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हम होंगे कामयाब
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हम होंगे कामयाब ( का गिरिजा कुमार माथुर द्वारा किया गया हिंदी भावानुवाद) एक प्रतिरोध गीत है। यह गीत बीसवीं सदी में नागरिक अधिकार आंदोलन का प्रधान स्वर बना। इस गीत को आमतौर पर "I'll Overcome Some Day" ("आई विल ओवरकम सम डे") से काव्यावतरित माना जाता है, जो चार्ल्स अल्बर्ट टिंडले द्वारा गाया गया था और जिसे 1900 में पहली बार प्रकाशित किया गया था। सन्दर्भ Hum Honge Kamyab Lyrics श्रेणी:नागरिक अधिकार आंदोलन श्रेणी:देशभक्ति के गीत श्रेणी:आधार
दैनिक पूजा
https://hi.wikipedia.org/wiki/दैनिक_पूजा
दैनिक पूजा विधि जिसे नित्य पूजा भी कहा जाता है, सनातन या हिन्दू धर्म की कई उपासना पद्धतियों में से एक है। यह एक दैनिक कर्म है। विभिन्न देवताओं को प्रसन्न करने के लिये कई मन्त्र बताये गये हैं, पूजा के लिये तीन प्रकार के मंत्र बताये गये हैं - नाम मंत्र, पौराणिक मंत्र और वैदिक मंत्र । नाम मंत्र : जिसमें देवता के नाम के आगे प्रणव हो और पीछे नमः लगा हो। पौराणिक मंत्र : जो मंत्र पुराणों में वर्णित हैं। वैदिक मंत्र : जो मंत्र वेदों में वर्णित हैं। पूजा मुख्यतः छः (6) प्रकार के होते हैं - पञ्चोपचार - पांच (5) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। दशोपचार : दश (10) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। षोडशोपचार : सोलह (16) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। द्वात्रिंशोपचार : बत्तीस (32) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। चतुष्षष्टयोपचार : चौंसठ (64) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। एकोद्वात्रिंशोपचार : एक सौ बत्तीस (132) उपचार पूर्वक की जाने वाली पूजा। पूजा की रीति इस तरह है : पहले कोई भी देवता चुनें, जिनकी पूजा करनी है। फ़िर विधिवत निम्नलिखित नाम मन्त्रों (सभी संस्कृत में हैं) के साथ उनकी पूजा करें। मुख्य देवताओं की पूजा के नाम मंत्र इस प्रकार हैं :- विनायक : ॐ सिद्धि विनायकाय नमः । सरस्वती : ॐ सरस्वत्यै नमः । लक्ष्मी : ॐ महा लक्ष्म्यै नमः । काली : ॐ कालिकायै नमः। दुर्गा : ॐ दुर्गायै नमः । महाविष्णु : ॐ श्री विष्णवे नमः . or ॐ नमो नारायणाय । कृष्ण : ॐ श्री कृष्णाय नमः . or ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । राम : ॐ श्री रामचन्द्राय नमः । नरसिंह : ॐ श्री नारसिंहाय नमः । शिव : ॐ शिवाय नमः या ॐ नमः शिवाय । सूर्य : ॐ सूर्याय नमः। हनुमान : ॐ हनुमते नमः। नवग्रह : ॐ सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः। नीचे लिखे मन्त्र गणेश के लिये हैं : दैनिक विनायक पूजा ध्यान श्लोक शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये .. षोडशोपचार पूजन ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ध्यायामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आवाहयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आसनं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अर्घ्यं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पाद्यं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आचमनीयं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . उप हारं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पंचामृत स्नानं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . वस्त्र युग्मं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . यज्ञोपवीतं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आभरणानि समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . गंधं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अक्षतान् समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पैः पूजयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . प्रतिष्ठापयामि ॥ अथ अंग पूजा विनायक (गणेश) के पाँच नाम चुनें और ऐसा कहें : ॐ महा गणपतये नमः . पादौ पूजयामि ॥ ॐ विघ्न राजाय नमः . उदरम् पूजयामि ॥ ॐ एक दन्ताय नमः . बाहुं पूजयामि ॥ ॐ गौरी पुत्राय नमः . हृदयं पूजयामि ॥ ॐ आदि वन्दिताय नमः . शिरः पूजयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अंग पूजां समर्पयामि ॥ अथ पत्र पूजा विनायक (गणेश) के पाँच नाम चुनें और ऐसा कहें : ॐ महा गणपतये नमः . आम्र पत्रम् समर्पयामि ॥ ॐ विघ्न राजाय नमः . केतकि पत्रम् समर्पयामि ॥ ॐ एक दन्ताय नमः . मन्दार पत्रम् समर्पयामि ॥ ॐ गौरी पुत्राय नमः . सेवन्तिका पत्रं समर्पयामि ॥ ॐ आदि वन्दिताय नमः . कमल पत्रं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पत्र पूजां समर्पयामि ॥ अथ पुष्प पूजा विनायक (गणेश) के पाँच नाम चुनें और ऐसा कहें : ॐ महा गणपतये नमः . जाजी पुष्पं समर्पयामि ॥ ॐ विघ्न राजाय नमः . केतकी पुष्पं समर्पयामि ॥ ॐ एक दन्ताय नमः . मन्दार पुष्पं समर्पयामि ॥ ॐ गौरी पुत्राय नमः . सेवन्तिका पुष्पं समर्पयामि ॥ ॐ आदि वन्दिताय नमः . कमल पुष्पं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्प पूजां समर्पयामि ॥ नाम पूजा अगर सम्भव हो तो गणेश के 108 नाम जपें : ॐ सुमुखाय नमः ॥ ॐ एक दन्ताय नमः ॥ ॐ कपिलाय नमः ॥ ॐ गज कर्णकाय नमः ॥ ॐ लम्बोदराय नमः ॥ ॐ विकटाय नमः ॥ ॐ विघ्न राजाय नमः ॥ ॐ विनायकाय नमः ॥ ॐ धूम्र केतवे नमः ॥ ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ ॐ भालचन्द्राय नमः ॥ ॐ गजाननाय नमः ॥ ॐ वक्रतुण्डाय नमः ॥ ॐ हेरम्बाय नमः ॥ ॐ स्कन्द पूर्वजाय नमः ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः ॥ ॐ श्री महागणपतये नमः ॥ ॐ नाम पूजां समर्पयामि ॥ उत्तर पूजा ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . धूपं आघ्रापयामि ॥ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . दीपं दर्शयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . नैवेद्यं निवेदयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . फलाष्टकं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ताम्बूलं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . कर्पूर नीराजनं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंगल आरतीं समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलिं समर्पयामि ॥ यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च . तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे पदे ॥ प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंत्र पुष्पं समर्पयामि ॥ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ . निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥ प्रार्थनां समर्पयामि ॥ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं . पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम ॥ क्षमापनं समर्पयामि ॥ विसर्जन पूजा ॐ यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्। इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥ ॐ सिद्धि विनायकाय नमः ॥ सन्दर्भ श्रेणी:हिन्दू धर्म
हिन्दी
https://hi.wikipedia.org/wiki/हिन्दी
हिन्दी जिसके मानकीकृत रूप को मानक हिन्दी कहा जाता है, विश्व की एक प्रमुख भाषा है और भारत की एक राजभाषा है। केन्द्रीय स्तर पर भारत में सह-आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक है और अरबी–फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत के संविधान में किसी भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया है। एथनोलॉग के अनुसार हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। भारत की जनगणना २०११ में 57.1% भारतीय जनसंख्या हिन्दी जानती है जिसमें से 43.63% भारतीय लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा या मातृभाषा घोषित किया था। इसके अतिरिक्त भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में 14 करोड़ 10 लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, व्याकरण के आधार पर हिन्दी के समान है, एवं दोनों ही हिन्दुस्तानी भाषा की परस्पर-सुबोध्य रूप हैं। एक विशाल संख्या में लोग हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझते हैं। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की 14 आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग 1 अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिन्दी भारत में सम्पर्क भाषा का कार्य करती है और कुछ हद तक पूरे भारत में सामान्यतः एक सरल रूप में समझी जानेवाली भाषा है। कभी-कभी 'हिन्दी' शब्द का प्रयोग नौ भारतीय राज्यों के सन्दर्भ में भी उपयोग किया जाता है, जिनकी आधिकारिक भाषा हिन्दी है और हिन्दी भाषी बहुमत है, अर्थात् बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखण्ड, जम्मू और कश्मीर (२०२० से) उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात में भी हिन्दी या इसकी मान्य बोलियों का उपयोग करने वाले लोगों की बड़ी संख्या मौजूद है। फरवरी 2019 में अबू धाबी में हिन्दी को न्यायालय की तीसरी भाषा के रूप में मान्यता मिली।[ https://hindi.oneindia.com/news/india/the-abu-dhabi-judicial-department-acknowledged-hindi-language-as-official-language-492820.html अबू धाबी में हिन्दी अब न्यायपालिका की आधिकारिक भाषा, सुषमा स्वराज ने कहा शुक्रिया 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। हिन्दी, यूरोपीय भाषा-परिवार के अन्दर आती है। ये हिन्द ईरानी शाखा की हिन्द आर्य उपशाखा के अन्तर्गत वर्गीकृत है। एथ्नोलॉग (2022, 25वां संस्करण) की रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर में हिंदी को प्रथम और द्वितीय भाषा के रूप में बोलने वाले लोगों की संख्या के आधार पर हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। नामोत्पत्ति हिन्दी शब्द का सम्बन्ध संस्कृत शब्द 'सिन्धु' से माना जाता है। 