title
stringlengths
1
112
url
stringlengths
31
142
text
stringlengths
0
172k
भ्रष्टाचार (आचरण)
https://hi.wikipedia.org/wiki/भ्रष्टाचार_(आचरण)
thumb|800x800px|विश्व के सभी देशों का मानचित्र, 2022 तक उनके भ्रष्टाचार बोध सूचकांक मूल्यों द्वारा रंग-कूट लिखित भ्रष्टाचार एक प्रकार की बेईमानी या अपराध है जो किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा किया जाता है जिसे अधिकार के पद पर सौंपा जाता है, ताकि किसी के व्यक्तिगत लाभ के लिए अवैध लाभ या शक्ति का दुरुपयोग किया जा सके। भ्रष्टाचार में कई गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं जिनमें उत्कोच ग्रहण, प्रभावित करना और गबन शामिल है और इसमें ऐसी प्रथाएँ भी शामिल हो सकती हैं जो कई देशों में कानूनी हैं। राजनैतिक भ्रष्टाचार तब होता है जब कोई अधिकारी या अन्य सरकारी कर्मचारी व्यक्तिगत लाभ के लिए आधिकारिक क्षमता के साथ कार्य करता है। भ्रष्टाचार चोरतन्त्रों, अल्पतन्त्रों, और माफ़िया राज्यों में सबसे सामान्य हैं। भ्रष्टाचार और अपराध स्थानिक सामाजिक घटनाएँ हैं जो वैश्विक स्तर पर लगभग सभी देशों में अलग-अलग डिग्री और अनुपात में नियमित आवृत्ति के साथ दिखाई देती हैं। सद्य के आंकड़े बताते हैं कि भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। प्रत्येक व्यक्तिगत राष्ट्र भ्रष्टाचार के नियंत्रण और नियमन और अपराध के निवारण के लिए घरेलू संसाधनों का आवंटन करता है। भ्रष्टाचार को प्रतिरोध करने के लिए जो रणनीतियाँ अपनाई जाती हैं, उन्हें अक्सर भ्रष्टाचार विरोध छत्र शब्द के तहत संक्षेपित किया जाता है। इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र संधारणीय विकास लक्ष्य 16 जैसी वैश्विक पहलों का भी एक लक्षित उद्देश्य है जो भ्रष्टाचार को उसके सभी रूपों में काफी हद तक कम करने वाला है। विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचार right|thumb|350px|भ्रष्ट विधान : अमेरिकी कांग्रेस के पुस्तकालय में मुराल पेंटिंग (एलिहु वेड्डर द्वारा) भ्रष्टाचार के विभिन्न क्षेत्र सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र में राजनैतिक भ्रष्टाचार पुलिस द्वारा भ्रष्टाचार न्यायिक भ्रष्टाचार शिक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार श्रमिक संघों का भ्रष्टाचार धर्म में भ्रष्टाचार दर्शन में भ्रष्टाचार उद्योग जगत का भ्रष्टाचार (Corporate corruption) भ्रष्टाचार की विधियाँ घूस (रिश्वत) चुनाव में धांधली सेक्स के बदले पक्षपात हफ्ता वसूली जबरन चन्दा लेना बलात धन ऐंठना (Extortion) एवं भयादोहन (blackmail) विवेकाधिकार (discretion) का दुरुपयोग भाई-भतीजावाद (Nepotism) अपने विरोधियों को दबाने के लिये सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग भ्रष्ट विधान बनाना न्यायाधीशों द्वारा गलत या पक्षपातपूर्ण निर्णय कालाबाजारी करना व्यापारिक नेटवर्क चार्टर्ड एकाउन्टेन्टों द्वारा किसी बिजनेस के वित्तीय कथनों पर सही और निर्भीक राय न लिखना या उनके गलत आर्थिक कार्यों को ढकना। विविध : वंशवाद, ब्लैकमेल करना, टैक्स चोरी, झूठी गवाही, झूठा मुकदमा, परीक्षा में नकल, परीक्षाथी का गलत मूल्यांकन - सही उत्तर पर अंक न देना और गलत/अलिखित उत्तरों पर भी अंक दे देना, पैसे लेकर संसद में प्रश्न पूछना, पैसे लेकर वोट देना, वोट के लिये पैसा और शराब आदि बाँटना, पैसे लेकर रिपोर्ट छापना, विभिन्न पुरस्कारों के लिये चयनित लोगों में पक्षपात करना, आदि। परिचय आम तौर पर सरकारी सत्ता और संसाधनों के निजी फ़ायदे के लिए किये जाने वाले बेजा इस्तेमाल को भ्रष्टाचार की संज्ञा दी जाती है। एक दूसरी और अधिक व्यापक परिभाषा यह है कि निजी या सार्वजनिक जीवन के किसी भी स्थापित और स्वीकार्य मानक का चोरी-छिपे उल्लंघन भ्रष्टाचार है। विभिन्न मानकों और देशकाल के हिसाब से भी इसमें तब्दीलियाँ होती रहती हैं। मसलन, भारत में रक्षा सौदों में कमीशन ख़ाना अवैध है इसलिए इसे भ्रष्टाचार और राष्ट्र- विरोधी कृत्य मान कर घोटाले की संज्ञा दी जाती है। लेकिन दुनिया के कई विकसित देशों में यह एक जायज़ व्यापारिक कार्रवाई है। संस्कृतियों के बीच अंतर ने भी भ्रष्टाचार के प्रश्न को पेचीदा बनाया है। उन्नीसवीं सदी के दौरान भारत पर औपनिवेशिक शासन थोपने वाले अंग्रेज़ अपनी विक्टोरियाई नैतिकता के आईने में भारतीय यौन-व्यवहार को दुराचरण के रूप में देखते थे। जबकि बीसवीं सदी के उत्तरार्ध का भारत किसी भी यूरोपवासी की निगाह में यौनिक-शुद्धतावाद का शिकार माना जा सकता है। भ्रष्टाचार का मुद्दा एक ऐसा राजनीतिक प्रश्न है जिसके कारण कई बार न केवल सरकारें बदल जाती हैं। बल्कि यह बहुत बड़े-बड़े ऐतिहासिक परिवर्तनों का वाहक भी रहा है। रोमन कैथलिक चर्च द्वारा अनुग्रह के बदले शुल्क लेने की प्रथा को मार्टिन लूथर द्वारा भ्रष्टाचार की संज्ञा दी गयी थी। इसके ख़िलाफ़ किये गये धार्मिक संघर्ष से ईसाई धर्म- सुधार निकले। परिणामस्वरूप प्रोटेस्टेंट मत का जन्म हुआ। इस ऐतिहासिक परिवर्तन से सेकुलरवाद के सूत्रीकरण का आधार तैयार हुआ। समाज-वैज्ञानिक विमर्श में भ्रष्टाचार से संबंधित समझ के बारे में कोई एकता नहीं है। पूँजीवाद विरोधी नज़रिया रखने वाले विद्वानों की मान्यता है कि बाज़ार आधारित व्यवस्थाएँ ‘ग्रीड इज़ गुड’ के उसूल पर चलती हैं, इसलिए उनके तहत भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी होनी लाज़मी है। दूसरी तरफ़  खुले समाज की वकालत करने वाले और मार्क्सवाद विरोधी बुद्धिजीवी सर्वहारा की तानाशाही वाली व्यवस्थाओं में कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों द्वारा बड़े पैमाने पर राज्य के संसाधनों के दुरुपयोग और आम जनता के साधारण जीवन की कीमत पर ख़ुद के लिए आरामतलब ज़िंदगी की गारंटी करने की तरफ़ इशारा करते हैं। भ्रष्टाचार की दूसरी समझ राज्य की संस्था द्वारा लोगों की आर्थिक गतिविधियों में हस्तक्षेप की मात्रा और दायरे पर निर्भर करती है। बहुत अधिक टैक्स वसूलने वाले निज़ाम के तहत कर-चोरी को सामाजिक जीवन की एक मजबूरी की तरह लिया जाता है। इससे एक सिद्धांत यह निकलता है कि जितने कम कानून और नियंत्रण  होंगे, भ्रष्टाचार की ज़रूरत उतनी ही कम होगी। इस दृष्टिकोण के पक्ष पूर्व सोवियत संघ और चीन समते समाजवादी देशों का उदाहरण दिया जाता है जहाँ राज्य की संस्था के सर्वव्यापी होने के बावजूद बहुत बड़ी मात्रा में भ्रष्टाचार की मौजूदगी रहती है।  ‘ज़्यादा नियंत्रण- ज़्यादा भ्रष्टाचार’ के समीकरण को सही ठहराने के लिए तीस के दशक के अमेरिका में की गयी शराब-बंदी का उदाहरण भी दिया जाता है जिसके कारण संगठित और आर्थिक भ्रष्टाचार में अभूतपूर्व उछाल आ गया था। साठ और सत्तर के दशक में कुछ विद्वानों ने अविकिसित देशों के आर्थिक विकास के लिए एक सीमा तक भ्रष्टाचार और काले धन की मौजूदगी को उचित करार दिया था। अर्नोल्ड जे. हीदनहाइमर जैसे सिद्धांतकारों का कहना था कि परम्पराबद्ध और सामाजिक रूप से स्थिर समाजों को भ्रष्टाचार की समस्या का कम ही सामना करना पड़ता है। लेकिन तेज़ रक्रतार से होने वाले उद्योगीकरण और आबादी की आवाज़ाही के कारण समाज स्थापित मानकों और मूल्यों को छोड़ते चले जाते हैं। परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की परिघटना पैदा होती है। सत्तर के दशक में हीदनहाइमर की यह सिद्धांत ख़ासा प्रचलित था। भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों और कार्यक्रमों की वकालत करने के बजाय हीदनहाइमर ने निष्कर्ष निकाला था कि जैसे-जैसे समाज में समृद्धि बढ़ती जाएगी, मध्यवर्ग की प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी और शहरी सभ्यता व जीवन-शैली का विकास होगा, इस समस्या पर अपने आप काबू होता चला जाएगा। लेकिन सत्तर के दशक में ही युरोप और अमेरिका में बड़े-बड़े राजनीतिक और आर्थिक घोटालों का पर्दाफ़ाश  हुआ। इनमें अमेरिका का वाटरगेट स्केंडल और ब्रिटेन का पौलसन एफ़ेयर प्रमुख था। इन घोटालों ने मध्यवर्गीय नागरिक गुणों के विकास में यकीन रखने वाले हीदनहाइमर के इस सिद्धांत के अतिआशावाद की हवा निकाल दी। साठ के दशक के दौरान ही कुछ अन्य विद्वानों ने भी हीदनहाइमर की तर्ज़ पर तर्क दिया था कि भ्रष्टाचार की समस्या की नैतिक व्याख्याएँ करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इनमें सेमुअल हंटिंग्टन प्रमुख थे। इन समाज-वैज्ञानिकों की मान्यता थी कि भ्रष्टाचार हर परिस्थिति में नुकसानदेह नहीं होता। विकासशील देशों में वह मशीन में तेल की भूमिका निभाता है और लोगों के हाथ में ख़र्च करने लायक पैसा आने से उपभोक्ता क्रांति को गति मिलती है। लेकिन अफ़्रीका में भ्रष्टाचार के ऊपर विश्व बैंक द्वारा 1969 में जारी रपट ने इस धारणा को धक्का पहुँचाया। इस रपट के बाद भ्रष्टाचार को एक अनिवार्य बुराई और आर्थिक विकास में बाधक के तौर पर देखा जाने लगा। विश्व बैंक भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने में जुट गया। इस विमर्श का एक परिणाम यह भी निकला कि समाज-वैज्ञानिक अपेक्षाकृत कम विकसित देशों में भ्रष्टाचार की समस्या के प्रति ज़्यादा दिलचस्पी दिखाने लगे। विकसित देशों में भ्रष्टाचार की समस्या काफ़ी-कुछ नज़रअंदाज़ की जाने लगी। यह दृष्टिकोण भूमण्डलीकरण के दौर में और प्रबल हुआ। उधार देने वाली अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं, उन पर हावी विकसित देशों और बड़े-बड़े कॉरपोरेशनों ने यह गारंटी करने की कोशिश की कि उनके द्वारा दी जाने वाली मदद का सही-सही इस्तेमाल हो। इसका परिणाम 1993 में ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल की स्थापना में निकला जिसमें विश्व बैंक के कई पूर्व अधिकारी सक्रिय थे। इसके बाद सर्वेक्षण और आँकड़ों के ज़रिये भ्रष्टाचार का तुलनात्मक अध्ययन शुरू हो गया। लेकिन इन प्रयासों के परिणाम किसी भी तरह से संतोषजनक नहीं माने जा सकते। 2007 में डेनियल ट्रीज़मैन ने ‘व्हाट हैव वी लर्न्ड अबाउट द काज़िज़ ऑफ़ करप्शन फ़्रॉम टेन इयर्स ऑफ़ क्रॉस नैशनल इम्पिरिकल रिसर्च?’ लिख कर नतीजा निकला है कि परिपक्व उदारतावादी लोकतंत्र और बाज़ारोन्मुख समाज अपेक्षाकृत कम भ्रष्ट हैं। उनके उलट तेल निर्यात करने वाले देश, अधिक नियंत्रणकारी कानून बनाने वाले और मुद्रास्फीति को काबू में न करने वाले देश कहीं अधिक भ्रष्ट हैं। ज़ाहिर है कि ये निष्कर्ष किसी भी कोण से नये नहीं हैं। हाल ही में जिन देशों में आर्थिक घोटालों का पर्दाफ़ाश हुआ है उनमें छोटे-बड़े और विकसित-अविकसित यानी हर तरह के देश (चीन, जापान, स्पेन, मैक्सिको, भारत, चीन, ब्रिटेन, ब्राज़ील, सूरीनाम, दक्षिण  कोरिया, वेनेज़ुएला, पाकिस्तान, एंटीगा, बरमूडा, क्रोएशिया, इक्वेडोर, चेक गणराज्य, वग़ैरह)  हैं। भ्रष्टाचार को सुविधाजनक और हानिकारक मानने के इन परस्पर विरोधी नज़रियों से परे हट कर अगर देखा जाए तो अभी तक आर्थिक वृद्धि के साथ उसके किसी सीधे संबंध का सूत्रीकरण नहीं हो पाया है। उदाहरणार्थ, एशिया के दो देशों, दक्षिण  कोरिया और फ़िलीपींस, में भ्रष्टाचार के सूचकांक बहुत ऊँचे हैं। लेकिन, कोरिया में आर्थिक वृद्धि की दर ख़ासी है, जबकि फ़िलीपींस में नीची। भ्रष्टाचार एवं आर्थिक विकास भ्रष्टाचार के कारण आर्थिक विकास में मन्दी आती है क्योंकि भ्रष्टाचार बढने पर निजी निवेश घटने लगता है। भ्रष्टाचार के कारण उत्पादक क्रियाओं से मिलने वाला लाभ (रिटर्न) कम हो जाता है। भ्रष्टाचार के कारण असमानता में वृद्धि होती है। सन्दर्भ 1. प्रणव वर्धन (1997), ‘करप्शन ऐंड डिवेलपमेंट : अ रिव्यू ऑफ़ इशूज़’, जरनल ऑफ़ इकॉनॉमिक लिटरेचर 35 . 2. एम. रोबिंसन (सम्पा.) (1998), करप्शन ऐंड डिवेलपमेंट, फ्रैंक कैस, एबिंग्डन, यूके. 3. ए.जे. हीदनहाइमर (सम्पा.) (1970), पॉलिटिकल करप्शन : रीडिंग्ज़ इन कम्परेटिव एनालैसिस, ट्रांज़ेक्शन, न्यू ब्रंसविक, एनजे. 4. माइकल जांस्टन (2005), सिड्रॉम्स ऑफ़ करप्शन : वेल्थ, पॉवर, ऐंड डेमोक्रैसी, केम्ब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस, केम्ब्रिज. 5. डैनियल ट्रीज़मान (2007), ‘व्हाट हैव वी लर्न्ड अबाउट द काज़िज़ ऑफ़ करप्शन फ़्रॉम टेन इयर्स ऑफ़ क्रॉस-नैशनल इम्पिरिकल रिसर्च?’, एनुअल रिव्यू ऑफ़ पॉलिटिकल साइंस 10 . इन्हें भी देखें भारत में भ्रष्टाचार भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास राजनैतिक भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 पारदर्शिता केन्द्रीय सतर्कता आयोग सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 भारत के प्रमुख घोटाले इंडिया अगेंस्ट करप्शन सुशासन अन्तरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोध दिवस बाहरी कड़ियाँ भ्रष्टाचार से मुकाबला कौन दे रहा है पार्टियों को इतना चंदा? विकास के लिए भ्रष्टाचार का उन्मूलन आवश्यक (उदय इण्डिया) Anti-Corruption Laws in India सीबीआई और अपराध के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफक्यू) 1800 IAS अधिकारियों ने नहीं दिया अपनी सम्पत्ति का डिटेल, सबसे ज्यादा 255 उत्तर प्रदेश के (मई २०१७) भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी सरकार का अहम कदम, सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ 6 महीने में पूरी होगी जांच Corruption Dictionary भ्रष्टाचार की शब्दावली (अंग्रेजी में) ANTI-CORRUPTION VOCABULARY 60 DEFINITIONS * श्रेणी:सामाजिक समस्याएँ श्रेणी:नैतिकता
भारतीय खेल
https://hi.wikipedia.org/wiki/भारतीय_खेल
कबड्डी खोखो क्रिकेट शतरंज हाकी तलवारबाजी
अष्टाध्यायी
https://hi.wikipedia.org/wiki/अष्टाध्यायी
अष्टाध्यायी (अष्टाध्यायी = आठ अध्यायों वाली) महर्षि पाणिनि द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण का एक अत्यंत प्राचीन ग्रंथ (8वी ई पू) है। इसमें आठ अध्याय हैं; प्रत्येक अध्याय में चार पद हैं; प्रत्येक पद में 38 से 220 तक सूत्र हैं। इस प्रकार अष्टाध्यायी में आठ अध्याय, बत्तीस पद और सब मिलाकर लगभग 4000 सूत्र हैं। अष्टाध्यायी पर महामुनि कात्यायन का विस्तृत वार्तिक ग्रन्थ है और सूत्र तथा वार्तिकों पर भगवान पतंजलि का विशद विवरणात्मक ग्रन्थ महाभाष्य है। संक्षेप में सूत्र, वार्तिक एवं महाभाष्य तीनों सम्मिलित रूप में 'पाणिनीय व्याकरण' कहलाता है और सूत्रकार पाणिनी, वार्तिककार कात्यायन एवं भाष्यकार पतंजलि - तीनों व्याकरण के 'त्रिमुनि' कहलाते हैं। अष्टाध्यायी छह वेदांगों में मुख्य माना जाता है। अष्टाध्यायी में 3155 सूत्र और आरंभ में वर्णसमाम्नाय के 14 प्रत्याहार सूत्र हैं। अष्टाध्यायी का परिमाण एक सहस्र अनुष्टुप श्लोक के बराबर है। महाभाष्य में अष्टाध्यायी को "सर्ववेद-परिषद्-शास्त्र" कहा गया है। अर्थात् अष्टाध्यायी का संबंध किसी वेदविशेष तक सीमित न होकर सभी वैदिक संहिताओं से था और सभी के प्रातिशरूय अभिमतों का पाणिनि ने समादर किया था। अष्टाध्यायी में अनेक पूर्वाचार्यों के मतों और सूत्रों का संनिवेश किया गया। उनमें से शाकटायन, शाकल्य, अभिशाली, गार्ग्य, गालव, भारद्वाज, कश्यप, शौनक, स्फोटायन, चाक्रवर्मण का उल्लेख पाणिनि ने किया है। अष्टाध्यायी का समय अष्टाध्यायी के कर्ता पाणिनि कब हुए, इस विषय में कई मत हैं। भंडारकर और गोल्डस्टकर इनका समय 7वीं शताब्दी ई.पू. मानते हैं। मैकडानेल, कीथ आदि कितने ही विद्वानों ने इन्हें चौथी शताब्दी ई.पू. माना है। भारतीय अनुश्रुति के अनुसार पाणिनि नंदों के समकालीन थे और यह समय 5वीं शताब्दी ई.पू. होना चाहिए। पाणिनि में शतमान, विंशतिक और कार्षापण आदि जिन मुद्राओं का एक साथ उल्लेख है उनके आधार पर एवं अन्य कई कारणों से हमें पाणिनि का काल यही समीचीन जान पड़ता है। संरचना अष्टाध्यायी में आठ अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में चार पद हैं। पहले दूसरे अध्यायों में संज्ञा और परिभाषा संबंधी सूत्र हैं एवं वाक्य में आए हुए क्रिया और संज्ञा शब्दों के पारस्परिक संबंध के नियामक प्रकरण भी हैं, जैसे क्रिया के लिए आत्मनेपद-परस्मैपद-प्रकरण, एवं संज्ञाओं के लिए विभक्ति, समास आदि। तीसरे, चौथे और पाँचवें अध्यायों में सब प्रकार के प्रत्ययों का विधान है। तीसरे अध्याय में धातुओं में प्रत्यय लगाकर कृदंत शब्दों का निर्वचन है और चौथे तथा पाँचवे अध्यायों में संज्ञा शब्दों में प्रत्यय जोड़कर बने नए संज्ञा शब्दों का विस्तृत निर्वचन बताया गया है। ये प्रत्यय जिन अर्थविषयों को प्रकट करते हैं उन्हें व्याकरण की परिभाषा में वृत्ति कहते हैं, जैसे वर्षा में होनेवाले इंद्रधनु को वार्षिक इंद्रधनु कहेंगे। वर्षा में होनेवाले इस विशेष अर्थ को प्रकट करनेवाला "इक" प्रत्यय तद्धित प्रत्यय है। तद्धित प्रकरण में 1,190 सूत्र हैं और कृदंत प्रकरण में 631। इस प्रकार कृदंत, तद्धित प्रत्ययों के विधान के लिए अष्टाध्यायी के 1,821 अर्थात् आधे से कुछ ही कम सूत्र विनियुक्त हुए हैं। छठे, सातवें और आठवें अध्यायों में उन परिवर्तनों का उल्लेख है जो शब्द के अक्षरों में होते हैं। ये परिवर्तन या तो मूल शब्द में जुड़नेवाले प्रत्ययों के कारण या संधि के कारण होते हैं। द्वित्व, संप्रसारण, संधि, स्वर, आगम, लोप, दीर्घ आदि के विधायक सूत्र छठे अध्याय में आए हैं। छठे अध्याय के चौथे पद से सातवें अध्याय के अंत तक अंगाधिकार नामक एक विशिष्ट प्रकरण है जिसमें उन परिवर्तनों का वर्णन है जो प्रत्यय के कारण मूल शब्दों में या मूल शब्द के कारण प्रत्यय में होते हैं। ये परिवर्तन भी दीर्घ, ह्रस्व, लोप, आगम, आदेश, गुण, वृद्धि आदि के विधान के रूप में ही देखे जाते हैं। अष्टम अध्याय में, वाक्यगत शब्दों के द्वित्वविधान, प्लुतविधान एवं षत्व और णत्वविधान का विशेषत: उपदेश है। अष्टाध्यायी के अतिरिक्त उसी से संबंधित गणपाठ और धातुपाठ नामक दो प्रकरण भी निश्चित रूप से पाणिनि निर्मित थे। उनकी परंपरा आज तक अक्षुण्ण चली आती है, यद्यपि गणपाठ में कुछ नए शब्द भी पुरानी सूचियों में कालान्तर में जोड़ दिए गए हैं। वर्तमान उणादि सूत्रों के पाणिनिकृत होने में संदेह है और उन्हें अष्टाध्यायी के गणपाठ के समान अभिन्न अंग नहीं माना जा सकता। वर्तमान उणादि सूत्र शाकटायन-व्याकरण के ज्ञात हाते हैं। परिचय पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत एवं नियमित करने के उद्देश्य से भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों यथा ध्वनि-विभाग (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद, क्रिया, वाक्य, लिंग इत्यादि तथा उनके अन्तर्सम्बन्धों का समावेश अष्टाध्यायी के 32 पदों में, जो आठ अध्यायों में समान रूप से विभक्त हैं, किया है। व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ में पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के विशाल कलेवर का समग्र एवं सम्पूर्ण विवेचन लगभग 4000 सूत्रों में किया है, जो आठ अध्यायों में संख्या की दृष्टि से असमान रूप से विभाजित हैं। तत्कालीन समाज में लेखन सामग्री की दुष्प्राप्यता को ध्यान में रखकर पाणिनि ने व्याकरण को स्मृतिगम्य बनाने के लिए सूत्र शैली की सहायता ली है। पुनः, विवेचन को अतिशय संक्षिप्त बनाने हेतु पाणिनि ने अपने पूर्ववर्ती वैयाकरणों से प्राप्त उपकरणों के साथ-साथ स्वयं भी अनेक उपकरणों का प्रयोग किया है जिनमे शिवसूत्र या माहेश्वर सूत्र सबसे महत्वपूर्ण हैं। प्रसिद्ध है कि महर्षि पाणिनि ने इन सूत्रों को देवाधिदेव शिव से प्राप्त किया था। नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपंचवारम्। उद्धर्त्तुकामो सनकादिसिद्धादिनेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्॥ पाणिनि ने संस्कृत भाषा के सभी शब्दों के निर्वचन के लिए करीब 4000 सूत्रों की रचना की जो अष्टाध्यायी के आठ अध्यायों में वैज्ञानिक ढंग से संगृहीत हैं। ये सूत्र वास्तव में गणित के सूत्रों की भाँति हैं। जिस तरह से जटिल एवं विस्तृत गणितीय धारणाओं अथवा सिद्धान्तों को सूत्रों (Formula/formulae) द्वारा सरलता से व्यक्त किया जाता है, उसी तरह पाणिनि ने सूत्रों द्वारा अत्यन्त संक्षेप में ही व्याकरण के जटिल नियमों को स्पष्ट कर दिया है। भाषा के समस्त पहलुओं के विवेचन हेतु ही उन्हें 4000 सूत्रों की रचना करनी पड़ी। पाणिनि ने अष्टाध्यायी में प्रकरणों तथा तद्सम्बन्धित सूत्रों का विभाजन वैज्ञानिक रीति से किया है। पाणिनि ने अष्टाध्यायी को दो भागों में बाँटा है: प्रथम अध्याय से लेकर आठवें अध्याय के प्रथम पद तक को सपाद सप्ताध्यायी एवं शेष तीन पदों को त्रिपादी कहा जाता है। पाणिनि ने पूर्वत्राऽसिद्धम् (8-2-1) सूत्र बनाकर निर्देश दिया है कि सपाद सप्ताध्यायी में विवेचित नियमों (सूत्रों) की तुलना में त्रिपादी में वर्णित नियम असिद्ध हैं। अर्थात्, यदि दोनो भागों में वर्णित नियमों के मध्य यदि कभी विरोध हो जाए तो पूर्व भाग का नियम ही मान्य होगा। इसी तरह, सपादसप्ताध्यायी के अन्तर्गत आने वाले सूत्रों (नियमों) में भी विरोध दृष्टिगोचर होने पर क्रमानुसार परवर्ती (बाद में आने वाले) सूत्र का प्राधान्य रहेगा – विप्रतिषेधे परं कार्यम्। इन सिद्धान्तों को स्थापित करने के बाद, पाणिनि ने सर्वप्रथम संज्ञा पदों को परिभाषित किया है और बाद में उन संज्ञा पदों पर आधारित विषय का विवेचन। संक्षिप्तता बनाए रखने के लिए पाणिनि ने अनेक उपाय किए हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है – विशिष्ट संज्ञाओं (Technical Terms) का निर्माण। व्याकरण के नियमों को बताने में भाषा के जिन शब्दों / अक्षरों समूहों की बारम्बार आवश्यकता पड़ती थी, उन्हें पाणिनि ने एकत्र कर विभिन्न विशिष्ट नाम दे दिया जो संज्ञाओं के रूप में अष्टाध्यायी में आवश्यकतानुसार विभिन्न प्रसंगों में प्रयुक्त किए गए हैं। नियमों को बताने के पहले ही पाणिनि वैसी संज्ञाओं को परिभाषित कर देते हैं, यथा – माहेश्वर सूत्र – 'प्रत्याहार, इत्, टि, नदी, घु, पद, धातु, प्रत्यय, अंग, निष्ठा इत्यादि। इनमें से कुछ को पाणिनि ने अपने पूर्ववर्ती वैयाकरणों से उधार लिया है। लेकिन अधिकांश स्वयं उनके द्वारा बनाए गए हैं। इन संज्ञाओं का विवरण आगे दिया गया है। व्याकरण के कुछ अवयवों यथा धातु, प्रत्यय, उपसर्ग के विवेचन मे, पाणिनि को अनेक नियमों (सूत्र) की आवश्यकता पड़ी। ऐसे नियमों के निर्माण के पहले, प्रारंभ में ही पाणिनि उन सम्बन्धित अवयवों का उल्लेख कर बता देते हैं कि आगे एक निश्चित सूत्र तक इन अवयवों का अधिकार रहेगा। इन अवयवों को वे पूर्व में ही संज्ञा रूप में परिभाषित कर चुके हैं। दूसरे शब्दों में पाणिनि प्रकरण विशेष का निर्वचन उस प्रकरण की मूलभूत संज्ञा – यथा धातु, प्रत्यय इत्यादि – के अधिकार (Coverage) में करते हैं जिससे उन्हे प्रत्येक सूत्र में सम्बन्धित संज्ञा को बार–बार दुहराना नहीं पड़ता है। संक्षिप्तता लाने में यह उपकरण बहुत सहायक है। अनुवृत्ति : सूत्र-शैली में लिखे गए ग्रन्थों की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, 'अनुवृत्ति'। प्रायः एक उपविषय से सम्बन्धित सभी सूत्रों को एकत्र लिखा जाता है। दोहराव न हो, इसके लिए सभी सर्वनिष्ट (कॉमन) शब्दों को सावधानीपूर्वक निकाल लिया जाता था और उनको सही जगह पर सही क्रम में रखा जाता था। अनुवृत्ति के अनुसार, किसी सूत्र में कही गयी बात आगे आने वाले एक या अधिक सूत्रों पर भी लागू हो सकती है। एक उदाहरण देखिए। अष्टाध्यायी का सूत्र ( १-१-९) " तुल्यास्यप्रयत्नं सवर्णम् " है। इसके बाद सूत्र (१-१-१०) "नाज्झलौ (= न अच्-हलौ)" है। जब हम (१-१-१०) नाज्झलौ (न अच्-हलौ) का अर्थ निकालते हैं तो यह ध्यान में रखना होगा कि इसका अकेले मतलब न निकाला जाय बल्कि इसका पूरा मतलब यह है कि "'इसके पूर्व सूत्र में कही गयी 'सवर्ण' से सम्बन्धित बात अच्-हलौ (अच् और हल्) पर लागू नहीं (न) होती है।" अर्थात् , सूत्र (१-१-१०) को केवल "नाज्झलौ" न पढ़ा जाय बल्कि "अच्-हलौ सवर्णौ न" पढ़ा जाय। शब्दों/पदों के निर्वचन के लिए, प्रकृति के आधार पर पाणिनि ने छः प्रकार के सूत्रों की रचना की है: संज्ञा च परिभाषा च विधिर्नियम एव च। अतिदेशोऽधिकारश्च षड्विधम् सूत्रं मतम् ॥ संज्ञा सूत्र : नामकरणं संज्ञा - तकनीकी शब्दों का नामकरण। परिभाषा सूत्र : अनियमे नियमकारिणी परिभाषा। विधि सूत्र : विषय का विधान। नियम सूत्र : बहुत्र प्राप्तो संकोचनं हेतु। अतिदेश सूत्र : जो अपने गुणधर्म को दूसरे सूत्रों पर लागू करते हैं।  अधिकार सूत्र : एकत्र उपात्तस्य अन्यत्र व्यापारः अधिकारः।  पाणिनीय व्याकरण के चार भाग अष्टाध्यायी - इसमें व्याकरण के लगभग ४००० सूत्र हैं। शिवसूत्र या माहेश्वर सूत्र - यह प्रत्याहार बनाने में सहायक होता है। प्रत्याहार के प्रयोग से व्याकरण के नियम संक्षिप्त रूप में पूरी स्पष्टता से कहे गये हैं। धातुपाठ - इस भाग में लगभग २००० धातुओं (क्रिया-मूलों) की सूची दी गयी है। इन धातुओं को विभिन्न वर्गों में रखा गया है। गणपाठ - यह २६१ गणों में पदों का संग्रह है। पाणिनीय व्याकरण के अध्ययन के लिये आवश्यक बातें प्रत्याहार, इत्संज्ञक, अधिकार, अनुवृत्ति, अपकर्ष, सन्धिविषयक शब्द (एकादेश, पररूप, पूर्वरूप, प्रकृतिभाव आदि), कुछ ज्ञातव्य संज्ञाएँ - (अङग, प्रतिपदिक, पद, भ संज्ञा, विभाषा, उपधा, टी, संयोग, संप्रसारण, गुण, वृद्धि, लोप, आदेश, आगम) , शब्द-सिद्धि में सहायक कुछ अन्य उपाय। पाणिनीय व्याकरण की प्रमुख विशेषताएँ सम्पूर्णता पाणिनि का व्याकरण संस्कृत भाषा का अत्यन्त सूक्ष्म विश्लेषण करता है। यह उस समय की बोलचाल की मानक भाषा का तो वर्णन करता ही है, इसके साथ ही वैदिक संस्कृत और संस्कृत के क्षेत्रीय प्रयोगों का भी वर्णन करता है। यहाँ तक कि पाणिनि ने भाषा के सामाजिक-भाषिक (sociolinguistic) प्रयोग पर भी प्रकाश डाला है। संक्षिप्तता पाणिनि का व्याकरण सम्पूर्ण होने के साथ ही इतना छोटा है कि लोग इसे याद करते आये हैं। प्रयोग-सरलता सामान्य यद्यपि पाणिनि ने अपना व्याकरण संस्कृत के लिये रचा, किन्तु इसकी युक्तियाँ और उपकरण सभी भाषाओं के व्याकरण के विश्लेषण में प्रयुक्त की जा सकती हैं। अन्य विशेषताएँ वाक्य को भाषा की मूल इकाई मानना, ध्वनि-उत्पादन-प्रक्रिया का वर्णन एवं ध्वनियों का वर्गीकरण, सुबन्त एवं तिङन्त के रूप में सरल और सटीक पद-विभाग, व्युत्पत्ति - प्रकृति और प्रत्यय के आधार पर शब्दों का विवेचन। अष्टाध्यायी में वैदिक संस्कृत और पाणिनि की समकालीन शिष्ट भाषा में प्रयुक्त संस्कृत का सर्वांगपूर्ण विचार किया गया है। वैदिक भाषा का व्याकरण अपेक्षाकृत और भी परिपूर्ण हो सकता था। पाणिनि ने अपनी समकालीन संस्कृत भाषा का बहुत अच्छा सर्वेक्षण किया था। इनके शब्दसंग्रह में तीन प्रकार की विशेष सूचियाँ आई हैं : जनपद और ग्रामों के नाम, गोत्रों के नाम, वैदिक शाखाओं और चरणों के नाम। इतिहास की दृष्टि से और भी अनेक प्रकार की सांस्कृतिक सामग्री, शब्दों और संस्थाओं का सन्निवेश सूत्रों में हो गया है। अष्टाध्यायी के बाद अष्टाध्यायी के साथ आरंभ से ही अर्थों की व्याख्यापूरक कोई वृत्ति भी थी जिसके कारण अष्टाध्यायी का एक नाम, जैसा पतंजलि ने लिखा है, वृत्तिसूत्र भी था। और भी, माथुरीवृत्ति, पुण्यवृत्ति आदि वृत्तियाँ थीं जिनकी परंपरा में वर्तमान काशिकावृत्ति है। अष्टाध्यायी की रचना के लगभग दो शताब्दी के भीतर कात्यायन ने सूत्रों की बहुमुखी समीक्षा करते हुए लगभग चार सहस्र वार्तिकों की रचना की जो सूत्रशैली में ही हैं। वार्तिकसूत्र और कुछ वृत्तिसूत्रों को लेकर पतंजलि ने महाभाष्य का निर्माण किया जो पाणिनीय सूत्रों पर अर्थ, उदाहरण और प्रक्रिया की दृष्टि से सर्वोपरि ग्रंथ है। "अथ शब्दानुशासनम्"- यह माहाभाष्य का प्रथम वाक्य है। पाणिनि, कात्यायन और पतंजलि - ये तीन व्याकरणशास्त्र के प्रमुख आचार्य हैं जिन्हें 'मुनित्रय' कहा जाता है। पाणिनि के सूत्रों के आधार पर भट्टोजिदीक्षित ने सिद्धान्तकौमुदी की रचना की, और उनके शिष्य वरदराज ने सिद्धान्तकौमुदी के आधार पर लघुसिद्धान्तकौमुदी की रचना की । पाणिनीय व्याकरण की महत्ता पर विद्वानों के विचार पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है। (लेनिनग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी) पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं। (कोल ब्रुक) संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है।.. यह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है। (सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हण्डर) पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा। (प्रो॰ मोनियर विलियम्स) इन्हें भी देखें भट्टिकाव्य पतंजलि कृत महाभाष्य महाजनपद भर्तृहरि रचित वाक्यपदीय धातुपाठ माहेश्वर सूत्र सन्दर्भ बाह्य कड़ियाँ अष्टाध्यायी (संस्कृत विकिस्रोत) अष्टाध्यायी (हिन्दी व्याख्या सहित) अष्टाध्यायीसूत्रपाठः (हिन्दी व्याख्या सहित) पाणिनीय व्याकरण का मुखदर्शन और आज के समय में प्रासंगिकता (निखिल नाईक) व्याकरण के मूल-ग्रन्थ अष्टाध्यायी में व्याकरण से अलग भी विषय गणकाष्टाध्यायी - पाणिनि के सूत्रों पर आधारित संस्कृत व्याकरण का साफ्टवेयर (Win98/2000/XP) पाणिनि की अष्टाध्यायी का मेण्डलीव की आवर्त सारणी पर प्रभाव - यह पेपर :en:ArXiv.org e-print archive में है। Panini is slick, but he isn't mean - Nagoya Studies in Indian Culture and Buddhism: Sambhasa 26: 1-28, 2007. On the Architecture of Panini's Grammar - Three lectures delivered at the Hyderabad Conference on the Architecture of Grammar, Jan. 2002, and at UCLA, March 2002. Sanskrit and Computational Linguistics Sanskrit Computational Linguistics: First and Second International Symposia (By Gérard Huet, Amba Kulkarni, Peter S) Aṣṭādhyāyī of Pāṇini By Pāṇini (translated by Sumitra Mangesh Katre) लघुसिद्धान्तकौमुदी ; तिंगन्त प्रकरण (गूगल पुस्तक ; डॉ के के आनन्द) अष्टाध्यायी में दर्शन अष्टाध्यायी कण्ठस्थ कैसे करें? (नारायण प्रसाद) A Bird’s eye view of अष्टाध्यायी अष्टाध्यायी अष्टाध्यायी श्रेणी:पंचांग व्याकरण
आर्कीमिडिज
https://hi.wikipedia.org/wiki/आर्कीमिडिज
पुनर्प्रेषित आर्किमिडीज़
मरुस्थल
https://hi.wikipedia.org/wiki/मरुस्थल
250px|thumb|आताकामा मरुस्थल मरुस्थल एक अनुर्वर क्षेत्र का भूदृश्य है जहाँ कम वर्षण होती है और इसके परिणाम स्वरूप, रहने की स्थिति पौधे और पशु जीवन के लिए प्रतिकूल होती है। वनस्पति की कमी के कारण भूमि की असुरक्षित सतह अनाच्छादन की स्थिति में आ जाती है। पृथ्वी की सतह का लगभग एक तिहाई भाग शुष्क या अर्ध-शुष्क है। इसमें अधिकांश पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्र शामिल हैं, जहां कम वर्षा होती है, और जिन्हें कभी-कभी ध्रुवीय मरुस्थल या "शीतल मरुस्थल" कहा जाता है। मरुस्थलों को गिरने वाली वर्षा की मात्रा, प्रचलित तापमान, मरुस्थलीकरण के कारणों या उनकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। मरुस्थल का निर्माण अपक्षय प्रक्रियाओं द्वारा किया जाता है क्योंकि दिन और रात के बीच तापमान में बड़े बदलाव चट्टानों पर तनाव डालते हैं, जिसके परिणामस्वरूप टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। यद्यपि मरुस्थल में प्रायः ही कभी वर्षा होती है, कभी-कभी मूसलाधार वर्षा होती है जिसके परिणामस्वरूप अचानक बाढ़ आ सकती है। गर्म चट्टानों पर गिरने वाली वर्षा उन्हें चकनाचूर कर सकती है, और परिणामी टुकड़े और मलबे जो मरुस्थल पर बिखरे हुए हैं, हवा से और अधिक नष्ट हो जाते हैं। यह रेत और धूल के कणों को उठाता है, जो लंबे समय तक हवा में रह सकते हैं - कभी-कभी रेत के तूफ़ान या धूल के तूफान का कारण बनते हैं। हवा में उड़ने वाले रेत के दाने अपने रास्ते में किसी भी ठोस वस्तु से टकराकर सतह को तोड़ सकते हैं। चट्टानों को चिकना कर दिया जाता है, और हवा रेत को एक समान जमा में बदल देती है। दाने रेत की समतल चादर के रूप में समाप्त हो जाते हैं या लहराते रेत के टीलों में ऊंचे ढेर हो जाते हैं। अन्य मरुस्थल समतल, पथरीले मैदान हैं जहाँ सभी महीन सामग्री को उड़ा दिया गया है और सतह में चिकने पत्थरों की मोज़ेक है। इन क्षेत्रों को मरुस्थलीय पथ के रूप में जाना जाता है, और थोड़ा और क्षरण होता है। अन्य मरुस्थलीय विशेषताओं में उजागर बेडरॉक और एक बार बहते पानी द्वारा जमा की गई मिट्टी शामिल हैं। अस्थायी झीलें बन सकती हैं और पानी के वाष्पित होने पर नमक के मैदान छोड़े जा सकते हैं। जल के भूमिगत स्रोत, झरनों के रूप में और जलभृतों से रिसने के रूप में हो सकते हैं। जहाँ ये पाए जाते हैं, वहाँ मरूद्यान हो सकते हैं। प्रकार मरुस्थलों को वर्षा, औसत तापमान, साल में बिना वर्षा (या हिमपात) के दिनों की संख्या इत्यादि के आधार पर बांटा जा सकता है। भारत का थार मरुस्थल एक ऊष्ण कटिबंधीय मरुस्थल है जिसके कारण ही यह रेतीला भी है। जलपात की दृष्टि से वर्षा तथा हिमपात के कुल को जलपात कहते हैं। यदि किसी क्षेत्र का जलपात 200 मिलिमीटर से भी कम हो तो वह एक प्रकार का प्रदेश है। इसी प्रकार 250-500 मिलिमीटर तक के क्षेत्र को अलग वर्ग में रखा जा सकता है। इसी प्रकार अन्य क्षेत्र भी वर्गीकृत किए जा सकते हैं। तापमान की दृष्टि से इन क्षेत्रों को तापमान की दृष्टि से भी वर्गीकृत किया जा सकता है। उष्ण कटिबंधीय मरुस्थल उपोष्ण कटिबेधीय मरुस्थल शीत कटिबंधीय मरुस्थल वृष्टिछाया क्षेत्र जब एक विशाल पर्वत वर्षा के बादलों को आगे की दिशा में बढ़ने में बाधा उत्पन्न करता है तब उसके आगे का प्रदेश वृष्टिहीन हो जाता है और इसे वृष्टिछाया क्षेत्र कहते हैं। पर्वतीय क्षेत्र अधिक ऊंचे पर्वतों (जैसे कि हिमालय) पर वर्षा नहीं होती इसलिए इन्हें भी मरुस्थल का श्रेणी में रखा जाता है। सामान्य दशा मरुस्थल का सामान्य गुण तो यह है कि इसमें वर्षा कम होती है। ये क्षेत्र प्रायः विरल आबादी, नगण्य वनस्पति, पतो की जगह काटें, जल के स्त्रोतों की कमी, जलापूर्ति से अधिक वाष्पीकरण हैं। विश्व के केवल 20% मरुस्थल रेतीले हैं। रेत प्रायः परतों में बिछी होती है। रेतीले क्षेत्रों के दैनिक तापमान में बहुत विविधता होती है। लगभग सभी मरुस्थल समतल हैं। कुछ में टीले भी बनते है परंतु रेत के होने के साथ वो बनते व नष्ट होते रहते है । प्रसिद्ध मरुस्थल मुख्य लेख - विश्व के मरुस्थल कोलेरेडो मरुस्थल USA आटाकामा मरुस्थल पेन्टागोनिया मरुस्थल थार मरुस्थल भारत सहारा मरुस्थल अफ्रीका गोबी मरुस्थल मंगोलिया कालाहारी मरुस्थल विक्टोरियन मरुस्थल हमादा मरुस्थल चट्टान युक्त मरुस्थल रेग मरूस्थल कंकड़ पत्थर युक्त भाग अर्ग मरुस्थल बालू मिट्टी युक्त भाग *
मधुमेह
https://hi.wikipedia.org/wiki/मधुमेह
डायबिटीज मेलेटस (डीएम), जिसे सामान्यतः मधुमेह कहा जाता है, चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है जिसमें लंबे समय तक रक्त में शर्करा का स्तर उच्च होता है। उच्च रक्त शर्करा के लक्षणों में अक्सर पेशाब आना होता है, प्यास की बढ़ोतरी होती है, और भूख में वृद्धि होती है। यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, मधुमेह कई जटिलताओं का कारण बन सकता है। तीव्र जटिलताओं में मधुमेह केटोएसिडोसिस, नॉनकेटोटिक हाइपरोस्मोलर कोमा, या मौत शामिल हो सकती है। गंभीर दीर्घकालिक जटिलताओं में हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रोनिक किडनी की विफलता, पैर अल्सर और आंखों को नुकसान शामिल है। मधुमेह के कारण है या तो अग्न्याशय  पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता या शरीर की कोशिकायें इंसुलिन को ठीक से जवाब नहीं करती। मधुमेह के चार मुख्य प्रकार हैं: टाइप 1 डीएम पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए अग्न्याशय की विफलता का परिणाम है। इस रूप को पहले "इंसुलिन-आश्रित मधुमेह मेलाईटस" (आईडीडीएम) या "किशोर मधुमेह" के रूप में जाना जाता था। इसका कारण अज्ञात है   टाइप 2 डीएम इंसुलिन प्रतिरोध से शुरू होता है, एक हालत जिसमें कोशिका इंसुलिन को ठीक से जवाब देने में विफल होती है। जैसे-जैसे रोग की प्रगति होती है, इंसुलिन की कमी भी विकसित हो सकती है। इस फॉर्म को पहले "गैर इंसुलिन-आश्रित मधुमेह मेलेतुस" (एनआईडीडीएम) या "वयस्क-शुरुआत मधुमेह" के रूप में जाना जाता था। इसका सबसे आम कारण अत्यधिक शरीर का  वजन होना और पर्याप्त व्यायाम न करना है। गर्भावधि मधुमेह इसका तीसरा मुख्य रूप है और तब होता है जब मधुमेह के पिछले इतिहास के बिना गर्भवती महिलाओं को उच्च रक्त शर्करा के स्तर का विकास होता है।और पढ़े सेकेंडरी डायबिटीज इस प्रकार की डायबिटीज इलाज करने मात्र से ही सही हो सकती है। संकेत और लक्षण अंगूठाकार|अवलोकन के सबसे महत्वपूर्ण मधुमेह के लक्षण मधुमेह के लक्षण मधुमेह के सबसे आम संकेतो में शामिल है : बहुत ज्यादा और बार बार प्यास लगना बार बार पेशाब आना लगातार भूख लगना दृष्टी धुंधली होना प्यास में वृद्धि अत्यधिक भूख अनायास वजन कम होना चिड़चिड़ापन और अन्य मनोदशा कमजोरी और थकान को बदलते हैं अकारण थकावट महसूस होना अकारण वजन कम होना घाव ठीक न होना या देर से घाव ठीक होना बार बार पेशाब या रक्त में संक्रमण होना खुजली या त्वचा रोग सिरदर्द    धुंधला दिखना कृपया ध्यान दे : Type 1 Diabetes में लक्षणों का विकास काफी तेजी से (हफ्तों या महीनो) हो सकता है। मधुमेह के प्रकार प्रकार १ इस मधुमेह को नवजात मधुमेह ऐसी संज्ञा दी गई है। पहला प्रकार है टाइप 1 डायबिटीज़ जो बचपन से होती है जबकि दूसरा प्रकार है टाइप 2 डायबिटीज़ जो अधिकतर वयस्कों में पाया जाता है।टाइप 1 डायबिटीज़ में इन्सुलिन शरीर में अत्यंत कम तैयार होता है या बिल्कुल भी तैयार नहीं होता है।नवजात मधुमेह उत्तर युरोप में फिनलंड, स्कॉटलंड, स्कॅन्डेनेव्हिया, मध्य पूर्व के देश और एशिया में बडे़ पैमाने पर है। इस मधुमेह को'इन्शुलिन आवश्यक मधुमेह' एेसा भी कहा जाता है कारण इन मरीजों को हररोज इन्सुलिन के इंजेक्शन लेना पडता है।पहले प्रकार के मधुमेह की और एक आवृत्ती है। इन मरीजों में शक्कर का औसत लगभग औसत के अधिक और कम होता रहता है। ऐसे मरीजों को एक या दो प्रकार के इन्सुलिन इक्कठा करके उनकी रक्तशर्करा नियंत्रित करनी पड़ती है। प्रकार २ Type 2 Diabetes में लक्षणों का विकास बहुत धीरे-धीरे होता है और लक्षण काफी कम हो सकते है। मधुमेह का प्रबंधन : निदान, उपचार और संभावित उपाय मधुमेह, जिसे आमतौर पर डायबिटीज़ के नाम से जाना जाता है, एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में रक्त शर्करा स्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता है। यह एक गंभीर और चिंताजनक समस्या है जो न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया भर में लोगों को प्रभावित कर रही है। मधुमेह का प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण होता है सन्दर्भ मधुमेह का प्रबंधन श्रेणी:जीव विज्ञान श्रेणी:रोग
आचेह
https://hi.wikipedia.org/wiki/आचेह
आचेह दक्षिणपूर्व एशिया के इण्डोनेशिया देश के सुमात्रा द्वीप पर स्थित एक प्रान्त है। यह सुमात्रा के उत्तरतम भाग में स्थित है और इसका उत्तरी छोर भारत के अण्डमान व निकोबार द्वीपसमूह के दक्षिणी छोर से अंडमान सागर के पार केवल १५० किमी दूर है। आचेह में दस स्थानीय समुदाय रहते हैं, जिनमें आचेही लोग सबसे विशाल गुट है और स्थानीय जनसंख्या का ८०% से अधिक है। समझा जाता है कि इण्डोनेशिया में इस्लाम सबसे पहले आचेह में आया और यह एक रूढ़िवादी इलाक़ा है जहाँ इस्लामी शरिया क़ानून लगाने के प्रयास होते रहे हैं। आचेह में अलगाववाद के आंदोलन भी अग्रसर रहे हैं। दिसंबर 2004 में आये महाभूकम्प का उपरिकेंद्र आचेह के पास ही था और उससे उत्पन्न सूनामी लहरों की विनाश लीला में सबसे अधिक इसी प्रांत के लोग प्रभावित हुए और विश्व के मीडिया का ध्यान यहाँ सबसे ज्यादा केन्द्रित हुआ।United Nations. Economic and social survey of Asia and the Pacific 2005. 2005, page 172 चित्रदीर्घा इन्हें भी देखें सुमात्रा द्वीप अंडमान सागर इंडोनेशिया के प्रांत सन्दर्भ श्रेणी:इंडोनेशिया के प्रांत श्रेणी:अंडमान सागर * श्रेणी:सुमात्रा द्वीप
जॉर्डन
https://hi.wikipedia.org/wiki/जॉर्डन
जॉर्डन (अरबी:الأردن हिंदी:उर्दुन), आधिकारिक तौर पर इस हेशमाइट किंगडम ऑफ जॉर्डन, दक्षिण पश्चिम एशिया में अकाबा खाड़ी के दक्षिण में, सीरियाई मरुस्थल के दक्षिणी भाग में अवस्थित एक अरब देश है। देश के उत्तर में सीरिया, उत्तर-पूर्व में इराक, पश्चिम में पश्चिमी तट और इज़रायल और पूर्व और दक्षिण में सउदी अरब स्थित हैं। जॉर्डन, इज़रायल के साथ मृत सागर और अकाबा खाड़ी की तट रेखा इज़रायल, सउदी अरब और मिस्र के साथ नियंत्रण करता है। जॉर्डन का ज्यादातर हिस्सा रेगिस्तान से घिरा हुआ है, विशेष रूप से अरब मरुस्थल; हालाँकी, उत्तर पश्चिमी क्षेत्र, जॉर्डन नदी के साथ, उपजाऊ चापाकार का हिस्सा माना जाता है। देश की राजधानी अम्मान उत्तर पश्चिम में स्थित है। इतिहास मेसोपोटामिया के काल से यहाँ नबाती साम्राज्य का शासन था। उन्होंने ही अरबी लिपि का विकास किया जिससे आधुनिक अरबी का लेखन आरंभ हुआ। दक्षिण में अदोम का साम्राज्य था। रोमन काल में कई स्वायत्त राज्य हुए। यहूदी विद्रोहों को दबाने के बाद इसको सीरिया फिलेस्तीना प्रांत का अंग बनाया गया। इसके बाद जॉर्डन नदी के पूर्वी तट पर पार्थियाई और बाद में तीसरी सदी में ईरानी सासानी साम्राज्य का अधिकार बना। अरबों के साम्राज्य निर्माण काल में यह राशिदुन काल में ही अधिकृत हो गया था। इसके बाद यहाँ इस्लाम का प्रचार हुआ। कई सदियों तक इस पर इस्लामी खिलाफत जो दमिश्क और फिर बग़दाद में केन्द्रित था, का शासन रहा। मंगोल (1259), क्रूसेडर (1020), अय्यूबी (1170) तथा मामलुक शासन के बाद इस पर 1516 में उस्मानी तुर्कों का अधिकार बना। अन्य अरबी राष्ट्रों का साथ इसने भी उस्मानी तुर्को के ख़िलाफ प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया। युद्ध में तुर्की की हार हुई और यह ब्रिटिश सासन का अंग बना। 1946 में यह स्वतंत्र हुआ। जेरुशलम को लेकर इजरायल के साथ संघर्ष होता रहा। 1967 के छः दिनो के युध्द में भी जॉर्डन को अपने प्रदेश हारने पड़े। यह भी देखिए wikt:जार्डन (विक्षनरी) श्रेणी:जॉर्डन श्रेणी:एशिया के देश श्रेणी:अरब लीग के देश श्रेणी:अरबी-भाषी देश व क्षेत्र
ज़्यूरिख़
https://hi.wikipedia.org/wiki/ज़्यूरिख़
right|358x358px|frames ज़्युरिक या ज़्यूरिख़ (जर्मन: Zürich त्सूरिख़्~त्सीरिख़्) स्विट्ज़रलैंड का सबसे बड़ा शहर है। साथ ही यह शहर स्विट्ज़रलैंड की राजधानी भी है। यह शहर स्विट्ज़रलैंड का व्यवसाय एवं संस्कृति का मुख्य केन्द्र है और इसे दुनिया के ग्लोबल शहरों में से एक माना जाता है। २००६ एवं २००७ में हुए कईं सर्वे के अनुसार इसे बेहतरीन जीवन गुणवत्ता का शहर माना गया है। यह स्विट्सरलैंड के ज़ूरिक उपमंडल की राजधानी तथा इस देश का सर्वप्रमुख औद्योगिक, व्यापारिक, शैल्पिक और बैंकों के व्यापार का नगर है। यह स्विट्सरलैंड का सबसे घना और रमणीक नगर है। इसका अधिकांश भाग झील को सुखाकर बनाया गया है। प्राचीन भाग अब भी सघन है, लेकिन नए भाग में चौड़ी सड़कें तथा सुंदर भवन हैं। लिम्मत नदी इस नगर को दो भागों में बाँटती है, लघु नगर एवं बृहत्‌ नगर। ये दोनों भाग 11 पुलों द्वारा एक दूसरे से संबद्ध हैं। झील के समीप असंख्य बल्ली आवासगृह हैं। यहाँ कई प्राचीन भवन दर्शनीय हैं, जिनमें सबसे सुंदर ग्रास मूंस्टर या प्रापस्ती गिरजाघर लिम्मत नदी के दाएँ किनारे पर है। इस गिरजाघर की दीवारों पर 24 लौकिक धर्मनियम लिखे हैं। इसके समीप ही बालिकाओं का विद्यालय है, जहाँ 12वीं और 13वीं शताब्दी के रोमन वास्तुकला के अवशेष हैं। लिम्मत के बाएँ किनारे पर ज़ूरिक का दूसरा बड़ा गिरजाघर फ्राऊ मूस्टर (आब्ती) 12वीं शताब्दी का है। सेंट पीटर गिरजाघर सबसे पुराना है। इनके अतिरिक्त और कई गिरजाघर हैं। सेंट्रल पुस्तकालय में 1916 ईo में सात लाख पुस्तकें थीं, जहाँ प्रसिद्ध समाजसुधारक तथा उपदेशक ज्विंगली, बुर्लिगर, लेडी जेन और शीलर आदि के पत्र भी सुरक्षित हैं। यहाँ प्राचीन अभिलेखों का भंडार है तथा यहाँ सन्‌ 1885 में स्थापित ज्विंगली की प्रतिमा है। नवीन भवनों में राष्ट्रीय संग्रहालय सबसे भव्य है, जिसमें स्विट्सरलैंड के सभी कालों एवं कलाओं का अद्भूत संग्रह है। ज़ूरिक शिक्षा का प्रसिद्ध केंद्र है। यहाँ विश्वविद्यालय, प्राविधिक संस्थान तथा अन्य विद्यालय हैं। यहाँ का वानस्पतिक बाग संसार के प्रसिद्ध वानस्पतिक बागों में से एक है। इस नगर में रेशमी एवं सूती वस्त्र, मशीनों के पुर्जे, मोमबत्ती, साबुन, सुर्ती, छींट का कपड़ा (calico), कागज तथा चमड़े की वस्तुएँ बनाने के उद्योग हैं। श्रेणी:ज़्यूरिख़ कैन्टन श्रेणी:स्विट्ज़रलैंड के शहर
दुबई
https://hi.wikipedia.org/wiki/दुबई
दुबई संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की सात अमीरातों में से एक है। यह फारस की खाड़ी के दक्षिण में अरब प्रायद्वीप पर स्थित है। दुबई नगर पालिका को अमीरात से अलग बताने के लिए कभी कभी दुबई राज्य बुलाया जाता है। दुबई, मध्य पूर्व के एक वैश्विक नगर तथा व्यापार केन्द्र के रूप में उभर कर सामने आया है। लिखित दस्तावेजों में इस शहर का अस्तित्व संयुक्त अरब अमीरात के गठन से 150 साल पहले होने का जिक्र है। दुबई अन्य अमीरातों के साथ कानून, राजनीति, सैनिक और आर्थिक कार्य एक संघीय ढांचे के भीतर साझा करता है। हालांकि प्रत्येक अमीरात में नागरिक कानून लागू करने और व्यवस्था और स्थानीय सुविधाओं के रखरखाव जैसे कुछ कार्यों पर क्षेत्राधिकार है। दुबई की आबादी सबसे ज्यादा है और यह क्षेत्रफल में अबू धाबी के बाद दूसरी सबसे बड़ी अमीरात है। दुबई और अबू धाबी ही सिर्फ दो अमीरात है जिनके पास देश की विधायिका अनुसार राष्ट्रीय महत्व के महत्वपूर्ण मामलों पर प्रत्यादेश शक्ति का अधिकार है।[6] ^ मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका की सरकर और राजनीति डी लांग, बी रेक. p.157 दुबई पर 1833 से अल माकतौम वंश ने शासन किया है। इसके मौजूदा शासक मोहम्मद बिन रशीद अल माकतौम संयुक्त अरब अमीरात के प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति भी है। अमीरात का मुख्य राजस्व पर्यटन, जायदाद और वित्तीय सेवाओं से आता है।[7] ^ दुबई की आर्थिक रूपरेखा दुबई हेल्थकेयर सिटी . 2000 दुबई की अर्थव्यवस्था मूलतः तेल उद्योग पर निर्मित है, वर्तमान में 80 अरब अमेरिकी डॉलर (2009) की अमीराती अर्थव्यवस्था में पेट्रोल तथा प्राकृतिक गैस का राजस्व योगदान 6% (2006) से कम है। संपत्ति और निर्माण ने 2005 में अर्थव्यवस्था में वर्तमान के बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य में तेजी से पहले 22.6% का योगदान दिया . दुबई ने कई अभिनव बड़ी निर्माण परियोजनाओं और खेल आयोजनों के माध्यम से दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। सबका ध्यान आकर्षित होने के साथ ही एक वैश्विक शहर[16] ^ 2008 ग्लोबल शहर सूचकांक विदेश नीति . 2 जुलाई 2008 को प्राप्त . और व्यापार केन्द्र के रूप में उभरने की वजह से दुबई में श्रम और मानव अधिकारों से जुड़े कर्मचारियों मुख्यतः दक्षिण एशियाई कर्मचारियों से संबंधित मुद्दे प्रकाश में आये हैं .[17] ^ माइक डेविस (2006) भय और पैसा दुबई में, न्यू लेफ्ट रिव्यू 41, पीपी 47-68 व्युत्पत्ति 1820 में, दुबई को ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा अल वस्ल (Al Wasl) के रूप में उल्लिखित किया गया था। संयुक्त अरब अमीरात या उसके घटक अमीरात के सांस्कृतिक इतिहास से संबंधित कुछ अभिलेख क्षेत्र की मौखिक परंपरा के दर्ज होने और लोककथाओं व मिथको के आगे बढ़ने की वजह से मौजूद हैं . शब्द दुबई की मूल भाषा के बारे में भी विवाद रहे हैं, कुछ लोगों का मानना है कि यह फारसी भाषा से उत्पन्न हुआ है, जबकि कुछ का मानना है कि अरबी इस शब्द की मूल भाषा है। फेडेल हन्धाल (Fedel Handhal) जो सयुंक्त अरब अमीरात के इतिहास और संस्कृति के शोधकर्ता है, के अनुसार शब्द दुबई का मूल शब्द दाबा (Daba) (यादुब ((Yadub) का एक व्युत्पन्न) से आया हो सकता है, जिसका मतलब रेंगना होता है। यह शब्द हो सकता है कि दुबई खाड़ी के भीतरी प्रवाह के संदर्भ में हो सकता है जबकि कवि और विद्वान अहमद मोहम्मद ओबैद भी इसी शब्द को माध्यम बताते हैं, लेकिन उनके अनुसार इसका अर्थ टिड्डी है।[18] ^ कैसे दुबई, अबू धाबी और अन्य शहरों को उनके नाम मिले ? विशेषज्ञों ने बताया . यूएईइंटरऐक्ट.कॉम . 10 मार्च 2007 इतिहास दक्षिण- पूर्वी अरब प्रायद्वीप की इस्लाम से पूर्व की संस्कृति के बारे में काफी कम जानकारी है सिवा इसके कि कई प्राचीन नगरों के क्षेत्र पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के बीच के व्यापार केंद्र थे। एक प्राचीन सदाबहार दलदल के अवशेष जो 7,000 साल पुराने है, दुबई इंटरनेट सिटी (Dubai Internet City) की सीवर लाइन के निर्माण के दौरान पाये गए . यह क्षेत्र 5,000 साल पहले समुद्र तट पीछे हट जाने से रेत से ढका हुआ था और शहर के वर्तमान समुद्र तट का एक हिस्सा बन गया था। thumb|left|अल फहिदी किला, 1799 में बनाया, दुबई में सबसे पुराना मौजूदा इमारत है - अब दुबई संग्रहालय का हिस्सा है।[22] इस्लाम के पहले यहाँ के लोग बजीर (Bajir) (या बजर) की उपासना करते थे। बैज़न्तिन (Byzantine) और सासानियन (Sassanian) (फारसी) साम्राज्य ने अवधि की महान शक्तियों का गठन किया और ज्यादा क्षेत्र को सासानियन नियंत्रित करने लगे . इस क्षेत्र में इस्लाम के प्रसार के बाद, उमय्यद कालिफ (Umayyad Caliph), पूर्वी इस्लामी दुनिया के, ने दक्षिण-पूर्वी अरब पर हमला कर दिया और सासानियन को बाहर कर दिया . अल-जुमायरा (जुमेरह) के क्षेत्र में दुबई संग्रहालय की खुदाई में उमय्यद अवधि की कई कलाकृतियाँ पायीं गई है।[25] ^ इस्लाम और इस्लामिक दौर का संयुक्त अरब अमीरात में आगमन . किंग, जेफ्री आर दुबई का सबसे पहले का उल्लेख 1095 में दर्ज़ है, एन्डालुसियन - अरब (Andalusian-Arab) भूगोलिक अबु अब्दुल्ला अल-बकरी की "Book of Geography" में दर्ज है. वेनिस के मोती व्यापारी गस्पेरो बल्बी (Gaspero Balbi) ने 1580 में इस इलाके का दौरा किया और दुबई (डिबई) का उल्लेख इसके मोती उद्योग के लिए किया। दुबई के शहर के दस्तावेज अभिलेख केवल 1799 के बाद से ही मौजूद हैं .[27] ^ पर्यटन से आर्थिक और पर्यावरण पर दुबई और हवाई पर प्रभाव . मैक एकएर्न, नादौ, एट अल . 19 वीं सदी के शुरू में, बनी यास (Bani Yas) वंश के अल अबू फालसा परिवार (हाउस अल-फालासी) ने दुबई की स्थापना की है, जो 1833 तक अबू धाबी पर निर्भर था। 8 जनवरी 1820 को, दुबई और इस क्षेत्र में अन्य शेखों ने ब्रिटिश सर्कार के साथ "जनरल समुद्री शांति संधि" (General Maritime Peace Treaty) पर हस्ताक्षर किये . 1833 में बनी यास जनजाति के अल मकतौम वंश (हाउस अल-फालासी के वंशज) ने अबू धाबी का समझौता छोड़ दिया और बिना विरोध के अबू फासला वंश से दुबई को ले लिया . दुबई 1892 के 'विशेष समझौते" द्वारा यूनाइटेड किंगडम के संरक्षण के अंतर्गत आ गया जिसमे ब्रिटेन ने दुबई की ओटोमन साम्राज्य से रक्षा की सहमति दी . 1800 के दौरान शहर में दो बार प्रलय आई . पहला, 1841 में बुर दुबई इलाके में चेचक महामारी जिसने इसके निवासियों को डिरा के पूर्व में शरण लेने को मजबूर कर दिया . और फिर, 1894 में, डिरा में एक आग लगी जिसमे कई घर जल गए . हालांकि, शहर की भौगोलिक स्थिति ने इस क्षेत्र के आसपास से व्यापारियों और सौदागरों को आकर्षित करना जारी रखा . दुबई के अमीर ने विदेशी व्यापारियों को आकर्षित करने के लिए उत्सुक था और उसने व्यापार कर को कम कर दिया जिसने व्यापारियों को शारजाह (Sharjah) और बन्दर लेंगेह (Bandar Lengeh) से खीच लिया जो उस समय इस क्षेत्र के मुख्य व्यापार केन्द्र थे। [36] ^ डेविडसन, क्रिस्टोफर, अमीरात के अबू धाबी और दुबई: अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में परस्पर विरोधी भूमिका . मार्च, 2007 . 20 वीं सदी दुबई की ईरान से भौगोलिक निकटता ने इसे एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। दुबई का शहर विदेशी व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था, मुख्यतः ईरान के व्यापारियों के लिए, जिसमे कई अंततः इसी शहर में बस गए . दुबई 1930 के दशक तक अपने मोती निर्यात के लिए जाना जाता था पर विश्व युद्घ 1 से यह उद्योग क्षतिग्रस्त हो गया था और बाद में 1930 के दशक में विश्व्यापी मंदी से यह फिर से क्षतिग्रस्त हो गया . मोती व्यापार के पतन के साथ कई निवासी फारस की खाड़ी के अन्य भागों में चले गए . thumb|डिरा में अल रस जिला, 1960 के दशक में दुबई | अपनी स्थापना के बाद से ही दुबई अबु धाबी के अनुपात पर था। 1947 में, दुबई और अबु धाबी के उत्तरी क्षेत्र की साझा सीमा का विवाद युद्ध में बदल गया .[38] ^ संयुक्त अरब अमीरात: आंतरिक सीमाएँ और ओमान के साथ सीमा . संग्रहीत संस्करण . वाकर, जे ब्रिटेन की मध्यस्तता और एक मध्यवर्ती सीमा जो रस हसियन (Ras Hasian) तट से दक्षिण पूर्व की ओर थी के परिणामस्वरूप दोनों से बीच एक अस्थायी युद्धस्तिथि विराम आ गया था। मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका . स्कोफ़ील्ड, सी. पी 175 अमीरात के बीच सीमा विवाद संयुक्त अरब अमीरात के गठन के बाद भी जारी रहा और 1979 में ही एक औपचारिक समझौते के बाद युद्ध समाप्त हुआ .[39] ^ दुबई . कार्टर, टी और डंसटन, एल लोनली प्लैनेट प्रकाशन बिजली, टेलीफोन सेवाओं और एक हवाई अड्डे दुबई में 1950 के दशक में स्थापित हुए जब ब्रिटिश अपने स्थानीय प्रशासनिक कार्यालयों शारजाह से दुबई ले गए .[40] ^ दुबई शहर . मेलामिद, सिकंदर जुलाई 1989 1966 में शहर ने कतर के नव स्वतंत्र देश के साथ फारस की खाड़ी रुपए के अवमूल्यन के बाद नै मौद्रिक इकाई कतर/दुबई रियाल की स्थापना की . उसी साल दुबई में तेल का पता चला जिसके बाद शहर ने अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियों को रियायतें दी . तेल की खोज से विदेशी कर्मचारियों की एक बाढ़ सी आ गई जिसमे मुख्यतः भारतीय और पाकिस्तानी लोग थे। कुछ अनुमानों के अनुसार शहर की जनसँख्या 1968 से 1975 300% तक बढ़ गई थी। पूर्व रक्षक ब्रिटेन के 1971 में फारस की खाड़ी छोड़ने के बाद 2 दिसम्बर 1971 को दुबई ने अबु धाबी और पांच अन्य अमीरात के साथ मिलकर संयुक्त अरब अमीरात की स्थापना की ."छह फारस की खाड़ी अमीरात सहमत एक संघ". न्यूयॉर्क टाइम्स 19 जुलाई 1971 . पेज 4 1973 में, दुबई ने अन्य अमीरातों के साथ मिलकर एक समान मुद्रा : संयुक्त अरब अमीरात दिरहम अपनाई . 1970 के दशक में, दुबई में तेल और व्यापार से उत्पन्न राजस्व में निरंतर बढोत्तरी होती रही, जबकि शहर में लेबनान के गृह युद्ध से भागे हुए आप्रवासियों की बाढ़ आ गयी थी। [45] ^ युद्ध के घावों से रिकवरी [45] ^ "बेरूत संकेत दिखा रहा है।" न्यूयॉर्क टाइम्स . 26 मई 1977. pg.2 जेबेल अली बंदरगाह (दुनिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित बंदरगाह) 1979 में स्थापित किया गया था। जफ्ज़ा (Jafza)(जेबेल अली नि:शुल्क जोन) का बंदरगाह के आसपास निर्माण 1985 में विदेशी कंपनियों को अप्रतिबंधित श्रम आयात और पूंजी निर्यात प्रदान करने के लिए किया गया था। यूएईफ्रीजोंस.कॉम . फारस की खाड़ी के 1990 के युद्ध का शहर पर बड़ा प्रभाव पड़ा . जमाकर्ताओं ने क्षेत्र में अनिश्चित राजनीतिक परिस्थितियों के कारण दुबई के बैंकों से भारी मात्रा में पूँजी वापस ले ली . बाद में 1990 के दशक में कई विदेशी व्यापारिक समुदाय - पहली बार कुवैत से फारस की खाड़ी युद्ध के दौरान और बाद में बहरीन से शिया अशांति के दौरान - ने अपने व्यापार को दुबई में स्थानांतरित कर दिया . दुबई ने फारस की खाड़ी युद्ध के दौरान और बाद में 2003 इराक आक्रमण के दौरान सेना संबद्ध को जेबेल अली फ्री ज़ोन को ईंधन आधार के लिए इस्तेमाल करने दिया . फारस की खाड़ी के युद्ध के बाद बढ़ी हुई तेल की कीमतों ने दुबई को मुक्त व्यापार और पर्यटन पर ध्यान देना जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। जेबेल अली मुक्त क्षेत्र की सफलता ने शहर को इस मॉडल की नकल कर नए मुक्त क्षेत्र के समूहों के विकास की अनुमति दी जिसमे दुबई इंटरनेट सिटी, दुबई मीडिया सिटी और दुबई मैरीटाइम सिटी भी शामिल है। बुर्ज अल अरब, दुनिया के सबसे बड़ा प्रथक होटल के निर्माण और साथ ही नये आवासीय गतिविधियों के निर्माण को पर्यटन के लिए दुबई के प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया . 2002 के बाद से निजी संपत्ति के विकास में वृद्धि ने दुबई के क्षितिज का विशाल परियोजनाओं, द पाल्म आइलैंड, द वर्ल्ड आइलैंड और द बुर्ज खलीफा के साथ पुनः निर्माण किया। हाल ही के मजबूत आर्थिक विकास ने उच्च मुद्रास्फीति को भी बढ़ावा मिला (11.2%, 2007 में जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के खिलाफ मापा गया) जिसका एक कारण वाणिज्यिक और आवासीय किराए का दोहरीकरण भी माना जाता है।[52] ^ मजबूत विकास को दुबई को उच्च मुद्रास्फीति का खतरा . कुवैत टाइम्स . 8 मार्च 2007 भूगोल thumb|शहरी स्तर का दुबई का नक्शा | thumb|दुबई-शारजाह-अजमान महानगरीय क्षेत्र रात में | thumb|31 दिसम्बर 2009 को दुबई का द्रश्य | thumb|दुबई के एक रेगिस्तान में रेत का टीला, एक रेगिस्तान सफारी के दौरान दुबई संयुक्त अरब अमीरात के फारस की खाड़ी के तट पर स्थित है और मोटे तौर पर समुद्र स्तर (ऊपर) है। दुबई के अमीरात दक्षिण में अबु धाबी के साथ, पूर्वोत्तर में शारजाह के साथ और दक्षिण पूर्व में ओमान सल्तनत के साथ सीमा बाँटता हैं . हट्टा, अमीरात की एक छोटी सी भूमि है जो तीन तरफ से ओमान और अजमान के अमीरात (पश्चिम में) और रास अल खैमाह (उत्तर में) द्वारा घिरी हुई है। फारस की खाड़ी की सीमाएं अमीरात के पश्चिमी तट से जुड़ी है। दुबई की स्तिथि है और 4,114 किमी ² (1,588 मील ²) के क्षेत्र में विस्तृत है, यह अपने आरंभिक 1,500 मील के क्षेत्र से परे है जो समुद्र से उद्धार के कारण हुआ हैं . दुबई अरेबियन रेगिस्तान के भीतर है। लेकिन दुबई की स्थलाकृति संयुक्त अरब अमीरात के दक्षिणी भाग से काफी अलग है, दुबई के परिदृश्य की विशिष्टता रेतीले रेगिस्तान के रूप में है, जबकि दक्षिणी क्षेत्र में बजरी रेगिस्तान की अधिकता है।[56] ^ पर्यावरण विकास और संरक्षण में संयुक्त अरब अमीरात . अस्पिनल, सिमॉन रेत में मुख्यतः टूटी हुई सीप और प्रवाल हैं और यह अच्छी, साफ और सफेद है। शहर का पूर्व जो नमक की परत का तटीय मैदान है जिसे सब्खा (sabkha) के नाम से जाना जाता है, एक उत्तर- दक्षिणी रेतीय रेखा को रास्ता देता है। दूर पूर्व की ओर, रेतीय टीले बड़े हो गए और लोहे के आक्साइड से लाल हो गए . सपाट रेतीला रेगिस्तान पश्चिमी हज़र पर्वत को रास्ता देता है, जो हट्टा पर दुबई ओमान की सीमा के साथ चलता है। पश्चिमी हज़ार श्रृंखला का एक शुष्क, कटीला और उजड़ा परिदृश्य है, जिसके पहाड़ कुछ स्थानों पर लगभग 1,300 मीटर तक ऊँचे है। दुबई में कोई प्राकृतिक नदी या मरू उद्यान नहीं है, तथापि, दुबई में एक प्राकृतिक प्रवेश है, दुबई की खाड़ी, जिसको जाल से बाँध कर गहरा कर बड़े जहाजों के जाने के योग्य बना दिया गया है। दुबई में कई पहाड़ों के बीच संकरें पथ और जलछिद्र भी है जिनका आधार पश्चिमी अल हज़र पहाड़ियां है। रेतीय टीलों का एक विशाल समुद्र दक्षिणी दुबई में फैला है जो अंततः एक द एम्प्टी क्वार्टर (The Empty Quarter) रेगिस्तान को जाता है। भूकंप के हिसाब से, दुबई एक बहुत ही स्थिर क्षेत्र है - सबसे पास की भूकंपीय रेखा, ज़ार्गोस फॉल्ट (Zargos fault) संयुक्त अरब अमीरात से 120 किमी दूर है और इसकी दुबई पर कोई भूकंप प्रभाव की संभावना नहीं है।[58] ^ दुबई में भूकंप का खतरा लंदन से कम' ]. यूएईइंटेरैकट.कॉम विशेषज्ञों का यह भी अनुमान है कि इस क्षेत्र में सुनामी की संभावना बहुत कम है क्योंकि फारस की खाड़ी के पानी की गहराई एक सुनामी को शुरू करने के लिए काफी कम है। शहर के आसपास के रेतीले रेगिस्तान जंगली घास और कभी कभी खजूर को सहारा देते है। रेगिस्तानी फूल सब्खा मैदानों में शहर के पूर्वी इलाकों में उगते है जबकि बबूल और खेजड़ी के पेड़ पश्चिमी अल हज़र पहाड़ियों के निकट सपाट मैदानों में होते हैं . कई देशी पेड़ जैसे खजूर और नीम और कई आयातित पेड़ जैसे सफेदा दुबई के प्राकृतिक पार्क में उगाए जाते है। हौबरा तुगदर, धारीदार लकड़बग्घा, स्याहगोश, रेगिस्तानी लोमड़ी, बाज़ और अरबी ओरिक्स जैसे जानवर दुबई के रेगिस्तान में आम है। दुबई यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बीच प्रवास के रास्ते पर है और 320 से अधिक प्रवासी पक्षी प्रजातियाँ बसंत और पतझड़ में अमीरात से होकर गुजरती हैं . दुबई के जल में हैमौर सहित मछलियों की 300 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती है। दुबई की खाड़ी शहर के पूर्वोत्तर-दक्षिण पश्चिमी तरफ है। शहर का पूर्वी भाग डिरा के इलाके बनाता है और पूर्व में शारजाह के अमीरात और दक्षिण में अल अवीर के शहर से जुड़ा है। दुबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा डिरा के दक्षिण में स्थित है जबकि पाम डिरा, डिरा के उत्तर में फारस की खाड़ी में स्थित है। दुबई की अचल संपत्ति का उछाल ज्यादातर दुबई की खाड़ी के पश्चिम में, जुमेरह तटीय क्षेत्र पर केन्द्रित है। पोर्ट राशिद, जेबेल अली, बुर्ज अल अरब, पाम जुमेरह और विषय आधारित मुक्त-क्षेत्र जैसे बिजनेस बेय सब इसी भाग में स्थित है। पांच मुख्य मार्ग - ई 11 (शेख जायद रोड), ई 311 (अमीरात रोड), ई 44 (दुबई-हट्टा राजमार्ग), ई 77 (दुबई अल हबाब रोड) और ई 66 (ओउद मेथा रोड) - दुबई से जाते है और शहर को अन्य शहरों और अमीरातों से जोड़ते है। इसके अतिरिक्त, कई महत्वपूर्ण अंतर शहरी मार्ग जैसे D 89 (अल मकतौम रोड/हवाई अड्डा रोड), D 85 (बनियास रोड), D 75 (शेख राशिद रोड), D 73 (अल धियाफा रोड), D 94 (जुमेरह रोड) और D 92 (अल ख़लीज/अल वस्ल रोड) शहर में विभिन्न इलाकों को जोड़ते हैं . शहर के पूर्वी और पश्चिमी वर्गों अल मकतौम ब्रिज, अल गरहौद ब्रिज, अल शिनदाघा सुरंग, बिजनेस बेय क्रोसिंग और फ्लोटिंग ब्रिज से जुड़े हुए हैं . जलवायु दुबई की जलवायु गर्म और शुष्क है। दुबई में गर्मियां बेहद गर्म, तूफानी और शुष्क होती है और औसत उच्च लगभग और रात भर निम्न लगभग होता है। साल भर गर्म दिनों की उम्मीद की जा सकती है। सर्दियां गर्म और छोटी होती है और औसत उच्च और रात भर निम्न होता है। वर्षा, पिछले कुछ दशकों में बढ़ रही है और संचित वर्षा प्रति वर्ष है। यह इस क्षेत्र की शुष्कता को प्रभावित नहीं करता है यद्यपि इससे रेगिस्तानी झाड़ियों की संख्या में वृद्धि हुई है। सरकार और राजनीति बाएँ|अंगूठाकार|शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम, संयुक्त अरब अमीरात के प्रधान मंत्री और दुबई के शासक thumb|दुबई पुलिस कार, एक बीएमडब्ल्यू 5 सीरीज कार thumb|दुबई में लगभग 250,000 मजदूर है, ज्यादातर संपत्ति विकास परियोजनाओं जैसे द दुबई मरीना के रूप में काम करने वाले दक्षिण एशियाई लोग दुबई सरकार एक संवैधानिक राजशाही ढांचे के भीतर संचालित होती है और अल मकतौम परिवार द्वारा 1833 के बाद से शासित है। मौजूदा शासक मोहम्मद बिन रशीद अल मकतौम संयुक्त अरब अमीरात के प्रधानमंत्री और सुप्रीम संघ परिषद् (SCU) के सदस्य भी है। दुबई 2 सत्र विधि के लिए 8 सदस्यों की संयुक्त अरब अमीरात की संघीय राष्ट्रीय परिषद (Federal National Council - FNC) जो सर्वोच्च संघीय वैधानिक संस्था है, में नियुक्ति करती है।[67] ^ कार्यकारी और विधायी शाखाएं . अमरीकी कांग्रेस का पुस्तकालय . दुबई नगर पालिका (डीएम) की स्थापना तत्कालीन शासक राशिद बिन सईद अल मकतौम ने 1954 में नगर नियोजन, नागरिक सेवाओं और स्थानीय सुविधाओं के रखरखाव के प्रयोजनों के लिए की थी। [68] ^ संगठनात्मक चार्ट . दुबई नगर पालिका डीएम की अध्यक्षता हमदान बिन राशिद अल मकतौम, दुबई के उप शासक द्वारा की जाती है और इसमें अनेक विभाग जैसे सड़क विभाग, योजना और सर्वेक्षण विभाग, पर्यावरण एवं जन स्वास्थ्य विभाग और वित्तीय मामलों के विभाग शामिल हैं . सन् 2001 में दुबई नगर पालिका ने अपने वेब पोर्टल (दुबई.एई) द्वारा अपनी 40 शहरी सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए एक ई- सरकार परियोजना शुरू की . ऐसी 13 सेवाएँ अक्टूबर 2001 से शुरू की गई, जबकि कई अन्य सेवाएं भविष्य में चालू होने की आशा है। दुबई और रास अल खैमाह ही केवल अमीरात है जो संयुक्त अरब अमीरात की संघीय न्यायिक प्रणाली के अनुरूप नहीं हैं . अमीरात की न्यायिक अदालत हैं द कोर्ट ऑफ़ फर्स्ट इंस्टैंस, द कोर्ट ऑफ़ अपील और द कोर्ट ऑफ़ कैसशन . द कोर्ट ऑफ़ फिस्र्ट इंस्टैंस में सिविल कोर्ट होते हैं जो सभी नागरिकों के दावे सुनते है, अपराध न्यायालय, जो पुलिस की शिकायतों से जुड़े दावे सुनते है और शरिया कोर्ट जो मुसलमानों के बीच मामलों के लिए जिम्मेदार है। गैर मुसलमान शरिया कोर्ट के सामने प्रकट नहीं होते हैं . द कोर्ट ऑफ़ कैसशन अमीरात का सुप्रीम कोर्ट है और कानून के मामलों पर विवाद सुनता है।[69] ^ संयुक्त अरब अमीरात न्यायालय प्रणाली . संयुक्त राज्य अमेरिका के दूतावास . दुबई पुलिस बल की स्थापना नैफ इलाके में 1956 में हुई और इसका कानून प्रवर्तन अधिकार क्षेत्र अमीरात है। यह बल मोहम्मद बिन रशीद अल मकतौम, दुबई के शासक की प्रत्यक्ष कमान के अधीन है। दुबई नगर पालिका शहर की स्वच्छता और मलजल बुनियादी सुविधाओं के प्रभारी भी हैं . शहर के तेज विकास ने इसके सीमित सीवेज उपचार के बुनियादी ढांचे को उसकी चरम सीमा तक खीच दिया है। संयुक्त अरब अमीरात के संविधान का अनुच्छेद 25 जाति, राष्ट्रीयता, धार्मिक विश्वासों या सामाजिक स्थिति के आधार पर सभी को सामान आचरण प्रदान करता है। हालाँकि, दुबई के 250,000 में से अनेक विदेशी मज़दूरों की स्तिथि को मानव अधिकार वॉच द्वारा "मानवीय से कम " वर्णित किया गया है। NPR अनुसार श्रमिक "आम तौर पर एक कमरे में आठ रहते है और अपने वेतन का एक हिस्सा वे अपने परिवारों को, जिन्हें वे सालों नहीं देख पाते है, को भेजते है।" 21 मार्च 2006 को बुर्ज खलीफा निर्माण स्थल के श्रमिक जो बस के समय और काम की परिस्थितियों से परेशान थे, ने आन्दोलन कर दिया था जिससे कारों, कार्यालयों, कंप्यूटरों और निर्माण उपकरणों को हानि हुई थी। [80] ^ श्रम अशांति से बुर्ज दुबई काम बाधित ख़लीज टाइम्स (एपी रिपोर्ट), 22 मार्च 2006[81] ^ "विरोध करने वाले बुर्ज दुबई श्रमिकों पर मुकदमा हो सकता" ख़लीज टाइम्स, 24 मार्च 2006[82] ^ संयुक्त अरब अमीरात में श्रम गल्फ न्यूज़ का यूएई में श्रम कानून पर लेख, विरोध, आदि वैश्विक वित्तीय संकट ने दुबई के श्रमिक वर्ग को नुक्सान पहुँचाया है, कई श्रमिकों को भुगतान नहीं किया जा रहा है और वे देश छोड़ने में भी असमर्थ है। दुबई में विदेशी नागरिकों के जुड़े न्यायिक सिद्धांतों को 2007 में रौशनी में लाया गया जब एलेक्जेंडर रॉबर्ट नामक एक 15 वर्षीय फ़्रांसिसी- स्विस नागरिक के साथ तीन स्थानीय लोगों द्वारा बलात्कार, जिसमे से एक एचआइवी पोसिटिव था और हाल में ही प्रवासी मजदूर जिनमे से अधिकांश भारतीय थे जो बुरी मजदूरी और जीवन स्थितियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे, के कैद जैसी घटनाओं को कथित रूप से छुपाने की कोशिश की गयी थी। वेश्यावृत्ति, जो कानून द्वारा अवैध है, सुस्पष्ट रूप से अमीरात में मौजूद है क्योंकि इसकी अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर पर्यटन और व्यापार पर आधारित है। अमेरिकन सेन्टर फॉर इंटरनेशनल पॉलिसी स्टडीज (AMC.PS) द्वारा किए गए एक शोध में पाया गया कि रूसी और इथियोपिया की महिलायें सबसे आम वेश्याओं हैं, साथ ही कुछ अफ्रीकी देशों की भी महिलाएं है, जबकि भारतीय वेश्याएं एक अच्छी तरह से आयोजित ट्रांस ओशियानिक वेश्यावृत्ति नेटवर्क का हिस्सा हैं . एक 2007 की PBS की दुबई : रात के राज़ नामक वृत्तचित्र के अनुसार क्लब में अधिकारियों द्वारा वैश्यावृत्ति को सहन किया जाता है और कई विदेशी महिलाओं वहां बिना मजबूरी के पैसे से आकर्षित होकर काम करती हैं .[88] ^ मिमी चकारोवा | दुबई: रात के राज, पीबीएस फ्रंटलाइन 13 सितम्बर 2007[89] ^ न्यूयॉर्क टाइम्स - बेचैन विदेश श्रम का डर, दुबई की सुधार पर नज़र [91] ^ मिडिल ईस्ट टाइम्स - दुबई में दुनिया के सबसे बड़े टॉवर में हड़ताल जनसांख्यिकी वर्ष जनसंख्या 1822 1 1,200 1900 1 10,000 1930 1 20,000 1940 1 38,000 1954 1 20,000 1960 1 40,000 1968 58,971 1975 183,000 1985 370,800 1995 674,000 2005 1,204,0001 दुबई शहर में पहली जनगणना का आयोजन 1968 में किया गया . इस तालिका में 1968 के पहले के सभी जनसंख्या के आंकड़े अनुमानित है और विभिन्न स्रोतों से प्राप्त हैं . दुबई के सांख्यिकी केंद्र द्वारा आयोजित की गई जनगणना के अनुसार, अमीरात की 2006 में आबादी 1,422,000 थी जिसमे 1,073,000 पुरुष और 349,000 महिलाएं शामिल थी। [106] ^ 2006 में दुबई के आंकडे .दुबई की सरकार . क्षेत्र 497.1 वर्ग मील (1,287.4 km2) तक फैला हुआ हैं . जनसंख्या घनत्व 408.18/km2 है जो पूरे देश से आठ गुना अधिक हैं . दुबई क्षेत्र में दूसरा सबसे महंगा शहर है और दुनिया में 20 वां सबसे महंगा शहर हैं . 1998 के रूप में, अमीरात की जनसंख्या का 17% भाग संयुक्त अरब अमीरात के नागरिकों का था। लगभग प्रवासियों की जनसँख्या (और अमीरात की कुल आबादी का 71% भाग) का 85% भाग एशियाई था, मुख्यतः (51%) भारतीय, पाकिस्तानी (15%) और बांग्लादेशी (10%) .[109] ^ "देश और महानगर आँकड़े संक्षेप में | MP. डाटा हब लेकिन जनसंख्या का एक चौथाई भाग कथित तौर पर ईरानी मूल का है।[110] ^ "जवान ईरानीयों के दुबई के सपने द न्यूयार्क टाइम्स, हसन एम.फत्तः द्वारा प्रकाशित: 4 दिसम्बर 2005 इसके अतिरिक्त, जनसंख्या का 16% भाग (या 288,000 लोग) सामूहिक श्रम आवास में रहने वाले लोगों की जातीयता या राष्ट्रीयता की पहचान नहीं है लेकिन यह मुख्यतः एशियाई सोचा गया है। अमीरात में औसत उम्र 27 साल थी। अपक्व जन्म दर 2005 में 13.6% थी जबकि अपक्व मृत्यु दर 1% थी। [114] ^ बेसिक महत्वपूर्ण सांख्यिकी संकेतक - दुबई के अमीरात हालांकि दुबई की अधिकारिक भाषा अरबी है पर उर्दू, फारसी, हिंदी, मलयालम, बंगाली, तमिल, टैगलोग, चीनी और अन्य कई भाषाएँ भी दुबई में बोली जाती हैं . अंग्रेजी शहर की सामान्य भाषा है और निवासियों द्वारा बहुत ही व्यापक रूप से बोली जाती है। संयुक्त अरब अमीरात अनंतिम संविधान के अनुच्छेद 7 के अनुसार इस्लाम संयुक्त अरब अमीरात शासकीय राज्य धर्म है। सरकार लगभग 95% मस्जिदों को सहायता देती है और सभी इमामों को रोज़गार देती है ; लगभग 5% मस्जिद पूरी तरह से निजी हैं और कई बड़ी मस्जिदों के बड़े निजी वृत्तिदान है।[115] ^ देश की रूपरेखा : संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) . संयुक्त राज्य कांग्रेस के पुस्तकालय दुबई में बड़ी संख्या में हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध और अन्य धार्मिक समुदाय के लोग शहर में रहते हैं . गैर मुस्लिम समूहों के लोग अपने स्वयं के पूजा घर बना सकते है जहां वे मुक्त रूप से अपने धर्म का अभ्यास कर सकते हैं इसके लिए उन्हें भूमि अनुदान का अनुरोध और एक परिसर के निर्माण की अनुमति लेने की ज़रुरत होती है। जिन समुदायों के खुद के धार्मिक इमारतें नहीं होती वे अन्य धार्मिक संगठनों की सुविधाओं का प्रयोग कर सकते है या निजी घरों में पूजा कर सकते हैं . गैर मुस्लिम धार्मिक समूहों को खुले तौर पर समूह के कार्यों की विज्ञापित की अनुमति है लेकिन शुद्धिकरण या धार्मिक साहित्य का वितरण जो इस्लाम का अपमान माना जाता है, आपराधिक मुकदमा चलाने, कारावास और निर्वासन के दंड के अंतर्गत आता है। अर्थव्यवस्था दुबई की अर्थव्यवस्था 2022 तक प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 46,665 अमेरिकी डॉलर का प्रतिनिधित्व करती है। विदेश व्यापार राज्य मंत्री डॉ थानी बिन अहमद अल जायौदी ने घोषणा की कि 10 वर्षों में यूएई का गैर-तेल व्यापार कुल 16.14 ट्रिलियन (4,4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) है। यूएई की जीडीपी 2021 में 407 अरब डॉलर से बढ़कर 2022 में 440 अरब डॉलर और अगले साल 467 अरब डॉलर हो गई। इसी तरह, प्रति व्यक्ति जीडीपी भी पिछले साल 43,868 डॉलर से बढ़कर इस साल 46,665 डॉलर और 2023 में 48,822 डॉलर हो जाएगी। द बुर्ज खलीफा, मनुष्य द्वारा बनाया गया सबसे ऊंचा स्वरुप [122].<ref name="Duba.One.naugurat.on">[] रेफरी </ 123>]] दुबई का 2005 में सकल घरेलू उत्पाद 37 बिलियन अमरीकी डालर था। हालांकि दुबई की अर्थव्यवस्था तेल उद्योग के ऊपर बनी थी,<ref name="oilgas2">[125] ^ "दुबई - अवलोकन:", युएसएटुडे.कॉम . 22 जुलाई 2007 लिया गया .</ref> वर्त्तमान में तेल और प्राकृतिक गैस का भाग अमीरात के राजस्व का 6% से भी कम है। यह अनुमान है कि दुबई 240,000 {बैरल तेल का दैनिक और अपतटीय क्षेत्र से पर्याप्त मात्र में गैस का उत्पादन करता है। संयुक्त अरब अमीरात के गैस के राजस्व में अमीरात का 2% का हिस्सा है। दुबई के तेल भंडार काफी कम हो गए है और इनके 20 साल में खत्म होने की उम्मीद हैं . संपत्ति और निर्माण (22.6%), व्यापर (16%), माल आगार (15%) और वित्तीय सेवाएं (11%) दुबई की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदान देते है।[130] ^ दुबई आर्थिक क्षेत्रों की संभावना | दुबई वाणिज्य चैम्बर . 2003 एक सिटी मेयर के सर्वेक्षण में दुबई को दुनिया के बेहतरीन वित्तीय शहरों में 44 वें स्थान पर रखा गया था और सिटी मेयर की दूसरी रिपोर्ट में संकेत दिया गया था कि खरीद की क्षमता में दुबई दुनिया के सबसे अमीर शहरों में 33 वें स्थान पर था। दुबई एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्र भी है और मास्टरकार्ड वर्ल्डवाइड सेंटर्स ऑफ़ कॉमर्स इंडेक्स (Mastercard Worldwide Centers of Commerce Index) (2007) के सवेक्षण में शीर्ष 50 वैश्विक वित्तीय शहरों में 37 वें और मध्य पूर्व में पहले स्थान पर था। दुबई के पुनः निर्यात स्थलों में ईरान (790 मिलियन अमेरिकी डॉलर), भारत (204 मिलियन अमेरिकी डॉलर) और सऊदी अमेरिका (194 मिलियन अमेरिकी डॉलर) शामिल है। अमीरात के शीर्ष आयात स्रोतों में जापान (1.5 अरब अमेरिकी डॉलर), चीन (1.4 अमेरिकी डॉलर) और संयुक्त राज्य अमेरिका (1.4 अरब अमेरिकी डॉलर) शामिल है। 2005 से 2009 तक दुबई और ईरान के बीच व्यापार तीन गुआ होकर 12 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया है।http://www.bloomberg.com/apps/news?p.d=20601102&s.d=av5smtYe_DDA ऐतिहासिक रूप से दुबई और दुबई की खाड़ी के पार इसकी अनुलिपि, डिरा (उस समय दुबई शहर से स्वतंत्र), पश्चिमी निर्माताओं के अवसरों के लिए महत्वपूर्ण बंदरगाह बन गए थे। नए शहर के ज्यादातर बैंकिंग और वित्तीय केंद्रों के मुख्यालय बंदरगाह क्षेत्र में थे। दुबई ने 1970 और 1980 के दशक में एक व्यापार मार्ग के रूप अपने महत्व को बनाए रखा . दुबई में सोने का मुक्त व्यापार होता है और 1990 के दशक तक भारत में सोने के खंड की "तेज तस्करी व्यापार"[139] ^ "दुबय्य " | ब्रिटैनिका विश्वकोश 2008 का केंद्र था जहां सोने का आयात प्रतिबंधित था। दुबई के जेबेल अली बंदरगाह का निर्माण 1970 के दशक में हुआ दुनिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित बंदरगाह है और यह कंटेनर यातायात की मात्रा के इसके समर्थन के लिए दुनिया भर में आठवें स्थान पर था। [140] ^ विश्व बंदरगाह रैंकिंग - 2006 अमेरिकी बंदरगाह अधिकारियों का संघ . 2006). उद्योग की स्थापना के लिए शहर भर में विशेष मुक्त क्षेत्रों के साथ दुबई साथ ही आईटी और सेवा उद्योग जैसे उद्योगों के एक केन्द्र के रूप में विकसित हो रहा है। दुबई इंटरनेट सिटी, दुबई मीडिया सिटी के साथ TECOM का हिस्सा (दुबई प्रौद्योगिकी, वाणिज्य और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नि: शुल्क जोन प्राधिकरण) के रूप में दुबई मीडिया सिटी के साथ मिलकर एक ऐसी एन्क्लेव जिसके सदस्य ऐसे EMC निगम, ओरैकल कोर्पोरेशन , माइक्रोसॉफ्ट , और आईबीएम , और मीडिया संगठनों के रूप में आईटी कंपनियों में शामिल है जैसे अति पिछड़े वर्गों, सीएनएन, बीबीसी, रॉयटर्स, स्काई समाचार और एपी. दुबई वित्तीय बाजार (DFM) की स्थापना मार्च 2000 द्वितीयक बाज़ार के रूप में स्थानीय और विदेशी व्यापारिक प्रतिभूतियों और बांड के व्यापार के लिए हुई थी। 2006 की चौथी तिमाही में, इसका व्यापार लगभग 400 बिलियन शेयरों का था जिनका कुल मूल्य 95 अरब अमेरिकी डॉलर था। डीऍफ़एम् (DFM) का बाज़ार पूंजीकरण 87 अरब अमेरिकी डॉलर था। सरकार के व्यापार आधारित लेकिन तेल निर्भर अर्थव्यवस्था से एक सेवा और पर्यटन उन्मुख अर्थव्यवस्था बनने के निश्चय ने संपत्ति को और अधिक मूल्यवान बना दिया है, जिससे 2004-2006 से संपत्ति अधिक मूल्यवान हो गई है। दुबई संपत्ति बाजार का लम्बी अवधि के आकलन में मूल्यह्रास दिखा और कुछ संपत्तियों के मूल्य में नवम्बर 2008 में 2001 से 64 % की गिरावट दिखी . बड़े पैमाने पर अचल संपत्ति विकास परियोजनाओं से दुनिया की सबसे बड़ी गगनचुंबी इमारतों और विश्व की सबसे बड़ी परियोजनाओं जैसे अमीरात टावर, बुर्ज खलीफा, पाम द्वीप समूह और दुनिया का दूसरा सबसे लम्बे और सबसे महंगे होटल, बुर्ज अल अरब का निर्माण हुआ . आर्थिक मंदी के कारण दुबई के संपत्ति बाजार ने 2008/2009 में बड़ी गिरावट का अनुभव किया। मोहम्मद अल अब्बर, एमार (Emaar) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने दिसम्बर 2008 में अंतरराष्ट्रीय प्रेस को बताया कि एमार पर 70 बिलियन अमरीकी डालर और दुबई राज्य का अतिरिक्त 10 बिलियन अमरीकी डालर का ऋण है जबकि उनकी अचल संपत्ति लगभग 350 बिलियन अमेरिकी डालर है। 2009 की शुरुआत तक वैश्विक आर्थिक स्तिथि और भी ख़राब हो गई थी जिससे संपत्ति मूल्यों, निर्माण और रोजगार पर भारी संकट पड़ा .[148] ^ "नौकरी से निकले विदेशी भागे जैसे ही दुबई नीचे आया " न्यूयॉर्क टाइम्स के 11 फ़रवरी 2009 में रॉबर्ट एफ वर्थ का लेख 2009 फ़रवरी को दुबई का अनुमानित विदेशी ऋण लगभग 100 बिलियन अमरीकी डालर है जिससे अमीरात के 250,000 संयुक्त अरब अमीराती नागरिक 400,000 अमरीकी डालर के विदेश क़र्ज़ के जिम्मेदार है। तथापि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इसमें थोड़ा अधिपति कर्ज भी है। आज, दुबई ने होटल बनाकर और रियल एस्टेट विकसित करके अपनी अर्थव्यवस्था को पर्यटन पर केंद्रित किया है। पोर्ट जेबेल अली, 1970 के दशक में निर्मित, दुनिया में सबसे बड़ा मानव निर्मित बंदरगाह है, लेकिन नए दुबई इंटरनेशनल फाइनेंशियल सेंटर (डीआईएफसी) के साथ आईटी और वित्त जैसे सेवा उद्योगों के लिए एक केंद्र के रूप में भी तेजी से विकसित हो रहा है। एमिरेट्स एयरलाइन की स्थापना 1985 में सरकार द्वारा की गई थी और यह अभी भी सरकारी स्वामित्व में है; दुबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर आधारित, इसने 2015 में 49.7 मिलियन से अधिक यात्रियों को ढोया। पर्यटन दुबई में पर्यटन दुबई सरकार के अमीरात में विदेशी पैसे के प्रवाह को बनाए रखने की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। दुबई में पर्यटकों के आकर्षण का आधार मुख्यतः खरीदारी और इसके प्राचीन और आधुनिक आकर्षण हैं . दुबई दुनिया के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है और दुबई में पर्यटन राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है। शहर ने 2016 में रात भर में 14.9 मिलियन आगंतुकों की मेजबानी की। 2018 में, अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों की संख्या के आधार पर दुबई दुनिया का चौथा सबसे अधिक देखा जाने वाला शहर था। दुबई संयुक्त अरब अमीरात के सात अमीरात में सबसे अधिक आबादी वाला अमीरात है। यह संयुक्त अरब अमीरात के अन्य सदस्यों से अलग है क्योंकि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस से इसे सकल घरेलू उत्पाद का केवल 6% राजस्व ही मिलता है। अमीरात के राजस्व का बहुमत जेबेल अली मुक्त क्षेत्र (JAFZ) और अब बढ़ते हुए पर्यटन से आता है . दुबई में एक महत्वपूर्ण पर्यटक आकर्षण बुर्ज खलीफा है, जो वर्तमान में पृथ्वी की सबसे ऊंची इमारत है। हालांकि, सऊदी अरब के जेद्दा में जेद्दा टॉवर लंबा होने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। दुबई को "मध्य पूर्व की खरीदारी राजधानी" कहा गया है। क्यूँकि अकेले दुबई में 70 से अधिक शॉपिंग सेंटर हैं, जिसमें दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शॉपिंग सेंटर, दुबई मॉल भी शामिल है। दुबई अपनी खाड़ी के दोनों ओर स्थित ऐतिहासिक सूक जिलों के लिए भी जाना जाता है। दुबई क्रीक में दुबई क्रीक पार्क भी दुबई पर्यटन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह दुबई के कुछ सबसे प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षणों जैसे डॉल्फिनारियम, केबल कार, कैमल राइड, हॉर्स कैरिज और एक्सोटिक बर्ड शो को प्रदर्शित करता है। दुबई में सफा पार्क, मुश्रीफ पार्क, हमरिया पार्क आदि जैसे पार्कों की एक विस्तृत श्रृंखला है। प्रत्येक पार्क दूसरे से विशिष्ट रूप से अलग है। मुशरिफ पार्क दुनिया भर के विभिन्न घरों को प्रदर्शित करता है। एक आगंतुक प्रत्येक घर के बाहर और साथ ही अंदर की स्थापत्य सुविधाओं की जांच कर सकता है। दुबई में सबसे लोकप्रिय समुद्र तटों में से कुछ उम्म सुकीम बीच, अल ममज़ार बीच पार्क, जेबीआर ओपन बीच, काइट बीच, ब्लैक पैलेस बीच और रॉयल आइलैंड बीच क्लब हैं। मास्टरकार्ड के ग्लोबल डेस्टिनेशन सिटीज इंडेक्स 2019 में पाया गया कि पर्यटक दुबई में किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक खर्च करते हैं। 2018 में, देश 30.82 बिलियन डॉलर के कुल खर्च के साथ लगातार चौथे वर्ष सूची में शीर्ष पर रहा। प्रति दिन औसत खर्च $553 पाया गया। दुबई में घूमने लायक प्रमुख जगहें यह शहर अपने बंदरगाहों, समुद्र तटों, गगनचुंबी इमारतों के लिए जाना जाता है और यह दुनिया का लोकप्रिय पर्यटन स्थल बन गया है। दुबई पर्यटन जीवंत नाइटलाइफ़, सुंदर परिदृश्य, गगनचुंबी इमारतों और रेगिस्तानी सफारी के बारे में है। दुबई में घूमने के लिए शीर्ष स्थान दुबई मॉल, दुबई फाउंटेन, बुर्ज खलीफा, दुबई फ्रेम, डेजर्ट सफारी, पाम आइलैंड्स, ग्लोबल विलेज, मिरेकल गार्डन और कई अन्य हैं। खुदरा दुबई को मध्य पूर्व की 'खरीदारी की राजधानी"[155] ^ दुबई में खरीदारी [155] ^ और साथ ही दुनिया की खरीदारी स्वर्ग का स्वर्ग बुलाया गया है। अकेले दुबई में 70 से अधिक शॉपिंग मॉल है और दुनिया का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल दुबई मॉल भी यहीं है। यह शहर इस क्षेत्र के देशों से में खरीदारी करने वाले पर्यटकों को बड़ी संख्या में आकर्षित करता है और साथ ही दूर के देशों पूर्वी यूरोप, अफ्रीका और भारतीय उपमहाद्वीप के खरीदारों को भी आकर्षित करता है। दुबई अपनी सूक (Souk) जिलों के लिए जाना जाता है। सूक एक अरबी शब्द है जिसका मतलब बाज़ार या ऐसी जगह है जहां पर माल लाया या लेन देन किया जाता है। परंपरागत रूप से, सुदूर पूर्व, चीन, श्रीलंका और भारत से आये जहाज अपने माल का सौदा निकट के सूक (बाज़ार) में करते थे। [156] ^ सौक - डेटादुबाई दुबई की सबसे वातावरण खरीदारी सूक में होती है जो खाड़ी के दोनों ओर है और वहां काफी सौदेबाजी होती है। आधुनिक शॉपिंग मॉल और बुटीक भी शहर में पाए जाते हैं . दुबई ड्यूटी मुक्त जो दुबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में है नि:शुल्क बहुराष्ट्रीय यात्री जो दुबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का इस्तेमाल करते है, उनको अनेक उत्पाद प्रदान करता है। हालाँकि बुटीक, कुछ इलेक्ट्रॉनिक सामान की दुकानें, डिपार्टमेंट स्टोर और सुपरमार्केट एक निश्चित मूल्य के आधार पर काम करते हैं, अधिकांश अन्य दुकानें दोस्ताना मोल भाव को जीवन का एक तरीका मानती हैं . दुबई के अनेक शॉपिंग केन्द्रों हर उपभोक्ता की जरूरत को पूरा करते है। कार, कपड़े, गहने, इलेक्ट्रॉनिक्स, सजाने का सामान, खेल के उपकरण और अन्य सामान सभी एक ही छत के नीचे होने की संभावना है। सिटीस्केप thumb|right|300px|अमीरात के उपनगरों से दिखने वाला दुबई का विशालदर्शी द्रश्य | thumb|right|300px|दुबई मरीना क्षितिज | सरंचना दुबई में विभिन्न स्थापत्य शैली के अनेक भवन और संरचाएं है। आधुनिक इस्लामी स्थापत्य को हाल ही में एक नए स्तर पर ले जाया गया है जिसमे ऐसी इमारतों जैसे बुर्ज खलीफा के रूप में वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा निर्माण . बुर्ज खलीफा का डिजाइन इस्लामी स्थापत्य कला में सन्निहित आकृति प्रणाली से बनाया गया है। बिल्डिंग के तीन भाग पदचिन्ह एक रेगिस्तानी फूल हय्मानोकालिस जो दुबई क्षेत्र में होता है, के सार पर आधारित है। अरब समाज में वास्तुकला वृद्धि से कई इस्लामी स्थापत्य की आधुनिक व्याख्या दुबई में देखी जा सकती है। उद्यान दुबई में अनेक मनोरंजन पार्क और उद्यान है। दुबई में मशहूर मनोरंजन पार्क के कुछ हैं जुमेरह बीच पार्क, दुबई क्रीकसाइड पार्क, मुशरिफ पार्क, अल ममज़र पार्क और सफा पार्क . इसके अलावा अनेक छोटे पार्क और विरासत के गांव भी हैं दुबई में . thumb|right|300px|सफा पार्क, शहर के व्यापारिक क्षेत्र बुर्ज खलीफा से दुबई की नगर पालिका की सामरिक योजना 2007-2011, 2011 तक प्रति व्यक्ति हरित क्षेत्र 23.4 वर्ग मीटर तक और दुबई के शहरी क्षेत्रों में खेती 3.15% तक बढ़ाना चाहती है। नगर पालिका ने एक हरियाली परियोजना शुरू की है जो चार चरणों में पूरी की जाएगी जिसमे प्रत्येक चरण में 10,000 पौधे लगाये जायेंगे . प्रसिद्ध उद्यानों में शामिल हैं: दुबई क्रीक पार्क क्रीकसाइड पार्क, बुर दुबई सफा पार्क, शेख जायद रोड जुमेरह बीच पार्क, जुमेरह बीच रोड वाइल्ड वाडी वाटर पार्क, जुमेरह बीच रोड ज़बील पार्क, शेख जायद रोड चिल्ड्रेन्स सिटी, बुर दुबई जुमेरह बीच ओपन पार्क, जुमेरह बीच अल मुम्ज़र बीच पार्क, डिरा, दुबई वंडरलैंड पार्क, वंडरलैंड पार्क मुशरिफ पार्क, डिरा, दुबई यातायात दुबई में परिवहन सड़क और परिवहन प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित है। सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क में भारी भीड़ और विश्वसनीयता की मुश्किलें हैं जिनको एक बड़े निवेश कार्यक्रम द्वारा सुधारने के प्रयास किये जा रहे है जिसमे AED70 अरब का सुधार योजना 2020 तक पूरा होने की उम्मीद है जब शहर की जनसँख्या 35 लाख से अधिक होने का अनुमान है। 2009 में, दुबई नगर पालिका आँकड़ों के अनुसार, दुबई में अनुमानित कारों की संख्या 1,021,880 थी। [162] ^ सार्वजनिक परिवहन आकर्षण क्योंकि कार मुक्त दिवस की तैयारी 2010 जनवरी में, दुबई में सार्वजनिक परिवहन प्रयोग 6% निवासियों ने किया था। http://gulfnews.com/news/gulf/uae/traff.c-transport/rta-wants-30-of-duba.-res.dents-on-publ.c-transport-1.571138. सरकार ने दुबई की सड़क अवसंरचना में भारी निवेश किया है, हालांकि यह वाहनों की संख्या में वृद्धि के साथ प्रगति नहीं का सका है। इसने प्रेरित यातायात रूप के साथ मिलकर भीड़ की समस्याओं को बढ़ाया है। दुबई में दो प्रमुख वाणिज्यिक बंदरगाह, पोर्ट रशीद और पोर्ट जेबेल अली हैं . पोर्ट जेबेल अली दुनिया में 7 वां सबसे व्यस्त बंदरगाह है। जेबेल अली दुनिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित बंदरगाह और मध्य पूर्व का सबसे बड़ा बंदरगाह है। हवाईअड्डे दुबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (IATA: DXB), अमीरात एयरलाइन का केंद्र, दुबई और देश के अन्य अमीरात को सेवा प्रदान करता है। 2008 में हवाई अड्डे को 3.7 करोड़ यात्रियों ने उपयोग किया और 1.8 मिलियन टन से अधिक माल को संभाला . 2008 में दुबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दुनिया का 20 वां सबसे व्यस्त हवाई अड्डा था और 35 मिलियन से अधिक अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के साथ, दुनिया का छठा व्यस्ततम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, अंतर्राष्ट्रीय यात्री यातायात के मामले में . एक महत्वपूर्ण यात्री यातायात केंद्र होने के अलावा, यह हवाई अड्डा दुनिया में सबसे व्यस्त माल हवाई अड्डे में से एक है, 2008 में 1.824 करोड़ टन माल का प्रबंध किया और यह दुनिया में सबसे व्यस्त हवाई अड्डों की सूची में 11 वें स्थान पर था, 2007 से माल यातायात में 9.4% की वृद्धि रही . अमीरात एयरलाइन दुबई की राष्ट्रीय विमान सेवा है और छह महाद्वीपों के 61 देशों में 101 स्थानों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलती है। अल मकतौम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का विकास, जो अभी जेबेल अली में निर्माण के अंतर्गत है, की घोषणा 2004 में की गई थी। पहले चरण का कार्य 2010 तक पूरा होने की उम्मीद है और एक बार परिचालन के बाद नए हवाई अड्डे पर अनेक विदेशी एयरलाइंस और अमीरात के एक विशेष टर्मिनल की मेजबानी करेगा . बस सेवा दुबई में सार्वजनिक बस परिवहन प्रणाली सड़क और परिवहन प्राधिकरण (RTA) द्वारा चलाई जाती है। 2008 में बस प्रणाली ने 140 मार्गों पर 109.5 लाख लोगों को सेवा प्रदान की . 2010 के अंत तक, वहाँ 2,100 बसें शहर भर में सेवा प्रदान करेंगी . परिवहन प्राधिकरण ने 500 वातानुकूलित ए / सी) यात्री बस स्टॉपों के निर्माण की घोषणा की है और पूरे संयुक्त अरब अमीरात में 1,000 और ऐसे बस स्टॉपों को बनाने की योजना है जिससे सार्वजनिक बसों के प्रयोग को बढ़ावा मिलेगा . रेल thumb|दुबई मेट्रो thumb|पाम जुमेरह मोनोरेल दुबई मेट्रो एक 3.89 अरब डॉलर दुबई मेट्रो परियोजना अमीरात के लिए निर्मित की जा रही . मेट्रो प्रणाली 2009 सितम्बर से आंशिक रूप से लागू की गई थी और 2012 तक पूरी तरह से लागू हो गई थी . ब्रिटेन आधारित अंतरराष्ट्रीय सेवा कंपनी सरको मेट्रो संचालन के लिए जिम्मेदार है। मेट्रो में चार लाइनें होंगी: ग्रीन लाइन अल रशीदिया से मुख्या नगर केद्र तक और रेड लाइन हवाई अड्डे से जेबेल अली तक . इसमें ब्लू लाइन और पर्पल लाइन भी है। दुबई मेट्रो (ग्रीन और ब्लू लाइन) का 70 किलोमीटर का ट्रैक होगा और 43 स्टेशन होंगे जिनमे, 37 जमीन के ऊपर और 10 स्टेशन जमीन के नीचे होंगे .[172] ^ दुबई नगर पालिका का Dhs12.45 अरब मेट्रो अनुबंध . दुबई मेट्रो . मई 29, 2005 दुबई मेट्रो अरब प्रायद्वीप में पहली शहरी रेल नेटवर्क है। सभी ट्रेन और स्टेशन वातानुकूलित होंगे जिनमे मंच बढ़त दरवाजे लगे होंगे जिससे यह संभव होगा . पाम जुमेरह मोनोरेल पाम जुमेरह पर एक मोनोरेल 2009 में खोला गया . यह क्षेत्र में बनाई गई पहली मोनोरेल है। ट्रामवे दुबई में दो ट्राम सिस्टम 2011 तक निर्मित होने की उम्मीद है। पहली व्यावसायिक बुर्ज खलीफा ट्राम प्रणाली और दूसरी अल सुफौह ट्राम है। व्यावसायिक बुर्ज खलीफा ट्राम प्रणाली एक 4.6 km की ट्राम सेवा है जो बुर्ज खलीफा के आसपास के क्षेत्र में सेवा प्रदान करेगी और दूसरी ट्राम अल सुफौह रोड के साथ दुबई मरीना से बुर्ज अल अरब और अमीरात के मॉल तक 14.5 km चलेगी . thumb|left|अब्रास डिरा और बर दुबई के बीच पारंपरिक यातायात का साधन है नाव और टैक्सियाँ बर दुबई से डिरा जाने के लिए परंपरागत तरीकों में से एक है अब्रास के माध्यम से जाना, छोटी नावें जो यात्रियों को दुबई क्रीक, अब्रास स्टेशन बस्ताकिया और बनियास रोड के बीच ले जाती है। समुद्री परिवहन एजेंसी, दुबई जल बस प्रणाली को लागू करने की प्रक्रिया में है। परिवहन की यह विधा पुरानी पड़ चुकी है। दुबई में एक व्यापक टैक्सी प्रणाली भी है, अमीरात में सार्वजनिक परिवहन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किये जाने वाला माध्यम है। इसमें सरकार चालित और निजी टैक्सी कम्पनियां दोनों शामिल है। लगभग 7,500 टैक्सियाँ अमीरात के अन्दर चलती है। स्वच्छता दुबई की स्वच्छता में अपशिष्ट और मल प्रबंधन की संरचना की योजना और प्रबंधन शामिल है। दुबई की तेजी से वृद्धि का मतलब है कि वह अपने सीमित सीवेज उपचार संरचना को उसकी परम सीमा तक खींच रहा है। वर्तमान में दुबई में 13 लाख निवासियों से रोज़ मानव अपशिष्ट शहर भर में उपस्थित हजारों सेप्टिक टैंक से एकत्र किया जाता है और टैंकरों द्वारा शहर के एकमात्र सीवेज उपचार संयंत्र जो अल-अवीर में है, ले जाया जाता है। लंबी कतारों और देरी की वजह से, कुछ टैंकर चालक अवैध रूप से इसे तूफान के प्रवाह में या रेगिस्तान में टीले के पीछे फेक देते है। सीवेज के तूफ़ान में फेके जाने से यह सीधे फारस की खाड़ी में चला जाता है जो शहर के मुख्य तैरने वाला समुद्र तट के पास है। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि समुद्र तट का उपयोग पर्यटकों को टाइफाइड और हेपेटाइटिस जैसी गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं .[177] ^ पू-बाई: मलजल की बाढ़ से दुबई समुद्र तटों को खतरा दुबई की नगरपालिका का कहना है कि वह अपराधियों को पकड़ने की कोशिश करने के लिए प्रतिबद्ध है और जुर्माने के रूप में 25,000 डॉलर और डंपिंग टैंकर को जब्त करने के कदम का प्रयोग करेगी . नगरपालिका का कहना है कि पानी के नमूने के परिक्षण अनुसार पानी 'मानक' के भीतर है।[178] ^ कच्चे मल से दुबई की तेज़ी में खतरा संस्कृति thumb|200px|दुबई टेनिस स्टेडियम 2005 में, महानगरीय दुबई की जनसंख्या का 84% लोग विदेशी जन्म के थे जिसमे लगभग आधे भारत से थे। शहर का छोटा, समजातीय मोती समुदाय अन्य जातीय समूहों और नागरिकों के आगमन के साथ बदल गया था - पहले 1900 के शुरू में ईरानियों के आगमन से और बाद में भारतीयों और पाकिस्तानियों के 1960 के दशक में आगमन से . दुबई में वर्ग पर आधारित समाज को बनाए रखने के लिए आलोचना की गई है जहां प्रवासी श्रमिक निचले वर्ग में हैं .[182] ^ दुबई का काला पक्ष, जोहान हरि, द इंडीपेंडेंट, 7 अप्रैल 2009 | दुबई में मुख्य छुट्टियों इद अल फ़ित्र, जो रमजान के अंत को संकेत करता है और राष्ट्रीय दिवस (दिसम्बर 2) है, जो संयुक्त अरब अमीरात के गठन को संकेत करता हैं . वार्षिक मनोरंजन कार्यक्रम ऐसे दुबई शॉपिंग फेस्टिवल (DSF) और दुबई ग्रीष्मकालीन आश्चर्य (DSS) के रूप में विभिन्न क्षेत्र ों से 4 मिलियन से अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने और एक अरब अमेरिकी डॉलर का राजस्व उत्पन्न करते हैं .[183] ^ पर्यटन और खरीदारी संयुक्त अरब अमीरात में : एक अतिरिक्त दिन खर्च " | एडवर्ड्स आर्थिक अनुसंधान FZ शहर के बड़े शॉपिंग मॉल जैसे डिरा सिटी सेंटर, बुरजुमन, माल ऑफ़ अमीरात, दुबई मॉल और इब्न बतूता मॉल साथ ही पारंपरिक बाज़ार क्षेत्र से ग्राहकों को आकर्षित करते है। खानपान अरबी खाना बहुत लोकप्रिय है और शहर में हर जगह उपलब्ध है, डिरा और अल करमा के छोटे शावार्मा से लेकर दुबई के होटलों के रेस्तरां तक . फास्ट फूड, दक्षिण एशियाई, चीनी व्यंजन भी बहुत लोकप्रिय हैं और व्यापक रूप से उपलब्ध है। सुअर का मांस की बिक्री और खपत हालांकि गैर कानूनी नहीं है, नियंत्रित है और केवल गैर मुस्लिमों को निर्दिष्ट क्षेत्रों में बेचा जाता है।[184] ^ खाद्य और कृषि आयात नियम और मानक | लाभ रिपोर्ट | अमेरिकी कृषि विभाग इसी प्रकार, मादक पेय पदार्थों की बिक्री को भी नियंत्रित किया जाता है। शराब खरीदने के लिए अनुमति (शराब परिमट) की आवश्यकता होती है, हालांकि, शराब होटल के भीतर बार और रेस्तरां में उपलब्ध है।दुबई में आपका स्वागत है न्यूजीलैंड व्यापार और Enterpr.se शीशा और काहवा बुटीक भी दुबई में लोकप्रिय हैं . हॉलीवुड और बॉलीवुड फिल्में दुबई में लोकप्रिय हैं . शहर वार्षिक दुबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह का आयोजन करता है, जो अरब और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा से मशहूर हस्तियों को आकर्षित करता है। संगीतकार, डायना हद्दाद, तरकन, एरोस्मिथ, संताना, मार्क क्नोप्फ्लेर, एल्टन जॉन, पिंक, शकीरा, सेलिं डायोन, कोल्ड प्ले, कीन और फिल कोलिन्स ने शहर में प्रदर्शन किया है। कायली मिनोग से 4.4 मिलियन डॉलर के भुगतान पर 20 नवम्बर 2008 को अटलांटिस रिसॉर्ट के उद्घाटन के अवसर पर प्रदह्शन कराया गया था। द दुबई डेजर्ट रॉक समारोह भी एक बड़ा कार्यक्रम है जिसमे हेवी मेटल और रॉक कलाकारों शामिल होते है। फुटबॉल और क्रिकेट दुबई में सबसे लोकप्रिय खेल है। पांच टीमों - अल वस्ल, अल शबाब, अल अहली, अल नस्र और हट्टा - संयुक्त अरब अमीरात लीग फुटबाल में दुबई का प्रतिनिधित्व करती है। मौजूदा चैंपियन अल वस्ल की संयुक्त अरब अमीरात लीग में चैंपियनशिप के दूसरे सबसे अधिक संख्या है, अल ऐन के बाद . अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) क्रिकेट दुबई बड़ी दक्षिण एशियाई समुदाय और 2005 में की गई है, दुबई के लिए लंदन से अपने मुख्यालय भेजा गया है। शहर में कई भारत का आयोजन किया गया है - पाकिस्तान मैच और दो नई घास के मैदान दुबई स्पोर्ट्स सिटी में विकसित किया जा रहा है। दुबई में भी मेजबान दोनों वार्षिक दुबई टेनिस चैंपियनशिप और महापुरूष रॉक दुबई टेनिस टूर्नामेंट, साथ ही साथ दुबई डेजर्ट क्लासिक गोल्फ टूर्नामेंट, जिनमें से सब दुनिया भर से खेल सितारों को आकर्षित. दुबई विश्व कप, एक कुलीन घुड़ दौड़, सालाना नाद अल शबा रेस कोर्स में आयोजित की जाती है। दुबई दिखावटी छवि के बावजूद, सेंसरशिप दुबई में आम है और सरकार द्वारा उपयोग के लिए सामग्री है कि यह एमिरातीस के सांस्कृतिक और राजनीतिक संवेदनशीलता का मानना है कि नियंत्रण का उल्लंघन करती है। समलैंगिकता, ड्रग्स और विकास के सिद्धांत को आम तौर पर वर्जित माना जाता हैं .[188] ^ गेरल्डाइन बेडेल का उपन्यास समलैंगिक चरित्र की वजह से दुबई में प्रतिबंधित [96] दुबई की रात्री जीवन के लिए जाना जाता है। क्लब और बार ज्यादातर शराब कानूनों की वजह से होटल में पाए जाते हैं . द न्यूयॉर्क टाइम्स ने 2008 में अपनी पार्टी के लिए यात्रा के विकल्प की सूची में दुबई को सूचीबद्ध किया था .[189] ^ रेगिस्तान में क्लब की बहार | न्यूयॉर्क टाइम्स . दिसम्बर 9, 2007 शिक्षा दुबई में स्कूल प्रणाली संयुक्त अरब अमीरात की प्रणाली से अलग नहीं है। 2006 में, वहाँ 88 सार्वजनिक स्कूल है जो शिक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित है जो अमीराती लोगों और प्रवासी लोगों को सेवा प्रदान करते है और साथ ही 132 निजी स्कूल भी है। सार्वजानिक स्कूलों में शिक्षा का माध्यम अरबी भाषा है और दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी पर जोर है जबकि अधिकांश निजी स्कूलों में अंग्रेजी को शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है। अधिकांश निजी स्कूलों में एक या उससे अधिक प्रवासी समुदायों को प्रदान करती हैं . द न्यू इंडियन मॉडल स्कूल, दुबई (N.MS), डेल्ही प्राइवेट स्कूल, अवर ओन इंग्लिश हाई स्कूल, द दुबई मॉडर्न हाई स्कूल और द इंडियन हाई स्कूल, दुबई या तो सीबीएसई (CBSE) या आईसीएसई (.CSE) भारतीय पाठ्यक्रम प्रदान करते है। इसी तरह, वहाँ कई सम्मानित पाकिस्तानी स्कूल भी है जो प्रवासी बच्चों को FB.SE पाठ्यक्रम प्रदान करते है। दुबई इंग्लिश स्पीकिंग स्कूल, जुमेरह प्राइमरी स्कूल, जेबेल अली प्राइमरी स्कूल, कैम्ब्रिज हाई स्कूल (या कैम्ब्रिज इंटरनेशनल स्कूल), जुमेरह इंग्लिश स्पीकिंग स्कूल, किंग्स स्कूल और द होराइज़न स्कूल सब ग्यारह वर्ष की आयु तक ब्रिटिश प्राथमिक शिक्षा प्रदान करते हैं . दुबई ब्रिटिश स्कूल, दुबई कॉलेज, इंग्लिश कॉलेज दुबई ब्रिटिश स्कूल, इंग्लिश कॉलेज दुबई, जुमेरह इंग्लिश स्पीकिंग स्कूल, जुमेरह कॉलेज और सेंट मैरीज़ कैथोलिक हाई स्कूल सभी ब्रिटिश ग्यारह से अठारह माध्यमिक विद्यालय हैं जो जीसीएसई (GCSE) और ए-लेवलस (A-levels) प्रदान करते है। अमीरात इंटरनेशनल स्कूल, कैम्ब्रिज हाई स्कूल के साथ, 18 साल की उम्र तक पूर्ण शिक्षा प्रदान करता है और आईजीसीएसई (IGCSE) और ए-लेवेल्स प्रदान करता है। वेलिंगटन इंटरनेशनल स्कूल, जो 4 से 18 के आयु वर्ग के छात्रों को शिखा प्रदान करता है, IGCSE और ए लेवेल्स एक स्तर प्रदान करता है। [डिरा इंटरनेशनल स्कूल और दुबई इंटरनेशनल अकादमी भी IGCSE कार्यक्रम सहित आईबी प्रदान करते हैं . जुमेरह इंग्लिश स्पीकिंग स्कूल 4 से 18 तक के विद्यार्थी देखते है और 16 तक ब्रिटिश पाठ्यक्रम (जीसीएसई) और अंतरराष्ट्रीय स्तर (आईबी) पाठ्यक्रम प्रदान करते है। दुबई में कई स्कूल है जो अमेरिकी पाठ्यक्रम प्रदान करते है जैसे दुबई अमेरिकन अकादमी, अमेरिकन स्कूल ऑफ़ दुबई और द यूनिवर्सल अमेरिकन स्कूल ऑफ़ दुबई . संयुक्त अरब अमीरात का शिक्षा मंत्रालय स्कूल की मान्यता के लिए जिम्मेदार है। दुबई शिक्षा परिषद की स्थापना जुलाई 2005 में दुबई में शिक्षा के क्षेत्र का विकास करने के लिए हुई थी। एच एच शेख मोहम्मद मुद्दों दुबई शिक्षा परिषद, दिसम्बर, 14 जुलाई 2005 की स्थापना डिक्री ज्ञान और मानव विकास प्राधिकरण (KHDA) की स्थापना 2006 में दुबई का शिक्षा और मानव संसाधन के क्षेत्र में और लाइसेंस शैक्षिक संस्थानों का विकास करने के लिए की गई थी। KHDA संसद प्रश्नोत्तर, KHDA, 2006 जनसंख्या के लगभग 10% भाग के पास विश्वविद्यालय डिग्री या स्नातकोत्तर डिग्री है। कई प्रवासी अपने बच्चों को विश्वविद्यालय की शिक्षा के लिए अपने देश वापस या पश्चिमी देश भेज देते है और प्रौद्योगिकी के अध्ययन के लिए भारत भेज देते है। हालांकि, पिछले 10 सालों में एक बड़ी संख्या में शहर में विदेशी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई है। इन विश्वविद्यालयों के कुछ हैं मैनचेस्टर बिजनेस स्कूल एमबीएस,, मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी दुबई (MSU Duba.) MSU दुबई, , रोचेस्टर प्रौद्योगिकी दुबईhttp://www.r.t.edu/duba./[102], बिरला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी - दुबई (बिट्स पिलानी), हेरिओट -वाट विश्वविद्यालय दुबई, अमेरिकन यूनिवर्सिटी दुबई (AUD), अमेरिकन कॉलेज ऑफ़ दुबई, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय (परिसर से दूर सेंटर), इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट टेकनोलोजी -दुबई परिसर, SP जैन सेण्टर ऑफ़ मैनेजमेंट, यूनिवर्सिटी ऑफ़ वॉलोन्गॉन्ग और एम्एएचई मणिपाल शामिल हैं . 2004 में दुबई स्कूल ऑफ़ गवेर्न्मेंट ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के सहयोग से जॉन ऍफ़ केनेडी स्कूल ऑफ़ गवेर्मेंट और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल दुबई सेण्टर (HMSDC) की दुबई में स्थापना की . दुबई सार्वजनिक पुस्तकालय दुबई का सार्वजनिक पुस्तकालय है। मीडिया दुबई में सुस्थापित प्रिंट, रेडियो, टीवी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है जो शहर की सेवा करता है। दुबई अरब रेडियो नेटवर्क का आवास है, जो आठ ऍफ़ एम् रेडियो स्टेशनों का प्रसारण करता है जिसमे मध्य पूर्व में पहला बात करने वाला रेडियो स्टेशन भी शामिल है, दुबई आई 103.8 | कई अंतरराष्ट्रीय चैनेल केबल के माध्यम से उपलब्ध है, जबकि उपग्रह, रेडियो और स्थानीय चैनल अरेबियन रेडियो नेटवर्क और दुबई मीडिया इन्कोर्पोरेटेड सिस्टम द्वारा प्रदान किये जाते है। कई अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियां ​​जैसे रॉयटर्स, एपीटीएन, ब्लूमबर्ग एल.पी. और मिडिल ईस्ट ब्रॉडकास्टिंग सेंटर (एमबीसी) दुबई मीडिया सिटी और दुबई इंटरनेट सिटी में काम करती हैं। इसके अतिरिक्त, कई स्थानीय नेटवर्क टेलीविजन चैनेल जैसे दुबई वन (पूर्व चैनल 33) और दुबई टीवी (पूर्व ईडीटीवी) अंग्रेजी और अरबी में क्रमशः कार्यक्रम प्रदान करते हैं . दुबई आधारित एफ़एम स्टेशन जैसे दुबई एफएम (93.9), (92.0) Duba.92, अल खालीजिया (100.9) और हिट एफएम (96.7) एफएम अंग्रेजी, अरबी और दक्षिण एशियाई भाषाओं में कार्यक्रम प्रदान करते हैं . दुबई कई प्रिंट मीडिया केंद्र का मुख्यालय भी है। दार अल खलीज, अल बयान और अल इत्तिहाद शहर के सबसे बड़े अरबी भाषा के संचारी समाचार पत्र हैं,[202] ^ सबसे बड़ी वितरण अरबी भाषा समाचार पत्र . अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए कार्नेगी बंदोबस्त . अरब सुधार बुलेटिन, दिसम्बर, 2004 जबकि गल्फ न्यूज और खलीज टाइम्स[203] ^ हम अग्रणी अखबार हैं | गल्फ न्यूज . सितम्बर, 2006 सबसे बड़े अंग्रेजी संचारी समाचार पत्र हैं . दुबई ऑनलाइन गतिविधियों और दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही इंटरनेट समुदाय का बड़ा केंद्र है। फेसबुक और यू ट्यूब दुबई में सबसे लोकप्रिय अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट हैं और दुबई में सबसे लोकप्रिय स्थानीय वेबसाइटों में से डुबीजल.कॉम एक है। तोप्फिक्स सभी प्रमुख रखरखाव कंपनियों के बीच वर्तमान में दुबई में सबसे अच्छा रखरखाव कंपनी में से एक है। 2006 में एटीसलत, सरकारी स्वामित्व वाली दूरसंचार प्रदाता, की दुबई में अन्य दूरसंचार सेवाओं की स्थापना से पहले, छोटी दूरसंचार कंपनियों जैसे अमीरात इंटीग्रेटेड टेलिकम्युनिकेशंस कम्पनी (E.TC - डू (Du) नाम से लोकप्रिय) का स्वामित्व था। [204] ^ संयुक्त अरब अमीरात . ओपननेट संवादात्मक . 2008 इंटरनेट को संयुक्त अरब अमीरात (इसलिए दुबई) में 1995 में पेश किया गया था। मौजूदा नेटवर्क 6 GB की बैंडविड्थ साथ में 50,000 डायलअप और 150,000 ब्रॉडबैंड पोर्ट से समर्थित है। दुबई में देश के चार में से दो डीएनएस डेटा सेंटर (DXBN.C1, DXBN.C2) हैं .[205] ^ एक नज़र में सयुंक्त अरब अमीरात निक | सुल्तान अल शम्सी इंटरनेट सामग्री दुबई में विनियमित है। एटीसलत इंटरनेट की सामग्री को एक प्रॉक्सी सर्वर के उपयोग से छानता है जिसको देश के मूल्यों के साथ असंगत समझा जाता है, जिसमे प्रॉक्सी को दरकिनार करने, डेटिंग, समलैंगिक नेटवर्क, अश्लील साहित्य, बहाई विश्वास की वेबसाइट, इज़राइल की वेबसाइट और यहां तक संयुक्त अरब अमीरात की आलोचना करने वाली वेबसाइट शामिल है। अमीरात मीडिया और इंटरनेट (एटीसलत की एक इकाई) ने यह देखा कि 2002 में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में 76% लोग पुरुष थे। इंटरनेट उपयोगकर्ता में 60% एशियाई और 25% अरब थे। दुबई ने 2002 में एक इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन और कॉमर्स विधि बने जो डिजिटल हस्ताक्षर और इलेक्ट्रॉनिक रजिस्टर के बारे में था। यह इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISPs) को सेवा प्रदान करने में मिली जानकारी बताने से प्रतिबंधित करता है। दंड संहिता में भी कुछ प्रावधान हैं, तथापि, साइबर अपराध या डेटा संरक्षण को संबोधित नहीं करता .[206] ^ खामोश - संयुक्त अरब अमीरात . गोपनीयता अंतर्राष्ट्रीय . अंतर्राष्ट्रीय संबंध अनुलिपि शहर - भगिनी शहर दुबई के 32 भगिनी शहर है और ज्यादातर ट्विनिंग समझौते 2002 के बाद किये गए है।[208] ^ ट्विनिंग शहरी समझौते संयुक्त अरब अमीरात की सरकारी वेबसाइट मॉन्टेरी, नुएवो लेओन, मेक्सिको पेरिस, फ्रांस गोल्ड कोस्ट, क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया हांगकांग, चीनी जनवादी गणराज्य सान जुआन, पुओर्तो रीको गुआंगज़ौ, चीनी जनवादी गणराज्य शंघाई, चीनी जनवादी गणराज्य फ्रेंकफर्ट, जर्मनी पुत्राजया, मलेशिया कुआला लम्पुर, मलेशिया ओसाका, जापान कीश द्वीप, ईरान तेहरान, ईरान चेब, चेक गणराज्य बेरूत, लेबनान बार्सिलोना, स्पेन ग्रेनाडा, स्पेन त्रिपोली, लीबिया वैंकूवर, ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा न्यूकैसल अपॉन टाइन, इंग्लैंड, यूनाइटेड किंगडम मॉस्को, रूस दमास्कस, सीरिया जिनेवा, स्विट्जरलैंड इस्तांबुल, तुर्की बगदाद, इराक कराकस, वेनेजुएला डेट्रायट, मिशिगन, संयुक्त राज्य अमेरिका लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका न्यूयॉर्क शहर, न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका फिनिक्स, अरिजोना, संयुक्त राज्य अमेरिका बुसान, दक्षिण कोरिया कुवैत सिटी, कुवैत ब्रिस्बेन, ऑस्ट्रेलिया डंडी, स्कॉटलैंड, यूनाइटेड किंगडम इन्हें भी देखें दुबई के मानचित्र दुबई यात्रा संकुल सूचियां दुबई में सबसे बड़ी इमारतों की सूची सन्दर्भ ग्रंथ सूची हेइको स्च्मिद : सम्मोहन की अर्थव्यवस्था: दुबई और लास वेगास थीम्ड शहरी परिदृश्य, बर्लिन के रूप में, 2009 स्टुटगार्ट, 978-3-443-37014-5 .SBN जॉन एम. स्मिथ: दुबई द मकतौम स्टोरी, 2007 नोर्देर्स्तेद्त Norderstedt, 3833446609 .SBN टिप्पणी बाहरी कड़ियाँ www.m.raclesofduba..com - चित्र और दुबई के बारे में जानकारी w.k.travel.org एन / / दुबई - वाइकीट्रैवेल दुबई www.Duba..ae - दुबई सरकार की आधिकारिक वेबसाइट www.Duba.tour.sm.ae - दुबई पर्यटन और वाणिज्य विपणन (डीटीसीएम्) सरकारी वेबसाइट www.DM.gov.ae - दुबई नगर पालिका वेबसाइट ngm.nat.onalgeograph.c.com/2007/01/duba./steber-photography - नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका दुबई फोटो गैलरी 2007 बुर्ज दुबई - बुर्ज दुबई "एक जीवित अदभुत " दुबई में संपत्ति खरीदने और बेचने की गाइड - दुबई में संपत्ति खरीदने और बेचने की गाइड (सरकारी वेबसाइट) श्रेणी:दुबई श्रेणी:फारस की खाड़ी श्रेणी:संयुक्त अरब अमीरात में तटीय बस्तियां श्रेणी:संयुक्त अरब अमीरात के शहर, कस्बे और गाँव श्रेणी:संयुक्त अरब अमीरात के अमीरात श्रेणी:गूगल परियोजना
