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कोरोना वायरस की वजह हुए लॉकडाउन के कारण जहां एक ओर पूरा देश घरों में बंद होने को मजबूर हो गया है, वहीं दूसरी ओर अब फिल्म इंडस्ट्री से एक दुखद खबर आ रही है।
बॉलीवुड अभिनेता शाहिद कपूर के छोटे भाई ईशान खट्टर अक्सर किसी न किसी वजह से सुर्खियों में आ ही जाते हैं। कभी अपनी फिल्मों को लेकर तो कभी निजी जिंदगी के कारण।
इस समय पूरे देश में कोरोना वायरस से लोगों को बचाने के लिए 21 दिनों का लॉकडाउन किया गया है।
पूरे देश में इस समय कोरोना वायरस की वजह से 21 दिनों का लॉकडाउन कर दिया गया है। जिस कारण लोगों को अपना सारा काम छोड़कर घर में बंद होना पड़ा है।
Mumbai : बॉलीवुड एक्ट्रेस अक्सर विवादों में रहती हैं. बिग बॉस हाउस से बाहर आने के बाद भी राखी सावंत लगातार सुर्खियों में रही हैं. राखी सावंत ने जहां पहले शमिता शेट्टी की बर्थडे पार्टी में उन्हें बिग बॉस की रियल बताते हुए सभी को सरप्राइज किया वहीं दूसरी तरफ अचानक उनका पति रितेश से अलग होना फैंस के लिए एक शॉक की तरह था. अब राखी सावंत का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वह एक फैन के ऊपर उस वक्त काफी भड़क गईं जब वह उन्हें छूने की कोशिश कर रहा था.
राखी सावंत का ये वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो रहा है. पापाराजी विरल भयानी के यूट्यूब चैनल पर इस वीडियो को रिलीज किया गया है जिसमें एक सरदार राखी सावंत के साथ सेल्फी लेने को आगे बढ़ता है लेकिन जैसे ही वह उनके कंधे पर हाथ रखता है राखी सावंत बुरी तरह भड़क जाती हैं. राखी सावंत का गुस्सा देखकर ये शख्स तुरंत बैकफुट पर आ जाता है.
राखी सावंत ने कहा, 'आप हाथ मत लगाओ. छुइए मत. मुझे ये पसंद नहीं है. ' इस पर सरदार ने फौरन राखी सावंत से माफी मांग ली. इसके बाद कंगना रनौत ने कहा, 'सॉरी की बात नहीं है. आप छू नहीं सकते हैं मुझे. ' इसके बाद राखी सावंत ने अपने अन्य तमाम फैंस के साथ सेल्फी खिंचवाई और फिर बड़ी शालीनता के साथ वहां से चली गईं.
कंगना रनौत ने कहा, 'कंगना रनौत ने हमारे बॉलीवुड और बॉलीवुड सितारों को बहुत खरी-खोटी सुनाई है. वो दूसरों को पॉइंट आउट करती हैं और पोक करती है. सभी सेलेब्रिटीज के बारे में बहुत बुरा-बुरा बोलती है और फिर भी उन्हें बॉलीवुड की जरूरत है.
आप आ गई हैं बॉलीवुड में, अच्छी बात है लेकिन दूसरों से बैर मत रखो. राखी सावंत ने कंगना रनौत को घेरते हुए कहा है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं करना चाहिए.
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के बैनर तले मंगलवार को सैकड़ों किसानों ने विभिन्न मांगों को लेकर कलेक्ट्रेट पर जमा हुए। यहां बैठक करने के बाद किसानों ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के प्रदेश मंत्री प्रताप आंजणा के नेतृत्व में कलेक्टर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम ज्ञापन सौंपा। किसानों ने ज्ञापन में बताया कि आहोर क्षेत्र में बारिश नहीं होने से भयंकर अकाल पड़ गया है। बाजरा, मूंग, ग्वार और तिल की फसलें पूरी तरह से खराब हो चुकी है। किसान वर्ग परेशान है। अकाल की स्थिति को देखते हुए आहोर तहसील के साथ जिले को सुखाग्रस्त घोषित कर तुरंत बीमा क्लेम व मुआवजा राशि देकर किसानों को राहत दी जाए।
उन्होंने बताया कि आहोर तहसील के भंवरानी, वेडिया, बाला, आईपुरा, नोसरा, देबावास सहित कई गांवों में बिजली बिलों में मनमानी रीडिंग लेकर 4 महीनों के बिल 5 हजार से 50 हजार तक जारी किए हैं। उन्होंने बताया कि साल 2020 में खरीफ के सीजन में आहोर क्षेत्र के गांवों में 75 से 100 प्रतिशत तक खराबा हुआ था, लेकिन खराबा दर्ज नहीं करने से किसान मुआवजे से वंचित रह गए। किसानों ने प्रदर्शन कर सरकार से उचित मुआवजा दिलाने की मांग की है।
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राफेल नडाल ने रविवार को दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी नोवाक जोकोविच को सीधे सेटों में 6-0, 6-2, 7-5 से हराकर 13वीं बार फ्रेंच ओपन का खिताब अपने नाम किया। इस जीत के साथ ही नडाल ने फेडरर के रिकॉर्ड 20 ग्रैंडस्लैम खिताब की बराबरी कर ली।
लाल बजरी के बादशाह दिग्गज राफेल नडाल ने इतिहास रच दिया है। राफेल नडाल ने रविवार को दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी नोवाक जोकोविच को सीधे सेटों में 6-0, 6-2, 7-5 से हराकर 13वीं बार फ्रेंच ओपन का खिताब अपने नाम किया। इस जीत के साथ ही राफेल नडाल ने रोजर फेडरर के रिकॉर्ड 20 ग्रैंडस्लैम खिताब की बराबरी कर ली।
आपको बता दें, यह उनकी रोलां गैरां पर 100वीं जीत है। दोनों खिलाड़ियों के बीच यह मुकाबला 2 घंटे 41 मिनट तक चला। फ्रेंच ओपन में नडाल और जोकोविच का सामना 8वीं बार हुआ था और नडाल 7वीं बार जीते। ओवरऑल ग्रैंड स्लैम की बात करें तो दोनों के बीच यह 16वां मुकाबला था और नडाल ने 10वीं जीत हासिल की हैं।
वर्ल्ड नंबर-2 नडाल ने अब तक फ्रेंच ओपन के इतिहास में केवल दो मैच हारे हैं। नोवाक जोकोविच उन दो खिलाड़ियों में शामिल हैं, जिन्होंने नडाल को फ्रेंच ओपन के किसी भी मैच में हराया है। आपको बता दें, नोवाक जोकोविच ने 2015 के क्वार्टरफाइनल में नडाल को हराया था। उनसे पहले 2009 में स्वीडन के रॉबिन सोडरलिंग भी नडाल को चौथे राउंड के मैच में हरा चुके हैं।
सिंह राशि :
साल 2023 सिंह राशि वालों के लिए प्यार, रोमांस और रिश्तों के मामले में मिला-जुला साल रहेगा।
अप्रैल के मध्य से सितंबर 2023 के मध्य तक चीजें नियंत्रण में रहेंगी। आप अपने बोलने के तरीके पर नियंत्रण रख पाएंगे, जिससे साथी के साथ कई मसले सुलझ जाएंगे। जीवनसाथी/साथी के साथ आप अपनी भावनाओं का इजहार कर पाएंगे, जिससे दंपति के बीच खुशी आएगी। अविवाहितों को जीवनसाथी मिलने की उम्मीद रहेगी, जिससे जीवन में ख़ुशियाँ आएंगी। प्रेमी युगल कुछ बेहतरीन पलों का आनंद लेंगे।