'सिन्धु' सिन्धु नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह सिन्धु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिन्दू’, हिन्दी और फिर ‘हिन्द’ हो गया। बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिन्द शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द+ईक) ‘हिन्दीक’ बना जिसका अर्थ है ‘हिन्द का’। यूनानी शब्द ‘इण्डिका’ या लैटिन 'इण्डेया' या अंग्रेजी शब्द ‘इण्डिया’ आदि इस ‘हिन्दीक’ के ही दूसरे रूप हैं। हिन्दी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफ़ुद्दीन यज्दी’ के ‘जफ़रनामा’(1424) में मिलता है। प्रमुख उर्दू लेखकों ने 19वीं सदी की सूचना तक अपनी भाषा को हिंदी या हिंदवी के रूप में संदर्भित करते रहे। प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन ने अपने "हिन्दी एवं उर्दू का अद्वैत" शीर्षक आलेख में हिन्दी की व्युत्पत्ति पर विचार करते हुए कहा है कि ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में 'स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी बल्कि 'स्' को 'ह्' की तरह बोला जाता था। जैसे संस्कृत शब्द 'असुर' का अवेस्ता में सजाति समकक्ष शब्द 'अहुर' था। अफ़गानिस्तान के बाद सिन्धु नदी के इस पार हिन्दुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फ़ारसी साहित्य में भी 'हिन्द', 'हिन्दुश' के नामों से पुकारा गया है तथा यहाँ की किसी भी वस्तु, भाषा, विचार को विशेषण के रूप में 'हिन्दीक' कहा गया है जिसका मतलब है 'हिन्द का' या 'हिन्द से'। यही 'हिन्दीक' शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में 'इण्डिके', 'इण्डिका', लैटिन में 'इण्डेया' तथा अंग्रेजी में 'इण्डिया' बन गया। दूसरा एक भावना के मुत़ाबिक़, अरबी هندية हिन्दीया लफ़्ज़ के साधारण लैटिनी कृत रूप है इंडिया India. जैसे Hindiyyah (मूल अरबी)> Hindia साधारणीकृत >India लैटिनीकृत. अरबी एवं फ़ारसी साहित्य में भारत (हिन्द) में बोली जाने वाली भाषाओं के लिए 'ज़ुबान-ए-हिन्दी' पद का उपयोग हुवा है। भारत आने के बाद अरबी-फ़ारसी बोलने वालों ने 'ज़ुबान-ए-हिन्दी', 'हिन्दी ज़ुबान' अथवा 'हिन्दी' का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चारों ओर बोली जाने वाली भाषा के अर्थ में किया। भाषायी उत्पत्ति और इतिहास हिन्‍दी भाषा का इतिहास लगभग एक सहस्र वर्ष पुराना माना गया है। हिन्‍दी भाषा व साहित्‍य के जानकार अपभ्रंश की अन्तिम अवस्‍था 'अवहट्ठ से हिन्‍दी का उद्भव स्‍वीकार करते हैं। हिंदी के विकास की यात्रा, हिंदी कैसे बनी भारत के हृदय की भाषा (२०१९) चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' ने इसी अवहट्ट को 'पुरानी हिन्दी' नाम दिया। अपभ्रंश की समाप्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जन्मकाल के समय को संक्रान्तिकाल कहा जा सकता है। हिन्दी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। १००० ई॰ के आसपास इसकी स्वतन्त्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक सन्दर्भों में प्रयोग में आ रही थीं। यही भाषाएँ बाद में विकसित होकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में अभिहित हुईं। अपभ्रंश का जो भी कथ्य रूप था - वही आधुनिक बोलियों में विकसित हुआ। अपभ्रंश के सम्बन्ध में ‘देशी’ शब्द की भी बहुधा चर्चा की जाती है। वास्तव में ‘देशी’ से देशी शब्द एवं देशी भाषा दोनों का बोध होता है। भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में उन शब्दों को ‘देशी’ कहा है जो संस्कृत के तत्सम एवं सद्भव रूपों से भिन्न हैं। ये ‘देशी’ शब्द जनभाषा के प्रचलित शब्द थे, जो स्वभावतः अप्रभंश में भी चले आए थे। जनभाषा व्याकरण के नियमों का अनुसरण नहीं करती, परन्तु व्याकरण को जनभाषा की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना पड़ता है। प्राकृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिखे और संस्कृत को ही प्राकृत आदि की प्रकृति माना। अतः जो शब्द उनके नियमों की पकड़ में न आ सके, उनको देशी संज्ञा दी गयी। अंग्रेजी काल में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के समय हिन्दी के विकास में एक नयी चेतना आयी। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के समय महात्मा गाँधी सहित अनेक नेताओं ने भारतीय एकता के लिये हिन्दी के विकास का समर्थन किया। काशी नागरी प्रचारिणी सभा और हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के प्रयासों से हिन्दी को एक नयी ऊँचाई मिली। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात संविधान निर्माताओं ने हिन्दी को भारत की राजभाषा स्वीकार किया। हिंदी भाषा का इतिहास और हिंदी भाषा का विकास शैलियाँ भाषाशास्त्र के अनुसार हिन्दी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं : मानक हिन्दी - हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। इसमें संस्कृत भाषा के कई शब्द है, जिन्होंने फ़ारसी और अरबी के कई शब्दों की जगह ले ली है। इसे 'शुद्ध हिन्दी' भी कहते हैं। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी। दक्षिणी - उर्दू-हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें फ़ारसी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं। रेख्ता - उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता था। उर्दू - हिन्दी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं, और फ़ारसी-अरबी के शब्द अधिक। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है। हिन्दी और उर्दू दोनों को मिलाकर हिन्दुस्तानी भाषा कहा जाता है। हिन्दुस्तानी मानकीकृत हिन्दी और मानकीकृत उर्दू के बोलचाल की भाषा है। इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनों के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक। उच्च हिन्दी भारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद 343, भारतीय संविधान)। यह इन भारतीय राज्यों की भी राजभाषा है : उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली। इन राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हिन्दी भाषी राज्यों से लगते अन्य राज्यों में भी हिन्दी बोलने वालों की अच्छी संख्या है। उर्दू पाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है, इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना और दिल्ली में द्वितीय राजभाषा है। यह लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है; जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्दी है। हिन्दी एवं उर्दू भाषाविद हिन्दी एवं उर्दू को एक ही भाषा समझते हैं। हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर अधिकांशतः संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करती है। उर्दू, नस्तालिक लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर फ़ारसी और अरबी भाषाओं का प्रभाव अधिक है। हालाँकि व्याकरणिक रूप से उर्दू और हिन्दी में कोई अन्तर नहीं है परन्तु कुछ विशेष क्षेत्रों में शब्दावली के स्रोत (जैसा कि ऊपर लिखा गया है) में अन्तर है। कुछ विशेष ध्वनियाँ उर्दू में अरबी और फ़ारसी से ली गयी हैं और इसी प्रकार फ़ारसी और अरबी की कुछ विशेष व्याकरणिक संरचनाएँ भी प्रयोग की जाती हैं। उर्दू और हिन्दी खड़ीबोली की दो आधिकारिक शैलियाँ हैं। मानकीकरण स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से हिन्दी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयास हुये हैं :- हिन्दी व्याकरण का मानकीकरण वर्तनी का मानकीकरण शिक्षा मंत्रालय के निर्देश पर केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा देवनागरी का मानकीकरण वैज्ञानिक ढंग से देवनागरी लिखने के लिये एकरूपता के प्रयास यूनिकोड का विकास बोलियाँ हिन्दी का क्षेत्र विशाल है तथा हिन्दी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं। इनमें से कुछ में अत्यन्त उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना भी हुई है। ऐसी बोलियों में ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। ये बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परम्परा, इतिहास, सभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतन्त्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के विरुद्ध भी उसका रचना संसार सचेत है। हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुन्देली, बघेली, भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउँनी, मगही आदि। किन्तु हिन्दी के मुख्य दो भेद हैं - पश्चिमी हिन्दी तथा पूर्वी हिन्दी। लिपि हिन्दी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। इसे नागरी के नाम से भी जाना जाता है। देवनागरी में 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है। शब्दावली हिन्दी शब्दावली में मुख्यतः चार वर्ग हैं। तत्सम शब्द – ये वे शब्द हैं जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप बदले ले लिया गया है। जैसे अग्नि, दुग्ध, दन्त, मुख। (परन्तु हिन्दी में आने पर ऐसे शब्दों से विसर्ग का लोप हो जाता है जैसे संस्कृत 'नामः' हिन्दी में केवल 'नाम' हो जाता है।