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भारत में सोवा- रिग्पा की अवसंरचना
Infrastructures of SOWA-RIGPA in India
अधिकांश हिमालयी क्षेत्रों में, सोवा-रिग्पा का पारंपरिक तरीके से अभ्यास किया जाता है, जिसमें प्रत्येक गाँव में आमची के साथ सामुदायिक समर्थन होता है।
In most of Himalayan regions, Sowa-Rigpa is practiced in traditional way with community support with an Amchi in every village.
लेकिन पिछले दो दशकों से, शैक्षिक संस्थानों, औषधालयों, अस्पतालों और फार्मेसियों आदि में आधुनिक अस्पताल प्रणाली के कुछ प्रशासनिक तत्वों को अपनाते हुए, यह परिदृश्य बदल रहा है।
But since the last two decades, this scenario has been changing, adopting some of the administrative elements of modern hospital system in educational Institutions, dispensaries, hospitals and pharmacies etc.
फिर भी, अभी भी भारत में सोवा-रिग्पा के लगभग 1000 चिकित्सक कठोर हिमालयी क्षेत्रों और अन्य स्थानों में स्वास्थ्य देखभाल कर रहे हैं।
Nevertheless, still there are all together around 1000 practitioners of Sowa-Rigpa in India catering health care in harsh Himalayan regions and other places.
हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला और जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र भारत में सोवा-रिग्पा संस्थानों के मुख्य केंद्र हैं।
Dharamshala in Himanchal Pardesh and Ladakh region of J&K are the main Centers for Sowa-Rigpa Institutions in India.
भारत में शरण लेने के बाद परम पावन दलाई लामा धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में रहे हैं जहाँ उन्होंने युवाओं को प्रशिक्षित करने और सोवा-रिग्पा के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए तिब्बती चिकित्सा और ज्योतिष संस्थान की स्थापना की है।
After taking refuge in India His Holiness the Dalai Lama has been in Dharamshala (Himachal Pradesh) where he has set up the Tibetan Medical and Astrological Institute to train the youngsters and provide quality health service through Sowa-Rigpa.
इस संस्थान का एक मेडिकल कॉलेज, फार्मेसी, ज्योतिष अनुभाग और पूरे भारत में 40-50 क्लीनिकों की एक श्रृंखला है।
This Institute has a Medical college, Pharmacy, Astrology section and a chain of 40-50 clinics all over India.
भारत में सोवा-रिग्पा की प्रथा को विनियमित करने के लिए धर्मशाला में केंद्रीय तिब्बती चिकित्सा परिषद है, यह चिकित्सकों के पंजीकरण, कॉलेजों के मानक और सोवा-रिग्पा को विनियमित करने के लिए अन्य तंत्र की देखभाल करती है।
There is Central Council for Tibetan Medicine in Dharamshala to regulate the practice of Sowa-Rigpa in India, it looks after the registration of practitioners, standard of colleges and other mechanism to regulate Sowa-Rigpa.