ग्रेटर नोएडा से BBA की पढ़ाई कर रहे एक छात्र ने नॉलेज पार्क मेट्रो स्टेशन से छलांग लगा दी। इलाज के दौरान छात्र की मौत हो गई। पुलिस ने पोस्टमॉर्टम कराने के बाद शव परिजनों को सौंप दिया है। पुलिस के अनुसार, आत्महत्या के कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है। मामले की जांच की जा रही। उधर, छात्र के आत्महत्या के प्रयास का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
वीडियो में दिखाई दे रहा है कि छात्र प्लेटफॉर्म पर सीढ़ियों के पास टहल रहा है। अगले ही पल वह प्लेटफार्म की रेलिंग पर चढ़कर नीचे कूद गया। प्लेटफॉर्म पर मौजूद एक महिला ने रेलिंग के पास जाकर देखा तो छात्र खून से लथपथ पड़ा दिखा।
स्टेशन पर मौजूद लोगों ने मेट्रो स्टेशन के अधिकारियों को इस घटना की जानकारी दी। इसके बाद नीतीश को गंभीर अवस्था में यथार्थ सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां मंगलवार को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
छात्र की पहचान बिहार के भागलपुर के रहने वाले 21 साल के नीतीश कुमार के तौर पर हुई है। नॉलेज पार्क थाना के प्रभारी विनोद कुमार ने बताया कि नीतीश ग्रेटर नोएडा नॉलेज पार्क-2 के मंगलम इंस्टीट्यूट से बीबीए कर रहा था। वह थर्ड ईयर छात्र था। वह दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर के पास किराए के मकान में रहता था। मेट्रो से ही हर रोज कॉलेज आता-जाता था। सोमवार को दिन में उसने करीब 11:30 बजे मेट्रो स्टेशन से छलांग लगा दी।
थाना प्रभारी का कहना है कि नीतीश के शव का पोस्टमॉर्टम कराया गया है और उसके शव को परिजनों को सौंप दिया गया है। पुलिस आत्महत्या के कारणों की जांच कर रही है। इसके लिए छात्र के मोबाइल कॉल डिटेल्स और अन्य जानकारियां जुटाईं जा रही है।
फिरोजाबाद में एक युवक ने घर की तीसरी मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली। घटना के वक्त वह घर पर अकेला था। बताया जा रहा है कि युवक ने पहले छत से लोगों के ऊपर पत्थर फेंके। इसके बाद छत पर करीब 10 मिनट तक घूमा। फिर अचानक छलांग लगा दी।
आस-पास के लोग उसको अस्पताल लेकर गए। जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। डॉक्टरों ने बताया कि सिर पर चोट लगने से युवक की मौत हुई है। फिलहाल पुलिस ने युवक के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। घटना फिरोजाबाद के टूंडला नगर की है। (पूरी खबर यहां पढ़ें)
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नहीं है। इधर पढ़ी-लिखी स्त्रियों और लड़कियोंने अपने वेश-भूषा रहन-सहन और आचार-विचारका बहुत कुछ सुधार कर लिया है, किन्तु सारे प्रान्तकी अवस्था अभी नहीं बदली है। शहरोंकी गलियोंमें दुपहरके समय पञ्जाबी स्त्रियोंकी टोलियांकी टोलियां चैठ जातो हैं। चरखा कातने, बीज निकालने या घरका कोई और काम करनेमें वे ऐसी तन्मय हो जाती हैं कि उनको अपने कपड़े आदिका कुछ भी ध्यान नहीं रहता, वे उस अर्द्धनम अवस्था में बैठी रहती हैं, फेरीवाले, खोमचेवाले, बरफ कुलफीवाले और कपड़ेवाले उन गलियोंमें उनके आगे पीछे घूमते रहते हैं और वे उसी अवस्था में चैठी हुई उनसे मोल-तोल आदि करती रहती हैं। किसी परिचितके आ निकलनेपर मुंहके आगे पंखा कर लिया जाता है, या जरासी पीठ मोड़ ली जाती है। बस, इतनेहीमें परदेका ढ़ोंग पूरा हो जाता है। सव वदनको ढकने या देहके बाकी वस्त्रको ठीक करनेकी कोई जरूरत नहीं समझी जाती । जिन्होंने कभी किसी पञ्जाबी धरमें 'स्यापा' होते देखा है अथवा पश्चावी स्त्रियोंको 'स्यापे' के जलूसमें जाते देखा है, उनको पञ्जाबी परदेकी बेहूदगी और ढोंगको समझाने के लिये कुछ अधिक लिखनेकी जरूरत नहीं है। बरातियोंको गाली प्रदान करने और सड़कों पर चलते हुए गाली- महास्त्रोत्रका पञ्चम स्वरमें गान करनेमें वे राजपूताना और संयुक्तप्रांतकी बहिनोंसे पीछे नहीं हैं। सबसे बड़ी बेहूदगी तो यह है कि परढ़ा तो छूटता नहीं, फिन्तु घाघरा छूटता जा रहा है और उसका स्थान ले रही हैं महीन-महीन धोतियां, जिनके नीचे पेटोफोट भी नहीं पहिना जाताChatra: जिले की कुन्दा थाना पुलिस ने क्षेत्र के चाया गांव के जंगली इलाकों में वन भूमि पर करीब 12 एकड़ में लगाए गये अफीम की फसल को नष्ट कर दिया. इस विनष्टीकरण अभियान में कुन्दा पुलिस के साथ वन विभाग की टीम भी शामिल थी.
अभियान का नेतृत्व कुंदा थाना प्रभारी बंटी यादव व वन क्षेत्र पदाधिकारी रामजी सिंह कर रहे थे. अभियान में जेसीबी और ट्रैक्टर का भी प्रयोग किया गया था. वन क्षेत्र पदाधिकारी रामजी सिंह ने कहा कि जिन जिन स्थानों पर अफीम की खेती लगी हुई है इसकी सूचना दें, बताने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा. अब अफीम करने वाले और अफीम माफिया किसी भी सूरत में बख्शे नहीं जाएंगे.
इस अभियान में पीएसआई आनंद शाह, एसआई दशरथ घोष एवं वन विभाग के वंरक्षी और सशस्त्र बल के जवान शामिल थे.
Buxwaha forest (Photo Credit: (फोटो-Ians))
भोपालः
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगलों को बचाने की लामबंदी तेज हो गई है. देश के भर के तमाम पर्यावरण प्रेमी अगले माह तीन दिवसीय कार्यक्रम 'अगस्त पर्यावरण क्रांति' का आयोजन करने पर विचार कर रहे हैं. बक्सवाहा के जंगल में हीरा के खनन का काम एक निजी कंपनी के हाथों में सौपा जा रहा है. इसके खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है, विरोध तेज हो रहा है तो मामला न्यायालय तक पहुंच चुका है. अब लोग जंगल को बचाने के लिए एकजुटता दिखाने की कोशिश में लग गए हैं.
बकसवाहा जंगल बचाओ अभियान से नाता रखने वाले झारखण्ड के कमलेश सिंह और बिहार से डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने जंगलों का जायजा लिया. जंगल को बचाने के लिए देशभर के पर्यावरण प्रेमी इसी माह बक्सवाहा में जुटने वाले थे, मगर स्थानीय लोगों के परामर्श पर तीन दिवसीय कार्यक्रम में सात से नौ अगस्त तक आयोजित करने पर मंथन हो रहा है. यह तीन दिवसीय कार्यक्रम 'पर्यावरण अगस्त क्रांति' के बैनर तले होगा.