राष्ट्रीय मनोचिकत्सा संस्थान
https://hi.wikipedia.org/wiki/राष्ट्रीय_मनोचिकत्सा_संस्थान
सेंट्रल इंस्टीटयूट ऑफ साइकियेट्री झारखंड प्रान्त के राँची में काँके स्थित एक प्रमुख मानसिक आरोग्यशाला और शोध संस्थान है। श्रेणी:राँची श्रेणी:झारखंड श्रेणी:संस्थान श्रेणी:चिकित्सा श्रेणी:शिक्षण संस्थान
लेगोस
https://hi.wikipedia.org/wiki/लेगोस
thumb|265px|लेगोस द्वीप thumb|265px|लेगोस का मानचित्र thumb|265px|सन् 2010 में लेगोस लेगोस (Lagos, योरुबा: Èkó, एको) पश्चिमी अफ़्रीका के नाइजीरिया देश का सबसे बड़ा शहर है। लेगोस राज्य की सरकार के अनुसार सन् २०१३ में इस शहर की आबादी १ करोड़ ७५ लाख थी। लेकिन लेगोस की केन्द्रीय सरकार और राष्ट्रीय जन्संख्या आयोग के अनुसार ये आंकड़े विवादित हैं। ताज़े आकलन अनुमानित करते हैं कि जनसंख्या २ करोड १ लाख से कम नहीं। इसीलिए लेगोस को अफ़्रीका महाद्वीप का सबसे बड़ा शहर कहा जाता है। नामार्थ व उच्चारण "लेगोस" शब्द पुर्तगाली भाषा से उत्पन्न हुआ है और उसका अर्थ "झीलें" है। ध्यान दें कि शहर के नाम का सही उच्चारण "लेगोस" है और "लागोस" ग़लत है।"Lagos ". Oxford Dictionary. Retrieved 28 November 2015 इतिहास लेगोस क्षेत्र में सबसे पहले बसने वाला समुदाय आवोरी लोगों का था जो योरुबा समुदाय का एक उपसमूह है। ओलोये ओलोफ़िन के नेतृत्व में आवोरी लोग एक द्वीप पर चले गये जिसे अब इड्डो कहा जाता है। पंद्रहवीं शताब्दी में आवोरी लोगों पर बेनिन साम्राज्य द्वारा वार किया गया, जिसकी वजह से यह द्वीप बेनिन का एक युद्ध-शिविर बन गया था जिसे एको नाम से कहा जाता था। यह ओबा ओर्होग्बा के अधिराज्य में था, जो उस समय के ओबा ऑफ बेनिन था। योरुबा भाषा में आज भी लेगोस को एको ही कहते हैं। "लेगोस" नाम का मतलब है "तालाब" (बहुवचन) है। यह नाम पुर्तगालियों ने दिया था। आज का लेगोस राज्य में आवोरियों की बड़ी बस्ती है। १५वीं शताब्दी में लेगोस राज्य पहली बार पुर्तगालियों के ध्यान में आया। १८६१ में लेगोस ब्रिटेन के कब्ज़े में आ गया और उसे लेगोस कॉलोनी (यानि लेगोस उपनिवेश) कहा जाता था। ब्रिटिश राज से यहाँ का दास-व्यवसाय भंग हो गया और अंग्रेज़ ताड़ तथा दूसरे व्यापार पर भी कब्ज़ा कर पाए। १९१४ में लेगोस नाइजीरिया की राजधनी बना दी गई। अंग्रेज़ों से आज़दी पाने के बाद भी यह राजधानी बना रहा। १९९१ में लेगोस से राजधानी का पद छीन लिया गया। उसी समय अबुजा शहर में संघीय राजधानी क्षेत्र स्थापित किया गया था। १४ नवम्बर १९९१ को राष्ट्रपती पद और दूसरे संघीय सरकारी कार्य नई राजधानी अबुजा में स्थानांतरित किये गए थे।http://www.pamro.org/pamro/2008/PAMRO%20LOC%20Welcome%2014Aug08.PPT भूगोल लेगोस मुख्य भूमि ज़्यादातर आबादी मुख्य भूमि पर ही रहते हैं। यहाँ के ज़्यादतर उद्योग भी यहीं पर स्थित हैं। लेगोस अपने संगीत और नाइट्लाइफ के लिये प्रसिद्ध है, जो ज़्यादतर याबा तथा सुरुलेरे में बसा हुआ करता था। हाल ही में द्वीप पर काफी नाइटक्लब् आ गए हैं। इस्से द्वीप, खासकर विक्टोरिय द्वीप, मुख्य नाइट्लाइफ आकर्षण बन गए हैं। लेगोस के मुख्य भूमी के जिलें हैं एबूटे-मेटा, सुरुलेरे, याबा (लेगोस बिश्वविद्यालय का स्थान) और इकेजा (मुर्तला मुहम्मद अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का स्थान और लेगोस राज्य की राजधानी)। ग्रेटर लेगोस के जगहें हैं मुशिन, मेरीलैन्ड, सोमोलू, ओशोदी, ओवोरोंसोकी, इसोलो, इकोतुन, अगेगे, इजू एशागा, एग्बेदा, केतू, बरिगा, इपाजा, अजाह तथा एजिग्बो। लेगोस शहर दक्षिण-पश्चिमी नाइजीरिया का मुख्य शहर है। यहाँ के दो प्रमुख शहरी द्वीप लेगोस द्वीप तथा विक्टोरिया द्वीप हैं। लेगोस के द्वीप लेगोस द्वीप लेगोस द्वीप में एक केंद्रीय व्यापार ज़िला है।limge.org/editorials.html यहाँ लेगोस की सबसे बडी गगनचुंबी इमारतें तथा बाज़ार हैं। इस द्वीप के अन्य आकर्षण हैं नाइजीरिया का राष्ट्रीय संग्रहालय, केंद्रीय मस्जिद, ग्लोवर मेमोरियल हॉल, मसीह च्रर्च कथेड्रल और ओबा महल। इकोयी इकोयी लेगोस द्वीप के पूर्वी आधे पर है और एक गढगे के द्वारा उससे जोड दिया गया है। इकोयी एक पुल द्वारा विक्टोरिया द्वीप से भी जुडा है। यह पुल फाइव कौरी क्रीक पार करती है।Branch of the Nigerian Institution of estate surveyors & Valuers. Lagos state. 30 अगस्त 2006. विक्टोरिया द्वीप विक्टोरिया द्वीप लेगोस द्वीप के ठीक दक्षिण में स्थित है। यहाँ के समुद्र तट पर प्रसिद्ध बार बीच है। ईको अतलान्तिक ईको अतलान्तिक एक नियोजित जिला है। इड्डो इड्डो एक रेल टर्मिनस है जो अब एक प्रायद्वीप की तरह मुख्य भूमि से जोड़ा गया है। सन्दर्भ श्रेणी:अफ़्रीका की बंदरगाहें श्रेणी:नाइजीरिया के शहर श्रेणी:अफ़्रीका के आबाद स्थान श्रेणी:अफ़्रीका में बंदरगाह नगर
दिल्ली मेट्रो
https://hi.wikipedia.org/wiki/दिल्ली_मेट्रो
दिल्ली मेट्रो भारत की राजधानी दिल्ली- एनसीआर की मेट्रो परिवहन व्यवस्था है जो दिल्ली मेट्रो रेल निगम लिमिटेड द्वारा संचालित है। इसका शुभारंभ २४ दिसंबर, २००२ को शहादरा तीस हजारी लाईन से हुई। इस परिवहन व्यवस्था की अधिकतम गति ८०किमी/घंटा (५०मील/घंटा) रखी गयी है और यह हर स्टेशन पर लगभग २० सेकेंड रुकती है। सभी ट्रेनों का निर्माण दक्षिण कोरिया की कंपनी रोटेम (ROTEM) द्वारा किया गया है। दिल्ली की परिवहन व्यवस्था में मेट्रो एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इससे पहले परिवहन का ज्यादतर बोझ सड़क पर था। प्रारंभिक अवस्था में इसकी योजना छह मार्गों पर चलने की थी जो दिल्ली के ज्यादातर हिस्से को जोड़ते थे। इस प्रारंभिक चरण को २००६ में पूरा किय़ा गया। बाद में इसका विस्तार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सटे शहरों गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गाँव और नोएडा तक किया गया। इस परिवहन व्यवस्था की सफलता से प्रभावित होकर भारत के दूसरे राज्यों जैसे उत्तर प्रदेशमेरठ में मेट्रो की संभावना तलाशेगी डीएमआरसी| ५ जून, २००९|याहू जागरण)गाजियाबाद और लखनऊ में मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट को मंजूरी| वर्ल्ड न्यूज़| ३ फरवरी, २००९)गाजियाबाद और लखनऊ में मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट को मंजूरी| याहू जागरण|३ फरवरी, २००९), राजस्थानअब जयपुर में भी मेट्रो ट्रेन ५ जून, २००९मेट्रो जयपुर सर्वे शुरु, कर्नाटकमुंबई, हैदराबाद, बंगलौर में होगी मेट्रो ७ अप्रैल, २००६ बीबीसी, हिन्दी, आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र में भी इसे चलाने की योजनाएं बन रही हैं। दिल्ली मेट्रो व्यव्स्था अपने शुरुआती दौर से ही ISO १४००१ प्रमाण-पत्र अर्जित करने में सफल रही है जो सुरक्षा और पर्यावरण की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। दिल्ली मेट्रो भारत में सबसे बड़ा और व्यस्ततम मेट्रो है, और दुनिया की 9वीं सबसे लंबी मेट्रो प्रणाली लंबी अवधि में और 16 वीं सबसे बड़ी सवारी में है। दिल्ली मेट्रो में लोगो द्वारा कुछ अजीब हरकतें की जा रही हैं जिनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है हो रहा है CoMET के एक सदस्य, नेटवर्क में आठ रंग-कोडित नियमित रेखाएं होती हैं, जिसमें कुल लंबाई है जो 229 स्टेशनों (6 स्टेशन सहित एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन और इंटरचेंज स्टेशनों ) की सेवा करती है। इस प्रणाली में ब्रॉड-गेज और मानक-गेज दोनों का उपयोग करके भूमिगत, एट-ग्रेड और उन्नत स्टेशनों का मिश्रण है। पावर आउटपुट 25 किलोवाल्ट, 50-हर्ट्ज वैकल्पिक ओवरहेड कैटेनरी के माध्यम से वैकल्पिक रूप से आपूर्ति की जाती है। ट्रेन आमतौर पर छह और आठ कोच लंबाई होती है। डीएमआरसी प्रतिदिन 2,700 से अधिक यात्राएं संचालित करती है, पहली ट्रेनें लगभग 05:00 बजे शुरू होती हैं और आखिरी बार 23:30 बजे होती हैं। 2016-17 के वित्तीय वर्ष में, दिल्ली मेट्रो में 2.76 मिलियन यात्रियों की औसत दैनिक सवारता थी और वर्ष के दौरान कुल मिलाकर 100 करोड़ (1.0 अरब) सवार थे। सितंबर २०११ में संयुक्त राष्ट्र ने "स्वच्छ विकास तंत्र" योजना के तहत हरित गृह गैसों में कमी लाने के लिए दिल्ली मेट्रो को दुनिया का पहला "कार्बन क्रेडिट" दिया जिसके अंतर्गत उसे सात सालों के लिए 95 लाख डॉलर मिलेंगे।[ http://www.khaskhabar.com/delhi-metro-awarded-first-carbon-credit-by-un-092011265395212630.html विश्व का प्रथम यूएन कॉर्बन क्रेडिट दिल्ली मेट्रो को], खासखबर २६ सितंबर, २०११ मेट्रो रेलमार्ग thumbnail|200px|दिल्ली मेट्रो का मानचित्र (अक्टूबर २०१८) thumbnail|200px|दिल्ली की भूमिगत रेल का मानचित्र। इसमें स्थानों के नाम हिन्दी (देवनागरी) में दिये गये हैं। thumbnail|200px|येलो लाइन thumbnail|200px|ब्लू लाइन भारत सरकार और दिल्ली सरकार ने संयुक्त रूप से 3 मई 1995 को दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) नामक एक कंपनी की स्थापना की, जिसमें ई श्रीधरन को प्रबंध निदेशक के रूप में रखा गया था। डॉ. ई श्रीधरन ने 31 दिसंबर 2011 को मंगू सिंह को DMRC के प्रबंध निदेशक के रूप में कार्यभार सौंपा। इस रेल व्यवस्था के प्रमच रण (फेज I) में मार्ग की कुल लंबाई लगभग ६५.११ किमी है जिसमे १३ किमी भूमिगत एवं ५२ किलोमीटर एलीवेटेड मार्ग है। द्वितीय चरण (फेज II) के अंतर्गत पूरे मार्ग की लंबाई १२८ किमी होगी एवं इसमें ७९ स्टेशन होंगे जो अभी निर्माणाधीन हैं, इस चरण के २०१० तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।दिल्ली मेट्रो मास्टरप्लान २०२१ तृतीय चरण (फेज III) (११२ किमी) एवं IV (१०८.५ किमी) लंबाई की बनाये जाने का प्रस्ताव है जिसे क्रमश: २०१५ एवं २०२० तक पूरा किये जाने की योजना है। इन चारों चरणो का निर्माण कार्य पूरा हो जाने के पश्चात दिल्ली मेट्रो के मार्ग की कुल लंबाई ४१३.८ किलोमीटर की हो जाएगी जो लंदन के मेट्रो (४०८ किमी) से भी बडा बना देगी।विस्तारों का मानचित्र, डीएमआरसी देखेंद टाइम्स ऑफ इंडियाडिस्कवरी चैनल: २४ आवर्स विद देल्ही मेट्रो दिल्ली के २०२१ मास्टर प्लान के अनुसार बाद में मेट्रो को दिल्ली के उपनगरों तक ले जाए जाने की भी योजना है। वर्तमान मार्ग (फ़ेज़-I) जनवरी २०१८ तक की स्थिति के अनुसार जिसमें फेज तीन के एक्स्टेंशन भी शामिल हैं: मार्ग का नामसंख्यास्टेशनों के बीच की दूरीलंबाई (किमी)स्टेशनों की संख्या ट्रेनों की संख्या● रेड लाइन १ दिलशाद गार्डन - रिठाला२५.०९२१३१ ट्रेन● येलो लाइन २ समयपुर बादली - हुडा सिटी सेंटर ४९.००३७ ६० ट्रेन● ब्लू लाइन ३ नोएडा सिटी सेंटर - द्वारका सैक्टर २१ ४९.९३४४७० ट्रेन● ब्लू लाइन ४ यमुना बैंक - वैशाली ८.७४७७० ट्रेन● ग्रीन लाइन ५ मुंडका - इंद्रलोक १५.१४१४१६ ट्रेन● ग्रीन लाइन ५ अशोक पार्क मेन - कीर्ति नगर ३.३२२१६ ट्रेन● वायलेट लाइन ६ कश्मीरी गेट - एस्कॉर्ट्स मुजेसर ४०.३४३२४४ ट्रेन● ऑरेंज लाइन ७ नई दिल्ली - द्वारका सैक्टर २१ २२.७०६८ ट्रेन कुल लंबाई = २०९ किमी फेज II के मार्ग right|300px|thumb|रंगीन मानचित्र द्वितीय चरण (फेज II) के अंतर्गत पूरे मार्ग की लंबाई १२८ किमी होगी एवं इसमें ७९ स्टेशन होंगे जो अभी निर्माणाधीन हैं, इस चरण के २०१० तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। फेज III इस फेज के २०१५ में पूरा होने का लक्ष्य रखा गया है जिसमे कई लाईनों के विस्तार शामिल हैं :- 1. मुकुंदपुर - आजादपुर - राजौरी गार्डन - एम्स - सराय काले खां = ३१ किमी 2. केन्द्रीय सचिवालय - मंडी हाउस - दरियागंज - वेल्कम - गोकुलपुरी - नवादा (गाजियाबाद) = १८ किमी 3. रिठाला - बरावला = ६ किमी 4. दिलशाद गार्डन - गाजियाबाद ISBT = ९.५ किमी 5. एयरपोर्ट लिंक - सुशांत लोक (गुडगांव) = १६.५ किमी 6. मुंडका - दिल्ली बार्डर - बहादुरगढ = ११ किमी 7. बदरपुर - वाईएमसीए चौक, फरीदाबाद = १४ किमी 8. सुशांत लोक (गुडगांव) - टी जंक्शन सेक्टर ४७ एवं ४८, गुडगांव = ६.५ किमी कुल लंबाई = ११२ किमी फेज चार thumbnail|250px|दिल्ली मेट्रो - २००४ इसके पूरा होने का लक्ष्य २०२० में रखा गया है। जिनमें निम्नांकित नये मार्ग या पुराने मार्गों के विस्तार होंगे :- 1. सराय काले खां - आनंद विहार - दिलशाद गार्डन - यमुना विहार - सोनिया विहार = २२ किमी 2. सराय काले खां - नेहरू प्लेस - पालम - रेवला खानपुर = २८ किमी 3. मुकुंदपुर - जीटीके बाईपास - पीतमपुरा - पीरागढी - जनकपुरी - पालम = २० किमी 4. बरावला - मुंडका - नजफगढ - द्वारका = २० किमी 5. गाजीपुर - नोएडा सेक्टर ६२ = ७ किमी 6. द्वारका सेक्टर २१ - छावला = ६ किमी 7. अजरौंदा - खेरी = ५.५ किमी कुल लंबाई = १०८.५ किमी कुल लंबाई सभी चरणों को मिलाकर = ४१३ किमी संचालन रेलगाड़ी चोटी और ऑफ-पीक घंटों के आधार पर, 05:00 और 00:00 के बीच एक से दो मिनट की अवधि में पांच से दस मिनट तक चलती है। नेटवर्क के भीतर चलने वाली ट्रेन आमतौर पर 50 किमी / घंटा (31 मील प्रति घंटे) तक की रफ्तार से यात्रा करती है और प्रत्येक स्टेशन पर लगभग 20 सेकंड तक रुक जाती है। स्वचालित स्टेशन घोषणाएं हिंदी और अंग्रेजी में दर्ज की जाती हैं। कई स्टेशनों में एटीएम, खाद्य आउटलेट, कैफे, सुविधा स्टोर और मोबाइल रिचार्ज जैसी सेवाएं हैं। पूरे सिस्टम में भोजन, पीने, धूम्रपान और च्यूइंग गम प्रतिबंधित हैं। आपातकाल में अग्रिम चेतावनी के लिए मेट्रो में एक परिष्कृत अग्नि अलार्म सिस्टम भी है, और ट्रेनों के साथ-साथ स्टेशनों के परिसर में अग्निरोधी सामग्री का उपयोग किया जाता है। Google ट्रांज़िट पर नेविगेशन जानकारी उपलब्ध है। अक्टूबर 2010 से, हर ट्रेन का पहला कोच महिलाओं के लिए आरक्षित है। हालांकि, जब ट्रेन लाल, हरे और वायलेट लाइनों में टर्मिनल स्टेशनों पर ट्रैक बदलती है तो अंतिम कोच भी आरक्षित होते हैं। मेट्रो द्वारा एक आसान अनुभव करने के लिए, दिल्ली मेट्रो ने अपने स्वयं के आधिकारिक मोबाइल ऐप को स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं, (आईफोन और एंड्रॉइड) के लिए दिल्ली मेट्रो लॉन्च किया है जो निकटतम मेट्रो स्टेशन, किराया के स्थान जैसी विभिन्न सुविधाओं पर जानकारी प्रदान करेगा। , पार्किंग उपलब्धता, मेट्रो स्टेशनों के पास पर्यटन स्थलों, सुरक्षा और आपातकालीन हेल्पलाइन संख्याएं। फाइनेंस (वित्त) स्रोत: 2014 में, दिल्ली मेट्रो ने गैर-किराया राजस्व उत्पन्न करने के लिए, एक खुली ई-टेंडरिंग प्रक्रिया के माध्यम से, मेट्रो स्टेशनों की अर्ध-नामकरण नीति शुरू की। एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन दिल्ली मेट्रो रेल निगम सितंबर 2018 से एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन पर यात्रा के लिए क्यूआर कोड-आधारित टिकट सुविधा पेश करेगा। यह प्रणाली यात्रियों को मेट्रो स्टेशन पर भौतिक रूप से आने के बिना 'रिडलर मोबाइल ऐप' का उपयोग करके टिकट खरीदने में सक्षम करेगी। एयरपोर्ट लाइन स्टेशनों में यात्रियों के लिए क्यूआर-सक्षम प्रवेश और निकास द्वार भी हैं। पुरस्कार दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने गोल्डन पीकॉक एनवायरनमेंट मैनेजमेंट अवार्ड 2005 जीता। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन "इंडस्ट्री लीडरशिप इन सस्टेनेबिलिटी" के प्रदर्शन के लिए वर्ल्ड ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल अवार्ड पाने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गई। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन (एआईएमए), 2016 द्वारा पीएसयू ऑफ द ईयर अवार्ड जीता। दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जेआईसीए) का राष्ट्रपति पुरस्कार 2012 जीता। लोकप्रिय संस्कृति में दिल्ली मेट्रो में कई फिल्मों की शूटिंग की गई है। नवंबर 2003 में दिल्ली मेट्रो में शूट की जाने वाली पहली फिल्म बेवफा थी। बाद में, दिल्ली ६, लव आज कल, पा कुछ लोकप्रिय फिल्में थीं, जिनके सीक्वेंस दिल्ली मेट्रो ट्रेनों और स्टेशन परिसर के अंदर शूट किए गए थे। मार्च 2014 में ऋतिक रोशन और कैटरीना कैफ स्टारर फिल्म बैंग बैंग की शूटिंग मयूर विहार एक्सटेंशन मेट्रो स्टेशन के पास की गई थी। 2019 में, ऋतिक रोशन और टाइगर श्रॉफ स्टारर फिल्म वॉर दिल्ली मेट्रो में शूट होने वाली आखिरी फिल्मों में से एक थी। इन्हें भी देखें दिल्ली उपनगरीय रेल दिल्ली-एनसीआर हैदराबाद मेट्रो रेल बंगलुरु मेट्रो पटना मेट्रो लाहौर मेट्रो (पाकिस्तान) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालस्थल Magenta Line Kalkaji Noida दिल्ली मेट्रो रेल मोबाइल ऐप श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना श्रेणी:भारत में मेट्रो रेल
नोएडा
https://hi.wikipedia.org/wiki/नोएडा
नोएडा भारत में दिल्ली से सटा एक उपनगरीय क्षेत्र है जो उत्तर प्रदेश में स्थित है। इसकी जनसंख्या करीब ५ लाख है और यह २०३ वर्ग कि॰मी॰ में फ़ैला है। इसका नाम अंग्रेज़ी के New Okhla Industrial Development Authority न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डवेलपमंट अथॉरिटी के संक्षिप्तीकरण से बना है (नवीन ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण )। इसका आधिकारिक नाम गौतम बुद्ध नगर है। ये विभिन्न सेक्टरों में बसा हुआ है। न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (हिंदी: 'नई ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण') के लिए लघु, नोएडा, नई ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (जिसे नोएडा भी कहा जाता है) के प्रबंधन के तहत एक व्यवस्थित योजनाबद्ध भारतीय शहर है। यह भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा है। इतिहास नोएडा 17 अप्रैल 1976 को प्रशासनिक अस्तित्व में आया इसलिए 17 अप्रैल को "नोएडा दिवस" ​​के रूप में मनाया जाता है। नोएडा विवादास्पद आपातकाल (1975-1977) के दौरान शहरीकरण पर जोर के तहत स्थापित किया गया था, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र और कांग्रेस नेता संजय गांधी की पहल से यूपी औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम के तहत बनाया गया था। महत्वपूर्ण तथ्य पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इस शहर में प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है। नोएडा प्राधिकरण देश के सबसे अमीर नागरिक निकायों में से एक है। जनगणना भारत की अनंतिम रिपोर्ट 2011 के मुताबिक नोएडा की आबादी 6,37,272 है; जिनमें से पुरुष और महिला आबादी क्रमशः 3,49,397 और 2,87,875 हैं। नोएडा में सड़कें पेड़ों से आच्छादित हैं और इसे भारत का सबसे ज्यादा हरियाली से युक्त शहर माना जाता है, जिसका लगभग पचास फीसदी हिस्सा हरियाली आच्छादित है, जो कि भारत के किसी भी शहर के मुकाबले सबसे अधिक है। नोएडा उत्तर प्रदेश राज्य के गौतम बुद्ध नगर जिले में स्थित है। जिले के प्रशासनिक मुख्यालय पास के ग्रेटर नोएडा शहर में हैं। हालांकि इस जिले के जिलाधिकारी का आधिकारिक छावनी कार्यालय और निवास सेक्टर-27 में है। शहर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र गौतमबुद्ध नगर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का एक हिस्सा है। वर्तमान में महेश शर्मा नोएडा के सांसद हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेता पंकज सिंह यहां के स्थानीय विधायक हैं। उपलब्धियां नोएडा को एपीपी समाचार द्वारा वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ शहर का खिताब दिया गया। नोएडा में कई बड़ी कंपनियों ने अपने कारोबार की स्थापना की है। यह आईटी, आईटीईएस, बीपीओ, बीटीओ और केपीओ सेवाओं की पेशकश करने वाले बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं, बीमा, फार्मा, ऑटो, फास्ट-मूविंग उपभोक्ता वस्तुओं और विनिर्माण जैसे विभिन्न उद्योगों में कंपनियों की पसंदीदा जगह बन रही है। एसोचैम के एक अध्ययन के मुताबिक यह शहर बेहतर बिजली-आपूर्ति, सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के लिए उपयुक्त वातावरण और कुशल मानव संसाधन क्षमता से लैस शहर है। शिक्षण संस्थान इस शहर के सेक्टर 62 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल्स, इंडियन एकेडमी ऑफ हाइवे इंजीनियरिंग, आईसीएआई, आईएमएस, आईआईएम लखनऊ का नोएडा कैंपस, जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और कई और अधिक प्रतिष्ठित स्थानीय विश्वविद्यालय हैं। यह उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कई प्रतिष्ठित संस्थानों का केंद्र है, जिनमें एमएएफ एकेडमी, सिंबायोसिस लॉ स्कूल शामिल है। बैंक ऑफ इंडिया का स्टाफ प्रशिक्षण कॉलेज के साथ-साथ फादर एग्नेल और कार्ल ह्यूबर जैसे कुछ प्रसिद्ध स्कूल भी इस शहर में मौजूद हैं। अर्थव्यवस्था नोएडा आईटी सेवाओं को आउटसोर्स करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक प्रमुख केंद्र है। पाइनलैब्स, सैमसंग, बार्कलेज शेयर्ड सर्विसेज, सीआरएमएनएक्सटी, हेडस्ट्रॉन्ग, आईबीएम, मिर्चकल, स्टेलर आईटी पार्क, यूनिटेक इंफोस्पेस और बहुत सारी कंपनियों के दफ्तर इस शहर के सेक्टर 62 में हैं। कई बड़ी सॉफ़्टवेयर और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग कंपनियां के भी इस शहर में अपने कार्यालय हैं। इस शहर में लगभग सभी प्रमुख भारतीय बैंकों की शाखाएं मौजूद हैं। ===एनएसईजेड=== 1985 में स्थापित नोएडा विशेष आर्थिक क्षेत्र 310 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है। यह रत्न और आभूषण और इलेक्ट्रॉनिक्स / सॉफ्टवेयर जैसे निर्यात के जोर क्षेत्रों के लिए उत्कृष्ट बुनियादी ढाँचा, सहायक सेवाएँ और क्षेत्र विशेष सुविधाएँ प्रदान करता है। सूचना और सेवाओं का समर्थन एनएसईजेड में अलग-अलग आकार के 202 भूखंड हैं, इसके अलावा 13 मानक डिजाइन फैक्ट्री (एसडीएफ) ब्लॉक हैं, जिनमें 208 यूनिट्स हैं, जिसमें ट्रेडिंग सेवा इकाइयों के लिए एक विशेष ब्लॉक भी शामिल है। भावी उद्यमियों को समायोजित करने के लिए 16 इकाइयों का एक और एसडीएफ ब्लॉक निर्माणाधीन है। एनएसईजेड वैश्विक दूरसंचार नेटवर्क, निर्बाध बिजली आपूर्ति और कुशल स्थानीय परिवहन प्रणाली तक पहुंच प्रदान करता है। जोन में BSNL द्वारा एक उच्च क्षमता वाला टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित किया गया है। भारती, एयरटेल, रिलायंस, वीएसएनएल आदि जैसे प्रमुख दूरसंचार खिलाड़ी भी क्षेत्र में डेटा संचार सुविधा जैसी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। निर्बाध बिजली आपूर्ति के लिए एक स्वतंत्र फीडर लाइन प्रदान की गई है। सीमा शुल्क विंग शीघ्र और निर्यात / आयात खेपों की स्पष्टता सुनिश्चित करता है। इसके अलावा, इन-हाउस पोस्ट और टेलीग्राफ कार्यालय, उप-विदेशी डाकघर, एटीएम सुविधा, कूरियर सेवा सुविधाएं, औद्योगिक कैंटीन और कार्यकारी रेस्तरां और यात्रा / सीमा शुल्क अग्रेषण एजेंसियों सहित बीमा और बैंकिंग प्रदान किए गए हैं। केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क जमा करने के लिए पंजाब नेशनल बैंक का एक विस्तार काउंटर भी चालू है। निर्यातकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रसंस्करण क्षेत्र में एक अपतटीय बैंकिंग इकाई भी स्थापित की गई है। उपरोक्त के अलावा, बैंक, सीएचएएस, ईटरीज, कम्युनिकेशन सर्विस प्रोवाइडर आदि जैसे विभिन्न सुविधाकर्ता जो NSEZ इकाइयों की आवश्यकताओं के लिए सफलतापूर्वक खानपान कर रहे हैं, को NSEZ के भीतर सुविधा केंद्र में समायोजित किया गया है। सॉफ्टवेयर और रत्न और आभूषण इकाइयों के लिए सेक्टर विशिष्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित किया गया है। सॉफ्टवेयर निर्यात के लिए आवश्यक सैटेलाइट डेटा लिंक सुविधा उपलब्ध है। सॉफ्टवेयर विकास के लिए उच्च प्रशिक्षित और योग्य जनशक्ति दिल्ली और उसके आसपास उपलब्ध है। आभूषण इकाइयों के लिए दो विशेष परिसर विकसित किए गए हैं। MMTC के पास सोने की आपूर्ति के लिए NSEZ में एक पूर्ण-कार्यालय है, जो पैकिंग क्रेडिट सुविधा भी प्रदान करता है। सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन आभूषण निर्यात और सेवाओं की निर्यात औपचारिकताओं जैसे मूल्यांकन, हवाई अड्डों के बिलों के प्रसंस्करण और हवाई अड्डे तक परिवहन के लिए भंडारण की सुविधा प्रदान करता है। कार्गो के आवक / जावक आंदोलन को सुविधाजनक बनाने के लिए NSEZ को सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के तहत अंतर्देशीय कंटेनर डिपो (ICD) के रूप में घोषित किया गया है। दिल्ली एनसीआर - उभरते आईटी हब दिल्ली एनसीआर में नई दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और इसके आसपास के हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कई जिले शामिल हैं। इन जिलों में प्रमुख हैं नोएडा (उत्तर प्रदेश राज्य में) और गुरुग्राम (तत्कालीन गुड़गांव, हरियाणा राज्य में)। दिल्ली एनसीआर भारत के सबसे तेजी से बढ़ते आर्थिक क्षेत्रों में से एक बन गया है, जो देश की कुल जीडीपी का सात से आठ प्रतिशत हिस्सा है। सरकारी संस्थानों के साथ इसकी निकटता, एक व्यापार के अनुकूल बुनियादी ढाँचे की उपस्थिति, और एक उद्यमशीलता की संस्कृति संस्कृति शहर को एक व्यवहार्य आईटी हब बनाती है। नतीजतन, कई कंपनियों ने उच्च गुणवत्ता के बुनियादी ढांचे, जनशक्ति, अचल संपत्ति और सहायक सरकारी नीतियों का लाभ उठाने के लिए नोएडा, दिल्ली और गुरुग्राम में अपने वितरण केंद्र और संपर्क कार्यालय स्थापित किए हैं। इन प्रमुख लाभों में से कुछ नीचे सूचीबद्ध हैं: क्षेत्रीय संपर्क दिल्ली एनसीआर एक बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ क्षेत्र है। यहाँ दुनिया के सबसे व्यस्त अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों में से एक है - इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा। अब यहा ३०००० करोण की लागत से दुनिया का चौथा और भारत का विशालतम हवाई अड्डे का निर्माण हो रहा है जिसके २०२४ तक शुरु होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त, दिल्ली अपने उपग्रह शहरों - गुरुग्राम और नोएडा से दिल्ली गुरुग्राम एक्सप्रेसवे और डीएनडी फ्लाईओवर के माध्यम से क्रमशः जुड़ा हुआ है। बढ़ी हुई अंतर-राज्य सम्पर्क अपने पड़ोसी राज्यों से विविध श्रम पूल और बाजार तक आसान पहुंच को सक्षम बनाती है। कुशल कार्यबल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), दिल्ली जैसे प्रमुख शैक्षिक संस्थानों की उपस्थिति; जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU), और दिल्ली विश्वविद्यालय (DU), अन्य लोगों के बीच, कुशल कार्यबल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की है, जो आईटी उद्योग के विकास के लिए आवश्यक है। एक प्रमुख स्टार्टअप डेस्टिनेशन नैसकॉम के अनुसार, भारत दुनिया में तकनीकी स्टार्टअप का तीसरा सबसे बड़ा आधार है। वर्तमान में भारत में 4,100 से अधिक स्टार्टअप उद्यम हैं, और उद्योग के विशेषज्ञ बताते हैं कि 2020 तक स्टार्टअप्स की संख्या बढ़कर 11,500 होने की उम्मीद है। 2016 में भारतीय स्टार्टअप द्वारा उठाए गए कुल US $ 1.8 बिलियन में से आधे से अधिक का निवेश किया गया था। दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में। संबंधित सेवाएं व्यावसायिक-सेवा_आईबी-आइकॉन-2017 प्री-इनवेस्टमेंट, मार्केट एंट्री स्ट्रैटेजी दिल्ली एनसीआर एक पसंदीदा स्टार्टअप डेस्टिनेशन है क्योंकि यह विदेशी निवेशकों, सरकारी एजेंसियों, और शुरुआती चरणों के वित्तपोषण के लिए आसान पहुँच प्रदान करता है जो किसी भी नए उद्यम की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं। सरकार, शैक्षणिक संस्थानों और उद्यम पूंजीपतियों से जुड़े क्षेत्र में कई स्टार्टअप इन्क्यूबेटर और एक्सेलेरेटर हैं। वर्तमान में, यह भारत के लगभग 23 प्रतिशत स्टार्टअप्स का घर है, जिसमें ग्रोफर्स, पेटीएम और स्नैपडील शामिल हैं। आईटी में निवेश - दिल्ली राज्य प्रोत्साहन, संघीय नीति भारत सरकार और राज्य सरकारों ने भारत में आईटी उद्योग के विकास को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उनमें से कुछ नीचे दी गई तालिका में उल्लिखित हैं। आगे आने वाले समय को चुनौती देना तेजी से विकसित हो रही प्रौद्योगिकी, व्यापार और सेवा मॉडल, उपभोक्ता वरीयताओं को स्थानांतरित करना, और व्यापक आर्थिक अनिश्चितता, संगठन अक्सर इन चुनौतियों के अधिक विघटनकारी को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं। वर्तमान में, भारत का आईटी उद्योग इस तरह की कई चुनौतियों का सामना कर रहा है: वैश्विक आईटी उद्योग में स्वचालन, रोबोटाइजेशन और मशीन लर्निंग पर बदलाव: इसका मतलब है कि आईटी काम अब श्रम-गहन नहीं होगा, जिससे यह भारत जैसे श्रम अधिशेष बाजार के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। क्षेत्र आईटी में निवेश - दिल्ली राज्य प्रोत्साहन, संघीय नीति भारत सरकार और राज्य सरकारों ने भारत में आईटी उद्योग के विकास को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उनमें से कुछ नीचे दी गई तालिका में उल्लिखित हैं। आगे आने वाले समय को चुनौती देना तेजी से विकसित हो रही प्रौद्योगिकी, व्यापार और सेवा मॉडल, उपभोक्ता वरीयताओं को स्थानांतरित करना, और व्यापक आर्थिक अनिश्चितता, संगठन अक्सर इन चुनौतियों के अधिक विघटनकारी को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं। वर्तमान में, भारत का आईटी उद्योग इस तरह की कई चुनौतियों का सामना कर रहा है: वैश्विक आईटी उद्योग में स्वचालन, रोबोटाइजेशन और मशीन लर्निंग पर बदलाव: इसका मतलब है कि आईटी काम अब श्रम-गहन नहीं होगा, जिससे यह भारत जैसे श्रम अधिशेष बाजार के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। सोशल मीडिया, मोबिलिटी, डेटा एनालिटिक्स और क्लाउड कम्प्यूटिंग (SMAC) जैसे नए उभरते रुझानों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए इस क्षेत्र की आवश्यकता है। प्रमुख बाजारों में बढ़ता संरक्षणवाद: अमेरिका भारत के साफ्टवेयर निर्यात में 60 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है और अत्यधिक संरक्षणवादी कानूनों का मसौदा तैयार कर रहा है। चीन और फिलिपींस से बढ़ती प्रतिस्पर्धा: फिलीपींस अपनी उच्च China आवाज ’के साथ राजस्व और चीन, अपनी लागत और बुनियादी ढांचे के लाभों के साथ, भारत के आउटसोर्सिंग उद्योग के लिए मजबूत चुनौती साबित हो रहा है। आईटी-बीपीओ सेगमेंट में उच्च अट्रैक्शन रेट: नैसकॉम के अनुसार, बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) सेगमेंट में भारत में 25-40 प्रतिशत के बीच उच्च एट्रिशन रेट्स हैं। औसतन, एक भारतीय बीपीओ कर्मचारी 11 महीनों के लिए काम करता है, जबकि एक औसत यूके कॉल सेंटर कर्मचारी एक कंपनी में तीन साल तक रहता है। कौशल के नुकसान के अलावा, भर्ती और प्रशिक्षण की लागत भारतीय आईटी-बीपीओ फर्मों के लिए एक अतिरिक्त खर्च पेश करती है। दिल्ली एनसीआर - बढ़ती संभावनाएं लाजिमी हैं भारत में आईटी क्षेत्र के सामने आने वाली संरचनात्मक चुनौतियों के बावजूद, दिल्ली एनसीआर एक गतिशील और उच्च-कार्यशील पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करता है जो निवेशकों, सरकारी नीति निर्माताओं, कुशल पेशेवरों और उद्यमियों और स्टार्टअप इनक्यूबेटर्स और एक्सीलेटर को देखता है। ये सकारात्मक क्षेत्र अपने विस्तारित क्षेत्र और उत्कृष्ट कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे के साथ मिलकर भारत के शीर्ष आईटी हब बनने की दिशा में अपनी निरंतर वृद्धि सुनिश्चित करते हैं। सन्दर्भ श्रेणी:शहर श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:नोएडा ROVIN TYAGI
राज घाट
https://hi.wikipedia.org/wiki/राज_घाट
REDIRECT राजघाट समाधि परिसर
ग्रहण
https://hi.wikipedia.org/wiki/ग्रहण
thumb| 1999 के सूर्य ग्रहण के दौरान पूर्णता । सौर उभार के अंश (लाल रंग में) दिखाई दे रहे हैं। साथ-साथ कोरोना के अंश भी दिखाई दे रहे हैं ग्रहण एक खगोलीय घटना है जो तब होती है जब कोई खगोलीय पिण्ड या अंतरिक्ष यान अस्थायी रूप से किसी अन्य पिंड की छाया में आता है या उसके और दर्शक के बीच कोई अन्य पिंड आ जाता है । तीन आकाशीय पिंडों का यह एक सीध में आना युति वियुति रूप में जाना जाता है। युति वियुति के अलावा, ग्रहण शब्द का उपयोग तब भी किया जाता है जब कोई अंतरिक्ष यान एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाता है जहाँ वह दो खगोलीय पिंडों की सीध में इस प्रकार से ही आ जाए। ग्रहण पूर्ण होता है या आंशिक हो सकता है । ग्रहण शब्द का प्रयोग अक्सर सूर्य ग्रहण का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जब चंद्रमा की छाया पृथ्वी की सतह को पार करती है, या चंद्र ग्रहण, जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में चला जाता है। हालांकि, ग्रहण का अर्थ केवल पृथ्वी-चंद्रमा प्रणाली तक सीमित नहीं है : उदाहरण के लिए, एक अन्य ग्रह अपने चंद्रमाओं में से एक की छाया में जा रहा है, या किसी ग्रह का चंद्रमा अपने ग्रह की छाया से गुजर रहा है, या एक चंद्रमा दूसरे चंद्रमा की छाया से गुजर रहा है । एक द्वितारा प्रणाली भी ग्रहण उत्पन्न कर सकती है यदि उसके तारों की कक्षा का तल दर्शक की सीध में आता है । पृथ्वी-चंद्रमा प्रणाली अंगूठाकार|240x240पिक्सेल| प्रतीकात्मक आरेख में केंद्र में पृथ्वी के दिखाई गई है , सूर्य और चंद्रमा आकाशीय गोले पर प्रक्षेपित हैं, जिसमें चंद्रमा के दो चन्द्रपात दिखाई देते हैं , ये वे बिंदु है जहाँ सूर्य और चन्द्रमा के होने पर ग्रहण हो सकते हैं। सूर्य या चन्द्र ग्रहण तभी हो सकता है , जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा लगभग एक सीधी रेखा में हों । चूँकि चंद्रमा का कक्षा का तल पृथ्वी की कक्षा के तल से झुका हुआ है, इस लिए हर पूर्णिमा और अमावस्या को ग्रहण नहीं होते। ये दोनों कक्षाएँ जिन बिंदुओं पर मिलती हैं उन्हें चन्द्रपात कहते हैं। पृथ्वी के अपनी कक्षा में घूमने के प्रभाव को सूर्य के आभासी मार्ग द्वारा भी समझा जा सकता है , इसको सूर्यपथ या क्रांतिवृत्त कहते है। ग्रहण तभी हो सकता है जब सूर्य और चन्द्रमा चन्द्रपातों के निकट हों । ऐसा वर्ष में दो बार होता है । एक कैलेंडर वर्ष में चार से सात ग्रहण हो सकते हैं , एक ग्रहण वर्ष या ग्रहण युग में ग्रहणों की पुनरावृत्ति होती है। 1901 और 2100 के बीच में एक वर्ष में अधिकतम सात ग्रहण हैं: चार चंद्र (उपछाया ग्रहण) और तीन सूर्य ग्रहण: 1908, 2038 । चार सूर्य और तीन चंद्र ग्रहण: 1918, 1973, 2094। पांच सौर और दो चंद्र ग्रहण: 1934। उपछाया चंद्र ग्रहणों को छोड़कर, इसमें अधिकतम सात ग्रहण होते हैं: 1591, 1656, 1787, 1805, 1918, 1935, 1982 और 2094। सूर्यग्रहण   पाठ=|बाएँ|अंगूठाकार| 1 अगस्त 2008 को सूर्य ग्रहण की प्रगति , नोवोसिबिर्स्क, रूस से देखी गई। शॉट्स के बीच का समय तीन मिनट है। सूर्य ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी के दर्शक के लिए चंद्रमा सूर्य के सामने से गुजरता है। सूर्य ग्रहण का पूर्ण या आंशिक या वलयाकार होना घटना के दौरान चन्द्रपात के सापेक्ष सूर्य और चन्द्रमा की स्थिति, और पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी पर और इस पर भी निर्भर करता है कि दर्शक पृथ्वी पर कहाँ खडा है । अलग अलग स्थान से दर्शक को अलग अलग प्रकार के ग्रहण दिखाई दे सकते हैं। यदि सूर्य और चन्द्रमा बिलकुल सटीक चन्द्रपात पर हैं तो या तो पूर्ण सूर्य या वलयाकार सूर्य ग्रहण होंगे। चन्द्रमा के पृथ्वी के निकट होने पर पूर्ण और दूर होने पर वलयकार सूर्य ग्रहण होगा। चन्द्रमा में बहुत अधिक बदलाव नहीं होता इसलिए वलयकार सूर्य ग्रहण भी लगभग पूर्ण सूर्य ग्रहण जैसा ही दिखाई देता है , बस इसमें पूर्णता से समय हल्का का सूर्य का किनारा दिखाई देता है जिसे अग्नि कुण्डल ( रिंग ऑफ़ फायर) कहते है। पूर्ण सूर्य ग्रहण तब दिखाई देता है दर्शक चन्द्रमा की छाया के गर्भ अर्थात प्रच्छाया में हो । उपछाया से देख रहे दर्शकों को आंशिक सूर्य ग्रहण ही दिखाई देता है। कभी कभी सूर्य ग्रहण के समय पृथ्वी के किसी भी भाग पर प्रच्छाया नहीं पड़ती , उस समय कहीं से भी पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देता। अंगूठाकार| काले धब्बों के केंद्र चंद्रमा को दर्शा रहें है (पैमाने पर नहीं) ग्रहण परिमाण सूर्य के व्यास का वह अंश है जो चंद्रमा द्वारा ढका हुआ है। पूर्ण ग्रहण के लिए, यह मान हमेशा एक से अधिक या उसके बराबर होता है। आंशिक और पूर्ण दोनों ग्रहणों में ही ग्रहण परिमाण चंद्रमा के और सूर्य के कोणीय आकार का अनुपात है। सूर्य ग्रहण अपेक्षाकृत संक्षिप्त घटनाएँ हैं जिन्हें केवल अपेक्षाकृत संकीर्ण पथ के साथ पूर्णता में देखा जा सकता है। सबसे अनुकूल परिस्थितियों में, पूर्ण सूर्य ग्रहण 7 मिनट , 31 सेकंड तक रह सकता है और 250 किलोमीटर तक के ट्रैक के साथ देखा जा सकता है किमी चौड़ा। हालाँकि, वह क्षेत्र जहाँ आंशिक ग्रहण देखा जा सकता है, बहुत बड़ा है। चंद्रमा की छाया का केंद्र पूर्व की ओर 1,700  किमी/घंटा की दर से आगे बढ़ेगा, जब तक कि यह पृथ्वी की सतह से दूर नहीं निकल जाता। दाएँ|अंगूठाकार|300x300पिक्सेल| कुल सूर्य ग्रहण की ज्यामिति (पैमाने पर नहीं) सूर्य ग्रहण के दौरान, चंद्रमा कभी-कभी सूर्य को पूरी तरह से ढक सकता है क्योंकि इसका आकार पृथ्वी से देखने पर सूर्य के आकार के लगभग समान होता है। जब पृथ्वी की सतह के अलावा अंतरिक्ष में अन्य बिंदुओं पर देखा जाता है, तो सूर्य को चंद्रमा के अलावा अन्य पिंडों द्वारा ग्रहण किया जा सकता है। दो उदाहरणों में एक बार अपोलो 12 के चालक दल ने 1969 में सूर्य को ग्रहण करते हुए पृथ्वी को देखा और जब कैसिनी शोध यान ने 2006 में शनि को सूर्य ग्रहण करने के लिए देखा। पाठ=|बाएँ|अंगूठाकार|250x250पिक्सेल| चंद्र ग्रहण का दाएं से बाएं ओर बढ़ना। पहली दो छवियों के साथ पूर्णता दिखाई गई है। बारीकियाँ दिखाई दें इसलिए ये फोटो लेते समय लंबे समय तक एक्सपोजर आवश्यकता होती है। चंद्रग्रहण चंद्र ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है। यह केवल पूर्णिमा के दौरान होता है, जब चंद्रमा सूर्य से पृथ्वी के सबसे दूर होता है। सूर्य ग्रहण के विपरीत, चंद्रमा का ग्रहण लगभग पूरे गोलार्ध से देखा जा सकता है। इस कारण से किसी स्थान से चंद्र ग्रहण दिखाई देना अधिक आम बात है। एक चंद्र ग्रहण लंबे समय तक चलता है, पूरा होने में कई घंटे लगते हैं, पूर्णता के साथ आमतौर पर लगभग 30 मिनट से लेकर एक घंटे तक भी औसत होता है। चंद्र ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं: उपछाया ग्रहण , जब चंद्रमा केवल पृथ्वी के उपछाया को पार करता है; आंशिक ग्रहण , जब चंद्रमा आंशिक रूप से पृथ्वी की छाया की प्रच्छाया (छाया का गर्भ या केंद्र ) में आ जाता है ; और पूर्ण ग्रहण , जब चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की छाया की प्रच्छाया में आ जाता है। पूर्ण चंद्र ग्रहण तीनों चरणों से होकर गुजरता है। हालांकि, पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान भी, चंद्रमा पूरी तरह से प्रकाशहीन नहीं होता है। पृथ्वी के वायुमंडल के माध्यम से अपवर्तित सूर्य का प्रकाश प्रच्छाया में प्रवेश करता है और एक फीकी रोशनी प्रदान करता है। सूर्यास्त के समय की तरह ही , वायुमंडल कम तरंग दैर्ध्य के प्रकाश को का प्रकीर्णन अधिक करता है, इसलिए शेष बचे अपवर्तित प्रकाश से चंद्रमा में एक लाल आभा होती है, पश्चिमी समाज के प्राचीन वर्णनों में 'ब्लड मून' वाक्यांश के प्रयोग अक्सर ऐसे ही चाँद के विषय में है। Ancient Timekeepers, अन्य ग्रह और बौने ग्रह दैत्याकार गैसीय ग्रह   दाएँ|अंगूठाकार| हबल द्वारा ली गई बृहस्पति और उसके चंद्रमा Io की एक तस्वीर। काला धब्बा Io की छाया है। दाएँ|अंगूठाकार|250x250पिक्सेल| कैसिनी-ह्यूजेंस अंतरिक्ष जांच से देखा गया शनि सूर्य को ग्रस रहा है गैस के विशाल ग्रहों के कई चंद्रमा हैं और इस प्रकार अक्सर ग्रहण प्रदर्शित होते हैं। सबसे उल्लेखनीय बृहस्पति है, जिसमें चार बड़े चंद्रमा हैं और इनका अक्षीय झुकाव कम है , जिससे ग्रहण अधिक बार बनते हैं जब भी ये पिंड बड़े ग्रह की छाया से गुजरते हैं तभी ग्रहण होता है । पारगमन भी इतनी ही आवृत्ति के साथ होते हैं। बड़े चंद्रमाओं को बृहस्पति के बादलों पर गोलाकार छाया डालते हुए देखना आम बात है। प्रकार सूर्य - चंद्रमा - पृथ्वी: सूर्य ग्रहण | वलयाकार ग्रहण | संकर ग्रहण | आंशिक ग्रहण सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा: चंद्र ग्रहण | उपच्छाया ग्रहण | आंशिक चंद्र ग्रहण | केंद्रीय चंद्र ग्रहण अन्य प्रकार: बृहस्पति पर सूर्य ग्रहण | शनि पर सूर्य ग्रहण | यूरेनस पर सूर्य ग्रहण | नेपच्यून पर सूर्य ग्रहण | प्लूटो पर सूर्य ग्रहण संदर्भ   श्रेणी:पृथ्वी परिघटनाएँ श्रेणी:खगोलीय घटनाएँ श्रेणी:ज्योतिष पक्ष श्रेणी:ग्रहण श्रेणी:Pages with unreviewed translations
लिस्बन
https://hi.wikipedia.org/wiki/लिस्बन
लिस्बन युरोप में पुर्तगाल देश की राजधानी है। श्रेणी:विश्व के प्रमुख नगर श्रेणी:यूरोपीय नगर श्रेणी:यूरोप में राजधानियाँ
भोजपुरी भाषा
https://hi.wikipedia.org/wiki/भोजपुरी_भाषा
भोजपुरी एक पूर्वी हिंद-आर्य भाषा है जो भोजपुर-पूर्वांचल क्षेत्र में बोली जाती है। यह मुख्य रूप से पश्चिमी बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के उत्तर-पूर्वी भाग और नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाती है। भोजपुरी एक स्वतंत्र भाषा है जिसकी उत्पत्ती भूमिहारो के शासन काल में मगधी प्राकृत से हुई है। बंगाली, ओड़िया, असमिया, मैथिली, मगही, आदि भोजपुरी की बहन भाषाएँ हैं। नेपाल, फिजी और मॉरिशस में भोजपुरी को संविधानिक मान्यता प्राप्त है। भारत के झारखंड राज्य में भोजपुरी दूसरी राजकीय भाषा है। भोजपुरी जानने-समझने वालों का विस्तार विश्व के सभी महाद्वीपों पर है जिसका कारण ब्रिटिश राज के दौरान उत्तर और पूर्वी भारत से अंग्रेजों द्वारा ले जाये गये मजदूर हैं जिनके वंशज अब जहाँ उनके पूर्वज गये थे वहीं बस गये हैं मेरा नाम हर्ष है । इनमे सूरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, फिजी आदि देश प्रमुख है। भारत के जनगणना (२०११) आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग ६ करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं। पूरे विश्व में भोजपुरी जानने वालों की संख्या लगभग २० करोड़ है. वक्ताओं के संख्या के आंकड़ों में ऐसे अंतर का संभावित कारण ये हो सकता है कि जनगणना के समय लोगों द्वारा भोजपुरी को अपनी मातृ भाषा नहीं बताई जाती है। भोजपुरी प्राचीन समय में कैथी लिपि मे लिखी जाती थी।भोजपुरी के विकास के लिए तमाम लेखक/कवि अपने लेखनी से योगदान दे रहे हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और नेपाल के तमाम कवि अपनी रचना से भोजपुरी साहित्य को मजबूत कर रहे हैं। यह भाषा पुरानी संस्कृति को जीवंत बनाती है। और परम्परा से आगे बढ़ रही है। भौगोलिक वर्गीकरण डॉ॰ ग्रियर्सन ने भारतीय भाषाओं को अन्तरंग ओर बहिरंग इन दो श्रेणियों में विभक्त किया है जिसमें बहिरंग के अन्तर्गत उन्होंने तीन प्रधान शाखाएँ स्वीकार की हैं - (1) उत्तर पश्चिमी शाखा (2) दक्षिणी शाखा और (3) पूर्वी शाखा। इस अन्तिम शाखा के अन्तर्गत भोजपुरी, उड़िया, असमी, बँग्ला, मैथिली और मगही भाषाएँ आती हैं। क्षेत्रविस्तार और भाषाभाषियों की संख्या के आधार पर भोजपुरी अपनी बहनों मैथिली और मगही में सबसे बड़ी है। नामकरण भोजपुरी भाषा का नामकरण बिहार राज्य के आरा (शाहाबाद) जिले में स्थित भोजपुर नामक गाँव के नाम पर हुआ है। पूर्ववर्ती आरा जिले के बक्सर सब-डिविजन (अब बक्सर अलग जिला है) में भोजपुर नाम का एक बड़ा परगना है जिसमें "नवका भोजपुर" और "पुरनका भोजपुर" दो गाँव हैं। मध्य काल में इस स्थान को मध्य प्रदेश के उज्जैन से आए भोजवंशी परमार राजाओं ने बसाया था। उन्होंने अपनी इस राजधानी को अपने पूर्वज राजा भोज के नाम पर भोजपुर रखा था। इसी कारण इसके पास बोली जाने वाली भाषा का नाम "भोजपुरी" पड़ गया। भोजपुरी भाषा का इतिहास 7वीं सदी से शुरू होता है | संत कबीर दास (1297) का जन्मदिवस भोजपुरी दिवस के रूप में भारत में स्वीकार किया गया है और विश्व भोजपुरी दिवस के रूप में मनाया जाता है। क्षेत्रविस्तार भोजपुरी भाषा प्रधानतया पश्चिमी बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा उत्तरी झारखण्ड के क्षेत्रों में बोली जाती है। इन क्षेत्रों के अलावा भोजपुरी विदेशों में भी बोली जाती है। भोजपुरी भाषा फिजी और नेपाल की संवैधानिक भाषाओं में से एक है। इसे मॉरीशस, फिजी, गयाना, सूरीनाम, सिंगापुर, उत्तर अमरीका और लैटिन अमेरिका में भी बोला जाता है। मुख्यरुप से भोजपुरी बोले जाने वाले जिले- बिहार : बक्सर जिला, सारण जिला, सिवान, गोपालगंज जिला, पूर्वी चम्पारण जिला, पश्चिम चम्पारण जिला, वैशाली जिला, भोजपुर जिला, रोहतास जिला, बक्सर जिला, भभुआ जिला उत्तर प्रदेश : बलिया जिला, वाराणसी जिला,चन्दौली जिला, गोरखपुर जिला, महाराजगंज जिला, गाजीपुर जिला, मिर्जापुर जिला, मऊ जिला, जौनपुर जिला, बस्ती जिला, संत कबीर नगर जिला, सिद्धार्थ नगर,आजमगढ़ जिला झारखण्ड : पलामु जिला, गढ़वा जिला, नेपाल : रौतहट जिला, बारा जिला, बीरगंज, चितवन जिला, नवलपरासी जिला, रुपनदेही जिला, कपिलवस्तु जिला, पर्सा जिला गयाना : जार्जटाउन फिजी : सुवा भोजपुरी भाषा की प्रधान बोलियाँ (1) आदर्श भोजपुरी, (2) पश्चिमी भोजपुरी आदर्श भोजपुरी जिसे डॉ॰ ग्रियर्सन ने स्टैंडर्ड भोजपुरी कहा है वह प्रधानतया बिहार राज्य के आरा जिला और उत्तर प्रदेश के देवरिया, बलिया, गाजीपुर जिले के पूर्वी भाग और घाघरा (सरयू) एवं गंडक के दोआब में बोली जाती है। यह एक लंबें भूभाग में फैली हुई है। इसमें अनेक स्थानीय विशेताएँ पाई जाती है। जहाँ शाहाबाद, बलिया और गाजीपुर आदि दक्षिणी जिलों में "ड़" का प्रयोग किया जाता है वहाँ उत्तरी जिलों में "ट" का प्रयोग होता है। इस प्रकार उत्तरी आदर्श भोजपुरी में जहाँ "बाटे" का प्रयोग किया जाता है वहाँ दक्षिणी आदर्श भोजपुरी में "बाड़े" प्रयुक्त होता है। गोरखपुर की भोजपुरी में "मोहन घर में बाटें" कहते परंतु बलिया में "मोहन घर में बाड़ें" बोला जाता है। पूर्वी गोरखपुर की भाषा को 'गोरखपुरी' कहा जाता है परंतु पश्चिमी गोरखपुर और बस्ती जिले की भाषा को "सरवरिया" नाम दिया गया है। "सरवरिया" शब्द "सरुआर" से निकला हुआ है जो "सरयूपार" का अपभ्रंश रूप है। "सरवरिया" और गोरखपुरी के शब्दों - विशेषत: संज्ञा शब्दों- के प्रयोग में भिन्नता पाई जाती है। बलिया (उत्तर प्रदेश) और सारन (बिहार) इन दोनों जिलों में 'आदर्श भोजपुरी' बोली जाती है। परंतु कुछ शब्दों के उच्चारण में थोड़ा अन्तर है। सारन के लोग "ड" का उच्चारण "र" करते हैं। जहाँ बलिया निवासी "घोड़ागाड़ी आवत बा" कहता है, वहाँ छपरा या सारन का निवासी "घोरा गारी आवत बा" बोलता है। आदर्श भोजपुरी का नितांत निखरा रूप बलिया, रोहतास, बक्सर तथा भोजपुर जिले में बोला जाता है। पश्चिमी भोजपुरी जौनपुर, आजमगढ़, बनारस, गाजीपुर के पश्चिमी भाग और मिर्जापुर में बोली जाती है। आदर्श भोजपुरी और पश्चिमी भोजपुरी में बहुत अधिक अन्तर है। पश्चिमी भोजपुरी में आदर सूचक के लिये "तुँह" का प्रयोग दीख पड़ता है परंतु आदर्श भोजपुरी में इसके लिये "रउरा" प्रयुक्त होता है। संप्रदान कारक का परसर्ग (प्रत्यय) इन दोनों बोलियों में भिन्न-भिन्न पाया जाता है। आदर्श भोजपुरी में संप्रदान कारक का प्रत्यय "लागि" है परंतु वाराणसी की पश्चिमी भोजपुरी में इसके लिये "बदे" या "वास्ते" का प्रयोग होता है। उदाहरणार्थ : पश्चिमी भोजपुरी - हम खरमिटाव कइली हा रहिला चबाय के। भेंवल धरल बा दूध में खाजा तोरे बदे।। जानीला आजकल में झनाझन चली रजा। लाठी, लोहाँगी, खंजर और बिछुआ तोरे बदे।। (तेग अली-बदमाश दपर्ण) मधेसी मधेसी शब्द संस्कृत के "मध्य प्रदेश" से निकला है जिसका अर्थ है बीच का देश। चूँकि यह बोली तिरहुत की मैथिली बोली और गोरखपुर की भोजपुरी के बीचवाले स्थानों में बोली जाती है, अत: इसका नाम मधेसी (अर्थात वह बोली जो इन दोनो के बीच में बोली जाये) पड़ गया है। यह बोली चंपारण जिले में बोली जाती और प्राय: "कैथी लिपि" में लिखी जाती है। "थारू" लोग नेपाल की तराई में रहते हैं। ये बहराइच से चंपारण जिले तक पाए जाते हैं और भोजपुरी बोलते हैं। यह विशेष उल्लेखनीय बात है कि गोंडा और बहराइच जिले के थारू लोग भोजपुरी बोलते हैं जबकि वहाँ की भाषा पूर्वी हिन्दी (अवधी) है। हॉग्सन ने इस भाषा के ऊपर प्रचुर प्रकाश डाला है। भोजपुरी जन एवं साहित्य भोजपुरी बहुत ही सुंदर, सरस, तथा मधुर भाषा है। भोजपुरी भाषाभाषियों की संख्या भारत की समृद्ध भाषाओं- बँगला, गुजराती और मराठी आदि बोलनेवालों से कम नहीं है। इन दृष्टियों से इस भाषा का महत्व बहुत अधिक है और इसका भविष्य उज्जवल तथा गौरवशाली प्रतीत होता है। भोजपुरी में कहानियो खूब लिखाइल बाl २०२३ में अंकुश्री के भोजपुरी कहानी संकलन 'कनफूल' आइल हl अंकुश्री १९७२ से भोजपुरी कहानी लिख रहल बाड़नl भोजपुरी भाषा में निबद्ध साहित्य यद्यपि अभी प्रचुर परिमाण में नहीं है तथापि अनेक सरस कवि और अधिकारी लेखक इसके भंडार को भरने में संलग्न हैं। भोजपुरिया-भोजपुरी प्रदेश के निवासी लोगों को अपनी भाषा से बड़ा प्रेम है। अनेक पत्रपत्रिकाएँ तथा ग्रन्थ इसमें प्रकाशित हो रहे हैं तथा भोजपुरी सांस्कृतिक सम्मेलन, वाराणसी इसके प्रचार में संलग्न है। विश्व भोजपुरी सम्मेलन समय-समय पर आंदोलनात्म, रचनात्मक और बैद्धिक तीन स्तरों पर भोजपुरी भाषा, साहित्य और संस्कृति के विकास में निरंतर जुटा हुआ है। विश्व भोजपुरी सम्मेलन से ग्रन्थ के साथ-साथ त्रैमासिक 'समकालीन भोजपुरी साहित्य' पत्रिका का प्रकाशन हो रहे हैं। विश्व भोजपुरी सम्मेलन, भारत ही नहीं ग्लोबल स्तर पर भी भोजपुरी भाषा और साहित्य को सहेजने और इसके प्रचार-प्रसार में लगा हुआ है। देवरिया (यूपी), दिल्ली, मुंबई, कोलकभोजपुता, पोर्ट लुईस (मारीशस), सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और अमेरिका में इसकी शाखाएं खोली जा चुकी हैं। भोजपुरी साहित्य में भिखारी ठाकुर योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्हें भोजपुरी का शेक्सपीयर भी कहा जाता है। उनके लिखे हुए नाटक तत्कालीन स्त्रियों के मार्मिक दृश्य को दर्शाते हैं, अपने लेखों के द्वारा उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया है। उनके प्रमुख ग्रंथ है:-बिदेशिया,बेटीबेचवा,भाई बिरोध,कलजुग प्रेम,विधवा बिलाप इतियादी। महेंदर मिसिर भी भोजपुरी के एक मूर्धन्य साहित्यकार हैं. एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ महेंदर मिसिर भोजपुरी के महान कवि भी थे. उन्हें पुरबी सम्राट के नाम से भी जाना जाता है. भोजपुरी में मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणा को विश्व के १५४ भाषाओं में प्रकाशित किया है जिसमें भोजपुरी तथा सूरीनामी हिन्दुस्तानी भी उपस्थित है, सूरीनामी हिन्दुस्तानी भोजपुरी के तरह हीं बोली जाती है केवल इसे रोमन लिपि में लिखा जाता है। मानवाधिकारों के घोषणा का प्रथम अनुच्छेद भोजपुरी, हिंदी, सूरीनामी तथा अंग्रेजी में निम्नलिखित है - अनुच्छेद १: सबहि लोकानि आजादे जन्मेला आउर ओखिनियो के बराबर सम्मान आओर अधिकार प्राप्त हवे। ओखिनियो के पास समझ-बूझ आउर अंत:करण के आवाज होखता आओर हुनको के दोसरा के साथ भाईचारे के बेवहार करे के होखला। अनुच्छेद १: सभी मनुष्यों को गौरव और अधिकारों के मामले में जन्मजात स्वतन्त्रता और समानता प्राप्त हैं। उन्हें बुद्धि और अन्तरात्मा की देन प्राप्त है और परस्पर उन्हें भाईचारे के भाव से बर्ताव करना चाहिये। Aadhiaai 1: Sab djanne aadjádi aur barabar paidaa bhailèn, iddjat aur hak mê. Ohi djanne ke lage sab ke samadj-boedj aur hierdaai hai aur doesare se sab soemmat sè, djaane-maane ke chaahin. Article 1: All human beings are born free and equal in dignity and rights. They are endowed with reason and conscience and should act towards one another in a spirit of brotherhood. संस्कृत से ही निकली भोजपुरी आचार्य हवलदार त्रिपाठी "सह्मदय" लम्बे समय तक अन्वेषण कार्य करके इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि भोजपुरी संस्कृत से ही निकली है। उनके कोश-ग्रन्थ ('व्युत्पत्ति मूलक भोजपुरी की धातु और क्रियाएं') में मात्र 761 धातुओं की खोज उन्होंने की है, जिनका विस्तार "ढ़" वर्ण तक हुआ है। इस प्रबन्ध के अध्ययन से ज्ञात होता है कि 761 पदों की मूल धातु की वैज्ञानिक निर्माण प्रक्रिया में पाणिनि सूत्र का अक्षरश: अनुपालन हुआ है। इस कोश-ग्रन्थ में वर्णित विषय पर एक नजर डालने से भोजपुरी तथा संस्कृत भाषा के मध्य समानता स्पष्ट परिलक्षित होती है। भोजपुरी-भाषा के धातुओं और क्रियाओं का वाक्य-प्रयोग विषय को और अधिक स्पष्ट कर देता है। प्रामाणिकता हेतु संस्कृत व्याकरण को भी साथ-साथ प्रस्तुत कर दिया गया है। इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि इसमें भोजपुरी-भाषा के धातुओं और क्रियाओं की व्युत्पत्ति को स्रोत संस्कृत-भाषा एवं उसके मानक व्याकरण से लिया गया है। इन्हें भी देखें भोजपुरी सिनेमा भोजपुरी क्षेत्र भोजपुर (बिहार) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भोजपुरी विकिपीडिया भोजपुरिया भोजपुरी शब्दकोश भोजपुरी-हिन्दी-अंग्रेज़ी शब्दकोश श्रेणी:हिन्दी की बोलियाँ श्रेणी:झारखंड की भाषाएँ श्रेणी:बिहार की भाषाएँ श्रेणी:उत्तर प्रदेश की भाषाएँ श्रेणी:भोजपुरी भाषा श्रेणी:हिन्द-आर्य भाषाएँ
आशा भोसले
https://hi.wikipedia.org/wiki/आशा_भोसले
अंगूठाकार|आशा भोसले आशा गणपतराव भोसले (जन्म: 8 सितम्बर 1933) हिन्दी फ़िल्मों की मशहूर पार्श्वगायिका हैं। लता मंगेशकर की छोटी बहन और दिनानाथ मंगेशकर की पुत्री आशा ने फिल्मी और गैर फिल्मी लगभग 16 हजार गाने गाये हैं और इनकी आवाज़ के प्रशंसक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। हिंदी के अलावा उन्होंने मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रूसी भाषा के भी अनेक गीत गाए हैं। आशा भोंसले ने अपना पहला गीत वर्ष 1948 में सावन आया फिल्म चुनरिया में गाया। आशा की विशेषता है कि इन्होंने शास्त्रीय संगीत, गजल और पॉप संगीत हर क्षेत्र में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है और एक समान सफलता पाई है। उन्होने आर॰ डी॰ बर्मन से दूसरा विवाह किया था। जीवनी आशा भोसले का जन्म 08 सितम्बर 1933 को महाराष्ट्र के ‘सांगली’ जिले एक मराठी परिवार में हुआ। इनके पिता दिनानाथ मंगेशकर प्रसिद्ध गायक एवं नायक थे। जिन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा काफी छोटी उम्र में ही आशा जी को दी। आशा जी जब केवल 9 वर्ष की थीं, इनके पिता का स्वर्गवास हो गया । पिता के मरणोपरांत, इनका परिवार पुणे से कोल्हापुर और उसके बाद मुंबई आ गया। परिवार की सहायता के लिए आशा और इनकी बड़ी बहन लता मंगेशकर ने गाना और फिल्मों में अभिनय शुरू कर दिया। 1943 में इन्होंने अपनी पहली मराठी फिल्म ‘माझा बाळ’ में गीत गाया। यह गीत ‘चला चला नव बाळा...’ दत्ता डावजेकर के द्वारा संगीतबद्ध किया गया था। 1948 में हिन्दी फिल्म ‘चुनरिया’ का गीत ‘सावन आया।..’ हंसराज बहल के लिए गाया। दक्षिण एशिया की प्रसिद्ध गायिका के रूप में आशा जी ने गीत गाए। फिल्म संगीत, पॉप, गज़ल, भजन, भारतीय शास्त्रीय संगीत, क्षेत्रीय गीत, कव्वाली, रवीन्द्र संगीत और नजरूल गीत इनके गीतों में सम्मिलित है। इन्होंने 14 से ज्यादा भाषाओं में गीत गाए यथा– मराठी, आसामी, हिन्दी, उर्दू, तेलगू, मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, तमिल, अंग्रेजी, रशियन, जाइच, नेपाली, मलय और मलयालम। 12000 से अधिक गीतों को आशा जी ने आवाज दी।महान गायक किशोर कुमार आशा जी के सबसे मनपसंद गायक थे। विवाह एवं व्यक्तिगत जीवन 16 वर्ष की उम्र में अपने 31 वर्षीय प्रेमी ‘गणपतराव भोसले’ (1916-1966) के साथ घर से पलायन कर पारिवारिक इच्छा के विरूद्ध विवाह किया। इस वजह से उनके रीश्तो में दरार आई । गणपत राव लता जी के निजी सचिव थे। यह विवाह असफल रहा। पति एवं उनके भाइयों के बुरे वर्ताव के कारण इस विवाह का दु:खान्त हो गया। 1960 के आसपास विवाह विच्छेद के बाद आशा जी अपनी माँ के घर दो बच्चों और तीसरे गर्भस्थ शिशु (आनन्द) के साथ लौट आईं। 1980 ई. में आशा जी ने सचिन देव बर्मण के बेटे ‘राहुल देव बर्मन’(पंचम) से विवाह किया। यह विवाह आशा जी ने राहुल देव वर्मन के अंतिम सांसो तक सफलतापूर्वक निभाया। आशा जी का घर दक्षिण मुम्बई, पेडर रोड क्षेत्र में प्रभुकुंज अपार्टमेंट में स्थित है। इनके तीन बच्चे हैं। साथ ही पाँच पौत्र भी है। इनका सबसे बड़ा लड़का हेमंत भोसले है। हेमंत ने पायलट के रूप में अधिकांश समय बिताया। आशाजी की बेटी जो हेमंत से छोटी है “वर्षा”। वर्षा ने ‘द सनडे ऑबजरवर’ और ‘रेडिफ’ के लिए कॉलम लिखने का काम किया। आशाजी का सबसे छोटा पुत्र आनन्द भोसले है। आनन्द ने बिजनेस और फिल्म निर्देशन की पढाई की। आनन्द भोसले ही आशा के करियर की इन दिनों देखभाल कर रहे हैं। हेमंत भोसले के सबसे बड़े पुत्र चैतन्या (चिंटु) “बॉय बैण्ड” के सफल सदस्य के रूप में विश्व संगीत से जुड़े हुए है। अनिका भोसले (हेमंत भोसले की पुत्री) सफल फोटोग्राफर के रूप में कार्य कर रही है। आशा जी की बहनें लता मंगेसकर और उषा मंगेसकर गायिका है। इनकी अन्य दो सहोदर बहन मीना मंगेसकर और भाई हृदयनाथ मंगेसकर संगीत निर्देशक है। आशाजी गायिका के अलावा बहुत अच्छी कुक (रसोईया) है। कुकिंग इनका पसंदीदा शौक है। बॉलीवुड के बहुत सारे लोग आशा जी के हाथों से बनें ‘कढाई गोस्त’ एवं ‘बिरयानी’ के लिए अनुरोध करते हैं। आशा जी भी इनकार नहीं करती है। बॉलीवुड के ‘कपुर’ खानदान में आशा जी द्वारा बनाए गये ‘पाया करी’, ‘गोझन फिश करी’ और ‘दाल’ काफी प्रसिद्ध है। एक बार जब ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ के एक साक्षात्कार में पुछा गया कि यदि आप गायिका न होती तो क्या करती? आशा जी ने जबाब दिया कि मैं एक अच्छी रसोईया (कुक) बनती। आशा जी एक सफल रेस्तरॉ संचालिका है। इनके रेस्तरॉ दुबई और कुवैत में आशा नाम से प्रसिद्ध है।‘वाफी ग्रुप’ द्वारा संचालित रेस्तरॉ में आशा जी के 20% भागीदारी है। वाफी सीटी दुबई और दो रेस्तरॉ कुवैत में पारम्परिक उत्तर भारतीय व्यंजन के लिए प्रसिद्ध है। आशा जी ने ‘कैफ्स’ को स्वंय 6 महीनो का ट्रेंनिग दिया है। दिसम्बर 2004 ‘मेनु मैगजीन’ के रिपोर्ट के अनुसार ‘रसेल स्कॉट’ जो ‘हैरी रामसदेन’ के प्रमुख है आने वाले पाँच सालो में आशा जी के ब्रैण्ड के अंतर्गत 40 रेस्तरॉ पूरे यू॰के॰ के अन्दर खोलने की घोषणा की है। इसी क्रम में आशा जी की की रेस्तरॉ ‘बरमिंगम’ यू॰के॰ में खोला गया है। आशा जी की फैशन और पहनावे में सफेद साड़ी चमकदार किनारो वाली, गले में मोतियों के हार और हीरा प्रसिद्ध है। आशा जी एक अच्छी ‘मिमिक्री’ अदाकारा भी है। गायिकी के क्षेत्र में संघर्ष एक समय जब प्रसिद्ध गायिका यथा- गीता दत्त, शमशाद बेगम और लता मंगेशकर का जमाना था। चारों ओर इन्ही का प्रभुत्व था। आशा जी गाना चाहती थी पर इन्हे गाने का मौका तक नहीं दिया जाता था। आशा जी सिर्फ दुसरे दर्जे की फिल्मों के लिए ही गा पाती थी। 1950 के दशक में बॉलीवुड के अन्य गायिकाओं की तुलना में आशा जी ने कम बजट की ‘बी’ और ‘सी’ ग्रेड फिल्मों के लिए बहुत से गीत गाए। इनके गीतो के संगीतकार ए. आर. कुरैशी (अल्ला रख्खा खान), सज्जाद हुसैन और गुलाम मोहम्मद थे। जो काफी असफल रहे। 1952 ई. में दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म ‘संगदिल’ जिसके संगीतकार सज्जाद हुसैन थे, ने प्रसिद्धि दिलाई। परिणाम स्वरूप बिमल राय ने एक मौका आशा जी को अपनी फिल्म ‘परिणीता’ (1953) के लिए दिया। राज कपूर ने गीत ‘नन्हे मुन्ने बच्चे।...’ के लिए मोहम्मद रफी के साथ फिल्म ‘बुट पॉलिश्’(1954) के लिए अनुबंधित किया जिसने काफी प्रसिद्धि आशा जी को दिलाई। ओ.पी. नैयर ने आशा जी को बहुत बड़ा अवसर ‘सी. आई. डी.’(1956) के गीत गाने के लिए दिया। इस प्रकार 1957 की फिल्म ‘नया दौर’ बी आर. चोपड़ा ने नैयर साहब के संगीतकार रूप में आशा जी को बी. आर. चोपड़ा से पहली सफलता प्राप्त हुई। इस साझेदारी ने कई प्रसिद्ध गीतो को जनमानस के बीच लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। फिर सचिन देव बर्मन और रवि जैसे संगीतकारो ने भी आशा जी को मौका दिया। 1966 ई. में संगीतकार आर. डी. वर्मन की सफलतम फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ में आशा जी ने आर. डी. वर्मन के साथ काफी प्रसिद्धि बटोरी। 1960 से 1970 के बीच प्रसिद्ध डॉसर हेलन की आवाज बनी। ऐसा कहा जाता है कि जब भी आशा जी गाती थी तो हेलन रिकाडिंग के समय मौजुद रहती थी ताकि गाने को अच्छी तरह समझ सके और अच्छी तरह नृत्य उस गाने पर कर सके। आशा जी और हेलन के प्रसिद्ध गीतों में ‘पिया तु अब तो आजा...’(कारवॉ), ‘ ओ हसीना जुल्फो वाली...’(तीसरी मंजिल) और ‘ये मेरा दिल...(डॉन) शामिल है। 1981 में उमराव जान और इजाजत (1987) में पारम्परिक गज़ल गाकर आशा जी ने आलोचकों को करारा जबाब दिया। अपनी गायन प्रतिभा का लोहा मनवाया। इन्ही दिनो इन्हे उपर्युक्त दोनों फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ‘बेस्ट फिमेल प्लेबैक सिंगर’ मिला। आशा जी 1990 तक लगातार गाती रही। 1995 की हिट फिल्म ‘रंगीला’ से एक बार पुन: अपनी दुसरी पारी का आरंभ किया। 2005 में 72 वर्षीय आशा जी ने तमिल फिल्म ‘चन्द्रमुखी’ और पॉप संगीत ‘लक्की लिप्स...’ सलमान खान अभिनित के लिए गाया जो चार्ट बस्टर में प्रसिद्ध रहा। अक्टूबर 2004,’द वेरी बेस्ट ऑफ आशा भोसले’, ‘द क्वीन ऑफ बॉलीवुड’ आशा जी के द्वारा गाए गीतो का एलबम (1966-2003) रिलिज किया गया। फिल्म जो मिल का पत्थर साबित हुई आशा भोसले जी के गायिकी के कैरियर में चार फिल्मे मिल का पत्थर, साबित हुई— नया दौर (1957), तीसरी मंजिल (1966), उमरॉव जान (1981) और रंगीला (1995)। नया दौर (1957):— आशा भोसले जी की पहली बड़ी सफल फिल्म बी. आर. चोपड़ा की ‘नया दौर’(1957) थी। मो. रफी के साथ गाए उनके गीत यथा ‘माँग के हाथ तुम्हारा....’, ‘साथी हाथ बढ़ाना...’ और ‘उड़े जब जब जुल्फे तेरी...’ शाहिर लुधियानवी के द्वारा लिखित और ओ. पी. नैयर द्वरा संगीतबद्ध एक खास पहचान दी। आशा जी ने ओ.पी. नैयर के साथ पहले भी काम किया था पर यह पहली फिल्म थी जिसके सारे गीत आशा जी प्रमुख अभिनेत्री के लिए गाई थी। प्रोड्यूसर बी. आर. चोपडा ने नया दौर में उनकी प्रतिभा की पहचान कर आने वाली बाद की फिल्मों में पुन: मौका दिया। उनमे प्रमुख फिल्म— वक्त, गुमराह, हमराज, आदमी और इंसान और धुंध आदि है। तीसरी मंजिल (1966):- आशा भोसले ने राहुल देव वर्मन की ‘तीसरी मंजिल’(1966) से काफी प्रसिद्ध हुई। जब पहले उन्होने गाने की धुन सुनी तो गीत ‘आजा आजा...’ इस गीत को गाने से इनकार कर दिया था, जो वेस्टर्न डांस नम्बर पर आधारित थी। तब आर. डी. वर्मन ने संगीत को बदलने का प्रस्ताव आशा जी को दिया किंतु आशा जी ने यह चैलेंज स्वीकार करते हुए गीत गाए। 10 दिन के अभ्यास के बाद जब अंतिम तौर पर यह खास गीत आशा जी ने गाए तो खुशी के कायल आर. डी. वर्मन ने 100 रूपये के नोट आशा जी के हाथ में रख दिए। आजा आजा.... और इस फिल्म के अन्य गीत – ओ हसीना जुल्फो वाली... और ओ मेरे सोना रे.... ये सभी गीत रफी जी के साथ तहलका मचा दिया। शम्मी कपूर इस फिल्म के नायक ने एक बार कहा था “यदि में पास मो. रफी इस फिल्म के गीतो को गाने के लिए नहीं होते तो मै आशा भोसले को यह कार्य देता”। उमराव जान (1981):- रेखा अभिनित ‘उमराव जान’(1981) आशा जी ने गज़ल गाया यथा- दिल चीज क्या है।..., इन आँखों की मस्ती के..., ये क्या जगह है दोस्तों... और जुस्त जु जिसकी थी।..। इन गज़लों के संगीतकार खय्याम थे जिन्होने आशा जी से सफलतापूर्वक गज़लो को गाने के लिए स्वरों के उतार चढाव को समझाया। आशा जी स्वयं आश्चर्यचकित थी कि वह इन गज़लो को सफलतापूर्वक गाई है। इन गज़लों ने आशा जी को प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया और उनकी बहुमुखी प्रतिभा साबित हुई। रंगीला (1995):- सन 1995 में 62 वर्षीय आशा जी ने युवा अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर के लिए फिल्म रंगीला में गाई। इन्होंने फिर अपने चाहनेवालों को आश्चर्यचकित कर दिया। सुपर हिट गीत यथा- तन्हा तन्हा... और रंगीला रे... गीत ए. आर. रहमान के संगीत निर्देशन में गाई जो काफी प्रसिद्ध हुआ। बाद में कई अन्य गीतों को ए. आर. रहमान के निर्देशन में गाई। तन्हा तन्हा... गीत काफी प्रसिद्ध हुआ और आज भी लोग गुनगुनाते हैं। संगीत निर्देशको के साथ साझेदारी ओ.पी. नय्यर संगीतकार ओ.पी. नैयर की साझेदारी ने आशा भोसले जी को एक खास पहचान दिलाया। कई लोगों ने इनकी आपसी संबंध को प्रेम संबंध मान लिया। नैयर जी पहली बार 1952 में आशा जी से एक गीत छम क्षमा छम... के संगीत रिकार्डिग के समय मिलें। पहली बार इन्होंने फिल्म ‘माँगू’ (1954) के लिए आशा जी को बुलाया। फिर इन्होंने एक बहुत बड़ा मौका फिल्म सी.आई.डी. (1956) में आशा जी को दिया। इस प्रकार नया दौर (1957) की सफलता ने इन दोनों की प्रसिद्धी को बढ़ाया। 1959 के बाद भावानात्मक और व्यावसायिक तौर पर आशा जी नैयर जी के साथ जुड़ी रहीं। ओ.पी.नैयर और आशा भोसले की यादगार फिल्मे यथा- मधुबाला पर फिल्मांकित गीत ‘आईये मेहरबाँ...’ (हावड़ा ब्रिज-1958) और मुमताज पर फिल्मांकित गीत ‘ये है रेशमी जुल्फो का अंधेरा...(मेरे सनम-1965) आदि है। ओ.पी. नैयर ने कई हिट गीतों को आशा जी के साथ रिकार्ड किया यथा- नया दौर (1957), तुमसा नहीं देखा (1957), हावड़ा ब्रिज (1958), एक मुसाफिर एक हसीना (1962), कशमीर की कली (1964) आदि। इनकी साझेदारी की कुछ प्रसिद्ध गीत- आओ हुजुर तुमको...(किस्मत), जाईये आप कहाँ जाएगे...(मेरे सनम) आदि है। ओ.पी.नैयर की मो. रफी एवं आशा जी के साथ युगल गीत काफी प्रसिद्ध हुए। इनके द्वारा गाए कुछ प्रमुख युगल गीत ‘उडे जब जब जुल्फे तेरी...(नया दौर), मै प्यार का राही हूँ...(एक मुसाफिर एक हसीना), दीवाना हुआ बादल..., इशारो इशारो मे...(काश्मीर की कली) आदि। 5 अगस्त 1972 को दोनों में अलगाव हो गया। यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि किन कारणो से दोनों में अलगाव हुआ। खय्याम दूसरे संगीतकार जिन्होने आशा जी के प्रतिभा को पहचाना और इनकी साझेदारी में आशा जी ने इनकी पहली फिल्म बीबी (1948) के लिए गाई। 1950 में खय्याम ने कई अच्छे अनुबंध आशा जी के साथ किए यथा—फिल्म- दर्द, फिर सुबह होगी आदि। किंतु उन दोनों की साझेदारी की सबसे यादगार फिल्म- उमराव जान के गीत रहे। रवि:— संगीत निर्देशक रवि, आशा भोसले जी को अपनी पसंदीदा गायिका में एक मानते थे। आशा जी इनकी पहली फिल्म वचन (1955) में गीत गाई। चन्दा मामा दूर के.... गीत रातो रात भारतीय माँ के बीच प्रसिद्ध हो गया। जब अधिकांश संगीतकार आशा जी को बी-ग्रेड गीत गाने के लिए जानते थे उन दिनो रवि ने आशा जी से भजन गाने को कहा जिनमें ‘घराना’, ‘गृहस्थी’ ‘काजल’ और ‘फुल और पत्थर’ फिल्में प्रमुख है। रवि और आशा जी ने कई प्रसिद्ध गीतो का रिकार्ड किया जिनमे किशोर कुमार के साथ गाए उनके मजेदार गीत ‘सी ए टी..कैट माने बिल्ली...(दिल्ली का ठग) आदि है। रवि द्वारा संगीतबद्ध आशा जी के प्रसिद्ध भजन ‘तोरा मन दर्पण कहलाए...’(काजल) आदि है। इनकी साझेदारी में कई प्रसिद्ध फिल्मों के गीत रिकार्ड हुए यथा- वक्त, चौदहवी का चाँद, गुमराह, बहु-बेटी, चायना टाउन, आदमी और इंसान, धुंध, हमराज और काजल आदि है। चौदहवीं के चाँद में रवि गीता दत्त (प्रोड्यूसर गुरु दत्त की पत्नी) से गीत गवाना चाहते थे किंतु गुरु दत के जिद के कारण आशा जी ने गीत गाए जो काफी प्रसिद्ध हुए। सचिन देव बर्मन प्रसिद्ध संगीत निर्देशक सचिन देव वर्मन की पसंदीदा गायिका लता मंगेस्कर से 1957 से 1962 के बीच अच्छे संबंध नहीं थे। उन दिनो सचिन देव वर्मन ने आशा भोसले जी का उपयोग किया। इन दोनों की साझेदारी ने कई हिट गीत दिए यथा— फिल्म काला पानी, काला बाजार, इंसान जाग उठा, लाजवंति, सुजाता और तीन देविया (1965) आदि है। 1962 के बाद भी दोनों ने कई गीतों को रिकार्ड किया। मो. रफी और किशोर कुमार के साथ गाए युगल गीत आशा जी के काफी प्रसिद्ध रहे। अब के बरस... गीत बिमल राय की फिल्म बंदनी (1963) ने आशा जी को प्रमुख गायिका के रूप में स्थापित किया। अभिनेत्री तनुजा पर फिल्मांकित गीत रात अकेली है।..(ज्वेल थीफ,1967) काफी प्रसिद्ध हुआ। राहुल देव बर्मन आशा भोसले राहुल देव वर्मन जी से उस समय पहली बार मिली जब वह दो बच्चों की माँ थी और संगीतकार राहुल देव वर्मन (पंचम) की साझेदारी में फिल्म तीसरी मंजिल (1966) में पहली बार लोगों का ध्यान आकर्षित कर पाई। आशा जी ने आर. डी. वर्मन के साथ कैबरे, रॉक, डिस्को, गज़ल, भारतीय शास्त्रीय संगीत और भी बहुत गीत गाए। 1970 में आशा भोसले जी ने पंचम के साथ कई युवा गीत गाए यथा- पिया तू अब तो आ जा.....(कारवॉ-1971) हेलन पर फिल्मांकित, दम मारो दम...(हरे रामा हरे कृष्णा-1971), दुनिया में...(अपना देश-1972) चुरा लिया है तुमने...(यादों की बारात-1973) आदि है। इसके आलावा पंचम के संगीत निर्देशन में आशा जी ने किशोर कुमार के साथ कए प्रसिद्ध युगल गीत गाए यथा— जाने जाँ ढूंढ़ता फिर रहा। ..(जवानी दीवानी), भली भली-सी एक सूरत...(बुढा मिल गया) आदि। 1980 में पंचम और आशा जी कई प्रसिद्ध गीतो को रिकार्ड किया। फिल्म इजाजत (1987)- मेरा कुछ सामान..., खाली हाथ शाम आयी है।.., कतरा कतरा... आदि प्रसिद्ध प्रमुख प्रसिद्ध गीतो को रिकार्ड किया। ओ मारिया...(सागर) के गीतो को भी रिकार्ड किया। गुलजार की इजाजत को आर. डी. वर्मन के संगीत निर्देशन में आशा जी को राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बेस्ट सिंगर’ प्राप्त हुआ। आर. डी. वर्मन जी ने कई हिन्दी प्रसिद्ध गीतो को बंगाली भाषा में आशा जी के आवाज को रिकार्ड किया यथा— ‘मोहुए झुमेछे आज माऊ गो, चोखे चोखे कोथा बोले चोखे नामे बृष्टि (बंगाली रूपांतरण गीत जाने क्या बात है।..) बंसी सुने की घोरे टाका जाए, संध्या बेले तुमी आमी..., आज गुन गुन जे आमर (बंगाली रूपांतरण गीत प्यार दीवाना होता है) आदि। यह प्रसिद्ध साझेदारी विवाह में परिणीत हुई। पंचम जी के अंतिम सांसो तक यह साझेदारी चली। जय देव संगीत निर्देशक जयदेव, एस. डी. वर्मन के सहायक के तौर पर पहले काम करते थे बाद में इन्होंने स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशन करना शुरू किया। संगीतकार जयदेव ने आशा जी के साथ कई फिल्मों के गीत रिकार्ड किए, यथा- हम दोनों (1961), मुझे जीने दो (1963), दो बुँद पानी (1971) आदि। जयदेव और आशा जी ने फिल्मी गीतों के अलावा 8 गीतों का एक खास संग्रह जिनमे गज़ल एवं कुछ अन्य गीत शामिल थे को “एन अनफॉर्गेटेबल ट्रिट” के नाम से निकला। आशा जी, जयदेव की अच्छी मित्र मानी जाती थी। 1987 में जयदेव जी के मरणोपरांत आशा जी ने कम प्रसिद्ध गीत जो जयदेव के द्वारा संगीतबद्ध था,’सुरांजली’ नाम से निकाला। शंकर जयकिशन शंकर जयकिशन ने आशा जी के साथ कम काम किया, फिर भी कुछ हिट गीत रिकार्ड किए यथा— परदे में रहने दो। ..(शिखर—1968) इस गीत के लिए आशा जी को द्वितीय फिल्म फेयर अवार्ड मिला। आशा जी ने एक प्रसिद्ध गीत शंकर जयकिशन के लिए गाए जो किशोर कुमार के आवाज में ज्यादा प्रसिद्ध था यथा— जिन्दगी का सफर है सुहाना...(अंदाज)। जब राज कपुर का लता मंगेसकर के साथ बातचीत बंद था, तब आशा जी ने शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फिल्म मेरा नाम जोकर (1970) के गीत गाए। इलैयाराजा दक्षिण भारतीय संगीत निर्देशक इलैयाराजा 1980 के दौरान आशा जी के आवाज को रिकार्ड करना शुरू किया। इन दोनों की साझेदारी में फिल्म ‘मुन्दरम पइराई (1982)(या सदमा, इसकी हिन्दी रीमेक 1983में) बनी। 1980 से 1990 के बीच इन दोनों की साझेदारी बनी रही। इस खास साझेदारी की प्रसिद्ध गीत ‘सीनबागमाइ’(इनगा ओरू पट्टुकारन—1987, तमिल फिल्म) आदि है। 2000 ई. में आशा जी ने इलैयाराजा के संगीतनिर्देशन में कमल हसन की फिल्म ‘हे राम’ के मूल गीत गाई। जन्मों की ज्वाला....(या अपर्णा की थीम गीत) को गज़ल गायक हरिहरन के साथ युगल गीत गाई। अनु मलिक अनु मलिक और आशा जी ने कई हिट गीत रिकार्ड किए। जिनमे इनकी संगीतबद्ध पहली फिल्म ‘सोनीमहीवाल’(1984) शामिल है। अनु मलिक के संगीत निर्देशन में बहुत प्रसिद्ध गीतो में ‘फिलहाल...(फिलहाल), किताबें बहुत से...(बाजीगर) आदि शामिल है। अनु मलिक के संगीत निर्देशन में आशा जी ने चार पंक्ति ‘जब दिल मिले...(यादें) सुखबिन्दर सिह, उदित नारायण और सुनिधि चौहान के साथ गाए। आशा जी ने अनु मलिक के पिता ‘सरदार मलिक’ के लिए 1950 ई. से 1960 ई. में गाई जिनमे प्रसिद्ध फिल्म सारंगा (1960) शामिल है। ए. आर. रहमान 1995 फिल्म ‘रंगीला’ से आशा जी ने ए. आर. रहमान संगीत निर्देशक के साथ अपनी दुसरी पारी के शुरुआत की। इसका श्रेय ए. आर. रहमान को जाता है। चार्टबस्टर के हिट गीत तन्हा तन्हा... और रंगीला रे... से आशा जी को पुन: प्रसिद्धि मिली। रहमान और आशा जी की साझेदारी में कई गीत रिकार्ड हुए जिनमे हिट गीत ‘मुझे रंग दे...(त्क्षक)’, राधा कैसे न जले...(लगान, युगल गीत उदित नारायण के साथ), कही आग लगे। ..(ताल), ओ भवरें...(दौड, युगल गीत के.जे.यशुदास), वीनीला वीनीला...(अरूवर-1999) प्रमुख है। रहमान ने एक बार कहा-“मै सोचता हूँ आशा और लता जी के कद में जो संगीत फिट बैठ्ता है वैसा मैने तैयार किया।” अन्य संगीत निर्देशक मदन मोहन ने ‘झुमका गिरा रे...(मेरा साया—1966) के प्रसिद्ध गीत को आशा जी की आवाज में रिकार्ड किया। सलिल चौधरी ने फिल्म छोटी सी बात (1975) में जानेमन जानेमन... युगल गीत के.जे.यशुदास के साथ रिकार्ड किया। सलिल चौधरी की फिल्म जागते रहो (1956) गीत ‘ठंडी ठंडी सावन की फुहार...’ आशा जी की आवाज में रिकार्ड किया। संगीतकार संदीप चौटा के साथ आशा जी ने ‘कमबख्त इश्क ..(एक युगल गीत सोनू निगम के साथ) फिल्म प्यार तुने क्या किया (2001) के लिए गाई जो युवाओं में काफी लोकप्रिय हुआ। आशा जी ने लक्षमीकांत-प्यारेलाल, नौशाद, रवीन्द्र् जैन, एन. दता, हेमंत कुमार के लिए गाए और साथ काम किया। बॉलीवुड के अन्य प्रसिद्ध संगीतकार के साथ भी आशा जी ने काम किया जिनमे जतिन ललित, बप्पी लाहिरी, कल्याण जी आन्नद जी, उषा खन्ना, चित्रगुप्त एवं रौशन शामिल है। मराठी संगीत लता मंगेसकर के साथ आशा जी मराठी संगीत की सिरमौर रही है (क्योंकि मराठी उनकी मातृभाषा है)। आशा जी मराठी भाषा की अनेको गीत गा चुकी है जिनमे प्रसिद्ध कविओं की कविता है, जो भाव गीत के रूप में प्रसिद्ध है। यथा प्रसिद्ध एलबन ‘रूतु हिरावा’(‘ग्रीन सीजन’) जो श्रीधर पाडके द्वारा रचित है। अपने भाई हृदयनाथ मंगेसकर द्वारा संगीतबद्ध आशा जी के कई प्रसिद्ध गीत है। आशा जी द्वारा गाए मराठी भजन काफी प्रचलित और प्रसिद्ध है। निजी एलबम 8 सितम्बर 1987 आशा जी के जन्म दिवस पर “दिल पड़ोसी है” नामक एलबम, गुलजार द्वारा रचित और आर.डी.वर्मन द्वारा संगीतबद्ध जारी किया गया। आशा जी उस्ताद अली अकबर खान से 1995 में विशेष रूप से मिली, बाद में आशा जी ने उस्ताद अली अकबर खान के साथ ग्यारह बंदिसे रिकार्ड की ’कैलीफिर्निया मे’। जो ग्रेमी अवार्ड के लिए नामांकित हुआ। 1990 में आर.डी.वर्मन द्वारा संगीतबद्ध गीतो को आशा जी ने ‘रिमिक्स’ कर प्रयोगात्मक अनुभव किया जो कई लोगों द्वारा आलोचना का विषय बना। संगीतकार खय्याम ने भी इसकी आलोचना की। किंतु ‘राहुल और मै’ नामक एलबम काफी प्रसिद्ध रही। इंडोपॉप एलबम ‘जानम समझा करो’ लेस्ली लुईस के साथ काफी प्रसिद्ध रहा। कई पुरस्कारो सहित 1997 एम.टी.वी. एवार्ड इस खास एलबम को मिला। 2002 ई. में अपनी एलबम ‘आप की आशा’ जो आठ गीतों वाला वीडियो एलबम था, खुद आशा जी ने संगीत तैयार किया। इसके गीत मुजरूह सुल्तांनपुरी द्वारा रचित (अंतिम रचना सुलतान पुरी द्वारा) था। 21 मई 2001 को सचिन तेन्दुलकर द्वारा मुम्बई में एक खास पार्टी में यह एलबम जारी किया गया। जब पाकिस्तानी गायक अदनान सामी सिर्फ 10 वर्ष के थे तब आशा जी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। आशा जी ने अदनान सामी को गायन प्रतिभा विकसित कर आगे बढने के लिए प्रेरित किया। जब अदनान बड़े हुए तब आशा जी के साथ’कभी तो नज़र मिलाओ’ एलबम में गीत गाए जो काफी प्रसिद्ध रहा। फिर ‘बरसे बादल’ नामक एलबम में भी अदनान सामी के साथ गाई। आशा जी ने कई एलबमों के लिए गज़ल गाई यथा-मीराज-ए-गज़ल, अबशहर-ए-गज़ल और कशीश। 2005 में आशा जी ने एलबम ‘आशा’ जो चार गज़ल गायको को समर्पित था- मेंहदी हसन, गुलाम अली, फरीदा खानम और जगजीत सिंह जारी किया। इस एलबम में आशा जी के आठ पसंदीदा गजल यथा- फरीदा खानम की ‘आज जाने की जिद ना करो..., गुलाम अली की ‘चुपके चुपके...’, ‘आवारगी...’ और ‘दिल में एक लहर...’ जगजीत सिह की ‘आहिस्ता आहिस्ता...’, मेहदी हसन की ‘रंजीश है सही...’,’रफ्ता रफ्ता...’ और ‘मुझे तुम नज़र से...’ शामिल था। इसके संगीतकार पंडित सोमेश माथुर थे जिन्होने युवाओ के ध्यान में रखते हुए संगीत दिए। आशाजी के 60वें जन्मदिवस पर इ.एम.आई. इंडिया ने तीन कैसेट जारी किए- ‘बाबा मै बैरागन होंगी (भक्ति गीत)’, ‘द गोलडेन कलैक्सन-गज़ल (संगीतकार गुलाम अली, आर.डी.वर्मन और नज़र हुसैन)’ और ‘द गोलडेन कलेक्शन- द एवर भरसाटाइल आशा भोसले’ जो 44 प्रसिद्ध गीतो का संग्रह था। 2006 में आशा जी ने ‘आशा एण्ड फ्रैण्डस’ नामक एलबम रिकार्ड किया जिनमे युगल गीत संजय दत्त और उर्मिला मातोंडकर के साथ गाए साथ ही प्रसिद्ध क्रिकेटर ब्रेट ली के साथ आशा जी ने ‘यू आर द वन फॉर मी (हाँ मै तुम्हारी हूँ)’ गीत गाए। इन गीतो के संगीतकार समीर टण्डन थे। इसका विडियो निर्माण एस. रामचन्द्रन ने किया (जो पत्रकार से निर्देशक् बने थे)। पुरस्कार और सम्मान फिल्म फेयर बेस्ट फिमेल प्लेबैक अवार्ड 1968-“गरीबो की सुनो...”(दस लाख - 1966) 1969-“परदे में रहने दो...”(शिकार - 1968) 1972- “पिया तु अब तो आजा...”(कारवाँ - 1971) 1973-“दम मारो दम...”(हरे रामा हरे कृष्णा - 1972) 1974-“होने लगी है रात...”(नैना - 1973) 1975-“चैन से हमको कभी...”(प्राण जाये पर वचन ना जाये - 1974) 1979-”ये मेरा दिल...”(डॉन - 1978) अन्य पुरस्कार 1996-स्पेशल अवार्ड (रंगीला-* 1995) 2001-फिल्म फेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 1981- “दिल चीज क्या है।..”(उमरॉव जान) 1986 “मेरा कुछ सामान...”(इजाजत) अन्य यादगार पुरस्कार 1987- नाइटीनेंगल ऑफ एशिया अवार्ड (इंडो पाक एशोशिएशन यु.के.) 1989- लता मंगेस्कर अवार्ड (मध्य प्रदेश सरकार) * 1997- स्क्रीन वीडियोकॉन अवार्ड (जानम समझा करो- एलबम के लिए) 1997- एम.टी.वी. अवार्ड (जानम समझा करो- एलबम के लिए) 1997- चैनल वी अवार्ड (जानम समझा करो- एलबम के लिए) 1998- दयावती मोदी अवार्ड 1999- लता मंगेस्कर अवार्ड (महाराष्ट्र सरकार) 2000- सिंगर ऑफ द मिलेनियम (दुबई) 2000- जी गोल्ड बॉलीवुड अवार्ड (मुझे रंग दे- फिल्म तक्षक के लिए) 2001- एम.टी.वी. अवार्ड (कमबख्त इशक – के लिए) 2002- बी.बी.सी. लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड (यू॰के॰ प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के द्वारा प्रदत) 2002- जी सीने अवार्ड फॉर बेस्ट प्लेबैक सिंगर - फिमेल (राधा कैसे न जले..-फिल्म लगान के लिए) 2002- जी सीने स्पेशल अवार्ड फॉर हॉल ऑफ फेम 2002- स्क्रीन वीडियोकॉन अवार्ड (राधा कैसे न जले..-फिल्म लगान के लिए) 2002-सैनसुई मुवी अवार्ड (राधा कैसे न जले..-फिल्म लगान के लिए) 2003- सवराल्या येशुदास अवार्ड (भारतीय संगीत में उत्कृष्ट योगदान के लिए) 2004- लाईविग लीजेंड अवार्ड (फेडरेशन ऑफ इंडियन चेम्बर ऑग कामर्स एण्ड इंडस्ट्रीज के द्वारा) 2005- एम.टी.वी. ईमीज, बेस्ट फीमेल पॉप ऐक्ट (आज जाने की जिद न करो। .) 2005- मोस्ट स्टाइलिश पीपुल इन म्यूजिक सम्मान एवं विशेष पहचान 1997 मई आशा जी पहली भारतीय गायिका बनी जो ‘ग्रेमी अवार्ड के लिए नामांकित की गई (उस्ताद अली अकबर खान के साथ एक विशेष एलबम के लिए) आशा जी “सत्तरहवी महाराष्ट्र स्टेट अवार्ड” प्राप्त की। भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए सन 2000 में “दादा साहेब फाल्के अवार्ड” से सम्मानित की गई। आशा जी को साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि से अमरावती विश्वविद्यालय एवं जलगाँव विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित किया गया। “द फ्रिडी मरकरी अवार्ड” कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए आशा जी को इस खास पुरस्कार से सममानित किया गया। नवम्बर 2002 में आशा जी को “बर्मिंघम फिल्म फेस्टिवल” विशेष रूप से समर्पित किया गया। “पद्मविभूषण” के द्वारा राष्टपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 5 मई 2008 को आशा जी को सम्मानित किया। यह सम्मान भारत सरकार के महत्वपूर्ण सम्मानो में है। बाहरी कड़ियाँ आशा भोसलेजी के गाए हुए हिन्दी गीत आशा भोसलेजी के गाए हुए मराठी गीत आशा भोसले ने गाए हुए हिन्दी गाने आशा भोसलेजी के कुछ मराठी गीत सन्दर्भ श्रेणी:गायिका
साड़ी
https://hi.wikipedia.org/wiki/साड़ी
अंगूठाकार|356x356पिक्सेल|साड़ी एक सबसे सुंदर पारंपरिक पोशाक है भारतीय। दैनिक दिनचर्या साड़ी में भारत के उत्तर से एक घरेलू भारतीय महिला, अच्छी तरह से बाँधी एवं पहनी हुई thumb|200px|बाएँ साड़ी भारतीय स्त्री का मुख्य परिधान है। यह शायद विश्व की सबसे लंबी और पुराने परिधानों में से गिना जाता है। यह लगभग 5 से 6 गज लम्बी बिना सिली हुए कपड़े का टुकड़ा होता है जो ब्लाउज़ या चोली और साया के ऊपर लपेटकर पहना जाता है। thumb|कर्नाटक में महिलाओं ने कोडागु स्टाइल की साड़ी पहनी. तरह-तरह की साड़ियाँ thumb|300px|right साड़ी पहनने के कई तरीके हैं जो भौगोलिक स्थिति और पारंपरिक मूल्यों और रुचियों पर निर्भर करता है। अलग-अलग शैली की साड़ियों में कांजीवरम साड़ी, बनारसी साड़ी, पटोला साड़ी और हकोबा मुख्य हैं। मध्य प्रदेश की चंदेरी, महेश्वरी, मधुबनी छपाई, असम की मूंगा रशम, उड़ीसा की बोमकई, राजस्थान की बंधेज, गुजरात की गठोडा, पटौला, बिहार की तसर, काथा, छत्तीसगढ़ी कोसा रशम, दिल्ली की रशमी साड़ियाँ, झारखंडी कोसा रशम, महाराष्ट्र की पैथानी, तमिलनाडु की कांजीवरम, बनारसी साड़ियाँ, उत्तर प्रदेश की तांची, जामदानी, जामवर एवं पश्चिम बंगाल की बालूछरी एवं कांथा टंगैल आदि प्रसिद्ध साड़ियाँ हैं। thumb|साड़ी उदभव और इतिहास साड़ी का इतिहास – 1 – साड़ी का उल्लेख वासस् व अधिवासस् के रूप में वेदों में मिलता है। यजुर्वेद में साड़ी शब्द का सबसे पहले उल्लेख मिलता है। दुसरी तरफ ऋग्वेद की संहिता के अनुसार यज्ञ या हवन के समय स्त्री को साड़ी पहनने का विधान भी है। 2 – साड़ी विश्व की सबसे लंबी और पुराने परिधानों में एक है। इसकी लंबाई सभी परिधानों से अधिक है। इन्हें भी देखें दुपट्टा लुंगी कुर्ता बाहरी कड़ियाँ बदली-बदली सी नजर आती है साड़ी साड़ियों का इतिहास साड़ी पहनने के दिशा निर्देश साड़ी कैसे पहनें (दक्षिण भारतीय शैली) श्रेणी:परिधान श्रेणी:भारतीय पोशाक श्रेणी:वस्त्र श्रेणी:स्त्रियों के वस्त्र
कुर्ता
https://hi.wikipedia.org/wiki/कुर्ता
कुर्ता|thumb|220px कुर्ता या कुरता एक पारंपरिक भारतीय पोशाक है। यह एक लम्बी कमीज की तरह होता है जो घुटनों तक लंबा होता है और पजामा के साथ पहना जाता है जो या तो कुर्ते के रँग से मिलता जुलता होता है या सफेद होता है। कुरते को आम प्रयोग और खास मौकों दोनो के लिये इस्तेमाल किया जाता है हालांंकि खा़स मौकों पर पहने जाने वाला कुर्ता आम तौर से ज्यादा फैशनेबल होते हैं। कुर्ते सूती, ऊनी और रेशमी सभी तरह के सामग्रियों में मिलते हैं। भारत और पड़ोसी देशों बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी कुर्ते की परंपरा रही है। कुर्ते के कई परिवर्धित रूप हैं जिनमें शेरवानी, पठानी सूट इत्यादि प्रमुख। औरतें भी कुर्तों का इस्तेमाल करती हैं किन्तु इन्हें आमतौर पर कुर्ती और अन्य नामों से पुकारा जाता है। इन्हें भी देखें एओ दाई साड़ी खादी धोती भारतीय पोशाक कुर्ती शेरवानी कुर्ता पायजामा पजामा श्रेणी:भारतीय पोशाक श्रेणी:परिधान
पोखरण
https://hi.wikipedia.org/wiki/पोखरण
पोखरण (Pokhran) भारत के राजस्थान राज्य के जैसलमेर ज़िले में स्थित एक नगर है।"Lonely Planet Rajasthan, Delhi & Agra," Michael Benanav, Abigail Blasi, Lindsay Brown, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012332"Berlitz Pocket Guide Rajasthan," Insight Guides, Apa Publications (UK) Limited, 2019, ISBN 9781785731990 विवरण पोकरण या पोखरण जैसलमेर से 110 किलोमीटर दूर जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर पोकरण प्रमुख कस्बा हैं। पोकरण में लाल पत्थरों से निर्मित सुन्दर दुर्ग है। इसका निर्माण सन 1550 में राव मालदेव(राव जोधा के वंशज राव गांगा का पुत्र व राव चन्द्रसेन का पिता था) ने कराया था। यह स्थल बाबा रामदेव के गुरूकुल के रूप में विख्यात हैं। पोखरण के पास आशापूर्णा मंदिर, खींवज माता का मंदिर, कैलाश टेकरी दर्शनीय हैं। पोखरण से तीन किलोमीटर दूर स्थित सातलमेर को पोखरण की प्राचीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त हैं। भारत का पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण १८ मई, १९७४ को यहाँ किया गया। पुनः ११ और १३ मई १९९८ को यह स्थान इन्हीं परीक्षणों के लिए चर्चित रहा। परमाणु परीक्षण भारतीय परमाणु आयोग ने यहाँ अपना पहला भूमिगत परिक्षण १८ मई १९७४ को किया था। हालांकि उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये होगा और यह परीक्षण भारत को उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये किया गया है। बाद में ११ और १३ मई १९९८ को पाँच और भूमिगत परमाणु परीक्षण किये और भारत ने स्वयं को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इन्हें भी देखें जैसलमेर ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:राजस्थान के शहर श्रेणी:जैसलमेर ज़िला श्रेणी:जैसलमेर ज़िले के नगर
पोखरन
https://hi.wikipedia.org/wiki/पोखरन
REDIRECTपोखरण
सांथाल जनजाति
https://hi.wikipedia.org/wiki/सांथाल_जनजाति
thumb|ढोड्रो बनाम संगीत वाद्य thumb|एक जनजातीय मेले में प्रदर्शित सन्थाल घर संथाल भारत के सरना धर्म को मानने वाला आदिवासी समूह की एक प्रमुख जनजाति है। वे मुख्य रूप से भारतीय राज्यों झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और असम में रहते हैं, यह अल्पसंख्या में नेपाल और बांग्लादेश में भी पाये जाते हैं। ये मूल रूप से संथाली भाषा बोलते हैं। इतिहास संथाली भाषा बोलने वाले वक्ता मुंडा जातीय समूह की खेरवाड़ समुदाय से आते हैं, जो अपने को "होड़" (मनुष्य) अथवा "होड़ होपोन" (मनुष्य की सन्तान) भी कहते हैं। इस समुदाय में मुंडा, भूमिज, हो आदि जनजातियां भी आती है। मुंडा, भूमिज और हो जनजाति एक ही नस्ल के हैं, जबकि संथाल थोड़ी भिन्न है। मुंडारी, भूमिज, हो और संथाली भाषा में थोड़ी समानताएं थीं देखी जा सकती है। संथाल लोग भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है, किन्तु वर्तमान में इन्हे झारखंडी (जाहेर खोंडी) के रूप में जाना जाता है। झारखंडी का अर्थ झारखंड में निवास करने वाले से नहीं है बल्कि "जाहेर" (सारना स्थल) के "खोंड" (वेदी) में पूजा करने वाले लोग से है, जो प्रकृति को विधाता मानता है। अर्थात् प्रकृति के पुजारी - जल, जंगल और जमीन से जुड़े हुए लोग। ये "मारांग बुरु" और "जाहेर आयो" (माता प्रकृति) की उपासना करतें है। वस्तुत: संथाली भाषा भाषी के लोग मूल रूप से खेरवाड़ समुदाय से आते हैं, किन्तु मानवशास्त्रियों ने इन्हें प्रोटो आस्ट्रेलायड से संबन्ध रखने वाला समूह माना है। अपितु इसका कोई प्रमाण अबतक प्रस्तुत नहीं किया गया है। अत: खेरवाड़ समुदाय (संथाली, हो, मुंडा, भूमिज, बिरहोड़, खड़िया, असुर, लोहरा, सावरा, महली रेमो, बेधिया आदि) में भारत सरकार को पुनः शोध करना चाहिए। भौगोलिक वितरण संथाल लोग भारत में अधिकांश झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम राज्यों तथा विदेशों में अल्पसंख्या में चीन, थाईलैंड, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, जवा, सुमात्रा आदि देशों में रहते हैं। संस्कृति संथाल समाज अद्वितीय विरासत की परंपरा और आश्चर्यजनक परिष्कृत जीवन शैली है। सबसे उल्लेखनीय हैं उनके लोकसंगीत, गीत, संगीत, नृत्य और भाषा हैं। दान करने की संरचना प्रचुर मात्रा में है। उनकी स्वयं की मान्यता प्राप्त लिपि 'ओल-चिकी' है, जो खेरवाड़ समुदाय के लिए अद्वितीय है। इनकी सांस्कृतिक शोध दैनिक कार्य में परिलक्षित होते है- जैसे डिजाइन, निर्माण, रंग संयोजन और अपने घर की सफाई व्यवस्था में है। दीवारों पर आरेखण, चित्र और अपने आंगन की स्वच्छता कई आधुनिक शहरी घर के लिए शर्म की बात होगी। अन्य विषेशता इनके सुन्दर ढंग के मकान हैं जिनमें खिड़कियां नहीं होती हैं। इनके सहज परिष्कार भी स्पष्ट रूप से उनके परिवार के माता पिता, पति पत्नी, भाई बहन के साथ मजबूत संबंधों को दर्शाता है। सामाजिक कार्य सामूहिक होता है। अत: पूजा, त्योहार, उत्सव, विवाह, जन्म, मृत्यु आदि में पूरा समाज शामिल होता है। हालांकि, संताल समाज पुरुष प्रधान होता है किन्तु सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है। स्त्री-पुरुष में लिंग भेद नहीं है, इसलिए इनके घर लड़का और लड़की का जन्म आनंद का अवसर हैं। इनके समाज में स्त्री पुरुष दोनों को विशेष अधिकार प्रदान किया गया है। वे शिक्षा ग्रहण कर सकते है; वे नाच गा सकते है; वे हाट बाजार घूम सकते है; वे इच्छित खान पान का सेवन कर सकते है; वे इच्छित परिधान पहन सकते हैं; वे इच्छित रूप से अपने को सज संवर सकते हैं; वे नौकरी, मेहनत, मजदूरी कर सकते हैं; वे प्रेम विवाह कर सकते हैं। इनके समाज में पर्दा प्रथा, सती प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा नहीं है बल्कि विधवा विवाह; अनाथ बच्चों; नजायज बच्चों को नाम, गोत्र देना और पंचायतों द्वारा उनके पालन का जिम्मेदारी उठाने जैसे श्रेष्ठ परम्परा है। संताल समाज मृत्यु के शोक अन्त्येष्टि संस्कार को अति गंभीरता से मनाया जाता है। इनके चौदह मूल गोत्र हैं- हासंदा, मुर्मू, किस्कु, सोरेन, टुडू, मार्डी, हेंब्रोम, बास्के, बेसरा, चोणे, बेधिया, गेंडवार, डोंडका और पौरिया। इनके विवाह को 'बापला' कहा जाता है। संताड़ी समाज में कुल 23 प्रकार की विवाह प्रथायें है, जो निम्न प्रकार है - माडवा बापला तुनकी दिपिल बापला: इस पद्धति से शादी बहुत ही निर्धन परिवार द्वारा की जाती है । इसमें लड़का दो बारातियों के साथ लड़की के घर जाता है तथा लड़की अपने सिर पर टोकरी रखकर उसके साथ आ जाती है। सिन्दूर की रस्म लड़के के घर पर पूरी की जाती है। गोलयटें बापला हिरोम चेतान बापला बाहा बापला दाग़ बोलो बापला घरदी जवाई बापला: ऐसे विवाह में लड़का अपने ससुराल में घर जमाई बनकर रहता है । वह लड़की के घर 5 वर्ष रहकर काम करता है। तत्पश्चात एक जोड़ी बैल,खेती के उपकरण तथा चावल आदि सामान लेकर अलग घर बसा लेता है। आपांगिर बापला कोंडेल ञापाम बापला इतुत बापला: ऐसा विवाह तब होता है जब कोई लड़का बलपूर्वक किसी सार्वजनिक स्थान पर लड़की के मांग में सिन्दूर भर देता है । इस स्थिति में वर पक्ष को दुगुना वधू मूल्य चुकाना पड़ता है। यदि लड़की उसे अपना पति मानने से इन्कार कर देती है तो उसे विधिवत तलाक़ देना पड़ता है। ओर आदेर बापला ञीर नापाम बापला दुवर सिंदूर बापला टिका सिंदूर बापला किरिञ बापला: जब लड़की किसी लड़के से गर्भवती हो जाती है तो जोग मांझी अपने हस्तक्षेप से सम्बंधित व्यक्ति के विवाह न स्वीकार करने पर लड़की के पिता को कन्या मूल्य दिलवाता है ताकि लड़की का पिता उचित रकम से दूसरा विवाह तय कर सके। छडवी बापला बापला गुर लोटोम बापला संगे बरयात बापला धर्म और त्योहार इनके धार्मिक विश्वासों और अभ्यास किसी भी अन्य समुदाय या धर्म से मेल नहीं खाता है। इनमें प्रमुख देवता हैं- 'सिञ बोंगा', 'मारांग बुरु' (लिटा गोसांय), 'जाहेर एरा, गोसांय एरा, मोणे को, तुरूय को, माझी पाट, आतु पाट, बुरू पाट, सेंदरा बोंगा, आबगे बोंगा, ओड़ा बोंगा, जोमसिम बोंगा, परगना बोंगा, सीमा बोंगा (सीमा साड़े), हापड़ाम बोंगा आदि। पूजा अनुष्ठान में बलिदानों का इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि, संताल समाज में सामाजिक कार्य सामूहिक होता है। अत: इस कार्य का निर्वहन के लिए समाज में मुख्य लोग "माझी, जोग माझी, परनिक, जोग परनिक, गोडेत, नायके और परगना" होते हैं, जो सामाजिक व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, जैसे - त्योहार, उत्सव, समारोह, झगड़े, विवाद, शादी, जन्म, मृत्यु, शिकार आदि का निर्वहन में अलग - अलग भूमिका निभाते है। संताल समाज मुख्यतः बाहा, सोहराय, माग, ऐरोक, माक मोंड़े, जानताड़, हरियाड़ सीम, पाता, सेंदरा, सकरात, राजा साला: त्योहार और पूजा मनाते हैं। लुगुबुरु पहाड़ी स्थित 'लुगुबुरु घंटाबाड़ी' संथाल समाज की एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जहां हजारों की संख्या में देश-विदेश से संथाल समाज के लोग पूजा करने पहुंचते हैं। उल्लेखनीय लोग द्रौपदी मुर्मू, भारत की राष्ट्रपति शिबू सोरेन, राजनेता और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, राजनेता और मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, राजनेता और पूर्व मुख्यमंत्री रघुनाथ मुर्मू, ओल चिकि लिपि आविष्कारक, साहित्यकार सिद्धू-कान्हू मुर्मू, स्वतंत्रता सेनानी तिलका मांझी, स्वतंत्रता सेनानी खेरवाल सोरेन, साहित्यकार भोगला सोरेन, साहित्यकार रामचंद्र मुर्मू, साहित्यकार जोबा मुर्मु, साहित्यकार रबिलाल टुडू, साहित्यकार मैना टुडू, लेखिका चम्पई सोरेन, राजनेता सालखन मुर्मू, राजनेता लक्ष्मण टुडू, राजनेता बसेन मुर्मू, गायक गिरीश चन्द्र मुर्मू, पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर चंद्राणी मुर्मू, राजनेता बिरबाहा हाँसदा, फिल्म कलाकार और राजनेता लक्ष्मीरानी माझी, तिरंदाज दिगंबर हांसदा, साहित्यकार सन्दर्भ इन्हें भी देखें संथाली विकिपीडिया संथाली भाषा संथाल विद्रोह हुदुर दुर्गा बाहरी कड़ियाँ मिटने के कगार पर गौरवशाली परम्परा (भारतीय पक्ष) श्रेणी:झारखंड
