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बेशक मैं मानकर चल रहा हूं कि एग्जिट पोल में जितना बताया गया है उसकी तुलना में मुकाबला कहीं ज्यादा कांटे का साबित होगा. फिर भी, बीजेपी के आलोचकों (जिसमें मैं भी शामिल हूं) को एक सलाह देना जरूरी समझता हूं. अगर बीजेपी यूपी के चुनाव जीत जाती है तो मेहरबानी करके ये तर्क मत दीजिए कि ऐसा चुनाव में धांधली करके हुआ. वजह ये नहीं कि बीजेपी ऐसी हेराफेरी नहीं कर सकती या फिर चुनाव आयोग ऐसी चीजों को बर्दाश्त नहीं कर सकता. लेकिन जहां तक इस बार के यूपी के चुनावों का सवाल है, मामला ईवीएम में गड़बड़ी का नहीं बल्कि हमारे टीवी स्क्रीन और स्मार्टफोन में हुई गड़बड़ी का है. अगर बीजेपी जीत जाती है तो निश्चित समझिएगा कि उसने ऐसा बूथ-कैप्चरिंग (मतदान केंद्रों पर कब्जा) के जरिए नहीं बल्कि लोगों के दिलो-दिमाग पर कब्जा करके किया है- लोगों की सहज समझ में दाखिल होकर उसने जीत हासिल की है.
बीते कुछ हफ्तों के दौरान मैंने अपने कई दोस्तों को कहा कि फिलिप ओल्डनबर्ग का वह लेख पढ़िए जिसमें उन्होंने बताया है कि कैसे ज्यादातर पत्रकार और राजनीतिक कार्यकर्ता 1984 के चुनावों में कांग्रेस की लहर देखने में चूक गये. ओल्डनबर्ग का तर्क बड़ा सीधा-सादा सा हैः राजनेताओं, पत्रकारों और स्थानीय सूचना दाताओं की तिकड़ी चुनाव के रुझानों को लेकर आपस में ही बोलते-बतियाते रह गई और इस तिकड़ी ने चुनावी नतीजों के बारे में एक आपसी सहमति गढ़ ली. ऐसे में समस्या ये थी कि किसी ने भी आम मतदाता से पूछने की जहमत नहीं उठायी. यह काम तो सर्वे के सहारे होता है.
बीते कुछ हफ्तों के दौरान मैं यूपी के अलग-अलग इलाकों में गया तो इस सबक से मेरा बारंबार सामना हुआ. काश! कि मेरे दोस्तों आपस में बोलते-बतियाते रहने और मीडिया के बोले-बताये पर कान देने की आदत छोड़कर आम जन से संवाद कायम करते. इस सबक को याद करने में अब भी देरी नहीं हुई. साल 2024 के चुनाव अब भी दो बरस दूर हैं.
(लेखक स्वराज इंडिया के सदस्य और जय किसान आंदोलन के सह-संस्थापक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
HMD ग्लोबल के मालिकाना हक वाली नोकिया (Nokia) अपने यूजर्स को प्योर एंड्रॉयड का एक्सपीरियंस देती है। कंपनी लेटेस्ट OS अपग्रेड देने में हमेशा से आगे रही है। अब एक हालिया गीकबेंच (Geekbench) लिस्टिंग से जानकारी मिली है कि कंपनी नए Android 12 ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ जिन डिवाइसेज की टेस्टिंग कर रही है, उनमें Nokia 5. 4 भी शामिल है। इससे पहले Nokia 2. 4, Nokia 3. 4 और Nokia G10 को गीकबेंच पर देखा गया था। इन सभी डिवाइसेज को भी लेटेस्ट एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए टेस्ट करने की जानकारी सामने आई थी। बहरहाल, अबतक Nokia X10 और Nokia G50 जैसी डिवाइसेज को Android 12 अपग्रेड मिला है। इन्हें भी गीकबेंच पर स्पॉट किया गया था।
का वादा करती है। इसी कदम के तहत वह कई नोकिया डिवाइसेज को नए OS के लिए टेस्ट कर रही है। एंड्रॉयड 12 OS अपने पिछले ऑपरेटिंग सिस्टम के मुकाबले कई बदलावों के साथ है। इसमें उपयोगी फीचर्स भी जोड़े गए हैं। नए ऑपरेटिंग सिस्टम को पहले से ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए नए सिक्योरिटी फीचर्स को भी जोड़ा गया है। यह ओवरऑल फंक्शनैलिटी और सिस्टम की परफॉर्मेंस को भी बढ़ाता है।
लेटेस्ट एंड्रॉयड वर्जन में गूगल असिस्टेंट (Google Assistant) एक्टिवेशन को पावर बटन पर शिफ्ट कर दिया गया है। यूजर को गूगल असिस्टेंट को एक्टिवेट करने के लिए पावर बटन को लॉन्ग प्रेस करना होगा। ऑपरेटिंग सिस्टम को पहले से ज्यादा ऑप्टिमाइज किया गया है, जिससे यह फोन की परफॉर्मेंस को बढ़ाता है। Android 12 में विजेट भी बदले हुए रूप में दिखाई देते हैं। नए प्राइवेसी डैशबोर्ड की बदौलत यूजर डेटा एक्सेस की सभी जानकारियों को डिटेल में पा सकते हैं। क्विक सेटिंग्स के जरिए अब यूजर सिंगल टैप से ही कैमरा और माइक्रोफोन को डिसेबल कर सकते हैं।
