� इतर विषयों में भी समान रूचि रखते थे। जनवरी, 1903 ई॰ से दिसम्बर, 1920 ई॰ तक इन्होंने ‘सरस्वती’ नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन कर एक कीर्तिमान स्थापित किया था, इसीलिए इस काल को हिन्दी साहित्येतिहास में ‘द्विवेदी-युग’ के नाम से जाना जाता है। +उनका जन्म 6 मई, 1864 ई॰ में हुआ था । उन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई की थी। तत्पश्चात् वे रेलवे में नौकरी करने लगे थे। उसी समय इन्होंने अपने लिए चार सिद्धांत निश्चित किये वक्त की पाबंदी करना, रिश्वत न लेना, अपना काम ईमानदारी से करना और ज्ञान-वृद्धि के लिए सतत प्रयत्न करते रहना। 1882 ई॰ से उन्होंने नौकरी प्रारम्भ की थी। नौकरी करते हुए वे अजमेर, बम्बई, नागपुर, होशंगाबाद, इटारसी, जबलपुर एवं झाँसी शहरों में रहे। इसी दौरान उन्होंने संस्कृत एवं ब्रजभाषा पर अधिकार प्राप्त करते हुए पिंगल अर्थात् छंदशास्त्र का अम्यास किया। उन्होंने अपनी पहली पुस्तक 1885 ई॰ में ‘श्रीमहिम्नस्तोत्र’ की रचना की, जो पुष्पदंत के संस्कृत काव्य का ब्रजभाषा में काव्य रूपान्तर है। +अदम्य साहस, निष्ठा, तर्कशीलता, विवेकशीलता और जोखिम महावीर प्रसाद द्विवेदी में कूट-कूट कर भरा था। इस चेतना और चिंतन का प्रसार उन्होंने हिन्दी प्रदेशों में किया। आजादी के पूर्व के जितने हिन्दी साहित्यकार हैं, प्रायः उन सभी में द्विवेदी जी के विद्रोही रूप का प्रभाव पड़ा। उनके बाद की पीढ़ी उनकी तरह ही ऐसे विद्रोही विचारों की पैदा हुई, जिसने प्रचलित मान्यताओं एवं धारणाओं की धज्जी उड़ाते हुए अपना महान् रचना-कार्य किया। प्रेमचंद, रामचन्द्र शुक्ल, मैथिली शरण गुप्त, राहुल सांस्कृत्यायन, शिवपूजन सहाय, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, उग्र, पंत, गणेश शंकर विद्यार्थी आदि बड़े साहित्यक व्यक्तित्वों को यदि गहराई से देखें तो द्विवेदी जी की छाप उनपर दिखाई पड़ेगी। +महावीर प्रसाद द्विवेदी की उक्तियाँ +* मुझे आचार्य की पदवी मिली है। क्यों मिली है, मालूम नहीं। कब, किसने दी है, यह भी मुझे मालूम नहीं। मालूम सिर्फ इतना ही है कि मैं बहुधा इस पदवी से विभूषित किया जाता हूँ। शंकराचार्य, मध्वाचार्य, सांरव्याचार्य आदि के सदृश किसी आचार्य के चरणरजः कण की बराबरी मैं नहीं कर सकता। बनारस के संस्कृत काॅलेज या किसी विश्वविद्यालय में भी मैंने कभी कदम नहीं रक्खा। फिर इस पदवी का मुस्तहक मैं कैसे हो गया  मई, 1933 ई॰ में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा उनकी सत्तरवीं वर्षगांठ पर बनारस में आयोजित उनके अभिनन्दन के अवसर पर द्विवेदी जी का ‘आत्म-निवेदन’ +* ज्ञान-राशि के संचित कोष का ही नाम साहित्य है। +* इस तरह की बातें किसी इतिहसकार के ग्रंथ में यदि पाई जायँ तो उसके इतिहास का महत्त्व कम हुए बिना नहीं रह सकता। इतिहास-लेखक की भाषा तुली हुई होनी चाहिए। उसे बेतुकी बातें न हाँकनी चाहिए। अतिशयोक्तियाँ लिखना इतिहासकार का काम नहीं। उसे चाहिए कि वह प्रत्येक शब्द, वाक्य और वाक्यांश के अर्थ को अच्छी तरह समझकर उसका प्रयोग करे। महावीर प्रसाद द्विवेदी, ‘हिन्दी-नवरत्न’ की समीक्षा में +* वेद के विषय में हम हिन्दुओं की श्रद्धा कुछ इतनी बढ़ गई है कि वेदों को भगवान् की वाणी कहते-कहते हमने उन्हें खुद भगवान् ही बना डाला है। हम बहुधा अखबारों में पढ़ते हैं अमुक शहर में ‘वेद भगवान्’ की सवारी निकली। अमुख तारीख को ‘वेदभगवान्’ का षोडशोपचारपूजन हुआ। महावीर प्रसाद द्विवेदी वेदों के प्रति हिन्दुओं में अन्धश्रद्धा की वृद्धि के बारे में +* यदि यह बात है तो इन सूक्तों में इन ऋषियों की निज की दशा का वर्णन कैसे आया ? ये मंत्र उनकी दशा के ज्ञापक कैसे हुए ? ऋग्वेद का कोई ऋषि कुवें में गिर जाने पर उसी के भीतर पड़े-पड़े स्वर्ग और पृथिवी आदि की स्तुति कर रहा है। कोई इन्द्र से कह रहा है, आप हमारे शत्रुओं का संहार कीजिए। कोई सविता से प्रार्थना कर रहा है कि हमारी बुद्धि को बढ़ाइए। कोई बहुत-सी गायें माँग रहा है, कोई बहुत-से पुत्र। कोई पेड़, सर्प, अरण्यानी, हल और दुन्दुभी पर मंत्र रचना कर रहा है। कोई नदियों को भला-बुरा कह रहा है कि ये हमें आगे बढ़ने में बाधा डालती हैं। कहीं माँस का उल्लेख है, कहीं सुरा का। कहीं द्यूत का। ऋग्वेद के सातवें मंडल में तो एक जगह एक ऋषि ने बड़ी दिल्लगी की है। सोमपान करने के अनन्तर वेद-पाठरत ब्राह्मणों की वेद-ध्वनि की उपमा आपने बरसाती मेंढ़कों से दी है। ये सब तों वेद के ईश्वर प्रणीत न होने की सूचक हैं। ईश्वर के लिए गाय, भैंस, पुत्र, कलत्र, दूध, दही माँगने की कोई जरूरत नहीं। यह ऋग्वेद की बात हुई। यजुर्वेद का भी प्रायः यही हाल है। सामवेद के मंत्र तो कुछ को छोड़ कर शेष सब ऋग्वेद ही से चुने गये हैं। रहा अथर्ववेद, सो यह तो मारण, मोहन, उच्चाटन और वशीकरण आदि मंत्रों से परिपूर्ण है। स्त्रियों को वश करने और जुवे में जीतने तक के मंत्र ऋग्वेद में हैं। न ईश्वर जुवा खेलता है, न वह स्त्रैण ही है और न वह ऐसी बातें करने के लिए औरों को प्रेरित ही करता है। ये सब मनुष्यों ही के काम हैं, उन्होंने वेदों की रचना की है। महावीर प्रसाद द्विवेदी का वेदमन्त्रों के रचनाकारों के बारे में +* वैदिक समय में भारतवासियों की सामाजिक अवस्था कैसी थी, वे किस तरह अपना जीवन निर्वाह करते थे, कहाँ रहते थे, क्या किया करते थे इन सब बातों का पता यदि कहीं मिल सकता है तो वेदों ही में मिल सकता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी +* इस बदले हुए जमाने में भी अभी तक पांडेय रामावतार शर्मा के सदृश कुछ ही स्वतंत्र स्वभाव के पंडित देख पड़ते हैं। स्वतंत्र स्वभाव से हमारा मतलब ऐसे स्वभाव वाले सज्जनों से है जो मन की बात, समाज की समझ के प्रतिकूल होने पर भी, निःशंक कह डालने का साहस कर सकें। महावीर प्रसाद द्विवेदी, पांडेय रामावतार शर्मा के बारे में +* इस महाकवि की इस कलियुग-वर्णना से एक बात और भी बड़े मार्के की मालूम हो सकती है। वेदों में बहुत पुराने जमाने की कुछ रूढ़ियों का उल्लेख है। वे रूढ़ियाँ उस समय रायज थीं। जन-समुदाय उन्हें सुदृष्टि से देखता था। आजकल वे कुदृष्टि से देखी जाती हैं। इसी से आजकल के कुछ वेदज्ञ उनका अर्थ उस समय के समाज के अनुसार करके अपनी विद्वता और वेदज्ञता प्रकट करते हैं। पांडित्य और वेद-ज्ञान में वे शायद अपने को श्रीहर्ष से भी सौगुना समझते होंगे। श्रीहर्ष के वर्णन से हम यदि इतना ही जान सकें कि वे वेद के कुछ संशयास्पद स्थलों का क्या अर्थ समझते थे, तो पुराने वेद-व्याख्याताओं की संख्या में एक की और वृद्धि हो जाय। महावीर प्रसाद द्विवेदी ‘श्रीहर्ष का कलियुग’ शीर्षक ललित निबन्ध में +* आपके वेदों में लिखा है कि यज्ञ करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। ज़रा बताइए तो सही, किसने-किसने यज्ञ करके स्वर्ग पाया है। वेदों में अगर लिखा हो कि पत्थर फेंकने से पानी पर तैरने लगते हैं तो क्या आप वेदों की इस उक्ति को सच मान लेंगे ? नहीं, तो आपने स्वर्ग-प्राप्ति की बात कैसे सच मान ली  आपके एक आचार्य वृहस्पति हो गये हैं। वे कहते हैं कि अग्निहोत्र, वेद-पाठ, तंत्रोक्त-क्रियाओं का साधन, त्रिपुण्ड धारण करना और ललाट पर त्रिपुण्ड लगाना उन लोगों के पेट पालने का साधन-मात्र है, जिनमें न अक्ल है, न पौरुष है और न खर्च करने के लिए जिनके पास ए��� छदाम ही है ! फिर क्यों तुम लोग इन शुष्क आडम्बरों के पीछे पड़कर लोगों को ठग रहे हो  वैदिक मान्यताओं का खण्डन करने एवं उनकी कुरीतियाँ दर्शाने के लिए महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा कलियुग-प्रसंग की पुनर्रचना में +: कुत्सित-कर्म-कुशल कुटिलों को अक्षरज्ञ उपजाता है। +: शुद्धाशुद्ध शब्द तक का है जिनका नहीं विचार, +: लिखवाता है उनके कर से नए-नए अखबार ! +इस कविता में पहले वेद जो नीरस, कर्कश, कटु हैं, उन्हें समेटकर ब्रह्मा को अपने अविचारों का सार सुनाने का आग्रह किया गया है और ब्रह्मा या विधाता की बनाई सृष्टि का मजाक उड़ाया गया है। जो धर्माचारी हैं, प्रायः वे दुराचारी हैं। अक्षरज्ञ यानी शिक्षित जन कुटिल होते हैं और गंदे कामों में लिप्त रहते हैं। अखबार निकालने वालों को सही भाषा-ज्ञान तक नहीं होता। धनी लोग मुर्ख और विद्वान् लोग निर्धन होते हैं। ऐसी बातें लिखने वाले का विरोध तो होगा ही। और उसपर ब्रह्मा तक को धिक्कार !) +: नहीं विराम-चिह्न तक रखना जिन लोगों को आता है। +: इस प्रदेश में वे ही पूरे ग्रंथकार कहलाते हैं। +: अन्य नाम से अखबारों में जो शतबार छपाते हैं +: ग्रंथकार-पद-योग्य सर्वथा वे ही समझे जाते हैं। +महावीर प्रसाद द्विवेदी, अगस्त, 1901 ई॰ की ‘सरस्वती’ में प्रकाशित ‘ग्रंथकार-लक्षण’ कविता में +द्विवेदी जी के अनुसार सही भाषा लिखनी तक नहीं आती और इधर-उधर से जोड़-बटोर कर यानी सामग्री जुटा कर लोग लेखक बन जाते हैं। उनकी पुस्तक को कोई पूछने वाला जब नहीं होता तो वे अपनी पुस्तक की स्वयं समीक्षा लिखकर छद्म नामों से अखबारों में छपा लेते हैं। वे अपनी प्रशंसा स्वयं ही किया करते हैं। वे ऐसे लेखक हैं जो किसी आलोचक की दहलीज पर सिर रगड़कर अपनी पुस्तक की आलोचना लिखवाते हैं।) +* आप रसिकों के शहनशाह हैं। महामारी का अस्पताल आपकी राजधानी है। पुलिस और पल्टन के गोरे आपके पताकाधारी नक़ीब हैं। डाक्टर आपके पार्षद हैं। सेग्रिगेशन कैम्प आपका क्रीड़ाकानन है। वहीं आप और आपके आश्रित लोग नाना प्रकार की क्रीड़ाएँ किया करते हैं। प्लेगस्तवन में +* अंतःकरण की वृत्तियों के चित्र का नाम कविता है। नाना प्रकार के विकारों के योग से उत्पन्न हुए मनोभाव जब मन में नहीं समाते तब वे आप ही आप मुख के मार्ग से बाहर निकलने लगते हैं, अर्थात् मनोभाव शब्दों का स्वरूप धारण करते हैं। वही कविता है। चाहे वह पद्यात्मक हो, चाहे गद्यात्मक। महावीर प्रसाद द्विवेदी, दिसम्बर, 1903 की ‘सरस्वती’ में ‘कविता’ शीर्षक वाले निबन्ध में +* किसी प्रभावोत्पादक लेख, बात या वक्तृता का नाम कविता है। जिस पद्य के पढ़ने या सुनने से चित्त पर असर नहीं होता, वह कविता नहीं है। तुकबन्दी और अनुप्रास कविता के लिए अपरिहार्य नहीं। कवि का सबसे बड़ा गुण नयी-नयी बातों का सूझना है। उसके लिए कल्पना की बड़ी जरूरत है। जो बात एक असाधारण और निराले ढंग से शब्दों के द्वारा इस तरह प्रकट की जाय कि सुनने वाले पर उसका कुछ न कुछ असर जरूर पड़े, उसी का नाम कविता है। आगे वे बताते हैं कि कवियों को प्रकृति-विकास को खूब ध्यान से देखना चाहिए। महावीर प्रसाद द्विवेदी ‘कवि और कविता’ निबन्ध में +* कवि का काम न तो शिक्षा देना है, न दार्शनिक तत्त्वों की व्याख्या करना है। उसके हृदय से वह ज्ञान उद्गत होना चाहिए, जिससे समस्त मानव-जाति की हृतंत्री में विश्व-वेदना का स्वर बज उठे। +* प्राचीन काल में सभी कवि प्रकृति की देदीप्यमान शक्तियों का गान करते हैं। इसके बाद कवि वीरों का यशोगान करते हैं। इसके बाद नाटकों की सृष्टि होती है, फिर शृंगार-रस पर काव्य-रचना होती है, भाषा का माधुर्य बढ़ता है, अलंकारों की ध्वनि सुन पड़ती है और पद-नैपुण्य प्रदर्शित किया जाता है। इसके बाद सांसारिक विषयों से घृणा होती है। भक्ति के उन्मेष में कोई प्रकृति का आश्रय लेता है, कोई प्राचीन आदर्शों का। +* बाह्य प्रकृति के बाद मनुष्य अपने अन्तर्जगत की ओर दृष्टिपात करता है। तब साहित्य में कविता का रूप परिवर्तित हो जाता है। कविता का लक्ष्य ‘मनुष्य’ हो जाता है। संसार से दृष्टि हटा कर कवि व्यक्ति पर ध्यान देता है। तब उसे आत्मा का रहस्य ज्ञात होता है। वह सान्त (स अन्त) में अनन्त का दर्शन करता है और भौतिक पिण्ड में असीम ज्योति का आभास पाता है। +* अभी तक वह मिट्टी में सने हुए किसानों और कारखाने से निकले हुए मैले मजदूर को अपने काव्य का नायक बनाना नहीं चाहता था। वह राजस्तुति, वीरगाथा अथवा प्रकृति-वर्णन में लीन रहता था। परन्तु अब वह क्षुद्रों की भी महत्ता देखेगा और तभी जगत् का रहस्य सबको विदित होगा। जगत् का रहस्य क्या है, इस पर एक ने कहा है कि असाधारण में यह रहस्य नहीं है। जो साधारण है वही रहस्यमय है, वही अनन्त सौंदर्य से युक्त है। इसी सौंदर्य को स्पष्ट कर देना भविष्य-कवियों का काम होगा। +* क्षीण शक्ति और राजनीतिक स्वत्व से हीन हिन्दू भगवान का आश्रय खोजे और भक्तिरस के काव्यों में तल्लीन हो जाय तो आश्यर्च नहीं। महावीर प्रसाद द्विवेदी, ‘कविता का भविष्य’ निबन्ध में भक्तिकाव्य के अम्युदय के सन्दर्भ में (सन १९२० में) +* राज्याश्रय मिलने की देरी, राजाओं को सब प्रकार की नायिकाओं के रसास्वादन का आनन्द चखाने के लिए कविजी की देरी नहीं। दस वर्ष की अज्ञात यौवना से लेकर पचास वर्ष की प्रौढ़ा तक सूक्ष्म से सूक्ष्म भेद बतलाकर और उनके हाव-भाव, विलास आदि की सारी दिनचर्या वर्णन करके कविजन संतोष नहीं करते थे। दुराचार में सुकरता के लिए दूती कैसी होनी चाहिए, मालिन, नाइन, धोबिन में से इस काम के लिए कौन सबसे प्रवीण होती है, इन बातों का भी वे निर्णय करते थे। नायक के सहायक बिट और चेटक आदि का वर्णन करने में भी वे नहीं चूकते थे। इस प्रकार की पुस्तकों अथवा कविताओं का बनना अभी बन्द नहीं, वे बराबर बनती जाती हैं। महावीर प्रसाद द्विवेदी, ‘नायिका भेद’ नामक निबन्ध में, जो ‘सरस्वती’ के जून, 1901 ई॰ के अंक में छपा था +* प्रकृत कवि क्या नहीं कर सकता ? वह रोते हुओं को हँसा सकता है, सोते हुओं को जगा सकता है, देशद्रोहियों को देशभक्त बना सकता है और मार्ग-भ्रष्टों को सुमार्ग में ला सकता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी, जनवरी, 1926 ई॰ में 'कविकिंकर' नाम से ‘सरस्वती’ में ‘कवि-सम्मेलन’ शीर्षक के एक लेख में +* अब उर्दू कवियों और मुशायरों की देखा-देखी हिन्दी के भी कवियों के खूब सम्मेलन हो रहे हैं और समस्या-पूर्तियों का तूफान-सा आ रहा है। +* ब्रजभाषा की कविता के पक्षपातियों को जानना चाहिए कि अब उसका समय गया। उसका तिरोभाव अवश्यंभावी है। अब वह पुरानी प्राकृत भाषाओं के काव्य और साहित्य की तरह केवल पुस्तकों में ही पायी जायेगी। समय को उसकी चाह नहीं। यह बात हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं। +* दलबन्दी भारत के भाग्य ही में लिख-सी गयी है। देखिए न, लिबरल, इंडिपेंडेंट, स्वराजिस्ट सभी आपस में दलबन्दी कर रहे हैं। दल के भीतर दल पैदा हो रहे हैं। फिर कवि यदि अपने फ़िरके अलग-अलग बनावें तो क्या आश्यर्च  भारत की राजनीतिक पार्टियों पर व्यंग्य करते हुए +महावीर प्रसाद द्विवेदी के बारे में उक्तियाँ +* उनके सुदृढ़ विशाल और भव्य कलेवर को देखकर दर्शक पर सहसा आतंक छा जाता था और यह प्रतीत होने लगता था कि मैं एक महान् ज्ञानराशि के नीचे आ गया हूँ। आचार्य किशोरी दास वाजपेयी +* द्विवेदीजी ने अपने साहित्यिक जीवन के आरम्भ में पहला काम यह किया कि उन्होंने अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। उन्होंने जो पुस्तक बड़ी मेहनत से लिखी और जो आकार में उनकी और पुस्तकों से बड़ी है, वह ‘सम्पत्तिशास्त्र’ है। अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के कारण द्विवेदी जी बहुत-से विषयों पर ऐसी टिप्पणियाँ लिख सके जो विशुद्ध साहित्य की सीमाएँ लाँघ जाती हैं। इसके साथ उन्होंने राजनीतिक विषयों का अध्ययन किया और संसार में जो महत्त्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएँ हो रही थीं, उन पर उन्होंने लेख लिखे। राजनीति और अर्थशास्त्र के साथ उन्होंने आधुनिक विज्ञान से परिचय प्राप्त किया और इतिहास तथा समाजशास्त्र का अध्ययन गहराई से किया। इसके साथ भारत के प्राचीन दर्शन और विज्ञान की ओर इन्होंने ध्यान दिया और यह जानने का प्रयत्न किया कि हम अपने चिंतन में कहाँ आगे बढ़े हुए हैं और कहाँ पिछड़े हैं। इस तरह की तैयारी उनसे पहले किसी सम्पादक या साहित्यकार ने न की थी। परिणाम यह हुआ कि हिन्दी प्रदेश में नवीन सामाजिक चेतना के प्रसार के लिए वह सबसे उपयुक्त व्यक्ति सिद्ध हुए। डाॅ॰ रामविलास शर्मा +* द्विवेदीजी ने सन् 1903 ई॰ में ‘सरस्वती’ के सम्पादन का भार लिया। तब से अपना सारा समय लिखने में ही लगाया। लिखने की सफलता वे इस बात में मानते थे कि पाठक भी उसे बहुत-कुछ समझ जायँ। कई उपयोगी पुस्तकों के अतिरिक्त उन्होंने फुटकल लेख भी बहुत लिखे। पर इन लेखों में अधिकतर लेख ‘बातों के संग्रह’ के रूप में ही है। भाषा के नूतन शक्ति चमत्कार के साथ नए-नए विचारों की उद्भावना वाले निबन्ध बहुत ही कम मिलते हैं। स्थायी निबन्धों की श्रेणी में दो चार ही लेख, जैसे ‘कवि और कविता’, ‘प्रतिभा’ आदि आ सकते हैं। पर ये लेखनकला या सूक्ष्म विचार की दृष्टि से लिखे नहीं जान पड़ते। ‘कवि और कविता’ कैसा गम्भीर विषय है, कहने की आवश्यकता नहीं। पर इस विषय की बहुत मोटी-मोटी बातें बहुत मोटे तौर पर कही गई है। रामचन्द्र शुक्ल (हिन्दी साहित्य का इतिहास में) +* यद्यपि द्विवेदीजी ने हिन्दी के बड़े बड़े कवियों को लेकर गम्भीर साहित्य समीक्षा का स्थायी साहित्य नहीं प्रस्तुत किया, पर नई निकली पुस्तकों की भाषा की खरी आलोचना करके हिन्दी साहित्य का बड़ा भारी उपकार किया। यदि द्विवेदी जी न उठ खड़े होते तो जैसा ���व्यवस्थित, व्याकरणविरुद्ध और ऊटपटाँग भाषा चारों और दिखाई पड़ती थी, उसकी परम्परा जल्दी न रुकती। उसके प्रभाव से लेखक सावधान हो गए और जिनमें भाषा की समझ और योग्यता थी उन्होंने अपना सुधार किया। रामचन्द्र शुक्ल +* पण्डित महावीर प्रसाद द्विवेदी के स्पष्टवादिता से भरे हुए और नयी प्रेरणा देने वाले निबन्ध यद्यपि बहुत गंभीर नहीं कहे जा सकते, परन्तु उन्होंने गम्भीर साहित्य के निर्माण में बहुत सहायता पहुँचाई। हजारीप्रसाद द्विवेदी ‘हिन्दी साहित्य: उद्भव और विकास’ 1952 ई॰ ) +: दिशि-दिशि की अनुभूति, ज्ञान-विज्ञान निरंतर +* आज हम जो कुछ भी हैं, उन्हीं (महावीर प्रसाद द्विवेदी) के बनाए हुए हैं। यदि पं॰ महावीर प्रसाद द्विवेदी न होते तो बेचारी हिन्दी कोसों पीछे होती समुन्नति की इस सीमा तक आने का उसे अवसर ही नहीं मिलता। उन्होंने हमारे लिए पथ भी बनाया और पथ-प्रदर्शक का काम भी किया। प्रेमचंद, ‘हंस’ के द्विवेदी जी पर विशेषांक में, 1933 ई॰ +* द्विवेदीजी का व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली है। मुखमण्डल पर दृष्टि डालते ही यह बात स्पष्ट मालूम हो जाती है कि उनमें रचनात्मकता कूट-कूट कर भरी हुई है, वे सच्चे युग-प्रवर्तक हैं, उनमें क्रांति ले आने की विलक्षण क्षमता है। उन्नत ललाट, घनी भौंहें, रोबदार मूँछें, रसभरी गंभीर आँखें और जलद-गंभीर वाणी उनकी विशिष्टता ज्ञापित करती है और देखने से ऐसा मालूम पड़ता है मानो किसी ऐसे व्यक्ति के पास हैं जो हमारे लिए हमारे बीच भेजा गया है जो सब तरह से हमारा ही है। हमारे लिए उन्होंने वह तपस्या की है, जो हिन्दी साहित्य की दुनिया में बेजोड़ ही कही जाएगी। किसी ने हमारे लिए इतना नहीं किया, जितना उन्होंने। वे हिन्दी के सरल सुन्दर रूप के विधायक बने, हिन्दी साहित्य में विश्व-साहित्य के उत्तमोत्तम उपकरणों का उन्होंने समावेश किया, दर्जनों कवि, लेखक और संपादक बनाये। जिसमें कुछ प्रतिभा देखी उसी को अपना लिया और उसके द्वारा मातृभाषा की सच्ची सेवा कराई। हिन्दी के लिए उन्होंने अपना तन, मन, धन सब कुछ अर्पित कर दिया। हमारी उपस्थित उपलब्धि उन्हीं के त्याग का परिणाम है। प्रेमचंद +* द्विवेदी जी का जीवन साहित्य, साधना और तप का जीवन है। साहित्य की लगन का कितना ऊँचा आदर्श है। कहाँ से क्या लें और उसे किस तरह अच्छे-से-अच्छे रूप में संसार को दें, यही धुन है। जनहित का कोई अंग उनसे ��हीं छूटा। जहाँ कोई उपयोगी चीज देखी, चाहे वह पुरातत्त्व से संबंध रखती हो, या दर्शन से, या भाषा-विज्ञान से, या प्राकृतिक दृश्यों से, उसे पाठकों के लिए संकलन करना उनका कत्र्तव्य था। वह जिस चीज को पढ़कर स्वयं आनंदित होते थे, उसका रस पाठकों को चखाना एक लाजिमी बात थी। ‘सरस्वती’ की फाइल उठाकर द्विवेदी जी की संपादकीय टिप्पणियाँ देखिए, विविध ज्ञान का भंडार है। ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर द्विवेदीजी ने न लिखा हो, गहरे से गहरे तात्त्विक विवेचन और साधारण-से-साधारण दंतकथाएँ तक आपको उनमें मिलेंगी, और आप उस व्यक्ति के ज्ञान-विस्तार पर चकित हो जाएँगे। और यह काम किसी विद्या और ज्ञान के केन्द्र में बैठकर नहीं, एक गाँव की एकांत कुटिया में होता था। साहित्य की वह छटा उसी कुटिया से निकलकर, हिन्दी-संसार को आलोकित कर देती थी। प्रेमचन्द मई, 1933 के ‘हंस’ के सम्पादकीय में +* उस दिन उनका प्रयाग में, कैसा अभूतपूर्व स्वागत हुआ था ! देश के कोने-कोने से राष्ट्रभाषा के पुजारी, अपने इष्टदेव के चरणों में श्रद्धा के स्नेहमय फूल चढ़ाने के लिए उनकी एक झलक से अपने जीवन को सफल बनाने के लिए उमड़ पड़े थे। वह उस दिन कैसा भव्य लगते थे ! कभी उनके मुखमण्डल पर वृहस्पति का पाण्डित्य प्रतिबिम्बित हो उठता था, तो कभी सरस्वती की प्रतिभा ! सहस्रों साहित्यसेवियों के बीच में वह भोले-भाले, दम्भहीन, विनयशील महापुरुष हीरे की तरह चमक रहे थे। वह हिन्दी भाषा के प्रकाण्ड पंडित हैं। हिन्दी-भाषा के सर्वश्रेष्ठ संपादक, समालोचक और लेखक हैं। हिन्दी भाषा कैसे लिखी जाती है, यह उन्होंने लिखकर दिखा दिया, पत्र का सम्पादन कैसे किया जाता है, यह उन्होंने स्वयं सम्पादन करके बता दिया, समालोचना क्या वस्तु है, यह उन्होंने अपनी समालोचनाओं द्वारा व्यक्त कर दिया। वह आधुनिक हिन्दी के निर्माता हैं। विधाता हैं। सर्वस्व हैं। वह राष्ट्रभाषा हिन्दी के मूर्तिमान स्वरूप हैं। उन्हें लोग आचार्य कहते हैं वह सचमुच आचार्य हैं। आधुनिक हिन्दी की उन्नत्ति और विकास का अधिकांश श्रेय उन्हीं आचार्य को है। वह तो अपने को राष्ट्रभाषा के विनम्र सेवक बतलाते हैं, राष्ट्रभाषा उन्हें अपना निर्माता कहकर पुकारती है। दोनों एक-दूसरे के अनन्य भक्त हैं, प्रगाढ़ प्रेमी हैं। हम दोनों ही के उपासक हैं। राष्ट्रभाषा हमें प्राणों से प्यारी है, आचार्य भी हमें उतने ही प्रिय हैं। वह इतने बड़े होकर भी हमसे कितने प्यार से बोलते हैं। वह इतने ऊँचे होकर भी हम तुच्छ साहित्य-सेवियों से किस स्नेह से मिलते हैं ! यह उनकी उदारता है, बड़प्पन है। वह हमें पथभ्रष्ट होते देख चुमकारकर, बड़े मधुर शब्दों में, चेतावनी देते हैं कभी रौद्र-रूप धारण कर झिड़की नहीं देते। वह हमें गलती करते देख कटु शब्द नहीं कहते, वरन् बड़े प्यार से हमें सावधान करते तथा हमारी भूल संशोधन करते हैं। हिन्दी-संसार ने ऐसे असाधारण, असामान्य तथा अलौकिक व्यक्ति की जयन्ती मनाकर वास्तव में अपना आदर किया है। आचार्य सचमुच आदर तथा उपासना के पात्र हैं। वह चिरायु हों, अमर हों, हमारी परमेश्वर से यही प्रार्थना है। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' ने ‘सुधा’ के जुलाई, 1933 के अंक में मई, 1933 ई॰ में ही हिन्दी साहित्य सम्मेलन और इंडियन प्रेस के सहयोग से प्रयाग के ‘द्विवेदी-मेला’ की भव्यता के बारे में + + +: जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है +: यदि कोई चन्दन की बहुत अधिक घिसाई करे, तो उससे भी आग प्रकट हो जाएगी। + + +अतिवाद या चरमपन्थ Extremism) वह विचारधारा (मुख्यतः राजनीतिक या मजहबी) है जो समाज के स्वीकार्य मानकों से बहुत अधिक या बहुत कम हो। +* स्वतंत्रता की रक्षा करने में अतिवादी होने में कोई दोष नहीं है, न्याय करने में अतिवादी न होना कोई गुण नहीं है। बैरी गोल्डवाटर + + +डॉ रामकुमार वर्मा हिन्दी के प्रसिद्ध सहित्यकार थे। +* जिस देश के पास हिंदी जैसी मधुर भाषा है वह देश अंग्रेज़ी के पीछे दीवाना क्यों है? स्वतंत्र देश के नागरिकों को अपनी भाषा पर गर्व करना चाहिए। हमारी भावभूमि भारतीय होनी चाहिए। हमें जूठन की ओर नहीं ताकना चाहिए। +* सिद्ध साहित्य का महत्व इस बात में बहुत अधिक है कि उससे हमारे साहित्य के आदिरूप की सामग्री प्रामाणिक ढंग से प्राप्त होती है। चारणकालीन साहित्य तो केवल मात्र तत्कालीन राजनीतिक जीवन की प्रतिच्छाया है। यह सिद्ध साहित्य शताब्दियों से आनेवाली धार्मिक और सांस्कृतिक विचारधारा का स्पष्ट रूप है। संक्षेप में जो जनता नरेशों की स्वेच्छाचारिता पराजय या पतन से त्रस्त होकर निराशावाद के गर्त में गिरी हुई थी, उसके लिए इन सिद्धों की वाणी ने संजीवनी का कार्य किया। +* चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। +* ग्रन्थों में (भवतारण ग्रंथ) तो क���ीर को सत्पुरुष का प्रतिरूप मानते हुए उन्हें सब युगों में वर्तमान कहा गया है। +* कबीर स्वाधीन विचार के व्यक्ति थे। +* दुःख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। +रामकुमार वर्मा के बारे में उक्तियाँ +* डॉ. रामकुमार वर्मा रहस्यवाद के पंडित हैं। उन्होंने रहस्यवाद के हर पहलू का अध्ययन किया है। उस पर मनन किया है। उसको समझना हो और उसका वास्तविक और वैज्ञानिक रूप देखना हो तो उसके लिए श्री वर्मा की ‘चित्ररेखा’ सर्वश्रेष्ठ काव्य ग्रंथ होगा। भगवतीचरण वर्मा + + +* तुम किसी ऐसे धर्म के साथ सौमनस्य से रह सकते हो जिसका सिद्धान्त सहिष्णुता है। किन्तु ऐसे धर्म के साथ शांति से रहना कैसे सम्भव है जिसका सिद्धांत है “मैं तुम्हें बर्दाश्त नहीं करूँगा”? तुम वैसे लोगों के साथ कैसे एकता रख सकते हो? निश्चय ही, हिन्दू-मुस्लिम एकता इस आधार पर तो नहीं बन सकती कि मुसलमान तो हिन्दुओं को धर्मांतरित कराते रहेंगे जब कि हिन्दू किसी मुसलमान को धर्मांतरित नहीं कराएंगे।… मुसलमानों को हानिरहित बनाने का एक मात्र उपाय संभवतः यही है कि वे अपने मजहब पर उन्मादी विश्वास छोड़ दें। अरविन्द घोष 23 जुलाई 1923, सांध्य वार्ताओं में +* मुसलमान लोग इस दृष्टि से सबसे अधिक संकुचित और संप्रदायवादी हैं। उन का घोष-वाक्य है, “अल्लाह केवल एक है और मुहम्म्द उस का पैगंबर है।” उस के अतिरिक्त जो कुछ है वह न केवल बुरा है, अपितु नष्ट हो जाना चाहिए। इस घोष-वाक्य पर आस्था न रखने वालों को तुरन्त ध्वस्त कर देना चाहिए। जो पुस्तक उन से भिन्न उपदेश देती है उसे जला देना चाहिए। पाँच सौ वर्षों तक प्रशान्त महासागर से अटलांटिक महासागर तक रक्त की धारा बहाई गई, यही है इस्लामवाद। स्वामी विवेकानन्द 1900 में, पसेडेना, कैलिफोर्निया में एक व्याख्यान में +* इस से इंकार करना विवेक विरुद्ध है कि इस्लाम एक तालाब है जिस में हम सब डूब रहे हैं। अपनी जमीन की रक्षा न करना, अपने घर, अपने बच्चों, अपना आत्मसम्मान, अपने सारतत्व की रक्षा न करना विवेक विरुद्ध है। मूर्खतापूर्ण या बेईमानी भरे झूठ को स्वीकार करना, जो सूप में आर्सेनिक की तरह हमें परोसे जा रहे हैं, विवेक विरुद्ध है। कायरता या आलस्य के कारण हार मान लेना, आत्मसमर्पण कर देना विवेक विरुद्ध है। यह सोचना भी विवेक विरुद्ध है कि ट्रॉय की आग अपने-आप या मैडोना के ��मत्कार से बुझ जाएगी। इसलिए सुनो मेरी बात, मैं तुमसे विनती करती हूँ! मेरी बात सुनो, क्योंकि मैं मजे के लिए या पैसे के लिए नहीं लिखती। मैं कर्तव्य के रूप में लिख रही हूँ। ऐसा कर्तव्य जो मेरी जिंदगी की कीमत पर हो रहा है। और कर्तव्यवश ही मैंने इस ट्रेजेडी पर इतना विचारा है। पिछले चार वर्षों से मैंने इस्लाम और पश्चिम का, उन के अपराध और हमारी भूलों का विश्लेषण करने के सिवा कुछ नहीं किया है। अर्थात्, वह युद्ध लड़ना जिससे हम अब और नहीं बच सकते। उसके लिए, मैंने अपना वह उपन्यास लिखना तक किनारे कर दिया, वह पुस्तक जिसे मैं ‘मेरा बच्चा’ कहती थी। इस से भी बुरा यह कि मैंने अपनी परवाह छोड़ दी, अपना जीवन। उस विंदु पर जब मेरा जीवन बहुत कम शेष बचा है। और मैं यह सोचते हुए मरना चाहूँगी कि यह बलिदान कुछ काम का रहा। ओरियाना फलासी, 2003 में लिखित पुस्तक ‘फोर्स ऑफ रीजन’ में। +इस्लाम और मुसलमान पर भीमराव अम्बेडकर के विचार +* मुस्लिम आक्रान्ता निःसंदेह हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा के गीत गाते हुए आए थे। परन्तु वे घृणा का गीत गाकर और मार्ग में कुछ मंदिरों को आग लगाकर ही वापस नहीं लौटे। ऐसा होता तो वरदान माना जाता। वे इतने ही नकारात्मक परिणाम से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने तो भारत में इस्लाम का पौधा रोपा। इस पौधे का विकास बखूबी हुआ और यह एक बड़ा ओक का पेड़ बन गया। +* मुसलमान कभी भी मातृभूमि के भक्त नहीं हो सकते। हिन्दुओं से कभी उनके दिल मिल नहीं सकते। देश में रह कर शत्रुता पालते रहने की अपेक्षा उन्हें अलग राष्ट्र दे देना चाहिए। भारतीय मुसलमानों का यह कहना है कि वे पहले मुसलमान हैं और फिर भारतीय हैं। उनकी निष्ठाएं देश-बाह्य होती हैं। देश से बाहर के मुस्लिम राष्ट्रों की सहायता लेकर भारत में इस्लाम का वर्चस्व स्थापित करने की उनकी तैयारी है। जिस देश में मुस्लिम राज्य नहीं हो, वहाँ यदि इस्लामी कानून और उस देश के कानून में टकराव पैदा हुआ तो इस्लामी कानून ही श्रेष्ठ समझा जाना चाहिए। देश का कानून झटक कर इस्लामी कानून मानना मुसलमान समर्थनीय समझते हैं। ‘पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’ +* ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आदि प्रकार के भेद सिर्फ हिन्दू धर्म में ही हैं, ऐसी बात नहीं। इस तरह के भेद ईसाई और इस्लाम में भी दिखाई देते हैं। +* यदि मैं इस्लाम स्वीकार करूँगा तो इस देश में मुसलमानों की संख्या ��ूनी हो जाएगी और मुस्लिम प्रभुत्व का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। +* जो कोई भी व्यक्ति एशिया के नक्शे को देखेगा उसे यह ध्यान में आ जाएगा कि किस तरह यह देश दो पाटों के बीच फंस गया है। एक ओर चीन व जापान जैसे भिन्न संस्कृतियों के राष्ट्रों का फंदा है तो दूसरी ओर तुर्की, पर्शिया और अफगानिस्तान जैसे तीन मुस्लिम राष्ट्रों का फंदा पड़ा हुआ है। इन दोनों के बीच फंसे हुए इस देश को बड़ी सतर्कता से रहना चाहिए, ऐसा हमें लगता है इन परिस्थितियों में चीन एवं जापान में से किसी ने यदि हमला किया तो उनके हमले का सब लोग एकजुट होकर सामना करेंगे। मगर स्वाधीन हो चुके हिन्दुस्थान पर यदि तुर्की, पर्शिया या अफगानिस्तान जैसे तीन मुस्लिम राष्ट्रों में से किसी एक ने भी हमला किया तो क्या कोई इस बात की आश्वस्ति दे सकता है कि इस हमले का सब लोग एकजुटता से सामना करेंगे? हम तो यह आश्वस्ति नहीं दे सकते। 18 जनवरी, 1929 को ‘नेहरू कमेटी की योजना और हिन्दुस्थान का भविष्य’ शीर्षक से 'बहिष्कृत भारत' में एक अग्रलेख +* इस्लाम एक क्लोज कॉर्पोरेशन है और इसकी विशेषता ही यह है कि मुस्लिम और गैर मुस्लिम के बीच वास्तविक भेद करता है। इस्लाम का बंधुत्व मानवता का सार्वभौम बंधुत्व नहीं है। यह बंधुत्व केवल मुसलमान का मुसलमान के प्रति है। दूसरे शब्दों में इस्लाम कभी एक सच्चे मुसलमान को ऐसी अनुमति नहीं देगा कि आप भारत को अपनी मातृभूमि मानो और किसी हिन्दू को अपना आत्मीय बंधु। +* मुसलमानों में एक और उन्माद का दुर्गुण है। जो कैनन लॉ या जिहाद के नाम से प्रचलित है। एक मुसलमान शासक के लिए जरूरी है कि जब तक पूरी दुनिया में इस्लाम की सत्ता न फैल जाए तब तक चैन से न बैठे। इस तरह पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंटी है दार-उल-इस्लाम (इस्लाम के अधीन) और दार-उल-हर्ब (युद्ध के मुहाने पर)। चाहे तो सारे देश एक श्रेणी के अधीन आयें अथवा अन्य श्रेणी में। तकनीकी तौर पर यह मुस्लिम शासकों का कर्तव्य है कि कौन ऐसा करने में सक्षम है। जो दार-उल-हर्ब को दर उल इस्लाम में परिवर्तित कर दे। भारत में मुसलमान हिजरत में रुचि लेते हैं तो वे जिहाद का हिस्सा बनने से भी हिचकेंगे नहीं। +* प्रत्येक हिन्दू के मन में यह प्रश्न उठ रहा था कि पाकिस्तान बनने के बाद हिन्दुस्तान से साम्प्रदायिकता का मामला हटेगा या नहीं, यह एक जायज प्रश्न था और इस पर विचार किया जाना जरूरी था। य��� भी स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के बन जाने से हिन्दुस्तान साम्प्रदायिक प्रश्न से मुक्त नहीं हो पाया। पाकिस्तान की सीमाओं की पुनर्रचना कर भले ही इसे सजातीय राज्य बना दिया गया हो लेकिन भारत को तो एक मिश्रित राज्य ही बना रहेगा। हिन्दुस्तान में मुसलमान सभी जगह बिखरे हुए हैं, इसलिए वे ज्यादातर कस्बों में एकत्रित होते हैं। इसलिए इनकी सीमाओं की पुनर्रचना और सजातीयता के आधार पर निर्धारण सरल नहीं है। हिन्दुस्तान को सजातीय बनाने का एक ही रास्ता है कि जनसंख्या की अदला-बदली सुनिश्चित हो, जब तक यह नहीं किया जाता तब तक यह स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के निर्माण के बाद भी, बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक की समस्या और हिन्दुस्तान की राजनीति में असंगति पहले की तरह बनी रहेगी। +* मुसलमानों में इन बुराइयों का होना दुःखद है। किन्तु उससे भी अधिक दुःखद तथ्य यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज सुधार का ऐसा कोई संगठित आंदोलन नहीं उभरा जो इन बुराइयों का सफलतापूर्वक उन्मूलन कर सके। हिंदुओं में भी अनेक सामाजिक बुराइयां हैं, परन्तु संतोष की बात यह है कि उनमें से अनेक इनकी विद्यमानता के प्रति सजग हैं और उनमें से कुछ उन बुराइयों के उन्मूलन हेतु सक्रिय तौर पर आन्दोलन भी चला रहे हैं। दूसरी ओर मुसलमान यह महसूस ही नहीं करते कि ये बुराइयां हैं, परिणामतः वे उनके निवारण हेतु सक्रियता भी नहीं दर्शाते। इसके विपरीत, अपनी मौजूदा प्रथाओं में किसी भी परिवर्तन का विरोध करते हैं। +* मुसलमानों की सोच में लोकतंत्र प्रमुखता नहीं है। उनकी सोच को प्रभावित करने वाला तत्व यह है कि लोकतंत्र प्रमुख नहीं है। उनकी सोच को प्रभावित करने वाला तत्व यह है कि लोकतंत्र, जिसका मतलब बहुमत का शासन है, हिन्दुओं के विरुद्ध संघर्ष में मुसलमानों पर क्या असर डालेगा। क्या उससे वे मजबूत होंगे अथवा कमजोर? यदि लोकतंत्र से वे कमजोर पड़ते हैं तो वे लोकतंत्र नहीं चाहेंगे। वे किसी मुस्लिम रियासत में हिंदू प्रजा का मुस्लिम शासक की पकड़ कमजोर करने के बजाए अपने निकम्मे राज्य को वरीयता देंगे। +* मुस्लिम संप्रदाय में राजनीतिक और सामाजिक गतिरोध का केवल ही कारण बताया जा सकता है। मुसलमान सोचते हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों को सतत संघर्षरत रहना चाहिए। हिंदू मुसलमानों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करते हैं, और ���ुसलमान अपनी शासक होने की ऐतिहासिक हैसियसत बनाए रखने का। +* पर्दा प्रथा की वजह से मुस्लिम महिलाएं अन्य जातियों की महिलाओं से पिछड़ जाती हैं। वो किसी भी तरह की बाहरी गतिविधियों में भाग नहीं ले पातीं हैं जिसके चलते उनमें एक प्रकार की दासता और हीनता की मनोवृत्ति बनी रहती है। उनमें ज्ञान प्राप्ति की इच्छा भी नहीं रहती क्योंकि उन्हें यही सिखाया जाता है कि वो घर की चारदीवारी के बाहर वे अन्य किसी बात में रुचि न लें। पर्दे वाली महिलाएं प्रायः डरपोक, निस्साहय, शर्मीली और जीवन में किसी भी प्रकार का संघर्ष करने के अयोग्य हो जाती हैं। भारत में पर्दा करने वाली महिलाओं की विशाल संख्या को देखते हुए कोई भी आसानी से ये समझ सकता है कि पर्दे की समस्या कितनी व्यापक और गंभीर है। पाकिस्तान, अथवा भारत का विभाजन' +* पर्दा प्रथा ने मुस्लिम पुरुषों की नैतिकता पर विपरीत प्रभाव डाला है। पर्दा प्रथा के कारण कोई मुसलमान अपने घर-परिवार से बाहर की महिलाओं से कोई परिचय नहीं कर पाता। घऱ की महिलाओं से भी उसका संपर्क यदा-कदा बातचीत तक ही सीमित रहता है। बच्चों और वृद्धों के अलावा पुरुष अन्य महिलाओं से हिल-मिल नहीं सकता, अपने अंतरंग साथी से भी नहीं मिल पाता। महिलाओं से पुरुषों की ये पृथकता निश्चित रूप से पुरुष के नैतिक बल पर विकृत प्रभाव डालती है। ये कहने के लिए किसी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की आवश्यकता नहीं कि ऐसी सामाजिक प्रणाली से जो पुरुषों और महिलाओं के बीच के संपर्क को काट दे उससे यौनाचार के प्रति ऐसी अस्वस्थ प्रवृत्ति का सृजन होता है जो आप्राकृतिक और अन्य गंदी आदतों और साधनों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है। + + +अर्थवान् या सार्थक शब्द ही प्रातिपादिक (मूल संज्ञाशब्द या प्राकृत) हैं। +पाणिनि के बारे में उक्तियाँ +यद्यपि पाणिनीय व्याकरण की प्रसिद्धि बहुत कम है क्योंकि यह एक विशिष्ट प्रकृति का ग्रन्थ है, फिर भी इसमें कोई सन्देह नहीं है कि पाणिनि का व्याकरण किसी भी प्राचीन सभ्यता की सबसे महान बौद्धिक उपलब्धियों में से एक है और १९वीं शताब्दी के पहले विश्व के किसी भी भाग में निर्मित व्याकरणों में सबसे विस्तृत एवं वैज्ञानिक व्याकरण है। प्रोफेसर ए एल बाशम (२०१३) +* पाणिनि का मस्तिष्क असाधारण था। उन्होंने एक ऐसी मशीन बनायी जो मानव इतिहास में अद्वितीय है। पाणिनि ने हमसे यह अपेक्षा नहीं कि थी कि उनके नियमों में ह कुछ नये विचार जोड़ेगें। पाणिनीय व्याकरण के साथ हम जितना अधिक खिलवाड़ करते हैं, उतना ही यह हमसे दूर होता जाता है। ऋषि राजपुरोहित, जो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पाणिनीय व्याकरण पर एक शोध पत्र लिख रहे हैं। (15 दिसम्बर २०२२) + + +: धीरे-धीरे (धैर्य से) रास्ता काटना या चलना चाहिए धीरे-धीरे सिलाई करना (या वैराग्य लेना) चाहिये, धीरे धीरे पर्वत पर चढ़ना चाहिए, धीरे-धीरे विद्या प्राप्त करना चाहिए और पैसे भी धीरे कमाना चाहिए। +: जिस प्रकार सिंह, गज और व्याघ्र आदि को धीरे-धीरे वश में आते हैं, उसी प्रकार वायु भी प्राणायाम के अभ्यास से धीरे-धीरे वश में आ जाती है; लेकिन इसके विपरीत नियम से चलने पर यानी जल्दबाजी करने से वायु साधक (योगी) का विनाश कर देती है। +* भविष्य धीरे-धीरे आता है, वर्तमान उड़ जाता है और अतीत हमेशा के लिए खड़ा हो जाता है। फ्रेडरिक शीलर +* लाभ धीरे-धीरे दिया जाना चाहिए; और इस तरह वे बेहतर स्वाद लेंगे। निकोलो मैकियावेली +* सामाजिक और आर्थिक मौलिक परिवर्तन क्रमिक रूप से धीरे-धीरे किया जाना चाहिए। विक्रम साराभाई + + +लिनक्स लिनक्स प्रचालन तंत्र का कर्नेल है जो निःशुल्क और मुक्तस्रोत भी है। इसका विकास लाइनस टोर्वाल्ड्स (Linus Torvalds) द्वारा पहली बार सन १९९१ में हुआ था। +* लिनक्स, मुक्तस्रोत है और बहुत सुरक्षित है। +* …लिनक्स का दर्शन 'खतरे की स्थिति में भी हंसना है। ओह, ये गलत है। 'इसे स्वयं करो' यह है लिनक्स। +* लिनक्स को केवल तभी निःशुल्क कहा जा सकता है यदि आपके समय का कोई मूल्य न हो। +* लिनक्स को जनरल पब्लिक लाइसेन्स बनाना अवश्य ही मेरे द्वारा किया गय सबसे अच्छ काम थ। + + +शास्त्रोक्त पद्धति से शरीर पर घी अथवा औषधियुक्त तेल की मालिश करने को अभ्यंग या मालिश कहा जाता है। यह त्वचा की रुक्षता, अत्यन्त शारीरिक अथवा मानसिक तनाव से युक्त व्यक्ति, अनिद्रा रोग, वात रोग जैसे संधिवात, पक्षाघात, कंपवात, अवबाहुक (सरवाइकल स्पॉन्डिल) आदि में बहुत लाभकारी है। +: अर्थात् प्राचीन विद्वानों का अनुमान है और अभ्यंगप्रिय पहलवानों का अनुभव है कि अभ्यंग द्वारा प्रयोग किया गया तेल ३०० मात्रा समय तक वह रोमकूपों में रहता है; फिर ४०० मात्रा समय तक त्वचा में, फिर ५०० मात्रा समय तक रक्त में, फिर ६०० मात्रा समय तक मांस में, ७०० मात्रा समय तक मेदस् ��ें, ८०० मात्रा समय तक अस्थि में और ९०० मात्रा समय तक मज्जा में व्याप्त होकर उन-उन धातुओं में उत्पन्न वातज, पित्तज तथा कफज रोगों को शान्त कर देता है। +यहाँ जो ३०० तथा ५०० आदि मात्रा शब्द का प्रयोग किया है, इस मात्रा नामक काल की अवधि का प्रमाण है—ह्रस्व स्वर अ, इ या उ आदि किसी एक को उच्चारण करने में जितना समय लगता है, उतने मात्र समय को कालविभागज्ञों ने मात्रा' कहा है। ध्यान दें—मात्रा ह्रस्व, दीर्घ तथा प्लुत भेद से तीन प्रकार की होती है। यहाँ केवल ह्रस्व स्वर वाली मात्रा से तात्पर्य है।) +: सिर, कानों तथा पैरों के तलुओं में विशष रूप से अभ्यंग करना चाहिए। (यहाँ 'शीलयेत्' क्रिया का अर्थ है-'अभ्यसेत्' अर्थात् बार-बार इसका अभ्यास करे।) +* सिर पर तेलमालिश करते रहने से वह केशों का हित करता है अर्थात् उन्हें बढ़ाता है, मुलायम तथा चिकना बनाये रखता है। इससे शिरः कपालास्थियों और इन्द्रियों (आँख, कान, नाक) का तर्पण होता रहता है। कान के छेद में गुनगुना तेल डालते रहने से हनुसन्धियों (गण्ड, कर्ण, शंख, वर्त्म, नेत्र तथा हनु से सम्बन्धित १२ अस्थियों) का, मन्याओं (गरदन के अलग-बगल में दिखलायी देने वाली दोनों ओर की धमनियों) का, कानों का शूल शान्त हो जाता है। पैरों पर अभ्यंग करते रहने से पाँवों में स्थिरता आती है, निद्रा आती है और दृष्टि प्रसन्न रहती है। पैरों का सुन पड़ जाना, श्रम, स्तम्भ (जकड़न सिकुड़न, विवाई फटना—ये कष्ट दूर हो जाते हैं। वाग्भट ने अष्टांगसंग्रह-सू. ३१५९-६० +: प्रतिश्याय आदि कफज विकारों से पीड़ित रोगी, जिन्होंने शरीरशुद्धि के लिए वमन-विरेचन आदि किया हो तथा जो अजीर्णरोग से ग्रस्त हों, वे अभ्यंग का प्रयोग न करें। +अर्थात् जिसने वमन आदि का जिस दिन प्रयोग किया हो उस दिन अभ्यंग न करे। +: बच्चों को बहुत जरूरी है कि उसकी प्रतिदिन अभ्यङ्ग यानि पूरे शरीर का तेलमर्दन रसूता माँ, आया या नाइन द्वारा अवश्य करवाएं क्योंकि बचपन में नित्य की मालिश से बच्चों की थकान, जरा-ज्वर, पीड़ा और समस्त वात रोग हमेशा के लिए मिट जाते हैं। + + +* युनिक्स मूलतः एक सरल प्रचालन तंत्र है लेकिन इसकी सरलता को समझने के लिये आपको प्रबुद्ध होना होग। डेनिश रिच्ची +* थॉम्पसन और रिची यह अनुभव करने वाले पहले लोगों में से थे कि हार्डवेयर और कंपाइलर तकनीक इतनी अच्छी हो गई है कि सी भाषा में एक संपूर्ण ऑपरेटि���ग सिस्टम को लिखा जा सकता है। एरिक एस रेमण्ड +* हम कभी भी 32-बिट का प्रचालन तंत्र नहीं बनयेंगे। बिल गेट्स +* शायद हम मानव के प्रचालन तंत्र को पूर्णतः बदलने में सक्षम होने वाले हैं। यदि ऐसा होने जा रहा है तो मानव सभ्यता का बैक-अप तैयार रखने का यह सही समय है। ब्रूस स्टर्लिंग +* प्रचालन तंत्र, अन्तर्वस्त्र (अंडरवीयर) की तरह हैं, कोई भी उनकी तरफ देखना नहीं चाहता। बिल जॉय +* संगणक विज्ञान, सारे नवोन्नयन (इन्नोवेशन) का प्रचालन तंत्र है। स्टिव बालमर +* मेरा विचार है कि प्रचालन तंत्र सबसे अच्छा काम तब करते हैं जब वे स्वतन्त्र और मुक्त (free and open) हों। Larry Wall +* प्रचालन तंत्र और उसके ऊपर चलने वाले अप्लिकेशन में कोई स्पष्ट अन्तर नहीं है। Jim Allchin +* युनिक्स का दर्शन यह है कि ऐसे प्रोग्राम लिखो जो (केवल) एक काम करते हैं और उसे अच्छी तरह करते हैं। एक साथ मिलकर काम करने वाले प्रोग्राम लिखो। टेक्स्ट स्ट्रीम को हैंडिल करने वाले प्रोग्राम लिखो क्योंकि टेक्स्ट ही सर्वत्र इन्टरफेस का काम कर सकता है। Douglas McIlroy +* युनिक्स आपको मूर्खतापूर्ण काम करने से रोकने के लिये नहीं डिजाइन किया गया था, क्योंकि ऐसा करने से वह आपको बुद्धिमत्तापूर्ण काम करने से भी रोकेगा। Douglas Gwyn +* यह निश्चित प्रतीत होता है कि युनिक्स की सफलता का अधिकांश श्रेय इस बात को जाता है कि युनिक्स का सॉफ्टवेयर पढ़ने योग्य है, बदलने के योग्य है, और पोर्टेबल है।~ डेनिश रिच्ची +* कुछ लोगों का मानना है कि अनुवादक के बाद ए टी ऐण्ड टी बेल लैब्स का दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खोज युनिक्स है। डेनिश रिच्ची +* विन्डोज की डिजाइन मूर्खों को युनिक्स से दूर रखने के लिये की गयी थी ताकि हम शान्ति से हैक कर सकें। Tom Christiansen + + +: कृपण के समान दाता न हुआ है, न होगा।क्योंकि वह धन को बिना छुए ही दूसरों को दे देता है। +: भावार्थ लक्ष्मी कहतीं हैं कि) मैं विधवा होने के डर से शूरवीर व्यक्तियों का वरण नहीं करती हूँ, उदारहृदय व्यक्तियों के साथ रहने मे मुझे लज्जा आती है (कि वे कहीं मुझे किसे अन्य व्यक्ति को न दे दें तथा किसी विवाहित विद्वान के साथ भी रहना नहीं चाहती हूँ। इसीलिये मैं एक कृपण व्यक्ति के आश्रय में ही रहती हूँ। +: भावार्थ कृपण के पास जो धन सम्पत्ति सुलभ होती है उनका उपभोग वह अप कर्म (कंजूसी) के कारण नहीं कर पाता है। उसकी स्थिति ऐसे कौवों के समान हो जाती है जिनकी चोंचें ��ंगूरों की फसल पकने के समय ही रोगग्रस्त हो जाती हैं। +: कंजूस द्वारा अर्जित धन का उपभोग भाग्यशाली को प्राप्त होता है। दांत कष्ट से जिस (खुराक) को चबाता है, उसे जिह्वा आसानी से निगल जाती है। +: चींटी के द्वारा संगृहीत अन्न, मक्खी का संचित मधु और कृपण का संचित धन उनको छोड़ सबके काम आता है। अतः धन का सदुपयोग उसके सार्थक कार्यों में निवेश से है, निरर्थक संग्रह से नहीं। +* कंजूस लोग अपने धन का न तो उपभोग करते हैं, न किसी अन्य कार्य में खर्च करते हैं, और न किसी को दान देते हैं। उनका धन अन्त में चोर ही ले जाते हैं। चाणक्य +* कंजूस के पास जितना धन होता है उतना ही वह उसके लिए तरसता है जो उस के पास नहीं होता। पब्लिलियस सायरस +* कंजूसी और सुख शांति ने कभी एक दूसरे को देखा ही नहीं, फिर वे कैसे एक दूसरे से परिचित हों बेंजामिन फ्रैंकलिन +* निर्धन की तरह जीना और धनवान होकर मरना केवल पागलपन है। टामस मिड्लटन +* कंजूसी मैं तुझे जनता हूँ! तू विनाश करने वाली और व्यथा देने वाली है। अथर्ववेद +लालची व्यक्ति का सम्मान, चुगली करने वाले की मित्रता, बुरी आदतों वालों की विद्या, कंजूस का सुख नष्ट हो जाता है। + + +विद्यापति मैथिली के महान क्वि थे। उन्हें हिन्दी साहित्य के आदिकल का कवि माना जाता है। उनकी भाषा के माधुर्य को देखते हुए उन्हें 'कविकोकिल' कहा जाता है। +: नायिका ने अपना चेहरा हाथ से छिपा रखा है। कवि कहता है कि उसका चंद्रमुख आधा छिपा है और आधा दिख रहा है। ऐसा लगता है मानो चंद्रमा के एक भाग को बादल ने ढँक रखा है और आधा दिख रहा है। +:जिस तरह बाल चंद्रमा निर्दोष है उसी तरह विद्यापति की भाषा; दोनों का दुर्जन उपहास नहीं कर सकते। +विद्यापति के बारे में सुविचार + + +दान का शाब्दिक अर्थ है देने की क्रिया'। सभी धर्मों में दान का बहुत महत्व है। दान देने में सुपात्र का ध्यान रखना चाहिये। हिन्दू धर्म में दान की बहुत गरिमा और महत्व बताया गया है। अन्नदान,विद्यादान, अभयदन आदि की प्रशंशा की गयी है। विनोबा भावे जी के शब्दों में "दान का अर्थ फेंकना नहीं बोना है"। +: जिस तरह तालाब का पानी बहता रहे तभी वह शुद्ध रह सकता है अन्यथा खराब हो जाता है उसी तरह धन भी यदि दान या भोग न किया जाय तो वह नष्ट हो जाता है। (धन के त्याग में ही उसका रक्षण है संग्रह में नही ।) +: अच्छे खेत में बीज बोना चाहिए, सुपात्र को धन देना चाहिए । ���च्छे खेत में बोया हुआ और सुपात्र को दिया हुआ, कभी नष्ट नहीं होता। +: अन्न एवम् जल के दान के समान कोई दान नहीं है द्वादशी के समान तिथि नहीं है गायत्री मंत्र के समान कोई मंत्र नही है, और माता के समान कोई देवता नही है। +: जमीन पर डाला हुआ छोटा सा वटवृक्ष का बीज, जैसे जल के योग से बढता है, वैसे पुण्यवृक्ष भी दान से बढता है। +: हाथ का भूषण दान है, कण्ठ का सत्य, और कान का भूषण शास्त्र है, तो फिर अन्य आभूषणों की क्या आवश्यकता है ? +: न्यायपूर्ण मिले हुए धन से, पारलौकिक कर्तव्य करना चाहिए । दान विधिपूर्वक, गुणवान मनुष्य को, सही समयपर देना चाहिए । +: रणमैदान में विजय प्राप्त करने से नहीं, बल्कि इंद्रियविजय से इन्सान शूर कहलाता है; अध्ययन से नहीं बल्कि धर्माचरण से इन्सान पण्डित कहलाता है; वाक्चातुर्य से नहीं पर हितकारक वाणी से व्यक्ति वक्ता कहलाता है; और (केवल) धन देने से नहीं, बल्कि सम्मान देने से (सम्मानपूर्वक देने से) इन्साना दाता बनता है । +: दान करने से (हर प्रकार की समृद्धि जैसे गाय का दूध, बाग के फूल, विद्या, कूए का पानी और धन (इत्यादि) नित्य बढते रहते हैं, पर अदान (न देने) से ये सब नष्ट होते हैं। +* खुद उठकर दिया हुआ दान उत्तम है; बुलाकर दिया हुआ दान मध्यम है; याचना के पश्चात् दिया हुआ दान अधम है; और सेवा के बदले में दिया हुआ दान निष्फल है (अर्थात् वह दान नहीं, व्यवहार है) । +: हे राजेन्द्र जैसे (यज्ञकुंड में बची) भस्म पर घी की आहुति देना निरर्थक है, वैसे ही अपात्र को दिया हुआ बहुत सारा दान व्यर्थ है । +: धनिक का सच्चा धन तो वही है जो वह (दान) देता है और जो (स्वयं) भोगता है । अन्यथा मरने के बाद तो उसकी स्त्री और धन का उपभोग बाकी के लोग ही करते हैं । +* सबसे बड़ा दान तो अभयदान है जो सत्य, अहिंसा का पालन करने से दिया जा सकता हैं। वेदव्यास +* अहंकार से तप नष्ट हो जाता है और इधर-उधर कहने से दान फलहीन हो जाता है। मनु]] +* देना उचित है ऐसा समझकर, बदला मिलने की आशा के बिना देश, काल और पात्र को देखकर जो दान होता हैं, उसे सात्विक दान कहा जाता हैं। गीता +* जो दान अपनी कीर्ति-गाथा गाने की उतावला हो उठता है, वह दान नहीं रह जाता; अपितु अहंकार एवं आडम्बरमात्र रह जाता है। हुट्टन +* प्रार्थना ईश्वर की तरफ आधे रास्ते तक ले जाती है, उपवास हमको उसके महल के द्वार तक पहुँचा देता है और दान से हम उसके अंदर प्रवेश करते हैं। कुरान +* प्रसन्��� चित्त से दिया गया थोड़ा दान भी थोड़ा नहीं होता है। विमानवत्थु +* ज्यों-ज्यों धन की थैली दान में खाली होती है, दिल भरता जाता है। विक्टर ह्युगो +* जैसे बादल पृथ्वी से जल लेकर फिर पृथ्वी पर बरसा देते हैं, वैसे ही सज्जन भी जिस वस्तु को ग्रहण करते हैं उसका दान भी करते हैं। कालिदास +* अल्प में से भी जो दान दिया जाता है, वह सहस्रों-लाखों के दान की बराबरी करता है। महात्मा बुद्ध +* कोई भी व्यक्ति दान देकर कभी गरीब नहीं बना है। ओपरा विनफ्रे +* जीवन की माप उसके अवधि से नहीं बल्कि उसके दान से है। पीटर मार्शल +* इस सनातन नियम को याद रखो यदि तुम प्राप्त करना चाहते हो तो अर्पित करना सीखो। सुभाषचन्द्र बोस +* दान को कर्त्तव्य के रूप में नहीं बल्कि एक विशेषाधिकार के रूप में देखें। बारबरा बुश +* जीवन की माप उसके अवधि से नहीं बल्कि उसके दान से है। पीटर मार्शल +* दान देना ही आमदनी का एकमात्र द्वार है। स्वामी रामतीर्थ +* दान पुण्य के भाव बेहद श्रेष्ठ है मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि समाज में दान पात्रों का कोई जत्था खड़ा कर लिया जाए। डॉ. सम्पूर्णानन्द +* दान ही धर्म का पूर्णत्व और उसका आभूषण है। एडिसन +* तगड़े और स्वस्थ व्यक्ति को भिक्षा देना, दान का अन्याय है। कर्महीन मनुष्य भिक्षा के दान का अधिकारी नही है। विनोबा भावे]] + + +: ऐश्वर्य का आभूषण सज्जनता है, शूरता का वाणी पर संयम रखना, ज्ञान का शान्ति भाव, वेदशास्त्र के ज्ञान का नम्रता, वित्त का सत्पात्र में व्यय करना, तपश्चरण का क्रोध न होना, सामर्थ्यवान् का सहिष्णुता और धर्म का आभूषण निष्कपट होता है परन्तु इन सम्पूर्ण गुणों का कारणभूत "शील" सबका श्रेष्ठाभूषण है। +: हाथ का भूषण दान है, कण्ठ का भूषण सत्य है, कान का भूषण शास्त्र है तो फिर) अन्य आभूषणों की क्या आवश्यकता ? +: दान के समान अन्य कोई मित्र नहीं है और पृथ्वी पर लोभ के समान कोई शत्रु नहीं है। शील के समान कोई आभूषण नहीं है और संतोष के समान कोई धन नहीं है। +: चन्द्रमा तारों का आभूषण है, नारी का भूषण पति है । पृथ्वी का अभूषण राजा है और विद्या सभी का आभूषण है । +* नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण हैं। स्वामी विवेकानन्द +* लज्जा युवाओं के लिए एक आभूषण, लेकिन बुढ़ापे के लिए एक तिरस्कार है। अरस्तू +* मौन ज्ञानियों की सभा में अज्ञानियों का आभूषण है। भर्तृहरि]] +* नारी का आभूषण शील और लज्जा हैं। बाह्य आभ���षण उसकी शोभा नहीं बढा सकते हैं। बृहत्कल्पभाष्य +* नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के सच्चे आभूषण होते हैं। तिरुवल्लुवर]] + + +: जन्मदाता, उपनयन संस्कारकर्ता, विद्या प्रदान करने वाला, अन्नदाता और भय से रक्षा करने वाला ये पांच व्यक्ति पिता कहे गये हैं। +: माता भूमि से भी भारी होती है, पिता आकाश सेभी ऊँचा होता है, मन वायु से भी तेज दौड़ता है। मानव शरीर के लिये चिन्ता सबसे अधिक कष्ट दायक होती है। +पिता ही धर्म है, पिता ही स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सारे देवता प्रसन्न हो जाते हैं। +वह जो हमें जन्म देते हैं, वह जो हमें ज्ञान का मार्ग दिखातें हैं, विधा प्रदान करतें हैं, वह जो अन्नदाता हैं, भय से रक्षा करते हैं यह पाँचों गुण पिता के हैं अर्थात एक बालक के लिए एक पिता ही है जो जीवन में सब कुछ प्रदान करता है व उसे अच्छा जीवन देता है। +मनुष्य के लिये उसकी माता सभी तीर्थों के समान है तथा पिता सभी देवताओं के समान पूजनीय होते हैं अतः उसका यह परम् कर्तव्य है कि वह उनका यत्नपूर्वक आदर और सेवा करे। +मैं अपने पिता के सामने झुकता हूँ, जिसमें सभी लोकों के सभी देवता निवास करते हैं, सही मायने में वह मेरे देवता हैं। +मैं अपने पिता के सामने झुकता हूँ, जो परमार्थ के निराकार आड़ में रहते हैं, जिन्हें सभी संघर्षों (संसार) से मुक्ति के लिए दोषहीन योगियों द्वारा पूजा जाता है। +मैं अपने पिता को नमन करता हूँ जो सभी देवताओं का प्रत्यक्ष रूप हैं, जो मेरी सभी आकांक्षाओं को पूर्ण करते हैं। मेरे पिता मेरे हर संकल्प को सिद्ध करने में मेरे आदर्श हैं, जो मेरी कठिनाइयों एवं चिंताओं से मुझे मुक्त करते हैं ऐसे प्रभु के रूप में विघ्नहर्ता को प्रणाम करता हूँ। +जब मनुष्य की स्वयं की उत्पत्ति के मूल में ही पिता हैं तब वह पिता के रूप में विद्यमान साक्षात भगवान को ही क्यों नहीं पूजता है। +पिता द्वारा डांटा गया पुत्र, गुरु के द्वारा शिक्षित किया गया शिष्य सुनार के द्वारा हथौड़े से पीटा गया सोना, ये सब आभूषण ही बनते हैं। +माता पिता अपने बच्चों के लिए जो भी करते हैं उसे कभी भी चुकाया नहीं जा सकता। +पिता पालन करने वाला होने के कारण प्रजापति अर्थात राजा व ईश्वर का ही मूर्तिरूप है। + + +* जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना च��हिये। वेदव्यास +* यदि आपने अपनी मनोवृतियों पर विजय प्राप्त नहीं की, तो मनोवृत्तियां आप पर विजय प्राप्त कर लेंगी। नेपोलियन हिल +* मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है। स्वामी विवेकानन्द +* जो मन की शक्ति के बादशाह होते हैं, उनके चरणों पर संसार नतमस्तक होता है। अज्ञात +* सभी बुरे कार्य मन के कारण उत्पन्न होते हैं। अगर मन परिवर्तित हो जाये तो क्या अनैतिक कार्य रह सकते हैं गौतम बुद्ध + + +* शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति । स्वामी ज्ञानानन्द +* इच्छा ही सभी उपलब्धियों का प्रारंभिक बिंदु है। तीव्र इच्छा हर उपलब्धियों की शुरुआत है, आशा नहीं और न ही कामना, बल्कि तीव्र इच्छा जो सब कुछ बदल दे। नेपोलियन हिल +* जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मज़दूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ महाभारत]] +* किसी काम को करने से पहले इसे करने की दृढ़ इच्छा अपने मन में कर लें और सारी मानसिक शक्तियों को उस ओर झुका दें। स्वामी रामतीर्थ]] + + +* मैं साक्ष्य में विश्वास करता हूँ। मैं प्रेक्षण, मापन, और स्वतन्त्र प्रेक्षकों द्वारा तर्क के आधार पर सुनिश्चित करने में विश्वास रखता हूँ। मैं किसी भी चीज में विश्वास कर सकता हूँ यदि उसके लिये साक्ष्य उपस्थित हो, चाहे वह कितनी भी अपरिष्कृत (wild) और हास्यास्पद क्यों न हो। कोई सिद्धान्त जितनी ही अपरिष्कृत और हास्यास्पद होगा, उसके लिये उतना ही सशक्त और ठोस साक्ष्य होना चाहिये। आइजक एसिमोव The roving mind" में (1 अप्रैल 1983 पृष्ठ 43. +* दो बाते सम्भव हैं- यदि परिणाम परिकल्पना के अनुरूप आता है तो आपने मापन किया है। यदि परिणाम परिकल्पना के विपरीत है तो आपने एक खोज कर दी है। एनरिको फर्मी न्युक्लियर प्रिन्सिपल्स इन इंजीनियरिंग 2005) में, पृष्ठ 397. +* इस बात से आँख मूँदना असम्भव है कि लोग प्रायः मापन के झूठे मनदण्डों का उपयोग करते हैं, और वे अपने लिये शक्ति, सफलता और स्म्पत्ति चाहते हैं तथा दूसरों के इन्ह��ं गुणों की प्रशंशा करते हैं, और वे जीवन के वास्तविक मूल्य को कम आंकते हैं। सिग्मुंड फ्रॉयड Sigmund Says: And Other Psychotherapists' Quotes" में (1 जून 2006 पृष्ठ 80. +* प्रयोग वह प्रश्न है जिसे विज्ञान प्रकृति से पूछता है, और प्रकृति के उत्तर को रेकॉर्ड करना ही मापन है। मैक्स प्लांक +* मेट्रिक प्रणाली से बढ़कर और उससे उदात्त मानव द्वारा निर्मित कुछ भी नहीं अया है। Antoine Lavoisier + + +: प्रमा के करण का नाम प्रमाण है (अर्थात यथार्थ ज्ञान का साधन प्रमाण है।) +: जिसके द्वारा पदार्थ जाना जाता है उसे प्रमाण कहते हैं। +: अर्थात जिस ज्ञान में अज्ञात वस्तु का अनुभव हो, अन्य ज्ञान से बाधित न हो एवं दोष रहित हो, वही 'प्रमाण' है। +: सम्यक ज्ञान प्रमाण है। +: अनधिगत तथा यथार्थ के निश्चायक को प्रमाण कहते हैं। +: प्रत्यक्ष ही (एकमात्र) प्रमाण है। (अथवा, जो प्रत्यक्ष है वही प्रमाण है।) +: अर्थात् प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम प्रमाण हैं । +: व्याकरण में पाणिनि प्रमाण हैं। +* चित्र की सहयता से कुछ भी सिद्ध किया जा सकता है। कार्लाइल + + +: जटिल विवाद होने पर साक्षियों की सहायता से सत्य का निर्णय करे। +: अपने कर्म में प्रतिष्ठित, राजाओं के विश्वासपात्र, पक्षपात या द्वेष न रखने वाले, अनेक साक्षी होने चाहिये। +: ब्राह्मणेतर वर्णों को (उग्र) देवताओं के निकट, राजा के समक्ष, या ब्राह्मणों की सभा में शपथ दिलायी जाय। +भेड़, बकरी आदि) छोटे पशुओं के सम्बन्ध में असत्य भाषण करने पर साक्षी को दश पशुओं के वध के बराबर पाप लगता है। +: गाय, अश्व, मनुष्य और भूमि के विषय में असत्य भाषण करने पर साक्षी क्रमशः दश गुने उन-उन प्राणियों के वध का पापी होता है। +: साक्षी का असत्य भाषण प्रकट होने पर उसे निर्वासित करना चाहिये और राजा द्वारा उसे दण्ड दिया जाना चाहिये। +: राजा स्वयं ही न्यायकर्ता (पूछने के बाद विचारकर न्याय करने वाला) बने या किसी शास्त्रज्ञ ब्राह्मण को न्यायकर्ता बनाये। +* किसी असाधारण दावे के समर्थन में दिये गये साक्ष्य का भार उतना ही अधिक होना चाहिये जितना वह दावा विचित्र हो। पियरे साइमन लाप्लास, Théorie analytique des probabilités 1812) + + +: भगवान श्रीकृष्ण का नीला शरीर पीतांबर ओढ़े दिव्य स्वरूप ऐसे प्रतीत हो रहा है, मानो नीलमणि पर्वत पर सुबह का सूर्य शोभायमान हो। + + +: जिनका स्मरण करने से सिद्धि होती है उस जननायक, हाथी के मुख वाले गणेश जी से अनुग्रह करता ह���ँ जो बुद्धि के भण्डार और शुभ गुणों के घर हैं। +* अगर आपको किसी को पीठ पर बैठाना है तो शिक्षकों को रखें। वे समाज के नायक हैं। गाय कावासाकी +* नायक वह है जो अपनी आजादी के साथ मिली जिम्मेदारियों को समझता है। बॉब डायलन +* हमें नायकों की तलाश नहीं करनी चाहिए, हमें अच्छे विचारों की तलाश करनी चाहिए। नोआम चाम्सकी]] +* पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। महात्मा गाँधी]] +* कोई नायक किसी आम आदमी से ज्यादा बहादुर नहीं होता, लेकिन वो पांच मिनट अधिक बहादुर रहता है। राल्फ वाल्डो इमर्सन]] + + +: कर्म से ही सिद्धि मिलती है। +: मनुष्य न तो कर्मोंका आरम्भ किये बिना निष्कर्मताको प्राप्त होता है और न कर्मोंके त्यागमात्रसे सिद्धिको ही प्राप्त होता है। +: प्रेम के देवता कामदेव का धनुष पुष्पों से बना हुआ है तथा उसकी प्रत्यंचा भ्रमरों से बनी है, चञ्चल नेत्रों की तिरछी दृष्टि उसके बाण हैं तथा सबके मन को प्रभावित करने वाला चन्द्रमा उसका मित्र है फिर भी अकेला ही कामदेव तीनों लोकों को अपने प्रभाव से व्याकुल कर देता है। सच है महान और शक्तिशाली व्यक्तियों के कार्य उनके पराक्रम से सिद्ध होते हैं न कि उनके विभिन्न उपकरणों के कारण। +: मन में सोंचे हुए कार्य को किसी के सामने प्रकट न करें बल्कि मनन पूर्वक उसकी सुरक्षा करते हुए उसे कार्य में परिणत कर दें। + + +: इस वैश्व गति में, इस अत्यन्त गतिशील समष्टि-जगत् में जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् है-यह सबका सब ईश्वर के आवास के लिए है। इस सबके त्याग द्वारा तुझे इसका उपभोग करना चाहिये; किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि मत डाल। + + +कॉर्नेलिया फंके Cornelia Funke) जानी-मानी अमेरिकी बाल साहित्यकार हैं। उनक जन्म जर्मनी में हुआ था। उन्होंने बच्चों के लिए- ‘द थीफ लॉर्ड’, ‘ड्रैगन राइडर’ और ‘इंंकहार्ट’ (Inkheart) जैसी +* मैं रोज एक ही तरह का खाना नहीं चाहती, इसलिए मैं अलग-अलग चीजें पढ़ती हूं। +* कहानियों का क्या फायदा यदि हम उनसे कुछ सीखें नहीं। +* पढ़िए और जिज्ञासु बनिए। और यदि कोई कहे कि: ‘चीजें ऐसी ही होती हैं। तुम उसे बदल नहीं सकते।’ तो एक भी शब्द पर यकीन मत कीजिए। +* बच्चे कैटरपिलर होते हैं और बड़े तितलियां। कोई भी तितली कभी याद नहीं रखती कि कैटरपिलर के रूप में कैसा महसूस होता था। +* कुछ किताबें चख कर छोड़ दी जानी चाहिए, और कुछ क��� बस निगल लिया जाना चाहिए, लेकिन कुछ ऐसी किताबें ऐसी होती हैं जिन्हें चबाकर अच्छी तरह पचाना चाहिए! +* कहानियां, सच पूछो तो कभी खत्म नहीं होतीं… किताबों के खत्म हो जाने के बाद भी नहीं। कहानियां हमेशा जारी रहती हैं। वे अंतिम पन्ने पर खत्म नहीं होतीं, और न ही पहले पन्ने से शुरू होती हैं। +* लेकिन आखिरकार, खलनायक कहानी के जायके में नमक ही तो हैं। +* किताबों को भारी होना चाहिए क्योंकि पूरी दुनिया उनके अंदर होती है। +* किताबों ने मुझे हमेशा के लिए सिखाया कि शब्दों के सहारे कितनी आसानी से आप इस दुनिया से बच सकते हैं! किताबों के पन्नों में आपको दोस्त मिल सकते हैं, बेहतरीन दोस्त! +* कहानियां लिखना भी एक जादूगरी की तरह है। + + +* लोकतन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है बल्कि नेताओं को बिना उनकी हत्या किये बदल देने में है। लार्ड बिवरेज +* थोड़ी और हत्या, और मानवता बहुत बेहतर हो जाएगी। जीन रोस्टैंड +* मुझे इस बात पर गर्व है कि मैने कभी भी किसी की हत्या करने वाले हथियारों का आविष्कार नहीं किया। थॉमस ए. एडीसन + + +* तगड़े और स्वस्थ व्यक्ति को भिक्षा देना, दान का अन्याय है। कर्महीन मनुष्य भिक्षा के दान का अधिकारी नही है। विनोबा भावे +हे राजन् आप और हम दोनों ही लोकनाथ हैं। फरक इतना ही है कि आप श्रीमान हैं और मैं याचक हूँ––अतएव याचक होने के कारण मेरे नाम में 'लोकनाथ' बहुब्रीहि समास है, जैसे––लोक है नाथ जिसके, वह लोकनाथ और आपके नाम में 'लोकनाथ' षष्ठी तत्पुरुष समास है, जैसे––लोकों का नाथ, लोकनाथ। + + +जलवायु परिवर्तन एक भयानक समस्या है, और इसे पूरी तरह से हल करने की आवश्यकता है। यह एक बहुत बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। बिल गेट्स]] + + +: यह अपना है और यह दूसरे का है ऐसा छोटी बुद्धि वाले सोचते हैं; उदार चरित्र वालों के लिये तो धरती ही परिवार है । +: कुल की रक्षा के लिए एक सदस्य का त्याग कर दें, गाँव की रक्षा के लिए एक कुल का त्याग कर, देश की रक्षा के लिए एक गाँव का त्याग कर दें और आत्मरक्षा के लिए पूरी पृथ्वी का त्यग कर दें। +: जंगल में आग लगने पर जैसे वहाँ का एक ही सूखा पेड़ पूरे जंगल को जलाने के लिए पर्याप्त है, उसी तरह कुटुंब को जलाने के लिए एक ही कुपुत्र पर्याप्त है। +: आचरण, विनम्रता, शास्त्रों का ज्ञान, सामाजिक प्रतिष्ठा, तीर्थदर्शन, निष्ठा, व्यवसाय, तप और ज्ञान – ये नौ कुल के लक्षण हैं। +: अतिथि, बालक, पत्नी, माता और पिता गृही (परिवार के मुखिया) द्वारा इन पांचों का पालन-पोषण होना ही चाहिए, किन्तु अपने पास पोषण करने की शक्ति हो तो इनके अतिरिक्त अन्य का भी पोषण करना चाहिये । +: कलह से हर्म्य (बड़े परिवार) टूट जाते हैं। कुवाक्य गलत शब्द के प्रयोग करने से मित्रता टूट जाती है । कुराज (बुरे शासन) के कारण राष्ट्र का नाश होता है। कुकर्म (बुरे काम) करने से मनुष्य के यश का नाश होता है। +* सभी सुखी परिवार एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं, हर एक दुखी परिवार के दुखी होने का अपना अलग कारण होता है। लियो टॉलस्टॉय]] +* जिस परिवार व राष्ट्र में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता, वह पतन व विनाश के गर्त में गिरता है। महाभारत]] +* किसी राष्ट्र की शक्ति घर की अखण्डता से निकलती है। कन्फ्यूशियस +* वह एक बुद्धिमान पिता है जो अपने बच्चे को जानता है। विलियम शेक्सपियर +* एक आदमी दुनिया की यात्रा की उसे क्या चाहिए की तलाश में, और उसे खोजने के लिए घर लौटाता है। जॉर्ज ए मूर +* रक्त का एक औंस दोस्ती की पाउंड से अधिक मूल्यवान है। स्पेनिश नीतिवचन +* हर किसी को रहने के लिए एक घर की जरूरत है, लेकिन एक सहायक परिवार घर बनाता है। Anthony Liccione +* अन्य चीजें हम बदल सकते हैं, लेकिन हम परिवार के साथ शुरू और अंत करते हैं। एंथनी ब्रांट +* बहुत से लोग भाग्य बना सकते हैं लेकिन बहुत कम परिवार बना सकते हैं। जे.एस. ब्रायन +* सबसे बड़ा उपहार जो आप अपने बच्चों को दे सकते हैं जिम्मेदारी की जड़े और आजादी के पंख हैं। डेनिस वेटले +* आपके बच्चों को उपहार की तुलना में आपकी उपस्थिति की आवश्यकता है। जेसी जैक्सन +* अपने परिवार को मित्रों और अपने दोस्तों को परिवार जैसे व्यवहार करें। अज्ञात +* आप अपने परिवार का चयन नहीं करते हैं। वे आप के लिए भगवान के उपहार हैं, जैसा कि आप उनके लिए हैं। डेसमंड तुतु +* परिवार एक महत्वपूर्ण बात नहीं है। यह सब कुछ है। माइकल जे. फॉक्स +* परिवार प्रकृति की उत्कृष्ट कृतियों में से एक है। जॉर्ज संतयान +* गरीब लोगों के पास न तो कोई परिवार है और न ही कोई दोस्त है। इतालवी कहावत +* हमें सीमा में विभाजित करता है कि तुलना में जो हमें जोड़ता उसे क्या कहे टेड केनेडी +* अपने परिवार के साथ जीवन की खूबसूरत भूमि में आनंद लें। अल्बर्ट आइंस्टीन +* एक परिवार का विकास एक प्रेमपूर्ण महिला के बिना नही हो सकता. +* एक आदमी को अपने परिवार को व्यवसाय के लिए कभी उपेक्षित नहीं करना चाहिए। वाल्ट डिज्नी +* दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण बात परिवार और प्यार है। जॉन वुडन +* परिवार वह जगह है जहां हमारे देश को आशा मिलती है, जहां पंख सपने देखते हैं। जॉर्ज डबल्यू बुश +* परिवार मानव समाज का पहला आवश्यक कोशिका है। पोप जॉन XXIII +* परिवार एक घर को घर बनाता है। जेनिफर हडसन +* परिवार-जहाँ जीवन की शुरुआत होती है और प्यार कभी समाप्त नहीं होता है। +* मुसीबत के समय, परिवार सबसे अच्छा है। बर्मी कहावत +* साथ में ये मेरा पसंदीदा स्थान है। +* परिवार का प्यार जीवन का सबसे बड़ा आशीर्वाद है +* घर वह जगह है जहां आपकी कहानी शुरू होती है। +* रक्त आपको संबंधित बनाता है। वफादारी आपका परिवार बनाती है। +* परिवार एक पेड़ पर शाखाओं की तरह हैं हम विभिन्न दिशाओं में बढ़ते हैं फिर भी हमारी जड़ें एक हैं। +* परवरिश करने की तुलना में कोई नौकरी अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। यह मेरा मानना ​​है। बेन कार्सन +* बच्चे अपने माता-पिता से मुस्कुराते हुए सीखते हैं। शिनिची सुजुकी +* घर वह जगह है जहां आपकी कहानी है। +* हमेशा मुस्कुराने की कोई वजह तो होती ही है। इसे खोजें। +* माता-पिता की आवाज़ देवताओं की आवाज़ है, क्योंकि उनके बच्चों के लिए वे स्वर्ग के लेफ्टिनेंट हैं। विलियम शेक्सपियर +* यदि आप कहीं भी, स्वर्ग भी जाते हैं, तो आप अपने घर को याद करेंगे। मलाला यूसूफ़जई +* बच्चे स्वर्ग की चाबियाँ हैं। एरिक होफर +* परिवार सभ्यता का केंद्र है। विल डुरण्ट +* जहां जड़ें गहरी हैं, हवा से डरने का कोई कारण नहीं है। +* घर एक जगह नहीं है, यह एक भावना है। +* टूटे हुए पुरुषों की मरम्मत के मुकाबले मजबूत बच्चों को बनाना आसान है। फ्रेडरिक डगलस +* एक परिवार के बिना, अकेले आदमी, दुनिया में, ठंड के साथ कांपता है। आंद्रे मौर्यिस +* आप अपने परिवार में पैदा हुए हैं और आपका परिवार आप में पैदा हुआ है। कोई लाभ नहीं। कोई एक्सचेंज नहीं एलिजाबेथ बर्ग +* जब हम अपने बच्चों को जीवन के बारे में सिखाने की कोशिश करते हैं, हमारे बच्चे हमें सिखाते हैं कि जीवन क्या है। एंजेला श्वाइंड + + +इसमें कोई दो राय नहीं कि मूर्खता कष्टदायक होती है, जवानी भी दुःखदायक होती है तथा दूसरे के घर रहना तो अत्यंत कष्टदायक ही होता है। +जिस देश में व्यक्ति को सम्मान न मिले, जहाँ आजीविका के साधन उपलब्ध न हों, जहाँ बंधु-बांधव और मित��र न हों, विद्या-प्राप्ति के साधन भी न हों, उस देश में व्यक्ति को कभी निवास नहीं करना चाहिए। +जिस देश में धनी-मानी व्यवसायी, वेदपाठी ब्राह्मण, न्यायप्रिय तथा प्रजावत्सल व शासन व्यवस्था में निपुण राजा, जल की आपूर्ति के लिए नदियाँ और बीमारी से रक्षा के लिए वैद्य आदि न हों अर्थात जहाँ पर ये पाँचों सुविधाएँ प्राप्त न हों, वहाँ व्यक्ति को कुछ दिन के लिए भी नहीं रहना चाहिए। +जहाँ आजीविका, व्यापार, दण्डभय, लोकलाज, चतुरता और दान देने की प्रवृत्ति–ये पाँच बातें न हों, वहाँ भी कभी निवास नहीं करना चाहिए। +इसमें कोई दो राय नहीं कि मूर्खता कष्टदायक होती है, जवानी भी दुःखदायक होती है तथा दूसरे के घर रहना तो अत्यंत कष्टदायक ही होता है। + + +: आसक्त लोगों का वन में रहना भी दोष उत्पन्न करता है। घर में रहकर पंचेन्द्रियों का निग्रह करना हि तप है। जो दुष्कृत्य में प्रवृत्त होता नहीं, और आसक्तिरहित है, उसके लिए तो घर हि तपोवन है। + + +: भोजन और भोजनशक्ति, रतिशक्ति और सुन्दर स्त्री, वैभव और दानशक्ति ये अल्प तप के फल नहीं हैं। +: एक ओर सब को अच्छी दक्षिणा दे कर विधिपूर्वक किया गया यज्ञ कर्म तथा दूसरी ओर दुःखी और रोग से पीड़ित प्राणियों के प्राण की रक्षा करना ये दोनों ही कर्म एक जैसे (पुण्यप्रद) हैं। +: तुलसीदास कहते हैं कि हमारा शरीर एक खेत है और मन किसान है तथा पाप व पुण्य दोनों बीज हैं। इस खेत में जिस प्रकार का बीज बो कर खेती होती है, वैसी फसल प्राप्त होती है। + + +विद्युत या बिजली आधुनिक युग में ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण प्रकार है। आवेश का प्रवाह ही विद्युत है। जब किसी वस्तु पर स्थिर आवेश होते हैं (गतिमान नहीं तो इसे स्थिर विद्युत कहते हैं। आवेश के प्रवाह की दर को धारा (करेन्ट) कहते हैं। +* हम विद्युत को इतना सस्ता कर देंगें कि केवल धनी लोग ही मोमबत्ती जलाएंगे। थॉमस अल्वा एडिसन १८७९ में + + +* एक समय में सपनों का केवल एक मालिक होता है। इसलिए सपने देखने वाले अकेले होते हैं। Erma Bombeck +* हमें युवाओं को सपने देखने से कभी हतोत्साहित नहीं करना चाहिए। Lenny Wilkens +* सपने, कल के प्रश्नों के लिए आज के उत्तर हैं। Edgar Cayce +* अपने सपनों को किसी और को दिखाने के लिए बहुत साहस चाहिए। Erma Bombeck +* कल है लेकिन आज की स्मृति है, और कल आज का सपना है। Khalil Gibran +* अपने स्वप्न में आप जो करते हैं, उसके द्वारा अपने स्वाभाविक चरित्र को देखते हैं। Ralph Waldo Emerson +* अपने सपनों का पालन करें, खुद पर विश्वास करें और हार न मानें। Rachel Corrie +* सपने जीवन के लिए आवश्यक हैं। Anais Nin +* महान चीजों को पूरा करने के लिए, हमें न केवल कार्य करना चाहिए, बल्कि सपने भी देखना चाहिए; न केवल योजना, बल्कि विश्वास भी करना चाहिए। Anatole France +* हमारे सभी सपने सच हो सकते हैं यदि हम उन्हें पूर्ण करने का साहस दिखाएं तो Walt Disney +* सपनो में जिम्मेदारी की शुरआत होती है। William Butler Yeats +* जितना अधिक आप सपने देख सकते हैं, उतना ही आप कर सकते हैं। Michael Korda +* अगर आप सपना देख सकते हैं, तो आप यह कर सकते हैं। Walt Disney +* सपने देखें और अपने आप को एक ऐसी कल्पना करने की अनुमति दें जिसे आप चुनते हैं। Marsha Norman +* एक सकारात्मक दृष्टिकोण वास्तव में सपनों को सच कर सकता है। David Bailey +* सपनो को सच करने का सबसे अच्छा तरीका है कि जाग जाओ। Paul Valery +* कड़ी मेहनत, दृढ़ता और भगवान में एक विश्वास के माध्यम से, आप अपने सपनों को जी सकते हैं। Ben Carson +* आपको थोड़ा बड़ा सपना देखने से डरना नहीं चाहिए। अज्ञात + + +: ब्रह्म वास्तविक है, ब्रह्माण्ड मिथ्या है । जीव ही ब्रह्म है और भिन्न नहीं। इसे सही शास्त्र के रूप में समझा जाना चाहिए। यह वेदान्त द्वारा घोषित किया गया है। +: वह परलोक में दुःख पाता है, सिर पीट पीटकर पछताता है और अपना दोष न समझकर (वह उल्टे) काल पर, कर्म पर या ईश्वर पर मिथ्या दोष लगाता है। + + +जिस तरह दावाग्नि के अतिरिक्त अन्य कोई वन को जलाने में प्रवीण नहीं, जिस तरह दावाग्नि के शमन में बादलों के सिवा अन्य कोई समर्थ नहीं, और निष्णात पवन के अलावा अन्य कोई बादलों को हटाने शक्तिमान नहीं, वैसे तप के अलावा और कोई, कर्मप्रवाह को नष्ट करने में समर्थ नहीं। + + +: पंडा के मूरत हो बैठी तीरथहू में पानी। +: हम माया को बहुत बड़ी ठगनी समझते हैं, उसके हाथ में त्रिगुण की फाँसी का फंदा है और होंठों पर मीठे बोल। केशव (विष्णु) के यहाँ कमला (लक्ष्मी) बन बैठी और शिव के यहाँ भवानी। पांडे घर मूर्ति बनी बैठी है और तीर्थ में पानी। जोगी के घर में जोगन हो गई और राजा के घर रानी। किसी के यहाँ हीरा बनकर आई और किसी के यहाँ कानी कौड़ी। भक्तों के यहाँ भक्तिन हो गई और ब्रह्मा के घर ब्रह्मानी। सुनो भाई साधु, कबीर कहते हैं कि यह अकथनीय कथा है। + + +: कोई अक्षर ऐसा नहीं है, जो मंत्र न हो और कोई भी वनस्पति की जड़ ऐसी नहीं है कि जो दवा ना हो, कोई भी पुरुष अयोग्य नहीं है। वहाँ (सभी चीजों को) जोड़ने वाला ही दुर्लभ है। +: राज्य तीन शक्तियों से मिलकर बनत है, ये शक्तियाँ हैं- मन्त्र, प्रभाव और उत्साह जो परस्पर अनुगृहीत होकर कार्यों में आतीं हैं। मन्त्र से यह निश्चित होता है कि क्य क्यों कैसे करना चाहिये, प्रभाव से कार्य प्रारम्भ होता है, उत्साह से काम बिना रूके आगे बढ़ता है। +: जिसके मनन, चिन्तन एवं ध्यान द्वारा संसार के सभी दुखों से रक्षा, मुक्ति एवं परम आनंद प्राप्त होता है, वही मंत्र है। +: जिससे आत्मा और परमात्मा का ज्ञान (साक्षात्कार) हो, वही मंत्र है। +: जिसके द्वारा आत्मा के आदेश (अंतरात्मा की आवाज) पर विचार किया जाए, वही मंत्र है। +: जिसके द्वारा परमपद में स्थित देवता का सत्कार (पूजन/हवन आदि) किया जाए-वही मंत्र है। +: यह ज्योतिर्मय एवं सर्वव्यापक आत्मतत्व का मनन है और यह सिद्ध होने पर रोग, शोक, दुख, दैन्य, पाप, ताप एवं भय आदि से रक्षा करता है, इसलिए मंत्र कहलाता है। +: जिससे दिव्य एवं तेजस्वी देवता के रूप का चिन्तन और समस्त दुखों से रक्षा मिले, वही मंत्र है। +: जिसके मनन, चिन्तन एवं ध्यान आदि से पूरी-पूरी सुरक्षा एवं सुविधा मिले वही मंत्र है। +: अनुष्ठान और पुरश्चरण के पूजन, जप एवं हवन आदि में द्रव्य एवं देवता आदि के स्मारक और अर्थ के प्रकाशक मन्त्र हैं। +: साधना में साधक, साधन एवं साध्य का विवेक ही मंत्र कहलाता है। +: सभी बीजात्मक वर्ण मंत्र हैं और वे शिव का स्वरूप हैं। +: मंत्र गुप्त विज्ञान है, उससे गूढ़ से गूढ़ रहस्य प्राप्त किया जा सकता है। + + +: श्री रामचंद्रजी के निवास से वन की सम्पत्ति ऐसी सुशोभित है मानो अच्छे राजा को पाकर प्रजा सुखी हो। सुहावना वन ही पवित्र देश है। विवेक उसका राजा है और वैराग्य मंत्री है। +* वही सरकार सर्वश्रेष्ठ है जो सबसे कम शासन करती है। हेनरी डेविड थोरो + + +हेनरी डेविड थोरो Henry David Thoreau (1817 – 1862) अमेरिकन कवि, निबन्धकार, दार्शनिक और इतिहास थे। उन्हें सबसे अधिक अपनी पुस्तक 'वाल्डेन' के लिए जाना जाता है। इसमें प्रकृति के बीच सादे जीवन गुजारने पर जोर है। इसके अलावा उनका लेख "रजिस्टेंस टू सिविल गवर्मेंट" भी काफी चर्चित है। यह शासन के अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के लिये है। +* वही सरकार सर्वश्रेष्ठ है जो सबसे कम शासन करती है। +* धन पूरी तरह से जीवन अनुभव करने की क्षमता है। +* प्रातःकाल का भ्रमण पूरे दिन के लिए वरदान होता है। +* सफलता आमतौर पर उन लोगों को मिलती है जो इसकी तलाश में बहुत व्यस्त रहते हैं। +* हमारा जीवन विस्तार से निराश है, सरलीकृत करें, सरल करें। +* यदि कोई अपने सपनों की दिशा में आत्मविश्वास से आगे बढ़ता है, और वह जीवन जीने का प्रयास करता है, जिसकी उसने कल्पना की है, तो वह अप्रत्याशित रूप से सफल होगा। +* किताबें दुनिया की बेशकीमती दौलत हैं और ये पीढ़ियों और देशों की विरासत संजोए हुए हैं। +* आपको वर्तमान में रहना चाहिए, हर लहर पर खुद को लॉन्च करना चाहिए, प्रत्येक क्षण में अपनी अनंतता का पता लगाना चाहिए। +* यदि हम शांत और पर्याप्त रूप से तैयार होंगे, तो हमें हर निराशा में भरपाई जरूर मिलेगी। +* सबसे अच्छी किताबें पहले पढ़ें, नहीं तो आपको उन्हें पढ़ने का मौका ही नहीं मिलेगा। +* अगर हम शांत और पर्याप्त रूप से तैयार रहेंगे, तो हमें हर निराशा में मुआवजा मिलेगा। +* सवाल यह नहीं है कि आप क्या देखते हैं, बल्कि आपको क्या दिखाई देता हैं। +* जो एक बार अच्छी तरह से किया जाता है वह हमेशा के लिए किया जाता है। +* सुबह-सुबह टहलना पूरे दिन के लिए वरदान है। +* अवज्ञा स्वतंत्रता की सच्ची नींव है। आज्ञाकारी होना दास जैसा होता हैं। +* दोस्ती की भाषा शब्द नहीं बल्कि अर्थ होती है। +* अच्छाई ही एक ऐसा निवेश है जो कभी असफल नहीं होता। +* व्यस्त होना पर्याप्त नहीं है। व्यस्त तो चींटियाँ भी हैं। सवाल यह है कि हम किस बारे में व्यस्त हैं? +* भीड़ में मखमल के गद्दे पर बैठने के बजाय, मैं पूरे कद्दू पर अकेले बैठना पसंद करूंगा। +* अच्छाई एकमात्र ऐसा निवेश है जो कभी विफल नहीं होता है। +* खुशी एक तितली की तरह है; जितना अधिक आप उसका पीछा करेंगे, उतना ही वह आपसे दूर भागेगा। लेकिन अगर आप अपना ध्यान दूसरी चीजों की ओर मोड़ेंगे तो वह आकर आपके कंधे पर धीरे से बैठ जाएगी। +* अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने से आपको जो मिलता है वह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि आप अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने से बनते हैं। +* प्रत्येक मनुष्य एक मंदिर का निर्माता है जिसे उसका शरीर कहा जाता है। +* मैं अपनी जरूरतों को कम करके खुद को अमीर बनाता हूं। + + +* मूर्खों को उन जंजीरों से मुक्त करना कठिन है जिनका वे सम्मान करते हैं। +* अगर भगवान ने हमें अपनी छवि में बनाया है, तो हमारे पास पारस्परिक से अधिक है। +* मैं केवल अपने आप को खुश करने के लिए पढ़ता हूं, और केवल वही आनंद लेता हूं जो मेरे स्वाद के अनुरूप है। +* हमारे इस छोटे से ग्लोब पर प्लेग या भूकंप की तुलना में राय ने अधिक बीमारियाँ पैदा की हैं। +* एक खूबसूरत महिला से प्यार करने वाला पुरुष हमेशा मुसीबत से बाहर निकलेगा। +* मेरी आत्मा ब्रह्मांड का दर्पण है, और मेरा शरीर इसका फ्रेम है +* प्रशंसा एक अद्भुत चीज है: यह वही बनाती है जो दूसरों में उत्कृष्ट है वह भी हमारा है। +* यह प्रेम नहीं है जिसे अंधे के रूप में चित्रित किया जाना चाहिए, बल्कि आत्म-प्रेम। +* जीवन एक जहाज़ की तबाही है, लेकिन हमें जीवनरक्षक नौकाओं में गाना नहीं भूलना चाहिए। +* जीवित लोगों के लिए हम सम्मान के पात्र हैं, लेकिन मृतकों के लिए हम केवल सत्य के ऋणी हैं। +* भगवान ने हमें जीवन का उपहार दिया है; यह हम पर निर्भर है कि हम स्वयं को अच्छी तरह से जीने का उपहार दें। +* जो लोग आपको बेतुकी बातों पर विश्वास दिला सकते हैं, वे आपको अत्याचार करवा सकते हैं। +* जितना अधिक मैं पढ़ता हूं, जितना अधिक मैं प्राप्त करता हूं, उतना ही अधिक निश्चित होता हूं कि मैं कुछ भी नहीं जानता। +* किसी व्यक्ति को उसके उत्तरों के बजाय उसके प्रश्नों से आंकें। +* प्रेम एक कैनवास है जो प्रकृति द्वारा प्रस्तुत किया गया है और कल्पना द्वारा कशीदाकारी किया गया है। +* किसी निर्दोष की निंदा करने की अपेक्षा दोषी व्यक्ति को बचाने का जोखिम उठाना बेहतर है। +* विश्वास में विश्वास करना शामिल है जब यह विश्वास करने के कारण की शक्ति से परे है +* औषधि की कला में रोगी का मनोरंजन करना होता है जबकि प्रकृति रोग को ठीक करती है। +* उन मामलों में सही होना खतरनाक है जिन पर स्थापित अधिकारी गलत हैं। +* जीवन कांटों से भरा हुआ है, और मैं उनके बीच से जल्दी गुजरने के अलावा और कोई उपाय नहीं जानता। हम अपने दुर्भाग्य पर जितनी देर टिके रहेंगे, उनकी हमें हानि पहुँचाने की शक्ति उतनी ही अधिक होगी। +* धर्म के लिए अंधविश्वास वही है जो ज्योतिष शास्त्र के लिए एक बुद्धिमान मां की पागल बेटी है। इन बेटियों ने बहुत लंबे समय तक धरती पर राज किया है। +* ईश्वर एक ऐसा वृत्त है जिसका केंद्र सर्वत्र है और परिधि कहीं नहीं +* मारना मना है; इसलिए सभी हत्यारों को दंडित किया जाता है जब तक कि वे बड़ी संख्या में और तुरहियों की आवाज के लिए नहीं मारते। +* बोर होने का राज सब कुछ बता देना है। +* सहिष्णुता क्या है? यह मानवता का परिणाम है। हम सब धोखाधड़ी और त्रुटि से बने हैं; आइए हम पारस्परिक रूप से एक दूसरे की मूर्खता को क्षमा करें – यही प्रकृति का पहला नियम है। +* प्रशंसा एक अद्भुत चीज है। यह बनाता है जो दूसरों में उत्कृष्ट है वह भी हमारा है। +* भगवान बड़ी बटालियनों के पक्ष में नहीं होते, बल्कि उन लोगों के पक्ष में होते हैं जो सर्वश्रेष्ठ निशानेबाजी करते हैं। +* अपने लिए सोचें और दूसरों को भी ऐसा करने के विशेषाधिकार का आनंद लेने दें। +* प्रत्येक खिलाड़ी को उन कार्डों को स्वीकार करना चाहिए जो उसके जीवन के सौदे करते हैं: लेकिन एक बार जब वे हाथ में होते हैं, तो उसे अकेले ही यह तय करना होगा कि गेम जीतने के लिए कार्ड कैसे खेलें। +* मैंने कभी भगवान से केवल एक प्रार्थना नहीं की, एक बहुत ही छोटी प्रार्थना: ‘हे भगवान मेरे दुश्मनों को हास्यास्पद बनाओ।’ और भगवान ने इसे दिया। +* जब पैसे की बात आती है तो सभी एक ही धर्म के होते हैं। +* हम सब कमजोरी और त्रुटियों से भरे हुए हैं; आइए हम परस्पर एक दूसरे को अपनी भूलों को क्षमा करें – यह प्रकृति का पहला नियम है। +* यह खेदजनक है कि एक अच्छा देशभक्त होने के लिए व्यक्ति को शेष मानव जाति का शत्रु बनना चाहिए। +* यदि ईश्वर नहीं होता तो उसका अविष्कार करना आवश्यक होता। +* जो पति अपनी पत्नी को सरप्राइज देने का फैसला करता है, वह अक्सर खुद को बहुत ज्यादा हैरान करता है। +* सामान्य तौर पर, सरकार की कला में नागरिकों के एक वर्ग से दूसरे वर्ग को देने के लिए जितना संभव हो उतना पैसा लेना शामिल है। +* राय ने इस छोटी सी धरती पर विपत्तियों या भूकंपों की तुलना में अधिक परेशानी पैदा की है। +* अत्याचारियों में हमेशा कुछ न कुछ गुण होते हैं; वे उन्हें नष्ट करने से पहले कानूनों का समर्थन करते हैं। +* पुरुषों के सभी तर्क महिलाओं की एक भावना के लायक नहीं हैं। +* सभी धर्मों में से, ईसाई को निश्चित रूप से सबसे अधिक सहिष्णुता की प्रेरणा देनी चाहिए, लेकिन अब तक ईसाई सभी पुरुषों में सबसे अधिक असहिष्णु रहे हैं। +* उसे बहुत अज्ञानी होना चाहिए क्योंकि वह उससे पूछे जाने वाले प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देता है। +* आइए पढ़ते हैं और नाचते हैं – दो मनोरंजन जो दुनिया को कभी नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। +* बहुत पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ उसी प्रकार पाई जाती हैं जैसे महिला योद्धाओं को; लेकिन वे शायद ही कभी या कभ�� आविष्कारक होते हैं। +* मैंने जीवन के अस्सी साल जीते हैं और इसके लिए कुछ भी नहीं जानता, लेकिन इस्तीफा देने के लिए और अपने आप को बताता हूं कि मक्खियों का जन्म मकड़ियों द्वारा खाया जाता है और मनुष्य दुःख से खाया जाता है। +* 40 वर्ष की आयु के बाद जिसे अधिकांश लोग पुण्य मानते हैं, वह केवल ऊर्जा की हानि है। +* यह कल्पना करना मानव मन के अंधविश्वासों में से एक है कि कौमार्य एक गुण हो सकता है। +* कायरों का भागना व्यर्थ है; मौत पीछे पीछे आती है; इसकी अवहेलना करने पर ही वीर बच निकलते हैं। +* सबसे सुरक्षित तरीका यह है कि अपनी अंतरात्मा के खिलाफ कुछ न किया जाए। इस रहस्य से हम जीवन का आनंद उठा सकते हैं और मृत्यु से कोई भय नहीं है। +* वह दूसरी रैंक में चमकता है, जिसे पहले ग्रहण किया जाता है। +* अपराधियों की सजा उपयोगी हो। फाँसी पर लटका हुआ आदमी किसी काम का नहीं; सार्वजनिक कार्यों के लिए निंदित एक व्यक्ति अभी भी देश की सेवा करता है, और एक जीवित सबक है। +* मित्रता आत्मा का विवाह है, और यह विवाह तलाक के लिए उत्तरदायी है। +* धर्म के सत्य को इतनी अच्छी तरह से कभी नहीं समझा जा सकता जितना कि वे लोग जिन्होंने तर्क की शक्ति खो दी है। +* दरअसल, इतिहास अपराधों और दुर्भाग्य की झांकी से ज्यादा कुछ नहीं है। +* आइए बिना सिद्धांत के काम करें, जीवन को टिकाऊ बनाने का एकमात्र तरीका है। +* दिन में सौ बार शरारत करने का और साल में एक बार अच्छा करने का मौका मिलता है। +* जो कोई भी जुनून को नियंत्रित करने के बजाय नष्ट करना चाहता है, वह परी की भूमिका निभाने की कोशिश कर रहा है। +* पुरुष उस व्यक्ति से घृणा करते हैं जिसे वे लोभी कहते हैं, केवल इसलिए कि उससे कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है +* पूर्वजों ने हमें अनुग्रह के लिए बलिदान करने की सिफारिश की, लेकिन मिल्टन ने शैतान को बलिदान दिया। +* शाब्दिक अनुवाद करने वालों पर धिक्कार है, जो हर शब्द का अनुवाद करके अर्थ को कमजोर करते हैं! वास्तव में ऐसा करने से हम कह सकते हैं कि अक्षर मारता है और आत्मा जीवन देती है। +* इसलिए समाज उतना ही प्राचीन है जितना कि विश्व। +* पेंटिंग में छोटा महान के साथ विपरीत हो सकता है, लेकिन इसके विपरीत नहीं कहा जा सकता है। रंगों के विपरीत विरोध; लेकिन एक-दूसरे के विपरीत रंग भी होते हैं, जो एक बुरा प्रभाव पैदा करते हैं क्योंकि जब वे इसके बहुत करीब आते हैं तो वे आंख को झकझोर देते हैं। +* प्रत्येक मनुष्य उस युग का प्राणी है जिसमें वह रहता है और कुछ ही लोग उस समय के विचारों से ऊपर उठ पाते हैं। +* सभी जीवन में सबसे सुखद एक व्यस्त एकांत है। +* जब पैसे की बात आती है तो सभी एक ही धर्म के होते हैं। +* पुरुष समान हैं; यह जन्म नहीं बल्कि पुण्य है जो फर्क करता है। +* यह मानव आत्मा का एक शिशु अंधविश्वास है कि कौमार्य को एक गुण माना जाएगा, न कि वह बाधा जो अज्ञान को ज्ञान से अलग करती है। +* मैं अपनी ही प्रजाति के दो सौ चूहों की तुलना में, एक अच्छे शेर की आज्ञा का पालन करना पसंद करूंगा, जो मुझसे कहीं ज्यादा मजबूत है। + + +: यदि कोई आग, कोई ऋण, या कोई शत्रु शेष बचे रह जाँय तो लगातार बढ़ते रहते हैं, अतः इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिये। +* प्रेमचंद ने जब गोदान लिखा था, तब वह खुद भी कर्ज़ के बोझ से दबे हुए थे। ‘गोदान’ की मूल समस्या ऋण की समस्या है। इस उपन्यास में किसानों के साथ मानों वह आपबीती भी कह रहे थे। रामविलास शर्मा]] +* छोटा ऋण किसी व्यक्ति को आप का ऋणी बनाता है, एक बड़ा ऋण उसको आप का दुश्मन बना देता है। +* चिंता करना उस कर्ज को चुकाने जैसा है जो कभी चुका नहीं सकता। विल रोजर्स +* ऋण एक स्वतंत्र, सुखी व्यक्ति को एक कड़वे इंसान में बदल सकता है। माइकल मिहालिक +* बहुत से लोग अपने कर्ज चुकाने की तुलना में उपहार देने में अधिक प्रसन्न होते हैं। सर फिलिप सिडनी +* ऋण बच्चों की तरह हैं खुशी से पैदा हुए, लेकिन दर्द के साथ पैदा हुए। मोलिरे +* बहुत से लोग सोचते हैं कि वह आनंद से खरीद रहा है, जबकि वास्तव में वह खुद को बेच रहा होता है। बेंजामिन फ्रैंकलिन +* खराब कर्ज वह कर्ज है जो आपको गरीब बनाता है। मैं अपने घर पर गिरवी को खराब कर्ज के रूप में गिनता हूं, क्योंकि मैं ही इसका भुगतान कर रहा हूं। खराब ऋण के अन्य रूप कार भुगतान, क्रेडिट कार्ड शेष या अन्य उपभोक्ता ऋण हैं। रॉबर्ट कियोसाकी +* कल्पना के खेल का हम पर जो कर्ज है, उसकी गणना नहीं की जा सकती। कार्ल जुंग +* कर्ज किसी भी अन्य जाल की तरह है, इसमें प्रवेश करना काफी आसान है, लेकिन इससे बाहर निकलना काफी कठिन है। हेनरी व्हीलर शॉ +* मंदी से उभरने के लिए अगर कोई रास्ता नहीं मिल रहा हैं तो कर्ज लेकर भी रास्ता प्राप्त करने की कोशिश मत करो। +* किसी दोस्त से पैसे उधार लेने से पहले, यह तय करें कि आपको किसकी सबसे ज्यादा जरूरत है दोस्त की या पैसो की। +* आपके पास जो कुछ भी उसी में रहने का प्रयास करो। जब तक जितना भी हैं लेकिन आपका हैं तो आप खुश रहेंगे। +* उधार लेने और उधार चुकाने के चक्कर में दोस्त दुश्मन में बदल जाते हैं। +* कर्ज लेकर कोई महल तो बना सकता हैं, लेकिन जीवन की आधी खुशियों को आग लगा देता हैं। +* अगर कोई किसी स्टाम्प पर हस्ताक्षर करता हैं, और किसी के कर्ज लेने पर गवाह बनता हैं तो यह उसका एक गलत और पछतावे जैसा निर्णय हो सकता हैं। +* यहां याद रखने लायक एक विचार जो एक दिन में पांच रूपये कमाता और खर्च सात रूपये करता हैं तो उसका जीवन एक दुखी जीवन के बराबर हैं। +* जब कोई विपति आये तो उधार पर विचार करने की आदत न डाले, यह आपको एक मुसीबत से निकाल कर दूसरी मुसीबत में डाल देगा। +* एक बेहतर राय – पहला खुद को कभी कर्ज में शामिल मत करो, दूसरा कभी किसी व्यक्ति की जमानत मत बनो। +* ऋण एक बंधन का रूप हैं, यह वित्तीय दीमक की तरह धीरे धीरे बढ़ता जाता हैं, और नष्ट करता जाता हैं। +* चार चीजे जिनको आप जितना जानते हैं वे उनसे अधिक हैं – पाप, कर्ज, शत्रु, वर्ष। +* कर्ज चुकाने के दो तरीके हैं – या तो आप अपने बिजनेस को बढाकर आय में वृद्धि करो या अपने खर्चे कम कर दो। +* उधार एक जाल जैसा हैं, एक बार जो फंस जाता हैं, वाही आसानी से बाहर नहीं आता हैं। +* कर्ज आपके घर के चारों और सौ दरवाजे खड़े कर देता हैं, कर्जदाता कहीं से भी दरवाजा खटखटा सकता हैं। + + +: क्षमाशील पुरुषों का केवल एक दोष है कि उन क्षमायुक्त लोगों को दूसरे लोग अशक्त मानते है। उनमें दूसरा कोई दोष नहीं होता। +: आसक्त लोगों का वन में रहना भी दोष उत्पन्न करता है। घर में रहकर पंचेन्द्रियों का निग्रह करना ही तप है। जो दुष्कृत्य में प्रवृत्त होता नहीं, और आसक्तिरहित है, उसके लिए तो घर हि तपोवन है। +: गुणज्ञों में ही गुण, गुण के रूप में रहते हैं, वे ही (गुण) निर्गुणों में जाकर दोष बन जाते हैं। जैसे नदियों का जल सुसदु (मीठा) होता है किन्तु वही जल समुद्र में जाकर अपेय (न पीने योग्य) हो जाता है। +: इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि सज्जन दूसरों के दोष लेकर उन्हें गुण में बदल देते हैं जबकि दुर्जन दूसरों के गुणों को भी दोष में बदल देते हैं। (उदाहरण के लिये) महान बादल (समुद्र का) खारा जल पीकर उसे मीठा जल बना देत है, जबकि साँप दूध पीकर भी दुःसह्य विष निकालता है। +: गंगाजी में शुभ और अशुभ सभी जल बहता है, पर कोई उन्हें अपवित्र नही�� कहता। सूर्य, अग्नि और गंगाजी की भाँति समर्थ को कुछ दोष नहीं लगता। +* दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता जितना अपने को बचाता है। स्वामी रामतीर्थ +* जब तक आप दूसरों के अवगुण ढुंढने या उनके दोष देखने की आदत को दूर नहीं कर लेते तब तक आप ईश्‍वर का साक्षात नहीं कर सकते। स्वामी रामतीर्थ +* निश्चित रूप से आपके मार्ग में आयेंगे ही। आपका दोष क्षमता की कमी या साधनों की कमी की दृष्टि से नहीं है, वरन दोष इस बात मे है की आपमें संकल्प का अभाव है। बाल गंगाधर तिलक +* स्वतंत्रता की रक्षा करने में अतिवादी होने में कोई दोष नहीं है, न्याय करने में अतिवादी न होना कोई गुण नहीं है। बैरी गोल्डवाटर +* कानून के दृष्टि से कोई व्यक्ति तब दोषी माना जाता है जब वह दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करता है लेकिन धर्म की दृष्टि से जब कोई किसी दूसरे के अधिकारों के हनन के बारे में सोचता है तब भी वह दोषी है। इमानुएल काण्ट + + +: विद्वान व्यक्ति को सभा के बीच किसी की निन्दा नहीं करनी चहिये। यदि कोई बात सत्य भी हो तो जिस बात को कहने से किसी को कष्ट हो, उस बात को कहना नहीम चाहिये। +: वह माता शत्रु के समान है और पिता वैरी के समान है जिन्होंने अपने बालकों को शिक्षित नहीं किया। क्योंकि बडे हो कर वे विद्वानों की सभा (समाज) में शोभा और सम्मान नहीं पाते है और उनकी स्थिति सुन्दर हंसों के झुण्ड में एक बगुले की सी हो जाती है। +: ‪विपत्ति में धैर्य, अभ्युदय में सहिष्णुता सभा में वाक् चातुरी युद्ध में वीरता, यश में उत्कण्ठा, वेद-शास्त्रों विषयक अनुराग, ये गुण महानुभावों के स्वभाव में ही पाए जाते हैं।‬ +: यदि मंत्री, वैद्य और गुरु भय या लाभ वश प्रिय बोलते हैं तो इनमें से मंत्री के राज्य, वैद्य के शरीर एवं गुरु के धर्म शीघ्र ही नाश हो जाता है। +: बात अच्छी होने पर भी अगर बिना मौके के कही जाय तो वह फीकी मालूम देती है। युद्ध हो रहा हो और उस समय शृंगार रस की बात की जाय, तो वह अच्छी नहीं लगती। +: फीकी बात भी अवसर का विचार करके अगर कही जाती है तो वह अच्छी लगती है। विवाह के अवसर पर गाली-भरे गीत भी सबके मन को सुहावने लगते हैं। + + +श्रीनिवास रामानुजन एक भारतीय गणितज्ञ थे। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए और भारत को अतुलनीय गौरव प्रदान किया। उनकाका जन्म 22 दिसम्बर1887 को तमिलनाडु के कोयंबटूर के ईरोड नामके गांव में हुआ था। ये बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान थे। इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। +गणित का सार इसकी स्वतंत्रता में निहित है। +* गणित संख्याओं, समीकरणों, एल्गोरिथ्म की गणना के बारे में नहीं है यह समझ के बारे में है। +* मेरे लिए एक समीकरण का कोई मतलब नहीं है, जब तक कि यह भगवान के बारे में एक विचार व्यक्त नहीं करता है। +* गणित के बिना, आप कुछ भी नहीं कर सकते। आपके आसपास सब कुछ गणित है। आपके आस-पास सब कुछ संख्याएँ हैं। मैंने हमेशा गणित का आनन्द लिया है। +* यह किसी भी विचार को व्यक्त करने का सबसे सटीक और संक्षिप्त तरीका है। अगर मैं फिर से अपनी पढ़ाई शुरू कर रहा था, तो मैं प्लेटो की सलाह का पालन करूंगा और गणित से शुरू करूंगा। +* ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में, हम उन अक्षरों को सीखते हैं जिनसे दुनिया की यह महान पुस्तक लिखी गई है। +* नहीं, यह एक बहुत ही दिलचस्प संख्या है; यह दो अलग-अलग तरीकों से दो क्यूब्स के योग के रूप में सबसे छोटी संख्या है, दो तरीके 13 123 और 93 103 हैं। +* मैं एक पारम्परिक विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम से आगे नहीं बढ़ा हूं, लेकिन मैं अपने लिए एक नया रास्ता खोज रहा हूं। मैंने सामान्य रूप से भिन्न श्रेणी की एक विशेष जांच की है और मुझे जो परिणाम मिलते हैं उन्हें स्थानीय गणितज्ञ ने चौंका देने वाला करार दिया है। +* सोते समय मुझे एक असामान्य अनुभव हुआ। खून बहने से एक लाल स्क्रीन बनी। मैं इसे देख रहा था। अचानक एक हाथ स्क्रीन पर लिखने लगा। मैं सबका ध्यान बन गया। उस हाथ ने कई अण्डाकार समाकलन लिखे। वे मेरे दिमाग में अटक गए। जैसे ही मैं उठा, मैंने उन्हें लिखने के लिए प्रतिबद्ध किया। +* अपने दिमाग को सुरक्षित रखने के लिए मुझे भोजन चाहिए और अब यह मेरा पहला विचार है। आप का कोई भी सहानुभूतिपूर्ण पत्र यहाँ छात्रवृत्ति प्राप्त करने में मेरे लिए सहायक होगा। +* नहीं, यह एक बहुत ही रोचक संख्या है। यह दो अलग-अलग तरीकों से दो घनों के योग के रूप में व्यक्त की जाने वाली सबसे छोटी संख्या है। + + +अभिमान, अहंकार, गर्व, घमंड आदि समानार्थी हैं। +: इस संसार में सभी प्रकार के कर्म प्रकृति के द्वारा स्वयं किए जा रहे हैं लेकिन जिस व्यक्ति के अंतः करण में अहंकार भरा रहता है। वह अहंकार के वशीभूत होकर अपन��� आप को कर्ता समझता है। अहंकारी पुरुष विमूढात्मा होता है। +: जिस व्यक्ति के अंदर अहंकार, हठ, घमंड, काम- क्रोध ये पाँच दुर्गुण होते हैं। वह मनुष्य मुझ परमात्मा से द्वेष करता है और मेरे को भी दोष दृष्टि से देखता है। ऐसा समझना चाहिए। +: जो मनुष्य काम, आसक्ति, हठ के वशीभूत होते हैं एवं जिनके अंदर दंभ एवं अहंकार भरा रहता है और शास्त्र विधि को छोड़कर घोर तप करते हैं। ऐसे लोग असुर एवं पापी होते हैं। +: हे राजन, अहंकार अर्थात् घमंड के कारण व्यक्ति का वह सब कुछ नष्ट हो जाता है, जो कुछ भी उसने जीवन में अर्जित किया है। +* अनुशासन के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है। वेद व्यास + + +: विरह-दग्ध हृदय में बसंत में खिलते पलाश के फूल अत्यंत कुटिल मालूम होते हैं तथा गुलाब की खिलती पंखुड़ियाँ विरह-वेदना के संताप को और अधिक बढ़ा देती हैं। +भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि) गायी जानेवाली श्रुतियों में बृहत्साम और वैदिक छन्दों में गायत्री छन्द मैं हूँ। बारह महीनों में मार्गशीर्ष और छः ऋतुओं में वसन्त मैं हूँ। +* दंपति जोबन रूप जाति लक्षणयुत सखिजन, +कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में +क्यारिन में कलिन में कलीन किलकंत है। +: कहे पद्माकर परागन में पौनहू में +पानन में पीक में पलासन पगंत है। +: द्वार में दिसान में दुनी में देस-देसन में +: बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में +बनन में बागन में बगरयो बसंत है। पद्माकर +: घन तिमिर में चपला की रेख तमन में शीतल मंद बयार। जयशंकर प्रसाद (कामायानी में ) + + +महर्षि चरक आयुर्वेद के प्रतिसंस्कर्ता माने जाते हैं। +: शास्त्र ज्योति के समान होते हैं जो (वस्तुओं को) प्रकाशित करता है। बुद्धि आँख के समान है। इन दोनों से युक्त वैद्य चिकित्सा करते समय गलती नहीं करता। +: अर्थ- जिसमें आयु है या जिससे आयु का ज्ञान प्राप्त हो, उसे आयुर्वेद कहते हैं। +शरीर, इन्द्रियों, शक्ति तथा आत्मा का संयोग ही 'जीवित या आयु कहलाता है। +: अर्थात् हितायु, अहितायु, सुखायु एवं दुःखायु; इस प्रकार चतुर्विध जो आयु है उस आयु के हित तथा अहित अर्थात् पथ्य और अपथ्य आयु का प्रमाण एवं उस आयु का स्वरूप जिसमें कहा गया हो, वह आर्युवेद कहा जाता है। +धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का मूल (जड़) उत्तम आरोग्य ही है। +: तू ब्रह्मचारी का जीवन बितायेगा, अपने बाल और दाढ़ी बढ़ाएगा, केव�� सत्य भाषण ही करेगा। माँस नहीं खाएगा, आहार में केवल शुद्ध वस्तुएँ ही लेगा, ईर्ष्या से मुक्त रहेगा तथा कोई हथियार धारण नहीं करेगा। राजा के प्रति घृणा अथवा किसी अन्य की मृत्यु अथवा कोई भी अधार्मिक कृत्य अथवा विनाश उत्पन्न करने वाले कृत्यों को छोड़ तू सभी अन्य कार्य मेरे आदेश पर ही करेगा। +: अर्थात् धी (बुद्धि धृति (धैर्य) और स्मृति (स्मरण शक्ति) के भ्रष्ट हो जाने पर मनुष्य जब अशुभ कर्म करता है तब सभी शारीरिक और मानसिक दोष प्रकुपित हो जाते हैं। इन अशुभ कर्मों को 'प्रज्ञापराध' कहा जाता है। जो प्रज्ञापराध करेगा उसके शरीर और स्वास्थ्य की हानि होगी और वह रोगग्रस्त हो ही जाएगा। +: जो अर्थ तथा कामना के लिए नहीं, वरन् भूतदया अर्थात् प्राणिमात्र पर दया की दृष्टि से चिकित्सा में प्रवृत्त होता है, वह सब पर विजय प्राप्त करता है। +: सत्य बोलनेवाला, कम व्यय करनेवाला, हितकारक पदार्थ आवश्यक प्रमाण मे खानेवाला, तथा जिसने इन्द्रियों पर विजय पाया है, वह चैन की नींद सोता है। +: शरीर सत्त्व का अनुसरण करता है और सत्त्व शरीर का। +: संशमन चिकित्सा से नष्ट हुए रोग पुनः उत्पन्न हो सकते हैं किन्तु संशोधन द्वारा नष्ट हुए रोग पुनः उत्पन्न नहीं होते। +: किसी विकार का नाम बताने में अकुशल को लज्जा का अनुभव नहीं करना चाहिये क्योंकि सभी विकारों का नाम नाम नहीं दिया जा सकता। विकार असंख्य हैं क्योंकि वही दोष कुपित होने पर स्थान और हेतु के अनुसार भिन्न-भिन्न रोग उत्पन्न करता है। इसलिये विकार के स्थानान्तर और समुत्थानविशेष की प्रकृति का पूर्ण निर्धारण करने के बाद ही चिकित्सा आरम्भ करनी चाहिये। जो वैद्य ऐसा करता है, वह चिकित्सा कर्म में गलती नहीं करता। +: चिकित्सा के पूर्व परीक्षा अत्यन्त आवश्यक है। परीक्षा की जहां तक बात आती है तो परीक्षा रोगी की भी होती है और रोग की भी। रोग-रोगी दोनों की परीक्षा करके उनका बलाबल ज्ञान करके ही सफल चिकित्सा की जा सकती है। +चरक और चरकसंहिता के बारे में कथन +* औषध विज्ञान की हिन्दुओं की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक चरक सहिंता है। अलबरूनी + + +: आहार का परित्याग कर देने वाले मनुष्य के इन्द्रियों के विषय दूर हो जाते हैं किन्तु रस दूर नहीं होता। इस मनुष्य का रस भी परमात्मा के दर्शन कर लेने पर दूर हो जाता है। +: प्रकुपित हुए (बिगडा हुआ) वात, पित्त एवं कफ, इन सभी रोगों का कारण है । शरीर को परहेज की आवश्यकता है, फिर तो ऐसे में अन्न ग्रहण करना, यह तो वात, पित्त एवं कफ के कुपित होने में कारणीभूत है। +: अत्यन्त दुर्बल व्यक्तियों को उपवास कभी नहीं करना चाहिये । उपवास में जो गुण हैं वे सभी गुण कम और सुपाच्य भोजन करने में भी होते हैं। +: भूख का वेग रोकने से कार्श्य (शरीर का पतलापन दुर्बलता, वैवर्ण्य (शरीर का रंग बदल जाना शरीर में दर्द, भोजन से अरुचि और भ्रम होने लगता है। ऐसी स्थिति में स्निग्ध (चिकना उष्ण (गरम कम भोजन लेना चाहिये। +: जो लोग त्वचा रोगों से, मूत्र के रोगों से (प्रमेह से) ग्रस्त हैं, जिनका शरीर सामान्य से अधिक स्निगध (तैलीय) है, जो आवश्यकता से अधिक खाते हैं, जो जो वात विकारों से ग्रस्त हैं, उन्हें शिशिर ऋतु (जाड़े में) में लङ्घन (उपवास) करना अच्छा रहता है। +: भावार्थ पूर्वभोजन के जीर्ण होने पर ही भोजन करना चाहिए। यदि कभी प्रमाद से अजीर्ण हो जाए तो लंघन (उपवास) उसकी परम औषधि है। +: अर्थात् जो व्यक्ति हिताहारी (हितकर आहार करने वाले मिताहारी (परिमित, नपा तुला, न अधिक न कम आहार करने वाले) तथा कभी- कभी अल्पाहारी (कम भोजन या उपवास करने वाले) होते हैं, उनकी चिकित्सा वैद्य लोग नहीं करते, प्रत्युत वे अपने चिकित्सक स्वयं होते हैं। +: जठराग्नि आहार को पचाती है, यदि उसे आहार नहीं मिले तो बढ़े हुए दोषों को पचाती है, नष्ट करती है। दोषों के क्षीण होने पर भी उपवास किया जाएगा तो जठराग्नि रस-रक्त आदि धातुओं को जलाने लगती है व शरीर कृश होने लगता है तथा अन्त में जीवन को नष्ट कर देती है। + + +पतञ्जलि सम्भावित जीवनकाल द्वितीय शताब्दी ईसापूर्व) एक महान ऋषि थे जिहोंने कई प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना की। 'योगसूत्र' उनका प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसके अलावा उन्होंने व्याकरनमहाभाष्य की रचना की जो व्याकरण का ग्रन्थ है। +: योग, चित्त की वृत्तियों का नियंत्रक है। +महर्षि पतञ्जलि के बारे में कथन +चित्त-शुद्धि के लिए योग (योगसूत्र वाणी-शुद्धि के लिए व्याकरण (महाभाष्य) और शरीर-शुद्धि के लिए वैद्यकशास्त्र (चरकसंहिता) देनेवाले मुनिश्रेष्ठ पतञ्जलि को प्रणाम। + + +सूर्य नमस्कार एक प्रसिद्ध योगासन है। +* सूर्य भगवान ने अपने प्रकाश और ऊष्मा से कभी भी किसी को वंचित नहीं किया है, चाहे वह किसी भी जाति धर्म का हो। इसके बाद भी इसे (सूर्य नमस्कार को साम्प्रदायिकता से जोड़ा ज रह है। इसलिये मैं ऐसे लोगों से कहना चाहता हूँ कि वे दिन के समय अपने घरों के अन्दर ही बन्द रहें। योगी आदित्यनाथ + + +: सन्त रविदास (रैदास) कहते हैं कि किसी की जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि संसार में कोई जाति−पाँति नहीं है। सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं। यहाँ कोई जाति, बुरी जाति नहीं है। +: रैदास कहते हैं कि उस ब्राह्मण को नहीं पूजना चाहिए जो गुणहीन हो। गुणहीन ब्राह्मण की अपेक्षा गुणवान चांडाल के चरण पूजना श्रेयस्कर है। +: अज्ञानवश सभी लोग जाति−पाति के चक्कर में उलझकर रह गए हैं। रैदास कहते हैं कि यदि वे इस जातिवाद के चक्कर से नहीं निकले तो एक दिन जाति का यह रोग संपूर्ण मानवता को निगल जाएगा। +: सब मनुष्य एक समान हैं किन्तु उसके चार नाम (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र) रख दिए हैं, जैसे वेद पढ़ने वाला मनुष्य पंडित (ब्राह्मण) और जूता गाँठने वाला मनुष्य चर्मकार (शूद्र) कहलाता है। +* जात-पात भारतीय जीवन की सबसे सशक्त प्रथा रही है, यहाँ जीवन जाति की सीमाओं के भीतर ही चलता है। राममनोहर लोहिया]] +* भारत में कौन राज करेगा ये तीन चीजों से तय होता है। उंची जाति, धन और ज्ञान। जिनके पास इनमे से कोई दो चीजें होती हैं वह शासन कर सकता है। राममनोहर लोहिया]] +* जाति प्रथा को तोड़ने का एक ही उपाय है, वह है ऊँची और नीची जातियों के बीच बराबर के हिस्से का रोटी और बेटी का सम्बन्ध। राममनोहर लोहिया]] +* आधुनिक अर्थव्यवस्था के माध्यम से गरीबी को दूर करने के साथ, ये अलगाव (जाति के) अपने आप ही गायब हो जाएंगे। राममनोहर लोहिया]] +* मैं इस बात को जोर दे कर कहना चाहता हूं कि मनु ने जाति की व्यवस्था की स्थापना नहीं की क्योंकि यह उनके बस की बात नहीं थी। मनु के जन्म के पहले भी जाति की व्यवस्था कायम थी। मनु का योगदान बस इतना है कि उन्होंने इसे एक दार्शनिक और वैधानिक आधार दिया। जाति का दायरा इतना बड़ा है कि उसे एक आदमी, चाहे वह जितना ही बड़ा ज्ञाता या शातिर हो, संभाल ही नहीं सकता। भीमराव आम्बेडकर अपने लेख 'जाति का विनाश' में +: शरमाते हैं नहीं जगत् में जाति पूछनेवाले। +: सूत्रपुत्र हूँ मैं, लेकिन थे पिता पार्थ के कौन? +दक्षिण एशिया के मुसलमानों में जाति प्रथा]] + + +* ईश्वर एक है और वह संसार का निर्माणकर्ता है। वह सभी गुणों का केंद्र एवं भण्डार है। इश्वर न तो कभी पैदा हुआ और न उसने कभी शरीर धारण किया। +* मनुष्य को ���हिंसा अपनाना चाहिए। +* सभी जाति और वर्ण के लोग उसकी पूजा कर सकते हैं। पूजा शुद्ध हृदय से ही की जा सकती हैं, उसके लिए मंदिर, मस्जिद तथा एनी प्रकार के बाह्य आडम्बरों की कोई आवश्यकता नहीं। +* पाप कर्म छोड़ने तथा उसके लिए पश्चाताप करने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। +* किसी भी पुस्तक को दैवी मानने के ज़रूरत नहीं है क्योंकि सभी में कोई न कोई त्रुटि होती है। मानसिक ज्योति और विशाल हृदय से ही ईश्वर के बारें में ज्ञान प्राप्त हो सकता हैं। +* भारतीय समाज में जातीय भेदभाव और छुआछूत का अंत होना चाहिए क्योंकि इन बुराइयों के रहते कोई भी समाज प्रगति नहीं कर सकता हैं। +* समाज में अंधविश्वास एवं रूढिवादिता का अंत तथा विवेक सम्मत व्यवहार होना चाहिए। +* बाल-विवाह प्रथा, बहुविवाह प्रथा, सतीप्रथा और भ्रूण हत्या का अंत होना चाहिए। +* समाज में विधवा-विवाह का प्रचलन होना चाहिए। + + +निबन्ध साहित्य की एक विधा है। निबन्ध की प्रधान विशेषता व्यक्तित्व का प्रकाशन है। निबंध की सबसे अच्छी परिभाषा है निबन्ध, लेखक के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाली ललित गद्य-रचना है।" विश्व की सभी भाषाओं में निबंध को साहित्य की सृजनात्मक विधा के रूप में मान्यता आधुनिक युग में ही मिली है। निबंध में किन्हीं ऐसे ठोस रचना-नियमों और तत्वों का निर्देश नहीं दिया जा सकता जिनका पालन करना निबंधकार के लिए आवश्यक है। ऐसा कहा जाता है कि निबंध एक ऐसी कलाकृति है जिसके नियम लेखक द्वारा ही आविष्कृत होते हैं। निबंध में सहज, सरल और आडम्बरहीन ढंग से व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। +* लेखक बिना किसी संकोच के अपने पाठकों को अपने जीवन-अनुभव सुनाता है और उन्हें आत्मीयता के साथ उनमें भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है। उसकी यह घनिष्ठता जितनी सच्ची और सघन होगी, उसका निबंध पाठकों पर उतना ही सीधा और तीव्र असर करेगा। इसी आत्मीयता के फलस्वरूप निबंध-लेखक पाठकों को अपने पांडित्य से अभिभूत नहीं करना चाहता। हिन्दी साहित्य कोश +* निबन्ध लेखक अपने मन की प्रवृत्ति के अनुसार स्वच्छंद गति से इधर-उधर फूटी हुई सूत्र शाखाओं पर विचरता चलता है। यही उसकी अर्थ सम्बन्धी व्यक्तिगत विशेषता है। अर्थ-संबंध-सूत्रों की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ ही भिन्न-भिन्न लेखकों के दृष्टि-पथ को निर्दिष्ट करती हैं। एक ही बात को लेकर किसी का मन किसी सम्बन���ध-सूत्र पर दौड़ता है, किसी का किसी पर। इसी का नाम है एक ही बात को भिन्न दृष्टियों से देखना। व्यक्तिगत विशेषता का मूल आधार यही है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल +* एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय या वर्णन या प्रतिपादित एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव, सजीवता तथा सम्बद्धता के साथ किया जाना ही निबन्ध कहलाता है। बाबू गुलाबराय +* नए युग में जिन नवीन ढंग के निबंधों का प्रचलन हुआ है वे व्यक्ति की स्वाधीन चिन्ता की उपज है। हजारीप्रसाद द्विवेदी +संस्कृत में भी निबन्ध का साहित्य है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के उन निबन्धों में धर्मशास्त्रीय सिद्धान्तों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। किन्तु वर्तमान काल के निबन्ध संस्कृत के निबन्धों से ठीक उलटे हैं। उनमें व्यक्तित्व या वैयक्तिकता का गुण सर्वप्रधान है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी + + +: हे भरतश्रेष्ठ! धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में जो इस ग्रन्थ में है वही दूसरे ग्रन्थों में भी है किन्तु जो यहाँ जो नहीं है वह कहीं नहीं है। वैशम्पायन जनमेजय से, महाभारत ग्रन्थ के बारे में + + +* मैंने इस पत्र को केवल इसलिए लम्बा किया है क्योंकि मेरे पास इसे छोटा करने का समय नहीं है। ब्लेज़ पास्कल]] + + +* भविष्यवाणी बहुत मुश्किल है, खासकर यदि यह भविष्य के बारे में है तो। नील्स बोर +* विश्वास के साथ जिस वस्तु की आशा करते हैं वो स्वयं को पूर्ण करने वाली भविष्यवाणी बन जाती है। ब्रायन ट्रेसी +* जिनके पास ज्ञान है, भविष्यवाणी नहीं करते हैं। जो लोग भविष्यवाणी करते हैं, उनके पास ज्ञान नहीं है। Lao-tzu +* भविष्यवाणी करने का सबसे अच्छा तरीका अतीत का अध्ययन करना या भविष्यवाणी करना है। रॉबर्ट कियोसाकी +* समय राय के भविष्यवाणियों को समाप्त करता है और प्रकृति के फैसलों की पुष्टि करता है। Marcus Tullius Cicero +* हवा से भारी उड़ने वाली मशीनें बनाना असम्भव है। लॉर्ड केल्विन, १८९५ +* थोड़ी भी सम्भावना नहीं दिखती कि कभी भी परमाणु से ऊर्जा प्राप्त की जा सकेगी। अल्बर्ट आइन्स्टीन २९ दिसम्बर १९३४ +* यह हमारे द्वारा की गयी सबसे मूर्खतापूर्ण कार्य है। यह बम कभी नहीं फटेगा। फ्लीट ऐडमिरल विलियम लिही (William Leahy) अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन से बनाये गये परमाणु बम के बारे में +* ३० डिग्री केल्विन तापमान से अधिक ताप पर अति���ालकता सम्भव नहीं। अतिचालकता के अनेकों सिद्धान्त + + +* भाषण, दवा के समान है जिसकी छोटी खुराक इलाज करती है किन्तु बड़ी खुराक मार देती है। Nahj al-Balagha Ali + + +: पुस्तक में स्थित लिखित विद्या और दूसरे के हाथों में गया हुआ धन, आवश्यकता पड़ने पर न वह धन काम आता है और न वह विद्या। +: हाथ का आभूषण दान है, गले का आभूषण सत्य है, कान की शोभा शास्त्र सुनने से है। अन्य आभूषणों की क्या आवश्यकता है? +* आवश्य्कता आविष्कार की जननी है। अंग्रेजी कहावत + + +* हर धर्म में प्रेम, करुणा, और भलाई का पोषक कोर है। बाहरी खोल में अंतर है, लेकिन भीतरी सार को महत्त्व दीजिये और कोई विवाद नहीं होगा। किसी चीज को दोष मत दीजिये, हर धर्म के सार को महत्त्व दीजिये और तब वास्तविक शांति और सद्भाव आएगा। +* वह जो अपने सम्प्रदाय की महिमा बढाने के इरादे से उसका आदर करता है और दूसरों के संप्रदाय को नीचा दिखाता है, ऐसे कृत्यों से वह अपने ही सम्प्रदाय को गंभीर चोट पहुंचता है। + + +: किसी भी वंश में उत्पन्न मनुष्य यदि गुणी है तो समाज में उसका सम्मान होता है।जैसे श्रेष्ठ बांस से बने हुए भी गुण रहित धनुष से क्या उपयोग लिया जा सकता है, अर्थात कोई नहीं । +: जिस किसी पुरूष ने शरीर, वाणी और मन इन तीनों द्वारा अथवा इसमें से किसी एक के द्वारा देश का अथवा अपने वंश का एक भी उपकार यदि न किया तो ऐसे अनुपकारी पुरूष का जन्म लेना ही व्यर्थ है। +: आरोग्य, विद्वता, सज्जनों से मैत्री, श्रेष्ठ कुल में जन्म, दूसरे के ऊपर निर्भर न होना यह सब धन नहीं होते हुए भी पुरुषों का ऐश्वर्य है। +: क्षुधा (भूख तृषा (प्यास) और आशा मनुष्य की पत्नियाँ हैं जो जीवनपर्यन्त मनुष्य का साथ निभाती हैं। इन तीनों में आशा महासाध्वी है क्योंकि वह क्षणभर भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ती, जबकि भूख और प्यास कुछ कुछ समय के लिए मनुष्य का साथ छोड़ देते हैं। +: कुटुम्ब के लिए स्वयं के स्वार्थ का त्याग करना चाहिए, गाँव के लिए कुटुम्ब का त्याग करना चाहिए, देश के लिए गाँव का त्याग करना चाहिए और आत्मा के लिए समस्त वस्तुओं का त्याग करना चाहिए। +: मनुष्य के कुल की ख्याति उसके आचरण से होती है, बोलचाल से उसके देश की ख्याति बढ़ती है, मान-सम्मान उसके प्रेम को बढ़ता है, एवं उसके शारीर का गठन उसके भोजन से बढ़ता है। +: अपनी कन्या का ब्याह अच्छे कुल में करना चाहिए। पुत्र को अच्छी शिक्षा देनी चाहिए। शत्रु को आपत्ति और कष्टों में डालना चाहिए एवं मित्रों को धर्म कर्म में लगाना चाहिए। +: राजा लोग अपने आस पास अच्छे कुल के लोगों को इसलिए रखते है क्योंकि ऐसे लोग ना आरम्भ में, ना बीच में और ना ही अंत में साथ छोड़ कर जाते है। +: रूप और यौवन से सम्पन्न तथा कुलीन परिवार में जन्मा लेने पर भी विद्या हीन पुरुष पलाश के फूल के समान है जो सुन्दर तो है लेकिन खुशबू रहित है. +: रघुकुल में बड़ा भाई स्वामी और छोटा भाई सेवक होता था, ऐसी सुंदर रीति थी। +: वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक॥ रामधारी सिंह 'दिनकर रश्मिरथी में + + +* जिसने विष्णु और शिव को मृग के समान नयनों वाली कामिनियों के गृहकार्य करने के लिये सतत् दास बना रखा है, जिसका वर्णन करने में वाणी असमर्थ है ऐसे चरित्रों से विचित्र प्रतीत होने वाले उस भगवान पुष्पायुध (कामदेव) को नमस्कार है। +: मन्द मुस्कराहट से, अन्तकरण के विकाररूप भाव से, लज्जा से, आकस्मिक भय से, तिरछी दृष्टि द्वारा देखने से, बातचीत से, ईर्ष्या के कारण कलह से, लीला विलास से-इस प्रकार सम्पूर्ण भावों से स्त्रियां पुरूषों के संसार-बंधन का कारण हैं। +: भौंहों के उतार-चढ़ाव आदि की चतुराई, अर्द्ध-उन्मीलित नेत्रों द्वारा कटाक्ष, अत्यधिक स्निग्ध एवं मधुर वाणी, लज्जापूर्ण सुकोमल हास, विलास द्वारा मन्द-मन्द गमन और स्थित होना-ये भाव स्त्रियों के आभूषण भी हैं और आयुध (हथियार) भी हैं। +इस संसार में) दर्शनीय वस्तुओं में उत्तम क्या है? मृगनयनी का प्रेम से प्रसन्न मुख। सूंघने योग्य वस्तुओं में क्या उत्तम है? उसके मुख का सुगन्धित पवन। श्रवण योग्य वस्तुओं में उत्तम क्या है? स्त्रियों के मधुर वचन। स्वादिष्ट वस्तुओं में उत्तम क्या है? स्त्रियों के पल्लव के समान अधर का मधुर रस। स्पर्श योग्य वस्तुओं में उत्तम क्या है? उसका कुसुम-सुकुमार कोमल शरीर। ध्यान करने योग्य उत्तम वस्तु क्या है? सदा विलासिनियों का यौवन विलास। +: जिसके पास धन है वही उच्च कुल का है, वही पंडित है, वही शास्त्रों का ज्ञाता है, वही दूसरों का आकलन करते की क्षमता रखता है, वही उत्तम वक्ता है, उसी का व्यक्तित्व प्रभावि है। यह सब इसलिए कि सभी गुण धन के प्रतीक कांचन अर्थात् सोने पर निर्भर हैं । +: महान व्यक्तियों का स्वभाव उनके सुखी और समृद्ध होने पर भी पुष्प के समान कोमल होता है। परन्तु यदि उनके ऊपर कोई विपत्ति आती है तो उस स्थिति में वह एक पर्वत की शिलाओं के समान कठोर हो जाता है। +: कानों की शोभा कुण्डल से नहीं बल्कि शास्त्रों को सुनने में है, हाथ की शोभा दान देने से है न कि कंगन पहने से। +जिस स्त्री का मैं सतत चिन्तन करता हूँ, वह मुझसे विरक्त है वह दूसरे पुरुष को चाहती है। उसका अभीष्ट वह पुरुष भी किसी अन्य स्त्री पर असक्त है, तथा मरे लिए अन्य स्त्री अनुरक्त है। अत: उस स्त्री को, उस पुरुष को, कामदेव को, मेरे में अनुरक्त इस स्त्री को तथा मुझे धिक्कार है। +: भोग करने पर रोग का भय, उच्च कुल मे जन्म होने पर बदनामी का भय, अधिक धन होने पर राजा का भय, मौन रहने पर दैन्य का भय, बलशाली होने पर शत्रुओं का भय, रूपवान होने पर वृद्धावस्था का भय, शास्त्र मे पारङ्गत होने पर वाद-विवाद का भय, गुणी होने पर दुर्जनों का भय, अच्छा शरीर होने पर यम का भय रहता है। इस संसार मे सभी वस्तुएँ भय उत्पन्न करने वालीं हैं। केवल वैराग्य से ही लोगों को अभय प्राप्त हो सकता है। +: मानव जीवन में बुढ़ापा दहाड़ती हुई बाघिन की तरह सामने आ धमकती है। विविध रोग शत्रुओं की भांति शरीर पर प्रहार करते हैं। जैसे दरार पड़े घड़े से पानी रिसता है वैसे ही आयु हाथ से खिसकती रहती है । आश्चर्य होता है इतना सब होते हुए भी लोग अहितकर कर्मों में लिप्त रहते हैं । +: आयु वैसे ही बिती चली जा रही है जिस प्रकार चूने वाले घड़े से पानी। + + +गुरु गोरखनाथ गोरक्षनाथ नाथ सम्प्रदाय के महान योगी और चिन्तक उपदेशक थे। अनेक नगरों (गोरखपुर) और जनसमूहों (गोरखा) के नाम उनके नाम पर हैं। गुरु गोरखनाथ के जन्मस्थान और जन्मकाल के समय में प्रामाणिक जानकारी नहीं है। सनातन ग्रंथो के अनुसार गुरु गोरखनाथ हर युग में हुए हैं। उनको महान चिरंजीवियों में से एक गिना जाता है। कई इतिहासकारों का कहना है कि गुरु गोरखनाथ का काल नौवीं शताब्दी के मध्य में था। कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं कि गुरु गोरखनाथ एक काल्पनिक चरित्र हैं, वास्तविक नहीं। +परवर्ती संत-साहित्य पर सिद्धों और विशेषकर नाथों के साहित्य का गहरा प्रभाव पड़ा है। गुरु गोरखनाथ द्वारा रचित 40 रचनाएँ हैं। हिन्दी भाषा के शोधकर्ता डॉक्टर पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने बड़ी खोजबीन के बाद इनमें से 14 रचनाओं को अति प्राचीन बताया है। सबदी, पद, शिष्यदर्शन, प्राण-सांकली, नरवै बोध, आत्मबोध, अभयमात्रा जोग, पं��्रह तिथि, सप्तवार, मंच्छिद्र गोरख बोध, रोमावली, ज्ञान तिलक, ज्ञान चौतींसा आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। +नाथ साहित्य साधारणतः दोहों अथवा पदों में प्राप्त होता है। कहीं-कहीं चौपाई का भी प्रयोग मिलता है। गुरु गोरखनाथ की भाषा को खड़ी बोली कहा जा सकता है। +: गुरु गोरखनाथ कहते हैं की हे अवधूत! शिव हमारे चेले हैं, मत्स्येन्द्रनाथ नाती चेला (यानी चेले का चेला)। हमें स्वयं गुरु धारण करने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि हम साक्षात परमात्मा हैं। किन्तु इस डर से कि कहीं हमारा अनुकरण कर अज्ञानी लोग बिना गुरु के ही योगी होने का दम्भ न भरने लगें, हमने मत्स्येन्द्रनाथ को गुरु बनाया, जो वस्तुतः उल्टी स्थापना अथवा क्रम है। यदि हम ऐसा न करते तो गुरुहीन पृथ्वी प्रलय में चली जाती अर्थात नष्ट हो जाती। +: इस पवन रुपी कृषक के अन्तर्गत मन रुपी बैल को जोतवाओ यानी श्वास द्वारा मन को नियन्त्रित करो) और सत्य स्वरुप की नाथ (नथुनों मे नाथ डालकर रस्सी द्वारा नियन्त्रण रखना) डालकर इस बैल को दिशा प्रदान करो। दया व धर्म रुपी बीज लेकर इस खेत (साधना पथ) मे डालो। मछेन्द्रनाथ के कृपा प्रसाद से जती गोरखनाथ कथन करते है की इस प्रकार से यदि खेती करोगे तो ऐसी फसल प्राप्त होगी, जो खाने से खत्म नही होगी, देने से कम नही होगी, सदा नित्य व नवीन बनी रहेगी और ऐसी खेती करने वाले को कभी यम का द्वार नही देखना पड़ेगा। +: हम तो अपने रंग मे मस्त रहते है यानी निरन्तर निज चैतन्य स्वरुप की मस्ती मे मग्न रहते है और किसी अन्य के संग की कोई चाह नही करते हैं)। लेकिन यदि संग करना भी हो तो ऐसे जागृत साधक का करना चाहिए, जिसने गुरुज्ञान के आधार से अलख पुरुष (परमात्मा) को पहचान (साक्षात्कार) लिया हो। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! अहूँठ पर्वत साढ़े तीन हाथ के इस शरीर) मे माया रुपी बेल का विस्तार है। इसी माया रुपी बेल पर स्थूल जगत रुपी फल व फूल लगे है, लेकिन इसके अलावा मुक्ति रुपी फल भी इसी बेल पर लगता है यानी परम मुक्ति को पाने का आधार भी यह शरीर ही है)। इसी बेल के प्रकाश से जगत की उत्पति हुई है यानी मायावी द्वैत भाव के कारण ही इस सकल जगत का पसारा है)। इसका कोई मूल नही है यानी माया मिथ्यारुप व आधारविहीन है लेकिन फिर भी यह आकाश चढ़ गई है यानी चेतना के उच्च स्तरो तक इसका विस्तार हो गया है)। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की इस माया रुपी बेल ने विस्तार प्राप्त कर ब्रह्मानुभूति पर आवरण डाल दिया है। अतः हे भौतिक जगत के ज्ञानियो, इस सार बात पर विचार करो यानी जगत के मिथ्या ज्ञान का दंभ त्यागकर, परम सत्य के ज्ञान का विचार करो ताकी माया का पर्दा हटे व सत्य ज्ञान की प्राप्ति हो पाये)। +: अनहद मृदंग बाजै, तहां पांगुल नाचन लागा।૪। +: महायोगी गोरख कहते है की ऐसा योगी जिसने आत्म अनुभूति कर ली, वह सब कारणो का भी कारण है। सभी कारणो को कारणत्व उसी से प्राप्त होता है, लेकिन स्वयं वह किसी कारण भाव से बंधा नही होता है। ऐसे शिवस्वरुप योगी के सामने लवण कहता है की मै अलूणा हूँ यानी लवण मे वह सामर्थ्य नही की उनको लूणा स्वाद दे सके, वह उनसे लूणापन माँगता है घी कहता है की मै रुखा हूँ, हवा कहती है की मै प्यासी हूँ, अन्न कहता है की मै भूखा हूँ, अग्नि कहती है की मै जाड़े से मर रही हूँ और कपड़ा कहता है की मै नंगा हूँ। गोरखनाथ जी महाराज यहाँ संकेत करते है की ऐसी अवस्था तभी घटित होती है, जब योगी के घट मे अनाहत रुपी मृदंग बजता है और उसके ताल पर पंगु हो चुकी आत्मा यानी परमात्म आनंद से संयुक्त, सर्व विकारो व इन्द्रियो के संग से रहित, चैतन्य रुप से व्याप्त आत्मा) नाचने लगती है। ऐसे पूर्ण परमानंद प्राप्त अलख स्वरुप योगी, आदिनाथ जिनके दादा गुरु है और मछेन्द्रनाथ का जो शिष्य है, वह परमअवधूत गोरखनाथ जी महाराज कहते है की मैने अभेद (अद्वैत) के भेद (रहस्य) को भेद कर परमपद को पा लिया है। +: महायोगी गोरख कहते है की देव, देवालय और तीर्थ आदि सब इसी काया के भीतर है, लेकिन चेतन रुप मे परम सहजता व सरलता से संयुक्त होने पर ही योगी को इस घट मे परमात्म एकात्मय उपलब्ध हो पायेगा। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज पुनः कथन करते हुए कहते है की हे मानव सुनो, कोई बिरला ही इस काया रुपी किले को जीतकर उस परमपद मे स्थित हो पायेगा (क्योंकी यहाँ निज से निज को ही जीतना पड़ेगा)। +: महायोगी गोरख अलख पुरुष (निरंजन नाथ) को साक्षी करके कहते है की ना तो हमारा कही आना है और ना ही कही जाना है यानी हमारे लिए किसी प्रकार का आवागमन नही है)। हमने पिंड (काया) में ही ब्रह्माण्ड को खोज लिया, जिससे इसी काया मे ही हमे सर्व प्रकार की सिद्धता प्राप्त हो गयी। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की कायागढ़ (शरीर रुपी किले मे) नौ लाख खाइयाँ है (यानी नवरंध्रो मे चौरासी लाख योनियो के अनेको संस्कार भरे हु��� है) जिनको हमने योग द्वारा पाट दिया है और दसवे द्वार पर लगे ताले को कुण्डलिनी शक्ति रुपी ताली लगाकर खोल लिया है, जिससे ब्रह्मरंध स्थान पर विजय प्राप्त हो गयी है। +: महायोगी गोरख कहते है की यह काया सात धातुओं रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र) से बना हुआ पिंजरा है, जिसमे योग युक्ति के अभाव के कारण जीव सुषुप्त रुप से बन्धन मे पड़ा है। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की सदगुरु शरणागति ही जीव को सर्व बन्धनो से उबारने का एकमात्र साधन है (क्योंकी सदगुरु ही जीव को चेतन करके शिवत्व का मार्ग प्रशस्त कर सकता है अन्यथा तो बारम्बार बन्धन से संयुक्त होकर विनाश को प्राप्त होता रहेगा। +: महायोगी गोरख कहते है की यदि योगयुक्ति धारण करके भी साधक का आवागमन समाप्त नही होता है, जगत का जंजाल मिटता नही है और तप के द्वारा वह परम निर्भयता व उपरामता को नही पाता है तो फिर ऐसे योगानुसंधान का क्या लाभ है यानी ऐसा योग का मार्ग ही सारहीन हो जाता है)। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की बिना पूर्ण गुरु की शरण लिये, गृहत्याग कर जोग नही लेना चाहिए, इससे वह अपयश ही पाता है क्योंकी पूर्ण गुरु के मार्गदर्शन मे ही पूर्णता को पाया जा सकता है, जिससे सकल द्वन्दो का नास हो जाता है)। +: जरां जोग तहां रोग न ब्यापैं, ऐसा परषि गुरु करना।२। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! ऐसे ज्ञान का विचार करो जिससे ज्योति का झिलमिल प्रकाश प्रत्यक्ष हो जाये यानी ज्योतिस्वरुप परमात्मा के निर्मल नूर का साक्षात्कार हो जाए और हमारा अन्तर उससे प्रकाशित हो उठे)। साधक को परख करके गुरु करना चाहिए, ताकी सदगुरु की कृपा से ऐसा परम योग घटित हो, जिस के बाद फिर माया का कोई रोग व्याप्त ना हो पाए। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की यदि तन व मन के स्तर से ऊपर उठकर, उस परम सता से परिचय (साक्षात्कार) नही हुआ, तो फिर किसलिए योग का अनुसंधान करके कष्ट पाना है यानी योग की सार्थकता तभी है जब वह परमात्मा से एकरुपता स्थापित करा दे, अन्यथा तो वह प्रंपच मात्र बन कर रह जाता है)। +: महायोगी गोरख कहते है की हमारे घर मे ऐसी गाय (गायत्री) बँधी है, जिसे हमने गगन मंडल (ब्रह्मारंध) में प्राप्त (लाधी) किया है यानी हमारे काया रुपी घर मे चेतन रुप से परमात्मा रुपी गाय का वासा हुआ है )। मेरा सारा परिवार (सकल इन्द्रियाँ व मन) इसी गाय की सेवा मे लगा रहता है (यानी मन सहित समस्त इन्द्रिया निरन्तर परमात्म रस का रसपान करते रहते है, अन्य कोई भटकाव शेष नही रहा है )। यह गाय कान, सींग, पूँछ व रंग से रहित है यानी परमात्म सता सम्पूर्ण मायावी द्वैत व प्रपंच से रहित, परम र्निकार व निर्लेप रुप से व्याप्त है)। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की मेरे गुरु मछेन्द्रनाथ के कृपा प्रसाद से हम निरन्तर उस परम उन्मुक्त अवस्था मे ही निवास करते हुए, ब्रह्मानुभूति मे ही लवलीन रहते है। +: महायोगी गोरख कहते है की अनाहत शब्द रुपी शंख का उदघोष करते हुए हमने काल की सेना का दमन कर दिया यानी अनाहत नाद के जागरण से उन सभी कारणो का नाश हो गया जो काल का ग्रास बनाने वाले तथा जन्म मरण के प्रपंचो मे फँसाने वाले थे)। महायोगी गोरखनाथ का कथन है की तदउपरान्त इसी घट (काया) के भीतर, हमने गगन मंडल (सहस्त्रार स्थान) पर सहज रुप से स्वामी (परब्रह्म) को पा लिया (यानी उनसे तादाम्य प्राप्त हो गया)। +: महायोगी गोरख कहते है की ममत्व मिट जाने पर माया रुपी माई का क्षय हो जाता है और अंहकार रुपी पिता की समाप्ति पर, उनके बच्चो यानी षड्विकारो का भी नाश हो जाता है। इस प्रकार जाति (देहगत) प्रपंचो से रहित होकर ग्वाला (गोरखनाथ रात दिन गोरु (गाय) चराता रहता है यानी इन्द्रियो को संयमित करके, उन्हे निरन्तर परमात्म स्मृति मे लगाये रखता है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे गोपाल इन्द्रियो के पालक) यानी हे मानव! तुम भी गोरखनाथ की तरह गगन मण्डल (शून्य स्थान) रुपी गाय के दुग्ध (ब्रह्मानुभूति) का पान करो। इस सकल मायावी पसारे रुपी दही को मथकर उसके सार रुपी अमृत परमात्म अनुभूति) का पान करो और फिर अभय होकर जीवन जीयो (क्योंकी ब्रह्मानुभूति सर्व प्रकार के द्वैत व भय का नाश कर देती है और इससे संयुक्त जन परम उन्मुक्त अवस्था मे विधमान रहता है +: महायोगी गोरख कहते है की आत्मा रुपी एक गाय है जिसके नौ बछड़े (यानी नवरंध्र) है, जो इस गाय (आत्मा) का दुग्ध पान करते है (यानी इसकी आध्यात्मिक शक्ति का ह्रास करते है)। इसके साथ ही पंच इन्द्रियो द्वारा इस आत्मा रुपी गाय का दुग्ध दोहा जाता है यानी इनके द्वारा आत्मिक शक्तियो का दोहन होता रहता है)। लेकिन योगी अपने योगबल से सोलह करंडियो वाले पुष्प को पा लेता है यानी सहस्त्रार स्थान मे स्थित सोलह कलाओ से संयुक्त चन्द्रमा रुपी परमानंद को प्राप्त करता है जिससे आत्मरुपी मालिन परम सुख को प्राप्त करती है। +: महायोगी गोरख पुनः कथन करते है की हमने तो बिना पैरो के गाय की चोरी कर ली यानी अचल समाधिस्थ होकर आत्मा को ब्रह्मानुभूति की प्राप्ति कराई)। गुरु मछेन्द्रनाथ के कृप्या प्रसाद से जति गोरख कहते है की इसके उपरान्त यह गाय दोबारा नही बिआई यानी गुरु कृपा से आवागमन सदा काल के लिए समाप्त हो गया और हमने उस परम अलख स्वरुप को एकाकार कर लिया। +: महायोगी गोरख कहते है की जब साधक का मन (मंछा) चेतना के उच्चतम स्तर (डूंगरि) पर पहुँच जाता है, तो फिर मायावी परिवेश मे रहते हुए भी वह माया से सदा र्निलेप ही रहता है। उसका जागृत विवेक सत् और असत् का यथार्थ ज्ञान पाकर माया का नाश कर देता है। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की ऐसे अवस्था बोध मे साधक ब्रह्मानुभूति द्वारा परम तृप्ति को पाता है और शूल (विधा) से काटे (अविधा) का निवारण (क्षय) हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की हमने चन्द्र और सूर्य (इड़ा व पिंगला) के मार्ग को त्याग, निज चेतना को सुषुम्णा मार्ग से प्रवाहित कर दिया। यही हमारे लिए मुद्रा धारण करना है। इसी प्रकार सांसारिकता को भस्म करके परम र्निलेप रुप से मायापति होकर उस भस्म को वैराग्य रुपी जल मे डालकर, उसे शरीर पर रमा लिया यानी सांसारिक लीला हेतु माया को अधीन करके जगत का खेल खेला )। यही हमारे लिए शरीर पर भस्म धारण करने का अभिप्राय है। महायोगी गोरख का कथन है की इसी प्रकार हमने नादी निरंतर नादानुसंधान बिंदी बिंद (वीर्य) रक्षा करते हुए, अखंड ब्रह्मचर्य व्रत की पालना सिंगी शब्द ब्रह्म से एकरुपता) और आकाशी निरन्तर शून्य स्वरुप (स्थूलता से परे स्थिति को धारण करते हुए, अलख गुरु का शिष्यत्व प्राप्त कर लिया यानी परम र्निकार की अवस्था मे परमात्म एकरुपता को आत्मसात कर लिया)। +: महायोगी गोरख कहते है की गगन (त्रिकुटी) मे अनाहत नाद का गर्जन हो उठा और सूर्य (मूलाधार शक्ति) का पश्चिम (सुषुम्ना मार्ग) मे उदय हो गया। जागृत मूलाधार शक्ति सहस्त्रार मे नाचने लगी, जिससे पूर्व (सहस्त्रार) का परम ज्ञान चेतन हो उठा और हम सर्व मायावी प्रपंचो से पार हो गये। +: महायोगी गोरख कहते है की दसवें द्वार (ब्रह्मरंध) से होते हुए योगी मोक्ष पद (स्वर्ग) की प्राप्ति के लिए शिव स्थान (केदार) तक चढ़ाई चढ़ता है और २१ ब्रह्मांडो से परे की उपराम अवस्था मे अपने मूल शाश्वत स्वरुप का उदघोष सु��ता है। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज कथन करते है की मूलाधार स्थान मे स्थित सूर्य की बारह कलाओ मे शक्ति का वास है और सहस्त्रार स्थान मे स्थित चन्द्रमा की सोलह कलाओ मे शिव का वास है। जब बारह कलाओ से संयुक्त मूलाधार शक्ति का सहस्त्रार स्थान मे सोलह कलाओ से संयुक्त शिव तत्व से एकात्मय होता है, तो पूर्ण शिवत्व का जागरण घटित होता है। इसके परिणाम स्वरुप जीव का शिव घर मे वास हो जाता है यानी जीव की चेतना शिव स्वरुप हो जाती है) और वह उन्मनावस्था मे स्थित होकर, परमसमाधि को प्राप्त हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की वह जो ना शून्य है और ना ही स्थूल है और ना ही स्थूल रुप से चिन्हित करके उसकी पूजा हो सकती है। वह जो बिना ध्वनी के अनहद नाद रुप मे गूंजायमान हो उठता है। वह जो बिना वाटिका का पुष्प और बिना पुष्प के सौरभ है। वह जो बिना पवन के चारो तरफ सुगंधि का पसारा कर, भवरौ के समूह को आकर्षित किए रहता है। वह जो बिन राहु के ग्रस लेता है, बिना अग्नि के जला देता है और बिना आकाश के बादलो से बारिश करा देता है। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज वेद (ऋग, यजु, साम, अर्थ) व शास्त्रो का तोता रटन करने वाले तथाकथित ब्राह्मणो से पूछते है की इन परम वाक्यो का अर्थ कहो (जानो)। तदउपरान्त सिद्ध शिरोमणि जति गोरखनाथ जी महाराज कथन करते है की यह निज से निज को प्रकाशित करने वाला सोहंभाव परम सता से एकरुपता का ज्ञान) है, जो धरती, जल या आकाश मे नही व्याप्ता है यानी यह आदि अन्त से परे परम अवस्था है)। अन्त मे महायोगी गोरखनाथ जी महाराज कहते है की गुरु मछेन्द्र के कृपा प्रसाद से हमने गंगा (इडा) और जमुना (पिंगला) के बीच (सुषुम्ना) मे खेल परमानंद किया और इस परम ज्ञान का अनुभव पाया यानी परम समाधि से संयुक्त होकर आत्म साक्षात्कार की अनुभूति की)। +: महायोगी गोरख कहते है की हे पंडितो (ज्ञानियो इस सतही ज्ञान से परे ब्रह्मज्ञान को समझो, आज गोरखनाथ अपने अनुभव की कसौटी के आधार पर तुम्हे इस ब्रह्मज्ञान का कथन कर रहे है, इसलिए इसको जानो। वह परमब्रह्म बिना बीज के उत्पन्न होने वाला है यानी वह स्वयं मूल रुप है, सकल ब्रह्माण्ड उसी का पसारा है वह बिना मूल का वृक्ष है (यानी निराधार है वह बिना फूलो व पत्तो के फल देने वाला है (यानी प्रकृति के नियम उसे नही बाँधते, वह उनसे सर्वदा परे है)। वह बंध्या का बालक है यानी कार्य कारण से बंधा नही है)। वह बिना आक��श का चन्द्रमा है सर्वत्र एकरुप से व्याप्त है, कोई द्वैत उसमे नही व्यापता है वह बिना ब्रह्मांड का सूर्य है यानी निराधार रुप से सबको संचालित करने वाला है वह बिना मैदान के घटित होने वाला युद्ध है यानी शून्य स्थान मे उसका पसारा है)। महायोगी गोरखनाथ जी का कथन है की जिसके अन्तर मे इस परमार्थ भाव का उदय होता है उसको ही यह परम ज्ञान सुलभ हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की सदगुरु और सत्यज्ञान हमारे दो तुम्बे है यानी तन रुपी तम्बूरे के आधार है और इनके आधार से ही तुम्बे मे धुन (नाद) बजती है मानसिक चेतना इस तम्बूरे की डांडी है। जब तम्बूरे पर कसी हुई तारे बजने लगती है (अनहत नाद का जागरण होता है) तो उन्मनावस्था घटित होती है और इस प्रकार सभी तृष्णाएँ खंडित (नष्ट) होकर छूट जाती है। महायोगी गोरखनाथ कहते है की सदगुरु ने इस श्रेष्ठ अवस्था मे बालकुमारी (माया) से हमारा परिणय करा दिया (अर्थात हमे मायापति बना दिया) और इस प्रकार गुरु मछेन्द्रनाथ के कृपा प्रसाद से सदा काल के लिए माया का भय दूर हो गया (यानी हमने सदाकाल के लिए माया पर जीत प्राप्त कर ली)। +: महायोगी गोरख का कथन है की मै सुरघट घाट (परम स्थान) का व्यापारी हूँ और शून्य मे हमारा पसारा है (यानी शून्य स्थान मे हमारा व्यवसाय क्रियान्वित होता है)। हमारा व्यापार भी ऐसा है जो लेन देन की भावना से रहित है। मछेन्द्रनाथ के शिष्य गोरखनाथ कहते है की हमारे इस व्यापार का अर्थ है की गुरु के वचनो का आधार तो जरुर लेकर रखो, लेकिन सार बात तो अपनी निज की करणी है जिसके कारण मुक्ति पद को प्राप्त किया जा सकता है (यानी गुरु ज्ञान के अनुरुप श्रेष्ठ करणी करते हुए परम पद को पाना ही महायोगी गोरखनाथ जी के लिए अगम का व्यवसाय है)। +: महायोगी गोरख कहते है की जीवन मे ऐसे परम तत्व का वाणिज्य (व्यापार) करो, जैसे की हमने किया और उसको करके मन मे विश्वास हो गया की यही सर्वोतम व खरा वाणिज्य है। गोरखनाथ तो पांच बैलो (ज्ञानेंद्रियो) और नौ गायो (नव रंध्रो) के संग, सहज ज्ञान का वाणिज्य करते है। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की हमने इन पाँच बैलो व नौ गायो के संग वाणिज्य (लेन देन) किया और इनके लिए सहज भाव का बाखर उपलब्ध करा दिया, जिसके परिणामस्वरुप हमारा मन ऊँची उड़ान लेने लग गया है यानी इनके चंचलता रहित, सहज भाव मे स्थित होने से मन पूर्ण निर्लेप रुप से परम अवस्था मे टिक ग���ा )। +: महायोगी गोरख कहते है की अति सूक्ष्म व गहन रीति के प्रयासो व सम्पूर्ण त्रिभुवन में तलाश करने पर भी परब्रह्म की प्राप्ति नही हुई। परन्तु जब विधाता ने स्वयं मेरे हृदय मे भाव उत्पन्न किया (यानी जब उनकी अनुकम्पा हुई) तो जिसे मै सर्वत्र ढूढ़ रहा था, फिर मै स्वयं वही हो गया। +: महायोगी गोरख कहते है की पवन (श्वास) रुपी घोड़े पर सहजता रुपी पलांण (काठी) बांधो। इस पर लय (परमात्म स्मृति) की लगाम व चित का चाबुक (अनुशासित चितवृति) धारण करो। गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की सब प्रकार के प्रपंचो को त्यागकर, आत्मा (चैतन्य स्वरुप) को सवार बनाओ और गुरु ज्ञान का आधार लेकर, परम अनुभूति तक पहुंचो व उसे आत्मसात करो। +: महायोगी गोरख कहते है की अहरन जिसका लोप न हो पाए यानी निरन्तर व्याप्त) अनाहत नाद के घटित होने मे बिंदु (शुक्र) हथौड़ा है यानी नाद के जागरण का आधार)। इड़ा व पिंगला नाड़िया पवन मार्ग से ध्वनि गुजंन पैदा करने वाली धौंकनी है (यानी इनके माध्यम से नाद प्रकट होकर योगी को उपलब्ध होता है)। महायोगी गुरु गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की आसन दृढ़ता से मूलाधार मे सुषुप्त पड़ी शक्ति को उध्र्वरेता करते हुए, यदि योगी सहस्त्रार मे नाद ब्रह्म (शिवत्व) से एकत्व प्राप्त कर लेता है, तो फिर उसके लिए किसी प्रकार का आवागमन शेष नही रहता है। +: महायोगी गोरख कहते है की एक (परब्रह्म) ही मे अनंत सृष्टि का वास है और सकल सृष्टि मे उस एक परम सता का ही वास है। उस एक ने ही सम्पूर्ण अनंत सृष्टि को उत्पन्न किया है। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की जब अपने निज के अंतर मे उस एक से परिचय हो जाता है, तो यह सारी अनंत सृष्टि उस एक मे ही समा जाती है। +: महायोगी गोरख कहते है की राम (ब्रह्म) मे रमते हुए यह चौगान (सांसारिकता) का खेल खेलो (क्योंकी बिना परमात्म अनुकम्पा के संसार के आकर्षण भटकाव पैदा कर देंगे इसलिए व्यर्थ के देहअभिमान मे आकर इस सार बात को मत भूलो। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की गगन और आकाश के बीच कोई अंतर (भेद) नही है (यानी द्वैत व्याप्त नही है जब ऐसी अभेद दृष्टि इस जगत के खेल को खेलते हुए तुम्हारी हो जायेगी, तो सामने सिर्फ "कैवल्य मुक्तिपद" रुपी खुला मैदान ही शेष दिखाई देगा। यहाँ महायोगी गोरखनाथ जी महाराज संकेत कर रहे है की सभी द्वैतभाव व भेदबुद्धि से ऊपर उठकर परमात्म सता मे समग्र का लय कर देना ही, मुक्तिपद (मोक्ष, निर्वाण) को पाना है)। +: महायोगी गोरख कहते है की त्रिगुणात्मकता (सत,रज,तम) से ऊपर उठकर त्रिकुटी स्थान मे खुद को स्थित करो, वही पर ब्रह्म का कुंड (परमात्मा का वास) है तथा वही मुझ आत्मा का भी मूल निवास है (यानी इसी स्थिति मे आत्मा व परमात्मा की एकरुपता घटित होती है)। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की इस स्वरुप मे अजपा जप करते हुए, हमने उस परम दुर्लभ व सर्वोपरी ज्ञान को प्राप्त किया, जो अब तक पहुँच से बाहर ही रहा था। +: महायोगी गोरख कहते है की र्निकार का जाप ही द्वाक्षरी जाप है जिससे दोनो पक्षो का उद्धार हो जाता है (यानी उस एक परमज्योति स्वरुप परमात्मा से तादात्मय होने पर साधक के इहलोक व परलोक, र्निगुण व सगुण तथा स्थूल व सूक्ष्म दोनो पक्षो का पूर्ण रुप से कल्याण हो जाता है)। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज यहाँ उस जाप का कथन कर रहे है जिससे सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन हुआ है यहाँ महायोगी गोरख संकेत कर रहे है की उस एक परमसता से अन्यत्र कोई भी सार प्राप्ति नही करा सकता, क्योंकी सृष्टि के आदि, मध्य व अन्त मे उसी का सकल पसारा है। इसलिए किसी भ्रम मे पड़े बिना उस एक सर्वोच्च सता का जाप करते, उसकी सिद्धि करो यानी उसको जानने का प्रयास करो व उससे एकात्मय प्राप्त करो)। +: प्यंड ब्रह्मांड समि तुलि ब्यापीले, एक अषिरी हम गुरमुषि जांणीं।२। +: महायोगी गोरख कहते है की र्निकार रुप से व्याप्त उस एक (एकाक्षरी) ॐकार का जप करो (यहाँ महायोगी गोरखनाथ जी संकेत कर रहे है की विभिन्न अक्षरी मंत्रो (द्वादशक्षरी,पंचाक्षरी आदि) के मकड़जाल से ऊपर उठकर, उस एक सर्वोच्च सता मे चित का लय करो जो शून्य व स्थूल दोनो मे एकाकार अक्षय ब्रह्म रुप से व्याप्त है। उस अलख पुरुष परमात्मा का इस पिंड मे तथ‍ा सारे ब्रह्माण्ड मे एक समान वासा है (वस्तुतः पिंड मे ही ब्रह्माण्ड व्याप्त है)। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की इस एकाक्षरी (एकरुप से व्याप्त परम सता) को हमने गुरु ज्ञान को शिरोधार्य करते हुए, गुरु कृपा से जाना। +: महायोगी गोरख कहते है की जाप मे कमलदल मूलाधार चक्र का तो सुमेरु बनाओ यानी मूलाधार से सहस्त्रार की तरफ जाप को लेकर बढ़ो) और काया को कंचन (मनके) बना लो यानी काया रुपी मनको का आधार लेकर इस जाप को जपो)। चैतन्य (परमात्म सता) रुपी धागे मे इन मनको (काया) को पीरो लो यानी उस अलख पुरुष मे काया की सभी वृतियो का लय करते हुए जाप करो)। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की इस प्रकार का जाप करने से साधक जन्मो २ के पापो का नाश करते हुए, चौरासी के चक्र से पार हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! जपमाला पहचान कर जाप करो यहाँ महायोगी गोरख संकेत कर रहे है की स्थूल माला पकड़कर जाप करना वस्तुतः जाप नही है, जाप वह जहाँ साधक अपनी चितवृतियो का लय किसी एक अलौकिक सता मे करते हुए निरन्तर उससे जुड़ा रहे और अजपाजप स्वतः निरन्तर चलता रहे। साधनापथ पर व्याप्त विभिन्न भ्रमो के कारण ही महायोगी कह रहे है की पहले पहचान करो की किसका जाप किया जाए, फिर जाप मे उतरो क्योंकी जाप से ही प्राप्ति होती है, लेकिन जाप (एकरुपता) उसका करो जिससे अविनाशी प्राप्ति हो यानी क्षणिक स्थूल प्राप्ति कराने वाला जाप, कभी सार लक्ष्य की प्राप्ति नही करा सकता)। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की जिस अगम (परम शून्य) के जाप को हमने जपा, उसको तो कोई विरला ही पहचान पाता है +: महायोगी गोरख कहते है की इस घट मे ही "राम जीव का चेतन आत्मिक स्वरुप) व्याप्त है जो परमात्म अनुभूति द्वारा ज्ञात होता है और उसी का सब अंगो मे वास है। यही पंच तत्वो को सहज रुप से प्रकाशित कर रहा है यही पांचो तत्वो का आधाररुप है) और इसी परमसता का बोध होने पर पांचो तत्वो का लय होकर, समभाव जागृत होता है। महायोगी गोरखनाथ का कथन है की इस स्वरुप से ही हरि पद (ब्रह्म) को जाना जा सकता है +: महायोगी गोरख कहते है की इस घट मे रक्त रुप मे शक्ति का वास है और बिंदु (वीर्य) रुप मे शिव का वास है। बारह कलाओ चिंता, तरंग, दंभ, माया, परग्रहण (दूसरो से प्राप्ति की कामना परपंच, हेत (मोह बुद्धि, काम, क्रोध, लोभ, दृष्टि (स्थूल रुप से से संयुक्त सूर्य तत्व (मूलाधार स्थान मे) तथा सोलह कलाओ (शांति, निवृति, क्षमा, निर्मलता, निश्छलता, ज्ञान, स्वरुप, पद, निर्वाण, निर्भिक, निरंजन, अहार, निद्रा, मैथुन, नम्रता, अमृत) से संयुक्त चन्द्र तत्व (सहस्त्रार स्थान मे) भी इसी घट मे व्याप्त है। वर्तमान समय तो सूर्य की कलाएँ ही प्रधान है यानी माया प्रबल है)। गोरखनाथ जी का कथन है की यदि रवि स्थान की चार कलाएँ शशि स्थान मे मिल जाए (यानी शिव तत्व की प्रबलता प्रभावी हो) तो शिव व शक्ति की एकरुपता हो जाए यानी योगी परम अनुभूति को प्राप्त हो जाए)। ऐसी अवस्था प्राप्त योगी का फिर कोई अन्त नही पा सकता यानी ऐसा योगी अलख रुप से व्याप्त होकर, अमरत्व को पा जाता है, जिसका भेद नही पाया जा सकता है) +: महायोगी गोरख योगीजनो को मन की महता बताते हुए कहते है की मन ही मारता है और मन ही मरता है (यानी परमात्म आनंद मे लय हो चुका मन, जीव को जीते जी परम मृत्यु (समाधी) की प्राप्ति करा देता है यही मन तारने वाला है और यही मन तरने वाला है (यानी मायावी आकर्षणो से निर्लेप होकर मन, उन्मुक्त रुप से जीव को निर्वाण पद प्रदान कराता है)। लेकिन मन के अस्थिर होने पर त्रिलोकी (सम्पूर्ण) प्राप्तियो का क्षय हो जाता है। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज का कथन है की ये मन ही आदि, मध्य, अन्त तक व्याप्त है (सारा ब्रह्माण्ड इसी मन का पसारा है) और सार रुप से भी मन की ही प्राप्ति होती है यानी ब्रह्म रुप होकर यही मन परमात्म साक्षात्कार करा देता है)। मन ही से सभी प्रकार के विषय विकारो का त्याग होता है, जिससे परम निवृत अवस्था योगी को सुलभ हो पाती है। +: महायोगी गोरख कहते है की वायु (श्वास कला सिद्धि) ही घट मे गाजै बाजै बजवाती है (यानी वायु के आधार से ही योगी शब्द (नाद) को सुन पाता है) और वायु के आधार से ही योगी षट्चक्रो का भेदन करके, नीचे से ऊपर की ओर ऊर्जा को प्रवाहित करता है। यही वायु प्रत्येक घट मे प्रवाहित होकर श्वास प्रतिश्वास (प्राणो के माध्यम से सोऽहं हंस मंत्र को निरंतर चेतन करती है और वायु के प्रसाद से ही बिंदु (शुक्र) ब्रह्मरन्ध मे स्थिर हो पाता है, जिससे योगी उध्रवरेता होकर स्थिर मानस से गुरु ज्ञान को आत्मसात कर लेता है। +: महायोगी गोरख कहते है की मूल ॐकार के अभिव्यक्त रुप नाद (शब्द ब्रह्म) मे ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश लीन (व्याप्त) है। योगी को चाहिए की नाद की अनुभूति को सदा सहेज कर रखे व उसका रक्षण करे, क्योंकी नाद की यह अनुभूति ही परम योग (एकात्मकता) की प्राप्ति करा देती है। महायोगी गोरख का कथन है की नाद मे ही सर्व निधियो (खजानो, उपलब्धियो) का वास है (यानी नाद सिद्धि योगी को समर्थ कर देती है और नाद से ही योगी निर्वाण पद को पा जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की सभी के मूल मे ॐकार (शब्द रुप या नाद रुप परमात्मा) का वास है और उसी से सारी धारा छूटी है सारी सृष्टि का उत्पति कर्ता वही है)। सारे संसार मे वही व्याप रहा है, नाभी से हृदय तक स्वाधिष्ठान से, हृदय अनाहत आदि तक) उसी का निवास है। गोरखनाथ जी कहते है की ॐकार ही देवता है, ॐकार ही गुरु है और बिन�� ॐकार को साधे सिद्धि नही हो सकती है। +: महायोगी गोरख का कथन है की दशमद्वार (सहस्त्रार मार्ग) से निरंजन रुप होकर हमने उनमन मे वासा कर लिया और वापिस शब्द मे शब्दरुप हो गए। मछेन्द्रनाथ के पुत्र (शिष्य) गोरक्षनाथ कहते है की इस प्रकार से हमने अपने मूल अविचल स्वरुप को प्राप्त कर लिया यानी स्थिर रुप से अपने शाश्वत परमात्म स्वरुप मे स्थित हो गए)। +: महायोगी गोरख कहते है की अवस्था सिद्धि से इडा पिंगला व सुषुम्ना का त्रिकुटी में मेल हो जाता है और योगी की चितवृति ब्रह्म मे लय कर जाती है। योगी षोड़श दल कमल (विशुद्ध चक्र) की सिद्धता को पाकर योग के बतीसो लक्षण प्रकट कर देता है यौगिक कलाओ से संयुक्त हो जाता है) और ऐसी तुरीय अवस्था मे जरा मरण की भवभीति का सर्वरुप से क्षय हो जाता है योगी कालजयी व मायाजीत अवस्था को पा लेता है )। +: महायोगी गोरख कहते है की जब योगी के घट मे उस परम सता का प्राकटय होता है तो पंचमी स्थिति होकर वृति पलट जाती है यानी योगी की चेतना सहस्त्रार मे स्थित हो जाती है और उसकी प्रवृति बर्हिमुखी से अंर्तमुखी हो जाती है)। योगी के अन्तर मे परम का दीप जल उठता है और कुंडलिनी शक्ति सिद्ध हो जाती है। योगी नौखंड व २१ ब्रह्मांडो का अपने घट मे दर्शन करते हुए, परम एकरस शून्य समाधी मे लीन हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की मन व पवन का संतुलन साधकर जब योगी सार संयम को पाता है तो अगम की ज्योत उसमे चेतन हो उठती हेै, इस ज्योति के सामने सूर्य, चन्द्र और तारे भी छिप जाते हेै। गोरखनाथ जी का कथन है की ऐसी अवस्था मे योगी के लिए त्रिगुणात्मक रुप से व्याप्त माया का यह सकल पसारा शेष नही बचता योगी की चेतना इसके पार स्थित हो जाती है) और चौथे लोक मे उसकी सिद्धता का डंका बजता है योगी परम निर्लेप अवस्था मे स्थित हो जाता है)। +: महायोगी गोरख कहते है की यह मन जोगी (योगसिद्धि का कारक) है और काया उसकी गुदड़ी (योग का आधाररुप) है, यह ज्ञान मुझे गुरु कृपा से ज्ञात हुआ है। गोरखनाथ जी का कथन है की इस सार ज्ञान की रक्षा करो, क्योंकी नगरी मे चोर घुस आए है यहाँ गोरखनाथ जी संकेत कर रहे है की मन का योगयुक्त अवस्था मे लय करके व काया रुपी नगरी की विकारो रुपी चोरो से रक्षा करके ही इस ज्ञान को आत्मसात किया जा सकता है, अन्यथा तो नगरी के ये चोर विषय विकार) व्यवधान पैदा करके इस ज्ञान को निज अनुभव मे नही आने देंगे और साधक सार ��्राप्ति से वंचित रह जायेगा)। +: महायोगी गोरख कहते है की हे मेरी मनसा (इच्छा) तुम अब अपना व्यापार (प्रसार) बांध लो (समेट लो क्योंकी प्राण पुरुष उत्पन्न (चेतन) हो गया है (यानी गोरखनाथ जी संकेत कर रहे है की जब मन व पवन के संजोग से प्राण चेतन हो जाते है और श्वास प्रतिश्वास अजपा जप शुरु हो जाता है, तब सभी इच्छाओ व वासनाओ का लय उस चेतनता मे होने लगता है)। गोरखनाथ जी का कथन है की इस प्रकार से जब सच्चे अर्थो मे किसी योगी मे योग (परमात्म एकरुपता की चाह की जागृति होती है, तब वह अध्यात्म (आत्म साक्षात्कार) के पथ पर आरुढ़ होता है और काया नगरी मे प्रवेश करके उस परमसता की खोज करता है। +: महायोगी गोरख कहते है की आत्मा सर्वोतम देवता है यानी हमारे घट मे व्यापत चेतन सता ही सर्वोपरी है)। लेकिन उसकी सेवा (मर्म) तो जानते नहीं हो और अन्य देवताओ को पूज पूजकर व्यर्थ ही काल का ग्रास बनते रहते हो। +: नव द्वारों (इन्द्रियो के नौरंध्र) में नव नाथो का वासा है, त्रिवेणी (त्रिकुटी) में जगन्नाथ का स्थान है और दशम द्वार (ब्रह्मरंध) में केदारनाथ (परब्रह्म) का स्थान है। गोरखनाथ जी का कथन है की योग युक्ति ही सार है जो इसको अनुभव द्वारा प्राप्त कर लेगा, वह भव से पार हो जायेगा। +: महायोगी गोरख कहते है की हे भाई! हम परम रस रुपी सोना बाटने वाले सुनार है, तुम हमसे आत्मानंद रुपी सोना ले लो। सबसे पहले श्वास को साधकर, अजपाजप करते हुए मन को स्थिर करो, फिर रस जमना (प्रकट होना) शुरु होगा। तदउपरान्त योगसिद्ध अवस्था से योगी ब्रह्मरंध्र मे महारस का पान करते हुए, परम रसपूर्ण अवस्था मे स्थित हो जायेगा। +: महायोगी गोरख कहते है की पूर्णिमा के चाँद के समान जो सिद्धता को पा चुका पुरुष है, यदि वह भी स्त्री के संग वास करता है विषयो के सम्पर्क मे आता है तो उसका ज्ञान हर लिया जाता है और उसके प्राणो का क्षय हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की मानव धर्मसंगत कार्यो को ना करके अपनी मनमत से कर्म करते है यानी गुरुमत या सन्तमत की अवहेलना करते है)। इस प्रकार काम, क्रोध, लोभ, मोह के अधीन होकर, यह सारा संसार बिना किसी प्राप्ति के यूँ ही मरा जा रहा है। यहाँ गोरखनाथ जी संकेत कर रहे है की हे मनुष्य! मनमत का त्याग करके गुरु की शरणागति हो और गुरुमत का अनुसरण कर जीवन के सार लक्ष्य को प्राप्त कर ले)। +: महायोगी गोरख कहते है की यदि बिन्दु का आश्रय सिद्ध है यानी ��दि योगी उध्र्वरेता होकर तेज का रक्षण करके सिद्धता प्राप्त कर लेता है) तो कंध का पतन नही होता है यानी शरीर काल का ग्रास नही बनता, बल्कि योगसिद्धि का साधन बन जाता है)। गोरखनाथ जी का तो कथन है की यदि एक बूंद तेज का भी क्षय हो जाता है तो समझो की तुमने लाखो की कीमत की वस्तु को खो दिया (यानी बिंद अनमोल है क्योंकि इसकी रक्षा किये बिना योगसिद्धि संभव ही नही है)। +: महायोगी गोरख कहते है की मन के अंदर हीरा बिंधना है (यानी मन को परमात्मा के साथ एकाकार करते हुए आत्मज्ञान रुपी हीरे को पाना है यही आत्मज्ञान के खोजी साधक की सच्ची व सार प्राप्ति है यानी इससे अलग कुछ भी पाना असार है)। साधक का तो यही खाना है और यही पीना है यानी यही उसके लिए सर्वस्व है, उसकी सूरति निरन्तर यही स्थित रहनी चाहिए)। गुरु मछेन्द्र के कृपा प्रसाद से गोरखनाथ जी ने इसको प्राप्त किया, इसलिए वे कहते है की हे भाई! जो इस प्रकार सहज रीति से मन पर सिद्धता पा सकेगा, उसी को वह र्निमल सहज आनंद उपलब्ध होगा। +: महायोगी गोरख कहते है की जहाँ चन्द्रमा या सूर्य का उदय नही होता, लेकिन फिर भी वहाँ अलौकिक प्रकाश व्याप्त रहता है (यानी वहाँ ब्रह्मज्योती का प्रकाश सदा खिला रहता है)। गोरखनाथ जी का कथन है की जिसने वहाँ आसन लगा लिया यानी जिसकी चित वृति का लय उस अवस्था मे हो गया वह पूर्ण सहजता को प्राप्त करके परमानंद से भर जाता है यानी इस अवस्था मे साधक परम निश्छल व अहंकार से रहित होकर, सहजानंद मे स्थित हो जाता है)। +: महायोगी गोरख कहते है की हे भाई! जिसने उस अलख पुरुष को ह्रदय मे पधराया होगा, उसी को उसकी परख हो पाती है (यहाँ गोरखनाथ जी कह रहे है की परमात्मा की थाह तो उसी को मिल सकती है जिसके अन्तर मे उसका प्राकट्य हो जाता है, अन्य कोई साधन नही है जो उसका भेद दे पाए)। उस परमपुरुष से मिलन होने पर ही परमानंद घटित होता है और ब्रह्मानुभूति हो जाती है। +: स्त्री के अंग मे (संग में) सोना तो यम का भोग करना है यानी इस रीति से वह स्त्री को नही भोगता बल्कि वह खुद काल द्वारा भोग लिया जाता है )। साधक को तो चाहिए की वह अवस्था सिद्ध हो जाने तक स्त्री के साथ पानी तक भी ना पीये (यह सांकेतिक कथन है की स्थिर योगयुक्त अवस्था की प्राप्ति से पहले मायावी आकर्षण भटकाव पैदा कर सकते है, इसलिए सावधानी रखने मे ही शुभ है)। मछेन्द्रनाथ जी गोरखनाथ जी को कहते है की हे गोरखनाथ! इस प��रकार ही अजर-अमर पद को पाया जा सकता है यानी संयम से संयुक्त साधना ही परम प्राप्ति करा सकती है)। +: नाथ कहते है की पहले पहर मे तो सभी जागकर जगत के धंधे धोरी मे लगे रहते है और दूसरे पहर मे भोगी जीव वासना पूर्ति हेतु जागता है। तीसरे पहर मे तामसिक कर्म वाले जागते है, लेकिन चौथे पहर मे योगीजन जागरण करते है। +: महायोगी गोरख कहते है की सांझ ढ़लने के बाद सो जाना चाहिए (यानी कुछ समय के लिए शरीर को आराम देना चाहिए) और मध्यकाल (मध्यरात्री) मे जागना चाहिए (यानी मध्यरात्री मे योग को साधना चाहिए)। इस प्रकार तीनो पहर चेतन रहकर पहरा देना चाहिए (यानी पूर्ण जागरुक रहकर समय का सदुपयोग करना चाहिए)। महायोगी गोरख का कथन है की रात्री के तीन पहर बीत जाने पर भी काल घात लगाये रहता है, इसलिए ब्राह्ममूर्हत मे भी सतत चेतन रहना चाहिए। क्योंकी ब्राह्ममुहर्त मे सोने वाले को भी काल ग्रस लेता है, इसलिए योगी सदा ब्राह्ममुहर्त मे जागकर कालजय स्थिति को पा लेता है। +: महायोगी गोरख कहते है की प्रतिपदा आदि का अनाध्याय कर, श्रम से निरस्त होकर लौकिक मनुष्य सांसारिक विषयो के चिन्तन मे रत रहता है, जबकी योगी की प्रतिपदा तो ब्रह्मानंद मे मगन हो जाना है (यानी ब्रह्मनुभूति से संयुक्त होकर परम विश्राम की प्राप्ति करना)। जिस प्रकार द्वितिया को साधारण मनुष्य चन्द्र दर्शन करता है, वैसे ही योगी अपनी पंच ज्ञानेन्द्रियो को सभी रसो व विषयो से हटाकर उनकी रक्षा करते हुए, परमात्म दर्शन को आरुढ़ होता है। गोरखनाथ जी का कथन है की जिस प्रकार अष्टमी, चर्तुर्दशी, एकादशी आदि के नियम व व्रत साधारण मनुष्य रखते है, वैसे ही योगी के लिए व्रत है की वह स्त्री के शरीर को स्पर्श न करे यानी मनसा, वाचा, कर्मणा सहित किसी भी प्रारुप मे विषयो के प्रति आसक्त ना हो)। +: महायोगी गोरख कहते है की अमावस और पड़िवा को सांसारिक विद्वान अनाध्यायादि (अध्ययन न करना) रहकर उसे मनाते है, लेकिन योगी तब मन व घट मे शून्य को साधता है, उसके लिए शून्य मे स्थित हो जाना ही अमावस व पड़िवा को मनाना है। योगी का व्रत (मंगलवारे) र्निलेप अवस्था सिद्धि ही है। गोरखनाथ जी का कथन है की दशमी के दिन ब्राह्मण तो वेद का विचार करता है, जबकी योगी यम नियमादि द्वारा शरीर के दोषो को दूर करता है (यानी शरीर तथा मन की शुद्धि करके संयम को साधता है)। +: महायोगी गोरख का कथन है की रात्री के चारों ���हर स्त्री आलिंगन और निद्रा में बिताकर, यह सारा संसार विषयो के बहाव मे पतन को प्राप्त हो रहा है। इसलिए योगेश्वर गोरखनाथ जी दोनो बांहो को उठाकर पुकार करते है कि भाई मूल (शुक्र) को मत हारो (क्षय मत करो यानी गोरखनाथ जी चेतावनी देते हुए कह रहे है की भाई अपने शरीर के मूल की रक्षा करो, इसके बिना कोई प्राप्ति सम्भव नही है)। +: महायोगी गोरख कहते है की नासाग्र (नासिका के अग्र भाग से होकर) से होते हुए भ्रूमंडल (भ्रूमध्य) मे रात दिन स्थिर रहो (यानी भ्रुकूटि मे ध्यान धरकर चित का लय करते हुए निरन्तर अपने शिव स्वरुप की स्थिति मे तन्मय रहो)। महायोगी गोरख का कथन है की ऐसी परम (शिवरुप) अवस्था की निरन्तर स्थिति से रहने से आवागमन मिट जायेगा। फिर न तो दोबारा माता के गर्भ मे आना पड़ेगा और न ही स्तनपान करना पड़ेगा। +: महायोगी गोरख कहते है की बैठते, चलते, सोते हुए हम व्यर्थ ही श्वासो रुपी निधी को गवाँ देते है। बैठते समय बारह, चलते समय अठारह, सोते समय तीस और इसी प्रकार अन्य प्रपंचो मे चौसठ श्वासो का क्षय हो जाता है। इन श्वासो का उपयोग हमे अजपाजाप के द्वारा परमात्म तादात्मय प्राप्त करने के लिए करना चाहिए था, लेकिन हम असार रुप से इनका व्यय कर देते है और इस क्रम मे बिना किसी प्राप्ति के काल (मृत्यु) समीप खड़ा हो जाता है। इसलिए महायोगी गोरखनाथ जी का कथन है की हे मनुष्य! यदि इसी प्रकार प्राण ऊर्जा को व्यर्थ गवाँ दिया और काल की भेंट चढ़ गए, तो फिर प्राणरहित शरीर से कैसे परमात्म एकरुपता पाओगे। यहाँ महायोगी गोरखनाथ संकेत कर रहे है की जगत के प्रपंच मे पड़कर इन बेशकिमति श्वासो को मत गवाओ, जीवन की प्रत्येक क्रिया को परमात्मा सता की दिशा मे क्रियान्वित करके जीवन के सार लक्ष्य को प्राप्त करो)। +: महायोगी गोरख यहाँ परमात्म साक्षात्कार की अनुभूति से संयुक्त होकर कहते है की एक उसको (परमात्मा को) जान लेने पर सार रुप मे सभी कुछ पहचान लिया जाता है यानी परम सता को जान लेने पर सर्व का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, फिर कुछ जानना शेष नही रहता है) और ऐसी अवस्था योगी को परम पद मे लय कर देती है। गोरखनाथ जी का तो कथन है की हे भाई! जो सिर्फ कानो से सुना गया था, हमने तो वो आँखो से देख लिया है यानी अभी तक जो सिर्फ वाचा मे कहाँ या सुना गया था, हमने उसका साक्षात अनुभव कर उन्मुक्त अवस्था को पा लिया)। +यहाँ गोरखनाथ जी संकेत कर रहे है की सिर्फ ज्ञान बखारते मत रहो, वाचा मे आया हुआ शुष्क (अनुभवरहित) ज्ञान किसी काम का नही है, सच्चे साधक को चाहिए की आगे बढ़े और उस ज्ञान को निज अनुभव की कसौटी पर परख कर, निज अनुभव से युक्त ज्ञान का कथन करे)। +: महायोगी गोरख कहते है की निज अन्तर मे परम सता का दर्शन (साक्षात्कार) ही सब कुछ है, वही माता (आदि शक्ति) है वही पिता (शिव स्वरुपता) है। सबसे अहम बात यह है की दर्शन की अनुभूति मे केवल आप ही होते हो, वहाँ निज से निज को ही पा लिया जाता है, किसी दूसरी सता की वहाँ उपस्थिति नही होती है, केवल एक र्निलेप सता परब्रह्म रुप से आप ही शेष रह जाते हो। गोरखनाथ जी का कथन है की इस दर्शन (अनुभूति) का जो भेद जानता है, वह स्वयं ही परमात्म स्वरुप हो जाता है यानी निज के वास्तविक स्वरुप का ज्ञान होने पर योगी अपनी विराटता को समझता है और अपने आप ही में सर्वज्ञ हो जाता है)। +: महायोगी गोरख कहते है की जो अलख की रहणी मे रहता है वह हमारा गुरु है और हम ऐसी श्रेष्ठ रहणी वाले विरले योगी का ही शिष्यत्व ग्रहण करते है। गोरखनाथ जी का कथन है की गुरु के ज्ञान को आत्मसात करने के उपरान्त यदि सुलभ हो तो हम उनके सानिध्य मे विचरण करते है, नही तो अकेले विचरते है। (यहाँ गोरखनाथ जी का अभिप्राय है की गुरु तो तत्व रुप से सदा ही हमारे अंग संग है, शिष्य को यह आशा नही करनी चाहिए की हमेशा गुरु के साथ ही विचरे, जब तक गुरुकृपा से उनका सान्धिय लाभ मिले वह लेना चाहिए, तदउपरान्त उन्मुक्त रुप से विचरण करते हुए गुरु ज्ञान की कसौटी पर खुद को परखना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की जो उपदेश किये गये ज्ञान को क्रियान्वित करता हुआ, उसका कथन करता है, वह हमारा शिष्य है और जो वेदपाठी है (यानी जो बिना निज के अनुभव के पोथी पढ़कर शुष्क ज्ञान को कहता है) उनसे तो हमारा बहुत दूर का सम्बन्ध है (यानी उनसे हमारी कोई निकटता नही है, वह तो शिष्य से भी बहुत बाद के स्तर का है)। गोरखनाथ जी का कथन है की जो उस परम ज्ञान की रहणी मे रहते हुए, उसका उपदेश करता है, वह हमारा गुरु है और ऐसी रहणी रहने वाले का ही हम संग करते है। +: महायोगी गोरख कहते है की मेरे दोनो पंथ (पक्ष) पूरे है। शारीरिक रुप से संयम (यत) पूरा है और मानसिक रुप से सत्य की सता (गुरु सता व परमात्म सता) पर दृढ़ भाव (सत) पूरा है। इन दोनो की पूर्णता के बिना साधक शूर (समर्थ) नही हो सकता (क्योंकी ये एक दूसरे के पूरक है व किसी एक की प्राप्ति कर लेना भी सारपूर्ण नही हेै)। गोरखनाथ जी का कथन है की हे देवी (माया तुम्हारी बलि तो बकरे (अपूर्ण व कमजोर साधक) होते है, लेकिन हमारी तो रहणी ही जत सत की क्रिया वाली है, इसलिए हम तुम्हारी भेंट नही बल्कि तुम हमारी भेंट हो (यानी संयम व सत्य की रहणी रहकर हम माया का ही भक्षण कर लेते है)। +: महायोगी गोरख कहते है की यह चंचल माया बड़ी प्रबल है। इसकी मोहीनी शक्ति ऐसी है की यह साधक को दूर से ही ग्रस लेती है (यानी साधक को लगता है की माया तो आस पास भी नही है, लेकिन फिर भी यह उसको अपने मोह पास मे जकड़ लेती है)। लेकिन गोरखनाथ जी का कथन है की मै पूर्ण गुरु का चेला हूँ और माया का तो मै तभी दमन कर दूंगा जब यह कोई कुचक्र हमारे निमित रचने की चेष्टा करेगी (यानी माया का हमारे ऊपर कोई प्रभाव पैदा कर पाना तो बहुत दूर की बात है, इसके तो हमारी तरफ चलायमान होने से पहले ही इसको नष्ट करके मै अपने गुरु के ज्ञान की महिमा को प्रतिष्ठापित करुंगा)। +: महायोगी गोरख उतर देते हुए कहते है की हम पश्चिम देश से आये है यानी सुषुम्ना मार्ग से माया की रचना करके आये है) और उतर देश को जाने का भाव है (यानी सहस्त्रार मार्ग से माया का खण्डन करके ब्रह्मतत्व तक पहुँचने की इच्छा (भाव) है)। कुण्डलिनी हमारी बहन भानजी है क्योंकी योगी सुषुप्त पड़ी कुण्डलिनी शक्ति का जागरण करता है, जिससे उध्र्व मार्ग का द्वार खुलता है और पापी के सिर पर हम पाँव रखते है यानी हम पाप (बुराई) का दमन करते है)। +: महायोगी गोरख कहते है की पवन द्वारा मन का निरोध करना चाहिए यानी पहले प्राण को (प्राणायाम द्वारा) साधकर मन को संयमित करना चाहिए (उन्मन की स्थिति मे स्थित करना चाहिए)। इस प्रकार उन्मनि अवस्था को प्राप्त मन द्वारा प्राण तो स्वतः ही सिद्ध हो जाते है। फिर ऐसी परम उन्मुक्त अवस्था मे योगी अनाहद नाद का श्रवण करता है और उसके घट मे वाचा से परे परम मौन व शान्ति घटित होती है। +: महायोगी गोरख कहते है की हमारा शब्द (कथनी) तेज खाँडे (तेज तलवार) की तरह है (यानी नाथ द्वारा कथित ज्ञान रुपी तलवार तुरन्त मायावी अज्ञान को काट देती है) और गोरखनाथ जी ने उस परम अवस्था (सच्ची रहणी) की अनुभूति मे स्थित होकर यह ज्ञान दिया है। इसलिए गोरखनाथ जी कहते है की हमने रटा रटाया, पहले से पोथीयो मे लिखा हुआ तुमसे नही कहा है, जो वचन हमने कहे है वह निज की अनुभूति ही है जो किसी ग्रन्थ मे अ��कित नही है। +: महायोगी गोरख कहते है की शब्द (शब्दब्रह्म) का बोध होना बहुत कीमति है, लेकिन उसका वास्तविक महत्व तब समझ आता है जब शब्द मे संकेतित परब्रह्म निज अनुभव मे प्रतिष्ठित होता है। गोरखनाथ जी का कथन है की है यह अगम का ज्ञान तुमसे कह रहा हूँ जो अपार है तथा इन्द्रियो से परे का विषय है (भौतिक इन्द्रियो से इसे नही जाना जाता) यानी जब तुम खुद इन्द्रियो से परे की अवस्था मे स्थित हो जाओगे तभी यह ज्ञान आत्मसात कर पाओगे। +: महायोगी गोरख कहते है की हे मानव! तूने अनेको जन्म लिए और बिना अनुभूति के सभी काल की भेंट चढ़ गए, क्योंकी रात्री के अंधकार की भांति सभी जन्मो मे अज्ञानता का अंधकार व्याप्त रहा। इस बार भी यह जीवन अज्ञानता के अंधकार मे आधा बीत गया है और अब हमारे घट मे विराजमान बालसमान वह परम निश्छल सता पुकार करती है की अबकी बार इस अज्ञान अंधकार से बाहर निकलने के लिए किसी समर्थ गुरु का सहारा मिले, ताकी जन्म मरण के इन असाध्य कष्टो के कुचक्र से इस जीवात्मा को छुटकारा मिल सके। +: महायोगी गोरख कहते है की जो पुरुष कामवासना के कारण स्त्री द्वारा जीत लिये जाते है उनका विनाश हो जाता है, जो पुरुष एक दूसरे को नीचा दिखाने के भाव से आपस मे वैमनस्य रखते है, वे भी विनाश को प्राप्त हो जाते है। विश्वासघाती और कायर पुरुषो का भी क्षय हो जाता है। जो पुरुष ना खाने योग्य (अभक्ष) तामसिक पदार्थो का सेवन करते है और जो गुरु ज्ञान की अवहेलना करते है, वे विनाश को प्राप्त हो जाते है। इसी प्रकार जो पुरुष बिन्दु (वीर्य) की रक्षा नही करते और जो परस्त्री गमन करते है, उनका विनाश हो जाता है। गोरखनाथ जी का तो कथन है की जो इन बातो का त्याग करता है, वह सदा निराली उन्मुक्त अवस्था मे स्थित रहता है। +: महायोगी गोरख कहते है की इस देह रुपी तूंबी मे सारा ब्रहमांण्ड समाया हुआ है, इसमे ही त्रिवेणी (इड़ा, पिंगला,सुषुम्ना रुपी त्रिवेणी सहस्त्रार मे व्याप्त सूर्य शिव तत्व) तथा मूलभाग मे चन्द्रमा (शक्ति तत्व) व्याप्त है। गोरखनाथ जी का कथन है की हे ब्रह्मज्ञानियो! इस तूंबी मे निरन्तर बजने वाले (अभंग) अनाहत नाद की खोज करके, उसे सुनो। इस अवस्था को पाकर तुम माया से परे, उस परम पद मे स्थित हो जाओगे। +: महायोगी गोरख से शिष्य निवेदन करता है की गुरु जी! जिस प्रकार क्षमता से अधिक मात्रा मे पदार्थ भरने पर बर्तन फूट सकता है, उसी प्रकार पात्रता से अधिक ज्ञान देने पर ज्ञान शिष्य मे ठहर नही पाता है और हो सकता है शिष्य साधना मार्ग से ही पलायन कर जाए। यदि गुरु शिष्य की क्षमता अनुसार अल्प ज्ञान देता है तो ज्ञान की पूर्णता शिष्य मे विकसित नही हो पायेगी और अपूर्ण ज्ञान विनाश को प्राप्त हो सकता है। हे गुरुजी! बर्तन छोटा है और वस्तु की मात्रा अधिक है (यानी ज्ञान विस्तृत है लेकिन शिष्य की ग्राहक क्षमता अल्प है अब बताइये क्या किया जाए +* अब महायोगी गोरख उतर देते हुए कहते है की हे अवधूत! ज्ञान का लेन देन सरल ढंग से होना चाहिए, उसमे जड़ता नही होनी चाहिए। गुरु को शिष्य की स्वभाविक सहज वृति के अनुसार ज्ञान का उपदेश करना चाहिए, सहज स्वभाव द्वारा शिष्य की ज्ञान मे प्रीति और लौ लग जायेगी। यदि सहज सहज (प्राकृतिक रुप से) प्रयास किया जायेगा तो पात्र स्वयं बड़ा हो जायेगा (यानी शिष्य पात्रता अर्जित कर लेगा) और गुरु कृपा से वह ज्ञान की धारणा करके उसको खुद मे समाहित कर लेगा। +: महायोगी गोरख कहते है की योगीश्वर की यही परख है की वह पहले निज के अन्तर मे शब्द का विचार करता है (पहले खुद परमपद मे अवस्थित होता है शब्द विचार करने के उपरान्त व्यवहार करता है और जिसकी जितनी पात्रता है, उतना ही उसको उपदेश करता है (यानी शिष्य की पात्रता के अनुरुप ही उसको ज्ञान देता है)।. +: महायोगी गोरख कहते है की जो जप, तप करता है और संयम को सार वस्तु समझता है। जिसने बाल्यावस्था मे ही काम को जलाकर राख कर दिया है (यानी जो योग अग्नि मे काम विकारो को दग्ध करके उन पर विजय प्राप्त कर लेता है )। गोरखनाथ जी का कथन है की जग मे ऐसे जन को ही योगी समझना चाहिए, बाकी तो सब पेट भरने के लिए फिरते है। +: महायोगी गोरख कहते है की जो योगी अपने तेज (वीर्य) को ऊध्र्व करके, उसे शरीर मे जीर्ण (स्थिर) कर लेता है, वह चिरंजीवी (जन्म मरण से परे की) अवस्था को पा जाता है। जबकी तेज (वीर्य) की रक्षा न करके, उसको गवाँ देने वाला बार बार मरता है और जन्म लेता है। गोरखनाथ जी का तो कथन है की जो इस शरीर मे ही परमात्मा को खोजता है, वह उसे इसी मे प्राप्त भी कर लेता है और उसे प्राप्त कर अमरपद (परमपद) मे अवस्थित हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की खूब पोथी (वेद,शास्त्र,ग्रंथ,किताबे आदि) पढ़कर ढ़ेर सारा कागजी ज्ञान प्राप्त कर लेने मे तथा अनुभव से रहित रटि रटाई बड़ी बड़ी शास्त्र ज्ञान की बातो का कथन करने से क्या ला��� (प्राप्ति) है यानी इन बातो मे कोई भी सार नही है)। यदि इस प्रकार से कोई लौकिक जगत मे बहुत प्रतिष्ठा व कहने मात्र की आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर भी लेता है, तो भी बिना परमात्म अनुभूति के यह सारी उन्नति तो एक दिन विनाश को प्राप्त होकर अवनति मे परिणित हो जायेगी। इसलिए आत्म ज्ञान का आधार लेकर परमात्म तत्व की पहचान (अनुभूति) करनी चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की जो गृहस्थ होकर ब्रहमज्ञान का उपदेश करता है (यानी खुद विकारो मे संलिप्त होकर दूसरो को वैराग्य का उपदेश करता है जो व्यसनी होकर ध्यान धरता है (यानी ध्यान का आडम्बर मात्र करता है जो बैरागी होकर किसी प्रकार की आस रखता है (यानी बाहरी आवरण से तो वैरागी है लेकिन अन्दर से इच्छा व तृष्णा से संयुक्त है)। गोरखनाथ जी का कथन है की ये तीनो एक जैसे है, इनके पास यथार्थ मे कुछ भी नही है। ये माया के पाश मे बुरी तरह जकड़े हुए है। +: महायोगी गोरख कहते है की स्त्री का देहान्त हो जाने पर जो यती (योगी) हो जाता है, बिना परिश्रम के भोजन पाने की आशा मे जो सती (साधु) होता है और धन के नष्ट हो जाने पर जो त्यागी होता है (यानी गृहस्थ त्याग साधु बन जाता है गोरखनाथ जी का कथन है की ये तीनो अभागे है यानी इनको कोई प्राप्ति सम्भव नही है। +: महायोगी गोरख कहते है की चिंता अप्रत्याशित रुप से उत्पन्न हो जाती है और चिंता के कारण सारा संसार निर्बल व विपन्न हो गया है। लेकिन योगी चिंता का त्याग कर देता है और अचिंत्य परब्रह्म में लीन हो जाता है (यानी योगी सांसारिक चीजो का चिंतन करके चिंता पैदा करने की बजाय, उस परम सता का विचार करता है जो विचारा नही गया है तथा जिसका विचार करके उसमे स्थित हो जाने पर सब चिंताओ का क्षय हो जाता है)। +: महायोगी गोरख कहते हेै की रक्षा करने से चीज बनी रहती है, न रक्षा करने से वह गवाँ दी जाती है (नष्ट हो जाती है यह गोरखनाथ का सत्य वचन है। यहाँ गोरखनाथ जी संकेत कर रहे है की अपने तेज (वीर्य) को क्षणिक भोग विलास में गवाँ नही देना चाहिए, बल्कि उसकी रक्षा करके, उसको उध्र्वगामी बनाना चाहिए। गोरखनाथ जी का तो कथन है की सच्चा योग व सच्चा ज्ञानीपन तो तब घटित हुआ मानिए जब एक उपदेश करे व दूसरा उसको स्वीकार कर ले यानी विवाद व द्वन्द रहित अवस्था ही सच्चे ज्ञानी का लक्षण है। इसलिए योगीजनो को यह परम ज्ञान तत्काल शिरोधार्य करना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की स्वामी, सखा, पुत्र, पति आदि सभी की उत्पति गर्भद्वार (योनीमार्ग) से होती है। कभी वह पति बनता है तो कभी उसे पुत्र के रुप मे जन्म लेना पड़ता है और यह श्रृंखला चलती रहती है। इसलिए गोरखनाथ जी का कथन है की उन्होने वैराग्य का वरण कर लिया और परम अवधूत पद की अवस्था मे स्थित हो गए। +: महायोगी गोरख कहते है की घट के अन्दर बिना अग्नि के ज्योति (ब्रह्मज्योति) प्रज्वलित रहती है, गुरु के कृपा प्रसाद से हमे भी उसका दर्शन हुआ। गोरखनाथ जी का कथन है की शिलवृत की भांति जो केवल स्वामी (गुरु व परमात्मा) की अनुकम्पा पर ही आश्रित (समर्पित) है और परम वैराग्य से संयुक्त है। वही अपने वास्तविक स्वरुप को पहचान कर, इस ज्योति का दर्शन कर पाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की बिंदु (वीर्य रक्षण) की बात तो सभी करते है, लेकिन महाबिंदु (ब्रह्म तत्व) को कोई बिरला ही प्राप्त करता है। इस परम अनुभूति को प्राप्त करने हेतु जो बंध लगाने की क्रिया करता है यानी बंध द्वारा उध्र्वरेता होकर महाबिन्दु को प्राप्त करता है, उसका शरीर कभी अस्थिर नही होता है। +: महायोगी गोरख कहते है की मस्तिष्क मे कुछ विचार करो और इसी शरीर मे गोता मारो, क्योंकी सब कुछ इस शरीर मे ही स्थित है। पंचेन्द्रियाँ भी भीतर ही व्याप्त है, इनको बुद्धि (विवेक) की कटार से शक्तिहीन करके समाप्त कर दो। +: महायोगी गोरख कहते है की जो दूसरो से आशा (उम्मीद) करते है उन्हे आपदा झेलनी पड़ती है और शंशय करने से शोक का सामना करना पड़ता है। ये दोनो ही बड़े घातक रोग है, गुरु के मुख से प्राप्त ज्ञान को धारण किये बिना ये भागेंगे नही (यानी समाप्त नही होंगे)। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! यह मन सांसारिकता मे भटकता जा रहा है यानी चंचलता को प्राप्त किए हुए है, इसको निग्रहित करो। इस सार बात को समझ लो की इसी मन से सर्व की उत्पति है और इसी से सब जाना जाता है (परम सत्य का ज्ञान भी इसी द्वारा होता है) यानी यह मन शिव स्वरुप है तथा सर्वत्र इसी का पसारा है। गोरखनाथ जी का कथन है की यह मन मकड़ी के जाल के समान है जैसे सारे भटकाव के बावजूद अन्त मे मकड़ी वापिस अपने जाले मे लौट आती है यानी जिस प्रकार मकड़ी वापिस अपने जाल मे लौटकर सहजता का अनुभव करती है, वैसे ही यह मन भी अपनी शिव स्वरुप स्थिति को पाकर ही सहज हो पायेगा। इसलिए इसको सांसारिक विषयो मे न लगाकर, इसकी प्राकृतिक शिव अवस्था की तरफ लेकर जाओ, जहाँ से भटकाव शुरु हुआ था, वही वापिस जाकर यह विश्राम पायेगा व जीव को भी शिव की स्थिति मे स्थित करा देगा। +: महायोगी गोरख कहते है की अकुंचित अर्थात विषयो मे बिखरा हुआ (चंचल, चलायमान) मन प्रत्याहार के द्वारा कुंचित (स्थिर, सिमटा हुआ) हो जाता है। इससे ब्रह्मरुप माला में पिरोया गया (ब्रह्म से तादात्मय हुआ) जीवात्मा रुपी पुष्प खिल उठता है। इस प्रकार सिद्धि प्रज्वलित होती है (सिद्धत्व घटित होने लगता है) और धुवां (प्राण) उठने लगता है यानी जैसे धुआँ ऊपर उठकर अग्नि की सिद्धि (उपस्थिति) को दर्शाता है, वैसे ही प्राणो का ऊपर उठकर ब्रह्मरंध में स्थित होना योगसिद्धि प्राप्ति कोे प्रमाणित करता है)। गोरखनाथ जी का कथन है की इस प्रकार शरीर के सिद्ध (योगसिद्ध) हो जाने की वास्तविक पहचान प्राण ही है यानी प्राणो की स्थिति से योगसिद्धता का परिचय मिलता है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे योगी! सभी प्रकार के निकृष्ट (असात्विक, असंयमित) क्रिया कलापो का त्याग करो और परम समाधि के मार्ग के सम्भावित अवरोधो का निषेध कर दो। इस प्रकार रात दिन शरीर को संयमित रखो। गोरखनाथ जी का कथन है की इससे सम्यक योग सिद्ध हो जायेगा और गुरु कृपा से निर्वाण समाधि की रक्षा होगी। +: महायोगी गोरख कहते है की योगी के लिए शून्य (परम समाधि की अवस्था) ही माता है, वही पिता है और शून्य समाधि मे स्थित योगी स्वयं निरंजन ब्रह्म है यानी इस स्थिति मे केवल निरंजन परम सता ही व्याप्ति है दूसरा कोई शेष नही रहता है। गोरखनाथ जी का कथन है की शून्य समाधि का परिचय (अनुभव) होने पर परम स्थायीत्व घटित होता है और योगी चंचलता से परे गहन गम्भीर अवस्था मे स्थित हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की योगी वह है जो निरन्तर योगयुक्त अवस्था मे रहता है और जिह्वा आदि इन्द्रियो से भोग नही करता है (इनसे भोग भोगने की कामना तक भी नही रखता है)। जो माया (अंजन) के सभी प्रपंचो का त्याग करके (निर्लेप रहकर निरन्तर ब्रह्म (निरंजन) का चेतन स्वरुप बनकर रहते है यानी परम अवस्था मे अवस्थित रहते है, उन्ही को योगेश्वर गोरखनाथ कहते है। (गोरखनाथ किसी देह का नाम नही है, वे तो माया के इस प्रपंच के मध्य मे रहते हुए भी स्वयं अलख पुरुष परमात्मा ही है)। +: महायोगी गोरख कहते है की यह मन बड़ा दुर्जेय है। इसने देव दानव आदि सबको ग्रस लिया है यानी इन सभी पर भी मन का आधिपत्य है। गोरखनाथ जी का कथन है की साधक को चाहिए की वह गुरु के ज्ञान का बाण इस मन को मारे व इसको मार डाले यानी गुरु के उपदेश को आत्मसात करके इस चंचल मन की चंचलता को निष्प्रभावी कर दे। +: महायोगी गोरख कहते है की हे देहधारियो! किसी जीव की हत्या क्यों करते हो यदि मारना ही है तो अपने पंचभौतिक शरीर मे रहने वाले इस चंचल मृग रुपी "मन" को मारो जो तुम्हारी बुद्धि रुपी बाड़ को चर रहा है यानी तुम्हे विवेकशून्य बना रहा है। योग के मार्ग का तो मूल सिद्धान्त ही दया व दान का भाव है। गोरखनाथ जी का कथन है की हे मनुष्य! शरीर, मांस, रक्त व वर्ण से रहित इस विद्रोही मन को मारो, जिसके मरते ही मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है। +: महायोगी गोरख कहते है की जीव व शिव का एक ही साथ निवास है यानी जीव के शरीर मे ही शिव का वास है, दोनो अभिन्न है। इसलिए किसी जीव की हत्या करके रक्त मांस का सेवन मत करो। गोरखनाथ जी का कथन है की सभी को अपने बच्चों के समान समझो व किसी जीव का प्राण घात मत करो यानी जैसे तुम अपने बच्चों को नही मारते हो वैसे ही किसी अन्य जीव की हत्या भी मत करो, यह महापाप है। +: महायोगी गोरख कहते है की साधक को एकान्त मे स्थिर भावयुक्त होकर परमात्म तत्व का अधिष्ठान करना चाहिए, ज्ञान प्राप्ति के लिये व्यर्थ भटकाव से प्राण शक्ति नष्ट होती है, काया क्षीण हो जाती है, जिससे परमात्म तत्व की प्राप्ति नही हो पाती है। गोरखनाथ जी का कथन है की इस काया से अगम्य तत्व भी कोई नही है (क्योंकी ब्रह्म का निवास तो हमारे शरीर मे ही है, इसी माध्यम से पूर्ण प्राप्ति सम्भव है)। अगर कोई शरीर के बाहर परम तत्व की स्थिति प्रमाणित करता है तो हम उसका ज्ञान सिरोधार्य करने को तत्पर है (यानी काया की अवेहलना करके, अन्यत्र कही तत्व का ज्ञान प्राप्त करना आदि सब मिथ्या बाते है, जिसने भी परम को पाया उसने इसी घट मे पाया है)। +: महायोगी गोरख कहते है की जगत मे लौकिक विधा पढ़कर ही कोई ज्ञानी कहलाता है, लेकिन परम ज्ञान के मार्ग पर इस सांसारिक ज्ञान की अविधा हुए बिना साधक अज्ञानी ही है (क्योंकी साधना पथ पर यह ज्ञानीपन का अहंभाव ही पतन का कारक बन जाता है)। गोरखनाथ जी का कथन है की जिसने इस देह से परम तत्व का भेद नही पाया, वह सबसे बड़ा अधर्मी (महाअधर्मी)है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे पंडितो! जो अबूझ (अज्ञात है) यानी जाना नही गया है, उसको जानो यानी निज के अनुभव द्वारा उसका ज्ञान को प्राप्त करो। वैसे तो उस परम तत्व का कोई वर्णन नही दे सकता (अकथ लेकिन फिर भी व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर उसका वर्णन करना चाहिए। गोरखनाथ जी का कथन है की साधक के ह्रदय मे वास्तविक श्रद्धा और लगन (स्थूल रुप से उसको शीश नवाकर प्रदर्शित करते है) उत्पन्न होते ही सदगुरु का साक्षात सानिध्य प्राप्त हो जाता है और गुरु द्वारा दिये ज्ञान को जब शिष्य आत्मसात कर लेता है तो जागते जागते (ज्ञानावस्था में) इस अज्ञानमय सांसारिक जीवन की रात्री से प्रभात हो जाती है यानी परम ज्ञान चेतन हो उठता है। +: महायोगी गोरख तथाकथित सांसारिक बुद्धिजीवियो को सार बात बताते हुए कहते है की हे पंडितो! यह सारा जगत एक वृक्ष के समान है, जो परमात्मा में अधिष्टित है। अतः इस जगत के स्थूल ज्ञान से परे, परमात्म अनुभूति से प्राप्त ज्ञान द्वारा परम तत्व की पहचान करनी चाहिए तथा चित वृति (सुरति) को शब्द ब्रह्म (अनाहत नाद) में लीन कर देना चाहिए। गोरखनाथ जी का कथन है की हे भाई! जगत के प्रपंच के कारण भ्रम मे पड़कर इस सार सत्य को भूलना नही चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की हमारा योग का मार्ग अति कठिन है, इसमे साधक को चाहिये की वह जीभ पर पूर्ण बन्धन (नियन्त्रण) रखकर योगयुक्त अवस्था मे लीन रहे। ऐसे योगी को काल नही खाता है यानी उसको मृत्यु का भय नही रहता है। +: महायोगी गोरख कहते है की हमारा योग का मार्ग अति कठिन है, इसमे साधक को चाहिये की वह जीभ पर पूर्ण बन्धन (नियन्त्रण) रखकर योगयुक्त अवस्था मे लीन रहे। ऐसे योगी को काल नही खाता है यानी उसको मृत्यु का भय नही रहता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जब इस पंच भौतिक शरीर मे उस परम तत्व का विचार किया तो उसको इस पिण्ड मे ही पा लिया। इस प्रकार जब धरा (देह) मे ही अधर (ब्रह्म तत्व) का परिचय (साक्षात्कार) हो जाता है तब अद्वैत की सिद्धि हो जाती है यानी द्वैत भाव समाप्त हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जब कुंडलिनी शक्ति उलटकर (मूलाधार से सहस्त्रार) ब्रह्मांड (ब्रह्मरन्ध) में पहुँच जाती है तो नख से शिख तक सभी अंगो मे प्राणवायु प्रवाहित होने लगती है। तब चन्द्रमा द्वारा राहु का ग्रसन होता है यानी सहस्त्रार स्थित चन्द्रमा से होने वाले अमृत स्त्राव का ग्रसन मुलाधार का सूर्य नही कर पाता, बल्कि योगी स्वयं इसका पान करता है। महायोगी गोरख का यह परम कल्याणकारी सिद्ध संकेत है। +: अपरचै पिंड भिष्��ा षात है, अंति कालि होयगी भारी।२। +: महायोगी गोरख कहते है की योगसाधना का मार्ग वीरो का मार्ग है, कायर लोग तो इस मार्ग पर हार मानकर विश्राम ले लेते है यानी इस पथ का त्याग कर देते है। गोरखनाथ जी का कथन है की हे श्रोताओ! ध्यान देकर इस बात का विचार कर लो की जो साधक इस शरीर से ब्रह्म के साक्षात्कार हेतु प्रयास किये बिना, भिक्षा माँग कर पेट भरता है, उसका अन्त समय कष्टमय हो जायेगा यानी मृत्यु का समय आने पर उस पर अर्कमण्यता का बोझ बहुत ज्यादा हो जायेगा (उसे भारी पश्चाताप होगा की उसने जन्म व्यर्थ ही खो दिया)। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! आहार तोड़ने (अल्पाहार) और पवन को मोड़ने (प्राणायाम) से योगी का शरीर सदा नीरोग रहता है। उसे प्रत्येक छः महीने मे प्राकृतिक रसायनो, भस्म, वनस्पति व रसो के द्वारा कायाकल्प करके योग की सिद्धि करनी चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की जो क्रोधी, झगड़ालू, बदमिजाज, पेटू (अधिक खाने वाला लोभी, भोग की कामना रखने वाला व वायु रोग से ग्रस्त है, वह योगी नही है। वह दिखावे मात्र का जटाधारी है, क्योंकी ऐसे आचरण से योगी नही बनते है। वास्तविक योगी पद तो यत्नपूर्वक आत्मस्वरुप का विचार करने से प्राप्त होता है। +: महायोगी गोरख कहते है की निंद्रा बिंदु का हरण कर लेती है यानी नींद में स्वप्न दोष के कारण शुक्र (वीर्य) का नाश होता है। भ्रमण करते रहने से शरीर अत्याधिक थक जाता है जिससे आत्म चिन्तन मे बाधा उत्पन्न होती है। केवल बैठे रहने से बुद्धि मे व्यर्थ की बाते सुझने लगती है और खड़े रहने से उत्पात घटित होता है। इसलिए गोरखनाथ का कथन है की हे पुत्र! सहज समाधी ही सार है। सहज समाधि मे सदा लीन रहना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की स्त्री के संग मे रहकर कोई शांति प्राप्त नही कर सकता (योगी के लिए स्त्री (सांसारिकता) का संग करते हुए योगसिद्ध होना सहज नही है)। वैध अगर वस्तुतः वैध है तो उसे रोग नही व्याप सकता है। रसायन कला मे निपुण रसायनी को मांग कर खाने की आवश्यकता नही होती है (रसायनी जो लोहे आदि धातुओ को सोने मे बदल दे)। सच्चे योगी को कभी बुढ़ापा नही आ सकता (वह तो सदा निरोग रहता है)। शूरवीर की पीठ पर घाव नही हो सकता यानी वह कभी पीठ दिखाकर कायरता का प्रदर्शन नही कर सकता +: महायोगी गोरख कहते है की स्थूल रुप से तो लोग जोग ले लेते है पर वास्तव मे जोग लेना या जोगी होना नही जानते है। वे ���ाया के एक रुप का त्याग करते है तो माया के दूसरे रुप मे फँस जाते है। अपना मकान छोड़ते है तो कुटिया छवाकर उसके साथ मेरापन जोड़ लेते है। घरबार की माया को छोड़ते है तो फिर भिक्षा माँगने मे ही ध्यान लगाए रहते है। घर पर सुन्दर स्त्री को छोड़ कर आते है तो शिष्याओं की संख्या बढ़ाने मे लग जाते है। इसलिए गोरखनाथ जी का कथन है की वे अकेले ही रहकर भ्रमण करते है और अलग रहकर एकान्त मे वास करते है। +: महायोगी गोरख कहते है की जो अफीम खाता है और भांग का भक्षण करता है, उसको बुद्धि कहाँ से आवै यानी उसकी सोचने की व विवेक की शक्ति नष्ट हो जाती है। गोरखनाथ जी का कथन है की भाँग खाने से पित चढ़ता है और वायु उतरती है, इसलिए उन्होने कभी भाँग का भक्षण नही किया। +: महायोगी गोरख कहते है की सिद्धो की कामधेनु तो मूलशक्ति कुण्डलिनी है, जिसे उन्होने गगन शिखर (सहस्त्रसार) में ले बाँधा है। सांसारिक इच्छापूर्ति करने वाली कामधेनु को पाने के फेर मे तो जीव खुद ही माया की बाड़ मे घिर गया है, जबकी सिद्धो ने निरंजन समाधी से इसको (माया को) कील दिया है (यानी निरंजन परमात्मा मे लौ लगा कर सांसारिकता का निषेध कर दिया है)। +: महायोगी गोरख कहते है की महान वह है जो महिमा को धारण करते हुए भी महिमा को मिटा देता है यानी र्निलेप भाव से अभिमानरहित व सरल रहता है और सत्य शब्द यानी आत्मिक स्वरुप का विचार करता है। गोरखनाथ जी का कथन है की जिसने पूर्ण समर्पण व अहंकार रहित भाव से युक्त होकर सदगुरु की खोज की और उनकी शरणागति हो गया, वह सिर पर पड़ी इन सांसारिक बन्धनो की पोटली को उतार फेंकता है और मुक्तस्वरुप स्थिति मे स्थित हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जो खंडित (अधूरा) ज्ञानी होता है वह तीखी (प्रखर) बातें बोलता है और सत्य शब्द का उच्छेदन (खंडन) करता है। उसके आभ्यंतर में तत्व का प्रवेश नही होता यानी उसे वास्तविक आत्मिक ज्ञान तो होता नही है, वह तो शरीर को ही सब कुछ समझता है और इस थोथी भौतिकता के बल पर निरर्थक शब्दो का वाचन करता रहता है। +: महायोगी गोरख कहते है की गुरु के ज्ञान के प्रकाश में स्थित होकर यह जान लिया कि निरालम्ब आकाश (ब्रह्मरन्ध) में बिना तेल और बाती के ही सहज अवस्था में अलख निरंजन परमात्मा नित्य प्रकाशित रहता है। गोरखनाथ जी का कथन है की इस अवस्था मे स्थित योगी के लिए न रात है और न ही दिन है, क्योंकी वह सदा परम ज्ञान के प्रकाश में विचरण करता रहता है, जिसमे परमात्मा की निरन्तर अभिव्यक्ति है। +: महायोगी गोरख कहते है की अहंकार का नाश करना चाहिये, सतगुरु की खोज करनी चाहिये। योग पंथ की उपेक्षा नही करनी चाहिए। बार बार यह मनुष्य का जन्म नही मिलता, इसलिए सिद्ध पुरुषो के शरणागत होकर जन्म मरण से मुक्त हो जाना चाहिये। +: गुरु हमारे अतीत बोलिये, जिनी किया पिंड का उधारं।२। +: महायोगी गोरख कहते है की माया प्रधान प्रकृति से स्वेच्छा द्वारा हमारी उत्पति है और निराकार निरंजन हमारे पिता है। आत्म विवेकरुपी गुरु के ज्ञान प्रकाश में हम शरीर और आत्मा का भेद समझ सके, जिससे शरीर अमृतत्व मे स्थित हो गया। +: सुर नर गण गंधप्र ब्याप्या बालि सुग्रीव भाई।२। +: ब्रह्म देवता कंद्रप ब्याप्या यंद्र संहस्त्र भग पाई।३। +: अठयासी सहंस्त्र रषीसर कंद्रप ब्याप्या असाधी विष्न की माया।૪। +: महायोगी गोरख कहते है की गगन मण्डल (सहस्त्रार) में अनुभूति के शिखर पर पहुँच कर सिद्धो ने परमानुभूति प्राप्त की (गाय बियाई उसी का सार (दूध) लेकर उन्होने उसे उपनिषदादिक ग्रंथो (कागज) में स्थिर रुप दे दिया (दही जमाया)। इस दही को मथने पर प्राप्त छाछ को तो पंडितो ने ग्रहण किया वे शब्दो मे ही फँसे रह गये किन्तु सिद्धो ने छाछ को छोड़कर मक्खन को ग्रहण किया (शब्दो के बजाय सार ज्ञान को आत्मसात कर लिया)। +: महायोगी गोरख कहते है जहाँ गोरख है वहाँ तो केवल परम ज्ञान है, वहाँ मायाकृत द्वैत भाव या द्वंद नही होता और न ही वाद विवाद होता है यानी गोरख तो परम चैतन्य र्निकार सता है उनका ज्ञान वस्तुतः परम का ही ज्ञान है, उनका ज्ञान मत,पंथ के दायरो से बहुत परे है जिसमे कोई द्वैत या द्वंद नही व्याप्ता है। ऐसा परम योगी जिसमे कोई कामना न हो और जो बिना फल की इच्छा किये हुए निष्काम कर्म करे, वह गोरख स्वरुप ही है। ऐसा श्रेष्ठ योगी निष्काम और सहज योगसाधना में प्रवृत होकर शिवस्वरुप गोरखपद या परमपद मे प्रतिष्ठित हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जब सूर्य का स्वर (सूर्यनाड़ी, दायाँ स्वर) चलता हो तब भोजन करना चाहिये और जब चंद्रस्वर चन्द्रनाड़ी, बायाँ स्वर) हो तब सोना चाहिये। जब दोनो स्वर चल रहे हो तब पानी भी नही पीना चाहिए। जीवित (आत्मा) के नीचे मृतक (जड़ शरीर) को बिछाना चाहिए अर्थात यह जड़ शरीर ही आत्म चिंतन का आधार है, अतः इसे निरोग रखते हुए इसका उपयोग आत्म कल्याण ���े लिए करना चाहिए। यह गोरखनाथ का कथन है। +: महायोगी गोरख कहते है की जब योगी जीवित यानी प्राणो को बिछाता है और मरे हुए (जड़ शरीर) को ओढ़ता है अर्थात जो साध्य मार्ग में योगासन से शरीर को दृढ़ करता है और प्राणायाम से जीवन शक्ति को बढ़ाकर, दोनो को संयत और निरुद्ध रखकर उनसे साधनो का काम लेता है)। वह कभी रोगी नही होगा। लेकिन इस प्रकार कोई बिरला योगी ही सालभर मे कायाकल्प कर पाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जीवनमुक्त योगी रात दिन सहस्त्रार से द्रवित अखण्ड अमृत धारा का निरन्तर पान करता रहता है। वह दृश्यमान बाह्य सृष्टि में अदृष्ट परमात्मा का दर्शन करता है। इस प्रकार अगम और अपार परमात्मा की प्राप्ति करके, वह भी अलख स्वरुप मे अवस्थित हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जीवनमुक्त योगी रात दिन सहस्त्रार से द्रवित अखण्ड अमृत धारा का निरन्तर पान करता रहता है। वह दृश्यमान बाह्य सृष्टि में अदृष्ट परमात्मा का दर्शन करता है। इस प्रकार अगम और अपार परमात्मा की प्राप्ति करके, वह भी अलख स्वरुप मे अवस्थित हो जाता है। +* सांग का पूरा ग्यान का ऊरा, पेट का तूटा डिंभ का सूरा।१। +: महायोगी गोरख कहते है की जो योगी बाहरी स्वांग करने मे पूरा है और ज्ञान मे अधूरा है। जिसका पेट बड़ा है यानी वह क्षुधातुर रहता है व बहुत खाता है और जो दम्भ करने मे शूर है। वह पाखण्डी है, उसका योग सिद्ध नही हो सकता। वह केवल पाखण्ड करके लोगो को प्रसन्न करना जानता है। +: महायोगी गोरख कहते है की निज अनुभव से प्राप्त ज्ञान के सदृश दूसरा पूर्ण गुरु नहीं मिला, इस ज्ञान को ग्रहण करने वाला चित के समान कोई चेला नही मिला और मन के समान परमात्मा से मेल मिलाप कराने वाला नही मिला। इसलिए गोरखनाथ ज्ञान, चित और मन से क्रमशः गुरु, चेला और साथी का काम लेते हुए, असंग विचरण करते है और अपने स्वरुप मे स्थित रहते है। +: महायोगी गोरख कहते है की जब तक इडा पिंगला से सर्प (श्वासा) आती जाती रहती है, तब तक योग सिद्ध नही होता। क्योंकी सुषुम्ना मार्ग रुपी गरुड़ से ही इस स्वास रुपी सर्प को नियंत्रित किया जा सकता है। जब तक सुषुम्ना द्वारा श्वास का निरोध नही होता, तब तक सिद्ध योग दुर्लभ है, क्योंकी जल (वीर्य) का आहार किए बिना शरीर में रोग व्यापता है यानी साधक प्राणायाम की चरम सिद्धि द्वारा उध्र्वरेता होकर ही योग की सिद्धि को प्राप्त कर सकता है। +: महायोगी गोरख कहते है की इकटी पहली, इड़ा) और बिकुटी (दूसरी, पिंगला) का जब त्रिकुटी (तीसरी, सुषुम्ना) में मेल होता है और सुषुम्ना मार्ग में जब पवन का निरोध हो जाता है, तब साधक अमर हो जाता है। उसका आयु रुपी तेल समाप्त नही होता व जीवन रुपी शिखा बुझती नहीं है। इस प्रकार गोरखनाथ कहते है कि साधक निरन्तर अर्थात नित्य हो जाता है +: महायोगी गोरख कहते है की छत्र पवन जब भेद रहित निरन्तर अवस्था को प्राप्त हो जाता है तब काया क्षीण होती जाती है यानी शरीर मे व्याप्त दस वायु प्राण,अपान,समान व्यान,उदान आदि का मूल स्वरुप छत्र पवन है, इसके निरन्तर व्यवस्थित संचालन से काया बिल्कुल निर्मल होकर पिंजरा मात्र रह जाती है। इस प्रकार स्थिर वायु के प्रभाव से मन व चंचल इन्द्रिया नियंत्रित होकर अनुकूल हो जाती है। नाथ जी का कथन है की इस प्रकार की रहणी मे निरन्तर रहने से ही रहणी सिद्ध होती है और शरीर काल के पाश से बचा रहता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जब सूर्य (पिंगला नाड़ी) और चन्द्र इड़ा नाड़ी) द्वारा पद्दस्थ सूर्य का सहस्त्रारस्थ चन्द्रमा से मेल हो जाता है तो सत, रज, तम ये तीनो दबा लिये जाते है यानी साधक का चित सत, रज, तम की वृतियो मे चंचल नही होता है। तब अनाहत रुपी तूर बजता है जो साधक को सिद्ध पद प्रदान करता है। इस प्रकार गोरखनाथ जी उस पूर्ण पद का वर्णन करते है जिसे कोई शूर साधक ही प्राप्त करता है, मूढ़ लोग तो इसे प्राप्त किए बिना ही परम के मार्ग को त्याग कर भाग जाते है। +: महायोगी गोरख कहते है की नाद और बिंदु दोनो को बजा लो यानी इनको साध लो, अनहद रुपी बाजे से परम संगीत की ध्वनी को सुनो। हे भरथरी! एकांत का वास सिद्ध कर ले, यह मछन्दर के दास (शिष्य) गोरख का उपदेश है। +: महायोगी गोरख कहते है की जिन योगियो ने शिव को पा लिया, वे पूरे सिद्ध है। उनको पाने के लिए कुछ शेष नही रहता, वे स्थिर भाव से परम अवस्था मे टिक जाते है। जो साहस पूर्वक साधना पथ के विघ्नो का सामना करते है और शरीर की एकरस अवस्था को प्राप्त करने के लिए विचरण करते है, वे वीर है। लेकिन गोरखनाथ जी का कथन है कि वे तो अंतर की एकरस अवस्था को प्राप्त करके यानी परमसत्य को जानकर ही विचरण कर रहे है। +: महायोगी गोरख कहते है की दरवेश वह है जो परमात्म पद को जानता है, जिसे ब्रह्मरंध का ज्ञान है। वह पवन (श्वास क्रिया) के द्वारा पाँचो इन्द्रियो को विषयो से वापिस हटा लेता ह���। विषय सुख से विरक्त होकर वह दिन रात सावधान रहता है यानी उसकी निरन्तर योग की अवस्था रहती है। ऐसा दरवेश स्वयं ब्रह्मस्वरुप हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की नाद नाद का कथन मात्र तो सबके लिए सुगम है, इसलिए बहुतेरे कहते रहते है। लेकिन नाद की साधना करते हुए नाद मे लीन तो कोई बिरला ही हो पाता है। सामान्य रुप से तो नाद बिन्दु शुष्क पत्थर के समान है यानी स्थूल दृष्टि से तो यह काफी शुष्क विषय भासता है, लेकिन जिसने इसे साध लिया वह योगसिद्ध होकर अमृतत्व को प्राप्त करता है। +: महायोगी गोरख कहते है की मन की ओर जाती हुई (बहिर्मुखी) वृति को गुरु की ओर अभिमुख (यानी अंतर्मुखी) करो। रक्त और मांसमय काया को ब्रह्माग्नि में भस्म कर दो यानी योगयुक्त अवस्था प्राप्त करके इस शरीर के प्रति अनासक्त हो जाओ। माता पिता की घात को मिटा डालो (यानी माता के रज व पिता के बिंदु से निर्मित इस शरीर को पूर्ण रुप से वश मे कर लो और र्निविकारी शारीरिक अवस्था द्वारा इसे शुद्ध करो)। जो ऐसा कर सके नाथ (परब्रह्य) उसे स्वयं अपने पास बुलाते है। +: महायोगी गोरख कहते है की एकाकी रहने वाले का नाम सिद्ध है। जब दो एक साथ रहते है तो वे साधु है। चार पाँच हो गये तो उन्हे कुटुम्ब समझना चाहिए और दस बीस हो गये तो सेना। +: दस पंच तहाँ बाद विबाद।२। +: महायोगी गोरख कहते है की जो साधक एकाकी (अकेला) रहता है, वह वीर है। दो साधको के साथ होने का मतलब है वह धैर्यवान है। तीसरे के साथ आने पर खटपट शुरु हो जाती है। चौथे का संयोग हो जाने से उत्पात होने लगता है और जहाँ पाँच दस इकटठे हो जाते है, वहाँ तो पूरा कलह ही उपस्थित हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की योगी को गगन (सहस्त्रार) मे हो रहे अनाहत नाद के गर्जन पर ध्यान लगाना चाहिए। उठते, बैठते, सोते हर समय उस प्रणव नाद को सुनना चाहिए और चित को सदा वश मे रखना चाहिए। यदि ऐसी अवस्था से साधक निेन्तर नाद शब्द मे अवस्थित रहता है और फिर भी शरीर मृत्यु का ग्रास बन जाता है तो यह गुरु के लिए लज्जा की बात है। +: महायोगी गोरखनाथ जी अपने गुरु मत्स्येन्द्रनाथ से पूछते है कि यह निद्रा क्या है, जिसके आने पर पांचो तत्व संज्ञा शून्य हो जाते है और जाते हुए यह चेतना को जगा देती है। यह निद्रा कहाँ से आती है?? +: मत्स्येन्द्रनाथ उनको बताते है की गगन मंडल (सहस्त्रार) में शून्य द्वार (ब्रह्मरंध) है, जहाँ घोर अन्धकार है। वहा बारम्बार बिजली के समान परमचेतना चमकती है। उसी मे से नींद आती जाती है और पंच तत्व (शरीर) मे समा जाती है। +: महायोगी गोरख कहते है की जिस आत्म-परमात्म तत्व की खोज होती रही (जिसका भेद न पाया जा सका वह न तो बाहर है और न ही भीतर है, न निकट है और न ही दूर है। गोरखनाथ कहते है की उन्होने आत्मा रुपी स्फटिक मणि से परमात्मा रुपी हीरे का भेदन किया यानी आत्मा के रहस्य को जानकर ब्रह्म साक्षात्कार कर लिया। इसी परम तत्व से उन्हे योग सिद्धि प्राप्त हुई। +: महायोगी गोरख कहते है की मन का दमन नही करना चाहिए, लेकिन उसे बिल्कुल खाली भी नही छोड़ देना चाहिए। उससे अग्नि ब्रह्मग्नि या योगाग्नि का भेद भी जानना चाहिए यानी उसे अभ्यास मे तत्पर रख कर बिन्दु को ऊध्र्वगामी करके संयमित प्राण द्वारा योगाग्नि को जागृत करना चाहिए। इससे आदि माया जो सामान्यता बंधन में डालने वाली होती है, वही मुक्त करने वाली गुरुआनी हो जायेगी। माया का द्वैत स्वरुप है अविधा रुप में वह जीव को बंधन मे डालती है और ज्ञान रुप में वही मोक्षदायनी है)। यह गोरखनाथ का सत्य वचन है। +: महायोगी गोरख कहते है की मन बड़ा चंचल है, इसका निरालम्ब रहना दुःसाध्य है। कभी यह इस जगत की आशा के फंदे में बँधा रहता है, कभी परम उदास यानी विरक्त अवस्था मे रहता है। कभी यह मन कामिनी की रति में आसक्त हो जाता है तो कभी गुरु की शरण मे रहता है। महायोगी गोरखनाथ जी महाराज की इस शब्दी का सार भाव यह है की जब कोई जगत से कुछ प्राप्त करने की अपेक्षा रखता है तो वह कंचन कामिनी के मोह पाश मे बंधकर पतन को प्राप्त होता है। लेकिन जब साधक गुरु की शरण मे रहता है तो उसको परम विरक्त अवस्था की प्राप्ति होती है, जिससे परमात्मा का साक्षात्कार सम्भव हो पाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की मैने छः चक्रो का भेदन करके सहस्त्रार रुपी झरने से निरन्तर बहने वाले अमृत रस का पान किया। उस अवस्था मे जाकर गोरखनाथ जी ने चन्द्रमा के बिना प्रकाश को देखा अर्थात स्वतः प्रकाशित अकारण परब्रह्म का दर्शन किया। +: महायोगी गोरख कहते है की अलग अलग जगहो से सुने गये बहुत सारे ज्ञान से कोई ज्ञानी नही हो जाता (धारणा ही सार है)। जैसे प्रत्येक वन मे चंदन का वृक्ष नही होता है वैसे ही तथाकथित ज्ञानियो से परे सच्चा ज्ञानी कोई विरला ही होता है। फिर गोरखनाथ जी कहते है की रत्नमयी ऋद्धि यानी परम तत्व की प्राप्ति क���से व किसको होती है? इस तत्व का भेद कोई बिरला ही जान पाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की आकाश तत्व पंच भूतो वाला आकाश तत्व नही) यानी शून्य मंडल को सदाशिव यानी पूर्ण ब्रह्म जानो। उसी मे निर्वाण पद व्यापता है। जो कोई गुरु की शरणागति होकर, गुरु वचनो की पालना करता है, उसको इसी शरीर में उसका परचा यानी परिचय मिल जाता है। जिससे फिर बार बार आवागमन नही होता। +: महायोगी गोरख कहते है की हे पंडित! ब्रह्मज्ञान भी पढ़ के देखो यानी बाहरी ज्ञान की बहुत पोथी पढ़ चुके, अब निज अनुभव से ब्रह्म को जानो, क्योकी इसके बिना सब झूठा है। तथाकथित ज्ञानी कहते है की मरने के बाद मुक्ति हो जाती है और ऐसा मानते है की उसको बैकुंठ में स्थान मिल जाता है। लेकिन वस्तुतः तो वह गड्ढे मे पड़ने जैसा है जिससे चौरासी का चक्कर फिर शुरु हो जाता है।(क्योंकी अगर मुक्ति होगी तो यही इसी देह मे रहते जीवनमुक्त अवस्था प्राप्त होने पर ही होेगी)। यह गोरखनाथ का सत्य वचन है। +: महायोगी गोरख कहते है की या तो मार्ग मे चलते रहना चाहिए या कंथा सीते रहना चाहिए। ध्यान धरे रहना चाहिए या ज्ञानोपदेश करते रहना चाहिए। इस प्रकार एकाकी रहने से अथवा सिद्ध की संगति में रहने से मनोभंग नही होता। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूतो! माँस खाने से दया धर्म का नाश होता है, मदिरा पीने से प्राण में नैराश्य छाता है, भांग का प्रयोग करने से ज्ञान ध्यान खो जाता है और ऐसे प्राणी फिर यम के दरबार मे रोते है। +: महायोगी गोरख कहते है की मार्ग मे चलते रहने से कंथा टूटती है यानी कपड़ा फटता है, काया छीजती है और शरीर विचलित होता है। इससे भगवत भक्ति मे भंग पड़ता है और समाधि टूट जाती है। रास्ता चलते रहने से पवन टूटता है जिसके कारण नाद, बिंदु और वायु में व्यतिक्रम हो जाता है। गोरखनाथ जी कहते है की सभी 68 तीर्थ तो तेरे शरीर के भीतर ही है। हे भाई! बाहर कहाँ भ्रमण करता भटकता है। +: महायोगी गोरख कहते है की पूर्ण तत्व की समझ रखने वाला ही गुरु कहलाता है, जबकी हीन (अल्प) तत्व का ज्ञान जिसे है वह चेला कहलाता है। यानी अल्प तत्व बोध वाले को अधिक तत्व बोध वाले से हमेशा ज्ञान ग्रहण करना चाहिए। ज्ञान प्राप्त करने के बाद शिष्य के लिए यह बाध्य नही है की वह स्थूल रुप से गुरु के साथ रहे। वह चाहे तो गुरु के संग रहे और चाहे तो अकेला रमण करे। +: महायोगी गोरख कहते है की जो गुरु के ज्ञान को ग्र���ण कर, अटल स्थिति मे स्थित होकर मान प्राप्त करता है। जिन्होने कुण्डली को बेध दिया है उनसे वह बोध प्राप्त करता है, सिद्धो से निर्लिप्तता ग्रहण करता है जैसे की वह किसी दूसरे स्थान का है यहाँ से कोई सम्बन्ध ही नही है। वह चेतन स्वरुप गुरु का बालक भ्रम में नही बहता, क्योंकी उस पर गुरु की अखंडित कृपा रहती है। +: महायोगी गोरख कहते है की सूर्य के उदय (ब्रह्म साक्षात्कार) होने पर काल रुपी कंटक दूर हो जाता है। साधक को अपने से सम्बन्धित कोई चिन्ता नही रहती है। नाथ का भंडार सदा ही भरा है, वह सबके लिए प्रतिदिन का भोजन प्रस्तुत कर देते है। +: महायोगी गोरख कहते है की तिरछे सोते, सीधे खड़े रहते (अर्थात सामान्य अवस्थाओं में) अग्नि, बिन्दु और वायु की रक्षा नहीं की जा सकती, किन्तु जब आसन, पवन और ध्यान ये तीन चीजें निश्चल हो जाती हैं, तब अग्नि और बिन्दु नष्ट नही होते है। +: महायोगी गोरख से सवाल किया गया की हे स्वामी! वायु कच्चा है, जीवन कच्चा है, शरीर कच्चा है और बिंदु (शुक्र) भी कच्चा है। ये किस प्रकार पक्के हो सकते है, किस प्रकार सिद्ध हो सकते है क्योकी योगाग्नि के सिद्ध हुए बिना) कच्ची अग्नि से नीर पक नहीं सकता। +: महायोगी गोरख फिर कहते है की हे देवी! वायु, जीवन, शरीर और बिन्दु तब पक्के होते है जब ब्रह्मग्नि अखंडित रुप से जलने लगती है। इस प्रकार ब्रह्माग्नि या योगाग्नि के सिद्ध होने से जलमयी प्रकृति जल उठती है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे देवी (कुंडलिनी शक्ति) आओ बैठो, द्वादशांगुल प्राणवायु अर्थात उसको वहन करने वाली प्रमुख सुषुम्ना में प्रविष्ट हो जाओ। प्रविष्ट होते होते सुख प्राप्त होगा और जन्म मरण का भय भाग जायेगा। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! अगर मन शुद्ध है तो जहा आप है वही गंगा है यानी जो फल हम गंगा जल से प्राप्त करने का विचार रखते है, वे मन की शुद्धता से स्वयं प्राप्त हो जाते है। यदि आप माया के बंधन में पड़े मन को मुक्त कर लेते हो तो सारा जगत ही चेले के समान हो जायेगा। गोरखनाथ जी सत्य स्वरुप का वर्णन करते है की जो उस तत्व का विचार करेंगे, वे रुप व रेखा यानी स्थूलता से रहित हो जायेंगे। +: महायोगी गोरख कहते है की जो जननेन्द्रिय के सम्बन्ध में असंयत ढीले ढाले है, जिह्वा से फुहड़ बातें करते है, वे ही प्रत्यक्ष भंगी है। (गोरखनाथ जी संकेत दे रहे है की जाति से कोई बड़ा या छोटा नही होता। ���सकी रहणी व करणी ही उसे छोटा या बड़ा बनाती है।) जबकी लंगोट का पक्का यानी संयम रखने वाला, मुख का सच्चा यानी सत्य वचन कहने वाला सत्पुरुष ही उतम कहा जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की अंहकारी अपने अंहकार के वश होकर गुरु द्वारा प्रदत ज्ञान की खोज नही करता है या गुरु के वचनो की पालना नही करता। जबकी खोज करने वाला योग्य गुरु को प्राप्त करके स्व मे अपने गुरु को जीता है यानी उनके द्वारा दिये गए ज्ञान पर अंनुसंधान कर उसे धारण करता है। इस प्रकार वह अमरता को प्राप्त करता है जबकी अंहकारी का शरीरपात हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की सत्य वचन का उपदेश सोने की रेखा के समान है जो सब कसौटियो पर खरा उतरता है। किन्तु इस सत्य शब्द का उपदेश वही प्राप्त कर पाता है जिसने योग्य गुरु को धारण किया है। गुरुहीन तो चालबाजी ही करते है, क्योंकी बिना समर्थ गुरु के ज्ञान होता नही, फिर वे धोखे से स्वयं को सिद्ध बताने का प्रयास करते है। जिसे गुरु ने मुंड कर चेला बना लिया है यानी जो गुरु शरण मे आ गया है वह गुण ग्रहण करता है। जिसने गुरु की शरण नही ली वह भ्रम मे पड़कर अवगुणो को प्राप्त करता है। +: महायोगी गोरख कहते है की पवन का आधार लेकर ही योगी योग साधता है, पवन ही भोग का कारक बनता है, यही पवन छतीसों (सभी) रोगों का हरण करता है। इस पवन का भेद कोई बिरले ही जानते है, लेकिन जो जानते है वह आप ही ब्रह्मा है और आप ही ब्रह्म। +: महायोगी गोरख कहते है की खाना भी मौत है और बिल्कुल न खाना भी मौत है। गोरखनाथ कह रहे है की हे पुत्र! इन दोनो से संयम करने मे ही मुक्ति हो सकती है। इसलिए निरन्तर इनके बीच (मध्यम) की रहनी मे रहना चाहिए, जिससे मन निश्चल हो और श्वास स्थिर हो। +: महायोगी गोरख कहते है की पेट भर भर कर खाने से बिंदु क्षरित होता है। उस दशा में योग संभव नही होता बल्कि योग बला हो जाता है। संयम धारण कर वायु का संग्रह करना चाहिए, उसे नष्ट होने से बचाना चाहिए। इस प्रकार कला रहित अर्थात परिवर्तन विहीन परमात्मा (पुरुष) को ग्रहण (प्राप्त) करना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! शिव हमारे चेले है, मत्स्येन्द्रनाथ नाती चेला यानी चेले का चेला। हमें स्वयं गुरु धारण करने की आवश्यकता नही थी। क्योंकी हम साक्षात परमात्मा है। किंतु इस डर से की कही हमारा अनुकरण कर अज्ञानी लोग बिना गुरु के ही योगी होने का दंभ न भरने लगें, हमने मत्स्येन्द्रनाथ को गुरु बनाया। जो वस्तुतः उल्टी स्थापना अथवा क्रम है। यदि हम ऐसा न करते तो गुरुहीन पृथ्वी प्रलय में चली जाती अर्थात नष्ट हो जाती। +: महायोगी गोरख कहते है की जो शरीर में जिह्वा स्वाद के रुप में तत्व की खोज करता है और इस प्रकार गुरु वचन की अवहेलना करता है। उसके शरीर का रस योगाग्नि के अभाव के कारण बँधता नही है, और कच्चा रह जाने के कारण ढलक (स्खलित हो) जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की नमकीन से शुक्र नष्ट होता है, खट्टे से झरता है। मीठे से रोग पैदा होता है। इसलिए गोरखनाथ कहते है की हे अवधूत! सुनो, योग केवल अन्न पानी के ही व्यवहार से सिद्ध होता है यानी खट्टे व मीठे आदि स्वादो के पीछे योगी को नही जाना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की निष्पति प्राप्त योगी की क्या पहचान है? अग्नि और पानी में जैसे लोहा शुद्ध होता है लोहा शुद्ध करने के लिए कई बार आग में गरम करके ठंडे पानी में बुझाया जाता है)। उसी प्रकार जब नाना कठोर साधनाओं के द्वारा योगी शुद्ध हो जाए तथा राजा प्रजा में जब योगी की समदृष्टि हो जाए, तब समझना चाहिए कि उसे निष्पति का वेश प्राप्त हुआ है। +: महायोगी गोरख कहते है की परिचय जोगी वह है जो उन्मन समाधि में क्रिड़ा करता है, लीन रहता है। रात दिन इच्छानुसार देवता (परब्रह्म) का समागम करता रहता है और क्षण क्षण में (अणिमादि सिद्धियों के द्वारा इच्छानुसार) नाना रुप धारण कर सकता है। तब जानना चाहिए कि योगी को स्वरुप का परिचय हो गया है। +: महायोगी गोरख कहते है की जब योगी अपने ही शरीर में रहता हो, मन दूर न जाता हो, तब वह शूर (योगी) रात दिन (अमर) वारुणी का पान करता है। जब सुख (स्वाद दुख (विस्वाद) तथा काल, केवल कुम्भक के सिद्ध होने से वायु द्वारा क्षीण हो गये हो, तब जानना चाहिए कि जोगी में 'घट' दशा के लक्षण आ गये हैं। +: महायोगी गोरख कहते है की आरम्भ योगी वह कहलाता है जो एकसार अर्थात निश्चल एक रस रहे और क्षण क्षण शरीर पर विचार करता रहे और शरीर में पूरे (सिरे तक) भरे हुए शुक्र की समत्व (एक तोल) रुप से रक्षा करे। तब समझना चाहिए कि योगी पर घट अवस्था के लिए कहे गये वचन लक्षण घट जाते है +: महायोगी गोरख कहते है की योगी दशमद्वार (ब्रह्मरंध) में समाधिस्थ होता है और नाद व बिन्दु के मेल से धूधूकार अर्थात महाशब्द अनाहतनाद को सुनता है। लेकिन गोरखनाथ ने दशमद्वार को भी बन्द कर और ही बाट से परब्रह्म की खो��� की। (गोरखनाथ जी यहा बाह्म बातो में न पड़ सूक्ष्म विचार की व चिंतन की आवश्यकता की ओर संकेत कर रहे है) +: महायोगी गोरख कहते है की हे खंडित ज्ञानियो! तुम बाहरी बातो से युद्ध करते हुए क्यों पच मरते हो, इनसे तब तक कुछ लाभ नहीं होगा जब तक तुम वास्तविक आभ्यंतर ज्ञान अर्थात परमपद की ओर न जाओगे। वह परमपद इनसे भिन्न है, आधारभूत सूक्ष्म ज्ञान के बिना तुम आसन, प्राणायाम तथा अन्य उपद्रव करते हो। रात दिन पच मरने पर भी इनके द्वारा आरम्भ अवस्था से आगे बढ़ा नहीं जा सकता। +: महायोगी गोरख कहते है की शरीर में इतनी नाड़िया, इतने कोठे है आदि आदि अष्टांग योग का सब बाह्म ज्ञान झूठा है। वास्तविकता तो केवल आभ्यंतर अनुभूति है। सुषुम्ना के द्वारा ताले पर कुंजी करे अर्थात ब्रह्मरंध का भेदन करें और जिह्वा को उलट कर तालु मूल में रखे, जिससे सहस्त्रार स्थित चंद्र से स्त्रवित होने वाले अमृत का आस्वादन होगा। +: महायोगी गोरख कहते है की अगम अगोचर परमब्रह्म को प्राप्त करने के लिए निष्काम रहना चाहिए। किन्तु लोग भ्रमर गुफा (ब्रह्मरंध) में तो निवास करते नहीं, योग की युक्ति का वास्तविक ज्ञान है नही, वे केवल रात में जागते रहते है। इसलिए मन किसी के हाथ नही आता यानी वश में नही होता। +: महायोगी गोरख कहते है की मैंने पेट की अग्नि (जठराग्नि) से खाना वर्जित कर, आँख (तिसरे नेत्र या ज्ञान चक्षु) की अग्नि से खाया यानी ज्ञान दृष्टि से माया का भक्षण किया। यह गुरु का ज्ञान तो पहले भी उपलब्ध रहा था किन्तु किसी बिरले ही अवधूत ने उसे प्राप्त किया। +: महायोगी गोरख कहते है की जब तीक्ष्ण पवन निरन्तर रहता है, उसकी चंचलता छूट जाती है तब शरीर के भीतर महारस सिद्ध होता है। गोरखनाथ कहते है की हमने चंचल मन को पकड़ लिया है और शिव शक्ति का मेल करके अपने घर में रहने लगे अर्थात निज स्वरुप में पहुँच गये। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! शब्द को प्राप्त करो, शब्द को प्राप्त करो। शब्द से ही शरीर सिद्ध होता है। इसी शब्द को प्राप्त करने के लिए निनाणवे करोड़ राजा चेले हो गयें और प्रजा में से कितने हुए इसका तो अंत ही नही मिलता। +: महायोगी गोरख कहते है की डोरी (समाधी या लीनावस्था) के टूट जाने से सार वस्तु बह जाती है, नष्ट हो जाती है। उन्मनी समाधि के लगने से स्थिरता आती है और आनन्द होता है। लेकिन समाधि के टूटने से शरीर भी नष्ट हो जाता है। +: महाय��गी गोरख कहते है की योग की साधना एक लाख शिंजिनियों (प्रत्यंचाओं) या धनुषों से नौ लाख बाण छूटने के समान है। उससे ब्रह्मरंधस्थ मीन तत्व का लक्ष्य) निश्चय बिंध गया। गोरखनाथ सत्य वचन कहते हैं की तत्व ज्ञान के साथ ब्रह्मरंध भी बेध दिया गया है यानी केवल ज्ञान प्राप्त नही हुआ है बल्कि उसमें स्थिरता भी आ गई है +: महायोगी गोरख कहते है की कोई हमारी निन्दा करता है, कोई बंदना करता है, कोई हमसे वरदान इत्यादि प्राप्त करने की आशा करता है। किन्तु गोरखनाथ कहते है की अवधूत, यह मार्ग जिस पर हम चल रहे है पूर्ण विरक्ति का है। हम निन्दा प्रशंसा सबसे उदासीन रहते है, ये हमे प्रभावित नही कर सकते। हम इनसे सर्वथा निर्लेप है +: महायोगी गोरख कहते है की हे शिष्यो! आसन, भोजन और निद्रा के नियमों में दृढ़ होने से योगी अजर अमर हो जाता है। योगी का आसन अविचल, आहार अल्प और निद्रा सर्वथा क्षीण होनी चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! शब्द को प्राप्त करो, शब्द को प्राप्त करो। स्थान (पद अथवा तीर्थ) को मान देना आदि क्रियाएँ सब धंधा है। शब्द की प्राप्ति से तुम जानोगे की आत्मा में परमात्मा वैसे ही दिखाई देता है जैसे जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है +: महायोगी गोरख कहते है की जल के संयम से आकाश अटल होता है, ब्रह्मरंध में दृढ़ स्थिति होती है। अन्न के संयम से ज्योति प्रकाशमान होती है, पवन के संयम से बंद लगता है अर्थात नवद्वारे बंद हो जाते है और बिंदु (शुक्र) के संयम से शरीर स्थिर हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की यह कलि बुरा युग है। इसमें लोगो के भाव अच्छे नहीं है, यह उनके कर्मो से पता चलता है। क्योंकी ह्रदय में जैसे भाव होते है, वैसे ही कर्म फिर हाथ से होते है। गोरखनाथ कहते है की हे अवधूत जो कुछ गडुवे में होगा, वही तो टोंटी से बाहर निकलेगा। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! मूर्खो की सभा में नही बैठना चाहिए, पंडित से शास्त्रार्थ नहीं करना चाहिए उसका ज्ञानगर्व दूसरे प्रकार की मूर्खता है, वास्तविक ज्ञान उसे नही होता। अतएव ऐसे शास्त्रार्थ में पड़ना व्यर्थ समय को नष्ट करना है।) राजा से लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए। (राजा उस क्षेत्र में शूर नहीं है जिस क्षेत्र में साधक को शूर होना चाहिए। राजा के पास बाहुबल है किन्तु साधक के पास आत्मबल होना चाहिए। इसलिए दोनो में स्पर्धा का भाव हो नही सकता।) गोरखनाथ जी कहते है की लापरवाही से नाद को खोना नहीं चाहिए +: महायोगी गोरख कहते है की कहनी से रहनी दुर्लभ है, बिना गुड़ खाये मुँह से 'मीठा' शब्द का उच्चारण मात्र कर देने से मीठे स्वाद का अनुभव नहीं प्राप्त हो सकता, ऐसा अनुभवहीन व्यक्ति धोखे में पड़ा रह जाता है। उसको वास्तविकता की पहचान नही होती। खाता तो वह हींग है किन्तु कहता है कपूर। गोरखनाथ कहते है की यह सब झूठा अनुभव है। +: महायोगी गोरख कहते है की कहना आसान होता है किन्तु उस कहने के अनुसार रहना कठिन, बिना रहनी के कहना किसी काम का नहीं खोखला या थोथा) है। तोता पढ़ सुनकर कुछ शब्दों को दोहराना भर सीख सकता है, उसके अनुसार काम नही कर सकता, उनका अर्थ नही समझता। ऐसे ही अनुभवहीन पढ़े गुने पंडित के हाथ में भी केवल पोथी रह जाती है, सारवस्तु उसके हाथ नही आती और परिणामतः वह काल का ग्रास हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जो ब्रह्म की सुबास से सुबासित रहता है अर्थात ब्रह्म की व्यापकता जिसे अनुभव हो जाती है, वहाँ उसके लिए ज्योति दर्शन का खेल प्रकट हो जाता है। द्वादश अंगुल अर्थात प्राणवायु (योगियों का कथन है कि प्राणवायु का निवास नासिका के बाहर भी बारह अंगुल तक है, इसी द्वादश अंगुल से प्राणवायु का अर्थ लिया गया है) को शून्य में प्रविष्ट करने से चिरायु प्राप्त होती है, शरीरपात नही होता और यम के प्रभाव में साधक नही जाता अर्थात मरण नही होता। +: महायोगी गोरख कहते है की हे शूर (साधक सिद्ध के संकेत (सांकेतिक उपदेश) को समझो। शून्य स्थान में तुरी (अनाहत नाद) बजाओ। चन्द्र के विरोधी भानू को मीन के मार्ग पर लगाओ अर्थात योग युक्ति से चन्द्रमा के सम्मुख करो, जिससे अमृत का रसास्वादन हो सके। गोरखनाथ कहते है की जिस प्रकार पानी के नीचे मछली का मार्ग ज्ञात नही होता, उसी प्रकार योग का मार्ग भी गुप्त रहता है। इसलिए इसे मीन का मार्ग भी कहा जाता है। इस मार्ग से फूल उलट कर फिर कली में बदल जायेगा, वृद्ध को बाल स्वरुप प्राप्त हो जायेगा +: महायोगी गोरख कहते है की हे चेतन (जीव सचेत रहना चाहिए। आत्मा को रेतना नहीं चाहिए (दुख नही देना चाहिए)। पंचेंद्रियों से मिलने वाले झूठे सुख की आशा मिटा देनी चाहिए। गोरखनाथ कहते है कि वे सच्चे शूरवीर हैं जो उन्मनावस्था में लीन मन में निवास करते है। +: महायोगी गोरख कहते है की अंहकार तोड़ना चाहिए, निराकार आत्मा को प्रस्फुटित करना चाहिए। (जैसे भू पृष्ठ को तोड़कर अंकुर बाहर निकलता है उसी प्रकार अंहकार को तोड़कर आत्मा प्रस्फुटित होती हेै।) जहाँ गंगा (ईड़ा जमुना (पिंगला) का पानी सोख लिया गया (अर्थात दोनों का प्रभाव मिटाकर सुषुम्ना में मिला लिया गया) तथा चन्द्रमा (सहस्त्रारस्थ) और सूर्य (मूलाघारस्थ) दोनों का विरोधी स्वभाव मिटा कर सन्मुख कर दिया गया ताकि अमृत का स्त्राव नष्ट नहीं होने पाए। गोरखनाथ जी कहते है की हे अवधू! वहा की पहचान खोजो। +: महायोगी गोरख कहते है की ब्रह्मरंध मे कुंडलिनी प्रवेश से ब्रह्मांड फोड़ना चाहिए और शून्य रुप नगर को लूटना चाहिए, जिसका भेद कोई नही जानेगा। गोरखनाथ जी कहते है कि जब शरीर रुपी घर घेर लिया जाता है तभी पंच देव यानी पंचेन्द्रिय तथा उनका स्वामी मन पकड़ा जा सकता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जिनके बड़े बड़े कूल्हे और मोटी तोंद होती है,उन्हे योग की युक्ति नही आती। समझना चाहिए कि उन्हे गुरु से भेंट नहीं हुई है, या उन्हे अच्छा योगी गुरु मिला ही नही है। अगर गुरु मिल भी गए तो शायद उनकी वास्तविक महिमा को उन्होने पहचाना ही नही, उनकी शिक्षा का लाभ उठाकर वे अधिकारी नही हो पाए है। यदि साधक का शरीर चरबी के बोझ से मुक्त है और उसके नासा रंध्र निर्मल, आँखे कांतिमय है तो समझना चाहिए की गुरु से भेट हो गयी है। +: महायोगी गोरख कहते है की भिक्षा हमारी कामधेनु है, उसी से हमारी पूर्ण तृप्ति हो जाती है। यह सारा संसार भर हमारी खेती है, हम किसी एक जगह से नही बँधे रहते। किन्तु भिक्षा भी स्वयं अपने निमित नही माँगी जाती, अन्यथा योग भी माँगने खाने के पाखंडो में से एक हो जाय। भिक्षा मे जो कुछ प्राप्त होता है वह भी गुरु का है और उन्ही को अर्पण होता है। गुरु के प्रसाद स्वरुप भिक्षा भोजन करने से अतंकाल में कर्मो का बोझ नहीं सतावेगा। +* सुणि गुणवंता सुणि बुधिवंता, अनंत सिधा की बांणी।१। +: महायोगी गोरख कहते है की हे गुणवानो! सुनो, हे बुद्धिमानो! सुनो, अनंत सिद्धो की वाणी सुनो। अनंत सिद्धो ने कहा है की सदगुरु के मिलने (उनके सान्धिय एवं मार्गदर्शन से) और उन्हे सिर झुकाने (मै का त्याग कर पूर्ण सर्मपण) से यह जगत रात्री (जीवन का कालचक्र जागते जागते (ज्ञानमय अवस्था में) बीत जाती है। जीव अज्ञान की नींद नही सोता। +: महायोगी गोरख कहते है की कौन हमारे श्रृंगी नाद बजावै्? श्रृंगी नाद बजाने से तो श्वास टूटने लगता है। (वैसे इसकी आवश्यकता भी क्या है जब हमारे आभ्यंतर में अनाहत नाद निरंतर बजता रहता है)। श्रृंगीनाद बजे न बजे, अनाहत नाद निरंतर बजता रहे। श्री गोरखनाथ ऐसा सिद्ध संकेत करते है। +: महायोगी गोरख कहते है की प्राण वायु को उलट कर छहों चक्रों को बेध लिया। उससे तप्त लौह (ब्रह्मरंध) ने पानी (रेतस्) को सोख लिया। चन्द्रमा (इड़ा नाड़ी) और सूर्य (पिंगला) दोनों को अपने घर (सुषुम्णा) में रक्खा, मिमज्जित कर दिया। ऐसा (जो जोगी करे) वह स्वयं अलक्ष्य और विज्ञानी (ब्रह्म) हो जाता है। +: गोरखनाथ जी कहते हैं कि हम भव सागर से पार उतर गये। किन्तु मूढ़ संसारी लोग उसे पार नहीं कर सके, इसी किनारे रह गए। परन्तु जो बिना अवस्था के झूठे जोगी है (अस्थिर व चंचल है वे मझदार ही मे डूब जाते है। उन्हे न वह किनारा मिलता है न यह किनारा पार होता है। उनका यह लोक भी नष्ट हो जाता है और उन्हे मोक्ष भी प्राप्त नही होता। +: महायोगी गोरख कहते है की संन्यासी वह है जो सर्वस्व का न्यास (त्याग) कर देता है। केवल शून्य मंडल मे मिलने वाली ब्रह्मानुभूति की आशा लिए रहता है। अनाहत को सुनकर मन को निरन्तर उन्मनावस्था में लीन किए रहता है। वह सन्यासी स्वानुभव से अगम परब्रह्म का कथन करता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जोगी वह, जो मन की रक्षा करे और परम शून्य अर्थात ब्रह्मरंध में देश के बिना ब्रह्मनुभूतिमय बड़े राज्य का उपभोग करे। जो योगेश्वर कनक और कामिनी का त्याग कर देता है, वह निर्भय हो जाता है। +: महायोगी गोरख बताते है निद्रा कहती है की मैं आल जाल वाली (प्रपंचकारिणी) हूँ और बलवती हूँ। ब्रह्मा, विष्णु, महादेव तक को मैने छला है। किन्तु गोरखनाथ ने मेरा बहुत बुरा हाल कर दिया है। वह जागता है और मै पड़ी सो रही हूँ। +: महायोगी गोरख कहते है की अधर (शून्य ब्रह्मरंध) में हमने ब्रह्मतत्व का विचार किया। अधर में तो वह है ही, इस धरा में भी वही है। मूलाधार से लेकर ब्रह्मरंध्र तक सर्वत्र उसकी स्थिति है। कही वह स्थूल रुप से है, कही सूक्ष्म रुप से है। जब धर अधर का परिचय हो जाता है, तब मूलस्थ कुंडलिनी शक्ति का सहस्त्रारस्थ शिव से परिचय हो जाता है। तब साधक के निज अनुभव ज्ञान से बाहर कुछ नही रह जाता। +: महायोगी गोरख कहते है की देवालय की यात्रा शून्य यात्रा है, उससे कोई फल नहीं मिलता। तीर्थ की यात्रा से तो फल ही क्या मिलता है वह तो पानी की ही यात्रा ठहरी। सुफल यात्रा तो अतीत यात्रा है, साधु सन्तों के दर्शनों के लिए की जाने वाली यात्रा है, जो अमृतवाणी बोलते है। उनके सत्संग और उपदेश श्रवण से जो लाभ मिलता है, वह अन्य किसी यात्रा से सम्भव नही है। +: महायोगी गोरख कहते है की काजी मुल्लाओं ने कुरान पढ़ा, ब्राह्मणों ने वेद, कापड़ी (गंगोतरी से गंगाजल लाने वाले) और सन्यासियों को तीर्थों ने भ्रम में डाल रक्खा है। इनमे से किसी ने निर्वाण पद का भेद नही पाया। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! यह शरीर नाली (बंदूक) है, पवन बारुद है, अनहद रुप आग देने से धमाका होता है और बिन्दु रुप गोला ब्रह्मरंध्र मे चला जाता है अर्थात साधक उध्र्वरेता हो जाता है। +* षोडस नाड़ी चंद्र प्रकास्या, द्वादस नाड़ी मांनं।१। +: सहंस्त्र नाड़ी प्रांण का मेला, जहां असंष कला सिव थांनं।२। +: महायोगी गोरख कहते है की षोडश कला वाली नाड़ी (इला) में चंद्रमा का प्रकाश है, द्वादश कला वाली नाड़ी (पिंगला) में भानु का, सहस्त्र नाड़ी (सुषुम्ना) से सहस्त्रार में प्राण का मूल निवास है, वहाँ असंख्य कलावाले शिव (ब्रह्मतत्व) का स्थान है। +: ईड़ा नाड़ी को चन्द्र कहते है, पिंगला को भानु (सूर्य) और सुषुम्ना को सरस्वती (वाणी ये ही तीनो मूलस्थान ब्रह्मरंध तक पहुँचाते है। +: महायोगी गोरख कहते है की निश्चल रुप से अपने घर बैठना चाहिए यानी आत्मस्थ होना चाहिए, ऐसा करने से साधक कभी रोगी नही होगा। परन्तु साथ ही नाग भस्म, बंग भस्म तथा वनस्पति के प्रयोग से वर्ष भर में तीन बार काया कल्प करना चाहिए यानी काया पलटनी चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की जो लिखा नही जा सकता, उसका लेखा करने वाले, जिसे देखा नही जा सकता, उसे देखने वाले यानी स्वयं साक्षात्कार करने वाले, ब्रह्मरंध को अनाहत नाद से गर्जित करने वाले, वे निज प्रमाण से यानी स्वयं अपने अनुभव से ब्रह्म को जानते है। +: महायोगी गोरख कहते है की जो असाध्य (मन) को साधते हैं (वश करते है गगन को (अनाहत नाद से) गर्जित करते है, उन्मनी समाधि लगाते है, पवन को उलटते और सुषुम्ना के मार्ग को पलट देते है। वही अमृत पान करते है, वे ही ब्रह्मज्ञानी है। +: महायोगी गोरख कहते है की पवन को उलटकर ब्रह्मरंध में समावे, तब बाल रुप प्रत्यक्ष होता है। उदय के घर में अस्त लाने से अर्थात मूलाधार स्थित सूर्य को अस्त करने से और चन्द्र हिम के घर ब्रह्मरंध्र में पवन का सम्मिलन करने से बँधा हुआ (बँ���कर) हाथी (मन) अपनी शाला में (यानी उस अवस्था मे जो योग सिद्धि के लिए होनी चाहिए) में आ जाता है। +: योगी बारह कला (मूलाधार सूर्य) को सोखे (जिससे मूलाधार में सूर्य अमृत का निर्झर सूख न पाए इससे सोलह कला (सहस्त्रारस्थ अमृतस्त्रावक चन्द्रमा) का पोषण होगा। इस प्रकार चार कलाएँ (सूर्य के ऊपर चन्द्र अमृत) सिद्ध होगी। इस रीति से योगी को अनन्त कलापूर्ण अर्थात ब्रह्मनुभवमय जीवन प्राप्त होगा। विशाल प्रकाशमय ज्योति के दर्शन होंगे, योगी सिद्धि को साधकर चार कला (अमृत) का पान कर लेगा। +: महायोगी गोरख से शिष्य एक सवाल पूछते है की हे दयालु गुरु इसका उतर दीजिए। वृद्ध से बालक कैसे हो सकते है। जो फूल खिल चुका है वह फिर से कली कैसे हो सकता है। पूछे जाने पर इसका जो उतर दे, वही गोरखनाथ है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे नाथो! जगत् के जंजाल को छोड़ो। योग की युक्ति से अमृत का पान परमानंद का अनुभव करो तो बालक हो सकते हो। ब्रह्माग्नि से मूल को सींचने से जो फूल खिल चुका है, वह फूल भी कली हो सकता है। +* असार न्यंद्रा बैरी काल, कैसे कर रखिबा गुरु का भंडार।१। +: महायोगी गोरख कहते है की आहार बैरी है क्योंकि अति आहार से कई खराबियाँ है, जिनमें से नींद का जोर करना एक है। निद्रा काल के समान है। ये गुरु के भंडार ब्रह्मतत्व की चोरी करते है, उसकी अनुभूति नही होने देते। लेकिन गुरु के भंडार की रक्षा कैसे की जाय? भोजन को कम कर दो, निद्रा को मोड़ो अर्थात आने न दो। शिव (ब्रह्मतत्व) और शक्ति (योगिनी कुंडलिनी तत्व) को एक में मिला लो। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत सुनो, पंचतत्वों अथवा पचंज्ञानेन्द्रियों के बाहर की तरफ प्रसार का निवारण करके, यदि अपने आत्मा का स्वयं चिंतन करे, तो मनुष्य की सब चिंताए दूर हो जाती है। वह पाँव पसार कर, निश्चिन्त होकर सो सकता है। +: महायोगी गोरख कहते है की आसन बाँधकर बैठना, प्राणायाम के द्वारा वायु का निरोध करना, कोई पद और तत्संबंधी मान सब धंधे है। इसके अतिरिक्त ये मानना की स्थान विशेष पर बैठकर अभ्यास करने से ही योग सिद्धि हो सकती है, ये सब भी धंधे है। (इनका निरपेक्ष महत्व नही है। ये केवल बाहरी साधन मात्र है।) जो बातें आभ्यंतर ज्ञान को उत्पन्न करती है वे ही योग मार्ग में सब कुछ है। गोरखनाथ कहते है की आत्म तत्व का विचार करने से सारा दृश्यमान जगत वैसे ही परब्रह्म का प्रतिबिम्ब जान पड़ने लगता है जिस प्रकार जल में चंद्रमा का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है। +* अरघंत कवल उरघंत मध्ये, प्रांण पुरिस का बासा।१। +: महायोगी गोरख कहते है की जब नीचे के कमल से ऊपर के कमल में प्राण का वास होने लगे, तब प्राणवायु बहिर्गामी होने की अपेक्षा उलट कर आभ्यंतरगामी हो जायेगी और ज्योति का प्रकाश होगा। +: महायोगी गोरख कहते है की मैंने पा लिया। अच्छा (शुभ) पाया, शब्द के द्वारा स्थान (ब्रह्म पद) सहित स्थिति को। तब ब्रह्म के साक्षात दर्शन होने लगे और पूर्ण विश्वास हो गया, मुक्ति में कोई संदेह नही रह गया। +: महायोगी गोरख कहते है की दंडी वह है जो आपा (अहंकार) को दंडित करता है, आती जाती (चंचल या परिवर्तनशील) कामना (मनसा) को खंडित करता है। पाँचों इन्द्रियों का मान मर्दन करता है। ऐसा ही दंडी ब्रह्मतत्व में लीन होता है। वह शिव स्वरुप हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की श्वासा (शक्ति) को अरघ (नीचे अंदर जाने वाली वायु) और ऊध्र्व (उच्छवास) के बीच में उठा कर रक्खा अर्थात केवल कुंभक किया और मध्य शून्य (ब्रह्मरंध) में जा बैठा। वहाँ मतवाले शिव (ब्रह्म तत्व) की संगति मिलि। इस प्रकार गोरखनाथ कहते है कि हमें परम गति (परमपद) प्राप्त हो गयी। +: महायोगी गोरख कहते है की जब सिद्धो ने पाँच तत्वो को लेकर (ग्रहण कर, वश में कर) मुंडा लिया (चेला, अनुगामी बना लिया तब निरंजन निराकार से भेंट की। हे अवधूत मन रुपी मस्त हाथी जब अपना हो जाता है (मन पर संयम सिद्ध हो जाता है तब अक्षय भंडार लूटने को मिल जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! मनसा हमारी गेंद है और सुरति मन की उल्टी गति अर्थात आत्मस्मृति) चौगान। अनहद का घोड़ा बनाकर मै खेलने लगा। इस प्रकार ब्रह्मरंध्र (गगन या शून्य) मेरे खेलने का मैदान हो गया। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! इन्द्रियो को उनके विषयों से हटाओ। दृष्टि (चक्षुरिंद्रिय) के आगे से दृष्टि (देखने की शक्ति) को छिपाओ, कान के आगे से श्रुति (सुनना नाक के आगे से वायु को छिपाओ (श्वसन)। ऐसा करने से फिर केवल निर्वाण पद शेष रह जाता है। इसमें प्रत्याहार की आवश्यकता बतायी गयी है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! शिशुपाल (काल) से डरना चाहिए, अगर वह मुगदर को सिर पर मारे तो आयु के बिना समाप्त हुए ही (अकाल ही) आदमी मर जाए, यानी अकाल भी काल आकार इस भौतिक शरीर की आयु को खा जाता है इसलिए सावधान रहो, हर पल श्रुति परम मे लगी रहे। ��ता नही कब ये मायावी प्रपंच काल का ग्रास बन जाए?? +: महायोगी गोरख कहते है की उनका योगियो के लिए यही उपदेश है की तुम अपने आपा (आत्मा) की रक्षा करो, हठ पूर्वक वाद (खडंन मडंन) में न पड़ो। यह संसार कांटे की खेत की तरह है जिसमें पग २ पर कांटे चुभने का डर रहता है। इसलिए देख देख कर कदम रखना चाहिए यानी बहुत युक्ति से जीवन जीना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की योगियो के लिए यह गोेरखनाथ का उपदेश है की इस दुनिया में साक्षी भाव से रहना चाहिए। इसमें लिप्त नही होना चाहिए, इस दुनिया के तमाशे को तमाशबीन की तरह देखते रहो। आखो से देखते हुए व कानो से सुनते हुए भी मुख से कुछ नही कहना चाहिए। जगत के बीच रहकर भी खुद इस प्रपंच मे न पड़े। +: महायोगी गोरख कहते है की अवधूत योगी जब (आसन मारे) बैठा रहता है तो वह लोहे की खूंटी के समान निश्चल होता है। जब चलता है तो पवन की मुट्ठी बाँध कर (यानी वायुवेद से जोगी जब सोता है तो वह जीते जी मृतक के समान है। लेकिन जो बहुत बोलता फिरता है उसे समझना चाहिए कि अभी बंधन मुक्त नही हुआ है। +: प्यंड ब्रह्मंड निरंतर बास, भणंत गोरष मछ्यंद्र का दास।२। +: महायोगी गोरख कहते है की यदि शरीर में परमात्मा होता तो कोई मरता ही नही। यदि ब्रह्मांड में होता तो हर कोई उसे देखता। जैसे ब्रह्मांड की और चीजे दिखाई देती हैं वैसे ही वह भी दिखाई देता। मत्स्येन्द्र का सेवक (शिष्य) गोरख कहता है की वह पिंड और ब्रह्मांड दोनो से परे है। +: महायोगी गोरख कहते है की हिन्दू देवालय में ध्यान करते है, मुसलमान मस्जिद में, किन्तु योगी परमपद का ध्यान करते है जहाँ न देवालय है न ही मस्जिद है। +: महायोगी गोरख कहते है की बड़े बड़े तपस्वी योग सिद्धि की आशा से गेरुआ धारण कर उतराखंड (बदरिकाश्रम आदि स्थानों) में जाकर झरने का जल और जंगलो के कंदमूल फल पर निर्वाह करते है। किन्तु गोरखनाथ जिस उतराखण्ड (ब्रहारंध्र) में जाने का उपदेश करते है उसमें ब्रह्मग्नि का वस्त्र पहनने को, अमृत निर्झर से झरने वाला अमृत पीने को और शून्यफल (ब्रह्मरंध में मिलने वाला फल, ब्रह्यनुभूति) खाने को मिलता है। गोरख ने अपने चंचल मन को इसी प्रकार से स्थिर किया। +: बिरला जाणंति अकथ कहांणीं, बिरला जाणंति सुधिबुधि की वांणीं।२। +: महायोगी गोरख कहते है की अभेद के भेद को, अद्वैत के रहस्य को कोई विरला ही जानता है। द्वैत के पक्ष का निरसन किसी विरले को आता है। ब���रह्म की अकथनीय कथा को भी कोई विरले ही जानते है। सिद्धो बुद्धो की वाणी को कोई विरला ही समझ पाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की नगर उधान तथा तड़ागो से सुशोभित होता है। सभा की शोभा पंडित (विद्वान) लोग है। राजा की शोभा उसकी विश्वसनीय सेना है। इसी प्रकार सिद्ध की शोभा आध्यात्मिक सता की याद दिलानेवाली अथवा निर्मल शुद्ध बुद्धि युक्त वाणी है। +: महायोगी गोरख कहते है की उन्मनावस्था में लीन रहना चाहिए। किसी से अपना भेद (रहस्य) न कहना चाहिए। (अमृत के) झरने पर पानी (अमृत) पीना चाहिए। गुरु के मुख से ज्ञानोपदेश सुनने के लिए लंका क्या परलंका (लंका के परे, दूर से भी दूर जाना पड़े तो) जाना चाहिए। अथवा माया (लंका, राक्षसों की मायाविनी नगरी) को छोड़ कर उससे परे परलंका) ही जाना चाहिए। तभी गुरु का दिया ज्ञानोपदेश ह्रदयंगम हो सकता है। +: महायोगी गोरख कहते है की किसी वन, प्रान्त, देश आदि स्थूल स्थानो पर रहने की अपेक्षा निज मन मे रहना चाहिए अर्थात बहिर्मुख वृतियों को अंतर्मुख कर देना चाहिए। अपने मन का रहस्य किसी से नही कहना चाहिए, क्योंकी इस रहस्यमय परमात्म अनुभूति को कोई समझने वाला नही है। ये तो निज अनुभव का विषय है। हमेशा मीठी वाणी बोलनी चाहिए। अगर दूसरा आदमी तुम पर आग बबूला हो जाये तो तुम्हे पानी हो जाना चाहिए। सरलचित होकर क्षमा कर देना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की पर ब्रह्म घट घट व्यापी है। इसे लोग स्थूल अर्थ में यों समझते है कि शरीर में वह कहीं पर है। यदि ऐसा है तो परमात्मा की शरीर के अन्दर किसी भाग मे ही मिलने की आशा होनी चाहिए। कुछ लोग परमात्मा की प्राप्ति के लिए वन जंगल फिरा करते है। यदि ब्रह्मनुभूति सचमुच वन ही में उत्पन्न होती है तो उसे चौपायों में भी देखने की आशा करनी चाहिए। कुछ लोग केवल दूध पर रह कर परमात्मा को प्राप्त करना चाहते है। यदि दूध में परमात्मा है तो उसे घी के रुप में देखने की आशा करनी चाहिए। परन्तु असल में इन बाहरी बातों से परमात्मा नहीं मिलता। इसका सार उपाय करणी करतब, योग युक्ति अर्थात समुचित रहनी है। आपका जीवन योगयुक्त होकर, परम की दिशा मे क्रियान्वित हो आपकी श्रेष्ठतम करणी के द्वारा। +: महायोगी गोरख कहते है की जो अभरा था ब्रह्मानुभूति से रहित होने के कारण खाली था योग की साधना से) वह भी भर गया। (अर्थात ज्ञान पूर्ण हो गया, उसे ब्रह्मानुभूति हो गयी) उसके लिए लिए निरंतर अमृत का निर्झर झरने लगा। (परन्तु जिस मार्ग से यह संभव होता है) गुरु का बताया हुआ यह मार्ग खड्ग से भी तीक्ष्ण और कठिन है। +: महायोगी गोरख कहते है की जिह्वा की टकसाल बनाकर वहाँ अभेध परमतत्व रुप हीरे को सु-शब्द (सोहं हंसः, अजपा मंत्र) के द्वारा बेधो। इस प्रकार अवगुणमय असत् मायावी जगत में भी अपने लिए गुण त्रैगुण्य नहीं सद्गुण) का लाभ कर लो अर्थात सत् का अनुभव करो। ऐसा होने पर सारा संसार तुम्हारा चेला हो जायेगा +: महायोगी गोरख कहते है की सूर्य नाड़ी मे चलता हुआ पवन बहुत तीव्र गति से चलता है। जब चन्द्र नाड़ी में उसकी गति होती है तब वह बैठ (थम) सा जाता है। जब श्वास बाहर निकलता है तब सूर्य नाड़ी चलती है, और जब भीतर प्रवेश करता है तब चन्द्र नाड़ी। योगी दोनों से अलग सुषुम्णा नाड़ी की शरण में आश्रय लेता है। क्योंकी जहाँ बिन्दु का निवास है वही अमर जीवन तत्व (जिन्दा) का भी है। +: महायोगी गोरख कहते है की चन्द्र और सूर्य के योग से जब उन्मनावस्था आती है तब ब्रह्मरंध (शून्य मंडल) में अमृत का निर्झर झरने लगता है। नाद उलट जाता है। नाद सूक्ष्म शब्द तत्व का क्रियमाण स्वरुप है जो क्रमशः स्थूल रुप में परिणत होता हुआ सृष्टि का कारण होता है। उसका सृष्टि निर्मायक स्थूल स्वरुप अपने मूल स्त्रोत की ओर मुड़ जाता है। और नीचे उतरता हुआ बिन्दु ऊध्र्वगामी हो जाता है और वायु में ही, जिसके ऊपर काल का प्रभाव बहुत दिखाई देता है, अमर तत्व (जिन्दा) पहचाना जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की 'सहस्त्रार' में अमृतस्त्रावक चन्द्रमा स्थित है पर उसके प्रभाव से सामान्यतया जीव वंचित रहता है, क्योंकि अमृत के स्त्राव को मूलाधार स्थित सूर्य सोख लेता है। चन्द्रमा के प्रभाव से यही वंचित रहना 'अमावस' से अभिप्रेत है। जहाँ पहले अमावस थी, चन्द्रमा का प्रभाव नही था, वहाँ अब चन्द्रमा झिलमिल चमकने लगा है, पूर्ण प्रभाववाला हो गया है। यही सूर्य चंद्र संयोग योग साधनो का प्रधान उद्देश्य है। इससे नाद में बिन्दु (शुक्र) समा गया है और अनाहत नाद की तुरी बजने लगी है। +: महायोगी गोरख कहते है की केवल कुम्भक द्वारा श्वासोच्छ्वास का भक्षण करो। नवो द्वारों को रोको। छठे छमासे कायाकल्प के द्वारा काया को नवीन करो। तब उन्मन योग सिद्ध होगा। +: महायोगी गोरख कहते है की यही मन शिव है, यही मन शक्ति है, यही मन पंच तत्वो से निर्मित जीव है (मन का अधिष्ठान भी शिवतत्व परब्रह्म ही है। माया (शक्ति) के संयोग से ही ब्रह्म मन के रुप मे अभिव्यक्त होता है और मन ही से पंच भूतात्मक शरीर की सृष्टि होती है। इसलिए मन का बहुत बड़ा महत्व है।) मन को लेकर उन्मनावस्था मे लीन करने से साधक सर्वज्ञ हो जाता है, तीनो लोकों की बाते कह सकता है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! दम (प्राण) को पकड़ना चाहिए, प्राणायाम के द्वारा उसे वश मे करना चाहिए। इससे उन्मनावस्था सिद्ध होगी। अनाहत नाद रुपी तुरी बज उठेगी और ब्रह्मरंध मे बिना सूर्य या चंद्रमा के (ब्रह्म) का प्रकाश चमक उठेगा। +: महायोगी गोरख कहते है की हे! अवधूत! शरीर के नवो द्वारो को बन्द करके वायु के आने जाने का मार्ग रोक लो। इससे चौसठो संधियो मे वायु का व्यापार होने लगेगा। इससे निश्चय ही कायाकल्प होगा, साधक सिद्ध हो जायेगा जिसकी छाया नही पड़ती। +: महायोगी गोरख कहते है की चंचलता (चालत) से चंद्र स्त्राव (अमृत) खिसक खिसक कर क्षरित हो जाता है। स्थिरता (बैठा) से ब्रह्माग्नि प्रज्वलित होती है। तिरछी अर्थात चल और स्थिर के बीच की) अवस्था (आदि) मे अभ्यास से वह सिद्धि (गोटिका बंध) प्राप्त होती है जिससे योगी इच्छानुसार अदृश्य हो जाता है (कहते है कि सिद्ध योगी अभिमंत्रित गोली (गुटिका) मुँह में रखकर अदृश्य हो जाता है) और अमरत्व प्राप्त कर लेता है जिससे जब तक पृथ्वी रहती है तब तक उसका शरीर भी रहता है। +: महायोगी गोरख कहते है की शरीररुपी मढ़ी मे मन रुपी जोगी रहता है जिसने अपने लिए पाँच तत्व की कंथा बनाई है। वह क्षमा का खड़ासन, ज्ञान की अधारी, सद्बुद्धि की खड़ाऊँ और विचार का डंडा उपयोग मे लाता है। (काठ के डंडे से लगी हुई अधारी होती है जिसे योगी व साधु सहारे के लिए रखते है। इसी प्रकार का खड़ासन भी होता है जिसके सहारे खड़ा होकर भी आराम रहता है।) लेकिन यहा गोरख कह रहे है की शरीर का नही मन का योग वास्तविक योग है। बाह्म युक्तियो को छोड़ कर आभ्यंतर की युक्तियो को ग्रहण करना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की योगी पाखंडी नही होता है। लेकिन योगी का पाखंड यह है की वह योग की क्रियाओ से काया का प्रक्षालन करता है, उसे निर्मल बनाता है। पवन को उलट कर (प्राणायम के द्वारा) योगाग्नि को प्रज्वलित करता है, कुण्डलिनी को जगाता है, बिन्दु को सपने मे भी स्खलित नही होने देता। ऐसे पाखंडी को तत्व मे समाया हुआ समझना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की जो (अंतर्लीन) मुनि, सत् रजस् तमस् इस त्रैगुण्य से विवर्जित है, पाप पुण्य से रहित है, निर्मल है, अमर है सोहं हंसः" इस आभ्यंतर शब्द का स्मरण करता है अर्थात अजपाजाप जपता रहता है, उसे अनन्त परमार्थ सिद्ध हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की योगी गृही (घरबारी) नही है। यदि वह गृही है (संकेत रुप मे) तो ऐसा है जो अपने शरीर को पकड़े हुए, वश मे किये हुए रहता है। अंतःकरण से माया को त्याग देता है। वह इतना शीलवान है कि जैसे पूरा शरीर ही स्वाभाविक शील का बना हुआ है। वह गृही गंगाजल है, शुद्ध है, औरो को भी शुद्ध करने वाला है। ऐसे योगी का देवाधिदेव शिव भी आदर करते है। +: महायोगी गोरख कहते है की जो शरीर में जिह्वा स्वाद के रुप में तत्व की खोज करता है और इस प्रकार गुरु वचन की अवहेलना करता है। उसके शरीर का रस योगाग्नि के अभाव के कारण बँधता नही है, और कच्चा रह जाने के कारण ढलक (स्खलित हो) जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की नमकीन से शुक्र नष्ट होता है, खट्टे से झरता है। मीठे से रोग पैदा होता है। इसलिए गोरखनाथ कहते है की हे अवधूत! सुनो, योग केवल अन्न पानी के ही व्यवहार से सिद्ध होता है यानी खट्टे व मीठे आदि स्वादो के पीछे योगी को नही जाना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की निष्पति प्राप्त योगी की क्या पहचान है? अग्नि और पानी में जैसे लोहा शुद्ध होता है लोहा शुद्ध करने के लिए कई बार आग में गरम करके ठंडे पानी में बुझाया जाता है)। उसी प्रकार जब नाना कठोर साधनाओं के द्वारा योगी शुद्ध हो जाए तथा राजा प्रजा में जब योगी की समदृष्टि हो जाए, तब समझना चाहिए कि उसे निष्पति का वेश प्राप्त हुआ है। +: महायोगी गोरख कहते है की परिचय जोगी वह है जो उन्मन समाधि में क्रिड़ा करता है, लीन रहता है। रात दिन इच्छानुसार देवता (परब्रह्म) का समागम करता रहता है और क्षण क्षण में (अणिमादि सिद्धियों के द्वारा इच्छानुसार) नाना रुप धारण कर सकता है। तब जानना चाहिए कि योगी को स्वरुप का परिचय हो गया है। +: महायोगी गोरख कहते है की जब योगी अपने ही शरीर में रहता हो, मन दूर न जाता हो, तब वह शूर (योगी) रात दिन (अमर) वारुणी का पान करता है। जब सुख (स्वाद दुख (विस्वाद) तथा काल, केवल कुम्भक के सिद्ध होने से वायु द्वारा क्षीण हो गये हो, तब जानना चाहिए कि जोगी में 'घट' दशा के लक्षण आ गये हैं। +: महायोगी गोरख कहते है की आरम्भ योगी वह कहला��ा है जो एकसार अर्थात निश्चल एक रस रहे और क्षण क्षण शरीर पर विचार करता रहे और शरीर में पूरे (सिरे तक) भरे हुए शुक्र की समत्व (एक तोल) रुप से रक्षा करे। तब समझना चाहिए कि योगी पर घट अवस्था के लिए कहे गये वचन लक्षण घट जाते है +: महायोगी गोरख कहते है की योगी दशमद्वार (ब्रह्मरंध) में समाधिस्थ होता है और नाद व बिन्दु के मेल से धूधूकार अर्थात महाशब्द अनाहतनाद को सुनता है। लेकिन गोरखनाथ ने दशमद्वार को भी बन्द कर और ही बाट से परब्रह्म की खोज की। (गोरखनाथ जी यहा बाह्म बातो में न पड़ सूक्ष्म विचार की व चिंतन की आवश्यकता की ओर संकेत कर रहे है) +: महायोगी गोरख कहते है की हे खंडित ज्ञानियो! तुम बाहरी बातो से युद्ध करते हुए क्यों पच मरते हो, इनसे तब तक कुछ लाभ नहीं होगा जब तक तुम वास्तविक आभ्यंतर ज्ञान अर्थात परमपद की ओर न जाओगे। वह परमपद इनसे भिन्न है, आधारभूत सूक्ष्म ज्ञान के बिना तुम आसन, प्राणायाम तथा अन्य उपद्रव करते हो। रात दिन पच मरने पर भी इनके द्वारा आरम्भ अवस्था से आगे बढ़ा नहीं जा सकता। +: महायोगी गोरख कहते है की शरीर में इतनी नाड़िया, इतने कोठे है आदि आदि अष्टांग योग का सब बाह्म ज्ञान झूठा है। वास्तविकता तो केवल आभ्यंतर अनुभूति है। सुषुम्ना के द्वारा ताले पर कुंजी करे अर्थात ब्रह्मरंध का भेदन करें और जिह्वा को उलट कर तालु मूल में रखे, जिससे सहस्त्रार स्थित चंद्र से स्त्रवित होने वाले अमृत का आस्वादन होगा। +: महायोगी गोरख कहते है की अगम अगोचर परमब्रह्म को प्राप्त करने के लिए निष्काम रहना चाहिए। किन्तु लोग भ्रमर गुफा (ब्रह्मरंध) में तो निवास करते नहीं, योग की युक्ति का वास्तविक ज्ञान है नही, वे केवल रात में जागते रहते है। इसलिए मन किसी के हाथ नही आता यानी वश में नही होता। +: महायोगी गोरख कहते है की मैंने पेट की अग्नि (जठराग्नि) से खाना वर्जित कर, आँख (तिसरे नेत्र या ज्ञान चक्षु) की अग्नि से खाया यानी ज्ञान दृष्टि से माया का भक्षण किया। यह गुरु का ज्ञान तो पहले भी उपलब्ध रहा था किन्तु किसी बिरले ही अवधूत ने उसे प्राप्त किया। +: महायोगी गोरख कहते है की जब तीक्ष्ण पवन निरन्तर रहता है, उसकी चंचलता छूट जाती है तब शरीर के भीतर महारस सिद्ध होता है। गोरखनाथ कहते है की हमने चंचल मन को पकड़ लिया है और शिव शक्ति का मेल करके अपने घर में रहने लगे अर्थात निज स्वरुप में पहुँच गये। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! शब्द को प्राप्त करो, शब्द को प्राप्त करो। शब्द से ही शरीर सिद्ध होता है। इसी शब्द को प्राप्त करने के लिए निनाणवे करोड़ राजा चेले हो गयें और प्रजा में से कितने हुए इसका तो अंत ही नही मिलता। +: महायोगी गोरख कहते है की डोरी (समाधी या लीनावस्था) के टूट जाने से सार वस्तु बह जाती है, नष्ट हो जाती है। उन्मनी समाधि के लगने से स्थिरता आती है और आनन्द होता है। लेकिन समाधि के टूटने से शरीर भी नष्ट हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की योग की साधना एक लाख शिंजिनियों (प्रत्यंचाओं) या धनुषों से नौ लाख बाण छूटने के समान है। उससे ब्रह्मरंधस्थ मीन तत्व का लक्ष्य) निश्चय बिंध गया। गोरखनाथ सत्य वचन कहते हैं की तत्व ज्ञान के साथ ब्रह्मरंध भी बेध दिया गया है यानी केवल ज्ञान प्राप्त नही हुआ है बल्कि उसमें स्थिरता भी आ गई है +: महायोगी गोरख कहते है की कोई हमारी निन्दा करता है, कोई बंदना करता है, कोई हमसे वरदान इत्यादि प्राप्त करने की आशा करता है। किन्तु गोरखनाथ कहते है की अवधूत, यह मार्ग जिस पर हम चल रहे है पूर्ण विरक्ति का है। हम निन्दा प्रशंसा सबसे उदासीन रहते है, ये हमे प्रभावित नही कर सकते। हम इनसे सर्वथा निर्लेप है +: महायोगी गोरख कहते है की हे शिष्यो! आसन, भोजन और निद्रा के नियमों में दृढ़ होने से योगी अजर अमर हो जाता है। योगी का आसन अविचल, आहार अल्प और निद्रा सर्वथा क्षीण होनी चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! शब्द को प्राप्त करो, शब्द को प्राप्त करो। स्थान (पद अथवा तीर्थ) को मान देना आदि क्रियाएँ सब धंधा है। शब्द की प्राप्ति से तुम जानोगे की आत्मा में परमात्मा वैसे ही दिखाई देता है जैसे जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है +: महायोगी गोरख कहते है की जल के संयम से आकाश अटल होता है, ब्रह्मरंध में दृढ़ स्थिति होती है। अन्न के संयम से ज्योति प्रकाशमान होती है, पवन के संयम से बंद लगता है अर्थात नवद्वारे बंद हो जाते है और बिंदु (शुक्र) के संयम से शरीर स्थिर हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की यह कलि बुरा युग है। इसमें लोगो के भाव अच्छे नहीं है, यह उनके कर्मो से पता चलता है। क्योंकी ह्रदय में जैसे भाव होते है, वैसे ही कर्म फिर हाथ से होते है। गोरखनाथ कहते है की हे अवधूत जो कुछ गडुवे में होगा, वही तो टोंटी से बाहर निकलेगा। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अ��धूत! मूर्खो की सभा में नही बैठना चाहिए, पंडित से शास्त्रार्थ नहीं करना चाहिए उसका ज्ञानगर्व दूसरे प्रकार की मूर्खता है, वास्तविक ज्ञान उसे नही होता। अतएव ऐसे शास्त्रार्थ में पड़ना व्यर्थ समय को नष्ट करना है।) राजा से लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए। (राजा उस क्षेत्र में शूर नहीं है जिस क्षेत्र में साधक को शूर होना चाहिए। राजा के पास बाहुबल है किन्तु साधक के पास आत्मबल होना चाहिए। इसलिए दोनो में स्पर्धा का भाव हो नही सकता।) गोरखनाथ जी कहते है की लापरवाही से नाद को खोना नहीं चाहिए +: महायोगी गोरख कहते है की कहनी से रहनी दुर्लभ है, बिना गुड़ खाये मुँह से 'मीठा' शब्द का उच्चारण मात्र कर देने से मीठे स्वाद का अनुभव नहीं प्राप्त हो सकता, ऐसा अनुभवहीन व्यक्ति धोखे में पड़ा रह जाता है। उसको वास्तविकता की पहचान नही होती। खाता तो वह हींग है किन्तु कहता है कपूर। गोरखनाथ कहते है की यह सब झूठा अनुभव है। +: महायोगी गोरख कहते है की कहना आसान होता है किन्तु उस कहने के अनुसार रहना कठिन, बिना रहनी के कहना किसी काम का नहीं खोखला या थोथा) है। तोता पढ़ सुनकर कुछ शब्दों को दोहराना भर सीख सकता है, उसके अनुसार काम नही कर सकता, उनका अर्थ नही समझता। ऐसे ही अनुभवहीन पढ़े गुने पंडित के हाथ में भी केवल पोथी रह जाती है, सारवस्तु उसके हाथ नही आती और परिणामतः वह काल का ग्रास हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जो ब्रह्म की सुबास से सुबासित रहता है अर्थात ब्रह्म की व्यापकता जिसे अनुभव हो जाती है, वहाँ उसके लिए ज्योति दर्शन का खेल प्रकट हो जाता है। द्वादश अंगुल अर्थात प्राणवायु (योगियों का कथन है कि प्राणवायु का निवास नासिका के बाहर भी बारह अंगुल तक है, इसी द्वादश अंगुल से प्राणवायु का अर्थ लिया गया है) को शून्य में प्रविष्ट करने से चिरायु प्राप्त होती है, शरीरपात नही होता और यम के प्रभाव में साधक नही जाता अर्थात मरण नही होता। +: महायोगी गोरख कहते है की हे शूर (साधक सिद्ध के संकेत (सांकेतिक उपदेश) को समझो। शून्य स्थान में तुरी (अनाहत नाद) बजाओ। चन्द्र के विरोधी भानू को मीन के मार्ग पर लगाओ अर्थात योग युक्ति से चन्द्रमा के सम्मुख करो, जिससे अमृत का रसास्वादन हो सके। गोरखनाथ कहते है की जिस प्रकार पानी के नीचे मछली का मार्ग ज्ञात नही होता, उसी प्रकार योग का मार्ग भी गुप्त रहता है। इसलिए इसे मीन का मार्ग ���ी कहा जाता है। इस मार्ग से फूल उलट कर फिर कली में बदल जायेगा, वृद्ध को बाल स्वरुप प्राप्त हो जायेगा +: महायोगी गोरख कहते है की हे चेतन (जीव सचेत रहना चाहिए। आत्मा को रेतना नहीं चाहिए (दुख नही देना चाहिए)। पंचेंद्रियों से मिलने वाले झूठे सुख की आशा मिटा देनी चाहिए। गोरखनाथ कहते है कि वे सच्चे शूरवीर हैं जो उन्मनावस्था में लीन मन में निवास करते है। +: महायोगी गोरख कहते है की अंहकार तोड़ना चाहिए, निराकार आत्मा को प्रस्फुटित करना चाहिए। (जैसे भू पृष्ठ को तोड़कर अंकुर बाहर निकलता है उसी प्रकार अंहकार को तोड़कर आत्मा प्रस्फुटित होती हेै।) जहाँ गंगा (ईड़ा जमुना (पिंगला) का पानी सोख लिया गया (अर्थात दोनों का प्रभाव मिटाकर सुषुम्ना में मिला लिया गया) तथा चन्द्रमा (सहस्त्रारस्थ) और सूर्य (मूलाघारस्थ) दोनों का विरोधी स्वभाव मिटा कर सन्मुख कर दिया गया ताकि अमृत का स्त्राव नष्ट नहीं होने पाए। गोरखनाथ जी कहते है की हे अवधू! वहा की पहचान खोजो। +: महायोगी गोरख कहते है की ब्रह्मरंध मे कुंडलिनी प्रवेश से ब्रह्मांड फोड़ना चाहिए और शून्य रुप नगर को लूटना चाहिए, जिसका भेद कोई नही जानेगा। गोरखनाथ जी कहते है कि जब शरीर रुपी घर घेर लिया जाता है तभी पंच देव यानी पंचेन्द्रिय तथा उनका स्वामी मन पकड़ा जा सकता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जिनके बड़े बड़े कूल्हे और मोटी तोंद होती है,उन्हे योग की युक्ति नही आती। समझना चाहिए कि उन्हे गुरु से भेंट नहीं हुई है, या उन्हे अच्छा योगी गुरु मिला ही नही है। अगर गुरु मिल भी गए तो शायद उनकी वास्तविक महिमा को उन्होने पहचाना ही नही, उनकी शिक्षा का लाभ उठाकर वे अधिकारी नही हो पाए है। यदि साधक का शरीर चरबी के बोझ से मुक्त है और उसके नासा रंध्र निर्मल, आँखे कांतिमय है तो समझना चाहिए की गुरु से भेट हो गयी है। +: महायोगी गोरख कहते है की भिक्षा हमारी कामधेनु है, उसी से हमारी पूर्ण तृप्ति हो जाती है। यह सारा संसार भर हमारी खेती है, हम किसी एक जगह से नही बँधे रहते। किन्तु भिक्षा भी स्वयं अपने निमित नही माँगी जाती, अन्यथा योग भी माँगने खाने के पाखंडो में से एक हो जाय। भिक्षा मे जो कुछ प्राप्त होता है वह भी गुरु का है और उन्ही को अर्पण होता है। गुरु के प्रसाद स्वरुप भिक्षा भोजन करने से अतंकाल में कर्मो का बोझ नहीं सतावेगा। +* सुणि गुणवंता सुणि बुधिवंता, अनंत सिधा की बांणी।१। +: महायोगी गोरख कहते है की हे गुणवानो! सुनो, हे बुद्धिमानो! सुनो, अनंत सिद्धो की वाणी सुनो। अनंत सिद्धो ने कहा है की सदगुरु के मिलने (उनके सान्धिय एवं मार्गदर्शन से) और उन्हे सिर झुकाने (मै का त्याग कर पूर्ण सर्मपण) से यह जगत रात्री (जीवन का कालचक्र जागते जागते (ज्ञानमय अवस्था में) बीत जाती है। जीव अज्ञान की नींद नही सोता। +: महायोगी गोरख कहते है की कौन हमारे श्रृंगी नाद बजावै्? श्रृंगी नाद बजाने से तो श्वास टूटने लगता है। (वैसे इसकी आवश्यकता भी क्या है जब हमारे आभ्यंतर में अनाहत नाद निरंतर बजता रहता है)। श्रृंगीनाद बजे न बजे, अनाहत नाद निरंतर बजता रहे। श्री गोरखनाथ ऐसा सिद्ध संकेत करते है। +: महायोगी गोरख कहते है की प्राण वायु को उलट कर छहों चक्रों को बेध लिया। उससे तप्त लौह (ब्रह्मरंध) ने पानी (रेतस्) को सोख लिया। चन्द्रमा (इड़ा नाड़ी) और सूर्य (पिंगला) दोनों को अपने घर (सुषुम्णा) में रक्खा, मिमज्जित कर दिया। ऐसा (जो जोगी करे) वह स्वयं अलक्ष्य और विज्ञानी (ब्रह्म) हो जाता है। +: नाथ जी कहते है की हम भव सागर से पार उतर गये। किन्तु मूढ़ संसारी लोग उसे पार नहीं कर सके, इसी किनारे रह गए। परन्तु जो बिना अवस्था के झूठे जोगी है (अस्थिर व चंचल है वे मझदार ही मे डूब जाते है। उन्हे न वह किनारा मिलता है न यह किनारा पार होता है। उनका यह लोक भी नष्ट हो जाता है और उन्हे मोक्ष भी प्राप्त नही होता। +: महायोगी गोरख कहते है की संन्यासी वह है जो सर्वस्व का न्यास (त्याग) कर देता है। केवल शून्य मंडल मे मिलने वाली ब्रह्मानुभूति की आशा लिए रहता है। अनाहत को सुनकर मन को निरन्तर उन्मनावस्था में लीन किए रहता है। वह सन्यासी स्वानुभव से अगम परब्रह्म का कथन करता है। +: महायोगी गोरख कहते है की जोगी वह, जो मन की रक्षा करे और परम शून्य अर्थात ब्रह्मरंध में देश के बिना ब्रह्मनुभूतिमय बड़े राज्य का उपभोग करे। जो योगेश्वर कनक और कामिनी का त्याग कर देता है, वह निर्भय हो जाता है। +: महायोगी गोरख बताते है निद्रा कहती है की मैं आल जाल वाली (प्रपंचकारिणी) हूँ और बलवती हूँ। ब्रह्मा, विष्णु, महादेव तक को मैने छला है। किन्तु गोरखनाथ ने मेरा बहुत बुरा हाल कर दिया है। वह जागता है और मै पड़ी सो रही हूँ। +: महायोगी गोरख कहते है की अधर (शून्य ब्रह्मरंध) में हमने ब्रह्मतत्व का विचार किया। अधर में तो वह है ही, इस धरा में भी वही है। मूलाधार से लेकर ब्रह्मरंध्र तक सर्वत्र उसकी स्थिति है। कही वह स्थूल रुप से है, कही सूक्ष्म रुप से है। जब धर अधर का परिचय हो जाता है, तब मूलस्थ कुंडलिनी शक्ति का सहस्त्रारस्थ शिव से परिचय हो जाता है। तब साधक के निज अनुभव ज्ञान से बाहर कुछ नही रह जाता। +: महायोगी गोरख कहते है की देवालय की यात्रा शून्य यात्रा है, उससे कोई फल नहीं मिलता। तीर्थ की यात्रा से तो फल ही क्या मिलता है वह तो पानी की ही यात्रा ठहरी। सुफल यात्रा तो अतीत यात्रा है, साधु सन्तों के दर्शनों के लिए की जाने वाली यात्रा है, जो अमृतवाणी बोलते है। उनके सत्संग और उपदेश श्रवण से जो लाभ मिलता है, वह अन्य किसी यात्रा से सम्भव नही है। +: महायोगी गोरख कहते है की काजी मुल्लाओं ने कुरान पढ़ा, ब्राह्मणों ने वेद, कापड़ी (गंगोतरी से गंगाजल लाने वाले) और सन्यासियों को तीर्थों ने भ्रम में डाल रक्खा है। इनमे से किसी ने निर्वाण पद का भेद नही पाया। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! यह शरीर नाली (बंदूक) है, पवन बारुद है, अनहद रुप आग देने से धमाका होता है और बिन्दु रुप गोला ब्रह्मरंध्र मे चला जाता है अर्थात साधक उध्र्वरेता हो जाता है। +* षोडस नाड़ी चंद्र प्रकास्या, द्वादस नाड़ी मांनं।१। +: सहंस्त्र नाड़ी प्रांण का मेला, जहां असंष कला सिव थांनं।२। +: महायोगी गोरख कहते है की षोडश कला वाली नाड़ी (इला) में चंद्रमा का प्रकाश है, द्वादश कला वाली नाड़ी (पिंगला) में भानु का, सहस्त्र नाड़ी (सुषुम्ना) से सहस्त्रार में प्राण का मूल निवास है, वहाँ असंख्य कलावाले शिव (ब्रह्मतत्व) का स्थान है। +: ईड़ा नाड़ी को चन्द्र कहते है, पिंगला को भानु (सूर्य) और सुषुम्ना को सरस्वती (वाणी ये ही तीनो मूलस्थान ब्रह्मरंध तक पहुँचाते है। +: महायोगी गोरख कहते है की निश्चल रुप से अपने घर बैठना चाहिए यानी आत्मस्थ होना चाहिए, ऐसा करने से साधक कभी रोगी नही होगा। परन्तु साथ ही नाग भस्म, बंग भस्म तथा वनस्पति के प्रयोग से वर्ष भर में तीन बार काया कल्प करना चाहिए यानी काया पलटनी चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की जो लिखा नही जा सकता, उसका लेखा करने वाले, जिसे देखा नही जा सकता, उसे देखने वाले यानी स्वयं साक्षात्कार करने वाले, ब्रह्मरंध को अनाहत नाद से गर्जित करने वाले, वे निज प्रमाण से यानी स्वयं अपने अनुभव से ब्रह्म को जानते है। +: महायोगी गोरख कहते है की जो असाध्य (मन) को साधते हैं (वश करते है गगन को (अनाहत नाद से) गर्जित करते है, उन्मनी समाधि लगाते है, पवन को उलटते और सुषुम्ना के मार्ग को पलट देते है। वही अमृत पान करते है, वे ही ब्रह्मज्ञानी है। +: महायोगी गोरख कहते है की पवन को उलटकर ब्रह्मरंध में समावे, तब बाल रुप प्रत्यक्ष होता है। उदय के घर में अस्त लाने से अर्थात मूलाधार स्थित सूर्य को अस्त करने से और चन्द्र हिम के घर ब्रह्मरंध्र में पवन का सम्मिलन करने से बँधा हुआ (बँधकर) हाथी (मन) अपनी शाला में (यानी उस अवस्था मे जो योग सिद्धि के लिए होनी चाहिए) में आ जाता है। +: योगी बारह कला (मूलाधार सूर्य) को सोखे (जिससे मूलाधार में सूर्य अमृत का निर्झर सूख न पाए इससे सोलह कला (सहस्त्रारस्थ अमृतस्त्रावक चन्द्रमा) का पोषण होगा। इस प्रकार चार कलाएँ (सूर्य के ऊपर चन्द्र अमृत) सिद्ध होगी। इस रीति से योगी को अनन्त कलापूर्ण अर्थात ब्रह्मनुभवमय जीवन प्राप्त होगा। विशाल प्रकाशमय ज्योति के दर्शन होंगे, योगी सिद्धि को साधकर चार कला (अमृत) का पान कर लेगा। +: महायोगी गोरख से शिष्य एक सवाल पूछते है की हे दयालु गुरु इसका उतर दीजिए। वृद्ध से बालक कैसे हो सकते है। जो फूल खिल चुका है वह फिर से कली कैसे हो सकता है। पूछे जाने पर इसका जो उतर दे, वही गोरखनाथ है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे नाथो! जगत् के जंजाल को छोड़ो। योग की युक्ति से अमृत का पान परमानंद का अनुभव करो तो बालक हो सकते हो। ब्रह्माग्नि से मूल को सींचने से जो फूल खिल चुका है, वह फूल भी कली हो सकता है। +* असार न्यंद्रा बैरी काल, कैसे कर रखिबा गुरु का भंडार।१। +: महायोगी गोरख कहते है की आहार बैरी है क्योंकि अति आहार से कई खराबियाँ है, जिनमें से नींद का जोर करना एक है। निद्रा काल के समान है। ये गुरु के भंडार ब्रह्मतत्व की चोरी करते है, उसकी अनुभूति नही होने देते। लेकिन गुरु के भंडार की रक्षा कैसे की जाय? भोजन को कम कर दो, निद्रा को मोड़ो अर्थात आने न दो। शिव (ब्रह्मतत्व) और शक्ति (योगिनी कुंडलिनी तत्व) को एक में मिला लो। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत सुनो, पंचतत्वों अथवा पचंज्ञानेन्द्रियों के बाहर की तरफ प्रसार का निवारण करके, यदि अपने आत्मा का स्वयं चिंतन करे, तो मनुष्य की सब चिंताए दूर हो जाती है। वह पाँव पसार कर, निश्चिन्त होकर सो सकता है। +: महायोगी गोरख कहते है की आसन बाँधकर बैठना, प्र���णायाम के द्वारा वायु का निरोध करना, कोई पद और तत्संबंधी मान सब धंधे है। इसके अतिरिक्त ये मानना की स्थान विशेष पर बैठकर अभ्यास करने से ही योग सिद्धि हो सकती है, ये सब भी धंधे है। (इनका निरपेक्ष महत्व नही है। ये केवल बाहरी साधन मात्र है।) जो बातें आभ्यंतर ज्ञान को उत्पन्न करती है वे ही योग मार्ग में सब कुछ है। गोरखनाथ कहते है की आत्म तत्व का विचार करने से सारा दृश्यमान जगत वैसे ही परब्रह्म का प्रतिबिम्ब जान पड़ने लगता है जिस प्रकार जल में चंद्रमा का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है। +* अरघंत कवल उरघंत मध्ये, प्रांण पुरिस का बासा।१। +: महायोगी गोरख कहते है की जब नीचे के कमल से ऊपर के कमल में प्राण का वास होने लगे, तब प्राणवायु बहिर्गामी होने की अपेक्षा उलट कर आभ्यंतरगामी हो जायेगी और ज्योति का प्रकाश होगा। +: महायोगी गोरख कहते है की मैंने पा लिया। अच्छा (शुभ) पाया, शब्द के द्वारा स्थान (ब्रह्म पद) सहित स्थिति को। तब ब्रह्म के साक्षात दर्शन होने लगे और पूर्ण विश्वास हो गया, मुक्ति में कोई संदेह नही रह गया। +: महायोगी गोरख कहते है की दंडी वह है जो आपा (अहंकार) को दंडित करता है, आती जाती (चंचल या परिवर्तनशील) कामना (मनसा) को खंडित करता है। पाँचों इन्द्रियों का मान मर्दन करता है। ऐसा ही दंडी ब्रह्मतत्व में लीन होता है। वह शिव स्वरुप हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की श्वासा (शक्ति) को अरघ (नीचे अंदर जाने वाली वायु) और ऊध्र्व (उच्छवास) के बीच में उठा कर रक्खा अर्थात केवल कुंभक किया और मध्य शून्य (ब्रह्मरंध) में जा बैठा। वहाँ मतवाले शिव (ब्रह्म तत्व) की संगति मिलि। इस प्रकार गोरखनाथ कहते है कि हमें परम गति (परमपद) प्राप्त हो गयी। +: महायोगी गोरख कहते है की जब सिद्धो ने पाँच तत्वो को लेकर (ग्रहण कर, वश में कर) मुंडा लिया (चेला, अनुगामी बना लिया तब निरंजन निराकार से भेंट की। हे अवधूत मन रुपी मस्त हाथी जब अपना हो जाता है (मन पर संयम सिद्ध हो जाता है तब अक्षय भंडार लूटने को मिल जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! मनसा हमारी गेंद है और सुरति मन की उल्टी गति अर्थात आत्मस्मृति) चौगान। अनहद का घोड़ा बनाकर मै खेलने लगा। इस प्रकार ब्रह्मरंध्र (गगन या शून्य) मेरे खेलने का मैदान हो गया। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! इन्द्रियो को उनके विषयों से हटाओ। दृष्टि (चक्षुरिंद्रिय) के आगे से दृष���टि (देखने की शक्ति) को छिपाओ, कान के आगे से श्रुति (सुनना नाक के आगे से वायु को छिपाओ (श्वसन)। ऐसा करने से फिर केवल निर्वाण पद शेष रह जाता है। इसमें प्रत्याहार की आवश्यकता बतायी गयी है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! शिशुपाल (काल) से डरना चाहिए, अगर वह मुगदर को सिर पर मारे तो आयु के बिना समाप्त हुए ही (अकाल ही) आदमी मर जाए, यानी अकाल भी काल आकार इस भौतिक शरीर की आयु को खा जाता है इसलिए सावधान रहो, हर पल श्रुति परम मे लगी रहे। पता नही कब ये मायावी प्रपंच काल का ग्रास बन जाए?? +: महायोगी गोरख कहते है की उनका योगियो के लिए यही उपदेश है की तुम अपने आपा (आत्मा) की रक्षा करो, हठ पूर्वक वाद (खडंन मडंन) में न पड़ो। यह संसार कांटे की खेत की तरह है जिसमें पग २ पर कांटे चुभने का डर रहता है। इसलिए देख देख कर कदम रखना चाहिए यानी बहुत युक्ति से जीवन जीना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की योगियो के लिए यह गोेरखनाथ का उपदेश है की इस दुनिया में साक्षी भाव से रहना चाहिए। इसमें लिप्त नही होना चाहिए, इस दुनिया के तमाशे को तमाशबीन की तरह देखते रहो। आखो से देखते हुए व कानो से सुनते हुए भी मुख से कुछ नही कहना चाहिए। जगत के बीच रहकर भी खुद इस प्रपंच मे न पड़े। +: महायोगी गोरख कहते है की अवधूत योगी जब (आसन मारे) बैठा रहता है तो वह लोहे की खूंटी के समान निश्चल होता है। जब चलता है तो पवन की मुट्ठी बाँध कर (यानी वायुवेद से जोगी जब सोता है तो वह जीते जी मृतक के समान है। लेकिन जो बहुत बोलता फिरता है उसे समझना चाहिए कि अभी बंधन मुक्त नही हुआ है। +: प्यंड ब्रह्मंड निरंतर बास, भणंत गोरष मछ्यंद्र का दास।२। +: महायोगी गोरख कहते है की यदि शरीर में परमात्मा होता तो कोई मरता ही नही। यदि ब्रह्मांड में होता तो हर कोई उसे देखता। जैसे ब्रह्मांड की और चीजे दिखाई देती हैं वैसे ही वह भी दिखाई देता। मत्स्येन्द्र का सेवक (शिष्य) गोरख कहता है की वह पिंड और ब्रह्मांड दोनो से परे है। +: महायोगी गोरख कहते है की हिन्दू देवालय में ध्यान करते है, मुसलमान मस्जिद में, किन्तु योगी परमपद का ध्यान करते है जहाँ न देवालय है न ही मस्जिद है। +: महायोगी गोरख कहते है की बड़े बड़े तपस्वी योग सिद्धि की आशा से गेरुआ धारण कर उतराखंड (बदरिकाश्रम आदि स्थानों) में जाकर झरने का जल और जंगलो के कंदमूल फल पर निर्वाह करते है। किन्तु गोरखनाथ जिस उतराखण्ड (ब्रह��रंध्र) में जाने का उपदेश करते है उसमें ब्रह्मग्नि का वस्त्र पहनने को, अमृत निर्झर से झरने वाला अमृत पीने को और शून्यफल (ब्रह्मरंध में मिलने वाला फल, ब्रह्यनुभूति) खाने को मिलता है। गोरख ने अपने चंचल मन को इसी प्रकार से स्थिर किया। +: बिरला जाणंति अकथ कहांणीं, बिरला जाणंति सुधिबुधि की वांणीं।२। +: महायोगी गोरख कहते है की अभेद के भेद को, अद्वैत के रहस्य को कोई विरला ही जानता है। द्वैत के पक्ष का निरसन किसी विरले को आता है। ब्रह्म की अकथनीय कथा को भी कोई विरले ही जानते है। सिद्धो बुद्धो की वाणी को कोई विरला ही समझ पाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की नगर उधान तथा तड़ागो से सुशोभित होता है। सभा की शोभा पंडित (विद्वान) लोग है। राजा की शोभा उसकी विश्वसनीय सेना है। इसी प्रकार सिद्ध की शोभा आध्यात्मिक सता की याद दिलानेवाली अथवा निर्मल शुद्ध बुद्धि युक्त वाणी है। +: महायोगी गोरख कहते है की उन्मनावस्था में लीन रहना चाहिए। किसी से अपना भेद (रहस्य) न कहना चाहिए। (अमृत के) झरने पर पानी (अमृत) पीना चाहिए। गुरु के मुख से ज्ञानोपदेश सुनने के लिए लंका क्या परलंका (लंका के परे, दूर से भी दूर जाना पड़े तो) जाना चाहिए। अथवा माया (लंका, राक्षसों की मायाविनी नगरी) को छोड़ कर उससे परे परलंका) ही जाना चाहिए। तभी गुरु का दिया ज्ञानोपदेश ह्रदयंगम हो सकता है। +: महायोगी गोरख कहते है की किसी वन, प्रान्त, देश आदि स्थूल स्थानो पर रहने की अपेक्षा निज मन मे रहना चाहिए अर्थात बहिर्मुख वृतियों को अंतर्मुख कर देना चाहिए। अपने मन का रहस्य किसी से नही कहना चाहिए, क्योंकी इस रहस्यमय परमात्म अनुभूति को कोई समझने वाला नही है। ये तो निज अनुभव का विषय है। हमेशा मीठी वाणी बोलनी चाहिए। अगर दूसरा आदमी तुम पर आग बबूला हो जाये तो तुम्हे पानी हो जाना चाहिए। सरलचित होकर क्षमा कर देना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की पर ब्रह्म घट घट व्यापी है। इसे लोग स्थूल अर्थ में यों समझते है कि शरीर में वह कहीं पर है। यदि ऐसा है तो परमात्मा की शरीर के अन्दर किसी भाग मे ही मिलने की आशा होनी चाहिए। कुछ लोग परमात्मा की प्राप्ति के लिए वन जंगल फिरा करते है। यदि ब्रह्मनुभूति सचमुच वन ही में उत्पन्न होती है तो उसे चौपायों में भी देखने की आशा करनी चाहिए। कुछ लोग केवल दूध पर रह कर परमात्मा को प्राप्त करना चाहते है। यदि दूध में परमात��मा है तो उसे घी के रुप में देखने की आशा करनी चाहिए। परन्तु असल में इन बाहरी बातों से परमात्मा नहीं मिलता। इसका सार उपाय करणी करतब, योग युक्ति अर्थात समुचित रहनी है। आपका जीवन योगयुक्त होकर, परम की दिशा मे क्रियान्वित हो आपकी श्रेष्ठतम करणी के द्वारा। +: महायोगी गोरख कहते है की जो अभरा था ब्रह्मानुभूति से रहित होने के कारण खाली था योग की साधना से) वह भी भर गया। (अर्थात ज्ञान पूर्ण हो गया, उसे ब्रह्मानुभूति हो गयी) उसके लिए लिए निरंतर अमृत का निर्झर झरने लगा। (परन्तु जिस मार्ग से यह संभव होता है) गुरु का बताया हुआ यह मार्ग खड्ग से भी तीक्ष्ण और कठिन है। +: महायोगी गोरख कहते है की जिह्वा की टकसाल बनाकर वहाँ अभेध परमतत्व रुप हीरे को सु-शब्द (सोहं हंसः, अजपा मंत्र) के द्वारा बेधो। इस प्रकार अवगुणमय असत् मायावी जगत में भी अपने लिए गुण त्रैगुण्य नहीं सद्गुण) का लाभ कर लो अर्थात सत् का अनुभव करो। ऐसा होने पर सारा संसार तुम्हारा चेला हो जायेगा +: महायोगी गोरख कहते है की सूर्य नाड़ी मे चलता हुआ पवन बहुत तीव्र गति से चलता है। जब चन्द्र नाड़ी में उसकी गति होती है तब वह बैठ (थम) सा जाता है। जब श्वास बाहर निकलता है तब सूर्य नाड़ी चलती है, और जब भीतर प्रवेश करता है तब चन्द्र नाड़ी। योगी दोनों से अलग सुषुम्णा नाड़ी की शरण में आश्रय लेता है। क्योंकी जहाँ बिन्दु का निवास है वही अमर जीवन तत्व (जिन्दा) का भी है। +: महायोगी गोरख कहते है की चन्द्र और सूर्य के योग से जब उन्मनावस्था आती है तब ब्रह्मरंध (शून्य मंडल) में अमृत का निर्झर झरने लगता है। नाद उलट जाता है। नाद सूक्ष्म शब्द तत्व का क्रियमाण स्वरुप है जो क्रमशः स्थूल रुप में परिणत होता हुआ सृष्टि का कारण होता है। उसका सृष्टि निर्मायक स्थूल स्वरुप अपने मूल स्त्रोत की ओर मुड़ जाता है। और नीचे उतरता हुआ बिन्दु ऊध्र्वगामी हो जाता है और वायु में ही, जिसके ऊपर काल का प्रभाव बहुत दिखाई देता है, अमर तत्व (जिन्दा) पहचाना जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की 'सहस्त्रार' में अमृतस्त्रावक चन्द्रमा स्थित है पर उसके प्रभाव से सामान्यतया जीव वंचित रहता है, क्योंकि अमृत के स्त्राव को मूलाधार स्थित सूर्य सोख लेता है। चन्द्रमा के प्रभाव से यही वंचित रहना 'अमावस' से अभिप्रेत है। जहाँ पहले अमावस थी, चन्द्रमा का प्रभाव नही था, वहाँ अब चन्द्रमा झिलमिल च��कने लगा है, पूर्ण प्रभाववाला हो गया है। यही सूर्य चंद्र संयोग योग साधनो का प्रधान उद्देश्य है। इससे नाद में बिन्दु (शुक्र) समा गया है और अनाहत नाद की तुरी बजने लगी है। +: महायोगी गोरख कहते है की केवल कुम्भक द्वारा श्वासोच्छ्वास का भक्षण करो। नवो द्वारों को रोको। छठे छमासे कायाकल्प के द्वारा काया को नवीन करो। तब उन्मन योग सिद्ध होगा। +: महायोगी गोरख कहते है की यही मन शिव है, यही मन शक्ति है, यही मन पंच तत्वो से निर्मित जीव है (मन का अधिष्ठान भी शिवतत्व परब्रह्म ही है। माया (शक्ति) के संयोग से ही ब्रह्म मन के रुप मे अभिव्यक्त होता है और मन ही से पंच भूतात्मक शरीर की सृष्टि होती है। इसलिए मन का बहुत बड़ा महत्व है।) मन को लेकर उन्मनावस्था मे लीन करने से साधक सर्वज्ञ हो जाता है, तीनो लोकों की बाते कह सकता है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत! दम (प्राण) को पकड़ना चाहिए, प्राणायाम के द्वारा उसे वश मे करना चाहिए। इससे उन्मनावस्था सिद्ध होगी। अनाहत नाद रुपी तुरी बज उठेगी और ब्रह्मरंध मे बिना सूर्य या चंद्रमा के (ब्रह्म) का प्रकाश चमक उठेगा। +: महायोगी गोरख कहते है की हे! अवधूत! शरीर के नवो द्वारो को बन्द करके वायु के आने जाने का मार्ग रोक लो। इससे चौसठो संधियो मे वायु का व्यापार होने लगेगा। इससे निश्चय ही कायाकल्प होगा, साधक सिद्ध हो जायेगा जिसकी छाया नही पड़ती। +: महायोगी गोरख कहते है की चंचलता (चालत) से चंद्र स्त्राव (अमृत) खिसक खिसक कर क्षरित हो जाता है। स्थिरता (बैठा) से ब्रह्माग्नि प्रज्वलित होती है। तिरछी अर्थात चल और स्थिर के बीच की) अवस्था (आदि) मे अभ्यास से वह सिद्धि (गोटिका बंध) प्राप्त होती है जिससे योगी इच्छानुसार अदृश्य हो जाता है (कहते है कि सिद्ध योगी अभिमंत्रित गोली (गुटिका) मुँह में रखकर अदृश्य हो जाता है) और अमरत्व प्राप्त कर लेता है जिससे जब तक पृथ्वी रहती है तब तक उसका शरीर भी रहता है। +: महायोगी गोरख कहते है की शरीररुपी मढ़ी मे मन रुपी जोगी रहता है जिसने अपने लिए पाँच तत्व की कंथा बनाई है। वह क्षमा का खड़ासन, ज्ञान की अधारी, सद्बुद्धि की खड़ाऊँ और विचार का डंडा उपयोग मे लाता है। (काठ के डंडे से लगी हुई अधारी होती है जिसे योगी व साधु सहारे के लिए रखते है। इसी प्रकार का खड़ासन भी होता है जिसके सहारे खड़ा होकर भी आराम रहता है।) लेकिन यहा गोरख कह रहे है की शरीर क�� नही मन का योग वास्तविक योग है। बाह्म युक्तियो को छोड़ कर आभ्यंतर की युक्तियो को ग्रहण करना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की योगी पाखंडी नही होता है। लेकिन योगी का पाखंड यह है की वह योग की क्रियाओ से काया का प्रक्षालन करता है, उसे निर्मल बनाता है। पवन को उलट कर (प्राणायम के द्वारा) योगाग्नि को प्रज्वलित करता है, कुण्डलिनी को जगाता है, बिन्दु को सपने मे भी स्खलित नही होने देता। ऐसे पाखंडी को तत्व मे समाया हुआ समझना चाहिए। +: सोहं हंसा सुमिरै सबद, तिहिं परमारथ अनंत सिध॥२॥ः महायोगी गोरख कहते है की जो (अंतर्लीन) मुनि, सत् रजस् तमस् इस त्रैगुण्य से विवर्जित है, पाप पुण्य से रहित है, निर्मल है, अमर है सोहं हंसः" इस आभ्यंतर शब्द का स्मरण करता है अर्थात अजपाजाप जपता रहता है, उसे अनन्त परमार्थ सिद्ध हो जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की योगी गृही (घरबारी) नही है। यदि वह गृही है (संकेत रुप मे) तो ऐसा है जो अपने शरीर को पकड़े हुए, वश मे किये हुए रहता है। अंतःकरण से माया को त्याग देता है। वह इतना शीलवान है कि जैसे पूरा शरीर ही स्वाभाविक शील का बना हुआ है। वह गृही गंगाजल है, शुद्ध है, औरो को भी शुद्ध करने वाला है। ऐसे योगी का देवाधिदेव शिव भी आदर करते है। +: सरब निरंतरि काटै माया, सो घरबारी कहिए निरञ्जन की काया॥२॥ः महायोगी गोरख कहते है की योगी घरबारी नही होता, यदि वह घरबारी है तो ऐसा कि जिसे अपने घर (काया) का पूरा ज्ञान है। अपने घर की जो वस्तु बाहर जा रही हो, नष्ट हो रही हो (श्वास और शुक्र) उसको वह भीतर ले जाता है, उसकी रक्षा करता है। वह सब से अभेद भाव रखते हुए निर्लिप्त रहता है और माया का खंडन कर देता है। ऐसे घरबारी को मायारहित निरंजन ब्रह्म का शरीर अर्थात ब्रह्मतुल्य समझना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत शरीर को वश मे करने के बाहरी उपायो से योग सिद्धि नही होती)। पावड़ी पहनने वाला चलने मे फिसल जाता हेै। लोहे की साँकलो से जकड़ने से शरीर नष्ट होता है। नागा, मौनी और केवल दूध पीकर रहने वाले, इतनो को योग लाभ नही होता। क्योंकि पयाहारी (दूध पर ही रहने वाले) का मन सदा दूसरे के घर रहता है सोचता रहता है, अमुक के यहाँ से दूध आ जाता तो अच्छा होता नागा शरीर को गरम रखने के लिए सदैव लकड़ी चाहता है। मौनी को एक साथी की जरुरत होती है जो उसके बदले बोल कर मार्ग देखा सके। +: महायोगी गोरख कहते है की घट घट ���े गोरख बिना आहट (बिना दूसरो के जाने) के फिरता है। ब्रह्म प्रत्येक घट मे विधमान है। किसी शरीर मे वह जाग रहा है, किसी मे सो रहा है। घट घट मे गोरख है, घट घट मे मीन (मत्स्येन्द्र) है। गुरु और शिष्य मे कोई भेद नही है। गुरू तो ब्रह्मविद होता ही है, शिष्य भी उसके दिखाये मार्ग का अनुसरण कर ब्रह्मवित् अर्थात ब्रह्म ही हो जाता है। गोरख अपने गुरु मीन के प्रभाव से कैवल्यपद को प्राप्त हुए है। गुरु के इसी महत्व को दिखाने के लिए गोरखनाथ जी ने यहाँ पर मीन (मत्स्येन्द्रनाथ) का उल्लेख किया है। गुरू मुख शिक्षा से आत्म परिचय (आत्म ज्ञान) प्राप्त करो। +: महायोगी गोरख कहते है की गोरख तत्व रुप व सार रुप मे गोरख स्वयं ब्रह्म है, पूर्ण परमात्मा है) ने प्रत्येक व्यक्ति शरीर रुप क्यारी को जोता बोया है अर्थात प्रत्येक ह्रदय मे बीज रुप मे गोरख (परमात्मा) विधमान है, किन्तु हमारी (गोरख की या परमात्मा की) वही क्यारी है जिसमे कुछ उपज हो जाए। यानी वही ब्रह्मलीन हो सकता है जो उस अन्तःस्थ ब्रह्म का स्वानुभव कर ले। गोरख तो प्रत्येक शरीर मे अपना उपदेश कर रहे है, अनाहत नाद हो रहा है। किन्तु इसका लाभ वे ही उठा सकते है जिन्होने अपनी काया को सिद्ध कर लिया है। क्योकी कच्ची हाँडी मे पानी नही ठहर सकता है यानी जिन्होने अपनी काया को सिद्ध नही किया है वे इसमे लाभ नही उठा सकते है। +: महायोगी गोरख कहते है की अधिक आहार करने से इन्द्रियाँ बलवती हो जाती है, जिससे ज्ञान नष्ट हो जाता है। व्यक्ति वासना तृप्ति की इच्छा करने लगता है, निंद बढ जाती है और काल उसे ढक लेता है। ऐसा व्यक्ति हमेशा उलझन मे पड़ा रहता है। +: महायोगी गोरख कहते है की आहार उतना ही करना चाहिए जितने से (पाँच भौतिक) शरीर की रक्षा हो सके और अपने देवत्व की रक्षा के लिए संयम से रहना चाहिए। जो जोगी मन पवन को संयुक्त कर उन्मनावस्था मे लीन कर देते है वे ही तत्व का सार प्राप्त कर पाते है। +: महायोगी गोरख कहते है की जो थोड़ा बोलता और थोड़ा खाता है, उसके शरीर मे पवन समाया रहता है। जिससे आकाश मडंल (ब्रह्मरंध) मे अनाहत नाद सुनायी देता है। इसलिए अमरतत्व प्राप्त करने का साधन हमारे ही पास होने पर भी यदि यह शरीर पात हो जाए तो सद्गुरु के लिए लज्जा की बात है। +: महायोगी गोरख कहते है की हे अवधूत आहार तोड़ो, मिताहार करो, नींद को अपने पास न फटकने दो, छठे छमासे कायाकल्प किया करो। इससे तुम कभी रोगी नही होओगे। कोई कोई बिरले जोगी ऐसा कर सकते है। +: जल बूंद (शुक्र) से निर्मित इस शरीर को किस प्रकार सिद्ध बनायें, समत्वावस्था मे लायें +: महायोगी गोरख कहते है की भोजन पर टूट नही पड़ना चाहिए (अधिक नही खाना चाहिए)। न भूखे ही मरना चाहिए। रात दिन ब्रहाग्नि को ग्रहण करना चाहिए। शरीर के साथ हठ नही करना चाहिए और न ही पड़ा ही रहना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की साधना के द्वारा ब्रह्मरन्ध्र तक पहुँचने पर अनाहत नाद सुनाई दिया, जो सार का भी सार और गंभीर से भी गंभीर है। इससे ब्रह्मनुभूति रुपी माणिक्य हाथ लगा। परन्तु वह माणिक्य व्यक्तिगत साधना से प्राप्त होने पर भी दुनिया के लिए छिपा ही रहा। (वह स्वसंवेध है, वाणी से किसी को बताया नही जा सकता। इस अनुभूति के मिल जाने पर ज्ञात हुआ की सारा वाद विवाद झूठा है। सच्ची तो केवल अनुभूति है। +: महायोगी गोरख कहते है की शब्दो के ब्राह्मर्थ पर नही जाना चाहिए, उनका तत्वार्थ ग्रहण करना चाहिए। इसी तत्वार्थ दृष्टि के अभाव मे, माया को अपने वश में रखनेवाले 'नाथ' का नाम लेते हुए भी सारा संसार माया के द्वारा नाथ डाला गया। यानी गोरख का नाम लेने वालो के लिए भी उनका सच्चा आध्यात्मिक जीवन गुप्त ही रह गया। इसी प्रकार खाली कलमा के शब्द भी किसी का उद्धार नही कर सकते। कलमा को चलाने वाले मुहमद भी बचे न रह सके। (योगी अपने गुरुओं को इसी शरीर मे अमर मानते है)। +* महंमद महंमद न करि काजी, महंमद का विषम विचारं।१। +: महायोगी गोरखनाथ जी कहते है की हे काजी "मुहम्मद मुहम्मद न करो (क्योंकि तुम मुहम्मद को जानते नही हो। तुम समझते हो कि जीव हत्या करते हुए तुम मुहम्मद के मार्ग का अनुसरण कर रहे हो) परन्तु मुहम्मद का विचार बहुत गंभीर और कठिन है। मुहम्मद के हाथ मे जो छुरी थी वह न लोहे की गढ़ी हुई थी न इस्पात की जिससे जीव हत्या होती है। (जिस छुरी का प्रयोग मुहम्मद करते थे वह सूक्ष्म छुरी "शब्द" की छुरी थी।) वह शिष्यों की भौतिकता को इसी शब्द की छुरी से मारते थे जिससे वे संसार की विषय वासनाओ के लिए मर जाते थे। परन्तु उनकी यह शब्द की छुरी वस्तुतः जीवन प्रदायिनी थी क्योकी उनकी बहिर्मुखता के नष्ट हो जाने पर ही उनका वास्तविक आभ्यंतर आध्यात्मिक जीवन आरम्भ होता था। मुहम्मद ऐसे पीर थे। हे काजियो, उनके भ्रम मे न भूलो, तुम उनकी नकल नहीं कर सकते। तुम्हारे शरीर मे वह (आत्मिक) बल ही नही है, जो मुहम्मद में था। गोरख कह रहे है की मुहम्मद जिन बातों को आध्यात्मिक दृष्टि से कहते थे, उनको उनके अनुयायियों ने भौतिक अर्थ मे समझा) +: महायोगी गोरखनाथ जी कहते है की परम तत्व तक किसी की पहुँच नही है (अगम)। वह इन्द्रियों का विषय नही है (अगोचर)। वह ऐसा है कि न उसे हम बस्ती कह सकते है (यानी न यह कह सकते की वह कुछ है (बस्ती और न शून्य (न यह की वह कुछ नही)। वह भाव (बस्ती) और अभाव (शून्य सत् और असत् दोनो से परे है। वह आकाश मण्डल मे बोलनेवाला बालक है (आकाश मण्डल मे बोलनेवाला इसलिए कहा कि शून्य अथवा आकाश या ब्रह्मारंध मे ही ब्रह्म निवास माना जाता है, वही पहुचने पर ब्रह्म का साक्षात्कार हो सकता है। वही पर आत्म अनुसंधान करना चाहिए। बालक इसलिए कि जिस प्रकार बालक पाप पुण्य से अछूता है, उसी प्रकार परमात्मा भी है। जरा मरण से दूर, काल से अस्पृष्ट सतत् बाल स्वरुप ही योगियो का साध्य आदर्श है। इसलिए (गोरख गोरख गोपालं" व "बूढ़ा बालं" कहे जाते है।) उसका नाम कैसे रखा जा सकता है क्योंकी वह नाम और रुप दोनों उपाधियो से परे है)। +: महायोगी गोरखनाथ कहते है की वैसे तो योगियों का कोई घरबार नही, सारी दुनिया उनका घर है। वे सर्वत्र घुमते है, यह उनकी विरक्ति का सूचक है। किन्तु कुछ को देशाटन की ही आदत पड़ जाती है और वे इसी मे लगे रहते है। इसलिए गोरखनाथ जी अवधूतो को उपदेश करते है की देश देशान्तर मे जाना स्वयं देशान्तर के उद्देश्य से आवश्यक नही है। यदि चित स्थिर है और काम क्रोध का निवारण हो गया है तो सब देशान्तर हो गए। क्योकी निवृति के ही अर्थ देशान्तर किया जाता है, जो चित की स्थिरता से निष्पन्न हो जाता है। +: महायोगी गोरखनाथ जी कहते है की जो ज्ञान से पूर्ण है, जो भरपूर है, वे स्थिर व गंभीर होते है। वे अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते नही फिरते। जो अधकचरे है वे छलछलाते रहते है, चंचलतावश जगह जगह ज्ञान छाँटते रहते है (लेकीन इससे किसी का लाभ नही होता)। सिद्ध ऐसे लोगो से नही बोलते! हे अवधूत जब सिद्ध से सिद्ध मिलता है तभी उनमें वार्तालाप संभव है। इस प्रकार की चर्चा से उन्हे लाभ भी होता है। भरा पात्र नही छलकता आधा ही छलकता है। +: महायोगी गोरख कहते है की सब व्यवहार 'युक्ति' से होना चाहिए, सोच समझकर करना चाहिए। अचानक फट से नही बोलना चाहिए। जोर से पाँव पटकते हुए नही चलना चाहिए। धीरे धीरे पाँव रखना चाहिए। गर्व (अभिमान) नही करन��� चाहिए। सहज स्वभाविक स्थिति मे रहना चाहिए, यह गोरखनाथ का उपदेश (कथन) है। +: महायोगी गोरख कहते है की आकाश मंडल (शून्य अथवा ब्रहारंध) मे एक औंधे मुँह का कुआ है जिसमे अमृत का वास है। जिसने अच्छे गुरु की शरण ली है वही उसमे से भर भर कर अमृत पी सकता है (क्योकी उसे पीने का उपाय गुरु ही बता सकता है)। जिसने किसी सच्चे सदगुरु की शरण नही ली वह इस अमृत का पान नही कर सकता अर्थात वह प्यासा ही रह जाता है। +: महायोगी गोरख कहते है की मार्ग के बिना चलना,अग्नि के बिना जलना, वायु से प्यास बुझाना, यह केवल अनुभव से जानने योग्य है। यह अपना अनुभव महायोगी गुरु गोरखनाथ ने कहा है हे पंडितो इसको समझो (यहाँ जति गोरख कह रहे है कि यह उन तथाकथित पडिंतो को समझना चाहिए जो केवल पढ़ी पढ़ाई या रटि रटाई का बखान करते रहते है जबकी अनुभव मे वह ज्ञान है ही नही। अनुभव ही सार है) +: महायोगी गोरख कहते है की जो अजपा जाप करता है एवं मन को शून्य (ब्रह्मरंध) मे लीन किए रहता है। ऐसा करते हुए जो पाँचो इन्द्रियो को अपने वश मे रखता है। इस प्रकार से जो योगी ब्रहानुभुति रुप अग्नि मे अपने भौतिक अस्तित्व(काया) की आहुति कर डालता है। महादेव भी उसके चरणो की वंदना करते है। +: महायोगी गोरख कहते है की जो धन यौवन की आशा नही करता, स्त्री मे मन नही लगाता। जिसके शरीर मे नाद और बिंदु जीर्ण होते रहते है, पार्वती भी उसकी सेवा करती है । +: अलख पुरुष गोरख कहते है की जो रात दिन बहिर्मुख मन को उन्मनावस्था मे लीन किए रहता है, गम्य जगत की बाते छोड़ कर अगम्य की बाते करता है। सब आशाओ अपेक्षाओ को त्याग देता है, कोई आशा या इच्छा शेष नही रखता, वह ब्रह्म से भी बढ़कर है। ब्रह्म उसका दासत्व स्वीकार करता है। +: जति गोरख कहते है की विभिन्न मत वाले तथाकथित पण्डित अपने मत का मडंन और दूसरो के मत का खंडन करने मे लगे रहते है। किन्तु योगी को इस प्रकार के शास्त्रार्थ मे नही पड़ना चाहिए। जैसे सभी नदियो का जल समुद्र मे ही समाता है उसी प्रकार शिष्य का विश्वास गुरु वचनो मे ही होना चाहिए भारत की नदियो की संख्या अठसठ मानी जाती है और सभी तीर्थ नदियो पर है) । उन्ही वचनो का मनन चिन्तन द्वारा पाचन करके आत्मीकरण उपरान्त उसमे दतचित रहना चाहिए। +: महायोगी गोरख कहते है की जिसने गुरु वचनो को माना उसकी दुविधा नष्ट हो गई। इसी निश्चय ने राजा भर्तृहरी को बनाया, उन्हे सिद्धि दि और राजा गोपीच���द को ब्रह्म परिचय (साक्षात्कार) कराया। इसी निश्चय ने नरपतियो (नरवै) को निर्द्वन्द्व बना दिया। जिससे आत्मसाक्षात्कार के द्वारा वे पूर्ण परमानन्द प्राप्त करने वाले योगी हो गए। +: महायोगी गोरख कहते है की विज्ञान स्वरुप अलक्ष्य परब्रह्म ने दो दिपको(व्यक्त और अव्यक्त स्वरुप, सविक्लप और निर्विकल्प समाधि) की रचना की। उन दोनो दिपको मे उसी परम का नूर है। उसी एक ज्योति मे तीनो लोक व्याप्त है। उस ज्योति पर विचार करने से तिनो लोक सूझने लगते है। त्रिलोक दर्शिता आती है। हंस स्वरुप आत्मा ज्ञान रुपी मोतियो को चुगने लगता है। वह माणिक्य रुप कैवल्यानुभूति को प्राप्त कर लेता है। +: जति गोरख कहते है हसँना, खेलना और ध्यान धरना चाहिये। रात दिन ब्रह्म ज्ञान का कथन करना चाहिये। इस प्रकार (संयम पूर्वक) हसते, खेलते हुए जो अपने मन को भंग नही करते, वे निश्चल होकर ब्रह्म के साथ रमण करते है। +: जति गोरख कहते है की हसना चाहिये, खेलना चाहिए, मस्त रहना चाहिये किन्तु कभी काम क्रोध का साथ नही करना चाहिये। हंसना, खेलना और गीत भी गाना चाहीये किन्तु अपने चित को दृढ़ रखना चाहिये। +: जति गोरख कहते है कि अक्षय (आछै) परब्रहा यहाँ सहस्त्रार या ब्रहारंध (शून्य) मे ही है। यही वह गुप्त (अलोप) है। तिनो लोको की रचना यही से हुई है (उस परम सता का ही व्यक्त स्वरुप यह ब्रहमांड है)। ब्रहारंध रुपी केन्द्र से ही उसका सर्वत्र पसारा है। ऐसा जो अक्षय परब्रह्म सदा हमारे साथ रहता है, उसी को पाने के लिए अनन्त सिद्ध योग मार्ग मे प्रवेश कर योगेश्वर पद को पा जाते है। +: मन शिव है यही मन शक्ति है यही मन पञ्च तत्वों से निर्मित जीव है । माया के संयोग से ही ब्रहम् मन के रूप में अभिव्यक्त होता है और मन से पंचभूतात्मक शरीर की सृष्टि होती है इस लिए मन का बड़ा महत्त्व है । मन को लेकर उन्मनावस्था में लीन करने से साधक सर्वज्ञ हो जाता है तीनो लोगो की बाते कह सकता है। +: गोरखनाथजी कहते हैं आदिनाथजी मेरे नाती हैं और मच्छिंद्रनाथ मेरे पुत्र हैं। नीज याने अपने पुत्र और नाती को देखकर अवधूत गोरखनाथजी बडे़ प्रसन्न हैं । यह एक उलट बांसी है यह एक प्यारा मजाक है। जबसे गोरखनाथजी ने स्वयं को, अपनेको जाना है, तब से वे कहते हैं मैंने यह जाना कि सब मेरे पिछे हुआ। यहाँ मैं शब्द परमात्मा वाक है। सब परमात्मा के पिछे ही हुए हैं। वही प्रथम है और वही अंतिम है । फिर कौन गुरू कौन चेला कौन भक्त कौन भगवान इस अभेद में ही आनंद वर्षा है, अमृत का अनुभव है । लेकिन इसके पहले मिटना पडता है। अपने अहंकार को मिटाना पडेगा। मरो हे जोगी मरण है मिठा तिस मरणी मराै जिसमरणी गोरख मरी दिठा । +: आगे गोरखनाथजी कहते हैं हे अवधूत, यहाँ मच्छिंद्रनाथ हमारे चेले जानें और ईश्वर हमारे नाती हैं, याने चेले के भी चेले हैं। हमें पता चला है कि हम ही परमात्मा हैं। फिर हमें गुरू बनाने की क्या आवश्यकता किंतु हमनें इस डरसे की अज्ञानी लोग बिना गुरूके ही योगी होनेका दम न भरें,घोषणा न करें। क्योंकि ऐसी घोषणाओं से पूरी पृथ्वी निगुरी याने बगैर गुरूजी के होकर रहेगी और अग्यान रूपी प्रलय होगा। इसलिए हमने याने हमारे परमात्म स्वरूपनें, गोरखनाथजीने उल्टा काम शुरू किया, अपनेही पिता को चेला और ईश्वर को नाती कहा है +: अर्थात जिस अवस्था में बाहर के संसार का आलंबन छूटकर, स्व स्वरूप का अर्थमात्र एकाकार का प्रत्यय या आभास रह जाता है, उस शून्य स्वरूप अवस्था को समाधि कहते हैं। +: मच्छिन्द्रनाथजी कहते हैं हे गोरख सहज याने जन्म के साथ प्राप्त प्राणों पर हमारा ध्यान केन्द्रित कर जब मन उसके साथ एकरूप हो जाता है, याने मन इन्द्रिय विषयोंसे मुक्त हो जाता है, मन शून्य हो जाता है स्वस्वरूप में स्थिर हो जाता है ऐसी सहज समाधि अवस्था में निश्चल याने शरीर के अंगों के बगैर हलचल के, स्थिर बैठो । जब द्रष्टा याने देखनेवाला और दृश्य याने दिखाई देनेवाला दोनों नहीं बचते, द्वैत नहीं बचता तब मन की उस स्वस्वरुपमें स्थिर शून्य अवस्था को ही ही समाधि कहते हैं । +: हमारे अन्तर में स्वभाव में स्थिरने पर फिर कौन बचता है और किसका ध्यान होगा अर्थात ध्याता ध्यान और ध्येय एकरूप हो जाते हैं । अर्थात साधक को निर्विचार, उन्मन, नमन अवस्था प्राप्त होती है । यही मन की शून्य अवस्था है । तब फिर वह साधक शिष्य स्वयं गुरू स्वरुप याने गुरूजी के समान निज तत्व का प्रत्यक्षदर्शी होता है । तब फिर वह खरे अर्थ में भ याने भूमि, ग याने गगन/ आकाश, व याने वायु, अ अर्थात् अग्नि और न अर्थात् नीर या जल इन पञ्च महाभूत युक्त सृष्टि से परे चैतन्य स्वरुप निज तत्व से परिचित उसमें स्थिर भगवान याने यश, श्री, औदार्य, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य से युक्त बनता है । + + +* मनुष्य और जंगम पशुओं की हिंसा मत करो। यजुर्वेद +जब कोई मनुष्य अहि��सा की कसौटी पर पूरा उतर आता है तो दूसरे लोग स्वयं ही उससे शत्रुता भूल जाते हैं। योगसूत्र +* जीवमात्र की अहिंसा स्वर्ग को देने वाली है। आदि शंकराचार्य +इस संसार में वैर से वैर शांत नहीं होते। अवैर अर्थात् मैत्री से ही वैर शांत होते हैं. यह नियम सदा से चला आता है। महात्मा बुद्ध +* दूसरों को कष्ट न देना ही परम धर्म है। दूसरों की रक्षा करने की प्रतिज्ञा की आवश्यकता नहीं है। रामदास (रामदासु चरित्र) +हिंसा का अहिंसा से प्रतिरोध करने के लिए महाप्राण चाहिए। हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ +जीवन छोटे जीवों की रक्षा से सफल होता है, उनके नाश से नहीं। जेम्स एलेन +* उस जीवन को हमें नष्ट करने का अधिकार नहीं, जिसे बनाने की शक्ति हम में न हो। शेक्सपियर +* अहिंसा सत्य का प्राण है, स्वर्ग का द्वार है, जगत की माता है, आनन्द का अजस्त्र स्रोत है, उत्तम गति है, शाश्वत भी है और है मानव-मात्र के लिए परम धर्म। तनसुखराम गुप्त +* अहिंसा विश्वास की चीज है। महात्मा गांधी +अहिंसा के केंद्र में प्यार का सिद्धांत होता है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर +मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सच्चाई मेरा भगवान है। अहिंसा उन्हें महसूस करने का साधन है। महात्मा गांधी +* सिद्धांत यह है कि जिस कार्य में हिंसा न हो, वही धर्म है। महर्षियों ने प्राणियों को हिंसा न होने देने के लिए ही धर्म का प्रवचन किया है। वेदव्यास (महाभारत, कर्ण पर्व) +* अहिंसात्मक युद्ध में अगर थोड़े भी मर मिटने वाले लड़ाके होंगे तो वे करोड़ों की लाज रखेंगे और उनमें प्राण फूँकेंगे। अगर यह मेरा स्वप्न है, तो भी मेरे लिए मधुर है। महात्मा गांधी (यंग इंडिया) +* अहिंसा सत्य का प्राण है। उसके बिना मनुष्य पशु है। महात्मा गांधी (हिन्दी नवजीवन) +* मेरे अहिंसा का सिद्धांत एक अत्यधिक सक्रिय शक्ति है। इसमें कायरता तो दूर, दुर्बलता तक के लिए स्थान नहीं है। एक हिंसक व्यक्ति के लिए यह आशा की जा सकती है कि वह किसी दिन अहिंसक बन सकता है, किन्तु कायर व्यक्ति के लिए ऐसी आशा कभी नहीं की जा सकती है। इसी लिए मैंने इन पृष्ठों में अनेक बार कहा है कि यदि हमें अपनी, अपनी स्त्रियों की, और अपने पूजा स्थानों की रक्षा सहन-षीलता की शक्ति द्वारा अर्थात् अहिंसा द्वारा करना नहीं आता, तो अगर हम मर्द हैं तो, हम इन सब की रक्षा लड़ाई द्वारा कर पाने में समर्थ होना चाहिए। महात्मा गांधी (यंग इंडिया) +* ��हिंसा श्रद्धा और अनुभव की वस्तु है, एक सीमा से आगे तर्क की चीज वह नहीं है। महात्मा गांधी (हरिजन) +* सत्यमय बनने का एकमात्र मार्ग अहिंसा ही है। महात्मा गांधी (आत्मकथा) +* अहिंसा केवल बुद्धि का विषय नहीं है, यह श्रद्धा और भक्ति का विषय है। यदि आपका विश्वास अपनी आत्मा पर नहीं, ईश्वर और प्रार्थना पर नहीं, तो अहिंसा आपके काम आने वाली चीज नहीं है। महात्मा गांधी (गांधी सेवा संघ सम्मेलन) +* अहिंसा श्रेष्ठ मानव-धर्म है, पशु बल से वह अनंत गुना महान और उच्च है। महात्मा गांधी +* जो बात शुद्ध अर्थशास्त्र के विरूद्ध हो, वह अहिंसा नहीं हो सकती। जिसमें परमार्थ है वही अर्थशास्त्र शुद्ध है। अहिंसा का व्यापार घाटे का व्यापार नहीं होता। महात्मा गांधी (संपूर्ण गांधी वाङ्मय) +* अहिंसा और प्रेम एक ही चीज है। महात्मा गांधी (सत्य ही ईश्वर है) +* हिंसा का अहिंसा से प्रतिशोध करने के लिए महा प्राण चाहिए। हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ (अमर आन) +* अहिंसा कायरता के आवरण में पलने वाला कैवल्य नहीं है। वह प्राण-विसर्जन की तैयारी में सतत जागरूक पौरुष है। मुनि नथमल (श्रमण महावीर) +* जीवन छोटे जीवों की रक्षा से सफल होता है, उनके नाश से नहीं। जेम्स एलेम (आनन्द की पगडंडियां) + + +:कायर को ही दहलाती है, +:विघ्नों को गले लगाते हैं, +:काँटों में राह बनाते हैं। रामधारी सिंह 'दिनकर, रश्मिरथी में + + +* धन का बहिर्गमन समस्त बुराइयों की जड़ है और भारतीय निर्धनता का मुख्य कारण । दादाभाई नौरोजी, १९०५ में +* भारतीय राजाओं द्वारा कर लेना तो सूर्य द्वारा भूमि से पानी लेने के समान था जो पुनः वर्षा के रूप में भूमि पर उर्वरता देने के लिये वापस आता था, पर अँग्रेजों द्वारा लिया गया कर फिर भारत में वर्षा न करके इंग्लैण्ड में ही वर्षा करता था । रमेश चन्द्र दत्त +* भारत में तीन करोड़ से लेकर पांच करोड़ तक ऐसे परिवार हैं जिनकी आय साढ़े तीन पैन्स प्रतिदिन से अधिक नहीं है। मैकडॉनल्ड +* सरकार का लगान किसानों एवं उनके परिवारों के लिये पूरा अन्न भी नहीं छोड़ता । ब्रिटिश साम्राज्य में भारत के किसान के समान हृदय द्रवित करने वाला और कोई मनुष्य नहीं है । विलियम हण्टर-(1883 ई. में वायसरॉय की कौंसिल में) +* 1924-25 ई. के समय संसार में सबसे कम प्रति व्यक्ति आय, भारतीय की आय से पांच गुना अधिक थी। कोलीन क्लार्क, राष्ट्रीय आय के विशेषज्ञ +* मैं यह कहने में नहीं ह���चकूंगा कि आधे किसान साल भर में कभी यह भी नहीं जानते कि पूरा भोजन किस चिड़िया का नाम है। यह मान लेने में कोई आपत्ति नहीं है कि भारत में 10 करोड़ मनुष्यों की प्रति व्यक्ति आय 5 डॉलर वार्षिक से अधिक नहीं है। असम के चीफ कमिश्नर चार्ल्स इलियन +* 1783 की शुरुआत में एडमण्ड ब्रुक ने भविष्यवाणी की थी कि भारत के संसाधनों को इंग्लैण्ड भेजने से तथा उसके बराबर संसधन भारत में वापस न आने देने की नीति वास्तव में भारत को नष्ट कर देगी। प्लासी से वाटरलू के सत्तावन वर्षों में भारत से इंग्लैण्ड को भेजी गई सम्पत्ति का हिसाब बु्रक एडमस् ने ढाई से पांच बिलियन डॉलर लगाया था। इससे काफी पहले मैकाले ने सुझाया था कि भारत से चुरा कर इंग्लैण्ड भेजी गई सम्पत्ति मशीनी आविष्कारों के विकास हेतु मुख्य पूंजी के रुप में उपयोग हुई और इसी के चलते औद्योगिक क्रांति सम्भव हो सकी। विल डुरन्ट]] +अब हम समझ सकते हैं कि भारत में अकाल क्यों हैं? सीधे शब्दों में कहें तो इसका कारण पर्याप्त खाद्य पदार्थों का न होना नहीं है, बल्कि इसका कारण यह है कि लोग खाद्य पदार्थ खरीद पाने असमर्थ हैं। ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत आने के बाद भारत में अकाल अधिक बार आने लगे हैं और उनकी गंभीरता भी बढ़ी है। 1770 से 1900 तक दो लाख पचास हजार हिन्दू भुखमरी के शिकर हुए। इनमें से एक लाख पचास हजार लोग तो केवल 1877, 1889, 1897 और 1900 के अकालों में मारे गये। विल डुरन्ट, THE CASE FOR INDIA में + + +* लोगों का नेतृत्व करने के लिए, उनके पीछे चलें। +* जो ज्यादा बोलता है वह जल्दी थक जाता है। +* बीज में चीजों को देखना प्रतिभाशाली होना है। +* एक महान देश पर ऐसे राज करो, जैसे छोटी मछली पकाई जाती है। इसे ज्यादा न पकने दें। +* यदि आप लेना चाहते हैं, तो आपको पहले देना होगा, यही ज्ञान की शुरुआत है। +* छोटे-छोटे कार्यों से ही महान चीजें बनती हैं। +* जिनके पास ज्ञान है वे भविष्यवाणी नहीं करते। भविष्यवाणी करने वालों के पास ज्ञान नहीं होता। +* देखभाल करने से साहस आता है। +* दूसरों को नियंत्रित करना शक्ति है। आत्मसंयम वास्तविक शक्ति है। +* जो मन स्थिर है, उसके लिए सारा ब्रह्मांड समर्पित हो जाता है। +* मानव मृत्यु पर इंसान विजय और खुशी का जश्न कैसे मना सकते हैं? +* जो अपनी बात पर बहुत जोर देता है, उसे लोगों का समर्थन कम ही मिलता है। +* जो संतुष्ट है वह अमीर है। +* स्वास्थ्य सबसे बड़ी संपत्ति है। संतोष सबसे ���ड़ा खजाना है। आत्मविश्वास सबसे बड़ा मित्र है। +* जीवन और मृत्यु एक धागा है, एक ही रेखा अलग-अलग और से दिखाई देती है। +* दूसरों को जानना ज्ञान है, स्वयं को जानना आत्मज्ञान है। +* शब्दों में दयालुता आत्मविश्वास पैदा करती है। सोच में दया पेचीदगी लाती है। देने की दयालुता से प्रेम का निर्माण होता है। +* यदि आप दिशा नहीं बदलते हैं, तो आप शायद वहीं पहुंच जाएंगे जिस दिशा में आप आगे बढ़ रहे हैं। +* हिंसा, यहां तक कि अच्छे इरादों से की गई हिंसा भी खुद पर वार करती है। +* पानी से नरम या अधिक लचीला कुछ भी नहीं है, फिर भी इसे कोई रोक नहीं सकता। +* आत्मा का संगीत ब्रह्मांड द्वारा सुना जा सकता है। +* एक अच्छे यात्री की कोई निश्चित योजना नहीं होती है और वह आने का प्रयोजन नहीं रखता है। +* हजारों मील की यात्रा एक कदम से शुरू होती है। +* जो अच्छे हैं उनके साथ अच्छा व्यवहार करें और जो अच्छे नहीं हैं उनके साथ भी अच्छा व्यवहार करें। इस प्रकार पुण्य की प्राप्ति होती है। जो ईमानदार हैं उनके साथ ईमानदार रहें और जो नहीं हैं उनके साथ भी ईमानदार रहें। इस तरह ईमानदारी हासिल की जाती है। +* कठिन काम तब करें जब वे आसान हों और जब वे छोटे हों तो महान कार्य करें। हजार मील की यात्रा एक कदम से शुरू होती है। +* बहते पानी में कोई अपना प्रतिबिंब नहीं देख सकता। आंतरिक शांति को महसूस करने वाले ही इसे दूसरों को दे सकते हैं। +* मेरे पास सिखाने के लिए केवल तीन चीजें हैं: सादगी, धैर्य, दया। ये तीनों आपका सबसे बड़ा खजाना हैं। +* अपनी कटोरी को ऊपर तक भरते रहें और वह छलक जाएगी। अपने चाकू को तेज करते रहें और यह कुंद हो जाएगा। +* एक बुरा नेता वह होता है जिससे लोग नफरत करते हैं। एक अच्छा नेता वह होता है जिसका लोग सम्मान करते हैं। एक महान नेता तब होता है जब लोग कहते हैं, ‘यह हमने खुद किया’। +* जब लोग सफल होने वाले होते हैं तो अक्सर लोग चीजों को संभालने में असफल हो जाते हैं। यदि कोई अंत में सभी सतर्क है जैसा कि वह शुरुआत में था तो कोई भी असफल नहीं होगा। +* जब आप इस बात से संतुष्ट होते हैं कि आप कौन हैं और आप किसी से तुलना या प्रतिस्पर्धा नहीं करते हैं, तो हर कोई आपका सम्मान करता है। +* किसी के द्वारा गहराई से प्यार किया जाना ताकत देता है, और किसी को गहराई से प्यार करने से साहस मिलता है। +* चलती हुई चींटी सोते हुए बैल से ज्यादा काम करती है। +* जीवन प्राकृतिक और स्वतःस्फूर्त परिवर्तनों की एक श्रृंखला है। उन्हें रोका नहीं जाना चाहिए। सत्य को सत्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए। चीजों को स्वाभाविक रूप से होने दें जैसे उन्हें होना चाहिए। +* मनुष्य के शत्रु राक्षस नहीं हैं, बल्कि उसके जैसे मनुष्य होते हैं। +* सभी कठिन चीजों के मूल में आसान चीजें होती हैं और बड़ी चीजों के मूल में छोटी चीजें होती हैं। +* आप कौन हैं और आप क्या चाहते हैं, इस सवाल का जवाब आपके अस्तित्व के केंद्र में मौजूद होता है। + + +: जिसके दोष (वात, पित्त और कफ) सम हों, अग्नि (जठराग्नि) सम हो, रस आदि सात धातुएँ सम हों, मल-विसर्जन की क्रिया का सम हो, जिसके आत्मा, इन्द्रिय और मन प्रसन्न हों वह स्वस्थ कहलाता है। (यहाँ सम का अर्थ 'सामान्य normal) से है; न बहुत अधिक न बहुत कम।) + + +: सुख का मूल धर्म है (अर्थात धर्म का आचरण करने से ही सुख मुल सकता है)। धर्म का मूल अर्थ है। अर्थ का मूल राज्य है। राज्य का मूल इन्द्रियों पर विजय पाना है। +: सत्य बोलने वाला, मर्यादित खर्चा करने वाला, हितकारक पदार्थ जरूरी मात्रा मे खाने वाला, तथा जिसने इन्द्रियों पर विजय पाया है, ये सभी सुख की नींद सोते हैं। +: रसरक्तादि धातुओं का वैषम्य (abnormal) होना ही विकार (रोग) है और उनका साम्य (सामान्य होना) प्रकृति (स्वास्थ्य) है। (सुख-दुःख कुछ और नहीं हैं बल्कि) निरोग होना ही सुख है तथा रोगग्रस्त होना ही दु:ख कहलाता है। +: छः प्रकार के सुख प्राप्त होता है धन की आवाक से नित्य निरोग रहने से प्रेम करने वाली ओर मधुर बोलने वाली भार्या (पत्नी आज्ञावान पुत्र धन प्राप्त कराने वाली विद्या यह इस जीवलोक के छह सुुुख हैं रााजा । +: जब मनुष्य किसीका अमंगल हो ऐसा भाव नही रखता अर्थात् सभी का कल्याण हो ऐसी भावना रखने वाला सभीको समान दृष्टि से देखने वाले पुरुष को सभी दिशाओं से सुख की प्राप्ति होती है । वह सर्वत्र सुख की अनुभूति करता है । +संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के शुभेच्छु हुआ करते हैं। विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं। मृच्छकटिकम् +* चाहे राजा हो या किसान वह सबसे ज्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है। गेटे +* अरहर की दाल औ जड़हन का भात + + +: जो मनुष्य जो कुछ पाना चाहता है और उसके लिये प्रयास भी करता है, वह उसे अवश्य प्राप्त करता है, नहीं तो वह तबतक थकता ��हीं जबतक कार्य सिद्ध न हो जाय । +: व्यक्ति को स्वयं में अच्छे गुणों की वृद्धि करनी चहिए, केवल दिखावा करने से कोई लाभ नही होता। जिस प्रकार दूध न देने वाली गाय को मात्र उसके गले मे लटकी हुई सुन्दर घंटी बजाने से नही बेची जा सकती। +* प्रयत्न न करना सबसे बड़ी विफलता है। एल्बर्ट हब्बार्ड +* प्रयत्न करना विफल होने का एक हिस्सा है। यदि आप असफल होने से डरते हैं तो आप प्रयत्न करने से डरते हैं। श्रीमती कन्निंघम +* जो सफल नहीं होने से खो जाता है और जो कोशिश नहीं करने से खो जाता है इन दोनों की कोई तुलना नहीं है। फ्रांसिस बैकन +* कोई एक काम लो और इसे आजमाओ। अगर यह असफल रहता है, इसे ईमानदारी से स्वीकार करो और दूसरे की कोशिश करो। लेकिन सबसे बड़ी बात कोशिश करते रहो। फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट +* कोशिश करो, कोशिश करो, और कोशिश करते रहो- यह वह नियम है जिसका किसी भी चीज में विशेषज्ञ बनने के लिए पालन करना चाहिए। डब्ल्यू क्लेमेंट स्टोन +* जब तक आप प्रयत्न नहीं करेंगे, आप कभी नहीं जान पाएंगे कि आप क्या कर सकते हैं। माइकल जॉर्डन +* दुनिया में अधिकांश महत्वपूर्ण चीजें उन लोगों द्वारा पूरी की गई है जिन्होंने कोई उम्मीद ना होते हुए भी कोशिश जारी रखी। डेल कार्नेगी +* अन्त में, केवल वे लोग असफल होते हैं जो कोशिश नहीं करते। डेविड विस्कॉट +* प्रयत्न करना हमेशा पर्याप्त होता है। पेट्रीसिया ब्रिग्स +* कोशिश करने की इच्छा नहीं होना, किसी भी विफलता से बदतर है। निक्की जियोवानी +* यदि आप असफल होते हैं तो आप निराश हो सकते हैं, लेकिन अगर आप कोशिश नहीं करते हैं तो आप बर्बाद हो जाओगे। बेवर्ली सील्स +* हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हार मानने में निहित है। सफल होने का सबसे सटीक तरीका-हमेशा एक बार और कोशिश करना है। थॉमस अल्वा एडीसन +* जीवन के लिए यह आवश्यक नहीं है कि हम सर्वश्रेष्ठ हों, लेकिन यह जरूरी है कि हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें। एच जैक्सन ब्राउन +* हर सिद्धि, कोशिश करने के निर्णय से शुरू होती है। +* आप कभी भी हारने वाले नहीं हैं जब तक आप कोशिश करना नहीं छोड़ते। माइक डिटका +* यदि आप कभी कोशिश करना बंद नहीं करते हैं तो आप कभी हार नहीं मानेंगे। यदि आप कभी हार नहीं मानते हैं तो आप कभी भी कोशिश करना बंद नहीं करेंगे। रिक डब्ल्यू टेरी +* अपना लक्ष्य निर्धारित करें और तब तक प्रयत्न करते रहें जब तक आप उस तक नहीं पहुंच जाते। नेपोलियन हिल +* प्रयत्न करना की हमारा एकमात्र काम है। बाकी हमारा काम नहीं है। टी.एस. एलियट +* यदि आप गलतियाँ नहीं करते हैं, तो आप वास्तव में कोशिश नहीं कर रहे हैं। कोलमैन हॉकिंग + + +: धर्म के ये दस लक्षण होते हैं धृति (धैर्य क्षमा, दम (मन को अधर्म से हटा कर धर्म में लगाना) अस्तेय (चोरी न करना शौच (सफाई इन्द्रियों को वश में रखना, धी (बुद्धि विद्या, सत्य, अक्रोध (क्रोध न करना)। +: जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित है (स्थिर है)। +: विषय और इन्द्रियों के संयोग से उत्पन्न होने वाला सुख आरम्भ में अमृत के समान और अन्त में विष के समान है। वह सुख रजोगुणी (राजस) सुख माना गया है। +: सुख का मूल है, धर्म। धर्म का मूल है, अर्थ। अर्थ का मूल है, राज्य। राज्य का मूल है, इन्द्रियों पर विजय। +: भले ही कोई मनुष्य अन्य सारी इन्द्रियों को क्यों न जीत ले, किन्तु जब तक जीभ को नहीं जीत लिया जाता, तब तक वह इन्द्रियजित नहीं कहलाता। किन्तु यदि कोई मनुष्य जीभ को वश में करने में सक्षम होता है, तो उसे सभी इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण करने वाला माना जाता है। +: जैसे विद्वान् सारथि घोड़ों को नियम में रखता है वैसे मन और आत्मा को खोटे कामों में खींचने वाले विषयों में विचरती हुई इन्द्रियों के निग्रह में प्रयत्न सब प्रकार से करें। +: जीवात्मा इन्द्रियों के वश होकर निश्चित बड़े-बड़े दोषों को प्राप्त होता है। (इसके विपरीत) जब इन्द्रियों को अपने वश में कर लेता है तभी सिद्धि को प्राप्त होता है। + + +* जीवन की सबसे बड़ी गलती यह कि आप गलती करने से लगातार डरते रहें। एल्बर्ट हबर्ड +तैराकी सीखते हुए आपने पहली बार क्या किया? गलतियां कीं, है न? और क्या हुआ? आपने और भी गलतियां कीं, और जब आप डूबे बिना सारी गलतियां कर चुके, और उनमें से कई गलतियों को कई बार कर किया। तब आपने क्या पाया? यही कि आपको तैरना आ गया! है न बस, ऐसा ही होता है जीवन के साथ तैराकी जैसा! गलतियां करने से, असफल होने से डरिए नहीं, क्योंकि इसके अलावा दूसरा कोई तरीका नहीं जीना सीखने का अल्फ्रेड एड्लर +* विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ गलत हैं यह पूरी तरह ठीक है। ये गलत परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं। अज्ञात +* गलती हो जाने का अधिकार स्वतंत्रता है न कि गलत होने का। जॉन जी +* गलती करने में कोई गलती नहीं है। गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है। एल्ब��्ट हब्बार्ड +* सफलता कभी गलती ना करने में निहित नहीं होती बल्कि एक ही गलती दोबारा ना करने में निहित होती है। +* जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है। महात्मा गांधी +* एक स्मार्ट आदमी जब गलती करता है तो यह सीखता है कि कभी उस गलती को फिर से न दोहराये। लेकिन एक बुद्धिमान व्यक्ति एक स्मार्ट आदमी के साथ होता है तब वह ये सीखता है कि गलती से पूरी तरह बचा कैसे जाये। रॉय एच. विलियम +* गलती करने का सीधा सा मतलब है कि आप तेजी से सीख रहे हैं। +* अपनी गलती स्वीकार कर लेने में लज्जा की कोई बात नहीं है। इससे दूसरे शब्दों में यही प्रमाणित होता है कि कल की अपेक्षा आज आप अधिक समझदार हैं। — अलेक्जेन्डर पोप +* गलतियां करता हुआ जीना उस जीवन से अधिक सम्मानजनक और उपयोगी है जो बिना कुछ किए व्यतीत हो जाए। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* मनुष्य को इतना बड़ा होना चाहिए कि वह अपनी गलतियों को स्वीकार कर सके, इतना बुद्धिमान होना चाहिए कि उनसे लाभ उठा पाए और इतना मजबूत होना चाहिए कि उन्हें सुधार सके। जॉन सी. मैक्सवेल +* यदि आप गलतियां करने को तैयार नहीं होंगे तो आप कभी भी, कुछ भी मौलिक नहीं कर पाएंगे। केन रिब्सन +* गलतियां हो जाने में कुछ बुरा नहीं, बशर्ते कि आप उसे याद रखें‌। कनफ्यूसियस +* असफल वह व्यक्ति है जिसने गलती की लेकिन वह उस अनुभव का लाभ नहीं उठा पाया। ऐल्बर्ट हब्बार्ड + + +इस्लामवाद Islamism) या राजनैतिक इस्लाम (अरबी: إسلام سياسي islām siyāsī) से आशय इस्लाम के पुनर्जीवित करने के आन्दोलन से है। इसके अन्तर्गत जीवन के सभी पक्षों में इस्लाम के मूल्यों और सिद्धान्तों को लागू करने का प्रयत्न किया जाता है। +* पहले राष्ट्रवाद और उसके बाद इस्लामवाद ने मिस्र की यूनानी सभ्यता को नष्ट कर दिया जो तीन हजार वर्षों से बची हुई थी। Ian McDonald, The Dervish House, Ch. 5, §1 (p. 158 2010) +* सभी सर्वाधिकारी विचारधाराओं का सार यही है कि वे जीवन के हर पहलू को बलपूर्वक नियंत्रित करते हैं। इस सन्दर्भ में कुरान, हदीथ और फतवा एक भी इसी प्रकार का प्रयास है। ये भी जीवन के हरेक पहलू को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं। यह विचारधारा केवल इतना ही नहीं है कि इस्लाम को मानने वाले उसे न मानने वालों से अलग हैं तथा श्रेष्ठतर है। (बल्कि) यह विचारधारा इसे मानने वालों और न मानने वालों के बीच शाश्वत शत्रुता पर आधारित है। धर्मोन्माद, आतंकवाद और आक��रमण इस विचारधारा के अपरिहार्य परिणाम हैं। इसी कारण उन समाजों में मुसलमानों का शान्ति से रहना लगभग असम्भव है जहाँ मुसलमानों के अलावा अन्य समुदाय भी रहते हों। वास्तव में इसी विचारधारा के कारण किसी इस्लामी राज्य का उस संसार में शान्तिपूर्वक रहना असम्भव है जहाँ गैर-इस्लामी राज्य भी हों। अरुण शौरी द वर्ड ऑफ फतवाज (या The Shariah In Action New Delhi, 1995, pp. 629, 654-655. quoted in Bostom, A. G 2015 Sharia versus freedom: The legacy of Islamic totalitarianism. + + +अरुण शौरी भारत के एक अर्थशास्त्री, सम्पादक एवं विचारक हैं। वे दैनिक ‘इंडियन एक्‍सप्रेस’ के पूर्व प्रधान सम्‍पादक, पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री तथा अपने निर्भीक विचारों के लिए जाते हैं। +* सभी सर्वाधिकारी विचारधाराओं का सार यही है कि वे जीवन के हर पहलू को बलपूर्वक नियंत्रित करते हैं। इस सन्दर्भ में कुरान, हदीथ और फतवा भी इसी प्रकार का एक प्रयास है। ये भी जीवन के हरेक पहलू को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं। यह विचारधारा केवल इतना ही नहीं है कि इस्लाम को मानने वाले, उसे न मानने वालों से अलग हैं तथा श्रेष्ठतर हैं। (बल्कि) यह विचारधारा इसे मानने वालों और न मानने वालों के बीच शाश्वत शत्रुता पर आधारित है। धर्मोन्माद, आतंकवाद और आक्रमण इस विचारधारा के अपरिहार्य परिणाम हैं। इसी कारण उन समाजों में मुसलमानों का शान्ति से रहना लगभग असम्भव है जहाँ मुसलमानों के अलावा अन्य समुदाय भी रहते हों। वास्तव में इसी विचारधारा के कारण किसी इस्लामी राज्य का उस संसार में शान्तिपूर्वक रहना असम्भव है जहाँ गैर-इस्लामी राज्य भी हों। अरुण शौरी, द वर्ड ऑफ फतवाज (या The Shariah In Action New Delhi, 1995, pp. 629, 654-655. quoted in Bostom, A. G 2015 Sharia versus freedom: The legacy of Islamic totalitarianism. +* मध्य काल का प्रत्येक मुसलमान इतिहासकार ने उन शासकों द्वारा विनष्ट मन्दिरों और उनके स्थान पर बनायी गयी मसजिदों की सूची न दी है जिन शासकों के बारे में उन्होंने लिखा है। Indian controversies Essays on religion in politics (1993 पृष्ठ 429) +* प्रत्येक वाक्य झूठा है। और आपने कभी बीबीसी को नवाज शरीफ को 'फंडामेन्टलिस्ट उन्मादी' आदि कहते हुए सुना है एक सेक्युलर एजेन्डा, १९९३ में +अरुण शौरी के बारे में विचार +* भारत को १९९८ में अरूण शौरी की पुस्तक 'एमिनेन्ट हिस्टोरियन्स' के प्रकाशन तक प्रतीक्षा करना पड़ा। इस पुस्तक ने तीन दशक से अधिक समय तक राष्ट्रीय मानस पर किये गये बहु-स्तरीय हमलों से पर्दा हटाया और एक के बाद दूसरा विस्तृत ��िवरण प्रकाशित किया जिससे लोग अपने ही देश के उन सत्यों को जान सके। एस बालकृष्णन, सेक्युलरिज्म के ७० वर्ष 2018 + + +* जो चीज़ आपके लिये चुनौती बनती है वही आपके संघर्ष को सफलता में बदलती है । +* अगर तैरना सीखना है तो पानी में उतरना होगा। + + +* जैसा राजा का आचरण होता है, ठीक वैसा ही प्रजा भी आचरण करती है। +* स्त्री या पुरुष के लिए क्षमा ही अलंकार है। +* सत्य ही सबका मूल है और सत्य से बढकर कुछ भी नही है। +* माता पिता की सेवा और उनकी आज्ञा पालन जैसा धर्म कोई नही है। +* जन्म देने वाली मां और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढकर होता है। +* अतिसंघर्ष से चंदन में भी आग प्रकट हो जाती है, उसी प्रकार बहुत अवज्ञा किए जाने पर ज्ञानी के भी हृदय में भी क्रोध उपज जाता है। +* आप साहसी या कायर, गुणवान है या दोष से भरे हुए यह आपका चरित्र से दिख जाता है। +* किसी वादे को तोड़ने से आपके सारे अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं। +* आपकी जन्मभूमि और जननी स्वर्ग से भी बढ़कर है। +* दृढसंकल्प लेकर आप कोई भी काम आसान कर सकते हो। +* किसी व्यक्ति से ज्यादा मोह रखना भी दुःख का कारण बन सकता है। +* विवाह योग्य स्त्रियां प्रत्येक देश में मिल सकती हैं। मित्र-परिजन भी प्रत्येक देश में प्राप्त हो सकते हैं। किन्तु मुझे कोई ऐसा देश दिखाई नहीं पड़ता, जहां सहोदर भाई मिल सकते हों। +* संसार में ऐसे लोग थोड़े ही होते हैं,जो कठोर किंतु हित की बात कहने वाले होते हैं। +* संतोष नन्दनवन है तथा शांति कामधेनु है। इस पर विचार करो और शांति के लिए श्रम करो। +* परमात्मा ने जो कुछ तुमको दिया है, तुमको चाहिए कि उसके लिए परमात्मा के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करो। इस विषय में तुम्हे कृतघ्न नहीं होना चाहिए। +* प्रियजनों सेमोहवश अत्यधिक प्रेम से यश भी चला जा सकता है। +* किसी भी मनुष्य की इच्छाशक्ति अगर उसके साथ हो तो वह कोई भी काम बड़े आसानी से कर सकता है। इच्छाशक्ति और दृढ़संकल्प मनुष्य को रंक से राजा बना देती है। +* मनुष्य का आचरण ही बतलाता है कि वह कुलीन है या अकुलीन, वीर है या कायर अथवा पवित्र है या अपवित्र। +* महत्वाकांक्षा से युक्त मन सदैव रिक्त रहता है। इसीलिए वह ठीक उसी प्रकार कहीं भी शांति प्राप्त नहीं करता, जैसे अपने समूह से बिछुड़ कर हिरण अशांत होता है। +* माता पिता की सेवा करना सदैव कल्याणकारी होता है। +* बिना अच्छे चरित्र के आप महान नहीं बन सकते। +* जो व्यक्ति अपने पक्ष को छोड़कर दुसरो के पक्ष में मिल जाता है फिर उस पक्ष के नष्ट होने पर वह खुद ही नष्ट हो जाता है। +* राजा को आदर्श व सच्चरित होना चाहिए क्योंकि वह प्रजापालक कहलाता है। +* किसी के साथ अत्यंत प्रेम न करो और प्रेम का सवर्था अभाव भी न होने दो, क्योंकि ये दोनों ही महान दोष है, अत: मध्यम स्थिति पर ही दृष्टि रखो। +* जो व्यक्ति वीर और बलवान होते है, वे जलहीन बादलों के समान खाली गर्जना नही करते है। +* सहयोग करने वाले और सबसे मिलकर रहने वाले की सदैव जीत होती है। +* मन इच्छित वस्तु को प्राप्त करने के बाद भी ठीक वैसे ही कभी संतुष्ट नहीं होता, जैसे छिद्रयुक्त पात्र को कितना भी जल डाल कर भरा नहीं जा सकता। +* अच्छे स्वाभाव वाले लोग अपने घर के सोने गहनों और मित्र में कोई फर्क नही समझते हैं। +* संघर्ष से आप महान बन सकते है। आगे बढ़ना है तो संघर्ष जरूरी है। +* प्रियजनों से भी मोहवश अत्यधिक प्रेम करने से यश चला जाता है। +* मित्र बनाना सरल है, मैत्री पालन दुष्कर है। चितों की अस्थिरता के कारण अल्प मतभेद होने पर भी मित्रता टूट जाती है। +* अगर आपके अंदर उत्साह होगा तो आप असम्भव काम को भी संभव बना सकते हैं। +* नारी के लिए वास्तव में उसका पति ही सम्पूर्ण आभूषण है। उससे पृथक रहकर वह कितनी भी सुंदर क्यों न हो सुशोभित नहीं होती। +* संघर्ष से ही आप महान बन सकते है। यदि जीवन में आगे बढना है तो तो संघर्ष करना भी जरूरी है। +* उत्साह, सामर्थ्य और मन में हिम्मत न हारना ये कार्य की सिद्धि कराने वाले गुण कहे गये है। +* असत्य के समान पातक पुंज नहीं है। समस्त सत्य कर्मों का आधार सत्य ही है। +* क्रोध ही व्यक्ति के समस्त सद्गुणों का नाश करता है। इसलिए क्रोध का त्याग करो। +* जो लोग गलत रास्ते पर चलते है, उन्हें कभी भी सच्चा ज्ञान नही प्राप्त होता है। +* सहयोग और समन्वय की सदैव जीत होती है। +वाल्मीकि के बारे में सूक्तियाँ + + +* महान उपलब्धि अर्जित करने वाले, सफलता की खोज से नहीं, बल्कि असफलता के डर से चलते हैं। +* मेरा मानना है कि लोगों को अपने सपनों का पालन करना होगा, मैंने किया। +* आपको विश्वास करना होगा कि आप जो चाहते हैं उसे पाने के लिए आप क्या करते हैं। +* यदि आप वह सब कुछ करते हैं जो हर कोई व्यवसाय में करता है, तो आप हारने वाले हैं। वास्तव में आगे होने का एकमात्र तरीका ‘अलग होना’ है। +* जब आप अपना जीवन विभिन्न तरी���ों से जीते हैं, तो यह आपके आसपास के लोगों को असहज बना देता है। इसलिए इससे डील करें। उन लोगों को इस बारे में पता नहीं होता कि आप क्या करने जा रहे हैं और कितना बड़ा करने जा रहे हैं..। +* मुझे जीतने की लत है। जितना अधिक आप जीतते हैं, उतना ही आप जीतना चाहते हैं। +* जब मैं कुछ करता हूं, तो यह आत्मखोज के बारे में है। मैं अपनी सीमाएँ सीखना और खोजना चाहता हूँ। +* जब आप कुछ नया करते हैं, तो आप सभी को यह बताने के लिए तैयार हो जाते हैं कि आप पागल हैं । +* आप जो चाहते हैं उसे पाने के लिए आपको जो करना है उस पर विश्वास करना होगा। +* आप महसूस करते हैं कि जीवन छोटा और नाजुक है; और जब आप पानी की दीवारों का सामना करते हैं, तो आप समझते हैं कि आपकी खुद की मृत्यु दर बदल सकती है और चीजें कितनी जल्दी बदल सकती हैं। +* जब मैं कुछ करता हूं, तो यह आत्म-खोज के बारे में होता है। मैं सीखना चाहता हूं और अपनी सीमाएं खोजना चाहता हूँ। + + +हेनरी फोर्ड अमेरिका के प्रसिद्ध उद्योगपति तथा फोर्ड नामक आटोमोबाइल कम्पनी के संस्थापक थे। उन्होंने सन 1903 में फोर्ड मोटर कंपनी की स्थापना की। फोर्ड का एकमात्र उद्देश्य हलकी, तेज और सस्ती गाड़ियाँ बनाना था जिसमे उन्होंने सफलता भी पाई। सन 1931 तक इनकी कंपनी ने 2 करोड़ से अधिक गाड़ियाँ बना दी थी। +* आपका पैसा हाथ और पैर की तरह है, आप इसे यूज करो या फिर लूज करो। (उपयोग करो या बर्बाद होने दो) +* अगर आप यह सोचते है की आप कोई काम कर सकते हैं या आप यह सोचते हैं की आप यह काम नहीं कर सकते तो दोनों ही मामलो में आप बिलकुल सही हैं। +* हमारा एक साथ आना एक शुरूआत है, एक साथ रहना हमारी प्रगति है, एक साथ काम करना हमारी सफलता है। +* सबसे मुश्किल काम है सोचना, इसी लिए शायद इसमें बहुत कम लोग लगे रहते हैं। +* दुनिया में बूढ़ा' वह मनुष्य है जो सीखना छोड़ देता है, चाहे वह बीस साल का व्यक्ति हो या अस्सी का। जो कोई मनुष्य सीखता रहता है वह जवान है। इस संसार की सबसे अच्छी चीज है अपने दिमाग को युवा बनाये रखना। +* किसी इन्सान की सबसे बड़ी खोज यह है की वह इंसान क्या उस काम को कर सकता है जिसे वह सोचता था की वह कभी नहीं कर पायेगा। +* जीवन अनुभवों का भण्डार है। यह हमें बड़ा बनाता है। फिर भी इसे महसूस करना बहुत कठिन होता है। +* अपनी मुश्किलों को आप तब देखते है जब आप अपने लक्ष्य से नजरे चुरा लेते है। +* कोई भी कार्य इतना मुश्किल नहीं है, यदि आप उस कार्य को छोटे-छोटे टुकड़ो में बाँट लें। +* मनुष्य को आजादी पैसों से नहीं मिलती बल्कि ज्ञान और अनुभवों से मिलती है। +* हमारी एक गलती भी हमें सफल होने में सहायता कर सकती है। +* कोई भी मार्केट किसी अच्छी प्रोडक्ट से प्रभावित नहीं होती बल्कि एक बुरे प्रोडक्ट से प्रभावित हो जाती है। +* अपने जीवन में हम जितना आगे बढ़ते जाते हैं, हम उतना ही अपनी क्षमताओं को जानने लग जाते हैं। +* यदि कोई साथ में आगे बढ़ रहा हो तो सफलता अपना ख्याल खुद रख लेती है। +* जब आपके जीवन में सब कुछ आपके खिलाफ हो रहा हो तो आप यह याद रखें की हवाई जहाज हवा के विरुद्ध जाता है न की हवा के साथ। +* आप क्या करने वाले हो इससे आप अपनी कोई पहचान नहीं बना सकते। +* असफलता फिर से नयी शुरुआत करने का एक मौका है, लेकिन इस बार बड़ी समझदारी से। +* वेतन, विक्रेता नहीं देता बल्कि ग्राहक वेतन देता है। +* अधिकतर लोग अपनी समस्या को हल नहीं करते बल्कि उस समस्या के आस-पास ही अपना समय और शक्ति बर्बाद कर देते है। +* किसी अपराध को मिटाने के लिए फांसी उतना ही बुरा दंड है जितना गरीबी को मिटाने के लिए दान देना। +* हमें हमेशा उस प्रतियोगी से डर होना चाहिए जो आपको लेकर परेशान नहीं होता बल्कि अपने व्यवसाय को बेहतर बनाने में लगा रहता हो। +* मुझे ऐसा लगता है कि सफल लोग उस समय और लोगों से आगे निकल जाते है जिसे अन्य व्यक्ति व्यर्थ बर्बाद कर देते हैं। +* अपनी पूँजी का सबसे अच्छा उपयोग पैसा बनाना नहीं है बल्कि उस पैसे से अपनी ज़िन्दगी को बेहतर बनाना है। +* आपके पास जो भी चीजें हैं, आप उसे यूज करें अन्यथा आप उन्हें लूज करें(गे)। +* किसी और चीज से पहले, तैयार हो जाना ही सफलता का राज है। +* मैं दुनिया के ऐसे लोगो को खोज रहा हूँ जो यह जानना चाहते हों की इस दुनिया में क्या नहीं किया जा सकता। +* इस दुनिया में अगले साल क्या होगा आप यह अपने स्कूल में नहीं सीख सकते। +* किसी भी इंसान की कोई बड़ी समस्या नहीं होतीं, बल्कि उसकी बहुत सी छोटी-छोटी समस्याएं होती है। +* इस दुनिया में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जो उससे ज्यादा न कर सके जितना वह सोचता है की वह कर सकता है। + + +: स्वामी राजा मन्त्रीवृन्द, प्रजा दुर्ग किला राजकोश दण्ड एवं राज्य के मित्रगण, ये सभी राज्य के सात अंग होते हैं। इसलिए राज्य को सप्तांग (सात अंगों वाला) कहा गया है। +: ऐसा राज्य पा लेने पर राजा दुर्वृत्ति यान�� दुराचरण में लिप्त जनों पर दण्ड गिराए (उन्हें दंडित करे)। वस्तुतः सृष्टिकर्ता ब्रह्म ने पहले (आरम्भ में) धर्म का दण्ड के रूप में निर्माण किया था। +: लोभी प्रकृति एवं अस्थिर बुद्धि वाले राजा के लिए दंड का प्रयोग न्यायपूर्वक कर पाना संभव नहीं है। सत्यनिष्ठ एवं निर्दोष आचरण वाले बुद्धिमान् राजा ही सद्व्यवहारी सहायकों के सहयोग से ऐसा कर सकता है। +: भाई, पुत्र, पूज्य जन, श्वसुर, एवं मामा, कोई भी अपने धर्म से विचलित होने पर राजा के लिए अदण्डनीय नहीं होता। +: राजा को ब्राह्मणों के प्रति क्षमाशील होना चाहिए। अनुराग रखने वालों के प्रति सरल शत्रुओं के प्रति क्रोधी तथा सेवकों एवं प्रजा के प्रति पिता के समान दयावान एवं हितकारी होना चाहिए। +: राज्य कार्य का मुख्य आधार मन्त्र (सम्यक विचार) है इसलिए मन्त्र को इस प्रकार राजा गुप्त रखे कि राजा के कर्मों के फलीभूत होने के पूर्व उसकी जानकारी किसी को न मिल सके। +: स्वर्ण आदि लाने के लिए नियुक्त व्यक्तियों द्वारा लाए गए स्वर्ण को भण्डार में रखना चाहिए तथा गुप्तचरों से बातें करने के उपरान्त मंत्री के साथ बैठकर दूतों को निर्दिष्ट कार्य करने के लिए भेजना चाहिए। +दुर्ग में स्थित एक धनुर्धर सौ धनुर्धरों को तथा सौ धनुर्धर एक सहस्त्र धनुर्धरों को मार गिरा सकते हैं। + + +: वह (गणिका) राजा के द्वारा सदा पूजित और गुणीजनों द्वारा प्रशंसित होती है। वह प्रर्थनीय और अभिगम्य होती है । इस प्रकार वह सबका लक्ष्य (आँखों के सामने रखने योग्य) है। +: सत्य से विवर्जित वेश्यायें असत्य से ही जीवित रहतीं हैं। ये सत्य से वैसे ही नष्ट हो जातीं हैं जैसे मद्यपान से कुलीन स्त्रियां। +: पक्षियों में कौआ धूर्त होता है, जन्तुओं में सियार। पुरुषों में नाई धूर्त होता है और नारियों में गणिका। + + +: वित्त आता है और जाता है। + + +* ईश्वर एक है और वही सबका कर्ताधर्ता है। +* परमेश्वर एक है और सभी मानव उसकी संतान हैं। +* शिक्षा स्त्री और पुरुष की प्राथमिक आवश्यकता है। +* मंदिरों में स्थित देवगण ब्राह्मण पुरोहितों का ढकोसला है। +* आपके संघर्ष में शामिल होने वालों से उनकी जाति मत पूछिए। +* अच्छा काम करने के लिए गलत उपयों का सहारा नहीं लेना चाहिए। +* भगवान और भक्त के बीच मध्यस्थता की कोई आवश्यकता नहीं है। +* अगर कोई किसी प्रकार का सहयोग करता है तो उससे मुंह मत ��ोड़िए। +* स्वार्थ अलग अलग रुप धारण करता है। कभी जाति का तो कभी धर्म का। +* आर्थिक विषमता के कारण किसानों का जीवन स्तर अस्त व्यस्त हो गया है। +* संसार का निर्माणकर्ता एक पत्थर विशेष या स्थान विशेष तक ही सीमित कैसे हो सकता है? +* समाज के निम्न वर्ग तब तक बुद्धि, नैतिकता, प्रगति और समृद्धि का विकास नहीं करेंगे जब तक वे शिक्षित नहीं होंगे। +* ब्राह्मणों ने दलितों के साथ जो किया वो कोई मामूली अन्याय नहीं है। उसके लिए उन्हें ईश्वर को जवाब देना होगा। +* भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तब तक संभव नहीं है, जब तक खान-पीन एव वैवाहिक संबंधों पर जातीय भेदभाव बने रहेंगे। +* बाल काटना नाई का धर्म नहीं, धंधा है। चमड़े की सिलाई करना मोची का धर्म नहीं, धंधा है। इसी प्रकार पूजा -पाठ करना ब्राह्मण का धर्म नहीं, धंधा है। +* शिक्षा के बिना समझदारी खो गई, समझदारी के बिना नैतिकता खो गई नैतिकता के बिना विकास खो गया, धन के बिना शूद्र बर्बाद हो गया। शिक्षा महत्वपूर्ण है। +* यदि आजादी, समानता, मानवता, आर्थिक न्याय, शोषणरहित मूल्यों और भाईचारे पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना है तो असमान और शोषक समाज को उखाड़ फेंकना होगा। +* पृथ्वी पर उपस्थित सभी प्राणियों में मनुष्य श्रेष्ठ है और सभी मनुष्यों में नारी श्रेष्ठ है। स्त्री और पुरुष जन्म से ही स्वतंत्र है। इसलिए दोनों को सभी अधिकार समान रूप से भोगने का अवसर प्रदान होना चाहिए। +* ब्राह्मण दावा करते हैं कि वो ब्रह्मा के मुख से पैदा हुए हैं, तो क्या ब्रह्मा के मुख में गर्भ ठहरा था क्या महावारी भी ब्रह्मा के मुख में आई थी और अगर जन्म दे दिया तो ब्रह्मा ने शिशु को स्तनपान कैसे कराया ? +* मंदिरों के देवी-देवता ब्राह्मण का ढकोसला हैं। दुनिया बनाने वाला एक पत्थर विशेष या खास जगह तक ही सीमित कैसे हो सकता है? जिस पत्थर से सड़क मकान वगैरह बनाया जाते हैं उसमें देवता कैसे हो सकते हैं? + + +* स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, पाठशाला ही इंसानों का सच्चा गहना है। +* इस धरती पर ब्राह्मणों ने खुद को स्वघोषित देवता बना लिया है। +* पत्थर को सिंदूर लगाकर और तेल में डुबोकर जिसे देवता समझा जाता है, वह असल मे पत्थर ही होता है। +* अगर पत्थर पूजने से बच्चे होते तो नर नारी शादी ही क्यों रचाते। +* गरीबों और जरूरतमंदों के लिए हितकारी और कल्याणकारी कार्य शुरू किए है, में अपने हिस्से की जिम्मेदारी भी निभाना चाहती हूं, में आपको यकीन दिलाती हूं कि में आपकी हमेशा सहायता करुँगी, में कामना करती हूं कि ईश्वरीय कार्य अधिक लोगों की सहायता करेंगे। +* ब्राह्मणवाद केवल मानसिकता नही, एक पूरी व्यवस्था है जिससे धर्म के पोषक तत्व देव-देवता, रीति-रिवाज, पूजा-अर्चना आदि गरीब दलित जनता को अपने में काबू में रखकर उनकी तरक्की के सारे रास्ते बंद करते है और उन्हें बदहाली भरे जीवन में धकेलते आए है। +* छत्रपति शिवाजी को सुबह शाम याद करना चाहिए, शुद्र अतिशूद्र के हमदर्द उनका गुणगान प्यारी भावना से करें। +* एक सशक्त शिक्षित स्त्री सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है, इसलिए उनको भी शिक्षा का अधिकार होना चाहिए। +* बेटी के विवाह से पहले उसे शिक्षित बनाओ ताकि वह आसानी से अच्छे बुरे में फर्क कर सके। +* शिक्षा स्वर्ग का द्वार खोलता है, स्वयं को जानने का अवसर देता है। +* स्त्रियां केवल घर और खेत पर काम करने के लिए नही बनी है, वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती है। +* देश में स्त्री साक्षरता की भारी कमी है क्योंकि यहां की स्त्रियों को कभी बंधन मुक्त होने ही नही दिया गया। + + +* हमें कहीं न कहीं यह सीखना चाहिए कि दूसरों के लिए कुछ करने से बड़ा कुछ नहीं है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर +* लोग उस मदद की सराहना करते हैं और कभी नहीं भूलते हैं, जब आप उनकी मदद कठिन समय में करते हो। कैथरीन पल्सिफ़ेर +* जितना अधिक मैं दूसरों को सफल होने में मदद करता हूं, उतना ही मैं सफल होता हूं। रे क्रोक +* खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप खुद को दूसरों की सेवा में खो दें। महात्मा गांधी +* हम में से प्रत्येक किसी न किसी का कर्जदार है। दूसरों तक पहुंचने और उनकी मदद करने से हम सभी को फायदा होता है। लेस ब्राउन +* दूसरों की मदद करना, दूसरों की सेवा करना- यही जीवन का वास्तविक अर्थ है। दलाई लामा +* अपने किसी भी और सभी कार्यों में भगवान की सेवा करने और दूसरों की सेवा करने की आवश्यकता के बारे में लगातार जागरूक रहें। यह चमत्कार करने वाले का तरीका है। वेन डायर +* यह जीवन की सबसे सुंदर क्षतिपूर्ति में से एक है कि कोई भी व्यक्ति स्वयं की सहायता किए बिना ईमानदारी से दूसरे की सहायता करने का प्रयास नहीं कर सकता। राल्फ वाल्डो इमर्सन +* कृपया ध्यान दें कि आपका स्वास्थ्य, मानसिक और शारीरिक दोनों, आपके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है क्योंकि यदि आप ठीक नहीं हैं तो आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हैं या दूसरों की मदद नहीं कर सकते हैं। मार्टिन +* यहां एक टीम आपके लिए क्या कर सकती है। यह आपको दूसरों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में मदद करने की अनुमति देता है। जॉन सी. मैक्सवेल +* हमारे व्यक्तिगत और सामुदायिक जीवन में दूसरों के लिए एक मौलिक चिंता और सहायता दुनिया को बेहतर जगह बनाने में एक लंबा रास्ता तय करेगी जिसका हमने सपना देखा था। नेल्सन मंडेला +* केवल देने से ही आप पहले से अधिक प्राप्त कर सकते हैं। जिम रोहन +* दूसरों के अधिकारों की रक्षा करना मनुष्य का सबसे महान और सुंदर अंत है। खलील जिब्रान +* याद रखें, अगर आपको कभी मदद की ज़रूरत हो, तो आप अपनी बांह के अंत में पाएंगे… जैसे-जैसे आप बड़े होंगे आपको पता चलेगा कि आपके पास दो हाथ हैं। एक खुद की मदद करने के लिए, दूसरा दूसरों की मदद करने के लिए। ऑड्रे हेपब्र्न +* इतिहास में वास्तव में महान लोग कभी भी अपने लिए महान नहीं बनना चाहते थे। वे चाहते थे कि दूसरों के लिए अच्छा करने और भगवान के करीब रहने का मौका मिले। मुहम्मद अली +* इनाम या कृतज्ञता की अपेक्षा किए बिना अन्य लोगों की मदद करने के लिए समय निकालें आशावादी जीवन जीने के लिए निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है। क्रिस्टा केके +* बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना दूसरों की मदद करना ही सच्चा आत्म-मूल्य है। गेविन बर्ड +* धर्मार्थ लोगों के दो वर्ग थे: एक, वे लोग जिन्होंने थोड़ा काम किया और बहुत शोर मचाया; दूसरे, वे लोग जिन्होंने बहुत कुछ किया और बिल्कुल भी शोर नहीं मचाया। चार्ल्स डिकेंस +* गरीबों की सेवा भगवान की सेवा हैं। +* किसी इंसान को आगे बढ़ते देख टांग अड़ाकर गिराने की बजाय उसे सहारा देकर मदद कीजिए यही पुण्य का काम हैं। +* दुनियां के हर जरूरतमंद की सहायता करना संभव नही है, मगर जो आपके समक्ष है उसकी मदद कर सकते हैं। +* दान से बढकर कोई धर्म नही है तथा सेवा से बड़ा कर्म नहीं हैं। +* इंसान को सच्चा सुख व संतोष धन, दौलत, गाडी बंगलों से नहीं बल्कि गरीबों की मदद से मिलता हैं। +* इस दुनियां में जब विपदा में हो तो उसकी औंस के बराबर मदद करना एक पौंड के बराबर उपदेश देने से कही बेहतर हैं। +* यदि आप दूसरों की मदद कर सकते है तो अवश्य करें,यदि नहीं कर सकते है, तो कम से कम उन्हें नुकसान ना पहुचाइए। +* दौलत कितनी भी ज��ा कर लो ऊपर जाते समय फूटी कोड़ी भी साथ नहीं ले जा पाओगे इससे अच्छा है कि नीचे वालों की मदद में उस धन का सदुपयोग किया जाएं। +* जिन्दगी भर कमाई गयी पूंजी खत्म हो सकती है मगर किसी की मदद से मिली दुआएं कभी खत्म नही होती हैं। +* भगवान भी उन्ही की मदद करते है जो मुश्किल के वक्त औरों की मदद करता हैं। +* किसी मजबूर गरीब की मदद से आपकी दौलत कम नहीं होगी बल्कि उनकी दुआओं से और अमीर होंगे। +* सबसे बड़ी सहायता यह है कि हम जरूरतमंद व्यक्ति की इस तरह मदद करें कि जिससे वह स्वयं की मदद कर सके। +* आपके बड़ा बनने का सदुपयोग तभी है जब आप छोटे लोगों को नीचा दिखाने की जगह उन्हें ऊपर उठाने का प्रयास करेगे। +* हम सभी की मदद तो नहीं कर सकते मगर किसी एक की तो कर ही सकते हैं। +* अक्सर जो लोग अमीर होने का दम्भ भरते है किसी की मदद के समय वे व्यस्त होने का ढोंग कर बच निकलते हैं। +* एक नियम निश्चित है कि ईश्वर केवल मेहनतकश लोगों की ही मदद करता। +* किसी की सहायता के लिए दौलत की आवश्यकता नहीं होती है उसके लिए साफ़ मन की जरूरत होती हैं। +* अधिकतर समय आप अपनी स्वयं की मदद कर रहे होते है औरों की मदद करने के बहुत थोड़े अवसर मिलते हैं। +* कामयाब लोग सदैव औरों की मदद के अवसर तलाशते है वहीँ नाकामयाब लोग केवल यही कहते रह जाते है कि इसमें मेरा क्या फायदा हैं। +* अगर आप किसी पर अहसान करते है तो वह आपकी नजरों के सामने इज्जत करेगा मगर आप किसी की सहायता करेगे तो वह पीठ पीछे भी आपकी इज्जत करेगा। +* बहुत बार किसी व्यक्ति के लिए इतना ही सहयोग काफी होता है महज कंधे पर हाथ रख देने से उसके गहरे घाव हल्के हो जाते हैं। +* अमूमन किसी की मदद का उतना महत्व नहीं होता है जितना कि उनके मदद के विश्वास का महत्व होता हैं। +* भगवान ने हमें यह जीवन दूसरों को छोटा दिखाने के लिए नहीं दिया है बल्कि अपनी तरह उन्हें भी ऊपर उठाने के लिए यह जीवन मिला हैं। +* अगर आप एक इंसान को सौ रूपये देते है तो वह एक वक्त का पेट भरकर भोजन कर सकता हैं मगर आप उसे सौ रु कमाना सीखा देगे तो वह रोजाना अपना पेट खुद भर सकेगा। +* मुसीबत में फंसे मित्र को सलाह की नहीं सहारे की जरूरत होती हैं। +* हममें से कोई भी हर किसी की मदद नहीं कर सकता। लेकिन हम सभी किसी न किसी की मदद कर सकते हैं। और जब हम उनकी सहायता करते हैं, तो हम भगवान की सेवा करते हैं। ऐसा करने का मौका कौन गंवाना चाहेगा मैक्स लुकाडो + + +* जीने के साथ लगातार सीखने की कोशिश करें; इस भरोसे में प्रतीक्षा न करें कि बुढ़ापे में अपने आप ज्ञान आएगा। +* कानून मकड़ी के जाले की तरह हैं: यदि कोई गरीब कमजोर प्राणी इसमें फसता है, तो वह मारा जाता है; लेकिन एक बलवान ओर शक्तिशाली आदमी इसे तोड़कर बाहर निकल जाता है। +* सभी चीजे जो आप करते हैं, उनका अंत बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए अंत पर विचार जरूर करें। +* जिसने आज्ञा का पालन करना सीख लिया है, वह आज्ञा भी दे सकता हैं। +* ज्ञान के बिना अमीर लोग सुनहरी ऊन की भेड़ों की तरह हैं। +* कसमें वादो की तुलना में चरित्र के बड़प्पन में अधिक विश्वास रखो। +* वाणी क्रिया का दर्पण है। +* अपने दोस्त को अकेले में फटकारें, लेकिन उसे सार्वजनिक रूप से सराहें। +* किसी भी काम को करते हुए, उसकी वजह को मार्गदर्शक बनाए। +* पैसे कमाओ लेकिन गलत तरीके से नहीं। + + +* जब हम ईमानदारी से स्वयं से यह प्रश्न करते हैं कि किस व्यक्ति की हमारे जीवन में हमारे लिये सबसे ज्यादा अहमियत है, तब हम अक्सर यही पाते हैं कि ये वे लोग हैं जिन्होंने सलाह, समाधान, या उपचार देने के स्थान पर हमारे दर्द को बाँटा है और अपने गर्म और कोमल हाथों से हमारे जख्मों को छुआ है। हेनरी नौवेन +* एक इंसान को इन दो चीज़ों से सजग रहकर अवश्य बचना चाहिये: एक ऐसी सलाह देना जिसका वह अनुसरण नहीं करेगा, और तब सलाह के लिये पूछना जब वह अपने स्वयं के विचार को ही क्रियान्वित करने हेतु संकल्पित हो। नार्मन मैकडोनाल्ड +* वृद्ध व्यक्ति अच्छी सलाह देने के शौक़ीन होते हैं; अब और खराब उदाहरण दे पाने में असमर्थता के कारण स्वयं को सांत्वना देने हेतु। फ़्रन्कोइस डी ला रोचफौकौल्ड +* किसी भी व्यक्ति के अपने जीवन में एक सर्वश्रेष्ठ संभावित सलाह – कठोर परिश्रम कीजिये और धैर्यवान बने रहिये। अज्ञात +* हम सभी को, अपने जीवन के कुछ सुनिश्चित क्षणों में, दूसरे लोगों से सलाह और सहायता लेने की आवश्यकता होती है। अलेक्सिस कैरेल +* ऐसी सलाह मत दीजिये जो शानदार हो, बल्कि ऐसी सलाह दीजिये जो व्यवहारिक और लाभदायक हो। सोलन +* परामर्श बर्फ की तरह होता है – यह जितने आराम से दिया जाता है उतने ही अधिक समय तक रुकता है, और उतनी ही अधिक गहराई तक मन में प्रविष्ट हो जाता है। सैमउल टेलर कोलरिज +* वह एक अच्छा धर्मोपदेशक है जो अपने स्वयं के निर्देशों का पालन करता है। विलियम शेक्सपियर +* जीवन में सफ��� होने का सर्वश्रेष्ठ रास्ता उन परामर्शों पर अमल करना है जिन्हें हम दूसरों को देते हैं। अज्ञात +* स्वयं की तुलना में दूसरों के लिये बुद्धिमान बनना अधिक आसान है। फ़्रन्कोइस डी ला रोचफौकौल्ड +* माता-पिता अपने बच्चों को केवल अच्छी सलाह दे सकते हैं या फिर उन्हें सही रास्ते पर चला सकते हैं, लेकिन एक व्यक्ति के चरित्र का अंतिम गठन उसके अपने ही हाथों में होता है। ऐनी फ्रैंक +* एक नेता के भीतर एक विशेषज्ञ की सलाह के विपरीत कार्य करने का साहस अवश्य होना चाहिये। जेम्स काल्लाघन +* आपके सिवा अन्य कोई भी व्यक्ति आपको बुद्धिमत्तापूर्ण सलाह देने में सक्षम नहीं है। सिसेरो +* समझदार को इशारे की कोई आवश्यकता नहीं है, केवल मूर्खों को ही सलाह की आवश्यकता होती है। बिल कोस्बी +* दूसरे लोगों को सलाह तो देने दीजिये लेकिन कभी भी उन्हें स्वयं के लिये निश्चय मत करने दीजिये। अज्ञात +* परामर्श वह है जिसके विषय में हम तब पूछते हैं जब हम पहले से ही उत्तर जानते हैं लेकिन इच्छा करते हैं कि हम न ही जाने। एरिका जोंग +* कभी भी एक संकटग्रस्त व्यक्ति की सलाह पर भरोसा मत कीजिये। ईसप +* सबसे बुद्धिमान व्यक्ति वह है जिसे किसी सलाह की कोई आवश्यकता नहीं है। एडवर्ड काउंसल +* जब हम समृद्धि के दिनों में होते हैं तब दुखियों को सलाह देना आसान है। एस्च्य्लुस +* सलाह माँगना और देना सबसे सस्ता सौदा है। एडवर्ड काउंसेल +* जो अच्छी सलाह देता है, एक हाथ से निर्माण करता है; जो एक अच्छी सलाह और उदाहरण देता है, दोनों हाथों से निर्माण करता है; लेकिन जो अच्छे उपदेश देता है और बुरे उदाहरण प्रस्तुत करता है, एक हाथ से बनाता है और दूसरे हाथ से गिराता है। फ्रांसिस बेकन + + +* संघर्ष न केवल हमें मजबूत, बेहतर और समझदार व्यक्ति बनाते हैं, वे हमें अपने बारे में और जीवन में अपने उद्देश्य के बारे में अधिक जानने देते हैं। औलिक आइस +* ताकत और विकास निरंतर प्रयास और संघर्ष से ही संभव है। नेपोलियन हिल]] +* मेरी सफलता को देखो। मैंने इसे रातोंरात हासिल नहीं किया। यह कई वर्षों के संघर्ष का नतीजा रहा है, और संघर्ष करते करते हर साल, मेरे समय में धीरे-धीरे सुधार होता जा रहा है। मो फराह +* कर्म करना ही मनुष्य का अधिकार है और धर्म भी’। जीवन-पथ सफलता मिले या विफलता, संघर्ष करने का संकल्प शिथिल नहीं पड़ना चाहिए। ‘गीता’ का संदेश +* एक बार सभी संघर्षों क�� समझ लेने के बाद, चमत्कार संभव हैं। माओ ज़ेडॉन्ग +* अपने आप को किसी ऐसी चीज़ का हकदार महसूस न करें जिसके लिए आपको पसीना न बहाना पड़ा हो और जिसके लिए आपको संघर्ष न करना पड़ा हो। मैरियन राइट एडेलमैन +* संघर्ष वह भोजन है जिससे बदलाव आता है और संघर्ष से सबसे ज्यादा फायदा उठाने का समय तब है जब वो ठीक आपके सामने हो। अज्ञात +* कल मैंने संघर्ष करने का साहस किया। आज मैं जीतने की हिम्मत करता हूं। बर्नडेट डेवलिन +* मेरा विश्वास करो, संघर्ष के बिना इनाम इतना महान नहीं है। विल्मा रुडोल्फ +* हमारी सबसे बड़ी महिमा कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि हर बार गिरकर उठने में है। कन्फ्यूशियस +* जीवन साइकिल की सवारी करने जैसा है। अपना संतुलन बनाये रखने के लिए लगातार चलते रहना चाहिए। अल्बर्ट आइंस्टीन +* जीवन सुख, दुख, कठिन समय और अच्छे समय का एक चक्र है। यदि आप कठिन समय से गुजर रहे हैं, तो विश्वास रखें कि अच्छा समय आने वाला है। अज्ञात +* आज के कठिन समय में आपका संघर्ष निश्चित ही कुछ महान की ओर ले जाता है। एम. के. सिंह +* ऐसा नहीं है कि मैं इतना स्मार्ट हूं, बस इतना है कि मैं समस्याओं के साथ अधिक समय तक रहता हूं। अल्बर्ट आइंस्टीन +* अगर कोई आपको नीचे गिराने के लिए काफी मजबूत है, तो उसे दिखाएं कि आप वापस उठने के लिए काफी मजबूत हैं। ए जोसलैंड +* सफलता अंतिम नहीं है, असफलता घातक नहीं है: यह जारी रखने का साहस है जो मायने रखता है। विंस्टन चर्चिल +* आपको अपने सपनों के पीछे क्यों जाना जारी रखना चाहिए? क्योंकि जिन लोगों ने कहा था कि आप नहीं कर सकते उनके चेहरों पर नज़र देखना… बेशकीमती होगा। केविन नोगो +* एक समस्या आपके लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का मौका है। ड्यूक एलिंगटन +* मुझे अपने जीवन में कोई पछतावा नहीं है। मुझे लगता है कि आपके साथ सब कुछ एक कारण से होता है। आप जिस कठिन समय से गुजरते हैं, वह चरित्र का निर्माण करता है, जिससे आप अधिक मजबूत व्यक्ति बनते हैं। रीता मेरो +* दुनिया में अधिकांश महत्वपूर्ण चीजें उन लोगों द्वारा पूरी की गई हैं, जो तब भी कोशिश करते रहे हैं जब उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी। डेल कार्नेगी +* प्रतिभा के लिए दृढ़ता एक महान विकल्प है। स्टीव मार्टिन +* कठिन समय अधिक समय तक नहीं रहता है, लेकिन उसके कारण बने मज़बूत लोग रहते हैं। रॉबर्ट एच. शूलर +* संघर्ष से शक्ति आती है। जब आप अपने संघर्षों को मजबूत, बेहतर, समझदार बनने के अवसरों के रूप में देखना सीखते हैं, तो आपकी सोच ‘मैं यह नहीं कर सकता’ से ‘मुझे यह करना चाहिए’ में बदल जाता है। टोनी सोरेनसन +* जितना कठिन संघर्ष, उतनी ही शानदार जीत। आत्म-साक्षात्कार के लिए बहुत बड़े संघर्ष की आवश्यकता होती है। स्वामी शिवानंद +* जीवन का संघर्ष हमारे सबसे बड़े आशीर्वादों में से एक है। यह हमें धैर्यवान, संवेदनशील और ईश्वरीय बनाता है। यह हमें सिखाता है कि यद्यपि संसार दुखों से भरा है, लेकिन यह उस पर विजय पाने से भी भरा है। हेलेन केलर +* अपने संघर्षों की तुलना किसी और से न करें। दूसरों की सफलता से निराश न हों। अपना रास्ता खुद बनाओ और कभी हार मत मानो। एमजे कोरवानी +* जहां संघर्ष नहीं वहां ताकत नहीं होती। ओपरा विनफ्रे +* जहां संघर्ष नहीं वहां ताकत नहीं होती। ओपरा विनफ्रे +* संघर्ष जो भी हो, चढ़ाई जारी रखें। यह शिखर तक केवल एक कदम हो सकता है। डायने वेस्टलेक +* आपके जीवन के हर संघर्ष ने आपको उस व्यक्ति के रूप में आकार दिया है जो आप आज हैं। कठिन समय के लिए आभारी रहें, वे ही आपको मजबूत बना सकते हैं। – अनजान +* जीवन में महत्वपूर्ण चीज जीत नहीं बल्कि संघर्ष है। पियरे डी कुबर्टिन +* संघर्ष मजबूत हो रहा है। बुराई से लड़ना हमें बुराई से और भी ज्यादा लड़ने की ताकत देता है। ओस्सी डेविस +* एक बार सभी संघर्षों को समझ लेने के बाद, चमत्कार संभव हैं। माओ ज़ेडॉन्ग +* एक बार सभी संघर्षों को समझ लेने के बाद, चमत्कार संभव हैं। माओ ज़ेडॉन्ग +* मेरा विश्वास करो, संघर्ष के बिना इनाम इतना महान नहीं है। विल्मा रूडोल्फ + + +*मीणा राजस्थान की सबसे बड़ी और भारत की चौथी सबसे बड़ी अनुसूचित जनजाति है। 150 वे मिन-अवतार या विष्णु के मछली अवतार से अपने वंश का पता लगाते हैं, इसलिए मीना नाम दिया गया है। भगवान शिव उनके सर्वोच्च देवता हैं, और वे हनुमान, सीता-राम और राधा-कृष्ण की भी पूजा करते हैं। 1961 और 1971 की जनगणनाओं में, 100 प्रतिशत मीनाओं ने खुद को हिंदू के रूप में दर्ज किया। + + +: ब्रह्माण्ड के सृजन तथा संहार में ब्रह्मा तथा शिव भी आपके उपकरण की तरह कार्य करते हैं, जिन्हें अन्तत: आप काल के अपने अदृश्य रूप में सम्पन्न करते हैं। +* भविष्य उन शिक्षित युवाओं का है जिनके पास सृजन करने की कल्पनाशीलता है। बराक ओबामा]] +हर चीज का सृजन दो बार होता है, पहली बार दिमाग में दूसरी बार वास्तव���कता में। अज्ञात + + +: जिसके पास अपनी बुद्धि नहीं हो तो शास्त्र उसका क्या कल्याण कर सकता है कुछ नहीं । नेत्रहीन व्यक्ति को दर्पण से कोई लाभ नहीं प्राप्त हो सकता । + + +* जब तक की कोई भी मनुष्य अपने काम से प्रेम नहीं करता वह सफल नहीं हो सकता। David Sarnoff, CEO of RCA +* अत्याधिक अपेक्षा और उम्मीद ही लगभग हर चीज की कुंजी है Tim Cook, CEO of Apple +* मैंने हमेशा उस कम को किया जिसके लिए मैं बिलकुल भी तैयार नहीं थी। और मेरा मानना है की ऐसे ही आप आगे बढ़ते हैं। जब भी जीवन में कुछ बेहतरीन मौके आते हैं तो मुझे पूरा विश्वास नहीं होता की मैं ये कर पाऊँगी, और ऐसे ही वक्त पर हम अपने आप को विश्वास दिलाते हैं और मजबूत होते हैं और इस तरह हमें नयी राह दिखती है। और कभी कभी यही प्रतीक होता है की कुछ महान घटित होने वाला है और आप अपने बारे में बहुत कुछ जानते लगते हैं। Pete Cashmore, CEO of Mashable +* सफल होने के लिए आपको बेहद गुणवान,दिव्य या फिर बहुत पढ़ा-लिखा होने के जरुरत नहीं है. आपको सिर्फ एक संरचना या ढांचा और सपने की जरुरत है Michael Dell, CEO of DELL +* हमलोग वास्तव में अपने आप से ही प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, क्यूंकि अन्य लोग किस तरह काम कर रहे हैं उसपर हमारा कोई आधिपत्य नहीं है Sam Walton, CEO of Walmart +* मैं शुरू से ही बड़ा किस्मत वाला रहा. मैंने पाया की जब तक आप बुनियादी रूप से अच्छे हैं – और जब तक आप किसी के साथ बुरे नहीं हैं – लोग आपको तबज्जो जरुर देंगे, क्यूंकि स्वयं बने रहना ही इमानदार बने रहना है। और लोग वही देखना पसंद करते हैं Andrew Mason, CEO of Groupon +* अगर आप दुनिया को बदल रहे हैं तो तो आप महत्वपूर्ण चीजों पर काम कर रहे हैं. और आप सुबह उठते ही उत्तेजना का अनुभव करते हैं Larry Page, CEO of Google 12 जब भी आप कुछ नया करते हैं तो आलोचनाओं को सुनने के लिए अपने आप को तैयार कर लें। Larry Ellison, CEO of Oracle +* केवल एक सफल व्यापार ही नयी नौकरियों का निर्माण और सुनिश्चित कर सकता है। Klaus Kleinfeld, CEO of Alcoa +* सवाल ये नहीं है की शुरुआत कैसे की जाय सवाल ये है की लोगों की नज़र में कैसे आया जाय । Steve Case, CEO of America Online +* असफलता आपको ज्यादा आत्म विश्वास देती है. असफल होना सीखने के लिए एक बेहतरीन उपकरण की भांति है, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम होनी चाहिए। Jeffrey Immelt, CEO of General Electric +* आपको बेहद सक्रीय और खुले विचारों वाला बनना होगा। आपकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी की आप स्वयं को कैसे ढालते हैं। Jeremy Stoppelman, CEO of Yelp +* लीडर्स लोगों के सामने आते हैं और पैमानों को ऊँचा उठाकर रुके रहते हैं-और उन्ही पैमानों से वे खुद को भी परखा जाना पसंद करते हैं। Frederick W Smith, CEO of Fedex +* महान कम्पनियों के काम करने का तरीका सबसे पहले उनके महान लीडर्स से शुरू होता है Steve Ballmer, CEO of Microsoft +* निराशावादी अंत में सही हो सकते हैं, लेकिन एक आशावादी के पास वहां पहुंचने का बेहतर समय होता है। Samuel R Allen, CEO of Deere +* अभी एक उद्यमी जो, मौत से डरा हुआ है, बहाने बना रहा है की, ‘अभी सही समय नहीं आया है।’ अच्छा समय जैसी कोई चीज नहीं होती। मैंने टेक-बूम के वर्षों में एक परिधान-निर्माण व्यवसाय शुरू किया। मेरा मतलब था आ जाओ। अपने गैरेज से बाहर निकलें और मौका लें, और अपना व्यवसाय शुरू करें। Kevin Plank, CEO of Under Armour + + +राम लक्ष्मण से कह रहे हैं कि) आज धूल पूर्णतया शान्त हो गयी है। वायु बर्फ के कणों से युक्त अर्थात् अत्यन्त शीतल है। गर्मी के तेज धूप, लू आदि दोषों का विस्तार पूर्णतया शान्त हो गया है। राजाओं की (विजय) यात्राएँ रुक गयी हैं। प्रवासी अर्थात् जीविका के लिए दूसरे स्थानों में जाकर बसने वाले लोग अपने स्थानों को अर्थात् घरों को (लौटकर) जा रहे हैं। +राम लक्ष्मण से कह रहे हैं कि) रस से पूर्णतया भरे हुए भौंरों के समान काले रंग के जामुन के फल अत्यधिक मात्रा में खाये जा रहे हैं। अनेक रंगों वाले, वायु के झोंकों के द्वारा हिलाये गये, विशेष रूप से पके हुए आम के फल जमीन पर गिर रहे हैं। +: व्याख्या राम लक्ष्मण से कह रहे हैं कि कोयलों के चूर्ण के ढेर के समान दीखने वाले; अर्थात् अत्यधिक काली कान्ति वाले, पर्याप्त रस से भरे हुए, फलों से लदी हुई जामुन के वृक्षों की शाखाएँ ऐसी लग रही हैं। मानो भौंरों के समूह जामुनों का रसपान कर रहे हों। +श्री राम लक्ष्मण से कह रहे हैं कि) बहुत अधिक तेज वर्षा की धाराएँ गिर रही हैं। तेज गति वाली हवाएँ चल रही हैं। नदियों में वर्षा का अधिक जल भर जाने के कारण टूटे हुए किनारों वाली नदियों का जल मार्गों में चारों ओर फैलकर तेजी से बह रहा है। +राम लक्ष्मण से कह रहे हैं कि) वर्षा की जलधारा से पर्वत धुल गये हैं। पर्वतों के शिखरों से महान् आकार वाले झरने गिर रहे हैं। वे झरने मोती की लड़ियों के समान अत्यधिक शोभा को धारण कर रहे हैं। +: बादल पृथ्वी के समीप आकर (नीचे उतरकर) बरस रहे हैं, जैसे विद्या पाकर विद्वान् नम्र हो जाते हैं। बूँदों की चोट पर्वत कैसे सहते हैं, जैसे दुष्टों के वचन संत सहते ह��ं। +: जल एकत्र हो-होकर तालाबों में भर रहा है, जैसे सद्गुण (एक-एककर) सज्जन के पास चले आते हैं। नदी का जल समुद्र में जाकर वैसे ही स्थिर हो जाता है, जैसे जीव हरि को पाकर अचल (आवागमन से मुक्त) हो जाता है। +: जिमि पाखंड बाद तें गुप्त होहिं सदग्रंथ।। रामचरितमानस]] +: पृथ्वी घास से परिपूर्ण होकर हरी हो गई है, जिससे रास्ते समझ नहीं पड़ते। जैसे पाखंड-मत के प्रचार से सद्ग्रंथ गुप्त (लुप्त) हो जाते हैं।। +: चारों दिशाओं में मेढकों की ध्वनि ऐसी सुहावनी लगती है, मानो विद्यार्थियों के समुदाय वेद पढ़ रहे हों। अनेकों वृक्षों में नए पत्ते आ गए हैं, जिससे वे ऐसे हरे-भरे एवं सुशोभित हो गए हैं जैसे साधक का मन विवेक (ज्ञान) प्राप्त होने पर हो जाता है। +: मदार और जवासा बिना पत्ते के हो गए (उनके पत्ते झड़ गए)। जैसे श्रेष्ठ राज्य में दुष्टों का उद्यम जाता रहा (उनकी एक भी नहीं चलती)। धूल कहीं खोजने पर भी नहीं मिलती, जैसे क्रोध धर्म को दूर कर देता है (अर्थात क्रोध का आवेश होने पर धर्म का ज्ञान नहीं रह जाता)। +: अन्न से युक्त (लहलहाती हुई खेती से हरी-भरी) पृथ्वी कैसी सुशोभित हो रही है, जैसी उपकारी पुरुष की संपत्ति। रात के घने अंधकार में जुगनू शोभा पा रहे हैं, मानो दंभियों का समाज आ जुटा हो। +: भारी वर्षा से खेतों की क्यारियाँ फूट चली हैं, जैसे स्वतंत्र होने से स्त्रियाँ बिगड़ जाती हैं। चतुर किसान खेतों को निरा रहे हैं (उनमें से घास आदि को निकालकर फेंक रहे हैं)। जैसे विद्वान लोग मोह, मद और मान का त्याग कर देते हैं। +: चक्रवाक पक्षी दिखाई नहीं दे रहे हैं; जैसे कलियुग को पाकर धर्म भाग जाते हैं। ऊसर में वर्षा होती है, पर वहाँ घास तक नहीं उगती, जैसे हरिभक्त के ह्मदय में काम नहीं उत्पन्न होता। +: पृथ्वी अनेक तरह के जीवों से भरी हुई उसी तरह शोभायमान है, जैसे सुराज्य पाकर प्रजा की वृद्धि होती है। जहाँ-तहाँ अनेक पथिक थककर ठहरे हुए हैं, जैसे ज्ञान उत्पन्न होने पर इंद्रियाँ (शिथिल होकर विषयों की ओर जाना छोड़ देती हैं)। +: कभी-कभी वायु बड़े जोर से चलने लगती है, जिससे बादल जहाँ-तहाँ गायब हो जाते हैं। जैसे कुपुत्र के उत्पन्न होने से कुल के उत्तम धर्म (श्रेष्ठ आचरण) नष्ट हो जाते हैं।। +: कभी (बादलों के कारण) दिन में घोर अंधकार छा जाता है और कभी सूर्य प्रकट हो जाते हैं। जैसे कुसंग पाकर ज्ञान नष्ट हो जाता है और सुसंग पाकर उत्पन्न हो जाता है।। +:कोकिला, कलापी कल कूजत हैं जित-तित +:मंद-मंद मारुत मुहीम मनसा की है। +:नागर नबेलिन की नजर नसा की है। +:दामिनी दमकंत दिसान में दसा की है। +:बंगलान बलिन बहार बरषा की है। पद्माकर +अनेक रूप, आकृति, वर्ण और स्वर वाले, मेघों की गर्जना से बहुत समय तक रुकी हुई नींद को त्यागकर जागे हुए मेंढक नई जल की धारा से चोट खाकर बोल रहे हैं अर्थात् शब्द कर रहे हैं। +हाथी मस्त हो रहे हैं, साँड (आवारा पशु) प्रसन्न हो रहे हैं, वनों में शेर अधिक पराक्रमी हो रहे हैं, पर्वत सुन्दर हैं, राजगण शान्त हो गए हैं और इन्द्र मेघों से खेल रहे हैं। +* वर्षा! जिसके मुलायम रचनात्मक हाथों में पत्थर तक को काटने की शक्ति होती है, जिनके द्वारा यह बड़े, शानदार पर्वतों तक को आकार प्रदान करती है। हेनरी वार्ड बीचर +* वर्षा के बाद का सूर्य वर्षा होने के पहले के सूर्य से कहीं अधिक सुन्दर होता है। महमत मूरत इडलां +* बारिश के दिन घर में एक कप चाय और एक अच्छी पुस्तक के साथ व्यतीत करने चाहिए। बिल वाटर्स +* बारिश का उत्सव मनाओ; इसका तात्पर्य यही है कि सूर्य पहले से कहीं अधिक बड़ा और चमकदार नज़र आएगा। अज्ञात +* एक वर्षा का दिन पाठकों के लिए एक तोहफे के समान होता है। एमी माइल्स +* बारिश की मासूम बूंदे लगभग सभी घटनाओं को प्राकृतिक बना देती हैं। विसार ज़िति +* अकेले भीगना उदासीन होता है। अपने सबसे प्रिय मित्र के साथ भीगना किसी साहसिक कार्य के जैसा होता है। एमिली विंग स्मिथ +* मैंने ये सीखा है कि आप एक व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं, उसके इन तीन चीज़ों एक वर्षा का दिन, खोये हुए सामान और उलझी हुई क्रिसमस के पेड़ की लड़ियो के साथ किये गये बर्ताव को देखकर। माया एंजेलो +* बारिश मेरी आत्मा पर गिरती है और मेरी रूह तक को भिगो देती है। एमिली लोगन डिकेन्स +* जीवन तूफ़ान के गुज़र जाने का इंतज़ार करना नही है। यह तो बारिश में नृत्य करना सीखने के समान है। विवियन ग्रीस +* वर्षा का एक दिन समकारी होता है। आपको नही पता होता कि आगे क्या होगा। आप वो ले लेते हो, जो भी आपको मिल सकता है। चार्ली हार्वे +* एक साफ़ चमकीले दिन में, आप अपने शरीर को सुधार सकते हो; एक वर्षा के दिन में, आप अपने मस्तिष्क को ठीक कर सकते हैं। महमत मूरत इडलां +* हमे बारिश से अधिक जाग्रत कोई भी नही कर सकता। डेजन स्टोजनोविक +* अपने पूरे दिन की परिस्थिति को सिर्फ सुबह की स्थिति से मत आंकिये। आप एक किताब को उसके कवर से नही परख सकते। ठीक उसी तरह एक बादल भरी सुबह यह नही पक्का करती कि यह एक वर्षा का दिन होगा। इसरैलमोर आईवोर +* कुछ लोग बारिश के दिनों की तैयारियों में इतना व्यस्त रहते हैं कि वे आज की खिलखिलाती धूप को निहारना ही भूल जाते हैं। विलियम फेदर +* यदि आप बारिश के लिए प्रार्थना करते हो, तो आपको कीचड़ से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। यह भी इसी का एक हिस्सा है। डेने वाशिंगटन +* कई ऐसी चीज़ें हैं जो मैं अपने मनोरंजन के लिए करता हूँ, लेकिन अपनी ख़ुशी के लिए मैं अपनी यादों को इकट्ठा करता हूँ और बारिश में टहलने के लिए निकल जाता हूँ। रॉबर्ट ब्रॉल्ट +* बारिश के दिन घर में एक कप चाय और एक अच्छी पुस्तक के साथ व्यतीत करने चाहिए। बिल वाटर्स +* अपने जीवन में वर्षा को धन्यवाद दीजिये क्योंकि यह आपकी आत्मा के फूलों को पानी से भिगोती है। जोनाथन लॉकवुड हुए +* वर्षा का एक दिन पाठकों के लिए एक तोहफे के समान होता है। एमी माइल् +* कभी भी तालाब में नही जाइये, जब आपके जूते में छेद हो हमेशा अपने जूते पहले ही उतार लेने चाहिए)। जॉन डी. रोड्स +* वर्षा! जिसके मुलायम रचनात्मक हाथों में पत्थर तक को काटने की शक्ति होती है, जिनके द्वारा यह बड़े, शानदार पर्वतों तक को आकार प्रदान करती है। हेनरी वार्ड बीचर +* आलोचना, बारिश की तरह ही, सौम्य रूप से की जानी चाहिए, जो मनुष्य का पोषण उसकी जड़ों को तबाह किये बिना कर सकें। फ्रैंक ए. क्लार्क +* सब जगह वर्षा हो रही है, यह पेड़ों और खेतों पर गिर रही है, यह छतरियों के ऊपर गिर रही है, और यह समुद्र में जहाजों पर भी गिर रही है। रोबर्ट लुइस स्टीवेन्सन +* बारिश गिरती है क्योंकि बादल उसका वज़न और अधिक देर तक सहन नही कर सकता । आंसू गिरते हैं क्योंकि दिल और अधिक दर्द सहन नही कर सकता। अज्ञात +* जीवन ख़ूबसूरती से भरा हुआ है। इस पर गौर करें। मधुमक्खियां, छोटे बच्चे, और मुस्कुराते हुए चेहरे इन्हें देखिये। बारिश की खुशबू सूंघिये और हवा को महसूस कीजिये। अपने जीवन को अपनी पूरी क्षमता तक जियें और अपने सपनों के लिए लड़िये। एश्ले स्मिथ +* ईश्वर एक बादल है, जिस पर से बारिश गिरती है। डेजन स्टोजनोविक +* एकांत वह मिट्टी है जिस पर बुद्धिमान का जन्म होता है, उसकी रचना शक्ति बढ़ती है, और किवदंतियां खिलती हैं, अपने आप पर विश्वास रखना उस बारिश के जैसा है जो तूफ़ान से लड़ने के लिए ��क नायक का निर्माण करती है, और एक नए संसार या नए वन की उत्पत्ति करती है। माइक नॉर्टन +* बारिश के कारण आप किसी गलत शरण में ना चले जाएं; वह छाँव आपकी संरक्षक साबित हो सकती है या भक्षक भी साबित हो सकती है, और कभी कभी बारिश ही आपको बारिश से बचा सकती है। माइकल बस्सी जॉनसन +* बारिश का उत्सव मनाइये; इसका अर्थ बस यह है कि सूर्य पहले से बड़ा और चमकदार दिखाई पड़ेगा। अज्ञात +* बारिश आपकी उँगलियों से उतनी ही आसानी से फिसलती है, जितनी आसानी से शब्द हवा में घुल जाते हैं, और तब भी इसके पास आपके पूरे संसार को तबाह करने की शक्ति होती है। केरेन मैटलैंड +* एक वर्षा का दिन समकारी होता है। आपको नही पता होता कि आगे क्या होगा। आप वो ले लेते हो, जो भी आपको मिल सकता है। चार्ली हार्वे +* ईश्वर सबके लिए अच्छा होता है। सूरज अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोगों के लिए चमकता है, और वर्षा भी दोनों तरह के लोगों पर होती है। ईश्वर ने वर्षा सिर्फ बुरे लोगों के लिए नही बनाई है। मारिनो रिवेरा +* बारिश को तुम्हे चूमने दो। बारिश की चमकीली तरल बूंदों को अपने सर पर पड़ने दो। बारिश को आपके लिए लोरी गाने दो। लंगस्टोन ह्यूजेस +* सूर्य की रौशनी स्वादिष्ट होती है, बारिश ताज़गी से भर देती है, हवा हमे तैयार करती है, बर्फ प्राणपोषक होती है; ख़राब मौसम के जैसी कोई चीज़ होती ही नही, बल्कि सिर्फ अलग अलग प्रकार के अच्छे मौसम देखने को मिलते हैं। जॉन रस्किन +* कई चीज़ें हैं जो मैं अपने आश्चर्य के लिए करता हूँ, लेकिन अपनी खुशी के लिए मैं अपनी यादों को इकट्ठा करता हूँ और बारिश में टहलने के लिए निकल जाता हूँ। रॉबर्ट ब्रॉल्ट + + +* गुप्तचर ही राजा के आँख होते हैं। हितोपदेश +: स्वर्ण आदि लाने के लिए नियुक्त व्यक्तियों द्वारा लाए गए स्वर्ण को भण्डार में रखना चाहिए तथा गुप्तचरों से बातें करने के उपरान्त मंत्री के साथ बैठकर दूतों को निर्दिष्ट कार्य करने के लिए भेजना चाहिए। + + +मन्मथनाथ गुप्त जन्म 7 फरवरी 1908) भारत के एक क्रांतिकारी लेखक तथा हिंदी, अंग्रेजी और बंगला में आत्मकथात्मक, ऐतिहासिक और काल्पनिक पुस्तकों के लेखक थे। वह 13 साल की उम्र में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे। +* प्रगतिशील होना या प्रगतिशील का तकाजा करना उतना बड़ा पाप नहीं जैसा कि कुछ साहित्यकारों न�� प्रचार कर रखा है प्रगतिशीलता के विरुद्ध जो वातावरण उत्पन्न हुआ है उसके कारण को भी ढूंढना पड़ेगा क्योंकि इसे किए बिना हम प्रगति शीलता को उसके उच्च स्थान पर स्थापित नहीं कर पाएंगे। +* यह स्पष्ट है कि समाज में निरंतर विकास हो रहा है इसका अर्थ यह कदापि नहीं की समाज का मान भी उपादान है। यदि कुछ भी प्रयास ना करें तो भी प्रगति होगी। प्रगति प्रयास में अंतर्निहित है। +* कोई यदि क्रांति के जोश में आकर कनस्तर पीट दे और साथ में जोर जोर से चिल्लाए तो उसके चिल्लाने को महज इसलिए कि वह क्रांतिकारी जोश से उद्भूत हुआ है इसे संगीत नहीं कहा जा सकता। +* हमारे नए स्वतंत्र देश में इस बात की आवश्यकता है कि साहित्य लोगों में आशा उत्पन्न करके नए संग्राम के लिए हमको तैयार करे। +* कांग्रेस के पहले के नेताओं की तुलना में गांधीजी एक बहुत बड़े क्रांतिकारी थे और उनका असहयोग वाला अस्त्र पहले के कांग्रेसी नेताओं के बीच भिक्षापात्र वाले साधन से कहीं क्रांतिकारी था। +* यह बात नहीं है कि भारतवर्ष में असहयोग से पहले कोई जन आंदोलन नहीं हुआ हुआ और उनमें से कई शक्तिशाली थे। बंग भंग आंदोलन निश्चित रूप से एक जन आंदोलन था इसने बंगाल की हिंदू जनता को बहुत गहराई तक स्पर्श किया। +* भगत सिंह ने कोई जादू नहीं किया था भगत सिंह ने क्रांतिकारी दल को जनता के साथ जोड़ दिया बस यही उनका जादू था। जनता के साथ क्रांतिकारी आंदोलन को जोड़ने की यह कला बंग भंग के दौरान लुप्त सी हो चुकी थी भगत सिंह ने पंजाब और उत्तर भारत में इस लुप्त कला का पुनरुद्धार किया यही उनकी अभूतपूर्व सफलता का रहस्य था। +* झूठ बोलना सभी सदाचार के अनुसार बुरा अनैतिक या अधार्मिक है किंतु किसी भी देश के कानून में झूठ बोलना अपराध नहीं है हां यदि अदालत में खड़े होकर कोई झूठ बोले तो उसकी बात और है। +* यदि हम असभ्य लोगों के रिवाजों की बात करेंगे तो पाएंगे कि उनमें जो बात निषिद्ध थी वह बात अपराध भी थी यह समझा जाता था कि कोई अपराध करता है तो उसकी बलि चढ़ाकर या उसके परिवार की बलि चढ़ा कर देवता के क्रोध को शांत करना चाहिए। +* राजनीतिक दल या श्रेणियां अपनी बिगड़ी को बनाने के लिए या अपने बने बनाए श्रेणीस्वार्थ को और बढ़ाने या पुख्ता करने के लिए अब भी धार्मिक नारों की आड़ लेते हैं और यह तरीका अभी भी काम दे जाता है। +* जिस समय चीनी पर्यटक फाहियान पांचवी शताब्दी में ��ंगाल में आए उस समय बंगाल की कम से कम पश्चिम और उत्तर में आर्य संस्कृति और भाषा का प्रचार हो चुका था। +* इसमें संदेह नहीं कि विद्यापति ने मैथिली भाषा में रचना की पर बंगाल में उनकी रचनाओं का जो संस्करण प्रचलित है वह मैथिली में प्राप्त संस्करण से कुछ अलग है। +* प्रेमचंद हिंदी साहित्य की ही नहीं बल्कि भारतीय साहित्य की सर्वश्रेष्ठ विभूतियों में से हैं उनके महत्व को अब लोग कुछ कुछ समझने लगे हैं। +* उपन्यास एक ऐसी कला है जिसमें मनुष्य के समग्र जीवन को उसके सारे ब्यौरों में चित्रित करने की चेष्टा की जाती है। +* एक ही कहानी का अर्थ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है ओर न यह अर्थ है कि उस व्यक्ति से निकट तथा प्रत्यक्ष रूप से संबंध व्यक्तियों की कहानी हो। +* संगीत में यदि गला अच्छा हुआ और गायक या गायिका का चेहरा प्रीतिकर हुआ तो उतना सही एक सुर में गाए गए एक ही गाने के असर में बहुत फर्क हो जाता है। +* अच्छे से अच्छे नाटक रद्दी अभिनेताओं के खेले जाने पर निकृष्ट मालूम होते हैं और रद्दी से रद्दी नाटक भी अच्छे अभिनेताओं के हाथ में पढ़कर चमक उठता है। +* बच्चों को जब तक सदाचारी नहीं बनाया जाएगा और मानवता के आधारभूत सिद्धांत नहीं समझाए जाएंगे तब तक ना तो अच्छे नागरिक बन सकेंगे और ना ही अच्छे राष्ट्र निर्माता। +* सुख और शांति किसमें है? क्या अच्छा भोजन करने में हैं? अगर ऐसा है तो 24 घंटे किसी आदमी को अच्छा भोजन ही खिलाते रहो तो क्या वह सुखी होगा थोड़ी देर के बाद ही उसका पेट अफर जाएगा। +* क्या आपने कभी सुना है कि किसी को ज्यादा ज्ञान प्राप्त करने से बदहजमी हो गई हो? आदमी जितना ज्ञान बढ़ाता है उसको उतना ही सुख मिलता है। +* किसी काम को सीखने की दो रीतियां हैं या तो हम दूसरे लोगों से कोई बात सीखते हैं या किताबे पढ़कर। +* बार-बार रस्सी की रगड़ से पत्थर में भी निशान पड़ जाता है बार-बार अच्छी बातें सुनने को मिलेगी तो अच्छे बनोगे बुरी बात सुनते रहोगे तो बुरे ही बनोगे। + + +अगाथा किस्ट्री एक विश्वप्रसिद्ध उपन्यासकार हैं। इन्होंने अपराध उपन्यास, लघु कथाओं और नाटकों की रचना की। उन्हें अपने 66 जासूसी उपन्यासों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है। +* किसी के भी जीवन में सबसे खुशहाली के पल बचपन के ही होते है इसलिए बचपन का खुशहाल होना सबसे ज्यादा जरुरी है। +* मनुष्य की आदत होती है कि अपने साथ होने वाले हर अमंगल क��� लिए वह भगवान को दोषी ठहराता है ताकि वह अपनी मनमर्जी से काम करता रहे और बुरा होने पर भगवान की मर्ज़ी पर इसे डाल दें। +* हर चीज़ जो आप हासिल करना चाहते है उससे आपको प्यार होना चाहिए। उसकी कीमत भी चुकानी होती है। +* खुशहाल लोग भी असफल होते है, क्योंकि वो अपने बारे में अच्छा सोचते है। वो अपनेआप में इतने अच्छे होते है कि किसी की निंदा नहीं करते, किसी को फटकारते नहीं है। +* शैतान कोई सुपर ह्यूमन नहीं होते। हां, उनमें इंसानियत कम होती है। +* अपने लिए कोई भी ऐसा काम मत करो जो अन्य लोग आपके लिए कर सकते है। +* दुनिया में अपनी संतान होने से ज्यादा रोमांचक कुछ नहीं होता, हालांकि अपनी संतान भी रहस्यमय तरीके से अजनबी ही नज़र आती है। जबकि वह आपका ही अंश होता है। +* मैं नहीं समझती कि आवश्यकताएं आविष्कार की जननी है। मेरी नज़र में अविष्कार निष्क्रियता से उपजता है। संभवतः आलस्य से। ताकि वो हमें कष्टों से बचा सके। +* जहां तक बहुत ज्यादा रूपए की बात है, तो एक ही सलाह सबसे अहम है कि किसी पर भरोसा नहीं किया जाए। +* किसी भी महिला के लिए पुरातत्वविद आदर्श पति हो सकता है। जितनी महिला की उम्र बढ़ती जाती है, उतनी ही पति की उसमें रूचि बढ़ती जाती है। +* बहुत ज्यादा दया अक्सर अपराध ही बढ़ाता है और यह निर्दोष पीड़ितों के लिए घातक होता है। अगर लोगों को पीड़ित होने से बचाना है तो न्याय को पहले रखिए। दया को बाद में। +* अच्छी सलाह अक्सर नज़रअंदाज़ कर दी जाती है, लेकिन यह इस बात का कारण नहीं होना चाहिए कि सलाह दी ही नहीं जाए। +* कभी-कभी मैं बहुत ज्यादा दुखी हो जाती हूँ। डर मुझे घेर लेता है। लेकिन यह भी सही है कि यह जीवित रहने के लिए जरुरी बात है। + + +: शास्त्र अनन्त हैं, विद्याएं ढेरी सारी, समय अल्प और विघ्न हजार। (ऐसे में) जो सारभूत है वही वरेण्य है, जैसे हंस दूध को पानी से अलग करके पी जाता है। + + +भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि) इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते हैं और अग्नि इसे जला नहीं सकती है जल इसे गीला नहीं कर सकता है और वायु इसे सुखा नहीं सकती है। +: यह आत्मा प्रवचनों से नहीं मिलती है और न ही बौद्धिक क्षमता से अथवा शास्त्रों के श्रवण-अध्ययन से । जो इसकी ही इच्छा करता है उसेयह प्राप्त होता है, उसी के समक्ष यह आत्मा अपना स्वरूप उद्घाटित करती है। +: यह आत्मा बलहीन को प्राप्त नहीं होती है, न ही धनसंपदा, परिवार के विषयों में लिप्त रहने वाले को, और न तपस्यारत किंतु संन्यासरहित व्यक्ति को । जो विद्वान एतद्विषयक उपायों को प्रयास में लेता है उसी की आत्मा परब्रह्मधाम में प्रवेश करती है । + + +तुष्टीकरण Appeasement राजनय की वह शैली है जिसमें किसी आक्रामक शक्ति से सीधे संघर्ष से बचने के लिए उसे विभिन्न प्रकार की रियायतें दी जातीं हैं। +* अनुच्छेद 21, 30, 370 अल्पसंख्यकों के पक्ष में हैं और भेदभावमूलक है, इन्हें भारत के संविधान से निकाल देना चाहिए. संविधान में ऐसे प्रावधान किए जाएं कि भारत के नागरिकों में धर्म या पूजा पद्धति के आधार पर कोई भेदभाव न हो…. जो मुसलमान या दूसरे अल्पसंख्यक अपनी अलगाववादी प्रवृत्तियों को छोड़ने को तैयार नहीं हैं उन्हें विदेशी घोषित किया जाए और वोट देने के अधिकार से वंचित किया जाए। बलराज मधोक १९७० के दशक में प्रकाशित अपने लेख ‘अल्पसंख्यकों की समस्याएं और उनका समाधान’ में +* वर्तमान यूपीए सरकार के शासन में मुस्लिम तुष्टीकरण के दानव ने जिस तरह फिर से अपना सिर ऊपर उठाया है उसकी अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल निंदा करता है। यह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुसलमानों को 50 फीसदी आरक्षण देने का फैसला कर चुका है और अब यह इस यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा देने के हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करने जा रहा है। ये सब इसकी तुष्टीकरण की नीति के ठोस सबूत ही हैं। बताया जाता है कि इस सरकार ने सभी कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को निर्देश भेजा है कि वे मुसलमानों को आरक्षण देने के मामले में आंध्र प्रदेश सरकार का अनुकरण करें. इसका यह निर्देश भी उतना ही निन्दनीय है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सन 2005 में पारित प्रस्ताव + + +किसी विशेष राजनीतिक उद्देश्य के लिए किसी वर्ग विशेष का एक तरफ हो जाना और किसी विरोधी वर्ग का दूसरे तरफ हो जाना ध्रुवीकरण (polarization) कहलाता है। + + +: राजा की पूजा अपने देश में होती है लेकिन विद्वान की पूजा सर्वत्र होती है। + + +: ऐसा कोई अक्षर नहीं हैं जिसमें मन्त्रशक्ति ना हो, ऐसा कोई पौधा नहीं है जिसमें औषधीय गुण न हो तथा ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है अयोग्य (किसी काम का नहीं) हो। (परन्तु) ऐसे व्यक्ति ही दुर्लभ हैं जो हर व्यक्ति में गुण देख कर उन्हें सही काम में लगा सकें। + + +पथ्य से मतलब यह है कि ऐसे खान पान और र���न सहन से है जो रोगी को अपनाना चाहिये और जिसके पालन से उसका रोग ठीक हो और जल्दी शरीर को आराम मिले। महर्षि चरक ने ६ पहलू स्पष्ट किये हैं जिससे यह तय किया जा सके कि किस परिस्थिति में क्या खाने योग्य है अथवा नहीं। वे कहते हैं कि भोजन को पथ्य (खाने योग्य, स्वास्थ्य) और अपथ्य (खाने योग्य नहीं, हानिकारक) बनाने के लिए निम्न कारक प्रमुख हैं: +समय (कब उसे पकाया गया और कब उसे खाया गया) +स्थान जहां उसके कच्चे पदार्थ उगाए गए हैं (भूमि, मौसम और आसपास का वातावरण इत्यादि) +उसकी रचना या बनावट (रासायनिक, जैविक, गुण इत्यादि) +उसके विकार (सूक्ष्म और सकल विकार और अप्राकृतिक प्रभाव और अशुद्ध दोष, यदि कोई है तो) +आचार्य शुश्रुत चिकित्सा के दृष्टिकोण से विभिन्न प्रकार के आहार को उसके सकल मूल गुण से उसका अन्तर बताते हैं, और किस को किस परिस्थिति में क्या ग्रहण करना यह निम्न में बताते हैं। +: जो आहार आदि द्रव्य पथ (शारीरिक स्रोतों) में अपकार (हानि) करने वाला न हो और मन के लिए प्रिय हो अर्थात जो आहार द्रव्य शरीर और मन के लिए हानिकारक न हो उसे पथ्य कहते हैं । जो आहार शरीर एवं मन के लिए हानिकारक हो उसे अपथ्य कहते हैं। +: पथ्य पदार्थ भी मात्रा, काल (ऋतु भूमि (स्थान देह (शारीरिक स्थिति) एवं दोष की विभिन्न अवस्थाओं को प्राप्त कर अपथ्य हो जाता है और इन्हीं कारणों से अपथ्य पदार्थ भी पथ्य हो जाता है। आयुर्वेद ने बड़ी सटीक और महत्वपूर्ण बात इस व्याख्या में कही है कि कोई भी पदार्थ अपने आप में न तो पथ्य होता है और न अपथ्य बल्कि उपयोग की स्थिति, हेतु और पद्धति से ही वह पथ्य या अपथ्य सिद्ध होता है। +: व्याकरण छोड़कर किया हुआ अध्ययन, तूटी हुई नौका से नदी पार करना, और अयोग्य आहार के साथ लिया हुआ औषध – ये ऐसे करने के बजाय तो न करने ही बेहतर हैं। +: यदि आप अपने जीवन में पथ्य आहार का सेवन करते हैं तो आपको औषध की जरुरत ही नहीं पड़ेगी एवं अगर आप अपथ्य आहार का सेवन कर रहें है तो चाहे कितनी ही कारगर दवा क्यों न हो आपको उससे कुछ खास लाभ नहीं होगा। (अतः हमेशा पथ्य अपथ्य का खयाल रख कर ही आहार लें।) +: चिकनाई वाला भोजन खाने वालों तथा बलवानों के लिए व्यायाम सदैव स्वास्थ्यवर्धक है। उनके लिए सर्दी और वसन्त (आदि सभी ऋतुओं) में व्यायाम परम स्वास्थ्यवर्धक बताया गया है। +: भोजन खाने के पहले, आमलक फल को खाना, आरोग्य के लिये अभिलषणीय है। भोजन खाने के बाद, बदरी फल खाना अछ्छा रहेगा । कपिथ्थ फल को हमेश खा सकते हैं। कदली फल खाना कभी वांछनीय नहीं है। + + +* आंशिक संस्कृति शृंगार की ओर दौड़ती है, अपरिमित संस्कृति सरलता की ओर। बोबी + + +: चोर के अलावा कोई दूसरा मृत्युपाश नहीं है। +: धैर्य रखना, क्षमा, दम (मन को सदा धर्म में प्रवृत्त कर अधर्म से रोक देना चोरी न करना, शौच (आन्तरिक और वाह्य स्वच्छता रखना इन्द्रियों को वश में रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध ये दश धर्म के लक्षण हैं । +: विद्यारुपी धन को कोई चुरा नहीं सकता, राजा ले नहीं सकता, भाईयों में उसका भाग नहीं होता, उसका भार नहीं लगता और) खर्च करने से बढता है । सचमुच, विद्यारुप धन सर्वश्रेष्ठ है । +* चोर को पकड़ने का काम एक चोर को दो (क्योंकि वह एक चोर के हथकंडो को जानता है। सर रोबर्ट होवार्ड +* आप एक चोर को फांसी से बचाइये और वह आपका गला काटेगा। विलियम कमडेंन +* एक व्यक्ति संत है या चोर, इस बात का पता उसके बोलते ही चल जाता है क्योंकि अंदर का छुपा चरित्र मुहँ के रस्ते बाहर निकल आता है। कबीर +* चोर या धोखेबाज, जिसने अपने अपराध द्वारा महान धन अर्जित किया है, कानून के कठोर दंड से बचने के छोटे चोर से बेहतर मौका है। थॉर्स्टेन वेब्लेन +* एक व्यक्ति के विचारों की चोरी प्लैगरिज्म कहलाती है; कई से चोरी करना अनुसंधान है। स्टीवन राइट +* यहां तक ​​कि दुनिया का सबसे अच्छा चोर समय की चोरी नहीं कर सकता। हेल्पर कार्टर +* अच्छे कलाकार नक़ल करते हैं महान कलाकार चोरी करते हैं। पब्लो पिकासो +* थोड़ा चोरी करें और वे आपको जेल में डाल देंगे, बहुत चुराएं और वे आपको राजा बना देंगे। बॉब डिलन +* छोटी सी चोर को कैद किया जाता है लेकिन बड़े चोर एक सामंती स्वामी बन जाता है ज़ुआंग +* चोर का मानना ​​है कि हर कोई चोरी करता है। एडगर वाटसन हॉवे +* कोई विचार चोरी कर सकता है, लेकिन कोई भी टेलेंट या जुनून चोरी नहीं कर सकता है। टिम फेरिस +* दासता चोरी, जीवन की चोरी, काम की चोरी, किसी भी संपत्ति की चोरी या उत्पादन, एक दास द्वारा पैदा हुए बच्चों की चोरी भी हो सकती है। केविन बाल्स +* चोर को पकड़ने के लिए दुसरे चोर को सेट करों। – कैलिमाचुस +* आप आज जो कर सकते हैं, वह कल के लिए नहीं टालें, देरी समय का चोर हैं। – चार्ल्स डिकेंस +* एक छोटी चोरी जेल का कैदी बना सकती हैं, लेकिन बड़ी चोरी महल का राजा बना देती हैं। +* चोर वह नहीं जो चोरी ��रता हैं, बल्कि वह हैं जो पकड़ा जाता हैं। +* चोरी, चोर की कलाकारी है। +* विचारों की चोरी तो की जा सकती है, लेकिन अमल या जुनून को कोई नहीं चुरा सकता। + + +आतंकवाद के खिलाफ युद्ध” एक अव्यवहारिक अवधारणा है अगर इसका मतलब आतंकवाद से आतंकवाद को नष्ट करना है। जॉन मोर्टिमर +* अन्य लोगों को आतंकित करके आतंकवाद का जवाब देना सही नहीं है। हावर्ड ज़िन +* आतंकवाद असंभव की मांग करने की रणनीति है, और वो भी बन्दूक की नोक पर। क्रिस्टोफर हिचन्स +* आतंकवाद एक मनोवैज्ञानिक समाज विरोधी गतिविधि है। आतंकवादी भय, अनिश्चितता, और समाज में विभाजन पैदा करके हमें और हमारे व्यवहार को बदलने की कोशिश करते हैं। व्लादिमीर पुतिन +* आतंकवाद और धोखा शक्तिशालियों के नहीं बल्कि कमजोरों के हथियार हैं।- महात्मा गांधी +* आतंकवाद और बीमा दोनों डर बेचते हैं – और व्यापार व्यापार है। लियम मैकैरी +* आतंकवाद का उद्देश्य आतंकवाद है। उत्पीड़न का उद्देश्य उत्पीड़न है। अत्याचार का उद्देश्य अत्याचार है। हत्या का उद्देश्य हत्या है शक्ति का उद्देश्य शक्ति है। अब क्या आपने मुझे समझना शुरू कर दिया है जॉर्ज ऑरवेल +* आतंकवाद का उद्देश्य न सिर्फ हिंसक कार्रवाई करना भर नहीं है। यह आतंक के उत्पादन में है। यह भड़काने, विभाजित करने, और घातक अंजाम देते हैं जो वे आगे आतंक का औचित्य साबित करने के लिए उपयोग करते हैं। क्जेल्ल माग्ने बांडइविक +* आतंकवाद का कोई भी धर्म नहीं है, आतंकवादियों का भी कोई धर्म नहीं है और वे किसी के भी धर्म के मित्र नहीं हैं। मनमोहन सिंह +* आतंकवाद का विरोध जरूरी है क्योंकि यदि आप आवाज़ नहीं उठाएंगे तो आतंकवाद फैलता जाएगा। मलाला यूसूफ़जई +* आतंकवाद की कोई राष्ट्रीयता या धर्म नहीं है। व्लादिमीर पुतिन +* आतंकवाद के बारे में भयानक बात ये है कि अंततः ये उन्हें नष्ट कर देता है जो इसका अभ्यास करते हैं। टैरी वेट +* आतंकवाद के लिए इस्लाम को दोषी ठहराना कुछ ऐसा ही है जैसे उपनिवेशवाद के लिए ईसाई धर्म को दोष देना। जो कोई भी निर्दोष व्यक्ति को मारता है वो ऐसा ही है जैसे उसने पूरी मानवता को मार दिया हो। सूरत अल- मा’इदाह +* आतंकवाद को रोकने के बारे में हर कोई चिंतित है। ठीक है, इसका एक बहुत आसान तरीका है: इसमें भाग लेना छोड़ दें। नोम चौमस्की +* आतंकवाद को हमेशा के लिए ख़त्म करने के लिए हमें इसके मूल कारणों को संबोधित करना चाहिए… मेरा मानना है कि बंदूकों पर खर्च करने की बजाये संसाधनों को गरीब लोगों का जीवन सुधारने में लगाना एक बेहतर रणनीति है। मुहम्मद युनुस +* आतंकवाद क्रोध की अभिव्यक्ति नहीं है। आतंकवाद एक राजनीतिक हथियार है। डैन ब्राउन +* आतंकवाद गरीबों का युद्ध है, और युद्ध अमीरों का आतंकवाद है। पीटर उस्तिनौव +* आतंकवाद जेम्स बौंड या टॉम क्लैंसी नहीं है। माइकल मार्शल +* आतंकवाद युद्ध से भी बदतर है। एक आतंकवादी के कोई नियम नहीं होते। एक आतंकवादी तय करता है कि कब, कैसे, कहाँ और किसको मारना है। भारत ने युद्धों की तुलना में आतंकी हमलों में अधिक लोगों को खोया है। नरेंद्र मोदी +* आतंकवाद शांति, सुरक्षा, समृद्धि और लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है। डॉ. अब्दुल कलाम +* आतंकवाद सभी सभ्य राष्ट्रों द्वारा ग़ैरकानूनी घोषित किया जाना चाहिए — स्पष्ट या तर्कसंगत नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि लड़ा और मिटाया जाना चाहिए। मासूम लोगों और असहाय बच्चों की हत्या को कुछ भी सही नहीं ठहरा सकता, ना ठहरा पायेगा। एली वीज़ेल +* आतंकवाद साम्राज्य की कीमत है। यदि आप कीमत नहीं चुकाना चाहते हैं, तो आपको साम्राज्य को छोड़ देना चाहिए। पैट ब्यूकैनन +* आतंकवादी और स्वतंत्रता सेनानी के बीच का अंतर दृष्टिकोण की बात है: यह सब देखने वाले और इतिहास के फैसले पर निर्भर करता है। पेन्टटी लिंकोला +* आतंकवादी हमले हमारी सबसे बड़ी इमारतों की नींव को हिला सकते हैं, लेकिन वे अमेरिका की नींव को नहीं छू सकते। जॉर्ज डब्ल्यू बुश +* आप आतंकवाद के खिलाफ युद्ध कैसे छेड़ सकते हैं जब युद्ध खुद आतंकवाद है हावर्ड ज़िन +* आप आतंकवाद पर युद्ध नहीं जीत सकते। ये जलन पर युद्ध के समान है। डेविड क्रॉस +* आप दहशतगर्दी को कैसे हराएंगे? दहशत में मत आइये। सलमान रशदी +* किसी भी तरह का आतंकवाद स्वतंत्रतावादी मूल्यों पर हमला है। पी. जे. ओ’रौर्के +* कुछ लोगों के लिए किसी व्यक्ति को अल्लाह की इबादत करते देख लेना ही उसे आतंकवादी मानने के लिए काफी है। डेमियन लुईस +* कोई भी धर्म आतंकवाद नहीं सिखाता। आतंकवाद को धर्म से दूर किया जाना चाहिए। नरेंद्र मोदी +* चाहें वो किसी भी तरह का आतंकवाद हो स्वतंत्रतावादी मूल्यों पर हमला है। पी. जे. ओरौर्के +* जो चीज आतंकवाद को अलग करती है वो है जानबूझकर और सोच समझ कर मासूम लोगों को निशाना बनाना। बेंजामिन नेतन्याहू +* टेररि���्म से लड़ना गोलकीपर होने के सामान है। आप सौ शानदार बचाव कर सकते हैं लेकिन लोग जो शॉट याद रखते हैं वो वही होता है जो आपको पार करके चला जाता है। पॉल विलकिंसन +* तालिबान जैसे धार्मिक चरमपंथियों को जो डराता है वो अमेरिकन टैंक या बम या गोलियां नहीं हैं। वो किताबा लिए एक लड़की है। – मलाया यूसुफजई +* धर्म कभी समस्या नहीं होता; वो तो लोग होते हैं जो सत्ता हासिल करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। जूलियन कैसाब्लांकास +* धर्म का उद्देश्य खुद को नियंत्रित करना है, दूसरों की आलोचना करना नहीं। – दलाई लामा +* बंदूक से आप आतंकवादियों को मार सकते हैं, शिक्षा के साथ आप आतंकवाद को मार सकते हैं। मलाला यूसूफ़जई +* मुझे दृढ़ विश्वास है कि आतंकवाद, किसी भी आकार या रूप में, मानवता के खिलाफ है। आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता होनी चाहिए। नरेन्द्र मोदी +* मेरी नौकरी का सबसे कठिन हिस्सा आतंक से युद्ध के लिए इराक को जोड़ना है। जॉर्ज डबल्यू बुश +* मैं इराक़ में युद्ध के खिलाफ था क्योंकि मुझे यकीन नहीं था कि ये हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में है, और मुझे अभी भी यकीन नहीं है। हमने (अमेरिका) जो किया वो बेसबॉल बैट से मधुमक्खी के छत्ते पर मारने की तरह था। जैरी स्प्रिंगर +* मैं किसी भी परिस्थिति में जान से मारना या हत्या करना या आतंकवाद को अच्छा नहीं मानता। महात्मा गाँधी +* मैं किसी भी परिस्थिति में जान से मारना या हत्या करना या किसी तरह के आतंकवाद को अच्छा नहीं मानता। मैं मरने के लिए तैयार हूँ, पर ऐसी कोई वज़ह नहीं है जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ। महात्मा गाँधी +* मैं चरमपंथियों के बेटे-बेटियों के लिए शिक्षा चाहती हूँ, खासतौर से तालिबानियों के। मलाला युसुफ़ज़ई +* मैं मरने के लिए तैयार हूँ, पर ऐसी कोई वज़ह नहीं है जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ महात्मा गाँधी +* यदि आप और मैं इस समय दुनिया में किसी के भी खिलाफ हिंसा या नफरत का एक विचार कर रहे हैं, तो हम दुनिया के घायल होने में योगदान दे रहे हैं। दीपक चोपड़ा +* यदि आप दहशतगर्दी से लड़ते हैं, तो ये भय पर आधारित है। यदि आप शांति को बढ़ावा देते हैं; तो ये आशा पर आधारित है। ग्रेग मॉर्टनसन +* यदि लोगों को वो [9/11] करने के लिए उकसाना आतंकवाद है, और यदि उन लोगों को मारना जिन्होंने हमारे बेटों को मारा है आतंकवाद है, तो इतिहास को गवाह बनाने दीजिये कि हम आतंकवादी ��ैं। ओसामा बिन लादेन +* यदि हम आतंकवाद के जवाब में मानव अधिकारों और क़ानून के शासन को नष्ट कर देते हैं तो ये उनकी जीत है। जोय्ची इटो +* यदि हम हिंसक प्रतिक्रिया देते हैं तो क्या आतंकवादी डर जायेंगे- क्या वे विचलित हो जायेंगे? नहीं, उन्हें ये पसंद है? वे हिंसा के शौक़ीन है। वे और आतंकवाद फैलाने के लिए और अधिक कारणों को पसंद करते हैं। हावर्ड ज़िन +* युद्ध को युद्ध से ही समाप्त किया जा सकता है, और बंदूक से छुटकारा पाने के लिए बंदूक उठाना आवश्यक है। माओ ज़ेडॉन्ग +* युद्ध को युद्ध से ही समाप्त किया जा सकता है, और बंदूक से छुटकारा पाने के लिए बंदूक उठाना आवश्यक है। आप मित्र बदल सकते हैं पर पडोसी नहीं। अटल बिहारी वाजपेयी +* वायरस की तरह आतंकवाद हर जगह है। जीन बाउड्रिलार्ड +* सुधारकर्ताओं द्वारा स्थापित आतंकवाद उतना ही बुरा हो सकता है जितना की सरकारी आतंकवाद, और ज्यादातर उससे भी बुरा क्योंकि यह एक निश्चित मात्रा में झूठी सहानभूति खींचता है। महात्मा गाँधी +* सुसाइड टेररिज्म तब रुकता है जब हम बाहर हस्तक्षेप करना छोड़ देते हैं। रॉन पॉल +* स्लेवरी और पायरेसी की तरह, आधुनिक दुनिया में आतंकवाद का कोई स्थान नहीं है। जॉर्ज डब्ल्यू बुश +* हम आतंकवादियों से लड़कर आतंकवाद को पैदा नही करते। हम उन्हें अनदेखा करके आतंकवाद को आमंत्रित करते हैं। जॉर्ज डब्ल्यू बुश +* हम ग्रेनेडा से अफगानिस्तान तक हर किसी पर हमला कर सकते हैं, लेकिन अगर कोई हमारे खून की एक बूंद भी बहाता है, तो ये आतंकवाद है। पॉल क्रिस्टोफर +* हम दहशत के दौर में जी रहे हैं, और जो हम टेलीविज़न पर देखते हैं और खुद को यकीन करने देते हैं उससे हट कर आतंकवाद का असल लक्ष्य लोगों को नहीं बल्कि विचार को मारना है; ताकि किसी समाज का हौसला इतना टूट जाए कि वो अन्दर से नष्ट हो जाए। जॉन लार +* हम प्रेम का मुखौटा पहने हिंसा के द्वारा प्रभावी ढंग से खुद को नष्ट कर रहे हैं। आर डी लाइंग +* हमारे मूल्य और जीने का तरीका रहेंगे- आतंकवाद नहीं होगा। जॉन लिन्डर +* हमें आतंकवादियों और अपहरणकर्ताओं की पब्लिसिटी का ऑक्सीजन, जिसपर वे निर्भर हैं, को रोकने का तरीका ज़रूर ढूँढना चाहिए। मार्गरेट थैचर +* हर नेता, और हर शासन, और हर आंदोलन, और हर संगठन जो आतंकवाद की रेखा को पार करता है उसे सभ्य मानव जीवन के उपदेश से हटा दिया जाना चाहिए। एलन कीज +* हिंसा एक बीमारी है। आप कि���ी रोग का इलाज उसे और लोगों तक फैला कर नहीं करते। गेम ऑफ़ थ्रोन्स + + +मेरे काम के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि मेरे विचार मेरी वास्तविकता हो सकते हैं, चाहे वह कितना भी अजीब क्यों न हो। मैं इसके लिए आप लोगों का हमेशा आभारी रहूंगा मुझे परवाह नहीं है कि विचार कितना अजीब है, मैं सिर्फ मजा करना चाहता हूं।]] + + +* विशिष्ट नीली साड़ियाँ पहने हुए ५२ हजार महिला सामुदायिक स्वास्थ्य स्वयंसेविकाएँ नेपाल की स्वास्थ्यव्यवस्था की रीढ़ हैं। सन १९८८ से ही इन महिलाओं ने पूरे नेपाल में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवायें प्रदान की हैं। वे अतिसार और न्युमोनिया की चिकित्सा करतीं हैं जो शिशुओं की मृत्यु का मुख्य कारण है। इसके अलावा अन्य रोगों की भी वे चिकित्सा करतीं हैं जो नेपाल के गाओं में रहने वाले लोगों को होते रहते हैं। अन्य देशों ने ऐसे ही प्रोग्राम शुरू किये हैं लेकिन नेपाल का यह प्रोग्राम संसार में सबसे बड़ा और सबसे अधिक समय से चलने वाला सफल प्रोग्राम है, ऐसा नार्वे के स्वाश्य सेवा ज्ञान केन्द्र के वरिष्ट वैज्ञानिक क्लेयर ग्लेन्टन ने कहा। The Women Who Keep Nepal Healthy, The Atlantic September 23, 2015) + + +संजीव त्यागी जन्म 29 जून 1971) एक भारतीय फिल्म और टेलीविजन अभिनेता हैं। वह पिछले 22 वर्षों (2000-वर्तमान) से सक्रिय हैं। +*केवल पोशाक ही नहीं बल्कि चरित्र भी दिखाई देना चाहिए। + + +* आप विचारों को दबाकर उनको नष्ट नहीं कर सकते। आप केवल उनकी उपेक्षा करके ही उन्हें नष्ट कर सकते हैं। Ursula K. Le Guin, The Dispossessed +* साम, दान, भेद और दण्ड इन चार का समूह तथा माया, उपेक्षा और इन्द्रजाल, ये सात उपाय प्रसिद्ध हैं। +* सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। स्वामी विवेकानन्द +* परिस्थिति अनुसार अपने पड़ोसी राज्यों के साथ मित्रता, शत्रुता, आक्रमण, उपेक्षा, संरक्षण अथवा फूट डालने का प्रयत्न करना चाहिये। याज्ञवल्क्य स्मृति +* एकता की अभिव्यक्ति भारतीय संस्कृति की सोच रही है। अपने राष्ट्रीय पहचान की उपेक्षा भारत के मूलभूत समस्याओं का प्रमुख कारण है। दीनदयाल उपाध्याय +* सांख्यिकी सबसे सफल सूचना का विज्ञान रहा है। जो लोग इसकी उपेक्षा करते हैं उन्हें इसका पुनः आविष्कार करने का कष्ट उठाना पड़ेगा। Bradley Efron +* समर्थ की उपेक्षा विश्व में कोई नहीं करता इसीलिए सामर्थवान होना आवश्यक है। मोहन भागवत +* किसी के प��रति उदासीनता और उपेक्षा का भाव रखने से अच्छा है खुलकर नापसंद करना। जे.के. रॉलिंग +* प्रतिशोध लेते समय मनुष्य अपने शत्रु के समान ही क्रूर होता है जबकि उसकी उपेक्षा कर देने पर वह महान बन जाता है। फ्रांसिस बेकन + + +जो मान देने पर हर्षित नहीं होता अपमान होने पर क्रोधित नहीं होता तथा स्वयं क्रोधित होने पर कठोर शब्द नही बोलता, वही उत्तम साधु है। +: जो किसी दुर्बल का अपमान नहीं करता, सदा सावधान रहकर शत्रुके साथ बुद्धिपूर्वक व्यवहार करता है, बलवानों के साथ युद्ध पसन्द नहीं करता तथा समय आने पर पराक्रम दिखाता है, वही धीर है। +* जब भी किसी ने मुझे अपमानित किया है, तो मैं अपनी आत्मा को इतना ऊंचा रखने की कोशिश करता हूं कि अपमान वहाँ तक पहुंच ही नहीं सकता। रेने देकार्त +* कोई भी आपकी अनुमति के बिना लगातार आपकी भावनाओं का अपमान या चोट नहीं कर सकता है। आप तय करते हैं कि आपकी सीमाएं क्या हैं। लेस ब्राउन]] + + +: जो उद्दण्ड व्यक्ति निरपराधियों को सता कर अपराध करता है, वह मेरे द्वारा उखाड़ फेंका जायेगा, चाहे वह बाजूबंद तथा अन्य अलंकारों से युक्त स्वर्ग का निवासी ही क्यों न हो। +: अपराध के अनुरूप ही दंड देना चाहिये। +: जरे अंग में संकु ज्यौं, होत विथा की खानि॥ मतिराम +: कपट वचन बोलना अपराध से भी अधिक दुखदायी है। वे कपट वचन तो जले हुए अंग में मानो कील चुभाने के समान अधिक दुःखदायक और असत्य प्रतीत होते हैं। +* समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध । +: जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध ॥ रामधारी सिंह 'दिनकर' +* सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। स्वामी विवेकानन्द +* अपराध करने के बाद भय उत्पन्न होता है और यही उसका दंड है। वाल्टेयर +* अपराध करने वाले बड़े अन्धविश्वासी होते हैं। बैटमैन (१९३९) + + +लुसी स्टोन 13 अगस्त, 1818 18 अक्टूबर, 1893) १९वीं शताब्दी की अमेरिकी नारीवादी चिन्तक और कार्यकर्ता थीं। वे एक प्रखर वक्ता उन्मूलनवादी और मताधिकारवादी थीं। वे नारियों को पुरुषों के बराबर अधिकार देने के लिये मुखर रहीं। वे स्वयं 1847 में, मैसाचुसेट्स से कॉलेज की डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला बनीं। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिये तथा गुलामी के खिलाफ आवाज उठाई। अमेरिकी ईसाई नारियाँ अपने पति का कुलनाम (सरनेम) अपने नाम में जोड़तीं थीं, किन्तु स्टोन ने विवाह के उपरा��्त अपने जन्म के नाम का ही उपयोग करती रहीं। +* हम, संयुक्त राज्य अमेरिका के लोग जिसमें 'हम लोग' में नारियों को शामिल नहीं किया गया। +* हम अधिकार चाहते हैं। आटा-व्यापारी, घर बनाने वाला और डाकिया हमसे (पुरुषों की अपेक्षा) कम नहीं लेते। लेकिन जब हम इन सभी का भुगतान करने के लिए पैसे कमाने का प्रयास करते हैं, तो वास्तव में, हम अंतर पाते हैं। +* मैं केवल दासों के लिए नहीं, बल्कि हर जगह पीड़ित मानवता के पक्ष में बोलना चाहती हूँ, विशेष रूप से मुझे नारियों की उन्नति के लिए श्रम करना है। +* उन्मूलनवादी होने से पहले मैं एक नारी हूँ। मुझे नारियों के लिए बोलना चाहिए। +* नारियों के लिए शिक्षा का अधिकार और बोलने की आजादी प्राप्त की गई है। अब लंबे समय में हर अच्छी चीज प्राप्त होना निश्चित है। +* अगर एक महिला ने स्क्रबिंग करके एक डॉलर कमाया, तो उसके पति को डॉलर लेने और उसके साथ नशे में धुत होने और बाद में उसे पीटने का अधिकार है। यह उसका डॉलर है। +* महिलाएं बंधन में हैं; उनके कपड़े उनके किसी भी व्यवसाय में संलग्न होने में एक बड़ी बाधा हैं। +* मुझे विश्वास है कि नारी का प्रभाव, किसी अन्य शक्ति से पहले इस देश को बचाएगा। + + +: राजा स्वयं ही न्यायकर्ता (पूछने के बाद विचारकर न्याय करने वाला) बने या किसी शास्त्रज्ञ ब्राह्मण को न्यायकर्ता बनाये। +: यदि राजा स्वयं कार्यनिर्णय न कर रहा हो तो उसे किसी विद्वान ब्राह्मण को कार्यनिर्णय में लगाना चाहिये। +* न्यायधीश को तीक्ष्ण बुद्धि होने, अधिक योग्य, प्रदर्शनीय होने, सम्मानित और पूर्ण विश्वस्त होने के बजाय अधिक विचारपूर्ण होना चाहिए। इससे भी ऊपर ईमानदारी और सच्चाई उनका असली गुण हैं। फ़्रांसिस बेकन + + +मृच्छकटिक शूद्रक द्वारा रचित प्रसिद्ध संस्कृत नाट्यकृति है। +* राजाज्ञा से रक्षित, मालियों से रक्षित फल और फूलों से सुशोभित, वायु के न होने से शान्त, लताओं से आलिंगित ये वृक्ष कई पत्नियों वाले पुरुषों की भाँति सुखभोग कर रहे हैं। मृच्छकटिक +* एक अयोग्य व्यक्ति के प्रवेश से ही ऐसा लगता है जैसे इस विशाल भवन का हृदय विदीर्ण हो गया हो मृच्छकटिक +* दीन दरिद्रता तो इस संसार में सभी की, आशंकाओं की जड़ है। मृच्छकटिक +* न्याय के पराधीन होने के कारण वादी-प्रतिवादी के मन की बात जान लेना हम लोगों के लिए कितना कठिन है! वे लोग सचाई और न्याय से हीन, किन्तु तर��कपूर्ण, अभियोग पेश करते हैं। रागाभिभूत होकर अपने दोषों को नहीं देखते। फलत: दोनों पक्षों से परिवर्धित दोष ही राजा तक पहुँच पाता है। संक्षेप में, न्यायाधीश को निन्दा ही हाथ आती है, उसकी कीर्ति तो दूर ही बनी रहती है। सज्जन भी तो यहाँ अपने दोष नहीं बताते। वे भी तर्कसम्मत दोषों का1 उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। वे दोनों पक्षों के दोषों से लिप्त होकर पाप करते हैं। अत: वे भी नष्ट हो जाते हैं, पर संक्षेप में, न्यायाधीश को निन्दा ही हाथ लगती है–उसकी कीर्ति तो दूर ही बनी रहती है। न्यायाधीश को धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र जानना चाहिए। उसे वादी-प्रतिवादी के कपट व्यवहार को समझने में दक्ष होना चाहिए। उसे क्रोध-रहित होना ही ठीक है। वह खूब बोलने में समर्थ हो, मित्र, शत्रु, पुत्र और स्वजनों को एक दृष्टि से देखे। उचित रूप से सबके अभियोगों को सुन-समझकर निर्णय दे। निर्बलों को पालनेवाले, धूर्तों को दण्ड देनेवाले, धर्म में ही सारा लोभ लगाए रखनेवाले न्यायाधीश को असली बात जाँचने में और राजा का कोप दूर करने में लगा रहना चाहिए। मृच्छकटिक +* सूर्योदय के समय यदि ग्रहण पड़े तो वह किसी बड़े आदमी की मौत की सूचना देता है मृच्छकटिक +* आपत्ति के समय मनुष्य की एक भूल पर अनेक विपत्तियाँ आ एकत्र होती हैं। मृच्छकटिक +* आकाश में रहनेवाले चन्द्रमा और सूर्य पर भी विपत्ति आती है। फिर पैदा होनेवाले पशु-पक्षी और मृत्यु से डरनेवाले मनुष्यों की तो बात क्या है। संसार में कोई उठकर गिरता है, कोई गिरकर उठता है। और फिर पताका के उठने-गिरने की तरह लाश भी शूल पर उठती-गिरती दिखाई देती है। इसे समझकर आत्मा को धैर्य दो। मृच्छकटिक +* कमल के पत्ते पर गिरे हुए जलबिन्दु की भाँति चंचल दरिद्र के भाग्य से खेल करते हो मृच्छकटिक +* क्या ब्राह्मणी मुझपर दया करती है? कितना दुःख है! मैं कितना दरिद्र हो गया हूँ! भाग्य के दोष से धन का अभाव हो जाने से मुझे स्त्रीधन देकर पत्नी ने दया की है! कार्य से पुरुष स्त्री जैसा हो जाता है और कार्य से ही स्त्री पुरुष बन जाती है। किन्तु मैं दरिद्र कहाँ हूँ? जैसा जो कुछ पति के पास हो, उसीके अनुसार घर चलानेवाली पत्नी, सुख-दुःख में एक-से ही भाव रखनेवाला आप जैसा मित्र और सत्य का न छोड़ना यह सब तो दरिद्रता में दुर्लभ वस्तुएँ हैं। मृच्छकटिक +* दुःख का अनुभव कर लेने पर ही सुख का आगमन आनन्द देता है। लेकिन जो व्यक्ति सुख भोग लेने के बाद दरिद्र हो जाता है, वह शरीर धारण करते हुए भी मुर्दे की तरह ही होता है। मृच्छकटिक +* इस लोक में अच्छा कुल एक महावृक्ष है जो धनरूप फल देता है, किन्तु वेश्यारूपी पक्षियों के खा लेने के कारण यह वृक्ष भी निष्फल हो जाता है। प्रेम जिसका ईंधन है, सम्भोग जिसकी ज्वाला है वह काम की ही अग्नि है जिसमें पुरुष अपना धन-यौवन सभी होम देते हैं। मृच्छकटिक +* ग्रीष्म से व्याकुल होकर मैं जिस शाखा के नीचे छाया के लिए आया, अनजाने में मैंने उसीके पत्तों को काट गिराया मृच्छकटिक +* बातों में स्वभाव से ही स्त्रियाँ चतुर होती हैं। पुरुषों की चतुरता तो शास्त्र के उपदेश से प्राप्त होती है। मृच्छकटिक +* गाड़ी के बारे में क्या पूछना! काम रूपी सागर के प्रेम-निर्मल जल में आप लोगों के कुच, नितम्ब, और जँघा ही मनोहर गाड़ियाँ हैं। तरह-तरह के मानवों और पशु-पक्षियों से युक्त वसंतसेना के आठों प्रकोष्ठ देख कर मुझे सचमुच विश्वास हो गया है कि मैंने एक ही जगह स्वर्ग, मर्त्य और पाताल लोक देख लिया है। मेरे मृच्छकटिक +* गुणी दरिद्र निर्गुण धनिकों के ही समान नहीं, बल्कि उनसे कहीं बढ़कर होता है। मृच्छकटिक +* दीनों के लिए कल्पतरु, अपने ही गुणों से विनम्र, सज्जनों के पोषक, विनीतों के लिए आदर्श, सच्चरित्रता की कसौटी, शील की मर्यादा के समुद्र, लोक से उपकारी, कभी किसी का भी वे अपमान न करनेवाले, पुरुष के गुणों के निधान, सरल और उदार चित्तवाले–अनेक गुणों से युक्त मृच्छकटिक +* हाथी खम्भे में बाँधकर और घोड़ा लगाम के ज़ोर से वश में किया जाता है और नारी हृदय से अनुरक्त होने पर ही वशीभूत होती मृच्छकटिक +* संसार में मनुष्यों को स्त्री और मित्र दोनों बड़े प्रिय हैं। पर इस समय मित्र बन्दी है, अत: वह सैकड़ों स्त्रियों से भी ऊँचा है। अब मैं उतरता हूँ। मृच्छकटिक +* युवकों के महोत्सव में कौन-सा सौभाग्यशाली आपसे अनुगृहीत हुआ है? बताइए तो! राजा है कोई, या राजवल्लभ है जो सेवित हुआ है? वसंतसेना नहीं सखि! मैं तो रमण करना चाहती हूँ, सेवा करना नहीं। मृच्छकटिक +* हम लोग पराए घर में रहते हैं, दूसरे के अन्न पर पलते हैं, परस्त्री और परपुरुष के संयोग से जन्म लेते हैं। दूसरों के धन पर आश्रित रहते हैं। हममें कोई गुण नहीं है। हम बन्धुल तो हाथी के बच्चे की भाँति मस्त स्वच्छन्द मौज़ करते हैं। मृच्छकटिक +* आठवीं राशि पर सूर्य है? किसकी चौथी राशि पर चन्द्रमा है? किसकी छठी राशि पर शुक्र है? किसकी पाँचवी राशि पर मंगल है? बताओ! किसकी जन्मराशि से छठी राशि पर बृहस्पति है, और किसकी नवीं राशि पर शनि है कि चंदनक के जीते-जी, वह गोपपुत्र आर्यक मृच्छकटिक +* कभी-कभी कोई भला आदमी धन देकर वध्य को छुड़ा लेता है। कभी राजा के पुत्र पैदा हो जाता है, जिसकी प्रसन्नता में उत्सव होता है और सभी मारे जानेवाले छोड़ दिए जाते हैं। कभी हाथी छूट जाता है तो भगदड़ में वध्य पुरुष भी भाग निकलता है। कभी-कभी राज्य-परिवर्तन हो जाता है, जिससे सब बन्दी छूट जाते हैं। मृच्छकटिक + + +सिन्धु घाटी की सभ्यता दक्षिण एशिया के उत्तरी-पश्चिमी भाग में स्थित एक कांस्ययुगीन सभ्यता थी। वर्तमान अनुमानों के अनुसार यह सभ्यता ३३०० ईसापूर्व से लेकर १३०० ईसापूर्व तक अस्तित्व में थीऔर २६०० ईसापूर्व से लेकर १९०० ईसापूर्व तक सभ्यता के शिखर पर थी। अन्य प्राचीन सभ्यताओं की तुलना में यह सबसे अधिक विस्तृत थी। इस सभ्यता का विस्तार वर्तमान अफगानिस्तान के उत्तर-पूर्वी भाग से लेकर पाकिस्तान होते हुए भारत के पश्चिमी और पश्चिमोत्तर भाग तक था। ये क्षेत्र सिन्धु नदी तथा अन्य सदानीर नदियों । +*[हड़प्पा सभ्यता का धर्म] सभी विशेषताओं में भारतीय है और आज के जीवन्त हिन्दू धर्म से उसे अलग करना बहुत कठिन है। सर जॉन मार्शल (सन १९३१ में यह कोएनराद एल्स्ट Elst, Koenraad) द्वारा २०१८ में Still no trace of an Aryan invasion: A collection on Indo-European origin" में उद्धृत + + +विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल वी एस नैपाल 17 अगस्त 1932 11 अगस्त 2018) भारत-नेपाल मूल के ब्रिटिश नागरिक थे। उनका जन्म त्रिनिनाद में हुआ और वहीं पले बढ़े। सन २००१ में उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। +* एकमात्र झूठ जिसके लिए हमें वास्तव में दंडित किया जाता है, वह है जो हम स्वयं से कहते हैं। +* अधिकांश लोग वास्तव में स्वतंत्र नहीं हैं। संसार में वे उस स्थान तक ही सीमित हैं जो उन्होंने स्वयं के लिये बनाया है। अपनी दृष्टि की संकीर्णता से वे खुद को कम संभावनाओं तक सीमित कर लेते हैं। +* संसार वही है जो (दिखता) है। जो मनुष्य कुछ भी नहीं हैं और जो खुद को कुछ भी बनने नहीं देते हैं, इसमें उनके लिये कोई जगह नहीं है। ए बेंड इन द रिवर, वी.एस. नायपॉल + + +भोजपुरी समाज में कहवतों का पग-पग पर उपयोग होता है। इन कहावतों में भोजपुरिया समाज और माटी की महक है, यह उस समाज के चिन्तन की गहराई का प्रतिबिम्ब भी है। कहावत का प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है अर्थात कहावत का वाक्य में प्रयोग किया जाना आवश्यक नहीं है। सिर्फ कहावत कही जाये तो भी उसका आशय, मतलब या भावार्थ व्यक्त हो जाता है। +:अर्थ- किसी को वही काम करने को कहना जो उसको अच्छा लगे। +:अर्थ- दूसरे की वस्तु पर अपना अधिकार समझना। +:अर्थ- बड़ को इज्जत और छोट का अपमान। +:अर्थ- वह काम करना जिसकी आवश्यकता न हो। +:अनुवाद- पुत्र और लोटा बाहर ही चमकता है। +:अर्थ- जैसे लोटे का बाहरी भाग चमकता है वैसे ही पुत्र घर के बाहर नाम रोशन करता है यानि इज्जत पाता है। +:अर्थ- मालिक के हटते ही काम करनेवाला कामचोरी करे। +:अर्थ- गलती करनेवाले को सजा न देकर किसी और को देना। +:अर्थ- कम खाना और गम खाना अच्छा होता है। +:अर्थ- इन चारों की संतान ही इनका नाश कर देती है। +:अनुवाद एवं अर्थ साँवा की खेती और अहिर की दोस्ती कभी-कभी ही लाभदायक होते हैं। +आगे के खेती आगे-आगे, पीछे के खेती भागे जागे। +:अर्थ- उपयुक्त समय की खेती अच्छी होती है लेकिन पीछे की गई खेती भाग्य पर निर्भर होती है। +बकरी के माई कबले खर जिउतिया मनाई। +:अर्थ- जो होना है वह होगा ही। +:अर्थ- एकता में शक्ति है। +जवने पतल में खाना ओही में छेद करना। +:अर्थ- खाँसी रोगों की जड़ है। +:अर्थ- मरने के बाद आदर बढ़ जाना। +:अर्थ- संतान एक से अधिक ही अच्छी है। +:अनुवाद- लोहे को लोहा काटता है। +:अर्थ- समान प्रकृतिवाला ही भारी पड़ता है। +:अर्थ- पैसे का ही महत्व होना। +:अनुवाद- जल्दी-जल्दी लंगड़ी महिला दीवाल फाँदे ।:भावार्थ पारंगत न होते हुए भी आगे बढ़कर कोई काम शुरु कर देना। +:अनुवाद बूँदभर तेल और कमर तक पानी।:भावार्थ कम में काम चल जाए फिर भी ज्यादे का उपयोग। +:अनुवाद गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ ।:भावार्थ गलत या सही का भेद न करते हुए किसी के हाँ में हाँ मिलाना। +:अनुवाद भाग्यवान का हल भूत हाँकता (चलाता) है।:भावार्थ भाग्यवान का भाग्य आगे-आगे चलता है। +:अनुवाद दुलारी बेटी का कनकटनी नाम।:भावार्थ ज्यादे दुलार बच्चों को बिगाड़ सकता है। +:अनुवाद हँसुआ की विवाह में खुरपी का गीत।:भावार्थ जहाँ जो करना चाहिए वह न करके कुछ और करना। +:अनुवाद जैसा देखें गाँव की रीत वैसा उठाएँ अपनी भीत।:भावार्थ समय को देखते हुए काम करें। +दूसरे की कमाई पर तेल बुकुआ।:भावार्थ दूसरे के पैसे से मौजमस्ती करना। +:अनुवाद उपास से अपनी पत्नी का जूठ अच्छा।:भावार्थ बहुत कुछ न होने से कुछ होना भी ठीक है। +:अनुवाद- विधि का लिखा गलत नहीम होगा। +:अर्थ- विधि का लिखा अवश्य घटित होगा। +:अनुवाद- गाय पहलौठी और भैंस दूसरे। +:अर्थ- पहली बार ब्याई हुऊ गाय और दूसरी बार ब्याई हुई भैंस अच्छी मानी जाती हैं। +:अर्थ- जिस मर्द के सीने पर बाल न हो, उसका भरोसा नहीं करना चाहिए। +:अनुवाद- मुर्गा नहीं रहेगा तो सुबह नहीं होगी। +:अर्थ- देखादेखी लोग अच्छे और बुरे कर्म करते हैं। +:अनुवाद एवं अर्थ- जो किसी से नहीं हारता है उसे किसी अपने (सगे) से हारना पड़ता है। +चाल करेले सिधरिया अउरी रोहुआ की सीरे बितेला। +:अनुवाद- चाल करती है सिधरी और रोहू के सिर बितता है। +करजा के खाइल अउरी पुअरा के तापल बरोबरे हऽ। +:अनुवाद- कर्जा का खाना और पुआल तापना बराबर होता है। +:अर्थ- कर्जा लेना अच्छा नहीं होता। +:अर्थ- दोनों से बचिए, खतरा कर सकती हैं। +:अर्थ- ऐसे व्यक्ति से घृणा करना जिसके बिना काम न चले। +:अनुवाद- हड़कल मान जाता है लेकिन परिकल नहीं मानता है। हड़कल यानि पानी के अभाव में एकदम कड़ा हो गया (खेत) जिसमें हल भी नहीं धँसता है। (परिकल यानि वह व्यक्ति जिसे किसी चीज का चस्का लग गया हो और उसके लिए वह उस काम को बार-बार करता हो) +:अर्थ- खेत अगर हड़क जाए तो उसे धीरे-धीरे खेती योग्य बनाया जा सकता है लेकिन परिकल व्यक्ति कतई नहीं मानता। +:अनुवाद- जिसकी बहन अंदर उसका भाई सिकंदर। +:अर्थ- भाई अपने विवाहित बहन के घर में बेखौफ आता जाता है। +:अनुवाद- पूड़ी का पेट सोहारी से नहीं भरेगा। +:अर्थ- रुचि अनुसार भोजन होना चाहिए। +:अर्थ- अगर सब लोग काम में हाथ बटाएँ तो काम मिनटों में समाप्त हो जाए। +सेतिहा के साग गलपुरना के भाजी। +:अनुवाद- मुफ्त का साग गलपुरना की भाजी। +:अर्थ- किसी वस्तु के होते हुए भी उसे और लाना जैसे लगे की मुफ्त की हो। +:अर्थ- किसी वस्तु के गलत प्रयोग होने की आशंका। +:अर्थ- किसी वस्तु को खराब भी कहना और उसका उपयोग भी करना। +:अनुवाद- दादा की बेटी लुगरी और भाई की बेटी चुनरी। +:अर्थ- बुआ से अधिक मान बहन का होने पर कहा जाता है। यानि जो रिस्ते में जितना करीब उसका उतना ही मान। +:अर्थ- भरपेट खाने के बाद भी इधर-उधर देखना कि कुछ खाने को मिल जाए। +:अर्थ- अफवाह फैलने पर कहा जाता है यानि झूठी बात। +:अर्थ अच्छी तरह से समझाने के बाद भी उसी प्रकरण से संबंधित मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछना। +:अनुवाद रो-रो खाएगा, धो-धो जाएगा। +:अर्थ भोजन सदा प्रसन्न मन से करना चाहिए। अप्रसन्न मन से किया हुआ भोजन शरीर को लाभ नहीं पहुँचाता। +भगवान के भाई भइल बारअ। +:अनुवाद भगवान के भाई बने हैं। +:अर्थ जब कोई काम करने में टालमटोल करता है या कहता है कि बाद में करूँगा तो कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि कोई भी काम कल पर नहीं टालना चाहिए। +:अनुवाद भैंस पानी में हगेगी तो (गोबर) ऊपर आएगा ही। +:अनुवाद सोने की कुदाल माटी कोड़ने के लिए है। +:अर्थ सबको अपनी योग्यतानुसार कार्य करना ही अच्छा होता है। +:अर्थ गलत काम का परिणाम भी गलत होता है। +:अनुवाद कमजोर शरीर में बहुत गुस्सा होता है। +:अर्थ कमजोर व्यक्ति को बात-बात पर गुस्सा आता है। +:अर्थ विश्वास ही सर्वोपरी है। +:अर्थ शेर जब भी खाएगा मांस ही खाएगा। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ व्यक्ति परेशानी उठा लेंगे लेकिन अपने वसूल यानि मान-मर्यादा के खिलाफ नहीं जाएँगे। +:अनुवाद सब धान बाइस ही पसेरी। (पसेरी एक तौल है जो लगभग पाँच किलो के बराबर माना जाता है) +:अर्थ सब एक जैसे। (व्यंग्य में कहा जाता है- एक जैसे गलत लोगों के लिए। जैसे- अगर आप के तीन-चार लड़के हैं और सब कुपात्र ही हैं तो आप अपने बच्चों के लिए कह सकते हैं- सब धान बाइसे पसेरी। ) +:अर्थ अपने शासन में अपनीवाली करना। यानि जिसकी लाठी उसकी भैंस। +:अर्थ विरोधाभास। एक अच्छा तो दूसरा बुरा। +:अर्थ भविष्य के बारे में न सोचना। यानि केवल जो आगे आए उसी पर विचार करनेवाला। अदूरदर्शी व्यक्ति के लिए। +:अर्थ स्वछंद व्यक्ति। जिसको रोकने-टोकनेवाला कोई न हो और इसलिए वह मनमौजी काम करता हो। +:अर्थ गलती (अनजाने में हुआ गलत काम) आदमी से ही होती है अस्तु क्षमा कर देना ही उचित होता है। +:अर्थ दुनिया में जो कुछ भी घटित हो रहा है यानि अच्छा या बुरा, वह भगवान की ही कृपा से। +:अर्थ किसी (समझदार) का दुरुपयोग एक ही बार किया जा सकता है, बार-बार नहीं। +:अर्थ सहज विश्वासी। बिना सोचे-समझे विश्वास करनेवाला। +:अनुवाद दोनों लोक से गए पाण्डेय (ब्राह्मणों की एक उपजाति न हलुआ मिला न माड़े (माड़-भात में से निकला लसदार थोड़ा गाढ़ा पदार्थ)। +:अर्थ मूल का ही सफाया। +:अनुवाद ननिहाल, बेइमानी और यजमानी का धन व्यर्थ ही जाता है। यानि किसी काम का नहीं होता। +:अनुवाद नानी की आगे ननिहाल का वर्णन। +अंडा सिखावे बच्चा के, ए बच्चा तू चेंव-चेंव करअ। +:अर्थ जिसे सबक��छ मालूम हो उसे बताना यानि अज्ञानी होकर ज्ञानी को उपदेश देना। +नौ के लकड़ी, नब्बे खर्च। +:अनुवाद एवं अर्थ- नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च। +:अनुवाद पावभर की देवी और नौ पाव पूजा। +:अर्थ नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च। +:अर्थ पारखी न होने पर कोई भी वस्तु नया ही खरीदना चाहिए। +:विशेष- लेकिन हाथी एक झुंड में रहते हैं। +:अनुवाद बनने पर साथी सभी पर बगड़ने पर कोई नहीं। +:अर्थ सुख के साथी सभी हैं लेकिन दुख में ना कोय। +:अर्थ चुगलखोर राज, परिवार आदि को नष्ट कर देते हैं और वह पेड़ भी ठूँठ हो जाता है जिसपर बराबर बकुला बैठते हैं। +:अर्थ खिंचड़ी खाने में तब मजा आता है जब साथ में दही, पापड़, घी, और अँचार भी हो। +:अर्थ माघ में जिस आदमी की शरीर टूट गई मतलब कमजोर हो गई और भाद्रपद में जिस बैल की शरीर कमजोर हो गई वह फिर कभी तैयार नहीं होती यानि उनका स्वास्थ्य फिर नहीं सुधरता। +:अर्थ किसी चीज का कारण कुछ और हो और कुछ और समझा जाए। +:अर्थ उस काम को करने से क्या लाभ जिसका महत्व समझने वाला ही कोई न हो। +:अनुवाद निर्वंश अच्छा लेकिन बहुवंश नहीं अच्छा। +:अर्थ मर्द को खट्टी चीजें और औरतों को मीठी चीजें कम खानी चाहिए। +:अर्थ एक बार जवानी जाने के बाद फिर कभी भी वापस नहीं आती। कुछ भी करें गया समय वापस नहीं आता। +:अर्थ जो बड़ों से न हो वह छोटे करने का दुस्साहस करें (हास्य)। किसी छोटे द्वारा दुस्साहस करने पर कहा जाता है। +:अर्थ दूसरे की सुनना पर करना अपनी वाली ही। +:अनुवाद हाथी की पेट से जाड़ा है। +:अर्थ हस्त नक्षत्र से जाड़ा शुरु हो जाता है। +:अर्थ आधा माघ महीना बीतते ही जाड़ा कम होने लगता है। +:अर्थ ठंडी के दिनों में जब हवा बहती है तो ठंडक बढ़ जाती है। +:अनुवाद दुर्बल की पत्नी गाँवभर की भौजाई। +:अर्थ कमजोर को सभी सताते हैं। +:अनुवाद आखिर शंख बजा लेकिन बाबाजी को पदा के। +:अर्थ काम होना लेकिन बहुत परीश्रम के बाद। +:अर्थ अपना अपना ही होता है। +:अनुवाद एक हाथ की ककड़ी और नौ हाथ का बीज। +:अर्थ चाल-चलन ऐसा रखना चाहिए कि जिसका निर्वाह आसानी से हो जाए। +:अनुवाद पानी पीजिए छानकर और गुरु कीजिए जानकर। +:अर्थ पानी छानकर पीना चाहिए और सोच समझकर गुरु करना चाहिए। +:अनुवाद हजाम को देखकर हजामत बढ़ जाती है। +:अर्थ असमय इच्छा करना। आवश्यकता न होने पर भी आसानी से प्राप्त होनेवाली वस्तु का उपयोग करने की इच्छा। +ए जबाना में पइसवे भगवान बाऽ। +:अनुवाद एवं अर्थ- आधुनिक युग में पैसा ही भगवान है। +:अर्थ दुरुपयोग होना। कहीं पर किसी वस्तु की अधिकता और कहीं पर कमी। +:अर्थ जितने लोग रहते हैं उतना ही काम रहता है। +गाड़ी में दम नाहीं बारी में डेरा। +:अर्थ डींगबाजी करनेवाले के लिए कहा जाता है। जो केवल बढ़-बढ़कर बातें करे उसके लिए कहा जाता है। +घर में दिया बारी के मंदिर में दिया बारल जाला। +:अनुवाद घर में दीपक जलाने के बाद मंदिर में दीपक जलाया जाता है। +:अर्थ पहले आत्मा फिर परमात्मा। पहले अपना काम फिर दूसरे का। +:अर्थ काला अक्षर भैंस बराबर। (अनपढ़) +:अर्थ किसी की बराबरी करने के लिए उलटा-पुलटा काम नहीं करना चाहिए। +:अनुवाद गई भैंस पानी में। +:अर्थ महँगी वस्तुएँ अधिक दिन चलती हैं और अच्छी भी होती हैं। +:अनुवाद पूड़ी का पेट सोहारी से नहीं भरेगा। +:अर्थ रुचि अनुसार भोजन होना चाहिए। +:अर्थ अगर सब लोग काम में हाथ बटाएँ तो काम मिनटों में समाप्त हो जाए। +सेतिहा के साग गलपुरना के भाजी। +:अनुवाद मुफ्त का साग गलपुरना की भाजी। +:अर्थ किसी वस्तु के होते हुए भी उसे और लाना जैसे लगे की मुफ्त की हो। +:अर्थ किसी वस्तु के गलत प्रयोग होने की आशंका। +:अर्थ किसी वस्तु को खराब भी कहना और उसका उपयोग भी करना। +:अनुवाद दादा की बेटी लुगरी और भाई की बेटी चुनरी। +:अर्थ बुआ से अधिक मान बहन का होने पर कहा जाता है। यानि जो रिस्ते में जितना करीब उसका उतना ही मान। +:अर्थ भरपेट खाने के बाद भी इधर-उधर देखना कि कुछ खाने को मिल जाए। +:अर्थ अफवाह फैलने पर कहा जाता है यानि झूठी बात। +:अर्थ किसी को वही काम करने को कहना जो उसको अच्छा लगे। +:अर्थ दूसरे की वस्तु पर अपना अधिकार समझना। +:अर्थ बड़ को इज्जत और छोट का अपमान। +:अर्थ वह काम करना जिसकी आवश्यकता न हो। +:अनुवाद पुत्र और लोटा बाहर ही चमकता है। +:अर्थ जैसे लोटे का बाहरी भाग चमकता है वैसे ही पुत्र घर के बाहर नाम रोशन करता है यानि इज्जत पाता है। +:अर्थ मालिक के हटते ही काम करनेवाला कामचोरी करे। +:अर्थ गलती करनेवाले को सजा न देकर किसी और को देना। +:अर्थ अपने रुचिनुसार भोजन करना चाहिए पर कपड़े ऐसा पहनना चाहिए जो दूसरों को अच्छा लगे। +:अर्थ काम-धाम न करना लेकिन श्रेय लेने की कोशिश करना। +:अर्थ दूसरे की वस्तु का दुरुपयोग। +:अर्थ गाय का गुण बछड़े में और पिता का गुण घोड़े में थोड़ा बहुत अवश्य होता है। +:अर्थ पैसे का ही महत्व होना। +:भावार्थ पारंगत न होते हुए भी आगे बढ़कर कोई काम शुरु कर देना। +:भावार्थ कम में काम चल जाए फिर भी ज्यादे का उपयोग। +:अनुवाद गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ । +:भावार्थ गलत या सही का भेद न करते हुए किसी के हाँ में हाँ मिलाना। +:भावार्थ ज्यादे दुलार बच्चों को बिगाड़ सकता है। +:अनुवाद हँसुआ की विवाह में खुरपी का गीत। +:भावार्थ जहाँ जो करना चाहिए वह न करके कुछ और करना। +दूसरे की कमाई पर तेल बुकुआ। +:भावार्थ दूसरे के पैसे से मौजमस्ती करना। +:अनुवाद उपास से अपनी पत्नी का जूठ अच्छा। +:भावार्थ बहुत कुछ न होने से कुछ होना भी ठीक है। +:भावार्थ अनचाहा काम आदि जो करना पड़े। +:भावार्थ जानबूझकर हमेशा गलत काम ही करना। +:भावार्थ कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति। +:भावार्थ सुख में सिहुला (एक त्वचा रोग) होता है, दुख में दिनाइ (एक प्रकार का खाज रोग) और जब कर्म ही फूट जाता है तो पैर में बिवाई फट जाती है। +:भावार्थ गुस्सा किसी और का और निकालना किसी और पर। +कोरा में लइका अउरी गाँवभरी ढ़िढोरा। +:अनुवाद गोदी में लड़का और गाँवभर में ढ़िढोरा। +:भावार्थ वास्तविकता को छोड़ अफवाह पर ध्यान। +:भावार्थ मन साफ होना चाहिए। +:अनुवाद चिउड़ा का गवाह दही। +:अर्थ एक ही थैली के चट्टे-बट्टे। +:अनुवाद क्या अंधे व्यक्ति के जगने से और उसके सोने से। +:अर्थ अफवाह पर ध्यान न देकर वास्तविकता जानें। +:अर्थ मुफ्त में मिल रही वस्तु के अवगुण नहीं देखते। +:अनुवाद जो गन्ने के खेत में गन्ना नहीं देगा वह कोल्हुआड़ (गुड़ पकाने की जगह) में गुड़ देगा। +:अनुवाद चिड़िया का जान जाए और बच्चों का खिलौना। +:अर्थ दूसरे के कष्ट को नजरअंदाज करना। +ना चलनी में पानी आइ ना मूंजी के बरहा बराई। +:अनुवाद ना चलनी में पानी आएगा ना मूँज का बरहा बन पाएगा। +:अर्थ अवगुणी व्यक्ति द्वारा दूसरे की कमियाँ निकालना। +:अर्थ नासमझ होते हुए भी समझदार बनने का दिखावा करना। +:अर्थ जो जैसा रहता है उसकी संगति भी वैसी ही मिल जाती है। +: दानी को दानी मिले, मिले सोम को सोम +: अच्छा को अच्छा मिले, मिले डोम को डोम। +:अर्थ जिसकी जो वस्तु होती है उसका उपयोग वही अच्छी तरह कर सकता है। +:अनुवाद आएगा आम या जाएगा लबेदा। +:अर्थ हानि-लाभ की परवाह न करते हुए काम करना। +:अर्थ अपनी वस्तु आदि की कोई बुराई नहीं करता है। +:अर्थ जबतक शरीर ठीक है तभी तक धन कमाया जा सकता है या घूमा (तीर्थयात्रा) जा सकता है। +:अर्थ नंगा (निर्लज्ज होकर हंगामा करनेवाला) क�� बात सब लोग मान लेते हैं। +:अर्थ इच्छित काम होना। जैसा चाहना वैसा (घटना, काम आदि) हो जाना (नकारात्मक)। +:अर्थ सभ्य बात से समझता है जबकि असभ्य (नीच) मारपीट से। +:अनुवाद गोर चमाइन घमंड से अंधी। +:अर्थ गोर चमाइन को घमंड होता है। +:अर्थ मनचाही वस्तु मिलने पर भी नाटक करना। +:अर्थ हजाम, धोबी और दर्जी बेपरवाह होते हैं। +:अर्थ ऊँट, विद्यार्थी और वानर अविवेकी होते हैं। +:अनुवाद ब्राह्मण मरकर भी खाता है और जीते भी खाता है। +बभने में तिउआरी, कटहल के तरकारी अउरी हैजा के बेमारी। +:अनुवाद ब्राह्मण में तिवारी और कटहल की तरकारी एवं हैजा की बीमारी। +:अर्थ ब्राह्मण खाने के लिए लालची होते हैं। +:अनुवाद एवं अर्थ- धन का बढ़ना अच्छा है, मन का बढ़ना नहीं। +आन की धन पर तीन टिकुली। +:अनुवाद दूसरे की धन पर तीन टिकुली। +:अर्थ दूसरे की धन पर ऐश करना। +:अनुवाद दूसरे की धन पर तेल बुकुवा। +:अर्थ दूसरे की धन पर मजे करना। +: बुकुवा= पानी के साथ पीसी हुई सरसों (जिसे तेल के साथ शरीर पर मलते हैं) विशेषकर बच्चों, नई नवेली दुल्हन और जच्चा को। +:अर्थ अयोग्य पर खदक्कड़ (पेटू)। +:अनुवाद विधि का लिखा गलत नहीम होगा। +:अर्थ विधि का लिखा अवश्य घटित होगा। +:अनुवाद गाय पहलौठी और भैंस दूसरे। +:अर्थ पहली बार ब्याई हुऊ गाय और दूसरी बार ब्याई हुई भैंस अच्छी मानी जाती हैं। +:अनुवाद मुर्गा नहीं रहेगा तो सुबह नहीं होगी। +:अर्थ देखादेखी लोग अच्छे और बुरे कर्म करते हैं। +:अनुवाद एवं अर्थ- जो किसी से नहीं हारता है उसे किसी अपने (सगे) से हारना पड़ता है। +चाल करेले सिधरिया अउरी रोहुआ की सीरे बितेला। +:अनुवाद चाल करती है सिधरी और रोहू के सिर बितता है। +करजा के खाइल अउरी पुअरा के तापल बरोबरे हऽ। +:अनुवाद कर्जा का खाना और पुआल तापना बराबर होता है। +:अर्थ कर्जा लेना अच्छा नहीं होता। +:अर्थ दोनों से बचिए, खतरा कर सकती हैं। +:अर्थ ऐसे व्यक्ति से घृणा करना जिसके बिना काम न चले। +:अनुवाद हड़कल मान जाता है लेकिन परिकल नहीं मानता है। +:हड़कल यानि पानी के अभाव में एकदम कड़ा हो गया (खेत) जिसमें हल भी नहीं धँसता है । (परिकल यानि वह व्यक्ति जिसे किसी चीज का चस्का लग गया हो और उसके लिए वह उस काम को बार-बार करता हो) +:अर्थ खेत अगर हड़क जाए तो उसे धीरे-धीरे खेती योग्य बनाया जा सकता है लेकिन परिकल व्यक्ति कतई नहीं मानता। +:अनुवाद जिसकी बहन अंदर उसका भाई सिकंदर। +:अर्थ भाई अपने ��िवाहित बहन के घर में बेखौफ आता जाता है। +:अर्थ किसी दूसरे के मेहनताने पर ऐश करना। +:अर्थ कम खाना और गम खाना अच्छा होता है। +:अर्थ इन चारों की संतान ही इनका नाश कर देती है। +:अनुवाद एवं अर्थ साँवा की खेती और अहिर की दोस्ती कभी-कभी ही लाभदायक होते हैं। +आगे के खेती आगे-आगे, पीछे के खेती भागे जागे। +:अर्थ उपयुक्त समय की खेती अच्छी होती है लेकिन पीछे की गई खेती भाग्य पर निर्भर होती है। +बकरी के माई कबले खर जिउतिया मनाई। +:अर्थ जो होना है वह होगा ही। +:अर्थ एकता में शक्ति है। +जवने पतल में खाना ओही में छेद करना। +:अर्थ खाँसी रोगों की जड़ है। +:अर्थ मरने के बाद आदर बढ़ जाना। +:अर्थ संतान एक से अधिक ही अच्छी है। +:अनुवाद लोहे को लोहा काटता है। +:अर्थ समान प्रकृतिवाला ही भारी पड़ता है। +:अनुवाद मारने से भूत भी भग जाता है। +:अर्थ कभी-कभी बिना कठोर हुए काम नहीं चलता। कभी-कभी अंगुली टेड़ी ही करनी पड़ती है। +:अर्थ काम करके दिखाना चाहिए केवल गप नहीं मारना चाहिए। +बुरा काम के नतीजो बुरे होला। +:अनुवाद एवं अर्थ- बुरे काम का नतीजा भी बुरा ही होता है। +:अर्थ दादा-परदादा के समय में) सबसे अच्छा खेती करना उसके बाद व्यापार करना और उसके बाद नौकरी और सबसे गया गुजरा काम भीख माँगना माना जाता था। +:अनुवाद खाएँ भीम और दिशा मैदान करें शकुनी। +:अर्थ एक ही थैली के चट्टे-बट्टे। +:अर्थ अत्यधिक परिश्रम/सामग्री आदि की आवश्यकता होना। मेहनत की आवश्यकता। +:अनुवाद चलनी (छलनी) में दूध दुहना और कर्म को दोष देना। +:अर्थ गलती खुद करना और दोष दूसरे पर लगाना। +का हरदी के रंग अउरी का परदेशी के संग। +:अनुवाद क्या हरदी का रंग और क्या परदेशी का संग। +:अर्थ क्षणभंगुर वस्तुओं का क्या भरोसा। +आन के दाना हींक लगाके खाना। +:अर्थ सुलभ (या दूसरे की) वस्तु का दुरुपयोग। +:अनुवाद होशियार लड़का पाखाना करते समय भी पहचाना जाता है । +:अर्थ होनहार विरवान के होत चिकने पात। +:अर्थ मीठा बोलें और सम्मानित बोलें। अपनी बोली (भाषा) कभी खराब न करें, सुबोली बोलें न कि कुबोली। +कुल अउरी कपड़ा रखले से। +:अनुवाद कुल (वंश) और कपड़ा हिफाजत करने से। +:अर्थ कुल और कपड़े की अगर देखभाल नहीं होगी तो वे नष्ट हो जाएँगे। +:अर्थ ऐसे ही या थोड़ा-सा भी संदेह होने पर हंगामा करना। (जानना ना समझना और ऐसे ही बकबक शुरु कर देना) +:अर्थ समयानुसार आवश्यक वस्तु की कमी। +:अनुवाद ओरवानी (मढ़ई का निचला हिस्सा जहाँ से पानी गिरता है) का पानी बड़ेरी (मथानी यानि मड़ई का सबसे ऊपरी भाग) नहीं चढ़ता। +:अर्थ उस योग्य न होने पर भी अपने को उससे बढ़ चढ़कर बताना। अत्यधिक बहसना। +:अनुवाद हल दीजिए, हलवाहा दीजिए और बैल को हाँकने के लिए डंडा भी दीजिए। +:अर्थ पूरी तरह से दूसरे पर निर्भर होने वाले आलसी जो सब कुछ दूसरे से ही अपेक्षा करते हैं उनके लिए कहा जाता है। +लाठी के मारल भुला जाला लेकिन बाती के नाहीं। +:अनुवाद लाठी की मार भुल जाती है लेकिन बात की नहीं। +:अर्थ आवश्यकता से बहुत ही कम की प्राप्ति से क्या लाभ। +:अर्थ अच्छी शरीर न होने पर भी अत्यधिक बनाव-श्रृंगार करनेवालों के लिए कहा जाता है। +:अर्थ अत्यधिक बहसनेवाले को कहा जाता है। +:अर्थ भोजन सदा समय पर करें और कुसंगत से बचें। +:अर्थ मर्द को खाने में और औरत को नहाने में अधिक समय नहीं लगाना चाहिए। +:अनुवाद दूर से ही प्रणाम कर लेना अच्छा है। +:अर्थ कभी-कभी अत्यधिक मेल-जोल ठीक नहीं। +:अनुवाद चमार के मनाने से पशु नहीं मरता। +:अर्थ पढ़ने में मन न लगे तो कोई और काम करना ही अच्छा है। +:अनुवाद खिचड़ी खाते समय अच्छी लगे और बरतन धोते समय परेशानी हो। +:अर्थ बिना मेहनत के आराम करना ठीक नहीं। +:अनुवाद फटक कर लीजिए और फटक कर दीजिए। +:अनुवाद ब्राह्मण का बनाया नहीं तो ब्राह्मण खाएगा नहीं तो बैल खाएगा। +:अर्थ ब्राह्मण भोजन या तो बहुत ही अच्छा बनाता है नहीं तो बहुत ही खराब। +:अनुवाद जनम के दोस्त सभी होते हैं लेकिन कर्म का कोई नहीं। +:अनुवाद बहसनेवाला के पास नौ हल, पर खेत में गया एक भी नहीं। +:अनुवाद करेंगे कितना भी लाख उपाय, विधि का लिखा घटित होगा ही। +:अर्थ जो भाग्य में है वह होकर रहेगा। +चालीस में चारी कम (३६ हजाम, पंडीजी सलाम। +:अनुवाद चालीस में चार कम हजाम, पंडितजी सलाम। +:अर्थ हजाम छत्तीसा (बहुत चालाक) होते हैं और उनका टक्कर केवल पंडित ही ले सकता है। +:अनुवाद गन्ना बहुत मीठा होता है तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं। +:अर्थ संबंध की एक सीमा होनी चाहिए। +:अनुवाद खोंसू (बकरा) का जान जाए और खानेवाले को स्वाद ही न मिले। +:अनुवाद बाँस की कोंख से रेड़ पैदा होना। +:अनुवाद अच्छा रहेगा करम, तो क्या करेंगे बरम (एक गाँव के देवता)। +:अर्थ अपना कर्म हमेशा अच्छा रखना चाहिए। +:अनुवाद पैर की पुजा हुई है पीठ की नहीं। +:अर्थ एक सीमा तक ही सहा जा सकता है। (यह कहावत उदण्ड रिस्तेदार जैसे उदंड द��ाद आदि के लिए कही जाती है) +:अर्थ सब अपनी-अपनी राय देते हैं या अपनी-अपनी बुद्धि से एक ही बात को अलग-अलग ढंग से कहते हैं। +:अनुवाद कुत्ते की पूँछ को बारह वर्ष गाड़कर रखिए, टेड़ी की टेड़ी रहेगी। +:अर्थ स्वभाव (प्रकृति) बदलना बहुत ही कठिन होता है। +:अनुवाद भगवान की बाँह बहुत लंबी होती है। +:अनुवाद जब भगवान मुँह बनाए हैं तो खाना भी देंगे। +माई के जिअरा (मनवा) गाई अइसन, बाप के जिअरा कसाई अइसन। +:अर्थ बाप की अपेक्षा माँ अत्यधिक स्नेही होती है। +:अनुवाद लज्जा के कारण भवज बोले नहीं और स्वाद के लिए भसूर (जेठ- पति का जेठा भाई) छोड़े नहीं। +:अर्थ किसी की चुप्पी या मजबूरी का नाजायज फायदा उठाना। +:अर्थ जो काम करना है उसे करना है चाहे वह छोटा हो या बड़ा। +:अर्थ अपने लोगों को ज्यादे महत्त्व देना और दूसरे को हीन समझना। +:अनुवाद खुद खाना और बिल्ली को लगाना। +:अर्थ गलत काम खुद करके दूसरे के मत्थे मढ़ना। +:अनुवाद सड़-पक जाएगा, दूसरा न खाएगा, दूसरे का खाया, अकारथ (बेकार) जाएगा। +:अर्थ खराब हो जाने देना लेकिन दूसरे को उपयोग न करने देना। +:अर्थ सबको अपनी ही पड़ी है या सब अपना ही लाभ देख रहे हैं यहाँ तक कि माँ-बाप की चिंता करनेवाला कोई नहीं है। +:अर्थ मेहनत के बाद भी उन्नति न होना। जस का तस रहना। +:अनुवाद बेटा को कुरमुरा और दमाद को खीर। +:अर्थ डिंग हाँकना (एक से बड़कर एक)। +:अर्थ न खुद अच्छा काम करना न दूसरे को करने देना। +:अर्थ समय खराब होता है तो चारों तरफ से। +:अनुवाद हरिशचंद्र पर विपत्ति पड़ी तो (आग में) पकाई हुई मछली जल में कूदी। +:अर्थ विपत्ति बहुत बुरी होती है। +:अर्थ इज्जतदार अपनी इज्जत के लिए सबकुछ न्यौछावर कर देता है। +:अर्थ खाली बैठना ठीक नहीं। हमेशा कुछ न कुछ (अच्छा ही) करते रहना ही ठीक होता है। +:अर्थ उत्तर दिशा में बिजली चमके और दक्षिण में बादल गरजे तो वर्षा अवश्य होती है। +:अर्थ संगति मिलते ही गलत काम करना। +:अर्थ अपना पुराना ही काम आता है। नया भी कुछ दिन के बाद पुराना हो जाता है। +:अनुवाद सराहना की हुई पुत्री ही डोम के घर जाती है। +:अर्थ अत्यधिक बढ़ाई कर देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं। +:अर्थ उम्र बढ़ती ही रहती है। +:अर्थ पुत्री में माँ का गुण होता है। +:अनुवाद लाठी सिर से लगी नहीं और बाप-बाप चिल्लाए। +:अर्थ खेत में अगर धान की खड़ी फसल गिरती है तो धान की उपज अच्छी होती है लेकिन गेहूँ की फसल गिर जाए तो उपज अच्छी नहीं होती। यानि गिरी हुई धान की फसल के दाने निरोग और बड़े होते हैं जबकि गेहूँ गिर जाए तो उसके दाने छोटे-छोटे और सारहीन हो जाते हैं। +:अर्थ अगर आकाश का रंग लाल और पीला हो तो बारिश की संभावना नहीं होती। +:अर्थ खेती, बेटी और गाभिन गाय की देख-रेख करनी पड़ती है। यानि अगर आप इन तीनों पर नजर नहीं रखेंगे तो आप को पछताना पड़ सकता है। +:अर्थ दो दाँत और भूरे रंग वाला बैल अच्छा माना जाता है। +चिरई में कउआ, मनई में नउआ। +:अर्थ पक्षियों में कौवा और आदमियों में हजाम बहुत चतुर होते हैं। +:अर्थ पिता के अच्छे कर्मों से पुत्र की उन्नति होती है और अपनी मेहनत से ही खेत में अच्छी पैदावार होती है। +निरबंस अच्छा लेकिन बहुबंस नाहीं अच्छा। +:अनुवाद निरवंश अच्छा लेकिन बहुवंश नहीं अच्छा। +:अर्थ संतान हो तो अच्छे गुण वाली, नहीं तो हो ही न। +:अर्थ खड़ी फसल और गाभिन गाय का भरोसा नहीं होता यानि जबतक फसल कटकर खलिहान में न आ जाए तबतक उसके नष्ट होने की संभावना बनी रहती है और गाभिन गाय भी जबतक बच्चा न जन दे तबतक उसका भी भरोसा नहीं। +:अर्थ हम क्या खाते हैं, उसका प्रभाव आचरण और मनोवस्था पर भी पड़ता है। +:अर्थ रिस्तेदारी में ज्यादे दिन रहने से धीरे-धीरे इज्जत कम होने लगती है। +:अर्थ दूर रहनेवाले समय पर काम नहीं आते। +:अनुवाद घोड़ा की पीछे और अधिकारी के आगे कभी नहीं जाना चाहिए। +:अर्थ घोड़ा के पीछे जाने पर उसके लात मारने का खतरा रहता है जबकि अपने से बड़े अधिकारी के आगे-आगे करने पर उसके क्रोधित होने की संभावना होती है। +:अर्थ सज्जन का संग अच्छा है जबकि दुष्टों का संग करने से हानि होती है। +:अर्थ अपनी इज्जत हम खुद ही बना के रख सकते हैं। +:अर्थ अपने घर, गाँव, क्षेत्र आदि में सभी बहादुर होते हैं। +:अर्थ कुछ लोग कहने पर वह काम नहीं करते जबकि अपने मन से वही काम करते हैं। +बानर का जानी आदी के सवाद। +:अनुवाद बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद। +:अनुवाद कुत्ते की पूँछ में कितना भी घी लगाइए, वह टेड़ी की टेड़ी ही रहेगी। +:अर्थ प्रकृति नहीं जाती यानि स्वभाव बना रहता है। +:अनुवाद गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है। +:अर्थ साथ रहनेवाला भी लपेट में आ जाता है यानि अच्छा होते हुए भी बुरे के साथ रहने पर कभी-कभी बुरी संगति के कारण परेशानी खड़ी हो जाती है। +:अनुवाद दुधारू गाय का लात भी सहा जाता है। +:अर्थ जिस व्यक्ति से अपना फायदा हो अगर वह कुछ उलटा-पुलटा भी करे या बोले तो सहा जाता है। +हाथे में पइसा रहेला तब बुधियो काम करेले। +:अनुवाद हाथ में पैसा रहने पर बुद्धि काम करती है। +:अर्थ पास में पैसा रहने पर दिमाग अपने-आप चलता है। +:अर्थ पेट के कारण ही जीव बुरे से बुरा काम भी करता है। +:अर्थ दुनिया में सबकुछ भर सकता है केवल पेट को छोड़कर। यानि बिना खाए काम नहीं चल सकता। +:अर्थ कुछ काम भी न करना और नखरे भी दिखाना। +:अनुवाद क्या राम के घर रहने से या क्या राम के वन जाने से। +: अर्थ अनुपयोगी व्यक्ति। अयोग्य व्यक्ति। + + +सृष्टि के आदि काल में कर्मों के शुभ या अशुभ होने के अनुसार ब्राह्मणादि वर्ण बनाये गये थे। +हे देवि इन कर्मों के पालन करने से तथा शुभ आचरण से शूद्र भी ब्राह्मण बन जाता है और वैश्य क्षत्रिय हो जाता है। +: किये हुए कर्म का फल सौ करोड़ कल्प तक भी क्षय नहीं होता। जो जैसा शुभ या अशुभ कर्म करता है, अवश्य ही उसका फल भोगेगा। +जब शुभ कर्म करने की इच्छा हो तो तुरन्त करना चाहिये किन्तु अशुभ कार्य करने की इच्छा होने पर उसमें देरी करनी चाहिये। + + +* नौकरशाही नियुक्त किए गए योग्य प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों का समूह है जिसका विस्तार राज्य, चर्च, राजनीतिक दल, मजदूर संघ, व्यावसायिक उपक्रम, विश्वविद्यालय तथा गैर-राजनीतिक समूहों तक भी है। मालटिन एलबरो +* नौकरशाही तब अस्तित्व में आती है जबकि निर्देशन के लिए बहुत सारे लोग होते है। ज्यों-ज्यों संगठन का आकार बढ़ता है त्यों-त्यों यह जरूरी बन जाता है कि निर्देश के कुछ कार्य हस्तान्तरित कर दिये जाये। यह नौकरशाही के उदय के लिए पहली शर्त है। ड्यूबिन +* नौकरशाही एक संगठनात्मक संरचना है जो कई कानूनों, मानकीकृत प्रक्रियाओं, प्रक्रियाओं और आवश्यकताओं, डेस्क की संख्या, श्रम और जिम्मेदारी का सावधानीपूर्वक विभाजन, स्पष्ट पदानुक्रम और कर्मचारियों के बीच पेशेवर बातचीत की विशेषता है जो लगभग अवैयक्तिक हैं। मैक्स वेबर। +* प्रभुत्व (authority) मुख्य रूप से एक ‘शक्ति संबंध’ है, जो शासक तथा शासित के बीच सत्ता की अधिनायकवादी शक्ति है। परन्तु इस शक्ति को तभी स्वीकार किया जा सकता है जब यह न्यायसंगत तथा वैध हो। शक्ति उस समय प्राधिकार में परिवर्तित हो जाती है जब यह वैधता प्राप्त कर लेती है, जहां व्यक्ति स्वेच्छा से आदेशों का पालन करता है। मैक्स वेबर +* आज नौकरशाही बहुत ज्यादा फूल गई है और इस कारण य��� बोझ बन गई है। डॉ० विक्रम साराभाई +* सहकारिता का ढांचा कभी भी नौकरशाही की विशाल व्यवस्था को बढ़ावा नहीं देता, क्योंकि इसे पता होता है कि विशाल नौकरशाही लोगों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील नहीं हो सकती। डॉ० विक्रम साराभाई +* ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन। महात्मा गांधी]] + + +द्वितीय विश्वयुद्ध एक विश्वव्यापी युद्ध था जो १९३९ से लेकर १९४५ तक चला। +* अमेरिका की सीमा राइन नदी है। फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट + + +तारिक़ फ़तह 20 नवम्बर, 1949 24 अप्रैल, 2023 पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक, सेक्युलर उदारवादी कार्यकर्ता एवं पत्रकार थे। इस्लाम सहित तमाम मुद्दों पर मुखर रूप से बोलने वाले तारिक फतेह टीवी पर चर्चा में अक्सर ख़ुद को हिंदुस्तानी बताते थे और हमेशा सिन्ध और हिन्द का सम्बन्ध जोड़ते थे। पाकिस्तान की आलोचना तीखे ढंग से करते थे। वे पाक को भारतीय संस्कृति का हिस्सा बताते थे। भारत के विभाजन से भी असहमति जताते हुए वे सांस्कृतिक रूप से भारत की बातें किया करते थे। +उन्होंने 'यहूदी मेरे दुश्मन नहीं हैं' नाम से एक पुस्तक भी लिखी । पाकिस्तान में बलूचों के आंदोलनों के समर्थक भी रहे । बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन और पाकिस्तान द्वारा बलूचों पर किये जा रहे अत्याचारों के विषय पर भी बोलते और लिखते रहे और 'आज़ाद बलूचिस्तान' के पक्षधर के रूप में भी जाने गए। +* मैं पाकिस्तान में पैदा हुआ भारतीय हूं। इस्लाम में जन्मा पंजाबी हूं। एक मुस्लिम चेतना के साथ कनाडा में एक अप्रवासी हूँ। एक मार्क्सपन्थी युवा हूँ। +* आप दुनिया की सबसे बड़ी सभ्यता हैं। 10 हजार साल से दुनिया को रास्ता दिखाया है। पहाड़ों को काटकर मंदिर बनाया। आप क्यों डिफेंसिव हो रहे हैं? किसने बोला था उन्हें मस्जिद (बाबरी) बनाने के लिए? तू यहां पैदा नहीं हुआ, मरा कहीं और जाकर। आकर एक मंदिर पर मस्जिद बना दिया और पूरे मुल्क को बांट दिया। डिफेंस ऑफ इंडिया इज इंड ऑफ सिविलाइजेशन। इंडिया है तो दुनिया है, अगर इंडिया खत्म हुआ तो दुनिया खत्म। भारतीय सभ्यता, तथा बाबर द्वारा राम मन्दिर के ध्वंस के बारे में +* जो मुझे इस्लाम-विरोधी बोलते हैं उन्हें इस्लाम का पता नहीं है। शिखर सम्मेलन में +* पाकिस्तान के पास जो एटम बम है वो फटेगा तो फालूदा निकलेगा। इण्डिया टीवी पर +* सत्ता की राजनीति में आने के पहले मोदी एक साधारण कार्यकर्ता की तरह देश के कोने-कोने में घूमते रहे। इसलिए दूसरों की तुलना में उनकी जमीनी समझ ज्यादा गहरी है। वे जानते हैं कि अवाम की मुश्किलें क्या हैं? जबकि दिल्ली के दूसरे सियासी किरदार सत्ता केंद्रित राजनीति के ही खिलाड़ी रहे। नरेन्द्र मोदी पर +* पाकिस्तान एक ट्रेजरी की तरह है। नरसंहार करने वाले पाकिस्तान में खुले बैठे हैं। पाकिस्तान, हिंदुस्तान को नुकसान पहुंचा जा रहा है। ऐसे में भारत को पाकिस्तान के घर में घुसकर मारना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान को घुसकर मारा है। मोदी नहीं होते तो प्याज के लिए पाकिस्तान से दोस्ती हो जाती। एबीपी न्यूज़ के शिखर सम्मेलन २०२० में +* वे सब आई एस आई के लिये काम करते हैं। पाकिस्तानी कलाकारों पर +* पाकिस्तान कतई नहीं बदल सकता। इमरान खान तो पाकिस्तान को बिल्कुल भी नहीं बदल सकते। इमरान खान के हाथ में कुछ भी नहीं हैं। सेना का उन पर पूरा नियंत्रण है। जिस खिलाफत के खलीफा मोहम्मद अली जिन्ना हों, जिनको सुअर के गोश्त का शौक हो और व्हिस्की अच्छी लगती हो जिसने दोस्त की 16 साल की बेटी को भगाया हो, वो पाकिस्तान कैसे बदल सकता है इमरान खान के 'नया पाकिस्तान' पर +* संसदीय चुनाव पहले से ही फिक्स थे और इसके लिए सेना को तैनात किया गया था। पाकिस्तान फौज का मुल्क है। इमरान खान की तीसरी बीवी सेना की एजेंट है जिसको सेना ने ही प्लांट किया है। इसके जरिए पाकिस्तानी सेना प्रधानमंत्री के बेड रूम तक पहुंच गई है। पाकिस्तान में निष्पक्ष चुनाव कराए जाने के प्रश्न पर +* सिद्धू को यह तक नहीं पता है कि किसी के ननकाना साहब जाने पर एक सेना प्रमुख का क्या दखल है पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के पाकिस्तान जाने और वहां के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा से गले मिलने पर +* मैं बलूचिस्तान का एजेंट हूँ और सिन्ध में पैदा हुआ हूँ। सिंध के एजेंट को हिन्दुस्तान का एजेन्ट बताना मेरे लिए गर्व की बात है। सिन्ध हिन्द का हिस्सा है। हिंदुस्तान को इसको गले लगाना चाहिए। अपने को भारत का एजेंट बताए जाने के प्रश्न पर +* ऐसे लोगों को एक बार पाकिस्तान भेज दीजिए, तो इनको समझ में आ जाएगा कि यहां पर अभिव्यक्ति की आजादी है या नहीं भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर उठाये जा रहे प्रश्न पर +* मैं अल्ला के इस्लाम क��� मानता हूँ, लेकिन मुल्ला के इस्लाम को नहीं मानता। हिन्दुस्तान में रहने वाले मुसलमानों को यहां की संस्कृति को अपनाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।