संथाल
https://hi.wikipedia.org/wiki/संथाल
REDIRECTसांथाल जनजाति
सांथाल
https://hi.wikipedia.org/wiki/सांथाल
REDIRECTसांथाल जनजाति
मुंडा भाषा परिवार
https://hi.wikipedia.org/wiki/मुंडा_भाषा_परिवार
पुनर्प्रेषित मुण्डा भाषाएँ
हिरोशिमा
https://hi.wikipedia.org/wiki/हिरोशिमा
thumb|हिरोशिमा हिरोशिमा (जापानी: 広島市) जापान का एक नगर है जहाँ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1945 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराया गया था जिससे पूरा का पूरा नगर बरबाद हो गया था। इस विभिषका के परिणाम आज भी इस नगर के लोग भुगत रहे हैं। जापान के एक दूसरे नगर नागासाकी पर भी परमाणु बम से हमला किया गया था। इसी का परिणाम है कि जापान ने परमाणु हथियार कभी निर्माण न करने की नीति स्थापित की है। आज हिरोशिमा जापान का एक बड़ा नगर है। हिरोशिमा में ११,९६,२७४ लोग रहते हैं। बराक ओबामा हिरोशिमा गया २०१७ में और काग़ज़ के सारस बनाये हिरोशिमा पीस मेमोरियल पार्क में। हिरोशिमा में बहुत लोग काग़ज़ के सारस बनाते हैं, शांति के लिए। यह है क्योंकि जब हिरोशिमा पे बम गिरा एक लड़की, जिसका नाम सडाको ससाकी था, को ल्यूकेमिया हुई। उसने हज़ार सारस बनाने की कोशिश की क्योंकि जापान में कहते हैं कि अगर आप हज़ार सारस बनाये, आपकी एक ख़्वाहिश सच होगी। सडाको ने हज़ार सारस बनाये मगर बेहतर नहीं हुई और मरी। सडाको के लिए आज भी लोग सारस बनाते हैं हिरोशिमा में। श्रेणी:जापान के नगर
आकाशवाणी
https://hi.wikipedia.org/wiki/आकाशवाणी
आकाशवाणी (ISO 15919: Ākāśavāṇī ) भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन संचालित सार्वजनिक क्षेत्र की रेडियो प्रसारण सेवा है। भारत में रेडियो प्रसारण की शुरुआत मुम्बई और कोलकाता में सन 1927 में दो निजी ट्रांसमीटरों से हुई। 1930 में इसका राष्ट्रीयकरण हुआ और तब इसका नाम भारतीय प्रसारण सेवा (इण्डियन ब्राडकास्टिंग कॉरपोरेशन) रखा गया। बाद में 1957 में इसका नाम बदल कर आकाशवाणी रखा गया। व्युत्पत्ति आकाशवाणी एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'आकाशीय / आकाश से आवाज' या 'आकाशीय आवाज'। हिन्दू पन्थ, जैन पन्थ और बौद्ध पन्थ में, आकाशवाणी को अक्सर स्वर्ग से मानव जाति से संचार के माध्यम के रूप में कहानियों में चित्रित किया जाता है। आकाशवाणी शब्द का उपयोग पहली बार १९३६ में एम॰ वी॰ गोपालस्वामी ने अपने निवास स्थान, “ विट्ठल विहार ”(आकाशवाणी के वर्तमान मैसूर रेडियो स्टेशन से लगभग दो सौ गज की दूरी) में भारत के पहले निजी रेडियो स्टेशन की स्थापना के बाद किया था। आकाशवाणी को बाद में १९५७ में ऑल इण्डिया रेडियो के ऑन-एयर नाम के रूप में दिया गया; संस्कृत में इसके शाब्दिक अर्थ को देखते हुए, यह एक प्रसारक के लिए उपयुक्त नाम से अधिक माना जाता था। इतिहास बॉम्बे प्रेसिडेंसी रेडियो क्लब और अन्य रेडियो क्लबों के कार्यक्रमों के साथ ब्रिटिश राज के दौरान जून 1923 में प्रसारण आरम्भ हुआ। 23 जुलाई 1927 को एक समझौते के अनुसार, प्राइवेट इण्डियन ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी लिमिटेड (IBC) को दो रेडियो स्टेशन संचालित करने के लिए अधिकृत किया गया था: बॉम्बे स्टेशन जो 23 जुलाई 1927 को आरम्भ हुआ था, और कलकत्ता स्टेशन जो 26 अगस्त 1927 को आरम्भ हुआ था। कम्पनी चली गई। 1 मार्च 1930 को परिसमापन में सरकार ने प्रसारण सुविधाओं को संभाला और 1 अप्रैल 1930 को दो वर्ष के लिए प्रायोगिक आधार पर भारतीय स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस (ISBS) की शुरुआत की और मई 1932 में स्थायी रूप से ऑल इण्डिया रेडियो बन गया। घरेलू सेवाएँ आकाशवाणी की बहुत भाषाओं में विभिन्न सेवाएँ हैं जो प्रत्येक देश भर के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं। विविध भारती विविध भरती आकाशवाणी की सबसे लोकप्रिय-ज्ञात सेवा है। इसे विज्ञापन प्रसारण सेवा भी कहा जाता है। इन्हें भी देखें दूरदर्शन सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आकाशवाणी का हिंदी जालपृष्ठ श्रेणी:रेडियो
आल इंडिया रेडियो
https://hi.wikipedia.org/wiki/आल_इंडिया_रेडियो
REDIRECTआकाशवाणी
नक्सलवाद
https://hi.wikipedia.org/wiki/नक्सलवाद
नक्सलवाद साम्यवादी क्रान्तिकारियों के उस आन्दोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ। नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई है जहाँ भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 मे सत्ता के विरुद्ध एक सशस्त्र आन्दोलन का आरम्भ किया । मजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसकों में से थे और उनका मानना था कि भारतीय श्रमिकों एवं किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ उत्तरदायी हैं जिसके कारण उच्च वर्गों का शासन तन्त्र और फलस्वरुप कृषितन्त्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया है। इस न्यायहीन दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रान्ति से ही समाप्त किया जा सकता है। 1967 में "नक्सलवादियों" ने कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों की एक अखिल भारतीय समन्वय समिति बनाई। इन विद्रोहियों ने औपचारिक रूप से स्वयं को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से अलग कर लिया और सरकार के विरुद्ध भूमिगत होकर सशस्त्र लड़ाई छेड़ दी। 1971 के आंतरिक विद्रोह (जिसके अगुआ सत्यनारायण सिंह थे) और मजूमदार की मृत्यु के बाद यह आंदोलन एकाधिक शाखाओं में विभक्त होकर कदाचित अपने लक्ष्य और विचारधारा से विचलित हो गया। फरवरी 2019 तक, 11 राज्यों के 90 जिले वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित हैं। आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनीतिक पार्टी बन गये हैं और संसदीय चुनावों में भाग भी लेते है। परन्तु बहुत से संगठन अब भी छद्म लड़ाई में लगे हुए हैं। नक्सलवाद के विचारधारात्मक विचलन की सबसे बड़ी मार आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, झारखंड और बिहार को झेलनी पड़ रही है। इतिहास thumb|100px|चारु माजूमदार thumb|100px|कानू सान्याल नक्सलवाद शब्द की उत्पत्त‌ि पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी गाँव से हुई थी। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारु माजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 में सत्ता के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन शुरु किया। माजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बड़े प्रशसंक थे। इसी कारण नक्सलवाद को 'माओवाद' भी कहा जाता है। 1968 में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ मार्क्ससिज्म एंड लेन‌िनिज्म (CPML) का गठन किया गया जिनके मुखिया दीपेन्द्र भट्टाचार्य थे। यह लोग मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों पर काम करने लगे, क्योंकि वे उन्हीं से ही प्रभावित थे। वर्ष 1969 में पहली बार चारु माजूमदार और कानू सान्याल वह जंगल संथाल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर पूरे देश में सत्ता के खिलाफ एक व्यापक लड़ाई शुरू कर दी। भूमि अधिग्रहण को लेकर देश में सबसे पहले आवाज नक्सलवाड़ी से ही उठी थी। आंदोलनकारी नेताओं का मानना था कि ‘जमीन उसी को जो उस पर खेती करें’। नक्सलवाड़ी से शुरु हुआ इस आंदोलन का प्रभाव पहली बार तब देखा गया जब पश्चिम बंगाल से काँग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा। इस आंदोलन का ही प्रभाव था कि 1977 में पहली बार पश्चिम बंगाल में कम्यूनिस्ट पार्टी सरकार के रूप में आयी और ज्योति बसु मुख्यमंत्री बने। सामाजिक जागृति के लिए आरंभित इस आंदोलन पर कुछ वर्षो पश्चात राजनीति का वर्चस्व बढ़ने लगा और आंदोलन शीघ्र ही अपने मुद्दों और मार्गो से भटक गया। जब यह आंदोलन फैलता हुआ बि‌हार पहुँचा तब यह अपने मुद्दों से पूर्णतः भटक चुका था। अब यह लड़ाई भूमि की लड़ाई न रहकर जातीय वर्ग की लड़‌ाई बन चुकी थी। यहां से प्रारम्भ होता है उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग के बीच का उग्र संघर्ष जिससे नक्सल आन्दोलन ने देश में नया रूप धारण किया। श्रीराम सेना जो माओवादियों की सबसे बड़ी सेना थी, उसने उच्च वर्ग के विरुद्ध सबसे पहले हिंसक प्रदर्शन करना प्रारम्भ किया। इससे पहले १९७२ में आंदोलन के हिंसक होने के कारण चारु माजूमदार को धरपकड़ कर लिया गया और १० दिन के लिए कारावास के समय ही उनकी कारागृह में ही मृत्यु हो गयी। नक्सलवादी आंदोलन के प्रणेता कानू सान्याल ने आंदोलन के राजनीति का शिकार होने के कारण और अपने मुद्दों से भटकने के कारण तंग आकर २३ मार्च, २०१० को आत्महत्या कर ली। भारत में नक्सलवाद की बड़ी घटनाएँ 2007 छत्तीसगढ़ के बस्तर में 300 से ज्यादा विद्रोहियों ने 55 पुलिसकर्मियों को मौत के घाट पर ‌उतार दिया था। 2008 ओडिसा के नयागढ़ में नक्सलवाद‌ियों ने 14 पुलिसकर्मियों और एक नागरिक की हत्या कर दी। 2009 महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में हुए एक बड़े नक्सली हमले में 15 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गये। 2010 नक्सलवादियों ने कोलकाता-मुंबई ट्रेन में 150 यात्रियों की हत्या कर दी। 2010 पश्चिम बंगाल के सिल्दा केंप में घुसकर नक्सलियों ने हमला कर दिया जिसमें अर्द्धसैनिक के 24 जवान शहीद हो गए। 2011 छत्तीसगढ के दंतेवाड़ा में हुए एक बड़े नक्सलवादी हमले में कुल 76 जवान शहीद हो गए जिसमें सीआरपीएफ के जवान समेत पुल‌िसकर्मी भी शामिल थे। 2012 झारखंड के गढ़वा जिले के पास बरिगंवा जंगल में 13 पुलिसकर्मीयों की हत्या कर दी| 2013 छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सलियों ने कांग्रेस के नेता समेत 27 व्यक्तियों की हत्या कर दी। 2021 में छत्तीसगढ़ के बीजापुर में सुरक्षा बलों के 23 जवान शहीद हो गए और 31 जवान घायल हुए। 2024 छत्तीसगढ़ के सुगमा के जोनागुड़ा-अलिगुड़ा क्षेत्र मे कोबरा,डीआरजी और एसटीएफ के जवानों पर हमला किया जिसमे 3 जवान शहीद हो गये और 15 जवान घायल हो गये । thumb|Srikakulam .naxal memorial tower भर्ती और वित्तपोषण नये लोगों को अपने पक्ष में लाने के लिए नक्सली कई तरीके अपनाते हैं। इसमें से एक प्रमुख तरीका है किसी 'क्रांतिकारी व्यक्तित्व' का नाम लेकर या उसके व्यक्तित्व और कृतित्व की बारबार चर्चा करना। भर्ती करने के नक्सली नौजवानों और विद्यार्थियों को मुख्यतः लक्ष्य करते हैं। नक्सलवाद के वित्तपोषण के भी कई स्रोत हैं। इसमें से सबसे बड़ा स्रोत खनन उद्योग है। नक्सली, अपने प्रभाव-क्षेत्र के सभी खनन कम्पनियों से उनके लाभ का ३% वसूलते हैंHoelscher, Kristian. "Hearts and Mines: A District-Level Analysis of the Maoist Conflict in India" (PDF).और डर के मारे सभी कम्पनियाँ बिना ना-नुकर किए देती हैं। नक्सली संगठन मादक दवाओं (ड्रग्स) का भी व्यापार करते हैं। नक्सलियों को मिलने वाला लगभग ४०% फण्ड नशे के व्यापार से ही आता है। Prakash, Om (2015). "UC Berkeley Library Proxy Login". Proceedings of the Indian History Congress. 76: 900–907. JSTOR 44156660. नक्सलियों के विरुद्ध चलाएँ गए प्रमुख अभियान स्टीपेलचेस अभियान यह अभियान वर्ष 1971 में चलाया गया। इस अभियान में भारतीय सेना तथा राज्य पुलिस ने भाग लिया था। अभियान के दौरान लगभग 20,000 नक्सली मारे गए थे। ग्रीनहंट अभियान यह अभियान वर्ष 2009 में चलाया गया। नक्सल विरोधी अभियान को यह नाम मीडिया द्वारा प्रदान किया गया था। इस अभियान में पैरामिलेट्री बल तथा राष्ट्र पुलिस ने भाग लिया। यह अभियान छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र में चलाया गया। प्रहार 3 जून, 2017 को छत्तीसगढ़ राज्य के सुकमा जिले में सुरक्षा बलों द्वारा अब तक के सबसे बड़े नक्सल विरोधी अभियान ‘प्रहार’ को प्रारंभ किया गया। सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलियों के चिंतागुफा में छिपे होने की सूचना मिलने के पश्चात इस अभियान को चलाया गया था। इस अभियान में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के कोबरा कमांडो, छत्तीसगढ़ पुलिस, डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड तथा इंडियन एयरफोर्स के एंटी नक्सल टास्क फोर्स ने भाग लिया। यह अभियान चिंतागुफा पुलिस स्टेशन के क्षेत्र के अंदर स्थित चिंतागुफा जंगल में चलाया गया जिसे नक्सलियों का गढ़ माना जाता है। इस अभियान में 3 जवान शहीद हो गए तथा कई अन्य घायल हुए। अभियान के दौरान 15 से 20 नक्सलियों के मारे जाने की सूचना सुरक्षा बल के अधिकारी द्वारा दी गई। खराब मौसम के कारण 25 जून, 2017 को इस अभियान को समाप्त किया गया। सन्दर्भ इन्हें भी देखें मार्क्सवाद-लेनिनवाद नक्सलबाड़ी पश्चिम बंगाल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बाहरी कडियाँ नक्सलवाद की खबरें नक्सलवाद का सच पढ़ें सिर्फ सच पर नक्सलवाद नक्सलवाद पर आलेख सरकार को चुनौती देते नक्सली बस्तर में नक्सली हिंसा नक्सलवाद के निदान का तरीका ठीक नहीं नक्सलवाद का विकृत चेहराः एक आलेख नक्सलवाद - नक्सलवाद पर लेखों का संग्रह श्रेणी:नक्सलवाद श्रेणी:विचारधाराएँ
पर्दा प्रथा
https://hi.wikipedia.org/wiki/पर्दा_प्रथा
thumb|right|अफगानिस्तान में बुर्काधारी औरतें पर्दा एक इस्लामी शब्द है जो अरबी भाषा में फारसी भाषा से आया। इसका अर्थ होता है "ढकना" या "अलग करना"। पर्दा प्रथा का एक पहलू है बुर्क़ा का चलन। बुर्का एक तरह का घूँघट है जो मुस्लिम समुदाय की महिलाएँ और लड़कियाँ कुछ खास जगहों पर खुद को पुरुषों की निगाह से अलग/दूर रखने के लिये इस्तेमाल करती हैं। कुछ मुस्लिम समुदायों में प्रचलित महिला अलगाव की एक धार्मिक और सामाजिक प्रथा है।  यह दो रूप लेता है: लिंगों का शारीरिक अलगाव और आवश्यकता यह है कि महिलाएं अपने शरीर को ढकती हैं ताकि उनकी त्वचा को ढंका जा सके और उनके रूप को छुपाया जा सके।  पर्दा प्रथा करने वाली महिला को परदानाशीन या पर्दानिशन कहा जा सकता है।  पर्दा शब्द कभी-कभी दुनिया के अन्य हिस्सों में इसी तरह की प्रथाओं पर लागू होता है। प्राचीन काल से मुस्लिम देशों में महिलाओं की गतिशीलता और व्यवहार को प्रतिबंधित करने वाली प्रथाएं मौजूद थीं और इस्लाम के आगमन के साथ तेज हो गईं। 19वीं शताब्दी तक हिंदू अभिजात वर्ग के बीच पर्दा प्रथा बन गई। पर्दा पारंपरिक रूप से निम्न वर्ग की महिलाओं द्वारा नहीं किया जाता था। दीवारों, पर्दों और पर्दों के विवेकपूर्ण उपयोग से इमारतों के भीतर भौतिक अलगाव प्राप्त किया जाता है।  एक महिला के परदे में वापसी आमतौर पर उसके घर के बाहर उसकी व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को प्रतिबंधित करती है।  पहना जाने वाला सामान्य पर्दा वस्त्र बुर्का होता है, जिसमें चेहरे को छुपाने के लिए यशमक, घूंघट शामिल हो भी सकता है और नहीं भी।  आंखें उजागर हो भी सकती हैं और नहीं भी। अफगानिस्तान में तालिबान के तहत पर्दा सख्ती से किया जाता था, जहां महिलाओं को सार्वजनिक रूप से हर समय पूर्ण पर्दा का पालन करना पड़ता था।  केवल करीबी पुरुष परिवार के सदस्यों और अन्य महिलाओं को उन्हें पर्दे से बाहर देखने की अनुमति थी।  अन्य समाजों में, पर्दा अक्सर केवल धार्मिक महत्व के निश्चित समय के दौरान ही प्रचलित होता है।  उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में विवाहित हिंदू महिलाएं पर्दा का पालन करती हैं, कुछ महिलाएं अपने पति की ओर से बड़े पुरुष संबंधों की उपस्थिति में घूंघट पहनती है। कुछ मुस्लिम महिलाएं बुर्का पहनकर पर्दा करती हैं। दुपट्टा मुस्लिम और हिंदू दोनों महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला घूंघट होता है, जो अक्सर धार्मिक घर में प्रवेश करते समय होता है।  भारत में पहले भी हिंदू महिलाओं द्वारा इस प्रथा का पालन कम किया जाता है। पूर्व-इस्लामी मूल प्राचीन भारतीय समाज में, दुनिया भर में अन्य जगहों की तरह, "महिलाओं की सामाजिक गतिशीलता और व्यवहार को प्रतिबंधित करने वाली प्रथाएं" मौजूद थीं, लेकिन भारत में इस्लाम के आगमन ने "इन हिंदू प्रथाओं को तेज कर दिया, और 19 वीं शताब्दी तक पर्दा पूरे भारत में कुलीन समुदाय और उच्च जाति के हिंदुओं की प्रथा थी। हालांकि पर्दा आमतौर पर इस्लाम के साथ जुड़ा हुआ है, कई विद्वानों का तर्क है कि महिलाओं को पर्दा करना और एकांत में रहना इस्लाम से पहले का है;  ये प्रथाएं आमतौर पर मध्य पूर्व में विभिन्न समूहों जैसे ड्रूज़, ईसाई और यहूदी समुदायों में पाई जाती थीं। उदाहरण के लिए, बुर्का इस्लाम से पहले अरब में मौजूद था, और उच्च वर्ग की महिलाओं की गतिशीलता बेबीलोनिया, फ़ारसी में प्रतिबंधित थी।  इतिहासकारों का मानना ​​है कि 7वीं शताब्दी ई. में अरब साम्राज्य के आधुनिक इराक में विस्तार के दौरान मुसलमानों द्वारा पर्दा का अधिग्रहण किया गया था और इस्लाम ने उस समय की पहले से मौजूद स्थानीय प्रथाओं में केवल धार्मिक महत्व जोड़ा। बाद का इतिहास मुगल साम्राज्य के दौरान उत्तरी भारत के मुस्लिम शासन ने हिंदू धर्म की प्रथा को प्रभावित किया और पर्दा उत्तरी भारत के हिंदू उच्च वर्गों में फैल गया। मुस्लिम समुदाय के बाहर परदे के प्रसार का श्रेय संपन्न वर्गों की कुलीनता की सामाजिक प्रथाओं को प्रतिबिंबित करने की प्रवृत्ति को दिया जा सकता है;  गरीब महिलाओं ने पर्दा नहीं किया।  छोटे गांवों में निम्न वर्ग की महिलाएं अक्सर खेतों में काम करती थीं, और इसलिए एकांत में रहने के लिए अपने काम को छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकती थीं।  भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की अवधि के दौरान, पर्दा प्रथा व्यापक थी और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बीच इसका कड़ाई से पालन किया जाता था। आधुनिक समय में, मुख्य रूप से इस्लामी देशों, समुदायों और दक्षिण एशियाई देशों में महिलाओं को घूंघट करने और एकांत में रखने की प्रथा अभी भी मौजूद है। परदा क्षेत्र, समय, सामाजिक आर्थिक स्थिति और स्थानीय संस्कृति के आधार पर अलग-अलग रूप और महत्व रखता है। यह आमतौर पर सऊदी अरब के साथ अफगानिस्तान और पाकिस्तान में कुछ मुस्लिम समुदायों के साथ जुड़ा हुआ है। परदा को हाल ही में उत्तरी नाइजीरिया में अपनाया गया है, विशेष रूप से बोको हरामूप्रिंग से प्रभावित क्षेत्रों में। इसे भारत और पाकिस्तान के राजपूत कुलों द्वारा धर्म की परवाह किए बिना एक सामाजिक प्रथा के रूप में भी देखा जाता है। तर्क संरक्षण और अधीनता कुछ विद्वानों का तर्क है कि पर्दा शुरू में महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया था, लेकिन बाद में ये प्रथाएं महिलाओं को अपने अधीन करने और उनकी गतिशीलता और स्वतंत्रता को सीमित करने के प्रयासों को सही ठहराने का एक तरीका बन गईं।  हालांकि, दूसरों का तर्क है कि ये प्रथाएं हमेशा स्थानीय रिवाज के रूप में मौजूद थीं, लेकिन बाद में महिला व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए धार्मिक बयानबाजी द्वारा अपनाया गया। सम्मान समर्थक पर्दा को सम्मान और गरिमा के प्रतीक के रूप में देखते हैं। इसे एक अभ्यास के रूप में देखा जाता है जो महिलाओं को शारीरिक सुंदरता के बजाय उनकी आंतरिक सुंदरता से आंकने की अनुमति देता है। आर्थिक कई समाजों में, घरेलू क्षेत्र में महिलाओं का एकांत उच्च सामाजिक आर्थिक स्थिति और प्रतिष्ठा का प्रदर्शन है क्योंकि घर के बाहर शारीरिक श्रम के लिए महिलाओं की आवश्यकता नहीं होती है। व्यक्तिगत प्रेरणाएँ पर्दा रखने के लिए अलग-अलग महिलाओं के तर्क जटिल हैं और स्वतंत्र रूप से चुने गए या सामाजिक दबाव या जबरदस्ती के जवाब में प्रेरणाओं का एक संयोजन हो सकता है: धार्मिक, सांस्कृतिक (प्रामाणिक सांस्कृतिक पोशाक की इच्छा), राजनीतिक (समाज का इस्लामीकरण), आर्थिक ( स्थिति का प्रतीक, सार्वजनिक निगाहों से सुरक्षा), मनोवैज्ञानिक (सार्वजनिक क्षेत्र से सम्मान पाने के लिए अलगाव), फैशन और सजावटी उद्देश्य, और सशक्तिकरण (सार्वजनिक स्थान पर जाने के लिए पर्दा पहनना)। भारत में भारत में हिन्दुओं में पर्दा प्रथा इस्लाम की देन है। यह प्रथा मुग़ल शासकों के दौरान अपनी जड़े काफी मज़बूत की। वैसे इस प्रथा की शुरुआत भारत में12वीँ सदी में मानी जाती है। इसका ज्यादातर विस्तार राजस्थान के राजपुत जाति में था। 20वीँ सदी के उतरार्द्ध में इस प्रथा के विरोध के फलस्वरुप इसमें कमी आई है। यह प्रथा स्‍त्री की मूल चेतना को अवरुद्ध करती है। वह उसे गुलामों जैसा अहसास कराती है। जो स्‍त्रियां इस प्रथा से बंध जाती है। वे कई बार इतना संकोच करने लगती हैं कि बीमारी में भी अपनी सही से जांच कराने में असफल रहती हैं। इस प्रथा को समाज मे रखने के नुकसान बहुत हैं। भारत के संदर्भ में ईसा से 500 वर्ष पूर्व रचित 'निरुक्त' में इस तरह की प्रथा का वर्णन कहीं नहीं मिलता। निरुक्तों में संपत्ति संबंधी मामले निपटाने के लिए न्यायालयों में स्त्रियों के आने जाने का उल्लेख मिलता है। न्यायालयों में उनकी उपस्थिति के लिए किसी पर्दा व्यवस्था का विवरण ईसा से 200 वर्ष पूर्व तक नहीं मिलता। इस काल के पूर्व के प्राचीन वेदों तथा संहिताओं में पर्दा प्रथा का विवरण नहीं मिलता। प्राचीन ऋग्वेद काल में लोगों को विवाह के समय कन्या की ओर देखने को कहा है- इसके लिए ऋग्वेद में मंत्र भी है जिसका सार है कि "यह कन्या मंगलमय है, एकत्र हो और इसे देखो, इसे आशीष देकर ही तुम लोग अपने घर जा सकते हो।" वहीं 'आश्वलायनगृह्यसूत्र' के अनुसार दुल्हन को अपने घर ले आते समय दूल्हे को चाहिए कि वह प्रत्येक निवेश स्थान (रुकने के स्थान) पर दर्शकों को दिखाए और उसे बड़ों का आशीर्वाद प्राप्‍त हो तथा छोटों का स्‍नेह। इससे स्पष्ट है कि उन दिनों वधुओं द्वारा पर्दा धारण नहीं किया जाता था, बल्कि वे सभी के समक्ष खुले सिर से ही आती थीं। पर्दा प्रथा का उल्लेख सबसे पहले मुगलों के भारत में आक्रमण के समय से होता हुआ दिखाई देता है। इस संबंध में कुछ विद्वानों के मतानुसार 'रामायण' और 'महाभारत' कालीन स्त्रियां किसी भी स्थान पर पर्दा अथवा घूंघट का प्रयोग नहीं करती थीं। अजन्ता और सांची की कलाकृतियों में भी स्त्रियों को बिना घूंघट दिखाया गया है। मनु और याज्ञवल्क्य ने स्त्रियों की जीवन शैली के सम्बन्ध में कई नियम बनाए हुए हैं, परन्तु कहीं भी यह नहीं कहा है कि स्त्रियों को पर्दे में रहना चाहिए। संस्कृत नाटकों में भी पर्दे का उल्लेख नहीं है। यहां तक कि 10वीं शताब्दी के प्रारम्भ काल के समय तक भी भारतीय राज परिवारों की स्त्रियां बिना पर्दे के सभा में तथा घर से बाहर भ्रमण करती थीं, यह वर्णन स्‍वयं एक अरब यात्री अबू जैद ने अपने लेखन के जरिए किया है। स्पष्ट है कि भारत में प्राचीन समय में कोई पर्दाप्रथा जैसी बिमार रूढ़ी प्रचलन में नहीं थी। पर्दा प्रथा पर प्रभाव पर्दा प्रथा पर सरकार की नीतियां ट्यूनीशिया और पूर्व में तुर्की में, राजनीतिक इस्लाम या कट्टरवाद के प्रदर्शन को हतोत्साहित करने के उपाय के रूप में सार्वजनिक स्कूलों, विश्वविद्यालयों और सरकारी भवनों में धार्मिक पर्दा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश में जहां मुख्य रूप से पर्दा शब्द का प्रयोग किया जाता है, सरकार के पास न तो पर्दा करने के लिए और न ही इसके खिलाफ कोई नीति है। 2004 के बाद से फ्रांस ने स्कूल में मुस्लिम हेडस्कार्फ़ सहित सभी खुले धार्मिक प्रतीकों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस्लामीकरण पाकिस्तान जैसे राष्ट्र अधिक रूढ़िवादी कानूनों और नीतियों के लिए झूल रहे हैं जो इस्लामी कानून का पालन करने के बयानबाजी का उपयोग करते हैं, जिसे कभी-कभी इस्लामीकरण कहा जाता है। महिलाओं का आंदोलन पाकिस्तान में महिलाओं ने ट्रेड यूनियनों का आयोजन किया है और मतदान के अपने अधिकार का प्रयोग करने और निर्णय लेने को प्रभावित करने का प्रयास किया है। हालाँकि, उनके विरोधी इन महिलाओं पर पश्चिमीकरण के हानिकारक प्रभाव के लिए गिरने और परंपरा से मुंह मोड़ने का आरोप लगाते हैं। बंगाल में, नारीवादी सक्रियता 19वीं शताब्दी की है। उदाहरण के लिए, बेगम रुक़य्या और फैजुन्नेसा चौधुरानी ने परदे से बंगाली मुस्लिम महिलाओं को मुक्ति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हरियाणा (भारत के सबसे रूढ़िवादी राज्य) में महिला ग्राम प्रधान ने महिलाओं को घूंघट से मुक्त करने का संकल्प लिया। इस आंदोलन के समर्थन में कई मुस्लिम ग्राम प्रधान आगे आए। चूंकि हरियाणा की महिलाएं खेल आयोजनों में बहुत अधिक भाग ले रही हैं, इसलिए उन्होंने अन्य महिलाओं को घूंघट छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया है। हरियाणा में महिलाओं को पारंपरिक कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया जाता है और अक्सर आधुनिक पोशाक पहनने के लिए शर्मिंदा किया जाता है। हरियाणा में कई प्रगतिशील महिलाओं ने सार्वजनिक रूप से जींस, मिनी स्कर्ट, क्रॉप टॉप, स्लीवलेस टीशर्ट, स्पोर्ट्स ब्रा जैसे पश्चिमी कपड़े पहनकर घूंघट के खिलाफ अपना विरोध जताया है। महिलाओं के अधिकारों का विवाद कुछ विद्वानों का तर्क है कि पर्दा मूल रूप से महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने और यौन वस्तुओं के रूप में देखे जाने के लिए बनाया गया था। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह दृष्टिकोण पीड़ित-दोष को शामिल करता है और स्वयं अपराधियों के बजाय महिलाओं पर यौन हमले को रोकने का दायित्व रखता है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बुर्का और नकाब पर प्रतिबन्ध लगे - डैनियल पाइप्स इन्हें भी देखें बुर्का श्रेणी:समाज
गुरुत्वाकर्षण
https://hi.wikipedia.org/wiki/गुरुत्वाकर्षण
right|300px|thumb|गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (gravitation) पदार्थो द्वारा एक दूसरे की ओर आकर्षित होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। बहुत कम ही लोग जानते है कि इससे पूर्व ग्रीक,भारतीय और इस्लामी महान पंडित अरस्तु, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति और अल बेरुनी ही वस्तुओं को पृथ्वी पर चिपकाए रखती है। गुरुत्वीय त्वरण:- गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण, जिसे अक्सर "जी" के रूप में दर्शाया जाता है, एक वस्तु द्वारा अनुभव किया जाने वाला त्वरण है क्योंकि यह पृथ्वी के केंद्र की ओर गिरता है। पृथ्वी की सतह पर g का मान लगभग 9.8 m/s^2 या 1 g (जहाँ 1 g = 9.8 m/s^2) होता है। यह ऊंचाई और पृथ्वीहै।गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण भौतिकी में एक मौलिक अवधारणा है और किसी वस्तु पर गुरुत्वाकर्षण बल के कार्य से संबंधित है। गुरुत्वाकर्षण बल वह है जो वस्तुओं को पृथ्वी के केंद्र की ओर गिरने का कारण बनता है, और गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण वह दर है जिस पर इस बल के परिणामस्वरूप वस्तु का वेग बदल जाता है। गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण किसी वस्तु के वजन के लिए भी जिम्मेदार होता है, जो गुरुत्वाकर्षण के कारण वस्तु पर लगाया गया बल है। किसी वस्तु का वजन उसके द्रव्यमान के गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है। सतह पर स्थान के आधार पर थोड़ा भिन्न हो सकता ह गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण भौतिकी में एक मौलिक अवधारणा है और किसी वस्तु पर गुरुत्वाकर्षण बल के कार्य से संबंधित है। गुरुत्वाकर्षण बल वह है जो वस्तुओं को पृथ्वी के केंद्र की ओर गिरने का कारण बनता है, और गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण वह दर है जिस पर इस बल के परिणामस्वरूप वस्तु का वेग बदल जाता है। गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण किसी वस्तु के वजन के लिए भी जिम्मेदार होता है, जो गुरुत्वाकर्षण के कारण वस्तु पर लगाया गया बल है। किसी वस्तु का वजन उसके द्रव्यमान के गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है। गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का इतिहास प्राचीन काल thumb|upright=1.15|अरस्तू ने पाया कि किसी माध्यम में डूबी वस्तुएं अपने वजन के अनुपातिक और माध्यम के घनत्व के व्युत्क्रमानुपाती गति से गिरती हैं।. चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में ग्रीक दार्शनिक अरस्तू ने गुरुत्वाकर्षण को एक भारी वस्तु की गति के रूप में वर्णित किया जो पृथ्वी के केंद्र की ओर बढ़ती है।ग्रीक दार्शनिक, प्लूटार्क ने सुझाव दिया कि गुरुत्वाकर्षण का आकर्षण पृथ्वी के लिए अद्वितीय नहीं था|रोमन इंजीनियर और वास्तुकार विटरुवियस ने अपने डी आर्किटेक्चर में तर्क दिया कि गुरुत्वाकर्षण किसी पदार्थ के वजन पर निर्भर नहीं है बल्कि इसकी 'प्रकृति' पर निर्भर करता है। यदि क्विकसिल्वर को एक बर्तन में डाला जाता है, और उस पर एक सौ पाउंड वजन का पत्थर रखा जाता है, तो पत्थर सतह पर तैरता है, और तरल को दबा नहीं सकता है, न ही तोड़ सकता है, न ही इसे अलग कर सकता है . यदि हम सौ पाउंड का वजन हटा दें और उस पर सोने का ढेर लगा दें, तो वह तैर नहीं पाएगा, बल्कि अपने आप ही नीचे तक डूब जाएगा। अत: यह निर्विवाद है कि किसी पदार्थ का गुरुत्वाकर्षण उसके भार की मात्रा पर नहीं, बल्कि उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है। भारतीय गणितज्ञ/खगोलविद ब्रह्मगुप्त ( 598 - सी। 668 CE) ने "गुरुत्वाकर्षणम् (गुरुत्वाकर्षणम्)" शब्द का उपयोग करते हुए गुरुत्वाकर्षण को एक आकर्षक बल के रूप में वर्णित किया। भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री भास्कराचार्य द्वितीय (c. 1114 - c. 1185) अपने ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि के गोलाध्याय (गोलाकार पर) खंड में गुरुत्वाकर्षण को पृथ्वी की एक अंतर्निहित आकर्षक संपत्ति के रूप में वर्णित करते हैं|| पृथ्वी में आकर्षण का गुण निहित है। इस गुण के कारण पृथ्वी किसी भी असमर्थित भारी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है: वस्तु गिरती हुई प्रतीत होती है लेकिन वह पृथ्वी की ओर खींचे जाने की स्थिति में होती है। ... इससे यह स्पष्ट है कि ... हमसे पृथ्वी की परिधि के एक चौथाई भाग की दूरी पर या विपरीत गोलार्ध में स्थित लोग, किसी भी तरह से नीचे की ओर अंतरिक्ष में नहीं गिर सकते। इस्लामी दुनिया 11वीं सदी के फ़ारसी बहुश्रुत, अल-बिरूनी ने प्रस्तावित किया कि आकाशीय पिंडों में पृथ्वी की तरह ही द्रव्यमान, भार और गुरुत्वाकर्षण होता है।12वीं सदी के वैज्ञानिक अल-खज़िनी ने सुझाव दिया कि किसी वस्तु में गुरुत्वाकर्षण ब्रह्मांड के केंद्र से उसकी दूरी के आधार पर भिन्न होता है। पुनर्जागरण काल लियोनार्डो दा विंची लियोनार्डो दा विंची ने गिरने वाली वस्तुओं के त्वरण को रिकॉर्ड करते हुए चित्र बनाए। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण और त्वरण के बीच की कड़ी को भी नोट किया। उन्होंने कहा कि यदि एक पानी डालने वाला फूलदान अनुप्रस्थ रूप से (बग़ल में) चलता है, तो एक लंबवत गिरने वाली वस्तु के प्रक्षेपवक्र का अनुकरण करता है, यह एक सही पैदा करता है। पैर की लंबाई के बराबर त्रिकोण, गिरने वाली सामग्री से बना है जो कर्ण बनाता है और फूलदान प्रक्षेपवक्र पैरों में से एक बनाता है। वैज्ञानिक क्रांति गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत पर आधुनिक काम 16 वीं शताब्दी के अंत में और 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में गैलीलियो गैलीलि के काम से शुरू हुआ। अपने मशहूर (यद्यपि संभवतः अपोक्य्रीफल [4]) प्रयोगों में पीसा के टॉवर से गेंदों को छोड़ने का प्रयोग किया गया, और बाद में गेंदों के सावधानीपूर्वक माप के साथ इनक्लीइन को घुमाया गया, गैलीलियो ने दिखाया कि गुरुत्वाकर्षण त्वरण सभी वस्तुओं के लिए समान है। यह अरस्तू के विश्वास से एक बड़ा प्रस्थान था कि भारी वस्तुओं में उच्च गुरुत्वाकर्षण त्वरण होता है। [5] गैलीलियो ने हवा के प्रतिरोध को इस कारण के रूप में बताया कि कम द्रव्यमान वाली वस्तुएं वातावरण में धीमी गति से गिर सकती हैं। गैलीलियो के काम ने न्यूटन के गुरुत्व के सिद्धांत के निर्माण के लिए मंच तैयार किया। गैलीलियो कोई भी वस्तु ऊपर से गिरने पर सीधी पृथ्वी की ओर आती है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो कोई अलक्ष्य और अज्ञात शक्ति उसे पृथ्वी की ओर खींच रही है। इटली के वैज्ञानिक, गैलिलीयो गैलिलीआई ने सर्वप्रथम इस तथ्य पर प्रकाश डाला था कि कोई भी पिंड जब ऊपर से गिरता है तब वह एक नियत त्वरण (constant acceleration) से पृथ्वी की ओर आता है। त्वरण का यह मान सभी वस्तुओं के लिए एक सा रहता है। अपने इस निष्कर्ष की पुष्टि उसने प्रयोगों और गणितीय विवेचनों द्वारा की केप्लर की ग्रहीय गति के नियम केप्लर की ग्रहीय गति के नियम देखिये right|300px|thumb जर्मन खगोलविद केप्लर ने ग्रहों की गति का अध्ययन करके तीन नियम दिये। केप्लर का प्रथम नियम: (कक्षाओं का नियम) -सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार कक्षाओं मे चक्कर लगाते हैं तथा सूर्य उन कक्षाओं के फोकस पर होता है। द्वितीय नियम - किसी भी ग्रह को सूर्य से मिलाने वाली रेखा समान समय मे समान क्षेत्रफल पार करती है। अर्थात प्रत्येक ग्रह की क्षेत्रीय चाल (एरियल वेलासिटी) नियत रहती है। अर्थात जब ग्रह सूर्य से दूर होता है तो उसकी चाल कम हो जाती है। तृतीय नियम : (परिक्रमण काल का नियम)- प्रत्येक ग्रह का सूर्य का परिक्रमण काल का वर्ग उसकी दीर्घ वृत्ताकार कक्षा की अर्ध-दीर्घ अक्ष की तृतीय घात के समानुपाती होता है। न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम right|200px|thumb|यदि पृथ्वी के द्रव्यमान के तुल्य द्रव्यमान वाली कोई वस्तु इसकी तरफ गिरे तो उस स्थिति में पृथ्वी का त्वरण भी नगण्य नहीं बल्कि मापने योग्य होगा। इसके बाद आइज़क न्यूटन ने अपनी मौलिक खोजों के आधार पर बताया कि केवल पृथ्वी ही नहीं, अपितु विश्व का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। दो कणों के बीच कार्य करनेवाला आकर्षण बल उन कणों की संहतियों के गुणनफल का (प्रत्यक्ष) समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है। कणों के बीच कार्य करनेवाले पारस्परिक आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) तथा उससे उत्पन्न बल को गुरुत्वाकर्षण बल (Force of Gravitation) कहते है। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त नियम को न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम (Law of Gravitation) कहते हैं। कभी-कभी इस नियम को गुरुत्वाकर्षण का प्रतिलोम वर्ग नियम (Inverse Square Law) भी कहा जाता है। उपर्युक्त नियम को सूत्र रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है : मान लिया m1 और संहति वाले m2 दो पिंड परस्पर d दूरी पर स्थित हैं। उनके बीच कार्य करनेवाले बल f का संबंध होगा : --- (१) यहाँ G एक समानुपाती नियतांक है जिसका मान सभी पदार्थों के लिए एक जैसा रहता है। इसे गुरुत्व नियतांक (Gravitational Constant) कहते हैं। इस नियतांक की विमा (dimension) है और आंकिक मान प्रयुक्त इकाई पर निर्भर करता है। सूत्र (१) द्वारा किसी पिंड पर पृथ्वी के कारण लगनेवाले आकर्षण बल की गणना की जा सकती है। इन्हें भी देखें न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त‎ सापेक्षिकता सिद्धांत गुरुत्वजनित त्वरण ( g ) बाहरी कड़ियाँ न्यूटन से पहले भास्कराचार्य ने बताया था-गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त Chapter 10. Gravity, from Light and Matter: educational materials for physics and astronomy Gravity Probe B Experiment The Official Einstein website from Stanford University Center for Gravity, Electrical, and Magnetic Studies Gravity for kids (flash) Ask a scientist, Physics Archive How does gravity work? What if there were no gravity on Earth? Alternative theory of gravity explains large structure formation -- without dark matter PhysOrg.com Do it yourself, gravitation experiment How to calculate the size of the gravitation श्रेणी:भौतिकी के सिद्धांत श्रेणी:यान्त्रिकी श्रेणी:अभियान्त्रिकी * श्रेणी:त्वरण
विमान (बहुविकल्पी)
https://hi.wikipedia.org/wiki/विमान_(बहुविकल्पी)
विमान'' का आधुनिक अर्थ अर्थ होत है वायुयान''' अर्थात हवाई जहाज विमान - बांग्लादेश की राष्ट्रीय विमानन सेवा विमान शब्द भारतीय साहित्य और मिथकों में बहुत पाया जाता है। दक्षिण भारतीय मंदिरों के पिरैमिड आकार की टावरनुमा छत - विमानम्
अमृतसर
https://hi.wikipedia.org/wiki/अमृतसर
thumb|280px|खालसा कालज अमृतसर अमृतसर (Amritsar), जिसका ऐतिहासिक नाम रामदासपुर (Ramdaspur) और जिसे आम बोलचाल में अम्बरसर (Ambarsar) कहा जाता है, भारत के पंजाब राज्य का (लुधियाना के बाद) दूसरा सबसे बड़ा नगर है और अमृतसर ज़िले का मुख्यालय है। यह पंजाब के माझा क्षेत्र में है और एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक, धार्मिक, यातायात और आर्थिक केन्द्र है। यह सिख धर्म का सबसे पवित्र नगर है और यहाँ सबसे बड़ा गुरद्वारा, स्वर्ण मंदिर, स्थित है। स्वर्ण मंदिर अमृतसर का हृदय माना जाता है। यह गुरू रामदास का डेरा हुआ करता था। अमृतसर चण्डीगढ़ से 217 किमी (135 मील) पश्चिमोत्तर, नई दिल्ली से 455 किमी (283 मील) पश्चिमोत्तर, पाकिस्तान के लाहौर नगर से 47 किमी (29.2 मील) पूर्वोत्तर और अटारी-वाहगा की भारत-पाक सीमा बिन्दु से 28 किमी (17.4 मील) दूर स्थित है।"Economic Transformation of a Developing Economy: The Experience of Punjab, India," Edited by Lakhwinder Singh and Nirvikar Singh, Springer, 2016, ISBN 9789811001970"Regional Development and Planning in India," Vishwambhar Nath, Concept Publishing Company, 2009, ISBN 9788180693779"Agricultural Growth and Structural Changes in the Punjab Economy: An Input-output Analysis," G. S. Bhalla, Centre for the Study of Regional Development, Jawaharlal Nehru University, 1990, ISBN 9780896290853"Punjab Travel Guide," Swati Mitra (Editor), Eicher Goodearth Pvt Ltd, 2011, ISBN 9789380262178 इतिहास thumb|280px|स्वर्ण मन्दिर अमृतसर का इतिहास गौरवमयी है। यह अपनी संस्कृति और लड़ाइयों के लिए बहुत प्रसिद्ध रहा है। अमृतसर अनेक त्रासदियों और दर्दनाक घटनाओं का गवाह रहा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में ही हुआ था। इसके बाद भारत पाकिस्तान के बीच जो बंटवारा हुआ उस समय भी अमृतसर में बड़ा हत्याकांड हुआ। यहीं नहीं अफगान और मुगल शासकों ने इसके ऊपर अनेक आक्रमण किए और इसको बर्बाद कर दिया। इसके बावजूद सिक्खों ने अपने दृढ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति से दोबारा इसको बसाया। हालांकि अमृतसर में समय के साथ काफी बदलाव आए हैं लेकिन आज भी अमृतसर की गरिमा बरकरार है। अमृतसर लगभग साढ़े चार सौ वर्ष से अस्तित्व में है। सबसे पहले गुरु रामदास ने 1577 में 500 बीघा में गुरूद्वारे की नींव रखी थी। यह गुरूद्वारा एक सरोवर के बीच में बना हुआ है। यहां का बना तंदूर बड़ा लजीज होता है। यहां पर सुन्दर कृपाण, आम पापड, आम का आचार और सिक्खों की दस गुरूओं की खूबसूरत तस्वीरें मिलती हैं। अमृतसर में पहले जैसा आकर्षण नहीं रहा। अमृतसर के पास उसके गौरवमयी इतिहास के अलावा कुछ भी नहीं है। अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के अलावा देखने लायक कुछ है तो वह है अमृतसर का पुराना शहर। इसके चारों तरफ दीवार बनी हुई है। इसमें बारह प्रवेश द्वार है। यह बारह द्वार अमृतसर की कहानी बयान करते हैं। अमृतसर दर्शन के लिए सबसे अच्छा साधन साईकिल रिक्शा और ऑटो हैं। इसी प्रचालन को आगे बढ़ाने और विरासत को सँभालने के उद्देश से पंजाब पर्यटन विभाग ने फाजिल्का की एक गैर सरकारी संस्था ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन फाजिल्का से मिलकर, फाजिल्का से शुरू हुए इकोफ्रेंडली रिक्शा ने नए रूप, "ईको- कैब" को अमृतसर में भी शुरू कर दिया है। अब अमृतसर में रिक्शा की सवारी करते समय ना केवल पर्यटकों की जानकारी के लिए ईको- कैब में शहर का पर्यटन मानचित्र है, बल्कि पीने के लिए पानी की बोतल, पढ़ने के लिए अख़बार और सुनने के लिए एफ्फ़ एम्म रेडियो जैसे सुविधाएं भी है। मुख्य आकर्षण अमृतसर का स्वर्ण मंदिर स्वर्ण मंदिर अमृतसर का सबसे बड़ा आकर्षण है। इसका पूरा नाम हरमंदिर साहब है लेकिन यह स्वर्ण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। पूरा अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा हुआ है। स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों पर्यटक आते हैं। अमृतसर का नाम वास्वत में उस तालाब के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु रामदास ने अपने हाथों से कराया था। सिक्ख केवळ भगवान में विश्वास करते। उनके लिए गुरु ही सब कुछ हैं। स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले वह मंदिर के सामने सर झुकाते हैं, फिर पैर धोने के बाद सीढ़ियों से मुख्य मंदिर तक जाते हैं। सीढ़ियों के साथ-साथ स्वर्णमंदिर से जुड़ी हुई सारी घटनाएं और इसका पूरा इतिहास लिखा हुआ है। स्वर्ण मंदिर बहुत ही खूबसूरत है। इसमें रोशनी की सुन्दर व्यवस्था की गई है। सिक्खों के लिए स्वर्ण मंदिर बहुत ही महत्वपुर्ण है। सिक्खों के अलावा भी बहुत से श्रद्धालु यहां आते हैं। उनकी स्वर्ण मंदिर और सिक्ख धर्म में अटूट आस्था है। हरमंदिर साहब परिसर में दो बडे़ और कई छोटे-छोटे तीर्थस्थल हैं। ये सारे तीर्थस्थल जलाशय के चारों तरफ फैले हुए हैं। इस जलाशय को अमृतसर और अमृत झील के नाम से जाना जाता है। पूरा स्वर्ण मंदिर सफेद पत्थरों से बना हुआ है और इसकी दिवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गई है। हरमंदिर साहब में पूरे दिन गुरु बानी की स्वर लहरियां गुंजती रहती हैं। मंदिर परिसर में पत्थर का स्मारक लगा हुआ है। यह पत्थर जांबाज सिक्ख सैनिकों को श्रद्धाजंलि देने के लिए लगा हुआ है। जलियांवाला बाग thumb|right|280px|जलियांवाला बाग स्मारक 13 अप्रैल 1919 को इस बाग में एक सभा का आयोजन किया गया था। यह सभा ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध थी। इस सभा को बीच में ही रोकने के लिए जनरल डायर ने बाग के एकमात्र रास्ते को अपने सैनिकों के साथ घेर लिया और भीड़ पर अंधाधुंध गोली बारी शुरू कर दी। इस गोलीबारी में बच्चों, बुढ़ों और महिलाओं समेत लगभग 300 लोगों की जान गई और 1000 से ज्यादा घायल हुए। यह घटना को इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक माना जाता है। जलियां वाला बाग हत्याकांड इतना भयंकर था कि उस बाग में स्थित कुआं शवों से पूरा भर गया था। अब इसे एक सुन्दर पार्क में बदल दिया गया है और इसमें एक संग्राहलय का निर्माण भी कर दिया गया है। इसकी देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी जलियांवाला बाग ट्रस्ट की है। यहां पर सुन्दर पेड लगाए गए हैं और बाड़ बनाई गई है। इसमें दो स्मारक भी बनाए गए हैं। जिसमें एक स्मारक रोती हुई मूर्ति का है और दूसरा स्मारक अमर ज्योति है। बाग में घुमने का समय गर्मियों में सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक और सर्दियों में सुबह 10 बजे से शाम 5 तक रखा गया है। अन्य दर्शनीय स्थल गुरुद्वारे अमृतसर की दक्षिण दिशा में संतोखसर साहब और बिबेसर साहब गुरूद्वार है। इनमें से संतोखसर गुरूद्वारा स्वर्ण मंदिर से भी बड़ा है। महाराजा रणजीत सिंह ने रामबाग पार्क में एक समर पैलेस बनवाया था। इसकी अच्छी देखरेख की गई जिससे यह आज भी सही स्थिति में हैं। इस महल की बाहरी दीवारों पर लाल पत्थर लगे हुए हैं। इस महल को अब महाराजा रणजीत सिंह संग्राहलय में बदल दिया गया है। इस संग्राहलय में अनेक चित्रों और फर्नीचर को प्रदर्शित किया गया है। यह एक पार्क के बीच में बना हुआ है। इस पार्क को बहुत सुन्दर बनाया गया है। इस पार्क को लाहौर के शालीमार बाग जैसा बनाया गया है। संग्राहलय में घूमने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक रखा गया है। यह सोमवार को बंद रहता है। दुर्ग्याणा मंदिर प्राचीन हिन्दू मंदिर हाथी गेट क्षेत्र में स्थित हैं। यहां पर दुर्गीयाना मंदिर है। इस मंदिर को हरमंदिर की तरह बनाया गया है। इस मंदिर के जलाशय के मध्य में सोने की परत चढा गर्भ गृह बना हुआ है। दुर्गीयाना मंदिर के बिल्कुल पीछे हनुमान मंदिर है। दंत कथाओं के अनुसार यही वह स्थान है जहां हनुमान अश्वमेध यज्ञ के घोडे को लव-कुश से वापस लेने आए थे और उन दोनों ने हनुमान को परास्त कर दिया था। खरउद्दीन मस्जिद यह मस्जिद गांधी गेट के नजदीक हॉल बाजार में स्थित है। नमाज के समय यहां बहुत भीड़ होती है। इस समय इसका पूरा प्रागंण नमाजियों से भरा होता है। उचित देखभाल के कारण भारी भीड के बावजूद इसकी सुन्दरता में कोई कमी नहीं आई है। यह मस्जिद इस्लामी भवन निर्माण कला की जीती जागती तस्वीर पेश करती है मुख्य रूप से इसकी दीवारों पर लिखी आयतें। यह बात ध्यान देने योग्य है कि जलियांवाला बाग सभा के मुख्य वक्ता डॉ सैफउद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल इसी मस्जिद से ही सभा को संबोधित कर रहे थे। बाबा अटल राय स्तंभ यह गुरु हरगोविंदसिंह के नौ वर्षीय पुत्र का शहादत स्थल है। आसपास के दर्शनीय स्‍थल वागाह-अटारी बॉर्डर वागाह बोर्डर पर हर शाम भारत की सीमा सुरक्षा बल और पाकिस्तान रेंजर्स की सैनिक टुकडियां इकट्ठी होती है। विशेष मौकों पर मुख्य रूप से 14 अगस्त के दिन जब पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस समाप्त होता है और भारत के स्वतंत्रता दिवस की सुबह होती है उस शाम वहां पर शांति के लिए रात्रि जागरण किया जाता है। उस रात वहां लोगों को एक-दुसरे से मिलने की अनुमति भी दी जाती है। इसके अलावा वहां पर पूरे साल कंटिली तारें, सुरक्षाकर्मी और मुख्य द्वार के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। तरन तारन अमृतसर से करीब 22 किलोमीटर दूर इस स्थान पर एक तालाब है। ऐसी मान्यता है कि इसके पानी में बीमारियों को दूर करने की ताकत है। यह तालाब बिमारियों को अपने अंदर घोल लेता है। खानपान अमृतसर के व्यंजन पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। यहां का बना चिकन, मक्के की रोटी, सरसों का साग और लस्सी बहुत प्रसिद्ध है। खाने-पीने वाले शौकीन लोगों के लिए पंजाब स्वर्ग माना जाता है। दरबार साहिब के दर्शन करने के बाद अधिकतर श्रद्धालु भीजे भठुर, रसीली जलेबी और अन्य व्यंजनों का आनंद लेने के लिए भरावन के ढाबे पर जाते हैं। यहां की स्पेशल थाली भी बहुत प्रसिद्ध है। इसके अलावा लारेंस रोड की टिक्की, आलू-पूरी और आलू परांठे बहुत प्रसिद्ध हैं। अमृतसर के अमृतसरी कुल्चे बहुत प्रसिद्ध है। अमृतसरी कुल्चों के लिए सबसे बेहतर जगह मकबूल रोड के ढा़बे हैं, यहां केवल 2 बजे तक ही कुल्चे मिलते हैं। पपडी़ चाट और टिक्की के लिए बृजवासी की दूकान प्रसिद्ध है। यह दूकान कूपर रोड पर स्थित है। लारेंस रोड पर बी.बी.डी.ए.वी. गर्ल्‍स कॉलेज के पास शहर के सबसे अच्छे आम पापड़ मिलते हैं। खाने के साथ-साथ अमृतसर अपने मांसाहारी व्यंजनों के लिए भी प्रसिद्ध है। मासंहारी व्यंजनों में अमृतसरी मछी बहुत प्रसिद्ध है। इस व्यंजन को चालीस साल पहले चिमन लाल ने तैयार किया था। अब यह व्यंजन अमृतसर के मांसाहारी व्यंजनों की पहचान है। लारेंस रोड पर 6. सूरजीत चिकन हाऊस अपने भूने हुए चिकन के लिए और कटरा शेर सिंह अपनी अमृतसरी मछी के लिए पूरे अमृतसर में प्रसिद्ध है। बाजार-हाटvbb अमृतसर का बाजार काफी अच्छा है। यहां हर तरह के देशी और विदेशी कपडे़ मिलते हैं। यह बाजार काफी कुछ लाजपत नगर जैसा है। अमृतसर के पुराने शहर के हॉल बाजार के आस-पास के क्षेत्र मुख्यत: कोतवाली क्षेत्र के पास परंपरागत बाजार हैं। इन बाजारों के अलावा यहां पर अनेक कटरे भी हैं। यहां पर आभूषणों से लेकर रसोई तक का सभी सामान मिलता है। यह अपने अचारों और पापडों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। पंजाबी पहनावा भी पूरे विश्व में बहुत प्रसिद्ध है। खासकर लड़कियों में पंजाबी सूट के प्रति बहुत चाव रहता है। सूटों के अलावा यहां पर पगडी़, सलवार-कमीज, रूमाल और पंजाबी जूतियों की बहुत मांग हैं। दरबार साहब के बाहर जो बाजार लगता है। वहां पर स्टील के उच्च गुणवत्ता वाले बर्तन और कृपाण मिलते हैं। कृपाण को सिक्खों में बहुत पवित्र माना जाता है। इन सब के अलावा यहां पर सिक्ख धर्म से जुड़ी किताबें और साहित्य भी प्रचुर मात्रा में मिलता है। स्थिति यह भारत के बिल्कुल पश्चिम छोर पर स्थित है। यहां से पाकिस्तान केवल 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राष्ट्रीय राजमार्ग 1 द्वारा करनाल, अम्बाला, खन्ना,जलंधर और लुधियाना होते हुए अमृतसर पहुंचा जा सकता है। दूरी: यह दिल्ली से उत्तर पूर्व में 447 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अमृतसर जाने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च है आवागमन दिल्ली से यात्रा में लगने वाला समय: रेलमार्ग और सडक मार्ग से 9 घंटे, वायुमार्ग से 1 घंटा। वायु मार्ग श्री गुरु रामदास जी अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र अमृतसर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर राजासांसी में स्थित है, जिसे तय करने में 15 मिनट का समय लगता है। यह हवाई अड्डा दिल्ली से अच्छी तरह जुडा हुआ है। रेल मार्ग दिल्ली से शताब्दी, व कई एक्सप्रैस और मेल ट्रेनों द्वारा आसानी से अमृतसर रेलवे स्टेशन पहुंचा जा सकता है। हिसार-अमृतसर14653 में लगने वाला समय 12:05 AM - 07:20 AM किराया ₹125 रोजाना का सडक मार्ग अपनी कार से भी ग्रैंड ट्रंक रोड द्वारा आसानी से अमृतसर पहुंचा जा सकता है। बीच में विश्राम करने के लिए रास्ते में सागर रत्ना, लक्की ढाबा और हवेली अच्छे रस्तरां है। यहां पर रूककर कुछ देर आराम किया जा सकता है और खाने का आनंद भी लिया जा सकता है। इसके अलावा दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से भी अमृतसर के लिए बसें जाती हैं। अमृतसर घूमने का सही समय अमृतसर घूमने का सबसे सही समय सर्दियों का मौसम माना जाता है यानी की अक्टूबर से लेकर फरवरी माह तक क्योंकि इसी समय अमृतसर में काफी पर्यटक घूमने आते हैं। गर्मीयो के मौसम में यहां पर बहुत गर्मी पड़ती है जिसकी वजह से इस समय अमृतसर की यात्रा करने से बचना चाहिए। राजनीति बख्शी राम अरोड़ा इस शहर के महापौर हैं। कांग्रेस के गुरूजीत सिंह औंजला यहाँ से साँसद हैं। अमृतसर शहर में पाँच विधान सभा निर्वाचनक्षेत्र हैं, तथा यहाँ के विधायक हैं-अनिल जोशी, नवजोत कौर सिद्धू, ओमप्रकाश सोनी, राज कुमार, इंदरबीर सिंह। अमृतसर जिले में कुल ११ विधान सभा निर्वाचनक्षेत्र आते हैं। इन्हें भी देखें स्वर्ण मन्दिर जलियाँवाला बाग अमृतसर ज़िला पंजाब, भारत अटारी सन्दर्भ * श्रेणी:पंजाब के शहर श्रेणी:अमृतसर ज़िला श्रेणी:अमृतसर ज़िले के नगर
झाँसी
https://hi.wikipedia.org/wiki/झाँसी
thumb|280px|महारानी लक्ष्मीबाई का झाँसी का किला झाँसी (झांशी‌) (Jhansi) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बुन्देलखण्ड के झाँसी जनपद में स्थित एक नगर है। यह जनपद का मुख्यालय भी है। यह नगर भारतभर में झाँसी की रानी की 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका के कारण प्रसिद्ध है। शहर से तीन प्रमुख राजमार्ग गुजरते हैं - राष्ट्रीय राजमार्ग 27, राष्ट्रीय राजमार्ग 39 और राष्ट्रीय राजमार्ग 44।"Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716"Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance ," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975 विवरण यह शहर उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है और बुन्देलखण्ड क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। झाँसी एक प्रमुख रेल एवं सड़क केन्द्र है और झाँसी जिले का प्रशासनिक केन्द्र भी है। झाँसी शहर पत्थर निर्मित किले के चारो तरफ फैला हुआ है, यह किला शहर के मध्य स्थित बँगरा नामक पहाड़ी पर निर्मित है। उत्तर प्रदेश में 20.7 वर्ग कि॰ मी॰ के क्षेत्र में फैला झाँसी पर प्रारम्भ में चन्देल राजाओं का नियंत्रण था। उस समय इसे बलवन्त नगर के नाम से जाना जाता था। झाँसी का महत्व सत्रहवीं शताब्दी में ओरछा के राजा बीर सिंह देव के शासनकाल में बढ़ा। इस दौरान राजा बीर सिंह और उनके उत्तराधिकारियों ने झाँसी में अनेक ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया। बुन्देलखंड का गढ़ माने जाने वाले झाँसी का इतिहास संघर्षशील है। 1857 में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने के स्थान पर उनके विरूद्ध संघर्ष करना उचित समझा। वे अंग्रेजों से वीरतापूर्वक लड़ी और अन्त में वीरगति को प्राप्त हुईं। झाँसी नगर के घर-घर में रानी लक्ष्मीबाई की वीरता के किस्से सुनाए जाते हैं। हिन्दी कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने इसे अपनी कविता, झाँसी की रानी, में वर्णित करा है: बुन्देलों हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी इतिहास यह नगर ओरछा का प्रतापी वीर सिंह जू देव बुन्देला ने बसाया था उन्होंने 1608 ई में बलवंत नगर गाँव के पास की पहाड़ी पर एक विशाल किले का निर्माण कराया व नगर बसाया। झाँसी का नाम झाँसी कैसे पड़ा इसके बारे में कहा जाता है जब वीर सिंह जू देव बुन्देला ओरछा अपने इस नगर को देख रहे थे तो उनको झाइसी (धुँधला) दिखाई दे रही थी तब उन्होंने अपने मंत्री से कहा कि झाइसी क्यों दिख रही है तो उनके मंत्री ने कहा झाइसी नही महाराज ये आपका नया शहर है तब से इसका नाम झाइसी हो गया जो आज झाँसी के नाम से जाना जाता है। 17वीं शताब्दी बुन्देला राजा छ्त्रसाल ने सन् 1732 में मराठा साम्राज्य से मदद माँगी। मराठा मदद के लिए आगे आए। सन् 1734 में राजा छ्त्रसाल की मौत के बाद बुन्देला क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा मराठो को दे दिया गया। मराठो ने शहर का विकास किया और इसके लिए ओरछा से लोगो को ला कर बसाया गया। सन् 1806 मे मराठा शक्ति कमजोर पडने के बाद ब्रितानी राज और मराठा के बीच् समझौता हुआ जिसमे मराठो ने ब्रितानी साम्राज्य का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। सन् 1817 में मराठो ने पूने में बुन्देल्खन्ड क्षेत्र के सारे अधिकार ब्रितानी ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिये। सन् 1853 में झाँसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। तत्कालीन गवर्नल जनरल ने झाँसी को पूरी तरह से अपने अधिकार में ले लिया। राजा गंगाधर राव की विधवा रानी लक्ष्मीबाई ने इसका विरोध किया और कहा कि राजा गंगाधर राव के दत्तक पुत्र को राज्य का उत्त्तराधिकारी माना जाए, परन्तु ब्रितानी राज ने मानने से इन्कार कर दिया। इन्ही परिस्थितियों के चलते झाँसी में सन् 1857 का संग्राम हुआ। जो कि भारतीय स्वतन्त्र्ता संग्राम के लिये नीव का पत्थर साबित हुआ। जून 1857 में 12वीं पैदल सेना के सैनिको ने झाँसी के किले पर कब्जा कर लिया और किले में मौजूद ब्रितानी अफसरो को मार दिया गया। ब्रितानी राज से लडाई के दोरान रानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं सेना का सन्चालन किया। नवम्बर 1858 में झाँसी को फिर से ब्रितानी राज में मिला लिया गया और झाँसी के अधिकार ग्वालियर के राजा को दे दिये गये। सन् 1886 में झाँसी को यूनाइटिड प्रोविन्स में जोडा गया जो स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद 1956 में उत्तर प्रदेश बना। पुरानी झाँसी २०० वर्ष पहले झाँसी बुंदेलखंड का एक स्वतंत्र राज्य था। उन दिनों उसके बीच से होकर अपने अस्तित्व का सदा मान कराने के लिए ओरछा राज्य की एक तिहरी सीमा-रेखा रहती थी। इसीलिए झाँसी दो भागों में विभक्त थी। संपूर्ण सीमा को मिलाकर पश्चिम में एक सौ मील और उत्तर में साठ मील। इस स्वल्प सीमा वाले राज्य की पर्वत-संकुल-अनुर्वर छाती को हल की नोक से फाड़कर धरती को फसल की भाषा में बात कहलाने का प्रयास वर्ष-पर-वर्ष असफल होता रहता था। वैशाख की प्रखर गर्मी में जल की प्रतीक्षा करते हुए किसान की बहू-बिटिया सिर पर डलिया रखे हुए 'भादों' का गीत गाते हुए व्यर्थ ही लौट आती थीं। फिर भी वहाँ (झाँसी में) अनेक लोगों ने अपनी बस्तियाँ बनाई थीं। ब्राह्मण, राजपूत, अहीर, बुंदेला, चमार, काछी, कोरी, लोधी, कुर्मी सभी जाति के लोग आँसी आए थे। मऊ से झाँसी, झाँसी से कालपी होकर कानपुर और आगरा से सागर-इन तीन व्यापारिक मार्गों से होकर, गधा, घोड़ा और ऊँटों की पीठ पर लदकर वर्ष-पर-वर्ष बाहर से खाद्यान्न आया करता था। इसके अलावा घोड़े और हाथियों के मालिक भी आते रहते थे। झाँसी थी हाथी-घोड़ा बेचने की एक प्रधान मंडी। राजधानी झाँसी आगरा से दक्षिणी दिशा में एक सौ बयालीस मील दूर पड़ती थी। इलाहाबाद से बाँदा के मार्ग से होकर दो सौ पैंतालीस मील दूर पश्चिम में थी। कलकत्ता से सात सौ चालीस मील दूर उत्तर-पश्चिम में। धन-धान्य से समृद्ध नगरी झाँसी पर गर्व करते हुए इसके अधिवासी लोग कहा करते थे- 'नीचे में पूना, ऊँचे में काशी सबसे सुंदर बीच में हमाओ झाँसी।' झाँसी के बारे में जानने के पहले बुंदेलखंड का संक्षिप्त इतिहास जानना जरूरी है। क्योंकि बुंदेलखंड में मराठी वंश की स्थापना होने के पहले झाँसी में नेवलकर वंश आ गया था। इसी नेवलकर वंश की बहू होकर झाँसी में आई थी रानी लक्ष्मीबाई। बुंदेलखंड बुंदेला लोगों का देश था। महाभारत के युग में बुंदेलखंड, चेदि, दशार्ण और विदर्भ साम्राज्य के अंतर्गत आता था। चंदेल राजपूतों के युग में झाँसी अत्यंत समृद्ध थी। चंदेल राजपूत राजाओं ने झाँसी और बुंदेलखंड भर में सर्वत्र पक्के जलाशयों का निर्माण कराया था। उनमें से कुछ तो अभी-भी विद्यमान हैं। चंदेल राजपूतों के हाथ से निकलते-निकलते बुंदेलखंड मुगलों के अधिकार में आ गया। उस समय बुंदेलखंड की राजधानी ओरछा थी। सोलहवीं शताब्दी में, बुंदेल राजा मलखान सिंह की मृत्यु के बाद राजा हुए उनके ज्येष्ठ पुत्र रुद्रप्रताप। 1539 ई में उन्होंने ओरछा की स्थापना की। नगण्य जनपद को उन्होंने ही समृद्धिशाली बनाया। ओरछा के राजा दिल्ली के बादशाह को नियमित रूप से कर नहीं देते थे। नेवाळकर राजवंश नेवालकर घराणा एवं झाँसी राजवंश नाम : नेवालकर घराणा साम्राज्य : मराठा साम्राज्य कुळ : मराठी कऱ्हाडे ब्राम्हण कुलदेवी : श्री महालक्ष्मी अंबाबाई कोल्हापूर कुलदेवता : श्री लक्ष्मी पल्लीनाथ रत्नागिरी ग्राम देवता : श्री नवलाई माऊली, कोट उपासक : महादेव, श्री गणेश मुळनिवासी : पावस, राजापूर, रत्नागिरी, महाराष्ट्र रहिवासी : कोट रत्नागिरी, पारोला जलगांव, झांसी जहागीरदार : पारोला, जलगांव, महाराष्ट्र राजगद्दी :- झाँसी, बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश शासन काल : १७६९-१८५८ मुळपुरुष : रघुनाथ हरी नेवालकर प्रथम प्रथम सुभेदार : रघुनाथराव हरी हरीपंत नेवालकर द्वि. अंतिम सुभेदार : शिवराव हरीपंत नेवालकर प्रथम राजा : राजा शिवराव हरीपंत नेवालकर अंतिम राजा : राजा रामचंद्रराव नेवालकर प्रथम महाराज : महाराज रामचंद्रराव नेवालकर अंतिम महाराज : महाराज गंगाधरराव नेवालकर प्रसिध्द व्यक्ती :- झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई "झांसी की रानी" महाश्वेता देवी के उपन्यास पर आधारित नेवालकर वंश 1. प्रथम रघुनाथ हरी नेवालकर (मुलपुरुष घराणे) नेवालकर परिवार के मुलपुरूष थे। इनके दो पुत्र थे। एक "खंडेराव" दुसरा "दामोदरपंत" ( रघुनाथ हरी नेवालकर के पुत्र खंडेराव का वंश - पारोला, जलगांव के जहागीरदार के रूप में थे। ) खंडेराव का वंश (पारोला, जलगांव) 2. खंडेराव रघुनाथ हरी नेवालकर यह रघुनाथ हरी के पुत्र थे। इनका पुत्र था रामचंद्र राव। 3. रामचंद्र राव खंडेराव नेवालकर यह खंडेराव के पुत्र थे। इनका पुत्र था आनंदराव। 4. आनंदराव रामचंद्र राव नेवालकर यह खंडेराव रामचंद्र राव के पुत्र थे। आनंदराव को दो पुत्र थे। एक हरी भाऊ काशीनाथ, और दुसरे वासुदेव राव। 5. हरी भाऊ काशीनाथ नेवालकर ( लालभाऊ ) १८५२ में इन्हे झांसी अंतर्गत मऊ रानीपूर का तहसीलदार नियुक्त किया था। इनकी पत्नी १८७१ में झांसी से इंदौर रहने गयी थी. इंदौर में स्थित इनकी पत्नी ने बाद में रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव की देखरेख की थी। 6. वासुदेव आनंदराव नेवालकर यह पारोला, जलगांव के जहागिरदार थे। १५ नवम्बर १८४९ आनंदराव नामक पुत्र हुआ। जो बाद में दामोदर राव नाम से रानी लक्ष्मीबाई का दत्तक पुत्र बना। रघुनाथ हरी नेवालकर के दूसरे पुत्र दामोदरपंत का वंश दामोदरपंत का वंश (झांसी राजघराना आरंभ) 7. दामोदरपंत रघुनाथ हरी नेवालकर यह प्रथम रघुनाथ हरी नेवालकर के दुसरे पुत्र थे। इन्हे दो पुत्र थे। "राघोपंत", "सदाशिवपंत" और "हरीपंत" 8. राघोपंत दामोदरपंत नेवालकर राघोपंत की एक युध्द में मृत्यु हुई थी। सदाशिवपंत का वंश ( पारोला, जलगांव) 9. सदाशिवपंत दामोदरपंत नेवालकर यह प्रथम रघुनाथ हरी नेवालकर के दुसरे बेटे दामोदरपंत के पुत्र थे। यह भी पारोला की जाहगीरदार संभालते थे। इनके पुत्र थे त्र्यंबकराव। इन्होनें १७२६ में पारोला का किला का निर्माण किया था। 10. त्र्यंबकराव सदाशिवपंत नेवालकर यह सदाशिवपंत के पुत्र थे। इनके पुत्र का नाम था नारायणराव। 11. नारायणराव त्र्यंबकराव नेवालकर यह त्र्यंबकराव के पुत्र थे। इनके पुत्र का नाम था सदाशिवराव। 12. सदाशिवराव नारायणराव नेवालकर १८४४-५७ तक यह पारोला, जलगांव के जहागिरदार थे। १८३५, १८३८ तथा १८५३ में झाँसी नरेश राजा गंगाधर राव के पुत्र कि निधन होने के पश्चात इन्होंने ने झाँसी सिंहासन की दावेदारी की। १३ जून १८५७ को झाँसी के समीप करेरा किले पर आक्रमण करके राजशाही की घोषणा कर दी। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने सदाशिव नारायण का विद्रोह मिटाकर उसे बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया था। १८५८ मे रानी की शहादत के पश्चात अंग्रेज़ों ने इसे झांसी किले की जेल से निकालकर कमिश्नरी में रखा था। १८६० में अंग्रेजों ने उसे अंदमान भेज दिया था। जहां उसकी मृत्यु हुई थी। हरीपंत का वंश (झांसी का राजघराना) ' 13. हरीपंत दामोदरपंत नेवालकर यह दामोदरपंत के पुत्र थे। इन्हे तीन पुत्र थे। रघुनाथराव द्वितीय, शिवराव, लक्ष्मणराव (लालाभाऊ) 14. सुभेदार रघुनाथराव हरीपंत नेवालकर द्वि.(१७७०-९६) (नेवालकर परिवार के पहले सुभेदार थे) यह हरीपंत के पुत्र थे। यह झांसी के नेवालकर परीवार के पहले सुभेदार थे। पेशवा ने इन्हे झांसी राज्य की सुभेदारी दी थी। झांसी मे गोसावी का विद्रोह इन्होने समाप्त किया था। और झांसी में मराठा शाही की स्थापना की। यह निपुत्रिक थे। इसलिए झांसी का कारभार पेशवा ने इनके भाई शिवराव को दिया था। 15. राजा शिवराव हरीपंत नेवालकर (१७९६-१४) (नेवालकर परिवार से झाँसी के पहले राजा) यह हरीपंत के दुसरे पुत्र थे। यह द्वितीय रघुनाथराव नेवालकर द्वितीय के भाई थे। झांसी के यह अंतिम सुभेदार थे। पेशवा से मतभेद की वजह से इन्होंने ६ फरवरी १८०४ को अंग्रेजों की मदत से झांसी राज्य की गद्दी वंशानुगत करा ली थी। और यह झांसी राज्य के पहले राजा बने। इनके दो विवाह हुए थे। पहली पत्नी रखमाबाई से कृष्णराव और द्वितीय पत्नी पद्माबाई से रघुनाथराव तृतीय, गंगाधर राव हुए। 16. लक्ष्मणराव हरीपंत नेवालकर ( लालाभाऊ ) यह हरीपंत के पुत्र थे। पारोला के जहागीरदार थे। अंग्रेजों ने लालाभाऊ रानी लक्ष्मीबाई के परिवार सदस्य होने के कारण १८५९ पारोला की जहागीरदारी समाप्त कर दी गयी थी। रघुनाथराव द्वितीय एवं शिवराव भाऊ नेवालकर का झाँसी का राजवंश 17. राजा कृष्णराव शिवराव नेवालकर यह शिवराव भाऊ और उनकी पहली पत्नी रखमाबाई के पुत्र थे। यह झांसी के दुसरे राजा थे। इनकी पत्नी थी महारानी सखुबाई। काहां जाता हैं की सखुबाई बहुत षड्यंत्री थी। झांसी गद्दी के लिए सखुबाई ने अपने पती और पुत्र की हत्या करवाई थी और स्वयं झांसी की रानी बनकर राजपाल देख रही थी। किंतू अंग्रेजों की वजह से सखुबाई ने अपनी बेटी के पुत्र यानी पौत्र को झांसी का वारिस बनाया। कृष्णराव और सखुबाई के पुत्र थे रामचंद्र राव और कन्या गंगाबाई थी। गंगाबाई का सागर के सुभेदार मोरेश्वर विनायक राव चांदोरकर से विवाह हुआ था। 18. महाराज रामचंद्रराव कृष्णराव नेवालकर (१८११-३५) (नेवालकर परिवार से प्रथम झाँसी महाराजाधिराज) इनका जन्म १८०६ में हुआ था। माता सखुबाई द्वारा पिता कृष्णराव की हत्या के पश्चात झांसी गद्दी पर यही बैठे थे। १८ नवम्बर १८१७ इन्होंने अंग्रेजों से संधी करके इन्होंने झांसी राज्य में राजशाही स्थापित की थी। १८३२ में अंग्रेज़ों ने इन्हें "महाराजाधिराज" पदवी देकर झांसी राज्य का महाराज घोषित कर दिया था। रामचंद्रराव को यह झांसी के पहले महाराजा थे। कृष्णराव की पत्नी का नाम था रानी लक्ष्मीबाई जो निपुत्रिक थी। १८३५ में रानी सखुबाई द्वारा इनकी हत्या करवाई गयी थी। परीवार क्लेश की वजह से रानी लक्ष्मीबाई झांसी राज्य छोडकर चली गयी थी। सखुबाई ने रामचंद्र के नाम से अपने पौत्र को गद्दी पर बिठाया था। 19. चंद्रकृष्णराव रामचंद्रराव नेवालकर यह रानी सखुबाई की पुत्री सागर सुभेदार मोरेश्वर विनायक राव चांदोरकर की पत्नी गंगाबाई के पुत्र थे। रानी सखुबाई ने रामचंद्रराव के नाम से चंद्रकृष्णराव को दत्तक पुत्र बनाकर झांसी गद्दी पर बिठाया। अंग्रेजों ने इसे झांसी का वारिस नामुंजरी दी थी। और कृष्णराव के भाई रघुनाथराव तृतीय को राजगद्दी पर बिठाया। 20. महाराज रघुनाथराव शिवराव नेवालकर तृतीय.(१८३५-३८) यह शिवराम भाऊ नेवालकर की दुसरी पत्नी पद्माबाई के पुत्र थे। इनका जन्म १८०३ में हुआ था। अंग्रेजों ने राजगद्दी पर बिठाया था। अंग्रेजों ने इन्हे "फिदवी बादशहा जमजाह इंग्लिशस्तान" यह खिताब दिया था। इनकी पत्नी थी महारानी जानकीबाई। यह निपुत्रिक थी। और झांसी राज्य की दावेदार थी। इसी कारण रघुनाथराव का संबंध झांसी की प्रसिध्द वेश्या गजराबाई उर्फ लछ्छोबाई से था। रघुनाथराव को लछ्छोबाई से अली बहादुर, नुसरत और मेहरूनिस्सा नामक एक बेटी थी। लछ्छोबाई अपने पुत्र अली बहादूर को झांसी राज्य का राजा बनाना चाहती थी। लेकिन उसे अंग्रेज़ों ने नाजायज संतान घोषित किया। महाराज रघुनाथराव कुष्ठरोगी थे। १८३८ में इनकी मृत्यु हुई। 21. महाराज गंगाधरराव शिवराव नेवालकर (१८३८-५३) इनका जनम १८१३ में हुआ था। यह शिवरावभाऊ की दुसरी पत्नी पद्माबाई के पुत्र थे। रघुनाथराव तृतीय के मृत्यु के पश्चात अंग्रेज़ों ने १८३८ को गंगाधर राव को राजगद्दी पर बिठाया। और झांसी राज्य के सारे अधिकार कंपनी सरकार के हाथ गये। इनकी पहली पत्नी महारानी रमाबाई निपुत्रिक थी। उनके निधन के बाद महाराज ने १८४२ में मनिकर्णिका नामक कन्या से विवाह किया। जो बाद में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बनी। महाराज और रानी लक्ष्मीबाई को पुत्र हुआ जिसका तीन माह की आयु में निधन हुआ। महाराज ने वासुदेव के पुत्र आनंदराव को लिया था। २१ नवम्बर १८५३ को महाराज गंगाधरराव का निधन हुआ था। 22. महारानी लक्ष्मीबाई गंगाधरराव नेवालकर (१८५३-५८) खुब लडी मर्दानी झाँसी वाली रानी.... नाम से प्रसिद्ध मनिकर्णिका का जन्म मोरोपंत तांबे और भागिरथीबाई के घर १९ नवम्बर १८३५ को हुआ था। १८४२ में झांसी नरेश से विवाह के पश्चात इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। यह महाराज गंगाधरराव की द्वितीय पत्नी थी। इनका पुत्र दामोदर राव की तीन माह की आयु में मृत्यु हुई। वासुदेव के पुत्र आनंदराव को गोद लेकर उसका नाम दामोदर रखा। महाराज गंगाधर राव की मृत्यू के पश्चात रानी लक्ष्मीबाई ने एक साल (२१ नवम्बर १८५३-१० मार्च १८५४) तक झांसी का राज पाठ संभाला। बाद में अंग्रेज़ों ने दामोदर राव को उत्तराधिकारी न मानते हुए रानी को निष्कासित कर के रानी महल भेज दिया। और झांसी का अधिकार कंपनी के हाथ गया। १८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महारानी ने अहम भूमिका निभाई थी। इस के पश्चात (४ जून १८५७-४ अप्रैल १८५८) तक रानी का झांसी पर शासन था। १८५८ में अंग्रेजों ने झांसी पर हमला किया। रानी ने झांसी से क्रमशः कोंच, कालपी और ग्वालियर युध्द किया। १७ जून १८५८ को ग्वालियर के कोटा की सराय में अंग्रेज़ों से लडते हुए रानी लक्ष्मीबाई शहीद हुई। यह झाँसी की अंतिम शासक थी। 23. दामोदर राव गंगाधरराव नेवालकर ( १८५१ ) इनका जन्म १८५१ में हुआ था। यह रानी लक्ष्मीबाई और गंगाधरराव के पुत्र थे। तीन माह की आयु में इनका निधन हुआ। 24. आनंदराव गंगाधरराव नेवालकर (१८४९-१९०६) १५ नवम्बर १८४९ को वासुदेव नेवालकर के घर इनका जन्म हुआ था। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और महाराज गंगाधरराव ने २० नवम्बर १८५३ इन्हे गोद लेकर अपने मृत शिशु के नाम पर दामोदर राव नाम रखकर झांसी राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया। १८५७-५८ के संग्राम में दामोदर राव को महारानी लक्ष्मीबाई ने अपने पीठ पर बांधकर अंग्रेज़ों से युध्द किया था। लंबे संघर्ष के बाद २८ मई १९०६ में इंदौर में इनका निधन हुआ। इनके पुत्र थे "लक्ष्मणराव झांसीवाले" आज भी इनका वंश इंदौर में है। झाँसी की रानीयाँ 1. रानी रखमाबाई अखंड सौभाग्यवती श्रीमंत महारानी रखमाबाई साहेब नेवालकर उर्फ ( अक्कासाहेब ) यह सुभेदार शिवराव भाऊ नेवालकर की पहली पत्नी थी। इनका पुत्र था कृष्णराव। और रानी सखुबाई की सांस थी। 2. रानी पद्माबाई अखंड सौभाग्यवती श्रीमंत महारानी पद्माबाई साहेब नेवालकर उर्फ ( आऊसाहेब ) यह सुभेदार शिवराव भाऊ नेवालकर की द्वितीय पत्नी थी। इनके पुत्र थे रघुनाथराव तृतीय और गंगाधरराव। यह रानी लक्ष्मीबाई तथा रानी जानकीबाई की सांस थी। 3. रानी सखुबाई अखंड सौभाग्यवती श्रीमंत महारानी सखुबाई साहेब नेवालकर उर्फ ( राजमाता / बड़ी वहिनीसाहेब ) यह सुभेदार कृष्णराव की पत्नी और झांसी के पहले राजा रामचंद्र राव की मां थी। राजगद्दी के लालच में इसने अपने पती एवं पुत्र की हत्या करवाई थी। यह झांसी राजगद्दी की दावेदार थी। 4. महारानी लक्ष्मीबाई प्रथम अखंड सौभाग्यवती श्रीमंत महारानी लक्ष्मीबाई साहेब नेवालकर उर्फ ( ताईसाहेब ) यह झांसी के प्रथम महाराज रामचंद्र राव की पत्नी थी। यह निपुत्रिक थी। रामचंद्र राव की मृत्यु के पश्चात यह १८३५ में झांसी छोडकर चली गई। 5. रानी जानकीबाई अखंड सौभाग्यवती श्रीमंत महारानी जानकीबाई साहेब नेवालकर उर्फ ( वहिनीसाहेब ) यह महाराज रघुनाथराव तृतीय की पत्नी थी। यह निपुत्रिक थी। यह भी झांसी राजगद्दी की दावेदार थी। 6. आफताब बेगम उर्फ रानी लछछोबाई मल्लिका-ए-तख्त-ए-झाँसी हुजूर मोहतरमा बेगम लछ्छोबाई साहिबा उर्फ ( बेगम साहिबा ) यह एक वेश्या थी। और रघुनाथराव तृतीय के समय मोतीबाई और गजराबाई के साथ झांसी दरबार में नृत्य करती थी। महाराज रघुनाथराव तृतीय इससे बहुत प्यार करते थे। वह लछ्छोबाई को प्यार से आफताब बेगम के नाम से बुलाते थे। रघुनाथराव ने इसके लिए झांसी में एक महल बनवाया। आज वो महल रघुनाथराव महल के नाम से जाना जाता है। उस महल के दरवाजेरपर आफताब बेगम ईद के दिन चांद का दिदार करती थी। इसलिए उस दरवाजे का नाम चांद दरवाजा रखा गया। इन्हे अली बहादूर, नुसरत नामक पुत्र और मेहरूनिस्सा नामक कन्या थी। यह अपने पुत्र अली बहादुर को राजा बनाने के अग्रणी थी। यह भी झांसी राजगद्दी की दावेदार थी। 7. महारानी रमाबाई अखंड सौभाग्यवती श्रीमंत महारानी रमाबाई साहेब नेवालकर उर्फ ( रानी साहेब ) यह महाराज गंगाधर राव की पहली पत्नी थी। इनकी निसंतान मृत्यु हुई थी। इसलिए महाराज ने दुसरा विवाह किया था। 8. वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाईसाहेब (रानी लक्ष्मीबाई) बुंदेलखंड धराधरीश्वरी राजराजेश्वरी सिंहासनाधीश्वरी अखंड लक्ष्मी अलंकृत न्यायलंकारमंडित शस्त्रास्त्रशास्त्रपारंगत राजनितीधुरंदर झाँसी की महारानी अखंड सौभाग्यवती वज्रचुडेमंडित श्रीमंत राजमाता वीरांगना श्री रानी लक्ष्मीबाई साहेब गंगाधरराव नेवालकर जू देवी उर्फ (रानी माँ / बाईसाहेब) यह महाराज गंगाधरराव की दुसरी पत्नी एवं विधवा थी। साधारण ब्राम्हण की पुत्री, पत्नी, माँ, महारानी, प्रजा की राजमाता और कुशल, कर्तबगार, कर्तुत्ववान प्रशासक के साथ वह एक महान क्रांतीकारी थी। वह एक देशभक्त थी। अंग्रेज सरकार इस वीरांगना से डरते थे। महारानी लक्ष्मीबाई ने अनेक बडे बडे अंग्रेज़ों को दाँतों तले लोहे के चने चबवाये थे। भारत देश की आजादी की लडाई में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नेवालकर परिवार की यह प्रसिध्द व्यक्ती थी। झाँसी की यह आखरी शासक थी। झाँसी राज्य आज इन्हीं के नाम से जाना जाता है। रानी झाँसी राज्याभिषेक रानी लक्ष्मीबाई राज्याभिषेक दिन‌ - १० जून ४ जून १८५७ को भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाडी युद्ध किया। ९ जून को रानी लक्ष्मीबाई को झांसी सौंपी। १० जून १८५७ को दत्तक पुत्र दामोदरराव नेवालकर के नाम पर महारानी लक्ष्मीबाई का राज्याभिषेक हुआ और वह समुचे बुन्देलखण्ड की साम्राज्ञी बनी। राजमाता बनते ही उन्होंने प्रजा के हीत के निर्णय तथा आदेश पारीत किये। बुन्देलखण्ड के किसानों का लगान माफ किया था। महारानी लक्ष्मीबाई का यह स्वर्ण राजकाल पहिला चरण (२१ नवम्बर १८५३ से १० मार्च १८५४) तथा द्वितीय चरण में (४ जून १८५७ से ४ अप्रैल १८५८) तक रहा। झाँसी दरबार बिरूदावली / ललकारी सावधाsssssन बुन्देलखण्ड धराधरीश्वरी राजराजेश्वरी सिंहासनाधीश्वरी अखंड लक्ष्मी अलंकृत न्यायालंकारमंडित शस्त्रास्त्रशास्त्रपारंगत राजनितिधुरंधर झाँसी की महारानी अखंड सौभाग्यवती वज्रचुडेमंडित राजमाता श्रीमंत रानी लक्ष्मीबाईसाहेब गंगाधरराव नेवाळकर जू देवी की जय हो जय हो । रानी झाँसी का मन्त्रीमण्डल राज्याभिषेक होने के बाद अधिकारीक रूप से महारानी लक्ष्मीबाई झाँसी के साथ पुरे बुंदेलखंड की साम्रज्ञी हो गयी। ११ जून १८५७ को रानी ने पहला राजदरबार लगाया। और अपना मन्त्रीमण्डल तयार किया। और विभिन्न लोगों ‌को विभिन्न पद पर नियुक्त किया। मुख्य पदाधिकारी :- महारानी लक्ष्मीबाई - प्रधान शासक झाँसी लक्ष्मणराव बांदे - प्रधानमंत्री दीवान जवाहर सिंह - प्रधान सेनापती दीवान रघुनाथ सिंह - सरसेनापती रामचंद्रराव देशमुख - दीवान नाना भोपटकर - झाँसी न्यायाधिश गोपाळराव रास्तेदार (बडे बाबू) - न्यायालय फौजदार मोरोपंत तांबे - प्रधान (कामठाणे) नाना भोपटकर - न्यायाधीश मोतीबाई साहिबा - जासूसी विभाग प्रधान तात्या टोपे - गुप्तचर मोहम्मद जुमा खाँ - पैदलसेना अधिनायक गुलाम गौस खान - गोलंदाज प्रधान, मुख्य तोपची राव दुल्हाजू - गोलंदाज झलकारीबाई - महिला सरसेनापती दुर्गा दल मन्त्रीमण्डल मुख्य सदस्य :- भाऊबख्शी खुदाबख्श वीरांगना मोतीबाई साहिबा वीरांगना‌ मुन्दराबाई खातुन वीरांगना सुन्दराबाई वीरांगना काशीबाई कुनवीण वीरांगना झलकारीबाई कोळी अवंतीकाबाई लोधी ललिताबाई बख्शी वीरांगना जूही देवी राव दूल्हाजू अली बहादुर पीर अली इन पदाधिकारी और सदस्यों को मिलाकर झाँसी का मंत्री मंडल का‌ गठन किया गया। युवराज दामोदर राव नेवालकर झाँसी राजवंश के मुल पुरूष हरी रघुनाथराव नेवालकर के दो पुत्र थे। एक दामोदर पंत और दुसरे खंडेराव। दामोदर पंत का वंश ही झांसी का राजवंश रहा है। खंडेराव का वंश पारोला, जलगांव, महाराष्ट्र में था। पारोला यह नेवालकरों की जहागीर थी। इसी घर के वासुदेवराव नेवालकर के यहां १५ नवम्बर सन् १८४९ को पारोळा जळगाव में दामोदर का जनम हुआ। यह महाराज गंगाधर राव के चचेरे भाई थे। वे पारोला जलगांव में रहते थे। वासुदेव अपने परीवार के साथ प्रती वर्ष दशहरा त्योहार को झांसी आया करते थे। १८५३ में वह झांसी आये थे। दामोदर का पुर्व नाम आनंद राव था। १८५१ में रानी लक्ष्मीबाई के बेटे का तीन माह की आयु में स्वर्गवास हुआ था। इसलिए २० नवम्बर १८५३ को उन्होंने आनंद राव को गोद लिया और नाम दामोदर रखा । महाराज गंगाधर राव के निधन के पश्चात दामोदर राव को राजा घोषित करके महारानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं झांसी व बुंदेलखंड का राजपाठ अपने हाथ लिया । ४ अप्रैल १८५८ को रानी झांसी छोडकर कालपी गई। वहा भयंकर युद्ध हुआ । १७ जून १८५८ को ग्वालियर में अंतिम युद्ध की वजह से उन्हो ने दामोदर को अपने विश्वास पात्र सेवक रामचंद्र राव देशमुख को सौंप दिया । और कोटा की सराय युध्द में रानी शहीद हुई। रानी की मृत्यु समय रानी का सफेद सूत का निले रंग का चंदेरी साफा, तलवार और मोती की माला दामोदर राव को दे दी गयी। और रानी को तात्या टोपे, रघुनाथ सिंह, काशीबाई कुनवीन, बांदा के नवाब और दामोदर ने मुखाग्नि दी। रामचंद्र राव और काशीबाई दो साल तक अंग्रेजों से दामोदर को बचाते हुए बुंदेलखंड के चंदेरी, सागर, ललितपूर की जंगलो में भटकते रहे । दूर्भाग्य वश रामचंद्र राव का निधन हुआ । दामोदर लक्ष्मीबाई के साथ जब भी महालक्ष्मी मंदिर जाते थे, तो उनके साथ ५०० पठान अंगरक्षक भी जाते थे । कभी शाही ठाट में रहनेवाले इस राजकुमार को मेजर प्लीक द्वारा इंदौर में परिजनों के पास भेज दिया गया! दामोदर राव के जन्मदाता पिता वासुदेवराव के बडे भाई काशीनाथ हरिभाऊ नेवालकर उर्फ लालाभाऊ थे! वे १८५२ में झांसी के तहसीलदार थे! उनकी पत्नी १८७१ में झांसी छोडकर इंदौर आयी थी! जो रिश्ता में दामोदर राव की चाची थीं! इनके पास ही दामोदर राव रहते थे! ५ मई , १८६० को इंदौर के रेजिमेंट रिचमंड शेक्सपियर ने दामोदर का लालन-पालन मुंशी पंडित धर्म नारायण कश्मीरी को सौंप दिया। दामोदर को इंदौर के शासक होलकर राजाओं की भी सहायता मिली। दामोदर को सिर्फ १५० रूपये महिना पेंशन राशी दी जाती थी। इससे ही उनका गुजारा होता था। एक जमाने में दामोदर राव ६ लाख रूपये महिना पेंशन मिलने वाली रियसत के राजकुमार थे । उनके पिता वासुदेव राव के पास भी बहूत धन दौलत थी। जब उन्हे रानी झांसी ने गोद लिया तब अंग्रेजों ने उनके ६ लाख रूपये हडप लिये और कहा जब वह बालिग होंगे तब उन्हे यह रूपये दिये जायेंगे। पर उन्हे कभी भी यह पैसे नही मिले। और इस राजकुमार को अंग्रेजों के तुकडो पर जिवीत रहना पड़ता था। इंदौर मे ही दामोदर राव का विवाह वासुदेवराव माटोरकर की कन्या से हुआ। १८७२ में उनकी पत्नी का निधन हुआ। उसके बाद बलवंत राव मोरेश्वर शिरडेर की कन्या से उनका पुन: विवाह हुआ। और २३ अक्तूबर १८७९ को उन्हे लक्ष्मण राव नामक पुत्र हुआ। दामोदर राव ने अपनी मां की याद में अपनी स्मृति से एक चित्र बनाया। सारंगी घोडीपर रानी लक्ष्मीबाई बैठी हुई, पिछे दामोदर राव को बांधे हुए। इस तस्वीर का दामोदर जीवित थे तब तक पुजा करते थे। यह चित्र आज भी रानी की इंदौर स्थित झांसीवाले पिढी के पास हैं। दामोदर ने ६ लाख रूपये व झांसी के लिये बहुत संघर्ष किया परंतू उन्हे झांसी राज्य का उत्तराधिकारी व ६ लाख रूपये कभी नहीं मिले। २८ मई सन् १९०६ को झांसी राज्य का यह राजकुमार व भावी राजा अपनी ५८ वर्ष की आयु में सदैव के लिये वैकुंठ चले गये । आज भी झांसी का राज परिवार और रानी की पिढी इंदौर में झांसीवाले नाम लगाकर अपना आम जिवन व्यतिथ करते है। नेवालकर मुल परिवार अपने मुलगाव महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के लांजा तहसील में रहते है! यह गाव नेवालकरों का मुलगाव हैं! दुर्गा दल नारी सेना दुर्गा दल १८५३ में महारानी लक्ष्मीबाई ने महाराज गंगाधरराव नेवाळकर की अनुमती सें झांसी महल के प्रांगण में महिला सेना का गठन किया था। १८५७ तथा १८५८ में अंग्रेजों के विरूद्ध इस नारी सेना ने अहम भुमिका निभाई थी। नारी सेना के अधिकारी रानी लक्ष्मीबाई - मुख्य अध्यक्ष वीरांगना झलकारीबाई कोळी - महिला सरसेनापती वीरांगना जुही देवी‌ - महिला तोफ संचालक वीरांगना मोतीबाई - महिला‌ तोफ संचालक व गुप्तचर वीरांगना काशीबाई कुनवीण - महिला तोफ संचालक व तलवारबाज वीरांगना मुन्दर / वीरांगना मुन्दरबाई खातून सुल्तान - महिला तोफ संचालक, अश्वरोही, तलवारबाज आणि धनुष्यबाण वीर वीरांगना सुंदराबाई (सुंदर) - महिला तोफ संचालक व तलवारबाज वीरांगना मानवतीबाई हैहयवंशी - महिला सैनिक वीरांगना मालतीबाई लोधी - महिला सैनिक वीरांगना ललिताबाई बक्षी - महिला सैनिक शिक्षा झाँसी शहर बुन्देलखन्ड क्षेत्र में अध्ययन का एक प्रमुख केन्द्र है। विद्यालय एवं अध्ययन केन्द्र सरकार तथा निजी क्षेत्र द्वारा चलाये जाते है। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, जिसकी स्थापना सन् 1975 में की गयी थी, विज्ञान, कला एवं व्यवसायिक शिक्षा की उपाधि देता है। झाँसी शहर और आसपास के अधिकतर विद्यालय बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। बुन्देलखण्ड अभियान्त्रिकी एवं तकनिकी संस्थान उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा स्थापित तकनिकी संस्थान है जो उत्तर प्रदेश तकनिकी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। रानी लक्ष्मीबाई चिकित्सा संस्थान चिकित्सा विज्ञान में उपाधि प्रदान करता है। झॉसी में आयुर्वेदिक अध्ययन संस्थान भी है जो कि प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान "आयुर्वेद" की शिक्षा देता है। उच्च शिक्षा के अलावा झॉसी में अनेक प्राथमिक विद्यालय भी है। ये विद्यालय सरकार तथा निजी क्षेत्र द्वारा चलाये जाते है। विध्यालयो में शिक्षा का माध्यम हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा है। विद्यालय उत्तर प्रदेश् माध्यमिक शिक्षा परिषद, केन्द्रिय माध्यमिक शिक्षा परिषद से सम्बद्ध है। झॉसी का पुरुष् साक्षरता अनुपात 80% महिला साक्षरता अनुपात 51% है, तथा कुल् साक्षरता अनुपात 66% है। प्रमुख शिक्षा संस्थान BKD (बुन्देलखण्ड महाविद्यालय), झाँसी। श्री गुरु नानक ख़ालसा इण्टर कॉलेज, झाँसी। श्री गुरु हर किशन डिग्री कॉलेज, झाँसी। श्री एम एल पाण्डे एग्लो विदिक जूनियर हाईस्कूल खाती बाबा झाँसी| भानी देवी गोयल सरस्वती विद्यामन्दिर, झाँसी | पं. दीनदयाल उपाध्याय विद्यापीठ बालाजी मार्ग, झाँसी। रघुराज सिन्ह पब्लिक स्कूल, पठोरिया, दतिया गेट मारग्रेट लीस्क मेमोरिअल इंग्लिश स्कूल एण्ड कॉलेज राजकीय इण्टर कॉलेज बिपिन बिहारी इण्टर कॉलेज क्राइस्ट दि किंग कॉलेज रानी लक्ष्मीबाई पब्लिक स्कूल सैण्ट फ्रांसिस कान्वेंट इण्टर कॉलेज लक्ष्मी व्यायाम मंदिर आर्य कन्या इण्टर कॉलेज कैथेड्रल स्कूल ज्ञान स्थली पब्लिक स्कूल हेलेन मेगडोनियल मेमोरियल कन्या इन्टर‍ कोलेज लोक मान्य तिलक कन्या इन्टर कोलेज राज्य विद्युत परिषद इण्टर कॉलेज सरस्वती संस्कार केंद्र सीपरी बाजार अभियान्त्रिकी संस्थान महारानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय झाँसी बुन्देलखण्ड अभियांत्रिकी एवं प्रोद्योगिकी संस्थान बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय चन्द्रशेखर आज़ाद विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान पयर्टन दर्शनिय स्थल झाँसी किला झाँसी का किला उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत के सबसे बेहतरीन किलों में एक है। ओरछा के राजा बीर सिंह देव ने यह किला 1613 ई॰ में बनवाया था। किला बंगरा नामक पहाड़ी पर बना है। किला तथा नगर में प्रवेश के लिए दस दरवाजे हैं। इन दरवाजों को खांदेरी, दतिया, उन्नाव, झरना, लक्ष्मी, सागर, ओरछा, सैंयर और चाँद दरवाजों के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा लस खिडकीयां है। किले में रानी झाँसी गार्डन, प्राचीन शिव मन्दिर और गुलाम गौस खान, मोतीबाई व खुदा बक्श की मजार देखी जा सकती है। यह किला प्राचीन वैभव और पराक्रम का जीता जागता दस्तावेज है। रानी महल रानी लक्ष्मीबाई के इस महल की दीवारों और छतों को अनेक रंगों और चित्रकारियों से सजाया गया है। वर्तमान में किले को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। यहाँ नौवीं से बारहवीं शताब्दी की प्राचीन मूर्तियों का विस्तृत संग्रह देखा जा सकता है। महल की देखरख भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की जाती है। यह महल झांसी सुभेदार रघुनाथराव नेवालकर द्वितीय द्वारा बनाया गया। महाराज गंगाधरराव ने इस महल को कंपनी रानी लक्ष्मीबाई के प्रति‌ रानी महल‌ की पहचान दी थी। किल्ले पर अंग्रेजों के पतन के बाद १५ मार्च १८५४ को होली के दिन रानी लक्ष्मीबाई किला छोडकर इसी रानी महल‌ में रहने आयी थी। झाँसी संग्रहालय झाँसी किले में स्थित यह संग्रहालय इतिहास में रूचि रखने वाले पर्यटकों का मनपसन्द स्थान है। यह संग्रहालय केवल झाँसी की ऐतिहासिक धरोहर को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड की झलक प्रस्तुत करता है। यहाँ चन्देल शासकों के जीवन से संबंधित अनेक जानकारियाँ हासिल की जा सकती हैं। चन्देल काल के अनेक हथियारों, मूर्तियों, वस्त्रों और तस्वीरों को यहाँ देखा जा सकता है। श्री महालक्ष्मी अंबाबाई मंदिर झाँसी का नेवालकर राजपरिवार श्री गणेश उपासक था। इतके कुलदैवत महाराष्ट्र के लक्ष्मीपल्लीनाथ तथा कुलदेवी कोल्हापूर की महालक्ष्मी अंबाबाई थी। इस कारण सुभेदार रघुनाथराव नेवालकर द्वारा 18 वीं शताब्दी में महालक्ष्मी मंदिर बनाया गया। यह मंदिर महाराष्ट्र के आद्य शक्तीपीठ कोल्हापूर की "करवीर निवासिनी श्री महालक्ष्मी अंबाबाई" माता को समर्पित है। यह मंदिर लक्ष्मी दरवाजे के निकट स्थित है। इस कारण माता को लक्ष्मी माता या अंबा माता भी कहां जाता है। वास्तविक यह माता कोल्हापूर की श्री महालक्ष्मी अंबाबाई यांनी परब्रम्ह सर्वस्याद्या भगवती माता का स्वरूप है। आदी अनादि काल से यह प्रथा रही है कि जो राज परिवार के कुलदेवी और कुलदैवत होते है वही उस नगरवासियों के कुलदैवत होते है। नेवालकर परिवार की कुलदेवी‌ होने के कारण यह माता झाँसी वासियों की भी कुलदेवी‌ मानी जाती है। झाँसी के के मुख्य आराध्य दैवत भगवान श्री गणेशजी और आराध्य देवी श्री महालक्ष्मी देवी है। वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई प्रतिदिन सारंगी घोडी पर सवाल होकर अपने पुत्र के साथ महालक्ष्मी मंदिर दर्शन करने आती थी। हर‌ शुक्रवार के दिन उपवास रखकर महारानी लक्ष्मीबाई पालखी में बैठकर मंदिर आती थी। और मंदिर के प्रांगण में दानधर्म तथा मोतीचूर के लड्डू बांटती थी। महाराज गंगाधरराव समाधी स्थल लक्ष्मी ताल में झाँसी नरेश महाराधिराज श्रीमंत महाराजा गंगाधरराव नेवालकर बाबासाहेब जी की समाधी स्थित है। 21 नवम्बर 1853 में उनकी मृत्यु के बाद महारानी लक्ष्मीबाई ने यहाँ उनकी याद में यह स्मारक बनवाया था। महाराष्ट्र श्री गणेश मन्दिर thumb|महाराष्ट्र गणपती मंदिर भगवान गणेश को समर्पित इस मन्दिर में 19 मई 1842 को महाराज गंगाधरराव और रानी लक्ष्मीबाई का विवाह समारोह तथा सीमांत पूजन इसी मंदिर में सम्पन्न हुआ था। यह भगवान गणेश का प्राचीन मन्दिर है। जहा हर बुधवार को सैकड़ो भक्त दर्शन का लाभ लेते है। यहाँ पर प्रत्येक माह की गणेश चतुर्थी को प्रातः काल और सायं काल अभिषेक होता है। साधारणतः यहाँ सायं काल के अभिषेक में बहुत भीड़ होती है। ऐसी मान्यता है कि इस गणेश मूर्ति के इक्कीस दिन इक्कीस परिक्रमा लगाने से अप्रत्यक्ष लाभ होता है और मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। यह मंदिर महाराष्ट्र समिती द्वारा संचालित है। यहां मराठी लोगों का उत्सव मनाया जाता है। झाँसी के नजदीकी पर्यटन स्थलों में ओरछा, बरूआ सागर, शिवपुरी, दतिया, ग्वालियर, खजुराहो, महोबा, टोड़ी फतेहपुर, आदि भी दर्शनीय स्थल हैं। निकटतम दर्शनीय स्थल सुकमा-डुकमा बाँध : बेतवा नदी पर बना हुआ यह अत्यन्त सुन्दर बाँध है। इस बाँध कि झाँसी शहर से दूरी करीब 45 कि॰मी॰ है तथा यह बबीना शहर के पास है। देवगढ् : झाँसी शहर से 123 कि॰मी॰ दूर यह शहर ललितपुर के पास है। यहाँ गुप्ता वंश के समय् के विश्नु एवं जैन मन्दिर देखे जा सकते हैं। ओरछा : झॉसी शहर से 18 कि॰मी॰ दूर यह स्थान अत्यन्त सुन्दर मन्दिरो, महलों एवं किलो के लिये जाना जाता है। खजुराहो : झाँसी शहर से 178 कि॰मी॰ दूर यह स्थान 10 वी एवं 12 वी शताब्दी में चन्देला वंश के राजाओं द्वारा बनवाए गए अपने शृंगारात्मक मन्दिरो के लिए प्रसिद्ध है। दतिया : झाँसी शहर से 28 कि॰मी॰ दूर यह राजा बीर सिह द्वारा बनवाये गये सात मन्जिला महल एवं श्री पीतम्बरा देवी के मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। शिवपुरी : झाँसी से 101 कि॰मी॰ दूर यह शहर ग्वालियर के सिन्धिया राजाओं की ग्रीष्म्कालीन राजधानी हुआ करता था। यह शहर सिन्धिया द्वारा बनवाए गए संगमरमर के स्मारक के लिये भी प्रसिद्ध है। यहाँ का माधव राष्ट्रिय उद्यान वन्य जीवन से परिपूर्ण है। आवागमन वायु मार्ग झाँसी से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्वालियर निकटतम एयरपोर्ट है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, मुम्बई, वाराणसी, बैंगलोर आदि शहरों से नियमित फ्लाइटों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। रेल मार्ग झाँसी का रलवे स्टेशन वीरांगना लक्ष्मीबाई झाँसी जंक्शन भारत के तमाम प्रमुख शहरों अनेकों रेलगाड़ियों से जुड़ा है। सड़क मार्ग झाँसी में राष्ट्रीय राजमार्ग 25 और 26 से अनेक शहरों से पहुँचा जा सकता है। उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम की बसें झाँसी पहुँचने के लिए अपनी सुविधा मुहैया कराती हैं। झाँसी से संबद्ध कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तित्व रानी लक्ष्मीबाई चन्द्रशेखर आज़ाद मैथिलीशरण गुप्त ध्यानचन्द वृंदावनलाल वर्मा महा कवि केशवदास तात्या टोपे झलकारी बाई इन्हें भी देखें झाँसी का क़िला झाँसी की रानी झाँसी ज़िला बाहरी कड़ियाँ झाँसी जिला अधिकारिक वेबसाईट झाँसी नगर निगम् अधिकारिक वेबसाईट उत्तर प्रदेश पयर्टन अधिकारिक वेबसाईट मध्य प्रदेश पयर्टन अधिकारिक वेबसाईट सन्दर्भ श्रेणी:झाँसी ज़िला श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:झाँसी ज़िले के नगर * श्रेणी:भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
डोडा
https://hi.wikipedia.org/wiki/डोडा
डोडा (Doda) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के डोडा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय है और ज़िले में तहसील का दर्जा भी रखता है।"Jammu, Kashmir, Ladakh: Ringside Views," Onkar Kachru and Shyam Kaul, Atlantic Publishers, 1998, ISBN 9788185495514"District Census Handbook, Jammu & Kashmir ," M. H. Kamili, Superintendent of Census Operations, Jammu and Kashmir, Government of India"Restoration of Panchayats in Jammu and Kashmir," Joya Roy (Editor), Institute of Social Sciences, New Delhi, India, 1999"Land Reforms in India: Computerisation of Land Records," Wajahat Habibullah and Manoj Ahuja (Editors), SAGE Publications, India, 2005, ISBN 9788132103493 आबादी शहर की जनसंख्या सन् 2001 की भारतीय जनगणना में 13,249 थी, जो 2011 की जनगणना तक 21,605 हो गई। डोडा के लोग कश्मीरी की सिराजी उपभाषा और डोगरी की भदरवाही उपभाषा बोलते हैं। भूगोल डोडा समुद्रतल से 1,107 मीटर की ऊँचाई पर है। इन्हें भी देखें डोडा ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:जम्मू और कश्मीर के शहर श्रेणी:डोडा ज़िला श्रेणी:डोडा ज़िले के नगर
मैसूर
https://hi.wikipedia.org/wiki/मैसूर