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पर्यावरण अगस्त क्रांति मे मध्यप्रदेश सहित बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, पंजाब, उड़ीसा, छतीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के पर्यावरण संरक्षकों सहित 170 से अधिक संस्थाओं का बक्सवाहा जंगल बचाने के लिए आना तय हुआ है. तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में प्रथम दिन सात अगस्त को स्थानीय एवं आगन्तुक पर्यावरण प्रेमियों के साथ सामूहिक बैठक कर सभी का मंतव्य और भविष्य के लिए देश के सभी जंगलों के संरक्षण सहित, पर्यावरण के अन्य गम्भीर विषयों की चर्चा की जाएगी, आठ अगस्त को बक्सवाहा जंगल जागरूकता अभियान चलाया जाएगा, तीसरे एवं अंतिम दिन आठ अगस्त को पोस्ट कार्ड अभियान, जागरूकता अभियान, ज्ञापन सहित मानव श्रंखला बनाई जाएगी.
छतरपुर जिले के बक्सवाहा में हीरो का भंडार है और यहां लगभग 3. 42 करोड़ कैरेट हीरे दबे हो सकते हैं. इसकी कीमत कई हजार करोड़ आंकी गई है. जिस निजी कंपनी ने हीरे खनन का काम लेने में दिलचस्पी दिखाई है, वह इस इलाके की लगभग 382 हेक्टेयर जमीन की मांग कर रही है. ऐसा अगर होता है तो इस इलाके के लगभग सवा दो लाख वृक्षों पर असर पड़ेगा.
प्रवर्तित करते करो से, बोधिवृक्ष से, बुद्ध की पादुका से, छत्र से, स्तूप से । और जातक कथाओं से भिन्न प्रतीक तब की बौद्ध कला में प्रायः यही थे । भरहुत की वेष्टनी पर एक अद्भुत सुंदर कथा खुदी है, जेतवन खरीदने की। बुद्ध को श्रावस्ती में जो उपवन सुंदर लगा वह जेत का था। तथागत ने उसके सौंदर्य का बखान किग्ग । उपासक सेठ अनाथपिंडक ने उसे खरीदकर संघ को दान कर देने की इच्छा प्रकट की। जेत से उसका मूल्य पूछा । जेत ने असंभव मूल्य माँगाउतने सुवर्ण ( सोने के सिक्के ) जितने से मॉगी हुई भूमि ढक जाय । अनाथपिंडक जब उतना धन देने को तत्पर हो गया तब जेत मुकर गया। अभियोग विचारार्थ न्यायसभा में पहुंचा, जेत को अपना पहला मूल्य स्वीकार करना पड़ा । सेठ ने जेतवन की भूमि सोने से पाटकर मूल्य चुका दिया और जेतवन संघ को दान कर दिया । वही चित्र भरहुत की वेष्टनी पर अंकित है। बैलगाड़ियों सिक्कों से भर भरकर आ रही हैं, सिक्के भूमि पर बिछाए जा रहे हैं। थके, खुले बैल नाराम कर रहे हैं। इस प्रकार जीवन और साहित्य की कथाएँ इन कलाकृतियों में उतर प्रतीको ने साहित्य में स्थान पाया है। जातको की कथा का कला में असीम मूर्तन साहित्य और कला के इस घने संपर्क और आदान प्रदान को व्यक्त करता है ।
शुंगकला के केंद्र श्रावस्ती, भीटा, कोशांबी, मथुरा, बोधगया, पाटलिपुत्र, भरहुत, सॉची आदि थे । बोधगया में भी वेष्टनीक उसी काल का है। मथुरा में अनेक शुंगकालीन उभरी मूर्तियाँ मिली हैं, अनेक जातककथाएँ भी, स्तंभो पर उत्कीर्ण । वहाँ की एक स्तंभयक्षी तो विशेष आकर्षक है, प्रायः तीन ओर से कोरी हुई प्राकृतिवाली, नर्तन के लिये जैसे भूमि पर पग मारने को उद्यत । इसी प्रकार वहाँ की बलराम की पहली हल-मूसल धारी मूर्ति लखनऊ के संग्रहालय में रखी है।
शुंगकाल की मृणमूर्तियों की संपदा भी अपार है। कुछ अनोखी नारीमूर्तियाँ तो पाटलिपुत्र में मिलीं जो पटना के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। कोशांबी में तो उस काल की असंख्य मृणमूर्तियॉ मिली है जिनकी वेशसज्जा अत्यंत सुंदर है। अकेली खड़ी नारीमूर्ति के ठीकरे तो अनंत संख्या में उपलब्ध ही हैं, वहाँ से अनेक ठीकरे ऐसे भी प्राप्त हुए हैं जिनपर ऐतिहासिक चित्र उभरे हुए हैं। ऐसा एक मिट्टी का चित्र उदयन का है। चंडप्रद्योत महासेन की कैद मे उसकी कन्या अपनी प्रेयसी वासवदत्ता के साथ वह उज्जयिनी से गज पर भाग रहा है। प्रद्योत की सेना उसका पीछा कर रही है। आगे उदयन से चिपकी वासवदत्ता बैठी है, पीछे बैठा उदयन का अनुचर नकुली से स्वर्णमुद्राएँ बरसा रहा है जिन्हें पीछा करनेवाले सैनिक उठाने में लगे हैं औौर गज भागा जा रहा है। इसीयात्री संतुष्टि में पहले एयरलाइंस फ्लाइंग आतिथ्य पर ध्यान केंद्रित करेंउपभोक्ताओं को तेजी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के साधनों की तुलना में एयरलाइन उद्योग को आतिथ्य व्यवसाय पर अधिक विचार करना प्रतीत होता है। परिवहन उद्योग का इतिहास नवाचार, प्रौद्योगिकी, और यांत्रिक जानकारियों के प्रभाव को दर्शाता है। उपभोक्ता एयरलाइन यात्रा पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं , और एयरलाइन उद्योग के साथ उनकी संतुष्टि बैंकों और बंधक उधारदाताओं के नीचे आती है।
कहने की जरूरत नहीं है, एयरलाइन यात्रियों की संतुष्टि रेटिंग में सुधार के लिए काफी जगह है।