सोवा-रिग्पा पांडुलिपियों की वर्णनात्मक सूची
Descriptive Catalogue of Sowa-Rigpa Manuscripts
परिषद् के कर्मचारी
Council's Employees
केन्द्रीय परिषद् मुख्यालय
CCRAS Headquarters
केन्‍द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नई दिल्‍ली
Central Council for Research in Ayurvedic Sciences (CCRAS), New Delhi
सीसीआरएएस परिधीय संस्थान
Peripheral Institutes of CCRAS
केन्‍द्रीय आयुर्वेदीय हृदयरोग अनुसंधान संस्‍थान, नई दिल्ली
Central Ayurveda Research Institute, New Delhi
केन्‍द्रीय आयुर्वेदीय वातव्‍याधि (तंत्रिका पेशी एवं अस्थि संधि विकार) अनुसंधान संस्‍थान, चेरुतुरूथी
National Ayurveda Research Institute for Panchakarma, Cheruthuruthy
केन्‍द्रीय आयुर्वेदीय यकृत विकार अनुसंधान संस्‍थान, भुवनेश्‍वर
Central Ayurveda Research Institute, Bhubaneswar
राजा रामदेव आनंदीलाल पोद्दार (आरआरएपी) केन्द्रीय आयुर्वेदीय कैंसर अनुसंधान संस्‍थान, मुंबई
राजा रामदेव आनंदीलाल पोद्दार (आरआरएपी) केन्द्रीय आयुर्वेदीय कैंसर अनुसंधान संस्‍थान, मुंबई
केन्‍द्रीय आयुर्वेदीय औषध विकास अनुसंधान संस्‍थान, कोलकाता
Central Ayurveda Research Institute, Kolkata
केन्‍द्रीय आयुर्वेदीय श्‍वसन विकार अनुसंधान संस्‍थान, पटियाला
Central Ayurveda Research Institute, Patiala
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय औषधि विकास अनुसंधान संस्‍थान, ग्‍वालियर
Regional Ayurveda Research Institute, Gwalior
क्षेत्रीय आयुर्वेद नेत्ररोग अनुसंधान संस्‍थान, लखनऊ
Regional Ayurveda Research Institute, Lucknow
एम.एस. क्षेत्रीय आयुर्वेदीय अंत:स्रावीग्रंथि विकार अनुसंधान संस्‍थान, जयपुर
M.S. Regional Ayurveda Research Institute, Jaipur
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय मातृ एवं शिशु स्‍वास्‍थ्‍य अनुसंधान संस्‍थान, नागपुर
Regional Ayurveda Research Institute, Nagpur
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय चयापचय विकार अनुसंधान संस्‍थान, बैंगलोर
Regional Ayurveda Research Institute for Metabolic Disorders, Bangalore
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय जीवनशैलीजन्‍य विकार अनुसंधान संस्‍थान, त्रिवेन्‍द्रम
Regional Ayurveda Research Institute, Thiruvananthapuram
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय त्‍वकरोग अनुसंधान संस्‍थान, विजयवाड़ा
Regional Ayurveda Research Institute, Vijayawada
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय संक्रामक रोग अनुसंधान संस्‍थान, पटना
Regional Ayurveda Research Institute, Patna
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय जठरांत्र विकार अनुसंधान संस्थान, गुवाहाटी
Central Ayurveda Research Institute, Guwahati
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय अनुसंधान संस्‍थान, गंगटोक
Regional Ayurveda Research Institute, Gangtok
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय अनुसंधान संस्थान, ईटानगर
Regional Ayurveda Research Institute, Itanagar
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय मूत्र विकार अनुसंधान संस्‍थान, जम्‍मू
Regional Ayurveda Research Institute, Jammu
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय पोषणजन्‍य विकार अनुसंधान संस्‍थान, मंडी
Regional Ayurveda Research Institute, Mandi
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय अनुसंधान संस्‍थान, रानीखेत
Regional Ayurveda Research Institute, Ranikhet
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय अनुसंधान संस्‍थान, झांसी
Central Ayurveda Research Institute, Jhansi
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय त्‍वकरोग अनुसंधान संस्‍थान, अहमदाबाद
