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भारतीय राजनीति में पिछड़ेपन के विचार का सूत्रीकरण उसे खत्म करने के मकसद से किया गया था
लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि यह समझ बैकवर्डनेस खत्म करने के बजाय उसकी विभिन्न किस्मों के बीच होड़ में पतित हो गई है
जो पिछडे़ की श्रेणी में है, वह पिछड़ा बने रहने पर तुला है
जिन व्यक्तियों और समुदायों की आत्मछवि पिछड़े की नहीं थी, वे भी पिछड़ा बनने में जुट गए हैं
व्यावहारिक धरातल पर पिछड़ापन मानवीय अस्तित्व की अवमानना न हो कर उसके लिए लाभकारी मान लिया गया है
जो कम पिछड़ा है, वह खुद को ज्यादा पिछड़ा बता रहा है
पिछड़ेपन को निहित स्वार्थ बनाने का जघन्य नमूना हाल ही में देखने को मिला जब अपनी बैकवर्डनेस की डिग्री बढ़ाने के लिए आंदोलनरत एक समुदाय ने प्रतिवेदन दिया कि उसके सदस्य बेहद दकियानूसी और अंधविश्वासी हैं, अपनी बीवियों को पीटते हैं, भूत प्रेतों में यकीन करते हैं इसलिए उन्हें ओबीसी की श्रेणी से निकाल कर एसटी आदिवासी श्रेणी में आरक्षण दिया जाना चाहिए
जो समुदाय अभी तीससाल पहले तक पिछड़ा कहे जाने पर नाराज हो जाते थे, उनके मुंह में पिछड़ेपन की मलाई लग चुकी है
पिछड़ा होने की इस होड़ को बढ़ाने में सरकार और राजनेताओं ने जम कर योगदान किया है
आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को विशेष सुविधाएं देने के लिए बनाया गया आयोग और उसकी ताजा रपट इसका संस्थागत प्रमाण है
पिछड़ेपन को सिर के बल खड़ाकर देने यानी उसे त्याज्य से स्वीकार्य बना देने के इस उद्यम में हर पार्टी और हर नेता शामिल है
आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय के निर्धारण के लिए एक आयोग गठित करने का प्रस्ताव बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीएसरकार ने 2003 के अक्टूबर में किया था, जब लोकसभा चुनाव होने वाले थे
जाहिर है, उसकी यह घोषणा ऊंची जाति के मतदाता मंडल को फुसलाने की व्यापक कोशिश का एक अंग थी
आर्थिक रूप से पिछड़ा तो वही हो सकता है जो सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन का शिकार न हो
समाज के बाकी सभी तबकों दलित, आदिवासी और ओबीसी को तो पहले से ही सामाजिक शैक्षिक पिछड़ेपन के तहत लाभान्वित किया जा रहा था
कोई गलतफहमी न रह जाए, इसलिए घोषणा करते समय तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री सुषमास्वराज ने यह भी कह दिया था कि आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन किया जाएगा
चुनाव के बाद सरकार बदल गई, फिर भी इस प्रस्ताव की आलोचनात्मक समीक्षा किए बिना इसे लागूकर दिया गया
आयोग की रपट अभी आरक्षण की सिफारिश पर खामोश है, पर आर्थिक पिछड़ेपन को संस्थागत मान्यता तो उसने दे ही दी है
इसके बाद अगर द्विज जातियां आरक्षण के लिए आंदोलन करती हुई सड़कों पर उतर आएं तो इसमें कोई ताज्जुब नहीं होगा
ऐसा होते ही आरक्षण और गरीबी हटाओ कार्यक्रम के बीच कोई फर्क नहीं रह जाएगा
दिलचस्प बात यह है कि इस आयोग की रपट भी एक ऐसे विधानसभा चुनाव के ठीक पहले आयी है जिसमें ऊंची जाति के वोटर राजनीतिक हवा में इधर-उधर तैर रहे हैं
बिहार के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही इन वोटरों को अपनी ओर खींचने में जुटेंगे
आयोग के पीछे दोनों पार्टियों का हाथ है, इसलिए प्रतीकात्मक लाभ उठाने की कोशिश दोनों ही तरफ से होगी
पिछड़ेपन कई तरह का हो सकता है, इसलिए संविधान निर्माताओं ने साफ कर दिया था कि वे इसकी जिस किस्म से चिंतित हैं वह सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन है
