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प्रभा वर्मा कवि , साहित्यकार , गीतकार , सांस्कृतिक कार्यकर्ता और एक ऐसे संपादक हैं जो परंपरागत और इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यम दोनों को एक साथ लेकर आगे बढ़ते हैं । कानून में उन्होंने स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की है । उनकी कविताएँ परंपरा और आधुनिकता के संगम को दर्शाती हैं। अकादमी पुरस्कार ( नेशनल अकादमी ऑफ लैटर्स ) विजेता इस भारतीय कवि को श्रेष्ठ गीतकार के राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार &#३९; रजत कमल &#३९; से भी नवाज़ा गया है। उनकी कविताएँ परम्परा और आधुनिकता के संगम से सरोबार हैं । ये कविताएँ कोमल रूमानी भावनाओं, काव्यात्मक बिम्बों की बाहुल्यता , मौलिक और नवीन अभिव्यक्ति की शैली , दार्शनिक दृष्टि और जीवन के सच्चे यथार्थ की गहरी समझ से संपन्न हैं । उनकी काव्यात्मक प्रतिभा प्रयोगवाद और अनुभूतिवाद का श्रेष्ठ मिश्रण है । परंपरा की सूक्ष्म बारीकियों को आत्मसात करते हुए उन्होंने एक नवीन संवेदना की शुरुआत की , जिसने न केवल समकालीन पीढ़ी को प्रभावित किया बल्कि यह आने वाले समय को भी अवश्य ही प्रभावित करेगी । उनकी कविताएँ सरल और उदात्त भाषा में जीवन के सत्य को उजागर करती हैं । इस बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार के एक दर्जन से भी ज़्यादा कविता संग्रह , एक उपन्यास , तीन पद्य उपन्यास, समकालीन सामाजिक , राजनीतिक परिवेश और साहित्य पर छह पुस्तकें , आलोचना पर आठ निबंध संग्रह , मीडिया पर एक अध्ययन, &#३९;आफ्टर द आफ्टरमैथ &#३९; नामक एक अंग्रेजी उपन्यास , एक फिल्म कहानी और एक यात्रा विवरण प्रकाशित हो चुके हैं । साथ ही साथ उन्होंने पौराणिक शास्त्रीय संगीतज्ञ शादकला गोविंदा मरार के जीवन पर आधारित मलयालम में &#३९;कला पासम &#३९; नामक एक उपन्यास और शत कलम &#३९; नामक एक फ़िल्म भी लिखी है। साहित्य अकादमी पुरस्कार ( राष्ट्रीय) , केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार , केरल के ज्ञानपीठ पुरस्कार नाम से विख्यात वयलार पुरस्कार ( २०१३) और पदम प्रभा पुरस्कार आदि पुरस्कारों ने उनकी प्रतिष्ठा में चार चाँद लगा दिये हैं। वर्मा जी एक अच्छे गीतकार भी हैं। &#३९; नडन, शीलावती, सायानम, स्थिति, कलापम, ग्रामपंचायत, नगर वधु, वर्षा, हरीन्द्रन उरु निष्कलंकन, ओडियन , कोलाम्बी ( रजत कमल पुरस्कार से पुरस्कृत कृति ) , मरकार अरबी कडलिन्डे सिंहं आदि कुछ ऐसी फिल्में हैं जिनके लिए उन्होंने गीत लिखे।उनके कई गाने बहुत ही जल्दी लोकप्रिय हो गए इन गानों को १ साल के अंदर ही १00 करोड़ से भी अधिक दर्शक मिलेजैसे कि उरु चेम्बनीर पू (स्थिति ) . कन्ना नी निनई पदारे ( मरकार अरबी कडलिन्डे सिंह ) । सन् २००६, २०१३ , 20१7 के श्रेष्ठ गीतों के लिए उन्हें राज्य सरकार के फिल्म पुरस्कार, वर्ष २००८ में नगरवधु और २०१३ की &#३९;नडन &#३९; फ़िल्म के श्रेष्ठ गानों का फिल्म आलोचना पुरस्कार और प्रोफेशनल ड्रामा के श्रेष्ठ गानों के लिए वे तीन बार राज्य सरकार के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन २०२१ में उन्हें &#३९; कोलाम्बी &#३९; फिल्म के गानों के लिए &#३९;रजत कमल &#३९; पुरस्कार से भी नवाजा गया । ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रोफेसर ओ.एन.वी. कुरूप ने एक कवि के रूप में उनकी प्रशंसा करते हुए कहा है कि &कोट; सूक्ष्म काव्यात्मक धनवनता उन्हें प्रसिद्ध कवि वयलॉ पिल्ली श्रीधर मेनन से विरासत में मिली है जिन्होंने की स्वयं यह गुण कुमारन आशान से ग्रहण किया है ।प्रसिद्ध आलोचक स्वर्गीय प्रो. एम. कृष्णन नायर ने उनके बारे में लिखा है कि &कोट; प्रभावर्मा एक जन्मजात कवि है। &कोट; वर्मा जी ६० से भी ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित व्यक्ति है । जिनमें से मुख्य हैं - वयलार पुरस्कार , आशान पुरस्कार, उल्लूर पुरस्कार , वल्लतोल पुरस्कार , पद्म प्रभा पुरस्कार , वयलॉ पिल्ली पुरस्कार , कुन्जु पिल्लई पुरस्कार ( १९९३ ) , कृष्ण गीथि पुरस्कार ( १९९४ ) , मुल्लूर पुरस्कार ( १९९५ ) , चंगम पुष़ा पुरस्कार ( १९९७ ) , महाकवि पी पुरस्कारम (१९९७ ) कथा वनाड पुरस्कार ( १९९९ ) , अबुधाभी शक्ति पुरस्कार ( १९८८ ) , वेन्नी कुलम पुरस्कार (२००३), ऐ. पी. कलक्काड पुरस्कार (२००६), कन्नाशा पुरस्कार ( २०११ ) , कडत्त नाड उदय वर्मा पुरस्कारम ( २००६ ), मुल्लनेष़ी पुरस्कार (२०१२ ) , प्रेमजी पुरस्कार (२०१२ ) , महाकवि पन्दलम केरला वर्मा कविता पुरस्कारम ( २०१६ ) , इडश्शेरी पुरस्कार (२०२० ) , पी. केशव देव पुरस्कार , जे केवी कदम्मनिता पुरस्कार और मार ग्रेगोरियस पुरस्कार आदि । उनकी सर्वोत्तम रचना श्यामा माधवम एक ऐसा पद्य उपन्यास है जो पन्द्रह अध्यायों में विभाजित काव्यख्यायिका है । यह भगवान कृष्ण और उन लोगों के जीवन के इर्द - गिर्द घूमती है जो उनके भूमि पर अवतार के दौरान उनके संपर्क में आए थे , जिसके बारे में कवि का मानना है कि यह परमानन्द की श्रंखला नहीं है, जैसा कि कई लोगों का विश्वास है बल्कि व्यथा है, पीड़ा है। यह एक एकान्त आत्मा की पीड़ा और उस दुर्लभ साहस का हृदयस्पर्शी निरूपण है जिसके साथ कृष्ण जीवन का सामना करते हैं। प्रस्तुत रचना नाटकीय रूप से मर्मभेदी और उदासीन मनोदशा से प्रारम्भ होती है और उनके स्वर्गारोहण की पराकाष्ठा पर पहुँचती है , उस अन्तराल में वह पाप स्वीकारोक्ति और पश्चाताप की श्रंखला में समय व्यतीत करते हैं | श्यामा माधवम &#३९; एक ओर छंद, अलंकार और दंडक जैसे मैट्रिक पैटर्न का एक विस्तृत स्पेक्ट्रम पेश करता है, वहीं बदलते समय की पृष्ठभूमि के ख़िलाफ़ महानायक की एकाकी आंतरिक आवाज़ की वास्तविक चिंता को सामने लाता है । इस कृति के लिए उन्हें केरल के ज्ञानपीठ पुरस्कार के रूप में लोकप्रिय वायलर पुरस्कार २०१३ प्रदान किया गया जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला । &#३९;श्यामा माधवम &#३९; को प्रतिष्ठित मालयट्टूर पुरस्कार (२०१३) से भी नवाज़ा गया । &#३९;श्यामा माधवम को वर्ष २०२० में केरल राज्य पुस्तकालय परिषद द्वारा दशक की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक के रूप में चुना गया । &#३९;श्याम माधवम का मंचन एक संगीत नाटक के रूप में किया गया था जिसने हज़ारों लोगों को आकर्षित किया था । श्यामा माधवम &#३९; का अंग्रेजी , हिंदी और संस्कृत सहित दस भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है । &#३९; कणल चिलम्बु &#३९; ( अंगारों की पायल ) एक पद्य उपन्यास है। लगभग पाँच हज़ार शब्दों में समाहित सात अध्यायों में रचित यह रचना प्रेम , वासना , साजिश , शक्ति प्रतिशोध और अनाचार को उजागर करती है । संक्षेप में वे सभी तत्व जो त्रासदियों के निर्माण में सहायक होते हैं, वे सभी इस कृति में मौजूद हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्यार और बदले की यह मार्मिक कहानी एक सदियों पुरानी पहेली का उत्तर देती है जो सवाल उठाती है कि &कोट; जब दूध से भरा बर्तन गिर गया तो दूध वाली क्यों हंसी ? &कोट; &#३९;एंकलेट ऑफ फायर&#३९; &#३९;श्यामा माधवम &#३९; के बाद प्रभा वर्मा द्वारा लिखी गई दूसरी काव्यात्मक कविता है | &#३९;कणल चिलम्बु पर आधारित व्यावसायिक नाटक का केरल में ५०० से भी अधिक बार मंचन किया जा चुका है । प्रस्तुत कृति भी अंग्रेजी, संस्कृत जैसी अनेक भाषाओं में अनूदित हो चुकी है । प्रभा वर्मा का तीसरा पद्य उपन्यास है रौद्र सात्विकम &#३९; जो कि एक ही पात्र कालियेव के इर्द-गिर्द घूमता है । यह रचना पात्र को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से अलग करती है और उसकी एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करती है जो कुछ द्विआधारी विपरीततों के बीच सदियों पुराने संघर्ष से संबंधित है जो व्यक्ति और राजनीति दोनों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं । शीर्षक । द्विआधारी विपरीत शब्दों से मिलकर बना है - रौद्र और सात्विकम । मोटे तौर पर क्रमशः जिसका अर्थ है उग्रता और पवित्रता । लेखक की काव्य प्रतिभा वास्तव में एक नए शब्द के निर्माण में प्रतिबिंबित होती है जो दो भागों को दर्शाती है जिनके बीच एक व्यक्ति स्वयं को उसे स्थिति में पता है जब उसे जीवन के कुछ उथल-पुथल भरे क्षणों का सामना करना पड़ रहा हो । सत्ता और राजनीति व्यक्ति और राज्य कला और सत्ता के बीच संघर्ष को एक अनोखे तरीके से प्रस्तुत किया गया है। विषयवस्तु का कुछ द्विआधारी विरोधों के बीच संघर्ष द्वारा भी विश्लेषण किया गया है, जो नायक और समाज दोनों की नियति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं एक जाल जिसमें वह फँस गया है । कला और सत्ता, व्यक्ति और राज्य लोग और सत्ता , शांति और हिंसा , पुरोहित लोकाचार और मैकियावेलियन षड्यंत्र आदि के बीच टकराव को अत्यधिक रचनात्मक तरीके से प्रस्तुत किया गया है वह भी अनोखे मौलिक अंदाज में । प्रस्तुत पुस्तकसमय और स्थान की अवधारणा से परे हैऔर धर्म सदाचार की अवधारणा को पुनः परिभाषित करना चाहती है ।एक व्यक्ति जानता है कि धर्म क्या है लेकिन वह इस व्यवहार में नहीं ला पता एक व्यक्ति जानता है कि धर्म क्या है लेकिन फिर भी वह इससे बचने में असफल हो जाता है , यही मानव की दयनीय अवस्था है इस कठिन परिस्थिति से कैसे छुटकारा पाया जाए , इसी शाश्वत प्रश्न को इस पुस्तक में विषय वस्तु में दूरदर्शी आयाम जोड़कर अत्यधिक दार्शनिक तरीके से प्रस्तुत किया गया है । यह एक ऐसी किताब है जो वास्तव में बनावट और सामग्री दोनों में ही अलग स्थान रखती है संक्षेप में &#३९;रौद्र सात्विकम &#३९; महाकाव्यात्मक लक्षणों से भरपूर आधुनिक क्लासिक है । यह द्विभाषी लेखक जो मलयालम और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में समान उत्साह के साथ लिखते हैं , इस साल अपनी रचनात्मक लेखन के ५० वर्ष पूरे कर रहे हैं । कर्नाटक शास्त्रीय संगीत और नृत्य में योगदान : अपने नाटकों के गीतों के लिए उन्हें दो बार केरल संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिल चुका है । प्रभा वर्मा ने कर्नाटक संगीत समारोहके लिए ४० से अधिक शास्त्रीय कृतियां और दो दर्जन से भी अधिक मोहिनीअट्टम के पदों को लिखा है जो कि केरल का शास्त्रीय नृत्य है । भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव कुमार मुखर्जी ने उन्हें वर्ष २०१६ में प्रदर्शन कला के प्रति उनके योगदान के लिए राष्ट्रपति भवन में प्रशस्ति पत्र और शॉल देकर सम्मानित किया । केरल में कई जगहों पर (केवल प्रभा वर्मा की रचनाओं पर आधारित ढाई घंटे का समारोह ) उनकी कृतियों को विषयगत संगीत कार्यक्रम के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है। एक पत्रकार के रूप में सन् १९९६ में श्रेष्ठ जनरल रिपोर्टिंग के लिए राज्य सरकार पुरस्कार को जीतकर उन्होंने अपने आप को एक श्रेष्ठ पत्रकार भी साबित किया है । सन् १९८८, ९० में त्रिवेंद्रम प्रेस क्लब ने उन्हें के. सेबास्टिन पुरस्कार से सम्मानित किया । भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री के.जी. बालकृष्णन द्वारा उन्हें मीडिया ट्रस्ट अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया | अंग्रेजी की श्रेष्ठ फिल्म के लिए उन्होंने के. सी. डेनियल पुरस्कार , बी . आर. अंबेडकर पुरस्कार और के. माधवन कुट्टी पुरस्कार भी हासिल किया । एक पत्रकार के रूप में वर्मा जी ने संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में आयोजित दोहा अंतरराष्ट्रीय बैठक में &#३९;उभरते लोकतंत्र&#३९; विषय पर एक प्रपत्र प्रस्तुत किया । ८० के दशक में उन्होंने उत्तर कोरिया के प्योंगयांग में आयोजित विश्व युवा महोत्सव में भाग लिया था और २००९ में न्यूयॉर्क में नॉर्थ अमेरिका प्रेस क्लब द्वारा आयोजित मीडिया सम्मेलन में मुख्य भाषण दिया । वर्मा जी २००१ से २०१० तक पीपुल टीवी और कैरली टीवी के निदेशक रहे थे और उन्होंने राज्य सरकार के विशेष उल्लेख सहित कई पुरस्कार जीते । उन्होंने जो साप्ताहिक कार्यक्रम इंडिया इनसाइड प्रस्तुत किया वह वर्तमान विश्व की सामाजिक राजनीतिक भूल भुलैया का गहन अध्ययन था । उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सामाजिक प्रभाव पर &#३९; इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और संस्कृति &#३९; नामक पुस्तक भी प्रकाशित की है । उन्होंने एक दशक से भी अधिक समय तक भारतीय संसद के दोनों सदनों में भाग लिया है । गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन, राष्ट्रमंडल बैठक , जी१५ आदि कुछ अंतरराष्ट्रीय बैठक हैं जिनमें उन्होंने भाग लिया था । वर्मा जी ने संयुक्त राज्य अमेरिका ग्रेट ब्रिटेन,रूस , उत्तर कोरिया और मलेशिया सहित कई देशों की यात्रा की है । सन् २००७ में वे साहित्य अकादमी दिल्ली की जनरल काउंसिल के सदस्य और सन् २००८ और २०१० के बीच वे केरल साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष रहे। बाद र्में वे साहित्य अकादमी दिल्ली (नेशनल एकेडमी ऑफ़ लेटर्स ) के कार्यकारी सदस्य भी नियुक्त हुए । सन् २०१६ में वे ज्ञानपीठ पुरस्कार के निर्णायक मंडल के सदस्य रहे । वर्तमान में वह केरल के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं । वह कुसाट (कोचीन यूनिवर्सिटी आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ) की सीनेट के सदस्य हैं । वे साहित्य अकादमी के दक्षिण भारत के प्रादेशिक संयोजक रहे हैं । साथ ही साथ सन् २०२२ तक अकादमी की भाषा सलाहकार समिति के संयोजक और कार्यकारी बोर्ड सदस्य भी रह चुके हैं । उनके परिवार में उनकी पत्नी मनोरमा , पुत्री ज्योत्सना , दामाद कर्नल के.वी. महेंद्र और ज्योर्तिमहेंद्र ,जान्हवी महेंद्र नाती , नातिन हैं । आर्द्रम , ३०८ आ , ३ एवेन्यू , ए.के. जी. नगर ,पेरुर्कडा त्रिवेन्द्रम , केरल ६९५००५ , दूरभाष ९४४७०६०१०८ प्रभा वर्मा की रचनाएँ : पद्य उपन्यास : १. श्यामा माधवम ( डी.सी. बुक्स से प्रकाशित ) २. कणल चिलम्बु ( डी.सी. बुक्स से प्रकाशित ) ३. रौद्र सात्विकम ( डी.सी. बुक्स से प्रकाशित ) कविता संग्रह : १ . सौपर्णिका - डी. सी.बी. २. अर्क पूर्णिमा डी. सी.बी. ३. चंदना नष़ी मलबेरी ४. काल प्रयाग डी. सी.बी. ५ . आर्द्र - डी. सी.बी. ६ . मंजिनोडु वेल यन्न पोलेयुम एस.पी. सी. एस. ७. अपरिग्रह -मातृभूमि ८. पोन्निन कोलुस्सू - डी. सी.बी. ९. अविचरितम डी. सी.बी. १0 . ओट्टी कोडुतालुम एन्नेयन स्नेहमे डी. सी.बी. ११ . प्रभा वर्मायुडे की चुनी हुईं कविताएँ उपन्यास : आफ्टर दा आफ्टरमैथ (अंग्रेज़ी ) इंडस प्रकाशन बैंगलूर आलोचनात्मक निबन्ध : १. रतियुडे काव्य पदम २. तांत्रि लय समन्वितम ३. पारायणतिन्डे रीति भेदग्गंल ४ . केवलत्वकुम भावकत्ववुम ५ . संध्यायुडे एकान्त यात्रा ६ . प्रभा वर्मा के काव्य प्रबन्ध मीडिया : १ . संसकारिक और इलेक्ट्रोनिक मीडिया : एक अध्ययन २ . ऐन्निलेक ओरु जालकम संस्मरण : १ . दल मरमरम २ . दिल से दिल्ली से ३ . नमामि मनसा शिरसा यात्रा विवरण : १ . डायरी ऑफ मलेशिया २ . त्रिपुरा डायरी निबंध : ऐन्दुकोन्ड फ़ासिज़्म प्रभा वर्मा की रचनाओं पर आधारित पुस्तकें : श्यामा माधवम पर विद्वान आलोचकों के चालीस निबांधों का अध्ययन ( राज्य भाषा संस्थान से प्रकाशित ) श्यामा माधवम और कणल चिलम्बु के सौन्दर्यात्मक पहलू नाम से डॉ. एन.वी.पी. उण्णीतरी की दो पुस्तकें कणल चिलम्बु पर महिला साहित्यकारों की एक पुस्तक १. साहित्य अकादमी पुरस्कार ( नेशनल अकादमी ऑफ लैटर्स ) २. केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार ३. वयलार पुरस्कार ४. वल्लथोल पुरस्कार ५. आशान पुरस्कार ६. उल्लूर पुरस्कार ७. वयलापल्ली पुरस्कार ८. चेंगमपुष़ा पुरस्कार ९. पद्म प्रभा पुरस्कार १०. कृष्ण गीति पुरस्कार ११. राज्य पुस्तकालय समिति पुरस्कार ( सदी की श्रेष्ठ पुस्तक के लिए ) १२. इडश्शेरी पुरस्कार १३. महाकवि पन्दलम केरला वर्मा पुरस्कार १४. महाकवि पी कुंजीरामन नायर पुरस्कार १५. वेनमणि पुरस्कार १६. एन. वी. कृष्ण वारियार पुरस्कार १७. पी. केशवदास पुरस्कार १८. महाकवि वेन्णी कुलम पुरस्कार १९. प्रेमजी पुरस्कार २०. मुल्लनेष़ी पुरस्कार २१. अब्रहम मदमक्कल साहित्य पुरस्कार २२. त्रावणकोर स्टेट बैंक साहित्य पुरस्कार २३. कुन्जु पिल्ला पुरस्कार २४. वी. टी. कुमारन मास्टर पुरस्कार २५. कथिरूर सर्विस कॉ ऑपरेटिव बैंक वी . वी. के वालत पुरस्कार । २६. जे.के. वी पुरस्कार । २७. कदमानिता कविता पुरस्कार २८. ए. पी. कलक्काड पुरस्कार २९. अबू धाबी शान्ति पुरस्कार ३०. मूलूर पुरस्कार ३१. उदयवर्मा राजा पुरस्कार ३२. अंगनम पुरस्कार ३३. प्रो. कोष़िश्शेरी बालरामन पुरस्कार ३४. उल्लूर सर्विस कॉऑपरेटिव बैंक पुरस्कार ३५. कन्नासा पुरस्कार ३६. सिद्धार्थ साहित्य पुरस्कार ३७. श्री रामोत्सव साहित्य सम्मान ३८. कुंजन नम्बियार सम्मान ३९. कोवलम कवि स्मृति पुरस्कार ४०. माधव मुद्रा साहित्य पुरस्कार ( त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड) ४१. अक्षर दीपं काव्यश्री पुरस्कार ४२. कोमपारा नारायणन नायर पुरस्कार ४३. मलयाटटूर पुरस्कार ४४. मलयाटटूर सरस्वती पुरस्कार ४५. बहराइन केरला समाज पुरस्कार ४६. केरल विश्वविद्यालय युवा महोत्सव में प्रथम स्थान ४७. तेक्कु ऋषि पुरस्कार ४८. प्रबोधिनी साहित्य पुरस्कार ४९. कोल्लम पुस्तकालय समिति पुरस्कार ५०. वयलार राम वर्मा संसकारिक समिति पुरस्कार ५१. ऐष़ुमंगलम पुरस्कार ५२. टी. एस. तिरुमुम्ब पुरस्कार ५३. खसाक पुरस्कार ५४. विश्व साहित्य फोरम पुरस्कार १. रजत कमल : श्रेष्ठ गानों केलिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरकार २. चार बार श्रेष्ठ गायक का राज्य सरकार पुरस्कार ३. तीन बार केरल संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार ४. सत्यजीत राय फाउंडेशन पुरस्कार ५. अडूर भाषी मूवी दूरदर्शन पुरस्कार ६. प्रेम नसीर मित्र समिति पुरस्कार ७. जेसी डेनियल फाउंडेशन पुरस्कार ८. केरला विशन सिनेमा पुरस्कार ९. मलयालम दूरदर्शन समाचार दृश्य पुरस्कार १०. फिल्म आलोचना पुरस्कार ११. बिग स्क्रीन पुरस्कार १. मार ग्रिगोरियस पुरस्कार २. वैक्कम मौलवी फाउंडेशन ट्रस्ट पुरस्कार ३. प्रो. ए. सुधाकरन मेमोरियल पुरस्कार ४. डॉ. एन.ए. करीम फाउंडेशनपुरस्कार ५. केरल कला पुरस्कार ६. कुवैत कला वी. सम्बाशिवन पुरस्कार ७. अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार ८. श्रीकांतेश्वरम पुरस्कार ९. इंडीवुड पुरस्कार १. श्रेष्ठ रिपोर्टिंग केलिए केरल सरकार का पुरस्कार २. के.वी. डेनियल पुरस्कार ( टेलीग्राफ ) ३. के. माधवन कुट्टी पुरस्कार (श्रेष्ठ अंग्रेजी फ़ीचर ) ४. के.सी. सेबास्टियन पुरस्कार ५. श्रेष्ठ इलेक्ट्रोनिक मीडिया लेखन केलिए राज्य सरकार की विशेष बधाई की पात्र । साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत मलयालम भाषा के साहित्यकार १९५९ में जन्मे लोग
विवेक बिंद्रा एक भारतीय लेखक और प्रेरक वक्ता हैं। उनके "उद्यमी लॉन्चपैड" कार्यक्रम को "गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स" में भारत के "सबसे बड़े उद्यमी लॉन्चपैड कार्यक्रम" के रूप में दर्ज किया गया है। वह एडटेक स्टार्टअप बाडा बिजनेस प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ और संस्थापक हैं। गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स नेतृत्व पाठ पर विश्व के सबसे बड़े ऑनलाइन कार्यक्रम में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (२० जून, २०21) ४० कम लागत वाले विपणन विचारों पर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड (१५ अगस्त, २०२१) 'स्टार्ट अप कैसे करें' पर विश्व के सबसे बड़े ऑनलाइन कार्यक्रम में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (१५ अगस्त, २०२०) रणनीति प्रबंधन पर विश्व के सबसे बड़े ऑनलाइन पाठ पर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (२७ जून, २०२०) पीक प्रोडक्टिविटी-टाइम मैनेजमेंट स्ट्रैटेजीज़ पर विश्व के सबसे बड़े ऑनलाइन कार्यक्रम में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (२ अक्टूबर, २0२1)
अंसफलक, स्कन्धफलक या स्कैपुला ( स्केपुला ), जिसे कंधे के फलक (ब्लेड) के रूप में भी जाना जाता है, वह हड्डी है जो प्रगंडिका (ऊपरी बांह की हड्डी, हमेरूस) को जत्रुक (कॉलर की हड्डी) से जोड़ती है। अंसफलक कंधे की मेखला के पीछे का भाग बनाती है। मनुष्यों में, यह एक सपाट हड्डी होती है, जिसका आकार लगभग त्रिकोणीय होता है, जो वक्षीय पिंजरे के पश्च-पार्श्व भाग पर स्थित होती है।
आस्को पारपोला (जन्म १२ जुलाई १९४१, फोर्सा में ) एक फिनिश इंडोलॉजिस्ट हैं, हेलसिंकी विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन के वर्तमान प्रोफेसर एमेरिटस हैं। वह सिंधोलॉजी, विशेष रूप से सिंधु लिपि के अध्ययन में माहिर हैं। परपोला अक्कादियन भाषा के शिलालेखकार सिमो परपोला का भाई है। उनका विवाह मारजट्टा परपोला से हुआ, जिन्होंने केरल के नंबूदिरी ब्राह्मणों की परंपराओं पर एक अध्ययन लिखा है। पारपोला की अनुसंधान और शिक्षण रुचियां निम्नलिखित विषयों में आती हैं: सिंधु सभ्यता / सिंधु लिपि और धर्म / सिंधु मुहरों और शिलालेखों का संग्रह वेद / वैदिक अनुष्ठान / सामवेद / जैमिनीय सामवेद ग्रंथ और अनुष्ठान / पूर्व-मीमांसा दक्षिण एशियाई धर्म / हिंदू धर्म / शैव और शाक्त परंपरा / देवी दुर्गा संस्कृत/मलयालम/कन्नड़/तमिल/भारतीय भाषाओं का प्रागैतिहासिक काल दक्षिण एशिया और (व्यापक अर्थ में) मध्य एशिया का प्रागैतिहासिक पुरातत्व / आर्यों का आगमन सिंधु लिपि को समझने के क्षेत्र में परपोला के दो महत्वपूर्ण योगदान हैं, सिंधु घाटी मुहरों के अब सार्वभौमिक रूप से उपयोग किए जाने वाले वर्गीकरण का निर्माण, और लिपि की भाषा का प्रस्तावित, और बहुत बहस वाला, गूढ़लेखन। परपोला के अनुसार सिंधु लिपि और हड़प्पा भाषा "द्रविड़ परिवार से संबंधित होने की सबसे अधिक संभावना है"। पारपोला ने १९६०-८० के दशक में एक फिनिश टीम का नेतृत्व किया जिसने कंप्यूटर विश्लेषण का उपयोग करके शिलालेखों की जांच में नोरोज़ोव की सोवियत टीम के साथ प्रतिस्पर्धा की। प्रोटो-द्रविड़ियन धारणा के आधार पर, उन्होंने कई संकेतों के पढ़ने का प्रस्ताव रखा, कुछ हेरास और नोरोज़ोव के सुझाए गए पढ़ने से सहमत थे (जैसे कि "मछली" चिन्ह को मछली के लिए द्रविड़ शब्द "मिन" के साथ बराबर करना) लेकिन कई अन्य रीडिंग पर असहमत थे। . पारपोला के १९९४ तक के काम का विस्तृत विवरण उनकी पुस्तक डिसैफ़रिंग द इंडस स्क्रिप्ट में दिया गया है। उन्होंने अपनी पुस्तक में कहा है कि पाकिस्तान के ब्राहुई लोग हड़प्पा संस्कृति के अवशेष हैं। १९९४: सिंधु लिपि का अर्थ समझना, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस २०१५: हिंदू धर्म की जड़ें: प्रारंभिक आर्य और सिंधु सभ्यता, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस १९८८: ईरान और भारत में आर्यों का आगमन और दासों की सांस्कृतिक और जातीय पहचान, स्टूडियो ओरिएंटलिया, वॉल्यूम।६४, पृ.१९५-३०२. फिनिश ओरिएंटल सोसायटी। २००८: क्या सिंधु लिपि वास्तव में एक लेखन प्रणाली नहीं है? इन: ऐरावती: इरावतम महादेवन के सम्मान में अभिनंदन खंड : १११-३१। वरलारू. कॉम, चेन्नई। आस्को परपोला को २३ जून २०१० को कोयंबटूर में विश्व शास्त्रीय तमिल सम्मेलन में २००९ के लिए कलैग्नार एम. करुणानिधि शास्त्रीय तमिल पुरस्कार प्राप्त हुआ। २०१५ में, उन्हें संस्कृत में सम्मान प्रमाण पत्र के भारत के राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह अमेरिकन ओरिएंटल सोसाइटी के मानद सदस्य हैं और १९९० से फिनिश एकेडमी ऑफ साइंस एंड लेटर्स के सदस्य हैं। १९४१ में जन्मे लोग
एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न एक तरह का ट्रिपल कैंडलस्टिक रिवर्सल पैटर्न है जो ट्रेंड के बदलने का इशारा करता है | चूंकि यह एक ट्रेंड रिवर्सल पैटर्न है तो ये बात तो आप जानते ही होंगे कि मार्केट में दो तरह के ट्रेंड होते हैं एक डाउन ट्रेंड और दूसरा अपट्रेन्ड और दोनों के लिए अलग-अलग कैंडलस्टिक पेटर्न हैं | बुलिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न - यह एक बुलिश रिवर्सल कैंडलेस्टिक पेटर्न है जो डाउन ट्रेंड के खत्म होने का इशारा करता है और अपट्रेन्ड के चालू होने के बारे में बताता है | यह पैटर्न हमेशा एक अच्छे डाउन ट्रेंड के बाद बनता है यह पैटर्न अपने में एक बहुत महत्वपूर्ण पैटर्न है जोकी बहुत कम बार बनता है परंतु जब बनता है तब वहाँ से मार्केट के रिवर्स होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं | बेयरिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न - यह एकबेयरिश रिवर्सल कैंडलेस्टिक पैटर्न जो बुलिश ट्रेंड के खत्म होने की तरफ इशारा करता है और डाउन ट्रेंड के चालू होने का संकेत देता है | यह पैटर्न हमेशा एक अच्छे अपट्रेंड के बाद बनता है और जब यह पैटर्न बनता है और अगर कंफर्मेशन मिलता है तो वहां से मार्केट रिवर्स करता है | एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न कैसे बनता है एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न तीन कैन्डल से मिलकर बनता है, जिसमे की पहला कैंडल एक बड़ा मारूबुजु कैंडल होता है और दूसरा कैंडल एक डोजी होता है, जो गैप डाउन और गैप अप होकर बनता है और तीसरा कैंडल फिर से गैप डाउन और गैप अप होकर एक बड़ा हरा कैन्डल बनाता है | परंतु चार्ट में आपको हूबहू मारूबुजु जैसा कैन्डल देखने को नहीं मिलेगा | बेयरिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न में सबसे पहले गैप अप होगा फिर उसके बाद गैप डाउन होगा और बुलिश एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न में सबसे पहले गैप डाउन होगा फिर उसके बाद गैप अप होगा | एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न और मॉर्निंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न दिखने में लगभग एक जैसे ही होते हैं | अगर आप इन दोनों पैटर्न को ध्यान से नहीं देखेंगे तो आपको इसे पहचानने में दिक्कत हो सकती है और आप धोखा भी खा सकते हैं | वह चीज जो एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न को मॉर्निंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न और ईव्निंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न से अलग करती है वह है गैप अप और गैप डाउन | डोजी कैन्डल के पहले और दूसरी वाली कैन्डल के बीच में गैप होना जरूरी है तभी उस पैटर्न को हम एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न कहेंगे |
सेम्बियान महादेवी गंडारादित्य चोल की पत्नी के रूप में ९४९ ई. - ९५७ ई. तक चोल साम्राज्य की रानी और साम्राज्ञी थीं। वह उत्तम चोल की माँ हैं। वह चोल साम्राज्य की सबसे शक्तिशाली साम्राज्ञियों में से एक थीं, जिन्होंने साठ वर्षों की अवधि में कई मंदिरों का निर्माण किया और दक्षिण भारत में कई मंदिरों को उदार उपहार दिए। वह अपने बेटे के शासनकाल के दौरान, यदि पहले नहीं तो, शक ९०१ का अनुमान लगाती है। ९४१ के एक शिलालेख के अनुसार, कहा जाता है कि सेम्बियान महादेवी ने एक बंदोबस्ती की थी ताकि शिव देवता के सामने एक दीपक स्थायी रूप से जलाया जा सके (शायद चिदंबरम नटराज (नटराज) पंथ के क्रिस्टलीकरण के कुछ समय बाद)। अपने पति गंडारादित्य चोल की मृत्यु के बाद, उन्होंने तुरंत रानी और महारानी के रूप में अपना खिताब खो दिया और बाद में उन्हें तंजावुर की रानी दहेज (रानी दहेज और राजा की मां) के रूप में जाना जाने लगा। उसने रानी और साम्राज्ञी के रूप में अपनी सारी शक्ति खो दी और केवल सफेद रंग पहना जिसे शोक रंग के रूप में जाना जाता था, जिससे वह जीवन भर शोक में डूबी रही। मधुरान्तक उत्तम चोल की माता वह गंडारादित्य चोल (श्री-गंडारादित्त देवताम पिरट्टियार) की रानी थीं और उन्हें हमेशा उत्तम चोल, उत्तम चोल देवराय तिरु-वायिरु-वैयक्का-उदैया पिरट्टियार श्री सेम्बियान मदेयियार (वह रानी जिसे उत्तम को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था) की मां के रूप में जाना जाता है। चोल देव), जिसे सेम्बियन की महान रानी के रूप में भी जाना जाता है। शिलालेखों में यह भेद उन्हें अन्य रानियों से अलग करने के लिए किया गया है, जिन्होंने उनके पहले और बाद दोनों समय यह उपाधि धारण की थी। विभिन्न शिलालेखों से संकेत मिलता है कि वह मझावरयार सरदार की बेटी थी। शुरुआत में, वह लगातार खुद को श्री सेम्बियान माडेय्यर की बेटी के रूप में पहचानती है। कला और वास्तुकला के संरक्षक वह बहुत पवित्र थी और एक शौकीन मंदिर निर्माता थी और उसने कई मंदिरों का निर्माण किया, जिनमें से कुछ कुटरलम, विरुधाचलम, अदुथुराई, वक्करई, अनंगुर आदि में हैं। उसने चोल साम्राज्य की कुछ सबसे भव्य बंदोबस्ती की है। तिरु-आरा-नेरी-अलवर मंदिर उनके द्वारा निर्मित सबसे शुरुआती मंदिरों में से एक था। उन्होंने ९६७-९६८ ई. में थिरुनल्लूर या नल्लूर अग्रहारम के कल्याणसुंदरसर मंदिर को कांस्य और आभूषण के कई उपहार दिए, जिसमें आज पूजी जाने वाली नल्लूर मंदिर की देवी की कांस्य मूर्ति (जिसे उमा परमेश्वरी के नाम से जाना जाता है) भी शामिल है, जिसकी शैली सेम्बियन कांस्य की विशिष्ट है। परकेसरीवर्मन उत्तम चोल के एक शिलालेख से, हम जानते हैं कि हर महीने ज्येष्ठ के दिन, जो रानी का जन्म नक्षत्र है, कोनेरीराजपुरम के उमामहेश्वरस्वामिन मंदिर में एक नियमित श्रीबाली समारोह की व्यवस्था की गई है: सेम्बियान महादेवी एक उत्कृष्ट मंदिर निर्माता और कला की अत्यधिक सम्मानित संरक्षक थीं। उनके जीवनकाल के दौरान, उनके नाम पर बने सेम्बियन महादेवी शहर के शिव मंदिर में उनके जन्मदिन पर विशेष उत्सव मनाया जाता था, और उनके सम्मान में प्रिय रानी का एक धातु चित्र मंदिर में प्रस्तुत किया गया था, जिसे संभवतः उनके बेटे ने बनवाया था। इस प्रकार, उनके जन्मदिन का जश्न मनाने वाले जुलूसों में इसके उपयोग से इसे सेम्बियान महादेवी के रूप में पहचाना गया होगा। यह उच्च शैली वाली कांस्य छवि प्राचीन भारतीय कला में शाही और दैवीय चित्रण के बीच धुंधली होती रेखाओं का एक उदाहरण है। यह मुद्रा देवी पार्वती की याद दिलाती है। भारतीय कलाकार अक्सर हिंदू देवताओं की सर्वव्यापकता और सर्वशक्तिमानता पर जोर देने के लिए उनकी बांह/हाथ के विवरण पर बहुत ध्यान देकर चित्रित करते हैं। देवताओं की छवियों की मनोदशा और अर्थ को व्यक्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के हाथ के इशारों, जिन्हें मुद्रा के रूप में जाना जाता है, का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, जब हथेली उपासक के सामने उठाई जाती है, तो यह सुरक्षा (अभय) का संकेत है, जबकि नीचे की ओर इशारा करते हुए उंगलियों वाला हाथ भक्त की इच्छाओं को पूरा करने का वादा करता है ( वरदा )। कॉन्ट्रापोस्टो मुद्रा, जिसे भारत में त्रिभंगा, या ट्रिपल-बेंट के नाम से जाना जाता है, एक लोकप्रिय मुद्रा थी; इसने हिलने-डुलने की भावना पैदा की, और अधिकांश छवियां, चाहे मानव हों या दिव्य, इसी प्रकार संतुलित हैं। साहित्य में एक रूपक दो असंबद्ध प्रतीत होने वाली चीजों को आपस में जोड़ता है ताकि उनमें से एक के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया जा सके। दृश्य कला में भी यही संभव है। सभी अतिरंजित विशेषताओं के साथ, सेम्बियान महादेवी कांस्य का शाब्दिक अर्थ नहीं लिया जाना चाहिए। सेम्बियान महादेवी एक दृश्य रूपक है, फिर भी तंत्रिका संबंधी और सौंदर्य संबंधी दृष्टिकोण से सबसे मायावी है, यह उस समय पुरुषों के लिंग निर्माण को उत्तेजित करने का भी काम करता है। रामचन्द्रन के अनुसार सेम्बियान महादेवी की अतिरंजित विशेषताएं विशिष्ट दैवीय गुणों का प्रतीक हैं। ललित कला, अंक ३-४, ललित कला अकादमी चोल कांस्य की कला एवं विज्ञान, अभिमुखीकरण तमिलनाडु और केरल राज्यों में शिलालेखों की एक स्थलाकृतिक सूची: टीवी महालिंगम द्वारा तंजावुर जिला प्रारंभिक चोल: गणित कालक्रम का पुनर्निर्माण करता है सेथुरमन द्वारा द इंडियन एंटिक्वेरी - ए जर्नल ऑफ ओरिएंटल रिसर्च वॉल्यूम इव - १९२५ सीआईई एडवर्डस द्वारा भारतीय पुरावशेष, खंड ५४ ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड के रॉयल एंथ्रोपोलॉजिकल इंस्टीट्यूट द्वारा यह सभी देखें तमिलनाडु का इतिहास
बृहत् वक्षच्छदिका या पेक्टोरालिस मेजर (पेक्टरैलिस मेजर) मानव छाती की एक मोटी, पंखे के आकार की या त्रिकोणीय अभिसरण मांसपेशी है। यह छाती की मांसपेशियों का अधिकांश हिस्सा होती है और स्तन के नीचे स्थित होती है। बृहत् वक्षच्छदिका के नीचे लघु वक्षच्छदिका (पेक्टोरलिस माइनर) मांसपेशी होती है। बृहत् वक्षच्छदिका, जत्रुक और उरोस्थि के हिस्सों, यथार्थ पर्शुका के पर्शुका उपास्थि और उदरीय बाहरी तिरछी मांसपेशी के कण्डराकला से उत्पन्न होता है; यह द्विशिरस्की खाँच के पार्श्व होंठ पर निवेशित होता है। यह मध्यवर्ती पेक्टोरल तंत्रिका और पार्श्व पेक्टोरल तंत्रिका से डबल मोटर तन्त्रिकाप्रेरण प्राप्त करता है। पेक्टोरलिस मेजर के प्राथमिक कार्य ह्यूमरस (प्रगंडिका) का आकुंचन, अभिवर्तन और आंतरिक घूर्णन हैं। पेक्टोरल मेजर को बोलचाल की भाषा में "पेक्स", "पेक्टोरल मांसपेशी" या "छाती मांसपेशी" कहा जा सकता है, क्योंकि यह छाती क्षेत्र में सबसे बड़ी और सबसे सतही मांसपेशी है।
अक्कड़ के राजा नराम-सिन के शासनकाल से संबंधित एक शिलालेख के अनुसार (..)इब्रा मेलुहा का राजा था। पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार (..)इब्रा ने २३०० ईसा पूर्व और २२०० ईसा पूर्व के बीच में शासन किया। नराम-सिन (२२५४-२२१८ ईसा पूर्व) अक्कड़ के राजा सरगोन (२३३४-२२७९ ईसा पूर्व) के तीसरे उत्तराधिकारी और पोते थे। उन्होंने अपने शासनकाल के विभिन्न विद्रोही राजाओं को सूचीबद्ध किया, और "(..)इब्रा, मेलुहा के आदमी" का उल्लेख किया। (..)इब्रा मेलुहा का एकमात्र प्रमाणित शासक है। उनके साम्राज्य की पहचान सिंधु घाटी सभ्यता से की गई है और इसलिए, यह शिलालेख हड़प्पा और मेसोपोटामिया के बीच संबंधों में कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है। मेलुहा के राजाएँ
मानव शरीर रचना विज्ञान में, अंसकूट या एक्रोमियन (एक्रोम्न, ग्रीक से: एक्रोस, "उच्चतम", ओमोस, "कंधा") अंसफलक (स्कैपुला) पर एक हड्डीनुमा प्रवर्ध है। अंसतुंड प्रवर्ध (कोराकॉयड प्रोसेस) के साथ यह पार्श्व रूप से स्कंध संधि तक फैलता है। एक्रोमियन, स्कैपुलर कंटक की एक निरंतरता है, और अग्रवर्ती रुप से हुक करता है। यह जत्रुक (कॉलर हड्डी, क्लाविकल) के साथ जुड़कर एक्रोमियोक्लेविकुलर संधि (अंसकूट-जत्रुकीय संधि) बनाता है।
अंसतुंड प्रवर्ध या कोरैकॉइड प्रवर्ध (कोराकॉयड प्रोसेस, ग्रीक , रेवेन से) अंसफलक के ऊर्ध्ववर्ती अग्र भाग के पार्श्व किनारे पर एक छोटी हुक जैसी संरचना है (इसलिए: कोरैकॉइड, या "रेवेन की चोंच की तरह")। पार्श्व रूप से आगे की ओर इशारा करते हुए, यह, अंसकूट के साथ, स्कंध संधि को स्थिर करने का कार्य करता है। यह डेल्टॉइड और बृहत् वक्षच्छदिका मांसपेशियों के बीच डेल्टोपेक्टोरल खांचे में स्पर्शनीय होता है।
पूरन डावर भारतीय उद्यमी व समाजसेवी हैं वह डावर ग्रुप के चैयरमेन और लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम (एमएसएमई) की नेशनल बोर्ड कमेटी के सदस्य भी हैं। डावर वर्ष १९६५ से ही सामाजिक रूप से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) में सक्रिय रहे हैं, वह विभिन्न गतिविधियों, राज्य और राष्ट्रीय सम्मेलनों में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने के अलावा अखिल भारतीय विधार्थी परिषद् (एबीवीपी) में विभिन्न पदों पर रह चुके हैं। समाजसेवी के रूप में उन्होंने सक्षम मेमोरियल फाउंडेशन का गठन अपने दिवंगत पुत्र की याद में किया था यह संस्था बच्चो और बेरोजगारों को रोजगार देने का काम करती है। पूरन डावर का जन्म २६ सितम्बर १९५३ को उत्तर प्रदेश के ज़िले आगरा में हुआ, डावर का परिवार अपना सबकुछ छोड़कर १९४७ में पाकिस्तान से भारत आया और आगरा के मलपुरा रिफ्यूजी कैंप में शरणार्थी बनकर रहा।था इसीलिए उस समय उनके परिवार को भोजन तक के लिए संघर्ष करना पड़ा, उनके परिवार के युवा और वृद्ध सदस्यों ने एकजुट होकर जीवित रहने का प्रयास किया और सिलाई व दूध बेचने से लेकर मजदूरी व कोयला बेचकर परिवार को पटरी पर लाने की कोशिश की ताकि परिवार के सदस्यों को जीवित रखा जा सके। पूरन डावर ने आगरा कॉलेज से १९७१ में विज्ञान से स्नातक की उपाधि प्राप्त करते हुए १९७३ में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर व १९७६ में कानून की पढाई भी पूरी कर ली थी। वह शुरू से ही राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़े रहे और कई बार अपने कॉलेज के दिनों में अखिल भारतीय विधार्थी परिषद् में विभिन्न पदों पर भी रहे थे। उन्होंने डावर ग्रुप की शुरुआत १९७७ में फुटवियर के खुदरा कारोबार से की और १९८३ में उन्होंने शू स्टाइल के ब्रांड नाम से जूता बनाना शुरू किया १९८६ में उन्होंने डावर फुटवियर इंडस्ट्रीज की शुरुआत कर दी थी।वर्तमान में डावर ग्रुप घरेलू बाजार को पूरा करने के अलावा कई देशों को निर्यात भी कर रहा है। कोरोना काल में वह खुलकर सामने आये और उन्होंने जरुरत मंद लोगो को अपनी संस्था के जरिये मात्र १० रूपए में भोजन उपलब्ध कराया था। इंस्टाग्राम पर पूरन डावर भारत के लोग १९५३ में जन्मे लोग
प्रगंडिका या ह्यूमेरस ( हमेरूस ) बांह की एक दीर्घ हड्डी है जो कंधे से कोहनी तक जाती है। यह अंसफलक और निचली बांह की दो हड्डियों, बहिः प्रकोष्ठिकास्थि (रेडियस) और अंत: प्रकोष्ठिका (अल्ना) को जोड़ता है और इसमें तीन खंड होते हैं। प्रगंडिका के ऊपरी सिरे में एक गोल शीर्ष, एक संकीर्ण गर्दन और दो छोटे प्रवर्ध ( गुलिका, या ट्यूबर्कल जिन्हें कभी-कभी ट्यूबरोसिटी भी कहा जाता है) होते हैं। इसकी काय अपने ऊपरी हिस्से में बेलनाकार है, और नीचे अधिक प्रिज्मीय है । निचले छोर में २ अधिस्थूलक, २ प्रवर्ध ( चक्रक और मुंडक ), और ३ खात ( बहि:प्रकोष्ठिक खात, चंचुभ खात और कफोणि खात) होते हैं। इसकी वास्तविक शारीर गर्दन (प्रगंडिका ऊर्ध्वग्रीवा) के साथ-साथ, ह्यूमरस के बड़े और छोटे गुलिका के नीचे के संकुचन को फ्रैक्चर की प्रवृत्ति के कारण इसकी शल्य गर्दन (प्रगंडिका अर्धग्रीवा) के रूप में जाना जाता है।
चिराग जैन (जन्म २७ मई १९८५) एक भारतीय कवि, व्यंग्यकार, हास्यकार और लेखक हैं जो हिंदी में लिखते और अभिनय करते हैं।उनके प्रदर्शन को विभिन्न टीवी शो में दिखाया गया है, जिनमें सब टीवी का वाह! वाह! क्या बात है!, सहारा वन का लाफ इंडिया लाफ, आज तक का कवि सम्मेलन, न्यूज १८ का नेताजी लपेटे में और न्यूज़ नेशन का चुनवी चकल्लस शामिल हैं। उन्होंने ७ से अधिक किताबें लिखी हैं, जिनमें कोई यूं ही नहीं छुपता, ओस, आदमी तो गोमुख है,छूकर निकली है बेचैनी आदि पुस्तके शामिल हैं। १४ सितंबर २०१६ को, डिजिटल मीडिया के माध्यम से हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने में उनके योगदान के लिए, चिराग जैन को हिंदी दिवस के अवसर पर हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार से भाषादूत सम्मान (पुरस्कार) से सुशोभित किया गया था। १९८५ में जन्मे लोग
मासिक धर्म उत्सव, पहली चाँद पार्टी, या पीरियड पार्टी को भी कहा जाता है। दुनिया भर में विभिन्न संस्कृतियाँ और समुदाय में मासिक धर्म का जश्न मनाया जाता है। इस प्रथा का पालन उत्तरी अमेरिका के विभिन्न हिस्सों, जैसे - अपाचे, ओजिब्वे और हूपा आदिवासी समुदायों में किया जाता है। पूर्वी देशों में इस प्रथा का पालन जापान और भारत में किया जाता है। २०२० में, लेखिका क्रिस्टीन मिशेल कार्टर ने अमेरिका में अश्वेत समुदाय में पहली चाँद पार्टियों के जश्न के बारे में जानने की कोशिश की। द अमेरिकन कॉलेज ऑफ ओब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट के अनुसार, ज्यादातर लड़कियों को अपना पहला माहवारी १२ से १३ साल की उम्र के बीच होता है। स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों, बढ़ती स्वस्थ कठिनाइयों और तनाव के कारण काली लड़कियों के लिए माहवारी शुरू होने की उम्र थोड़ी कम है। अमेरिका की लड़कियों के लिए, पहली मून पार्टी एक रिवाज है जो युवा लड़कियों में मूल्यों, सिद्धांतों और स्वयं के बारे में ज्ञान पैदा करती है। भारत में विभिन्न राज्य/क्षेत्र और समुदाय मासिक धर्म का जश्न मनाते हैं। ओडिशा में इस त्योहार को राजा परबा या मिथुन संक्रांति कहा जाता है। यह चार दिवसीय त्यौहार है जो लड़की के नारीत्व में परिवर्तन का जश्न मनाता है। पहले दिन को पाहिली राजा, दूसरे को मिथुन संक्रांति, तीसरे को बासी राजा और आखिरी दिन को वसुमती स्नान कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि त्योहार के पहले तीन दिनों के दौरान देवी पृथ्वी भी रजस्वला होती हैं। उत्सव के दिन से पहले, जिसे सजबाजा कहा जाता है, पूरे घर को साफ किया जाता है और त्योहार के पहले तीन दिनों में मसालों को पीसने वाले पत्थर पर पीसा जाता है। जबकि सभी तैयारियां चल रही हैं, महिलाएं त्योहार के दौरान आनंद लेती हैं और नए कपड़े, आभूषण पहनती हैं और अपने पैरों पर अल्टा लगाती हैं। त्योहार के आखिरी दिन महिलाएं चक्की के पास जाती हैं और हल्दी से स्नान करती हैं। यह त्यौहार देवी भूदेवी के अनुष्ठानिक स्नान के साथ पूरा होता है। असम में, मासिक धर्म उत्सव को तोलोनी बिया/ नुआ-तुलोन/ सांती बिया कहा जाता है। असमिया में बिया शब्द का अर्थ विवाह होता है, इस प्रकार, तोलोनी बिया लड़की की पहली माहवारी के बाद की एक प्रतीकात्मक शादी है। यह समारोह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और इस उत्सव का उद्देश्य लड़की को मासिक धर्म के बारे में शिक्षित करना होता है। लड़की के माता-पिता और पड़ोसी उसके स्वास्थ्य की भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं। उत्सव के अलावा, समारोह के बाद लड़की को एकांत में रखा जाता है, और उसकी गतिविधियों और भोजन पर प्रतिबंध लगाया जाता है, जैसे; घूंघट के साथ घर लाया जाना, केले के अलावा कोई भोजन नहीं करना,एक कमरे तक सीमित होना, परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ कोई संपर्क नहीं रखना। अपाचे सूर्योदय नृत्य उत्सव सनराइज डांस समारोह एरिज़ोना और मैक्सिको क्षेत्र में अपाचे आदिवासी समुदाय द्वारा मासिक धर्म का उत्सव है। समुदाय के सदस्य और नेता इस समारोह को संपन्न करने में परिवार की सहायता करते हैं। समुदाय इस समारोह की तैयारी महीनों पहले से शुरू कर देता है। समारोह से एक दिन पहले, लड़की पसीने से नहाती है, इस बीच पुरुष रिश्तेदार और एक चिकित्सक वे वस्तुएं बनाते हैं जिनकी समारोह के दौरान आवश्यकता होगी। शाम को ये वस्तुएं लड़की को भेंट की जाती हैं। यह समारोह चार दिनों की अवधि और आठ चरणों में होता है। इस समारोह के दौरान, लड़की पारंपरिक अपाचे पोशाक पहनती है और नृत्य करती है, जो महिला शक्ति का प्रतीक है। दोस्त और परिवार भी भाग लेते हैं और पारंपरिक गीत गाते हैं और लड़की को चिकित्सक और अन्य लोगों से मालिश और औपचारिक आशीर्वाद भी मिलता है।
अध्यावरणी तंत्र (इंटेगुमेंटरी सिस्टम) किसी जानवर के शरीर की सबसे बाहरी परत बनाने वाले अंगों का समूह है। इसमें त्वचा और उसके उपांग शामिल हैं, जो बाहरी वातावरण और आंतरिक वातावरण के बीच एक भौतिक बाधा के रूप में कार्य करते हैं जो कि जानवर के शरीर की रक्षा और रखरखाव के लिए कार्य करता है। मुख्यतः यह शरीर की बाहरी त्वचा होती है। पूर्णांक प्रणाली में बाल, शल्क, पंख, खुर और नाखून शामिल हैं। इसके कई अतिरिक्त कार्य हैं: यह जल संतुलन बनाए रखने, गहरे ऊतकों की रक्षा करने, अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने और शरीर के तापमान को नियंत्रित करने का काम कर सकता है, और यह संवेदी ग्राही के लिए लगाव स्थल है जो दर्द, संवेदना, दबाव और तापमान का पता लगाता है।
नंदा देवी लोकजात उत्तराखंड के चमोली जिले के नंदा नगर में मनाया जाता है। नंदा देवी सिद्ध पीठ कुरुड़ से यह यात्रा शुरू होती है।
"प्रेम दान" एक भारतीय टेलीफिल्म है जो १९९२ से दूरदर्शन चैनल पर प्रसारित हुई। इसमें अभिनेत्री खुशबू और अभिनेता नीतीश भारद्वाज ने सीमा और आनंद की मुख्य भूमिका निभाई।यह टेली फिल्म सच्ची प्रेम कहानी के बारे में है, जिसमें मुख्य किरदार सीमा और आनंद हैं। कहानी सीमा और आनंद के जीवन से संबंधित है और कैसे आनंद का सच्चा प्यार खुद को बलिदान और दर्द में डालता है।टेलीफिल्म सावन कुमार प्रोडक्शंस (टेलीफिल्म्स डिवीजन) द्वारा बनाई गई है और इसका निर्माण और निर्देशन सावन कुमार ने किया| डीडी नेशनल मूल प्रोग्रामिंग १९९०स के दशक की भारतीय टेलीविजन फिल्म्स भारतीय टेली फिल्म्स
रामवीर तंवर एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं पर्यावरणविद हैं, जिन्हें देश में जल संरक्षण, तालाबों के सुंदरीकरण, मृत जल निकायों को पुनर्जीवित करने और शहरी वन बनाने की दिशा में उनके कार्य के लिए जाना जाता हैं। उन्हें पोंड मैन ऑफ इंडिया अथवा पोंड मैन के नाम से भी जाना जाता हैं। वह उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली, गुजरात और कर्नाटक में लगभग ८० तालाबों की सफाई और जीर्णोद्धार का कार्य कर चुके है। तंवर 'से अर्थ' नामक एक सामाजिक संस्था एवं 'जल चौपाल' नामक अभियान के संस्थापक हैं, जो जल निकायों के पुनरुद्धार और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए कार्यरत हैं। उन्हें गाजियाबाद नगर निगम द्वारा स्वच्छ भारत अभियान का ब्रांड एंबेसडर और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भूजल सेना का ग़ाज़ियाबाद ज़िला समन्वयक नियुक्त किया गया हैं। प्रारम्भिक जीवन एवं शिक्षा रामवीर तंवर का जन्म उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर अंतर्गत डाढ़ा-डाबरा गांव में हुआ। वें अपने पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा उनके गाँव में ही हुई। वर्ष २०१४ में तंवर केसीसी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की हैं। वें एक किसान परिवार से हैं। स्नातक के बाद उनकी नौकरी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर के रूप में लग गई, और दो साल काम करने के बाद ही उन्होंने नौकरी छोड़कर पूर्णकालिक पर्यावरण और जल संरक्षण के कार्य में लग गए। तंवर ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भूजल संरक्षण पर तीन महीने का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है। वर्ष २०१५ में तंवर ने अपने साथियों व स्थानीय समुदायों के सहयोग से जल संरक्षण व जल निकायों को पुनर्जीवित करने के लिए 'जल चौपाल' (जल पर बैठक) नामक एक अभियान की शुरुआत की। शुरुआत उन्होंने अपने गाँव डाढ़ा से की, लेकिन बाद में डबरा, कुलीपुरा, चौगानपुर, रायपुर, सिरसा, रामपुर, सलेमपुर सहित उत्तर प्रदेश के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में जा-जा कर जल संरक्षण के मुद्दों पर जागरूकता फैलाई। प्रारम्भिक दिनों में तो वह केवल लोगों को जागरुक करते थे। हालांकि धीरे धीरे वह तालाबों व जल निकायों पर बसे अवैध अतिक्रमण हटाने, तालाबों का सुंदरीकरण करने और पुनर्जीवित करने में संलिप्त हो गए। २०२१ आते-आते रामवीर उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, सहारनपुर, हरियाणा के पलवल, मानेसर, दिल्ली समेत करीब ४० तालाबों को पुनर्जीवित कर चुके थें। २०२३ तक रामवीर तंवर ने उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखण्ड, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली और गुजरात में तकरीबन ८० तालाबों की सफाई और जीर्णोद्धार का काम कर चुके हैं। रामवीर तंवर ने २०१८ में नौजवानों को अपने साथ जोड़ने के लिए 'सेल्फी विद पॉन्ड' नाम से एक पहल की शुरुआत की। इस पहल के अंतर्गत युवाओं ने तालाब के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करना शुरू किया। तालाबों की पहचान के लिए जगह का नाम भी लिखने को कहा गया। परिणाम यह हुआ कि स्वच्छ जल निकायों और तालाबों की तस्वीरें एक प्रेरणा साबित हुईं और स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें साफ करने के लिए प्रेरित किया। इस मुहिम से विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के लोगों और संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और इंडोनेशिया के नागरिकों से भी सहयोग प्राप्त हुआ। रामवीर तंवर ने २०२० में 'से अर्थ' नाम से एक पंजीकृत गैर सरकारी संगठन की स्थापना की। अब इसी के अंतर्गत तालाबों की सफाई का काम जारी हैं। तालाबों की सफाई के लिए लगने वाले व्यय के लिए कई बड़ी कंपनियों व संस्थाओ से जुड़े हैं, जो इस कार्य में मदद करते हैं, इनमे एचसीएल फाउंडेशन, ग्रीन यात्रा और स्लीप वेल फाउंडेशन आदि एनजीओ शामिल हैं। इसके अलावा, रामवीर वर्तमान में जापान की मियावाकी विधि का उपयोग करके कई शहरी वनों (अर्बन फॉरेस्ट) का निर्माण कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में, रामवीर सरकार द्वारा आवंटित बंजर भूमि को उपजाऊ भूमि में बदलते हैं और फिर वृक्षारोपण करते हैं, जिसका उद्देश्य शहरी भूमि की संरक्षण, मृदा की गुणवत्ता की सुरक्षा, वायु प्रदूषण और भूमि प्रदूषण को कम करना है। मन की बात २४ अक्टूबर २०२१ को आकाशवाणी पर प्रसारित रेडियो कार्यक्रम मन की बात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रामवीर तंवर का उल्लेख करते हुए, उनके द्वारा किए जा रहे तालाबों की सफाई व संरक्षण कार्यों की सराहना की। अप्रैल २०२३ में प्रधानमंत्री के मन की बात के कार्यक्रम १००वें एपिसोड में देशभर के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से १०० लोगों को चयनित किया गया, जिसके अंतर्गत रामवीर को भी बतौर अतिथि शामिल किया गया। इस पाँच दिवसीय कार्यक्रम के अंतर्गत रामवीर तंवर ने २६ अप्रैल २०२३ को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित नेशनल कॉन्क्लेव कार्यक्रम में शिरकत की, जिसमें भारत के उपराष्ट्रपति, वेंकैया नायडू और गृहमंत्री अमित शाह भी लोगों से रूबरू होने के लिए उपस्थित थे। २७ अप्रैल २०२३ को उन्हें कर्तव्य पथ, राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री संग्रहालय का दौरा कराया गया। इसके बाद २८ अप्रैल २०२३ को योग सत्र, लाल किला और राजघाट का भ्रमण कराया गया। ३० अप्रैल २०२३ को रामवीर को लखनऊ स्थित राजभवन में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के साथ मन की बात सुनने के लिए आमंत्रित गया था। जल चौपाल लोगों को पानी के महत्व और समाज में पानी की कमी से संबंधित विभिन्न कारकों के बारे में जागरूक करने की एक पहल है। यह भूजल, जल निकासी, जल प्रदूषण, वर्षा जल संचयन, जल बजटिंग आदि जैसे आवश्यक विषयों पर चर्चा का आधार बन जाता है। जल चौपाल लोगों को तालाब जीर्णोद्धार कार्य में शामिल होने के लिए प्रेरित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण सहायक उपकरण साबित हुआ है। इसकी शुरुआत रामवीर ने २०१५ में की थी। पुरस्कार एवं सम्मान रामवीर को ताइवान से शाइनिंग वर्ल्ड प्रोटेक्शन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसके तहत १०,००० अमेरिकी डॉलर का अनुदान भी प्रदान किया गया। इन्हें २०१९ में संयुक्त राष्ट्र और इकान्गो द्वारा वैश्विक नागरिक सम्मान रेक्स कर्मवीर चक्र पुरस्कार से नवाजा गया। सितंबर २०२२ को भारत सरकार की मुहिम गार्बेज फ्री सिटी बनाने के लिए गाजियाबाद नगर निगम ने रामवीर तंवर को ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किया। मई २०२२ में, तंवर को पर्यावरण, वन, और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (मोएफ़्क) से वेटलैंड चैम्पियन्स २०२२ पुरस्कार मिला, जिसे केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव और राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने प्रदान किया। जुलाई २०२२ में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रामवीर तंवर को जल संरक्षण पर इनके योगदान के लिए राज्य भूजल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गाजियाबाद नगर निगम ने वर्ष २०२१-२०२२ के लिए स्वच्छ भारत अभियान का ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किया गया है। उन्हें जल शक्ति मंत्रालय द्वारा वाटर हीरो पुरस्कार और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वेटलैंड चैंपियन पुरस्कार से सम्मानित किया गया हैं। लोकप्रिय संस्कृति में उनकी जीवन कहानी संस्कृति मंत्रालय (भारत) की कॉमिक बुक मन की बात, खंड ४ में प्रकाशित हुई, जिसका प्रकाशन अमर चित्र कथा द्वारा जुलाई २०२३ में किया गया था। २०२२ में, विश्व पर्यावरण दिवस पर, नेशनल जिओग्रैफ़िक ने अपनी 'वन फॉर चेंज' पहल के तहत, रामवीर तंवर सहित उन सामाजिक कार्यकर्ताओं पर लघु फिल्मों की एक श्रृंखला प्रदर्शित की, जिन्होंने दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए काम किया है। जिसे डिज़्नी+ हॉटस्टार पर भी दिखाया गया। एबीपी के टीवी शो 'क्या बात है' पर रामवीर तंवर भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता उत्तर प्रदेश के लोग