Regional Ayurveda Research Institute, Ahmedabad
राष्‍ट्रीय भारतीय चिकित्‍सा संपदा संस्‍थान, हैदराबाद
National Institute of Medical Estates of India, Hyderabad
कैप्‍टन श्रीनिवास मूर्ति क्षेत्रीय आयुर्वेदीय औषधि विकास अनुसंधान संस्‍थान, चैन्‍नई
Captain Srinivasa Murthy Central Ayurveda Research Institute, Chennai
मानसिक स्वास्थ्‍य एवं स्नायु विज्ञान में आयुर्वेद का उन्नत केन्द्र, बैंगलोर
Central Ayurveda Research Institute, Bangalore
डॉ. ए. लक्ष्मीपति आयुर्वेदीय अनुसंधान केन्द्र, चैन्‍नई
Dr. Achanta Lakshmipati Regional Ayurveda Research Institute, Chennai
क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान, पोर्ट ब्लेयर
Regional Ayurveda Research Institute, Port Blair
सोवा-रिग्पा के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान, लेह
National Research Institute for Sowa-Rigpa, Leh
क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान केंद्र, लुमामी, नागालैंड
Regional Ayurveda Research Centre, Lumami, Nagaland
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न
FAQ on Common Disease Conditions
तमक श्वास
Bronchial Asthma
कैंसर
Cancer
अक्षि रोग
Conjunctivitis
मधुमेह
Diabetes
मेदो व्याधि
Dyslipidemia
अम्लपित्त
Hyperacidity
व्यान्बल वैषम्य
Hypertension
स्थौल्य
Obesity
संधि वात
Osteoarthritis
किटिभ
Psoriasis
हृद्याघात
Stroke
आशा/एएनएम के लिए आईईसी सामग्री
IEC Material for ASHA/ANM
स्वास्थ्य संवर्धन के लिए आयुर्वेदिक वकालत
Ayurvedic Advocacy for Health Promotion
आशा-एएनएम के लिए मैनुअल - अंग्रेजी
Manual for ASHA-ANM - English
आशा-एएनएम के लिए मैनुअल - हिंदी
Manual for ASHA-ANM - Hindi
अंग्रेजी ब्रोशर
English Brochures
हिंदी ब्रोशर
Hindi Brochures
स्वास्थवृत्ति पर पुस्तिका
Booklet on Swasthavritta
"ई-पुस्तक ""आयुर्वेद - विज्ञान"
"E-Book ""Ayurveda - The Science and Art of Life"""
आयुर्वेदिक घरेलू उपचार - अंग्रेज़ी
Ayurvedic Home Remedies - English
आयुर्वेदिक घरेलू उपचार - हिंदी
Ayurvedic Home Remedies - Hindi
पालि और प्राकृत में साहित्य
Literature in Pali and Prakrit
वैदिक युग के पश्चाभत, पालि और प्राकृत भारतीयों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएं थीं। व्यापकतम दृष्टि से देखें तो प्राकृत ऐसी किसी भी भाषा को इंगित करती थी जो मानक भाषा संस्कृत से किसी रूप में निकली हो ।
Pali and Prakrit were the spoken languages of Indians after the Vedic period. Prakrit in the widest sense of the term, was indicative of any language that in any manner deviated from the standard one, i.e. Sanskrit.
पालि एक अप्रचलित प्राकृत है ।
Pali is archaic Prakrit.
वास्तव में, पालि विभिन्न‍ उपभाषाओं का एक मिश्रण है ।
In fact, Pali is a combination of various dialects.
इन्हें बौद्ध और जैन मतों ने प्राचीन भारत में अपनी पवित्र भाषा के में अपनाया था।
These were adopted by Buddhist and Jain sects in ancient India as their sacred languages.
भगवान बुद्ध (500 ईसा पूर्व) ने प्रवचन देने के लिए पालि का प्रयोग किया ।
lord Buddha (500 B.C.) used Pali to give his sermons.
समस्त बौद्ध धर्म वैधानिक साहित्य पालि में हैं जिसमें त्रिपिटक शामिल है ।
All the Buddhist canonical literature is in Pali which includes Tipitaka (threefold basket).
प्रथम टोकरी विनय पिटक में बौद्ध मठवासियों के संबंध में मठवासीय नियम शामिल हैं ।
The first basket, Vinaya Pitaka, contains the monastic rules of the Order of Buddhist monks.
दूसरी टोकरी सुत्तस पिटक में बुद्ध के भाषणों और संवादों का एक संग्रह है ।
The second basket, Sutta Pitaka, is the collection of the speeches and dialogues of the Buddha.