ये इस्लाम की आड़ में अपनी दुकान चला रहे हैं। उनके इस्लाम-विरोधी होने के प्रश्न पर +* सब वामपंथियों का खेल चल रहा है। प्रदर्शनकारियों की दिक्कत ये हैं कि यहाँ हिंदू क्यों आ रहे हैं? वो ये नहीं चाहते हैं कि तसलीमा नसरीन और तारिक फतेह को भारत की नागरिकता मिले। नागरिकता संशोधन कानून का जामिया मिल्लिया इस्लामिया से कोई लेना देना नहीं है। भारत के मुसलमानों का इस्तेमाल होता जा रहा है। मुसलमानों में महिलाओं की अशिक्षा बहुत बड़ी समस्या है। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर, शिखर सम्मेलन २०२० में +* कांग्रेस में जमीन से कटे नेता देश की सबसे पुरानी पार्टी को खींच रहे हैं। राहुल गांधी के लिए एक सशक्त नेतृत्व देना नामुमकिन-सी चुनौती है। खासकर मोदी के सामने। वे इसके लिए बने ही नहीं हैं। २०१७ में, कांग्रेस पर बोलते हुए +* जिन्ना से लेकर वहां के सारे लीडरों ने भारत को लगातार धोखे दिए हैं। वह भरोसे के काबिल नहीं है।पाक दुनिया भर में आतंक की फैक्ट्री बन चुका है। उसने पूरी कौम को ही बर्बाद कर रखा है। मोदी ही उसका इलाज कर सकते हैं। उसके साथ सख्ती से ही पेश आना होगा। +* मुसलमानों को सच का सामना करना चाहिए। सच यह है कि हिंदुस्तान में जिस एक हजार साल की मुस्लिम हुकूमत पर वे रोते-इतराते हैं, वह हमलावरों का इतिहास है, जिन्होंने इस महान मुल्क को लूटा, बर्बाद किया और सत्ता की छीना-झपटी में खूनखराबा करते रहे। जबकि भारतीय मुस्लिमों के पूर्वज पहले से यहीं थे। वे हिंदू, जैन और बौद्ध थे। +* कश्मीरियों की भलाई इसी में है कि पाकिस्तान की तरफ मुंह न करें। भारत ही उनका अतीत, वर्तमान और भविष्य है। चंद पाकिस्तानपरस्त नेता कश्मीर की बर्बादी के लिए जिम्मेदार हैं, जिन्हें सरहद के बार धकिया देना चाहिए। वे कश्मीर की एक पूरी पीढ़ी की बर्बादी के कसूरवार हैं। कश्मीरियों को भी अपनी जड़ें देखनी चाहिए। वह हिंदू और बौद्ध परंपराओं का गढ़ रहा है। धरती की जन्नत की हमलावरों ने क्या शक्ल बना दी? +तारिक फतह के बारे में विचार +* पंजाब के शेर, हिंदुस्‍तान के बेटे, कनाडा के प्रेमी, सच बोलने वाले, न्याय के लिए लड़ने वाले, शोषितों की आवाज तारिक फतेह अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका काम और उनकी क्रांति उन सभी के साथ जारी रहेगी, जो उन्हें जानते और प्यार करते थे। तारिक फतह की बेटी नताशा, उनके निधन की सूचना देते हुए +* तारि‍क फतेह एक प्रसिद्ध विचारक, लेखक और टीकाकार थे। मीडिया और साहित्य जगत में उनके महत्वपूर्ण योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। वह जीवनभर अपने सिद्धान्तों और विश्वासों के प्रति प्रतिबद्ध रहे। उनके साहस और दृढ़ विश्वास के लिए उनका सम्मान किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] + + +वैद्युत इंजीनियरी प्रौद्योगिकी की वह शाखा है जिसमें विद्युत, इलेक्ट्रॉनिकी और विद्युतचुम्बकत्व का अध्ययन किया जाता है। इसमें मुख्यतः वैद्युत युक्तियों (मोटर, जनित्र आदि विद्युत परिपथों तथा विद्युत के उत्पादन, संप्रेषण, वितरण और उपयोग का अध्ययन किया जाता है। +* इस संस्मरण का की डिज़ाइन इस प्रकार की गयी है कि विद्युत से सम्बन्धित वे परिघटनाएँ जो दो या दो से अधिक वस्तुओं के आपसी सम्पर्क से उत्पन्न होतीं हैं उनको प्रथम सिद्धान्तों, जो मुख्यतः प्रयोग द्वारा प्राप्त किये गये हैं द्वारा निष्पन्न (deduce) किया जा सके । इन परिघटनाओं को गैल्वानिक कहा गया है। यदि विविध तथ्यों को इसके द्वारा मस्तिष्क के लिये एकीकृत करके प्रस्तुत किया जा सका तो इस संस्मरण का उद्देश्य पूरा हो जाएगा। जॉर्ज ओम (Georg Ohm 1827/91 द गैल्वानिक सर्किट इन्वेस्टिगेटेड मैथेमैटिकली' का आरम्भिक वाक्य + + +: जो मनुष्य साहित्य, संगीत और कला से विहीन है वह बिना पूंछ तथा बिना सींगों वाले साक्षात् पशु के समान है । वह बिना घास खाए जीवित रहता है यह पशुओं के लिए निःसंदेह सौभाग्य की बात है। +: जिन मनुष्यों के पास विद्या, तप, दान की भावना, ज्ञान शील (सत्स्वभाव मानवीय गुण, धर्म में संलग्नता का अभाव हो वे इस मरणशील संसार में धरती पर बोझ बने हुए मनुष्य रूप में विचरण करने वाले पशु हैं। +पशु, पत्नी, सुत (संतान) तथा निवास स्थान का स्वामित्व एक ऋण लेने के अनुबन्ध के समान होता है। जिस प्रकार लिये हुए ऋण की राशि वापस करने पर ऋण का दायित्व समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अपने परिवार और सम्पति के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह करता है तो इस पर किसी प्रकार की चिन्ता क्यों हो? +: ऐसे वातावरण में वन के पशु भी मुनियों के समान ही अहिंसक एवं ईर्ष्याहीन हो गये थे, अतः वे किसी पर आक्रमण नहीं करते थे। यही नहीं, सर्वत्र कोयलें कूज रही थीं। उस पथ से निकलने वाले किसी भी पथिक को मानो उस सुन्दर उद्यान में विश्राम करने का निमंत्रण दिया जा रहा हो। +: परोपकार रहित मानव के जीवन को धिक्कार है। वे पशु धन्य हैं जिनका चमड़ा मरने के बाद भी उपयोग में आता है। +: एक (अच्छे) विद्यार्थी के ये पाँच लक्षण हैं- कौए की तरह चेष्टा (जहां-जहां ज्ञान मिल रहा हो उसे गहण करे लेना चाहिए बगुले की तरह अपना ध्यान लगाना चाहिए, कुत्ते के समान नींद (हल्की सी आहट पर उठ जाना कम भोजन करना, घर का त्याग (गाँव-घर और निकट सम्बन्धियों से बहुत अधिक लगव न होना)। +: सभी जीव एक दूसरे पर आश्रित हैं। +: प्रिय वाक्य बोलने से (मनुष्य ही नहीं बल्कि) सभी जन्तु प्रसन्न होते हैं। इसलिए प्रिय ही बोलना चाहिये। आखिर वचनों में दरिद्रता कैसी? +: जिसका जैसा स्वभाव है, वह छूटना सर्वदा कठिन होता है। यदि कुत्ते को राजा बना दिया जाए, तो क्या वह जूते को नहीं चबाएगा ? + + +काका हाथरसी 18 सितंबर 1906 18 सितंबर 1995) भारत के एक हिंदी व्यंग्यकार और हास्य कवि थे। +* अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज, +* अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट। +: मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोट॥ +* अगर ले लिया कर्ज कुछ, क्या है इसमें हर्ज । +* आवश्यकता से अधिक, बढ़े राग-अनुराग। +: फिल्मी बँगले स्वर्ग हैं, अस्पताल है नर्क॥ +* एक लाख की लाटरी, दें भगवान निकाल। +: हास्य-व्यंग्य के रंग से, स्वस्थ-मस्त हो देह॥ +* काका या संसार में, व्यर्थ राम का नाम। +: नोटों का बंडल समझ, सबसे बढ़िया मित्र॥ +: इन पर राशनकार्ड नहिं, फिर भी हैं अलमस्त॥ +: ‘क्यू’ में धक्का मारकर, पहुंच गये बलवीर ॥ +: पहुंच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला। +: लाला बोले – भागो, खत्म हो गया आटा॥ +: बैठ जाएं तो पंचर हो जाती है लाली। +: अगर कभी श्रीमान् ऊंट गाड़ी में जाएं +: पहिए चूं-चूं करें, ऊंच को मिर्गी आएं। +: सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य। +: है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा- +: नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में? +: हिंदी पढ़नी होये तो, जाओ बेटे रूस। +: इंग्लिश रानी हुई हिंद में, हिंदी बाँदी। +: पर भ्रमण और उद्घाटन-भाषण से अवकाश नहीं मिलता॥ +: यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो॥ +* दर्शन-वेदांत बताते हैं, यह जीवन-जगत अनित्या है। +: भारत से भ्रष्टाचार अभी तक दूर नहीं वे कर पाए॥ + + +* शाकाहारी आंदोलन एक प्राचीन आंदोलन है और काफी आधुनिक नहीं है। +* हमें शाकाहार के मूल्यों का प्रचार करना चाहिए। +* किसी भी समय जीवन कठिन हो सकता है, किसी भी समय जीवन आसान हो सकता है। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि कोई अपने आप को जीवन में कैसे समायोजित करता है। +* व्यक्ति एक व्यक्ति के प्रति दयालु नहीं हो सकता और दूसरे के प्रति क्रूर हो सकता है। +* यदि हम किसी के द्वारा पीड़ा नहीं चाहते हैं तो हमें किसी को पीड़ा नहीं देनी चाहिए; और अगर इंसान दूसरों की कीमत पर जीना चाहता है तो वह खुद को इंसान कैसे समझ सकता है। +* मैं यह नहीं कहता कि जो शाकाहारी है वह करुणा से भरा है और जो नहीं है वह अन्यथा है। हमें कभी-कभी ऐसे लोग मिलते हैं, जो शाकाहारी हैं, बहुत बुरे लोग हैं। +* मैं इसके भौतिक कारणों में नहीं जाना चाहता: मानव शरीर का निर्माण मांसाहारी जानवरों से अलग है। लेकिन मनुष्य की बुद्धिमत्ता ऐसी है कि उसका उपयोग किसी भी चीज के बचाव के लिए किया जा सकता है, चाहे वह सही हो या गलत। +* एक विशेषज्ञ एक उद्देश्य दृश्य देता है। वह अपना दृष्टिकोण देता है। +* मैं किसी भी रूप में सभी जीवित प्राणियों के साथ क्रूरता को रोकने में विश्वास करता हूं। +* जब तक आदमी जानवरों को खाएगा, तब तक जानवरों के साथ क्रूरता कैसे दूर की जा सकती है? +* जो लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं उनके लिए मामला कुछ और की तुलना में सरल और स्पष्ट है: क्योंकि जो लोग ईश्वर को मानते हैं उनका मानना ​​है कि ईश्वर पूरे ब्रह्मांड का निर्माता है और ऐसा कुछ भी नहीं है जो उसके पास नहीं आता है। +* इसलिए, मैं कहता हूं कि आत्मरक्षा के अलावा किसी भी कारण से, किसी को भी किसी जानवर को मारने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। +* शुरुआती युग में, मेरा मानना ​​है कि बहुत सोचा नहीं गया था कि मनुष्य क्या है और उसके वास्तविक कार्य क्या होने चाहिए, और उसके जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है। +* इसलिए, यह एक तथ्य है कि जो कोई भी सत्य का एहसास करना चाहता है या जो मानवीय होना चाहता है, उसे जीवन के अहिंसक तरीकों का पालन करना चाहिए, अन्यथा वह सत्य तक नहीं पहुंच पाएगा। +* भोजन के मामले में दो बुराइयों में से कम के बीच भी दो बुराइयों में से एक को चुनना है, और इसलिए मानव जीवन को बनाए रखने के लिए शाकाहारी भोजन उसे मनुष्य द्वारा मिला है। +* इसलिए, शाकाहार ही हमें कॉम-जुनून की गुणवत्ता दे सकता है, जो मनुष्य को बाकी जानवरों की दुनिया से अलग करता है। + + +* चीन, भारत के लिये खतरा न० १ है। सन २००० में +* सेमिनरी से मेरा मन उचट गया था। मैं देखता कि पादरी की कथनी और करनी में बहुत फर्क है। पादरी का जीवन छोड़ने के बारे में एक साक्षत्कार में +* चीन ने उन्हें (कोको द्वीप- जहां चीन ने अब एक सैन्य अड्डा विकसित किया है) कर्ज पर लिया है, जहां एक निगरानी प्रतिष्ठान है जो भारत की निगरानी कर रहा है। +* चीन ने पाकिस्तान को मिसाइल के साथ-साथ परमाणु ज्ञान दोनों प्रदान किए हैं चीन ने अपनी सीमाओं के साथ तिब्बत में अपने परमाणु हथियारों का भंडार किया है। +* पूर्वी सीमा पर, चीनियों ने म्यांमार की सेना को प्रशिक्षित और सुसज्जित किया है छह साल पहले 1,70,000 से, इसकी ताकत आज 4,50,000 है और सदी के अंत तक, यह आधा मिलियन हो जाएगी। म्यांमार की आबादी केवल 42 मिलियन है। + + +: महान व्यक्तियों ने जो रास्ता अपनाया, वही सही रास्ता है (उसी पर चलना चाहिये)। +: माता और मातृभूमि दोनों स्वर्ग से भी महान हैं। +: महान लोगों की समान स्थिति सम्पन्नता और विपत्ति दोनों में समान होती है। जैसे कि सूर्य उगते समय लाल होता है और वैसे ही डूबते समय भी लाल ही होता है। +: सम्पूर्ण संसार को शेषनाग ने अपने फन पर धारण कर रक्खा है, और कच्छपराज ने अपनी पीठ पर शेषनाग को धारण कर रक्खा है, परन्तु समुद्र ने इस कच्छपराज को भी एक बूँद की तरह अपने अन्दर ले रक्खा है। इससे स्पष्ट है की महापुरुषों के महानता और चरित्र की कोई सीमा नहीं है। +: महापुरुषों का सामीप्य किसकी उन्नति नहीं करता? कमल के पत्ते पर पड़ी हुई पानी की बूँद भी मोती जैसी शोभा प्राप्त कर लेती है। +* उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं। जान फ़्लीचर +* महान कलाकार हमेशा अपने समय से आगे या पीछे होता है। जॉर्ज एडवर्ड मूर +* महानता से घबराइये नहीं: कुछ लोग महान पैदा होते हैं, कुछ महानता प्रात करते हैं, और कुछ लोगों के ऊपर महानता थोप दी जाती है। विलियम शेक्सपीयर +* महान लोकत्रंत को प्रगतिशील होना चाहिए, अन्यथा जल्द ही यह महान लोकतंत्र नहीं रह जाएगा। थियोडोर रूजवेल्ट +* आज तक कोई भी व्यक्ति अनुसरण-मात्र से महान नहीं बना। सैमुअल जॉनसन +* महान व्यक्ति हमें इसलिए महान लगते हैं क्योंकि घुटनों पर टिके हुए हैं। स्टर्नर +* सभी महान व्यक्ति मध्यम वर्ग से ही उतपन्न होते हैं। इमर्सन +* महान बनो और अन्य मनुष्यों में होने वाली महानता तुम्हारी महानता से मिलने के लिए उठ खड़ी होगी। लेनिन +* ऐसा कोई वास्तव में महान व्यक्ति नहीं हुआ जो वास्तव में, सदाचारी न रहा हो। फ्रैंकलिन +* वह निश्चय ही महान है, जिसे अपने ऊपर अधिकार है। वी० पी० हाल +* ज्यों-ज्यों हम महान पुरुषों के निकट आते हैं, त्यों-त्यों हमें स्पष्ट होता जाता है कि वे केवल मानव हैं। अपने निकटवर्ती सेवकों को वे कभी महान प्रतीत नहीं होते। लाब्रुयेर +* महान व्यक्ति दूसरे से हँसी-मजाक करने और मिलने-जुलने में भी अपने व्यवहार से महान बना रहता है, लेकिन जो उससे मिलता है उसके साथ उठता-बैठता है, वह भी कभी छोटा नहीं दिखाई देता। आंद्रेबीद +* महान दोषों से सम्पन्न होना महान व्यक्तियों का ही अधिकार है। रोश फूको +* विश्व को महापुरुषों की परम अपेक्षा है, महपुरुषों के पुजारियों एवं खुशामदियों की नहीं। बीरबी +* दुनिया में दुनिया की विचारधारा और एकांत में अपनी विचारधारा के अनुसार जीना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन महान आदमी तो वह है जो भीड़ में भी पूरी मिठास के साथ अपने व्यक्तित्व के निजीपन को बनाए रख सकता है। एमर्सन +* महानता बहुत अधिक शक्तिशाली होने से प्राप्त नहीं होती, वह तो प्राप्त शक्ति का सही- सही उपयोग करने से प्राप्त होती है। एच० डब्ल्यू बीचर +* वास्तविक महान व्यक्ति तीन चिन्हों द्वारा जाना जाता है – योजना में उदारता, उसे पूरा करने में मनुष्यता और सफलता में संयम। बिस्मार्क +* हरेक व्यक्ति, जो पैनी नजर से देखता है और दृढ़ निश्चय करता है, अनजाने ही महान बन जाता है। बुलवर +* कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण मानवता के बराबर महान नहीं है। थ्योडोर पार्कर + + +: कार्य के सन्दर्भ में मंत्री, गृहकार्य में दासी, भोजन प्रदान करने वाली माँ, रति के संदर्भ में रम्भा, धर्म का पालन करने वाली, क्षमा करने में धरती के समान इन छह गुणों वाली पत्नी मिलना दुर्लभ है। +: अनुकूल (अपने विचारों से मेल खाने वली विमलांगी (स्वच्छ अंगों वाली कुलीन, कुशल, सुशील पांच 'ल'कारों से सम्पन्न ऐसी पत्नी तभी मिलती है जब पुरुष पुण्य (का फल) प्राप्त करता है। +राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, भाई की पत्नी, पत्नी की माता (सास) और अपनी माता ये पाँचों माता हैं। + + +* गलती करने में कोई गलती नहीं है। गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है। +* गंभीरता से जीवन ना जिएं अन्यथा आप जीवित नहीं रह पाएंगे। +* जो व्यक्ति प्रयास ही नही करता है, उसे असफलता का क्या डर । +* एक सही जीवन वही है जो व्यक्ति अपने काम में निहित रहता हो और खुशी से जीवन बिता रहा हो। +* जीवन में कुछ करना चाहते हैं, तो सबसे पहले जिंदगी को जीना सीखें। +* असफलता की उत्पत्ति तभी होती है जब आप प्रयास करना बन्द कर देते हैं। +* जब हम कठिन कार्यों को चुनौती के रुप में स्वीकार करते हैं और उन्हें खुशी और उत्साह से निष्पादित करते हैं, तो चमत्कार हो सकते हैं। +* यदि आपके पास स्वास्थ्य है तो संभवतः आप प्रसन्न होंगे, और यदि आपके पास स्वास्थ्य और प्रसन्नता दोनों हैं, तो आपके पास अपनी आवश्यकता के अनुसार समस्त सम्पदा होगी फिर चाहे आप इसे न भी चाहते हों। +* कभी भी सफाई नहीं दें। आपके दोस्तों को इसकी आवश्यकता नहीं है और आपके दुश्मनों को विश्वास ही नहीं होगा। + + +फणीश्वर नाथ 'रेणु 4 मार्च 1921-11 अप्रैल 1977 हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे। उनके पहले उपन्यास 'मैला आंचल' लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनका जन्म बिहार के अररिया जिले में फॉरबिसगंज के पास औराही हिंगना गाँव में हुआ था। उनकी शिक्षा भारत और नेपाल में हुई। इन्टरमीडिएट के बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। बाद में 1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया। उनकी लेखन-शैली वर्णणात्मक थी। पात्रों का चरित्र-निर्माण काफी तेजी से होता था। उनका लेखन प्रेमचंद की सामाजिक यथार्थवादी परmपरा को आगे बढाता है। उनकी साहित्यिक कृतियाँ हैं; उपन्यास: मैला आंचल, परती परिकथा, जूलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, पलटू बाबू रोड; कथा-संग्रह: एक आदिम रात्रि की महक, ठुमरी, अग्निखोर, अच्छे आदमी; रिपोर्ताज: ऋणजल-धनजल, नेपाली क्रांतिकथा, वनतुलसी की गंध, श्रुत अश्रुत पूर्वे । 'तीसरी कसम' पर इसी नाम से प्रसिद्ध फिल्म बनी । +* क्या करेगा वह संजीवनी बूटी खोजकर उसे नही चाहिए संजीवनी। भूख और बेबसी से छटपटाकर मरने से अच्छा है मैलेग्नेट मलेरिया से बेहोश होकर मर जाना। तिल-तिलकर घुल-घुलकर मरने के लिए उन्हें जिलाना बहुत बड़ी क्रूरता होगी। +* आदमी के दिल होता है, शरीर की चीर फाड़ कर जिसे हम नहीं पा सकते । वह हार्ट नहीं आगम-अगोचर जैसी चीज है जिसमें दर्द होता है लेकिन जिसकी दवा एड्रिलीन नहीं । उस दर्द को मिटा दो आदमी जानवर हो जाएगा । दिल वह मंदिर है जिसमें आदमी के अन��दर का देवता वास करता है। +* तुम तो आज आए हो, हम सन् तीस से जानते हैं। टीक-मोंछ काटकर मुर्गी का अंडा खिलाकर कामरेड बनाया जाता है। कफ जेहल में कितने लोगों को कामरेड होते देखा है। मुजफ्फरपुर कू एक सोशलिस्ट नेता थे। उनका काम यही था, लोगों की टीक मोंछ काटना। (बालदेव कालीचरण से) +* हमने भारत माता का नाम, महात्मा जी का नाम लेना नहीं बंद किया है। मलेटरी ने हमको नाखुन में सुई गड़ाया तिस पर भी हम इस-बिस नहीं किएं। आखिर हार कर जेलखाना में डाल दिया। +* कांग्रेस पूंजीपतियों की भ्रष्ट संस्था है। +* यह जो लाल झंडा है, आपका झंडा है, जनता का झंडा है, अवाम का झंडा है, इकालाब झण्डा है। इसकी लाली उगते हुए आफताब की लाली है। यह खुद आफताब है । इसकी लाली, इसका रंग क्या है? रंग नहीं। यह गरीबों, महरूमों, मजदूरों, के खून में रंगा हुआ झंडा है। +* जात दो ही है एक गरीब और दूसरी अमीर। +* एक असहाय औरत देवता के संरक्षण में भी सुख-चैन से नहीं सो सकती है। (कालीचरण ने मंगला के लिए कहा) +* कमाने वाला खाएगा, इसके चलते जो कुछ हो। किसान राज कायम हो मजदूर राज कायम हो। +* डॉक्टर रोज डिस्पेंसरी खोलकर शिवजी की मूर्ति पर बेलपत्र चढाने के बाद, संक्रामक और भयानक रोगों के फैलने की आशा में कुर्सी पर बैठे रहना, अथवा अपने बंगले पर सैकड़ों रोगियों की भीड़ जमा करके रोग की परीक्षा करने के पहले नोटों और रुपयों की परीक्षा करना, मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों पर पांडित्य की वर्षा करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझना और अस्पताल में कराहते हुए गरीब रोगियों के रूदन को जिंदगी का एक संगीत समझकर उपभोग करना ही डॉक्टर का कर्त्तव्य नहीं मैला आँचल ममता द्वारा डॉक्टर को लिखे गए एक पत्र में +* कोई रिसर्च की असफल नहीं होता है डॉक्टर तुमने कम से कम मिट्टी को तो पहचाना है। मिट्टी और मनुष्य में मोहब्बत छोटी बात नहीं। ममता का कथन +* मिट्टी और मनुष्य में गहरी मोहब्बत किसी लेबोरेटरी में नहीं बनती। ममता का कथन +* मिट्टी और मनुष्य के कल्याण तथा संस्कृति से विरहित होकर विज्ञान विश्व के लिए अभिशक्त हो उठा है। युद्ध के विषैले गैसों के सारे समाज के मानवों को विकृत कर दिया है। साम्राज्य लोभी शासकों को संगीनों के साये में वैज्ञानिकों दल खोज कर रहे हैं, प्रयोग कर रहे हैं, एटम ब्रेक कर रहा है, मकड़ी की जाल की तरह। चारों ओर मह अंधकार। सब वाष्प। प्रकृति पुष्प अं�� पिंड। मिट्टी और मनुष्य के शुभचिंतक छोटी सी टोली अंधेरे में टटोल रही है। +* बिलैती कपड़ा के पिकेटिंग के जमाने में चानमल-सागरमल के गोला पर पिकेटिंग के दिन क्या हुआ था, सो याद है तुमको बालदेव चानमल मड़बाड़ी के बेटा सागरमल ने अपने हाथों सभी भोलटियरों को पीटा था; जेहल में भोलटियरों को रखने के लिए सरकार को खर्चा दिया था। वही सागरमल आज नरपतनगर थाना कांग्रेस का सभापति है। और सुनोगे दुलारचन्द कापरा को जानते हो न? वही जुआ कम्पनीवाला, एक बार नेपाली लड़कियों को भगाकर लाते समय जो जोगबनी में पकड़ा गया था। वह कटहा थाना का सिकरेटरी है। भारथमाता और भी, जार-बेजार रो रही हैं। बावनदास, बालदेव से +* पिकेटिंग के समय कांग्रेस के वालेटियरों को पीटने वाला चानमल मारवाड़ी का बेटा सागरमल नरपत नगर थाना कांग्रेस का सभापति है जबकि नेपाल से लड़कियों भगाकर लाने वाला दुलारचंद कापरा कटहा थाने का सेक्रेटरी है। बावनदास +* अब लोगों को चाहिए की अपनी अपनी टोपी पे लिखवा लें भूमिहार, राजपूत, कायस्थ, यादव, हरिजन कौन काजकर्ता किस पार्टी का है, समझ में नहीं आता। बावनदास मन में सोचता है +* कमली डॉ प्रशांत से, हरगौरी अपनी मौसेरी बहन से, बालदेव कोठारिन (लछमी) से, कालीचरण चर्खा स्कूल की मास्टरनी से प्रेम करते हैं। सहदेव +* डॉक्टर से इतना हेल-मेल बढ़ाना ठीक नहीं है, वह उनकी आंखों में झॉककर यह सोचकर कॉप जाती है कि कही उसने अपने आंचल को तो मेला नहीं कर लिया है। कमली की मां कमली से +* भाई आदमी को एक ही रंग में रहना चाहिए यह तीन रंग का झंडा थोड़ा सादा, थोड़ा लाल और पीला, यह है तो खिचड़ी पार्टी का झंडा है। कांग्रेस तो खिचड़ी पार्टी है। इसमें जमीदार है, सेठ लोग हैं और पासंग मारने के लिए थोडे किसान,मजदूरों को भी मेंबर बना लिया गया है। गरीबों को एक ही रंग के झंडे वाली पार्टी में रहना चाहिए। वासुदेव का कथन +* सिर्फ हिन्दू कह देने से ही पिंड नहीं छूट सकता। ब्राह्मण हैं? कौन ब्राह्मण गोत्रा क्या है? मूल क्या है?” रेणु रचनावली भाग २, पृष्ठ 60 +* तहसीलदार साहब की बेटी कमली जब गमकौआ साबुन से नहाने लगती है तो सारा गाँव गम-गम करने लगता है। मैला आंचल +* माघ का जाड़ा तो बाघ को भी ठंडा कर देता है। मैला आंचल +* गणेश की नानी बुढ़ापे में भी जिसकी सुंदरता नष्ट नहीं हुई, जिसके चेहरे की झुर्रियों ने एक नई खूबसूरती ला दी है। सिर के सफेद बालों के घुँघराले लट। होंठो की लाली ज्यों की त्यों है। मैला आंचल +:हाथ में लिया है भेख? +इसमें फूल भी है शूल भी, धूल भी है गुलाब भी, कीचड भी है चंदन भी, सुन्दरता भी कुरुपता भी मैं किसी से भी दामन बचााकर निकाल नहीं पाया। रेणु ने उपन्यास की भूमिका में मैला आँचल के बारे में +* सूक्ष्मता से देखना और पहचानना साहित्यकार का कर्तव्य है, परिवेश से ऐसे ही सूक्ष्म लगाव का संबंध साहित्य से अपेक्षित है। +* साहित्यकार को चाहिए कि वह अपने परिवेश को संपूर्णता और ईमानदारी से जिए। +* साहित्य की पौध बड़ी नाज़ुक और हरी होती है। इसे राजनीति की भैंस द्वारा चर लिए जाने से बचाए रख सकें तभी फ़सल हमें मिल सकती है। +* लेखक के संप्रेषण में ईमानदारी है तो रचना सशक्त होगी, चाहे जिस विधा की हो। +मैं फुल टाइम साहित्य करने के पहले राजनीति करता था, यानी पार्टी में था किसान मजदूरों के बीच। किसानों की कई एक बड़ी लड़ाइयाँ लड़ीं। मज़दूर आंदोलनों में सक्रिय भाग लेता रहा। राजनीतिक पार्टी का सदस्य न होकर भी आदमी राजनीति कर सकता है—यह बात लोगों के दिमाग़ में अटेगी भी नहीं। मेरी रचनाएँ ख़ासकर मैला आँचल, परती परिकथा, तथा दीर्घतपा, जुलूस, कितने चौराहे सभी राजनीतिक समस्याओं एवं विचारों के ही प्रतिफल हैं। राजनीति के संदर्भ में एक साक्षात्‌कार में +* धान की इतनी अच्छी फसल, जितनी अच्छी इस साल है, हो तो खेती करने में कविता करने का आनंद है। खेती और कविता में जरा भी फर्क नहीं लगता। मेरे विचार से तो अभी एक बीघा खेत में खेती कर लेना पांच लेख और पांच कहानियाँ लिखने से ज्यादा फायदेमंद है। कथाकार सुवास कुमार से, अपने गाँव में (रेणु रचनावली, भाग 4) +* लेखक अपने प्रारंभिक दौर में ही ऊर्जावान और उत्साही रहता है। इसी उम्र में कुछ क्रान्तिकारी विचार आते हैं। विचारों में कुछ आग होती है। उम्र ढलने के साथ वह आग बुझ जाती है। किसी की कृति का मूल्यांकन उसकी प्रारम्भिक पुस्तक के आधार पर करना चाहिए। यदि आग रहते सम्मान नहीं किया तो चुक जाने के बाद तो निर्जीव शरीर को सुन्दर कपड़े पहना देने के बराबर है। चाहिए यह भी कि जो तथाकथित क्रांतिकारी, नक्सलवादी या और उग्रवादी साहित्य है उस पर भी पूर्ण विचार हो, बातचीत हो तभी पुरस्कार देने की घोषणा की जाए। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास किताब छापने का काम करे तथा साहित्य अकादेमी पुस्तक को परखने का कार्य करे। न���े लोगों के विचार को तरजीह देनी चाहिए। मैं रचनात्मक क्रियाशीलता का पक्षधर हूँ। साहित्य अकादेमी की पुरस्कार नीति पर (४ मार्च १९७३) +फणीश्वरनाथ रेणु और उनके साहित्य पर विचार +* हिंदी उपन्यास साहित्य में आंचलिकता की एक नई धारा को जन्म देने वाले महान कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की प्रथम उपन्यास एक कृति “मैला आँचल” अपने प्रसिद्धि और सफलता के बावजूद कुछ साहित्यकारों के द्वारा उसकी मौलिकता पर लगाए गए प्रश्न चिह्न से आहत हुई है। डॉ. कलानाथ मिश्र, परिषद पत्रिका के एक अंक में +* रेणु की संपूर्ण कहानियों में मूलत: गाँवों में पलते छोटे-छोटे सपने एवं अरमानों के चित्र हैं तथा इन्हें पूरा करने में संघर्षरत लोग अपनी समस्त बुराइयों के बावजूद वे अपने भीतर के इंसान को कभी मरने नहीं देते या तो वे जीतते हैं या हार कर भी हार को स्वीकार नहीं करते। शहरी सभ्यता या यूँ कहें शहरों में सभ्य होने का जो ढोंग हम करते हैं उस पर यह कहानियाँ कालिख पोतती-सी नज़र आती हैं। डॉ० अनीता राकेश ने “रेणु की संपूर्ण कहानियाँ” शीर्षक से लिखे अपने आलेख में +* रेणु भारतीय गाँव के अनोखे और सच्चे कथाकार हैं। प्रेमचंद की तरह प्रामाणिक। रेणु को प्रेमचन्द और शरतचन्द्र के बीच कहीं रखा जा सकता है। रेणु में प्रेमचंद की तरह ग्रामीण जीवन की वास्तविकता को पकड़ने और शरद की तरह मानवीय स्थितियों और स्त्री-पुरुष संबंधों की जटिलताओं को पहचानने की कोशिश दिखलाई देती है। रेणु की कहानियाँ मुख्यतः मानव संबंधों की कहानियाँ हैं। आशीष त्रिपाठी +* रेणु जी को अनेक स्थानों पर घनघोर उपेक्षा का शिकार होना पड़ा क्योंकि वह कहानियों के उस दौर में फ़िट नहीं बैठ रहे थे और यही कारण है कि आगे चलकर बहुत बाद उनकी कहानियों ने प्रसिद्धि प्राप्त की। भारत यायावर +कितने चौराहे' नामक उपन्यास स्वाधीनता आन्दोलन का औपन्यासिक अभिलेख प्रतीत होता है। इस लघु उपन्यास में किशोर नामक मनमोहन के राष्ट्रीय व्यक्तित्व का विकास क्रम चित्रित हुआ है। यह राष्ट्रीय बोध के विकास क्रम का उपन्यास है। इस विकास क्रम के अनेक चौराहे आते हैं। ऐसा लगता है कि मनमोहन (मुनि जी) के रूप में रेणु जी का कैशोर्य विकसित होता है। आइरिस कोर्ट के स्कूल में पहुँचकर मुनि जी क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ा प्रियवत राय से राष्ट्रीयता, स्वराज साधन, संघर्ष एवं सेवा की दीक्षा पाता है। डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद +* रेणु अद्भुत कथाकार थे — कुछ हद तक शरद की तरह। रेणु ने कथा वाचन के साथ खुलकर प्रयोग किए हैं। अपने उपन्यासों और कहानियों में भी। कथा के भीतर कथा और अतीत के भीतर धड़कते हुए वर्तमान को रेणु बड़ी सहजता से प्रस्तुत करते हैं। कथा वाचन के अनेक स्तरीयता में मौजूद जातीय संभावनाओं का उपयोग रेणु जी ने अपने आशय को व्यक्त करने के लिए किया है। विद्या सिन्हा, अपने एक आलेख में +* धरती के सच और इतिहास की चेतना को फणीश्वर नाथ रेणु ने एक साथ आत्मसात किया था। उनकी रचनाएँ इसका प्रमाण है गाँव के खेत-खलिहान, पर्व-त्यौहार, गीत, कथा, रीति-रिवाज़, टोन, भाषा-बोली, मुहावरे, मिज़ाज, तेवर, सोच, मानसिकता, क्रिया-प्रतिक्रिया, जाति-गठन, सामाजिक बनावट, शक्ति-संतुलन, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक यथार्थ, निरंतर होनेवाला परिवर्तन जनित दबाव, इन सब की आपसी अनावश्यक टकराहटें, व्यक्ति समूह और समाज के आपसी बनते-बिगड़ते रिश्ते, प्रकृति के विभिन्न रूप, प्रकृति और मनुष्य का अंतर्संबंध—सब एक जादुई संतुलन में बँधे रेणु के कथा विधान में इस तरह उतरते हैं जैसे साक्षात्‌ एक स्थान (गाँव, क़स्बा, शहर) अपने सारे कार्य-व्यापारों और धड़कनों के साथ वह मूर्त हो रहा हो। आधुनिक हिंदी साहित्य के कीर्ति-स्तम्भ, सम्पादक-योगेन्द्र दत्त शर्मा, प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, पृष्ठ-192 (ISBN978-81-230-1671-9) + + +* विरोधाभास का होना झूठ का प्रतीक नहीं है, और ना ही इसका ना होना सत्य का। ब्लेज पास्कल + + +* सनातन धर्म में सांख्य, ब्रह्माण्डीय संरचना प्रदान करता है वेदान्त अविभाज्य अस्तित्व, ज्ञान और परमानन्द सम्बन्धी अटल सत्य प्रदान करता है तथा तन्त्र और योग विधि एवं साधना (प्रक्टिस) प्रदान करते हैं। बाबाजि बॉब किन्डलर के लेख १६ दिसम्बर २०१३ को लिया गया। +* योग, वेदान्त और तन्त्र का आविर्भाव अधिकांशतः सांख्य दर्शन से हुआ है जिसमें २४ तत्त्वों का वर्णन है। बाबाजि बॉब किन्डलर +* वैदिक और तान्त्रिक दोनों ही सम्प्रदाय अति प्रचीन काल से ही भारत में साथ-साथ अस्तिव में रहे हैं। उसी समय से ही तन्त्र कुछ गिनति के लोगों तक सीमित था। तन्तर के सिद्धान्त और अभ्यास को यदि समझ लिया जाय और अधिक संख्या में लोग इसे स्वीकार कर लें तो मानव समुदाय में कोई वर्ग-भेद नहीं होगा। हमारे बारे में, श्रीपुरम संस्था, १६ दिसम्बर २०१३ को लिया गया + + +पाईथॉन Python) एक प्रोग्रामन भाषा है। यह इन्टरप्रीट की जाने वाली, इन्टरैक्टिव भाषा है। इसका निर्माण Guido van Rossum ने १९९० में किया था। +* और 'पाईथॉन ऐक्टिविस्ट' की परिभाषा क्या है? संसार भर के पर्ल के इन्स्टालेशन्स को उड़ाना इवान वान लैनिङ्हम, २००५ में, comp. lang. python पर +* पाईथॉन की चिन्ता बुरे प्रोग्रामों को लिखना कठिन बनाने की अपेक्षा अच्छे प्रोग्रामों को लिखना आसान बनाना है। स्टीव होल्डेन, जून २००५ + + +: सज्जनों के कल्याण, दुष्टों के विनाश एवं धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में जन्म लेता हूँ। +: क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, और मोह से स्मृति विभ्रम। स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश होने से वह मनुष्य नष्ट हो जाता है। +: किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है किसी एक को भी मारे या न मारे। किन्तु बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है। +: अन्याय या गलत तरीके से कमाया हुआ धन दस वर्षों तक रहता है। लेकिन ग्यारहवें वर्ष वह मूलधन सहित नष्ट हो जाता है। +: क्रोध ही मनुष्यों का प्रथम शत्रु है जो (क्रोधी के) देह में स्थित रहते हुए उसी देह का नाश करने वाला है। जैसे लकड़ी में ही रहनेवाली अग्नि उसी लकड़ी के शरीर को जलाती है। +: लोभ और पाप सभी संकटों का मूल कारण है। लोभ शत्रुता में वृद्धि करता है, अधिक लोभ करने वाला विनाश को प्राप्त होता है। +* हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो। घृणा से विनाश होता है। भगवान महावीर]] +: जो दीर्घसूत्री हैं (जो कार्य को आरम्भ करने में बहुर देर लगाते हैं उनका विनाश होता है। +: विनाश का समय आने पर बुद्धि उल्टी हो जाती है। + + +सरलता या सीधापन वह गुण है जो 'टेढ़ापन' या 'वक्रता' का विलोम है। +: अपने व्यवहार में बहुत सीधे ना रहें, जाकर वन में देख लें। वहाँ जो सीधे पेड़ होते हैं वे पहले काटे जाते हैं, और जो पेड़ टेढ़े होते हैं वो खड़े रहते हैं। +: नली में रखी हुई कुत्ते की पूंछ सीधी नहीं हो जाती; ठीक उसी तरह बोध देने से दृष्ट का हृदय मधुर नहीं बन जाता । +* आंशिक संस्कृति शृंगार की ओर दौड़ती है, अपरिमित संस्कृति सरलता की ओर। बोबी +* महान चीजें हमेशा सरल और विनम्र होती हैं। सबसे महान सत्य सरल होते हैं। लियो तोलस्���ोय + + +: जो सारी पुरानी वस्तुएँ और विचार हैं, वे सभी अच्छे ही होते हैं ऐसा नहीं है। + + +: जिन लोगों के पास न तो विद्या, न तप, न तप, न ज्ञान, न शील, न गुण और न धर्म है, वे लोग इस पृथ्वी पर भार हैं और मनुष्य के रूप में मृग/जानवर की तरह से घूमते रहते हैं। +: मनुष्य शरीर के समान कोई शरीर नहीं है। चर-अचर सभी जीव उसकी याचना करते हैं। वह मनुष्य शरीर नरक, स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है तथा कल्याणकारी ज्ञान, वैराग्य और भक्ति को देने वाला है। + + +: अग्नि ऋण शत्रु इनको शेष छोड़ना नही चाहिए क्योंकि ये थोड़े से भी बच जाते हैं तो फिर से बढ़ जाते हैं। +: कोई भी किसी का मित्र नहीं होता और ना ही कोई किसी का शत्रु। हमारे व्यवहार के कारण ही मित्र और शत्रु बनते हैं +: शत्रु को तबतक कंधे पर बिठा कर चलना चाहिए जबतक हमारा उल्टा समय हो । जब हमारा योग्य समय लगे तब जैसे घड़े को पत्थर पर पटक कर फोड़ते है बस उसी तरह शत्रु का भी तुरंत नाश करना चाहिए । +* शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाएं रखें। चाणक्य +* अज्ञानता मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, इसलिए ज्ञान से अज्ञानता को खत्म करो। ज्योतिबा फुले +* भय ही एकमात्र सच्चा शत्रु है, जो अज्ञान से उत्पन्न हुआ है और क्रोध और घृणा का जनक है। एडवर्ड अल्बर्ट + + +* मूलतः प्रभाविता और दक्षता के बीच भ्रम है जो काम को ठीक से करने और ठीक काम करने के बीच में स्थित है। जिस काम को करना ही नहीं चाहिये, उसे बहुत अधिक दक्षता से करने जैसी अनुपयोगी चीज कुछ भी नहीं हो सकती। पीटर ड्रुकर (१९६३ मैनेजिंग फॉर बिजिनेस इफेक्टिवनेस, पृष्ट ६० +* हमारी दक्षता का लक्ष्य वस्तुएँ उत्पन्न करना नहीं रहा है, बल्कि पैसे उगाना रहा है। हेनरी नैट, पालकर एन पालकोव द्वारा उद्धृत (१९२२) +* एक साथ काम करने वाले व्यक्तियों के किसी समूह की दक्षता सीधे इस बात पर निर्भर करती है कि वे जो काम कर रहे हैं उसमें कितनी समांगता (homogeneity) है। लुथर एच गुलिक (१९३७)"Notes on the Theory of Organization पृष्ट 9-10 +* प्रशासन विज्ञान में, चाहे वह सार्वजनिक प्रशासन हो या निजी, मूल वस्तु 'दक्षता' है। लुथर ए गुलिक + + +प्रभाविता Effectiveness या effectivity) से आशय वांछित परिणाम अथवा वांछित आउटपुट उत्पन्न करने की क्षमता से है। दूसरे शब्दों में, जब यह कहा जाता है कि अमुक कोई कार्य प्रभावी है, तो इसका अर्थ यह होता है कि उस कार्य के परिणाम, वांछित परिणाम के निकट या उससे बेहतर हैं। +* प्रभाविता उन कार्यों को करने में है जो आपको लक्ष्य के निकट ले जाते हैं। दक्षता किसी कार्य को कम से कम संसाधनों के द्वारा या कम से कम लागत द्वारा पूरा करने में में है। बिना प्रभावशीलता के दक्ष होना ब्रह्माण्ड की मूल प्रवृत्ति है। टिमोथी फेरिस (२००७ The 4-Hour Workweek + + +* मनुष्य स्वभाव से देवतुल्य है। जमाने के छल-प्रपंच या और परिस्थितियों के वशीभूत होकर वह अपना देवत्व खो बैठता है। प्रेमचन्द]] + + +माघ संस्कृत के महान कवि थे। 'शिशुपालवधम्' उनकी महान कृति है। +* मनस्वी पुरुष पर्वत के समान ऊँचे और समुद्र के समान गम्भीर होते हैं। उनका पार पाना कठिन है। +* कुशल पुरुष की वाणी प्रतिकूल बोलनेवाले प्रबुद्ध वक्ताओं को मूक बना देती है और पक्ष में बोलने वाले मंदमति को निपुण। +माघ के बारे में उक्तियाँ +: कालिदास उपमा में, भारवि अर्थगौरव में, और दण्डी पदलालित्य में बेजोड़ हैं। लेकिन माघ में ये तीनों गुण हैं। + + +: मोती, माणेक, वस्त्र या पहनावे से नहीं, मानव को (स्वयं को) केवल शील से ही अलंकृत करना चाहिये। +: तीनों लोकों में एक शील ही परम् पवित्र वस्तु, गुणों में श्रेष्ठ गुण, महिमा का धाम और प्रभाव है। +: विदेश में विद्या धन है, संकट में मति धन है, परलोक में जाने पर धर्म धन होता है। पर, शील तो सब जगह धन है। +: जिस व्यक्ति का कुल और शील (स्वभाव) ज्ञान न हो तो ऐसे किसी को अपने घर में रहने को जगह नहीं देनी चाहिये। +* मनुष्य भले ही बड़ा ज्ञानवान, बली, कुलीन और धनी हो, परंतु यदि वह शील से रहित है तो वह समाज में विश्वसनीय नहीं होता और न ही किसी तरह से आदर पाता है। इसके विपरीत यदि वह भले ही छोटे कुल का साधारण व्यक्ति हो, परंतु शील संपन्न हो तो वह सबका विश्वास और आदर पाता है। भगवान राम वाल्मीकि रामायण में +* जैसे नदियां समुद्र की ओर जाती हैं यद्यपि उन्हें इनकी कामना नही होती है, वैसे ही सभी गुण और संपदाएं शीलवान व्यक्ति के पास अपने आप आ जाती हैं। आचार्य तुलसी +जैसे प्रकाश, दिन और रात का भूषण है, वैसे अखंडित शील, सतीयों और यतियों का भूषण है । +: चूँकि मुझे सरलता तथा शील के दूसरे गुणों में तुम जैसा बढ़ा-चढ़ा अन्य कोई व्यक्ति नहीं मिला, अत: मैं पृश्नि-गर्भ के रूप में उत्पन्न हुआ। + + +स्नान का अर्थ है नहाना। सनातन धर्म में स्नान का बड़ा महत्व है। पुराणों में छः प्��कार के स्नानों का विधान किया गया है। वे नित्य स्नान (दैनिक स्नान नैमित्तिक स्नान (आकस्मिक स्नान काम्य स्नान (वांछनीय क्रिया स्नान (औपचारिक क्रियांग स्नान (केवल संस्कार के लिए उपयोग किए जाने वाले अंगों को स्नान करना) और मलकर्ण स्नान (मल को बाहर निकालने के लिए स्नान) हैं। (अग्नि पुराण, अध्याय 155) +: स्नान, दान, तप, आयु, निजी बल (सामर्थ्य संस्कार, नियत कर्म तथा इन सबसे ऊपर मेरे स्मरण द्वारा आत्म-शुद्धि की जा सकती है। ब्राह्मण तथा अन्य द्विजातियों को अपना अपना विहित कर्म करने के पूर्व ठीक से शुद्ध हो लेना चाहिए। +: जो लोग सुबह उठकर जल्दी नहाते हैं वे सदैव सुंदर बने रहते हैं और लंबे समय तक जवान नजर आते हैं। जल्दी स्नान करने से व्यक्ति के तेज में वृद्धि होती है। त्वचा का आकर्षण बढ़ जाता है। सुबह स्नान करने से शरीर मजबूत बनता है। कई मौसमी बीमारियों से बचाव होता है। +* कुरुक्षेत्र में स्नान करने से समफल, काशी में स्नान करने से दस गुना फल, प्रयाग त्रिवेणी में 100 गुणा फल और गंगासागर स्नान करना 1000 गुणा फलदायी है। लेकिन शूकर क्षेत्र में गंगा स्नान करने से अनन्त फल मिलता है। +: हे प्यारे करोड़ों तीर्थों में स्नान करने से, दान-दक्षिणा देकर और महान व्रत करने से, अनेक देशों में तपस्वी के वेश में विचरने और जटा धारण करने से प्रभु का साक्षात्कार नहीं होता। करोड़ों आसन करके अष्टांग योग करने से, मंत्र पढ़ते-पढ़ते अंगों को छूने और चेहरे को काला करने से भी प्रभु का दर्शन नहीं होता। लेकिन दीन-दुखियों के अलौकिक और दयालु भगवान के स्मरण के बिना अंततः यम के निवास में जाएगा। + + +* निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है। स्वामी विवेकानन्द +* ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं। संस्कृत सूक्ति +* चरित्र का उन्नयन ही वास्तविक क्रांति है। व्यक्तिगत मुक्ति ही एकमात्र वास्तविक मुक्ति है। दार्शनिक और सन्त एकमात्र वास्तविक क्रांतिकारी हैं। विल डुरंट]] +* यदि इंग्लैंड या फ्रान्स के श्रमिक अपने आप को मुक्त करते हैं तो इससे दूसरे देशों के उनके भाइयों को मुक्ति मिलना शुरू होगा। फ्रेडरिक इंगेल्स +* मिट्टी के बंधन से मुक्ति पेड़ के लिए कोई आजादी नहीं है। रविन्द्रनाथ टैगोर +* अपने आप को मुक्त करना एक बात है, लेकिन उस मुक्ति पर अपने स्वामित्व का दावा करना अहम बात ��ै। टोनी मॉरिसन +हम वो हैं यह तथ्य कि हम मुक्ति की कामना करते हैं, यह दर्शाता है कि सभी बंधनों से मुक्ति हमारा वास्तविक स्वभाव है। रमण महर्षि + + +: यह मेरा है, वह तेरा है, ऐसा छोटे चिन्तन वाले कहते हैं; उदार चरित्र और चिन्तन वालों के लिए तो समस्त पृथ्वी ही एक परिवार है। +: अट्ठारह पुराणों में व्यास जी ने (केवल) दो बातें कही हैं- परोपकार ही पुण्य है और दूसरों को दुःख पहुंचाना सबसे पड़ा पाप। +: दूसरे की स्त्रियों को माता के समान, दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के समान, और संसार के सभी प्राणियों को अपने समान जो देखता और मानता है, वही विद्वान है, पण्डित है। +: पूरे विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाओ। +: स्वयं जीवो और दूसरों को जीने दो। +: जहाँ सारा विश्व एक 'घोसला' हो जाता है। +: सत्य की सदैव जीत होती है, झूठ की नहीं। + + +* जो आपके पास नहीं है उसकी इच्छा करके जो आपके पास है उसे बर्बाद मत करो। याद रखो कि अब जो आपके पास है वह उन चीजों में से एक है, जिनकी आपको केवल आशा थी। +* मृत्यु हमें चिंतित नहीं करती, क्योंकि जब तक हम जीवित हैं, तब तक इसका अस्तित्व नहीं है। और जब यह आती है, तब हमारे होने का कोई अर्थ नहीं रहता है। +* ऐसे तत्त्वज्ञान का कोई मतलब नहीं है जो दूसरों के दुख को कम करने में असमर्थ है। +* युआओं को ज्ञान पाने के लिए कभीभी धीमा नहीं होना चाहिए और बूढ़ा हो जाने पर बिना थके ज्ञान की तलाश करते रहना चाहिए। आत्मा के दृढ़ता के लिए कोई भी आयु बहुत जल्दी या बहुत देर से नहीं होती है। +* समस्या जितनी बड़ी होगी, उसे हल करने का स्वाद भी उतना ही मीठा होगा। +* परेशानी से भरे एक सुनहरे पलंग और एक संपन्न मेज के बजाय यह आपके लिए बेहतर है कि आप एक चटाई पर लेटे हुए भय से मुक्त रहें। +* तूफान का सामना करने के बाद ही कोई अच्छा कप्तान बन सकता है। यानी अपने काम में आगे बढ़ने के लिए समस्याओं का सामना करना सबसे महत्वपूर्ण है। +* बिना समझदारी और न्यायपूर्ण जीवन जीते हुए एक सुखद जीवन जीना असंभव है। और एक सुखद जीवन जीने के बिना समझदारी और न्यायपूर्ण जीवन असंभव है। +* कानून एक ऐसी प्रणाली है जिसमें आप किसी को पीड़ा नहीं पहुंचाते हैं और न ही आप किसी को पीड़ा पहुंचाने की अनुमति देते हैं। +* एक अच्छा जीवन जीना या अच्छे तरीके से मरना दोनों एक समान कला है। +* उन चीजों के लिए भगवान से प्रार्थना करना निरर्थक है जिसे आप खुद प्राप��त करने के लिए पात्र हैं। +* उस व्यक्ति के लिए कुछ भी बहुत ज्यादा नहीं है जिसके लिए ज्यादा का अर्थ ही कम हैं। +* उसी समय आप अपने साथ समय बिताना चाहते हैं जब आपको कई लोगों के साथ रहने के लिए कहा जाता है। +* यह जरूरी नहीं कि दोस्त मदद के लिए आगे आएं। बल्कि यह विश्वास होना जरूरी है कि जब भी जरूरत होगी दोस्त मदद के लिए आगे आएंगे। +* एक व्यक्ति जो कुछ चीजों से संतुष्ट नहीं होता है वह जीवन में कभी भी संतुष्ट नहीं हो सकता है। +* हम हर तरह की बुराई से अपनी रक्षा कर सकते हैं। लेकिन मौत की तुलना एक ऐसे शहर से की जाती है, जहां घरों में दीवारें ही नहीं हैं। +* जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है, वह सभी प्रकार की जटिलताओं से दूर रहता है, लेकिन जो व्यक्ति गलत तरीके से आगे बढ़ता है, उसका जीवन सदैव समस्याओं और जटिलताओं से घिरा रहता है। +* यदि आप संतुष्ट हैं, तो आप दुनिया के सबसे अमीर लोगों में गिने जाएंगे। +* हमारे पास क्या है वह मायने नहीं रखता है, लेकिन जो मायने रखता है वह यह की हमे किन चीजो से खुशी का एहसास होता है। +* दोस्ती एक ऐसी कला है जो पूरी दुनिया में घूमती है, नाचती है और बताती है कि हमें दोस्त बनाना चाहिए। लोगो से जुड़ा होना चाहिए। +* अगर आप संतुष्ट हैं तो आप मुक्त रहेंगे। मुक्ति संतोष का फल है। +* यदि परमेश्वर मनुष्यों की प्रार्थना सुनना शुरू कर देता है, तो सभी मनुष्य जल्द ही नष्ट हो जाएंगे क्योंकि वे हमेशा एक-दूसरे के दुर्भाग्य के लिए प्रार्थना करते हैं। +* एक बुद्धिमान व्यक्ति हमेशा एक प्रसन्न और सुशील दोस्त का चयन करता है। + + +जब किसी अर्थव्यवस्था (देश) के द्वारा उत्पन्न की गयी वस्तुओं एवं सेवाओं का बाजार मूल्य समय के साथ बढ़ता है, तो इसे आर्थिक विकास (Economic growth) कहते हैं। +* पिढ़ी दर पीढ़ी यही सोचती आयी है कि यदि हमारी आय केवल दस या बीस प्रतिशत बढ़ जाय तो हम पूर्णतः सुखी हो जाएंगे। आर्थिक विकास की जीत वास्तव में मानवता की भौतिक आवश्यकताओं पर जीत नहीं है बल्कि यह भौतिक आवश्यकताओं की मानवता पर जीत है। Richard A. Easterlin, Growth Triumphant: The Twenty-first Century in Historical Perspective (1996) p. 154. +* विकास के लाभ हैं तो हानियाँ भी हैं। हम प्रायः हानि को देखते ही नहीं हैं। गरीबी, भूख, पर्यावरण का विनाशा, आदि विकास के दुष्परिणाम हैं। और इन्हीं को हम आर्थिक विकास के द्वारा समाप्त करना चाहते हैं। वास्तव में हमें बहुत कम विकास की दर चाहिये, बिल���कुल अलग प्रकार के विकास चाहिये, और कभी कभी कोई विकास नहीं चाहिये या ऋणात्मक विकास चाहिये। Donella Meadows, Thinking in Systems: A Primer, Chelsea Green Publishing, 2008, page 146 (ISBN 9781603580557). + + +* चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। प्रेमचंद]] +* काम, क्रोध, लोभ, स्वादिष्ट पदार्थों की इच्छा, शृंगार, खेल-तमाशे, अधिक सोना और चापलूसी करना – हर विद्यार्थी को इन आठ दुर्गुणों को छोड़ देना चाहिए। चाणक्य]] + + +: आसन के स्थिर हो जाने पर श्वास और प्रश्वास की गति का रुक जाना प्राणायाम है। +: प्राण और अपान वायु के मिलाने को प्राणायाम कहते हैं। प्राणायाम कहने से रेचक, पूरक और कुम्भक की क्रिया समझी जाती है। +* आसन पर विजय होने पर श्वास या बाह्य वायु का आगमन तथा प्रश्वास या वायु का निःसारण, इन दोनों गतियों का जो विच्छेद है अर्थात उभय भाव है, वही प्राणायाम है। महर्षि व्यास +: अपान वायु में प्राणवायु का हवन, प्राणवायु में अपान वायु का हवन या प्राण व अपान की गति का निरोध प्राणायाम है। +: जिस प्रकार तप शरीर व इन्द्रियों के दोषों को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार प्राणायाम शरीर व इन्द्रिय के दोषों का नाश करके शुद्ध चैतन्य स्वरूप की प्राप्ति करवाने में समर्थ है। +: अर्थात सभी प्रकार की वृतियों के निरोध को प्राणायाम कहा गया है। +: प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होने पर मन भी स्वत: निश्चल हो जाता है और योगी स्थाणु हो जाता है। अतः योगी को श्वांसों का नियंत्रण करना चाहिये। +जब तक शरीर में वायु है तब तक जीवन है। वायु का निष्क्रमण (निकलना) ही मरण है। अतः वायु का निरोध करना चाहिये। +: हठयोग प्रदीपिका के अनुसार प्राणायाम (कुम्भक) आठ प्रकार के हैं- सूर्यभेदन, उज्जायी, सीत्कारी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्च्छा व प्लाविनी। इनके अतिरिक्त शरीरस्थ बहत्तर हजार नाड़ियों की शुद्धि हेतु उन्होंने नाडी शोधन प्राणायाम भी बताया है जिसे इन प्राणायामों से पूर्व करना बताया गया है। +महर्षि घेरण्ड कहते हैं कि) अब मैं प्राणायाम की विधि बताता हूँ जिसका साधन करने मात्र से मनुष्य देवता के समान हो जाता है। +: अर्थात शरीर की नाडियों में प्रयासपूर्वक प्राण के प्रवाह को रोकना प्राणायाम है। +: प्राण और अपान का उचित संयोग प्राणायाम कहा जाता है। पूरक, कु��्भक एवं रेचक इन तीनों से प्राणायाम बनता है। +: रेचक, पूरक एवं कुम्भक क्रियाओं के द्वारा जो प्राण संयमित किया जाता है,वही प्राणायाम है। +: सभी प्रकार के वृत्तियों के निरोध को प्राणायाम कहा गया है। +: उसे एक व्रत करना चाहिये, यथा सांस लेना तथा सांस छोड़ना। +* बाहर की वायु का नासिका द्वारा अंदर प्रवेश करना श्वास कहलाता है। कोष्ठ स्थित वायु का नासिका द्वारा बाहर निकलना प्रश्वास कहलाता है। श्वास प्रश्वास की गतियों का प्रवाह रेचक, पूरक और कुंभक द्वारा बाह्याभ्यन्तर दोनों स्थानों पर रोकना प्राणायाम कहलाता है। ओमानन्द तीर्थ +* प्राणायाम वह माध्यम है ,जिसके द्वारा योगी अपने छोटे से शरीर में समस्त ब्रह्माण्ड के जीवन को अनुभव करने का प्रयास करता है तथा सृष्टि की समस्त शक्तियाँ प्राप्त कर पूर्णता का प्रयत्न करता है। स्वामी शिवानन्द +* शरीरस्थ जीवनी शक्ति को वश में लाना प्राणायाम कहलाता है। स्वामी विवेकानन्द + + +: योग के बिना विद्वान का भी कोई यज्ञकर्म सिद्ध नहीं होता। वह योग क्या है? योग चित्तवृत्तियों का निरोध है, वह कर्तव्य कर्ममात्र में व्याप्त है। +: जब मन आत्मा को समझने में स्थिर रहता है तो उसे समाधि कहते हैं। +: समाधि के वितर्कानुगत विचारानुगत आन्नदानुगत, और अस्मितानुगत नामक भेदों के आपसी सम्बन्ध तालमेल से सम्प्रज्ञात समाधि होती है। +इस सूत्र में सम्प्रज्ञात समाधि के चार भेदों का वर्णन किया गया है । जब हमारा चित्त अलग–अलग संस्कारों या विचारों को आश्रय सहारा देता है । तब वह अलग–अलग विषयों का साक्षात्कार अनुभूति करता है । सम्प्रज्ञात समाधि में चित्त की चार प्रकार की अवस्था रहती है । इन चारों अवस्थाओं को ही सम्प्रज्ञात समाधि के भेद कहा गया है।) +: हे केशव! समाधि में स्थित स्थिर बुद्धि वाले पुरुष का क्या लक्षण है? स्थिर बुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है, कैसे चलता है? +: जो लोग इंद्रियभोग तथा भौतिक ऐश्वर्य के प्रति अत्यधिक आसक्त होने से ऐसी वस्तुओं से मोहग्रस्त हो जाते हैं, उनके मनों में भगवान के प्रति भक्ति का दृढ़ निश्चय नहीं होता। +* समाधि में ही साक्षात्कार होता है। समाधि के एक क्षण की तुलना में पठन, पाठन और मनन का सहस्र वर्ष भी नहीं ठहरता। डॉ० सम्पूर्णानन्द + + +* प्रभु यह वर दे कि एकता की ज्योति सारी पृथ्वी को आप्लावित कर ले औए “साम��राज्य प्रभु का है।” यह भाव समस्त जनमानस और राष्ट्रों के ललाट पर अंकित हो जाये। +* जो अपने देश को प्यार करता है, उसके लिए यह उतने गौरव की बात नहीं है, जितने गौरव की बात उसके लिए है जो सम्पूर्ण विश्व को प्यार करता है। सम्पूर्ण पृथ्वी एक देश और समस्त मानव जाती इसके नागरिक। +* एक शुद्ध, उदार एवं प्रफुल्लित हृदय धारण कर ताकि तू शाश्वत अमित एवं अनंत श्रेष्ठता का भागी बने। +* मैंने तुझे शस्यवान पैदा किया है परन्तु तूने स्वयं को गिरा दिया है। उठ, उसी श्रेष्ठता को प्राप्त कर, जिसके लिए तू पैदा किया गया है। +* नरों में सबसे नीचे वे नर हैं, जो धरती पर कोई भी सुफल नहीं उपजाते हैं, निश्चय ही ऐसे नर मृतकों में गिने जाते हैं। +* नरों में सर्वोत्तम वे नर हैं, जो उद्दम द्वारा जीवितपार्जन करते हैं और समस्त ब्रह्मांडों के स्वामी, उस प्रभु के प्रेम के लिए अपने तथा अपने बन्धु-बांधवों पर न्योछावर कर देते हैं। +* समस्त लालसाओं को निकाल फेंको और आत्मतुष्टि की कामना करो क्योंकि लालसा ग्रसित नर सदैव विहीनता का नागी है और आत्म-सन्तोषी सदैव व प्यार और प्रशंसा का भागी बना है । +* सम्पूर्ण पृथ्वी एक देश है और समस्त मानवजाति उसकी नागरिक है। +* वह धन्य है जो खुद से पहले अपने भाई के बारे में सोचता है। +* आप एक पेड़ के फल और एक शाखा के पत्ते हैं। + + +थॉमस फुलर १८वीं शताब्दी के इंग्लैण्ड के एक चिकित्सक थे। +* वह समृद्ध है जो संतुष्ट है। +* जब तक रुग्णता का सामना नहीं करना पड़ता तब तक स्वास्थ्य का महत्व समझ में नहीं आता। +* आपके पास एक सच्चा मित्र है तो समझिए आपको आपके हिस्से से अधिक मिल गया। +* वो जो दूसरों को क्षमा नहीं कर सकता वो उस पुल को तोड़ देता है जिसे उसे पार करना था, क्योंकि हर व्यक्ति को क्षमा पाने की आवश्यकता होती है। +* जो भविष्य का भय नहीं करता वहीं वर्तमान का आनन्द ले सकता हैं। +* इंसान की कीमत उसके मरने के बाद ही पता चलती है। +* एक बार ठोकर लगने से व्यक्ति संभल जाता है। +* प्रार्थनाः दिन की कुंजी तथा रात का ताला होती है। +* हमारी शक्ति हमारे निर्णय करने की क्षमता में निहित है। +* धैर्य रखें, सभी कार्य सरल होने से पहले कठिन ही दिखाई देते हैं। +* धैर्य का दुरूपयोग रोष में बदल जाता है। +* ज्ञान एक खजाना है, लेकिन अभ्यास इसकी चाभी है। + + +थॉमस फुलर Thomas fuller 19 जून, 1608 16 अगस्त, 1661 इंग्लेंड के इतिहासकार थे। इन्हे��� इनकी रचना “वोर्थीस ऑफ़ इंग्लैंड” “द होली स्टेट एंड द प्रोफेन स्टेट” “द चर्च हिस्ट्री ऑफ़ ब्रिटेन” “गुड थॉट इन बैड टाइम्स एंड अदर” एवं “द हिस्ट्री ऑफ़ द यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैम्ब्रिज” के लिए जाना जाता है। +* निराशा कायर बनने को प्रेरित करता है। +* ज्ञान रहित उत्साह प्रकाश रहित अग्नि के समान होता है। +* उत्साह बुद्धिमानो के लिए उचित है, परन्तु वह प्राय: मूर्खो में पाया जाता है। +* चतुराई के लिए परिधान चाहिए, परन्तु सत्य सदैव निवस्त्र रहना पसंद करता है। +* सबका विश्वास कर लेना और किसी का विश्वास न करना दोनों समान असफलताएं हैं। +* जब तक रुग्णता का सामना न करना पड़ता, तब तक स्वस्थ का महत्व समझ में नहीं आता। +* तारीफ करने में कुछ नहीं लगता, परन्तु कुछ लोगों को उसका भुगतान करना परता है। +* मैं यह करूंगा मैं वह करूंगा – इस प्रकार कोई सौगंध मत खाओ। इससे अपने वास्तविक रूप से हट कर कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। + + +वाल्टर बेंजामिन 15 जुलाई 1892 26 सितम्बर 1940) जर्मनी के एक दार्शनिक, सांस्कृतिक आलोचक और निबंधकार थे। जर्मन आदर्शवाद, पश्चिमी मार्क्सवाद, और यहूदी रहस्यवाद के तत्वों को मिलाकर, बेंजामिन ने सौंदर्य सिद्धांत, साहित्यिक आलोचना एवं ऐतिहासिक भौतिकवाद के लिए स्थायी और प्रभावशाली योगदान दिया। उनकी मुख्य कृतियाँ ये हैं इल्युमिनेशंस, द ओरिजिन ऑफ जर्मन ट्रेजिक ड्रामा, मास्को डायरी, चार्ल्स बॉदलेयर ए लिरिक पोएट इन द एज ऑफ हाइ कैपिटलिज्म, अंडस्टेंडिंग ब्रेख्त, न्यु लेफ्ट बुक्स, रिफ्लेक्शंश, कॉरास्पोडेंस ऑफ वाल्टर बेंजामिन, वन वे स्ट्रीट एंड अदर राइटिंग्स, पेरिस आर्केड्स। +* ​सभी मानव ज्ञान व्याख्या ​का ​रूप लेता है ​। ​ +* ​जीवन के वास्तविक अनुभवों से उपजी विमर्श ही असली विवेक है । +* निरसता एक वैचारिक उम्मीद है जो अनुभवों को जन्म देती है। पत्तियों में सरसराहट उसे दूर ले जाता है । ​ +​ हमें केवल उन लोगों के हितार्थ ही आशावादी होने का सौभाग्य प्राप्त है जो लोग आशा विहीन हैं । +* प्रत्येक आवेश की सीमा अराजक है, किन्तु संग्रहणीय आवेश की सीमा अराजक की स्मृति है । +* ​किसी व्यक्ति को जानने का एकमात्र तरीका है कि उसे बिना किसी उम्मीद के प्यार किया जाय । +* ​कहानी कहने की कला अपने अंत तक पहुंच रही है क्योंकि सत्य का महा महासास्वत स्वरुप और प्रज्ञा मृत्युप्राय हो र​हा​ है । +* कैमरा हमें अचेतन दृष्टिविज्ञान से परिचय करवाता है जैसे कि एक मनोविश्लेषक हमें अवचेतन मनोवेग से हमरा परिचय करवाता है । +* ​आलोचना की कला का संक्षेप: विचारों को धोखा दिए बिना सार्थक उद्बोधन करना है। एक अपूर्ण आलोचना विचारों को मात्र फैशन के लिए तैयार करने जैसा है । ​ +​* ये ऐसे दिन हैं जब किसी को भी अपनी योग्यता पर अनावश्यक रूप से भरोसा नहीं करना चाहिए। मनोधर्म में ही शक्ति है। सभी निर्णायक प्रयासों को संदिग्धार्थकता से बाधित कर दिया जाता है । ​ + + +* जिन व्यक्ति ने कभी गलती नही की,उसने जीवन में कुछ नया किया ही नहीं। +* व्यक्ति की आधी जीत तो तभी हो जाती है,जब वह कुछ करने की ठान लेता है। +* हमे खुद को अपनी सीमाओं से आगे बड़ने,और अधिक से अधिक प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। +* लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित कर पाना ही सफ़लता का एक अति महत्वपूर्ण सूत्र है। +* आपसे जितना हो सके करें, वहीं जहां आप हैं और उनसे जो साधन आपके पास हैं। +* अपनी आंखों को सितारों पर टिकाने से पहले अपने पैर जमीन में गड़ा लो। + + +* लोकतंत्र तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक की वो अपनी पसंद का व्यक्तित्व बुद्धिमानी से चुनने के लिए तैयार नहीं है इसीलिए लोकतंत्र की वास्तविक सुरक्षा शिक्षा है +* केवल एक चीज को हमें डरना होगा और वह खुद डर ही है। +* हम एक अधिक सम्मिलित समाज बनाने की कोशिश कर रहे हैं हम ऐसे देश बनाने जा रहा है जिसमें किसी को भी नही छोड़ा जाएगा। +* राजनीति में कुछ भी दुर्घटना से नहीं होता यदि ऐसा होता तो आप शर्त लगा सकते हैं कि इस तरह से योजना बनाई गई थी। +* अगर सभ्यता को जीवित रखना है तो हमें मानव संबंधों के विज्ञान को विकसित करना होगा सभी लोगों की क्षमता सभी प्रकार की क्षमता, साथ रहना, एक ही दुनिया में शांति के साथ विकसित करना होगा। +* जिस देश ने अपनी मिट्टी को नष्ट कर दिया वह स्वयं को नष्ट कर देता है। +* जब आप अपनी रस्सी के अंत तक पहुंचते हैं तो एक गांठ लगाओ और उसे मजबूती से पकड़ो। +* एक पोर्ट तक पहुंचने के लिए हमें नाव से उसे पार करना होगा, ना एंकर पर, ना टाई बह जाना है। +* खुशी, उपलब्धि का आनंद और रचनात्मक प्रयासों के रोमांच में निहित होता है। +* हम हमेशा आशा और विश्वास के साथ रहते हैं इसी आस्था के साथ की सीमा से परे भी बेहतर जीवन बेहतर दुनिया है। +* आगे बढ़ने के कई तरीके हैं लेकिन स्थिर खड़ा होने के लिए ��क ही रास्ता है। +* मैं दुनिया में सबसे चतुर व्यक्ति नहीं हूं लेकिन मैं निश्चित रूप से चतुर सहयोगियों को चुन सकता हूं। +* आर्थिक सुरक्षा और स्वतंत्रता के बिना सच्ची व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं हो सकती है। +* कल की हमारी प्राप्ति की एकमात्र प्रतिबंध हमारे आज की संदेह होगी। + + +* कोई भी आपको आपकी सहमति के बिना आपको तुच्छ समझने की प्रतीति नहीं करा सकता। +* एक औरत एक चाय बैग की तरह है – आप यह नहीं बता सकते हैं कि वह कितनी तेज है जब तक कि आप उसे गर्म पानी में न डालें। +* बड़े दिमाग वाले विचारों पर चर्चा करते हैं; औसत लोग घटनाओं पर चर्चा करते हैं; छोटे दिमाग वाले लोगों के बारे में चर्चा करते हैं। +* नए दिन के साथ नई शक्ति और नए विचार आते हैं । +* खुशी एक लक्ष्य नहीं है; यह एक सह-उत्पाद है। +* प्यार देना अपने आप में एक शिक्षा है। +* आपको वह काम जरुर करना चाहिए जो आपको लगता है कि आप नहीं कर सकते। + + +* फिल्म, सपनों का फीता है। कैमरा एक रिकॉर्ड करने वाला उपकरण ही नहीं, और भी बहुत कुछ है। यह वह माध्यम है जिससे होकर उस दुनिया के सन्देश हम तक पहुँचते हैं जो हमारी सुनिया नहीं है। और यही एक महान रहस्य का केन्द्र बिन्दु है। यहीं जादू शुरू होत है। ऑर्सन वेल्ल्स Orson Welles) +* केवल एक वस्तु मूवी को मार सकती है, और वह है शिक्षा। विल रोजर्स (1949) द आटोग्रैफी ऑफ विल्ल रोजर्स +* मोशन पिक्चर, जीवन के प्रति सच्ची होनी चाहिये। यदि कोई पिक्चर झूठी भावनाओं को अभिव्यक्त करती है तो यह उसे देखने वाले लोगों को असामान्य रूप से प्रतिक्रिया करने का प्रशिक्षण दे रही है। William Moulton Marston, The Secret History of Wonder Woman (2014) by Jill Lepore, p. 136. + + +* मैं तुम्हें ऐसा अस्त्र देने जा रहा हूँ कि उसके सामने पुलिस और सेना टिक नहीं सकेगी। यह पैगंबर का हथियार है, लेकिन आप इसके बारे में नहीं जानते।. वह हथियार है धैर्य और धार्मिकता। दुनिया कीकोई भी ताकत इसके खिलाफ टिक नहीं सकती। +* मरा हुआ राष्ट्र ही अपने नायकों को मरने के बाद याद करता है। जब वे जीवित होते हैं तो वास्तविक राष्ट्र उनका सम्मान करते हैं। +* आज की दुनिया एक अजीब दिशा में यात्रा कर रही है। आप देखते हैं कि दुनिया विनाश और हिंसा की ओर जा रही है, और हिंसा की विशेषता है लोगों में नफरत पैदा करना और डर पैदा करना। मैं अहिंसा में विश्वास करता हूं और मैं कहता हूं कि जब तक अहिंसा का अभ्यास नहीं किया जाता तब त�� दुनिया के लोगों को शांति या शांति नहीं मिलेगी, क्योंकि अहिंसा प्रेम है और यह लोगों में साहस जगाती है। +* मेरे लिए अहिंसा मेरे लोगों को घेरने वाली सभी बुराइयों के लिए एक रामबाण का प्रतिनिधित्व करने के लिए आया है और इसलिए मैं अपनी सारी ऊर्जा एक ऐसे समाज की स्थापना के लिए समर्पित कर रहा हूं जो सत्य और शांति के सिद्धांतों पर आधारित हो। +* अपने सिद्धांतमें को ना निभाने से बेहतर है अपने ही खून में जहर घोल लिया जाए। + + +सुब्रमण्यम भारती भारत के एक राष्ट्रवादी कवि थे। उनकी मातृभाषा तमिल थी। उन्होंने हिन्दी में भी काव्य रचना की है। +: दुःख और कपट की संहारिका हो मां, +* एक होने में जीवन है। अगर हमारे बीच ऐक्य भाव नहीं रहा तो सबकी अवनति है। इसमें हम सबका सम्यक उद्घार होना चाहिए। उक्त ज्ञान को प्राप्त करने के बाद हमें और क्या चाहिए? +* हम गुलामी रूपी धन्धे की शरण में पकड़कर बीते हुए दिनों के लिए मन में लिज्जत होकर द्वंद्वों एवं निंदाओं से निवृत्त होने के लिए इस गुलामी की स्थिति को (थू कहकर) धिक्कारने के लिए ‘वंदे मातरम्’ कहेंगे। +* यदि स्त्री और पुरुष दोनों को समान समझा जाए तो विश्व ज्ञान और बुद्धि में समृद्ध होगा। +* सभी इस भूमि के राजा हैं। +* हमारे हजारों संप्रदाय हो सकते हैं; हालाँकि, यह विदेशी आक्रमण को उचित नहीं ठहराता। + + +डा. सुभाष चन्द्र हिंदी लेखक, अनुवादक और संपादक हैं। + + +वे शिक्षक जो आपको परम उत्तर देते हैं, उनके पास परम उत्तर होते ही नहीं। क्योंकी यदि उनके पास परम उत्तर होते तो वे जानते होते कि परम उत्तर दिये नहीं जा सकते, वे केवल प्राप्त किये जा सकते हैं। Tom Robbins, Jitterbug Perfume (1984) + + +देशी भाषाओं के अध्ययन का उद्देश्य लेकर ग्रियर्सन सन १८७३ में भारत आये थे। अपने अध्ययन के क्रम में ही उन्होंने अनुभव किया कि तुलसी या कबीर के दोहे और चौपाइयां लोगों से जीवंत और सहज संबंध बनाने में काफी मददगार साबित होती हैं। धीरे-धीरे उनकी रूचि तुलसी के प्रति बढ़ती गयी। उन्होंने १८८६ में प्राच्यविदों की बर्लिन सभा में तुलसी विषयक अपना एक परचा पढ़ा था जिसका शीर्षक था ‘द मॉडर्न वर्नाकुलर लिटरेचर ऑफ़ हिन्दुस्तान, विद स्पेशल रिफरेन्स टू तुलसीदास’। +ग्रियर्सन पर भारतीय विद्वानों का विचार प्रशंसा और आलोचना से मिला-जुल है। महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉ. रामविलास शर्मा जैसे गंभीर अध्येता ग्रियर्सन के लेखन पर गंभीर आरोप लगाते हैं। रामविलास शर्मा अपनी पुस्तक 'भाषा और समाज' में ग्रियर्सन की संस्कृत संबंधी और हिंदी-संस्कृत संबंध के बारे में रखी गई मान्यताओं का खण्डन करते हैं। ग्रियर्सन की भाषा-नीति में रामविलासजी विद्वेष के बीज और ब्रिटिश कूटनीति का प्रसार देखते हैं। रामविलास जी ने लिखा है कि 'बिहारी भाषा' ग्रियर्सन का अविष्कार थी। +* हिंदी, संस्कृत की बेटियों में सबसे अच्छी और शिरोमणि है। +* भारत के इतिहास में तुलसीदास का महत्व जितना भी अधिक आँका जाता है वह अत्यधिक नहीं है। इनके ग्रंथ के साहित्यिक महत्व को यदि ध्यान में न रखा जाए, तो भी भागलपुर से पंजाब और हिमालय से नर्मदा तक के विस्तृत क्षेत्र में, इस ग्रंथ का सभी वर्ग के लोगों में समान रूप से समादर पाना निश्चय ही ध्यान देने के योग्य है। पिछले तीन सौ वर्षों में हिंदू समाज के जीवन, आचरण और कथन में यह घुल-मिल गया है और अपने काव्यगत सौंदर्य के कारण वह न केवल उनका प्रिय एवं प्रशंसित ग्रंथ है, बल्कि उनके द्वारा पूजित भी है और उनका धर्म ग्रंथ हो गया है। यह दस करोड़ जनता का धर्मग्रंथ है और उनके द्वारा यह उतना ही भगवत्प्रेरित माना जाता है, अँग्रेज पादरियों द्वारा जितना भगवत्प्रेरित बाइबिल मानी जाती है। द मॉडर्न व वर्नाकुलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान अनुवाद किशोरी लाल गुप्त बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पृ.124 +* जिस काम को टॉड इतनी गौरवपूर्ण शब्दावली में पहले ही कर गए हैं, उसी को पुनः करने की और भारतीय साहित्य पर लगाए गए इस आरोप को कि इसमें ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं हैं, ये राजपूत चारण किस प्रकार पूर्णतया निराधार सिद्ध कर देते हैं, यह संकेत करने की कोई आवश्यकता यहाँ नहीं प्रतीत होती। चारणों द्वारा प्रस्तुत इन वृतांतों का महत्व, जिनमें से कुछ के आधार नवीं शताब्दी तक के पुरातन ग्रंथ हैं, जितना ही अधिक आँका जाए, उतना कम है। यह सत्य है कि ऐसी अनेक कथाएँ हैं, जिनकी प्रामाणिकता संदेहास्पद है, किंतु कौन सा तत्कालीन यूरोपीय इतिहास इनसे बरी है। द मॉडर्न व वर्नाकुलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान अनुवाद किशोरी लाल गुप्त बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पृ.124 +* ग्रियर्सन जी, आपने विदेशी होते हुए भी हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास लिखा। हम हिंदी भाषा-भाषी इसके लिए आपके कृतज्ञ हैं, यह इसी से स्पष्ट है कि आपने जो कुछ लिखा, हमने उसे प्रायः उसी रूप में स्वीकार कर लिया और आपके द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान ने बाद में लिखे जाने वाले हिंदी साहित्य के इतिहासों के रूप-रंग को सँवारा। मॉडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान' के अनुवादक किशोरीलाल गुप्त +* भारती और भाषिकी के प्रति आपकी विशिष्ट सेवाओं के महत्व का अतिशयोक्तिपूर्ण कथन असंभव है। अपने आगामी पीढ़ियों और शताब्दियों को भाषिक तथ्यों का एक कल्पतरु प्रदान किया है। आपने भारत के भाषा-संबंधी साहित्य को जितना समृद्ध किया है, उतना संसार का कोई देश गर्व नहीं कर सकता। 1932 में भारतीय विद्वानों द्वारा ग्रियर्सन के सम्मान में प्रकाशित स्मृति-ग्रंथ के 'समर्पण' में +* एक ही जिले में दो-चार कोस के फासले में बोली में अंतर पड़ जाता है। बोली के इस तरह बदलने को भाषा का बदलना मान लिया जाए तो कहीं-कहीं पर हर जिले में दो तीन बोलियों या भाषाओं की कल्पना करनी पड़ेगी। बोली में जैसे यहाँ, थोड़ी दूर पर अंतर हो गया है वैसे ही इंग्लैंड में भी हो गया है। यह बात मर्दुमशुमारी के सुपरिंटेंडेंट स्वयं भी स्वीकार करते हैं। पर वहाँ अँग्रेजों की अँग्रेजी बनी हुई है। उसमें भेद कल्पना नहीं की गई। महावीर प्रसाद द्विवेदी, सन १९२३ मर्दुम शुमारी की हिंदुस्तानी भाषा' नामक लेख में 3 में ग्रियर्सन की भाषा में भेद-भाव की नीति पर +* इस देश की सरकार के द्वारा नियत किए गए डॉक्टर ग्रियर्सन ने यहाँ की भाषाओं की नाप जोख करके संयुक्त प्रांत की भाषा को चार भागों में बाँट दिया है माध्यमिक पहाड़ी, पश्चिमी हिंदी, पूर्वी हिंदी, बिहारी। आपका वह बाँट-चूँट वैज्ञानिक कहा जाता है और इसी के अनुसार आपकी लिखी हुई भाषा विषयक रिपोर्ट में बड़े बड़े व्याख्यानों, विवरणों और विवेचनों के अनंतर इन चारों भागों के भेद समझाए गए हैं। पर भेदभाव के इतने बड़े भक्त डॉक्टर ग्रियर्सन ने भी इस प्रांत में हिंदुस्तानी नाम की एक भी भाषा को प्रधानता नहीं दी। रामविलास शर्मा द्वारा "महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2009, पृ.234 में उधृत + + +: जिसके दोष (वात, कफ, पित्त) सम हैं, जिसकी अग्नि सम है (न धिक, न कम धातु सम हैं, मलक्रिया ठीक है, जिसकी आत्मा, इन्द्रियाँ और मन प्रसन्न हैं, वह स्वस्थ कहा जाता है। +: चि��्त की वृत्तियों पर नियंत्रण पाना ही योग है। +चित्त की उन वृत्तियों को) ध्यान के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। +: विषयों का चिन्तन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्ति से कामना पैदा होती है। कामना से क्रोध पैदा होता है। क्रोध होने पर सम्मोह (मूढ़भाव) हो जाता है। सम्मोह से स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होने पर बुद्धि का नाश हो जाता है। बुद्धि का नाश होने पर मनुष्य का पतन हो जाता है। +: जो पुरुष शत्रु और मित्र में तथा मान और अपमान में सम है जो शीतउष्ण व सुखदुखादिक द्वन्द्वों में सम है और आसक्ति रहित है वह भक्तिमान् मनुष्य मुझे प्रिय है। )। +: रज और तम ये दो मानस दोष हैं । इनकी विकृति से होने वाले विकार (रोग) काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, मान, मद, शोक, चिन्ता, उद्वेग, भय, हर्ष, विषाद, अभ्यसूया, दैन्य, मात्सयर और दम्भ हैं । +: बुद्धि, धैर्य और आत्मादिविज्ञान ये तीनों मनोविकारों के परम औषधि हैं। (आत्मविज्ञान यह जानना कि मै कौन हूँ, कौन मेरा है, मेरा बल क्या है, यह देश कैसा है और कौन मेरे हितैषी हैं, आदि।) +: धी (बुद्धि धृति (धैर्य) और स्मृति (स्मरण शक्ति) के भ्रष्ट हो जाने पर मनुष्य जब अशुभ कर्म करता है तब सभी शारीरिक और मानसिक दोष प्रकुपित हो जाते हैं। इन अशुभ कर्मों को 'प्रज्ञापराध' कहा जाता है। जो प्रज्ञापराध करेगा उसके शरीर और स्वास्थ्य की हानि होगी और वह रोगग्रस्त हो ही जाएगा। +: बुद्धिमान व्यक्ति को मन से सम्बन्धित रोगों (मनोरोग) से बचने के लिए लोभ, शोक, भय, क्रोध, अहंकार, निर्लज्जता, ईर्ष्या, अत्यधिक प्रेम तथा लालच आदि से दूर रहना चाहिए । +: शोक, धैर्य का नाश करता है। शोक स्मृति को नष्ट कर देता है। शोक सबका नाश करता है अतः शोक के समान दूसरा कोई शत्रु नहीं है॥ + + +* पूँजीवाद की विफलता, साम्यवाद की सफलता से कहीं बेहतर होती है। गैरी कास्पोरोव बिल क्रिस्टॉल के साथ साक्षात्कार में (अप्रैल 2016 transcript + + +फ्रेडरिक एंगेल्स Friedrich Engels 28 नवम्बर, 1820 5 अगस्त, 1895 को राजनीति समाज और राज्य के बारेंं में अपने विचार को व्यक्त करने के लिए सबसे महान विचारकों में रखा जाता है। वे एक महान जर्मन पत्रकार, दार्शनिक, व्यवसायी और सामाजिक वैज्ञानिक थे। वह कार्ल मार्क्स के साथ साथ "मार्क्सवादी सिद्धांत" के संस्थापक थे। +* आधुनिक राज्य की कार्यपालिका पूरी तरह से पू��जीपतियों के सामान्य मामलों के प्रबंधन के लिए एक समिति है। +* राजनीतिक शक्ति दूसरे पर अत्याचार करने के लिए केवल एक वर्ग की संगठित शक्ति है। +* स्वतंत्रता आवश्यकता की मान्यता है। +* सभी इतिहास सामाजिक विकास के विभिन्न चरणों में वर्चस्वशाली वर्गों के बीच वर्ग संघर्षोंं का इतिहास रहा है। +* अगर कोई फ्रेंचवाइन नहीं होती तो जीवन जीने लायक नहीं होता। +* मानव इतिहास में कुछ वास्तविकता है वह समय की प्रकिया में तर्कहीन हो जाता है। +* कार्रवाई का एक ग्राम सिद्धांत भी एक टन के बराबर है। +* प्रत्येक का मुक्त विकास सभी के मुक्त विकास की पहली शर्त है। +* क्वांटिटी में बदलाव से क्वालिटी में भी बदलाव आता है। +* प्रत्येक व्यक्ति की इच्छाशक्ति हर किसी के द्वारा बाधित होती है और जो उभरता है वह कुछ ऐसा होता है जो कोई भी नहीं होता है। +* एक दर्शक यूरोप को सता रहा है। +* राज्य कुछ भी नहीं है लेकिन एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के उत्पीड़न का एक साधन है। +* लोकतांत्रिक गणराज्य, राजशाही की तुलना में किसी भी प्रकार से कम नहीं है। +* कोई भी राष्ट्र स्वतंत्र नहीं हो सकता है यदि वह अन्य राष्ट्रों पर अत्याचार करता है। +* विचार अक्सर एक दूसरे को स्पर्श करते हैं। +* विज्ञान में प्रत्येक नए दृष्टिकोण को नामकरण में एक क्रांति कहा जाता है। +* सर्वहारा वर्ग राज्य का उपयोग स्वतंत्रता के हितों मेंं नहीं बल्कि अपने विरोधियों पर पकड़ बनाने के लिए करता है। +* मानव इतिहास में जो कुछ वास्तविकता है वह समय की प्रकिया में तर्कहीन हो जाता है। +* विज्ञान के लिए क्या असंभव है ? +* जीवन प्रोटीन की क्रिया का तरीका है। +* आपके और हमारे सभी लोगों के साथ किए गए किसी भी टकराव को न भूलें बदला लेने का समय आएगा और इसका अच्छा उपयोग करना होगा। + + +जुलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर 22 अप्रैल 1904 – 18 फरवरी 1967) अमेरिका के एक भौतिकविज्ञानी थे। वे मैनहट्टन परियोजना के निदेशक थे। इसी परियोजना के परिणामस्वरूप परमाणु बम बने और १९४५ में जापान पर गिराये गये। +ओपेनहाइमर आत्म आनन्द के लिये गीता पढ़ते थे और कभी-कभी इसे मित्रों के साथ साझा भी करते थे। उनके प्रिंसटन के अध्ययन कक्ष में गीता की एक प्रति मौजूद थी। उन्होंने बर्कली के प्रोफेसर आर्थर डब्ल्यू. राइडर से संस्कृत की शिक्षा भी ली थी। इसे वे अपनी आठवीं भाषा बना लिए थे। उन्होंने अपनी मोटरकार का न��म 'गरुड' रखा था। +* मैं यदि यह कहूँ कि मुझे मित्रों की अपेक्षा भौतिकी की अधिक आवश्यकता है तो इसमें कुछ अटपटा नहीं है। अपने भाई फ्रैंक ओपेनहाइमर को लिखे पत्र में (14 अक्टूबर 1929) +इस प्रस्ताव (प्रमाणु बम बनाने का प्रस्ताव) में मानवता के लिये भीषण संकट छिपा हुआ है जो इससे होने वाले किसी भी सैनिक लाभ से बहुत बड़ा है। रॉबर्ट ओपेनहाइमर और अन्य, सन १९४९ की सामान्य सलाहकार समिति की रिपोर्ट में। +* प्रकृति के संसार में कोई रहस्य नहीं है। (लेकिन) मनुष्य के विचार और इच्छाएँ रहस्य से भरी हुई हैं। एडवर्ड आर मर्रो के साथ साक्षात्कार में (१९५५)। +* विज्ञान का इतिहास ऐसे उदहरणों से भरा पड़ा है जिनमें अलग-अलग सन्दर्भ में विकसित हुईं दो तकनीकों, दो विचारों को किसी नये सत्य के आविष्कार के लिये एकसाथ लाना फलदायी रहा है। Science and the Common Understanding (1954 1953 के Reith lectures पर आधारित। +* मानव और जीवन के अन्य रूपों के के भविष्य के बारे में बहुत कुछ कहा गया है कि ये लुप्त हो जायेंगे। समय आने पर, शायद बहुत लम्बा समय न लगे, यह सम्भव हो सकता है। इससे भी अधिक सुनिश्चित और शीघ्र होने वाली बात यह है कि मानव की अधिकांश विरासत नष्ट हो जायेगी और वे सारी चीजे नष्ट हो जायेंगी जिनसे हमारी सभ्यता और मानवता बनी हुई है। विज्ञान और हमारा युग Science and our Times 1956 +* जब तक ब्लास्ट पूरा नहीं हुआ तब तक हम प्रतीक्षा करते रहे, उसके बाद शरणागाह से बहर आये और इसके बाद वातावरण अत्यन्त मौन हो गया। हम जानते थे कि संसार वही नहीं रहा। कुछ लोग हंसे, कुछ लोग रोये, अधिकांश लोग मौन थे। हिन्दू धर्मग्रन्थ भगवद्गीता की ये पंक्तियाँ मुखे याद आयीं विष्णु (श्रीकृष्ण) राजकुमार (अर्जुन) को समझा रहे हिं कि वह अपना कर्तव्य करे। और, अर्जुन को प्रभावित करने के लिये वे अपना बहुभुज रूप दिखाते हैं और कहते हैं कि अब मैं संसार का नाश करने वाली मृत्यु हूँ।कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः। मुझे लगता है कि हम सभी किसी न किसी रूप में यही सोच रहे थे। एक साक्षात्कार में 'ट्रिनिटी' नामक प्रथम परमाणु बम परीक्षण के बारे में बोलते हुए यह एक टीवी डॉक्युमेंटरी के रूप में प्रसारित हुआ था जिसका नाम था "The Decision to Drop the Bomb 1965) +* यह एक गहन और आवश्यक सत्य है कि विज्ञान की गहरी चीजों का ज्ञान इस कारण नहीं हुआ कि वे उपयोगी थीं बल्कि उनका ज्ञान इस कारण हो पाया कि उनको पाना सम्भव था। रॉबर्ट वी मूडी द्वारा "Why Curiosity Driven Research में उद्धृत (17 February 1995) +* गीता अत्यन्त सरल और अद्भुत है। यह किसी भी ज्ञात वर्तमान भाषा की सबसे सुन्दर दार्शनिक गीत है। अपने भाई फ्रैंक को लिखे पत्र में + + +* जहां अज्ञानता का बखान हो रहा हो, वहां बुद्धिमानी दिखाना भी मूर्खता हैं। बाल गंगाधर तिलक +* अज्ञान प्रकाश को जाग्रत नहीं कर सकता, लेकिन घृणा तो ज्ञान के प्रकाश को भी बुझा देती हैं। रवीन्द्रनाथ ठाकुर +* अज्ञान से मुक्त होकर भी हम पाप से मुक्त हो सकते हैं। अज्ञान दुःख का कारण है, जिसका फल पाप हैं। स्वामी विवेकानन्द +* अज्ञान की दासता से मृत्यु श्रेयस्कर है। संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं और धैर्य से बड़ी शक्ति नहीं। सत्य साईं बाबा +* अज्ञान अन्धकार स्वरूप हैं। दीया बुझाकर भागने वाला यही समझता है कि दुसरे उसे देख नहीं सकते, तो उसे यह भी समझ रखनी चाहिए कि वह ठोकर खाकर गिर भी सकता हैं। रामचंद्र शुक्ल +* लक्ष्यहीन चिन्तन, श्रद्धा रहित नमन एवं विश्वासहीन बंदना मात्र आडम्बर ही है। महात्मा गांधी +* अज्ञान किसी भी जनतांत्रिक सरकार को, पशुओं द्वारा चुनी हुई, पशुओं की लिए, पशुओं की सरकार बना देती हैं। आचार्य कृपलानी +* अज्ञान एक ऐसा काँटा है, जो चुभने के बाद किसी दुसरे को नहीं दिखता, लेकिन जिसको चुभता है, उसे हमेशा परेशान करता रहता हैं। आद्य शंकराचार्य +* मनुष्य की अज्ञानी ग्रंथी का नष्ट होना ही मोक्ष कहा जाता हैं। वेदव्यास +* एक बात दिन के उजाले के समान साफ़ है कि दुःख का कारण अज्ञान के सिवाय कुछ और नहीं है। स्वामी विवेकानंद +* अज्ञानी होना मनुष्य का विशेष अधिकार नहीं है, वरन अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। डॉ। सर्वपल्ली राधाकृष्णन +* अज्ञान प्रभु का श्राप है। ज्ञान वह पंख है, जिससे हम स्वर्ग में उड़ते हैं। शेक्सपीयर +* अपनी अज्ञानता का अहसास होना बुद्धिमता का पहला लक्षण हैं। इमर्सन +* अज्ञानी रहने से पैदा न होना अच्छा है क्योंकि अज्ञान विपत्तियों का मूल है। प्लेटो अज्ञानी व्यक्ति पर सुविचार +* अज्ञानता जब भ्रम पैदा करती है, मोह और स्वार्थ उतपन्न होता है। +* अज्ञानी व्यक्ति अपने शक्तियों का दुरूपयोग करता है जबकि ज्ञानी अपनी शक्तियों का प्रयोग उपकार के लिए करता है। +* अपनी विद्व्ता पर गर्व करना सबसे बड़ा अज्ञान है। जेरेमी टेलर +* आज पढ़ना सब जानते है पर क्या पढ़ना चाहिए, यह कोई नहीं जानता। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ +* वह व्यक्ति विशेष रूप से अज्ञानी होना चाहिए जो पूछे जाने वाले प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दे देता है। वाल्टेयर +* अज्ञान भय की जननी है। एच होम +* सक्रीय अज्ञान से अधिक भयावह कुछ नहीं होता। गेटे +* अज्ञान ही अंधकार है। शेक्सपीयर +* प्राचीन महापुरूषों के जीवन से अपरिचित रहना जीवन-भर निरंतर बाल्यावस्था में रहना है। प्लुटार्क +* अपनी अज्ञानता का आभास ही बुद्धिमत्ता के मंदिर का प्रथम सोपान है। स्पर्जन +* तू अपने से अनजान है और इस बात से और भी अधिक अनजान है कि तेरे लिए क्या योग्य है। टामस कैंपो +* ऐसा भी समय आता है जब अज्ञानता भी वरदान सिद्ध होती है। डिकेन्स +* अज्ञानी होने से भिखारी होना अच्छा क्योंकि भिखारी को तो केवल धन चाहिए मगर अज्ञानी को इंसानियत चाहिए। एरिसिटपस +* जहाँ अज्ञान वरदान हो वहां बुध्दिमानी दिखाना मूर्खता है। ग्रेविल +* हैरानी अज्ञान की बेटी है। जॉन प्लेरियो + + +* स्वतन्त्रता संघर्ष के रीढ़ सिद्ध हुए सामान्य लोगों को उनके खेत और हल, औजारों और वर्कशॉप तक सीमित कर दिया गया। हमने उनको और कठिन काम करने के लिये मजबूर किया, और उनको आस्वासन दिया कि भारत का ध्यान रखने के लिये हम ही काफी हैं। द स्टेट्समैन' में 24 मार्च, 2000, जिसका शीर्षक था ,“Project That Has Lost Its Purpose”, regarding the outcry over the recall of the Towards Freedom Project. +धरमपाल जी के बारे में उक्तियाँ +* ऐसा नहीं है कि कहीं भी कोई सत्य बोल दिया जाय तो झूठ स्वतः ही विलुप्त हो जाता है। धरमपाल की पुस्तक 'द ब्युटिफुल ट्री' इस मिथक को पूरी तरह से ध्वस्त करती है कि ब्राह्मणों ने सारी शिक्षा अपनी जाति के लिये रखी हुई थी और शूद्रों को अंधेरे और अशिक्षा में छोड़ दिया गया था। इसके बावजूद भी यह मिथक (असत्य) आज भी बार बार दोहराया जाता है। इसलिये, सत्य का अन्वेषण करना ही पर्याप्त नहीं है, उस सत्य का चारों ओर प्राअर करना भी आवश्यक है। Koenraad Elst, Ayodhya and After: Issues Before Hindu Society (1991) + + +* वैज्ञानिक विधि पक्षपात, पूर्वाग्रह, और मन में पहले से बैठाये विचारों को नष्ट करने में सहायता करता है। इस विधि में यह अपेक्षित है कि कथनों की सावधानी से जाँच की जाय और अनुसन्धानकर्ता प्रयोग द्वारा पता करे कि क्या सम्भव है और क्या नहीं। वैज्ञानिक यह प्रशन पूछते हैं कि यहाँ हमारे पास क्या है और उसके बाद इस भौतिक जगत की प्रकृति को जानने के लिये प्रयोग करने चल पड़ते हैं। इस प्रक्रिया में यह भी परमावश्यक है कि किसी के द्वारा किये गये प्रयोगों की जाँच दूसरों द्वारा भी की जाय और उन्हें भी वही परिणाम मिले जो पहले किये गये प्रयोगों में मिले थे। विज्ञान के क्षेत्र में सबसे बड़ा विकास यह अनुभव था कि हम केवल बुद्धि से समस्याओं का उत्तर नहीं पा सकते। Jacque Fresco 2007 Designing the Future + + +इस श्रेणी में भूगोल से संबंधित उपश्रेणियाँ और लेख हैं। + + +भूगोल एक विज्ञान है जो पृथिवी के विविध स्थानों, अभिलक्षणों, निवासियों और अवघटनाओं (तथ्यों, तत्वों एवं प्रक्रियाओं) का अध्ययन करता है। यह पृथिवी पर चीज़ों के असमान वितरणों, उनसे निर्मित प्रतिरूपों, उनके स्थानिक संगठन और इन सबका मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करता है और मानव-पर्यावरण संबंधों की स्थानिक संदर्भों में व्याख्या प्रस्तुत करता है। + + +| cat अस्पष्ट उल्लेखनीयता वाले विषय पर लेख + + +* साहित्य मानव-जीवन से सीधा उत्पन्न होकर सीधे मानव-जीवन को प्रभावित करता है। साहित्य में उन सारी बातों का जीवन्त विवरण होता है, जिसे मनुष्य ने देखा है, अनुभव किया है, सोचा है और समझा है। साहित्य सहचर में) +* साहित्य यदि जनता के भीतर आत्मविश्वास और अधिकार चेतना की संजीवनी शक्ति नहीं संचारित करता तो परिणाम बड़े भयंकर होंगे। +* जो साहित्य मनुष्य समाज को रोग, शोक, दारिद्रय, अज्ञान तथा परामुखापेक्षिता से बचाकर उसमें आत्मबल का संचार करता है, वह निश्चय ही अक्षय निधि है। +* जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परामुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उसकी आत्मा को तेजोदीप्त न बना सके, जो उसके हृदय को परदुखकातर और संवेदनशील न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता हैं। +* कविता मानवता की उच्चतम अनुभूति की अभिव्यक्ति हैं। +* समूचे भारतीय साहित्य में अपने ढंग का अकेला साहित्य है । इसी का नाम भक्ति साहित्य है । यह एक नई दुनिया है। भक्तिसाहित्य के बारे में) +* महान संकल्प ही महान फल का जनक होता है। +* कर्मफल का सिद्धान्त भारतवर्ष की अपनी विशेषता है। पुनर्जन्म का सिद्धान्त खोजने पर अन्यान्य देशों के मनीषियों में भी पाया जाता है। +* आध्यात्मिक ऊँचाई तक समाज के बहुत थोड़े लोग ही पहुँच सकते हैं। बाकी लोग छोटे-मोटे दुनियावी टंटों में उलझे रह जाते हैं। वे आध्यात्मिक आदर्श को विकृत कर देते हैं। +* आम्रमंजरी मदन देवता का अमोघ बाण है। +* आसमान में निरन्तर मुक्का मारने में कम परिश्रम नहीं है। +* कमजोरों में भावुकता ज्यादा होती होगी। +* कभी कभी शिष्य परम्परा में ऐसे भी शिष्य निकल आते हैं, जो मूल सम्प्रदाय प्रवर्त्तक से भी अधिक प्रतिभाशाली होते हैं। फिर भी सम्प्रदाय स्थापना का अभिशाप यह है कि उसके भीतर रहने वाले का स्वाधीन चिन्तन कम हो जाता है। +* घृणा और द्वेष से जो बढ़ता है, वह शीघ्र ही पतन के गह्वर में गिर पड़ता है। +* जब तक हमारे सामने उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो जाता, तब तक कोई भी कार्य, कितनी ही व्यापक शुभेच्छा के साथ क्यों न आरम्भ किया जाय, वह फलदायक नहीं होगा। +* जितना कुछ इस जीवन शक्ति को समर्थ बनाता है उतना उसका अंग बन जाता है, बाकी फेंक दिया जाता हैं। +* जिन स्त्रियों को चंचल और कुलभ्रष्टा माना जाता है, उनमें एक दैवी शक्ति भी होती है। +* धर्म मनुष्य से त्याग की आशा रखता है। +* पंडिताई भी एक बोझ है। जितनी ही भारी होती है, उतनी ही तेजी से डुबोती है। जब वह जीवन का अंग बन जाती है, तो सहज हो जाती है तब वह बोझ नहीं रहती। +* प्रवृतियों को दबाना नहीं चाहिए, उनसे दबना भी नहीं चाहिए। +* पावक को कभी कलंक स्पर्श नहीं करता, दीपशिखा को अंधकार की कालिमा नहीं लगती, चंद्रमंडल को आकाश की नीलिमा कलंकित नहीं करती और जाह्नवी की वारिधारा को धरती का कलुष स्पर्श भी नहीं करता। +* पुरुष का सत्य और है, नारी का और। +* पुरुष स्त्री को शक्ति समझकर ही पूर्ण हो सकता है, पर स्त्री स्त्री को शक्ति समझकर अधूरी रह जाती है। +* प्रेम बड़ी वस्तु है, त्याग बड़ी वस्तु है और मनुष्य मात्र को वास्तविक मनुष्य बनाने वाला ज्ञान भी बड़ी वस्तु है। +* ब्राह्मण न भिखारी होता है, न महासंधिविग्रहिक, वह धर्म का व्यवस्थापक होता है। +* मनुष्य के भीतर नाखून बढ़ा लेने की जो सहजात वृत्ति है, वह उसके पशुत्व का प्रमाण है। उनके काटने की जो प्रवृत्ति है वह उसकी मनुष्यता की निशानी है। +* मनुष्य में जो मनुष्यता है, जो उसे पशु से अलग कर देती है, वही आराध्य है। क्या साहित्य और क्या राजनीति, सबका एक मात्र लक्ष्य इसी मनुष्यता की सर्वांगीण उन्नति है। +* माया से छूटने के लिए माया के प्रपंच रचे गए यह सत्य है। +* मैं स्त्री शरीर को देव मंदिर के समान पवित्र मानता हूँ। +* यदि आप संसार की सारी समस्याओं का विश्लेषण करें तो इनके मूल में एक ही बात प��एँगे-मनुष्य की तृष्णा। +* यह नहीं समझना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति जो अनुभव करता है, वह सत्य ही है। शरीर और मन की शुद्धि आवश्यक है। +* राजनीति भुजंग से भी अधिक कुटिल है, असिधारा से भी अधिक दुर्गम है, विद्युत शिखा से भी अधिक चंचल है। +* राजनैतिक पराधीनता बड़ी बुरी वस्तु है। वह मनुष्य को जीवन यात्रा में अग्रसर होने वाली वस्तुओं से वंचित कर देती है। +* विनोद का प्रभाव कुछ रासायनिक सा होता है। आप दुर्दान्त डाकू के दिल में विनोदप्रियता भर दीजिए, वह लोकतन्त्र का लीडर हो जाएगा, आप समाज सुधार के उत्साही कार्य कर्त्ता के हृदय में किसी प्रकार विनोद का इंजेक्शन दे दीजिए, वह अखबारनवीस हो जाएगा। +* शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। +* शुद्ध है केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा। वह गंगा सी अबाधित-अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है। +* सीधी रेखा खींचना सबसे टेढ़ा काम है। +* स्त्री प्रकृति है। उसकी सफलता पुरुष को बाँधने में है, किन्तु सार्थकता पुरुष की मुक्ति में है। +* स्यारों के स्पर्श से सिंह किशोरी कलुषित नहीं होती। असुरों के गृह में जाने से लक्ष्मी घर्षित नहीं होती। चींटियों के स्पर्श से कामधेनु अपमानित नहीं होती। चरित्रहीनों के बीच वास करने से सरस्वती कलंकित नहीं होती। +* हमारी राजनीति, हमारी अर्थनीति और हमारी नवनिर्माण की योजनाएँ तभी सर्वमंगल विधायिनी बन सकेंगी जब हमारा हृदय उदार और संवेदनशील होगा, बुद्धि सूक्ष्म और सारग्रहिणी होगी और संकल्प महान और शुभ होगा। +* सुविधाओं को पा लेना ही बड़ी बात नहीं है, प्राप्त सुविधाओं को मनुष्य मात्र के मंगल के लिए नियोजित कर सकना भी बहुत बड़ी बात है। +* सत्य सार्वदेशिक होता है। +संस्कृति और सभ्यता के बारे में +* मनुष्य की श्रेष्ठ साधनाएँ ही संस्कृति हैं। +* मानव जीवन की तीन स्थितियाँ मानी गई हैं- विकृति, प्रवृति और संस्कृति। विकृति अधोगामिनी स्थिति है तो संस्कृति ऊर्ध्वगामिनी। +* संस्कृति मनुष्य की विविध साधनाओं की चरम परिणति है। धर्म के समान वह भी अविरोधी वस्तु है। वह समस्त दृश्यमान विरोधों में सामंजस्य उत्पन्न करती है। +* भारतीय जनता की विविध साधनाओं की सबसे सुन्दर परिणति को ही भारतीय संस्कृति कहा जा सकता हैं। +* सभ्यता की दृष्टि वर्तमान की सुविधा-असुविधा पर रहती है, संस्कृति की भवि��्य या अतीत के आदर्श पर। +* सभ्यता बाह्य होने के कारण चंचल है, संस्कृति आंतरिक होने के कारण स्थायी। +* सभ्यता समाज की बाह्य व्यवस्थाओं का नाम है, संस्कृति व्यक्ति के अंतर के विकास का। +* नाना प्रकार की धार्मिक साधनाओं, कलात्मक प्रयत्नों और सेवा भक्ति तथा योग मूलक अनूभूतियों के भीतर से मनुष्य उस महान सत्य के व्यापक रूप को क्रमशः प्राप्त करता जा रहा है जिसे हम 'संस्कृति' शब्द द्वारा व्यक्त करते हैं। +* संयोग से वे ऐसे युग–संधि के समय उत्पन्न हुए थे, जिसे हम विविध धर्म–साधनाओं और मनोभावनाओं का चौराहा कह सकते हैं। +* वे मुसलमान होकर भी असल में मुसलमान नहीं थे। वे हिंदू होकर भी हिंदू नहीं थे। वे साधु होकर भी साधु (अगृहस्थ) नहीं थे।