पिछड़ेपन के इसी प्रकार को खत्म करने के लिए उन्होंने विशेष सुविधाओं के प्रावधान किए थे, जिनका एक प्रमुख रूप आरक्षण है
पिछड़ेपन की दूसरी किस्मों के लिए उनके पास आर्थिक विकास, आधुनिकीकरण और सेकुलरीकरण की तजवीजें थीं
उन्हें यकीन था कि इन प्रक्रियाओं से काम चल जाएगा और पिछड़ेपन के अन्य रूपों को विशेष सुविधाएं देने की जरूरत नहीं पड़ेगी
सरकारों ने गरीबी हटाने, सस्ती दर पर कर्ज देने और रोजगार की गारंटी देने के कार्यक्रम इसलिए चलाए ताकि खुद को पिछड़ा समझने वाला हर व्यक्ति और तबका आरक्षण की राह न देखने लगे
आजादी के बाद लंबे समय तक नीति निर्माता यह चौकन्नापन दिखाते रहे कि पिछड़ेपन के आर्थिक रूप को राजनीतिक और सरकारी मान्यता न मिलने पाए
लेकिन यह मर्यादा अब टूट चुकी है
पिछड़ेपन का यह विमर्श जितना विस्तृत होगा, हमारे राजनीतिक-आर्थिक सोच-विचार की श्रेणियां उतनी ही बदलेंगी
मसलन, अगर निचली जातियों के लोगों की आमदनी कम है तो उन्हें गरीब कहा जाएगा, लेकिन ऊंची जातियों के कम आमदनी वाले लोग गरीब के बजाय पिछड़े कहे जाएंगे
आयोग की सिफारिश है कि देश में आर्थिक रूप से पिछड़े करीब एककरोड़ परिवारों को दुर्दशा से निकालने के लिए दसहजाररुपए की मदद दी जानी चाहिए
अगर यह सिर्फ चुनावी रिश्वत नहीं है तो इस पर अमल के लिए पिछड़ेपन की पूरी परिभाषा बदलनी पड़ेगी
इस तरह की नकद मदद का प्रावधान तो अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़ी जातियों के लिए भी आजतक नहीं किया गया है
आरक्षण प्रक्रिया के आधार में भी कुल मिला कर उत्पीडित समुदायों की योग्यता और क्षमता में बढ़ोतरी करते हुए उन्हें भौतिक और मानसिक धरातल पर समकक्षता की अनुभूति से संपन्न करना ही है
पिछले कुछ दिनों से भारत समेत कॉमनवेल्थगेम्स में भाग लेने वाले दुनिया के कई अन्य देशों का मीडिया लगातार इसमें करप्शन के बारे मे खबरें दे रहा है
गेम्स बस दोमहीने दूर हैं और मीडिया में आ रही खबरें किसी की भी आंखें खोलने के लिए काफी हैं
अपने ब्लॉग में मैं कई बार इस पर चर्चा कर चुका हूं और बता चुका हूं कि यहां किस किस्म का नरक तैयार हो रहा है
मैं कुछ गौरवान्वित भी महसूस करता हूं कि जो भी भविष्यवाणियां मैंने की हैं वे सब सच साबित होती जा रही हैं
जैसे कि काम की खराब क्वालिटी, जानबूझकर चीजों में देरी करना और पैनिक की स्थिति बनाना ताकि बिना किसी सवाल-जवाब के ज्यादा से ज्यादा धन खींचा जा सके, दिल्ली में हरजगह और बेवजह की खुदाई और अच्छे-खासे दिख रहे इंफ्रास्ट्रक्चर को तोड़ना वगैरह
आजकल मुझे किसी भी चीज पर ज्यादा आश्चर्य नहीं होता लेकिन कॉमनवेल्थगेम्स के मामले में उड़ी गर्द ने मुझे अपनी राय बदलने पर मजबूर कर दिया है
हां, अफसरों और नेताओं ने मुझे भौंचक्का कर दिया है
कल्पना कीजिए कि एकलाखरुपये से कम कीमत की ट्रेडमिल का 45दिन का किराया 10लाखरुपये हो और टॉयलेट पेपर का एक 4हजाररुपये में खरीदा जाए
लिस्ट लंबी है – एयर कंडिशनर, कुर्सियां, टेबल और न जाने क्या-क्या बेशर्मी की इंतहा है
हालांकि, इतना शोर-शराबा होने के बाद इसकी जांच हो रही है और एक बलि का बकरा खोजा जाएगा, सजा दी जाएगी और हमेशा की तरह मामला दफना दिया जाएगा
हम पत्रकार लोग भी ज्यादा गंभीर खबरों ’ की खोज में लग जाएंगे
जैसे किस सिलेब्रिटी के कुत्ते ने किसको काटा और वह कुत्ता सही-सलामत है या नहीं
जो कुछ भी हो रहा है वह चिंताजनक और घिनौना है, लेकिन मेरी चिंता इससे भी बढ़कर है
वह यह है कि इस अंधी लूट में क्वालिटी स्टैंडर्ड्स की भीषण अनदेखी की गई है
सेंट्रल विजिलेंस कमिशन सीवीसी की जांच में पता चला है कि गेम्स के लिए जारी किए गए हर क्वालिटी सर्टिफिकेट में फर्जीवाड़ा किया गया है क्या इससे बड़ी त्रासदी कोई हो सकती है?