तीसरी टोकरी अभिधम्‍म पिटक नीतिशास्त्र , मनोविज्ञान या ज्ञान के सिद्धान्त से जुड़े विभिन्न विषयों का वर्णन करती है ।
The third basket, the Abhidhamma Pitaka, elucidates the various topics dealing with ethics, psychology or theory of knowledge.
जातक कथाएं गैर- धर्मवैधानिक बौद्ध साहित्य हैं जिनमें बुद्ध के पूर्व जन्मों (बोधिसत्त्व या होने वाले बुद्ध) से जुड़ी कहानियां हैं ।
The jataka Kathas are non-canonical Buddhist literature in which stories relating to the former births of the Buddha (Bodhi-sattva or the would-be Buddha) are narrated.
ये कहानियां बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का प्रचार करती हैं तथा संस्‍‍कृत एवं पालि दोनों में उपलब्ध हैं ।
These stories propagate Buddhist religious doctrines and are available in both Sanskrit and Pali.
चूंकि जातक कथाओं का भारी मात्रा में विकास हुआ, इन्होंने लोकप्रिय कहानियों, प्राचीन पौराणिक कथाओं, धर्म संबंधी पुरानी परम्पराओं की कहानियों आदि का समावेश कर लिया ।
As the jataka tales grew in bulk, they assimilated popular tales, ancient mythology, stories from older religious traditions, etc.
वास्तव में जातक भारतीय जनमानस की सांझी विरासत पर आधारित है ।
Jatakas are, in fact, based on the common heritage of the Indian masses.
संस्कृत में बौद्ध साहित्य भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है जिसमें अश्वघोष (78 ईसवी सन्) द्वारा रचित महान महाकाव्य 'बुद्धचरित' शामिल है ।
Buddhist literature is also abundantly available in Sanskrit, which includes the great epic Buddhacharita by Aswaghosha (78 A.D.).
बौद्ध कहानियों की ही भांति, जैन कथाएं भी सामान्य रूप से शिक्षात्मक स्वरूप की हैं ।
Like the Buddhist stories, the Jain tales in general are didactic in character.
इन्हें प्राकृत के कुछ रूपों में लिखा गया है ।
They are written in some forms of Prakrit.
जैन शब्द रुत जी (विजय प्राप्त करना) से लिया गया है और उन व्यक्तियों के धर्म को व्यंक्त करता है जिन्होंने जीवन की लालसा पर विजय पा ली है ।
The word Jain is derived from the root ji (to conquer) and signifies the religion of those who have conquered the lust for life.
जैन सन्तों द्वारा रचित जैन धर्मवैधानिक साहित्यों, तथा साथ ही साथ हेमचन्द्र (1088 ईसवी सन्) द्वारा कोशकला तथा व्याकरण के बारे में बड़ी संख्या में रचनाएं भली-भांति ज्ञात हैं ।
Jain canonical literature by Jain saints, as well as a large number of works on lexicography and grammar by Hemachandra (1088 A.D.-?), is well known.
नैतिक कहानियों और काव्य की दिशा में अभी बहुत कुछ तलाशना है ।
Much also in the way of moral tale and poetry are to be found.
प्राकृत को हाल (300 ईसवी सन्) द्वारा रचित गाथासप्ताशती (700 श्लोंक ) के लिए भली-भांति जाना जाता है जो रचनात्मक साहित्य का सर्वोत्तम उदाहरण है ।
However, Prakrit is well known for Gathasaptashati (700 verses) by Hala (300 A.D.), the best example of erotic literature.
यह इनकी अपनी 44 कविताओं के साथ (700 श्लोकों) का एक संकलन है ।
It is a compilation of 700 verses along with his own contribution of 44 poems.
यहां यह ध्यान देना रुचिकर होगा कि पहाई, महावी, रीवा, रोहा और शशिप्पलहा जैसी कुछ कवयित्रियों को संग्रह में शामिल किया गया है ।
It is interesting to note that quite a few poetesses like Pahai, Mahavi, Reva, Roha and Sasippaha are included in the anthology.