व्यापार, अर्थशास्त्र या निवेश में, बाजार की तरलता एक बाजार का गुण है | इसके तहत कोई भी व्यक्ति या फर्म संपत्ति की कीमत में भारी बदलाव किये बिना किसी एसेट को आसानी से बेचा या ख़रीदा जा सकता है | दूसरी भाषा में कहा जाय तो किसी एसेट को जीतनी आसानी से बेचा जा सकता है उसे उस एसेट की तरलता कहा जाता है | हर एसेट की तरलता अलग अलग होती है | जैसे - कैश (नकदी) की तरलता सबसे अधिक होती है | कैश से आप कोई भी खरीद बिक्री बड़ी आसानी से कर सकते है | शेयर बाज़ार के लिए तरलता बहुत ही मायने रखता है | शेयर बाज़ार में कंपनी के शेयर लिस्टेड होते है | किसी शेयर की तरलता उसके आस्क तथा बिड के अंतर पर निर्भर करता है । जिस कंपनी के शेयर में आस्क तथा बिड का अंतर जितना कम होता है उस कंपनी के शेयर में तरलता उतना ही अधिक होता है | इन्हें भी जाने
प्रकाश बाबा आमटे एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो महाराष्ट्र से आते हैं। आमटे और उनकी पत्नी मंदाकिनी आमटे को उनके सामाजिक कार्यों के लिए २००८ में रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले और पड़ोसी राज्य तेलंगाना और मध्य प्रदेश में माडिया गोंडों के बीच 'लोक बिरादरी प्रकल्प' चलाते हैं। नवंबर २०१९ में उन्हें बिल गेट्स द्वारा आईसीएमआर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। प्रकाश आमटे बाबा आमटे के दूसरे बेटे हैं। उन्होंने गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी), नागपुर से मेडिकल की डिग्री प्राप्त की, और गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी), नागपुर में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात अपनी पत्नी मंदाकिनी से हुई। १९७३ में, आमटे ने हेमलकसा में लोक बिरादरी प्रकल्प की शुरुआत की, जो आदिवासी समुदायों के विकास के लिए था, जिनमें प्रमुखत: माडिया गोंड, एक आदिवासी समुदाय जो गढ़चिरौली जिले के जंगलों रहते हैं। उन्होंने बिना बिजली के तकरीबन बीस साल तक वहां रहकर आपातकालीन शल्यचिकित्सा करते रहे। इस प्रकल्प के अंतर्गत उन्होंने एक अस्पताल, लोक बिरादरी प्रकलप दवाखाना, आवासीय विद्यालय, लोक बिरादरी प्रकल्प आश्रम शाला, और घायल जानवरों के लिए एक अनाथालय की स्थापना की। यह प्रकल्प प्रतिवर्ष लगभग ४०,००० व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करता है। डॉ. प्रकाश और उनका परिवार महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के हेमलकसा में एक बड़ी पशु संरक्षण सुविधा भी चलाते हैं जहां दुर्लभ, संरक्षित और लुप्तप्राय जानवरों की देखभाल की जाती है। प्रकाश बाबा आमटे ने दो आत्मकथाएँ प्रकाशित की हैं, पहला हैं, प्रकाशवत्, जो मूल रूप से मराठी में लिखी गई थीं और अब अंग्रेजी, गुजराती, कन्नड़, संस्कृत और हिंदी भाषा में अनुवाद किया गया हैं। इनकी दूसरी पुस्तक का नाम है, रानमित्र। आमटे को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: २०१९ - बिल गेट्स द्वारा प्रस्तुत इकर द्वारा लाइफ्टाइम यचीवमेंट अवॉर्ड। २०१४ - मदर टेरेसा पुरस्कार अवॉर्ड फॉर सोशल जस्टिस। २०१२ - लोकमान्य तिलक पुरस्कार। २००८ - रेमन मैगसेसे पुरस्कार। २००२ - पद्म श्री, भारत सरकार। १९९५ - प्रिंसिपैलिटी ऑफ मोनैको ने प्रकाश और मंदाकिनी आमटे को सम्मानित करने के लिए एक पोस्टल डाक टिकट जारी किया। मैगसेसे पुरस्कार विजेता भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता महाराष्ट्र के लोग
विद्याधरदेव-वर्मन चन्देल (इंग:विद्याधरदेव वर्मन चंदेल) (शासन काल श. १००३- १०३५ ई.), चन्देल राजवंश से भारत के चक्रवर्तीन सम्राट थे। उन्होंने अपनी राजधानी महोबा, जेजाकभुक्ति (वर्तमान उत्तर प्रदेश) से भारत के कई भूभागों पर शासन किया था। उन्होंने कन्नौज के गजनवीद राज्यपाल, सेनापति और प्रतिहार राजपाल को मारा तथा मालवा के राजा भोज परमार और कलचुरी राजा गंगेयदेव को हरा उन्हें कैद कर अपने अधीन कर लिया। वह एक मात्र ऐसे हिंदू नरेश थे जिन्होंने २ बार, १०१९ एवं 10२२ ई. में गजनी के सुलतान महमूद गजनवी को आमने सामने के युद्ध में पराजित किया। उस समय चन्देल साम्राज्य की सीमा भारत में सबसे बड़ी थी। खजुराहो शिलालेख के अनुसार इनका जन्म हैहयवंशी क्षत्रियों के चन्देल कुल में हुआ था जो वृष्णि कुल चेदि कुल साम्राज्य का पर्यायवाची शब्द है (चन्द्रवंशी यादवों की प्रमुख शाखा)। वह अपने दादा धंगदेववर्मन के सामान वीर और कुसल शासक थे। विद्याधरदेव का विवाह राजकुमारी सत्यभामा से हुआ था। गजनविद साम्राज्य से युद्ध कन्नौज पर आक्रमण १०१८ ईस्वी में गजनी के गजनवी सुल्तान महमूद ने कन्नौज पर आक्रमण किया , जिसका प्रतिहार राजा राज्यपाल बिना प्रतिरोध का सामना किए शहर से भाग गया से जिससे महमूद को इसे बर्खास्त करने की अनुमति मिली और वहां तक गजनविदो के कब्जा कर लिया। अपने पिता के सुझाव पर विद्याधरदेव ने कन्नौज की प्रजा और मंदिरो को तुरकों से बचाने के लिए और कन्नौज के राजा को ये कायरता की सजा के रूप में कन्नौज पर तुरंत आक्रमण किया। हालांकि उस समय तो वहां पर प्रतिहार राजा नही अपितु केवल गजनवीद राज्यपाल और सेनापति थे। विद्याधरदेव ने उन्हे हरा सबको लगभग मार दिया। कुछ सैनिक भाग कर गजनी पहुंचे और उन्होंने महमूद को सब बताया जिसके बाद गजनवियों और चन्देलो के बीच विवाद बढ़ा। राज्यपाल, जो भाग गया था वो जब राजधानी में आया तो ये सुना की विद्याधरदेव वहां पर उसे मृत्युदंड देने को है ये सुनकर वह भाग खड़ा हुआ वहीं उसके लड़के त्रिलोचनपाल ने आत्मसमर्पण कर दिया। परंतु विद्याधरदेव ने अपने सेनापति के साथ राज्यपाल रात भर पीछा किया और उसे मार डाला। समकालीन ग्रंथ चन्देलप्रबंध अनुसार विद्याधरदेववर्मन ने राज्यपाल प्रतिहार को मारते वक्त कहा था की क्षत्रिय होकर हम क्षत्रियों पर ऐसा कायरता पूर्वक दाग लगा कैसे जी सकते हो तुम, कम से कम युद्ध भूमि में मर गए होते तो वो सौभाग्यशाली होता लेकिन तुमसे एक लुटेरे के विरुद्ध इतनी भव्य सेना होते हुए भी युद्ध तक नहीं हुआ वीरगति कौन कहे। तुम एक कुलकलंक हो! धिक्कार है तुमपर। उसको जान से मारकर विद्याधरदेव कन्नौज राजमहल में गए और उसके पुत्र त्रिलोचनपाल का राज्याभिषेक कन्नौज की गद्दी पर कर उसे अपना सामंत राजा बना वापिस अपनी राजधानी महोबा लौट गए। १६ वी शताब्दी मुस्लिम इतिहासकार अली इब्न अल-अथिर के अनुसार खजुराहो के महराजा विद्याधर चन्देल ने इस कायरता की सजा के रूप में कन्नौज के राजा को मार डाला। कुछ बाद के मुस्लिम इतिहासकारों ने इस नाम को "नंद" के रूप में गलत तरीके से पढ़ा, जिसके आधार पर ब्रिटिश-युगविद्वानों ने कन्नौज राजा के हत्यारे की पहचान विद्याधर के पूर्ववर्ती गंड देव के रूप में की। हालाँकि, महोबा में खोजे गए एक शिलालेख से पुष्टि होती है कि विद्याधर चन्देल ने कन्नौज के शासक को हराया था और उसकी हत्या कर उसके पुत्र त्रिलोचनपाल को अपना सामंत राजा बना राज्याभिषेक किया उसका। महमूद गजनवी का प्रतिरोध १०१९ ई. के असफल आक्रमण के बाद १०२२ ई. में महमूद गजनी ने राजधानी कलिंजर पर पुन: हमला किया। भीषण युद्ध हुआ जिसमें महमूद की हार हुई और उसे अपनी जान बचाने के लिए आत्मसमर्पण करना पड़ा। महमूद गजनी ने विद्याधरदेव से संधि की जिसमे उसने अन्य नरेशो से जीते हुए १५ किले विद्याधरदेव को दे दिया जिसके बाद विद्याधर का राज्य कश्मीर तक फेल गया और साथ में कई मूल्यवान वस्तुएं, अत्यंत सुंदर तुर्क महिलाए (मांगा भी नही था) कलिंजर भेजी। चन्देलो और गजनवियो की ये संधि १-२ पीढ़ी तक चली। चन्देलप्रबंध अनुसार विद्याधरदेव को महमूद गजनी ने शाही जश्न में विनम्रतापूर्वक अपनी राजधानी पर मुख्य अतिथि के रूप में निमंत्रण भी भेजा था। विद्याधरदेव ही अकेले ऐसे भारतीय सम्राट थे जिसने महमूद गजनी की महत्वाकांक्षा का सफलता पूर्वक प्रतिरोध किया था और उन्हीके कारण गजनविद साम्राज्य भारत में स्थापित नही हो पाया था। मालवा और त्रिपुरी अभियान राजा भोज ने अपने अभियानों के तहत ग्वालियर के कच्छपघाट वंश के राजा कितिराजा पर आक्रमण किया और कच्छपघाट चन्देलों के जागीरदार थे, हालांकि भोज ने उन्हे अपनी तरफ मिलाने की कोशिस की लेकिन उन्होंने अपने प्रिय राजा से गद्दारी करना गलत समझा और इस आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। तब तक चन्देल सेना आ गई और भोज को अपने पैर पीछे करने पड़े। महोबा, देबकुंड और त्रिपुरी के शिलालेख के अनुसार, १०२७ ईस्वी में विद्याधर ने मालवा और त्रिपुरी की संयुक्त सेना के साथ चन्देल राज्य पर हमले की योजना बनाई। युद्ध में विद्याधारदेव वर्मन ने मालवा के परमार राजा भोज और त्रिपुरी के कल्चुरी राजा गांगेयदेव को पराजित कर उन्हे बंदी बना लिया और कलिंजर की कैदखाने में डाल दिया। ग्वालियर और महोबा के शिलालेख के अनुसार फिर भोज भोजदेव ने कालकुरी के चंद्रमा यानी गंगेय देव के साथ मिलकर एक शिष्य की तरह भय से भरे हुए युद्ध के इस गुरु, यानी विद्याधर की पूजा की, उनकी महानता का गान किया और बार बार गुहाई भी लगाई की आपके अधीन ही राजा रहेंगे तब भोज और गंगेय देव पर दया कर विद्याधर ने उन्हें रिहा कर दिया। तदांतर परमार और कलचूरी राजवंश के राजा चन्देल साम्राज्य के अधीन यानी सामंत राजा रहे, बीच बीच में हालांकि इन्होंने विद्रोह कर स्वतंत्र हुए परंतु कुछ दिनों बाद ही चन्देल शाही सेना द्वारा पराजित हो जाते थे। विद्याधरदेववर्मन के निधन के बाद चन्देल साम्राज्य की कीर्ति और शक्ति घटने लगी परन्तु उसे उसके पौत्र किर्त्तिवर्मन ने पुन प्रतिष्ठित कर लिया। सम्राट विद्याधर चन्देल ने खजुराहो में कंदरिया महादेव मंदिर की स्थापना की। सम्राट विद्याधर चन्देल ने अपने परिवार के देवता शिव को समर्पित कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण करके सुल्तान महमूद गजनवी, भोज और अन्य शासकों पर अपनी सफलता का जश्न मनाया। मंदिर में मंडप के एक स्तंभ पर एपिग्राफिक शिलालेखों में मंदिर के निर्माता के नाम का उल्लेख विरिम्दा के रूप में किया गया है, जिसकी व्याख्या सम्राट विद्याधर चन्देल के छद्म नाम के रूप में की जाती है। इसका निर्माण १०२५ और १०५० ईस्वी के समय का है। इन्हें भी देखें भारत के शासक
दिगिकवच एक ऑनलाइन धोखाधड़ी पहचान कार्यक्रम है, जिसे भारत में ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसे गूगल द्वारा भारतीय उपयोगकर्ताओं को ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचाने के लिए लॉन्च किया गया था। और यह अध्ययन करने के लिए कि घोटालेबाज भारत में कैसे काम करते हैं, इस जानकारी के आधार पर, गूगल ने नए उभरते घोटालों का मुकाबला करने के लिए उपाय बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिए सहयोग किया। कार्यक्रम में बेईमान फिनटेक और शिकारी ऋण ऐप कंपनियों से सुरक्षा के लिए फिनटेक एसोसिएशन फॉर कंज्यूमर एम्पावरमेंट (फेस) के साथ सहयोग शामिल है। इससे पहले डिजीकवच के तहत गूगल ने भारत में डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए साइबरपीस फाउंडेशन को ४ मिलियन डॉलर दिए थे,यह भारत के गृह मंत्रालय के साथ काम करता है भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र, साइबर अपराध हेल्पलाइन (१९३०) और डिजीकवाच वित्तीय धोखाधड़ी के पीड़ितों को खतरों की त्वरित प्रतिक्रिया के लिए जानकारी और सहायता प्रदान करने के लिए मिलकर काम करेंगे।
() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ६०.९९३ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
हुमाइता () ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ५७.४७३ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ५३.९१४ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ५१.७९५ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ४५.४४८ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ४१.५८२ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
बेंजामिन कॉन्स्टेंट () ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ३७.६४८ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ३५.४४७ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ३३.१७० लोग थी। ब्राज़ील के शहर
बोर्बा () ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ३३.०५६ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ३२.९६७ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ३१.०६५ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ३०.७९२ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
() ब्राज़ील के आमेज़ोनास राज्य का शहर है। इसकी जनसंख्या ३०.६६८ लोग थी। ब्राज़ील के शहर
भील जनजाति - पश्चिमी और मध्य भारत की मूल निवासी - लगभग ५० अन्य भारतीय जनजातियों में से, आज तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है। मूल रूप से, शिकारी और महान तीरंदाज मध्य प्रदेश के घने जंगलों में रहते हैं - वे लंबे समय से खेती कर रहे हैं और कुछ चिनाई, सड़क बनाने और अन्य शारीरिक श्रम करने के लिए बड़े शहरों में चले गए हैं।ऐसी कई परिकल्पनाएँ हैं जो भील जनजाति की उत्पत्ति का अनुमान लगाती हैं और परिणामस्वरूप इतिहासकारों और शोधकर्ताओं ने अब तक किसी भी सिद्धांत के सच होने की पुष्टि नहीं की है। भारतीय उपमहाद्वीप पर आर्यों के आक्रमण के समय से ही जनजाति की मूल स्थिति और सांस्कृतिक स्थितियों की खोज करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं, यदि इसकी नस्लीय उत्पत्ति नहीं। हालाँकि, आधुनिक समय के करीब ऐतिहासिक ग्रंथों में भीलों का उल्लेख अधिक बार किया गया है। कला भील समुदाय का अभिन्न अंग है। दावत और शराब के साथ गाने, नृत्य और पेंटिंग का उपयोग घटनाओं को चिह्नित करने, यादें संग्रहीत करने और निराशा और बीमारी से लड़ने के लिए किया जाता है। अनुष्ठानों, प्रतीकवाद और परंपरा से ओत-प्रोत, उनके चित्रों की समृद्ध बनावट उन्हें प्रकृति और आदिवासी जीवन से जोड़ती है जो उनकी विरासत है।इसकी कला का इतिहास भीलों जितना ही पुराना और रहस्य में छिपा हुआ है, हालाँकि पिथोरा पेंटिंग, गटलास और कोठी रिलीफ वर्क कुछ बेहतर ज्ञात कला रूप हैं। ये अनुष्ठानिक चित्र बदवाओं या विशेष रूप से नियुक्त पुरुष सदस्यों द्वारा बनाए जाते थे। हालाँकि पारंपरिक रूप अभी भी प्रचलित हैं, भील कला आज बड़े पैमाने पर कैनवास पर ऐक्रेलिक पेंटिंग के रूप में व्यक्त की जाती है। और जे. स्वामीनाथन कलाकारों को प्रोत्साहित करने और उन्हें वैश्वीकृत कला जगत के साथ एकीकृत करने में एक प्रमुख व्यक्ति थे। कहानियों, प्रार्थनाओं, यादों और परंपराओं को सादे पृष्ठभूमि पर बहुरंगी बिंदुओं की सिम्फनी में चित्रित किया गया है। कई भील कलाकारों के लिए कला सीखने का पहला कदम बिंदुओं में महारत हासिल करने के साथ शुरू हुआ - लयबद्ध पैटर्न और रंगों में समान आकार, समान बिंदुओं को कुशलता से दोहराना। बिंदु भील कला की विशिष्ट पहचान हैं, और इनमें प्रतीकवाद की कई परतें हैं। मक्के के दानों से प्रेरित होकर - उनका मुख्य भोजन और फसल - बिंदुओं का प्रत्येक समूह अक्सर एक विशेष पूर्वज या देवता का प्रतिनिधित्व करता है। इस महत्वपूर्ण भील परंपरा में, पिछले वर्ष मारे गए परिवार के सदस्यों की याद में फसल के खेतों में एक स्मारक पत्थर या "गटाला" बनाया जाता है। गटाला में एक आदमी को घोड़े पर सवार दिखाया गया है जिसके ऊपरी बाएँ और दाएँ भाग में सूर्य और चंद्रमा सजाए हुए हैं। बडवा (पवित्र पुजारी) तय करता है कि गटाला को किस तिथि को पवित्र किया जाएगा। फिर, परिवार के सदस्य प्रार्थना करते हैं और आत्मा से परिवार और पूरे गांव की देखभाल करने का अनुरोध करते हैं। महुआ के फूल से विशेष शराब बनाई जाती है और पांच बकरों की बलि दी जाती है। और आज हमें मुख्यधारा में और भी भील कला देखने को मिल रही है। मिट्टी की जगह कैनवास ने ले ली है, प्राकृतिक रंगों की जगह ऐक्रेलिक पेंट ने ले ली है। जो कलाकार पहले अपने गाँव के घरों की दीवारों और फर्शों पर पेंटिंग करते थे, वे अब देश भर में और यहाँ तक कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाने जाते हैं। लेकिन इस कला रूप के बारे में कुछ ऐसा है जो इतना निहित है कि माध्यम या यहां तक कि मान्यता में बदलाव से इसके चित्रण की ईमानदारी में कोई बदलाव नहीं आता है। भीलों का प्रकृति के साथ एक मौलिक रिश्ता है जो बदलते मौसम और तत्व पूजा को महत्व देता है ताकि अच्छी फसल हो सके। यहां तक कि पेंटिंग के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री भी आम तौर पर प्राकृतिक रूप से प्राप्त रंगद्रव्य, मिट्टी की दीवारों पर ब्रश के रूप में नीम की टहनियाँ, भित्तिचित्रों (मिट्टीचित्रा) का एक रूप है। यह कौशल अनौपचारिक शिक्षा का एक हिस्सा था जो भील समुदाय की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन गया है। आधुनिक जीवन और प्रौद्योगिकी का भी धीरे-धीरे परिचय हुआ है
सलातुल तस्बीह ( ) को तस्बीह वाली नमाज़ के रूप में भी जाना जाता है, यह सुन्नत प्रार्थना का एक रूप है । जैसा कि नाम से पता चलता है, इस अनोखी प्रार्थना में कई बार तस्बीह पढ़ना शामिल है और ऐसा कहा जाता है कि जो लोग इस विशेष तरीके से प्रार्थना करते हैं उनके कई पाप माफ कर दिए जाते हैं। पैगंबर मुहम्मद (सल्ल०) ने मुसलमानों को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार यह प्रार्थना जरूर करने की सलाह दी । इस अनोखी प्रार्थना में चार रकात शामिल हैं जो दो अलग-अलग सेटों में विभाजित है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह प्रार्थना किसी भी अन्य प्रार्थना से विशेष रूप से भिन्न नहीं है। एकमात्र अंतर तस्बीह को शामिल करने का है और इसे केवल महिमामंडन समाप्त करने के बाद ही पढ़ा जा सकता है जैसा कि व्यक्ति किसी अन्य प्रार्थना में करता है। सबसे पहले नमाज़ की नियत करें । इसके बाद सना पढ़ें फिर १५ बार तस्बीह पढ़ें। ( ) (अर्थात् 'अल्लाह पवित्र है।', 'सभी प्रशंसाएं अल्लाह के लिए हैं।', 'अल्लाह के अलावा कोई दूसरा ईश्वर नहीं है।', 'अल्लाह सबसे महान है।')) १५ बार। सूरह फातिहा और दूसरा सूरह पढ़ें , फिर उसी तस्बीह को १० बार पढ़ें। अब रुकू में जाएं और ३ बार 'सुब्हान रब्बि अल-अज़ीम' पढ़ें । उसके बाद तस्बीह को १० बार पढ़ें। रुकू से खड़े होकर तस्बीह को १० बार पढ़ें। ('समिअल्लाहु लिमन हमीदह, रब्बना लकल हम्द' के बाद) इसके पाठ के साथ पहले सुजुद में तस्बीह को १० बार कहें। अब अल्लाहू अकबर कहते हुए सज्दे में चले जाएं और ३ बार 'सुब्हान रब्बि अल-आला' पढ़ने के बाद तस्बीह को १० बार पढ़ें। सज्दे से उठने के बाद जलसा में (दोनों सज्दों के दौरान) बैठकर १० बार तस्बीह पढ़ें। अब दूसरे सज्दे में जाएं, दूसरे सज्दे की तस्बीह पढ़ने के बाद इस तस्बीह को १० बार पढ़ें। चार रकअत पूरी होने तक दोहराएँ। और चौथी रकात में सज्दों के बाद अत्तहिय्यात, दूरूद शरीफ और दुआ पढ़कर सलाम फेर दें। नोट: इस पूरे नमाज के दौरान इस तस्कुबीह को कुल मिलाकर ३०० बार पढ़ना चाहिए। अब्दुल्ला इब्न अब्बास (रज़ि) ने फरमाया: मेरे चाचा! क्या मैं आपको एक अतिया न करूं ? क्या मैं आपको एक तोहफा और हदिया पेश न करूं ? क्या मैं आपको ऐसा अम्ल न बताऊं कि जब आप इसको करेंगे तो आपको दस फायदे हासिल होंगे । यानी अल्लाह तआला आपके अगले-पिछले, पुराने-नए, गलती से और जानबूझ कर किये गए, छोटे-बड़े, छुपकर और खुल्लमखुल्ला किये हुए सारे गुनाह माफ कर देगा । वो अम्ल ये है कि आप चार रकात सलातुल तस्बीह की नमाज़ पढ़ें । अगर आपसे हो सके तो रोज़ाना ये नमाज़ एक मर्तबा पढ़ा करें , अगर रोज़ाना ना हो सके तो जुमा के दिन पढ़ लिया करें , अगर ये भी ना हो सके तो महीने में एक बार पढ़ लिया करें , अगर आप ये भी ना हो सके तो साल में एक बार पढ़ लिया करें , अगर ये भी ना हो सके तो ज़िंदगी में एक बार पढ़ लिया करें ।" नमाज़ के फायदे नफ़ील नमाजों में सलातुल तस्बीह की नमाज़ की बहुत ज्यादा फजीलत बयान की गई है । इस नमाज को पढ़ने से दीन-व-दुनिया की बहुत सी बरकतें हासिल होती है । गुनाह माफ हो जाते हैं और इसके पढ़ने से रोजी में बरकत पैदा होती है । किसी मुसीबत और दुशवारी के वक्त अगर इस नमाज को पढ़ कर अल्लाह से दुआ की जाए तो वह मुसीबत इस नमाज की बरकत से दूर हो जाती है । यह भी देखें सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीका और फजीलत * इस्लाम के पाँच मूल स्तंभ
लघु वक्षच्छदिका मांसपेशी ( पेक्टरैलिस मिनोर ) एक पतली, त्रिकोणीय मांसपेशी है, जो मानव शरीर में बृहत् वक्षच्छदिका के नीचे, छाती के ऊपरी हिस्से में स्थित होती है। यह ई-व पसलियों से उत्पन्न होता है; यह अंसफलक की अंसतुंड प्रवर्ध पर निवेशित होता है। यह अभिमध्य अंसीय तंत्रिका (मिडियल पेक्टरल नर्व) द्वारा तंत्रिकाप्रेरित होता है। इसका कार्य अंसफलक को छाती की दीवार के सामने मजबूती से पकड़कर स्थिर करना है।
उरोस्थि या स्टर्नम (स्टर्नम या ब्रेस्टबोन, ब्रेस्टबोने) छाती के मध्य भाग में स्थित एक लंबी चपटी हड्डी है। यह उपास्थि के माध्यम से पर्शुकाओं से जुड़ता है और पसली पिंजर के सामने का निर्माण करता है, इस प्रकार हृदय, फेफड़ों और प्रमुख रक्त वाहिकाओं को चोट से बचाने में मदद करता है। मोटे तौर पर नेकटाई के आकार की यह शरीर की सबसे बड़ी और सबसे लंबी चपटी हड्डियों में से एक है। इसके तीन क्षेत्र मुष्टि (मनुब्रियम), काय और ज़ीफॉइड उरोस्थि पत्रक.
हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न एक तरह का सिंगल कैंडलस्टिक पैटर्न है जो मजबूत अप ट्रेंड के बाद बनता है और यह एक बेयरिश कैंडलस्टिक पैटर्न है जो मंदी का इशारा करता है और यह संकेत देता है कि अप ट्रेंड अब कमजोर हो चुका है और यहाँ से डाउन ट्रेंड चालू हो सकता है | जब किसी कैन्डल में सिर्फ ऊपर की तरफ हल्की बॉडी होती है और उस कैंडलस्टिक के नीचे का विक/शैडो कैन्डल्स्टिक की बॉडी से दोगुनी और उससे ज्यादा होती है | ऐसी कैन्डल को हम हैंगिंग मैन कैंडल कहते हैं | परंतु अब अगर आप यह सोच रहे हैं की ऐसा कैन्डल हैमर कैन्डल भी होता है तो मैं आपको बताना चाहूँगा हैमर कैन्डल डाउन ट्रेंड के बाद बनता है पर हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न अपट्रेंड के बाद बनता है | हैंगिंग मैन पैटर्न एक ट्रेंड रीवर्सल पैटर्न है जो ट्रेंड के बदलने का संकेत देता है | यह पैटर्न बुलिश ट्रेंड के बाद बनता है और यह इशारा करता है कि अब शेयर का प्राइस नीचे या सकता है | हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न का रंग वैसे हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न में रंग का कोई खास महत्व नहीं होता है, महत्व होता है जगह का जैसे कि कहाँ पर यह पैटर्न बन रहा है | चाहे यह पैटर्न लाल रंग का बने या हरे रंग का यह पैटर्न वैसा ही परिणाम देता है बस आपको कॉन्फर्मैशन का इंतज़ार करना होता है | शूटिंग स्टार और हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न में अंतर इस वाले खंड में हम हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न और शूटिंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न के बीच के अंतर और समानता को समझने का प्रयास करेंगे | अगर बात करें इन दोनों कैंडलस्टिक पैटर्न की समानता की तो इनमे बहुत सारी समानताएं है जैसे कि - ये दोनों पैटर्न रीवर्सल पैटर्न हैं जो ट्रेंड के बदलने का संकेत देते हैं | यह दोनों पैटर्न अपट्रेंड के बाद बनते हैं, जिससे पता चलता है कि अब प्राइस नीचे गिर सकता है | ये दोनों के दोनों पैटर्न एक मजबूत बेयरिश कैंडलस्टिक पैटर्न है, जो मंदी की तरफ इशारा करते हैं | और रही बात अंतर की तो सबसे बड़ा और सबसे पहला अंतर तो यह है कि ये दोनों पैटर्न दिखने में उलटे होते हैं |
" व्यक्तिवादी पंथ और उसके परिणाम " ( ) जिसे प्रायः" गुप्त भाषण " ( ) कहा जाता है, सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की प्रथम सचिव, सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव की एक रिपोर्ट थी, जो २५ फरवरी १९५६ को सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की २०वीं कांग्रेस में प्रस्तुत की गयी थी। ख्रुश्चेव के भाषण में हाल ही में मरे महासचिव और प्रधान जोसेफ स्टालिन के शासन की तीव्र आलोचना थी, विशेष रूप से उन शुद्धिकरणों के संबंध में जो विशेष रूप से १९३० के दशक के अंतिम वर्षों को चिह्नित करते थे। ख्रुश्चेव ने स्टालिन पर साम्यवाद के आदर्शों के प्रति समर्थन बनाए रखने के बावजूद व्यक्तित्ववादी नेतृत्व-पंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। यह भाषण इज़रायली ख़ुफ़िया एजेंसी शिन बेट द्वारा पश्चिम में लीक किया गया था, जिसे यह पोलिश-यहूदी पत्रकार विक्टर ग्रेजेवस्की से प्राप्त हुआ था।
हिंडाल गोल राज्य राजस्थान के फलोदी ज़िले का एक गांव (ग्राम पंचायत) है जो बाप तहसील के अंतर्गत आता है। > यह गांव फलोदी से बीकानेर जाने वाली सड़क न्ह११ पर स्थित है, जो कि फलोदी व बाप के मध्य स्थित है इन दोनों शहरों से १५ किलोमीटर दूरी है,हिंडाल गोल से रिण व बावड़ी तक डामर रोड जाती है, यहाँ पोस्ट ऑफिस व उप स्वास्थ्य केंद्र व पशु उप स्वास्थ्य केंद्र भी है, यहां मुस्लिम समुदाय के अलावा मेघवाल,भील,व सुथार जाती के लोग भी निवास करते है यहां के लोग राजनीति के चाणक्य है,यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती,पशुपालन,ट्रक, व सोलर ठेकेदारी का है, हिंडाल गोल जोधपुर जिले में मुस्लिम समुदाय का पॉवरफुल गांव है। मुस्लिम समुदाय में सवर्प्रथम सामाजिक धार्मिक व समाज सुधार के निर्णय इसी गांव से लिये जाते है, जो कि पूरे फलोदी जिले में मिशाल होते है व सर्व मान्य होते है
श्री गोविन्द गुरु विश्वविद्यालय , गुजरात के गोधरा में स्थित एक राज्य विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना २०१५ में गुजरात सरकार के श्री गोविंद गुरु विश्वविद्यालय अधिनियम, २०१५ द्वारा की गई थी और २०१६ में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा इसे अनुमोदित किया गया था। इस विश्वविद्यालय का अधिकार क्षेत्र पूर्वी गुजरात के पंचमहल, महिसागर, दाहोद, छोटा उदयपुर और वडोदरा जिले हैं। इसमें १२२ संबद्ध कॉलेज हैं। इसका नाम सामाजिक और धार्मिक सुधारक गोविन्द गुरु के नाम पर रखा गया है। गोविन्द गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय, बाँसवाड़ा
डाई-अमोनियम फॉस्फेट ( डीएपी ; आईयूपीएसी नाम डाई-अमोनियम हाइड्रोजन फॉस्फेट ; रासायनिक सूत्र (न्ह ४ ) २ (हपो ४ ) पानी में घुलनशील अमोनियम फॉस्फेट लवणों की शृंखला में से एक है जो उर्वरक के रूप में प्रयुक्त होता है। यह अमोनिया फॉस्फोरिक एसिड के साथ अभिक्रिया करने पर उत्पन्न हो सकता है। ठोस डाई-अमोनियम फॉस्फेट निम्नलिखित अभिव्यक्ति और समीकरण के अनुसार अमोनिया का पृथक्करण दाब दिखाता है: १०० डिग्री सेल्सियस पर, डाई-अमोनियम फॉस्फेट का पृथक्करण दबाव लगभग ५ मिमी पारे के बराबर होता है। सीएफ इंडस्ट्रीज, इंक. के डायमोनियम फॉस्फेट एमएसडीएस के अनुसार, अपघटन ७० डिग्री सेल्सियस से कम ताप से शुरू होता है: "खतरनाक अपघटन उत्पाद: कमरे के तापमान पर हवा के संपर्क में आने पर धीरे-धीरे अमोनिया खो देता है। लगभग ७० डिग्री सेल्सियस पर अमोनिया और मोनोअमोनियम फॉस्फेट में विघटित हो जाता है। १५५ डिग्री सेल्सियस पर, डीएपी फॉस्फोरस ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अमोनिया उत्सर्जित करता है।" डीएपी का उपयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है। जब पौधे के भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है, तो यह अस्थायी रूप से मिट्टी के पीएच को बढ़ाता है, लेकिन लंबे समय में अमोनियम के नाइट्रीकरण पर उपचारित भूमि पहले की तुलना में अधिक अम्लीय हो जाती है। यह क्षारीय रसायनों के साथ असंगत है क्योंकि इसके अमोनियम आयन के उच्च-पीएच वातावरण में अमोनिया में परिवर्तित होने की अधिक संभावना है। घोल में औसत पीएच ७.५-८ होता है। इसका विशिष्ट सूत्रीकरण 1८-४६-० (1८% एन, ४६% पी २ ओ ५, ०% के २ ओ) है। डीएपी का उपयोग अग्निरोधी के रूप में भी किया जा सकता है। यह सामग्री के दहन तापमान को कम करता है, अधिकतम वजन घटाने की दर को कम करता है, और अवशेष या चार के उत्पादन में वृद्धि का कारण बनता है। जंगल की आग से लड़ने में यह प्रभावशाली हैं क्योंकि पायरोलिसिस तापमान को कम करने और गठित चारे की मात्रा बढ़ाने से उपलब्ध ईंधन की मात्रा कम हो जाती है और आग लगने की स्थिति पैदा हो सकती है। यह कुछ लोकप्रिय वाणिज्यिक अग्निशमन उत्पादों का सबसे बड़ा घटक है और "अग्निरोधी" सिगरेट का घटक है। डीएपी का उपयोग वाइन बनाने और मीड बनाने में खमीर पोषक तत्व के रूप में भी किया जाता है। इसके अलावा सिगरेट के कुछ ब्रांडों में कथित तौर पर निकोटीन बढ़ाने वाले एक योज्य के रूप में; माचिस में आफ्टरग्लो को रोकने के लिए, चीनी को शुद्ध करने में; सोल्डरिंग टिन, तांबा, जस्ता और पीतल के लिए फ्लक्स के रूप में; और ऊन पर क्षार-घुलनशील और एसिड-अघुलनशील कोलाइडल रंगों की वर्षा को नियंत्रित करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। प्राकृतिक रूप से अस्तित्व यह यौगिक प्रकृति में अत्यंत दुर्लभ खनिज फॉस्फैमाइट के रूप में पाया जाता है। संबंधित डाइहाइड्रोजन यौगिक खनिज बाइफॉस्फ़ैमाइट के रूप में होता है। दोनों गुआनो जमा (गुआनो डिपोइट्स) से संबंधित हैं। अंतर्राष्ट्रीय रासायनिक सुरक्षा कार्ड ०२१७ भारत डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा
भिलट देव भील आदिवासियों के प्रमुख देवता है बड़वानी जिले मे भिलट देव जी का मेला लगता है। ऊँचो माळो भीलट देव डगमाळ, टोंगल्यो बूड़न्ती ज्वार।। काचा सूत की भीलट देव की गोफण, मालू राणी होर्या टोवण जाई।। हरमी-धरमी का होर्या उड़ी जाजो, न पापी को खाजो सगळो खेत।।
सानु शर्मा () नेपाली भाषा की एक उपन्यासकार, कहानीकार, गीतकार, कवि और लेखिका हैं। उनके सात उपन्यास और एक कहानी संग्रह की पुस्तक प्रकाशित हुए हैं। उनकी कहानीयों का संग्रह एकदेश्मा को २०१८ में मदन पुरस्कार पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। सानु शर्मा का जन्म काठमाडौं का प्रसूति गृह नामक सरकारी अस्पताल में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन का बाल्यकाल नेपाल के काठमाडौं और तराई में समान रूप से बिताया। सानु शर्मा ने २००३ में अपना पहला उपन्यास अर्धविराम प्रकाशित किया, और जीतको परिभाषा नामक दूसरा उपन्यास, २०१० में प्रकाशित किया। उन्होंने २०११ में अपना तीसरा उपन्यास अर्थ प्रकाशित किया। वर्ष २०१७ में, शर्मा ने अपना चौथा उपन्यास विप्लवी प्रकाशित किया; और २०१८ में उन्होंने अपनी पांचवी पुस्तक और पहली कहानी संग्रह एकदेश्मा प्रकाशित की। एकदेश्मा ने अधिक पाठकों और समीक्षकों के द्वारा प्रशंसा प्राप्त की। इसके बाद, यह पुस्तक नेपाली साहित्य के लिए सबसे बड़े पुरस्कार माने जाने वाले मदन पुरस्कार के लिए नामांकित की गई। एकदेश्मा की सफलता के बाद, शर्मा ने २०२१ में अपना पांचवा उपन्यास उत्कर्ष और छठा उपन्यास फरक प्रकाशित किए। सितंबर २०२३ में, उन्होंने अपनी आठवीं पुस्तक और सातवाँ उपन्यास ती सात दिन को रत्न पुस्तक भंडार से प्रकाशित किया। सानु शर्मा उपन्यासकार और कहानीकार के साथ साथ एक गीतकार और कवि भी हैँ । उन के द्वारा रचित गीत कई संगीतकारों की संगीत में विभिन्न गायक और गायिका द्वारा गाए गए हैं । मूल रूप से नेपाली भाषा में लिखी हुई उनकी कविताएँ अंग्रेजी के साथ साथ और भाषाओं में अनूदित हो के विभिन्न जगह से प्रकाशित हुई है । ती सात दिन आँखा रसाउने उत्सर्ग
टम्टा- ताम्रपत्र शिल्पकार तांबे के बर्तन की कलाकृति उत्तराखंड के अल्मोडा में टम्टा समुदाय का पारंपरिक शिल्प है। बरसों पहले उत्तराखंड तांबे के अयस्कों में समृद्ध था, जिसका खनन गढ़वाल और कुमाऊं दोनों क्षेत्रों में किया जाता था। तांबा जो स्थानिय रूप से इस क्षेत्र में प्राप्त किया जाता था शुरू में राजवंशों के लिए सिक्के बनाने के लिए उपयोग किया जाता था। बाद मे इसका उपयोग हाथ से पीते गए ताम्बे के बर्तन और संगीत वाद्ययंत्रों को बनाने के लिए किया जाने लगा। खदानें बंद होने के बाद, ताम्रकार समुदाय ने पारम्परिक शिल्पों को बनाना जारी रखा और इसके कारण इस समुदाय को टम्टा नाम से जाने जाना लगा। टम्टा शिल्प की उत्पत्ति का पता १६वीं शताब्दी इसवी में लगया जा सकता है, जब राजस्थान क्षेत्र के चंद्रवंशी कबिले पहाड़ी राज्य के चंपावत क्षेत्र में चले गए थे ।चंपावत के पारंपरिक तांबा लोहार ,जो मूल रूप से राजस्थान के थे , टम्टा को राज्य के खजाने के लिए तांबे के सिक्के डालने के लिए अल्मोड़ा के शाही दरबार में लगाया था। इसलिए ५०० साल पहले टम्टा कुमाऊं में चंद राजवंशी के शाही खजाने के लिए सिक्के बनाने वाले थे । जब चन्द्र शशकों ने अपनी राजधानी को चम्पावत के अल्मोडा स्थानान्तरित किया तो औपनिवेशिक शासन के दौरन में शिल्प का और भी विकास हुआ चंद राजवंश के शासन काल के बाद,जो १७४४ म घटना शुरू हुआ और 18१६ में समाप्त हुआ, टम्टा ने तांबे के बर्तन और सजावट सामान बनाना शुरू कर दिया। ताम्बे से बने विशिष्ठ घरेलु वस्तुओं मे खाना पकाने के बर्तन और जल भण्डारण कंटेनर शामिल हैं। विशेष रूम से, ताम्बे के बर्तनों को इसके स्वस्थ लाभों के लिए भी काफी पसंद किया जाता है। इसके अतिरिक्त , उनका उपयोग ढोल (एक ताल वाद्य) और रणसिंघा (त्योहारों और अनुष्ठानों मे उपयोग किये जाने वाला एक अस-आकर की चढ़ाई जैसा संगीत वाद्ययंत्र) बनाने के लिए किया जाता है। तांबे के बर्तन बनाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कारीगर धातु की शीट पर कम्पास का उपयोग करके एक वृत्त बनता है और बाकी शीट से काट देता है हथौड़े का उपयोग करके वह कट आउट शीट को पीट कर उपयोग करें एक अर्ध गोलाकर आकार देता है जो बार्टन का आधार बनेगा फिर धातु को भट्टी में गर्म करके नरम किया जाता है ,जैसे शिल्पकार के लिए वास्तु बनाना आसान हो जाएगा भट्टी से निकलने के बाद शिल्पकार द्वारा धातु को हथौड़े से आकार दिया जाता है। एक प्रसिद्ध शिल्पकार हथौड़े से टकराने वाली धातु की आवाज सुनकर बता सकता है कि वाह उचित तकनिक का प्रयोग कर रहा है या नहीं। बार्टन से सभी घटक एक ही तरह से बनते हैं ,जब प्रतीक घटक पूरा हो जाता है तो इसे एक साथ जोड़ दिया जा,ता है और जोड़ों को दबाने के लिए भट्टी में वापस रख दिया जाता है तांबे के बर्तन अपने लाल रंग और चमक से अलग पहचानने जाते हैं ऐसा करने के लिए तांबे के उत्पाद को साफ और पॉलिश करने के लिए इमली और रेत का उपयोग किया जाता है पारंपरिक डिजाइन और रूपांकन तमता तांबे के बर्तन शिल्प का केवल स्थान और धार्मिक महत्व ही नहीं होता बाल्की कांवड, लोटा, बर्तन, थाली जैसी अन्य उपयोगी वस्तुएं, जो ना केवल दैनिक उपाय के लिए होती है बाल्की इनका प्रयोग धार्मिक योजनाओं और पूजा में भी उपयोग किया जाता है।विविध प्रकार के दीपक, पूजा वस्तुएं और देवी देवताओं की मूर्तियां बनाना भी शिल्प का हिस्सा है। तांबे के बर्तन अपने विस्तार और मनमोहक डिजाइन के लिए जाने जाते हैं जो प्रकृति, पौराणिक कथाएं और स्थानीय मान्यताओ से प्रेरणा लेते हैं।पुष्प रूपनकानो,ज्योतिमियापैटर्न और देवी देवताओं के चित्र शिल्प के आम विषय हैं। ये डिज़ाइन ना केवल सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन करते हैं बाल्की संस्कृति और धार्मिक महत्व भी रखते हैं। चुनौतियाँ और पुनरुद्धार प्रयास कई पारंपरिक शिल्प की तरह शिल्प को बदलती जीवन शैली, शहरीकरण और बड़े पैमाने पर उत्पत्ति विकल्प की समस्या के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।परिणामस्वरुप, हस्तनिर्मित तांबे के बर्तन की मांग कम हो चुकी है। बदलते समय विश्वासों की परिवर्तनशीलता और आर्थिक कारणों से तमता तांबे के बर्तन शिल्प को कथाइन का सामना करना पड़ा है। आधुनिकीकरण की दिशा में बदलती जीवन शैली, स्थानिय शिल्पकला की मांग में कमी, और विभिन्न उत्पादनों के निर्माण में मशीनों का उपयोग, इन सभी कारणों ने शिल्प को प्रभावित किया है। इस प्रवृत्ति का मुकाबला करने के लिए, शिल्प को बढ़ावा देने और पुनर्जीवन करने के लिए विभिन्न पहल की गई हैं।सरकारी निकाय ,गैर लाभकारी संगठन और सांस्कृतिक संस्थानों ने तमता तांबे के बार्टन की सुंदरता और मूल्य को प्रदर्शित करने के लिए कार्यशाला, प्रशिक्षण कार्यक्रम और प्रदर्शिनी का आयोजन किया है।इन प्रयासों का उपदेश कारीगरों और उपहारों के बीच शिल्प में नए सिरे से रुचि पैदा करना है। इस पारंपरिक शिल्प को संरक्षित करने और इसका संवर्धन करने के लिए सरकारी और गैर सरकारी संगठन के द्वार काई पहलू काम किए गए हैं। कार्यशाला में शिल्पकारो का प्रशिक्षण और उत्पादन के बिक्री का माध्यम बन गए हैं ताकि शिल्प को एक बड़े दर्शक मंच तक पहुंचाया जा सके। टम्टा द्वार बना दिए गए तांबे के ची जो को बढ़ावा देना न केवल सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना है बलकी सतत विकास में भी योगदान देना है।जब सामुदायिक शिल्प में संलग्न होता है, तो यह अक्सर स्थानीय रोजगार के अवसर भुगतान करता है, कारीगरों की आजीविका का समर्थन करता है और संसाधानों के जिम्मेदार उपयोग को प्रोत्साहित करता है। टम्टा कॉपर वेयर शिल्प ना केवल एक कला का रूप है बाल्की यह उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान और धरोहर का प्रतीक भी है। यह समुदय की कला, सांस्कृतिक मूल्य और ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाता है और उनके संबंधों को जमीन से जोड़ता है। यह शिल्प सांस्कृतिक पर्यटन की संभावना रखता है। क्षेत्र के पर्यटन तांबे के कार्यक्रम बनाने की प्रक्रिया का अनुभव कर सकते हैं, कारीगरों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं और प्रमाणिक टुकड़े खरीद सकते हैं। हाँ बात-चीत कारीगरों और उनके समुदाय को प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ प्रदान कर सकती है। साथ ही पारंपरिक शिल्प के संरक्षण के महत्व के बारे में जागरुकता भी बढ़ सकती है।निष्कर्षतः , टम्टा कॉपर वेयर क्राफ्ट सिर्फ एक पारम्परिक कला का स्वरुप से कई अधिक है, यह एक समुदाय की पहचान , इतिहास और रचनात्मकता का प्रतिबिम्भ है। इस शिल्प को संरक्षित और बढ़ावा देने के प्रयास न केवल सांस्कृतिक विरासत को बनाये रखने के लिए बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्थओं को समर्थन करने और उनके समुदाय के बीच गर्व की भावना को बढ़ावा देने के लिए भी आवश्यक है।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र एक हिंदू स्तोत्र है। जो २१ छंदों से युक्त है,इस स्त्रोत में माँ भगवती के कार्य अथवा सर्वोच्च देवी महादेवी का एक प्रमुख पहलू और उनके स्वरूपों का वर्णन है और असुर महिषासुर का संघार के कारण भक्तो द्वारा उनका गुणगान करने के लिए इसका पाठ किया जाता है। महिषासुरमर्दिनी दुर्गा का एक विशेषण है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, "राक्षस महिष का वध करने वाली",और स्तोत्र एक स्तुतिात्मक कार्य है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के रचयिता का श्रेय धर्मशास्त्री आदि शंकराचार्य को दिया जाता है। यह भजन देवी महात्म्य पाठ पर आधारित है,जिसमें देवी दुर्गा की कई किंवदंतियों का संदर्भ दिया गया है जैसे कि महिषासुर, रक्तबीज, साथ ही चंड और मुंड का वध, साथ ही आम तौर पर उनके गुणों की प्रशंसा की गई है। देवी महात्म्य के अनुसार, महिषासुर वध नामक पौराणिक कथा में,महिषासुर के नेतृत्व में असुरों द्वारा देवताओं को निष्कासित करने और स्वर्ग पर कब्ज़ा करने से क्रोधित होकर, देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और शिव की त्रिमूर्ति (सर्वोच्च त्रिमूर्ति) ने अपनी ऊर्जाओं को संयोजित किया, जिससे दुर्गा नामक देवी का रूप धारण किया। देवताओं के हथियारों और गुणों से लैस, दुर्गा ने आकार बदलने वाले महिषासुर को मार डाला, जिसने शेर, हाथी, भैंस और अंत में एक आदमी का रूप धारण किया। उन्हें देवताओं द्वारा आदिम प्राणी और वेदों की उत्पत्ति के रूप में महिमामंडित किया गया था। उनके भजनों से प्रसन्न होकर, देवी ने देवताओं को खतरे का सामना करने पर मुक्ति का वादा किया। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ इस प्रकार है- : अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते । भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥॥ अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते । मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते । निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते । दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥॥ अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे । दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते । शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके । कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते । धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते । नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते । सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥॥ सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते । शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते । अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥॥ कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले । अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते । निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥॥ कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते । सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते । जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् । तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् । तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम् जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते । मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥ अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते । जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ॥
भिलाली भारत में बोली जाने वाली एक भील भाषा है। इसकी तीन उपबिलियाँ हैं -भिलाली (मुख्य), रथवी तथा पर्या भिलाली। भिलाली और रथवी काफी मात्रा में परस्पर समझ में आने योग्य हैं। परया भिलाली, भिलाली (मुख्य) से अधिक दूर है, लेकिन इसे एक बोली के रूप में माना जाता है। भिलाली लोकगीतों में कृषक जीवन भारत की भाषाएँ