Masica, p. 65) तद्भव शब्द – ये वे शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें बहुत ऐतिहासिक बदलाव आया है। जैसे आग, दूध, दाँत, मुँह। देशज शब्द – देशज का अर्थ है 'जो देश में ही उपजा या बना हो'। तो देशज शब्द का अर्थ हुआ जो न तो विदेशी भाषा का हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो। ऐसा शब्द जो न संस्कृत का हो, न संस्कृत-शब्द का अपभ्रंश हो। ऐसा शब्द किसी प्रदेश (क्षेत्र) के लोगों द्वारा बोल-चाल में य़ों ही बना लिया जाता है। जैसे खटिया, लुटिया। विदेशी शब्द – इसके अतिरिक्त हिन्दी में कई शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की, अंग्रेजी आदि से भी आये हैं। इन्हें विदेशी शब्द कहते हैं। जिस हिन्दी में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी के शब्द लगभग पूर्ण रूप से हटा कर तत्सम शब्दों को ही प्रयोग में लाया जाता है, उसे "शुद्ध हिन्दी" या "मानकीकृत हिन्दी" कहते हैं। हिन्दी स्वरविज्ञान देवनागरी लिपि में हिन्दी की ध्वनियाँ इस प्रकार हैं : स्वर ये स्वर आधुनिक हिन्दी (खड़ीबोली) के लिये दिये गये हैं। वर्णाक्षर“प” के साथ मात्राआईपीए उच्चारण"प्" के साथ उच्चारणISO समतुल्यअंग्रेज़ी समतुल्य अपa बीच का मध्य प्रसृत स्वर आपाā दीर्घ विवृत पश्व प्रसृत स्वर इपिi ह्रस्व संवृत अग्र प्रसृत स्वर ईपीī दीर्घ संवृत अग्र प्रसृत स्वर उपुu ह्रस्व संवृत पश्व वर्तुल स्वर ऊपूū दीर्घ संवृत पश्व वर्तुल स्वर एपेe दीर्घ अर्धसंवृत अग्र प्रसृत स्वर ऐपैai दीर्घ लगभग-विवृत अग्र प्रसृत स्वर ओपोo दीर्घ अर्धसंवृत पश्व वर्तुल स्वर औपौau दीर्घ अर्धविवृत पश्व वर्तुल स्वर इसके अलावा हिन्दी और संस्कृत में ये वर्णाक्षर भी स्वर माने जाते हैं : ऋ — इसका उच्चारण संस्कृत में /r̩/ था मगर आधुनिक हिन्दी में इसे /ɻɪ/ उच्चारित किया जाता है । अं — पंचम वर्ण - ङ्, ञ्, ण्, न्, म् का नासिकीकरण करने के लिए (अनुस्वार) अँ — स्वर का अनुनासिकीकरण करने के लिए (चंद्र बिंदु) अः — अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिए (विसर्ग) व्यंजन जब किसी स्वर प्रयोग ना हो तो वहाँ पर डिफ़ॉल्ट रूप से 'अ' स्वर माना जाता है। स्वर के ना होना व्यंजन के नीचे हलन्त्‌ या विराम लगाके दर्शाया जाता है। जैसे क्‌ /k/, ख्‌ /kʰ/, ग्‌ /g/ और घ्‌ /gʱ/। स्पर्श (प्लोसिव) अल्पप्राणअघोष महाप्राणअघोष अल्पप्राणघोष महाप्राणघोष नासिक्यकण्ठ्यक ख ग घ ङ तालव्यच छ ज झ ञ मूर्धन्यट ठ ड ढ ण दन्त्यत थ द ध न ओष्ठ्यप फ ब भ म स्पर्शरहित (नॉन-प्लोसिव)तालव्यमूर्धन्यदन्त्य/वर्त्स्यकण्ठोष्ठ्य/काकल्यअन्तस्थय र ल व ऊष्म/संघर्षीश ष स ह ध्यातव्य इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त व्यंजन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी और वैदिक संस्कृत में सभी का प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज करना। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिनि शाखा कुछ वाक़्यात में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था। आधुनिक हिन्दी में ष का उच्चारण पूरी तरह श की तरह होता है। हिन्दी में ण का उच्चारण कभी-कभी ड़ँ की तरह होता है, यानी कि जीभ मुँह की छत को एक जोरदार ठोकर मारती है। परन्तु इसका शुद्ध उच्चारण जिह्वा को मूर्धा (मुँह की छत. जहाँ से 'ट' का उच्चार करते हैं) पर लगा कर न की तरह का अनुनासिक स्वर निकालकर होता है। विदेशी ध्वनियाँ ये ध्वनियाँ मुख्यत: अरबी और फ़ारसी भाषाओं से लिये गये शब्दों के मूल उच्चारण में होती हैं। इनका स्रोत संस्कृत नहीं है। देवनागरी लिपि में ये सबसे करीबी देवनागरी वर्ण के नीचे बिन्दु (नुक़्ता) लगाकर लिखे जाते हैं। वर्णाक्षर (आईपीए उच्चारण) उदाहरण वर्णन क़ () क़त्ल अघोष अलिजिह्वीय स्पर्श ख़ () ख़ास अघोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी ग़ () ग़ैर घोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी फ़ () फ़र्क अघोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी ज़ () ज़ालिम घोष वर्त्स्य संघर्षी व्याकरण अन्य सभी भारतीय भाषाओं की तरह हिन्दी में भी कर्ता-कर्म-क्रिया वाला वाक्यविन्यास है। हिन्दी में दो लिंग होते हैं — पुल्लिंग और स्त्रीलिंग। नपुंसक वस्तुओं का लिंग भाषा परम्परानुसार पुल्लिंग या स्त्रीलिंग होता है। क्रिया के रूप कर्ता के लिंग पर निर्भर करता है। हिन्दी में दो वचन होते हैं — एकवचन और बहुवचन। क्रिया वचन-से भी प्रभावित होती है। विशेषण विशेष्य-के पहले लगता है। +कारक दर्शानेवाले परसर्गकारकपरसर्गउदाहरणविवरणकर्ता—लड़काक्रिया का करनेवाला/वाली व्यक्ति या चीज़ Ergativeनेलड़के नेperfective aspect में सकर्मक क्रियाओं के लिए वाक्यों का विषय चिह्नित करता हैकर्मकोलड़के को प्रत्यक्ष वास्तु को चिह्नित करता है। सम्प्रदानप्रत्यक्ष वस्तु को चिह्नित करता है मगर वाक्य के विषय को भी दर्शा सकता है।Bhatt, Rajesh (2003). Experiencer subjects. Handout from MIT course “Structure of the Modern Indo-Aryan Languages”.dative subjects; dative subjectकरण सेलड़के सेक्रिया जिस वस्तु या जिस व्यक्ति के साथ की गयी है उसे चिह्नित करता है। अपादानदिखता है कि कोई चीज किसी दुसरे चीज से दूर मूवमेंट है। सम्बन्धका, की, केलड़के कादिखता है कि कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु/व्यक्ति की है। Inessiveमेंलड़के मेंदिखाता है कि कोई चीज किसी चीज के अन्दर है। Adessiveपे / परलड़के पेदिखता है कि कोई चीज किसी चीज के ऊपर (सतह पर) है। Terminativeतकलड़के तकदिखता है कि कोई चीज दूसरे चीज तक गयी है। Semblativeसालड़के साकिसी चीज की दूसरे चीज से समानता दिखाता है। +लिंग और वचन सूचककारक♂♀एकवचनबहुवचनएकवचनबहुवचनकर्ताका के कीपरोक्षके जनसांख्यिकी भारत की जनगणना २०११ में 57.1% भारतीय आबादी हिन्दी जानती है जिसमें से 43.63% भारतीय लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा या मातृभाषा घोषित किया था। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 8,63,077; मॉरीशस में 6,85,170; दक्षिण अफ़्रीका में 8,90,292; यमन में 2,32,760; युगांडा में 1,47,000; सिंगापुर में 5000; नेपाल में 8 लाख; जर्मनी में 30,000 हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत में उपयोग सम्पर्क भाषा भिन्न-भिन्न भाषा-भाषियों के मध्य परस्पर विचार-विनिमय का माध्यम बनने वाली भाषा को सम्पर्क भाषा कहा जाता है। अपने राष्ट्रीय स्वरूप में ही हिन्दी पूरे भारत की सम्पर्क भाषा बनी हुई है।Goa and the rise of Hindi अपने सीमित रूप –प्रशासनिक भाषा के रूप – में हिन्दी व्यवहार में भिन्न भाषाभाषियों के बीच परस्पर सम्प्रेषण का माध्यम बनी हुई है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में बोली और समझी जाने वाली (बॉलीवुड के कारण) देशभाषा हिन्दी है, यह राजभाषा भी है तथा सारे देश को जोड़ने वाली सम्पर्क भाषा भी। राजभाषा right|thumb|200px|हिन्दी संघ की राजभाषा है। इसके अलावा पीले रंग में दिखाये गये क्षेत्रों (राज्यों) की राजभाषा भी है। हिन्दी भारत की राजभाषा है। 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। राष्ट्रभाषा भारत की स्वतंत्रता के पहले और उसके बाद भी बहुत से लोग हिन्दी को 'राष्ट्रभाषा' कहते आये हैं (उदाहरणतः, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे आदि) किन्तु भारतीय संविधान में 'राष्ट्रभाषा' का उल्लेख नहीं हुआ है और इस दृष्टि से हिन्दी को राष्ट्रभाषा कहने का कोई अर्थ नहीं है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा कहने के एक हिमायती महात्मा गांधी भी थे, जिन्होंने 29 मार्च 1918 को इन्दौर में आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। उस समय उन्होंने अपने सार्वजनिक उद्बोधन में पहली बार आह्वान किया था कि हिन्दी को ही भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिये। उन्होने यह भी कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। उन्होने तो यहाँ तक कहा था कि हिन्दी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। आजाद हिन्द फौज का राष्ट्रगान 'शुभ सुख चैन' भी "हिन्दुस्तानी" में था। उनका अभियान गीत 'कदम कदम बढ़ाए जा' भी इसी भाषा में था, परन्तु सुभाष चन्द्र बोस हिन्दुस्तानी भाषा के संस्कृतकरण के पक्षधर नहीं थे, अतः शुभ सुख चैन को जनगणमन के ही धुन पर, बिना कठिन संस्कृत शब्दावली के बनाया गया था। पूर्वोत्तर भारत में पूर्वोत्तर भारत में अनेक जनजातियाँ निवास करती हैं जिनकी अपनी-अपनी भाषाएँ तथा बोलियाँ हैं। इनमें बोड़ो, कछारी, जयन्तिया, कोच, त्रिपुरी, गारो, राभा, देउरी, दिमासा, रियांग, लालुंग, नागा, मिजो, त्रिपुरी, जामातिया, खासी, कार्बी, मिसिंग, निशी, आदी, आपातानी, इत्यादि प्रमुख हैं। पूर्वोत्तर की भाषाओं में से केवल असमिया, बोड़ो और मणिपुरी को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिला है। सभी राज्यों में हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिकांश प्रवासी हिन्दी भाषियों द्वारा आपस में किया जाता है। पूर्वोत्तर में हिन्दी का औपचारिक रूप से प्रवेश वर्ष 1934 में हुआ, जब महात्मा गांधी अखिल भारतीय हरिजन सभा की स्थापना हेतु असम आये। उस समय गड़मूड़ (माजुली) के सत्राधिकार (वैष्णव धर्मगुरू) एवं स्वतन्त्रता सेनानी पीताम्बर देव गोस्वामी के आग्रह पर गांधी जी सन्तुष्ट होकर बाबा राघव दास को हिन्दी प्रचारक के रूप में असम भेजा। वर्ष 1938 में असम हिन्दी प्रचार समिति की स्थापना गुवाहाटी में हुई। यह समिति आगे चलकर असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति बनी। आम लोगों में हिन्दी भाषा तथा साहित्य के प्रचार-प्रसार करने हेतु- प्रबोध, विशारद, प्रवीण, आदि परीक्षाओं का आयोजन इस समिति के द्वारा होता आ रहा है। पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी की स्थिति दिनों-दिन सबल होती जा रही है और यह सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। आजकल अरुणाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर हिन्दी बोली जाने लगी है। हिन्दी का प्रचार-प्रसार तथा उसकी लोकप्रियता एवं व्यावहारिकता टी.वी. (धारावाहिक, विज्ञापन), सिनेमा, आकाशवाणी, पत्रकारिता, विद्यालय, महाविद्यालय तथा उच्च शिक्षा में हिन्दी भाषा के प्रयोग द्वारा बढ़ रही है। भारत के बाहर सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् 1997 में 'सैंसस ऑफ़ इण्डिया' का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् 1998 में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अंग्रेजी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अंग्रेजी भाषियों से अधिक है। विश्वभाषा बनने के सभी गुण हिन्दी में विद्यमान हैं।हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य (डा. करुणाशंकर उपाध्याय) बीसवीं सदी के अन्तिम दो दशकों में हिन्दी का अन्तरराष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। हिन्दी एशिया के व्यापारिक जगत् में धीरे-धीरे अपना स्वरूप बिम्बित कर भविष्य की अग्रणी भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है। वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिन्दी की माँग जिस तेजी से बढ़ी है वैसी किसी और भाषा में नहीं। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े केन्द्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। विदेशों में 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ लगभग नियमित रूप से हिन्दी में प्रकाशित हो रही हैं। यूएई के 'हम एफ़-एम' सहित अनेक देश हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिनमें बीबीसी, जर्मनी के डॉयचे वेले, जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिन्दी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दिसम्बर 2016 में विश्व आर्थिक मंच ने 10 सर्वाधिक शक्तिशाली भाषाओं की जो सूची जारी की है उसमें हिन्दी भी एक है। इसी प्रकार 'कोर लैंग्वेजेज' नामक साइट ने 'दस सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाषाओं'[http://corelanguages.com/top-ten-important-languages/ Top Ten Most Important Languages में हिन्दी को स्थान दिया था। के-इण्टरनेशनल ने वर्ष 2017 के लिये सीखने योग्य सर्वाधिक उपयुक्त नौ भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिया है। हिन्दी का एक अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने और विश्व हिन्दी सम्मेलनों के आयोजन को संस्थागत व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से 11 फरवरी 2008 को विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना की गयी थी। संयुक्त राष्ट्र रेडियो अपना प्रसारण हिन्दी में भी करना आरम्भ किया है। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाये जाने के लिए भारत सरकार प्रयत्नशील है। अगस्त 2018 से संयुक्त राष्ट्र ने साप्ताहिक हिन्दी समाचार बुलेटिन आरम्भ किया है। डिजिटिकरण और कम्प्यूटर क्रान्ति कम्प्यूटर और इण्टरनेट ने पिछले वर्षों में विश्व में सूचना क्रान्ति ला दी है। आज कोई भी भाषा कम्प्यूटर (तथा कम्प्यूटर सदृश अन्य उपकरणों) से दूर रहकर लोगों से जुड़ी नहीं रह सकती। कम्प्यूटर के विकास के आरम्भिक काल में अंग्रेजी को छोड़कर विश्व की अन्य भाषाओं के कम्प्यूटर पर प्रयोग की दिशा में बहुत कम ध्यान दिया गया जिसके कारण सामान्य लोगों में यह गलत धारणा फैल गयी कि कम्प्यूटर अंग्रेजी के सिवा किसी दूसरी भाषा (लिपि) में काम ही नहीं कर सकता। किन्तु यूनिकोड (Unicode) के पदार्पण के बाद स्थिति बहुत तेजी से बदल गयी। 19 अगस्त 2009 में गूगल ने कहा की हर 5 वर्षों में हिन्दी की सामग्री में 94% बढ़ोतरी हो रही है। हिन्दी की इण्टरनेट पर अच्छी उपस्थिति है। गूगल जैसे सर्च इंजन हिन्दी को प्राथमिक भारतीय भाषा के रूप में पहचानते हैं। इसके साथ ही अब अन्य भाषा के चित्र में लिखे शब्दों का भी अनुवाद हिन्दी में किया जा सकता है। फरवरी 2018 में एक सर्वेक्षण के हवाले से खबर आयी कि इण्टरनेट की दुनिया में हिन्दी ने भारतीय उपभोक्ताओं के बीच अंग्रेजी को पछाड़ दिया है। यूथ4वर्क की इस सर्वेक्षण रिपोर्ट ने इस आशा को सही साबित किया है कि जैसे-जैसे इण्टरनेट का प्रसार छोटे शहरों की ओर बढ़ेगा, हिन्दी और भारतीय भाषाओं की दुनिया का विस्तार होता जाएगा। इस समय हिन्दी में सजाल (वेबसाइट), चिट्ठे (ब्लॉग), विपत्र (ईमेल), गपशप (चैट), खोज (वेब-सर्च), सरल मोबाइल सन्देश (एसएमएस) तथा अन्य हिन्दी सामग्री उपलब्ध हैं। इस समय अन्तरजाल पर हिन्दी में संगणन (कम्प्यूटिंग) के संसाधनों की भी भरमार है और नित नये कम्प्यूटिंग उपकरण आते जा रहे हैं। लोगों में इनके बारे में जानकारी देकर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है ताकि अधिकाधिक लोग कम्प्यूटर पर हिन्दी का प्रयोग करते हुए अपना, हिन्दी का और पूरे हिन्दी समाज का विकास करें। शब्दनगरी जैसी नई सेवाओं का प्रयोग करके लोग अच्छे हिन्दी साहित्य का लाभ अब इण्टरनेट पर भी उठा सकते हैं। जनसंचार मुम्बई में स्थित "बॉलीवुड" हिन्दी फ़िल्म उद्योग पर भारत के करोड़ो लोगों की धड़कनें टिकी रहती हैं। हर चलचित्र में कई गाने होते हैं। हिन्दी और उर्दू (खड़ीबोली) के साथ साथ अवधी, बम्बइया हिन्दी, भोजपुरी, राजस्थानी जैसी बोलियाँ भी संवाद और गानों में उपयुक्त होती हैं। प्यार, देशभक्ति, परिवार, अपराध, भय, इत्यादि मुख्य विषय होते हैं। अधिकतर गाने उर्दू शायरी पर आधारित होते हैं। अब मोबाइल कम्पनियाँ ऐसे हैंडसेट बना रही हैं जो हिन्दी और भारतीय भाषाओं को सपोर्ट करते हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ हिन्दी जानने वाले कर्मचारियों को वरीयता दे रही हैं। हॉलीवुड की फिल्में हिन्दी में डब हो रही हैं और हिन्दी फिल्में देश के बाहर देश से अधिक कमाई कर रही हैं। हिन्दी, विज्ञापन उद्योग की पसन्दीदा भाषा बनती जा रही है। गूगल, ट्रांसलेशन, ट्रांस्लिटरेशन, फोनेटिक टूल्स, गूगल असिस्टेण्ट आदि के क्षेत्र में नई नई रिसर्च कर अपनी सेवाओं को बेहतर कर रहा है। हिन्दी और भारतीय भाषाओं की पुस्तकों का डिजिटलीकरण जारी है। फेसबुक और व्हाट्सएप हिन्दी और भारतीय भाषाओं के साथ तालमेल बिठा रहे हैं। सोशल मीडिया ने हिन्दी में लेखन और पत्रकारिता के नए युग का सूत्रपात किया है और कई जनान्दोलनों को जन्म देने और चुनाव जिताने-हराने में उल्लेखनीय और हैरान करने वाली भूमिका निभाई है। सितम्बर 2018 में प्रकाशित हुई एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार हिन्दी में ट्वीट करना अत्यन्त लोकप्रिय हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष सबसे अधिक पुनः ट्वीट किए गये 15 सन्देशों में से 11 हिन्दी के थे। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का बाजार इतना बड़ा है कि अनेक कम्पनियाँ अपने उत्पाद और वेबसाइटें हिन्दी और स्थानीय भाषाओं में ला रहीं हैं।How online vernacular market is becoming the next big battle ground for tech cos (मार्च २०१८) इन्हें भी देखें हिन्दी साहित्य का इतिहास हिन्दी व्याकरण भारत की भाषाएँ हिंग्लिश हिन्दको भाषा फिजी हिन्दी हिन्दी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य हिन्दी भाषियों की संख्या के आधार पर भारत के राज्यों की सूची हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी अन्तरजाल पर हिन्दी सामग्री - क्या कहाँ है? हिन्दी विक्षनरी हिन्दी विकिकोट हिन्दी विकिपुस्तक हिन्दी विकिस्रोत - हिन्दी के कापीराइट-मुक्त पुस्तकों का संग्रह </div> सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हिन्दी पर महापुरुषों के विचार हिन्दी फ़्रेजबुक दक्षिण भारत में तेजी से बढ़ रहे हिंदी बोलने वाले, देश के 44 फीसदी लोगों की बनी भाषा (२०११ जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार) हिन्दी श्रेणी:हिन्द-आर्य भाषाएँ श्रेणी:विश्व की प्रमुख भाषाएं श्रेणी:भारत की भाषाएँ
फ़ारसी भाषा
https://hi.wikipedia.org/wiki/फ़ारसी_भाषा
फ़ारसी (), एक भाषा है जो ईरान, ताजिकिस्तान, अफ़गानिस्तान और उज़बेकिस्तान में बोली जाती है। यह ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, ताजिकिस्तान की राजभाषा है और इसे ७.५ करोड़ लोग बोलते हैं। भाषाई परिवार के लिहाज़ से यह हिन्द यूरोपीय परिवार की हिन्द ईरानी (इंडो ईरानियन) शाखा की ईरानी उपशाखा का सदस्य है और हिन्दी की तरह इसमें क्रिया वाक्य के अंत में आती है। फ़ारसी संस्कृत से क़ाफ़ी मिलती-जुलती है और उर्दू (और हिन्दी) में इसके कई शब्द प्रयुक्त होते हैं। ये अरबी-फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। अंग्रेज़ों के आगमन से पहले भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ारसी भाषा का प्रयोग दरबारी कामों तथा लेखन की भाषा के रूप में होता है। दरबार में प्रयुक्त होने के कारण ही अफ़गानिस्तान में इस दरी कहा जाता है। वर्गीकरण इसे हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार की हिन्द-ईरानी शाखा की ईरानी भाषाओं की उपशाखा के पश्चिमी विभाग में वर्गीकृत किया जाता है। हालाँकि भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ारसी को ग़लती से अरबी भाषा के समीप समझा जाता है, भाषावैज्ञानिक दृष्टि से यह अरबी से बहुत भिन्न और संस्कृत के बहुत समीप है। संस्कृत और फ़ारसी में कई हज़ारों मिलते-जुलते सजातीय शब्द मिलते हैं जो दोनों भाषाओँ की सांझी धरोहर हैं, जैसे की सप्ताह/हफ़्ता, नर/नर (पुरुष), दूर/दूर, हस्त/दस्त (हाथ), शत/सद (सौ), आप/आब (पानी), हर/ज़र (फ़ारसी में पीला-सुनहरा, संस्कृत में पीला-हरा), मय/मद/मधु (शराब/शहद), अस्ति/अस्त (है), रोचन/रोशन (चमकीला), एक/येक, कपि/कपि (वानर), दन्त/दन्द (दाँत), मातृ/मादर, पितृ/पिदर, भ्रातृ/बिरादर (भाई), दुहितृ/दुख़्तर (बेटी), वंश/बच/बच्चा, शुकर/ख़ूक (सूअर), अश्व/अस्ब (घोड़ा), गौ/गऊ (गाय), जन/जान (संस्कृत में व्यक्ति/जीव, फ़ारसी में जीवन), भूत/बूद (था, अतीत), ददामि/दादन (देना), युवन/जवान, नव/नव (नया) और सम/हम (बराबर)।The eastern origin of the Celtic nations proved by a comparison of their dialects with the Sanskrit, Greek, Latin and Teutonic languages , James Cowles PrichardAryans and British India , Thomas R. Trautmann, Yoda Press, 2004, ISBN 978-81-902272-1-6, ... that Persian is closely related to Sanskrit, and that it is not closely related to Arabic, loanwords apart. Having twice read Firdausi, whose Shahnameh is almost devoid of Arabic words, he tells us, he finds that hundreds of Persian nounds are pure Sanskrit with no more change than one finds in the modern languages of India, that very many Persian imperatives are the roots of Sanskrit verbs, and that even the moods and tenses of the Persian verb substantive are deducible from the Sanskrit by an easy and clear analogy ... नाम भारत में इसे फ़ारसी कहा जाता है। इसका मूल नाम 'पारसी' है पर अरब लोग, जिन्होंने फ़ारस पर सातवीं सदी के अंत तक अधिकार कर लिया था, की वर्णमाला में 'प' अक्षर नहीं होता है। इस कारण से वे इसे फ़ारसी कहते थे और यही नाम भारत में भी प्रयुक्त होता है। यूनानी लोग फार्स को पर्सिया (पुरानी ग्रीक में पर्सिस, Πέρσις) कहते थे। जिसके कारण यहाँ की भाषा पर्सियन (Persian) कहलाई। यही नाम अंग्रेज़ी सहित अन्य यूरोपीय भाषाओं में प्रयुक्त होता है। इतिहास फ़ारसी एक ईरानी भाषा है जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार की हिंद-ईरानी शाखा में आती है। सामान्यत: ईरानी भाषा तीन अवधियों से जानी जाती है। आमतौर पर इस रूप में इसे ऐसे संदर्भित किया जाता हैं: पुरानी, मध्य और नई (आधुनिक) अवधि। ये ईरानी इतिहास में तीन युगों के अनुरूप हैं; पुराना युग हख़ामनी साम्राज्य से कुछ पहले का समय