वैश्विक बाजार अनुसंधान कंपनी जेडी पावर उत्तरी अमेरिकी एयरलाइंस पर यात्रियों की संतुष्टि रेटिंग का वार्षिक अध्ययन आयोजित करती है। 2015 उत्तरी अमेरिका एयरलाइन संतुष्टि अध्ययन सभी प्रमुख वाहकों के लिए उपभोक्ता संतुष्टि को मापने के लिए डिज़ाइन किया गया है, दोनों अवकाश यात्रा और व्यापार यात्रा यात्रियों के प्रतिक्रियाओं की जांच कर रहा है। एयरलाइन बाजार अनुसंधान के प्रारंभिक दिनों में, कुछ छोटी यात्रियों से डेटा एकत्र किया गया था जो उड़ानों के दौरान वितरित पेपर कॉपी संतुष्टि सर्वेक्षणों पर हाथ से भरने के इच्छुक थे। मौजूदा जेडी पावर संतोष सर्वेक्षण ने सर्वेक्षण के एक साल की अवधि के दौरान लगभग 11,400 यात्रियों से प्रतिक्रियाएं एकत्र की हैं।
उत्तरी अमेरिका एयरलाइन संतुष्टि अध्ययन की ताकत यह है कि यह हाल ही की उड़ान के आधार पर यात्रा के स्पेक्ट्रम में यात्री उपभोक्ता अनुभव का आकलन करता है।
संतुष्टि सर्वेक्षण आरक्षण, चेक-इन, बोर्डिंग, इन-फ्लाइट, डिप्लानिंग और बैगेज पुनर्प्राप्ति के साथ अपने अनुभवों के माध्यम से सर्वे उत्तरदाता को लेता है। संतुष्टि सर्वेक्षण का नतीजा दो मुख्य एयरलाइन बाजार खंडों के लिए एक प्रतिस्पर्धी बेंचमार्क हैः नेटवर्क वाहक और कम लागत वाले वाहक।
प्रमुख संकेतक ग्राहक वकालत , ग्राहक वफादारी , पहचान सुधार पहलों की प्रभावशीलता में लिया जाता है, जिनमें से सभी एक समग्र एयरलाइन प्रदर्शन प्रदान करने के लिए तैयार किए जाते हैं।
ट्रैवलर्स यूनाइटेड के लोग, एक हवाई यात्रा वकालत संगठन के पास यात्रियों की संतुष्टि और असंतोष का अपना विचार है। ट्रैवलर्स यूनाइटेड के अध्यक्ष चार्ली लियोका कहते हैंः
"चूंकि एयरलाइंस शिकायत कर रही हैं कि ग्राहक अपनी सीटों की तरह वस्तुओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं, एयरलाइंस स्वयं अपने यात्रियों का इलाज कर रहे हैं - अक्सर फ्लायर एलिट्स और प्रथम श्रेणी - जैसे स्वयं लोडिंग कार्गो को छोड़कर। "
ग्राहक संतुष्टि पर बाजार अनुसंधान निष्कर्ष कुछ एयरलाइनों के यात्रियों के दृष्टिकोण को बेहतर बनाने के लिए कुछ सस्ती और आसान तरीकों को इंगित करता है। आतिथ्य व्यापार की कुछ चालों को लागू करके यात्रियों के लिए हवाई यात्रा को और अधिक सुखद बनाया जा सकता है : ट्रेनिंग गेट एजेंट और उड़ान परिचर यात्रियों पर मुस्कुराते हैं। यात्रियों को उपलब्ध सीटों को दिखाने वाली पहली उड़ान लेने के लिए स्टैंडबाय शुल्क लागू नहीं करना। परिवार के सदस्यों को एक साथ बैठना सुनिश्चित करना और ऐसा करने के लिए उन्हें अतिरिक्त चार्ज नहीं करना। ये एयरलाइन ग्राहक सेवा में एम्बेड करने के लिए काफी सरल हैं, जिससे बड़ी चुनौती टेलीफोन और वेब चैनलों में प्रभावी परिवर्तन कर रही है जो यात्रियों अक्सर उपयोग करते हैं।
2004 में, जेडी पावर ने अपने व्यावसायिक समाधानों का एक नया घटक लॉन्च किया जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं के साथ कॉल सेंटर के माध्यम से सीधे संपर्क करना था। प्रमाणित संपर्क केंद्र कार्यक्रम व्यवसायों के कॉल सेंटर में लाइव फोन चैनलों की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, साथ ही किसी भी इंटरैक्टिव वॉयस रिस्पॉन्स (आईवीआर) स्वचालित टेलीफोनी सेल्फ-सर्विस सिस्टम जो कॉल रूट करते हैं, और वेब-आधारित स्वयं सेवा चैनल व्यवसाय संचालित हो सकते हैं। उपभोक्ताओं को कॉल हैंडलिंग सेवा कॉल के लिए प्राथमिकताओं की पहचान और अद्यतन करके, जेडी पावर सेवा चैनलों के प्रभावी और कुशल संचालन के माध्यम से ग्राहक संतुष्टि में सुधार के लिए विभिन्न उद्योगों में संगठनों की सहायता करने में सक्षम है।
सूत्रों का कहना हैः
इलियट, सी। (2015, 15 मई)। यदि आप सभ्य ग्राहक सेवा चाहते हैं, तो ये उड़ानें उड़ने वाली हैं।
जेडी पावर (2015)। उत्तरी अमेरिकी एयरलाइन संतुष्टि अध्ययन।
Japan vs Spain, FIFA World Cup-2022 Knockouts: एशिया की सबसे बड़ी फुटबॉल टीमों में से एक जापान ने कमाल का खेल दिखाकर फीफा वर्ल्ड कप-2022 में नॉकआउट में जगह बनाई. उसने स्पेन को चौंकाते हुए अंतिम-16 में प्रवेश किया.
स्पेन भले ही हार गया हो, लेकिन उसने अगले दौर में प्रवेश कर लिया. वहीं, कोस्टा रिका के खिलाफ मैच जीतने के बावजूद जर्मनी को इस ग्लोबल टूर्नामेंट के ग्रुप-स्टेज से बाहर होना पड़ा.
खलीफा इंटरनेशनल स्टेडियम में खेले गए ग्रुप-ई के मैच में अल्वारो मोराटा के गोल के दम पर स्पेन ने 11वें मिनट में बढ़त बना ली. स्पेन ने हाफ टाइम तक इस बढ़त को बनाए रखा, फिर दूसरे हाफ में जापान ने अलग तेवर और अंदाज अपनाया.
मैच के 48वें मिनट में रित्सु दून ने गोल कर स्कोर 1-1 कर दिया। फिर तीन मिनट बाद एओ तनाका ने टीम के लिए दूसरा गोल किया. स्पेन के खिलाड़ी प्रयास करते रहे, लेकिन कोई गोल नहीं हो सका. अंत में जापान ने 2-1 से जीत दर्ज की.
यूरोप की फुटबॉल का पावरहाउस माने जाने वाले जर्मनी को इस बार नॉकआउट से पहले ही बाहर होना पड़ा. अल खोर के अल बेयट स्टेडियम में खेले गए इस मैच में टीम ने कोस्टा रिका को मात दी.
इस जीत के बावजूद शुक्रवार को ग्रुप स्टेज से बाहर हो गई. रूस में खेले गए पिछले फीफा वर्ल्ड कप में टीम को ग्रुप स्टेज से ही बाहर होना पड़ा था. जर्मनी ने कोस्टा के खिलाफ 4-2 से जीत दर्ज की.