मैसूर (Mysore) भारत के कर्नाटक राज्य का एक महानगर है। यह कर्नाटक का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और प्रदेश की राजधानी बैगलुरू से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दक्षिण में केरल की सीमा पर स्थित है।"Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012394"The Rough Guide to South India and Kerala," Rough Guides UK, 2017, ISBN 9780241332894 इतिहास मैसूर का इतिहास भारत पर सिकंदर के आक्रमण (327 ई0 पू0) के बाद से प्राप्त होता है। उस तूफान के पश्चात् ही मैसूर के उत्तरी भाग पर सातवाहन वंश का अधिकार हुआ था और यह द्वितीय शती ईसवी तक चला। मैसूर के ये राजा 'सातकर्णी' कहलाते थे। इसके बाद उत्तर कशचमी क्षेत्र पर कदंब वंश का और उतर पूर्वी भाग पर पल्लवों का शासन हुआ। कदंबों की राजधनी वनवासी में तथा पल्लवों की कांची में थी। इसी बीच उतर से इक्ष्वाकु वंश के सातवें राजा दुर्विनीत ने पल्लवों से कुछ क्षेत्र छीनकर अपने अधिकार में कर लिए। आठवें शासक श्रीपुरूष ने पल्लवों को हारकर "परमनदि" की उपाधि धारण की, जो गंग वंश के परवर्ती शासकों की भी उपाधि कायम रही। उत्तर पश्चिमी क्षेत्र पर पांचवी शती में चालुक्यों ने आक्रमण किया। छठी शती में चालुक्य नरेश पुलिकैशिन ने पल्लवों से वातादि (वादामी) छीन लिया ओर वहीं राजधानी स्थापित की। आठवीं शती के अंत में राष्ट्रकूट वंश के ध्रूव या धारावर्ष नामक राजा ने पल्लव नरेश से कर वसूल किया और गंग वंश के राजा को भी कैेद कर लिया बाद में गंग राजा मुक्त कर दिया गया। राचमल (लगभग 820 ई0) के बाद गंग वंश का प्रभाव पुन: बढ़ने लगा। सन् 1004 में चोलवंशीय राजेंद्र चोल ने गंगों को हराकर दक्षिण तथा पूर्वी हिस्से पर अपना अधिकार कर लिया। मैसूर के शेष भाग याने उत्तर तथा पशिचमी क्षेत्र पर पश्चिमी चालुक्यों का अधिकार रहा। इनमें विक्रमादित्य बहुत प्रसिद्ध था, जिसने 1076 से 1126 तक शासन किया। 1155 में चालुक्यों का स्थान कलचूरियों ने ले लिया। इनकी सत्ता 1153 तक ही कायम रही। गंग वंश की समाप्ति पर पोयसल या होयसाल वंश का अधिकार स्थापित हो गया। ये अपने को यादव या चंद्रवंशी कहते थे। इनमें बिट्टिदेव अधिक प्रसिद्ध था जिसने 1104 से 1141 तक शासन किया। 1116 में तलकाद पर कब्जा करने के बाद उसने मैसूर से चोलों को निकाल बाहर किया। सन् 1343 में इस वंश का प्रमुख समाप्त हो गया। सन् 1336 में तुंगभद्रा के पास विजयनगर नामक एक हिंदु राज्य उभरा। इसके संस्थापक हरिहर तथा बुक्क थे। इसके आठ राजाओं सिंहासन पर अधिकार कर लिया। उसकी मृत्यु के बाद उसके तीन पुत्रों, नरसिंह, कृष्णराय तथा अच्युतराय, ने बारी बारी से राजसता संभाली। सन् 1565 में बीजापुर, गोलकुंडा आदि मुसलमान राज्यों के सम्मिलित आक्रमण से तालीफोटा की लड़ाई में विजयनगर राज्य का अंत हो गया। 18वीं शती में मैसूर पर मुसलमान शासक हैदर अली की पताका फहराई। सन् 1782 में उसकी मृत्यु के बाद 1799 तक उसका पुत्र टीपू सुल्तान शासक रहा। इन दोनों ने अंग्रेजों से अनेक लड़ाईयाँ लड़ी। श्रीरंगपट्टम् के युद्ध में टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् मैसूर के भाग्यनिर्णय का अधिकार अंग्रेजों ने अपने हाथ में ले लिया। किंतु राजनीतिक स्थिति निरंतर उलझी हुई बनी रही, इसलिये 1831 में हिंदु राजा को गद्दी से उतारकर वहाँ अंग्रेज कमिश्नर नियुक्त हुआ। 1881 में हिंदु राजा चामराजेंद्र गद्दी पर बैठे। 1894 में कलकत्ते में इनका देहावसान हो गया। महारानी के संरक्षण में उनके बड़े पुत्र राजा बने और 1902 में शासन संबंधी पूरे अधिकार उन्हें सौंप दिए गए। भारत के स्वतंत्र होने पर मैसूर नाम का एक पृथक् राज्य बना दिया गया जिसमें पास पास के भी कुछ क्षेत्र सम्मिलित कर दिए गए। भारत में राज्यों के पुनर्गठन के बाद मैसूर, कर्नाटक में आ गया। पर्यटन मैसूर न सिर्फ कर्नाटक में पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि आसपास के अन्य पर्यटक स्थलों के लिए एक कड़ी के रूप में भी काफी महत्वपूर्ण है। शहर में सबसे ज्यादा पर्यटक मैसूर के दशहरा उत्सव के दौरान आते हैं। जब मैसूर महल एवं आसपास के स्थलों यथा जगनमोहन पैलेस जयलक्ष्मी विलास एवं ललिता महल पर काफी चहल पहल एवं त्यौहार सा माहौल होता है। कर्ण झील चिड़ियाखाना इत्यादि भी काफी आकर्षण का केन्द्र होते हैं। मैसूर के सग्रहालय भी काफी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। मैसूर से थोड़ी दूर कृष्णराज सागर डैम एवं उससे लगा वृंदावन गार्डन अत्यंत मोहक स्थलों में से है। इस गार्डन की साज-सज्जा, इसके संगीतमय फव्वारे इत्यादि पर्यटकों के लिए काफी अच्छे स्थलों में से है। ऐतिहासिकता की दृष्टि से यहीं श्रीरंग पट्टनम का ऐतिहासिक स्थल है जो मध्य तमिल सभ्यताओं के केन्द्र बिन्दु के रूप में स्थापित था। मैसूर में केन्द्रीय विद्यालय संगठन का शिक्षा एवं प्रशिक्षण आँचलिक संस्थान है। नगर अति सुंदर एवं स्वच्छ है, जिसमें रंग बिरंगे पुष्पों से युक्त बाग बगीचों की भरमार है। चामुडी पहाड़ी पर स्थित होने के कारण प्राकृतिक छटा का आवास बना हुआ है। भूतपूर्व महाराजा का महल, विशाल चिड़ियाघर, नगर के समीप ही कृष्णाराजसागर बाँध, वृंदावन वाटिका, चामुंडी की पहाड़ी तथा सोमनाथपुर का मंदिर आदि दर्शनीय स्थान हैं। इन्हीं आकर्षणों के कारण इसे पर्यटकों का स्वर्ग कहते हैं। यहाँ पर सूती एवं रेशमी कपड़े, चंदन का साबुन, बटन, बेंत एवं अन्य कलात्मक वस्तुएँ भी तैयार की जाती हैं। यहाँ प्रसिद्ध मैसूर विश्वविद्यालय भी है। मैसूर महल thumb|मैसूर का महाराजा राजमहल यह महल मैसूर में आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र है। मिर्जा रोड पर स्थित यह महल भारत के सबसे बड़े महलों में से एक है। इसमें मैसूर राज्य के वुडेयार महाराज रहते थे। जब लकड़ी का महल जल गया था, तब इस महल का निर्माण कराया गया। 1912 में बने इस महल का नक्शा ब्रिटिश आर्किटैक्ट हेनरी इर्विन ने बनाया था। कल्याण मंडप की कांच से बनी छत, दीवारों पर लगी तस्वीरें और स्वर्णिम सिंहासन इस महल की खासियत है। बहुमूल्य रत्‍नों से सजे इस सिंहासन को दशहरे के दौरान जनता के देखने के लिए रखा जाता है। इस महल की देखरख अब पुरातत्व विभाग करता है। समय: सुबह 10 बजे-शाम 5.30 बजे तक, उचित शुल्क, जूते-चप्पल अंदर ले जाना मना, कैमरा ले जाना मना। महल रविवार, राष्ट्रीय अवकाश के दिन शाम 7-8 बजे तक और दशहर के दौरान शाम 7 बजे-रात 9 बजे तक रोशनी से जगमगाता है। जगनमोहन महल इस महल का निर्माण महाराज कृष्णराज वोडेयार ने 1861 में करवाया था। यह मैसूर की सबसे पुरानी इमारतों में से एक है। यह तीन मंजिला इमारत सिटी बस स्टैंड से 10 मिनट कर दूरी पर है। 1915 में इस महल को श्री जयचमाराजेंद्र आर्ट गैलरी का रूप दे दिया गया जहां मैसूर और तंजौर शैली की पेंटिंग्स, मूर्तियां और दुर्लभ वाद्ययंत्र रखे गए हैं। इनमें त्रावणकोर के शासक और प्रसित्र चित्रकार राजा रवि वर्मा तथा रूसी चित्रकार स्वेतोस्लेव रोएरिच द्वारा बनाए गए चित्र भी शामिल हैं। समय: सुबह 8.30-शाम 5.30 बजे तक, कैमरा ले जाना मना चामुंडी पहाड़ी thumb|चामुंडेश्वरी मंदिर, मैसूर में thumb|चामुंडी पर्वत पर नंदी की मूर्ति मैसूर से 13 किलोमीटर दक्षिण में स्थित चामुंडा पहाड़ी मैसूर का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। इस पहाड़ी की चोटी पर चामुंडेश्वरी मंदिर है जो देवी दुर्गा को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। यह मंदिर देवी दुर्गा की राक्षस महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। मंदिर मुख्य गर्भगृह में स्थापित देवी की प्रतिमा शुद्ध सोने की बनी हुई है। यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का एक अच्छा नमूना है। मंदिर की इमारत सात मंजिला है जिसकी कुल ऊँचाई 40 मी. है। मुख्य मंदिर के पीछे महाबलेश्वर को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी है जो 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पहाड़ की चोटी से मैसूर का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। मंदिर के पास ही महिषासुर की विशाल प्रतिमा रखी हुई है। पहाड़ी के रास्ते में काले ग्रेनाइट के पत्थर से बने नंदी बैल के भी दर्शन होते हैं। पूजा का समय: सुबह 7.30-दोपहर 2 बजे तक, दोपहर 3.30-शाम 6 बजे तक, शाम 7.30-रात 9 बजे तक सेंट फिलोमेना चर्च 1933 में बना यह चर्च भारत के सबसे बड़े चर्च में से एक है। मैसूर शहर से 3 किलोमीटर दूर कैथ्रेडल रोड पर स्थित यह चर्च निओ-गोथिक शली में निर्मित है। भूमिगत कमरे में तीसरी शताब्दी के संत इन संत की प्रतिमा स्थापित है। इसकी 175 फीट ऊंची जुड़वा मीनारें मीलों दूर से दिखाई दे जाती हैं। यहां की दीवारों पर ईसा मसीह के जन्म से लेकर पुनर्जन्म तक उनके जीवन की विभिन्न घटनाओं का दर्शाती हुई ग्लास पेंटिग्स लगी हुई हैं। वर्तमान में इस चर्च को सेंट जोसेफ चर्च के नाम से जाना जाता है। समय: सुबह 5-शाम 8 बजे तक कृष्णराज सागर बांध या केआरएस बांध 1932 में बना यह बांध मैसूर से 12 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसका डिजाइन श्री एम.विश्वेश्वरैया ने बनाया था और इसका निर्माण कृष्णराज वुडेयार चतुर्थ के शासन काल में हुआ था। इस बांध की लंबाई 8600 फीट, ऊँचाई 130 फीट और क्षेत्रफल 130 वर्ग किलोमीटर है। यह बांध आजादी से पहले की सिविल इंजीनियरिंग का नमूना है। यहां एक छोटा सा तालाब भी हैं जहां बोटिंग के जरिए बांध उत्तरी और दक्षिणी किनारों के बीच की दूरी तय की जाती है। बांध के उत्तरी कोने पर संगीतमय फव्वार हैं। बृंदावन गार्डन नाम के मनोहर बगीचे बांध के ठीक नीचे हैं। समय: सुबह 7-रात 8 बजे तक जीआरएस फैंटेसी पार्क यह पार्क मैसूर का एकमात्र अम्यूजमेंट वॉटर पार्क है। 30 एकड़ में फैला यह पार्क सभी उम्र के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस पार्क के मुख्य आकर्षण पानी के खेल, रोमांचक सवारी और बच्चों के लिए तालाब हैं। जीआरएस पार्क मैसूर रलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर दूर है। पार्क के अंदर शाकाहारी खाने का एक रेस्टोरेंट भी है। बाहर से खाने-पीने का सामान लाना मना है। समय: सोमवार से शुक्रवार सुबह 10.30-6 बजे तक, रविवार और सार्वजनिक अवकाश के दिन शाम 7.30 बजे तक, गर्मियों में शनिवार के दिन भी 7.30 बजे तक खुलता है। मैसूर चिड़ियाघर यह चिड़ियाघर विश्व के सबसे पुराने चिड़ियाघरों में से एक है। इसका निर्माण 1892 में शाही संरक्षण में हुआ था। इस चिड़ियाघर में 40 से भी ज्यादा देशों से लाए गए जानवरों को रखा गया है। यहां के बगीचों को बहुत ही खूबसूरती से सजाया और संभाला गया है। शेर यहां के मुख्य आकर्षण हैं। इसके अलावा हाथी, सफेद मोर, दरियाई घोड़े, गैंडे और गोरिल्ला भी यहां देखे जा सकते हैं। चिड़ियाघर में करंजी झील भी है। यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। इसके अतिरिक्त यहां एक जैविक उद्यान भी है जहां भारतीय और विदेशी पेड़ों की करीब 85 प्रजातियां रखी गई हैं। समय: सुबह 8 बजे-शाम 5.30 बजे तक, मंगलवार को बंद रेल संग्रहालय यह संग्रहालय कृष्णराज सागर रोड पर स्थित सीएफटी रिसर्च इंस्टीट्यूट के सामने है। यहां मैसूर स्टेट रेलवे की उन चीजों को प्रदर्शित किया गया है जो 1881-1951 के बीच की हैं। 1979 में स्थापित इस संग्रहालय में एक विशेष क्षेत्र से जुड़ी हुई वस्तुओं का अच्छा संग्रह है। यहां प्रदर्शित वस्तुओं में भाप से चलने वाले इंजन, सिग्नल और 1899 में बना सभी सुविधाओं वाला महारानी का सैलून शामिल है। यहां का मुख्य आकर्षण चामुंडी गैलरी है जहां रेलवे विभाग के विकास का दर्शाती तस्वीरों का रखा गया है। यह संग्रहालय बच्चों का मनोरंजन करने के साथ-साथ उनके ज्ञान को भी बढ़ाता है। समय: सुबह 10 बजे-दोपहर 1 बजे तक, दोपहर 3 बजे-रात 8 बजे तक उत्सव दशहरा यूं तो दशहरा पूर देश में मनाया जाता है लेकिन मैसूर में इसका विशेष महत्त्व है। 10 दिनों तक चलने वाला यह उत्सव चामुंडेश्वरी द्वारा महिषासुर के वध का प्रतीक है। इसमें बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है। इस पूरे महीने मैसूर महल को रोशनी से सजाया जाता है। इस दौरान अनेक सांस्कृतिक, धार्मिक और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उत्सव के अंतिम दिन बैंड बाजे के साथ सजे हुए हाथी देवी की प्रतिमा को पारंपरिक विधि के अनुसार बन्नी मंटप तक पहुंचाते है। करीब 5 किलोमीटर लंबी इस यात्रा के बाद रात को आतिशबाजी का कार्यक्रम होता है। सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी उसी उत्साह के साथ निभाई जाती है। आसपास दर्शनीय स्थल नंजनगुड (22 किलोमीटर) यह नगर कबीनी नदी के किनारे मैसूर के दक्षिण में राज्य राजमार्ग 17 पर है। यह स्थान नंजुंदेश्वर या श्रीकांतेश्वर मंदिर (दूरभाष: 0821-226245) के लिए प्रसिद्ध है। दक्षिण काशी कही जाने वाली इस जगह पर स्थापित लिंग के बार में माना जाता है कि इसकी स्थापना गौतम ऋषि ने की थी। यह मंदिर नंजुडा को समर्पित है। कहा जाता है कि हकीम नंजुडा ने हैदर अली के पसंदीदा हाथी को ठीक किया था। इससे खुश होकर हैदर अली ने उन्हें बेशकीमती हार पहनाया था। आज भी विशेष अवसर पर यह हार उन्हें पहनाया जाता है। समय: सुबह 6.30-दोपहर 1 बजे तक, शाम 4-रात 8.30 बजे तक, रविवार, सोमवार और सरकारी छुट्टी के दिन सुबह 6.30-रात 8.30 बजे तक, अभिषेक का समय सुबह 7, 9, 11 बजे, दोपहर 12 बजे, शाम 5.30 और 7 बजे श्रवणबेलगोला (84 किमी) यहां का मुख्य आकर्षण गोमतेश्वर/ बाहुबली स्तंभ है। बाहुबली मोक्ष प्राप्त करने वाले प्रथम र्तीथकर थे। यहां जैन तपस्वी की 983 ई. में स्थापित 57 फुट लंबी प्रतिमा है। इसका निर्माण राजा रचमल्ला के एक सेनापति ने कराया था। यह प्रतिमा विंद्यागिरी नामक पहाड़ी से भी दिखाई देती है। श्रवणबेलगोला नामक कुंड पहाड़ी की तराई में स्थित है। बारह वर्ष में एक बार होने वाले महामस्ताभिषेक में बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं। यहां पहुंचने के रास्ते में छोटे जैन मंदिर भी देखे जा सकते हैं। सोमनाथपुर (35 किलोमीटर) यह छोटा गांव मैसूर के पूर्व में कावेरी नदी के किनारे बसा है। यहां का मुख्य आकर्षण केशव मंदिर है जिसका निर्माण 1268 में होयसल सेनापति, सोमनाथ दंडनायक ने करवाया था। सितार के आकार के चबूतरे पर बने इस मंदिर को मूर्तियों से सजाया गया है। इस मंदिर में तीन गर्भगृह हैं। उत्तर में जनार्दन और दक्षिण में वेणुगोपाल की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मुख्य गर्भगृह में केशव की मूर्ति स्थापित थी किन्तु वह अब यहां नहीं है। समय: सुबह 9.30-शाम 5.30 बजे तक आवागमन वायु मार्ग नजदीकी हवाई अड्डा बैंगलोर (139 किलोमीटर) है। यहां से सभी प्रमुख शहरों के लिए उड़ानें आती-जाती हैं। रेल मार्ग बैंगलोर से मैसूर के बीच अनेक रेलें चलती हैं। शताब्दी एक्सप्रेस मैसूर को चेन्नई से जोड़ती है। सड़क मार्ग राज्य राजमार्ग मैसूर को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ते हैं। कर्नाटक सड़क परिवहन निगम और पड़ोसी राज्यों के परिवहन निगम तथा निजी परिवहन कंपनियों की बसें मैसूर से विभिन्न राज्यों के बीच चलती हैं। मैसूर में केन्द्रीय विद्यालय संगठन का शिक्षा एवं प्रशिक्षण आँचलिक संस्थान है। चित्र दीर्घा इन्हें भी देखें मैसूर ज़िला मैसूर राज्य 1926 बिन्नी मिल्ज़ हड़ताल मैसूर पैलेस सन्दर्भ श्रेणी:कर्नाटक के शहर श्रेणी:मैसूर ज़िला श्रेणी:मैसूर ज़िले के नगर *
बेगूसराय
https://hi.wikipedia.org/wiki/बेगूसराय
बेगूसराय जिला भारत के पावन मिथिला क्षेत्र में गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। १८७० ईस्वी में यह मुंगेर जिले के सब-डिवीजन के रूप में स्थापित हुआ। १९७२ में बेगूसराय स्वतंत्र जिला बना। भौगोलिक संरचना बेगूसराय उत्तर बिहार में 25°15' और 25° 45' उतरी अक्षांश और 85°45' और 86°36" पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। बेगूसराय शहर पूरब से पश्चिम लंबबत रूप से राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा है। इसके उत्तर में समस्तीपुर, दक्षिण में गंगा नदी और लक्खीसराय, पूरब में खगड़िया और मुंगेर तथा पश्चिम में समस्तीपुर और पटना जिला हैं। प्रशासनिक संरचना सब-डिवीजनों की संख्या-०५ प्रखंडों की संख्या-१८ पंचायतों की संख्या-257 राजस्व वाले गांवों की संख्या-1229 कुल गांवों की संख्या-1198 नगर परिषद बीहट नगर परिषद बखरी,नगर परिषद तेघड़ा, जनसंख्या २००१ की जनगणना के अनुसार इस जिले की जनसंख्या: पुरुष : 1226057 स्त्री : 1116932 कुल: 2342989 वृद्धि : 29.11% जनसांख्यिकी वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बेगूसराय की आबादी 33 लाख है। बेगूसराय की जनसंख्या वृद्धि दर 2.3 प्रतिशत वार्षिक है। इसकी जनसंख्या वृद्धि दर में उतार-चढ़ाव होती रही है। बेगूसराय की कुल आबादी का 52 प्रतिशत पुरूष और 48 प्रतिशत महिलाएं है। यहां औसत साक्षरता दर 65 प्रतिशत है जो राष्ट्रीय साक्षरता दर के करीब है। यहां महिला साक्षरता दर 41 प्रतिशत तथा पुरूष साक्षरता दर 71 प्रतिशत है। यहां की 15 प्रतिशत आबादी छह वर्ष से कम उम्र की है। प्रासांगिकता बेगूसराय बिहार के औद्योगिक नगर के रूप में जाना जाता है। यहां मुख्य रूप से तीन बड़े उद्योग हैं- इण्डियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड , बरौनी तेलशोधक कारखना, बरौनी थर्मल पावर स्टेशन अब [NTPC] हिंदुस्तान यूरिया रसायन लिमिटेड[HURL] र्निर्माण कार्य चालू हैं इसके अलावा कई छोटे-छोटे और सहायक उद्योग भी है। यहां कृषि उद्योगों की संभवना काफी ज्यादा है। आधारभूत ढांचा बेगूसराय बिहार और देश के दूसरे भागों से सड़क और रेलमार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। नई दिल्ली-गुवाहाटी रेलवे लाईन बेगूसराय होकर गुजरती है। बेगूसराय से पांच किलोमीटर की दूरी पर ऊलाव में एक छोटा हवाई अड्डा भी है, जहां नगर आने वाले महत्वपूर्ण व्यक्तियों का आगमन होता है। बरौनी जंक्शन से दिल्ली, गुवाहाटी, अमृतसर, वाराणसी, लखनऊ, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता आदि महत्वपूर्ण शहरों के लिए रेल गाड़ियां चलती हैं। बेगूसराय में अठारह रेलवे स्टेशन हैं। जिले का आंतरिक भाग सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। गंगानदी पर बना राजेंद्र पुल उत्तर और दक्षिण बिहार को जोड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 28 और 31 बेगूसराय से होकर गुजरती है। जिले में इस मार्ग की कुल लंबाई 95 किलोमीटर है। जिले में राजकीय मार्ग की कुल लंबाई 295 किलोमीटर है। जिले के 95 प्रतिशत गांव सड़कों से जुड़े हुए हैं। साहित्य और संस्कृति बेगूसराय हमारे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि है। उन्हीं के नाम पर नगर का टाउन हॉल दिनकर कला भवन के नाम से जाना जाता है। यहां आकाश गंगा रंग चौपाल बरौनी ,द फैक्ट रंगमंडल. आशीर्वाद रंगमंडल जैसी कई प्रमुख नाट्यमंडलियां हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से पास आउट गणेश गौरव और प्रवीण गुंजन लगातार कला और साहित्य के लिए प्रतिबद्ध हैं। रंग कार्यशाला लगाकर रंगकर्म और कला साहित्य की नई पीढ़ी तैयार करने में लगे हैं । जिले के दिनकर भवन में लगातार नाटकों और कला से जुड़े विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रदर्शन किया जाता रहा है। प्रतिवर्ष राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव रंग संगम, रंग माहौल, आशीर्वाद नाट्य महोत्सव आदि का आयोजन किया जाता है। जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर के कलाकारों ने अपनी बेहतरीन प्रस्तुति देते हैं। यहां की संस्कृति , साहित्य को बढ़ावा देने में लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार व प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय-महासचिव राजेन्द्र राजन, कवि अशांत भोला,जनकवि दीनानाथ सुमित्र,चर्चित कवि प्रफुल्ल मिश्र, नवोदित कवि वरुण सिंह गौतम एवं‌ उनके दादा शिवबालक सिंह भी बहुचर्चित कवि‌ थे , गीतकार रामा मौसम, वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल पतंग, कार्टूनिस्ट सीताराम, युवा कवि व पत्रकार नवीन कुमार, युवा कवि डॉ अभिषेक कुमार.युवा गीतकार अखिल सिंह,युवा कवयित्री सीमा संगसार ,समाँ प्रवीण, का नाम उल्लेखनीय है। सिमरिया धाम एक आदि कुंभ स्थली हैं जहां स्वामी चिदात्मन द्वारा आदि कुंभ स्थली सिमरिया धाम का पुनर्जागरण किया गया। आदि कुंभा स्थली की खोज संंत शिरोमणि करपात्री अग्निहोत् परमहंस स्वामी चिदात्मन जी महाराज नेे किया और 2017 में यहां महाकुंभ भी लगा था फिर 2023 में यहां अर्ध कुंभ लगेगा. यहां वेद पढ़ने वााले विद्यार्थियों और शिक्षकों के नाम आचार्य रामनरेश झा.आचार्य वरुण पाठक विद्यार्थी पद्मनाभ झा, राम झा, लक्ष्मण झा, श्याम झा अन्य हैं। राष्ट्रीय फलक पर दैदीप्यमान, बेगूसराय की साहित्यिक पहचान "विप्लवी पुस्तकालय", जो बिहार सरकार द्वारा चयनित राज्य का विशिष्ट पुस्तकालय है। यहाँ हर साल 4-5 राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन होता ही है। विप्लवी पुस्तकालय, गोदरगावां, बेगूसराय ही देश में पहली बार अपने ग्रामीण माहौल में लेखक संघ का राष्ट्रीय अधिवेशन का सफल आयोजन किया जिसमें देश विदेश से 350 प्रबुद्ध लेखकों ने हिस्सा लिया। प्रसिद्ध नाटककार मरहूम हबीब तनवीर द्वारा "राजरक्त" नाटक का खुला मंचन किया गया 10हजार से ज्यादा दर्शकदीर्घा में रहे होंगे। शहर से 7 किलोमीटर दूर गोदरगांवा ग्राम में सन 1931 से स्थित इस पुस्तकालय में तकरीबन ५० हजार पुस्तकें और पत्रिकाएं हैं जिसका लाभ नियमित रूप से अनेक पाठक उठाते हैं। पुस्तकालय के संरक्षक राजेन्द्र राजन जो क्षेत्र के पूर्व विधानसभा सदस्य होने के साथ साथ प्रगतिशील लेखक संघ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव रहे हैं। पुस्तकालय प्रांगण में विद्रोहिणी मीरा कबीर मुन्शी प्रेमचन्द. चन्द्रशेखर आजद शहीद सरदार भगत सिंह महात्मा गांधी तथा डॉ पी गुप्ता की मुर्तियां अपने आप में संस्कृतिक धरोहर के रुप में स्थित है। पुस्तकालय भवन के ठीक सामने वैदेही सभागार है जिसमें तकरीबन पाँच से लोगों के बैठने की उचित व्यवस्था है। बेगूसराय जिले के सभी महाविद्यालय ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा से संबद्ध हैं। यहां के महत्वपूर्ण महाविद्यालयों में गणेश दत्त महाविद्यालय, एसबीएसएस कॉलेज, श्री कृष्ण महिला कॉलेज. चंद्रमा असरफी भागीरथ सिंघ कॉलेज खमहार .एपीएसएम कॉलेज बरौनी. आरसीएस कॉलेज मन्झौल. आदि हैं। अहम विद्यालयों में जे.के. इंटर विधालय. बीएसएस इंटर कॉलेजिएट हाईस्कूल, आर. के. सी. +२ विद्यालय फुलवरिया बरौनी, बीपी हाईस्कूल,श्री सरयू प्रसाद सिंह विद्यालय विनोदपुर , सेंट पाउल्स स्कूल, डीएवी बरौनी, बीआर डीएवी (आईओसी), केवी आईओसी, डीएवी इटवानगर,सुह्रद बाल शिक्षा मंदिर, साइबर स्कूल, जवाहर नवोदय विद्यालय, हमारे यहां बेगूसराय में सिमरिया धाम जो कि आदि कुंभ स्थलीन्यू गोल्डेन इंग्लिश स्कूल,विकास विद्यालय आदि।यहाँ सरकारी नौकरी और टेट,सीटेट,एस्टेट,सीयूईटी और विभिन्न प्रतियोगिता परिक्षा से संबंधित तैयारी के लिए 1994 ईस्वी में स्थापित प्रख्यात संस्थान new Marksman coaching है जो कालीस्थान में अवस्थित है। संस्कृति बेगूसराय की संस्कृति मिथिला की सांस्कृतिक विरासत को परिभाषित करती है। बेगूसराय के लोग भी मिथिला पेंटिंग बनाते हैं। बेगूसराय सिमरिया मेले के लिए भी प्रसिद्ध है, जो भारतीय पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक के महीने के दौरान भक्ति महत्व का मेला है। नवंबर). बेगूसराय में पुरुष और महिलाएं बहुत धार्मिक हैं और पर्वो के अनुसार वस्त्र पहनते हैं। बेगूसराय की वेशभूषा मिथिला की समृद्ध पारंपरिक संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। पंजाबी कुर्ता और धोती के साथ मिथिला चित्रकारी से सजा मैरून गमछा कंधे पर रखते हैं जो शोर्य,प्रेम और साहस का प्रतीक है। संग में वे अपनी नाक में सोने की बाली,कंठ में रूद्र माला और कलाई में बल्ला धारण करते हैं जो भगवान विष्णु से प्रेरित समृद्धि और वैभव का प्रतीक है। प्राचीन समय में मिथिला में कोई रंग विकल्प नहीं था, इसलिए मैथिल महिलाएं लाल बॉर्डर वाली सफेद या पीली साड़ी पहनती थीं, लेकिन अब उनके पास बहुत सारी विविधता और रंग विकल्प हैं और वे लाल-पारा (पारंपरिक लाल बोर्ड वाली सफेद या पीली साड़ी) कुछ विशेष अवसरों पर पहनती हैं। इसके संग वे हाथ में लहठी के साथ शाखा-पोला भी पहनते हैं जो मिथिला में विवाह के बाद पहनना अनिवार्य है। मिथिला संस्कृति में, यह नई शुरुआत, जुनून और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। लाल हिंदू देवी दुर्गा का भी प्रतिनिधित्व करता है, जो नई शुरुआत और स्त्री शक्ति का प्रतीक है। छ‌इठ के दौरान मिथिला की महिलाएं बिना सिले शुद्ध सूती धोती पहनती हैं जो मिथिला की शुद्ध, पारंपरिक संस्कृति को दर्शाता है। आमतौर पर दैनिक उपयोग के लिए सूती साड़ी और अवसरों के लिए रेशम अथवा बनारसी साड़ी को पहना जाता है। मिथिला की महिलाओं के लिए पारंपरिक पोशाक में जामदानी, बनारसी और भागलपुरी और कई अन्य शामिल हैं। मिथिला में वर्ष भर कई पर्व मनाए जाते हैं। छ‌इठ, दुर्गा पूजा और काली पूजा को मिथिला के सभी उत्सवों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। == मुख्य त्यौहार कृषिभूमि कुल क्षेत्र-1,87,967.5 हेक्टेयर कुल सिंचित क्षेत्र-74,225.57 हेक्टेयर स्थायी सिंचित-6384.29 हेक्टेयर मौसमी सिंचित-4866.37 हेक्टेयर वन्यभूमि-0 हेक्टेयर बागवानी आदि-5000 हेक्टेयर खरीफ-22000 हेक्टेयर रबी- 10000 हेक्टेयर गेहूं-61000 हेक्टेयर जलक्षेत्र और परती-2118 सिंचाई का मुख्य साधन-ट्यूबवेल प्राकृतिक और जल संपदा बेगूसराय जिला गंगा के समतल मैदान में स्थित है। यहां मुख्य नदियां-बूढ़ी गंडक, बलान, बैंती, बाया और चंद्रभागा है। (चंद्रभागा सिर्फ मानचित्रों में बच गई है।) कावर झील एशिया की सबसे बडी मीठे जल की झीलों में से एक है। यह पक्षी अभयारण्य के रूप में प्रसिद्ध है। खनिज आर्थिक महत्व का कोई खनिज नहीं है। वन बेगूसराय में कोई वन नहीं है। लेकिन आम, लीची, केले, अमरूद, नींबू के कई उद्यान हैं। कई जगहों पर अच्छी बागवानी भी है। मुबारकपुर शंख, चकमुजफ्फर और नावकोठी गांव केले के लिए मशहूर है। यहां जंगली पशु देखने को शायद ही मिलते हैं, लेकिन कावरझील में विविध प्रकार की पक्षियां मिलती हैं। हाल ही में खोज से पता चला है कि गंगा के बेसिन में पेट्रोलियम या गैस के भंडार हैं। यातायात बेगूसराय बिहार और देश के दूसरे भागों से सड़क और रेलमार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। नई दिल्ली-गुवाहाटी रेललाइन बेगूसराय से गुजरती है। उलाव में एक छोटा सा हवाई अड्डा है, जो बेगूसराय जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर है। इस हवाई अड्डे का इस्तेमाल महत्वपूर्ण व्यक्तियों के शहर आगमन के लिए होता है। बेगूसराय में रेलवे की बड़ी लाइन की लंबाई 119 किलोमीटर और छोटी लाइन की लंबाई 67 किलोमीटर है। बरौनी रेलवे जंक्शन का पूर्व-मध्य बिहार में अहम स्थान है। यहां से दिल्ली, गुवाहाटी, अमृतसर, वाराणसी, लखनऊ, मुंबई, चेन्नई, बैंगलोर आदि जगहों के लिए ट्रेने खुलती है। गंगा नदी पर राजेंद्र पुल उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार को जोड़ता है। बेगूसराय जिले में कुल अठारह रेलवे स्टेशन है। जिले का आंतरिक भाग मुख्य सड़कों से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 28 और 31 इस जिले को देश के दूसरे भागों से जोड़ता है। जिले में राजमार्ग की लंबाई 95 किलोमीटर है, जबकि राजकीय पथ की लंबाई 262 किलोमीटर है। जिले के 95 प्रतिशत गांव सड़क से जुड़े हुए हैं। शहर में कई अच्छे अच्छे होटल भी हैं। इन्हें भी देखें बिहार स्टेट पॉवर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड श्री अनल बाल विज्ञान युवा क्लब सन्दर्भ बाहरी कड़ी बेगूसराय जिला आधिकारिक पृष्ठ बेगूसराय जिला आपातकालीन सुविधा खबर एक्प्रेस खोदावन्दपुर श्रेणी:बिहार के शहर श्रेणी:बेगूसराय जिला श्रेणी:बेगूसराय ज़िले के नगर
झरिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/झरिया
धनबाद के पास स्थित झरिया भारत के झारखंड प्रान्त का एक शहर है। सन्दर्भ श्रेणी:झारखंड श्रेणी:झारखंड के शहर
मोतिहारी
https://hi.wikipedia.org/wiki/मोतिहारी
मोतीहारी बिहार राज्‍य के पूर्वी चंपारण जिले का मुख्‍यालय है। बिहार की राजधानी पटना से 170 किमी दूर पूर्वी चम्पारण बिल्‍कुल नेपाल की सीमा पर बसा है। इसे मोतिहारी के नाम से भी लोग जानते है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस जिले को काफी महत्‍वपूर्ण माना जाता है। किसी समय में चम्‍पारण, राजा जनक के साम्राज्‍य का अभिन्‍न भाग था। स्‍वतंत्रता संग्राम में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी ने तो अपने राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत यही से की थी। उनकी याद में यहा गांधीवादी मेमोरियल स्तंभ बनाया गया है जिसे शांतिनिकेतन के प्रसिद्ध कलाकार नंद लाल बोस द्वारा डिजाइन किया गया था। स्तंभ की आधारशिला 10 जून 1972 को तत्कालीन राज्यपाल डी.के. बरूच द्वारा रखी गई थी। यह 48 फीट लंबा पत्थर का स्तंभ है और उसी स्थान पर स्थित है, जहां महात्मा गांधी को अदालत में पेश किया गया था। मोतिहारी की स्थलाकृति अद्भुत दर्शनीय थी। तेजस्वी सुंदरता की मोतीझील झील (शास्त्रीय शब्दों में) शहर को दो हिस्सों में बांटती है। पर्यटन की दृष्टि यहां सीताकुंड, अरेराज, केसरिया, चंडी स्‍थान,ढा़का जैसे जगह घूमने लायक है। भूगोल मोतीहारी की स्थिति पर है। इसकी समुद्र तल औसत ऊंचाई 62 मीटर (203 फीट) है। मोतिहारी, बिहार की राजधानी पटना से उत्तर-पश्चिम में लगभग 165 किलोमीटर, बेतिया से 45 किलोमीटर, मुज़फ़्फ़रपुर से 72 किलोमीटर की दूरी पर, मेहिया से 40 किमी, सीतामढी से 75 किलोमीटर की दूरी पर और चकिया से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। शहर नेपाल के करीब है। बीरगंज, 55 किमी दूर है। यहां की जलवायु कोपेन जलवायु वर्गीकरण के उप-प्रकार आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय है। जलवायु में उच्च तापमान और समान रूप से वर्ष भर वितरित वर्षा की विशेषता है। जनसांख्यिकी 2011 की भारत की जनगणना के अनुसार, और जनगणना भारत की अनंतिम रिपोर्टों के अनुसार, 2011 में मोतिहारी की जनसंख्या 125,183 थी; जिनमें से पुरुष और महिला क्रमशः 67,438 और 57,745 हैं। मोतिहारी शहर का लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 856 है। मोतिहारी शहर में कुल साक्षरताएं 94,926 हैं, जिनमें 52,904 पुरुष हैं जबकि 42,022 महिलाएं हैं। औसत साक्षरता दर 87.20 प्रतिशत है जिसमें पुरुष और महिला साक्षरता 90.36 और 83.52 प्रतिशत थी। 2011 की जनगणना इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, मोतिहारी शहर में 0–6 आयु वर्ग के बच्चे 16,325 हैं। 8,891 लड़के और 7,434 लड़कियां थीं। लड़कियों का बाल लिंगानुपात प्रति 1,000 लड़कों पर 836 है। यातायात मोतिहारी रेलवे और रोडवेज के माध्यम से भारत के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है। नई दिल्ली, मुंबई, जम्मू, कोलकाता और गुवाहाटी के लिए सीधी ट्रेनें उपलब्ध हैं। एशियाई राजमार्ग 42, राष्ट्रीय राजमार्ग 28A और राज्य राजमार्ग 54 शहर से गुजरते हैं। निकटतम हवाई अड्डा दरभंगा में स्थित है जो मोतिहारी से कुछ किमी दूर है। प्रमुख स्थल सीताकुंड इस स्थान कि व्याख्या बालमिकी रामायण तथा तुलसी दास जी के रामचरितमानष मे भी मिलता है। जो मोतिहारी से 16 किमी दूर पीपरा रेलवे स्‍टेशन से 2 किमी उत्तर में बेदीबन मधुबन पंचायत मे यह स्थान स्थित है। माना जाता है कि भगवान राम के विवाह के पाश्चात, जनकपुर से लौटती बारात ने एक रात्रि का विश्राम इसी स्थान पर किया था। और भगवान राम और देवी सीता के विवाह कि चौथी तथा कंगन खोलाई कि विधि इसी स्थान पर संपन्न किया गया था। उस समय यहाँ पर एक कुंड खुदाया गया था जिसमें पृथ्वी के अंदर से सात अथाह गहराई वाले कुऑ मिला था जिसका पानी कभी कम नही होता है और वो आज भी है, इसे सीताकुंड के नाम से जाना जाता है क्योकि इस कुंड के जल से सर्वप्रथम देवी सीता ने पुजा किया था।। इसके किनारे मंदिर भी बने हूए है और इसके 1 किमी के अंदर ही ऐसे 5 पोखरा(कुंड) है जो त्रेतायुग से अबतक अपने जल का अलग-अलग उपयोग के लिए प्रसिद्ध है जिसमें एक सबसे प्रसिद्ध गंगेया पोखरा है जहाँ गंगा स्नान के दिन हजारो-हजार कि संख्या मे लोग स्नान करने आते है क्योकि लोग यह मानते है कि जब यहा बारात रूकी थी तो गंगा मैया स्वयं यहाँ आयी थी ताकि देवी सीता और भगवान राम सहित सभी स्नान कर लें। यही पास मे ही लगभग 40 फीट ऊँची बेदी भी है जिस पर देवी सीता और भगवान राम ने पुजा अर्चना की। सीताकुंड धाम पर रामनवमी के दिन एक विशाल मेला लगता है। हजारों की संख्‍या में इस दिन लोग भगवान राम और सीता की पूजा अर्चना करने यहां आते है। अरेराज शहर से 28 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम में अरेराज स्थित है। यहीं पर भगवान शिव का प्रसिद्व मंदिर सोमेश्‍वर शिव मंदिर है। श्रावणी मेला (जुलाई-अगस्‍त) के समय केवल मोतिहारी के आसपास से ही नहीं वरन नेपाल से भी हजारों की संख्‍या में भक्‍तगण भगवान शिव पर जल चढ़ाने यहां आते है। लौरिया यहा गांव अरेराज अनुमंडल से 2 किमी दूर बेतिया-अरेराज रोड पर स्‍िथत है। सम्राट अशोक ने 249 ईसापूर्व में यहां पर एक स्‍तम्‍भ का निर्माण कराया था। इस स्‍तम्‍भ पर सम्राट अशोक ने धर्म लेख खुदवाया था। माना जाता है कि 36 फीट ऊंचे व 41.8 इंच आधार वाले इस स्‍तम्‍भ का वजन 40 टन है। सम्राट अशोक ने इस स्‍तम्‍भ के अग्र भाग पर सिंह की मूर्ति लगवाई थी लेकिन बाद में पुरातत्‍व विभाग द्वारा सिंह की मूर्ति को कलकत्ता के म्‍यूजियम में भेज दिया गया। केसरिया मुजफ्फरपुर से 72 किमी तथा चकिया से 22 किमी दक्षिण-पश्चिम में यह स्‍थल स्थित है। भारत सरकार के पुरातत्‍व विभाग द्वारा 1998 ईसवी में खुदाई के दौरान यहां पर बौद्व स्‍तूप मिला था। माना जाता है कि यह स्‍तूप विश्‍व का सबसे बड़ा बौद्व स्‍तूप है। पुरातत्‍व विभाग के एक रिपोर्ट के मुताबिक जब भारत में बौद्व धर्म का प्रसार हुआ था तब केसरिया स्‍तूप की लंबाई 150 फीट थी तथा बोरोबोदूर स्‍तूप (जावा) की लंबाई 138 फीट थी। वर्तमान में केसरिया बौद्व स्‍तूप की लंबाई 104 फीट तथा बोरोबोदूर स्‍तूप की लंबाई 103 फीट है। वही विश्व धरोहर सूची में शामिल साँची स्‍तूप की ऊँचाई 77.50 फीट है। पुरातत्‍व विभाग के आकलन के अनुसार इस स्‍तूप का निर्माण लिच्‍छवी वंश के राजा द्वारा बुद्व के निर्वाण प्राप्‍त होने से पहले किया गया था। कहा जाता है कि चौथी शताब्‍दी में चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने भी इस जगह का भ्रमण किया था। गांधी स्मारक स्‍तम्‍भ भारत में अपने राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत गांधीजी ने चम्‍पारण से ही शुरु की थी। अंग्रेज जमींदारों द्वारा जबरन नील की खेती कराने का सर्वप्रथम विरोध महात्‍मा गांधी के नेतृत्‍व में यहां के स्‍थानीय लोगों द्वारा किया गया था। इस कारण्‍ा से गांधीजी पर घारा 144 (सीआरपीसी) का उल्‍लंघन करने का मुकदमा यहां के स्‍थानीय कोर्ट में दर्ज हुआ था। जिस जगह पर उन्‍हें न्यायालय में पेश किया गया था वही पर उनकी याद में 48 फीट लंबे उनकी प्रतिमा का निर्माण किया गया। इसका डिजाइन शांति निकेतन के प्रसिद्व मूर्तिकार नंदलाल बोस ने तैयार की थी। इस प्रतिमा का उदघाटन 18 अप्रैल 1978 को विधाधर कवि द्वारा किया गया था। मेहसी शहर से 48 किमी पूरब में यह जगह मुजफ्फरपुर-मोतिहारी मार्ग पर स्थित है। यह अपने शिल्‍प-बटन उघोग के लिए पूरे भारत में ही नहीं वरन् विश्‍व स्‍तर पर प्रसिद्ध हो चुका है। इस उघोग की शुरुआत करने का श्रेय यहां के स्‍थानीय निवासी भुवन लाल को जाता है। सर्वप्रथम 1905 ईसवी में उसने सिकहरना नदी से प्राप्‍त शंख-सिप से बटन बनाने का प्रयास किया था। लेकिन बेहतर तरीके से तैयार न होने के कारण यह नहीं बिक पाया। 1908 ईसवी में जापान से 1000 रुपए में मशीन मंगाकर तिरहुत मून बटन फैक्‍ट्री की स्‍थापना की गई और फिर बडे पैमाने पर इस उघोग का परिचालन शुरु किया गया। धीरे-धीरे बटन निर्माण की प्रक्रिया ने एक उघोग का रूप अपना लिया और उस समय लगभग 160 बटन फैक्‍ट्री मेहसी प्रखंड के 13 पंचायतों चल रहा था। लेकिन वर्तमान में यह उधोग सरकार से सहयोग नहीं मिल पाने के कारण बेहतर स्‍ि‍थति में नहीं है ढ़ाका मोतिहारी शहर से 21 किलोमीटर पूरब में अवस्थित ढ़ाका एक ऐतिहासिक शहर है। जो नेपाल के सीमा पर अवस्थित है। ढाका से नेपाल की दूरी लगभग 25 किलोमीटर के आसपास है। इसके अलावा पर्यटक चंडीस्‍थान (गोविन्‍दगंज), हुसैनी, रक्‍सौल जैसे जगह की भी सैर कर सकते है। आवागमन वायु मार्ग राजधानी पटना में स्थित जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा यहां का नजदीकी एअरपोर्ट है। रेल मार्ग मोतिहारी रेलवे स्‍टेशन से देश के लगभग सभी महत्‍वपूर्ण जगहों के लिए ट्रेन सेवा उपलब्‍ध है। सडक मार्ग यह राष्ट्रीय रागमार्ग 28 द्वारा जुडा हुआ है। यहां से राजधानी पटना के लिए हरेक आधे घंटे पर बस उपलब्‍ध है। महत्वपुर्ण व्यक्तित्व thumb|200px|जॉर्ज ऑरवेल अंगूठाकार|रमेश चन्द्र झा|230x230पिक्सेल|बॉर्डर अंग्रेजी लेखक जॉर्ज ऑरवेल - एनिमल फार्म और नाइंटीन एटीफोर जैसी कृतियों के रचयिता जार्ज़ ऑरवेल का जन्म सन 1903 में मोतिहारी में हुआ था। उनके पिता रिचर्ड वॉल्मेस्ले ब्लेयर बिहार में अफीम की खेती से संबंधित विभाग में उच्च अधिकारी थे। जब ऑरवेल महज एक वर्ष के थे, तभी अपनी मॉ और बहन के साथ वापस इंग्लैण्ड चले गए थे। मोतिहारी शहर से ऑरवेल के जीवन से जुडे तारों के बारे में हाल तक लोगबाग अनभिज्ञ थे। वर्ष 2003 में ऑरवेल के जीवन में इस शहर की भूमिका तब जगजाहिर हुई जब देशी-विदेशी पत्रकारों का एक जत्था जॉर्ज ऑरवेल की जन्मशताब्दी के अवसर पर यहॉ पहुंचा। स्थानीय प्रशासन अब यहां जॉर्ज ऑरवेल के जीवन पर एक संग्रहालय के निर्माण की योजना बना रहा है। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, कवि-कथाकार - रमेश चन्द्र झा, जिन्होंने न सिर्फ़ 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में चंपारन, बिहार से अग्रणी भूमिका निभाई बल्कि देशभक्ति और राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत अमर साहित्य की रचना भी की. चंपारन और यहाँ के साहित्यकारों का सबसे प्रामाणिक और विस्तृत इतिहास भी रमेश चंद्र झा ने की कलमबद्ध किया है. आउटलुक ने एक लेख प्रकाशित करते हुए बताया है कि - "रमेशचंद्र झा अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि और पिता लक्ष्मीनारायण झा से प्रभावित होकर बचपन में ही बागी बन गए थे। उनके पिता को महात्मा गांधी की चंपारण यात्रा के पहले ही दिन गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था और 6 महीने की सश्रम सजा हुई थी। महज 14 साल की उम्र में भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त रमेशचंद्र झा पर ब्रिटिश पुलिस चौकी पर हमले और उनके हथियार लूटने का संगीन आरोप लगा।" रवीश कुमार - टीवी एंकर और पत्रकार, एनडीटीवी दिल्ली। सकीबुल गनी- अपने प्रथम श्रेणी पदार्पण पर तिहरा शतक बनाने वाले दुनिया के पहले क्रिकेटर हैं। संजीव के झा- एक फिल्म निर्माता और पटकथा लेखक हैं, जो वर्तमान में मुंबई में रहते हैं, जिन्होंने कई लोकप्रिय टीवी शो और फिल्में लिखी हैं। जबरिया जोड़ी, बरोट हाउस और सुमी (फिल्म) उनकी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं। साथ ही मोतिहारी के पहले लेखक जिनकी लिखी फिल्म सुमी को तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले। रक्षा गुप्ता- कई उल्लेखनीय भोजपुरी फिल्मों ठीक है, कमांडो अर्जुन, राउडी इंस्पेक्टर (2022 फिल्म), डोली सजा के रखना (2022 फिल्म), शंखनाद में अभिनेत्री हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ मोतिहारी - महात्‍मा गांधी ने तो अपने राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत यही से की थी (यात्रा सलाह) श्रेणी:बिहार के शहर श्रेणी:पूर्वी चम्पारण जिला श्रेणी:पूर्वी चम्पारण ज़िले के नगर MP Board 12th Blueprint 2023 pdf MP Board Blueprint 2023 Class 12th pdf Download Bihar Board 12th Model Paper 2023 pdf Download Bihar Board 12th Question Paper 2023
रतलाम
https://hi.wikipedia.org/wiki/रतलाम
रतलाम (Ratlam) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के मालवा क्षेत्र में स्थित एक नगर निगम। यह रतलाम ज़िले का मुख्यालय भी है।"Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh ," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172"Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293 विवरण रतलाम शहर समुद्र सतह से १५७७ फीट कि ऊन्चाई पर स्थित है। रतलाम के पहले राजा महाराजा रतन सिंह थे। यह नगर सेव, सोना, सट्टा, मावा, साडी तथा समोसा, कचोरी, दाल बाटी के लिये प्रसिद्ध है। रतलाम की सबसे ज्यादा प्रसिद्ध रतलामी सेव हैं जिसका पुराना नाम भीलडी सेव था, सेव की खोज भील जनजाति ने करी थी।"Tribals Invented Sev 200 Years Ago. Now, Sev Makers Are Evicting Them," Nihar Gokhale, 31 March 2019, IndiaSpend19 वी शताब्दी के दौरान रतलाम में भील शासकों का शासन था चूंकि मुगल और राजपूतों के आपसी संबंधों के कारण मुगलों का आगमन रतलाम में होता रहता था उस दौरान एक मुगल बादशाह ने रतलाम आकर सेवाया खाने की इच्छा जाहिर की उस दौरान रतलाम के भील सरदार ने बेसन से बनी सेव को मुगल बादशाह को खिलाया था । महाराजा रतनसिंह और उनके पुत्र रामसिंह के नामों के संयोग से शहर का नाम रतनराम हुआ, जो बाद में अपभ्रंशों के रूप में बदलते हुए क्रमशः रतराम और फिर रतलाम के रूप में जाना जाने लगा। मुग़ल बादशाह शाहजहां ने रतलाम जागीर को रतन सिह को एक हाथी के खेल में, उनकी बहादुरी के उपलक्ष में प्रदान की थी। उसके बाद, जब शहजादा शुजा और औरंगजेब के मध्य उत्तराधिकारी की जों जंग शरू हुई थी, उसमे रतलाम के राजा रतन सिंह ने बादशाह शाहजहां का साथ दिया था। औरंगजेब के सत्ता पर असिन होने के बाद, जब अपने सभी विरोधियो को जागीर और सत्ता से बेदखल किया, उस समय, रतलाम के राजा रतन सिंह को भी हटा दिया था और उन्हें अपना अंतिम समय मंदसौर जिले के सीतामऊ में बिताना पड़ा था और उनकी मृत्यु भी सीतामऊ में भी हुई, जहाँ पर आज भी उनकी समाधी की छतरिया बनी हुई हैं। औरंगजेब द्वारा बाद में, रतलाम के एक सय्यद परिवार, जों की शाहजहां द्वारा रतलाम के क़ाज़ी और सरवनी जागीर के जागीरदार नियुक्त किये गए थे, द्वारा मध्यस्ता करने के बाद, रतन सिंह के बेटे को उत्तराधिकारी बना दिया गया। इसके आलावा रतलाम जिले का ग्राम सिमलावदा अपने ग्रामीण विकास के लिये पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हे। यहाँ के ग्रामीणों द्वारा जनभागीदारी से गांव में ही कई विकास कार्य किये गए हे। रतलाम से 30 किलोमीटर दूर बदनावर इंदौर रोड पर सिमलावदा से 4 किलोमीटर दूर कवलका माताजी का अति प्राचीन पांडवकालीन पहाड़ी पर स्थित मन्दिर हे। यहाँ पर दूर दूर से लोग अपनी मनोकामना पूरी करने और खासकर सन्तान प्राप्ति के लिए यहाँ पर मान लेते हे। राजनीतिक क्षेत्र रतलाम जिला क्षेत्र के आधार पर जिले में कुल पाँच विधानसभा निर्वाचनक्षेत्र हैं: रतलाम नगर (श्री चेतन्य कश्यप) रतलाम ग्रामीण (श्री दिलीप मकवाना) सेलाना (श्री कमलेश्वर डोडियार) जावरा (श्री राजेंद्र पांडे ) आलोट (श्री मनोज चावला) लोकसभा निर्वाचनक्षेत्र तीन हैं - रतलाम नगर, रतलाम ग्रामीण, सेलाना। जनसांख्यिकी 2011 की जनगणना के अनुसार, रतलाम शहर की जनसंख्या 264,914 है, जिसमें 134,915 पुरुष और 129,999 महिलाएँ हैं। लिंगानुपात 964 महिलाओं पर 1000 पुरुषों का है। 0 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या 29,763 है। रतलाम में साक्षरों की कुल संख्या 204,101 थी, जो जनसंख्या का 77.0% थी, जिसमें पुरुष साक्षरता 81.2% और महिला साक्षरता 72.8% थी। रतलाम की 7+ जनसंख्या की प्रभावी साक्षरता दर 86.8% थी, जिसमें पुरुष साक्षरता दर 91.7% और महिला साक्षरता दर 81.8% थी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या क्रमशः 27,124 और 12,567 थी। रतलाम में कुल परिवारों की संख्या 53133.28.17% है जो कि रतलाम जिले की कुल जनसंख्या का 28.17% अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) है। रतलाम का आदिवासी समूह जनजातियाँ भील - रतलाम की जनजातियों में भील प्रमुख जनजाति है। रतलाम की सेव प्रसिद्ध है, और इस सेव के निर्माण सबसे पहले भील जनजाति ने ही किया था , इतिहास में भील सरदार का वर्णन मिलता है । बैगा - बैगा एक जनजाति है। अर्थव्यवस्था व्यापार रतलाम में कई उद्योग हैं जो तांबे के तार, प्लास्टिक की रस्सियाँ, रसायन और ऑक्सीजन सहित अन्य उत्पाद बनाते हैं। रतलाम सोना, चाँदी, रतलामी सेव, रतलामी साड़ी और हस्तशिल्प के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। रतलाम शहर में कई बड़ी कंपनियाँ स्थित हैं। सार्वजनिक सूचीबद्ध कंपनियां जैसे डीपी वायर्स, डीपी आभूषण लिमिटेड और कटारिया वायर लिमिटेड। अंबी वाइन की विनिर्माण इकाई भी रतलाम में स्थित है कृषि जिले में उगाई जाने वाली प्रमुख फ़सलों में सोयाबीन, गेहूं, मक्का, चना, कपास, लहसुन, प्याज, मटर, अमरूद, अनार, अंगूर और अफीम शामिल हैं जो रतलाम की जावरा तहसील के क्षेत्र में हैं। पर्यटन स्थल JVL मन्दिर कालका माता मंदिर , बड़े केदारेश्वर, ओर छोटे केदारेश्वर, जावरा हुसैन टेकरी, बड़ावदा बाबा फरीद दरगाह, सैलाना केक्टस गार्डन, सैलाना के कवलका माताजी पहाड़ी मन्दिर , सिमलावदा गढ़खनकाई माताजी राजपुरा, बाजना रोड वेदुमाला सागर झरना छत्री , धोलावाड डैम ,धोलावाद इन्हें भी देखें रतलाम ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:मध्य प्रदेश के शहर श्रेणी:रतलाम ज़िला श्रेणी:रतलाम ज़िले के नगर *
विशाखपटनम
https://hi.wikipedia.org/wiki/विशाखपटनम
विशाखपटनम (Visakhapatnam) भारत के आन्ध्र प्रदेश राज्य का सबसे बड़ा नगर है। यह पूर्वी घाट की पहाड़ियों और बंगाल की खाड़ी के तट के बीच, गोदावरी नदी के नदीमुख पर विस्तारित है। चेन्नई के बाद यह भारत के पूर्वी तट का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। यह विशाखपटनम ज़िले का मुख्यालय भी है। और ये प्रदेश की नयी राजधानी होगी‌| "Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012394"Hand Book of Statistics, Andhra Pradesh," Bureau of Economics and Statistics, Andhra Pradesh, India, 2007"Contemporary History of Andhra Pradesh and Telangana, AD 1956-1990s," Comprehensive history and culture of Andhra Pradesh Vol. 8, V. Ramakrishna Reddy (editor), Potti Sreeramulu Telugu University, Hyderabad, India, Emesco Books, 2016 विवरण विशाखपटनम भारतीय नौसेना के पूर्वी कमांड का केन्द्र है। यहाँ जलयान बनाने का कारखाना है। यह एक प्राकृतिक तथा सुरक्षित समुद्री बन्दरगाह है। कृषि एवं खनिज सम्पत्ति में समृद्ध आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा राज्य इस बन्दरगाह के पृष्ठ-प्रदेश कहलाते हैं। यह एक उल्लेखनीय मत्स्य-शिकार का केन्द्र भी है। विशाखपटनम एक छोटी खाड़ी पर है और इसका प्राकृतिक बंदरगाह दो उठे हुए अतंरीपों द्वारा निर्मित है, जो शहर से एक छोटी नदी द्वारा विभक्त है। विशाखपटनम आन्ध्र प्रदेश के उत्तरी सरकारी तट पर गोदावरी नदी के मुहाने के उत्तर में अवस्थित है। विशाखपटनम को वाइज़ाम के नाम से भी जाना जाता है। विशाखपटनम भारत का चौथा सबसे बड़ा बंदरगाह है। महत्त्व विशाखपटनम के बंदरगाह का महत्त्व काफ़ी बढ़ा है क्योंकि कोरोमंडल तट पर यही एकमात्र संरक्षित बंदरगाह है। इसमें किए गए सुधारों से अब यह 10.2 मीटर ऊँचे पोतों को भी आश्रय देने की स्थिति में है। यह शहर एक महत्त्वपूर्ण पोत निर्माण केंद्र भी है। भारत में बने पहले स्टीमर का विशाखपटनम के बंदरगाह में 1948 में उद्घाटन हुआ था। विशाखपटनम मैंगनीज़ व तिलहन का निर्यात करता है और यहाँ एक तेल परिशोधनशाला तथा चिकित्सा संग्रहालय भी है। सघन वनों से युक्त इसके पूर्वी घाट और सुदूर पूर्वी क्षेत्र गोदावरी व इंद्रावती सहित अनेक नदियों द्वारा अपवाहित होते हैं। इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। शिक्षण संस्थान बंगाल की खाड़ी के उत्तरी छोर पर स्थित उपनगर वॉल्टेयर में आंध्र विश्वविद्यालय है। यहाँ के शैक्षणिक संस्थानों में आंध्र मेडिकल कॉलेज, कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग, कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, गाँधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी ऐंड मैनेजमेंट एवं कई महाविद्यालय हैं। उद्योग विशाखपटनम में पानी का जहाज़ बनाने का कारख़ाना है। यह एक प्राकृतिक तथा सुरक्षित समुद्री बन्दरगाह है। कृषि एवं खनिज सम्पत्ति में समृद्ध आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा राज्य इस बन्दरगाह के पृष्ठ प्रदेश कहलाते हैं। यह एक उल्लेखनीय मत्स्य-शिकार का केन्द्र भी है। आन्ध्र प्रदेश और एशिया में सबसे तेज़ी से बढ़ रहे शहरों में से दूसरे सबसे बड़े इस शहर में उद्योग, जहाज़ निर्माण, एक बड़ी तेल रिफाइनरी, एक विशाल इस्पात और बिजली संयंत्र केन्द्र है। परिवहन विशाखपटनम वायु, रेल और सड़क मार्ग से प्रमुख भारतीय शहरों और राज्य की राजधानी हैदराबाद के साथ जुड़ा हुआ है। इंडियन एयरलाइंस की दैनिक उड़ाने दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद और चेन्नई से संचालित होती हैं। पर्यटन विशाखपटनम प्राचीन बौद्ध विरासत, भूवैज्ञानिक चमत्कार, प्रसिद्ध मन्दिरों के एक उदार मिश्रण में संस्कृति, कला और शिल्प आदि के लिए प्रसिद्ध है। यह एक समय के साथ क़दम रखने वाला शहर है, यहाँ तक कि यह शहर अपने समृद्ध अतीत के संरक्षण के प्रति भी सजग है। इसके सुन्दर पूर्वी घाट बंगाल की खाड़ी के नीले पानी पर एक जादुई स्पर्श देते हैं। जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार विशाखापत्तनम शहर की जनसंख्या 1,728,128 है। इन्हें भी देखें गोदावरी नदी विशाखपटनम ज़िला सिंहाचलम मंदिर, विशाखपटनम कम्बालकोंडा वन्य अभयारण्य बाहरी कड़ियाँ सुस्वागत विशाखपटनम पोर्ट ट्रस्ट सन्दर्भ * श्रेणी:आन्ध्र प्रदेश के नगर श्रेणी:विशाखपटनम ज़िला श्रेणी:विशाखपटनम ज़िले के नगर श्रेणी:भारत के तटीय वासस्थान श्रेणी:भारत में बंदरगाह नगर श्रेणी:भारत के महानगर
इन्दौर
https://hi.wikipedia.org/wiki/इन्दौर
इन्दौर भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक महानगर है। जनसंख्या की दृष्टि से यह मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा शहर है, २०११ जनगणना, के अनुसार २१,६७,४४७ लोगों की आबादी सिर्फ ५३० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में वितरित है। यह मध्यप्रदेश में सबसे अधिक घनी आबादी वाला शहर भी है। यह भारत में टीयर-2 शहरों के अन्तर्गत आता है। इंदौर महानगरीय क्षेत्र (शहर व आसपास के इलाके) की आबादी 3e लाख लोगों के साथ राज्य में सबसे अधिक है। यह इन्दौर जिला तथा इन्दौर संभाग दोनों के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है। यह मध्य प्रदेश राज्य की वाणिज्यिक राजधानी भी कहलाती है। इसके साथ ही यह नगर न केवल मध्य प्रदेश बल्कि देश के अन्य क्षेत्रों के लिये शिक्षा के एक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है। भारत के स्वतन्त्र होने के पूर्व यह यह इन्दौर रियासत की राजधानी था। मालवा पठार के दक्षिणी छोर पर स्थित इंदौर शहर, राज्य की राजधानी भोपाल से १९० किमी पश्चिम में स्थित है। इंदौर को उज्जैन से ओंकारेश्वर की ओर जाने वाले नर्मदा नदी घाटी मार्ग पर एक व्यापार बाजार के रूप में स्थापित किया गया था, वहीं इंद्रेश्वर मंदिर (1741) का निर्माण किया गया, जहाँ से ही पहले इंदूर और बाद में इन्दौर नाम प्राप्त हुआ। मराठा काल में बाजीराव पेशवा ने इस क्षेत्र पर अधिकार प्राप्त कर, अपने सेनानायक मल्हारराव होलकर को यहां का जमींदार बना दिया, जिन्होंने होलकर राजवंश की नींव डाली। होलकर वंश का शासनकाल भारत के स्वतंत्र होने तक रहा। यह मध्य प्रदेश में शामिल होने से पहले ब्रिटिश सेंट्रल इंडिया एजेंसी और मध्य भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी (1948–56) भी था। खान (कान्ह) नदी के तट पर बनी कृष्णापुरा छत्रियाँ, होलकर शासकों को समर्पित हैं। ब्रिटिश काल के समय से ही इन्दौर को एक औद्योगिक शहर के रूप में विकसित किया जाता रहा है। यहाँ लगभग ५,००० से अधिक छोटे-बडे उद्योग हैं। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ४०० से अधिक उद्योग हैं और इनमे १०० से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के उद्योग हैं। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के प्रमुख उद्योग व्यावसायिक वाहन बनाने वाले व उनसे सम्बन्धित उद्योग हैं, इसे "भारत का डेट्राइट" भी कहा जाता है। भारत का तीसरा सबसे पुराना शेयर बाजार, मध्यप्रदेश स्टॉक एक्सचेंज इंदौर में स्थित है। औद्योगिक शहर होने के साथ-साथ इन्दौर शिक्षा का भी केन्द्र बन के उभरा है। यह भारत का एकमात्र शहर है, जहाँ भारतीय प्रबन्धन संस्थान (आईआईएम इन्दौर) व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी इन्दौर) दोनों स्थापित हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के "स्मार्ट सिटी मिशन" में १०० भारतीय शहरों को चयनित किया गया है जिनमें से इन्दौर भी एक स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जाएगा। स्मार्ट सिटी मिशन के पहले चरण के अंतर्गत २० शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जायेगा और इंदौर भी इस प्रथम चरण का हिस्सा है। 2021 के स्वच्छता सर्वेक्षण के परिणामों में लगातार पाँचवी बार इन्दौर भारत का सबसे स्वच्छ नगर रहा है। नाम व्युत्पत्ति उज्जैन पर विजय पाने की राह में, राजा इंद्र सिंह ने काह्न नदी (आधुनिक नाम कान(Kahn) और विकृत नाम खान) के निकट एक शिविर रखी और वे इस जगह की प्राकृतिक हरियाली से बहुत प्रभावित हुए। इस प्रकार वह नदियों काह्न और सरस्वती के संगम की जगह पर एक शिवलिंग रखी और १७३१ ई. में इन्द्रेश्वर मंदिर का निर्माण प्रारम्भ किया। साथ ही इंद्रपुर की स्थापना की गई। कई वर्षों बाद जब पेशवा बाजीराव-१ द्वारा, मराठा शासन के तहत, इसे मराठा सूबेदार 'मल्हार राव होलकर' को दिया गया था तब से इसका नाम इन्दूर पड़ा। ब्रिटिश राज के दौरान यह नाम अपने वर्तमान रूप इंदौर में बदल गया था। इतिहास thumb|तुकाजी राव होल्कर द्वितीय, इन्दौर, १८५७ १६वीं सदी के दक्कन (दक्षिण) और दिल्ली के बीच एक व्यापारिक केंद्र के रूप में इन्दौर का अस्तित्व था। मराठा राज (होलकर युग) मुग़ल युग के दौरान, आधुनिक इंदौर जिले के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र उज्जैन और मांडू के प्रशासन (सरकारों) के बीच समान रूप से विभाजित था। कम्पेल मालवा सुबाह (प्रांत) की उज्जैन सरकार के अधीन एक महल (प्रशासनिक इकाई) का मुख्यालय था। आधुनिक इंदौर शहर का क्षेत्र कम्पेल परगना (प्रशासनिक इकाई) में शामिल था। १७१५ में, मराठों ने इस क्षेत्र (मुगल क्षेत्र) पर आक्रमण किया और कंपेल के मुगल अमिल (प्रशासक) से चौथ (कर) की मांग की। आमिल उज्जैन भाग गए, और स्थानीय ज़मींदार मराठों को चौथ देने के लिए तैयार हो गए। मुख्य जमींदार, नंदलाल चौधरी (जिसे बाद में नंदलाल मंडलोई के नाम से जाना जाता था) ने लगभग रुपये का चौथ का भुगतान किया। मराठों को २५,००० मालवा के मुगल गवर्नर जय सिंह द्वितीय, ८ मई १७१५ को कंपेल पहुंचे और गांव के पास एक युद्ध में मराठों को हराया। मराठा १७१६ की शुरुआत में वापस आए, और १७१७ में कम्पेल पर छापा मारा। मार्च १७१८ में, संताजी भोंसले के नेतृत्व में मराठों ने फिर से मालवा पर आक्रमण किया, लेकिन इस बार असफल रहे। १७२० तक, शहर में बढ़ती व्यावसायिक गतिविधियों के कारण, स्थानीय परगना का मुख्यालय कंपेल से इंदौर स्थानांतरित कर दिया गया था। १७२४ में, नए पेशवा बाजी राव I के तहत मराठों ने मालवा में मुगलों पर एक नया हमला किया। बाजी राव प्रथम ने स्वयं इस अभियान का नेतृत्व किया, उनके साथ उनके लेफ्टिनेंट उदाजी राव पवार, मल्हारराव होलकर और रानोजी सिंधिया थे। मुगल निज़ाम ने १८ मई १७२४ को नालछा में पेशवा से मुलाकात की और क्षेत्र से चौथ लेने की उनकी मांग को स्वीकार कर लिया। पेशवा दक्कन लौट आए, लेकिन चौथ संग्रह की देखरेख के लिए मल्हार राव होल्कर को इंदौर में छोड़ दिया। मराठों ने राव नन्दलाल चौधरी के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखे, जिनका स्थानीय सरदारों (प्रमुखों) पर प्रभाव था। १७२८ में, उन्होंने अमझेरा में मुगलों को निर्णायक रूप से हराया और अगले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में अपना अधिकार मजबूत किया। ३ अक्टूबर १७३० को, मल्हार राव होल्कर को मालवा के मराठा प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था। मराठा शासनकाल के दौरान स्थानीय ज़मींदारों, जिनके पास चौधरी की उपाधि थी, को मंडलोई (मंडल के बाद, एक प्रशासनिक इकाई) के रूप में जाना जाने लगा। मराठों के होल्कर राजवंश, जिसने इस क्षेत्र को नियंत्रित किया, ने स्थानीय जमींदार परिवार को राव की उपाधि प्रदान की। नंदलाल की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र तेजकराना को पेशवा बाजी राव प्रथम द्वारा कंपेल के मंडलोई के रूप में स्वीकार किया गया था। परगना औपचारिक रूप से १७३३ में पेशवा द्वारा २८ और डेढ़ परगना को विलय करके मल्हार राव होल्कर को दे दिया गया था। परगना मुख्यालय को वापस स्थानांतरित कर दिया गया था। अपने शासनकाल के दौरान कम्पेल को। उनकी मृत्यु के बाद, उनकी बहू अहिल्याबाई होल्कर ने १७६६ में मुख्यालय को इंदौर स्थानांतरित कर दिया। कंपेल की तहसील को नाम में परिवर्तन करके इंदौर तहसील में बदल दिया गया। अहिल्याबाई होल्कर १७६७ में राज्य की राजधानी महेश्वर चली गईं, लेकिन इंदौर एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक और सैन्य केंद्र बना रहा।मेजर जनरल सर जॉन मैल्कम, मध्य भारत, भाग I , पीपी. 68-70thumb|right|200px| इंदौर के महाराज तुकोजीराव होलकर तृतीय (१८९०-१९७८) शहर में बढ़ रही व्यावसायिक गतिविधियों के कारण स्थानीय परगना मुख्यालय कम्पेल से इंदौर के लिए १७२० में स्थानांतरित कर दिया गया। १८ मई १७२४ को, निज़ाम ने बाजीराव प्रथम द्वारा क्षेत्र से चौथ (कर) इकट्ठा करने के लिए मंज़ूरी दे दी। १७३३ में, पेशवा ने मालवा का पूर्ण नियंत्रण ग्रहण किया, और सेनानायक मल्हारराव होलकर को प्रान्त के सूबेदार (राज्यपाल) के रूप में नियुक्त किया।मेजर जनरल सर जॉन मैल्कम, मालवा के संस्मरण (१९१२) नंदलाल चौधरी ने मराठों का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। मराठा शासन के दौरान, चौधरीयों को "मंडलोई" (मंडल से उत्पत्ति) के रूप में जाना जाने लगा। होलकरों ने नंदलाल के परिवार को राव राजा" की विभूति प्रदान की।मेजर जनरल सर जॉन मैल्कम, 'मध्य भारत, प्रथम भाग'-पृष्ठ ६८-७० साथ ही साथ होलकर शासकों दशहरा पर होलकर परिवार से पहले "शमी पूजन" करने की अनुमति भी दे दी। २९ जुलाई १७३२, बाजीराव पेशवा प्रथम ने होलकर राज्य में '२८ और आधा परगना' में विलय कर दी जिससे मल्हारराव होलकर ने होलकर राजवंश की स्थापना की। उनकी पुत्रवधू देवी अहिल्याबाई होलकर ने १७६७ में राज्य की नई राजधानी महेश्वर में स्थापित की। लेकिन इंदौर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सैन्य केंद्र बना रहा। ब्रिटिश काल (इंदौर/होलकर रियासत) thumb|right| इंदौर के महाराज यशवन्त राव द्वितीय होलकर बहादुर, ९ मई १९३० १८१८ में, तीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान, महिदपुर की लड़ाई में होलकर, ब्रिटिश से हार गए थे, जिसके परिणामस्वरूप राजधानी फिर से महेश्वर से इंदौर स्थानांतरित हो गयी। इंदौर में ब्रिटिश निवास स्थापित किया गया, लेकिन मुख्य रूप से दीवान तात्या जोग के प्रयासों के कारण होलकरों ने इन्दौर पर एक रियासत के रूप में शासन करना जारी रखा। उस समय, इंदौर में ब्रिटिश मध्य भारत एजेंसी का मुख्यालय स्थापित किया गया। उज्जैन मूल रूप से मालवा का वाणिज्यिक केंद्र था। लेकिन जॉन मैल्कम जैसे ब्रिटिश प्रबंधन अधिकारियों ने इंदौर को उज्जैन के लिए एक विकल्प के रूप में बढ़ावा देने का फैसला किया, क्योंकि उज्जैन के व्यापारियों ने ब्रिटिश विरोधी तत्वों का समर्थन किया था। १९०६ में शहर में बिजली की आपूर्ति शुरू की गई, १९०९ में फायर ब्रिगेड स्थापित किया गया और १९१८ में, शहर के पहले मास्टर-योजना का उल्लेख वास्तुकार और नगर योजनाकार, पैट्रिक गेडडेज़ द्वारा किया गया था। (१८५२-१८८६) की अवधि के दौरान महाराजा तुकोजी राव होलकर द्वितीय के द्वारा इंदौर के औद्योगिक व नियोजित विकास के लिए प्रयास किए गए थे। १८७५ में रेलवे की शुरुआत के साथ, इंदौर में व्यापार महाराजा तुकोजीराव होलकर तृतीय, यशवंतराव होलकर द्वितीय, महाराजा शिवाजी राव होलकर के शासनकाल तक तरक्की करता रहा। आजादी के पश्चात १९४७ में भारत के स्वतंत्र होने के कुछ समय बाद, अन्य पड़ोसी रियासतों के साथ साथ इस रियासत ने भारतीय संघ को स्वीकार कर लिया। १९४८ में मध्य भारत के गठन के साथ इंदौर, राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गया। परन्तु १ नवंबर, १९५६ को मध्यप्रदेश राज्य के गठनमध्यप्रदेश का पुनर्गठन के साथ, राजधानी को भोपाल स्थानांतरित कर दिया गया। इंदौर, लगभग २१ लाख निवासियों के एक शहर आज, एक पारंपरिक वाणिज्यिक शहरी केंद्र से राज्य की एक आधुनिक गतिशील वाणिज्यिक राजधानी में परिवर्तित हो गया है। भूगोल इंदौर मालवा पठार के दक्षिणी किनारे पर मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है। क्षिप्रा नदी की सहायक नदियों, सरस्वती और कान (खान) नदियों, पर स्थित हैं और समुद्र तल से औसत ऊंचाई के ५५३.०० मीटर है। यह एक ऊंचा मैदान है जिसके दक्षिण पर विंध्य शृंखला है। यशवंत सागर झील के अलावा, वहाँ कई झील जैसे की सिरपुर टैंक, बिलावली तालाब, सुखनिवास झील और पिपलियापाला तालाब सहित शहर को पानी की आपूर्ति कर रहे हैं। शहर क्षेत्र में मुख्य रूप से काली मिट्टी पाई जाती है। उपनगरों में, मिट्टी काफी हद तक लाल और काले रंग की है। क्षेत्र के अंतर्निहित चट्टान काली बेसाल्ट से बनी है, और उनके अम्लीय और बुनियादी वेरिएंट क्रीटेशयस युग तक जाते हैं। इस क्षेत्र को भारत के भूकंपीय जोन में तृतीय क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसके अनुसार यह रिक्टर पैमाने पर ६.५ व ऊपर की तीव्रता वाले एक भूकंपीय क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। पश्चिम में, पीथमपुर और बेटमा जैसे शहरों के साथ इंदौर ज़िले की सीमा धार के प्रशासनिक जिले के साथ लगी हुई हैं; और साथ ही उत्तर-पश्चिम में हातोद व देपालपुर; उत्तर की ओर सांवेर के उज्जैन जिले के साथ; पूर्वोत्तर में माँगलिया सड़क की देवास ज़िले के साथ; दक्षिण पूर्व में सिमरोल; दक्षिण में महू, और मानपुर की सीमा खंडवा जिले के साथ। इन शहरों (और कुछ बड़े पास के उपनगरों, जैसे राऊ, अहिरखेड़ी, हुकमाखेड़ी, खंडवा नाका, कनाड़िया, रंगवासा, पालदा, सिहांसा) को मिलाकर इंदौर एक सन्निहित निर्मित शहरी क्षेत्र इंदौर महानगर क्षेत्र कहलाता है। जो की एक अनौपचारिक प्रशासनिक जिला माना जाता है। जलवायु इंदौर में नम उपोष्णकटिबंधीय जलवायु है। तीन अलग मौसम होते है: गर्मी, वर्षा और शीत ऋतु। ग्रीष्मकाल मार्च के मध्य में शुरू होता हैं और अप्रैल और मई में बेहद गर्म होता है। कई बार दिन का तापमान तक चला जाता हैं। लेकिन उमस बहुत कम रहती है, गर्मियों में औसत तापमान से भी उच्च जा सकता हैं। शीत ऋतु मध्यम और आमतौर पर सूखी होती है, और औसत तापमान १०°-१५° सेल्सियस रहती है। इंदौर में जुलाई-सितम्बर में दक्षिणपूर्व मानसून के चलते की मध्यम वर्षा होती है। वर्षा, मध्य जून से मध्य सितंबर तक होती है, बारिश का 95% मानसून के मौसम के दौरान होते हैं। जनसांख्यिकी इंदौर मध्य प्रदेश में सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। मध्य भारत में इंदौर सबसे बड़ा नगर है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार, इंदौर शहर (नगर निगम के तहत क्षेत्र) की जनसंख्या १९,६४,०८६ है। 20with% भारत के 20UI.xlsx जनगणना, 2011 इंदौर महानगर की आबादी (शहरी व पड़ोसी क्षेत्रों को मिलाकर) २१,६७,४४७ है। २०१० में, शहर की जनसंख्या घनत्व ९७१८/प्रति वर्ग किमी थी, जोकि मध्य प्रदेश के १,००,००० से अधिक आबादी वाले सभी नगर पालिकाओं से सबसे घनी हैं। वर्ष २०११ की जनगणना के अनुसार, इंदौर शहर ८७.३८% की एक औसत साक्षरता दर ७४% के राष्ट्रीय औसत से अधिक है। पुरुष साक्षरता ९१.८४% थी, और महिला साक्षरता ८२.५५% था। इंदौर की जिला प्रशासन। २००९ इंदौर में लिया, जनसंख्या का १२.७२% उम्र के ६ वर्ष से कम (प्रति २०११ की जनगणना के रूप में) है। जनसंख्या की औसत वार्षिक वृद्धि दर २०११ की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार। हिन्दी इंदौर शहर की आधिकारिक भाषा है, और जनसंख्या के बहुमत द्वारा बोली जाती हैं। मराठा सम्राज्य के प्रभुत्व के कारण यहाँ मराठी बोलने वाले लोगो की भी काफ़ी संख्या हैं। प्रदेश के एक मुख्य शहर होने के साथ ही यहाँ विभिन्न राज्यो से आकर बसे पर्याप्त संख्या में लोगो के साथ अन्य भाषाएँ जैसे बुंदेली, मालवी, गुजराती, सिंधी, बंगाली, छत्तीसगढ़ी,उर्दू भी बोली जाती हैं। २०१२ के आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तानी हिन्दू प्रवासी शहर (कुल राज्य के १०,००० में से) में रहते हैं अर्थव्यवस्था इंदौर सामान और सेवाओं के लिए एक वाणिज्यिक केंद्र है। २०११ में इंदौर का सकल घरेलू उत्पाद $१४,अरब था शहर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में कई देशों से निवेशकों को आकर्षित करता है। इंदौर अनाज मंडी, इंदौर संभाग की मुख्य व केन्द्रीय मंडी है, यह सोयाबीन के लिये देश का प्रमुख विपणन केन्द्र है। इसके अलावा यहाँ पर से गेहू, चना, डॉलर चना, सभी प्रकार की दाले, कपास व अन्य सभी फसलों का कारोबार किया जाता है, इंदौर अनाज मंडी से आसपास के जिलो जैसे धार, खरगोन, उज्जैन, देवास आदि के किसान भी जुड़े हुए है। इंदौर के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र में निम्न सम्मिलित हैं : पीथमपुर (चरण- I,II व III) के आसपास के क्षेत्रों में अकेले १५०० बड़े, मध्यम और लघु औद्योगिक सेट-अप हैं। , इंदौर के विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ लगभग ३००० एकड़),, सांवेर औद्योगिक बेल्ट (१००० एकड़), लक्ष्मीबाई नगर औद्योगिक क्षेत्र (औ.क्षे.), राऊ (औ.क्षे.), भागीरथपुरा काली बिल्लोद (औ.क्षे.), रणमल बिल्लोद (औ.क्षे.), शिवाजी नगर भिंडिको (औ.क्षे.), हातोद (औ.क्षे.), क्रिस्टल आईटी पार्क (५.५ लाख वर्गफ़ीट) , आईटी पार्क परदेशीपुरा (१ लाख वर्गफ़ीट) ), इलेक्ट्रॉनिक कॉम्प्लेक्स, टीसीएस SEZ, इंफोसिस SEZ आदि है, साथ ही डायमंड पार्क, रत्न और आभूषण पार्क, फूड पार्क, परिधान पार्क, नमकीन क्लस्टर और फार्मा क्लस्टर आदि क्षेत्र भी विकसित किये गये है। पीथमपुर को भारत के डेट्रॉइट के रूप में जाना जाता है। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र विभिन्न दवा उत्पादन कम्पनियाँ जैसे इप्का लैबोरेटरीज़, सिप्ला, ल्यूपिन लिमिटेड, ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स, यूनिकेम लेबोरेटरीज और बड़ी ऑटो कंपनियों इनमें से प्रमुख फोर्स मोटर्स, वोल्वो आयशर वाणिज्यिक, महिंद्रा वाहन लिमिटेड उत्पादन कर रहे हैं मध्य प्रदेश स्टॉक एक्सचेंज (MPSE) मूल रूप से १९१९ में स्थापना के बाद से मध्य भारत का एकमात्र शेयर बाज़ार और भारत में तीसरा सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है जो कि इंदौर में स्थित है। कुछ ही दिनों पूर्व नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) ने शहर में एक निवेशक सेवा केंद्र की स्थापना की। औद्योगिक रोजगार ने इंदौर के आर्थिक भूगोल को प्रभावित किया। १९५६ में मध्यप्रदेश में विलय के बाद, इंदौर ने उच्च स्तर के उपनगरीय विस्तार और अधिकाधिक कार स्वामित्व का अनुभव किया। कई कंपनियों ने अपेक्षाकृत सस्ते भूमि का फायदा उठाते हुए अपने उद्योगों का विस्तार किया है। कपड़ा उत्पादन और व्यापार का अर्थव्यवस्था में बहुत समय से योगदान रहा हैं , रियल एस्टेट कंपनियों डीएलएफ लिमिटेड, सनसिटी, ज़ी समूह, ओमेक्स, सहारा, पार्श्वनाथ, अंसल एपीआई, एम्मार एमजीएफ ने कई आवासीय परियोजनाओं को इंदौर में शुरू किया है। इंफोसिस सुपर कॉरिडोर पर एक चरण में १०० करोड़ रुपये के निवेश से इंदौर में एक नया विकास केंद्र स्थापित कर रही है इंफोसिस १३० एकड़ क्षेत्र में इंदौर में अपनी नई कैम्पस खोला है जिससे लगभग १३,००० लोगों को रोजगार देने का वायदा किया है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज इंदौर में अपने परिसर का निर्माण कार्य शुरू कर दिया है, सरकार द्वारा भूमि का आवंटन किया गया है कोल्लाबेरा ने भी इंदौर में परिसरों खोलने की योजना की घोषणा की। इन के अलावा, वहाँ कई छोटे और मध्यम आकार सॉफ्टवेयर इंदौर में विकास कंपनियाँ हैं। यातायात सार्वजनिक यातायात की दृष्टि से सन् २००५ तक इन्दौर बहुत पिछड़ा था किन्तु उसके बाद इन्दौर नगर निगम ने नगर बस सेवा आरम्भ की जो भारत में सर्वोत्तम कही जा सकती है। रेल यातायात की दृष्टि से इन्दौर मुख्य रेल मार्ग पर स्थित नहीं है। तथापि यहां से दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, हैदराबाद, पटना, देहरादून तथा जम्मू-तवी के लिये सीधी गाड़ियाँ उपलब्ध हैं। इन्दौर से सीहोर, भोपाल, खरगोन और खण्डवा के लिये बहुत अच्छी बस सेवा उपलब्ध है। विमानक्षेत्र इंदौर का विमानक्षेत्र इसे भारत के प्रमुख शहरों से हवाई मार्ग से जोड़ता है। यहां से दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, बेंगलुरु, नागपुर, हैदराबाद, कानपुर इत्यादि प्रमुख महानगरों के लिये विमान सेवाएं उपलब्ध हैं, और यहां से दुबई के लिये अंतरराष्ट्रीय विमान सेवाएं भी उपलब्ध है। रेलवे स्टेशन thumb|right| इंदौर जंक्शन का पूर्वी प्रवेश द्वार इंदौर जंक्शन ₹ ५० करोड़ (५०० मिलियन) रुपये से अधिक का राजस्व के साथ एक ए-१ (A-1) ग्रेड रेलवे स्टेशन है। सिटी पश्चिम रेलवे की रतलाम रेलवे डिवीजन के अंतर्गत आता है। इंदौर सीधे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, पुणे, लखनऊ, कोच्चि, जयपुर, अहमदाबाद और सीहोर आदि जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा है। मीटर गेज ट्रेन का परिचालन फ़रवरी २०१५ से बंद कर दिया गया। इंदौर-महू अनुभाग अब ब्रॉड गेज करने के लिए उन्नत किया जा रहा है। इंदौर - देवास - उज्जैन विद्युतीकरण जून २०१२ में पूरा कर लिया और रतलाम - इंदौर ब्रॉडगेज रूपांतरण सितंबर २०१४ में पूरा कर लिया गया प्लैटफॉर्म क्र. १ को ब्रॉड गेज करने के लिए उन्नत किया जा रहा है दो नए प्लेटफार्मों के साथ आधुनिक स्टेशन परिसर राजकुमार रेलवे ओवर ब्रिज के करीब विकसित किया जा रहा है thumb|right| इंदौर जंक्शन का पश्चिमी प्रवेश द्वार मुख्य जंक्शन को छोड़कर, इंदौर महानगरीय क्षेत्र में ७ अन्य रेलवे स्टेशनों भी हैं जो है: स्टेशन नाम स्टेशन कोड रेलवे क्षेत्र प्लैटफॉर्म संख्या लक्ष्मीबाई नगर LMNR पश्चिम रेलवे क्षेत्र ३ सैफ़ी नगर SFNR पश्चिम रेलवे क्षेत्र १ लोकमान्य नगर LMNR पश्चिम रेलवे क्षेत्र १ राजेंद्र नगर RJNR पश्चिम रेलवे क्षेत्र २ माँगलिया MGG पश्चिम रेलवे क्षेत्र ३ राऊ RAU पश्चिम रेलवे क्षेत्र २ सड़क मार्ग इन्दौर शहर अपने चारों ओर के शहरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां से आगरा-बॉम्बे राजमार्ग (एनएच ३) होकर गुजरती हैं। शहर के प्रमुख बस-अड्डे हैं: सरवटे बस स्टैंड (इन्दौर रेलवे स्टेशन के पास) गंगवाल बस स्टैंड (लाबरिया भैरू, धार रोड) नवलखा बस-स्टैंड (आगरा-बॉम्बे राजमार्ग) विजय नगर आईएसबीटी (ए.बी. रोड) बस टर्मिनल जो की पूरा अंतर-राज्य बस-अड्डे के रूप में अच्छी तरह से विकसित किया जायेगा। स्थानीय यातायात इंदौर सिटी बस thumb|इंदौर नगर-बस मार्ग संख्या-७ (तेजाजी नगर से गांधी नगर) इंदौर में एक अच्छी तरह से विकसित परिवहन प्रणाली है। अटल इंदौर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड, एक पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप योजना के तहत शहर में बसों और रेडियो टैक्सियां का संचालन करती है। ८४ मार्गों पर, ४२१ बस स्टॉप के साथ, ३६१ बसें संचालित हैं। बसों को उनके मार्ग के अनुसार तीन रंगों नीला, मैजेंटा और नारंगी में रंगा गया है। इन्दौर बीआरटीएस (आईबस) इंदौर बीआरटीएस एक बस ​​रैपिड ट्रांजिट प्रणाली है जिसका १० मई २०१३ से परिचालन शुरू किया गया है। यह वातानुकूलित (एसी) बसों के साथ चलती हैं। इन बसों में भी जीपीएस और आईवीआर जैसी सेवाओं जैसे एलईडी प्रदर्शन होते हैं। यह निरंजनपुर और राजीव गांधी चौराहा के बीच समर्पित गलियारे में चलाई जाती है। सार्वजनिक परिवहन के साथ यहां ऑटो रिक्शा, मारुति वैन और टाटा मैजिक वैन भी संचालित है। कई निजी टैक्सी सेवा जैसे ओला कैब्स, उबर और चार्टर्ड कैब्स (पहले मेट्रो टैक्सी) शहर में संचालित होते हैं। thumb|इंदौर की मेट्रो टैक्सी शिक्षा शिक्षण संस्थाएँ इंदौर महाविद्यालयो और विद्यालयो की शृंखला के लिए जाना जाता है। इंदौर में छात्रों की एक बड़ी आबादी है और यह मध्य भारत में शिक्षा का एक बड़ा केंद्र है। इंदौर में अधिकांश प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से मान्यता प्राप्त है। हालांकि, स्कूलों की संख्या में काफी कुछ आईसीएसई बोर्ड, एनआईओएस बोर्ड, CBSEi बोर्ड और राज्य स्तर सांसद के साथ संबद्ध हैं। द डेली कॉलेज, 1882 में स्थापना की, दुनिया में सबसे पुराना सह-शिक्षा बोर्डिंग स्कूलो में से एक है, जो 'मराठा' की केन्द्रीय भारतीय रियासतों के शासकों को शिक्षित करने के लिए स्थापित किया गया था। Lord Curzon in India: Being a Selection from His Speeches as Viceroy and Governor-General of India 1898-1905, by George Nathaniel Curzon Curzon, Thomas Raleigh. Published by Macmillan and co., limited, 1906. Page 233. Speech: "4th November, 1905"...."The old Daly College was founded here as long ago as 1881, in the time of that excellent and beloved Political Officer, Sir Henry Daly"... होलकर विज्ञान महाविद्यालय, आधिकारिक तौर पर सरकार के मॉडल स्वायत्त होलकर साइंस कॉलेज के रूप में जाना जाता है। महाविद्यालय की स्थापना 10 जून, 1891 को शिवाजी राव होलकर द्वारा की गई थी। इंदौर भारत में एकमात्र शहर है जहाँ भारतीय प्रबन्धन संस्थान (आईआईएम इंदौर) व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी इंदौर) दोनों स्थापित है। सोशल वर्क इंदौर स्कूल (ISSW) सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में एक स्कूल है जो दोनों शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य करता है। वर्ष 1951 से पेशेवर सामाजिक कार्यकर्ताओ को प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालयय, जो "डी ए वी वी" (पूर्व में 'इंदौर विश्वविद्यालय' के रूप में जाना जाता था) के रूप में जाना कई अपने तत्वावधान ऑपरेटिंग कॉलेजों के साथ इंदौर में एक विश्वविद्यालय है। यह शहर के भीतर दो परिसरों, तक्षशिला परिसर (भंवरकुआ चौराहे के पास) में एक और रवींद्र नाथ टैगोर रोड, इंदौर में है। विश्वविद्यालय सहित कई विभागों चलाता इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (आईएमएस), संगणक विज्ञान एवं सूचना प्रौद्योगिकी का विद्यालय (SCSIT), कानून के स्कूल (एसओएल), इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (आईईटी), शैक्षिक मल्टीमीडिया रिसर्च सेंटर (EMRC), व्यावसायिक अध्ययन के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट (आईआईपीएस), फार्मेसी के स्कूल, ऊर्जा और पर्यावरण अध्ययन के स्कूल - एम टेक के लिए प्राइमर स्कूलों में से एक। (ऊर्जा प्रबंधन), पत्रकारिता के स्कूल और फ्यूचर्स अध्ययन और योजना है, जो दो एम टेक चलाता स्कूल। प्रौद्योगिकी प्रबंधन और सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग, एमबीए (बिजनेस पूर्वानुमान), और एमएससी में विशेषज्ञता के साथ पाठ्यक्रम। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार में। परिसर में कई अन्य अनुसंधान और शिक्षा विभाग, हॉस्टल, खेल के मैदानों और कैफ़े के घरों। महात्मा गांधी स्मारक चिकित्सा महाविद्यालय (MGMMC) एक और पुरानी संस्था है, और पूर्व में किंग एडवर्ड मेडिकल कॉलेज के रूप में जाना जाता था श्री गोविन्दराम सेकसरिया प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (SGSITS) को 1952 में स्थापित किया गया। डिजिटल गुरुकुल का मुख्यालय इंदौर में स्थापित है। स्वच्छता में सिरमौर इंदौर नगर निगम इंदौर शहर देश का स्वच्छतम शहर लगातार 6 वर्षों से बना हुआ है। पूरे देश के 4200 से अधिक अर्बन लोकल बॉडीज़ में इंदौर नगर निगम ने बाजी मारी है। IAS [Municipal Corporation|हर्षिका सिंह] शहर की दूसरी महिला म्युनिसिपल कमिश्नर हैं। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट इंदौर के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट मॉडल यूनाइटेड नेशन द्वारा स्वीकृत है और ऑर्गेनिक कचरे से ईंधन बनाने का साउथ एशिया का सवसे बड़ा बायो गैस प्लांट इंदौर में ही है। यह 550टन प्रतिदिन कचरे से बायो कम्प्रेस्ड गैस बनाता है। वेस्ट मैनेजमेंट स्टार्टअप आईआईटी इंदौर के एलुमनी द्वारा शुरू किया गया देश का सबसे बड़ा और सफल स्टार्टअप स्वाह भी इंदौर में है और शहर की स्वच्छता में अपना योगदान दे रहा है। संस्कृति खान-पान इंदौर अपने विशिस्ट खान-पान के लिये प्रसिद्ध है। यहाँ के नमकीन, पोहा और जलेबी, चाट (नमकीन), कचोरी (कचौड़ी), गराड़ू, भुट्टे का कीस, सेंव-परमल और साबूदाना खिचड़ी स्वाद में अपनी अलग पहचान बनाये हुए है। मिठाई में मूंग का हलवा, गाजर का हलवा, रबड़ी, मालपुए, फालूदा कुल्फी, गुलाब जामुन, रस-मलाई, रस गुल्ला चाव से खाये जाते हैं। इसके अलावा विभिन्न रेस्तरां में विभिन्न प्रकार के व्यंजन, और मराठा, मुगलई, बंगाली, राजस्थानी, और एक किस्म का स्थानीय व्यंजन दाल-बाफला काफी प्रसिद्ध है। सराफा बाजार और छप्पन दुकान, इंदौर के एक प्रमुख खाद्य स्थल है। आम तौर पर, नमकीन इंदौर में प्रमुखता से परोसा जाता है। यहाँ के नमकीन की प्रसिद्धि सम्पूर्ण देश में है | तथा सेंव-परमल यहाँ का प्रसिद नास्ता है। जो की मालवा का नास्ता माना जाता है। हाल ही में मैकडोनल्ड, डोमिनोज़, पिज्जा हट, केएफसी, सबवे, बरिस्ता लवाज़ा और कैफे कॉफी डे जैसी कई राष्ट्रीय कंपनियों ने इंदौर में अपनी शाखाएं खोली है। मनोरंजन पार्क right|thumb|300px|अटल बिहारी वाजपेयी क्षेत्रीय पार्क अटल बिहारी वाजपेयी क्षेत्रीय पार्क (पिप्लियापाला पार्क या इंदौर क्षेत्रीय पार्क) के रूप में जाना जाता है, यह इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) द्वारा विकसित किया गया है। पार्क के विकास के तालाब और इस टैंक के पास ४२ एकड़ भूमि की भूमि में से ८० एकड़ जमीन पर है। वहाँ एक नहर है, जो पूरे पार्क तालाब के एक बिंदु से शुरू करने और दूसरे भाग में समाप्त शामिल किया गया है। पार्क में आकर्षण, एक संगीतमय फव्वारा शामिल जेट फव्वारा, 'कलाकार गांव, भूलभुलैया, फ्रेंच उद्यान, जैव-विविधता उद्यान, धुंध फव्वारा, फास्ट फूड जोन, नौका विहार, और एक मिनी दो डेक मिलनसार ८० के साथ "मालवा क्वीन" नाम क्रूज कूद लोग, एक रेस्तरां और निजी पार्टी कमरे। कमला नेहरु प्राणी संग्रहालय या इंदौर चिड़ियाघर ४,००० वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ इंदौर का सबसे पुराना प्राणी उद्यानों में से एक है। सफ़ेद बाघ, हिमालयी भालू और सफेद मोर, इसकी प्रजातियों के लिए जाना जाता है, इंदौर चिड़ियाघर भी प्रजनन, संरक्षण और जानवरों, पौधों और उनके निवास की प्रदर्शनी के लिए एक केंद्र है। मेघदूत गार्डन शहर के विजयनगर क्षेत्र में स्थित है। यह २००१-०१ में पुनर्निर्मित किया गया था। जमीन मकान लॉन, रोशन और नृत्य के फव्वारे, और सुंदर बगीचों की उपस्थिति। फॉर्च्यून लैंडमार्क और सयाजी होटल इस पार्क के करीब हैं। सिनेमा सिनेमा इंदौर में और साथ ही साथ पूरे देश में मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय माध्यम है। शहर में कई सिनेमाघर हैं जैसे की: आइनॉक्स (सपना-संगीता रोड) आइनॉक्स (सेंट्रल मॉल, रीगल चौराहा) आइनॉक्स सत्यम (सी२१ मॉल, विजय नगर) कार्निवल सिनेमाज़ (मल्हार मेगा मॉल, विजय नगर) पीवीआर सिनेमाज़ (ट्रेज़र आइलैंड मॉल, दक्षिण तुकोगंज) मधुमिलन (मधुमिलन चौराहा) मंगल बिग सिनेमा (मंगल सिटी, विजय नगर) मॉल इंदौर में कई मॉल, जो दर्शकों के लिए विभिन्न प्रकार और आराम प्रदान करने के लिए मेज़बान है। ट्रेजर आईलैंड, मंगल सिटी मॉल, इंदौर सेंट्रल मॉल, सी२१ मॉल, मल्हार मेगा मॉल, ऑर्बिट मॉल बहुत अच्छी तरह से जाना जाता है। २०११ में, वॉलमार्ट की एक शाखा, नामित बेस्ट प्राइस भी दुकानदारों छूट माल खरीदने के लिए खोला गया। इंदौर मध्य भारत में सबसे अधिक मॉल होने का रिकार्ड बना रही है। मीडिया प्रिंट मीडिया यहाँ से २० हिन्दी दैनिक समाचार पत्र, ७ अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र, २४ साप्ताहिक और मासिक, ४ चतुर्मासिक, २ द्विमासिक पत्रिका, एक वार्षिक कागज, और एक मासिक हिंदी भाषा शैक्षिक "कैम्पस डायरी" नाम अखबार शहर से प्रकाशित हो रहे हैं। भारत की 'पंप उद्योग पर केवल पत्रिका पंप्स भारत और वाल्व पत्रिका वाल्व भारत यहां से प्रकाशित किया जाता है Indian Journal of Science Communication (Volume 2/ Number 1/ January – June 2003) प्रमुख हिंदी अखबारों और राष्ट्रीय मीडिया घरानों का इंदौर में अपना क्षेत्रीय कार्यालय है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेडियो उद्योग निजी और सरकारी स्वामित्व वाली एफएम चैनलों के शुरू होने के साथ विस्तार किया गया है। निम्न एफ़एम रेडियो चैनल है जो कि शहर में प्रसारण कर रहें हैं। बिग एफ़एम (९२.७ मेगाहर्ट्ज़ (MHz)) रेड एफ़एम (९३.५ मेगाहर्ट्ज़ (MHz)) माय एफ़एम (९४.३ मेगाहर्ट्ज़ (MHz)) रेडियो मिर्ची एफ़एम (९८.३ मेगाहर्ट्ज़ (MHz)) विविध भारती एफ़एम (१०१.६ मेगाहर्ट्ज़ (MHz)) आकाशवाणी ज्ञानवाणी एफएम (१०५.६ मेगाहर्ट्ज़ (MHz)) सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा चलाए डिजिटलीकरण के दूसरे चरण के तहत २०१३ में केबल टीवी का डिजिटलीकरण पूर्ण कर दिया था। सिटी केबल सीटी केबल (City Cable) एक डिजिटल सिटी के ७०% कवरेज के साथ केबल वितरण कंपनी है। मध्य प्रदेश क्षेत्र का प्रधान कार्यालय इंदौर है और सिटी केबल ७ स्थानीय चैनलों भी चलाता है। इंदौर को प्रकाशीय तन्तु (ऑप्टिकल फ़ाइबर) तारों के एक नेटवर्क के द्वारा कवर किया जाता है। यहाँ लैंडलाइन के तीन ऑपरेटर हैं बीएसएनएल, रिलायंस और एयरटेल। वहीं आठ मोबाइल फोन कंपनियों, जिसमें जीएसएम में निम्न खिलाड़ी में शामिल हैं आइडिया टाटा डोकोमो बीएसएनएल एयरटेल रिलायंस वोडाफ़ोन वीडियोकाॅन मोबाइल सर्विस रिलायंस जियो टेलिकॉम जबकि सीडीएमए सेवाओं में बीएसएनएल और रिलायंस हैं। स्टूडियो और ट्रांसमिशन के साथ दूरदर्शन केन्द्र इंदौर जुलाई २००० से शुरू कर दिया गया। वेब मीडिया इंदौर से लगभग 75 हिंदी समाचार पोर्टल, 19 अंग्रेजी समाचार पोर्टल चलाये जाते हैं। यहाँ पर सोशल मीडिया ग्रुप्स शहर की छवि और जन अभियानों के लिए बेहद सक्रिय है। खेल क्रिकेट शहर में सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है। इंदौर मध्य प्रदेश क्रिकेट संघ (MPCA) और मध्य प्रदेश टेबल टेनिस एसोसिएशन (MPTTA) के लिए घर है और शहर के एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट ग्राउंड, होलकर क्रिकेट स्टेडियम है। राज्य में पहली बार क्रिकेट वनडे मैच जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, इंदौर में खेला गया था। क्रिकेट के अलावा, इंदौर कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए एक केंद्र है। शहर ने दक्षिण एशियाई चैम्पियनशिप की मेजबानी की और बिलियर्ड तीन दिवसीय राष्ट्रीय ट्रायथलन चैंपियनशिप है, जिसमें लगभग 450 खिलाड़ियों और 250 खेल के 23 राज्यों से संबंधित अधिकारियों को कार्यवाही में भाग लेने के लिए एक मेज़बान है। इंदौर बास्केटबॉल के लिए भी एक पारंपरिक केंद्र है, और एक वर्ग के इनडोर बास्केटबाल स्टेडियम के साथ भारत का पहला नेशनल बास्केटबॉल एकेडमी का घर है। इंदौर में सफलतापूर्वक विभिन्न नेशनल बास्केटबॉल चैंपियनशिप का आयोजन किया गया है। निम्न प्रमुख खेल स्टेडियम में शामिल हैं: बास्केट बॉल - बास्केटबॉल कॉम्प्लेक्स, बास्केट बॉल क्लब क्रिकेट - होल्कर क्रिकेट स्टेडियम, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, इंदौर, खालसा स्कूल स्टेडियम, महाराजा स्कूल स्टेडियम लॉन टेनिस - इंदौर टेनिस क्लब, इंदौर रेसीडेंसी क्लब टेबल टेनिस नेहरू स्टेडियम टीटी हॉल, अभय खेल प्रशाल कबड्डी - लकी वांडरर्स शतरंज - एसकेएम शतरंज अकादमी, iLEAD शतरंज अकादमी डाइविंग'' - नेहरू पार्क इंदौर के नाम दो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स दर्ज है, इसे दुनिया में सबसे बड़ी चाय पार्टी के लिए और दुनिया के सबसे बड़े बर्गर बनाने के लिए शामिल किया गया था। पर्यटन आकर्षण स्थानीय पर्यटन आकर्षण right|thumb|300px|इन्दौर का राजवाड़ा राजबाड़ा - यह नगर के बीचोबीच स्थित है। १९८४ के दंगों के समय इसमें आग लग जाने से इसको बहुत क्षति पहुँची थी। उसके बाद इसको कुछ हद तक पुनर्निर्मित करने का प्रयत्न किया गया है। कांच मन्दिर - यह एक जैन मन्दिर है जिसमें दीवारों पर अन्दर की तरफ कांच से सजाया गया है। नाहर शाह वली दरग़ाह - हजरत नाहर शाह वली दरगाह इंदौर की सबसे पुरानी दरगाह है और खजराना क्षेत्र में स्थित है। कृष्णपुरा की छतरियाँ - काह्न नदी के किनारे होलकर काल में बनाई गई छतरियां हैं। यह स्थान राजबाड़े से लगभग १०० मीटर की दूरी पर है। खजराना मंदिर - खजराना मंदिर भगवान गणेश का एक सुन्दर मंदिर है। ये मंदिर विजय नगर से पास है। ये मंदिर अहिल्या बाई होलकर ने दक्षिण शैली में बनवाया था। यह मंदिर इन्दौरवासियों की आस्था का केंद्र है। यहाँ पर भगवान गणेश के साथ माता दुर्गा, लक्ष्मी, साईबाबा आदि भगवान के मंदिर है। सतलोक आश्रम किठोदा में नवनिर्मित सतलोक आश्रम फिलहाल चर्चा का विषय है जोकि इंदौर से 35 किमी उज्जैन से 20 किमी देवास से 35 किमी. दूर है। right|thumb|300px|कृष्णपुरा की छतरियाँ इसके अलावा अन्य आकर्षण स्थलों में: बड़ा गणपती मन्दिर लालबाग, मल्हार आश्रम, बिजासन माता मन्दिर, अन्नपूर्णा देवी मन्दिर, यशवंत निवास, जमींदार बाडा, हरसिद्धी मंदिर, पंढ़रीनाथ, टाउन हॉल, अहिल्याश्रम, छत्रीबाग, माणिक बाग, सुखनिवास, फूटीकोठी, दुर्गादेवी मंदिर, इमामबाडा, श्री ऋद्धि सिद्धि चिन्तामन गणेश मंदिर आदि शामिल है। आसपास के पर्यटन आकर्षण इन्दौर के आस-पास कई प्रमुख पर्यटन स्थल है। महेश्वर -महेश्वर मध्य प्रदेश राज्य के खरगोन जिले में एक शहर है, और इंदौर से ९० किमी की दूरी पर है। ६ जनवरी १८१८ तक यह इन्दौर रियासत की राजधानी रहीं, फिर मल्हार राव होलकर तृतीय द्वारा राजधानी इंदौर शहर में स्थानांतरित कर दिया गया था। महेश्वर 5वीं सदी के बाद से हथकरघा बुनाई का एक केंद्र रहा है। महेश्वर भारत के हाथ करघा कपड़े परंपराओं में से एक का घर है। यह अपने मंदिरों, नर्मदा घाटों, किले और महलों के लिये जाना जाता है। मांडवगढ़ या मांडू - माण्डू धार जिले के वर्तमान माण्डव क्षेत्र में स्थित एक नष्ट कर दिया गया किला-शहर है। यह इन्दौर से ९९ किमी दूर स्थित है। मांडू अपने किलों, महलों और प्राकृतिक परिदृश्य के लिए जाना जाता है। पातालपानी झरना - thumb|पाताल पानी झरना, मानसून के समय यह इंदौर से ३५ किमी दूर, इंदौर के उपनगर महू की ओर स्थित एक झरना है। सीतला माता झरना - मानसून के दौरान यह झरना पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। टिनचा झरना - यह झरना भी मानसून के मौसम के दौरान जीवन्त हो उठता है। उल्लेखनीय व्यक्ति अहिल्याबाई होल्कर सैम मानेकशॉ के एम करिअप्पा ज्योतिरादित्य सिंधिया सुमित्रा महाजन दिग्विजय सिंह (राजनीतिज्ञ) जॉनी वॉकर राहुल द्रविड़ उस्ताद अमीर खान लता मंगेशकर सलीम ख़ान सलमान ख़ान राहत इन्दौरी भालचंद्र दत्तात्रे मोंडे सेलिना जेटली दिग्विजय भोंसले किरण कुमार पलक मुच्छल शहबाज़ ख़ान विजयेन्द्र घटगे सेठ हुकुमचन्द कैलाश विजयवर्गीय पद्मश्री डॉ जनक पलटा मगिलिगन पद्मश्री कुट्टी मेनन पद्मभूषण पंडित गोकुलोत्सव महाराज इन्हें भी देखें टीन का पुरा होलकर राजवंश अहिल्याबाई होल्कर सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इन्‍दौर शहर की सरकारी एजेंसियाँ इन्‍दौर जिला प्रशासन इन्‍दौर पुलिस प्रशासन नगर पालिक निगम, इन्‍दौर इन्‍दौर विकास प्राधिकरण इन्‍दौर सिटी बस (अटल इन्दौर शहर परिवहन सेवा लिमिटेड) इंदौर दर्शन इंदौर नगर तथा लाल बाग़ राजमहल के बारे में लालबाग महल, इन्दौर (भारत दर्शन, हिन्दी चिट्ठा) सॉफ्टवेर टेक्नोलॉजी पार्क्स ऑफ़ इंडिया, इंदौर इन्दौर पुलिस का ब्लॉग मेरा इंदौर शहर (भरपूर जानकारी युक्त हिंदी ब्लॉग) इन्दौर का मौसम श्रेणी:मध्य प्रदेश के शहर * श्रेणी:इंदौर ज़िला
एर्नाकुलम
https://hi.wikipedia.org/wiki/एर्नाकुलम
एर्नाकुलम (Ernakulam) भारत के केरल राज्य का एक नगर है। यह कोच्चि महानगर का केन्द्रीय भाग है। इसके नाम पर एर्नाकुलम ज़िले का नाम रखा गया है।"Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012394"The Rough Guide to South India and Kerala," Rough Guides UK, 2017, ISBN 9780241332894 विवरण एर्नाकुलम केरल राज्य के मध्य में स्थित है। यह कोच्चि शहर के पूर्वी, मुख्यभूमि हिस्से को संदर्भित करता है। यह कोच्चि का सबसे शहरी भाग है। एरनाकुलम को केरल राज्य की वाणिज्यिक राजधानी कहा जाता है। केरल हाईकोर्ट, कोचिंग कॉरपोरेशन का कार्यालय और कोचीन स्टॉक एक्सचेंच यहाँ स्थित है। शहर मे कई मलयाली उद्यमियों के लिए इनक्यूबेटर के रूप मे काम किया है और केरल के एक प्रमुख वित्तीय और वाणिज्यिक केंद्र है। पर्यटन स्थल मरीन ड्राइव, कोची दरबार हॉल ग्राउंड सुभाष पार्क बच्चों के पार्क महात्मा गांधी रोड (कोच्चि) केरल उच्च न्यायालय बी.आर. अम्बेडकर स्टेडियम इन्हें भी देखें कोच्चि एर्नाकुलम ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:एर्नाकुलम ज़िला श्रेणी:केरल के शहर श्रेणी:एर्नाकुलम ज़िले के नगर
ईटानगर
https://hi.wikipedia.org/wiki/ईटानगर
ईटानगर (Itanagar) भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। प्रशासनिक दृष्टि से यह पपुम पारे ज़िले में स्थित है और दिकरोंग नदी के किनारे बसा हुआ है।"Arunachal Pradesh: Past and Present," H. G. Joshi, Mittal Publications, 2005, ISBN 9788183240000"Paths of Development in Arunachal Pradesh," Ravi S. Singh, Northern Book Centre, 2005, ISBN 9788172111830"Documents on North-East India: Arunachal Pradesh, Volume 2 of Documents on North-East India: An Exhaustive Survey, Suresh K. Sharma (editor), Mittal Publications, 2006, ISBN 9788183240888 विवरण ईटानगर हिमालय की तराई में बसा हुआ है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 350 मी. है। चूंकि यह अरूणाचल प्रदेश की राजधानी है, इसलिए यहां तक आने के लिए सड़कों की अच्छी व्यवस्था है। गुवाहटी और ईटानगर के नाहरलागुन के बीच हेलीकॉप्टर सेवा का भी विकल्प है। हेलीकॉप्टर के अलावा पर्यटक बसों द्वारा भी गुवाहटी से ईटानगर तक पहुंच सकते हैं। गुवाहटी से ईटानगर तक डीलक्स बसें भी चलती हैं। इतिहास ईटानगर का नाम ईटा दुर्ग से आया है। ईटानगर में पर्यटक ईटा किला भी देख सकते हैं। इस किले का निर्माण 14-15वीं शताब्दी में राजाओं ने किया था। इसके नाम पर ही इस नगर का नाम ईटानगर रखा गया है। पर्यटक इस किले में कई खूबसूरत दृश्य देख सकते हैं। अब इस किले को राजभवन के नाम से जाना जाता है और यह राज्यपाल का सरकारी आवास है। मुख्य पर्यटन स्थल किला 280px|thumb|ईटा फ़ोर्ट, ईटानगर ईटानगर में पर्यटक ईटा किला भी देख सकते हैं। इस किले का निर्माण 14-15वीं शताब्दी में किया गया था। इसके नाम पर ही इसका नाम ईटानगर रखा गया है। पर्यटक इस किले में कई खूबसूरत दृश्य देख सकते हैं। किले की सैर के बाद पर्यटक यहां पर पौराणिक गंगा झील भी देख सकते हैं। पौराणिक गंगा झील यह ईटानगर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। झील के पास खूबसूरत जंगल भी है। यह जंगल बहुत खूबसूरत है। पर्यटक इस जंगल में सुन्दर पेड़-पौधे, वन्य जीव और फूलों के बगीचे देख सकते हैं। यहां आने वाले पर्यटकों को इस झील और जंगल की सैर जरूर करनी चाहिए। बौद्ध मंदिर यहां पर एक खूबसूरत बौद्ध मन्दिर है। बौद्ध गुरु दलाई लामा भी इसकी यात्रा कर चुके हैं। इस मन्दिर की छत पीली है और इस मन्दिर का निर्माण तिब्बती शैली में किया गया है। इस मन्दिर की छत से पूरे ईटानगर के खूबसूरत दृश्य देखे जा सकते हैं। इस मन्दिर में एक संग्राहलय का निर्माण भी किया गया है। इसका नाम जवाहर लाल नेहरू संग्राहलय है। यहां पर पर्यटक पूरे अरूणाचल प्रदेश की झलक देख सकते हैं। अन्य स्थल thumb|280px|डिरांग घाटी इसके अलावा यहां पर लकड़ियों से बनी खूबसूरत वस्तुएं, वाद्ययंत्र, शानदार कपड़े, हस्तनिर्मित वस्तुएं और केन की बनी सुन्दर कलाकृतियों को देख सकते हैं। संग्रहालय में एक पुस्ताकलय का निर्माण भी किया गया है। इसके अलावा भी यहां पर पर्यटक कई शानदार पर्यटन स्थलों की सैर कर सकते हैं। इन पर्यटन स्थलों में दोन्यी-पोलो विद्या भवन, विज्ञान संस्थान, इंदिरा गांधी उद्यान और अभियांत्रिकी संस्थान प्रमुख हैं। निकटवर्ती पर्यटन स्थल पापुम पेर अरूणाचल प्रदेश का पापुम पेर एक खूबसूरत स्थान है। इसका मुख्यालय युपिआ में स्थित है। यह ईटानगर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पापुम पेर हिमालय की तराई में बसा हुआ है। इस कारण पर्यटक यहां पर अनेक चोटियों को देख सकते हैं। चोटियों के अलावा पर्यटक यहां पर अनेक जंगलों, नदियों और पर्यटक स्थलों को भी देख सकते हैं। परिचय इसकी उत्तरी दिशा में कुरूंग कुमे, पूर्व में निचला सुबांसिरी, पश्चिम में पूर्वी कमेंग और दक्षिण में असम स्थित है। यहां पर निशी जाति के लोग रहते हैं। यह अपनी वीरता के लिए जाने जाते हैं। निशी के अलावा यहां पर मिकीर जाति भी रहती है। निशी जाति के लोग इण्डो-मंगोल प्रजाति से संबंध रखते हैं और इनकी भाषा तिब्बत-बर्मा भाषा परिवार से संबंधित है। निशी जाति के लोग फरवरी के पहले हफ्ते में अपना उत्सव भी मनाते हैं। इस उत्सव का नाम न्योकुम है। यहां पर अनेक पर्यटन स्थल भी हैं। इन पर्यटन स्थलों की यात्रा करना पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। पर्यटन स्थल पापुम पेर में कई खूबसूरत पर्यटन स्थल हैं। इसके अधिकतर पर्यटन स्थल ईटानगर, दोईमुख, सिगेली और किमीन में स्थित है। इन पर्यटन स्थलों की यात्रा करने के लिए पर्यटकों को अरूणाचल प्रदेश के सरकारी कार्यालयों से परमिट लेना पड़ता है। इन्हें भी देखें पपुम पारे ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:पपुम पारे ज़िला श्रेणी:अरुणाचल प्रदेश के नगर श्रेणी:पपुम पारे ज़िले के नगर * श्रेणी:अरुणाचल प्रदेश में हिल स्टेशन
सराइकेला
https://hi.wikipedia.org/wiki/सराइकेला
सराइकेला (Seraikela) भारत के झारखण्ड राज्य के सराइकेला खरसावाँ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। यहाँ से राष्ट्रीय राजमार्ग ४३ गुज़रता है।"Tourism and Its Prospects in Bihar and Jharkhand ," Kamal Shankar Srivastava, Sangeeta Prakashan, 2003"The district gazetteer of Jharkhand," SC Bhatt, Gyan Publishing House, 2002 इन्हें भी देखें सराइकेला खरसावाँ ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:सराइकेला खरसावाँ ज़िला श्रेणी:झारखंड के शहर श्रेणी:सराइकेला खरसावाँ ज़िले के नगर
गुरदासपुर
https://hi.wikipedia.org/wiki/गुरदासपुर
गुरदासपुर (Gurdaspur) भारत के पंजाब राज्य के गुरदासपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय है, हालांकि ज़िले का सबसे बड़ा शहर यह नहीं बल्कि बटाला शहर है। गुरु नानक देव जी की पत्नि गुरदासपुर से थीं।"Economic Transformation of a Developing Economy: The Experience of Punjab, India," Edited by Lakhwinder Singh and Nirvikar Singh, Springer, 2016, ISBN 9789811001970"Regional Development and Planning in India," Vishwambhar Nath, Concept Publishing Company, 2009, ISBN 9788180693779"Agricultural Growth and Structural Changes in the Punjab Economy: An Input-output Analysis," G. S. Bhalla, Centre for the Study of Regional Development, Jawaharlal Nehru University, 1990, ISBN 9780896290853"Punjab Travel Guide," Swati Mitra (Editor), Eicher Goodearth Pvt Ltd, 2011, ISBN 9789380262178 इन्हें भी देखें गुरदासपुर ज़िला बटाला सन्दर्भ श्रेणी:पंजाब के शहर श्रेणी:गुरदासपुर ज़िला श्रेणी:गुरदासपुर ज़िले के नगर
भीलवाड़ा
https://hi.wikipedia.org/wiki/भीलवाड़ा
भीलवाड़ा भारत के राजस्थान राज्य में स्थित एक शहर है। यह शहर भीलवाड़ा ज़िले का मुख्यालय है। यह राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में स्थित है तथा उदयपुर से १५२ कि.मी. दूर स्थित है। राजस्थान में यह अपने वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध है, इस कारण इसे राज्य की वस्त्रनगरी भी कहते हैं। पूरा ज़िला पारम्परिक "फड़ चित्रकला" के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है। इतिहास भीलवाड़ा का इतिहास 11वीं शताब्दी से संबंधित है और उस समय भील राजाओं ने जटाऊ शिव मंदिर का निर्माण करवाया। हालांकि, इस जगह की स्‍थापना की असल तारीख और समय का अब तक पता नहीं चल पाया है। पुष्टि के अनुसार, वर्तमान भीलवाड़ा शहर में एक टकसाल था जहां 'भिलाडी' के नाम से जाने जाने वाले सिक्कों का खनन किया जाता था और इसी संप्रदाय से जिले का नाम लिया गया था। और दूसरी कहानी इस प्रकार है कि भील नामक एक जनजाति ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ युद्ध में महाराणा प्रताप की मदद की थी, राजा अकबर भीलवाड़ा क्षेत्र में रहते थे, इस क्षेत्र को भील + बड़ा (भील का क्षेत्र) भीलवाड़ा के नाम से जाना जाने लगा। वर्षों से यह राजस्थान के प्रमुख शहरों में से एक के रूप में उभरा है। आजकल भीलवाड़ा को देश में टेक्सटाइल सिटी के रूप में जाना जाता है। 1948 में राजस्थान का भाग बनने से पूर्व भीलवाड़ा भूतपूर्व उदयपुर रियासत का हिस्सा था। पर्यटन थला की माता जी देवली भीलवाड़ा शहर से 15 किलोमीटर दूर बनास नदी के किनारे बहुत पुराना और विशाल बढ़ा देवी का मंदिर है यह बहुत विख्यात है यहां पर बारिश के मौसम में बड़ी संख्या में लोग घूमने के लिए आते हैं यहां पर नवरात्रा में रामायण वह बड़े-बड़े कलाकारों का ताता लगा रहता है वह अष्टमी के दिन बड़े मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें राष्ट्रीय स्तर केेे कलाकार आते है वह अष्टमी के दिन देवली मैं भव्य जुलूस निकलता है बाद में माता जी के यहां पर आते हैं यहां पर आने के लिए भीलवाड़ा से पुर देवली से 2 किलोमीटर है। चावण्डिया तालाब भीलवाड़ा से 15 किलोमीटर कोटा रोड़ कि तरफ चावंडिया तालाब स्थित है जहां तालाब के मध्य माता चामुंडा का मंदिर स्थित है। यहां हर वर्ष अक्टूबर से मार्च के मध्य विदेशी प्रवासी पक्षी आते है और इसी कारण इसे पक्षी ग्राम के नाम से जाना जाता है।यह पर्यटकों और पक्षी प्रेमियों के लिए बहुत ही सुन्दर जगह है। हर वर्ष ज़िला प्रशासन और कुछ संस्थाओं के द्वारा हर वर्ष पक्षी महोत्सव का आयोजन किया जाता है जहां देश विदेश से पक्षी विशेषज्ञ पक्षी अवलोकन के लिए आते है। दरगाह हजरत गुल अली बाबा शहर के सांगानेरी गेट पर स्थित यह दरगाह आस्ताना हज़रत गुल अली बाबा रहमतुल्लाह अलेही के नाम से मशहूर है यहाँ सभी धर्मो के लोग आस्था रखते है दरगाह पर प्रति वर्ष 1 से 3 नवम्बर तक उर्स का आयोजन होता है जो बड़ी धूमधाम से मनाया जा ता हैl दरगाह के पास ही एक विशाल मस्जिद भी स्थित है जो रज़ा मस्जिद के नाम से जानी जाती है | आस्ताना गुल अली में ही एक दारुल उलूम भी संचालित है जिसका नाम सुल्तानुल हिन्द ओ रज़ा दारुल उलूम है इस दारुल उलूम में देश के कई राज्यों से आये बच्चे इल्म हासिल करते है गाँधी सागर तालाब यह तालाब शहर के दक्षिण पूर्वी भाग में स्थित है किसी ज़माने में यह लोगो के लिए प्रमुख पेयजल स्रोत हुआ करता था इस तालाब के मध्य में एक विशाल टापू स्थित है यह तालाब लोगो के लिए महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है इसके उत्तरी छोर पर एक तरफ तेजाजी का मंदिर, दूसरी तरफ बालाजी का मंदिर तथा मध्य में हज़रत मंसूर अली बाबा और हज़रत जलाल शाह बाबा की दरगाह स्थित हे इस पर्यटन स्थल को विकसित करने के लिए इसके दक्षिणी किनारे पर एक मनोरम पार्क का निर्माण कराया गया है जिसका नाम ख्वाज़ा पार्क रखा गया है बरसात के मोसम में इस तालाब से गिरते पानी का मनोरम दृश्य देखते ही बनता है हरणी महोदव भीलवाड़ा से 6 किलोमीटर दूर मंगरोप रोड़ पर शिवालय है। जो कि हरणी महोदव के नाम से प्रसिद्ध है। जहां पर प्रत्‍येक शिवरात्रि पर 3 दिवसीय भव्‍य मेले का आयोजन होता है। मेले का आयोजना जिला प्रशासन द्वारा नगर परिषद के सहयोग से किया जाता है। जिसमें 3 दिन तक प्रत्‍येक रात्रि में अलग-अलग कार्यक्रम यथा धार्मिक भजन संध्‍या (रात्रि जागरण), कवि सम्‍मेलन व सांस्‍क़तिक संध्‍या का आयोजन किया जाता है। यह मन्दिर पहाड़ी की तलहटी पर स्थित है। प्राचीन समय में यहां घना आरण्‍य होने से आरण्‍य वन कहा जाता था, जिसका अपभ्रंश हो कर हरणी नाम से प्रचलित हो गया। बदनोर भीलवाडा शहर से 72 किलोमीटर दूर स्थित इस कस्बे का इतिहास में एक अलग ही महत्व हे जब मेड़ता के राजा जयमल ने राणा उदेसिंह से सहायता के लिए कहा तो राणा ने जयमल को बदनोर जागीर के रूप में दिया बदनोर में कई देखने योग्य स्थल हे उनमे से निम्न हे - छाचल देव। अक्षय सागर। जयमल सागर। बैराट मंदिर। धम धम शाह बाबा की दरगाह। आंजन धाम। केशर बाग़। जल महल। आदि कोटडी वर्तमान मे शाहपुरा जिले मे स्थित है कोटडी़« भीलवाडा शहर से 23 किलोमीटर दूर स्थित इस कस्बे का नाम आते ही सबसे पहले विख्यात श्री कोटडी़ चारभुजा जी का मंदिर स्मृति में आता है। भीलवाडा-जहाजपुर रोड पर स्थित यह नगर भगवान के चारभुजा जी के मन्दिर के कारण काफी प्रसिद्ध कोठाज« कोठाज श्री चारभुजा मन्दिर देवतलाई« प्राचीन देवनारायण जी का मन्दिर देवतलाई मे बना हुआ है जहाँ पर मन्दिर का निर्माण का रातो_रात मे हुआ है ( 1)यह मन्दिर हिन्दु,जैन,ईसाई, मुस्लिम सभी शैलियो का मिश्रण से निर्मित है , इस मन्दिर परिसर मे सभी धर्मो के देवताओ कि प्राचीन मूर्तिया लगी हुई है तथा प्राचिन शिलालेख भी लगा हुआ है (2) इसी गांव मे सोने के विशाल भण्डार खोजे गये है अतः यह राजस्थान कि पहली सोने कि खदान होगी, यहां पर सोने के साथ साथ चांदी तांबा ,लौहा, आदि धातुओ के भण्डार है बागडा़« (1)बागडा़ गांव मे भगवान देवनारायण जी का मन्दिर बना हुआ है जिसे सारण श्याम जी के नाम से जाना जाता है यहां पर देवनारायण जी कि मूर्तिया का जमीन मे भण्डार होने के कारण इसे मेवाड का नागपहाड़ (मिनी नागपहाड़) कहा जाता है क्योकि नाग पहाड़ के समान हि यहां पर देवनारायण जी कि मूर्तियो का भण्डार पाया जाता है (2) सर्वाधिक महिला लिंगानूपात वाला गांव (3)कोटडी़ तहसील का जैविक गांव (4)सर्वाधिक कपास का उत्पादन वाला गांव 1921 में बसा गुर्जरों का गढ़ सरकाखेड़ा गांव भी पारोली« (1) लगु सम्मेद शिखर के नाम से विख्यात चंवलेश्वर जी जैन मन्दिर( चैनपुरा_पारोली) मे है, (2)मीराबाई का आश्रम बनेड़ा यह भीलवाडा जिले का सबसे पुराना शहर हे बनेड़ा में दुर्ग हे, जो महाराजा सरदार सिंह ने बनवाया था। ये ऐक तहसील व् उपखंड कार्यालय है यह ऐक ऐतिहासिक सत्र हे सबसे पुराना जेन मंदिर हे व् बहुत बड़ा दुर्ग के परकोटा बना हुआ है। मेनाल माण्डलगढ से 20 किलोमीटर दूर चित्तौड़गढ़ की सीमा पर स्थित पुरातात्विक एवं प्राकृतिक सौन्दर्य स्थल मेनाल में 12 वीं शताब्दी के चौहानकला के लाल पत्थरों से निर्मित महानालेश्वर मंदिर, हजारेश्वर मंदिर देखने योग्य हैं। सैकडों फीट ऊंचाई से गिरता मेनाली नदी का जल प्रपात भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र हैं। जहाजपुर भीलवाडा का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल, जिसका इतिहास बड़ा रंगबिरंगा रहा हैं। कर्नल जेम्स टॉड 1820 में उदयपुर जाते समय यहाँ आये थे। यहाँ का बड़ा देवरा (पुराने मंदिरों का समूह), पुराना किला और गैबीपीर के नाम से प्रसिद्ध मस्जिद दर्शनीय हैं।यहा पर जैन धर्म का मंदिर भी है जो स्वस्तिधाम के नाम से जाना जाता हे इस मंदिर श्री मुनि सुवर्तनाथ की प्राकट्य प्रतिमा है जो बहुत अदभुद हे यह प्रतिमा चमत्कारी है यह मंदिर शाहपुरा रोड पर स्थित है|जहाजपुर से 12 किलोमीटर दूर श्री घटारानी माता जी का मंदिर है जो अतिसुन्दर व् दर्शनीय है तथा इस मंदिर से 2 किलोमीटर दूर पंचानपुर चारभुजा का प्राकट्य स्थान मंदिर है|जहाजपुर क्षेत्र में एक नागदी बांध है जो अतिसूंदर व् आकर्षक है यहाँ एक नदी भी हे जिसे नागदी नदी के नाम से जाना जाता हैं इसे जहाजपुर की गंगा भी कहते है| जहाजपुर में देखने के लिए अनेको मंदिर व् धर्मस्तल है| जहाजपुर की भाषा व् जीवन शैली अदभुद है|जहाजपुर क्षेत्र में मीणा जाति सर्वाधिक निवास करती हैं|जहाजपुर में एक पहाड़ी पर मांगट देव का मंदिर है जो मोटिस (मीणाओ) का प्रमुख धार्मिक स्थान है|जहाजपुर बसस्टैंड के पास देवली रोड पर एसबीआई बैंक के सामने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी का एक सर्किल भी है जिस पर बाबा साहेब की विशाल मूर्ति लगी है| बिजोलिया माण्डलगढ से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित बिजौलिया में प्रसिद्ध मंदाकिनी मंदिर एवं बावडियाँ स्थित हैं। ये मंदिर 12 वीं शताब्दी के बने हुए हैं। लाल पत्थरों से बने ये मंदिर पुरातात्विक व ऐतिहासिक महत्व के स्थल इतिहास प्रसिद्ध किसान आन्दोलन के लिए भी बिजौलियाँ प्रसिद्ध रहा हैं। यहाँ पर बना भूमिज शैली का विष्णु भगवान का मंदीर 1000 वर्ष सै भी पुराना है , जो भीलवाडा का एक मात्र मंदिर है। यहा बिजोलिया अभिलेख हैं जिससे चौहानो की जानकारी मिलती हैं व इसमे चौहनो को ब्राह्मण बताया गया हैं शाहपुरा भीलवाडा तहसील मुख्यालय से 50 किलोमीटर पूर्व में शाहपुरा राज्य की राजधानी था। यहाँ रेल्वे स्टेशन नहीं ह परन्तु यह सडक मार्ग द्वारा जिला मुख्यालय से जुडा हुआ हैं। यह स्थान रामस्नेही सम्प्रदाय के श्रद्धालुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। जिसे रामद्वारा के नाम से जानते है,मुख्य मंदिर रामद्वारा के नाम से जाना जाता हैं। यहाँ पूरे भारत से और बर्मा तक तक से तीर्थ यात्री आते हैं। यहाँ लोक देवताओं की फड पेंटिंग्स भी बनाई जाती हैं। यहाँ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह बारहठ की हवेली एक स्मारक के रूप में विद्यमान हैं। जो वर्तमान में एक संग्रहालय के रूप में है जिसे देखने लोग आते हैं,शाहपुरा में प्रसिद्ध क्रांतिकारी प्रतापसिंह बारहट के नाम से महाविधालय है जिसके प्रांगण मे प्रतापसिंह बारहट की मूर्ति लगी है,यहाँ होली के दूसरे दिन प्रसिद्ध फूलडोल मेला लगता हैं, जो लोगों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र होता हैं। यहाँ शाहपुरा से 30 किलो मीटर दूर धनोप माता का मंदिर भी हे और खारी नदी के तट पर शिव मंदिर छतरी भी लोगों को काफी पसंद हे माण्डल भीलवाडा से 14 किलोमीटर दूर स्थित माण्डल कस्बे में प्राचीन स्तम्भ मिंदारा पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यहाँ से कुछ ही दूर मेजा मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ कछवाह की बतीस खम्भों की विशाल छतरी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व का स्थल हैं। छह मिलोकमीटर दूर भीलवाडा का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मेजा बांध हैं। होली के तेरह दिन पश्चात रंग तेरस पर आयोजित नाहर नृत्य लोगों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र होता हैं। कहते हैं कि शाहजहाँ के शासनकाल से ही यहाँ यह नृत्य होता चला आ रहा हैं। यहां के तालाब के पाल पर प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। जिसे भूतेश्‍वर महादेव के नाम से जाना जाता है। माण्डलगढ भीलवाडा से 51 किलोमीटर दूर माण्डलगढ नामक अति प्राचीन विशाल दुर्ग ह मांडलगढ़ दुर्ग का निर्माण चांदना गुर्जर ने करवाया था। त्रिभुजाकार पठार पर स्थित यह दुर्ग राजस्थान के प्राचीनतम दुर्गों में से एक हैं। यह दुर्ग बारी-बारी से मुगलों व राजपूतों के आधिपत्य में रहा हैं। इस दुर्ग के बारे में बहुत सारी दंत कथाएं भी प्रचलित है यह बहुत ही अच्छा और विशाल दुर्ग है अन्य स्थल भीलवाडा-उदयपुर मार्ग पर 45 मिलोमीटर दूर गगापुर में गंगाबाई की प्रसिद्ध छतरी पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इस छतरी का निर्माण सिंधिया महारानी गंगाबाई की याद में महादजी सिंधिया ने करवाया था। भीलवाड से 55 किलोमीटर दूर खारी नदी के बायें किनारे पर स्थित भीलवाडा का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल। राजस्थान के लोक देवता देवनारायण जी का यह तीर्थ स्थल ह और इनका यहाँ एक भव्य मंदिर स्थित हैं। इसे इसके निर्माता भोजराव के नाम पर सवाईभोज कहते हैं। इन्हें भी देखें भीलवाड़ा ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:राजस्थान के शहर श्रेणी:भीलवाड़ा ज़िला श्रेणी:भीलवाड़ा ज़िले के नगर