हैं, हख़ामनी युग और हख़ामनी के कुछ बाद वाला समय (400-300 ईसा पूर्व) है, मध्य युग सासानी युग और सासानी के कुछ बाद वाला समय और नया युग वर्तमान दिन तक की अवधि है। vi(2). Documentation. उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, फ़ारसी भाषा "केवल अकेली ईरानी भाषा" है, जिसके लिए इसके तीनों चरणों के नज़दीकी भाषाविज्ञान-संबंधी रिश्ते स्थापित किए गए हैं तो पुरानी, मध्य और नई फ़ारसी एक ही फारसी भाषा का प्रतिनिधित्व करते हैं, कि नई फ़ारसी मध्य और पुरानी फारसी की एक प्रत्यक्ष वंशज है। दक्षिण एशिया में प्रयोग फ़ारसी भाषा ने पश्चिम एशिया, यूरोप, मध्य एशिया और दक्षिण एशियाई क्षेत्र की कई आधुनिक भाषाओं के निर्माण को प्रभावित किया। दक्षिण एशिया में तुर्कों-फ़ारसी गज़नवी विजय के बाद, फारसी सबसे पहले इस क्षेत्र में समाविष्ट की गई थी। ब्रिटिश उपनिवेश की स्थापना के पाँच सदियों पूर्व तक, फारसी व्यापक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में एक दूसरी भाषा के रूप में इस्तेमाल की जाती थी। इसने उपमहाद्वीप पर कई मुस्लिम दरबारों में संस्कृति और शिक्षा की भाषा के रूप में प्रमुखता ले ली। हालाँकि 1843 के शुरू से, अंग्रेजी और हिंदुस्तानी ने धीरे धीरे उपमहाद्वीप पर महत्व में फ़ारसी को बदल दिया। फ़ारसी के ऐतिहासिक प्रभाव के साक्ष्य भारतीय उपमहाद्वीप की कुछ भाषाओं पर इसके प्रभाव की सीमा में देखा जा सकता है। फारसी से उधार लिए शब्द अभी भी आमतौर पर कुछ हिंद आर्य भाषाओं में उपयोग किए जाते है। कुछ मुख्य दक्षिण एशियाई साम्राज्य जिनकी राजभाषा फ़ारसी थी:- मोमिन राजवंश, ग़ज़नवी साम्राज्य, ग़ोरी राजवंश, गुलाम वंश, ख़िलजी वंश, तुग़लक़ वंश, सय्यद वंश, लोदी वंश, सूरी साम्राज्य, मुगल साम्राज्य तथा बहमनी सल्तनत। किस्में पश्चिमी फ़ारसी (फारसी, ईरानी फ़ारसी, या फारसी) ईरान में बोली जाती हैं और इराक और फारस की खाड़ी राज्यों में अल्पसंख्यकों द्वारा। पूर्वी फ़ारसी (दरी फ़ारसी, अफगान फ़ारसी, या दरी) अफगानिस्तान में बोली जाती है। ताजिकी (ताजिक फारसी) ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान में बोली जाती है। यह सिरिलिक लिपि में लिखी जाती है। निम्नलिखित फारसी से संबंधित कुछ भाषाएं हैं: लूरी, (या लोरी), दक्षिण पश्चिमी ईरान के प्रांतों में मुख्य रूप से बोली जाती हैं जैसे, लूरिस्तान, कोगिलुये और बोयर-अख़्मद प्रांत, फ़ार्स प्रांत के कुछ पश्चिमी भाग और ख़ूज़स्तान के कुछ भाग। लारी, (दक्षिणी ईरान में) टाट, अजरबैजान, रूस, आदि के कुछ हिस्सों में बोली जाती हैं। स्वर विज्ञान ईरानी फ़ारसी में छह स्वर और बाईस व्यंजन है। व्याकरण फारसी एक अभिश्लेषणी भाषा हैं। फ़ारसी के पदविज्ञान में प्रत्यय प्रबल हैं, हालाँकि उपसर्गों की एक छोटी संख्या है। क्रिया काल और पहलू व्यक्त कर सकते हैं और वे व्यक्ति और संख्या में विषय के साथ सहमत हैं। फारसी में कोई व्याकरणिक लिंग नहीं है और न ही सर्वनाम प्राकृतिक लिंग के लिए चिह्नित हैं। शब्द संग्रह फ़ारसी ने अरबी भाषा पर कम प्रभाव डाला है और साथ ही मेसोपोटामिया की अन्य भाषाओं पर और इसकी मूल शब्दावली मध्य फारसी मूल की है, पर नई फारसी में अरबी शाब्दिक मदों की काफी मात्रा है, जिनका फ़ारसीकरण हो गया है। अरबी मूल के फारसी शब्दों में विशेष रूप से इस्लामी शब्द शामिल हैं। अन्य ईरानी, तुर्की और भारतीय भाषाओं में अरबी शब्दावली आम तौर पर नई फ़ारसी से नकल की गई है। वर्तनी आधुनिक ईरानी फारसी और दारी में पाठ विशाल बहुमत से अरबी लिपि के साथ लिखा जाता है। ताजिक, जो मध्य एशिया की रूसी और तुर्की भाषाओं से प्रभावित है, को कुछ भाषाविदों द्वारा फारसी बोली माना जाता है, जिसे ताजिकिस्तान में सिरिलिक लिपि के साथ लिखा जाता है। इन्हें भी देखें फारसी का साहित्य अवस्ताई भाषा पहलवी भाषा पहलवी लिपि बाहरी कड़ियाँ फ़ारसी सीखें सन्दर्भ श्रेणी:फ़ारसी श्रेणी:ईरानी भाषाएँ श्रेणी:ईरान की भाषाएँ श्रेणी:विश्व की प्रमुख भाषाएं
हिन्दी भाषा
https://hi.wikipedia.org/wiki/हिन्दी_भाषा
REDIRECT हिन्दी
देवनागरी
https://hi.wikipedia.org/wiki/देवनागरी
right|thumb|300px|देवनागरी में लिखी ऋग्वेद की पाण्डुलिपि देवनागरी भारतीय उपमहाद्वीप में प्रयुक्त प्राचीन ब्राह्मी लिपि पर आधारित बाएँ से दाएँ आबूगीदा है। यह प्राचीन भारत में पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी तक विकसित किया गया था और ७वीं शताब्दी ईस्वी तक नियमित उपयोग में था। देवनागरी लिपि, जिसमें १४ स्वर और ३३ व्यञ्जन सहित ४७ प्राथमिक वर्ण हैं, दुनिया में चौथी सबसे व्यापक रूप से अपनाई जाने वाली लेखन प्रणाली है, जिसका उपयोग १२० से अधिक भाषाओं के लिए किया जा रहा है। इस लिपि की शब्दावली भाषा के उच्चारण को दर्शाती है। रोमन लिपि के विपरीत, इस लिपि में अक्षर केस की कोई अवधारणा नहीं है। यह बाएँ से दाएँ लिखा गया है, चौकोर रूपरेखा के भीतर सममित गोल आकृतियों के लिए एक दृढ़ प्राथमिकता है, और एक क्षैतिज रेखा द्वारा पहचाना जा सकता है, जिसे शिरोरेखा के रूप में जाना जाता है, जो पूर्ण अक्षरों के शीर्ष के साथ चलती है। एक सरसरी दृष्टि में, देवनागरी लिपि अन्य भारतीय लिपियों जैसे पूर्वी नागरी लिपि या गुरमुखी लिपि से अलग दिखाई देती है, लेकिन एक निकटतम अवलोकन से पता चलता है कि वे कोण और संरचनात्मक जोर को छोड़कर बहुत समान हैं। परिचय अधिकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है (कुछ वर्णों के ऊपर रेखा नहीं होती है) जिसे शिरोरेखा कहते हैं। देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। इससे वैज्ञानिक और व्यापक लिपि शायद केवल अध्वव लिपि है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्तन बहुत आसान हो गया है। भारतीय भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग 'हू-ब-हू' उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में सम्भव नहीं है, जब तक कि उनका विशेष मानकीकरण न किया जाये, जैसे आइट्रांस या IAST । इसमें कुल ५२ अक्षर हैं, जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) में प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा। भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं, परन्तु उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं, क्योंकि वे सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं (उर्दू को छोड़कर)। इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है। देवनागरी' शब्द की व्युत्पत्ति देवनागरी या नागरी नाम का प्रयोग "क्यों" प्रारम्भ हुआ और इसका व्युत्पत्तिपरक प्रवृत्तिनिमित्त क्या था- यह अब तक पूर्णतः निश्चित नहीं है। (क) 'नागर' अपभ्रंश या गुजराती "नागर" ब्राह्मणों से उसका सम्बन्ध बताया गया है। पर दृढ़ प्रमाण के अभाव में यह मत सन्दिग्ध है। (ख) दक्षिण में इसका प्राचीन नाम "नंदिनागरी" था। हो सकता है "नन्दिनागर" कोई स्थानसूचक हो और इस लिपि का उससे कुछ सम्बन्ध रहा हो। (ग) यह भी हो सकता है कि "नागर" जन इसमें लिखा करते थे, अत: "नागरी" अभिधान पड़ा और जब संस्कृत के ग्रंथ भी इसमें लिखे जाने लगे तब "देवनागरी" भी कहा गया। (घ) सांकेतिक चिह्नों या देवताओं की उपासना में प्रयुक्त त्रिकोण, चक्र आदि संकेतचिह्नों को "देवनागर" कहते थे। कालान्तर में नाम के प्रथमाक्षरों का उनसे बोध होने लगा और जिस लिपि में उनको स्थान मिला- वह 'देवनागरी' या 'नागरी' कही गई। इन सब पक्षों के मूल में कल्पना का प्राधान्य है, निश्चयात्मक प्रमाण अनुपलब्ध हैं। देवनागरी लिपि का उपयोग करने वाली भाषाएँ अवधी कनौजी कश्मीरी कांगड़ी किन्नौरी कुड़माली कुमाऊँनीकोंकणी कोया खानदेशी खालिङ खड़िया गढ़वाली गुर्जरीगुरुङ गोण्डी चम्बयाली चाम्लिङ चुराही चेपाङ भाषा छत्तिसगढ़ीछिन्ताङ जिरेल जुम्ली तिलुङ वारली वासवी वागडीवाम्बुले हिन्दी संस्कृत मराठी नेपाली https://scriptsource.org/cms/scripts/page.php?item_id=script_detail&uid=hh3a985d52 पहाड़ी भाषा में भी हम अधिकतम शब्द देवनागरी लिपी के नज़र आते हैं। इतिहास thumb| मुंबई के परेल नामक उपनगर में प्राप्त प्राचीन देवनागरी शिलालेख। यह सन् ११०९ ई में बनाया गया था। right|thumb|200px|वाराणसी में देवनागरी लिपि में लिखे विज्ञापन thumb| मुंबई के सार्वजनिक यातायात के टिकट पर देवनागरी thumb| मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया की एक ट्राम पर देवनागरी लिपि देवनागरी, भारत, नेपाल, तिब्बत और दक्षिण पूर्व एशिया की लिपियों के ब्राह्मी लिपि परिवार का हिस्सा है।George Cardona and Danesh Jain (2003), The Indo-Aryan Languages, Routledge, , pages 68–69 गुजरात से कुछ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिनकी भाषा संस्कृत है और लिपि नागरी लिपि। ये अभिलेख पहली ईसवी से लेकर चौथी ईसवी के कालखण्ड के हैं।Gazetteer of the Bombay Presidency at Google Books, Rudradaman’s inscription from 1st through 4th century CE found in Gujarat, India, Stanford University Archives, pages 30–45, particularly Devanagari inscription on Jayadaman's coins pages 33–34 ध्यातव्य है कि नागरी लिपि, देवनागरी से बहुत निकट है और देवनागरी का पूर्वरूप है। अतः ये अभिलेख इस बात के साक्ष्य हैं कि प्रथम शताब्दी में भी भारत में देवनागरी का उपयोग आरम्भ हो चुका था। नागरी, सिद्धम और शारदा तीनों ही ब्राह्मी की वंशज हैं।