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उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में रात में महिला को लोन देने के बहाने बैंक बुलाने का मामला सीएम कार्यालय तक पहुंच गया। जिसके बाद सीएम कार्यालय से आए रिमाइंडर के बाद अब जिले की पुलिस जांच में जुट गई है। इस मामले की जांच मोहम्मदाबाद गोहना के सीओ राजकुमार सिंह को सौंपी गई।
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शान्ति पर्वं ।
रामनाम उर धारकर, कर भक्ति दिन रात । इससे जगसे तरनको, और अधिक नहि बात ॥ माता पिता तौर्थ गुरु देवा । तुलसी गऊ साधुको सेवा ॥ • व्रत अस्नान दया मन राखे । श्रीरघुपति रघुपति मुख भाषै ॥ हरि गुण यश भागवत पुराना । भारत कथा सुनै दै काना ।। हरि-भक्तों की सेवा करही । सो नर निसन्देह भव तरहौ ! प्रातकाल करके अस्ताना । गौता पढ़ धरै हरि ध्याना ।। सन्धया पण त्रिकाल करै सो । भवसागरसे सहज तर सो !! कर कृष्ण चरणन सों प्रौतौ । यह भवसिन्धु तरन की रीती ॥ नारि धर्म अब कहीं बखानो। चितदे सुनह युधिष्ठिरं ज्ञानी ॥ भामिनि धर्म आप पहिचानै । पुरुषहि नारायण सम जानै ॥ दिन प्रति पुरुष वचन मन धरहो। सो संसार दुर्गते तरही ॥ बृथा और आराधे देवा । तियको परमधर्म पतिसेवा ॥
पतिही इक संसार में, पुरुष परमं विज्ञान । श्रौरनको नारी गिने, सोई नारी जान । भव सागरके तरनको, व सकल वृत्तान्त । रामनाम तारन तरन, करन सदाचित शान्त ॥ इति एकादश अध्याय ॥ ११ ॥(३) सन् १९५१ ई० में योजना के परामर्शदाता की मृत्यु हो गयी । वे योजना से सम्बन्धित नक्शे भी बनाते थे । नये परामर्शदाता की नियुक्ति तथा नक्शों की नई व्यवस्था करने में अतिरिक्त व्यय करना पड़ा और इस कारण योजना में देरी होने से भी establishment वगैरह में कुछ अधिक व्यय हुआ ।
( ४ ) वर्तमान तवमीन में कुछ नये काम शामिल हैं, जिनको प्रारंभिक तखमीना बनाते समय करने का इरादा नहीं था ।
* ४१ - श्री राम नारायण त्रिपाठी -- क्या सरकार कृपा कर बतायेगी कि उक्त फैक्ट्री में सीमेंट कब तक तैयार होना प्रारम्भ हो सकेगा ?
श्री मुहम्मद रऊफ़ जाफ़री-- आशा की जाती है कि जून-जुलाई, १९५४ से सीमेंट बनना प्रारंभ हो जायगा ।
श्री रामनारायण त्रिपाठी -- क्या माननीय मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि यह रकम किन-किन मदों में और कितनी - कितनी खर्च हुयी हँ ?
श्री मुहम्मद रऊफ़ जाफ़री --यह जो मदों में खर्चा पड़ा वह इस प्रकार है
प्लान्ट और मशीनियरी में १ करोड ५२ लाख रखा गया उसमें १ करोड ६० लाख रुपया खर्च हुआ। स्पेअर पार्ट्स वगैरह के लिये ७ लाख रखा गया था, जिसमें १२ लाख खर्च हुआ । रोप वे के लिये १० लाख रखा गया था जिसमें २० लाख खर्चा हुआ । मशीनरी में १५ लाख रखा गया था लेकिन २५ लाख खर्च हुआ । फ्रेट और इन्श्योरेंस में २० लाख रखा गया था लेकिन ३१ लाख खर्च हुआ । वाटर सप्लाई में ७ लाख रखा गया था लेकिन १३ लाख खर्च हुआ। इसके अलावा जो कम तत्वमोना किया गया या वह यह है कि रेलवे साइडिंग में ३ लाख रखा गया था यह कम था ५ लाख होना चाहिये था । इसी सूरत से इस्टेब्लिशमेंट में ३ लाख रखा गया था लेकिन वह ६ लाख होना चाहिये था, बिल्डिंग में ६० लाख रखा गया था लेकिन अब जब नयी बिल्डिंग तैयार की गयी है उसकी वजह से एक करोड़ २ लाख रुपया खर्च हुआ है। सड़कों के लिये ५ लाख रखा गया था लेकिन 8 लाख खर्च हुआ क्योंकि साढ़े तीन लाख में बाहर की भी सड़क बनी । सेवेज और ड्रेनेज में ५० हजार रुपया रखा गया था लेकिन ४ लाख खर्च हुआ। जो नया खर्चा पड़ा उसमें नये कंसल्टेन्ट के मुकर्रर करने में ३ लाख ६ हजार रुपया और सिविल इंजीनियरिंग वर्क्स का जो नया खर्चा हुआ है उसमें २ लाख रुपया खर्च हुआ है। इलेक्ट्रिफिकेशन में ४ लाख खर्च हुआ । पहले क्वेरी मैनुअल लेबर से होने वाला था उसमें पारशल मैकैनाइजेशन हुआ उसकी वजह से १६ लाख खर्च हुआ । वर्कशाप में १५ हजार और डिस्पेंसरी में २० हजार रुपया खर्च हुआ । इस तरह से यह सब खर्चे बढ़ गये हैं ।
श्री रामनारायण त्रिपाठी - - प्रश्न संख्या ४० के उत्तर नम्बर ३ में यह लिखा है कि योजना के परामर्शदाता की मृत्यु हो गयी, जिसके कारण फिर दूसरे योजना परामर्शदाता की नियुक्ति की गयी, तो क्या पहले परामर्शदाता ने मरनोने से पहले पूरी योजना बनायी थी या नहीं ?
श्री मुहम्मद रऊफ़ जाफ़री -- उन्होंने एक साइट चुनी थी, कुछ और काम किया था और हमारा उनका कन्ट्रेक्ट यह था कि उनको हम माहवार कुछ रुपया दिया करते थे। इस तरह उनको ३३ इंसटालमेंट्स दिये गये । उसके बाद वह मर गये और वह सब
रुपया जाया गया ।जींद में आप नेता अशोक तंवर और भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी पहुंचे। दोनों ने जली फसल का मुआयना किया। तंवर ने कहा कि पीड़ित किसानों को डेढ़ लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा दे सरकार।
जुलाना (जींद), संवाद सूत्र। लजवाना कलां और अकालगढ़ के खेतों में आग लगने से जली फसल का मुआयना करने के लिए आम आदमी पार्टी नेता और पूर्व सांसद अशोक तंवर पहुंचे और किसानों का हालचाल जाना। अशोक तंवर ने कहा किसानों के साथ जो घटना घटी है वो असहनीय है। गरीब किसान पर चौतरफा मार पड़ रही है, क्योंकि बरसात के कारण धान की फसल तो पहले ही खराब हो गई थी लेकिन गेहूं की फसल आग लगने से बर्बाद हो गई।
तंवर ने कहा कि सरकार के कानों पर जूं तक नही रैंग रही है। जुलाना के आस पास के सभी रोड़ भी जर्जर हालत में बने हुए हैं। फायर की गाड़ी को मौके पर पहुंचने में काफी समय लगा। जब तक आग ने विकराल रूप ले लिया था। इसमें कहीं न कहीं सरकार की लापरवाही भी सामने आ रही है क्योंकि अगर सड़क सही होती तो इतना नुकसान नही होता। तंवर ने मौके पर जींद के उपायुक्त से बात की और किसानों की सुध लेने की गुहार लगाई।
तंवर ने कहा कि पीड़ित किसानों को दो फसलों का नुकसान हुआ है इसलिए डेढ़ लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से किसानों को मुआवजा मिले ताकि उन्हें आर्थिक संकट से छुटकारा मिल सके। सरकार ने एक ओर तो महंगाई इतनी बढ़ा दी है कि किसान खुन के आंसू रोने को मजबूर है तो दूसरी और आपदाएं भी किसान को पीछा नही छोड़ रही हैं। अगर सरकार किसानों की सुध नही लेगी तो आम आदमी पार्टी सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ आंदोलन करेगी। इस मौके पर आम आदमी पार्टी हलकाध्यक्ष विरेंद्र आर्य, पूर्व जिला पार्षद रमेश ढ़िगाना, संग्राम सिंह वकील, जसवंत सिंधू, कुलबीर लाठर आदि मौजूद रहे।
संवाद सूत्र, जुलानाः क्षेत्र के गांव लजवाना कलां में आग लगने से जली गेहूं की फसल का मुआयना करने के लिए भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी पहुंचे और किसानों से बात की। गुरनाम सिंह चढूनी ने किसानों से बात करते हुए कहा सरकार को चाहिए कि आगजनी जैसी घटना को प्राकृतिक आपदा में शामिल करें और किसानों को तुरंत मुआवजा दे। किसानों के गेंहू के अलावा खतों में लगे इंजन सबमर्सिबल भी जल गए हैं। किसानों के हुए एक एक नुकसान की भरपाई करना सरकार की जिम्मेवारी बनती है। अगर सरकार किसानों को मुआवजा नही देते हैं तो भारतीय किसान यूनियन आंदोलन करेगी और अधिकारियों और नेताओं के घर के बाहर धरना देगी। इस मौके पर भारतीय किसान यूनियन के वरिष्ठ जिला उप प्रधान नरेंद्र लाठर, जिला उपाध्यक्ष नरेंद्र ढ़ाडा, बसाऊ लाठर सहित काफी संख्या में गणमान्य लोग मौजूद रहे।
पति पत्नी के रिश्तों में त्योहार सबसे बड़ा महत्व रखता है. इन्ही त्योहार में से एक तीज का त्योहार है, जिसे बड़े धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता है. इस त्योहार में महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और अपने पति के लिए व्रत रखती है. लेकिन क्या पति को भी अपनी पत्नियों को तोहफा देकर शुक्रिया अदा नहीं करना चाहिए. इसीलिए सेन्को लाया है तीज के मौके पर लेटेस्ट गोल्ड एंड डायमंड्स सेट का कलेक्शन, जिसे आप गिफ्ट करके अपनी खूबसूरत पत्नी का दिल जीत सकते हैं.