भारत में सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन वे आंदोलन हैं जो पुनर्जागरण के दौरान तथा बाद में भारत के किसी भाग में या पूरे देश में सामाजिक या धार्मिक सुधार के लिए चलाए गए। इनमें ब्रह्म समाज आर्य समाज, प्रार्थना समाज, सत्य-शोधक समाज, एझाबा आंदोलन, दलित आंदोलन आदि प्रमुख हैं। ज्यों ज्यों एक समाज या राष्ट्र प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है उसके लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह अपनी कमियों को दूर करे। सामाजिक धार्मिक कुरीतियों और रूढ़ियों को दूर करना ही राष्ट्र को विकसित और प्रगति उन्मुख बना सकता है। ब्रिटिश काल में जब भारतीय जनमानस अंग्रजों की दासता से बेचैन होने लगा तब भारतीय बुद्धिजीवियों ने यह महसूस किया कि दासता की बेड़ियों से मुक्त होने की लड़ाई में यह आवश्यक है की हम अपने भीतर को कमजोरियों को दूर करें। खुद को सामाजिक धार्मिक दृष्टि से परिष्कृत करें ताकि अंग्रजों के विरुद्ध युद्ध में हम मजबूती से मुकाबला कर सकें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में अठारहवीं सदी के अंतिम और उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दौर में सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलनों की एक पूरी श्रृंखला शुरू हुई जिसका काफी अहम परिणाम भारतीय स्वतंत्रता के रूप में मिला। ब्रह्म समाज आंदोलन भारतीय समाजिक धार्मिक सुधार आंदोलनों में अग्रगण्य स्थान रखता है। ब्रह्म समाज को उत्पत्ति १८१५ में आत्मीय सभा के रूप में हुई जो १८२८ में ब्रह्म समाज के रूप में परिवर्तित हो गई।ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय और द्वारकानाथ टैगोर थे। आगे चलकर देवेंद्रनाथ टैगोर और केशव चंद्र सेन ने समाज को आगे बढ़ाया। दोनो में आपसी मतभेदों के चलते समाज में दरार आ गई और केशव चंद्र सेन ने १८६६ में भारतवर्ष ब्रह्म समाज की स्थापना की। ब्रह्म समाज ने वेदों और उपनिषदों की महत्ता को एक बार फिर से स्थापित किया। इसने एकेश्वरवाद और आत्मा की अमरता की बात की। ब्रह्म समाज के प्रयासों का ही परिणाम था कि सन् १८२९ में लॉर्ड विलियम बेंटिक ने सती प्रथा पर पाबंदी लगा दी और गैरकानूनी बना दिया। इसके अलावा समाज ने पर्दा प्रथा और बाला विवाह के खिलाफ भी समाजिक जागृति लाने का काम किया। परिणामस्वरूप जाति धर्म का भेद कम हुआ और महिलाओं की स्थिति में सुधार आए। आर्य समाज की स्थापना सन् १८७५ में तत्कालीन बॉम्बे में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी। आर्य समाज आंदोलन हिंदू धर्म पर पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभावों के विरुद्ध एक प्रतिक्रियावादी आंदोलन था। आर्य समाज का मुख्यालय नई दिल्ली में है। आर्य समाज वैदिक परंपराओं में विश्वास करता है।यह मूर्ति पूजा,अवतारवाद, बलि, कर्मकांड, अंधविश्वास ,छुआछूत और जातिगत भेदभाव का विरोध करता है और संसार के उपकार को ही अपना उद्देश्य मानता है। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में आर्य समाज दो धड़ों में बंट गया। एक धड़ा पाश्चात्य शिक्षा का समर्थक था वहीं दूसरा धड़ा स्वदेशी शिक्षा का। पाश्चात्य शिक्षा के समर्थकों में लाला लाजपत राय और लाला हंसराज जैसे सुधारक थे जिन्होंने डीएवी नाम से शिक्षण संस्थान शुरू किए। प्राच्या शिक्षा के समर्थकों में प्रमुख स्वामी श्रद्धानंद थे जिन्होंने गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की थी। आर्य समाज ने शिक्षा, समाज सुधार और राष्ट्रीय आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई। स्वदेशी आंदोलन, हिंदी सेवा विशेषतः देवनागरी का विकास आर्य समाज की प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं। रामकृष्ण मिशन स्वामी रामकृष्ण परमहंस के नाम पर उनके परम शिष्य विवेकानंद के द्वारा स्थापित एक संस्था है जिसका उद्देश्य भारतीय समाज में सुधार लाना था।इसकी स्थापना सन् १८९७ में की गई थी।पश्चिम बंगाल के कोलकाता के समीप बेलूर में इसका मुख्यालय है। रामकृष्ण मिशन का उद्देश्य नव वेदान्त का प्रचार प्रसार करना है। यह मानव की सेवा को ही परोपकार और योग मानता है जो कि एक महत्वपूर्ण भारतीय दर्शन है। == सत्यशोधक समाज' == सत्यशोधक समाज की स्थापना महात्मा ज्योतिबा फुले ने महाराष्ट्र के पुणे में २४ सितंबर १८७३ को की थी। सत्यशोधक समाज का उद्देश्य दलित और महिला वर्ग के शैक्षणिक स्तर और और उनके समाजिक अधिकारों में सुधार लाना था। ज्योतिबा फुले की पत्नी सावित्रीबाई फुले समाज की महिला शाखा की अध्यक्ष थी। सावित्रीबाई फुले को भारत की प्रथम शिक्षिका के तौर पर भी याद किया जाता है। सत्यशोधक समाज की विचारधारा सार्वत्रिक अधिकारों का सिद्धांत ने गैर ब्राह्मण आंदोलन को गहराई से प्रभावित किया जिसका प्रभाव आगे के वर्षो में किसान आंदोलनों पर भी परिलक्षित हुआ। सन् १९३० के करीब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में समाज के सदस्यों के शामिल हो जाने से समाज भंग हो गया। प्रार्थना समाज हिंदू समाज के बौद्धिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान हेतु स्थापित की गई एक संस्था थी जिसका उद्देश्य भारतीय समाज पर पाश्चात्य शिक्षा और क्रिस्चन मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव को रोकना था। प्रार्थना समाज की स्थापना आत्माराम पांडुरंगने १८६७ में बॉम्बे में की थी। समाज के अन्य प्रमुख सदस्यों में वासुदेव नौरंगे और महादेव गोविंद रानाडे जैसे प्रमुख लोग शामिल थे। प्रार्थना समाज सेवा और प्रार्थना को ईश्वर को पूजा मानता है ।उपनिषद और भगवद गीता समाज की शिक्षा के आधार हैं। प्रार्थना समाज ने बाल विवाह, मूर्ति पूजा, जाति प्रथा जैसी रूढ़ियों के खिलाफ व्यापक कार्य किए। इसके प्रयासों का ही परिणाम था कि १८८२ में आर्य महिला समाज की स्थापना हुई।सन १८७५ में पंढरपुर में बाबजी नौरंगे बालकशाश्रम की स्थापना की गई।१८७८में पहला रात्रि विद्यालय खोला गया।शिक्षा के क्षेत्र में प्रार्थना समाज का योगदान सराहनीय हैं। प्रार्थना समाज के मुख्य नियम और सिद्धांत निम्नलिखित हैं : ईश्वर ही इस ब्रह्मांड का रचयिता है। ईश्वर की आराधना से ही इस संसार और दूसरे संसार में सुख प्राप्त हो सकता है। ईश्वर के प्रति प्रेम और श्रद्धा, उसमें अनन्य आस्था-प्रेम, श्रद्धा, और आस्था की भावनाओं सहित आध्यात्मिक रूप से उसकी प्रार्थना और उसका कीर्तन, ईश्वर को अच्छे लगने वाले कार्यों को करना-- यह ही ईश्वर की सच्ची आराधना है। मूर्तियों अथवा अन्य मानव सृजित वस्तुओं की पूजा करना, ईश्वर की आराधना का सच्चा मार्ग नहीं है। ईश्वर अवतार नहीं लेता और कोई भी एक पुस्तक ऐसी नहीं है, जिसे स्वयं ईश्वर ने रचा अथवा प्रकाशित किया हो, अथवा जो पूर्णतः दोष-रहित हो। पारसी समाज सुधारकहेहरामजमलबाबारी ने सेवा सदन की स्थापना अपने साथी दयाराम गिदुमल के साथ १९०८ में की।इन्होंने बाल विवाह के खिलाफ और विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में पुरजोर आवाज उठाई। इन्ही के प्रयासों का नतीजा था कि सहमति की उम्र कानून बना जिसने महिलाओं के लिए सहमति देने को अनिवार्य कर दिया। सेवा सदन ने शोषित और समाज से तिरस्कृत महिलाओं के देख देख में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत धर्म महामंडल रूढ़िवादी शिक्षित हिंदुओं का अखिल भारतीय स्तर पर यह संगठन रूढ़िवादी हिंदुत्व की रक्षा के लिए प्रयासरत था जिसका उद्देश्य आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन और थियोसोफिकल सोसायटी जैसे संगठनों के प्रभावों को रोकना था। भारत धर्म महामंडल की उत्पत्ति १९०२ में तब हुई जब सनातन धर्म सभा, धर्म महा परिषद और धर्म महामंडली जैसी संस्थाओं ने साथ आना तय किया। इसके प्रमुख कार्यों में हिंदू शैक्षणिक संस्थानों का संचालन शामिल था।पंडित मदन मोहन मालवीय इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे थे। श्री नारायण धर्म परिपालन आंदोलन शोषित और शोषक वर्ग के टकराव से उत्पन्न एक क्षेत्रीय आंदोलन का उदाहरण है यह आंदोलन।इसकी शुरुआत श्री नारायण गुरु द्वारा केरल के एझावा समुदाय के लोगों के बीच किया गया जो कि अछूत माने जाते थे और मंदिरों में प्रवेश से वंचित रखे जाते थे। श्री नारायण गुरु ने यह साबित किया की ईश्वर की आराधना उच्च वर्ण के लोगों का एकाधिकार नहीं था। युवा बंगाल आंदोलन १८२० - ३० के दशकों में बंगाल के युवाओं में एक उग्र, बुद्धिवजीवी धारा का विकास हुआ जिसे युवा बंगाल आंदोलन के नाम से जाना गया । इसकी शुरुआत कलकत्ता के हिंदू कॉलेज में पढ़ाने वाले आंग्ल भारतीय हेनरी विवियन डीरोजियो ने की थी। इसका उद्देश्य लोगों को मुक्त और विवेकपूर्ण रूप से सोचना, सत्ता से सवाल करना, स्वतंत्रता, समानता और आजादी से प्रेम करना और रूढ़ियों का विरोध करना सीखाना था। डीरोजिओ को बंगाल में आधुनिक सभ्यता के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है। स्वाभिमान आंदोलन की शुरूआत १९२० के मध्य में श्री रामास्वामी नायकर द्वारा की गई। आंदोलन का लक्ष्य ब्रह्मण धर्म और संस्कृति को नकारना था क्योंकि ब्रह्मण धर्म को वह निम्न वर्णों के शोषण का औजार मानते थे। ब्राह्मणों की प्रभुसत्ता को चुनौती देने के लिए उन्होंने बगैर ब्राह्मण के शादी करने को बढ़ावा दिया। स्वाभिमान आंदोलन का उख्य उद्देश्य ही जातिगत भेदभाव को दूर करना था। मंदिर प्रवेश आंदोलन/ वायकॉम सत्याग्रह मंदिर प्रवेश की दिशा में पहले ही नारायण गुरु और कुमारन असन जैसे लोगों ने महत्वपूर्ण काम किया था। आगे चलकर टी.के. माधवन ने ट्रावनकोर प्रशासन के समक्ष ये मुद्दा उठाया। इसी बीच ट्रावनकोर के हिस्से वायकॉम में इस मुद्दे ने जोर पकड़ लिया। १९२४ में के. पी. केशव के नेतृत्व में शुरू किए वायकॉम सत्याग्रह में हिंदू मंदिरों और सड़कों को अछूतों के लिए खोलने की मांग की गई। त्रावणकोर के राजा के राज्य में अछूतों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता था। इसके खिलाफ यह आंदोलन शुरु हुआ। १९३१ में पुनः केरल में मंदिर प्रवेश आंदोलन शुरू किया गया। के. केलाप्पन की प्रेरणा से सुब्रमण्यम तिरुमंबू ने १६ सत्याग्रहियों के दल का नेतृत्व किया। अंततः १२ नवंबर १९३६ को ट्रावनकोर के महाराज ने एक घोषनापत्र जारी किया जिसके तहत सारे सरकार नियंत्रित मंदिर सारे हिन्दू के लिए खोल दिए गए। पश्चिमी प्रभावों के प्रतिक्रियास्वरूप मुस्लिम समाज का यह आंदोलन अरब के अब्दुल वहाब की शिक्षाओं से प्रेरित था। इसने इस्लाम के सच्चे मूल्यों की तरफ लौटने का आह्वान किया। शाह वलीउल्लाह को शिक्षाओं को आगे चलकर शाह अब्दुल अजीज और सैय्यद अहमद बरेलवी ने लोकप्रिय बनाया और उन्हें एक राजनीतिक आयाम दिया। भारत को दारुल हर्ब ( काफिरों की भूमि) समझा जाता था और इसे दारुल इस्लाम ( इस्लाम को भूमि) के रूप में बदलने की आवश्यकता थी। वहाबी आंदोलन ने १८५७ की क्रांति के दौरान ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को भड़काने में अहम योगदान दिया।धीरे धीरे १८७० के करीब ब्रिटिश शक्तियों ने इस आंदोलन का दमन कर दिया। इस्लामी दीन पर जोर देने वाले इस आंदोलन की शुरूआत हाज़ी शरीयतुल्लाह ने१८१९ में की थी। इसका कार्य क्षेत्र पूर्व बंगाल था।।ढाका बारीसाल आदि इस आंदोलन के मुख्य केंद्र थे। इसका उद्देश्य इस्लाम में घर कर गई गैर इस्लामी प्रवृतियों को दूर करना था। १८४० के दशक में हाजी के पुत्र दादू मियां के नेतृत्व में आंदोलन ने क्रांतिकारी रुख अख्तियार कर लिया । फराइजियों ने बहुसंख्यक हिन्दू जमींदारों के शोषण के खिलाफ हथियारबंद विद्रोह किए। सन् १८६२ में दादू मियां की मौत के बाद यह सिर्फ धार्मिक आंदोलन के रूप में बचा रहा। अहमदिया एक इस्लामी पंथ है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई है।इसकी स्थापना मिर्जा गुलाम अहमद ने १८८९ में की थी।उदारवादी मूल्यों पर आधारित इस आंदोलन ने खुद को इस्लामिक पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा। भारतीय मुसलमानों में पश्चिमी उदारवादी शिक्षा का प्रचार प्रसार इसका उद्देश्य था। मानवाधिकार और सहिष्णुता में उनका विश्वास था। इसने राममोहन राय की तरह संपूर्ण मानवता के लिए सार्वत्रिक धर्म के सिद्धांत को स्वीकार किया। अलीगढ़ आंदोलन की शुरूआत एक उदारवादी आधुनिक विचारधारा के रूप में मुस्लिम आंग्ल प्राच्य महाविद्यालय,अलीगढ़ के मुस्लिम बुद्धिजीवियों के बीच हुई। सैयद अहमद खां के विचार में- जब तक विचार की स्वतंत्रता विकसित नहीं होती, सभ्य जीवन संभव नहीं है।'' उनका मानना था कि मुसलमानों का धार्मिक और सामाजिक जीवन पाश्चात्य वैज्ञानिक ज्ञान और संस्कृति को अपनाकर ही सुधारा जा सकता है। इसके लिए उन्होनें पश्चिमी ग्रंथों का उर्दू में अनुवाद करवाया इसका उद्देश्य भारतीय मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा का प्रचार करना, मुस्लिमों में पर्दा प्रथा, बहुपत्निक प्रथा, दासता,तलाक जैसी समाजिक कुरीतियों को दूर करना था।इनकी विचारधारा कुरान के उदारवादी व्याख्या पर आधारित थी और उन्होंने इस्लामी मूल्यों का आधुनिक मूल्यों से समंजन की कोशिश की। अलीगढ़ आंदोलन के प्रणेता सर सैयद अहमद खान थे जिन्होंने सन् १८७५ में मुस्लिम आंग्ल प्राच्य महाविद्यालय ( परवर्ती अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) की स्थापना की। शीघ्र ही अलीगढ़ मुस्लिम समुदाय के सांस्कृतिक और धार्मिक पुनरुत्थान का केंद्र बन गया। हिन्दू धर्मसुधार आन्दोलन भारत का इतिहास
अंकुश अनामी भारतीय फैशन उद्यमी हैं, वह वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम के संस्थापक व सीईओ के पद पर कार्यरत है। वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम विश्व स्त्तर पर फैशन डिजाइनरों का एक संगठन हैं जिसका कार्य डिजाइनरों को एक पटल पर ला कर उनकी मदद करना हैं। वर्ल्ड डिज़ाइनिंग फ़ोरम के संस्थापक और सीईओ के रूप में वह डिज़ाइन उद्योग को बदलने और दुनिया भर में महत्वाकांक्षी डिजाइनरों को प्रेरित करने में लगे हुए हैं। अंकुश अनामी का जन्म उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ था। उनके पिता का नाम अनुराग प्रसाद अनामी व माँ का नाम स्वर्गीय अनीता अनामी हैं। अनामी का विवाह शिल्पी रानी से हुआ व दोनों के २ बच्चे हैं जिनके नाम सुख अनामी और खुश अनामी हैं। अनामी ने अपनी स्कूली शिक्षा लखनऊ और उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एम.बी.ए.) में मास्टर और इंजीनियरिंग (बी.टेक) में स्नातक की डिग्री लेकर पूरी की थी। वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम की स्थापना वर्ष २०१७ में अंकुश अनामी द्वारा की गयी थी। अनामी ने फोरम की स्थापना देश विदेश के डिजाइनरों के हुनर को देखते हुए उन्हें सही मंच देने के उद्देश्य से की थी। अनामी ने फोरम के बैनर से कई ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जिसमे डिजाइनरों को अपनी प्रदर्शनी दिखने का अवसर मिला, यह कार्यक्रम क्षेत्रीय प्रशासन और राज्य स्तरीय सरकार के समर्थन से किये गए थे। अंकुश अनामी ने गोवा में आयोजित हुए विश्व के फैशन डिजाइनर कॉन्क्लेव का आयोजन फोरम के बैनर द्वारा किया जिसमे फैशन डिजाइनिंग के भविष्य को आकार देने के लिए देश के २०० फैशन डिजाइनरों के साथ-साथ ३० से अधिक प्रकार के हस्तनिर्मित कपड़े और १०० से अधिक बुनकरों को आमंत्रित किया था। फरवरी २०२३ में अंकुश अनामी ने वर्ल्ड डिजाइनिंग फोरम के बैनर से आगरा के विश्व प्रसिद्द ताज महोत्सव में भी अपनी भागीदारी दर्ज़ कराई और फोरम द्वारा डिजाइन किये गए परिधानों को पहनकर मॉडल्स ने रैंप पर प्रदर्शन किया था। आगरा में ही फोरम द्वारा आगरा युथ फेस्टिवल का आयोजन भी अनामी के सरंक्षण में हुआ जिसमे मिस यूनिवर्स नेहल चुडासमा ने शिरकत की थी। इंटरनेट मूवी डेटाबेस पर अंकुश अनामी इंस्टाग्राम पर अंकुश अनामी भारत के लोग
खार, असमिया व्यंजनों का एक सदियों पुराना घटक है, जो संस्कृति के भीतर एक उल्लेखनीय इतिहास और विविध भूमिका रखता है। गहरे भूरे रंग और विशिष्ट कसैले गंध वाला यह तरल, पूर्वोत्तर भारत के व्यंजनों में एक सर्वोत्कृष्ट तत्व है। यह न केवल क्षेत्र के अनूठे स्वादों में योगदान देता है, बल्कि रीति-रिवाजों, रीति-रिवाजों और पारंपरिक प्रथाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नमक का विकल्प : ऐसे युग में जब असम के भौगोलिक अलगाव के कारण नमक दुर्लभ था, खार एक रचनात्मक विकल्प के रूप में उभरा। केवल सीमित मात्रा में नमक तक पहुंच के कारण, अमीर लोग अक्सर एकमात्र लाभार्थी होते थे। विकल्प के रूप में खार की भूमिका असमिया समाज की संसाधनशीलता और अनुकूलन क्षमता को दर्शाती है। नमक खदानों के आसपास सत्ता संघर्ष की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, इसके आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करते हुए, घटक की कहानी में जटिलता की एक परत जोड़ती है। पाककला विरासत : खार का संदर्भ योगिनी तंत्र जैसे प्राचीन ग्रंथों में पाया जा सकता है, जो इस क्षेत्र की पाककला विरासत में इसकी दीर्घकालिक उपस्थिति को उजागर करता है। आज भी, ग्रामीण बोडो परिवारों में, सब्जियों और मांस को पकाने के लिए सामान्य नमक की तुलना में तरल खार को प्राथमिकता दी जाती है। खार की शक्ति सीधे पकवान के स्वाद से जुड़ी होती है, जो असमिया व्यंजनों के अनूठे स्वाद को आकार देने में इसकी अभिन्न भूमिका को दर्शाती है। तैयारी और उपयोग प्राचीन तकनीक : खार मुख्य रूप से पके भीम कोल केले के छिलके की राख से तैयार किया जाता है। इन छिलकों को धूप में सुखाकर भंडारित किया जाता है, जिससे खार उत्पादन का आधार बनता है। फिर राख को रात भर शुद्ध पानी में भिगोया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कसैले सुगंध वाला गहरा भूरा तरल निकलता है। जंगली केले की प्रजाति, मूसा बाल्बिसियाना का उपयोग, क्षेत्र की स्वदेशी सामग्री और पारंपरिक पाक विधियों को प्रदर्शित करता है। पाककला और औषधीय अनुप्रयोग : खार की बहुमुखी प्रतिभा रसोई से परे तक फैली हुई है। केले के पेड़ की राख से प्राप्त खार का उपयोग अपने जीवाणुरोधी और एंटीसेप्टिक गुणों के कारण खाना पकाने और सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता था। सर्दी और खांसी के दौरान, शरीर की गर्मी को नियंत्रित करने के लिए इसका सेवन किया जाता था और शरीर पर लगाया जाता था। इसके अलावा, पपीते की राख से बने खार का उपयोग कपड़े, बाल और कुछ बर्तनों के लिए डिटर्जेंट के रूप में किया जाता था। खार पाक संबंधी सीमाओं को पार कर जाता है और सांस्कृतिक प्रथाओं के साथ जुड़ जाता है। इसका निर्माण एक सावधानीपूर्वक प्रक्रिया है, जिसकी देखरेख अक्सर अनुभवी कुलपतियों द्वारा की जाती है जो इसे परिश्रम के साथ अपनाते हैं। कार्तिक और अहिन के महीने को खर उत्पादन के लिए सर्वोत्तम समय माना जाता है, जो मौसमी लय और परंपराओं से इसके संबंध को रेखांकित करता है। असमिया क्षारीयता : असमिया व्यंजनों की विशिष्ट क्षारीयता इसे अन्य भारतीय व्यंजनों से अलग करती है। खार की क्षारीय प्रकृति इस भेद के पीछे प्रेरक शक्ति है। यह विशेष गुण न केवल स्वाद में बल्कि असमिया व्यंजनों के पोषण मूल्य में भी योगदान देता है, जो क्षेत्र की पाक पहचान में खार की अभिन्न भूमिका का उदाहरण है।
उमर यामाओका (जन्म: ७ मार्च १८८० -१९५९) जिन्हें मित्सुतारो यामाओका के नाम से भी जाना जाता है, एक जापानी इस्लामी और यहूदी विद्वान थे जिन्हें मक्का के पहले जापानी हज के तीर्थयात्री होने के लिए जाना जाता था। यामाओका का जन्म फुकुयामा, हिरोशिमा प्रान्त, जापान में हुआ था। यामाओका ने टोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज में रूसी का अध्ययन किया। वह रूस-जापान युद्ध|रुसो-जापानी युद्ध में एक सैन्य स्वयंसेवक बन गए और १९०५ में विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की १९०९ में, यामाओका की मुलाकात अब्दुर्रेशिद इब्राहिम से हुई। मुंबई प्रवास के दौरान इब्राहिम ने उन्हें इस्लाम अपनाने की सलाह दी। उन्होंने इस्लाम अपना लिया और उनके साथ मक्का की तीर्थयात्रा पर गए, जिससे वे मक्का जाने वाले पहले जापानी हज तीर्थयात्री बन गए। मक्का के बाद, यामाओका ने माउंट अरारत, मदीना, दमिश्क, जेरूसलम, काहिरा और इस्तांबुल का भी दौरा किया। वह १९१० में रूस के रास्ते जापान लौट आये यामाओका ने १९१२ में "अरेबियन लॉन्गिट्यूडिनल रिकॉर्ड्स" शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसे मीजी सम्राट और महारानी शोकेन से आग्रह किया गया था। उन्होंने इस्लाम के बारे में लेख भी लिखे और कुरआन के कुछ हिस्सों का अनुवाद भी किया। १९२३ में, यामाओका एक साल के लिए काहिरा चले गए, फिर तीन साल के लिए इस्तांबुल चले गए, और १९२७ में जापान लौट आए। २३ सितंबर १९५९ को यामोका की वृद्धावस्था में मृत्यु हो गई। इन्हें भी देखें विश्व में इस्लाम धर्म १९५९ में निधन १८८० में जन्मे लोग इस्लाम में परिवर्तित लोगों की सूची
हिमांशु सिंघल एक भारतीय उद्यमी, टीवी प्रेसेंटर, प्रधान संपादक, लाइव ब्रॉडकास्टर व मार्केटिंग प्रचार प्रसार विशेषज्ञ हैं। उन्हें डिजिटल मार्केटिंग, लीडरशिप, स्ट्रैटेजिक प्लानिंग, कॉर्पोरेट कम्युनिकेशंस, पब्लिक रिलेशंस, क्रिएटिव डायरेक्शन, कंटेंट मार्केटिंग और स्टोरीटेलिंग में दो दशकों से अधिक का अनुभव है। वह इलेक्ट्रिक वाहन, ऑटोमोबाइल, लक्ज़री, लाइव ई-कॉमर्स, डिजिटल तथा वीडियो न्यूज़ मीडिया, टेलीविज़न और शिक्षा के क्षेत्रों में टॉप मैनेजमेंट लीडर के रूप में सफलतापूर्वक काम कर चुके हैं। हिमांशु सिंघल का जन्म नई दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उन्होंने रॉयल एनफील्ड, ओकिनावा, आईशर मोटर्स, सैमसंग, चेल, कोंडे नस्ट अमेरिका में लाभदायक बिज़नेस यूनिट्स का नेतृत्व करके खुद को एक उद्यमी और मार्केटिंग, स्ट्रेटेजी और ब्रांड एक्सपर्ट के रूप में साबित किया है। इसके अलावा हिमांशु सिंघल नेटवर्क १८, सीएनएन, न्यूज़ १८, इंडिया टुडे ग्रुप, ज़ी मीडिया एंड एंटरटेनमेंट और हिंदुस्तान टाइम्स जैसी प्रतिष्ठित मीडिया कम्पनीज़ में टॉप मैनेजमेंट एग्जीक्यूटिव, पत्रकार, प्रधान संपादक, और लाइव टीवी ब्रॉडकास्टर रह चुके हैं। वह बतौर लेखक, संपादक और पत्रकार इंडिया टुडे, बिज़नेस टुडे, मेल टुडे, गोल्फ डाइजेस्ट, और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे प्लेटफार्म पर लिखकर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं। हिमांशु की गिनती भारत के सबसे प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ टीवी प्रस्तुतकर्ताओं में से होती है। टीवी और यूट्यूब जैसे डिजिटल मंचों पर उन्हें खेल, मनोरंजन व व्यापार जगत की खबरों को प्रस्तुत करते हुए देखा जा सकता है। इंस्टाग्राम पर हिमांशु सिंघल ट्विटर पर हिमांशु सिंघल नई दिल्ली के लोग भारत के लोग