हिसार
https://hi.wikipedia.org/wiki/हिसार
हिसार (Hisar) भारत के हरियाणा राज्य के हिसार ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।"General Knowledge Haryana: Geography, History, Culture, Polity and Economy of Haryana," Team ARSu, 2018"Haryana: Past and Present ," Suresh K Sharma, Mittal Publications, 2006, ISBN 9788183240468"Haryana (India, the land and the people), Suchbir Singh and D.C. Verma, National Book Trust, 2001, ISBN 9788123734859 यह एक प्राचीन शहर है। विवरण हिसार भारत की राजधानी नई दिल्ली के १६४ किमी पश्चिम में राष्ट्रीय राजमार्ग 9 एवं राष्ट्रीय राजमार्ग 52 पर पड़ता है। यह भारत का सबसे बड़ा जस्ती लोहा उत्पादक है। इसीलिए इसे इस्पात का शहर के नाम से भी जाना जाता है। पश्चिमी यमुना नहर पर स्थित हिसार राजकीय पशु फार्म के लिए विशेष विख्यात है। अनिश्चित रूप से जल आपूर्ति करनेवाली घग्गर एकमात्र नदी है। यमुना नहर हिसार जिला से होकर जाती है। जलवायु शुष्क है। कपास पर आधारित उद्योग हैं। भिवानी, हिसार, हाँसी तथा सिरसा मुख्य व्यापारिक केंद्र है। अच्छी नस्ल के साँडों के लिए हिसार विख्यात है। हिसार की स्थापना सन १३५४ ई. में तुगलक वंश के शासक फ़िरोज़ शाह तुग़लक ने की थी। घग्गर एवं दृषद्वती नदियां एक समय हिसार से गुजरती थी। हिसार में महाद्वीपीय जलवायु देखने को मिलती है जिसमें ग्रीष्म ऋतु में बहुत गर्मी होती है तथा शीत ऋतु में बहुत ठंड होती है। यहाँ हिन्दी एवं अंग्रेज़ी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाएँ हैं। यहाँ की औसत साक्षरता दर ८१.०४ प्रतिशत है। १९६० के दशक में हिसार की प्रति व्यक्ति आय भारत में सर्वाधिक थी। नामकरण पाणिनि ने उनके ग्रंथ अष्टाध्यायी में इसुकार नाम के स्थान का उल्लेख किया है जिसे इतिहासकारों द्वारा हिसार का प्राचीन नाम माना गया है। १३५४ ई. में जब फ़िरोज़ शाह तुग़लक ने हिसार की स्थापना की तो उन्होंने इसका नाम हिसार-ए-फिरोज़ा रखा जिसका अरबी भाषा में अर्थ होता है फिरोज़ का किला। हालांकि अकबर के काल में इसके नाम से फिरोज़ हट गया तथा इसे सिर्फ हिसार के नाम से जाना जाने लगा। इतिहास हिसार पर बहुत सारे साम्राज्यों का शासन रहा है। यह तीसरी सदी ई.पू. में मौर्य राजवंश का, १३वीं सदी में तुगलक वंश का, १६वीं सदी में मुगल साम्राज्य का तथा १९वीं सदी में ब्रिटिश साम्राज्य का भाग रहा है। भारत की स्वतन्त्रता के बाद यह पंजाब प्रान्त का भाग बना दिया गया किन्तु १९६६ ई. में पंजाब के विभाजन के बाद यह हरियाणा का भाग बन गया। मुस्लिम विजय के पूर्व हिसार का अर्ध बलुआ भाग चौहान राजपूतों का अपयान स्थान था। १८वीं शताब्दी के अंत में भट्टी और भटियाला लोगों ने इसे अधिकृत किया था। १८०३ ई. में अंशत: यह ब्रिटिश अधिकार में आ गया किंतु १८१० ई. तक इनका शासन लागू न हो सका। १८५७ के प्रथम स्वंत्रता युद्ध, के बाद निरापद रूप से, हिसार ब्रिटिश अधिकार में आ गया। thumb|280px|हिसार स्थित फ़िरोज़ शाह द्वारा निर्मित किला तुग़लक़ वंश के शासक बादशाह फ़िरोज़ शाह तुग़लक ने १३५४ ई. में एक दुर्ग के रूप में हिसार की स्थापना की थी। यह शहर बाद में एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गया। १७८३ ई. के दुर्भिक्ष में हिसार प्राय: पूर्णत: जनहीन हो गया था, किंतु आयरलैंड के साहसी अभियानकर्ता जार्ज थामस ने एक दुर्ग बनवाकर इसे पुन: बसाया। १८६७ ई. में हिसार की नगरपालिका का अध्ययन किया गया। यह शहर एक दीवार से घिरा है। जिसमें चार दरवाज़े हैं- नागोरी गेट, मोरी गेट, दिल्ली गेट तथा तलाकी गेट के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ फ़िरोज़ शाह के क़िले व महल के अवशेषों के साथ-साथ कई प्राचीन मस्जिदें हैं, जिनमें जहाज़ भी एक है, जो अब एक जैन मंदिर है। प्राचीन समय में यह हड़प्पा सभ्यता का मुख्य केन्द्र था। प्राचीन समय में यहाँ कई आदिवासी जातियाँ रहती थी। इन जातियों में भरत, पुरू, मुजावत्स और महावृष प्रमुख थी। कृषि और खनिज गेहूँ व कपास यहाँ की प्रमुख फ़सलें हैं। अन्य फ़सलों में चना, बाजरा, चावल, सरसों व गन्ना शामिल हैं। विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग तरह की फसलों का उत्पादन किया जाता है, मुख्य रूप से हिसार में फसलों का उत्पादन एक अच्छे स्तर पर किया जाता है। गेहूँ का हिसार जिले में रिकॉर्ड उत्पादन होता है। उद्योग और व्यापार उद्योगों में कपास की ओटाई, हथकरघा बुनाई और कृषि यंत्रों व सिलाई मशीनों के निर्माण से जुड़े उद्योग शामिल हैं। यहाँ पर कपास, अनाज और तेल के बीजों का बड़ा बाज़ार है। इस बाज़ार के लिए यह बहुत प्रसिद्ध है। यातायात और परिवहन हिसार शहर एक प्रमुख रेल व सड़क जंक्शन है। शिक्षण संस्थान CRM Jat College, CRM Jat Sr. Sec. School, CRM Jat Law College, CAV Sr. Sec. School, DAV public School, महाराजा अग्रसेन चिकित्सा महाविद्यालय, अग्रोहा, इस शहर में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय, सी.सी. शाहू प्रबंधन महाविद्यालय, कृषि इंजीनियरिंग व प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, राजकीय बहुतकनीकी, हिसार गवर्नमेंट कॉलेज और डी.एन. कॉलेज सहित कई महाविद्यालय शामिल हैं। फतेहाबाद रोड पर स्थित कल्पना चावला कॉलेज भी खासा प्रतिष्ठित संस्थान है। पर्यटन हिसार एक सुन्दर स्थान तथा पर्यटन का आकर्षक स्‍थल है। पर्यटक यहाँ पर कई ख़ूबसूरत स्थलों की सैर कर सकते हैं। यहाँ पर सम्राट अशोक के काल का एक स्तम्भ, कुषाण वंश के सिक्के व अन्य अवशेष भी मिले हैं। कुल मिलाकर हिसार बहुत ख़ूबसूरत है और पर्यटक यहाँ पर अनेक ख़ूबसूरत स्‍थान देख सकते हैं। पर्यटक स्थलों की सैर के बाद यहाँ पर अनेक ऐतिहासिक इमारतों की यात्रा की जा सकती है। जनसंख्या २०११ की जनगणना के अनुसार हिसार की जनसंख्या ३०१,२४९ है। हिसार भारत का १४१वां सर्वाधिक आबादी वाला शहर है। पुरुष ५४ प्रतिशत आबादी का गठन करते हैं जबकि महिलाएँ ४६ प्रतिशत आबादी का गठन करती हैं। यहाँ लिंग अनुपात ८४४ महिला प्रति हजार पुरुष है। औसत साक्षरता दर ८१.०४ प्रतिक्षत है: पुरुष साक्षरता दर ८६.१३ प्रतिक्षत है जबकि महिला साक्षरता दर ७५.०० है। हिन्दु हिसार की लगभग ९७ प्रतिशत आबादी का गठन करते हैं तथा मुस्लिम, जैन, सिख और इसाई बाकी आबादी का गठन करते हैं। १९वीं सदी में हिसार में आर्य समाज बहुत सफल हुआ और इसमे लाला लाजपत राय का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान था। अग्रहरि जाति के लोग हिसार को अपना जन्मस्थान मानते हैं। हिसार के कुछ प्रमुख व्यक्तित्व राजनीतिज्ञ भजनलाल - हरियाणा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल - दिल्ली के मुख्यमंत्री कुलदीप बिश्नोई- बिश्नोई महासभा संरक्षक सुभाष चन्द्रा- राज्यसभा सदस्य खिलाड़ी साइना नेहवाल गीतिका जाखड़ ललिता सहरावत व्यवसायी नवीन जिंदल सुभाष चंद्रा साहित्यकार सूरदास विष्णु प्रभाकर स्वतन्त्रता सेनानी राजा जाटवान मलिक देपल(दीपालपुर)- कुतुबुद्दीन ऐबक से भयंकर युद्ध करके हांसी को आजाद करवाया। युद्ध 3 दिन 3 रात तक जारी रहा और लेकिन जाटवान की सेना बहुत कम थी। अतः अंत में वे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। चौधरी न्योन्दराम बुरा -1857 में हांसी लाल सड़क पर कुचले जाने वाले प्रथम क्रांतिकारी। ये रोहनात गांव के निवासी थे। लाला हुकमचन्द जैन - 1857 की क्रांति के शहीद। चौधरी मनीराम शेहरावत खरड़ अलीपुर- दिल्ली में जॉर्ज पंचम की मूर्ति को तोड़ने पर इन्हें आंग्रेजो ने कारावास की सजा दी थी। अधिक संसूचना एम् एम् जुनेजा द्वारा लिखित हिसार का इतिहास: आरंभ से स्वतंत्रता तक, १३५४-१९४७; वर्ष १९८९, हरियाणा: मोडर्न बुक कं., ४८४ पृष्ठ; ISBN 0439410233 एम् एम् जुनेजा द्वारा लिखित हिसार शहर: स्थान तथा शख़्सियत; वर्ष २००४, हरियाणा: मोडर्न पब्लिशर्स, ७४४ पृष्ठ इन्हें भी देखें हिसार ज़िला हिसार लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र बाहरी कड़ियाँ हिसार का आधिकारिक जालस्थल हिसार की नगर निगम का आधिकारिक जालस्थल हिसार पुलिस का आधिकारिक जालस्थल हिसार की स्थान-विवरणिका सन्दर्भ श्रेणी:हरियाणा के शहर श्रेणी:हिसार ज़िला श्रेणी:हिसार ज़िले के नगर
सेलम
https://hi.wikipedia.org/wiki/सेलम
सेलम (Salem) भारत के तमिल नाडु राज्य के सेलम ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है।"Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012394"Tamil Nadu, Human Development Report," Tamil Nadu Government, Berghahn Books, 2003, ISBN 9788187358145 इन्हें भी देखें सेलम ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:सेलम ज़िला श्रेणी:तमिल नाडु के शहर श्रेणी:सेलम ज़िले के नगर *
श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर
https://hi.wikipedia.org/wiki/श्रीनगर,_जम्मू_और_कश्मीर
श्रीनगर (Srinagar) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य का सबसे बड़ा शहर और ग्रीष्मकालीन राजधानी है। यह कश्मीर घाटी में झेलम नदी के किनारे बसा हुआ है, जो सिन्धु नदी के एक प्रमुख उपनदी है। प्रसिद्ध डल झील और आंचार झील भी नगर-भूगोल का महत्वपूर्ण भाग हैं। कश्मीर घाटी के मध्य में बसा यह नगर भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। दस लाख से अधिक जनसंख्या रखने वाला यह भारत का उत्तरतम नगर है। श्रीनगर अपने उद्यानों व प्राकृतिक वातावरण के लिए जाना जाता है और यहाँ के कश्मीर शॉल व मेवा देशभर में प्रसिद्ध है।"Jammu, Kashmir, Ladakh: Ringside Views," Onkar Kachru and Shyam Kaul, Atlantic Publishers, 1998, ISBN 9788185495514"District Census Handbook, Jammu & Kashmir ," M. H. Kamili, Superintendent of Census Operations, Jammu and Kashmir, Government of India"Restoration of Panchayats in Jammu and Kashmir," Joya Roy (Editor), Institute of Social Sciences, New Delhi, India, 1999"Land Reforms in India: Computerisation of Land Records," Wajahat Habibullah and Manoj Ahuja (Editors), SAGE Publications, India, 2005, ISBN 9788132103493 विवरण श्रीनगर विभिन्न मंदिरों व मस्जिदों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। 1700 मीटर ऊंचाई पर बसा श्रीनगर विशेष रूप से झीलों और हाऊसबोट के लिए जाना जाता है। इसके अलावा श्रीनगर परम्परागत कश्मीरी हस्तशिल्प और सूखे मेवों के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। श्रीनगर का इतिहास काफी पुराना है। माना जाता है कि इस जगह की स्थापना सम्राट अशोक मौर्य ने की थी। इस जिले के चारों ओर पांच अन्य जिले स्थित है। श्रीनगर जिला कारगिल के उत्तर, पुलवामा के दक्षिण, बुद्धगम के उत्तर-पश्चिम के बगल में स्थित है। श्रीनगर प्रान्त की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। ये शहर और उसके आस-पार के क्षेत्र एक ज़माने में दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत पर्यटन स्थल माने जाते थे -- जैसे डल झील, शालिमार और निशात बाग़, गुलमर्ग, पहलगाम, चश्माशाही, आदि। यहाँ हिन्दी सिनेमा की कई फ़िल्मों की शूटिंग हुआ करती थी। श्रीनगर की हज़रतबल मस्जिद में माना जाता है कि वहाँ हजरत मुहम्मद की दाढ़ी का एक बाल रखा है। श्रीनगर में ही शंकराचार्य पर्वत है जहाँ विख्यात हिन्दू धर्मसुधारक और अद्वैत वेदान्त के प्रतिपादक आदि शंकराचार्य सर्वज्ञानपीठ के आसन पर विराजमान हुए थे। डल झील और झेलम नदी (संस्कृत : वितस्ता, कश्मीरी : व्यथ) में आने जाने, घूमने और बाज़ार और ख़रीददारी का ज़रिया ख़ास तौर पर शिकारा नाम की नावें हैं। कमल के फूलों से सजी रहने वाली डल झील पर कई ख़ूबसूरत नावों पर तैरते घर भी हैं जिनको हाउसबोट कहा जाता है। इतिहासकार मानते हैं कि श्रीनगर मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बसाया गया था। right|thumb|400px|डल झील में एक शिकारा श्रीनगर से कुछ दूर एक बहुत पुराना मार्तण्ड (सूर्य) मन्दिर है। कुछ और दूर अनन्तनाग ज़िले में शिव को समर्पित अमरनाथ की गुफा है जहाँ हज़ारों तीर्थयात्री जाते हैं। श्रीनगर से तीस किलोमीटर दूर मुस्लिम सूफ़ी संत शेख़ नूरुद्दिन वली की दरगाह चरार-ए-शरीफ़ है, जिसे कुछ वर्ष पहले इस्लामी आतंकवादियों ने ही जला दिया था, पर बाद में इसकी वापिस मरम्मत हुई। इतिहास राजतरंगिणी में अशोक को श्रीनगर का प्रथम सम्म्राट् बताया है। इसी सन्दर्भ में हेनसांग का मानना है कि श्रीनगर का संस्थापक अशोक ही था। श्रीनगर का वास्तु श्रीनगर केवल प्राकृतिक सौंदर्य ही नहीं, वास्तु विरासत की दृष्टि से भी खूब समृद्ध है। यहां कई सुंदर मस्जिदें हैं। हजरत बल यहां का महत्वपूर्ण धर्मस्थल है। यहां हजरत मोहम्मद का बाल संग्रहीत होने के कारण मुसलिम समुदाय के लिए यह अत्यंत पवित्र स्थान है। संगमरमर की बनी इस सफेद इमारत का गुंबद दूर से ही पर्यटकों को इसकी भव्यता का एहसास कराता है। शाह हमदान मसजिद होने के कारण प्रसिद्ध है। 1395 में इसका पहली बार जीर्णोद्धार हुआ था। इसके बाद कई बार इसका जीर्णोद्धार किया गया। यहां की जामा मसजिद भी लकडी द्वारा निर्मित मसजिद है। इसकी इमारत तीन सौ से अधिक स्तंभों पर खडी है। ये स्तंभ देवदार वृक्ष के तने के हैं। इनके अतिरिक्त पत्थर मस्जिद, दस्तगीर साहिब एवं मख्दूम साहिब भी देखने योग्य हैं। श्रीनगर के मध्य हरीपर्वत पहाडी पर 16वीं शताब्दी में बना एक किला भी पर्यटकों को आकर्षित करता है। इसका निर्माण अफगान गवर्नर अता मुहम्मद खान ने करवाया था। अकबर ने इस किले का विस्तार किया था। दूसरी ओर डल झील के सामने तख्त-ए-सुलेमान पहाडी है। उसके शिखर पर प्रसिद्ध शंकराचार्य मंदिर है। यह प्राचीन मंदिर भगवान शंकर को समर्पित है। 10वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य यहां आए थे, जिसके कारण इस मंदिर का यही नाम पड गया। पहाडी से एक ओर डल झील का विस्तार तो दूसरी ओर श्रीनगर का विहंगम दृश्य देखते बनता है। पृष्ठभूमि में हिमशिखरों की भव्य कतार साफ नजर आती है। यहां आने वाला हर सैलानी सबसे पहले श्रीनगर पहुंचता है, जो कि यहां का प्रमुख शहर तथा राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। श्रीनगर घाटी का मुख्य व्यावसायिक केंद्र भी है। अन्य पर्वतीय स्थलों की तुलना में यह शहर कुछ अलग लगता है। यहां के घर व बाजार पहाडी ढलानों पर नहीं बसे। एक विस्तृत घाटी के मध्य स्थित होने के कारण यह मैदानी शहरों जैसा लगता है। किंतु पृष्ठभूमि में दिखाई पडते बर्फाछादित पर्वत शिखर यह एहसास कराते हैं कि सैलानी वास्तव में समुद्रतल से 1730 मीटर ऊंची सैरगाह में हैं। हाउसबोट में रहने वालों को जब कहीं आना-जाना होता है तो पहले वे शिकारे से सडक तक आते हैं। झील के सौंदर्य को निरखने के लिए शिकारे से जरूर घूमना चाहिए। इस तरह घूमते हुए शॉल, केसर, आभूषण, फूल आदि बेचने वाले अपने शिकारे में सजी दुकान के साथ आपके करीब आते रहेंगे। यही नहीं, आप पानी में तैरते फोटो स्टूडियो में कश्मीरी ड्रेस में अपनी तसवीर भी खिंचवा सकते हैं। डल झील thumb|300px|निशात बाग़ की तरफ से डल झील में सूर्यास्त का दृश्य thumb|300px|डल झील के एक किनारे का दृश्य। श्रीनगर का सबसे बडा आकर्षण यहां की डल झील है। जहां सुबह से शाम तक रौनक नजर आती है। सैलानी घंटों इसके किनारे घूमते रहते हैं या शिकारे में बैठ नौका विहार का लुत्फउठाते हैं। दिन के हर प्रहर में इस झील की खूबसूरती का कोई अलग रंग दिखाई देता है। देखा जाए तो डल झील अपने आपमें एक तैरते नगर के समान है। तैरते आवास यानी हाउसबोट, तैरते बाजार और तैरते वेजीटेबल गार्डन इसकी खासियत हैं। कई लोग तो डल झील के तैरते घरों यानी हाउसबोट में रहने का लुत्फलेने के लिए ही यहां आते हैं। झील के मध्य एक छोटे से टापू पर नेहरू पार्क है। वहां से भी झील का रूप कुछ अलग नजर आता है। दूर सडक के पास लगे सरपत के ऊंचे झाडों की कतार, उनके आगे चलता ऊंचा फव्वारा बडा मनोहारी मंजर प्रस्तुत करता है। झील के आसपास पैदल घूमना भी सुखद लगता है। शाम होने पर भी यह झील जीवंत नजर आती है। सूर्यास्त के समय आकाश का नारंगी रंग झील को अपने रंग में रंग लेता है, तो सूर्यास्त के बाद हाउसबोट की जगमगाती लाइटों का प्रतिबिंब झील के सौंदर्य को दुगना कर देता है। शाम के समय यहां खासी भीड नजर आती है। भीड-भाड से परे शांत वातावरण में किसी हाउसबोट में रहने की इछा है तो पर्यटक नागिन लेक या झेलम नदी पर खडे हाउसबोट में ठहर सकते हैं। नागिन झील भी कश्मीर की सुंदर और छोटी-सी झील है। यहां प्राय: विदेशी सैलानी ठहरना पसंद करते हैं। उधर झेलम नदी में छोटे हाउसबोट होते हैं। हाउसबोट का इतिहास आज हाउसबोट एक तरह की लग्जरी में तब्दील हो चुके हैं और कुछ लोग दूर-दूर से केवल हाउसबोट में रहने का लुत्फउठाने के लिए ही कश्मीर आते हैं। हाउसबोट में ठहरना सचमुच अपने आपमें एक अनोखा अनुभव है भी। पर इसकी शुरुआत वास्तव में लग्जरी नहीं, बल्कि मजबूरी में हुई थी। कश्मीर में हाउसबोट का प्रचलन डोगरा राजाओं के काल में तब शुरू हुआ था, जब उन्होंने किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा कश्मीर में स्थायी संपत्ति खरीदने और घर बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय कई अंग्रेजों और अन्य लोगों ने बडी नाव पर लकडी के केबिन बना कर यहां रहना शुरू कर दिया। फिर तो डल झील, नागिन झील और झेलम पर हाउसबोट में रहने का चलन हो गया। बाद में स्थानीय लोग भी हाउसबोट में रहने लगे। आज भी झेलम नदी पर स्थानीय लोगों के हाउसबोट तैरते देखे जा सकते हैं। शुरुआती दौर में बने हाउसबोट बहुत छोटे होते थे, उनमें इतनी सुविधाएं भी नहीं थीं, लेकिन अब वे लग्जरी का रूप ले चुके हैं। सभी सुविधाओं से लैस आधुनिक हाउसबोट किसी छोटे होटल के समान हैं। डबल बेड वाले कमरे, अटैच बाथ, वॉर्डरोब, टीवी, डाइनिंग हॉल, खुली डैक आदि सब पानी पर खडे हाउसबोट में होता है। लकडी के बने हाउसबोट देखने में भी बेहद सुंदर लगते हैं। अपने आकार एवं सुविधाओं के आधार पर ये विभिन्न दर्जे के होते हैं। शहर के मध्य बहती झेलम नदी पर बने पुराने लकडी के पुल भी पर्यटकों के लिए एक आकर्षण है। कई मस्जिदें और अन्य भवन इस नदी के निकट ही स्थित है। बादशाहों का उद्यान प्रेम मुगल बादशाहों को वादी-ए-कश्मीर ने सबसे अधिक प्रभावित किया था। यहां के मुगल गार्डन इस बात के प्रमाण हैं। ये उद्यान इतने बेहतरीन और नियोजित ढंग से बने हैं कि मुगलों का उद्यान-प्रेम इनकी खूबसूरती के रूप में यहां आज भी झलकता है। मुगल उद्यानों को देखे बिना श्रीनगर की यात्रा अधूरी-सी लगती है। अलग-अलग खासियत लिए ये उद्यान किसी शाही प्रणय स्थल जैसे नजर आते हैं। शाहजहां द्वारा बनवाया गया चश्म-ए-शाही इनमें सबसे छोटा है। यहां एक चश्मे के आसपास हरा-भरा बगीचा है। इससे कुछ ही दूर दारा शिकोह द्वारा बनवाया गया परी महल भी दर्शनीय है। निशात बाग 1633 में नूरजहां के भाई द्वारा बनवाया गया था। ऊंचाई की ओर बढते इस उद्यान में 12 सोपान हैं। शालीमार बाग जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां के लिए बनवाया था। इस बाग में कुछ कक्ष बने हैं। अंतिम कक्ष शाही परिवार की स्त्रियों के लिए था। इसके सामने दोनों ओर सुंदर झरने बने हैं। मुगल उद्यानों के पीछे की ओर जावरान पहाडियां हैं, तो सामने डल झील का विस्तार नजर आता है। इन उद्यानों में चिनार के पेडों के अलावा और भी छायादार वृक्ष हैं। रंग-बिरंगे फूलों की तो इनमें भरमार रहती है। इन उद्यानों के मध्य बनाए गए झरनों से बहता पानी भी सैलानियों को मुग्ध कर देता है। ये सभी बाग वास्तव में शाही आरामगाह के उत्कृष्ट नमूने हैं। संस्कृति पूजा स्थल श्रीनगर में कई धार्मिक पवित्र स्थान हैं। वे हैं: दरगाह हज़रतबल जामा मस्जिद, श्रीनगर संगीत और फिल्में 1990 के दशक में उग्रवाद के उदय से पहले, अकेले श्रीनगर में लगभग 10 सिनेमा हॉल थे - फिरदौस, शिराज, खय्याम, नाज़, नीलम, शाह, ब्रॉडवे, रीगल और पैलेडियम। thumb|आईनॉक्स सिनेमा सोनवर श्रीनगर 1989 के आतंक के कारण श्रीनगर में नौ सहित कश्मीर में सिनेमाघर बंद कर दिए गए थे। आईनॉक्स गोल्ड क्लास, एक तीन-स्क्रीन मल्टीप्लेक्स श्रीनगर के प्रसिद्ध सिनेमा हॉल के निकट स्थित है जिसे ब्रॉडवे सिनेमा कहा जाता है। यह कश्मीर में पहला मल्टीप्लेक्स है और इसे श्रीनगर के बादामी बाग छावनी क्षेत्र में शिवपोरा में मेसर्स टकसाल हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी द्वारा बनाया गया है, जिसके मालिक विजय धर हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि श्री धर दिल्ली पब्लिक स्कूल, श्रीनगर भी चलाते हैं। आइनॉक्स गोल्ड मल्टीप्लेक्स का उद्घाटन एलजी मनोज सिन्हा ने 20 सितंबर, 2022 को किया था, बाद में समारोह के बाद पत्रकारों और चयनित दर्शकों के लिए पहली फिल्म लाल सिंह चड्ढा दिखाई गई। सिनेमा को 30 सितंबर को आम जनता के लिए खोल दिया गया था, रिलीज हुई फिल्में विक्रम वेधा और पोन्नियिन सेल्वन: I थीं। मुख्य आकर्षण हज़रतबल हजरतबल मस्जिद श्रीनगर में स्थित प्रसिद्ध डल झील के किनारे स्थित है। इसका निर्माण पैगम्बर मोहम्मद मोई-ए-मुक्कादस के सम्मान में करवाया गया था। इस मस्जिद को कई अन्य नामों जैसे हजरतबल, अस्सार-ए-शरीफ, मादिनात-ऊस-सेनी, दरगाह शरीफ और दरगाह आदि के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद के समीप ही एक खूबसूरत बगीचा और इश्‍रातत महल है। जिसका निर्माण 1623 ई. में सादिक खान ने करवाया था। निगीन झील शहर से लगभग 8 किलोमीटर की दुरी पर स्तिथ निगीन झील अपने नील पानी और आश्चर्यजनक खूबसूरती के लिए जाना जाता है जो डल झील का ही एक हिस्सा है। यह श्रीनगर में एक लोकप्रिय स्थल है और शांति से समय बिताने के लिए एकदम सही जगह है। यह झील चिनार के पेड़ों के घने जंगलों से घिरी हुई है और ज़बरवां पर्वत की तलहटी में स्थित है। रोमांच और मस्ती चाहने वालों के लिए यह आकर्षक झील, नौकायन और कई जल गतिविधियों के लिए एक आदर्श स्थान है। निगीन झील, डल झील की तुलना में कम भीड़ भाड़ वाली स्थान है और झील के नील साफ पानी इस स्थान को एक अद्भुत रूप देती है। शंकराचार्य मंदिर यह मंदिर शंकराचार्य पर्वत पर स्थित है। शंकराचार्य मंदिर समुद्र तल से 1100 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसे तख्त-ए-सुलेमन के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर कश्मीर स्थित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण राजा गोपादित्य ने 371 ई. पूर्व करवाया था। डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने मंदिर तक पंहुचने के लिए सीढ़िया बनवाई थी। इसके अलावा मंदिर की वास्तुकला भी काफी खूबसूरत है। जामा मस्जिद जामा मस्जिद कश्मीर की सबसे पुरानी और बड़ी मस्जिदों में से है। मस्जिद की वास्तुकला काफी अदभूत है। माना जाता है कि जामा मस्जिद की नींव सुल्लान सिकंदर ने 1398 ई. में रखी थी। इस मस्जिद की लंबाई 384 फीट और चौड़ाई 38 फीट है। इस मस्जिद में तीस हजार लोग एक-साथ नमाज अदा कर सकते हैं। खीर भवानी मंदिर श्रीनगर जिले के तुल्लामुला में स्थित खीर भवानी मंदिर यहां के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर माता रंगने देवी को समर्पित है। प्रत्येक वर्ष जेष्ठ अष्टमी (मई-जून) के अवसर पर मंदिर में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर काफी संख्या में लोग देवी के दर्शन के लिए विशेष रूप से आते हैं। चट्टी पदशाही चेत्ती पदशाही कश्मीर के प्रमुख सिख गुरूद्वारों में से एक है। सिखों के छठें गुरू कश्मीर घूमने के लिए आए थे, उस समय वह यहां कुछ समय के लिए ठहरें थे। यह गुरूद्वारा हरी पर्वत किले से बस कुछ ही दूरी पर स्थित है। निशात बाग इस बगीचे को 1633 ई. में नूरजहां के भाई आसिफ खान ने बनवाया था। यह बगीचा डल झील के किनारे स्थित है। श्रीनगर जिला मुख्यालय से निशांत गार्डन 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस जगह से झील के साथ-साथ अन्य कई खूबसूरत दृश्यों का नजारा देखा जा सकता है। डल झील पांच मील लम्बी और ढाई मील चौड़ी डल झील श्रीनगर की ही नहीं बल्कि पूरे भारत की सबसे खूबसूरत झीलों में से है। दुनिया भर में यह झील विशेष रूप से शिकारों या हाऊस बोट के लिए जानी जाती है। डल झील के आस-पास की प्राकृतिक सुंदरता अधिक संख्या में लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। डल झील चार भागों गगरीबल, लोकुट डल, बोड डल और नागिन में बंटी हुई है। इसके अलावा यहां स्थित दो द्वीप सोना लेंक और रूपा लेंक इस झील की खूबसूरती को ओर अधिक बढ़ाते हैं। निकटवर्ती स्थल गुलमर्ग कश्मीर घाटी में श्रीनगर से दूर भी किसी दिशा में निकल जाएं तो प्रकृति के इतने रूप देखने को मिलते हैं कि लगता है जैसे उसने अपना खजाना यहीं समेट रखा है। राजमार्गो पर लगे दिशा-निर्देशों पर लिखे अनेक शहरों के नाम सैलानियों को आकर्षित करते हैं। लेकिन अधिकतर सैलानी, गुलमर्ग, सोनमर्ग और पहलगाम आदि घूमने जाते हैं। गुलमर्ग के रास्ते में कई छोटे सुंदर गांव और आसपास धान के खेत आंखों को सुहाते हैं। सीधी लंबी सडक के दोनों और ऊंची दीवार के समान दिखाई पडती पेडों की कतार अत्यंत भव्य दिखाई देती है। पुरानी फिल्मों में इन रास्तों के बीच फिल्माए गीत पर्यटकों को याद आ जाते हैं। तंग मार्ग के बाद ऊंचाई बढने के साथ ही घने पेडों का सिलसिला शुरू हो जाता है। कुछ देर बाद सैलानी गुलमर्ग पहुंचते हैं तो घास का विस्तृत तश्तरीनुमा मैदान देख कर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। जिस प्रकार उत्तराखंड में पहाडी ढलवां मैदानों को बुग्याल कहते हैं, कश्मीर में उन्हें मर्ग कहते है। गुलमर्ग का अर्थ है फूलों का मैदान। समुद्र तल से 2680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुलमर्ग सैलानियों के लिए वर्ष भर का रेसॉर्ट है। यहां से किराये पर घोडे लेकर खिलनमर्ग, सेवन स्प्रिंग और अलपत्थर जैसे स्थानों की सैर भी कर सकते हैं। विश्व का सबसे ऊंचा गोल्फकोर्स भी यहीं है। सर्दियों में जब यहां बर्फ की मोटी चादर बिछी होती है तब यह स्थान हिमक्रीडा और स्कीइंग के शौकीन लोगों के लिए तो जैसे स्वर्ग बन जाता है। यहां चलने वाली गंडोला केबल कार द्वारा बर्फीली ऊंचाइयों तक पहुंचना रोमांचक लगता है। ढलानों पर लगे चीड या देवदार के पेडों पर बर्फलदी दिखती है। तमाम पर्यटक बर्फ पर स्कीइंग का आनंद लेते हैं तो बहुत से स्लेजिंग करके ही संतुष्ट हो लेते हैं। यहां पर्यटक चाहें तो स्कीइंग कोर्स भी कर सकते हैं। हर वर्ष होने वाले विंटर गेम्स के समय यहां विदेशी सैलानी भी बडी तादाद में आते हैं। सोनमर्ग सोनमर्ग का अर्थ सोने से बना घास का मैदान होता है। यह जगह श्रीनगर के उत्तर-पूर्व से 87 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सोनमर्ग पर स्थित सिंध घाटी कश्मीर की सबसे बड़ी घाटी है। यह घाटी करीबन साठ मील लम्बी है। सोनमर्ग भी कश्मीर की एक निराली सैरगाह है। समुद्र तल से लगभग 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह एक रमणीक स्थल है। सिंध नदी के दोनों और फैले यहां के मर्ग सोने से सुंदर दिखाई देते हैं। इसीलिए इसे सोनमर्ग अर्थात सोने का मैदान कहा गया होगा। सोनमर्ग से घुडसवारी करके थाजिवास ग्लेशियर भी देखने जा सकते हैं। वहां ग्लेशियर पर घूमने का आनंद भी लिया जा सकता है। अनंत हिमनदों के सामने खडे होकर प्रकृति की विशालता का एहसास मन में रोमांच उत्पन्न कर देता है। प्रतिवर्ष होने वाली अमरनाथ यात्रा का एक मार्ग सोनमर्ग से बलतल होकर भी है। यहां से लद्दाख के रास्ते में पडने वाला जोजीला दर्रा 30 किमी दूर है। पहलगाम का रास्ता भी सैलानियों को बहुत प्रभावित करता है। मार्ग में पाम्पोर में केसर के खेत दिखाई देते हैं। जगह-जगह क्रिकेट के बैट रखे नजर आते हैं। यहां विलो-ट्री की लकडी से ये बैट बनते हैं। इनके अलावा अवंतिपुर में 9वीं शताब्दी में बने दो मंदिरों के भग्नावशेष तथा मार्तड का सूर्य मंदिर भी आकर्षक हैं। सागरतल से 2130 मीटर की ऊंचाई पर बसा पहलगाम कभी चरवाहों का छोटा सा गांव था। किंतु यहां बिखरी नैसर्गिक छटा ने इसे खुशनुमा सैरगाह बना दिया। लिद्दर नदी इसकी छटा को और बढाती है। नदी पर कई जगह बने लकडी के पुल और दूर दिखते हिमशिखर तो पिक्चर पोस्टकार्ड से दृश्य प्रस्तुत करते हैं। देवदार के जंगल, झरने और फूलों के मैदान तो जगह-जगह नजर आएंगे। बैसरन के मर्ग, आडु, चंदनवाडी जैसे स्थान घोडों पर बैठकर घूमे जा सकते हैं। साहसी पर्यटक पहलगाम से तरसर, मरसर झीलें, दुधसर झील और कोलहाई ग्लेशियर जैसे ट्रेकिंग रूटों पर निकल सकते हैं। अमरनाथ यात्रा का मुख्य मार्ग पहलगाम से चंदनवाडी, शेषनाग होते हुए जाता है। कोकरनाग वेरीनाग सैलानियों को आकर्षित करने वाले अन्य स्थानों में कोकरनाग 2012 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान औषधीय गुणों वाले प्राकृतिक चश्मों के लिए प्रसिद्ध है। कश्मीरी भाषा में नाग का अर्थ चश्मा भी होता है। वेरीनाग में भी कुछ प्राकृतिक चश्में हैं। यहां बादशाह जहांगीर ने चश्मों का जल एक ताल में एकत्र कर उसके आसपास एक उद्यान बनवाया था। 80 मीटर के दायरे में फैले आठ कोणों वाले इस ताल एवं उद्यान में चिनार के वृक्षों की कतारें सैलानियों का मन मोह लेती है। आवागमन वायु मार्ग सबसे नजदीकी हवाई अड्डा श्रीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। इंडियन एयरलाइन्स दिल्ली, अमृतसर, जम्मू, लेह, चंडीगढ़, अहमदाबाद और मुम्बई से श्रीनगर के लिए उड़ान भरती है। रेल मार्ग हाल ही में श्रीनगर में रेलवे स्टेशन बन गया है, व रेल सेवा भी आरंभ हो चुकी है। श्रीनगर रेल मार्ग द्वारा अनंतनाग, क़ाज़ीगुंड तक जुड़ा है। जून २०१३ में क़ाज़ीगुंड से बनिहाल तक, भारत की सबसे बड़ी सुरंग के रास्ते, रेल सेवा शुरु कर दी गयी है। इसके बाद भारत की मुख्य रेलवे का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मू तवी है। रेलवे स्टेशन से जम्मू तवी 293 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बनिहाल से जम्मू तवी तक रेलमार्ग निर्माणाधीन है। सड़क मार्ग श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग 44 (पुराना संख्यांक 1ए) द्वारा कई प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पूरे भारत को पार करता हुआ कन्याकुमारी तक जाता है। विभिन्न शहरों से दूरी जम्मू- 293 किलोमीटर लेह - 434 किलोमीटर कारगिल- 204 किलोमीटर गुलमर्ग- 52 किलोमीटर दिल्ली- 876 किलोमीटर चंडीगढ़- 630 किलोमीटर इन्हें भी देखें श्रीनगर श्रीनगर ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:जम्मू और कश्मीर के शहर श्रेणी:श्रीनगर ज़िला श्रेणी:श्रीनगर ज़िले के नगर * श्रेणी:भारत के तीर्थ श्रेणी:भारत के राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की राजधानियाँ
फ़िरोज़ाबाद
https://hi.wikipedia.org/wiki/फ़िरोज़ाबाद
thumb|280px|फ़िरोज़ाबादी चूड़ियाँ thumb|280px|खंडहर thumb|280px|सन् 1787 में फ़िरोज़ाबाद का दृश्य thumb|280px|फ़िरोज़ाबाद ईदगाह फ़िरोज़ाबाद (Firozabad) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के फ़िरोज़ाबाद ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। राष्ट्रीय राजमार्ग 19 यहाँ से गुज़रता है।"Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716"Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance ," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975 विवरण फ़िरोज़ाबाद का पुराना नाम चंदवार के नाम से जाना जाता था। यह शहर चूड़ियों के निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। यह आगरा से 40 किलोमीटर और राजधानी दिल्ली से 250 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व की तरफ स्थित है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ यहाँ से लगभग 250 किमी पूर्व की तरफ है। फिरोज़ाबाद ज़िले के अन्तर्गत बड़े कस्बे टुंडला , सिरसागंज, और शिकोहाबाद आते हैं। टुंडला पश्चिम तथा शिकोहाबाद शहर के पूर्व में स्थित है। फिरोज़ाबाद में मुख्यतः चूडियों का कारोबार होता है। यहाँ पर आप रंग बिरंगी चूडियों को अपने चारों ओर देख सकते हैं। लेकिन अब यहाँ पर गैस का कारोबार होता है। यहाँ पर काँच का अन्य सामान (जैसे काँच के झूमर) भी बनते हैं। इस शहर की आबो हवा गरम है। यहाँ की आबादी बहुत घनी है। यहाँ के ज्यादातर लोग कोरोबार से जुडे हैं। घरों के अन्दर महिलाएं भी चूडियों पर पालिश और हिल लगाकर रोजगार अर्जित कर लेती हैं। बाल मज़दूरी यहाँ आम है। सरकार तमाम प्रयासों के बावजूद उन पर अंकुश नहीं लगा सकी है। प्राचीन समय में चन्द्रनगर के नाम से जाना जाता था इतिहास फ़िरोज़ाबाद का पुराना नाम चंदवार बताया जाता है। उस समय चंद्रवार के राजा चन्द्रसेन, जो हिंदू धर्म के अनुयायी थे। फ़िरोज़ाबाद की भगवान चन्दाप्रभु की स्फटिक मणि की प्रतिमा विश्व की सबसे बड़ी स्फटिक मणि की प्रतिमा है, जो की राजा चन्द्रसेन के समय में प्राप्त हुयी थी। उस चंदाप्रभु भगवान् की प्रतिमा के कारण और राजा चन्द्रसेन के नाम के कारण उस समय चंद्रवार का नाम पड़ा। आज भी फ़िरोज़ाबाद के चदरवार नगर जो यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है, पर राजा चन्द्रसेन का खंडहर हुआ पुराना किले के अवशेष और प्राचीन जैन मंदिर मौजूद है यहाँ पसीने वाले हनुमान जी का मदिर और एक पुराना शिव मंदिर भी है। वर्तमान नाम अकबर के समय में मनसबदार फ़िरोज़शाह द्वारा 1566 में दिया गया। चंदवार (या चंदावर) में चौहान वंश के राजा चन्द्रसेन और मुहम्मद ग़ोरी के बीच 1194 ई। में युद्ध लड़ा गया जिसमें राजा चन्द्रसेन की हार हुई फ़िरोज़ाबाद का प्राचीन नाम चंदवार नगर था। फ़िरोज़ाबाद का नाम अकबर के शासन में फिरोज शाह मनसब दार द्वारा 1566 में दिया गया था। कहते हैं कि राजा टोडरमल गया से तीर्थ यात्रा कर के इस शहर के माध्यम से लौट रहे थे ,तब उन्हें लुटेरो ने लूट लिया|उनके अनुरोध पर, अकबर ने मनसबदार फिरोज शाह को यहा भेजा| फिरोज शाह दतौजि, रसूलपुर,मोहम्मदपुर गजमलपुर ,सुखमलपुर निज़ामाबाद, प्रेमपुर रैपुरा के आस-पास उतरा|फिरोज शाह का मकबरा और कतरा पठनं के खंडहर इस तथ्य का सबूत है और इतिहासकारों का मानना है कि फिरोजशाह ने भारी संख्या में हिंदू का जबरन धर्म परिवर्तित करवाया। ईस्ट इंडिया कंपनी से सम्बंदित एक व्यापारी पीटर ने 9 अगस्त 1632 में यहाँ का दौरा किया और शहर को अच्छी हालत में पाया|यह आगरा और मथुरा की विवरणिका में लिखा है की फ़िरोज़ाबाद को एक परगना के रूप में उन्नत किया गया था|शाहजहां के शाशन में नबाब सादुल्ला को फ़िरोज़ाबाद जागीर के रूप में प्रदान किया गया|Jahangir ने 1605 से 1627 तक शाशन किया|इटावा, बदायूं मैनपुरी, फ़िरोज़ाबाद सम्राट फर्रुखसियर के प्रथम श्रेणी मनसबदार के अंतर्गत थे। बाजीराव पेशवा ने मोहम्मद शाह के शासन में 1737 में फ़िरोज़ाबाद और एतमादपुर लूटा|महावन के जाटों ने फौजदार हाकिम काजिम पर हमला किया और उसे 9 मई 1739 में मारे दिया|जाटों ने फ़िरोज़ाबाद पर 30 साल शासन किया। मिर्जा नबाब खान यहाँ 1782 तक रुके थे। 18 वीं सदी के अंत में फ़िरोज़ाबाद पर मराठाओं के सहयोग के साथ हिम्मत बहादुर गुसाईं द्वारा शासन किया गया। फ्रेंच, आर्मी चीफ डी. वायन ने नवंबर 1794 में एक आयुध फैक्टरी की स्थापना की। श्री थॉमस ट्रविंग ने भी अपनी पुस्तक 'Travels in India ' में इस तथ्य का उल्लेख किया है। मराठाओं ने सूबेदार लकवाददस को यहां नियुक्त किया,जिसने पुरानी तहसील के पास एक किले का निर्माण कराया जो वर्तमान में गाढ़ी के पास स्थित है|जनरल लेक और जनरल वेल्लजल्ल्य ने 1802 में फ़िरोज़ाबाद पर आक्रमण किया|ब्रिटिश शासन की शुरुआत में फ़िरोज़ाबाद इटावा जिले में था। लेकिन कुछ समय बाद यह अलीगढ़ जिले में संलग्न किया गया| जब 1832 में सादाबाद को नया ज़िला बनाया गया तो फ़िरोज़ाबाद को इस में सम्मिलित कर दिया गया। पर बाद में 1833 में फ़िरोज़ाबाद को आगरा में सम्मिलित कर दिया गया।1847 में लाख का व्यापर यहाँ बहुत फल-फूल रहा था। 1857 के स्वतंत्रा संग्राम में चंदवार के जमींदारो ने स्थानीय मलहो के साथ सक्रिय भाग लिया ग्राम- हिरनगऊ वर्तमान-(राजस्व ग्राम हिरनगाँव) जनपद फिरोजाबाद निवासी क्रांतिकारी क्रांतिकारी पंडित तेजसिंह तिवारी द्वारा 1857 क्रांति की लो को स्थानीय लोगों के दिलों में जलाते रहे प्रसिद्ध उर्दू कवि मुनीर शिकोहाबादी को ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने काला पानी की सजा सुनाई थी। इस शहर के लोगो ने 'खिलाफत आंदोलन', 'भारत छोड़ो आंदोलन' और 'नमक सत्याग्रह' में भाग लिया और राष्ट्रीय आंदोलनों के दौरान जेल गये।। इसी जिले के निवासी अश्वनी कुमार के आर पी जी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के तौर पर कार्य कर रहे हैं। नगर पालिका की स्थापना आगरा गजेटियर 1965 के पृष्ठ 263 के अनुसार फिरोजावाद नगर पालिका की स्थापना सन् 1868 में प्रारम्भ हुई, अनेक वर्षों तक जुवान्त मजिस्ट्रेट इसका अध्यक्छ हुआ करता था। उस समय पुलिस की व्यवस्था भी नगर पालिका के अंतर्गत थी। काँच उद्योग का प्रारम्भ अलीगढ इंस्टिट्यूट गजट सन 1880 के पृष्ठ 1083 पर उर्दू के कवि मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली ने लिखा है कि फ़िरोज़ाबाद में खजूर के पटटे की पंखिया एशी उम्दा वनती है कि हिंदुस्तान में शायद ही कही वनती हो। सादी पंखिया जिसमे किसी कदर रेशम का काम होता है एक रुपया कीमत की हमने भी यहाँ देखी। इस कथन से स्पस्ट होता है कि 1880 तक यहाँ काँच उद्योग का प्रारम्भ नहीं हुआ था, आगरा गजेटियर 1884 के पृष्ठ 740 के अनुसार उस समय फ़िरोज़ाबाद में लाख का व्यवसाय भी अच्छी स्थिति में था ये व्यवसाय कालान्तर में समाप्त हो गया है ,परंतु वर्तमान में भारत में सबसे अधिक काँच की चूड़ियाँ, सजावट की काँच की वस्तुएँ, वैज्ञानिक उपकरण, बल्ब आदि फ़िरोज़ाबाद में बनाये जाते हैं। फ़िरोज़ाबाद में मुख्यत:चूड़ियों का व्यवसाय होता है। यहाँ पर आप रंगबिरंगी चूड़ियों की दुकानें चारों ओर देख सकते हैं। घरों के अन्दर महिलाएँ भी चूडियों पर पॉलिश लगाकर रोजगार अर्जित कर लेती हैं। भारत में काँच का सर्वाधिक फ़िरोज़ाबाद नामक छोटे से शहर में बनाया जाता है। इस शहर के अधिकांश लोग काँच के किसी न किसी सामान के निर्माण से जुड़े उद्यम में लगे हैं। सबसे अधिक काँच की चूड़ियों का निर्माण इसी शहर में होता है। रंगीन काँच को गलाने के बाद उसे खींच कर तार के समान बनाया जाता है और एक बेलनाकार ढाँचे पर कुंडली के आकार में लपेटा जाता है। स्प्रिंग के समान दिखने वाली इस संरचना को काट कर खुले सिरों वाली चूड़ियाँ तैयार कर ली जातीं हैं। अब इन खुले सिरों वाली चूड़ियों के विधिपूर्वक न सिर्फ़ ये सिरे जोड़े जाते हैं बल्कि चूड़ियाँ एकरूप भी की जाती हैं ताकि जुड़े सिरों पर काँच का कोई टुकड़ा निकला न रह जाये। यह एक धीमी प्रक्रिया है जिसमें काँच को गर्म व ठण्डा करना पड़ता है। रेल का प्रारम्भ सन 1862 में 1 अप्रेल को टूंडला से शिकोहाबाद के लिए पहली रेलगाड़ी चालू हुई इससे अगले वर्ष मार्च 1863 ई0 से टूंडला से अलीगढ तक रेल चलने लगी। नगर की आबादी सन 1872 ई0 में 10,76005 सन 1881 ई0 में 09,74656 सन 1901 ई0 में 10,60528 सन 1911 ई0 में परिवहन यह आगरा और इटावा के बीच प्रमुख रेलवे जंक्शन है। दिल्ली से रेल द्वारा आसानी से टूंडला जंक्शन एवम् हिरनगाँव रेलवे स्टेशन होते हुए फ़िरोज़ाबाद रेलगाड़ी से पंहुचा जा सकता है एवम् फ़िरोज़ाबाद पहुँचने हेतु बस आदि की भी समुचित व्यवस्ता है। अन्य पहलू .इस शहर का नाम फिरोजशाह मनसबदार के नाम पर रखा गया जोकि अकबर कई सेनापतियों में से एक थे। फिरोजशाह की कब्र आज भी मौजूद है। फिरोजाबाद में ही एक गांव है राजा का ताल जिसमें ताल का निर्माण अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने किया था। राजा टोडर मल ने मानक वजन और एक भूमि सर्वेक्षण और निपटान प्रणाली, राजस्व जिलों और अधिकारियों की शुरुआत की। पटवारी द्वारा रखरखाव की इस प्रणाली का उपयोग अभी भी भारतीय उपमहाद्वीप में किया जाता है जिसे ब्रिटिश राज और भारत सरकार द्वारा सुधार किया गया था। 1857 की क्रांति में, स्थानीय जनता के साथ फिरोजाबाद के जमींदारों ने भी सक्रिय भाग लिया। प्रसिद्ध उर्दू कवि मुनीर शिकोहाबादी को भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने कालापानी की सजा सुनाई थी। इन्हें भी देखें फ़िरोज़ाबाद ज़िला शिकोहाबाद हिरनगाँव सन्दर्भ श्रेणी:फ़िरोज़ाबाद ज़िला श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:फ़िरोज़ाबाद ज़िले के नगर
काँची
https://hi.wikipedia.org/wiki/काँची
पुनर्प्रेषित कांचीपुरम
कटिहार
https://hi.wikipedia.org/wiki/कटिहार
कटिहार (Katihar) भारत के बिहार राज्य के कटिहार ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।"Bihar Tourism: Retrospect and Prospect ," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999"Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810 विवरण पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित कटिहार एक ऐतिहासिक शहर है। त्रिमोहिनी संगम , बाल्दीबाड़ी, बेलवा, दुभी-सुभी, गोगाबिल झील, नवाबगंज, मनिहारी और कल्याणी झील आदि यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से है। पूर्व समय में यह जिला पूर्णिया जिले का एक हिस्सा था। इसका इतिहास बहुत ही समृद्ध रहा है। इस जिले का नाम इसके प्रमुख शहर दीघी-कटिहार के नाम पर रखा गया था। मुगल शासन के अधीन इस जिले की स्थापना सरकार तेजपुर ने की थी। 13वीं शताब्दी के आरम्भ में यहाँ पर मोहम्मद्दीन शासकों ने राज किया। 1770 ई॰ में जब मोहम्मद अली खान पूर्णिया के गर्वनर थे, उस समय यह जिला ब्रिटिशों के हाथ में चला गया। अत: काफी लम्बे समय तक इस जगह पर कई शासनों ने राज किया। अत: 2 अक्टूबर 1973 ई॰ को स्वतंत्र जिले के रूप में घोषित कर दिया गया। 12 फरवरी वर्ष 1948 में महात्मा गांधी के अस्थि कलश जिन 12 तटों पर विसर्जित किए गए थे, त्रिमोहिनी संगम भी उनमें से एक है | प्रमुख आकर्षण त्रिमोहिनी संगम thumb|त्रिमोहिनी संगम पर बन रहा पर्यटकों के लिए पर्यटन स्थल। बिहार के कटिहार जिले के अंतर्गत कुर्सेला प्रखंड के कटरिया गांव के NH-31 से रास्ता त्रिमोहिनी संगम की ओर जाती है।प्रकृति की अनुपम दृश्य देखने को मिलता है। यहाँ तीन नदियों का संगम है जिसमे प्रमुख रूप से गंगा और कोशी का मिलन है।त्रिमोहिनी संगम भारत की सबसे बड़ी उत्तरायण गंगा का संगम है। गंगा नदी दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है। सूर्योदय से ही उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है। सूर्योदय की किरणें सीधे गंगा के लहरों पर पड़ती है। जिससे प्रकृति का अनुपम दृश्य उपस्थित हो जाता है। नेपाल से निकलने वाली कोसी के सप्तधाराओं में एक सीमांचल क्षेत्र के कई जिलों से गुजरते हुए यहां आकर गंगा नदी से संगम कर अपना वजूद खो देती है। एक नदी की उत्पत्ति भारत कि सबसे बड़ी उत्तरवाहिनी गंगा तट से हुई है।जिसे कलबलिया के नाम से जाना जाता है। कलबलिया करीब 32 किलोमीटर का सफर तय करती है। 12 फरवरी वर्ष 1948 में महात्मा गांधी के अस्थि कलश जिन 12 तटों पर विसर्जित किए गए थे, त्रिमोहिनी संगम भी उनमें से एक है | गुरु तेग बहादुर एतिहासिक गुरुद्वारा लक्ष्‍मीपुर सिखों के नवमें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर की याद में यह गुरुद्वारा स्थापित है। सन 1666 में गुरु जी यहां के कांतनगर में पधारे थे। इस गुरुद्वारे में गुरुजी से जुड़ी कई अनमोल धरोहर आज भी सुरक्षित है। लक्ष्‍मीपुर सिख बाहुल्‍य गांव है व यहां प्रत्‍येक वर्ष गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस मनाया जाता है। शान्ति टोला फसीया यह एक छोटा सा गांव है। मुख्यालय से लगभग ६ किलोमीटर की दूरी पर है। इस गाँव की आबादी लगभग 1300 है। इस गांव में सभी जाति के लोग रहते हैं।इस गांव में एक 200 वर्ष पुराना मंदिर भी है जिसे महंथ स्थान के नाम से जाना जाता है।इस गांव में एक राधा कृष्ण का भी मन्दिर है।यह अपने जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है ,यह अब नगरनिगम कटिहार के वार्ड न.४४ के अंतर्गत आता है।इस गांव के लोग अपनी सादगी एवं सद्भाव के लिए जाने जाते हैं यंहा 99 % लोग खरवार समुदाय जो अनुसूचित जनजाति से आते हैं। ये लोग पहले खेती बाड़ी एवं मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते थे पर इधर कुछ वर्षों से इनके शिक्षा में सुधार के कारण काफी संख्या में युवा वर्ग अच्छे पदों पर नियुक्त हुए हैं जिससे इनके जीवन स्तर में काफी सुधार हुआ है। इस गांव के लोग काफी मिलनसार हैं यह हमारे इतिहास का अनमोल धरोहर है।जिसे हम सब को संजो कर रखनी है। बाल्दीबाड़ी गंगा नदी के समीप स्थित मनिहारी से लगभग 2.5 किलोमीटर की दूरी पर बाल्दीबाड़ी गांव स्थित है। इसी जगह पर मुर्शीदाबाद के नवाब सिराज-उद-दौला और पूर्णिया के गर्वनर नवाब शौकत जंग के बीच युद्ध हुआ था। बेलवा यह एक छोटा सा गांव है। यह जगह बरसोई के खण्ड मुख्यालय के दक्षिण से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ पर प्राचीन समय की कई इमारतें स्थित है। इसके अतिरिक्त यहाँ एक मंदिर भी है। इस मंदिर में भगवान शिव और देवी सरस्वती की पत्थर की मूर्तियां स्थित है। प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के अवसर पर यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है। दुभी-सुभी यह गांव बरसोई खण्ड में स्थित है। इस जगह का सम्बन्ध एक दिलचस्प कहानी के साथ जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि एक नवयुवक ने कुश से अपना गला काटकर प्राणों की आहुति दी थी। यह घटना लगभग 70 वर्ष पूर्व की है। इस कारण धार्मिक दृष्टि से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। गोगाबिल झील यह एक खूबसूरत विशाल झील प्रसिद्ध पक्षी अभ्यारण भी है। पूरे वर्ष यहाँ पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां देखी जा सकती है।और खासकर नबम्बर से फरवरी के महीनो में रूस से पक्षी प्रवास के लिए आती है,राजहंस,लालसर इत्यादि पक्षी होती है। ये अभ्यारण मनिहारी से लगभग 7 किलो मीटर surapartal main hai jinko dekhne ke bahar se kafi lug aate hain kas kar happy new year main door se log picnik manane ke liye aate hain jo kafi parchilit hai नवाबगंज यह गांव मनिहारी से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मुगल काल के समय में इस जिले के गर्वनर नवाब शौकत गंज के पुराने सिंहासन के लिए यह जगह जानी जाती है। मनिहारी कटिहार के दक्षिण से 25 किलोमीटर की दूरी पर मनिहारी तहसील स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस जगह पर भगवान कृष्ण से एक मणी (आभूषण) खो गया था, जिसे ढूंढते हुए वह इस जगह पर पहुंचे थे।इस कारण से इस जगह का नाम मनिहारी पड़ा| कल्याणी झील झौआ रेलवे स्टेशन के उत्तर से पांच किलोमीटर की दूरी पर कल्याणी झील स्थित है। प्रत्येक वर्ष माघ मास की पूर्णिमा तिथि के अवसर पर काफी संख्या में लोग यहाँ स्नान करने के लिए आते हैं। यूँ तो सभी दिन पवित्रता के लिए इक्के-दुक्के आवागमन होते रहते है। प्रतिवर्ष माघी पूर्णिमा मेले में लोग पुजा अर्चना बाजार करने बहुत दुरदराज से लोग पहुँचते है। इसके अलावे पुराने पुरोहितों के अनुसार यहाँ साक्षात् माँ कल्याणी देवी के अनेक रहस्य भी है। जिनके कारण ये स्थान अतुल्य है। इस नदी के तट में एक ऐतिहासिक पत्थरनुमा शिवलिंग है जो अनेकों वर्षों से स्थित है स्थानीय लोगों के अनुसार यह अपने आकार में पहले की अपेक्षा बढ़ रहा है। अभी गत् वर्ष 2015 में नियम निष्ठा पूर्वक माँ कल्याणी देवी मंदिर के समीप अनेक कलाकृत्यों द्वारा निर्मित भव्य शिवमंदिर शिवलिंग के साथ स्थापित किया गया। आवागमन वायु मार्ग: यहाँ का सबसे निकटतम हवाई अड्डा बागडोगड़ा (सिलीगुड़ी के निकट) हवाई अड्डा है। रेल मार्ग: कटिहार में रेलवे स्‍टेशन कटिहार रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। पूर्वोतर के राज्‍यों में आवागमन का प्रमुख रेल मार्ग बरौनी-कटिहार-गौहाटी ही है। और मुख्य पाँच अलग - अलग मार्गाों में ट्रेनों का आवागमन भी यही से होता है। सड़क मार्ग: भारत के कई प्रमुख शहरों से कटिहार सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 31 इस जिले तक पहुंचने का सुलभ राजमार्ग है।और झारखण्ड जाने के लिए मनिहारी गंगा में एल टी सी सेवा उपलब्ध् है,जो गंगा नदी के रास्ते साहिबगंज को जाती है। और मनिहारी में गंगा पुल होने का कार्य भी प्रारम्भ हो चुका है जो जल्दी ही कटिहार-झारखंड मार्ग को अति सुलभ बनाऐगी। शिक्षा right|thumb|300px|कटिहार रामकृष्ण मिशन कटिहार में बहुत से शिक्षा संस्थान हैं- रामकृष्ण मिशन विद्यामन्दिर रामकृष्ण मिशन सारदा विद्यामन्दिर केन्द्रीय विद्यालय जवाहर नवोदय विद्यालय नेताजी विद्यामन्दिर मनिपाल पब्लिक स्कूल पूर्णिया विश्वविद्यालय सूर्यदेव विधि महाविद्यालय कटिहार आयुर्विज्ञान महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केन्द्र जयमाला शिक्षा निकेतन इन्हें भी देखें कटिहार ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:बिहार के शहर श्रेणी:कटिहार जिला श्रेणी:कटिहार ज़िले के नगर *
कुरुक्षेत्र
https://hi.wikipedia.org/wiki/कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र (Kurukshetra) भारत के हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर और तीर्थ स्थल है। यहाँ महाभारत का युद्ध लड़ा गया था। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।"General Knowledge Haryana: Geography, History, Culture, Polity and Economy of Haryana," Team ARSu, 2018"Haryana: Past and Present ," Suresh K Sharma, Mittal Publications, 2006, ISBN 9788183240468"Haryana (India, the land and the people), Suchbir Singh and D.C. Verma, National Book Trust, 2001, ISBN 9788123734859 कुछ भाग इंडोनेशिया में भी उपलब्ध है विवरण कुरुक्षेत्र हरियाणा के उत्तर में स्थित है तथा अम्बाला, यमुना नगर, करनाल और कैथल से घिरा हुआ है तथा दिल्ली और अमृतसर को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलमार्ग पर स्थित है। इसका शहरी इलाका एक अन्य एतिहासिक स्थल थानेसर से मिला हुआ है। यह एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल है। माना जाता है कि यहीं महाभारत की लड़ाई हुई थी और भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश यहीं ज्योतिसर नामक स्थान पर दिया था। यह क्षेत्र बासमती चावल के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। नामकरण कहा जाता है कि यहाँ स्थित विशाल तालाब का निर्माण महाकाव्य महाभारत में वर्णित कौरवों और पांडवों के पूर्वज राजा कुरु ने करवाया था। कुरुक्षेत्र नाम 'कुरु के क्षेत्र' का प्रतीक है। इतिहास कुरुक्षेत्र का इलाका भारत में आर्यों के आरंभिक दौर में बसने (लगभग 1500 ई. पू.) का क्षेत्र रहा है और यह महाभारत की पौराणिक कथाओं से जुड़ा है। इसका वर्णन भगवद्गीता के पहले श्लोक में मिलता है। इसलिए इस क्षेत्र को धर्म क्षेत्र कहा गया है। थानेसर नगर राजा हर्ष की राजधानी (606-647) था, सन 1011 ई. में इसे महमूद गज़नवी ने तहस-नहस कर दिया। आरम्भिक रूप में कुरुक्षेत्र ब्रह्मा की यज्ञिय वेदी कहा जाता था, आगे चलकर इसे समन्तपंचक कहा गया, जबकि परशुराम ने अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में क्षत्रियों के रक्त से पाँच कुण्ड बना डाले, जो पितरों के आशीर्वचनों से कालान्तर में पाँच पवित्र जलाशयों में परिवर्तित हो गये। आगे चलकर यह भूमि कुरुक्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध हुई जब कि संवरण के पुत्र राजा कुरु ने सोने के हल से सात कोस की भूमि जोत डाली।आद्यैषा ब्रह्मणो वेदिस्ततो रामहृदा: स्मृता:। कुरुणा च यत: कृष्टं कुरुक्षेत्रं तत: स्मृतम्॥ वामन पुराण (22.59-60)। वामन पुराण (22.18-20) के अनुसार ब्रह्मा की पाँच वेदियाँ यह हैं- समन्तपंचक (उत्तरा) प्रयाग (मध्यमा) गयाशिर (पूर्वा) विरजा (दक्षिणा) पुष्कर (प्रतीची) 'स्यमन्तपंचक' शब्द भी आया है। (वामन पुराण 22.20 एवं पद्म पुराण 4.17.7) विष्णु पुराण (विष्णु पुराण, 4.19.74-77) के मत से कुरु की वंशावलीयों है- 'अजमीढ-ऋक्ष-संवरण-कुरु' एवं 'य इदं धर्मक्षेत्रं चकार'। thumb|250px|left|महाभारत कुरुक्षेत्र में युद्ध के चित्रण से संवन्धित एक पांडुलिपि कुरुक्षेत्र ब्राह्मणकाल में वैदिक संस्कृति का केन्द्र था और वहाँ विस्तार के साथ यज्ञ अवश्य सम्पादित होते रहे होंगे। इसी से इसे धर्मक्षेत्र कहा गया और देवों को देवकीर्ति इसी से प्राप्त हुई कि उन्होंने धर्म (यज्ञ, तप आदि) का पालन किया था और कुरुक्षेत्र में सत्रों का सम्पादन किया था। कुछ ब्राह्मण-ग्रन्थों में आया है कि बह्लिक प्रातिपीय नामक एक कौरव्य राजा था। तैत्तिरीय ब्राह्मणतैत्तिरीय ब्राह्मण, 18.4.1 में आया है कि कुरु-पांचाल शिशिर-काल में पूर्व की ओर गये, पश्चिम में वे ग्रीष्म ऋतु में गये जो सबसे बुरी ऋतु है। ऐतरेय ब्राह्मण का उल्लेख अति महत्त्वपूर्ण है। सरस्वती ने कवष मुनि की रक्षा की थी और जहाँ वह दौड़ती हुई गयी उसे परिसरक कहा गया।ऐतरेय ब्राह्मण 8.1 या 2.19 एक अन्य स्थान पर ऐतरेय ब्राह्मणऐतरेय ब्राह्मण, 35। 4=7। 30 में आया है कि उसके काल में कुरुक्षेत्र में 'न्यग्रोध' को 'न्युब्ज' कहा जाता था। ऐतरेय ब्राह्मण ने कुरुओं एवं पंचालों के देशों का उल्लेख वश-उशीनरों के देशों के साथ किया है।ऐतरेय ब्राह्मण, 38.3=8.14 तैत्तिरीय आरण्यकतैत्तिरीय आरण्यक, 5.1.1 में गाथा आयी है कि देवों ने एक सत्र किया और उसके लिए कुरुक्षेत्र वेदी के रूप में था।देवा वै सत्रमासत। ... तेषां कुरुक्षेत्रे वेदिरासीत्। तस्यै खाण्डवो दक्षिणार्ध आसीत्। तूर्ध्नमुत्तरार्ध:। परीणज्जधनार्ध:। मरव उत्कर:॥ तैत्तिरीय आरण्यक (तैत्तिरीय आरण्यक 5.1.1) क्या 'तूर्घ्न' 'स्त्रुघ्न' का प्राचीन रूप है? 'स्त्रुघ्न' या आधुनिक 'सुध' जो प्राचीन यमुना पर है, थानेश्वर से 40 मील एवं सहारनपुर से उत्तर-पश्चिम 10 मील पर है। उस वेदी के दक्षिण ओर खाण्डव था, उत्तरी भाग तूर्घ्न था, पृष्ठ भाग परीण था और मरु (रेगिस्तान) उत्कर (कूड़ा वाल गड्ढा) था। इससे प्रकट होता है कि खाण्डव, तूर्घ्न एवं परीण कुरुक्षेत्र के सीमा-भाग थे और मरु जनपद कुरुक्षेत्र से कुछ दूर था। अवश्वलायनअवश्वलायन, 12.6, लाट्यायनलाट्यायन, 10.15 एवं कात्यायनकात्यायन, 24.6.5 के श्रौतसूत्र ताण्ड्य ब्राह्मण एवं अन्य ब्राह्मणों का अनुसरण करते हैं और कई ऐसे तीर्थों का वर्णन करते हैं जहाँ सारस्वत सत्रों का सम्पादन हुआ था, यथा प्लक्ष प्रस्त्रवर्ण (जहाँ से सरस्वती निकलती है), सरस्वती का वैतन्धव-ह्रद; कुरुक्षेत्र में परीण का स्थल, कारपचव देश में बहती यमुना एवं त्रिप्लक्षावहरण का देश। यह ज्ञातव्य है कि यद्यपि वनपर्व ने 83वें अध्याय में सरस्वती तट पर एवं कुरुक्षेत्र में कतिपय तीर्थों का उल्लेख किया है, किन्तु ब्राह्मणों एवं श्रौतसूत्रों में उल्लिखित तीर्थों से उनका मेल नहीं खाता, केवल 'विनशन'वनपर्व 83.11 एवं 'सरक'जो ऐतरेय ब्राह्मण का सम्भवत: परिसरक है के विषय में ऐसा नहीं कहा जा सकता। इससे यह प्रकट होता है कि वनपर्व का सरस्वती एवं कुरुक्षेत्र से संबन्धित उल्लेख श्रौतसूत्रों के उल्लेख से कई शताब्दियों के पश्चात का है। नारदीय पुराणउत्तर, अध्याय 65 ने कुरुक्षेत्र के लगभग 100 तीर्थों के नाम दिये हैं। इनका विवरण देना यहाँ सम्भव नहीं है, किन्तु कुछ के विषय में कुछ कहना आवश्यक है। पहला तीर्थ है ब्रह्मसर जहाँ राजा कुरु संन्यासी के रूप में रहते थे।वनपर्व 83। 85, वामन पुराण 49। 38-41, नारदीय पुराण, उत्तर 65.95 ऐंश्येण्ट जियाग्राफी आव इण्डियापृ0 334-335 में आया है कि यह सर 3546 फुट (पूर्व से पश्चिम) लम्बा एवं उत्तर से दक्षिण 1900 फुट चौड़ा था। भूगोल कुरुक्षेत्र जिला एक मैदानी क्षेत्र है, जिसके 88 प्रतिशत हिस्से पर खेती की जाती है और अधिकांश क्षेत्र पर दो फसलें उगाई जाती है। लगभग समूचा कृषि क्षेत्र नलकूपों द्वारा सिंचित है। कृषि में चावल और गेहूं की प्रधानता है। अन्य फसलों में गन्ना, तिलहन और आलू शामिल है। लगभग सभी गाँव सड़कों से जुड़े हैं। कुरुक्षेत्र नगर में हथकरघा, चीनी, कृषि उपकरण, पानी के उपकरण और खाद्य उत्पाद से जुड़े उद्योग अवस्थित है। पौराणिक महत्व thumb|250px|right|महाभारत युद्ध की झांकी, कांस्य रथ भगवान कृष्णा और अर्जुन कुरुक्षेत्र का पौराणिक महत्त्व अधिक माना जाता है। इसका ऋग्वेद और यजुर्वेद में अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है। यहाँ की पौराणिक नदी सरस्वती का भी अत्यन्त महत्त्व है। इसके अतिरिक्त अनेक पुराणों, स्मृतियों और महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत में इसका विस्तृत वर्णन किया गया हैं। विशेष तथ्य यह है कि कुरुक्षेत्र की पौराणिक सीमा 48 कोस की मानी गई है जिसमें कुरुक्षेत्र के अतिरिक्त कैथल, करनाल, पानीपत और जींद का क्षेत्र सम्मिलित हैं।भारत ज्ञान कोश, खंड-1, पप्युलर प्रकाशन मुंबई, पृष्ठ संख्या-395, आई एस बी एन 81-7154-993-4 इसका ऋग्वेद और यजुर्वेद में अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है। यहां की पौराणिक नदी सरस्वती का भी अत्यन्त महत्व है। सरस्वती एक पौराणिक नदी जिसकी चर्चा वेदों में भी है। इसके अतिरिक्त अनेक पुराणों, स्मृतियों और महर्षि वेद व्यास रचित महाभारत में इसका विस्तृत वर्णन किया गया हैं। विशेष तथ्य यह है कि कुरुक्षेत्र की पौराणिक सीमा 48 कोस की मानी गई है। वन पर्व में आया है कि कुरुक्षेत्र के सभी लोग पापमुक्त हो जाते हैं और वह भी जो सदा ऐसा कहता है- 'मैं कुरुक्षेत्र को जाऊँगा और वहाँ रहूँगा।' इस विश्व में इससे बढ़कर कोई अन्य पुनीत स्थल नहीं है। यहाँ तक कि यहाँ की उड़ी हुई धूलि के कण पापी को परम पद देते हैं।' यहाँ तक कि गंगा की भी तुलना कुरुक्षेत्र से की गयी है। नारदीय पुराण में आया है कि ग्रहों, नक्षत्रों एवं तारागणों को कालगति से (आकाश से) नीचे गिर पड़ने का भय है, किन्तु वे, जो कुरुक्षेत्र में मरते हैं पुन: पृथ्वी पर नहीं गिरते, अर्थात् वे पुन: जन्म नहीं लेते। कुरुक्षेत्र अम्बाला से 25 मील पूर्व में है। यह एक अति पुनीत स्थल है। इसका इतिहास पुरातन गाथाओं में समा-सा गया है। ऋग्वेदऋग्वेद 10.33.4 में त्रसदस्यु के पुत्र कुरुश्रवण का उल्लेख हुआ है। 'कुरुश्रवण' का शाब्दिक अर्थ है 'कुरु की भूमि में सुना गया या प्रसिद्ध।' अथर्ववेदअथर्ववेद 20.127.8 में एक कौरव्य पति (सम्भवत: राजा) की चर्चा हुई है, जिसने अपनी पत्नी से बातचीत की है। ब्राह्मण-ग्रन्थों के काल में कुरुक्षेत्र अति प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल कहा गया है। शतपथ ब्राह्मणशतपथ ब्राह्मण 4.1.5.13 में उल्लिखित एक गाथा से पता चलता है कि देवों ने कुरुक्षेत्र में एक यज्ञ किया था जिसमें उन्होंने दोनों अश्विनों को पहले यज्ञ-भाग से वंचित कर दिया था। मैत्रायणी संहितामैत्रायणी संहिता 2.1.4, 'देवा वै सत्रमासत्र कुरुक्षेत्रे एवं तैत्तिरीय ब्राह्मणतैत्तिरीय ब्राह्मण 5.1.1, 'देवा वै सत्रमासत तेषां कुरुक्षेत्रं वेदिरासीत्' का कथन है कि देवों ने कुरुक्षेत्र में सत्र का सम्पादन किया था। इन उक्तियों में अन्तर्हित भावना यह है कि ब्राह्मण-काल में वैदिक लोग यज्ञ-सम्पादन को अति महत्त्व देते थे, जैसा कि ऋग्वेदऋग्वेद, 10.90.16 में आया है- 'यज्ञेय यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यसन्।' पौराणिक कथा कुरू ने जिस क्षेत्र को बार-बार जोता था, उसका नाम कुरूक्षेत्र पड़ा। कहते हैं कि जब कुरू बहुत मनोयोग से इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इस परिश्रम का कारण पूछा। कुरू ने कहा-"जो भी व्यक्ति यहाँ मारा जायेगा, वह पुण्य लोक में जायेगा।" इन्द्र उनका परिहास करते हुए स्वर्गलोक चले गये। ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने देवताओं को भी बताया। देवताओं ने इन्द्र से कहा-"यदि संभव हो तो कुरू को अपने अनुकूल कर लो अन्यथा यदि लोग वहां यज्ञ करके हमारा भाग दिये बिना स्वर्गलोक चले गये तो हमारा भाग नष्ट हो जायेगा।" तब इन्द्र ने पुन: कुरू के पास जाकर कहा-"नरेश्वर, तुम व्यर्थ ही कष्ट कर रहे हो। यदि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर अथवा युद्ध करके यहाँ मारा जायेगा तो स्वर्ग का भागी होगा।" कुरू ने यह बात मान ली। यही स्थान समंत-पंचक अथवा प्रजापति की उत्तरवेदी कहलाता है। thumb|250px|right|भीष्म कुंड कुरुक्षेत्र के प्रमुख तीर्थ स्थान ब्रह्मसरोवर सन्निहित सरोवर शक्तिपीठ श्री भद्रकाली मन्दिर, ज्योतिसर (श्रीमद्भागवतगीता उपदेश स्थली) पिहोवा श्री स्थानेश्वर महादेव मन्दिर पूण्डरी कुरुक्षेत्र की पावन धरती पर श्री स्थानेश्वर महादेव मन्दिर स्थित है। लोक मन्यता है कि महाभारत के युद्ध से पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन समेत यहाँ भगवान शिव की उपासना कर अशिर्वाद प्राप्त किया था। इस तीर्थ की विशेषता यह भी है कि यहाँ मन्दिर व गुरुद्वरा एक हि दिवार से लगते है। यहाँ पर हजारो देशी विदेशी पर्यटक दर्शन हेतु आते हैं। कुरुक्षेत्र के अन्य ऐतिहासिक व पर्यटन स्थल हर्ष का टीला - सम्राट हर्षवर्धन से संबंधित पुरातात्विक स्थल शेख चेहेली का मकबरा - शेख चेहेली दारा शिकोह के आध्यात्मिक गुरु थे। आवागमन thumb|कुरुक्षेत्र जँक्शन रेलवे स्टेशन सड़क मार्ग: यह राष्ट्रीय राजमार्ग १ पर स्थित है। हरियाणा रोडवेज और अन्य राज्य निगमों की बसों से कुरुक्षेत्र पहुंचा जा सकता हैं। यह दिल्ली, चंडीगढ़ और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों से सड़क मार्ग से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। हवाई मार्ग: कुरुक्षेत्र के करीब हवाई अड्डों में दिल्ली और चंडीगढ़ हैं, जहां कुरुक्षेत्र के लिए टैक्सी और बस सेवा उपलब्ध है। करनाल में नया हवाई अड्डा प्रस्तावित है। रेल मार्ग : कुरुक्षेत्र में रेलवे जंक्शन है, जो देश के सभी महत्वपूर्ण कस्बों और शहरों के साथ-साथ सीधा दिल्ली से जुड़ा है। यहाँ शताब्दी एक्सप्रेस रुकती है। अन्य जानकारी thumb|कुरुक्षेत्र स्थित शेख चिल्ली का मकबरा जलवायु - यहाँ की जलवायु जुलाई और अगस्त में बारिश के साथ (1 डिग्री सेल्सियस के नीचे तक) और बहुत गर्मी में गर्म (47 डिग्री सेल्सियस के ऊपर तक) पहुँच जाती है, जबकि सर्दियों में काफी ठंड पड़ती है। प्रवेश - कुरुक्षेत्र अच्छी तरह से राष्ट्रीय राजमार्ग एक से जुड़ा हुआ है और सड़क, रेल तथा वायु द्वारा यहाँ सहजता से पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के द्वारा कुरुक्षेत्र की एतिहासिकता को लेकर महाभारत के शांति पर्व पर आधारित एक महाकाव्य की रचना की गयी है। यह उस समय लिखा गया था, जब द्वितीय विश्व युद्ध की यादें कवि के मन में ताज़ा थी। इन्हें भी देखें महाभारत कुरुक्षेत्र युद्ध कुरुक्षेत्र ज़िला बाहरी कड़ियाँ कल्पना चावला प्लैनेटोरियम पावन तीर्थ कुरुक्षेत्र – अतीत एवं वर्तमान कुरुक्षेत्र की आधिकारिक वेबसाइट सन्दर्भ श्रेणी:हरियाणा के शहर श्रेणी:कुरुक्षेत्र ज़िला श्रेणी:कुरुक्षेत्र ज़िले के नगर * श्रेणी:प्राचीन भारत के नगर श्रेणी:हिन्दू तीर्थ स्थल कुरुक्षेत्र श्रेणी:भारत के तीर्थ श्रेणी:महाभारत में स्थान
कोहिमा
https://hi.wikipedia.org/wiki/कोहिमा
कोहिमा, भारत के उत्तर पूर्वी राज्य नागालैंड की राजधानी है।"Mountains of India: Tourism, Adventure and Pilgrimage," M.S. Kohli, Indus Publishing, 2002, ISBN 9788173871351 लगभग 100,000, की आबादी के साथ, यह राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। मूल रूप से केवीरा के नाम से जाना जाने वाले, कोहिमा की स्थापना 1878 में हुई थी जब ब्रिटिश साम्राज्य ने यहाँ तत्कालीन नागा पहाड़ियों का मुख्यालय स्थापित किया था। 1963 में नागालैंड राज्य के उद्घाटन के बाद से यह शहर आधिकारिक तौर पर राज्य की राजधानी बन गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोहिमा में सबसे खूनी लड़ाइयों में से एक लड़ी गई थी। इस लड़ाई को अक्सर 'पूर्व का स्टेलिनग्राद' भी कहा जाता है।Dougherty 2008, p. 159.Ritter 2017, p. 123 2013 में, ब्रिटिश नेशनल आर्मी म्यूजियम ने कोहिमा की लड़ाई को 'ब्रिटेन की सबसे बड़ी लड़ाई' बताया था। कोहिमा नगरपालिका के अंतर्गत 20 वर्गकिमी (7.7 वर्ग मील) क्षेत्र आता है। कोहिमा शहर कोहिमा जिले के अंतर्गत आता है और जिले के दक्षिण में स्थित जपफू पर्वतमाला की तलहटी में () पर स्थित है और इसकी औसत ऊंचाई 1,261 मीटर (4137 फीट) है। विवरण कोहिमा एक सुन्दर शहर है। कोहिमा में अधिकतर नागा समुदाय के लोग रहते हैं। सांस्कृतिक दृश्यों व अनुभवों के अलावा पर्यटक यहां पर कई बेहतरीन और ऐतिहासिक पर्यटक स्थलों की सैर भी कर सकते हैं। इनमें राज्य संग्राहलय, एम्पोरियम, नागा हेरिटेज कॉम्पलैक्स, कोहिमा गांव, दजुकोउ घाटी, जप्फु चोटी, त्सेमिन्यु, खोनोमा गांव, दज्युलेकी और त्योफेमा टूरिस्ट गांव प्रमुख हैं। यह सभी पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं क्योंकि इनकी खूबसूरत उन्हें मंत्रमुग्ध कर देती है। भूगोल कोहिमा की औसत ऊंचाई है 1261 मीटर (4137 फीट)। प्रमुख आकर्षण समाधियां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानियों ने नागालैंड पर हमला किया था। इस हमले में बड़ी संख्या में सैनिक और अधिकारी मारे गए थे। हमले में मारे गए सैनिकों को गैरीसन हिल पर दफनाया गया था। वहां पर सैनिकों को समर्पित 1421 समाधियों का निर्माण किया गया है। स्थानीय निवासी शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए नियमित रूप से यहां आते हैं। स्थानीय निवासियों के साथ-साथ पर्यटकों में भी यह समाधियां काफी लोकप्रिय हैं और कोहिमा आने वाले पर्यटक इन समाधियों के दर्शन जरूर करते हैं। कोहिमा चर्च नागालैंड की राजधानी कोहिमा में पर्यटक एशिया के सबसे बड़े चर्च को देख सकते हैं। यह चर्च काफी बड़ा है और कोहिमा की पहचान बन चुका है। इस चर्च में लगभग 3,000 लोगों के बैठने की व्यवस्था है और यह लगभग 25,000 वर्ग फीट में फैला है। चर्च में बेथलेहम जैतुन की लकड़ी से बनी सुन्दर नाद देखी जा सकती। यह नाद चर्च की खूबसूरती को कई गुना बड़ा देती है। पर्यटकों को यहां पर आकार बहुत अच्छा लगता है क्योंकि यहां प्रार्थना करने के बाद उन्हें शांति का अहसास होता है। संग्राहलय नागा आदिवासियों की संस्कृति से जुड़े कोई विशेष दस्तावेज नहीं मिलते लेकिन उनकी संस्कृति और इतिहास काफी रोचक है। नागालैंड सरकार ने बयावी पहाड़ी पर संग्राहलय का निर्माण कराया है। इस संग्राहलय में नागालैंड की संस्कृति और इतिहास से जुड़ी अनेक वस्तुओं को देखा जा सकता है। इन वस्तुओं में कीमती रत्‍नों, हाथी दांत व मोतियों से बना हार, लकड़ी और भैंस के सींगों से बने वाद्ययंत्र तथा अन्य वस्तुएं प्रमुख हैं। कला प्रेमियों के लिए इस संग्राहलय में आर्ट गैलरी भी बनाई गई हैं। इसमें स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाई गई खूबसूरत पेंटिंग्स को देखा और खरीदा जा सकता है। नागा हेरिटेज कॉम्पलैक्स नागालैंड सरकार ने 1 दिसम्बर 2003 को इस कॉम्पलैक्स का उदघाटन किया था। यहां पर प्रतिवर्ष हॉरनबिल उत्सव मनाया जाता है। उत्सव के अलावा यहां पर नागालैंड का छोटा प्रतिरूप देखा जा सकता है। कॉम्पलैक्स में द्वितीय युद्ध की घटनाओं से जुड़े संग्रहालय, खरीदारी के लिए दुकानों, खाने-पीने के लिए रेस्तरां और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए एम्फीथियेटर का निर्माण किया गया है। इन सबके अलावा यहां पर फूलों के बगीचे के मनोरम दृश्य भी देखे जा सकते हैं। यह कॉम्पलैक्स बहुत खूबसूरत है और पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है। कोहिमा गांव कोहिमा गांव को एशिया में सबसे घनी आबादी वाला गांव माना जाता है। इसकी स्थापना व्हिनुओ नामक व्यक्ति ने की थी। इस गांव को भूतकाल और भविष्यकाल का संगम माना जाता है। यह कहा जाता है कि प्राचीन काल में यहां पर सात झीलें और सात द्वार थे। लेकिन एक द्वार को छोड़कर यह सभी गायब हो चुके हैं। यह द्वार बहुत सुन्दर है और इस को भैंस के सींगो व विभिन्न आकार के पत्थरों से सजाया गया है जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। पर्यटकों को यह बहुत पसंद आता है और वह इसकी खूबसूरत तस्वीरों को अपने कैमरों में कैद करके ले जाते हैं। दजुकोउ घाटी और जप्फु चोटी कोहिमा की दक्षिण दिशा में 30 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित दजुकोउ घाटी बहुत खूबसूरत है। अपनी खूबसूरती के दम पर इसने पर्यटकों के बीच खास पहचान बनाई हैं। यहां पर पर्यटक विभिन्न रंगों और आकार के खूबसूरत फूलों को देख सकते हैं। इन फूलों में एकोनिटम और एन्फोबियस प्रमुख हैं। दजुकोउ घाटी के खूबसूरत दृश्य देखने के बाद जप्फु चोटी के मनोहारी दृश्य देखे जा सकते हैं। यह चोटी सदाबहार जंगलों से भरी पड़ी है। इन जंगलों में सबसे ऊंचे वृक्ष को देखा जा सकता है। अपनी इस विशेषता के कारण इस पेड़ को गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्डस में शामिल किया गया है। आवागमन वायु मार्ग नागालैंड के दीमापुर विमानक्षेत्र में हवाई अड्डे का निर्माण किया गया है। यहां से कोहिमा तक पहुंचना काफी आसान है। रेल मार्ग हवाई अड्डे के अलावा दीमापुर में रेलवे स्टेशन का भी निर्माण किया गया है। दीमापुर से कोहिमा मात्र 74 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग कोहिमा बस अड्डा नागालैंड का सबसे व्यस्तम बस अड्डा है। यहां से नागालैंड के विभिन्न स्थानों के लिए बसों का परिचालन किया जाता है। बसों के अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग 39 से निजी वाहनों द्वारा भी कोहिमा तक पहुंचा जा सकता है। चित्रदीर्घा इन्हें भी देखें कोहिमा ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:कोहिमा ज़िला श्रेणी:नागालैण्ड के नगर श्रेणी:कोहिमा ज़िले के नगर श्रेणी:नागालैण्ड में हिल स्टेशन *
ग्वालियर
https://hi.wikipedia.org/wiki/ग्वालियर
ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ग्वालियर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर और राज्य का का एक प्रमुख शहर है।"Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh ," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172"Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293 भौगोलिक दृष्टि से ग्वालियर म.प्र. राज्य के उत्तर में स्थित है। यह शहर और इसका प्रसिद्ध दुर्ग उत्तर भारत के प्राचीन शहरों के केन्द्र रहे हैं। यह शहर गुर्जर-प्रतिहार राजवंश, तोमर तथा कछवाहा की राजधानी रही है । ग्वालियर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित होने वाले सौ भारतीय शहरों में से एक के रूप में चुना गया है। </span> नामकरण ग्वालियर शहर के नाम के पीछे एक इतिहास छिपा है। छठी शताब्दी में एक राजा हुए सूरजसेन, एक बार वे एक अज्ञात बीमारी से ग्रस्त हो मृत्युशैया पर थे, तब ग्वालिपा नामक सन्त ने उन्हें ठीक कर जीवनदान दिया। उन्हीं के सम्मान में इस शहर की नींव पड़ी और इसे नाम दिया ग्वालियर। कहते है, सूरजसेन पाल के 83 वंशजों ने किले पर राज्य किया, लेकिन 84 वें, जिसका नाम तेज करण था, इसे हार गया। इतिहास अंगूठाकार|300x300पिक्सेल|राजा मिहिरकुल का सिक्का, जो लगभग सन 520 में ग्वालियर पर राज करते थे। thumb|ग्वालियर शिलालेख में शून्य, जैसा कि दो संख्याओं (50 और 270) में देखा जा सकता है। अनुमान लगाया जाता है कि ये अंक 9वी शताब्दी में अंकित किए गए थे। ग्वालियर किले में चतुर्भुज मंदिर एक लिखित संख्या के रूप में शून्य की दुनिया की पहली घटना का दावा करता है। हालाँकि पाकिस्तान में भकशाली शिलालेख की खोज होने के बाद यह दूसरे स्थान पर आ गया। ग्वालियर का सबसे पुराना शिलालेख हूण शासक मिहिरकुल की देन है, जो छठी सदी में यहाँ राज किया करते थे। इस प्रशस्ति में उन्होंने अपने पिता तोरमाण (493-515) की प्रशंसा की है। बाएँ|अंगूठाकार|ग्वालियर किले के अंदर सिद्धांचल गुफाओँ में जैन प्रतिमाएँ। 1231 में इल्तुतमिश ने 11 महीने के लंबे प्रयास के बाद ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और तब से 13 वीं शताब्दी तक यह मुस्लिम शासन के अधीन रहा। 1375 में राजा वीर सिंह को ग्वालियर का शासक बनाया गया और उन्होंने तोमरवंश की स्थापना की। उन वर्षों के दौरान, ग्वालियर ने अपना स्वर्णिम काल देखा। इसी तोमर वंश के शासन के दौरान ग्वालियर किले में जैन मूर्तियां बनाई गई थीं। बाएँ|अंगूठाकार|ग्वालियर किले में मान मंदिर महल। दाएँ|अंगूठाकार|उरवई घाटी से गुज़रते हुए बाबर (बाबरनामा से लिया गया दृश्य)। राजा मान सिंह तोमर ने अपने सपनों का महल, मैन मंदिर पैलेस बनाया जो अब ग्वालियर किले में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। बाबर ने इसे " भारत के किलों के हार में मोती" और "हवा भी इसके मस्तक को नहीं छू सकती" के रूप में वर्णित किया था। बाद में 1730 के दशक में, सिंधियों ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया| फिर सन 1740 मे गोहद के जाट राजा भीम सिंह राणा ने ग्वालियर को जीत लिया और कई वर्षों तक यहां शासन किया| फिर दुबारा सिंधियों ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और ब्रिटिश शासन के दौरान यह एक रियासत बना रहा। 15 वीं शताब्दी तक, शहर में एक प्रसिद्ध गायन स्कूल था जिसमें तानसेन ने भाग लिया था। ग्वालियर पर मुगलों ने सबसे लंबे समय तक शासन किया और फिर मराठों ने। क़िले पर आयोजित दैनिक लाइट एंड साउंड शो ग्वालियर किले और मान मंदिर पैलेस के इतिहास के बारे में बताता है। 1857 का स्वाधीनता संग्राम 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ग्वालियर ने भाग नहीं लिया था। बल्कि यहाँ के सिंधिया शासक ने अंग्रेज़ों का साथ दिया था। झाँसी के अंग्रेज़ों के हाथ में पड़ने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर भागकर आ पहुँचीं और वहाँ के शासक से उन्होंने पनाह माँगी। अंग्रेज़ों के सहयोगी होने के कारण सिंधिया ने पनाह देने से इंकार कर दिया, किंतु उनके सैनिकों ने बग़ावत कर दी और क़िले को अपने क़ब्ज़े में ले लिया। कुछ ही समय में अंग्रेज़ भी वहाँ पहुँच गए और भीषण युद्ध हुआ। महाराजा सिंधिया के समर्थन के साथ अंग्रेज़ 1,600 थे, जबकि हिंदुस्तानी 20,000। फिर भी बेहतर तकनीक और प्रशिक्षण के चलते अंग्रेज़ हिन्दुस्तानियों पर हावी हो गए। जून 1858 में रानी लक्ष्मीबाई भी अंग्रेज़ों से लड़ते हुए ग्वालियर में वीरगति को प्राप्त हो गईं। वहीं तात्या टोपे और नाना साहिब वहाँ से फ़रार होने में कामयाब रहे। रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान आज भी पूरे भारत में याद किया जाता है। ग्वालियर रियासत मुख्य आलेख- ग्वालियर रियासतबाएँ|अंगूठाकार|शहर का नक्शा, 1914 ग्वालियर पर आज़ादी से पहले सिंधिया वंश का राज था, जो मराठा समूहों में से एक थे। इसमें 18वीं और 19वीं शताब्दी में ग्वालियर राज्य शासक, 19वीं और 20वीं शताब्दी के दौरान औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार के सहयोगी और स्वतंत्र भारत में राजनेता शामिल थे। ग्वालियर के ऐतिहासिक स्थल मुरार: पहले यह सैन्य क्षेत्र हुआ करता था, जिसे मिलिट्री ऑफिसर्स रेजिडेंशियल एरिया रिजर्व्ड (M.O.R.A.R.) कहा जाता था और संक्षेप में मोरार। मोरार शब्द का लोप होकर मुरार हो गया। थाटीपुर: रियासत काल में यहाँ सेना के सरकारी आवास थे, जिस का नाम थर्टी फोर लांसर था। आज़ादी के बाद यह आवास मध्य प्रदेश शासन के अधीन आ गए, जिसे थर्टी फोर की जगह थाटीपुर कहा गया। सहस्त्रबाहु मंदिर या सासबहू का मंदिर : ग्वालियर दुर्ग पर इस मंदिर के बारे में मान्यता है की यह सहत्रबाहु अर्थात हजार भुजाओं वाले भगवन विष्णु को समर्पित है। बाद में धीरे-धीरे सासबहू का मंदिर कहा जाने लगा। गोरखी: पुराने रजिस्ट्रार ऑफिस से गजराराजा स्कूल तक सिंधियावंश ने रहने का स्थान बनाया था। यही उनकी कुल देवी गोराक्षी का मंदिर बनाया गया। बाद में यह गोरखी बन गई। पिछड़ी ड्योढ़ी: स्टेट टाइम में महल बनने से पहले सफ़ेद झंडा गाड़ा जाता था। जब महल बना तो इसके पीछे की ड्योढ़ी और बाद में पिछड़ी ड्योढ़ी कहलाने लगी। तेली का मंदिर: ८ वी शताब्दी में राजा के सेनापति तेल्प ने दुर्ग पर दक्षिण और उत्तर भारतीय शैली का मंदिर बनवाया था, जिसे तेल्प का मंदिर कहा जाता था। आज इसे तेली का मंदिर कहा जाता है। पान पत्ते की गोठ: पूना की मराठा सेना जब पानीपत युद्ध से पराजित होकर लौट रही थी, तब उसने यहीं अपना डेरा डाल लिया। पहले इसे पानीपत की गोठ कहा जाता था। बाद में यह पान पत्ते की गोठ हो गई। डफरिन सराय: १८ वी शतदि में यहां कचहरी लगाई जाती थी। यहां ग्वालियर अंचल के करीब ८०० लोगों को लॉर्ड डफरिन ने फांसी की सजा सुनाई थी, इसी के चलते इसे डफरिन सराय कहा जाता है। कोटा की सराय १७ जून १८५८ को महारानी‌ लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों का अंतिम महा युद्ध हुआ। लष्कर १५ जून १८५८ महारानी‌ लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों का अंतिम महा युद्ध हुआ। मोरार छावणी १ जून और १६ जून १८५८ को महारानी‌ लक्ष्मीबाई और अंग्रेज और सिंधिया का युद्ध हुआ। फुलबाग १७ जून १८५८ की सुर्यास्त के समय महारानी लक्ष्मीबाई का यहा बाबा गंगादास महाराज के मठ में अंतिम संस्कार हुआ। आज यहा स्मारक है। https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=6198209010521607314#editor/target=post;postID=7886564301633423005;onPublishedMenu=allposts;onClosedMenu=allposts;postNum=10;src=postnamehttps://www.youtube.com/watch?v=9UHaBw1EDrk पर्यटन स्थल thumb|ग्वालियर के किले का सिंहद्वार महाराजा मान सिंह का क़िला सेन्ड स्टोन से बना यह किला शहर की हर दिशा से दिखाई देता और शहर का प्रमुखतम स्मारक है। एक उँचे पठार पर बने इस किले तक पहुंचने के लिये एक बेहद ऊंची चढाई वाली पतली सडक़ से होकर जाना होता है। इस सडक़ के आसपास की बडी-बडी चट्टानों पर जैन तीर्थकंरों की विशाल मूर्तियां बेहद खूबसूरती से और बारीकी से गढी गई हैं। किले की तीन सौ फीट उंचाई इस किले के अविजित होने की गवाह है। इस किले के भीतरी हिस्सों में मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूने स्थित हैं। पन्द्रहवीं शताब्दि में निर्मित गूजरी महल उनमें से एक है जो राजपूत राजा मानसिंह तोमर और गुर्जर रानी मृगनयनी के गहन प्रेम का प्रतीक है। इस महल के बाहरी भाग को उसके मूल स्वरूप में राज्य के पुरातत्व विभाग ने सप्रयास सुरक्षित रखा है किन्तु आन्तरिक हिस्से को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया है जहां दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां रखी गई हैं जो कार्बन डेटिंग के अनुसार प्रथम शती ए डी की हैं। ये दुर्लभ मूर्तियां ग्वालियर के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं। ग्वालियर का किला से आगरा 120 कि॰मी॰ दूर स्थित है। इसे 'भारत का जिब्राल्टर' कहा जाता है। तेली का मंदिर 9वीं शताब्दी में निर्मित एक अद्वितीय स्थापत्यकला का नमूना विष्णु जी का तेली का मन्दिर है, जो की 100 फीट की ऊंचाई का है। यह द्रविड स्थापत्य और आर्य स्थापत्य का बेजोड़ संगम है। मानमन्दिर महल इसे 1486 से 1517 के बीच ग्वालियर के प्रतापी राजा मानसिंह द्वारा बनवाया गया था। सुन्दर रंगीन टाइलों से सजे इस किले की समय ने भव्यता छीनी जरूर है किन्तु इसके कुछ आन्तरिक व बाह्य हिस्सों में इन नीली, पीली, हरी, सफेद टाइल्स द्वारा बनाई उत्कृष्ट कलाकृतियों के अवशेष अब भी इस किले के भव्य अतीत का पता देते हैं।राजा मानसिंह पराक्रमी योद्धा होने के साथ ही ललित कला प्रेमी व स्थापत्य शैली के जानकार भी थे।उनके शासनकाल को ग्वालियर का स्वर्ण युग कहा जाता है।इस किले के विशाल कक्षों में अतीत आज भी स्पंदित है। यहां जालीदार दीवारों से बना संगीत कक्ष है, जिनके पीछे बने जनाना कक्षों में राज परिवार की स्त्रियां संगीत सभाओं का आनंद लेतीं और संगीत सीखतीं थीं। इस महल के तहखानों में एक कैदखाना है, इतिहास कहता है कि औरंगज़ेब ने यहां अपने भाई मुराद को कैद रखवाया था और बाद में उसे समाप्त करवा दिया। जौहर कुण्ड भी यहां स्थित है। इसके अतिरिक्त किले में इस शहर के प्रथम शासक के नाम से एक कुण्ड है ' सूरज कुण्ड। विष्णु जी का एक मन्दिर है 'सहस्रबाहु का मन्दिर' जिसे अब सास-बहू का मंदिर नाम से भी जानते हैं। इसके अलावा यहां एक सुन्दर गुरूद्वारा है जो सिखों के छठे गुरू गुरू हरगोबिन्द जी की स्मृति में निर्मित हुआ, जिन्हें जहांगीर ने दो वर्षों तक यहां बन्दी बना कर रखा था। जयविलास महल और संग्रहालय thumb|ग्वालियर का किला यह सिंधिया राजपरिवार का वर्तमान निवास स्थल ही नहीं, बल्कि एक भव्य संग्रहालय भी है। इस महल के 35 कमरों को संग्रहालय बना दिया गया है। इस महल का ज्यादातर हिस्सा इटेलियन स्थापत्य से प्रभावित है। इस महल का प्रसिध्द दरबार हॉल इस महल के भव्य अतीत का गवाह है, यहां लगा हुए दो फानूसों का भार दो-दो टन का है, कहते हैं इन्हें तब टांगा गया जब दस हाथियों को छत पर चढा कर छत की मजबूती मापी गई। इस संग्रहालय की एक और प्रसिद्ध चीज है, चांदी की रेल जिसकी पटरियां डाइनिंग टेबल पर लगी हैं और विशिष्ट दावतों में यह रेल पेय परोसती चलती है। और इटली, फ्रान्स, चीन तथा अन्य कई देशों की दुर्लभ कलाकृतियां यहाँ हैं।thumb|जयविलास महल तानसेन स्मारक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के स्तंभ महान संगीतकार तानसेन जो कि अकबर के नवरत्नों में से एक थे, उनका स्मारक यहां स्थित है, यह मुगल स्थापत्य का एक नमूना है। तानसेन की स्मृति में ग्वालियर में हर वर्ष नवम्बर में तानसेन समारोह आयोजित होता है।thumb|तानसेन स्मारक, ग्वालियर विवस्वान सूर्य मन्दिर यह बिरला द्वारा निर्मित करवाया मन्दिर है जिसकी प्रेरणा कोर्णाक के सूर्यमन्दिर से ली गई है। गोपाचल पर्वत गोपाचल पर्वत ग्वालियर के किले के अंचल में, प्राचीन कलात्मक जैन मूर्ति समूह का अद्वितीय स्थान है। यहाँ पर हजारों विशाल दि. जैन मूर्तियाँ सं. 1398 से सं. 1536 के मध्य पर्वत को तराशकर बनाई गई हैं। इन विशाल मूर्तियों का निर्माण तोमरवंशी राजा वीरमदेव, डूँगरसिंह व कीर्तिसिंह के काल में हुआ। अपभ्रंश के महाकवि पं॰ रइधू के सान्निध्य में इनकी प्रतिष्ठा हुई।right|thumb|300px|ग्वालियर दुर्ग के अन्दर स्थित गोपाचल पर्वत पर निर्मित जैन तीर्थंकरों की प्रतिमा झाँसी महारानी लक्ष्मीबाई समाधी स्थान रानी लक्ष्मीबाई स्मारक शहर के पड़ाव क्षैत्र में है। कहते हैं यहां झाँसी की रानी वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की सेना ने अंग्रेजों से लड़ते हुए पड़ाव डाला और यहां के तत्कालीन शासक महाराजा जयाजीराव शिंदे उर्फ सिंधिया से सहायता मांगी किन्तु सदैव से मुगलों और अंग्रेजों के प्रभुत्व में रहे यहां के शासक उनकी मदद न कर सके और वे यहां १७ जून १८५८ को सुर्यास्त के समय कोटा की सराय के फुलबाग में वीरगति को प्राप्त हुईं। बाबा गंगादास महाराज के मठ में महारानी लक्ष्मीबाई का गुप्तरूप से अंतिम संस्कार हुआ। उनकी अंतिम संस्कार में व्यत्यय ना आये इसलिये ७४५ साधूओं ने अंग्रेजों से लोहा लिया और सदा के लिये अमर हुये। उसी स्थान पर उनका भव्य अश्वारूढ पुतला का स्मारक है। १८ जून १८५८ की शाम को अंग्रेजों ने ग्वालियर में महारानी लक्ष्मीबाई की खोज की रानी लक्ष्मीबाई का कुछ भी पता न चलने पर शाम के समय महारानी लक्ष्मीबाई को अधिकारीक रूप से मृत घोषित किया गया। १९ जून‌ को यह जानकारी फोर्ट विल्यम तथा रानी विक्टोरिया को टेलिग्राफ द्वारा हॅमिल्टन ने दी। २० जून को न्युज पेपर के जरिये पुरे हिंदुस्थान तथा इंग्लैंड और अमरिका में रानी लक्ष्मीबाई के मृत्यु की जानकारी थी गयी। भूगोल ग्वालियर मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में पर स्थित है। यह दिल्ली से क़रीब 300 किमी दूर पड़ता है। जलवायु ग्वालियर में मार्च के अंत से लेकर जून की शुरुआत तक गर्म ग्रीष्मकाल के साथ उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु होती है, जून के अंत से अक्टूबर की शुरुआत तक आर्द्र मानसून का मौसम होता है, और नवंबर के अंत से फरवरी के अंत तक ठंडी शुष्क सर्दी होती है।कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के तहत शहर में आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय जलवायु है। खेल लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालय, भारत के बड़े शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालयों में से एक है। ग्वालियर में कृत्रिम टर्फ़ का रेलवे हॉकी स्टेडियम भी है। रूप सिंह स्टेडियम ४५,००० की क्षमता वाला अन्तर्रष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम है, जहाँ १० एक दिवसिय अन्तर्रष्ट्रीय मैचों क आयोजन हो चुका है। यह स्टेडियम दुधिया रोशनी से सुसज्जित है, तथा १९९६ के क्रिकेट विश्व कप का भारत - वेस्ट इन्डीज़ मेच का आयोजन कर चुका है। इस मैदान पर सचिन तेंडुलकर, एक दिवसीय मैच में दोहरा शतक जमाने वाले विश्व के पहले खिलाडी बने थे, जो उन्होंने दक्षिण अफ्रीका टीम के खिलाफ २४ फरवरी २०१० को लगाया था। संगीत ग्वालियर संगीत के शहर के रूप में भी जाना जाता है।राजा मान सिंह तोमर (१४८६ ई.)के शासनकाल में संगीत महाविद्यालय की नींव रखी गई। बैजू बावरा, हरिदास ,तानसेन आदि ने यहीं संगीत साधना की। संगीत सम्राट तानसेन ग्वालियर के बेहट में पैदा हुए।म. प्र. सरकार द्वारा तानसेन समारोह ग्वालियर में हर साल आयोजित किया जाता है। सरोद उस्ताद अमजद अली ख़ान भी ग्वालियर के शाही शहर से है। उनके दादा गुलाम अली खान बंगश ग्वालियर के दरबार में संगीतकार बने। बैजनाथ प्रसाद (बैजू बावरा) ध्रुपद के गायक थे जिन्होने ग्वालियर को अपनी कर्म भूमि बनाई। ग्वालियर घराना यह ख़याल घरानों में सबसे पुराना घराना है, जिससे कई महान संगीतज्ञ निकले है। ग्वालियर घराने का उदय महान मुग़ल बादशाह अकबर के शासनकाल (1542-1605) के साथ शुरू हुआ। तानसेन जैसे इस कला के संरक्षक ग्वालियर से आये। आवागमन वायु मार्ग ग्वालियर का राजमाता विजया राजे सिंधिया विमानतल, शहर को दिल्‍ली, मुंबई, इंदौर, भोपाल व जबलपुर से जोड़ता है। यहाँ भारतीय वायु सेना का मिराज़ विमानों का विमान केन्द्र है। रेल मार्ग ग्वालियर का रेलवे स्थानक देश के विविध रेलवे स्थानकों से जुड़ा हुआ है। यह रेलवे स्थानक भारतीय रेल के दिल्‍ली-चैन्‍नई मुख्य मार्ग पर पड़ता है। साथ ही यह शहर कानपुर, मुम्‍बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बंगलूरू, हैदराबाद आदि शहरों से अनेक रेलगाडियों के माध्‍यम से जुड़ा हुआ है। सडक मार्ग ग्वालियर शहर राज्य व देश के अन्य भागों से काफ़ी अच्छे से जुड़ा हुआ है। आगरा-मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग NH-३, ग्वालियर से गुजरता है। ग्वालियर झाँसी से NH-७५ से जुड़ा है। नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर भी ग्वालियर से गुजरता है, एवं ग्वालियर भिण्ड से NH-९२ से जुड़ा हुआ है। भविष्य ग्वालियर पश्चिमको राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रसे धन सहायता के साथ एक "काउंटर मैग्नेट" परियोजना के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसे शिक्षा, उद्योग और रियल एस्टेट में निवेश बढ़ाने के लिए पेश किया गया है।हॉटलाइन, सिमको और ग्रासिम ग्वालियर जैसे निर्माताओं के समापन का मुकाबला करने की उम्मीद है। स्थानीय कलेक्टर और नगर निगम द्वारा शुरू की गई ग्वालियर मास्टर योजना शहर की बढ़ती आबादी को पूरा करने और साथ ही शहर को पर्यटकों के लिए सुंदर बनाने के लिए शहर के बुनियादी नागरिक बुनियादी ढांचे में सुधार करने की पहल करती है। ग्वालियर के कुम्भकार ग्वालियर मृणशिल्पों की दृष्टि से आज उतना समृद्व भले ही न दिखता हो किन्तु लगभग पच्चीस वर्ष पहले तक यहां अनेक सुन्दर खिलौने बनाये जाते थे। दीवाली, दशहरे के समय यहां का जीवाजी चौक जिसे बाड़ा भी कहा जाता है, में खिलौनों की दुकाने बड़ी संख्या में लगती थी। मिट्टी के ठोस एवं जल रंगों से अलंकृत वे खिलौने अधिकांशतः बनना बन्द हो गये हैं। गूजरी, पनिहारिन, सिपाही, हाथी सवार, घोड़ा सवार, गोरस, गुल्लक आदि आज भी बिकते है। अब यहां मिटटी के स्थान पर कागज की लुगदी के खिलौने अधिक बनने लगे हैं जिन पर स्प्रेगन की सहायता से रंग ओर वार्निश किया जाता है। यहां बनाये जाने वाले मृण शिल्पों में अनुष्ठानिक रूप से महत्वपूर्ण है, महालक्ष्मी का हाथी, हरदौल का धोड़ा, गणगौर, विवाह के कलश, टेसू, गौने के समय वधू को दी जाने वाली चित्रित मटकी आदि। ग्वालियर, कुंभार (प्रजापति) समुदाय की सामाजिक संरचना के अध्ययन की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां हथेरिया एवं चकरेटिया दोनों ही प्रकार के कुंभार पाये जाते है। हथरेटिया कुंभार चकरेटिया कुंभारों की भांति बर्तन बनाने के लिए चाक का प्रयोग नहीं करते, वे हाथों से ही, एक कूंढे की सहायता से मिटटी को बर्तनों को आकार देते हैं। उनके बनाये बर्तनों की दीवारें मोटी होती हैं। ये लोग खिलौनें बनाने में दक्ष होते है। ग्वालियर से प्रकाशित होने वाली हिन्दी की लघु-पत्रिकाएँ आचार्य कुल चैतन्य प्रकाश सुनहरा संसार शिक्षा एवं शिक्षण संस्थान thumb|जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर thumb|आई आई आई टी एम ग्वालियर में जीवाजी विश्वविद्यालय (1964) और इससे संबंद्ध कला, विज्ञान, वाणिज्य, चिकित्सा तथा कृषि महाविद्यालय हैं और नगर में साक्षरता की दर काफ़ी ऊंची है। ग्वालियर में संगीत की यशस्वी परंपरा रही है और उसकी अपनी ख़ास शैली रही है। जो ग्वालियर 'घराना' नाम से प्रसिद्ध है। जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिज़िकल एजुकेशन माधव प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, ग्वालियर राजमाता विजयराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी और प्रबंधन संस्थान राष्ट्रीय पर्यटन संस्थान, ग्वालियर प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान, ग्वालियर एमिटी विश्वविद्यालय, ग्वालियर आई टी एम विश्वविद्यालय, ग्वालियर आईपीएस महाविद्यालयीन समूह, ग्वालियर ग्वालियर इंजीनियरिंग कॉलेज़, ग्वालियर ग्वालियर सूचना प्रौद्यौगिकी संस्थान, ग्वालियर सिंधिया कन्या विद्यालय, ग्वालियर आई आई आई टी एम, ग्वालियर रुस्तमजी प्रौद्योगिकी संस्थान, टेकनपुर श्री रामनाथ सिंह महाविद्यालय फार्मेसी, ग्वालियर जनसंख्या, साक्षरता एवं धर्म २०११ की जनगणना के मुताबिक ग्वालियर की कुल जनसंख्या २०,३०,५४३ है, जिसमे पुरुष १०,९०,६४७ व महिला ९,३९,८९६ है। साक्षरता ५७.४७% है (पुरुष ७०.८१%, महिला ४१.७२%)। ग्वालियर से प्रसिद्ध हस्तियाँ तानसेन - अक़बर के दरबार में संगीतज्ञ गणेश शंकर विद्यार्थी - प्रसिद्ध हिन्दी लेखक अटल बिहारी वाजपेयी - भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री एवं जाने माने कवि अतुल कुमार (लेखक) - प्रसिद्व हिंदी लेखक रूप सिंह - भारतीय हॉकी खिलाड़ी माधवराव सिंधिया - भारतीय राजनेता व केन्द्रीय मंत्री कौशलेन्द्र सिंह घुरैया -प्रसिद्व हिंदी लेखक कार्तिक आर्यन- सुप्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता अमजद अली ख़ान - सरोद वादक व संगीतज्ञ ज्योतिरादित्य सिंधिया -बीजेपी के एक प्रमुख नेता शिवेन्द्र सिंह - भारतीय हॉकी खिलाड़ी निदा फ़ाज़ली - प्रसिद्ध उर्दू लेखक व शायर नरेन्द्र सिंह तोमर - सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री विवेक अग्निहोत्री - फिल्म निर्माता मीत ब्रदर्स - बॉलीबुड की प्रसिद्ध गायक जोड़ी गैलरी इन्हें भी देखें ग्वालियर ज़िला ग्वालियर का क़िला टीन का पुरा बाहरी कड़ियाँ ग्वालियर में "विवेकानन्द केन्द्र" : एक परिचय ग्वालियर का "विवेकानन्द नीडम्" : एक परिचय Gwalior 360 panorami सन्दर्भ श्रेणी:ग्वालियर ज़िला श्रेणी:मध्य प्रदेश के शहर श्रेणी:ग्वालियर ज़िले के नगर *
कूचबिहार
https://hi.wikipedia.org/wiki/कूचबिहार
कूचबिहार (কোচবিহার, राजबंग्शी/कामतापुरी: কোচবিহার) भारत के पश्चिम बंगाल प्रदेश के उत्तरी भाग में स्थित कूचबिहार ज़िले का एक नगर है, जो उस ज़िले का मुख्यालय भी है। सन् 1586 से 1949 तक यह एक सामंत/ जमींदारी थी जिसे रियासत के रूप में जाना जाता है। यह भूटान के दक्षिण में पश्चिम बंगाल और बिहार की सीमा पर स्थित एक शहर है। कूच बिहार अपने सुन्दर पर्यटक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। पर्यटक स्थलों के अलावा यह अपने आकर्षक मन्दिरों के लिए भी पूरे विश्व में जाना जाता है। अपने बेहतरीन पर्यटक स्थलों और मन्दिरों के अतिरिक्‍त यह अपनी प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। शहर की भाग-दौड़ से दूर कूच बिहार एक शांत इलाका है। यहां पर छुट्टियां बिताना पर्यटकों का बहुत पसंद आता है क्योंकि इसकी प्राकृतिक सुन्दरता उनमें नई स्फूर्ति और ऊर्जा का संचार कर देती है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां पर कोच राजाओं का शासन था और वह नियमित रूप से बिहार की यात्रा किया करते थे। इस कारण इसका नाम कूच बिहार पड़ा। कूच विहार के राजा राजवंशी जाति से आते है जिन्हें जनजाति की केटेगरी में रखा गया है। लंबे समय तक लगातार शासन करने के कारण इस राजपरिवार को क्षत्रिय के रूप में भी दर्शाया जाता है, लेकिन ब्राह्मण समूहों के द्वारा इनकी जाति को शुद्र वर्ण के रूप में देखा जाता है। इस राजपरिवार की राजकुमारी गायत्री देवी का विवाह जयपुर के कुशवाहा राजघराने में हुआ था। प्रमुख आकर्षण मदन मोहन बाड़ी कूच बिहार के हृदय में स्थित मदन मोहन बाड़ी बहुत खूबसूरत है। इसका निर्माण महाराजा नृपेन्द्र नारायण ने 1885-1889 ई. में कराया था। मदन मोहन बाड़ी में पर्यटक मदन मोहन, मां काली, मां तारा और भवानी की मनोरम प्रतिमाओं को देख सकते हैं। यहां पर हर वर्ष रस पूजा आयोजित की जाती है। इस पूजा के मुख्य आकर्षण रस यात्रा और रस मेला होते हैं। यह यात्रा और मेला पर्यटकों को बहुत पसंद आता है और वह इनमें भाग लेने के लिए प्रतिवर्ष यहां आते हैं। कूचबिहार राजबाड़ी कूचबिहार राजबाड़ी कूच बिहार के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। इसका निर्माण यूरोपियन शैली में किया गया है। इस पैलेस का निर्माण कोच सम्राट महाराजा नृपेन्द्र नारायण ने 1887 ई. में कराया था। यह दो मंजिला पैलेस है। इन दोनों मंजिलों का निर्मार्ण ईटों से किया गया है। पैलेस का कुल क्षेत्रफल 4768 वर्ग मी. और इसकी लंबाई व चौड़ाई क्रमश: 120 और 90 मी. है। पर्यटकों को यह पैलेस बहुत पसंद आता है और वह इसकी खूबसूरत तस्वीरों को अपने कैमरों में कैद करके ले जाते हैं। अर्धनारीश्वर मन्दिर कूच बिहार की उत्तर दिशा में 10 कि॰मी॰ की दूरी पर अर्धनारीश्वर मन्दिर स्थित है। इस मन्दिर में पर्यटक 10 फीट लंबे शिवलिंग को देख सकते हैं, जो एक चौकोर शिला पर स्थित है। मन्दिर के दूसर भाग में गौरीपट है, जो बहुत आकर्षक है और पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। अर्धनारीश्वर मन्दिर के प्रागंण में एक तालाब भी है, जिसमें पर्यटक अनेक प्रजातियों के कछुओं को देख सकते हैं। इनमें कई कछुए सामान्य से बड़े आकार के हैं। शिव चर्तुदशी के दिन यहां पर एक हफ्ते के लिए भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस मेले में स्थानीय निवासी और पर्यटक बड़े उत्साह से भाग लेते हैं। कामतेश्वरी मन्दिर right|thumb|200px|रसिकबील वॉचटावर दिन्हाता रेलवे स्टेशन के पास कामतेश्वरी मन्दिर स्थित है। इस मन्दिर का निर्माण महाराजा प्राण नारायण ने 1665 ई. में कराया था। हालांकि इस मन्दिर की असली इमारत का अधिकतर भाग ढह चुका है, लेकिन यह मन्दिर आज भी बहुत खूबसूरत है। इसके प्रांगण में 2 छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं, जो बहुत खूबसूरत हैं और पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। कामतेश्वरी मन्दिर के प्रवेश द्वार पर पर्यटक तारकेश्वर शिवलिंग के दर्शन भी कर सकते हैं। माघ में यहां पर देवी को समर्पित एक भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है। सिद्धांत शिव मन्दिर धौलाबाड़ी में स्थित सिद्धांत शिव मन्दिर बहुत खूबसूरत है। इस मन्दिर का निर्माण महाराजा हरेन्द्र नारायण और महाराजा शिवेन्द्र नारायण ने 1799-1843 ई. में संयुक्त रूप कराया था। यह मन्दिर टेरोकोटा शैली में बना हुआ है। इसका मुख्य आकर्षण 5 खूबसूरत गुम्बद है जो पर्यटकों को बहुत आकर्षित करते हैं। स्थानीय निवासियों में इस मन्दिर के प्रति बहुत श्रद्धा है और वह पूजा करने के लिए प्रतिदिन यहां आते हैं। कूच बिहार से पर्यटक आसानी से यहां तक पहुंच सकते हैं। सन्दर्भ Book entitled Maharanis by Lucy Moore बाहरी कड़ियाँ Website of the district administration of Cooch Behar Genealogy of the Narayan dynasty Crime Report Link to external map श्रेणी:पश्चिम बंगाल श्रेणी:भारत की रियासतें श्रेणी:पश्चिम बंगाल के शहर श्रेणी:कूचबिहार ज़िला श्रेणी:कूचबिहार ज़िले के नगर