ड्यूल सिम (नैनो) एंड्रॉयड 10 पर काम करता है, जिसे एंड्रॉयड 11 अपडेट भी फ्यूचर में दिया जाएगा। फोन में आपको 6. 39 इंच एचडी+ (720x1,560 पिक्सल) डिस्प्ले मिलता है। इसके अलावा, यह फोन ऑक्टा-कोर क्वालकॉम स्नैपड्रैगन 662 प्रोसेसर व 6 जीबी तक रैम से लैस है। स्टोरेज की बात करें, तो फोन में 64 जीबी स्टोरेज है जिसे माइक्रो एसडी कार्ड के जरिए 512 जीबी तक बढ़ाया जा सकता है।
का आश्रय लिया, परन्तु इसी से उनके प्रलोचना-सिद्धान्तों को संकुचित सौभाएँ भो निर्दिष्ट हो गई । शुक्ल जी द्वारा की गई परिष्कृति के प्रनन्तर भी प्राधुनिक वृष्टिप्राप्त झालोचकों को यह स्वीकार नहीं हो रहा है कि आलोचना को केवल शब्द-शक्ति, रस, रोति, अलङ्कार की पद्धतियों तक हो सीमित रखा जाय। इसका मुख्य कारण यह है कि शुक्ल जी एक अवैज्ञानिक, प्रास्थामूलक नीतिमत्ता और वर्गाश्रम धर्म को प्रादर्शवादिता को अपेक्षा में साहित्य सिद्धान्तों की सीमांसा कर गये है। आधुनिक मनोविज्ञान (Psychology ), मानव-शास्त्र (Anthropology ) और द्वन्द्वात्मक भौतिक वर्शन (Dialectical Materialism ) के कला-सम्बन्धी अन्वेषणोस्थापनाओं का उन्होंने सार ग्रहरण नहीं किया।
इसके विपरीत, प्रत्येक मानव-क्रिया, भाव-दशा और रुचि के मूल में एक-एक स्थायी प्रेरक प्रवृत्ति को बिठाकर उन्होने साहित्य की परिकल्पना को एक स्थिर (Static) विचारधारा में जकड़ दिया। वर्गीकरण, व्यक्त रूप सौन्दर्य, रूढ के निर्वाह और साम्प्रदायिक दर्शन के प्रति उनका विशेष प्राग्रह रहा । यहाँ तक कि वे अपने साधारणीकरण के सिद्धान्त द्वारा प्रत्येक अनुभव में अन्तर्भूत अथवा व्यवत, विशिष्ट और सामान्य सापेक्ष और निरपेक्ष, सत्य और सौन्दर्य को द्वन्द्वात्मक अन्विति का आकलन करने का कोई व्यापक प्रतिमान स्थिर न कर सके। प्रवृत्ति और निवृत्ति केवल इन दो परस्पर विरोधी मूल वृत्तियों को यन्त्रवत् कल्पना करके उन्होंने सत्प्रसत्, सुन्दर प्रसुन्दर और धर्म-अधर्म के 'ढाँचो' में मनुष्य के अनुभव और कर्म को रागात्मिका वृत्ति की मध्यस्थता से ढालने का मूलमन्त्र खोज निकाला, और इससे एक का लोक-मगलकारी तथा दूसरे का लोक-श्रमंगलकारी रूप निश्चित कर दिया। साधारगीकरम' और 'लोक-मंगल, शुक्ल जी द्वारा प्रतिपादित साहित्य के इन दोनों आदर्शों या लक्ष्यों को कल्पना प्रत्यन्त संकुचित और अवास्तविक है । प्रचलित रूढ़ धारणाओ में प्रकट सत्याभास हो उनके आधार है, क्योकि धार्मिक शब्दाडम्बर को त्यागकर 'साधारणीकरण' का तात्पर्य यदि केवल साहित्य के प्रेषरणीय गुण से है तो इस पर इतना जोर देना एक स्वयंसिद्धि को ही सिद्ध करने का व्यर्थ प्रयत्न करना है, और विशेष करके तब जब कि प्रेषणीयता के आधार पर एकांगी मूल्यांकन हो समय है, अन्यथा द्विवेदो-काल का इतिवृत्तात्मक काव्य छायावाद के काव्य से श्रेष्ठ माना जाय और निराला की तुलना में सोहनलाल द्विवेदी को श्रेष्ठतर कवि घोषित किया जाय । साहित्य या कला, रचनाकार को भावनालो का 'साधारणीकरण' हो नहीं करती, बल्कि वास्तविकता को प्रतिविम्बित करती है और यदि वास्तविकता संश्लिष्ट और जटिल है - जैसी कि वह सर्वदा से है - तो उसका प्रतिबिम्ब भी सोधो, समानान्तर रेखाओं से भक्ति नहीं किया जा सकता जो अमिना से प्रत्यक्ष (Obvious) मौर
६ बोधगम्य है, वह कला या कविता नहीं हो सफलो । फला इसी कारण एक सीमा तक तुम्ह और जटिल अनुभव है और उसकी सार्थकता इसी में निहित है कि वह मनुष्य मात्र की चेतना को अधिक संश्लिष्ट और समृद्ध बनाती है जिससे वास्तविकता का मर्म उत्तमें निहित सम्भावनाएँ उत्तरोत्तर स्पष्ट होती जाती है और मनुष्य सत्य के निकट पहुँचता जाता है । शुक्ल जी का साधारणीकरण का सिद्धान्त, इस दृष्टि से अत्यन्त सरल सिद्धान्त है, एकांगी और सत्य की छाया मात्र । इसी प्रकार यदि धर्म और अन्धविश्वास का आवरण हटाकर उनके 'लोक-मंगल' के सिद्धान्तों की परीक्षा