Steven Roger Fischer (2004), A history of writing , Reaktion Books, ISBN 978-1-86189-167-9, "(p. 110) "... an early branch of this, as of the fourth century CE, was the Gupta script, Brahmi's first main daughter. [...] The Gupta alphabet became the ancestor of most Indic scripts (usually through later Devanagari). [...] Beginning around AD ६००, Gupta inspired the important Nagari, Sarada, Tibetan and Pāḷi scripts. Nagari, of India's northwest, first appeared around AD ६३३. Once fully developed in the eleventh century, Nagari had become Devanagari, or "heavenly Nagari", since it was now the main vehicle, out of several, for Sanskrit literature."" रुद्रदमन के शिलालेखों का समय प्रथम शताब्दी का समय है और इसकी लिपि की देवनागरी से निकटता पहचानी जा सकती हैं। जबकि देवनागरी का जो वर्तमान मानक स्वरूप है, वैसी देवनागरी का उपयोग १००० ई के पहले आरम्भ हो चुका था। Richard Salomon (2014), Indian Epigraphy, Oxford University Press, ISBN 978-0195356663, pages 40–42Krishna Chandra Sagar (1993), Foreign Influence on Ancient India, South Asia Books, ISBN 978-8172110284, page 137 मध्यकाल के शिलालेखों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि नागरी से सम्बन्धित लिपियों का बड़े पैमाने पर प्रसार होने लगा था। कहीं-कहीं स्थानीय लिपि और नागरी लिपि दोनों में सूचनाएँ अंकित मिलतीं हैं। उदाहरण के लिए, ७वीं-८वीं शताब्दी के पट्टदकल्लु (मन्दिर परिसर) (कर्नाटक) के स्तम्भ पर सिद्धमात्रिका और तेलुगु-कन्नड लिपि के आरम्भिक रूप - दोनों में ही सूचना लिखी हुई है। कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के ज्वालामुखी अभिलेख में शारदा और देवनागरी दोनों में लिखा हुआ है। Richard Salomon (2014), Indian Epigraphy, Oxford University Press, ISBN 978-0195356663, page 71 ७वीं शताब्दी तक देवनागरी का नियमित रूप से उपयोग होना आरम्भ हो गया था और लगभग १००० ई तक देवनागरी का पूर्ण विकास हो गया था।Kathleen Kuiper (2010), The Culture of India, New York: The Rosen Publishing Group, ISBN 978-1615301492, page 83Richard Salomon (2014), Indian Epigraphy, Oxford University Press, ISBN 978-0195356663, pages 40–42 डॉ॰ द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अनुसार सर्वप्रथम देवनागरी लिपि का प्रयोग गुजरात के नरेश जयभट्ट (७००-८०० ई.) के शिलालेख में मिलता है। आठवीं शताब्दी में चित्रकूट, नवीं में बड़ौदा के ध्रुवराज भी अपने राज्यादेशों में इस लिपि का उपयोग किया हैं। ७५८ ई. का राष्ट्रकूट राजा दन्तिदुर्ग का सामगढ़ ताम्रपट मिलता है जिस पर देवनागरी अंकित है। शिलाहारवंश के गंडारादित्य प्रथम के उत्कीर्ण लेख की लिपि देवनागरी है। इसका समय बारहवीं शताब्दी हैं। ग्यारहवीं शताब्दी के चोलराजा राजेन्द्र के सिक्के मिले हैं जिन पर देवनागरी लिपि अंकित है। राष्ट्रकूट राजा इंद्रराज (दसवीं शताब्दी) के लेख में भी देवनागरी का व्यवहार किया है। प्रतिहार राजा महेंद्रपाल (८९१-९०७) का दानपत्र भी देवनागरी लिपि में है। कनिंघम की पुस्तक में सबसे प्राचीन मुसलमानों सिक्के के रूप में महमूद गजनवी द्वारा चलाये गए चांदी के सिक्के का वर्णन है जिस पर देवनागरी लिपि में संस्कृत अंकित है। मुहम्मद विनसाम (११९२-१२०५) के सिक्कों पर लक्ष्मी की मूर्ति के साथ देवनागरी लिपि का व्यवहार हुआ है। शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (१२१०-१२३५) के सिक्कों पर भी देवनागरी अंकित है। सानुद्दीन फिरोजशाह प्रथम, जलालुद्दीन रज़िया, बहराम शाह, अलाऊद्दीन मसूदशाह, नासिरुद्दीन महमूद, मुईजुद्दीन, गयासुद्दीन बलवन, मुईजुद्दीन कैकूबाद, जलालुद्दीन हीरो सानी, अलाउद्दीन महमद शाह आदि ने अपने सिक्कों पर देवनागरी अक्षर अंकित किये हैं। अकबर के सिक्कों पर देवनागरी में ‘राम‘ सिया का नाम अंकित है। गयासुद्दीन तुग़लक़, शेरशाह सूरी, इस्लाम शाह, मुहम्मद आदिलशाह, गयासुद्दीन इब्ज, ग्यासुद्दीन सानी आदि ने भी इसी परम्परा का पालन किया। भाषाविज्ञान की दृष्टि से देवनागरी भाषावैज्ञानिक दृष्टि से देवनागरी लिपि अक्षरात्मक (सिलेबिक) लिपि मानी जाती है। लिपि के विकाससोपानों की दृष्टि से "चित्रात्मक", "भावात्मक" और "भावचित्रात्मक" लिपियों के अनंतर "अक्षरात्मक" स्तर की लिपियों का विकास माना जाता है। पाश्चात्य और अनेक भारतीय भाषाविज्ञानविज्ञों के मत से लिपि की अक्षरात्मक अवस्था के बाद अल्फाबेटिक (वर्णात्मक) अवस्था का विकास हुआ। सबसे विकसित अवस्था मानी गई है ध्वन्यात्मक(फोनेटिक) लिपि की। "देवनागरी" को अक्षरात्मक इसलिए कहा जाता है कि इसके वर्ण- अक्षर (सिलेबिल) हैं- स्वर भी और व्यंजन भी। "क", "ख" आदि व्यंजन सस्वर हैं- अकारयुक्त हैं। वे केवल ध्वनियाँ नहीं हैं अपितु सस्वर अक्षर हैं। अत: ग्रीक, रोमन आदि वर्णमालाएँ हैं। परंतु यहाँ यह ध्यान रखने की बात है कि भारत की "ब्राह्मी" या "भारती" वर्णमाला की ध्वनियों में व्यंजनों का "पाणिनि" ने वर्णसमाम्नाय के १४ सूत्रों में जो स्वरूप परिचय दिया है- उसके विषय में "पतंजलि" (द्वितीय शताब्दी ई.पू.) ने यह स्पष्ट बता दिया है कि व्यंजनों में संनियोजित "अकार" स्वर का उपयोग केवल उच्चारण के उद्देश्य से है। वह तत्वतः वर्ण का अंग नहीं है। इस दृष्टि से विचार करते हुए कहा जा सकता है कि इस लिपि की वर्णमाला तत्वतः ध्वन्यात्मक है, अक्षरात्मक नहीं। Writen By:- Dev Chouhan देवनागरी वर्णमाला देवनागरी की वर्णमाला में १२ स्वर और ३४ व्यञ्जन हैं। शून्य या एक या अधिक व्यञ्जनों और एक स्वर के मेल से एक अक्षर बनता है। स्वर निम्नलिखित स्वर आधुनिक हिन्दी (खड़ी बोली) के लिये दिए गए हैं। संस्कृत में इनके उच्चारण थोड़े अलग होते हैं। वर्णाक्षर“प” के साथ मात्रा IPA उच्चारण"प्" के साथ उच्चारणIAST समतुल्य हिन्दी में वर्णन अपa बीच का मध्य प्रसृत स्वर आपाā दीर्घ विवृत पश्व प्रसृत स्वर इपिi ह्रस्व संवृत अग्र प्रसृत स्वर ईपीī दीर्घ संवृत अग्र प्रसृत स्वर उपुu ह्रस्व संवृत पश्व वर्तुल स्वर ऊपूū दीर्घ संवृत पश्व वर्तुल स्वर एपेe दीर्घ अर्धसंवृत अग्र प्रसृत स्वर ऐपैai दीर्घ लगभग-विवृत अग्र प्रसृत स्वर ओपोo दीर्घ अर्धसंवृत पश्व वर्तुल स्वर औपौau दीर्घ अर्धविवृत पश्व वर्तुल स्वर संस्कृत में ऐ दो स्वरों का युग्म होता है और "अ–इ" या "आ-इ" की तरह बोला जाता है। इसी तरह औ "अ-उ" या "आ-उ" की तरह बोला जाता है। इसके अलावा हिन्दी और संस्कृत में ऋ — आधुनिक हिन्दी में "रि" की तरह ॠ — केवल संस्कृत में ऌ — केवल संस्कृत में ॡ — केवल संस्कृत में अं — ङ् , ञ् , ण्, न्, म् के लिये या स्वर का नासिकीकरण करने के लिये अँ — स्वर का नासिकीकरण करने के लिये अः — अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिये ऍ और ऑ — इनका उपयोग मराठी और कभी–कभी हिन्दी में अंग्रेजी शब्दों का निकटतम उच्चारण तथा लेखन करने के लिए किया जाता है। व्यञ्जन जब किसी स्वर प्रयोग नहीं हो, तो वहाँ पर 'अ' (अर्थात श्वा का स्वर) माना जाता है। स्वर के न होने को हलन्त्‌ अथवा विराम से दर्शाया जाता है। जैसे कि क्‌ ख्‌ ग्‌ घ्‌। जिन वर्णो को बोलने के लिए स्वर की सहायता लेनी पड़ती है उन्हें व्यञ्जन कहते है। दूसरे शब्दो में- व्यञ्जन उन वर्णों को कहते हैं, जिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है। स्पर्श (Plosives)अल्पप्राणअघोषमहाप्राणअघोषअल्पप्राणघोषमहाप्राणघोषनासिक्यकण्ठ्यक ख ग घ ङ तालव्यच छ ज झ ञ मूर्धन्यट ठ ड ढ ण दन्त्यत थ द ध न ओष्ठ्यप फ ब भ म स्पर्शरहित (Non-Plosives)तालव्यमूर्धन्यदन्त्य/वर्त्स्यकण्ठोष्ठ्य/काकल्यअन्तस्थय र ल व ऊष्म/संघर्षीश ष स ह नोट करें - इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्श्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त व्यञ्जन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी, वैदिक संस्कृत, कोंकणी, मेवाड़ी, हरयाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खडी बोली इत्यादि में इसका प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था: जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज़ करना। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिनि शाखा में कुछ वाक़्यात में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था। यदि यह 'ट्, ठ्, ड्, ढ्' ध्वनियों से पहले न आए तो इसका उच्चारण आजकल हिंदी में तालव्य (श) होता है। हिन्दी में ण का उच्चारण ज़्यादातर ड़ँ की तरह होता है, यानि कि जीभ मुँह की छत को एक ज़ोरदार ठोकर मारती है। पर संस्कृत में ण का उच्चारण न की तरह बिना ठोकर मारे होता था, अन्तर केवल इतना कि जीभ ण के समय मुँह की छत को छूती है। नुक़्ता वाले व्यञ्जन हिन्दी भाषा में मुख्यतः अरबी और फ़ारसी भाषाओं से आये शब्दों को देवनागरी में लिखने के लिये कुछ वर्णों के नीचे नुक़्ता (बिन्दु) लगे वर्णों का प्रयोग किया जाता है (जैसे क़, ज़ आदि)। किन्तु हिन्दी में भी अधिकांश लोग नुक्तों का प्रयोग नहीं करते। इसके अलावा संस्कृत, मराठी, नेपाली एवं अन्य भाषाओं को देवनागरी में लिखने में भी नुक्तों का प्रयोग नहीं किया जाता है। वर्णाक्षर (अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला उच्चारण) उदाहरण हिन्दी में वर्णन अंग्रेज़ी में वर्णन अशुद्ध उच्चारणक़ (/q/) क़त्ल अघोष अलिजिह्वीय स्पर्श Voiceless uvular stop   क (/k/)ख़ (/x or χ/) ख़रीद अघोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी Voiceless uvular or velar fricative ख (/kh/) ग़ (/ɣ or ʁ/) ग़ैर घोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी Voiced uvular or velar fricative ग (/g/) ज़ (/z/) ज़िन्दगी घोष वर्त्स्य संघर्षी Voiced alveolar fricative ज (/dʒ/) झ़ (/ʒ/) अझ़दहा घोष तालव्य संघर्षी Voiced palatal fricative ज (/dʒ/) ड़ (/ ɽ /) पेड़ अल्पप्राण मूर्धन्य उत्क्षिप्त Unaspirated retroflex flap   - ढ़ (/ɽh/) पढ़ना महाप्राण मूर्धन्य उत्क्षिप्त Aspirated retroflex flap   - थ़ (/θ/) अथ़्रू अघोष दन्त्य संघर्षी Voiceless dental fricative थ (/t̪h/) द़ (/ð/) अद़ान घोष दन्त्य संघर्षी Voiced dental fricative द (/d̪/) फ़ (/f/) फ़र्क़ अघोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी Voiceless labio-dental fricative फ (/ph/) ब़ (/v/) केलेब़ घोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी Voiced labio-dental fricative ब (/b/) य़ (/yʰ/) फुलाय़ घोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी Voiced labio-dental fricative य (/y/) थ़ का प्रयोग मुख्यतः पहाड़ी भाषाओँ में होता है जैसे की डोगरी (की उत्तरी उपभाषाओं) में "आँसू" के लिए शब्द है "अथ़्रू"। हिन्दी में ड़ और ढ़ व्यञ्जन फ़ारसी या अरबी से नहीं लिए गए हैं, न ही ये संस्कृत में पाये जाये हैं। असल में ये संस्कृत के साधारण ड और ढ के बदले हुए रूप हैं। विराम-चिह्न, वैदिक चिह्न आदि प्रतीकनामकार्य। डण्डा / खड़ी पाई / पूर्ण विराम वाक्य का अन्त बताने के लिए॥ दोहरा डण्डा॰ लाघव चिह्न   संक्षिप्तीकरण के लिये, जैसे मो॰ क॰ गाँधीॐ प्रणव , ओम हिन्दू धर्म का शुभ शब्दप॑ उदात्त उच्चारण बताने के लिए वैदिक संस्कृत के कुछ ग्रन्थों में प्रयुक्तप॒ अनुदात्त उच्चारण बताने के लिए वैदिक संस्कृत के कुछ ग्रन्थों में प्रयुक्त देवनागरी अङ्क देवनागरी अङ्क निम्न रूप में लिखे जाते हैं : ० १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ देवनागरी संयुक्ताक्षर देवनागरी लिपि में दो व्यञ्जन का संयुक्ताक्षर निम्न रूप में लिखा जाता है : <div lang="und-Deva"> ब्राह्मी परिवार की लिपियों में देवनागरी लिपि में सबसे अधिक संयुक्ताक्षर समर्थित हैं। डिजिटन उपकरणों पर छन्दस फॉण्ट देवनागरी में बहुत संयुक्ताक्षर समर्थन हैं। 250px|thumb| द् + ध् + र् + य संयुक्ताक्षर पुरानी देवनागरी पुराने समय में प्रयुक्त हुई जाने वाली देवनागरी के कुछ वर्ण आधुनिक देवनागरी से भिन्न हैं। आधुनिक देवनागरी पुरानी देवनागरी 15px 15px 15px 15px 15px 15px 15px 15px देवनागरी लिपि के गुण भारतीय भाषाओं के लिये वर्णों की पूर्णता एवं सम्पन्नता (५२ वर्ण, न बहुत अधिक न बहुत कम)। एक ध्वनि के लिये एक सांकेतिक चिह्न -- जैसा बोलें वैसा लिखें। लेखन और उच्चारण और में एकरुपता -- जैसा लिखें, वैसे पढ़े (वाचें)। एक सांकेतिक चिह्न द्वारा केवल एक ध्वनि का निरूपण -- जैसा लिखें वैसा पढ़ें। उपरोक्त दोनों गुणों के कारण ब्राह्मी लिपि का उपयोग करने वाली सभी भारतीय भाषाएँ 'स्पेलिंग की समस्या' से मुक्त हैं। स्वर और व्यंजन में तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक क्रम-विन्यास - देवनागरी के वर्णों का क्रमविन्यास उनके उच्चारण के स्थान (ओष्ठ्य, दन्त्य, तालव्य, मूर्धन्य आदि) को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। इसके अतिरिक्त वर्ण-क्रम के निर्धारण में भाषा-विज्ञान के कई अन्य पहलुओ का भी ध्यान रखा गया है। देवनागरी की वर्णमाला (वास्तव में, ब्राह्मी से उत्पन्न सभी लिपियों की वर्णमालाएँ) एक अत्यन्त तर्कपूर्ण ध्वन्यात्मक क्रम (phonetic order) में व्यवस्थित है। यह क्रम इतना तर्कपूर्ण है कि अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ (IPA) ने अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला के निर्माण के लिये मामूली परिवर्तनों के साथ इसी क्रम को अंगीकार कर लिया। वर्णों का प्रत्याहार रूप में उपयोग : माहेश्वर सूत्र में देवनागरी वर्णों को एक विशिष्ट क्रम में सजाया गया है। इसमें से किसी वर्ण से आरम्भ करके किसी दूसरे वर्ण तक के वर्णसमूह को दो अक्षर का एक छोटा नाम दे दिया जाता है जिसे 'प्रत्याहार' कहते हैं। प्रत्याहार का प्रयोग करते हुए सन्धि आदि के नियम अत्यन्त सरल और संक्षिप्त ढंग से दिए गये हैं (जैसे, आद् गुणः) देवनागरी लिपि के वर्णों का उपयोग संख्याओं को निरूपित करने के लिये किया जाता रहा है। (देखिये कटपयादि, भूतसंख्या तथा आर्यभट्ट की संख्यापद्धति) मात्राओं की संख्या के आधार पर छन्दों का वर्गीकरण : यह भारतीय लिपियों की अद्भुत विशेषता है कि किसी पद्य के लिखित रूप से मात्राओं और उनके क्रम को गिनकर बताया जा सकता है कि कौन सा छन्द है। रोमन, अरबी एवं अन्य में यह गुण अप्राप्य है। लिपि चिह्नों के नाम और ध्वनि में कोई अन्तर नहीं (जैसे रोमन में अक्षर का नाम “बी” है और ध्वनि “ब” है) लेखन और मुद्रण में एकरूपता (रोमन, अरबी और फ़ारसी में हस्तलिखित और मुद्रित रूप अलग-अलग हैं) देवनागरी, 'स्माल लेटर" और 'कैपिटल लेटर' की अवैज्ञानिक व्यवस्था से मुक्त है। मात्राओं का प्रयोग thumb|600px|center|क के उपर विभिन्न मात्राएं लगाने के बाद का स्वरूप अर्ध-अक्षर के रूप की सुगमता : खड़ी पाई को हटाकर - दायें से बायें क्रम में लिखकर तथा अर्द्ध अक्षर को ऊपर तथा उसके नीचे पूर्ण अक्षर को लिखकर - ऊपर नीचे क्रम में संयुक्ताक्षर बनाने की दो प्रकार की रीति प्रचलित है। अन्य - बायें से दायें, शिरोरेखा, संयुक्ताक्षरों का प्रयोग, अधिकांश वर्णों में एक उर्ध्व-रेखा की प्रधानता, अनेक ध्वनियों को निरूपित करने की क्षमता आदि। भारतवर्ष के साहित्य में कुछ ऐसे रूप विकसित हुए हैं जो दायें-से-बायें अथवा बाये-से-दायें पढ़ने पर समान रहते हैं। उदाहरणस्वरूप केशवदास का एक सवैया लीजिये : मां सस मोह सजै बन बीन, नवीन बजै सह मोस समा। मार लतानि बनावति सारि, रिसाति वनाबनि ताल रमा ॥ मानव ही रहि मोरद मोद, दमोदर मोहि रही वनमा। माल बनी बल केसबदास, सदा बसकेल बनी बलमा ॥ इस सवैया की किसी भी पंक्ति को किसी ओर से भी पढिये, कोई अंतर नहीं पड़ेगा। सदा सील तुम सरद के दरस हर तरह खास। सखा हर तरह सरद के सर सम तुलसीदास॥ देवनागरी लिपि के दोष right|thumb|300px|लेकिन लगभग सभी भारतीय लिपियों में छोटी इ या छोटी ए (ऎ) की मात्रा व्यंजन के पहले ही लगती है। (१) कुल मिलाकर 403 टाइप होने के कारण टंकण, मुद्रण में कठिनाई। किन्तु आधुनिक प्रिन्टर तकनीक के लिए यह कोई समस्या नहीं है। (२) कुछ लोग शिरोरेखा का प्रयोग अनावश्यक मानते हैं। (३) अनावश्यक वर्ण (ऋ, ॠ, लृ, ॡ, ष)— बहुत से लोग इनका शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाते। (४) द्विरूप वर्ण (अ, ज्ञ, क्ष, त्र, छ, झ, ण, श) आदि को दो-दो प्रकार से लिखा जाता है। (५) समरूप वर्ण (ख में र+व का, घ में ध का, म में भ का भ्रम होना)। (६) वर्णों के संयुक्त करने की व्यवस्था एकसमान नहीं है। (७) अनुस्वार एवं अनुनासिक के प्रयोग में एकरूपता का अभाव। (८) त्वरापूर्ण लेखन नहीं क्योंकि लेखन में हाथ बार–बार उठाना पड़ता है। (९) वर्णों के संयुक्तीकरण में र के प्रयोग को लेकर अनेक लोगों को भ्रम की स्थिति। (११) इ की मात्रा (ि) का लेखन वर्ण के पहले, किन्तु उच्चारण वर्ण के बाद। देवनागरी पर महापुरुषों के विचार आचार्य विनोबा भावे संसार की अनेक लिपियों के जानकार थे। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि देवनागरी लिपि भारत ही नहीं, संसार की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। अगर भारत की सब भाषाओं के लिए इसका व्यवहार चल पड़े तो सारे भारतीय एक दूसरे के बिल्कुल नजदीक आ जाएंगे। हिंदुस्तान की एकता में देवनागरी लिपि हिंदी से ही अधिक उपयोगी हो सकती है। अनन्त शयनम् अयंगार तो दक्षिण भारतीय भाषाओं के लिए भी देवनागरी की संभावना स्वीकार करते थे। सेठ गोविन्ददास इसे राष्ट्रीय लिपि घोषित करने के पक्ष में थे। (१) हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है। — आचार्य विनोबा भावे (२) देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है। — सर विलियम जोन्स (३) मानव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है। — जान क्राइस्ट (४) उर्दू लिखने के लिये देवनागरी लिपि अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी। — खुशवन्त सिंह (५) The Devanagri alphabet is a splendid monument of phonological accuracy, in the sciences of language. — मोहन लाल विद्यार्थी - Indian Culture Through the Ages, p. 61 (६) एक सर्वमान्य लिपि स्वीकार करने से भारत की विभिन्न भाषाओं में जो ज्ञान का भंडार भरा है उसे प्राप्त करने का एक साधारण व्यक्ति को सहज ही अवसर प्राप्त होगा। हमारे लिए यदि कोई सर्व-मान्य लिपि स्वीकार करना संभव है तो वह देवनागरी है। — एम.सी.छागला (७) प्राचीन भारत के महत्तम उपलब्धियों में से एक उसकी विलक्षण वर्णमाला है जिसमें प्रथम स्वर आते हैं और फिर व्यंजन जो सभी उत्पत्ति क्रम के अनुसार अत्यंत वैज्ञानिक ढंग से वर्गीकृत किये गए हैं। इस वर्णमाला का अविचारित रूप से वर्गीकृत तथा अपर्याप्त रोमन वर्णमाला से, जो तीन हजार वर्षों से क्रमशः विकसित हो रही थी, पर्याप्त अंतर है। — ए एल बाशम, "द वंडर दैट वाज इंडिया" के लेखक और इतिहासविद् भारत के लिये देवनागरी का महत्त्व बहुत से लोगों का विचार है कि भारत में अनेकों भाषाएँ होना कोई समस्या नहीं है जबकि उनकी लिपियाँ अलग-अलग होना बहुत बड़ी समस्या है। न्यायमूर्ति शारदा चरण मित्र (१८४८ - १९१७) ने भारत जैसे विशाल बहुभाषा-भाषी और बहुजातीय राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने के उद्देश्य से ‘एक लिपि विस्तार परिषद‘ की स्थापना की थी और परिषद की ओर से १९०७ में ‘देवनागर‘ नामक मासिक पत्र निकाला था जो बीच में कुछ व्यवधान के बावजूद उनके जीवन पर्यन्त अर्थात्‌ सन्‌ १९१७ तक निकलता रहा। गांधीजी ने १९४० में गुजराती भाषा की एक पुस्तक को देवनागरी लिपि में छपवाया और इसका उद्देश्य बताया था कि मेरा सपना है कि संस्कृत से निकली हर भाषा की लिपि देवनागरी हो। इस संस्करण को हिंदी में छापने के दो उद्देश्य हैं। मुख्य उद्देश्य यह है कि मैं जानना चाहता हूँ कि, गुजराती पढ़ने वालों को देवनागरी लिपि में पढ़ना कितना अच्छा लगता है। मैं जब दक्षिण अफ्रीका में था तब से मेरा स्वप्न है कि संस्कृत से निकली हर भाषा की एक लिपि हो, और वह देवनागरी हो। पर यह अभी भी स्वप्न ही है। एक-लिपि के बारे में बातचीत तो खूब होती हैं, लेकिन वही ‘बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे’ वाली बात है। कौन पहल करे ! गुजराती कहेगा ‘हमारी लिपि तो बड़ी सुन्दर सलोनी आसान है, इसे कैसे छोडूंगा?’ बीच में अभी एक नया पक्ष और निकल के आया है, वह ये, कुछ लोग कहते हैं कि देवनागरी खुद ही अभी अधूरी है, कठिन है; मैं भी यह मानता हूँ कि इसमें सुधार होना चाहिए। लेकिन अगर हम हर चीज़ के बिलकुल ठीक हो जाने का इंतज़ार करते रहेंगे तो सब हाथ से जायेगा, न जग के रहोगे न जोगी बनोगे। अब हमें यह नहीं करना चाहिए। इसी आजमाइश के लिए हमने यह देवनागरी संस्करण निकाला है। अगर लोग यह (देवनागरी में गुजराती) पसंद करेंगे तो ‘नवजीवन पुस्तक’ और भाषाओं को भी देवनागरी में प्रकाशित करने का प्रयत्न करेगा। इस साहस के पीछे दूसरा उद्देश्य यह है कि हिंदी पढ़ने वाली जनता गुजराती पुस्तक देवनागरी लिपि में पढ़ सके। मेरा अभिप्राय यह है कि अगर देवनागरी लिपि में गुजराती किताब छपेगी तो भाषा को सीखने में आने वाली आधी दिक्कतें तो ऐसे ही कम हो जाएँगी। इस संस्करण को लोकप्रिय बनाने के लिए इसकी कीमत बहुत कम राखी गयी है, मुझे उम्मीद है कि इस साहस को गुजराती और हिंदी पढ़ने वाले सफल करेंगे। इसी प्रकार विनोबा भावे का विचार था कि- हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि देगी। इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी भाषाएँ देवनागरी में भी लिखी जाएं। सभी लिपियां चलें लेकिन साथ-साथ देवनागरी का भी प्रयोग किया जाये। विनोबा जी "नागरी ही" नहीं "नागरी भी" चाहते थे। उन्हीं की सद्प्रेरणा से 1975 में नागरी लिपि परिषद की स्थापना हुई। विश्वलिपि के रूप में देवनागरी बौद्ध संस्कृति से प्रभावित क्षेत्र नागरी के लिए नया नहीं है। चीन और जापान चित्रलिपि का व्यवहार करते हैं। इन चित्रों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण भाषा सीखने में बहुत कठिनाई होती है। देववाणी की वाहिका होने के नाते देवनागरी भारत की सीमाओं से बाहर निकलकर चीन और जापान के लिए भी समुचित विकल्प दे सकती है। भारतीय मूल के लोग संसार में जहां-जहां भी रहते हैं, वे देवनागरी से परिचय रखते हैं, विशेषकर मारीशस, सूरीनाम, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो आदि के लोग। इस तरह देवनागरी लिपि न केवल भारत के अंदर सारे प्रांतवासियों को प्रेम-बंधन में बांधकर सीमोल्लंघन कर दक्षिण-पूर्व एशिया के पुराने वृहत्तर भारतीय परिवार को भी ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय‘ अनुप्राणित कर सकती है तथा विभिन्न देशों को एक अधिक सुचारू और वैज्ञानिक विकल्प प्रदान कर ‘विश्व नागरी‘ की पदवी का दावा इक्कीसवीं सदी में कर सकती है। उस पर प्रसार लिपिगत साम्राज्यवाद और शोषण का माध्यम न होकर सत्य, अहिंसा, त्याग, संयम जैसे उदात्त मानवमूल्यों का संवाहक होगा, असत्‌ से सत्‌, तमस्‌ से ज्योति तथा मृत्यु से अमरता की दिशा में।देवनागरी एक भारतीय लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएँ लिखी जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे ‘शिरोरेखा’ कहते हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोङ्कणी, सिन्धी, कश्मीरी, हरियाणवी डोगरी, खस, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली भाषाएँ), तमाङ्ग भाषा, गढ़वाली, बोडो, अङ्गिका, मगही, भोजपुरी, नागपुरी, मैथिली, सन्थाली, राजस्थानी बघेली आदि भाषाएँ और स्थानीय बोलियाँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पञ्जाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। यह दक्षिण एशिया की १७० से अधिक भाषाओं को लिखने के लिए प्रयुक्त हो रही है। लिपि-विहीन भाषाओं के लिये देवनागरी दुनिया की कई भाषाओं के लिये देवनागरी सबसे अच्छा विकल्प हो सकती है क्योंकि यह यह बोलने की पूरी आजादी देता है। दुनिया की और किसी भी लिपि में यह नहीं हो सकता है। इन्डोनेशिया, विएतनाम, अफ्रीका आदि के लिये तो यही सबसे सही रहेगा। अष्टाध्यायी को देखकर कोई भी समझ सकता है की दुनिया में इससे अच्छी कोई भी लिपि नहीं है। अग‍र दुनिया पक्षपातरहित हो तो देवनागरी ही दुनिया की सर्वमान्य लिपि होगी क्योंकि यह पूर्णत: वैज्ञानिक है। अंग्रेजी भाषा में वर्तनी (स्पेलिंग) की विकराल समस्या के कारगर समाधान के लिये देवनागरी पर आधारित देवग्रीक लिपि प्रस्तावित की गयी है। देवनागरी लिपि में सुधार देवनागरी का विकास उस युग में हुआ था जब लेखन हाथ से किया जाता था और लेखन के लिए शिलाएँ, ताड़पत्र, चर्मपत्र, भोजपत्र, ताम्रपत्र आदि का ही प्रयोग होता था। किन्तु लेखन प्रौद्योगिकी ने बहुत अधिक विकास किया और प्रिन्टिंग प्रेस, टाइपराइटर आदि से होते हुए वह कम्प्यूटर युग में पहुँच गयी है जहाँ बोलकर भी लिखना सम्भव हो गया है। जब प्रिंटिंग एवं टाइपिंग का युग आया तो देवनागरी के यंत्रीकरण में कुछ अतिरिक्त समस्याएँ सामने आयीं जो रोमन में नहीं थीं। उदाहरण के लिए रोमन टाइपराइटर में अपेक्षाकृत कम कुंजियों की आवश्यकता पड़ती थी। देवनागरी में संयुक्ताक्षर की अवधारणा होने से भी बहुत अधिक कुंजियों की आवश्यकता पड़ रही थी। ध्यातव्य है कि ये समस्याएँ केवल देवनागरी में नहीं थी बल्कि रोमन और सिरिलिक को छोड़कर लगभग सभी लिपियों में थी। चीनी और उस परिवार की अन्य लिपियों में तो यह समस्या अपने गम्भीरतम रूप में थी। इन सामयिक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अनेक विद्वानों और मनीषियों ने देवनागरी के सरलीकरण और मानकीकरण पर विचार किया और अपने सुझाव दिए। इनमें से अनेक सुझावों को क्रियान्वित नहीं किया जा सका या उन्हें अस्वीकार कर दिया गया। कहने की आवश्यकता नहीं है कि कम्प्यूटर युग आने से (या प्रिंटिंग की नई तकनीकी आने से) देवनागरी से सम्बन्धित सारी समस्याएँ स्वयं समाप्त हों गयीं। भारत के स्वाधीनता आंदोलनों में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त होने के बाद लिपि के विकास व मानकीकरण हेतु कई व्यक्तिगत एवं संस्थागत प्रयास हुए। सर्वप्रथम बम्बई के महादेव गोविन्द रानडे ने एक लिपि सुधार समिति का गठन किया। तदनन्तर महाराष्ट्र साहित्य परिषद पुणे ने सुधार योजना तैयार की। सन १९०४ में बाल गंगाधर तिलक ने अपने केसरी पत्र में देवनागरी लिपि के सुधार की चर्चा की। प्रिणामस्वरूप देवनागरी के टाइपों की संख्या १९० निर्धारित की गयी और इन्हें 'केसरी टाइप' कहा गया। आगे चलकर सावरकर बंधुओं ने 'अ' की बारहखड़ी प्रयिग करने का सुझाव दिया ( अर्थात् 'ई' न लिखकर अ पर बड़ी ई की मात्रा लगायी जाय)। डॉ गोरख प्रसाद ने सुझाव दिया कि मात्राओं को व्यंजन के बाद दाहिने तरफ अलग से रखा जाय। डॉ. श्यामसुन्दर दास ने अनुस्वार के प्रयोग को व्यापक बनाकर देवनागरी के सरलीकरण के प्रयास किये (पंचमाक्षर के बदले अनुस्वार के प्रयोग )। इसी प्रकार श्रीनिवास का सुझाव था कि महाप्राण वर्ण के लिए अल्पप्राण के नीचे ऽ चिह्न लगाया जाय। १९४५ में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा अ की बारहखड़ी और श्रीनिवास के सुझाव को अस्वीकार करने का निर्णय लिया गया।Hindi for Competitive Examinations, पृष्ठ ५१ से ५६ देवनागरी के विकास में अनेक संस्थागत प्रयासों की भूमिका भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रही है। १९३५ में हिंदी साहित्य सम्मेलन ने नागरी लिपि सुधार समितिNotes on the works of Script Reforms के माध्यम से 'अ' की बारहखड़ी और शिरोरेखा से संबंधित सुधार सुझाए। इसी प्रकार, १९४७ में आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने बारहखड़ी, मात्रा व्यवस्था, अनुस्वार व अनुनासिक से संबंधित महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये। देवनागरी लिपि के विकास हेतु भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने कई स्तरों पर प्रयास किये हैं। सन् १९६६ में मानक देवनागरी वर्णमाला प्रकाशित की गई और १९६७ में ‘हिंदी वर्तनी का मानकीकरण’ प्रकाशित किया गया। १९८३ में ‘देवनागरी लिपि तथा हिन्दी की वर्तनी का मानकीकरण’ प्रकाशित किया गया। देवनागरी के सम्पादित्र व अन्य सॉफ्टवेयर इंटरनेट पर हिन्दी के साधन देखिये। देवनागरी से अन्य लिपियों में रूपान्तरण ITRANS (iTrans) निरूपण, देवनागरी को लैटिन (रोमन) में परिवर्तित करने का आधुनिकतम और अक्षत (lossless) तरीका है। (Online Interface to iTrans) आजकल अनेक कम्प्यूटर प्रोग्राम उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को किसी भी भारतीय लिपि में बदला जा सकता है। अक्षरमुख (लिपि परिवर्तक) कुछ ऐसे भी कम्प्यूटर प्रोग्राम हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को लैटिन, अरबी, चीनी, क्रिलिक, आईपीए (IPA) आदि में बदला जा सकता है। (ICU Transform Demo) यूनिकोड के पदार्पण के बाद देवनागरी का रोमनीकरण (romanization) अब अनावश्यक होता जा रहा है, क्योंकि धीरे-धीरे कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन तथा अन्य डिजिटल युक्तियों पर देवनागरी को (और अन्य लिपियों को भी) पूर्ण समर्थन मिलने लगा है। संगणक कुंजीपटल पर देवनागरी center|600px|thumb|इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल पर देवनागरी वर्ण (Windows, Solaris, Java) Ram Narayan Ray देवनागरी यूनिकोड   0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 A B C D E F U+090x ऀ ँ ं ः ऄ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऌ ऍ ऎ ए U+091x ऐ ऑ ऒ ओ औ क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट U+092x ठ ड ढ ण त थ द ध न ऩ प फ ब भ म य U+093xर ऱ ल ळ ऴ व श ष स ह ऺ ऻ ़ ऽ ा ि U+094xी ु ू ृ ॄ ॅ ॆ े ै ॉ ॊ ो ौ ् ॎ ॏ U+095xॐ ॑ ॒ ॓ ॔ ॕ ॖ ॗ क़ख़ग़ज़ड़ढ़फ़य़ U+096xॠ ॡ ॢ ॣ । ॥ ० १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ U+097x॰ ॱ ॲ ॳ ॴ ॵ ॶ ॷ ॸ ॹ ॺ ॻ ॼ ॽ ॾ ॿ सन्दर्भ इन्हें भी देखें देवनागरी वर्णमाला देवनागरी का इतिहास देवनागरी यूनिकोड खण्ड नागरी प्रचारिणी सभा नागरी संगम पत्रिका नागरी एवं भारतीय भाषाएँ गौरीदत्त - देवनागरी के महान प्रचारक देवनागरी टंकण हिन्दी के साधन इंटरनेट पर हन्टेरियन लिप्यन्तरण इंस्क्रिप्ट इस्की (ISCII) ब्राह्मी लिपि ब्राह्मी परिवार की लिपियाँ भारतीय लिपियाँ नन्दिनागरी पूर्वी नागरी लिपि भारतीय सङ्ख्या प्रणाली श्वा (Schwa) बाहरी कड़ियाँ ब्राह्मी-लिपि परिवार का वृक्ष - इसमें ब्राह्मी से उत्पन्न लिपियों की समय-रेखा का चित्र दिया हुआ है। पहलवी-ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न दक्षिण-पूर्व एशिया की लिपियों की समय-रेखा हर ढांचे में आसानी से ढल जाती है नागरी (डॉ॰ जुबैदा हाशिम मुल्ला ; 02 मई 2012) Unicode Entity Codes for the Devanāgarī Script https://web.archive.org/web/20030801223449/http://www.ancientscripts.com/devanagari.html https://web.archive.org/web/20140901145421/http://www.unicode.org/charts/PDF/U0900.pdf Language Independent Speech Compression using Devanagari Phonetics राजभाषा हिन्दी (गूगल पुस्तक ; लेखक - भोलानाथ तिवारी) अंग्रेजी भी देवनागरी में लिखें Devanagari character picker v11 The Influence of Sanskrit on the Japanese Sound System (James H. Buck, University of Georgia) देवनागरी लिपि एवं संगणक (अम्बा कुलकर्णी, विभागाध्यक्ष ,संस्कृत अध्ययन विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय) श्रेणी:देवनागरी श्रेणी:लिपि श्रेणी:हिन्दी श्रेणी:ब्राह्मी परिवार की लिपियाँ
भारत
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भारत की भाषाए
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