नगाँव
https://hi.wikipedia.org/wiki/नगाँव
नगाँव (Nagaon) भारत के असम राज्य के नगाँव ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। नगाँव गुवाहाटी से 120 किमी पूर्व में कोलोंग नदी के किनारे बसा हुआ है, और असम का पाँचवा सबसे बड़ा नगर है। विवरण नगांव कृषि व्यापार केंद्र है और यहाँ गुवाहाटी विश्वविद्यालय से संबद्ध कई होमोयोपैथिक चिकित्सा महाविद्यालय स्थित हैं। नगांव से पांच किमी दक्षिण-पश्चिम में संचोआ में एक रेल जंक्शन हैं। नगांव के आसपास का क्षेत्र ब्रह्मपुत्र नदी घाटी का एक हिस्सा है और इसमें कई दलदल और झीलें हैं, जिनमें से कई मत्स्यपालन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इसके इर्द-गिर्द के जंगल सागौन व साल की इमारती लकड़ियां और लाख उपलब्ध कराते हैं कृषि उत्पादों में चावल, जूट, चाय और रेशम शामिल हैं। नगाँव जिला इसके उत्तर में दरें, पूर्व एवं दक्षिण में संयुक्त मिकिर उत्तरी कछार पहाड़ियाँ, पश्चिम तथ उत्तर-पश्चिम में क्रमश: उत्तरी कछार और जयंतिया पहाड़ियाँ एव दरं जिले हैं। यह जिला पहाड़ी है। इसके किनारे की ढालें खड़ी तथा जंगलों से युक्त हैं। यहाँ की प्रमुख नदी ब्रह्मपुत्र है जो उत्तरी सीमा पर बहती है। इसके अतिरिक्त अन्य कई छोटी नदियाँ भी यहाँ बहती हैं। ब्रह्मपुत्र के उत्तर में हिमखंडित हिमालय दिखलाई पड़ता है। ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे १,५०० फुट ऊँची कामाख्या पहाड़ी है जिसकी चोटी पर कामाख्या देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। जिले का मैदानी भाग जलोढ मिट्टी से बना है। जंगलों में अनेक जानवर पाए जाते हैं। नवंबर से लेकर मध्य मार्च तक का जलवायु ठंडा तथा आनंदायक रहता है। वर्ष के शेष भाग में जलवायु गरम रहता है। गरम से गरम दिन का ताप ३८डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है, किंतु वायु में नमी की मात्रा अधिक रहती है। वर्षा का वार्षिक औसत ७० इंच से ८० इंच तक रहता है। धान मुख्य उपज है। इसके अतिरिक्त चाय, गन्ना, तिल, कपास की भी खेती होती है। यहाँ थोड़ी मात्रा में कच्चा लोहा, चूने का पत्थर तथा कोयले का भी खनन होता है। चाय उद्योग के अतिरिक्त यहाँ अन्य कोई उन्नतिशील उद्योग नहीं है, केवल कुछ घरेलू उद्योग धंधे हैं, जिनमें सूती एवं रेशमी कपड़े बुनना, आभूषणों के काम, चटाइयाँ तथा टोकरियाँ बनाना, पीतल के बरतन बनाना आदि मुख्य हैं। यहाँ एक प्रकार की पत्तियों से टोप बनाए जाते हैं। चाय, तिलहन, कपास, लाख, बाँस की चटाइयाँ इत्यादि यहाँ से बाहर जाती हैं तथा चावल, चना एवं अन्य अनाज, चीनी, नमक तथा मिट्टी का एवं अन्य तेल, घी आदि बाहर से यहाँ आते हैं। यातायात के साधन अच्छे हैं। यहाँ के मुख्य नगर नगांव, लामडिं, होजय और ढिंग हैं। नगाँव नगर नगाँव जिले में इसी नाम का कोलोंग नदी के बाएँ किनारे पर स्थित नगर है। सन् १८९७ में इस नगर को भूचाल से बहुत हानि उठानी पड़ी, मकान नष्ट हो गए तथा दलदलों का तल ऊपर उठ जाने से चारों तरफ पानी फैल गया था। यहाँ के प्राकृतिक दृश्य अच्छे हैं, किंतु गरमी के कारण जलवायु अस्वास्थ्यप्रद है। यहाँ का अधिकांश व्यापार मारवाड़ी लोगों के हाथ में है। यहाँ से सरसों, कपास, लाख आदि बाहर भेजे जाते हैं तथा नमक, तेल, सूती कपड़े, अनाज आदि बाहर से मँगाए जाते हैं। यहाँ शिक्षा का प्रबंध भी है। इन्हें भी देखें कोलोंग नदी नगाँव ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:नगाँव ज़िला श्रेणी:असम के नगर श्रेणी:नगाँव ज़िले के नगर *
गुंटूर
https://hi.wikipedia.org/wiki/गुंटूर
गुंटूर आंध्र प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। आंध्र प्रदेश के उत्‍तर पूर्वी भाग में कृष्‍णा नदी डेल्‍टा में स्थित है गुंटूर। विजयवाड़ा-चेन्‍नई ट्रंक रोड पर स्थित गुंटूर की स्‍थापना फ्रांसिसी शासकों ने आठवीं शताब्‍दी के मध्‍य में की थी। करीब 10 शताब्दियों तक उन्‍होंने यहां राज किया। बाद में 1788 में इसे ब्रिटिश साग्राज्‍य में मिला दिया गया। गुंटूर बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है। प्रकृति ने अपनी खूबसूरती ऊचें पहाड़ों, हरीभरी घाटियों, कलकल बहती नदियों और मनमोहक तटों के रूप में यहां बिखेरी है। आज गुंटूर अपने धार्मिक और ऐतिहासिक स्‍थलों तथा चटपटे अचार के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। thumb|Indian Relief of Ashoka from the Amaravathi village, Guntur district, Andhra Pradesh (India), in the Guimet Museum (Paris) स्थापना गुंटूर नगर की स्थापना 18वीं शताब्दी के मध्य में फ़्रांसीसियों द्वारा की गई थी, लेकिन 1788 में अंग्रेजी का इस पर स्थायी रूप से अधिकार हो गया। 1866 में यहाँ नगरपालिका का गठन किया गया। उद्योग और व्यापार रेलवे जंक्शन और व्यापारिक केंद्र गुंटूर की अर्थव्यवस्था पटसन, तंबाकू और चावल की खेती पर निर्भर है। गुंटूर में एक कृषि शोध केंद्र भी है। कृषि और खनिज गुंटूर के आसपास के क्षेत्रों में ज्वार, मिर्च, मूंगफली और तंबाकू की खेती भी होती है। शिक्षण संस्थान जिनमें बापटलाल इंजीनियरिंग कॉलेज, के. एल. कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, आर. वी. आर. कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, विज्ञान इंजीनियरिंग कॉलेज, एम. बी. टी. एस. राजकीय पॉलिटेक्निक, राजकीय महिला पॉलिटेक्निक, गुंटूर मेडिकल कॉलेज, महात्मा गांधी कॉलेज फ़ॉर पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज़ और आंध्र विश्वविद्यालय से संबद्ध कई महाविद्यालय हैं। निकट ही 12वीं शताब्दी का भरनप्राथ पहाड़ी दुर्ग स्थित है। क्षेत्रफल गुंटूर ज़िले का क्षेत्रफल 11,377 वर्ग किमी है और पूर्व तथा उत्तर में यह कृष्णा नदी से घिरा है | मुख्य आकर्षण भवनारायण स्‍वामी मंदिर गुंटूर से 49 किलोमीटर दूर बपाट्ला का भवनारायणस्‍वामी मंदिर भगवान भवनारायण को समर्पित है। समय बीतने के साथ अब इन्‍हें बापट्ला के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर गुंटूर जिले का सबसे प्राचीन और सबसे प्रमुख मंदिर है। इतिहास और शिल्‍प की दृष्टि से मंदिर का बहुत महत्‍व है। अमरावती अमरावती गुंटूर से 35 किलोमीटर दूर उत्‍तर-पश्चिम में कृष्‍णा नदी के किनारे स्थित है। यहां पूरे वर्ष श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है इसलिए यहां पर्यटकों के लिए सुविधाओं की अच्‍छी व्‍यवस्‍था है। यहां भगवान शिव के प्रमुख मंदिरों में से एक अमरेश्‍वर है जहां शिवरात्रि के अवसर पर भक्‍तों की भारी भीड़ होती है। अमरावती में विश्‍वप्रसिद्ध बौद्ध स्‍तूप भी है जहां भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित चित्रों को देखा जा सकता है। कोटप्‍पा कोंडा कोटप्‍पा कोंडा नरसराओपेट से 13 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित है। यहां मुख्‍य रूप से ऋत्रिकोटेश्‍वर स्‍वामी की पूजा की आती है जिनका मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है। अब राज्‍य सरकार इस स्‍थान को पर्यटन और धार्मिक केंद्र के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रही है। इसके लिए यहां पर्यटन सुविधाएं बढ़ाए जाने की व्‍यवस्‍था की जा रही है। मंगलागिरी मंगलागिरी विजयवाड़ा-चेन्‍नई ट्रंक रोड पर स्थित है। प्रागैतिहासिक काल से ही यह स्‍थान बहुत प्रसिद्ध रहा है। मंगलागिरी पर्वत पर भ्‍ागवान लक्ष्‍मी नरसिम्‍हा स्‍वामी का मंदिर है इसलिए इसे बहुत ही पवित्र पर्वत माना जाता है। माना जाता है कि जो जल भक्‍त प्रभु को चढ़ाते हैं उनमें से आधा भगवान पी लेते हैं और बाकी आधा भक्‍त प्रसाद के रूप में ले जाते हैं। लक्ष्‍मी नरसिम्‍हा स्‍वामी को पनकला नरसिम्‍हा स्‍वामी या पनकला स्‍वामी भी कहा जाता है। नल्‍लापडु गुंटूर से 5 किलोमीटर दूर नल्‍लापडु या नसिंहपुरम का नाम यहां पहाड़ी पर स्थित नरसिंहस्‍वामी मंदिर के कारण पड़ा है। इस मंदिर के अलावा भी यहां कई प्राचीन मंदिर भी हैं। यहां के अगस्‍लेश्‍वरस्‍वामी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह कई शताब्‍दी पुराना है। इस मंदिर में सुसज्जित ध्‍वजस्‍तंभम, पांच नागों की उकेरी गई प्रतिमाएं, शिव जी और ब्रह्मरंब, उनकी पत्‍नी की प्रतिमाएं तथा शंकराचार्य मंदिर दर्शनीय हैं। पोंडुगला गुटूर से 11 किलोमीटर दूर पोंडुगला में बहुत सारे मंदिर हैं। इनमें सबसे प्रमुख मंदिर है गंटाला रामलिंगेश्‍वरा स्‍वामी मंदिर। इस मंदिर के स्‍तंभों में पाली में लिखे शिलालेखों को देखा जा सकता है। पास ही दंडीवगु नदी के किनारे स्थित अयेगरीपालम गांव में भी एक मंदिर है जहां संस्‍कृ‍त में लिखे दो शिलालेख मिले हैं। इसे संरक्षित स्‍मारक घोषित किया गया है। आसपास दर्शनीय स्‍थल नागार्जुनसागर बांध नागार्जुनसागर बांध नि:संदेह भारत की शान है। यह पत्‍थर से बना दुनिया का सबसे ऊंचा बांध है। इस बांध का पानी नालगोंडा, प्रकासम, खम्‍मम और गुंटूर जैसे आंध्र प्रदेश के अनेक जिलों में सिंचाई के काम आता है। नागार्जुनसागर श्रीसैलम अभ्‍यारण्‍य 3568 गर्व किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह अभ्‍यारण्‍य भारत में सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व माना जाता है। इसके अलावा यहां फूलों व वनस्‍पतियों की अनेक प्रजातियां भी पाई जाती हैं। अभ्‍यराण्‍य के साथ ही नागार्जुनसागर बांध है। यहां की गहरी घाटियों की सुंदरता देखते ही बनती है। आवागमन वायु मार्ग नजदीकी हवाई अड्डा गन्‍नवरम है। रेल मार्ग नजदीकी रेलवे स्‍टेशन गुंटूर और विजयवाड़ा हैं जो सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग बस सेवाएं गुंटूर को जिले के अंदर व बाहर के प्रमुख स्‍थानों से जोड़ती हैं जिनमें राज्‍य मुख्‍यालय भी शामिल हैं। जनसंख्या 2001 की जनगणना के अनुसार क्षेत्र की जनसंख्या 5,14,707 है और ज़िला कुल जनसंख्या 44,05,521 है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें बाहरी कड़ियां गुंटूर नगर निगम गुंटूर शहर व जिला प्रशासन गुंटूर पुलिस गुंटूर - विकिमैपिया पर गुंटूर - गूगल मैप्स पर गुंटूर का नक्शा NASA द्वारा वर्तमान तापमान @ गुंटूर सहर में गुंटूर स्थानीय समय गुथिकोंडा गुफाएं श्रेणी:आन्ध्र प्रदेश के नगर श्रेणी:गुंटूर रेलवे मंडल श्रेणी:दक्षिण मध्य रेलेवे मंडल श्रेणी:गुन्टूर ज़िला श्रेणी:गुन्टूर ज़िले के नगर
मदुरई
https://hi.wikipedia.org/wiki/मदुरई
मदुरई (Madurai) या मदुरै भारत के तमिल नाडु राज्य के मदुरई ज़िले में स्थित एक नगर है और उस ज़िले का मुख्यालय भी है। यह भारतीय प्रायद्वीप के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक है।फ्रॉमर्स इण्डिया, द्वारा: पिप्पा देब्र्यून, कीथ बैन, नीलोफर वेंकटरमन, शोनार जोशी इस शहर को अपने प्राचीन मंदिरों के लिये जाना जाता है। इस शहर को कई अन्य नामों से बुलाते हैं, जैसे कूडल मानगर, तुंगानगर (कभी ना सोने वाली नगरी), मल्लिगई मानगर (मोगरे की नगरी) था पूर्व का एथेंस। यह वैगई नदी के किनारे स्थित है। लगभग २५०० वर्ष पुराना यह स्थान तमिल नाडु राज्य का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और व्यावसायिक केंद्र है। यहां का मुख्य आकर्षण मीनाक्षी मंदिर है जिसके ऊंचे गोपुरम और दुर्लभ मूर्तिशिल्प श्रद्धालुओं और सैलानियों को आकर्षित करते हैं। इस कारणं इसे मंदिरों का शहर भी कहते हैं।"Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012394"Tamil Nadu, Human Development Report," Tamil Nadu Government, Berghahn Books, 2003, ISBN 9788187358145 मदुरै एक समय में तमिल शिक्षा का मुख्य केंद्र था और आज भी यहां शुद्ध तमिल बोली जाती है। यहाँ शिक्षा का प्रबंध उत्तम है। यह नगर जिले का व्यापारिक, औद्योगिक तथा धार्मिक केंद्र है। उद्योगों में सूत कातने, रँगने, मलमल बुनने, लकड़ी पर खुदाई का काम तथा पीतल का काम होता है। यहाँ की जनसंख्या ११ लाख ८ हजार ७५५ (२००४ अनुमानित) है। आधुनिक युग में यह प्रगति के पथ पर अग्रसर है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पाने में प्रयासरत है, किंतु अपनी समृद्ध परंपरा और संस्कृति को भी संरक्षित किए हुए है। इस शहर के प्राचीन यूनान एवं रोम की सभ्यताओं से ५५० ई.पू. में भी व्यापारिक संपर्क थे। नाम स्थानीय लोग इसे तेन मदुरा कहते हैं, यानि दक्षिणी मथुरा - उत्तर भारत के मथुरा की उपमा में। अन्य भी कई किंवदंतियाँ हैं इसके नामाकरण को लेकर जैसे - भगवान शिव की जटा से निकले अमृत के मधुर होने से मधुरा, या ५ भूमि-प्रकारों में से एक मरुदम के नाम पर। लेकिन पहला (दक्षिण मथुरा) अधिक उपयुक्त लगता है क्योंकि यहाँ ऐतिहासिक रूप से पांड्य राजाओं का शासन रहा है, चोळों के साम्राज्य में भी यहाँ पांड्यों की उपस्थिति रही है। याद रहे कि तमिळ लिखावट को देखकर यह निश्चित नहीं किया जा सकता कि इसका नाम और उच्चारण मथुरा था या मतुरा या मदुरा या मधुरा - तमिळ उच्चारण में भी यह अंतर स्पष्ट नहीं होता। भूगोल एवं मौसम thumb|left|मदुरई शहरी क्षेत्र का उपग्रह चित्र मदुरई शहर का क्षेत्रफल ५२ कि॰मी॰² है, जिसका शहरी क्षेत्र अब १३० कि.मी² तक फैल चुका है। इसकी स्थिति पर है। इस शहर की औसत समुद्रतल से ऊंचाई १०१ मीटर है। यहां का मौसम शुष्क एवं गर्म है, जो अक्टूबर-दिसम्बर में वर्षा के कारण आर्द्र हो जाता है। ग्रीष्म काल में तापमान अधिकतम ४० डि. एवं न्यूनतम २६.३ डि. से. रहता है। शीतकाल में यह २९.६ तथा १८ डि.से. के बीच रहता है। औसत वार्षिक वर्षा ८५ से.मी. होती है। जनसाँख्यिकी भारत की २००१ की जनगणनुसार, मदुरई शहर की नगरपालिका सीमा के भीतर जनसंख्या ९२८,८६९ है, एवं शहरी क्षेत्र की जनसंख्या १,१९४,६६५ है। इसमें से ५१% पुरुष एवं ४९% स्त्रियां हैं। मदुरई की औसत साक्षरता दर ७९% है, जो राष्ट्रीय दर ५९.५% से कहीं ऊंची है। पुरुष दर ८४% एवं स्त्री दर ७४% है। शहर की १०% जनसंख्या ६ वर्ष से नीचे की है। शहर में प्रत्येक १००० पुरुषों पर ९६८ स्त्रियों की संख्या है। इतिहास right|thumb|वैगै नदी पर बांध पहले इसका नाम मधुरा या मधुरापुरी था। कतिपय शिलालेखों तथा ताम्रपत्रों से विदित होता है कि ११वीं शती तक यहाँ, बीच में कुछ समय को छोड़कर पांड्य राजवंश का शासन था। संगम-काल के कवि नक्कीरर ने ही सुंदरेश्वरर के कुछ अंश रचे थे- जो आज भी मंदिर के पारंपरिक उत्सवों पर आयोजित नाट्य होते हैं। मदुरई शहर का उत्थान दसवीं शताब्दी तक हुआ, जब इस पर चोल वंश के राजा का अधिकार हुआ। मदुरई की संपन्नता शताब्दी के आरंभिक भाग में कुछ कम स्तर पर फिर से वापस आई, फिर यह शहर विजयनगर साम्राज्य के अधीन हो गया और यहां नायक वंश के राजा आए, जिनमें सर्वप्रथम तिरुमल नायक था। पांड्य वंश के अंतिम राजा सुंदर पांड्य के समय मलिक काफूर ने मदुरा पर आक्रमण किया (१३११ ई)। १३७२ में कंपन उदैया ने इसपर अधिकार कर लिया और यह विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया गया। १५५९-६३ ई० तक नायक वंश के प्रतिष्ठाता विश्वनाथ ने राज्य का विस्तार किया। १६५९ में राजा तिरुमल की मृत्यु के बाद मदुरा राज्य की शक्ति क्षीण होनी लगी। १७४० में चाँद साहब के आक्रमण के बाद नायक वंश की सत्ता समाप्त हो गई। कुछ समय पश्चात् इसपर अंग्रेजों का शासन स्थापित हो गया। मूर्ति और मंदिर निर्माण के शिल्प की दृष्टि से मदुरा का विशेष महत्व है। मीनाक्षी और सुंदरेश्वर शिव के मंदिर प्राचीन भारतीय शिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। स्थापत्य thumb|150px|right|वैगै नदी का एक दृश्य मदुरई शहर मीनाक्षी सुंदरेश्वरर मंदिर को घेरे हुए आसपास बसा हुआ है। मंदिर के किनारे से एक दूसरे को घेरे हुए आयताकार सड़कें, महानगर की शहरी संरचना का भास देती हैं। पूरा शहर एक कमल के रूप में रचा हुआ है। भाषा मदुरई और निकटवर्ती क्षेत्रों में मुख्यतः तमिल भाषा ही बोली जाती है। मदुरई तमिल की बोली कोंगू तमिल, नेल्लई तमिल, रामनाड तमिल एवं चेन्नई तमिल से भिन्न है। तमिल के संग अन्य बोली जाने वाली भाषाएं हैं हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दु, सौराष्ट्र, मलयालम एवं कन्नड़, हालांकि उन सभी भाषाओं में यहां तमिल शब्द समा गए हैं। प्रमुख आकर्षण वंदीयुर मरियम्मन तेप्पाकुलम वंदीयुर मरियम्मन तेप्पाकुलम एक विशाल कुंड है। सरोवर के उत्तर में तमिलनाडु की ग्रामीण देवी मरियम्मन का मंदिर है। १६३६ में बना यह कुंड मदुरै का पत्थर से बना सबसे बड़ा कुंड है। इसका निर्माण राजा तिरुमलई नायक ने करवाया था। उनकी वर्षगांठ (जनवरी-फरवरी) पर यहां रंगबिरंगे फ्लोट फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है जिसमें सरोवर को रोशनी और दियों से सजाया जाता है। इस उत्सव में भाग लेने के लिए स्थानीय लोगों के अलावा बड़ी संख्या में सैलानी भी यहां आते हैं। तिरुमलई नायक पैलेस thumb|right|तिरुमलई नायक पैलेस तिरुमलई नायक पैलेस मदुरै का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। इसका निर्माण १६३६ में किया गया था। इटली के एक वास्तुकार ने राजा के लिए इसे बनाया था। राजा और उनका परिवार यहां रहते थे। स्वर्गविलास और रंगविलास महल के दो हिस्से हैं। इसके अलावा भी महल मे अनेक स्थान हैं जहां पर्यटकों को जाने की अनुमति है। इस महल में घूमने के लिए प्रवेश शुल्क देना पड़ता है। कहा जाता है कि ब्रिटिश राज में इस जगह का इस्तेमाल प्रशासनिक कार्यो के लिए किया जाता था। अब इसकी देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करता है और इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जा चुका है। शाम को यहां ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है जिसमें रोशनी और ध्वनि के माध्यम से राजा के जीवन और उनके मदुरै में शासन के बार में बताया जाता है। गांधी संग्रहालय thumb|right|गांधी संग्रहालय गांधी संग्रहालय रानी मंगम्मल के लगभग ३०० वर्ष पुराने महल में स्थित है। यह संग्रहालय देश के उन सात संग्रहालयों में से एक है जिनका निर्माण गांधी मेमोरियल ट्रस्ट ने करवाया था। यहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन और कार्यो को दर्शाया गया है। संग्रहालय में गांधीजी की किताबों और पत्रों, दक्षिण भारतीय ग्रामीण उद्योगों एवं हस्तशिल्प का सुंदर संग्रह देखा जा सकता है। इसे कुछ भागों के बांटा जा सकता है जैसे- प्रदर्शिनी, फोटो गैलरी, खादी, ग्रामीण उद्योग विभाग, ओपन एयर थिएटर और संग्रहालय। मीनाक्षी मंदिर right|thumb|मीनाक्षी मंदिर देवी मीनाक्षी को समर्पित मीनाक्षी मंदिर मदुरै की पहचान है। यह देश के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। यहां प्रतिवर्ष हजारों की संख्‍या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। 65 हजार वर्ग मीटर में फैले इस विशाल मंदिर को यहां शासन करने वाले विभिन्न वंशों ने विस्तार प्रदान किया। दक्षिण में स्थित इमारत सबसे ऊंची है जिसकी ऊंचाई १६० फीट है। इसका निर्माण १६वीं शताब्दी में किया गया था। मंदिर परिसर का सबसे प्रमुख आकर्षण हजार स्तंभों वाला कक्ष है जो सबसे बाहर की ओर स्थित है। दर्शन का समय: सुबह ५ बजे-दोपहर १३:३० बजे, शाम ४ बजे-रात ०९:३० बजे तिरुप्परनकुंद्रम भगवान मुरुगन के छ: निवास स्थानों में से एक तिरुप्परनकुंद्रम मदुरै से १० किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यहां साल भर भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। इसी स्थान पर भगवान मुरुगन का देवयानी के साथ विवाह हुआ था इसलिए यह स्थान शादी करने के लिए पवित्र माना जाता है। चट्टानों को काट कर बनाए गए इस मंदिर में भगवान गणपति, शिव, दुर्गा, विष्णु आदि के अलग से मंदिर भी बने हुए हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके सबसे भीतरी मंदिर को एक ही चट्टान से काटकर बनाया गया है। इस मंदिर की एक और विशेषता यहां के गुफा मंदिर हैं जिनमें तराशी गई भगवान की प्रतिमाएं समान दूरी पर बनाई गई हैं। उनकी यह समानता सभी को आकर्षित करती है। इन गुफाओं तक आने के लिए संकर अंधियारे रास्ते से होकर जाना पड़ता है। अजगर कोइल right|thumb|अजगर कोविल मदुरै शहर से २१ किलोमीटर दूर अजगर भगवान विष्णु का खूबसूरत मंदिर हे। यहां पर भगवान विष्णु को अजगर नाम से पुकारा जाता है। वे देवी मीनाक्षी के भाई थे। जब चित्रई माह में देवी का विवाह हुआ था तो अजगर शादी में शामिल होने के लिए यहां से मदुरै गए थे। भगवान सुब्रमण्यम के छ: निवासों में से एक पलामुधिरसोलक्षर अजगर कोइल के ऊपर चार किलोमीटर दूर है। पहाड़ी की चोटी पर नुबुरगंगई नामक झरना है जहां तीर्थयात्री स्नान करते हैं। निकटवर्ती स्थल परियार वन्यजीव अभयारण्य मदुरै से १५५ किलोमीटर दूर पेरियार वन्यजीव अभयारण्य है। मुख्य रूप से यह अभयारण्य भारतीय हाथियों के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है। अभयारण्य में एक मानव निर्मित झील है जहां हाथी, गौर और सांभर को पानी पीते देखा जा सकता है। अक्टूबर से जून यहां आने का सही समय होता है। रामेश्‍वरम thumb|रामेश्वरम- हिन्दू धर्म के चार धाम में से एक है। यह मंदिर हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। हिन्दू मान्यतानुसार एक हिंदू के लिए मुक्ति प्राप्ति की यात्रा बनारस में शुरु होती है और रामेश्‍वरम में खत्म होती है। हिंदू महाकाव्यों के अनुसार यहीं पर भगवान राम ने शिव की उपासना की थी। इसलिए वैष्णव और शैव दोनों के लिए यह स्थान महत्व रखता है। समुद्र के पूर्वी किनारे पर स्थित रामनाथस्वामी मंदिर अपने अद्भुत आकार और खूबसूरती से तराशे गए स्तंभों के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का गलियारा एशिया का सबसे बड़ा गलियारा है। इस मंदिर का निर्माण १२वीं शताब्दी के बाद के विभिन्न वंशों ने विभिन्न समय अवधियों के दौरान किया था। आज रामेश्‍वरम की पहचान पर्यटक स्थल के साथ-साथ दक्षिण भारत के प्रमुख समुद्री भोजन केंद्र के रूप में की जाती है। रामेश्‍वरम में एक भारत-नॉर्वे मछलीपालन परियोजना चलाई जा रही है जहां आधुनिक मछली उद्योग के विकास में सहायता की जाती है। कोडईकनाल thumb|कोडैकनाल झील यह दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्वतीय स्थल है। समुद्र तल से २१३० मीटर की ऊंचाई पर स्थित कोडईकनाल को कोडई नाम से भी पुकारा जाता है। पहाड़ों से घिरे इस स्थान पर पूरे वर्ष मौसम सुहाना बना रहता है। यहां अनेक प्रकार के फूल भी देखे जा सकते हैं। बारह साल में एक बार खिलने वाला कुरिंजी फूल यहां देखा जा सकता है। यहां के खूबसूरत झरने और झील पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। आवागमन thumb|एअर डिक्कन का एक विमान, मदुरई विमानक्षेत्र पर। वायु मार्ग मदुरै विमानक्षेत्र नियमित उड़ानों के जरिए चेन्नई, कालीकट, मुंबई और पांडिचेरी से जुड़ा हुआ है। रेल मार्ग मदुरै रेलवे स्टेशन शहर को चेन्नई और तिरुनेलवेली से जोड़ता है। यह दक्षिणी रेलवे का महत्वपूर्ण जंक्शन है। इन दो शहरों के अलावा भी यह देश के अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग मदुरै से चेन्नई, बंगलुरु, कोयंबटूर, कन्याकुमारी, रामेश्‍वरम, पांडिचेरी आदि दक्षिण भारतीय शहरों के लिए नियमित बसें चलती हैं। क्रय-विक्रय मदुरै अपने मंदिरों और ऐतिहासिक स्थलों के लिए ही नहीं बल्कि सूत और रेशम के लिए भी प्रसिद्ध है। इनका प्रमुख बाजार पुथु मंडपम में है। यह एक स्तंभ वाला हॉल मीनाक्षी मंदिर के प्रवेश द्वार के पास है। यह स्थान सूत की दुकानों के लिए प्रसिद्ध है। मदुरै की सनगुंडी साड़ी भी प्रसिद्धह हैं। यह साड़ी महिलाओं के बीच बहुत पसंद की जाती है। सजावट के लिए मदुरै से लकड़ी और पीतल से बनी सजावटी वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं। इन्हें भी देखें मदुरई ज़िला बाहरी कड़ियाँ मदुरई की एक चतुर्थ श्रेणी की छात्रा माइक्रोसॉफ्ट प्रमाणित व्यावसायिक परीक्षा (MCSE) उत्तीर्ण करने वाली सबसे छोटी प्रत्याशी बनी देखिए एन.डी.टी.वी पर मदुरई की एक ९ वर्षीय छात्रा ने माइक्रोसॉफ्ट प्रमाणित व्यावसायिक परीक्षा (MCSE) उत्तीर्ण किया - डिजिटल जर्नल पर मदुरई कामराज विश्वविद्यालय में स्मार्ट क्लासरूम बनाए जा रहे हैं आइ-मिंट अब मदुरई में भी- द हिन्दू पर मदुरई के होटल- ट्रैवल कार्पो. ऑफ इण्डिया मदुरई में होटल मदुरई विमानक्षेत्र मदुरई में रेस्तरां ऑनलाइन फिल्म टिकट बुकिंग बिग सिनेमाज़ गणेश की टिकट बुकिंग redbus.in/madurai कीझाकोविलकुड़ी में विदेशी पर्यटक पोंगल का आनंद लेते हुए मदर्स रेसिपीस पर मदुरई मदुरई सुधार हेतु ब्लॉग मदुरई शहर की डिजिटल मार्गदर्शिका द मदुरई मदुरई- संपन्नता का प्रवेशद्वार मदुरई से अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें सन्दर्भ श्रेणी:मदुरई ज़िला श्रेणी:तमिल नाडु के शहर श्रेणी:मदुरई ज़िले के नगर * श्रेणी:हिन्दू पवित्र शहर श्रेणी:मदुरई रेलवे मंडल
लद्दाख़
https://hi.wikipedia.org/wiki/लद्दाख़
{{Infobox settlement | name = लद्दाख़ | official_name = | native_name = ལ་དྭགས | native_name_lang = | other_name = | settlement_type = केन्द्र-शासित प्रदेश | image_s = | image_caption = | image_flag = Flag of India.svg | image_seal = Flag of Ladakh, India.svg | seal_alt = Flag of Ladakh, India.svg | nickname = | image_map = IN-LA.svg | map_caption                     = भारत में लद्दाख | map_alt = | pushpin_map = | pushpin_label_position = | pushpin_map_alt = | pushpin_map_caption = | coordinates = | image = J,K and L - Indian Union Territories.jpg | image_caption = लद्दाख केन्द्र-शासित प्रदेश (भारत) | subdivision_type = देश | subdivision_name = भारत | subdivision_type1 = | subdivision_type2 = | subdivision_name1 = | subdivision_name2 = | established_title = केन्द्र-शासित प्रदेश | established_date = 31 अक्तूबर 2019| seat_type = राजधानी | seat = लेह। लद्दाख का कुल क्षेत्रफल 1,66,698 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें से 59,146 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र भारत के नियंत्रण में है।बाकि क्षेत्र पाकिस्तान और चीन के अवैध कब्जे में है। | parts_type = ज़िले | parts_style = para | p1 = 2 लेह कारगिल | founder = | named_for = | government_type = | governing_body = लद्दाख प्रशासन उपराज्यपाल -बी डी मिश्रा | leader_title = उपराज्यपाल | leader_name ब्रिगेडियर (रिटायर्ड)बी डी मिश्रा] | leader_title1 = सांसद | leader_name1 = जमयांग सेरिंग नामग्याल (भारतीय जनता पार्टी) | leader_title2 = उच्च न्यायालय | leader_name2 = जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय | unit_pref = Metric | area_footnotes = | area_rank = | area_total_km2 = 59146 | elevation_footnotes = | elevation_m = | elevation_max_footnotes = | elevation_max_m = 7,742 | elevation_max_ft = | elevation_max_point = साल्तोरो कांगरी | elevation_max_rank = | elevation_min_footnotes = | elevation_min_m = 2550 | elevation_min_ft = | elevation_min_point = सिन्धु नदी | elevation_min_rank = | population_total = 274289 | population_as_of = 2011 | population_rank = | population_density_km2 = auto | population_demonym = लद्दाख़ी | population_footnotes = | demographics_type1 = भाषाएँ | demographics1_title1 = आधिकारिक | demographics1_info1 = हिन्दी, लद्दाख़ी, तिब्बती | timezone1 = भामस | utc_offset1 = +5:30 | postal_code_type = | postal_code = लेह: 194101; कर्गिल: 194103 | registration_plate = LA | blank1_name_sec1 = मुख्य नगर | blank1_info_sec1 = लेह, कर्गिल | blank3_name_sec1 = | blank3_info_sec1 = | website = https://ladakh.nic.in/ | footnotes = }} लद्दाख़ (तिब्बती लिपि: ལ་དྭགས; "ऊँचे दर्रों की भूमि") भारत का एक केन्द्र शासित प्रदेश है, जो उत्तर में काराकोरम पर्वत और दक्षिण में हिमालय पर्वत के बीच में स्थित है। यह भारत के सबसे विरल जनसंख्या वाले भागों में से एक है। भारत गिलगित बलतिस्तान और अक्साई चिन को भी इसका भाग मानता है, जो वर्तमान में क्रमशः पाकिस्तान और चीन के अवैध कब्जे में है। यह पूर्व में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, दक्षिण में भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में जम्मू और कश्मीर केन्द्र शासित प्रदेश और पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बल्तिस्तान से घिरा है। सुदूर उत्तर में क़ाराक़ोरम दर्रा पर शिंजियांग। यह काराकोरम रेंज में सियाचिन ग्लेशियर से लेकर उत्तर में दक्षिण में मुख्य महान हिमालय तक फैला हुआ है। पूर्वी छोर, जिसमें निर्जन अक्साई चिन मैदान शामिल हैं, भारत सरकार द्वारा लद्दाख के हिस्से के रूप में दावा किया जाता है, और 1962 से चीनी नियन्त्रण में है। अगस्त 2019 में, भारत की संसद ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 पारित किया जिसके द्वारा 31 अक्टूबर 2019 को लद्दाख एक केन्द्र शासित प्रदेश बन गया। लद्दाख क्षेत्रफल में भारत का सबसे बड़ा केन्द्र शासित प्रदेश है। केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख के अन्तर्गत पाक अधिकृत गिलगित बलतिस्तान ,चीन अधिकृत अक्साई चिन और शक्सगम घाटी का क्षेत्र भी शामिल है । सन 1963 में पाकिस्तान द्वारा 5180 वर्ग किलोमीटर का शक्सगम घाटी क्षेत्र चीन को उपहार में दिया गया ,जो लद्दाख का हिस्सा है । इसके उत्तर में चीन तथा पूर्व में तिब्बत की सीमाएँ हैं। सीमावर्ती स्थिति के कारण सामरिक दृष्टि से इसका बड़ा महत्व है। लद्दाख, उत्तर-पश्चिमी हिमालय के पर्वतीय क्रम में आता है, जहाँ का अधिकांश धरातल कृषि योग्य नहीं है। यहाँ की जलवायु अत्यन्त शुष्क एवं कठोर है। वार्षिक वृष्टि 3.2 इंच तथा वार्षिक औसत ताप 5 डिग्री सें. है। नदियाँ दिन में कुछ ही समय प्रवाहित हो पाती हैं, शेष समय में बर्फ जम जाती है। सिंधु मुख्य नदी है। केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख की राजधानी एवं प्रमुख नगर लेह है, जिसके उत्तर में कराकोरम पर्वत तथा दर्रा है। अधिकांश जनसंख्या घुमक्कड़ है, जिसकी प्रकृति, संस्कार एवं रहन-सहन तिब्बत से प्रभावित है। पूर्वी भाग में अधिकांश लोग बौद्ध हैं तथा पश्चिमी भाग में अधिकांश लोग मुसलमान हैं। बौद्धों का सबसे बड़ा धार्मिक संस्थान है। इतिहास thumb|left|ए. एच. फ्रेंक, 1907 द्वारा वर्णित पश्चिमी तिब्बत का इतिहास के अनुसार न्यिमागॉन (975 ई. -1000 ई.) के शासनकाल में लद्दाख का विस्तार thumb|left| 1560 से 1600 ई. के लगभग राजा सेवांग रनाम रग्याल 1 और राजा जामयांग रनाम रग्याल का साम्राज्य thumb|फ्यांग गोम्पा, लद्दाख, नेपाल thumb|हेमिस मठ, सन 1870 में लद्दाख में कई स्थानों पर मिले शिलालेखों से पता चलता है कि यह स्थान नव-पाषाणकाल से स्थापित है। लद्दाख के प्राचीन निवासी मोन और दार्द लोगों का वर्णन हेरोडोट्स, नोर्चुस, मेगस्थनीज, प्लीनी, टॉलमी और नेपाली पुराणों ने भी किया है। पहली शताब्दी के आसपास लद्दाख कुषाण राज्य का हिस्सा था। बौद्ध धर्म दूसरी शताब्दी में कश्मीर से लद्दाख में फैला। उस समय पूर्वी लद्दाख और पश्चिमी तिब्बत में परम्परागत बोन धर्म था। सातवीं शताब्दी में बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने भी इस क्षेत्र का वर्णन किया है। आठवीं शताब्दी में लद्दाख पूर्व से तिब्बती प्रभाव और मध्य एशिया से चीनी प्रभाव के टकराव का केन्द्र बन गया। इस प्रकार इसका आधिपत्य बारी-बारी से चीन और तिब्बत के हाथों में आता रहा। सन 842 में एक तिब्बती शाही प्रतिनिधि न्यिमागोन ने तिब्बती साम्राज्य के विघटन के बाद लद्दाख को कब्जे में कर लिया और पृथक लद्दाखी राजवंश की स्थापना की। इस दौरान लद्दाख में मुख्यतः तिब्बती जनसंख्या का आगमन हुआ। राजवंश ने उत्तर-पश्चिम भारत खासकर कश्मीर से धार्मिक विचारों और बौद्ध धर्म का खूब प्रचार किया। इसके अलावा तिब्बत से आये लोगों ने भी बौद्ध धर्म को फैलाया। और पश्चिम में तिब्बतियों का सामना एक विदेशी राज्य शुंग शांग से हुआ जिसकी राजधानी क्युंगलुंग थी। कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील इस राज्य के भाग थे। इसकी भाषा हमें प्रारम्भिक आलेखों से पता चलती है। यह अभी भी अज्ञात है, लेकिन यह इण्डो-यूरोपियन लगती है। ... भौगोलिक रूप से यह राज्य भ्रत व कश्मीर दोनों के रास्ते नेपाल से मिलता है। कैलाश नेपालीयों के लिये पवित्र स्थान है। वे यहां की तीर्थयात्रा पर आते हैं। कोई नहीं जानता कि वे ऐसा कब से कर रहे हैं, लेकिन वे तब से पहले से आते हैं जब शांगशुंग तिब्बत से आजाद था। शांगशुंग कितने समय तक उत्तर, पूर्व और पश्चिम से अलग रहा, यह नहीं मालूम।... हमारे पास यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि पवित्र कैलाश पर्वत के कारण यहां हिन्दू धर्म से मिलता-जुलता धर्म रहा होगा। सन 950 में, काबुल के हिन्दू राजा के पास विष्णु जी की तीन सिर वाली एक मूर्ति थी जिसे उसने भोट राजा से प्राप्त हुई बताया था। 17वीं शताब्दी में लद्दाख का एक कालक्रम बनाया गया, जिसका नाम ला ड्वाग्स रग्याल राब्स था। इसका अर्थ होता है लद्दाखी राजाओं का शाही कालक्रम। इसमें लिखा है कि इसकी सीमाएं परम्परागत और प्रसिद्ध हैं। कालक्रम का प्रथम भाग 1610 से 1640 के मध्य लिखा गया और दूसरा भाग 17वीं शताब्दी के अन्त में। इसे ए. एच. फ्रैंक ने अंग्रेजी में अनुवादित किया और “नेपाली प्राचीन तिब्बत” के नाम से 1926 में कलकत्ता में प्रकाशित कराया। इसके दूसरे खण्ड में लिखा है कि राजा साइकिड-इडा-नगीमा-गोन ने राज्य को अपने तीन पुत्रों में विभक्त कर दिया और पुत्रों ने राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखा। पुस्तक के अवलोकन से पता चलता है कि रुडोख लद्दाख का अभिन्न भाग था। परिवार के विभाजन के बाद भी रुडोख लद्दाख का हिस्सा बना रहा। इसमें मार्युल का अर्थ है निचली धरती, जो उस समय लद्दाख का ही हिस्सा थी। दसवीं शताब्दी में भी रुडोख और देमचोक दोनों लद्दाख के हिस्से थे। 13वीं शताब्दी में जब दक्षिण एशिया में इस्लामी प्रभाव बढ रहा था, तो लद्दाख ने धार्मिक मामलों में तिब्बत से मार्गदर्शन लिया। लगभग दो शताब्दियों बाद सन 1600 तक ऐसा ही रहा। उसके बाद पड़ोसी मुस्लिम राज्यों के हमलों से यहां आंशिक धर्मान्तरण हुआ। thumb|ठिक्से मठ, लद्दाख राजा ल्हाचेन भगान ने लद्दाख को पुनर्संगठित और शक्तिशाली बनाया व नामग्याल वंश की नींव डाली जो वंश आज तक जीवित है। नामग्याल राजाओं ने अधिकतर मध्य एशियाई हमलावरों को खदेडा और अपने राज्य को कुछ समय के लिये नेपाल तक भी बढा लिया। हमलावरों ने क्षेत्र को धर्मान्तरित करने की खूब कोशिश की और बौद्ध कलाकृतियों को तोडा फोडा। सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में कलाकृतियों का पुनर्निर्माण हुआ और राज्य को जांस्कर व स्पीति में फैलाया। फिर भी, मुगलों के हाथों हारने के बावजूद भी लद्दाख ने अपनी स्वतन्त्रता बरकरार रखी। मुगल पहले ही कश्मीर व बाल्टिस्तान पर कब्जा कर चुके थे। सन 1594 में बाल्टी राजा अली शेर खां अंचन के नेतृत्व में बाल्टिस्तान ने नामग्याल वंश वाले लद्दाख को हराया। कहा जाता है कि बाल्टी सेना सफलता से पागल होकर पुरांग तक जा पहुंची थी जो मानसरोवर झील की घाटी में स्थित है। लद्दाख के राजा ने शान्ति के लिये विनती की और चूंकि अली शेर खां की इच्छा लद्दाख पर कब्जा करने की नहीं थी, इसलिये उसने शर्त रखी कि गनोख और गगरा नाला गांव स्कार्दू को सौंप दिये जायें और लद्दाखी राजा हर साल कुछ धनराशि भी भेंट करे। यह राशि लामायुरू के गोम्पा तब तक दी जाती रही जब तक कि डोगराओं ने उस पर अधिकार नहीं कर लिया। सत्रहवीं शताब्दी के आखिर में लद्दाख ने किसी कारण से तिब्बत की लडाई में भूटान का पक्ष लिया। नतीजा यह हुआ कि तिब्बत ने लद्दाख पर भी आक्रमण कर दिया। यह घटना 1679-1684 का तिब्बत-लद्दाख-मुगल युद्ध कही जाती है। तब कश्मीर ने इस शर्त पर लद्दाख का साथ दिया कि लेह में एक मस्जिद बनाई जाये और लद्दाखी राजा इस्लाम कुबूल कर ले। 1684 में तिंगमोसगंज की सन्धि हुई जिससे तिब्बत और लद्दाख का युद्ध समाप्त हो गया। 1834 में डोगरा राजा गुलाब सिंह के जनरल जोरावर सिंह ने लद्दाख पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया। 1842 में एक विद्रोह हुआ जिसे कुचल दिया गया तथा लद्दाख को जम्मू कश्मीर के डोगरा राज्य में विलीन कर लिया गया। नामग्याल परिवार को स्टोक की नाममात्र की जागीर दे दी गई। 1850 के दशक में लद्दाख में यूरोपीय प्रभाव बढा और फिर बढता ही गया। भूगोलवेत्ता, खोजी और पर्यटक लद्दाख आने शुरू हो गये। 1885 में लेह मोरावियन चर्च के एक मिशन का मुख्यालय बन गया। 1947 में भारत विभाजन के समय डोगरा राजा हरिसिंह ने जम्मू कश्मीर को भारत में विलय की मंजूरी दे दी। पाकिस्तानी घुसपैठी लद्दाख पहुंचे और उन्हें भगाने के लिये सैनिक अभियान चलाना पडा। युद्ध के समय सेना ने सोनमर्ग से जोजीला दर्री पर टैंकों की सहायता से कब्जा किये रखा। सेना आगे बढी और द्रास, कारगिल व लद्दाख को घुसपैठियों से आजाद करा लिया गया। 1949 में चीन ने नुब्रा घाटी और जिनजिआंग के बीच प्राचीन व्यापार मार्ग को बन्द कर दिया। 1955 में चीन ने जिनजिआंग व तिब्बत को जोदने के लिये इस इलाके में सडक बनानी शुरू की। उसने पाकिस्तान से जुडने के लिये कराकोरम हाईवे भी बनाया। भारत ने भी इसी दौरान श्रीनगर-लेह सडक बनाई जिससे श्रीनगर और लेह के बीच की दूरी सोलह दिनों से घटकर दो दिन रह गई। हालांकि यह सडक जाडों में भारी हिमपात के कारण बन्द रहती है। जोजीला दर्रे के आरपार 6.5 किलोमीटर लम्बी एक सुरंग का प्रस्ताव है जिससे यह मार्ग जाडों में भी खुला रहेगा। पूरा जम्मू कश्मीर राज्य भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच युद्ध का मुद्दा रहता है। कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच 1947, 1965 और 1971 में युद्ध हुए और 1999 में तो यहां परमाणु युद्ध तक का खतरा हो गया था। 1999 में जो कारगिल युद्ध हुआ उसे भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। इसकी वजह पश्चिमी लद्दाख मुख्यतः कारगिल, द्रास, मश्कोह घाटी, बटालिक और चोरबाटला में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ थी। इससे श्रीनगर-लेह मार्ग की सारी गतिविधियां उनके नियन्त्रण में हो गईं। भारतीय सेना ने आर्टिलरी और वायुसेना के सहयोग से पाकिस्तानी सेना को लाइन ऑफ कण्ट्रोल के उस तरफ खदेडने के लिये व्यापक अभियान चलाया। right|thumb|ज़ोजिला दर्रा ‎. 1984 से लद्दाख के उत्तर-पूर्व सिरे पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की एक और वजह बन गया। यह विश्व का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। यहां 1972 में हुए शिमला समझौते में पॉइण्ट 9842 से आगे सीमा निर्धारित नहीं की गई थी। यहां दोनों देशों में साल्टोरो रिज पर कब्जा करने की होड रहती है। कुछ सामरिक महत्व के स्थानों पर दोनों देशों ने नियन्त्रण कर रखा है, फिर भी भारत इस मामले में फायदे में है। 1979 में लद्दाख को कारगिल व लेह जिलों में बांटा गया। 1989 में बौद्धों और मुसलमानों के बीच दंगे हुए। 1990 के ही दशक में लद्दाख को कश्मीरी शासन से छुटकारे के लिये लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेण्ट काउंसिल का गठन हुआ और अंततः ५ अगस्त २०१९ को यह भारत का नौवाँ केन्द्र शासित प्रदेश बन गया। NOTE:'तिबतन सिविलाइजेशन'' के लेखक रोल्फ अल्फ्रेड स्टेन के अनुसार शांग शुंग का इलाका ऐतिहासिकि रूप से तिब्बत का भाग नहीं था। यह तिब्बतियों के लिये विदेशी भूमि था। उनके अनुसार: भूगोल thumb|लद्दाख क्षेत्र उच्च पर्वतीय है। thumb||मध्य लद्दाख का मानचित्र thumb|right|लद्दाख का भू-दृश्य लद्दाख जम्मू कश्मीर राज्य के पूर्व में स्थित एक ऊंचा पठार है जिसका अधिकतर हिस्सा 3000 मीटर (9800 फीट) से ऊंचा है। यह हिमालय और कराकोरम पर्वत श्रृंखला और सिन्धु नदी की ऊपरी घाटी में फैला है। इसमें बाल्टिस्तान (वर्तमान में पाकिस्तान अधिकृत लद्दाख अर्थात् गिलगित बाल्टिस्तान), सिन्धु घाटी, जांस्कर, दक्षिण में लाहौल और स्पीति, पूर्व में रुडोक व गुले, अक्साईचिन और उत्तर में खारदुंगला के पार नुब्रा घाटी शामिल हैं। लद्दाख की सीमाएं पूर्व में तिब्बत से, दक्षिण में लाहौल और स्पीति से, पश्चिम में जम्मू कश्मीर व बाल्टिस्तान से और सुदूर उत्तर में कराकोरम दर्रे के उस तरफ जिनजियांग के ट्रांस कुनलुन क्षेत्र से मिलती हैं। विभाजन से पहले बाल्टिस्तान (अब पाकिस्तानी नियन्त्रण में) लद्दाख का एक जिला था। स्कार्दू लद्दाख की शीतकालीन राजधानी और लेह ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी। इस क्षेत्र में 45 मिलियन वर्ष पहले भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के दबाव से पर्वतों का निर्माण हुआ। दबाव बढता गया और इस क्षेत्र में इससे भूकम्प भी आते रहे। जोजीला के पास पर्वत चोटियां 5000 मीटर से शुरू होकर दक्षिण-पूर्व की तरफ ऊंची होती जाती हैं और नुनकुन तक इनकी ऊंचाई 7000 मीटर तक पहुंच गई है। सुरु और जांस्कर घाटी शानदार द्रोणिका का निर्माण करती हैं। सूरू घाटी में रांगडम सबसे ऊंचा आवासीय स्थान है। इसके बाद पेंसी-ला तक यह उठती ही चली जाती है। पेंसी-ला जांस्कर का प्रवेश द्वार है। कारगिल जोकि सुरू घाटी का एकमात्र शहर है, लद्दाख का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। यह 1947 से पहले कारवां व्यापार का मुख्य स्थान था। यहां से श्रीनगर, पेह, पदुम और स्कार्दू लगभग बराबर दूरी पर स्थित हैं। इस पूरे क्षेत्र में भारी बर्फबारी होती है। पेंसी-ला केवल जून से मध्य अक्टूबर तक ही खुला रहता है। द्रास और मश्कोह घाटी लद्दाख का पश्चिमी सिरा बनाते हैं। सिन्धु नदी लद्दाख की जीवनरेखा है। ज्यादातर ऐतिहासिक और वर्तमान स्थान जैसे कि लेह, शे, बासगो, तिंगमोसगंग सिन्धु किनारे ही बसे हैं। 1947 के भारत-पाक युद्ध के बाद सिन्धु का मात्र यही हिस्सा लद्दाख से बहता है। सिन्धु हिन्दू धर्म में एक पूजनीय नदी है, जो केवल लद्दाख में ही बहती है। सियाचिन ग्लेशियर पूर्वी कराकोरम रेंज में स्थित है जो भारत पाकिस्तान की विवादित सीमा बनाता है। कराकोरम रेंज भारतीय महाद्वीप और चीन के मध्य एक शानदार जलविभाजक बनाती है। इसे तीसरा ध्रुव भी कहा जाता है। 70 किलोमीटर लम्बा यह ग्लेशियर कराकोरम में सबसे लम्बा है और धरती पर ध्रुवों को छोडकर दूसरा सबसे लम्बा ग्लेशियर है। यह अपने मुख पर 3620 मीटर से लेकर चीन सीमा पर स्थित इन्दिरा पॉइण्ट पर 5753 मीटर ऊंचा है। इसके पास के दर्रे और कुछ ऊंची चोटियां दोनों देशों के कब्जे में हैं। भारत में कराकोरम रेंज की सबसे पूर्व में स्थित सासर कांगडी सबसे ऊंची चोटी है। इसकी ऊंचाई 7672 मीटर है। लद्दाख में 857 वर्ग किमी लंबी सीमा में से केवल 368 वर्ग किमी अंतरराष्ट्रीय सीमा है, और शेष 489 वर्ग किमी वास्तविक नियंत्रण रेखा है। thumb|लेह का औसत मासिक तापमान लद्दाख रेंज में कोई प्रमुख चोटी नहीं है। पंगोंग रेंज चुशुल के पास से शुरू होकर पंगोंग झील के साथ साथ करीब 100 किलोमीटर तक लद्दाख रेंज के समानान्तर चलती है। इसमें श्योक नदी और नुब्रा नदी की घाटियां भी शामिल हैं जिसे नुब्रा घाटी कहते हैं। कराकोरम रेंज लद्दाख में उतनी ऊंची नहीं है जितनी बाल्टिस्तान में। कुछ ऊंची चोटियां इस प्रकार हैं- अप्सरासास समूह (सर्वोच्च चोटी 7245 मीटर), रीमो समूह (सर्वोच्च चोटी 7385 मीटर), तेराम कांगडी ग्रुप (सर्वोच्च चोटी 7464 मीटर), ममोस्टोंग कांगडी 7526 मीटर और सिंघी कांगडी 7751 मीटर। कराकोरम के उत्तर में कुनलुन है। इस प्रकार, लेह और मध्य एशिया के बीच में तीन श्रंखलाएं हैं- लद्दाख श्रंखला, कराकोरम और कुनलुन। फिर भी लेह और यारकन्द के बीच एक व्यापार मार्ग स्थापित था। लद्दाख एक उच्च अक्षांसीय मरुस्थल है क्योंकि हिमालय मानसून को रोक देता है। पानी का मुख्य स्रोत सर्दियों में हुई बर्फबारी है। पिछले दिनों आई बाढ (2010 में) के कारण असामान्य बारिश और पिघलते ग्लेशियर हैं जिसके लिये निश्चित ही ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार है। द्रास, सूरू और जांस्कर में भारी बर्फबारी होती है और ये कई महीनों तक देश के बाकी हिस्सों से कटे रहते हैं। गर्मियां छोटी होती हैं यद्यपि फिर भी कुछ पैदावार हो जाती है। गर्मियां शुष्क और खुशनुमा होती हैं। गर्मियों में तापमान 3 से 35 डिग्री तक तथा सर्दियों में -20 से -35 डिग्री तक पहुंच जाता है। भूभाग का वर्गीकरण जिले का नामज़िला मुख्यालयक्षेत्रफल(किमी²)जनसंख्या 2001 जनगणनाजनसंख्या 2011 जनगणनाकारगिल जिलाकारगिललेह जिलालेहकुल जनसांख्यिकी बौद्ध- 64.56 % हिन्दू- 17.14 % मुसलमान- 14.28 % सिख- 2.36 % इसाई- 0.49 % अन्य- 1.48 % जीव-जन्तु एवं वनस्पतियाँ यह क्षेत्र शुष्क होने के कारण वनस्पति विहीन है। यहां जानवरों के चरने के लिए कहीं-कहीं पर ही घास एवं छोटी-छोटी झाड़ियां मिलती है। घाटी में सरपत,विलो एवं पॉपलर के उपवन देखे जा सकते हैं। ग्रीष्म ऋतु में सेब,खुबानी एवं अखरोट जैसे पेड़ पल्लवित होते हैं। लद्दाख में पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां नजर आती हैं, इनमें रॉबिन, रेड स्टार्ट,तिब्बती स्नोकोक, रेवेन यहां खूब पाए जाने वाले सामान्य पक्षी है। लद्दाख के पशुओं में जंगली बकरी, जंगली भेड़ एवं याक,विशेष प्रकार के कुत्ते,आदि पाले जाते हैं।इन पशुओं को दूध,मांस,खाल प्राप्त करने के लिए पाला जाता है। टीका-टिप्पणी इन्हें भी देखें लद्दाख के पर्यटन स्थल अक्साई चीन तिब्बत जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, २०१९ लेह भारत का राजनीतिक एकीकरण सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ लद्दाख की सामाजिक सांस्कृतिक यात्रा सीधे-सादे लोगों की धरती है लद्दाख श्रेणी:भारत के केन्द्र शासित प्रदेश श्रेणी:लद्दाख़
शिमोगा
https://hi.wikipedia.org/wiki/शिमोगा
शिमोगा (Shimoga), जिसका आधिकारिक नाम शिवमोग्गा (Shivamogga) है, भारत के कर्नाटक राज्य के शिमोगा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है और तुंगा नदी के किनारे मलेनाडु क्षेत्र में बसा हुआ है। इसे पश्चिमी घाट का द्वार माना जाता है। शिमोगा समुद्रतल से 569 मीटर की ऊँचाई पर है और चारों ओर हरे-भरे धान के क्षेत्र और नारियल के वृक्षों के समूह हैं।"Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012394"The Rough Guide to South India and Kerala," Rough Guides UK, 2017, ISBN 9780241332894 इन्हें भी देखें तुंगा नदी मलेनाडु शिमोगा ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:कर्नाटक के शहर श्रेणी:शिमोगा ज़िला श्रेणी:शिमोगा ज़िले के नगर *
पावापुरी
https://hi.wikipedia.org/wiki/पावापुरी
पावापुरी (Pawapuri), जिसे पावा (Pawa) भी कहा जाता है, भारत के बिहार राज्य के नालंदा ज़िले जिले में राजगीर और बोधगया के समीप स्थित एक स्थान है। यह जैन धर्म के मतावलंबियो के लिये एक अत्यंत पवित्र शहर है भगवान महावीर को यहीं मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। यहाँ के जलमंदिर की शोभा देखते ही बनती है। संपूर्ण शहर कैमूर की पहाड़ी पर बसा हुआ है।"Bihar Tourism: Retrospect and Prospect ," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999"Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810 प्राचीन नाम 13वीं शती ई॰ में जिनप्रभसूरीजी ने अपने ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प रूप में इसका प्राचीन नाम अपापा बताया है। पावापुरी का अभिज्ञान बिहार शरीफ रेलवे स्टेशन (बिहार) से 9 मील पर स्थित पावा नामक स्थान से किया गया है। यह स्थान राजगृह से दस मील दूर है। भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण का सूचक एक स्तूप अभी तक यहाँ खंडहर के रूप में स्थित है। स्तूप से प्राप्त ईटें राजगृह के खंडहरों की ईंटों से मिलती-जुलती हैं। जिससे दोनों स्थानों की समकालीनता सिद्ध होती है। कनिंघम के मत में जिसका आधार शायद बुद्धचरित[2] में कुशीनगर के ठीक पूर्व की ओर पावापुरी की स्थिति का उल्लेख है, कसिया जो प्राचीन कुशीनगर के नाम से विख्यात है, से 12 मील दूर पदरौना नामक स्थान ही पावा है। जहाँ गौतम बुद्ध के समय मल्ल-क्षत्रियों की राजधानी थी। जैन मान्यताएं भगवान महावीर का मोक्ष 72 वर्ष की आयु में हुआ था। बौद्ध मान्यताएं जीवन के अंतिम समय में तथागत ने पावापुरी में ठहरकर चुंड का सूकर-माद्दव नाम का भोजन स्वीकार किया था। जिसके कारण अतिसार हो जाने से उनकी मृत्यु कुशीनगर पहुँचने पर हो गई थी। फ़ाज़िलपुर कनिंघम ने पावा का अभिज्ञान कसिया के दक्षिण पूर्व में 10 मील पर स्थित फ़ाज़िलपुर नामक ग्राम से किया है। जैन ग्रंथ कल्पसूत्र के अनुसार महावीर ने पावा में एक वर्ष बिताया था। यहीं उन्होंने अपना प्रथम धर्म-प्रवचन किया था, इसी कारण इस नगरी को जैन संम्प्रदाय का सारनाथ माना जाता है। महावीर स्वामी द्वारा जैन संघ की स्थापना पावापुरी में ही की गई थी। फाजिलपुर वर्तमान में फाजिलनगर है जिसे पावा नगर भी कहते हैं। यह स्थान उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जनपद से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर भगवान महावीर का एक मंदिर भी है। पर्यटन thumb|280px|पावापुरी में स्थित जैन मंदिर यहाँ कमल तालाब के बीच जल मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। समोशरण मंदिर, मोक्ष मंदिर और नया मन्दिर भी दर्शनीय हैं। इन्हें भी देखें बिहार जैन मंदिर सन्दर्भ श्रेणी:नालंदा जिला श्रेणी:बिहार के गाँव श्रेणी:नालंदा ज़िले के गाँव श्रेणी:जैन तीर्थ
पुरी
https://hi.wikipedia.org/wiki/पुरी
thumb|280px|नरेन्द्र तीर्थ सरोवर thumb|280px|स्नान यात्रा में मूर्तियाँ पुरी (Puri) भारत के ओड़िशा राज्य के पुरी ज़िले में बंगाल की खाड़ी से तटस्थ एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। पुरी भारत के चार धाम में से एक है और यहाँ 12वीं शताब्दी के जगन्नाथ मंदिर स्थित होने के कारण इसे श्री जगन्नाथ धाम भी कहा जाता है।"Orissa reference: glimpses of Orissa," Sambit Prakash Dash, TechnoCAD Systems, 2001"The Orissa Gazette," Orissa (India), 1964"Lonely Planet India," Abigail Blasi et al, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787011991 विवरण भारत के चार पवित्रतम स्थानों में से एक है पुरी, जहाँ समुद्र इस शहर के पांव धोती है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति यहां तीन दिन और तीन रात ठहर जाए तो वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्ति पा लेता है। पुरी, भगवान जगन्नाथ (संपूर्ण विश्व के भगवान), सुभद्रा और बलभद्र की पवित्र नगरी है, हिंदुओं के पवित्र चार धामों में से एक पुरी संभवत: एक ऐसा स्थान है जहां समुद्र के आनंद के साथ-साथ यहां के धार्मिक तटों और 'दर्शन' की धार्मिक भावना के साथ कुछ धार्मिक स्थलों का आनंद भी लिया जा सकता है। पुरी एक ऐसा स्थान है जिसे हजारों वर्षों से कई नामों - नीलगिरी, नीलाद्रि, नीलाचल, पुरुषोत्तम, शंखक्षेत्र, श्रीक्षेत्र, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथ पुरी - से जाना जाता है। पुरी में दो महाशक्तियों का प्रभुत्व है, एक भगवान द्वारा सृजित है और दूसरी मनुष्य द्वारा सृजित है। पुरी मूलरूप से भील शासकों द्वारा शासित क्षेत्र था , सरदार विश्वासु भील जिन्हें , सदियों पहले भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति प्राप्त हुई थी। स्मारक एवं दर्शनीय स्थल जगन्नाथ मंदिर thumb|280px|पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर यह 65 मी. ऊंचा मंदिर पुरी के सबसे शानदार स्मारकों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोड़गंग ने अपनी राजधानी को दक्षिणी उड़ीसा से मध्य उड़ीसा में स्थानांतरित करने की खुशी में करवाया था। यह मंदिर नीलगिरी पहाड़ी के आंगन में बना है। चारों ओर से 20 मी. ऊंची दीवार से घिरे इस मंदिर में कई छोट-छोटे मंदिर बने हैं। मंदिर के शेष भाग में पारंपरिक तरीके से बना सहन, गुफा, पूजा-कक्ष और नृत्य के लिए बना खंबों वाला एक हॉल है। इस मंदिर के विषय में वास्तव में यह एक आश्चर्यजनक सत्य है कि यहां जाति को लेकर कभी भी मतभेद नहीं रहे हैं। सड़क के एक छोर पर गुंडिचा मंदिर के साथ ही भगवान जगन्नाथ का ग्रीष्मकालीन मंदिर है। यह मंदिर ग्रांड रोड के अंत में चार दीवारी के भीतर एक बाग में बना है। यहां एक सप्ताह के लिए मूर्ति को एक साधारण सिंहासन पर विराजमान कराया जाता है। भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर की भांति इस मंदिर में भी गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। उन्हें मंदिर परिसर के बाहर से ही दर्शन करने पड़ते हैं। यहां बड़ा प्रसाद भंडार है। बालीघई बीच पुरी से 8 कि॰मी॰ दूर नुआनई नदी के मुहाने पर बालीघई बीच, एक प्रसिद्ध पिकनिक-स्पॉट है, यह चारों ओर कॉसरीना पेड़ों से घिरा है। सत्यवादी (साक्षीगोपाल) - भगवान साक्षीगोपाल का मंदिर पुरी से केवल 20 कि॰मी॰ की दूरी पर है। केवल 'अनTला नवमी' के दिन यहां श्री राधा जी के पवित्र पैरों के दर्शन किए जा सकते हैं। बड़ा डांडा यहाँ का शॉपिंग का एक आदर्श स्थान है। पर्व हिन्दू नव वर्ष हिन्दू नव वर्ष की खुशी में यहां चंदन यात्रा निकाली की जाती है। जून माह की पूर्णिमासी (ज्येष्ठ) को यहां स्नान यात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ को विधि-विधान से स्नान कराया जाता है। इस दौरान जनता मूल मूर्तियों के दर्शन करती है। झुला यात्रा के दौरान विशाल शोभा यात्रा के रूप में 21 दिनों के लिए मूर्तियों के प्रतिरूप को नर्मदा टैंक में सुंदर ढंग से सजी बोटों में निकाला जाता है। और, वस्तुत:, पूरे भारतवर्ष और विश्व के पर्यटकों के लिए रथयात्रा आकर्षण का प्रमुख केंद्र है, यह यात्रा जून माह में आयोजित होती है-जो पुरी यात्रा केलिए सर्वश्रेष्ठ समय है। भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र को वार्षिक अवकाश पर मुख्य मंदिर से 2 कि॰मी॰ दूर एक छोटे मंदिर 'गुंडिचा घर' में ले जाया जाता है। यह यात्रा रथ-यात्रा के रूप में आयोजित की जाती है। गुंडिचा मंदिर के श्रद्धालु भक्त तीनों मूर्तियों को अलग-अलग रथ (लकड़ी के रथ) में खींचकर ले जाते है। इन रथों को व्यापक रूप से विविध रंगों में सजाया जाता है, ये रंग प्रत्येक मूर्ति के महत्व के दर्शाते हैं रथयात्रा पर्व रथयात्रा और नव कलेबर् पुरी के प्रसिद्ध पर्व हैं। ये दोनों पर्व भगवान जगन्नाथ की मुख्य मूर्ति से संबद्ध हैं। नव कलेबर बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, तीनों मूर्तियों- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का बाहरी रूप बदला जाता है। इन नए रूपों को विशेष रूप से सुगंधित चंदन-नीम के पेड़ों से निर्धारित कड़ी धार्मिक रीतियों के अनुसार सुगंधित किया जाता है। इस दौरान पूरे विधि-विधान और भव्य तरीके से 'दारु' (लकड़ी) को मंदिर में लाया जाता है। इस दौरान विश्वकर्मा (लकड़ी के शिल्पी) 21 दिन और रात के लिए मंदिर में प्रवेश करते हैं और नितांत गोपनीय ढंग से मूर्तियों को अंतिम रूप देते हैं। इन नए आदर्श रूपों में से प्रत्येक मूर्ति के नए रूप में 'ब्रह्मा' को प्रवेश कराने के बाद उसे मंदिर में रखा जाता है। यह कार्य भी पूर्ण धार्मिक विधि-विधान से किया जाता है। पुरी बीच पर्व वार्षिक तौर पर नवंबर माह के आरंभ में आयोजित किया जाता है, उड़ीसा की शिल्पकला, विविध व्यंजन और सांस्कृतिक संध्याएं इस पर्व का विशेष आकर्षण हैं। पुरी में रथयात्रा का त्योहार साल में एक बार मनाया जाता है। इस रथयात्रा को देखने के लिए तीर्थयात्री देश के विभिन्न कोने से आते हैं। रथयात्रा में श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा की पूजा-अर्चना करते हैं। यह भव्य त्योहार नौ दिनों तक मनाया जाता है। रथयात्रा जगन्नाथ मन्दिर से प्रारम्भ होती है तथा गुंडिचा मन्दिर तक समाप्त होती है। भारत में चार धामों में से एक धाम पुरी को माना जाता है। आनंद बाजार में हर प्रकार का प्रसाद मिलता है। यह विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है। पुरी में कई मन्दिर हैं। गुंडिचा मन्दिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र तथा सुभद्रा देवी की प्रतिमा स्थित है। लोकनाथ मन्दिर यह बहुत ही प्रसिद्ध शिव मन्दिर है जगन्नाथ मन्दिर से यह एक किलोमीटर दूर है। यहाँ के निवासियों में ऐसा विश्वास है कि भगवान राम ने इस जगह पर अपने हाथों से इस शिवलिंग की स्थापना की थी। त्योहारों के समय इस मन्दिर में विशेष पूजन का आयोजन किया जाता है। पुरी के पुल विश्व में प्रसिद्ध हैं। इस धार्मिक स्थल पर एक छोटा सा टाउन स्थित है। यहाँ पर दस्तकार तथा कलाकार बसे हुए हैं। इन कलाकारों द्वारा विविध प्रकार के चित्र बनाए जाते हैं। सबसे प्रसिद्ध कला है सेनडार्ट। रघुराजपुर की चित्रकला भी बहुत प्रसिद्ध है। अन्य यहाँ की संस्कृति तथा साहित्य से परिचित होने के लिए पर्यटक विभिन्न प्रकार के संग्रहालयों में कदम रख सकते हैं जैसे - ओड़िशा स्टेट संग्रहालय, ट्राइबल रिसर्च संग्रहालय तथा हैंडीक्राफ्ट हाउस। पुरी के पास स्थित रिसोर्ट पर्यटकों के लिए एक आकर्षषण का केन्द्र बन गया है। रिसोर्ट तथा होटलों में रहकर आप समुद्र का नज़ारा देख सकते हैं तथा लुभावने मौसम का आनंद उठाने के साथ-साथ पर्यटक तैर भी सकते हैं। बालीघाई तथा सत्यवादी दोनों ही प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। इन तीर्थस्थलों में भगवान साक्षीगोपाल की पूजा की जाती है। यहाँ पर एक प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर है कोणार्क। यह भ्रमण के लिए एक अनोखा स्थल है। यहाँ 13वीं सदी की वास्तुकला और मूर्तिकला को देख सकते हैं। पुरी एक आकर्षक धार्मिक स्थल है। आवागमन आप रेल, बस तथा हवाई जहाज से पुरी पहुँच सकते हैं। सबसे नजदीक का हवाईअड्डा यहाँ से 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। अगर पर्यटक समुद्री तट का आनंद उठाना चाहते हैं तब वे गर्मियों में छुट्टियाँ मनाने के लिए पुरी आ सकते हैं। भ्रमण करने के लिए यहाँ पर बस, टैक्सी तथा ऑटो की सेवाएँ उपलब्ध हैं। इन्हें भी देखें पुरी ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:ओड़िशा के शहर श्रेणी:हिन्दू धर्म के चार धाम श्रेणी:पुरी ज़िला श्रेणी:ओड़िशा के बालूतट श्रेणी:पुरी ज़िले के नगर * श्रेणी:हिन्दू पवित्र शहर
घाटमपुर
https://hi.wikipedia.org/wiki/घाटमपुर
घाटमपुर (Ghatampur) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर नगर ज़िले में स्थित एक नगर पालिका है। यह इसी नाम की तहसील का मुख्यालय भी है।"Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716"Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance ," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975 इतिहास माना जाता है कि घाटमपुर की स्थापना राजा घाटमदेव ने की थी। शहर के पूरब में कूष्मांडा देवी का एक प्राचीन मन्दिर है जो हिन्दुओं की श्रद्धा का महान केंद्र है।जो नवरात्रि में चौथी देवी क़े रूप मैं पूजी जाती है, जहां कार्तिक पूर्निमा में हर साल विशाल मेले का अयोजन होता है शहर के दक्षिण में एक ऐतिहासिक बौद्ध मन्दिर है। शहर की पूर्वोत्तर दिशा में १३ किलोमीटर दूर भीतरगांव नामक स्थान पर एक गुप्तकालीन प्राचीन मन्दिर है। 20 किलोमीटर दक्षिण में जिला हमीरपूर स्थित है जिसे पवित्र नदी यमुना ने घाटमपुर से अलग किया है। कानपुर की सबसे बडी तहसील होने का गौरव भी इसे प्राप्त है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इसकी स्थापना राजा घाटमदेव ने की थी जिस कारण इसका नाम घाटमपुर पड़ा। राजनैतिक इतिहास सन 1967 के चुनाव में कांग्रेस से बेनी सिंह अवस्थी विधायक चुने गए, जिन्हे खाद्य रसद, स्वायत्त शासन समेत कई विभागों के कैबिनेट की जिम्मेदारी रही। 1980 एवं 85 में चुने गए कुंवर शिवनाथ सिंह विधायक के बाद विधानसभा उपाध्यक्ष और राज्यमंत्री भी बनाए गए। रामआसरे 1977 में जेएनपी से और 1989 में जनता दल से विधायक निर्वाचित हुए। इसके बाद 1996 में राजाराम पाल विधायक चुनने के बाद राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त बने। वहीं 2017 में भाजपा की ओर से कमलारानी वरुण विधायक बनीं। तो वर्तमान यूपी सरकार ने उन्हें मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी दी। बीमारी की चपेट में आने से अकस्मात निधन हो गया। तत्पश्चात उपचुनाव में वर्ष 2020 में भाजपा प्रत्याशी उपेंद्रनाथ पासवान विधायक बने। 2022 में अपना दल से सरोज कुरील ने समाजवादी पार्टी के भगवती सागर को 14474 वोटों के मार्जिन से हराया था। प्रमुख त्योहार मां कुष्मांडा देवी मंदिर के कारण प्रत्येक नवरात्रि के चौथे दिन घाटमपुर में होने वाला दीपदान का पर्व दर्शनीय है। साथ ही महाशिवरात्रि के दिन घाटमपुर में आयोजित कार्यक्रम भी आसपास के क्षेत्र में प्रसिद्ध है। दर्शनीय स्थल अज्योरी (सजेती) गांव के बिहारेश्वर महादेव मंदिर को दिल्ली सम्राट अकबर के प्रिय मंत्री बीरबल ने बनवाया था।। इतिहासकारों के मुताबिक दिल्ली में औरंगजेब की कैद में रखे गए मराठा सरदार छत्रपति शिवाजी जेल से फरार होने के बाद काफी दिनों तक इसी मंदिर में भेष बदलकर रुके थे। मंदिर कानपुर-सागर राजमार्ग के ठीक किनारे स्थित है। सिधौल गांव में स्थित मार्कण्डेयश्वर महादेव का मंदिर भी काफी प्राचीन है। पतारा के बैजनाथ धाम मंदिर का वर्णन परिमाल रासो (आल्हाखंड) में मिलता है।  पतरसा गांव के पातालेश्वर महादेव और नंदना गांव के रामेश्वर महादेव मंदिर में मेला और रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। रिंद नदी के किनारे बसे बरनांव गांव का बाणेश्वर महादेव मंदिर, सिमौर गांव के कालेश्वर और चौबेपुर (नवेड़ी) गांव के भोलेश्वर महादेव मंदिर भी प्राचीन और दर्शनीय हैं। नई तहसील नर्वल का सृजन होने के बाद कई प्राचीन शिवालय घाटमपुर तहसील के राजस्व नक्शे से बाहर हो गए हैं। इनमें पुरातत्व विभाग से संरक्षित रिंद नदी के किनारे बसे करचुलीपुर गांव का औलियाश्वर महादेव मंदिर के अलावा परौली, कोरथा, गोपालपुर और पालपुर गांव के प्राचीन शिवालय शामिल हैं। यातायात यहाँ एक रेलवे स्टेशन भी है। यह कानपुर-मानिकपुर रेलमार्ग पर स्थित है। लखनऊ-भोपाल राजमार्ग भी यहाँ से होकर गुजरता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 34 यहाँ से गुज़रता है। घाटमपुर के सबसे निकट चकेरी एयरपोर्ट स्थित है। पावर प्लांट प्रोजेक्ट घाटमपुर में 1980 मेगावाट की यह परियोजना नेवेली लिग्नाइट और उत्तर प्रदेश विदयुत उत्पादन निगम लिमिटेड का एक संयुक्त उपक्रम है। इसमें 51 प्रतिशत भागीदारी एनएलसी की होगी जबकि 29 प्रतिशत भागीदारी यूपीआरवीयूएनएल की होगी।इससे पैदा होने वाली बिजली का 80 फीसदी बिजली उत्तर प्रदेश को मिलेगी तथा 20 फीसदी बिजली केन्द्रीय ग्रिड को दी जाएंगी। उन्होंने बताया कि बिजली संयत्र स्थापित हो जाने से उत्तर प्रदेश में बिजली की कमी पूरी तरह से खत्म हो जायेगी और प्रदेश में बिजली की समस्या का हल निकल आएगा। इन्हें भी देखें कानपुर नगर ज़िला सन्दर्भ इन्हें भी देखें श्रेणी:कानपुर नगर ज़िला श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:कानपुर नगर ज़िले के नगर
ओड़िया भाषा
https://hi.wikipedia.org/wiki/ओड़िया_भाषा
ओड़िया (ଓଡ଼ିଆ) भारत के ओड़िशा प्रान्त में बोली जाने वाली भाषा है। यह भाषा यहाँ के राज्य सरकार की राजभाषा भी है। भाषाई परिवार के तौर पर ओड़िआ एक आर्य भाषा है और नेपाली, बांग्ला, असमिया और मैथिली से इसका निकट संबंध है। ओड़िशा की भाषा और जाति दोनों ही अर्थो में उड़िया शब्द का प्रयोग होता है, किंतु वास्तव में ठीक रूप ओड़िआ होना चाहिए। इसकी व्युत्पत्ति का विकासक्रम कुछ विद्वान् इस प्रकार मानते हैं ओड्रविषय, ओड्रविष, ओडिष, आड़िषा या ओड़िशा। सबसे पहले भरत के नाट्यशास्त्र में उड्रविभाषा का उल्लेख मिलता है। शबराभीरचांडाल सचलद्राविडोड्रजाः। हीना वनेचराणां च विभाषा नाटके स्मृताः ॥ भाषातात्विक दृष्टि से ओड़िआ भाषा में आर्य, द्राविड़ और मुंडारी भाषाओं के संमिश्रित रूपों का पता चलता है, किंतु आज की ओड़िआ भाषा का मुख्य आधार भारतीय आर्यभाषा है। साथ ही साथ इसमें संथाली, मुंडारी, शबरी, आदि मुंडारी वर्ग की भाषाओं के और औराँव, कुई (कंधी) तेलुगु आदि द्राविड़ वर्ग की भाषाओं के लक्षण भी पाए जाते हैं। लिपि thumb|left|200px|ओड़िआ लिपि इसकी लिपि का विकास भी नागरी लिपि के समान ही ब्राह्मी लिपि से हुआ है। अंतर केवल इतना है कि नागरी लिपि की ऊपर की सीधी रेखा ओड़िआ लिपि में वर्तुल हो जाती है और लिपि के मुख्य अंश की अपेक्षा अधिक जगह घेर लेती है। विद्वानों का कहना है कि ओड़िआ में पहले तालपत्र पर लौह लेखनी से लिखने की रीति प्रचलित थी और सीधी रेखा खींचने में तालपत्र के कट जाने का डर था। अत: सीधी रेखा के बदले वर्तुल रेखा दी जाने लगी और ओड़िआ लिपि का क्रमश: आधुनिक रूप आने लगा। इतिहास सम्पूर्ण ओड़िआ भाषा के इतिहास को निम्न वर्गों में बांटा जा सकता है - प्राचीन ओड़िआ (१०वीं शताब्दी-१३००), प्रारम्भिक मध्य ओड़िआ (१३००-१५००), मध्य ओड़िआ (१५००-१७००), नूतन मध्य ओड़िआ (१७००-१८५०), एवं आधुनिक ओड़िआ (१८५०-वर्तमान). ओड़िआ एक पूर्वी इंडो-आर्य भाषा होने के नाते इंडो-आर्य भाषा परिवार का सदस्य है। इसे पूर्व मागधी नामक प्राकृत भाषा का वंशधर माना जाता जिसे कि १५०० साल पहले पूर्व भारत में प्रयोग किया जाता था। इस का आधुनिक बांग्ला, मैथिली, नेपाली एवं असमिया भाषाओं से निकट संबंध है। अन्य उत्तर भारतीय भाषाओं के मुकाबले में ओड़िआ, पार्सी भाषा द्वारा सबसे कम प्रभावित हुआ है। लिखित ओड़िआ भाषा का प्राचीनतम उदाहरण मादला पांजि (पुरी के जगन्नाथ मंदिर की पंजिका) में मिलता है जिन्हे ताड़ के पत्तों पर लिखा गया था। प्रमुख बोलियाँ मिदनापुरी ओड़िआ: पश्चिम बंगाल के मिदनापुर क्षेत्र में बोली जाने वाली सिंहभूम ओड़िआ: झारखंड के पूर्वी सिंगभूम, पश्चिमी सिंगभूम एवं सरायकेला-खरसावां जिलों में बोली जाने वाली बालेश्वरी ओड़िआ: बालेश्वर, भद्रक एवं मयूरभंज जिलों में बोली जाने वाली गंजामी ओड़िआ: ओड़िशा के गंजाम एवं गजपति जिलों में, आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम् जिले में बोली जाने वाली कळाहाण्डि ओड़िआ: ओड़िशा के कलाहाण्डि जिलों में बोली जाने वाली देशीय ओड़िआ: कोरापुट, रायगड़ा, नवरंगपुर एवं मालकानगिरि जिलों में तथा आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम जिले में बोली जाने वाली संबलपुरी ओड़िआ: सम्बलपुर, देवगड़, सुन्दरगड़, बलांगिर, झारसुगुडा जिला, सुबर्नपुर, बौध जिला एवं बरगढ़ जिलों, ओर अनुगुल जिला के आठमल्लिक सबडिविजन तथा छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़, बिलासपुर, जैशपुर जिलों में बोली जाने वाली भाषा। भात्री: दक्षिण-पश्चिमी ओड़िशा एवं पूर्व-दक्षिणी छत्तीसगढ़ में बोली जाने वाली भाषा साहित्य ओड़िआ भाषा के प्रथम महान कवि झंकड के सारला दास थे जिन्होने देवी दुर्गा की स्तुति में चंडी पुराण और विलंका रामायण की रचना की थी। अर्जुन दास के द्वारा लिखित राम-विवाह ओड़िआ भाषा की प्रथम दीर्घ कविता है। प्रारंभिक काल के बाद से लगभग १७०० तक के समय को ओड़िआ साहित्य में पंचसखा युग के नाम से जाना जाता है। इस युग का प्रारंभ श्रीचैतन्य के वैष्ण्ब धर्म के प्रचार से हुआ। बलराम दास, जगन्नाथ दास, यशोवंत दास, अनंत दास एवं अच्युतानंद दास-इन पांचों को पंचसखा कहा जाता है। इस युग के अन्य साहित्यिकों की तरह इनकी रचनाएं भी धर्म पर आधारित थीं। इस काल के रचनाएं प्रायः संस्कृत से अनुवादित की हुई होति थीं या उन्हि पर आधारित होति थीं। अनुवादों में आक्षरिक के अपेक्षा भावानुवाद का प्रचलन ज्यादा था। स्रोत बाहरी कड़ियाँ हिन्दी-ओड़िया शब्दकोश (हिन्दी विक्षनरी) कन्साइज़ ओडिया-अंग्रेज़ी शब्दकोष (गूगल पुस्तक: आर जे ग्रण्डी) भारतीय भाषा ज्योति (ओड़िया) - हिन्दी माध्यम से ओड़िया सींखें दूध का कटोरा (ओडिया कथा संग्रह) (गूगल पुस्तक ; संकलन - कमलेश्वर) ओडिया सीखने व सिखाने की मार्गदर्शिका हिन्दी द्वारा ओडिया सीखें ओडिया गीत ओडिया यूनिकोड फ़ॉण्ट श्रेणी:ओड़िया साहित्य श्रेणी:भारत की भाषाएँ श्रेणी:भारत में शास्त्रीय भाषाएँ श्रेणी:ओड़िशा की भाषाएँ श्रेणी:हिन्द-आर्य भाषाएँ श्रेणी:पूर्वी हिन्द-आर्य भाषाएँ
माथेरान
https://hi.wikipedia.org/wiki/माथेरान
thumb|280px|माथेरान का मानचित्र माथेरान (Matheran) भारत के महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ ज़िले की कर्जत तालुका में स्थित एक नगर और हिल स्टेशन है।"RBS Visitors Guide India: Maharashtra Travel Guide ," Ashutosh Goyal, Data and Expo India Pvt. Ltd., 2015, ISBN 9789380844831"Mystical, Magical Maharashtra ," Milind Gunaji, Popular Prakashan, 2010, ISBN 9788179914458 परिचय माथेरान मुंबई से मात्र ११० किलोमीटर दूर प्राकृतिक खूबसूरती से भरा छोटा-सा हिल स्टेशन है। यह पश्चिमी घाट पर्वत शृंखला में समुद्र तल से ८०० मीटर (२६२५ फीट) की उँचाई पर बसा है। मुंबई और पुणे से इसकी दूरी क्रमशः ९० और १२० किलो मीटर है। बड़े शहरोंसे इसकी निकटता के कारण माथेरान शहरी नागरिकों के लिए एक सप्ताहांत बिताने के लिए लोकप्रिय स्थल है। यहाँ की खासियत है कि यहां किसी भी प्रकार के वाहन का प्रवेश वर्जित है। मुंबई, पुणे, नाशिक और सूरत के लोगों की तो यह पसंदीदा जगह है ही लेकिन अब उत्तर और दक्षिण भारत के लोगों को भी यह स्थान अपनी ओर आकर्षित करने लगा है। समुद्र तल से ८०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित देश के इस सबसे छोटे हिल स्टेशन की खोज मई १८५० में ठाणे जिले के कलेक्टर ह्यूज पोयन्ट्‌स मलेट ने की थी। मुंबई के तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड एल्फिंस्टोन ने यहां भविष्य के हिल स्टेशन की नींव रखी और गर्मी के दिनों में वक्त गुजारने की दृष्टि से इसे विकसित किया गया। माथेरान का शाब्दिक अर्थ होता है माथे (पर्वत के) पर स्थित अरन्य। माथेरान का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन नेरल स्टेशन है, जो यहां से ९ किलोमीटर दूर है। इसके आगे वाहनों का प्रवेश वर्जित है। आगे जाने के लिए या तो पैदल जाना होगा, या बग्गी, रिक्शे या घोड़ों का प्रयोग करना होगा। लेकिन यहां पहुंचने का सबसे अच्छा साधन है यहां की टॉय ट्रेन जिसके हाल ही में १०० साल पूरे हुए हैं। पहाड़ों पर चढ़ती उतरती इस ट्रेन में बैठकर ढाई घंटे की यात्रा में खूबसूरत प्राकृतिक नजारों का आनंद उठाया जा सकता है। इसके अलावा ट्रॉली से भी यहां तक पहुंचा जा सकता है। यहाँ साल भर पर्यटकों का तांता लगा रहता है और मॉनसून यहाँ आने का सबसे अच्छा मौसम है। उस समय घाटियों में फैला कोहरा, हवा में तैरते बादल और भीगा-भीगा मौसम होते हैं। माथेरान में प्राकृतिक नजारों का आनंद लेने के लिए ३८ दृश्य बिंदु (व्यू पॉइंट्‌स) हैं। इसके अलावा माउंट बेरी और शारलॉट लेक भी यहां के मुख्य आकर्षण हैं। माउंट बेरी से नेरल से आती हुई ट्रेन का दृश्य देखा जा सकता है। शारलॉट लेक के दायीं ओर पीसरनाथ का प्राचीन मंदिर है। वहीं बायीं और दो पिकनिक स्पॉट लुईस पॉइंट और इको पॉइंट हैं। हनीमून पॉइंट पर रस्सी के द्वारा घाटी को पार करने का साहसिक और रोमांचक कार्य का भी अनुभव यहां किया जा सकता है। इसके अलावा एलेक्जेंडर पॉइंट, रामबाग पॉइंट, लिटिल चौक पॉइंट, चौक पॉइंट, वन ट्री हिल पॉइंट, ओलंपिया रेसकोर्स, लॉर्डस पॉइंट, सेसिल पॉइंट, पनोरमा पॉइंट इत्यादि अनेक स्थानों पर पर्यटक आते हैं। माथेरान में पनोरमा पॉइंट सहित लगभग ३६ पूर्व निस्चित लुक-आउट पायंट्स हैं जहाँ से सारे क्षेत्र के अलावा नेरल शाहर का भी विहंगम दृश्य प्राप्त कर सकते है। पनोरमा पॉइंट से सूर्योदय और सूर्यास्त देखा जा सकता है। लूयीसा पॉइंट के प्रबल फ़ोर्ट का सुस्पष्ट दर्शन होता है। वन ट्री हिल पॉइंट, हार्ट पॉइंट, मंकी पॉइंट, पोर्क्युपाइन पॉइंट, रामबाघ पॉइंट इत्यादि यहाँ के अन्य मुख्य पॉइंट हैं। इतिहास माथेरान की खोज १८५० में थाने जिले के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ह्यू पायंट्ज़ मेल्ट द्वारा की गयी थी। उस समय के बंबई के गवर्नर लॉर्ड एलफिन्सटोन ने इस भावी हिल स्टेशन की आधारशिला रखी। अँग्रेज़ सरकार ने इस इलाक़े में पड़ने वाली गर्मी से बचाव के लिए माथेरान का विकास किया। माथेरान हिल रेलवे का निर्माण १९०७ में सर आदंजी पीर्भोय द्वारा किया गया था। घने जंगलो के विशाल इलाक़े में फैला यह रेलवे २० किलो मीटर (१२ मिल) की दूरी तय करता है। माथेरान लाइट रेलवे के नाम से भी मशहूर इस स्थान का युनेसको वर्ल्ड हेरिटेज साइट के अधिकारियों द्वारा भी निरीक्षण किया गया था पर यह वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में स्थान पाने में असफल रहा। वन और वन्य जीवन माथेरान को केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है और यह अपने आप में एक स्वास्थ्य आरोग्यआश्रम कहा जा सकता है। इस इलाक़े के अनेको सूखे पेड़ो का संग्रह ब्लात्तेर हर्बेरियम, स्ट्रीट। आइयेवियर'स कॉलेज, बॉमबे, मुंबई में देखा जा सकता है। माथेरान में उपस्थित एक मात्र स्वचालित वाहन इसकी नगरपालिका द्वारा संचालित एम्बुलेंस ही है। किसी भी निजी स्वचालित वाहन को अनुमति नहीं दी जाती। माथेरान के भीतर यातयात के साधानो के रूप में घोड़े और हाथ से खींचे जाने वाला रिक्सा ही उपलब्ध होता है। माथेरान में बड़ी संख्या में औषधीय पौधे और जड़ी-बूटियाँ पाई जाती हैं. इस शहर में बॉनेट मकाक्स, हनुमान लंगूरस समेत बहुत सारे बंदर भी पाए जाते हैं। निकट में ही अवस्थित लेक शार्लट माथेरान का पीने के पानी का प्रमुख स्रोत है। जंगल के अंदर कई तरह के जानवर जैसे कि तेंदुए, हिरण, मलाबार जाइयंट गिलहरी, लोमड़ी, जंगली सुअर, नेवले आदि पाए जाते हैं। यातायात-साधन माथेरान मुंबई और पुणे से रेल और सड़क द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसका निकटतम रेलवे स्टेशन नेरल है। निकटतम हवाई अड्डा छत्रपति शिवाजी इंटरनॅशनल एरपोर्ट, मुंबई है। माथेरान शहर के केंद्र में एक नॅरो गेज रेलवे स्टेशन है। माथेरान हिल रेलवे से नेरल के लिए प्रतिदिन सेवा उपलब्ध है। इस पर चलने वाली खिलोना गाड़ी मुख्य लाइन से नेरल जक्सन में जुड़ती है जो की सी.एस.टी - कर्जत मार्ग के द्वारा सी.एस.टी से अच्छी तरह जुड़ा है। चित्रदीर्घा इन्हें भी देखें कर्जत, रायगढ़ रायगढ़ ज़िला, महाराष्ट्र बाहरी कड़ियाँ टॉय ट्रेन पर नरेल से माथेरान सन्दर्भ श्रेणी:रायगढ़ ज़िला, महाराष्ट्र श्रेणी:महाराष्ट्र के शहर श्रेणी:रायगढ़ ज़िले, महाराष्ट्र के नगर श्रेणी:रायगढ़ ज़िले, महाराष्ट्र में पर्यटन आकर्षण श्रेणी:महाराष्ट्र में हिल स्टेशन
माण्डू
https://hi.wikipedia.org/wiki/माण्डू
माण्डू या माण्डवगढ़, धार ज़िला जिले धार के माण्डव क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन शहर है। यह भारत के पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है। यह धार शहर से 35 किमी दूर स्थित है। यह 11 वीं शताब्दी में, माण्डू तारागंगा या तरंगा राज्य का उपभाग था। यहाँ परमारों के काल मे इसे प्रसिद्धि प्राप्त हुई और फिर १३ वीं शताब्दी में, यह क्षेत्र मुस्लिम शासकों के अंतर्गत आ गया।विन्ध्याचल पर्वत शृंखला में स्थित होने के कारण इसका सुरक्षा कि दृस्टि से बहुत अधिक महत्व था। आज यह एक पर्यटक स्थल के रूप मे प्रशिद्ध है। जहाँ हजारों कि संख्या में सैलानी यहाँ के दर्शनीय स्थलों जैसे जहाज महल, हिन्डोला महल, शाही हमाम और वास्तुकला के उत्कृष्टतम उदाहरण आकर्षक नक्काशीदार गुम्बद को देखने आते है। इसकी इन्दौर शहर से दुरी १०० किमी है। सर्वश्रेष्ठ हेरिटेज सिटी का राष्ट्रीय पुरस्कार मांडू को 2018 में प्राप्त हुआ। इस के दर्शनीय स्थल तारापुर दरवाजा जहांगीर दरवाजा दिल्ली दरवाजा जहाज महल हिंडोला महल होशंग शाह का मकबरा जामा मस्जिद अशरफी महल रेवा कुंड रूपमती मंडप नीलकंठ महल हाथी महल तथा लोहानी गुफा है। thumb|मांडु कीले की विशाल उचाइयां। इतिहास पुर्व तालकपुर (धार जिले में ही) राज्य से मिले एक शिलालेख के अनुसार, एक व्यापारी चंद्रसिंह ने "मंडपा दुर्गा" में स्थित पार्सवनाथ मंदिर में एक मूर्ति स्थापित की। "माण्डू" शब्द मंडपा दुर्गा का ही समय के साथ बदला हुआ नाम है। ६१२ विक्रम संवत के एक शिलालेख इंगित करती है कि 6वीं सदी में मांडू एक समृद्ध शहर हुआ करता था। 10वीं और 11वीं शताब्दी में माण्डू को परमारों के शासनकाल् में प्रसिद्धि प्राप्त हुई। 633 मीटर (2079 फीट) की ऊंचाई पर स्थित मांडू शहर, विंध्य पर्वत में 13 किमी (8.1 मील) पर फैला हुआ है। उत्तर में मालवा का पठार और दक्षिण में नर्मदा नदी की घाटी, परमारों के इस किला-राजधानी को प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करता थी। जयवर्मन द्वितीय से शुरू होने वाले परमार राजाओं के अभिलेखों में माण्डू ("मंडपा-दुर्गा" के रूप में) को शाही निवास के रूप में उल्लेख किया गया है। यह संभव है कि जयवर्मन या उसके पुर्वज जैतूगि ने पड़ोसी राज्यों के लगातार हमलों के कारण, पारंपरिक परमार राजधानी धार से माण्डू स्थानांतरित कर दिया होगा। बलबान, दिल्ली के सुल्तान नसीर-उद-दीन के जनरल, इस समय परमार क्षेत्र के उत्तरी सीमा तक पहुंच गए थे। इसी समय, परमारों को देवगिरि के यादव राजा कृष्ण और गुजरात के वघेला राजा विशालदेव से हमलों का सामना करना पड़ा। धार, जो मैदानी इलाकों में स्थित है, की तुलना में माण्डू के पहाड़ी क्षेत्र में स्थिति एक बेहतर रक्षात्मक अवस्थिति प्रदान करती होगी। इन्दौर से लगभग ९0 किमी दूर है। माण्डू विन्ध्य की पहाडियों में 2000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मूलत: मालवा के परमार राजाओं की राजधानी रहा था। तेरहवीं शती में मालवा के सुलतानों ने इसका नाम शादियाबाद यानि "खुशियों का शहर" रख दिया था। वास्तव में यह नाम इस जगह को सार्थक करता है। यहाँ के दर्शनीय स्थलों में जहाज महल, हिन्डोला महल, शाही हमाम और आकर्षक नक्काशीदार गुम्बद वास्तुकला के उत्कृष्टतम रूप हैं।ख़िलजी शासकों द्वारा बनाए गए इस नगर में जहाज और हिंडोला महल खास हैं। यहाँ के महलों की स्थापत्य कला देखने लायक है। मांडू इंदौर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग से यह धार से भी जुड़ा हुआ है। आकर्षण दरवाजे मांडू में दाखिल होने के लिए 12 दरवाजे हैं। मुख्य रास्ता दिल्ली दरवाजा कहलाता है। दूसरे दरवाजे रामगोपाल दरवाजा, जहांगीर दरवाजा और तारापुर दरवाजा कहलाते हैं। जहाज महल जहाजनुमा आकार में इस महल को दो मानवनिर्मित तालाबों के बीच बनाया गया था। हिंडोला महल टेड़ी दीवारों के कारण इस महल को हिंडोला महल कहा जाता है। होशंग शाह का मकबरा (जामा मस्जिद) होशंग शाह गौरी (1406-1435) मांडू का प्रथम इस्लामिक सुल्तान था। उसके पिता का नाम दिलावर खान गोरी था, जिसको फिरोजशाह तुगलक ने मांडू का राज्यपाल नियुक्त किया था। मकबरे का निर्माण कार्य होशंग शाह गोरी ने शुरू किया था, जो महमूद खिलजी (१४३६-१४६९) ने 1440 ई में पूर्ण किया। रानी रूपमती महल कहां जाता है रानी रूपमती हिन्दु गायिका थी रानी रूपमती पर मालवा के अफगान सुल्तान बाज बहादुर खान [1556-1562] ई.आकर्षित हो गए और रूपमती से विवाह कर लिया रानी रूपमती नर्मदा दर्शन के उपरांत भोजन ग्रहण करती थी इसलिए उन्होंने रानी रूपमती महल का निर्माण करवाया था। इनके अलावा नहर झरोखा, बाज बहादुर महल, और नीलकंठ महल भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। शुरुआत में अशर्फी महल होशंग शाह द्वारा बनवाया गया था परन्तु तत्पश्चात इसे मेहमूद खिलजी ने इसका पुनः निर्माण करवाया हर वर्ष मान्डु में प्रशासन द्वारा मान्डु उत्सव मनाया जाता है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भोज का माण्डव मालवा का कश्मीर है माण्डू ऐतिहा‍सिक इमारतों का स्थान मांडू (वेबदुनिया) मालवा का कश्मीर है माण्डू मांडू की हसीन वादिया कम दिनों में 'दिल' की सैर भारत की हृदय स्थली - विहंगम मध्य प्रदेश जहाज महल - मांडव तूमैन श्रेणी:धार ज़िला श्रेणी:मध्य प्रदेश में पर्यटन आकर्षण
तिलका माँझी
https://hi.wikipedia.org/wiki/तिलका_माँझी
तिलका माँझी, (संथाल:ᱵᱟᱵᱟ ᱛᱤᱞᱠᱟᱹ ᱢᱟᱡᱷᱤ) (11 फ़रवरी 1750 - 13 जनवरी 1785) तिलका मांझी उर्फ जबरा पहाड़िया जिन्होंने राजमहल, झारखंड की पहाड़ियों पर ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लिया। इनमें सबसे लोकप्रिय तिलका मांझी हैं। https://en.wikipedia.org/wiki/User:Brajesh_verma  परिचय जबरा पहाड़िया (तिलका मांझी) भारत में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पहाड़िया समुदाय के वीर आदिवासी थे। सिंगारसी पहाड़, पाकुड़ के जबरा पहाड़िया http://www.jagran.com/jharkhand/sahibganj-8806138.html  उर्फ तिलका मांझी के बारे में कहा जाता है कि उनका जन्म 11 फ़रवरी 1750 ई. में हुआ था। 1771 से 1784 तक उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबी और कभी न समर्पण करने वाली लड़ाई लड़ी और स्थानीय महाजनों-सामंतों व अंग्रेजी शासक की नींद उड़ाए रखा। पहाड़िया लड़ाकों में सरदार रमना अहाड़ी और अमड़ापाड़ा प्रखंड (पाकुड़, संताल परगना) के आमगाछी पहाड़ निवासी करिया पुजहर और सिंगारसी पहाड़ निवासी जबरा पहाड़िया भारत के आदिविद्रोही हैं।http://www.jagran.com/jharkhand/pakur-8811242.html दुनिया का पहला आदिविद्रोही रोम के पुरखा आदिवासी लड़ाका स्पार्टाकस को माना जाता है। भारत के औपनिवेशिक युद्धों के इतिहास में जबकि पहला आदिविद्रोही होने का श्रेय पहाड़िया आदिम आदिवासी समुदाय के लड़ाकों को जाता हैं जिन्होंने राजमहल, झारखंड की पहाड़ियों पर ब्रितानी हुकूमत से लोहा लिया। इन पहाड़िया लड़ाकों में सबसे लोकप्रिय आदिविद्रोही जबरा या जौराह पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी हैं। इन्होंने 1778 ई. में पहाड़िया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़ कर कैंप को मुक्त कराया। 1784 में जबरा ने क्लीवलैंड को मार डाला। बाद में आयरकुट के नेतृत्व में जबरा की गुरिल्ला सेना पर जबरदस्त हमला हुआ जिसमें कई लड़ाके मारे गए और जबरा को गिरफ्तार कर लिया गया। कहते हैं उन्हें चार घोड़ों में बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया। पर मीलों घसीटे जाने के बावजूद वह पहाड़िया लड़ाका जीवित था। खून में डूबी उसकी देह तब भी गुस्सैल थी और उसकी लाल-लाल आंखें ब्रितानी राज को डरा रही थी। भय से कांपते हुए अंग्रेजों ने तब भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष पर सरेआम लटका कर उनकी जान ले ली। हजारों की भीड़ के सामने जबरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। तारीख थी संभवतः 13 जनवरी 1785। बाद में आजादी के हजारों लड़ाकों ने जबरा पहाड़िया का अनुसरण किया और फांसी पर चढ़ते हुए जो गीत गाए - हांसी-हांसी चढ़बो फांसी ...! - वह आज भी हमें इस आदिविद्रोही की याद दिलाते हैं। पहाड़िया समुदाय का यह गुरिल्ला लड़ाका एक ऐसी किंवदंती है जिसके बारे में ऐतिहासिक दस्तावेज सिर्फ नाम भर का उल्लेख करते हैं, पूरा विवरण नहीं देते। लेकिन पहाड़िया समुदाय के पुरखा गीतों और कहानियों में इसकी छापामार जीवनी और कहानियां सदियों बाद भी उसके आदिविद्रोही होने का अकाट्य दावा पेश करती हैं। तिलका माँझी उर्फ जबरा पहाड़िया विवाद तिलका मांझी संताल थे या पहाड़िया इसे लेकर विवाद है। http://timesofindia.indiatimes.com/city/ranchi/Two-tribes-in-tiff-over-Tilka-Manjhis-legacy/articleshow/30330250.cms आम तौर पर तिलका मांझी को मुर्मू टोटेम का बताते हुए अनेक लेखकों ने उन्हें संताल आदिवासी बताया है। तिलका मांझी के पिता का नाम सुंदरा मुर्मू और माता का नाम पानो मुर्मू थे। सुंदरा मुर्मू तिलकपुर गांव के ग्राम प्रधान (आतु मांझी) थे और तिलका मुर्मू के माता पानो मुर्मू गृहणी थी। उनके पिता और माता के नाम से साफ पता चलता है तिलका मांझी संथाल परिवार में जन्मे एक संथाल आदिवासी समुदाय के थे। तिलका मांझी (मुर्मू) का जन्म 11फरवरी 1750 को हुआ है। बिहार के सुल्तानगंज, भागलपुर क्षेत्र में पहाड़िया जनजाति के लोगों का भी निवास थे, तिलका मांझी संथाल और उन पहाड़िया जनजाति के बीच में रहकर पले बढ़े हैं, इसीलिए ही कुछ गैर आदिवासी इतिहासकारों को लगता है तिलका मांझी पहाड़िया जनजाति के है। संतालों का लिखित इतिहास अधिक नहीं है लेकिन फिर भी संतालों को याद है अपना गुजारा हुआ इतिहास कितना पुराना है। तिलका मांझी संतालों के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ने में कभी पीछे नहीं हटे है। संताल एवं आदिवासी समुदाय में इतिहासकारों की कमी होने के कारण दूसरे जाति समुदाय के इतिहासकारों द्वारा इस संथाल समुदाय के इतिहास को तोड़ मरोड़ा जा रहा है इतिहास के साथ छेड़छाड़ किया जा रहा है, इसलिए ही तिलका मांझी को पहाड़िया जनजाति के साथ कुछ इतिहासकारों द्वारा जोड़ा जा रहा है जो गलत जानकारी है। मांझी और मुर्मू सरनेम संतालों का है और तिलका, पानो और सुंदरा नाम भी अभी भी संतालों के बीच मौजूद हैं। तिलका मांझी का असली नाम तिलका मुर्मू है जबरा पहाड़िया नहीं। तिलका मांझी संतालो के बीच काफी लोकप्रिय है और उनका पुजा भी किया जाता है लेकिन पहाड़िया जनजाति के लोग तिलका मांझी का पुजा पाठ या कोई अन्य उनके नाम पर समारोह आयोजित नहीं देखने को मिलता है। संथालों के अनेकों लोक गीतों में उनका नाम है। और रही बात इतिहास की तो भारत देश मे सदैव उच्च जाति और पैसे वालों के आगे झुकता रहा है। शुरू में संतालों का स्थाई निवास स्थान नहीं था, स्थाई नहीं होने का कारण संतालों को दूसरे जाति समुदाय के लोगों द्वारा अनेकों स्थानों से भागाया जाता रहा है। झारखंड प्रदेश में सर्वप्रथम गिरिडीह जिला (शिर दिशोम शिखर दिशोम) क्षेत्र में प्रवेश किया। धीरे धीरे जनसंख्या बढ़ने लगे और संतालों का क्षेत्र भी बढ़ने लगे। लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार संताल आदिवासी समुदाय के लोग 1770 के अकाल के कारण 1790 के बाद संताल परगना की तरफ आए और बसे। लेकिन संताल (आगील हापड़ाम कोवा काथा) इतिहास के आधार पर संताल सर्वप्रथम वर्तमान झारखंड के उत्तर पूर्व क्षेत्र तथा वर्तमान बिहार राज्य के दक्षिण क्षेत्र में निवास करते थे। अंग्रेज शासन के पहले संताल अपने को होड़ कहते थे। संतालों के लिए संताल शब्द अंग्रेजों के समय आया है। संताल का मूल शब्द है सांवता. सांवता का अर्थ होता है साथ साथ रहना। कलांतर में इनका शब्द सांवता से सांवताल, सांवतार, संताल, सांतार, सांथाल, संताड़ होने लगा। The Annals of Rural Bengal, Volume 1, 1868 By Sir William Wilson Hunter (page no 219 to 227) में साफ लिखा है कि संताल लोग बीरभूम से आज के सिंहभूम की तरफ निवास करते थे। 1790 के अकाल के समय उनका माइग्रेशन आज के संताल परगना तक हुआ। हंटर ने लिखा है, ‘1792 से संतालों नया इतिहास शुरू होता है’ (पृ. 220)। 1838 तक संताल परगना में संतालों के 40 गांवों के बसने की सूचना हंटर देते हैं जिनमें उनकी कुल आबादी 3000 थी (पृ. 223)। हंटर यह भी बताता है कि 1847 तक मि. वार्ड ने 150 गांवों में करीब एक लाख संतालों को बसाया (पृ. 224)। http://books.google.co.in/books?id=W1kOAAAAQAAJ&printsec=frontcover&source=gbs_ge_summary_r&cad=0#v=onepage&q&f=false 1910 में प्रकाशित ‘बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर: संताल परगना’, वोल्यूम 13 में एल.एस.एस. ओ मेली ने लिखा है कि जब मि. वार्ड 1827 में दामिने कोह की सीमा का निर्धारण कर रहा था तो उसे संतालों के 3 गांव पतसुंडा में और 27 गांव बरकोप में मिले थे। वार्ड के अनुसार, ‘ये लोग खुद को सांतार कहते हैं जो सिंहभूम और उधर के इलाके के रहने वाले हैं।’ (पृ. 97) दामिनेकोह में संतालों के बसने का प्रामाणिक विवरण बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर: संताल परगना के पृष्ठ 97 से 99 पर उपलब्ध है। https://books.google.co.in/books?id=RdyjG9DYVLsC&printsec=frontcover&dq=bengal+district+gazetteers&hl=en&sa=X&ei=vz3dVMzmHI2vuQSL14LYBw&ved=0CBwQ6AEwAA#v=onepage&q=bengal%20district%20gazetteers&f=false इसके अतिरिक्त आर. कार्सटेयर्स जो 1885 से 1898 तक संताल परगना का डिप्टी कमिश्नर रहा था, उसने अपने उपन्यास ‘हाड़मा का गांव’ (Harmawak Ato) की शुरुआत ही पहाड़िया लोगों के इलाके में संतालों के बसने के तथ्य से की है। संतालों का अपना इतिहासकारों की कमी के कारण इतिहास को सही सही नहीं लिखा गया है, संताल को पहले अपने आप को होड़ से संबंधित होते थे, अंग्रेजों द्वारा संतालों को जब होड़ से संताल में परिवर्तन किया गया और अपना दस्तावेजों में लिखना प्रारम्भ किया तब के बाद से संतालों का इतिहास देखने को मिलता है। साहित्य में जबरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी बांग्ला की सुप्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में एक उपन्यास 'शालगिरर डाके' की रचना की है। अपने इस उपन्यास में महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी को मुर्मू गोत्र का संताल आदिवासी बताया है। यह उपन्यास हिंदी में 'शालगिरह की पुकार पर' नाम से अनुवादित और प्रकाशित हुआ है। https://books.google.co.in/books?id=ckreepb_i5AC&printsec=frontcover&dq=Mahasweta+Devi+google+books&hl=en&sa=X&ei=vkndVPOXOojiuQSCj4LACw&ved=0CCIQ6AEwATgK#v=onepage&q&f=false हिंदी के उपन्यासकार राकेश कुमार सिंह ने जबकि अपने उपन्यास ‘हूल पहाड़िया’ में तिलका मांझी को जबरा पहाड़िया के रूप में चित्रित किया है। ‘हूल पहाड़िया’ उपन्यास 2012 में प्रकाशित हुआ है। हुल पहाड़िया (उपन्यास) / लेखक – राकेश कुमार सिंह / सामयिक बुक्स, नई दिल्ली तिलका मांझी के नाम पर भागलपुर में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय नाम से एक शिक्षा का केंद्र स्थापित किया गया है। हिंदी के उपन्यासकार राकेश कुमार सिंह ने अपने उपन्यास हूल पहाड़िया मैं तिलका मांझी को जाबरा पहाड़िया के रूप में चित्रित किया है। इन्हें भी देखें झारखंड झारखंड आंदोलन सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ संथाल परगना में पहाड़िया राज का इतिहास नेपथ्य का नायक – तिलका मांझी, राकेश बिहारी जंगलतरी में तिलका मांझी का विद्रोह (1783-84) तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय श्रेणी:आदिवासी श्रेणी:भारतीय (आदिवासी) श्रेणी:झारखंड श्रेणी:भागलपुर
अंदमान और निकोबार द्वीप
https://hi.wikipedia.org/wiki/अंदमान_और_निकोबार_द्वीप
REDIRECT अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह
तुर्कमेनिस्तान
https://hi.wikipedia.org/wiki/तुर्कमेनिस्तान
तुर्कमेनिस्तान (तुर्कमेनिया के नाम से भी जाना जाता है) मध्य एशिया में स्थित एक तुर्किक देश है। १९९१ तक तुर्कमेन सोवियत समाजवादी गणराज्य (तुर्कमेन SSR) के रूप में यह सोवियत संघ का एक घटक गणतंत्र था। इसकी सीमा दक्षिण पूर्व में अफ़ग़ानिस्तान, दक्षिण पश्चिम में ईरान, उत्तर पूर्व में उज़्बेकिस्तान, उत्तर पश्चिम में कज़ाख़िस्तान और पश्चिम में कैस्पियन सागर से मिलती है। 'तुर्कमेनिस्तान' नाम फारसी से आया है, जिसका अर्थ है, 'तुर्कों की भूमि'। देश की राजधानी अश्गाबात (अश्क़ाबाद) है। इसका हल्के तौर पर "प्यार का शहर" या "शहर जिसको मोहब्बत ने बनाया" के रूप में अनुवाद होता है। यह अरबी के शब्द 'इश्क़' और फारसी प्रत्यय 'आबाद' से मिलकर बना है।Central Asia: Kazakhstan, Tajikistan, Uzbekistan, Kyrgyzstan, Turkmenistan , Bradley Mayhew, Lonely Planet, 2007, ISBN 978-1-74104-614-4, ... Ashgabat ... pop 650000 With its lavish marble palaces, gleaming gold domes and vast expanses of manicured parkland, Ashgabat ('the city of love' ... तुर्कमेनिस्तान का धरातल बहुत ही विषम है। यहाँ पर पर्वत, पठार, मरूस्थल एवं मैदान सभी मिलते हैं परन्तु समुद्र से दूर होने के कारण यहाँ की जलवायु पर महाद्वीपीय प्रभाव है। पशु-पालन यहाँ का प्रधान व्यवसाय है। तुर्कमेनिस्तान में वर्षा की कमी के कारण प्राकृतिक वनस्पति की कमी है। तुर्कमेनिस्तान के ७०% क्षेत्रफल पर काराकुम रेगिस्तान फैला हुआ है। मरुस्थलीय भूमि की अधिकता होने के कारण यहाँ के अधिकांश भागों में शुष्क मरुस्थलीय कँटीली झाड़ियाँ मिलती हैं। इन्हें भी देखें काराकुम रेगिस्तान अश्गाबात तुर्की सन्दर्भ श्रेणी:एशिया के देश श्रेणी:स्थलरुद्ध देश
चेकोस्लोवाकिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/चेकोस्लोवाकिया
चेकोस्लोवाकिया मध्य यूरोप में स्थित एक देश हुआ करता था जो अक्टूबर 1918 से 1992 तक अस्तित्व में रहा। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1939 से 1945 के एक अंतराल में इसका ज़बरदस्ती जर्मनी में विलय कर दिया गया इसलिए वास्तविकता में यह देश उस ज़माने में अस्तित्व में नहीं था, हालांकि औपचारिक रूप से मित्रपक्ष शक्तियाँ तब भी इसे मान्यता देती रहीं। 1945 में सोवियत संघ ने इसके एक पूर्वी हिस्से को चेकोस्लोवाकिया से अलग करके अपने क्षेत्र का भाग बना लिया। शीत युद्ध काल में चेकोस्लोवाकिया पर साम्यवाद (कोम्युनिस्ट) शासन रहा और यह देश सोवियत संघ के नेतृत्व में गठित वारसा संधि के मित्रपक्ष में शामिल था। सोवियत संघ के टूटने पर 1990 में यहाँ भी साम्यवाद ख़त्म हो गया। धीरे-धीरे देश के दो मुख्य समुदायों - चेक और स्लोवाक - के बीच तनाव बढ़ता रहा और लगने लगा कि वे एक राष्ट्र में मिलकर नहीं रह पाएँगे। 1992 में रायशुमारी (लोगों का विभाजन के प्रश्न पर सीधा मतदान) की गई और जनता ने देश को बांटने का फ़ैसला चुना। 1 जनवरी 1993 को देश बिना किसी हिंसा के दो अलग राष्ट्रों में बाँट गया जिन्हें चेक गणतंत्र और स्लोवाकिया के नामों से जाना जाता है। विश्व में अन्य देशों के हुए विभाजनों की तुलना में यह बंटवारा इतने कोमल और शांतिपूर्वक ढंग से हुए कि इस घटना को इतिहासकार और समीक्षक कभी-कभी 'मख़मली तलाक़' कहते हैं।Building Peace: Practical Reflections from the Field, Craig Zelizer, Kumarian Press, 2009, ISBN 978-1-56549-286-8, ... 1992 – Velvet Divorce, Czechoslovakia peacefully separates ... इन्हें भी देखें चेक गणतंत्र स्लोवाकिया सन्दर्भ श्रेणी:भूतपूर्व देश श्रेणी:यूरोप का इतिहास श्रेणी:चेकोस्लोवाकिया श्रेणी:पूर्वी गुट
ऑस्ट्रिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/ऑस्ट्रिया