बहुत साल पहले, जानेभीदोयारो ’ फिल्म में एक बिल्डर अपने जूनियर अफसर को सीमेंट की पर्याप्त मात्रा न होने की शिकायत पर हड़काता है
बड़े मजे में बिल्डर उससे कहता है, अभीतक तुम सीमेंट में बालू मिलाते आए हो, अब बालू में सीमेंट मिलाओ
तुम्हारी समस्या सुलझ गई हम सब इस पर हंसे थे क्योंकि उसवक्त यह सबके लिए एक जोक ही था
हमें क्या पता था कि 25साल में ही यह सच साबित होगा और वह भी एक ऐसे प्रॉजेक्ट के लिए जो दुनिया के मंच पर हमारी हैसियत और ताकत का मुजाहिरा करता
दुख इसलिए होता है कि इस सबके लिए किसी को कोई अफसोस नहीं है
वेटलिफ्टिंग ऑडिटोरियम की छत को मुकाबले से पहले ही चलनी की तरह लीक होते देखना डरावना और गुस्सा दिलाने वाला था
यह तब हुआ जब शहरी विकास मंत्री ऑडिटोरियम का उद्घाटन करने आए थे और खेल मंत्री भी वहां मौजूद थे
हर आदमी वहां पर रिस रही छतों, सीलन से पसीजी दीवारों और फर्श पर इकट्ठा हुए पानी को देख सकता था
लेकिन दोनों मंत्रियों इसमें कोई बड़ी बात नहीं ’ नजर आई
जिस अंदाज में उन्होंने यह बात कही, वह घृणा उपजाती है
यही हाल साइकलिंग वेलोड्रोम, शूटिंग रेंज, बैडमिंटन अरीना और स्विमिंग पूल का है
हो सकता है कि आने वाले दिनों में कई और जगहों पर इस तरह की गड़बड़ी दिखाई पड़े
क्या आप एक ऐसे स्टेडियम में घुसना चाहेंगे जो असुरक्षित नींव पर खड़ा हो? क्या आप अपनी जिंदगी खतरे में डालने के लिए पैसे खर्च करेंगे? मुझे तो ऐसा नहीं लगता
स्पोर्ट्स अरीना ही क्यों, पूरे शहर में किए गए सिविल वर्क में घटिया सामग्री का इस्तेमाल हुआ है
दिल्ली के वीवीआईपी इलाके की अकबररोड पर एक नया बिजली का खंभा बीच में से टूटकर गिर गया
अब सड़क पर गाड़ी चलाते समय मुझे हर वक्त खटका सा लगा रहता है
इसी तरह गुड़गांव में सीआरपीएफ शूटिंग रेंज को जाने वाली नई बनी 6 लेन की सड़क कुछ घंटों की बारिश में ही जगह-जगह क्षतिग्रस्त हो गई
आप सवाल करेंगे तो टका-सा जवाब मिलेगा कि इसे ठीक कर दिया जाएगा
ठीक बात है लेकिन, किस कीमत पर? इसकी कीमत कौन चुकाएगा? इसके लिए पैसा किसकी जेब से आएगा? अभीतक, कई प्रॉजेक्ट तैयार नहीं हैं और इंजीनियर खुलेआम कह रहे हैं कि अब उन्हें कंप्लीट करने का समय नहीं बचा है
अगर उन्हें जबर्दस्ती यह काम पूरा करने को कहा जाएगा तो वह कर देंगे लेकिन इन इमारतों में रहना खतरे से भरा होगा – उदाहरण के तौर पर वसंतकुंज में बन रहे डीडीए फ्लैट्स
बहुचर्चित प्रियदर्शनीमट्टू हत्याकांड में सुप्रीमकोर्ट बुधवार सुबह अपना फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट के फांसी के फैसले के बदल दिया है
हाई कोर्ट ने अक्टूबर, 2006 में मट्टू की हत्या मामले में संतोषकुमारसिंह को फांसी की सजा सुनाई थी
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दोषी की सजा कमकरते हुए उसे उम्रकैद की सज़ा सुनाई है
इससे पहले निचली अदालत ने संतोष को 3दिसंबर, 1999 को बरीकर दिया था
इस फैसले को सीबीआई ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी इसके बाद हाईकोर्ट ने संतोष को फांसी की सजा सुनाई थी
सीबीआई के मुताबिक संतोष ने दिल्लीयूनिवर्सिटी लॉ कर रही स्टूडेंट प्रियदर्शनीमट्टू की जनवरी1996 में बलात्कार के बाद हत्याकर दी थी इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले को संतोष ने सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दे रखी है
सुप्रीम कोर्ट ने 29जुलाई, 2010 को फैसला सुरक्षित रख लिया था
बीजेपी ने कहा कि वह अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर देखना चाहती है और मामले को चुनावों से जोड़ने की आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि अगर वहां राममंदिर बनता है तो पार्टी 20वर्षों चुनाव हारने के लिए तैयार है