महिमावान मडफा क्षेत्र हिन्दू एवं जैन संस्कृति की संगम स्थली है तथा प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण स्थान है जो पर्वत पर स्थित है। चित्रकूट के सन्निकट स्थित मड़फा पुरातनकाल से ही ऋषि-मुनियों का प्रिय तपोवन रहा है। विविध पुराणों के अनुसार यहाँ श्रृष्टि कालीन महर्षि भृगु की पुलोमा नामक पत्नी से उत्पन्न उनके पुत्र च्यवन रहा करते थे। यहीं पर विश्वामित्र का स्वर्ग की अप्सरा मेनका से सम्पर्क स्थापित हुआ था। यहाँ यह ध्यातव्य है कि विश्वामित्रों की एक पूरी वंश परम्परा है, जहाँ सभी को विश्वामित्र कहा जाता है। जिन विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को शिक्षा दी थी, वे उन विश्वामित्र के पूर्ववर्ती हैं, जिन्होंने मेनका से सम्पर्क स्थापित कर शकुन्तला को जन्म दिया था। महर्षि मांडव्य के पूर्व यहाँ कई ऋषियों द्वारा तपस्या किए जाने के उल्लेख मिलते हैं किन्तु इस तपोवन को उल्लेखनीय ख्याति मांडव्य द्वारा यहाँ कठोर ताप किए जाने के बाद मिली है। भौगोलिक संरचना एवं स्थिति शैल मालाओं से आवृत इस स्थान की आकृति मण्डप के सदृश है। कुछ लोग इसके नामकरण का आधार इसी आकृति को मानते हैं जबकि स्थानीय परम्परा तथा अनेक बुद्धिजीवी मंडव्य का अपभ्रंश मानते हैं। यह स्थान झाँसी मानिकपुर रेलमार्ग पर स्थित भरतकूप रेलवे स्टेशन से लगभग १५ क्म तथा इसी रेलमार्ग के बदौसा रेलवे स्टेशन से बघेलाबारी होते हुए लगभग १६ क्म दुरी पर स्थित मानपुर के समीपी धरातल पर विन्ध्य पर्वत माला की एक पहाड़ी पर स्थित है। अक्षांश एवं देशान्तर स्थान की जानकारी मुख्य प्रवेश द्वार मानपुर के नजदीक मडफा दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार है जहाँ से दुर्ग में जाने का मार्ग सुगम है। अन्य मार्गों में कुरहू तथा खमरिया से भी दुर्ग में जाने के मार्ग हैं जो थोडे दुर्गम हैं। यह स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है। दुर्ग पर चढ़नेके लिए लगभग ५२० सीढियां हैं जो कंक्रीट द्वारा निर्मित हैं। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित दुर्ग में प्रवेश हेतु मुख्य द्वार हांथी दरवाजा है जिसमें नक्काशीदार स्तंभों के ऊपर पत्थर की कड़ी रखकर छत बनाई गई है। सुरक्षा के लिए दरवाजे के दोनों ओर तोप रखकर चलने के लिए दो बुर्ज बने हुए हैं जो वर्तमान में वहीँ नीचे गिरे हुए हैं। पंचमुखी शिव मंदिर हांथी दरवाजा के नजदीक मंदिर में नृत्य मुद्रा में गजासुर संहारक शिव की विलक्षण प्रतिमा प्रतिष्ठित है। काली शिला पर रूपायित इस प्रतिमा में भगवन शिव कुठार, घंटा, डमरू, नरमुण्ड, परशु, धनुष, खप्पर, खेटक, बीज, पूरक आदि आयुध धारण किए हुए हैं। किले के अन्दर कुटी नमक स्थान के समीप हिन्दू धर्म से सम्बंधित दो चंदेल कालीन मंदिर प्राप्त हैं। बड़ा मंदिर एक भव्य चबूतरे पर निर्मित है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इस मंदिर में अर्द्धमंड़प, मंडप, गर्भगृह निर्मित हैं जो वर्तमान में ध्वस्तावस्था में देखे जा सकते हैं। इसके लगभग १२ मीटर की दूरी पर लघु मंदिर ध्वस्तावस्था में है। मांडव्य ऋषि आश्रम (कुटी) मांडव्य ऋषि का आश्रम चन्देलकालीन मंदिरों से लगा हुआ है जिसे कुटी के नाम से जाना जाता है जिसमें भैरव-भैरवी की मूर्ति तथा अन्य मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। इनके चार हाँथ हैं । दाहिने एक हाँथ में डमरू और दुसरे में बच्चा तथा बाएँ एक हाँथ में लड्डू तथा दूसरे में कुत्ता पकड़े हैं। बड़ी-बड़ी निकले हुई आंखे, चौड़ी नासिका तथा गले में नरमुण्ड माला धारण किए हुए हैं। आश्रम में जलापूर्ति के लिए स्वर्गारोहण दीघी निर्मित है जो वर्ष भर जल से भरी रहती है, यह कुटी में जलापूर्ति का प्रमुख साधन है। कुटी के समीप ही ढाल पर पापमोचन सरोवर है जो इस दुर्ग की जलापूर्ति में धार्मिक मान्यता के साथ-साथ बड़ा महत्व रखता है। शिव एवं नंदी तथा चरण पादुका पापमोचन सरोवर के समीप ही एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है जिसके नजदीक रखी शिलाओं में चरणों के निशान हैं तथा एक प्राचीन तुलसी चौरा बना हुआ है। उत्तर पूर्व दिशा में आंगे बढ़ने पर शिव एवं नंदी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। कुटी से पूर्व दिशा की ओर खमरिया द्वार की ओर लगभग २०० मीटर की दूरी पर ५ जैन मंदिरों का समूह है जिसमे ३ जैन मदिर ही देखे जा सकते हैं। भग्नावस्था में एक मंदिर पूरी तरह से देखा जा सकता है जिसमें गर्भगृह के सामने १६ नक्काशीदार स्तंभों पर आधारित मंडप दर्शनीय है। इन मंदिरों की शैली मध्य प्रदेश के खजुराहो में निर्मित शैली जैसी है। इस मंदिर के गर्भगृह में महावीर स्वामी की प्रतिमा खण्डित अवस्था में प्रतिष्ठित है। देखे जा सकने वाले २ अन्य जैन मंदिरों में गर्भ गृह उपलब्ध हैं तथा ये ध्वंश होने के कारण भग्नावस्था में पूरी तरह नहीं देखे जा सकते हैं। ५ जैन मंदिरों के गर्भगृह में मुमिनाथ, चंद्रप्रभा, महावीर, अम्बिका तथा लोकपाल की कलात्मक मूर्तियाँ हैं। राम नाम गुफा जैन मंदिरों के आंगे पर्वत की सीमा समाप्त होती है। संकरे रास्ते से नीचे उतरकर गुफा में राम नाम अंकित है जिसे किसी तपस्वी ने बड़ी ही कलात्मक तरीके से लिखा है। पर्वत की वन्य सम्पदा लाल बलुआ पत्थर की प्रचुर उपलब्धता के साथ-साथ पर्वत में वन्य सम्पदा भी आबाद है। वन्य सम्पदा में यहाँ धवा, सेज, तेंदू, खैर, रियां, ढाक तथा अन्य वनस्पतियाँ उपलब्ध है जो कांटेदार है तथा औषधीय गुणों से भरपूर हो सकती हैं। पर्वत का प्राकृतिक सौन्दर्य पर्वत अपनी वन्य सम्पदा के साथ-साथ प्राकृतिक सौन्दर्य से आबाद है पर्वत के पश्चिम में बाणगंगा नदी प्रवाहित होती है तथा नजदीक ही रसिन बांध है एवं धार्मिक एवं दर्शीय पवन तीर्थ चित्रकूट के नजदीक होने के कारण इसकी प्राकृतिक सुन्दरता और बढ़ जाती है। चारों तरफ से पर्वत चोटियों से घिरे होने के कारण यह पर्वत बड़ा ही मनोरम हो जाता है। वर्षा ऋतु में यहाँ पर्वत में मेघों को उतरते हुए स्पष्ट देखा जा सकता है यह दृश्य पर्यटकों के मन को स्वतः ही आकर्षित कर लेता है। अतएव इस दर्शनीय स्थल पर जो हिन्दू एवं जैन धर्म की संगम स्थली है तथा वसुधैव कुटुम्बकम की भारतीय संस्कृति को दिखाने वाली है में पर्यटकों को आना चाहिए जिससे यहाँ पर्यटन का विकास होगा तथा क्षेत्रीय लोगों को रोजगार प्राप्त होगा।
गण्डदेववर्मन चन्देल (इंग:गंडदेवा-वर्मन चंदेल) (शासन काल श. १००३- १०३५ ई.), भारत के चन्देल राजवंश के एक शासक थे जिन्होंने अपनी राजधानी महोबा, जेजाकभुक्ति (वर्तमान उत्तर प्रदेश) से शासन किया था। इन्होंने सुबुक्तगीन को पराजित किया था तथा त्रिपुरी के कलचुरी तथा ग्वालियर के कच्छपघात शासक इनके अधीन थे। यह चक्रवर्तीन विद्याधरदेववर्मन के पिता थे। जानकारी के स्रोत गण्डदेव द्वारा जारी किए गए कोई शिलालेख उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन उनका नाम (गण्ड-देव-वर्मन के रूप में) उनके उत्तराधिकारियों द्वारा जारी किए गए निम्नलिखित शिलालेखों में दिखाई देता है: महोबा शिलालेख परमर्दिदेववर्मन से बना है मऊ मदनवर्मन का शिलालेख अजयगढ़ कीर्तिवर्मन का शिलालेख भोजवर्मन के शासनकाल के दौरान जारी अजयगढ़ शिलालेख इन शिलालेखों में गण्डदेव के बारे में जो जानकारी है। उनमें अधिकतर स्तुति वर्णन होते हैं, जैसे उसे अजेय कहना, या यह कहना कि उसके पास "पृथ्वी पर एकमात्र आधिपत्य" था। गण्डदेव धंगदेववर्मन के बाद चन्देल राजा बना। गण्डदेव के उत्तराधिकारी विद्याधर के बारे में उपलब्ध जानकारी के विश्लेषण से पता चलता है कि गण्डदेव अपने विरासत में मिले क्षेत्र को बनाए रखने में कामयाब रहा। मऊ शिलालेख के अनुसार, धनगा के मुख्यमंत्री प्रभास ने अपने उत्तराधिकारी गण्डदेव के शासनकाल के दौरान पद बरकरार रखा। अजयगढ़ शिलालेखों से पता चलता है कि जाजुका नाम का एक कायस्थ गण्डदेव का एक और महत्वपूर्ण अधिकारी था। हालाँकि, बाद में, विद्याधरदेव वर्मन की रानी सत्यभामा द्वारा जारी एक ताम्रपत्र कुंडेश्वर में खोजा गया था। यह शिलालेख १००४ ई.पू. का है, जिससे सिद्ध होता है कि विद्याधरदेव १००४ ई.पू. में पहले से ही शासन कर रहा था। इसके आधार पर, एस. के. सुलेरे ने गण्डदेव के शासन के अंत की तिथि १००२ ई. बताई। पहले के कुछ इतिहासकारों का मानना था कि गण्डदेव ने कम से कम १०१८ ई.पू. तक शासन किया था। दीक्षित ने धंगदेव की पहचान कलंजरा के राजा से की, जिसने १००८ ईस्वी में पेशावर में महमूद गजनी द्वारा पराजित हिंदू संघ में सैन्य दल का योगदान दिया था। १०१८ ई. में, गजनी के महमूद ने कन्नौज पर आक्रमण किया, जिसका राजा (संभवतः राजयपाल) शहर से भाग गया, जिससे गजनवी सेना को अधिक प्रतिरोध का सामना किए बिना इसे लूटने की अनुमति मिल गई। फ़रिश्ता (१६वीं शताब्दी) जैसे बाद के मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार, खजुराहो के राजा नंददेव वर्मन ने कन्नौज के राजा को उसकी कायरता की सजा के रूप में मार डाला। कुछ ब्रिटिश-युग विद्वानों ने नंद को गण्ड की गलत वर्तनी के रूप में पहचाना। अली इब्न अल-अथिर (१२वीं शताब्दी), फ़रिश्ता से पहले के एक मुस्लिम इतिहासकार, ने खजुराहो के राजा का नाम "बिदा" रखा, जो "विद्या" का एक प्रकार है (अर्थात, गण्डदेववर्मन के उत्तराधिकारी विद्याधरदेववर्मन)। बाद के मुस्लिम इतिहासकारों ने इसे "नंदा" के रूप में गलत पढ़ा होगा। इसके अलावा, महोबा में मिले एक शिलालेख में कहा गया है कि विद्याधर ने कन्नौज के शासक को हराया था। इसके आधार पर, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि गण्डदेव का शासन १०१८ ई.पू. से कुछ समय पहले समाप्त हो गया, जब उसके उत्तराधिकारी ने कन्नौज के शासक को हराया।
ब्रांडिंग पायनियर्स एक भारतीय डिजिटल मार्केटिंग कंपनी है जिसका मुख्यालय हरियाणा के गुरुग्राम ज़िले में है। यह कंपनी ज्यादातर हेल्थकेयर पर काम करती है, कंपनी के संस्थापक निशु शर्मा और आरुष थापर हैं। ब्रांडिंग पायनियर्स भारतीय हेल्थकेयर डिजिटल मार्केटिंग कंपनी हैं इसकी स्थापना साल २०१६ में कंपनी के संस्थापक निशु शर्मा और आरुष थापर ने की थी। कंपनी हैल्थकेयर डिजिटल मार्केटिंग से जुडी हुयी है ब्रांडिंग पायनियर्स ने विश्व डॉक्टर दिवस पर "जब कोई नहीं था तब मेरे लिए कौन था" शीर्षक से एक गीत भी लॉन्च किया जो की विश्व भर के चिकित्सकों को समर्पित था। इंस्टाग्राम पर ब्रांडिंग पायनियर्स यूट्यूब पर ब्रांडिंग पायनियर्स
स्कूल फ्रेंड्स, रस्क स्टूडियो द्वारा निर्मित एक हिंदी भाषा की रोमांस कॉमेडी टेलीविजन श्रृंखला है। श्रृंखला में नविका कोटिया , आदित्य गुप्ता, मानव सोनेजी , अलीशा परवीन और अंश पांडे शामिल हैं। इसका प्रीमियर २३ अगस्त 20२३ को अमेज़ॅन मिनीटीवी पर हुआ । नविका कोटिया - स्तुति के रूप में आदित्य गुप्ता - अनिर्बान के रूप में मानव सोनेजी - रमन के रूप में अलीशा परवीन - डिंपल के रूप में अंश पांडे - मुकुंद के रूप में इस श्रृंखला को रस्क स्टूडियो के द्वारा अमेजॉन मिनी टीवी पर रिलीज किया गया था। नविका कोटिया, आदित्य गुप्ता, मानव सोनेजी, अलीशा परवीन और अंश पांडे ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई है। स्कूल फ्रेंड्स अमेजॉन मिनी टीवी पर
महागढ़ नीमच जिले के मनासा तहसील का एक गाँव है। महागढ रामपुरा के भील शासको द्वारा शासित था।
निम्नलिखित राष्ट्र नागरिकों को छद्मवेशी कपड़े पहनने या रखने पर प्रतिबंध लगाते हैं: अण्टीगुआ और बारबूडा फिलीपींस (केवल वर्दी) सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस त्रिनिदाद और टोबैगो देशों की सूचियाँ
एटम टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड एक भुगतान सेवा प्रदाता कंपनी है जिसका मुख्यालय मुंबई, भारत में है। एटम की शुरुआत २००६ में जिग्नेश शाह द्वारा स्थापित फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज़ ग्रुप की सहायक कंपनी के रूप में की गई थी। कंपनी ने ऐतिहासिक रूप से मोबाइल प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से भुगतान और बैंकिंग सेवाओं के वितरण पर ध्यान केंद्रित किया है। एटम टेक्नोलॉजीज़ ने मोबाइल भुगतान, इंटरैक्टिव वॉयस रिस्पांस आधारित भुगतान और मोबाइल-आधारित सेवा वितरण ढांचे के लिए उत्पाद और सेवाएं प्रदान की हैं। २७ नवंबर २०१८ को टोक्यो में मुख्यालय वाले अग्रणी आईटी सेवा प्रदाता एनटीटी डेटा ने घोषणा की कि उसने एटम टेक्नोलॉजीज़ में बहुमत हिस्सेदारी हासिल करने के लिए एक समझौता किया है। एटम टेक्नोलॉजीज़ के उत्पादों में शामिल हैं: ऑनलाइन बैंकिंग और इंटरनेट भुगतान गेटवे (आईपीजी): एक इंटरनेट भुगतान मंच इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस: संगठनों को फोन कॉल पर क्रेडिट और डेबिट कार्ड के माध्यम से भुगतान स्वीकार करने में मदद करता है मोबाइल कंप्यूटिंग ऐप जो भुगतान सेवाओं को सक्षम बनाता है। एटम मोबाइल ऐप डेबिट और क्रेडिट कार्ड, आईएमपीएस, कैश कार्ड और नेट बैंकिंग के माध्यम से भुगतान की अनुमति देता है भुगतान सेवाएं प्रदान करने के लिए बिक्री केंद्र, एटम इंटरनेट, इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस और मोबाइल पर अपनी सेवाओं के अलावा, ईंट और मोर्टार व्यापारी, अधिग्रहण और लेनदेन प्रसंस्करण सेवाएं प्रदान करता है।[ उद्धरण वांछित ] कंपनी के भुगतान प्लेटफ़ॉर्म को भुगतान कार्ड उद्योग डेटा सुरक्षा मानक और भुगतान एप्लिकेशन डेटा सुरक्षा मानक प्रमाणपत्रों के लिए मान्यता दी गई है जो बैंकिंग उद्योग द्वारा स्वीकार किए जाते हैं और इसलिए इसके मोबाइल भुगतान लेनदेन और कार्ड धारक डेटा के प्रसारण की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। एटम का भुगतान प्लेटफ़ॉर्म सुरक्षित वीपीएन कनेक्टिविटी का उपयोग करके लेनदेन को रूट करने के लिए उन्नत एन्क्रिप्शन मानक १२८ बिट सिफर ब्लॉक चेनिंग का उपयोग करता है। एटम किसी भी क्रेडिट कार्ड के विवरण को संग्रहीत नहीं करता है, लेकिन रूटिंग लेनदेन के लिए बैंक के भुगतान गेटवे के पास-थ्रू के रूप में कार्य करता है। एटम ने वीज़ा इंक, मास्टरकार्ड और अमेरिकन एक्सप्रेस जैसी क्रेडिट कार्ड कंपनियों के अलावा प्रमुख बैंकों के साथ गठजोड़ किया है। इन बैंकों और कंपनियों के क्रेडिट कार्ड का उपयोग एटम प्लेटफॉर्म पर लेनदेन के लिए किया जा सकता है। इन भुगतान सेवाओं को प्रदान करने के लिए १,५०० से अधिक व्यापारियों ने एटम के साथ समझौता किया है। भारत में मोबाईल बैंकिंग
कुंदा नदी मध्य प्रदेश के खरगौन जिले के दक्षिण मे स्थित अम्बा नाम के गाँव से निकलती हैं। और खरगौन के उत्तर मे सिपटान नामके स्थान मे वेदा नदी से मिल जाती हैं। कुंदा नदी खरगौन के लिए एक महत्वपूर्ण नदी हैं क्योंकि इस नदी के पानी का इस्तेमाल पीने के लिए किया जाता हैं। रतलाम शहर मे कुंदा नदी का पानी ही सप्लाई किया जाता हैं। कुंदा नदी में दो डैम का निर्माण किया गया हैं, इन डैम का नाम देजला देवड़ा डैम और वनिहार डैम है। कुंदा नदी दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहित होती हैं।
माथाडीह गिरिडीह जिला का एक फ़ेमम मुस्लिम मोहल्ला है। यह गिरिडीह स्टेडियम से १ की. मी. पास है। माथाडीह का पोस्ट ऑफिस चैताडीह और थाना पचंबा है। अब माथाडीह गिरिडीह नगर परिषद का २० न. वार्ड है। माथाडीह फ़ेमस होने का वजह यह है कि यह एक मुस्लिम गांव है और इस गांव का अंजुमन बहुत मजबूत है जिसका नाम "अंजुमन बर्कातुल इस्लाम माथाडीह" है ।इस अंजुमन का मजबूती का कारन यह है कि लोन्ग टाइम इमाम क रहना, जो "बारिक हाफ़िज़" कई सालो तक रहे थे। इस अंजुमन मे लोन्ग टाईम रहने वाला सदर "जमायत अंसारी" है। जिसका चयन अंजुमन के "मस्जिद" के दुर दुर रहने वाले सदस्य जैसे इस्लाम अंसारी, नईम अख्तर नय्म अख्तर, जहूर अंसारी, समीम अंसारी (बंगला के पास से) आऐ थे। दूसरा कारन यह है कि मूहर्म मे हुए अखाड़े कमपटीस्न सबसे ज्यादा जीते जाने वाला पुरुस्कार । तीसरा कारन यह है कि अंजुमन के सदस्यों हर साल जल्सा करते हैं । झारखंड बनने से पहले गिरिडीह का सबसे बड़ा होने वाला जल्सा "अंजुमन बर्कातुल इस्लाम माथाडीह" ने "सी सी एल फ़ूटबोल गराउ़ड" नईम अख्तर नय्म अख्तर के घर के पास कराया था । जल्से मे दूर दूर से लोग आया था ओर इस अंजुमन को जाना था । चौथा कारन यह है कि खेल कूद मे माथाडीह बहुत प्रसिद्ध रहे हैं। जो क्रिकेट से ज्यादा फुटबॉल में प्रसिद्ध रहे थे, वर्तमान मे क्रिकेट में प्रसिद्ध है। टीम का नाम "ओन मून तेन स्टार" है , जिसका मतलब है "एक चाँद दस सितारे" ।
रेनू कादियान भारतीय समाज सेविका हैं वह भगत फाउंडेशन की अध्यक्ष और सात्विक काउंसिल ऑफ इंडिया की ट्रस्टी हैं। भगत फाउंडेशन की स्थापना वर्ष २००७ में की गयी थी तभी से भगत सिंह फाउंडेशन साइबर अपराध, मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करने, युवाओं को खेल और शारीरिक गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करने और बढ़ावा देने और पर्यावरण को स्वच्छ और हरा-भरा रखने पर केंद्रित है। रेनू कादियान को भगत फाउंडेशन की अध्यक्षा अगस्त २०२१ में बनाया गया था। रेनू कादियान एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उनका जन्म ८ अगस्त १९९२ को हरियाणा के पानीपत जिले में हुआ और इन्होने अपनी पढाई दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की थी। वर्तमान में वह भगत फाउंडेशन की अध्यक्ष के रूप में काम कर रही हैं और वह सात्विक काउंसिल ऑफ इंडिया के ट्रस्टी के रूप में भी काम कर रही हैं। वर्तमान समय में हरियाणा राज्य में नशे के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए रेनू कादियान द्वारा नशा मुक्त हरियाणा नाम से एक अभियान भी शुरू किया गया है। इंस्टाग्राम पर रेनू कादियान १९९२ में जन्मे लोग हरियाणा के लोग भारत में स्त्री-शिक्षा
तेलुगु देशम पार्टी के राजनीतिज्ञ २०१९ में निधन १९४७ में जन्मे लोग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कुलगीत (बीएचयू कुलगीत) यानी मधुर मनोहर अतिव सुन्दर भारतीय रसायनज्ञ और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शांति स्वरूप भटनागर द्वारा लिखी गई एक कविता है। इसे पंडित ओंकार नाथ ठाकुर ने संगीतबद्ध किया है। यह कविता मूल रूप से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आधिकारिक विश्वविद्यालय गान के रूप में अपनाए जाने पर लोकप्रिय हुई। इसे आधिकारिक तौर पर कुलगीत के नाम से जाना जाता है। विश्वविद्यालय में यह प्रथा है कि विश्वविद्यालय के किसी भी आधिकारिक कार्यक्रम या उत्सव के शुरू होने से पहले इस गान को सहगान में गाया जाता है। कविता का अंतिम छंद विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवीय जी को समर्पित है। हिंदी में विश्वविद्यालय की टैगलाइन सर्वविद्या की राजधानी , सीधे कविता की अंतिम पंक्ति से उठाया गया है, जबकि अंग्रेजी टैगलाइन कैपिटल ऑफ नॉलेज उसी का अनुवाद है। कुलगीत ने पूरे इतिहास में अक्सर प्रशंसा अर्जित की है। कुलगीत को कला और मीडिया में भी प्रस्तुत किया गया है। कुलगीत विश्वविद्यालय में सहगान में गाया जाता है। सम्मान स्वरूप कुलगीत के बाद ताली बजाना वर्जित है। ओंकारनाथ ठाकुर की रचना आधिकारिक धुन है। कोई आधिकारिक लंबाई निर्धारित नहीं है, लेकिन आधिकारिक रचना में आमतौर पर लगभग चार मिनट और तीस सेकंड लगते हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय शांति स्वरूप भटनागर बी एच यू कुलगीत (यूट्यूब पर)
जाग्रति सिंह परिहार भारतीय अभिनेत्री व फिजियोथेरेपिस्ट हैं भाभीजी घर पर है में अभिनेत्री जागृति सिंह परिहार ने १२ किरदार निभाए हैं। करियर कॉलेज भोपाल में पेरा मेडिकल की छात्रा रहीं जाग्रति ने अपनी स्कूल की पढाई एम एल बी गर्ल्स स्कूल दमोह से पूरी की और बाद में वो फिजियोथेरपिस्ट की पढाई करने के लिए भोपाल जाकर बस गयीं। जाग्रति सिंह परिहार भारतीय अभिनेत्री हैं इनका जन्म दमोह में हुआ है। जाग्रति मिस भोपाल रहीं और मुंबई में रहते हुए उन्होंने नानावती अस्पताल में एक फिजियोथेरेपिस्ट के रूप में काम किया था। जाग्रति ने भाभी जी घर पर हैं में छेदी सिंह की पत्नी गुलबिया का किरदार निभाया और बाद में उन्होंने चिड़ियाघर, हप्पू की उलटन पलटन, जीजा जी छत पर हैं समेत कई सीरियल्स में काम किया। उनके दो गाने "हार ले" और "देसी" रिलीज के साथ ही लोकप्रिय रहे हैं। इंस्टाग्राम पर जाग्रति सिंह परिहार १९९१ में जन्मे लोग
बोधन दौआ उफ ठाकुर पर्जन सिंह यादव शाहगढ रियासत के राजा बखतवली शाह के सेनापति थे। जिन्होनें १८५७ की क्रांति मे अपनी अलग छाप छोड़ गए। उन्हें सागर का तत्या तोपे के नाम से भी जाना जाता है वह इतने शक्तिशाली थे की वह जहा भी युद्ध करने के लिये जाते थे वह विजय प्राप्त करते थे । बोधन दौआ मध्यप्रदेश के सागर जिले की शाहगढ़ रियासत के क्रांतिकारी नायक राजा बखतबली के मुख्य सलाहकार व सेनापति थे। उन्होंने १८५७ को क्रांति में गढ़ाकोटा विजय हेतु विशाल सेना का नेतृत्व किया। जब ५०वीं सेना के सिपाहियों ने शस्त्र उठाये तो उन्होंने क्रांतिकारियों का साथ दिया। वे अंग्रेजों के दमन के आगे कभी नहीं झुके और देश के लिए अनवरत लड़ते रहे। शाहगढ़ के राजा बखतवली अंग्रेजों से अपना खोया क्षेत्र गढ़ाकोटा वापस लेना चाहते थे। इस कार्य में सहयोग के लिये बखतबली ने बोधन दौआ के नेतृत्व में विशाल सेना भेजी। अपने आठ हजार साथियों के साथ १४ जुलाई १८५७ को बोधन दौआ ने गढ़ाकोटा पर हमला किया। पहले प्रयास में सफलता नहीं मिली। लेकिन पुनः राजा बखतबली की सेना ने धावा बोला और अपनी धरती पर अधिकार कर लिया। गढ़ाकोटा के किले एवं थाने में अंग्रेजों द्वारा पदस्थ सरकारी कर्मचारी भाग खड़े हुए। अब बोधन दौआ का अगला अभियान रेहली विजित करना था। दो हजार सैनिक पाँच सौ अन्य योद्धा तथा तीन तोपें लेकर उन्होंने रेहली पर कूच किया। बोधन दौआ के सामने रेहली की रक्षा के लिए तैनात लेफ्टिनेंट लासन टिक न सका, वह सागर भाग खड़ा हुआ। रेहली की जीत पर राजा बखतबली अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने बोधन दौआ को रेहली किले का किलेदार नियुक्त किया। बोधन दौआ आगे बढ़ा और उसने देवरी पर भी अपना अधिकार कर लिया। लेकिन अंग्रेज चैन से नहीं बैठे उन्होंने ११ अक्टूबर को रेहली पर अधिकार कर लिया। संकट के समय में लटकन तथा गनेश नामक राष्ट्रभक्तों ने बोधन दौआ को सहयोग दिया। बोधन के साथ रहने के अपराध में उन दोनों को ६ अप्रैल १८५८ को गिरफ्तार कर लिया और तीन साल के कारावास की सजा सुनाई गयी। यातनाओं के बाद भी उन्होंने जुबान नहीं खोली। इन्हीं की तरह एक अन्य साथी बदन राय ने अचलपुर में क्रांति की कमान संभाली थी। उसे भी ५ अप्रैल १८५८ को फांसी दे दी गयी। अंग्रेजों ने क्रांति को कुचलने के लिये दमन चक्र चलाया, शाहगढ़ के राजा बखतबली के गिरफ्तार हो जाने के बावजूद बोधन दौआ ने आत्मसमर्पण को नकार दिया। अंग्रेज तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें पकड़ नहीं सके। अंततः बोधन दौआ को पकड़ने के लिए एक हजार रुपये के इनाम की घोषणा की गई लेकिन किसी ने सुराग नहीं लगने दिया। बोधन दौआ अज्ञातवास में चले गए और क्रांति में अपनी भूमिका निभाते रहे। बोधन भाई फिरत हैं दौआ । मारत खात फिरत अंगरेजन, काटत ककरी जौआ।। भागे फिरत अंगरेजा बेकल, दौआ हो गए हौआ। गढ़ा से रहली तक मारे फौज़ फिरंगी कौआ ।। ऐसे ढेरों लोकगीत आज भी बुंदेलखंड में जोगी भाट गुनगुनाए हैं यहां के जांबाज़ शूरमा बोदन सिंह दौआ के सम्मान में।