जगदलपुर,छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के साथ ही आसपास के अन्य जिलों में आज सुबह भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए हैं।
बस्तर संभाग के मौसम विभाग के अधिकारी एच. बी चंद्रा ने बताया कि अलग-अलग जगहों पर इस झटके को महसूस किया गया है। डिमरापाल मेडिकल कॉलेज में जैसे ही इस कंपन को महसूस किया गया, वहां लोग भाग खड़े हुए। इसके साथ ही पण्डरीपानी, मारेंगा, अघनपुर, लामनी ,नानगुर गांव में भी भूंकप के झटके की सूचना है।
उन्होने बताया कि जगदलपुर से 34 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व दिशा में 4. 2 तीव्रता के भूकंप जिसकी गहराई 10 किलोमीटर भूकंप का केंद्र था। इधर छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में सुबह लोगों ने भूकंप के झटके महसूस किए। इसके बाद सभी लोग घबराकर अपने-अपने घरों से बाहर आ गए। छिंदगढ़, मलकानगिरी, जगदलपुर और नानपुर क्षेत्र में भी लोगों ने झटके महसूस किए हैं।
सुकमा कलेक्टर चंदन कुमार ने भूकंप के झटके आने की पुष्टि की है। इसकी तीव्रता 4. 2 बताई जा रही है। जहां एक ओर कोरोना वायरस अलर्ट के चलते लोगों को घरों के अंदर रहने के लिए कहा जा रहा है, वहीं सुकमा के लोग इन झटकों के बाद से घरों के अंदर जाने से डर रहे हैं। जगदलपुर के रामेश्वर ने बताया कि अचानक उनके कमरे का पंखा हिलने लगा इसके बाद उन्हे झटके लगे।
दिल्ली निकाय चुनावों में मिली करारी हार के बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष संजय सिंह ने इस्तीफे की पेशकश की है। बुधवार को आए एमसीडी परिणामों ने आम आदमी पार्टी की पंजाब विधानसभा चुनाव में हार को फिर से चर्चा में ला दिया है। पंजाब में पार्टी जिम्मेदारी संभाल रहे संजय सिंह ने अरविंद केजरीवाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। हालांकि अबी तक इस्तीफे को मंजूर करने की कोई खबर नहीं मिली है। इससे पहले दो बुधवार को पार्टी के सांसद भगवंत मान बुधवार को हार का ठीकरा आलाकमान पर फोड़ते हुए अपना विरोध दर्ज कराया था। भगवंत मान ने कहा कि रणनीतिक स्तर पर हम फेल हो रहे हैं इसीलिए हमें हार का सामना करना पड़ रहा है। भगवंत मान ने पार्टी आलाकमान पर निशाना साधते हुए मान ने कहा कि चुनाव से पहले लिए गए कुछ फैसलों की वजह से चुनाव में उनको और आम आदमी पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचा। पार्टी के अंदर से उठते इसी तरह के बगावती सुरों को देखते हुए संजय सिंह ने अपने पद से इस्तीफे की पेशकश की है।
आपको बता दें कि दिल्ली निकाय चुनावों में आम आदमी पार्टी की शर्मनाक हार ने पार्टी के नेताओं को बैकफुट पर ला दिया है। पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि कहीं ना कहीं कुछ गलत जरूर हो रहा है जिस कारण बार-बार हार का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले गोआ और पंजाब के विधानसभा चुनावों में भी आप को हार झेलनी पड़ी था।
पंजाब में हार से दुखी भगवंत मान ने सीधे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर हमला किया। भगवंत मान ने बिना किसी नेता का नाम लिए कहा, 'पार्टी नेतृत्व एक मोहल्ला क्रिकेट टीम की तरह व्यवहार कर रही है। ' मान ने ईवीएम में गड़बड़ी का बचाव करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आलोचना भी की। मान ने कहा कि उन्हें पंजाब में सीएम कंडिडेट ना बनाना पार्टी की एतिहासिक भूल थी।
बरेलीः कई सालों के इंतजार के बाद बरेली को उसका गिरा हुआ झुमका वापस मिल गया है. दरअसल, 1966 में रिलीज हुई फिल्म "मेरा साया" का गाना "झुमका गिरा रे, बरेली के बाजार में"... तो आपने सुना ही होगा. इस गाने के रिलीज होने के बाद बरेली का नाम लोगों की जुबां पर चढ़ गया था और इस गाने में एक्ट्रेस अपना झुमका ढूंढ रही थी और वो तलाश अब खत्म हो गई है. दरअसल, अब शहर को वो गिरा हुआ झुमका वापस मिल गया है.बरेली में एनएच 24 पर जीरो पॉइंट पर झुमका तिराहा बनाया गया है, जहां एक विशाल झुमका लगाया गया है. शनिवार को इस झुमके का लोकार्पण केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने किया. बरेली विकास प्राधिकरण और डॉ. केशव अग्रवाल के सहयोग से बरेली में एनएच 24 पर जीरो पॉइंट पर झुमका तिराहा बनाया गया है, जहां एक विशाल झुमका लगाया गया है. दिल्ली से आने वाले लोगों को ये झुमका देखने को मिलेगा और झुमका देखकर लोग एक बार सेल्फी लेने को जरूर मजबूर हो जाएंगे. झुमका लगाने की शुरुआत फिल्म "मेरा साया" के गाने "झुमका गिरा रे" के सिल्वर जुबली यानी की 50 साल पूरे होने पर की गई थी. बरेली विकास प्राधिकरण की योजना थी की ये फ़िल्म अभिनेत्री साधना के लिए श्रद्धांजलि भी होगी लेकिन झुमका लगाने के लिए इसमें लगने वाली लागत की वजह से ये नहीं हो पाया क्योंकि बीडीए के पास इतना पैसा नहीं था जिसके बाद शहर के लोगों से सहयोग मांगा गया. इसके बाद इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के मालिक डॉ. केशव अग्रवाल ने झुमका लगाने की जिम्मेदारी ली.जिसके बाद बीडीए के सहयोग से आखिरकार झुमका लगकर तैयार हो गया.गौरतलब है की बरेली अपने आप में बहुत सारे इतिहास को समेटे हुए है. अहिक्षत्र का किला, जैन मंदिर, नाथ नगरी, बरेली का सूरमा, बरेली का मांझा, बरेली का फर्नीचर और बरेली की ज़री जरदोजी को पहचान दिलाने की जरूरत है.