बीजेपी अध्यक्ष नितिनगडकरी ने एक आम सभा को संबोधितकरते हुए कहा, विपक्षियों ने मुझे कहा कि अगर अयोध्या में राममंदिर बनता है तो बीजेपी के पास कोई चुनावी मुद्दा नहीं होगा
इस पर पलटवार करते हुए मेरा जवाब है कि अगर अयोध्या में राममंदिर बनता है तो बीजेपी अगले 20सालों तक चुनाव हारने के लिए तैयार है हम अयोध्या में भव्य राममंदिर चाहते हैं
उल्लेखनीय है किगडकरी 10अक्तूबर को होने वाले अहमदाबाद नगरनिगम चुनावों के लिए प्रचार कर रहे हैं
पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनियागांधी ने सरकार के कामकाज के तरीकों की आलोचना की
यूं कहें कि कांग्रेस पार्टी ने सरकार की कई नीतियों पर सवाल खड़े किए कुछ मसलों पर पार्टी की राय सरकार से बिल्कुल अलग दिखी
मनमोहनसिंह ने कहा कि नक्सली इस देश के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं और उनसे सख्ती से निबटने की जरूरत है
लेकिन पार्टी अध्यक्ष सोनियागांधी ने इस समस्या को मानवीय ढंग से देखने और इसकी जड़ तक जाने की वकालत की अभी उड़ीसा में वेदांता को बॉक्साइट खनन की मंजूरी नहीं दिए जाने के फैसले में भी दृश्य कुछ ऐसा ही था
कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री ने संपादकों के साथ अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि विकास के हर काम में पर्यावरण का अड़ंगा नहीं लगाना चाहिए
मनमोहनसिंह देश में खुली अर्थव्यवस्था और बाजार के पैरोकार माने जाते हैं बावजूद इसके वेदांता को पर्यावरण के नाम पर ही खनन की इजाजत नहीं दी गई
कुछ लोग इसका श्रेय राहुलगांधी को दे रहे हैं जो इस फैसले के पहले नियमगिरि जाकर वहां के आदिवासियों को भरोसा दे आए थे
ऐसे वाकयों से पूरे देश में संकेत गया है कि सोनियागांधी अब मनमोहनसिंह को पसंद नहीं करतीं मीडिया में भी चर्चा शुरूहो गई कि प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहनसिंह की उलटी गिनती शुरूहो गई है
लेकिन इस मसले पर जल्दबाजी में किसी निर्णय पर पहुंचने के बजाय इसका निहितार्थ समझने की जरूरत है सरकार और सत्ताधारी पार्टी के बीच मतभेद होना लोकतंत्र के मजबूत होने की निशानी है
अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो पहले इस तरह की परंपरा नहीं थी जब जवाहरलालनेहरू देश के प्रधानमंत्री बने तो कुछ दिनों तक आजाद होने का रूमानी एहसास कायम था
बाद में उनका कद इतना बड़ा हो गया था कि उनकी सरकार की आलोचना उनकी आलोचना मान ली जाती थी लेकिन जब इंदिरागांधी प्रधानमंत्री बनी तो मतभेद बेकाबू होने लगे
पार्टी पर कब्जे की लड़ाई शुरू हुई जिसमें इंदिरागांधी को उनकी राजनैतिक कौशल की वजह से जीत मिली इमरजेंसी के बाद 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली
चुनाव में हार और फिर अपनों का साथ छोड़ना-इंदिरागांधी सतर्क हो गई और 1978 में खुद पार्टी की कमान संभाल ली
उन्होंने यह पद 1980 में दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नहीं छोड़ा यहां पहुंचकर पार्टी ही सरकार और सरकार ही पार्टी बन गई
यानी सरकार से अलग पार्टी की कोई राय ही नहीं थी
राजीवगांधी ने भी इस परंपरा को कायम रखा उन्होंने भी प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष का पद अपने ही पास रखा 1985 से शुरू कर मृत्युपर्यंत वे कांग्रेस अध्यक्ष रहे
फिर नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भी पार्टी पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए अध्यक्ष का पद अपने ही पास रखा
बाद में जब एनडीए का शासन आया तो लगा कि यह परंपरा टूटने वाली है अटलबिहारीवाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उसवक्त कुशाभाईठाकरे बीजेपी के अध्यक्ष थे

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