करे तो एक वैज्ञानिक समाज का 'लोक-मंगल' शुक्ल जी की दृष्टि से श्रमगल और धर्म का पर्यायवाची न बन जायगा, इससे इन्कार कसे किया जा सकता है ? शब्दों की ध्वनि से हमारी प्रासक्ति नहीं है, और यदि 'लोक-मंगल' शब्द में अत्यन्त अबोध और पुनीत ध्वनि मिलती है तो इसका यह तात्पर्य नहीं कि शुक्ल जी द्वारा की गई उसकी व्याख्या है एक त्रिकालवर्ती सत्य है। शुक्ल जो के स्थूल, भावुक और रूढ़िवादी सिद्धान्तों का अनुकरण करने वाले प्राचार्य और अध्यापक ग्रब कला और साहित्य के मूलोद्गम, प्रयोजन और मूल्य इन सभी व्यापक प्रश्नों की अवहेलना करके केवल वर्गीकरण को हो श्रालोचक धर्म की इतिकर्तव्यता मान बैठे है ।
उनको तर्क प्रणाली उन धर्मान्ध रूढ़िवादियों की कोटि की है जो किसी नये सत्य का विरोध करते समय कहते है 'हमारे यहाँ ऐसा नहीं है, और यदि नया सत्य अपनो आन्तरिक शक्ति के कारण सर्वमान्य हो गया है और उसका मानना आपद्धर्म बन गया है तो कहते है 'तभी तो हमारे यहाँ प्रमुक ने ऐसा कहा है - पर दोनों स्थ जे जिन्हें नया सत्य व्यावहारिक रूप से अमान्य हो होता है । 'लोक-मंगल' जैसे शब्द ऐसी हो अनौचित परिस्थितियों में ढाल का काम देते है। इसमें किंचित आश्चर्य की बात नहीं कि स्वयं शुक्ल जी ने इस हठवादी तर्क प्रणाली को अपनाया था। प्राचीन वर्गीकरण के अनुसार चौंसठ कलाग्रों में साहित्य या काव्य की गरगना नहीं कराई गई है। केवल इतनी-सी बात के कारण भारतीय भारतीय का वैज्ञानिक भावनाजन्य भेद खड़ा करके उन्होने साहित्य से कला का संयोग अनर्थहेतुक घोषित किया और साहित्य- समीक्षा से उसके बहिष्कार का आदेश दिया। और इतालवी दार्शनिक क्रोचे के सौन्दर्य सिद्धान्तों की मनोनुकूल विकृति करके उन्होंने आई. ए. रिचार्ड्स जैसे मनोवैज्ञानिक समीक्षक की पुस्तकों में से पूर्व प्रकरण से हटाये वाक्यों द्वारा भारतीय लाक्षरिंगक ग्रन्थों की स्थापनाओं और वर्गीकरण का पिष्टपेषण करवाया। इस प्रकार अपने मत को प्रशस्ति करके उन्होंने अभिव्यंजनाबाद, स्वच्छंदतावाद, प्रभाववाद, मूतिविधानवाद, परावस्तुवाद आदि साहित्य-कला को आधुनिक प्रवृत्तियों को प्रवाद और वितडावाद कहकर उनकी निंदा की थी, जो मूलतः ठीक होते हुए भी सर्वथा वैज्ञानिक नहीं है
शुक्ल जी के अनुगामी, पाण्डित्य का इतना विशाल घटाटोप खड़ा करने मे अपने को असमर्थ पाकर और यह देखकर कि प्राचीन प्राचार्यो में शब्द-शक्ति, रल, रीति, अलंकार के भेदोपभेदों की संख्या पहले ही समाप्त करदी है, कभी शुक्ल जी के ही तर्कों की श्रावृत्ति करते हैं, कभी आधुनिक रचनाओं में इन भेदोषभेदो के दृष्टान्त सूचित करके मूल्याकन केसे छुट्टी पा लेते हैं, तो कभी साहित्य के आधुनिक रूप-विधानों- जैसे उपन्यास, कहानी औौर गीति-काव्य का क्षेत्र सपाट पाकर उन्हे भी कोष्ठबद्ध करने लगते है । अर्थात् उनका वर्गीकरण करने में संलग्न हो जाते है । डा० श्रीकृष्णलाल की 'आधुनिक हिन्दी साहित्य का विकास' नाम की पुस्तक इस प्रवृत्ति का साधारण उदाहरण है। उन्होंने गीति-काव्य के पाँच भेद किये है--व्यंग्यगीति, पत्र-गीति, शोक-गीति, वर्ग भावना से प्रेरित गीति और अध्यान्तरित - गीति, और फिर इनके भी उपभेद कर डाले है। इसी प्रकार उपन्यासों के भी एक दर्जन भेद
को यहाँ मिलेंगे ये नयो रचना अपनी शैलीगत विशेषता के कारण इन अध्यापकों को एक नये भद का खाना खोलने के लिए विवश कर देती है। फिर भी, कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, तिबन्ध आदि के तीन या तेरह भेद होते है उनके इस 'होते है' के निश्चयात्मक स्वर में शिथिलता नहीं आती । साहित्य के गम्भीर मर्मज्ञ पण्डित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र और यदाकदा मनोविज्ञान से प्रेरणा लेने वाले डॉ० रामकुमार वर्मा तक इस मनोवृत्ति से छुटकारा नहीं पा सके है ।