उत्तर प्रदेश के एग्जिट पोल के नतीजों पर मुझे जरा भी अचरज नहीं. हां, कुछ एग्जिट पोल में बीजेपी को बड़े अन्तर के साथ (300 से ज्यादा सीटें और वोट शेयर में 10 प्रतिशत या उससे ज्यादा की बढ़त) जीतता बताया गया है, जिसपर आश्चर्य का होना लाजिमी है. लेकिन, जहां तक चुनाव के नतीजों का प्रश्न है- उसकी दिशा क्या रहने वाली है और तमाम एग्जिट पोल जिस नतीजे पर पहुंचे हैं (यानी सूबे की सत्ता पर बीजेपी का फिर से कब्जा), इसे लेकर मेरे मन में जरा भी अचरज नहीं है.
हां, इस बात पर मेरे ज्यादातर हित-मीत, सफर के साथी और सहकर्मियों को जरुर ही आश्चर्य होगा जिन्होंने उम्मीद यह बांध रखी थी कि उत्तर प्रदेश के इस चुनाव में तो बीजेपी का सूपड़ा साफ हो जाना है. मैं समझ सकता हूं कि एग्जिट पोल के नतीजों से ऐसे साथियों को झटका लगा होगा. जिस सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था की खस्ताहाली को उजागर हुए अभी कायदे से साल भर भी ना बीते हों और जहां सरकार के विरोध में एक जबर्दस्त आंदोलन चल चुका हो वहां दिखावटी और सजावटी नेताओं से भरी हुई एक निहायत औसत दर्जे की सरकार अगर जनादेश हासिल करने में कामयाब हो जाये तो किसी को भी आश्चर्य होगा.
लेकिन, बीते छह हफ्ते यूपी के अलग-अलग इलाकों में बिताने के कारण मैं ऐसे आश्चर्य के भाव से उबर चुका हूं. मैंने सुन रखा था कि जनता-जनार्दन योगी सरकार से नाराज है. मुझे उम्मीद थी कि विकास, जन-कल्याण और कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर योगी सरकार का रिकार्ड खराब रहा है तो लोगों में गुस्सा होगा ही. मैं मानकर चल रहा था कि कोरोना के दौरान आप्रवासी मजदूरों ने जो कठिनाइयां झेलीं या फिर कोविड की दूसरी लहर के समय सरकार ने जैसी रुखाई का इजहार किया उसे लोग नहीं भूले होंगे. हमने दर्ज किया था कि कैसे बीजेपी घोषणापत्र में किसानों से किये गये अपने सारे वादों से मुकर गई. मैंने पश्चिमी उत्तरप्रदेश में किसान आंदोलन की ताकत भी देखी थी.
इन सबके बावजूद, मुझे जमीनी तौर पर कहीं कोई सत्ता-विरोधी लहर नहीं दिखी. ऐसा भी नहीं कि उत्तरप्रदेश के विभिन्न इलाकों के दौरे में मुझे हर कोई सरकार से खुश नजर आया. मुझे लोगों में निराशाओं के कई रंग नजर आये, बहुत से लोग अधिकारियों और नेताओं की शिकायत कर रहे थे, उनके मन में अपने जीवन और जीविका को लेकर गहरी चिन्ता थी. लेकिन ये बातें सरकार के खिलाफ गुस्से की शक्ल नहीं ले सकीं. अपने दौरे में मैंने देखा कि तमाम वर्ग, जाति और इलाकों के लोगों में एक सामान्य सोच घर चुकी है.
यूपी के ग्रामीण इलाकों में लोगों से उनका कुशल-क्षेम पूछने पर इस सामान्य सोच की झलक मिलती थी. चलते-चिट्ठे किसी से भी उसका हाल-चाल पूछिए और वह अपने जवाब में आपके सामने शिकायतों के अंबार लगा देगा (जिसे हमारे भोले पत्रकारों ने गलती से सत्ता-विरोधी लहर का संकेत समझ लिया) कि हालत तो बड़ी खराब है. हमारे परिवार की आमदनी बीते दो सालों से कम हो गई है. पढ़े-लिखे नौजवानों को नौकरी नहीं मिल रही. बहुत से लोगों की नौकरी छूट गई है. महामारी में बच्चों की पढ़ाई छूट गई. हमारे गांव के बहुत से बुजुर्ग महामारी के दौरान उपचार के अभाव में मर गये. हम लोग सरकारी मूल्य (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर अपनी फसल नहीं बेच पा रहे. छुट्टा घूमते पशुओं का जिक्र कीजिए तो लोग एकदम से फूट पड़ते थे कि नाक में दम कर दिया है. और महंगाई? खबरदार, इसका जिक्र तो भूले से भी मत कीजिए!
हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.
यह सब सुनने के बाद आप उम्मीद करेंगे कि लोग इन बातों का दोष सरकार को देंगे. लेकिन योगी सरकार के कामकाज के बारे में सवाल पूछकर देखिए, लोगों का उत्तर आश्चर्यजनक तौर पर सकारात्मक मिलेगा 'अच्छी सरकार है, ठीक काम किया है'. आप आगे कोई सवाल पूछें इसके पहले लोग खुद ही से दो कारण गिना देते थे कि हर किसी को उसके लिए निर्धारित राशन से ज्यादा अनाज सरकार ने मुहैया कराया, साथ ही में लोगों को चना और रसोई बनाने का तेल भी मिला और, लगभग हर कोई (जिसमें समाजवादी पार्टी मतदाता भी शामिल हैं) कहता हुआ मिलता था कि योगी राज में कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर हुई है. किसी से भी पूछिए और जवाब मिलेगा कि 'हमारी बहन-बेटियां सुरक्षित हैं. लेकिन, जो मुश्किलें उन्होंने अभी-अभी गिनायीं उनका क्या, उसके लिए कौन जिम्मेवार है? जैसे ही ये सवाल आप लोगों से पूछते हैं, वे बातों को गोल-गोल घुमाकर उसे किसी ना किसी तरह से बीजेपी के पक्ष में मोड़ने लगते हैं. लोगों का जवाब होता थाः सरकार इन सब बातों में क्या कर सकती है भला? कोरोना सिर्फ भारत में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में फैला था, महंगाई भी सिर्फ भारत की बात नहीं, वह तो हर जगह है. वो तो खैर कहो कि मोदी जी थे वर्ना हालत और भी बुरी होती. गायों को बूढ़ी हो जाने पर लोग चारा और दाना नहीं देते तो इसमें क्या मोदी का दोष है? बीजेपी की हर छोटी से छोटी उपलब्धि से, चाहे वह वास्तविक हो या काल्पनिक, प्रत्येक मतदाता परिचित था लेकिन समाजवादी पार्टी लोगों के बड़े से बड़े दुख-दर्द को भी चुनावी मुद्दा ना बना सकी. मुझे शायद ही कोई मतदाता मिला जो बता सके कि समाजवादी पार्टी किन मुख्य सवालों को लेकर चुनाव में उतरी है.