ऑस्ट्रिया (जर्मन: Österreich एओस्तेराइख़, अर्थात पूर्वी राज्य) मध्य यूरोप में स्थित एक स्थल रुद्ध देश है। इसकी राजधानी वियना है। इसकी (मुख्य- और राज-) भाषा जर्मन भाषा है। देश का ज़्यादातर हिस्सा ऐल्प्स पर्वतों से ढका हुआ है। यूरोपीय संघ के इस देश की मुद्रा यूरो है। इसकी सीमाएं उत्तर में जर्मनी और चेक गणराज्य से, पूर्व में स्लोवाकिया और हंगरी से, दक्षिण में स्लोवाकिया और इटली और पश्चिम में स्विटजरलैंड और लीश्टेनश्टाइन से मिलती है। इस देश का उद्भव नौवीं शताब्दी के दौरान ऊपरी और निचले हिस्से में आबादी के बढ़ने के साथ हुआ। Ostarrichi शब्द का पहले पहल इस्तेमाल 996 में प्रकाशित आधिकारिक लेख में किया गया, जो बाद में Österreich एओस्तेराइख़ में बदल गया। आस्ट्रिया में पूर्वी आल्प्स की श्रेणियाँ फैली हुई हैं। इस पर्वतीय देश का पश्चिमी भाग विशेष पहाड़ी है जिसमें ओट्जरस्टुवार्ड, जिलरतुल आल्प्स (१,२४६ फुट) आदि पहाड़ियाँ हैं। पूर्वी भाग की पहाड़ियां अधिक ऊँची नहीं हैं। देश के उत्तर पूर्वी भाग में डैन्यूब नदी पश्चिम से पूर्व को (३३० किमी लंबी) बहती है। ईन, द्रवा आदि देश की सारी नदियां डैन्यूब की सहायक हैं। उत्तरी पश्चिमी सीमा पर स्थित कांस्टैंस, दक्षिण पूर्व में स्थित न्यूडिलर तथा अतर अल्फ गैंग, आसे आदि झीलें देश की प्राकृतिक शोभा बढ़ाती हैं। आस्ट्रिया की जलवायु विषम है। यहां ग्रर्मियों में कुछ अधिक गर्मी तथा जाड़ों में अधिक ठंडक पड़ती है। यहां पछुआ तथा उत्तर पश्चिमी हवाओं से वर्षा होती है। आल्प्स की ढालों पर पर्याप्त तथा मध्यवर्ती भागों में कम पानी बरसता है। यहाँ की वनस्पति तथा पशु मध्ययूरोपीय जाति के हैं। यहाँ देश के ३८ प्रतिशत भाग में जंगल हैं जिनमें ७१ प्रतिशत चीड़ जाति के, १९ प्रतिशत पतझड़ वाले तथा १० प्रतिशल मिश्रित जंगल हैं। आल्प्स के भागों में स्प्रूस (एक प्रकार का चीड़) तथा देवदारु के वृक्ष तथा निचले भागों में चीड़, देवदारु तथा महोगनी आदि जंगली वृक्ष पाए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि आस्ट्रिया का प्रत्येक दूसरा वृक्ष सरो है। इन जंगलों में हिरन, खरगोश, रीछ आदि जंगली जानवर पाए जाते हैं। देश की संपूर्ण भूमि के २९ प्रतिशत पर कृषि होती है तथा ३० प्रतिशत पर चारागाह हैं। जंगल देश की बहुत बड़ी संपत्ति है, जो शेष भूमि को घेरे हुए है। लकड़ी निर्यात करनेवाले देशों में आस्ट्रिया का स्थान छठा है। ईजबर्ग पहाड़ के आसपास लोहे तथा कोयले की खानें हैं। शक्ति के साधनों में जलविद्युत ही प्रधान है। खनिज तैल भी निकाला जाता है। यहां नमक, ग्रैफाइट तथा मैगनेसाइट पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। मैगनेसाइट तथा ग्रैफाइट के उत्पादन में आस्ट्रिया का संसार में क्रमानुसार दूसरा तथा चौथा स्थान है। तांबा, जस्ता तथा सोना भी यहां पाया जाता है। इन खनिजों के अतिरिक्त अनुपम प्राकृतिक दृश्य भी देश की बहुत बड़ी संपत्ति हैं। आस्ट्रिया की खेती सीमित है, क्योंकि यहां केवल ४.५ प्रतिशत भूमि मैदानी है, शेष ९२.३ प्रतिशत पर्वतीय है। सबसे उपजाऊ क्षेत्र डैन्यूब की पार्श्ववर्ती भूमि (विना का दोआबा) तथा वर्जिनलैंड है। यहां की मुख्य फसलें राई, जई (ओट), गेहूँ, जौ तथा मक्का हैं। आलू तथा चुकंदर यहां के मैदानों में पर्याप्त पैदा होते हैं। नीचे भागों में तथा ढालों पर चारेवाली फसलें पैदा होती हैं। इनके अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में तीसी, तेलहन, सन तथा तंबाकू पैदा किया जाता है। पर्वतीय फल तथा अंगूर भी यहाँ होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में पहाड़ों को काटकर सीढ़ीनुमा खेत बने हुए हैं। उत्तरी तथा पूर्वी भागों में पशुपालन होता है तथा यहाँ से वियना आदि शहरों में दूध, मक्खन तथा चीज़ पर्याप्त मात्रा में भेजा जाता है। जोरारलबर्ग देश का बहुत बड़ा संघीय पशुपालन केंद्र है। यहां बकरियां, भेड़ें तथा सुअर पर्याप्त पाले जाते हैं जिनसे मांस, दूध तथा ऊन प्राप्त होता है। आस्ट्रिया की औद्योगिक उन्नति महत्वपूर्ण है। लोहा, इस्पात तथा सूती कपड़ों के कारखाने देश में फैले हुए हैं। रासायनिक वस्तुएँ बनाने के बहुत से कारखाने हैं। यहाँ धातुओं के छोटे मोटे सामान, वियना में विविध प्रकार की मशीनें तथा कलपुर्जे बनाने के कारखाने हैं। लकड़ी के सामान, कागज की लुग्दी, कागज एवं वाद्यतंत्र बनाने के कारखाने यहां के अन्य बड़े धंधे हैं। जलविद्युत् का विकास खूब हुआ है। देश को पर्यटकों का भी पर्याप्त लाभ होता है। पहाड़ी देश होने पर भी यहाँं सड़कों (कुल सड़कें ४१,६४९ कि.मी.) तथा रेलवे लाइनों (५,९०८ कि.मी.) का जाल बिछा हुआ है। वियना यूरोप के प्राय: सभी नगरों से संबद्ध है। यहां छह हवाई अड्डे हैं जो वियना, लिंज़, सैल्बर्ग, ग्रेज, क्लागेनफर्ट तथा इंसब्रुक में हैं। यहां से निर्यात होनेवाली वस्तुओं में इमारती लकड़ी का बना सामान, लोहा तथा इस्पात, रासायनिक वस्तुएं और कांच मुख्य हैं। विभिन्न विषयों की उच्चतम शिक्षा के लिए आस्ट्रिया का बहुत महत्व है। वियना, ग्रेज, लिंज़ तथा इंसब्रुक में संसारप्रसिद्ध विश्वविद्यालय हैं। आस्ट्रिया में गणतंत्र राज्य है। यूरोप के ३६ राज्यों में, विस्तार के अनुसार, आस्ट्रिया का स्थान १९वाँ है। यह नौ प्रांतों में विभक्त है। वियना प्रांत में स्थित वियना नगर देश की राजधानी है। आस्ट्रिया की संपूर्ण जनसंख्या का १/४ भाग वियना में रहता है जो संसार का २२वाँ सबसे बड़ा नगर है। अन्य बड़े नगर ग्रेज, जिंज, सैल्जबर्ग, इंसब्रुक तथा क्लाजेनफर्ट हैं। अधिकांश आस्ट्रियावासी काकेशीय जाति के हैं। कुछ आलेमनों तथा बवेरियनों के वंशज भी हैं। देश सदा से एक शासक देश रहा है, अत: यहां के निवासी चरित्रवान् तथा मैत्रीपूर्ण व्यवहारवाले होते हैं। यहाँ की मुख्य भाषा जर्मन है। आस्ट्रिया का इतिहास बहुत पुराना है। लौहयुग में यहाँ इलिरियन लोग रहते थे। सम्राट् आगस्टस के युग में रोमन लोगों ने देश पर कब्जा कर लिया था। हूण आदि जातियों के बाद जर्मन लोगों ने देश पर कब्जा कर लिया था (४३५ ई.)। जर्मनों ने देश पर कई शताब्दियों तक शासन किया, फलस्वरूप आस्ट्रिया में जर्मन सभ्यता फैली जो आज भी वर्तमान है। १९१९ ई. में आस्ट्रिया वासियों की प्रथम सरकार हैप्सबर्ग राजसत्ता को समाप्त करके, समाजवादी नेता कार्ल रेनर के प्रतिनिधित्व में बनी। १९३८ ई. में हिटलर ने इसे महान् जर्मन राज्य का एक अंग बना लिया। द्वितीय विश्वयुद्ध में इंग्लैंड आदि देशों ने आस्ट्रिया को स्वतंत्र करने का निश्चय किया और १९४५ ई. में अमरीकी, ब्रितानी, फ्रांसीसी तथा रूसी सेनाओं ने इसे मुक्त करा लिया। इससे पूर्व अक्टूबर, १९४३ ई. की मास्को घोषणा के अंतर्गत ब्रिटेन, अमरीका तथा रूस आस्ट्रिया को पुन: एक स्वतंत्र तथा प्रभुसत्तासंपन्न राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित कराने का अपना निश्चय व्यक्त कर चुके थे। २७ अप्रैल, १९४५ को डा. कार्ल रेनर ने आस्ट्रिया में एक अस्थायी सरकार की स्थापना की जिसने १९२०-२९ ई. के संविधान के अनुरूप आस्ट्रियाई गणतंत्र को पुन: प्रतिष्ठित किया। आस्ट्रिया की उक्त जनतांत्रिक सरकार को चारों मित्रराष्ट्रों की नियंत्रण परिषद् (कंट्रोल काउंसिल) ने २० अक्टूबर, १९४५ ई. को मान्यता दे दी। किंतु देश को वास्तविक स्वतंत्रता २७ जुलाई, १९५५ ई. को मिली जब ब्रिटेन, अमरीका, रूस तथा फ्रांस के साथ हुई आस्ट्रियन स्टेट संधि (१५ मई, १९५५ ई.) लागू की गई और बलात् अधिकार करनेवाली विदेशी सेनाएं वापस चली गईं। वियना के भूतपूर्वू लार्ड मेयर फ्ऱांज जोनास २३ मई, १९६५ को आस्ट्रियाई गणतंत्र के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए और २५ अप्रैल, १९७१ को पुन: इन्हें ही राष्ट्रपति के पद पर चुन लिया गया जबकि इनके प्रतिद्वंद्वी कुर्ट बाल्ढीम असफल रहे। १० अक्टूबर, १९७१ को राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव संपन्न हुए जिसमें ९३ समाजवादी, ८० पीपुल्स पार्टी और १० फ्रीडम पार्टी के प्रतिनिधि चुने गए। यह भी देखिए आस्ट्रियन साहित्य विक्षनरी में ऑस्ट्रिया सन्दर्भ श्रेणी:यूरोप के देश श्रेणी:स्थलरुद्ध देश
स्पेन
https://hi.wikipedia.org/wiki/स्पेन
स्पेन (), मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिमी यूरोप में अटलांटिक महासागर और भूमध्य सागर के पार एक देश है। स्पेन का सबसे बड़ा भाग इबेरिया प्रायद्वीप पर स्थित है। इसके क्षेत्र में अटलांटिक महासागर में कनारिया द्वीपसमूह, भूमध्य सागर में बलेयार द्वीप समूह और अफ़्रीका में सेउता और मेलिया के स्वायत्त नगर भी शामिल हैं। देश की मुख्य भूमि दक्षिण में जिब्राल्टर से लगती है; भूमध्य सागर द्वारा दक्षिण और पूर्व में; उत्तर में फ्रांस, अण्डोरा और बिस्के की खाड़ी; और पश्चिम में पुर्तुगाल और अटलांटिक महासागर द्वारा। 505,990 km² के क्षेत्रफल के साथ, स्पेन यूरोपीय संघ में दूसरा सबसे बड़ा देश है और 4.74 करोड़ से अधिक जनसंख्या के साथ, चौथा सबसे अधिक जनसंख्या वाला यूरोपीय सङ्घ का सदस्य राज्य है। स्पेन की राजधानी और सबसे बड़ा नगर मद्रिद है; अन्य प्रमुख शहरी क्षेत्रों में बार्सेलोना, वालेन्सिया, सविल, सरागोसा, मलागा, मर्सिया, पाल्मा दे मल्लोर्का, लास पाल्मास और बिल्बो शामिल हैं। स्पेनी कला, संगीत, साहित्य और व्यंजन दुनिया भर में प्रभावशाली रहे हैं, विशेषकर पश्चिमी यूरोप और अमेरिका में। अपनी विशाल सांस्कृतिक सम्पदा के प्रतिबिम्ब के रूप में, स्पेन में विश्व की चौथी सबसे बड़ी संख्या में विश्व धरोहर स्थल (49) हैं और यह विश्व का दूसरा सबसे अधिक भ्रमण किया जाने वाला देश है। इसका सांस्कृतिक प्रभाव 57 करोड़ स्पेनी-भाषियों तक फैला हुआ है, जिससे स्पेनी विश्व की दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली मूल भाषा बन गई है। स्पेन एक विकसित देश है, एक धर्मनिरपेक्ष संसदीय लोकतंत्र और एक संवैधानिक राजतंत्र है, जिसमें राजा फ़ेलिपे षष्ठम राष्ट्रप्रमुख हैं। यह एक उच्च आय वाला देश और एक उन्नत अर्थव्यवस्था है, नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद द्वारा विश्व की सोलहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और पीपीपी द्वारा सोलहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। स्पेन में विश्व में बारह-उच्चतम जीवन प्रत्याशा है। यह स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता में विशेष रूप से उच्च स्थान पर है, इसकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को विश्व भर में सबसे कुशल में से एक माना जाता है। यह अंग प्रत्यारोपण और अंग दान में विश्व में अग्रणी है। स्पेन संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, यूरोक्षेत्र, यूरोप की परिषद, इबेरो-अमेरिकी राज्यों के संगठन, भूमध्य संघ, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD), यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (OSCE), विश्व व्यापार संगठन (WTO) और कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का सदस्य है।। इतिहास प्रागैतिहासिक काल से लेकर एक देश के रूप में अस्तित्व में आने तक स्पेन का राज्यक्षेत्र अपनी खास अवस्थिति की वजह से, कई बाहरी प्रभावों के अधीन रहा था। रोमन काल में यह हिस्पानिया राज्य था। रोमन प्रभाव सीमित होने के बाद विसिगोथिक राज्य बने। सन् 711 में अफ़्रीक़ा के मूर शासक तारीक बिन जियाद ने विसिगोथिकों की आपसी लड़ाई का फ़यदा उठाकर आक्रमण किया और जीत हासिल की। इसके बाद यहाँ सीरिया से निष्कासित उमय्यद ख़िलाफत की पीठ बनी। मुस्लिमों का शासन पूरे स्पेन (अल-अंदलूस) पर रहा - लेकिन उत्तर तथा उत्तर पूर्व में दो छोटे स्वतंत्र राज्य भी रहे। दसवीं सदी में कोर्दोबा स्थित साम्राज्य में मुस्लमान, ईसाइयों और यहूदियों के साथ मिलकर एक बहुआयामी संस्कृति का हिस्सा थे। दसवीं सदी में मुस्लमानों को ईसाइयों ने हराना आरंभ किया। इसके बाद ईसाइयों ने जेरुशलम से मुसलमानों का कब्ज़ा बटाने के लिए धर्मयुद्धों में भाग लिया। पोप के आग्रह पर सैनिक तुर्की होते हुए जेरुशलम पहुँचने लगे। इस समय तुर्की पर मुस्लिम तुर्कों का शासन आरंभ हो गया था जिसकी वजह से ईसाई यूरोपियों का उनके पवित्र धार्मिक स्थल जेरुशलम पहुँचना मुश्किल हो गया था। शुरुआत में तो ईसाई सफल रहे पर सन् 1180 के दशक में मामलुक सेनापति सलादीन के प्रयास के बाद यूरोप के सैनिक हारते गए। इसके साथ ही पूर्व से मसालों, रेशम और कीमती आभूषणों के मार्ग पर भी मुस्लमानों का कब्ज़ा हो गया। इन चीजों के यूरोप में भाव बढ़ते गए और इन कारणों से मुस्लमानों के खिलाफ रोष भी। खोजी युग पंद्रहवीं सदी में पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी और अन्य ने अफ्रीका के स्युटा और मोरक्को पर आक्रमण किया और सफल हुए। इसके बाद पश्चिम अफ्रीका के तटों पर भी नौअन्वेषण चलते रहे। हेनरी और उसकी नौसमूह सेनेगल नदी के मुहाने तक पहुंच गया जो इस समय एक बड़ी उपलब्धि थी - क्योंकि इस जगह को दुनिया का अंत समझा जाता था। कई ऐसी यात्राओं के बाद यूरोप में लोगों का दुनिया के बारे में विश्वास बदलने लगा। पुर्तगाल के राजा और हेनरी के भाई-भतीजों ने कई नौअन्वेषी अभियान चलाए . सन् 1492 में मार्को पोलो की यात्रा-वृत्तांत से प्रभावित होकर पूरब जाने के लिए पश्चिम की यात्रा पर निकला - यह साबित करने कि दुनिया गोल है। वो वेस्ट-इंडीज़ तक पहुँचा। इसके बाद 1498 में वास्को द गामा, अपने कई पूर्वर्तियों के बनाए नक्शे और किले का सहारा लेकर उत्तमाशा अंतरूप और फिर भारत तक पहुँच गया। 15 वीं सदी में कैथोलिक सम्राटों की शादी और 1492 में औबेरियन प्रायद्वीप पर पुनर्विजय (Reconquista) के पूरा होने के बाद स्पेन एक एकीकृत देश के रूप में उभरा। इसके विपरीत, स्पेन अन्य कई क्षेत्रों को प्रभावित करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है, विशेष रूप से आधुनिक काल में जब यह एक वैश्विक साम्राज्य बना और अपने पीछे दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है स्पानी के लगभग 50 करोड़ भाषाभाषियों की विरासत को छोड़ दिया। भूगोल स्पेन पाँच स्थलाकृतिक (topographic) क्षेत्रों में विभक्त है, (1) उत्तरी तटवर्ती कटिबंध, (2) केंद्रीय पठार येसेता, (3) स्पेन का सबसे बड़ा नगर आन्दालूसीआ (4) दक्षिणी पूर्वी भूमध्यसागरीय कटिबंध लेवान्ते (Levante) और (5) उत्तर पूर्व क्षेत्र की कातालूनिआ (Catalonya) तथा एब्रो (Ebro) घाटी। स्पेन में छह मुख्य पर्वतमालाएँ हैं। सबसे ऊँची चोटी पेरदीदो (Perdido) है। स्पेन में पाँच मुख्य नदियाँ हैं, एब्रो, दुएरो (Duero), तागूस (Tagus), दुआदिआना (Duadiana) तथा गुआदलकीवीर (Guadalquivir)। स्पेन का समुद्री तट चट्टानी है। स्पेन की जलवायु बदलती रहती है। उत्तरी तटवर्ती क्षेत्रों की जलवाय ठंढी और आर्द्र (humid) है। केंद्रीय पठार जाड़ों में ठंढा तथा गर्मियों में गरम रहता है। उत्तरी तटवर्ती क्षेत्र तथा दक्षिणी तटवर्ती कटिबंध में वार्षिक औसत वर्षा क्रमश: 100 सेमी तथा 75 सेमी है। विभिन्न किस्म की जलवायु होने के कारण प्राकृतिक वनस्पतियों में भी विभिन्नता पाई जाती है। उत्तर के आर्द्र क्षेत्रों में पर्णपाती (deciduous) वृक्ष जैसे अखरोट, चेस्टनट (Chestnut), एल्म (elm) आदि पाए जाते हैं। स्पेन की राजधानी माद्रीद है। अन्य बड़े नगर बार्सेलोना, वालेनसीआ (Valencia), सिवेये (Sivelle), मालागा (Malaga) तथा सारागोसा (Zaragoza) आदि हैं। लगभग सभी स्पेनवासी कैथोलिक धर्म के अनुयायी हैं। यद्यपि अन्य साधनों की तुलना में खेती का विकास नहीं हुआ है फिर भी यहाँ की आय का प्रमुख साधन कृषि ही है है। बैलिऐरिक तथा कानेरी द्वीपों की भूमि सहित यहाँ पर कुल 4,43,32,000 हेक्टर भूमि कृषि योग्य है। अनाज विशेषकर गेहूँ की पैदावार केंद्रीय पठार में होती है। स्पेन की मुख्य फसल गेहूँ है। अन्य उल्लेखनीय फसलें नारंगी, धान और प्याज आदि है। स्पेन संसार का सबसे बड़ा जैतून उत्पादक है तथा यहाँ आलू, रूई, तंबाकू तथा केला आदि का भी उत्पादन होता है। स्पेन में भेड़े सर्वाधिक संख्या में पाली जाती हैं। उत्तरी समुद्रतट पर मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। सारडीन (Sardine), कॉड (Cod) तथा टूना (Tuna) आदि जातियों की मछलियाँ ही मुख्य रूप से पकड़ी तथा बेची जाती हैं। लवणित सारडीन तथा कॉड डिब्बों में बंदकर विदेशों को भेजी जाती हैं। यद्यपि यहाँ की कुल के 10% क्षेत्र में जंगल पाए जाते हैं फिर भी इमारती लकड़ियों का आयात करना पड़ता है। स्पेन संसार का दूसरा सबसे बड़ा कार्क (cork) उत्पादक देश है। रेज़िन तथा टर्पेंटाइन (Turpentine) अन्य प्रमुख जंगली उत्पादक हैं। यहाँ लगभग सभी ज्ञात खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। खनन (mining) यहाँ की आय का मुख्य साधन है। लोहा, कोयला, ताँबा, जस्ता, सीसा, गंधक, मैंगनीज आदि की खानें पाई जाती हैं। संसार में सबसे अधिक पारे का निक्षेप स्पेन के अल्मादेन (Almaden) की खानों में पाया जाता है। वस्त्र उद्योग यहाँ का प्रमुख लघु उद्योग है। महत्वपूर्ण रासायनिक उत्पाद सुपर फॉस्फेट, सल्फ्यूरिक अम्ल, रंग तथा दवाएँ आदि हैं। लोह तथा इस्पात उद्योग उल्लेखनीय भारी उद्योग हैं। सीमेंट तथा कागज उद्योग भी काफी विकसित हैं। स्पेन में उद्योग का तेजी से विकास हो रहा है। शिक्षण संस्थाएँ सरकारी तथा गैरसरकासी दोनों प्रकार की हैं। गैरसरकारी शिक्षण-संस्थाएँ गिरजाघरों द्वारा नियंत्रित होती हैं। प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य तथा नि:शुल्क है। स्पेन में विश्वविद्यालयों की संख्या 12 है। माद्रीद विश्वविद्यालय छात्रों की संख्या की दृष्टि से स्पेन का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। यहाँ का सर्वप्राचीन विश्वविद्यालय सालामान्का (Salamanca) है। इसकी स्थापना 1250 ई. में हुई थी। स्पेन में माद्रीद शहर तथा यहाँ का संग्रहालय, माद्रीद के समीपस्थ एस्कोरिआल महल (Escorial place), तोलेदो (Toledo) तथा सान सेबासतिआन (San Sebastian) के पास का एमेरालेद समुद्रतट (Emeraled Coast) आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। स्पेन में त्योहारों तथा अन्य दिनों में भी वृषभयुद्ध का आयोजन किया जाता है। thumb|एल्डेबा, सिविक सेंटर; लोहार गली; विटोरिया गस्टिज़ राजनीति अर्थव्यवस्था यहां की अर्थव्यवस्था काफी हद अच्छी है, इस देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में सबसे अधिक मदद करता है यहां का पर्यटन स्थल। पूरे विश्व से यह हर साल लाखों लोग घूमने, छुट्टियां मानने आतें हैं। जनसांख्यिकी 2019 में, स्पेन की जनसंख्या आधिकारिक तौर पर 4.7 करोड़ लोगों तक पहुंच गई। स्पेन की जनसंख्या घनत्व, 91/किमी2 (235/वर्ग मील) पर, अधिकांश पश्चिमी यूरोपीय देशों की तुलना में कम है और देश भर में इसका वितरण बहुत असमान है। राजधानी मैड्रिड के आसपास के क्षेत्र को छोड़कर, सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्र तटीय इलाकों के आसपास स्थित हैं। 1900 के बाद से स्पेन की जनसंख्या ढ़ाई गुना बढ़ गई है, उस समय वहां की जनसंख्या 1.86 करोड़ थी, मुख्यतः 1960 और 1970 के दशक में जनसांख्यिकीय में शानदार उछाल देखा गया था।Joseph Harrison, David Corkill (2004). "Spain: a modern European economy". Ashgate Publishing. p. 23. 2017 में, स्पेन भर में औसत कुल प्रजनन दर 1.33 प्रति महिला थी, जोकि 2.1 की प्रतिस्थापन दर से नीचे, दुनिया में सबसे कम हैं, वहीं यह 1865 में यहां के प्रजनन दर 5.11 प्रति महिला के उच्च स्तर से काफी नीचे है। स्पेन 43.1 वर्ष की औसत आयु के साथ दुनिया की सबसे उम्रदराज़ आबादी वाले देशों में से एक है। स्पेन की कुल आबादी का ८८% मूल स्पेनवासी हैं। 1980 के दशक में जन्म दर में गिरावट और स्पेन की जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट के बाद, 1970 के दशक के दौरान अन्य यूरोपीय देशों में प्रवास कर गए स्पेनियों की वापसी से जनसंख्या फिर से ऊपर की ओर बढ़ी, और हाल ही में, बड़ी संख्या में अप्रवासियों के आगमन से इसमें और तेजी आई है, जोकि जनसंख्या का 12% का प्रतिनिधित्व करते है। आप्रवासियों का आगमन मुख्य रूप से लैटिन अमेरिका (39%), उत्तरी अफ्रीका (16%), पूर्वी यूरोप (15%) और उप-सहारा अफ्रीका (4%) से हुआ है। 2005 में, स्पेन ने तीन महीने का माफी कार्यक्रम शुरू किया, जिसके माध्यम से कुछ अनिर्दिष्ट अप्रवासियों को कानूनी निवास दिया गया था। 2008 में, स्पेन ने 84,170 व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान की, जिनमें ज्यादातर इक्वाडोर, कोलंबिया और मोरक्को के लोग थे।"EU27 Member States granted citizenship to 696 000 persons in 2008 " (PDF). Eurostat. 6 July 2010. स्पेन में विदेशी निवासियों का एक बड़ा हिस्सा अन्य पश्चिमी और मध्य यूरोपीय देशों से भी आता है। ये ज्यादातर ब्रिटिश, फ्रेंच, जर्मन, डच और नार्वे के हैं। वे मुख्य रूप से भूमध्यसागरीय तट और बेलिएरिक द्वीपों पर रहते हैं, जहां कई लोग अपनी सेवानिवृत्ति के बाद रहना पसंद करते हैं। भाषा स्पेन कानूनी रूप से बहुभाषी है, और संविधान सुनिश्चित करता है कि राष्ट्र "सभी स्पेनियों और स्पेन के लोगों को मानवाधिकारों, उनकी संस्कृतियों और परंपराओं, भाषाओं और संस्थानों के प्रयोग में रक्षा करेगा।Preamble to the Constitution स्पेनिश (एस्पेनॉल) - संविधान में कैस्टिलियन (कास्टेलानो) के रूप में मान्यता प्राप्त है - पूरे देश की आधिकारिक भाषा है, और यह भाषा जानने के लिए हर स्पेनिश का अधिकार और कर्तव्य है। संविधान यह भी स्थापित करता है कि "अन्य स्पेनिश भाषाएं"-अर्थात, स्पेन की अन्य भाषाएं- उनके संबंधित स्वायत्त समुदायों में उनके क़ानून, उनके जैविक क्षेत्रीय विधानों के अनुसार आधिकारिक होंगी, और यह कि "विशिष्ट भाषाई की समृद्धि" स्पेन के तौर-तरीके एक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं जो विशेष सम्मान और सुरक्षा का उद्देश्य होगा।"Third article. स्पेन की अन्य आधिकारिक भाषाएँ, स्पेनिश के साथ सह-आधिकारिक हैं: कैटलन (कैटालू या वैलेंसी) - कैटलोनिया में, वैलेंशिया समुदाय और बेलिएरिक द्वीप समूह में ; गैलिशियन् (गैलेगो)- गैलिशिया में ; बास्क (यूस्करा) - बास्क देश और नावारा में ; तथा ओसीटान (अरनेस) -कैटलोनिया में। संस्कृति बाहरी कड़ियाँ स्पेन की सरकार पर्यटन पोर्टल मौसम पूर्वानुमान सन्दर्भ i डेउत्स्च्ह्लन्द üबेर अल्लेस १४८८ श्रेणी:यूरोप के देश श्रेणी:स्पेन श्रेणी:इबेरिया प्रायद्वीप श्रेणी:स्पेनी-भाषी देश व क्षेत्रys
अर्जेण्टीना
https://hi.wikipedia.org/wiki/अर्जेण्टीना
आर्जेंटीना दक्षिण अमेरिका में स्थित एक देश है। क्षेत्रफल एवं जनसंख्या की दृष्टि से दक्षिणी अमरीका का ब्राजील देश के बाद द्वितीय विशालतम देश है (क्षेत्रफल: २७,७६,६५६ वर्ग कि.मी.)। इसके उतत्र में ब्राजील पश्चिम में चिली तथा उत्तरपश्चिम में पराग्वे है। देश २२° द.अ. तथा ५५° द.अ. के मध्य ३७,७०० कि॰मी॰ की लंबाई में उत्तर दक्षिण फैला हुआ है। इसकी आकृति एक अधोमुखी त्रिभुज के समान है जो लगभग २,६०० कि॰मी॰ चौड़े आधार से दक्षिण की ओर संकरा होता चला गया है। उत्तर में यह बोलिविया एवं परागुए, उत्तर, पूर्व में युरुगए तथा ब्राजील और पश्चिम में चिली देश से घिरा है। अर्जेन्टीना का नाम अर्जेन्टम से पड़ा जिसाक अर्थ चाँदी होता है। चांदी के लिए प्रयुक्त लैटिन तथा स्पैनिश पर्यायवाची शब्दों से ही, जो क्रमश: 'अर्जेटम' एवं 'प्लाटा' हैं, अर्जेटीना और 'रायो डी ला प्लाटा' (देश की महान एस्चुअरी) का नामकरण हुआ है। आरंभ में यह उपनिवेश था जिसकी स्थापना स्पेन के चार्ल्स तृतीय ने पुर्तगाली दबाव को रोकने के लिए की थी। सन् १८१० ई. में देश की जनता ने स्पेन की सत्ता के विरुद्ध आंदोलन आरंभ किया जिसके परिणाम स्वरूप १८१६ ई. में यह स्वतंत्र हुआ। परंतु स्थायी सरकार की स्थापना १८५३ ई से ही संभव हुई। आर्जेटीना गणतंत्र के अतंर्गत २२ राज्यों के अतिरिक्त एक फेडरल जिला तथा टेरा डेल फ्यूगो, अंटार्कटिका महाद्वीप के कुछ भाग और दक्षिणी अतलांतक सागर के कुछ द्वीप हैं। प्रकृतिक दशा पश्चिम के पर्वतीय क्षेत्रफल को छोड़कर देश का अन्य शेष भाग मुख्यत: निम्न भूमि है। देश सामान्यत: चार स्थलाकृतिक प्रदेशों में विभक्त हो जाता है: ऐंडीज़ पर्वतीय प्रदेश, उत्तर का मैदान, पंपाज़ और पैटागोनिया। ऐंडीज़ पर्वतीय प्रदेश के अंतर्गत देश का लगभग ३० प्रतिशत भाग आता है। पश्चिम में उत्तर दक्षिण फैली इस पर्वतश्रेणी का उत्थान तृतीयक कल्प में आल्प्स गिरि-निर्माण-काल में हुआ था। यह चिली देश के साथ प्राकृतिक सीमा निर्धारित करती है। इस श्रेणी में ही, मध्य एशिया के पश्चात् सीमा निर्धारित करती है। इस श्रेणी में ही, मध्य एशिया के पश्चात्, विश्व के उच्चतम शिखर स्थित हैं, जैसे माउंट अकोंकागुआ (७,०२३ मीटर), मर्सीडरियो (६,६७२ मीटर) और टुपनगाटो (६,८०२ मीटर)। इस प्रदेश में अंगूर, शहतूत तथा अन्य फल बहुतायत से पैदा होते हैं। उत्तर के मैदानी प्रदेश के अंतर्गत चैको मैसोपोटामिया तथा मिसिओनेज़ क्षेत्र हैं। इस प्रदेश में जलोढ के विस्तृत निक्षेप पाए जाते हैं। अधिकांश भाग वर्षा में बाढ़ग्रस्त हो जाते हैं। चैको क्षेत्र वनसंसाधन में धनी है तथा मिसिओनेज़ में यर्बा माते (एक प्रकार की चाय) की खेती होती है। पराना, परागुए आदि नदियों से घिरा मैसोपोटामिया पशुओं के लिए प्रसिद्ध है। देश के मध्य में स्थित पम्पास अत्यधिक उपजाऊ और विस्तृत समतल घास की मैदान है। यह देश का सबसे समृद्धिशाली भाग है जिसमें ८० प्रतिशत जनसंख्या रहती है। कृषि एवं पशुपालन उद्योगों के कुल उत्पादन का लगभग दो तिहाई भाग यहीं से प्राप्त होता है। पैटागोनिया प्रदेश रायो निग्रो से दक्षिण की ओर देश के दक्षिणी छोर तक फैला है (क्षेत्रफल: ७,७७,००० वर्ग कि.मी.)। यह अर्धशुष्क एवं अल्प जनसंख्यावाला पठारी प्रदेश है। यहाँ विशेष रूप से पशु पालन का कारोबार होता है। नदियां ऐंडीज़ पर्वत अथवा उत्तर की उच्च भूमि से निकलकर पूर्व की ओर प्रवाहित होती है और अतलांतक सागर में गिरती हैं। पराना, परागुए तथा युरुगुए मुख्य नदियां हैं। देश की जलवायु प्रधानत: शीतोष्ण है। परंतु, उत्तर में चैको की अत्यधिक उष्ण जलवायु, मध्य में पंपाज़ की सम ओर सुहावनी जलवायु, तथा उपअंटार्कटिक शीत से प्रभावित दक्षिणी पैटागोनिया का हिमानी क्षेत्र जलवायु की विविधता को प्रदर्शित करते हैं। देश का यथेष्ट अक्षांशीय विस्तार तथा उच्चावच का विशिष्ट अंतर ही इस विविधता के प्रधान कारण है। अधिकतम ताप (५५०सें.) उत्तरी छोर पर और निम्नतम (१८०सें.) दक्षिणी छोर पर मिलते हैं। वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। जलवायु, मिट्टी और उच्चावच में विशिष्ट क्षेत्रीय विभिन्नताओं के कारण ही देश में उष्णकटिबंधीय वर्षावाले वनों से लेकर मरुस्थलीय कांटेदार झाडियां तक पाई जाती हैं। K जनसंख्या एवं नगर देश की जनंसख्या का अधिकांश, कुछ समय पूर्व से (१८८० ई.), आप्रवासित यूरोपवासी (मुख्यत: इटली एवं स्पेन निवासी) हैं। अन्य दक्षिणी अमरीका के देशों के विपरीत यहाँ नीग्रो अथवा इंडियन आदिवासियों की संख्या नगण्य है। इस प्रकार देशवासियों में प्रजातीय एवं सांस्कृतिक समानताएं मिलती हैं। स्पैनिश राष्ट्रभाषा है। ९५ प्रतिशत मनुष्य रोमन कैथॉलिक हैं। नगरीय जनसंख्या के आधे लोग ग्रेटर ब्यूनस आयर्स में वास करते हैं। इस क्षेत्र की गणना विश्व के विशालतम महानगरीय क्षेत्रों में होती है। मुख्य नगर हैं- ब्यूनस आयर्स, रोज़ैरियो, कार्डोबा, ला प्लाटा, मार डेल प्लाटा, तुकुमन, सांता फे, पराना, बाहिया ब्लैंका, साल्टा, कोरियेंटीयज़, तथा मैंडोजा। यातायात पराना, युरुगुए तथा परागुए नदियां अंतर्देशीय जल यातायात के लिए विश्वविख्यात हैं। ब्यूनस आयर्स एवं ला प्लाटा (दोनों प्लाटा एस्चुअरी पर स्थित) और बाहिया ब्लैका मुख्य पत्तन हैं। पराना नदी पर रोज़ेरियो सबसे बड़ा अंतर्देशीय पत्तन है ब्यूनस आयर्स पश्चिमी गोलार्ध का, न्यूयार्क के बाद, दूसरा विशालतम पत्तन है तथा इसके अंतर्गत देश का ८० प्रतिशत आयात निर्यात आता हैं। आर्थिक दशा अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था विश्व बैंक के अनुसार वित्तीय वर्ष 2017 के लिए एक उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था है। [1] यह लैटिन अमेरिका की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, [2] और ब्राजील के बाद दक्षिण अमेरिका में दूसरी सबसे बड़ी है। [3] इस देश के तुलनात्मक लाभों में समृद्ध प्राकृतिक संसाधन, एक अत्यधिक साक्षर आबादी, एक निर्यात प्रधान कृषि क्षेत्र और एक विविध औद्योगिक आधार शुमार हैं। अर्जेंटीना का आर्थिक प्रदर्शन ऐतिहासिक रूप से बहुत असमान रहा है, जिसमें उच्च आर्थिक विकास के साथ बारी-बारी से गंभीर मंदी देखने को मिलती है, विशेष रूप से बीसवीं शताब्दी के बाद से, जब आय बढ़ोतरी में असमानता और गरीबी दोनों बढ़ी। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में अर्जेंटीना का दुनिया के दस सबसे ज़्यादा प्रति व्यक्ति जीडीपी स्तर वाले देशों में आता था, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के बराबर और फ्रांस और इटली दोनों से आगे। [4] अर्जेंटीना की मुद्रा 2018 में लगभग 50% घटकर 38 से अधिक अर्जेंटीना पेसोस प्रति अमेरिकी डॉलर हो गई और आज वह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से एक स्टैंड-बाय प्रोग्राम के तहत है। [5] अर्जेंटीना को एफटीएसई ग्लोबल इक्विटी इंडेक्स (2018), [6] द्वारा एक उभरता हुआ बाजार माना जाता है और यह जी -20 की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है । अर्जेटीना विश्व का एक महत्वपूर्ण खाद्य उत्पादक और खाद्य निर्यातक देश है। गेहूँ मुख्य व्यावसायिक फसल है जिसकी अधिकतम खेती पंपाज़ में होती है। इस प्रदेश की अन्य महत्वपूर्ण फसलें मक्का, जौ, जई, पटुआ और अल्फाल्फा हैं। यर्बा माते, सोयाबीन, सूरज मुखी के बीज, गन्ना कपास, अंगूर जैतून इत्यादि का उत्पादन देश के अन्य भागों में काफी मात्रा में होता है। मांस, चमड़ा तथा ऊन के उत्पादन एवं निर्यात की दृष्टि से आर्जेटीना विश्व का एक महत्वपूर्ण देश है। पशुपालन उद्योग मुख्यत: पंपाज़ प्रदेश में विकसित किया गया है। देश में डेरी उद्योग का भी यथेष्ट विकास हुआ है। मत्स्यक्षेत्रों के विकास की संभावनाओं को लेकर यह देश आगे बढ़ रहा है। खनिज संसाधन इसमें देश निर्धन है। सीसा, जस्ता, टंगस्टन, मैंगनीज़, लोहा और बेरीलियम ही यहाँ के उल्लेखनीय खनिज हैं। मिट्टी का तेल भी आर्जेटीना का मुख्य खनिज है जो मुख्यतया पैटागोनिया प्रदेश में मिलता है। यांत्रिक ऊर्जा में भी देश निर्धन है यद्यपि पेट्रेलियम के उत्पादन में अब वृद्धि हो रही है। औद्योगिक विकास मुख्यत: ब्यूनस आयर्स फ़ेडरल कैपिटल में (३२ प्रतिशत), ब्यूनस आयर्स राज्य (३२ प्रतिशत) तथा सांता फे (१० प्रतिशत) में केंद्रित है। वस्तुनिर्माण उद्योग की वृद्धि का कृषि एवं पशुपालन उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मांस को डिब्बों में बंद करना, कांच, शृंगारसामग्री, रंग, हल्की मशीनों, यंत्र, वस्त्र, वस्तुनिर्माण की मशीनों और बिजली की मोटरों आदि का निर्माण महत्वपूर्ण उद्योग है। विदेशी व्यापार यहाँ से मांस, धान्य फसलों, अलसी तथा अलसी का तेल, ऊन, चमड़ा, वन्य एवं दुग्ध पदार्थ और पशुओं का निर्यात होता है। मशीनों, ईधन एवं स्नेहक, लोहा तथा इस्पात से निर्मित वस्तुओं, लकड़ी, खाद्यपदार्थ, रसायन एवं ओषधि, अलौह धातु तथा उनसे निर्मित सामान का यहाँ आयात किया जाता है। यह व्यापार मुख्यत: संयुक्त राज्य अमरीका, ब्रिटेन, बाज़ीज, पश्चिमी जर्मनी, नीदरलैंड, इटली, वेनेज्युला तथा फ्रांस से होता है। विभाग अर्जेन्टीना में 24 प्रान्त हैं - thumb|right|400px यह भी देखिए अर्जेन्टीना (विक्षनरी) अर्जेंटीना का आर्थिक इतिहास श्रेणी:स्पेनी-भाषी देश व क्षेत्र
बेल्जियम
https://hi.wikipedia.org/wiki/बेल्जियम
बेल्जियम राजतन्त्र उत्तर-पश्चिमी यूरोप में एक देश है। यह यूरोपीय संघ का संस्थापक सदस्य है और उसके मुख्यालय का मेज़बान है, साथ ही, अन्य प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों का, जिसमें NATO भी शामिल है।पादटिप्पणी: बेल्जियम कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का सदस्य है या उनसे संबद्ध है, जिनमें शामिल हैं, ACCT, AfDB, AsDB, Australia Group, Benelux, BIS, CCC, CE, CERN, EAPC, EBRD, EIB, EMU, ESA, EU, FAO, G-10, IAEA, IBRD, ICAO, ICC, ICRM, IDA, IDB, IEA, IFAD, IFC, IFRCS, IHO, ILO, IMF, IMO, IMSO, Intelsat, Interpol, IOC, IOM, ISO, ITU, MONUC (observers), NATO, NEA, NSG, OAS (observer), OECD, OPCW, OSCE, PCA, UN, UNCTAD, UNECE, युनेस्को, UNHCR, UNIDO, UNMIK, UNMOGIP, UNRWA, UNTSO, UPU, WADB (non-regional), WEU, WHO, WIPO, WMO, WTrO, ZC. 10.7 मीलियन की जनसंख्या वाले बेल्जियम का क्षेत्रफल है। जर्मनिक और लैटिन यूरोप के मध्य अपनी सांस्कृतिक सीमा को विस्तृत किये हुए बेल्जियम, दो मुख्य भाषाई समूहों, फ्लेमिश और फ्रेंच-भाषी, मुख्यतः वलून्स सहित जर्मन भाषियों के एक छोटे समूह का आवास है। बेल्जियम के दो सबसे बड़े क्षेत्र हैं, उत्तर में 59% जनसंख्या सहित फ्लेंडर्स का डच भाषी क्षेत्र और वालोनिया का फ्रेंच भाषी दक्षिणी क्षेत्र, जहाँ 31% लोग बसे हैं। ब्रुसेल्स-राजधानी क्षेत्र, जो आधिकारिक तौर पर द्विभाषी है, मुख्यतः फ्लेमिश क्षेत्र के अंतर्गत एक फ्रेंच भाषी एन्क्लेव है और यहाँ 10% जनसंख्या बसी है।* * * * पूर्वी वालोनिया में एक छोटा जर्मन भाषी समुदाय मौजूद है। मूल version in German language (पहले ही) 71,500 निवासियों के बजाय 73,000 का उल्लेख करता है। बेल्जियम की भाषाई विविधता और संबंधित राजनीतिक तथा सांस्कृतिक संघर्ष, राजनीतिक इतिहास और एक जटिल शासन प्रणाली में प्रतिबिंबित होता है। बेल्जियम नाम, गॉल के उत्तरी भाग में एक रोमन प्रान्त, गैलिया बेल्जिका से लिया गया है, जो केल्टिक और जर्मन लोगों के एक मिश्रण बेल्जी का निवास स्थान था।पादटिप्पणी: बेल्गी की उत्पत्ति और उस पर केल्टिक और/या जर्मनिक प्रभाव विवादित बना हुआ है। अतिरिक्त पठन उदा. ऐतिहासिक रूप से, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्ज़मबर्ग, निचले देश के रूप में जाने जाते थे, जो राज्यों के मौजूदा बेनेलक्स समूह की तुलना में अपेक्षाकृत कुछ बड़े क्षेत्र को आवृत किया करते थे। मध्य युग की समाप्ति से लेकर 17 वीं सदी तक, यह वाणिज्य और संस्कृति का एक समृद्ध केन्द्र था। 16वीं शताब्दी से लेकर 1830 में बेल्जियम की क्रांति तक, यूरोपीय शक्तियों के बीच बेल्जियम के क्षेत्र में कई लड़ाइयाँ लड़ी गईं, जिससे इसे यूरोप के युद्ध मैदान-समीक्षक, Haß, 1640 में जेम्स होवेल को अंग्रेजी में चिह्न का श्रेय देते हैं। होवेल का मूल वाक्यांश "द कॉकपिट ऑफ़ क्रिस्टनडम" बाद में संशोधित किया गया, जैसा दिखाया गया:   - और बेल्जियम के लिए गढ़ा:   (नुटाल विश्वकोश भी देखें) का तमगा मिला - एक छवि जिसे दोनों विश्व युद्ध ने और पुष्ट किया। अपनी स्वतंत्रता पर, बेल्जियम ने उत्सुकता के साथ औद्योगिक क्रांति में भाग लिया और उन्नीसवीं सदी के अंत में, अफ्रीका में कई उपनिवेशों पर अधिकार जमाया। 20वीं सदी के उत्तरार्ध को फ्लेमिंग्स और फ्रैंकोफ़ोन के बीच साँप्रदायिक संघर्ष की वृद्धि के लिए जाना जाता है, जिसे एक तरफ तो सांस्कृतिक मतभेद ने भड़काया, तो दूसरी तरफ फ्लेनडर्स और वालोनिया के विषम आर्थिक विकास ने. अब भी सक्रिय इन संघर्षों ने पूर्व में एक एकात्मक राज्य बेल्जियम को संघीय राज्य बनाने के दूरगामी सुधारों को प्रेरित किया। इतिहास thumb|left|सत्रह प्रान्त (नारंगी, भूरा और पीला क्षेत्र) और बिशोपरिक ऑफ़ लीग (हरा) पहली शताब्दी ई.पू. में, स्थानीय कबीलों को हराने के बाद रोमन ने गैलिया बेल्जिका का प्रान्त बनाया। 5वीं शताब्दी के दौरान जर्मनिक फ्रेंकिश जनजातियों द्वारा क्रमिक आप्रवास ने इस क्षेत्र को मेरोविन्गियन राजाओं के शासन के अधीन कर दिया। 8वीं सदी के दौरान शक्ति के क्रमिक बदलाव ने फ्रैंक्स राज्य को केरोलिंगियन साम्राज्य के रूप में विकसित होने को प्रेरित किया। 843 में वर्दन संधि ने इस क्षेत्र को मध्य और पश्चिमी फ्रान्सिया में विभाजित किया, यानी कमोबेश स्वतंत्र जागीरों के एक सेट में, जो मध्ययुग के दौरान या तो फ्रांस के राजा के या पवित्र रोमन सम्राट के जागीरदार थे। इनमें से कई जागीरों को 14वीं और 15वीं सदी के बरगंडियन नीदरलैंड में एकीकृत कर लिया गया। सम्राट चार्ल्स V ने 1540 के दशक में सत्रह प्रान्तों के व्यक्तिगत संघ को विस्तृत किया और इसे 1549 के राजकीय अध्यादेश द्वारा एक व्यक्तिगत संघ से अधिक बनाते हुए अपना प्रभाव प्रिंस-बिशपरिक ऑफ़ लीग पर फैलाया। अस्सी साल के युद्ध (1568-1648) ने निचले देशों को उत्तरी संयुक्त प्रान्तों में विभाजित किया (लैटिन में बेल्जिका फोडराटा, "फेडरेटेड नीदरलैंड्स") और दक्षिणी नीदरलैंड्स (बेल्जिका रेजिया, "रॉयल नीदरलैंड्स"). उत्तरवर्ती पर क्रमिक रूप से स्पेन और ऑस्ट्रियाई हैब्सबर्ग ने शासन किया और इसमें अधिकांश आधुनिक बेल्जियम शामिल था। 17वीं और 18वीं शताब्दियों के दौरान, यह अधिकांश फ्रेंको-स्पेनिश और फ्रेंको-ऑस्ट्रियाई युद्धों की स्थल था।पादटिप्पणी: अतिरिक्त पठन: 17वीं और 18वीं सदियों में फ्रांस फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध में 1794 के अभियानों के परिणामस्वरूप, निचले देशों पर - उन प्रदेशों सहित, जो कभी नाममात्र भी हैब्सबर्ग शासन के अधीन नहीं रहे। जैसे प्रिंस बिशोपरिक ऑफ़ लीग - इस क्षेत्र में ऑस्ट्रियाई शासन को समाप्त करते हुए फ्रेंच फस्ट रिपब्लिक द्वारा कब्जा कर लिए गए। यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ द नीदरलैंड के रूप में निचले देशों का पुनः एकीकरण, 1815 में प्रथम फ्रेंच साम्राज्य के विघटन पर हुआ। thumb|left|1830 की बेल्जियम क्रांति की कड़ियाँ (1834) एगिदे चार्ल्स गुस्ताव वेपर्स द्वारा, म्युसिं ऑफ़ ऐंशीएंट आर्ट्स, ब्रुसेल्स. 1830 बेल्जियम क्रांति के परिणामस्वरूप एक अस्थायी सरकार और एक राष्ट्रीय कांग्रेस के अधीन, एक स्वतंत्र, कैथोलिक और निष्पक्ष बेल्जियम की स्थापना हुई. 1831 में राजा के रूप में लियोपोल्ड I के आरोहण के बाद से, बेल्जियम एक संवैधानिक राजशाही और संसदीय लोकतंत्र रहा है। हालांकि मताधिकार को शुरू में रोका गया, लेकिन पुरुषों के लिए सार्वभौमिक मताधिकार 1893 में शुरू किया गया (1919 तक एकाधिक मतदान के साथ) और महिलाओं के लिए 1949 में. 19वीं सदी के मुख्य राजनीतिक दल थे, कैथोलिक पार्टी और लिबरल पार्टी और बेल्जियम लेबर पार्टी सदी के अंत में उभरने लगी. मूल रूप से फ्रेंच, कुलीन और पूंजीपति वर्ग द्वारा अपनाई गई एकमात्र आधिकारक भाषा थी। उत्तरोत्तर इसने अपना समग्र महत्व खो दिया, चूंकि डच भी अच्छी तरह से पहचानी जाने लगी. यह पहचान 1898 में आधिकारिक बन गई और 1967 में संविधान का एक डच संस्करण कानूनी रूप से स्वीकार कर लिया गया। 1885 के बर्लिन सम्मेलन ने कांगो फ्री स्टेट का नियंत्रण राजा लियोपोल्ड II को उनके निजी अधिकार के रूप में सौंप दिया। लगभग 1900 से वहाँ पर लियोपोल्ड II के अधीन कोंगोलीज़ जनता के साथ उग्र और वहशी व्यवहार के प्रति अंतर्राष्ट्रीय चिन्ता बढ़ती जा रही थी, जिसके लिए कांगो मुख्य रूप से हाथी दांत और रबर उत्पादन से राजस्व का स्रोत था। 1908 में इस खलबली ने बेल्जियम राज्य को उपनिवेश सरकार की ज़िम्मेदारी संभालने के लिए प्रेरित किया और उसके बाद से इसे बेल्जियन कांगो कहा गया। 1914 में श्लीफेन योजना के हिस्से के रूप में जर्मनी ने बेल्जियम पर आक्रमण किया और प्रथम विश्व युद्ध के पश्चिमी मोर्चे की अधिकांश लड़ाई देश के पश्चिमी भागों में हुई. बेल्जियम ने युद्ध के दौरान रुंआडा-उरुंडी के जर्मन उपनिवेशों (आधुनिक रवांडा और बुरुंडी) पर अधिकार कर लिया और 1924 में उन्हें लीग ऑफ़ नेशंस द्वारा बेल्जियम को सौंपा गया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, प्रशिया के युपेन और मालमेडी जिले पर बेल्जियम द्वारा 1925 में कब्जा कर लिया गया, जिसके कारण एक जर्मन भाषी अल्पसंख्यक समुदाय की उपस्थिति फलित हुई. 1940 में जर्मनी ने ब्लिट्जक्रीग आक्रमण के दौरान इस देश पर फिर से हमला किया और और इस पर तब तक कब्ज़ा बनाए रखा, जब तक कि मित्र-राष्ट्रों द्वारा 1945 में इसे मुक्त नहीं करा लिया गया। 1960 में कांगो संकट के दौरान बेल्जियन कांगो को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, दो साल बाद रुंआडा-उरुंडी ने अनुगमन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, बेल्जियम एक संस्थापक सदस्य के रूप में NATO में शामिल हो गया और नीदरलैंड और लक्ज़मबर्ग के साथ देशों के बेनेलक्स समूह का गठन किया। बेल्जियम 1951 में यूरोपीय कोयला और स्टील समुदाय के छह संस्थापक सदस्यों में से एक बन गया और 1957 में स्थापित, यूरोपीय परमाणु ऊर्जा समुदाय और यूरोपीय आर्थिक समुदाय का सदस्य बना। उत्तरवर्ती अब यूरोपीय संघ है, जिसके लिए बेल्जियम प्रमुख प्रशासन और संस्थाओं का मेज़बान है, जिसमें शामिल है यूरोपियन कमीशन, यूरोपीय संघ की परिषद और असाधारण तथा यूरोपीय संसद के समिति सत्र. सरकार और राजनीति बेल्जियम एक संवैधानिक, लोकप्रिय राजशाही और एक संसदीय लोकतंत्र है। thumb|upright|प्रधानमंत्री हरमन वान रोम्पे संघीय द्विसदनीय संसद, एक सीनेट और चैंबर ऑफ़ रिप्रेसेनटेटिव से निर्मित है। सिनेट, 40 प्रत्यक्ष निर्वाचित राजनीतिज्ञो और 21 प्रतिनिधियों से बना है, जिनकी नियुक्ति 3 सामुदायिक संसद, 10 सहयोजित सिनेटर और आधिकारिक तौर पर सिनेटर के रूप में राजा की संतानों द्वारा होती है, जो व्यवहार में अपना वोट नहीं डालते हैं। चेंबर के 150 प्रतिनिधि, 11 चुनावी जिलों से एक आनुपातिक मतदान प्रणाली के तहत चुने जाते हैं। बेल्जियम उन कुछ देशों में से एक है, जहाँ अनिवार्य मतदान प्रचलित है और इस तरह यह दुनिया में मतदाता मतदान के उच्चतम दर को धारित करने वालों में से एक है। राजा (वर्तमान में अल्बर्ट द्वितीय) राज्य का मुखिया है, हालांकि उसके विशेषाधिकार सीमित हैं। वह एक प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की नियुक्ति करता है, जिनके पास संघीय सरकार बनाने के लिए प्रतिनिधि मंडल का विश्वास मौजूद है। डच और फ्रेंच भाषी मंत्रियों की संख्या संविधान द्वारा निर्धारित संख्या के बराबर है।या फिर दोनों:* और* न्यायिक प्रणाली नागरिक कानून पर आधारित है और इसकी उत्पत्ति नेपोलियन कोड से हुई है। कोर्ट ऑफ़ केसेसन अंतिम फैसले की अदालत है, जिसके एक स्तर नीचे है कोर्ट ऑफ़ अपील. बेल्जियम की राजनीतिक संस्थाएं जटिल हैं; अधिकांश राजनीतिक सत्ता, मुख्य सांस्कृतिक समुदाय का प्रतिनिधित्व करने की आवश्यकता के इर्द-गिर्द आयोजित है। लगभग 1970 के बाद महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बेल्जियम राजनीतिक दल अलग-अलग घटकों में विभाजित हो गए, जो मुख्य रूप से इन समुदायों के राजनीतिक और भाषायी हितों का प्रतिनिधित्व करता है। हर समुदाय में प्रमुख पार्टियां, राजनीतिक केन्द्र के नज़दीक रहने के बावजूद, तीन मुख्य समूहों से संबंधित हैं: दक्षिणपंथी उदारवादी, सामाजिक रूप से रूढ़िवादी क्रिश्चियन डेमोक्रेट और वामपंथियों का गठन करते समाजवादी. इसके अलावा, पिछली सदी के मध्य के बाद कई प्रमुख पार्टियां, मुख्य रूप से, भाषाई, राष्ट्रवादी, या पर्यावरण विषयों के इर्द-गिर्द अस्तित्व में आईं और हाल ही में कुछ विशिष्ट उदार प्रकृति के छोटे दल भी बने हैं। 1958 से क्रिश्चियन डेमोक्रेट गठबंधन की सरकारों का सिलसिला 1999 में प्रथम डाइऑक्सिन संकट, एक प्रमुख खाद्य संदूषण घोटाले के बाद टूट गया।- डाइऑक्सिन संकट के अवसर पर: α छह दलों से एक 'इंद्रधनुष गठबंधन' उभरा: फ्लेमिश और फ्रेंच भाषी उदारवादी, सोशल डेमोक्रेट, ग्रीन्स. बाद में, 2003 के चुनाव में ग्रीन द्वारा अपनी अधिकांश सीटों को हार जाने के बाद, उदारवादियों और सोशल डेमोक्रेट के एक 'बैंगनी गठबंधन' का निर्माण हुआ। 1999 से 2007 तक प्रधानमंत्री गाइ वर्होफ़स्टाट के नेतृत्व वाली सरकार ने एक संतुलित बजट, कुछ कर-सुधार, श्रम बाजार सुधार, निर्धारित परमाणु निरस्त्रीकरण और अधिक कड़े युद्ध अपराध और अधिक लचीले अमादक दवा उपयोग अभियोजन की अनुमति देते हुए विधि को उकसाया। इच्छामृत्यु पर प्रतिबंध को कम किया और सम-लैंगिक विवाह को वैध किया गया। सरकार ने अफ्रीका में सक्रिय कूटनीति-लेख बेल्जियम की हाल ही में अफ्रीकी नीतियों का एक उदाहरण दिखाता है। को बढ़ावा दिया और इराक पर आक्रमण का विरोध किया। जून 2007 के चुनावों में वर्होफ़स्टाट के गठबंधन ने खराब प्रदर्शन किया। देश ने एक वर्ष से ज़्यादा, राजनीतिक संकट का अनुभव किया। यह संकट ऐसा था कि कई पर्यवेक्षकों ने बेल्जियम के संभावित विभाजन की अटकलें लगाईं. 21 दिसम्बर 2007 से 20 मार्च 2008 तक वर्होफ़स्टाट III सरकार अस्थायी रूप से कार्यरत थी। फ्लेमिश और फ्रैंकोफ़ोन क्रिश्चियन डेमोक्रेट, फ्लेमिश और फ्रैंकोफ़ोन उदारवादी के साथ फ्रैंकोफ़ोन सोशल डेमोक्रेट का यह गठबंधन 20 मार्च 2008 तक एक अंतरिम सरकार था। उस दिन फ्लेमिश क्रिश्चियन डेमोक्रेट वेस लेतर्मे, जून 2007 के संघीय चुनाव के असली विजेता के नेतृत्व वाली एक नई सरकार को राजा ने शपथ दिलाई. चूंकि संवैधानिक सुधारों में कोई प्रगति नहीं हुई, 15 जुलाई 2008 को लेतर्मे ने राजा को कैबिनेट के इस्तीफे की घोषणा की. दिसंबर 2008 में BNP परिबास को फोर्टीस बेचे जाने की घटना के इर्द-गिर्द मंडराते संकट के बाद, उन्होंने एक बार फिर राजा को अपने इस्तीफे की पेशकश की. बेल्जियम के प्रधानमंत्री द्वारा बैंकिंग समझौते पर इस्तीफे की पेशकश ऐसे हालात में, उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया और फ्लेमिश क्रिश्चियन डेमोक्रेट हरमन वान रोम्पे को प्रधानमंत्री के रूप में 30 दिसम्बर 2008 को शपथ दिलाई गई।Belgian king asks Van Rompuy to form government रायटर रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स ने अपने 2007 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक, पर बेल्जियम को (फिनलैंड और स्वीडन के साथ) 169 देशों में 5वें स्थान पर रखा. समुदाय और क्षेत्र thumb|समुदाय:[74] फ्लेमिश और फ्रेंच समुदाय/द्विभाषी भाषा क्षेत्र [75][76] thumb|क्षेत्र:[77][78][79] एक चलन जिसका संबंध बरगंडियन और हैब्सबर्गियन कोर्ट से है, 19वीं सदी में शासी उच्च वर्ग की श्रेणी में आने के लिए फ्रेंच में बात करना ज़रूरी था और जो केवल डच में वार्तालाप करते थे, वे प्रभावी रूप से दूसरी श्रेणी के नागरिक थे। उस सदी के उत्तरार्ध में और 20वीं सदी में जारी रहते हुए, इस परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए फ्लेमिश आंदोलन विकसित होने लगे. वलून्स और अधिकांश ब्रुसलर्स ने अपनी पहली भाषा के रूप में फ्रेंच को अपनाया, फ्लेमिंग्स ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और डच को फ्लेनडर्स की राजभाषा के रूप में अधिरोपित करने में उत्तरोत्तर सफल होते गए। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, बेल्जियम की राजनीति उसके दो मुख्य भाषा समुदायों की स्वायत्तता से दबी रही. अंतर्सामुदायिक तनाव बढ़ते गए और संविधान में संघर्ष तीव्रता को कम करने के लिए संशोधन किया गया। 1962-63 में परिभाषित चार भाषा क्षेत्रों के आधार पर (डच, द्विभाषी, फ्रेंच और जर्मन भाषा के क्षेत्र) देश के संविधान के 1970, 1980, 1988 और 1993 में लगातार संशोधन ने राजनीतिक शक्ति को अलग-अलग तीन स्तरों पर विभाजित करते हुए एक अनोखे संघीय राज्य की स्थापना की.पाद-टिप्पणी: राज्य की प्रत्येक नगर पालिका चार भाषा क्षेत्रों में से एक का हिस्सा है (डच में taalgebieden, जर्मन में Sprachgebiete) कभी-कभी भाषाई क्षेत्र के नाम से ज्ञात (फ्रेंच में régions linguistiques) संविधान के तीन कानूनी संस्करण देखें:* * *   अंग्रेजी अनुवाद, हाल ही में अनवीनीकृत और बिना वैध मूल्य के:* ब्रुसेल्स आधारित संघीय सरकार. त्रिभाषा समुदाय: फ्लेमिश समुदाय (डच भाषी); फ्रांसीसी (यानी, फ्रेंच भाषी) समुदाय; जर्मन भाषी समुदाय. तीन क्षेत्र: फ्लेमिश क्षेत्र, पांच प्रान्तों में उपविभाजित; वलून क्षेत्र, पांच प्रान्तों में उपविभाजित ब्रुसेल्स-राजधानी क्षेत्र. संवैधानिक भाषा क्षेत्र अपने नगर पालिकाओं में राजभाषाओं को, साथ ही, विशिष्ट मामलों के लिए अधिकार प्राप्त संस्थाओं की भौगोलिक सीमा को भी निर्धारित करते हैं। हालांकि इससे सात संसदों और सरकारों के लिए अनुमति मिलेगी, पर जब 1980 में समुदाय और क्षेत्र बनाए गए, तो फ्लेमिश राजनीतिज्ञों ने दोनों के विलय का फैसला किया। इस प्रकार फ्लेमिंग्स के पास सिर्फ संसद का एकल संस्थागत निकाय है और सरकार के पास संघीय और विशिष्ट म्युनिसिपल मामलों को छोड़कर सभी के लिए अधिकार हैं।पाद-टिप्पणियां: संविधान ने सात संस्थाओं की स्थापना की, जिनमें से प्रत्येक के पास अपनी एक संसद, सरकार और प्रशासन हो सकते हैं। दरअसल ऐसे केवल छह निकाय हैं, क्योंकि फ्लेमिश क्षेत्र का फ्लेमिश समुदाय में विलय हो गया है। यह एकल फ्लेमिश निकाय, इस प्रकार ब्रुसेल्स के द्विभाषी क्षेत्र में और डच भाषा क्षेत्र में सामुदायिक मामलों में अधिकार का प्रयोग करता है, जबकि उत्तरवर्ती में केवल क्षेत्रीय मामलों में ही. क्षेत्र और समुदाय की अतिच्छादित सीमाओं ने दो उल्लेखनीय विशेषताओं का निर्माण किया है: ब्रुसेल्स राजधानी क्षेत्र का राज्य क्षेत्र (जो अन्य क्षेत्रों के करीब एक दशक बाद अस्तित्व में आया) फ्लेमिश और फ्रेंच, दोनों समुदायों में शामिल है और जर्मन भाषी समुदाय का क्षेत्र पूरी तरह से वलून क्षेत्र के भीतर स्थित है। निकायों के बीच विवादों को बेल्जियम के संवैधानिक न्यायालय द्वारा हल किया जाता है। यह संरचना, एक समझौते के तौर पर है, ताकि विभिन्न संस्कृतियाँ एक साथ शांतिपूर्ण तरीके से रह सकें. संघीय राज्य की सत्ता में शामिल हैं, न्याय, रक्षा, संघीय पुलिस, सामाजिक सुरक्षा, परमाणु ऊर्जा, मौद्रिक नीति और सार्वजनिक ऋण और सार्वजनिक वित्त के अन्य पहलू. राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों में बेल्जियम डाक समूह और बेल्जियम रेल शामिल है। संघीय सरकार, यूरोपीय संघ और NATO के प्रति बेल्जियम तथा संघात्मक संस्थानों के दायित्वों के लिए ज़िम्मेदार है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य, गृह मंत्रालय और विदेश मामलों के विस्तृत हिस्से को नियंत्रित करती है। संघीय सरकार द्वारा नियंत्रित-ऋणरहित-बजट-राष्ट्रीय वित्तीय आय का 50% होता है। संघीय सरकार नागरिक सेवकों के ca.12% को नियुक्त करती है। समुदाय केवल भाषा निर्धारित भौगोलिक सीमाओं के भीतर अपने अधिकार का प्रयोग करते हैं, मूलतः एक सामुदायिक भाषा के व्यक्तियों की ओर उन्मुख: संस्कृति (श्रव्य-दृश्य मीडिया सहित), शिक्षा और प्रासंगिक भाषा का प्रयोग. निजी मामलों के विस्तार में शामिल हैं, जोकि सीधे भाषा से नहीं जुड़े हैं, स्वास्थ्य नीति (उपचारात्मक और निवारक दवा) और व्यक्तियों के लिए सहायता (युवाओं का संरक्षण, सामाजिक कल्याण, परिवार सहायता, आप्रवासी सहायता सेवा, आदि). क्षेत्रों में प्रान्तीय सत्ता है, जिसे मोटे तौर पर उनके राज्य क्षेत्र के साथ जोड़ा जा सकता है। इनमें शामिल हैं, अर्थव्यवस्था, रोज़गार, कृषि, जल नीति, आवास, लोक निर्माण, ऊर्जा, परिवहन, पर्यावरण, शहर और ग्रामीण योजना, प्रकृति संरक्षण, ऋण और विदेशी व्यापार. वे प्रान्तों, नगर पालिकाओं और अंतर्सामुदायिक उपयोगिता कंपनियों की निगरानी करते हैं। कई क्षेत्रों में, विभिन्न स्तर में प्रत्येक की किसी विशिष्ट पर अपनी पकड़ होती है। उदाहरण के लिए, शिक्षा के मामले में समुदायों की स्वायत्तता में ना तो अनिवार्य पहलू के बारे में निर्णय शामिल है और ना ही योग्यता बांटने के लिए न्यूनतम अर्हता को स्थापित करने की अनुमति है, जो संघीय मामला ही है। सरकार के प्रत्येक स्तर को उसकी शक्तियों से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में शामिल किया जा सकता है। क्षेत्रों और समुदाय सरकारों की संधि करने की शक्तियाँ विश्व के सभी संघों की संघीय इकाइयों की तुलना में सबसे अधिक विस्तृत हैं। भूगोल, जलवायु और पर्यावरण thumb|left|वैसेर नदी के किनारे पोल्डर्स बेल्जियम की सीमा फ्रांस (), जर्मनी (), लक्ज़मबर्ग () और नीदरलैंड के साथ साझा होती है। सतही जल क्षेत्र सहित इसका कुल क्षेत्रफल, 33,990 वर्ग किलोमीटर है; अकेले भूमि क्षेत्र 30,528 कि॰मी॰2 है। बेल्जियम के तीन प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र हैं: उत्तर-पश्चिम में तटीय मैदान और केन्द्रीय पठार, दोनों आंग्ल-बेल्जियम बेसिन के हैं; दक्षिण-पूर्व में आर्डेंस उच्चभूमि, हर्सीनियन ओरोजेनिक बेल्ट का हिस्सा है। पेरिस बेसिन, बेल्जियम के सुदूर दक्षिणी छोर पर, बेल्जियम लोरेन के एक छोटे चौथाई क्षेत्र तक पहुँचता है। तटीय मैदान मुख्य रूप से रेत के टीलों और पोल्डरों से निर्मित है। आगे अंदर है चिकना, धीरे-धीरे ऊंचा होता भूदृश्य, जो कई जलमार्ग द्वारा सिंचित होता है, जहाँ हैं उपजाऊ घाटियाँ और कैम्पाइन (केम्पेन) के पूर्वोत्तर रेतीले मैदान. आर्डेंस के घने वनाच्छादित पहाड़ और पठार अधिक ऊबड़-खाबड़ और पथरीले हैं, जहाँ गुफाएं और छोटे दर्रे हैं, जो निम्न कृषि क्षमता के साथ बेल्जियम का अधिकांश वन्य जीवन समेटे हुए हैं। फ्रांस में पश्चिम की ओर बढ़ें, तो यह क्षेत्र पूर्व में उच्च फेंस पठार द्वारा जर्मनी में आइफेल से जुड़ा है, जिस पर सिग्नल डे बोट्रंज देश के सबसे ऊंचे स्थल का निर्माण करता है। thumb|upright|Ardennes|आरडेंस में जंगली परिदृश्य जलवायु समुद्री समशीतोष्ण है और सभी मौसमों में पर्याप्त वर्षा होती है, (कोपेन जलवायु वर्गीकरण: Cfb). औसत तापमान जनवरी में सबसे कम रहता है और जुलाई में सबसे अधिक. प्रति माह औसत वर्षा फरवरी या अप्रैल में से लेकर जुलाई में के बीच होती है। वर्ष 2000 से 2006 तक का औसत, न्यूनतम दैनिक तापमान को दर्शाता है और अधिकतम तथा मासिक वर्षा ; ये क्रमशः 1°C और पिछली सदी के सामान्य मूल्यों से करीब 10 मिलीमीटर ऊपर है। पादपविकासभूगोल के आधार पर बेल्जियम, बोरिअल किंगडम के अंदर सर्कमबोरिअल क्षेत्र के केन्द्रीय यूरोपीय प्रान्तों और अटलांटिक यूरोपियन के बीच साझा होता है।तख्ताजन, अर्मेन, 1986. फ्लोरिस्टिक रीजन्स ऑफ़ वर्ल्ड (टी.जे. क्रोवेल्लो और ए. क्रोंकिस्ट द्वारा अनूदित). कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय प्रेस, बर्कले. WWF के मुताबिक बेल्जियम का राज्यक्षेत्र अटलांटिक मिश्रित वनों के पारिस्थितिक-क्षेत्र के अधीन है।Atlantic mixed forests (PA0402) , विश्व वन्य-जीव कोष, 2001. अपनी उच्च जनसंख्या घनत्व, पश्चिमी यूरोप के केन्द्र में उसकी अवस्थिति और अपर्याप्त राजनीतिक प्रयास के कारण, बेल्जियम गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं का सामना करता है। 2003 की एक रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि बेल्जियम का प्राकृतिक जल (नदियाँ और भूजल) 122 देशों के अध्ययन में न्यूनतम जल गुणवत्ता युक्त है। 2006 में पायलट पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में, बेल्जियम ने समग्र पर्यावरण प्रदर्शन में 75.9% प्राप्त किये और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में निम्नतम स्थान पर था, हालांकि यह 133 देशों में सिर्फ 39वें पर था।Pilot 2006 Environmental Performance Index - येल पर्यावरण कानून और नीति केन्द्र और कोलंबिया विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान सूचना नेटवर्क केन्द्र अर्थ-व्यवस्था thumb|Ougrée में मेयुज़ नदी के अगल-बगल इस्पात निर्माण, लीग के पास बेल्जियम एक मज़बूत वैश्विक अर्थव्यवस्था हैबेल्जियम 2009 के वैश्वीकरण के सूचकांक KOF में प्रथम स्थान और इसकी बुनियादी परिवहन सुविधाएं यूरोप के साथ एकीकृत हैं। एक उच्च औद्योगिक पारिक्षेत्र के केन्द्र में इसकी अवस्थिति ने इसे 2007 के दुनिया के 15वें सबसे बड़े व्यापारिक देश बनने में मदद की. इसकी अर्थ-व्यवस्था की विशेषताओं में शामिल है, उच्च उत्पादक कार्य बल, उच्च GNP (सकल राष्ट्रीय उत्पाद) और प्रति व्यक्ति उच्च निर्यात. बेल्जियम के मुख्य आयात हैं, खाद्य उत्पाद, मशीनरी, कच्चे हीरे, पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद, रसायन, कपड़े और सामान और वस्त्र. इसके मुख्य निर्यात हैं, मोटर वाहन, खाद्य उत्पाद, लोहा और इस्पात, तराशे हीरे, वस्त्र, प्लास्टिक, पेट्रोलियम उत्पाद और अलोह धातुएं. बेल्जियम की अर्थ-व्यवस्था गभीर रूप से सेवा उन्मुख है और दोहरी प्रकृति दर्शाती है: एक गतिशील फ्लेमिश अर्थ-व्यवस्था और एक वलून अर्थ-व्यवस्था, जो पिछड़ी है। यूरोपीय संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक, बेल्जियम दृढ़ता से एक खुली अर्थ-व्यवस्था और सदस्य अर्थ-व्यवस्थाओं के एकीकरण के लिए यूरोपीय संघ के संस्थानों की शक्तियों के विस्तार करने का समर्थन करता है। 1922 से बेल्जियम और लक्ज़मबर्ग, सीमाशुल्क और मुद्रा संघ के अंतर्गत एकल व्यापार बाज़ार रहे। हैं: द बेल्जियम-लक्ज़मबर्ग इकोनोमिक यूनियन. बेल्जियम पहला यूरोपीय महाद्वीपीय देश था, जो 1800 की शुरूआत में औद्योगिक क्रांति से गुज़रा. लीग और चारलेरोई ने तेज़ी से खनन और इस्पात निर्माण का विकास किया, सिलॉन इंडस्ट्रियल, जो 20वीं शताब्दी के मध्य तक संबर मेयुस घाटी में फला-फूला और 1830 से 1910 के बीच बेल्जियम को विश्व के शीर्ष तीन सबसे औद्योगीकृत देशों में खड़ा कर दिया। हालांकि, 1840 के दशक तक फ्लेनडर्स का वस्त्र उद्योग गंभीर संकट में था और 1846-50 में यह क्षेत्र अकाल से गुज़रा. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, गेन्ट और एंटवर्प, रासायनिक और पेट्रोलियम उद्योगों के तीव्र विकास के साक्षी बने. 1973 और 1979 के तेल संकट ने अर्थव्यवस्था को मंदी में धकेल दिया; यह विशेष रूप से वालोनिया में लंबे समय तक जारी रहा, जहाँ इस्पात उद्योग कम प्रतिस्पर्धी रह गया था और गंभीर गिरावट से गुज़र रहा था। 1980 और 90 के दशक में देश का आर्थिक केन्द्र उत्तर की ओर खिसकता रहा और अब यह घनी आबादी वाले फ्लेमिश डायमंड क्षेत्र में केन्द्रित है। 1980 के दशक के अंत तक, बेल्जियम की वृहत आर्थिक नीतियों के फलस्वरूप, GDP का 120% का संचयी सरकारी कर्ज हो गया। यथा 2006 बजट संतुलित था और सार्वजनिक ऋण GDP के 90.30% के बराबर था। 2005 और 2006 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद दर, जो क्रमशः 1.5% और 3.0% थी, यूरो क्षेत्र के औसत से थोड़ा ऊपर थे। 2005 में बेरोजगारी की 8.4% की दर और 2006 में 8.2% की दर, क्षेत्र के औसत के क़रीब थी। 1832 से 2002 तक, बेल्जियम की मुद्रा बेल्जियम फ्रैंक थी। बेल्जियम ने 2002 में इसे यूरो से बदल दिया, जिसके तहत यूरो सिक्कों का पहला सेट 1999 में ढाला गया। जबकि मानक बेल्जियन यूरो सिक्के, जो संचलन के लिए निर्धारित हैं राजा अल्बर्ट द्वितीय का चित्र लिए हुए हैं, ऐसा स्मारक सिक्कों के लिए नहीं हुआ, जहाँ डिज़ाइन स्वतंत्र रूप से चुने गए हैं। जनसांख्यिकी thumb|बेल्जियम के प्रमुख क्षेत्र और स्थान 2007 की शुरूआत में बेल्जियम की लगभग 92% जनसंख्या राष्ट्रीय नागरिक थी और लगभग 6% अन्य यूरोपीय संघ के सदस्य देशों से नागरिक थे। प्रचलित विदेशी नागरिकों में थे, इतालवी (171,918), फ्रांसीसी (125,061), डच (116,970), मोरक्कन (80,579), स्पेनी (42,765), तुर्की (39,419) और जर्मन (37,621). शहरीकरण thumb|left|ब्रुसेल्स, बेल्जियम की राजधानी और देश में सबसे बड़ा महानगरीय क्षेत्र. बेल्जियम की लगभग पूरी आबादी शहरी है- 2004 में 97%. बेल्जियम का जनसंख्या घनत्व 342 प्रति वर्ग किलोमीटर है (886 प्रति वर्ग मील)- यूरोप में सर्वाधिक में से एक, नीदरलैंड्स और मोनाको जैसे कुछ लघु राज्यों के बाद. सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र फ्लेमिश डायमंड है - एंटवर्प- लोवेन - ब्रुसेल्स - गेन्ट के संकुलन द्वारा संक्षेपित. आर्डेंस का सबसे कम घनत्व है। यथा 2006, फ्लेमिश क्षेत्र की आबादी, इसके सर्वाधिक आबादी वाले शहर एंटवर्प (457,749), गेन्ट (230,951) और ब्रुगेस (117,251) सहित, लगभग 6,078,600 थी; वालोनिया की आबादी, इसका सबसे अधिक आबादी वाले चारलेरोई (201,373), लीग (185,574) और नामुर (107,178) सहित 3,413,978 थी। ब्रुसेल्स में राजधानी क्षेत्र की 19 नगर पालिकाओं में 1,018,804 रहते हैं, जिनमें से दो में 1,00,000 निवासियों से अधिक हैं। भाषाएँ thumb|right|राजभाषाएं :[175][176] [177] बेल्जियम की तीन राजभाषाएं, जो सबसे ज़्यादा बोलने वालों से लेकर सबसे कम बोलने वालों के क्रमानुसार डच, फ्रेंच और जर्मन हैं। कई गैर-आधिकारिक, अल्पसंख्यक भाषाएँ भी बोली जाती हैं। चूंकि कोई जनगणना मौजूद नहीं है, बेल्जियम की तीन राजभाषाओं या उनकी बोलियों के उपयोग अथवा वितरण के बारे में कोई आधिकारिक सांख्यिकीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। बहरहाल, विभिन्न मानदंडों से जैसे माता-पिता की भाषा, शिक्षा की भाषा, या विदेशी पैदाइश वालों की दूसरी भाषा की स्थिति से आंकड़ों के संकेत उपलब्ध हो सकते हैं। अनुमानित रूप से बेल्जियम जनसंख्या का करीब 59%पाद-टिप्पणी: वालोनिया में रहने वाले मूल डच भाषी और फ्लेनडर्स में फ्रेंच अपेक्षाकृत छोटे अल्पसंख्यक हैं, जो एक-दूसरे को संतुलित करते हैं, इसलिए क्षेत्र की भाषा के लिए, प्रत्येक एकभाषी क्षेत्र के सभी निवासियों की गिनती करना महत्वहीन त्रुटियों का कारण होगा (99% भाषा बोल सकते हैं). डच: फ्लेनडर्स 6.079 मीलियन निवासी और ब्रुसेल्स के 1.019 मीलियन का 15%, जो बेल्जियम (2006) के 10.511 मीलियन निवासियों का 6.23 मीलियन या 59.3% है; जर्मन: जर्मन भाषी समुदाय में 70,400 (जहाँ इसके 5% से कम फ्रेंच भाषियों के लिए भाषा की सुविधा है) और अपने सरकारी समुदाय की भौगोलिक सीमाओं के बाहर वलून क्षेत्र में अनुमानित 20,000-25,000 जर्मन भाषी, या 0.9%; फ्रेंच: बाद के क्षेत्रो में व साथ ही साथ बाकी वालोनिया में (3.414 - 0.093 = 3.321 मीलियन) और ब्रुसेल्स के 85% निवासी (0.866 मीलियन) इस प्रकार 4.187 मीलियन या 39.8%; साथ में वास्तव में 100%. डच (बोलचाल की भाषा में अक्सर "फ्लेमिश" के रूप में उल्लिखित) और 40% फ्रेंच बोलता है। डच बोलने वालों की कुल संख्या है 6.23 मीलियन, जो फ्लेनडर्स के उत्तरी क्षेत्र में केन्द्रित हैं, जबकि फ्रेंच बोलने वाले 33.2 मीलियन वालोनिया में और अनुमानित रूप से 0.87 मीलियन या 85%, आधिकारिक तौर पर द्विभाषी ब्रुसेल्स-राजधानी क्षेत्र के हैं।फ्लेमिश अकैडमिक एरिक कोरिन (Charta 91 के सर्जक) ने, 2001/12/05 को ब्रुसेल्स संबंधित वार्तालाप में कहा कि ब्रुसेल्स में जनसंख्या का 91% घर पर फ्रेंच बोलता है, या तो अकेले या किसी अन्य भाषा के साथ और 20% घर में डच बोलते हैं, (9%) अकेले या फ्रेंच के साथ (11%)- सोच-विचार के बाद, पुनर्विभाजन को 85 और 90% फ्रेंच भाषी के बीच अनुमानित किया जा सकता है और शेष डच भाषी हैं, अपने सरकारी दस्तावेजों (ID, ड्राइविंग लाइसेंस, शादी, जन्म, सेक्स इत्यादि) के लिए नागरिकों द्वारा ब्रुसेल्स में चुनी भाषाओं पर के आधार पर परिकलित अनुमान पर आधारित है और भाषा पर ये सभी आंकड़े बेल्जियम न्याय विभाग में भी उपलब्ध हैं (विवाह, जन्म, लिंग के लिए), परिवहन विभाग में (ड्राइविंग लाइसेंस के लिए), आतंरिक विभाग (ID के लिए), बेल्जियम द्वारा राजभाषाई जनगणना को समाप्त किए जाने की वजह से, अनुपात जानने का कोई सटीक तरीका नहीं है, अतः भाषा विकल्पों पर सरकारी दस्तावेज केवल अनुमान हो सकते हैं। इस विषय पर एक वेब स्रोत के लिए, देखें उदाहरण जनरल ऑनलाइन स्रोत: जेन्सेंस, रूडी-कड़ाई से राजधानी नगरपालिका ब्रुसेल्स (का शहर) है, हालांकि अपने नाम के चलते ब्रुसेल्स-राजधानी क्षेत्र सन्दर्भित हो सकता है और राजधानी के लिए विशिष्ट इसके अन्य नगर पालिका आवास संस्था। वालून क्षेत्र के पूर्व में जर्मन भाषी समुदाय 73,000 लोगों से बना है; करीब 10,000 जर्मन और 60,000 बेल्जियन नागरिक जर्मन भाषी हैं। लगभग 23,000 और जर्मन भाषी आधिकारिक समुदाय के निकट नगर पालिकाओं में रहते हैं।* *thumb|ब्रसेल्स में द्विभाषीय संकेत. बेल्जियम में बोली जाने वाली डच और बेल्जियन फ्रेंच, दोनों में क्रमशः नीदरलैंड और फ्रांस में बोली जाने वाली किस्मों से शब्दावली और शब्दार्थ बारीकियों में मामूली भिन्नता है। कई फ्लेमिश लोग अभी भी अपने स्थानीय परिवेश में डच की बोलियां बोलते हैं। वालून, जो कभी वालोनिया की मुख्य क्षेत्रीय भाषा हुआ करती थी, अब यदा-कदा ही, ज़्यादातर बुज़ुर्ग लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है। वालोनिया की बोलियां, पिकार्ड वाली सहित, सार्वजनिक जीवन में प्रयोग नहीं की जाती हैं। शिक्षा बेल्जियन के लिए छह से लेकर अठारह तक शिक्षा अनिवार्य है, लेकिन कई 23 साल की उम्र तक अध्ययन जारी रखते हैं। 2002 में, 18-21 उम्र वाले माध्यमिकोत्तर शिक्षा में नामांकित लोगों के साथ बेल्जियम, OECD देशों में 42% सहित तीसरे सर्वाधिक अनुपात पर था। हालांकि वयस्क आबादी का अनुमानित 98% साक्षर है, कार्यात्मक निरक्षरता को लेकर चिन्ता बढ़ रही है। OECD द्वारा समन्वित, अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थी मूल्यांकन कार्यक्रम, वर्तमान में बेल्जियम की शिक्षा को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ के हिसाब से 19वें स्थान पर रखता है, जो कि महत्वपूर्ण रूप से OECD औसत से अधिक है। 19वीं शताब्दी के उदारवादी और कैथोलिक दलों की विशिष्टताओं से यक्त बेल्जियम के राजनैतिक परिदृश्य की दोहरी संरचना को प्रतिबिंबित करते हुए, शिक्षा प्रणाली को एक धर्मनिरपेक्ष और एक धार्मिक वर्ग के बीच पृथक किया गया है। स्कूली शिक्षा की धर्मनिरपेक्ष शाखा का नियंत्रण समुदायों, प्रान्तों, या नगर पालिकाओं द्वारा किया जाता है, जबकि धार्मिक का, मुख्य रूप से कैथोलिक शाखा शिक्षा का प्रबंधन धार्मिक अधिकारियों द्वारा होता है, यद्यपि यह समुदायों द्वारा सब्सिडी प्राप्त और उनकी निगरानी होती है। धर्म thumb|upright|ब्रुसेल्स में सेंट माइकल और गुदुला कथेड्रल देश की आजादी के बाद से, दृढ़ स्वतंत्रविचार आंदोलनों से प्रतिभारित रोमन कैथोलिक धर्म की बेल्जियम की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है।उदाहरण के लिए कैथोलिक विश्वकोश में बेल्जियम प्रविष्टि देखें लेकिन मुख्य तौर पर बेल्जियम एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहाँ लाइसिस्ट संविधान धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है और सरकार आम तौर पर व्यवहार में इस अधिकार का सम्मान करती है। अल्बर्ट I और बौडोइन के शासनकाल के दौरान, राजशाही की प्रतिष्ठा कैथोलिक मत में गहरे विश्वासी की रही. प्रतीकात्मक और वास्तविक रूप में, रोमन कैथोलिक चर्च एक लाभप्रद स्थिति में बना हुआ है। बेल्जियम की 'मान्यता प्राप्त धर्म' की अवधारणा ने इस्लाम के लिए यहूदी और प्रोटेस्टेंट धर्मों के साथ व्यवहार विकसित करने के लिए मार्ग प्रशस्त किया है। जबकि अन्य अल्पसंख्यक धर्मों, जैसे हिंदू धर्म के पास अभी तक ऐसी स्थिति नहीं है, बौद्ध धर्म ने 2007 में कानूनी मान्यता की ओर पहला कदम उठाया। वैकल्पिक urls: α , β , pdf 1.1 MB: γ 2001 सर्वे एंड स्टडी ऑफ़ रिलिजन के मुताबिक जनसंख्या का 47% खुद को कैथोलिक चर्च से संबंधित के रूप में पहचानता है, जबकि 3.5% पर इस्लाम, दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। 2006 की एक जांच में फ्लेनडर्स में, जो वालोनिया से अधिक धार्मिक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, पता चला कि 55% लोग अपने को धार्मिक मानते हैं और 36% का विश्वास था कि भगवान ने दुनिया बनाई गई।'Vepec', द्वारा जांच 'Vereniging voor Promotie en Communicatie' (संवर्धन और संचार के लिए संगठन), 22 नवम्बर 2006 पृ. 14 नैक पत्रिका में प्रकाशित [डच भाषा शब्द 'gelovig' पाठ में 'धार्मिक' के रूप में अनूदित है और अधिक सटीक तौर पर विशेष रूप से यह किसी तरह के एकेश्वरवादी अर्थों में भगवान में विश्वास करने के लिए एक बहुत आम शब्द है/या किसी अगले जन्म में]. 2005 के सबसे हाल के यूरोबैरोमीटर चुनाव के अनुसार, बेल्जियम के 43% नागरिकों ने उत्तर दिया कि "उनका मानना है कि भगवान होता है", जबकि 29% का उत्तर था कि "उनका मानना है कि आत्मा जैसी या जीवन शक्ति जैसी कुछ तो है" और 27% ने कहा कि "वे नहीं मानते कि किसी भी तरह की कोई आत्मा, भगवान, या जीवन शक्ति होती है". ऐसा अनुमान है कि बेल्जियम की जनसंख्या का 3% से 4% मुसलमान (98% सुन्नी) (350000-400000 लोग) है।The many faces of Islam , TIME बेल्जियम के मुसलमानों में अधिकांश एंटवर्प, ब्रसेल्स और चारलेरोई जैसे बड़े शहरों में रहते हैं। बेल्जियम में आप्रवासियों का सबसे बड़ा समूह मोरक्कन का है, जिनकी संख्या 264,974 है। तुर्क तीसरा सबसे बड़ा समूह और दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम जातीय समूह है, जिनकी संख्या 159,336 है। यहाँ हिंदूओं की एक छोटी आबादी भी है। इसके अलावा करीब 10,000 सिक्ख भी बेल्जियम में मौजूद हैं. विज्ञान और प्रौद्योगिकी thumb|upright|गेरारडस मर्केटर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में योगदान देश के सम्पूर्ण इतिहास में दिखाई देता है। सोलहवीं सदी में प्रारंभिक आधुनिक पश्चिमी यूरोप के उत्कर्ष के सबसे प्रभावशाली वैज्ञानिकों में शामिल थे मानचित्रकार गेरार्डस मर्केटर, शरीररचना-विज्ञानी ऐनद्रिआस वेसेलिअस, औषधि-ज्ञानी रेम्बर्ट डोडोएन्स और गणितज्ञ सिमोन स्टेविन. तेजी से विकसित और घनी बेल्जियम रेलवे प्रणाली ने ला ब्रुजोइस एट निवेलेस जैसी प्रमुख कंपनियों (अब बम्बारडिअर ट्रांसपोर्टेशन का BN विभाग) को विशिष्ट प्रौद्योगिकियों और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण अत्यंत गहन कोयला खनन के विकास के लिए प्रेरित किया, क्योंकि प्रथम औद्योगिक क्रांति के दौरान खनन इंजीनियरों के लिए अत्यधिक प्रतिष्ठित विशेष अध्ययन की जरूरत थी। उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी ने, व्यावहारिक विज्ञान और शुद्ध विज्ञान के क्षेत्र में बेल्जियम की महत्वपूर्ण उन्नति देखी. 1860 के दशक में, रसायनज्ञ अर्नेस्ट सोल्वे और इंजीनियर ज़ेनोब ग्रेम (École Industrielle de Liège) ने क्रमशः सोल्वे प्रक्रिया और ग्रेम डाइनेमो को अपना नाम दिया था। 1907-1909 में लियो बेकलैंड द्वारा बेकलाईट विकसित की गई। जॉरजेस लेमेत्रे (लोवेन का कैथोलिक विश्वविद्यालय) को 1927 में ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बिग बैंग सिद्धांत को पेश करने का श्रेय दिया जाता है। तीन शरीर-क्रिया विज्ञान या चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार बेल्जियन को प्राप्त हुए हैं: 1919 में जूल्स बोर्डेट (Université Libre de Bruxelles), 1938 में कोर्नेल हेमंस (गेन्ट विश्वविद्यालय) और 1974 में अल्बर्ट क्लाड (Université Libre de Bruxelles) के साथ में क्रिस्चियन डे दूव (Université Catholique de Louvain). 1977 में इल्या प्रिगोगिन (Université Libre de Bruxelles) को रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।* * (*) द्वारा pay-per-view लेख के लिए निःशुल्क सारांश * संस्कृति सांस्कृतिक जीवन आजकल हर भाषा समुदाय में केन्द्रित है और विभिन्न प्रकार के बंधनों ने एक साझा सांस्कृतिक माहौल को धुंधला कर दिया है। 1970 के दशक के बाद से, देश में रॉयल मिलिटरी अकादमी को छोड़कर एक भी द्विभाषी विश्वविद्यालय नहीं है, कोई आम मीडिया नहीं है और कोई ऐसा बड़ा सांस्कृतिक या वैज्ञानिक संगठन नहीं है, जिसमें दोनों प्रमुख समुदायों का प्रतिनिधित्व हो. बेल्जियन को कभी एक साथ बांधने वाली ताकतें - रोमन कैथोलिक और डच का आर्थिक और राजनीतिक विरोध - अब मजबूत नहीं रह गए हैं। इसके राजनीतिक और भाषाई विभाजन के बावजूद, जो सदियों से बदलता गया है, वर्तमान बेल्जियम से संबंधित इस क्षेत्र ने प्रमुख कलात्मक आंदोलनों के उत्कर्ष को देखा है, जिसका यूरोपीय कला और संस्कृति पर काफी प्रभाव पड़ा है। ललित कला thumb|upright|पगड़ीधारी एक व्यक्ति की तस्वीर (आयल ऑन बोर्ड, c. 1433) जैन वैन आइक द्वारा), नेशनल गैलरी, लंदन में. चित्रकला और वास्तुकला के लिए योगदान विशेष रूप से समृद्ध रहा है। मोज़न कला, अर्ली नीदरलैंडीश, फ्लेमिश पुनर्जागरण और बैरक पेंटिंग और रोमनेस्क, गोथिक, पुनर्जागरण और बैरक वास्तुकलाबेल्जियम में प्रमुख वास्तु उपलब्धि के अनेक उदाहरण युनेस्को की विश्व धरोहर सूची में हैं: के प्रमुख उदाहरण, कला के इतिहास में मील के पत्थर रहे। हैं। जहाँ निचले देशों में 15वीं सदी की कला में जैन वैन आइक और रोजिअर वन डेर वेडेन के धार्मिक चित्रों का प्रभुत्व रहा, वहीं 16वीं सदी शैलियों के एक व्यापक पैनल द्वारा परिभाषित हुई, जैसे पीटर ब्रौयल की लैंडस्केप पेंटिंग और लाम्बर्ट लोम्बार्ड की प्राचीन वस्तुओं की प्रस्तुति. हालांकि पीटर पॉल रूबेंस और एंथनी वैन डिक की बैरक शैली दक्षिणी नीदरलैंड में आरंभिक 17वीं सदी में फली-फूली, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे इसका पतन होता गया।-उसके कलाकारों की एक सूची सहित फ्लेमिश कलात्मक आंदोलन की एक सामान्य प्रस्तुति, जो उनकी जीवनी और कलात्मक रचनाओं से जोड़ती है उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के दौरान, कई मौलिक रोमांटिक अभिव्यन्जनावादी और अतियथार्थवादी बेल्जियन चित्रकार उभरे, जिनमें शामिल थे जेम्स एन्सर, कोंस्टैन्ट पेर्मेक, पॉल डेलवौक्स और रेने मेग्रिट. कला के क्षेत्र में अग्रगामी CoBrA आंदोलन 1950 में उभरा, जबकि मूर्तिकार पानामरेंको समकालीन कला में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बने रहे। .-बेल्जियम के चित्रकारों की सूची, जो उनकी जीवनी और कलात्मक रचनाओं से जोड़ती है बहुआयामी कलाकार जैन फेबर और चित्रकार ल्यूक टैमंस समकालीन कला परिदृश्य पर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अन्य व्यक्ति हैं। वास्तुकला में बेल्जियम का योगदान उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में भी जारी रहा, जिसमें विक्टर होर्टा और हेनरी वैन डे वेल्डे के कार्य भी शामिल हैं, जो आर्ट नोव्यू शैली के प्रमुख प्रणेता थे।Brussels, capital of Art Nouveau (page 1), (उदाहरण के लिए) फ्रेंको फ्लेमिश स्कूल का गायन, निचले देशों के दक्षिणी हिस्से में विकसित हुआ और पुनर्जागरण संस्कृति के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान था। उन्नीसवीं और बीसवीं सदी ने प्रमुख वायलिन वादकों का उदय देखा, जैसे हेनरी व्युक्सटेम्प्स, यूजीन साए और आर्थर ग्रुमिआक्स, जबकि अडोल्फ सैक्स ने 1846 में सैक्सोफोन का आविष्कार किया। संगीतकार सीज़र फ्रैंक लीग में 1822 में पैदा हुए थे। बेल्जियम में समकालीन संगीत की भी ख्याति है। जैज़ संगीतकार टूट्स थिएलमंस और गायक जैक्स ब्रेल ने वैश्विक ख्याति प्राप्त की. रॉक/पॉप संगीत में, टेलेक्स, फ्रंट 242, K's चॉयस, हूवरफोनिक, जैप मामा, सोलवैक्स और dEUS सुविख्यात हैं।पचास के दशक के बाद से बेल्जियम में रॉक और पॉप संगीत की दो व्यापक चर्चा:* * बेल्जियम में कई विख्यात लेखक पैदा हुए हैं, जिनमें शामिल हैं कवि एमिल फरहारेन और उपन्यासकार हेंड्रिक कॉनशेंस, जोर्जेस सीमेनन, सुज़ेन लिलार और अमेलि नोथोम. 1911 में कवि और नाटककार मौरिस मेटरलिंक ने साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीता. हेर्ग द्वारा द एडवेंचर्स ऑफ़ टिनटिन, सर्वाधिक मशहूर फ्रेंको-बेल्जियम कोमिक्स है, लेकिन कई अन्य प्रमुख लेखकों ने जिनमें शामिल हैं पेयो (द स्मर्फ्स), आन्द्रे फ्रेंक्विन, एडगर पी. जैकब्स और विली वेंडरस्टीन, बेल्जियम कार्टून स्ट्रिप उद्योग को अमेरिका और जापान के समानांतर ला खड़ा किया। बेल्जियम सिनेमा ने कई, मगर मुख्य रूप से फ्लेमिश उपन्यासों को परदे पर जीवंत किया है।फ्लेमिश लेखकों के कार्यों पर आधारित बेल्जियम की उल्लेखनीय फिल्मों में शामिल हैं: डे विट्टे (लेखक अर्नेस्ट क्लेस) जैन वंडरहे। डेन और एडिथ कील द्वारा फिल्म 1934, De Witte van Sichem के रूप में पुनः निर्मित 1980 में रोब डे हेर्ट द्वारा निर्देशित; De man die zijn haar kort liet knippen (जोहान डेज़न) आन्द्रे डेलवौक्स 1965; मीरा ('De teleurgang van de Waterhoek' स्टीन स्ट्रावेल्स द्वारा) फोन्स रेडमेकर्स 1971; Malpertuis (उर्फ द लीजेंड ऑफ़ डूम हाउस)) (जीन रे [फ्लेमिश लेखक का उपनाम, जिन्होंने मुख्य रूप से फ्रेंच में लिखा या डच में जॉन फ्लेनडर्स के रूप में]) हैरी कुमेल 1971; De loteling (हेनड्रिक कोनशेंस) रोलाण्ड फारहवेर्ट 1974; Dood van een non (मारिया रोसील्स) पॉल कोलिट और पियरे ड्राउट 1975; Pallieter (फेलिक्स टिमरमंस) रोलाण्ड फारहवेर्ट 1976; De komst van Joachim Stiller (हुबर्ट लैम्पो) हैरी कुमेल 1976; De Leeuw van Vlaanderen (हेंड्रिक कोनशेंस) ह्यूगो क्लॉस (खुद एक प्रसिद्ध लेखक) 1985; Daens ('पीटर डाएंस' लुइस पॉल बून द्वारा) स्टीन कोनिन्क्स 1992; यह भी देखें Filmarchief les DVD!s s de la cinémathèque (डच में). 2007/06/07 को पुनःप्राप्त. बेल्जियम के अन्य निर्देशकों में शामिल हैं आन्द्रे डेलवौक्स, सतिज्न कोनिन्क्स, लक और जीन पियरे डारडेन; प्रसिद्ध अभिनेताओं में शामिल हैं जैन डेक्लेयर और मैरी गिलेन; और सफल फिल्मों में शामिल हैं मैन बाइट्स डॉग और द अल्ज़ाइमर अफेयर .बेल्जियम सिनेमा की एक समीक्षा पाई जा सकती है 1980 के दशक में, एंटवर्प की रॉयल अकादमी ऑफ़ फाइन आर्ट्स ने महत्वपूर्ण फैशन निर्माताओं को पैदा किया, जिन्हें एंटवर्प सिक्स के नाम से जाना जाता है। लोक-साहित्य thumb|द गाइल्स ऑफ़ बिन्च, वेशभूषा में, मोम मास्क पहने बेल्जियम के सांस्कृतिक जीवन में लोककथाओं की एक महत्वपूर्ण भूमिका है: इस देश में शोभा यात्राओं, काफिलों, परेडों, 'ओमेनगांग्स' और 'डुकासेस', 'कर्मेस' और अन्य स्थानीय त्यौहारों की अपेक्षाकृत एक उच्च संख्या पाई जाती है, जिसके पीछे लगभग हमेशा मौलिक रूप से धार्मिक या पौराणिक पृष्ठभूमि होती है। अपने प्रसिद्ध गाइल्स के साथ बिन्च कार्निवल और अथ, ब्रुसेल्स, डेन्डरमोंड, मेकलेन और मोन्स के 'जुलूस के दैत्य और ड्रेगन' युनेस्को द्वारा मानवता के मौखिक और अमूर्त विरासत की श्रेष्ठ कृतियों के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। अन्य उदाहरण हैं, आल्स्ट का कार्निवल; ब्रुगेस में पवित्र रक्त का अभी भी अत्यंत धार्मिक जुलूस, हासेल में विर्गा जेस बसीलीका और मेकलेन में हान्सविक; लीग में 15 अगस्त का त्योहार; और नामूर में वलून त्योहार. 1832 में प्रारंभ और 1960 के दशक में पुनर्जीवित जेंट्से फीसटेन, एक आधुनिक परंपरा बन गया है। एक प्रमुख गैर सरकारी अवकाश है सेंट निकोलस दिवस, जो बच्चों के लिए और लीग में, छात्रों के लिए एक उत्सव है। खेल एसोसिएशन फुटबॉल और साइकिलिंग बेल्जियम में सबसे लोकप्रिय खेल हैं। टूर डी फ्रांस में पांच जीत और साइकिलिंग में कई अन्य रिकॉर्ड के साथ, बेल्जियम के एडी मेर्क्स सर्वकालिक साइकिल चालक के रूप में #1 रैंक पर हैं। उनका घंटा गति का रिकॉर्ड (1972 में स्थापित) बारह साल तक बना रहा. जीन-मारी फाफ, बेल्जियम के पूर्व गोलकीपर, फुटबॉल के इतिहास में महानतम में से एक माने जाते हैं।"Goalkeeping Greats" Goalkeepersaredifferent.com. 11 जून 2009 को पुनःप्राप्त. बेल्जियम वर्तमान में नीदरलैंड के साथ 2018 विश्व कप की मेजबानी के लिए बोली लगा रहा है।" Benelux trio to apply to host the 2018 World Cup , ESPN सॉकरनेट ग्लोबल, 22 मई 2008 को 2018 FIFA विश्व कप से पुनःप्राप्त दोनों देशों ने पहले 2000 में UEFA यूरोपीय फुटबॉल चैम्पियनशिप की मेजबानी की थी। बेल्जियम ने 1972 में यूरोपीय फुटबॉल चैम्पियनशिप की मेजबानी भी की. किम क्लिस्टर्स और जस्टिन हेनिन, दोनों महिला टेनिस संघ में वर्ष की खिलाड़ी थीं, चूंकि उन्हें नंबर एक महिला टेनिस खिलाड़ी का दर्जा मिला था। स्पा-फ्रेंकरचैम्प्स मोटर रेसिंग सर्किट फार्मूला वन विश्व चैम्पियनशिप बेल्जियम ग्रां प्री की मेजबानी करता है। बेल्जियम के ड्राइवर, जैकी इक्स ने आठ ग्रांड प्रिक्स और छह 24 आवर्स ऑफ़ ले मांस जीती है और फॉर्मूला वन विश्व चैंपियनशिप में दो बार वे द्वितीय स्थान पर रहे। हैं। बेल्जियम की मोटोक्रॉस में भी एक मजबूत प्रतिष्ठा है; विश्व चैंपियन रोजर डी कोस्टर, योल रॉबर्ट, जोर्जेस जोब, एरिक गेबोर्स, योएल स्मेट्स और स्टेफन एवेर्ट्स शामिल हैं। बेल्जियम में सालाना आयोजित होने वाले खेल कार्यक्रमों में शामिल है मेमोरियल वान डैम एथलेटिक्स प्रतियोगिता, बेल्जियम ग्रांड प्रिक्स फॉर्मूला वन और कई क्लासिक साइकिल दौड़, जैसे कि रोन्डे वन व्लानडेरेन और लीग-बस्टोंन-लीग. 1920 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक एंटवर्प, बेल्जियम में आयोजित हुए थे। right|thumb|upright|ब्रुसेल्स के वेफल्स, जो आम तौर पर बेल्जियम के बाहर बेल्जियम वेफल्स के रूप में ज्ञात. वेफल के विभिन्न प्रकार बेल्जियम में लोकप्रिय हैं। पाक शैली कई उच्च रैंक वाले बेल्जियन रेस्तरां, मिशेलिन गाइड जैसे सबसे प्रभावशाली गैस्ट्रोनोमिक गाइड में पाए जा सकते हैं। बेल्जियम, वेफल्स और फ्रेंच फ्राइज़ के लिए प्रसिद्ध है। अपने नाम के विपरीत, फ्रेंच फ्राइज़ की उत्पत्ति भी बेल्जियम में हुई है। "फ्रेंच फ्राइज़" नाम वास्तव में जिस तरह से आलू काटा जाता है, उसके वर्णन को सन्दर्भित करता है। "फ्रेंच" करने का अर्थ है लंबा टुकड़ा करना. राष्ट्रीय पकवान हैं "सलाद के साथ स्टेक और फ्राइज़" और मुसेल्स विथ फ्राइज़. से पुनर्प्रकाशित से पुनर्प्रकाशित नोट: पाठ के तात्पर्य के विपरीत, मौसम जुलाई में शुरू हो जाता है और अप्रैल भर चलता है। बेल्जियम के चॉकलेट और प्रलाइन के ब्रांड जैसे कैलबौट, कोट डी'ओर, नॉयहॉउस, लियोनाइडस, गेलियन, गैलेर एंड गोडिवा विश्व प्रसिद्ध और व्यापक रूप से बिकने वाली हैं। बेल्जियम बियर की 500 किस्मों से अधिक का उत्पादन करता है। ऐबे ऑफ़ वेस्टलेटरन की ट्रैपिस्ट बियर को लगातार दुनिया की सर्वश्रेष्ठ बियर की श्रेणी में रखा गया है।हालांकि स्वाद बहुत ही व्यक्तिपरक और व्यक्तिगत है, कुछ अंतर्राष्ट्रीय बीयर पीने वाले Westvleteren 12 को अपने पसंदीदा बियर में से एक मानते हैं। BeerAdvocate.com और RateBeer.com , बियर रेटिंग की दो वेबसाइटों के अधिकांश सदस्यों ने Westvleteren 12 को लगातार अपने सबसे प्रिय बियर के रूप में दर्ज़ा दिया है, 8 और ब्लॉन्ड को भी दोनों साइटों पर ऊंचा दर्जा हासिल है। दुनिया में सबसे बड़ी मात्रा में शराब बनानेवाला लोवेन में स्थित ऐनहॉयज़र बुश इनबेव है। इन्हें भी देखें बेल्जियम की रूपरेखा बेल्जियम के सूचकांक से संबंधित लेख सन्दर्भ पाद टिप्पणियाँ सामान्य ऑनलाइन स्रोत (अन्य मूल स्रोतों का उल्लेख) 2007/06/07 को पुनःप्राप्त. बेल्जियम संबंधित राष्ट्र और राष्ट्र-राज्य विकास पर कुछ विचार बेल्जियम के राजनीतिक इतिहास का ऐतिहासिक सिंहावलोकन ग्रन्थ सूची - बाहरी कड़ियाँ एक चॉकलेटी दुनिया बेल्जियम सरकार Official site of Belgian monarchy Official site of the Belgian federal government Chief of State and Cabinet Members सामान्य जानकारी ब्रिटैनिका विश्वकोश में बेल्जियम प्रविष्टि UCB Libraries GovPubs में बेल्जियम संयुक्त राज्य विभाग से बेल्जियम जानकारी संयुक्त राज्य कांग्रेस पुस्तकालय से Portals to the World FAO Country Profiles: Belgium पर्यटन Official Site of the Belgian Tourist Office in the Americas and GlobeScope, - उसके links to sites of Belgian Tourist Offices in Belgium- उसके links to sites of Belgian Tourist Offices worldwide अन्य बेल्जियम, कैथोलिक विश्वकोश 1913 में प्रविष्टि, Wikisource पर पुनर्प्रकाशित बेल्जियम सार्वजनिक कूटनीति विकी पर प्रविष्टि, सार्वजनिक कूटनीति पर USC केन्द्र की निगरानी में History of Belgium: Primary Documents EuroDocs: यूरोपीय इतिहास के लिए ऑनलाइन सूत्र श्रेणी:बेल्जियम श्रेणी:यूरोपीय संप्रभु राज्य श्रेणी:बेनेलक्स देश श्रेणी:यूरोपीय संघ के सदस्य राज्य श्रेणी:अटलांटिक महासागर से सटे देश श्रेणी:उत्तरी यूरोप श्रेणी:पश्चिमी यूरोप श्रेणी:संवैधानिक राजतंत्र श्रेणी:डच भाषी देश श्रेणी:संघीय देश श्रेणी:फ्रेंच भाषी देश श्रेणी:जर्मन भाषी देश श्रेणी:उदार लोकतंत्र श्रेणी:ला फ्रैंकोफोनी के सदस्य राज्य श्रेणी:1830 में स्थापित राज्य और शासित प्रदेश श्रेणी:श्रेष्ठ लेख योग्य लेख श्रेणी:गूगल परियोजना श्रेणी:यूरोप के देश
इटली
https://hi.wikipedia.org/wiki/इटली
इताली, आधिकारिक रूप से इतालीय गणराज्य, दक्षिणी यूरोप का एक देश है। यह भूमध्य सागर के मध्य में स्थित है, और इसका क्षेत्र काफ़ी हद तक इसी नाम के भौगोलिक क्षेत्र के साथ मेल खाता है। इताली को पश्चिमी यूरोप का भाग भी माना जाता है, और फ़्रान्स, स्वित्सरलैंड, ऑस्ट्रिया, स्लोवेनिया और वैटिकन सिटी और सान मारिनो के अन्तःक्षेत्रीय लघुराज्यों के साथ भूमि सीमाएँ साझा करता है। इसका स्वित्सरलैंड, कैंपियोन में एक बहिःक्षेत्र है। इताली ६ करोड़ से अधिक की जनसंख्या के साथ 301,230 वर्ग किमी के क्षेत्र में विस्तृत है। यह यूरोपीय संघ का तृतीय सर्वाधिक जनसंख्या वाला सदस्य राज्य है, यूरोप का षष्ठ सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है, और भूमि क्षेत्र के हिसाब से महाद्वीप का दशम सबसे बड़ा देश है। इताली की राजधानी और सबसे बड़ा नगर रोम है। इतालवी प्रायद्वीप ऐतिहासिक रूप से कई प्राचीन जनजातियों का मूल स्थान और गन्तव्य था। मध्य इताली में रोम का लातिन नगर, एक साम्राज्य के रूप में स्थापित, एक गणराज्य बन गया जिसने भूमध्यसागरीय विश्व पर विजय प्राप्त की और शताब्दियों तक एक साम्राज्य के रूप में शासन किया। ईसाई धर्म के प्रसार के साथ, रोमन कैथोलिक चर्च और पोप का केन्द्र बन गया। प्रारम्भिक मध्य युग के दौरान, इताली ने पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन और जार्मनिक जनजातियों के आन्तरिक प्रवास का अनुभव किया। 11तम शताब्दी तक, इतालवी नगर-राज्यों और सामुद्रिक गणराज्यों का विस्तार हुआ, जिससे वाणिज्य के माध्यम से नई समृद्धि आई और आधुनिक पूंजीवाद हेतु आधार प्रस्तुत हुआ। इतालीय पुनर्जागरण 15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान फ्लोरेंस में फला-फूला और यूरोप के बाकी भागों में फैल गया। इतालवी खोजकर्ताओं ने सुदूर पूर्व और नयी दुनिया हेतु नूतन मार्गों की भी खोज की, जिससे यूरोपीय खोज का युग के आरम्भ में मदद मिली। तथापि, अन्य कारकों के बीच इतालीय नगर-राज्यों के मध्य सदियों से चली आ रही अन्तर्द्वन्द्व और कलह ने प्रायोद्वीप को आधुनिक काल के अन्ततः कई राज्यों में खण्डित कर दिया। 17तम और 18तम शताब्दी के दौरान, इतालीय आर्थिक और वाणिज्यिक महत्त्व काफी कम हो गया। सदियों के राजनीतिक और क्षेत्रीय विभाजनों के बाद, 1861 में स्वातन्त्र्य संग्राम और हजारों के अभियान के बाद इताली लगभग पूर्णतः एकीकृत हो गया, जिससे इतालीय साम्राज्य की स्थापना हुई। 19तम शताब्दी के अन्त से लेकर 20तम शताब्दी के आरम्भ तक, इताली ने तेजी से औद्योगीकरण किया, मुख्यतः उत्तर में, और एक औपनिवेशिक साम्राज्य का अधिग्रहण किया, जबकि दक्षिण काफी हद तक दरिद्र रहा और औद्योगीकरण से बाहर रखा गया, जिससे एक बृहदाप्रवास को वृद्धि मिला। 1915 से 1918 तक, इताली ने एंटेंटे के पक्ष में और केन्द्रीय शक्तियों के विरुद्ध प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया। 1922 में, संकट और क्षोभ के दौर के बाद, इतालीय फ़ासीवाद तानाशाही की स्थापना हुई। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, इताली प्रथम अक्ष शक्तियों का भाग था, जब तक कि उसने मित्रपक्ष शक्तियों के सामने आत्मसमर्पण नहीं कर दिया (1940-1943) और उसके बाद, उसके क्षेत्र के भाग पर फासीवादी सहयोग से नात्सी जर्मनी ने कब्जा कर लिया, जो इतालीय प्रतिरोध और इतालीय मुक्ति (1943-1945) के दौरान मित्रपक्ष राष्ट्रों का सह-युद्धरत था। युद्ध की समाप्ति के बाद, देश ने जनमत संग्रह के माध्यम से राजशाही को एक गणतंत्र के साथ बदल दिया और एक प्रमुख विकसित देश बनकर दीर्घकालिक आर्थिक समृद्धि का आनन्द लिया। इताली के पास विश्व का अष्टम-बृहत्तम प्रति व्यक्ति सकल घरेलु उत्पाद है, यूरोप में द्वितीय-बृहत्तम विनिर्माण उद्योग (विश्व में सप्तम-बृहत्तम) है। क्षेत्रीयGabriele Abbondanza, Italy as a Regional Power: the African Context from National Unification to the Present Day (Rome: Aracne, 2016) और वैश्विक आर्थिक, सैन्य, सांस्कृतिक और राजनयिक मामलों में देश की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इताली यूरोपीय संघ का संस्थापक और अग्रणी सदस्य है, और यह नाटो, जी७, भूमध्यसागरीय संघ, लातिन संघ और कई अन्य सहित कई अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों में है। कई आविष्कारों और खोजों का स्रोत, देश को एक सांस्कृतिक महाशक्ति माना जाता है और दीर्घकालिक कला, संगीत, साहित्य, व्यंजन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और फैशन का वैश्विक केन्द्र रहा है। इसमें विश्व की सर्वाधिक संख्या में विश्व धरोहर स्थल (58) हैं, और यह विश्व का पंचम सर्वाधिक पर्यटित देश है। भूगोल thumb|left|320px|इटली का उपग्रह द्वारा लिया गया चित्र। इटली की मुख्य भूमि तीन तरफ़ (दक्षिण और सूर्यपारगमन की दोनों दिशाओं) से भूमध्य सागर द्वारा जलावृत है। इस प्रयद्वीप को इटली के नाम पर ही इटालियन (या इतालवी) प्रायद्वीप कहते हैं। इसका कुल क्षेत्रफल ३,०१,००० वर्ग किलोमीटर है जो मध्यप्रदेशो के क्षेत्रफल से थोड़ा कम है। द्वीपों को मिलाकर इसकी तटरेखा कोई ७,६०० किलोमीटर लंबी है। उत्तर में इसकी सीमा फ्रांस (४८८ कि.मी.), ऑस्ट्रिया (४३० कि.मी.), स्लोवेनिया (२३२ कि.मी.) तथा स्विट्ज़रलैंड से लगती है। वेटिकन सिटी तथा सैन मरीनो चारों तरफ़ से इटली से घिरे हुए हैं। इटली की जलवायु मुख्यतः भूमध्यसागरीय है पर इसमें बहुत अधिक बदलाव पाया जाता है। उदाहरण के लिए ट्यूरिन, मिलान जैसे शहरों की जलवायु को महाद्वीपीय या आर्द्र महाद्वीपीय जलवायु की श्रेणी में रखा जा सकता है। इटली यूरोप के दक्षिणवर्ती तीन बड़े प्रायद्वीपों में बीच का प्रायद्वीप है जो भूमध्यसागर के मध्य में स्थित है। प्रायद्वीप के पश्चिम, दक्षिण तथा पूर्व में क्रमश: तिरहेनियन, आयोनियन तथा ऐड्रियाटिक सागर हैं और उत्तर में आल्प्स पहाड़ की श्रैणियाँ फैली हुई हैं। सिसली, सार्डीनिया तथा कॉर्सिका (जो फ्रांस के अधिकार में हैं), ये तीन बड़े द्वीप तथा लिग्यूरियन सागर में स्थित अन्य टापुओं के समुदाय वस्तुत: इटली से संबद्ध हैं। प्रायद्वीप का आकार एक बड़े बूट (जूते) के समान है जो उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व को चौड़ाई 80 मील से 150 मील तक है। सुदूर दक्षिण में चौड़ाई 35 मील से 20 मील तक है। प्राकृतिक दशा इटली पर्वतीय देश है जिसके उत्तर में आल्प्स पहाड़ तथा मध्य में रीढ़ की भाँति अपेनाइन पर्वत की श्रृंखलाएँ फैली हुई हैं। अपेनाइन पहाड़ जेलोआ तथा नीस नगरों के मध्य से प्रारंभ होकर दक्षिण पूर्व दिशा में एड्रियाटिक समुद्रतट तक चला गया है और मध्य तथा दक्षिणी इटली में रीढ़ की भाँति दक्षिण की तरफ फैला हुआ है। प्राकृतिक भूरचना की दृष्टि से इटली निम्नलिखित चार भागों में बाँटा जा सकता है : (1) आल्प्स की दक्षिणी ढाल, जो इटली के उत्तर में स्थित है। (2) पो तथा वेनिस का मैदान, जो पो आदि नदियों की लाई हुई मिट्टी से बना है। (3) इटली प्रायद्वीप का दक्षिणी भाग, जिसमें सिसली भी सम्मिलित है। इस संपूर्ण भाग में अपेनाइन पर्वतश्रेणी अतिप्रमुख हैं। (4) सार्डीनिया, कॉर्सिका तथा अन्य द्वीपसमूह। किंतु वनस्पति, जलवायु तथा प्राकृतिक दृष्टि से यह प्रायद्वीप तीन भागों में बाँटा जा सकता है- 1. उत्तरी इटली, 2. मध्य इटली तथा 3. दक्षिणी इटली। उत्तरी इटली यह इटली का सबसे घना बसा हुआ मैदानी भाग है जो तुरीय काल में समुद्र था, बाद में नदियों की लाई हुई मिट्टी से बना। यह मैदान देश की 17 प्रतिशत भूमि घेरे हुए है जिसमें चावल, शहतूत तथा पशुओं के लिए चारा बहुतायत से पैदा होता है। उत्तर में आल्प्स पहाड़ की ढाल तथा पहाड़ियाँ हैं जिनपर चरागाह, जंगल तथा सीढ़ीनुमा खेत हैं। पर्वतीय भाग की प्राकृतिक शोभा कुछ झीलों तथा नदियों से बहुत बढ़ गई है। उत्तरी इटली का भौगोलिक वर्णन पो नदी के माध्यम ये ही किया जा सकता है। पो नदी एक पहाड़ी सोते के रूप में माउंट वीज़ो पहाड़ (ऊँचाई 6,000 फुट) से निकलकर 20 मील बहने के बाद सैलुजा के मैदान में प्रवेश करती है। सोसिया नदी के संगम से 337 मील तक इस नदी में नौपरिवहन होता है। समुद्र में गिरने के पहले नदी दो शाखाओं (पो डोल मेस्ट्रा तथा पो डि गोरो) में विभक्त हो जाती है। पो के मुहाने पर 20 मील चौड़ा डेल्टा है। नदी की कुल लंबाई 420 मील है तथा यह 29,000 वर्ग मील भूमि के जल की निकासी करती है। आल्प्स पहाड़ तथा अपेनाइंस से निकलनेवाली पो की मुख्य सहायक नदियाँ क्रमानुसार टिसिनो, अद्दा, ओगलियो और मिन्सिओ तथा टेनारो, टेविया, टारो, सेचिया और पनारो हैं। टाइबर (244 मील) तथा एड्रिज (220 मील) इटली की दूसरी तथा तीसरी सबसे बड़ी नदियाँ हैं। ये प्रारंभ में सँकरी तथा पहाड़ी हैं किंतु मैदानी भाग में इनका विस्तार बढ़ जाता है और बाढ़ आती है। ये सभी नदियाँ सिंचाई तथा विद्युत उत्पादन की दृष्टि से परम उपयोगी हैं, किंतु यातायात के लिए अनुपयुक्त। आल्प्स, अपेनाइंस तथा एड्रियाटिक सागर के मध्य में स्थित एक सँकरा समुद्रतटीय मैदान है। उत्तरी भाग में पर्वतीय ढालों पर मूल्यवान फल, जैसे जैतून, अंगूर तथा नारंगी बहुत पैदा होती है। उपजाऊ घाटी तथा मैदानों में घनी बस्ती है। इनमें अनेक गाँव तथा शहर बसे हुए हैं। अधिक ऊँचाइयों पर जंगल हैं। मध्य इटली मध्य इटली के बीच में अपनाइंस पहाड़ उत्तर-उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की दिशा में एड्रियाटिक समुद्रतट के समांतर फैला हुआ है। अपेनाइंस का सबसे ऊँचा भाग ग्रैनसासोडी इटैलिया (9,560 फुट) इसी भाग में है। यहाँ पर्वतश्रेणियों का जाल बिछा हुआ है, जिनमें अधिकांश नवंबर से मई तक बर्फ से ढकी रहती हैं। यहाँ पर कुछ विस्तृत, बहुत सुंदर तथा उपजाऊ घाटियाँ हैं, जैसे एटरनो की घाटी (2,380 फुट)। मध्य इटली की प्राकृतिक रचना के कारण यहाँ एक ओर अधिक ठंढा, उच्च पर्वतीय भाग है तथा दूसरी ओर गर्म तथा शीतोष्ण जलवायुवाली ढाल तथा घाटियाँ हैं। पश्चिमी ढाल एक पहाड़ी ऊबड़ खाबड़ भाग है। दक्षिण में टस्कनी तथा टाइबर के बीच का भाग ज्वालामुखी पहाड़ों की देन है, अत: यहाँ शंक्वाकार पहाड़ियाँ तथा झीलें हैं। इस पर्वतीय भाग तथा समुद्र के बीच में काली मिट्टीवाला एक उपजाऊ मैदानी भाग है जिसे कांपान्या कहते हैं। मध्य इटली के पूर्वी तट की तरफ श्रेणियाँ समुद्र के बहुत निकट तक फैली हुई हैं, अत: एड्रियाटिक सागर में गिरनेवाली नदियों का महत्त्व बहुत कम है। यह विषम भाग फलों के उद्यानों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ जैतून तथा अंगूर की खेती होती है। यहाँ बड़े शहरों तथा बड़े गाँवों का अभाव है; अधिकांश लोग छोटे-छोटे कस्बों तथा गाँवों में रहते हैं। खनिज संपत्ति के अभाव के कारण यह भाग औद्योगिक विकास की दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। फुसिनस, ट्रेसिमेनो तथा चिडसी यहाँ की प्रसिद्ध झीलें हैं। पश्चिमी भाग की झीलें ज्वालामुखी पहाड़ों की देन हैं। दक्षिणी इटली यह संपूर्ण भाग पहाड़ी है जिसके बीच में अपेनाइंस रीढ़ की भाँति फैला हुआ है तथा दोनों ओर नीची पहाड़ियाँ हैं। इस भाग की औसत चौड़ाई 50 मील से लेकर 60 मील तक है। पश्चिमी तट पर एक सँकरा "तेरा डी लेवोरो" नाम का तथा पूर्व में आपूलिया का चौड़ा मैदान है। इन दो मैदानों के अतिरिक्त सारा भाग पहाड़ी है और अपेनाइंस की ऊँची नीची श्रंखलाओं से ढका हुआ है। पोटेंजा की पहाड़ी दक्षिणी इटली की अंतिम सबसे ऊँची पहाड़ी (पोलिनो की पहाड़ी) से मिलती है। सुदूर दक्षिण में ग्रेनाइट तथा चूने के पत्थर की, जंगलों से ढकी हुई पहाड़ियाँ तट तक चली गई हैं। लीरी तथा गेटा आदि एड्रियाटिक सागर में गिरनेवाली नदियाँ पश्चिमी ढाल पर बहनेवाली नदियों से अधिक लंबी हैं। ड्रिनगो से दक्षिण की ओर गिरनेवाली विफरनो, फोरटोरे, सेरवारो, आंटों तथा ब्रैडानो मुख्य नदियाँ हैं। दक्षिणी इटली में पहाड़ों के बीच स्थित लैगोडेल-मोटेसी झील है। इटली के समीप स्थित सिसली, सार्डीनिया तथा कॉर्सिका के अतिरिक्त एल्वा, कैप्रिया, गारगोना, पायनोसा, मांटीक्रिस्टो, जिग्लिको आदि मुख्य मुख्य द्वीप हैं। इन द्वीपों में इस्चिया, प्रोसिदा तथा पोंजा, जो नेपुल्स की खाड़ी के पास हैं, ज्वालामुखी पहाड़ों की देन हैं। एड्रियाटिक तट पर केवल ड्रिमिटी द्वीप है। जलवायु तथा वनस्पति देश की प्राकृतिक रचना, अक्षांशीय विस्तार (10 डिग्री 29 मिनट) तथा भूमध्यसागरीय स्थिति ही जलवायु की प्रधान नियामक है। तीन ओर समुद्र तथा उत्तर में उच्च आल्प्स से घिरे होने के कारण यहाँ की जलवायु की विविधता पर्याप्त बढ़ जाती है। यूरोप के सबसे अधिक गर्म देश इटली में जाड़े में अपेक्षाकृत अधिक गर्मी तथा गर्मी में साधारण गर्मी पड़ती है। यह प्रभाव समुद्र से दूरी बढ़ने पर घटता है। आल्प्स के कारण यहाँ उत्तरी ठंढी हवाओं का प्रभाव नहीं पड़ता है। किंतु पूर्वी भाग में ठंढी तथा तेज बोरा नामक हवाएँ चला करती हैं। अपेनाइंस पहाड़ के कारण अंध महासागर से आनेवाली हवाओं का प्रभाव तिर हीनियन समुद्रतट तक ही सीमित रहता है। उत्तरी तथा दक्षिणी इटली के ताप में पर्याप्त अंतर पाया जाता है। ताप का उतार चढ़ाव 52 डिग्री फा. से 66 डिग्री फा. तक होता है। दिसंबर तथा जनवरी सबसे अधिक ठंढे तथा जुलाई और अगस्त सबसे अधिक गर्म महीने हैं। पो नदी के मैदन का औसत ताप 55 डिग्री फा. तथा 500 मील दूर स्थित सिसली का औसत ताप 64 डिग्री फा. है। उत्तर के आल्प्स के पहाड़ी क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 80फ़फ़ होती है। अपेनाइंस के ऊँचे पश्चिमी भाग में भी पर्याप्त वर्षा होती है। पूर्वी लोंबार्डी के दक्षिण पश्चिमी भाग में वार्षिक वर्षा 24फ़फ़ होती है, किंतु उत्तरी भाग में उसका औसत 50फ़फ़ होता है तथा गर्मी शुष्क रहती है। आल्प्स के मध्यवर्ती भाग में गर्मी में वर्षा होती है तथा जाड़े में बर्फ गिरती है। पो नदी की द्रोणी में गर्मी में अधिक वर्षा होती है। स्थानीय कारणों के अतिरिक्त इटली की जलवायु भूमध्यसागरीय है जहाँ जाड़े में वर्षा होती है तथा गर्मी शुष्क रहती है। जलवायु की विषमता के कारण यहाँ की बनस्पतियाँ भी एक सी नहीं हैं। मनुष्य के सतत प्रयत्नों से प्राकृतिक वनस्पतियाँ केवल उच्च पहाड़ों पर ही देखने को मिलती हैं। जहाँ नुकीली पत्तीवाले जंगल पाए जाते हैं। इनमें सरो, देवदारु, चीड़ तथा फर के वृक्ष मुख्य हैं। उत्तर के पर्वतीय ठंढे भागों में अधिक ठंडक सहन करनेवाले पौधे पाए जाते हैं। तटीय तथा अन्य निचले मैदानों में जैतून, नारंगी, नीबू आदि फलों के उद्यान लगे हुए हैं। मध्य इटली में अपेनाइंस पर्वत की ऊँची श्रेणियों को छोड़कर प्राकृतिक वनस्पति अन्यत्र नहीं है। यहाँ जैतून तथा अंगूर की खेती होती है। दक्षिणी इटली में तिरहीनियन तटपर जैतून, नारंगी, नीबू, शहतूत, अंजीर आदि फलों के उद्यान हैं। इस भाग में कंदों से उगाए जानेवाले फूल भी होते हैं। यहाँ ऊँचाई पर तथा सदाबहार जंगल पाए जाते हैं। अत: यह स्पष्ट है कि पूरे इटली को आधुनिक किसानों ने फलों, तरकारियों तथा अन्य फसलों से भर दिया है, केवल पहाड़ों पर ही जंगली पेड़ तथा झाड़ियाँ पाई जाती हैं। कृषि इटली वासियों का सबसे बड़ा व्यवसाय खेती है। संपूर्ण जनसंख्या का भाग खेती से ही अपनी जीविका प्राप्त करता है। जलवायु तथा प्राकृतिक दशा की विभिन्नता के कारण इस छोटे से देश में यूरोप में पैदा होनेवाली सारी चीजें पर्याप्त मात्रा में पैदा होती हैं, अर्थात् राई से लेकर चावल तक, सेब से लेकर नारंगी तक तथा अलसी से लेकर कपास तक। संपूर्ण देश में लगभग 7,05,00,000 एकड़ भूमि उपजाऊ है, जिसमें 1,83,74,000 एकड़ में अन्न, 28,62,000 एकड़ में दाल आदि फसलें, 7,72,000 एकड़ में औद्योगिक फसलें, 14,90,000 एकड़ में तरकारियाँ, 23,86,000 एकड़ में अंगूर, 20,33,000 एकड़ में जैतून, 2,19,000 एकड़ में चरागाह और चारे की फसलें तथा 1,44,58,000 एकड़ में जंगल पाए जाते हैं। यहाँ की खेती प्राचीन ढंग से ही होती है। पहाड़ी भूमि होने के कारण आधुनिक यंत्रों का प्रयोग नहीं हो सका है। जनसंख्या : पूर्व ऐतिहासिक काल में यहाँ की जनसंख्या बहुत कम थी। जनवृद्धि का अनुपात द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले पर्याप्त ऊँचा था (1931 ई. में वार्षिक वृद्धि 0.87 प्रति शत थी)। पर्वतीय भूमि तथा सीमित औद्योगिक विकास के कारण जनसंख्या का घनत्व अन्य यूरोपिय देशों की अपेक्षा बहुत कम है। अधिकांश लोग गाँवों में रहते हैं। देश में 50,000 से ऊपर जनसंख्यावाले नगरों की संख्या 70 है। यहाँ अधिकांश लोग रोमन कैथोलिक धर्म माननेवाले हैं। 1931 ई. की जनगणना के अनुसार 99.6 प्रतिशत लोग कैथोलिक थे, 0.34 प्रतिशत लोग दूसरे धर्म के थे तथा। 06 प्रतिशत ऐसे लोग थे जिनका कोई विशेष धर्म नहीं था। शिक्षा तथा कला की दृष्टि से इटली प्राचीन काल से अग्रणी रहा है। रोम की सभ्यता तथा कला इतिहासकाल में अपनी चरम सीमा तक पहुँच गई थी (द्र. "रोम")। यहाँ के कलाकार और चित्रकार विश्वविख्यात थे। आज भी यहाँ शिक्षा का स्तर बहुत ऊँचा है। निरक्षरता नाम मात्र की भी नहीं है। देश में 70 दैनिक पत्र प्रकाशित होते हैं। छविगृहों की संख्या लगभग 9,770 है (1969 ई.)। खनिज तथा उद्योग धंधे इटली में खनिज पदार्थ अपर्याप्त हैं, केवल पारा ही यहाँ से निर्यात किया जाता है। यहाँ सिसली (काल्टानिसेटा), टस्कनी (अरेंजो, फ्लोरेंस तथा ग्रासेटो), सार्डीनिया (कैगलिआरी, ससारी तथा इंग्लेसियास) एवं पिडमांट क्षेत्रों में ही खनिज तथा औद्योगिक विकास भली भाँति हुआ है। देश का प्रमुख उद्योग कपड़ा बनाने का है। यहाँ 1969 ई. में सूती कपड़े बनाने के 945 कारखाने थे। रेशम का व्यवसाय पूरे इटली में होता है, किंतु लोंबार्डी, पिडमांट तथा वेनेशिया मुख्य सिल्क उत्पादक क्षेत्र हैं। 1969 में गृहउद्योग को छोड़कर रेशमी कपड़े बनाने के 24 तथा ऊनी कपड़े बनाने के 348 कारखाने थे। रासायनिक वस्तु बनाने के तथा चीनी बनाने के भी पर्याप्त कारखाने हैं। देश में मोटर, मोटर साइकिल तथा साइकिल बनाने का बहुत बड़ा उद्योग है। 1969 ई. में 15,95,951 मोटरें बनाई गई थीं जिनमें से 6,30,076 मोटरें निर्यात की गई थीं। अन्य मशीनें तथा औजार बनाने के भी बहुत से कारखाने हैं। जलविद्युत् पैदा करने का बहुत बड़ा धंधा यहाँ होता है। यहाँ 15,88,031 कारखाने हैं, जिनमें 68,00,673 व्यक्ति काम करते हैं। इटली का व्यापारिक संबंध यूरोप के सभी देशों से तथा अर्जेंटीना, संयुक्त राज्य (अमरीका) एवं कैनाडा से है। मुख्य आयात की वस्तुएँ कपास, ऊन, कोयला और रासायनिक पदार्थ हैं तथा निर्यात की वस्तुएँ फल, सूत, कपड़े, मशीनें, मोटर, मोटरसाइकिल एवं रासायनिक पदार्थ हैं। इटली का आयात निर्यात से अधिक होता है। नगर संपूर्ण देश 19 क्षेत्रों तथा 92 प्रांतों में बँटा हुआ है। 19वीं शताब्दी के मध्य से नगरों की संख्या काफी बढ़ी है। अत: प्रांतीय राजधानियों का महत्त्व बढ़ा तथा लोगों का झुकाव नगरों की तरफ हुआ। देश में एक लाख के ऊपर जनसंख्या के कुल 26 नगर हैं। सन् 1969 में 5,00,000 से अधिक जनसंख्या के नगर रोम (इटली की राजधानी, जनसंख्या 27,31,397), मिलान (17,01,612), नेपुल्स (12,76,854), तूरिन (11,77,039) तथा जेनेवा (8,41,841) हैं। संस्कृति विश्व में सर्वाधिक विश्व धरोहर स्थल इटली में हैं। इटली के नगर: टोरीनो बर्गमो वेनिस रवेन्ना बारी रोमा सियेना फ्लोरेन्स पीसा नापोलि पाम्पे सोरेन्टो पलेर्मो मिलानो ट्रिएस्ट वेरोना जेनोआ ब्रिंडिसि आदि हैं। Annu यह भी देखिए इतालवी भाषा इतालवी साहित्य वेनिस गणराज्य wikt:इटली (विक्षनरी) सन्दर्भ आक्स्फ़र्ड ऐट्लस बाहरी कड़ियाँ श्रेणी:यूरोप के देश श्रेणी:इटली