साहित्यालोचन की दूसरी विचारधारा आधुनिक मनोविज्ञान - वस्तुतः फ्रॉयड - एडलर-युग के मनोविश्लेवरण शास्त्र से प्रभावित है। 'अज्ञेय' और इलाचन्द्र जोशी, इस प्रसङ्ग में केवल ये दो नाम हो उल्लेखनीय है । दोनों उपन्यासकार, कवि, है। इसमें सन्देह नहीं कि 'अज्ञेय ने अपने निबन्धों में कला के मूल्यांकन का प्रश्न पूरी गम्भीरला के साथ उठाया है। और जो लोग मनोविज्ञान की प्राधुनिक प्रवृत्तियों से अनभिज्ञ हैं, उन्हें इन निबन्धो में नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन भी मिलेगा। मूल्यांकन करते समय कला-सृजन में व्यक्ति के ग्रह और अवचेतन का और समाज को परिस्थिति या परिवृत्ति का क्या महत्त्व है, इन प्रश्नों का निर्देश करके उन्होंने कला-साहित्य विषयक रूढ़ धारणाओं को नयी अन्तर्दृष्टि दी है। परन्तु इन तत्त्वों को उन्होंने जो व्याख्या की है वह अत्यन्त एकांगो और यन्त्रवत् है । वैसे उनके समूचे दृष्टिकोण में एक आन्तरिक विसंगति है जो एक समन्वित दृष्टिकोरण के प्रभाव की सूचक है।' एक ओर वे कलाकार और प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति को ऐसा 'विद्रोहसत्व' मानते है जो पुरानो लीक पर न चलकर अपनी नयी लोक बनाता है, अपने व्यक्तित्व की पूर्ण स्वीकृति पाने के लिए अपनी परम्परा स्वयं गढ़ता १ देखिय 'अज्ञेय' का निबन्ध-सग्रह 'त्रिशकु' ।
दूसरी ओर, रूढ़ि के अर्थ को परिवर्धित करके वे कलाकार से यह अपेक्षा भी रखने है कि वह रूढ़ि के प्रति अपना विद्रोह प्रकट करने के लिए रेल के एंज्जिन की तरह अपने को परम्परा के जोड़ दे । एक स्थान पर अंग्रेजी कवि और समालोचक टी० एस० ईलियट के निबन्ध (The Sacred Wood) में से 'कविता व्यक्तित्व की अभिव्यञ्जना नहीं, बल्कि व्यक्तित्व से मोक्ष हैं, इस वाक्य को उद्धृत् करके कलाकार से निर्व्यक्तिकता' की मांग करते है तो दूसरे स्थान पर एक 'वृहत्तर व्यक्तित्व के निर्माण का प्रश्न भी उठाते हैं । उनके दृष्टिकोण में ऐसी विसंगतियो की निरी भरमार है। और यह भी सन्दिग्ध है कि ईलियट, एडलर, फ्रॉयड, हक्सले, हर्बर्ट, रोड आदि के मतो को ज्यो का त्यो प्रतिपादित करते समय वे उनके परस्पर सम्बन्ध को या उनके पूरे अर्थारोप को भी समझते है ।
उदाहरण के लिए, कला की परिभाषा के रूप में यह सूत्र बताकर कि, 'कला सामाजिक अनुपयोगिता की अनुभूति के विरुद्ध अपने को प्रमारिगत करने का प्रयत्न -- अपर्याप्तता के विरुद्ध विद्रोह-हैं' जब वे इस स्थापना को सिद्ध करने के लिए सांस्कृतिक प्राग्जीवन में कला को जन्म देने वाले प्रथम पुरुष की, जो किसी कारण कमजोर प्रारी है और सामजिक कार्य में भाग लेने में असमर्थ है, कल्पना करते तो यह कल्पना आधुनिक मानवशास्त्र (Anthropology) की गवेषणा के प्रतिकूल यान्त्रिकता से आबद्ध और शिशुवत् लगती है। इससे केवल इतना हो सिद्ध होता है कि कला कुछ ऐसे बीमार, पंगु, विकलांग, और सम्भव है, विक्षिप्त व्यक्तियो की ही सृष्टि है जो अपने असामाजिक उलझा जीवन के प्रभाव को पूर्ति के लिए अपने कुतूहल, कौतुक वृत्ति औौर हीन भावना से प्रेरित होकर कुछ टेढ़ी मेढ़ो प्राकृतियाँ खींचते या शब्दों का इन्द्रजाल बुनते रहते हैं । यही कला-कृतियाँ बन जाती है। उनमें दूसरों को सौन्दर्य-बोध होने लगता है और इस प्रकार उन बेचारे कलाकारों का व्यक्तित्व या उनकी सत्ता प्रमारिणत हो जाती है ।
'अज्ञेय' की इस फॉयडीय परिभाषा से अनेक विचित्र परिणाम निकलते है । कला यदि 'सामाजिक अनुषयोगिता की अनुभूति के विरुद्ध अपने को प्रसारित करने का प्रयत्न है तो निश्चय ही कला समाज पर बाहर से ( प्रतिभासम्पन्न व्यक्तियो द्वारा ही सही) आरोपित वस्तु है, स्वयं सामाजिक जीवन की आवश्यकताओं से, सामाजिक जीवन की सूक्ष्मतर सौन्दर्यमयी जीवनानुभूति, मनुष्यमात्र को उत्तरोत्तर मुक्त और संस्कृत जीवन निर्माण करने की आकांक्षा से प्रेरित व्यक्ति की प्रतिक्रिया से उत्पन्न वस्तु नही है। ऐसी स्थिति से कला या साहित्य की प्रवृत्तियों, विचारधाराओं, मान-मूल्यों का जिक्र ही निरर्थक हो जाता है। फिर किस चमत्कारी तिलिस्म के घटित होने से कलाकार नामधारी विक्षिप्त जन्तु को कौतुक कृतियों में