अगर लोगों के मन में यह सामान्य समझ घर कर गई है तो इसे सत्ता-विरोधी या सत्ता-समर्थक लहर के खांचे में डालकर देखना ठीक नहीं. इन बातों को ऐसे नहीं देखा जा सकता मानो यह सरकार के कामों का किया जाने वाला दैनंदिन का मूल्यांकन हो. यूपी के विभिन्न इलाकों के दौरे में लोगों से बातचीत करके मुझे लगा कि वे अपना मन पहले से बना चुके हैं और तर्क बहुत बाद को गढ़ रहे हैं. वे किसी जज की तरह नहीं बल्कि वकील की तरह अपनी बात रखते थे. उन्हें पता था कि वे तर्क के किस छोर पर खड़े हैं और उनके साथ कौन-कौन खड़ा है. बीजेपी ने मतदाताओं के एक बड़े से हिस्से के साथ भावनात्मक जुड़ाव कायम करने कामयाबी पायी है. ऐसे मतदाता सरकार की किसी बात पर शक नहीं करते, वे शासन-प्रशासन की खामियों को भूल जाने को तैयार बैठे हैं, वे भौतिक-दुख संताप भले सह लें लेकिन रहेंगे उसी तरफ जो पक्ष उन्होंने पहले से चुन लिया है. वे अयोध्या-काशी का जिक्र अपने से नहीं करते थे लेकिन हिन्दू-मुस्लिम का सवाल उनके सामान्य बोध में एक अन्तर्धारा की तरह हर समय मौजूद दिखा मुझे.
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लेकिन जाति का क्या ? कहने की जरुरत नहीं कि अपने `हाल-चाल` को लेकर यूपी के मतदाताओं में जो यह समझ बनी है, वह सभी जातियों और समुदायों के बीच सर्व-सामान्य रुप से घर कर गई हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता. फिर भी, जातिगत समीकरण साधने की कवायद से समाजवादी पार्टी को खास फायदा नहीं हुआ. इसमें कोई शक नहीं कि यादव जाति के लोग समाजवादी पार्टी के पीछे पूरी तरह गोलबंद थे- एकदम 110 प्रतिशत, जैसा कि हिन्दी में मुहावरा चलता है. असद्दुदीन ओवैसी की लुभाऊ बोली-बानियों का विकल्प मौजूद था फिर भी मुसलमानों के पास समाजवादी पार्टी की तरफ जाने के सिवा कोई और चारा ना था. समाजवादी पार्टी ने चतुराई बरती, यादव और मुस्लिम समुदाय के लोगों को अपेक्षाकृत कम संख्या में टिकट दिया. मुस्लिम मतदाता ने भी समझदारी दिखायी और अपने आक्रोश को बड़े हद तक मन में दबाये रखा, इसे ज्यादा मुखर नहीं किया. हालांकि यादव समुदाय बड़े प्रकट और आक्रामक रुप से समाजवादी पार्टी के पीछे लामबंद था. यादव और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने सत्ता-समर्थक किसी भी सामान्य समझ से दूरी बनाये रखी. सरकार की तरफदारी में कोई भी तर्क दीजिए- इन दो समुदाय के लोग ऐसे तर्कों की कोई ना कोई काट खोज लाते थे. इन दो समुदायों की लामबंदी से निश्चित ही समाजवादी पार्टी को मदद मिली लेकिन इतनी भर मदद को काफी नहीं माना जा सकता.
मुझे लगा कि मेरे हित-मीत, गैर-यादव जातियों और गैर-मुस्लिम मतदाताओं के बीच समाजवादी पार्टी के समर्थन को कुछ ज्यादा ही आंक रहे हैं. एक बात यह कही जा रही थी कि सूबे के ब्राह्मण मतदाता मुख्यमंत्री योगी के ठाकुरवाद से नाराज चल रहे हैं.
लेकिन, जमीनी तौर पर इस सोच से कुछ भी बनता-बिगड़ता नजर नहीं आ रहा था. अगड़ी जातियों के मतदाता बीजेपी की तरफ खम ठोंककर खड़े हैं. जाट, कुर्मी और मौर्या जैसे खेतिहर समुदाय के लोगों के बीच बीजेपी को लेकर समर्थन में जरुर कमी आयी है लेकिन उतनी भी ज्यादा नहीं जितना कि मेरे दोस्त मान बैठे थे. कुछेक अपवाद (जैसे कई जगहों पर निषाद समुदाय के मतदाता) को छोड़ दें तो नजर यही आया कि ओबीसी समुदाय के भीतर की अति पिछड़ी श्रेणी में मानी जा सकने वाली जातियों के लोग बीजेपी के समर्थन में थे. हर समाजवादी समर्थक यह मानकर चल रहा था कि बसपा का समर्थक रहा और उससे असंतुष्ट हो चला मतदाता समाजवादी खेमे को ही अपनी पसंद बनायेगा. लेकिन, मुझे इसका कोई प्रमाण नहीं मिला. मुझे तो ये नजर आया कि बसपा का पूर्व समर्थक मतदाता और एक जमाने में कांग्रेस का समर्थक रह चुका मतदाता, यूपी में आज की तारीख में, समाजवादी पार्टी से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी की तरफ झुका हुआ है.
तो क्या समाजवादी पार्टी के पक्ष में हवा चलने की बात एकदम झूठी थी? ना, ऐसी बात नहीं. इसमें कोई शक नहीं कि समाजवादी पार्टी की तरफदारी में हर जगह उभार देखने को मिला. अखिलेश की रैलियों में जो भारी भीड़ जुटती थी, वह वास्तविक थी. एग्जिट पोल बता रहे हैं कि समाजवादी पार्टी 29 प्रतिशत वोट शेयर के अपने अब तक के सर्वोच्च प्रदर्शन को इस बार लांघ जायेगी. बेशक हर किसी को दिखा, और सही ही दिखा, कि समाजवादी पार्टी उभार पर है लेकिन ज्यादातर ने ये जरुरी सवाल नहीं पूछा कि समाजवादी का यह उभार कितनी गहराई और फैलाव लिए है? अगर चुनाव दो-ध्रुवीय हो तो जीत का अन्तर अक्सर बड़ा होता है. समाजवादी पार्टी भले अभी तक का अपना सर्वोच्च वोट शेयर हासिल करे लेकिन इतने भर वोट उसे इस बार जीत दिलाने के लिए काफी नहीं. याद रखने की एक बात यह भी है कि समाजवादी पार्टी के पाले में इस बार अगर पहले की तुलना में ज्यादा मतदाता आये हैं, तो इसका कत्तई मतलब नहीं कि वे बीजेपी के खेमे से टूटकर आये हैं. एग्जिट पोल से निकलता एक संदेश यह है कि मुकाबले का बहुकोणीय मैदान इस बार दो-ध्रुवीय हुआ. नतीजतन, समाजवादी पार्टी को वोटों का फायदा तो हुआ लेकिन बीजेपी अपना वोट शेयर बनाये रखने या फिर उसमें और ज्यादा इजाफा करने में कामयाब हुई. जो मतदाता बीजेपी से दूर छिटके, उन्होंने दिखाया-जताया कि हम बीजेपी के पाले से दूर जा रहे हैं लेकिन जो बीजेपी के साथ रहे या जो किसी अन्य पाले से बीजेपी की तरफ आये, उन्होंने चुप्पी साधे रखी. इंडिया टुडे और माय-एक्सिस के एग्जिट पोल में बताया गया है कि बीजेपी को महिला मतदाताओं के बीच अच्छी खासी बढ़त हासिल हुई है. चुनाव के ज्यादातर पर्यवेक्षक(जिसमें इन पंक्तियों का लेखक भी शामिल है) इस मार्के की बात को पहचान पाने में चूक गये.