वे वैष्णव होकर भी वैष्णव नहीं थे। वे योगी होकर भी योगी नहीं थे। वे कुछ भगवान की ओर से ही सबसे न्यारे बनाकर भेजे गए थे। वे भगवान के नृसिंहावतार की मानो प्रतिमूर्ति थे। +* उन्हें सौभाग्यवश सुयोग भी अच्छा मिला था। जितने प्रकार के संस्कार पड़ने के रास्ते हैं, वे प्रायः सभी उनके लिए बन्द थे। +* हिंदी साहित्य के हजारों वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेकर उत्पन्न नहीं हुआ। +* पन्द्रहवीं शताब्दी में कबीर सबसे शक्तिशाली और प्रभावोत्पादक व्यक्ति थे। +* कबीर अपने युग के सबसे बड़े क्रांतदर्शी थे। +* भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। +* कबीर में एक प्रकार घर फूंक मस्ती और पक्कड़ाना लापरवाही के भाव मिलते हैं। उनमें अपने–आपके ऊपर अखंड विश्वास था । उन्होंने कभी भी अपने ज्ञान को, अपने गुरू को, अपनी साधना को संदेह की दृष्टि से नहीं देखा। +* कबीर ने ऐसी बहुत बातें कही है जिनसे समाज सुधार में सहायता मिलती है। पर, इसलिए उनको समाज सुधारक समझना गलती है। +* कबीर जब पंडित या शेख पर आक्रमण करने को उद्यत होते है तो उतने सावधान नहीं होते जितने अवधूत या योगी पर आक्रमण करते समय दिखते हैं। +* हमने देखा है कि वाह्याचार पर आक्रमण करने वाले संतों और योगियों की कमी नहीं है, पर इस कदर सहज और सरल सरल ढंग से चकनाचूर करने वाली भाषा कबीर के पहले बहुत कम दिखाई दी है। +* व्यंग्य वह है, जहां कहने वाला अधरोष्ठों में हँस रहा हो और सुननेवाला तिलमिला उठा हो और भी कहने वाले को जवाब देना अपने की ओर भी उपहासस्पद् बना लेना हो कबीर ऐसे ही व्यंग्यकर्त्ता थे। +* ऐसे थे कबीर। सिर से पैर तक मस्त–मौला, स्वभाव में फक्कड़, आदत से अक्खड़, भक्त के सामने निरीह, भेषधारी के आगे प्रचण्ड, दिल के साफ, दिमाग के दुरुस्त, भीतर से कोमल, बाहर से कठोर, जन्म से अस्पृश्य, कर्म से वंदनीय। वे जो कुछ कहते थे अनुभव के आधार पर कहते थे इसलिए उनकी उक्तियॉ बंधने वाली और व्यंग्य चोट करने वाले होते थे। +* वात्सल्य भाव के काव्य के लिए सूरदास की बड़ी ख्याति है। +* सूरदास ने यदि राधिका के प्रेम को लेकर गीतिकाव्य की रचना न करके प्रबंध काव्य की रचना की होती तो आज असफल हुए होते हैं। +* गीतिकाव्यात्मक मनोरागों पर आधारित विशाल महाकाव्य ही सूरसागर है। +* प्रेम के इस स्वच्छ और मार्जित रूप का चित्रण भारतीय साहित्य में किसी और कवि ने नहीं किया। +* सूरदास जब अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे–पीछे दौड़ा करता है। उपमाओं की बाढ़ आ जाती है, रूपको की वर्षा होने लगती है। संगीत के प्रवाह में कवि स्वयं बह जाता है।वह अपने को भूल जाता है। +* सूरदास की गोपियों में जिस प्रकार का अशिक्षित पटुत्व और सारल्यगर्भ माधुर्य पाया जाता है, वैसा नंददास की गोपियों में नहीं पाया जाता। भ्रमरगीत में उद्धव के तर्कों को सुनकर वे शिथिलवाक् होकर परास्त नहीं हो जाती बल्कि आगे बढ़कर उत्तर देती है और तर्क को तर्क से काटने का प्रयत्न करती है। +* निर्गुण भाव के प्रत्याख्यान सूरदास ने भी कराया है और नन्ददास ने भी, पर सूरदास का एकमात्र अस्त्र प्रेमातिरेक है जबकि नन्ददास का सबसे अस्त्र है युक्ति और तर्क, फिर भी नन्ददास की रचनाओं में अपना मोहक सौंदर्य है। +* माधुर्य भाव में अन्यान्य भक्त कवियों की भाँति मीरा का प्रेम निवेदन है और विरह व्याकुलता अभिमानाश्रित और अध्यंतरित नही है बल्कि सहज और साक्षात् संबंधित है। +* वह सहृदय को स्पंदित और चालित करती है और अपने रग में रंग डालती है। +* निस्संदेह इस कवि का हृदय मानवीय रस से परिपूर्ण और अनासक्त तथा अनाविल सौंदर्य दृष्टि से समृद्ध था। +* जीवन के अनेक घात प्रतिघात के भीतर से भी राजकीय षड्यंत्रों के चपेट में बार-बार आते रहने के बाद भी और हर प्रकार के उतार-चढ़ाव में उठते – गिरते रहने के बाद भी जिस कवि के हृदय का मानवीय रस निःशेष नही हुआ उसके हृदय की अद्भुत सरसता का अनुमान सहज किया जा सकता है। +* तुलसीदास अस��धारण शक्तिशाली कवि,लोकनायक और महात्मा थे। +* वे समन्वय की विशाल बुद्धि लेकर उत्पन्न हुए थे। +* भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है, जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर आया हो। +* तुलसी के काव्य की सफलता का एक और रहस्य उनकी अपूर्व समन्वय शक्ति में है। +* लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके। +अन्य कवियों के बारे में +* भगवान ने उन्हें रूप देने की बड़ी कंजूसी की थी किंतु शुद्ध निर्मल प्रेमपरायण हृदय देने में बड़ी उदारता से कम लिया था। (जायसी के बारे में ) +* जिन भजनों में मधुर भाव बोलता दिखता हो उनके लेखक को रहस्र सुख के अधिकारी कहना ही उचित है। (सूरदास के संबंध में ) +* कबीर के पूर्ववर्ती सिद्ध और योगी लोगों की आक्रमणात्मक उक्तियों में एक प्रकार की ‘हीन भावना की ग्रंथि’ या ‘इनफीरियारिटी कम्पलेक्स’ पाया जाता है। वे मानो लोमड़ी के खट्टे अंगूर की प्रतिध्वनि है, मानो चिलम न पा सकने वालों का आक्रोश है । उनमें तर्क है पर लापरवाही नहीं है, आक्रोश है पर मस्ती नहीं है, तीव्रता है पर मृदुता नहीं। + + +पुरुषार्थ पुरुष अर्थ) का शाब्दिक अर्थ है 'पुरुष द्वारा प्राप्त करने योग्य'। सतानत चिन्तन में प्रायः चार पुरुषार्थ माने गये हैं धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष। धर्म का अर्थ है- जीवन का नियामक तत्त्व, अर्थ का तात्पर्य है जीवन के भौतिक साधन, काम का अर्थ है- जीवन की वैध कामनाएँ और मोक्ष का अभिप्राय है जीवन के सभी बन्धनों से मुक्ति। प्रथम तीन को 'पवर्ग' और अन्तिम को 'अपवर्ग' कहते हैं। इन चारों पुरुषार्थों को चतुर्वर्ग की संज्ञा दी गई है। इन चारों का चारो आश्रमों से भी विशेष सम्बन्ध है। इन चारों पुरुषार्थों में विकास भी परिलक्षित होता है। यथा एक से दूसरे की प्राप्ति। धर्म से अर्थ, अर्थ से काम तथा धर्म से पुनः मोक्ष की प्राप्ति। +बाद में चलकर मोक्ष को अन्तिम मानकर तीन पुरुषार्थों धर्म, अर्थ और काम पर ही बल दिया गया जिन्हें त्रिवर्ग कहा गया। ये तीनों जीवन में एक साथ अनुसरित किये जा सकते हैं। +: पराक्रम दिखाने का समय आने पर जो पीछे हट जाता है, उस तेजहीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता। +: जिस प्रकार केवल एक पहिये से रथ चल नहीं सकता, उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना भाग्य भी सिद्ध नहीं होता। +: मैं बाहों को उठाकर जोर-शोर से चिल्ला रहा हूँ, किंतु मेरी बात कोई नहीं सुनता? धर्म से ही अर्थ और काम प्राप्त ह���ते हैं, फिर उस धर्म का किसलिए पालन नहीं किया जाता? +* अधर्मी (अपने विवेक से च्युत) पुरुष यदि काम और अर्थ संबंधी क्रियाएं करता है तो उसका फल बांझ स्त्री के पुत्र जैसा होता है अर्थात् उनसे किसी प्रकार के कल्याण की सिद्धि नहीं होती। पुराण +: पुरुष को सौ वर्ष की आयु को तीन भागों में बाँटकर बाल्यकाल में विद्या और अर्थ का अर्जन करना चाहिये, काम यौवन में तथा बुढ़ापे में धर्म और मोक्ष का अर्जन करना चाहिये। +: सामान्य लोगों के लिये) धर्म, अर्थ से श्रेष्ठ है अर्थ, काम से श्रेष्ठ है। लेकिन राजा को अर्थ को प्राथमिकता देनी चाहिये क्योंकि अर्थ ही लोकयात्रा का आधार है। वेश्याओं के लिये इनके महत्व का क्रम उल्टा है (काम सबसे श्रेष्ठ है, फिर अर्थ है, और सबसे अन्त में धर्म)। +* जो व्यक्ति आलसी होता है और कर्म नहीं करता, वह भूखा मरता है। भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाला मनुष्य कभी भी जीवन में सफल नहीं होता। उस मनुष्य से श्रीवृद्धि तथा समृद्धि सदैव रूठी रहती है। मत्स्य पुराण +: जिस व्यक्ति ने पहले आश्रम (ब्रम्हचर्य) में विद्या अर्जित नहीं की, दूसरे आश्रम (गृहस्थ) में धन अर्जित नहीं किया तीसरे आश्रम (वानप्रस्थ) में पुण्य अर्जित नहीं किया, वह अब चौथे आश्रम (सन्यास) में क्या कर सकेगा? +* सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूँ। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को सींचता है। जयशंकर प्रसाद +* पुरुषार्थ का सहारा पाकर ही भाग्य भली भांति बढ़ता है। महाभारत]] +* पुरुषार्थ नहीं करते वे धन, मित्र, ऐश्वर्य, उत्तम कुल तथा दुर्लभ लक्ष्मी का उपयोग नहीं कर सकते। महाभारत]] +मत्स्यपुराण के अध्याय २२१ में 'दैव और पुरुषार्थ' का वर्णन है। इस विषय में मनु के प्रशन का मत्स्य भगवान उत्तर देते हैं। +मनुने पूछा- देव! भाग्य और पुरुषार्थ इन दोनोंमें कौन श्रेष्ठ हैं? यह मुझे बतलाइये। इस विषयमें मुझे संदेह है, अतः आप उसका सम्पूर्णरूपसे निवारण कीजिये ॥ १॥ +मत्स्यभगवान्ने कहा-राजन् अन्य जन्ममें अपने द्वारा किया गया पुरुषार्थ (कर्म) ही दैव कहा जाता है, इसी कारण इन दोनोंमें मनीषियोंने पौरुषको ही श्रेष्ठ माना है; क्योंकि माङ्गलिक आचरण करनेवाले एवं नित्य प्रति अभ्युदयशील पुरुषोंका प्रतिकूल दुर्देव भी पुरुषार्थद्वारा नष्ट हो जाता है। मानवश्रेष्ठ जिन्होंने पूर्वजन्ममें सात्त्विक कर्मे किया है, उन्हींमें किन्हीं- किन्हींको पुरुषार्थके बिना भी अच्छे फलकी प्राप्ति देखी जाती है। लोक रजोगुणी पुरुषको कर्म करनेसे फलकी प्राप्ति होती है और तमोगुणी पुरुषको कठिन कर्म करनेसे फलकी प्राप्ति जाननी चाहिये ॥ २ ५॥ +राजन् मनुष्यों को पुरुषार्थद्वारा अभिलषित पदार्थकी प्राप्ति होती है, किंतु जो लोग पुरुषार्थसे हीनँ हैं, वे दैवको ही सब कुछ मानते हैं। अतः तीनों कॉलमें पुरुषार्थैयुक्त देव ही सफल होता है। राजन्! भाग्ययुक्त मनुष्यका पुरुषार्थ समयपर फल देता है। पुरुषोत्तम! दैव, पुरुषार्थ और काल- ये तीनों संयुक्त होकर मनुष्यको फल देनेवाले होते हैं । कृषि और वृष्टिका संयोग होनेसे फलकी सिंधियाँ देखी जाती हैं, किंतु वे भी समय आनेपर ही दिखायी पड़ती हैं, बिना समय किसी प्रकार भी नहीं। इसलिये मनुष्यको सर्वदा धर्मयुक्त पुरुषार्थ करना चाहिये। उसके इस लोकमें आपत्तियोंमें पड़ जानेपर भी परलोकमें उसे निश्चय ही फल प्राप्त होगा। आलसी और भाग्यपर निर्भर रहनेवाले पुरुषोंको अर्थों की प्राप्ति नहीं होती। इसलिये सभी प्रयत्नोंसे पुरुषार्थ करनेमें तत्पर रहना चाहिये । राजेन्द्र लक्ष्मी भाग्यपर भरोसा रखनेवाले एवं आलसी पुरुषों को छोड़कर पुरुषार्थ करनेवाले पुरुषोंको यत्नपूर्वक ढूँढ़कर वरण करती है, इसलिये सर्वदा पुरुषार्थशील होना चाहिये ॥६- १२ ॥ + + +आगरा की भूमि में जन्मे पंडित रतनलाल बैनाडा,जैन विद्वत्त समाज के एक जाने माने करणानुयोग के महान विद्वान तथा श्री दिगंबर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर जयपुर के अधिष्ठाता हैं। + + +डॉ श्यामप्रसाद मुखर्जी 6 जुलाई 1901 23 जून 1953 भारत के एक महन शिक्षाविद, राजनेता तथा भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। +उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी शिक्षाविद् तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय के संस्थापक उपकुलपति थे। ३३ वर्ष की अल्पायु में श्यामाप्रसाद मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने। सन् 1939 में ये हिंदू महासभा से जुड़ गए थे और इसी वर्ष उन्हें महासभा का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया। भारत के स्वतंत्रता के बाद, इन्हें अंतरिम केंद्र सरकार में उद्योग और आपूर्ति मंत्री बनाया था लेकिन नेहरू की नीतियों के विरोद में उन्होंने ६ अप्रैल १९५० को मन्त्रिमण्डल से से इस्तीफा दे दिया�� इसके बाद 21 अक्टूबर 1951 को जनसंघ की स्थापना की। कश्मीर को विशेष दर्जा देने और अलग झंडा रखने का विरोध किया। इस सम्बन्ध में इन्होंने नारा दिया था एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे'। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये ११ मई १९५३ को बिना परमिट लिये वे जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नजरबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। +* भारत का यश उसकी राजनीतिक संस्थाओं और सैनिक शक्ति से नहीं बल्कि उसकी आध्यात्मिक महानता, सत्य और आत्म के विचारों दुखी मानवता की सेवा में, अभिव्यक्त सर्वोच्च शक्ति की विराटता में उसके विश्वास पर आधारित है। +* किसी राष्ट्र का नैतिकता के सिद्धांत प्रतिपादित करने एवं उसकी रक्षा हेतु कदम बढ़ाने से पहले भौतिक रूप से शक्तिशाली बनना चाहिए और पर्याप्त सैन्य शक्ति तैयार करनी चाहिए। वही राष्ट्र वास्तव में महान है जिसके पास सैनिक शक्ति एवं ताकत है किन्तु जो स्वार्थ हेतु उसका दुरूपयोग नहीं करता। +* इस देश में 175 साल के ब्रिटिश शासन के बाद भी भारतीय आबादी का 90 प्रतिशत से अधिक अशिक्षित हैं, जो एक असहनीय स्थिति है जो त्वरित कार्रवाई की मांग करता है। +* हम उन्नति करेंगे, हम एक होंगे। हम ऐसे देश में रहेंगे जिसका भाग्य केवल उसके बच्चों के हाथ में होगा जहाँ एक स्वतंत्र और हिंदुस्तान का झंडा हमेशा शांति और प्रगति की, सहनशीलता और आज़ादी की प्रतिष्ठा की घोषणा करेगा। +* कश्मीर का भारत में विलय कैसे होगा? क्या कश्मीर एक गणतंत्र के अन्दर दूसरा गणतंत्र बनने जा रहा है? क्या हम इस प्रभुत्व संपन्न संसद के अतिरिक्त भारत की सीमा के अन्दर एक और प्रभुत्व संपन्न संसद बनाने की सोच रहे हैं आप अगर तूफ़ान से खेलना चाहते हैं और यह कहना चाहते हैं कि हम शेख अब्दुल्ला को उसकी मनमर्जी करने दें तब कश्मीर को हम खो देंगे। मैं इस बात को जोर देकर कहना चाहता हूँ कि हम कश्मीर को खो देंगे। +* प्रधानमंत्री को साफ़ साफ कहना चाहिए कि हम इस प्रकार की कश्मीरी राष्ट्रीयता नहीं चाहते हैं। हम इस प्रभुत्व संपन्न कश्मी�� के विचार को नहीं चाहते हैं। अगर आप कश्मीर के बारे में ऐसा करते हैं तो अन्य रियासतें भी ऐसी मांग करेंगी। +* जम्मू और कश्मीर राज्य का भारत में विलय के मुद्दे को ऐसे अधर में नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इस राज्य का शेष भारत में विलय और जम्मू और लद्दाख क्षेत्रों को कश्मीर घाटी में विलय के प्रश्न पर शीघ्रातिशीघ्र अंतिम निर्णय लिया जाना चाहिए। +* हमारा एकमेव अस्त्र जनमत है जिसे अपनी बात समझाने का हमने प्रयत्न किया है। मैं केवल यही आशा करता हूँ कि लोकमत अपना असर डालेगा और श्री नेहरु को अपनी वर्तमान नीति को बदलने के लिए बाध्य करेगा जिससे वह पाकिस्तान स्वीकारने जैसी भयंकर भूल की पुनरावृति न कर सकें। +* उन लोगों के प्रति कुछ सहनशीलता दिखाएँ जो कश्मीर संबंधी आपकी नीति के विरोधी हैं। एक दूसरे पर पत्थर फेंकने का कोई लाभ नहीं है। एक दुसरे को साम्प्रदायिक और प्रतिक्रियावादी कहने का कोई लाभ नहीं है. उनको यह समझ लेना चाहिए कि कुछ ऐसी बातें हैं जिनपर उनके दृष्टिकोण तथा उस दृष्टिकोण के बीच मुलभुत अंतर है जिसे हम राष्ट्रीय दृष्टिकोण मानते हैं। +* आप जो भी काम करते हैं, इसे गंभीरता से, अच्छी तरह से और पूर्णता से करें; इसे कभी भी आधा–अधूरा नहीं करें, तबतक स्वयं को संतुष्ट न समझें जब तक कि आप इसे अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे दें। अनुशासन और गतिशीलता की आदतों को विकसित करें। अपने दृढ़ विश्वास को टूटने न दें दोस्त, लेकिन अपने विरोधियों के दृष्टिकोण की भी सराहना करना सीखें। +* राजनीतिक और सामाजिक न्याय को किसी देश के विघटन और एक वर्ग के विनाश या अपमान, जो पहल, बुद्धि और ड्राइव दिखाता है, की जरुरत नहीं होती बल्कि सभी पुरुष, जाति के बावजूद सबों के लिए अवसर की समानता, आत्म पूर्ति के लिए वास्तविक स्वतंत्रता को साझा कर सकते हैं। +* जो हम अफ़सोस करते हैं वह यह नहीं है कि पश्चिमी ज्ञान भारतीयों पर थोपा गया था, बल्कि यह ज्ञान भारत को अपनी सांस्कृतिक विरासत के बलिदान पर आयात किया गया था। इसकी उपेक्षा न कर दोनों प्रणालियों के बीच उचित संश्लेषण की आवश्यकता थी और भारतीय आधार को बहुत कम क्षति पहुँचती। +श्यामाप्रसाद मुखर्जी के बारे में वक्तव्य + + +उन्होंने भारतीय राष्ट्रवादी संघर्ष में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्हें इस बत पर विश्वास नहीं था कि असहयोग और निष्क्रिय प्रतिरोध स्वतंत्रता प्राप्त करने का एकमात्र साधन हो सकता है। इसलिए उन्होंने श्री अरबिन्द घोष की आक्रामक राष्ट्रवाद की अवधारणा का समर्थन किया। गरम दल के नेता बिपिन चंद्र पाल उनके मित्र थे और वह नियमित रूप से उनके समाचार पत्र न्यू इंडिया में लेख लिखते थे। +भारत के श्रेष्ठ प्रतिभा से सम्पन्न लोगों को बढ़ावा देने के अपने मिशन के रूप में उन्होंने प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बसु के शोध कार्य को आर्थिक रूप से समर्थन दिया और उनके कार्य को विश्व पटल तक ले जाने में मदद की। +स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण मात्र 44 साल की उम्र में 13 अक्टूबर 1911 को बंगाल के दार्जीलिंग में उनका निधन हो गया। हावड़ा और कोलकाता को जोड़ने वाले हुगली नदी पर बने पुल को 'निवेदिता सेतु' नाम दिया गया है, जो भारत के लिये उनके महान उपकार की तुलना में अल्प है। +* भारतीय लोगों के सामने सबसे पहले कार्यों में से एक अपने इतिहास को फिर से लिखना है। +* भारत स्वयं मास्टर दस्तावेज़ है जिसे हमें भारतीय इतिहास को जानने के लिए पढ़ना होगा। सिस्टर निवेदिता द हिस्ट्री ऑफ इंडिया एंड इट्स स्टडी फुटफॉल्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री में, अद्वैत आश्रम, कोलकाता, 19 +* यदि भारत स्वयं भारतीय इतिहास की पुस्तक है, तो इससे पता चलता है कि यात्रा ही उस इतिहास को पढ़ने का सच्चा साधन है। +* याद रखें कि सत्य अपनी संपूर्णता में प्रकट होता है, न केवल बुद्धि के माध्यम से, बल्कि हृदय और इच्छाशक्ति के माध्यम से भी। इसलिए, कभी भी उस अहसास पर संतुष्ट न रहें जो पूरी तरह से मानसिक है हमारे पास भाषा के अलावा अन्य इंद्रियां और अन्य क्षमताएं भी हैं। हमारे पास अंग और मस्तिष्क भी हैं। शरीर का उपयोग करें. सत्य की खोज में सभी इंद्रियों का उपयोग करें, यहां तक ​​कि अंगों का भी उपयोग करें। जो न केवल मन से पांडुलिपियों और पुस्तकों के माध्यम से सीखा जाता है बल्कि आंखों और स्पर्श से, यात्रा और काम के माध्यम से भी सीखा जाता है, वही वास्तव में समझा जाता है। इसलिए, यदि आप भारत को समझना चाहते हैं, तो प्रत्येक युग के महान ऐतिहासिक केंद्रों का दौरा करें। धरती को पलटें और तराशे हुए पत्थरों को अपने हाथों से सहलाएं। उस दृश्य की ओर चलें जिसे आप देखना चाहते हैं उस स्थान पर खड़े हों जहां कोई घटना घटी हो । +* इतिहास को भौगोलिक दृष्टि से और भूगोल को ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाना चाहिए। +भारत एक संश्लेषण (synthesis) है और हमेशा से रहा है। किसी भी प्रकार का विश्लेषण चाहे वह नस्लीय, भाषाई या क्षेत्रीय कुछ भी हो कभी भी भारत के अध्ययन के बराबर नहीं होगा संपूर्ण का कोई भाग संपूर्ण के समान नहीं होता।भारतीय इतिहास के पदचिह्न, पृ. 16 +भारत के निर्माण के लिए जिन सभी टुकड़ों को एक साथ जोड़ा जाना चाहिए। इसके अलावा, हमें स्वयं भारत को पहचानना होगा। कोई भी भारतीय प्रांत अपने विकास के लिए, अपने रास्ते पर चलते हुए, बिना किसी चुनौती के और अकेले अपने रास्ते पर नहीं चलता है।भारतीय इतिहास के पदचिह्न, पृ. 16-17 +* कुछ लेखक बौद्ध भारत में रुचि रखते हैं (यदि वास्तव में हमें इस तरह के शब्द का उपयोग करने का कोई अधिकार है) और कुछ मराठा या सिख या इंडो-इस्लामिक इतिहास या अन्य के विभिन्न चरणों में रुचि रखते हैं। लेकिन इनमें से किसी ने भी भारत के हृदय-की धड़कन को नहीं पकड़ा है।'भारत' ही भारतीय इतिहास को गौरवशाली बनाता है। +* वे भारतीय इतिहास और साहित्य में प्रकट 'भारतीय मन' की खोज करने में सक्षम थे। रमेश चन्दर दत्त के लेखन के बारे में भगिनी निवेदिता +* बिना उद्देश्य के ज्ञान महज पांडित्य है। +* भविष्य हमारी प्रतीक्षा कर रहा है कि हम इसे अपनी विरासत के बारे में हमारी अपनी समझ की सहायता से, अतीत द्वारा हमारे पास छोड़ी गई सामग्रियों से निर्मित करें। +* चित्र, चित्र, चित्र विचारों को मूर्त रूप देने के लिये चित्र और मातृभाषा प्रथम उपकरण हैं।Hints on National Education in India, पृष्ठ ६१ +* यह चित्र शुरू से अंत तक भारतीय हृदय के लिए भारतीय भाषा में एक निवेदन (अपील) है। यह नई शैली की पहली महान कृति है। यदि मेरा बस चले तो मैं इसे फिर से हजारों की संख्या में छापूं और इसे पूरे देश में फैला दूँ जब तक कि केदार नाथ और केप कोमोरिन के बीच एक भी किसान की झोपड़ी न बची रहे जिसकी भित्ति पर यह चित्र न लगा हो। जब कोई बार-बार माता के गुणों को देखता है, तो वह माता की कोमलता और पवित्रतता से अवश्य प्रभावित होता है। अवनीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा चित्रित 'भारत माता' के चित्र पर भगिनी निवेदिता +हमारे परिश्रम का फल लोगों को प्रदान करना चाहिए, स्वार्थवश स्वयं उसका उपभोग नहीं करना चाहिए। अपने द्वारा अकेले देखे गए उच्च दृष्टिकोण की तुलना में उदारतापूर्वक साझा की गई कम उपलब्धि भी बेहतर है। यह बेहतर है क्योंकि ज्ञान की उन्नति के लिए अंततः यह अधिक ���्रभावी है।फ़ुटफ़ॉल्स ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री, पृ. 96 ref> +* किसी विदेशी के सामने अपना झंडा कभी न झुकाएं। अनुसंधान की जिस विशेष शाखा को आपने चुना है, उसमें सबसे महान प्राधिकारी (authority) बनने का प्रयास करें। यहां भारत को प्रथम स्थान पर पहचान मिलनी चाहिए। भगिनी निवेदिता, प्रसिद्ध इतिहसकार सर यदुनाथ सरकार से +भगिनी निवेदिता के बारे में महापुरुषों के विचार +*निवेदिता जिस प्रकार भारत को प्रेम करती हैं, भारतवासियों ने भी भारत को उतना प्रेम किया होगा – इसमें संदेह है। विपिनचंद्र पाल +* मैंने भारत से प्रेम करना सीखा स्वामी विवेकानंद को पढ़ कर, और स्वामी विवेकानंद को समझा भगिनी निवेदिता के पत्रों से। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस]] +* जिन विदेशियों को भारत से सचमुच प्रेम था, उनमें निवेदिता का स्थान सर्वोच्च है। अवनीन्द्र नाथ ठाकुर]] +* वह भारत में भले ही ना पैदा हुई हों, लेकिन भारत के लिए पैदा हुई थीं। स्वामीनाथन गुरुमूर्ति + + +ई० एफ० शुमकर Ernst Friedrich "Fritz" Schumacher 16 अगस्त 1911 – 4 सितम्बर 1977) वैश्विक प्रभाव रखने वाले एक अर्थशास्त्रीय चिन्तक थे। वे ब्रिटेन में व्यावसायिक पृष्टभूमि के सांख्यिकीविद एवं अर्थशास्त्री थे। उन्होंने दो दशक तक यूके के राष्ट्रीय कोयका बोर्ड के मुख्य र्थिक सलहकार रहे। + + +डॉ० वासुदेव शरण अग्रवाल 1904 1967 भारत के इतिहास, संस्कृति, कला एवं साहित्य के विद्वान थे। लखनऊ विश्वविद्यालय ने 'पणिनिकालीन भारत' शीर्षक के शोध प्रबंध पर आपको पी०एच०डी की उपाधि से विभूषित किया। आप अनुसंधाता, निबंधकार संपादक के रूप में भी प्रतिष्ठित रहे। +आप लखनऊ और मथुरा के पुरातत्व संग्रहालयों में निरीक्षक तथा केंद्रीय पुरातत्व विभाग के संचालक और राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली के अध्यक्ष रहे। कुछ समय तक आप हिंदू विश्वविद्यालय में भारतविद्या (इंडोलॉजी) विभाग के अध्यक्ष भी रहे। आपने मुख्य रूप से पुरातत्व को ही अपना विषय बनाया और प्रागैतिहासिक वैदिक और पौराणिक साहित्य के मर्म का उद्घाटन किया। अपनी रचनाओं में आपने संस्कृति और प्राचीन भारतीय इतिहास का प्रमाणित रूप प्रस्तुत किया। +पृथिवीपुत्र, कला और संस्कृति, कल्पवृक्ष, भारत की मौलिक एकता, माता भूमि, वाग्धारा आदि आपके द्वारा रचित निबन्ध संग्रह हैं। आपने 'जायसी की पद्मावत की संजीवनी व्याख्या' तथा 'बाणभट्ट के हर्षचरित का सांस्कृत���क अध्ययन' आदि का सम्पादन किया। इसके अतिरिक्त आपने पालि, प्राकृत और संस्कृत के अनेक ग्रंथों का भी संपादन किया। +* सबर, मुंडा, कोल, भिल्ल, संथाल आदि निषाद जातियों की मातृभूमि होने के कारण भारतीय भाषाओं को उनसे प्राप्त होनेवाले अनेक शब्दों का लाभ हुआ। फल, फूल, वनस्पति, औषधि, वृक्ष, नदी, पर्वतों के नामों की व्युत्पत्ति की जब पूरी छानबीन होगी, तब भौतिक जीवन से सम्बन्ध रखने वाले कितने ही शब्द निषाद भाषाओं से अपनाये हुए मिलेंगे। (भारत की बहुलता और उसकी सामाजिक-भाषिकी को महत्व देते हुए डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल) +* भारत की संस्कृति न तो एकल है और न ही टुकड़ों में विभाजित, बल्कि वह किसी खूबसूरत गहने में गढ़े हुए रत्नों की तरह चमकती है जिसमें सबकी विशिष्टता बनी रहती है जैसे किसी कपड़े पर कढ़ाई की गयी हो और उसके विविध छापों की तरह भारत के निवासियों का जीवन एक लंबे कालखंड और दायरे में फैला हुआ है। (पी. के. गोडे के सम्मान में लिखते हुए) +* लोक ही व्याकरण का सबसे महान आपवन या थैला है जो शब्दों के अपरिमित भण्डार से भरा रहता है। उस लोक के प्रति पाणिनि की बढ़ी हुई निष्ठा और श्रद्धा थी. लोक के प्रति पाणिनि की यह निष्ठा हम वासुदेव शरण अग्रवाल के लिखे प्रत्येक निबन्ध और ग्रन्थ में लक्षित कर सकते हैं। +जनपदीय जीवन का एक पक्का नियम यह है कि वहाँ हर एक वस्तु के लिए शब्द है. उस क्षेत्र में जो भी वास्तु है, उसका नाम अवश्य है. ठीक नाम को प्राप्त कर लेना उसकी अपनी योग्यता की कसौटी है। अपने प्रसिद्ध निबंध ‘जनपदीय अध्ययन की आँख’ में ) +* जनपद जीवन के अनन्त पहलुओं की लीलाभूमि है। खुली हुई पुस्तक के समान जनपदों का जीवन हमारे चारों ओर फैला हुआ है. पास गाँव और दूर देहातों में बसने वाला एक-एक व्यक्ति उस रहस्य भरी पुस्तक के पृष्ठ हैं। यदि हम अपने आपको उस लिपि से परिचित कर लें जिस लिपि में गाँवों और जनपदों की अकथ कहानी पृथ्वी और आकाश के बीच लिखी हुई है, तो हम सहज ही जनपदीय जीवन की मार्मिक कथा को पढ़ सकते हैं। प्रत्येक जानपद जन एक पृथ्वीपुत्र है। (अपने प्रसिद्ध निबंध ‘जनपदीय अध्ययन की आँख में) +* हिंदी भाषा में जनपदों के भण्डार से लगभग पचास हजार नए शब्द आ जाएंगे जो भारत के जीवन को उचित तरीके से व्यक्त कर सकेंगे। यह दुर्भाग्य रहा है कि हिंदी भाषा में लिखा जा रहा समाजविज्ञान अनुवाद का समाजविज्ञान है। इसकी श��्दावली प्रायः इतनी अजानी और अपरिचित है कि उससे जनता तो क्या विद्यार्थी भी नहीं जुड़ पाते। +* 1909 में कुमारस्वामी भारत आए और पहली बार उन्होंने देशव्यापी यात्रा करके यहाँ के विशाल मंदिरों तथा कला-सामग्री को स्वयं अपनी आँखों से देखा. … वेद, ब्राह्मण, उपनिषद्, भगवद्गीता, महाभारत, रामायण, भागवत, गीतगोविन्द, कबीर, विद्यापति, बौद्ध निकाय, धम्मपद, मिलिंदपन्ह, सद्धर्म पुण्डरीक आदि भारतीय साहित्य में वे अपनी अंतःदृष्टि से गए थे। वासुदेव शरण अग्रवाल, प्रसिद्ध कलामर्मज्ञ कुमारस्वामी की प्रशंसा में) +वासुदेवशरण अग्रवाल के समबन्ध में विचार +*डॉक्टर वासुदेव शरण अग्रवाल तब तक मथुरा आ चुके थे। वह साक्षात् बोधिवृक्ष थे। उनके सत्संग में मैंने भारत विद्या का दुर्लभ पाठ पढ़ा…. यह मथुरा में बना हुआ पुराना कागज है, वह ताम्रपत्र है, और यह भोजपत्र है तथा यह सब चीजें कितनी पुरानी है इसका ज्ञान मुझे वासुदेव जी से ही हुआ। वह मुझे पाणिनि की अष्टाध्यायी पढ़ाना चाहते थे, सूरसागर पढ़ाना चाहते थे, लेकिन मैं उनकी दोनों इच्छाएं पूरी न कर सका। डॉ० वासुदेव शरण अग्रवाल के समवयस्क गोपाल प्रसाद व्यास + + +कुमार विश्वास जन्म 10 फरवरी 1970 हिन्दी के कवि, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। वे पूर्व में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर भी रहे। कविता के क्षेत्र में श्रृंगार के गीत इनकी विशेषता है। +* माँ हिन्दी के चमत्कारिक-विस्तृत-वृहद्-अनहद आँचल की स्नेहिल छाया ने जो स्थान दिया है, इसके लिए आकाश भर आभार भी कम है हिन्दी दिवस की शुभकामना में) +* आपके मां-बाप आपकी किसी प्रवृत्ति पर नाराज हो तो आप समझ लेना कि आप में कुछ अतिरिक्त है, जो हो रहा है, इसमें लज्जित मत होना। +* साध्य महत्वपूर्ण है ना कि साधन। +* मैं एक सामान्य आदमी हूं। 24 घंटे मेरे पास भी है; शारीरिक रूप से मैं भी इतना सक्षम नहीं हूं फिर भी मैं 18 घंटे के आस पास काम करता हूं केवल 4-5 घंटे ही सो पाता हूं। +* राजनीति एक युगधर्म है। +* ज्यादातर लोग बड़े दिखते हैं परंतु बड़े होते नहीं। +: मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा +: किसी प्याले से पूछा है सुराही ने सबब मय का +* ना पाने की खुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है +: जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है , +* जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है , +: कई जन्मों से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता, +* जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं , +: स्रजन का बीज हुँ मिटटी में जाया हो नहीं सकता +: इस दर्शन का और प्रदर्शन मत करना, +: इसमें शब्दों का कोई काम नहीं होता, +: इससे बड़ा कोई काम नहीं होता” +* बतायें क्या हमें किन-किन सहारों ने सताया है +: नदी तो कुछ नहीं बोली, किनारों ने सताया है +: दोनों को खुदपसंदगी की लत बुरी भी है +: कुछ रख के भूल जाने की आदत बुरी भी है +* जब भी आना उतर के वादी में , +: तान भावना की है, शब्द शब्द दर्पण है +: बांसुरी चली आओ, होठ का निमंत्रण है +: तितलियों ने मीलों तक रास्ता दिखाया था +: विजेता हैं जिन्हें स्वीकार हर हार होली में, +: तो मिलकर हम लगाएंगे गुलाल-ए-प्यार होली में +* गिरेबान चेक करना क्या है सीना और मुश्किल है, +: लोग कहते हैं रूह बिकती है +: जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है +: पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है +: पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है +: हवा का काम है चलना, दिए का काम है जलना +: पंचतत्व सौ पर है भारी, बतलाना है +: जीवन का राजसूय यज्ञ फिर कराना है +: पतझर का मतलब है, फिर बसंत आना है +: अपने बेटे का चूम कर माथा मुझ को टीका लगा रही होगी +: रूह सिलवट हटा रही होगी +: उनके ज़हनों में बम निकलतें हैं +: आप में कौन-कौन रहता है +: किस-किस से मिलना पड़ता है +* कलम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा +: और एक ख्वाब है तेरा की जो मर जाता है +* जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा +: हास्य बातो या जज़्बातो मुलाकातों का हंगामा +: ये हंगामे की राते है या है रातो का हंगामा +: कि उस गली में गए अब ज़माने हो गए हैं +* हमला है चार सू दर-ओ-दीवार-ए-शहर का +: सब जंगलों को शहर के अंदर समेट लो +* याद उसे इंतिहाई करते हैं + + +: अविश्वस्त पर विस्वास नहीम करना चाहिये। विश्वस्त पर बहुत अधिक विश्वास नहीं करना चाहिये। विश्वास से भय पैदा होता है जो मूल को भी काट देता है। +: अविश्वसनीय व्यक्ति का तो विश्वास न ही करे और विश्वसनीय पर भी विश्वास न करे। विश्वास करने पर जो संकट पैदा होता है वह जड़ों को भी काट डालता है। तात्पर्य यह कि अपने विश्वस्त पर भी पूरा विश्वास नहीं ही होना चाहिए क्योंकि वह भी धोखा दे सकता है। +: विश्वास न करने वाले दुर्बल व्यक्ति को बलशाली भी नहीं मार पाता। लेकिन जो विश्वास करता है वह बलवान हो तो भी उसे दुर्बल भी शीघ्र बाँध लेता है। +: पुत्र वही हैं जो पिता के भक्त हों, पिता वही है जो पालन-पोषण करता ह��, मित्र वही है जिस पर आंख मूंदकर भी विश्वास किया जा सकता है और पत्नी वही है जो हमेशा आपके साथ देती है। +: हे भारत सभी मनुष्यों की श्रद्धा अन्तःकरण के अनुरूप होती है। यह मनुष्य श्रद्धामय है। इसलिये जो जैसी श्रद्धावाला है, वही उसका स्वरूप है अर्थात् वही उसकी निष्ठा -स्थिति है। +: इन पर विश्वास नहीं करना चाहिये नदियों पर, जिन लोगो के पास अस्त्र-शस्त्र हों, नाख़ून और सींग वाले जानवर, स्त्रियाँ, और राजकुल के लोगों पर। +: तुलसीदास कहते हैं, भगवान पर भरोसा करें और किसी भी भय के बिना शांति से सोइए। कुछ भी अनहोनी होती ही नहीं और जो होना है वह होकर रहेगा। +: मुझे अपने इष्ट श्रीराम पर पूरा भरोसा है। एक ही बल, एक ही आशा और एक उन्हीं पर अटूट विश्वास है; ठीक वैसे ही जैसे कि भगवान श्री रघुनाथजी यदि स्वाति नक्षत्र का जल है, तो तुलसीदास चातक पक्षी की तरह है। +* दूसरों पर भरोसा करना अच्छा है, लेकिन ऐसा ना करना कहीं ज्यादा अच्छा है। Benito Mussolini +* विश्वास अर्जित करना होता है, और ये केवल समय बीतने के साथ आना चाहिए। Arthur Ashe +* विश्वास किया जाना प्रेम किये जाने से बेहतर प्रशंशा है। George MacDonald +* भरोसा करना सीखना जीवन के सबसे कठिन कार्यों में से एक है। Isaac Watts +* कभी ऐसे व्यक्ति पर विश्वास मत करिये जिसे वो चाहिए जो आपके पास है। दोस्त हो या नहीं, जलन एक सशक्त भावना है। Eubie Blake +* झूठ बोलने के हर एक अच्छे कारण के बदले में सच कहने का उससे भी अच्छा कारण होता है। Bo Bennett +* सीधे व्यक्ति का विश्वास ही झूठे व्यक्ति का सबसे उपयोगी साधन है। Stephen King +* विश्वासघात होने से पहले, विश्वास को होना होगा। Suzanne Collins +* जीवन में जो कुछ भी होता है अच्छा है – बस उसमे विश्वास रखो। Orlando Bloom +* प्रेम का सबसे अच्छा प्रमाण विश्वास है। Joyce Brothers +* किसी पर भरोसा किया जा सकता है कि नहीं ये जानने का सबसे अच्छा तरीका है उसपर भरोसा करना है। Ernest Hemingway +* शांति और विश्वास बनने में सालों लगते हैं और टूटने में कुछ पल। Mahogany SilverRain +* जो कोई भी कहता है कि उसे पता है उनसे सावधान रहिये। मुझपर भरोसा करिये उन्हें नहीं पता नहीं तो उन्हें कहना नहीं पड़ता कि उन्हें पता है। Harvey Fierstein +* एक बगीचा बहुत बड़ा शिक्षक होता है। वो हमें धैर्य और सावधानी पूर्वक देखना सीखाता है वो हमें मेहनत और किफ़ायत सीखाता है; और सबसे बढ़कर वो हमें विश्वास करना सीखाता है। Gertrude Jekyll +* विश्वास मर जाता है लेकिन अविश्वास फलता-फूलता रहता है। Sophocles +* यकीन आस्था के जैसा नहीं है। एक दोस्त कोई ऐसा होता है जिसपर आप भरोसा कर सकते हैं। किसी में आस्था रखना एक गलती है। Christopher Hitchens +* केवल एक गोरा व्यक्ति जिसपर आप यकीन कर सकते हैं वो है मरा हुआ गोरा व्यक्ति। Robert Mugabe +* किसी पर पूरी तरह से भरोसा करना आनंदित करने वाला है। Jeff Goldblum +* कभी मुसीबत में पड़े व्यक्ति की सलाह पर यकीन मत करो। एसप +* शांति और विश्वास बनने में सालों लगते हैं और टूटने में कुछ पल। Mahogany SilverRain +* क्या आपने इतना साहस है कि प्यार पर एक और बार भरोसा करें और हमेशा एक और बार भरोसा करें। Maya Angelou +* आपको किसी न किसी चीज में विश्ववास करना ही होगा —अपने गट्स में, अपनी डेस्टिनी में, अपनी जिंदगी या फिर अपने कर्म में। Steve Jobs +* जिम्मेदारी उसे दी जाती हैं जिसपर भरोसा होता है। जिम्मेदारी हमेशा भरोसे का संकेत होती है। James Cash Penney +* बहुत अधिक भरोसा करने पर हो सकता है आप धोखा खा जाएं, लेकिन यदि आप पर्याप्त भरोसा नहीं करेंगे तो आप पीड़ा में जियेंगे। Frank Crane +* लोग आपकी ज़िन्दगी में आते हैं और चले जाते हैं। बस आपको भरोसा करना होता है कि ज़िन्दगी ने आपके लिए एक रोड बना राखी है। Orlando Bloom +महाभारत में विश्वास पर सूक्तियाँ + + +* व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है शरीर का स्वास्थ्य है शहर की शान्ति है देश की सुरक्षा है । जो सम्बन्ध धरन बीम का घर से है या हड्डी का शरीर से है वही सम्बन्ध व्यवस्था का सब चीजों से है ।— राबर्ट साउथ +* अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है ।–एडमन्ड बुर्क +* सभ्यता सुव्यस्था के जन्मती है स्वतन्त्रता के साथ बडी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है ।— विल डुरान्ट +* सुव्यवस्था स्वर्ग का पहला नियम है ।— अलेक्जेन्डर पोप +* परिवर्तन के बीच व्यवस्था और व्यवस्था के बीच परिवर्तन को बनाये रखना ही प्रगति की कला है ।— अल्फ्रेड ह्वाइटहेड + + +* अगर कोई देश है जो मानवता के लिए पूर्ण और आदर्श है, तो एशिया की ओर ऊँगली उठाऊंगा जहाँ भारत है। मैक्समूलर]] +* यदि आपका आदर्श जड़ है, तो आप भी जड़ हो जायेंगे। स्मरण रहे हमारा आदर्श है, परमात्मा। स्वामी विवेकानन्द +* जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। श्रीराम शर्मा आचार्य +* ग्रामीण व्यवस्था को छिन्न भिन्न करना इंग्लैंड की सबसे बड़ी गलती थी। समाजवाद आदर्श राज्य है, लेकिन ���से तबतक हासिल नहीं किया जा सकता, जबतक मनुष्य स्वार्थी है। एनी बेसेन्ट +* इस देश की औरतों के लिए आदर्श सावित्री नहीं, द्रोपदी होनी चाहिए। डॉ. राम मनोहर लोहिया +* अपने आदर्श को पाने के लिए सैकड़ों बार असफल होने पर भी आगे बढ़ो। स्वामी विवेकानंद +* आदर्श मनुष्य जीवन की दुर्घटनाओं को गरिमा और शालीनता के साथ परिस्थितियों को सर्वोत्तम बनाकर सहन करता है। अरस्तू +* एक-दूसरे से प्रेम करने वाले लोगों का सामान्य जीवन ही सुख का आदर्श है। जॉर्ज सैंड +* किसी महापुरुष और सफलत व्यक्ति को अपना आदर्श बनाना जितना आसान है उनके जैसा बनना उतना ही कठिन है। +* एक शब्द में, यह आदर्श है कि आप दिव्य हैं। स्वामी विवेकानंद +* भारतीय आज दो अलग-अलग विचारधाराओं से शासित हैं। संविधान की प्रस्तावना में स्थापित उनका राजनीतिक आदर्श स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के जीवन की पुष्टि करता है। उनके धर्म में सन्निहित उनका सामाजिक आदर्श उन्हें नकारता है। बी आर अंबेडकर +* कला सकारात्मक वास्तविकता का अध्ययन नहीं है, यह आदर्श सत्य की खोज है। जॉन रस्किन +* मैंने एक ऐसे लोकतांत्रिक और स्वतंत्र समाज के आदर्श को संजोया है जिसमें सभी व्यक्ति एक साथ सद्भाव और समान अवसरों के साथ रहते हैं। यह एक आदर्श है जिसके लिए मैं जीने और हासिल करने की आशा करता हूं। लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो यह एक आदर्श है जिसके लिए मैं मरने को तैयार हूं। नेल्सन मंडेला +* भगतसिंह को जो अपना आदर्श मानते है, वो हर युग में क्रांति के लिए तैयार रहेंगे। +* वे क्रांतिकारी जो संयोग से फांसी से बच गए हैं, उन्हें जीवित रहना चाहिए और दुनिया को दिखाना चाहिए कि वे न केवल आदर्श के लिए फांसी को गले लगा सकते हैं, बल्कि अंधेरे, धुंधली जेल की कोठरियों में सबसे खराब प्रकार की यातनाओं को भी सहन कर सकते हैं। भगत सिंह +* दर्शन एक तरह की यात्रा है, हमेशा सीखने वाला, फिर भी सत्य की आदर्श पूर्णता तक नहीं पहुंचना। अल्बर्ट पाइक +* जब कोई आदर्श को चित्रित करता है, तो उसे अपनी कल्पना को सीमित करने की आवश्यकता नहीं होती है। एलेन की +* एक युग की भावना को अमूर्त आदर्श कलाओं में सर्वोत्तम रूप से व्यक्त किया जा सकता है, क्योंकि आत्मा ही अमूर्त और आदर्श है। ऑस्कर वाइल्ड आदर्श पर अनमोल वचन +* जहाँ से भी अच्छा सीखने-समझने को मिले उस पर ध्यान दो, जहाँ से भी आपके गुण संवारने के तत्व मिले अपन��ते जाओ, आप जल्दी एक सम्मानीय आदर्शवादी और महान व्यक्ति बनेंगे। +* घृणा करने वाले अपने दिल में मृत्यु समान बेचैनी का अनुभव करते है। अथर्ववेद +* जिस प्रकार घिसकर, काटकर, तपाकर और पीटकर चार प्रकार से सोने की परीक्षा ली जाती है, वैसे ही पुरूष की परीक्षा भी चार प्रकार से होती है, त्याग, शील, गुण और कर्म से। चाणक्य नीति +* अपनी पीड़ा सह लेना और दूसरे जीवों को पीड़ा न पहुंचाना यही तपस्या का स्वरूप है। तिरूवल्लुवर +* अध्ययन के प्रति प्रेम, जीवन में आने वाले विषाद और क्लांति के क्षणों को आनंद और प्रसन्नता के क्षणों में परिवर्तित करने की क्षमता प्रदान करता है। काका कालेकर +* आपत्ति-विपत्ति आने पर जो व्यक्ति घबराते नहीं है, वे मनुष्य ही मेधा बुद्धि वाले होते है। विदुर नीति +* आपत्ति का सामना करने में मुस्कान से बढ़ कर कोई सहायक वस्तु नहीं होती। तिरूवल्लुवर +* किसी के साथ भी अत्यंत लगाव न रखो और किसी को भी पूर्ण रूप से उपेक्षित मत करो, इसमें मध्य मार्ग सर्वसश्रेष्ठ है। वाल्मीकि +* संसार एक कारावास है। यहाँ कोई आवश्यकताओं का बंधक है तो कोई महत्वाकांक्षाओं का दास। जैनेन्द्र कुमार +* सम्पत्ति और स्वास्थ्य से भी अधिक मन की शांति का महत्व जीवन में सार्वधिक होता है। डॉ। राधाकृष्णन + + +जेम्स एलेन २८ नवम्बर १८६४ १२ जनवरी, १०१२) ब्रिटिश दार्शनिक, लेखक और कवि थे। उनकी रचनायें आज भी प्रेरणा देती हैं। ये स्व-सहायता लेखकों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत रहे। उनकी लिखी पुस्तक "मनुष्य जैसा सोचता है" दुनिया की अच्छी किताबों में से एक है। +* कोई भी कर्तव्य धन्यवाद कहने की तुलना में ज्यादा जरूरी नहीं है। +* आज आप जहाँ भी हैं आपके विचार आपको वहां लाये हैं। +* सब अपनी परिस्थितियों को सुधारने के लिए उत्सुक हैं लेकिन खुद को सुधारने के लिए कोई तैयार नहीं हैं; इसलिए वे बंधे रहते हैं। +* एक आदमी को यह सीखना होगा कि वह चीजों को आदेश नहीं कर सकता है लेकिन वह खुद को आदेश दे सकता है; वह दूसरों की इच्छा पर जोर नहीं दे सकता है, लेकिन वह अपनी इच्छा से खुद को ढाल सकता है और उस पर विजय प्राप्त कर सकता है। +* जैसा आप सोचते हैं, घूमते हैं, और जैसा आप पसंद करते हैं, वैसा आप आकर्षित करते हैं। +* मनुष्य जितना अधिक शांत होता है, उसकी सफलता, उसका प्रभाव, अच्छाई के लिए उसकी शक्ति उतनी ही अधिक होती है। +* मन की शांति बुद्धि के खूब���ूरत गहनों में से एक है। +* मनुष्य स्वयं द्वारा बनता या बिगड़ता है। सही विकल्प से वह ऊपर उठता है। शक्ति, बुद्धि और प्रेम और अपने विचारों का मालिक होने के नाते, वह हर परिस्थिति का समाधान रखता हैं। +* तुम इस दुनिया में बिना साहस के कभी कुछ नहीं कर पाओगे। यह सम्मान करने लायक अपने दिमाग का सबसे बड़ा गुण है। +* जिन लोगों ने संदेह और डर पर विजय प्राप्त कर ली है, वो असल मे सफल है। +* किसी व्यक्ति के जीवन की बाहरी परिस्थितियाँ हमेशा उनकी आंतरिक मान्यताओं का प्रतिबिंब होती हैं। +* एक व्यक्ति केवल उन विचारों से बनता है जिसे वह चुनता है। +* परिस्थितियाँ मनुष्य को नहीं बनाती हैं, वे उसकी असलियत बता देती हैं। +* खुशी और शांति से काम करें, यह जानते हुए कि सही विचार और सही प्रयास निश्चित रूप से सही परिणाम लाते हैं। +* एक व्यक्ति जब चीजों और अन्य लोगों के प्रति अपने विचारों को बदल देता है, तो चीजें और अन्य लोग भी उसके प्रति बदल जाएंगे। + + +महारजा रणजीत सिंह 13 नवम्बर 1780 – 27 जून 1839) सिख साम्र्ज्य के प्रथम महाराजा थे। उन्होंने १९वीं शताब्दी के आरम्भिक काल में भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर राज किया। उन्हें 'पंजाब केसरी पंजाब का शेर) कहते हैं। +* मेरा राज्य एक महान राज्य है। मैं यह निष्कंटक राज्य अपने उत्तराधिकारी को सौपूंगा। +* यह ईश्वर की इच्छा थी कि मैं सभी धर्मों को एक आंख से देखूं, इसलिए उसने मुझे एक आंख की रोशनी से वंचित कर दिया। +* एक बार उनकी मुस्लिम बीबी मोहरा ने उनसे पूछा – “आप कहां थे जब अल्लाह सुंदरता बांट रहा था।” महाराजा ने उत्तर दिया – “तब मैं अपने लिए एक शक्तिशाली राज्य मांग रहा था। + + +: जिनके पैर समुद्र द्वारा धोए जाते हैं, जो हिमालय को अपने मुकुट के रूप में पहनते हैं, ऋषियों और राजाओं के रत्नों से सुशोभित हैं, भारत माता के प्रति, मैं उनके सम्मान में नमन करता हूँ। +* भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है अरबों के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है बुद्ध के रास्ते ईसाइयत आदर्शों की जननी है ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शासन और लोकतंत्र की जननी है । अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है । विल्ल डुरान्ट अमरीकी इतिहासकार +* हिंदुस्तान के साथ जिस के सारे हित संबंध जुड़े हैं, जो इस देश को भारत माता कहकर अति पवित्र दृष्टि से देखता है, तथा जिसका देश के बाहर कोई अन्य आधार नह���ं है, ऐसा महान धर्म और संस्कृति से एक सूत्र में गूंथा हुआ हिंदू समाज ही, यहां का राष्ट्रीय समाज है। केशव बलिराम हेडगेवार]] + + +ईसप Aesop ६२० ईसा पूर्व – ५६४ ईसा पूर्व जनप्रिय नीति कथाकार। इन कहनियों को 'ईसोप की कहनिया' या अंग्रेजी में ईसप फब्लेस (Aesop's Fables) के नाम से जाना जाता है। परन्तु 'ईसप' नाम का कोई व्यक्ति कभी था, इस विषय में बहुत कुछ संदेह है। +* पुरुष अक्सर नकल की सराहना करते हैं और असली चीज़ की प्रशंसा करते हैं। +* संघ में शक्ति है। +* अपने विशेष चरित्र और मूल्यों को, उस रहस्य को, जिसे आप जानते हैं और कोई नहीं जानता, सत्य को जाने न दें – इसे महान चबाने वाली शालीनता से निगलने न दें। +* स्वयं सहायता सबसे अच्छी मदद है। +* धीमी लेकिन स्थिर गति से दौड़ जीतती है। +* जीवन में अपना स्थान बनाए रखें और आपका स्थान आपको बनाए रखेगा। +* सबसे बड़ी दयालुता कृतघ्न को नहीं बांधेगी। +* अपने दुर्भाग्य से बेहतर है कि दूसरों के दुर्भाग्य को देखकर बुद्धिमान बनें। +* हम छोटे चोरों को फाँसी देते हैं और बड़े चोरों को सार्वजनिक पद पर नियुक्त करते हैं। +* अपने कई दायित्वों के साथ धन की तुलना में बिना किसी परवाह के गरीबी बेहतर है। +* आवश्यकता आविष्कार की जननी है। +* डर में केक और एले की तुलना में शांति में बीन्स और बेकन बेहतर हैं। +* देवता उनकी सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। +* आदत बदलने से प्रकृति नहीं बदल सकती। +* यह उम्मीद करना व्यर्थ है कि हमारी प्रार्थनाएँ सुनी जाएंगी। +* धीमी और सतत दौढ़ने वाला ही दौड़ जीतता है। +* एकता ही असली शक्ति है । +* कोई भी माफी उत्पीड़क के लिए दवा का काम करेगी । +* क्षमा महान आत्माओं का प्रतीक है । +* सदैव झूठ बोलने वाले पर कभी भी विश्वास नहीं किया जाएगा तब भी जब वह सच बोल रहा होता है । +* सभी पर कृपा करें और सभी आप पर कृपा करेंगे । +* एक दोस्त को धोखा दें और आप अक्सर पाएंगे कि आपने खुद को बर्बाद कर लिया है । +* कठिनाइयों में व्यक्तियोंं की सलाह पर कभी भी भरोसा न करें । +* यदि आप बुरे दोस्तों का चुनाव करते हैं तो आपके अच्छे होने पर भी कोई आप पर विश्वास नहीं करेगा । +* यह जरुरी नहीं है कि जो जोर से रो रहा है वह सबसे ज्यादा आहत हो। +* आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है । +* सावधान रहें आप आनंद में लीन होकर महत्वपूर्ण चीजों को खो रहें हैं। +* विपरीत परिस्थिति ही दोस्तों की ईमानदारी का पर��क्षण करती है । +* आप सभी को खुश करने की कोशिश में, किसी को भी खुश नहीं कर पाएंगे । +* संकट में सहायता नहीं सलाह देंं । +* हम अक्सर ही अपने दुश्मनों को अपने विनाश के लिए साधन उपलब्ध कराते हैं । +* किसी भी इंसान को उसकी संगत मेंं रहने वालोंं के द्वारा ही पहचाना जाता है । + + +* अदृष्य को देखने की कला ही दूरदृष्टि है। +* बुद्धिमान व्यक्ति के सिर में पैसा होना चाहिए, उसके हृदय में नहीं। +* लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते। + + +देशकाल का अर्थ है देश और काल। इस शब्द से इस बात का महत्व दिया जाता है कि मनुष्य को कोई भी काम करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि वह कहाँ है और समय कैसा है। +: देश, काल तथा अपने बलाबलका विचार करके ही मृदुता (सामनीति)-का प्रयोग करना चाहिये। अयोग्य देश अथवा अनुपयुक्त कालमें उसके प्रयोगसे कुछ भी सिद्ध नहीं हो सकता; अतः उपयुक्त देश, कालकी प्रतीक्षा करनी चाहिये। कहीं लोकके भयसे भी अपराधीको क्षमादान देनेकी आवश्यकता होती है। +दान देना ही कर्तव्य है इस भाव से जो दान योग्य देश, काल को देखकर ऐसे (योग्य) पात्र (व्यक्ति) को दिया जाता है, जिससे प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं होती है, वह दान सात्त्विक माना गया है।। +: हमे सदैव अपने सभी विभिन्न कार्यों को अपनी शक्ति, सामर्थ्य, देशकाल की परिस्थितियों के अनुसार तथा धर्म का पालन करते हुए ही निष्ठापूर्वक करना चाहिये। +: बगुले के समान इंद्रियों को वश में करके देश, काल एवं बल को जानकर विद्वान अपना कार्य सफल करें । +: वसन्त और शरद् ऋतुमें चतुरंगिणी सेनाको यात्रामें लगाना उचित है। जिस राजाके पास पैदल सेना अधिक हो, उसे विषम स्थानपर स्थित शत्रुपर आक्रमण करना चाहिये। राजाको चाहिये कि जो शत्रु अधिक वृक्षोंसे युक्त देशमें या कुछ कीचड़वाले स्थानपर स्थित हो, उसपर हाथियोंकी सेनाके साथ चढ़ाई करे। समतल भूमिमें स्थित शत्रुपर रथ और घोड़ोंकी सेना साथ लेकर चढ़ाई करनी चाहिये। जिस शत्रुओंके पास बहुत बड़ी सेना हो, राजाको चाहिये कि उनका आदर-सत्कार करे, अर्थात् उनके साथ संधि कर ले। वर्षा ऋतु में अधिक संख्यामें गधे और ऊँटोंकी सेना रखनेवाला राजा यदि शत्रुके बन्धनमें पड़ गया हो तो उस अवस्थामें भी उसे वर्षा ॠतुमें चढ़ाई करनी चाहिये। जिस देशमें बरफ गिरती हो, वहाँ राजा ग्रीष्म ऋतुमें आक्रमण कर��। पार्थिव हेमन्त और शिशिर ऋतुओंका समय काष्ठ तथा घास आदि साधनोंसे युक्त होने से यात्राके लिये बहुत अनुकूल रहता है। धर्मज्ञ इसी प्रकार शरद और वसन्त- ऋतुओंके काल भी अनुकूल माने गये हैं । राजाको देश-काल और त्रिकालज्ञ ज्योतिषीसे यात्राकी स्थितिको भलीभाँति समझकर उसी प्रकार पुरोहित और मन्त्रियोंके साथ परामर्श कर विजय यात्रा करनी चाहिये ॥ १९ २७ ॥ + + +सून जू Sun Tzu (孫子 Sūn Zǐ अंग्रेजी Sun Tzu चीन के एक दार्शनिक, सैन्य रणनीतिकार और सेनानायक थे। उनका जन्म प्राचीन चीन में ६वीं शताब्दी इसापूर्व हुआ था। चीनी भाषा में 'युद्ध की कला' नामक ग्रन्थ उनकी ही रचना माना जाता है। +* सब लोग उन युक्तियों को देख सकते हैं जिनसे मैं विजय प्राप्त करता हूँ, लेकिन उन रणनीतियों को कोई नहीं देख सकता जिनसे विजय प्राप्त होती है। +* सभी युद्ध धोखे पर आधारित है. +* निराकरता की सीमा तक सूक्ष्म रहो, अत्यंत रहस्यमय रहो, तभी तुम प्रतिद्वंद्वी के भाग्य का निदेशक हो सकते हो। +* सौ लड़ाई में सौ जीत जीतने के लिए कौशल की परिपूर्णता नहीं है. बिना लादे दुश्मन को वश में करना कौशल की परिपूर्णता है. +* वे जो जानते हैं की वो कब लड़ सकते हैं और कब नहीं विजयी होंगे। +* अगर आप शत्रु से दूर हैं तो उन्हें विश्वास दिलाईये की आप निकट हैं। +* अगर आप शत्रु को जानते हैं और स्वयं को जानते हैं तो आपको सौ युद्धों के परिणामो से भी डरने की जरुरत नहीं है। +* अपराजेयता रक्षा में निहित होती है, जीत की संभावना आक्रमण में होती है।. +* युद्ध की व्यावहारिक कला में सबसे अच्छी बात ये है शत्रु राष्ट्र को सम्पूर्ण रूप से हासिल करना, उसे विखंडित एवं नष्ट करना अच्छी बात नहीं है। +* केवल प्रबुद्ध शासक और बुद्धिमान सेना नायक ही सर्वोच्च प्रतिभा का उपयोग खुफिया तंत्र के लिए करते हैं, और परिणाम स्वरूप महान नतीजे प्राप्त करते हैं। +* अपने सैनिकों को अपने बच्चों जैसा अपनाएं, वे आपका कठिन परिस्थितियों में भी साथ देंगे; उनकी तरफ आपने पुत्रो की तरह देखें और वे आपका म्रत्यु तक भी साथ देंगे। +* गुप्त परिचालन युद्ध में आवश्यक हैं, उन पर सेना के लिए अपनी हर चाल चलना निर्भर करता है। +* प्रबुद्ध शासक हमेशा चौकन्ना रहता है, और अच्छा सेना नायक पूर्णतः सतर्क।. +* एक सेना नायक जो बिना डर और अपमान के आगे बढ़ता है, जिसकी कोच सिर्फ अपने राष्ट्र की रक्षा करनी है, किसी भी राज्य के लिए बहुमूल्य है। +* हार से खुद को सुरक्षित करने का अवसर हमारे ही हाथों में निहित है, लेकिन दुश्मन को हराने के अवसर दुश्मन खुद द्वारा प्रदान की जाती है। +* युद्ध की सर्वोच्च कला दुश्मन से बिना लड़े ही उसे अपने वश में करना है। +* आज तक ऐसी कोई भी लम्बी लडाई नहीं हुयी है जिससे कोई देश लाभान्वित हुआ है। +* युद्ध में लड़ना और विजय प्राप्त करना सर्वोच्च उत्कृष्टता नहीं है, सर्वोच्च उत्कृष्टता बिना लड़े दुश्मन के प्रतिरोध को तोड़ने में हैं. +* विजयी योद्धा पहले विजय प्राप्त करते हैं और फिर युद्ध के लिए जाते हैं जबकि पराजित योद्धा युद्ध करने जाते हैं फिर जीत की तलाश करते हैं। + + +गौरीशंकर हीराचंद ओझा 15 सितम्बर 1863 ई० 20 अप्रैल 1947) भारत के सर्वप्रमुख इतिहासकारों में से एक हैं। +सिरोही राज्य का इतिहास (1911 भारतीय प्राचीन लिपिमाला (1894 ई० सोलंकियों का प्राचीन इतिहास (1907 बीकानेर राज्य का इतिहास (प्रथम भाग 1937 तथा दूसरा भाग 1940 उदयपुर राज्य का इतिहास (प्रथम भाग 1928 तथा दूसरा भाग 1932 डूंगरपुर राज्य का इतिहास (1936 बांसवाड़ा राज्य का इतिहास(1936 प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास (1940 जोधपुर राज्य का इतिहास (प्रथम भाग 1938 तथा दूसरा भाग 1941) आदि अनेकों ऐतिहासिक ग्रंथों की रचना की । ओझा जी की रचना 'मध्यकालीन भारतीय संस्कृति' भारतीय संस्कृति पर प्रकाश डालती है । फारसी ग्रंथों का अनुवाद, विदेशी यात्रियों के विवरण, संस्कृत,राजस्थानी, गुजराती व मराठी भाषाओं के काव्य ग्रंथ शिलालेख, दानपात्र, सिक्के इत्यादि उनके इतिहास लेखन के आधार रहे हैं । उन्होंने प्रत्येक घटना की सत्यता को प्रमाणित करने का यथासंभव प्रयास किया है। इसके लिए उन्होंने हर उस स्त्रोत का उपयोग किया है जो उस घटना का वर्णन करता है। +भारतीय प्राचीन लिपिमाला ने पुरातत्व जगत में उन्हें विशेष ख्याति प्रदान की। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस रचना को विश्व निधि घोषित किया है । +गुर्जर-प्रतिहार' सांघिक शब्द हैं। इस वंश के शासकों को प्रतिहार इस कारण कहा जाता था कि इन्होंने द्वार रक्षक का काम किया था और द्वार-रक्षक का पर्यायवाची शब्द है प्रतिहार। इन राजाओं ने मुसलमान आक्रमणकारियों को सेका, रोकने में सहायता की और बाद में अरबों को सिन्ध से आगे बढने से रोका कि जिन्होंने ईसा की ८वीं सदी के पूर्वार्द्ध में उस प्रदेश पर कब्जा कर लिया था। अब रही गुर्जर शब्द की बात । इन्हें गुर्जर या गुर्जर-प्रतिहार इसलिये कहा गया कि सर्वप्रथम प्रतिहारों की राजनीतिक शक्ति का उदय राजस्थान के दक्षिण-पूर्व गुर्जरत्रा या गर्जर (गुजरात) प्रदेश में हुआ। इसीलिए स्थान के नाम पर इनको गुर्जर प्रतिहार (या केवल गुर्जर कहा जाने लगा। वस्तुतः न गुर्जर और न प्रतिहार कोई जाति थी। श्री वैद्य तथा श्री गौरीशंकर ओझा) । +*प्रतिहार राजा अग्नि-कुल के क्षत्री थे। वे अपने को इक्ष्वाकु वंशी तथा लक्ष्मण की संतति बताते थे। मिहिर भोज की 'ग्वालियर प्रशस्ति' में बताया गया है कि मनु, इक्ष्वाकु तथा उनके ही वंशज और रावणान्तक राम के प्रतिहार थे। इससे ही यह प्रतिहार वंश प्रचलित हुआ। उसी प्रशस्ति में आगे यह भी कहा गया है कि राम के भाई लक्ष्मण को प्रतिहार इसलिए कहा गया है कि उन्होंने मेघनाथ जैसे शत्रु को युद्ध में पछाड़ा था। इसी प्रकार बाउक के जोधपुर शिलालेख (सन् ८३७) में कहा गया है कि चूँकि राम के भाई (लक्ष्मण) ने प्रतिहार (द्वार-रक्षक) का कार्य किया था इसी लिए वंश को प्रतिहार की संज्ञा दी गई । + + +बौद्ध धर्म महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित धर्म है। इसका जन्म भारत में अनुमातः ईसापूर्व ६ठी शताब्दी से लेकर ईसापूर्व ४थी शताब्दी के बीच हुआ। इसके बाद यह धर्म एशिया के अधिकांश भागों में फैल गया। बौद्ध धर्म के जीवित सम्प्रदायों में दो प्रमुख सम्प्रदाय हैं १) थेरवाद (हीनयान २) महायान। +* बौद्ध धर्म एवं ब्राह्मण धर्म का जितना गम्भीर अध्ययन किया जाए उतना ही दोनों के बीच अन्तर जानना कठिन हो जाता है, या यह कहना कठिन हो जाता है कि किन रूपों में बौद्ध धर्म, वास्तव में अशास्त्रीय या अहिन्दू है। आनन्द के० कुमारस्वामी +* त्रिपिटकों से यह नहीं प्रकट होता है कि उनका ब्राह्मणों से कोई विरोध था और बुद्ध ने वही कहा जो उन दिनों के ब्राह्मणवाद के प्रमुख तत्वों में विद्यमान थे। बुद्ध ने उपनिषदों की उस शिक्षा को स्वीकार किया कि ब्रह्मानन्द एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए नैतिक आचरण अति उच्च होना चाहिए। राइज डेविड्स, अपने 'दि रिलेशन बिटवीन अर्ली बुद्धिज्म एवं ब्राह्मणीज्म' नामक भाषण में +* बुद्धका लक्ष्य था उपनिषद् के श्रेष्ठ विज्ञानवाद Idealism) को स्वीकारकर उसे मानव जाति के दिन-प्रतिदिन की अवश्यकता के लिए सुलभ बनाना । ऐतिहासिक बौद्ध धर्म का अर्थ है उपनिषद् के सिद्धान्त का जनता में प्रसार। सर्वेपल्ली राधाकृष्णन]] +* भिक्षुओ इन दो अतियों (चरम-पंथों) को नहीं सेवन करना चाहिए प्रथम काम-सुख में लिप्त होना और द्वितीय शरीर-पीड़ा लगना । इन दोनों अतियों को छोड़कर मैंने मध्यम-मार्ग खोज निकाला है, जो कि आँख देनेवाला, ज्ञान करानेवाला, शान्ति देने वाला है। वह मध्यम मार्ग) यही आर्य अष्टांगिक मार्ग है, जैसे कि ठीक दृष्टि (दर्शन ठीक संकल्प, ठीक वचन, ठीक कर्म, ठीक जीविका, ठीक प्रयत्न, ठीक स्मृति और ठीक समाधि। महात्मा बुद्ध, सारनाथ में पाँच भिक्षुओं को दिये अपने प्रथम उपदेश में +* भगवान बुद्ध के बारे में एक बात बड़े ही विश्वास के साथ कही जा सकती है कि वे कुछ नहीं थे, यदि उनका कथन बुद्धिसंगत, तर्क–संगत नहीं होता। भदन्त आनन्द कौसात्यायन +* आत्मा की शुद्धता और सभी संवेदनशील प्राणियों के लिए प्रेम का बुद्ध के द्वारा खूब आनंद लिया गया। उन्होंने कभी पाप की बात नहीं की लेकिन केवल अज्ञानता और मूर्खता की बात की जिसे आत्मज्ञान और सहानुभूति से ठीक किया जा सकता है। डॉ॰ सर्वेपल्ली राधाकृष्णन]] +* बुद्ध ने जो सिखाया उसे स्वय कर के दिखाया 45 वर्षो के अपने सफल और घटनापूर्ण समय में उन्होंने अपने कहे हर शब्द को अमल कर दिखाया और ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी जहा से मानव दोष या किसी प्रकार का जूनून बहार निकल सके आज तक दुनिया में जानी गयी नैतिक संहिता में बुद्ध की नैतिक संहिता दुनिया में सबसे उत्तम है । मैक्स मूलर +* बौद्ध या गैर बौद्ध मैंने दुनिया के महान धार्मिक प्रणालियों में से हर एक की जांच की है और मुझे उस में ऐसा कुछ नहीं मिला जो बुद्ध के दिए आष्टांगिक मार्ग की सुंदरता और व्यापकता को पार पा सके। ब्रिटिश विद्वान थॉमस विलियम रिस् डेविड्स +* यदि धर्म नैरात्म (आत्माहीन अवस्था की आत्मा है और विशव के हृदयहीन लोगो का हिर्दय है और लोगों की अफीम है तब बौद्ध धर्म निश्चित रूप से इस तरह का धर्म नहीं है। यदि धर्म जीवन की बीमारियों से मुक्ति की एक प्रणाली है तो तब बौद्ध धर्म धर्मों का धर्म है। कार्ल मार्क्स]] +* मैं गौतम बुद्ध से प्यार करता हु क्यों की वह मेरे लिए धर्म के लिए आवश्यक मूल का प्रतिनिधित्व करते है। वह धर्म रहित धर्म के संस्थापक है।उन्होंने धर्म प्रतिपादित नहीं किया बल्कि धार्मिकता को प्रतिपादित किया और यह मानव चेतना के इतिहास में एक महान क्रांतिकारी परिवर्तन है।���ुद्ध से पहले धर्मों तो थे लेकीन पवित्र धार्मिकता नहीं थी मानव अभी परिपक्व नहीं हुआ है लेकिन बुद्ध की मानवता ने एक परिपक्व उम्र में प्रवेश कर लिया है। कोई भी शुद्ध खुशबू का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। अन्य धर्मो के संस्थापकों अन्य जागृत लोग ने अपने आदर्शो के साथ समझौता किया है। लेकीन बुद्ध ने ऐसा नहीं इस लिए वह पवित्र है। आचार्य रजनीश +* यदि धरती पर कभी सभी धर्म की सभा हो तो बौद्ध धर्म समुद्र की सबसे उँची लहर की तरह चमकेगा और बुद्ध हिमालय की सर्वाच्च चोटी एवेरेस्ट की तरह प्रतीयमान होगे। डॉ॰ हरिसिंह गौर +* जहा अन्य धर्मो में कर्मकाण्ड और हठधर्मिता का पहला और सबसे महत्वपूर्ण स्थान है वही बौद्ध धर्म में नैतिकता को हमेशा सबसे ऊपर रखा गया है और उस पर जोर दिया गया है। हैलिना ब्लावट्स्की +* भविष्य का धर्म एक कॉस्मिक रिलिजन होगा। ये दुनियाभर के व्यक्तिगत भगवानों की जगह ले लेगा और बिना तर्क के धार्मिक विश्वासों और तमाम धार्मिक क्रिया-कलापों कर्म-कांडों को बेमानी कर देगा। ये प्राकृतिक भी होगा और आध्यात्मिक भी ये उन अनुभवों से बने तर्कों पर आधारित होगा कि सभी प्राकृतिक और आध्यात्मिक चीजें इस तरह एक हैं जिनका समझा जा सकने वाला एक अर्थ है। ये जो कुछ भी मैं कह रहा हूं इसका जवाब बौद्ध धर्म में है। अगर कोई ऐसा धर्म है जो भविष्य में आधुनिक वैज्ञानिक जरूरतों के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकता है तो वह बौद्ध धर्म होगा। अल्बर्ट आइंस्टीन +* मनुष्य प्रकृति के अंधे बलों की तुलना में अधिक बड़ा होता है क्यों की मनुष्य प्रकृति बलों द्वारा कुचल दिया गया हो लेकिन मनुष्य हमेशा उन से बेहतर रहेगा क्यों की वह उन प्राकर्तिक बालो को समझ सकता है बौद्ध धर्म इस सच्चाई को और आगे ले जाता है बौद्ध धर्म बताता है की मनुष्य अपनी समझ के आधार पर अपनी परिस्थितियों को नियंत्रित कर सकता हैं वह अपनी समझ के आधार पर उन प्रकृति के अंधे बलों से संघर्ष कर सकता है और खुद को बढ़ाने के लिए प्रकृति के अंधे बलों के नियमो का उपयोग भी कर सकता है। जो फ्रांसीसी गणितज्ञ तथा भौतिकज्ञ ब्लेज़ पास्कल +* बुद्ध ने सार्वकालिक मूल्यों की सच्चाई को एक अभिव्यक्ति दी है और न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण मानवता को एक नैतिक उन्नती प्रदान की है बुद्ध दुनिया में रहे सबसे बड़े विशिष्ट नैतिक पुरुषों में से एक थे। अल्बर्ट स्चवेिट��़र +बौद्ध धर्म पर स्वामी विवेकानन्द के विचार +* बुद्ध एक आदर्श कर्मयोगी है जिन्होंने किसी उद्देश्य के बिना कर्म किये। मानवता का सम्पूर्ण इतिहास बताता है की वह धरती पर पैदा हुए महत्तम मानव थे तुलना से परे हृदय और मस्तिष्क का ऐसा महानतम संगम जो कभी भी अस्तित्व में रहा हो। +* जैसा कि आप पहले से ही जानते हैं, मैं बौद्ध नहीं हूँ। चीन जापान सीलोन उस महान शिक्षक के उपदेशों का पालन करते हैं, किन्तु भारत उसे पृथ्वी पर भगवान के अवतार के रूप में पूजता है। मैं वास्तव में बौद्ध धर्म का आलोचक हूँ, लेकिन मैं नहीं चाहूंगा कि आप केवल इस पर ध्यान केंद्रित करें। सामान्यतः मैं उस व्यक्ति की आलोचना करने से दूर रहूँगा जिसे मैं भगवान के अवतार के रूप में पूजता हूँ। लेकिन हम सोचते हैं कि बुद्ध को उनके शिष्यों ने गहराई से नहीं समझा था। हिंदू धर्म (हिंदू धर्म से मेरा तात्पर्य वैदिक धर्म से है) और जिसे हम आज बौद्ध धर्म कहते हैं, वे दोनों आपस में उससे भी अधिक निकट है जितनी निकतता यहूदी धर्म और ईसाई धर्म के बीच है। ईसा मसीह एक यहूदी थे और शाक्य मुनि हिंदू थे। यहूदियों ने यीशु मसीह को अस्वीकार कर दिया, इसके अलावा, उन्होंने उन्हे क्रूस पर चढ़ाया, जबकि हिंदुओं ने शाक्य मुनि को भगवान के रूप में स्वीकार किया और उन्हें भगवान के रूप में पूजा। लेकिन हम हिंदू, यह दिखाना चाहेंगे कि आधुनिक बौद्ध धर्म के विपरीत, भगवान बुद्ध का शिक्षण, यह है कि शाक्य मुनि ने मौलिक रूप से कुछ भी नया नहीं किया। मसीह की तरह, वह पूरक था लेकिन नष्ट नहीं हुआ। लेकिन यहूदी लोग मसीह को नहीं समझते थे, तो बुद्ध के अनुयायी उनके शिक्षण में जो मुख्य बात थी, उसको महसूस नहीं कर पा रहे थे। जिस तरह यहूदी यह नहीं समझ पाए कि ईसा मसीह पुराने नियम को पूरा करने के लिए उत्पन्न हुए हैं, इसी प्रकार बौद्ध के अनुयायियों ने हिंदू धर्म के विकास में बुद्ध द्वारा उठाए गए अंतिम कदम को नहीं समझा। और मैं फिर दोहराता हूं शाक्य मुनि विनाश करने नहीं आए थे, बल्कि पूरा करने के लिए आए थे यह तार्किक निष्कर्ष था, हिंदू समाज का तार्किक विकास +बौद्ध धर्म पर भीमराव आम्बेडकर के विचार +* बौद्ध धर्म एक क्रांति थी। यह फ्रांसीसी क्रांति जितनी ही महान क्रांति थी। हालाँकि इसकी शुरुआत एक धार्मिक क्रांति के रूप में हुई, लेकिन यह धार्मिक क्रांति से कहीं अधिक बन गयी। यह एक ��ामाजिक और राजनीतिक क्रांति बन गई। +* जीवन स्वभावतः दुख है, यह सिद्धान्त जैसे बौद्ध धर्म की जड़ पर ही कुठाराघात करता प्रतीत होता है। यदि जीवन भी दुख है, मरण भी दुख है, पुनरुत्पत्ति भी दुख है, तब तो सभी कुछ समाप्त है। न धर्म ही किसी आदमी को इस संसार में सुखी बना सकता है और न दर्शन ही। यदि दुख से मुक्ति ही नहीं है तो फिर धर्म भी क्या कर सकता है और बुद्ध भी किसी आदमी को दुख से मुक्ति दिलाने के लिये क्या कर सकते हैं, क्योंकि जन्म ही स्वभावतः दुखमय है? ये चारों आर्यसत्य, जिनमें प्रथम आर्यसत्य ही दुख–सत्य है, अबौद्धों द्वारा बौद्ध धर्म ग्रहण किये जाने के मार्ग में बड़ी बाधा है। ये उनके गले आसानी से नहीं उतरते। ये सत्य मनुष्य को निराशावाद के गढ़े में ढकेल देते हैं। ये सत्य बुद्ध के धम्म को एक निराशावादी धर्म के रूप में उपस्थित करते हैं। +* बुद्ध का धर्म सभी को विचारों की स्वतंत्रता और आत्म-विकास की स्वतंत्रता देता है। +* सभी पैगम्बरों ने मोक्ष का वादा किया है। बुद्ध एक ऐसे गुरु हैं जिन्होंने ऐसा कोई वादा नहीं किया। उन्होंने मोक्ष दाता और मार्ग दाता, जो मोक्ष देता है और जो केवल रास्ता दिखाता है, के बीच स्पष्ट अंतर किया। वह केवल एक मार्ग दाता थे। प्रत्येक व्यक्ति को अपने प्रयास से अपने लिए मुक्ति की खोज करनी चाहिए। +* मैं दक्षिण पूर्व एशिया के बौद्ध देशों की मानसिकता साम्यवाद की ओर मुड़ने से बहुत आश्चर्यचकित हूं। इसका मतलब यह है कि वे नहीं समझते कि बौद्ध धर्म क्या है। मेरा दावा है कि बौद्ध धर्म कार्ल मार्क्स और उनके साम्यवाद का पूर्ण उत्तर है। +* बौद्ध धर्म का मूल आधार क्या है? अन्य धर्म और बौद्ध धर्म बहुत भिन्न हैं। अन्य धर्मों में परिवर्तन नहीं होगा, क्योंकि वे धर्म मनुष्य और ईश्वर के बीच संबंध बताते हैं। अन्य धर्म कहते हैं कि ईश्वर ने संसार की रचना की। ईश्वर ने आकाश, वायु, चंद्रमा, सब कुछ बनाया। ईश्वर ने हमारे लिए करने के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा। इसलिए हमें ईश्वर की आराधना करनी चाहिए। ईसाई धर्म के अनुसार, मृत्यु के बाद, न्याय का दिन होता है और सब कुछ उस निर्णय पर निर्भर करता है। बौद्ध धर्म में ईश्वर और आत्मा के लिए कोई स्थान नहीं है। भगवान बुद्ध ने कहा कि संसार में सर्वत्र दुख है। नब्बे प्रतिशत मानवजाति दुःख से व्यथित है। पीड़ित मानवजाति को दुःख से मुक्ति मिले–यही बौ���्ध धर्म का मूल कार्य है। कार्ल मार्क्स ने ऐसा क्या कहा जो बुद्ध की बातों से भिन्न था हालाँकि भगवान ने जो कहा, वह किसी पागल, टेढ़े-मेढ़े रास्ते से नहीं कहा। +* इस प्रश्न का सीधा उत्तर कि मेरा झुकाव बौद्ध धर्म की ओर क्यों है, यह है कि किसी भी धर्म की तुलना इससे नहीं की जा सकती। यदि विज्ञान जानने वाले आधुनिक मनुष्य के पास कोई धर्म होना चाहिए, तो उसका एकमात्र धर्म बुद्ध का धर्म हो सकता है। +* कुछ लोग सोचते हैं कि धर्म समाज के लिए आवश्यक नहीं है। मैं यह दृष्टिकोण नहीं रखता। मैं धर्म की नींव को समाज के जीवन और प्रथाओं के लिए आवश्यक मानता हूं। +* मैं बुद्ध के धम्म को सर्वश्रेष्ठ मानता हूं। किसी भी धर्म की तुलना इससे नहीं की जा सकती। यदि विज्ञान जानने वाले आधुनिक मनुष्य के पास कोई धर्म होना ही चाहिए, तो उसके पास एकमात्र धर्म बुद्ध का धर्म ही हो सकता है। सभी धर्मों के पैंतीस वर्षों के गहन अध्ययन के बाद मुझमें यह दृढ़ विश्वास विकसित हुआ है। +* धम्म में प्रार्थना, तीर्थयात्रा, अनुष्ठान, समारोह और बलि के लिए कोई जगह नहीं है। +* एक बौद्ध का कर्तव्य केवल एक अच्छा बौद्ध बनना नहीं है। उनका कर्तव्य बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करना है। उन्हें यह विश्वास करना चाहिए कि बौद्ध धर्म का प्रसार करना मानव जाति की सेवा करना है। +* बौद्ध धर्म का मूल सिद्धांत समानता है। +* कम्युनिस्टों को बौद्ध धर्म का अध्ययन करना चाहिए, ताकि वे जान सकें कि मानवता की बुराइयों को कैसे दूर किया जाए। +* मानव जाति की प्रगति के लिए धर्म एक बहुत ही आवश्यक चीज है। मैं जानता हूं कि कार्ल मार्क्स के लेखन के कारण एक संप्रदाय का उदय हुआ है। उनके पंथ के अनुसार, धर्म का कोई मतलब नहीं है। उनके लिए धर्म महत्वपूर्ण नहीं है। उन्हें सुबह का नाश्ता चाहिए, जिनमें ब्रेड, क्रीम, मक्खन, चिकन लेग आदि मिलता हो; उन्हें चैन की नींद चाहिए, उन्हें फिल्में देखने को मिलनी चाहिए और बस इतना ही। यह उनका दर्शन है। मैं उस राय का नहीं हूं। +* बुद्ध ने अपने लिए या अपने धम्म के लिए किसी देवत्व का दावा नहीं किया। इसकी खोज मनुष्य ने मनुष्य के लिए की थी। यह कोई रहस्योद्घाटन नहीं था। +* …बुद्ध के धर्म में समय के अनुसार बदलने की क्षमता है, एक ऐसा गुण जिसका दावा कोई अन्य धर्म नहीं कर सकता… +* बुद्ध की शिक्षाएँ शाश्वत हैं, लेकिन फिर भी बुद्ध ने उन्हें अचूक घोषित ���हीं किया। बुद्ध के धर्म में समय के अनुसार परिवर्तन करने की क्षमता है, यह एक ऐसा गुण है जिसका दावा कोई अन्य धर्म नहीं कर सकता… अब बौद्ध धर्म का आधार क्या है? यदि आप ध्यानपूर्वक अध्ययन करेंगे तो आप देखेंगे कि बौद्ध धर्म तर्क पर आधारित है। इसमें लचीलेपन का तत्व अंतर्निहित है, जो किसी अन्य धर्म में नहीं पाया जाता है। +भारत में बौद्ध धर्म के क्षय के बारे में विचार +* यदि तन्त्रवाद के कारण बौद्ध धर्म का पतन हुआ तो शाक्त और शैव मत के कई उपसम्प्रदाय भी तंन्त्रवाद से प्रभावित होने के कारण इनका पतन क्यों नहीं हुआ जी०सी० पाण्डेय कृत ‘बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास’ में +* बौद्ध धर्म के अपकर्ष के कारण थे- संघ की शक्ति का ह्रास, मुस्लिम आक्रमण एवं हिन्दू जनता का विरोध । प्रो. के. डब्ल्यू मार्गन +* हीनयान की अपेक्षा महायान के भ्रष्टाचारों के कारण भारत में बौद्ध धर्म का पतन हुआ। चार्ल्स ऐलियट बुद्धिज्म इण्ड हिन्दुइज्म' भाग-२ + + +प्राचीन भारतीय वर्ण व्यवस्था में समाज को चार वर्णों में बाँटा गया था, जिसमें शूद्र भी एक था। अन्य तीन वर्ण ये थे ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य]]। +* सिद्धान्त रूप में यद्यपि शूद्रों की स्थिति बहुत निम्न थी, लेकिन इस बात के प्रमाण भी हैं कि बहुत से शूद्र बहुत सम्पन्न थे। उनमें से कुछ तो अपनी बेटियों का विवह रजकुलों में करने में सफल हुए थे। दशरथ की एक रानी सुमित्रा वस्तुतः शूद्र थीं। कुछ शूद्र तो राजा भी बने। परम्परागत रूप से यही माना जाता है कि प्रसिद्ध चन्द्रगुप्त शूद्र ही थे। जी सी घुर्ये, Caste and Race in India +: स्वच्छ-पवित्र और उत्तमजनों के संग में रहने वाला, मृदुभाषी, अहंकाररहित, ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्यों के आश्रय में रहने वाला शूद्र अपने से उत्तम जाति वर्ण) को प्राप्त कर लेता है। + + +राजीव मल्होत्रा जन्म 15 सितंबर 1950) एक लेखक और विचारक हैं। वे 'इनफ़िनिटी फ़ाउंडेशन' नामक एक संस्था चलाते हैं। +राजीव मल्होत्रा ने सेंट स्टीफंस कॉलेज से भौतिकी की पढ़ाई की, फिर न्यूयॉर्क चले गए और वहां की सिरैक्यूज़ यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस पढ़े। इसके बाद राजीव मल्होत्रा ​​ने इन्फ़ॉरमेशन टेक्नॉलजी और मीडिया इंडस्ट्री में बतौर आंत्रप्रेन्योर काम शुरू किया। 1994 में ही उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया। तब वो सिर्फ़ 44 साल के थे। सेवानिवृत्ति के बाद, 1995 में न्यू जर्��ी में उन्होंने इस संस्था की स्थापना की। उद्देश्य था प्राचीन भारतीय धर्मों की कथित ग़लत व्याख्या से लड़ना और विश्व सभ्यता में भारत के योगदान को दर्ज कराना। +इनफिनिटी फ़ाउंडेशन के नाम पर ही एक यूट्यूब चैनल भी है। राजीव यहां AI, हिंदू सभ्यता के साहित्य और छात्रों के साथ अपने इंटरैक्शन के वीडियो डालते हैं। +संयुक्त राज्य अमेरिका का 'फोर्ड फाउंडेशन' भारत विरोधी संस्थानों को लाखों डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान करता है क्योंकि कोई भी नहीं चाहता कि भारत प्रगति करे। +* अमेरिका में शक्तिशाली ताकतों द्वारा भारत के खिलाफ एक गहन युद्ध चल रहा है। +* भारत को विकसित होने से रोकने के लिए भारतीय सामाजिक संगठनों को लाखों डॉलर दिए जाते हैं। +* यह कैसे संभव है कि एक ओर तो भारतीय समाज के अध्ययन हेतु हम विचारों का आयात करें तथा साथ ही विश्व गुरु होने के भरम में भी भरमाए रहें? +* गुरु-शिष्य परंपरा की भांति ही हार्वर्ड के पूर्व छात्रों के नेटवर्क उसके सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार एवं बचाव का कार्य करते हैं तथा इन नेटवर्कों को अब प्रत्यक्ष रूप से ‘लिनिएज’ अर्थात् ‘वंशावली’ की संज्ञा दी जा रही है। भारतीय न केवल हार्वर्ड में शिक्षित होने का कोई भी अवसर मिलने पर खुशी में झूम उठते हैं अपितु खूब सारा पैसा खर्च करके उसकी ब्रेनवॉशिंग के लिए स्वयं को समर्पित करने को भी तत्पर रहते हैं। +* विश्व-गुरु होने के बजाय भारतीय तो 'विश्व-शिष्य' बन चुके हैं। वे अपनी समालोचनात्मक चिन्तन क्षमता को दरकिनार कर चुके हैं और पश्चिमी अकादमियों द्वारा उगली गयी किसी भी बात को सत्य मान प्रसन्न हो रहे हैं। +* यह पुस्तक द्रविड़-आन्दोलन तथा दलित पहचान की ऐतिहासिकता पर नज़र डालती है और साथ ही साथ उन ताक़तों को भी संज्ञान में लेती है जो देश में इन अलगाववादी पहचानों को बढ़ावा देने में कार्यरत हैं। इस किताब में ऐसे लोगों, संस्थाओं और उनके इस दिशा में कार्यरत होने के कारणों, क्रियाकलापों और उनके मूल ध्येय का भी समावेश है। ऐसी शक्तियां ज़्यादातर अमरीका और यूरोपीय देशों में हैं लेकिन इनकी संख्या भारत में भी बढ़ने लगी है – भारत में इनके संस्थान इन विदेशी शक्तियों के स्थानीय कार्यालय की तरह काम करते हैं। राजीव मल्होत्रा ब्रेकिंग इंडिया' के बारे में +* अधिकतर भारतीयों को यह पता ही नहीं है कि विनाशकारी ताक़तें दे�� तोड़ने में लगी हैं। +* ९० के दशक की बात है प्रिंसटन विश्वविद्यालय के एक अफ्रीकन-अमरीकन विद्वान ने बातों बातों में ज़िक्र किया कि वे भारत के दौरे से लौटे हैं जहाँ वे ‘एफ्रो-दलित’ प्रोजेक्ट पर काम करने गए थे। तब मुझे मालूम चला कि यह अमरीका द्वारा संचालित तथा वित्तीय सहायता-प्रदान प्रोजेक्ट भारत में अंतर्जातीय-वर्ण सम्बन्धों तथा दलित आंदोलन को अमरीकन नज़रिए से देखने का प्रकल्प है । एफ्रो-दलित पोजेक्ट दलितों को ‘काला’ तथा ग़ैर -दलितों को ‘गोरा’ जताता है। अपनी पुस्तक 'ब्रेकिंग इंडिया' की भूमिका में +* मैं ‘आर्य’ लोगों के बारे में ये जानने के लिए भी अध्ययन कर रहा था कि वे कौन थे और क्या संस्कृत भाषा और वेद को कोई बाहरी आक्रान्ता ले कर आए थे या ये सब हमारी ही ईजाद और धरोहर हैं। इस सन्दर्भ में मैंने कई पुरातात्विक भाषाई तथा इतिहास प्रेरित सम्मेलन और पुस्तक प्रोजेक्ट्स भी आयोजित किये ताकि इस मामले की पड़ताल में गहराई से जाया जा सके। इसके चलते मैं ने अंग्रेज़ों की उस ‘खोज’ की ओर भी ध्यान दिया जिसके हिसाब से उन्होंने द्रविड़-पहचान को ईजाद किया था- जो असल में १९ वीं शताब्दी के पहले कभी थी ही नहीं और केवल ‘आर्यन थ्योरी’ को मज़बूत जताने के लिए किसी तरह रच दी गयी थी। इस ‘द्रविड़-पहचान’ के सिद्धांत को प्रासंगिक रहने के लिए “विदेशी आर्य” के सिद्धांत का होना और उन विदेशियों के कुकृत्यों को सही मानना आवश्यक था। राजीव मल्होत्रा ब्रेकिं इंडिया' की भूमिका में +* “धर्म” शब्द के अनेकों अर्थ हैं जो सन्दर्भों के आधार पर निर्भर होते हैं जिसमें उनका प्रयोग होता है I इनमें सम्मिलित हैं: आचरण, कर्तव्य, उचित, न्याय, धर्माचरण, नैतिकता, रिलिजन, धार्मिक गुण, उचित कार्य जो अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार निर्धारित होते हैं, इत्यादि I कई अन्य अर्थ भी सूचित किये गए हैं, जैसे कि, न्याय या “तोराह”(यहूदियों के सन्दर्भ में “लोगोस” (ग्रीक के सन्दर्भ में “वे” (ईसाई के सन्दर्भ में) और यहाँ तक कि “टाओ” (चीन के सन्दर्भ में I इनमें से कोई भी पूर्णतयः परिशुद्ध नहीं हैं और कोई भी पूर्ण दबाव के साथ संस्कृत में इस शब्द का अर्थ नहीं व्यक्त करने में सक्षम हैं I धर्म का कोई भी तुल्यार्थक शब्द नहीं है पश्चिमी कोष में I +राजीव मल्होत्र के बारे में अन्य लोगों के विचार +* विश्वस्त होने का एक अन्तिम कारण यह है कि ���ाम स्वरूप, सीताराम गोयल, कोएनराद एल्स्त, डेविड फाउली और राजीव मल्होत्रा के कृतियों के कारण बना पाठसंग्रह अपने क्रिटिकल मास पर पहुँच गया है। अतः हम सोच सकते हैं कि कुछ वर्षों में भारत के लिये एक पुस्तकालय होगा और भारत का एक पुस्तकालय होगा। अरुण शौरी का 'इन्द्रास नेट पर लेख 3 March 2014 Transcript: Arun Shourie's Lecture on 'Indra's Net Hitchhiker's Guide to Rajiv Malhotra's Works. Retrieved on 24 March 2014.. +* श्री राजीव मल्होत्रा जी भारतीय वैदिक हिन्दू धर्म की सार्वभौमिकता व वैज्ञानिकता को लेकर पूरी प्रामाणिकता के साथ वैश्विक पटल पर एक आदर्श कार्य कर रहे हैं। स्वामी रामदेव + + +* यह एक सांकेतिक प्रदर्शन था और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी इस तरह की चीजें की गई थीं। त्रिवेदी ने कहा, हमारे कई दोस्तों को दीये जलाने और थाली और बर्तन पीटने के साथ एक समस्या है। क्या 'चरखा' चलाने से अंग्रेज हमारा देश छोड़ कर चले गए थे? यह एक सांकेतिक प्रदर्शन था जिसे गांधीजी द्वारा चुना गया। आलोचना करने वाले इतिहास नहीं जानते। लॉकडाउन के दौरान दीये जलाने और थाली पीटने की आलोचना पर प्रतिक्रिया देते हुए +* हिंदी के स्वर,व्यंजन व वर्ण अपने शुद्ध संस्कृतनिष्ठ स्वरूप में ही उत्कृष्ट वैज्ञानिक अभिव्यक्ति हैं। +* झारखंड के गठन के बाद यहां बहुमत की सरकार न होने की वजह से विकास कार्य करना आसान नहीं था। यूएनडीपी रिपोर्ट में झारखंड गरीबी उन्मूलन करने वाले राज्य में तेजी से ऊपर आया है। ये डबल इंजन की सरकार की वजह से ही संभव हो पाया है। +* विपक्ष बात तो समाज के निर्धन और वंचित तबके की करता रहा लेकिन भर्ष्टाचार के जरिये खुद के लोगों को लाभ देता रहा। +* आज शत्रुघ्न सिन्हा को प्रधानमंत्री के लिए सबसे ज्यादा पात्र व्यक्ति राहुल गांधी लगते हैं। शत्रुघ्न सिन्हा ने अखिलेश यादव को प्रधानमंत्री पद का दमदार उम्मीदवार बताया है। कांग्रेस खुद अपने सांसद प्रत्याशी से पूछकर यह तय कर ले कि आखिर पीएम मैटेरियल किसमें है और किसमें नहीं। +* हम जिस परम्परा में विशवास करते हैं -भारतीय परम्परा यह कहती हैं नागपंचमी भी मानते हैं साँपों को दूध भी पिलाते हैं, तो नाग यज्ञ भी करने का सामर्थ्य भी रखते हैं जिसमे सारे नाग आ कर आहूत हो जाए। +* किसी विषय पर या प्रश्न के उत्तर में बोलने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है और चुप रहने के लिए विवेक की। कब बोलना है कितना बोलना है और कब नहीं बोलना है ���ह मायने रखता है। +* एक समय था जब इंटरनेट मीडिया इतना प्रभावी नहीं था तब सच्चाई सामने नहीं आ पाती थी। विगत 20 वर्षों में मीडिया के साथ साथ इंटरनेट मीडिया की भूमिका और प्रभावी हुई है। जालियंवाला बाग संशोधन विधेयक पर चर्चा करते हुए +* देश को आजादी बिना खून बहाए नहीं मिली है। हजारों लोगों ने जलियांवाला बाग में अपने जीवन का बलिदान दिया है। भविष्य में यह कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि हमने रक्त की एक भी बूंद बहाए बिना ही स्वतंत्रता प्राप्त की है। +* सिर्फ यह कह देना कि बिना खड़ग बिना ढाल के बिना स्वतंत्रता प्राप्त की पूरी सही बात नहीं होगी। जालियांवाला बाग में भी हजारों लोगों ने खून बहाया। +* स्वतंत्रता आंदोलन में सभी ने बराबर का योगदान दिया है। +* कांग्रेसी नेता बेशक जेल में रहे हैं और उनका योगदान भी भुलाने लायक नहीं है, लेकिन जिन्होंने जेल के अंदर यातनाएं झेली हैं उनका भी योगदान कम नहीं है। +* ज्ञानवापी हिंदू-मुस्लिम का विषय नहीं, बल्कि ऐतिहासिक निर्णय लेने का विषय है, ऐतिहासिक परिर्वतन का विषय है। +* आज मुस्लिम समुदाय उस मुकाम पर खड़ा हैै, जहां उसे तय करना है कि वह मोहम्मद साहब की शिक्षा को मानने वाले हैैं या किसी बादशाह की सियासत को।। +* कांग्रेस पहले खुद को जोड़े रखे, फिर देश को जोड़ने की बात करे। कांग्रेस के तमाम बड़े नेता पार्टी को छोड़कर जा रहे हैं, ऐसे में उन्हें पार्टी की चिंता करनी चाहिए।। +* प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश वैश्विक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। ऐसे में राहुल गांधी विदेश में जाकर देश की छवि को धूमिल कर रहे हैं। जिस देश ने भारत को अधीन रखा। वहां राहुल गांधी अपमानजनक और आलोचनात्मक बयान दे रहे हैं। +* कांग्रेस एक पार्टी नहीं है बल्कि प्रवृति है जो भारतीय राजनीति के समस्य दुगुर्णो का मूल केंद्र है, जिसने भ्रष्टाचार, जातिवाद, अपराधिकरण, परिवारवाद सहित सभी बुराईयों को विस्थापित करने का कार्य किया है, इसलिए कांग्रेस से मुक्ति यानि की इन सभी बुराईयों से मुक्ति दिलाना ही भाजपा का संकल्प है। उदयपुर टाउन हॉल सभागार में आयोजित हुए भाजपा और नगर निगम के प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन को संबोधित करते सुधांशु त्रिवेदी +* सुनियोजित ढंग से देश में गलत इतिहास को प्रसारित किया गया। जबकि हमारा अपना इतिहास बहुत गौरवशाली है। किताबों में अकबर महान पढ़ाया गया लेकिन यहां के करोड़ों लोगों के दिलों में महाराणा प्रताप महान है। +* आने वाला समय अमृत काल के रूप में देखा जा रहा है। भारत को विकसित और समृद्ध राष्ट्र बनाना एक मात्र लक्ष्य है। । +* नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जिस तरह की हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़ और राष्ट्रीय मर्यादा को तार-तार करने वाले काम हो रहे हैं वह खेदजनक है। +* जो लोग इस कानून का विरोध कर रहे हैं, उनमें तीन तरह के लोग शामिल हैं। पहले, वे राजनीतिक दल हैं जो सत्ता से बाहर हो चुके हैं और किसी भी कीमत पर फिर सत्ता में वापसी चाहते हैं, चाहे इसके लिए कुछ भी अनैतिक क्यों न करना पड़े। दूसरी, वे राष्ट्रविरोधी और हिंसक ताकतें हैं, जो विदेशों से संचालित होती हैं। +* नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद पाकिस्तान से आए जिन लोगों को भारत की नागरिकता मिलनी है, उनमें से 90 प्रतिशत दलित हैं। लेकिन यह दुखद है कि स्वयं को दलितों का मसीहा बताने वाले नेता और राजनीतिक दल भी इसका विरोध कर रहे हैं। +* कांग्रेस सीएए का विरोध करने वालों में सबसे आगे है, लेकिन वह हर मुद्दे पर दोहरा रवैया अपनाती रही है। संसद में कुछ और, सड़क पर कुछ और । +* यह पहला मौका नहीं है, जब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यकों के बारे में सोचा गया हो। देश के विभाजन के समय सितम्बर, 1947 में महात्मा गांधी ने कहा था कि जो हिंदू, सिख, पाकिस्तान से आना चाहते हैं, इन्हें शरण देना ही नहीं बल्कि इनकी आजीविका का प्रबंध और इन्हें जीवन स्तर सुधारने का अवसर देना भारत सरकार का प्रथम कर्तव्य है। +मैं कांग्रेस से पूछना चाहता हूं कि संविधान का कौन सा अनुच्छेद राज्यों को देश की विदेश नीति पर टिप्पणी करने का अधिकार देता है? +* कांग्रेस एक राष्ट्रीय दल होकर केरल विधानसभा के प्रस्ताव का समर्थन कर रही है। कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि नागरिकता केंद्र का विषय है राज्यों का नहीं। फिर वह किस आधार से केरल विधानसभा के प्रस्ताव का समर्थन कर रही है?' +* पत्रकारिता इंडेक्स में भारत के पिछड़ने पर कहा कि बंगाल, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि राज्यों की सरकार पत्रकारों को धमकाने और जेल में डालने का काम कर रही हैैं। इससे देश की पत्रकारिता के प्रति विश्व में गलत धारणा बन रही है। + + +भारतीय उपमहाद्वीप में आज से ७५००० वर्ष पहले तक ऐसी मानवीय कार्यकलाप के साक्ष्य मिलते हैं जो शरीररचना की दृष्टि से आधुनिक मानव थे। + + +* यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य है कि मुसलमानों के भारत आने से पहले भारत में वस्तुतः कोई उत्पीड़न नहीं था। चीनी तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग जिन्होंने सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भारत का दौरा किया था और उन्होंने देश में अपने चौदह वर्ष के प्रवास का एक परिस्थितिजन्य विवरण लिख छोड़ा है, जो स्पष्ट करता है कि हिन्दू और बौद्ध बिना किसी हिंसा के एक साथ रहते थे। प्रत्येक पक्ष ने दूसरे का धर्मपरिवर्तन करने का प्रयास किया; लेकिन इस्तेमाल किए गए तरीके अनुनय और तर्क के थे, बल के नहीं। धर्माधिकरण (inquisition) जैसी किसी भी चीज से न तो हिंदू धर्म न ही बौद्ध अपमानित होता है; इनमें से कोई भी कभी भी अल्बिजेन्सियन धर्मयुद्ध जैसे अधर्म या सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के धार्मिक युद्ध जैसे आपराधिक पागलपन का दोषी नहीं है। एल्डस हक्सले, साध्य और साधन (Ends and Means) +* भारत के लोग विभिन्न धर्मों वाले व्यक्तियों को ईश्वर के विभिन्न पहलुओं या अवधारणाओं की पूजा करने के अधिकार को स्वीकार करते हैं। इसलिए, हिंदुओं और बौद्धों के बीच, खूनी उत्पीड़न, धार्मिक युद्ध और धर्मान्तरित