पाठक या दृष्टर को सौन्दर्य ( व्यवस्था, नियम, उपयोगिता, सहानुभूति, प्रेरणा) का बोध होने लगता है. यह एक गुप्त रहस्य है। निस्सदेह, 'अज्ञेष' की स्थापना हास्यास्पद है ।
इसी प्रकार ईलियट के इस उद्धरण में--कवि एक विशेष माध्यम को व्यक्त करता है, व्यक्तित्व को नहीं' - 'माध्यम' का अर्थ 'कवि-मानस' नहीं लगाया जा सकता जैसा कि 'अज्ञेय' ने किया है, बल्कि हर्बर्ट रोड के अनुसार उसका आशय शब्दध्वनि सम्बन्धी स्नायुविक सवेदनीयता से ही लिया जा सकता है, अन्यथा यह स्थापना निरर्थक है। इन मंगल प्रगत उक्तियों को छोड़कर यदि 'अज्ञेय' के कला-मूल्य निरूपक जीवन दर्शन की परीक्षा करें तो उसको एकांगिता और यन्त्रवत्ता और भी मुखर लगती हैं ।
वस्तुतः उनके निकट कला का मुख्य उसके चमत्कार में है । चमत्कार उसका साव्य भी ह । कला के मानव-मूल्य या उसकी सामाजिक उपयोगिता आदि प्रश्न केवल प्रासंगिक महत्त्व रखते है । चमत्कार-सृजन हो जाने के पश्चात् समाज उससे जैसी प्रेरणा चाहे लेने को स्वतन्त्र है । [ यदि नात्सियों को यह फॉर्मूला ज्ञात होता तो कलाकारों के चमत्कार-विधान से ये भी लाभ उठाने, उनकी क्लाकृतियो को होली जलाने और जीवित कलाकारों को निर्वासित करने या प्राणदण्ड देने की क्या आवश्यकता थी ? ] उसके पूर्व कला या कलाकार से प्रगतिशील अथवा नैतिक होने न होने का आग्रह करना अथवा उनसे यह प्रपेक्षा रखना कि वे कला में वास्तविकता का गत्यात्मक प्रतिबिम्ब ग्रहण करने की चेष्टा करें, श्रथवा केवल इतना सोचना भी कि कलाकार स्वभावत ऐसा करता है, कला को मनवांछित बाध्यताओं और पूर्वधाराओं में बाधकर उससे 'ऐच्छिक प्रेरणा' पाने का दुराग्रह करना है । आलोचक का कर्तव्य केवल इतना है कि वह 'पैर की छाप पढ़कर बताये कि कलाकार नामधारी जन्तु किस दिशा को घोर निकल गया । इस प्रकार 'अज्ञेष' के अनुसार ना न वैज्ञानिक किया है, न सृजनात्मक । अपनी विसंगतियों के कारण 'अज्ञेय' अन्ततोगत्वा, उसो मात्र सापेक्षतामूलक सौन्दर्यदृष्टि पर प्राकर ठहर जाते हैं, जिससे भागे बढ़कर, चाहे मनोविश्लेषण शास्त्र के एकागी दृष्टिकोण से ही क्यों न हो, वे कला के मानमूल्य निर्धारित करने का बीड़ा उठाते है और केवल 'पैर को छाप' पढ़कर बूझने वाले 'लाल बुझक्कड़' ही नहीं बने रहना चाहते।
इस स्थिति में पडकर प्रगतिवाद का विरोध करके 'नूतन रहस्यवाद' की श्रोर आकृष्ट होना, कला की परख के लिए एक प्रबुद्ध अभिजातवर्ग की कल्पना करना, और यदि कलाकार साधनहीन होने के कारण उपजीवी नहीं बन सकता तो 'जीने के लिए उसे पत्र जगत या राजनीति में प्रविष्ट होकर लापद्धर्म को अवसरविदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि बेहतर रणनीति बनानी है तो हमें भारतीय महाकाव्यों और कथाओं से सीखना होगा। उन्होंने इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण और जयद्रथ का प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि जब कृष्ण भगवान ने सूर्यास्त का भ्रम पैदा किया तो जयद्रथ को लगा कि वो बच गए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। विदेश मंत्री ने कहा ये एक अच्छी रणनीति का बेहतरीन उदाहरण है। हमें अपनी कथाओं से इसे सीखना होगा। बता दें कि विदेश मंत्री पुणे में अपनी किताब द इंडिया वे के मराठी अनुवाद भारत मार्ग के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे।
एस जयशंकर ने महाभारत के श्रीकृष्ण और जयद्रथ की कथा का उहादरण देते हुए कहा- 'मैं ये उदाहरण इसलिए दे रहा हूं कि कोई भी परिस्थिति हो, कोई भी एनालिसिस हो, हम बड़ी आसानी से दूसरी कहानियों के शब्द बोलते हैं। हम बोलते हैं- ट्रोजन हॉर्स या गॉर्डियन नॉट। मुझे इन कथाओं से कोई दिक्कत नहीं है, मैं भी इन्हें पढ़ता हूं लेकिन मैं अपने देशवासियों को ये समझाना चाहता हूं आप अपने बारे में भी पढ़ें। अगर हमें सच में रणनीति संस्कृति बनानी है तो ये हमारी कथाओं और महाकाव्यों से बनेगी।
क्या है जयद्रथ वध की कथा?