नरेंद्र कुमार, जिन्हें मुख्य रूप से नरेंद्र श्रीवास्तव के नाम से जाना जाता है, ये एक भारतीय फिल्म निर्देशक हैं। इन्हें स्कूल फ्रेंड्स (२०२२) और कैंपस डायरीज (२०२३) के लिए जाना जाता है।
नविका कोटिया एक भारतीय अभिनेत्री हैं जो हिंदी फिल्मों और टेलीविजन में दिखाई देती हैं। नविका स्टार प्लस के ये रिश्ता क्या कहलाता है में "चिक्की" सिंघानिया और माया खेरा की दोहरी भूमिकाएँ निभाने के लिए लोकप्रिय हैं। इन्होंने बॉलीवुड की फिल्म इंग्लिश विंग्लिश में भी अपने भाई शिवांश कोटिया के साथ श्रीदेवी की बेटी की भूमिका निभाई थी। नविका कोटिया, बॉलीवुड हंगामा पर नविका कोटिया, इमड्ब पर
आदित्य गुप्ता एक भारतीय अभिनेता हैं, जो मुख्य रूप से टेलीविजन सीरीज क्रिमिनल जस्टिस: अधूरा सच व स्कूल फ्रेंड्स (टीवी श्रृंखला) में किए गए काम के लिए जाने जाते हैं। क्रिमिनल जस्टिस: अधूरा सच, इमड्ब पर स्कूल फ्रेंड्स, इमड्ब पर
फाइव नाइट्स एट फ्रेडीज़ () एक २०२३ अमेरिकी अलौकिक डरावनी फिल्म है। जोश हचरसन - माइक श्मिट पाइपर रुबियो - एबी, माइक की छोटी बहन एलिज़ाबेथ लैल - वैनेसा मैथ्यू लिलार्ड - स्टीव रैगलन / विलियम एफ़टन मैरी स्टुअर्ट मास्टर्सन - आंटी जेन कैट कॉनर स्टर्लिंग - मैक्स डेविड लिंड - जेफ क्रिश्चियन स्टोक्स - हांक जोसेफ पोलिकिन - कार्ल लुकास ग्रांट - गैरेट, माइक का छोटा भाई थियोडस क्रेन - जेरेमिया, माइक के सह-कामगार केविन फोस्टर - फ्रेडी फ़ैज़बियर जेड किंडर-मार्टिन - बोनी जेसिका वीस - चिका रोजर जोसेफ मैनिंग जूनियर - फॉक्सी (अमान्य) इन्हें भी देखें एल चावो एनिमाडो २०२३ की फ़िल्में
सेल्यूकस-मौर्य युद्ध ३०५ और ३०३ ईसा पूर्व के बीच लड़ा गया था। इसकी शुरुआत तब हुई जब सेल्यूसिड साम्राज्य के सेल्यूकस निकेटर प्रथम ने मैसेडोनियन साम्राज्य के भारतीय क्षत्रप राज्यों को वापस लेने की कोशिश की, जिस युद्ध में मौर्य साम्राज्य के सम्राट सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य विजयी हुए। युद्ध एक समझौते के साथ समाप्त हुआ जिसके परिणामस्वरूप सिंधु घाटी क्षेत्र और गेडरोशिया, आर्कोसिया , आरिया (हेरात) और हिंदूकुश मौर्य साम्राज्य में मिला लिया गया, साथ ही चंद्रगुप्त ने उन क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल कर लिया जो उसने चाहा था, और दोनों शक्तियों के बीच एक विवाह गठबंधन हुआ। युद्ध के बाद, मौर्य साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख शक्ति के रूप में उभरा, और सेल्यूसिड साम्राज्य ने अपना ध्यान पश्चिम में अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराने की ओर लगाया। लगभग ३२१ ईसा पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य ने खुद को मगध के शासक के रूप में स्थापित किया। उन्होंने गंगा के मैदान के समय के शासक नंद वंश पर विजय प्राप्त करने का निर्णय लिया। उन्होंने सफल गुरिल्ला युद्ध अभियानों के साथ ग्यारह वर्षों तक साम्राज्य से लड़ाई लड़ी और पाटलिपुत्र की नंदा राजधानी पर कब्जा कर लिया। इससे साम्राज्य का पतन हुआ और अंततः चंद्रगुप्त मौर्य के अधीन मौर्य साम्राज्य का निर्माण हुआ। जो अब आधुनिक अफगानिस्तान है, उसमें फारसी प्रांत, गांधार के समृद्ध साम्राज्य और सिंधु घाटी के राज्यों के साथ, सभी ने सिकंदर महान के सामने समर्पण कर दिया था और उसके साम्राज्य का हिस्सा बन गए थे। जब सिकंदर की मृत्यु हो गई, तो डियाडोची के युद्ध ("उत्तराधिकारियों") ने उसके साम्राज्य को विभाजित कर दिया; चूँकि उसके सेनापति सिकंदर के साम्राज्य पर नियंत्रण के लिए लड़े थे। पूर्वी क्षेत्रों में इन जनरलों में से एक, सेल्यूकस निकेटर, नियंत्रण ले रहा था और वह सिकंदर का साम्राज्य फिर से स्थापित करना चाहता था जिसे सेल्यूसिड साम्राज्य के रूप में जाना जाने लगा। रोमन इतिहासकार अप्पियन के अनुसार : सिकंदर ने सिंधु घाटी सहित अपने क्षेत्रों के नियंत्रण के लिए क्षत्रपों को नियुक्त किया था। चंद्रगुप्त मौर्य ने निकानोर, फिलिप, यूडेमस और पेइथन द्वारा शासित क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। इसने सिंधु के किनारों तक मौर्य नियंत्रण स्थापित कर दिया। चंद्रगुप्त की जीतों ने सेल्यूकस को आश्वस्त किया कि उसे अपने पूर्वी हिस्से को सुरक्षित करने की आवश्यकता है ना की पश्चिम दिशा में जहां का सम्राट चंद्रगुप्त विशाल सेना के साथ अत्यधिक शक्तिशाली है । मैसेडोनियन क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने की कोशिश में, सेल्यूकस सिंधु घाटी पर उभरते और विस्तारित मौर्य साम्राज्य के साथ संघर्ष में आ गया और बुरी तरह पराजित होने पर संधि कर ली । संघर्ष का विवरण के विषय में ग्रीक इतिहासकार अप्पियन के अनुसार : ग्रिंगर के अनुसार, संघर्ष का विवरण संछिप्त है, लेकिन परिणाम स्पष्ट रूप से "एक निर्णायक भारतीय जीत" थी, जिसमें चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस की सेना को हिंदू कुश के पार वापस खदेड़ दिया और परिणामस्वरूप आधुनिक अफगानिस्तान और पश्चिमी ईरान में बड़े क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। व्हीटली और हेकेल का सुझाव है कि युद्ध के बाद स्थापित मैत्रीपूर्ण मौर्य-सेल्यूसिड संबंधों का तात्पर्य है कि शत्रुता संभवतः "न तो लंबी और न ही गंभीर" थी। सेल्यूकस निकेटर ने हिंदू कुश, पंजाब पश्चिमी ईरान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों को चंद्रगुप्त मौर्य को सौंप दिया। उनकी व्यवस्था के परिणामस्वरूप, सेल्यूकस को चंद्रगुप्त मौर्य से ५०० युद्ध हाथी प्राप्त हुए, जिसने बाद में पश्चिम में डायडोची के युद्धों को प्रभावित किया। सेल्यूकस और चंद्रगुप्त भी एक विवाह गठबंधन के लिए सहमत हुए और सेल्यूकस की बेटी कार्नेलीया हेलेना (भारतीय पाली स्रोतों में इसका नाम बेरेनिस है) का विवाह चंद्रगुप्त से हुआ। स्ट्रैबो के अनुसार, सौंपे गए क्षेत्र सिंधु की सीमा से लगे थे:जनजातियों की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है: सिंधु के किनारे परोपामिसाडे हैं, जिनके ऊपर परोपामिसस पर्वत है: फिर, दक्षिण की ओर, अरचोटी: फिर उसके बाद, दक्षिण की ओर, गेड्रोसेनी, अन्य जनजातियों के साथ जो इस पर कब्जा करती हैं समुद्री तट; और सिंधु इन सभी स्थानों के साथ-साथ अक्षांशीय रूप से स्थित है; और इनमें से कुछ स्थान, जो सिंधु नदी के किनारे स्थित हैं, उन पर भारतीयों का कब्ज़ा है, हालाँकि वे पहले फारसियों के थे। सिकंदर [मैसेडोन के तृतीय 'महान'] ने इन्हें एरियन से छीन लिया और अपनी खुद की बस्तियां स्थापित कीं, लेकिन सेल्यूकस निकेटर ने उन्हें अंतर्विवाह और बदले में पांच सौ हाथी प्राप्त करने की शर्तों पर सैंड्रोकोटस [चंद्रगुप्त] को दे दिया। स्ट्रैबो १५.२.९ यूनानी और भारतीय साहित्य दोनो में विवाह का वर्णन मिलता है । भारतीय ग्रंथों में पौराणिक साहित्य में इसका एक विवरण इस प्रकार है : शक्यासिहादुद्धसिंहः पितुरर्द्ध कृतं पदम् ॥ चन्द्रगुप्तस्तस्य सुतः पौरसाधिपतेः सुताम्। सुलूवस्य तथोद्वह्य यावनीबौद्धतत्परः।। षष्ठिवर्ष कृतं राज्यं बिन्दुसारस्ततोऽभवत्। पितृस्तुल्यं कृतं राज्यमशोकस्तनयोऽभवत् ।। (भविष्य पुराण - प्रतिसर्ग पर्व १: अध्याय ६, श्लोक ४३,४४) हिन्दी अनुवाद- शाक्य सिंह के वंशज भगवान बुद्ध हुए, जिसने अपने पिता के आधे समय तक राज्य किया। भगवान बुद्ध के वंशज चन्द्रगुप्त हुए, जिसने पोरसाधिपति सेलुकस की पुत्री उस यवनी के साथ पाणिग्रहण करके उसने बौद्ध पत्नी समेत साठ वर्ष तक राज्य किया चन्द्रगुप्त के वंशज बिन्दुसार हुआ अपने पिता के काल तक राज्य किया। बिन्दुसार के वंशज अशोक हुए। सेल्यूकस ने आरिया , आर्कोशिया (कांधार), परोपनिषदी (काबुल), एरिया (हेरात), जेड्रोशिया (बलूचिस्तान और पश्चिमी ईरान) के सबसे पूर्वी प्रांतों को भी आत्मसमर्पण कर दिया। दूसरी ओर, उसे पूर्वी प्रांतों के अन्य क्षत्रपों ने स्वीकार कर लिया। उनकी ईरानी पत्नी अपामा ने उन्हें बैक्ट्रिया और सोग्डियाना में अपना शासन लागू करने में मदद की होगी। इसे पुरातात्विक रूप से मौर्य प्रभाव के ठोस संकेतों के रूप में पुष्ट किया जा सकता है, जैसे कि अशोक के शिलालेखों के शिलालेख, जिन्हें उदाहरण के लिए, आज के दक्षिणी अफगानिस्तान में कंधार में स्थित । हालांकि चंद्रगुप्त ने आरिया के साथ अन्य प्रांत भी जीते थे । प्राचीन ग्रीक इतिहासकार प्लिनी ने चंद्रगुप्त की सीमा को निर्धारित करते हुऐ लिखा:वास्तव में, अधिकांश भूगोलवेत्ता भारत को सिंधु नदी से घिरा हुआ नहीं मानते हैं, बल्कि इसमें चार क्षत्रपों गेडरोशिया, अराकोशिया, आरिया और पारोपामिसाडे, कोपेस नदी को जोड़ते हैं और इस प्रकार भारत की चरम सीमा बनाते हैं। हालाँकि, अन्य लेखकों के अनुसार, ये सभी क्षेत्र आरिया देश के अंतर्गत माने जाते हैं। प्लिनी, प्राकृतिक इतिहास वि, २३ यह व्यवस्था पारस्परिक रूप से लाभप्रद साबित हुई। सेल्यूसिड और मौर्य साम्राज्यों के बीच की सीमा बाद की पीढ़ियों में स्थिर रही, और मैत्रीपूर्ण राजनयिक संबंध राजदूत मेगस्थनीज और चंद्रगुप्त के मध्य स्थापित हो गया। चंद्रगुप्त के युद्ध हाथियों के उपहार ने " वापसी मार्च के बोझ को कम कर दिया होगा" और उसे अपनी बड़ी सेना के आकार और लागत को उचित रूप से कम करने की अनुमति दी, क्योंकि उसकी शक्ति के लिए सभी प्रमुख खतरे अब दूर हो गए थे। मौर्यों से प्राप्त युद्ध हाथियों के साथ, सेल्यूकस इप्सस की लड़ाई में अपने प्रतिद्वंद्वी, एंटीगोनस और उसके सहयोगियों को हराने में सक्षम था। एंटीगोनस के क्षेत्रों को अपने में जोड़कर, सेल्यूकस ने सेल्यूसिड साम्राज्य की स्थापना की, जो ६४ ईसा पूर्व तक भूमध्य और मध्य पूर्व में एक महान शक्ति के रूप में कायम रहेगा। अब अफगानिस्तान और पश्चिमी ईरान के क्षेत्र पर मौर्य नियंत्रण ने उत्तर-पश्चिम से बाहिरी विदेशी आक्रमण को रोकने में मदद की। चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत में अपने शासन का विस्तार दक्षिण की ओर दक्कन तक किया। यह भी देखें झेलम का प्रथम युद्ध प्राचीन भारत के वैदेशिक सम्बन्ध भारत के युद्ध
ताजिकिस्तान के नेता (१९२५-१९९१) ताजिक स्वायत्त सोवियत समाजवादी गणराज्य (१९२५-१९२९) [ संपादित करें ] ताजिक प्रांतीय समिति के कार्यकारी सचिव कम्युनिस्ट पार्टी [ संपादित करें ] चिनोर इमोमोव (१९२४-१९२५) बोरिस टोल्पीगो (१९२५-१९२७) मुमिन खोडज़ायेव (१९२७-१९२८) अली हेदर इबाश शेरवानी ( १९२८-१९२९ ) शिरींशो श्टेमूर (१९२९ - नवंबर १९२९) केंद्रीय कार्यकारी समिति के अध्यक्ष [ संपादित करें ] नुसरतुल्ला मकसुम लुत्फुलेयेव (१९२६-१९३३) ताजिक सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक (१९२९-१९९१) [ संपादित करें ] ताजिक कम्युनिस्ट पार्टी के पहले सचिव [ संपादित करें ] मिर्ज़ा दावूद हुसैनोव (नवंबर १९२९ - ३ नवंबर 19३३) ग्रिगोरी ब्रायो (३ नवंबर 19३३ - ८ जनवरी 19३4) सुरेन शादंट्स (८ जनवरी १९३४ - सितंबर १९३७) उरुन्बोइ आशुरोव (सितंबर १९३७ - मार्च १९३८) दिमित्री प्रोतोपोपोव (अप्रैल १९३८ - अगस्त १९४६) बोबोजोन ग़फ़रोव (१६ अगस्त १९४६ - २४ मई १९५६) तुर्सुन उलजाबयेव (२४ मई १९५६ - १२ अप्रैल १९६१) जोबोर रसूलोव (१२ अप्रैल १९६१ - ४ अप्रैल १९८२) रहमोन नबीयेव (४ अप्रैल १९८२ - 1४ दिसंबर १९८५) काहोर महकामोव (१४ दिसंबर १९८५ - ४ सितंबर १९९१) केंद्रीय कार्यकारी समिति के अध्यक्ष [ संपादित करें ] नुसरतुल्ला मकसुम लुत्फुलेयेव (१६ दिसंबर १९२६ - २८ दिसंबर १९३३) शिरींशो श्टेमुर (२८ दिसंबर १९३३ - दिसंबर १९३६) अब्दुलो रक्खीम्बेव (दिसंबर १९३६ - सितंबर १९३७) मुनव्वर शगदाय (सितंबर १९३७ - १३ जुलाई १९३८) सर्वोच्च सोवियत के अध्यक्ष [ संपादित करें ] एन। आशुरोव (१३ जुलाई १९३८ - १५ जुलाई १९३८) सुप्रीम सोवियत के प्रेसिडियम के अध्यक्ष [ संपादित करें ] मुनव्वर शगदाय (१५ जुलाई १९३८ - २९ जुलाई १९५०) नाज़र्षो डोडखुदोयेव (२९ जुलाई १९५० - २४ मई १९५६) मिर्ज़ा रख़्तोव (२४ मई १९५६ - २८ मार्च १९६३) मखमदुल्लो खोलोव (२८ मार्च १९६३ - जनवरी १९६४) निज़ोरामो ज़रीपोवा (१४ जनवरी १९८४ - १७ फ़रवरी १९८४) + व्लादिमीर ओप्लांचुक (अभिनय) (जनवरी - १७ फरवरी १९६४) गैबनसर पल्लयेव (१७ फरवरी १९६४ - १२ अप्रैल १९९०) सर्वोच्च सोवियत के अध्यक्ष क़ाहोर महकामोव (१२ अप्रैल १९९० - ३० नवंबर १९९०) यह सभी देखें तजाकिस्तान की राजनीति तजाकिस्तान के राष्ट्रपति तजाकिस्तान के उपराष्ट्रपति तजाकिस्तान के प्रधान मंत्री
३ जुलाई १९९४ को गिनी-बिसाऊ में आम चुनाव हुए, राष्ट्रपति चुनाव के लिए दूसरा दौर ७ अगस्त को हुआ। आज़ादी के बाद यह पहला बहुदलीय चुनाव था, और यह भी पहली बार था कि राष्ट्रपति सीधे तौर पर चुना गया था, क्योंकि पहले यह पद किसके द्वारा चुना जाता था गिनी-बिसाऊ में संसदीय चुनाव गिनी-बिसाऊ में संसदीय चुनाव गिनी-बिसाऊ में राष्ट्रपति चुनाव
२००३ गिनी-बिसाऊ तख्तापलट रक्तहीन सैन्य तख्तापलट था जो १४ सितंबर २००३ को गिनी-बिसाऊ में हुआ था, जिसका नेतृत्व जनरल वेरिसिमो कोर्रेया सीबरा ने मौजूदा राष्ट्रपति कुंबा इला के खिलाफ किया था।सीबरा ने अधिग्रहण के औचित्य के रूप में इला की सरकार की "अक्षमता" का उल्लेख किया, साथ ही एक स्थिर अर्थव्यवस्था, राजनीतिक अस्थिरता और अवैतनिक वेतन पर सैन्य असंतोष भी बताया। इला ने १७ सितंबर को सार्वजनिक रूप से अपने इस्तीफे की घोषणा की और उस महीने हस्ताक्षरित एक राजनीतिक समझौते ने उन्हें पांच साल के लिए राजनीति में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया। सितंबर के अंत में व्यवसायी हेनरिक रोजा और पीआरएस महासचिव अर्तुर संहा के नेतृत्व में एक नागरिक नेतृत्व वाली संक्रमणकालीन सरकार की स्थापना की गई थी। यह भी देखें गिनी-बिसाऊ का इतिहास सलौम (फ़िल्म), तख्तापलट के दौरान २०२१ की फ़िल्म सेट
१९८० गिनी-बिसाऊ तख्तापलट रक्तहीन सैन्य तख्तापलट था जो गिनी-बिसाऊ में हुआ था। १४ नवंबर १९८० को, प्राइम की सूची के नेतृत्व मे प्रधान मंत्री जनरल जोआओ बर्नार्डो विएरा के नेतृत्व में। इसके कारण राष्ट्रपति लुइस कैब्राल (उपनिवेशवाद-विरोधी नेता अमिलकर कैब्राल के सौतेले भाई) को पद से हटा दिया गया। जिन्होंने १९७३ से इस पद पर कार्य किया, जबकि देश का स्वतंत्रता युद्ध अभी भी जारी था। यह भी देखें गिनी-बिसाऊ का इतिहास केप वर्डे-गिनी-बिसाऊ संबंध
सैन्य अशांति १ अप्रैल 20१0 को गिनी-बिसाऊ में हुई। प्रधान मंत्री कार्लोस गोम्स जूनियर को सैनिकों द्वारा घर में नजरबंद कर दिया गया, जिन्होंने सेना प्रमुख को भी हिरासत में लिया कार्लोस गोम्स जूनियर को सैनिकों ने घर में नजरबंद कर दिया, जिन्होंने सेना प्रमुख ज़मोरा इंदुता को भी हिरासत में ले लिया। गोम्स और उनकी पार्टी के समर्थकों, पैग्क ने राजधानी में प्रदर्शन करके मिलिट्री के कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त की, बिसाऊ ; एंटोनियो इंदजई, डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ ने तब चेतावनी दी कि अगर विरोध जारी रहा तो वह गोम्स को मार डालेंगे।
२३ जनवरी १९६३ को, गिनी और केप वर्डे (पीएआईजीसी), एक मार्क्सवादी क्रांतिकारी समूह की स्वतंत्रता के लिए अफ्रीकी पार्टी के सेनानियों ने आधिकारिक तौर पर गिनी-बिसाऊ की शुरुआत की। टिटे में तैनात पुर्तगाली सेना पर हमला करके स्वतंत्रता संग्राम। युद्ध तब समाप्त हुआ जब १९७४ की कार्नेशन क्रांति के बाद पुर्तगाल ने गिनी-बिसाऊ को स्वतंत्रता दी, उसके एक साल बाद केप वर्डे को। == सन्दर्भ == पुर्तगाल से जुड़े युद्ध अफ्रीका से जुड़े युद्ध १९६० के दशक के संघर्ष १९७० के दशक के संघर्ष
अमिलकर लोप्स कैब्रल (सितंबर २१, १९२४ - जनवरी २०, १९७३) एक अफ़्रीकी कृषिविज्ञानी इंजीनियर, लेखक और थे राष्ट्रवादी। बाफाटा, पुर्तगाली गिनी में जन्मे, केप-वर्डेन्स के पुत्र, उनकी शिक्षा लिस्बन में हुई, जो कि पुर्तगाल की राजधानी थी, जो औपनिवेशिक थी वह शक्ति जिसने उस समय पुर्तगाली गिनी पर शासन किया था। लिस्बन में एक छात्र के रूप में, उन्होंने अफ्रीकी राष्ट्रवाद को समर्पित छात्र आंदोलनों की स्थापना की। उनके सौतेले भाई बाद में गिनी-बिसाऊ, लुइस कैब्राल राज्य के प्रमुख थे। वह १९५० के दशक में अफ्रीका लौट आए और महाद्वीप पर स्वतंत्रता आंदोलन बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने पैग्क या पार्टिडो अफ़्रीकानो दा इंडिपेंडेंसिया दा गिनी ई काबो वर्डे (पुर्तगाली: गिनी और केप वर्डे की स्वतंत्रता के लिए अफ़्रीकी पार्टी)। उन्होंने अगोस्टिन्हो नेटो के साथ अंगोला में एक मुक्ति पार्टी बनाने के लिए भी काम किया। १९६२ की शुरुआत में, कैब्रल ने पुर्तगाली शाही ताकतों के खिलाफ एक सैन्य संघर्ष में पीएआईजीसी का नेतृत्व किया। संघर्ष का लक्ष्य पुर्तगाली गिनी और केप वर्डे दोनों के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करना था। संघर्ष के दौरान, पार्टी को भूमि लाभ प्राप्त हुआ और कैब्रल को गिनी-बिसाऊ में भूमि के कई पार्सल का वास्तविक नेता बना दिया गया। १९७२ में, कैब्रल ने एक स्वतंत्र अफ्रीकी राष्ट्र की तैयारी के लिए एक पीपुल्स असेंबली का गठन करना शुरू किया, लेकिन एक असंतुष्ट पूर्व सहयोगी ने जनवरी में १९७३ में उनकी हत्या कर दी। इससे पहले कि वह अपने काम का फल देख पाता। कोनाक्री में उनकी हत्या कर दी गई। अमिलकर कैब्रल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, केप वर्डे का प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा साल, का नाम उनके नाम पर रखा गया है। कैब्रल और पीएआईजीसी का सबसे जानकारीपूर्ण और संतुलित विवरण मुस्तफा ढाडा द्वारा लिखित "वॉरियर्स एट वर्क" है। गिनी-बिसाऊ की मुक्ति में अमिलकर कैब्रल के राजनीतिक विचार और भूमिका पर क्रिस मार्कर फिल्म, सैंस सोलेल में कुछ विस्तार से चर्चा की गई है।
अमिलकर कैब्रल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, केप वर्डे का प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा साल, का नाम उनके नाम पर रखा गया है। यह भी देखें केप वर्डे में इमारतों और संरचनाओं की सूची
'पुर्तगाली गिनी जो आज है उसका नाम था गिनी-बिसाऊ १४४६ से सितंबर १०, १९७४ तक। हालाँकि देश ने चार साल पहले इस क्षेत्र पर दावा किया था, पुर्तगाली खोजकर्ता नूनो ट्रिस्टाओ पश्चिम अफ्रीका के तट के आसपास रवाना हुए, लगभग १४५० में गिनी क्षेत्र तक पहुँचे, खोज करते हुए सोने, अन्य मूल्यवान वस्तुओं और दासों के स्रोत के लिए, जो पिछली आधी सदी से भूमि मार्गों के माध्यम से धीरे-धीरे यूरोप में पहुंच रहे थे। पुर्तगाली गिनी साहेल साम्राज्य का हिस्सा था, और स्थानीय लैंडुर्ना और नौला जनजातियाँ नमक का व्यापार करती थीं और चावल उगाती थीं। लगभग १६०० में स्थानीय जनजातियों की मदद से, पुर्तगालियों और फ्रांस, ब्रिटेन और स्वीडन सहित कई अन्य यूरोपीय शक्तियों ने एक संपन्न गुलाम की स्थापना की। पश्चिम अफ़्रीकी तट के साथ व्यापार। यह कभी भी ज्ञात नहीं होगा कि गिनी तट के साथ दास बाजारों में कितने मानव जीवन खरीदे और बेचे गए (ज्यादातर पुर्तगालियों द्वारा; अफ्रीका से आयातित सभी दासों में से ३७% ब्राजील के लिए बाध्य थे उपनिवेश), लेकिन आज यह लगभग १० मिलियन है। कचेउ, गिनी-बिसाऊ में, एक समय के लिए अफ्रीका के सबसे बड़े दास बाजारों में से एक था। [[१८०० के दशक] के अंत में गुलामी के उन्मूलन के बाद, दास व्यापार में गंभीर गिरावट आई, हालांकि एक छोटा सा अवैध गुलामी अभियान जारी रहा। बिसाऊ, १७६५ में स्थापित, पुर्तगाली गिनी कॉलोनी की राजधानी बन गई। हालाँकि यह तट पिछली चार शताब्दियों से पुर्तगाली नियंत्रण में था, लेकिन अफ्रीका के लिए संघर्ष तक कॉलोनी के अंतर्देशीय हिस्से में कोई दिलचस्पी नहीं ली गई थी। भूमि का एक बड़ा हिस्सा जो पहले पुर्तगाली था, फ्रांसीसी पश्चिम अफ्रीका में खो गया था, जिसमें समृद्ध कैसमेंस नदी क्षेत्र भी शामिल था, जो कॉलोनी के लिए एक बड़ा वाणिज्यिक केंद्र था। ब्रिटेन ने बोलामा पर नियंत्रण करने की कोशिश की, जिससे एक अंतरराष्ट्रीय विवाद पैदा हो गया जो ब्रिटेन और पुर्तगाल के बीच युद्ध के करीब पहुंच गया जब तक कि यू.एस. के राष्ट्रपति यूलिसिस एस. ग्रांट ने हस्तक्षेप नहीं किया और संघर्ष को रोका नहीं। फैसला सुनाया कि बोलामा पुर्तगाल का था। पुर्तगाली गिनी को १८७९ तक केप वर्डे द्वीप कॉलोनी के हिस्से के रूप में प्रशासित किया गया था, जब इसे द्वीपों से अलग करके अपनी कॉलोनी बना लिया गया था। २०वीं सदी के मोड़ पर, पुर्तगाल ने तटीय इस्लाम की आबादी की मदद से, आंतरिक इलाकों की एनिमिस्ट जनजातियों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया। इससे आंतरिक और दूरस्थ दोनों द्वीपसमूहों पर नियंत्रण के लिए एक लंबा संघर्ष शुरू हुआ: ऐसा तब तक नहीं होगा जब तक १९३६ बीजागोस द्वीप समूह जैसे क्षेत्र पूर्ण सरकारी नियंत्रण में नहीं होंगे। १९५१ में, जब पुर्तगाली सरकार ने संपूर्ण औपनिवेशिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन किया, तो पुर्तगाली गिनी सहित पुर्तगाल के सभी उपनिवेशों का नाम बदलकर "विदेशी प्रांत" कर दिया गया। स्वतंत्रता की लड़ाई १९५६ में शुरू हुई, जब अमिलकर कैब्राल ने पार्टिडो अफ़्रीकानो दा इंडिपेंडेंसिया दा गिनी ई काबो वर्डे (पुर्तगाली: अफ़्रीकी पार्टी की स्थापना की गिनी और केप वर्डे की स्वतंत्रता के लिए), पीएआईजीसी। पीएआईजीसी १९६१ तक एक अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण आंदोलन था, जब इसने पूर्ण पैमाने पर पुर्तगाली के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू किया, जिसमें विदेशी प्रांत को स्वतंत्र घोषित किया गया और इसका नाम बदलकर गिनी-बिसाऊ कर दिया गया। युद्ध पुर्तगालियों के ख़िलाफ़ होने लगा, और १९७४ में पुर्तगाल में तख्तापलट के बाद, नई सरकार ने पीएआईजीसी के साथ बातचीत शुरू कर दी। चूंकि उनके भाई अमिलकर की १९७३ में हत्या कर दी गई थी, लुइस कैब्रल १० सितंबर, १९७४ को स्वतंत्रता मिलने के बाद स्वतंत्र गिनी-बिसाऊ के पहले राष्ट्रपति बने। ==यह भी देखें==