यहां तक कि जैन संतों द्वारा सुस्पष्ट धार्मिक व्यंजना से रचित प्राकृत की व्यापक कथा रत्यात्मक तत्‍त्वों से परिपूर्ण है ।
The vast Katha (story) literature of Prakrit, written with a conspicuous religious overtone, even by Jain saints, is full of erotic elements.
वासुदेवहिन्दी का लेखक जैन लेखकों के इस परिवर्तित दृष्टिकोण का श्रेय इस तथ्य को देता है कि धर्म की चीनी का लेप लगी दवा की भांति रचनात्मक कथांश द्वारा शिक्षा देना सरल होगा ।
The author of the Vasudevahindi ascribes this changed approach of the Jain authors to the fact that it is easy to teach religion cloaked by erotic episodes, like sugar-coated medicine.
प्राकृत काव्य की विशेषता इसका सूक्ष्म रूप है, आन्तरिक अर्थ (हियाली) इसकी आत्मा है ।
The characteristic of Prakrit poetry is its subtlety; the inner meaning (Hiyaali) is its soul.
सिद्धराशि (906 र्इसवी सन्) की उपमितिभव प्रपंच कथा की भांति जैन साहित्य भी संस्कमत में उपलब्ध है ।
Jain literature is available in Sanskrit too, like the Upamitibhava Prapancha Katha of Siddharasi (906 A.D.).
प्रारम्भिक द्रविड़ साहित्य
Early Dravidian Literature
भारतीय लोग वाक् के चार सुस्प ष्ट परिवारों से जुड़ी भाषाओं में बोलते है: आस्ट्रिक, द्रविड़, चीनी-तिब्बती और भारोपीय ।
The Indian people speak languages belonging to major four distinct speech families: the Austric, Dravidian, Sino-Tibetan and Indo-European.
भाषा के इन चार अलग-अलग समूहों के बावजूद, इन भाषा समूहों से होकर एक भारतीय विशेषता गुजरती है जो जीवन के मूल में निहित कुछ एकरूपता के आधारों में से एक का सृजन करती है जिसका जवाहर लाल नेहरू ने विविधता के बीच एकता के रूप में वर्णन किया है ।
In spite of these four different language groups, there is an Indian characteristic running through these language groups, which forms one of the bases of that certain underlying uniformity of life described by Pandit Jawaharlal Nehru as unity in the midst of diversity.
द्रविड़ साहित्य में मुख्यत: चार भाषाएं शामिल हैं : तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम ।
Dravidian literature mainly consists of the four languages, Tamil, Telugu, Kannada and Malayalam.
इनमें से तमिल सबसे पुरानी भाषा है जिसने द्रविड़ चरित्र को सबसे अधिक बचाकर रखा है ।
Out of these, Tamil is the oldest language which preserved its Dravidian character the most.
कन्नड़ एक संस्कृलत भाषा के रूप में उतनी ही पुरानी है जितनी कि तमिल ।
Kannada, as a cultured language, is almost as old as Tamil.
इन सभी भाषाओं ने संस्कृत से कई शब्दों का आदान-प्रदान किया है.
All these languages have borrowed many words from Sanskrit and vice versa.
तमिल ही मात्र एक ऐसी आधुनिक भारतीय भाषा है, जो अपने एक शास्त्रीय विगत के साथ अभिज्ञेय दृष्टि से सतत है ।
Tamil is the only modern Indian language which is recognizably continuous with a classical past.
प्रारम्भिक शास्त्रीय तमिल साहित्य संगम साहित्य के रूप में जाना जाता है जिसका अर्थ है आतृत्व् जो कवियों की प्रमुख रूप से दो शैलियों, यथा अहम् (प्रेम की व्यक्तिपरक कविताएं), और पूर्ण (वस्तुनिष्ठ ,लोककाव्य और वीर-रस प्रधान) को इंगित करती है ।
Early classical Tamil literature is known as Sangam literature meaning ‘fraternity’, indicating mainly two schools of poets, aham (subjective love poems), and puram (objective, public poetry and heroic).