बता दें कि महाभारत की कथाओं में जयद्रथ के वध का वर्णन है। अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की हत्या के लिए अर्जुन ने जयद्रथ को जिम्मेदार माना और प्रतिज्ञा की अगले दिन सूर्यास्त से पहले अगर जयद्रथ का वध नहीं किया तो वो आत्म दाह कर लेंगे। लेकिन दूसरे दिन जयद्रथ अर्जुन के सामने नहीं आया। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने सूर्यास्त का भ्रम पैदा किया, जिसे देख जयद्रथ बाहर आ गया उसे लगा कि अब वो बच गया है, लेकिन अर्जुन ने उसका वध कर दिया।
उन्होंने कहा कि आजकल एक शब्द काफी चर्चा में है 'रूल्स बेस्ड ऑर्डर'। देशों के बीच में एक राजनीतिक मर्यादा होती है। महाभारत की कहानी क्या है। जो नियमों को तोड़ते हैं. . . जैसे कर्ण और दुर्योधन, वो क्या करते हैं। उन्हें आखिरी वक्त में याद आता है कि नियमों का उल्लघंन हो रहा है जबकि पूरी जिंदगी उन्होंने इन्हीं नियमों को तोड़ा है। आज आपस में हमारी डिबेट होती है कि हमारे खिलाफ हमसे बड़ा देश है। कौरव और पांडवों के बीच क्या था? पांडवों की फौज छोटी थी लेकिन उनके पास बड़ी सोच थी, अनुशासन ज्यादा था, इंटेलीजेंस ज्यादा थी और श्रीकृष्ण उनके साथ थे। कूटनीति में भरोसे और रेपुटेशन की कीमत बहुत ज्यादा है। पांडवों की रेपुटेशन कौरवों से बहुत ज्यादा थी। कुछ लोग कहेंगे कि महाभारत में कुछ चीजें गलत थीं, जैसे युधिष्ठिर ने अश्वत्थामा को आगे किया, अर्जुन शिखंडी को युद्धभूमि में ले गए लेकिन इसके पीछे एक बड़ा कारण था।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को आड़े हाथ लिया है। उन्होंने कहा है कि चीन ने भारत की जमीन पर 1962 में कब्जा किया था। यह दूसरी बात है कि विपक्ष यह बताता नहीं है। इस बात को ऐसे दिखाया जाता है जैसे कि यह कल परसो की बात हो। उन्होंने राहुल का नाम लिए बगैर तंज कसते हुए कहा कि मैं चीनी एंबेसडर को बुलाकर अपनी खबर के लिए नहीं पूछता।
वह बोले, 'अगर किसी जमीन की बात करते हैं तो ये जमीन 1962 में चीन ने कब्जा किया था, वे (विपक्ष) आपको बताते नहीं हैं, वे ऐसे दिखाएंगे ये कल परसों हुआ है। '
जयशंकर ने बिना नाम लिए राहुल पर तंज कसा। जयशंकर बोले, 'कभी-कभी लोग कहते हैं कि आप की सोच में कमी है। बेशक, मेरी सोच में कमी हो सकती है। अगर मेरी सोच में कमी है तो मैं अपनी फौज या इंटेलिजेंस से बात करूंगा। मैं चीनी एंबेसडर को बुलाकर अपनी खबर के लिए नहीं पूछता। '
विदेश मंत्री ने कहा कि अगर आप पिछले 9 सालों को देखें तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज की सरकार और राजनीति ज्यादा राष्ट्रवादी है। उन्हें नहीं लगता कि इसमें खेद की कोई बात है। उन्हीं राष्ट्रवादी लोगों ने विदेश में देशों की मदद की है और अन्य देशों में आपदा की स्थिति में आगे आए हैं।
जयशंकर बोले, 'अगर आप विदेशी समाचार पत्र पढ़ें तो वे हिंदू राष्ट्रवादी सरकार जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं। अमेरिका या यूरोप में वे ईसाई राष्ट्रवादी नहीं कहेंगे। ये विशेषण हमारे लिए आरक्षित हैं। वे यह नहीं समझते हैं कि भारत दुनिया के साथ ज्यादा कुछ करने के लिए तैयार है। '
ऐसे बहुत कम मौके होते हैं जब भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ी एक साथ खेलते हुए नजर आते हैं. हाल में ऐसा बिलकुल नहीं हो सकता है. ऐसा होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. भारतीय टीम के पूर्व कप्तान और विकेटकीपर बल्लेबाज महेंद्र सिंह धोनी ने एक समय पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ मिलकर एक मैच खेला था.
भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल कप्तान रहे महेंद्र सिंह धोनी ने पाकिस्तान के खिलाफ बतौर कप्तान बहुत ज्यादा मैच नहीं खेला है. लेकिन यदि आपको बता दें उन्होंने कुछ पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ एक मैच खेला है. ये उन्होंने 2005 में खेला था. जब वो ब्रैडमैन टी20 कप 2005 में खेल रहे थे. इसी टूर्नामेंट में वो ब्रैडमैन इलेवन टीम का हिस्सा रहे थे.
जिस टीम में उनके साथ ही पाकिस्तान के विकेटकीपर बल्लेबाज कामरान अकमल, सलमान बट, शोएब मलिक का नाम भी शामिल था. इस टूर्नामेंट में महेंद्र सिंह धोनी सलामी बल्लेबाजी भी कर रहे थे. टूर्नामेंट के पहले मैच में वो मात्र 5 गेंद पर 3 रन ही बना पायें. उस टूर्नामेंट का हिस्सा कई और दिग्गज खिलाड़ी भी थे. जिसमें श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी भी शामिल रहे थे.