इन्डोनिशिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/इन्डोनिशिया
REDIRECT इंडोनेशिया
आर्मीनिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/आर्मीनिया
आर्मीनिया (आर्मेनिया) पश्चिम एशिया और यूरोप के काकेशस क्षेत्र में स्थित एक पहाड़ी देश है जो चारों तरफ़ ज़मीन से घिरा है। १९९० के पूर्व यह सोवियत संघ का एक अंग था जो एक राज्य के रूप में था। सोवियत संघ में एक जनक्रान्ति एवं राज्यों के आजादी के संघर्ष के बाद आर्मीनिया को २३ अगस्त १९९० को स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई, परन्तु इसके स्थापना की घोषणा २१ सितंबर, १९९१ को हुई एवं इसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता २५ दिसंबर को मिली। इसकी राजधानी येरेवन है। अर्मेनियाई मूल की लिपि आरामाईक एक समय (ईसा पूर्व ३००) भारत से लेकर भूमध्य सागर के बीच प्रयुक्त होती थी। पूर्वी रोमन साम्राज्य और फ़ारस तथा अरब दोनों क्षेत्रों के बीच अवस्थित होने के कारण मध्य काल से यह विदेशी प्रभाव और युद्ध की भूमि रहा है जहाँ इस्लाम और ईसाइयत के कई आरंभिक युद्ध लड़े गए थे। आर्मेनिया प्राचीन ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर वाला देश है। आर्मेनिया के राजा ने चौथी शताब्दी में ही ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था। इस प्रकार आर्मेनिया राज्य ईसाई धर्म ग्रहण करने वाला प्रथम राज्य है।. Estimated dates vary from 284 to 314. Garsoïan (op.cit. p.82), following the research of Ananian, favours the latter. देश में आर्मेनियाई एपोस्टलिक चर्च सबसे बड़ा धर्म है।"The conversion of Armenia to Christianity was probably the most crucial step in its history. It turned Armenia sharply away from its Iranian past and stamped it for centuries with an intrinsic character as clear to the native population as to those outside its borders, who identified Armenia almost at once as the first state to adopt Christianity". (). इसके अलावा यहाँ कैथोलिक ईसाईयों, मुसलमानों और अन्य संप्रदायों का छोटा समुदाय है। आर्मेनिय़ा का कुल क्षेत्रफल २९,८०० कि.मी² (११,५०६ वर्ग मील) है जिसका ४.७१% जलीय क्षेत्र है। अनुमानतः (जुलाई २००८) यहाँ की जनसंख्या ३२,३१,९०० है एवं वर्ग किमी घनत्व १०१ व्यक्ति है। इसकी सीमाएँ तुर्की, जॉर्जिया, अजरबैजान और ईरान से लगी हुई हैं। आज यहाँ ९७.९ प्रतिशत से अधिक आर्मीनियाई जातीय समुदाय के अलावा १.३% यज़िदी, ०.५% रूसी और अन्य अल्पसंख्यक निवास करते हैं। यहां की जनसंख्या का १०.६% भाग अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा (अमरीकी डालर १.२५ प्रतिदिन) से नीचे निवास करता है।मानव विकास सूचकांक , सारणी:३ मानव आय एवं गरीबी, पृ.३४ अभिगमन तिथि: १ जून २००९ आर्मेनिया ४० से अधिक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का सदस्य है। इसमें संयुक्त राष्ट्र, यूरोप परिषद, एशियाई विकास बैंक, स्वतंत्र देशों का राष्ट्रकुल, विश्व व्यापार संगठन एवं गुट निरपेक्ष संगठन आदि प्रमुख हैं। नाम अर्मेनियाई मूल के लोग अपने को हयक का वंशज मानते हैं जो नूह (इस्लाम ईसाईयत और यहूदियों में पूज्य) का पर-परपोता था। कुछ ईसाईयों की मान्यता है कि नोआ (इस्लाम में नूह) और उसका परिवार यहीं आकर बस गया था। आर्मीनिया का अर्मेनियाई भाषा में नाम हयस्तान है जिसका अर्थ हायक की जमीन है। हायक नोह के पर-परपोते का नाम था। इतिहास इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म की उभय मान्यताओं के अनुसार पौराणिक महाप्रलय की बाढ़ से बचाने वाले नोआ (अरबी में नूह, हिन्दू मत्स्यावतार से मेल खाता) का नाव यरावन की पहाड़ियों के पास आकर रुक गया था। अर्मेनियाई अपने को नोहे के परपोते के पोते हयक का वंशज मानते हैं। कांस्य युग में हिट्टी तथा मितन्नी जैसे साम्राज्यों की भूमि रहा है। लौह काल में अरामे के उरातु साम्राज्य ने सभी शक्तियों को एक किया और उसी के नाम पर इस क्षेत्र का नाम अर्मेनिया पड़ा। इतिहास के पन्नों पर आर्मीनिया का आकार कई बार बदला है। ८० ई.पू. में आर्मेनिया राजशाही के अंतर्गत वर्तमान तुर्की का कुछ भू-भाग, सीरिया, लेबनान, ईरान, इराक, अज़रबैजान और वर्तमान आर्मीनिया के भू-भाग सम्मिलित थे। रोमन काल में अर्मेनिया फ़ारस और रोम के बीच बंटा रहा। ईसाई धर्म का प्रचार यूरोप और ख़ुद अर्मेनिया में इसी समय हुआ। सन ५९१ में बिज़ेन्टाईनों ने पारसियों को हरा दिया पर ६४५ में वे ख़ुद दक्षिण में शक्तिशाली हो रहे मुस्लिम अरबों से हार गए। इसके बाद यहाँ इस्लाम के भी प्रचार हुआ। ईरान के सफ़वी वंश के समय (१५०१-१७३०) यह चार बार इस्तांबुल के उस्मानी तुर्कों और इस्फ़हान के शिया सफ़वी शासकों के बीच हस्तांतरित होता रहा। १९२० से लेकर १९९१ तक आर्मीनिया एक साम्यवादी देश था। यह सोवियत संघ का एक सदस्य था। आज आर्मीनिया की तुर्की और अज़रबैजान से लगती सीमा संघर्ष की वजह से बंद रहती हैं। नागोर्नो-काराबाख पर आधिपत्य को लेकर १९९२ में आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच लड़ाई हुई थी जो १९९४ तक चली थी। आज इस जमीन पर आर्मीनिया का अधिकार है लेकिन अजरबैजान अभी भी जमीन पर अपना अधिकार बताता है। प्रशासनिक खंड आर्मेनिया दस प्रांतों (मर्ज़) में बंटा हुआ है। प्रत्येक प्रांत का मुख्य कार्यपालक (मार्ज़पेट) आर्मेनिया सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। इनमें येरवान कों राजधानी शहर (कघाक़) () होने से विशिष्ट दर्जा मिला है। येरवान का मुख्य कार्यपालक महापौर होता है, एवं राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। हरेक प्रांत में स्व-शासित समुदाय (हमायन्क) होते हैं। वर्ष २००७ के आंकड़ों के अनुसार आर्मेनिया में ९१५ समुदाय थे, जिनमें से ४९ शहरी एवं ८६६ ग्रामीण हैं। राजधानी येरवान शहरी समुदाय है, जो १२ अर्ध-स्वायत्त जिलों में भी बंटा हुआ है। प्रांत राजधानी क्षेत्रफल जनसंख्या </tr> अरागत्सोत्न () अश्तारक () २,७५३ कि.मी²१२६,२७८ अरारत () अर्ताशत () २,०९६ कि.मी²२५२,६६५ अर्मावीर () अर्मावीर () १,२४२ कि.मी²२५५,८६१ गेघार्कुनिक () गावर () ५,३४८ कि.मी²२१५,३७१ कोटायक () ह्राज़दान () २,०८९ कि.मी²२४१,३३७ लोरी () वनाद्ज़ोर () ३,७८९ कि.मी²२५३,३५१ शिराक () ग्युमरी () २,६८१ कि.मी²२५७,२४२ स्युनिक () कपान () ४,५०६ कि.मी²१३४,०६१ तवूश () इजेवान () २,७०४ कि.मी²१२१,९६३ वयोत्स द्ज़ोर () येघेग्नाद्ज़ोर () २,३०८ कि.मी²५३,२३० येरवान () – २२७ कि.मी²१,०९१,२३५ ये भी देखें आर्मीनिया-भारत संबंध सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आर्मीनिया.ओआरजी हेलाइफ.आरयू: आर्मीनिया के बारे में जानकारी आर्मीनिया (विक्षनरी) श्रेणी:आर्मेनिया श्रेणी:कॉकस श्रेणी:यूरोप के देश श्रेणी:एशिया के देश श्रेणी:नैऋत्य जंबुद्वीप श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना श्रेणी:स्थलरुद्ध देश श्रेणी:पश्चिमी एशिया
जमैका
https://hi.wikipedia.org/wiki/जमैका
जमैका ग्रेटर एंटीलिज पर स्थित एक द्वीप राष्ट्र है, २३४ किमी लंबाई और ८० किमी चौड़ाई वाले इस द्वीप राष्ट्र का कुल विस्तार ११,१०० वर्ग किमी है। कैरेबियन सागर में स्थित यह देश क्यूबा से १४५ किमी दक्षिण, हैती से १९० किमी पश्चिम में स्थित है। स्पेनिश अधिशासन के दौरान सेंतियागो और बाद में ब्रिटिश क्राउन उपनिवेश जमैका बन गया। २८ लाख की आबादी के साथ यह देश उत्तरी अमेरिका में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के बाद तीसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। राष्ट्रकुल के सदस्य के रूप में यहां की मुखिया महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। यहां की राजधानी किंग्सटन है। यह भी देखिए जमैका (विक्षनरी) श्रेणी:जमैका श्रेणी:कैरेबियाई क्षेत्र श्रेणी:उत्तर अमेरिका के देश श्रेणी:कॅरीबियाई में देश
मॉरिशस
https://hi.wikipedia.org/wiki/मॉरिशस
मॉरीशस गणराज्य (अंग्रेज़ी: Republic of Mauritius, फ़्रांसीसी : République de Maurice), अफ्रीकी महाद्वीप के तट के दक्षिणपूर्व में लगभग 900 किलोमीटर की दूरी पर हिंद महासागर में और मेडागास्कर के पूर्व में स्थित एक द्वीपीय देश है। मॉरीशस में हिंदुओं की आबादी तीसरे नंबर पर है दुनिया में मॉरीशस द्वीप के अतिरिक्त इस गणराज्य मे, सेंट ब्रेंडन, रॉड्रीगज़ और अगालेगा द्वीप भी शामिल हैं। दक्षिणपश्चिम में 200 किलोमीटर पर स्थित फ्रांसीसी रीयूनियन द्वीप और 570 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित रॉड्रीगज़ द्वीप के साथ मॉरीशस मस्कारेने द्वीप समूह का हिस्सा है। मारीशस की संस्कृति, मिश्रित संस्कृति है, जिसका कारण पहले इसका फ्रांस के आधीन होना तथा बाद में ब्रिटिश स्वामित्व में आना है। मॉरीशस द्वीप विलुप्त हो चुके डोडो पक्षी के अंतिम और एकमात्र घर के रूप में भी विख्यात है। इतिहास मॉरीशस के सबसे पुराने अभिलेख लगभग 10 वीं शताब्दी की शुरुआत के हैं जो द्रविड़ (तमिल) और औस्ट्रोनेशी नाविकों के संदंर्भ से आते है। पुर्तगाली नाविकों पहले पहल यहाँ 1507 में आये और उन्होने इस निर्जन द्वीप पर एक यात्रा अड्डा स्थापित किया और फिर इस द्वीप को छोड़ कर चले गये। सन् 1598 में हॉलैंड के तीन पोत जो मसाला द्वीप (स्पाइस आइलैंड) की यात्रा पर निकले थे एक चक्रवात के दौरान रास्ता भटक कर यहाँ पहुँच गये। उन्होने इस द्वीप का नाम अपने नासाओ के युवराज मॉरिस के सम्मान में मॉरिशस रख दिया। सन्1638 में, डच लोगों ने यहाँ पहली स्थायी बस्ती बसाई। चक्रवातों वाली कठोर जलवायु परिस्थितियों और बस्ती को होने वाले लगातार नुक्सान के कारण डचो ने कुछ दशकों बाद इस द्वीप को छोड़ दिया। फ्रांस, जिसका पहले से ही इसके पड़ोसी आइल बॉरबोन (अब रीयूनियन) द्वीप पर नियंत्रण था ने सन् 1715 में मॉरीशस पर कब्ज़ा कर लिया और इसका नाम बदलकर – आइल दे फ्रांस (फ्रांस का द्वीप) रख दिया। फ्रांस के शासन मे, यह द्वीप एक समृद्ध अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हुआ जो चीनी उत्पादन पर आधारित थी। यह आर्थिक परिवर्तन गवर्नर (राज्यपाल) फ्रेंकॉएस माहे दे लेबॉर्डॉनाइस के द्वारा शुरू किया गया था। ब्रिटेन के साथ अपने कई सैन्य संघर्षों के दौरान, फ्रांस ने गैरकानूनी घोषित जलदस्युओं "कोर्सेर्स" को शरण दी, जो अक्सर ब्रिटिश जहाजो, जिन पर मूल्यवान व्यापार का माल लदा होता था को उनकी भारत और ब्रिटेन के मध्य होने वाली यात्राओं के दौरान लूट लेते थे। सन् 1803-1815 के दौरान हुए नेपोलियन युद्धों में ब्रिटिश इस द्वीप का नियंत्रण पाने में सफल हो गये। ग्रांड पोर्ट की लड़ाई जीतने के बावजूद, जो कि नेपोलियन की ब्रिटिशों पर एकमात्र समुद्री विजय थी, फ्रांसीसी, तीन महीने बाद, केप मैलह्युरॉ में ब्रिटेन से हार गये। उन्होनें औपचारिक रूप से 3 दिसम्बर 1810 को कुछ शर्तों के साथ समर्पण कर दिया, ये शर्तें थीं, कि द्वीप पर फ्रांसीसी भाषा का प्रयोग जारी रहेगा और आपराधिक मामलों में नागरिकों पर फ्रांस का कानून लागू होगा। ब्रिटिश शासन के अंतर्गत, इस द्वीप का नाम बदलकर वापस मॉरीशस कर दिया गया। सन् 1965 में, ब्रिटेन (यूनाइटेड किंगडम) ने चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस से अलग कर दिया। उन्होने ऎसा ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र स्थापित करने के लिये किया जिससे वे सामरिक महत्व के द्वीपों का प्रयोग संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग के विभिन्न प्रयोजनों के लिए कर सकें। हालाँकि मॉरीशस की तत्कालीन सरकार उनके इस कदम से सहमत थी पर बाद की सरकारों ने उनके इस कदम को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध बताया है और इन द्वीप समूहों पर अपना अधिकार जताया है। उनके इस दावे को, संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी मान्यता दी गयी है । मॉरीशस ने 1968 में स्वतंत्रता प्राप्त की और देश सन् 1992 में एक गणतंत्र बना। मॉरीशस एक स्थिर लोकतंत्र है जहाँ नियमित रूप से स्वतंत्र चुनाव होते हैं और मानवाधिकारों के मामले में भी देश की छवि अच्छी है, इसके चलते यहाँ काफी विदेशी निवेश हुआ है और यह देश अफ्रीका में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय वाले देशों में से एक है। राजनीति मॉरीशस एक संसदीय लोकतंत्र है जिसकी संरचना ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली पर आधारित है। राज्य का प्रमुख राष्ट्रपति होता है जिसका कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है और उसका चुनाव राष्ट्रीय सभा, मॉरीशस की एकसदनीय संसद करती है। राष्ट्रीय सभा (नेशनल असेंबली) के 62 सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं जबकि चार से आठ सदस्यों की नियुक्ति चुनाव में हारे "श्रेष्ट पराजित" उम्मीदवारों के बीच से जातीय अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने के लिये तब की जाती है जब इन समुदायों को चुनाव से उचित प्रतिनिधित्व ना मिला हो। प्रधानमंत्री और मंत्री परिषद सरकार का नेतृत्व करते हैं। सरकार पांच साल के आधार पर निर्वाचित होती है। सबसे हाल के आम चुनाव 3 जुलाई 2005 में मुख्य भूमि के सभी 20 निर्वाचन क्षेत्रों के साथ ही रॉड्रीगज़ द्वीप के निर्वाचन क्षेत्र में भी कराये गये थे। अंतरराष्ट्रीय मामलों में, मॉरीशस हिंद महासागर आयोग, दक्षिणी अफ्रीकी विकास समुदाय, राष्ट्रमंडल और ला फ्रेंकोफोनी (फ़्रांसीसी बोलने वाले देशों) का हिस्सा है। सन् 2006 में, मॉरीशस को पुर्तगाली भाषाई देशों के समुदाय का एक प्रेक्षक सदस्य बनने को कहा गया जिससे यह उन देशों के और करीब हो सके। मॉरीशस की कोई सेना नहीं है, लेकिन इसके पास एक तटरक्षक बल तथा पुलिस और सुरक्षा बल हैं। जिले और अधीन क्षेत्र Thumb|right|250px|मॉरीशस के जिले मॉरीशस द्वीप नौ जिलों में विभाजित है: ब्लैक रि वर (राजधानी: बैम्बॉस) फ्लाक़ (राजधानी: सेन्टर दे फ्लाक़) ग्रांड पोर्ट (राजधानी: माहेबॉर्ग) मोका (राजधानी: क्वार्टियर मिलिटायरे) पैम्प्लेमूजे़स (राजधानी: ट्रिओलेट) प्लाईनेस् विल्हेम्स (राजधानी: रोज़ हिल/ क्यूरेपाईप) पोर्ट लुई (मॉरीशस की राजधानी) रिवियेरे दु रेम्पार्त (राजधानी: मापाउ) सवान्ने (राजधानी: सूलेक) अधीन क्षेत्र रॉड्रीगज़, द्वीप जो मॉरीशस के उत्तर पूर्व में 560 किलोमीटर पर स्थित है, जिसे अक्टूबर 2002 में आंशिक स्वायत्ता प्रदान की गयी, स्वायत्ता मिलने से पहले यह मॉरीशस का 10 वाँ प्रशासनिक जिला था। अगालेगा, मॉरीशस के उत्तर में 933 किलोमीटर पर दो छोटे टापू हैं। कार्गादोस काराजोस शोआल्स, जिसे सेंट ब्रेन्डन द्वीप के नाम से भी जाना जाता है मॉरीशस के उत्तर में 402 किलोमीटर पर स्थित है। मॉरीशस के अन्य क्षेत्र साउदेन टापू (पूर्वी साउदेन टापू सहित) नजारेथ टापू साया दे मल्हा टापू हॉकिन्स टापू मॉरीशस निम्न क्षेत्रों पर भी अधिकार जताता है: ट्रोमेलिन द्वीप, सम्प्रति में फ्रान्स के आधीन। छगोस द्वीपसमूह, सम्प्रति में ब्रिटेन के आधीन ब्रिटिश हिन्द महासागर क्षेत्र की शक्ल में...! भूगोल thumb|right|200px|मॉरीशस का मानचित्र मॉरीशस मास्कारेने द्वीप समूह का हिस्सा है। इस द्वीपसमूह की श्रृंखला उन अंत:समुद्री ज्वालामुखीय विस्फोटों के कारण बनी है जो अब सक्रिय नहीं हैं। यह ज्वालामुखीय विस्फोट अफ्रीकी प्लेट के रीयूनियन तप्तबिन्दु के ऊपर सरकने के कारण हुए थे। मॉरीशस द्वीप एक केंद्रीय पठार के चारों ओर बना है, जिसकी उच्चतम चोटी पितोन डे ला पेतित रिवियेरे नोएरे 828 मीटर (2717 फुट) उंची है और इसके दक्षिण में स्थित है। पठार के आसपास, मूल गर्त फिर भी पहाड़ों से अलग दिखाई पड़ता है। स्थानीय जलवायु उष्णकटिबंधीय है, जो दक्षिणपूर्व की हवाओं द्वारा संशोधित होती है। यहाँ मई से नवंबर तक शुष्क सर्दियों पड़तीं हैं और नवम्बर से मई का मौसम गर्म, आद्र और गीली गर्मी का होता है। विरोधी-चक्रवात देश को मई से सितंबर के दौरान प्रभावित करते है। चक्रवातों का समय नवंबर-अप्रैल होता है। हॉलैंडा (1994) और दीना (2002) पिछले दो चक्रवात हैं जिन्होने द्वीप को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। उत्तरपश्चिम में स्थित पोर्ट लुई इस द्वीप की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। अन्य महत्वपूर्ण शहरों में क्यूरेपाइप, वकोआस, फ़ीनिक्स, कुआर्ते बोर्नेस, रोज़ हिल और बीयू-बासिन शामिल है। यह् द्वीप अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। उदाहरण के लिए, लेखक मार्क ट्वेन, ने अपने निजी यात्रा वृतांत ‘फॉलॉइंग द एक्वेटर’ में लिखा है कि " मॉरिशस के देख कर आपको विचार आता है पहले मॉरिशस बना और फिर स्वर्ग और स्वर्ग, मॉरीशस की एक नकल मात्र है।” अर्थव्यवस्था thumb|300px|मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई का एक विहंगम दृश्य. सन् 1968 में आजादी के बाद से, मारीशस एक निम्न आय वाली, कृषि उत्पाद आधारित अर्थव्यवस्था से विकसित होकर एक विविधतापूर्ण मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो गया है जिसमे तेजी से बढ़ता औद्योगिक, वित्तीय और पर्यटन क्षेत्र शामिल है। अधिकांश अवधि में वार्षिक वृद्धि दर, 5 % से 6 % के बीच दर्ज की गई है। यह दर बढ़ती जीवन प्रत्याशा, घटती शिशु मृत्यु दर और बुनियादी ढांचे में सुधार से परिलक्षित होती है। सन् 2005 में, अनुमानित 10155 अमरीकी डालर, क्रयशक्ति समता (पीपीपी), के साथ मॉरीशस अफ्रीका में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के हिसाब से सातवें स्थान पर है, इससे आगे हैं रीयूनियन (19233 अमरीकी डॉलर, वास्तविक विनिमय दरों पर), सेशल्स (13887 अमरीकी डालर, पीपीपी पर), गैबॉन (12742 अमरीकी डालर, पीपीपी पर), बोत्सवाना (12057 अमरीकी डालर पीपीपी पर), भूमध्य रेखीय गिनी (11999 अमरीकी डालर, पीपीपी पर) और लीबिया (10727 अमरीकी डालर, पीपीपी पर)। अर्थव्यवस्था मुख्यतः गन्ना बागान, पर्यटन, कपड़ा और सेवा क्षेत्र पर निर्भर है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में भी तेजी से विकास हो रहा हैं। मॉरीशस, लीबिया और सेशल्स केवल तीन ऎसे अफ्रीकी देश हैं जिनका दर्ज़ा " मानव विकास सूचकांक” के हिसाब से ‘उच्च’ है। (रीयूनियन, को फ्रांस का हिस्से मानते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने मानव विकास सूचकांक की वरीयता श्रेणी में सूचीबद्ध नहीं किया है) गन्ना 90% कृषि योग्य भूमि पर उगाया जाता है और जिससे कुल निर्यात आय का 25% प्राप्त होता है। लेकिन 1999 में पड़े भयंकर सूखे से गन्ने की फसल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई थी। सरकार की विकास योजनायें विदेशी निवेश पर आधारित है। मारीशस ने 9000 से अधिक अपतटीय संस्थाओं को आकर्षित किया है जिनका उद्देश्य भारत और दक्षिण अफ्रीका से व्यापार करना है जबकि अकेले बैंकिंग क्षेत्र में निवेश 1 अरब डॉलर से अधिक पहुँच गया है। दिसम्बर 2004 में बेरोजगारी की दर 7.6 % थी। फ्रांस देश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है जिसका इस देश के साथ न सिर्फ निकट संबंध है, बल्कि वो इसे विभिन्न रूपों में तकनीकी सहायता प्रदान करता है। स्थानीय निवासिओं को कम कीमतों पर आयात करने की सुविधा देने और अधिक पर्यटकों जो फिलहाल दुबई और सिंगापुर जाते हैं, को आकर्षित के लिए मॉरीशस अगले चार साल में एक शुल्क मुक्त (ड्यूटी फ्री) द्वीप बनने की दिशा में प्रयासरत है। कई उत्पादों पर ड्यूटी (शुल्क) समाप्त कर दिया गया है और 1850 से अधिक उत्पादों पर जिनमें कपड़े, भोजन, गहने, छायांकन (फोटोग्राफिक) उपकरण, श्रव्य दृश्य उपकरण और प्रकाश व्यवस्था के उपकरण शामिल है पर शुल्क घटा दिया गया है। इसके अतिरिक्त, नए व्यावसायिक अवसरों को आकर्षित करने के उद्देश्य से आर्थिक सुधारों को भी लागू किया गया है। हाल ही में, 2007-2008 के बजट में वित्त मंत्री राम सीतानन ने कंपनी (कार्पोरेट) कर को घटा कर 15 % कर दिया है । ब्रिटिश अमेरिकी इंवेस्टमेंट कंपनी मॉरीशस में मर्सिडीज बेंज, पीजो, मित्सुबिशी और साब कारों की बिक्री का प्रतिनिधित्व करती है। ए डी बी नेटवर्क की योजना पूरे मॉरीशस में लोगों को वायरलेस इंटरनेट पहुँचाने की है, अभी तक यह पहुँच द्वीप के 60% क्षेत्र और 70% जनसंख्या के पास है। भारत के कुल 10.98 अरब अमरीकी डालर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में मॉरीशस का स्थान पहला है। शीर्ष 2000 और जनवरी 2005 के बीच होने वाला मॉरीशस का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मुख्यत: बिजली के उपकरण, दूरसंचार, ईंधन, सीमेंट और जिप्सम उत्पाद तथा सेवा क्षेत्र (वित्तीय और गैर वित्तीय) जैसे विभिन्न क्षेत्रों में आकर्षित है। जनसाँख्यिकी thumb|2011 की जनगणना के अनुसार मॉरीशस का जनसंख्या पिरामिड। मॉरीशस का समाज विभिन्न जातीय समूहों के लोगों से मिल कर बना है। 1 जुलाई 2019 तक मॉरीशस गणराज्य की अनुमानित जनसंख्या 1,265,985 थी, जिसमें 626,341 पुरुष और 639,644 महिलाएं थीं। मॉरीशस द्वीप पर जनसंख्या 1,222,340 थी, और रोड्रिग्स द्वीप की जनसंख्या 43,371 था। अगालेगा और सेंट ब्रैंडन की अनुमानित जनसंख्या 274 थी। मॉरीशस, अफ्रीका महाद्वीप में दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाला देश है। 1982 में एक संवैधानिक संशोधन के बाद, जनगणना के उद्देश्य के लिए किसी मॉरीशियाई को अपनी जातीय पहचान प्रकट करने की कोई आवश्यकता नहीं है। जातीयता पर आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। 1972 की जनगणना, जातीय आधार पर होने वाली अंतिम जनगणना थी। मॉरीशस एक बहुजातीय समाज है, जिसमें भारतीय, अफ्रीकी, चीनी और यूरोपीय (ज्यादातर फ्रांसीसी) मूल के व्यक्ति शामिल हैं। भाषा मॉरीशस की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है, इसलिए सरकार का सारा प्रशासनिक कामकाज अंग्रेजी में होता है। शिक्षा प्रणाली में अंग्रेजी के साथ फ़्रांसीसी का भी इस्तेमाल किया जाता है। फ्रांसीसी भाषा मीडिया की मुख्य भाषा है, चाहें प्रसारण हो या मुद्रण। इसके अलावा व्यापार और उद्योग जगत के मामलों में भी मुख्यतः फ्रांसीसी ही प्रयोग में आती है। सबसे व्यापक रूप से यहाँ मॉरीशियन क्रेयोल भाषा बोली जाती है। हिन्दी भी एक बड़े वर्ग द्वारा बोली व समझी जाती है। देखें (मॉरिशस में हिन्दी। धर्म सांख्यिकी मॉरीशस द्वारा की गयी 2011 की जनगणना के अनुसार, 48.5% मॉरिशियाई जनसंख्या हिन्दु धर्म का पालन करती है, इसके बाद 32.7% ईसाई, 17.2% मुस्लिम और लगभग 0.7% अन्य धर्मों को मानती है। 0.7% लोगों ने स्वयं को नास्तिक या अधार्मिक बताया जबकि 0.1% ने कोई उत्तर नहीं दिया। संस्कृति right|thumb|250px|मॉरिशस में शंकर की मूर्ति right|thumb|250px|मॉरीशस में सागर तट मॉरीशस को इसके स्वादिष्ट खाने से भी जाना जाता है, जो भारतीय, चीनी, क्रेयोल और यूरोपियन खानो का मिश्रण है। इस द्वीप पर रम का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। 1638 में डच लोगों ने मॉरीशस को सबसे पहले गन्ना से परिचित कराया। डच गन्ने की खेती मुख्यतः अरक (रम का एक पूर्व प्रकार) के उत्पादन के लिए करते थे। लेकिन फ्रांस और ब्रिटेन के शासन के दौरान यहाँ गन्ने की खेती को बड़े पैमाने पर किया गया जिसने इस द्वीप के आर्थिक विकास में काफी योगदान दिया। पियरे चार्ल्स फ्रेंकोएज़ हरेल पहला व्यक्ति था जिसने 1850 में मॉरीशस में रम के स्थानीय आसवन का प्रस्ताव किया। सेगा स्थानीय लोक संगीत है। सेगा मूलत: अफ्रीकी संगीत है जिसमे परंपरागत वाद्यो का उपयोग होता है जैसे रवाने जिसे बकरी की त्वचा से बनाया जाता है। आमतौर पर सेगा में गुलामी के दिनों की यातनाओं का वर्णन होता है साथ ही इन गीतों में आजकल के दौर में अश्वेतों की सामाजिक समस्याओं को भी उठाया जाता है। आमतौर पर पुरुषों वाद्य बजाते हैं और महिलायें साथ में नृत्य करती हैं। तटीय क्षेत्र के होटलों में ये शो नियमित रूप से आयोजित किये जाते है। 1847 में मॉरीशस डाक टिकट जारी करने वाला पाँचवां देश बना। यहाँ से दो प्रकार के डाक टिकट जारी किए गये जिन्हें तब मॉरीशस "डाकघर" टिकट के नाम से जाना जाता था। एक टिकट एक "लाल पेनी" और दूसरी " दो नीले पेंस" मूल्य वर्ग की थी और आज यह टिकट शायद दुनिया की सबसे प्रसिद्ध और मूल्यवान टिकटें है। मॉरीशस की जब इसकी खोज हुई थी, तब यह द्वीप एक अज्ञात पक्षी प्रजाति का घर था जिसे, पुर्तगालियों ने डोडो (मूर्ख) कह कर पुकारा क्योकि यह बहुत अक्लमंद नहीं लगते थे। लेकिन, 1681 तक सभी डोडो पक्षियों को बसने वालों और उनके पालतू जानवरों ने मार दिया। एक वैकल्पिक सिद्धांत बताता है कि बसने वालों के साथ आये जंगली सूअरों ने धीमी गति से प्रजनन करने वाले डोडो के घोंसले उजाड़ दिये। फिर भी, डोडो आज मॉरीशस का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह बन गया है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ मॉरिशस का भूगोल Pictures of mauritius | मॉरीशस के चित्र श्रेणी:मॉरीशस श्रेणी:हिन्द महासागर के द्वीप श्रेणी:द्वीप देश श्रेणी:अफ़्रीका के द्वीप श्रेणी:अंग्रेज़ी-भाषी देश व क्षेत्र श्रेणी:फ़्रान्सीसी-भाषी देश व क्षेत्र श्रेणी:अफ़्रीका के देश
ब्रुनेई
https://hi.wikipedia.org/wiki/ब्रुनेई
ब्रुनेई (मलय : برني دارالسلام नेगारा ब्रुनेई दारुस्सलाम) जम्बुद्वीप में स्थित एक देश है। ये इण्डोनेशिया के पास स्थित है। ये एक राजतन्त्र (सल्तनत) है। ब्रुनेई पूर्व में एक समृद्ध मुस्लिम सल्तनत थी, जिसका प्रभाव सम्पूर्ण बोर्नियो तथा फिलीपिन्स के कुछ भागों तक था। 1888 में यह ब्रिटिश संरक्षण में आ गया। 1941 में जापानियों ने यहाँ अधिकार कर लिया। 1945 में ब्रिटेन ने इसे मुक्त करवाकर पुन: अपने संरक्षण में ले लिया। 1971 में ब्रुनेई को आन्तरिक स्वशासन का अधिकार मिला। 1984 में इसे पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। इतिहास 14 वीं से 16 वीं शताब्दी तक ब्रुनेई दारुसलाम सबा, सरवाक और दक्षिणी फिलीपींस के ऊपर एक शक्तिशाली सल्तनत की सीट थी। इस प्रकार, वर्तमान सुल्तान दुनिया में सबसे पुराने सत्तारूढ़ राजवंशों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। 19वीं शताब्दी तक, ब्रुनेई दारुसलाम साम्राज्य युद्ध, समुद्री डाकू और यूरोपीय शक्तियों के औपनिवेशिक विस्तार से दूर हो गया था। 1847 में, सुल्तान ने ग्रेट ब्रिटेन के साथ एक संधि समाप्त की और 1888 में ब्रुनेई दारुसलाम आधिकारिक तौर पर ब्रिटिश संरक्षक बन गया। 1906 में, ब्रुनेई दारुसलाम में आवासीय प्रणाली की स्थापना की गई थी। मलय परंपराओं, परंपराओं और इस्लामी धर्म को छोड़कर सभी मामलों में सुल्तान को सलाह देने के लिए ब्रिटिश निवासी को ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नामित किया गया था। 1959 समझौते ने एक लिखित संविधान की स्थापना की जिसने ब्रुनेई दारुसलाम को आंतरिक स्व-सरकार प्रदान की। 1971 में, रक्षा और बाहरी मामलों को छोड़कर पूर्ण आंतरिक आजादी के लिए समझौते में संशोधन और संशोधित किया गया था। 1967 में उनके महामहिम सुल्तान हाजी सर मुदा उमर अली सैफुद्दीन ने अपने बेटे पेंगीरान मुदा महाकोता हसनल बोलकिया के पक्ष में त्याग किया। 1 जनवरी, 1984 को ब्रुनेई दारुसलाम ने पूरी आजादी फिर से शुरू की और सुल्तान ने छः मंत्रिमंडल की अध्यक्षता में प्रधान मंत्री, वित्त मंत्री और गृह मंत्री मंत्री के रूप में पदभार संभाला। अक्टूबर 1986 में, मंत्रिमंडल को 11 सदस्यों तक विस्तारित किया गया था, उनके महामहिम ने वित्त और गृह मामलों के पोर्टफोलियो को छोड़ दिया और 1984 से उनके स्वर्गीय पिता के रक्षा पोर्टफोलियो को संभाला। 1988 में एक और बदलाव ने उप मंत्री की उन्नति के बारे में बताया एक पूर्ण मंत्री और देश के विकास को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किए गए उद्योग और प्राथमिक संसाधन मंत्रालय के निर्माण के लिए। बड़ी संख्या में गैर-मुस्लिम आबादी (लगभग 1/3 आबादी) और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना के बावजूद, सुल्तान ने अभी भी मुस्लिम बहुमत पर पूरी तरह से लागू करने और आंशिक रूप से गैर-मुस्लिमों पर लागू करने के लिए ब्रुनेई को शरिया कानून को अपनाने की घोषणा की । 2016 में 3 चरणों के बाद पूर्ण प्रभाव लेने की उम्मीद है, और 2014 में अपने पहले चरण में आंशिक प्रवर्तन शुरू कर दिया था। यह शरिया कानून का अभ्यास करने के लिए पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया का पहला देश है। मुद्रा ब्रुनेई में ब्रुनेई रिंगगिट का व्यापार करने के लिए उपयोग करते है। हालांकि, सिंगापुर डॉलर का उपयोग यहां किया जा सकता है क्योंकि दोनों मुद्राएं एक ही मूल्य की हैं। आधिकारिक तौर पर, ब्रुनेई में कोई स्थान नहीं है जिसमें "शहर" की स्थिति है। पाठ=ब्रुनेई का नक्शा|अंगूठाकार|ब्रुनेई का नक्शा कुछ महत्वपूर्ण स्थान ही हैं जिसमें "शहर" की स्थिति है। वे शहर है: बंदर सेरी बेगवान (जनसंख्या ~ 181,500, बंदर सेरी बेगवान नगर परिषद) कुआला बेलैत (जनसंख्या ~ ~ 38,000, बंदर सेरी बेगवान नगर परिषद) सेरिया (जनसंख्या ~ 35,400, कुआला बेलैत / सेरिया नगर परिषद) जेरुडोंग (जनसंख्या ~ 30,000, कुआला बेलैत / सेरिया नगर परिषद) तुतुंग (जनसंख्या ~ 27,500, तुतुंग नगर परिषद) बंगार (टेम्पबरोंग जिले का प्रशासनिक केंद्र) मुरा टाउन - ब्रुनेई का एकमात्र गहरा समुद्री बंदरगाह है सुकंग पानागा यह भी देखिए ब्रुनेई (विक्षनरी) बंदर सेरी बेगवान ( ब्रुनेई का एक "शहर") सन्दर्भ श्रेणी:दक्षिण-पूर्व एशियाई देश * श्रेणी:दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन के सदस्य राष्ट्र
बोत्सवाना
https://hi.wikipedia.org/wiki/बोत्सवाना
thumb|right|बोत्सवाना का मानचित्र बोत्सवाना गणराज्य (अंग्रेजी: Republic of Botswana, श्वाना: Lefatshe la Botswana), अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिण में स्थित एक स्थल-रुद्ध देश है। 30 सितम्बर 1960 को ब्रिटेन की यूनाइटेड किंगडम से स्वतंत्रता मिलने से पूर्व इसे ब्रिटिश संरक्षित राज्य, बेचुआनालैंड के नाम से जाना जाता था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के अंतर्गत इस देश ने एक नया नाम बोत्सवाना अपना लिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यहाँ लगातार स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतांत्रिक चुनाव आयोजित किये जा रहे हैं। जिम्बाब्वे,अंगोला, जांबिया और दक्षिण अफ्रीका इसके पड़ोसी देश हैं। भौगोलिक दृष्टि से बोत्सवाना एक सपाट देश है और इसके लगभग 70% भाग में कालाहारी मरुस्थल फैला है। इसके दक्षिण और दक्षिणपश्चिम में दक्षिण अफ्रीका, पश्चिम और उत्तर में नामीबिया तथा उत्तरपूर्व में जिम्बाब्वे स्थित है। यह सिर्फ एक बिंदु पर जाम्बिया से मिलता है। यह एक छोटा सा देश है, जिसकी जनसंख्या सिर्फ 20 लाख है। स्वतंत्रता के समय यह अफ्रीका के कुछ सबसे गरीब देशों मे से एक था जिसका सकल घरेलू उत्पाद प्रति व्यक्ति मात्र 70 अमेरिकी डॉलर था, लेकिन तब से लेकर अब तक बोत्सवाना ने आर्थिक रूप से तरक्की की है और अब इसकी गिनती अफ्रीका के मध्यम आय वाले देशों में होने लगी है। इसकी अर्थव्यवस्था विश्व की कुछ सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से है, जिसकी औसत वृद्धि दर 9% की है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के 2010 के अनुमान के अनुसार इसका सकल घरेलू उत्पाद (क्रय शक्ति समता) प्रति व्यक्ति लगभग 14,800 अमेरिकी डॉलर के बराबर है। बड़े स्तर पर व्याप्त गरीबी, असमानता और निम्न मानव विकास सूचकांक के बावजूद बोत्सवाना ने, सुशासन और व्यापक आर्थिक वित्तीय प्रबंधन द्वारा समर्थित विकास के स्तरों पर प्रभावशाली रूप से तरक्की की है। सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत शिक्षा पर व्यय किए जाने से इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण शैक्षिक उपलब्धियों हासिल हुई हैं और देश में लगभग लगभग सभी के लिए मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किया गया है, हालाँकि इस सबके बावजूद देश में पर्याप्त कौशल और कार्यबल का अभाव है। बेरोजगारी की दर भी लगातार 20 प्रतिशत के साथ उच्च स्तर पर बनी हुई है। शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू आय काफी कम है, हालाँकि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की दर में गिरावट आई है, लेकिन अभी भी वो शहरी क्षेत्रों की तुलना में काफी अधिक है। सरकार की ओर से एचआईवी /एड्स की दवाओं की नि:शुल्क उपलब्धता के चलते एचआईवी/एड्स संक्रमण की दर में अभूतपूर्व कमी दर्ज की गयी है। हीरे और मांस बाजार पर बुरी तरह निर्भर देश की अर्थव्यवस्था में, विविधता लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। सन्दर्भ इन्हें भी देखें सिंहावलोकन बीबीसी न्यूज- Country Profile: Botswana निर्देशियायें Open Directory Project - Botswana directory category Stanford University - Africa South of the Sahara: Botswana directory category The Index on Africa - Botswana directory category Botswana Map https://web.archive.org/web/20050924163355/http://www.sas.upenn.edu/African_Studies/Country_Specific/Botswana.html University of Pennsylvania - African Studies Center: Botswana] directory category Yahoo! - Botswana directory category Encyclopedia of the Nations : Botswana श्रेणी:बोत्स्वाना श्रेणी:देश श्रेणी:अफ़्रीका श्रेणी:स्थलरुद्ध देश
कनाडा
https://hi.wikipedia.org/wiki/कनाडा
कनाडा उत्तरी अमेरिका का एक देश है जिसमें दस प्रान्त और तीन केन्द्र शासित प्रदेश हैं। यह महाद्वीप के उत्तरी भाग में स्थित है जो अटलाण्टिक से प्रशान्त महासागर तक और उत्तर में आर्कटिक महासागर तक फैला हुआ है। इसका कुल क्षेत्रफल 99.8 लाख वर्ग किलोमीटर है और कनाडा कुल क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का दूसरा और भूमि क्षेत्रफल की दृष्टि से द्वितीय सबसे बड़ा देश है। इसकी संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अन्तरराष्ट्रीय सीमा विश्व की सबसे बड़ी भू-सीमा है।कनाडा एक विकसित देश है इसकी प्रति व्यक्ति आय विश्व स्तर पर दसवें स्थान पर हैं साथ ही साथ मानव विकास सूचकाङ्क पर इसकी रैंकिङ्ग नौवें नम्बर पर है। इसकी, सरकार पारदर्शिता, नागरिक स्वतन्त्रता, जीवन, आर्थिक स्वतन्त्रता, और शिक्षा की गुणवत्ता के अन्तरराष्ट्रीय माप में सबसे ऊँची रैंकिङ्ग हैं। कनाडा, राष्ट्र के राष्ट्रमण्डल का सदस्य है। इसके साथ ही यह कई प्रमुख अन्तरराष्ट्रीय और अन्तर-सरकारी संस्थाओं या समूहों का हिस्सा हैं जिनमे संयुक्त राष्ट्र, उत्तर अटलाण्टिक सन्धि सङ्गठन, जी-8, प्रमुख 10 देशों के समूह, जी-20, उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता, एशिया-प्रशान्त महासागरीय आर्थिक सहयोग प्रमुख हैं। व्युत्पत्ति शब्द कनाडा सेंट लॉरेंस इरोक्वॉयाई शब्द कनाटा से बना हुआ है जिसका अर्थ "गाँव" अथवा "बसावट" होता है। सन् 1535 में वर्तमान क्यूबेक नगर क्षेत्र के स्टैडकोना गाँव की खोज ज़ाक कार्तिए ने की थी। कार्तिए ने बाद में डोंनकना (स्टैडकोना के मुखिया) से सम्बंधित पूर्ण क्षेत्र के लिए कनाडा शब्द से उल्लिखीत किया; इसके बाद सन् 1545 से यूरोपीय पुस्तकों और मानचित्रों में इस क्षेत्र को कनाडा नाम से उल्लिखित किया जाने गया। इतिहास आदिकालीन निवासी वर्तमान में कनाडा में आदिवासी लोगों में प्रथमराष्ट्र, इनुइट, और मेटीस लोग शामिल हैं। इसके अलावा मिश्रित नस्ल भी हैं, जोकी मध्य 17वीं सदी में प्रथमराष्ट्र और इनुइट लोगो की बाहर से बसने आये यूरोपीयो के साथ विवाह के बाद बनी। उत्तरी अमेरिका की पहले निवासी 15,000 वर्ष पहले साइबेरिया पलायन कर बेरिंग-भूमि पुल के माध्यम से पहुंचे। यूरोपीय आव्रजन के पहले कनाडा में आदिवासी जनसंख्या २ लाख से लेकर २० लाख तक का अनुमान किया जाता रहा, हलाकि कनाडा की रॉयल आयोग द्वारा 500,000 का आंकड़ा स्वीकार किया गया। यूरोपियनो के आने के साथ ही वहाँ इन्फ्लूएंजा, खसरा, और चेचक जैसी घातक बीमारिया भी साथ आ गई, और एक ही सदी में वहाँ की आदिवासी जनसंख्या में 80 प्रतिशत की कमी हो गई। यूरोपीय उपनिवेशवाद यूरोपीय उपनिवेशवाद का पहला उदाहरण नॉर्समैन द्वारा 1000 ई के आसपास न्यूफाउंडलैंड में ले'ऐंसेअक्स में देखने को मिला। इसके बाद सीधे 1497 में इतालवी नाविक जॉन केबोट ने कनाडा के अटलांटिक तट का पता लगाया और इंग्लैंड के राजा हेनरी सप्तम के नाम पर अधिकार प्रतिपादित किया। इसी के बाद ही बास्क और पुर्तगाली नाविकों ने 16वीं सदी में अटलांटिक तट पर मछली पकड़ने और व्हेल का शिकार करने की चौकियों की स्थापना की। सन 1534 फ्रेंच एक्सप्लोरर जैक्स कार्टियर ने कनाडा में सेंट लॉरेंस नदी की खोज की और फ़्रांस के राजा फ्रांसिस प्रथम के नाम से वहाँ के छेत्र पर आधिपत्य कर व्यापार चौकी स्थापित किया, हलाकि यह चौकी ज्यादा दिन नहीं चल सका सन 1583 में, सर हम्फ्री गिल्बर्ट, महारानी एलिजाबेथ प्रथम के शाही विशेषाधिकार से न्यूफाउंडलैंड में सेंट जॉन की स्थापना की इसे ही उत्तरी अमेरिकी पर पहला अंग्रेजी उपनिवेश मन गया।. फ्रेंच खोजी शमूएल डी चैंपलिन 1603 में वहाँ पहुंचे और पहले स्थायी यूरोपीय बस्तियों, पोर्ट रॉयल (1605 में) और क्यूबेक सिटी (1608 में) कि स्थापना की। इसके बाद तो वहाँ उपनिवेशवाद का सिलसिला ही चालू हो गया, अंग्रेजो ने 1610 में क्यूपिड और फ्रीलैंड , न्यूफाउंडलैंड में अतिरिक्त कालोनियों की स्थापना की। इसके बाद दक्षिण के क्षेत्र में जल्द ही अन्य तेरह उपनिवेश बस्ती स्थापित कि गई। शीघ्र ही अंग्रेजो ओर फ़्रांस में लड़ाई छिड़ गई, जिसमे सात वर्ष का युद्ध का प्रमुख रहा, पेरिस की संधि 1763 के बाद कनाडा के अधिकतर भूभाग में अंग्रेजो का अधिकार हो गया 1783 की पेरिस संधि से अमेरिकी स्वतंत्रता को मान्यता दी गई और ग्रेट झील के दक्षिण के प्रदेशों को नए संयुक्त राज्य अमेरिका को सौंप दिया गया। 1812 के संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन के बीच युद्ध में कनाडा ने मुख्य भूमिका अदा कि,युद्धशांति 1815 में आई, हलाकि दोनों कि सीमा में कोई बदलाव नहीं आया। 1815-50 के बीच ब्रिटिश आप्रवासन कि संख्या 960,000 से अधिक रही। इनमे आयरिश शरणार्थियों तथा गेलिकभाषी स्कॉट्स प्रमुख थे। संक्रामक रोगों के कारण 1891 से पहले कनाडा में आकर बसने वाले यूरोपीयो कि 25 -33 प्रतिशत लोगो की मृत्यु हो गई। परिसंघ और विस्तार thumb|left|200px|alt=refer to caption|1867 में परिसंघ के बाद से विकास और कनाडा के प्रांतों और क्षेत्रों के परिवर्तन का अनुप्राणित नक्शा कई संवैधानिक सम्मेलनों के बाद 1867 संविधान अधिनियम के तहत 1 जुलाई, 1867 को चार प्रांतों ओंटारियो, क्यूबेक, नोवा स्कोटिया, और नई ब्रंसविक कि आधिकारिक तौर पर घोषणा की गई। कनाडा ने रूपर्ट कि भूमि तथा उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र का अधिकरण कर उत्तर पश्चिमी प्रदेशों का गठन किया, वही मेटीस की शिकायतों से लाल नदी के विद्रोह पनपा और जुलाई 1870 में मैनिटोबा प्रांत के सृजन हुआ। ब्रिटिश कोलंबिया और वैंकूवर द्वीप (जो 1866 में एकजुट कर दिया गया था), 1871 में कनाडा में शामिल हो गए, जबकि प्रिंस एडवर्ड द्वीप में 1873 में शामिल हुए। कनाडा की संसद ने विनिर्माण उद्योगों, रेलवे तथा आव्रजन को लेकर कई बिल पास किये गए। thumb|पैगी का कोव, हैलिफ़ैक्स सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ अवलोकन कोलोराडो विश्वविद्यालय लाइब्रेरीज गोवपूब्स पर कनाडा (अंग्रेज़ी में)। (अंग्रेज़ी में) बीबीसी न्यूज़ से कनाडा (अंग्रेज़ी में)। सीआइए वर्ल्ड फेक्टबुक पर कनाडा (अंग्रेज़ी में)। ओईसीडी पर कनाडा की प्रोफाइल (अंग्रेज़ी में)। कैनेडियन: कनाडा के राष्ट्रीय ग्रंथ सूची अंतर्राष्ट्रीय वायदा से Key Development Forecasts for Canada सरकार कनाडा सरकार का आधिकारिक जालस्थल कनाडा के गवर्नर जनरल का आधिकारिक जालस्थल यात्रा कनाडा का आधिकारिक पर्यटन जालस्थल अध्ययन इंटरनेशनल कौंसिल फॉर कैनेडियन स्टडीज (कनाडाई अध्ययन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय परिषद्) पर दिशानिर्देश स्रोत कनाडा श्रेणी:अंग्रेज़ी-भाषी देश व क्षेत्र श्रेणी:फ़्रान्सीसी-भाषी देश व क्षेत्र श्रेणी:देश
कांगो (डेमोक्रेटिक रिपब्लिक आफ द कांगो)
https://hi.wikipedia.org/wiki/कांगो_(डेमोक्रेटिक_रिपब्लिक_आफ_द_कांगो)
REDIRECTकांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य
क्रोएशिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/क्रोएशिया
क्रोएशिया दक्षिण पूर्व यूरोप यानि बाल्कन में पानोनियन प्लेन, और भूमध्य सागर के बीच बसा एक देश है। देश का दक्षिण और पश्चिमी किनारा एड्रियाटिक सागर से मिलता है। देश की राजधानी और सबसे बड़ा शहर जगरेब है, जो तट से भीतर स्थित है। एड्रियाटिक सागर के किनारे कई हज़ार द्वीप हैं, इस समुद्र के किनारे पर्यटन के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ हैं। पूर्व यूगोस्लाविविया के देश इनके पड़ोसी हैं जैसे - उत्तर में स्लोवेनिया और हंगरी, उत्तर पूर्व में सर्बिया, पूर्व में बॉस्निया और हर्ज़ेगोविना और दक्षिण पूर्व में मोंटेंग्रो से इसकी सीमाएं मिलती हैं। एड्रियाटिक सागर के पार इटली है (350 km) जिसका द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यहाँ उपस्थिति थी। यहाँ के निवासी मुख्यतः क्रोएट हैं जो अपने आपको ह्राओत कहते हैं। यहाँ की भाषा भी पूर्वी स्लाविक वर्ग में आती है। आज जिसे क्रोएशिया के नाम से जाना जाता है, वहां सातवीं शताब्दी में क्रोट्स ने कदम रखा था। उन्होंने राज्य को संगठित किया। तामिस्लाव प्रथम का 925 ई. में राज्याभिषेक किया गया और क्रोएशिया राज्य बना। राज्य के रूप में क्रोएशिया ने अपनी स्वायत्तता करीबन दो शताब्दियों तक बरकरार रखी और राजा पीटर क्रेशमिर चतुर्थ और जोनीमिर के शासन के दौरान अपनी ऊंचाई पर पहुंचा। वर्ष 1102 में पेक्टा समझौता के माध्यम से क्रोएशिया के राजा ने हंगरी के राजा के साथ विवादास्पद समझौता किया। वर्ष 1526 में क्रोएशियन संसद ने फ्रेडिनेंड को हाउस ऑफ हाब्सबर्ग से सिहांसन पर आरुढ़ किया। 1918 में क्रोएशिया ने आस्ट्रिया-हंगरी से अलग होने की घोषणा कर यूगोस्लाविया राज्य में सहस्थापक के रूप में जुड़ गया। द्वितीय विश्व युद्ध के समय नाजियों ने क्रोएशिया के क्षेत्र पर कब्जा जमा स्वतंत्र राज्य क्रोएशिया की स्थापना की। युद्ध खत्म होने के बाद क्रोएशिया दूसरे यूगोस्लाविया के संस्थापक सदस्य के रूप में शामिल हो गया। 25 जून 1991 में क्रोएशिया ने स्वतंत्रता की घोषणा करते हुए संप्रभु राज्य बन गया। भूगोल thumb|right|360px मध्य में पहाड़ी और तट पर एड्रियाटिक का महत्वपूर्ण स्थान है। औसत तापमान -३ से १८ डिग्री तक रहता है। भूमध्य सागर के किनारे होने से तटीय इलाक़ों में भूमध्यसागरीय जलवायु है। क्षेत्र मध्य क्रोएशिया स्लावोनिया इस्त्रिया डाल्मेशिया महत्वपूर्ण शहर ज़ाग्रेब स्प्लिट ज़दरी रिजेका सलोना पोला ओसिजेक यह भी देखिए wikt:क्रोएशिया (विक्षनरी) सन्दर्भ श्रेणी:यूरोप के देश
क्यूबा
https://hi.wikipedia.org/wiki/क्यूबा
कूबा गणतंत्र कैरिबियाई सागर में स्थित एक द्वीपीय देश है। हवाना कूबा की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। कूबा दूसरा सबसे बड़ा शहर सेंटिआगो डे है। कूबा गणराज्य में कूबा द्वीप, इस्ला दी ला जुवेतुद आदि कई द्वीप समूह शामिल हैं। कूबा, कैरेबियाई समूह में सबसे ज्यादा आबादी वाला द्वीप है, जिसमें ११ लाख से ज्यादा लोग निवास करते हैं। वक्त के साथ अलग-अलग जगह से पहुंचे लोगों और उपनिवेश का असर यहां की संस्कृति पर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। कूबा का इतिहास २८ अक्टूबर १४९२ को क्रिस्टोफर कोलम्बस ने कूबा की धरती पर कदम रखा और विश्व को एक नये देश से परिचित करवाया। कालांतर में १६ वीं और १७ वीं शताब्दी तक कूबा स्पेन का उपनिवेश रहा। स्पानी भाषा, संस्कृति, धर्म तथा संस्थाओं ने कूबा की जातीय मानसिकता पर गहरा प्रभाव डाला। राजनीतिक व्यवस्था कूबा लातिन अमेरिका का एक समाजवादी गणतंत्र है। १९५९ में फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में क्रांति के पूर्व कूबा ने तानाशाही और सर्वाधिकारवादी व्यवस्था से निजात पायी और एक दलीय जनतंत्र की नींव रखी गयी। पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो और वर्तमान राष्ट्रपति रऊल कास्त्रो के नेतृत्व में कूबा ने शासन व्यवस्था में समाजवादी पद्धति को अपनाया।Cuban Political System: More Than Just Castro कूबा की राजनीतिक व्यवस्था अमेरिका सरीखी पूंजीवादी व्यवस्था का प्रतिरोध करती है। कूबा का नेतृत्व अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में वामपंथी विचारधारा का पक्षधर रहा है। इन्हें भी देखें कूबा (विक्शनरी) सन्दर्भ श्रेणी:क्यूबा श्रेणी:देश श्रेणी:दक्षिण अमेरिका के देश श्रेणी:कॅरीबियाई में देश श्रेणी:स्पेनी-भाषी देश व क्षेत्र
घाना
https://hi.wikipedia.org/wiki/घाना
घाना गणराज्य पश्चिम अफ्रीका में स्थित एक देश है। इसकी सीमा पश्चिम में कोट द' आईवोर (आइवरी कोस्ट), उत्तर में बुर्किना फासो, पूर्व में टोगो और दक्षिण में गिनी की खाड़ी से मिलती है। घाना शब्द का अर्थ "लड़ाकू राजा" है। औपनिवेशिक समय से पूर्व घाना पर अनेक प्राचीन राजवंशों का प्रभुत्व था, जिनमें पूर्वी तट पर गा-दामेस और अंदरुनी क्षेत्र में अशांति साम्राज्य के अलावा तटीय और अंदरुनी क्षेत्रों में अनेक फान्ते और इवे राज्य शामिल थे। १५ वीं सदी में पुर्तगालियों के साथ संपर्क में आने के बाद यूरोपिय देशों के साथ व्यापार की बढ़ोतरी हुई और ब्रिटेन ने १८७४ में गोल्ड कोस्ट, के नाम से राजशाही उपनिवेश की स्थापना की। गोल्ड कोस्ट १९५७ में यूनाइटेड किंगडम से स्वतंत्रता हासिल करने वाला पहला उप सहारा अफ्रीकी राष्ट्र बना। प्राचीन साम्राज्य घाना, जिसका विस्तार एक समय पूरे पश्चिम अफ्रीका में था, के नाम पर नए देश का नाम घाना रखा गया। घाना अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठनों का सदस्य है, जिनमें राष्ट्रमंडल, पश्चिम अफ्रीकी राज्यों का आर्थिक सामुदायिक, अफ्रीकी संघ और संयुक्त राष्ट्र शामिल हैं। इन्हें भी देखें wikt:घाना (विक्षनरी) बाहरी कड़ियाँ सरकार घाना आधिकारिक वेबसाइट घाना की संसद आधिकारिक साइट संस्कृति पर राष्ट्रीय आयोग आधिकारिक साइट चीफ ऑफ राज्य और मंत्रिमंडल के सदस्य सामान्य जानकारी देश प्रोफ़ाइल बीबीसी समाचारसे घाना विश्वकोश ब्रिटानिकासे घाना यूसीबी पुस्तकालयों GovPubsसे अफ्रीकी कार्यकर्ता पुरालेख परियोजना श्रेणी:देश श्रेणी:अफ़्रीका के देश श्रेणी:पश्चिम अफ्रीका के देश
केनिया
https://hi.wikipedia.org/wiki/केनिया
REDIRECTकीनिया
मेक्सिको
https://hi.wikipedia.org/wiki/मेक्सिको
संयुक्त मेक्सिकन राज्यों , सामान्यतः मेक्सिको के रूप में जाना जाता एक देश है जो की उत्तर अमेरिका में स्थित है। यह एक संघीय संवैधानिक गणतंत्र है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तर पर सीमा से लगा हुआ हैं। दक्षिण प्रशांत महासागर इसके पश्चिम में, ग्वाटेमाला, बेलीज और कैरेबियन सागर इसके दक्षिण में और मेक्सिको की खाड़ी इसके पूर्व की ओर हैं। मेक्सिको लगभग 2 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ हैं, मेक्सिको अमेरिका में पांचवा और दुनिया में 14 वा सबसे बड़ा स्वतंत्र राष्ट्र है। 11 करोड़ की अनुमानित जनसंख्या के साथ, यह 9 वीं सबसे अधिक आबादी वाला देश है। मेक्सिको एक इकतीस राज्यों और एक संघीय जिला, राजधानी शामिल फेडरेशन है। इतिहास मेक्सिको में सबसे पहले की मानव कलाकृतियाँ हैं, जो मैक्सिको के घाटी में कैम्प फायर अवशेषों के पास पाए गए पत्थर के औजारों के चिप्स हैं और 10,000 साल पहले सर्कोटा-डेटेड टू सर्का। मेक्सिको मक्का, टमाटर और फलियों के वर्चस्व का स्थल है, जिसने कृषि अधिशेष का उत्पादन किया। इसने लगभग 5000 ईसा पूर्व से शुरू होने वाले गतिहीन कृषि गांवों में पैलियो-भारतीय शिकारी-संग्रहकर्ताओं के संक्रमण को सक्षम किया। इसके बाद के प्रारंभिक युगों में, मक्का की खेती और सांस्कृतिक लक्षण जैसे कि एक पौराणिक और धार्मिक परिसर, और एक विगेसिमल (बेस 20) संख्यात्मक प्रणाली, मैक्सिकन संस्कृतियों से मेसोअमेरिकन संस्कृति क्षेत्र के बाकी हिस्सों में फैल गए थे। इस अवधि में, गाँव आबादी के मामले में सघन हो गए, एक कारीगर वर्ग के साथ सामाजिक रूप से स्तरीकृत हो गए और प्रमुख लोगों के रूप में विकसित हुए। सबसे शक्तिशाली शासकों के पास धार्मिक और राजनीतिक शक्ति थी, जो विकसित बड़े औपचारिक केंद्रों के निर्माण को व्यवस्थित करता था। अर्थव्यवस्था अप्रैल 2020 तक, मेक्सिको में 20 वां सबसे बड़ा नाममात्र जीडीपी (यूएस $ 1.1 ट्रिलियन) और क्रय शक्ति समता (यूएस $ 2.45 ट्रिलियन) द्वारा 11 वां सबसे बड़ा है। सकल घरेलू उत्पाद की वार्षिक औसत वृद्धि 2016 में 2.9% और 2017 में 2% थी। कृषि में पिछले दो दशकों में अर्थव्यवस्था का 4% शामिल है, जबकि उद्योग 33% (ज्यादातर मोटर वाहन, तेल और इलेक्ट्रॉनिक्स) और सेवाओं (विशेष रूप से वित्तीय सेवाओं और सेवाओं) का योगदान देता है पर्यटन) का योगदान 63% है। पीपीपी में मेक्सिको की जीडीपी प्रति व्यक्ति यूएस $ 18,714.05 थी। विश्व बैंक ने 2009 में बताया कि बाजार की विनिमय दरों में देश की सकल राष्ट्रीय आय लैटिन अमेरिका में दूसरे स्थान पर थी, ब्राजील के बाद 1,830.392 बिलियन अमेरिकी डॉलर, जिसके कारण इस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय $ 15,311 थी। मेक्सिको अब एक उच्च-मध्यम-आय वाले देश के रूप में मजबूती से स्थापित है। 2001 की मंदी के बाद, देश बरामद हुआ है और 2004, 2005 और 2006 में 4.2, 3.0 और 4.8 प्रतिशत बढ़ा है, भले ही इसे मैक्सिको की संभावित वृद्धि से नीचे माना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष 2018 और 2019 के लिए क्रमशः 2.3% और 0.7% की विकास दर की भविष्यवाणी करता है। धर्म इंस्टीट्यूटो नेसियन डी डे एस्टाडिका वाई जोग्राफिया (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टेटिस्टिक्स एंड जियोग्राफी) द्वारा 2010 की जनगणना ने रोमन कैथोलिक धर्म को 82.7% जनसंख्या के साथ मुख्य धर्म के रूप में दिया, जबकि 10% (10,924,103) अन्य ईसाई संप्रदायों से संबंधित हैं, जिनमें इवेंजेलिकल (5) शामिल हैं। %); पेंटेकोस्टल (1.6%); अन्य प्रोटेस्टेंट या रिफॉर्म्ड (0.7%); यहोवा के साक्षी (1.4%); सातवें दिन के एडवेंटिस्ट्स (0.6%); और चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लैटर-डे सेंट्स (0.3%) के सदस्य। 172,891 (या कुल के 0.2% से कम) अन्य, गैर-ईसाई धर्मों के थे; 4.7% घोषित किया गया कि कोई धर्म नहीं है; 2.7% अनिर्दिष्ट थे। संस्कृति मैक्सिकन संस्कृति स्वदेशी संस्कृतियों और स्पेन की संस्कृति के सम्मिश्रण के माध्यम से देश के इतिहास की जटिलता को दर्शाती है, स्पेन के 300 साल के औपनिवेशिक शासन के दौरान स्पेन में। समय बीतने के साथ विदेशी सांस्कृतिक तत्वों को मैक्सिकन संस्कृति में शामिल किया गया है। पर्यटन मेक्सिको में घूमने के लिए सबसे अच्छे पर्यटन स्थानों की खोज करें: प्राचीन खंडहर, पैराडाइसियल बीच, जादुई औपनिवेशिक शहर और महान कॉस्मोपॉलिटन शहर। मेक्सिको दुनिया के सबसे खूबसूरत देशों में से एक है क्योंकि आपको यहां सब कुछ मिलेगा: स्वादिष्ट भोजन, सभी प्रकार के इलाके और जलवायु, वनस्पतियों और जीवों के संदर्भ में एक अतुलनीय धन, विचारधाराओं के विपरीत, परंपराओं और आधुनिकीकरण के बीच एक संलयन Prehispanic और mestizo संस्कृतियों, शानदार होटल और रहने के स्थानों और निश्चित रूप से, अपने निवासियों की गर्मी और भव्यता के पिघलने पॉट। इन्हें भी देखें सारा गार्सिया मेक्सिको के राजनैतिक विभाग कातारीना दे सान होआन (चीना पोबलाना) सन्दर्भ श्रेणी:देश श्रेणी:मेक्सिको श्रेणी:उत्तर अमेरिका के देश श्रेणी:मध्य अमेरिका श्रेणी:स्पेनी-भाषी देश व क्षेत्र श्रेणी:संघीय गणराज्य
नीदरलैण्ड
https://hi.wikipedia.org/wiki/नीदरलैण्ड
right|thumb|300px|नीदरलैंड्स नीदरलैंड्स यूरोप महाद्वीप का एक प्रमुख देश है। यह उत्तरी-पूर्वी यूरोप में स्थित है। इसकी उत्तरी तथा पश्चिमी सीमा पर उत्तरी समुद्र स्थित है, दक्षिण में बेल्जियम एवं पूर्व में जर्मनी है। नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम है। "द हेग" को प्रशासनिक राजधानी का दर्जा दिया जाता है। नीदरलैंड्स को अक्सर हॉलैंड के नाम संबोधित किया जाता है एवं सामान्यतः नीदरलैंड के निवासियों तथा इसकी भाषा दोनों के लिए डच शब्द का उपयोग किया जाता है। परिचय नीदरलैंड्स यूरोप के उत्तर-पश्चिम में समुद्र के किनारे स्थित देश है। इसे हॉलैंड भी कहते हैं, किंतु इसका राष्ट्रीय नाम 'नीदरलैंड्स' है। इसका अधिकांश क्षेत्र समुद्रतल से भी नीचे हैं, जिसके कारण इसका नामकरण हुआ है। इसके पूर्व में पश्चिमी, जर्मनी, दक्षिण में बेल्जियम, पश्चिम और उत्तर में उत्तरी सागर हैं। इसका क्षेत्रफल ३३,५९१ वर्ग किलोमीटर है। इस देश की सर्वाधिक लंबाई ३०४ किलोमीटर (उत्तर-दक्षिण) तथा अधिकतम चौड़ाई २५६ किलोमीटर (दक्षिणपश्चिम से उत्तर-पूर्व) है। नीदरलैंड्स पहली संसदीय लोकतंत्र देशों में से एक है। यह यूरोपीय संघ (ई.यू.), नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (ना.टो.), आर्थिक एवं विकास संगठन (ओ.इ.सी.डी.) एवं विश्व व्यापार संगठन (डब्लू.टी.ओ.) का संस्थापक सदस्य है। बेल्जियम तथा लक्समबर्ग के साथ यह "बेनेलक्स" आर्थिक संघ का रूप लेता है। यह पांच अंतराष्ट्रीय अदालतों का मेज़बान है : स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (पी.सी.ए), अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, पूर्वी युगोस्लावाकिया के लिए अंतराष्ट्रीय अपराधिक ट्रिब्यूनल (आई.टी.सी.वाई), अंतर्राष्ट्रीय अपराधिक न्यायालय (आई.सी.सी) एवं ट्रिब्यूनल फॉर लेबनान। इनमे से प्रथम चार न्यायलय, यूरोपियन संघ की खुफिया एगेंसी (यूरोपोल) तथा न्यायिक सहयोगी एगेंसी (युरोजस्ट) नीदरलैंड के द हेग शहर में स्थित हैं। यही कारण है कि "द हेग" को विश्व की 'न्यायिक राजधानी' कहा जाता है। १५७ देशों की आर्थिक सवतंत्रता की सूची में नीदरलैंड्स का स्थान १५ है। नीदरलैंड्स भौगोलिक सन्दर्भ में एक निचला देश है। इसका लगभग २०% क्षेत्र समुद्री तल से नीचे है। लगभग २१% आबादी समुद्री तल से नीचे रहती है एवं लगभग ५०% आबादी समुद्री तल से बस एक मीटर की ऊँचाई पर है। इतिहास io भूगोल thumb|नीदरलैंड्स का एक राहत नक्शा बनवाट thumb|The Christmas flood of 1717 was the result of a northwesterly storm. In total, approximately 14,000 people drowned. thumb|left|Map illustrating areas of the Netherlands below sea level इस देश के क्षेत्रफल में तटीय कटाव के कारण कमी तथा प्रवाह प्रणाली के घुमाव और बाँध द्वारा इसमें वृद्धि होती रहती है। यूरोपीय महाद्वीप के अन्य किसी भी देश के इतने निवासी अपने देश के क्षेत्र निर्माण में नहीं लगे हैं जितने कि नीदरलैंड्स में। इस देश की स्थलीय आकृतियाँ तथा समुद्री सीमाएँ मुख्यतया मास, राइन और स्खेल्डै नदियों के डेल्टा से प्रभावित होती हैं। डेल्टा का निर्माण प्रत्यक्ष रूप से इन नदियों के ज्वारीय क्षेत्र में गिरने से होता है। इससे ऊँचा उठा हुआ भाग समाप्त हो जाता है और पतले तथा लंबे गड्ढों का निर्माण होता है, जो नदियों की वेगवती धाराओं द्वारा लाए गए अवसादों से भर जाते हैं। इस तरह डेल्टा क्षेत्र का विस्तार हुआ है। इस देश की सर्वाधिक ऊँचाई सुदूर दक्षिण पूर्व कोने में नीदरलैंड्स जर्मनी तथा बेल्जियम के मिलनबिंदु पर (३२२ मीटर) है। यहाँ बहुत ही कम क्षेत्र की ऊँचाई समुद्रतल से ४६ मीटर अधिक है। ३५ प्रतिशत से भी अधिक भूमिभाग तो ऐम्सटरडैम के स्तर से भी एक मीटर कम ऊँचा है। जलवायु इस देश की जलवायु लगभग सभी जगह एक समान है। जनवरी सबसे ठंडा महीना है। यूट्रेख्ट (Utrecht) नगर का औसत वार्षिक ताप १.२ डिग्री है। इसके पूर्व का अधिकांश हिम से ढका रहता है। नीदरलैंड्स में दक्षिण-पश्चिमी हवाएँ वर्ष के नौ महीने चलती हैं, इनसे जाड़े का ताप थोड़ा सा बढ़ जाता है, लेकिन अप्रैल से जून तक पश्चिमी हवाएँ चलती हैं, जो ग्रीष्म ऋतु को थोड़ा सा नम कर देती हैं। वायु की दिशा के कारण देश का पश्चिमी भाग पूर्वी भाग की अपेक्षा नम है। देश के मध्य की औसत वार्षिक वर्षा २७ इंच है। वर्षा के दिनों की संख्या २०० से कुछ अधिक है लेकिन इस काल में सापेक्षिक आर्द्रता बहुत अधिक (८० प्रतिशत) रहती है। इससे धुंध तथा समुद्री तुषार प्राय: पड़ते हैं, जिनका हानिकारक प्रभाव फ्रइसलैंड और ज़ीलैंड पर पड़ता है तथा यहाँ फेफड़े संबंधी बीमारियाँ अधिक होती हैं। प्राकृतिक वनस्पति इस घने बसे देश में जंगल अल्प मात्रा में हैं। यहाँ की वनस्पति को चार भागों में बाँटा जा सकता है : १. झाड़ीवाली वनस्पति, २. चरागाह, ३. बालू के टीले की वनस्पति और ४. तटीय वनस्पति। झाड़ियाँ देश की पूर्वी बालुका प्रदेश में पाई जाती हैं। बालू के टीलों पर वनस्पतियाँ अपनी ही जाति की दूसरी जगह की वनस्पतियों से छोटी तथा पतली होती हैं। यहाँ का मुख्य पौधा डच ऐल्म (Dutch elm) या चिकना नरकट है, जो बालुकाकणों का आपस में बाँधे रखने के लिए प्रति वर्ष उगाया जाता है। इससे चटाइयाँ बनाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त बलूत, देवदार, चीड़, लिंडन, सफेदा आदि वनस्पतियाँ एवं फूलों में डच ट्यूलिप अत्यंत प्रसिद्ध हैं। समुद्र तट पर कुछ पौधों का उपयोग कीचड़वाले भाग को सुखाने तथा निक्षेप को बढ़ाने के लिए किया जाता है। पशु जंगलों की कमी के कारण जंगली जानवर कम पाए जाते हैं। पूर्वी शुष्क जंगली क्षेत्र में हरिण तथा लोमड़ी पर्याप्त संख्या में पाई जाती है। ऊदविलाव तथा रीछ भी कहीं कहीं मिलते हैं। एरेमिन नेवला तथा ध्रुवीय तथा बिल्लियाँ (Pole Cats) प्राय: सभी जगह पाई जाती हैं। यहाँ विभिन्न प्रकार की चिड़ियाँ भी मिलती हैं। जंगली मुर्गा, वाज, नीलकंठ, मैगपाई, कौवा, उल्लू, कबूतर, लावा, चील तथा बुलबुल यहाँ के मुख्य पक्षी हैं। पालतू जानवरों में गाय, बैल, सुअर, घोड़े, भेड़ें, मुर्गियाँ आदि मुख्य हैं। राजनीति सरकार अर्थव्यवस्था नीदरलैंड एक समृद्ध और खुली अर्थव्यवस्था वाला देश है एवं १९८० के दशक के पश्चात् सरकार की भूमिका अर्थव्यवस्थायी निर्णयों में कम हो गयी है। यहाँ की प्रमुख औद्योगिक गतिविधियाँ हैं : भोजन प्रसंस्करण (युनीलीवर, हेनेकेन), वित्तीय सेवा (आई.एन.जी.), रासायनिक (डी.एस.एम.), पेट्रोलियम (शेल) एवं विद्युत् मशीनरी (फिलिप्स और ए.एस.एम.एल.)। प्राकृतिक साधनों की कम के कारण नीदरलैंड्स बाहर से कच्चा माल मँगाकर उनसे विभिन्न प्रकार के समान तैयार करता है, और उनका निर्यात करता है। टेक्सटाइल, धातुकार्मिक (Metallurgical), काष्ठकला, तैल शोधन, आदि यहाँ के मुख्य उद्योग हैं। कृषिगत उत्पादन के एक तिहाई भाग का निर्यात होता है। सारी अर्थव्यवस्था प्राय: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर आधारित है। इसीलिए अन्य देशों की आर्थिक अवस्थाएँ नीदरलैंड्स को न्यूनाधिक प्रभावित करती हैं। कृषि यहीं की मुख्य फसलें गेहूँ, राई, जई, आलू, चुकंदर, जौ इत्यादि हैं। निर्यात के लिए डेफोडिल्स तथा ट्यूलिप (एक प्रकार के सुंदर फूल) अधिक उगाए जाते हैं। विद्युत्, गैस एवं खनिज कोयला, पेट्रोल तथा नमक यहाँ के मुख्य खनिज हैं। कोयले की खानें लिंबर्ग प्रदेश में है। यहाँ विद्युच्छक्ति काफी पैदा की जाती है। उद्योग धंधे यहाँ के उद्योगों में धातु, वस्त्र और भोज्य सामग्री का निर्माण, खनन, रसायन और सिलाई उद्योग मुख्य हैं। इनके अतिरिक्त शीशा, चूना मिट्टी एवं पत्थर की वस्तुएँ बनाने, हीरा जैसे कीमती पत्थरों को काटने तथा पालिश करने, कार्क तथा लकड़ी की विभिन्न वस्तुएँ बनाने, चमड़े और रबर की वस्तुएँ तैयार करने तथा कागज बनाने की उद्योग होते हैं। व्यापार व्यापार की वृद्धि के लिए नीदरलैंड्स, बेल्जियम और लक्सेमबर्ग ने बैनीलक्स संघ की स्थापना की है जिसके अनुसार एक दूसरे देश के आयात-निर्यात व्यापार पर कर नहीं देना पड़ता। नीदरलैंड्स से व्यापार करनेवाले देश मुख्यत: इंग्लैंड, संयुक्त राज्य अमरीका, पश्चिम जर्मनी, बेल्जियम, लक्सेमबर्ग, फ्रांस तथा स्वीडन हैं। व्यापार में ऐग्सटग्डैम प्रमुख तथा रोटरडैम एवं हेग द्वितीय स्थान रखते हैं। यातायात यहाँ यातायात का बहुत विस्तार हुआ है। नौगम्य नदियों एवं नहरों की कुल लंबाई ६,७६८ किलोमीटर है जिसमें से १,७१० किलोमीटर तक १०० या इससे अधिक मीट्रिक टन की क्षमतावाले जहाज जा सकते हैं। रेल मार्गों में भी काफी उन्नति हुई है। संपूर्ण रेलों की व्यवस्था 'दि नीदरलैंड्स रेलवेज' (एन. वी.) नामक एक संयुक्त कंपनी द्वारा होती है। रोटरडैम, ऐम्सटरडैम, हेग प्रसिद्ध हवाई अड्डे हैं। जनसांख्यिकी जनसंख्या एवं नगर एक लाख से अधिक जनसंख्यावाले नगर ऐम्सटरडैम, आर्नहेम, ब्रेडा, आईयोवेन, एन्सखेडे, ग्रोनिंगेन, हारलेम, हिलवरसम, निजमैगन, रोटरडैम, टिलवर्ग यूट्रेख्ट, दि हेग हैं। यहाँ धर्म संबंधी पूरी स्वतंत्रता है। शाही परिवार डच रिफॉर्म्ड चर्च से संबंध रखता है। इसके अतिरिक्त प्रोटेस्टैंट, ओल्ड कैथोलिक, रोमन कैथोलिक तथा यहूदी अन्य मुख्य धर्म हैं। जाति, भाषा और धर्म नीदरलैंड के मूल निवासी डच हैं। फ्रांकिश (Frankish), सेक्सन (saxon) और फ्रीज़न (Frisian) जैसे अलग अलग वंशों के होते हुए भी वे परस्पर भिन्न नहीं दिखाई देते। हाल में इंडोनेशिया से आए लोग, जो प्राय: यूरेशियन हैं, अवश्य सबसे भिन्न मालूम पड़ते हैं। कुछ रक्त मिश्रण के कारण भी पहले जैसे एकरूपता अब डचों में नहीं रह गई है। डच भाषा यहाँ की प्रधान और राजकाज की भाषा है। फ्रीसलैंड (Friesland) में फ्रीज़न का प्रचलन है। यह एंगलो-सैक्सन भाषा के निकट पड़ती है, किंतु अनेक रूपों में यह डच से भी मिलती जुलती है। नीदरलैंड्स के निवासी फ्रांसीसी, अंग्रेज़ी और जर्मन भी जानते हैं। ये भाषाएँ वहाँ के स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं। ४३ प्रतिशत निवासी प्रोटेस्टेंट और ३८ प्रतिशत रोमन कैथोलिक धर्मावलंबी हैं। १७ प्रतिशत असांप्रदायिक हैं और शेष २ प्रतिशत विभिन्न मतों के अनुयायी हैं। प्रोटेस्टेंटों में अधिकतर लोग कैल्विनिस्ट चर्च को मानते हैं। लूथरवादियों की संख्या १ प्रतिशत से अधिक कभी नहीं रही। संस्कृति left|250px|thumb|बाईं ओर डच वास्तुकला में कारम्बेई ऐतिहासिक पार्क मिल और घरों का दृश्य सन्दर्भ श्रेणी:यूरोप के देश श्रेणी:नीदरलैंड्स श्रेणी:डच-भाषी देश व क्षेत्र
निकरागुआ
https://hi.wikipedia.org/wiki/निकरागुआ
REDIRECT निकारागुआ
रुआण्डा
https://hi.wikipedia.org/wiki/रुआण्डा
रुआण्डा (Rwanda) मध्य-पूर्व अफ़्रीका में स्थित एक देश है। इसका क्षेत्रफल लगभग २६ हज़ार वर्ग किमी है, जो भारत के केरल राज्य से भी छोटा है। यह अफ़्रीका महाद्वीप की मुख्यभूमि पर स्थित सबसे छोटे देशों में से एक है। रुआण्डा पृथ्वी की भूमध्य रेखा (इक्वेटर) से ज़रा दक्षिण में स्थित है और महान अफ़्रीकी झीलों के क्षेत्र का भाग है। इसके पश्चिम में पहाड़ियाँ और पूर्व में घासभूमि है। लोग रुआण्डा में तीन मुख्य मानव जातियाँ हैं। त्वा लोग (Twa) जंगलों में बसने वाले पिग्मी हैं। टुटसी (Tutsi) और हूटू (Hutu) दोनों बांटू जातियाँ हैं। ऐतिहासिक रूप से टुटसी अल्पसंख्यक रहे हैं लेकिन उन्होने शासन किया है जबकि हूटू बहुसंख्यक होने के बावजूद टुट्सियों के अधीन रहे हैं।Adekunle, Julius (2007). Culture and customs of Rwanda. Westport, Conn.: Greenwood Press. ISBN 978-0-313-33177-0. भाषा रुआण्डा में रहने वाले लगभग सभी लोग किन्यारुआण्डा भाषा बोलते हैं जो एक बांटू भाषा परिवार की सदस्य है और जिसे रुआण्डा की एक राजभाषा होने का दर्जा प्राप्त है। इसके अलावा फ़्रान्सीसी भाषा और अंग्रेज़ी को भी राजभाषा होने की मान्यता प्राप्त है। इतिहास हज़ारों वर्ष पूव पाषाण युग और लौह युग में रुआण्डा क्षेत्र में शिकारी-फ़रमर लोग बसे और वर्तमान रुआण्डा के त्वा लोग उन्ही के वंशज हैं। बाद में यहाँ बांटू जातियों का विस्तार हुआ। यह किस काल और किन कारणों से टुटसी और हूटू में बंट गई इसे लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। मध्य १८वीं शताब्दी में रुआण्डा राजशाही स्थापित हुई जिसमें टुटसियों ने हूटूओं पर राज किया। सन् १८८४ में जर्मनी ने रुआण्डा को अपना उपनिवेश बना लिया लेकिन प्रथम विश्व युद्ध में बेल्जियम ने जर्मनों को यहाँ से खदेड़कर १९१४ में रुआण्डा पर अपना राज कर लिया। बांटो और राज करो की विचारधारा के अंतरगत उन्होने हूटू और टुटसिओं में आपसी नफ़रत बढ़ाने के लिये काम किया और टुटसी राजाओं को अपना मित्र बनाकर शासन किया। १९५९ में हूटू जनसमुदाय ने विद्रोह कर दिया और १९६२ में स्वतंत्रता प्राप्त करने में सफल हो गये। टुटसी इस हूटू-केन्द्रित राज्य से असंतुष्ट हुए और उन्होने आर-पी-एफ़ (RPF, Rwandan Patriotic Front, रुआण्डाई देशभक्त मोर्चा) नामक सेना में संगठित होकर १९९० में सरकार के विरुद्ध गृह युद्ध आरम्भ किया। यह तनाव विस्फोटक रूप से १९९४ के रवांडा जनसंहार का कारण बना जिसमें हूटूओं ने ५ से १० लाख के बीच टुटसी और निरपेक्ष हूटू मारे। यह नरसंहार तब समाप्त हुआ जब आर-पी-एफ़ सेना ने विजय प्राप्त कर ली।Roth, Kenneth (11 April 2009). "The power of horror in Rwanda". Human Rights Watch (New York, N.Y.). Retrieved 16 November 2015. इन्हें भी देखें रवांडा जनसंहार विरुंगा पहाड़ियाँ बांटू भाषा परिवार सन्दर्भ श्रेणी:रुआण्डा श्रेणी:अफ़्रीका के देश श्रेणी:फ़्रान्सीसी-भाषी देश व क्षेत्र श्रेणी:स्थलरुद्ध देश
मोबाइल फोन
https://hi.wikipedia.org/wiki/मोबाइल_फोन
अनुप्रेषितमोबाइल फ़ोन
खजुराहो
https://hi.wikipedia.org/wiki/खजुराहो
खजुराहो भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है जो अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिये विश्वविख्यात है। यह मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। खजुराहो को प्राचीन काल में 'खजूरपुरा' और 'खजूर वाहिका' के नाम से भी जाना जाता था। यहां बहुत बड़ी संख्या में प्राचीन हिन्दू और जैन मंदिर हैं। मंदिरों का शहर खजुराहो पूरे विश्व में मुड़े हुए पत्थरों से निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं। भारत के अलावा दुनिया भर के आगन्तुक और पर्यटक प्रेम के इस अप्रतिम सौंदर्य के प्रतीक को देखने के लिए निरंतर आते रहते हैं। हिन्दू कला और संस्कृति को शिल्पियों ने इस शहर के पत्थरों पर मध्यकाल में उत्कीर्ण किया था। विभिन्न कामक्रीडाओं को इन मंदिरों में बेहद खूबसूरती के उभारा गया है। खजुराहो का मंदिर एक सभ्य सन्दर्भ, जीवंत सांस्कृतिक संपत्ति, और एक हजार आवाजें, जो सेरेब्रम, से अलग हो रही हैं, खजुराहो ग्रुप ऑफ मॉन्यूमेंट्स, समय और स्थान के अन्तिम बिंदु की तरह हैं, जो मानव संरचनाओं और संवेदनाओं को संयुक्त करती सामाजिक संरचनाओं की भरपाई करती है, जो हमारे पास है। सब रोमांच में। यह मिट्टी से पैदा हुआ एक कैनवास है, जो अपने शुद्धतम रूप में जीवन का चित्रण करने और जश्न मनाने वाले लकड़ी के ब्लॉकों पर फैला हुआ है। चंदेल वंश द्वारा 950 - 1050 CE के बीच निर्मित, खजुराहो मंदिर भारतीय कला के सबसे महत्वपूर्ण नमूनों में से एक हैं। हिंदू और जैन मंदिरों के इन सेटों को आकार लेने में लगभग सौ साल लगे। मूल रूप से 85 मंदिरों का एक संग्रह, संख्या 25 तक नीचे आ गई है। एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल, मंदिर परिसर को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी। पश्चिमी समूह में अधिकांश मंदिर हैं, पूर्वी में नक्काशीदार जैन मंदिर हैं जबकि दक्षिणी समूह में केवल कुछ मंदिर हैं। पूर्वी समूह के मंदिरों में जैन मंदिर चंदेला शासन के दौरान क्षेत्र में फलते-फूलते जैन धर्म के लिए बनाए गए थे। पश्चिमी और दक्षिणी भाग के मंदिर विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित हैं। इनमें से आठ मंदिर विष्णु को समर्पित हैं, छह शिव को, और एक गणेश और सूर्य को जबकि तीन जैन तीर्थंकरों को हैं। कंदरिया महादेव मंदिर उन सभी मंदिरों में सबसे बड़ा है, जो बने हुए हैं। इतिहास खजुराहो का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है। अपने क्षेत्र में खजुराहो की सबसे पुरानी ज्ञात शक्ति वत्स थी। क्षेत्र में उनके उत्तराधिकारियों में मौर्य, सुंग, कुषाण, पद्मावती के नागा, वाकाटक वंश, गुप्त, पुष्यभूति राजवंश और गुर्जर-प्रतिहार राजवंश शामिल थे। यह विशेष रूप से गुप्त काल के दौरान था कि इस क्षेत्र में वास्तुकला और कला का विकास शुरू हुआ, हालांकि उनके उत्तराधिकारियों ने कलात्मक परंपरा जारी रखी। य शहर चन्देल साम्राज्‍य की प्रथम राजधानी था। चन्देल वंश और खजुराहो के संस्थापक चन्द्रवर्मन थे। चन्द्रवर्मन मध्यकाल में बुंदेलखंड में शासन करने वाले राजपूत राजा थे। वे अपने आप को चन्द्रवंशी मानते थे। चंदेल राजाओं ने दसवीं से बारहवी शताब्दी तक मध्य भारत में शासन किया। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच इन्हीं चन्देल राजाओं द्वारा किया गया। मंदिरों के निर्माण के बाद चन्देलो ने अपनी राजधानी महोबा स्थानांतरित कर दी। लेकिन इसके बाद भी खजुराहो का महत्व बना रहा। मध्यकाल के दरबारी कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो के महोबा खंड में चन्देल की उत्पत्ति का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि काशी के राजपंडित की पुत्री हेमवती अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी थी। एक दिन वह गर्मियों की रात में कमल-पुष्पों से भरे हुए तालाब में स्नान कर रही थी। उसकी सुंदरता देखकर भगवान चन्द्र उन पर मोहित हो गए। वे मानव रूप धारणकर धरती पर आ गए और हेमवती का हरण कर लिया। दुर्भाग्य से हेमवती विधवा थी। वह एक बच्चे की मां थी। उन्होंने चन्द्रदेव पर अपना जीवन नष्ट करने और चरित्र हनन का आरोप लगाया। अपनी गलती के पश्चाताप के लिए चन्द्र देव ने हेमवती को वचन दिया कि वह एक वीर पुत्र की मां बनेगी। चन्द्रदेव ने कहा कि वह अपने पुत्र को खजूरपुरा ले जाए। उन्होंने कहा कि वह एक महान राजा बनेगा। राजा बनने पर वह बाग और झीलों से घिरे हुए अनेक मंदिरों का निर्माण करवाएगा। चन्द्रदेव ने हेमवती से कहा कि राजा बनने पर तुम्हारा पुत्र एक विशाल यज्ञ का आयोजन करेगा जिससे तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे। चन्द्र के निर्देशों का पालन कर हेमवती ने पुत्र को जन्म देने के लिए अपना घर छोड़ दिया और एक छोटे-से गांव में पुत्र को जन्म दिया। हेमवती का पुत्र चन्द्रवर्मन अपने पिता के समान तेजस्वी, बहादुर और शक्तिशाली था। सोलह साल की उम्र में वह बिना हथियार के शेर या बाघ को मार सकता था। पुत्र की असाधारण वीरता को देखकर हेमवती ने चन्द्रदेव की आराधना की जिन्होंने चन्द्रवर्मन को पारस पत्थर भेंट किया और उसे खजुराहो का राजा बनाया। पारस पत्थर से लोहे को सोने में बदला जा सकता था। चन्द्रवर्मन ने लगातार कई युद्धों में शानदार विजय प्राप्त की। उसने कालिंजर का विशाल किला बनवाया। मां के कहने पर चन्द्रवर्मन ने तालाबों और उद्यानों से आच्छादित खजुराहो में 85 अद्वितीय मंदिरों का निर्माण करवाया और एक यज्ञ का आयोजन किया जिसने हेमवती को पापमुक्त कर दिया। चन्द्रवर्मन और उसके उत्तराधिकारियों ने खजुराहो में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया। दर्शनीय स्थल पश्चिमी समूह जब ब्रिटिश इंजीनियर टी एस बर्ट ने खजुराहो के मंदिरों की खोज की है तब से मंदिरों के एक विशाल समूह को 'पश्चिमी समूह' के नाम से जाना जाता है। यह खजुराहो के सबसे आकर्षक स्थानों में से एक है। इस स्थान को युनेस्को ने 1986 में विश्व विरासत की सूची में शामिल भी किया है। इसका मतलब यह हुआ कि अब सारा विश्व इसकी मरम्मत और देखभाल के लिए उत्तरदायी होगा। शिवसागर के नजदीक स्थित इन पश्चिम समूह के मंदिरों के दर्शन के साथ अपनी यात्रा शुरू करनी चाहिए। एक ऑडियो हैडसेट 50 रूपये में टिकट बूथ से 500 रूपये जमा करके प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा दो सौ रूपये से तीन रूपये के बीच आधे या पूरे दिन में चार लोगों के लिए गाइड सेवाएं भी ली जा सकती हैं। खजुराहो को साइकिल के माध्यम से अच्छी तरह देखा जा सकता है। यह साइकिलें 20 रूपये प्रति घंटे की दर से पश्चिम समूह के निकट स्टैंड से प्राप्त की जा सकती है। इस परिसर के विशाल मंदिरों की बहुत ज्यादा सजावट की गई है। यह सजावट यहां के शासकों की संपन्नता और शक्ति को प्रकट करती है। इतिहासकारों का मत है कि इनमें हिन्दू देवकुलों के प्रति भक्ति भाव दर्शाया गया है। देवकुलों के रूप में या तो शिव या विष्णु को दर्शाया गया है। इस परिसर में स्थित लक्ष्मण मंदिर उच्च कोटि का मंदिर है। इसमें भगवान विष्णु को बैकुंठम के समान बैठा हुआ दिखाया गया है। चार फुट ऊंची विष्णु की इस मूर्ति में तीन सिर हैं। ये सिर मनुष्य, सिंह और वराह के रूप में दर्शाए गए हैं। कहा जाता है कि कश्मीर के चम्बा क्षेत्र से इसे मंगवाया गया था। इसके तल के बाएं हिस्से में आमलोगों के प्रतिदिन के जीवन के क्रियाकलापों, कूच करती हुई सेना, घरेलू जीवन तथा नृतकों को दिखाया गया है। मंदिर के प्लेटफार्म की चार सहायक वेदियां हैं। 954 ईसवीं में बने इस मंदिर का संबंध तांत्रिक संप्रदाय से है। इसका अग्रभाग दो प्रकार की मूर्तिकलाओं से सजा है जिसके मध्य खंड में मिथुन या आलिंगन करते हुए दंपत्तियों को दर्शाता है। मंदिर के सामने दो लघु वेदियां हैं। एक देवी और दूसरा वराह देव को समर्पित है। विशाल वराह की आकृति पीले पत्थर की चट्टान के एकल खंड में बनी है। लक्ष्मी मंदिर लक्ष्मी मंदिर, लक्ष्मण मंदिर के सामने बना है। वराह मंदिर लक्ष्मण मंदिर कंदरिया महादेव मंदिर कंदरिया महादेव मंदिर पश्चिमी समूह के मंदिरों में विशालतम है। यह अपनी भव्यता और संगीतमयता के कारण प्रसिद्ध है। इस विशाल मंदिर का निर्माण महान चन्देल राजा विद्याधर ने महमूद गजनवी पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में किया था। लगभग 1050 ईसवीं में इस मंदिर को बनवाया गया। यह एक शैव मंदिर है। तांत्रिक समुदाय को प्रसन्न करने के लिए इसका निर्माण किया गया था। कंदरिया महादेव मंदिर लगभग 107 फुट ऊंचा है। मकर तोरण इसकी मुख्य विशेषता है। मंदिर के संगमरमरी लिंगम में अत्यधिक ऊर्जावान मिथुन हैं। अलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार यहां सर्वाधिक मिथुनों की आकृतियां हैं। उन्होंने मंदिर के बाहर 646 आकृतियां और भीतर 246 आकृतियों की गणना की थीं। सिंह मंदिर यह मंदिर कंदरिया महादेव मंदिर और देवी जगदम्बा मंदिर के बीच बना है | देवी जगदम्बा मंदिर कंदरिया महादेव मंदिर के चबूतरे के उत्तर में जगदम्बा देवी का मंदिर है। जगदम्बा देवी का मंदिर पहले भगवान विष्णु को समर्पित था और इसका निर्माण 1000 से 1025 ईसवीं के बीच किया गया था। सैकड़ों वर्षों पश्चात यहां छतरपुर के महाराजा ने देवी पार्वती की प्रतिमा स्थापित करवाई थी इसी कारण इसे देवी जगदम्बा मंदिर कहते हैं। यहां पर उत्कीर्ण मैथुन मूर्तियों में भावों की गहरी संवेदनशीलता शिल्प की विशेषता है। यह मंदिर शार्दूलों के काल्पनिक चित्रण के लिए प्रसिद्ध है। शार्दूल वह पौराणिक पशु था जिसका शरीर शेर का और सिर तोते, हाथी या वराह का होता था। सूर्य (चित्रगुप्त) मंदिर खजुराहो में एकमात्र सूर्य मंदिर है जिसका नाम चित्रगुप्त है। चित्रगुप्त मंदिर एक ही चबूतरे पर स्थित चौथा मंदिर है। इसका निर्माण भी विद्याधर के काल में हुआ था। इसमें भगवान सूर्य की सात फुट ऊंची प्रतिमा कवच धारण किए हुए स्थित है। इसमें भगवान सूर्य सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं। मंदिर की अन्य विशेषता यह है कि इसमें एक मूर्तिकार को काम करते हुए कुर्सी पर बैठा दिखाया गया है। इसके अलावा एक ग्यारह सिर वाली विष्णु की मूर्ति दक्षिण की दीवार पर स्थापित है। बगीचे के रास्ते में पूर्व की ओर पार्वती मंदिर स्थित है। यह एक छोटा-सा मंदिर है जो विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर को छतरपुर के महाराजा प्रताप सिंह द्वारा 1843-1847 ईसवीं के बीच बनवाया गया था। इसमें पार्वती की आकृति को गोह पर चढ़ा हुआ दिखाया गया है। पार्वती मंदिर के दायीं तरफ विश्वनाथ मंदिर है जो खजुराहो का विशालतम मंदिर है। यह मंदिर शंकर भगवान से संबंधित है। यह मंदिर राजा धंग द्वारा 999 ईसवीं में बनवाया गया था। चिट्ठियां लिखती अपसराएं, संगीत का कार्यक्रम और एक लिंगम को इस मंदिर में दर्शाया गया है। विश्वनाथ मन्दिर शिव मंदिरों में अत्यंत महत्वपूर्ण विश्वनाम मंदिर का निर्माण काल सन् १००२- १००३ ई. है। पश्चिम समूह की जगती पर स्थित यह मंदिर अति सुंदरों में से एक है। इस मंदिर का नामाकरण शिव के एक और नाम विश्वनाथ पर किया गया है। मंदिर की लंबाई ८९' और चौड़ाई ४५' है। पंचायतन शैली का संधार प्रासाद यह शिव भगवान को समर्पित है। गर्भगृह में शिवलिंग के साथ- साथ गर्भगृह के केंद्र में नंदी पर आरोहित शिव प्रतिमा स्थापित की गयी है। नन्दी मंदिर नन्दी मंदिर, विश्वनाथ मंदिर के सामने बना है | . "+" पार्वती मंदिर प्रकाश एवं ध्वनि कार्यक्रम शाम को इस परिसर में अमिताभ बच्चन की आवाज़ में लाईट एंड साउंड कार्यक्रम प्रद्रर्शित किया जाता है। यह कार्यक्रम खजुराहो के इतिहास को जीवंत कर देता है। इस कार्यक्रम का आनंद उठाने के लिए भारतीय नागरिक से प्रवेश शुल्क ५० रूपये और विदेशियों से २०० रूपये का शुल्क लिया जाता है। सितम्बर से फरवरी के बीच अंग्रेजी में यह कार्यक्रम शाम ७ बजे से ७:५० तक होता है जबकि हिन्दी का कार्यक्रम रात आठ से नौ बजे तक आयोजित किया जाता है। मार्च से अगस्त तक इस कार्यक्रम का समय बदल जाता है। इस अवधि में अंग्रेजी कार्यक्रम शाम ७:३० -८:२० के बीच होता है। हिन्दी भाषा में समय बदलकर ८:४० - ९:३० हो जाता है। पूर्वी समूह पूर्वी समूह के मंदिरों को दो विषम समूहों में बांटा गया है। जिनकी उपस्थिति आज के गांधी चौक से आरंभ हो जाती है। इस श्रेणी के प्रथम चार मंदिरों का समूह प्राचीन खजुराहो गांव के नजदीक है। दूसरे समूह में जैन मंदिर हैं जो गांव के स्कूल के पीछे स्थित हैं। पुराने गांव के दूसरे छोर पर स्थित घंटाई मंदिर को देखने के साथ यहां के मंदिरों का भ्रमण शुरू किया जा सकता है। नजदीक ही वामन और जायरी मंदिर भी दर्शनीय स्थल हैं। 1050 से 1075 ईसवीं के बीच वामन मंदिर का निर्माण किया गया था। विष्णु के अवतारों में इसकी गणना की जाती है। नजदीक ही जायरी मंदिर हैं जिनका निमार्ण 1075-1100 ईसवीं के बीच माना जाता है। यह मंदिर भी विष्णु भगवान को समर्पित है। इन दोनों मंदिरों के नजदीक ब्रह्मा मंदिर हैं जिसकी स्‍थापना 925 ईसवीं में हुई थी। इस मंदिर में एक चार मुंह वाला लिंगम है। ब्रह्मा मंदिर का संबंध ब्रह्मा से न होकर शिव से है। वामन मंदिर जावरी मंदिर जैन मंदिर इन मंदिरों का समूह एक कम्पाउंड में स्थित है। जैन मंदिरों को दिगम्बर सम्प्रदाय ने बनवाया था। यह सम्प्रदाय ही इन मंदिरों की देखभाल करता है। इस समूह का सबसे विशाल मंदिर र्तीथकर आदिनाथ को समर्पित है। आदिनाथ मंदिर पार्श्‍वनाथ मंदिर के उत्तर में स्थित है। जैन समूह का अन्तिम शान्तिनाथ मंदिर ग्यारहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस मंदिर में यक्ष दंपत्ति की आकर्षक मूर्तियां हैं। दक्षिणी समूह इस भाग में दो मंदिर हैं। एक भगवान शिव से संबंधित दुलादेव मंदिर है और दूसरा विष्णु से संबंधित है जिसे चतुर्भुज मंदिर कहा जाता है। दुलादेव मंदिर खुद्दर नदी के किनारे स्थित है। इसे 1130 ईसवी में मदनवर्मन द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर में खंडों पर मुंद्रित दृढ़ आकृतियां हैं। चतुर्भुज मंदिर का निर्माण 1100 ईसवीं में किया गया था। इसके गर्भ में 9 फुट ऊंची विष्णु की प्रतिमा को संत के वेश में दिखाया गया है। इस समूह के मंदिर को देखने लिए दोपहर का समय उत्तम माना जाता है। दोपहर में पड़ने वाली सूर्य की रोशनी इसकी मूर्तियों को आकर्षक बनाती है। चतुर्भुज मंदिर यह मंदिर जटकारा ग्राम से लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यह विष्णु मंदिर निरधार प्रकार का है। इसमें अर्धमंडप, मंडप, संकीर्ण अंतराल के साथ- साथ गर्भगृह है। इस मंदिर की योजना सप्ररथ है। इस मंदिर का निर्माणकाल जवारी तथा दुलादेव मंदिर के निर्माणकाल के मध्य माना जाता है। बलुवे पत्थर से निर्मित खजुराहो का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें मिथुन प्रतिमाओं का सर्वथा अभाव दिखाई देता है। सामान्य रूप से इस मंदिर की शिल्प- कला अवनति का संकेत करती है। मूर्तियों के आभूषण के रेखाकन मात्र हुआ है और इनका सूक्ष्म अंकन अपूर्ण छोड़ दिया है। यहाँ की पशु की प्रतिमाएँ एवं आकृतियाँ अपरिष्कृत तथा अरुचिकर है। अप्सराओं सहित अन्य शिल्प विधान रुढिगत हैं, जिसमें सजीवता और भावाभिव्यक्ति का अभाव माना जाता है। फिर भी, विद्याधरों का अंकन आकर्षक और मन को लुभाने वाली मुद्राओं में किया गया है। इस तरह यह मंदिर अपने शिल्प, सौंदर्य तथा शैलीगत विशेषताओं के आधार पर सबसे बाद में निर्मित दुलादेव के निकट बना माना जाता है। चतुर्भुज मंदिर के द्वार के शार्दूल सर्पिल प्रकार के हैं। इसमें कुछ सुर सुंदरियाँ अधबनी ही छोड़ दी गयी हैं। मंदिर की अधिकांश अप्सराएँ और कुछ देव दोहरी मेखला धारण किए हुए अंकित किए गए हैं तथा मंदिर की रथिकाओं के अर्धस्तंभ बर्तुलाकार बनाए गए हैं। ये सारी विशेषताएँ मंदिर के परवर्ती निर्माण सूचक हैं। दुल्हादेव मन्दिर thumb|खजुराहो स्थित दुल्हादेव मन्दिर यह मूलतः शिव मंदिर है। इसको कुछ इतिहासकार कुंवरनाथ मंदिर भी कहते हैं। इसका निर्माणकाल लगभग सन् १००० ई. है। मंदिर का आकार ६९ न् ४०' है। यह मंदिर प्रतिमा वर्गीकरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिर है। निरंधार प्रासाद प्रकृति का यह मंदिर अपनी नींव योजना में समन्वित प्रकृति का है। मंदिर सुंदर प्रतिमाओं से सुसज्जित है। इसमें गंगा की चतुर्भुज प्रतिमा अत्यंत ही सुंदर ढ़ंग से अंकित की गई है। यह प्रतिमा इतनी आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक है कि लगता है कि यह अपने आधार से पृथक होकर आकाश में उड़ने का प्रयास कर रही है। मंदिर की भीतरी बाहरी भाग में अनेक प्रतिमाएँ अंकित की गई है, जिनकी भावभंगिमाएँ सौंदर्यमयी, दर्शनीय तथा उद्दीपक है। नारियों, अप्सराओं एवं मिथुन की प्रतिमाएँ, इस तरह अंकित की गई है कि सब अपने अस्तित्व के लिए सजग है। भ्रष्ट मिथुन मोह भंग भी करते हैं, फिर अपनी विशेषता से चौंका भी देते हैं। इस मंदिर के पत्थरों पर "वसल' नामक कलाकार का नाम अंकित किया हुआ मिला है। मंदिर के वितान गोलाकार तथा स्तंभ अलंकृत हैं और नृत्य करती प्रतिमा एवं सुंदर एवं आकर्षिक हैं। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग योनि- वेदिका पर स्थापित किया गया है। मंदिर के बाहर मूर्तियाँ तीन पट्टियों पर अंकित की गई हैं। यहाँ हाथी, घोड़े, योद्धा और सामान्य जीवन के अनेकानेक दृश्य प्रस्तुत किये गए हैं। अप्सराओं को इस तरह व्यवस्थित किया गया है कि वे स्वतंत्र, स्वच्छंद एवं निर्बाध जीवन का प्रतीक मालूम पड़ती है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि अप्सरा टोड़ों में अप्साओं को दो- दो, तीन- तीन की टोली में दर्शाया गया है। मंदिर, मंण्डप, महामंडप तथा मुखमंडप युक्त है। मुखमंडप भाग में गणेश और वीरभद्र की प्रतिमाएँ अपनी रशिकाओं में इस प्रकार अंकित की गई है कि झांक रही दिखती है। यहाँ की विद्याधर और अप्सराएँ गतिशील हैं। परंतु सामान्यतः प्रतिमाओं पर अलंकरण का भार अधिक दिखाई देता है। प्रतिमाओं में से कुछ प्रतिमाओं की कलात्मकता दर्शनीय एवं सराहनीय है। अष्टवसु मगरमुखी है। यम तथा नॠत्ति की केश सज्जा परंपराओं से पृथक पंखाकार है। मंदिर की जगती ५' उँची है। जगती को सुंदर एवं दर्शनीय बनाया गया है। जंघा पर प्रतिमाओं की पंक्तियाँ स्थापित की गई हैं। प्रस्तर पर पत्रक सज्जा भी है। देवी- देवता, दिग्पाल तथा अप्सराएँ छज्जा पर मध्य पंक्ति देव तथा मानव युग्लों एवं मिथुन से सजाया गया है। भद्रों के छज्जों पर रथिकाएँ हैं। वहाँ देव प्रतिमाएँ हैं। दक्षिणी भद्र के कक्ष- कूट पर गुरु- शिष्य की प्रतिमा अंकित की गई है। शिखर सप्तरथ मूल मंजरी युक्त है। यह भूमि आम्लकों से सुसज्जित किया गया है। उरु: श्रृंगों में से दो सप्तरथ एक पंच रथ प्रकृति का है। शिखर के प्रतिरथों पर श्रृंग हैं, किनारे की नंदिकाओं पर दो- दो श्रृंग हैं तथा प्रत्येक करणरथ पर तीन- तीन श्रृंग हैं। श्रृंग सम आकार के हैं। अंतराल भाग का पूर्वी मुख का उग्रभाग सुरक्षित है। जिसपर नौं रथिकाएँ बनाई गई हैं, जिनपर नीचे से ऊपर की ओर उद्गमों की चार पंक्तियाँ हैं। आठ रथिकाओं पर शिव- पार्वती की प्रतिमाएँ अंकित की गई हैं। स्तंभ शाखा पर तीन रथिकाएँ हैं, जिनपर शिव प्रतिमाएँ अंकित की गई हैं, जो परंपरा के अनुसार ब्रह्मा और विष्णु से घिरी हैं। भूत- नायक प्रतिमा शिव प्रतिमाओं के नीचे हैं, जबकि विश्रांति भाग में नवग्रह प्रतिमाएँ खड़ी मुद्रा में हैं। इस स्तंभ शाखा पर जल देवियाँ त्रिभंगी मुद्राओं में है। मगर और कछुआ भी यहाँ सुंदर प्रकार से अंकित किया गया है। मुख प्रतिमाएँ गंगा- यमुना की प्रतीक मानी जाती है। शैव प्रतिहार प्रतिमाओं में एक प्रतिमा महाकाल भी है, जो खप्पर युक्त है। मंदिर के बाहरी भाग की रथिकाओं में दक्षिणी मुख पर नृत्य मुद्रा में छः भुजा युक्त भैरव, बारह भुजायुक्त शिव तथा एक अन्य रथिका में त्रिमुखी दश भुजायुक्त शिव प्रतिमा है। इसकी दीवार पर बारह भुजा युक्त नटराज, चतुर्भुज, हरिहर, उत्तरी मुख पर बारह भुजा युक्त शिव, अष्ट भुजायुक्त विष्णु, दश भुजा युक्त चौमुंडा, चतुर्भुज विष्णु गजेंद्रमोक्ष रूप में तथा शिव पार्वती युग्म मुद्रा में है। पश्चिमी मुख पर चतुर्भुज नग्न नॠति, वरुण के अतिरिकत वृषभमुखी वसु की दो प्रतिमाएँ हैं। उत्तरी मुख पर वायु की भग्न प्रतिमा के अतिरिक्त वृषभमुखी वसु की तीन तथा चतुर्भुज कुबेर एवं ईशान की एक- एक प्रतिमा अंकित की गई है। संग्रहालय खजुराहो के विशाल मंदिरों को टेड़ी गर्दन से देखने के बाद तीन संग्रहालयों को देखा जा सकता है। वेस्टर्न ग्रुप के विपरीत स्थित भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में मूर्तियों को अपनी आंख के स्तर पर देखा जा सकता है। पुरातत्व विभाग के इस संग्रहालय को चार विशाल गृहों में विभाजित किया गया है जिनमें शैव, वैष्णव, जैन और 100 से अधिक विभिन्न आकारों की मूर्तियां हैं। संग्रहालय में विशाल मूर्तियों के समूह को काम करते हुए दिखाया गया है। इसमें विष्णु की प्रतिमा को मुंह पर अंगुली रखे चुप रहने के भाव के साथ दिखाया गया है। संग्रहालय में चार पैरों वाले शिव की भी एक सुन्दर मूर्ति है। जैन संग्रहालय में लगभग 100 जैन मूर्तियां हैं। जबकि ट्राईबल और फॉक के राज्य संग्रहालय में जनजाति समूहों द्वारा निर्मित पक्की मिट्टी की कलाकृतियां, धातु शिल्प, लकड़ी शिल्प, पेंटिंग, आभूषण, मुखौटों और टेटुओं को दर्शाया गया है। भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में प्रवेश शुल्क 5 रूपये रखा गया है। वेस्टर्न ग्रुप के टिकट के साथ इस संग्रहालय में मुफ्त प्रवेश किया जा सकता है। सुबह दस से शाम साढे चार बजे तक यह संग्रहालय खुला रहता है। शुक्रवार को यह संग्रहालय बन्द रहता है। शुल्‍क: जैन संग्रहालय सुबह सात बजे से शाम छ: बजे तक खुला रहता है और इसमें कोई प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता। राज्य संग्रहालय में शुल्क के रूप में 20 रूपये लिए जाते हैं। यह दोपहर बारह बजे से शाम आठ बजे तक खुला रहता है। सोमवार और सार्वजनिक अवकाश वाले दिन यह बन्द रहता है। निकटवर्ती दर्शनीय स्थल खजुराहो के आसपास अनेक ऐसे स्थान हैं जो पर्यटन और भ्रमण के लिहाज से काफी प्रसिद्ध हैं। कालिंजर और अजयगढ़ का दुर्ग मैदानी इलाकों से थोड़ा आगे बढ़कर विन्ध्य के पहाड़ी हिस्सों में अजयगढ़ और कालिंजर के किले हैं। इन किलों का संबंध चन्देल वंश के उत्थान और पतन से है। 105 किलोमीटर दूर स्थित कालिंजर का किला है। यह एक प्राचीन किला है। प्राचीन काल में यह शिव भक्तों की कुटी थी। इसे महाभारत और पुराणों के पवित्र स्थलों की सूची में शामिल किया गया था। इस किले का नामकरण शिव के विनाशकारी रूप काल से हुआ जो सभी चीजों का जर अर्थात पतन करते हैं। काल और जर को मिलाकर कालिंजर बना। इतिहासकारों का मत है कि यह किला ईसा पूर्व का है। महमूद गजनवी के हमले के बाद इतिहासकारों का ध्‍यान इस किले की ओर गया। 108 फुट ऊंचे इस किले में प्रवेश के लिए अलग-अलग शैलियों के सात दरवाजों को पार करना पड़ता है। इसके भीतर आश्चर्यचकित कर देने वाली पत्थर की गुफाएं हैं। चोटी पर भारत के इतिहास की याद दिलाती हिन्दू और मुस्लिम शैली की इमारतें हैं। कहा जाता है कि कालिंजर के भूमितल से पतालगंगा नामक नदी बहती है जो इसकी गुफाओं को जीवंत बनाती है। बहुत से बेशकीमती पत्थर यहां बिखर पड़े हैं। खजुराहो से 80 किलोमीटर दूर अजयगढ़ का दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल शासन के अर्द्धकाल में बहुत महत्वपूर्ण था। विन्ध्य की पहाड़ियों की चोटी पर यह किला स्थित है। किले में दो प्रवेश द्वार हैं। किले के उत्तर में एक दरवाजा और दक्षिण-पूर्व में तरहौनी द्वार है। दरवाजों तक पहुंचने के लिए चट्टान पर 45 मिनट की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। किले के बीचों बीच अजय पलका तालाव नामक झील है। झील के अन्त में जैन मंदिरों के अवशेष बिखर पड़े हैं। झील के किनारे कुछ प्राचीन काल के स्थापित मंदिरों को भी देखा जा सकता है। किले की प्रमुख विशेषता ऐसे तीन मंदिर हैं जिन्हें अंकगणितीय विधि से सजाया गया है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने कुछ समय पहले इस किले की देखभाल का जिम्मा उठाया है। खरीददारी खजुराहो में अनेक छोटी-छोटी दुकानें हैं जो लोहे, तांबे और पत्थर के गहने बेचते हैं। यहां विशेष रूप से पत्थरों और धातुओं पर उकेरी गई कामसूत्र की भंगिमाएं प्रसिद्ध हैं। इन्हें यहां की दुकानों से खरीदा जा सकता है। मृगनयनी सरकारी एम्पोरियम के शटर अधिकांश समय गिरे रहते हैं। दिसम्बर में राज्य के ट्राईबल और फॉक संग्रहालय में कारीगरों की एक कार्यशाला आयोजित की जाती है। कार्यशाला से यहां के कारीगर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। उनकी अद्भुत कला के नमूनों को यहां से खरीदा जा सकता है। आवागमन खजुराहो जाने के लिए अपनी सुविधा के अनुसार वायु, रेल या सड़क परिवहन को अपनाया जा सकता है। वायु मार्ग खजुराहो वायु मार्ग द्वारा दिल्ली, वाराणसी, आगरा और काठमांडु से जुड़ा हुआ हैं। खजुराहो एयरपोर्ट, शहर से तीन किलोमीटर दूर है। रेल मार्ग खजुराहो रेलवे स्टेशन से दिल्ली,आगरा,जयपुर,उदयपुर,वाराणसी,भोपाल, इन्दौर,उज्जैन के लिए रेल सेवा उपलब्ध है। दिल्ली और मुम्बई से आने वाले पर्यटकों के लिए झांसी भी सुविधाजनक रेलवे स्टेशन है। जबकि चेन्नई और वाराणसी से आने वालों के लिए सतना अधिक सुविधाजनक होगा। नजदीकी और सुविधाजनक रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस के माध्यम से खजुराहो पहुंचा जा सकता है। सड़कों की स्थिति बहुत अच्छी है। सड़क मार्ग खजुराहो महोबा, हरपालपुर, छतरपुर, सतना, पन्ना, झांसी, आगरा, ग्वालियर, सागर, जबलपुर, इंदौर, भोपाल, वाराणसी और इलाहाबाद से नियमित और सीधा जुड़ा हुआ है। दिल्ली के राष्ट्रीय राजमार्ग २ से पलवल, कौसी कला और मथुरा होते हुए आगरा पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग ३ से धौलपुर और मुरैना के रास्ते ग्वालियर जाया जा सकता है। उसके बाद राष्ट्रीय राजमार्ग ७५ से झांसी, मउरानीपुर और छतरपुर से होते हुए बमीठा और वहां से राज्य राजमार्ग की सड़क से खजुराहो पहुंचा जा सकता है। . इन्हें भी देखें भारत के शहर भारत के प्रान्त मध्य प्रदेश खजुराहो के मंदिर सन्दर्भ अन्य पठनीय सामग्री Project Love Temple: machines, myths and miracles Phani Kant Mishra, Khajuraho: With Latest Discoveries, Sundeep Prakashan (2001) ISBN 81-7574-101-5 Devangana Desai, The Religious Imagery of Khajuraho, Franco-Indian Research P. Ltd. (1996) ISBN 81-900184-1-8 Devangana Desai, Khajuraho, Oxford University Press Paperback (Sixth impression 2005) ISBN 978-0-19-565643-5 बाहरी कड़ियाँ खजुराहो : पत्थरों पर छवियां जीवन की खजुराहो के 1280x960 नाप के १०० चित्र खजुराहो का विशिष्ट परिचय श्रेणी:हिन्दू पवित्र शहर श्रेणी:बुंदेलखंड श्रेणी:छतरपुर ज़िला श्रेणी:मध्य प्रदेश के शहर श्रेणी:भारत के विश्व धरोहर स्थल श्रेणी:मध्य प्रदेश में पर्यटन आकर्षण श्रेणी:छतरपुर ज़िले के नगर
बुलन्दशहर
https://hi.wikipedia.org/wiki/बुलन्दशहर
thumb|280px|काला आम चौराहा, जिसका आम-रूपी शिल्प एक ऐसे आम्रवृक्ष का प्रतीक है जहाँ स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों को फांसी दी जाती थी thumb|280px|बुलंदशहर के पास बहती नहर बुलन्दशहर (Bulandshahr) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बुलन्दशहर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है।"Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716"Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance ," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975 इतिहास बुलन्दशहर का प्राचीन नाम बरन था। इसका इतिहास लगभग 1200 वर्ष पुराना है। इसकी स्थापना अहिबरन नाम के राजा ने की थी। बुलन्दशहर पर उन्होंने बरन टॉवर की नींव रखी थी। राजा अहिबरन ने एक सुरक्षित किले का भी निर्माण कराया था जिसे ऊपर कोट कहा जाता रहा है इस किले के चारों ओर सुरक्षा के लिए नहर का निर्माण भी था जिसमें इस ऊपर कोट के पास ही बहती हुई काली नदी के जल से इसे भरा जाता था। ब्रिटिश काल में यहाँ राजा अहिबरन के वंशज राजा अनूपराय ने भी यहाँ शासन किया जिन्होंने अनूपशहर नामक शहर बसाया। उनकी शिकारगाह आज शिकारपुर नगर के रूप में प्रसिद्ध है। मुगल काल के अंत और ब्रिटिश काल के उद्भव समय में जनपद में ही मालागढ़ रियासत, छतारी रियासत व दानपुर रियासत की भी स्थापना हो चुकी थी जिनके अवशेष आज भी जनपद में विद्यमान है। दानपुर रियासत का नबाब जलील खान था और छतारी रियासत ब्रिटिश परस्त रही। कहा जाता है कि पांडव भी बुलंदशहर के आहार में कुछ दिन रहे थे। भूगोल बुलन्दशहर भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के ठीक पश्चिम में स्थित है। पूर्व में गंगा नदी व पश्चिम में यमुना नदी इसकी सीमा बनाती है। बुलन्दशहर के उत्तर में मेरठ तथा दक्षिण में अलीगढ़ ज़िले हैं। पश्चिम में राजस्थान राज्य पड़ता है। इसका क्षेत्रफल 1,887 वर्ग मील है। यहाँ की भूमि उर्वर एवं समतल है। गंगा की नहर से सिंचाई और यातायात दोनों का काम लिया जाता है। निम्न गंगा नहर का प्रधान कार्यालय नरौरा स्थान पर है। वर्षा का वार्षिक औसत 26 इंच रहता है। पूर्व की ओर पश्चिम से अधिक वर्षा होती है। बुलंदशहर, अनूपशहर, बुगरासी, औरंगाबाद, खुर्जा, पहासु, स्याना, खानपुर, डिबाई, सिकंदराबाद, जहांगीराबाद व शिकारपुर इसके प्रमुख नगर हैं व बुलन्दशहर नगर इस जनपद का मुख्यालय है। बुलंदशहर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दिल्ली से ६४ किलोमीटर की दूरी पर बसा शहर है। साथ ही बहती है काली नदी। यह शहर मुखयतः सड़कों से मेरठ, अलीगढ़, खैर, बदायूं, गौतम बुद्ध नगर व गाजियाबाद से जुडा हुआ है। बुलंदशहर जनपद के नरौरा में गंगा के किनारे भारत वर्ष में विद्यमान परमाणु विद्युत संयंत्र में से एक विद्युत ताप गृह स्थापित व सुचारू रूप से प्रयोग में है। यातायात और परिवहन वायु मार्ग सबसे निकटतम हवाई अड्डा इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। बुलन्दशहर से दिल्ली 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेल मार्ग भारत के कई प्रमुख शहरों से रेलमार्ग द्वारा बुलन्दशहर रेलवे स्टेशन जो नगर के निकट ही है, पहुँचा जा सकता है। यह हापुड़ व खुर्जा के बीच ब्रांच लाइन है। रेलवे लाइन के ऊपर बिजली के तार बिछ चुके है शीघ्र ही यह ब्रांच लाइन से मेन लाइन हो जाएगी। सड़क मार्ग बुलन्दशहर सड़क मार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली गाजियाबाद मेरठ, पलवल फरीदाबाद मानेसर जयपुर, पैरिफेरल एक्सप्रेसवे द्वारा और आगरा,अलीगढ़ कानपुर नेशनल हाईवे 91 द्वारा शहरों से सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा है। उद्योग और व्यापार कुछ स्थानों पर किसानों के परिश्रम से भूमि कृषि योग्य कर ली गई है। यहाँ की मुख्य उपजें गेहूँ, चना, मक्का, जौ, ज्वार, बाजरा, कपास एव गन्ना आम आदि हैं। बुगरासी में आम के बाग विदेशों तक मशहूर है। सूत कातने, कपड़े बनाने का काम जहाँगीराबाद में, बरतनों का काम खुर्जा, लकड़ी का काम बुलंदशहर व शिकारपुर में होता है। कांच से चूड़ियाँ, बोतलें आदि भी बनती हैं। करघे से कपड़ा बुना जाता है। नगर बुलन्दशहर में पानी के हेंडपम्प बनाने की भी कई ईकाई है। खुर्जा व बुलन्दशहर नगर में कई नामी आयुर्वेदिक चिकित्सक भी रहे हैं। खुर्जा चीनी मिट्टी के काम व बिजली के विभिन्न उपकरण भी बनाने के लिए पहचाना जाता है। तथ्य जनसंख्या - ५० लाख क्षेत्रफल - ४३५२ वर्ग किलोमीटर टेलीफोन कोड - ०५७३२ जनपद में विधानसभा क्षेत्र- 1. बुलंदशहर 2. सिकंदराबाद 3. शिकारपुर 4. खुर्जा 5. डिबाई 6. अनूपशहर 7. स्याना इन्हें भी देखें बुलन्दशहर ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:बुलन्दशहर ज़िला श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर श्रेणी:बुलंदशहर ज़िले के नगर
फैज़ाबाद
https://hi.wikipedia.org/wiki/फैज़ाबाद
REDIRECTफ़ैज़ाबाद
रक्सौल
https://hi.wikipedia.org/wiki/रक्सौल
रक्सौल (Raxaul) भारत के बिहार राज्य के पूर्वी चम्पारण ज़िले में स्थित एक शहर है।"Tourism and Its Prospects in Bihar and Jharkhand ," Kamal Shankar Srivastava, Sangeeta Prakashan, 2003"Bihar Tourism: Retrospect and Prospect ," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999"Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810 नेपाल सीमा रक्सौल भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है और अपने चीनी उद्योग के कारण जाना जाता है। इसके पास ही नेपाल का बीरगंज स्थित है। बीरगंज रेलवे स्टेशन नेपाल सरकार रेलवे (NGR) से भारत की सीमा के पार बिहार के रक्सौल स्टेशन से जुड़ा है। 47 किमी (29 मील) रेलवे उत्तर में नेपाल के अमलेखगंज तक फैली हुई है। यह 1927 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था, लेकिन दिसंबर 1965 में बीरगंज से परे बंद कर दिया गया था। [3] रक्सौल से बिरगंज तक 6 किमी (3.7 मील) रेलवे ट्रैक को दो साल बाद ब्रॉड गेज में बदल दिया गया था, क्योंकि भारतीय रेलवे ने ट्रैक को भारत के रक्सौल में ब्रॉड गेज में बदल दिया था। अब, ब्रॉड गेज रेलवे लाइन रक्सौल को सिरसिया (बीरगंज) अंतर्देशीय कंटेनर डिपो (ICD) से जोड़ती है, जो 2005 में पूरी तरह से चालू हो गई थी। नेपाल के बीरगंज से नेपाल के अमलेगंज तक रेल मार्ग को फिर से खोलने के लिए वार्ता हुई है, क्योंकि इसे ब्रॉड गेज में परिवर्तित कर दिया गया है। इसका सामाजिक-आर्थिक महत्व है। center|thumb|रक्सौल रेलवे स्टेशन इतिहास रक्सौल : अतीत और वर्तमान’https://hal.science/hal-03887549v1 (रक्सौल नगर के उद्धव व क्रमागत विकास पर संदर्भ पुस्तक) इन्हें भी देखें पूर्वी चम्पारण ज़िला सन्दर्भ श्रेणी:बिहार के शहर श्रेणी:पूर्वी चम्पारण जिला श्रेणी:पूर्वी चम्पारण ज़िले के नगर