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{ | |
"title": "१. सुत्तन्तभाजनीयं", | |
"book_name": "विभङ्गपाळि", | |
"chapter": "१. रूपक्खन्धो", | |
"gathas": [ | |
"छ एते", | |
"सब्बेसं एकसङ्खातो, आयु भवति कित्तको॥", | |
"द्वादस", | |
"पञ्ञास सतसहस्सानि, वस्सग्गेन पकासिताति॥", | |
"भवग्गतम्पि", | |
"ताव दीघायुका सत्ता, चवन्ति आयुसङ्खया।", | |
"नत्थि कोचि भवो निच्चो, इति वुत्तं महेसिना॥", | |
"तस्मा हि धीरा निपका, निपुणा अत्थचिन्तका।", | |
"जरामरणमोक्खाय, भावेन्ति मग्गमुत्तमं॥", | |
"भावयित्वा", | |
"सब्बासवे परिञ्ञाय, परिनिब्बन्ति अनासवाति॥", | |
"अभिञ्ञा द्वे सारम्मणा, दिट्ठा कुसलवेदना।", | |
"विपाका च उपादिन्ना, वितक्कं रूपलोकियाति॥" | |
] | |
} |