उसी टूर्नामेंट के दौरान दूसरे मैच में महेंद्र सिंह धोनी ने 61 गेंद में 91 रनों की नाबाद पारी खेली. जिसमें उन्होंने 6 चौके और 6 छक्के भी शामिल रहे. हालाँकि उस मैच में कामरान अकमल ने जीरो रन, सलमान बट ने 14 रन और शोएब मलिक ने 17 रनों की पारी खेली थी. धोनी को दूसरे छोर से सपोर्ट नहीं मिलने के कारण ही उनकी टीम 20 ओवर में 4 विकेट गँवा कर 133 रन बनाये हैं.
हालाँकि आपको बता दें की महेंद्र सिंह धोनी के अलावा उस टीम का हिस्सा भारत के तेज गेंदबाज जवागल श्रीनाथ भी रहे थे. जिन्हें उस मैच में बल्लेबाजी करने का मौका नहीं मिला था. हालाँकि ये टूर्नामेंट बहुत ज्यादा सफल नहीं रहा था. जिसके कारण बाद में ये सफल नहीं हुए थे.
ब्रैडमैन कप के उसी टूर्नामेंट के बाद ही धोनी ने खुद को एक भविष्य का स्टार बता दिया था. जिसके बाद से वो आज तक विश्व क्रिकेट के सफल कप्तानो और फिनिशर खिलाड़ियों की लिस्ट में शामिल हुए हैं. फ़िलहाल महेंद्र सिंह धोनी भारतीय टीम से बाहर चल रहे हैं. कोरोना वायरस के बुरे समय में वो अब आईपीएल जैसे टूर्नामेंट का इंतजार कर रहे हैं.
Pravasi Divas : भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और हमेशा के लिए भारतीयों के जीवन को बदल के रूप में चुना गया था।
Pravasi Divas : प्रवासी भारतीय दिवस देश के विकास में प्रवासी भारतीय समुदाय के योगदान को चिह्नित करने के लिए प्रति वर्ष 9 जनवरी को मनाया जाता है। 9 जनवरी 1915 को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मान्यता दी गई।
क्योंकि इस दिन का बहुत महत्व है। इस दिन भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और हमेशा के लिए भारतीयों के जीवन को बदल के रूप में चुना गया था। यह दिन हर साल प्रवासी भारतीय दिवस (Pravasi Bharatiya Divas) सम्मेलन के रूप में मनाया जाता है।
प्रवासी भारतीय दिवस का इतिहास (Pravasi Bharatiya Divas History)
प्रवासी भारतीय दिवस (पीबीडी) को मनाने की शुरुआत 9 जनवरी 2003 में हुई थी। क्योंकि 9 जनवरी को महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश लौटे थे। महात्मा गांधी को भारत का सबसे बड़ा प्रवासी माना जाता है। 18वीं शताब्दी में गुजराती कारोबारी व्यापारी केन्या, युगांडा, जिम्बाब्वे, जाम्बिया, दक्षिण अफ्रीका पहुंचे थे। वहीं महात्मा गांधी एक कारोबारी दादा अब्दुल्ला सेठ के कानूनी प्रतिनिधि के रूप में वर्ष 1893 में दक्षिण अफ्रीका के नटाल प्रांत में पहुंचे थे।
महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के खिलाफ संघर्ष किया। साथ ही उन्होंने प्रवासी भारतीय समुदाय के सम्मान के लिए भी संघर्ष किया। गांधी जी अहिंसा और सत्याग्रह जैसे विरोध के पूर्णतः नये और अनजान तरीकों से अपने मिशन में कामयाब हुए। महात्मा गांधी 9 जनवरी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटे थे। महात्मा गांधी के 22 साल के संघर्षमय प्रवास से प्रेरणा लेकर इस दिवस को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रवासी भारतीय दिवस मनाने का उद्देश्य (Pravasi Bharatiya Divas Celebration Purpose)
* प्रवासी भारतीयों की भारत के प्रति सोच, भावना की अभिव्यक्ति।
* देश के लोगों के साथ सकारात्मक चर्चा के लिए एक मंच उपलब्ध कराना है।
* दुनिया के सभी देशों में प्रवासी भारतीयों का नेटवर्क (Network) बनाना है।
* युवा पीढ़ी (Young Generation) को प्रवासियों से जोड़ना है।
* विदेशों में रह रहे भारतीय मजदूरों की परेशानियों को जानना और उन परेशानियों को दूर करने का प्रयास करना।
* भारत के प्रति प्रवासियों को आकर्षित करना।
* निवेश के अवसरों (Occasions) को बढ़ाना।
Coronavirus Updates: कोरोना के नए वेरिएंट ऑमिक्रॉन (Omicron) के मिलने से पूरी दुनिया में हड़कंप मचा हुआ है। दुनिया भर के लोग पिछले 2 साल से कोरोना से परेशान हैं। वैक्सीन आने के बाद लोगों को लग रहा था कि अब इस महामारी से दुनिया बच जाएगी। लेकिन एक बार फिर से कोरोना के नए वेरिएंट ने लोगों को डराना शुरू कर दिया है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे मास्क के बारे में बताएंगे जो खुद ही कोविड टेस्ट कर सकेगा। अगर कोई कोविड से संक्रमित होता है, तो मास्क में एक लाइट चमकेगी जिसे बीमारी को कंफर्म किया जा सकेगा। आइए विस्तार से जानते हैं इस खास मास्क के बारे में।