करके साम्राज्य फैलाने का लगभग पूर्ण अभाव है। एल्डस हक्सले, बारहमासी दर्शन +* जिन धर्मों का धर्मशास्त्र समय की घटनाओं के बारे में सबसे कम चिंतित है और अनन्त काल के बारे में सबसे अधिक चिन्तित है, वे धर्म राजनीतिक व्यवहार में लगातार कम हिंसक और अधिक मानवीय रहे हैं। प्रारंभिक यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और मोहम्मदवाद ये सभी समय के प्रति आसक्त हैं) के विपरीत, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म ने कभी भी आस्थाओं पर अत्याचार नहीं किया है; किसी पवित्र युद्ध का प्रचार लगभग नहीं किया है और धर्मान्तरण करने वाले धार्मिक साम्राज्यवाद से परहेज किया है। एल्डस हक्सले, बारहमासी दर्शन +* सनातन धर्म सदैव सहिष्णु रहा है; बौद्ध धर्म और सैकड़ों अन्य संप्रदायों के उत्थान और पतन के पूरे इतिहास में हमें बहुत विवाद मिलता है, लेकिन उत्पीड़न का कोई उदाहरण नहीं मिलता। +* जब विधर्म या अजीब देवता खतरनाक रूप से लोकप्रिय हो गए तो उन्होंने उन्हें सहन किया, और फिर उन्हें हिंदू dharma की विशाल गुफाओं में समाहित कर लिया; एक ईश्वर के कम या अधिक होने से भारत में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। इसलिए हिंदूओं के भीतर अ���ेक्षाकृत बहुत कम सांप्रदायिक शत्रुता रही है। हालांकि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बहुत ज्यादा साम्प्रदायिक शत्रुता रही है और भारत में आक्रमणकारियों के अलावा धर्म के लिए किसी ने खून नहीं बहाया है। असहिष्णुता इस्लाम और ईसाई धर्म के साथ आई। मुसलमानों ने "काफिरों" के खून से स्वर्ग खरीदने का प्रस्ताव रखा और पुर्तगालियों ने जब उन्होंने गोवा पर कब्ज़ा कर लिया तो उन्होंने भारत में धर्माधिकरण (inquisition) शुरु कर दिया। विल डुरैंट, हमारी प्राच्य विरासत: भारत और उसके पड़ोसी। +* हिंदू धर्म का सार 'सत्य' है न कि 'सहिष्णुता' या 'सभी धर्मावलम्बियों के लिए समान सम्मान'। ईसाई धर्म और इस्लाम के साथ समस्या उनकी असहिष्णुता और कट्टरता है। यह असहिष्णुता इन धर्मों की असत्यता का परिणाम है। यदि आपका मजहब भ्रम पर आधारित है, तो आपको पहले से ही इसकी तर्कसंगत जांच करनी होगी और इसे अधिक टिकाऊ विचार-प्रणालियों के संपर्क से बचाना होगा। एकेश्वरवादी धर्मों के साथ मूल समस्या यह नहीं है कि वे असहिष्णु हैं, बल्कि यह है कि वे असत्य (असत्य या अनृत) हैं। कोएनराड एल्स्ट सीता राम गोयल: जीसस क्राइस्ट एन आर्टिफिस फॉर एग्रेसन (1994 में +* मैं जैन धर्म या बौद्ध धर्म को हिंदू धर्म से अलग नहीं मानता। हिंदू धर्म न केवल सम्पूर्ण मानव जीवन की एकता में बल्कि सभी जीवित प्राणियों की एकता में विश्वास करता है। महात्मा गांधी अक्टूबर 1927। द कलेक्टेड वर्क्स, खंड 35, नई दिल्ली, 1968, पृष्ठ 166-67। सीताराम गोयल कृत 'हिंदू-ईसाई मुठभेड़ों का इतिहास (1996 + + +ह्वेन त्सांग 602 ई० 664 ई०) एक चीनी बौद्ध भिक्षु, विद्वान, यात्री और अनुवादक थे, जिन्होंने सातवीं शताब्दी में भारत की यात्रा की। उन्होंने उस समय के चीनी और भारतीय बौद्ध धर्म के बीच वैचारिक आदान-प्रदान का वर्णन किया है। +* परीक्षा करने पर हम पाते हैं कि भारत (तिएन-चू) के विभिन्न नाम हैं और उनके अर्थ हैरान करने वाले हैं। इसे प्राचीन काल में शिन-तू और् हिएन-ताउ भी कहा जाता था; लेकिन अब सही उच्चारण के अनुसार इसे 'इन-टु' कहा जाता है। इन-टु के लोग अपने देश को अपने जनपद के अनुसार अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। प्रत्येक जनपद में विविध रीति-रिवाज होते हैं। एक सामान्य नाम का लक्ष्य रखते हुए, जो सबसे अच्छा लगता है, हम इस देश को इन-टु कहेंगे। यह नाम चंद्रमा का प्रतीक है। चंद्रमा के कई नाम हैं जिन��ें से यह एक नाम है। जुआनज़ैंग (युआन च्वांग खंड I. 69)। कुणाल किशोर (2016) में उद्धृत। (अयोध्या पुनरावलोकन) + + +* भारत में, सभी संदेहों से परे, एक गहरी अंतर्निहित मौलिक एकता है जो कि भौगोलिक अलगाव या राजनीतिक आधिपत्य द्वारा उत्पन्न की गई एकता से कहीं अधिक गहरी है। वह एकता रक्त, रंग, भाषा, पोशाक, शिष्टाचार और संप्रदाय की असंख्य विविधताओं से परे है। एस लोंढे द्वारा A tribute to Hinduism: Thoughts and wisdom spanning continents and time about India and her culture" में उद्धृत (2008) +* हिंदू धर्म ने कभी भी एक विशिष्ट, प्रभुत्वशाली, रूढ़िवादी संप्रदाय का निर्माण नहीं किया है, जिसमें आस्था के किसी सूत्र को निन्दा के दर्द के तहत स्वीकार या अस्वीकार किया जा सके। आनन्द केंटिश कुमारस्वामी, एसेज़ इन नेशनल आइडियलिज्म नई दिल्ली: मुंशीराम मनोहरियाल, 1981. पृष्ठ 131 +* भारत की ऐतिहासिक परम्परा का सबसे व्यवस्थित रिकॉर्ड पुराणों की राजवंशीय सूचियों में संरक्षित है। ये सूचियाँ अठारह पुराणों में से पांच में विद्यमान हैं- वायुपुराण, मत्स्यपुराण, विष्णुपुराण, ब्रह्माण्डपुराण और भागवतपुराण में। ब्रह्माण्ड और वायु के साथ-साथ मत्स्य, जिसमें बाद में बड़े पैमाने पर परिवर्धन हुआ है, सबसे प्रारंभिक और सबसे आधिकारिक प्रतीत होते हैं। ई० वेदव्यास अंतरिक्ष युग में हिंदू धर्म 1975 पृष्ठ 108 +* प्राचीन तमिल साहित्य और ग्रीक तथा रोमन लेखक सिद्ध करते हैं कि ईसा की पहली दो शताब्दियों में कोरोमंडल तट पर स्थित बंदरगाहों को पूर्व और पश्चिम दोनों के साथ सक्रिय वाणिज्य का लाभ मिलता था। चोल बेड़े हिंद महासागर को पार करके मलाया द्वीपसमूह के द्वीपों तक पहुंच गए। विंसेंट स्मिथ कृत भारत का प्रारंभिक इतिहास Early History of India) पृष्ठ 415 + + +आनन्द कुमारस्वामी तमिल ஆனந்த குமாரசுவாமி, आनन्द केन्टिस मुथु कुमारस्वामी; 22 अगस्त 1877 9 सितंबर 1947) श्रीलंका में जन्मे तमिल दार्शनिक और तत्वमीमांसक थे। +* जितना अधिक सतही तौर पर कोई बौद्ध धर्म का अध्ययन करता है, उतना ही अधिक बौद्ध धर्म, ब्राह्मण धर्म से भिन्न प्रतीत होता है जिससे इसकी उत्पत्ति हुई थी। लेकिन हमारा अध्ययन जितना अधिक गहरा होगा, बौद्ध धर्म को ब्राह्मण धर्म से अलग करना उतना ही कठिन हो जाएगा। आनन्द कुमारस्वामी, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म +* बौद्ध धर्म एवं ब्राह्मण धर्म का जितना गम्भीर अध्ययन किया जाए उतना ही दोनों के बीच अन्तर जानना कठिन हो जाता है, या यह कहना कठिन हो जाता है कि किन रूपों में बौद्ध धर्म, वास्तव में अशास्त्रीय या अहिन्दू है। +* हे मेरे भगवान, पवित्र डमरू धारण करने वाले आपके हाथ ने स्वर्ग और पृथ्वी और अन्य लोकों और असंख्य आत्माओं को बनाया और आदेश दिया है। आपका उठा हुआ हाथ आपकी रचना के चेतन और अचेतन दोनों क्रमों की रक्षा करता है। ये सभी लोक आपके अग्नि धारण किये हुए हाथ से रूपान्तरित होते हैं। जमीन पर लगे हुए आपके पवित्र पैर कार्य-कारण के परिश्रम में संघर्ष कर रही थकी हुई आत्मा को निवास देते हैं। आपके उठे हुए पैर आपके पास आने वालों को शाश्वत आनन्द प्रदान करते हैं। ये पाँच-कार्य वास्तव में आपकी ही कृति हैं। आनन्द कुमारस्वामी नटराज" में +आनन्द कुमारस्वामी के बारे में अन्य लोगों के विचार +* वे निश्चित रूप से हिंदू धर्म के समर्थक थे। पश्चिमी और अंग्रेजी-भारतीय दर्शकों के बीच आम कई गलत धारणाओं और पूर्वाग्रहों के खिलाफ हिन्दू मूल्यों और परम्पराओं (जाति-व्यवस्था सहित) के रक्षक थे। कोएनराड एल्स्ट (2002 हिंदू कौन है जीववाद, बौद्ध धर्म, सिख धर्म और हिंदू धर्म की अन्य शाखाओं के हिंदू पुनरुत्थानवादी विचार। आईएसबीएन 978-8185990743 + + +आयुर्विज्ञान Medicine) रोगियों को पहचानने और उनकी चिकित्सा करने का विज्ञान है। + + +हिंदी फारसी भाषा का शब्द है + + +आनन्द महिन्द्रा भारत के एक उद्योगपति हैं। +* सच्चाई यह है कि हमारी गरीबी की सबसे बड़ी वजह यह है कि हम पर दशकों तक अंग्रेजों ने हुकूमत की। उन्होंने पूरे उपमहाद्वीप को सिस्टमैटिक तरीके से लूटा। अंग्रेजों ने हमसे जो सबसे मूल्यवान चीज छीनी थी, वह कोहिनूर हीरा नहीं था, बल्कि हमारा गौरव और अपनी क्षमताओं में विश्वास था। अंग्रेजी हुकूमत का सबसे कपटी लक्ष्य अपने गुलामों को उनके कमतर होने का अहसास कराना था। यही कारण है कि टॉयलेट और स्पेस एक्सप्लोरेशन दोनों में निवेश करना एक विरोधाभास नहीं है। सर, चंद्र मिशन से हमें अपना गौरव और आत्मविश्वास बहाल करने में मदद मिलती है। यह विज्ञान के माध्यम से प्रगति में विश्वास पैदा करता है। यह हमें गरीबी से बाहर निकलने की आकांक्षा देता है। सबसे बड़ी गरीबी आकांक्षा की कमी होती है । २४ अगस्त, २०२३ को, चन्द्रयान-३ के सफल होने पर, बीबीसी के उस एक ऐंकर के विडियो क्लिप पर जिसमें उसने २०१९ के चन्द्रयान-२ की असफल होने पर भारत के इस अभियान का मजाक उड़ाया था। +* अपने आसपास की वनस्पतियों और जीवों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। +* जितना अधिक आप सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं, उतना ही अधिक आपका व्यवसाय मॉडल उन्नत होता है। +* जितना अधिक आप सकारात्मक बदलाव लाते हैं, उतना ही आपके व्यापार में वृद्धि होगी। +* स्वतंत्रता की एक डिग्री है जो आकांक्षाओं को पैदा करती है। +* अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका, देश के विभिन्न हिस्सों को अपने तरीके से कुछ करने के लिए प्रोत्साहित करना, हो सकता है। +* बिज़नेस स्थिरता की तलाश करते हैं, वे दिशा की तलाश करते हैं। +* संक्षिप्तता बोलती है। यह आपको कठिन विचार व्यक्त करने के लिए मजबूर करता है। +* आपको हर दिन को एक नई चुनौती के रूप में स्वीकार करना होगा, और जैसा कि वे कहते हैं, आपको पागल बने रहना होगा। । +* जिंदगी का सिखाने का एक दिलचस्प तरीका है यहां तक कि शक्तिशाली लोगो को भी, कि धन से खुशी क्षणभंगुर होती है। +* कोई नहीं जानता कि दुनिया कैसे बदलेगी। यही एक तरीका हैं कि भविष्य के लिए योजनाए बनाइये। आपको उनमें से एक पर विश्वास की छलांग लगाने का साहस करना होगा। +* जब आप सही लक्ष्य निर्धारित करते हैं, और आप कुशलतापूर्वक और लगन से काम करते हैं, तो परिणाम जरूर मिलेंगे। +* आप अपनी पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरें। +* यदि हम अभी भी पारंपरिक दृष्टिकोण अपनाते हैं तो मेक इन इंडिया काम नही करेगा। +* यदि आप एक आधुनिक समाज बनाने जा रहे हैं तो आपको शिक्षित महिलाओं की जरूरत होगी। +* अपने आसपास की वनस्पतियों और जीवों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। +* जितना अधिक आप सकारात्मक बदलाव लाते हैं, उतना ही आपके व्यापार में वृद्धि होगी। +* बिज़नेस स्थिरता की तलाश करते हैं, वे दिशा की तलाश करते हैं। +* अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका, देश के विभिन्न हिस्सों को अपने तरीके से कुछ करने के लिए प्रोत्साहित करना, हो सकता है। +* आपको हर दिन को एक नई चुनौती के रूप में स्वीकार करना होगा, और जैसा कि वे कहते हैं, आपको पागल बने रहना होगा। +* बदलाव हमेशा होता रहता है। +* चीज़ों का मान्य हमेशा शून्य रहता है। +* ब्रह्मांड में सभी चीज़ें आपस में जुड़ी हुई हैं। +* हमारा सिद्धांत गलत भी हो सकता है। +* दर्द हमेशा महसूस किया जा सकता है। +* हमेशा वर्तमान में रहें। +* जागने के लिए हमेशा ध्���ान लगाने की जरूरत हैलोभ और लालच से हमेशा दूर रहें। +* समाज में सेवा जरूरी है। + + +* स्वदेशी की भावना का अर्थ है हमारी वह भावना जो हमें दूर को छोड़कर अपने समीपवर्ती प्रदेश का ही उपयोग और सेवा करना सिखाती है। …अर्थ के क्षेत्र में मुझे अपने पड़ोसियों द्वारा बनायी गयी वस्तुओं का ही उपयोग करना चाहिये और उन उद्योगों की कमियां दूर करके उन्हें ज्यादा सम्पूर्ण और सक्षम बनाकर उनकी सेवा करना चाहिए। मुझे लगता है कि यदि स्वदेशी को व्यवहार में उतारा जाये तो मानवता के स्वर्णयुग की अवतारणा की जा सकती है। महात्मा गांधी +* मेरा पक्का विश्वास है कि हाथ-कताई और हाथ बुनाई के पुनरूज्जीवन से भारत के आर्थिक और नैतिक पुनरूद्धार में सबसे बड़ी मदद मिलेगी। करोड़ों आदमियों को खेती की आय में वृद्धि करने के लिए कोई सादा उद्योग चाहिए। बरसों पहले व गृह-उद्योग कताई का था, और करोड़ों को भूखों मरने से बचाना हो तो उन्हें इस योग्य बनाना पड़ेगा कि वे अपने घरों में फिर से कताई जारी कर सकें और हर गांव को अपना ही बुनकर फिर से मिल जाये। महात्मा गांधी +* आयात किए हुए विदेशी कपड़े अथवा मिल में बने हुए देशी कपड़े में कोई विशेष अंतर नहीं है। मेरी नज़रों में दोनों ही बराबर हैं। क्योंकि दोनों ही दशाओं में पैसे का बहुत बड़ा भाग अमीर एवं बड़े-बड़े मिल मालिकों के पास चला जाता है। महात्मा गांधी +* यह मैं जानता हूं कि खादी पहनने वालों में भी दगाबाज, धेखेबाज और व्याभिचारी होते हैं। पर ये दोष खादी न पहनने वालों में भी पाए जाते हैं। ये दोष सामान्य है। जो खादी नहीं पहनते उनमें भी तो धेखेबाज, दगाबाज और व्याभिचारी होते हैं। खादी पहनने वाला दगाबाज या धेखेबाज है पर उसमें इतनी तो अच्छी बात जरूर है कि वह खादी पहनता है। महात्मा गांधी +* हिन्दुस्तान सबसे पहले अपनी पोशाक और भाषा को अपनाये। – महात्मा गाँधी +गांव की जरुरत की हर चीज़ गांव में ही बननी चाहिए। खादी इसकी पहली सीढ़ी है। – महात्मा गाँधी +* खादी का मतलब है देश के सभी लोगो की आर्थिक समानता और स्वतन्त्रा का आरंभ है। – महात्मा गाँधी +* चरखा एक सिम्बल यानी एक संकेत-चिह्न या प्रतीक है श्रम-निष्ठा का। दुनिया में शोषण किसलिये चलता है? इसीलिए कि कुछ लोग श्रम करते हैं और दूसरे लोग उससे लाभ उठाना चाहते हैं। अगर सब लोग श्रम करें, श्रम-निष्ठा पैदा हो, तो शोषण खत्म हो जाए और उत्पादन भी बढ़े। इसलिए म. गांधीजी ने एक छोटी-सी चीज देश के सामने रखी। आज बेकारी बढ़ रही है इस हालत में यह चीज चले तो घर-घर सूत होगा, कपड़ा बनेगा। लेकिन उस कपड़े का और सूत का उतना महत्व नहीं है जितना श्रम-निष्ठा का महत्व है। विनोबा भावे +माता का इसमें मान भरा, अन्यायी का अपमान भरा। +जब नव-जीवन की नई ज्योति अंतस्थल में जग जाती है। +खादी से दीन निहत्थों की उत्तप्त उसांस निकलती है, +खादी है तीर-कमान नहीं, खादी है खड्ग-कृपाण नहीं। +खादी का झंडा सत्य, शुभ्र अब सभी ओर फहराता है। +खादी का ताज चांद-सा जब, मस्तक पर चमक दिखाता है, +खादी ही भारत से रूठी आज़ादी को घर लाएगी। + + +* आज की राजनीति पूरी तरह से सत्ता केंद्रित है। +* राजनीति गांधी के युग से ही सामाजिक आंदोलन का हिस्सा रही है। उस समय राजनीति का इस्तेमाल देश के विकास के लिए होता था। आज की राजनीति के स्तर को देखें तो चिंता होती है। +* मुझसे एक पत्रकार ने पूछा कि आप मजे में कैसे रह लेते हैं। मैंने कहा कि मैं भविष्य की चिंता नहीं करता, जो भविष्य की चिंता नहीं करता वह खुश रहता है। +* हम सबके लिए सड़क सुरक्षा का एजेंडा सबसे ऊपर है। +* विभिन्न अभियानों एवं विज्ञापनों के जरिये सरकार सड़कों पर लोगों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए काम कर रही है। +* हमें समझना होगा कि राजनीति का क्या मतलब है। क्या यह समाज, देश के कल्याण के लिए है या सरकार में रहने के लिए है? +* कभी-कभी मन करता है कि राजनीति ही छोड़ दूं। समाज में और भी काम हैं, जो बिना राजनीति के किए जा सकते हैं। +* समस्या सबके साथ है। हर कोई दुखी है। MLA इसलिए दुखी हैं कि वे मंत्री नहीं बने। मंत्री बन गए तो इसलिए दुखी हैं कि अच्छा विभाग नहीं मिला और जिन मंत्रियों को अच्छा विभाग मिल गया, वे इसलिए दुखी हैं कि मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। मुख्यमंत्री इसलिए दुखी हैं कि पता नहीं कब तक पद पर रहेंगे। +* देश में रसद की उच्च लागत में कटौती करने के लिए, अंतर्देशीय जलमार्गों को बड़े पैमाने पर विकसित किया जा रहा है, जबकि मेथनॉल को जल्द ही जहाजों के लिए ईंधन बनाया जाएगा। +* बापू के समय में राजनीति देश, समाज, विकास के लिए होती थी, लेकिन अब राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए होती है। +महात्मा गांधी के समय की राजनीति और आज की राजनीति में बहुत बदलाव हुआ है। +समय बहुत महत्वपूर्ण है और सरकार विकास कार्यों को लेकर समय पर निर्णय नहीं ��े रही है, यह बड़ी समस्या है। +* सरकार समय पर निर्णय नहीं लेती है यही बड़ी समस्या है। +* सरकार सड़क सुरक्षा का ऑडिट शुरू करने की योजना बना रही है ताकि, सड़कों की गुणवत्ता को सुधारा जा सके और दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सके। +* हमने तय किया है कि उन्हें कॉरपोरेट निकाय बनाने के बजाय, हम मौजूदा कानूनों को बदल देंगे, और देखेंगे कि दक्षता में सुधार के लिए हम अन्य क्षेत्रों में और क्या कर सकते हैं। +* अगर किसी व्यक्ति के पास साइकिल है तो वह मोटरसाइकिल चाहेगा,फिर जब वह मोटरसाइकिल खरीद लेता है तो अगला लक्ष्य कार होती है।इसलिए किसी को कभी यह महसूस नहीं होता कि अच्छे दिन आ गये। +* हमने केवल अच्छे दिन’ शब्दों का प्रयोग किया और इसे शाब्दिक अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए। इसका मतलब यह होना चाहिए कि प्रगति हो रही है। +* विचारों में मतभेद समझ में आता हैं, लेकिन नेताओं की शून्य विचारधार एक बड़ी समस्या हैं जिसका सामना आज भारतीय लोकतंत्र कर रहा हैं। +* जब हमने बंदरगाहों के निगमीकरण को लागू करने की कोशिश की, तो ट्रेड यूनियनों ने आपत्ति जताई। कुछ राजनीतिक दलों ने इसका फायदा उठाने की कोशिश की, राष्ट्रीय हित और विकास की अवहेलना करते हुए, हमने तय किया है कि उन्हें कॉर्पोरेट निकाय बनाने के बजाय, हम मौजूदा कानूनों को बदल देंगे, और देखेंगे कि दक्षता में सुधार के लिए हम अन्य क्षेत्रों में और क्या कर सकते हैं। +* सड़क आभियांत्रिकी, वाहन विनिर्माण और आपातकालीन सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों को सफल बनाने के लिए सभी हितधारकों के सहयोग की जरूरत है। +* मजबूरियों और सुविधा की राजनीति के कारण नेताओं का दल बदलना भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं हैं। +* राजनीति मजबूरियों, विरोधाभासों, सीमाओं का खेल हैं, और कुछ लोग आ जा रहे हैं। +मेरा मानना है कि राजनीति सामाजिक-आर्थिक सुधार का एक सच्चा साधन है। इसलिए नेताओं को समाज में शिक्षा, कला आदि के विकास के लिए काम करना चाहिए। + + +* हम दूसरे समुदाय के किसी भी उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं करेंगे। +प्रदेश में 15 साल से सरकार है। मैंने बड़ी तपस्या से सरकार बनाई थी। शिवराज ने उसी तपस्या से सरकार चलाई। जो चीज तपस्या से मिलती है, वह विलासिता से नष्ट हो जाती है। भगवान शिवराज को दो और मौके दे। +* मुझे न तो साजिश करन आता है और न ही जासूसी। मैं, राष्ट्रवाद की राजनीति करती हूं। मैं, जिस जाति में पैदा हुई उसने मुझे मेहनत, सिद्धांत अौर निष्ठा सिखाई है। उसका खून मेरे अंदर है। +* तुम्हारी पीढ़ियां मर गईं, लेकिन शाखाएं कोई रोक नहीं पाया। मोदी काे चारों तरफ से विरोधी ताकतों ने घेर लिया है, लेकिन वे शेर की तरह डटे हुए हैं। +* धर्म होता है कि वह सरकार के अच्छे कामों के लिए सहयोग करे और जनता की परेशानियों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित कराए। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने इस धर्म का पालन न करते हुए केवल सरकार की आलोचना की है। +* चुनावी बेला आ गयी है, आप सभी को फिर से भाजपा सरकार बनाना है। +* हनुमान जी ने रावण की लंका को जलाकर नष्ट कर दिया था। इसलिए दलित समाज अपनी ताकत पहचानों और हनुमानजी बनकर लंका में आग लगा दो। हनुमान जी की तरह अशोक वाटिका उजाड़कर रख दो। +* जिन लोगों ने मुझे पार्टी से निकाल दिया, वे खुद इसके नहीं हैं। वे इसकी विचारधारा में विश्वास नहीं करते हैं, वे भगवान राम में विश्वास नहीं करते हैं। वे उसी रास्ते पर चलना चाहते हैं जिससे हम घृणा करते थे। उन्हें लगता है कि भगवान राम को समर्पित करने से उन्हें कुछ नहीं मिलेगा, लेकिन जिन्ना की स्तुति करने से वे जरूर सफल होंगे। +* एक बार उन्हें सपना आया और सपने में फिल्म शोले वाला डायलॉग दिखा। जिसमें एक मां बोलती है सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जायेगा। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश की जनता सक्रिय हो जाए और जल्दी जल्दी उठ कर भाजपा को वोट करे अन्यथा समाजवादी पार्टी की सरकार आ जाएगी और वही गुंडागर्दी, लूट अपहरण, महिला उत्पीड़न जैसी घटनाओं की पुनरावृति न हो इसलिए भाजपा की उत्तर प्रदेश में सरकार बनाए +बुंदेलखंड की बेटी है, बुंदेलखंड मेरी जन्मभूमि है ओर बुंदेलखंड की जनता भाजपा को सभी 19 सीटें जिताएगी, यही मेरा सम्मान होगा। +* भारत इस्लामिक कट्टरपंथियों का आसान निशाना बन गया है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार का कट्टरपंथियों के प्रति नरम रुख है। यह खुफिया रिपोर्ट के बाद कार्रवाई कर सकता था लेकिन ऐसा नहीं किया +* कोई भी ऐसे प्रस्तावों को अस्वीकार कर सकता है, जो योग्यता को नुकसान पहुंचाएगा, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि ऐसे वर्गों के छात्रों के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच नहीं है, जो कि अमीर छात्रों का आनंद लेते हैं।। +* शराबबंदी राजनीतिक नहीं सामाजिक अभियान है। समाज की शक्ति और एकता से ही इसका समाध��न होगा, किंतु ओरछा के दरवाजे पर रामराजा सरकार के दर्शन के लिए आते और जाते हुए यह शराब की दुकान हमारी रामभक्ति को चुनौती दे रही है।। +* वो चाहती हैं कि मध्य प्रदेश में क्रमिक शराबबंदी हो और मध्य प्रदेश उड़ता पंजाब की तरह उड़ता मध्य प्रदेश ना बन जाए। +* सरकार के द्वारा सख्त कानून या महिलाओं का शक्तिशाली अभियान ही शराबबंदी कराएगा। यदि फिर भी लोग नहीं माने तो सड़क पर उतर जाऊंगी। + + +* यदि समाज के कमजोर वर्ग के कुछ छात्र संकट से ग्रस्त हैं, तो मानवता कहती है कि इसे संबोधित किया जाना चाहिए। +* ऐसे अवसर आते हैं जब संसद में बाधा देश को अधिक लाभ पहुंचाती है। +* जहां तक सरकार के सुधार एजेंडे का संबंध है, उपायों की एक श्रृंखला बनाई गई है, जिससे अर्थव्यवस्था की आपूर्ति क्षमता में वृद्धि होनी चाहिए। +* संसदीय बाधा से बचा जाना चाहिए। यह दुर्लभ मामलों में दुर्लभतम में इस्तेमाल किया जाने वाला एक हथियार है। संसदीय जवाबदेही संसदीय बहस जितनी महत्वपूर्ण है। दोनों को साथ होना चाहिए। +* संसद का काम विचार-विमर्श करना है। लेकिन कई बार, संसद का उपयोग मुद्दों की अनदेखी करने के लिए किया जाता है, और ऐसी स्थितियों में, संसद की बाधा लोकतंत्र के पक्ष में है। इसलिए, संसदीय बाधा अलोकतांत्रिक नहीं है। +* हमारे युवाओं को शिक्षित करने और उन्हें सक्षम बनाने के लिए कुशल बनाना, वह परिवर्तन है जिसके आगे हमें झुकना चाहिए। +* हम चाहते हैं कि लोग अपने कराधान के मुद्दों को साफ करें। +* जीएसटी भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण कर सुधारों में से एक है। +* हमारे पेटेंट कानून में अनिवार्य लाइसेंस पहले से ही प्रदान किए जाते हैं। वह मौजूदा प्रावधान जारी रहेगा। + + +* सम्भावना है कि AI दुनिया को अंत की ओर ले जाएगा, लेकिन इससे कम्पनियों का तेज़ी से विकास होगा। +* तेज़ी से चलिए, क्योंकि तेज़ी से चलना ही आपके प्रतियोगी के मुक़ाबले आपके लिए एक बड़ा फ़ायदा है। +* अंदर से स्टार्टअप हमेशा बुरी तरह टूटे हुए होते हैं। +* आज हर कोई उस Hack की तलाश में है कि बिना कड़ी मेहनत किए सफलता का सीक्रेट क्या है +* एक बात जिसे Founder हमेशा कम आंकते हैं वह यह है कि Recruit करना कितना कठिन है। +* जीवन की गुणवत्ता और ऊर्जा की लागत का संबंध बहुत बड़ा है। +* पैसा ख़ुशी खरीद सकता है या नहीं, यह आज़ादी जरूर खरीद सकता है, और यह एक बहुत बड़ी बात है। साथ ही धन की कमी भी बहुत तनावपूर्ण होती है। +* अरबों डॉलर की कंपनियां बनाने का तरीका सबसे पहले कुछ ऐसा बनाना है जो लोगों को पसंद आए। वहाँ वास्तव में कोई शॉर्टकट नहीं चलता है। +* लोगों की सफलता उनकी आदतों पर ही निर्भर करती है +* अपनी कम्पनी के लिए ऐसा Vision बनाएँ जो स्पष्ट हो और जिसे आसानी से समझा जा सके। और Mission ऐसा बनाइए जिस पर लोगों का भरोसा हो। +* यदि आप Compromise करते हैं और किसी औसत दर्जे के व्यक्ति को अपने काम पर रखते हैं, तो आपको हमेशा इसका पछतावा होगा। +* बैकग्राउंड अपडेट करना पूरा भविष्य है। +* लोग हमेशा किसी विचार को छोटा या मूर्खतापूर्ण कहने की गलती करते हैं क्योंकि वे नहीं समझते कि इसका विकास कैसे होगा। +* लोगों को Search करना पसंद नहीं है, वे इससे नफ़रत करते हैं। +* टेक कंपनियाँ तकनीकी क्षेत्र में सबसे अच्छा काम करती हैं। +* मुझे नहीं लगता कि लोग यह सोचने में पर्याप्त समय बिताते हैं कि उन्हें क्या पसंद है और वे किसमें अच्छे हैं। +* यदि आपके पास कोई स्टार्टअप है जिसके लिए आप अपनी नींद को भी त्यागने के लिए तैयार हैं, जो आपको अच्छा लगता है तो आपको उसे Continue रखना चाहिए। +* लोग ज़्यादा Employees इसलिए भी Hire करते हैं क्योंकि ये Cool लगता है, जब लोग Founder से पूछते हैं कि उनके Under कितने लोग काम कर रहे हैं। + + +सुषमा स्वराज 14 फ़रवरी, 1952 24 मई 2019) भारत की एक राजनेत्री थीं। वे भारतीय जनता पार्टी से सम्बद्ध थीं और भारत के विदेश मन्त्री सहित अनेक पदों पर कार्य किया। +* आपको गाँठ खोलना नहीं आता और मसखरी के अलावा कुछ बोलना नहीं आता। +* व्यवसाय करने में आसानी को बढ़ाने के लिए, सरकार ने प्रक्रियाओं को सरल बनाने, नियमों को युक्तिसंगत बनाने और प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। +* आतंक के साथ बात नहीं हो सकती, लेकिन आतंक के बारे में बातचीत कर सकते हैं। +* सूर्य नमस्कार, अपने आप में, 12 आसनों का एक संयोजन है। +* मुझे लगता है कि अभद्र या कठोर शब्दों का उपयोग किए बिना किसी के रुख में दृढ़ता को अलग तरीके से व्यक्त किया जा सकता है। +* हमारी सरकार ने बुनियादी ढांचे के उन्नयन और स्मार्ट शहरों के निर्माण को प्रमुख राष्ट्रीय प्राथमिकताएं दी हैं। +* चाहे आप मंगल ग्रह पर भी क्यों ना हो भारत आपकी सहायता करेगा। +* हमें भाषा में संयम बनाए रखना होगा, जिससे सब अच्छा होगा। +* बलूच लोगों के खिलाफ क्रूरता राज्य के सबसे खराब रूप का प्रतिनिधित्व करती है। +* भारत बांग्लादेश का एक पुराना और विश्वसनीय विकास भागीदार रहा है। +* हम इजरायल के साथ भारत के संबंधों को उच्च प्राथमिकता देते हैं। +* हमारा प्रयास शास्त्रों और विज्ञान के अध्ययन के बीच की खाई को कम करने की दिशा में होना चाहिए। +* क्या हमने विश्व के संसाधनों का अपनी आवश्यकता के अनुसार उपयोग किया है, या लालच में अकर उनका शोषण किया है? +* क्षेत्रीय विकास, रोजगार और समृद्धि प्राप्त करने के लिए निर्बाध भौतिक संपर्क का विकास महत्वपूर्ण है। +* सुधार की शुरूआत आज से ही होनी चाहिए, कल बहुत देर हो सकतीं हैं। +* मैं हर चीज को भगवान कृष्ण की इच्छा के संदर्भ में देखती हूं, और मेरे लिए यह ठीक है कि चीजें मेरे पक्ष में हों या विपक्ष में। +* हम पश्चिम एशिया को अपने विस्तारित पड़ोस के हिस्से के रूप में देखते हैं। +* यह आवश्यक है कि हम आतंकवाद के सभी रूपों में बिना किसी भेदभाव के उसके अभिशाप को समाप्त करें और उसके समर्थन के पारिस्थितिकी तंत्र को समाप्त करें +* मंजिल आपको कभी -कभी जरूर मिलेगी यदि आप सही दिशा में लगें हैं, और प्रयास कर रहे हैं। +* इतिहास साबित करता है कि जो लोग चरमपंथी विचारधाराओं को बोते हैं, वे कड़वी फसल काटते हैं। +* हम आतंक पर बात नहीं करना चाहते; हम उस पर कार्रवाई चाहते हैं। आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते। +* सामाजिक और आर्थिक प्रगति भी हमारा एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है, मानव के न्यूनतम आवश्यकताओं की यदि पूर्ति कर दी जाए तो शांतिप्रिय समाज की स्थापना हो सकती है। +* मेरा उद्देश्य यह दिखाना है कि भाजपा न केवल एक विकल्प है बल्कि कांग्रेस का एक बेहतर विकल्प है। +* जब आप चुनावी मोड में होते हैं तो आपका ध्यान केवल जीतने पर होता है। +* मेरे परिवार से कोई भी राजनीति में नहीं था। मैं पहली पीढ़ी का राजनेता हूं। +* हमें अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखना चाहिए। +* भाजपा निश्चित रूप से महिला सशक्तिकरण के लिए है। +* लोग किसी भी कमी को नजर अंदाज कर सकते हैं, लेकिन अहंकार को बर्दाश्त नहीं करेंगे। +* गंगा अपने स्रोत, गोमुख से गंगा सागर तक पवित्र रहती है, जहां यह समुद्र में प्रवेश करती है। यह उन सहायक नदियों को पवित्र करती है, जो गंगा के स्वरूप को प्राप्त करती हैं। इसी तरह संस्कृत है; अपने आप में पवित्र, यह अपने संपर्क में आने वाले सभी को पवित्र करता है। +* संस्कृत भाषा और संस्कृत के विषय दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। +* एक दूसरे को दोषारोपण करके किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता बल्कि एक साथ होकर होता। +* लोगों को नकारात्मक अभियान पसंद नहीं हैं। +* देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा एक चुनौती है। +* यदि हम अपनी जीवन शैली को परिवर्तित कर सकें और अनावश्यक खपत को घटा सकें तो हमारी दिशा ठीक हो सकती है। +* ग्लोबल वार्मिंग, सतत उपभोग, सभ्यतागत संघर्ष, गरीबी, आतंकवाद आदि जैसी समकालीन समस्याओं के समाधान खोजने में संस्कृत का ज्ञान एक लंबा रास्ता तय करेगा। +* लोकसभा और विधानसभा के बिना लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती और सांसदों और विधायकों के बिना उनकी कल्पना नहीं की जा सकती। +* एक नेता बनने के लिए, आपको देश की पूरी लंबाई और चौड़ाई की यात्रा करनी होगी। +* मतदाताओं को एक साधारण विधायक की जरूरत होती है, भले ही वह व्यक्ति बड़ा नेता हो। +* एक आतंकवादी से बड़ा मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाला कौन हो सकता है? +* हम आतंकवाद की परिभाषा तय करने में उलझे हुए हैं, हमें ये समझना होगा कि आतंकवादियों में अच्छे या बुरे के आधार पर अंतर नहीं किया जा सकता। +* हमारा मानना ​​है कि आर्थिक वैश्वीकरण पारस्परिक लाभ के लिए अधिक खुला, समावेशी, न्यायसंगत और संतुलित होना चाहिए। +* आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई किसी धर्म के खिलाफ टकराव नहीं है। +* दुनिया की सबसे बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान होता तो सिर्फ संवाद से ही है, युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। + + +आर्थर शोपेनहावर 1788 1860 जर्मन भाषा के दार्शनिक और विचारक थे। वे नास्तिक और निराशावादी थे। उनका सबसे प्रसिद्ध कृति है दुनिया इच्छा और प्रतिनिधित्व के रूप में।" +वह एक उत्कृष्ट छात्र थे। उनके दर्शन का बौद्ध धर्म, ताओवाद, हिंदू धर्म, आदि से संबंध है। उनका दर्शन उस शताब्दी के लिए बहुत विस्तृत था जिसमें यह पाया गया था और तत्वमीमांसा के प्रति एक निश्चित विकास था जिसने बाद में बोर्जेस, उन्नामुनो या बेकेट जैसे लेखकों को प्रभावित किया। यह अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों के लिए भी प्रेरणादायक था। 1809 में उन्होंने गौटिंगेन विश्वविद्यालय में अपना मेडिकल करियर शुरू किया, लेकिन जब वे दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर गोटलोब शुल्ज़ से मिले, तो उन्होंने महसूस किया कि उन्हें अपना जीवन बदल देना है वह प्लेटो, कांत, स्पिनोज़ा या अरस्तू की रुचि और अध्ययन करने लगा। +किसी किताब को पढ़ना, अपने दिमाग से सोचने की बजाय किसी अन्य के दिमाग से सोचने के तुल्य है। +बिना कांटों का कोई गुलाब नहीं खिलता परंतु बिना गुलाब के हजारों कांटे मिलते हैं। +कोई भी व्यक्ति केवल तब तक ही अपने लिए सोच सकता है, जब तक कि वो अकेला हो और अगर उसे एकांत में रहना पसंद नहीं है तो उसे आजाद रहना अच्छा नहीं लगता होगा क्योंकि केवल कोई भी इंसान तभी आजाद जिंदगी को जिएगा, जब वह अकेला होगा। +धन समुद्र के जल के समान है; जितना अधिक हम पीते हैं, हम उतने ही प्यासे होते जाते हैं; और प्रसिद्धि के बारे में भी यही सच है +कुछ न होता तो अच्छा होता। चूँकि पृथ्वी पर सुख से बढ़कर दुख है, इसलिए हर संतोष क्षणभंगुर है, नई इच्छाएं और नए संकट पैदा करता है, और खाए गए जानवर की पीड़ा हमेशा भक्षक के सुख से कहीं अधिक होती है। +एक राजकुमार की तरह कला के काम का इलाज करें: इसे पहले आपसे बात करने दें। +कोई भी बहुत कम बुरी, या बहुत अधिक अच्छी किताबें नहीं पढ़ सकता है: बुरी किताबें बौद्धिक जहर हैं; वे मन को नष्ट कर देते हैं। +जीवन एक निरंतर मरने की प्रक्रिया है। +जीनियस लोग चील पक्षी की तरह होते हैं, जो अपना घरौंदा बहुत ऊंचाई, पर एकांत स्थान पर बनाते हैं। +पत्रकार कुत्तों की तरह होते हैं, जब भी कहीं कुछ हलचल होती है तुरंत वो भौकना शुरु कर देते हैं। +जिंदगी पेंडुलम की तरह दुख और उदासी के आगे पीछे चक्कर लगाती रहती है। +टैलेंट, उस लक्ष्य को भेद सकता है जिसे अन्य कोई नहीं भेद सकता लेकिन जीनियस, उस लक्ष्य को भेद सकता है, जिसकी अन्य कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। +विनम्र होना बुद्धिमानी की बात है; नतीजतन, असभ्य होना बेवकूफी है। बेवजह और जान-बूझकर दुश्मनी करके दुश्मन बनाना, अपने घर में आग लगाने जैसा पागलपन है। क्योंकि शिष्टता एक काउंटर की तरह है – एक स्पष्ट रूप से झूठा सिक्का, जिसके साथ कंजूस होना मूर्खता है +प्रत्येक व्यक्ति का जीवन, समग्र रूप से और सामान्य रूप से देखा जाता है, और जब केवल इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं पर जोर दिया जाता है, वास्तव में एक त्रासदी है; लेकिन विस्तार से जाने पर इसमें एक कॉमेडी का चरित्र है। +अगर मैं अपने रहस्य के बारे में अपनी चुप्पी बनाए रखता हूं तो यह मेरा कैदी है … अगर मैंने इसे अपनी जीभ से फिसलने दिया, तो मैं इसका कैदी हूं। +पुस्तको�� के बिना सभ्यता का विकास असंभव होता। वे परिवर्तन के इंजन हैं, दुनिया पर खिड़कियां, “प्रकाशस्तंभ” जैसा कि कवि ने कहा “समय के समुद्र में निर्मित।” वे साथी, शिक्षक, जादूगर, मन के खजाने के बैंकर हैं, किताबें प्रिंट में मानवता हैं। +प्रसन्नता, निरंतर छोटी छोटी खुशियों के पल में निहित होती है। +जब आप किताबों को खरीद रहे होते, तो आपके दिमाग में कहीं ना कहीं यह बात चल रही होती है कि मैं इन किताबों के साथ-साथ उनके पढ़ने के लिए समय भी खरीद रहा हूं। +उम्मीद किसी भी चीज या काम के होने की संभावना की चाह का भ्रम है। +खुद के अंदर प्रसन्नता को ढूंढना बड़ा ही मुश्किल काम है लेकिन इसके अलावा कहीं दूसरी जगह प्रसन्नता को पाना नामुमकिन है। +बहुत दुखी न होने का सबसे सुरक्षित तरीका बहुत खुश होने की उम्मीद नहीं करना है। +एक उच्च कोटि के दिमाग वाला इंसान हमेशा असामाजिक होने की प्रवृत्ति रखता है। +लोगों को हंसाना मात्र एक स्वर्ग की दैवी शक्ति है +हमें असामान्य चीजों को कहने के लिए सामान्य शब्दों का उपयोग करना चाहिए। +आशा किसी चीज की इच्छा और उसकी संभावना का भ्रम है। +कांटों के बिना गुलाब नहीं होता, लेकिन गुलाब के बिना कई कांटे होते हैं। +विश्वास प्यार की तरह है: यह खुद को जबरदस्ती नहीं होने देता। +किताबें ख़रीदना एक अच्छी बात होगी अगर कोई उन्हें पढ़ने के लिए भी समय निकाल सके; लेकिन एक नियम के रूप में पुस्तकों की खरीद उनकी सामग्री के विनियोग के लिए गलत है। +हम अपने जीवन को शून्यता की आनंदमयी मुद्रा में एक व्यर्थ परेशान करने वाली घटना के रूप में देख सकते हैं। +वह इंसान जो हमेशा बेवकूफो के लिए लिखता है, उसके सदैव ज्यादा चाहने वाले होते हैं। + + +रोमां रोलां Romain Rolland) एक फ्रांसीसी विद्वान थे। उन्होंने बिना भारत आए रामकृष्ण परमहंस की जीवनी लिखी। उनकी रचना 'ज्यां क्रिस्तोफ' पर उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। +* यदि इस धरातल पर कोई स्थान है जहाँ पर जीवित मानव के सभी स्वप्नों को तब से घर मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था तो वह भारत ही है। +* उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है, वे जहां भी गये, सर्वप्रथम ही रहे। प्रत्येक व्यक्ति उनमें अपने मार्गदर्शक व आदर्श को साक्षात् पाता था। वे ईश्वर के साक्षात प्रतिनिधि थे व सबसे घुल-मिल जाना ही उनकी विशिष्टता थी। हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देख ठिठक कर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा – शिव!। यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो। स्वामी विवेकानन्द के बारे में रोमां रोलां के वचन +* आपका व्यवहार ही दूसरों के मन में आपकी छवि बनाता है। इसके द्वारा हम दुश्मनों को भी अपना बना सकते हैं। + + +एलिसेअ ऐडवेन्चर्स इन वंडरलैंड आश्चर्यलोक में एलिस के साहसिक कार्य लुईस कैरोल का उत्कृष्ट अंग्रेजी उपन्यास है। +* मैं खुद को अच्छी सलाह देता हूं, लेकिन मैं शायद ही कभी इसका पालन करता हूं। +* कल में वापस जाने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि तब आप एक अलग व्यक्ति थे। +* वास्तविकता के खिलाफ युद्ध में कल्पना ही एकमात्र हथियार है। +* अगर हर कोई अपने काम से काम रखता है, तो दुनिया बहुत बेहतर तरीके से चलेगी और समय की बर्बादी भी कम होगी। +* ऐसा क्यों है कि आप हमेशा बहुत छोटे या बहुत लंबे होते हैं? +* कौन तय करता है कि क्या उचित है? और अगर उन्होंने अपने सिर पर सामन लगाने का फैसला किया, तो क्या आप इसे पहनेंगे? +* यह एक बहुत ही खराब प्रकार की याददाश्त है जो केवल पीछे की ओर काम करती है। +* हर चीज का एक नैतिक होता है, आपको बस यह जानने की जरूरत है कि इसे कैसे खोजा जाए। +* हमेशा के लिए कितनी देर है? कभी-कभी केवल एक सेकंड। +* कुछ ही रास्ता खोज पाते हैं, दूसरे मिल जाने पर उसे पहचान नहीं पाते, दूसरे उसे खोजना भी नहीं चाहते। +* यदि आप काफी दूर चलते हैं तो आप हमेशा कहीं पहुंच जाते हैं। +* शुरुआत से शुरू करें, और तब तक जारी रखें जब तक आप अंत तक नहीं पहुंच जाते; वहाँ तुम रुक जाओ। +* यदि आप समय को और साथ ही मुझे जानते हैं, तो आप इसे मारने के बारे में बात नहीं करेंगे। समय एक चरित्र है! +* कुछ ही रास्ता खोज पाते हैं, दूसरे मिल जाने पर उसे पहचान नहीं पाते, दूसरे उसे खोजना भी नहीं चाहते। +* या तो कुआँ बहुत गहरा था, या वह बहुत धीरे-धीरे गिर रही थी, क्योंकि जब वह नीचे गई तो उसके पास चारों ओर देखने और आश्चर्य करने के लिए बहुत समय था कि आगे क्या होने वाला है। +* मैंने कई बार बिल्ली को बिना मुस्कान के देखा है, लेकिन बिल्ली के बिना मुस्कान! मैंने अपने पूरे जीवन में यह सबसे अजीब चीज देखी है! +* यह असंभव है। केवल अगर आपको लगता है कि यह है। +* यह है कि मैं अपने आप को समझा नहीं सका, सर, क्योंकि मैं अब मै�� नहीं हूं। मैं अपने आप को अधिक स्पष्ट रूप से नहीं समझा सकता क्योंकि मैं इसे भी नहीं समझता। +* यहां लगभग सभी पागल हैं। आप देख सकते हैं कि मेरे पास वे सब नहीं हैं। +* अधिक हमेशा कम से बेहतर होता है। +* पागलों के साथ प्यार से पेश आना चाहिए। +* चित्रों या वार्तालापों के बिना पुस्तक का क्या उपयोग है +* उन्हें बस गुलाबों को लाल रंग देना है। +* कभी-कभी मैं नाश्ते से पहले छह असंभव चीजों के बारे में सोचता हूं। +* निर्देश पढ़ें और आपको सही पते पर निर्देशित किया जाएगा। +* शुरुआत से शुरू करें और तब तक जारी रखें जब तक आप अंत तक नहीं पहुंच जाते। फिर के लिए। +* जब यह मेरा सपना है तो मैं गलत ऐलिस कैसे हो सकता हूं? +* एक पक्ष आपको विकसित करेगा, और दूसरा आपको सिकोड़ेगा। +* मुझे नहीं लगता कि इसमें अर्थ का परमाणु है। +* यह निश्चित रूप से ऐलिस है, यह निश्चित रूप से ऐलिस है, मैं तुम्हें कहीं भी जानूंगा। +* ऐलिस: यह असंभव है। द मैड हैटर: केवल अगर आपको लगता है कि यह है। +* इंद्रियों का ख्याल रखें और आवाजें खुद का ख्याल रखेंगी। +* एक बिल्ली राजा की तरह दिख सकती है। मैंने इसे किसी किताब में पढ़ा है लेकिन मुझे याद नहीं है कि कहां। +* एक लेखक जरूरी नहीं कि अपनी कहानी के अर्थ को दूसरों से बेहतर समझे। +* यह असंभव नहीं है, यह असंभव के बहुत करीब है। +* हिरन या घोड़े पर सवार होकर हर कोई यात्रा कर सकता है लेकिन यात्रा करने का सबसे शानदार तरीका टोपी है। + + +सर विलियम जेम्स २८ सितम्बर १७४६ २७ अप्रैल १७९४) एक अंग्रेज भाषाविज्ञानी एवं प्राचीन भारत के अध्येता थे। उन्होंने ही सबसे पहले यह विचार व्यक्त किया कि भारोपीय भाषाओं में घनिष्ट आपसी सम्बन्ध हैं। उन्होंने एशियाटिक सोसायटी की स्थापना की। +संस्कृत भाषा की प्राचीनता जो भी हो, इसकी संरचना आश्चर्यजनक है। यह ग्रीक से अधिक पूर्ण (दोषरहित) है, लैटिन से अधिक शब्दबहुल है, और इन दोनों की अपेक्षा अधिक उत्कृष्टतापूर्वक परिशोधित है; फिर भी क्रियाओं के मूलों के रूप में और व्याकरण के रूपों में, इसका इन दोनों भाषाओं के साथ बहुत मजबूत सम्बन्ध दिखता है, जिसके केवल संयोग से उत्पन्न होने की स्म्भावना कम है। इन तीनों में इतना मजबूत सम्बन्ध है कि इनका विश्लेषण करके कोई भी भाषाशास्त्री इनके समान स्रोत से निकलने के ही निष्कर्ष पर पहुंचेगा। किन्तु वह स्रोत अब शायद बचा नहीं नहीं है। +* ह��ारे न्यूटन के चिरजीवी सम्मान को कम करने का मेरा बिल्कुल इरादा नहीं है, किन्तु मैं इस बात की पुष्टि करने का साहस कर सकता हूँ कि उनका पूरा धर्मशास्त्र (थियोलोजी और उनके दर्शन का कुछ भाग वेदों में पाया जा सकता है और यहाँ तक ​​कि सूफियों की कृतियों में भी पाया जा सकता है। सबसे सूक्ष्म आत्मा, जिसके बारे में उन्हें संदेह था कि वे प्राकृतिक शरीरों में व्याप्त हैं, और उनमें छिपे हुए हैं, जो आकर्षण और विकर्षण का कारण बनते हैं; प्रकाश का उत्सर्जन, परावर्तन और अपवर्तन; विद्युत, तन्तु (calefaction संवेदना और पेशीय गति को हिन्दुओं ने 'पंचम तत्व' के रूप में वर्णित किया है, जो उन्हीं शक्तियों से सम्पन्न है। और सार्वभौमिक आकर्षक शक्ति के संकेत तो वेदों में भरे पड़े हैं, वेद इसका स्रोत मुख्य रूप से सूर्य को बताते हैं, इसलिए सूर्य को 'आदित्य या आकर्षित करने वाला कहा जाता है। सर विलियम जोन्स, कलकता में एशियाटिक सोसायटी के सामने अपने संभाषण में (२० फरव्री, १७९४) +* छः दार्शनिक सम्प्रदायों के दर्शनशास्त्र में पुरानी अकादमी (old Academy स्टोआ (Stoa लिसेयुम (Lyceum) की सभी तत्वमीमांसा विद्यमान है। इसी प्रकार वेदान्त या इसके अनेकों सुन्दर भाष्यों को पढ़ने के बाद यह विश्वास किए बिना नहीं रह सकते कि पाइथागोरस और प्लेटो ने भारत के ऋषि-मुनियों के साथ समान स्रोत से अपने उदात्त सिद्धान्त (sublime theories) प्राप्त किए थे। विलियम जोन्स स्रोत: The Philomathic Journal, The Philomathic institution. Quoted from Gewali, Salil (2013 Great Minds on India. New Delhi: Penguin Random House. +देवनागरी लिपि किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है। + + +स्वामी श्रील प्रभुपाद 1 सितम्बर 1896 14 नवम्बर 1977 वृन्दावन) अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ यानि इस्कॉन के स्थापक थे। उन्का जन्म कोलकाता में हुआ था। उनके गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ने उन्हें 1922 में वैदिक ज्ञान के प्रचार के लिए प्रोत्साहित किया। 1944 में स्वामी जी ने वैदिक ज्ञान को विश्व में प्रचारित करने के लिए एक अंग्रेजी पाक्षिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया। यह पत्रिका आज 30 से अधिक भाषाओं में प्रकाशित की जाती है। 1966 के जुलाई महीने में स्वामी श्री भक्ति वेदांत जी ने अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ यानि इस्कॉन की स्थापना की। इस समय पूरे संसार में 100 से भी अधिक मंदिर, आश्रम, विद्यालय आदि संघ द्वारा संचालित है। +आत्म-साक्षात्कार कर चुका व्यक्ति सभी प्राणियों को समान दृष्टि से देखता है। यह जानते हुए कि सक्रिय तत्व आत्मा न केवल मानव शरीर में है, अपितु पशुओं, मछलियों, कृमियों और पौधों के शरीर में भी है। +आत्मानुभूति अथवा ईश्वर अनुभूति मानव जीवन का उद्देश्य है। +इस संसार में हर व्यक्ति शरीर की बहुत अधिक चिंता करता है और जब वह जीवित है, वह अनेक प्रकार से इसकी देखभाल करता है। जब वह मर जाता है तो लोग इसके ऊपर भव्य स्मारकों और मूर्तियों का निर्माण करते हैं। यह देहात्म बुद्धि है परंतु कोई मनुष्य उस सक्रिय तत्व को नहीं समझता, जो शरीर को जीवन तथा सौंदर्य प्रदान करता है। कोई नहीं जानता कि मृत्यु के समय वास्तविक आत्मा सक्रिय तत्व कहां चला गया है। यह अज्ञान ही है। +इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप ईसाई हैं या मुस्लिम अथवा हिंदू। ज्ञान तो ज्ञान है। जहां कहीं भी मिल सके उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। +कुछ लोग कहते हैं कि मृत्यु प्रत्येक वस्तु का अंत है। कुछ स्वर्ग और नर्क में विश्वास करते हैं। अन्य कुछ लोगों का मत है कि उनका यह जीवन अनेक बीते हुए जीवनों में से एक है और भविष्य में भी हम जीवित रहेंगे। +जब आत्मा शरीर को छोड़ देता है तो शरीर को फेंक दिया जाता है। यद्यपि इसके मालिक को वह बहुत प्यारा था। +जीवंत शक्ति ही महत्वपूर्ण तत्व है, इसकी उपस्थिति ही उसे जीवंत होने का आभास देती है। परंतु जीवन हो या मृत्यु, भौतिक शरीर जड़ पदार्थों के एक ढेर से अधिक कुछ नहीं है। +मानव क्या समझ सकता है कि वह क्या है? पशु-पक्षी यह नहीं समझ सकते। अतः मानव होने के नाते हमें आत्म-साक्षात्कार के लिए प्रयास करना चाहिए ना कि मात्र पशु-पक्षियों के स्तर पर व्यवहार करना। +सच्चाई यह है कि आत्मा अपनी वासना और कर्मों के आधार पर एक शरीर से दूसरे शरीर में देह अंतरण करता है। +हमारे पास परम बुद्धि है जिसके द्वारा हम परम सत्य को समझ सकते हैं। +1) धन 2) शक्ति 3) प्रसिद्धि 4) सुंदरता 5) ज्ञान और (6) त्याग के कारण एक आकर्षक है। +* अच्छाई की विधा में काम करने से व्यक्ति पवित्र हो जाता है। काम जुनून में मोड में काम करता है, और दुःख में परिणाम अज्ञानता के मोड में प्रदर्शन किया। +* अपना ध्यान पूर्ण रूप से परमेश्वर पर रखने और उससे प्रेम करने की कला को ही चेतना कहते हैं। +* एक योगी तपस्वी से बड़ा है, साम्राज्यवादी से बड़ा है और कर्मठ कार्यकर्ता से बड़ा है। इसलिए हे अर्जुन, सभी परिस्थितियों में योगी बनो। +* कर्मों को भगवान को समर्पित करें और फल को उसके द्वारा स्वीकार करें। +* कलियुग के चार प्रमुख लक्षण हैं 1) महिलाओं के साथ अवैध संबंध 2) पशु वध 3) नशा 4) सभी प्रकार के सट्टा जुआ। +* कृपया सबसे पहले अपने आपको जानें, फिर आप दूसरों को समझ सकते हैं। +* क्योंकि भौतिकवादी कृष्ण को आध्यात्मिक रूप से नहीं समझ सकते हैं, उन्हें सलाह दी जाती है कि वे भौतिक चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करें और यह देखने की कोशिश करें कि किस प्रकार से भौतिक प्रतिनिधित्व द्वारा कृष्ण प्रकट होते हैं। +* खुद को अकेला अनुभव न करें क्योंकि ईश्वर सदा आपके साथ है। +* जीभ के स्वाद के लिए जानवरों की हत्या अज्ञानता का सबसे बड़ा प्रकार है। +* जीवन का सर्वप्रथम और आधारभूत सिद्धांत है – सुख का भोग। काश! हम सदा के लिए जीवन के सुखों का भोग कर पाते। +* दर्शन के बिना धर्म भावना है, या कभी-कभी कट्टरता है, जबकि धर्म के बिना दर्शन मानसिक अटकलें हैं। +* धर्म का अर्थ है ईश्वर को जानना और उससे प्रेम करना। +* पापी जीवन से मुक्त होने के लिए, केवल सरल विधि है: यदि आप कृष्ण को समर्पण करते हैं। यही भक्ति की शुरुआत है। +* पुरुषों में कई हजारों लोगों में से, एक पूर्णता के लिए प्रयास कर सकता है, और जिन लोगों ने पूर्णता प्राप्त की है, शायद ही कोई मुझे सच में जानता हो। +* प्रथम श्रेणी का धर्म सिखाता है कि बिना किसी मकसद के ईश्वर से कैसे प्रेम किया जाए। यदि मैं कुछ लाभ के लिए भगवान की सेवा करता हूं, तो वह व्यवसाय है, प्रेम नहीं। +* फलों से लदे हुए फल और इसके दूसरों के लिए सुलभ होने की इच्छा के कारण, फल से भरा पेड़ प्राकृतिक रूप से नीचे झुक जाता है। +* बंगाली में एक कहावत है कि एक बुरा राजा राज्य को बिगाड़ देता है और एक बुरी गृहिणी परिवार को बिगाड़ देती है। +* भगवान की कृपा के बिना, हम ज्ञान और परिचय की कमी से पीड़ित हैं। +* भगवान नहीं हैं, उन्हें पहचानो। +* मन वाचा कर्म से पवित्रता बढ़ाएं और अपने आपको भगवान को समर्पित करें। +* मनुष्य के लिए, मन बंधन का कारण है और मन मुक्ति का कारण है। इन्द्रिय वस्तुओं में अवशोषित मन बंधन का कारण है, और इन्द्रिय वस्तुओं से अलग किया गया मन मुक्ति का कारण है। +* मानसिक संतुलन का नुकसान उन व्यक्तियों में होता है जो भौतिक परिस्थितियों से बहुत अधिक प्रभावित होते हैं। +* विनम्र ऋषि, सच्चे ज्ञान के आधार पर, एक विद्वान और सौम्य ब्राह्मण, एक गाय, एक हाथी, एक कुत्ते और एक कुत्ते-भक्षक के समान दृष्टि से देखता है। +* शांति और खुशी के लिए आपको भगवान के साथ एकीभाव होना चाहिए। +* शिक्षा का पूरा तंत्र समझदारी के लिए तैयार है, और अगर एक विद्वान व्यक्ति इस पर विचार करता है, तो वह देखता है कि इस उम्र के बच्चों को जानबूझकर तथाकथित शिक्षा के बूचड़खानों में भेजा जा रहा है। +* सभी प्राणियों के लिए रात है जो आत्म-नियंत्रित के लिए जागृति का समय है; और सभी प्राणियों के लिए जागृति का समय आत्मनिरीक्षण ऋषि के लिए रात है। +* हमारे विचार और कर्म हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं। +* हमेशा अपने सच्चे स्वरूप में रहें, और खुश रहें। +* हरे कृष्ण मंत्र का यह जाप आध्यात्मिक मंच से किया जाता है और इस प्रकार यह ध्वनि कंपन अंतरात्मा के सभी निचले स्तर से परे हो जाता है – अर्थात् कामुक, मानसिक और बौद्धिक। + + +* विश्वविद्यालय पुस्तकालय के चारों ओर स्थित भवनों का एक समूह मात्र है। पुस्तकालय ही विश्वविद्यालय है। Shelby Foote quoted in: North Carolina Libraries, Vol. 51-54 (1993 पृष्ठ 162 पर उद्धृत +* विश्व को बदलने के लिये ग्यारह लोग चाहिये। विश्वविद्यालय को बदलने के लिये पाँच लोग चाहिये। रॉबर्ट पी० जॉर्ज, क्रिस्टोल के साथ साक्षात्कार में (अप्रैल 2016 transcript + + +* पुस्तकालय बच्चों को संसार के बारे में प्रश्न पूछने और उनके उत्तर पाने की सुविधा देते हैं। और आश्चर्यजनक बात यह है कि जब बच्चा पुस्तकालय का उपयोग करना सीख लेता है तब शिक्षा के दरवाजे हमेशा के लिये खुल जाते हैं। Laura Welch Bush, The 21st Century Elementary Library Media Program (2009) by Carl A. Harvey, p. 3. + + +इस्लाम की आलोचना से तात्पर्य इस बात पर विचार करने से है कि एक मजहब के रूप में इस्लाम अच्छा है या बुरा। +* यदि धर्म किसी विजेता द्वारा (जबरन) थोपा जाय तो यह मानव का दुर्भाग्य है। मुहमद का मजहब, जो केवल तलवार की भाषा बोलता है, आज भी मानव के ऊपर उसी विध्वंसात्मक तरीके से काम करता है जैसा वह अपने स्थापना के समय में करता था। मॉन्टेस्क्यू कानून की भावना (Spirit of the Laws भाग XXIV, अध्याय IV (1748) में +* मुहम्मद का मजहब और कुरान सभ्यता, स्वतन्त्रता और सत्य के सबसे घातक शत्रु हैं। विलियम मूर, The Life of Mahomet, vol. 4, 1861, p. 322 +[[दयानन्द सरस्वती ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ ‘[[सत्यार्थ प्रकाश]]’ के चौदहवें समुल्लास (अध्याय) में कुरान की १६१ आयतों की समीक्षा की है। स��ीक्षा के अन्त में उन्होंने जो निष्कर्ष निकाला है, वह निम्नलिखित है- +; ”आरम्भ साथ नाम अल्लाह के क्षमा करने वाला दयालु ।” (कुरान १।१) +समीक्षक- मुसलमान लोग ऐसा कहते हैं कि यह कुरान खुदा का कहा है। परन्तु इस वचन से विदित होता है कि इसका बनाने वाला कोई दूसरा है क्योंकि जो परमेश्वर का बनाया होता तो ”आरम्भ साथ नाम अल्लाह के” ऐसा न कहता किन्तु ”आरम्भ वास्ते उपदेश मनुष्यों के” ऐसा कहता। (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५४४) +; ”सब स्तुति परमेश्वर के वास्ते है जो परबरदिगार अर्थात्‌ पालन करने हारा है तब संसार का। क्षमा करने वाला दयालु है।” (कुरान १।२) +:समीक्षक- जो कुरान का खुदा संसार का पालन करने हारा होता और सब पर क्षमा और दया करता है तो अन्य मत वाले और पशु आदि को भी मुसलमानों के हाथ से मरवाने का हुकम न देता। जो क्षमा करने हारा है तो क्या पापियों पर भी क्षमा करेगा और जो वैसा है तो अगे लिखेंगे कि ”काफ़िरों को कतल करो” अर्थात्‌ जो कुरान और पैगम्बर को न मानें वे काफ़िर हैं, ऐसा क्यों कहता है? इसलिए कुरान ईश्वरकृत नहीं दीखता। (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५४४-५४५) +; ”दिखा उन लोगों का रास्ता कि जिन पर तूनपे निआमत की॥ और उनका मार्ग मत दिखा कि जिनके ऊपर तू ने गज़ब अर्थात्‌ अत्यन्तक्रोध की दृष्टि की और न गुमराहों का मार्ग हमको दिखा।” (कुरान १।६) +:समीक्षक- जब मुसलमान लोग पूर्वजन्म और पूर्वकृत पाप-पुण्य नहीं मानते तो किन्हीं पर निआमत अर्थात्‌ फ़जल या दया करने और किन्हीं पर न करने से खुदा पक्षपाती हो जायेगा, क्योंकि बिना पाप-पुण्य, सुख-दुःख देना केवल अन्याय की बात है और बिना कारण किसी पर दया और किसी पर क्रोध दृष्टि करना भी स्वभाव से बहिः है। वह दया अथवा क्रोध नहीं कर सकता और जब उनके पूर्व संचित पुण्य पाप ही नहीं तो किसी पर दया और किसी पर क्रोध करना नहीं हो सकता। और इस सूरः की टिप्पणी पर ”यह सूरः अल्लाह साहेब ने मनुष्यों के मुखय से कहलाई कि सदा इस प्रकार से कहा करें” जो यह बात है तो ‘अलिफ्‌ बे” आदि अक्षर भी खुदा ही ने पढ़ाये होंगे। जो कहो कि बिना अक्षरज्ञान के इस सूरः को कैसे पढ़ सके क्या कण्ठ ही से बुलाए और बोलते गये जो ऐसा है तो सब कुरान ही कण्ठ से पढ़ाया होगा। इससे ऐसा समझना चाहिए कि जिस पुस्तक में पक्षपात की बातें पाई जायें वह पुस्तक ईश्वरकृत नहीं हो सकता, जैसा कि अरबी भाषा में उतारने से अरबवा���ों को इसका पढ़ना सुगम, अन्य भाषा बोलने वालों को कठिनहोता है इसी से खुदा में पक्षपात आता है और जैसे परमेश्वर ने सृष्टिस्थ सब देशस्थ मनुष्यों पर न्याय दृष्टि से सब देश भाषाओं से लिक्षण संस्कृत भाषा कि, जो सब देशवालों के लिए एक से परिश्रम से विदित होती है, उसी में वेदों का प्रकाश किया है, करता तो यह दोष नहीं होता।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृ० ५४५-५४६) +:समीक्षक-”भला यह कौन-सी न्याय, विद्धत्ता और धर्म की बात है कि जो अपना पक्ष करे और चाहे अन्याय भी करे उसी का पक्ष और लाभ पहुंचावे और जो प्रजा में शान्ति भंग करके लड़ाई करे, करावे और लूट मार के पदार्थों को हलाल बतलावे और फिर उसी कानाम क्षमावान्‌ दयालुलिखे यह बात खुदा की तो क्या किन्तु किसी भले आदमी की भी नहीं हो सकती। ऐसी-ऐसी बातों से कुरान ईश्वर वाक्य कभी नहीं हो सकता।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृ० ५७४) +:समीक्षक- ”कुरान किधर की ओर से उतारा क्या खुदा ऊपर रहता है जो यह बात सच्च है तो वह एकदेशी होने से ईश्वर ही नहीं हो सकता क्योंकि ईश्वर सब ठिकाने एकरस व्यापक है। पैगा़ाम पहुंचाना हल्कारे का काम है और हल्कारे की आवश्यकता उसी को होती है जो मनुष्यवत्‌ एकदेशी हो। और हिसाब लेना-देना भी मनुष्य का काम है, ईश्वर का नहीं, क्योंकि वह सर्वज्ञ है। यह निश्चय होता है कि किसी अल्पज्ञ मनुष्य का बनाया कुरान है।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृ० ५७९) +समीक्षक- जो तोबाः से पाप क्षमा करने की बात कुरान में है, यह सबको पापी कराने वाली है। क्योंकि पापियों को इससे पाप करने का साहस बहुत बढ़ जाता है। इससे यह पुस्तक और इसका बनाने वाला पापियों को पाप करने में हौसला बढ़ाने वाला है। इससे यह पुस्तक परमेश्वर कृत और इसमें कहा हुआ परमेश्वर भी नहीं हो सकता। (सत्यार्थ प्रकाश, पृ० ५८४) +; ”(जो आयतें उतर ही हैं) वे तत्वज्ञान से परिपूर्ण किताब की आयतें हैं।” (३१।२) +;”उसने आकाशों को पैदा किया (जो थमे हुए हैं) बिना ऐसे स्तम्भों के जो तुम्हें दिखाई दें और उसने धरती में पहाड़ डाल दिए कि ऐसा न हो कि तुम्हें लेकर डावांडोल हो जाए।” … ३१।१०) +;”क्या तुमन देखा नहीं कि अल्लाह रात को दिन में प्रविष्ट करता है और दिन को रात में प्रविष्ट करता है”………….(३१।२९) +:समीक्षक- वाह जी वाह हिक्मतवाली किताब कि जिसमें सर्वथा विद्या से विरुद्ध आकाश की उत्पत्ति और उसमें खम्भे लगाने की शंका और पृथ्वी को स्थिर रखने के लिए पहाड़ रखना! थोड़ी-सी विद्या वाला भी ऐसा लेख कभी नहीं करता और न मानता और हिकमत देखो कि जहाँ दिन है वहाँ रात नहीं ओर जहाँ रात है वहाँ दिन नहीं, उसको एक दूसरे में प्रवेश कराना लिखता है यह बड़े अविद्यानों की बात है, इसलिए यह कुरान विद्या की पुस्तक नहीं हो सकती। क्या यह विद्या विरुद्ध बात नहीं है कि नौका, मनुष्य और क्रिया कौशलादि से चलती है वा खुदा की कृपा से यदि लोहे वा पत्थरों की नौका बनाकर समुद्र में चलावें तो खुदा की निशानी डूब जाय वा नहीं इसलिए यह पुस्तक न विद्यान्‌ ओर न ईश्वर का बनाया हुआ हो सकता है।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृ० ५९०-५९१) +:समीक्षक- क्या जो मुखय और दया करने के योग्य न हो उसको भी प्रधान बनाता और उस पर दया करता है जो ऐसा है तो खुदा बड़ा गड़बड़िया है क्योंकि फिर अच्छा काम कौन करेगा और बुरे कर्म को कौन छोड़ेगा क्योंकि खुदा की प्रसन्नता पर निर्भर करते हैं, कर्मफल पर नहीं, इससे सबको अनास्था होकर कर्मोच्छेद प्रसंग होगा। सत्यार्थ प्रकाश पृ० ५५४) +; ”… और यह कि अल्लाह अत्यन्त कठोर यातना देने वाला है।” (२।१६५) +:समीक्षक- ”क्या कठोर दुःख देने वाला दयालु खुदा पापियों पुण्यात्माओं पर है अथवा मुसलमानों पर दयालु और अन्य पर दयाहीन है जो ऐसा है तो वह ईश्वर ही नहीं हो सकता। और पक्षपाती नहीं है तो जो मनुष्य कहीं धम्र करेगा उस पर ईश्वर दयालु और जो अधर्म करेगा उस पर दण्ड दाता होगा, तो फिर बीच में मुहम्मद साहेब और कुरान को मानना आवश्यक न रहा। और जो सबको बुराई कराने वाला मनुष्य मात्र का शुत्र शैतान है, उसको खुदा ने उत्पन्न ही क्यों किया? क्या वह भविष्यत्‌ की बात नहीं जानता था जो कहो कि जानता था परन्तु परीक्षा के लिये बनाया, तो भी नहीं बन सकता, क्योंकि परीक्षा करना अल्पज्ञ का काम है, सर्वज्ञ तो सब जीवों के अच्छे बुरे कर्मों को सदा से ठीक-ठीक जानता है और शैतान सबको बहकाता है, तो शैतन को किसने बहकाया जो कहो कि शैतान आप बहमता है तो अन्य भी आप से आप बहक सकते हैं, बीच में शैतान का क्या काम और जो खुदा ही ने शैतान को बहकाया तो खुदा शैतान का भी शैतान ठहरेगा, ऐसी बात ईश्वर को नहीं हो सकती और जो कोई बहकाता है वह कुसुग तथा अविद्या से भ्रान्त होता है ” (सत्यार्थ प्रकाश पृ० ५५७) +:समीक्षक- ‘जो मुसलमानों को तीन हजार फरिश्तों के साथ सहाय देता था तो अब मुसलमानों की बादशाही बहुत-सी नष्ट हो गई औ�� होती जाती है क्यों सहाय नहीं देता इसलिए यह बात केवल लोभ के दो मूखा्रें को फंसाने के लिये महा अन्याय की है।” (सत्यार्थ प्रकाश पृ० ५६४) +:समीक्षक-”जो झगड़े को खुदा मित्र नहीं समता तो क्यों आप ही मुसलमानों को झगड़ा करने में प्रेरणा करता और झगड़ालू मुसलमानों से मित्रता क्यों करता है मुसलमानों के मत में मिलने ही से खुदा राजी है तो वह मुसलमानों ही का पक्षपाती है, सब संसार का ईश्वर नहीं। इससे यहाँ यह विदित होता है कि न कुरान ईश्वरकृत और न इसमें कहा हुआ ईश्वर हो सकता है।” (सत्यार्थ प्रकाश पृ० ५५९) +:समीक्षक-”क्या क्षमा के योग्य पर क्षमा न करना, अयोग्य पर क्षमा करना गवरगंड राजा के तुल्य यह कर्म नहीं है यदि ईश्वर जिसको चाहता पापी वा पुण्यात्मा बनाता तो जीव को पाप पुण्य न लगना चाहिये। जब ईश्वर ने उसको वैसा ही किया तो जीव को दुःख सुख भी होना न चाहिए। जैसे सेनापति की आज्ञा से किसी भृत्य ने किसी को मारा वा रक्षा की उसका फलभागी वह नहीं होता, वैसे वे भी नहीं।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५६१-५६२) +समीक्षक-”जो एक त्रसरेणु (तनिक) भी खुदा अन्याय नहीं करता तो पुण्य को द्विगुणा क्यों देता और मुसलमानों का पक्षपात क्यों करता है वास्तव में द्विगुण वा न्यून फल कर्मों का देवे तो खुदा अन्यायी हो जावे।” (पृ. ५६५) +; ”निश्चय ही अल्लाह कपटाचारियों और इनकार करने वालों-सबको जहन्नम में एकत्र करने वाला है।” (४ १४०)…..”कपटाचारी अल्लाह के साथ धोखेबाज़ी कर रहे हैं हालांकि उसी ने उन्हें धोखे में डाल रखा है…”। (४।१४२)। हे ईमानवालो ईमानवालों मुसलमानों) को छोड़कर इन्कार करने वालों (काफ़िरों) को अपना मित्र न बनाओ।” (४।१४४, पृ. ८५) +; ‘‘… जो पहले हो चुका उसे अल्लाह ने क्षमा कर दिया, परन्तु जिस किसी ने फिर ऐसा किया तो अल्लाह उससे बदला लेगा।” ०१८८५ ९५, पृ. १०३) +:समीक्षक ”किये हुए पापों का क्षमा करना जानो पापों को करने की आज्ञा दे के बढ़ाना है। पाप क्षमा करने की बात जिस पुस्तक में हो वह न ईश्वर और न किसी विद्वान्‌ का बनाया है किन्तु पापबर्द्धक है। हाँ, अगामी पाप छुड़वाने के लिये किसी से प्रार्थना और स्वयं छोड़ने के लिये पुरुषार्थ पश्चात्ताप करना उचित है, परन्तु केवल पश्चात्ताप करता रहे, छोड़े नहीं, तो भी कुछ नहीं हो सकता।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५६९) +; …………….”हालांकि अल्लाह चाहता था कि अपने वचनों से सत्य को सत��य कर दिखाए और इनकार करने वालों (काफ़िरों) की जड़ काट दें।” (८।७) +:समीक्षक- वाहजी वाह कैसा खुदा और कैसे पैंगम्बर दयाहीन, जो मुसलमानी मत से भिन्न काफ़िरों की जड़ कटवावे। और खुदा आज्ञा देवे उनको गर्दन मारो और हाथ पग के जोड़ों को काटने का सहाय और सम्पत्ति देवे ऐसा खुदा लंकेश से क्या कुछ कम है यह सब प्रपंच कुरान के कर्त्ता का है, खुदा का नहीं। यदि खुदा का हो तो ऐसा खुदा हमसे दूर और हम उससे दूर रहें। (सत्यार्थ प्रकाश पृ० ५७२) +; ”उन्हें उनका रब़ अपनी दयालुता औ प्रसन्नता और ऐसे लोगों की शुभ सूचना देता है जिनमें उनके लिए स्थायी सुख-सामग्री है। उनमें वे सदैव रहेंगे। निःस्संदेह अल्लाह के पास बड़ा बदला है।” (९।२१-२२) ”हे ईमानवालो अपने बाप और अपने भाईयों को अपने मित्र न बनाओ यदि ईमान के मुकाबले में कुफ्र उन्हें पिय्र हो। तुममें से जो कोई उन्हें अपना मित्र बनाएगा, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी होंगे।” (९ः२३) ”अन्नतः अल्लाह ने अपने रसूल पर और मोमिनों पर अपनी सकीनत (प्रशान्ति) उतारी और ऐसी सेनाएँ उतारीं जिनको तुमने नहीं देखा और इनकार करने वालों को यातनादी और यही इनकार करने वालों का बदला है।” (९।२६) ”और इसके बाद अल्लाह जिसको चाहता है उसे तौबाः नसीब करता है।” (९।२७) ”वे किताबवाले जो न अल्लाह पर ईमान रखते हैं और न अंतिम दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल के हराम ठहराए हुए को हराम ठहराते हैं और न सत्य धर्म का अनुपालन करते हैं, उनसे लड़ो, यहाँ तक कि वे सत्ता से विलग होकर और छोटे (अधीनस्थ) बनकर जिज्जया देने लगें।” (९।२९, पृ. १५९-१६०) +; ”निःसन्देह अल्लाह सारे ही गुनाहों को क्षमा कर देता है।” (३९ ५३) ”हालांकि कियामत के दिन सारी की सारी धरती उसकी मुट्‌टी में होगी और आकाश उसके दाएँ हाथ में लिपटे हुए होंगे।” (३९।६७) ”और धरती अपने रब के प्रकाश से जगमगा उठेगी और किताब रखी जाएगी और नबियों और गवाहों को लाया जाएगा और लोगों के हक़ के साथ फैसला कर दिया जाएगा। उन पर कोई जुल्म न होगा।” (३९।६९, पृ. ४१२-४१३) +पैगम्बर मुहम्मद का अल्लाह का सहयोगी बनना +; ” अल्लाह ऐसा नहीं है कि वह तुम्हें परोक्ष की सूचना दे दे। …. किन्तु अल्लाह इस काम के लिये जिसको चाहता है, चुन लेता है और वे उसके रसूल होते हैं। अतः अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ।” (४।१७९, पृ. ६४) +:समीक्षक-”जब मुसलमान लोग सिवाय खुदा के किसी के साथ ईमान नहीं लाते और न किस��� को खुदा का साझी मानते हैं तो पैगम्बर साहेब को क्यों ईमान में खुदा के साथ शरीक किया अल्लाह ने पैगम्बर के साथ इमानलाना लिखा इसी से पैगम्बर भी शरीक हो गया, पुन’ लाशरीक कहना ठीक न हुआ। यदि इसका अर्थ यह समझा जाए कि मुहम्मद साहेब के पैगम्बर होने पर विश्वास लाना चाहिए तो यह प्रश्न होता है कि मुहम्मद साहेब के पैमब्र होने की क्या आवश्यक है यदि खुदा उनको पैमब्र किये बिना अपना अभीष्ट कार्य नहीं कर सकता तो अवश्य असमर्थ हुआ।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५६४-५६५) +; ”ये अल्लाह की निश्चित की गई सीमाएं हैं जो कोई अल्लाह और उसके रसूल के आदेशों का पालन करेगा उसेअल्लाह ऐसे बागों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। उनमें वह सदैव रहेगा।” परन्तु जो अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करेगा और उसकी सीमाओं का उल्लंघन करेगा उसे अल्लाह आग में डालेगा जिसमें वह सदैव रहेगा और उकसे लिए अपमानजनक यातना है।” (४।१३–१४, पृ. ६९) +:समीक्षक-”खुदा ही ने मुहम्मद साहेब पैगम्बर को अपना शरीक कर लिया है और खुद कुरान ही में लिखा है। और देखो खुदा पैगम्बर के साथ कैसा फंसा है कि जिसने बहिश्त में रसूल का साझा कर दिया हैं किसी एक बात में भी मुसलमानों का खुदा स्वतन्त्र नहीं तो लाश्रीक कहना व्यर्थ है। ऐसी-ऐसी बातें ईश्वरोक्त पुस्तक में नहीं हो सकती।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५६५) +:समीक्षक-”जब कुरान में साक्षी है कि मूसा को किताब दी तो उसका मानना मुसलमानों को आवश्यक हुआ और जो-जो उस पुस्तक में दोष हैं वे भी मुसलमानों के मत में आ गिरे ओर ‘मौजिज़े’ अर्थात्‌ दैवी शक्ति की बातें सब अन्यथा हैं, भोले-भाले मनुष्यों को बहकाने के लिए झूठमूठ चला ली हैं क्योंकि सुष्टिक्रम और विद्या से विरुद्ध सब बातें झूठी ही होती हैं। जो उस समय ‘मौजिज़े’ थे तो इस समय क्यों नहीं जो इस समय भी नहीं, तो उस समय भी न थे, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५५३) +; ”दीन (धर्म) तो अल्लाह की दृष्टि से इस्लाम ही है।” (३।१९, पृ. ४६) +:समीक्षक-“क्या अल्लाह मुसलमानों ही का है औरों का नहीं क्या तेरह सौ वर्षों के पूर्व ईश्वरीय मत था ही नहीं इसी से यह कुरान ईश्वर का बनाया तो नहीं, किन्तु किसी पक्षपाती का बनाया है।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५६२) +; ”प्रत्येक व्यक्ति को जो उसने कमाया होगा, पूरा-पूरा मिल जाएगा और उनके साथ कोई अन्याय नहोगा।” (३।२���) कहो ”ऐ अल्लाह, राज्य के स्वामी जिसे चाहे राज्य दे और जिससे चाहे राज्य छीन ले और जिसे चाहे इज्जत (पभुत्व) प्रदान करे और जिसको चाहे अपमानित कर दे। तेरे ही हाथ में भलाइ है निसंदेह तुझे हर चीज़ की समर्थ्य प्राप्त है।” (३।२६) ”तू रात को दिन में पिरोता है और दिन को रात में पिरोता है। तु निर्जीव से सजीव को निकालता है और सजीव से निर्जीव को निकालता है जिसे चाहता है बेहिसाब देता है।” (३।२७) ”ईमानवालों (मुसलमानों) को चाहिए कि वे गैर-ईमानवालों (गैर-मुसलमानों) से हटकर इंकार करने वालों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाएँ और कोई ऐसा करेगा उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं।” (३।२८) ”कह दो यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह भी तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा।” ३।३१, पृ. ४७-४८) +:समीक्षक- ”जब प्रत्येक जीव को कर्मों का पूरा-पूरा फल दिया जावेगा तो क्षमा नहीं किया जाएगा और जो क्षमा किया जाएगा। तो पूरा फल नहीं दिया जाएगा और अन्याय होगा। जब बिना उत्तम कर्मों के राज्य देगा तो भी अन्याय हो जाएगा और बिना पाप के राज्य औरप्रतिष्ठा छीन लेगा तो भी अन्यायकारी हो जाएगा, भला जीवित से मृतक और मृतक से जीवित कभी हो सकता है क्योंकि ईश्वर की व्यवस्था अछे?-अभे? है, कभी अदल बदल हनीं हो सकती। अब देखिये पक्षपात की बातें कि जो मुसलमान के मजहब में नहीं हैं उनको काफ़िर ठहराना, उनमें श्रेष्ठों से भी मित्रता न रखने और मुसलमाना में दुष्टों से भी मित्रता रखने के लिए उपदेश करना ईश्वर को ईश्वरता से बिह कर देता है। इससे यह कुरान, कुरान का खुदा ओर मुसलमान लोग केवल पक्षपात अविद्या के भरे हुए हैं इसीलिए मुसलमान लोग अन्धेरे में हैं और देखिए मुहम्मद साहेब की लीला कि जो तुम मेरा पक्ष करोगे तो खुदा तुम्हारा पक्ष करेगा और जो तुम पक्षपातरूप पाप करोगे उसको क्षमा भी करेगा। इससे सिद्ध होता हैं कि मुहम्मद साहेब ने कुरान बनाया या बनवाया, ऐसा विदित होता है।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ३६३) +:समीक्षक-”अब देखिए महापक्षपात की बात कि जो मुसलमान न हो उसको जहाँ पाओ मार डालों और मुसलमानों को न मारना । भूल से मुसलमान को मारने में प्रायश्चित और अन्य को मारने से बहिश्त मिलेगा। ऐसे उपदेश को कूप में डलना चाहिए। ऐसे-ऐसे पुस्तक, ऐसे-ऐसे पैग़म्बर, ऐसे-ऐसे खुदा और ऐसे-ऐसे मत से सिवाय हानि के लाभ कुछ भी ���हीं ऐसों का न होना अच्छा और ऐसे प्रामादिक मतों से बुद्धिमानों को अलग रहकर वेदोक्त सब बातों को मानना चाहिए, क्योंकि उसमें असत्य किचिंमात्र भी नहीं हे, और मुसलमान को मारे उसको दोज़ख मिले और दूसरे मतवाले कहते हैं कि मुसलमान को मारे तो स्वर्ग मिले। अब कहो इन दोनों मतों में से किसको मानें, किसकोछोड़े किन्तु ऐसे मूढ़ प्रकल्पित मतों को छोड़कर वेदोक्त मत स्वीकार करने योग्य सब मनुष्यों के लिए है कि जिसमें आर्य मार्ग अर्थात्‌ श्रेष्ठ पुरुषों के मार्ग मं चलना और दस्यु अर्थात्‌ दुष्टों के मार्ग से अलग रहना लिखा है, सर्वोत्तम है।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५६६-५६७) +इस्लाम में गैर-मुसलमानों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार +; ”जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाते हैं उनके लिए यह मत कहो कि ये मृतक हैं किन्तु वे जीवित हैं। परन्तु तुम्हें एहसास नहीं होता।” (२।१५४, पृ. २५) +:समीक्षक-”भला ईश्वर के मार्ग में मरने मारने की क्या आवश्यक है यह क्यों नहीं कहते हो कि यह बात अपने मतलब सिद्ध करने से न डरेंगे, लूटमार कराने से ऐश्वसर्य प्राप्त होगा, पश्चात्‌ विषयानन्द करेंगे इत्यादि। स्वप्रयोजन के लिए यह विपरीत व्यवहार किया है।” (सत्यार्थ प्रकाश पृ० ५५६-५५७) +:समीक्षक वाह ठीक है ऐसी-ऐसी बातों का उपदेश करके बेचारे अरबवासियों को सबसे लड़ा के शत्रु बनाकर परस्पर दुख दिलाया और मजहब का झंडा खड़ा करके लड़ाई फैलावे, ऐसे कोई बुद्धिमान ईश्वरकभी नहीं मान कसते। जो मनुष्य जाति में विरोध बढ़ावे वही सबको दुखदाता होता है।” (सत्यार्थ प्रकाश पृ० ६०३) +; ”हे नबी इनकार करने वालों और कपटाचारियों से जिहाद करो और उनके साथ सखती से पेश आओ । उनका ठिकाना, जहन्नम है और वह अन्ततः पहुँचने की बुरी जगह है।” (६६।९, पृ. ५१८) +:समीक्षक- ”देखिए मुसलमानों के खुदा की लीला अन्य मत वालों से लड़ने के लिए पैगम्बर और मुसलमानों को उचकाता है। इसीलिए मुसलमान लोग उपद्रव करने में प्रवृत रहते हैं। परमात्मा मुसलमानों पर कृपा दृष्टि करे जिससे ये लोग उपद्रव करना छोड़ के सबसे मित्रता से बर्तें।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ६०४) +; ”और जो व्यक्ति इसके पश्चात्‌ भी कि मार्गदर्शन खुलकर उसके सामने आ गया है, रसूल का विरोध करेगा और ईमानवालों के मार्ग के अतिरिक्त किसी और मार्ग पर चलेगा तो उसे हम उसी पर चलने देंगे जिसको उसने अपनाया होगा और उसे जहन्नम मं झोक देंगे और वह बहुत बुरा ठिकाना है।” (४।११५, पृ. ८२) +:समीक्षक ”अब देखिए खुदा और रसूल की पक्षपात की बातें मुहम्मद साहेब आदि समझते थे कि जो खुदा के नाम से ऐसी हम न लिखेंगे तो अपना मज़हब न बढ़ेगा और पदार्थ न मिलेंगे, आनन्दभोग न होगा, इसी से विदित होता है कि वे अपने मतलब करने में पूरे थे और अन्य के प्रयोजन बिगाड़ने में। इससे ये अनाप्त थे। इनकी बात का प्रमाण आप्त विद्वानों के सामने कभी नहीं हो सकता”। (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५६७) +; ऐ ईमानवालों उन इंकार करने वालों से लड़ों जो तुम्होर निकट हैं और चाहिए कि वे तुम में सखती पाएं और जान रखो कि अल्लाह डर रखने वालों के साथ है” (९ १२३ ”क्या वे देखते नहीं कि प्रत्येक वर्ष के एक या दो बार आज़माइश में डाले जाते हैं फिर भी न तो वे तौबा करते हैं, और न चेतते हैं।” (९।१२६, पृ. १७१) +:समीक्षक ”देखिए ये भी एक विश्वासघात की बातें, खुदा मुसलमानों को सिखलाता है कि चाहे पड़ोसी हों या किसी के नौकर हों जब अवसर पावें तभी लड़ाई वा घात करें। ऐसी बातें मुसलमानों में बहुत बन गई हैं इसी कुरान के लेख से। अब तो मुसलमान समझ के इन कुरानोक्त बुराइयों को छोड़ दें, तो बहुत अच्छा है।” सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५७६) +भोग विलास के लिए जन्नत के प्रलोभन +:समीक्षक-भला यह स्वर्ग है किंवा वेश्यावन इसको ईश्वर कहना वा स्त्रैण कोई भी बुद्धिमान ऐसी बातें जिसमें हों उसको परमेश्वर का किया पुस्तक मान सकता है यह पक्षपात क्यों करता है जो बीबियां बहिश्त में सदा रहती हैं वे यहाँ जन्म पाके वहाँ गई हैं वा वहीं उत्पन्न हुई हैं यदि यहाँ जन्म पाकर वहाँ गई हैं और जो क़यामत की रात से पहले ही वहाँ बीबियों को बुला लिया तो उनके खाविन्दों को क्यों न बुला लिया यदि वहीं जन्मी हैं तो क़यामत तक वे क्यों कर निर्वाह करती हैं जो उनके लिए पुरुष भी हैं तो यहाँ बहिश्त में जाने वाले मुसलमानों को खुदा बीबियां कहाँ से देगा और जैसे बीबियां बहिश्त में सदा रहने वाली बनाईं वैसे पुरुषों को वहाँ सदा रहने वाले क्योंकि नहीं बनाया इसलिए मुसलमानों का खुदा अन्यायकारी, बेसमझ है।” पृ. ५६२) +:समीक्षक-”क्योंजी, यहाँ तो मुसलमान लोग शराब को बुरा बतलाते हैं परन्तु इनके स्वर्ग में तो नदियाँ की नदियाँ बहती हैं। इतना अच्छा है कि यहाँ तो किसी प्रकार मद्य पीना छुड़ाया परन्तु यहाँ के बदले वहाँ उनके स्वर्ग में बड़ी खराबी है मारे स्त्रियों के वहाँ किसी का चित्त स्थिर नहीं रहता होगा और बड़े-बड़े रोग भी होंगे यदि शरीर वाले होते होंगे तो अवश्य मरेंगे और जो शरीर वाले न होंगे तो भोग विलास ही न कर सकेंगे फिर उनका स्वर्ग में जाना व्यर्थ है। यदि लूत को पैगम्बर मानते हो तो जो बाइबिल में लिखा हैकि उससे उसकी लड़कियों ने समागम करके दो लड़े पैदा किए इस बात को भी मानते हो वा नहीं जो मानते हो तो ऐसे को पैगम्बर मानना व्यर्थ है और जो ऐसे और ऐसे के संगियों को खुदा मुक्ति देता है तो वह खुदा भी वैसा ही है, क्योंकि बुढ़िया की कहानी कहने वाला और पक्षपात से दूसरों को मारने वाला खुदा कभी नहीं हो सकता। ऐसा खुदा मुसलमानों के ही घर में रह सकता है, अन्यत्र नहीं ।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५९५-५९६) +:समीक्षक ”यदि वहाँ, जैसे कि कुरान में बाग, बगीचे, नेहरें, मकानादि लिखे हैं, वैसे हैं तो वे न सदा से थे, न सदा रह सकते हैं, क्योंकि जो संयोग से पदार्थ होता है वह संयोग के पूर्व न था, अवश्यभावी वियोग के अन्त में न रहेगा। जब यह हिश्त ही न रहेगा तो उसमें रहने वाले सदा क्योंकर रह सकते हैं क्योंकि लिख है कि गद्‌दी, तकिये, मेवे और पीने के पदार्थ वहाँ मिलेंगे, इससे यह सिद्ध होता है कि जिस समय मुसलमानों का मज़हब चला उस समय अरब देश विशेष धनाढ्‌य न था, इसलिए मुहम्मद साहिब ने तकिए आदि की कथा सुनाकर गरीबों को अपने मत में फंसा लिया और जहाँ स्त्रियाँ हैं, वहाँ निरन्तर सुख कहाँ ये स्त्रियाँ वहाँ-कहा से आई हैं अथवा बहिश्त की रहने वाली हैं यदि आईं हैं तो जायेंगी और जो वहीं की रहने वाली हैं तो क़यामत के पूर्व क्या करती थी क्या निकम्मी अपनीउम्र को बहा रही थीं? +:अब सज्जन लोगों विचारिये कि शैतान को बहकाने वाला खुदा है वा आपसे वह बहका यदि खुदा ने बहकाया तो वह शैतान का शैतान ठहरा। यदि शैतान स्वयं बहका तो अन्य जीव भी स्वयं बहकेगे, शैतान की जरूरत नहीं। और जिससे इस शैतान बागी को खुदा ने खुला छोड़ दिया, इससे विदित हुआ कि वह भी शैतान का शरीक, अधर्म कराने में हुआ। यदि स्वयं चोरी कराके दण्ड देवे तो उसके अन्याय का कुछ भी पारावार नहीं।” (सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ५९६-५९७) +;”जड़ित तखतों पर तकिया लगाए आमने-सामने होंगे। उनके पास किशोर होंगे जो सदैव किशोरावस्था ही में रहेंगे, प्याले और आफ़ताबे (जग) और विशुद्ध पेय से भरा हुआ पात्र लिए फिर रहे होंगे-जिस (के पीने) से न तो उन्हं सिर दर्द होगा ओर न उनकी बुद्धि में विकार आएगा। और (स्वादिष्ट) फल जो वे पसन्द करें और पक्षी का मांस जो वे चाहें और बड़ी आँखों वाली हूरें, मानों छिपाए हुए मोती हों।” (५६।१५-२३, पृ. ४८९) +:समीक्षक-”यदि वहाँ लड़के सदा रहते हैं तो उनके माँ बाप भी रहते होंगे और सास-श्वसुर भी रहते होंगे, तब तो बड़ा भारी शहर बसता होगा। फिर मलमूत्रादि के बढ़ने से रोग भी बहुत से होते होंगे। क्योंकि जब मेवे खावेंगे, गिलासों में पानी पीवेंगे ओर प्यालों सेमद्य पीवेंगे, न उनका शिर दूखेगा और न कोई विरुद्ध बोलेगा। यथेष्ट मेवा खावेंगे और जानवरों तथा पक्षियों के मांस भी खावेंगे तो अनेक प्रकार के दुःख, पक्षी, जानवर वहाँ होंगे, हत्या होगी और हाड़ जहाँ तहाँ बिारे रहेंगे और कसाईयों की दुकानें भी होंगी। वाह! क्या कहना इनके बहिश्त की प्रशंसा कि वह अरब देश से भी बढ़कर दीखती है और जो मद्य मांस खा पी के उन्मत्त होते हैं इसलिए अच्छी-अच्छी स्त्रियां और लौंडे भी वहाँ अवश्य रहने चाहिए, नहीं तो ऐसे नशेबाजों के शिर में गर्मी चढ़ के प्रमत्त हो जावें। अवश्य बहुत स्त्री पुरुषों के बैठने सोने के लिए बिछौने बड़े-बड़े चाहिए। जब खुदा कुमासरियों को बहिश्त में उत्पन्न करता है तभी तो कुमारे लड़कों को भी उत्पन्न करतमा है। भला कुमारियों का तो विवाह जो यहाँ से उम्मेदवार होकर गये हैं उनके साथ खुदा ने लिखा। पर उन सदा रहने वाले लड़कों का भी किन्हीं कुमारियों के साथ विवाह न लिखा। तो क्या वे भी उन्हीं उम्मेदवारों के साथ कुमारीवत दे दिये जायेंगे इसकी व्यवस्था कुछ भी नहीं लिखी, यह खुदा से बड़ी भूल क्यों हुई यदि बराबर अवस्था वाली सुहागिन स्त्रियां पतियोंको पाके बहिश्त में रहती हैं, तो ठीक नहीं हुआ क्योंकि स्त्रियों से पुरुष का आयु दूना ढाईगुना चाहिए। यह तो मुसलमानों के बहिश्त की कथा है।” सत्यार्थ प्रकाश, पृष्ठ ६०२) + + +मॉन्टेस्क्यू Charles de Secondat, Baron de Montesquieu ;18 जनवरी 1689 – 10 फरवरी 1755) फ्रान्स के राजनैतिक विचारक थे। उन्होंने शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। +* सरकार की स्थापना की जानी चाहिए ताकि किसी व्यक्ति को दूसरे से डरने की आवश्यकता न हो। +* देश अपनी प्रजनन क्षमता के कारण खेती नहीं की जाती है, बल्कि उनकी स्वतंत्रता के कारण। +* ताकि सत्ता का दुरुपयोग नहीं किया जा सके, शक्ति को शक्ति को रोकना चाहिए। +* अधिकांश पुरुष अच्छे कर्मों के बजाय महान कार्यों में सक्षम हैं। +* जब पुरुष एक औरत से वादा करते हैं कि वे हमेशा उससे प्यार करेंगे, तो वे बदले में मानते हैं कि वे हमेशा दयालु होने का वादा करते हैं।। +* यदि त्रिभुजों ने ईश्वर बनाया है, तो वे इसे तीन तरफ से तैयार करेंगे। +* कानून मृत्यु की तरह होना चाहिए, जो किसी को छूट नहीं देता है। +* व्यक्ति के साथ किया गया अन्याय पूरे समाज को एक खतरा है। +* इस तरह के खेल क्योंकि यह अधिक होने की उम्मीद है, यानी लालसा flatters। +* कानूनों की छाया में और न्याय की गर्मी के तहत प्रयोग की जाने वाली तुलना में कोई भी बदतर नहीं है। +* जब कोई खुद को डरने का तरीका खोजता है, तो हमेशा किसी को खुद से घृणा करने के लिए खोजता है। +* जो लोग कम करना चाहते हैं वे आम तौर पर बहुत ही बात करते हैं: जितना अधिक वे सोचते हैं और कार्य करते हैं, उतना कम वे बात करते हैं। +* सार्वजनिक कानून में न्याय का सबसे गंभीर कार्य युद्ध है, क्योंकि इसका समाज को नष्ट करने का असर हो सकता है। +* अपराधों से खराब उदाहरण अधिक हानिकारक हैं। +* सबसे प्रशंसनीय: काम करने के बाद तक चीजों के बारे में बात नहीं करते। +* मैत्री एक अनुबंध है जिसके द्वारा हम खुद को छोटे पक्ष करने के लिए मजबूर करते हैं। +* जब मृत्यु भाग्य से मेल खाती है, तो अंतिम संस्कार उन्हें अलग नहीं करना चाहिए। +* एक बात सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि यह कानून है। यह कानून होना चाहिए क्योंकि यह उचित है। +* महत्वाकांक्षा के कारण एक आदमी नाखुश नहीं है, बल्कि क्योंकि वह उसे खाता है। +* ऐसा लगता है कि जब हम इसे दूसरों की याद में डाल सकते हैं तो हमारा जीवन बढ़ता है। +* एक समय में सच्चाई दूसरे में त्रुटि है। +* आपको थोड़ा जानने के लिए कड़ी मेहनत करनी है। +* मनुष्य को अन्याय करने का मौका दें, और वह इसे बर्बाद नहीं करेगा। +* पादरी और कुलीनता राजा के लिए नियंत्रण की एक अच्छी विधि है। +* समाज को नियंत्रित करने वाले कानूनों से कुछ भी नहीं और नहीं होना चाहिए। +* ज्यादातर लोगों के लिए मैं उन्हें सुनने के बजाय उन्हें जल्दी कारण देना पसंद करता हूं। +* स्वतंत्रता में ऐसा करने में सक्षम होना चाहिए जो करने की जरूरत है। +* यहां एक पति जो अपनी पत्नी से प्यार करता है वह एक आदमी है जिसके पास किसी अन्य व्यक्ति से प्यार करने की पर्याप्त योग्यता नहीं है। +* दुनिया में सफल होने के लिए, आपको पागल दिखना और बुद्धिमान होना है। +* हम हमेशा दूसरों की तुलना में खुश होना चाहते हैं, और यह गलत है। +* लोकतंत्र को दो अतिवादों के खिलाफ सावधान रहना चाहिए: असमानता की भावना और चरम समानता की भावना। +* कानूनों को अनुमति देने का अधिकार स्वतंत्रता है। +* सभी सरकारों का अपघटन उन सिद्धांतों के क्षय के साथ शुरू होता है जिन पर इसकी स्थापना हुई थी। +* जब समाज पैदा होते हैं, तो राज्य के मुखिया वे होते हैं जो इसे अपना विशेष चरित्र देते हैं। +* अगर किसी नागरिक को वह करने का अधिकार था जो उन्होंने मना किया था, तो यह अब स्वतंत्रता नहीं रहेगा, क्योंकि किसी अन्य के पास एक ही अधिकार होगा। +* बाद में, यह विशेष चरित्र वह है जो राज्य के प्रमुख बनता है। +* हम हमेशा दूसरों की तुलना में दूसरों को अधिक खुश करते हैं। +* अगर हमारे लिए खुश होने के लिए पर्याप्त था, तो यह बात बहुत आसान होगी; लेकिन हम दूसरों की तुलना में खुश होना चाहते हैं। +* ​​अधिकांश बार सफलता यह जानने पर निर्भर करती है कि इसे प्राप्त करने में कितना समय लगेगा। +* लक्जरी हमेशा भाग्य की असमानता के अनुपात में है। +* कानूनों के उल्लंघन की तुलना में सीमा शुल्क की कमी से अधिक राज्य नष्ट हो गए हैं। +* प्रतिभा का आदमी स्वाभाविक रूप से आलोचना के इच्छुक है, क्योंकि वह अन्य पुरुषों की तुलना में अधिक चीजें देखता है और उन्हें बेहतर देखता है। +* मैं अंतिम संस्कार पार्लर को खत्म करना चाहता हूं। जब वे पैदा होते हैं तो आपको पुरुषों को शोक करना पड़ता है और जब वे मर जाते हैं। +* जब वे मिलते हैं तो बड़े पुरुषों के सिर कम हो जाते हैं। +* ईसाई धर्म, जो बाद के जीवन की खुशी से कोई अन्य उद्देश्य नहीं है, हमें इस में भी खुश करता है।। +* जीवन की चिंताओं के खिलाफ मेरे लिए मुख्य उपाय अध्ययन किया गया है। +* प्रतिभा एक उपहार है कि भगवान हमें गुप्त में बनाता है, और हम अनजाने में प्रकट करते हैं। + + +माइकेल डी मान्तेन फ़्रांसिसी पुनर्जागरण के सबसे प्रभावी लेखक थे। माना जाता है कि उन्होंने ही निबंध को साहित्य की एक विधा के रूप में प्रचलित किया था। उन्हें आधुनिक संशयवाद का जनक भी माना जाता है। +* दूसरों की मदद चाहिए तो उनकी मदद करें, लेकिन खुद के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहें। खुद को अपना 100 फीसदी ही दें। +* जिन चीजों के बारे में सबसे कम जानकारी होती है, उन चीजों में हम स���से ज्यादा विश्वास करते हैं। +* दुनिया में कोई चीज शादी की जितनी खूबसूरत है, तो वह इसलिए क्योंकि उस रिश्ते में प्यार से ज्यादा महत्वपूर्ण दोस्ती है। +* जो व्यक्ति बीमारी या बुरी परिस्थिति को लेकर डरता है, दरअसल वह उसी डर में जीता है। +* कुदरत जिस तरीके से चलती है, उसे उसी तरीके से आगे बढ़ने दे। क्योंकि कुदरत को क्या करना है, कैसे करना है, यह कुदरत से बेहतर कोई नहीं जानता है। +* सबसे अच्छा व्यक्ति वही है जो कई काम करने की योग्यता रखता है। +* दिलेरी ही किसी व्यक्ति की सबसे बड़ी खूबी होती है। +* हर व्यक्ति के जीवन में खौंफनाक घटनाएं होती है और हकीकत यह है कि इनमे से कुछ घटनाएं कभी घटती ही नहीं है यानी यह घटनाएं मनुष्य के दिमाग में होती है। +* अज्ञानता एक ऐसा कोमल तकिया है, जिस पर हर व्यक्ति सिर रखकर आराम कर सकता है। +* समझदार व्यक्ति अगर खुद को जानता है तो वह जीवन में कभी किसी चीज को खो नहीं सकता है। +* मनुष्य यह बखूबी जानता है कि वे किन चीजो से बच रहा है या दूर भाग रहा है, लेकिन वह यह नही जानता कि वह किस चीज की तलाश में है। +* जिस चर्चा में हर व्यक्ति किसी एक बात के पक्ष में होता है, उसी चर्चा में सबसे ज्यादा बोरियत महसूस होती है। +* ज्यादातर लोगो में डर का होना ही सबसे बड़ा डर होता है। +* झूठ बोलने पर जितना नुकसान दुसरो का होता है, उससे ज्यादा नुकसान झूठ बोलने वाले व्यक्ति को होता है। +* अच्छी शादी एक अंधी पत्नी और बहरे पति के बीच ही हो सकती है । + + +धारणीयता या टिकाऊपन sustainability) का सामान्य अर्थ यह प्रश्न करने से है कि किसी संस्कृति, किसी आदत या किसी प्रक्रिया का उसके वर्तमान रूप में बहुत लम्बे समय तक जीवित रखा जा सकता है या नहीं। + + +:प्रकृति आश्रय़ आछे आदि बृक्ष +==शंकरदेवर के बारे में विभिन्न लोगों के विचार== +* अनुपम उपमा घरुवा योजना पटन्तरयुक्त अबाध गतिर भाषारे चरित्रसमूहर स्बाभाविक जातीय़ता, आदर्शत्ब फुटाइ तोला हैछे। स्बभावर स्बरूप बर्णना, युद्धादिर हुबहु बर्णना आदिय़े कबिर बर्णना शक्तिर बिजय़ घोषणा करिछे। (रुक्मिणीहरण काब्य सम्पर्के दिय़ा मन्तब्य) +