ज़िगुइनचोर, सेनेगल, १९७३ में मेंडेस की शादी में चिको मेंडेस और लुइस कैब्राल की पत्नी, विवरण उन्होंने १९७३ में ज़िगुइनचोर, सेनेगल में शादी की और अपने पीछे दो बेटे और दो बेटियां छोड़ गए।
लुइस कैब्राल (७ फरवरी, १९३९ - ७ जुलाई, 19७8), एक बिसाऊ-गिनी राजनीतिज्ञ थे। वह देश के पहले प्रधान मंत्री थे और इस पद पर आसीन थे
'ओस्वाल्डो मैक्सिमो विएरा (१९३८ - ३१ मार्च १९७४) बिसाऊ-गिनी स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी और गिनी-बिसाऊ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक प्रमुख सैन्य कमांडर थे।
डोमिंगोस रामोस (बिसाऊ - मदीना डो बोए, १० नवंबर १९६६) गिनी-बिसाऊ और केप वर्डे के एक राष्ट्रीय नायक हैं, जो गिनी और केप वर्डे की स्वतंत्रता के लिए अफ्रीकी पार्टी द्वारा किए गए गुरिल्ला युद्ध के प्रारंभिक चरण के एक पौराणिक व्यक्ति हैं। (पीएआईजीसी)। ) गिनी और केप वर्डे के पूर्व विदेशी प्रांतों में पुर्तगाली शासन के खिलाफ।
हाज़िर जवाब बीरबल एक भारतीय सिटकॉम टेलीविजन श्रृंखला है जिसका प्रीमियर १७ अगस्त २०१५ को सिटकॉम अकबर बीरबल की जगह बिग मैजिक पर हुआ था। श्रृंखला का निर्माण ट्राएंगल फिल्म्स प्रोडक्शंस द्वारा किया गया है। इसमें सम्राट अकबर की भूमिका में सौरभ राज जैन और बीरबल की भूमिका में गौरव खन्ना मुख्य भूमिका में हैं। एक मजबूत केंद्रीय चरित्र, बीरबल आज की दुनिया के साथ पहचाने जाने वाले परिवर्तन के एजेंट के रूप में कार्य करता है, जो शासन के मुद्दों में परिणामों और पारदर्शिता को लक्षित करता है। वह एक मजबूत केंद्रीय चरित्र है जो लोकतांत्रिक विचारों और अधिकारों में विश्वास करता है। बीरबल अकबर के सबसे बड़े सहयोगी, आलोचक, मित्र और दार्शनिक भी हैं, जो उन्हें निर्णय लेने में प्रोत्साहित और मार्गदर्शन करते हैं। सम्राट अकबर के रूप में सौरभ राज जैन बीरबल के रूप में गौरव खन्ना नूर जी के रूप में रिम्पी दास महम अंगा के रूप में विश्वप्रीत कौर महम अंगा के रूप में शोमा आनंद अधम खान (महम अंगा के पुत्र) के रूप में विकास खोकर नकली जलपरी के रूप में ऐश्वर्या सखुजा इब्ने के रूप में पवन सिंह बतूता के रूप में सुमित अरोड़ा राजा दरबान के रूप में यशकांत शर्मा विशिष्ट व्यक्ति के रुप मे उपस्थित होना मोहनलाल के रूप में अमन वर्मा (एपिसोड ४०) भारतीय हास्य टेलीविजन कार्यक्रम बिग मैजिक चैनल के कार्यक्रम
| नामी = विशाल कोटियन | क्नाउन_फॉर = हर मुश्किल का हल अकबर बीरबलअकबर का बल बीरबल विशाल कोटियन एक भारतीय फिल्म और टेलीविजन अभिनेता हैं। उन्हें हर मुश्किल का हल अकबर बीरबल और अकबर का बल बीरबल में बीरबल की भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। २०२१ में उन्होंने बिग बॉस १५'' में हिस्सा लिया. १९७९ में जन्मे लोग
तितली स्टोरी स्क्वायर प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित एक भारतीय हिंदी भाषा की रोमांटिक ड्रामा टेलीविजन श्रृंखला है। यह ६ जून २०२३ से २७ अक्टूबर २०२३ तक स्टारप्लस पर प्रसारित हुआ और डिज़्नी+हॉटस्टार पर डिजिटल रूप से स्ट्रीम हुआ। इसमें नेहा सोलंकी और अविनाश मिश्रा मुख्य भूमिका में थे। तितली एक ऐसी कहानी है जिसका लक्ष्य एक युवा फूल विक्रेता तितली और एक वकील गर्व मेहता की प्रेम कहानी के माध्यम से घरेलू हिंसा, अपमानजनक व्यवहार, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों और क्रोध प्रबंधन के मुद्दों को उजागर करना है। तितली मेहता (नी डेव) के रूप में नेहा सोलंकी: गर्व की पत्नी; मणिकांत और मैना की बहू; परेश और जयश्री की भतीजी; हिरल और चिंटू का चचेरा भाई। (२०२३) राव्या सदवानी बाल तितली के रूप में गर्व मेहता के रूप में अविनाश मिश्रा : तितली के पति; मणिकांत और मैना का बेटा; कोयल का पालक पुत्र और भतीजा; चीकू और मोनिका का छोटा भाई; दृष्टि का बड़ा भाई; हिरेन और अल्पा का भतीजा; धारा की चचेरी बहन (२०२३) कोयल मणिकांत मेहता के रूप में रिंकू धवन: मणिकांत की पहली पत्नी; मैना की बड़ी बहन; चीकू, मोनिका, गर्व, दृष्टि और धारा की दत्तक मां और चाची (२०२३) मणिकांत मेहता के रूप में यश टोंक : कोयल और मैना के पति; मोनिका, चीकू, गर्व और दृष्टि के पिता; तितली के ससुर; हिरेन के बड़े भाई; अल्पा के बहनोई; धारा के चाचा (२०२३) मैना मणिकांत मेहता के रूप में विवाना सिंह : मणिकांत की दूसरी पत्नी; मोनिका, चीकू, गर्व और दृष्टि की माँ; धारा की चाची; तितली की सास (२०२३) परेश दवे के रूप में सचिन पारिख: जयश्री के पति; हीरल और चिंटू के पिता; तितली के मामा (२०२३) हीरल दवे के रूप में निशी सिंह: परेश और जयश्री की बेटी; चिंटू की बड़ी बहन; तितली की चचेरी बहन (२०२३) मणिकांत और हिरेन के पिता के रूप में सुशील पाराशर ; गर्व, मोनिका, चीकू, धारा और दृष्टि के दादा (२०२३) चिंटू दवे के रूप में देविश आहूजा: परेश और जयश्री के बेटे; हीरल का भाई; तितली की चचेरी बहन (२०२३) मोनिका मेहता के रूप में राधिका छाबड़ा: मणिकांत और मैना की बड़ी बेटी; चीकू की छोटी बहन; गर्व और दृष्टि की बड़ी बहन; आदित्य की पत्नी (२०२३) दृष्टि मेहता के रूप में प्रतीक्षा राय: मणिकांत और मैना की बेटी; चीकू, गर्व और मोनिका की छोटी बहन; धारा की चचेरी बहन (२०२३) हिरेन मेहता के रूप में मनु मलिक: मणिकांत का छोटा भाई; अल्पा का पति; धारा के पिता; चीकू, मोनिका, गर्व और दृष्टि के चाचा (२०२३) अल्पा हिरेन मेहता के रूप में परिगाला असगांवकर: हिरेन की पत्नी; धारा की माँ; चीकू, मोनिका, गर्व और दृष्टि की मौसी (२०२३) धारा मेहता के रूप में अदिति चोपड़ा: मोनिका, गर्व, चीकू और दृष्टि की चचेरी बहन; हिरेन और अल्पा की बेटी (२०२३) अथर्व "चीकू" मेहता के रूप में ईशान सिंह मन्हास : मणिकांत और मैना का बड़ा बेटा; गर्व, मोनिका और दृष्टि का भाई; धारा की चचेरी बहन (२०२३) मेघा प्रसाद मेघा के रूप में: गर्व का चिकित्सक और जुनूनी प्रेमी; तितली की कॉलेज मित्र (२०२३) वत्सल शेठ राहुल के रूप में: तितली की पूर्व मंगेतर (२०२३) तितली की माँ के रूप में प्रीति गंधवानी (२०२३) (मृत) मई २०२३ में, स्टोरी स्क्वायर प्रोडक्शंस द्वारा घरेलू हिंसा के मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए श्रृंखला की घोषणा की गई थी। "तितली" के रूप में नेहा सोलंकी और "गर्व" के रूप में अविनाश मिश्रा को मुख्य भूमिका के रूप में साइन किया गया। वत्सल शेठ को शो में एक कैमियो भूमिका निभाने के लिए पुष्टि की गई थी। सेठजी के बाद यह मिश्रा और सोलंकी के बीच दूसरा सहयोग है। मुख्य फोटोग्राफी फिल्म सिटी, मुंबई में शुरू हुई, कुछ शुरुआती दृश्यों की शूटिंग अहमदाबाद में हुई। सोलंकी ने शो को प्रमोट करने के लिए इमली और अनुपमा में भी विशेष भूमिका निभाई। यह भी देखें स्टार प्लस द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों की सूची डिज़्नी+हॉटस्टार पर टिटली स्टार प्लस के धारावाहिक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
ग्रामीण कौशल्या योजना या द्दू-ग्की भारत सरकार की युवा रोजगार योजना है। डीडीयू-जीकेवाई को २५ सितंबर २०१४ को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की ९८वीं जयंती के अवसर पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और वेंकैया नायडू द्वारा लॉन्च किया गया था। डीडीयू-जीकेवाई का दृष्टिकोण " ग्रामीण गरीब युवाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र और विश्व स्तर पर प्रासंगिक कार्यबल में बदलना " है। इसका लक्ष्य १५-३५ वर्ष के आयु वर्ग के युवाओं को लक्षित करना है। डीडीयू-जीकेवाई राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) का एक हिस्सा है, जिसे ग्रामीण गरीब परिवारों की आय में विविधता जोड़ने और ग्रामीण युवाओं की कैरियर आकांक्षाओं को पूरा करने के दोहरे उद्देश्यों के साथ काम सौंपा गया है। करोड़ के कोष का उद्देश्य ग्रामीण युवाओं की रोजगार क्षमता को बढ़ाना है। इस कार्यक्रम के तहत, सरकार की कौशल विकास पहल के हिस्से के रूप में छात्र के बैंक खाते में सीधे डिजिटल वाउचर के माध्यम से भुगतान किया जाएगा। भारत में सरकारी योजनाएँ
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना भारत सरकार द्वारा १९ फरवरी २०१५ को शुरू की गई एक योजना है योजना के तहत, सरकार किसानों को मृदा कार्ड जारी करने की योजना बना रही है, जिसमें किसानों को इनपुट के विवेकपूर्ण उपयोग के माध्यम से उत्पादकता में सुधार करने में मदद करने के लिए व्यक्तिगत खेतों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों और उर्वरकों की फसल-वार सिफारिशें दी जाएंगी। सभी मिट्टी के नमूनों का परीक्षण देश भर की विभिन्न मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं में किया जाना है। इसके बाद विशेषज्ञ मिट्टी की ताकत और कमजोरियों (सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी) का विश्लेषण करेंगे और इससे निपटने के उपाय सुझाएंगे। परिणाम और सुझाव कार्ड में प्रदर्शित किए जाएंगे। सरकार की योजना १४ को कार्ड जारी करने की हैकरोड़ किसान. इस योजना का उद्देश्य किसानों को कम लागत पर अधिक उपज प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए मिट्टी परीक्षण आधारित और उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर संबंधित फसल के लिए पोषक तत्वों की उचित मात्रा के बारे में जागरूक करना है। इसमें १२ पैरामीटर शामिल हैं। की राशि योजना के लिए सरकार द्वारा आवंटित किया गया था। २०१६ में भारत का केंद्रीय बजट, मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाने और प्रयोगशालाएँ स्थापित करने के लिए राज्यों को आवंटित किए गए हैं। जुलाई २०१५ तक, वर्ष २०१५-१६ के लिए ८४ लाख के लक्ष्य के मुकाबले किसानों को केवल ३४ लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) जारी किए गए थे। अरुणाचल प्रदेश, गोवा, गुजरात, हरियाणा, केरल, मिजोरम, सिक्किम, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल उन राज्यों में से थे, जिन्होंने तब तक इस योजना के तहत एक भी एसएचसी जारी नहीं किया था। फरवरी 20१६ तक यह संख्या बढ़कर १.१2 करोड़ हो गई फरवरी 20१६ तक, १04 लाख मिट्टी के नमूनों के लक्ष्य के मुकाबले, राज्यों ने 8१ लाख मिट्टी के नमूनों के संग्रह की सूचना दी और ५२ लाख नमूनों का परीक्षण किया। १६.०५.20१7 तक किसानों को ७२५ लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किये जा चुके हैं। २०१५-१६ के लिए लक्ष्य १०० लाख मिट्टी के नमूने एकत्र करना और मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करने के लिए उनका परीक्षण करना है। २ करोड़ कार्ड छपाई के अधीन हैं और मार्च २0१६ से पहले वितरित किए जाएंगे सरकार की योजना २017 तक 1२ करोड़ मृदा कार्ड वितरित करने की है भारत में सरकारी योजनाएँ भारत में कृषि २०१५ में भारत
महात्मा गांधी प्रवासी सुरक्षा योजना एक विशेष सामाजिक सुरक्षा योजना है जिसमें पेंशन और जीवन बीमा शामिल है, जो प्रवासी जांच आवश्यक (ईसीआर) पासपोर्ट रखने वाले विदेशी भारतीय श्रमिकों के लिए प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय द्वारा शुरू की गई है। यह एक स्वैच्छिक योजना है जो श्रमिकों को उनकी तीन वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में मदद करने के लिए बनाई गई है: सेवानिवृत्ति के लिए बचत, उनकी वापसी और पुनर्वास के लिए बचत, और प्राकृतिक कारणों से मृत्यु के लिए मुफ्त जीवन बीमा कवरेज प्रदान करना। भारत में सरकारी योजनाएँ
शाक्य राजवंश की राजकुमारी सुंदरी नंदा, जिन्हें सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है, राजा शुद्धोदन (सिद्धार्थ गौतम के पिता) और रानी महापजापति गोतमी (सिद्धार्थ गौतम की मौसी) की पुत्री थीं। सिद्धार्थ गौतम के ज्ञान-प्राप्ति के उपरांत उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय किया और कुछ समय उपरान्त एक अर्हंत बन गईं। वह बुद्ध द्वारा निर्दिष्ट ध्यान की परंपरा में भिक्षुणियों के बीच अग्रणी मानी गयी है। सुन्दरी ६वीं सदी ईसा पूर्व में उत्तर भारत (बिहार और उत्तर प्रदेश) में रहती थीं। उनके पिता राजा शुद्धोदन, जो सिद्धार्थ के पिता भी थे, और उनकी मां महाप्रजापति थीं। महाप्रजापति शुद्धोदन की दूसरी पत्नी थीं, जो उनकी पहली पत्नी रानी माया की छोटी बहन थीं। नंदा का नाम आनंद, संतोष और सुख का है. उनके माता-पिता सुंदरी के जन्मने पर विशेष रूप से आनंदित थे। उसकी सुंदरता दिन-प्रतिदिन प्रखर हो रही थी, इसलिए उन्हे बाद में "जनपद कल्याणी" के रूप में जाना जा गया। समय के साथ, उसके परिवार के कई सदस्यो (कपिलवस्तु के शाक्य वंश) ने अपने सांसारिक जीवन को त्यागकर संन्यासी जीवन में प्रवृत्त होने का प्रेरणा लिया जिसमे उनके भाई नंदा और दो चचेरे भाई अनुरुद्ध और आनंद भी थे। उसकी मां, महाप्रजापति, संघ की प्रथम बौद्ध भिक्षुणी बनी. उन्होंने बुद्ध से संघ में महिलाओं को शामिल करने की अनुमति देने के लिए प्रार्थना की थी। इसके परिणामस्वरूप, कई अन्य शाक्य स्त्रियाँ, जिसमें सिद्धार्थ की पत्नी राजकुमारी यशोधरा भी थी, बौद्ध विक्षुणी बनी। इस पर, नंदा ने भी संसार का त्याग किया, परन्तु यह कहा गया है कि वह इसे बुद्ध और धर्म में आत्म-विश्वास के लिए नहीं किया, बल्कि सिद्धार्थ के प्रति भ्रातृ-प्रेम और संबंध के भावना के कारण किया था। सुंदरीनंदा का ध्यान आरम्भ में अपने सौन्दर्य पर केंद्रित था। वह दृढ़ता पूर्वक ध्यान की उच्च परम्पराओं का पालन नहीं कर रही थी, जो अन्य शाक्य राजवंश के कई सदस्यों ने अपने लौकिक जीवन को त्यागने के लिए रचे थे. बुद्ध उनकी निन्दा करेंगे, इसलिए वह बहुत समय तक उससे बचती रही।परन्तु अन्तत: उन्होने बुद्ध से सन्यास की दीक्षा ली। एक दिन, बुद्ध ने सभी भिक्षुणियों से व्यक्तिगत रूप में अपने शिष्य के रूप में उनकी शिक्षा प्राप्त करने के लिए कहा, लेकिन नंदा ने उसकी आज्ञा का पालन नहीं किया। बुद्ध ने स्पष्ट रूप से उसे बुलवाया, और फिर वह सलज्ज और चिंत्य भाव से पहुँची। बुद्ध ने उससे बात की और उसकी सभी सकारात्मक गुणों की प्रशंसा की, ताकि नंदा उसकी बातों को इच्छुक रूप से सुने और उसमें आनंदित हो। बुद्ध की शिक्षा को उन्होंने सप्रसन्न स्वीकार कर लिया. बुद्ध की यौगिक शक्ति से सुंदरी ने देखा कि कैसे उनकी युवावस्था और सुंदरता का नाश हो रहा है. इस दृश्य का उनके ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा. नंदा को इस प्रभावी छवि को देखने के बाद, बुद्ध ने उससे इस तरह से अनित्य की धारणा को समझाया कि उसने इसकी सत्यता को पूरी तरह से समझा, और इस प्रकार निब्बान की सर्वोत्तम आनंद को प्राप्त किया। बाद में बुद्ध ने सुंदरी नंदा को उन भिक्षुणियों में मान्यता दी जिन्होंने ध्यान की प्रथा में प्रमुख स्थान प्राप्त किया था। अर्हन्त बनाने के उपरांत इस पवित्र सुख का आनंद लेते हुए, उनको और किसी इंद्रिय सुख की आवश्यकता नहीं थी और शीघ्र ही उसने अपनी आत्मिक शांति पाई. बुद्धचरित - अश्वघोष
असम लोक सेवा आयोग एपीएससी (अंग्रेजी: असम पब्लिक सर्विस कमिश्न) असम सरकार के अधीन राज्य के सभी सरकारी सरकारी विभागों में ग्रुप-ए एवं ग्रुप-बी सिविल सेवा के खाली पदों पर पात्र उम्मीदवारों का चयन करने के लिए एक राज्य भर्ती एजेंसी है, इसकी स्थापना असम सरकार के प्रावधान के अनुसार १ अप्रैल १937 को असम लोक सेवा आयोग अस्तित्व में आया। संघ लोक सेवा आयोग के संविधान द्वारा बनाई गई ये एक सरकारी संस्था है लोक सेवा आयोग से संबंधित प्रावधान संविधान के भाग-क्सीव के अध्याय-ई में दिए गए हैं। संविधान में प्रावधान राज्य सेवाओं से संबंधित मामलों से निपटने के लिए आयोग की क्षमता सुनिश्चित करता है और उन्हें किसी भी क्षेत्र के प्रभाव से स्वतंत्र तरीके से अपने कर्तव्य करने की क्षमता देता है, आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति असम राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है वर्तमान समय में आयोग में १ अध्यक्ष और ६ सदस्य हैं। असम लोक सेवा आयोग का प्रथम कार्य राज्य के सरकारी विभागों (जैसे- प्रशासनिक, कृषि, पुलिस, शिक्षा, आवास, वित्त, परिवहन) में सिविल सेवा पदों पर पात्र उम्मीदवारों के लिए संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन करना है। असम सरकार के प्रावधान के अनुसार असम लोक सेवा आयोग १ अप्रैल १९३७ को अस्तित्व में आया था। भारतीय अधिनियम १९३५ इससे पहले आयोग अध्यक्ष लंदन के एक रिटायर्ड आईसीएस अधिकारी श्री जेम्स हेज़लेट थे, १९५१ में एक नया विनियमन आने तक श्री जेम्स हेज़लेट के बाद पांच और रिटायर्ड आईसीएस अधिकारियों को अलग-अलग समय के अध्यक्ष बनाया गया, भारत गणतंत्र बनने के बाद भारत के संविधान के अनुच्छेद ३१८ द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए असम सरकार के राज्यपाल द्वारा आयोग के नए नियम बनाए गए और ये १ सितंबर १९५१ से लागू हुए। असम लोक सेवा आयोग ने उसी वर्ष कार्यों की सीमा विनियमन को संविधान के अनुच्छेद ३२० के खंड ई के प्रावधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने हेतु सुनिश्चित किया गया। असम राज्य के प्रतिष्ठित शिक्षाविद् श्री कामेश्वर दास, अप्स्क विनियम १९५१ की घोषणा होने के बाद आयोग के पहले गैर आधिकारिक अध्यक्ष थे उन्होंने जुलाई १952 तक अध्यक्ष पद का कार्यकाल संभाल। असम लोक सेवा आयोग अपने कर्तव्य और कार्यों का निर्वहन करने के लिए भारत के संविधान अनुच्छेद ३२० के अनुसार आयोग का अध्यक्ष राज्य के राज्यपाल द्वारा संबोधित कुछ नियमों और विनियमों के तहत आदेश लेने के लिए स्वतंत्र है। राज्य सरकार की विभिन्न सेवाओं में सीधी भर्ती के लिए उम्मीदवारों का चयन करना सरकार को सलाह देने के लिए आयोग के दायरे में सरकार के अधीन सेवारत अधिकारियों को प्रभावित करने वाले सभी अनुशासनात्मक केस सरकारी विभागों के भर्ती नियमों/सेवन नियमों को लागू करने के लिए संबंधित सभी मामलों पर सरकार को सलाह देना सिविल सेवाओं में भर्ती की पद्धति के संबंध में सरकार को सलाह देना सरकारी कर्मचारियों के संबंध में सुरक्षा और सैलरी निर्धारण से संबंधित मामलों पर सरकार को सलाह देना सरकारी सेवाओं के लिए इंटरव्यू/स्क्रीनिंग टेस्ट/ लिखित परीक्षा का आयोजित करना एपीएससी भर्ती परीक्षा एपीएससी संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा असम सिविल सेवा (जूनियर ग्रेड) असम पुलिस सेवा (जूनियर ग्रेड) असम वित्त सेवा (जूनियर ग्रेड ई) आयोग के वर्तमान पदाधिकारी सूची यह भी देखें असम का इतिहास असम के लोक नृत्य असम की चाय बागान समुदाय असम में उच्च शिक्षा के संस्थानों की सूची एपीएससी आधिकारिक वेबसाइट असम भर्ती आधिकारिक वेबसाइट एपीएससी भर्ती पोर्टल भारतीय राज्यों के लोकसेवा आयोग
अरुण जेटली क्रिकेट स्टेडियम (पूर्व नाम: फ़िरोज़ शाह कोटला ग्राउण्ड) दिल्ली का एक प्रमुख खेल का मैदान है। यहाँ क्रिकेट खेला जाता हैं। स्टेडियम का पहले नाम फ़िरोज़ शाह कोटला ग्राउण्ड था किन्तु मोदी सरकार ने इसका नाम पूर्व वित्त मन्त्री श्री अरुण जेटली जी केे नाम पर अरुण जेटली स्टेडियम कर दिया। विश्व के प्रमुख खेल मैदान भारत के प्रमुख खेल मैदान
पशुपालन विभाग महाराष्ट्र में पशुपालन की देखभाल के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा संचालित एक विभाग है। महाराष्ट्र में पशुपालन महाराष्ट्र में कई किसान अपनी आजीविका के लिए पशुपालन पर निर्भर हैं। दूध,मांस,अंडे,ऊन, उनकी खाद (गोबर) और खाल की आपूर्ति के अलावा, जानवर, मुख्य रूप से बैल, किसानों और ड्रायर्स दोनों के लिए शक्ति का प्रमुख स्रोत हैं। इस प्रकार पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वित्त वर्ष २०१५-१६ में इस क्षेत्र से उत्पादन का राष्ट्रीय सकल मूल्य ८,१२३ अरब रुपये था। महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय भारत में पशुपालन
पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) एक भारत सरकार का विभाग है। यह मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का एक सहायक विभाग है जिसे २०१९ में एक नए भारतीय मंत्रालय के रूप में गठित किया गया था।डीएएचडी या पूर्ववर्ती पशुपालन, मत्स्य पालन और डेयरी विभाग का गठन १९९१ में कृषि और सहयोग विभाग के दो प्रभागों, अर्थात् पशुपालन और डेयरी विकास, को एक अलग विभाग में विलय करके किया गया था। १९९७ में विभाग का मत्स्य पालन प्रभाग खाद्य प्रसंस्कृत उद्योग मंत्रालय का एक हिस्सा इसमें स्थानांतरित कर दिया गया।फरवरी २०१९ में मत्स्य पालन विभाग को पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग से अलग किया गया था और यह तब से पशुपालन और डेयरी विभाग के रूप में कार्य कर रहा है। पशुपालन और डेयरी विभाग भारत में पशुपालन
मत्स्यपालन मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार का एक राज्य मंत्रालय है। महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय
कृषि मंत्रालय, महाराष्ट्र सरकार का एक मंत्रालय है। महाराष्ट्र राज्य में कृषि से संबंधित नियमों और विनियमों और कानूनों के निर्माण और प्रशासन के लिए सर्वोच्च निकाय है। इस मंत्रालय का नेतृत्व वर्तमान मंत्री धनंजय मुंडे कर रहे हैं। अकाल आयोग (१८८१) की सिफ़ारिश के बाद १८८३ में कृषि विभाग की स्थापना की गई। १९६५-६६ में फसलों की विभिन्न संकर किस्मों को तैनात किया गया जिसने हरित क्रांति की नींव रखी। महाराष्ट्र के सरकारी मंत्रालय