अंग्रेजी अखबर 'द सन' की रिपोर्ट के मुताबिक Kyoto Prefectural University के एक रिसर्च ग्रुप ने ऐसा मास्क बनाया है जो खुद ही कोविड टेस्ट कर पाएगा। इस मास्क को पहनने भर से ही इंसान का कोविड टेस्ट हो जाएगा। मास्क पहनकर जब लोग सांस छोड़ेंगे, तो कोविड वायरस होने पर मास्क पर एक चमकीली लाइट दिखाई देगी। इससे यह कन्फर्म हो जाएगा कि इंसान कोविड से संक्रमित है।
ऐसे में आपके मन में भी यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर इस मास्क में ऐसा क्या है कि ये कोविड टेस्ट कर पाएगा। बात दें कि जापानी वैज्ञानिकों ने इस मास्क में ऑस्ट्रिच सेल्स Ostrich Sales से बने माउथ फिल्टर का इस्तेमाल किया है। ऑस्ट्रिच सेल्स में ऐसी एंटीबॉडीज होती हैं जो कोरोना वायरस को एक साथ लेकर आती हैं और ऐसे में इस मास्क को पहनकर जब कोई सांस छोड़ेगा तो इस माउथ फिल्टर की मदद से कोविड का टेस्ट हो पाएगा।
इस मास्क को आप साधारण मास्क की तरह की पहन सकते हैं। जब आप इस मास्क को उतारते हैं तो आपको इसपर ऑस्ट्रिच सेल्स की एंटबॉडिज को स्प्रे करना होता है। इसके बाद इसे यूवी रेज के सामने रखना होता है। अगर मास्क के सर्फेस पर कोरोना वायरस होगा, तो मास्क पर एक लाइट चमकती दिखाई देती है। आप चाहे तो यूवी रेज की जगह अपने स्मार्टफोन की एलईडी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने इस तकनीक और मास्क से जुड़ा पेटेंट फाइल कर दिया है और उम्मीद है कि इसे जल्द ही जापान और अन्य देशों में सेल के लिए उपलब्ध करा दिया जाएगा।
कोल्बी-सायर कॉलेज प्रवेश अवलोकनः
कोल्बी-सायर एक सुलभ कॉलेज है, जो हर साल करीब 9 0% आवेदकों को स्वीकार करता है। आवेदन करने के लिए, छात्र स्कूल के माध्यम से, या आम आवेदन के माध्यम से आवेदन जमा कर सकते हैं। अतिरिक्त सामग्रियों में एक उच्च विद्यालय प्रतिलेख, अनुशंसा पत्र, एक लेखन नमूना, और (वैकल्पिक) एसएटी या अधिनियम से स्कोर शामिल हैं।
प्रवेश डेटा (2016):
- आपकी संभावना क्या है? (Cappex. com से)
कोल्बी-सायर कॉलेज विवरणः
कोल्बी-सायर कॉलेज के पास एक छोटे से न्यू इंग्लैंड उदार कला कॉलेज का स्वरूप और अनुभव है, लेकिन इसमें पेशेवर तैयारी पर जोर दिया गया है जो 1,100 छात्रों के स्कूल में असामान्य है। कॉलेज की स्थापना 1837 में हुई थी और न्यू लंदन, न्यू हैम्पशायर में 200-एकड़ लाल ईंट परिसर में स्थित है। बोस्टन दक्षिण में 9 0 मिनट है। स्वास्थ्य, शिक्षा और व्यापार क्षेत्र सबसे लोकप्रिय हैं, और कोल्बी-सायर अकादमिक 11 से 1 छात्र / संकाय अनुपात और 17 के औसत वर्ग के आकार के आधार पर समर्थित हैं। छात्रों के बहुमत में अनुदान सहायता का कुछ रूप प्राप्त होता है, और लगभग सभी छात्र स्नातक स्तर के समय तक एक या अधिक इंटर्नशिप पूरा करते हैं।
एथलेटिक्स में, कोल्बी-सायर चार्जर्स ज्यादातर खेलों के लिए एनसीएए डिवीजन III राष्ट्रमंडल सम्मेलन में प्रतिस्पर्धा करते हैं। कॉलेज में नौ महिलाएं और आठ पुरुष इंटरकॉलेजियेट खेल शामिल हैं। लोकप्रिय विकल्पों में सॉकर, टेनिस, बास्केटबॉल, तैराकी, ट्रैक और फील्ड, और स्कीइंग शामिल हैं।
नामांकन (2016):
- कुल नामांकनः 1,111 (सभी स्नातक)
लागत (2016 - 17):
- किताबेंः $ 2,000 ( इतना क्यों? )
कोल्बी-सायर कॉलेज वित्तीय सहायता (2015 - 16):
अकादमिक कार्यक्रमः
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स्थानांतरण, स्नातक और प्रतिधारण दरेंः
Intercollegiate एथलेटिक कार्यक्रमः
डेटा स्रोतः
यदि आप कोल्बी-सायर पसंद करते हैं, तो आप इन स्कूलों को भी पसंद कर सकते हैंः
कोल्बी-सायर कॉलेज आम आवेदन का उपयोग करता है। ये लेख आपको मार्गदर्शन करने में मदद कर सकते हैंः
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कोरोना वायरस के खतरनाक माने जा रहे ओमिक्रॉन वेरिएंट ने भारत में कोरोना संक्रमण की रफ्तार को बढ़ा दिया है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) का कहना है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित कोरोना मरीजों में गंध या स्वाद जाने का लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं।
भारत में पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस से संक्रमण के 16,764 नए मामले सामने आए और 220 मरीजों की मौत दर्ज हुई।
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